This PSEB 9th Class Social Science Notes History Chapter 8 Social History of Clothing will help you in revision during exams.
Social History of Clothing PSEB 9th Class SST Notes
→ Sumptuary Laws:
- The Sumptuary Laws of Medieval France controlled the behaviour of the lower class.
- According to these Laws, they were not allowed to wear the dress as nobles wore.
→ Women’s Beauty and Clothing:
- In England, women’s beauty was given special emphases.
- They were given a specific type of tight clothes to wear to show their physical beauty.
→ Women’s reaction towards Clothing:
- All the women did not accept the clothing pattern.
- Many opposed such tight dresses as they caused deformities and illness among young girls.
→ New Material:
- During the 17th century, most British women were clothes made of Linen, flex or wool which were difficult to wash.
- Later on, they started wearing cotton clothes.
- They were cheap as well as easy to wash.
→ World Wars and Clothing:
- As a result of the two World Wars, many changes came in clothing.
- Working women started wearing uniforms of blouse and trousers with scarves.
- By the twentieth century, the usage of clothes increased.
→ Western Clothes in India:
- Parsis were the first in India to adopt western clothes.
- Bengalis working in offices and those who converted to Christianity also started using western clothes.
→ Courts and Footwear:
- During British rule, there was a restriction On wearing footwear in the courts.
- This rule becomes a subject of conflict.
→ Swadeshi Movement:
- This movement was initiated in 1905 against Lord Curzon’s decision to partition Bengal.
- It boycotted the British goods and called for adopting locally made goods.
- It gave great encouragement to the Indian industries.
→ Khadi:
- Mahatma Gandhi’s dream was to cloth the whole nation in Khadi.
- But many groups were attracted to western clothes.
- Except for this, Khadi was a little bit expensive.
- So, Gandhiji’s dream remained a dream.
पहनावे का सामाजिक इतिहास PSEB 9th Class SST Notes
→ सम्प्चुअरी कानून – मध्यकालीन फ्रांस के ये कानून निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित करते थे। इनके अनुसार वे लोग राजवंश के लोगों जैसी वेश-भूषा धारण नहीं कर सकते थे।
→ नारी सुंदरता तथा वस्त्र – इंग्लैंड में नारी सुंदरता को विशेष महत्त्व दिया जाता था। अतः उन्हें विशेष प्रकार के तंग वस्त्र पहनाए जाते थे ताकि उनकी शारीरिक बनावट में निखार आए।
→ वस्त्रों के प्रति स्त्रियों की प्रतिक्रिया – सभी-स्त्रियों ने निर्धारित वस्त्र-शैली को स्वीकार न किया। कई स्त्रियों ने पीड़ा और कष्ट देने वाले वस्त्रों का विरोध किया।
→ नयी सामग्री – 17वीं शताब्दी में ब्रिटेन की अधिकतर स्त्रियां फ्लैक्स, लिनन या ऊन से बने वस्त्र पहनती थीं जिन्हें धोना कठिन था। बाद में वे सूती वस्त्र (कपास से बने) पहनने लगीं। ये सस्ते भी थे और इन्हें धोना भी आसान था।
→ महायुद्ध और पहरावा – दो महायुद्धों के परिणामस्वरूप पहरावे में काफ़ी अंतर आया। कामकाजी महिलाएं पतलून, ब्लाऊज़ तथा स्कार्फ पहनने लगीं।
→ भारत में पश्चिमी वस्त्र – भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सर्वप्रथम पारसियों ने अपनाया। दफ्तरों में काम करने वाले बंगाली बाबू तथा ईसाई धर्म ग्रहण करने वाले पिछड़े लोग भी पश्चिमी वस्त्र पहनने लगे।
→ जूतों सम्बन्धी टकराव – ब्रिटिश काल में अदालतों में जूते पहन कर जाने पर रोक थी। यह नियम टकराव का विषय बन गया।
→ स्वदेशी आंदोलन – यह आंदोलन 1905 के बंगाल-विभाजन (लॉर्ड कर्जन द्वारा) के विरोध में चला। इसमें ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया गया तथा स्वदेशी माल के प्रयोग पर बल दिया गया। इससे भारतीय उद्योगों को बल मिला।
→ खादी – गांधी जी पूरे भारत को खादी पहनाना चाहते थे। परंतु कुछ वर्गों में पश्चिमी वस्त्रों का आकर्षण था। इसके अतिरिक्त खादी अपेक्षाकृत महंगी थी। अतः गांधी जी का सपना पूरा न हो सका।
→ फिफ्टी – सिक्ख सैनिक पाँच मीटर की पगड़ी बांधते थे, परंतु युद्ध के दौरान हमेशा भारी और लंबी पगड़ी पहनना संभव नहीं था। इसलिए सैनिकों के लिए पगड़ी की लंबाई कम करके दो मीटर कर दी गई। इस छोटी पगड़ी को फिफ्टी कहा जाता था।
→ पंजाबी लोगों का पहनावा एवं सभ्यता – पंजाबी लोगों के पहनावे और सभ्यता पर अंग्रेजी शासन का बहुत कम प्रभाव पड़ा। स्त्रियों का पहनावा लंबा कुर्ता, सलवार तथा दुपट्टा ही रहा। पुरुष मुख्य रूप से कुर्ता, पायजामा तथा पगड़ी पहनते थे।
→ शादी विवाह पर रंगदार तथा सजावट वाले कपड़े पहनने का रिवाज़ था। शोक के समय सफेद अथवा हल्के रंग के वस्त्र पहने जाते थे। परंतु आज के ग्लोबल विश्व में पंजाबी पहनावे का रूप बदलता जा रहा है।
→ 1842 – अंग्रेज़ वैज्ञानिक लुइस सुबाब द्वारा कृत्रिम रेशों से कपड़ा तैयार करने की मशीन का निर्माण।
→ 1830 ई. – इग्लैंड में महिला संस्थानों द्वारा स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग।
→ 1870 ई. – दो संस्थाओं नेशनल वुमैन सफरेज़ एसोसिएशन और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ एसोसिएशन’ द्वारा स्त्रियों के पहनावे में सुधार के लिए आंदोलन।
ਪਹਿਰਾਵੇ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਇਤਿਹਾਸ PSEB 9th Class SST Notes
→ 1842 ਈ: – ਅੰਗਰੇਜ਼ ਵਿਗਿਆਨੀ ਲੂਈਸ ਸੁਬਾਬ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਉਟੀ ਰੇਸ਼ਿਆਂ ਤੋਂ ਕੱਪੜਿਆਂ ਦੀ ਮਸ਼ੀਨ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ।
→ 1830 ਈ: – ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿਚ ਮਹਿਲਾ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਇਸਤਰੀਆਂ ਲਈ ਲੋਕਤੰਤਰੀ ਅਧਿਕਾਰਾਂ ਦੀ ਮੰਗ ।
→ 1870 ਈ: – ਦੋ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ‘ਨੈਸ਼ਨਲ ਵੁਮੈਨ ਸਫਰੇਜ਼ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ’ ਅਤੇ ‘ਅਮੇਰਿਕਨ ਵੁਮੈਨ ਸਫਰੇਜ਼ ਐਸੋਸੀਏਸ਼ਨ ਦੁਆਰਾ ਇਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਪਹਿਰਾਵੇ ਵਿਚ ਸੁਧਾਰ ਲਈ ਅੰਦੋਲਨ ।