PSEB 9th Class SST Notes History Chapter 7 Forest Society and Colonialism

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Forest Society and Colonialism PSEB 9th Class SST Notes

→ Products available in the forests: We get many products from the forests such as furniture wood, fuel, fruit, gum, honey, wood for making paper, leaves for making bidi, etc.

→ Deforestation: The meaning of deforestation is cutting trees. Forests were cut down for many purposes such as the expansion of agriculture and railway, for ship-building, etc.

→ Bagaan: Large farmhouses where trees of a single type were planted in straight rows were called Bagan.

PSEB 9th Class SST Notes History Chapter 7 Forest Society and Colonialism

→ Timber Trees: Timber wood is quite strong. It is available in the form of Seal and Teak trees.

→ Control on Forests: After coming to know the importance of forests, the colonial rulers established a forest department and passed many laws to control the forests.

→ Impact of Forest Control: With the government’s control of forests, the tribals were deprived of their means of livelihood. So, they started thinking about the revolts against the government.

→ Shifting Agriculture: In this type of agriculture, forests are cleared to get agricultural land. After doing agriculture for 2-3 years, the land is left alone and the same process is done on the nearby forest land. After the government’s control of forests, such agricultural practice was banned.

→ Scientific Forestry: The system under the control of the forest department in which old trees are cut down and new trees are planted.

→ Bastar: Bastar is located in Chhattisgarh, bordering Andhra Pradesh, Odisha, and Maharashtra. Tribals of this area revolted against the British as they were widely affected by the British forest policies. These revolts were started by the Dhruva tribe.

→ Java: Java is now famous as a rice-producing island in Indonesia. Dutch rulers greatly exploited its forest resources and made the locals labourers. Consequently, locals revolted and it took three months to crush the revolt.

→ 1855: Lord Dalhousie made laws for the protection of forests.

→ 1864: Indian Forest Department was established.

PSEB 9th Class SST Notes History Chapter 7 Forest Society and Colonialism

→ 1865: Indian Forest Act was passed.

→ 1878: Indian forest Act was amended and three categories of forests were formed.

→ 1906: Imperial forest Research Centre was established at Dehradun.

वन्य समाज तथा बस्तीवाद PSEB 9th Class SST Notes

→ वनों का महत्त्व – वन मानव समाज के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन हैं। वनों से हमें इमारती लकड़ी, ईंधन, फल, गोंद, शहद, कागज़ तथा अन्य कई उत्पाद प्राप्त होते हैं। ग्रामीणों के लिए वन आजीविका का महत्त्वपूर्ण साधन हैं।

→ वनोन्मूलन – वनोन्मूलन का अर्थ है-वनों की सफ़ाई। कृषि के विस्तार, रेलवे के विस्तार, जलयान निर्माण आदि कई कार्यों के लिए वनों को बड़े पैमाने पर काटा गया।

→ बागान – ऐसे बड़े-बड़े फार्म जहां एक सीधी पंक्ति में एक ही प्रजाति के वृक्ष लगाए जाते हैं, बागान कहलाते हैं।

→ इमारती लकड़ी के वृक्ष – इमारती लकड़ी मज़बूत तथा कठोर होती है। यह मुख्य साल तथा टीक के वृक्षों से मिलती है।

→ वनों पर नियंत्रण – वनों का महत्त्व ज्ञात होने के बाद औपनिवेशिक शासकों ने वन विभाग की स्थापना की और वन अधिनियम पारित करके वनों पर नियंत्रण कर लिया।

→ वन नियंत्रण के प्रभाव – वनों पर सरकार के नियंत्रण से वनों पर निर्भर रहने वाले आदिवासी कबीलों की रोजी-रोटी छिन गई और उनमें सरकार के विरुद्ध विद्रोह के भाव जाग उठे।

→ स्थानांतरी (झूम) खेती – इस प्रकार की खेती में वनों को साफ़ करके खेत प्राप्त किए जाते हैं।

→ एक-दो वर्ष तक वहां पर कृषि करके उन्हें छोड़ दिया जाता है और किसी अन्य स्थान पर खेत बना लिए जाते हैं। वनों पर सरकारी नियंत्रण के पश्चात् इस प्रकार की कृषि पर रोक लगा दी गई।

→ वैज्ञानिक वानिकी – वन विभाग के नियंत्रण में वृक्ष काटने की वह प्रणली जिसमें पुराने वृक्ष काटे जाते हैं और नए वृक्ष उगाए जाते हैं।

→ बस्तर – बस्तर एक पठार पर स्थित है। वन नियंत्रण से प्रभावित यहां के आदिवासी कबीलों ने अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध विद्रोह किए। इन विद्रोहों का आरंभ ध्रुव कबीले द्वारा हुआ।

→ जावा – जावा इंडोनेशिया का एक प्रदेश है। यहां के डच शासकों ने यहां के वनों का खूब शोषण किया और वहां के स्थानीय लोगों को मज़दूर बनाकर रख दिया।

→ फलस्वरूप उन्होंने विद्रोह कर दिया जिसे दबाने में तीन महीने लग गए।

→ 1855 ई० – लार्ड डल्हौज़ी ने वनों की सुरक्षा के लिए कानून बनाए। इसकी अधीन मालाबार की पहाड़ियों में सागवान और नीलगिरि की पहाड़ियों में बबूल (कीकर) के वृक्ष लगाए गए।

→ 1864 ई० – वनों की रक्षा संबंधी कानूनों/नियमों की पालना हित भारतीय वन विभाग की स्थापना की गई। इसका मुख्य लक्ष्य व्यापारिक बाग़बानी को प्रोत्साहित करना था।

→ 1865 ई० – भारतीय वन अधिनियम 1865, वनों के प्रबंधन संबंधी कानून बनाने से संबंधित था।

→ 1878 ई० – भारतीय वन अधिनियम 1878 इस अधिनियम के अंतर्गत वनों की तीन श्रेणियां बना दी गईं-

  • आरक्षित वन
  • सुरक्षित वन
  • ग्रामीण वन।

→ इस कानून से जंगलों को निजी संपत्ति से सरकारी संपत्ति बनाने के अधिकार दिए गए और लोगों के जंगलों में जाने व उनका प्रयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया।

→ 1906 ई० –  इंपीरियल वन अनुसंधान केंद्र, देहरादून की स्थापना की गई।

→ 1927 ई० –  वनों से संबंधित कानूनों को मजबूत करने, जंगली लकड़ी का उत्पादन बढ़ाने, इमारती लकड़ी व अन्य वन्य उपजों पर कर लगाने के उद्देश्य से भारतीय वन अधिनियम 1927 लागू किया गया। इस कानून में उल्लंघन करने वालों को कारावास व भारी जुर्माने का प्रावधान था।

ਵਣ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਬਸਤੀਵਾਦ PSEB 9th Class SST Notes

→ 1855 ਈ: – ਲਾਰਡ ਡਲਹੌਜ਼ੀ ਨੇ ਜੰਗਲਾਂ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਏ । ਇਸਦੇ ਅਧੀਨ ਮਾਲਾਬਾਰ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਿਚ ਸਾਗਵਾਨ ਅਤੇ ਨੀਲਗਿਰੀ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਵਿਚ ਕਿੱਕਰ ਦੇ ਰੁੱਖ ਲਾਏ ਗਏ ।

→ 1864 ਈ: – ਜੰਗਲਾਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਸੰਬੰਧੀ ਕਾਨੂੰਨਾਂ/ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਪਾਲਨਾ ਲਈ ਭਾਰਤ ਵਣ ਵਿਭਾਗ ਦੀ ! ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਸਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਵਪਾਰਕ ਬਾਗਬਾਨੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨਾ ਸੀ ।

→ 1865 ਈ: – ਭਾਰਤੀ ਵਣ ਐਕਟ 1865, ਜੰਗਲਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਸੰਬੰਧੀ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਤ ਸੀ :

→ 1878 ਈ: – ਭਾਰਤੀ ਵਣ ਐਕਟ 1878 ਈ:, ਇਸ ਐਕਟ ਦੇ ਤਹਿਤ ਜੰਗਲਾਂ ਦੀਆਂ ਤਿੰਨ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਬਣਾ । ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ-

  • ਰਾਖਵੇਂ ਵਣ
  • ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਵਣ
  • ਗਾਮੀਣ ਵਣ ।
    ਇਸ ਕਾਨੂੰਨ ਨਾਲ ਜੰਗਲਾਂ ਨੂੰ ।

→ ਨਿੱਜੀ ਸੰਪੱਤੀ ਤੋਂ ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਪੱਤੀ ਬਣਾਉਣ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੰਗਲਾਂ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਅਤੇ ! ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਰੋਕ ਲਾ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ।

→ 1906 ਈ: – ਇੰਪੀਰੀਅਲ ਵਣ ਖੋਜ ਸੰਸਥਾ, ਦੇਹਰਾਦੂਨ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

→ 1927 ਈ: – ਜੰਗਲਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਤ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰਨ, ਜੰਗਲੀ ਲੱਕੜੀ ਦਾ ਉਤਾਦਨ ਵਧਾਉਣ, ਇਮਾਰਤੀ ਲੱਕੜੀ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਣ ਉਤਪਾਦਾਂ ‘ਤੇ ਕਰ ਲਾਉਣ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਭਾਰਤੀ ਵਣ ਐਕਟ 1927 ਈ: ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਕਾਨੂੰਨ ਵਿਚ ਉਲੰਘਣ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਨੂੰ ਜੇਲ ਅਤੇ ਭਾਰੀ ਜੁਰਮਾਨੇ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਸੀ ।

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