PSEB 12th Class History Notes Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

→ प्रथम चरण (First Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का प्रथम चरण 1800 से 1809 ई० तक चला-1800 ई० में अंग्रेजों ने यूसुफ अली के अधीन एक सद्भावना मिशन रणजीत सिंह के दरबार में भेजा-

→ 1805 में मराठा सरदार जसवंत राव होल्कर ने महाराजा से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता माँगी परंतु महाराजा ने इंकार कर दिया-

→ प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ 1 जनवरी, 1806 ई० को लाहौर की संधि की-महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने चार्ल्स मैटकॉफ को 1808 ई० में बातचीत के लिए भेजा-

→ बातचीत असफल रहने पर दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ आरंभ हो गईं-अंतिम क्षणों में महाराजा अंग्रेज़ों के साथ संधि करने के लिए तैयार हो गया।

→ अमतृसर की संधि (Treaty of Amritsar)-अमृतसर की संधि महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई-इस संधि के अनुसार सतलुज नदी को लाहौर दरबार और अंग्रेजों के मध्य सीमा रेखा मान लिया गया-

→ इस संधि से महाराजा रणजीत सिंह का समस्त सिख कौम को एक झंडे तले एकत्रित करने का सपना धूल में मिल गया-परंतु इस संधि से उसने अपने राज्य को पूर्णत: नष्ट होने से बचा लिया-अमृतसर की संधि अंग्रेजों की बड़ी कूटनीतिक विजय थी।

→ द्वितीय चरण (Second Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का दूसरा चरण 1809 से 1839 ई० तक चला-1809 से 1812 ई० तक दोनों पक्षों के मध्य संदेह और अविश्वास का वातावरण बना रहा-

→ 1812 से 1821 ई० तक का काल दोनों पक्षों के मध्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का काल रहा-1832 में अंग्रेज़ों तथा सिंध में हुई व्यापारिक संधि से महाराजा रणजीत सिंह को गहरा आघात लगा-

→ अंग्रेज़ों द्वारा 1835 ई० में शिकारपुर और फ़िरोज़पुर पर अधिकार करने पर भी महाराजा रणजीत सिंह खामोश रहा-अंग्रेज़ों ने 26 जून, 1838 ई० को महाराजा को त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया-

→ महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के प्रति जो नीति अपनाई उसकी कुछ इतिहासकारों ने निंदा की है जबकि कुछ ने प्रशंसा।

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Punjab State Board PSEB 11th Class Maths Book Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Question 1.
Evaluate
(i) 8!
(ii) 4! – 3!
Answer.
(i) 8! = 8 × 7 × 6 × 5 × 4 × 3 × 2 × 1
= 40320

(ii) 4! = 4 × 3 × 2 × 1 = 24
3! = 3 × 2 × 1=6
∴ 4! – 3! = 24 – 6 = 18

Question 2.
Is 3! + 4! = 7!?
Answer.
3! = 3 × 2 × 1 = 6
4! = 4 × 3 × 2 × 1 =2 4
∴ 3! + 4! = 6 + 24 = 30
7! = 7 × 6 × 5 × 4 × 3 × 2 × 1
= 5040
3! + 4! ≠ 7!.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Question 3.
Compute \(\frac{8 !}{6 ! \times 2 !}\)
Answer.
\(\frac{8 !}{6 ! \times 2 !}=\frac{8 \times 7 \times 6 !}{6 ! \times 2 \times 1}=\frac{8 \times 7}{2}\) = 28.

Question 4.
If \(\frac{1}{6 !}+\frac{1}{7 !}=\frac{x}{8 !}\), find x.
Answer.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2 1

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Question 5.
Evaluate \(\) when
(i) n = 6, r = 2
(ii) n = 9, r = 5
Answer.
(i) When n = 6, r = 2 then

= \(\frac{n !}{(n-r) !}=\frac{6 !}{(6-2) !}=\frac{6 !}{4 !}\)

= \(\frac{6 \times 5 \times 4 \times 3 \times 2 \times 1}{4 \times 3 \times 2 \times 1}\)
= 6 × 5 = 30

(ii) When n = 9, r = 5, then
= \(\frac{n !}{(n-r) !}=\frac{9 !}{(9-5) !}=\frac{9 !}{4 !}\)

= \(\frac{9 \times 5 \times 7 \times 6 \times 5 \times 4 \times 3 \times 2 \times 1}{4 \times 3 \times 2 \times 1}\)
= 9 × 8 × 7 × 6 × 5 = 15120.

PSEB 12th Class History Notes Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

→ महाराजा रणजीत सिंह का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Maharaja Ranjit Singh)-रणाजीत सिंह का जन्म शुकरचकिया मिसल के नेता महा सिंह के घर 1780 ई० में हुआ-

→ रणजीत सिंह की माता का नाम राज कौर था-बचपन में चेचक हो जाने के कारण रणजीत सिंह की बाईं आँख की रोशनी सदा के लिए जाती रही-

→ रणजीत सिंह बचपन से ही बड़ा वीर था-16 वर्ष की आयु में उसका विवाह कन्हैया मिसल के सरदार जय सिंह की पोती मेहताब कौर से हुआ-

→ जब महा सिंह की मृत्यु हुई तब रणजीत सिंह नाबालिग था, इसलिए शासन व्यवस्था-राज कौर, दीवान लखपत राय और सदा कौर की तिक्कड़ी के हाथ में रही-17 वर्ष का होने पर रणजीत सिंह ने-तिक्कड़ी के संरक्षण का अंत करके शासन व्यवस्था स्वयं संभाल ली।

→ पंजाब की राजनीतिक दशा (Political Condition of the Punjab)-जब रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय पंजाब के चारों ओर अशाँति व अराजकता फैली हुई थी-

→ पंजाब के अधिकाँश भागों में सिखों की 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित थीं-ये मिसलें परस्पर झगड़ती रहती थीं-पंजाब के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में मुसलमानों ने भी स्वतंत्र रियासतें स्थापित कर ली थीं-

→ इन रियासतों में भी एकता का अभाव था-पंजाब के उत्तर में कुछ राजपूत रियासतें थीं-नेपाल के गोरखे पंजाब की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहे थे-

→ अंग्रेज़ों और मराठों से रणजीत सिंह को खतरा न था क्योंकि वे तब परस्पर युद्धों में उलझे थे-

→ अफ़गानिस्तान के शासक शाह जमान ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था।

→ सिख मिसलों के प्रति रणजीत सिंह की नीति (Ranjit Singh’s Policy towards the Sikh Misls)-महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति मुग़ल बादशाह अकबर की राजपूत नीति के समान थी-इसमें रिश्तेदारी और कृतज्ञता की भावना के लिए कोई स्थान नहीं था-

→ रणजीत सिंह ने शक्तिशाली मिसलों जैसे कन्हैया तथा नकई मिसल के साथ विवाह संबंध स्थापित किए और आहलूवालिया तथा रामगढ़िया मिसलों के साथ मित्रता की-उनके सहयोग से दुर्बल मिसलों पर आक्रमण करके उन्हें अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया गया-

→ अवसर पाकर रणजीत सिंह ने मित्र मिसलों के साथ विश्वासघात करके उन्हें भी अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया-1805 ई० में रणजीत सिंह ने गुरमता संस्था को समाप्त करके राजनीतिक निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।

→ महाराजा रणजीत सिंह की विजयें (Conquests of Maharaja Ranjit Singh)-महाराजा रणजीत सिंह की महत्त्वपूर्ण विजयों का वर्णन इस प्रकार है-

→ लाहौर की विजय (Conquest of Lahore)-महाराजा रणजीत सिंह ने 7 जुलाई, 1799 ई० को भंगी सरदारों से लाहौर को विजय किया था-यह उसकी प्रथम तथा सबसे महत्त्वपूर्ण विजय थी-लाहौर महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य की राजधानी रही।

→ अमृतसर की विजय (Conquest of Amritsar)-1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खाँ से अमृतसर को विजय किया था इस विजय से महाराजा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई क्योंकि सिख अमृतसर को अपना मक्का समझते थे।

→ मुलतान की विजय (Conquest of Multan)-महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कब्जा करने के लिए 1802 ई० से 1817 ई० के समय दौरान सात अभियान भेजे-

→ अंतत: 2 जून, 1818 ई० को मुलतान पर विजय प्राप्त की गई-वहाँ का शासक मुज्जफ़र खाँ अपने पाँच पुत्रों के साथ युद्ध में मारा गया-मुलतान विजेता मिसर दीवान चंद को जफर जंग की उपाधि दी गई।

→ कश्मीर की विजय (Conquest of Kashmir)-महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को विजय करने के लिए तीन बार आक्रमण किए-उसने 1819 ई० में अपने तृतीय सैनिक अभियान दौरान कश्मीर को विजित किया-

→ कश्मीर का तत्कालीन गवर्नर जबर खाँ था-यह विजय महाराजा के लिए अनेक पक्षों से लाभदायक रही।

→ पेशावर की विजय (Conquest of Peshawar)-महाराजा रणजीत सिंह ने यद्यपि 1823 ई० में पेशावर पर विजय प्राप्त कर ली थी परंतु इसे 1834 ई० में अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया-इससे अफ़गानों की शक्ति को गहरा आघात लगा।

→ अन्य विजयें (Other Conquests)-महाराजा रणजीत सिंह की अन्य महत्त्वपूर्ण विजयों में कसूर तथा सँग (1807), स्यालकोट (1808), काँगड़ा (1809), जम्मू (1809), अटक (1813) तथा डेरा गाजी खाँ (1820) आदि के नाम वर्णनीय हैं।

PSEB 6th Class Science Solutions Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ

Punjab State Board PSEB 6th Class Science Book Solutions Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Science Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ

Science Guide for Class 6 PSEB ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ Intext Questions and Answers

ਸੋਚੋ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ (ਪੇਜ 2)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮੱਗਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਖੀਰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹੜੀ ਸਮੱਗਰੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਖੀਰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਪਦਾਰਥ ਜਿਵੇਂ-ਚਾਵਲ, ਖੰਡ, ਦੁੱਧ ਅਤੇ ਸੁੱਕਾ ਭੋਜਨ ॥

ਸੋਚੋ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ (ਪੇਜ 4)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪੌਦੇ ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜੋ ਭੋਜਨ ਵਜੋਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਕੀ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਹਿੱਸੇ ਜੋ ਸਾਡੇ ਦੁਆਰਾ ਭੋਜਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਹਿੱਸੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਅੰਬ ਦੇ ਪੌਦੇ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਭਾਗ ਖਾਣਯੋਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ਲ ।

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ਸੋਚੋ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ (ਪੇਜ 6)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੋ ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜੋ ਕੇਵਲ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਉਤਪਾਦ ਹੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਾਂ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੋ ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜੋ ਕੇਵਲ ਮਾਸ ਹੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੇਰ ਅਤੇ ਚੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੋ ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜੋ ਭੋਜਨ ਲਈ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਜੰਤੂਆਂ ਦੋਵਾਂ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਿੱਲੀ ਅਤੇ ਕੁੱਤਾ ।

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1. ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ ਹਰ-

(i) ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਸਮਾਨ ਨੂੰ ………….. ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮੱਗਰੀ,

(ii) ਆਂਡੇ ਦੇ ਚਿੱਟੇ ਭਾਗ ਨੂੰ ………… ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਐਲਬਿਊਮਿਨ,

(iii) ਪੌਦੇ …………. ਕਿਰਿਆ ਰਾਹੀਂ ਆਪਣਾ ਭੋਜਨ ਆਪ ਤਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਸੰਸਲੇਸ਼ਣ,

(iv) ਸਰੋਂ ਦੇ ……… ਅਤੇ ………. ਭਾਗ ਭੋਜਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੱਤੇ, ਬੀਜ,

(v) ਸ਼ਹਿਦ ਦੀ ਮੱਖੀ ਫੁੱਲਾਂ ਤੋਂ …………. ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ।

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2. ਸਹੀ ਜਾਂ ਗਲਤ ਲਿਖੋ –

(i) ਸਾਰੇ ਜਾਨਵਰ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(ii) ਸ਼ਕਰਕੰਦੀ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ,

(iii) ਪੋਸ਼ਣ ਦੇ ਪੱਖ ਤੋਂ ਆਂਡਾ ਇੱਕ ਵਧੀਆ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(iv) ਗੰਨੇ ਦੇ ਤਣੇ ਨੂੰ ਜੂਸ, ਚੀਨੀ, ਗੁੜ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ,

(v) ਮੱਖਣ, ਦਹੀਂ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਦ ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਬਣੇ ਪਦਾਰਥ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ ।

3. ਕਾਲਮ ‘ਉ’ ਅਤੇ ਕਾਲਮ “ਅ ਦਾ ਮਿਲਾਨ ਕਰੋ

ਕਾਲਮ ‘ਉ ‘ ਕਾਲਮ “ਅ”
(ਉ) ਗਾਜਰ (i) ਦਾਲਾਂ
(ਅ) ਛੋਲੇ, ਮਟਰ (ii) ਫ਼ਲ
(ਇ) ਕਣਕ, ਚਾਵਲ (iii) ਜੜ੍ਹ
(ਸ) ਆਲੂ (iv) ਅਨਾਜ
(ਹ) ਸੰਤਰਾ (v) ਤਣਾ

ਉੱਤਰ –

ਕਾਲਮ ‘ਉਂ ਕਾਲਮ  ‘ਅ’
(ਉ) ਗਾਜਰ (iii) ਜੜ੍ਹ
(ਅ) ਛੋਲੇ, ਮਟਰ (i) ਦਾਲਾਂ
(ਇ) ਕਣਕ, ਚਾਵਲ (iv) ਅਨਾਜ
(ਸ) ਆਲੂ (v) ਤਣਾ
(ਹ) ਸੰਤਰਾ (ii) ਫ਼ਲ

4. ਸਹੀ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ :

(i) ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਹੜਾ ਸਰਬ ਆਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰ ਹੈ ।
(ਉ) ਸ਼ੇਰ
(ਅ) ਬਾਜ
(ਈ) ਹਿਰਨ
(ਸ) ਕਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਕਾਂ ।

(ii) ਬੰਦ ਗੋਭੀ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਭਾਗ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
(ਉ) ਤਣਾ ।
(ਅ) ਜੜ੍ਹਾਂ
(ਇ) ਪੱਤੇ
(ਸ) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ੲ) ਪੱਤੇ ।

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5. ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (i)
ਸਮੱਗਰੀ ਕੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਖਾਣ-ਪੀਣ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲੋੜੀਂਦੇ ਪਦਾਰਥ ਨੂੰ ਸਮੱਗਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (ii)
ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪਨੀਰ, ਮੱਖਣ, ਦਹੀਂ ਅਤੇ ਕਰੀਮ ॥

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (iii)
ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਵਿੱਚ ਮਸਾਲੇ ਵਜੋਂ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਕੋਈ ਦੋ ਬੀਜਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ।.
ਉੱਤਰ-
ਅਦਰਕ ਅਤੇ ਹਲਦੀ ।

6. ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ :

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (i)
ਬੀਜ ਮਨੁੱਖੀ ਭੋਜਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਕਿਵੇਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੀਜ ਸਾਡੇ ਭੋਜਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਤੱਤ ਹੈ । ਬੀਜ ਸਾਡੀਆਂ ਚੰਗੀਆਂ ਦਾਲਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਅੰਸ਼ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਚਣੇ, ਮਟਰ, ਰਾਜਮਾਂਹ ਅਤੇ ਮੂੰਗ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਦੇ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਅਨਾਜ ਘਾਹ ਦੇ ਪੌਦੇ ਦੇ ਬੀਜ ਹਨ ਜਿਵੇਂ-ਕਣਕ, ਚੌਲ ਅਤੇ ਮੱਕੀ । ਇਹ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡੇਟਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਹਨ | ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਬੀਜ ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਤੇਲ ਦੇ ਸਰੋਤ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਸਰੋਂ, ਮੁੰਗਫਲੀ, ਸੂਰਜਮੁਖੀ ਅਤੇ ਨਾਰੀਅਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (ii)
ਜੀਵਤ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਲਈ ਭੋਜਨ ਦੀ ਕੀ ਮਹੱਤਤਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੀਵਤ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਲਈ ਭੋਜਨ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਉਰਜਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਸਰੀਰ ਦੇ ਵਾਧੇ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਸਿਹਤਮੰਦ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ।ਸਰੀਰ ਦੇ ਕਈ ਜ਼ਖ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਭਰਨ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (iii)
ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਕੋਈ ਦੋ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਾਨੂੰ ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲਦੇ ਹਨ (ਉਦਾਹਰਨ ਵਜੋਂ-ਦੁੱਧ, ਆਂਡੇ, ਮੀਟ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਦ ਆਦਿ । ਦੁੱਧ ਅਤੇ ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਬਣੇ ਪਦਾਰਥ-ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਵਿੱਚ ਦੁੱਧ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ ਡੇਅਰੀ ਉਤਪਾਦਾਂ ਵਿੱਚ ਬਦਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ-ਪਨੀਰ, ਮੱਖਣ, ਦਹੀਂ ਅਤੇ ਕਰੀਮ ਆਦਿ । ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਗਾਂ, ਮੱਝ, ਭੇਡਾਂ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ਦਾ ਦੁੱਧ ਵਰਤਦੇ ਹਾਂ । ਦੁੱਧ ਵਿੱਚ ਖੰਡ, ਚਰਬੀ, ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਅਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਚੰਗੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

ਸ਼ਹਿਦ-ਸ਼ਹਿਦ ਮਧੂ-ਮੱਖੀਆਂ ਤੋਂ ਤਿਆਰ ਮਿੱਠਾ ਅਤੇ ਸੰਘਣਾ ਤਰਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮਧੂ-ਮੱਖੀਆਂ ਫੁੱਲ ਤੋਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਦ ਵਿੱਚ ਬਦਲਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਛੱਤੇ ਵਿੱਚ ਸਟੋਰ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਸ਼ਹਿਦ, ਖੰਡ, ਪਾਣੀ, ਖਣਿਜਪਦਾਰਥ, ਐਨਜ਼ਾਈਮ ਅਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਪੁਰਾਤਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸ਼ਹਿਦ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਦਵਾਈ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

7. ਵੱਡੇ ਉੱਤਰ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ-
ਭੋਜਨ ਸੰਬੰਧੀ ਆਦਤਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀਬੱਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ? ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਕੇ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਸੀਂ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਭੋਜਨ ਖਾਣ ਦੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਤਿੰਨ ਕਿਸਮਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਇਹ ਹਨ-

  • ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ
  • ਮਾਸਾਹਾਰੀ
  • ਸਰਬ-ਅਹਾਰੀ ।

(b) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ-ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਜੀਵ ਉਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਭੋਜਨ ਖਾਣ ਲਈ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਬਣੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

  • ਜਿਵੇਂ-ਗਾਂ, ਬੱਕਰੀ, ਖਰਗੋਸ਼, ਭੇਡ, ਹਿਰਨ ਅਤੇ ਹਾਥੀ ਆਦਿ ।
  • ਮਾਸਾਹਾਰੀ-ਇਹ ਜੀਵ ਉਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਭੋਜਨ ਖਾਣ ਲਈ ਦੂਜੇ ਜੰਤੂਆਂ ਨੂੰ ਖਾਂਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ-ਸ਼ੇਰ, ਚੀਤਾ, ਕਿਰਲੀ ਅਤੇ ਸੱਪ ਆਦਿ ।
  • ਸਰਬ-ਅਹਾਰੀ-ਇਹ ਜੀਵ ਉਹ ਜੀਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਆਪਣੇ ਭੋਜਨ ਲਈ ਦੋਨਾਂ ਜਾਨਵਰਾਂ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ-ਭਾਲੂ, ਕਾਂ, ਕੁੱਤਾ, ਚੂਹਾ ਅਤੇ ਆਦਮੀ ਅਦਿ ।

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PSEB Solutions for Class 6 Science ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ Important Questions and Answers

1. ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ

(i) ਸ਼ੇਰ ………….. ਹੈ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ …………. ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਾਸਾਹਾਰੀ, ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ,

(ii) ਕਾਂ, ਕੁੱਤਾ ਅਤੇ ਬਿੱਲੀ ………….. ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ,

(iii) ਜੀਵਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਖਾਣਯੋਗ ਵਸਤਾਂ ਨੂੰ ………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਜੀਵ ਉਤਪਾਦ,

(iv) ਜੀਵਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਖਾਣਯੋਗ ਵਸਤਾਂ ਨੂੰ ………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਨਸਪਤੀ ਉਤਪਾਦ,

(v) ਗੰਨੇ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ………….. ਮਿਲਦੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਚੀਨੀ ।

2. ਸਹੀ ਜਾਂ ਗਲਤ ਲਿਖੋ

(i) ਜਿਹੜੇ ਜੀਵ ਦੂਸਰੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਮਾਸ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(ii) ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਸਿਰਫ਼ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਹੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(iii) ਸਰੋਂ ਦੇ ਬੀਜ ਤੇਲ ਦਾ ਸੋਤ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ,

(iv) ਗਿਰਝਾਂ ਨਿਖੇੜਕ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-

(v) ਤੋਤਾ ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

3. ਮਿਲਾਨ ਕਰੋ

ਕਾਲਮ ‘ਉੱ’ ਕਾਲਮ ‘ਆਂ’
(i) ਦੁੱਧ (ਉ) ਗੰਨਾ
(ii) ਸ਼ਹਿਦ (ਅ) ਊਠਣੀ
(iii) ਚੀਨੀ (ਇ) ਕਣਕ
(iv) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ (ਸ) ਖਰਗੋਸ਼
(v) ਨਿਖੇੜਕ (ਹ) ਮਧੂਮੱਖੀ

ਉੱਤਰ –

ਕਾਲਮ ‘ਉੱ’ ਕਾਲਮ ‘ਆਂ’
(i) ਦੁੱਧ (ਅ) ਊਠਣੀ
(ii) ਸ਼ਹਿਦ (ਹ) ਮਧੂਮੱਖੀ
(iii) ਚੀਨੀ (ਉ) ਗੰਨਾ
(iv) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ (ਸ) ਖਰਗੋਸ਼
(v) ਨਿਖੇੜਕ (ਇ) ਕਣਕ

4. ਸਹੀ ਉੱਤਰ ਚੁਣੋ –

(i) ਇਹ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਨਾਸ਼ਤੇ ਵਿੱਚ ਖਾਧਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ-
(ਉ) ਮਾਸ
(ਅ) ਦਲੀਆ
(ਏ) ਫਲ
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।

(ii) ਦੁੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ
(ਉ) ਫਲਾਂ ਤੋਂ
(ਅ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ
(ਏ) ਜੰਤੂਆਂ ਤੋਂ
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।
ਉੱਤਰ-
(ਏ) ਜੰਤੂਆਂ ਤੋਂ ।

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(iii) ਪੁੰਗਰੇ ਹੋਏ ਬੀਜਾਂ ਵਿੱਚ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ
(ਉ) ਕਾਰਬੋਹਾਈਡੇਂਟਸ
(ਅ) ਚਰਬੀ
(ਏ) ਪ੍ਰੋਟੀਨ
(ਸ) ਜਲ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਪ੍ਰੋਟੀਨ ।

(iv) ਸ਼ਕਰਕੰਦੀ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਮਿਲਦੀ ਹੈ
(ਉ) ਚਰਬੀ
(ਅ) ਚੀਨੀ
(ਏ) ਸ਼ਹਿਦ
(ਸ) ਦੁੱਧ !
ਉੱਤਰ-
(ਅ) ਚੀਨੀ ।

(v) ਸਿਰਫ਼ ਪੌਦੇ ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਜੰਤੂ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ
(ਉ) ਮਾਸਾਹਾਰੀ
(ਅ) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ
(ਈ) ਸਰਬਅਹਾਰੀ
(ਸ) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ।

(vi) ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਜੀਵ ਖਾਂਦੇ ਹਨ –
(ਉ) ਪੌਦੇ
(ਅ ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਮਾਸ
(ਏ) ਮਾਸ
(ਸ) ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ਏ) ਮਾਸ ।

(vii) ਅੰਡਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ-
(ੳ) ਮੁਰਗੀ
(ਅ) ਛਿਪਕਲੀ
(ਈ) ਕੱਛੂਆ
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ !
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।

(viii) ਖੀਰ ਦੇ ਸੰਘਟਕ ਹਨ-
(ਉ) ਦੁੱਧ, ਚੀਨੀ, ਚਾਵਲ
(ਅ) ਦੁੱਧ, ਆਟਾ, ਚੀਨੀ
(ੲ) ਪਾਣੀ, ਚੀਨੀ, ਚਾਵਲ
(ਸ) ਪਾਣੀ, ਆਟਾ, ਚੀਨੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਉ) ਦੁੱਧ, ਚੀਨੀ, ਚਾਵਲ ॥

(ix) ਦੁੱਧ ਦਾ ਉਤਪਾਦ ਨਹੀਂ ਹੈ-
(ਉ) ਖੀਰ
(ਅ) ਦਹੀਂ
(ਈ) ਦਾਲ
(ਸ) ਪਨੀਰ ।
ਉੱਤਰ-
(ਈ) ਦਾਲ ।

(x) ਗਾਜਰ ਇੱਕ ……….. ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਅਸੀਂ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ
(ਉ) ਤਣਾ
(ਅ) ਜੜ੍ਹ
(ਇ) ਫੁੱਲ
(ਸ) ਫਲ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅ) ਜੜ੍ਹ !

5. ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਚਾਰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਰੋਟੀ, ਚਾਵਲ, ਦਾਲ, ਫੁੱਲ ਗੋਭੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਕੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ-ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਸਮੱਗਰੀ ਨੂੰ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਚਾਵਲ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਪਾਣੀ ਅਤੇ ਚਾਵਲ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦਾਲ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹੜੀ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਦਾਲ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਕੱਚੀ ਦਾਲ, ਪਾਣੀ, ਨਮਕ, ਤੇਲ, ਘਿਉ, ਮਸਾਲੇ ਆਦਿ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ !

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਬਜ਼ੀ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹੜੇ ਸੰਘਟਕਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੱਚੀ ਸਬਜ਼ੀ, ਨਮਕ, ਮਸਾਲਾ, ਤੇਲ ਆਦਿ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸੰਘਟਕ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਘਟਕ-ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਜੋ ਪਦਾਰਥ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੰਘਟਕ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਕਿਹੜੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਦੁੱਧ, ਅੰਡੇ, ਮੱਛੀ, ਮਾਸ, ਮੁਰਗਾ ਅਤੇ ਝੀਗਾ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਕਿਹੜੇ ਖਾਧ ਸੰਘਟਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਸਬਜ਼ੀ, ਫਲ ਆਦਿ ਸੰਘਟਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਦੁੱਧ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਾਂ, ਮੱਝ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਦੁੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਦੁੱਧ ਦੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਮੱਖਣ, ਕਰੀਮ, ਘਿਉ, ਪਨੀਰ ਅਤੇ ਦਹੀਂ ਆਦਿ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਕਿਹੜੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਾਲਕ, ਸਰੋਂ, ਮੇਥੀ ਆਦਿ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਕਿਹੜੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਤਣਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਆਲੂ, ਪਿਆਜ, ਲਸਣ ਅਤੇ ਕਚਾਲੂ ਦੇ ਤਣੇ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਕਿਸ ਪੌਦੇ ਦੇ ਫਲ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਬ ਦਾ ਫਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਪੌਦੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿਸਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਵਜੋਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਰੋਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਦਾ ਸਾਗ ਬਣਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਬੀਜਾਂ ਤੋਂ ਤੇਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਪੁੰਗਰਨਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੁੰਗਰਨਾ-ਬੀਜਾਂ ਦੇ ਅੰਕੁਰਿਤ ਹੋਣ ਨੂੰ ਪੁੰਗਰਨਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਦੋ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੱਝ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਦੋ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੋਰ ਅਤੇ ਕਿਰਲੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਦੋ ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਨੁੱਖ ਅਤੇ ਕਾਂ ।

6. ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਅਤੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਜਿਹੜਾ ਭੋਜਨ ਅਸੀਂ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ, ਉਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਿਹੜਾ ਭੋਜਨ ਅਸੀਂ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਦਾਲਾਂ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ, ਮਸਾਲੇ, ਤੇਲ, ਫੁੱਲ ਅਤੇ ਫਲ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਤੁਹਾਡੇ ਵਲੋਂ ਦਿਨ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਸੂਚੀ ਬਣਾਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁੱਧ, ਚਪਾਤੀ, ਦਾਲ, ਸਬਜ਼ੀ, ਫਲ, ਡਬਲਰੋਟੀ (ਬਰੈਂਡ), ਪਕੌੜੇ, ਖੀਰ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਇਡਲੀ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸੋਮਿਆਂ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ –

ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਸੋਮੇ
ਇਡਲੀ ਚਾਵਲ ਪੌਦਾ
ਮਾਂਹ ਦੀ ਦਾਲ ਪੌਦਾ
ਨਮਕ ਸਮੁੰਦਰ
ਪਾਣੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਭੂਮੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵਿੱਚ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਕਾਰਕ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵਿੱਚ ਚਟਾਨਾਂ ਅਤੇ ਜਲਵਾਯੂ ਦੇ ਕਾਰਕ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਭੂਮੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਕ ਕਿਹੜੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਵਾ, ਬਾਰਿਸ਼, ਤਾਪਮਾਨ ਅਤੇ ਨਮੀ ਭੂਮੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਕ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਨੂੰ ਭੁਮੀ ਹੋਰੀਜ਼ਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਤਹਿਆਂ ਦਾ ਰੰਗ, ਬਨਾਵਟ ਅਤੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਗੁਣ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੇ ਹਨ | ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਪਰਲੀ ਤਹਿ ਨੂੰ ‘ਏ’ ਹੌਰੀਜ਼ਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਹਿ ਵਿਚ ਮੱਲੜ੍ਹ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਸਦਾ ਰੰਗ ਗੂੜ੍ਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਰੇਤਲੀ ਅਤੇ ਡਾਕਰ ਭੂਮੀ ਵਿੱਚ ਕੀ ਫਰਕ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ

ਰੇਤਲੀ ਭੂਮੀ ਡਾਕਰ ਭੂਮੀ
1. ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਣਾਂ ਦਾ ਆਕਾਰ ਵੱਡਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । 1. ਇਸ ਵਿਚ ਛੋਟੇ ਕਣਾਂ ਦਾ ਆਕਾਰ ਵਧੇਰੇ  ਹੁੰਦਾ ਹੈ |
2. ਇਸ ਦੇ ਕਣਾਂ ਵਿਚ ਹਵਾ ਵਧੇਰੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । 2. ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹਵਾ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਘੱਟ  ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
3. ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਣੀ ਜਲਦੀ ਜ਼ੀਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । 3. ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਨੂੰ  ਰੋਕਣ ਦੀ ਵੱਧ ਸਮਰੱਥਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮੱਲੜ੍ਹ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਖਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਦੀ ਰਹਿੰਦ-ਖੂੰਹਦ, ਪੱਤਿਆਂ ਆਦਿ ਦਾ ਭੁਮੀ ਵਿਚ ਗਲ-ਸੜ ਜਾਣਾ ਤੇ ਹੋਰ ਜੈਵਿਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਭੂਮੀ ਵਿਚ ਹੋਣਾ ਇਸ ਨੂੰ ਮੱਲੜ੍ਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਇੱਕ-ਦੂਸਰੇ ਨਾਲੋਂ ਕਿਸ ਆਧਾਰ ਤੇ ਵੱਖ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਇੱਕ-ਦੂਸਰੇ ਤੋਂ ਰੰਗ, ਬਣਾਵਟ (texture) ਅਤੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਵੱਖ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਭੂਮੀ ਦੀ ਉੱਪਰਲੀ ਤਹਿ ਦਾ ਰੰਗ ਗੂੜ੍ਹਾ ਕਿਉਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀ ਉੱਪਰਲੀ ਤਹਿ ਦਾ ਰੰਗ ਇਸ ਲਈ ਗੂੜ੍ਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਮੱਲੜ ਅਤੇ ਖਣਿਜਾਂ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮੈਰਾ ਭੂਮੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਉਂ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੈਦਾ ਭੂਮੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਇਸ ਲਈ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਸੋਕਣ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਤਸੱਲੀਬਖ਼ਸ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਪੁੰਗਰੇ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਖਾਣ ਲਈ ਕਿਵੇਂ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੁੰਗਰੇ ਬੀਜਾਂ ਦੀ ਤਿਆਰੀ-ਮੂੰਗ ਜਾਂ ਚਨੇ ਦੇ ਕੁੱਝ ਸੁੱਕੇ ਬੀਜ ਲਵੋ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੁੱਝ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਭਰੇ ਬਰਤਨ ਵਿੱਚ ਪਾ ਦਿਓ ਅਤੇ ਇੱਕ ਦਿਨ ਲਈ ਛੱਡ ਦਿਓ । ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਤਾਰ ਦਿਓ ਅਤੇ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਗਿੱਲੇ ਕੱਪੜੇ ਨਾਲ ਉਸੇ ਬਰਤਨ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦਿਓ । ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਇਸੇ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਛੱਡ ਦਿਓ | ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬੀਜਾਂ ਵਿੱਚ ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਪੌਦੇ ਉੱਗਣ ਲੱਗ ਜਾਣਗੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੁੰਗਰੇ ਸੁੱਕੇ ਬੀਜ ਬੀਜ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਮਸਾਲੇ ਅਤੇ ਨਮਕ ਮਿਲਾ ਕੇ ਖਾਓ, ਇਹ ਸੁਆਦਲਾ ਨਾਸ਼ਤਾ ਹੈ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸ਼ਹਿਦ ਕਿਵੇਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਹਿਦ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ-ਸ਼ਹਿਦ ਸਾਨੂੰ ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਦੇ ਛੱਤੇ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਰੁੱਖਾਂ, ਬੀਜ ਤੇ ਛੱਤੇ ਬਣਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ | ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਫੁੱਲਾਂ ਦਾ ਰਸ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਛੱਤੇ ਵਿੱਚ ਭੰਡਾਰ ਕਰ ਲੈਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਫੁੱਲ ਅਤੇ ਫੁੱਲਾਂ ਦਾ ਰਸ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਹੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਵਲੋਂ ਭੰਡਾਰ ਕੀਤਾ ਭੋਜਨ ਅਸੀਂ ਸ਼ਹਿਦ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਜਾਨਵਰ ਕੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਭੋਜਨ-ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜਾਨਵਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਭੋਜਨ ਖਾਂਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਜਾਨਵਰ ਸਿਰਫ ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦ ਹੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਗਾਂ, ਮੱਝ, ਬੱਕਰੀ । ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਜਾਨਵਰ ਦੁਸਰੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਮਾਸ ਖਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਕਿਰਲੀ, ਡੱਡੂ, ਸ਼ੇਰ ਅਤੇ ਚੀਤਾ ਆਦਿ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੁੱਝ ਜਾਨਵਰ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦ ਅਤੇ ਦੁਸਰੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਖਾਂਦੇ ਹਨ | ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਸਰਬਆਹਾਰੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਮਨੁੱਖ, ਕਾਂ ਅਤੇ ਬਿੱਲੀ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਖਾਧ ਸਮੱਗਰੀ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਸਰੋਤ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਖਾਧ ਸਮੱਗਰੀ ਦੇ ਸਰੋਤ-ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਜੰਤੁ ਖਾਧ ਸਮੱਗਰੀ ਦੇ ਸੋਮੇ ਹਨ । ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ, ਬੀਜ ਤੇਲ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅੰਡਾ, ਮੁਰਗਾ, ਮੱਛੀ, ਝੱਗਾ, ਮਾਸ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪੌਦੇ ਦੇ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਹਿੱਸੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦੇ ਸਾਡੇ ਭੋਜਨ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਹਨ । ਅਸੀਂ ਪੌਦੇ ਦੇ ਕਈ ਹਿੱਸਿਆਂ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕਰਦੇ ਹਾਂ | ਅਸੀਂ ਪੱਤਿਆਂ ਵਾਲੀਆਂ ਕਈ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ । ਕੁੱਝ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਫਲਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ | ਕਈ ਵਾਰ ਜੜ, ਕਈ ਵਾਰ ਤਣਾ ਅਤੇ ਕਈ ਵਾਰ ਫੁੱਲ ਵੀ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ । ਜਿਵੇਂ ਸੀਤਾਫਲ ਦੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨੂੰ ਚਾਵਲ ਦੀ ਪੀਠੀ ਵਿੱਚ ਡੁਬੋ ਕੇ ਅਤੇ ਤਲ ਕੇ ਪਕੌੜੀ ਬਣਾ ਕੇ ਖਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੁੱਝ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਹਿੱਸੇ ਖਾਣ ਯੋਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਸਰੋਂ ਦੇ ਬੀਜਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਤੇਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਸਾਗ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਾਨੂੰ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਵੱਖਰੇ-ਵੱਖਰੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲਦੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਣ-ਫਲ, ਬੀਜ, ਖਾਣਯੋਗ ਪੱਤੇ, ਜੜ੍ਹ ਅਤੇ ਤਣਾਂ ਆਦਿ । ਫਲ-ਫਲ ਸਾਡੀ ਚੰਗੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਰੋਤ ਹਨ । ਵਿਟਾਮਿਨ ਅਤੇ ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥ ਅਤੇ ਇਹ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹਨ, ਚੰਗੀ ਸਿਹਤ ਲਈ । ਕੁੱਝ ਫ਼ਲ ਜਿਵੇਂ-ਅੰਬ, ਅਮਰੂਦ, ਸੇਬ, ਪਪੀਤਾ ਅਤੇ ਸੰਤਰਾ ਕੱਚੇ ਖਾਧੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਫਲਾਂ ਨੂੰ ਜੂਸ, ਆਚਾਰ ਅਤੇ ਮੁਰੱਬਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵੀ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਬੀਜ-ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਦਾਹਰਨ ਵਜੋਂ ਛੋਲੇ, ਮਟਰ, ਰਾਜਮਾਂਹ, ਮੂੰਗ ਆਦਿ ਦਾਲਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁੱਝ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ । ਇਹ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਹਨ | ਘਾਹ ਵਰਗੀਆਂ ਕੁੱਝ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੇ ਬੀਜ ਜਿਵੇਂ ਕਣਕ, ਮੱਕੀ ਅਤੇ ਚਾਵਲ ਅਨਾਜ ਦੀਆਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ । ਇਹ ਸਾਰੇ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡੇਟਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਹਨ । ਕਣਕ ਦਾ ਆਟਾ ਰੋਟੀ, ਬੈਂਡ ਅਤੇ ਬਿਸਕੁਟ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਧਨੀਆ, ਜੀਰਾ ਅਤੇ ਕਾਲੀ ਮਿਰਚ ਨੂੰ ਮਸਾਲਿਆਂ ਵਜੋਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਰੋਂ ਦਾ ਤੇਲ ਪਕਾਉਣ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

7. ਵੱਡੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ :

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇਡਲੀ, ਮੁਰਗੇ ਦਾ ਮੀਟ ਅਤੇ ਖੀਰ ਦੇ ਲਈ ਵਰਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਸੋਮੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਡਲੀ, ਮੁਰਗੇ ਦਾ ਮੀਟ ਅਤੇ ਖੀਰ ਲਈ ਸਮੱਗਰੀ ਅਤੇ ਸੋਮੇ ।

ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਸੋਮੇ
ਇਡਲੀ ਚੌਲ ਪੌਦਾ
ਮਾਂਹ ਦੀ ਦਾਲ ਪੌਦਾ
ਨਮਕ ਸਮੁੰਦਰ
ਪਾਣੀ ਜਲ ਸੋਮਾ
ਮੁਰਗੇ ਦਾ ਮੀਟ ਮੁਰਗਾ ਜਾਨਵਰ
ਮਸਾਲਾ
ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ मेमे
ਤੇਲ/ਘਿਉ ਪੌਦੇ/ਜਾਨਵਰ
ਪਾਣੀ
ਖੀਰ ਦੁੱਧ ਜਾਨਵਰ
ਚੀਨੀ ਪੌਦਾ (ਗੰਨਾ)
ਚਾਵਲ ਪੌਦੇ

PSEB 6th Class Science Solutions Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ । ਮੱਝ, ਬਿੱਲੀ, ਚੂਹਾ, ਸ਼ੇਰ, ਚੀਤਾ, ਮਕੜੀ, ਕਿਰਲੀ, ਗਾਂ, ਮਨੁੱਖ, ਤਿੱਤਲੀ, ਕਾਂ।
ਉੱਤਰ-
ਜਾਨਵਰ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭੋਜਨ-
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PSEB 12th Class History Notes Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

→ मिसल शब्द से भाव (Meaning of the word Misl)-कनिंघम और प्रिंसेप के अनुसार मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘बराबर’-डेविड आक्टरलोनी मिसल शब्द को स्वतंत्र शासन करने वाले कबीले या जाति से जोड़ते हैं-अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार मिसल शब्द का अर्थ फाइल है।

→ सिख मिसलों की उत्पत्ति (Origin of the Sikh Misls)-सिख मिसलों की उत्पत्ति किसी पूर्व निर्धारित योजना या निश्चित समय में नहीं हुई थी-

→ मुग़ल सूबेदारों के बढ़ते अत्याचारों के कारण 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को बुड्डा दल और तरुणा दल में संगठित कर दियाउन्होंने ही 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की-दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए-इन्हें ही मिसल कहा जाता था।

→ सिख मिसलों का विकास (Growth of the Sikh Misis)-सिखों की महत्त्वपूर्ण मिसलों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

→ फैज़लपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था-उस मिसल के अधीन अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, पट्टी और नूरपुर आदि के प्रदेश आते थे।

→ आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl)-आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह था-इस मिसल के अधीन सरहिंद और कपूरथला आदि के महत्त्वपूर्ण प्रदेश आते थे।

→ रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)-इस मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था—इस मिसल के अधीन बटाला, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, हरगोबिंदपुर और करतारपुर आदि के प्रदेश आते थे।

→ शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl)-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक चढ़त सिंह था-इस मिसल की राजधानी गुजराँवाला थी-महाराजा रणजीत सिंह इसी मिसल से संबंध रखता था।

→ अन्य मिसलें (Other Misis)-अन्य मिसलों में भंगी मिसल, फुलकियाँ मिसल, कन्हैया मिसल, डल्लेवालिया मिसल, शहीद मिसल, नकई मिसल, निशानवालिया मिसल और करोड़ सिंघिया मिसल आती थीं।

→ मिसलों का राज्य प्रबंध (Administration of the Misis) गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी-सारे सिख इन गुरमतों को गुरु की आज्ञा समझकर पालना करते थे-प्रत्येक मिसल का मुखिया सरदार कहलाता था-उसके अधीन कई मिसलदार थे-

→ प्रत्येक मिसल कई जिलों में बंटी होती थी-मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी-मिसलों की आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान और राखी प्रथा थी-

→ मिसलों का न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था-आधुनिक इतिहासकार मिसलों के समय सैनिकों की कुल संख्या एक लाख के करीब मानते हैं।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

→ अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण (Causes of Ahmad Shah Abdali’s Invasions)-अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था-

→ वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था-वह भारत की अपार धनदौलत को लूटना चाहता था- भारत की डावाँडोल राजनीतिक स्थिति भी उसे निमंत्रण दे रही थी-

→ पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली को भारत आक्रमण का निमंत्रण भेजा था।

→ अब्दाली के आक्रमण (Invasions of Abdali)-अब्दाली का पहला आक्रमण 1747-48 ई० में हुआ-इसमें मुईन-उल-मुल्क अथवा मीर मन्नू के हाथों उसे हार का सामना करना पड़ा-

→ 1748-49 ई० में अपने दूसरे आक्रमणों के दौरान अब्दाली ने मुईन-उल-मुल्क को पराजित किया-

→ 1752 ई० में अपने तीसरे आक्रमण के दौरान उसने समस्त पंजाब को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लियाअब्दाली ने 1756 ई० में चौथे आक्रमण के दौरान पंजाब में सिखों के विरुद्ध कड़ी कारवाई की-

→ 1757 ई० में अफ़गानों से लड़ते हुए बाबा दीप सिंह जी शहीद हो गए-अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान अब्दाली ने मराठों को पानीपत की तीसरी लड़ाई में कड़ी पराजय दी-यह लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई-

→ अब्दाली के छठे आक्रमण के दौरान 5 फरवरी, 1762 ई० को बड़ा घल्लूघारा की घटना घटीइसमें 25,000 से 30,000 सिख मारे गए-सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए अब्दाली ने दो और आक्रमण किए परंतु असफल रहा।

→ अब्दाली की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Abdali)-सिखों का निश्चय बड़ा दृढ़ था-

→ सिख गुरिल्ला युद्ध नीति से लड़ते थे-अब्दाली द्वारा पंजाब में नियुक्त किए प्रतिनिधि अयोग्य थे-पंजाब में लोगों ने सिखों को हर प्रकार का सहयोग दिया-सिखों का नेतृत्व करने वाले नेता बड़े योग्य थे-

→ अब्दाली को पंजाब में अधिक रुचि न थी-अफ़गानिस्तान में बार-बार होने वाले विद्रोह भी उसकी असफलता का कारण बने।

→ अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर प्रभाव (Effects of Abdali’s Invasions on the Punjab)-पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया-

→ पानीपत की लड़ाई में हुई पराजय से पंजाब में मराठा शक्ति का अंत हो गया-

→ सिख शक्ति का उदय होना आरंभ हो गया-

→ पंजाब में चारों ओर अराजकता और अशांति फैल गई-

→ पंजाब के लोगों के चरित्र में परिवर्तन आ गया तथा वे अधिक निडर और खर्चीले स्वभाव के हो गए-

→ पंजाब के व्यापार को भारी हानि हुई पंजाबी कला और साहित्य के विकास को गहरा धक्का लगा।

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ Important Questions and Answers.

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ Objective Type Questions
I. ਬਹੁ-ਵਿਕਲਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ Multiple Choice Questions :

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕਿਸਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਾਰੇ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦੀ ਰਾਣੀ ਹੈ ?
(a) ਕਾਮਤੇ
(b) ਦੁਰਖੀਮ
(c) ਵੈਬਰ
(d) ਸਪੈਂਸਰ ।
ਉੱਤਰ-
(a) ਕਾਮਤੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਕਿਸਦੇ ਹਨ ? “ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੋ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਦੀ ਅਵੈਧ ਸੰਤਾਨ ਹੈ ?”
(a) ਮੈਕਾਈਵਰ
(b) ਜ਼ਿੰਮਬਰਗ
(c) ਬੀਅਰਸਟੈਡ
(d) ਦੁਰਖੀਮ ।
ਉੱਤਰ-
(c) ਬੀਅਰਸਟੈਡ ।

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਕੌਣ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣਾਤਮਕ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਨਹੀਂ ਹੈ ?
(a) ਦੁਰਖੀਮ
(b) ਵੈਬਰ
(c) ਹਾਬਹਾਉਸ
(d) ਸੋਰੋਕਿਨ ।
ਉੱਤਰ-
(b) ਵੈਬਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕਿਹੜੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤੀ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਹੈ ?
(a) ਇਹ ਇੱਕ ਵਿਵਹਾਰਕ ਵਿਗਿਆਨ ਨਾ ਹੋ ਕੇ ਇੱਕ ਵਿਸੁੱਧ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ ।
(b) ਇਹ ਇੱਕ ਮੂਰਤ ਵਿਗਿਆਨ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਅਮੂਰਤ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ ।
(c) ਇਹ ਇੱਕ ਨਿਰਪੱਖ ਵਿਗਿਆਨ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਆਦਰਸ਼ਾਤਮਕ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ ।
(d) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(d) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਵਿਸ਼ਾ-ਵਸਤੂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਹੈ ?
(a) ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ।
(b) ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਨਵਾਂ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ
(c) ਕਿਉਂਕਿ ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਦਾ ਪਿਛੋਕੜ ਅੱਡ ਹੁੰਦਾ ਹੈ
(d) ਕਿਉਂਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ।
ਉੱਤਰ-
(d) ਕਿਉਂਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਕਿਤਾਬ Social Order ਦਾ ਲੇਖਕ ਕੌਣ ਸੀ ?
(a) ਮੈਕਾਈਵਰ
(b) ਮਿਸਲ
(c) ਰਾਬਰਟ ਬੀਅਰਸਟੈਡ
(d) ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ।
ਉੱਤਰ-
(c) ਰਾਬਰਟ ਬੀਅਰਸਟੈਡ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕਿਸਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ Social Morphology, Social Physiology ਅਤੇ General Sociology ਵਿੱਚ
ਵੰਡਿਆ ਹੈ ?
(a) ਸਪੈਂਸਰ
(b) ਦੁਰਖੀਮ
(c) ਕਾਮਤੇ
(d) ਵੈਬਰ ।
ਉੱਤਰ-
(b) ਦੁਰਖੀਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੀ ਠੀਕ ਹੈ ?
(a) ਸਾਧਾਰਣ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦਾ ਵੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਹੈ
(b) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਸਰੂਪ ਸਧਾਰਣ ਹੈ
(c) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਗਿਆਨ ਨਹੀਂ ਹੈ
(d) ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(c) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਗਿਆਨ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਸ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਸੁਤੰਤਰ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅਧਿਐਨ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
(a) ਫਰਾਂਸ
(b) ਜਰਮਨੀ
(c) ਅਮਰੀਕਾ
(d) ਭਾਰਤ ।
ਉੱਤਰ-
(c) ਅਮਰੀਕਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਕਿਸਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਨਾਮ Ethology ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ?
(a) ਵੈਬਰ
(b) ਸਪੈਂਸਰ
(c) ਜੇ. ਐੱਸ. ਮਿਲ
(d) ਕਾਮਤੇ ।
ਉੱਤਰ-
(c) ਜੇ. ਐੱਸ. ਮਿਲ ।

II. ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ Fill in the blanks :

1. ……………….. ਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਇਸਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ

2. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਛਪੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਕਿਤਾਬ …………………… ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
Principles of Sociology

3.ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਖੇਤਰ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ………………………. ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੋ

4. ਵੈਬਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ……………………… ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਰੂਪਾਤਮਕ

5. ਦੁਰਖੀਮ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ………………………. ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣਾਤਮਕ

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6. ……………… ਦੇ ਜਾਲ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ

7. ……………………….. ਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ Pure Sociology ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਮਤੇ

III. ਸਹੀ/ਗਲਤ True/False :

1. ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਪਿਤਾਮਾ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

2. ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ 1839 ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸ਼ਬਦ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ

3. ਕਿਤਾਬ Society ਦੇ ਲੇਖਕ ਮੈਕਾਈਵਰ ਅਤੇ ਪੇਜ ਸਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ

4. ਸਿੰਮਲ ਸਰੂਪਾਤਮਕ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ

5. ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦਾ ਸੋਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਯੋਗਦਾਨ ਨਹੀਂ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ

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6.
ਪੁਨਰ ਗਿਆਨ ਅੰਦੋਲਨ ਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਇਆ ਸੀ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ

IV. ਇੱਕ ਸ਼ਬਦ/ਲਾਈਨ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਉੱਤਰ One Word/line Question Answers :

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕਿਸਨੇ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਇਸਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਕਦੋਂ ?’
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ 1839 ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਇਸਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਕਿਸਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਾਰੇ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦੀ ਰਾਣੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਾਰੇ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦੀ ਰਾਣੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਕਿਸਦੇ ਹਨ ? ‘‘ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੋ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਦੀ ਅਵੈਧ ਸੰਤਾਨ ਹੈ ।”
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਸ਼ਬਦ ਬੀਅਰਸਟੈਡ ਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਕਿਤਾਬ Sociology ਕਿਸਨੇ ਲਿਖੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਤਾਬ Sociology ਹੈਰੀ ਐੱਮ. ਜਾਨਸਨ ਨੇ ਲਿਖੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਕਿਤਾਬ Society ਕਿਸਨੇ ਲਿਖੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਤਾਬ Society ਦੇ ਲੇਖਕ ਮੈਕਾਈਵਰ ਅਤੇ ਪੇਜ ਹਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਕਿਤਾਬ Cultural Sociology ਦੇ ਲੇਖਕ ਕੌਣ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਤਾਬ Cultural Sociology ਦੇ ਲੇਖਕ ਗਿਲਿਨ ਅਤੇ ਗਿਲਿਨ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕਾਮਤੇ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਭਾਗ ਕਿਹੜੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਮਤੇ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸ਼ਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਮੁੱਖ ਭਾਗ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥੈਤਿਕੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਗਤੀਆਤਮਕਤਾ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਹੜੀ ਕਿਤਾਬ ਛਪੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਛਪਣ ਵਾਲੀ ਕਿਤਾਬ Principles of Sociology ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਸਰੂਪਾਤਮਕ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਮਰਥਕ ਕਿਹੜੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਿੱਪਲ, ਵੀਰਕਾਂਤ, ਵੈਬਰ ਸਰੂਪਾਤਮਕ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਮਰਥਕ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣਾਤਮਕ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਮਰਥਕਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁਰਮੀਮ, ਸੋਰੋਕਿਨ, ਹਾਬਹਾਉਸ ਆਦਿ ਇਸ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਮਰਥਕ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਪਿਤਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੂੰ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਪਿਤਾ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਭੌਤਿਕੀ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਕੁਮਬੱਧ ਅਤੇ ਵਿਵਸਥਿਤ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਸਮਾਜ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੈਕਾਈਵਰ ਅਤੇ ਪੇਜ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਜਾਲ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਕਿਸ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਨੇ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ-ਖੇਤਰ ਬਾਰੇ ਕਿੰਨੇ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ ਪ੍ਰਚੱਲਿਤ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ-ਖੇਤਰ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿੱਚ ਦੋ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ-ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣਾਤਮਕ ਅਤੇ ਸਵਰੂਪਾਤਮਕ, ਪ੍ਰਚੱਲਿਤ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ Pure Sociology ਦਾ ਨਾਮ ਕਿਸਨੇ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਇਸਨੂੰ Pure Sociology ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਿਹੜੇ ਦੋ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲਾ ਕੇ ਬਣਿਆ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਲਾਤੀਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ Socio ਅਤੇ ਗਰੀਕ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ Logos ਤੋਂ ਮਿਲ ਕੇ ਬਣਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Very Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਅਰਥ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਜਾਂ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਸਮੂਹਾਂ, ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸਭਾਵਾਂ, ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੇ ਅੰਤਰ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਅਧਿਐਨ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਚਾਰ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਦੇ ਨਾਮ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ-ਇਸਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।
  2. ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ-ਇਸਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ ।
  3. ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ-ਇਸਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ।
  4. ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ-ਇਸਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਕਿਰਿਆ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਤੇ ਕਈ ਨਵੇਂ ਸੰਕਲਪ ਦਿੱਤੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ ਖੇਤਰ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਖੇਤਰ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਹਿਤਾਵਾਂ, ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ, ਸੱਭਿਅਤਾ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ, ਸਮਾਜਿਕ ਅਸ਼ਾਂਤੀ, ਸਮਾਜੀਕਰਨ, ਪਦ, ਰੋਲ, ਸਮਾਜਿਕ ਨਿਯੰਤਰਣ ਆਦਿ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਰਥ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਦਾ ਪਾਇਆ ਜਾਣਾ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿੱਚ ਸੰਗਠਨ ਉਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਇੱਕੋ ਹੀ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਇਕੱਠੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਣ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਪਰਿਕਲਪਨਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਪਰਿਕਲਪਨਾ ਦਾ ਅਰਥ ਚੁਣੇ ਹੋਏ ਤੱਥਾਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਪਾਏ ਗਏ ਸੰਬੰਧਾਂ ਬਾਰੇ ਕਲਪਨਾ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਸ਼ਬਦਾਂ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਜਾਂਚ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਪਰਿਕਲਪਨਾ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਦੂਜੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਭਾਵੀ ਉੱਤਰ ਵੀ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਰੂਪਾਤਮਕ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਿਰਫ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਸਰੂਪਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਇਹ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ । ਕੋਈ ਹੋਰ ਵਿਗਿਆਨ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਸਰੂਪਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਸਿਰਫ਼ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣਾਤਮਕ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਸ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਇਕ ਸਧਾਰਨ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਖੇਤਰ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਡਾ ਤੇ ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸੰਪੁਰਨ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਮੂਰਤ ਰੂਪ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਪੂਰੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
  2. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
  3. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਾਨੂੰ ਸਹੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਵਿੱਚ ਮੱਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਜੀ ਹਾਂ, ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਆਪਣੇ ਵਿਸ਼ੇ ਖੇਤਰ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਕੇ ਉਸ ਦਾ ਨਿਰਪੱਖ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਅਸੀਂ ਇਸ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ।
ਉੱਤਰ-
ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਵਿਗਿਆਨੀ ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਪਿਤਾਮਾ ਮੰਨਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਸੋਸ਼ਿਆਲੋਜੀ ਸ਼ਬਦ ਦੋ ਸ਼ਬਦਾਂ ਲਾਤੀਨੀ (Latin) ਸ਼ਬਦ ਸੋਸ਼ੋ (Socio) ਅਤੇ ਯੂਨਾਨੀ (Greek) ਸ਼ਬਦ ਲੋਗੋਸ (Logos) ਤੋਂ ਮਿਲ ਕੇ ਬਣਿਆ ਹੈ । Socio ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਲੋਗਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਸ਼ਾਸਤਰ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੋਇਆ ਸਮਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਤਰ । ਅਰਥ ਭਰਪੂਰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਗਿਆਨ ਦਾ ਅਰਥ ਸਮੂਹਾਂ, ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸਭਾਵਾਂ, ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੇ ਅੰਤਰ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਕ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਰੀਤੀਰਿਵਾਜ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਰੂੜੀਆਂ, ਆਦਿ ਸਭ ਦਾ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਚ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਵੀ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਸ਼ਬਦਿਕ ਅਰਥ । ਉੱਤਰ-ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ Sociology ਸ਼ਬਦ ਦਾ ਪੰਜਾਬੀ ਰੂਪਾਂਤਰ ਹੈ । Sociology ਦੋ ਸ਼ਬਦਾਂ Socio ਅਤੇ Logos ਤੋਂ ਮਿਲ ਕੇ ਬਣਿਆ ਹੈ । Socio ਲਾਤੀਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸ਼ਬਦ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ‘ਸਮਾਜ’ ਅਤੇ Logos ਯੂਨਾਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦਾ ਸ਼ਬਦ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਸ਼ਾਸਤਰ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ Sociology ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਸਮਾਜ ਦਾ ਸ਼ਾਸਤਰ ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਪਿਤਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਮੰਨਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਕਿਹੜੇ ਸੰਨ ਦੇ ਵਿਚ ਇਸ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਨਾਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਅਗਸਟ ਕਾਮਤੇ ਨੂੰ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਪਿਤਾਮਾ ਮੰਨਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਦੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪੁਸਤਕ ‘‘ਪੋਜ਼ਟਿਵ ਫਿਲਾਸਫ਼ੀ’’ (Positive Philosophy) (1830-1842) ਦੌਰਾਨ ਛੇ ਹਿੱਸਿਆਂ (Six Volumes) ਵਿਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ਿਤ ਹੋਈ । ਇਸ ਪੁਸਤਕ ਵਿਚ ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਸੰਨ 1839 ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਜਨਰਲ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਜਿਸ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਕੀਤੀ ਉਸ ਦਾ ਨਾਮ ਉਸ ਨੇ ਸੋਸ਼ਿਆਲੋਜੀ ਰੱਖਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ (Scientific Method) ਦੇ ਵਿਚ ਸਾਨੂੰ ਅਜਿਹੀ ਸਮੱਸਿਆ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਜੋ ਅਧਿਐਨ ਇਸ ਵਿਧੀ ਦੇ ਯੋਗ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਦੇ ਬਾਰੇ ਜੇ ਕੋਈ ਖੋਜ ਪਹਿਲਾਂ ਹੋ ਚੁੱਕੀ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਸਾਨੂੰ ਜਿੰਨਾਂ ਵੀ ਸਾਹਿਤ ਮਿਲੇ ਉਸ ਦਾ ਸਰਵੇਖਣ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਪਰਿਕਲਪਨਾਵਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ (Formulation of hypothesis) ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਜੋ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਇਹ ਖੋਜ ਦਾ ਆਧਾਰ ਬਣ ਸਕੇ ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਨੂੰ ਅਪਣਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਸਮੱਗਰੀ ਇਕੱਠੀ ਕਰਨ ਦੀ ਖੋਜ ਨੂੰ ਯੋਜਨਾਬੱਧ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਇਸ ਦਾ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ (Analysis) ਅਤੇ ਅਮਲ (Processing) ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ । ਇਕੱਠੀ ਕੀਤੀ ਸਮੱਗਰੀ ਦਾ ਨਿਰੀਖਣ (Observation) ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਆਧਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਕਨੀਕ ਨੂੰ ਅਪਣਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਰਿਕਾਰਡਿੰਗ ਕਰਕੇ ਸਮੱਗਰੀ ਦਾ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕੀਤਾ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਮਾਜ-ਵਿਗਿਆਨ ਕਿਵੇਂ ਇਕ ਵਿਗਿਆਨ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ-ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਸਮੱਸਿਆ ਦੇ ਕੇਵਲ ‘ਕੀ ਹੈ’ ਬਾਰੇ ਹੀ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਕਿਉਂ’ ਅਤੇ ‘ਕਿਵੇਂ ਦਾ ਵੀ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੇ ਹਾਂ । ਸਮਾਜ ਦੀ ਯਥਾਰਥਕਤਾ ਦਾ ਵੀ ਅਸੀਂ ਪਤਾ ਲਗਾ ਸਕਦੇ ਹਾਂ । ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿਚ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਵੀ ਸਹਾਈ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਉਪਰੋਕਤ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਤੋਂ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਵੀ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਕਰਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਵੀ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਚ ਪ੍ਰਯੋਗਾਤਮਕ ਵਿਧੀ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਅਸੀਂ ਕਿਵੇਂ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਵਿਸ਼ਾ-ਵਸਤੂ ਸਮਾਜ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਅਤੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦੇ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਭਿੰਨਤਾ ਪਾਈ ਗਈ ਹੈ | ਅਗਰ ਅਸੀਂ ਭੈਣ-ਭਰਾ ਜਾਂ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਜਾਂ ਮਾਤਾ-ਪੁੱਤਰ ਆਦਿ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਲਈਏ ਤਾਂ ਕੋਈ ਵੀ ਦੋ ਭੈਣਾਂ ਅਤੇ ਭਰਾਵਾਂ ਆਦਿ ਦਾ ਵਿਵਹਾਰ ਸਾਨੂੰ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਨਹੀਂ ਮਿਲੇਗਾ | ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ (Natural Sciences) ਦੇ ਵਿਚ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਅੰਤਰ ਨਹੀਂ ਮਿਲਦਾ ਬਲਕਿ ਸਰਬਵਿਆਪਕਤਾ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਇਸ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਯੋਗਾਤਮਕ ਵਿਧੀ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਅਸੀਂ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਵਿਚ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚ ਇਸ ਵਿਧੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਲਈ ਅਸਮਰੱਥ ਹੁੰਦੇ ਹਾਂ ਕਿਉਂਕਿ ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਵਹਾਰ ਵਿਚ ਸਥਿਰਤਾ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਈਮਾਇਲ ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣਾਤਮਕ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਤੀ ਦੱਸੇ ਗਏ ਵਿਚਾਰ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਸਭ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਇਕ ਦੂਸਰੇ ਤੋਂ ਵੱਖ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ | ਸਾਰੇ ਵਿਗਿਆਨ ਇਕ ਦੁਸਰੇ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨ (Science of Societies) ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਇਕ ਸਾਧਾਰਨ ਵਿਗਿਆਨ (General Sociology) ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਵੀਕਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ । ਇਹ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਤੇ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸੰਬੰਧ ਤੇ ਪਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਹਰ ਇੱਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਸਮੱਗਰੀ ਦੀ ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਕਰਨ ਵਿਚ ਅਸਮਰੱਥ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ ਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਵਿਚ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਵਿਚ ਵੀ ਭਵਿੱਖਬਾਣੀ ਕਰਨੀ ਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਕਾਰਨ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਸਰੂਪਾਂ ਜਾਂ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਅਸਥਿਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਪਰਿਵਰਤਨਸ਼ੀਲ ਵੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੀ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਪ੍ਰਵਿਰਤੀ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਅਸੀਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਵਿਚ ਯਥਾਰਥਕਤਾ ਨਹੀਂ ਲਿਆ ਸਕਦੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਪਿਤਾਮਾ (Father of Sociology) ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । 1839 ਵਿੱਚ ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਗਿਆਨ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਵੀ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਉਸ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਭੌਤਿਕੀ (Social Physics) ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ | ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਭੌਤਿਕੀ ਦਾ ਨਾਮ ਬਦਲ ਕੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਜਾਂ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ | ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਉਦਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ, ਵਿਗਿਆਨਾਂ ਦਾ ਪਦਮ, ਸਕਾਰਾਤਮਕਵਾਦ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਸੰਕਲਪ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਯੂਰਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਨ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਵਿਚਾਰਕ ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਭੌਤਿਕੀ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ 1839 ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਸ ਦਾ ਨਾਮ ਬਦਲ ਕੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ । 1843 ਵਿੱਚ J.S. Mill ਨੇ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਹਰਬਟ ਸਪੈਂਸਰ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ Principles of Sociology ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕੀਤਾ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਮਰੀਕਾ ਵਿੱਚ 1876 ਵਿੱਚ Yale University ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ | ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਅਤੇ ਸੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵੀ ਇਸ ਨੂੰ ਕਈ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤੇ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ।.
ਉੱਤਰ-
1789 ਈ: ਵਿੱਚ ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਆਈ ਅਤੇ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਚਾਨਕ ਹੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆ ਗਿਆ । ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੱਤਾ ਬਦਲ ਗਈ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਰਚਨਾ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ । ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੇ ਪਹਿਲਾਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਨੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਬੀਜ ਬੋ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲੱਗ ਪਈ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨਾਲ ਇਸ ਦਾ ਨੀਂਹ ਪੱਥਰ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਸਾਹਮਣੇ ਲਿਆਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਜੋ ਆਪ ਇੱਕ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਨਾਗਰਿਕ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਨਵਜਾਗਰਣ ਕਾਲ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ।
ਉੱਤਰ-
ਨਵਜਾਗਰਣ ਕਾਲ ਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਉਦਭਵ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਸਮਾਂ 18ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਪੂਰੀ ਸਦੀ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਵੀਕੋ (Vico) ਮਾਂਟੇਸਕਿਯੂ (Montesequieu), ਰੂਸੋ (Rousseau) ਆਦਿ ਨੇ ਅਜਿਹੇ ਵਿਚਾਰ ਦਿੱਤੇ ਜਿਹੜੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਜਨਮ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਥਾਂ ਰੱਖਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ ਕਿ ਕਿਸੇ ਵੀ ਚੀਜ਼ ਨੂੰ ਤਰਕਸੰਗਤਤਾ ਦੀ ਕਸੌਟੀ ਉੱਤੇ ਖਰਾ ਉੱਤਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।ਉਹਨਾਂ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਤਰਕਸੰਗਤ ਪੜਤਾਲ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵਿਕਾਸ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹਨਾਂ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨਾਲ ਨਵਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਚਾਰ ਉਭਰ ਕੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿੱਚੋਂ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਵੀ ਨਿਕਲੇ ।

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

ਵੱਡੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ (Long Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਚਰਣਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਨੁੱਖ ਇੱਕ ਚਿੰਤਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਪੱਧਰ ਤੋਂ ਹੀ ਉਸ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਛਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਉਸਨੇ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਉੱਤੇ ਪੈਦਾ ਹੋਈਆਂ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਵਿਚ ਹੋਈਆਂ ਅੰਤਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਏ ਜਿਸ ਨਾਲ ਨਵੇਂ-ਨਵੇਂ ਸਮੂਹ ਸਾਡੇ ਸਾਹਮਣੇ ਆਏ । ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਵਹਾਰ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਅਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਨਾਲ ਨਿਯੰਤਰਨ ਵਿਚ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਨੁੱਖ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਚਰਣ (Stages of Origin and Development of Sociology) ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਚਾਰ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ-
1. ਪਹਿਲਾ ਚਰਣ (First Stage) – ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਚਰਣ ਨੂੰ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡ ਕੇ ਬੇਹਤਰ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਮਝਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-

(i) ਵੈਦਿਕ ਅਤੇ ਮਹਾਂਕਾਵ ਕਾਲ (Vedic and Epic Era) – ਚਾਹੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਅਵਸਥਾ ਦੀ ਸ਼ੁਰੁਆਤ ਨੂੰ ਆਮ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਯੂਰਪ ਤੋਂ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪਰ ਇਤਿਹਾਸ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਗਵਾਹ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤ ਦੇ ਰਿਸ਼ੀਆਂ-ਮੁਨੀਆਂ ਨੇ ਪੂਰੇ ਭਾਰਤ ਦਾ ਵਿਚਰਣ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਜਾਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਦਾ ਡੂੰਘਾ ਅਧਿਐਨ, ਚਿੰਤਨ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਮੰਥਨ ਕੀਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਰਣ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਉੱਲੇਖ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪੁਰਾਣੇ ਪਰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਲਿਖੇ ਮਹਾਨ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਗੰਥ ਰਿਗਵੇਦ (Rigveda) ਵਿੱਚ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਵੇਦ, ਉਪਨਿਸ਼ਦ, ਪੁਰਾਣ, ਮਹਾਂਭਾਰਤ, ਰਾਮਾਇਣ, ਗੀਤਾ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਸ਼ੁਰੁਆਤ ਹੋਈ । ਵਰਣ ਵਿਵਸਥਾ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਆਸ਼ਰਮ ਵਿਵਸਥਾ, ਚਾਰ ਪੁਰੂਸ਼ਾਰਥ, ਰਿਣਾਂ ਦੀ ਧਾਰਨਾ, ਸੰਯੁਕਤ ਪਰਿਵਾਰ ਆਦਿ ਭਾਰਤ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਿਕਸਿਤ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਧਾਰਮਿਕ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕੌਟਿਲਯ ਦੇ ਅਰਥ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ।

(ii) ਯੂਨਾਨੀ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ (Studies of Greek Scholars) – ਸੁਕਰਾਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪਲੈਟੋ (Plato) (427-347 B.C.) ਅਤੇ ਅਰਸਤੂ (Aristotle) (384-322B.C.) ਯੂਨਾਨੀ ਵਿਚਾਰਕ ਹੋਏ ਹਨ | ਪਲੈਟੋ ਨੇ ‘ਰਿਪਬਲਿਕ ਅਤੇ ਅਰਸਤੂ ਨੇ Ethics and Politics ਵਿੱਚ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰਿਕ ਜੀਵਨ, ਜਨਰੀਤੀਆਂ, ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਆਦਿ ਦਾ ਵਿਸਤਾਰ ਨਾਲ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਹੈ | ਪਲੈਟੋ ਨੇ 50 ਤੋਂ ਵੱਧ ਅਤੇ ਅਰਸਤੂ ਨੇ 150 ਤੋਂ ਵੱਧ ਛੋਟੇ-ਵੱਡੇ ਰਾਜਾਂ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਸਮਾਜਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ, ਆਰਥਿਕ, ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਆਪਣੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਚਾਰ ਦਿੱਤੇ ।

2. ਦੂਜਾ ਚਰਣ (Second Stage) – ਕਿਤਾਬਾਂ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਦੂਜੇ ਚਰਣ ਵਿੱਚ 6ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 14ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਦਾ ਕਾਲ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਕਾਲ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਚਰਣ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦੇ ਲਈ ਧਰਮ ਅਤੇ ਦਰਸ਼ਨ ਦੀ ਮਦਦ ਲਈ ਗਈ । ਪਰ 13ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਤਾਰਕਿਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸਮਝਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਬਾਮਸੇ ਏਕਯੂਸ (Thomas Acquines) ਅਤੇ ਦਾਂਤੇ (Dante) ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦੇ ਲਈ ਕਾਰਜ-ਕਾਰਣ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਰੂਪ ਰੇਖਾ ਬਣਨ ਲੱਗ ਗਈ ।

3. ਤੀਜੀ ਅਵਸਥਾ (Third Stage) – ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਤੀਜੇ ਚਰਣ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ 13ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਕਈ ਅਜਿਹੇ ਮਹਾਨ ਵਿਚਾਰਕ ਹੋਏ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਲਈ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿਧੀ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ । ਹਾਂਬਸ, ਲਾਂਕ, ਰੂਸੋ (Hobbes, Locke and Rousseau) ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮਝੌਤੇ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ (Social Contract Theory) ਦਿੱਤਾ । ਥਾਮਸ ਮੂਰੇ (Thomas Moore) ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਦਾ ਸਪਿਰਿਟ ਆਫ਼ ਲਾਂਜ਼ (The Spirit of Laws), ਮਾਲਥਸ (Malthus) ਨੇ ਆਪਣੇ ‘ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ’ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ।

4. ਚੌਥਾ ਚਰਣ Fourth Stage) – ਮਹਾਨ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਵਿਚਾਰਕ ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ (Auguste Comte) ਨੇ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਭੌਤਿਕੀ (Social Physics) ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ । 1839 ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਸਦਾ ਨਾਮ ਬਦਲ ਕੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ (Sociology) ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਪਿਤਾ (Father of Sociology) ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

1843 ਵਿੱਚ ਜੇ.ਐੱਸ. ਮਿਲ (J.S.Mill) ਨੇ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਹਰਬਰਟ ਸਪੈਂਸਰ ਨੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ Principles of Sociology ਅਤੇ Theory of Organism ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿਧੀ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕੀਤਾ । ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ Yale University ਵਿੱਚ 1876 ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਿਕਸਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਤੇ ਹੋਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਨੇ ਵੀ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤੇ । ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਲਗਭਗ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਵਿਸ਼ਾ ਸੁਤੰਤਰ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਨਵਾਂ ਗਿਆਨ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Sociology in India)

ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਈ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-

1. ਪਾਚੀਨ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਵਿਕਾਸ (Development of Sociology in Ancient India) – ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉੱਤਪਤੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਕਾਲ ਤੋਂ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਮਹਾਂਰਿਸ਼ੀ ਵੇਦ ਵਿਆਸ ਨੇ ਚਾਰਾਂ ਵੇਦਾਂ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਮਹਾਂਭਾਰਤ ਵਰਗੇ ਮਹਾਂਕਾਵਿ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਰਾਮਾਇਣ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ਗਈ । ਇਹਨਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਪਨਿਸ਼ਦਾਂ, ਪੁਰਾਣਾਂ ਅਤੇ ਸਮਰਿਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤੀ ਦਰਸ਼ਨ ਦੀ ਵਿਸਤਾਰ ਨਾਲ ਵਿਆਖਿਆ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ ਤੋਂ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਉੱਚ ਪੱਧਰ ਦੀ ਸੀ । ਇਹਨਾਂ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਤੋਂ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ, ਘਟਨਾਵਾਂ, ਤੱਥਾਂ, ਮੁੱਲਾਂ, ਆਦਰਸ਼ਾਂ, ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਆਦਿ ਦਾ ਡੂੰਘਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ । ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕਈ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹੋਈ ਸੀ । ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਣ, ਆਸ਼ਰਮ, ਪੁਰੂਸ਼ਾਰਥ, ਧਰਮ, ਸੰਸਕਾਰ, ਸੰਯੁਕਤ ਪਰਿਵਾਰ ਆਦਿ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਹਨ ।

ਚਾਣਕਯ ਦਾ ਅਰਥ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਮਨੁਸਮਿਤੀ ਅਤੇ ਸ਼ੁਕਰਾਚਾਰਯ ਦਾ ਨੀਤੀ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਰਗੇ ਰੀਥ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਥਾਵਾਂ, ਮੁੱਲਾਂ, ਆਦਰਸ਼ਾਂ, ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਉੱਤੇ ਕਾਫ਼ੀ ਰੋਸ਼ਨੀ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਵੈਦਿਕ ਕਾਲ ਤੋਂ ਹੀ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

ਮੱਧਕਾਲ ਵਿੱਚ ਆ ਕੇ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਅਤੇ ਮੁਗਲਾਂ ਦਾ ਰਾਜ ਰਿਹਾ, ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ, ਸੰਸਥਾਵਾਂ, ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ, ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦਾ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

2. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਰਸਮੀ ਸਥਾਪਨਾ ਯੁੱਗ (Formal Establishment Era of Sociology) – 1914 ਤੋਂ 1947 ਤੱਕ ਦਾ ਸਮਾਂ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦਾ ਕਾਲ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਬੰਬਈ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਵਿੱਚ 1914 ਵਿੱਚ ਗੈਜੂਏਟ ਪੱਧਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । 1919 ਤੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਪੈਟਿਕ ਗਿੱਡਸ (Patric Geddes) ਨੇ ਇੱਥੇ ਐੱਮ.ਏ. ਪੱਧਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਜੀ.ਐੱਸ. ਘੁਰੀਏ (G.S. Ghurye) ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਹੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸਨ । ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਵੀਰਜੇਂਦਰਨਾਥਸ਼ੀਲ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਨਾਲ 1917 ਵਿੱਚ ਕਲਕੱਤਾ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਡਾ: ਰਾਧਾ ਕਮਲ ਮੁਖਰਜੀ ਅਤੇ ਡਾ: ਡੀ.ਐੱਨ. ਮਜੂਮਦਾਰ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਹੀ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਸਨ । ਚਾਹੇ 1947 ਤੱਕ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਗਤੀ ਘੱਟ ਸੀ ਪਰ ਉਸ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਉਣ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਚੁੱਕਾ ਸੀ ।

3. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਪਸਾਰ ਯੁੱਗ (Expansion Era of Sociology) – 1947 ਵਿੱਚ ਆਜ਼ਾਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਾਣਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਈ । ਵਰਤਮਾਨ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲਗਪਗ ਸਾਰੇ ਕਾਲਜਾਂ ਤੇ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਵਿਸ਼ੇ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀਆਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਕਈ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਖੋਜ ਦੇ ਕੰਮ ਚੱਲ ਰਹੇ ਹਨ । Tata Institute of Social Sciences, Mumbai, Institute of Social Sciences Agra, Institute of Sociology and Social work, Lucknow, I.I.T. Kanpur and I.I.T Delhi. ਕੁੱਝ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸੰਸਥਾਨ ਹਨ ਜਿੱਥੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਖੋਜਾਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕੀਤੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਵਿਧੀਆਂ ਅਤੇ ਇਸਦੇ ਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵਾਧਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਵਿਸਤਾਰ ਨਾਲ ਚਰਚਾ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਉੱਨਾ ਹੀ ਪੁਰਾਣਾ ਹੈ ਜਿੰਨਾ ਕਿ ਸਮਾਜ ਆਪ ਹੈ, ਚਾਹੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਜਨਮ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਪੱਛਮੀ ਯੂਰਪ ਵਿੱਚ ਦੇਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ | ਕਈ ਵਾਰ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੂੰ ‘ਭਾਂਤੀ ਯੁੱਗ ਦਾ ਬੱਚਾ’ ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।ਉਹ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਜਿਹੜੇ ਪਿਛਲੀਆਂ ਤਿੰਨ ਸਦੀਆਂ ਵਿੱਚ ਆਏ ਹਨ, ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਅੱਜ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਜੀਉਣ ਦੇ ਤਰੀਕੇ ਸਾਹਮਣੇ ਲਿਆਉਣ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ । ਇਹਨਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਲੱਭੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਉੱਥਲ-ਪੁੱਥਲ (Social Upheavel) ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਜਨਮ ਲਿਆ ! ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਨੇ ਜੋ ਵਿਚਾਰ ਦਿੱਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਜੜ੍ਹਾਂ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਯੂਰਪ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਹਾਲਾਤਾਂ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਸਨ ।

ਯੂਰਪ ਵਿੱਚ ਆਧੁਨਿਕ ਯੁੱਗ ਅਤੇ ਆਧੁਨਿਕਤਾ ਦੀ ਅਵਸਥਾ ਨੇ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਾਹਮਣੇ ਲਿਆਂਦਾ ਤੇ ਉਹ ਸਨ-ਨਵਜਾਗਰਣ ਕਾਲ (The Enlightenment period), ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ (The French Revolution) ਅਤੇ ਉਦਯੋਗਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀ (The Industrial Revolution) । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਜਨਮ ਇਹਨਾਂ ਤਿੰਨਾਂ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਜਾਂ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵੱਲੋਂ ਲਿਆਂਦੇ ਗਏ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਕਾਰਨ ਹੋਇਆ ।

ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਉਦਭਵ (The French Revolution and Emergence of Sociology) – ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ 1789 ਈ: ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਅਤੇ ਇਹ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਅਤੇ ਸਮਾਨਤਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੋੜ (Turning Point) ਸਾਬਤ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਨੇ ਯੂਰਪੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੰਰਚਨਾ ਨੂੰ ਬਦਲ ਕੇ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ । ਇਸਨੇ ਜਗੀਰਦਾਰੀ ਯੁੱਗ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਵਿਵਸਥਾ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਨੇ ਜਗੀਰਦਾਰੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਥਾਂ ਲੋਕਤੰਤਰੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤਾ ।

ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ, ਫਰੈਂਚ ਸਮਾਜ ਤਿੰਨ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਪਹਿਲਾ ਵਰਗ ਪਾਦਰੀ (Clergy) ਵਰਗ ਸੀ, ਦੂਜਾ ਵਰਗ ਕੁਲੀਨ (Nobility) ਵਰਗੇ ਸੀ ਅਤੇ ਤੀਜਾ ਵਰਗ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਵਰਗ ਸੀ । ਪਹਿਲੇ ਦੋ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਸੰਖਿਆ ਫਰਾਂਸ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ 2% ਸੀ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ ਅਸੀਮਿਤ ਅਧਿਕਾਰ ਸਨ । ਉਹ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੋਈ ਟੈਕਸ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਤੀਜੇ ਵਰਗ ਨੂੰ ਕੋਈ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਸਨ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਹੀ ਸਾਰੇ ਟੈਕਸਾਂ ਦਾ ਭਾਰ ਸਹਿਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ । ਇਹਨਾਂ ਤਿੰਨਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਅੱਗੇ ਲਿਖੀ ਹੈ :

1. ਪਹਿਲਾ ਵਰਗ-ਪਾਰੀ ਵਰਗ (The First Order-Clergy) – ਯੂਰਪ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਰੋਮਨ ਕੈਥੋਲਿਕ ਚਰਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਅਤੇ ਤਾਕਤਵਰ ਸੰਸਥਾ ਸੀ । ਵੱਖ-ਵੱਖ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੀਆਂ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਚਰਚ ਦੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਵਿੱਚ ਸਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਚਰਚ ਨੂੰ ਧਰਤੀ ਦੀ ਪੈਦਾਵਾਰ ਦਾ 10% ਹਿੱਸਾ (Tithe) ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਸੀ । ਚਰਚ ਦਾ ਧਿਆਨ ਪਾਦਰੀ (Clergy) ਰੱਖਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਇਹ ਸਮਾਜ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਵਰਗ ਸੀ । ਪਾਦਰੀ ਵਰਗ ਵੀ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ਤੇ ਉਹ ਸੀ ਉੱਚ ਪਾਦਰੀ ਵਰਗ (Upper Clergy) ਅਤੇ ਨਿਮਨ ਪਾਦਰੀ ਵਰਗ (Lower Clergy) ਉੱਚ ਪਾਦਰੀ ਵਰਗ ਦੇ ਪਾਦਰੀ ਕੁਲੀਨ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ਅਤੇ ਚਰਚ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਉੱਤੇ ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

ਟੀਥੇ (Tithe) ਟੈਕਸ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਭਾਗ ਇਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਜੇਬਾਂ ਵਿੱਚ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਉਹਨਾਂ ਕੋਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਸਨ ਅਤੇ ਉਹ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕੋਈ ਟੈਕਸ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਬਹੁਤ ਅਮੀਰ ਸਨ ਅਤੇ ਐਸ਼ ਭਰੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਉਂਦੇ ਸਨ । ਨਿਮਨ ਵਰਗ ਦੇ ਪਾਦਰੀ ਆਮ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਪਰਿਵਾਰਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਪੂਰੀ ਇਮਾਨਦਾਰੀ ਨਾਲ ਨਿਭਾਉਂਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਧਾਰਮਿਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਜਨਮ, ਵਿਆਹ, ਬਪਤਿਸਮਾ, ਮੌਤ ਆਦਿ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੰਸਕਾਰ ਪੂਰੇ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਚਰਚ ਦੇ ਸਕੂਲਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਸਾਂਭਦੇ ਸਨ ।

2. ਦੂਜਾ ਵਰਗ-ਕੁਲੀਨ ਵਰਗ (Second Order-Nobility) – ਫ਼ਰੈਂਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਦੂਜਾ ਵਰਗ ਕੁਲੀਨ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੀ । ਉਹ ਫ਼ਰਾਂਸ ਦੀ 2.5 ਕਰੋੜ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ਼ 4 ਲੱਖ ਸਨ ਅਰਥਾਤ ਉਹ ਕੁੱਲ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ 2% ਤੋਂ ਵੀ ਘੱਟ ਸਨ । ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਉਹ ਤਲਵਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਆਮ ਜਨਤਾ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ ਲੜਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਤਲਵਾਰ ਦਾ ਕੁਲੀਨ (Nobles of Sword) ਵੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ । ਇਹ ਵੀ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਸਨ-ਪੁਰਾਣੇ ਕੁਲੀਨ ਅਤੇ ਨਵੇਂ ਕੁਲੀਨ । ਪੁਰਾਣੇ ਕੁਲੀਨ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਕੁੱਲ ਭੂਮੀ ਦੇ 1/5 ਹਿੱਸੇ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ । ਕੁਲੀਨ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਪੈਤ੍ਰਿਕ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਅਸਲੀ ਅਤੇ ਪਵਿੱਤਰ ਕੁਲੀਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਇਹ ਸਾਰੇ ਜਾਗੀਰਦਾਰ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਇਹਨਾਂ ਨੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕਾਂ, ਜੱਜਾਂ ਅਤੇ ਫ਼ੌਜੀ ਲੀਡਰਾਂ ਦਾ ਵੀ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਐਸ਼ ਭਰੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਜਿਊਂਦੇ ਸਨ । ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਸਨ । ਨਵੇਂ ਕੁਲੀਨ ਉਹ ਕੁਲੀਨ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰਾਜੇ ਨੇ ਪੈਸੇ ਲੈ ਕੇ ਕੁਲੀਨ ਦਾ ਦਰਜਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਵਰਗ ਨੇ 1789 ਦੀ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੁਆਤ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਇਹਨਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਵੀ ਪੈਤ੍ਰਿਕ ਹੋ ਗਈ ।

3. ਤੀਜਾ ਵਰਗ-ਆਮ ਜਨਤਾ (Third order-Commoners) – ਕੁੱਲ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਸਿਰਫ਼ 2% ਪਹਿਲੇ ਦੋ ਵਰਗਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ ਅਤੇ 98% ਜਨਤਾ ਤੀਜੇ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੀ । ਇਹ ਵਰਗ ਅਧਿਕਾਰ ਰਹਿਤ ਵਰਗ ਸੀ ਜਿਸ ਦੇ ਵਿੱਚ ਅਮੀਰ ਉਦਯੋਗਪਤੀ ਅਤੇ ਗ਼ਰੀਬ ਭਿਖਾਰੀ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਕਿਸਾਨ, ਮੱਧ ਵਰਗ, ਮਜ਼ਦੂਰ, ਕਾਰੀਗਰ ਅਤੇ ਹੋਰ ਗ਼ਰੀਬ ਲੋਕ ਇਸ ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਹੀਂ ਸਨ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਇਸ ਸਮੂਹ ਨੇ ਪੂਰੇ ਦਿਲ ਨਾਲ 1789 ਦੀ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਵਿੱਚ ਭਾਗ ਲਿਆ । ਉਦਯੋਗਪਤੀ, ਵਪਾਰੀ, ਸ਼ਾਹੂਕਾਰ, ਡਾਕਟਰ, ਵਕੀਲ, ਵਿਚਾਰਕ, ਅਧਿਆਪਕ, ਪੱਤਰਕਾਰ ਆਦਿ ਮੱਧ ਵਰਗ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ | ਮੱਧ ਵਰਗ ਨੇ ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਅਗਵਾਹੀ ਕੀਤੀ । ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਨਾ ਸਿਰਫ਼ ਘੱਟ ਤਨਖ਼ਾਹ ਮਿਲਦੀ ਸੀ ਬਲਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਬੇਗਾਰ (Forced Labour) ਵੀ ਕਰਨੀ ਪੈਂਦੀ ਸੀ । ਇਹਨਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਗ਼ਰੀਬੀ ਕਾਰਨ ਦੰਗਿਆਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਭਾਗ ਲਿਆ । ਇਹ ਲੋਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੌਰਾਨ ਭੀੜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋ ਗਏ ।

ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ (Outbreak of Revolution) – ਲੁਈ XV1 ਫ਼ਰਾਂਸ ਦਾ ਰਾਜਾ ਬਣਿਆ ਅਤੇ ਫਰਾਂਸ ਵਿੱਚ ਵਿੱਤੀ ਸੰਕਟ ਆਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਸਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਕੰਮ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਪੈਸੇ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਉਹ ਲੋਕਾਂ ਉੱਤੇ ਨਵੇਂ ਟੈਕਸ ਲਗਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਉਸਨੂੰ ਐਸਟੇਟ ਜਨਰਲ (Estate General) ਦੀ ਮੀਟਿੰਗ ਸੱਦਣੀ ਪਈ ਜੋ ਕਿ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਪੁਰਾਣੀ ਸੰਸਥਾ ਸੀ । ਪਿਛਲੇ 150 ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸਦੀ ਮੀਟਿੰਗ ਨਹੀਂ ਹੋਈ ਸੀ । 5 ਮਈ, 1789 ਨੂੰ ਐਸਟੇਟ ਜਨਰਲ ਦੀ ਮੀਟਿੰਗ ਹੋਈ ਅਤੇ ਤੀਜੇ ਵਰਗ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀਆਂ ਨੇ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਕਿ ਸਾਰੀ ਐਸਟੇਟ ਦੀ ਇਕੱਠੀ ਮੀਟਿੰਗ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਇੱਕ ਸਦਨ ਵਾਂਗ ਉਹ ਵੋਟ ਕਰਨ । 20 ਜੂਨ, 1789 ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਮੀਟਿੰਗ ਹਾਲ ਉੱਤੇ ਸਰਕਾਰੀ ਗਾਰਡਾਂ ਨੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਹੈ । ਪਰ ਤੀਜਾ ਵਰਗ ਮੀਟਿੰਗ ਲਈ ਬੇਤਾਬ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਹ ਟੈਨਿਸ ਕੋਰਟ ਵਿੱਚ ਹੀ ਨਵਾਂ ਸੰਵਿਧਾਨ ਬਣਾਉਣ ਵਿੱਚ ਲੱਗ ਗਏ । ਇਹ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਸ਼ੁਰੁਆਤ ਸੀ ।

ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘਟਨਾ 14 ਜੁਲਾਈ, 1789 ਨੂੰ ਹੋਈ ਜਦੋਂ ਪੈਰਿਸ ਦੀ ਭੀੜ ਨੇ ਬਾਸਤੀਲ ਜੇਲ਼ ਉੱਤੇ ਧਾਵਾ ਬੋਲ ਦਿੱਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸਾਰੇ ਕੈਦੀਆਂ ਨੂੰ ਅਜ਼ਾਦ ਕਰਵਾ ਲਿਆ | ਫ਼ਰਾਂਸ ਵਿੱਚ ਇਸ ਦਿਨ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਨਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਹੁਣ ਲੁਈ XVI ਸਿਰਫ਼ ਨਾਮ ਦਾ ਹੀ ਰਾਜਾ ਸੀ । ਨੈਸ਼ਨਲ ਅਸੈਂਬਲੀ ਨੂੰ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ ਤਾਂਕਿ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਸੰਵਿਧਾਨ ਬਣਾਇਆ ਜਾ ਸਕੇ । ਇਸ ਨੇ ਨਵੇਂ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੇ । ਇਸ ਨੇ ਮਸ਼ਹੂਰ Declaration of the rights of man and citizen ਬਣਾਇਆ । ਇਸ ਘੋਸ਼ਣਾ ਪੱਤਰ ਨਾਲ ਕੁੱਝ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘੋਸ਼ਣਾਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਕਾਨੂੰਨ ਸਾਹਮਣੇ ਸਮਾਨਤਾ, ਬੋਲਣ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ, ਪੈਂਸ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਦੀ ਸਰਕਾਰੀ ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਤਰਤਾ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਸ਼ਾਮਲ ਸੀ ।

1791 ਵਿੱਚ ਰਾਜੇ ਨੇ ਫ਼ਰਾਂਸ ਤੋਂ ਭੱਜਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਪਰ ਉਸਨੂੰ ਫੜ ਲਿਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਵਾਪਸ ਲਿਆਂਦਾ ਗਿਆ । ਉਸਨੂੰ ਜੇਲ੍ਹ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ 21 ਜਨਵਰੀ, 1793 ਨੂੰ ਉਸਨੂੰ ਜਨਤਾ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਨਾਲ ਫ਼ਰਾਂਸ ਨੂੰ ਗਣਰਾਜ (Republic) ਘੋਸ਼ਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਪਰ ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆਤੰਕ ਦਾ ਦੌਰ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਜਿਹੜੇ ਵੀ ਕੁਲੀਨਾਂ, ਪਾਦਰੀਆਂ ਅਤੇ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਸਰਕਾਰ ਦਾ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ, ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਹ ਆਤੰਕ ਦਾ ਦੌਰ ਲਗਭਗ ਤਿੰਨ ਸਾਲ ਚਲਿਆ ।

1795 ਵਿੱਚ ਫ਼ਰਾਂਸ ਵਿੱਚ ਡਾਇਰੈਕਟੋਰੇਟ (Directorate) ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ । ਡਾਇਰੈਕਟੋਰੇਟ 4 ਸਾਲ ਤੱਕ ਚੱਲੀ ਤੇ 1799 ਵਿੱਚ ਨੈਪੋਲੀਅਨ ਨੇ ਇਸ ਨੂੰ ਹਟਾ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਡਾਇਰੈਕਟਰ ਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਰਾਜਾ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨੈਪੋਲੀਅਨ ਵਲੋਂ ਡਾਇਰੈਕਟੋਰੇਟ ਨੂੰ ਹਟਾਉਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ ।

ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ (Effects of French Revolution) – ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੇ ਫਰਾਂਸ ਅਤੇ ਸਾਰੀ ਦੁਨੀਆਂ ਉੱਤੇ ਕੁੱਝ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਏ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠਾਂ ਲਿਖਿਆ ਹੈ-

  • ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦਾ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਪ੍ਰਭਾਵ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਇਸ ਨਾਲ ਪੁਰਾਣੀ ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਅਰਥਾਤ ਜਗੀਰਦਾਰੀ ਵਿਵਸਥਾ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ ਅਤੇ ਨਵੀਂ ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਸਾਹਮਣੇ ਆਈ । ਇਹ ਨਵੀਂ ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਸੀ ।
  • ਉੱਪਰਲੇ ਵਰਗਾਂ ਅਰਥਾਤ ਪਾਦਰੀ ਵਰਗ ਅਤੇ ਕੁਲੀਨ ਵਰਗ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਅਧਿਕਾਰ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਵਲੋਂ ਵਾਪਸ ਲੈ ਲਏ ਗਏ । ਚਰਚ ਦੀ ਸਾਰੀ ਸੰਪੱਤੀ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਕਬਜ਼ੇ ਵਿੱਚ ਲੈ ਲਈ । ਸਾਰੇ ਪੁਰਾਣੇ ਕਾਨੂੰਨ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਨੈਸ਼ਨਲ ਅਸੈਂਬਲੀ ਨੇ ਸਾਰੇ ਨਵੇਂ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਏ ।
  • ਸਾਰੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਅਤੇ ਸਮਾਨਤਾ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਸ਼ਬਦ ‘Nation’ ਨੂੰ ਨਵਾਂ ਅਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਅਰਥ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਰਥਾਤ ਫ਼ਰਾਂਸ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਭੂਗੋਲਿਕ ਖੇਤਰ ਨਹੀਂ ਹੈ ਬਲਕਿ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਜਨਤਾ ਹੈ । ਇੱਥੋਂ ਹੀ ਪ੍ਰਭੂਤਾ (Sovereignty) ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਅਰਥਾਤ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕਾਨੂੰਨ ਅਤੇ ਸੱਤਾ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਹੈ ।
  • ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦਾ ਸਾਰੇ ਸੰਸਾਰ ਉੱਤੇ ਵੀ ਕਾਫ਼ੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ । ਇਸਨੇ ਦੂਜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇਆਪਣੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਨਿਰੰਕੁਸ਼ ਰਾਜਿਆਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਨਾਲ ਪੁਰਾਣੀ ਵਿਵਸਥਾ ਖ਼ਤਮ ਹੋਈ ਅਤੇ ਲੋਕਤੰਤਰ ਦੇ ਆਉਣ ਦਾ ਰਸਤਾ ਸਾਫ਼ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਨੇ ਹੀ ‘ਸੁਤੰਤਰਤਾ, ਸਮਾਨਤਾ ਅਤੇ ਭਾਈਚਾਰਾ’ ਦਾ ਨਾਅਰਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਕਈ ਕ੍ਰਾਂਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਅਤੇ ਰਾਜਤੰਤਰ ਨੂੰ ਲੋਕਤੰਤਰ ਨਾਲ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਨੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸੱਭਿਅਤਾ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ । ਇਸ ਨੇ ਯੂਰਪੀ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਯੂਰਪੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ । ਪੁਰਾਣੀ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਨਵੀਂ ਵਿਵਸਥਾ ਆ ਗਈ । ਫ਼ਰਾਂਸ ਵਿੱਚ ਕਈ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ ਅਤੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਕੁਲੀਨਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ । ਨੈਸ਼ਨਲ ਅਸੈਂਬਲੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਕਈ ਨਵੇਂ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾਏ ਗਏ ਅਤੇ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ । ਚਰਚ ਨੂੰ ਰਾਜ ਦੀ ਸੱਤਾ ਦੇ ਅਧੀਨ ਲਿਆਇਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਉਸਨੂੰ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਕੀ ਕੰਮਾਂ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ । ਹਰੇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਅਧਿਕਾਰ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ।

ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦਾ ਹੋਰਨਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਬਹੁਤ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ । 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਕਈ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ । ਇਹਨਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਦਲ ਗਈ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਉਦਭਵ ਵਿੱਚ ਇਹ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਨ ਸੀ । ਇਹਨਾਂ ਕ੍ਰਾਂਤੀਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਕਈ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਚੰਗੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ ਅਤੇ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਦਾ ਇਹ ਮੁੱਖ ਮੁੱਦਾ ਸੀ । ਕਈ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ, ਜਿਹੜੇ ਇਹ ਸੋਚਦੇ ਸਨ ਕਿ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੇ ਸਿਰਫ਼ ਸਮਾਜ ਉੱਤੇ ਗ਼ਲਤ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰ ਬਦਲਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਏ । ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਮਤੇ ਅਤੇ ਦੁਰਖੀਮ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹਨਾਂ ਨੇ ਇਸਦੇ ਚੰਗੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਉੱਤੇ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫ਼ਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਨੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਉਦਭਵ (Origin) ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ।

PSEB 11th Class Sociology Important Questions Chapter 1 ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੀ ਉਤਪਤੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਹੁਤ ਵਾਰ ਇਕ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਪੁੱਛਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਦੇ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਕੀ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਕੀ ਹੈ ? ਕਈ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਜੀਵਨ ਦੀ ਸੱਚਾਈ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਦਾ ਕੋਈ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਹੱਤਵ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਪਰੰਤੂ ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਅੱਜਕਲ੍ਹ ਦੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਤਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਬਹੁਤ ਉਪਯੋਗੀ ਸਿੱਧ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਦਾ ਮਹੱਤਵ ਹੇਠ ਲਿਖਿਆ ਹੈ-

1. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ (Sociology studies the whole society) – ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਪੂਰੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਇਕ ਇਕਾਈ ਮੰਨ ਕੇ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਚਾਹੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਵੀ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਅਰਥ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਰਾਜਨੀਤੀ ਸ਼ਾਸਤਰ ਆਦਿ ਪਰੰਤੂ ਇਹ ਸਾਰੇ ਹੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਕਿਸੇ ਇਕ ਹਿੱਸੇ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਪੁਰਨ ਸਮਾਜ ਦਾ ਨਹੀਂ । ਇਕ ਸਮਾਜ ਦੇ ਕਈ ਪੱਖ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਡੂੰਘੇ ਰੂਪ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਹੀ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਦੇ ਲਈ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵੱਖਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

2. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਹੈ (It analysis the society scientifically) – ਚਾਹੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਆਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਪਰ ਇਹ ਅਧਿਐਨ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਨਹੀਂ । ਇਸ ਲਈ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅਰਥਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਕਈ ਗ਼ਲਤ ਧਾਰਨਾਵਾਂ ਬਣ ਗਈਆਂ ਸਨ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਵਿਗਿਆਨਕ ਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਹੀ ਤਸਵੀਰ ਸਾਹਮਣੇ ਲਿਆਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

3. ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਤੇ ਹੱਲ ਕਰਨ ਵਿਚ ਮਦਦਗਾਰ (Helpful in understanding and solving social problems) – ਹਰੇਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਉਣ ਅਤੇ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਹਾਲਾਤਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਉਹਨਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਉਹਨਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਨਾਲ ਨਿਪਟਣ ਲਈ ਕੋਈ ਯੋਜਨਾ ਬਣਾਈ ਜਾ ਸਕੇ । ਬਿਨਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝੇ ਕੋਈ ਯੋਜਨਾ ਨਹੀਂ ਬਣ ਸਕਦੀ । ਸਮਾਜਿਕ ਯੋਜਨਾ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਦੇ ਹਾਲਾਤਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੀ ਪੂਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਸਮਾਜਿਕ ਹਾਲਾਤਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

4. ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਾਰਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ (Sociology defines different concepts) – ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਆਉਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਸੰਬੰਧੀ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਗਲਤ ਧਾਰਨਾਵਾਂ ਬਣ ਗਈਆਂ ਸਨ । ਜਿਵੇਂ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਜਾਤ ਨੂੰ ਆਪਣੇ-ਆਪਣੇ ਸਵਾਰਥਾਂ ਲਈ ਆਪਣੇ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਜਾਤ ਪ੍ਰਥਾ ਨੇ ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਧਾਰਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਠੀਕ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਤੇ ਉਹਨਾਂ ਧਾਰਨਾਵਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਗਲਤੀਆਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕੀਤਾ ।

5. ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸਣਾ (To explain the causes of social problems) – ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਹਰੇਕ ਸਮੱਸਿਆ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ; ਜਿਵੇਂ-ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ, ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਆਦਿ । ਸਮੱਸਿਆ ਕਈ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਕਈ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਦੇ ਸਾਰੇ ਪੱਖਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ | ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਮੱਸਿਆ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਉਸਦੇ ਕਾਰਨਾਂ ਦੀ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਜਾਂਚ ਕਰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨ ਵਿਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

6. ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸਰਵਉੱਚਤਾ ਤੇ ਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨਾ (To clarify the intrinsic worth and dignity of man) – ਸਾਡੇ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਮਨੁੱਖ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸਦੇ ਹਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਸਮਝੌਤੇ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਨੇ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਘੱਟ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ ਹੈ | ਸਾਵਯਵੀ ਦੇ ਸਮੂਹ ਦਿਮਾਗੀ ਸਿਧਾਂਤ, ਸਮਾਜਿਕ ਸਿਧਾਂਤ ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਆ ਕੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਮਨੁੱਖ ਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਸਹੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਮਹੱਤਵ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਗਿਆਨ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਹੋਰ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨਾਲ ਰਹਿਣਾ ਸਿੱਖਦਾ ਹੈ ਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਹੀ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਹਿਯੋਗ, ਆਤਮ ਨਿਰਭਰਤਾ ਅਤੇ ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਵਰਗੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਸਮਾਜ ਲਈ ਕਿੰਨੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹਨ | ਅੱਜ ਦਾ ਸਮਾਜ ਸੁੰਗੜ ਰਿਹਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰਤਾ ਵੱਧ ਰਹੀ ਹੈ । ਅਜਿਹੇ ਹਾਲਾਤ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਾਂ ਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀਆਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਰਹਿਣ ਅਤੇ ਸਮਾਯੋਜਨ ਕਰਨ ਦਾ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

7. ਮਨੁੱਖੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਉੱਨਤ ਕਰਨਾ (To develop the human culture) – ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸਾਨੂੰ ਸਹੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਵਿਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਇਕ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਲੋਕ ਦੂਜੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੇ ਲੱਛਣਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਅਸੀਂ ਬੇਝਿਜਕ ਹੋ ਕੇ ਹੋਰ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨਾਲ ਅਨੁਕੂਲਣ ਤੇ ਉਸਦੇ ਲੱਛਣਾਂ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਰਹੇ ਹਾਂ । ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਨੂੰ ਬਦਲਣ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਅਦਾ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਕਰਕੇ ਹੀ ਮਨੁੱਖੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਉੱਨਤ ਤੇ ਮਜ਼ਬੂਤ ਹੋਈ ਹੈ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਉੱਨਤੀ ਵੀ ਹੋਈ ਹੈ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੰਖੇਪ ਵਿਚ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਨੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਗਿਆਨ ਦੇਣ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਅਦਾ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸੁਲਝਾਉਣ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਯੋਜਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਵਿਚ ਮਦਦ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਇਸ ਨੇ ਕਈ ਸਮਾਜਿਕ ਧਾਰਨਾਵਾਂ ਸੰਬੰਧੀ ਸਾਡੇ ਦਿਮਾਗ਼ ਦੇ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਭਰਮ ਦੂਰ ਕੀਤੇ ਹਨ । ਇਸ ਸਭ ਨੂੰ ਦੇਖ ਕੇ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਹੈ ।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

→ सामाजिक स्थिति (Social Condition)-पंजाब का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों-मुसलमान और हिंदुओं में बँटा हुआ था-

→ मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों उच्च, मध्यम तथा निम्न में बँटा हुआ था-उच्च वर्ग में बड़े-बड़े मनसबदार तथा रईस लोग आते थे-

→ मध्यम श्रेणी में किसान और सरकारी कर्मचारी तथा निम्न वर्ग में नौकर और मज़दूर आदि आते थे-

→ हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था-

→ स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी-

→ उच्च वर्ग का खान पान बहुत ही अच्छा था जबकि निम्न वर्ग के लोग मात्र गुजारा करते थे-

→ हिंदू अधिकतर शाकाहारी थे-

→ उच्च वर्ग के लोग काफ़ी मूल्यवान वस्त्र पहनते थे-

→ स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बड़े शौकीन थे-

→ शिकार, रथदौड़, चौगान, कबूतरबाजी और शतरंज आदि लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे-

→ शिक्षा देना सरकार की ज़िम्मेदारी न थी-

→ यह मंदिरों और मस्जिदों द्वारा प्रदान की जाती थी।

→ आर्थिक स्थिति (Economic Condition)-पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती बाड़ी था-

→ कुल जनसंख्या के 80% लोग कृषि से जुड़े थे-

→ पंजाब में फसलों की भरपूर पैदावार होती थीपंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य धंधा उद्योग था-

→ सूती वस्त्र उद्योग पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग था-

→ अन्य उद्योगों में रेशमी वस्त्र उद्योग, चमड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग, चीनी उद्योग तथा शस्त्र उद्योग महत्त्वपूर्ण थे-

→ कई लोग पशु पालन का काम करते थे-

→ आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत थाविदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, चीन और यूरोपीय देशों के साथ होता था-

→ लाहौर और मुलतान व्यापारिक पक्ष से सबसे महत्त्वपूर्ण नगर थे-

→ कीमतें कम होने के कारण ग़रीब लोगों का गुजारा भी अच्छा हो जाता था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली

→ दल खालसा के उत्थान के कारण (Causes of the Rise of the Dal Khalsa)-बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद मुग़ल सूबेदारों ने सिखों पर कठोर अत्याचार आरंभ कर दिए थे-

→ सिख शक्ति को संगठित करने के लिए 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने उन्हें बुड्डा दल और तरुणा दल में संगठित कर दिया-

→ पंजाब में फैली अशाँति से लाभ उठाते हुए 1745 ई० में अमृतसर में सौ-सौ सिखों के 25 जत्थों की स्थापना की गई-

→ ये जत्थे दल खालसा की स्थापना का आधार बने।

→ दल खालसा की स्थापना (Establishment of the Dal Khalsa)-दल खालसा की स्थापना 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में हुई-

→ इसकी स्थापना नवाब कपूर सिंह जी ने की-सिखों को 12 मुख्य जत्थों में संगठित कर दिया गया-

→ प्रत्येक जत्थे का अपना अलग नेता और झंडा था-

→ सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया को दल खालसा का प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया।

→ दल खालसा की सैनिक विशेषताएँ (Military Features of the Dal Khalsa)-घुड़सवार सेना दल खालसा की सेना का मुख्य अंग थी-

→ सेना में भर्ती होने के लिए किसी भी सिख को विवश नहीं किया जाता था-

→ प्रत्येक सिख जब चाहे एक जत्थे को छोड़कर दूसरे जत्थे में जा सकता थासैनिक प्रशिक्षण और विधिवत् वेतन की कोई व्यवस्था न थी-

→ दल खालसा के सैनिक गुरिल्ला युद्ध प्रणाली से लड़ते थे-लड़ाई के समय तलवारों, बरछियों, खंडों, तीर कमानों और बंदूकों का प्रयोग किया जाता था।

→ दल खालसा का महत्त्व (Significance of the Dal Khalsa)-दल खालसा ने सिखों की बिखरी हुई शक्ति को एकता के सूत्र में बाँध दिया-इसने सिखों को अनुशासन में रहना सिखाया-

→ दल खालसा के प्रयासों से ही सिख पंजाब में अपनी स्वतंत्र मिसलें स्थापित करने में सफल हुए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

→ अब्दुस समद खाँ (Abdus Samad Khan)-अब्दुस समद खाँ 1713 ई० में लाहौर का सूबेदार बना-उसने सिखों पर घोर अत्याचार किए-इससे प्रसन्न होकर मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने उसे ‘राज्य की तलवार’ की उपाधि से सम्मानित किया-

→ मुग़ल अत्याचारों से बचने के लिए सिखों ने स्वयं को जत्थों में संगठित कर लिया-अब्दुस समद खाँ अपने तमाम प्रयासों के बावजूद सिखों का दमन करने में विफल रहा-1726 ई० में उसे पद से हटा दिया गया।

→ जकरिया खाँ (Zakariya Khan)-जकरिया खाँ 1726 ई० में लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया गया-प्रतिदिन लाहौर के दिल्ली गैट पर सैंकड़ों सिखों को शहीद किया जाने लगा था-

→ 1726 ई० में भाई तारा सिंह वाँ ने अपने 22 साथियों के साथ जकरिया खाँ के सैनिकों के खूब छक्के छुड़ाए-सिख जत्थों ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली अपनाकर जकरिया खाँ की रातों की नींद हराम की-

→ सिखों को प्रसन्न करने के लिए जकरिया खाँ ने उनके नेता सरदार कपूर सिंह को एक लाख रुपए की जागीर तथा नवाब की उपाधि प्रदान की-संबंधों के पुनः बिगड़ जाने पर जकरिया खाँ ने हरिमंदिर साहिब पर अधिकार कर लिया-

→ 1738 ई० में जकरिया खाँ ने हरिमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी भाई मनी सिंह जी को शहीद कर दिया-जकरिया खाँ के काल में ही हुई भाई बोता सिंह जी, भाई मेहताब सिंह जी, भाई सुखा सिंह जी, बाल हकीकत राय जी तथा भाई तारू सिंह जी की शहीदी ने सिखों में एक नया जोश उत्पन्न कर दिया-परिणामस्वरूप सिखों ने जकरिया खाँ को कभी चैन की साँस न लेने दी-1 जुलाई, 1745 ई० को जकरिया खाँ की मृत्यु हो गई।

→ याहिया खाँ (Yahiya Khan)-याहिया खाँ 1746 ई० में लाहौर का सूबेदार बना-उसने सिखों के विरुद्ध कठोर पग उठाए–याहिया खाँ और दीवान लखपत राय ने मई, 1746 ई० को लगभग 7,000 सिखों को काहनूवान के निकट शहीद कर दिया-

→ इस घटना को छोटा घल्लूघारा के नाम से स्मरण किया जाता है-1747 ई० में याहिया खाँ के छोटे भाई शाहनवाज़ खाँ ने उसे बंदी बना लिया।

→ मीर मन्नू (Mir Mannu)-मीर मन्नू को मुइन-उल-मुल्क के नाम से भी जाना जाता था वह 1748 ई० से 1753 ई० तक पंजाब का सूबेदार रहा-वह अपने पूर्व अधिकारियों से अधिक सिखों का कट्टर शत्रु सिद्ध हुआ-

→ वह 1752 ई० में अब्दाली की ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त हुआ-मीर मन्नू अपनी समस्त कारवाईयों के बावजूद सिखों की शक्ति का अंत करने में विफल रहा-1753 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

→ मीर मन्नू की विफलता के कारण (Causes of Failure of Mir Mannu)-सिखों ने दल खालसा का संगठन कर लिया था-सिखों में पंथ के लिए दृढ़ निश्चय, अपार जोश, निडरता और बलिदान की भावनाएँ थीं-

→ सिख गुरिल्ला युद्ध नीति से लड़ते थे-मीर मन्नू का परामर्शदाता दीवान कौड़ा मल सिखों से सहानुभूति रखता था-मीर मन्नू अपने शासन से संबंधित कई समस्याओं से घिरा रहा था।