PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र के अर्थ और क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
(Discuss the definition and scope of political science.)
अथवा
राजनीति शास्त्र की परिभाषा दें तथा इसके क्षेत्र का वर्णन करें।
(Define political science and describe its scope.)
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जन्म लेता है और समाज में ही रह कर अपने जीवन का पूर्ण विकास करता है। समाज के बिना वह रह नहीं सकता। संगठित समाज में जब एक ऐसी संस्था की स्थापना हो जाए जिसके द्वारा उस समाज का शासन चलाया जा सके तथा वह समाज सत्ता सम्पन्न हो और एक निश्चित भाग पर निवास करता हो तो वह राज्य बन जाता है।

राज्य के अन्दर रहकर ही मनुष्य अपना विकास कर सकता है। राज्य की एजेंसी सरकार द्वारा राज्य की इच्छा को व्यक्त किया जाता है और वही इस इच्छा को लागू करती है। वह शास्त्र जो राज्य और सरकार की जानकारी देता है, उसे हम राजनीति शास्त्र कहते हैं।

राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटिकल साइंस (Political Science) कहते हैं । यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगर-राज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था परन्तु आज बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना हो गई है, इसलिए अब हम इसका अर्थ राज्य के अध्ययन से लेते हैं। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान के अर्थ को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं का अध्ययन करना अति आवश्यक है।

राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाएं (Traditional definitions of Political Science)-राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाओं को हम तीन भागों में बांट सकते हैं :-

(क) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को केवल राज्य का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं।
(ख) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को केवल सरकार से सम्बन्धित विषय मानते हैं।
(ग) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को राज्य तथा सरकार दोनों से सम्बन्धित मानते हैं।

(क) राजनीति विज्ञान राज्य से सम्बन्धित है (Political Science is concerned with the state only)कुछ विद्वानों के मतानुसार, राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध केवल राज्य से है। ब्लंटशली (Bluntschli), प्रो० गार्नर (Prof. Garner), गैटेल (Gettell), गैरीज़ (Garies) आदि इस विचार के मुख्य समर्थक हैं :-

  • ब्लंटशली (Bluntschli) के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र उस विज्ञान को कहा जाता है जिसका सम्बन्ध राज्य से है और जिसमें राज्य की मूल प्रकृति, उसके रूपों, विकास तथा उसकी आधारभूत स्थितियों को समझने और जानने का प्रयत्न किया जाता है।”
  • प्रो० गार्नर (Prof. Garner) के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।” (“Political Science begins and ends with the State.”)
  • लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) के शब्दों में, “राजनीति शास्त्र और राज्य उसके विकास की आवश्यक अवस्थाओं के साथ सम्बन्धित है।” (Political Science is concerned with the State and with the conditions essential for its development.)

(ख) राजनीति विज्ञान सरकार के साथ सम्बन्धित है (Political Science is concerned with the Government)-कुछ विद्वान् राजनीति विज्ञान को सरकार के अध्ययन तक सीमित मानते हैं। सीले, लीकॉक आदि विद्वान् इसी विचार के समर्थक हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

1. सीले (Seeley) का कहना है कि “जिस प्रकार राजनीतिक अर्थव्यवस्था सम्पत्ति का, प्राणिशास्त्र जीवन का, बीजगणित अंकों का और रेखागणित स्थान और इकाई का अध्ययन करता है उसी प्रकार राजनीति शास्त्र शासन-प्रणाली का अध्ययन करता है।” (“Political Science investigates the phenomena of government, or Political Economy deals with wealth, Biology with life, Algebra with number and Geometry with space and magnitude.”)
2. डॉ० लीकॉक (Dr. Leacock) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से सम्बन्धित है।” (“Political Science deals with Government only.)”.

(ग) राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार से सम्बन्धित (Political Science is concerned with State and Government)-कुछ विद्वानों के विचारानुसार राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन किया जाता है। गैटेल, गिलक्राइस्ट, पाल जैनेट तथा लॉस्की ने इसी विचार का समर्थन किया है।

  • फ्रांसीसी लेखक पाल जैनेट (Paul Janet) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र समाज शास्त्र का वह भाग है जो राज्य के आधारों तथा सरकार के सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।” (“Political Science is that part of Social Science which treats the foundations of the State and principles of government.”)
  • गैटेल (Gettell) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध उन व्यक्तियों के समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य सरकार तथा कानून हैं।”
  • गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का विवेचन करता है।” (“Political Science deals with the general problems of the State and Government.”)

राजनीति विज्ञान की आधुनिक परिभाषाएं (Modern Definitions of Political Science)-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनीति शास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में एक नवीन दृष्टिकोण का उदय हुआ है, जो निश्चित रूप से अधिक व्यापक और अधिक यथार्थवादी है। व्यवहारवादी क्रान्ति ने राजनीति शास्त्र की परिभाषाओं को नया रूप दिया है। कैटलिन, लासवैस, मेरियम, राबर्ट डाहल, डेविड ईस्टन, आल्मण्ड तथा पॉवेल, मैक्स वेबर आदि राजनीति शास्त्र के आधुनिक दृष्टिकोण के प्रतिनिधि विद्वान् हैं।

  • बैन्टले (Bentley) का कहना है कि राजनीति में महत्त्वपूर्ण ‘शासन’ और उसकी संस्थाएं नहीं हैं, बल्कि शासन के कार्य की प्रक्रिया है और उस पर प्रभाव डालने वाले ‘दबाव समूह’ हैं। अतः राजनीति विज्ञान शासन की प्रक्रिया और दबाव समूहों के अध्ययन का शास्त्र है।
  • लासवैल और कैपलॉन (Lasswell and Kaplan) के अनुसार, “एक आनुभाविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और सहभागिता का अध्ययन है।” (“Political Science as an empirical inquiry is the study of the shaping and sharing of power.”)
  • डेविड ईस्टन (David Easton) के अनुसार, “राजनीति मूल्यों का सत्तात्मक निर्धारण है जैसा कि यह शक्ति के वितरण और प्रयोग से प्रभावित होता है।” (“Politics is the study of authoritative allocation of values, as it is influenced by the distribution and use of power.”) ईस्टन ने राजनीति शास्त्र के अध्ययन-क्षेत्र में तीन बातों-नीति, सत्ता और समाज (Policy, Authority and Society) को प्रमुख माना है।
  • आलमण्ड और पॉवेल (Almond and Powell) ने कहा है कि आधुनिक राजनीति विज्ञान में हम ‘राजनीतिक व्यवस्था’ का अध्ययन और विश्लेषण करते हैं।
    स्पष्ट है कि आधुनिक विद्वान् राजनीति शास्त्र की परिभाषा पर एक मत नहीं हैं। कोई उसे मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन का शास्त्र मानता है, कोई उसे शक्ति के अध्ययन का और कोई सत्ता के अध्ययन का। इन समस्त आधुनिक दृष्टिकोणों का समन्वय करते हुए राबर्ट डाहल (Robert Dahl) ने कहा है कि “राजनीतिक विश्लेषण का शक्ति , शासन अथवा सत्ता के सम्बन्ध है।” (“Political analysis deals with power, rule or authority.”)

आधुनिक राजनीतिक विद्वानों में कई मतभेदों के बावजूद भी इस सम्बन्ध में विचार साम्य है कि वे राजनीति शास्त्र को अब राज्य या सरकार का विज्ञान नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार का, शक्ति का, सत्ता का तथा मानव समूह की अन्तः क्रियाओं का विज्ञान है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति शास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में अपनाया गया यह आधुनिक दृष्टिकोण भी एकांगी ही है। शक्ति राजनीति शास्त्र के विभिन्न अध्ययन विषयों में से केवल एक है, एकमात्र नहीं। अतः राजनीति शास्त्र के कुछ विद्वानों विशेषतया वी० ओ० के (V.0. Key), जे० रोलैण्ड, पिनॉक और डेविड जी० स्मिथ आदि के द्वारा इस विषय की परिभाषा के सम्बन्ध में परम्परागत और आधुनिक दृष्टिकोण में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया गया है।

पिनॉक और स्मिथ (Penock and Smith) ने पूर्णतया सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए लिखा है कि, “इस प्रकार राजनीति विज्ञान किसी भी समाज में उन सभी शक्तियों, संस्थाओं तथा संगठनात्मक ढांचों से सम्बन्धित होता है जिन्हें उस समाज में सुव्यवस्था की स्थापना और उसको बनाए रखने, अपने सदस्यों के अन्य सामूहिक कार्यों के उत्पादन तथा उनके मतभेदों का समाधान करने के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और अन्तिम सत्ता माना जाता है।”

राजनीति शास्त्र का विषय क्षेत्र (Scope of Political Science)-

राजनीति शास्त्र के क्षेत्र में तीन विचारधाराएं प्रचलित हैं :

  • पहली विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र का विषय राज्य है।
  • दूसरी विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र का विषय-क्षेत्र सरकार के अध्ययन तक ही सीमित है।
  • तीसरी विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र राज्य तथा सरकार का अध्ययन करता है।

कुछ विद्वानों के अनुसार राजनीति शास्त्र राज्य तथा सरकार का ही अध्ययन नहीं, बल्कि मनुष्य का भी अध्ययन करता है। प्रो० लॉस्की ने ऐसा ही मत प्रकट किया है। उन्होंने लिखा है कि “राजनीति शास्त्र के अध्ययन का सम्बन्ध संगठित राज्यों से सम्बन्धित मनुष्यों के जीवन से है।”
संयुक्त राष्ट्र शौक्षणिक, वैज्ञानिक-सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के नेतृत्व में सितम्बर, 1948 में राजनीतिक वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें उन्होंने राजनीति शास्त्र के क्षेत्र को निम्नलिखित शीर्षकों के अधीन निश्चित किया :

  • राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory)—इसमें राजनीतिक सिद्धान्त और राजनीतिक विचारों के इतिहास का अध्ययन शामिल है।
  • राजनीतिक संस्थाएं (Political Institutions)—इसमें संविधान, प्रान्तीय और स्थानीय सरकार के प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यों का अध्ययन शामिल है।
  • राजनीतिक दल (Political Parties)—इसमें राजनीतिक दलों, समूहों, जनमत इत्यादि का अध्ययन शामिल है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध (International Relation)—इसमें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय कानून इत्यादि शामिल हैं।

इस विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजनीति शास्त्र निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करता है :

1. राज्य का अध्ययन (Study of State)-राजनीति शास्त्र राज्य का विज्ञान है और इसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता है। गैटल के मतानुसार राजनीति शास्त्र राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करता है।

(क) राज्य के अतीत का अध्ययन (The State as it had been)-राज्य वह धुरी है जिसके इर्द-गिर्द राजनीति शास्त्र घूमता है। परन्तु राज्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसमें राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राजनीतिक संस्थाओं, विचारधाराओं के बदलते हुए स्वरूप का अध्ययन किया जाता है।

(ख) राज्य के वर्तमान का अध्ययन (The State as it is)-राजनीति शास्त्र राज्य के वर्तमान स्वरूप का अध्ययन भी करता है। इसमें राज्य क्या है, राज्य के तत्त्व कौन-से हैं, राज्य की प्रकृति, राज्य के उद्देश्य, राज्य के अपने नागरिकों के साथ सम्बन्ध तथा राज्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए क्या-क्या साधन प्रयोग करता है आदि का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन का सीमा क्षेत्र बहुत विस्तृत है।

(ग) राज्य के भविष्य का अध्ययन (The State as it ought to be)-राज्य का अध्ययन इसके वर्तमान रूप के अध्ययन के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, इसलिए राज्य प्रगतिशील है। राज्य का लगातार विकास हो रहा है। राज्य जन-कल्याण के लिए है, इसलिए भविष्य में भी राज्य का ढांचा इस प्रकार का होना चाहिए कि जनता को अधिक-से-अधिक लाभ मिले। राज्य-शास्त्री का यह कर्त्तव्य है कि वह राज्य के अतीत तथा वर्तमान का पूर्ण ज्ञान लेकर भविष्य के लिए सुझाव दे ताकि राज्य की मशीनरी इस ढंग की हो कि जनता का अधिकसे-अधिक कल्याण हो सके। इसमें हम यह देखते हैं कि भविष्य में राज्य कैसा होना चाहिए तथा क्या एक अन्तर्राष्ट्रीय राज्य की स्थापना हो सकेगी कि नहीं।

2. सरकार का अध्ययन (Study of Government)-सरकार राज्य का अभिन्न भाग है। सरकार के बिना राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती। सरकार राज्य की ऐसी एजेंसी है जिसके द्वारा राज्य की इच्छा को प्रकट तथा कार्यान्वित किया जाता है। राज्य के उद्देश्यों की पूर्ति सरकार द्वारा ही की जाती है। राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं किसरकार क्या है, इसके अंग कौन-से हैं, इसके कार्य क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं।

3. शासन प्रबन्ध का अध्ययन (Study of Administration)-राजनीति शास्त्र लोक प्रशासन से सम्बन्धित है। शासन प्रबन्ध एक जटिल क्रिया है। राज्य प्रबन्ध में सरकारी कर्मचारी योगदान देते हैं और इन्हीं सरकारी कर्मचारियों से सम्बन्धित शास्त्र को लोक प्रशासन कहा जाता है। कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, अवकाश आदि सभी बातें जोकि लोक प्रशासन में आती हैं, राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित होती हैं, अतः उन सबके लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है।

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4. मनुष्य का अध्ययन (Study of Man)-मनुष्यों को मिलाकर राज्य बनता है। राजनीति शास्त्र, जिसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता है, मनुष्य का अध्ययन भी करता है। इसमें मनुष्यों का राज्य के साथ क्या सम्बन्ध है, उनके अधिकार और कर्त्तव्य तथा नागरिकता की प्राप्ति तथा लोप इत्यादि बातों का अध्ययन किया जाता है।

5. समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन (Study of Associations and Institutions)-राज्य के अन्दर कई प्रकार के समुदाय और संस्थाएं होती हैं जिनके द्वारा मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। राजनीति शास्त्र इन विभिन्न समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन भी करता है। इसके अतिरिक्त चुनाव प्रणाली, जनमत का संगठन, दबाव गुट, लोक-सम्पर्क की व्यवस्था, प्रसारण के साधन आदि के बारे में भी राजनीति शास्त्र में अध्ययन किया जाता है।

6. राजनीतिक विचारधारा का अध्ययन (Study of Political Thought)-राज्य क्या है, राज्य के पास कौनकौन से अधिकार और शक्तियां हैं और उनकी क्या सीमाएं हो सकती हैं ? राज्य की आज्ञाओं को लोग क्यों माने, किन-किन व्यवस्थाओं में लोगों को राज्य की आज्ञाओं की अवहेलना करने का अधिकार होना चाहिए, राज्य की शक्ति व लोगों के अधिकारों के मध्य कहां लकीर खींची जाए जैसे बहुत-से महत्त्वपूर्ण और मौलिक प्रश्नों के उत्तर समयसमय पर विभिन्न राजनीतिक विद्वान् विचारकों ने दिए हैं। अतः इन सब बातों का अध्ययन हम राजनीति शास्त्र में करते हैं। आदर्शवाद, व्यक्तिवाद, उपयोगितावाद, फासिज्म, गांधीवाद आदि का अध्ययन राजनीति शास्त्र में किया जाता है।

7. राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन (Study of Political Culture)-राजनीति शास्त्र में राज्य और सरकार का ही नहीं बल्कि राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन पर भी विशेष बल दिया जाता है। राजनीति के विद्वान् इन बातों का विश्लेषण करते हैं कि भौगोलिक परिस्थितियों, जातीय और भाषायी विभिन्नताओं, परम्पराओं और जनता के विश्वासों का राजनीतिक प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है।

8. नेतृत्व का अध्ययन (Study of Leadership)-राजनीति शास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण विषय नेतृत्व है। जब लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति और हितों की रक्षा के लिए संगठित होते हैं तब उन्हें नेतृत्व की आवश्यकता अनुभव होती है। कोई भी संगठन अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाता जब तक उस संगठन का अच्छा नेतृत्व नहीं किया जाता। नेतृत्व के बिना कोई संगठन सफल नहीं हो सकता। समाज में सदा कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक योग्यता रखते हैं और दूसरे व्यक्तियों को शीघ्र प्रभावित कर लेते हैं। ऐसे लोगों को नेतागण कहा जाता है। राजनीति शास्त्र में नेतृत्व और अच्छे नेता के गुणों का अध्ययन किया जाता है।

9. राजनीतिक दलों का अध्ययन (Study of Political Parties)-लोकतन्त्रीय प्रणाली बिना राजनीतिक दलों के नहीं चल सकती। राजनीतिक दल क्या हैं, राजनीतिक दलों के प्रकार, राजनीतिक दलों की भूमिका इत्यादि का राजनीति शास्त्र में अध्ययन किया जाता है।

10. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का अध्ययन (Study of International Politics and Organisation) वर्तमान समय में कोई भी राज्य आत्मनिर्भर नहीं है। प्रत्येक राज्य को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए एक राज्य दूसरे राज्यों से सम्बन्ध स्थापित करता है, जिससे कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। राजनीति शास्त्र अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का भी अध्ययन करता है। राजनीति शास्त्र में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का भी अध्ययन किया जाता है। राजनीति शास्त्र में युद्ध, शान्ति तथा शक्ति-सन्तुलन की समस्याओं पर विचार किया जाता है। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् राष्ट्र संघ और द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी। राजनीति शास्त्र में राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन, कार्यों, सफलताओं एवं असफलताओं आदि का अध्ययन किया जाता है।

11. शक्ति तथा सत्ता का अध्ययन (Study of Power and Authority)-मैक्स वैबर, मैरियम, लासवैल, राबर्ट डाहल, डेविड ईस्टन आदि विद्वानों के मतानुसार राजनीति शास्त्र में सभी प्रकार की शक्ति तथा सत्ता का भी अध्ययन किया जाता है। शक्ति तथा सत्ता के क्या अर्थ हैं ? शक्ति तथा सत्ता किस प्रकार प्राप्त होती है, व्यक्ति और व्यक्ति समूह किस प्रकार से शासन संचालन और सार्वजनिक नीतियों के निर्माण को अपनी शक्ति तथा सत्ता से प्रभावित करते हैं इत्यादि ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर राजनीति शास्त्र से ही प्राप्त किया जा सकता है।

12. राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के सम्बन्ध में आधुनिक दृष्टिकोण (Scope of Political Science-Most Modern Point of View)-आधुनिक दृष्टिकोण का राजनीतिक क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। आधुनिक विद्वानों ने राजनीति शास्त्र की नई दिशाएं निर्धारित की हैं। डॉ० वीरकेश्वर प्रसाद सिंह के शब्दों में, “इसे वैज्ञानिकता प्रदान करने के दृष्टिकोण से रूढ़िवादी विषयों, जैसे-राज्य के लक्ष्य, सर्वश्रेष्ठ सरकार, औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन, ऐतिहासिक पद्धति आदि को इससे अलग कर दिया गया है। मूल्यों, राज्यों एवं उसकी संस्थाओं के बदले मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तथा राजनीतिक गतिविधियों का अध्ययन राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत किया जाने लगा है।” 1967 में अमेरिकन पोलिटिकल साइंस एसोसिएशन ने राजनीति शास्त्र के विषय क्षेत्र का निर्धारण करते समय इसके 27 उपक्षेत्रों की चर्चा की। जिनमें मुख्य हैं-मनुष्य और उसका राजनीतिक व्यवहार, समूह, संस्थाएं, प्रशासन, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, सिद्धान्त, विचारवाद, मूल्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, सांख्यिकीय सर्वेक्षण, शोध पद्धतियां आदि।

आर्नल्ड ब्रेश्ट (Arnold Brecht) ने ‘International Encyclopaedia of Social Sciences’ 1968 में राजनीतिक सिद्धान्त के अन्तर्गत अग्र अध्ययन इकाइयां बताई हैं :

(1) समूह (Group), (2) सन्तुलन (Equilibrium), (3) शक्ति, नियन्त्रण एवं प्रभाव (Power, Control and Influence), (4) क्रिया (Action), (5) विशिष्ट वर्ग (Elite), (6) निर्णय (Decision) तथा विनिश्चय-प्रक्रिया, (7) पूर्वाभासित प्रतिक्रिया (Anticipated Action) तथा (8) कार्य (Function)।

13. नई धारणाओं का अध्ययन (Study of New Concepts)-राजनीति शास्त्र में कुछ नई धारणाओं ने जन्म लिया है। इसमें राजनीतिक प्रणाली (Political System), शक्ति की धारणा (Concept of Power), राजनीतिक समाजीकरण (Political Socialization), राजनीतिक सत्ता की धारणा (Concept of Political Authority), उचितता की धारणा (Concept of Legitimacy), प्रभाव की धारणा (Concept of Influence) आदि कुछ नई धारणाएं हैं। इन धारणाओं का अध्ययन राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में शामिल है।

इसके अतिरिक्त कुछ समाज-शास्त्र से सम्बन्ध रखने वाली अवधारणाओं का अध्ययन भी इसके अन्तर्गत करते हैं। जैसे-राजनीति, संस्थाएं, सरकार, न्याय, स्वतन्त्रता, समानता आदि। कुछ नवीन अवधारणाएं-समाजीकरण, राजनीतिक विकास, राजनीतिक संचार आदि हैं। अब अत्यधिक वैज्ञानिकता पर बल दिया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति शास्त्र के विषय क्षेत्र के अध्ययन से पता चलता है कि इसका क्षेत्र बहुत विशाल है। इसमें राज्य, सरकार, मनुष्य, समुदाय तथा संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें कानून तथा विश्व समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
राजनीति शास्त्र पढ़ने से क्या लाभ हैं?
(What are the advantages of studying Political Science ?)
अथवा
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के महत्त्व की व्याख्या करें। (Discuss the significance of the study of Political Science.)
उत्तर-
कुछ विद्वान् आज के वैज्ञानिक युग में राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों के अध्ययन का कोई मूल्य नहीं समझते, परन्तु उनकी यह धारणा ठीक नहीं है। आइवर ब्राउन (Ivor Brown) ने ठीक ही कहा है कि, “यदि इसे सामाजिक जीवन के यथार्थ मूल्यों के प्रति सहज बुद्धि के दृष्टिकोण से तथा उचित रीति से अध्ययन किया जाए तो राजनीतिक सिद्धान्त ठोस भी हैं और लाभप्रद भी।” प्रत्येक व्यक्ति, व्यक्ति होने के साथ-साथ राज्य का नागरिक भी है। उसका राज्य के साथ अटूट सम्बन्ध है। अतः प्रत्येक के लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य है। इसके अध्ययन के अनेक लाभ हैं जिनमें से मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

1. राजनीतिक शब्दावली का ठीक ज्ञान प्राप्त होता है (The Knowledge of the Political Terminology)राजनीति शास्र के अध्ययन का पहला लाभ यह है कि इससे राजनीतिक शब्दावली का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त होता है। इसके अध्ययन के बिना राज्य, सरकार, समाज, राष्ट्र, राष्ट्रीयता इत्यादि शब्दों के अर्थों का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त नहीं होता। साधारण मनुष्य राज्य तथा राष्ट्र, राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं करता। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से पता चलता है कि इन सब शब्दों में अन्तर है और एक शब्द को दूसरे शब्द के स्थान पर प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसके अध्ययन से नागरिकों को स्वतन्त्रता तथा समानता के अर्थों का ठीक-ठीक पता चलता है।

2. राज्य तथा सरकार का ज्ञान (Knowledge of State and Government)-राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से यह पता चलता है कि राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई, राज्य क्या है, राज्य के उद्देश्य क्या हैं, इन उद्देश्यों की पूर्ति किस तरह की जा सकती है, सरकार क्या है, सरकार के कौनसे अंग हैं और इन अंगों का आपस में क्या सम्बन्ध है।

3. राज्य का व्यक्ति से सम्बन्ध दर्शाता है (It shows relationship between the State and Man)राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा व्यक्ति के सम्बन्ध का ज्ञान होता है। प्राचीन काल से यह प्रश्न चला आ रहा है कि राज्य तथा व्यक्ति में क्या सम्बन्ध है ? राज्य व्यक्ति के लिए या व्यक्ति राज्य के लिए है? पहले यह समझा जाता था कि राज्य ही सब कुछ है। राज्य व्यक्ति पर मनमाने अत्याचार कर सकता है, इसलिए व्यक्ति पर बहुत अत्याचार किए गए। परन्तु आज हमें राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा व्यक्ति के ठीक सम्बन्ध का ज्ञान होता है।

4. अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties)-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को अपना विकास करने में सहायता देने के लिए राज्य की तरफ से अधिकार दिए तथा उसके कर्त्तव्य निश्चित किए जाते हैं। मनुष्य तभी अपना विकास कर सकता है जब उसे अधिकारों तथा कर्तव्यों का पूरा ज्ञान प्राप्त हो। यह ज्ञान राजनीति शास्त्र से प्राप्त होता है।

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5. सहनशीलता (Toleration)-आज के युग में नागरिकों के अन्दर सहनशीलता की भावना का होना बहुत आवश्यक है। राजनीति शास्त्र लोगों को सहनशीलता का पाठ सिखाता है। राजनीति शास्त्र यह शिक्षा देता है कि प्रत्येक राज्य एक दूसरे की अखण्डता, प्रभुसत्ता का आदर करे। लोकतन्त्र में तो सहनशीलता की भावना का होना विशेष रूप में अनिवार्य है, क्योंकि लोकतन्त्र में यदि एक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने व भाषण देने की स्वतन्त्रता है तो उसका कर्त्तव्य भी है कि दूसरे के अच्छे न लगने वाले विचारों को भी सहनशीलता से सुने और समझे। अत: यह भावना राजनीति शास्त्र के अध्ययन से उत्पन्न होती है।

6. विभिन्न देशों की शासन-प्रणालियों का ज्ञान (Knowledge of the Governmental Systems of Various countries) राजनीति शास्त्र के अध्ययन से विभिन्न देशों की शासन प्रणालियों का ज्ञान होता है। इसमें विश्व के संविधानों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार हमें इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, स्विट्ज़लैण्ड, जर्मनी, जापान, पाकिस्तान इत्यादि देशों के संविधानों का ज्ञान मिलता है। दूसरे देशों के शासन सम्बन्धी ज्ञान से हम अपने देश के शासन में सुधार कर सकते हैं।

7. लोगों में जागरूकता उत्पन्न करता है (Promotes Vigilance among the People)-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से नागरिकों के अधिकारों तथा कर्त्तव्य के ज्ञान, विश्व के दूसरे देशों की शासन प्रणाली के ज्ञान, राज्य तथा सरकार के ज्ञान से नागरिकों में जागरूकता उत्पन्न होती है जिससे वे देश के शासन को कार्य कुशल बनाने का प्रयत्न करते हैं। वे शासन कार्यों में दिल से भाग लेते हैं, सरकार की नीतियों की आलोचना करते तथा अपने सुझाव देते हैं। प्रजातन्त्र शासन प्रणाली की सफलता के लिए नागरिकों में जागरूकता होनी अति आवश्यक है। यह सत्य है कि सतत् चौकसी स्वतन्त्रता का मूल्य है (Enternal vigilance is the price of liberty)। यदि नागरिक अपनी स्वतन्त्रता को कायम रखना चाहते हैं तो उन्हें हमेशा ही जागरूक रहना होगा और जागरूकता राजनीति शास्त्र के अध्ययन से आती है।

8. स्वस्थ राजनीतिक दलों की उत्पत्ति (Growth of Healthy Political Parties)–लोकतन्त्र शासन के लिए स्वस्थ राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। अच्छे व स्वस्थ राजनीतिक दल किसे कहा जा सकता है, इसका पता राजनीति शास्त्र से चल सकता है। हमें राजनीति शास्त्र से ही पता चलता है कि देश के अन्दर स्वार्थ सिद्धि के लिए उत्पन्न हुए छोटे-छोटे गुट व राजनीतिक दल नहीं अपितु इनका ढांचा तो राजनीतिक तथा आर्थिक आधार पर खड़ा होना चाहिए। राजनीति शास्र का ज्ञान रखने वाले नागरिक ही स्वस्थ दलों का निर्माण कर पायेंगे और ऐसे दल सदैव राष्ट्र हित के लिए कार्य करेंगे।

9. राजनीतिज्ञों तथा शासकों के लिए विशेष उपयोगिता (Special advantages to Politicians and Administrators)-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राजनीतिज्ञों तथा शासकों को विशेष लाभ है। देश के शासन को किस प्रकार चलाया जाए, किस प्रकार के कानून बनाए जाएं कि जनता के लिए अधिक लाभदायक हों? दूसरे देशों के साथ किस प्रकार की नीति को अपनाया जाए? नागरिकों को कौन-से अधिकार दिए जाएं? सरकार के कार्यों में किस प्रकार कुशलता लाई जाए? सार्वजनिक वित्त (Public Finance) के क्या सिद्धान्त हैं ? जनता पर किस प्रकार के टैक्स लगाने चाहिएं? वे कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका सामना प्रत्येक राजनीतिज्ञ तथा शासक को करना पड़ता है और इन प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर राजनीति शास्र देता है।

10. वर्तमान समस्याओं का हल (Solution of Current Problems)-राजनीति शास्त्र ठोस सिद्धान्तों पर आधारित है और उन सिद्धान्तों को वर्तमान समस्याओं पर लागू करके समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। यदि नागरिकों और शासकों को यह पता है कि अमुक दशा में कौन-से कानून लागू करने चाहिएं तो देश में राजनीतिक प्रगति बड़ी सन्तोषप्रद होगी। यदि शासक अच्छी प्रकार सोच-विचार कर कदम उठाएं तो कोई कारण नहीं कि देश-विदेश की वर्तमान समस्याएं हल न हों।

11. प्रजातन्त्र की सफलता (Success of Democracy)-लोकतन्त्र की सफलता बहुत हद तक राजनीति शास्त्र के अध्ययन पर निर्भर है। लोकतन्त्र जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन होता है। प्रतिनिधियों का सुयोग्य होना अथवा न होना जनता पर निर्भर करता है। जनता को अच्छी सरकार प्राप्त करने के लिए अच्छे प्रतिनिधि चुनने होंगे और यह तभी हो सकता है जब जनता को राजनीतिक शिक्षा मिली हो।

लोकतन्त्र की सफलता में राजनीति शास्त्र का अध्ययन काफ़ी सहयोग देता है, क्योंकि इससे नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का, सरकार के संगठन कार्यों तथा सरकार के उद्देश्यों का, शासन की विभिन्न समस्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है।

12. विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का ज्ञान (Knowledge of Various Political Ideology)राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं आदर्शवाद (Idealism), व्यक्तिवाद (Individualism), गांधीवाद (Gandhism), समाजवाद (Socialism), अराजकतावाद (Anarchism), साम्यवाद (Communism) आदि का अध्ययन होता है। इन विचारधाराओं के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं।

13. विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की जानकारी (Knowledge of Various International Organisations)-राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है। इन संस्थाओं में संयुक्त राष्ट्र (United Nations), संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organisation), विश्व स्वास्थ्य संघ (World Health Organisation), अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ (I.L.O.) आदि महत्त्वपूर्ण संगठन हैं।

14. छात्र वर्ग के लिए उपयोगी (Useful for Student-Class)-राजनीति शास्त्र विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी तथा अनिवार्य है। आज का छात्र भविष्य का नागरिक व शासक है। अतः छात्र वर्ग को राजनीतिक विचारधाराओं, राजनीतिक प्रणालियों, अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होना अनिवार्य है।

निष्कर्ष (Conclusion)-अन्त में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति शास्त्र के अध्ययन के अनेक लाभ हैं। भारत में लोकतन्त्र की सफलता तभी हो सकती है जब जनता को शासन के बारे में ज्ञान प्राप्त हो और वे अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का उचित प्रयोग करें। इसके लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन अति आवश्यक है। भारत में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सरकार भी विद्यार्थियों में राजनीतिक शिक्षा का प्रचार करने के लिए प्रयत्नशील है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र का शाब्दिक अर्थ बताओ।
अथवा
राजनीति (Politics) शब्द की उत्पत्ति तथा इसका अर्थ बताओ।
उत्तर-राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटिकल साईंस (Political Science) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगरराज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था परन्तु आज बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना हो गई है। इसलिए अब हम इसका अर्थ राज्य के अध्ययन से लेते हैं। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान की चार परम्परागत परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र की महत्त्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • प्रो० गार्नर के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।”
  • लीकॉक के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से सम्बन्धित है।”
  • गैटेल के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध व्यक्तियों के उन समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य, सरकार तथा कानून हैं।”
  • गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का विवेचन करता है।”

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान की चार आधुनिक परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  • बैन्टले का कहना है कि राजनीति में महत्त्वपूर्ण ‘शासन’ और उसकी संस्थाएं नहीं हैं बल्कि शासन के कार्य की प्रक्रिया है और उस पर प्रभाव डालने वाले दबाव समूह हैं। अत: राजनीति विज्ञान शासन प्रक्रिया और दबाव समूहों के अध्ययन का शास्त्र है।
  • लासवैल और कैपलॉन के अनुसार, “एक आनुभाविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और सहभागिता का अध्ययन है।”
  • डेविड ईस्टन के अनुसार, “राजनीति मूल्यों का सत्तात्मक निर्धारण है जैसे कि यह शक्ति के वितरण और प्रयोग से प्रभावित होता है।”
  • आलमण्ड और पॉवेल के अनुसार, “आधुनिक राजनीति विज्ञान में हम राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन और विश्लेषण करते हैं।”

प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र के किन्हीं चार क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करता है

  • राज्य का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राज्य का है, राज्य के तत्त्व, राज्य की प्रकृति और राज्य के भविष्य आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • सरकार का अध्ययन–राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं कि सरकार क्या है ? इसके कौन-कौन से अंग हैं ? इसके कार्य क्या-क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं ?
  • शासन प्रबन्ध का अध्ययन-कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, अवकाश सभी बातें जोकि लोक प्रशासन में आती हैं, राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित होती हैं।
  • समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में चुनाव प्रणाली, राजनीतिक दल, दबाव समूह, लोक सम्पर्क की व्यवस्था तथा अन्य समुदायों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के चार लाभ बताइये।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान के अध्ययन से अनेक लाभ हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-

  • राजनीतिक शब्दावली का ठीक ज्ञान प्राप्त होता है-राजनीति शास्त्र के अध्ययन का पहला लाभ यह है कि इससे राजनीतिक शब्दावली का ठीक-ठाक ज्ञान प्राप्त होता है। इसके अध्ययन के बिना राज्य, सरकार, राष्ट्र, राष्ट्रीयता आदि शब्दों के अर्थों का सही ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
  • राज्य तथा सरकार का ज्ञान-राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से यह पता चलता है कि राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई ? राज्य क्या है ? राज्य के उद्देश्य क्या हैं ? इन उद्देश्यों की पूर्ति किस प्रकार की जा सकती है ? सरकार क्या है ? सरकार के कौन-से अंग हैं और उनका आपस में क्या सम्बन्ध है ?
  • अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को अपना विकास करने में सहायता देने के लिए उसे राज्य की तरफ से अधिकार व कर्त्तव्य दिए गए हैं। मनुष्य तभी अपना पूर्ण विकास कर सकता है जब उसे अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों का ज्ञान हो। यह ज्ञान उसे राजनीति शास्त्र से प्राप्त होता है।
  • राजनीति विज्ञान लोगों को सहनशीलता का पाठ सिखाता है।

प्रश्न 6.
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान है। इसके पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं.-

  • राजनीति शास्त्र में प्रयोग सम्भव है-राजनीति शास्त्र में प्राकृतिक विज्ञानों की तरह प्रयोग, प्रयोगशाला में नहीं होते बल्कि इतिहास राजनीति शास्त्र के लिए एक प्रयोगशाला है। ऐतिहासिक घटनाएं एक प्रयोग हैं जिनसे राज्यशास्त्री अपने परिणाम निकालते हैं।
  • राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण का सिद्धान्त-यह ठीक है कि प्राकृतिक विज्ञानों की तरह राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण में सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता, परन्तु फिर भी यदि घटनाओं का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से किया जाए तो घटनाओं के ऐसे कारण ढूंढ निकाले जा सकते हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि समान कारणों का काफ़ी सीमा तक समान प्रभाव होता है। विद्वानों ने यह परिणाम निकाला है कि यदि किसी देश की जनता अधिक ग़रीब होती जाएगी तो इसका परिणाम उस देश में क्रान्ति है।
  • तुलनात्मक तथा निरीक्षण पद्धति सम्भव-राजनीति शास्त्र विज्ञान है क्योंकि इसमें भौतिक विज्ञानों की तरह तुलनात्मक प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है। अरस्तु ने 158 संविधानों का अध्ययन करके अपने जो सिद्धान्त प्रस्तुत किए उनमें आज बहत हद तक सच्चाई है।
  • राजनीति विज्ञान में भी भविष्यवाणी की जा सकती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

प्रश्न 7.
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान नहीं है। इस कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान नहीं है। इस विषय में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-

  • राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों में एकता नहीं है-रसायन शास्त्र तथा भौतिक शास्त्र के सिद्धान्तों पर वैज्ञानिकों के एक ही विचार होते हैं अर्थात् इनके सिद्धान्तों में एकता पाई जाती है। परन्तु राजनीति शास्त्र में ऐसे सिद्धान्तों की कमी है जिनके विषय में विद्वानों के समान विचार हों।
  • राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण सिद्धान्त का न लागू होना-राजनीति शास्त्र को इस आधार पर भी विज्ञान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान या अन्य किसी विज्ञान की तरह कार्य-कारण का सिद्धान्त पूर्ण रूप से लागू नहीं होता।
  • राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग असम्भव है-राजनीति शास्त्र विज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें उस ढंग से प्रयोग नहीं किए जा सकते जिस ढंग से प्राकृतिक विज्ञानों में किए जाते हैं। राजनीति शास्त्र में रसायन विज्ञान की तरह ऐसे प्रयोग सम्भव नहीं हैं जिनका परिणाम सब समयों पर एक जैसा हो।
  • राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी करने में कठिनाई आती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटीकल साईंस (Political Science) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगरराज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  1. प्रो० गार्नर के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।”
  2. गैटेल के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध व्यक्तियों के उन समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य, सरकार तथा कानून हैं।”

प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र के क्षेत्र की व्याख्या करो।
उत्तर-

  1. राज्य का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राज्य का है, राज्य के तत्त्व, राज्य की प्रकृति और राज्य के भविष्य आदि का अध्ययन किया जाता है।
  2. सरकार का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं कि सरकार क्या है ? इसके कौन-कौन से अंग हैं ? इसके कार्य क्या-क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं ?

प्रश्न 4.
विद्यार्थियों के लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन किस प्रकार महत्त्व रखता है ?
उत्तर-
विद्यार्थियों को राजनीतिक विचारधाराओं, राजनीतिक प्रणालियों और अपने अधिकारों, कर्तव्यों व सरकार की समस्याओं की जानकारी प्राप्त होना आवश्यक है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन के द्वारा विद्यार्थियों को इन सभी विषयों की जानकारी प्राप्त होती है। राजनीति शास्त्र विद्यार्थियों को सूझवान व सचेत नागरिक बनने में मदद करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. राजनीति शास्त्र का पिता किसे माना जाता है ?
उत्तर-अरस्तु को।

प्रश्न 2. ‘Polis’ किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर-ग्रीक भाषा का।

प्रश्न 3. ‘Polis’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-‘Polis’ का अर्थ है-नगर राज्य (City State)।

प्रश्न 4. ग्रीक लोग कहाँ रहते थे ?
उत्तर-ग्रीक लोग नगर राज्यों में रहते थे।

प्रश्न 5. ‘Political Science’ शब्द किस शब्द से निकला है ?
उत्तर-Politics से ।।

प्रश्न 6. ‘Politics’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है?
उत्तर-Politics शब्द की उत्पत्ति ‘Polis’ से हुई है।

प्रश्न 7. अरस्तु ने कितने संविधानों का अध्ययन किया?
उत्तर-158 संविधानों का।

प्रश्न 8. किसी एक विद्वान् का नाम लिखें, जो राजनीति शास्त्र को विज्ञान मानता है?
उत्तर-अरस्तु।

प्रश्न 9. किसी एक विद्वान् का नाम बताएं, जो राजनीति शास्त्र को विज्ञान नहीं मानता है ?
उत्तर-मैटलैंड।

प्रश्न 10. “जब मैं ऐसे परीक्षा प्रश्नों के समूह को देखता हूँ, जिनका शीर्षक राजनीतिक विज्ञान होता है, तो मुझे प्रश्नों पर नहीं, बल्कि शीर्षक पर खेद होता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर-मैटलैंड।

प्रश्न 11. राजनीति शास्त्र की कोई एक उपयोगिता लिखें।
उत्तर-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा सरकार का ज्ञान मिलता है।

प्रश्न 12. नगर राज्यों का अध्ययन करने वाले विषय को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-राजनीति शास्त्र।।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. रिपब्लिक पुस्तक के लेखक ………… हैं
2. मैटलैंड राजनीति विज्ञान को विज्ञान ………….. मानता है।
3. राजनीति शास्त्र में राज्य और …………का अध्ययन किया जाता है।
4. अरस्तु ने …………. संविधानों का अध्ययन किया।
उत्तर-

  1. प्लेटो
  2. नहीं
  3. सरकार
  4. 158.

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राजनीति शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय मशीन को ही समझा जाना चाहिए क्योंकि राजनीति शास्त्र की समस्त मशीनरी मशीन के इर्द-गिर्द ही घूमती है।
2. राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में अर्थशास्त्र (Economics) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स से निकला है।
3. पोलिस (Polis) का अर्थ है-नगर-राज्य।
4. गार्नर के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से संबंधित है।”
5. राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के संबंध में तीन विचारधाराएं प्रचलित हैं।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
Political Science शब्द किस शब्द से निकला है ?
(क) State से
(ख) Right से
(ग) Politics से
(घ) Freedom से।
उत्तर-
(ग) Politics से।

प्रश्न 2.
यह कथन किसका है, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अंत राज्य के साथ होता है।”
(क) लॉस्की
(ख) गार्नर
(ग) विलोबी
(घ) गैरीज।
उत्तर-
(ख) गार्नर ।

प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र तथा राजनीति विज्ञान में क्या अंतर पाया जाता है ?
(क) राजनीति शास्त्र का जन्म राजनीति से पहले हुआ।
(ख) राजनीति विज्ञान नैतिकता पर आधारित है, जबकि राजनीति सुविधा पर।
(ग) दोनों के लक्ष्य अलग-अलग हैं।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र के विषय-क्षेत्र में शामिल हैं-
(क) राज्य का अध्ययन
(ख) सरकार का अध्ययन
(ग) राजनीतिक विचारधारा का अध्ययन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन

Punjab State Board PSEB 8th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Physical Education Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन

PSEB 8th Class Physical Education Guide पौष्टिक और सन्तुलित भोजन Textbook Questions and Answers

नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
भोजन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भोजन एक वस्तु की भान्ति है। मनुष्य हर प्रकार के खाद्य पदार्थों का सेवन करता है। वह मांसाहारी भी है तथा निरामिष भी। मनुष्य लगभग दोनों प्रकार का भोजन खा सकता है; जैसे–अन्न, दालें, सब्जियां, फल, दूध तथा दूध से बने पदार्थ, मांस, मछली, अण्डे आदि। ___ भोजन शरीर का एक आवश्यक अंग है क्योंकि भोजन से शरीर में वृद्धि होती है तथा शरीर के टूटे-फूटे सैलों की मुरम्मत होती है तथा नए सैल बनते हैं। भोजन शरीर को बीमारियों का मुकाबला करने योग्य बनाता है।

प्रश्न 2.
पोष्टिक भोजन किसे कहते हैं ? (From Board M.Q.P.)
उत्तर-
पौष्टिक तत्त्व शरीर का पालन-पोषण करते हैं। खाद्य पदार्थों में कुछ ऐसे तत्त्व पाये जाते हैं जिन्हें खाने के बाद वे शरीर में पचकर शरीर का पोषण करते हैं। जिस भोजन

प्रोटीन के लाभ (Advantages of Proteins)-

  1. यह शरीर में शक्ति पैदा करते हैं।
  2. प्रोटीन शरीर के टूटे-फूटे सैलों की मुरम्मत करते हैं और नए सैलों का निर्माण करते हैं।
  3. ये भोजन को पचाने में सहायता करते हैं।
  4. ये हड़ियों का निर्माण करते हैं।
  5. इनके सेवन से हड्डियां मज़बूत बनती हैं।
  6. यह शरीर का तापमान ठीक रखते हैं।

प्रोटीन की कमी और अधिकता से होने वाली हानियां (Disadvantages of Excess or Less Protein) भोजन में प्रोटीन उचित मात्रा में होनी चाहिए। भोजन में इनकी कमी और वृद्धि दोनों स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती है। इनकी कमी से शरीर कमजोर हो जाता है, परन्तु इनके बढ़ने से अधिक रक्तचाप, मोटापा, जोड़ों का दर्द (गठिया), जिगर तथा गुर्दे की बीमारियां हो जाती हैं।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन

प्रश्न 5.
कार्बोहाइड्रेट्स क्या है ? शरीर में इसकी कम-से-कम मात्रा की हानियाँ लिखिए।
उत्तर-
कोर्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates)—यह कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का मिश्रण है। कार्बोहाइड्रेट्स दो प्रकार के होते हैं-शक्कर के रूप में मिलने वाले और स्टॉर्च के रूप में मिलने वाले।
प्राप्ति के स्रोत (Sources) शक्कर के रूप में यह हमें गन्ने के रस, गुड़, चीनी,

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन 1

अंगूर, खजूर, शहद, सूखे मेवों, गाजर आदि से मिलते हैं। स्टॉर्च के रूप में यह गेहूँ, मक्की, जौ, ज्वार, शकरकन्द, अखरोट तथा केले आदि से प्राप्त होते हैं।

कार्बोहाइड्रेट्स के लाभ (Advantages of Carbohydrates)-

  1. कार्बोहाइड्रेट्स हमारे शरीर को गर्मी तथा शक्ति प्रदान करते हैं।
  2. ये शरीर में चर्बी पैदा करते हैं।
  3. ये चर्बी से सस्ते होते हैं और ग़रीब व कम आय वाले लोग भी इनका प्रयोग कर सकते हैं।

कार्बोहाइड्रेट्स की कमी और अधिकता से होने वाली हानियाँ (Advantages of Carbohydrates)-

  1. कार्बोहाइड्रेटस की अधिक मात्रा लेने से भोजन शीघ्र हज़म नहीं होता। भोजन का अधिकांश भाग बिना पचे ही शरीर से बाहर निकल जाता है।
  2. इनके अधिक प्रयोग से शरीर में मोटापा आ जाता है तथा पेशाब सम्बन्धी कई रोग लग जाते हैं।
  3. इनका कम मात्रा में प्रयोग करने से शरीर कमजोर हो जाता है।
  4. कार्बोहाइड्रेट्स अधिक मात्रा में लेने से शूगर, ब्लड प्रेशर और जोड़ों का दर्द होने लगता है।

प्रश्न 6.
चर्बी से क्या अभिप्राय है ? यह कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
चर्बी (Fat)-यह कार्बन, हाइड्रोजन व ऑक्सीजन का मिश्रण है। यह शरीर में ईंधन का कार्य करती है। चर्बी का मुख्य कार्य शरीर में गर्मी और शक्ति पैदा करना है। एक साधारण व्यक्ति के दैनिक भोजन में चर्बी की मात्रा 50 से 70 ग्राम तक होनी चाहिए।
PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन 2

प्राप्ति के स्रोत (Sources)—वनस्पति से प्राप्त होने वाली चर्बी सब्जियों, सूखे मेवों, फलों, अखरोट, बादाम, मूंगफली, बीजों से प्राप्त तेल आदि से प्राप्त होती है। पशुओं से प्राप्त होने वाली चर्बी, घी, दूध, मक्खन, मछली के तेल, अण्डे आदि में पाई जाती है।

चर्बी के अधिक प्रयोग से हानि (Disadvantages of Extra Fat)-

  • पाचनक्रिया बिगड़ जाती है।
  • रक्त-संचार में रुकावट पड़ जाती है।
  • शरीर में मोटापा आ जाता है।
  • हृदय रोग और शूगर का रोग होने का भय रहता है।

चर्बी के कम प्रयोग से हानि (Disadvantages of Less Faty)

  • चर्बी के कम प्रयोग के कारण शरीर दुबला पतला हो जाता है।
  • चर्बी की कमी के कारण शरीर में कमजोरी आ जाती है।

प्रश्न 7.
‘दूध एक सम्पूर्ण आहार है,’ वर्णन करें।
उत्तर-
दूध एक आदर्श तथा सम्पूर्ण भोजन है (Milk is an ideal Food) क्योंकि दूध में हर प्रकार के आवश्यक तत्त्व मिल जाते हैं। इसमें 3.6% चर्बी, 3.4% प्रोटीन, 4.8% कार्बोहाइड्रेट्स, 0.7% नमक तथा 7.5% पानी होता है। – दूध को सम्पूर्ण भोजन इसलिए कहा जाता है, क्योंकि छोटे बच्चों को केवल दूध ही दिया जाता है। यह बच्चों के लिए भोजन ही है। सामान्यतः घरों में हम रोगी व्यक्तियों के लिए दूध का प्रयोग करते हैं जो खुराक का कार्य करता है।

शरीर की उचित तन्दरुस्ती के लिए दूध एक प्रकार के सन्तुलित भोजन का कार्य करता है। दूध में भोजन के सभी आवश्यक तत्त्व प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी, खनिज लवण,पानी तथा विटामिन उचित मात्रा में मिलते हैं। ये भिन्न-भिन्न तत्त्व मानव शरीर में भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं।

दूध में भोजन के सभी आवश्यक तत्त्वों के विद्यमान होने के कारण उसे उचित और आदर्श खुराक माना जाता है। इसलिए दूध को एक सम्पूर्ण भोजन कहा जाता है।

प्रश्न 8.
भोजन पकाने के कौन-कौन से सिद्धान्त हैं ?
उत्तर-
भोजन पकाने के मुख्य सिद्धान्त निम्नलिखित हैं:

  1. भोजन पकाने वाला व्यक्ति साफ़-सुथरा तथा आरोग्य होना चाहिए।
  2. भोजन पकाने वाला स्थान भी साफ़-सुथरा होना चाहिए। इसको जाली लगी हुई होनी चाहिए ताकि मच्छर, मक्खी आदि भीतर न जा सकें।
  3. भोजन पकाने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले बर्तन भी साफ़ होने चाहिएं।
  4. रोटी पकाने से दस-पन्द्रह मिनट पहले आटा अच्छी प्रकार गूंथ कर रख लेना चाहिए। बिना छाने आटे का प्रयोग अति लाभदायक है।
  5. सब्जियां और दालें साफ़ पानी में अच्छी प्रकार दो-तीन बार धो कर पकानी चाहिए ताकि इन पर छिड़की हुई दवायें साफ़ हो जाएं।
  6. भोजन को बहुत ज्यादा नहीं पकाना चाहिए क्योंकि ज़्यादा पकाने से भोजन के तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। भोजन कच्चा भी नहीं होना चाहिए क्योंकि कम पका हुआ भोजन जल्दी हज़म नहीं होता।
  7. भाप द्वारा प्रैशर कुक्कर में तैयार किया हुआ भोजन बहुत लाभदायक होता है। ऐसे भोजन के तत्त्व नष्ट नहीं होते।
  8. भोजन को सदा ढक कर रखना चाहिए।

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प्रश्न 9.
भोजन खाने से सम्बन्धित ज़रूरी नियमों का वर्णन करें।
उत्तर-
भोजन सम्बन्धी जरूरी नियम-जो भोजन हम खाते हैं उसका पूरा-पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए हमें कुछ नियमों का पालन करना चाहिए। इन नियमों का विवरण नीचे दिया जाता है-

  1. भोजन सदा नियमित समय पर करना चाहिए।
  2. भोजन करने से पहले हाथों को अच्छी तरह धोना चाहिए।
  3. भोजन अच्छी तरह चबा कर और धीरे-धीरे खाना चाहिए।
  4. भोजन करते समय न तो पढ़ना चाहिए और न ही बातें करनी चाहिए।
  5. भोजन खाते समय प्रसन्न रहना चाहिए। उस समय किसी प्रकार की चिन्ता नहीं करनी चाहिए।
  6. भूख लगने पर ही भोजन करना चाहिए।
  7. भोजन सदा आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए। बहुत कम या बहुत अधिक खाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
  8. तली हुई वस्तुएं शीघ्र नहीं पचतीं इसलिए इनको बहुत थोड़ी मात्रा में खाना चाहिए।
  9. बासी और खराब भोजन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
  10. दोपहर का भोजन करने के उपरान्त कुछ समय के लिए आराम करना लाभदायक होता है।
  11. रात को सोने से दो घण्टे पहले भोजन खाना चाहिए। भोजन खाने के तुरन्त बाद सोना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है।
  12. भोजन के शीघ्र बाद व्यायाम आदि करना हानिकारक होता है।
  13. गर्म-गर्म भोजन खाने के बाद ठण्डा पानी नहीं पीना चाहिए।
  14. भोजन खाने के बाद अच्छी तरह कुल्ली करके दाँतों को साफ़ करना चाहिए नहीं तो दाँतों में भोजन के अंश फंसे रहेंगे जिसके कारण मुंह से बदबू आएगी।
  15. भोजन करने वाला स्थान साफ़-सुथरा होना चाहिए।
  16. बहुत चटपटी और मसालेदार वस्तुएं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं।
  17. भोजन ढक कर रखना चाहिए।
  18. भोजन सदा बदल-बदल कर करना चाहिए।
  19. मीठी और खट्टी वस्तुएं अधिक मात्रा में प्रयोग नहीं करनी चाहिए।
  20. पानी सदा भोजन के मध्य में पीना चाहिए।
  21. भोजन ठीक ढंग से पकाया हुआ होना चाहिए।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित पर नोट लिखें।
(क) मोटा आहार
(ख) पानी
(ग) खनिज पदार्थ
(घ) भोजन पकाना।
उत्तर-
(क) मोटा आहार (रेशेदार) (Roughage/Cellulose) मनुष्य के भोजन में विद्यमान रेशेदार कार्बोहाइड्रेट्स को मोटा आहार कहते हैं। हमें मोटा आहार सब्जियों फल, मूली, शलगम, गाजर, खीरा, सलाद तथा अन्य वनस्पति खाद्य-पदार्थों को छिल्के सहित खाने से प्राप्त होता है। इसकी कमी से हमें कब्ज तथा अधिकता से दस्त लग जाते हैं।

(ख) पानी (Water)—यह ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का यौगिक है। शरीर का लगभग 70% भाग पानी है। इसके बिना जीवन असम्भव है। वयस्क व्यक्तियों के लिए प्रतिदिन \(1 \frac{1}{2}\) से \(2 \frac{1}{2}\) लिटर पानी की आवश्यकता होती है, परन्तु जलवायु और कार्य की स्थिति में अन्तर होने से पानी की आवश्यकता घटती-बढ़ती रहती है। गर्मियों में पानी की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है।

पानी के लाभ (Advantages)-

  1. पानी रक्त को द्रव अवस्था में रखकर संचालन में सहायता प्रदान करता है।
  2. यह भोजन को घोल कर पाचन क्रिया में सहायता देता है।
  3. पानी की प्यास को शान्त करता है।
  4. पानी से शरीर का तापमान एक समान रहता है।
  5. पानी से गंदगी पसीने और मल-मूत्र के रूप में बाहर निकल जाती है।
  6. पानी शरीर में रक्त का दौरा आसान करता है।

(ग) खनिज पदार्थ (Mineral) हमारे शरीर को कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, लोहा, मैग्नीशियम, पोटाशियम, आयोडीन, क्लोरीन और गन्धक जैसे तत्त्वों की अधिक आवश्यकता रहती है। ये तत्त्व लवण के रूप में भोजन से प्राप्त होते हैं। हमारे दैनिक भोजन में खनिज पदार्थों की मात्रा 10 से 15 ग्राम होनी चाहिए।

प्राप्ति के स्रोत (Sources) खनिज पदार्थ हरे पत्ते वाली सब्जियों, ताजे फलों, मांस, मछली, दूध, पनीर आदि पदार्थों से मिलते हैं।

खनिज पदार्थ के लाभ (Advantages of Mineral)-

  1. ये मांसपेशियों के तन्तुओं का विकास करते हैं। . :
  2. रक्त के रंग को लाल करते हैं।
  3. कैल्शियम रक्त को जमने में सहायता देता है।
  4. शरीर के सभी अंगों को ठीक काम करने में सहायता देते हैं।

खनिज पदार्थ की कमी से हानियां (Disadvantages of less Mineral) भोजन में इसकी कमी से निम्नलिखित रोग लग जाते हैं –

  1. शरीर शीघ्र रोगग्रस्त हो जाता है।
  2. हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।
  3. शरीर में पीलापन आ जाता है।
  4. गिल्लड़ नामक रोग हो जाता है।

(घ) भोजन पकाना (Cooking)-कई खाद्य पदार्थ पकाने के बाद ही खाने योग्य होते हैं; जैसे दालें, अनाज़, सब्जियां आदि। खांद पदार्थों को भिन्न-भिन्न ढंगों से आग पर पका कर खाने योग्य बनाया जाता है। इस प्रक्रिया को भोजन पकाना कहते हैं। अच्छी तरह से पकाया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। भोजन को ठीक विधि से पकाया जाना चाहिए, क्योंकि अधिक देर आग पर रखने से भोजन में विटामिन सी और डी की विशेष हानि होती है।

निम्नलिखित कारणों के कारण भोजन को पकाना अत्यन्त आवश्यक है –

  1. ठीक ढंग से पका हुआ भोजन आसानी से पचने के योग्य बन जाता है।
  2. भोजन को पकाने से रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
  3. पकाया हुआ भोजन स्वादिष्ट होता है, इसलिए उसे खाने को मन करता है।
  4. पकाने से खाद्य पदार्थों को अधिक देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

Physical Education Guide for Class 8 PSEB प्राथमिक सहायता Important Questions and Answers

बहविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संतुलित भोजन है –
(क) प्रोटीन
(ख) कार्बोहाइड्रेट्स
(ग) चर्बी और खनिज लवण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
प्रोटीन किस से बना है ?
(क) कार्बन
(ख) ऑक्सीजन
(ग) हाइड्रोजन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन

प्रश्न 3.
प्रोटीन की किस्में हैं
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर-
(क) दो

प्रश्न 4.
कार्बोहाइड्रेट्स कितनी प्रकार के हैं ?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) चार
(घ) पाँच।
उत्तर-
(ख) तीन

प्रश्न 5.
चर्बी के स्रोत हैं-
(क) फल और अखरोट
(ख) बादाम, मूंगफली
(ग) तिल
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
सम्पूर्ण भोजन है-
(क) दूध
(ख) फल, दूध, अखरोट
(ग) बादाम
(घ) उपरोक्त कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) फल, दूध, अखरोट

प्रश्न 7.
भोजन खाने के नियम –
(क) समय के अनुसार भोजन खाएं
(ख) भोजन खाने से पहले हाथ धो लें
(ग) भूख लगने पर ही भोजन करें
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

बहन छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खाने की वे चीजें जो हमारी भूख को सन्तुष्ट करें और शरीर का विकास करें, भोजन कहलाती है।

प्रश्न 2.
भोजन में पाए जाने वाले खनिज लवणों के नाम बताएं। .
उत्तर-
कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौ कण, सोडियम, मैग्नीशियम, पोटाशियम, आयोडीन, क्लोरीन और गन्धक खाने के खनिज हैं।

प्रश्न 3.
भाप से पकाया भोजन अच्छा क्यों होता है ?
उत्तर-
भाप से पके भोजन में पौष्टिक तत्त्व खराब नहीं होते हैं ।

प्रश्न 4.
हमारे शरीर में कितने प्रतिशत तक पानी होता है ?
उत्तर-
हमारे शरीर में 60 प्रतिशत पानी होता है ।

प्रश्न 5.
प्रोटीन कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखो।
उत्तर-
प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-पशु प्रोटीन तथा वनस्पति प्रोटीन।

प्रश्न 6.
पशु प्रोटीन के तीन स्रोत बताओ।
उत्तर-
मांस, मछली और दूध।

प्रश्न 7.
वनस्पति प्रोटीन के तीन स्त्रोत बताओ।
उत्तर-
दालें, मटर, सोयाबीन।

प्रश्न 8.
कार्बोहाइड्रेट्स क्या हैं ?
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन और हाइड्रोजन का मिश्रण है।

प्रश्न 9.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
विटामिन छ: प्रकार के होते हैं-A, B, C, D, E और K।

प्रश्न 10.
अंधराता रोग किस विटामिन की कमी के कारण होता है ?
उत्तर-
यह रोग विटामिन A की कमी के कारण होता है।

प्रश्न 11.
किस विटामिन की कमी के कारण स्कर्वी रोग हो जाता है ?
उत्तर-
विटामिन C की कमी के कारण।

प्रश्न 12.
बेरी-बेरी रोग किस विटामिन की कमी के कारण हो जाता है ?
उत्तर-
विटामिन B की कमी के कारण।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन

प्रश्न 13.
पायोरिया रोग किस विटामिन की कमी के कारण होता है ?
उत्तर-
विटामिन C की कमी के कारण।

प्रश्न 14.
बांझपन का रोग किस विटामिन की कमी के कारण होता है ?
उत्तर-
विटामिन E की कमी के कारण।

प्रश्न 15.
कौन-से विटामिन पानी में घुलनशील नहीं हैं ?
उत्तर-
विटामिन C, D, E और K।

प्रश्न 16.
छोटे बच्चे के लिए कौन-सा दूध अच्छा होता है ?
उत्तर-
माँ का दूध।

प्रश्न 17.
भोजन पकाने के कौन-कौन से ढंग हैं ? नाम बताओ।
उत्तर-
उबालना, भूनना, तलना और भाप द्वारा पकाना।

प्रश्न 18.
हमारे दैनिक भोजन में प्रोटीन की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
70 से 100 ग्राम।

प्रश्न 19.
कार्बोहाइड्रेट्स किन तत्त्वों का मिश्रण है ?
उत्तर-
ऑक्सीजन, हाइड्रोजन तथा कार्बन।

प्रश्न 20.
कार्बोहाइड्रेट्स किन दो रूपों में मिलते हैं ?
उत्तर-
स्टॉर्च तथा शर्करा के रूप में।

प्रश्न 21.
प्रोटीन किन तत्त्वों का मिश्रण है ?
उत्तर-
कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन तथा गन्धक।

प्रश्न 22.
जीवन तत्त्व किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
विटामिनों को।

प्रश्न 23.
पानी में घुलनशील विटामिन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
विटामिन B तथा C।

प्रश्न 24.
हमारे भोजन में चर्बी (वसा) की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
50 से 70 ग्राम।

प्रश्न 25.
लोहे की कमी से कौन-सा रोग हो जाता है ?
उत्तर-
रक्त में हीमोग्लोबिन कम हो जाता है।

प्रश्न 26.
भोजन खाने का स्थान कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
साफ-सुथरा और हवादार।

छोट जत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
प्रत्येक मनुष्य को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। हम प्रतिदिन किसी-न-किसी खेल में भाग लेते हैं अथवा कई अन्य प्रकार के कार्य करते हैं।
इसके साथ ही हम हर समय शारीरिक क्रियाएं करते हैं। इन सभी क्रियाओं को पूरा करने के लिए हमें शक्ति की आवश्यकता होती है। वह शक्ति हमें भोजन से ही मिलती है।

प्रश्न 2.
भोजन से हमें क्या लाभ हैं ?
उत्तर-

  1. भोजन शरीर को शक्ति देता है।
  2. भोजन से शरीर बढ़ता है।
  3. भोजन से शरीर के टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत होती है।
  4. इससे नए तन्तुओं का निर्माण होता है।
  5. भोजन से रोगों का मुकाबला करने के लिए शक्ति मिलती है।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 2 पौष्टिक और सन्तुलित भोजन

प्रश्न 3.
सन्तुलित भोजन के मुख्य तत्त्व कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सन्तुलित भोजन के मुख्य तत्त्व हैं –

  1. प्रोटीन
  2. कार्बोहाइड्रेट्स अथवा कार्बोज़
  3. वसा (चर्बी)
  4. विटामिन
  5. खनिज लवण
  6. जल
  7. फोकट।

प्रश्न 4.
पानी हमारे शरीर के लिए क्यों लाभदायक है ?
उत्तर-
प्रत्येक मनुष्य को जीवित रहने के लिए पानी की आवश्यकता पड़ती है। इसके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकते। पानी के नीचे लिखे लाभ हैं

  1. पानी शरीर के सभी सैलों के पालन-पोषण में सहायता करता है।
  2. यह भोजन को अच्छी प्रकार से घोलकर पाचन क्रिया में सहायता देता है।
  3. पानी पौष्टिक तत्त्वों को शरीर के सभी भागों तक ले जाता है।
  4. पानी शरीर के व्यर्थ पदार्थों को पसीने द्वारा बाहर निकाल देता है।
  5. पानी शरीर के तापमान को स्थिर रखता है।

प्रश्न 5.
भोजन पकाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
भोजन पकाने की आवश्यकता-अच्छी तरह पका हुआ भोजन सेहत के लिए लाभदायक होता है। निम्नलिखित कारणों से भोजन को पकाना अत्यन्त आवश्यक है –

1. ठीक ढंग से पका हुआ भोजन आसानी से पचने के योग्य बन जाता है।
2. भोजन के पकाने से रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणु नष्ट हो जाते हैं।
3. पकाया हुआ भोजन स्वादिष्ट होता है। इसलिए उसे खाने को मन करता है।
4. पकाने से खाद्य पदार्थों को अधिक देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
भोजन पकाने के विभिन्न ढंगों का वर्णन करें।
उत्तर-
भोजन पकाने के ढंग-भोजन पकाने के लिए निम्नलिखित विधियों का प्रयोग किया जाता है
1. उबालना (Boiling) 2. भाप द्वारा पकाना (Cooking With Steam) 3. भूनना (Roasting) 4. तलना (Fry)। इन तरीकों का नीचे संक्षेप में वर्णन किया जा रहा है –

1. उबालना (Boiling)-इस विधि से खाद्य पदार्थों को पानी में उबालकर पकाया जाता है, परन्तु ऐसा करने से खनिज लवण और विटामिन पानी में घुलकर नष्ट हो जाते हैं। खाद्य पदार्थों को उबालते समय थोड़े-से पानी का प्रयोग करना चाहिए। यदि अधिक पानी पड़ जाए तो उस पानी को फेंक देना चाहिए। चावल, दालें, मांस और सब्जियां आदि उबाल कर ही पकाए जाते हैं।

2. भाप द्वारा पकाना (Cooking with Steam) भोजन भाप द्वारा भी पकाया जाता है। इस विधि से तैयार किए गए भोजन में से लाभदायक तत्त्व नष्ट नहीं होते। कुकर में पकाया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है। इसलिए इस विधि को अन्य विधियों से श्रेष्ठ समझा जाता है।

3. भूनना (Roasting)-इस विधि द्वारा भोजन को सीधे आग पर रख कर भूना जाता है। अधिक भूनने से भी भोजन के तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार भूना हुआ मांस स्वादिष्ट होता है और शीघ्र हज्म हो जाता है।

4. तलना (Fry)-पकौड़े, समोसे और पूरियां आदि तेल में पकाए जाते हैं। तलने से भोजन शीघ्र तैयार हो जाता है तथा स्वादिष्ट भी बन जाता है। इस विधि से भी भोजन के पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं। तले हुए खाद्य पदार्थ शीघ्र हज्म नहीं होते और स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होते हैं। सबसे अच्छा ढंग-ऊपर बताई गई चारों विधियों में से भाप द्वारा भोजन पकाने की विधि सबसे उत्तम है। इस विधि से पकाए हुए भोजन में से पौष्टिक तत्त्व नष्ट नहीं होते हैं। इस प्रकार पकाया हुआ भोजन स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होता है

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता

Punjab State Board PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Welcome Life Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता

Welcome Life Guide for Class 8 PSEB शारीरिक स्वच्छता InText Questions and Answers

बहत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हम अच्छे स्वास्थ्य को कैसे बनाए रख सकते हैं?
उत्तर-
अच्छे स्वास्थ्य के लिए शरीर को साफ-सुथरा रखना चाहिए।

प्रश्न 2.
अच्छे स्वास्थ्य का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
अच्छा स्वास्थ्य खुद को और समाज के अन्य सदस्यों को बीमारी और कई अन्य बीमारियों से बचाने का एक तरीका है।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता

प्रश्न 3.
अच्छी आदतों से आपका क्या भाव है?
उत्तर-
अच्छी आदतें वह क्रिया और गतिविधियां हैं जो किसी व्यक्ति और समाज के लिए अच्छे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

प्रश्न 4.
दो अच्छी आदतों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. खाने से पहले व बाद में हाथ धोना।
  2. खांसते व छींकते समय मुँह को ढकना।

प्रश्न 5.
क्या हमें सड़क के किनारे बिकने वाला खुला भोजन खाना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, अच्छा स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए हमें सड़क पर बिकने वाला अस्वस्थ भोजन नहीं खाना चाहिए।

प्रश्न 6.
हमें सड़क के किनारे बिकने वाला भोजन क्यों नहीं खाना चाहिए?
उत्तर-
क्योंकि सड़क पर बिकने वाला भोजन हमें बीमार तथा अस्वस्थ बना सकता है।

प्रश्न 7.
हमें नशीले पदार्थों से क्यों दूर रहना चाहिए?
उत्तर-
हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दवाओं और नशीले पदार्थों से दूर रहना चाहिए क्योंकि इनके दुरुपयोग से हमारा शरीर बर्बाद और अस्वस्थ होता जाता है।

प्रश्न 8.
क्या हमें कच्ची सब्जियों को बिना धोए खाना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, हमें कभी भी कच्ची सब्जियों को बिना धोए नहीं खाना चाहिए।

प्रश्न 9.
क्या हमें रोजाना स्नान करना चाहिए?
उत्तर-
जी हाँ। हमें रोज़ाना स्नान करना चाहिए।

प्रश्न 10.
क्या हमें रोजाना अपने बालों को धोना चाहिए?
उत्तर-
यदि हमारे बाल छोटे हैं तो हमें अवश्य रोज़ धोने चाहिए परन्तु यदि हमारे बाल लम्बे हैं तो हमें कम-सेकम सप्ताह में एक बार जरूर धोने व अच्छे से सखाने चाहिए।

प्रश्न 11.
क्या परिवार के सभी सदस्यों के लिए एक सामान्य तौलिया होना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, हर सदस्य का अपना अपना अलग तौलिया होना चाहिए।

प्रश्न 12.
कितने समय बाद हमें अपने नाखुन काटने चाहिए?
उत्तर-
हमें साप्ताहिक तौर पर अपने नाखुन काटने चाहिए।

प्रश्न 13.
क्या हमारे शरीर की स्वच्छता की देखभाल हमारे लिए अच्छी है?
उत्तर-
जी हाँ। शरीर की स्वच्छता की देखभाल हमारे लिए अच्छी है।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता

प्रश्न 14.
हमें अपने दांतों को क्यों साफ करना चाहिए?
उत्तर-
दांतों को साफ-सुथरा व चमकदार रखने के लिए रोज़ाना दांतों की सफाई करनी चाहिए।

प्रश्न 15.
क्या परिवार के सभी सदस्यों के लिए एक सामान्य कंघी होनी चाहिए?
उत्तर-
नहीं । हर एक सदस्य की अपनी एक अलग कंघी होनी चाहिए।

प्रश्न 16.
हम खुद को बीमारियों से कैसे दूर रख सकते हैं?
उत्तर-
हम स्वस्थ रहकर खुद को बीमारियों से दूर रख सकते हैं।

प्रश्न 17.
दांतों की रोजाना सफाई करनी क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
दांतों की रोजाना सफाई करने से दांत व मसूड़े साफ तथा मजबूत रहते हैं।

प्रश्न 18.
हमें किस प्रकार के कपड़े पहनने चाहिए?
उत्तर-
हमें हमेशा साफ व सूखे कपड़े पहनने चाहिए।

प्रश्न 19.
हमें अपने नाखुनों को साफ क्यों रखना चाहिए?
उत्तर-
अपने नाखुनों को साफ रखने से हमें हानिकारक वैक्टीरिया के प्रसार से बचने में मदद मिलेगी।

प्रश्न 20.
हमें अपने शरीर को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए?
उत्तर-
शरीर को स्वच्छ रखने से हम बीमारियों के प्रसार को रोकने में सफल होंगे।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हम किस प्रकार अपने बालों को स्वस्थ रख सकते हैं?
उत्तर-
हम अपने बालों को अच्छी तरह धो कर व सुखा कर स्वस्थ रख सकते हैं। छोटे बालों को रोज़ाना धोना चाहिए और यदि बाल लम्बे हैं तो सप्ताह से एक बार धोने चाहिए। हमें अपने बालों को साबुन या शैंपू से अच्छी तरह धोना चाहिए और अच्छी तरह सुखाना चाहिए।

प्रश्न 2.
हम अपने दांतों को किस प्रकार स्वस्थ रख सकते हैं?
उत्तर-
दांतों को स्वस्थ रखने के लिए हमें रोज़ाना दांतों की सफाई करनी चाहिए। दांतों की सफाई के लिए एक अच्छे दन्तमंजन का इस्तेमाल करना चाहिए। दांतों की सफाई के लिए हम दातुन का प्रयोग भी कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
स्वस्थ रहने के लिए हाथ साफ करना सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है सपष्ट करें।
उत्तर-
हमें अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह से साफ करना चाहिए, विशेष रूप से शौचालय जाने के बाद, खाना खाने से पहले और बाद में, खेलने के बाद आदि। बागवानी के बाद या कोई अन्य गतिविधियां जो हमारे हाथों को गंदा करती हैं। यदि हम गन्दे हाथों से खाते हैं तो हमारे बीमार होने की सम्भावना अधिक होती है। इसका कारण यह है कि वायरस और रोगाणु पैदा करने वाले कई रोग सीधा हमारे पेट में प्रवेश करते हैं और हमें बीमार करते हैं।

प्रश्न 4.
मुँह और नाक ढकना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
खांसते और छींकते वक्त हमारे मुँह तथा नाक से रोगाणु पैदा करने वाली तरल बूंदें निकलती हैं जो कि दूसरे लोगों को बीमार कर सकती हैं। खांसते व छींकते वक्त मुँह और नाक को ढकना ज़रूरी है। क्योंकि ऐसा करने से रोगाणु पैदा करने वाली तरल बूंदों को रोका जा सकता है, जिससे दूसरे लोगों को स्वस्थ तथा रोगाणु मुक्त रखने में मदद मिलती है।

प्रश्न 5.
कुछ आदतें जो हमें स्वस्थ रहने में मदद करती हैं लिखें।
उत्तर-
निम्नलिखित आदतें हमें स्वस्थ रहने में मदद करती हैं

  1. हमें अपने नाखुन साफ रखने चाहिए और साप्ताहिक उन्हें काटना चाहिए।
  2. यदि हम अपने कपड़े दोबारा पहनना चाहते हैं तो हमें उन्हें धूप में रखना चाहिए।
  3. हमें सड़क के किनारे बेचे जाने वाले खुले भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि यह हमें बीमार करता है।
  4. दवाओं का दुरुपयोग हमारे शरीर को बर्बाद कर देता है इसलिए हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दवाओं से दूर रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
फलों और सब्जियों का प्रयोग करने से पहले हमें इन्हें क्यों धोना चाहिए?
उत्तर-
बाज़ार से लाए जाने वाले फल और सब्जियां कई हाथों से निकली हुई होती हैं और उनमें बहुत सारे कीटाणु होते हैं। यह कीटाणु हमारे शरीर में जाकर कई प्रकार की जानलेवा बीमारियां पैदा करते हैं। इसलिए ऐसी कई जानलेवा बीमारियों से बचने के लिए हमें फलों और सब्जियों को इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह धो लेना चाहिए।

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प्रश्न 7.
शरीर को साफ रखने के फायदों के बारे में नीचे लिखें।
उत्तर-
शरीर को साफ रखने के फायदे इस प्रकार हैं

  1. यह हमें स्वस्थ, तरोताजा तथा ऊर्जावान बनाए रखता है।
  2. हम शरीर को साफ रखकर बीमारियों में बच सकते हैं और दवाइयों और अस्पताल के खर्चों से बच सकते
  3. शरीर को साफ रखकर हम बीमारियों को फैलने से रोक सकते हैं तथा समाज को स्वस्थ रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
  4. स्वस्थ रहकर हम अधिक काम करेंगे और इस प्रकार हमारे देश के विकास और प्रगति में योगदान कर सकते हैं।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वस्थ रहने के लिए विभिन्न तरीकों व साधनों का वर्णन करें।
उत्तर-
निम्नलिखित आदतें हमें स्वस्थ रहने में मदद करती हैं जोकि इस प्रकार हैं

  1. रोज़ाना स्नान-हमें रोज़ाना साबुन व पानी से स्नान करना चाहिए जिससे शरीर पर लगी धूल मिट्टी धुल जाती है और हम स्वस्थ रहते हैं।
  2. बालों की सफ़ाई-हमें नियमित रूप से अपने बालों की सफाई करनी चाहिए। यदि बाल लम्बे हों तो उन्हें सप्ताह में एक बार साबुन या शैम्पू से अवश्य धोना चाहिए और यदि बाल छोटे हैं तो उन्हें प्रतिदिन साबुन या शैम्पू से धोना चाहिए और बालों को अच्छे से सुखाना चाहिए।
  3. दाँतों की सफाई- हमें नियमित रूप से दांतों की सफाई करनी चाहिए। दिन में दो बार दांतों को दंतमंजन से अच्छी तरह साफ करना चाहिए। ऐसा करने से हमारे दांत मजबूत व चमकदार बनते हैं साथ ही सांसों की बदबू से भी छुटकारा मिलता है।
  4. साबुन से हाथ धोना-हमें अपने हाथों को साबुन व पानी के साथ अच्छी तरह से धोना चाहिए, विशेषरूप से शौचालय जाने के बाद, भोजन करने से पहले व बाद में, खेलने के बाद, बागबानी के बाद तथा ऐसे कार्यों के बाद जिनके कारण हमारे हाथ गन्दे होते हैं। यदि हम बिना हाथों को धोए भोजन करते हैं तो हाथों पर लगे कीटाणु हमारे शरीर में जाकर कई प्रकार की बीमारियां पैदा कर सकते हैं जिससे हम अस्वस्थ हो जाएंगे।
  5. साफ़ कपड़े पहनना-हमें हमेशा ऐसे कपड़े पहनने चाहिए जो अच्छी तरह से साबुन से धुले और सही तरह से धूप में सूखे हों। यदि आप किसी भी वस्त्र को दोबारा पहनना चाहते हैं तो उसे पहले अच्छे से धूप लगवा लें फिर पहनें।
  6. अलग तौलिया और कंघा-परिवार के प्रत्येक सदस्य का अपना एक अलग तौलिया और कंघा होना चाहिए।
  7. मुँह तथा नाक को ढकना-खांसते व छींकते वक्त हमें अपने नाक और मुंह को रूमाल से ढकना ज़रूर चाहिए। यह नाक व मुंह से निकलने वाली तरल बूंदों को दूसरों के शरीर में जाने से रोकता है जिससे समाज के दूसरे लोग रोगमुक्त रहते हैं।
  8. नाखुनों की सफ़ाई-हमें हमेशा अपने नाखुनों को साफ रखना चाहिए तथा हर सप्ताह नाखुनों को काटना चाहिए।

प्रश्न 2.
सुबह के समय हमारी दिनचर्या क्या होनी चाहिए?
उत्तर-
निम्नलिखित गतिविधियां हमारी सुबह की दिनचर्या का हिस्सा होनी चाहिए:

  1. हमें सुबह उठने के तुरंत बाद अपना चेहरा धोना चाहिए और अपने दांतों को ब्रश करना चाहिए।
  2. टॉयलेट करने के बाद हमें अपने हाथों को साबुन से अच्छी तरह से धोना चाहिए।
  3. हमें व्यायाम या योग करना चाहिए।
  4. हमें साबुन और शैम्पू का उपयोग करके अपने शरीर और बालों को साफ़ करना चाहिए।
  5. हमें अपने शरीर और बालों को साफ़ और सूखे तौलिए से सुखाना चाहिए। हमारे लिए अलग तौलिया और कंघा होना चाहिए और इन्हें किसी के साथ साझा नहीं करना चाहिए।
  6. हमें सही ढंग से साफ़ और ठीक से प्रेस किए हुए कपड़े पहनने चाहिए।
  7. हमें ताज़ा और ठीक से पकाया हुआ नाश्ता लेना चाहिए, नाश्ते से पहले और बाद में हमें अपने हाथ धोने
    चाहिए।

प्रश्न 3.
हमारी दोपहर में या स्कूल से घर आने के बाद क्या दिनचर्या होनी चाहिए?
उत्तर-
निम्नलिखित गतिविधियाँ दोपहर की और स्कूल से घर आने के बाद दिनचर्या का हिस्सा होनी चाहिए:

  1. हमें अपने चेहरे और हाथों को अच्छी तरह से धोना चाहिए।
  2. हमें अपने स्कूल की वर्दी बदलनी चाहिए और साफ कपड़े पहनने चाहिए। हमें अपने गंदे कपड़ों को वॉशिंग मशीन या वॉशिंग एरिया में रखना चाहिए।
  3. हमें अपने स्कूल बैग को उचित स्थान पर रखना चाहिए।
  4. हमें थोड़ी देर आराम करना चाहिए और फिर कुछ पीने या खाने के लिए जाना चाहिए। गर्मियों में हमें घर पहुंचने के तुरंत बाद ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए।

प्रश्न 4.
लंच या डिनर के दौरान हमारी दिनचर्या क्या होनी चाहिए?
उत्तर-
दोपहर के भोजन के दौरान निम्नलिखित गतिविधियाँ हमारी दिनचर्या का हिस्सा होनी चाहिए:

  1. हमें ताजा और ठीक से पकाया हुआ लंच या डिनर लेना चाहिए। हमें दोपहर या रात के खाने से पहले और बाद में अपने हाथ धोने चाहिए।
  2. भोजन लेने के लिए हमें उचित रूप से धुले और साफ़ बर्तनों का उपयोग करना चाहिए।
  3. हमें अपनी थाली में खाना नहीं छोड़ना चाहिए। प्लेट में बचा यह कचरा रोगाणु पैदा करने वाली बीमारी को आमंत्रित करता है।
  4. हमें बर्तन धोने वाले स्थान पर या सिंक में बर्तनों को रखना चाहिए। यह अच्छा है यदि हम उन्हें तुरंत धो लें और इन्हें उचित स्थान पर रखें।
  5. हमें सड़क के किनारे से कुछ भी नहीं खाना चाहिए, यदि वह कवर नहीं है या विक्रेता उन्हें गंदे स्थान पर बेच रहा है।
  6. फलों और सब्जियों को खाने से पहले हमें इसे अच्छी तरह से धोना चाहिए।
  7. हमें धागे की मदद से दांतों के बीच फंसे भोजन को निकालना चाहिए।

प्रश्न 5.
खेलने के बाद खेल के मैदान से घर लौटने पर हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर-
जब हम खेलने के बाद खेल के मैदान से घर लौटते हैं, तो हमें निम्नलिखित कार्य करना चाहिए :

  1. घर वापस आने के बाद कुछ देर आराम करना चाहिए।
  2. आराम करने के बाद हमें अपना चेहरा और हाथ धोने चाहिए। गर्मियों के दौरान स्नान करना अच्छा होता
  3. हमें आपके कपड़े बदलने चाहिए।
  4. हमें जल स्तर की भरपाई के लिए कुछ पीना चाहिए।
  5. हम ऊर्जा के नुकसान की भरपाई के लिए कार्बोहाइड्रेट से भरपूर कुछ स्नैक्स (खाना खाना) खाने चाहिए।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता

प्रश्न 6.
सोने से पहले हमारी दिनचर्या क्या होनी चाहिए?
उत्तर-
हमें रात के खाने के लगभग दो घंटे बाद बिस्तर पर जाना चाहिए और सोने से पहले निम्न कार्य करना चाहिए

  1. हमें साफ-सुथरी रात की पोशाक पहननी चाहिए।
  2. हमें अपने हाथों और पैरों को गर्म पानी से धोना और साफ़ करना चाहिए। हमें गर्मियों के दौरान ताजे पानी से और सर्दियों के दौरान गर्म पानी से अपना मुंह अच्छी तरह से धोना चाहिए।
  3. हमें साफ बिस्तर का उपयोग करके एक बिस्तर बनाना चाहिए।
  4. हमें अपने बिस्तर के पास थोड़ा ताज़ा पानी रखना चाहिए।
  5. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शयनकक्ष साफ-सुथरा और हवादार हो।

प्रश्न 7.
अपनी दिनचर्या की जाँच करने के बाद बताएं कि वे कौन-सी आदतें हैं जिनका अधिकांश लोगों द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता है।।
उत्तर-
अपनी दिनचर्या से हम जानते हैं कि अधिकांस लोग यह जानने के बाद भी कुछ आदतों को अनदेखा करते हैं कि यह हमारी दिनचर्या में शामिल होना चाहिएं

  1. हम आमतौर पर सोने से पहले ब्रश नहीं करते हैं।
  2. हम आमतौर पर भोजन लेने के बाद अपने हाथ नहीं धोते हैं।
  3. हम आमतौर पर कपड़े का उपयोग करने से पहले अपने कपड़े धूप में नहीं रखते हैं।
  4. हम आमतौर पर रात का खाना खाते हैं और खाने के तुरंत बाद बिस्तर पर जाते हैं।
  5. हम नियमित रूप से योग का अभ्यास नहीं करते हैं।
  6. हम रात के खाने के दौरान भारी और गरिष्ठ भोजन खाते हैं।
  7. जब हम भूखे होते हैं तो हमें सड़क के किनारे बिकने वाला खुला खाना खाने से बचना चाहिए।
  8. हम बासी खाना गर्म करने के बाद या बिना गर्म किए खाते हैं।
  9. हम अपने भोजन में विभिन्न प्रकार की चीज़ों को नहीं रखते हैं।
  10. हम ज्यादातर मूल भोजन खाते हैं और नियमित रूप से सलाद और हरी पत्तेदार सब्जियां नहीं खाते हैं।
  11. खांसते या छींकते समय हम अपनी नाक और मुंह नहीं ढंकते।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
“हमारा सबसे अच्छा दोस्त हमारा:
(क) अच्छा स्वास्थ्य
(ख) पैसा
(ग) परिवार
(घ) रिश्तेदार।
उत्तर-
(क) अच्छा स्वास्थ्य।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित कार्यों में से कौन-सा कार्य हमें सेहतमन्द रहने में सहायता करता है?
(क) अधिक पौष्टिक भोजन खाना
(ख) नियमित व्यायाम करना
(ग) पर्याप्त आराम करना
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(घ) सभी विकल्प।

प्रश्न 3.
हमें अपने नाखुन काटने चाहिए:
(क) रोजाना
(ख) साप्ताहिक
(ग) महीने में एक दिन (मासिक)
(घ) कभी भी नहीं।
उत्तर-
(ख) साप्ताहिक।

प्रश्न 4.
हमें अपने दांतों की सफाई करनी चाहिए:
(क) सोने से पहले और सुबह उठने के बाद
(ख) खेल के मैदान से आने के बाद
(ग) पढ़ने के बाद
(घ) व्यायाम करने के बाद।
उत्तर-
(क) सोने से पहले और सुबह उठने के बाद।

प्रश्न 5.
हमेशा अपने मुंह को अपने हाथों से ढक लेना चाहिए:
(क) छींकने पर
(ख) खांसने पर
(ग) छींकने तथा खांसने पर
(घ) भोजन करते वक्त।
उत्तर-
(ग) छींकने तथा खांसने पर।

प्रश्न 6.
हमें हमेशा अपने पास रखना चाहिए:
(क) एक कलम
(ख) एक किताब
(ग) एक रूमाल
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(ग) एक रूमाल।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता

प्रश्न 7.
निम्नलिखित कार्यों में से कौन-सा कार्य हमें रोजाना करना चाहिए?
(क) नहाना
(ख) दांतों की सफाई
(ग) व्यायाम
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(घ) सभी विकल्प।

प्रश्न 8.
हमें रोज़ सुबह ………….. करना चाहिए।
(क) नाश्ता
(ख) दांतों की सफाई
(ग) व्यायाम
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(घ) सभी विकल्प।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित में से कौन-सा कथन ग़लत है?
(क) खांसते वक्त रूमाल का इस्तेमाल करना
(ख) हमेशा अपने नाखुनों को दांतों से काटना
(ग) हाथ धोने के बाद नल बन्द करना
(घ) हमेशा कूड़ा कूड़ेदान में फैंकना।
उत्तर-
(ख) हमेशा अपने नाखूनों को दांतों से काटना।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित कथनों को ध्यान में रखते हुए सही विकल्प चुनें। कथन (क) हमें रोजाना सुबह नाश्ता करना चाहिए कथन (ख) हमें रोज़ाना अपने दांतों अथवा बालों की सफाई करनी चाहिए।
(क) कथन क सही तथा
(ख) गलत है
(ख) कथन क गलत तथा ख सही है
(ग) दोनों क व ख सही हैं
(घ) दोनों कथन गलत हैं।
उत्तर-
(ग) दोनों क व ख सही हैं।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सा ज़रूरी नहीं? अपने हाथों को ……… धोना।
(क) खाने से पहले
(ख) खाने के बाद
(ग) खाने से पहले व बाद
(घ) कभी नहीं।
उत्तर-
(ग) खाने से पहले व बाद।

प्रश्न 12.
हमें उबला हुआ पानी पीना चाहिए क्योंकि उबालने से पानी में मौजूद ……… मर जाते हैं।
(क) रोगाणु
(ख) खनिज पदार्थ
(ग) a व b
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) रोगाणु।

प्रश्न 13.
फ्लासिंग (दांतों की साफ करवाना) अनेक प्रकार के कार्य करता है। परन्तु निम्नलिखित में से कौन-सा कार्य नहीं करता?
(क) दांतों के बीच से खाना हटाना।
(ख) मसूड़ों की कमी को रोकने में मदद करना
(ग) सांसों की बदबू को रोकने में मदद करना
(घ) दांतों की परत को बहाल करने में मदद करना।
उत्तर-
(घ) दांतों की परत को बहाल करने में मदद करना।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 शारीरिक स्वच्छता

रिक्त स्थान भरो:

  1. हमें हमेशा अपने पास एक ……………… रखना चाहिए।
  2. हमें हमेशा अपने …………….. खाना खाने से पहले अथवा बाद में धोने चाहिए।
  3. हमें हमेशा साफ व सूखे ……………… पहनने चाहिए।
  4. हमें हमेशा खांसते व छींकते वक्त अपना …………….. ढकना चाहिए।
  5. हमें हर सप्ताह अपने …………… काटने चाहिए। 6. हमें दिन में दो बार अपने ……………… साफ करने चाहिए।
  6. हमें हमेशा सड़क पर बिकने वाला …………… खाद्य पदार्थों को खाने से बचना चाहिए।
  7. हमें रोज़ाना ……………. करना चाहिए।
  8. हमें हमेशा अपने …………….. को सुलझे तथा साफ रखना चाहिए।
  9. हमारे ……………… को स्वस्थ रखकर अच्छा स्वास्थ्य प्राप्त किया जा सकता है।

उत्तर –

  1. रूमाल
  2. हाथ
  3. कपड़े
  4. मुँह
  5. नाखुन
  6. दांत
  7. अस्वच्छ
  8. स्नान
  9. बालों
  10. शरीर।

सही/ग़लत:

  1. एक परिवार के पास केवल एक कंघी होनी चाहिए।
  2. हमें हमेशा अपने नाखुन साफ रखने चाहिए तथा उनको कभी नहीं काटना चाहिए।
  3. सड़क पर बिकने वाला खुला भोजन हमारी सेहत के लिए हानिकारक होता है।
  4. दांतों की रोज़ाना सफ़ाई हमारे दांतों और मसूड़ों को साफ और कमजोर रखने में मदद करती है।
  5. कीटाणु हमारे पेट में प्रवेश करने पर कई जानलेवा संक्रमण पैदा कर सकते हैं।
  6. फलों और सब्जियों को खाने से पहले अच्छी तरह धोना चाहिए।
  7. सड़क के किनारे बिकने वाले खुले भोजन को खाना एक अच्छी आदत है।
  8. रोज़ाना कसरत और योगा करना हमारे शरीर को कमज़ोर करता है।
  9. लंबे बालों को हफ्ते में कम-से-कम एक बार धोना चाहिए और अच्छी तरह सुखाना चाहिए।
  10. हम अपने आस-पास को गंदा रख अच्छा स्वास्थ्य पा सकते हैं।

उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही
  6. सही
  7. ग़लत
  8. ग़लत
  9. सही
  10. ग़लत।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

Punjab State Board PSEB 8th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 2 आत्म-संयम Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Welcome Life Chapter 2 आत्म-संयम

Welcome Life Guide for Class 8 PSEB आत्म-संयम InText Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरी वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आत्म-संयम क्या है?
उत्तर-
यह एक ऐसा गुण है जो हम सभी के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 2.
क्या आत्म-संयम सीखना आसान है?
उत्तर-
नहीं, आत्म-संयम सीखना आसान नहीं है।

प्रश्न 3.
क्या हम सभी एक ही समय में आत्म-संयम सीख सकते हैं?
उत्तर-
नहीं, अलग-अलग लोग अलग-अलग समय में आत्म-संयम सीखते हैं।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

प्रश्न 4.
हमें अपने निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने में क्या मदद करता है?
उत्तर-
निरंतर प्रयास और आत्म-संयम हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं।

प्रश्न 5.
हमारी ताकत और कमजोरियों को जानना हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है। हां या नहीं।
उत्तर-
हां, इससे हमें उन चीज़ों के बारे में पता चलेगा, जिन पर हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
क्यों हमारे लिए लक्ष्य निर्धारित करना महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-
क्योंकि, यह हमें इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए लगातार काम करने में मदद करता है।

प्रश्न 7.
स्कूल में हमारे प्रदर्शन को बेहतर बनाने में क्या हमारी मदद कर सकता है?
उत्तर-
आत्म-संयम, स्कूल में हमारे प्रदर्शन को बेहतर बनाने में हमारी मदद कर सकता है।

प्रश्न 8.
हमें एक सकारात्मक और आशावादी सोच रखनी चाहिए। क्यों?
उत्तर-
इससे हमें आत्म-संयम विकसित करने में मदद मिलती है।

प्रश्न 9.
क्या हम अपनी आदतें बदल सकते हैं?
उत्तर-
हां, हम निरंतर प्रयासों और आत्म-संयम के साथ अपनी आदतों को बदल सकते हैं।

प्रश्न 10.
क्या हमें अपनी गलतियों को माफ़ करना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए?
उत्तर-
जी हां, हमें अपनी गलतियों को माफ़ करना चाहिए, गलतियों को याद रखने से यह हमारी प्रगति के मार्ग में बाधा उत्पन्न कर सकती हैं।

प्रश्न 11.
यदि हमारे हित और विचार दूसरों के साथ मेल नहीं खा रहे हैं तो हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर-
हमें अपने अद्वितीय हितों का पालन करने और अपने स्वतंत्र विचारों को व्यक्त करने का साहस होना चाहिए।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

प्रश्न 12.
हम पारस्परिक संबंधों के लिए कैसे मजबूत हो सकते हैं?
उत्तर-
यदि हमारे पास आत्म-संयम है और निरंतर प्रयास करते हैं तो हमारे पारस्परिक संबंध मजबूत हो जाते हैं।

प्रश्न 13.
हम अपना आत्म-विश्वास कैसे बढ़ा सकते हैं?
उत्तर-
हमारा आत्म-विश्वास आत्म-संयम के साथ बढ़ता है।

प्रश्न 14.
हमें असफल होने से डरना नहीं चाहिए। यह सही है या नहीं।
उत्तर-
हां, यह इसलिए है क्योंकि असफलता सफलता की कुंजी है।

प्रश्न 15.
हम तनाव को हमसे दूर कैसे रख सकते हैं?
उत्तर-
हम अपने आप पर विश्वास करके अपने आप को तनाव मुक्त रख सकते हैं।

प्रश्न 16.
क्या हमें दूसरों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों का पालन करना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, हमें अपनी रुचि के आधार पर अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए।

प्रश्न 17.
हमें अपने लक्ष्य कैसे निर्धारित करने चाहिए?
उत्तर-
हमें अपनी ताकत और कमज़ोरी जानने के बाद अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए।

प्रश्न 18.
हमें दूसरों की नकल क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर-
हमें दूसरों की नकल नहीं करनी चाहिए क्योंकि हम उनसे अलग हैं और हमारे पास अलग-अलग क्षमताएं, कमजोरियां और ताकत हैं।

प्रश्न 19.
क्या हमें अन्य बुरी आदतों और कमजोरियों के साथ रहना चाहिए?
उत्तर-
नहीं, हमें अपनी बुरी आदतों को बदलने के लिए प्रयास करना चाहिए और अपनी कमजोरियों को कम करने पर काम करना चाहिए।

शेटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आत्म-संयम क्या है?
उत्तर-
आत्म-संयम व्यक्ति की अपनी भावनाओं और इच्छाओं को नियंत्रित करने की क्षमता है, विशेष रूप से कठिन परिस्थितियों में आत्म-संयम सफल व्यक्तियों के व्यक्तित्व का एक प्रमुख घटक है। सभी लोग जो उच्च स्तर पर पहुंच चुके हैं, उनका खुद पर आत्म-संयम था।

प्रश्न 2.
आत्म-संयम नहीं होने के नुकसान क्या हैं?
उत्तर-
यदि किसी का खुद पर आत्म-संयम नहीं है, तो वह कठिन परिस्थितियों से मुकाबला नहीं कर पाएगा। जीवन फूलों की सेज़ नहीं है। इसलिए, जब भी हम कठिन परिस्थितियों का सामना करते हैं तो हम इसे अपने आत्मसंयम से दूर कर सकते हैं।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

प्रश्न 3.
आत्म-संयम की विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर-
आत्म-संयम एक आवश्यक गुण है जो हमें अपने निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए हमारी भावनाओं, व्यवहार, पसंद और वरीयताओं को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।

प्रश्न 4.
आत्म-संयम के क्या फायदे हैं?
उत्तर-
आत्म-संयम के साथ, हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ सकते हैं, स्कूल में हमारे प्रदर्शन में सुधार होता है, हमारे पारस्परिक संबंध मज़बूत होते हैं, हमारा आत्म-विश्वास बढ़ता है, हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।

प्रश्न 5.
क्या सुनिश्चित करता है कि हम एक दिन सफल हो जाएंगे?
उत्तर-
लक्ष्य निर्धारित करना यह सुनिश्चित करता है कि हम एक दिन सफल हो जाएंगे। एक बार जब हम अपनी क्षमता के अनुसार अपने प्रत्येक कार्य के लिए एक सीमा निर्धारित करते हैं, तो हम निश्चित रूप से अपने गंतव्य तक पहुंचने में सफल होंगे और इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि हमारी प्रगति कितनी धीमी है या हम अपने रास्ते में कितनी बार असफल हुए हैं।

प्रश्न 6.
अपनी आदतों को नियंत्रित करने के लिए दो सुझाव दें।
उत्तर-
यदि आप खुद को नियंत्रित करके अपनी आदतों और इच्छाओं के प्रभारी बनना चाहते हैं, तो यहां कुछ सुझाव दिए गए हैं

  1. अपनी कमियों के साथ-साथ ताकत की पहचान करें।
  2. सकारात्मक और आशावादी सोच रखें।

प्रश्न 7.
कुछ ऐसी आदतें लिखें जिन पर आपको गर्व है?
उत्तर-
मुझे अपनी निम्नलिखित आदतों पर गर्व है:

  1. मैं हमेशा वही बोलता हूँ जो मेरे मतलब का है और मैं अपनी बात रखता हूँ।
  2. मैं समय का बहुत पाबंद हूँ और आज का काम कल पर कभी नहीं डालता।
  3. मैं हमेशा जरूरतमंदों की मदद करता हूँ और अन्याय को कभी सहन नहीं करता।
  4. मैं ईश्वर द्वारा बनाए गए सभी जीवों से प्यार करता हूँ और मैं अपने देश को खुद से ज्यादा प्यार करता हूँ।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
विभिन्न चीज़ों का वर्णन करें जो आपको खुद को नियंत्रित करके अपनी आदतों और इच्छाओं का प्रभारी बनाते हैं।
उत्तर-
निम्नलिखित बातें मुझे अपनी आदतों और इच्छाओं को आत्म-संयम द्वारा प्रभारी बना सकती हैं:

  1. मुझे अपनी ताकत और कमजोरियों का पता होना चाहिए।
  2. मुझे आशावादी होना चाहिए और सकारात्मक दृष्टिकोण रखना चाहिए।
  3. मुझे अपने लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए योजनाएं बनानी चाहिए।
  4. मुझे अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करना चाहिए।
  5. मुझे फेल होने से डरना नहीं चाहिए। मैं अपनी असफलता से सीखता हूँ और सफलता पाने तक खुद को सुधारता हूँ।
  6. मुझे अपनी आदतों का विश्लेषण करना चाहिए। यदि मेरी सफलता में मेरी आदतें बाधा हैं, तो मुझे उन आदतों को बदलने के लिए अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए।
  7. मुझे पता है कि मैं कुछ कार्य करते समय कई गलतियां कर सकता हूँ। मैं अपनी गलतियों को लंबे समय तक अपने साथ लेकर नहीं चल सकता और गलतियां करने के लिए खुद को माफ करता हूँ। फिर, मैं अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए आगे बढ़ता हूँ।
  8. मैं हमेशा खुद से कहता हूँ कि मैंने अच्छा किया यदि मैंने कुछ स्तर की सफलता हासिल की।
  9. मुझे अपने आप पर विश्वास करना चाहिए और उनकी विशिष्टता की चिंता किए बिना अपने विचारों को व्यक्त करने का साहस करना चाहिए।
  10. मुझे पता है कि विभिन्न लोगों के अलग-अलग हित हैं। मुझे अपने हितों का पालन करना चाहिए, भले ही वे आम लोगों के साथ मेल न खा रहे हों।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

प्रश्न 2.
आत्म-संयम का वर्णन करें।
उत्तर-
आत्म-संयम का अर्थ है व्यक्ति से संबंधित विभिन्न चीजों को नियंत्रित करना। यह एक आवश्यक गुण है जो हम सभी के पास होना चाहिए। यह हमें अपने निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हमारी भावनाओं, व्यवहार, पसंद और वरीयताओं को नियंत्रित करने की अनुमति देता है। यदि हमारे पास आत्म-संयम है, तो हम अपने गंतव्य की ओर बढ़ सकते हैं और स्कूल में हमारा प्रदर्शन बेहतर हो जाता है। इसके साथ हमारे पारस्परिक संबंध मज़बूत होते हैं और हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है। इससे हमें अपने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी मदद मिलती है।

आत्म-संयम हमें हमारे लक्ष्यों को निर्धारित करने और हमारी क्षमता के अनुसार प्रत्येक कार्य के लिए एक सीमा निर्धारित करने में मदद करता है। एक बार यह पूरा हो जाने के बाद हम निश्चित रूप से या कुछ समय बाद अपने गंतव्य तक पहुंचने में निश्चित रूप से सफल होंगे। हमारी प्रगति धीमी हो सकती है लेकिन हमारे जीवन के किसी पड़ाव पर हमारे पास आना निश्चित था।
खुशी से जीना और आत्म-संयम के बिना सफल बनना बहुत मुश्किल है।

प्रश्न 3.
एक गतिविधि की मदद से समझाएं कि हम आत्म-विश्वास और आत्म-संयम के माध्यम से अपने प्रदर्शन को कैसे बढ़ा सकते हैं?
उत्तर-
हम आत्म-विश्वास और आत्म-संयम के माध्यम से अपने प्रदर्शन को बढ़ावा दे सकते हैं यह निम्नलिखित गतिविधि की मदद से समझाया जा सकता है।
कागज़ की एक शीट और एक छोटी-सी किताब लें। क्या कागज़ की यह पतली शीट किताब पकड़ (hold) सकती है? इसका उत्तर ‘नहीं’ है क्योंकि हम जानते हैं कि यह संभव नहीं है। इसका कारण यह है कि कागज़ की शीट बहुत कमज़ोर है और इस प्रकार, यह उस पुस्तक के वज़न का समर्थन नहीं कर सकता है जो इसकी उठाने की क्षमता से परे है।
हम कागज़ की इस कम मजबूत शीट को एक मजबूत वस्तु में बदल सकते हैं। इसके लिए, कागज़ की इस पतली शीट को सिलेंडर या ट्यूब या पाइप के रूप में रोल करें। अब सिलेंडर या ट्यूब या पाइप के आकार की इस शीट पर एक छोटी-सी किताब रखें। – हम देख सकते हैं कि कागज़ की पतली शीट अब इस पर पुस्तक को सफलतापूर्वक पकड़ सकती है। यह प्रकट करता है कि पाइप का आकार लेकर कागज़ की शीट मजबूत हो गई है। इसने पुस्तक से अधिक वज़न सहन करने की शक्ति और क्षमता प्राप्त की है।
इसी तरह, हम बार-बार अभ्यास और आत्म-संयम के माध्यम से अपना आत्म-विश्वास भी बढ़ा सकते हैं। इस तरह हम अंततः अपनी क्षमताओं में सुधार करेंगे। यदि हम अपने आत्म-विश्वास को बढ़ाते हैं और अपनी भावनाओं, क्रोध, ईर्ष्या आदि को नियंत्रित करने और अपनी कमजोरियों को दूर करने में सक्षम होते हैं, तो हम निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करेंगे।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित सवालों का जवाब दें:
(क) अपनी दो कमजोरियों के बारे में बताएं
(ख) अपनी दो शक्तियों के बारे में बताएं
(ग) अपने दो लक्ष्यों के बारे में बताएं जो कि आपने-अपने लिए निर्धारित किए हैं
(घ) अपनी उन दो उपलब्धियों का उल्लेख करें जिन पर आपको गर्व है
(ङ) अपनी दो आदतों का उल्लेख करें जिन्हें आप सुधारना चाहते हैं
(च) अपनी विफलताओं का उल्लेख करें जिन्होंने आपको बेहतर प्रगति के लिए सबक सिखाया है।
उत्तर-
(क) मेरी दो ताकतें।

  1. मेरा सकारात्मक रवैया है और कभी भी किसी भी परिस्थिति में हार नहीं माननी चाहिए।
  2. मैं अपनी तुलना दूसरों से नहीं करता और अपनी क्षमताओं के अनुसार अपने लक्ष्य निर्धारित करता हूँ।

(ख) मेरी दो कमजोरियां

  1. मैं दूसरों से वादे करते हुए अपने संसाधनों की परवाह नहीं करता
  2. मैं बिना यह जाने कि लोग झूठ बोल रहे हैं या सच उन पर भरोसा करता हूँ।

(ग) मेरे दो लक्ष्य

  1. मैं डॉक्टर/इंजीनियर बनना चाहता हूँ।
  2. मैं समाज में समता लाना चाहता हूँ।

(घ) मेरी दो उपलब्धियां जिन पर मुझे गर्व है

  1. मैंने राज्य स्तरीय वाद-विवाद प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया।
  2. मैंने एक गरीब छात्र की फीस का भुगतान करने के लिए अपनी बचाई हुई पॉकेट मनी दान कर दी है।

(ङ) मेरी दो आदतें जो मैं सुधारना चाहता हूँ

  1. जब मैं टेलीविजन देखता हूँ या अपने मोबाइल पर गेम खेलता हूँ तो मैं खुद को नियंत्रित नहीं कर सकता।
  2. मैं नियमित रूप से अध्ययन नहीं करता हूँ और परीक्षा के पास बहुत मेहनत करता हूँ।

(च) दो असफलताएँ जिन्होंने मुझे सबक सिखाया

  1. मैं दौड़ में पहले स्थान से चूक गया क्योंकि मैंने शुरुआत में बहुत तेज़ दौड़ लगाई जिससे मेरी ऊर्जा का उपभोग हुआ और मैं दूसरे स्थान पर आया। इसके अलावा, मैंने सीखा कि दौड़ में हमें समय के साथ गति बढ़ानी चाहिए।
  2. मैंने अनुमान लगाया कि मेरा दोस्त मेरी परियोजना को समय पर पूरा करने में मेरी मदद करेगा। परंतु, वह किसी कारण से मेरी मदद नहीं कर सका, मैं समय पर अपनी परियोजना को प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं था। मैंने सीखा कि मुझे समय पर काम पूरा करने के लिए लगातार और नियमित रूप से काम करना चाहिए।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

प्रश्न 5.
अच्छी आदतें होने के क्या फायदे हैं?
उत्तर-
अच्छी आदतें हमारी कई तरह से मदद करती हैं। इनमें से कुछ हैं:

  1. हम लोगों द्वारा गौर किए जाते हैं और लोग हमें ज्यादा ध्यान से देखते और समझते हैं।
  2. दूसरे हमारी तारीफ करते हैं जिससे हमें खुशी मिलती है।
  3. हम सफल हो जाते हैं और निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करते हैं।
  4. हम असफलता से डरना बंद कर देते हैं और इस प्रकार हम असफलताओं के बावजूद सफलता के लिए प्रयास करते रहते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि हम कुछ या कई प्रयासों के बाद अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे।
  5. अच्छी आदतें इस बात का सूचक हैं कि हमारे पास कुछ आत्म-संयम हैं। यदि हम अपनी अच्छी आदतों में सुधार करते हैं तो इससे हमें अपनी शारीरिक और मानसिक शक्ति में सुधार करने में मदद मिलेगी।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

बहुविकल्पीय प्रश्न:

प्रश्न 1.
यह एक आवश्यक गुण है जो हमें अपने निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति के लिए हमारी भावनाओं के व्यवहार विकल्पों और पसंद को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।
(क) आत्म-संयम
(ख) दक्षता (efficiency)
(ग) शारीरिक शक्ति
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(क) आत्म-संयम।

प्रश्न 2.
संयम के साथ
(क) हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ सकते हैं
(ख) विद्यालय में हमारा प्रदर्शन बेहतर हो जाता है।
(ग) हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(घ) सभी विकल्प।

प्रश्न 3.
…………… के कारण हमारे शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
(क) आत्म संयम
(ख) अच्छी किताबें पढ़ना
(ग) अच्छे लोगों की संगत
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(क) आत्म संयम।

प्रश्न 4.
अपनी कमियों के साथ-साथ अपनी ताकत की पहचान करना ……………….
(क) हमेशा अच्छा है
(ख) खेलने के लिए अच्छा है
(ग) पढ़ने के लिए अच्छा है
(घ) व्यायाम करने के लिए अच्छा है।
उत्तर-
(क) हमेशा अच्छा है।

प्रश्न 5.
हमें हमेशा सकारात्मक और आशावादी ……….. बनाए रखनी चाहिए।
(क) खेल की योजना
(ख) सोच
(ग) दोनों (क), (ख)
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) सोच।

प्रश्न 6.
हमें अपनी …………… को भूलकर आगे बढ़ना चाहिए।
(क) गलतियों
(ख) विफलताओं
(ग) हार
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(घ) सभी विकल्प।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

प्रश्न 7.
हमें अपनी उपलब्धियों के बारे में ………….. महसूस करना चाहिए।
(क) अच्छा
(ख) बुरा
(ग) गर्व
(घ) दोनों (क) और (ग)
उत्तर-
(घ) दोनों (क) और (ग)।

प्रश्न 8.
हम बार-बार अभ्यास करने के माध्यम से अपना आत्मविश्वास ………….. सकते हैं।
(क) घटा
(ख) बढ़ा
(ग) संभाल
(घ) सभी विकल्प।
उत्तर-
(ख) बढ़ा।

प्रश्न 9.
दूसरों की सहायता करना ……………… आदत है।
(क) अच्छी
(ख) बुरी
(ग) हानिकारक
(घ) नुकसानदायक।
उत्तर-
(क) अच्छी।

प्रश्न 10.
कथन 1 : हमें अपनी प्रतिबद्धता (Commitment) के प्रति ईमानदार होना चाहिए।
कथन 2 : हमें समय का पाबंद होना चाहिए। ऊपर दिए गए दोनों कथनों में से कौन-सा सही है?
(क) कथन 1 सही और कथन 2 गलत है
(ख) कथन 1 गलत और कथन 2 सही है
(ग) दोनों कथन सही हैं
(घ) दोनों कथन गलत हैं।
उत्तर-
(ग) दोनों कथन सही हैं।

प्रश्न 11.
अपनी भावनाओं को नियंत्रित करना ……… की एक उदाहरण है।
(क) बुरा व्यवहार
(ख) शारीरिक शक्ति
(ग) आत्म-संयम
(घ) सही विकल्प।
उत्तर-
(ग) आत्म-संयम।

प्रश्न 12.
अपने जीवन के लिए एक लक्ष्य निर्धारित करना सहायक होता है
(क) निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर काम करना
(ख) अपनी मर्जी से काम करना
(ग) दोनों (क) और (ख) विकल्प
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर काम करना।

रिक्त स्थान भरो:

  1. यदि हम अपने ………………… को बढ़ाते हैं तो हम अपनी भावनाओं को नियंत्रित कर पाएंगें।
  2. स्कूल में हमारा प्रदर्शन आत्म-संयम सीखने के बाद ………….. हो जाता है।
  3. अपने …………… को निर्धारित करें और अपने …………….. को प्राप्त करने के लिए योजना बनाएं।
  4. अपनी उपलब्धियों के लिए खुद को …………… करें।
  5. हमें अपने हितों का पालन करना चाहिए भले ही वे ………… हों।
  6. हमें हमेशा अपने ……………… को उनके प्रभाव से डरे बिना व्यक्त करना चाहिए।
  7. हमें अपनी …………….. और …………….. के बारे में पता होना चाहिए।
  8. हमें अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी ……….. करनी चाहिए।
  9. अलग-अलग लोग ……………. सीखने के लिए अलग-अलग समय लेते हैं।
  10. ……………. सफलता की कुंजी है।

उत्तर-

  1. आत्म-विश्वास
  2. बेहतर
  3. लक्ष्य, लक्ष्य
  4. पुरस्कृत
  5. अद्वितीय
  6. विचारों
  7. ताकत, कमज़ोरियों
  8. मेहनत
  9. आत्म-संयम
  10. आत्म-संयम।

PSEB 8th Class Welcome Life Solutions Chapter 2 आत्म-संयम

सही/गलत:

  1. आत्म-संयम आपको चीज़ों को (कार्यों को) करने से रोकता है।
  2. हम आत्म-संयम द्वारा अपने प्रदर्शन में सुधार कर सकते हैं।
  3. आत्म-संयम हमें महत्त्वपूर्ण चीज़ों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है।
  4. एक ही समय में हर कोई आत्म-संयम सीख सकता है।
  5. आत्म-संयम एक आवश्यक गुण नहीं है।
  6. आत्म-संयम शारीरिक और मानसिक शक्ति से संबंधित नहीं है।
  7. हम सभी आत्म-संयम सीख सकते हैं।
  8. व्यायाम तथा योगा करने से हमें आत्म-संयम सीखने में मदद मिल सकती है।
  9. एक बार जब हम आत्म-संयम सीख लेते हैं तो इसका अभ्यास करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
  10. आत्म-संयम हमें अपने निर्धारित लक्ष्यों की सिद्धि के लिए अपनी भावनाओं, व्यवहार, पसंद और वरीयताओं को नियंत्रित करने की अनुमति देता है।

उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. ग़लत
  6. ग़लत
  7. सही
  8. सही
  9. सही
  10. सही।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता

Punjab State Board PSEB 8th Class Physical Education Book Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Physical Education Chapter 1 प्राथमिक सहायता

PSEB 8th Class Physical Education Guide प्राथमिक सहायता Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता किसे कहते हैं ?
उत्तर–
प्राथमिक सहायता से भाव उस सहायता से है जो किसी रोगी या ज़ख्मी व्यक्ति को अचानक चोट लगने या दुर्घटना के तुरन्त बाद डॉक्टर के आने से पहले या अस्पताल पहुंचाने से पहले दी जाती है। इसे ही प्राथमिक सहायता कहा जाता है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के कौन-से उद्देश्य हैं ?
उत्तर-

  • रोगी को समीप के अस्पताल पहुँचाना या डॉक्टर के पास ले जाना।
  • रोगी की हालत को सुधारना।
  • रोगी की हालत को बिगड़ने से बचाना।
  • रोगी की जिंदगी को बचाना।

प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता बॉक्स (First Aid Box) में कौन-कौन सा सामान होना चाहिए?
उत्तर–
प्राथमिक सहायता प्रदान करने के लिए प्राथमिक सहायता बॉक्स में निम्नलिखित सामान होना चाहिए

  • तिकोनियां, गोल पट्टियां तथा गर्म पट्टियां ।
  • भिन्न-भिन्न प्रकार की पट्टियां।
  • थर्मामीटर, चिमटी, कैंची, टॉर्च तथा सेफ्टी पिन्ज आदि।
  • ओ०आर० एस० (ORS) के पैकेट।
  • लीकोपोर या एडहैसिव टेप (Anticeptic Tap/Adhesive Tap)
  • एक साफ़ रूई का पैकेट।
  • साँस ठीक करने के लिए इन्हेलर।
  • भिन्न-भिन्न प्रकार के कीटाणु रहित फाहे या रूई के फाहे।
  • दवाई को मापने हेतु गिलास या बेकेलाइट गिलास।
  • एन्टीसेप्टिक तथा कीटाणु नाशक : स्पिरिट, बीटाडिन, बोरिक एसिड, साबुन, बरनोल, टिचर, आयोडीन तथा डिसेल आदि दवाइयां (स्पिरिट या क्रीम)।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 4.
प्राथमिक सहायता के नियम लिखिए।
उत्तर-
प्राथमिक सहायता से भाव उस सहायता से है जो किसी रोगी या ज़ख्मी व्यक्ति को अचानक चोट लगने या दुर्घटना के तुरन्त बाद डॉक्टर के आने से पहले या अस्पताल पहुंचाने से पहले दी जाती है। इसे ही प्राथमिक सहायता कहा जाता है।
प्राथमिक सहायता के नियम -वर्तमान काल में किसी भी व्यक्ति का जीवन सुरक्षित नहीं है,क्योंकि हर रोज़ कोई-न-कोई घटनाएं होती रहती हैं। इनसे बचने के लिए हमें प्राथमिक सहायता का ज्ञान अथवा नियमों के बारे में जानकारी होनी जरूरी है। इसके मुख्य नियम इस प्रकार हैं-

  1. सबसे पहले घायल व्यक्ति के शरीर पर लगे घावों में से खतरनाक चोट का इलाज करना चाहिए।
  2. बहते खून को बन्द करना चाहिए।
  3. यदि रोगी बेहोश हो या उसका सांस तक रुक गया हो तो उसे बनावटी सांस देनी चाहिए।
  4. यदि कोई दुर्घटना हुई हो तो शीघ्र आवश्यकतानुसार तुरन्त चिकित्सा शुरू कर देनी चाहिए।
  5. रोगी की दशा खराब नहीं होने देनी चाहिए।
  6. रोगी को अन्तिम क्षणों तक बचाने की कोशिश जारी रखनी चाहिए।
  7. रोगी के चारों ओर भीड़ इकट्ठी नहीं होने देनी चाहिए।
  8. रोगी को आरामदेह स्थिति में रखो।
  9. रोगी का साहस बढ़ाते रहना चाहिए।
  10. रोगी को आघात से बचाना चाहिए।
  11. रोगी को पूर्णत: गर्म रखो, चाय या दूध आदि पीने के लिए दो।
  12. प्राथमिक सहायता देते समय कोई हिचक या संकोच नहीं करना चाहिए।
  13. आवश्यकतानुसार रोगी के शरीर के कपड़े उतार देने चाहिए।
  14. रोगी को प्राथमिक सहायता देते समय बहुत ही धैर्य, सहानुभूति और मृदु भाषा से काम लेना चाहिए।
  15. प्राथमिक सहायता देने के बाद रोगी को किसी योग्य डॉक्टर के पास अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
प्राथमिक सहायक किसे कहा जाता है?
उत्तर-
जिस व्यक्ति ने किसी अधिकारिक संस्था से प्राथमिक सहायता की शिक्षा प्राप्त करके टैस्ट पास किया हो, उसे प्राथमिक सहायक कहा जाता है।

प्रश्न 6.
प्राथमिक सहायक के गुण लिखिए।
उत्तर-
प्राथमिक सहायक का गुण (Qualities of First Aider)—प्राथमिक सहायक में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

  • प्राथमिक सहायक बहुत ही समझदार और होशियार होना चाहिए, जिसको दूसरों की सेवा करने उपरान्त शान्ति मिले और अपना काम फर्ज़ समझकर करें।
  • प्राथमिक सहायक बड़ा चुस्त होना चाहिए जो कि रोगी को लगी चोट आदि को समझने की योग्यता रखता हो।
  • प्राथमिक सहायता योजनाबद्ध होनी चाहिए।
  • वह बहुत फुर्तीला होना चाहिए।
  • उसका व्यवहार हमदर्दी वाला होना चाहिए। वह सहनशील, लगनशील और त्याग की भावना रखता हो।
  • वह स्पष्ट व्यक्ति होना चाहिए ताकि आस-पास के लोगों को समझा सके।
  • उसे तुरन्त निर्णय लेने में सक्षम होना चाहिए ताकि यह जान सके कि अनेक चोटों से सबसे पहले किसकी देखभाल ज़रूरी है।
  • प्राथमिक सहायक दृढ़ संकल्प वाला होना चाहिए।
  • वह स्वाभिमानी होना चाहिए।
  • उसमें इतना धैर्य व सामर्थ्य होनी चाहिए कि वह रोगी या दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को अन्तिम क्षणों तक सहायता दे सकता हो।
  • प्राथमिक सहायक उत्साही और साहसी होना चाहिए।
  • उसका व्यवहार अच्छा होना चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक स्वस्थ तथा दृढ़ निश्चय वाला होना चाहिए।
  • प्राथमिक सहायक को प्राथमिक सहायता की पूरी तथा अच्छी जानकारी होनी चाहिए।
  • उसे बिना किसी भय या लालच के सहायता करनी चाहिए।

प्रश्न 7.
सी०पी०आर० (C.P.R.) के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
C-Cardio (सी-कार्डिओ) P_Pulmonary (पी-पलमोनरी) R-Resuscitation (आर-रिसेसीटेशन)
जब रोगी की नब्ज तथा श्वास क्रिया महसूस न हो, उसकी आंखों की हिलजुल बंद हो जाए तथा रोगी बेहोश हो जाए, तो उसके दिल तथा फेफड़ों को पुनः चलाने के लिए सी०पी०आर० किया जाए। सी०पी०आर० करते समय रोगी के दिल पर अपनी हथेलियां रखें उससे लगभग तीस बार दबाएं। फिर दो बार मुंह पर मुंह रखकर अपना सांस उसके मुंह में डालें। जब तक रोगी की नब्ज महसूस न हो मुँह से सांस देते रहें। यदि ठीक समय पर सी०पी०आर० किया जाए तो रोगी की जान बच सकती है।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता (1)

सी०पी०आर० कब करनी चाहिए?

  1. जब रोगी बेहोश हो।
  2. जब रोगी की आंखों में हल-चल बंद हो।
  3. जब रोगी की नब्ज न हिलती हो।
  4. जब रोगी की धड़कन न सुनाई दे।

सी०पी०आर० कब नहीं करनी चाहिए?

  1. जब रोगी की सांस कठिनाई से आ रही हो।
  2. जब रोगी को दिल का दौरा पड़ा हो।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 8.
मुँह से मुँह द्वारा बनावटी साँस देने के ढंग के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर–
बनावटी सांस कैसे दिया जाता है-जब रोगी के रुके हुए सांस को चलाने के लिए बनावटी सांस देना हो, तो उसे बनावटी सांस कहा जाता है।

मुँह से मुँह द्वारा बनावटी साँस देने के ढंग-रोगी के मुँह में कोई रुकावट हो, सबसे पहले प्राथमिक सहायता देने वाले को उस रुकावट से दूर कर देना चाहिए। फिर पीड़ित का नाक बंद करके अपने मुँह से हवा भरें और रोगी के मुँह पर अपना मुँह रख कर ज़ोर से अपना साँस उसके मुँह में भर दें।
PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता (2)

जब सहायता देने वाले का साँस रोगी के अंदर जाएगा तो रोगी की छाती में वायु भर जाएगी और फूल जाएगी।
प्राथमिक सहायता देने वाला यह क्रिया 12 से 16 बार करे अथवा जब तक पीड़ित का श्वास आना शुरू न हो जाए।

प्रश्न 9.
शैफ़र विधि द्वारा बनावटी श्वास कैसे दिया जाता है ? वर्णन करो।
उत्तर-
शैफ़र विधि-

1. रोगी की स्थिति-रोगी को भूमि पर मुंह के बल इस प्रकार लिटाना चाहिए कि उसकी बाहें सिर से ऊपर और हथेलियां भूमि की ओर हों।
PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता (3)
उसका सिर एक ओर मोड़ कर फुर्ती के साथ उसके कपड़े ढीले कर दो। यदि रोगी पीठ के भार लेटा हो तो उसे उल्टा करके मुंह के बल लिटा दो। ऐसा करने के लिए उसकी बाहों को उसके शरीर से हटा दो। उसकी दूर वाली टांग नज़दीक वाली टांग के ऊपर ले आओ। उसके चेहरे को बचाते हुए उसे इस प्रकार लिटाओ कि वह मुंह के बल हो जाए।

2. प्राथमिक सहायक की स्थिति-प्राथमिक सहायक को रोगी की कमर के एक ओर थोड़ा नीचे घुटनों के बल अपनी एड़ियां थोड़ा पीछे हटा कर बैठना चाहिए।बैठे हुए उसका मुंह रोगी के सिर की ओर होना चाहिए। इसके बाद उसे अपने हाथों को रोगी की कमर पर इस प्रकार रखना चाहिए कि एक हाथ रीढ़ की हड्डी पर और दूसरा हाथ दूसरी ओर हो। अंगूठे और टखने मिले हुए हों और अंगुलियां भूमि की ओर हों। दोनों बाहें सीधी हों।
PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता (4)

3. बनावटी सांस देने की क्रिया-प्राथमिक सहायक धीरे-धी रे आगे की ओर सरकते हुए अपने शरीर के भार को रोगी की कमर पर डालें। ऐसा करने से रोगी के पेट के अंग भूमि से उसका मध्य पेट या डायाफ्राम की ओर दब जायेगा। इस प्रकार से फेफड़ों से हवा निकल जायेगी। इस क्रिया में दो सैकिंड का समय लगना चाहिए। दो मिनट भार डालने के बाद रोगी की कमर से अपना भार हटा दो। अब धीरे-धीरे प्राथमिक सहायक अपनी एड़ियों पर आ जाए। इस प्रकार पेट के अंग पीछे हट जायेंगे और डायाफ्राम गिर जायेगा तथा फेफड़ों में हवा भी जाएगी। इस क्रिया में तीन सैकिंड लगने चाहिए। दोनों क्रियाओं में कुल पांच सैकिंड का समय लगना चाहिए और यह एक मिनट में 12 बार क्रिया होनी चाहिए।
PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता (5)

यह बनावटी सांस देने की क्रिया उस समय तक जारी रखनी चाहिए जब तक रोगी की श्वास-प्रक्रिया शुरू नहीं हो जाती।

Physical Education Guide for Class 8 PSEB प्राथमिक सहायता Important Questions and Answers

बहु विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता के उद्देश्य लिखें
(क) मरीज को नज़दीक अस्पताल लेकर जाना
(ख) रोगी की हालत सुधारना
(ग) हालत बिगड़ने न देना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 2.
प्राथमिक सहायता के बॉक्स में सामान आवश्यक है –
(क) थर्मामीटर
(ख) कैंची
(ग) चिमटी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायता के नियम हैं
(क) रक्त को बहने से रोकना
(ख) बेहोश रोगी को बनावटी श्वास देना
(ग) रोगी की हालत में सुधार लाना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
प्राथमिक सहायता के गुण हैं
(क) प्राथमिक सहायता करने वाला सूझवान और होशियार होना चाहिए
(ख) उसे योजनाबद्ध तरीके से काम करना चाहिए
(ग) वह अपने कार्य में निपुण होना चाहिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
C.P.R. है –
(क) कार्डिओ
(ख) पलमोनरी
(ग) रिसेसीटेशन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
C.P.R. कब देनी चाहिए ?
(क) जब रोगी की नब्ज न चलती हो
(ख) रोगी की दिल की धड़कन बंद हो
(ग) रोगी की आँखों में हलचल न हो
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

बहुत छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अगर कोई व्यक्ति बीमार हो जाए तो आप क्या करोगे ?
उत्तर-
रोगी का बुखार कम करने के लिए उपाय किया जाएगा और डॉक्टर को दिखाया जाएगा।

प्रश्न 2.
ज़हरीले जानवर के काटने से शरीर में क्या फैलने का डर रहता है ?
उत्तर-
ज़हर फैलने का।

प्रश्न 3.
प्राथमिक सहायक का व्यवहार कैसा होना चाहिए ?
उत्तर–
प्राथमिक सहायक का व्यवहार मीठा, नम्रता भरा और हमदर्दी भरा होना चाहिए।

प्रश्न 4.
जली हुई जगह का रंग कैसा हो जाता है ?
उत्तर-
जली हुई जगह का रंग बदसूरत लाल हो जाता है।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 5.
डॉक्टर के पहुंचने से पहले रोगी या घायल व्यक्ति को दी जाने वाली सहायता को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक सहायता।

प्रश्न 6.
प्राथमिक सहायता का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
रोगी या घायल की जान बचाना।

प्रश्न 7.
प्राथमिक सहायक (First Aider) को डॉक्टरी सहायता मिलने तक क्या करते रहना चाहिए ?
उत्तर-
रोगी की देखभाल।

प्रश्न 8.
साँप द्वारा डसे स्थान को किससे धोना चाहिए ?
उत्तर-
पानी और पोटाशियम के मिश्रण से।

प्रश्न 9.
सांप द्वारा डसे हुए स्थान पर चाकू या ब्लेड से कैसा कटाव करना चाहिए ?
उत्तर-
1″ लम्बा और = ” गहरा।

प्रश्न 10.
कटाव करने के लिए चाकू या ब्लेड कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
रोगाणु मुक्त।

प्रश्न 11.
किसी पागल कुत्ते के काटने से व्यक्ति की क्या दशा हो सकती है ?
उत्तर-
व्यक्ति की मृत्यु।

प्रश्न 12.
प्रारम्भिक सहायक में पहला गुण क्या होना चाहिए ?
उत्तर-
चुस्ती एवं फुर्ती।

प्रश्न 13.
रोगी के बेहोश होने पर श्वास बन्द होने पर क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
बनावटी साँस देना चाहिए।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक सहायता से क्या भाव है ?
उत्तर–
प्राथमिक सहायता से भाव उस सहायता से है, जो किसी रोगी द्वारा बीमार, बेहोश व्यक्ति या दुर्घटना के समय डॉक्टर के आने से पहले व्यक्ति को दी जाए।

प्रश्न 2.
पागल कुत्ते के काटने से जहर शरीर में किस तरह फैलता है?
उत्तर-
पागल कुत्ते के काटने से कुत्ते का जहर काटी हुई जगह पर नाड़ियों द्वारा नाड़ी तंत्र में पहुंच जाता है। वहां जहर दिमाग में दाखिल हो जाता है। यह जहर कुत्ते की लार में होता है। जख्म या खरोंच के साथ जहर व्यक्ति के सारे शरीर में फैल जाता है।

प्रश्न 3.
पागल कुत्ते के काटने से जो डॉक्टरी सहायता तुरंत न दी जा सके तो क्या करना चाहिए?
उत्तर-
कई बार पागल कुत्ते के काटने से मरीज को तुरंत डॉक्टरी सहायता नहीं पहुंचाई जा सकती। इस हालत में रोगी के जख्म को जला देना चाहिए। ऐसे करने के लिए बंधन खोल देना चाहिए और किसी तरल कास्टिक कार्बनिक या शोरे का तेजाब जख्म ऊपर लगाएं। ऐसे करने से जहर खत्म हो जाएगा।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 1 प्राथमिक सहायता

प्रश्न 4.
डंक लगने के चिह्न बताओ।
उत्तर-
किसी कीड़े आदि के डंक मारने पर डंक वाली जगह सूज जाती है। वहां दर्द महसूस होने लगता है और कई भयानक चिह्न पैदा हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
जलने पर लक्षण बताओ।
उत्तर-
जलने के लक्षण-

  1. जली हुई जगह पर बहुत दर्द होती है।
  2. चमड़ी लाल हो जाती है और छाले पड़ जाते हैं।
  3. जले हुए अंग भद्दे लगते हैं।
  4. जलने के कारण कई बार सदमा भी लग जाता है।

प्रश्न 6.
लू लगने के पांच लक्षण लिखो।
उत्तर-
लू लगने के पांच लक्षण –

  1. रोगी बेहोश हो जाता है।
  2. रोगी की चमड़ी गर्म हो जाती है।
  3. रोगी के चेहरे का रंग नीला हो जाता है।
  4. रोगी को सांस लेने में कठिनाई आती है।
  5. रोगी की नब्ज़ तेज़ हो जाती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
संविधान शब्द की परिभाषा कीजिए। संविधान के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?
(Define the term Constitution. What are the different kinds of Constitution ?)
उत्तर–
प्रत्येक राज्य का अपना एक संविधान होता है। संविधान उन नियमों तथा सिद्धान्तों का समूह होता है जिनके अनुसार शासन चलाया जाता हो। प्रत्येक राज्य का शासन कुछ निश्चित नियमों तथा सिद्धान्तों के अनुसार चलाया जाता है। अर्थात् प्रत्येक राज्य में कुछ ऐसे सिद्धान्त तथा नियम निश्चित कर लिए जाते हैं जिनके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किए जाते हैं। इन नियमों के समूह को ही संविधान कहा जाता है। इसकी परिभाषा कई विद्वानों द्वारा की गई है-

प्रो० जैलिनेक (Jellinek) का कहना है कि, “संविधान उन नियमों का समूह है जो राज्य के सर्वोच्च अंगों को निर्धारित करते हैं, उनकी रचना, उनके आपसी सम्बन्धों, उनके कार्यक्षेत्र तथा राज्य में उनके वास्तविक स्थान को निश्चित करते हैं।”
(“The constitution is a body of juridicial rules which determine the supreme organs of the state, prescribe their modes of creation, their mutual relations, their sphere of action and finally the fundamental place of each of them in relation of the state.”)

वुल्ज़े (Woolsey) के अनुसार, “संविधान उन नियमों का समूह है जिनके अनुसार सरकार की शक्तियां, शासितों के अधिकार तथा इन दोनों के आपसी सम्बन्धों को व्यवस्थित किया जाता है।” (“A constitution is the collection of the principles according to which the powers of government, the rights of the governed and the relation between the two are adjusted.”)

डायसी (Dicey) का कहना है कि, “राज्य के संविधान में वे सब नियम सम्मिलित होते हैं जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में प्रभुसत्ता के वितरण या प्रयोग पर प्रभाव पड़ता है।” (“The constitution of the state consists of all rules which directly or indirectly affect the distribution or exercise of sovereign power in the state.”)

ब्राइस (Bryce) का कहना है कि, “किसी राज्य के संविधान में वे कानून या नियम सम्मिलित होते हैं जिनके अनुसार सरकार के स्वरूप तथा इसके नागरिकों के प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों और नागरिकों के इसके प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है।” (“The constitution of a state consists of those rules or laws which determines the form of its government and the respective rights and duties of it towards its citizens and of the citizens towards government.”)

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

प्रो० गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के शब्दों में, “राज्य का संविधान लिखित या अलिखित कानूनों या नियमों का वह समूह है जो सरकार के संगठन, सरकार के विभिन्न अंगों में शक्तियों के वितरण और शक्ति-प्रयोग के सामान्य नियमों को निश्चित करता है।” (“The constitution of a state is that body of rules of laws, written or unwritten, which determine the organisation of government, the distribution of powers of the various organs of government and the general principles on which these powers are to be exercised.”)

गैटल (Gettell) का कहना है कि, “संविधान उन नियमों का संग्रह है जिनके द्वारा सरकार और उसके नागरिकों के कानूनी सम्बन्धों को निश्चित किया जाता है और जिनके अनुसार राज्य की शक्ति का प्रयोग होता है।” (“The constitution is a collection of norms by which the legal relations between the government and its subjects are determined and in accordance with which the power of the state is exercised.”)

ऑस्टिन (Austin) ने कहा है कि, “संविधान वह है जो सर्वोच्च शासन के ढांचे को निश्चित करता है।” (“The constitution is that which fixes the structure of the supreme government.”)
ऊपर दी गई इन विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर संविधान की सरल परिभाषा इस प्रकार कर सकते हैं कि राज्य का संविधान राज्य का वह सर्वोच्च कानून है, जिसके अनुसार वहां की सरकार का स्वरूप, सरकार के विभिन्न अंगों और उनकी रचना, उनकी शक्तियां, उनके आपसी सम्बन्ध, राज्य और व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों तथा नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है। संविधान में मुख्यतः पांच बातों का वर्णन होता है-

  1. सरकार का स्वरूप।
  2. सरकार के अंगों की रचना और उनके आपसी सम्बन्ध ।
  3. सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियां।
  4. नागरिकों और राज्य के आपसी सम्बन्ध अथवा नागरिकों के अधिकार तथा कर्त्तव्य।
  5. राज्य की नागरिकता व भू-क्षेत्र सम्बन्धी कानून।

संविधानों का वर्गीकरण (Classification of Constitutions)-
सभी राज्यों के संविधान एक से नहीं होते। प्रत्येक राज्य में वहां की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक परिस्थितियों तथा लोगों की राजनैतिक विचारधारा के अनुसार वहां का संविधान निश्चित होता है। प्रत्येक राज्य के mising

(1) विकसित संविधान तथा निर्मित संविधान (Evolved Constitution and Enacted Constitution) संविधान की रचना किस प्रकार हुई है, इसके आधार पर संविधान दो तरह के होते हैं-

(क) विकसित संविधान (Evolved Constitution)—जो संविधान ऐतिहासिक उपज या विकास का परिणाम हो, उसे विकसित संविधान कहा जाता है। यह संविधान किसी एक समय में किसी एक व्यक्ति या सभा द्वारा जानबूझ कर नहीं बनाया जाता बल्कि उसके नियम इतिहास के साथ-साथ ही सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार, रीतिरिवाज़ों और परम्पराओं के आधार पर बनते तथा विकसित होते हैं। इसके बनाने के लिए कोई संविधान सभा नहीं बुलाई जाती बल्कि संविधान की विभिन्न बातें समय-समय पर निश्चित होती चली जाती हैं। इंग्लैण्ड का संविधान ऐसे संविधान का सर्वोत्तम उदाहरण है। इंग्लैण्ड में आज तक कोई संविधान सभा संविधान बनाने के लिए नहीं बनाई गई है।

(ख) निर्मित संविधान (Enacted Constitution) निर्मित संविधान वह संविधान है जो किसी एक ही समय में किसी एक व्यक्ति, समिति या संविधान सभा के द्वारा निर्मित किया जाए। ऐसे संविधान का निर्माण इसी उद्देश्य के लिए बुलाई गई संविधान सभा के द्वारा किया जाता है। इसका यह अर्थ नहीं कि एक बार बनने के बाद इसमें कोई संशोधन नहीं हो सकता। बाद में इसकी धाराओं में समय-समय पर संशोधन होता रहता है। इसकी समस्त बातें सोचसमझ कर निश्चित की जाती हैं। भारत का संविधान निर्मित संविधान है। अधिकतर राज्यों के संविधान निर्मित हैं।

(2) लिखित संविधान तथा अलिखित संविधान (Written Constitution and Unwritten Constitution)
(क) लिखित संविधान (Written Constitution)-लिखित संविधान उसे कहा जाता है जिसके लगभग सभी नियम लिखित रूप में उपलब्ध हों। लिखित संविधान प्रायः निर्मित होता है जिसका निर्माण किसी संविधान सभा के द्वारा एक ही समय में काफ़ी सोच-विचार के बाद किया जाता है। लिखित संविधान को बनाते हुए शब्दों का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है कि वे इस उद्देश्य को पूरी तरह से स्पष्ट कर दें जिस उद्देश्य के लिए वे लिखे जा रहे हैं। लिखित संविधान देश का सर्वोच्च कानून और एक पवित्र वस्तु माना जाता है। संविधान में इस बात का भी स्पष्ट वर्णन किया जाता है कि उसमें किस प्रकार संशोधन किया जा सकता है। इसके संशोधन का तरीका प्रायः साधारण कानून बनाने के तरीकों से भिन्न और कठोर होता है। भारत, अमेरिका, रूस, कनाडा, जापान आदि अधिकतर राज्यों के संविधान लिखित हैं।

(ख) अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)—अलिखित संविधान उसे कहते हैं जिसकी धाराएं लिखित रूप में न हों बल्कि शासन संगठन अधिकतर रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं पर आधारित हो। अलिखित संविधान पूर्णतः अलिखित नहीं होता, उसका कुछ अंश लिखित रूप में भी मिलता है। संसद् द्वारा समय-समय पर बनाए गए कानून और न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय, जो शासन संगठन से सम्बन्धित हों, अलिखित संविधान का एक भाग होते हैं। अलिखित संविधान विकसित होता है, निर्मित नहीं होता। इंग्लैण्ड का संविधान अलिखित संविधान का एक उदाहरण है। वहां सरकार का संगठन और व्यक्ति तथा राज्य के आपसी सम्बन्ध रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं पर आधारित हैं।

(3) लचीला संविधान तथा कठोर संविधान (Flexible Constitution and Rigid Constitution)संविधान में संशोधन कैसे किया जा सकता है, इस बात के आधार पर भी संविधान दो प्रकार के होते हैं-लचीला या परिवर्तनशील संविधान तथा कठोर या अपरिवर्तनशील संविधान।

(क) लचीला या परिवर्तनशील संविधान उसे कहा जाता है कि जिसमें आसानी से संशोधन या परिवर्तन किया जा सके। जिस साधारण तरीके से संसद् साधारण कानून बनाती है, उसी साधारण तरीके से संविधान में बड़े से बड़ा परिवर्तन भी किया जा सकता है अर्थात् संवैधानिक कानून (Constitution Law) को बनाते समय संसद् को किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं होती। प्रो० बार्कर का कहना है कि जब किसी सरकार का रूप जनता या उसके प्रतिनिधियों की इच्छानुसार आसानी से बदला जा सकता है तो उसे लचीला संविधान कहा जाता है। ऐसे संविधान में संसद् को कानून बनाने की असीमित शक्ति प्राप्त होती है। इंग्लैण्ड का संविधान लचीला है। वहां की संसद् संविधान के बारे में कोई भी कानून बिल्कुल साधारण तरीके से पास कर सकती है।

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(ख) कठोर या अपरिवर्तनशील संविधान उसे कहा जाता है कि जिसे आसानी से बदला न जा सके। जब साधारण कानून के बनाने के तरीके और संविधान में संशोधन करने के तरीके में अन्तर हो अर्थात् संशोधन करने का तरीका कठिन हो तो उसे कठोर संविधान कहा जाता है। साधारण कानून बनाने वाली सत्ता संविधान का संशोधन नहीं कर सकती बल्कि कोई दूसरी ही सत्ता इसमें संशोधन करती है। कठोर संविधान को राज्य का सर्वोच्च कानून माना जाता है। संघात्मक राज्यों के संविधान प्रायः निर्मित, लिखित तथा कठोर होते हैं। अमेरिका का संविधान कठोर है जिसमें संशोधन करने के लिए संसद् के दोनों सदनों का 2/3 बहुमत और कम-से-कम 3/4 राज्यों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है। भारत का संविधान भी कठोर है।

प्रश्न 2.
‘लचीले’ तथा ‘कठोर’ संविधान में भेद बताओ।
(Distinguish between “Flexible” and “Rigid” Constitutions.)
उत्तर–
प्रत्येक राज्य का अपना संविधान होता है। संविधान उन नियमों और सिद्धान्तों का संग्रह होता है जिनके अनुसार सरकार का स्वरूप, सरकार का संगठन, सरकार की शक्तियों, नागरिकों के अधिकार निश्चित होते है। संविधान कई प्रकार के होते हैं जैसे कि विकसित व निर्मित संविधान, लिखित व अलिखित संविधान तथा लचीले व कठोर संविधान । लचीले और कठोर संविधान का भेद संविधान में संशोधन के तरीके के आधार पर है।

लचीला या परिवर्तनशील संविधान (Flexible Constitution)-
लचीला संविधान उसे कहा जाता है जिसे आसानी से बदला जा सकता हो। लचीलने संविधान को देश की संसद् या व्यवस्थापिका साधारण तरीके से बदल सकती है तथा उसके लिए किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। संवैधानिक कानून और साधारण कानून में कोई विशेष अन्तर नहीं रहता तथा साधारण कानून जितनी आसानी से पास हो जाता है उसी प्रकार से संवैधानिक कानून भी पास हो जाता है। प्रो० बार्कर (Barker) का कहना है कि जब संविधान में परिवर्तन जनता या उसके प्रतिनिधियों की इच्छानुसार आसानी से किया जा सके तो उसे लचीला संविधान कहा जाता है।

लचीले संविधान वाले राज्य में कानून बनाने वाली सत्ता और संविधान में संशोधन करने वाली सत्ता में कोई अन्तर नहीं होता और इस प्रकार व्यवस्थापिका को कानून बनाने की अपार शक्ति प्राप्त होती है। प्रो० डायसी (Dicey) का कहना है कि “लचीले संविधान में हर प्रकार का कानून एक ही सत्ता द्वारा एक ही तरीके से आसानी से बदला जा सकता है।” इंग्लैंड का संविधान एक लचीला संविधान है। ब्रिटिश संसद् किसी भी प्रकार कानून बना सकती है और किसी भी कानून को अपनी इच्छानुसार आसानी से बदल सकती है। ब्रिटिश संसद् संवैधानिक कानून उसी साधारण तरीके से पास कर सकती है जिस तरह से दूसरे साधारण कानून । ऐसा कोई कानून नहीं जिसे ब्रिटिश संसद् बना न सकती हो या जिसमें परिवर्तन न कर सकती हो।

कठोर संविधान (Rigid Constitution)-
जिस संविधान को आसानी से न बदला जा सकता हो तथा उसे बदलने के लिए किसी विशेष तरीके को अपनाना पड़ता हो, उसे कठोर संविधान या परिवर्तनशील संविधान कहा जाता है। कठोर संविधान में संविधान को बदलने वाली सत्ता और साधारण कानून बनाने वाली सत्ता में अन्तर होता है तथा साधारण कानून के बनाने के तरीके और संविधान में संशोधन के तरीके में भी अन्तर होता है। कठोर संविधान में संसद् को असीमित शक्ति प्राप्त नहीं होती बल्कि उसकी वैधानिक शक्तियां संविधान द्वारा सीमित होती हैं। इसके अतिरिक्त संसद् के बनाए कानूनों पर न्यायपालिका को पुनर्निरीक्षण (Judicial Review) का अधिकार होता है। कठोर संविधान की व्यवस्था संघात्मक शासन प्रणाली में अवश्य की जाती है ताकि संविधान को केन्द्र या इकाइयां कोई भी अपनी इच्छा से संशोधन न कर सकें बल्कि दोनों की सहमति से ही उसमें परिवर्तन हो सके।

संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान एक कठोर संविधान है। वहां संविधान में संशोधन करने का तरीका साधारण कानून बनाने के तरीके से भिन्न है। संविधान में संशोधन का प्रस्ताव जब संसद् के दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पास हो जाए तो उसे राज्यों के पास भेजा जाता है। उस प्रस्ताव को उसी समय पास समझा जा सकता है जबकि कम-से-कम 3/4 राज्यों के विधानमण्डल उस पर अपनी स्वीकृति दे दें। संशोधन का प्रस्ताव 2/3 राज्यों के द्वारा भी पेश किया जा सकता है, जिसके आधार पर अमेरिकन संसद् एक सभा (Convention) बुलाती है । यदि वह सभा 2/3 बहुमत से उसे पास कर दे तो फिर 3/4 राज्यों का समर्थन मिलने पर ही वह संशोधन पास समझा जाता है तथा उसके बाद ही लागू हो सकता है। भारत का संविधान भी आंशिक रूप से कठोर है। इसकी महत्त्वपूर्ण धाराओं को बदलने के लिए संशोधन का प्रस्ताव पहले संसद् के दोनों सदनों 2/3 बहुमत से पास हो जाना चाहिए और इसके बाद कम-से-कम आधे राज्यों का समर्थन उसे मिलना चाहिए। साधारण कानून तो संसद् के दोनों सदनों के द्वारा साधारण बहुमत से पास होता है। इस प्रकार कठोर संविधान को आसानी से और साधारण तरीके से बदला नहीं जा सकता।

लचीले और कठोर संविधान में भेद को बताते हुए ब्राइस (Bryce) ने कहा है कि “लचीला संविधान वह संविधान है जिसमें परिवर्तन आसानी से तथा साधारण कानून निर्माण क्रिया के अनुसार ही हो सकते हैं। इसके विपरीत कठोर संविधान वह संविधान है जिसके संविधान का एक विशेष तरीका होता है।” अर्थात् संशोधन के तरीके के आधार पर ही लचीले और कठोर संविधान में भेद है, किसी दूसरे आधार पर नहीं।

प्रश्न 3.
लचीले संविधान के गुण तथा दोष लिखो।
(Describe merits and demerits of Flexible Constitution.)
उत्तर-
लचीले संविधान के गुण (Merits of Flexible Constitution)-
लचीले संविधान के निम्नलिखित गुण हैं-

1. यह समय के अनुसार बदलता जाता है (It changes according to time) लचीले संविधान का एक गुण तो यह है कि यह समयानुसार बदलता रहता है। इसमें संशोधन करने में कठिनाई नहीं होती और इसलिए समाज की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार, समय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इसमें आवश्यक परिवर्तन किए जा सकते हैं। इस प्रकार राज्य का संविधान समाज के इतिहास का प्रतिबिम्ब बन जाता है जिसके द्वारा हम समाज की किसी भी समय की सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक दशा को बड़ी आसानी से जान सकते हैं। इस प्रकार ‘लचीला संविधान’ समय की आवश्यकताओं का उचित ढंग से पूरा कर सकता है।

2. क्रान्ति की कम सम्भावनाएं (Less possibilities of revolution)-जिस देश में लचीला संविधान हो, वहां क्रान्ति और विद्रोह की सम्भावना नहीं रहती। संविधान लोगों की इच्छा के अनुसार आसानी से बदल जाता है, जिसके बदलने के लिए लोगों को न तो कोई विशेष तरीका अपनाने की आवश्यकता होती है और न ही उसके बदलने में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। शासन के स्वरूप को बदलने के लिए लोगों को क्रान्ति का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जनता जब चाहे संविधान को बदल सकती है।

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3. यह राष्ट्र की प्रगति के साथ-साथ विकास करता है (It develops with the development of the Nation) लचीले संविधान का एक गुण यह भी है कि ऐसा संविधान राष्ट्र की प्रगति के साथ-साथ आगे बढ़ता है और सभ्यता के विकास में सहायता देता है, उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न नहीं करता। जब राष्ट्र आगे बढ़ता है तो संविधान उसके अनुकूल अपने आपको ढाल लेता है और इस प्रकार राष्ट्र को आगे बढ़ने में और अधिक सहायता देता है।

4. लचीला संविधान संकटकाल में सहायक रहता है (Flexible Constitution is helpful in the times of emergency) लचीले संविधान का एक लाभ यह है कि संकटकाल में सहायता देता है। संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिए संविधान में आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है। संकट की स्थिति साधारण शासन-व्यवस्था से दूर नहीं की जा सकती। संविधान को संशोधित करके सरकार को असाधारण शक्तियां देकर उस संकट का आसानी से मुकाबला किया जा सकता है। ऐसा करना कठोर संविधान को खींचकर और मोड़कर, शासन व्यवस्था को भंग किए बिना परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है और जब आपत्ति टल जाए तो संविधान अपनी पहेली परिस्थिति में आ जाता है जैसे किसी पेड़ की टहनियां किसी गाड़ी के गुजरने के बाद अपने स्थान पर वापस आ जाती हैं।

लचीले संविधान के दोष
(Demerits of Flexible Constitution)-

लचीले संविधान में दोष भी बहुत से हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है-

1. यह स्थिर नहीं होता (It is not Stable) लचीले संविधान का एक दोष यह है कि इसमें स्थिरता नहीं होती। लचीला संविधान जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। संविधान में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होने के कारण शासन ठीक प्रकार से नहीं चल सकता। शासन में दृढ़ता का आना ऐसी स्थिति में सम्भव नहीं।

2. यह राजनैतिक दलों के हाथ में खिलौना बन जाता है (It becomes a plaything in the hands of political parties)–लचीले संविधान में यह भी दोष है कि वह राजनैतिक दलों के हाथों में एक खिलौना बनकर रह जाता है। जो भी राजनैतिक दल संसद् में बहुमत प्राप्त कर लेता है, वह उसको अपनी इच्छानुसार बदलने का प्रयत्न करता है। कई बार तो बहुमत दल इस प्रकार बदलने का प्रयत्न करता है जिससे उस दल को भविष्य में लाभ पहुंचता रहे, चाहे राष्ट्र को उससे हानि ही क्यों न हो। दलबन्दी की भावना के प्रभाव में आकर जब संविधान में कोई परिवर्तन किया जाता है तो उससे शासन व्यवस्था में अस्त-व्यस्तता का आना स्वाभाविक है।

3. संघात्मक राज्य के लिए यह उपयुक्त नहीं है (It is not suitable for a federation)-संघात्मक राज्य के लिए लचीला संविधान उपयुक्त नहीं है क्योंकि संघात्मक राज्य में संघ तथा प्रान्तों में शक्तियों का बंटवारा होता है और किसी को भी दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अवसर नहीं दिया जा सकता। संघात्मक राज्य के लिए कठोर संविधान ही ठीक रहता है।

4. यह संविधान पिछड़े हुए देशों के लिए उपयुक्त नहीं (It is not suitable for undeveloped countries)लचीला संविधान उसी देश के लिए उपयुक्त हो सकता है जो विकसित हो, जहां नागरिकों में राजनैतिक शिक्षा का अभाव न हो तथा नागरिकों में राष्ट्र हित की भावनाएं विकसित हों। जिस देश के नागरिक स्वार्थी हों और साम्प्रदायिकता आदि के
चक्कर में पड़े हुए हों वहां कठोर संविधान ही ठीक रहता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति संविधान को अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए बदलने का प्रयत्न करता है।

प्रश्न 4.
कठोर संविधान के गुण और दोषों की व्याख्या करें।
(Discuss merits and demerits of Rigid Constitution.)
उत्तर
कठोर संविधान के गुण (Merits of Rigid Constitution)-
कठोर संविधान के निम्नलिखित गुण हैं-

1. यह स्थिर होता है (It is stable)-कठोर संविधान की यह एक विशेषता है कि यह स्थिर होता है। इसमें सोचसमझ कर ही शासन के स्वरूप, सरकार के संगठन और शक्तियों तथा नागरिकों के अधिकारों का वर्णन किया जाता है, जो सभी परिस्थितियों में उचित रूप से लागू हो सकें, इसलिए यह काफ़ी समय तक चलता है और इससे राजनैतिक निरन्तरता प्राप्त होती है।

2. यह राजनैतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता (It does not become a plaything in the hands of political parties) कठोर संविधान की यह एक विशेषता है कि यह राजनैतिक दलों के हाथों में खिलौना नहीं बनता क्योंकि कोई भी दल आसानी से इसमें संशोधन नहीं करवा सकता। छोटी-छोटी बात पर बहुमत दल इसमें परिवर्तन करके इसे अपने हितों की पूर्ति के लिए तरोड़-मरोड़ नहीं सकते।

3. यह संघात्मक राज्य के लिए लाभदायक है (It is useful for a federation)—संघात्मक राज्य के लिए कठोर संविधान बड़ा आवश्यक है। यदि संविधान कठोर न हो तो इस बात की सम्भावना रहती है संघ सरकार इकाइयों (units) की शक्तियों पर हस्तक्षेप न करने लगे।

4. यह लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा करता है (It protects the rights and liberties of the individuals)-कठोर संविधान का यह भी एक लाभ है कि इसके द्वारा लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा अच्छी प्रकार से हो सकती है। आजकल नागरिकों के अधिकार संविधान में लिख दिये जाते हैं और ऐसी व्यवस्था भी की जाती है कि कोई उनमें हस्तक्षेप न कर सके । संविधान मे लिखे अधिकारों से नागरिकों को आसानी से वंचित नहीं किया जा सकता।

5. यह शासन की निरंकुशता को रोकता है (It prevents the absolutism of the government) कठोर संविधान का एक यह भी लाभ है कि वह शासन को निरंकुश नहीं होने देता। कठोर संविधान द्वारा सरकार के सभी अंगों पर सीमाएं लगाई जाती हैं और उनकी शक्तियों को स्पष्ट रूप से निश्चित किया जाता है। कठोर संविधान में इस बात की सम्भावना नहीं रहती कि सरकार अपनी शक्ति का अपनी इच्छानुसार मनमाने तरीके से प्रयोग करे।

कठोर संविधान के दोष (Demerits of Rigid Constitution)-
कठोर संविधान के दोष भी कई हैं, जिनकी व्याख्या नीचे दी गई है-

1. यह समयानुसार बदलता नहीं (It does not change according to time) कठोर संविधान का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह समयानुसार नहीं बदलता। इससे शासन अच्छी तरह से नहीं चल सकता। कई बार संविधान में आवश्यक संशोधन भी समय पर नहीं हो पाता जिसका परिणाम यह होता है कि परिस्थितियां सुधरने की बजाय और भी बिगड़ती चली जाती हैं।

2. यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है (It encourages revolution)-कठोर संविधान का एक दोष यह भी है कि यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है। यह बदलती हुई परिस्थितियों के साथ नहीं चल सकता और इस कारण लोगों की आवश्यकताओं को भी अच्छी तरह से पूरा नहीं कर सकता। जब लोग इसे आसानी से नहीं बदल सकते, तो वे इसके लिए क्रान्ति का सहारा लेते हैं। लोग यह समझने पर मजबूर हो जाते हैं कि अब क्रान्ति के अतिरिक्त कोई ओर चारा ही नहीं।

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3. यह राष्ट्र की प्रगति में बाधा डालता है (It puts an obstacle in the development of the Nation)कठोर संविधान को इस कारण भी अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि यह राष्ट्र की प्रगति में वक उत्पन्न करता है। राष्ट्र आगे बढ़ना चाहता है, तो संविधान उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न करता है। कठोर संविधान राष्ट्र को उन्हीं परिस्थितियों तथा दशाओं में हमेशा के लिए रखने का प्रयत्न करता, जिनमें कि उसका निर्माण हुआ था। कठोर संविधान प्रगतिशील राजनैतिक विचारधारा को प्रोत्साहित नहीं करता।

4. कठोर संविधान जजों के हाथ में एक खिलौना होता है (It is a plaything in the hands of judges)लचीला संविधान राजनीतिक दलों के हाथ का खिलौना बनता है तो कठोर संविधान जजों और वकीलों के हाथ में एक खिलौना बन जाता है। कठोर संविधान के होने का अर्थ है-न्यायपालिका की सर्वोच्चता। कठोर संविधान की व्याख्या करने, उसकी रक्षा करने, संघ तथा राज्यों के झगड़ों को निपटाने, संविधान के विरुद्ध कानूनों को रद्द करने आदि के सब अधिकार न्यायपालिका के पास होते हैं। इस कारण संविधान वह नहीं होता जोकि उसके निर्माताओं ने बनाया है बल्कि संविधान वह होता है जोकि न्यायाधीश बनाते हैं अर्थात् न्यायपालिका कई बार संविधान का एक नया ही रूप जनता के सामने रखती है।

5. यह संकटकाल में ठीक नहीं रहता (It is not suitable for emergency)-आपत्ति के समय में कठोर संविधान ठीक नहीं रहता क्योंकि आपत्ति का सामना करने के लिए उसमें आवश्यक परिवर्तन आसानी से नहीं किया जा सकता। इससे शासक परिस्थितियों का ठीक प्रकार से सामना नहीं कर पाते । संकटकाल में सरकार के पास विशेष शक्तियों का होना आवश्यक है। शान्ति के समय में सरकार के पास साधारण शक्तियां होती हैं। इसलिए संविधान में संकटकाल में संशोधन एकदम हो जाना चाहिए जोकि एक कठोर संविधान में सम्भव नहीं होता।

6. कठोर संविधान कुछ समय बाद महत्त्वहीन हो जाता है (Rigid Constitution after sometime becomes a thing of the past)-कठोर संविधान का एक दोष यह भी है कि यह कुछ समय बाद महत्त्वहीन बन जाता है। संविधान की बातें उस समय के अनुसार होती हैं जबकि वह बनाया गया हो। समय परिवर्तन के कारण यदि उसमें परिवर्तन नहीं होता तो उसका कोई महत्त्व नहीं रहता और लोग उसे आदर की दृष्टि से नहीं देखते।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान का क्या अर्थ है ? इसकी दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
संविधान ऐसे नियमों तथा सिद्धान्तों का समूह है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। इन नियमों के समूह को ही संविधान कहा जाता है।

परिभाषाएं-

  • ब्राइस के अनुसार, “किसी राज्य के संविधान में वे कानून या नियम सम्मिलित होते हैं, जिनके अनुसार सरकार के स्वरूप तथा इसके नागरिकों के प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों और नागरिकों के इसके प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है।”
  • गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य का संविधान लिखित कानूनों या नियमों का वह समूह है, जो सरकार के संगठन, सरकार के विभिन्न अंगों में शक्तियों का वितरण और शक्ति प्रयोग के सामान्य नियमों को निश्चित करता है।”

प्रश्न 2.
अलिखित संविधान के चार गुण लिखिए।
उत्तर-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-अलिखित संविधान का अर्थ यह है कि संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-अलिखित संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।
  3. क्रान्ति का भय नहीं होता-अलिखित संविधान के होने से क्रान्ति का भय नहीं होता। संविधान में आसानी से परिवर्तन हो जाता है। जनता को इसमें परिवर्तन करवाने के लिए क्रान्ति का सहारा नहीं लेना पड़ता।
  4. राष्ट्र की प्रगति में सहायक-अलिखित संविधान का एक लाभ यह है कि वह राष्ट्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न नहीं करता बल्कि उसकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 3.
अलिखित संविधान के चार दोष बताइए।
उत्तर-
अलिखित संविधान को निम्नलिखित बातों के आधार पर दोषपूर्ण बताया जाता है-

  1. यह निश्चित और अस्पष्ट होता है-अलिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होता। इसकी धाराएं लिखी हुई न होने के कारण उनके बारे में लोगों में प्रायः मतभेद तथा लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।
  2. शक्तियों का दुरुपयोग–अलिखित संविधान सरकार के विभिन्न अंगों को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने या एक दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहन देता है।
  3. संघ सरकार में इसका कोई लाभ नहीं-संघात्मक राज्यों के लिए लिखित संविधान का होना आवश्यक है क्योंकि अलिखित संविधान के कारण संघ और प्रान्तों में शक्तियों के बारे में मतभेद और झगड़े बहुत होते हैं।
  4. यह स्थिर नहीं होता-अलिखित संविधान में स्थिरता नहीं रहती बल्कि वह जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। जहां संविधान में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होता हो, वहां राजनीतिक जीवन में स्थिरता और एकता स्थापित नहीं हो पाती।

प्रश्न 4.
लिखित संविधान क्यों आवश्यक है ? दो कारण बताइए।
उत्तर-
लिखित संविधान उसे कहा जाता है जिसके लगभग सभी नियम लिखित रूप में उपलब्ध हों। लिखित संविधान प्रायः निर्मित होता है, जिसका निर्माण एक संविधान सभा द्वारा एक ही समय में काफ़ी सोच-विचार के बाद किया जाता है। आज अधिकतर राज्यों में लिखित संविधान पाया जाता है। लिखित संविधान के अनेक गुण होते हैं। लिखित संविधान निम्नलिखित कारणों से आवश्यक माना जाता है-

  • यह सोच-समझकर बनाया जाता है-लिखित संविधान एक संविधान सभा द्वारा बनाया जाता है और उसकी सब बातें अच्छी प्रकार से सोच-समझकर निश्चित की जाती हैं। भावना के आवेश में आकर इसका निर्माण नहीं होता।
  • यह निश्चित तथा स्पष्ट होता है-लिखित संविधान का एक गुण यह है कि यह लिखित तथा स्पष्ट होता है।
  • नागरिकों के अधिकारों की रक्षा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा लिखित संविधान द्वारा अधिक अच्छी तरह हो सकती है।
  • संघात्मक सरकार में आवश्यक-संघात्मक शासन प्रणाली के लिए संविधान का लिखित होना बड़ा आवश्यक है। संविधान द्वारा ही संघ तथा इकाइयों में शक्तियों का बंटवारा किया जाता है और इस बंटवारे को लिखित रूप देने से संघ और राज्यों में शक्तियों के बारे में मतभेद पैदा नहीं होते।

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प्रश्न 5.
लिखित संविधान की चार कमियां बताओ।
उत्तर-
लिखित संविधान की मुख्य कमियां इस प्रकार हैं-

  • यह कुछ समय बाद लाभदायक नहीं रहता-लिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह समय के बाद बदलता नहीं और कुछ समय बाद यह लाभदायक नहीं रहता। परिवर्तित वातावरण में लिखा हुआ संविधान एक अतीत की वस्तु बनकर रह जाता है।
  • यह समयानुसार नहीं बदलता-लिखित संविधान और सामाजिक आवश्यकता में तालमेल नहीं हो पाता, इसीलिए इसे कई लोग अच्छा नहीं समझते।
  • क्रान्ति का भय-लिखित संविधान में क्रान्ति का भय अधिक होता है। लिखित संविधान समय की आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकता और न ही उसमें आसानी से संशोधन किया जा सकता है क्योंकि लिखित संविधान प्रायः कठोर ही होता है। समय के अनुसार परिवर्तन लाने के लिए जनता को कई बार विद्रोह तथा क्रान्ति का सहारा लेना पड़ता है।
  • राष्ट्र की प्रगति में बाधा-लिखित संविधान का एक दोष यह भी है कि वह राष्ट्र की प्रगति में रुकावट डालता है।

प्रश्न 6.
लचीला संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लचीला संविधान उसे कहा जाता है जिसमें आसानी से संशोधन या परिवर्तन किया जा सके। जिस साधारण तरीके से संसद् साधारण कानून बनाती है, उसी साधारण तरीके से संविधान में बड़े-से-बड़ा परिवर्तन भी किया जा सकता है अर्थात् संवैधानिक कानून (Constitutional Law) को बनाते समय संसद् को किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं है। प्रो० बार्कर का कहना है कि जब किसी सरकार का रूप जनता या उसके प्रतिनिधियों की इच्छानुसार आसानी से बदला जा सकता है तो उसे लचीला संविधान कहा जाता है। ऐसे संविधान में संसद् को कानून बनाने की असीमित शक्तियां प्रदान होती हैं। इंग्लैंड का संविधान लचीला है। ब्रिटिश संसद् संविधान के सम्बन्ध में कोई भी कानून साधारण बहुमत से पास कर सकती है।

प्रश्न 7.
लचीले संविधान के चार गुण लिखो।
उत्तर-
लचीले संविधान में निम्नलिखित गुण होते हैं-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-लचीले संविधान का लाभ यह है कि यह संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-लचीला संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।
  3. क्रान्ति का भय नहीं होता-लचीले संविधान के होने से क्रान्ति का भय नहीं होता। संविधान में आसानी से परिवर्तन हो जाता है। जनता को इसमें परिवर्तन करवाने के लिए क्रान्ति का सहारा नहीं लेना पड़ता है।
  4. राष्ट्र की प्रगति में सहायक-लचीले संविधान का एक लाभ यह भी है कि वह राष्ट्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न नहीं करता बल्कि उसकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 8.
लचीले संविधान के चार दोष लिखो।
उत्तर-
लचीले संविधान को निम्नलिखित बातों के आधार पर दोषपूर्ण बताया जाता है-

  • यह अनिश्चित और अस्पष्ट होता है-लचीले संविधान का एक दोष यह है कि यह स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होता। इसकी धाराएं लिखी हुई न होने के कारण उनके बारे में लोगों में प्रायः मतभेद तथा लडाई-झगडे होते रहते हैं।
  • शक्तियों का दुरुपयोग-लचीला संविधान सरकार के विभिन्न अंगों को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने या एक दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहन देता है।
  • संघ सरकार में इसका कोई लाभ नहीं-संघात्मक राज्यों के लिए संविधान का होना आवश्यक है क्योंकि लचीले संविधान के कारण संघ और प्रान्तों में शक्तियों के बारे में मतभेद और झगड़े बहुत होते हैं।
  • यह स्थिर नहीं होता-लचीले संविधान में स्थिरता नहीं रहती बल्कि यह जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। जहां संविधान में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होता हो, राजनीतिक जीवन में स्थिरता और एकता स्थापित नहीं हो पाती।

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प्रश्न 9.
कठोर संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कठोर संविधान उसे कहा जाता है जिसे आसानी से बदला न जा सके। जब साधारण कानून को बनाने के तरीके और संविधान में संशोधन करने के तरीके में अन्तर हो अर्थात् संशोधन का तरीका कठिन हो तो उसे कठोर संविधान कहा जाता है। साधारण कानून वाली सत्ता संविधान का संशोधन नहीं कर सकती बल्कि कोई दूसरी ही सत्ता इसमें संशोधन करती है। कठोर संविधान को राज्य का सर्वोच्च कानून माना जाता है। संघात्मक राज्यों के संविधान प्रायः निर्मित, लिखित तथा कठोर होते हैं। अमेरिका का संविधान कठोर है जिसमें संशोधन करने के लिए संसद् के दोनों सदनों का 2/3 बहुमत और कम-से-कम 3/4 राज्यों का समर्थन होना आवश्यक है। भारत के संविधान के कुछ भाग कठोर हैं।

प्रश्न 10.
कठोर संविधान के चार गुण लिखिए।
उत्तर-
कठोर संविधान के निम्नलिखित गुण हैं-

  • यह स्थिर होता है-कठोर संविधान की एक विशेषता यह है कि यह स्थिर होता है। इसलिए यह काफ़ी समय तक चलता है और इससे राजनीतिक निरन्तरता प्राप्त होती है।
  • यह राजनीतिक दलों के हाथों में खिलौना नहीं बनता-कठोर संविधान की यह भी एक विशेषता है कि यह राजनीतिक दलों के हाथों में खिलौना नहीं बनता क्योंकि कोई भी दल आसानी से इसमें संशोधन नहीं करवा सकता। छोटी-छोटी बातों पर बहुमत दल इसमें परिवर्तन करके इसे अपने हितों की पूर्ति के लिए तोड़-मोड़ नहीं सकते।
  • यह संघात्मक राज्य के लिए बड़ा लाभदायक है-संघात्मक राज्य के लिए कठोर संविधान बड़ा आवश्यक है। यह संविधान कठोर न हो तो इस बात की सम्भावना रहती है कि संघ सरकार राज्यों (प्रान्तों) की शक्तियों में हस्तक्षेप न करने लगे।
  • यह लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा करता है-कठोर संविधान का यह भी एक लाभ है कि इसके द्वारा लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा अच्छी प्रकार से हो सकती है। संविधान में लिखे अधिकारों से नागरिकों को आसानी से वंचित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 11.
कठोर संविधान की चार हानियां लिखिए।
उत्तर-
कठोर संविधान के कई दोष भी हैं जिनकी व्याख्या नीचे दी गई है-

  1. यह समयानुसार बदलता नहीं-कठोर संविधान का सबसे बड़ा दोष है कि यह समयानुसार नहीं बदलता। इससे शासन अच्छी तरह से नहीं चल सकता।
  2. यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है-कठोर संविधान का एक दोष यह भी है कि यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है। जब लोग इसे आसानी से नहीं बदल सकते तो वे इसके लिए क्रान्ति का सहारा लेते हैं।
  3. यह राष्ट्र की प्रगति में बाधा डालता है-कठोर संविधान को इस कारण भी अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि यह राष्ट्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है।
  4. कठोर संविधान जजों के हाथों में एक खिलौना होता है-कठोर संविधान के होने का अर्थ है-न्यायपालिका की सर्वोच्चता। कठोर संविधान की व्याख्या करने, उनकी रक्षा करने, संघ तथा राज्यों के झगड़ों को निपटाने, संविधान के विरुद्ध कानूनों को रद्द करने आदि के सब अधिकार न्यायपालिका के पास होते हैं। इस कारण संविधान वह नहीं होता जोकि उसके निर्माताओं ने बनाया है बल्कि संविधान वह होता है जोकि न्यायाधीश बनाते हैं अर्थात् न्यायपालिका कई बार संविधान का एक नया रूप जनता के सामने रखती है।

प्रश्न 12.
लचीले और कठोर संविधान में भेद स्पष्ट करें।
उत्तर-
लचीले और कठोर संविधान में मुख्य अन्तर निम्नलिखित पाए जाते हैं-

  • लचीले संविधान का संशोधन किसी विशेष प्रक्रिया द्वारा नहीं होता। जिस पद्धति से कानूनों का निर्माण होता है उसी पद्धति से संविधान में भी संशोधन होता है, परन्तु कठोर संविधान के संशोधन के लिए विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है।
  • कठोर संविधान की अपेक्षा लचीले संविधान में संशोधन करना अत्यन्त सरल है। (3) कठोर संविधान में संवैधानिक तथा साधारण कानूनों में भेद होता है, परन्तु लचीले संविधान में ऐसा नहीं होता।
  • कठोर संविधान में विधानमण्डल की सत्ता सीमित होती है, परन्तु लचीले संविधान में उसकी सत्ता असीमित होती है।
  • कठोर संविधान में प्रायः नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख होता है, परन्तु लचीले संविधान में ऐसा नहीं देखा जाता।

प्रश्न 13.
किस प्रकार का संविधान अधिक उपयोगी है-लचीला अथवा कठोर ? कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर-
संविधान ऐसे नियमों और सिद्धान्तों का समूह होता है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित किए जाते हैं। प्रत्येक राज्य अपनी आवश्यकता एवं परिस्थितियों के अनुसार लिखित या अलिखित तथा कठोर या लोचशील संविधान अपनाता है। यह कहना अत्यन्त कठिन है कि लचीले और कठोर संविधान में से कौन-सा संविधान अधिक उपयोगी है। दोनों ही प्रकार के संविधानों के अपने गुण भी हैं और दोष भी हैं। लचीले या कठोर संविधान को तब उपयोगी माना जा सकता है यदि उसमें निम्नलिखित गुण पाए जाते हों

  • विश्व में अधिकांश नव-स्वतन्त्र राज्य अस्थिरता के दौर से गुज़र रहे हैं। तीसरी दुनिया के देशों में क्रान्ति व तख्ता पलट की सम्भावनाएं अधिक होती हैं। अतः इन दोनों में राजनीतिक स्थायित्व के लिए कठोर संविधान आवश्यक है।
  • संविधान में बदलती हुई ज़रूरतों के अनुसार परिवर्तित होने का गुण भी होना चाहिए। परन्तु यह इतना भी लोचशील न हो कि सत्ताधारी दल के हाथों का खिलौना बन जाए।
    अतः संविधान न तो अत्यधिक कठोर हो और न ही अत्यधिक लोचशील हो।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संविधान ऐसे नियमों तथा सिद्धान्तों का समूह है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। इन नियमों के समूह को ही संविधान कहा जाता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

प्रश्न 2.
संविधान को परिभाषित करें।
उत्तर-

  • ब्राइस के अनुसार, “किसी राज्य के संविधान में वे कानून या नियम सम्मिलित होते हैं, जिनके अनुसार सरकार के स्वरूप तथा इसके नागरिकों के प्रति अधिकारों तथा कर्त्तव्यों और नागरिकों के इसके प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है।”
  • गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य का संविधान लिखित कानूनों या नियमों का वह समूह है, जो सरकार के संगठन, सरकार के विभिन्न अंगों में शक्तियों का वितरण और शक्ति प्रयोग के सामान्य नियमों को निश्चित करता है।”

प्रश्न 3.
अलिखित संविधान के दो गुण लिखिए।
उत्तर-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-अलिखित संविधान का अर्थ यह है कि संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-अलिखित संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।

प्रश्न 4.
अलिखित संविधान के दो दोष बताइए।
उत्तर-

  1. यह निश्चित और अस्पष्ट होता है-अलिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होता। इसकी धाराएं लिखी हुई न होने के कारण उनके बारे में लोगों में प्रायः मतभेद तथा लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।
  2. शक्तियों का दुरुपयोग- अलिखित संविधान सरकार के विभिन्न अंगों को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने या एक दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहन देता है।

प्रश्न 5.
लिखित संविधान के दो गुण लिखो।
उत्तर-

  1. यह सोच-समझकर बनाया जाता है-लिखित संविधान एक संविधान सभा द्वारा बनाया जाता है और उसकी सब बातें अच्छी प्रकार से सोच-समझकर निश्चित की जाती हैं। भावना के आवेश में आकर इसका निर्माण नहीं होता।
  2. यह निश्चित तथा स्पष्ट होता है-लिखित संविधान का एक गुण यह है कि यह लिखित तथा स्पष्ट होता है।

प्रश्न 6.
लिखित संविधान की दो कमियां बताओ।
उत्तर-

  1. यह कुछ समय बाद लाभदायक नहीं रहता-लिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह समय के बाद बदलता नहीं और कुछ समय बाद यह लाभदायक नहीं रहता। परिवर्तित वातावरण में लिखा हुआ संविधान एक अतीत की वस्तु बनकर रह जाता है।
  2. यह समयानुसार नहीं बदलता-लिखित संविधान और सामाजिक आवश्यकता में तालमेल नहीं हो पाता, इसीलिए इसे कई लोग अच्छा नहीं समझते।।

प्रश्न 7.
लचीला संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लचीला संविधान उसे कहा जाता है जिसमें आसानी से संशोधन या परिवर्तन किया जा सके। जिस साधारण तरीके से संसद् साधारण कानून बनाती है, उसी साधारण तरीके से संविधान में बड़े-से-बड़ा परिवर्तन भी किया जा सकता है अर्थात् संवैधानिक कानून (Constitutional Law) को बनाते समय संसद् को किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 8.
लचीले संविधान के दो गुण लिखो।
उत्तर-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-लचीले संविधान का लाभ यह है कि यह संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-लचीला संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. संविधान की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-बुल्जे के अनुसार, “संविधान उन नियमों का समूह है, जिनके अनुसार सरकार की शक्तियां, शासितों के अधिकार तथा इन दोनों के आपसी सम्बन्धों को व्यवस्थित किया जाता है।”

प्रश्न 2. संविधान के कोई दो रूप/प्रकार लिखें।
उत्तर-

  1. विकसित संविधान
  2. निर्मित संविधान।

प्रश्न 3. विकसित संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो संविधान ऐतिहासिक उपज या विकास का परिणाम हो, उसे विकसित संविधान कहा जाता है।

प्रश्न 4. लिखित संविधान किसे कहते हैं ? ।
उत्तर-लिखित संविधान उसे कहा जाता है, जिसके लगभग सभी नियम लिखित रूप में उपलब्ध हों।

प्रश्न 5. अलिखित संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-अलिखित संविधान उसे कहते हैं, जिसकी धाराएं लिखित रूप में न हों, बल्कि शासन संगठन अधिकतर रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं पर आधारित हो।

प्रश्न 6. कठोर एवं लचीले संविधान में एक अन्तर लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान की अपेक्षा लचीले संविधान में संशोधन करना अत्यन्त सरल है।

प्रश्न 7. लचीले संविधान का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर- लचीला संविधान समयानुसार बदलता रहता है।

प्रश्न 8. किसी एक विद्वान् का नाम लिखें, जो लिखित संविधान का समर्थन करता है?
उत्तर-डॉ० टॉक्विल ने लिखित संविधान का समर्थन किया है।

प्रश्न 9. कठोर संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता।

प्रश्न 10. एक अच्छे संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-संविधान स्पष्ट एवं सरल होता है।

प्रश्न 11. अलिखित संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-यह समयानुसार बदलता रहता है।

प्रश्न 12. अलिखित संविधान का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-अलिखित संविधान में शक्तियों के दुरुपयोग की सम्भावना बनी रहती है।

प्रश्न 13. लिखित संविधान का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-लिखित संविधान निश्चित तथा स्पष्ट होता है।

प्रश्न 14. लिखित संविधान का एक दोष लिखें।
उत्तर-लिखित संविधान समयानुसार नहीं बदलता।

प्रश्न 15. जिस संविधान को आसानी से बदला जा सके, उसे कैसा संविधान कहा जाता है ?
उत्तर-उसे लचीला संविधान कहा जाता है।

प्रश्न 16. जिस संविधान को आसानी से न बदला जा सकता हो, तथा जिसे बदलने के लिए किसी विशेष तरीके को अपनाया जाता हो, उसे कैसा संविधान कहते हैं ?
उत्तर-उसे कठोर संविधान कहते हैं। प्रश्न 17. लचीले संविधान का एक दोष लिखें। उत्तर-यह संविधान पिछड़े हुए देशों के लिए ठीक नहीं।

प्रश्न 18. कठोर संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान निश्चित एवं स्पष्ट होता है।

प्रश्न 19. कठोर संविधान का एक दोष लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है।

प्रश्न 20. शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Power) का सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर-शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त मान्टेस्क्यू ने प्रस्तुत किया।

प्रश्न 21. संविधानवाद की साम्यवादी विचारधारा के मुख्य समर्थक कौन हैं ?
उत्तर-संविधानवाद की साम्यवादी विचारधारा के मुख्य समर्थक कार्ल-मार्क्स हैं।

प्रश्न 22. संविधानवाद के मार्ग की एक बड़ी बाधा लिखें।
उत्तर-संविधानवाद के मार्ग की एक बाधा युद्ध है।

प्रश्न 23. अरस्तु ने कितने संविधानों का अध्ययन किया?
उत्तर-अरस्तु ने 158 संविधानों का अध्ययन किया।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……………. संविधान उसे कहा जाता है, जिसमें आसानी से संशोधन किया जा सके।
2. जिस संविधान को सरलता से न बदला जा सके, उसे …………… संविधान कहते हैं।
3. लिखित संविधान एक ……………. द्वारा बनाया जाता है।
4. ……………. संविधान समयानुसार बदलता रहता है।
5. ……………. में क्रांति का डर बना रहता है।
उत्तर-

  1. लचीला
  2. कठोर
  3. संविधान सभा
  4. अलिखित
  5. लिखित संविधान।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. अलिखित संविधान अस्पष्ट एवं अनिश्चित होता है।
2. लचीले संविधान में क्रांति की कम संभावनाएं रहती हैं।
3. कठोर संविधान अस्थिर होता है।
4. एक अच्छा संविधान स्पष्ट एवं निश्चित होता है।
5. कठोर संविधान समयानुसार बदलता रहता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत ।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कठोर संविधान का गुण है
(क) यह राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता
(ख) संघात्मक राज्य के लिए उपयुक्त नहीं है
(ग) समयानुसार नहीं बदलता
(घ) संकटकाल में ठीक नहीं रहता।
उत्तर-
(क) यह राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता

प्रश्न 2.
एक अच्छे संविधान का गुण है-
(क) संविधान का स्पष्ट न होना
(ख) संविधान का बहुत विस्तृत होना
(ग) व्यापकता तथा संक्षिप्तता में समन्वय
(घ) बहुत कठोर होना।
उत्तर-
(ग) व्यापकता तथा संक्षिप्तता में समन्वय

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प्रश्न 3.
“संविधान उन नियमों का समूह है, जो राज्य के सर्वोच्च अंगों को निर्धारित करते हैं, उनकी रचना, उनके आपसी सम्बन्धों, उनके कार्यक्षेत्र तथा राज्य में उनके वास्तविक स्थान को निश्चित करते हैं।” किसका कथन है ?
(क) सेबाइन
(ख) जैलिनेक
(ग) राबर्ट डाहल
(घ) आल्मण्ड पावेल।
उत्तर-
(ख) जैलिनेक

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से एक अच्छे संविधान की विशेषता है-
(क) स्पष्ट एवं निश्चित
(ख) अस्पष्टता
(ग) कठोरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) स्पष्ट एवं निश्चित

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 12 राज्य और सरकार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
(Explain the difference between the State and Government.)
उत्तर-
प्राचीनकाल में राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं किया जाता था। प्लेटो तथा अरस्तु ने राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं किया। फ्रांस का बादशाह लुई चौदहवां कहा करता था कि, “मैं ही राज्य हूं।” (“I am the State.”) इंग्लैण्ड के स्टूअर्ट राजाओं ने अपनी असीमित शक्तियों को प्रमाणित करने के लिए राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं किया। जॉन-लॉक (John Locke) प्रथम लेखक था जिसने राज्य तथा सरकार में स्पष्ट भेद किया। आज भी साधारण नागरिक राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं करता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि इन दोनों में अन्तर है। राज्य तथा सरकार में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

1. सरकार राज्य का अंग है (Government is a part of State)—सरकार राज्य का एक अंग है। राज्य के चार तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। सरकार राज्य के चार तत्त्वों में से एक तत्त्व है, परन्तु सरकार स्वयं राज्य नहीं है। जिस प्रकार शरीर का एक अंग स्वयं शरीर नहीं कहला सकता, उसी तरह राज्य का अंग स्वयं राज्य नहीं कहला सकता।

2. राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित (State is more comprehensive then Government)—’राज्य’ शब्द सरकार से अधिक व्यापक है। राज्य में सरकार के सदस्य तथा उस प्रदेश में रहने वाले सभी लोग शामिल होते हैं। सरकार में कुल जनसंख्या का थोड़ा भाग ही शामिल होता है।

3. सरकार राज्य का एजेन्ट है (Government is an agent of the State)-सरकार राज्य की नौकर अथवा एजेण्ट है। सरकार का कार्य राज्य की इच्छा का पालन करना है। राज्य की इच्छा को लागू करना सरकार का परम कर्तव्य है। प्रो० लॉस्की ने भी सरकार को राज्य का एजेण्ट कहा है।

4. राज्य अमूर्त तथा सरकार मूर्त है (State is abstract, Government is concrete)-राज्य अमूर्त है जिसे देखा नहीं जा सकता। राज्य का कोई रूप नहीं है, राज्य की केवल कल्पना की जा सकती है। परन्तु सरकार मूर्त है जिसका रूप है और जिसको देखा जा सकता है। जिस प्रकार आत्मा को नहीं देखा जा सकता उसी तरह राज्य को नहीं देखा जा सकता, परन्तु शरीर की तरह सरकार को भी देखा जा सकता है।

4. राज्य स्थायी है, सरकार अस्थायी (State is permanent, Government is temporary)-राज्य स्थायी है जबकि सरकार अस्थायी है। राज्य तब तक बना रहता है जब तक इसके पास प्रभुसत्ता बनी रहती है। प्रभुसत्ता के खो जाने से राज्य राज्य नहीं रहता। राज्य कम परिवर्तनशील है, परन्तु सरकार अस्थायी है। सरकारें बदलती रहती हैं। इंग्लैण्ड में कभी लेबर पार्टी की सरकार होती है और कभी अनुदार पार्टी की। जून, 2017 में इंग्लैण्ड में अनुदार पार्टी एवं डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी की गठबन्धन सरकार बनी। भारत में मई, 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की सरकार बनी।

5. राज्य के पास प्रभुसत्ता है सरकार के पास नहीं (State possesses sovereignty, Government does not)—प्रभुसत्ता राज्य का अनिवार्य तत्त्व है। जिस प्रकार बिना पति-पत्नी परिवार का निर्माण नहीं हो सकता, उसी तरह बिना प्रभुसत्ता के राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। राज्य के पास सर्वोच्च शक्ति है, राज्य के अधिकार मौलिक होते हैं और इसकी शक्तियों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता, परन्तु सरकार के पास प्रभुसत्ता नहीं होती। सरकार अपनी शक्तियां राज्य से प्राप्त करती है। सरकार की शक्तियां सीमित होती हैं।

6. राज्य की सदस्यता अनिवार्य होती है, सरकार की नहीं (Membership of the State is compulsory, not of the Government)-मनुष्य का जन्म जिस राज्य में होता है, वह उसी राज्य का नागरिक बन जाता है। मनुष्य को किसी-न-किसी राज्य का सदस्य होना पड़ता है, परन्तु सरकार की सदस्यता ऐच्छिक होती है। सरकार का सदस्य बनने के लिए योग्यता तथा इच्छा का होना आवश्यक है। यदि कोई नागरिक सरकार का सदस्य नहीं बनना चाहता, तो उसे इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

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7. राज्य के लिए निश्चित भूमि अनिवार्य तत्त्व है, सरकार के लिए नहीं (Territory is essential for State, not for Government)-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भूमि आवश्यक है, इसके बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। परन्तु सरकार के लिए निश्चित भूमि आवश्यक तत्त्व नहीं है। दूसरे महायुद्ध में फ्रांस पर जब जर्मनी ने कब्जा कर लिया तब फ्रांस की सरकार इंग्लैण्ड में चलती थी।

8. राज्य के विरुद्ध क्रान्ति नहीं हो सकती (No revolution against the State)-राज्य के पास सर्वोच्च शक्ति होती है, इसलिए नागरिक राज्य के विरुद्ध क्रान्ति नहीं कर सकते। परन्तु नागरिक सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हैं। लोकतन्त्र सरकार में जनता को सरकार के विरुद्ध भाषण देने तथा शान्तिपूर्ण जुलूस निकालने का अधिकार होता है।

राज्य एक समान होते हैं, सरकार विभिन्न प्रकार की होती है (States are similar, Governments differ)-राज्य एक समान होते हैं। राज्य जनसंख्या तथा क्षेत्र के आधार पर छोटे-बड़े हो सकते हैं, परन्तु सभी राज्यों के पास प्रभुसत्ता होती है। प्रत्येक राज्य के चार तत्त्व अनिवार्य होते हैं। परन्तु सरकार के विभिन्न रूप होते हैं। किसी राज्य में लोकतन्त्रीय सरकार होती है, किसी में तानाशाही सरकार, किसी में संसदीय सरकार, किसी में अध्यक्षात्मक सरकार, किसी में एकात्मक सरकार तो किसी में संघात्मक सरकार।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त चर्चा के आधार पर यह परिणाम निकालना आसान ही है कि राज्य और सरकार दो अलग-अलग धारणाएं और संस्थाएं हैं। साथ ही यह भी कह देना उचित होगा कि सरकार भले ही राज्य के अधीन होती है फिर भी सरकार के बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। सरकार का महत्त्व राज्य के निर्माण और संचालन में इतना अधिक है कि कई लेखक व्यावहारिक दृष्टिकोण से सरकार को राज्य का सकारात्मक रूप बताते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार में चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
राज्य और सरकार में अग्रलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • सरकार राज्य का अंग है-सरकार राज्य का एक अंग है। राज्य के चार तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। सरकार राज्य के चार तत्त्वों में से एक तत्त्व है, परन्तु सरकार स्वयं राज्य नहीं है। जिस प्रकार शरीर का एक अंग स्वयं शरीर नहीं कहला सकता, उसी तरह राज्य का अंग स्वयं राज्य नहीं कहला सकता।
  • राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित-‘राज्य’ शब्द सरकार से अधिक व्यापक है। राज्य में सरकार के सदस्य तथा उस प्रदेश में रहने वाले सभी लोग शामिल होते हैं। सरकार में कुल जनसंख्या का थोड़ा भाग ही शामिल होता है।
  • सरकार राज्य की एजेण्ट है–सरकार राज्य की नौकर अथवा एजेण्ट है। सरकार का कार्य राज्य की इच्छा का पालन करना है। राज्य की इच्छा को लागू करना सरकार का परम कर्तव्य है। प्रो० लॉस्की ने भी सरकार को राज्य का एजेण्ट कहा है।
  • राज्य अमूर्त तथा सरकार मूर्त है-राज्य अमूर्त है, जिसे देखा नहीं जा सकता। परंतु सरकार मूर्त है, जिसका रूप है और जिसको देखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
कानूनी प्रभुसत्ता की कोई चार मुख्य विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
कानूनी प्रभुसत्ता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • राज्य में कानूनी प्रभु निश्चित प्रभु होता है जिसके बारे में कोई सन्देह नहीं हो सकता।
  • कानूनी प्रभुसत्ता एक व्यक्ति में भी निहित हो सकती है जैसे कि निरंकुश राजतन्त्र में राजा के पास और व्यक्तियों के समूह में भी हो सकता है जैसे कि लोकतन्त्र में संसद् के पास। इंग्लैण्ड में कानूनी प्रभुसत्ता संसद् के पास है।
  • राष्ट्र की इच्छा का निर्माण कानूनी प्रभु ही करता है तथा उसकी घोषणा करता है। राष्ट्र की इच्छा को कानून बनाकर घोषित किया जाता है।
  • कानूनी प्रभु ही अधिकारों का स्रोत होता है। लोगों को वही अधिकार प्राप्त होते हैं जो कानूनी प्रभु द्वारा दिए जाते हैं और उन अधिकारों को कानूनी प्रभु जब चाहे वापिस ले सकता है।

प्रश्न 3.
राज्य, सरकार से अधिक स्थायी है, कैसे ?
उत्तर-
राज्य स्थायी है जबकि सरकार अस्थायी है। राज्य तब तक बना रहता है जब तक इसके पास प्रभुसत्ता रहती है। राज्य कम परिवर्तनशील है, परन्तु सरकार अस्थायी है। सरकारें बदलती रहती हैं। आज़ादी से पूर्व भारत पर अंग्रेजों का राज्य था और आज़ादी प्राप्त होने के बाद सत्ता भारतीयों के हाथ में आ गई। भारत में कभी कांग्रेस की सरकार होती है तो कई बार कई दल आपस में मिलकर गठजोड़ सरकार बनाते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार में दो अन्तर लिखें।
उत्तर-

  • सरकार राज्य का अंग है-सरकार राज्य का एक अंग है। राज्य के चार तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। सरकार राज्य के चार तत्त्वों में से एक तत्त्व है, परन्तु सरकार स्वयं राज्य नहीं है। जिस प्रकार शरीर का एक अंग स्वयं शरीर नहीं कहला सकता, उसी तरह राज्य का अंग स्वयं राज्य नहीं कहला सकता।
  • राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित-‘राज्य’ शब्द सरकार से अधिक व्यापक है। राज्य में सरकार के सदस्य तथा उस प्रदेश में रहने वाले सभी लोग शामिल होते हैं। सरकार में कुल जनसंख्या का थोड़ा भाग ही शामिल होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. समुदाय का अर्थ लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्तियों का ऐसा समूह है, जिसका एक विशेष उद्देश्य होता है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिल-जुल कर अर्थात् संगठित होकर कार्य करते हैं।

प्रश्न 2. समुदाय की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-जिन्सबर्ग के अनुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है,जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”

प्रश्न 3. समुदाय का कोई एक तत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय का निर्माण व्यक्तियों द्वारा किसी सामान्य या विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4. समुदाय के वर्गीकरण के कोई दो आधार बताएं।
उत्तर-

  1. सदस्यता के आधार पर
  2. अवधि के आधार पर।

प्रश्न 5. समुदाय का कोई एक महत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्ति के सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति करता है।

प्रश्न 6. सदस्यता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर-सदस्यता के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 7. अवधि के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं?
उत्तर-अवधि के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 8. प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 9. पूर्ण सत्ताधारी समुदाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-राज्य को पूर्ण सत्ताधारी समुदाय कहते हैं।

प्रश्न 10. ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, जिला परिषद् तथा नगर-निगम किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-ये सभी अर्धसत्ता प्राप्त समुदाय कहलाते हैं।

प्रश्न 11. भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय चार प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 12. नगर एवं गांव किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-नगर एवं गांव स्थानीय प्रकार के समुदाय हैं।

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प्रश्न 13. शिरोमणि अकाली दल किस प्रकार का संघ है ?
उत्तर-शिरोमणि अकाली दल प्रादेशिक समुदाय है।

प्रश्न 14. कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय समुदाय हैं।

प्रश्न 15. संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को किस प्रकार के संघ हैं?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय हैं।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य की सदस्यता ………….. है, जबकि समुदाय की ऐच्छिक है।
2. …………. के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है, समुदाय के लिए नहीं।
3. राज्य का उद्देश्य व्यापक होता है, जबकि ………….. का उद्देश्य सीमित होता है।
4. ………….. के पास प्रभुसत्ता है, समुदाय के पास नहीं है।
5. राज्य ……….. होता है, जबकि समुदाय अस्थायी होता है।
उत्तर-

  1. अनिवार्य
  2. राज्य
  3. समुदाय
  4. राज्य
  5. स्थायी ।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. फ्रांस का बादशाह लुई 14वां कहा करता था, कि “मैं ही राज्य हूँ”।
2. राज्य सरकार का अंग है।
3. राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित है।
4. राज्य सरकार की एजेन्ट है।
5. राज्य अमूर्त है तथा सरकार मूर्त है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार-
(क) दो अलग-अलग धारणाएं हैं
(ख) एक ही धारणा है
(ग) दोनों समान हैं
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) दो अलग-अलग धारणाएं हैं

प्रश्न 2.
सरकार के कितने अंग होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ग) तीन

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार

प्रश्न 3.
एक राज्य के लिए आवश्यक है-
(क) संसदीय
(ख) राजतन्त्रीय
(ग) अध्यक्षात्मक
(घ) कोई भी सरकार।
उत्तर-
(घ) कोई भी सरकार।

प्रश्न 4.
भारत में कैसी सरकार है ?
(क) संसदीय
(ख) अध्यक्षात्मक
(ग) राजतन्त्रीय
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) संसदीय

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 11 राज्य और समुदाय

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
समुदाय के अर्थ की विवेचना कीजिए। (Discuss the meaning of association.)
उत्तर-
अरस्तु ने ठीक ही कहा है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका स्वभाव और आवश्यकता दोनों ही उसे समाज में रहने के लिए बाध्य करते हैं। आज मनुष्य की आवश्यकताएं इतनी जटिल और अधिक हो गई हैं कि समाज और राज्य उन सबको अच्छी प्रकार से पूरा नहीं कर सकता। राज्य अपने सदस्यों की छोटी-छोटी तथा विशेष आवश्यकताओं की ओर ध्यान नहीं दे सकता। इसी कारण अपने विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तियों ने विशेष समुदाय बनाए हैं। समुदाय को अंग्रेज़ी में ‘एसोसिएशन’ (Association) कहते हैं जिसका अर्थ है ‘मनुष्यों का एक संगठित निकाय अथवा संघ’ (An organised body of persons)। एक प्रकार के विशेष उद्देश्य रखने वाले व्यक्ति एक-दूसरे के समीप आते हैं और समूह बना कर अर्थात् संगठित होकर इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं। इसी को समुदाय कहते हैं। ‘समुदाय’ की विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं-

  • मैकाइवर और पेज (Maclver and Page) का कहना है कि “एक या कुछ सामान्य हितों के अनुसरण के लिए संगठित हुए व्यक्तियों के समूह को समुदाय कहा जाता है।” (Association is a group organised for the pursuit of interest of group or interests in common.”)
  • जिन्सबर्ग (Ginsberg) के मतानुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”
  • बोगार्डस (Bogardus) के शब्दों में, “प्राय: किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलकर कार्य करने को समुदाय कहते हैं।” (‘Association is usually a working together of people to achieve some purpose.”)
  • जी० डी० एच० कोल (G.D.H. Cole) के शब्दों में, “समुदाय से मेरा अभिप्राय लोगों के ऐसे समूह से है जो किसी साझे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सहयोगी रूप में काम करते हैं और इस उद्देश्य के लिए साझे प्रयत्नों के लिए कोई नियम चाहे प्रारम्भिक रूप से ही निश्चित करते हैं।”
    विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समुदाय व्यक्तियों का ऐसा समूह है कि जिसका एक विशेष उद्देश्य होता है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलजुल कर अर्थात् संगठित होकर कार्य करते हैं।

समुदाय के महत्त्वपूर्ण तत्त्व (Important Elements of Associations)-समुदाय के महत्त्वपूर्ण तत्त्व इस प्रकार हैं-

  • व्यक्तियों का समूह-समुदाय व्यक्तियों का समूह होता है। बिना व्यक्ति के समूह के समुदाय की स्थापना नहीं हो सकती।
  • सामान्य या विशेष उद्देश्य-समुदाय का निर्माण व्यक्तियों द्वारा किसी सामान्य या विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है। समुदाय बनाने के लिए सामान्य हित या उद्देश्य का होना अनिवार्य है। विद्यार्थी संघ विद्यार्थी के हितों की रक्षा करता है।
  • संगठन-समुदाय के लिए संगठन का होना अनिवार्य है। संगठन का अर्थ है, कुछ नियमों के अनुसार कार्य करना और यदि कोई सदस्य समुदाय के नियमों के अनुसार नहीं चलता तो उसे समुदाय की सदस्यता से वंचित कर दिया जाता
  • सहयोग की भावना-समुदाय अपने उद्देश्य को तभी प्राप्त कर सकता है यदि समुदाय के सदस्य पारस्परिक सहयोग करें। सहयोग की भावना के बिना समुदाय को सफलता नहीं मिल सकती।
  • नियमों का पालन-समुदाय के प्रत्येक सदस्य के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने समुदाय के नियमों का पालन करे। यदि सदस्य समुदाय के नियमों का पालन नहीं करेंगे तो समुदाय का शीघ्र ही पतन हो जाएगा।
  • कुछ समुदाय अपने सदस्यों की अपेक्षा गैर-सदस्यों के हितों को बढ़ावा देते हैं- यद्यपि समुदाय प्रायः अपने सदस्यों के हितों को ही बढ़ावा देते हैं तथापि कई समुदाय गैर-सदस्यों के हितों को बढ़ावा देते हैं। अनेक समुदाय पशुओं के कल्याण और बच्चों के कल्याण के लिए बने हुए हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

प्रश्न 2.
राज्य और समुदाय में अन्तर स्पष्ट करो।
(Discuss the distinction between State and Association.)
उत्तर-
मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति राज्य के द्वारा नहीं होती। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न समुदायों की स्थापना करता है। समुदाय मनुष्यों का समूह होता है जिसका निर्माण किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। राज्य भी एक समुदाय है क्योंकि राज्य व्यक्तियों का समूह है और राज्य का एक निश्चित उद्देश्य भी है, फिर भी राज्य और समुदाय में अन्तर है, जो इस प्रकार है

1. राज्य की सदस्यता अनिवार्य, समुदाय की ऐच्छिक-मनुष्य का जन्म जिस राज्य में होता है उसे उस राज्य की नागरिकता ग्रहण करनी पड़ती है। मनुष्य अपनी इच्छा से किसी राज्य की नागरिकता न तो छोड़ सकता है और न ही प्राप्त कर सकता है। परन्तु समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक होती है। किसी समुदाय का सदस्य बनना अथवा न बनना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है और वह जिस समय चाहे समुदाय की सदस्यता छोड़ सकता है।

2. राज्य के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है, समुदाय के लिए नहीं-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भूभाग आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं, राज्य इन सीमाओं के अन्तर्गत ही कार्य करता है। परन्तु समुदाय की स्थापना के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक नहीं है। समुदाय का क्षेत्र एक मुहल्ले तक भी सीमित हो सकता है और एक शहर तक भी। कई समुदायों का क्षेत्र समस्त संसार में भी फैला होता है, जैसे कि रैड-क्रास सोसाइटी (Red Cross Society)।

3. मनुष्य एक ही समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है, परन्तु कई समुदायों का सदस्य एक ही बार बन सकता है-मनुष्य एक समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है। यदि किसी मनुष्य को किसी तरह दो राज्यों की नागरिकता प्राप्त हो जाती है, तब उसे एक राज्य की नागरिकता छोड़नी पड़ती है। परन्तु वह एक समय में कई समुदायों का सदस्य बन सकता है।

4. राज्य का उद्देश्य व्यापक है, समुदाय का उद्देश्य सीमित है-राज्य का उद्देश्य समुदाय से व्यापक होता है। राज्य का उद्देश्य मनुष्य के राजनीतिक जीवन को ही उन्नत नहीं करना होता बल्कि राज्य मनुष्य के आर्थिक, सामाजिक आदि पहलुओं को भी उन्नत करने का प्रयत्न करता है ताकि मनुष्य का पूर्ण विकास हो सके। समुदाय का निर्माण किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है। उदाहरणस्वरूप मनोरंजन समिति का उद्देश्य सदस्यों के मनोरंजन तक ही सीमित है। इसके अतिरिक्त समुदाय केवल अपने सदस्यों के हित के लिए ही कार्य करता है।

5. राज्य के पास प्रभुसत्ता है, समुदाय के पास नहीं-राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है। राज्य की शक्तियां असीमित होती हैं। राज्य के नियम तोड़ने वाले को सजा दी जाती है। राज्य किसी भी व्यक्ति को मृत्यु दण्ड भी दे सकता है। प्रभुसत्ता के बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। परन्तु समुदाय के पास प्रभुसत्ता नहीं होती।

6. अन्य समुदाय राज्य के अधीन होते हैं-राज्य अन्य समुदायों से श्रेष्ठ है। राज्य का अन्य समुदायों पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। अन्य समुदाय राज्य के अधीन कार्य करते हैं। परिवार तथा धार्मिक समुदायों को छोड़ कर बाकी सब समुदायों के निर्माण के लिए राज्य की आज्ञा की आवश्यकता होती है। राज्य समुदायों के कार्यों में हस्तक्षेप भी कर सकता है और आवश्यकता समझे तो समुदाय को समाप्त भी कर सकता है।

7. राज्य स्थायी, समुदाय अस्थायी-राज्य तब तक चलता है जब तक इसके पास प्रभुसत्ता रहती है। प्रभुसत्ता खो जाने से राज्य भी समाप्त हो जाता है। परन्तु ऐसा बहुत कम होता है। लेकिन समुदाय अस्थायी है। समुदाय किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाया जाता है और उद्देश्य की पूर्ति के पश्चात् समाप्त हो जाता है। कई समुदाय अपने उद्देश्य में सफल नहीं होते तब भी समुदाय को समाप्त करना पड़ता है। राज्य भी किसी समुदाय को समाप्त कर सकता है।

8. राज्य करों द्वारा अपना धन इकट्ठा करता है परन्तु समुदाय चन्दों द्वारा-अपने सदस्यों पर कर अथवा टैक्स लगा कर राज्य धन की आवश्यकताओं को पूरा करता है और टैक्स देना अनिवार्य होता है। जो व्यक्ति टैक्स नहीं देता उसको दण्ड दिया जाता है। समुदाय अपने सदस्यों से चन्दा लेकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है यदि कोई सदस्य चन्दा नहीं देता तो समुदाय उसे केवल समुदाय से निकाल सकता है।

9. राज्य सार्वजनिक हित का रक्षक है, समुदाय केवल अपने सदस्यों के हित का राज्य समाज के किसी विशेष हित स्थान पर सभी के हितों को देखता है। समुदाय केवल अपने सदस्यों के हितों को देखता है।

10. राज्य समुदाय को समाप्त कर सकता है-राज्य जब चाहे किसी भी समुदाय पर प्रतिबन्ध लगा सकता है और उसे समाप्त कर सकता है। कई समुदायों की स्थापना राज्य भी करता है। जैसे-विश्वविद्यालय, कॉलेज, स्कूल आदि। परन्तु समुदाय न तो राज्य को बना सकते हैं और न ही समाप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-ऊपर की चर्चा से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि राज्य स्वयं एक प्रकार का समुदाय होते हुए भी अन्य समुदायों से भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है। राज्य ‘एक सर्वोच्च समुदाय’ (A Supreme Association) या ‘समुदायों का समुदाय’ (Association of Associations) कहलाता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समुदाय का अर्थ तथा परिभाषा लिखें।
उत्तर-
समुदाय को अंग्रेज़ी में ऐसोसिएशन’ (Association) कहते हैं जिसका अर्थ है ‘मनुष्यों का एक संगठित निकाय अथवा संघ’। एक प्रकार के विशेष उद्देश्य वाले व्यक्ति जब एक-दूसरे के समीप आते हैं और समूह बना कर अर्थात् संगठित होकर इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, इसी को समुदाय कहते हैं। समुदाय की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य अग्रलिखित हैं-

  1. मैकाइवर और पेज का कहना है कि, “एक या कुछ सामान्य हितों के अनुसरण के लिए संगठित हुए व्यक्तियों के समूह को समुदाय कहते हैं।”
  2. जिन्सबर्ग के मतानुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”
  3. बोगार्डस के शब्दों में, “प्रायः किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलकर काम करने को समुदाय कहते हैं।”

प्रश्न 2.
समुदाय की चार उपयोगिताएं लिखें।
उत्तर-
समुदाय समाज में उतना ही स्वाभाविक है जितना स्वयं राज्य। मनुष्य जीवन में समुदायों की उपयोगिता निम्नलिखित बातों से स्पष्ट है-

  • विशेष उद्देश्यों की पूर्ति-समाज व्यक्ति के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करता है परन्तु व्यक्ति को अपने विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समुदायों पर निर्भर रहना पड़ता है। व्यक्ति का विशेष उद्देश्य चाहे जो भी हो, वह उससे सम्बन्धित समुदाय बनाकर उसकी पूर्ति कर सकता है और अपने जीवन का विकास कर सकता है।
  • मानव-स्वभाव की तृप्ति-समुदाय द्वारा मनुष्य के सामाजिक स्वभाव की तृप्ति होती है। प्रत्येक मनुष्य में दूसरों के साथ अपने सुख-दुःख को बांटने की इच्छा होती है। समुदाय के सदस्यों से मित्रता करके उसकी यह सामाजिक भावना अच्छी प्रकार से पूरी हो जाती है।
  • जीवन में अधिक सहायता, सहयोग व सफलता मिलती है-समुदाय संगठित होते हैं और उनके सदस्य संगठित होकर कार्य करते हैं। इससे उद्देश्य की पूर्ति में अधिक सहायता मिलती है और पूर्ति भी शीघ्र हो जाती है। इससे लोगों में पारस्परिक सम्बन्ध घनिष्ठ हो जाते हैं।
  • भाईचारा एवं सहयोग की भावना-समुदायों से समाज में भाईचारा एवं परस्पर सहयोग की भावना पैदा होती है।

प्रश्न 3.
राज्य व समुदाय में चार अन्तर बताओ।
उत्तर-
राज्य और समुदाय में पाए जाने वाले मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं-

  • राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक-मनुष्य अपनी इच्छा से न तो किसी राज्य की नागरिकता छोड़ सकता है और न ही प्राप्त कर सकता है, परन्तु समुदाय का सदस्य बनना या न बनना उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  • राज्य के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक, समुदाय के लिए नहीं-राज्य के निर्माण के लिए एक निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समुदाय की स्थापना के लिए निश्चित भूभाग का होना आवश्यक नहीं है। समुदाय का कार्य एक मुहल्ले से लेकर सारे संसार तक में फैला हो सकता है।
  • मनुष्य एक समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है, परन्तु कई समुदायों का सदस्य एक ही समय में बन सकता है-मनुष्य एक समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है। यदि किसी मनुष्य को दो राज्यों की नागरिकता प्राप्त हो जाती है तो उसे एक राज्य की नागरिकता छोड़नी पड़ती है। परन्तु वह एक ही समय में एक साथ कई समुदायों का सदस्य बन सकता है।
  • राज्य का उद्देश्य व्यापक है, समुदाय का उद्देश्य सीमित होता है-राज्य का उद्देश्य समुदाय के उद्देश्य से अधिक व्यापक होता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समुदाय का अर्थ लिखें।
उत्तर-
समुदाय को अंग्रेज़ी में ‘एसोसिएशन’ (Association) कहते हैं जिसका अर्थ है ‘मनुष्यों का एक संगठित निकाय अथवा संघ’। एक प्रकार के विशेष उद्देश्य वाले व्यक्ति जब एक-दूसरे के समीप आते हैं और समूह बना कर अर्थात् संगठित होकर इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, इसी को समुदाय कहते हैं।

प्रश्न 2.
राज्य व समुदाय में दो अन्तर बताओ।
उत्तर-

  1. राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक-मनुष्य अपनी इच्छा से न तो किसी राज्य की नागरिकता छोड़ सकता है और न ही प्राप्त कर सकता है, परन्तु समुदाय का सदस्य बनना या न बनना उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  2. राज्य के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक, समुदाय के लिए नहीं राज्य के निर्माण के लिए एक निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समुदाय की स्थापना के लिए निश्चित भूभाग का होना आवश्यक नहीं है। समुदाय का कार्य एक मुहल्ले से लेकर सारे संसार तक में फैला हो सकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. समुदाय का अर्थ लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्तियों का ऐसा समूह है, जिसका एक विशेष उद्देश्य होता है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिल-जुल कर अर्थात् संगठित होकर कार्य करते हैं।

प्रश्न 2. समुदाय की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-जिन्सबर्ग के अनुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है,जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”

प्रश्न 3. समुदाय का कोई एक तत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय का निर्माण व्यक्तियों द्वारा किसी सामान्य या विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4. समुदाय के वर्गीकरण के कोई दो आधार बताएं।
उत्तर-

  1. सदस्यता के आधार पर
  2. अवधि के आधार पर।

प्रश्न 5. समुदाय का कोई एक महत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्ति के सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

प्रश्न 6. सदस्यता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर-सदस्यता के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 7. अवधि के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं?
उत्तर-अवधि के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 8. प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 9. पूर्ण सत्ताधारी समुदाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-राज्य को पूर्ण सत्ताधारी समुदाय कहते हैं।

प्रश्न 10. ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, जिला परिषद् तथा नगर-निगम किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-ये सभी अर्धसत्ता प्राप्त समुदाय कहलाते हैं।

प्रश्न 11. भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय चार प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 12. नगर एवं गांव किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-नगर एवं गांव स्थानीय प्रकार के समुदाय हैं।

प्रश्न 13. शिरोमणि अकाली दल किस प्रकार का संघ है ?
उत्तर-शिरोमणि अकाली दल प्रादेशिक समुदाय है।

प्रश्न 14. कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय समुदाय हैं।

प्रश्न 15. संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को किस प्रकार के संघ हैं?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य की सदस्यता ………….. है, जबकि समुदाय की ऐच्छिक है।
2. …………. के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है, समुदाय के लिए नहीं।
3. राज्य का उद्देश्य व्यापक होता है, जबकि ………….. का उद्देश्य सीमित होता है।
4. ………….. के पास प्रभुसत्ता है, समुदाय के पास नहीं है।
5. राज्य ……….. होता है, जबकि समुदाय अस्थायी होता है।
उत्तर-

  1. अनिवार्य
  2. राज्य
  3. समुदाय
  4. राज्य
  5. स्थायी ।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. फ्रांस का बादशाह लुई 14वां कहा करता था, कि “मैं ही राज्य हूँ”।
2. राज्य सरकार का अंग है।
3. राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित है।
4. राज्य सरकार की एजेन्ट है।
5. राज्य अमूर्त है तथा सरकार मूर्त है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार-
(क) दो अलग-अलग धारणाएं हैं
(ख) एक ही धारणा है
(ग) दोनों समान हैं
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क)।

प्रश्न 2.
सरकार के कितने अंग होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ग)।

प्रश्न 3.
एक राज्य के लिए आवश्यक है-
(क) संसदीय
(ख) राजतन्त्रीय
(ग) अध्यक्षात्मक
(घ) कोई भी सरकार।
उत्तर-
(घ)।

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प्रश्न 4.
भारत में कैसी सरकार है ?
(क) संसदीय
(ख) अध्यक्षात्मक
(ग) राजतन्त्रीय
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क)।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

SST Guide for Class 9 PSEB मानव-संसाधन Textbook Questions and Answers

(क) वस्तुनिष्ठ प्रश्न

रिक्त स्थान भरें:

(i) भारत का विश्व में जनसंख्या के आकार के अनुसार …….. स्थान है।
(ii) अशिक्षित लोग समाज में परिसम्पत्ति की अपेक्षा ………….. बन जाते हैं।
(iii) देश की जनसंख्या का आकार, इसकी कार्यकुशलता, शैक्षिक योग्यता उत्पादकता आदि ………………… कहलाते हैं।
(iv) …………. क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों का उपयोग करके उत्पादन क्रियाएं की जाती है।
(v) ……… क्रियाएं वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन में सहायक होती हैं।

उत्तर-

  1. दूसरे
  2. दायित्व
  3. मानव संसाधन
  4.  प्राथमिक
  5. आर्थिक।

बहुविकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1. कृषि अर्थव्यवस्था किस क्षेत्र की उदाहरण है ?
(अ) प्राथमिक
(आ) सेवाएां
(इ) गौण।
उत्तर-
(अ) प्राथमिक

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 2.
कृषि क्षेत्र में 5 से 7 मास लोग बेकार रहते है, इस बेकारी को क्या कहते हैं ?
(अ) छिपी बेरोज़गारी
(आ) मौसमी बेरोज़गारी
(इ) शिक्षित बेरोज़गारी।
उत्तर-
(आ) मौसमी बेरोज़गारी

प्रश्न 3.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता की आयु की सीमा क्या है ?
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक
(आ) 18 वर्ष से 58 वर्ष तक
(इ) 16 वर्ष से 60 वर्ष तक।
उत्तर-
(अ) 15 वर्ष से 59 वर्ष तक

प्रश्न 4.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या है ?
(अ) 1210.19 मिलियन
(आ) 130 मिलियन
(इ) 121.19 मिलियन।
उत्तर-
(अ) 1210.19 मिलियन

सही/गलत :

  1. एक गृहिणी का अपने गृह में कार्य करना एक आर्थिक क्रिया है।
  2. नगर में अधिक छिपी हुई बेरोज़गारी होती है।
  3. मानव पूंजी में निवेश करने से देश विकसित होता है।
  4. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए एक देश की जनसंख्या का स्वस्थ होना ज़रूरी है।
  5. सन् 1951 से 2011 तक भारत की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है।

उत्तर-

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दो प्राकृतिक साधनों के नाम बनाएं।
उत्तर-
दो प्राकृतिक साधन निम्न हैं1. वायु 2. खनिज।

प्रश्न 2.
जर्मनी एवं जापान जैसे देशों ने तीव्र गति से आर्थिक विकास कैसे किया ?
उत्तर-
जर्मनी तथा जापान जैसे देशों में मानव पूंजी निर्माण में निवेश करके तीव्र आर्थिक विकास किया है।

प्रश्न 3.
आर्थिक क्रियाएं क्या हैं ?
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से की जाती हैं।

प्रश्न 4.
गुरुप्रीत तथा मनदीप द्वारा की गई दो आर्थिक क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गुरुप्रीत खेत में काम करता है तथा मनदीप को एक निजी बस्ती में रोजगार मिल गया है।

प्रश्न 5.
गौण-क्षेत्र की कोई दो उदाहरण दें।
उत्तर-
गौण-क्षेत्र के दो उदाहरण निम्नलिखित हैं-

  1. चीनी का गन्ने से निर्माण।
  2. कपास से कपड़े का निर्माण ।

प्रश्न 6.
गैर आर्थिक (अनार्थिक) क्रियाएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गैर आर्थिक क्रियाएं वे क्रियाएं हैं जो धन कमाने के उद्देश्य से नहीं की जाती हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 7.
जनसंख्या की गुणवत्ता के दो निर्धारकों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छी शिक्षा
  2. लोगों का अच्छा स्वास्थ्य।

प्रश्न 8.
सर्वाधिक साक्षर राज्य का नाम क्या है ?
उत्तर-
केरल।

प्रश्न 9.
6 से 14 वर्ष तक के आयु वर्ग के सभी बच्चों को एलीमैंटरी शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाए गए कदम का नाम बताएं।
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान।

प्रश्न 10.
भारत में जनसंख्या की कार्यशीलता आयु की सीमा क्या है ?
उत्तर-
15-59 वर्ष।

प्रश्न 11.
भारत सरकार द्वारा रोज़गार अवसर प्रदान करने के लिए उठाए गए दो कार्यक्रमों का नाम बताएं।
उत्तर-

  1. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना।
    संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना।

(स्व) लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव संसाधन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश की जनसंख्या का वह भाग जो कुशलता, शिक्षा उत्पादकता तथा स्वास्थ्य से संपन्न होता है उसे मानव संसाधन कहते हैं। मानव संसाधन एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है क्योंकि यह प्राकृतिक संसाधनों को अधिक उपयोगी बना देता है। एक देश जिसमें शिक्षित तथा प्रशिक्षित व्यक्ति अधिक संख्या में हों उनकी उत्पादकता अधिक होती है।

प्रश्न 2.
मानव संसाधन किस प्रकार भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य साधनों से श्रेष्ठ है ?
उत्तर-
मानव संसाधन अन्य साधनों जैसे भूमि व भौतिक पूंजी से इसलिए उत्तम है क्योंकि यह अन्य साधन स्वयं नियोजित नहीं हो सकते। मानव संसाधन ही इन साधनों का प्रयोग करता है। इस तरह बड़ी जनसंख्या एक दायित्व नहीं है। इन्हें मानवीय पूंजी में निवेश करके संपत्ति में बदला जा सकता है। उदाहरण के लिए शिक्षा व स्वास्थ्य पर किया गया व्यय लोगों को प्रशिक्षित व शिक्षित तथा स्वस्थ बनाता है जिससे आधुनिक तकनीक का प्रयोग करके देश का विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
आर्थिक व अनार्थिक क्रियाओं में क्या अन्तर है।
उत्तर-
इनमें भेद निम्न हैं-

आर्थिक क्रियाएं अनार्थिक क्रियाएं
1. आर्थिक क्रियाएं अर्थव्यवस्था में वस्तुओं व सेवाओं का प्रवाह करती हैं। 1. अनार्थिक क्रियाओं से वस्तुओं व सेवाओं का कोई  प्रवाह अर्थव्यवस्था में नहीं होता।
2. जब आर्थिक क्रियाओं में वृद्धि होती है तो इसका अर्थ है अर्थव्यवस्था प्रगति में है। 2. अनार्थिक क्रियाओं में होने वाली कोई भी वृद्धि अर्थव्यवस्था की प्रगति की निर्धारक नहीं है।
3. आर्थिक क्रियाओं से वास्तविक व राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है। 3. अनार्थिक क्रियाओं में से कोई राष्ट्रीय आय व वास्तविक आय में वृद्धि नहीं होती।

 

प्रश्न 4.
मानव पूंजी निर्माण में शिक्षा की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
शिक्षा मानव पूंजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है-

  1. शिक्षा आर्थिक तथा सामाजिक विकास का मुख्य साधन है।
  2. शिक्षा विज्ञान और तकनीक के विकास में सहायता करती है।
  3. शिक्षा श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाती है।
  4. शिक्षा लोगों की मानसिक क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करता है।
  5. शिक्षा राष्ट्रीय आय को बढ़ाती है। प्राकृतिक गुणवत्ता को बढ़ाती है और प्राथमिक कुशलता में वृद्धि करती है।

प्रश्न 5.
भारत सरकार द्वारा शिक्षा के प्रसार के लिए कौन-से कदम उठाए गए हैं।
उत्तर-
भारत सरकार ने निम्न कदम उठाए हैं :

  1. शिक्षा संस्थानों का निर्माण किया जा रहा है।
  2. प्राथमिक विद्यालयों को लगभग 5,00,000 गांवों में खोला गया है।
  3. ‘सर्व शिक्षा अभियान’ सभी को अनिवार्य शिक्षा प्रदान करवाने की सिफ़ारिश करती है जो 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को अनिवार्य शिक्षा देती है।
  4. बच्चों के पौष्टिक स्तर को बढ़ाने के लिए ‘मिड-डे-मील’ योजना शुरू की गई है।
  5. सभी जिलों में नवोदय विद्यालय खोले गए हैं।

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प्रश्न 6.
बेरोज़गारी शब्द की व्याख्या करें। देश की बेरोज़गारी दर को निर्धारित करते समय किस वर्ग के लोगों को सम्मिलित नहीं किया जाता ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें वह व्यक्ति जो प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने को तैयार होता है पर उसे काम नहीं मिलता है। किसी देश में कार्यशील जनसंख्या वह जनसंख्या होती है जो 15-59 वर्ष की आयु के बीच होती है। 15 से कम आयु के बच्चों और 59 से अधिक आयु के वृद्ध यदि काम ढूंढ़ते भी हैं तो उन्हें बेरोज़गार नहीं कहा जाता।

प्रश्न 7.
भारत में बेरोजगारी के दो कारण बताएं।
उत्तर-
कारण (Causes)-

  1. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in Population)-भारत में बेरोज़गारी का मुख्य कारण जनसंख्या में होने वाली वृद्धि है। जनसंख्या बढ़ने से देश को संपत्ति का एक बड़ा भाग इस जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने में खर्च हो जाता है और रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के लिए कम साधन बचते हैं।
  2. दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली (Defected Education System) सरकार ने लोगों के जीवन स्तर को उठाने के लिए कई कॉलेजों और स्कूलों की स्थापना की है जिसमें आज करोड़ों छात्र शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। परंतु उनको रोज़गार नहीं मिलता जिसका मुख्य कारण दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का होना है।

प्रश्न 8.
छिपी बेरोज़गारी व मौसमी बेरोज़गारी में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-

छिपी बेरोजगारी मौसमी बेरोजगारी
1. नगरीय क्षेत्र बेरोज़गारी का वह प्रश्न है जिसमें श्रमिक कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर ये वास्तव में होते नहीं हैं। 1. यह बेरोज़गारी का वह प्रकार है जिसमें श्रमिक कुछ  विशेष मौसम में ही कार्य प्राप्त करते हैं।
2. यह प्रायः कषि क्षेत्र में पायी जाती है। 2. वह प्रायः कृषि संबंधी उद्योगों में पायी जाती है।
3. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 3. वह ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 9.
नगरीय क्षेत्र में शिक्षित बेकारी में तीव्र गति से क्यों वृद्धि हो रही है ?
उत्तर-
शिक्षित बेरोज़गारी शहरी बेरोज़गारी का उदाहरण हैं। यह शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक पाई जाती है। शहरों में तीव्र गति से खुलने वाले स्कूल व शैक्षिक संस्थानों से शिक्षित बेरोज़गारी को बढ़ाया है क्योंकि रोज़गार का स्तर इतना नहीं बढ़ा है जितनी विद्यालयों की संख्या बढ़ी है।

प्रश्न 10.
बेरोज़गार लोग समाज के लिए परिसम्पत्ति की अपेक्षा बोझ (देनदारी) क्यों बन जाते हैं। स्पष्ट करो।
उत्तर-
बेरोजगार व्यक्ति एक देश के लिए संपत्ति के स्थान पर दायित्व होता है क्योंकि इससे मानव शक्ति संसाधनों का दुरुपयोग होता है। बेरोज़गारी गरीबी को बढ़ाता है। इससे निराशा की स्थिति उत्पन्न होती है। बेरोज़गार लोग कार्यशील जनसंख्या पर निर्भर रहते हैं।

प्रश्न 11.
अशिक्षित व कमज़ोर स्वास्थ्य वाले लोग अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता किसी देश की संवृद्धि का निर्धारण करती है। शिक्षित जनसंख्या देश के लिए संपत्ति होती है तथा अस्वस्थ लोग अर्थव्यवस्था के लिए दायित्व होता है। किसी देश की संवृद्धि के लिए शिक्षित जनसंख्या एक महत्त्वपूर्ण आगत है। यह आधुनिकीकरण तथा सामर्थ्य को बढ़ाता है। शिक्षित व्यक्ति न केवल अपनी व्यक्तिगत संवृद्धि को मानव-संसाधन बढ़ाता है बल्कि समुदाय की भी संवृद्धि बढ़ाता है। जबकि दूसरी ओर अस्वस्थता वह स्थिति है जिसमें लोग शारीरिक व बौद्धिक रूप से ठीक नहीं होते हैं।

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अन्य अभ्यास के प्रश्न

क्रिया-1

अपने गांव अथवा अपनी कॉलोनी में जाकर मालूम करें कि:
(i) भिन्न-भिन्न घरों की औरतें गृहकार्य करती हैं अथवा बाहर कार्य करने जाती है ?
(ii) उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है अथवा गैर आर्थिक क्रिया में ?
(iii) आर्थिक व गैर-आर्थिक क्रियाओं के दो-दो उदाहरण दें।
(iv) आपके घर में आपकी माता जी द्वारा किया गया कार्य आर्थिक अथवा गैर-आर्थिक क्रिया में किस के अंतर्गत आता
उत्तर-

  1. मेरे गांव में अधिकतर महिलाएं अपने घरों में ही कार्य करती हैं। कुछ महिलाएं बाहर काम करने भी जाती हैं। जो दफ्तरों में दूसरे घरों में साफ़-सफाई के लिए भी जाती हैं।
  2. जो महिलाएं अपने घरों में घरेलू कार्य कर रही हैं जैसे खाना बनाना, साफ सफाई करना, बच्चों की देखभाल करना, पशुओं को चारा डालना आदि सभी क्रियाएं गैर आर्थिक क्रियाएं ही हैं। दूसरी ओर जो महिलाएं दफ्तरों में कार्य कर रही हैं तथा दूसरों के घरों में काम कर रही हैं वे क्रियाएं आर्थिक क्रियाएं हैं।
  3. आर्थिक क्रिया के उदाहरण-
    • राज द्वारा एक बहु-राष्ट्रीय कंपनी में कार्य करना
    • डॉक्टर द्वारा अस्पताल में रोगियों की देखभाल करना।
      गैर-आर्थिक क्रिया के उदाहरण-

      •  गृहिणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य
      • एक अध्यापक द्वारा अपने बच्चे को घर में पढ़ाना।
      • मेरी माता जी एक अध्यापिका हैं। उनका कार्य आर्थिक क्रिया में आता है।

क्रिया-2

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 1
जनगणना वर्ष के आंकड़े
ग्राफ 2.1 भारत में साक्षरता दर

ग्राफ 2.1 का अध्ययन कीजिए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) क्या वर्ष 1951 से 2011 तक व्यक्तियों की साक्षरता दर में वृद्धि हुई है ?
(ii) भारत ने किस वर्ष 50% की साक्षरता दर को पार किया ?
(iii) किस वर्ष भारत की साक्षरता दर सर्वाधिक रही ?
(iv) महिलाओं की साक्षरता दर किस वर्ष अधिकतम है ?
(v) अपने अध्यापक से चर्चा कीजिए। भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता दर कम क्यों है ?
उत्तर-

  1. हाँ वर्ष 1951 से 2011 तक साक्षरता-दर लगातार बढ़ी है जो कि ग्राफ 2.1 से स्पष्ट है।
  2. वर्ष 2001 में भारत में साक्षरता दर 50% से पार हुई थी।
  3. वर्ष 2011 में भारत की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  4. वर्ष 2011 में महिलाओं की साक्षरता-दर सबसे अधिक है।
  5. भारत में पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं की साक्षरता-दर इसलिए कम है क्योंकि लोग लड़कों की अपेक्षा लड़कियों को स्कूल कम भेजते हैं। लड़कियों को ये घरेलू कार्यों में लगा देते हैं।

क्रिया-3

तालिका 2.2. भारत में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार स्वास्थ्य सुविधाएं
PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन 2

आइए चर्चा करें:

सारणी 2.2 को पढ़िए तथा निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।
(i) वर्ष 1951 से 2010 तक डिसपैंसरी व अस्पतालों की संख्या में कितनी वृद्धि है।
(ii) वर्ष 2001 से 2013 तक चिकित्सकों की संख्या में कितनी वृद्धि हुई।
(iii) वर्ष 1981 से 2013 तक स्वास्थ्य संस्थाओं में बैडों की संख्या कितनी वृद्धि हुई।
(iv) अपने गांव अथवा निकटवर्ती गांव की डिसपैंसरी में जाकर मालूम कीजिए तथा ज्ञात कीजिए कि इनमें कौन-सी सुविधाएं दी जा रही हैं तथा किन की आवश्यकता अधिक है ?
उत्तर-

  1. तालिका 2.2 से स्पष्ट है कि वर्ष 1951 से 2010 तक औषधालयों व अस्पतालों की संख्या बढ़ी नहीं है। अर्थात् कुछ वर्षों में बढ़ी है तथा कुछ में कम हुई है।
  2. हाँ, वर्ष 2001 से 2016 तक डॉक्टरों की संख्या बढ़ी है।
  3. हाँ, वर्ष 1981-2016 तक बिस्तरों की संख्या बढ़ी है।
  4. नज़दीक के औषधालय का दौरा करने से ज्ञात हुआ कि वहाँ स्टॉफ की कमी थी। यहाँ तक कि वहाँ डॉक्टर भी उपलब्ध नहीं था। केवल एक थर्मासिस्ट व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे। अन्य सुविधाएं ठीक थीं।

PSEB 9th Class Social Science Guide मानव-संसाधन Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरें :

  1. जनसंख्या के आकार में चीन विश्व में ……… स्थान पर है।
  2. अस्वस्थ लोग समाज के लिए ………. होते हैं न कि एक परिसंपत्ति।
  3. जापान ने …………… संसाधनों में निवेश किया है।
  4. गृहणी द्वारा किया गया घरेलू कार्य एक …………… क्रिया है।
  5. वर्ष 2011 में भारत में …………. राज्य की साक्षरता दर सबसे कम थी।
  6. 2011 जनगणना के अनुसार भारत की साक्षरता दर ………… प्रतिशत है।

उत्तर-

  1. पहला
  2. दायित्व
  3. मानव
  4. गैर-आर्थिक
  5. बिहार
  6. 74.

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर हो सकती है ? …
(क) दायित्व
(ख) परिसंपत्ति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

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प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण किस में निवेश से होता है ?
(क) शिक्षा
(ख) चिकित्सा
(ग) प्रशिक्षण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में मानव पूंजी निर्माण को दर्शाता है-
(क) हरित क्रांति
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) मज़दूर क्रांति।
उत्तर-
(ख) सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति

प्रश्न 4.
शीला द्वारा अपने घर में खाना बनाना, कपड़े धोना, बर्तन साफ करना आदि कौन-सी क्रिया है ?
(क) आर्थिक
(ख) ग़ैर-आर्थिक
(ग) धन क्रिया
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) ग़ैर-आर्थिक

प्रश्न 5.
कृषि, वानिकी व पशुपालन कौन-से क्षेत्रक के अंतर्गत आते हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्राथमिक

प्रश्न 6.
उत्खनन और विनिर्माण किस क्षेत्रक में आते हैं ?
(क) द्वितीयक
(ख) तृतीयक
(ग) प्राथमिक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) द्वितीयक

प्रश्न 7.
व्यापार, परिवहन, संचार व बैंकिंग सेवाएं आदि कौन-से क्षेत्रक में आती हैं ?
(क) प्राथमिक
(ख) द्वितीयक
(ग) तृतीयक
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) तृतीयक

प्रश्न 8.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितने वर्ष है ?
(क) 66
(ख) 70
(ग) 55
(घ) 75.8.
उत्तर-
(घ) 75.8.

प्रश्न 9.
भारत में अशोधित जन्म-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 26.1
(ख) 28.2
(ग) 20.4
(घ) 35.1.
उत्तर-
(क) 26.1

प्रश्न 10.
भारत में मृत्यु-दर प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे कितनी है ?
(क) 9.8
(ख) 8.7
(ग) 11.9
(घ) 25.1.
उत्तर-
(ख) 8.7

प्रश्न 11.
2001 में भारत में साक्षरता-दर कितने प्रतिशत थी ?
(क) 65
(ख) 75
(ग) 60
घ) 63.
उत्तर-
(क) 65

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प्रश्न 12.
2001 में ग्रामीण क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारी पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) प्रच्छन्न बेरोज़गारी।
(ग) उपरोक्त दोनों
(घ) ऐच्छिक बेरोज़गारी।
उत्तर-
(ग) उपरोक्त दोनों

प्रश्न 13.
नगरीय क्षेत्रों में कौन-सी बेरोज़गारी अधिकांशतः पायी जाती है ?
(क) मौसमी
(ख) ऐच्छिक
(ग) प्रच्छन्न
(घ) शिक्षित।
उत्तर-
(घ) शिक्षित।

प्रश्न 14.
श्रमिकों का गांव से शहरों की ओर काम की तलाश में जाना क्या कहलाता है ?
(क) प्रवास
(ख) आवास
(ग) खोज
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) प्रवास

प्रश्न 15.
देश की उत्पादन क्षमता में वृद्धि किसके निवेश से होती है ?
(क) भूमि में
(ख) भौतिक पूंजी में
(ग) मानव पूंजी में
(घ) उपरोक्त सभी में।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी में।

प्रश्न 16.
इनमें से कौन प्राथमिक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिमय
(ग) संचार
(घ) व्यापार।
उत्तर-
(क) कृषि

प्रश्न 17.
इनमें से कौन द्वितीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) संचार
(घ) बैंकिंग।
उत्तर-
(ख) विनिर्माण

प्रश्न 18.
इनमें से कौन तृतीयक क्षेत्र का उदाहरण है ?
(क) कृषि
(ख) विनिर्माण
(ग) बैंकिंग
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बैंकिंग

प्रश्न 19.
आर्थिक क्रियाएं कितने प्रकार की होती हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ख) दो

प्रश्न 20.
किस वर्ष भारत में साक्षरता-दर सबसे अधिक थी ?
(क) 2001
(ख) 1991
(ग) 2000
(घ) 1981.
उत्तर-
(क) 2001

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प्रश्न 21.
किस प्रकार के लोग समाज के लिए दायित्व होते हैं ?
(क) शिक्षित
(ख) स्वस्थ
(ग) अस्वस्थ
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अस्वस्थ

प्रश्न 22.
भारत में सर्व शिक्षा अभियान कब लागू किया गया ?
(क) 2008
(ख) 2010
(ग) 2007
(घ) 2005.
उत्तर-
(ख) 2010

प्रश्न 23.
इनमें से किस देश ने मानव संसाधन पर अधिक मात्रा में निवेश किया है?
(क) पाकिस्तान
(ख) चीन
(ग) भारत
(घ) जापान।
उत्तर-
(घ) जापान।

प्रश्न 24.
इनमें से कौन एक बाज़ार क्रिया है?
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।
(ख) एक शिक्षक द्वारा अपने बच्चे को पढ़ाना।
(ग) एक कृषक द्वारा स्वयं उपभोग के लिए सब्जियां उगना।
(घ) एक माता द्वारा बच्चों की देखभाल करना।
उत्तर-
(क) एक शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना।

सही/गलत :

  1. शिक्षित व स्वस्थ जनसंख्या दायित्व होती है।
  2. 2011 जनगणना के अनुसार पुरुषों की साक्षरता दर 82.10 प्रतिशत है।
  3. ‘ भारत में वर्ष 1983 से 2011 तक औसत बेरोज़गारी दर 9 प्रतिशत रही है।
  4. गुणवत्ता वाली जनसंख्या अच्छी शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर निर्भर नहीं करती है।
  5. खनन तथा वानिकी द्वितीय क्षेत्र की क्रियाएं हैं।

उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या मानव पूंजी में कब बदलती है ?
उत्तर-
जब शिक्षा, प्रशिक्षण और चिकित्सा सेवाओं में निवेश किया जाता है तो जनसंख्या मानव पूंजी में बदल जाती है।

प्रश्न 2.
मानव पूंजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है तो उसे मानव पूंजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 3.
मानव पूंजी निर्माण के भारत को दो लाभ बताएं।
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से भारत में हरित क्रांति आई है जिससे खाद्यान्नों की उत्पादकता में कई गुणा वृद्धि हुई है। मानव पूंजी निर्माण से ही भारत में सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति एक आश्चर्यजनक उदाहरण है।

प्रश्न 4.
जापान कैसे विकसित देश बना ?
उत्तर-
जापान ने मानव संसाधन पर निवेश किया है। उनके पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं थे। वे अब अपने देश के लिए आवश्यक प्राकृतिक संसाधनों का आयात कर लेते हैं।

प्रश्न 5.
क्या 1951 से जनसंख्या की साक्षरता-दर बढ़ी है ?
उत्तर-
हां, साक्षरता-दर 1951 के 18 प्रतिशत से बढ़कर 2001 में 65 प्रतिशत हो गई है।

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प्रश्न 6.
कोई देश विकसित कैसे बन सकता है ?
उत्तर-
कोई भी देश लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश से विकसित बन सकता है।

प्रश्न 7.
भारत में जीवन प्रत्याशा कितनी है ?
उत्तर-
यह वर्ष 2017 में 75.8 वर्ष थी।

प्रश्न 8.
बेरोज़गारी क्या होती है ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सकते।

प्रश्न 9.
जन्म-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जन्म-दर से अभिप्राय प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने बच्चे जन्म लेते हैं, उससे है।

प्रश्न 10.
मृत्यु-दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर–
प्रति हज़ार व्यक्तियों के पीछे जितने लोगों की मृत्यु होती है वही मृत्यु-दर कहलाती है।

प्रश्न 11.
बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
एक स्थिति जिसमें श्रमिक बाज़ार में प्रचलित मज़दूरी पर काम करने को तैयार हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।

प्रश्न 12.
राष्ट्रीय आय क्या होती है ?
उत्तर-
यह एक देश द्वारा उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं का कुल योग होता है।

प्रश्न 13.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है ?
उत्तर-
यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें 6-14 वर्ष के सभी आयु वर्ग के बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा प्रदान की जाती है।

प्रश्न 14.
कार्य बल संख्या में किस वर्ग की जनसंख्या को शामिल किया गया है ?
उत्तर-
कार्य बल जनसंख्या में 15 से 59 वर्ष के व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 15.
किसी कार्य को करने के लिए पांच व्यक्ति चाहिए पर उसमें 8 व्यक्ति लगे हैं। इसे कौन-सी बेरोज़गारी कहा जाएगा?
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी।

प्रश्न 16.
मौसमी बेरोज़गारी क्या है ?
उत्तर-
इस तरह की बेरोज़गारी में व्यक्ति वर्ष के कुछ विशेष महीनों में कार्य प्राप्त कर पाते हैं।

प्रश्न 17.
इनमें से कौन-से तत्त्व मानव के विकास के गुणों को बढ़ाते हैं ?
उत्तर-
शिक्षा तकनीकी एवं स्वास्थ्य।

प्रश्न 18.
तृतीयक कार्य क्षेत्र से संबंधित दो कार्य क्षेत्र बताएं।
उत्तर-

  1. परिवहन
  2. बैंकिंग।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जनसंख्या की गुणवत्ता की व्याख्या करें।
उत्तर-
जनसंख्या की गुणवत्ता साक्षरता-दर, जीवन-प्रत्याशा से निरूपित व्यक्तियों के स्वास्थ्य और देश के लोगों द्वाराप्राप्त कौशल निर्माण पर निर्भर करती है। यह अंततः देश की संवृद्धि-दर निर्धारित करती है। अस्वस्थ व निरक्षर जनसंख्या अर्थव्यवस्था पर बोझ होती है तथा स्वस्थ व साक्षर जनसंख्या परिसंपत्तियां होती हैं।

प्रश्न 2.
शिक्षा के महत्त्व की व्याख्या करें।
उत्तर-
शिक्षा का महत्त्व निम्नलिखित है-

  1. शिक्षा अच्छी नौकरी और अच्छे वेतन के रूप में फल देती है।
  2. यह विकास के लिए महत्त्वपूर्ण आगत है।
  3. इससे जीवन के मूल्य विकसित होते हैं।
  4. यह राष्ट्रीय आय और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
  5. यह प्रशासन की कार्य-क्षमता बढ़ाती है।

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प्रश्न 3.
बेरोज़गारी के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
बेरोज़गारी के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण बोझ में बदल जाते हैं।
  2. इससे युवकों में निराशा और हताशा की भावना बढ़ती है।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है।
  4. इससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  5. किसी अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अधिकतर प्रभाव पड़ता है। इसमें वृद्धि मंदीग्रस्त अर्थव्यवस्था का सूचक है।

प्रश्न 4.
छिपी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
छिपी बेरोज़गारी या प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते हैं, उनके पास भूमि होती है, जहां उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता है लेकिन उसमें आठ लोग होते हैं। इनमें तीन अतिरिक्त हैं। अगर तीन लोगों को हटा दिया जाए तो खेत की उत्पादकता में कोई कमी नहीं आएगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित हैं।

प्रश्न 5.
मौसमी बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है, जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं। वर्ष में कुछ व्यस्त मौसम होते हैं जब बुआई, कटाई और गहाई होती है। कुछ विशेष महीनों में कृषि पर आश्रित लोगों को अधिक काम नहीं मिल पाता।

प्रश्न 6.
शिक्षित बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शहरी क्षेत्रों के मामले में शिक्षित बेरोज़गारी एक सामान्य परिघटना बन गई है। मैट्रिक स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्री धारी अनेक युवक रोजगार पाने में असमर्थ हैं। एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि मैट्रिक की तुलना में स्नातक युवकों में बेरोज़गारी अधिक तेजी से बढ़ी है। एक विरोधाभासी जनशक्ति स्थिति सामने आई है कि कुछ विशेष श्रेणियों में जनशक्ति के आधिक्य के साथ ही कुछ अन्य श्रेणियों में जनशक्ति की कमी विद्यमान है।

प्रश्न 7.
बाज़ार व गैर-बाज़ार क्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक भुगतान किया जाता है। इनमें सरकारी सेवा सहित वस्तु सेवाओं का उत्पादन शामिल है। गैर-बाज़ार क्रियाओं से अभिप्राय स्व- उपभोग के लिए उत्पादन है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 8.
जनसंख्या एक मानवीय साधन है, व्याख्या करें।
उत्तर-
यह विशाल जनसंख्या का एक सकारात्मक पहलू है जिसे प्रायः उस वक्त अनदेखा कर दिया जाता है जब हम इसके नकारात्मक पहलू को देखते हैं अर्थात् भोजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं तक जनसंख्या की पहुंच की समस्याओं पर विचार करते समय। जब इस विद्यमान मानव संसाधन को और अधिक शिक्षा तथा स्वास्थ्य द्वारा विकसित किया जाता है, तब हम इसे मानव पूँजी निर्माण कहते हैं।

प्रश्न 9.
द्वितीयक व तृतीयक क्षेत्रों में कौन-सी क्रियाएँ की जानी हैं ?
उत्तर-
द्वितीयक क्षेत्रों में उत्खनन और विनिर्माण शामिल है, जबकि तृतीयक क्षेत्र में परिवहन, बैंकिंग, संचार, बीमा, व्यापार, शिक्षा आदि किए जाते हैं।

प्रश्न 10.
आर्थिक क्रियाएं क्या होती हैं ? व्याख्या करें।
उत्तर-
आर्थिक क्रियाएं वह क्रियाएं होती हैं जिनके फलस्वरूप वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। ये क्रियाएं राष्ट्रीय आय में मूल्य वर्धन करते हैं। आर्थिक क्रियाएं दो प्रकार की होती हैं।-
1. बाज़ार क्रियाएं
2. गैर-बाज़ार क्रियाएं।।

  1. बाज़ार क्रियाएं-बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई क्रियाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है।
  2. गैर-बाज़ार क्रियाएं-इसमें स्व-उपभोग के लिए उत्पादन क्रियाओं को शामिल किया जाता है। इनमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण तथा अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।

प्रश्न 11.
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में भेद करें।
उत्तर-
बाज़ार क्रियाओं व गैर-बाज़ार क्रियाओं में निम्नलिखित अंतर हैं-

बाज़ार क्रियाएं गैर-बाज़ार क्रियाएं
1. बाज़ार क्रियाओं में वेतन या लाभ के उद्देश्य से की गई सेवाओं के लिए पारिश्रमिक का भुगतान किया जाता है। 1. गैर-बाज़ार क्रियाओं में स्व: उपभोग के लिए उत्पादन किया जाता है।
2. इसमें वस्तुओं व सेवाओं का उत्पादन सरकारी सेवाओं के साथ किया जाता है। 2. इसमें प्राथमिक उत्पादों का उपभोग और प्रसंस्करण एवं अचल संपत्तियों का स्वलेखा उत्पादन आता है।
3. इसके मुख्य उदाहरण, शिक्षक द्वारा स्कूल में पढ़ाना, खनन का कार्य इत्यादि हैं। 3. प्राथमिक उत्पादों का उपभोग व अचल संपत्तियों का स्वलेखा आदि इसके उदाहरण हैं।

 

प्रश्न 12.
1. ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली दो प्रकार की बेरोज़गारियां कौन-सी हैं ?
2. उन चार कारणों को बताएं जिन पर संख्या की गुणवत्ता निर्भर करती है।
3. कौन-सा क्षेत्रक (प्राथमिक क्षेत्रक में ) अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक जनशक्ति को नियोजित करता है?
उत्तर-

1.

  • प्रच्छन्न बेरोज़गारी तथा
  • मौसमी बेरोज़गारी या ग्रामीण क्षेत्रों में पाए जाने वाली दो मुख्य बेरोज़गारियां हैं।

2.

  • स्वास्थ्य
  • जीवन प्रत्याशा
  • शिक्षा
  • कार्यकुशलता।

3.कृषि क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है जो अर्थव्यवस्था में अधिकतर जनशक्ति को नियोजित करता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Economics Chapter 2 मानव-संसाधन

प्रश्न 13.
1. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो प्राथमिक क्षेत्र में की जाती हैं।
2. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो तृतीय क्षेत्र में की जाती हैं।
3. वे दो मुख्य क्रियाएं बताएं जो द्वितीय क्षेत्र में की जाती हैं।
उत्तर-
1.

  • मत्सय पालन
  • खनन

2.

  • बैंकिंग
  • बीमा

3.

  • उल्ख नन
  • विनिर्माण।

प्रश्न 14.
1. ऐसे चार तत्व बताएं जो मानव संसाधन की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं ?
2. उत्पादन के चार संसाधनों के नाम बताएं।
उत्तर-
1.

  • शिक्षा
  • स्वास्थ्य
  • तकनीकी
  • प्रशिक्षण।

2.

  • भूमि
  • पूंजी
  • श्रम
  • उद्यमी।

प्रश्न 15.
सर्व शिक्षा अभियान क्या है?
उत्तर-
सर्व शिक्षा अभियान 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी स्कूली बच्चों को वर्ष 2010 तक प्राथमिक शिक्षा प्रदान करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। राज्यों, स्थानीय सरकारों और प्राथमिक शिक्षा सार्वभौमिक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए समुदाय की सहभागिता के साथ केंद्रीय सरकार की एक समयबद्ध पहल है।

प्रश्न 16.
1. कृषि क्षेत्र में कौन-सी बेरोज़गारियां पाई जाती हैं ?
2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी का अर्थ बताएं।
उत्तर-

  1. प्रच्छन्न व मौसमी बेरोज़गारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है।
  2. प्रच्छन्न बेरोज़गारी से अभिप्राय उस बेरोज़गारी से है जिसमें लोग कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वे होते नहीं हैं।

प्रश्न 17.
मानव पूंजी में किया जाने वाला निवेश बाद में बदलकर भौतिक पूंजी में किए गए निवेश का रूप धारण कर लेता है। व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. मानव पूंजी श्रमिकों की उत्पादकता को बढ़ाता है।
  2. मानव पूंजी श्रमिकों की गुणवत्ता में वृद्धि करता है।
  3. स्वस्थ, शिक्षित व प्रशिक्षित व्यक्ति उत्पादन के साधनों का कुशल प्रयोग कर सकते हैं।
  4. एक देश मानव संसाधनों का निर्यात करके विदेशी विनिमय प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 18.
इन सभी कार्यों को प्राथमिक, द्वितीयक व तृतीयक समूहों में बांटे।
बैंकिंग, बीमा, डेयरी, उत्खनन, खनन, संचार, शिक्षा, मत्स्य पालन, मुर्गी पालन, कृषि, विनिर्माण, वानिकी, पर्यटन तथा व्यापार।
उत्तर-

प्राथमिक क्षेत्र द्वितीयक क्षेत्र तृतीयक क्षेत्र
1. डेयरी 1. उत्खनन 1. बैंकिंग
2. खनन 2. विनिर्माण 2. बीमा
3. मत्स्य पालन 3. संचार
4. मुर्गी पालन 4. शिक्षा
5. कृषि 5. पर्यटन
6. वानिकी 6. व्यापार।

 

प्रश्न 19.
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
शिक्षा के क्षेत्र में दसवीं पंचवर्षीय योजना के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  1. दसवीं योजना अंत तक उच्च शिक्षा में 18-23 वर्ष आयु वर्ग के नामांकन में वर्तमान 6 प्रतिशत से 9 प्रतिशत तक की वृद्ध करने का प्रयास किया गया है।
  2. यह रणनीति पहुंच में वृद्धि, गुणवत्ता, राज्यों के लिए विशेष पाठ्यक्रम में परिवर्तन को स्वीकार करना, व्यवसायीकरण तथा सूचना प्रौद्योगिकों के उपयोग का जाल बिछाने पर केंद्रित है।
  3. दसवीं योजना दूरस्थ शिक्षा, संचार प्रौद्योगिकी की शिक्षा देने वाले शिक्षण संस्थानों के अभिसरण पर भी केंद्रित है।

प्रश्न 20.
बेरोज़गारी क्या है? भारत में बेरोज़गारी के मुख्य प्रकार क्या हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें श्रमिक मज़दूरी की वर्तमान दर पर काम करने को तैयार होते हैं पर उन्हें काम नहीं मिलता है।
बेरोज़गारी के प्रकार-

  1. मौसमी बेरोजगारी
  2. शिक्षित बेरोज़गारी
  3. प्रच्छन्न बेरोज़गारी
  4. संरचनात्मक बेरोज़गारी
  5. तकनीकी बेरोज़गारी।

प्रश्न 21.
ग्रामीण क्षेत्रों में पाई जाने वाली दो प्रकार की मुख्य बेरोज़गारी क्या है ? इसके लिए मुख्य चार कारण बताएं।
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी व प्रच्छन्न बेरोज़गारी ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाने वाली मुख्य बेरोज़गारियां हैं। कारण-

  1. कृषि क्षेत्र में विविधता की कमी।
  2. पूंजी की कमी।
  3. अति जनसंख्या के कारण बड़े परिवार।
  4. लघु व कुटीर उद्योग का अल्पविकास।

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प्रश्न 22.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में अंतर करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी व शिक्षित बेरोज़गारी में निम्नलिखित अंतर हैं :

प्रच्छन्न बेरोजगारी शिक्षित बेरोजगारी
1. प्रच्छन्न बेरोज़गारी वह बेरोज़गारी है जिसमें व्यक्ति कार्य करते हुए प्रतीत होते हैं पर वह होते नहीं हैं। 1. शिक्षित बेरोज़गारी वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति शिक्षित होते हैं पर उनके पास रोज़गार नहीं होता है।
2. यह प्रायः ग्रामीण क्षेत्रों में पायी जाती है। 2. यह प्रायः शहरी क्षेत्रों में पायी जाती है।

 

प्रश्न 23.
तीनों क्षेत्रकों में रोज़गार की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. प्राथमिक क्षेत्रक-भारत में, प्राथमिक क्षेत्रक में अर्थव्यवस्था की अधिकतर जनसंख्या नियोजित है। परंतु इसमें प्रच्छन्न बेरोज़गारी विद्यमान है। इसमें अब और अधिक व्यक्ति नियोजित करने की क्षमता नहीं है। इसलिए बाकी श्रमिक द्वितीयक व ततीयक क्षेत्रों की ओर जा रहे हैं।
  2. द्वितीयक क्षेत्रक-द्वितीयक क्षेत्रक में लघु स्तरीय विनिर्माण भी अधिक व्यक्तियों को रोज़गार प्रदान करता है। ग्रामीण क्षेत्रों में और अधिक व्यक्तियों को नियोजित करने के लिए गांवों में कुटीर उद्योगों की स्थापना की जानी चाहिए।
  3. तृतीयक क्षेत्रक-तृतीयक क्षेत्र भारत में से बेरोज़गारी को दूर करने के लिए एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रक है।

प्रश्न 24.
मौसमी बेरोज़गारी क्या होती है? इस बेरोज़गारी के लिए उत्तरदायी मुख्य कारण क्या है ?
उत्तर-
मौसमी बेरोज़गारी तब होती है जब लोग वर्ष के कुछ महीनों में रोजगार प्राप्त नहीं कर पाते हैं। कृषि पर आश्रित लोग आमतौर पर इस तरह की समस्या से जूझते हैं।
कारण-

  1. कृषि की विविधता में कमी।।
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं कुटीर उद्योगों की कमी।
  3. कृषि के व्यापारीकरण का अभाव।

प्रश्न 25.
प्रच्छन्न बेरोज़गारी क्या है? उदाहरण सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
प्रच्छन्न बेरोज़गारी के अंतर्गत लोग नियोजित प्रतीत होते है। उनके पास भूखंड होता है, जहाँ उन्हें काम मिलता है। ऐसा प्रायः कृषिगत काम में लगे परिजनों में होता है। किसी काम में पांच लोगों की आवश्यकता होती है लेकिन उसमें आठ लोग लगे होते हैं। इसमें तीन लोग अतिरिक्त हैं। ये तीनों इसी खेत पर काम करते हैं जिस पर पांच लोग काम करते हैं। इन तीनों द्वारा किया गया अंशदान पांच लोगों द्वारा किए गए योगदान में कोई बढ़ोत्तरी नहीं करता। यदि तीन लोगों को हटा दिया जाए तो उत्पादकता में कोई कमी नहीं आयेगी। खेत में पांच लोगों के काम की आवश्यकता होती है और तीन अतिरिक्त लोग प्रच्छन्न रूप से नियोजित होते हैं।

प्रश्न 26.
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन क्यों हैं ? तीन कारण दें।
उत्तर-
मानवीय पूंजी उत्पादन का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन निम्नलिखित कारणों से हैं-

  1. कुछ उत्पादन क्रियाओं में ज़रूरी कार्यों को करने के लिए बहुत ज्यादा पढ़े-लिखे कर्मियों की ज़रूरत होती है।
  2. बहुत-सी क्रियाओं में शारीरिक कार्य करने वाले श्रमिकों की ज़रूरत होती है।
  3. केवल मानवीय पूंजी में ही उद्यमवृत्ति का गुण पाया जाता है।

प्रश्न 27.
जापान जैसे देश कैसे धनी व विकसित बने ? तीन कारणों से व्याख्या करें।
उत्तर-
जापान जैसे देश के धनी व विकसित बनने के तीन कारणों की व्याख्या निम्नलिखित है-

  1. उन्होंने लोगों में विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निवेश किया है।
  2. उन लोगों ने भूमि और पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का कुशल उपयोग किया है।
  3. इन लोगों ने जो कुशलता और प्रौद्योगिकी विकसित की, उसी से ये देश धनी व विकसित बने हैं।

प्रश्न 28.
भारत में स्वास्थ्य स्तर की स्थिति की व्याख्या करें।
उत्तर-
किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है। अस्वस्थ लोग किसी संगठन के लिए बोझ बन जाते हैं। वास्तव में, स्वास्थ्य अपना कल्याण करने का एक अपरिहार्य आधार है। इसलिए जनसंख्या की स्वास्थ्य स्थिति को सुधारना किसी देश की प्राथमिकता होती है। हमारी राष्ट्रीय नीति का लक्ष्य भी जनसंख्या के अल्प सुविधा प्राप्त वर्गों पर विशेष ध्यान देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं, परिवार कल्याण और पोष्टिक सेवा तक इनकी पहुंच को बेहतर बनाना है। पिछले पांच दशकों में भारत ने सरकारी और निजी क्षेत्रों में प्राथमिक, द्वितीयक तथा तृतीयक सेवाओं के लिए आपेक्षित एक विस्तृत स्वास्थ्य आधारित संरचना और जनशक्ति का निर्माण किया है।

प्रश्न 29.
बेरोज़गारी क्या है ? इसके मुख्य प्रभाव क्या होते हैं ?
उत्तर-
बेरोज़गारी उस समय विद्यमान कही जाती है, जब प्रचलित मज़दूरी की दर पर काम करने के लिए इच्छुक लोग रोज़गार नहीं पा सके। प्रभाव-बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है। जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं, बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं, युवकों में निराशा और हताशा की भावना होती है। लोगों के पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती। शिक्षित लोगों के साथ जो कार्य करने के इच्छुक हैं और सार्थक रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ हैं, यह एक बड़ा सामाजिक अपव्यय है। बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है। कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती है। किसी व्यक्ति और साथ-ही साथ समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 30.
मानव पूंजी निर्माण क्या है ? मानव पूंजी संसाधन अन्य संसाधनों से भिन्न कैसे हैं ?
उत्तर-
मानव पूंजी निर्माण से अभिप्राय ऐसे व्यक्ति उपलब्ध करवाना और उनकी संख्या में वृद्धि करना है जो शिक्षित, कुशल तथा अनुभव संपन्न हों, जो एक देश के आर्थिक विकास के लिए बहुत आवश्यक है। व्यक्तियों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं, उनकी जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, शिशु मृत्यु-दर में कमी करके और उनको तकनीकी ज्ञान देकर उन्हें मानव पूंजी बनाया जा सकता है। मानव पूंजी संसाधन भूमि व भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों से भिन्न है क्योंकि मानव संसाधन भूमि और भौतिक पूंजी जैसे अन्य संसाधनों का प्रयोग कर सकता है। अन्य साधन अपने आप उपयोगी नहीं हो सकते।

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प्रश्न 31.
1. सकल राष्ट्रीय उत्पादक क्या होता है?
2. जापान के पास कोई प्राकृतिक संसाधन नहीं है, फिर भी वे विकसित देश कैसे हैं ? कारण बताएं।
उत्तर-

  1. सकल राष्ट्रीय उत्पादन एक देश के निवासियों के द्वारा एक वर्ष की अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादक का मूल्य है।
    • जापान देश ने मानव संसाधन पर भारी निवेश किया है।
    • उन्होंने लोगों में विशेष रूप से उनकी शिक्षा व स्वास्थ्य पर निवेश किया।
    • शिक्षित व स्वस्थ व्यक्ति भूमि व पूंजी जैसे साधनों का अधिक कुशल उपयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 32.
किसी देश के लिए उसकी जनसंख्या के स्वास्थ्य के स्तर में सुधार करना मुख्य पहल होती है। कारण बताएं।
उत्तर-

  1. अच्छा स्वास्थ्य श्रमिकों की निपुणता को बढ़ाता है।
  2. एक अस्वस्थ श्रमिक देश के लिए दायित्व होता है।
  3. स्वस्थ नागरिक उत्पादन का मूलभूत संसाधन होता है।
  4. किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य उसे अपनी क्षमता को प्राप्त करने और बीमारियों से लड़ने की ताकत देता है।

प्रश्न 33.
किस प्रकार अर्थव्यवस्था के समग्र विकास पर बेरोज़गारी का अहितकर प्रभाव पड़ता है? चार बिंदुओं पर इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर-

  1. बेरोज़गारी से जनशक्ति संसाधन की बर्बादी होती है जो लोग अर्थव्यवस्था के लिए परिसंपत्ति होते हैं। बेरोज़गारी के कारण दायित्व में बदल जाते हैं।
  2. युवकों में इससे निराशा और हताशा की भावना होती है क्योंकि इनके पास अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त मुद्रा नहीं होती।
  3. बेरोज़गारी से आर्थिक बोझ में वृद्धि होती है।
  4. कार्यरत जनसंख्या पर बेरोज़गारी की निर्भरता बढ़ती जाती है जिससे समाज के जीवन की गुणवत्ता पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 34.
भारतीय अर्थव्यवस्था में द्वितीयक क्षेत्र के महत्त्व के बिंदु बताइए।
उत्तर-
इसके महत्त्व के निम्न बिंदु हैं-

  1. इस क्षेत्रक में विनिर्माण के द्वारा प्राकृतिक संसाधनों को अन्य वस्तुओं में बदला जाता है।
  2. सभी औद्योगिक क्रियाएं इस क्षेत्र में होती हैं।
  3. इस क्षेत्र की क्रियाएं प्राथमिक व तृतीयक क्षेत्रक के विकास में सहायता करती है।
  4. इस क्षेत्र के उत्पादन से अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता संभव होती है।

प्रश्न 35.
औपचारिक व अनौपचारिक क्षेत्र में तुलना करें।
उत्तर-
इनमें अंतर निम्न बिंदुओं द्वारा दर्शाया जा सकता है-

औपचारिक क्षेत्र अनौपचारिक क्षेत्र
1. इस क्षेत्र में 10 या 10 से अधिक व्यक्ति नियोजित होते हैं। 1. इसमें 10 से कम व्यक्ति या कई बार एक भी व्यक्ति नियोजित नहीं होता है।
2. इसमें श्रम बल का बहुत कम प्रतिशत लगभग 7 प्रतिशत नियोजित होता है। 2. इसमें श्रम बल का बहुत अधिक भाग लगभग 93 प्रतिशत नियोजित होता है।
3. इसमें श्रमिक सामाजिक सुरक्षा लाभ प्राप्त करते हैं। 3. इसमें श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा के लाभ प्राप्त नहीं होते हैं।
4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार भी बढ़ता है। 4. इसमें संवृद्धि के बढ़ने से रोज़गार कम होता है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में मानव पूंजी निर्माण में क्या समस्याएँ हैं ? समझाइए।
उत्तर-
भारत में मानव पूंजी निर्माण में निम्न समस्याएँ हैं

  1. निर्धनता (Poverty)-भारत के अधिकतर लोग निर्धन हैं जो प्राथमिक स्तर की शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं जुटाने में भी असफल हैं। अतः निर्धनता मानव पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  2. अनपढ़ता (Illeteracy)-भारत के अधिकतर लोग निरक्षर हैं जिससे वह शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं के लाभ को नहीं समझ पाते हैं और मानव पूंजी निर्माण में सहयोग नहीं देते हैं।
  3. सीमित क्षेत्रों में ज्ञान (Knowledge in Limited Area)—मानव पूंजी का ज्ञान कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। अभी बहुत-से क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ इसका अर्थ भी पता नहीं है।
  4. स्वास्थ्य संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Medical Facilities)-भारत में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं कुछ ही क्षेत्रों तक सीमित हैं। सभी क्षेत्रों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध न होने के कारण सभी लोग शारीरिक तथा मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं हैं।
  5. शिक्षा संबंधी सुविधाओं का अभाव (Lack of Educational Facilities)-भारत में शिक्षा संबंधी सुविधाएं भी कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। अभी तक कुछ क्षेत्रों में तो प्राथमिक स्तर की भी शिक्षा उपलब्ध नहीं है। अत: यह भी मानवीय पूंजी निर्माण की एक मुख्य समस्या है।
  6. जनसंख्या में वृद्धि (Increase in population)-देश में जनसंख्या में हो रही तीव्र वृद्धि से मानव पूंजी निर्माण में हमेशा बाधा आती रही है।

प्रश्न 2.
मानवीय पूंजी की आर्थिक विकास में भूमिका बताइए।
उत्तर-
मानवीय पूंजी निम्न तरह से आर्थिक विकास में सहायक होती है-

  1. श्रम की कार्यकुशलता (Efficiency of Labour)—मानवीय पूंजी श्रमिकों की कार्यकुशलता को बढ़ाने में सहायक होती है और कुशल श्रमिकों को रोजगार प्रदान करके उत्पादकता को बढ़ाया जा सकता है जो आर्थिक विकास के लिए अति आवश्यक है।
  2. प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान (Training and Technical Knowledge)-मानवीय श्रम बनने के लिए लोगों में प्रशिक्षण तथा तकनीकी ज्ञान का होना बहुत आवश्यक है। प्रशिक्षित श्रमिक ही अपने कार्य को अधिक तीव्रता, अधिक मात्रा और अधिक कुशलता से कर सकते हैं जो आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।
  3. व्यवसाय का बढ़ता हुआ आकार (Large Size of Business)-व्यवसाय के बढ़ते हुए आकार के कारण अधिकतर यंत्रीकरण किया गया है जो केवल प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा संचालित किए जा सकते हैं और उत्पादन में सहायक होते हैं।
  4. उत्पादन लागत में कमी (Decrease in Production Cost) यदि उत्पादन प्रशिक्षित श्रमिकों द्वारा किया जाता है तो उत्पादन अधिक होता है और उत्पादन लागत कम आती है जिससे उद्यमियों के लाभ बढ़ते हैं और उन्हें व्यवसाय में और अधिक निवेश की प्रेरणा मिलती है।
  5. औद्योगीकरण का आधार (Bases of Industrialisation)-अल्पविकसित देशों में औद्योगीकरण का आधार रखने के लिए मानव पूंजी निर्माण में निवेश करना आवश्यक है। क्योंकि अधिकतर मानवीय पूंजी होने से औद्योगीकरण का विस्तार होगा।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास

SST Guide for Class 9 PSEB पहनावे का सामाजिक इतिहास Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
सूती कपड़ा किससे बनता है ?
(क) कपास
(ख) जानवरों की खाल
(ग) रेशम के कीड़े
(घ) ऊन।
उत्तर-
(क) कपास

प्रश्न 2.
बनावटी रेशे का विचार सबसे पहले किस वैज्ञानिक ने दिया ?
(क) मेरी क्यूरी
(ख) राबर्ट हुक्क
(ग) लुइस सुबाब
(घ) लार्ड कर्जन।
उत्तर-(ख) राबर्ट हुक्क

प्रश्न 3.
कौन-सी शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुसार कपड़े पहनते थे ?
(क) 15वीं
(ख) 16वीं
(ग) 17वीं
(घ) 18वीं।
उत्तर-(घ) 18वीं।

प्रश्न 4.
किस देश के व्यापारियों ने भारत की छींट का आयात शुरू किया ?
(क) चीन
(ख) इंग्लैंड
(ग) इटली
(घ) फ्रांस।
उत्तर-(ख) इंग्लैंड

(ख) रिक्त स्थान भरें :

  1. पुरातत्व वैज्ञानिकों को ………… के नज़दीक हाथी दांत की बनी हुई सुइयाँ प्राप्त हुईं।
  2.  रेशम का कीड़ा प्रायः ………. के वृक्षों पर पाला जाता है।
  3. ……….. वस्त्रों के अवशेष मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता से मिले हैं।
  4. औद्योगिक क्रांति का आरंभ ……………. महाद्वीप में हुआ था।
  5. स्वदेशी आंदोलन ……….. ई० में आरंभ हुआ।

उत्तर-

  1. कोस्तोनकी (रूस)
  2. शहतूत
  3. ऊनी
  4. यूरोप
  5. 1905

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(ग) सही मिलान करो :

1. बंगाल का विभाजन – रविंद्रनाथ टैगोर
2. रेशमी कपड़ा – चीन
3. राष्ट्रीय गान – 1789 ई०
4. फ्रांसीसी क्रांति – महात्मा गांधी
5. स्वदेशी लहर – लार्ड कर्जन।
उत्तर-

  1. लार्ड कर्जन
  2. चीन
  3. रविंद्रनाथ टैगोर
  4. 1789 ई०
  5. महात्मा गांधी।

(घ) अंतर स्पष्ट करो :

प्रश्न 1.
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा
2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा।
उत्तर-
1. ऊनी कपड़ा और रेशमी कपड़ा ऊनी कपड़ा
ऊन से बनता है। ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।

रेशमी कपड़ा-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी हज़ारों वर्षों से रेशमी कपड़े का प्रयोग किया जा रहा है।

2. सूती कपड़ा और कृत्रिम रेशों से बना कपड़ा
सूती कपड़ा-
सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।

कृत्रिम (बनावटी) रेशे से बने कपड़े-
कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परंतु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर और रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टेरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का ही उपयोग करते हैं।

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अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए किसका प्रयोग करता था ?
उत्तर-
आदिकाल में मनुष्य शरीर ढकने के लिए पत्तों, वृक्षों की छाल और जानवरों की खाल का प्रयोग करता था।

प्रश्न 2.
कपड़े कितनी तरह के रेशों से बनते हैं ?
उत्तर-
कपड़े चार तरह के रेशों से बनते हैं-सूती, ऊनी, रेशमी तथा कृत्रिम।

प्रश्न 3.
किस किस्म की भेड़ों की ऊन सबसे बढ़िया होती है ?
उत्तर-
मैरिनो।

प्रश्न 4.
स्त्रियों ने सबसे पहले किस देश में पहनावे की आज़ादी संबंधी आवाज़ उठाई ?
उत्तर-
फ्रांस।

प्रश्न 5.
इंग्लैंड औद्योगिक क्रांति से पहले सूती कपड़ा किस देश से आयात करता था ?
उत्तर-
भारत से।

प्रश्न 6.
खादी लहर चलाने वाले प्रमुख भारतीय नेता का नाम बताओ।
उत्तर-
महात्मा गांधी।

प्रश्न 7.
नामधारी संप्रदाय के लोग किस रंग के कपड़े पहनते हैं ?
उत्तर-
सफेद।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत क्यों पड़ी ?
उत्तर-
पहनावा व्यक्ति की बौद्धिक, मानसिक व आर्थिक स्थिति का प्रतीक है। पहनावे का प्रयोग केवल तन ढकने के लिए ही नहीं किया जाता, बल्कि इसके द्वारा मनुष्य की सभ्यता, सामाजिक स्तर आदि का भी पता चलता है। इसलिए मनुष्य को पहनावे की ज़रूरत पड़ी।

प्रश्न 2.
रेशमी कपड़ा कैसे तैयार होता है ?
उत्तर-
रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। यह कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच बना लेता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई।

प्रश्न 3.
औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति का मनुष्य के पहनावे पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े :

  1. सूती कपड़े का उत्पादन बहुत अधिक बढ़ गया। अतः लोग मशीनों से बना सूती कपड़ा पहनने लगे।
  2. बनावटी रेशों से वस्त्र बनाने की तकनीक विकसित होने के बाद बड़ी संख्या में लोग कृत्रिम रेशों से बनाए गए वस्त्र पहनने लगे। इसका कारण यह था कि ये वस्त्र बहुत हल्के होते थे और इन्हें धोना भी आसान था परिणामस्वरूप भारीभरकम वस्त्र धीरे-धीरे विलुप्त होने लगे।
  3. वस्त्र सस्ते हो गए। फलस्वरूप कम वस्त्र पहनने वाले लोग भी अधिक से अधिक वस्त्रों का प्रयोग करने लगे।

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प्रश्न 4.
स्त्रियों के पहरावे पर महायुद्धों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
महायुद्धों के परिणामस्वरूप महिलाओं के पहरावे में निम्नलिखित परिवर्तन आये-

  1. आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग–अनेक महिलाओं ने आभूषणों तथा विलासमय वस्त्रों का त्याग कर दिया। फलस्वरूप सामाजिक बंधन टूट गए और उच्च वर्ग की महिलाएं अन्य वर्गों की महिलाओं के समान दिखाई देने लगीं।
  2. छोटे वस्त्र-प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के दौरान व्यावहारिक आवश्यकताओं के कारण वस्त्र छोटे हो गए। 1917 ई० तक ब्रिटेन में 70 हजार महिलाएं गोला-बारूद के कारखानों में काम करने लगी थी। कामगार महिलाएं ब्लाउज़, पतलून के अतिरिक्त स्कार्फ पहनती थीं जिसे बाद में खाकी ओवरआल और टोपी में बदल दिया गया। स्कर्ट की लंबाई कम हो गई। शीघ्र ही पतलून पश्चिमी महिलाओं की पोशाक का अनिवार्य अंग बन गई जिससे उन्हें चलनेफिरने में अधिक आसानी हो गई।
  3. वस्त्रों के रंग तथा बालों के आकार में परिवर्तन-भड़कीले रंगों का स्थान सादा रंगों ने लिया। अनेक महिलाओं ने सुविधा के लिए अपने बाल छोटे करवा लिए।
  4. सादा वस्त्र तथा खेलकूद-बीसवीं शताब्दी के आरंभ में बच्चे नए स्कूलों में सादा वस्त्रों पर बल देने और हारश्रृंगार को निरुत्साहित करने लगे। व्यायाम और खेलकूद लड़कियों के पाठ्यक्रम का अंग बन गए। खेल के समय लड़कियों को ऐसे वस्त्रों की आवश्यकता थी जिससे उनकी गति में बाधा न पड़े। जब वे काम पर जाती थीं तो वे आरामदेह और सुविधाजनक वस्त्र पहनती थीं।

प्रश्न 5.
स्वदेशी आंदोलन से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संकेत-इसके लिए दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न का प्रश्न क्रमांक 4 पढ़ें।

प्रश्न 6.
राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने से संबंधित किए गए यत्नों का संक्षेप वर्णन करो।
उत्तर-
19वीं शताब्दी के अंत में राष्ट्रीयता की भावना जागृत हुई। राष्ट्र की सांकेतिक पहचान के लिए राष्ट्रीय पोशाक पर विचार किया जाने लगा। भारत के विभिन्न भागों में उच्च वर्गों में स्त्री-पुरुषों ने स्वयं ही वस्त्रों के नए-नए प्रयोग करने आरंभ कर दिए। 1870 के दशक में बंगाल के टैगोर परिवार ने भारत के स्त्री तथा पुरुषों की राष्ट्रीय पोशाक के डिजाइन के प्रयोग आरंभ किए। रविंद्रनाथ टैगोर ने सुझाव दिया कि भारतीय तथा यूरोपीय वस्त्रों को मिलाने के स्थान पर हिंदू तथा मुस्लिम वस्त्रों के डिजाइनों को आपस में मिलाया जाए। इस प्रकार बटनों वाले एक लंबे कोट (अचकन) को भारतीय पुरुषों के लिए आदर्श पोशाक माना गया।

भिन्न-भिन्न क्षेत्रों की परंपराओं को ध्यान में रखकर भी एक वेशभूषा तैयार करने का प्रयास किया गया। 1870 के दशक के अंत में सतेंद्रनाथ टैगोर की पत्नी ज्ञानदानंदिनी टैगोर ने राष्ट्रीय पोशाक तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने साड़ी पहनने के लिए पारसी स्टाइल को अपनाया। इसमें साड़ी को बाएं कंधे पर पिन किया जाता था। साड़ी के साथ मिलते-जुलते ब्लाउज तथा जूते पहने जाते थे। जल्दी ही इसे ब्रह्म समाज की स्त्रियों ने अपना लिया। अतः इसे ब्रालिका साड़ी के नाम से जाना जाने लगा। शीघ्र ही यह शैली महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश के ब्रह्म-समाजियों तथा गैरब्रह्मसमाजियों में प्रचलित हो गई।

प्रश्न 7.
पंजाबी महिलाओं के पहनावे पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब अंग्रेजी शासन के अधीन (1849 ई०) सबसे बाद में आया। इसलिए पंजाब के लोगों विशेषकर महिलाओं के कपड़ों पर विदेशी संस्कृति का प्रभाव बहुत ही कम दिखाई दिया। पंजाब मुख्य रूप से अपनी परंपरागत ग्रामीण संस्कृति से जुड़ा रहा और यहां की महिलाएं परंपरागत वेशभूषा ही अपनाती रहीं। सलवार, कुर्ता और दुपट्टा
ही पंजाबी महिलाओं की पहचान बनी रही। विवाह के अवसर पर वे रंगबिरंगे वस्त्र तथा भारी आभूषण पहनती थीं। लड़कियां विवाह के अवसर पर फुलकारी निकालती थीं। दुपट्टों को गोटा लगा कर आकर्षक बनाया जाता था। सूटों पर कढ़ाई भी की जाती थी। शहरी औरतें साड़ी और ब्लाउज़ भी पहनती थीं। सर्दियों में स्वेटर, कोटी और स्कीवी पहनने का रिवाज था।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों में प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न रेशों का वर्णन करें।
उत्तर-
नए-नए रेशों के आविष्कार के कारण लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशों से बने कपड़े पहनने लगे। मौसम. सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनैतिक व धार्मिक प्रभावों के कारण लोगों के पहनावे में निरंतर परिवर्तन आता रहा है जोकि आज भी जारी है।
पहनावे के इतिहास के लिए अलग-अलग तरह के रेशों के बारे में जानना ज़रूरी है, इनका वर्णन इस प्रकार है-

  1. सूती कपड़ा-सूती कपड़ा कपास से बनाया जाता है। भारत में लोग सदियों से सूती वस्त्र पहनते आ रहे हैं। कपास और सूती वस्त्रों के प्रयोग के ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन सभ्यताओं में भी मिलते हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता में से भी कपास और सूती कपड़े के प्रयोग के बारे में प्रमाण मिले हैं। ऋग्वेद के मंत्रों में भी कपास के विषय में चर्चा की गई है।
  2. ऊनी कपड़ा-ऊन वास्तव में एक रेशेदार प्रोटीन है, जो विशेष प्रकार की चमड़ी की कोशिकाओं से बनती है। ऊन भेड़, बकरी, याक, खरगोश आदि जानवरों से भी प्राप्त की जाती है। मैरिनो नामक भेड़ों की ऊन सबसे उत्तम मानी जाती है। मिस्र, बेबीलोन, सिंधु घाटी की सभ्यता में ऊनी वस्त्रों के अवशेष मिले हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय के लोग भी ऊनी कपड़े पहनते थे।
  3. रेशमी कपड़ा-रेशमी कपड़ा रेशम के कीड़ों से प्राप्त रेशों से बनता है। रेशम का कीड़ा अपनी सुरक्षा के लिए अपने इर्द-गिर्द एक कवच तैयार करता है। यह कवच उसकी लार का बना होता है। इस कवच से ही रेशमी धागा तैयार किया जाता है। रेशम का कीड़ा प्रायः शहतूत के वृक्षों पर पाला जाता है। रेशमी कपड़ों की तकनीक सबसे पहले चीन में विकसित हुई। भारत में भी रेशमी कपड़े का प्रयोग हज़ारों वर्षों से किया जा रहा है।
  4. कृत्रिम रेशे से बना कपड़ा-कृत्रिम रेशे बनाने का विचार सबसे पहले एक अंग्रेज़ वैज्ञानिक राबर्ट हुक्क (Robert Hook) के मन में आया। इसके बारे में एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने भी लिखा। परन्तु सन् 1842 ई० में अंग्रेज़ी वैज्ञानिक लुइस सुबाब ने बनावटी रेशों से कपड़े तैयार करने की एक मशीन तैयार की। कृत्रिम रेशों को तैयार करने के लिए शहतूत, एल्कोहल, रबड़, मनक्का, चर्बी और कुछ अन्य वनस्पतियां प्रयोग में लाई जाती हैं। नायलोन, पोलिस्टर ओर रेयान मुख्य कृत्रिम रेशे हैं। पोलिस्टर और सूत से बना कपड़ा टैरीकाट भारत में बहुत प्रयोग किया जाता है। आजकल अधिकतर लोग कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों का उपयोग करते हैं।

प्रश्न 2.
औद्योगिक क्रांति ने साधारण लोगों के पहनावे पर क्या प्रभाव डाला ? वर्णन करें।
उत्तर-
18वीं-19वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति ने समस्त विश्व के सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक ढांचे पर अपना गहरा प्रभाव डाला। इससे लोगों के विचारों तथा जीवन-शैली में परिवर्तन आया, परिणामस्वरूप लोगों के पहनावे में भी परिवर्तन आया।
कपड़े का उत्पादन मशीनों से होने के कारण कपड़ा सस्ता हो गया और वह बाज़ार में अधिक मात्रा में आ गया। यह मशीनी कपड़ा होने के कारण अलग-अलग डिज़ाइनों में आ गया। इसलिए लोगों के पास पोशाकों की संख्या में वृद्धि हो गई। संक्षेप में आम लोगों के पहनावे पर औद्योगिक क्रांति के निम्नलिखित प्रभाव पड़े।

  1. रंग-बिरंगे वस्त्रों का प्रचलन–18वीं शताब्दी में यूरोप के लोग अपने सामाजिक स्तर, वर्ग अथवा लिंग के अनुरूप कपड़े पहनते थे। पुरुषों व स्त्रियों के पहनावें में बहुत अंतर था। महिलाएं पहनावे में स्कर्ट और ऊंची एड़ी वाले जूते पहनती थीं। पुरुष पहनावे में नैक्टाई का प्रयोग करते थे। समाज के उच्च वर्ग का पहनावा आम लोगों से अलग होता
    था परंतु 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रांति ने कुलीन वर्ग के लोगों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया। इसके परिणामस्वरूप सभी वर्गों के लोग भी अपनी इच्छा के अनुसार रंग-बिरंगे कपड़े पहनने लगे। फ्रांस के लोग स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में लाल टोपी पहनते थे। इस प्रकार आम लोगों द्वारा रंग-बिरंगे कपड़े पहनने का प्रचलन पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गया।

2. स्त्रियों के पहनावे में परिवर्तन-

  1. फ्रांसीसी क्रांति व फिजूल-खर्च रोकने संबंधी कानूनों से पहनावे में किए सुधारों को स्त्रियों ने स्वीकार नहीं किया। 1830 ई० में इंग्लैंड में कुछ महिला-संस्थाओं ने स्त्रियों के लिए लोकतांत्रिक अधिकारों की मांग शुरू कर दी। जैसे ही सफरेज आंदोलन का प्रसार हुआ, तो अमेरिका की 13 ब्रिटिश बस्तियों में पहनावा-सुधार आंदोलन शुरू हुआ।
  2. प्रैस व साहित्य ने तंग कपड़े पहनने के कारण नवयुवतियों को होने वाली बीमारियों के बारे में बताया उनका मानना था कि तंग पहनावे से शरीर का विकास, मेरूदंड में विकार व रक्त संचार प्रभावित होता है। इसलिए बहुत सारे महिला-संगठनों ने सरकार से लड़कियों की शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पोशाकों में सुधारों की माँग की।
  3. अमेरिका में भी कई महिला-संगठनों ने स्त्रियों के लिए पारंपरिक पोशाक की निंदा की। कई महिला-संस्थाओं ने लंबे गाउन की अपेक्षा स्त्रियों के लिए सुविधाजनक परिधान पहनने की मांग की क्योंकि यदि स्त्रियों की पोशाक आरामदायक होगी, तभी वे आसानी से काम कर सकेंगी।
  4. 1870 ई० में दो संस्थाएं ‘नेशनल वूमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ और ‘अमेरिकन वुमैन सफरेज़ ऐसोसिएशन’ ने मिलकर स्त्रियों के पहनावे में सुधार करने के लिए आंदोलन आरंभ किया। रूढ़िवादी विचारधारा के लोगों के कारण यह आंदोलन असफल रहा। फिर भी स्त्रियों की सुंदरता और पहनावे के नमूनों में परिवर्तन होना आरंभ हो गया।

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प्रश्न 3.
भारत में औपनिवेशिक शासन के दौरान पहनावे में हुए परिवर्तनों का वर्णन करो।
उत्तर-
औपनिवेशिक शासन के दौरान जब पश्चिमी वस्त्र शैली भारत में आई तो अनेक पुरुषों ने इन वस्त्रों को अपना लिया। इसके विपरीत स्त्रियां परंपरागत कपड़े ही पहनती रहीं।
कारण-

  1. भारत का पारसी समुदाय काफ़ी धनी था। वे लोग पश्चिमी संस्कृति से भी प्रभावित थे। अत: सबसे पहले पारसी लोगों ने ही पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया। भद्रपुरुष दिखाई देने के लिए उन्होंने बिना कालर के लंबे कोट, बूट और छड़ी को अपनी पोशाक का अंग बना लिया।
  2. कुछ पुरुषों ने पश्चिमी वस्त्रों को आधुनिकता का प्रतीक समझ कर अपनाया।
  3. भारत के जो लोग मिशनरियों के प्रभाव में आकर ईसाई बन गये थे, उन्होंने भी पश्चिमी वस्त्र पहनने शुरू कर दिए।
  4. कुछ बंगाली बाबू कार्यालयों में पश्चिमी वस्त्र पहनते थे, जबकि घर में आकर अपनी परंपरागत पोशाक धारण कर लेते थे।

इतना होने के बावजूद ग्रामीण समाज में पुरुषों तथा स्त्रियों के पहरावे में कोई विशेष अंतर नहीं आया। केवल मशीनों से बना कपड़ा सुंदर तथा सस्ता होने के कारण अधिक प्रयोग किया जाने लगा। इसके अतिरिक्त भारतीय पहरावे तथा पश्चिमी पहरावे के बीच टकराव की घटनाएं भी सामने आईं। परंतु जातिगत नियमों में बंधा भारतीय ग्रामीण समुदाय पश्चिमी पोशाक-शैली से दूर ही रहा।
समाज में स्त्रियों की स्थिति-इससे पता चलता है कि समाज पुरुष-प्रधान था जिसमें नारी स्वतंत्र नहीं थी। उसका कार्य घर की चार दीवारी तक ही सीमित था। वह नौकरी पेशा नहीं थी।

प्रश्न 4.
भारतीय लोगों के पहनावे पर स्वदेशी आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
1905 ई० में अंग्रेज़ी सरकार ने बंगाल का विभाजन कर दिया। इसे बंग-भंग भी कहा जाता है। स्वदेशी आंदोलन बंग-भंग के विरोध में चला। बहिष्कार भी स्वदेशी आंदोलन का एक अंग था। यह राजनीतिक विरोध कम, परंतु कपड़ों से जुड़ा विरोध अधिक था। लोगों ने इंग्लैंड से आने वाले कपड़े को पहनने से इंकार कर दिया और देश में ही बने कपड़े को पहल दी। गांधी जी द्वारा प्रचलित खादी स्वदेशी पोशाक की पहचान बन गई। विदेशी कपड़े की जगह-जगह होली जलाई गई और विदेशी कपड़े की दुकानों पर धरने दिए।
वास्तव में विदेशी संस्कृति से जुड़ी प्रत्येक वस्तु का त्याग करके स्वदेशी माल अपनाया गया। इस आंदोलन ने ग्रामीणों को रोज़गार प्रदान किया और वहां के कपड़ा उद्योग में नई जान डाली। इसलिए ग्रामीण समुदाय अपनी परम्परागत वस्त्रशैली से ही जुड़ा रहा। बहुत से लोगों ने खादी को भी अपनाया। परंतु खादी बहुत अधिक महंगी होने के कारण बहुत कम स्त्रियों ने इसे अपनाया। गरीबी के कारण वे कई गज़ लम्बी साड़ी के लिए महंगी-खादी नहीं खरीद पाती थीं।

प्रश्न 5.
पंजाबी लोगों के पहनावे संबंधी अपने विचार लिखो।
उत्तर-
पंजाबी महिलाओं का पहनावा-इसके लिए लघु उत्तरों वाले प्रश्नों में क्रमांक 7 पढ़ें पुरुषों का पहनावा-पंजाबी पुरुषों का पहनावा कोई अपवाद नहीं था। वे भी विदेशी पहनावे के प्रभाव से लगभग अछूते ही रहे। क्योंकि पंजाब कृषि प्रधान प्रदेश रहा है इसीलिए यहां के पुरुषों का पहनावा परंपरागत किसानों जैसा रहा। वे कुर्ता, चादरा पहनते थे और सिर पर पगड़ी पहनते थे। कुछ पंजाबी किसान सिर पर पगड़ी के स्थान पर परना (साफ़ा) भी लपेट लेते थे। पुरुष मावा लगी तुरेदार पगड़ी बड़े गर्व से पहनते थे। आज कुछ पुरुष पगड़ी के नीचे फिफ्टी भी बांधते हैं। यह कम लंबाई की एक छोटी पगड़ी होती है। विवाह-शादी के अवसर पर लाल गुलाबी अथवा सिंदूरी रंग की पगड़ी बांधी जाती थी। शोक के समय वे सफ़ेद अथवा हल्के रंग की पगड़ी बांधते थे। निहंग सिंहों तथा नामधारी संप्रदाय के लोगों का अपना अलग पहनावा है। उदाहरण के लिए नामधारी लोग सफेद रंग के कपड़े पहनते हैं। धीरेधीरे कुर्ते-चादरे की जगह कुर्ते-पायजामे ने ले ली।
अब पंजाबी पहनावे का रूप और भी बदल रहा है। आज पढ़े-लिखे तथा नौकरी पेशा लोग कमीज़ तथा पेंट (पतलून) का प्रयोग करने लगे हैं। पुरुषों के पहनावे में भी विविधता आ रही है। वे मुख्य रूप से पंजाबी जूती और बूट आदि पहनते हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide पहनावे का सामाजिक इतिहास Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
मध्यकालीन फ्रांस में वस्त्रों के प्रयोग का आधार था
(क) लोगों की आय
(ख) लोगों का स्वास्थ्य
(ग) सामाजिक स्तर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) सामाजिक स्तर

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प्रश्न 2.
मध्यकालीन फ्रांस में निम्न वर्ग के लिए जिस चीज़ का प्रयोग वर्जित था
(क) विशेष कपड़े
(ख) मादक द्रव्य (शराब)
(ग) विशेष भोजन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
फ्रांस में वस्त्रों का जो रंग देशभक्त नागरिक का प्रतीक नहीं था
(क) नीला
(ख) पीला
(ग) सफ़ेद
(घ) लाल।
उत्तर-
(ख) पीला

प्रश्न 4.
फ्रांस में स्वतंत्रता को दर्शाती थी
(क) लाल टोपी
(ख) काली टोपी
(ग) सफ़ेद पतलून
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) लाल टोपी

प्रश्न 5.
वस्त्रों की सादगी किस भावना की प्रतीक थी ?
(क) स्वतंत्रता
(ख) समानता
(ग) बंधुत्व
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) समानता

प्रश्न 6.
फ्रांस में व्यय-नियामक कानून (संपचुअरी कानून) समाप्त किए
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने
(ख) राजतंत्र ने
(ग) सामंतों ने
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) फ्रांसीसी क्रांति ने

प्रश्न 7.
विक्टोरियन इंग्लैंड में उस स्त्री को आदर्श स्त्री माना जाता था जो
(क) लंबी तथा मोटी हो
(ख) छोटे कद की तथा भारी हो
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके
(घ) पूरी तरह वस्त्रों से ढकी हो।
उत्तर-
(ग) पीड़ा और कष्ट सहन कर सके

प्रश्न 8.
इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला
(क) 1800 के दशक में
(ख) 1810 के दशक में
(ग) 1820 के दशक में
(घ) 1830 के दशक में।
उत्तर-
(घ) 1830 के दशक में।

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प्रश्न 9.
इंग्लैंड में वूलन टोपी पहनना कानूनन अनिवार्य क्यों था?
(क) पवित्र दिनों के महत्त्व के लिए
(ख) उच्च वर्ग की शान के लिए
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) वूलन उद्योग के संरक्षण के लिए

प्रश्न 10.
विक्टोरियन इंग्लैंड की स्त्रियों में जिस गुण का विकास बचपन से ही कर दिया जाता था
(क) विनम्रता
(ख) कर्त्तव्यपरायणता
(ग) आज्ञाकारिता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
विक्टोरियन इंग्लैंड के पुरुषों में निम्न गुण की अपेक्षा की जाती थी
(क) निर्भीकता
(ख) स्वतंत्रता
(ग) गंभीरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली महिला श्रीमती अमेलिया बलूमर (Mrs. Amelia Bloomer) का संबंध था
(क) अमेरिका
(ख) जापान
(ग) भारत
(घ) रूस।
उत्तर-
(क) अमेरिका

प्रश्न 13.
1600 ई० के बाद इंग्लैंड की महिलाओं को जो सस्ता व अच्छा कपड़ा मिला वह था
(क) इंग्लैंड की मलमल
(ख) भारत की छींट
(ग) भारत की मलमल
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) भारत की छींट

प्रश्न 14.
इंग्लैंड से सूती कपड़े का निर्यात आरंभ हुआ
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद
(ख) द्वितीय विश्व युद्ध के बाद
(ग) 18वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी के अंत में।
उत्तर-
(क) औद्योगिक क्रांति के बाद

प्रश्न 15.
स्कर्ट के आकार में एकाएक परिवर्तन आया
(क) 1915 ई० में
(ख) 1947 ई० में
(ग) 1917 ई० में
(घ) 1942 ई० में।
उत्तर-
(क) 1915 ई० में

प्रश्न 16.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को अपनाया गया
(क) 20वीं शताब्दी में
(ख) 16वीं शताब्दी में
(ग) 19वीं शताब्दी में
(घ) 17वीं शताब्दी में।
उत्तर-
(ग) 19वीं शताब्दी में

प्रश्न 17.
भारत में पश्चिमी वस्त्र शैली को सर्वप्रथम अपनाया
(क) मुसलमानों ने
(ख) पारसियों ने
(ग) हिंदुओं ने
(घ) ईसाइयों ने।
उत्तर-
(ख) पारसियों ने

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प्रश्न 18.
विक्टोरियन इंग्लैंड में लड़कियों को बचपन से ही सख्त फीतों में बँधे कपड़ों अर्थात् स्टेज़ में कसकर क्यों बाँधा जाता था ?
(क) क्योंकि इन कपड़ों में लड़कियां सुंदर लगती थीं।
(ख) क्योंकि ऐसे वस्त्र पहनने वाली लड़कियां फैशनेबल मानी जाती थीं
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं
(घ) क्योंकि नारी आज़ादी से घूम-फिर न सके और घर पर ही रहे।
उत्तर-
(ग) क्योंकि यह विश्वास किया जाता था कि एक आदर्श नारी को पीड़ा और कष्ट सहन करने चाहिएं

प्रश्न 19.
खादी का संबंध निम्न में से किससे है ?
(क) भारत में बनने वाला सूती वस्त्र
(ख) भारत में बनी छींट
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा
(घ) भारत में बना मशीनी कपड़ा।
उत्तर-
(ग) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा

प्रश्न 20.
महात्मा गांधी ने हाथ से कती हुई खादी पहनने को बढ़ावा दिया क्योंकि
(क) यह आयातित वस्त्रों से सस्ती थी
(ख) इससे भारतीय मिल-मालिकों को लाभ होता
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था
(घ) वह रेशम के कीड़े मारने के विरुद्ध थे।
उत्तर-
(ग) यह आत्मनिर्भरता का लक्षण था

प्रश्न 21.
गोलाबारूद की फैक्ट्रियों में काम करने वाली महिलाओं के लिए कैसा कपड़ा पहनना व्यावहारिक नहीं था?
(क) ओवर ऑल और टोपियां
(ख) पैंट और ब्लाउज़
(ग) छोटे स्कर्ट और स्कार्फ
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।
उत्तर-
(घ) लहराते गाउन और कार्सेट्स।

प्रश्न 22.
‘पादुका सम्मान’ नियम किस गवर्नर-जनरल के समय अधिक सख़्त हुआ ?
(क) लॉर्ड वेलज़ेली
(ख) लॉर्ड विलियम बेंटिंक
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी
(घ) लॉर्ड लिटन।
उत्तर-
(ग) लॉर्ड डल्हौज़ी

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प्रश्न 23.
हिंदुस्तानियों से मिलने पर ब्रिटिश अफ़सर कब अपमानित महसूस करते थे ?
(क) जब हिंदुस्तानी अपना जूता नहीं उतारते थे
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे
(ग) जब हिंदुस्तानी हैट पहने होते थे
(घ) जब हिंदुस्तानी उन्हें अपना हैट उतारने को कहते थे।
उत्तर-
(ख) जब हिंदुस्तानी अपनी पगड़ी नहीं उतारते थे

II. रिक्त स्थान भरो:

  1. फ्रांस में … …….. स्वतंत्रता को दर्शाती थी।
  2. फ्रांस में व्यय-नियायक कानून (संपचुअरी कानून) का संबंध …………… से है।
  3. ………………. के दशक में इंग्लैंड में महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए (सफ्रेज) आंदोलन चला।
  4. …………. वस्त्रों को ढीले-ढाले डिज़ाइन में बदलने वाली पहली अमरीकी महिला थी।
  5. भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले …………….. समुदाय ने अपनाया।

उत्तर-

  1. लाल टोपी
  2. पहनावे
  3. 18304.
  4. श्रामता अमालया बलमर
  5. पारसा।

III. सही मिलान करो

(क) – (ख)
1. महिलाओं के लोकतांत्रिक अधिकार – (i) घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।
2. वूलन टोपी – (ii) हाथ से कते सूत से बना मोटा कपड़ा।
3. भारत की छींट – (iii) सफ्रेज आंदोलन।
4. खादी – (iv) इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण।
5. सेन्स क्लोट्टीज़ – (v) सस्ता तथा अच्छा कपड़ा।

उत्तर-

  1. सफेज आंदोलन
  2. इंग्लैंड में वूलन उद्योग संरक्षण
  3. सस्ता तथा अच्छा कपडा
  4. हाथ से कते सूत से बना मोटा कपडा
  5. घुटनों से ऊपर पतलून पहनने वाले लोग।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
इंग्लैंड में कुछ विशेष दिनों में ऊनी टोपी पहनना अनिवार्य क्यों कर दिया गया?
उत्तर-
अपने ऊनी उद्योग के संरक्षण के लिए।

प्रश्न 2.
वस्त्रों संबंधी नियम के समाप्त होने के बाद भी यूरोप के विभिन्न वर्गों में वेशभूषा संबंधी अंतर समाप्त क्यों न हो सका?
उत्तर-
निर्धन लोग अमीरों जैसे वस्त्र नहीं पहन सकते थे।

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प्रश्न 3.
जेकोबिन क्लब्ज़ के सदस्य स्वयं को क्या कहते थे?
उत्तर-
सेन्स क्लोट्टीज़ (Sans Culottes)।

प्रश्न 4.
सेन्स क्लोट्टीज़ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
घुटनों से ऊपर रहने वाली पतलून पहनने वाले लोग।

प्रश्न 5.
विक्टोरिया काल की स्त्रियों को सुंदर बनाने में किस बात की भूमिका रही?
उत्तर-
उनकी तंग वेशभूषा की।

प्रश्न 6.
इंग्लैंड में ‘रेशनल ड्रैस सोसायटी’ की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1881 में।

प्रश्न 7.
एक अमरीकी ‘वस्त्र सुधारक’ का नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीमती अमेलिया ब्लूमर (Mrs. Amelia Bloomer)।

प्रश्न 8.
किस विश्व विख्यात घटना ने स्त्रियों के वस्त्रों में मूल परिवर्तन ला दिया?
उत्तर-
प्रथम विश्व युद्ध ने।

प्रश्न 9.
भारत के साथ व्यापार के परिणामस्वरूप कौन-सा भारतीय कपड़ा इंग्लैंड की स्त्रियों में लोकप्रिय हुआ?
उत्तर-
छींट।

प्रश्न 10.
कृत्रिम धागों से बने वस्त्रों की कोई दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. धोने में आसान,
  2. संभाल करना आसान।

प्रश्न 11.
भारत में पश्चिमी वस्त्रों को सबसे पहले किस समुदाय ने अपनाया?
उत्तर-
पारसी।

प्रश्न 12.
ट्रावनकोर में दासता का अंत कब हुआ?
उत्तर-
1855 ई० में।

प्रश्न 13.
भारत में पगड़ी किस बात की प्रतीक मानी जाती थी?
उत्तर-
सम्मान की।

प्रश्न 14.
भारत में राष्ट्रीय वस्त्र के रूप में किस वस्त्र को सबसे अच्छा माना गया ?
उत्तर-
अचकन (बटनों वाला एक लंबा कोट)।

प्रश्न 15.
स्वदेशी आंदोलन किस बात के विरोध में चला?
उत्तर-
1905 के बंगाल-विभाजन के विरोध में।

प्रश्न 16.
बंगाल का विभाजन किसने किया?
उत्तर-
लॉर्ड कर्जन ने।

प्रश्न 17.
स्वदेशी आंदोलन में किस बात पर विशेष बल दिया गया?
उत्तर-
अपने देश में बने माल के प्रयोग पर।

प्रश्न 18.
महात्मा गांधी ने किस प्रकार के वस्त्र के प्रयोग पर बल दिया?
उत्तर-
खादी पर।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस के सम्प्चुअरी (Sumptuary) कानून क्या थे ?
उत्तर-
लगभग 1294 से लेकर 1789 की फ्रांसीसी क्रांति तक फ्रांस के लोगों को सम्प्चुअरी कानूनों का पालन करना पड़ता था। इन कानूनों द्वारा समाज के निम्न वर्ग के व्यवहार को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया। इनके अनुसार-

  1. निम्न वर्ग के लोग कुछ विशेष प्रकार के वस्त्रों तथा विशेष प्रकार के भोजन का प्रयोग नहीं कर सकते थे।
  2. उनके लिए मादक द्रव्यों के प्रयोग की मनाही थी।
  3. उनके लिए कुछ विशेष क्षेत्रों में शिकार करना भी वर्जित था।

वास्तव में ये कानून लोगों के सामाजिक स्तर को दर्शाने के लिए बनाए गए थे। उदाहरण के लिए अरमाइन (ermine) फर, रेशम, मखमल, जरी जैसी कीमती वस्तुओं का प्रयोग केवल राजवंश के लोग ही कर सकते थे। अन्य वर्गों के लोग इस सामग्री का प्रयोग नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 2.
यूरोपीय पोशाक संहिता और भारतीय पोशाक संहिता के बीच कोई दो फर्क बताइए।
उत्तर-

  1. यूरोपीय ड्रेस कोड (पोशाक संहिता) में तंग वस्त्रों को महत्त्व दिया जाता था ताकि चुस्ती बनी रहे। इसके विपरीत भारतीय ड्रेस कोड में ढीले-ढाले वस्त्रों का अधिक महत्त्व था। उदाहरण के लिए यूरोपीय लोग कसी हुई पतलून पहनते थे। परंतु भारतीय धोती अथवा पायजामा पहनते थे।
  2. यूरोपीय ड्रेस कोड में स्त्रियों के वस्त्र ऐसे होते थे जो उनकी शारीरिक बनावट को आकर्षक बनाएं। उदाहरण के लिए इंग्लैंड की महिलाएं अपनी कमर को सीधा रखने तथा पतला बनाने के लिए कमर पर एक तंग पेटी पहनती थीं। वे एक तंग अधोवस्त्र का प्रयोग भी करती थीं। इसके विपरीत भारतीय महिलाएं रंग-बिरंगे वस्त्र पहन कर अपनी सुंदरता बढ़ाती थीं। वे प्रायः रंगदार साड़ियां प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 3.
1805 ई० में अंग्रेज अफसर बेंजामिन हाइन ने बंगलोर में बनने वाली चीज़ों की एक सूची बनाई थी, जिसमें निम्नलिखित उत्पाद भी शामिल थे :

  • अलग-अलग किस्म और नाम वाले जनाना कपड़े
  • मोटी छींट
  • मखमल
  • रेशमी कपड़े

बताइए कि बीसवीं सदी के प्रारंभिक दशकों में इनमें से कौन-कौन से किस्म के कपड़े प्रयोग से बाहर चले गए होंगे और क्यों ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के आरंभ में मलमल का प्रयोग बंद हो गया होगा। इसका कारण यह है कि इस समय तक इंग्लैंड के कारखानों में बना सूती कपड़ा भारत के बाजारों में बिकने लगा था। यह कपड़ा देखने में सुंदर, हल्का तथा सस्ता था। अतः भारतीयों ने मलमल के स्थान पर इस कपड़े का प्रयोग करना आरंभ कर दिया था।

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प्रश्न 4.
विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि महात्मा गांधी ‘राजद्रोही मिडिल टेम्पल वकील’ से ज़्यादा कुछ नहीं हैं और (अधनंगे फकीर का दिखावा) कर रहे हैं।
चर्चिल ने यह वक्तव्य क्यों दिया और इससे महात्मा गांधी की पोशाक की प्रतीकात्मक शक्ति के बारे में क्या पता चलता है ?
उत्तर-
गांधी जी की छवि एक महात्मा के रूप में उभर रही थी। वह भारतीयों में अधिक-से-अधिक लोकप्रिय होते जा रहे थे। फलस्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन दिन-प्रतिदिन सबल होता जा रहा था। विंस्टन चर्चिल यह बात सहन नहीं कर पा रहे थे। इसलिए उन्होंने उक्त टिप्पणी की।
महात्मा गांधी की पोशाक पवित्रता, सादगी तथा निर्धनता की प्रतीक थी। अधिकांश भारतीय जनता के भी यही लक्षण थे। अतः ऐसा लगता था जैसे महात्मा गांधी के रूप में पूरा राष्ट्र ब्रिटिश साम्राज्यवाद को चुनौती दे रहा हो।

प्रश्न 5.
सम्प्चुअरी (Sumptuary laws) कानूनों द्वारा उत्पन्न असमानताओं पर फ्रांसीसी क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति ने सम्प्चुअरी कानूनों (Sumptuary laws) द्वारा उत्पन्न सभी असमानताओं को समाप्त कर दिया। इसके बाद पुरुष और स्त्रियां दोनों ही खुले और आरामदेह वस्त्र पहनने लगे। फ्रांस के रंग-नीला, सफेद और लाल लोकप्रिय हो गए क्योंकि ये देशभक्त नागरिक के प्रतीक चिह्न थे। अन्य राजनीतिक प्रतीक भी अपने वेश-भूषा के अंग बन गए। इनमें स्वतंत्रता की लाल टोपी, लंबी पतलून और टोपी पर लगने वाला क्रांति का बैज (Cockade) शामिल थे। वस्त्रों की सादगी समानता की भावना को व्यक्त करती थी।

प्रश्न 6.
वस्त्रों की शैली पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच अंतर पर बल देती थी। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
पुरुषों और स्त्रियों के वस्त्रों के फैशन में अंतर था। विक्टोरिया कालीन स्त्रियों को बचपन से ही विनीत, आज्ञाकारी, विनम्र और कर्तव्यपारायण बनने के लिए तैयार किया जाता था। उसी को आदर्श महिला माना जाता था जो कष्ट और पीड़ा सहन करने की क्षमता रखती हो। पुरुषों से यह अपेक्षा की जाती थी कि वे गंभीर, शक्तिशाली, स्वतंत्र
और आक्रामक हों जबकि स्त्रियां, विनम्र, चंचल, नाजुक तथा आज्ञाकारी हों। वस्त्रों के मानकों में इन आदर्शों की झलक मिलती थी। बचपन से ही लड़कियों को तंग वस्त्र पहनाए जाते थे। इसका उद्देश्य उनके शारीरिक विकास को नियंत्रित करना था। जब लड़कियाँ थोड़ी बड़ी होती तो उन्हें तंग कारसैट्स (Corsets) पहनने पड़ते थे। तंग कपड़े पहने पतली कमर वाली स्त्रियों को आकर्षक एवं शालीन माना जाता था। इस प्रकार विक्टोरिया कालीन पहरावे ने चंचल एवं आज्ञाकारी महिला की छवि उभारने में भूमिका निभाई।

प्रश्न 7.
यूरोप की बहुत-सी स्त्रियां नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं कि बहुत-सी महिलाएं नारीत्व के आदर्शों में विश्वास रखती थीं। ये आदर्श उस वायु में थे जिसमें वे सांस लेती थीं, उस साहित्य में थे जो वे पढ़ती थीं और उस शिक्षा में थे जो वह स्कूल और घर में ग्रहण करती थीं। बचपन से ही वे यह विश्वास लेकर बड़ी होती थीं कि पतली कमर होना नारी धर्म है। महिला के लिए पीड़ा सहन करना अनिवार्य था। आकर्षक और नारी सुलभ लगने के लिए वे कोरसैट्ट (Corset) पहनती थीं। कोरसै? उनके शरीर को जो यातना तथा पीड़ा पहुंचाता था, उसे वे स्वाभाविक रूप से सहन करती थीं।

प्रश्न 8.
महिला-मैगज़ीनों के अनुसार तंग वस्त्र तथा ब्रीफ़ (Corsets) महिलाओं को क्या हानि पहुँचाते हैं ? इस संबंध में डॉक्टरों का क्या कहना था ?
उत्तर-
कई महिला मैगज़ीनों ने महिलाओं को तंग कपड़ों तथा ब्रीफ़ (Corsets) से होने वाली हानियों के बारे में लिखा। ये हानियां निम्नलिखित थीं-

  1. तंग पोशाक और कोरसैट्स (Corsets) छोटी लड़कियों को विकृत. तथा रोगी बनाती हैं।
  2. ऐसे वस्त्र शारीरिक विकास और रक्त संचार में बाधा डालते हैं।
  3. ऐसे वस्त्रों से मांसपेशियां (muscles) अविकसित रह जाती हैं और रीढ़ की हड्डी में झुकाव आ जाता है।
    डॉक्टरों का कहना था कि महिलाओं को अत्यधिक कमज़ोरी और प्रायः मूर्छित हो जाने की शिकायत रहती है। उनका शरीर निढाल रहता है।

प्रश्न 9.
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की किन बातों के कारण आलोचना की ?
उत्तर-
अमेरिका के पूर्वी तट पर बसे गोरों ने महिलाओं की पारंपरिक पोशाक की कई बातों के कारण आलोचना की। उनका कहना था कि

  1. लंबी स्कर्ट झाड़ का काम करती है और इसमें धूल तथा गंदगी इकट्ठी हो जाती है। इससे बीमारी पैदा होती है।
  2. यह स्कर्ट भारी और विशाल है। इसे संभालना कठिन है। 3. यह चलने फिरने में रुकावट डालती है। अत: यह महिलाओं के लिए काम करके रोज़ी कमाने में बाधक है।
    उनका कहना था कि वेशभूषा में सुधार महिलाओं की स्थिति में बदलाव लाएगा। यदि वस्त्र आरामदेह और सुविधाजनक हों तो महिलाएं काम कर सकती हैं, अपनी रोज़ी कमा सकती हैं और स्वतंत्र भी हो सकती हैं।

प्रश्न 10.
ब्रिटेन में हुई औद्योगिक क्रांति भारत के वस्त्र उद्योग के पतन का कारण कैसे बनी ?
उत्तर-
ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति से पहले भारत के हाथ से बने सूती वस्त्र की संसार भर में जबरदस्त मांग थी। 17वीं शताब्दी में पूरे विश्व के सूती वस्त्र का एक चौथाई भाग भारत में ही बनता था। 18वीं शताब्दी में अकेले बंगाल में दस लाख बुनकर थे। परंतु ब्रिटेन की औद्योगिक क्रांति ने कताई और बुनाई का मशीनीकरण कर दिया। अत: भारत की कपास कच्चे माल के रूप में ब्रिटेन में जाने लगी और वहां पर बना मशीनी माल भारत आने लगा। भारत में बना कपड़ा इसका मुकाबला न कर सका जिससे उसकी मांग घटने लगी। फलस्वरूप भारत के बुनकर बड़ी संख्या में बेरोजगार हो गये और मुर्शिदाबाद, मछलीपट्टनम तथा सूरत जैसे सूती वस्त्र केंद्रों का पतन हो गया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
समूचे राष्ट्र को खादी पहनाने का गांधी जी का सपना भारतीय जनता के केवल कुछ हिस्सों तक ही सीमित क्यों रहा ?
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उत्तर-
गांधी जी पूरे देश को खादी पहनाना चाहते थे। परंतु उनका यह विचार कुछ ही वर्गों तक सीमित रहा। अन्य वर्गों को खादी से कोई लगाव नहीं था। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित थे-

  1. कई लोगों को गांधी जी की भांति अर्द्धनग्न रहना पसंद नहीं था। वे एकमात्र लंगोट पहनना सभ्यता के विरुद्ध समझते थे। उन्हें इसमें लाज भी आती थी।
  2. खादी महंगी थी और देश के अधिकतर लोग निर्धन थे। कुछ स्त्रियां नौ-नौ गज़ की साड़ियां पहनती थीं। उनके लिए खादी की साड़ियां पहन पाना संभव नहीं था।
  3. जो लोग पश्चिमी वस्त्रों के प्रति आकर्षित हुए थे, उन्होंने भी खादी पहनने से इंकार कर दिया।
  4. देश का मुस्लिम समुदाय अपनी परंपरागत वेशभूषा बदलने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 2.
अठारहवीं शताब्दी में पोशाक शैलियों और सामग्री में आए बदलावों के क्या कारण थे ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में पोशाक शैलियों तथा उनमें प्रयोग होने वाली सामग्री में निम्नलिखित कारणों से परिवर्तन आए-

  1. फ्रांसीसी क्रांति ने संप्चुअरी कानूनों को समाप्त कर दिया।
  2. राजतंत्र तथा शासक वर्ग के विशेषाधिकार समाप्त हो गए।
  3. फ्रांस के रंग-लाल, नीला तथा सफ़ेद-देशभक्ति के प्रतीक बन गए अर्थात् इन रंगों के वस्त्र लोकप्रिय होने लगे।
  4. समानता को महत्त्व देने के लिए लोग साधारण वस्त्र पहनने लगे।
  5. लोगों की वस्त्रों के प्रति रुचियां भिन्न-भिन्न थीं।
  6. स्त्रियों में सौंदर्य की भावना ने वस्त्रों में बदलाव ला दिया।
  7. लोगों की आर्थिक दशा ने भी वस्त्रों में अंतर ला दिया।

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प्रश्न 3.
अमेरिका में 1870 के दशक में महिला वेशभूषा में सुधार के लिए चलाए गए अभियान की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1870 के दशक में नेशनल वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (National Women Suffrage Association) और अमेरिकन वुमन सफ्रेज ऐसोसिएशन (American Suffrage Association) ने महिला वेशभूषा में सुधार का अभियान चलाया। पहले संगठन की मुखिया स्टेंटन (Stanton) तथा दूसरे संगठन की मुखिया लूसी स्टोन (Lucy Stone) थीं। उन्होंने नारा लगाया वेशभूषा को सरल एवं सादा बनाओ, स्कर्ट का आकार छोटा करो और कारसैट्स (Corsets) का प्रयोग बंद करो। इस प्रकार अटलांटिक के दोनों ओर वेश-भूषा में विवेकपूर्ण सुधार का अभियान चल पड़ा। परंतु सुधारक सामाजिक मूल्यों को शीघ्र ही बदलने में सफल न हो पाये। उन्हें उपहास तथा आलोचना का सामना करना पड़ा। रूढ़िवादियों ने हर स्थान पर परिवर्तन का विरोध किया। उन्हें शिकायत थी कि जिन महिलाओं ने पारंपरिक पहनावा त्याग दिया है, वे सुंदर नहीं लगतीं। उनका नारीत्व और चेहरे की चमक समाप्त हो गई है। निरंतर आक्षेपों का सामना होने के कारण बहुत-सी महिला सुधारकों ने पुनः पारंपरिक वेश-भूषा को अपना लिया।
कुछ भी हो उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक परिवर्तन स्पष्ट दिखाई देने लगे। विभिन्न दबावों के कारण सुंदरता के आदर्शों और वेशभूषा की शैली दोनों में बदलाव आ गया। लोग उन सुधारकों के विचारों को स्वीकार करने लगे जिनका उन्होंने पहले उपहास उड़ाया था। नए युग के साथ नई मान्यताओं का सूत्रपात हुआ।

प्रश्न 4.
17वीं शताब्दी से 20वीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों तक ब्रिटेन में वस्त्रों में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी दीजिए। . .
उत्तर-
17वीं शताब्दी से पहले ब्रिटेन की अति साधारण महिलाओं के पास फलैक्स, लिनन तथा ऊन के बने बहुत ही कम वस्त्र होते थे। इनकी धुलाई भी कठिन थी।
भारतीय छींट-1600 के बाद भारत के साथ व्यापार के कारण भारत की सस्ती, सुंदर तथा आसान रख-रखाव वाली भारतीय छींट इंग्लैंड (ब्रिटेन) पहुंचने लगी। अनेक यूरोपीय महिलाएं इसे आसानी से खरीद सकती थीं और पहले से अधिक वस्त्र जुटा सकती थीं।

औद्योगिक क्रांति और सूती कपड़ा-उन्नीसवीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति के समय बड़े पैमाने पर सूती वस्त्रों का उत्पादन होने लगा। वह भारत सहित विश्व के अनेक भागों को सूती वस्त्रों का निर्यात भी करने लगा। इस प्रकार सूती कपड़ा बहुत बड़े वर्ग को आसानी से उपलब्ध होने लगा। 20वीं शताब्दी के आरंभ तक कृत्रिम रेशों से बने वस्त्रों ने वस्त्रों को और अधिक सस्ता कर दिया। इनकी धुलाई और संभाल भी अधिक आसान थी। वस्त्रों के भार तथा लंबाई में परिवर्तन-1870 के दशक के अंतिम वर्षों में भारी भीतरी वस्त्रों का धीरे-धीरे त्याग कर दिया गया। अब वस्त्र पहले से अधिक हल्के, अधिक छोटे और अधिक सादे हो गए। फिर भी 1914 तक वस्त्रों की लंबाई में कमी नहीं आई। परंतु 1915 तक स्कर्ट की लंबाई एकाएक कम हो गई। अब यह घुटनों तक पहुंच गई।

प्रश्न 5.
अंग्रेजों की भारतीय पगड़ी तथा भारतीयों की अंग्रेजों के टोप के प्रति क्या प्रतिक्रिया थी और क्यों?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में कुछ विशेष वस्त्र विरोधाभासी संदेश देते हैं। इस प्रकार की घटनाएं संशय और विरोध पैदा करती हैं। ब्रिटिश भारत में भी वस्त्रों का बदलाव इन विरोधों से होकर निकला। उदाहरण के लिए हम पगड़ी और टोप को लेते हैं। जब यूरोपीय व्यापारियों ने भारत आना आरंभ किया तो उनकी पहचान उनके टोप से की जाने लगी। दूसरी ओर भारतीयों की पहचान उनकी पगड़ी थी। ये दोनों पहनावे न केवल देखने में भिन्न थे, बल्कि ये अलगअलग बातों के सूचक भी थे। भारतीयों की पगड़ी सिर को केवल धूप से ही नहीं बचाती थी बल्कि यह उनके आत्मसम्मान का चिह्न भी थी। बहुत से भारतीय अपनी क्षेत्रीय अथवा राष्ट्रीय पहचान दर्शाने के लिए जान बूझ कर भी पगड़ी पहनते थे। इसके विपरीत पाश्चात्य परंपरा में टोप को सामाजिक दृष्टि से उच्च व्यक्ति के प्रति सम्मान दर्शाने के लिए उतारा जाता था। इस परंपरावादी भिन्नताओं ने संशय की स्थिति उत्पन्न कर दी। जब कोई भारतीय किसी अंग्रेज़ अधिकारी से मिलने जाता था और अपनी पगड़ी नहीं उतारता था तो वह अधिकारी स्वयं को अपमानित महसूस करता था।

प्रश्न 6.
1862 में ‘जूता सभ्याचार’ (पादुका सम्मान) संबंधी मामले का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीयों को अंग्रेज़ी अदालतों में जूता पहन कर जाने की अनुमति नहीं थी। 1862 ई० में सूरत की अदालत में जूता सभ्याचार संबंधी एक प्रमुख मामला आया। सूरत की फ़ौजदारी अदालत में मनोकजी कोवासजी एंटी (Manockjee Cowasjee Entee) नामक व्यक्ति ने जिला जज के सामने जूता उतारकर जाने से मना कर दिया था। जज ने उन्हें जूता उतारने के लिए बाध्य किया, क्योंकि बड़ों का सम्मान करना भारतीयों की परंपरा थी। परंतु मनोकजी अपनी बात पर अड़े रहे। उन्हें अदालत में जाने से रोक दिया गया। अतः उन्होंने विरोध स्वरूप एक पत्र मुंबई (बंबई) के गवर्नर को लिखा।

अंग्रेज़ों ने दबाव देकर कहा कि क्योंकि भारतीय किसी पवित्र स्थान अथवा घर में जूता उतार कर प्रवेश करते हैं, इसलिए वे अदालत में भी जूता उतार कर प्रवेश करें। इसके विरोध में भारतीयों ने प्रत्युत्तर में कहा कि पवित्र स्थान तथा घर में जूता उतार कर जाने के पीछे दो विभिन्न अवधारणाएं हैं। प्रथम इससे मिट्टी और गंदगी की समस्या जुड़ी है। सड़क पर चलते समय जूतों को मिट्टी लग जाती है। इस मिट्टी को सफ़ाई वाले स्थानों पर नहीं जाने दिया जा सकता था। दूसरे, वे चमड़े के जूते को अशुद्ध और उसके नीचे की गंदगी को प्रदूषण फैलाने वाला मानते हैं। इसके अतिरिक्त, अदालत जैसा सार्वजनिक स्थान आखिर घर तो नहीं है। परंतु इस विवाद का कोई हल न निकला। अदालत में जूता पहनने की अनुमति मिलने में बहुत से वर्ष लग गए।

प्रश्न 7.
भारत में चले स्वदेशी आंदोलन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
स्वदेशी आंदोलन 1905 के बंग-भंग के विरोध में चला। भले ही इसके पीछे राष्ट्रीय भावना काम कर रही थी तो भी इसके पीछे मुख्य रूप से पहनावे की ही राजनीति थी।
पहले तो लोगों से अपील की गई कि वे सभी प्रकार के विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करें और माचिस तथा सिगरेट जैसी चीज़ों को बनाने के लिए अपने उद्योग लगाएं। जन आंदोलन में शामिल लोगों ने शपथ ली कि वे औपनिवेशिक राज का अंत करके ही दम लेंगे। खादी का प्रयोग देशभक्ति का प्रतीक बन गया। महिलाओं से अनुरोध किया गया कि वे रेशमी कपड़े तथा काँच की चूड़ियां फेंक दें और शंख की चूड़ियां पहनें। हथकरघे पर बने मोटे कपड़े को लोकप्रिय बनाने के लिए गीत गाए गए तथा कविताएं रची गईं।

वेशभूषा में बदलाव की बात उच्च वर्ग के लोगों को अधिक भायी क्योंकि साधनहीन ग़रीबों के लिए नई चीजें खरीद पाना मुश्किल था। लगभग पंद्रह साल के बाद उच्च वर्ग के लोग भी फिर से यूरोपीय पोशाक पहनने लगे। इसका कारण यह था कि भारतीय बाजारों में भरी पड़ी सस्ती ब्रिटिश वस्तुओं को चुनौती देना लगभग असंभव था। इन सीमाओं के बावजूद स्वदेशी के प्रयोग ने महात्मा गांधी को यह सीख अवश्य दी कि ब्रिटिश राज के विरुद्ध प्रतीकात्मक लड़ाई में कपड़े की कितनी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।

प्रश्न 8.
वस्त्रों के साथ गांधी जी के प्रयोगों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गांधी जी ने समय के साथ-साथ अपने पहनावे को भी बदला। एक गुजराती बनिया परिवार में जन्म लेने के कारण बचपन में वह कमीज़ के साथ धोती अथवा पायजामा पहनते थे और कभी-कभी कोट भी। लंदन में उन्होंने पश्चिमी सूट अपनाया। भारत में वापिस आने पर उन्होंने पश्चिमी सूट के साथ पगड़ी पहनी।
शीघ्र ही गांधी जी ने सोचा कि ठोस राजनीतिक दबाव के लिए पहनावे को अनोखे ढंग से अपनाना उचित होगा। 1913 में डर्बन में गांधी जी ने सिर के बाल कटवा लिए और धोती कुर्ता पहन कर भारतीय कोयला मज़दूरों के साथ विरोध करने के लिए खड़े हो गए। 1915 ई० में भारत वापसी पर उन्होंने काठियावाड़ी किसान का रूप धारण कर लिया। अंततः 1921 में उन्होंने अपने शरीर पर केवल एक छोटी सी धोती धारण कर ली। गांधी जी इन पहनावों को जीवन भर नहीं अपनाना चाहते थे। वह तो केवल एक या दो महीने के लिए ही किसी भी पहनावे को प्रयोग के रूप में अपनाते थे। परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपने पहनावे को ग़रीबों के पहनावे का रूप दे दिया। इसके बाद उन्होंने अन्य वेशभूषाओं का त्याग कर दिया और जीवन भर एक छोटी सी धोती पहने रखी। इस वस्त्र के माध्यम से वह भारत के साधारण व्यक्ति की छवि पूरे विश्व में दिखाने में सफल रहे और भारत-राष्ट्र का प्रतीक बन गये।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 8 पहनावे का सामाजिक इतिहास 2