PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण

PSEB 11th Class Economics रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
रेखाचित्रीय प्रदर्शन के लाभ लिखें।
उत्तर-
रेखाचित्रीय प्रदर्शन आंकड़ों को प्रस्तुत करने का आकर्षक, सरल व प्रभावशाली साधन है।

प्रश्न 2.
आवृत्ति आयत चित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आवृत्ति आयत चित्र वह रेखाचित्र है जिसमें अखण्डित श्रृंखला से सम्बन्धित मदों तथा उनकी आवृत्तियों को आयतों के रूप में ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 3.
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संचयी आवृत्ति वक्र संचयी आवृत्ति वितरण को ग्राफ के रूप में प्रस्तुत करने वाला वक्र है। संचयी वक्र को ओजाइव (Ogive) भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
आवृत्ति बहुभुज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज वह रेखाचित्र है जो आवृत्ति आयत चित्र (Histogram) के प्रत्येक आयत के शीर्ष के मध्य बिन्दुओं को सरल रेखाओं द्वारा मिलाकर बनाया जाता है।

प्रश्न 5.
कृत्रिम आधार रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर-
शून्य रेखा अथवा मूल बिन्दु से कुछ ऊपर बनाई जाने वाली टेढ़ी-मेढ़ी रेखा जिस से धनात्मक प्रमाप आरम्भ की जाती है।

प्रश्न 6.
संचयी आवृत्ति वक्र को ओजाइव भी कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 7.
जब अखण्डित श्रृंखला को उनकी मदों के अनुसार आवृत्ति का प्रगटावा एक ग्राफ पेपर पर किया जाता है तो इसको …………………. कहते हैं।
(a) आवृत्ति वितरण
(b) आवृत्ति वक्र
(c) आवृत्ति आयत
(d) आवृत्ति बहुभुज।
उत्तर-
(c) आवृत्ति आयत।

प्रश्न 8.
आवृत्ति आयत (Histogram) की सभी आयतों के मध्य बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिला दिया जाता है तो इसको ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज (Polygon)।

प्रश्न 9.
आवृत्ति आयत का क्षेत्रफल = ……………………….. का क्षेत्रफल
उत्तर-
आवृत्ति वक्र।

प्रश्न 10.
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव दो प्रकार की होती है
(i) ऊपरी सीमा से कम
(ii) ……….
उत्तर-
निचली सीमा से अधिक।

प्रश्न 11.
चित्रमयी और बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण में कोई एक अन्तर बताएँ।
उत्तर-
बिन्दु रेखीय चित्र को ग्राफ पर बनाते हैं और चित्रमयी को साधारण कागज़ पर बनाते हैं।

प्रश्न 12.
समय श्रेणी चित्र ………. के आधार पर बनाए जाते हैं।
उत्तर-
समय।

प्रश्न 13.
आवृत्ति आयत का क्षेत्रफल = …………….. का क्षेत्रफल।
उत्तर-
आवृत्ति वक्र।

प्रश्न 14.
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव दो प्रकार की होती हैं।
(i) ऊपरी सीमा से कम
(ii) …………….
उत्तर-
निचली सीमा से अधिक।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
आंकड़ों को प्रस्तुत करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि ग्राफ विधि अथवा बिन्दु रेखीय विधि होती है। इस विधि में आंकड़ों को ग्राफ पेपर (Graph Paper) पर प्रस्तुत किया जाता है। जब हम ग्राफ पेपर आंकड़ों को स्पष्ट करते हैं तो कम समय या कम परिश्रम से एक मनुष्य आंकड़ों को समझने योग्य हो जाता है। इसलिए क्राक्सटन तथा काउडन ने ठीक कहा है, “ग्राफ विधियां सीमित सूचना को जल्दी तथा प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने की लाभदायक विधियां हैं।”

प्रश्न 2.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-

  1. आंकड़ों को सरल बनाना (To make data simple) आंकड़े मूल रूप में जटिल होते हैं, जिनको स्पष्ट करना तथा समझना कठिन होता है। इसलिए ग्राफ द्वारा आंकड़ों को आसानी से समझा जा सकता है।
  2. तुलना के लिए आसान (To make easy comparison)-जब आंकड़ों को ग्राफ की विधि द्वारा दिखाया जाता है तो इनमें तुलना करनी बहुत आसान हो जाती है जैसे कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के 10 + 2 कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए प्रतिशत अंकों की तुलना पिछले वर्ष के प्रतिशत अंकों से करते समय ग्राफ विधि लाभदायक होती है। इसी तरह एक मरीज़ के बुखार की स्थिति का अनुमान ग्राफ को देखकर डॉक्टर आसानी से लगा लेता है।

प्रश्न 3.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन की कोई दो सीमाएं बताएं।
उत्तर-

  1. निश्चितता की कमी (Lack of Accuracy)-ग्राफ विधि द्वारा आंकड़ों की प्रवृत्ति का पता चलता है। परन्तु इन आंकड़ों में निश्चितता की कमी होती है। ग्राफ द्वारा प्रदान की गई सूची युद्ध परिणाम प्रदान नहीं करती।
  2. गलत परिणाम (Wrong Results) -ग्राफ विधि द्वारा कई बार गलत परिणाम भी निकाले जा सकते हैं। क्योंकि रेखाचित्र द्वारा रेखाओं के उतार-चढ़ाव को देखकर 100% शुद्ध परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।

प्रश्न 4.
आवृत्ति आयत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आवृत्ति आयत (Histogram)-आवृत्ति आयत चित्र वह चित्र है, जिनमें अखण्डित आवृत्ति वितरण (Continuous Frequency Distribution) को उनकी मदों के अनुसार आवृत्तियों का प्रकटावा एक ग्राफ पेपर पर किया जाता है। इस चित्र में OX पर मदों के वर्गांतर (Class Intervals) तथा OX पर वर्गांतर की आवृत्ति (Frequency) को प्रकट करते हैं। इस प्रकार आयतों के रूप में जो चित्र बन जाता है, उसको आयत आवृत्ति (Histogram) चित्र कहा जाता है।

प्रश्न 5.
आवृत्ति बहुभुज का अर्थ बताएं।
उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygon) आवृत्ति बहुभज वह चित्र होता है जोकि आवृत्ति आयत (Histrogram) की सभी आयतों के ऊपरी भागों के मध्य बिन्दुओं को सीधी रेखा द्वारा मिलाकर बनाया जाता है। इसमें आवृत्ति बहुभुज के दोनों किनारों को आधार रेखाओं तक दोनों ओर बढ़ा दिया जाता है। इससे आवृत्ति बहुभुज का निर्माण हो जाता है। आवृत्ति बहुभुज तथा आवृत्ति आयतों का क्षेत्रफल एक-दूसरे के समान होता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका में विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए अंकों का विवरण दिया गया है। आवृत्ति आयत चित्र द्वारा प्रदर्शित करो।

अंक : 0-10 10-20 20-30 30-40 40-50
विद्यार्थियों की संख्या : 8 12 20 30 15

उत्तर-
आवृत्ति आयत (Histogram)
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प्रश्न 2.
आवृत्ति बहुभुज से क्या अभिप्राय है ? निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से आवृत्ति बहुभुज का निर्माण करो।

अंक : 0-5 5-10 10-15 15-20 20-25 25-30
विद्यार्थी : 10 18 30 50 40 20

उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज का अर्थ (Meaning of Frequency Polygon)-आवृत्ति बहुभुज का निर्माण करने से पहले हम आवृत्ति आयत (Histogram) का निर्माण करते हैं। आवृत्ति आयत के ऊपर के किनारों के मध्य बिन्दु को लेकर उनको आपस में मिला दिया जाए तो आधार रेखा तक बढ़ा दिया जाए तो इस प्रकार हमारे पास आवृत्ति बहुभुज का निर्माण हो जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 2नोट-प्रश्न अनुसार दिए आंकड़ों की सहायता से आवृत्ति आयत का निर्माण करने के पश्चात् आवृत्ति आयतों के ऊपर के भागों का मध्य a, b, c, d, e, f किया जाता है। इनको आपस में मिलाकर आधार रेखा तक बढ़ाने से बिन्दु M, N प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार M & N को आवृत्ति बहुभुज कहा जाता है। इसमें आवृत्ति आयतों का क्षेत्रफल आवृत्ति बहुभुज के क्षेत्रफल के समान होता है।

प्रश्न 3.
संचयी आवृत्ति वक्र से क्या अभिप्राय है ? संचयी आवृत्ति वक्र का निर्माण ऊँची सीमा पर कम विधि (Less than method) द्वारा स्पष्ट कीजिए।

अंक : 0-10 10-20 20-30 30-40 40-50
विद्यार्थी : 5 10 12 15 8

उत्तर-
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव का अर्थ ऐसे वक्र से होता है, जिसमें आवृत्ति का जोड़ करके ग्राफ पेपर पर दिखाने से जो वक्र बन जाता है, उसको ओजाइव कहते हैं। इसको संचयी आवृत्ति वक्र भी कहा जाता है। इसका. निर्माण दो तरह से किया जाता है। वर्ग अन्तर की ऊँची सीमा तथा कम विधि (Less than method) तथा वर्ग अन्तर की नीचे वाली सीमा से अधिक विधि (More than method) से ओजाइव बनाई जाती है।

ओजाइव वक्र ऊँची सीमा से कम विधि की ओर (Ogive with less than method)-जब हम ऊँची सीमा से कम विधि की आवृत्ति के जोड़ को प्रकट करते हैं तो इससे संचयी आवृत्ति का निर्माण किया जाता है।
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नोट-समायोजित सूची अनुसार (0 तथा 0), (10 तथा 5) (20 तथा 15), (30 तथा 27) (40 तथा 42), (50 तथा 50) को आपस में मिलाने से जो बिन्दु प्राप्त होते हैं, उनको जिस रेखा द्वारा दिखाया जाता है, उस रेखा को ओजाइव कहते हैं।
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा निम्न सीमा से अधिक विधि (More than Method) द्वारा संचित आवृत्ति वक्र का निर्माण करें।

अंक : 0-10 10-20 20-30 30-40 40-50
विद्यार्थियों की संख्या: 5 10 12 15 8

हल (Solution)-संचय आवृत्ति वक्र निम्न सीमा से अधिक विधि द्वारा (Ogive with More than Method)
इस विधि द्वारा समायोजित सूची का निर्माण अग्रलिखित अनुसार किया जाता है-
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नोट-समायोजित सूची के अनुसार (0 और 50), (10 और 45), (20 और 35), (30 और 23), (40 और 8) अथवा 50 से अधिक अंक प्राप्त करने वाला कोई विद्यार्थी नहीं है, इसलिए (50 और 0) के मिलाने से जो बिंदु प्राप्त होते हैं। उनको मिला दिया जाए तो उस रेखा को निम्न सीमा से अधिक विधि द्वारा ओजाइव कहा जाता है।
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IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन के अर्थ बताओ। ग्राफ की रचना सम्बन्धी साधारण नियमों की व्याख्या करें।
(Explain the meaning of Graphic Presentation of Data. Explain the general rules for the construction of a Graph.)
उत्तर-
आंकड़ों को प्रस्तुत करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि ग्राफ विधि अथवा बिन्दु रेखीय विधि होती है। इस विधि में आंकड़ों को ग्राफ पेपर (Graph Paper) पर प्रस्तुत किया जाता है। जब हम ग्राफ पेपर पर आंकड़ों को स्पष्ट करते हैं तो कम समय तथा कम परिश्रम से एक मनुष्य आंकड़ों को समझने योग्य हो जाता है। इसलिए क्राक्सटन तथा काउडन ने ठीक कहा है, “ग्राफ विधियां सीमित सूचना को जल्दी तथा प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने की लाभदायक विधियां हैं।” (“Graphic devices are extremely useful and effective for quickly presenting a limited amount of information.” —Croxton and Cowden)

ग्राफ प्रदर्शन के अर्थ (Meaning of Graphic Presentation)-ग्राफ प्रदर्शन आंकड़ों को प्रस्तुत करने की वह विधि होती है, जिसमें एक ग्राफ पेपर पर इनको रेखाओं तथा चित्रों के रूप में दिखाया जाता है। इस प्रकार आंकड़ों को ग्राफ पेपर पर प्रदर्शन करने के ढंग को आंकड़ों का ग्राफ द्वारा प्रदर्शन कहा जाता है।

ग्राफ निर्माण के नियम (Rules for constructing a Graph)-ग्राफ का निर्माण करते समय निम्नलिखित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. शीर्षक (Title)-प्रत्येक ग्राफ का शीर्षक स्पष्ट होना चाहिए। शीर्षक को पढ़ने से ही इस बात का पता लगना अनिवार्य होता है कि ग्राफ किस सूचना की जानकारी देता है।
  2. पैमाना (Scale)- चित्र बनाने से पहले पैमाने का चयन कर लेना चाहिए। पैमाने का चयन एकत्रित किए आंकड़ों पर निर्भर करता है। पैमाना इतना लेना चाहिए जो सभी आंकड़े सरलता से ग्राफ पर प्रस्तुत किए जा सकें।
  3. बिन्दुओं का मिलान (Plotting the Points)- ग्राफ पेपर पर OX अक्ष तथा OY अक्ष पर लिए गए तत्त्वों के सम्बन्ध को स्पष्ट किया जाता है। साधारण तौर पर अर्थशास्त्रियों के आंकड़े धनात्मक होते हैं। इसलिए OX अक्ष को बाएं से दाएं हाथ की ओर तथा OY अक्ष के नीचे से ऊपर की ओर दिखाया जाता है। यदि हम तथ्यों के सम्बन्ध को OX तथा OY रेखाओं पर लम्ब खींचकर स्पष्ट करते हैं तो हमारे पास बिन्दु प्राप्त हो जाते हैं।
  4. रेखाओं का प्रयोग (Use of lines) – ग्राफ में जब अधिक रेखाओं को प्रस्तुत किया जाता है तो इस स्थिति में सीधी रेखाएँ (straight lines), टूटी रेखाएँ (Dotted lines) अथवा बिन्दु रेखाएँ (Point Lines) का प्रयोग किया जाता है।
  5. बनावटी आधार रेखा (False Base Line)-हम जानते हैं कि OX तथा OY रेखाओं का आरम्भ 0 अथवा

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शून्य से होता है अर्थात् जहाँ OX तथा OY पर मदों की संख्या को दिखाने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में बनावटी आधार रेखा का निर्माण किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए हम जिस ओर बनावटी आधार को दिखाना चाहते हैं, उस ओर रेखा पर कटाव पैदा कर देते हैं, क्योंकि वह सभी आंकड़े Ox अथवा OY पर दिखाने से रेखाचित्र का आकार बहुत विशाल हो जाता है, जिसको रेखा चित्र में स्पष्ट करना कठिन होता है। रेखाचित्र 5 (i), (ii) में OY रेखा पर बनावटी आधार रेखा लेने के अलग-अलग ढंग बताए गए हैं। भाग-1 अनुसार दो तिरछी रेखाएं (I/) बनाई जा सकती हैं। भाग-2 अनुसार बनावटी रेखाएं लहरों की तरह बढ़ती घटती हो सकती हैं।

प्रश्न 2.
ग्राफ अथवा रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन के लाभ बताओ। ग्राफ प्रदर्शन की सीमाएँ भी लिखो । (Explain the advantages of Graphic Presentation. Discuss its limitations.)
उत्तर-
ग्राफ द्वारा आंकड़ों को प्रदर्शन करने के बहुत लाभ होते हैं। जैसे कि प्रो० वैसेलो ने ठीक कहा है, “आंकड़ों को समझने का सबसे सरल ढंग उन बिन्दु रेखाओं द्वारा अध्ययन करना होता है।” (“The simplest and commonest aid to the numerical reading is the graph.’ – Vesselo)

ग्राफ विधि द्वारा आंकड़ों को प्रदर्शन करने के मुख्य उद्देश्य तथा लाभ इस प्रकार हैं-
1. आंकड़ों को सरल बनाना (To make data simple)-आंकड़े मूल रूप में जटिल होते हैं, जिनको स्पष्ट करना तथा समझना कठिन होता है। इसलिए ग्राफ द्वारा आंकड़ों को आसानी से समझा जा सकता है।

2. तुलना के लिए आसान (To Make easy comparison)-जब आंकड़ों को ग्राफ की विधि द्वारा दिखाया जाता है तो इनमें तुलना करनी बहुत आसान हो जाती है जैसे कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के 10 + 2 कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए प्रतिशत अंकों की तुलना पिछले वर्ष के प्रतिशत अंकों से करते समय ग्राफ विधि लाभदायक होती है। इसी तरह एक मरीज़ के बुखार की स्थिति का अनुमान ग्राफ को देखकर डॉक्टर आसानी से लगा लेता है।

3. आंकड़ों को रोचक बनाना (To make data interesting) आंकड़ों को आकर्षक बनाने के लिए ग्राफ अथवा रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन लाभदायक होता है। कीमत स्तर में परिवर्तनों को देखने के लिए ग्राफ विधि बहुत लाभदायक परिणाम प्रदान करती है।

4. समय श्रेणियों का प्रदर्शन (Presentation of time series)-ग्राफ समय श्रेणियों को प्रदर्शन करने के लिए अच्छी विधि मानी जाती है। इस द्वारा रेखा चित्रों द्वारा आंकड़ों को लाभदायक तथा प्रभावशाली ढंग द्वारा प्रदर्शन किया जा सकता है, जिससे लाभदायक परिणाम प्राप्त किए जाते हैं।

5. सांख्यिकी विधियों का अध्ययन (Study of Statistical methods)-आंकड़ा शास्त्र की बहुत-सी विधियों की व्याख्या ग्राफ विधि द्वारा की जा सकती है, जैसे कि मध्यका, बहुलक, सह-सम्बन्ध इत्यादि को रेखा चित्रों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

ग्राफ विधियों की सीमाएं (Limitations of Graphic method)—ग्राफ द्वारा आंकड़ों का प्रदर्शन करने की मुख्य सीमाएं इस प्रकार हैं –

  1. निश्चितता की कमी (Lack of Accuracy)-ग्राफ विधि द्वारा आंकड़ों की प्रवृत्ति का पता चलता है। परन्तु इन आंकड़ों में निश्चितता की कमी होती है। ग्राफ द्वारा प्रदान की सूची युद्ध परिणाम प्रदान नहीं करती।
  2. गलत परिणाम (Wrong Results)-ग्राफ विधि द्वारा कई बार गलत परिणाम भी निकाले जा सकते हैं। क्योंकि रेखाचित्र द्वारा रेखाओं के उतार-चढ़ाव को देखकर 100% शुद्ध परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।
  3. केवल तुलनात्मक अध्ययन (Only Comparative Study)-ग्राफ विधि द्वारा केवल तुलनात्मक अध्ययन करना ही सम्भव होता है। जब हम आंकड़ों द्वारा मनोवैज्ञानिक अथवा सामाजिक परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं तो ऐसा करना सम्भव नहीं होता।।
  4. बहमुखी सूचना का मुश्किल प्रदर्शन (Difficult Presentation of Multiple Information)-ग्राफ की विधि द्वारा जब किसी तत्त्व की बहुमुखी विशेषताओं को दिखाना हो तो ऐसा करना भी मुश्किल होता है। सारणीकरण की सहायता से हम कई प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित तौर पर प्रदर्शित कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
आवृत्ति वितरण ग्राफ से क्या अभिप्राय है ? आवृत्ति वितरण ग्राफ की प्रदर्शन विधियां बताएँ।
(What is Frequency Distribution Graph? Explain the methods of presentation of Frequency Distribution Graphs.)
उत्तर-
ग्राफ मुख्य तौर पर दो प्रकार के होते हैंसमय श्रेणी ग्राफ (Time Series Graphs) तथा आवृत्ति वितरण ग्राफ (Frequency Distribution Graphs) आवृत्ति वितरण ग्राफ का अर्थ (Meaning of Frequency Distribution Graph) आवृत्ति विवरण ग्राफ वह चित्र होते हैं, जिनमें चरों की आवृत्ति वितरण अनुसार उनको प्रस्तुत किया जाता है। इसमें आंकड़ों का प्रदर्शन समय अनुसार नहीं किया जाता, बल्कि मदों के मूल्यों की आवृत्ति के अनुसार ग्राफ बनाने की विधि को आवृत्ति वितरण ग्राफ कहा जाता है।

आवृत्ति वितरण प्रदर्शन की विधियां-आवृत्ति वितरण प्रदर्शन की मुख्य विधियां निम्नलिखित अनुसार हैं –

  1. रेखा आवृत्ति चित्र (Line Frequency Diagram)
  2. आवृत्ति आयत (Frequency Histogram)
  3. आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygon)
  4. आवृत्ति वक्र (Frequency Curve)
  5. संचयी आवृत्ति वक्र अथवा

ओजाइव (Cumulative Frequency curve or ogive)-
1. रेखा आवृत्ति चित्र (Line Frequency Diagram) रेखा आवृत्ति चित्र खण्डित आवृत्ति वितरण (Discrete Frequency Distribution) को प्रकट करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस चित्र में OX वक्र पर मदों (Items) तथा OY वक्र पर आवृत्ति (Frequency) को अंकित किया जाता है। उदाहरण-एक फैक्टरी में पैनों का उत्पादन किया जाता है। मई में तीन लाख, जून में 5 लाख, जुलाई में 4 लाख पैनों का उत्पादन किया गया। इसको रेखा आवृत्ति रेखा आवृत्ति चित्र चित्र कहा जाता है।
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2. आवृत्ति आयत (Histogram)-आवृत्ति आयत चित्र वह चित्र है, जिनमें अखण्डित आवृत्ति वितरण (Continuous Frequency Distribution) को उनकी मदों के अनुसार आवृत्तियों का प्रकटावा एक ग्राफ पेपर पर किया जाता है। इस चित्र में OX पर मदों के वर्गांतर (Class Intervals) तथा OX पर वर्गांतर की आवृत्ति (Frequency) को प्रकट करते हैं। इस प्रकार आयतों के रूप में जो चित्र बन जाता है, उसको आयत आवृत्ति (Histogram) चित्र कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 9अंक 0-10 10-20 20-30 . 30-40 विद्यार्थी 10 20
15
उदाहरण-एक कक्षा में 0-10 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 10 है। 10-20 अंक प्राप्त करने वाले आवृत्ति बहुभुज 20 विद्यार्थी हैं तथा 20-30 तक अंक प्राप्त करने वाले 15 20B विद्यार्थी हैं, 30-40 तक अंक प्राप्त करने वाले 8 विद्यार्थी हैं। इस प्रकार के ग्राफ को आवृत्ति आयत (Histogram) कहा जाता है।

3. आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygron)-आवृत्ति बहुभुज वह चित्र होता है जोकि आवृत्ति आयत (Histogram) की सभी आयतों के ऊपरी भागों के मध्य बिन्दुओं को सीधी रेखा द्वारा मिलाकर बनाया जाता है। इसमें आवृत्ति बहुभुज के दोनों किनारों को आधार रेखाओं तक दोनों ओर बढ़ा दिया जाता है। इससे आवृत्ति बहुभुज का निर्माण हो जाता है। आवृत्ति रेखाचित्र 8 बहुभुज तथा आवृत्ति आयतों का क्षेत्रफल एक-दूसरे के समान होता है।

उदाहरण-ऊपर दी गई विधि अनुसार पहले आवृत्ति आयत बनाई जाती है। ऊपरी किनारों के मध्यों को आपस में मिलाकर ABC चित्र का निर्माण होता है, जिसको आवृत्ति बहुभुज कहा जाता है। इसमें धनात्मक किनारों (++) का क्षेत्र जोड़ा जाता है तथा ऋणात्मक किनारा (–) का क्षेत्र कम किया जाता है। इस प्रकार आवृत्ति आयत तथा आवृत्ति बहुभुज का क्षेत्रफल एक-दूसरे के समान हो जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 10

4. आवृत्ति वक्र (Frequency Curve)-आवृत्ति वक्र वह चित्र है जो कि आवृत्ति बहुभुज की तरह सीधी रेखाएं नहीं, बल्कि स्वतन्त्र हाथ से वक्र बनाने की विधि होती है। आवृत्ति वक्र अर्थात् आवृत्ति आयत का निर्माण करने के पश्चात् ऊपर के किनारों के मध्यों को स्वतन्त्र हाथ मिलाकर आधार रेखा से मिला दिया जाए तो आवृत्ति वक्र का निर्माण हो जाता है। उदाहरण-रेखाचित्र में ABC आवृत्ति बहुभुज है, जिसको डॉटड रेखा में दिखाया है। यदि स्वतन्त्र हाथ से एक रेखा DBE खींच देते हैं तो इस रेखा को आवृत्ति वक्र कहते है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 11
5. संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव (Cummulative Frequency curve or ogive)—जब आवृत्ति को संचयी अथवा जोड़ कर लिया जाए तो उस जोड़ की हुई आवृत्ति का चित्र बनाया जाए तो इसको संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव (Ogive) कहा जाता है।
(i) उदाहरण-ऊँची सीमा से कम (Less than Method)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 12
रेखाचित्र में सूची पत्र अनुसार 10 अंक से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी 10 हैं। 20 अंक से कम अंक प्राप्त करने वाले 10 + 20 = 30 विद्यार्थी हैं। 30 अंक से कम अंक प्राप्त करने वाले 10 + 20 + 15 = 45 विद्यार्थी हैं। इसलिए (10 तथा 10), (20 तथा 30), (30 तथा 45) को मिलाकर हमारे पास ऊँची सीमा से कम ओजाइव (Ogive) वक्र बन जाती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 13
सूची पत्र तथा रेखाचित्र अनुसार 0 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 45 है। 10 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 35 तथा 20 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 15 है। 30 से अधिक अंक प्राप्त वाला कोई विद्यार्थी नहीं है। यदि हम (0, 45), (10, 35), (20, 15) को आपस में मिला दें तो हमारे पास जो रेखा प्राप्त होती है उसको आगे रेखा से अधिक का ओजाइव कहा जाता है।
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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

PSEB 11th Class Economics प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राथमिक आंकड़ों तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर करें।
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़े वे आंकड़े हैं जो अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्यों के अनुसार पहली बार आरम्भ से अन्त तक एकत्रित करता है। द्वितीयक आंकड़े वे आंकड़े हैं जो पहले ही व्यक्तियों तथा संस्थाओं द्वारा एकत्रित किये जा चुके होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक आंकड़ों का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
आप जेब खर्च, उनके परिवार की आय, शिक्षा, जीवन स्तर सम्बन्धी आंकड़े एकत्रित करते हैं। इन आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जायेगा।

प्रश्न 3.
द्वितीयक आंकड़ों का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
भारतीय रेलवे से सम्बन्धित आंकड़े जो रेलवे बोर्ड द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं, किसी अनुसन्धानकर्ता के लिए द्वितीयक आंकड़े हैं।

प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान विधि वह है जिसमें एक अनुसन्धानकर्ता स्वयं अनुसन्धान क्षेत्र में जाकर सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष तथा सीधा सम्पर्क स्थापित करता है और आंकड़े इकट्ठे करता है।

प्रश्न 5.
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान किसे कहते हैं?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान वह विधि है जिसमें किसी समस्या से अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों से मौखिक (Oral) पूछताछ द्वारा आंकड़े प्राप्त किये जाते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक आंकड़े प्राचीन काल से ही दिए होते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 7.
गौण आंकड़े पहले से ही पुस्तकों इत्यादि में दिए होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 8.
जो आंकड़े अनुसंधानकर्ता स्वयं इकट्ठा करता है उनको ……. आंकड़े कहते हैं।
(a) प्राथमिक
(b) गौण
(c) तीसरे दर्जे के
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(a) प्राथमिक।

प्रश्न 9.
जो आंकड़े पहले से ही किसी संस्था अथवा व्यक्ति द्वारा इकट्ठे किए गए होते हैं और अनुसन्धानकर्ता उनको अपनी खोज में प्रयोग करता है को ……………… आंकड़े कहा जाता है।
(a) प्राथमिक
(b) गौण
(c) सरकारी
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(b) गौण।

प्रश्न 10.
जब अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वाले को प्रत्यक्ष रूप में सम्बन्ध स्थापित करके आंकड़े इकट्ठे करता है तो इस विधि को ……………… कहते हैं।
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान।

प्रश्न 11.
प्रश्नावली तथा अनुसूची में अन्तर होता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 12.
प्राथमिक आंकड़ों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह आंकड़े जो अनुसंधानकर्ता द्वारा स्वयं इकट्ठे किये जाते हैं उन आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है।

प्रश्न 13.
द्वितीयक आंकड़ों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह आंकड़े जोकि किसी व्यक्ति तथा संस्था द्वारा इकट्ठे किये जाते हैं, जिनको अनुसंधानकर्ता अपनी खोज में प्रयोग करता है उनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।

प्रश्न 14.
जो आंकड़े अनुसंधानकर्ता द्वारा स्वयं इकट्ठे किये जाते हैं उनको प्राथमिक आंकड़े कहा जाता
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
जो आंकड़े किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा इकट्ठे किये जाते हैं और अनुसंधानकर्ता उनको अपनी खोज में प्रयोग करता है उनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग के समय ध्यान रखना चाहिए कि आंकड़े भरोसे योग, उपयुक्त तथा उचित होने चाहिए।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
द्वितीयक आंकड़ों को बगैर अर्थ और सीमाओं के अध्ययन बिना ग्रहण नहीं करना चाहिए।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
NSSO से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे संगठन (NSSO) एक सरकारी संस्था है जोकि देश के विभिन्न क्षेत्रों संबंधी आंकड़ों को इकट्ठा करके रिपोर्ट प्रकाशित करता है। प्रश्न 19. द्वितीयक आंकड़ों के दो स्त्रोत बताएँ।
उत्तर-

  • भारत की जनगणना
  • राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे संगठन के प्रकाशन तथा रिपोर्ट।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में कोई दो अंतर बताओ।
उत्तर-
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. मौलिकता में अन्तर (Difference in Originality)-सर्वप्रथम अन्तर यह है कि प्राथमिक समंक मौलिक समंक होते हैं। अनुसन्धानकर्ता इन्हें स्वयं एकत्रित करता है जबकि द्वितीयक समंक उसके द्वारा एकत्रित नहीं किए जाते, बल्कि किसी अन्य व्यक्ति अथवा संस्था के द्वारा पूर्वकाल में एकत्रित किए जा चुके होते हैं।

2. धन, समय व परिश्रम में अन्तर (Difference in cost, time and labour)-प्राथमिक समंकों के संकलन में धन, समय, परिश्रम व बुद्धि का प्रयोग अधिक करना पड़ता है, क्योंकि नए सिरे से योजना को प्रारम्भ करना पड़ता है। द्वितीयक समंक तो पहले से ही एकत्रित होते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 2.
प्राथमिक समंकों को एकत्र करने की प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation) विधि को स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)-इस रीति में अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध स्थापित करके समंक एकत्र करता है। यह रीति बहुत सरल है। इसमें अनुसन्धानकर्ता स्वयं उन लोगों के सम्पर्क में आता है, जिनके विषय में आंकड़े एकत्र करना चाहता है। यदि अनुसन्धानकर्ता व्यवहार कुशल, धैर्यवान व मेहनती है तो इस रीति द्वारा आंकड़े बहुत विश्वसनीय होते हैं। इस रीति में अनुसन्धानकर्ता को निरीक्षण का भारी सहारा लेना पड़ता है। इस विधि को प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान विधि कहा जाता है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक समंकों को एकत्र करने की कौन-सी विधियां हैं, बताओ।
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं –

  1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान
  2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान
  3. संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति
  4. डाक प्रश्नावली विधि
  5. गणकों द्वारा अनुसूचियों का भरना।

प्रश्न 4.
द्वितीयक समंकों को एकत्र करने के कोई पांच प्रकाशित स्रोत बताओ।
उत्तर –
द्वितीयक समंकों को एकत्र करने के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक (World Bank)।
  2. सरकारी प्रकाशन जैसे कि सकेन्द्रीय सांख्यिकी संस्था (C.S.0.)
  3. अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं के प्रकाशन जैसे नगर-निगम, नगरपालिकाएं तथा जिला बोर्ड।
  4. आयोग व समितियों की रिपोर्ट (Respect of Commissions and Committees)
  5. समाचार-पत्र व पत्रिकाएं।

प्रश्न 5.
प्राथमिक आंकड़ों के मुख्य गुण बताओ।
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़े (Primary Data) प्राथमिक आंकड़े वे आंकड़े होते हैं, जिनको अनुसन्धानकर्ता अनुसन्धान के लिए स्वयं एकत्र करता है। इन आंकड़ों के मुख्य गुण अग्रलिखित हैं-
गुण (Merits)-

  1. मौलिकता (Originality)-यह आंकड़े मौलिक होते हैं तथा अनुसन्धान के उद्देश्य के लिए उचित होते हैं।
  2. शुद्धता (Accuracy)-यह आंकड़े अनुसन्धानकर्ता द्वारा एकत्र किए जाते हैं, इसलिए इन आंकड़ों में शुद्धता होती है।
  3. एकरूपता (Uniformity)-प्राथमिक आंकड़े एकरूपता से एकत्रित किए जाते हैं, इसलिए यह समंक प्रयोग के अनुकूल तथा विश्वसनीय होते हैं।
  4. अधिक उपयोगी (More Suitable)-प्राथमिक आंकड़े वर्तमान सर्वेक्षण को ध्यान में रखकर एकत्रित किए जाते हैं। इसलिए यह आंकड़े अधिक उपयोगी होते हैं। .
  5. सांख्यिकी इकाइयां (Statistical Units)-सांख्यिकी अनुसंधान में जिन सांख्यिकी इकाइयों तथा धारणाओं का प्रयोग किया जाता है, उनके अनुसार ही आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक आंकड़ों के मुख्य दोष बताओ।
उत्तर-
दोष (Demerits)

  1. अधिक समय (More time)-प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए बहुत-से समय की आवश्यकता होती है। इसलिए सूचना प्राप्त करने लिए देरी हो जाती है।
  2. खर्चीले (Expensive)-प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने में बहुत धन, समय तथा परिश्रम खर्च करना पड़ता
  3. पक्षपात (Biased)-प्राथमिक आंकड़े पक्षपात से प्रभावित होते हैं, क्योंकि अनुसन्धानकर्ता अपनी सुविधानुसार आंकड़े पेश करता है।
  4. निजी अनुसन्धान के लिए अनुचित (Unsuitable for Private Investigation)-प्राथमिक आंकड़े सरकारी अनुसन्धान के लिए अधिक उचित होते हैं, परन्तु निजी अनुसन्धान के क्षेत्र के लिए यह आंकड़े अनुचित माने जाते हैं।

प्रश्न 7.
द्वितीयक आंकड़ों के मुख्य गुण (Merits) बताओ।
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए होते हैं। जिनका प्रयोग अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य के लिए करता है।
गुण (Merits)-

  • किफायती (Economical) – द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग में खर्च कम होता है। समय तथा परिश्रम की भी बचत होती है।
  • सरल प्रयोग (Easy to use)-द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग सरलता से किया जा सकता है।
  • विश्वसनीय (Reliable)-सरकार द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े विश्वसनीय होते हैं, जिनके प्रयोग अनुसन्धानकर्ता बिना शक कर सकता है।
  • विशाल क्षेत्र (Wide Scope)-द्वितीयक आंकड़े विशाल क्षेत्रों में उपलब्ध होते हैं। इनमें से चयन करने के पश्चात् सम्पादन करके आंकड़ों का उचित प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
अनुसन्धानकर्ता, गणक तथा सूचक की धारणाओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  1. अनुसन्धानकर्ता (Investigator)-किसी अनुसन्धान में लगे व्यक्ति जिस द्वारा अनुसन्धान को नियोजित किया जाता है, उसको अनुसन्धानकर्ता कहते हैं।
  2. गणक (Enumerator)-जिस मनुष्य द्वारा आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। साधारण तौर पर अनुसन्धानकर्ता द्वारा गणकों को आंकड़े एकत्रित करने के लिए काम पर लगाया जाता है, क्योंकि यह मनुष्य आंकड़े एकत्रित करने के लिए माहिर होते हैं।
  3. सूचक (Respondent)–अनुसन्धान सम्बन्धी जिन मनुष्यों द्वारा सूचना प्रदान की जाती है, उसको सूचक अथवा उत्तरदाता कहा जाता है।

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प्रश्न 9.
एक तालिका तथा प्रश्नावली में क्या अन्तर होता है ?
उत्तर-

  • तालिका (Schedule)-तालिका में भी विभिन्न प्रश्न होते हैं, परन्तु तालिका को गणक तैयार करते हैं। वह उत्तरदाता से प्रश्न पूछकर तालिका तैयार करते हैं।
  • प्रश्नावली (Questionaire) प्रश्नावली में भी प्रश्न होते हैं, परन्तु प्रश्नावली सूचकों को दे दी जाती है, जिसको सूचक भरकर अनुसन्धान को देते हैं।

प्रश्न 10.
आंकड़ों के एकत्रितकरण में गलतियों के मुख्य स्रोत बताओ।
उत्तर-
आंकड़ों के एकत्रितकरण में गलतियां होने की सम्भावना होती है, गलतियों के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं –

  1. अनुसन्धान द्वारा जो गणक आंकड़े एकत्रित करने के लिए रखे जाते हैं, वह विभिन्न पैमाने (Scale) से आंकड़े एकत्रित करते हैं तो गलती की सम्भावना होती है।
  2. सूचक प्रश्न अच्छी तरह नहीं समझ सकते तो गलत सूचना दे सकते हैं।
  3. प्रश्न इस प्रकार के हो सकते हैं, जिनके बारे सूचक उत्तर देना पसन्द नहीं करते।
  4. सूचकों द्वारा दी सूचना को गणक अच्छी तरह नोट नहीं करते।

प्रश्न 11.
द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय कौन-सी सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. अनुकूलता (Suitability) – केवल वह द्वितीयक आंकड़े ही प्रयोग करने चाहिएं, जो अनुसन्धानकर्ता के उद्देश्य की पूर्ति करते हों।
  2. उचितता (Adequacy)-जो आंकड़ा अनुसन्धानकर्ता द्वितीयक आंकड़ों की सहायता से प्राप्त करता है, वह वर्तमान अनुसन्धान के लिए काफ़ी होने चाहिए हैं। .
  3. शुद्धता (Accuracy)-अनुसन्धानकर्ता को आंकड़ों की शुद्धता का विश्वास होना चाहिए।
  4. विश्वसनीय (Reliable)-द्वितीयक आंकड़े सरकारी संस्था द्वारा प्रदान किए गए हैं जो विश्वसनीय होते हैं।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
संग्रहण के विचार से समंक दो प्रकार के होते हैं-
1. प्राथमिक समंक (Primary Data)-प्राथमिक समंक वे आंकड़े हैं जिन्हें अनुसन्धान करने वाला अपने प्रयोग में लाने के लिए पहले-पहल इकट्ठा करता है या उस विषय के सम्बन्ध में यदि आंकड़े पहले भी इकट्ठे किए गए होते हैं तो भी अनुसन्धानकर्ता आरम्भ से अन्त तक सामग्री नये सिरे से एकत्र करता है। इसे प्राथमिक सामग्री कहते हैं। वैसेल (Wessel) के शब्दों में, “अनुसन्धान की प्रक्रिया के अन्तर्गत मौलिक रूप से जो आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं, उन्हें प्राथमिक आंकड़े कहते हैं।”

2. द्वितीयक समंक (Secondary Data)-द्वितीयक समंक वे समंक हैं जिनका संकलन पहले से हो चुका होता है और अनुसन्धानकर्ता उन्हें अपने प्रयोग में लाता हैं। यहां वह स्वयं संग्रहण नहीं करता। किसी अन्य उद्देश्य के लिए संकलित समंक को प्रयोग में लाता है। इस प्रकार के समंक अपने मौलिक रूप में नहीं होते हैं बल्कि सारणी प्रतिशत आदि में व्यक्त होते हैं। ब्लेयर (Blair) के शब्दों में, “द्वितीयक समंक वे हैं जो पहले से ही अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्र किए गए हैं।”

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान तथा अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान में क्या अन्तर है?
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)-इस रीति में अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध स्थापित करके समंक एकत्र करता है। यह रीति बहुत सरल है। अनुसन्धानकर्ता स्वयं उन लोगों के सम्पर्क में आता है जिनके विषय में आंकड़े एकत्र करना चाहता है। यदि अनुसन्धानकर्ता का व्यवहार कुशल, धैर्यवान् व मेहनती है तो इस रीति द्वारा प्राप्त आंकड़े बहुत विश्वसनीय होते हैं। इस रीति में अनुसन्धानकर्ता को निरीक्षण का भारी सहारा लेना पड़ता है।

अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान (Indirect Oral Investigation)-अनुसन्धान का क्षेत्र विस्तृत होने पर अनुसन्धानकर्ता के लिए यह सम्भव नहीं हो पाता कि वह प्रत्यक्ष रूप से सबसे सम्पर्क स्थापित करे और आंकड़े एकत्र करे। ऐसी दशा में वह किसी ऐसे व्यक्ति से सूचनाएं प्राप्त करता है जिसे उस विषय में जानकारी है। इस नीति में अनुसन्धानकर्ता अप्रत्यक्ष एवं मौखिक रूप से सम्बन्धित व्यक्तियों के बारे में अन्य जानकार व्यक्ति से सूचना प्राप्त करता है। उदाहरण के तौर पर कक्षा के विद्यार्थियों के बारे में कोई सूचना कक्षा के मानीटर या अध्यापक से प्राप्त करनाको सूचकों की साक्षी (Witness) कहते हैं। इस विधि से तभी सफलता मिल सकती है जब प्रश्नकर्ता चतुर तथा लगनशील हो।

प्रश्न 3.
द्वितीयक आंकड़ों के गुण व अवगुण लिखें।
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़ों के गुण –

  • द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करना सुगम है|
  • इन आंकड़ों के प्रयोग में धन, समय और श्रम की बचत होती है।
  • कुछ अनुसन्धानों के लिए प्राथमिक समंक संकलित ही नहीं किये जा सकते।
  • कुछ अनुसन्धानों में विश्वसनीय द्वितीयक आंकड़े मिल जाते हैं।

द्वितीयक आंकड़ों के दोष –

  1. द्वितीयक आंकड़ों में प्राथमिक आंकड़ों की भान्ति शुद्धता का स्तर ऊंचा नहीं होता।
  2. वर्तमान युग के अनुकूल विश्वसनीय और पर्याप्त मात्रा में द्वितीयक आंकड़ों का मिलना कठिन होता है।
  3. प्रत्येक प्रकार के अनुसन्धान के लिए द्वितीयक आंकड़े नहीं मिल पाते।
  4. द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग सावधानी से करना होता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सांख्यिकी अनुसन्धान करते समय कौन-कौन सी सावधानियों का प्रयोग आवश्यक होता है? (What are the precautions necessary for Statistical Investigation ?)
उत्तर-
सांख्यिकी का अर्थ उन विधियों से होता है, जिन द्वारा हम आंकड़ों को एकत्र करने, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या करते हैं। इस उद्देश्य के लिए जब तक अनुसन्धानकर्ता अनुसन्धान का काम आरम्भ करता है तो उसको आंकड़े एकत्रित करते समय बहुत-सी सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1. अनुसन्धान का उद्देश्य एवं क्षेत्र (Purpose of Investigation)-किसी समस्या को समझ लेने के पश्चात् अनुसन्धान के उद्देश्य की जानकारी भी आवश्यक होती है। अनुसन्धान करने के लिए सांख्यिकी आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है। हम जानते हैं कि सांख्यिकी विधियों का उद्देश्य सिर्फ आंकड़ों को एकत्रित करना ही नहीं, बल्कि इसमें वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, सारणियां, विश्लेषण तथा व्याख्या इत्यादि की क्रियाएं की जाती हैं। इससे प्राप्त किए आंकड़ों द्वारा उचित परिणाम निकाले जा सकते हैं। इसलिए बिना उद्देश्य से एकत्रित किए आंकड़े व्यर्थ होते हैं, जिस द्वारा कोई लाभदायक परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सकता।

2. सूचना के साधन (Sources of Information)-जब हम आंकड़ों का उद्देश्य निर्धारित कर लेते हैं तो इसके पश्चात् आंकड़ों को एकत्र करने के लिए विभिन्न साधनों का प्रयोग किया जाता है। आंकड़ा एकत्र करने के दो स्रोत होते हैं।

(i) आन्तरिक तथा बाहरी स्त्रोत (Internal and External Sources)-जब आंकड़ों को किसी एक व्यक्ति अथवा संस्था से प्राप्त किया जाता है तथा यह आंकड़े एक स्थान पर ही प्राप्त किए जा सकते हैं तो इनको आन्तरिक साधन कहा जाता है। आन्तरिक आंकड़े निरन्तर तौर पर (Regularly) अथवा विशेष तौर पर (Adhoc) आधार पर एकत्रित किए जा सकते हैं। बाहरी आंकड़े वे आंकड़े होते हैं जोकि एक संस्था से बिना अन्य साधनों द्वारा भी आंकड़ों को प्राप्त किया जाता है। उदाहरणस्वरूप किसी एक फ़र्म द्वारा किए गए उत्पादन, बिक्री, लाभ तथा हानि के आंकड़ों को आन्तरिक आंकड़े कहा जाता है, जबकि एक देश में कारें बनाने वाली बहुत-सी फ़र्मों के उत्पादन बिक्री, लाभ तथा हानि के आंकड़ों को बाहरी आंकड़े कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

(ii) प्राथमिक तथा द्वितीयक स्त्रोत (Primary and Secondary Sources)-प्राथमिक स्रोत का अर्थ उन साधनों से होता है जिनमें एक अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है। यह आंकड़े मौलिक होते हैं। द्वितीयक साधन वह साधन है, जिनमें आंकड़े किसी अन्य मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। इन आंकड़ों को अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयोग करता है।

3. सांख्यिकी इकाइयां तथा उनकी परिभाषा (Statistical Units and their Definitions)-सांख्यिकी इकाइयों का अर्थ ऐसे माप से होता है, जिस रूप में हम आंकड़ों को एकत्र करके विश्लेषण तथा व्याख्या करते है, जैसे कि आय को रुपयों में, अनाज को क्विटलों में, दूध-पेट्रोल को लिटरों में स्पष्ट किया जाता है। यह सांख्यिकी इकाइयां उचित होनी चाहिए, जिनकी जानकारी से विशेष परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, जैसे कि प्रो० किंग ने कहा है, “सिर्फ अनिवार्य ही नहीं, बल्कि अति आवश्यक होता है कि सांख्यिकी इकाइयों को स्पष्ट रूप में परिभाषित किया जाए।” जब हम सांख्यिकी इकाइयों को ठीक रूप में परिभाषित करते हैं तो इससे प्राप्त किए परिणाम शुद्ध तथा उचित होते हैं।

4. शुद्धता की मात्रा (Degree of Accuracy)—एकत्रित किए गए आंकड़ों में जहां तक सम्भव हों, शुद्धता का होना आवश्यक होता है, यदि एकत्रित किए गए आंकड़े शुद्ध नहीं होते तो ऐसे आंकड़ों से उचित परिणाम नहीं निकाले जा सकते। इसमें कोई शक नहीं कि आंकड़ों में 100% शुद्धता नहीं पाई जा सकती। इसका मुख्य कारण यह होता है कि आंकड़ों को एकत्र करते समय कई बार अनुमान का सहारा लेना पड़ता है। कई बार अनुसन्धान पक्षपात न भी करना चाहता हो परन्तु सूचना देने वाला व्यक्ति ठीक आंकड़े प्रदान न करें तो भी शुद्धता के स्तर को प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों से क्या अभिप्राय है ? प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर बताओ।
(What do you mean by primary and secondary data ? What is difference between primary and secondary data)
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़े (Primary Data)-प्राथमिक आंकड़े वह आंकड़े होते हैं, जोकि अनुसन्धानकर्ता द्वारा स्वयं एकत्रित किए जाते हैं। ये आंकड़े पहले किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए नहीं होते, ऐसे आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० सीकरिस्ट के शब्दों में, “प्राथमिक आंकड़ों से अभिप्राय मौलिक आंकड़ों से होता है अर्थात् मुख्य तौर पर यह कच्चे माल जैसे होते हैं।” (“By Primary data are meant those which are original, that is they are essential Raw Materials.”-Secrist)

प्रो० वैसल के शब्दों में, “अनुसन्धान की प्रक्रिया में जो समंक मौलिक रूप में एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data originally collected in the process of investigation are known as primary data.”-Wessel) द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़ों को दूसरे दर्जे के आंकड़े भी कहा जा सकता है। यह आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं।

परन्तु अनुसन्धान इन आंकड़ों का प्रयोग अपनी जांच-पड़ताल में कर लेता है। इन आंकड़ों को वह खुद एकत्रित नहीं करता, बल्कि अख़बारों, रसालों, पुस्तकों में छपे हुए आंकड़ों का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर लेता है तो ऐसे आंकड़ों को द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० एम० एम० बलेयर के शब्दों में, “द्वितीयक आंकड़े वह हैं जो कि पहले ही अस्तित्व में होते हैं, जोकि वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं, बल्कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। प्रो० वैसल अनुसार, “समंक जो दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data Collected by other persons are called secondary data.” –Wessel)

द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़ों को दूसरे दर्जे के आंकड़े भी कहा जा सकता है। यह आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। परन्तु अनुसन्धान इन आंकड़ों का प्रयोग अपनी जांच-पड़ताल में कर लेता है। इन आंकड़ों को वह खुद एकत्रित नहीं करता, बल्कि अख़बारों, रसालों, पुस्तकों में छपे हुए आंकड़ों का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर लेता है तो ऐसे आंकड़ों को द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० एम० एम० बलेयर के शब्दों में, “द्वितीयक आंकड़े वह हैं जो कि पहले ही अस्तित्व में होते हैं, जोकि वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं, बल्कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। प्रो० वैसल अनुसार, “समंक जो दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data Collected by other persons are called secondary data.” –Wessel)

प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर (Difference between Primary and Secondary Data)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े 1
प्रो० सीकरिस्ट के अनुसार, “प्राथमिक आंकड़े तथा द्वितीयक आंकड़ों में संकेत दर्जे का अन्तर होता है, प्रकार का कोई अन्तर नहीं होता अर्थात् ये आंकड़े जो कि किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए हैं। उस मनुष्य अथवा संस्था के लिए ये आंकड़े प्राथमिक आंकड़े होते हैं, परन्तु ये आंकड़े जब किसी अन्य मनुष्य अथवा संस्था द्वारा प्रयोग किए जाते हैं तो ये द्वितीयक आंकड़े बन जाते हैं। इसलिए इन आंकड़ों में केवल दर्जे का ही अन्तर है प्रकार का कोई अन्तर नहीं।”

प्रश्न 3.
प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने की विधियों की व्याख्या करो। प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान के गुण तथा दोष बताओ।
(Explain the methods of collecting Primary Data. Give the merits and demerits of Direct Personal Investigation.)
उत्तर-
जब सांख्यिकी अनुसन्धान के लिए एक अनुसन्धानकर्ता स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है तो इनको प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है। प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने की प्रमुख्य विधियां निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)
  2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान (Indirect Oral Investigation)
  3. संवाददाता से सूचना (Information from correspondents)
  4. डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना (Information through Mailed Questionnaires)
  5. गणकों के माध्यम द्वारा सूचना (Information through anumerators)

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)-प्राथमिक आंकड़ों को एकत्र करने के लिए प्रथम विधि प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान विधि है। इस विधि में अनुसन्धानकर्ता आय स्वयं सूचना देने वालों के पास जाता है तथा आंकड़े एकत्रित करता है। इस विधि द्वारा विश्वसनीय आंकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं, यदि अनुसन्धानकर्ता मेहनती, धैर्य वाला तथा निरपक्ष स्वभाव वाला होता है। उदाहरणस्वरूप गुरु नानक देव युनिवर्सिटी अमृतसर में काम करने वाले कर्मचारियों सम्बन्धी कोई जांच-पड़ताल करनी है तो जांचकर्ता युनिवर्सिटी में जाकर कर्मचारियों से बात करता है। इस प्रकार जो आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं, उनको प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है।

विधि का क्षेत्र (Scope of the method)-यह विधि ऐसे अनुसन्धान के लिए उचित होती है जहां जांच-पड़ताल का क्षेत्र सीमित हो। जहां अनुसन्धान में मौलिक आंकड़ों की आवश्यकता होती है तथा आंकड़ों को गुप्त रखना हो। आंकड़े शुद्ध तथा जटिल हों तो अनुसन्धानकर्ता स्वयं ही ऐसे आंकड़े एकत्र कर सकता है।

गुण (Merits)-इस विधि के मुख्य गुण निम्नलिखित अनुसार हैं

  1. इस विधि द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़े मौलिक (original) होते हैं।
  2. यह विधि लचकदार (Elastic) भी है क्योंकि अनुसन्धानकर्ता प्रश्नों की आवश्यकता अनुसार बदल सकता है।
  3. इस विधि द्वारा एकत्रित किए आंकड़ों में शुद्धता का गुण पाया जाता है।
  4. यह विधि विश्वसनीय होती है तथा प्राप्त की जानकारी पर पूर्ण रूप में भरोसा किया जा सकता है।
  5. इस ढंग से मुख्य सूचना के बिना अधिक जानकारी भी प्राप्त हो जाती है।

दोष (Demerits)—
इस विधि में निम्नलिखित दोष भी हैं-

  • इस विधि को विशाल क्षेत्र (Wide Areas) में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि अनुसन्धानकर्ता प्रत्येक स्थान पर स्वयं जाकर आंकड़े एकत्रित नहीं कर सकता।
  • यह विधि अधिक खर्चीली (More Costly) है, आंकड़ों को एकत्र करने के लिए अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है।
  • इस विधि में व्यक्तिगत पक्षपात (Favouritism) भी हो सकता है। इसलिए प्राप्त परिणाम दोषपूर्ण हो सकते हैं।
  • इस विधि द्वारा आंकड़े एकत्र करने के लिए अधिक समय (More time) नष्ट हो जाता है।
  • इस विधि के लिए सिखलाई के माहिर (Trained) व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 4.
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान प्रयोग कब किया जाता है ? इसके गुण दोष तथा सावधानियां लिखें।
(Describe the suitability of Indirect oral investigation. What are its merits, demerits, and precautions.)
उत्तर-
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान (Indirect Oral Investigation)-प्राथमिक आंकड़े एकत्र करने के लिए अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान की विधि भी अपनाई जाती है। इस विधि अनुसार अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वाले सभी व्यक्तियों को नहीं मिलता, बल्कि ऐसे व्यक्तिों से जानकारी प्राप्त करता है, जिनको एक विशेष वर्ग के लोगों की पूर्ण जानकारी होती है तथा जो अच्छे ढंग से सूचना देने की योग्यता रखते हैं। उदाहरणस्वरूप जैसे कि किसी उद्योग में काम पर लगे मज़दूरों सम्बन्धी जानकारी मज़दूरों से प्राप्त न करके यह सूचना मौखिक रूप में मज़दूर समूहों तथा उद्योगपतियों से प्राप्त की जाती है। इस विधि को अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान की विधि कहा जाता है।

विधि का क्षेत्र (Scope of the Method) यह विधि विशाल क्षेत्र में लागू की जा सकती है। जब सूचना देने वाले अज्ञानी होते हैं तथा उनकी संख्या इतनी अधिक हो कि सम्पर्क करना सम्भव न हो तो ऐसी स्थिति में अप्रत्यक्ष अनुसन्धान की विधि अधिक उचित होती है।

गुण (Merits) इस विधि के गुण निम्नलिखित हैं –

  1. यह विधि विशाल क्षेत्र (Wide Area) में लागू होती है।
  2. यह विधि कम खर्चीली (Less Costly) है। इसमें समय, धन तथा मेहनत कम खर्च होती है।
  3. इस विधि में पक्षपात (Bias) की सम्भावना नहीं होती।
  4. सूचना माहिरों (Experts) द्वारा दी जाती है, इसलिए सरलतापूर्वक जल्दी से आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं।

दोष (Demerits)-इस विधि में निम्नलिखित दोष भी हैं-

  1. इस विधि द्वारा आंकड़ों में शुद्धता की कमी (Less Accuracy) हो सकती है, क्योंकि आंकड़ों सम्बन्धी लोगों की जगह पर मज़दूर समूहों अथवा मालिकों से प्राप्त किए जाते हैं।
  2. इस विधि में सूचना देने वाले पक्षपात (Bias) का प्रयोग कर सकते हैं।
  3. आंकड़े व्यक्तिगत दृष्टिकोण अनुसार दिए गए हैं, इसलिए प्राप्त किए परिणाम गलत (Wrong Results) भी हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
संवाददाता द्वारा सूचना प्राप्त करने के गुण व दोष लिखें। इनके प्रयोग में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए ?
(What are the merits and demerits of correspondent method? What are precautions while using this method ?)
उत्तर-
संवाददाताओं से सूचना (Information from Correspondents)-इस विधि में अनुसन्धानकर्ता स्थानिक एजेन्टों अथवा संवाददाताओं की सहायता से सूचना प्राप्त करता है। ये संवाददाता अपने क्षेत्रों में से ज़रूरी सूचना एकत्रित करके अनुसन्धानकर्ता को भेज देते हैं। इस विधि द्वारा बहुत विशाल क्षेत्र में से उचित तथा नवीन आंकड़े सरलता से प्राप्त हो सकते हैं।

विधि का क्षेत्र (Scope of the Method) यह विधि साधारण तौर पर रसालों, अख़बारों, टेलीविज़न तथा रेडियो द्वारा अपनाई जाती है। स्थानिक संवाददाता दिन-प्रतिदिन की घटनाओं के बारे ताजा जानकारी प्रदान करते हैं।

गुण (Merits) इस विधि के मुख्य गुण इस प्रकार हैं

  • यह विधि किफ़ायती (Economical) होती है। इस विधि में धन, समय तथा परिश्रम की बचत होती है।
  • इस विधि को विशाल क्षेत्र (Wide Area) में लागू किया जा सकता है। इससे दूर-दूर से सूचना प्राप्त की जा सकती है।
  • इस विधि द्वारा निरन्तर (Continuously) तथा निरन्तरता से प्राप्त की जा सकती है।
  • जब बहुत ऊंचे दर्जे की शुद्धता न अनिवार्य हो तो सापेक्षक शुद्धता (Relative Accuracy) के लिए यह विधि अधिक उचित है।

दोष (Demerits)-इस विधि के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं

  1. इस विधि द्वारा एकत्रित किए आंकड़ों की मौलिकता की कमी (Less Originality) पाई जाती है।
  2. संवाददाताओं द्वारा भेजे आंकड़े पक्षपात (Biased Data) वाले हो सकते हैं।
  3. इस विधि अनुसार सूचना प्राप्त करना संवादाताओं की कुशलता पर निर्भर करता है। यदि संवाददाता कुशल न हो तो सूचना प्राप्त करने के लिए बहुत-सा समय (Time) नष्ट हो जाता है।
  4. विभिन्न संवाददाताओं द्वारा भेजी गई सूचना में एकसारता (Uniformity) का अभाव होता है, परिणामस्वरूप जांच-पड़ताल करनी कठिन हो जाती है।
  5. इसी विधि द्वारा सूचना देर से प्राप्त होती है। देरी से एकत्रित किए (Delay in collection) आंकड़े ज्यादा लाभदायक नहीं होते।

प्रश्न 6.
डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना के गुण तथा दोष बताएं। (What are the merits and demerits of information through Mailed Questionnaires ?)
उत्तर-
डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना (Information through Mailed Questionnaires)प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने के लिए डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना के ढंग का प्रयोग भी किया जाता है। इस विधि में प्रश्नावली तैयार की जाती है तथा इसको विभिन्न सूचना देने वाले मनुष्यों के पास डाक द्वारा भेजा जाता है। प्रश्नावली के साथ एक विनती-पत्र भी भेजा जाता है, जिसमें प्रश्नावली को भरने के पश्चात् जल्दी वापस भेजने की विनती की जाती है तथा विश्वास दिलाया जाता है कि उसकी सूचना को गुप्त रखा जाएगा। सूचना देने वाला प्रश्नावली में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भरकर वापिस अनुसन्धानकर्ता को भेज देता है, इस प्रकार प्रश्नावलियों के आधार पर आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

विधि का क्षेत्र (Scope of Method) डाक के माध्यम द्वारा सूचना एकत्र करने की इस विधि को उस समय लागू किया जाता है जब जांच-पड़ताल का क्षेत्र विशाल होता है तथा सूचना देने वाले व्यक्ति शिक्षित होते हैं।

गुण (Merits) इस विधि द्वारा आंकड़े एकत्र करने के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं –

  1. इस ढंग को बहुत खर्चीली (Economical) विधि भी कहा जाता है क्योंकि विभिन्न स्थानों से कम खर्च करके सूचना एकत्र की जा सकती है।
  2. जब जांच-पड़ताल का विशाल क्षेत्र (Wide Area) होता है तो इस विधि द्वारा सरलता से आंकड़े एकत्र किए जा सकते हैं।
  3. इस विधि द्वारा एकत्रित किए आंकड़े मौलिक (original) होते हैं। क्योंकि सूचना देने वाले मनुष्य आंकड़ों को स्वयं भरकर भेजते हैं।

दोष (Demerits) – इस विधि के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं

  1. इस विधि का मुख्य दोष यह है कि सूचना देने वाले मनुष्य की कम रुचि (Lack of Interest) होने के कारण कई बार प्रश्नावलियों को वापस नहीं भेजा जाता। इसलिए सूचना प्राप्त न होने के कारण अनुसन्धान करने में देर लग जाती है।
  2. इस विधि में लोचशीलता की कमी (Less Elasticity) होने के कारण उचित सूचना प्राप्त नहीं होती, क्योंकि प्रश्न न समझ आने की स्थिति में सूचना देने में मुश्किल आती है।
  3. सूचना पक्षपात पूर्ण (Biased) भी हो सकती है, क्योंकि सूचना देने वाला अपनी इच्छानुसार सूचना प्रदान करता है। इसलिए उचित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।
  4. यह विधि सीमित क्षेत्र (Limited-Area) में लागू की जा सकती है, क्योंकि इसको केवल पढ़े-लिखे लोगों से आंकड़े प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
  5. यह विधि जटिल (Complex) भी होती है, क्योंकि प्रश्नावली में पूछे गए प्रश्न का उत्तर गलत भी दिया जा सकता है। इसलिए आंकड़ों की शुद्धता सौ प्रतिशत पूर्ण नहीं होती।

प्रश्न 7.
एक अच्छी प्रश्नावली में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ? (What are the qualities of a good questionnaire ?)
उत्तर-
अच्छी प्रश्नावली के गुण (Qualities of a good questionnaire)-
1. अनुसन्धान का उद्देश्य-अनुसन्धान का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। इस प्रकार बनाए गए प्रश्न ऐसे होने चाहिए, जिन द्वारा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनिवार्य सूचना दी गई हो।

2. प्रश्नों की कम संख्या–प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या कम-से-कम होनी चाहिए। प्रश्न केवल अनुसन्धान से सम्बन्धित होने चाहिए तो ही सूचना देने वाला प्रश्नावली को सरलता से भर सकता है।

3. प्रश्नों का उचित क्रम-प्रश्नावली में दिए गए प्रश्न उचित तथा तर्कपूर्वक क्रम में होने चाहिए।

4. प्रश्नावली की सरलता-प्रश्नावली में सरलता का गुण होना चाहिए अर्थात् प्रश्न इस तरह के होने चाहिए कि सूचना देने वाले की समझ में सरलता से आ सकें तथा सूचना देने वाला उचित सूचना सरल ढंग से तथा स्पष्ट कर सके।

5. निजी प्रश्न-सूचना देने वालों को निजी प्रकार के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए अर्थात् प्रश्नावली के प्रश्न लोगों की धार्मिक, सामाजिक, भावनाओं को चोट पहुँचाने वाले नहीं होने चाहिए।

6. सूचना का विश्वास-प्रश्नावली का महत्त्वपूर्ण गुण यह होना चाहिए है कि सूचना देने वाला बिना किसी डर से सूचना प्रदान कर सकें। इसलिए सूचना देने वाले बिना डर के उचित सूचना प्रदान करते हैं।

7. पक्षपात का अभाव-प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न नहीं होने चाहिए जोकि पक्षपात को स्पष्ट करते हों। प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए, जो बिना पक्षपात तथा मतभेद अनुसार बनाए गए हों। ऐसी स्थिति में प्रश्नावली द्वारा उचित सूचना प्राप्त नहीं होगी, यदि प्रश्नावली पक्षपात रहित नहीं होती।

8. संख्या सम्बन्धी प्रश्न-इस बात का ध्यान रखना चाहिए है कि प्रश्न ऐसे न हों, जिनमें सूचना देने वाले को हिसाब-किताब लगाना पड़े, जैसे कि लोग अपनी आय में से कितने प्रतिशत हिस्सा फल तथा सब्जियों पर खर्च करते हैं। इसलिए प्रश्न बनाते समय अनुसन्धानकर्ता को गणना का स्वयं काम करना चाहिए तथा प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए जिनमें अनिवार्य सूचना अनुसन्धानकर्ता स्वयं प्राप्त करें।

9. पूर्व निरीक्षण-प्रश्नावली को अन्तिम रूप देने से पहले इसकी जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए अर्थात् स्थानिक तौर पर कुछ मनुष्यों को प्रश्नावलियों में विभाजित कर सूचना भरवा लेनी चाहिए। इस प्रकार प्रश्नावली के मार्ग में आने वाली मुश्किलों के अनुसार इसको परिवर्तित कर देना चाहिए। इसलिए पूर्व निरीक्षण का कार्य अच्छी प्रश्नावली के लिए उचित माना जाता है।

10. सच्चाई की परख-सूचना एकत्रित करने वाले को ऐसे प्रश्न भी पूछने चाहिए, जिनसे सच्चाई की परख की जा सके। इस उद्देश्य के लिए प्रश्नावली में सच्चाई की परख की सम्भावना होनी चाहिए।

11. प्रश्नावली का मनमोहक होना-प्रश्नावली मनमोहक तथा प्रभाव पाने वाली होनी चाहिए। प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनमें सूचना देने वाले की रुचि में वृद्धि हो। उत्तर देने के लिए उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए।

12. निर्देश-प्रश्नावली को भरने के लिए स्पष्ट तथा उचित निर्देश देने चाहिए जिससे प्रश्नावली भरते समय किसी प्रकार की मुश्किल का सामना न करना पड़े।

13. सूचना देने वाली की सुविधा-प्रश्नावली भेजते समय सूचना देने वाले की सुविधा को ध्यान में रखना चाहिए। प्रश्न सीधे तथा सम्बन्धित होने चाहिए जिनका उत्तर बहुत कम समय में दिया जा सके। अनिवार्य डाक टिकट लिफाफे समेत अपना पूरा पता लिखकर भेजनी चाहिए। इस प्रकार सूचना देने वाले की सुविधा में ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्नावली को भरकर वापस भेजने की विनती की जानी चाहिए। सूचना देने वाले को यह विश्वास दिलवाना अनिवार्य होता है कि एकत्रित की गई सूचना अनुसन्धान के लिए ही प्रयोग की जाएगी तथा पूर्ण तौर पर गुप्त रखी जाएगी। इस प्रकार की प्रश्नावली द्वारा कम समय में अधिक-से-अधिक सूचना प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 8.
द्वितीयक आंकड़े एकत्रित करने की विधियों को स्पष्ट कीजिए। (Explain the methods of collecting secondary data.)
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़ों को एकत्र करने के दो मुख्य स्रोत होते हैं –
A. प्रकाशित स्रोत (Published Sources)
B. अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources) A.
प्रकाशित स्त्रोत (Published Sources) द्वितीयक आंकड़ों के मुख्य प्रकाशित स्रोत अग्रलिखित अनुसार-
1. अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन (I.M.F.)-द्वितीयक आंकड़ों को एकत्र करने के दो मुख्य स्रोत होते हैं। विश्व बैंक (World Bank) इत्यादि संस्थाएं सर्वेक्षण करके आंकड़ों को प्रकाशित करती हैं। इन आंकड़ों का प्रयोग व्यक्तियों द्वारा अनुसन्धान में किया जा सकता है।

2. सरकारी प्रशासन-प्रत्येक देश की सरकार देश में विभिन्न प्रकार के आंकड़े प्रकाशित करती है जैसे कि भारत में केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें, विभिन्न विभागों से सम्बन्धित आंकड़े प्रकाशित करती हैं। ये आंकड़े सांख्यिकी विशेषज्ञों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इस उद्देश्य के लिए सूचना मन्त्रालय स्थापित किए होते हैं।

3. अर्द्ध सरकारी प्रकाशन-अर्द्ध सरकारी संस्थाएं जैसे कि पंचायतें, नगरपालिकाएं, नगर-निगम, जिला परिषद् इत्यादि को विभिन्न प्रकार के आंकड़ों का रिकॉर्ड रखते हैं, जैसे कि जन्म, मृत्यु, सेहत, चुंगी द्वारा आय इत्यादि से सम्बन्धित आंकड़े प्रकाशित करती रहती है। ये आंकड़े भी अनुसन्धानकर्ता के लिए लाभदायक होते हैं।

4. आयोगों तथा कमेटियों की रिपोर्ट (Reports of Committees and Commissions) सरकार द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए आयोगों तथा कमेटियों की स्थापना की जाती है। इन आयोगों तथा कमेटियों द्वारा रिपोर्ट पेश की जाती हैं। जिनमें लाभदायक आंकड़े प्रदान किए जाते हैं, जैसे कि वित्त आयोग की रिपोर्ट, इजारेदार आयोग की रिपोर्ट, योजना कमीशन की रिपोर्ट इत्यादि द्वारा भी आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं।

5. अनुसन्धान संस्थाओं के प्रकाशन (Publication of Research Institute) बहुत-सी अनुसन्धान संस्थाएं अनुसन्धान करने के पश्चात् विभिन्न प्रकार के आंकड़े प्रदान करती हैं जैसे कि विश्वविद्यालय तथा अनुसन्धान संस्थाएं जैसे कि भारतीय सांख्यिकी संस्था, राज्य सरकारों की सांख्यिकी संस्थाएं, अनुसन्धान करने के पश्चात् अनुसन्धान पत्र तथा पत्रिकाएं प्रकाशित करती हैं। द्वितीयक आंकड़ों को प्राप्त करने का यह एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है।

6. समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं द्वारा प्रकाशन (Papers and Journal Publications)-प्रत्येक देश में समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में भी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं जैसे कि आंकड़ों से सम्बन्धित समाचार-पत्र (Economics Times) तथा पत्रिकाएं। जैसे कि कामर्स योजना इत्यादि में भी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं। यह पत्र तथा पत्रिकाएं भी द्वितीयक आंकड़ों का स्रोत बन सकती हैं।

B. अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources)-द्वितीयक अथवा दूसरे दर्जा के आंकड़ों का अप्रकाशित साधनों द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। बहुत-से उद्योग अपने पूंजी निर्माण, उत्पादन, बिक्री, मज़दूरों की संख्या का रिकार्ड अपने पास रखते हैं। इस रिकॉर्ड को प्रकाशित नहीं किया जाता। परन्तु अनुसन्धानकर्ता ऐसे अप्रकाशित साधनों से सूचना प्राप्त कर सकता है।

इसी तरह किसी व्यक्ति के पास हाथ देखने ऐतिहासिक पुस्तकों के आंकड़े सम्भाल कर रखे होते हैं अथवा पुराने बुजुर्गों को भूतकाल की दिलचस्प घटनाओं का पता होता है। इस प्रकार ऐसे आंकड़े जिनको प्रकाशित नहीं करवाया जाता, उन साधनों द्वारा भी सूचना प्राप्त की जा सकती है जो कि अनुसन्धान के लिए आंकड़ों का महत्त्वपूर्ण आधार बन सकते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 9.
द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग सम्बन्धी कौन-कौन सी सावधानियां आवश्यक होती हैं ? (What are the precautions necessary for the use of Secondary Data ?)
उत्तर-
1. आंकड़ों का साधन (Sources of Data)-द्वितीयक आंकड़े प्रयोग करते समय आंकड़ों के स्रोत का पता होना चाहिए। यदि आंकड़े सरकार द्वारा एकत्रित किए गए हैं तो ये आंकड़े आमतौर पर उचित होते हैं। इसलिए प्रो० कुजनेटस अनुसार, “द्वितीयक आंकड़ों की शुद्धता उनके साधन पर निर्भर करती है।”

2. अनुसन्धान एजेन्सी की योग्यता (Ability to Collecting Agency) – द्वितीयक आंकड़े किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए हैं। यदि अनुसन्धानकर्ता ईमानदार, तजुर्बेकार कुशल तथा निरपक्ष है तो एकत्रित किए आंकड़े विश्वसनीय होते हैं।

3. आंकड़ों का उद्देश्य तथा क्षेत्र (Motive and Scope of Data) – यदि द्वितीयक आंकड़े एकत्रित किए गए थे तो उन आंकड़ों के उद्देश्य तथा क्षेत्र को ध्यान में रखना चाहिए है। यदि अनुसन्धानकर्ता का उद्देश्य तथा क्षेत्र भी द्वितीयक आंकड़ों के अनुकूल है तो ऐसे आंकड़ों का प्रयोग सरलता से किया जा सकता है। इसलिए द्वितीयक आंकड़े अनुसन्धान के अनुकूल होने चाहिए।

4. आंकड़े एकत्र करने की विधि (Methods of Data Collections)-द्वितीयक आंकड़े किस विधि द्वारा एकत्रित किए गए हैं। इस सम्बन्धी भी अनुसन्धानकर्ता को ज्ञान होना चाहिए है। यदि आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए अपनाई गई विधि विश्वसनीय है तो ऐसे आंकड़ों को सरलता से वर्तमान अनुसन्धान के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

5. आंकड़े एकत्रित करने का समय (Time of Collection)—जो आंकड़े हम प्राप्त करना चाहते हैं, उनकी जांच-पड़ताल के समय को भी ध्यान में रखना चाहिए अर्थात् कौन-कौन सी स्थितियों में ये आंकड़े एकत्रित किए गए थे। यदि जांच-पड़ताल कुछ विशेष स्थितियों लड़ाई, बाढ़, भूचाल के समय की गई थी तो ऐसे आंकड़ों से वर्तमान अनुसन्धान लाभदायक नहीं होगा। शान्ति समय स्थितियां असाधारण समय से भिन्न होती हैं।

6. शुद्धता का स्तर (Degree of Accuracy)-जो आंकड़े द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, उनकी शुद्धता की जांच कर लेनी चाहिए। यदि शुद्धता का स्तर ऊंचा हो तो इन आंकड़ों को विश्वास से प्रयोग किया जा सकता है तथा लाभदायक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

7. सांख्यिकी इकाइयों का प्रयोग (Statistical Units) एकत्रित किए द्वितीयक आंकड़ों में प्रयोग की इकाइयों को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि वर्तमान अनुसन्धान में से उसी प्रकार की इकाइयों को शामिल किया गया है, जिनका प्रयोग पहले की तरह अनुसन्धान में किया गया था तो ऐसे आंकड़े विश्वसनीय परिणाम प्रदान करने में सहायक होते हैं। परन्तु यदि सांख्यिकी इकाइयों में भिन्नता पाई जाती है तो ऐसा आंकड़ों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि अनुसन्धान के लिए ऐसे आंकड़े कम लाभदायक सिद्ध होते हैं।

इसलिए हम यह कह सकते हैं कि द्वितीयक आंकड़े जैसे दिखाई देते हैं, उसी रूप में ही उनको स्वीकार करना नहीं चाहिए। द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय इनका सम्पादन करके वर्तमान अनुसन्धान के अनुकूल बना लेना चाहिए। इस तरह विश्वसनीय परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

प्रश्न 10.
भारत में जनगणना संगठन पर नोट लिखो। (Write a note on Census Organisation in India.)
उत्तर –
भारत में विधिपूर्वक जनगणना 1891 में आरम्भ की गई परन्तु वैज्ञानिक ढंग से जनगणना का कार्य स्वतन्त्रता के पश्चात् 1951 में किया गया। जनगणना करने के लिए जिला स्तर पर जिला आंकड़ा विभागों की स्थापना की गई। उसके पश्चात् इस विधि में बहुत-से परिवर्तन किए गए हैं। आरम्भ में जिला स्तर पर जनसंख्या की संख्या तथा सामाजिक तथा आर्थिक आंकड़े भी एकत्रित किए जाते थे। 1961 की जनगणना में गांव, कस्बों तथा शहरों सम्बन्धी विभिन्न-सूचना एकत्रित की जाने लगी। 1971, 1981 तथा 1991 में जनगणना के आंकड़ों को वैज्ञानिक ढंग से पेश करने के लिए तालिका तथा आंकड़े पेश किए जाने लगे।

भारत में रजिस्ट्रार जनरल की नियुक्ति की गई है जो जनगणना के आंकड़े एकत्रित करने तथा पेश करने के लिए ज़िम्मेदार होता है। प्रत्येक दस वर्ष में जनसंख्या के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। प्रत्येक दहाके के प्रथम वर्ष जनसंख्या के आंकड़ों को एकत्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नई दिल्ली में रजिस्ट्रार जनरल का दफ़्तर है। सभी राज्यों, केन्द्र प्रशासन राज्यों (Union Territories) में आंकड़ा विभाग बनाए हुए हैं। प्रत्येक सूबे के जिला स्तर पर आंकड़ा अफसर नियुक्त किया गया है जोकि जनगणना का कार्य करता है, जो आंकड़े जिला स्तर पर एकत्रित किए जाते हैं वे सूबे की राजधानी भेजे जाते हैं। प्रत्येक सूबे में आंकड़ों को एकत्रित करके रजिस्ट्रार जनरल के पास नई दिल्ली भेजे जाते हैं, जोकि इन आंकड़ों को प्रकाशित करता है।

जनगणना का कार्य जिले के प्रत्येक गांव, कस्बे तथा शहर में संख्या के आधार पर किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए जनसंख्या से सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। प्रत्येक गांव का क्षेत्रफल, रिहायशी मकानों की संख्या का विवरण एकत्रित किया जाता है। जनसंख्या में पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या आयु के आधार पर की जाती है। जनजातियों तथा पिछड़ी जातियों का विवरण भी एकत्रित किया जाता है। देश में शिक्षित तथा अनपढ़ लोगों की संख्या का ध्यान भी रखा जाता है। इसके अतिरिक्त पुरुष/स्त्री का पेशा भी पूछकर दर्ज किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए श्रमिकों को 9 भागों में विभाजित किया जाता है।

(i) काश्तकार
(ii) कृषि मज़दूर
(iii) पशु पालन, मछली पालन, जंगलात, बागबानी इत्यादि सम्बन्धित कार्य।
(iv) खानों तथा उत्खाने, लट्ठा बनाना
(v)

  • निर्माण कार्य, इनमें मरम्मत का कार्य शामिल होता है।
  • घरेलू तथा छोटे उद्योग तथा मरम्मत

(vi) उसारी
(vii) व्यापार तथा कामर्स
(viii) यातायात, संचार तथा अनुपात।
(ix) अन्य सेवाएं, सीमान्त मज़दूर तथा गैर-मज़दूर तथा उनकी पुरुष-स्त्री अनुपात।

इस प्रकार की सूचना प्रत्येक वार्ड, गांव, कस्बे, शहरी तथा यूनियन टैरीटरी से प्राप्त की जाती है। इस सम्बन्ध में जनगणना संगठन ने कुछ धारणाओं की परिभाषा इस प्रकार दी है-

  1. रिहायशी मकान-जनगणना समय जो कोई मनुष्य तथा परिवार किसी घर में रहता है अथवा दुकान करता है।
  2. अनुसूचित जाति-सरकार द्वारा प्रकाशित नोटिफिकेशन में अनुसूचित जाति की लिस्ट दी हुई है जोकि हिन्दू, सिक्ख, बौद्धी तथा किसी अन्य धर्म के हो सकते हैं।
  3. शिक्षित-जो मनुष्य पढ़-लिख सकता है तथा समझ सकता है, उसको शिक्षित में शामिल किया जाता है। इसमें 0-6 वर्ष के बच्चों को शामिल नहीं किया जाता।
  4. मज़दूर-कोई भी पुरुष अथवा स्त्री जोकि धन कमाने के लिए शारीरिक तथा मानसिक कार्य करते हैं, उनको श्रमिक कहा जाता है। 1991 की जनगणना में सीमान्त मज़दूरों की धारणा को शामिल किया गया है, जिनमें अन्य मज़दूर जिनको वर्ष में 183 दिन कार्य मिलता है। परन्तु जिनको पिछले वर्ष के दौरान कोई कार्य प्राप्त नहीं हुआ उनको गैर मज़दूर कहा जाता है।
  5. काश्तकार-काश्तकार वह होता है जो अपनी भूमि अथवा किराए की भूमि पर कृषि करके अनाज उत्पन्न करता है।
  6. कृषि मज़दूर-जो मनुष्य किसी अन्य मनुष्य की जमीन पर पैसे कमाने के लिए कार्य करता है, उसको कृषि मज़दूर कहा जाता है।
  7. पशु-पालन, मछली-पालन इत्यादि कार्य-जो मनुष्य बागवानी अर्थात् सब्जियां, फल, मिर्च, मसाले इत्यादि उत्पादन के कार्य करते हैं। इनमें पशु-पालन तथा मछली पालन को शामिल किया जाता है।
  8. खाने तथा उत्खनन-खानों में से लोहा, कोयला, मैंगनीज़ इत्यादि खनिज पदार्थ का उत्पादन करना।

इस प्रकार जनगणना संगठन द्वारा जिला आंकड़ा विभाग, सूबा आंकड़ा विभाग के सहयोग से जनसंख्या सम्बन्धी आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं तथा इस उद्देश्य के लिए प्राथमिक आंकड़ों (Primary Data) का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय सैम्पल सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation) पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
भारत में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण का कार्य राष्ट्रीय सैम्पल सर्वेक्षण संगठन द्वारा किया जाता है। यह संगठन उद्योगों तथा कृषि के क्षेत्र के आंकड़े एकत्रित करता है। उद्योगों के आंकड़े वार्षिक आधार पर किए जाते हैं तथा कृषि में उत्पादन का अनुमान सैम्पल सर्वेक्षण के आधार पर लगाया जाता है। यह संगठन कौशल के आदेशों अनुसार कार्य करता है। इसमें 5 बुद्धिजीवी 5 आंकड़े विशेषज्ञ होते हैं जोकि केन्द्र राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह संगठन डायरेक्टर जनरल तथा मुख्य कार्यकारी अफ़सर की अध्यक्षता में कार्य करता है। इसके साथ एक सहायक डायरेक्टर जनरल तथा चार डिप्टी डायरेक्टर जनरल होते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

यह संगठन आंकड़े एकत्रित करने के लिए तालिका तैयार करता है। एकत्रित किए आंकड़ों को संगठित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए संगठन का हैड-आफिस कलकत्ता में स्थित है। संगठन का फील्ड उपरेशन डिवीज़न दिल्ली तथा फरीदाबाद में स्थित है। यहां अलग-अलग क्षेत्रों में से आंकड़े एकत्रित करने के आदेश दिए जाते हैं। संगठन के 48 क्षेत्रीय दफ़्तर हैं तथा 117 सब-क्षेत्रीय दफ्तर हैं जोकि देश भर में फैले हुए हैं। आंकड़ों को संगठित करके प्रस्तुतीकरण का कार्य कोलकाता के हैड-आफिस में किया जाता है परन्तु इस उद्देश्य के लिए आंकड़ों के क्रमबद्ध करने के लिए दिल्ली, गिरधी, नागपुर, बंगलौर, अहमदाबाद तथा कोलकाता केन्द्र स्थापित किए गए हैं जहां कि सामाजिक तथा आर्थिक आंकड़ों को एकत्रित करके तालिका तथा तरतीब देने का कार्य किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण

PSEB 11th Class Economics बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण का एक लाभ लिखें।
उत्तर-
चित्रों की सहायता से जटिल-से-जटिल आंकड़ों को सरल, साधारण एवं समझने योग्य बनाया जा सकता है। इनको देखते ही आंकड़ों की विशेषताएं समझ में आ जाती हैं।

प्रश्न 2.
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण की एक सीमा लिखिए।
उत्तर-
चित्रों द्वारा आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण से केवल अनुमान (Estimate) लगाया जा सकता है। इसके द्वारा पूर्ण ज्ञान नहीं हो सकता। इसके विपरीत सारणी द्वारा समस्या का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
दण्ड चित्र (Bar Diagram) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
दण्ड चित्र वह चित्र है जिसमें आंकड़ों को दण्डों (Bars) या आयतों के रूप में प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 4.
वृत्तीय चित्र किसे कहते हैं?
उत्तर-
वृत्तीय चित्र वह चित्र है जिसमें एक वृत्त (Circle) को कई भागों में बांट कर किसी आंकड़े के भिन्न-भिन्न प्रतिशत या सापेक्ष मूल्यों को प्रस्तुत किया जाता है। वृत्तीय चित्रों का प्रयोग प्रतिशतों के आधार पर किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण

प्रश्न 5.
बहुगुणी दण्ड चित्र (Multiple Bar Diagram) किसे कहते हैं?
उत्तर-
बहुगुणी दण्ड चित्र वह दण्ड चित्र हैं जो दो या दो से अधिक तथ्यों के आंकड़ों को प्रस्तुत करता है। इनका प्रयोग विभिन्न तथ्यों जैसे जन्म-दर तथा मृत्यु-दर की तुलना के लिए किया जाता है।

प्रश्न 6.
सरल दण्ड चित्र किसे कहते हैं?
उत्तर-
सरल दण्ड चित्र वे चित्र हैं जो एक ही प्रकार के संख्यात्मक तथ्यों के विभिन्न मूल्यों को दण्डों के द्वारा प्रकट करते हैं।

प्रश्न 7.
जब आंकड़ों को दण्डों के रूप में प्रकट किया जाता है तो इसको ………………… कहते हैं।
(a) दण्ड चित्र
(b) बहुदण्ड चित्र
(c) रेखाचित्र
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) दण्ड चित्र।

प्रश्न 8.
जब किसी तथ्य के विभिन्न भागों को प्रतिशत के रूप में प्रकट किया जाता है तो इसको ………. चित्र कहते हैं।
उत्तर-
प्रतिशत।

प्रश्न 9.
गोलाकार चित्र को …………… चित्र भी कहा जाता है।
उत्तर-
पाई।

प्रश्न 10.
दो अथवा दो से अधिक तथ्यों वाले चित्र को बहुदण्ड चित्र कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
मानचित्र को रेखाचित्र भी कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

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प्रश्न 12.
एक से अधिक तथ्यों वाले समूह और भागों के रूप में प्रकट करते हैं तो इस को ……………….. कहते हैं।
(a) दण्ड चित्र
(b) बहुदण्ड चित्र
(c) मानचित्र
(d) उप विभाजित दण्ड चित्र।
उत्तर-
(d) उप विभाजित दण्ड चित्र।

प्रश्न 13.
जब तस्वीर बना कर आंकड़ों को पेश किया जाता है तो इसको पाई चित्र कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 14.
आंकड़ों को चित्रों द्वारा स्पष्ट करने को …………… कहते हैं।
(a) सारणीयन
(b) वर्गीकरण
(c) व्यवस्थीकरण
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(d) इनमें से कोई नहीं।

प्रश्न 15.
दण्ड से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दण्ड से अभिप्राय एक आयत अथवा आयतकार चित्र से है जिस द्वारा किसी चर के मूल्य प्रकट किये जाते हैं।

प्रश्न 16.
दण्ड चित्र दो प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
जो चित्र दो अथवा दो से अधिक तथ्यों को प्रकट करते हैं उनको ………. चित्र कहते हैं।
उत्तर-
बहुगुणी चित्र।

प्रश्न 18.
दण्ड चित्र का कोई एक लाभ बताएँ।
उत्तर-
दण्ड चित्र द्वारा आंकड़ों को आकर्षक (दिलकश) बनाया जा सकता है।

प्रश्न 19.
एक चित्र में दो से अधिक चरों को प्रकट किया जाता है तो इसको बहुगुणी चित्र कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण के अर्थ बताएं।
उत्तर-
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण का अर्थ-आंकड़ों को रोचक तथा सरल बनाने के लिए आंकड़ा शास्त्रियों ने विभिन्न विधियों का प्रयोग किया है। इनमें से एक विधि आंकड़ों का चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण होता है। आंकड़ों का चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण वह विधि होती है, जिसमें आंकड़ों को डण्डा चित्र (Bar Diagrams), आयत (Rectangels), चतुर्भुज (Squares), पाई चित्र (Pie Diagrams), तस्वीरें (Pictograms), मानचित्रण (Artograms) इत्यादि के रूप में पेश किया जाता है। चाहे वर्गीकरण तथा सूचीकरण से काफ़ी हद तक आंकड़ों में सरलता आ जाती है, परन्तु इन आंकड़ों को रोचक तथा मनमोहक बनाने के लिए चित्रों द्वारा प्रदर्शन आवश्यक होता है। इसको स्पष्ट करते हुए प्रो० एस० जे० मेरोनी ने ठीक कहा है, “ठण्डे आंकड़े बहुत-से लोगों को गैर-उत्साहजनक होते हैं। जटिल स्थितियों को सरल तथा नियमित रूप देने के लिए चित्र सहायक होते हैं।”

प्रश्न 2.
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण के कोई दो लाभ बताएँ।
उत्तर-

  1. रोचक बनाना (Attractive)-चित्रों की सहायता से आंकड़ों को रोचक बनाया जा सकता है। हम जानते हैं कि साधारण मनुष्य आंकड़ों में रुचि नहीं लेते, इसलिए चित्र बनाकर उन मनुष्यों को आंकड़ों का ज्ञान दिया जा सकता है।
  2. तुलना में आसानी (Easy Comparison)-चित्र आंकड़ों की तुलना में बहुत सहायता करते हैं, जैसे कि किसी देश में जनसंख्या की वृद्धि की तुलना समय के आधार पर चित्रों द्वारा की जा सकती है। इसी तरह कीमतों की वृद्धि को सूचकांक के चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण की कोई दो सीमाएं बताएं।
उत्तर-

  1. ग़लत व्याख्या (Wrong Interpretation)- चित्रों द्वारा तथ्यों की ठीक व्याख्या नहीं की जा सकती। यह तो आंकड़ों को प्रदशित करने का एक साधन मात्र होता है। कई बार चित्रों को देखकर पाठक गलत परिणाम निकाल लेते हैं।
  2. सीमित सूचना (Limited Information)-विशाल आंकड़ों को चित्रों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है तो वास्तविक सूचना प्रदान नहीं की जा सकती। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए थोड़ी सूचना प्रदान की जाती है। परिणामस्वरूप आंकड़ों को पेश करने का उद्देश्य समाप्त हो जाता है।

प्रश्न 4.
चक्र अथवा पाई चित्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चक्र अथवा पाई चित्र (Pie Diagram)-चित्र को गोलाकार रूप में भी स्पष्ट किया जाता है। इस स्थिति में एक गोल चक्कर का निर्माण करने के पश्चात् इसमें 36° कोणों का योग होता है। इसलिए प्रत्येक मूल्य को स्पष्ट करते समय इसका मूल्य 360° के अनुपात में प्राप्त किया जाता है तथा जब हमारे पास प्रत्येक मूल्य का योगदान डिग्री के रूप में प्राप्त हो जाता है तो उस अनुसार हम गोलाकार चित्र का निर्माण करते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण

प्रश्न 5.
चित्र लेख से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चित्र लेख (Pictograph)-चित्र लेख वह विधि होती है, जिस द्वारा तस्वीरों को बनाकर आंकड़ों का प्रदर्शन करने का प्रयत्न किया जाता है। उदाहरणस्वरूप एक देश की जनसंख्या को 1951 तथा 1991 के समय का तुलनात्मक अध्ययन करना है तो इस स्थिति में देश X की जनसंख्या के आंकड़े इस प्रकार दिए गए हैं-
(Population of A Country) देश X की जनसंख्या
1951-4 करोड़
1991-7 करोड़
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण 1

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
दण्ड चित्र को कितने भागों में विभाजित किया जा सकता है ? स्पष्ट करो। दण्ड चित्र के निर्माण को भी स्पष्ट करो।
उत्तर-
दण्ड अथवा डण्डा चित्र-दण्ड चित्र वह चित्र होता है, जिसमें आंकड़ों को डंडे (Bars) अथवा आयतों के रूप में स्पष्ट किया जाता है। दण्ड चित्र का निर्माण इस प्रकार किया जाता है-

  1. डण्डा शब्द का प्रयोग आयत के लिए किया जाता है। चित्र में डण्डों की चौड़ाई समान रखनी चाहिए।
  2. डण्डे लंब रूप में अथवा लेटवें रूप में हो सकते हैं।
  3. यह डण्डे समान दूरी पर बनाने चाहिए।
  4. डण्डे बनाने का आधार (Base) एक होना चाहिए।

दण्ड चित्र अथवा डण्डा चित्र के रूप-दण्ड चित्र को एक पक्षीय चित्र (One dimensional diagram) भी कहा जाता है। यह मुख्य तौर पर निम्नलिखित रूप में बनाए जा सकते हैं-

  1. सरल डण्डा चित्र-सरल डण्डा चित्र वह चित्र है, जिसमें संख्याओं को विभिन्न मूल्यों के डण्डों द्वारा प्रकट किया जाता है।
  2. बहुगुणी डण्डा चित्र-बहुगुणी डण्डा चित्र वह चित्र है, जिनमें दो या दो से अधिक गुणों को प्रकट किया जाता है।
  3. उपविभाजित डण्डा चित्र-उपविभाजित डण्डा चित्र वह चित्र होते हैं, जो किसी तथ्य के कुल मूल्य के साथ इसके भागों को भी पेश करते हैं।
  4. प्रतिशत डण्डा चित्र-प्रतिशत डण्डा चित्र वह चित्र होते हैं, जिसमें किसी तथ्य के विभिन्न मूल्यों को प्रतिशत के रूप में दिखाया जाता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार तथा सरल दण्ड चित्र का निर्माण करो। वर्ष

वर्ष 1951 1961 1971 1981 1991 2001
भारत की जनसंख्या (करोड़ों में) 36 43 54 68 84 102

उत्तर-
सरल दण्ड चित्र ऐसा चित्र होता है, जिसमें एक गुण की व्याख्या ही की जाती है, जैसे कि जनसंख्या उत्पादन बिक्री, लाभ इत्यादि गुण को दिखाया जाए तो ऐसे चित्र को सरल दण्ड चित्र कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप भारत की जनसंख्या के आंकड़े इस प्रकार दिए गए हैं।
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इस चित्र को सरल अथवा साधारण दण्ड चित्र (Simple Bar Diagram) कहा जाता है। इसको लंबवत डण्डा चित्र (Vertical Bar Diagram) भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
बहुगुणी डण्डा चित्र से क्या अभिप्राय है ? निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से बहुगुणी डण्डा चित्र का निर्माण करो।
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उत्तर-
बहुगुणी डण्डा चित्र (Multiple Bar Diagram)-बहुगुणी डण्डा चित्र वह चित्र होते हैं जो दो अथवा दो से अधिक तथ्यों के आंकड़ों को पेश करते हैं, इनका प्रयोग विभिन्न तथ्यों जैसे कि जन्म दर, मृत्यु दर, आयात-निर्यात, लाभ-हानि, कॉलेज में आर्ट्स, साईंस पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या के रूप में पेश की जाती हैं। एक कालेज में आर्ट्स तथा साईंस के धिार्थियों का विवरण इस प्रकार दिया गया है-
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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण

प्रश्न 4.
निम्नलिखित राष्ट्रीय आय में विभिन्न क्षेत्रों का भाग दिखाया गया है। गोल चक्करी तथा पाई रेखा चित्र बनाओ। क्षेत्र
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हल : राष्ट्रीय आय के आंकड़े प्रतिशत में दिए गए हैं। इनको 360° में परिवर्तित करके पाई चित्र बनाया जाएगा।
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IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण से क्या अभिप्राय है ? इसके लाभ तथा सीमाएं बताओ।
(What is the meaning of Diagrammatic Presentation ? Discuss its Advantages and limitations.)
उत्तर-
चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण का अर्थ-आंकड़ों को रोचक तथा सरल बनाने के लिए आंकड़ा शास्त्रियों ने विभिन्न विधियों का प्रयोग किया है। इनमें से एक विधि आंकड़ों का चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण होता है। आंकड़ों का चित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण वह विधि होती है, जिसमें आंकड़ों को डण्डा चित्र (Bar Diagrams), आयत (Rectangles), चतुर्भुज (Squares), पाई चित्र (Pie Diagrams), तस्वीरें (Pictograms), मानचित्रण (Artograms) इत्यादि के रूप में पेश किया जाता है। चाहे वर्गीकरण तथा सूचीकरण से काफ़ी हद तक आंकड़ों में सरलता आ जाती है, परन्तु इन आंकड़ों को रोचक तथा मनमोहक बनाने के लिए चित्रों द्वारा प्रदर्शन आवश्यक होता है। इसको स्पष्ट करते हुए प्रो० एस० जे० मोरोनी ने ठीक कहा है, “ठण्डे आंकड़े बहुत-से लोगों को गैर-उत्साहजनक होते हैं। जटिल स्थितियों को सरल तथा नियमित रूप देने के लिए चित्र सहायक होते हैं।”

चित्रों के लाभ अथवा महत्त्व (Importance or Advantages of Diagrams) चित्रों द्वारा आंकड़ों को प्रदर्शित करने के बहुत-से लाभ होते हैं, जिनकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-

  1. सरल तथा समझने योग्य बनाना (Simple and Understandable)-आंकड़ों को सरल तथा समझने योग्य बनाने के लिए चित्र महत्त्वपूर्ण योगदान डालते हैं।
  2. रोचक बनाना (Attractive)-चित्रों की सहायता से आंकड़ों को रोचक बनाया जा सकता है। हम जानते हैं कि साधारण मनुष्य आंकड़ों में रुचि नहीं लेते, इसलिए चित्र बनाकर उन मनुष्यों को आंकड़ों का ज्ञान दिया जा सकता है।
  3. तुलना में आसानी (Easy Comparison)-चित्र आंकड़ों की तुलना में बहुत सहायता करते हैं, जैसे कि किसी देश में जनसंख्या की वृद्धि की तुलना समय के आधार पर चित्रों द्वारा की जा सकती है। इसी तरह कीमतों की वृद्धि को सूचकांक के चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
  4. विश्लेषण में आसानी (Easy Interpretation) चित्रों की सहायता से जो परिणाम निकाले जाते हैं, उनके सम्बन्धी जानकारी आसानी से प्राप्त हो जाती है, जैसे कि जनसंख्या में वृद्धि को चित्र द्वारा स्पष्ट किया जाए तो आसानी से पता चल जाता है कि स्वतन्त्रता के पश्चात् अब तक जनसंख्या लगभग तीन गुणा बढ़ गई है।
  5. याद करने में आसानी (Easy Memorizing) चित्रों द्वारा तथ्यों को याद करना आसान होता है। आंकड़ों के रूप में इनको लम्बे समय तक याद रखने में मुश्किल का सामना करना पड़ता है। चित्र के रूप में देखे गए आंकड़े जल्दी याद हो जाते हैं।
  6. किफायती (Economical)-चित्रों द्वारा समय तथा परिश्रम बहुत कम लगता है। इस विधि द्वारा कम स्थान पर बहुत ज्यादा सूचना कम समय में प्रदान की जा सकती है, जैसे कि एक डॉक्टर मरीज की हालत को चारट देख कर जल्दी दवाई दे देता है।
  7. संक्षेप रूप देना (Condensation)-चित्रों द्वारा आंकड़ों को संक्षेप रूप दिया जाता है। इसलिए पुरानी कहावत ठीक है कि तस्वीर हज़ारों शब्दों के बराबर होती है। (A Picture is Worth thousands of Words.)

चित्रों की सीमाएं (Limitations of Diagrams) –
चित्रों द्वारा आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण की मुख्य सीमाएं निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. गलत व्याख्या (Wrong Interpretation) चित्रों द्वारा तथ्यों की ठीक व्याख्या नहीं की जा सकती। यह तो आंकड़ों को प्रदर्शन करने का एक साधन मात्र होता है। कई बार चित्रों को देखकर पाठक गलत परिणाम निकाल लेते हैं।
  2. सीमित सूचना (Limited Information)-विशाल आंकड़ों को चित्रों द्वारा प्रदर्शन किया जाता है तो वास्तविक सूचना प्रदान नहीं की जा सकती। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए थोड़ी सूचना प्रदान की जाती है। परिणामस्वरूप आंकड़ों को पेश करने का उद्देश्य समाप्त हो जाता है।
  3. अनुमानित मूल्य (Approximate Value)-चित्रों द्वारा आंकड़ों के पूरे मूल्य नहीं दिखाए जा सकते, बल्कि अनुमानित मूल्यों को ही स्पष्ट किया जाता है। इसलिए आंकड़ों को पूर्ण रूप में स्पष्ट करना मुश्किल हो जाता है।
  4. दुरुपयोग (Misuse)-चित्रों द्वारा आंकड़ों को उद्देश्य अनुसार तोड़-मरोड़ कर पेश किया जाता है। इसलिए इश्तिहारबाज़ी में इनके भिन्न अर्थ प्रकट किए जाते हैं तथा ग्राहकों को कम उपयोगी वस्तुएं खरीदने के लिए प्रेरणा दी जा सकती है।

प्रश्न 2.
चित्र कितने प्रकार के होते हैं ? इन प्रकारों को स्पष्ट करें। (What are the types of diagrams ? Explain the meanings of the types of diagrams.)
उत्तर-
चित्रों को मुख्य तौर पर पांच भागों में विभाजित कर स्पष्ट किया जाता है। इसलिए चित्रों की 5 किस्में होती हैं, जिनको हम निम्नलिखित खाके की सहायता से स्पष्ट करते हैं-
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1. दण्ड चित्र (Bar Diagrams)-रेखाचित्रों को दण्ड चित्र अथवा डण्डा चित्र (Bar Diagrams) के रूप में प्रकट किया जा सकता है। आंकड़ों को पेश करने के लिए चित्रों की यह किस्म बहुत अधिक प्रयोग की जाती है। इस उद्देश्य के लिए सीधी रेखाओं जिनको साधारण डण्डा चित्र (Simple Bar Diagrams) अथवा बहु-डण्डा चित्र (Multiple Bar Diagrams) इत्यादि के रूप में प्रकट किया जाता है। जब हम चित्र के एक ओर अर्थात् ऊपर, नीचे, दाएं अथवा बाईं ओर डण्डे बनाते हैं तो इसको एक पक्षीय (One Dimensional) चित्र कहा जाता है। इसको दण्ड चित्र 4 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
उदाहरण-
निम्नलिखित सारणी को डण्डा चित्र की सहायता से स्पष्ट करो।
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2. आयत चित्र (Rectangular Diagram)-चित्रों को स्पष्ट करने के लिए आयत (Rectangle) तथा वर्ग (Square) का प्रयोग भी किया जाता है। जब हम दो विस्तार वाले चित्रों में चित्र की लम्बाई तथा चौड़ाई दोनों को ही महत्त्व देना चाहते हैं तो ऐसे चित्रों को विस्तार (Two Dimensional) वाले चित्र कहा जाता है। ऐसे चित्रों में चित्रों का क्षेत्रफल महत्त्वपूर्ण होता है जोकि लम्बाई तथा चौड़ाई को गुणा करके प्राप्त किया जाता है। इसलिए आयताकार तथा वर्गाकार चित्रों को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर बहुत-से तथ्यों की भी व्याख्या की जा सकती है। उदाहरणस्वरूप दो फ़र्मों के व्यय तथा लाभ की जानकारी इस प्रकार दी गई है। इसको आयत चित्र द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है – उदाहरण-फ़र्म A तथा फ़र्म B के व्यय पर लाभ का विवरण निम्नलिखित अनुसार है –
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इस प्रकार आयताकार चित्र फ़र्म A तथा B फ़र्म के व्यय, आय, लाभ इत्यादि की जानकारी प्रदान करते हैं।

3. चक्र अथवा पाई चित्र (Pie Diagram)-चित्र को गोलाकार रूप में भी स्पष्ट किया जाता है। इस स्थिति में एक गोल चक्कर का निर्माण करने के पश्चात् इसमें 36° कोणों का योग होता है। इसलिए प्रत्येक मूल्य को स्पष्ट करते समय इसका मूल्य 360° के अनुपात में प्राप्त किया जाता है तथा जब हमारे पास प्रत्येक मूल्य का योगदान डिग्री के रूप में प्राप्त हो जाता है तो उस अनुसार हम गोलाकार चित्र का निर्माण करते हैं। इस विधि को डॉक्टर ऊटा न्यूरैथ ने विकसित किया था। उदाहरणस्वरूप एक देश में राष्ट्रीय आय कुल आय का 50% भाग खेती में, 30% भाग उद्योगों में, 10% भाग सेवाओं तथा 10% भाग सबसे प्राप्त किया जाता है। इस स्थिति में विभिन्न क्षेत्रों को ध्यान में रखकर गोलाकार की कोणों का निर्माण निम्नलिखित अनुसार किया जाता है-

राष्ट्रीय आय में ………………………… |
कृषि में योगदान = \(\frac{50}{100}\) x 360° = 180°
उद्योगों में योगदान = \(\frac{30}{100}\) x 360° = 108°
सेवाओं में योगदान = \(\frac{10}{100}\) x 360 = 36°
शेष क्षेत्रों में योगदान = \(\frac{10}{100}\) x 360° = 36°
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विभिन्न क्षेत्रों के योगदान को डिग्रियों में पता करके गोल आकार चित्र (Pie Diagram) का निर्माण किया जाता

4. चित्र लेख (Pictograph)-चित्र लेख वह विधि होती है, जिस द्वारा तस्वीरों को बनाकर आंकड़ों का प्रदर्शन करने का प्रयत्न किया जाता है। उदाहरणस्वरूप एक देश की जनसंख्या को 1951 तथा 1991 के समय का तुलनात्मक अध्ययन करना है तो इस स्थिति में देश X की जनसंख्या के आंकड़े इस प्रकार दिए गए हैं-
(Population of A Country) देश X की जनसंख्या
1951-4 करोड़
1991-7 करोड़
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण 14
टिप्पणी = एक करोड़ इस प्रकार मनुष्यों, कारों अथवा उत्पादित वस्तुओं के चित्र बनाकर व्याख्या की जा सकती है।
5. मानचित्र (Cartrograph)-मानचित्र की विधि में विभिन्न देश के नक्शों में उन देशों में प्राप्त होने वाली वस्तुएं सम्बन्धी आंकड़े प्रस्तुत किए जाते हैं। जब हमें तथ्यों को भौगोलिक आधार पर दिखाना हो तो मानचित्रों (Maps or Cartographes) का प्रयोग किया जाता है। उदाहरणस्वरूप भारत में प्रमुख नगरों दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता तथा चेन्नई के अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान का विवरण देना हो तो भारत के नक्शे में इन स्थानों के नाम लिखकर न्यूनतम तथा अधिकतम तापमान का विवरण दिया जा सकता है। इस विधि को मानचित्र विधि कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 19 बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण

मानचित्र अनुसार दिल्ली का अधिकतम तापमान 40° तथा न्यूनतम 25° है।
कोलकाता का अधिक तापमान 30° तथा न्यूनतम 20° है।
मुम्बई का अधिकतम तापमान 30° तथा न्यूनतम 20°
चेन्नई का अधिकतम तापमान 35° तथा न्यूनतम 25°
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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

PSEB 11th Class Economics सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
संख्यात्मक विश्लेषण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संख्यात्मक विश्लेषण से तात्पर्य, किसी तथ्य के विभिन्न पहलुओं का संख्याओं के आधार पर विश्लेषण करना होता है। अर्थात् संख्यात्मक विश्लेषण वह क्रिया है, जिसमें ‘अंकों का विज्ञान’ प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
सांख्यिकी की बहुवचन अथवा समंक के रूप में एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
समंकों से हमारा अभिप्राय उन संख्यात्मक तत्त्वों से है, जो पर्याप्त सीमा तक अनेक प्रकार के कारणों से प्रभावित होते हैं।

प्रश्न 3.
सांख्यिकी की एकवचन अथवा विज्ञान के रूप में परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
एकवचन के रूप में सांख्यिकी का अर्थ सांख्यिकी विधियां अथवा सांख्यिकी विज्ञान से है।

प्रश्न 4.
सांख्यिकी विधियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सांख्यिकी विधियों से हमारा अभिप्राय उन विधियों से है जो अनेक कारणों से प्रभावित संख्यात्मक आंकड़ों की व्याख्या करने के लिए विशेष रूप से उपयोगी होती हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

प्रश्न 5.
सांख्यिकी की एक सीमा लिखिए।
उत्तर-
सांख्यिकी केवल ऐसे तथ्यों का अध्ययन करती है जिन्हें संख्याओं के रूप में व्यक्त किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
सांख्यिकी के किसी एक कार्य का वर्णन करें।
उत्तर-
सांख्यिकी का एक महत्त्वपूर्ण कार्य इस प्रकार हैतथ्यों की तुलना-सांख्यिकी का एक काम अलग-अलग तथ्यों में तुलना करना भी होता है।

प्रश्न 7.
सांख्यिकी के महत्त्व को स्पष्ट करने के लिए कोई एक मत दें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र के लिए महत्त्व-सांख्यिकी अर्थशास्त्र का आधार है। आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए सांख्यिकी की सहायता ली जाती है।

प्रश्न 8.
“सांख्यिकी पर भरोसा नहीं किया जा सकता।” इस मत की पुष्टि करें।
उत्तर-
डिजराइली ने कहा है, “झूठ तीन प्रकार के होते हैं झूठ, सफेद झूठ और सांख्यिकी।” इसलिए कुछ लोग यह कहते हैं कि सांख्यिकी झूठे होते हैं।

प्रश्न 9.
सांख्यिकी वह विधि है जो समंकों का संकलन, वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण व निर्वचन से सम्बन्धित है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 10.
सांख्यिकी का महत्त्व …………….. क्षेत्रों में होता है।
(a) अर्थशास्त्र
(b) आर्थिक नियोजन
(c) बैंकिंग
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
सांख्यिकी को क्राकस्टन और काउडेन ने सांख्यिकी ………. कहा है।
उत्तर-
विधियां।

प्रश्न 12.
बहुवचन के रूप में सांख्यिकी की सब से अच्छी परिभाषा ………….. ने दी।
(a) एचनबाल
(b) बाउले
(c) होरेस सीक्रिस्ट
(d) क्राकस्टन और काउडेन।
उत्तर-
(c) होरेस सीक्रिस्ट।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

प्रश्न 13.
भारत की जनसंख्या 1951 में 36 करोड़ थी जोकि 2011 में 121 करोड़ हो गई है। इसको सांख्यिकी कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
सांख्यिकी विज्ञान भी है और कला भी है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
समंकों के संग्रहकरण, प्रस्तुतिकरण, विश्लेषण तथा विवेचन को वर्णात्मक सांख्यिकी कहा जाता
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
सांख्यिकी में समूचे समूह को ब्रह्मांड कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
सांख्यिकी में औसतों का अध्ययन किया जाता है जिसके कारण इनका दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 18.
सांख्यिकी का अर्थशास्त्र में प्रयोग नहीं किया जाता बल्कि अर्थशास्त्र सांख्यिकी के लिए लाभदायक
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 19.
सांख्यिकी आर्थिक नियोजन का ………….. है।
उत्तर-
आधार।

प्रश्न 20.
सांख्यिकी में गुणात्मक आंकड़ों को प्रकट किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सांख्यिकी क्या है?
उत्तर-
आक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, “सांख्यिकी शब्द के दो अर्थ हैं।”

  1. बहुवचन के रूप में व्यवस्थित विधि द्वारा एकत्रित किए गए संख्यात्मक तथ्य जैसे कि जनसंख्या सम्बन्धी एकत्र किए गए आंकड़े।
  2. एकवचन के रूप में सांख्यिकी विधियां अर्थात् आंकड़ों को एकत्रित करने, उनके वर्गीकरण तथा प्रयोग करने सम्बन्धी विज्ञान।” इस प्रकार सांख्यिकी में उन विधियों का अध्ययन किया जाता है, जिन द्वारा आंकड़ों को एकत्रित करने, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या करने की समस्याओं का हल किया जाता है।

प्रश्न 2.
सांख्यिकी की एकवचन के रूप में परिभाषा दो।
अथवा
सांख्यिकी की उचित परिभाषा दो।
उत्तर-
प्रो० क्राक्स्टन तथा काउडेन के अनुसार, “सांख्यिकी को संख्यात्मक आंकड़ों का संग्रहण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या से सम्बन्धित विज्ञान कहा जाता है।” सांख्यिकी उन विधियों से सम्बन्धित है, जिन द्वारा आंकड़ों को एकत्र करके, इनकी व्यवस्था की जाती है। आंकड़ों का विश्लेषण करके परिणाम प्राप्त किए जाते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

प्रश्न 3.
“सांख्यिकी विज्ञान नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विधि है,” स्पष्ट करो।
अथवा
सांख्यिकी के औज़ारों को स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रो० क्राक्स्टन तथा काउडेन ने कहा है कि सांख्यिकी विज्ञान नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विधियां हैं। इसमें वैज्ञानिक विधियों का अध्ययन किया जाता है। जैसे कि समंकों का संग्रहकरण (Collection), व्यवस्थीकरण (Organization), प्रस्तुतीकरण (Presentation), विश्लेषण (Analysis) तथा व्याख्या (Interpretation)। इन विधियों की सहायता से व्यावहारिक समस्याओं को आंकड़ों से हल किया जाता है। इनको सांख्यिकी औज़ार भी कहा जाता है।

प्रश्न 4.
सांख्यिकी की विषय सामग्री को स्पष्ट करें।
अथवा
वर्णात्मक सांख्यिकी तथा आगमन सांख्यिकी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सांख्यिकी की विषय सामग्री को दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. वर्णात्मक सांख्यिकी-वर्णात्मक सांख्यिकी से अभिप्राय उन विधियों से होता है, जो समंकों को एकत्र करने तथा विश्लेषण करके व्याख्या करने से होता है। इसमें केन्द्रीय प्रवृत्तियों का माप, अपकिरण, सहसम्बन्ध इत्यादि विधियां शामिल होती हैं।
  2. आगमन सांख्यिकी-आगमन सांख्यिकी का अर्थ एक समुच्चय में से सैंपल लेकर निष्कर्ष निकाले जाते हैं, जिनको सभी समुच्चयों पर लागू किया जाता है। इसको आगमन सांख्यिकी कहा जाता है।

प्रश्न 5.
एक तालिका द्वारा सांख्यिकी अध्ययन के चरण तथा उनसे सम्बन्धित उपकरण बताओ।
उत्तर –

चरण सांख्यिकी अध्ययन सांख्यिकी उपकरण
प्रथम चरण आंकड़ों का संकलन निर्देशन तथा संगणना विधि
द्वितीय चरण आंकड़ों का व्यवस्थीकरण
तीसरा चरण आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण तालिका, ग्राफ तथा रेखाचित्र
चौथा चरण आंकड़ों का विश्लेषण केन्द्रीय प्रवृत्तियों, सहसम्बन्ध सूचकांक के
पांचवां चरण आंकड़ों की व्याख्या सांख्यिकी विधियों का परिणाम तथा आंकड़ों के सम्बन्धों की व्याख्या

प्रश्न 6.
सिद्ध कीजिए कि सांख्यिकी आंकड़े होते हैं, परन्तु सभी आंकड़े सांख्यिकी नहीं।
उत्तर-
सांख्यिकी का सम्बन्ध आंकड़ों से होता है, परन्तु सभी आंकड़े सांख्यिकी नहीं, जैसे कि भारत की जनसंख्या 1951 में 36 करोड़ थी। यह सांख्यिकी नहीं। आंकड़ों के समुच्चय को सांख्यिकी कहा जाता है, जैसे कि भारत की जनसंख्या 1951 में 36 करोड़ थी, जोकि 2001 में बढ़कर 102.7 करोड़ हो गई है। इसको सांख्यिकी कहा जाएगा। क्योंकि इसमें आंकड़ों का समूह दिया गया है।

प्रश्न 7.
सांख्यिकी के दो महत्त्वपूर्ण कार्य बताओ।
उत्तर-
सांख्यिकी के दो महत्त्वपूर्ण कार्य हैं

  • तथ्यों में तुलना करना जैसे दो देशों में रहने वाले लोगों का जीवन स्तर, उन देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना से लगाया जाता है।
  • तथ्यों में सम्बन्ध स्थापित करना, जैसे कि वस्तु की कीमत तथा उस वस्तु की मांग का विपरीत सम्बन्ध होता है, परन्तु दूसरी बातें समान रहती हैं।

प्रश्न 8.
सांख्यिकी के अविश्वास के कारण बताओ।
उत्तर-
सांख्यिकी के अविश्वास के मुख्य कारण इस प्रकार हैं –

  1. समंकों को पूर्व निर्धारक परिणामों अनुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
  2. एक समस्या के लिए विभिन्न प्रकार के आंकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं।
  3. उचित आंकड़ों को गलत ढंग से पेश करके लोगों को भ्रमित किया जा सकता है।
  4. जब समंक अधूरे एकत्रित किए जाते हैं तो गलत परिणाम प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 9.
“सांख्यिकी अपने आप कुछ सिद्ध नहीं करती। इसका प्रयोगी इसका गलत प्रयोग करता है।” स्पष्ट करो।
उत्तर –
सांख्यिकी के समंक अपने आप कुछ भी सिद्ध नहीं करते, बल्कि समंकों से इनको प्रयोग करने वाला कुछ भी सिद्ध कर सकता है। समंकों को एकत्र करने के लिए सांख्यिकी माहिर होते हैं। यदि वह एक शहर में औसत आय का माप करते समय 200 अमीर परिवारों के आंकड़े एकत्रित करके औसत आय निकालते हैं तो यह परिणाम उस शहर की ठीक आर्थिक स्थिति को ब्यान नहीं करेगा।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

प्रश्न 10.
आर्थिक सन्तुलन में सांख्यिकी का क्या महत्त्व है? .
उत्तर-
सन्तुलन का अभिप्राय उस स्थिति से होता है, जिस स्थिति को प्राप्त करके कोई मनुष्य उसको छोड़ना नहीं चाहता। एक उत्पादक वस्तु की कीमत निर्धारण करना चाहता है तो वस्तु की मांग तथा वस्तु की पूर्ति जहां समान होती है, उस जगह पर सन्तुलन स्थापित होगा तथा कीमत निश्चित की जाएगी। इस उद्देश्य के लिए मांग तथा पूर्ति के आंकड़े लाभदायक होते हैं।

प्रश्न 11.
समाज सुधारकों के लिए सांख्यिकी का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
सांख्यिकी को सामाजिक समस्याओं के लिए भी प्रयोग किया जाता है। एक समाज सुधारक के लिए सामाजिक बुराइयां जैसे कि दहेज प्रथा, जुआ, शराबखोरी इत्यादि से सम्बन्धित आंकड़े महत्त्वपूर्ण होते हैं। इनकी जानकारी प्राप्त करने के पश्चात् वह इन बुराइयों का हल करने के लिए सुझाव देता है। इसलिए आंकड़ों की जानकारी महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 12.
सांख्यिकी का व्यापार में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
एक अच्छा व्यापारी बाज़ार की पूर्ण जानकारी प्राप्त करके उत्पादन सम्बन्धी निर्णय लेता है। देश में वस्तु की कितनी मांग होगी तथा उस वस्तु की पूर्ति के लिए देश में कच्चा माल, श्रमिक, पूंजी इत्यादि सम्बन्धी आंकड़े प्राप्त करके व्यापारी अच्छे ढंग से उत्पादन कर सकता है। बोडिंगटन अनुसार, “एक अच्छा व्यापारी वह है जोकि शुद्धता के अनुकूल ही अनुमान लगा सकता है।”

प्रश्न 13.
सांख्यिकी विधियां साधारण बुद्धि का स्थानापन्न नहीं होती?
उत्तर-
सांख्यिकी विधियां साधारण बुद्धि से प्रयोग करनी चाहिए, परन्तु ये साधारण बुद्धि का स्थानापन्न नहीं होती। सांख्यिकी विधियां बहुत-सी मान्यताओं पर आधारित होती हैं। इसलिए जो परिणाम सांख्यिकी द्वारा प्राप्त किए जाते हैं, उनको आंकड़ों के एकत्रित करने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर देखना चाहिए, जैसे कि एक शहर में अस्पतालों की संख्या अधिक हो सकती है तथा उस शहर में मृतकों की संख्या भी अधिक हो सकती है, परन्तु यह परिणाम प्रत्येक स्थान पर उचित लागू नहीं होगा। इसलिए सांख्यिकी परिणाम गलत भी हो सकते हैं। इसलिए इनका प्रयोग बिना सोचेसमझे नहीं किया जाना चाहिए अर्थात् हमें अपनी बुद्धि का प्रयोग किए बिना सांख्यिकी विधियों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 14.
आंकड़ों को एकत्रित करते समय किस प्रकार की त्रुटियों की सम्भावना हो सकती है?
उत्तर-
आंकड़ों का एकत्रीकरण, व्यवस्थीकरण, वर्गीकरण तथा विश्लेषण करते समय कई तरह की त्रुटियां हो सकती हैं, जैसे कि-

  • मापने सम्बन्धी त्रुटियां
  • प्रश्नावली में दोष होने सम्बन्धी त्रुटियां
  • आंकड़ों को लिखते समय त्रुटियां
  • गणना करने वाले द्वारा पक्षपात की त्रुटियां, इत्यादि।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रो० होरेस सीक्रिस्ट की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
समंकों से हमारा आशय तथ्यों के समूह से है जोकि एक पर्याप्त सीमा तक अनेक कारणों से प्रभावित होते हैं जिनको अंकों में व्यक्त किया जाता है, जोकि गणना किए जाते हैं अथवा शुद्धता के स्तर के आधार पर अनुमानित किए जाते हैं, जिनको पूर्व निश्चित उद्देश्य के लिए एक व्यवस्थित ढंग से एकत्रित किया जाता है तथा उन्हें एक-दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करके रखा जाता है।

प्रश्न 2.
सांख्यिकी की एक उचित परिभाषा दें।
उत्तर-
सांख्यिकी की उपयुक्त परिभाषा-अर्थशास्त्र की भान्ति सांख्यिकी की परिभाषा में भी कितना मतभेद है। यह उपयुक्त विभिन्न परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि इसका क्षेत्र बहुत व्यापक है तथा दिन-प्रतिदिन विकसित होता गया है। फिर भी इन सभी परिभाषाओं के विवेचन से कुछ मूल तत्त्व प्रकट होते हैं जिनका एक उपयुक्त परिभाषा में समावेश करना आवश्यक है-

  1. सांख्यिकी की प्रकृति-इसमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि वह कला और विज्ञान दोनों हैं।
  2. विषय सामग्री-सांख्यिकी में समंकों का अध्ययन होता है अर्थात् ऐसे सामूहिक तथ्यों को जिनको संख्याओं में व्यक्त किया जा सकता है और जिन पर विविध कारणों का प्रभाव पड़ता है।
  3. उद्देश्य-सांख्यिकी में निर्धारित उद्देश्य की पूर्ति का पर्याप्त रूप में अध्ययन होता है।
  4. सांख्यिकीय रीतियां-परिभाषा में सांख्यिकीय रीतियां-जैसे संग्रहण, वर्गीकरण, सारणीयन, प्रस्तुतीकरण, सम्बन्ध स्थापन, निर्वचन और पूर्वानुमान-का समावेश होना आवश्यक है।

इन्हें संग्रहण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण और निर्वचन चार प्रमुख भागों में बांटा जा सकता है। सांख्यिकी की एक उपयुक्त परिभाषा निम्न हो सकती है- “सांख्यिकी एक विज्ञान और एक कला है जो सामाजिक, आर्थिक, प्राकृतिक व अन्य समस्याओं से सम्बन्धित समंकों के संग्रहण, वर्गीकरण, सारणीयन, प्रस्तुतीकरण, सम्बन्ध-स्थापन, निर्वचन और पूर्वानुमान से सम्बन्ध रखती है ताकि निर्धारित उद्देश्य की पर्ति हो सके।”

प्रश्न 3.
“सांख्यिकी विज्ञान नहीं, बल्कि वैज्ञानिक विधि है।” समीक्षा करें।
उत्तर-
सांख्यिकी एक वैज्ञानिक विधि है। कुछ विद्वान् सांख्यिकी को विज्ञान नहीं बल्कि वैज्ञानिक विधि स्वीकार करते हैं। क्रॉक्सटन एवं काउडन ने भी इसी प्रकार का मत प्रकट किया है कि सांख्यिकी विज्ञान नहीं, वैज्ञानिक विधि है। उनके अनुसार सांख्यिकी स्वयं लक्ष्य नहीं, लक्ष्य प्राप्त करने का एक रास्ता है। वह साध्य नहीं, साधन है, परन्तु वैज्ञानिक विधि का अर्थ यह नहीं है कि सांख्यिकी विज्ञान नहीं है, सांख्यिकी विज्ञान है और इतना महत्त्वपूर्ण विज्ञान है कि यह अन्य विज्ञानों का आधार बन गई है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

प्रश्न 4.
सांख्यिकी की तीन सीमाएं लिखें।
उत्तर-
1. सांख्यिकी संख्यात्मक तथ्यों का अध्ययन करता है, गुणात्मक तंथ्यों का नहीं-सांख्यिकी में केवल संख्यात्मक तथ्यों का ही अध्ययन सम्भव है और जिन तथ्यों का संख्यात्मक माप सम्भव नहीं होता, उनका अध्ययन सांख्यिकी में नहीं किया जाता, जैसे सभ्यता, दरिद्रता, ईमानदारी आदि गुणात्मक तथ्यों का अध्ययन सांख्यिकी में सम्भव नहीं है। इसके विपरीत कुछ तथ्य और समस्याएं ऐसी भी होती हैं जिनका संख्यात्मक वर्णन ही सम्भव नहीं होता और उनके गुणात्मक स्वरूप का ही अध्ययन करता है जैसे चरित्र, सुन्दरता, व्यवहार, बौद्धिक स्तर आदि। ऐसे विषय सांख्यिकी के क्षेत्र से बाहर रहते हैं, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से इनका अध्ययन सम्भव बनाया जा सकता है।

2. सांख्यिकी तथ्यों में सजातीयता व समानता होनी चाहिए-समंकों के पारस्परिक तुलनात्मक अध्ययन हेतु यह आवश्यक है कि समंकों में सजातीयता व समानता हो। यदि समंकों में एकरूपता का अभाव है जो निष्कर्ष भ्रमात्मक होंगे जैसे चलने में मुद्रा की मात्रा एवं परीक्षाफल से सम्बन्धित समंकों के आधार पर कोई निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता, क्योंकि दोनों प्रकार के समंक सजातीय नहीं और इन पर आधारित निष्कर्ष भी गलत व भ्रमात्मक होंगे।

3. सांख्यिकी केवल साधन प्रस्तुत करती है, समाधान नहीं-सांख्यिकी का कार्य समंकों को संकलित करना है, उनमें निष्कर्ष निकालना नहीं है। सांख्यिकी का कार्य तो पक्षपात रहित ढंग से संकलित करके उन्हें प्रदर्शित करना है जिससे आंकड़ों का दुरुपयोग न हो सके और सही निष्कर्ष निकाले जा सकें। अत: सांख्यिकी साधन प्रस्तुत करती है, उसके समाधान के सम्बन्ध में कुछ नहीं बताती।

प्रश्न 5.
सांख्यिकी के उद्देश्य लिखें।
उत्तर-

  1. अनुसन्धान क्षेत्र में सांख्यिकी विधियों का प्रयोग करना।
  2. विभिन्न समस्याओं का विवेचनात्मक अध्ययन करना।
  3. प्राप्त सामग्री से महत्त्वपूर्ण निष्कर्ष निकालना एवं पूर्वानुमान लगाना।
  4. भूतकालीन एवं वर्तमान समंकों को संकलित करके उन्हें काल श्रेणी के रूप में प्रस्तुत करना।
  5. प्राप्त समंकों को इस प्रकार रखना कि वे तुलना के योग्य हों।
  6. परिवर्तनों के कारणों एवं परिणामों का मूल्यांकन करना।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सांख्यिकी से क्या अभिप्राय है? बहुवचन में सांख्यिकी की परिभाषा को स्पष्ट करो। (What is Statistics ? Explain the Definition of Statistics in the plural sense.) (T.B.Q.1)
उत्तर-
सांख्यिकी की बहुवचन के रूप में परिभाषा (Definition of statistics in plural sense)सांख्यिकी के पिता जर्मन के अर्थशास्त्री ऐचन वाल (Achen Wall) को माना जाता है। उन्होंने कहा था, “आंकड़ा शास्त्र राज्य से संबंध रखने वाले महत्त्वपूर्ण तथ्यों का संग्रह होता है, जोकि ऐतिहासिक तथा व्यावहारिक होते हैं।” इस तरह आंकड़ों से सम्बन्धित परिभाषाएं दी गईं। इस रूप में प्रो० होरेस सीकरिस्ट ने आंकड़ा शास्त्र की उचित परिभाषा दी। उनके शब्दों में, आंकड़ा शास्त्र से हमारा अभिप्राय तथ्यों के समुच्चय से होता है, जोकि बहुत-से कारणों से प्रभावित होता है, जिनको संख्या के रूप में दिखाया जाता है। एक उचित मात्रा की शुद्धता अनुसार संख्या अथवा अनुमानित ढंग से एकत्रित किया जाता है, जोकि पूर्व निर्धारण उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं तथा एक-दूसरे से सम्बन्धित रूप में पेश किए जाते हैं।

सांख्यिकी की मुख्य विशेषताएं (Main Characteristics of Statistics)-
बहुवचन के रूप में सांख्यिकी की विशेषताओं को होरेस सीकरिस्ट की परिभाषा को ध्यान में रखकर इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन किया जा सकता है-
1. सांख्यिकी तथ्यों का समुच्चय है-सीकरिस्ट की परिभाषा में यह स्पष्ट किया गया है कि सांख्यिकी से अभिप्राय तथ्यों के समुच्चय से होता है। जब हम यह कहते हैं कि भारत की जनसंख्या 1951 में 36 करोड़ थी तो इससे कोई परिणाम प्राप्त नहीं होता। परन्तु जब भारत की जनसंख्या की वृद्धि को स्पष्ट किया जाता है जोकि प्रत्येक दस वर्षों पश्चात् 36 करोड़, 43 करोड़, 54 करोड़, 68 करोड़, 84 करोड़ तथा 102.7 करोड़ हो गई है। इस सूचना से हम यह परिणाम निकालते हैं कि 1951-2001 तक 50 वर्षों में भारत की जनसंख्या लगभग तीन गुणा बढ़ गई है।

2. सांख्यिकी के आंकड़े अनेकों कारणों से प्रभावित होते हैं-सांख्यिकी की दूसरी विशेषता है कि तथ्यों को प्रभावित करने वाले अनेक कारण होते हैं। जैसे कि किसी क्षेत्र में गेहूँ की पैदावार अधिक होने के बहुत-से कारण होते हैं, जैसे कि भूमि की उपजाऊ शक्ति, सिंचाई की सुविधाएं, कृषि करने के आधुनिक ढंग, लोगों का मेहनती होना इत्यादि।

3. सांख्यिकी को संख्याओं में दर्शाया जाता है-सांख्यिकी में हम समस्याओं को संख्याओं के रूप में स्पष्ट करते हैं। गुणात्मक तत्त्वों जैसे कि अमीर-गरीब, गोरा-काला इत्यादि गुणों से सांख्यिकी का सम्बन्ध नहीं होता है।

4. सांख्यिकी के आंकड़े संख्या द्वारा अथवा अनुमानित एकत्रित किए जाते हैं-सांख्यिकी में आंकड़ों को एकत्रित करने की दो विधियां होती हैं। प्रथम विधि अनुसार आंकड़ों को संख्या अनुसार एकत्रित किया जाता है जैसे कि एक स्कूल अथवा कॉलेज में कितने विद्यार्थी पढ़ते हैं। कई बार आंकड़ों का अनुमान लगाना पड़ता है जैसे कि होस्टल में रहने वाले विद्यार्थियों द्वारा नशीले पदार्थों पर किए गए खर्च के आंकड़े संख्या द्वारा एकत्रित नहीं किए जा सकते। इसलिए आंकड़ों का अनुमान लगाया जाता है।

5. सांख्यिकी के आंकड़ों में उचित मात्रा में शुद्धता होनी चाहिए-सांख्यिकी के आंकड़े एकत्रित करते समय शुद्धता के लिए एक उचित स्तर को ध्यान में रखना चाहिए।

6. सांख्यिकी के आंकड़े क्रमानुसार एकत्रित करना-आंकड़ा शास्त्र में जो आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं, इनको क्रमानुसार एकत्रित करना चाहिए है। आंकड़े एकत्रित करने से पहले योजना बनानी चाहिए है।

7. आंकड़ों का पूर्व निर्धारित उद्देश्य होना चाहिए-आंकड़ों को पहले निश्चित उद्देश्य के लिए ही एकत्रित करना चाहिए। यदि हम किसी देश को विकसित अथवा अल्पविकसित सिद्ध करना चाहते हैं तो दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना द्वारा इसको सिद्ध किया जा सकता है।

8. सांख्यिकी के आंकड़े एक-दूसरे से सम्बन्धित होने चाहिए-सांख्यिकी की एक विशेषता यह है कि जिन आंकड़ों को हम एकत्रित करते हैं, वह एक-दूसरे से सम्बन्धित हों अर्थात् उनमें तुलना की जा सके।

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प्रश्न 2.
सांख्यिकी की एकवचन के रूप में परिभाषा दो।(Define Statistics in the singular sense.)
अथवा
सांख्यिकी की सांख्यिकी विधियों के रूप में परिभाषा को स्पष्ट कीजिए। (Explain Statistics in the form of statistical method.)
उत्तर-
आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने सांख्यिकी को एकवचन के रूप में स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। इसलिए आंकड़ा शास्त्र को सांख्यिकी विधियों का शास्त्र अथवा सांख्यिकी विज्ञान कहा जाता है। इस सम्बन्ध में प्रो० क्राक्स्टन तथा काउडेन ने सांख्यिकी की परिभाषा को उचित रूप में स्पष्ट किया है। उनके अनुसार, “सांख्यिकी को संख्यात्मक आंकड़ों का संग्रहण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या से सम्बन्धित विज्ञान कहा जा सकता है।” (“Statistics may be defined as the collection, presentation, analysis and Interpretation of Numerical data.”- Croxton and Cowden)
आधुनिक परिभाषाओं के अनुसार सांख्यिकी वह विज्ञान है, जिसमें पाँच विधियों का अध्ययन किया जाता है।
1. आंकड़ों के एकत्रित करना-सांख्यिकी में प्रथम कार्य आंकड़ों को एकत्रित करना होता है। सांख्यिकी में यह एक बहुत महत्त्वपूर्ण भाग माना जाता है, क्योंकि परिणामों का ठीक होना इस बात पर निर्भर करता है कि आंकड़े कितने सही एकत्रित किए गए हैं।

2. आंकड़ों की व्यवस्था-सांख्यिकी में आंकड़ों को एकत्रित करने के पश्चात् इन आंकड़ों का संगठन करना महत्त्वपूर्ण होता है। इसलिए आंकड़ों का वर्गीकरण किया जाता है। वर्गीकरण के साथ केवल अनिवार्य आंकड़े रखे जाते हैं तथा गैर अनिवार्य आंकड़ों को छोड़ दिया जाता है।

3. आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-आंकड़ों को क्रम देने के पश्चात् उनके प्रदर्शन की विधि को अपनाया जाता है। आंकड़ों को सरल, संक्षेप तथा सुन्दर रूप देने के लिए सारणियों (Tables) द्वारा अथवा चित्रों (Diagrams) द्वारा तथा रेखाचित्रों (Graphs) द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। इस विधि में हम उन ढंगों का अध्ययन करते हैं, जिनके द्वारा सारणियों, चित्र तथा रेखाचित्र बनाए जाते हैं।

4. आंकड़ों का विश्लेषण-आंकड़ों का विश्लेषण सांख्यिकी विधियों की सहायता से किया जाता है। सांख्यिकी में आंकड़ों के विश्लेषण के लिए बहुत-से ढंग बताए गए हैं, जैसे कि प्राकृतिक प्रवृत्तियाँ, अपकिरण के माप, विचलन का माप, सह-सम्बन्ध, सूचकांक इत्यादि बहुत-सी विधियां होती हैं, जिनके द्वारा आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है।

5. आंकड़ों की व्याख्या-सांख्यिकी की यह अंतिम विधि है, इसमें हम आंकड़ों के विश्लेषण की सहायता से परिणाम निकालते हैं। इस प्रकार आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने सांख्यिकी को एक विज्ञान कहा है, जिसमें हम सांख्यिकी विधियों का अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 3.
सांख्यिकी के क्षेत्र को स्पष्ट करो। (Explain the Scope of Statistics.)
उत्तर-
सांख्यिकी का क्षेत्र बहुत विशाल है। शायद ही कोई ऐसा शुद्ध विज्ञान अथवा समाज है, जहां पर सांख्यिकी का प्रयोग नहीं किया जाता। सांख्यिकी का प्रयोग बहुवचन के रूप में नहीं, बल्कि एकवचन के रूप में किया जाता है। सांख्यिकी के क्षेत्र को तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
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1. सांख्यिकी का स्वरूप-सांख्यिकी के स्वरूप में हम इन बातों का अध्ययन करते हैं कि सांख्यिकी एक विज्ञान (science) है अथवा कला (art) है। सांख्यिकी एक विज्ञान भी है अथवा कला भी है। विज्ञान के रूप में सांख्यिकी के विषय-सामग्री का क्रमानुसार अध्ययन किया जाता है। इसके नियमों में कारण तथा परिणामों का सम्बन्ध होता है। परिणामों की परख की जा सकती है। यह सभी विशेषताएं सांख्यिकी में होने के कारण यह एक विज्ञान है।

सांख्यिकी कला भी है, क्योंकि वास्तविक समस्याओं का हल करने के लिए आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है। इसलिए यह मजबूरन रोशनी ही प्रदान नहीं करता, बल्कि फल भी देती है। कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि इसको सांख्यिकी विधियों (Statistical Methods) का अध्ययन करते हैं।

2. सांख्यिकी की विषय-सामग्री-सांख्यिकी की विषय-सामग्री को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है
(i) वर्णात्मक सांख्यिकी-वर्णात्मक सांख्यिकी से अभिप्राय उन विधियों से होता है, जिन द्वारा आंकड़ों का संग्रहण (collection)- प्रस्तुतीकरण (presentation) तथा विश्लेषण (analysis) करना होता है। विधियों में औसत (averages) का माप, अपकिरण का माप (disperion), विषमता का माप (skewness) इत्यादि को शामिल किया जाता है। संक्षेप रूप में हम कह सकते हैं कि वर्णात्मक सांख्यिकी एक कच्चे माल जैसा है, जिनके आधार पर परिणाम निकाले जाते हैं। यदि आप 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों की औसत आय का माप करते हैं तो एक वर्णात्मक सांख्यिकी है।

(ii) आगमन सांख्यिकी-आगमन सांख्यिकी से अभिप्राय है कि सैंपल को आधार बनाकर जो परिणाम प्राप्त किए जाते हैं, वह परिणाम समुच्चय (Universe) पर लागू किए जा सकते हैं। समुच्चय का अर्थ है कि वह परिणाम औसतन उचित लागू होते हैं।

3. सांख्यिकी की सीमाएं-सांख्यिकी एक महत्त्वपूर्ण विज्ञान है, जोकि वास्तविक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है, परन्तु इसकी कुछ सीमाएं ऐसी हैं, जिनको दूर नहीं किया जा सकता। इसकी कुछ महत्त्वपूर्ण सीमाएं निम्नलिखित अनुसार हैं –

  • सांख्यिकी व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन नहीं करता-आंकड़ा शास्त्र की महत्त्वपूर्ण कमी यह है कि इसमें समुच्चयों का अध्ययन किया जाता है तथा व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन नहीं किया जाता। उदाहरणस्वरूप मान लो चार व्यक्तियों A, B, C तथा D की आय क्रमवार 10,000, 9000, 8000 तथा 1000 रु० मासिक है। औसत आय 10,000 + 9,000 + 8,000 + 1,000 = 28,000 : 4 = 7,000 रु० मासिक होगी। परन्तु औसत आय D मनुष्य की आय का प्रकटीकरण नहीं करती।
  • सांख्यिकी संख्यात्मक इकाइयों का अध्ययन करता है-इस विज्ञान में गुणात्मक तत्त्वों जैसे कि ईमानदारी, सुन्दरता, दोस्ती, बहादुरी इत्यादि का अध्ययन नहीं किया जाता। यह केवल संख्यात्मक इकाइयों का अध्ययन करता है।
  • केवल औसतों का अध्ययन-सांख्यिकी के परिणाम सर्वव्यापक तथा शत-प्रतिशत ठीक नहीं होते। यह तो औसत रूप में लागू होने वाले परिणामों का अध्ययन करता है। जब हम कहते हैं कि जापानी लोगों में देश प्रेम तथा कुर्बानी की भावना होती है तो यह अनिवार्य नहीं कि प्रत्येक जापानी में यह गुण पाए जाएं।
  • एक समान आंकड़ों का अध्ययन-प्रो० बाउले के अनुसार, सांख्यिकी की एक कमी यह है कि इसमें एक समान तथा एकरूप के आंकड़ों का अध्ययन किया जाता है। विभिन्न गुणों के आंकड़ों का अध्ययन सम्भव नहीं होता।

5. सांख्यिकी का गलत प्रयोग-सांख्यिकी का गलत प्रयोग किया जा सकता है। सांख्यिकी के आंकड़ों द्वारा झूठ को भी सच सिद्ध किया जा सकता है। इसलिए यह ठीक कहा गया है, “कुछ झूठ होते हैं, कुछ अति के झूठ तथा कुछ अत्यन्त झूठ सांख्यिकी हैं।” (“There are lies, damn lies and statistics.”)

6. केवल माहिरों द्वारा प्रयोग-सांख्यिकी एक विशेष प्रकार का शास्त्र है। इसका प्रयोग साधारण मनुष्यों द्वारा नहीं किया जा सकता। जिन मनुष्यों को सांख्यिकी का पूर्ण ज्ञान होता है, केवल उन माहिरों द्वारा ही सांख्यिकी का प्रयोग किया जा सकता है। प्रो० डबल्यू० आई० किंग के शब्दों में, “सांख्यिकी गीली मिट्टी जैसी है, जिससे आप परमात्मा अथवा शैतान की तस्वीर अपनी इच्छानुसार बना सकते हो।” (“Statistics are like clay, of which you can make a God or a Devil, as you please.”_W.I. King),

प्रश्न 4.
अर्थशास्त्र में सांख्यिकी के महत्त्व को स्पष्ट करें। (Explain the Importance of statistics in the Economics.)
उत्तर-
सांख्यिकी के महत्त्व को अर्थशास्त्र के क्षेत्र के लिए स्पष्ट करते हुए प्रो० मार्शल ने कहा था, “सांख्यिकी कच्ची मिट्टी जैसी है, जिससे मैं भी, दूसरे अर्थशास्त्रियों की तरह ईंटें बनाता हूँ।” (“Statistics are like the straw out of which I, like every economist have to make bricks” -Marshall) अर्थशास्त्र के क्षेत्र में सांख्यिकी का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ रहा है। अर्थशास्त्र में सांख्यिकी के महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है –
1. आर्थिक तुलना-सांख्यिकी की सहायता से आर्थिक तुलना सम्भव होती है। आर्थिक तुलना दो प्रकार से की जाती है-

  • अन्तर-क्षेत्रीय तुलना-इससे अभिप्राय देश के विभिन्न क्षेत्रों में तुलना करने से होता है।
  • समय अनुसार तुलना-समय अनुसार तुलना का अर्थ समय के आधार पर तुलना करना, जैसे कि 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी, जोकि 2001 में 102.7 करोड़ हो गई है।

2. आर्थिक सम्बन्धों का अध्ययन-सांख्यिकी में आर्थिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। जैसे कि वस्तु की कीमत में वृद्धि हो जाती है तो उस वस्तु की मांग कम हो जाती है। इस तरह के सम्बन्ध को सांख्यिकी की सहायता से स्पष्ट किया जाता है।

3. आर्थिक भविष्यवाणियां-सांख्यिकी द्वारा आर्थिक भविष्यवाणियां की जा सकती हैं। सांख्यिकी की सहायता से हम अनुमान लगा सकते हैं कि भारत की जनसंख्या आज से 20 वर्ष पश्चात् कितनी होगी।

4. आर्थिक सिद्धान्तों का निर्माण-अर्थशास्त्र में आर्थिक सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है। उस उद्देश्य के लिए सांख्यिकी आंकड़ों के आधार पर सांख्यिकी सम्बन्धों को स्पष्ट किया जाता है, जिससे आर्थिक परिणाम प्राप्त किए जाते हैं।

5. नीतियों का निर्माण–सांख्यिकी की सहायता से देश में आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है, जैसे कि प्रत्येक वर्ष देश का बजट बनाया जाता है।

6. आर्थिक सन्तुलन-सांख्यिकी की सहायता से आर्थिक सन्तुलन प्राप्त किया जाता है। उदाहरणस्वरूप प्रत्येक उपभोगी अपनी आय से अधिक-से-अधिक सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है। जब वह अपने पैसे इस ढंग से खर्च करता है कि उसको प्रत्येक वस्तु से प्राप्त होने वाला सीमान्त तुष्टिगुण समान मिलता है तो उसकी सन्तुष्टि अधिकतम होती है। सीमान्त तुष्टिगुण को समान करने के लिए सांख्यिकी के समंकों की आवश्यकता होती है।

7. आर्थिक नियोजन में महत्त्व-भारत के योजना आयोग अनुसार देश के आर्थिक विकास के लिए नियोजन सांख्यिकी के अधिकतम प्रयोग पर निर्भर करता है। (“Planning for the Economic Development of the Country depends on the maximum use of statistics’’-Planning Commissions). एक देश का आर्थिक नियोजन सांख्यिकी के समंकों की सहायता से बनाया जाता है।

8. व्यापार के लिए लाभदायक-एक सफल व्यापारी वह होता है, जोकि आंकड़ों सम्बन्धी शुद्ध जानकारी रखता है, यदि एक व्यापारी आने वाले समय के लिए मांग व पूर्ति का अनुमान लगाता है तो उसको व्यापार में वृद्धि होती है, इसलिए सांख्यिकी व्यापारियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 14 सांख्यिकी का अर्थ, क्षेत्र तथा अर्थशास्त्र में महत्त्व

प्रश्न 5.
सांख्यिकी के अविश्वासी होने को स्पष्ट करें। इसके अविश्वास को दूर करने के उपाय भी बताओ। (Explain the Distrust of Statistics. Discuss the Remedies to Remove distrust.)
अथवा
“सांख्यिकी गीली मिट्टी जैसे होती है, जिससे आप इच्छानुसार देवता अथवा शैतान बना सकते हो।” स्पष्ट कीजिए। (“Statistics are like clay of which you can make a God or Devil as you please.” Discuss.)
अथवा
झूठ तीन प्रकार के होते हैं, झूठ, महाझूठ तथा सांख्यिकी। यह झूठ इसी क्रम में घटिया भी होते हैं। स्पष्ट करो।
(There are three types of lies; Lies, Damn lies, and Statistics, wicked in the order of their naming. Discuss.)
उत्तर-
आंकड़ा शास्त्र एक ऐसा विषय है जिसमें आंकड़ों द्वारा समस्याओं को प्रकट किया जाता है। हम जानते हैं कि सांख्यिकी का अर्थ आंकड़ों को एकत्रित करना, वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या से होता है, इसमें बहुत-से औज़ारों का प्रयोग किया जाता है ताकि समस्याओं को हल किया जा सके। इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रत्येक शास्त्र में आंकड़ा शास्त्र की विधियां लाभदायक होती हैं, परन्तु आंकड़ों को पेश करने पर ही उनकी सच्चाई निर्भर करती है। एक अनुसन्धानकर्ता आंकड़ों को पेश करते समय निजी उद्देश्यों के लिए आंकड़ों का गलत प्रयोग कर सकता है।

साधारण तौर पर लोग आंकड़ों पर द्वारा विश्वास करते हैं। जिस कारण आंकड़ा शास्त्री कई बार झूठ को सच्च साबित करने में सफल हो जाते हैं। इसीलिए यह कहा जाता है कि, “झूठ तीन प्रकार के होते हैं-झूठ, महाझूठ तथा सांख्यिकी।” (“There are three kinds of lies, Damn lies, and statistics”) यह झूठ इसी क्रम में घटिया भी होते हैं। इसी तरह यह भी कहा जाता है, “आंकड़े प्रथम दर्जे के झूठ होते हैं” अथवा आंकड़े झूठ के तंतु होते हैं। यदि हम इन कथनों को देखते हैं तो हमें ज्ञात होता है कि सांख्यिकी के सभी आंकड़े विश्वसनीय नहीं होते। यह तो अनुसन्धानकर्ता के अनुसन्धान पर निर्भर करता है कि किस प्रकार के आँकड़े एकत्रित करके प्रस्तुत किए जाते हैं।

यदि अनुसन्धानकर्ता गलत उद्देश्य की पूर्ति को मुख्य रखकर अनुसन्धान करता है तो उस अनुसन्धान के परिणाम गलत परिणाम प्रस्तुत करते हैं। परन्तु यदि उचित ढंग से आंकड़े एकत्रित करके विश्लेषण किया जाता है तो यह आंकड़े लाभदायक परिणाम भी प्रदान करते हैं। संख्याएं अपने आप में निष्कपट होती हैं। इन संख्याओं की प्रस्तुति पर निर्भर करेगा कि प्राप्त परिणाम भी सामाजिक विज्ञान के लिए लाभदायक है अथवा हानिकारक, इसीलिए यह ठीक कहा गया है, “आंकड़े तो गीली मिट्टी जैसे होते हैं, जिससे आप देवता अथवा शैतान कुछ भी बना सकते हो।”

सांख्यिकी की अविश्वासी के मुख्य कारण (Reasons for Distrust of Statistics) सांख्यिकी के प्रति अविश्वास के मुख्य कारण निम्नलिखित अनुसार हैं –

  1. आंकड़े अशुद्ध तथा पक्षपाती हो सकते हैं।
  2. आंकड़ा शास्त्री, आंकड़ों से कुछ भी सिद्ध कर सकता है।
  3. ठीक आंकड़े भी गुमराह कर सकते हैं।

इसलिए आंकड़ों का प्रयोग करते समय सावधानी से काम लेना चाहिए। प्रो० डब्लयू० आई० किंग के अनुसार, “सांख्यिकी विज्ञान एक बहुत ही लाभदायक सेवक होता है। परन्तु इसका मूल्य उनके लिए अधिक है जोकि इसका उचित प्रयोग करते हैं।” (“The Science of statistics is the most useful servant, but only of great value for those who understand its proper use.”-W. I. King)

अविश्वास दूर करने के सुझाव (Measures to Remove Distrust) सांख्यिकी के अविश्वास को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जाते हैं-

  1. विशेषज्ञों द्वारा प्रयोग-सांख्यिकी एक ऐसा विषय है जो केवल विशेषज्ञों द्वारा ही प्रयोग किया जा सकता है। इस स्थिति में निपुण व्यक्ति ही इसके विश्वसनीय परिणाम निकाल सकता है।
  2. पक्षपात का अभाव-आंकड़े पक्षपात रहित होने चाहिए। पक्षपात द्वारा एकत्रित किए आंकड़ों से उचित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।
  3. सीमाओं की ओर ध्यान-सांख्यिकी का प्रयोग करते समय सांख्यिकी की सीमाओं को ध्यान में रखना चाहिए।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 18 सारणीयन द्वारा आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-सारणीकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 18 सारणीयन द्वारा आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-सारणीकरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 18 सारणीयन द्वारा आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-सारणीकरण

PSEB 11th Class Economics सारणीयन द्वारा आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-सारणीकरण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
सारणीयन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
सारणीयन द्वारा एकत्रित सामग्री को सरल, संक्षिप्त व बोधगम्य बनाया जाता है। सांख्यिकीय आंकड़ों को सारणी के रूप में प्रस्तुत करने की क्रिया को सारणीयन कहते हैं।

प्रश्न 2.
आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण से यह अभिप्राय है कि आंकड़ों को स्पष्ट तथा व्यवस्थित रूप से इस प्रकार आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाए कि उन्हें सभी व्यक्ति सरलतापूर्वक समझ सकें और उनसे उचित परिणाम निकाले जा सकें।

प्रश्न 3.
सारणीयन का एक लाभ लिखिए।
उत्तर-
इसकी सहायता से सांख्यिकीय सामग्री को इस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है कि इसे समझने में सरलता होती है तथा सांख्यिकीय प्रयोग के लिए ठीक हो जाती है।

प्रश्न 4.
एकत्रित किए आंकड़ों को कॉलम तथा पंक्तियों में प्रदर्शन करने को ……………. कहते हैं।
उत्तर-
सारणीयन।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 18 सारणीयन द्वारा आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-सारणीकरण

प्रश्न 5.
आंकड़ों को चित्रों द्वारा प्रदर्शित करने को सारणीयन कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 6.
आंकड़ों को कॉलम तथा पंक्तियों में प्रदर्शित करने को …………. कहते हैं।
(a) वर्गीकरण
(b) सारणीयन
(c) चित्रण
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) सारणीयन।

प्रश्न 7.
सारणी (Table) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आंकड़ों को कॉलम तथा पंक्तियों में प्रदर्शन करने को सारणी कहते हैं।

प्रश्न 8.
पंक्ति शीर्षक (Stub) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पंक्तियों के शीर्षक को पंक्ति शीर्षक (Stub) कहा जाता है।

प्रश्न 9.
उप शीर्षक (Caption) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सारणी के कॉलमों के शीर्षक को उप-शीर्षक कहा जाता है।

प्रश्न 10.
सारणी में क्षेत्र (Body) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
क्षेत्र में आंकड़ों सम्बन्धी सारणी में दी गई समूची सूचना को दिखाया जाता है।

प्रश्न 11.
सारणी में स्रोत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सारणी के अन्त में द्वितीय आंकड़ों को प्राप्त करने के स्रोत अथवा आंकड़े कहां से प्राप्त किये गए हैं इसको प्रकट करने को स्रोत कहते हैं।

प्रश्न 12.
सारणी की मुख्य तीन किस्में बताएँ।
उत्तर-

  • उद्देश्य अनुसार सारणी
  • मौलिकता अनुसार सारणी
  • बनावट अनुसार सारणी।

प्रश्न 13.
जो सारणी एक से अधिक गुणों को प्रकट करती है उसको …………… कहा जाता है।
उत्तर-
जटिल सारणी।

प्रश्न 14.
सारणी तथा ग्राफ में कोई अन्तर नहीं होता।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 18 सारणीयन द्वारा आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-सारणीकरण

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सारणीयन से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
सारणीयन का अर्थ (Meaning of Tabulation)-सारणीयन आंकड़ों को पेश करने की वह विधि होती है, जिसमें तथ्यों सम्बन्धी एकत्रित किए आंकड़ों को विभिन्न कालमों (Columns) अथवा कतारों (Rows) में प्रस्तुत किया जाता है। एकत्रित किए आंकड़ों को पेश करने के लिए सारणियों का निर्माण महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे आंकड़े सरल तथा सापेक्ष रूप धारण कर लेते हैं। इसलिए एकत्रित किए आंकड़ों को उनकी संख्याओं अनुसार कालमों तथा पंक्तियों में पेश करने की विधि को सारणी अथवा सूची कहा जाता है। इसको स्पष्ट करते हुए प्रो० एम० एम० ब्लेयर ने कहा है, “सारणीयन, विशाल अर्थों में कालमों तथा पंक्तियों के रूप में आंकड़ों को क्रमबद्ध करने से होता है।”

प्रश्न 2.
सारणीयन के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-

  1. जटिल आंकड़ों को सरल बनाना-सूचीकरण का मुख्य उद्देश्य एकत्रित किए जटिल आंकड़ों को सरल रूप प्रदान करना होता है। जब हम आंकड़ों को खानों तथा पंक्तियों में स्पष्ट करते हैं तो आंकड़े सरल हो जाते हैं।
  2. समझने में आसानी-आंकड़ों को जब सूची द्वारा स्पष्ट किया जाता है तो साधारण मनुष्य भी इनको समझने में आसानी महसूस करते हैं।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वर्गीकरण तथा सारणीयन में दो आधारों पर अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
वर्गीकरण या सारणीयन में अन्तर (Difference between Classification and Tabulation)वर्गीकरण तथा सारणीयन दोनों ही सांख्यिकीय अनुसंधान कार्य के लिए महत्त्वपूर्ण क्रियाएं हैं, जिनके द्वारा संग्रहित समंकों को संक्षिप्त बनाने और उन्हें व्यवस्थित तथा क्रमबद्ध करने में सहायता मिलती है। फिर भी दोनों में अन्तर है।

  1. क्रम-दोनों का क्रम (Sequence) भिन्न है। पहले समंकों को वर्गीकृत किया जाता है। उसके पश्चात् ही उन्हें सारणियों में प्रस्तुत किया जाता है। अतः वर्गीकरण सारणीयन का आधार है।
  2. समानता व असमानता-वर्गीकरण में समंकों को समानता व असमानता के आधार पर अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया जाता है जबकि सारणीयन में उन वर्गीकृत समंकों को खानों व पंक्तियों में बद्ध करके प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार सारणीयन वर्गीकरण की यन्त्रात्मक प्रक्रिया (Mechanical function of Classification) है।
  3. विधि-वर्गीकरण सांख्यिकीय विश्लेषण की विधि है जबकि सारणीयन समंकों के प्रस्तुतीकरण की रीति है।

प्रश्न 2.
हिन्दू कॉलेज अमृतसर के विद्यार्थियों की आयु तथा लिंग अनुसार संख्या प्रदर्शित करने हेतु एक कोरी सारणी बनाइए।
उत्तर-
शीर्षक-हिन्दू कॉलेज अमृतसर के विद्यार्थियों की आयु व लिंगानुसार संख्या –
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प्रश्न 3.
एक उत्तम सारणी के आवश्यक लक्षण लिखें।
उत्तर-
एक अच्छी सारणी में कुछ आवश्यक विशेषताएं होनी चाहिएं जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं –

  1. सारणी संक्षिप्त और सूगढ़ होनी चाहिए जिससे आवश्यक और वांच्छनीय जानकारी सरलता से प्राप्त हो सके।
  2. सारणी स्पष्ट और शुद्धता से पूर्ण होनी चाहिए। यह देखने में सुन्दर और आकर्षक होनी चाहिए।
  3. सारणी अनुसंधान के उद्देश्य के अनुकूल होनी चाहिए।
  4. सारणी सुनियोजित तथा वैज्ञानिक ढंग से निर्मित की जानी चाहिए।
  5. सारणी में तथ्यों की व्यवस्था इस प्रकार की जानी चाहिए जिससे कि उनमें तुलना सरलता से की जा सके।
  6. सारणी में अनावश्यक वर्गीकरण नहीं किया जाना चाहिए।
  7. सारणी स्वयं परिचायक (Self-explanatory) होनी चाहिए जिसमें कि उचित शीर्षक, खानों व पंक्तियों के शीर्षक, मदों के योग तथा टिप्पणियां आदि स्पष्ट रूप में व्यक्त होनी चाहिए।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 18 सारणीयन द्वारा आंकड़ों का प्रस्तुतीकरण-सारणीकरण

प्रश्न 4.
भारत की जनसंख्या की आयु के चार वर्ष वर्गों 0 – 5, 5 – 25, 25 – 50 तथा 50 से अधिक, में प्रस्तुत करने के लिए सारणी का खाका बनाएं।
उत्तर-
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित आधारों पर वितरित डी० ए० वी० कॉलेज जालन्धर के 2009-10 वर्ष के विद्यार्थियों को प्रदर्शित करने के लिए एक कोरी सारणी की रचना करें।
(i) लिंग-पुरुष, स्त्री
(ii) विषय-विज्ञान, कला, वाणिज्य
उत्तर-
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IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सारणीयन से क्या अभिप्राय होता है ? सारणीयन के मुख्य उद्देश्य अथवा महत्त्व अथवा गुण बताओ। (What is meant by Tabulation ? Explain the objectives or Importance or Merits of Tabulation.)
उत्तर-
सारणीयन का अर्थ (Meaning of Tabulation)-सारणीयन आंकड़ों को पेश करने की वह विधि होती है, जिसमें तथ्यों सम्बन्धी एकत्रित किए आंकड़ों को विभिन्न कालमों (Columns) अथवा कतारों (Rows) में प्रस्तुत किया जाता है। एकत्रित किए आंकड़ों को पेश करने के लिए सारणियों का निर्माण महत्त्वपूर्ण होता है, क्योंकि इससे आंकड़े सरल तथा सापेक्ष रूप धारण कर लेते हैं। इसलिए एकत्रित किए आंकड़ों को उनकी संख्याओं अनुसार कालमों तथा पंक्तियों में पेश करने की विधि को सारणी अथवा सूची कहा जाता है। इसको स्पष्ट करते हुए प्रो० एम० एम० ब्लेयर ने कहा है, “सारणीयन, विशाल अर्थों में कालमों तथा पंक्तियों के रूप में आंकड़ों को क्रमबद्ध करने से होता है।” (“Tabulation in its broadest sense is an orderly arrangement of data in Columns and rows.” – M. M. Blair)

प्रो० फर्गुसन अनुसार, “सूचीकरण वह क्रिया है, जिस द्वारा कम-से-कम परिश्रम करके अधिक-से-अधिक सूचना प्रदान की जा सकती है।” (“Tabulation is a process to enable the reader to grasp with minimum efforts the maximum information.” – Ferguson) इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि सांख्यिकी आंकड़ों को सारणी के रूप में पेश करने की क्रिया को सारणीयन कहा जाता है। एक अनुसूची (Table) आंकड़ों को कालमों तथा पंक्तियों में प्रदर्शित किया होता है।

सारणीयन का उद्देश्य, महत्त्व अथवा गुण (Objectives, Importance or Merits of Tabulation) –
सारणीयन बिखरे हुए आंकड़ों को वैज्ञानिक रूप देने की विधि होती है, जिससे बहुत-से उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। इसलिए सारणीयन को महत्त्वपूर्ण विधि माना जाता है। इस विधि के मुख्य लाभ निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. जटिल आंकड़ों को सरल बनाना (Make simple to Complicated Data)-सूचीकरण का मुख्य उद्देश्य एकत्रित किए जटिल आंकड़ों को सरल रूप प्रदान करना होता है। जब हम आंकड़ों को खानों तथा पंक्तियों में स्पष्ट करते हैं तो आंकड़े सरल हो जाते हैं।
  2. समझने में आसानी (Easy to Understand)-आंकड़ों को जब सूची द्वारा स्पष्ट किया जाता है तो साधारण मनुष्य भी इनको समझने में आसानी महसूस करते हैं।
  3. किफायती (Economical) सारणीयन की सहायता से समय तथा परिश्रम की बचत होती है।
  4. तुलना में सहायक (Helpful in Comparison)-सूचीकरण द्वारा आंकड़ों को विभिन्न वर्गों में पेश किया जाता है। इसलिए विभिन्न वर्गों की तुलना करनी आसान हो जाती है।
  5. व्याख्या में सहायक (Helpful in Interpretation)-जब हम आंकड़ों को सारणियों के रूप में स्पष्ट करते हैं तो इस द्वारा आंकड़ों की व्याख्या करनी आसान हो जाती है अर्थात् सारणी को देखकर विभिन्न वर्गों की जानकारी कम समय में ही प्राप्त की जा सकती है।
  6. विश्लेषण में सहायक (Helpful in Analysis)-सारणीयन द्वारा आंकड़ों का विश्लेषण भी आसानी से किया जा सकता है। इस उद्देश्य के लिए विभिन्न सांख्यिकी विधियां मध्यमान, मध्यिका, बहुलक, अपकिरण इत्यादि का प्रयोग आसानी से हो सकता है।

प्रश्न 2.
सारणी की किस्मों को स्पष्ट कीजिए। उद्देश्यानुसार और मौलिकतानुसार सारणी को स्पष्ट करें। (Explain the types of Tabulation. How is Tabulation done on the basis of purpose and originality ?)
उत्तर-
सारणी की किस्में निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट की जा सकती है-
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ऊपर दिए चित्र अनुसार सारणी की किस्मों को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. उद्देश्य अनुसार (On the Basis of Purpose)-सारणी बनाने के उद्देश्य को ध्यान में रखकर इसको दो किस्मों में विभाजित किया जा सकता है

  • साधारण उद्देश्य वाली सारणी (General Purpose Table)-साधारण उद्देश्य वाली सारणी वह सारणी होती है जोकि साधारण उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाई जाती है। इसमें मुख्य तौर पर आंकड़ों को प्रस्तुत किया जाता है तथा आवश्यकता पड़ने पर इन आंकड़ों का प्रयोग किया जा सकता है। ऐसी सारणी को संदर्भ सारणी भी कहा जाता
  • विशेष उद्देश्य के लिए सारणी (Special Purpose Table)-विशेष उद्देश्य वाली सारणी किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाई जाती है, जैसे कि किसी देश को विकसित अथवा अल्प विकसित सिद्ध करना हो तो विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय के आंकड़ों की तुलना की जाती है। ऐसी सारणी संक्षेप होती है, जिस कारण इसको सार सारणी (Summary Table) भी कहा जाता है।

2. मौलिकतानुसार (On the basis of Originality)-मौलिकता के आधार पर जो सारणियां बनाई जाती हैं, वह दो प्रकार की होती है-

  • मौलिक सारणियां (Original Tables)-मौलिक सारणियां वे सारणियां होती हैं, जिसमें आंकड़ों को जिस
    रूप में एकत्रित किया जाता है, उनको मूल रूप में ही पेश किया जाता है।
  • हासिल की सारणी (Derivative Table)-हासिल की सारणी वह सारणी होती है, जिसमें आंकड़े उसी रूप में पेश नहीं किए जाते हैं, जिस रूप में एकत्रित किए जाते हैं, बल्कि इन आंकड़ों को प्रतिशत अथवा अनुपात के रूप में दिखाया जाता है अर्थात् मौलिक सारणी में से ही नई सारणी निकालकर पेश की जाती है तो इस सारणी को हासिल की सारणी कहते हैं।

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प्रश्न 3.
बनावट अनुसार सारणी के निर्माण को स्पष्ट करें। (Explain the tabulation on the basis of Construction.)
उत्तर-
बनावट अनुसार (On the basis of Construction)–बनावट के अनुसार सारणी को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
(a) सरल सारणी (Simple Table)-सरल सारणी वह सारणी होती है जोकि आंकड़ों के एक गुण अथवा विशेषता के आधार पर बनाई जाती है। यह गुण आयु, लिंग, कार्य की किस्म इत्यादि के रूप में प्रकट किया जा सकता है जैसे कि सरकारी कॉलेज में विभिन्न विषयों को पढ़ने वाले विद्यार्थियों की सारणी को सरल सारणी कह सकते हैं।
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(b) जटिल प्रणाली (Complex Table)-एक सारणी में जब आंकड़ों को एक विशेषता से अधिक विशेषताओं अथवा गुणों के आधार पर प्रकट किया जाता है, तो ऐसी सारणी को जटिल सारणी कहा जाता है। जटिल सारणी तीन प्रकार की हो सकती है :
(i) द्विगुण सारणी (Two way Table)-एक सारणी में जब आंकड़ों की दो विशेषताओं को दिखाया जाता है तो इसको दो गुणों वाली सारणी कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप एक सरकारी कॉलेज में लड़के तथा लड़कियों की संख्या अनुसार पढ़ने वाले कुल विद्यार्थियों की सारणी को दो गुणों वाली सारणी कहा जाता है।
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(ii) त्रिगुण सारणी (Three way Table)-एक सारणी में जब तीन गुणों अथवा विशेषताओं के आधार पर आंकड़ों को पेश किया जाता है तो ऐसी सारणी को तीन गुणों वाली सारणी कहते हैं। उदाहरणस्वरूप सरकारी कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों में लड़के तथा लड़कियों की संख्या शहरी तथा ग्रामीण विद्यार्थियों की संख्या को दिखाया जाए तो इसको त्रिगुण सारणी कहा जाता है।
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(iii) बहुगुणों वाली सामग्री-जब आंकड़ों को तीन से अधिक विशेषताओं अथवा गुणों के आधार पर विभाजित किया जाता है तो ऐसी सारणी को बहुगुणों वाली सारणी कहते हैं। उदाहरणस्वरूप सरकारी कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या को लिंग, फैकलटी, निवास तथा होस्टल में रहने वाले तथा घरों से रोज़ाना पढ़ने वाले विद्यार्थियों की संख्या अनुसार सारणी को बहुगुणी सारणी कहा जाता है।
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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन

PSEB 11th Class Economics उत्पादक का सन्तुलन Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादक एक ऐसा व्यक्ति है जो लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री करने के लिए उनका उत्पादन करता है।

प्रश्न 2.
उत्पादक के सन्तुलन का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
एक उत्पादक अथवा फ़र्म सन्तुलन तब होता है जब उसको अधिकतम लाभ होता है अथवा न्यूनतम हानि होती है।

प्रश्न 3.
एक फ़र्म की साधारण सन्तुलन की शर्ते बताओ।
उत्तर-
फ़र्म के सन्तुलन की दो शर्ते होती हैं –

  • सीमान्त आय (MR) = सीमान्त लागत (MC)
  • सीमान्त लागत (MC) वक्र सीमान्त आय (MR) वक्र को नीचे से काटती हो।

प्रश्न 4.
सकल लाभ तथा शुद्ध लाभ में अन्तर बताओ।
उत्तर-
सकल लाभ कुल आय (TR) और कुल परिवर्तनशील लागत (AVC) का अन्तर होता है।
कुल लाभ = TR – AVC
शुद्ध लाभ, कुल आय (TR) और कुल लागत (TC) का अन्तर होता है।
शुद्ध लाभ = TR – TC

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन

प्रश्न 5.
सम विच्छेद बिन्दु अथवा उत्पादन बन्द करने वाला बिन्दु कब आता है ?
उत्तर-
सम विच्छेद बिन्दु (Break Even Point or Shut Down Point) –
TR = TC or AR = AC

प्रश्न 6.
पूर्ण प्रतियोगिता फर्म की दीर्घ काल के सन्तुलन की शर्ते बताएं।
उत्तर-
P = LMC = LAC

प्रश्न 7.
साधारण लाभ तब होता है जब MR = MC और ……. होती है।
उत्तर-
AR = AC होती है।

प्रश्न 8.
असाधारण लाभ तब होता है जब MR = MC और …… ।
उत्तर-
असाधारण लाभ तब होता है जब MR = MC और AR > AC होती है।

प्रश्न 9.
हानि तब होती है जब MR = MC और ……. ।
उत्तर-
हानि उस स्थिति को कहते हैं जब MR = MC और AR < AC होती है।

प्रश्न 10.
सीमान्त आय (MR) और सीमान्त लागत (MC) के समान होने पर क्या हमेशा अधिकतम लाभ होता है ?
उत्तर-
MR = MC सन्तुलन की एक शर्त होती है इस स्थिति में अनिवार्य नहीं कि फ़र्म को लाभ हो, बल्कि हानि भी हो सकती है।

प्रश्न 11.
वह स्थिति जिसमें उत्पादक का लाभ अधिकतम और हानि न्यूनतम होती है को ………… कहते हैं।
(a) उत्पादक का सन्तुलन
(b) उपभोक्ता का सन्तुलन
(c) दोनों ही
(d) इन में से कोई नहीं।
उत्तर-
(d) उत्पादक का सन्तुलन।

प्रश्न 12.
उत्पादक के सन्तुलन के लिए निम्नलिखित में कौन-सी शर्त उपयुक्त है।
(a) लाभ न्यूनतम होना चाहिए
(b) सीमान्त लागत, सीमान्त आय से कम होनी चाहिए।
(c) सीमान्त लागत वक्र, सीमान्त आय वक्र को नीचे से काटे।
(d) इन में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आय तक्र को नीचे से काटे।

प्रश्न 13.
क्या कुल उत्पादन कभी घट सकता है।
उत्तर-
कुल उत्पादन घट सकता है। जब सीमान्त लागत ऋणात्मक होती है।

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प्रश्न 14.
वह व्यक्ति जो अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करके उनकी बिक्री करता है को ……….. कहते हैं।
(a) उपभोक्ता
(b) खुद्रा व्यापारी
(c) उत्पादक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) उत्पादक।

प्रश्न 15.
कुल उत्पादन कब अधिकतम होता है ?
उत्तर-
कुल उत्पादन उस समय अधिकतम होता है जब सीमान्त उत्पादन शून्य होता है।।

प्रश्न 16.
एक उत्पादक उस स्थिति में होता है जब उसको अधिकतम लाभ होता है अथवा न्यूनतम हानि होती
उत्तर-
सन्तुलन।

प्रश्न 17.
फ़र्म का सन्तुलन उस स्थिति में होता है जब …… होती है जब MC वक्र MR वक्र को नीचे से ऊपर को जाती हुई काटें।
उत्तर-
MR = MC.

प्रश्न 18.
जब MR = MC और AR = AC होती है तो ……. लाभ होता है।
उत्तर-
साधारण।

प्रश्न 19.
जब MR = MC और AR = AC होती है तो ………… लाभ होता है।
उत्तर-
साधारण।

प्रश्न 20.
जब सीमान्त उत्पादन ऋणात्मक होती है तो कुल उत्पादन ………. लगता है।
उत्तर-
घटने।

प्रश्न 21.
जब सीमान्त उत्पादन शून्य हो जाता है तो कुल उत्पादन ……….. होता है।
उत्तर-
अधिकतम।

प्रश्न 22.
जब MR = MC और AR < AC होती है तो कार्य को ………. की स्थिति होती है।
उत्तर-
हानि।

प्रश्न 23.
जब MR = MC होती है तो फ़र्म सन्तुलन में होती है।
उत्तर-
ग़लत।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादक के सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादक का सन्तुलन उस समय होता है जब वह वर्तमान उत्पादन की मात्रा से सन्तुष्ट होता है और उत्पादन में परिवर्तन करने की उसमें कोई प्रवृत्ति नहीं होता। हम यह भी कह सकते हैं कि उत्पादक का सन्तुलन उस स्थिति में होता है जब उसको अधिकतम लाभ होता है अथवा न्यूनतम हानि होती है।

प्रश्न 2.
एक उत्पादक के सन्तुलन अथवा अधिकतम लाभ की दो शर्ते बताएं।
उत्तर-
एक प्रतियोगी फ़र्म के लिए उत्पादक के सन्तुलन के लिए दो शर्ते अनिवार्य होती हैं –

  • फ़र्म की सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर हो (MR = MC)
  • फ़र्म की सीमान्त लागत, सीमान्त आय वक्र के नीचे से ऊपर को जाती हुई काटे अर्थात् MC बढ़ रही होती है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादक से क्या अभिप्राय है ? उत्पादक के सन्तुलन की शर्ते बताओ।
उत्तर-
उत्पादक एक उत्पादन का साधन है, जोकि वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करने के लिए उत्पादन के साधनों को एकत्रित करता है तथा इन वस्तुओं की बिक्री से अधिकतम लाभ प्राप्त करता है। उत्पादक अथवा फ़र्म का सन्तुलन उस स्थिति में होता है, जिसमें उसको अधिकतम लाभ अथवा न्यूनतम हानि होती है। उत्पादन के सन्तुलन की दो शर्तों होती हैं।

  • सीमान्त आय (MR) तथा सीमान्त आय MC समान होनी चाहिए है अथवा P = MC
  • सीमान्त लागत (MC) वक्र सीमान्त आय (MR) वक्र को नीचे से ऊपर की ओर जाती हुई काटकर गजरती हो।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन 1

रेखाचित्र 1 में प्रतियोगी फ़र्म का सन्तुलन दिखाया गया है। इसमें कीमत OP समान रहती है। इसलिए AR = MR सीधी रेखा बनती है। सीमान्त लागत (MC) रेखा सीमान्त आय (MR) को E बिन्दु पर नीचे से ऊपर की ओर जाती हुई काटकर गुजरती है। इसको सन्तुलन की स्थिति कहा जाता है। जहां कि कुल लाभ PEK प्राप्त होता है। कुल आय TR = OPEQ में कुल परिवर्तनशील लागत OKEQ घटा दी जाएं तो शेष PEK कुल लाभ है x जोकि अधिकतम है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में जहां फ़र्मों के प्रवेश तथा निकास की स्वतन्त्रता होती है, फ़र्मों को शून्य असाधारण लाभ क्यों होता है ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में सभी फ़र्मों को केवल साधारण लाभ प्राप्त होते हैं अथवा असाधारण लाभ शून्य होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि दीर्घकाल के सन्तुलन से यदि फ़र्मों को असाधारण लाभ होते हैं तो दीर्घकाल होने के कारण तथा फ़र्मों के प्रवेश की स्वतन्त्रता के कारण नई फ़र्ने उद्योग में शामिल हो जाती हैं। वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाती है। इससे कीमत कम हो जाती है तथा सभी फ़र्मों को साधारण लाभ होने लगते हैं अथवा असाधारण लाभ शून्य हो जाता है।

यदि किसी समय कीमत निर्धारण इस प्रकार होती है कि कुछ फ़र्मों को असाधारण हानि होती है। यदि दीर्घकाल तक फ़र्मों को हानि होगी तो वह फ़र्ने उद्योग को छोड़ जाती है। इससे वस्तुओं की पूर्ति कम हो जाती है तथा कीमत बढ़ जाती है। इस प्रकार दीर्घकाल में सभी फ़र्मों को केवल साधारण लाभ प्राप्त होते हैं अथवा असाधारण लाभ शून्य होगा।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादक के सन्तुलन से आपका क्या अभिप्राय है ? एक उत्पादक का सन्तुलन उस बिन्दु पर होता है, जहां सीमान्त आय समान सीमान्त लागत होती है। स्पष्ट करो।
(What is producer’s equilibrium ? A producer will be in equilibrium where his MR = MC, Explain.)
अथवा
एक फ़र्म के सन्तुलन को सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय द्वारा स्पष्ट करें। (Explain the equilibrium of the firm with Marginal Cost and Marginal Revenue.)
उत्तर-
उत्पादन के सन्तुलन का अर्थ (Meaning of Producers Equilibrium)-एक उत्पादक को उस स्थिति में सन्तुलन में कहा जाता है, जिसमें उसको या तो अधिकतम लाभ प्राप्त होता है तथा या न्यूनतम हानि होती है। स्टोनियर तथा हेग के अनुसार, “एक उत्पादक सन्तुलन में होता है, जब उसको अधिकतम लाभ हों। परन्तु अधिकतम लाभ उस स्थिति में होता है, जहां सीमान्त आय तथा सीमान्त लागत समान होते हैं तथा MC वक्र MR को नीचे से ऊपर की ओर जाती हुई काटती है।”

उत्पादक के सन्तुलन की शर्ते-उत्पादक के सन्तुलन की दो शर्ते होती हैं –

  1. सीमान्त आय (MR) = सीमान्त लागत (MC) हों।
  2. सीमान्त लागत (MC) वक्र सीमान्त आय (MR) वक्र नीचे से ऊपर की ओर जाती हुई काटती हों। इन दो शर्तों को ध्यान में रखकर उत्पादक का सन्तुलन स्पष्ट करते हैं।

(A) पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक का सन्तुलन (Producer’s Equilibrium Under Perfect Competition)-पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में कीमत MC उद्योग में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है। प्रत्येक उत्पादक अथवा फ़र्म उस कीमत को अपना लेती है, इसीलिए कीमत स्थिर रहती है अथवा औसत आय (AR) स्थिर रहता है तथा सीमान्त आय (MR) भी स्थिर रहेगा तथा औसत आय के समान होता है, जैसे कि रेखाचित्र 10.2 में कीमत OP दिखाई है, उत्पादक की AR = MR सीधी रेखा Ox के समान्तर हैं, क्योंकि कीमत समान रहती है। फ़र्म का लाभ अधिक से अधिक उस बिन्दु पर
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन 2
P= MC अथवा MR = MC

होगा जहां होता है, जिसको E बिन्दु द्वारा दिखाया है। फ़र्म OQ वस्तुओं का उत्पादन करेगी। फ़र्म का कुल लाभ (Gross Profit) = TR – TVC है अर्थात् कुल लाभ = शुद्ध लाभ + कुल स्थित लागत प्राप्त होता है। सीमान्त लागत (MC) के निम्न भाग OKEQ को कुल परिवर्तनशील लागत कहा जाता है तथा कुल आय OPEQ है। इस प्रकार कुल लाभ PEK है, जोकि अधिक से अधिक है। यदि यह फ़र्म OQ2 उत्पादन करती है तो इसको PABK लाभ प्राप्त होगा, जोकि पहले से EAB कम है, जिसको शेड़ किए क्षेत्र द्वारा दिखाया है। इसलिए OQ से कम उत्पादन नहीं करना चाहिए। यदि OQ, उत्पादन किया जाता है तो OQ उत्पादन से फ़र्म को PEK लाभ होता है, परन्तु QQ2 उत्पादन से ECD हानि होगी। इसलिए PEK में से EC घटाने से लाभ PEK से कम हो जाएंगा। इससे स्पष्ट है कि फ़र्म को अधिकतम लाभ की स्थिति में दो शर्तों अनिवार्य होती हैं।

  • MR = MC
  • MC must cut MR from below.

(B) एकाधिकारी तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में फ़र्म का सन्तुलन (Firm’s Equilibrium under Monopoly and Monopolistic Competition) एकाधिकारी तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में AR तथा MR घटती सीधी रेखाएं होती हैं। फ़र्म के सन्तुलन को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करते हैं। रेखाचित्र 3 में MR = MC द्वारा फ़र्म का सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। फ़र्म 00 उत्पादन करती है तथा इसको LEK लाभ प्राप्त होता है। यह कुल लाभ अधिकतम है। यदि यह फ़र्म OQ, उत्पादन करती है तो लाभ EAB कम प्राप्त होगा। यदि फ़र्म OQ2 उत्पादन करती है तो OQ तक LEK लाभ होता है, परन्तु OQ2 उत्पादन से ECD हानि होती है। इसलिए LEK में से ECD घटा दी जाए तो कुल लाभ LEK से कम हो AR जाएगा। इस प्रकार सन्तुलन की दो शर्ते पूरी होती है –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन 3

  • सीमान्त आय = सीमान्त लागत है।
  • सीमान्त लागत वक्र सीमान्त आय वक्र को नीचे से ऊपर की ओर जाती हुई काटती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन

(C) कुल आय तथा कुल लागत विधि द्वारा उत्पादक का सन्तुलन (Producers’s Equilibrium with Total Revenue & Total Cost Method)- उत्पादक का सन्तुलन कुल आय तथा कुल लागत विधि द्वारा भी माप सकते हैं। एक उत्पादक को अधिकतम लाभ तब प्राप्त होता है जब उसकी कुल आय अधिकतम तथा कुल लागत न्यूनतम हो।
Profit Maximum = TR Maximum – TCminimum
उत्पादक के सन्तुलन को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र 4 में कुल आय तथा कुल लागत रेखाएँ दिखाई गई हैं। TC रेखा के समान्तर रेखा AB खींचते हैं जोकि कुल आय (TR) रेखा को R बिन्दु पर काटती है। RC को मिलाते है। जोकि OX रेखा को K बिन्दु पर काटती है। OK उत्पादन करने पर कुल आय KR अधिक है और कुल लागत KC कम है।

इसलिये RC लाभ प्राप्त होता है जो कि अधिकतम है। यदि उत्पादन को बढ़ाया जाता है या कम किया जाता है तो कुल लाभ कम हो जाएगा। जैसा कि OK1 उत्पादन करने से लाभ R1C1 है और OK2 उत्पादन करने से लाभ R2C2 है जोकि RC से कम है। यदि लाभ E1C1 अथवा E2C2 होता तो RC के बराबर होना था क्योंकि यह समांतर रेखाओं का अन्तर है क्योंकि R1C1 लाभ E1C1 से कम है और R2C2 लाभ E2C2 से कम हैं इसलिये यह लाभ RC से भी कम है इसलिये उत्पादक को OK उत्पादन करना चाहिये यहां पर उसको RC अधिकतम लाभ प्राप्त होता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 10 उत्पादक का सन्तुलन 4

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 9 आय की धारणाएँ

PSEB 11th Class Economics आय की धारणाएँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी फ़र्म द्वारा वस्तुओं की बिक्री से प्राप्त मौद्रिक आमदन को आय कहते हैं।

प्रश्न 2.
कुल आय से आप का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तुओं की कुल मात्रा बेचने से जो कुल मुद्रा प्राप्त होती है उसको कुल आय कहा जाता है।

प्रश्न 3.
औसत आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औसत आय से अभिप्राय प्रति इकाई वस्तु की आय से होता है। औसत आय को वस्तु की कीमत भी कहा जाता है। AR = \(\frac{\mathrm{TR}}{\mathrm{Q}}\) और AR= PRICE

प्रश्न 4.
सीमान्त आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी वस्तु की एक अन्य इकाई बेचने से कुल आय में जो वृद्धि होती है उसको सीमान्त आय कहते हैं।
MR = TRn – TRn-1

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 5.
आय की कौन-सी धारणा को कीमत कहा जाता है ?
उत्तर-
औसत आय की धारणा को कीमत कहा जाता है।

प्रश्न 6.
कुल आय कीमत तथा बिक्री की मात्रा में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
कुल आय तथा बिक्री की मात्रा के अनुपात को कीमत कहते हैं।
Price = \(\frac{\text { T R }}{\text { Output }}\)

प्रश्न 7.
प्रतियोगिता वाली फ़र्म की कीमत और सीमान्त आय में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
प्रतियोगिता वाली फ़र्म की कीमत, सीमान्त आय के समान होती है।

प्रश्न 8.
प्रतियोगिता वाली फ़र्म की औसत आय तथा सीमान्त आय बराबर क्यों होती है ?
अथवा
पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमान्त आय का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमान्त आय सदैव बराबर होती है क्योंकि कीमत एक-सार रहती है और यह OX के समानान्तर होती है।

प्रश्न 9.
एकाधिकार बाज़ार में औसत आय तथा सीमान्त आय का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार बाज़ार में औसत आय (AR) घटती है तथा सीमान्त आय (MR) तीव्रता से घटती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 1

प्रश्न 10.
औसत आय तथा सीमान्त आय में क्या सम्बन्ध होता है ?
उत्तर-

  • जब औसत आय बढ़ती है तो सीमान्त आय तीव्रता से बढ़ती है।
  • जब औसत आय समान रहती है तो सीमान्त आय उसके बराबर हो जाती है।
  • जब औसत आय घटती है तो सीमान्त आय तेजी से घटती है।

प्रश्न 11.
कीमत तथा सीमान्त आय में क्या सम्बन्ध होता है ?
उत्तर-

  1. पूर्ण बाज़ार में Price (AR) = MR
  2. अपूर्ण बाज़ार में Price (AR) > MR

प्रश्न 12.
यदि MR धनात्मक होता है तो TR की स्थिति क्या होती है ?
उत्तर-
R बढ़ता है।

प्रश्न 13.
यदि MR शून्य होता है तो TR की स्थिति क्या होती है ?
उत्तर-
TR अधिकतम होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 14.
जब MR ऋणात्मक होता है तो TR की स्थिति क्या होती है ?
उत्तर-
TR घटता है।

प्रश्न 15.
औसत आय सदैव कीमत के समान होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 2
उत्तर|
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 3

प्रश्न 17.
एक वस्तु की प्रति इकाई बिक्री से प्राप्त होने वाली राशि को …….. कहते हैं।
उत्तर-
कीमत।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 4
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 5

प्रश्न 19.
जब सीमान्त आय कम हो रही होती है तो कुल आय ………….. से बढ़ती है।
उत्तर-
घटती दर।

प्रश्न 20.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 6
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 7

प्रश्न 21.
AR= ……………………… .
उत्तर-
AR = \(\frac{\mathrm{TR}}{\mathrm{Q}}\)

प्रश्न 22.
MR = …….
उत्तर-
MR = \(\frac{\Delta \mathrm{TR}}{\Delta \mathrm{Q}}\).

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 23.
MR = \(\frac{\text { TR }}{\mathbf{Q}}\) = ……………………. .
उत्तर-
AR अथवा Price.

प्रश्न 24.
किसी फ़र्म द्वारा वस्तु की बिक्री से प्राप्त आय को ……… कहा जाता है।
उत्तर-
आय (Revenue)।

प्रश्न 25.
जब औसत आय बढ़ती है तो सीमान्त आय …… है। सीमान्त आय घटती है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 26.
जब औसत आय घटती है तो सीमान्त आय तेजी से घटती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 27.
सीमान्त आय धनात्मक, शून्य अथवा ऋणात्मक हो सकती है परन्तु औसत आय सदैव धनात्मक रहती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 28.
जब औसत आय स्थिर रहती है तो सीमान्त आय, औसत आय के बराबर हो जाती है।
उत्तर-
सही।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 29.
पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में औसत आय और सीमान्त आय पूर्ण लोचशील नहीं होती।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक फ़र्म अथवा उत्पादक के सन्तुलन से आपका क्या अभिप्राय है ? फ़र्म के सन्तुलन की शर्ते बताओ।
उत्तर-
एक फ़र्म अथवा उत्पादक सन्तुलन में होते हैं, जब उसको अधिकतम लाभ होता है अथवा न्यूनतम हानि होती है। फ़र्म के सन्तुलन की दो शर्ते हैं-

  • फ़र्म की सीमान्त आय (MR) = सीमान्त लागत (MC) होनी चाहिए।
  • सीमान्त लागत (MC) वक्र सीमान्त आय (MR) को नीचे से ऊपर की ओर जाती हुई काटकर गुजरती हों।

प्रश्न 2.
एक फ़र्म की साधारण सन्तुलन की शर्ते बताओ।
अथवा
एक प्रतियोगी फ़र्म के अधिकतम लाभ की क्या शर्त होती है ?
उत्तर-
देखो इसके लिए प्रश्न 9.1 देखें।

प्रश्न 3.
कुल लाभ तथा शुद्ध लाभ में अन्तर बताओ।
उत्तर-
यदि कुल आय (TR) में से कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) घटा दी जाए तो इसको कुल लाभ कहा जाता है।
कुल लाभ = TR – TVC
अथवा
Net Profit + TFC
शुद्ध लाभ का अर्थ है कुल आय घटाओ कुल लागत
शुद्ध लाभ = कुल आय (TR) – कुल लागत (TC)
अथवा
Net Profit = TR – TVC – TFC |
शुद्ध लाभ = कुल लाभ – कुल स्थिर लागत।

प्रश्न 4.
साधारण लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक फ़र्म को उसी समय साधारण लाभ प्राप्त होता है, जब उस फ़र्म का सन्तुलन इस प्रकार होता है।
MR = MC
&
AR = AC
औसत लागत में उत्पादक का अपनी मेहनत का ईवजाना भी शामिल होता है, जिसको शून्य असाधारण लाभ (zero abnormal profit) कहा जाता है। जैसेकि रेखाचित्र में OQ उत्पादन से साधारण लाभ होगा।

प्रश्न 5.
असाधारण लाभ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक फ़र्म को साधारण लाभ से अधिक लाभ प्राप्त होता है इसको असाधारण लाभ कहा जाता है।
जैसेकि रेखाचित्र 2 में OQ1 उत्पादन करने से E1C1 साधारण से अधिक लाभ होता है। इसको असाधारण लाभ कहा जाता है। उसी समय होती है।
TR > TC अथवा AR > AC |
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 8

प्रश्न 6.
समविच्छेद कीमत (Break-even Price) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस बिन्दु पर औसत आय तथा औसत लागत एक दूसरे को काटती है, उसको समविच्छेद कीमत कहा जाता है। रेखाचित्र 3 AR = AC बिन्दु B पर समान हैं। OP कीमत को समविच्छेद कीमत कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 9

प्रश्न 7.
फ़र्म के बन्द होने के बिन्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक फ़र्म के बन्द होने का बिन्दु वह बिन्दु है जहां कि फ़र्म की कुल आय (TR) = कुल परिवर्तनशील लागत के समान होती है। यदि कीमत इस कीमत से थोड़ी-सी भी कम हो जाए तो फ़र्म कार्य बन्द कर देती है। इसीलिए इस बिन्दु को फ़र्म बन्द होने का बिन्दु कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता अथवा एकाधिकारी में औसत आय तथा सीमान्त आय के सम्बन्ध को सूची पत्र द्वारा स्पष्ट करो।
अथवा
औसत आय तथा सीमान्त आय के सम्बन्ध को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
अथवा
औसत आय तथा सीमान्त आय में क्या सम्बन्ध होता है ? .
उत्तर-

  • जब औसत आय समान होती है तो सीमान्त आय इसके समान होती है। यह स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता में पाई जाती है।
  • जब औसत आय घटती है तो सीमान्त आय तीव्रता से घटती है। औसत आय हमेशा धनात्मक होती है परन्तु सीमान्त आय धनात्मक, शून्य अथवा ऋणात्मक हो सकता है, जैसे कि एकाधिकारी अथवा अपूर्ण प्रतियोगिता में होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 10
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 11
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 12
सूची पत्र अनुसार-

  • पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमान्त आय समान होते हैं। जैसा कि रेखाचित्र 4 भाग-A में दिखाया गया है।
  • एकाधिकारी तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय घटती है तो सीमान्त आय तीव्रता से घटती है। 4 वस्तुएं उत्पादन करने से MR = 0 है तो पांचवीं तथा छठी वस्तु के उत्पादन से MR ऋणात्मक है। जैसा कि रेखाचित्र 5 भाग-B में दिखाया गया है।

प्रश्न 2.
सीमान्त आय तथा कुल आय के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
अथवा
रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो कि सीमान्त आय शून्य होती है तो कुल आय अधिकतम होती है।
अथवा
सूची पत्र तथा रेखाचित्र द्वारा कुल आय, औसत आय तथा सीमान्त आय के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
सीमान्त आय के योग से कुल आय प्राप्त की जाती है। इनके सम्बन्ध को सूची पत्र तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करते हैं
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 13
रेखाचित्र 6 अनुसार …

  1. कुल आय में वृद्धि घटते अनुपात पर होती है क्योंकि MR घटता है।
  2. कुल आय ₹ 12, 12 समान है तो MR = 0 हो जाता है।
  3. कुल आय घटने लगती है तो MR = (-) ऋणात्मक हो जाता है।
  4. जब MR = 0 है तो कुल आय QM अधिकतम है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 14

प्रश्न 3.
सीमान्त आय की परिभाषा दीजिए, पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारी में औसत आय तथा सीमान्त आय के सम्बन्ध को रेखाचित्रों द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
सीमान्त आय (Marginal Revenue)-जब वस्तु की एक अन्य इकाई बेचने से कुल आय में जो वृद्धि होती है, उसको सीमान्त आय कहा जाता है।
1. पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमान्त आयपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की कीमत एक समान होती है। इसलिए औसत आय समान होती है। जब औसत आय समान होती है तो सीमान्त आय भी इसके समान होती है। जैसा कि रेखाचित्र 7 में दिखाया गया है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 15
2. एकाधिकारी में औसत आय तथा सीमान्त आयएकाधिकारी में वस्तु की कीमत को घटाकर ही अधिक बिक्री की जा सकती है। इसलिए जब औसत आय घटती है तो सीमान्त आय तीव्रता से दोगुणी दर पर घटती है। जैसा कि रेखाचित्र 8 में दिखाया गया है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 16

प्रश्न 4.
औसत आय की धारणा को कीमत कहा जाता है।
उत्तर-
वस्तु की औसत आय को कीमत भी कहा जाता है। उदाहरण के लिए एक वस्तु की कीमत ₹ 5 प्रति वस्तु है उपभोगी 20 इकाइयों की खरीद करता है तो कुल आय = 20 x 5 = ₹ 100 है। औसत आय इस प्रकार प्राप्त की जाती है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 17
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 18
सूची पत्र तथा रेखाचित्र 9 में कीमत ₹ 5 दिखाई गई है और औसत आय भी कीमत के सामान्य होती है रेखा- चित्र में भी कीमत = औसत आय है। इस प्रकार औसत आय का दूसरा नाम कीमत होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आय की धारणाओं को स्पष्ट करो। इनके सम्बन्धों की व्याख्या करो। (Explain the concepts of Revenue. Explain their Relationship.)
अथवा
कुल आय, औसत आय तथा सीमान्त आय से क्या अभिप्राय है ? इनके परस्पर सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
(What do you mean by Total Revenue, Average Revenue and Marginal Revenue ? Explain their mutual relationship.)
उत्तर-
एक फ़र्म वस्तुओं का उत्पादन करने के पश्चात् उनकी बिक्री से जो आय प्राप्त करती है, उसको आय (Revenue) कहते हैं। आय की मुख्य तीन धारणाएं हैं

  1. कुल आय (Total Revenue)
  2. औसत आय (Average Revenue)
  3. सीमान्त आय (Marginal Revenue)

आय की इन तीन धारणाओं को एक सूचीपत्र की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 19
1. कुल आय (Total Revenue)-उत्पादन की बेची गई इकाइयों को कीमत पर गुणा करने से कुल आय प्राप्त की जाती है, जैसे कि 1 वस्तु बेचने से कुल आय 10 x 1 = ₹ 10 तथा दो वस्तुएं बेचने से ₹ 2×9 = 18 प्राप्त होती है।
कुल आय = कीमत x उत्पादन

2. औसत आय (Average Revenue)-कुल उत्पादन को उत्पादन पर विभाजित करने से औसत आय प्राप्त होती है। औसत आय तथा कीमत हमेशा स्थिर होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 20
3. सीमान्त आय (Marginal Revenue)-वस्तु की एक इकाई अन्य बेचने से जो कुल आय में वृद्धि होती है, उसको सीमान्त आय कहा जाता है। जैसे कि सूची पत्र में 1 वस्तु बेचने से कुल आय ₹ 10 तथा 2 वस्तुएं बेचने से ₹ 18 आय प्राप्त होती है तो कुल आय में वृद्धि ₹ 8 है। जिसको सीमान्त आय कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 21
कल आय, औसत आय तथा सीमान्त आय का सम्बन्ध – रेखाचित्र 10 में कुल औसत, औसत आय तथा सीमान्त आय के सम्बन्ध को स्पष्ट किया गया है। रेखाचित्र के भाग (A) में दिखाया है कि जब औसत आय घटती है तो सीमान्त आय तीव्रता से घटती है।

  • औसत आय (AR) कभी भी शून्य नहीं होती, क्योंकि प्रत्येक वस्तु की कुछ-न-कुछ कीमत आवश्यक होती है।
  • सीमान्त आय (MR) तीव्रता से घटती है, यह शून्य (0) भी हो सकती है तथा ऋणात्मक (-) भी हो सकती है।
  • भाग B में कुल आय दिखाई है, जोकि पहले बढ़ती रेखाचित्र 10 जाती है। जबकि सीमान्त आय (MR) = 0 हो जाती है तो कुल आय अधिकतम (Maximum) होती है तथा जब सीमान्त आय (MR) ऋणात्मक हो जाती है तो कुल आय घटने लगती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 22

विभिन्न बाजारों में आय रेखाओं का सम्बन्ध (Relationship between Revenue Curves in different Markets)-प्रतियोगिता के आधार पर बाज़ार को तीन भागों में विभाजित करते हैं-

  1. पूर्ण प्रतियोगिता का बाज़ार
  2. एकाधिकारी बाज़ार
  3. अपूर्ण प्रतियोगिता का बाज़ार इन तीन बाज़ार की स्थितियों में आय वक्र के सम्बन्धों को स्पष्ट किया जा सकता है

1. पूर्ण प्रतियोगिता में आय वक्र (Revenue Curves Under Perfect)-पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में कीमत उद्योग में मांग तथा कीमत द्वारा निर्धारण हो जाता है। प्रत्येक फ़र्म इस कीमत पर ही वस्तु की बिक्री करती है। उदाहरणस्वरूप
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 23
सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 11 में औसत आय तथा सीमान्त आय ₹ 10, 10 समान हैं। इस स्थिति में AR = MR सीधी रेखा Ox के समान्तर बनती है, जिसको पूर्ण लोचशील वक्र कहा जाता है।

2. एकाधिकारी में आय वक्र (Revenue Curves Under Monopoly)-एकाधिकारी में वस्तु उत्पन्न करने वाला एक उत्पादन होता है। यदि वह कीमत में कमी करता है तो वस्तु की अधिक मात्रा बिकती है। औसत आय कम हो जाती है तो सीमान्त आय तीव्रता से घटती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 24
सूचीपत्र में जब कीमत 10, 9, 8 घटती है तो सीमान्त आय 10, 8, 6 तीव्रता से घटती है। रेखाचित्र 12 में AR घटती है तथा MR तीव्रता से दोगुणी दर पर घटती है तथा मांग की लोच इकाई से कम (Ed < 1) होती है। 3. अपूर्ण प्रतियोगिता में आय वक्र (Revenue Curves Under Monopolistic Competition)-एकाधिकारी प्रतियोगिता के बाज़ार में फ़र्मे अपनी वस्तु को रजिस्टर्ड करवा लेती है, जैसे कि टैक्सला टी०वी० रजिस्टर्ड है। इससे कोई अन्य उत्पादन टी० वी० नहीं बना सकता। इसलिए फ़र्म का एकाधिकारी है, परन्तु बाज़ार में L.G., फिलिप्स इत्यादि अन्य टी० वी० भी हैं। इनमें प्रतियोगिता होती है।

इसीलिए इस बाज़ार को एकाधिकारी प्रतियोगिता अथवा अपूर्ण प्रतियोगिता का बाज़ार कहते हैं। इस बाज़ार में एकाधिकारी जैसे औसत MR आय AR घटती रेखा होती है तथा सीमान्त आय (MR) तीव्रता से घटती रेखा होती है। परन्तु इसकी औसत आय तथा सीमान्त आय अधिक लोचशील होती है, जैसे कि रेखाचित्र 13 में औसत आय तथा सीमान्त आय नीचे की ओर घटती सीधी रेखाएं हैं। परन्तु इनकी मांग की लोच इकाई से अधिक (Ed > 1) है, क्योंकि यदि कोका कोला ₹ 10 की जगह पर ₹ 9 हो जाए तथा पैप्सी कोक ₹ 10 का ही रहता है तो कोका कोला की मांग बहुत अधिक होगी।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 25

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)
आय की धारणाएं (Concepts Of Revenue)

प्रश्न 1.
एक फ़र्म की कुल आय अनुसूची दी गई है। इस फ़र्म की वस्तु कीमत कितनी है ?
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 26
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 27

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 2.
निम्न सूचीपत्र को पूरा करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 28
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 29

प्रश्न 3.
निम्न सूची पत्र को पूरा करो। वस्तुओं की बिक्री ।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 30
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 31

प्रश्न 4.
निम्नलिखित सूची पत्र को पूरा करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 32
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 33

प्रश्न 5.
निम्न सूची पत्र को पूरा करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 34
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 35

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 6.
एक प्रतियोगिता वाली फ़र्म को बाज़ार में ₹ 15 कीमत प्राप्त होती है।
(a) इस फ़र्म की कुल आय अनुसूची बताओ जब उत्पादन 0 से 10 तक वस्तुओं की इकाइयां किया जाता
(b) यदि बाज़ार में कीमत बढ़कर ₹ 17 हो जाए तो नई आय वक्र चपटी अथवा खड़वीं होगी ?
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 36
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 37
प्रतियोगिता वाले बाज़ार में जो कीमत ₹ 15 से बढ़कर ₹ 17 हो जाती है तो कुल आय वक्र खड़वी (Steeper) होगी, जैसे कि रेखाचित्र 14 में कीमत ₹ 15 है तो कुल आय की ढाल TR, है। जब कीमत बढ़कर ₹ 17 हो जाती है तो कुल आय की ढाल TRA है। TR अधिक खड़वी रेखा है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 38

प्रश्न 7.
निम्नलिखित सूचीपत्र को पूरा करो यदि वस्तु की एक इकाई 5 रुपए की बेची जा सकती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 39
उत्तर–
प्रति इकाई वस्तु की कीमत = 5 रुपए
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 40

प्रश्न 8.
निम्नलिखित सूचीपत्र को पूरा करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 41
उत्तर
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 42

प्रश्न 9.
निम्नलिखित सूची पत्र को पूरा करो
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 43
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 44

प्रश्न 10.
निम्नलिखित सूचीपत्र को पूरा करो-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 45
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 46

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 11.
एक एकाधिकारी की मांग अनुसूची दी गई है। इससे कुल आय (TR), औसत आय (AR) तथा सीमान्त आय (MR) सूची बनाओ।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 47
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 48

प्रश्न 12.
एक एकाधिकारी फ़र्म की सीमान्त आय सूची दी हुई है। कुल आय तथा औसत आय सूची बनाओ।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 49
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 50

प्रश्न 13.
निम्नलिखित सूचीपत्र से कुल आय TR, औसत आय AR तथा सीमान्त आय ज्ञात करो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 51
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 52

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से औसत लागत और कुल लागत ज्ञात करें –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 53
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 54

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से औसत लागत और कुल लागत ज्ञात करें –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 55
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 56

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ

प्रश्न 16.
निम्नलिखित अनुसूची आंकड़ों की सहायता से औसत लागत और सीमान्त लागत ज्ञात कीजिए।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 57
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 9 आय की धारणाएँ 58

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

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PSEB 11th Class Economics बाज़ार के रूप Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(A) पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition)

प्रश्न 1.
बाज़ार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बाज़ार एक ऐसा संयंत्र है जिसमें वस्तु के विक्रेताओं तथा खरीददारों का सुमेल होता है। इसमें किसी वस्तु के बेचने तथा खरीदने के लिए निश्चित भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता।

प्रश्न 2.
बाज़ार के विभिन्न रूप बताएँ।
उत्तर-
बाज़ार के प्रमुख रूप हैं-

  • पूर्ण प्रतियोगिता
  • एकाधिकार
  • एकाधिकार प्रतियोगिता।

प्रश्न 3.
पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता वह बाज़ार होता है जहाँ खरीददारों तथा विक्रेताओं की अधिक संख्या होती है। यहाँ पर एक समान वस्तुओं की बिक्री एक कीमत पर की जाती है।

प्रश्न 4.
सम्पूर्ण प्रतियोगिता में किस प्रकार की वस्तु की बिक्री की जाती है ?
उत्तर-
सम्पूर्ण प्रतियोगिता में एक समान वस्तु (Homogenous Product) की बिक्री तथा उत्पादन करते हैं जिनका रंग, रूप, आकार, स्वाद, कीमत, एक-दूसरे से मिलती-जुलती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगिता में फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली क्यों होती है ?
उत्तर-
बाज़ार का क्रेताओं तथा विक्रेताओं को पूर्ण ज्ञान होता है इसलिए जो कीमत उद्योग में निर्धारित हो जाती है प्रत्येक फ़र्म वह कीमत स्वीकार करती है।

प्रश्न 6.
पूर्ण प्रतियोगिता में क्या असाधारण लाभ तथा हानि सम्भव है ?
उत्तर-
अल्पकाल में कुछ फ़र्मों को असाधारण लाभ तथा हानि हो सकती है।

प्रश्न 7.
पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घ काल में सभी फ़र्मों को कौन-से लाभ होते हैं ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में प्रत्येक फ़र्म को साधारण लाभ प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8.
पूर्ण प्रतियोगिता सबसे अधिक व्यावहारिक बाज़ार होता है।
उत्तर-
गलत।

(B) एकाधिकार (Monopoly)

प्रश्न 9.
एकाधिकार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एकाधिकार बाज़ार की वह स्थिति होती है जिसमें वस्तु का उत्पादन इस प्रकार होता है जिसका कोई नज़दीकी स्थानापन्न नहीं होता।

प्रश्न 10.
एकाधिकार बाजार की मुख्य विशेषताएँ बताओ।
उत्तर-

  • एक विक्रेता परन्तु बहुत खरीददार
  • उत्पादन वस्तु का नज़दीकी स्थानापन्न नहीं होता।
  • कीमत पर नियन्त्रण होता है।
  • एकाधिकार में कीमत विभेद सम्भव है।

प्रश्न 11.
एकाधिकार फ़र्म की औसत आय तथा सीमान्त आय का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार बाज़ार में औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र की ढलान ऋणात्मक होती है।

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प्रश्न 12.
कीमत विभेद से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक एकाधिकारी अपनी वस्तु की भिन्न ग्राहकों से विभिन्न कीमत प्राप्त करता है तो इसको कीमत विभेद कहते हैं।

प्रश्न 13.
एकाधिकार बाज़ार संरचना का उदय कैसे होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार बाज़ार संरचना निम्नलिखित किसी भी कारण से हो सकता है-

  • सरकार द्वारा लाइसेंस देना
  • पेटेंट अधिकार
  • व्यापार गुट
  • प्राकृतिक घटना।

प्रश्न 14.
पेटेंट अधिकार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पेटेंट अधिकार का अर्थ है उत्पादित वस्तुओं के नाम, आकार, डिज़ाइन अथवा अन्य विशेषताओं के सम्बन्ध में एकाधिकार का अधिकार प्राप्त करना।

प्रश्न 15.
व्यापारिक गुट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक गुट का अर्थ फ़र्मों के समूह से होता है ताकि सामूहिक निर्णय लेकर, प्रतियोगिता को रोका जा सके और बाज़ार में एकाधिकार स्थापित किया जा सके।

प्रश्न 16.
प्राकृतिक एकाधिकार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एकाधिकार प्राकृतिक घटना भी हो सकती है जब कच्चे माल पर एक उत्पादक का कब्जा हो तो इसे प्राकृतिक एकाधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 17.
एकाधिकार में मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली क्यों होती है ?
उत्तर-
एकाधिकार में माँग वक्र नीचे की ओर झुकी होती है क्योंकि वह कम कीमत पर ही अधिक वस्तु बेच सकता है।

प्रश्न 18.
सामाजिक दृष्टिकोण से एकाधिकार सामाजिक भार Dead weight है। इससे क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
इसका अर्थ है कि एकाधिकार समाज के लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि कीमत अधिक निश्चित करके शोषण कर सकता है।

प्रश्न 19.
ट्रस्ट विपक्षीय कानून क्या है ?
उत्तर-
यह कानून फ़र्मों को ट्रस्ट बनाने से रोकते हैं ताकि यह फ़र्फे गुट बनाकर एकाधिकार न बना लें।

(C) एकाधिकारी प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)

प्रश्न 20.
एकाधिकार प्रतियोगिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
(Monopoly + Competition = Monopolistic Competition) एकाधिकार प्रतियोगिता में एकाधिकार तथा प्रतियोगिता के गुण पाए जाते हैं।

प्रश्न 21.
एकाधिकार प्रतियोगिता की परिभाषा दें।
उत्तर-
एकाधिकार प्रतियोगिता बाजार का ऐसा रूप है जिसमें क्रेताओं तथा विक्रेताओं की अधिक संख्या होती है तथा इसमें वस्तु विभेद और वस्तु की कीमत पर आंशिक नियन्त्रण पाया जाता है।

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प्रश्न 22.
वस्तु विभिन्नता से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तु के रंग, रूप, आकार, गुणवत्ता में अन्तर लाकर उत्पादन करना ही वस्तु विभिन्नता कहलाता है।

प्रश्न 23.
एकाधिकार प्रतियोगिता में माँग वक्र अधिक लोचशील क्यों होती है ?
उत्तर-
एकाधिकार प्रतियोगिता में प्रत्येक उत्पादित वस्तु नज़दीकी स्थानापन्न होती है इसलिए जब एक बेचने वाला वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करता है तो उस वस्तु की माँग बहुत बढ़ जाती है। इसलिए माँग वक्र अधिक लोचशील होती है।

प्रश्न 24.
एकाधिकार और एकाधिकार प्रतियोगिता में कौन-सी दो समानताएँ होती हैं ?
उत्तर-

  • AR तथा MR ऋणात्मक ढाल वाली होती है।
  • दोनों बाज़ारों में कीमत पर पूर्ण तथा आंशिक नियन्त्रण होता है।

प्रश्न 25.
पूर्ण प्रतियोगिता और एकाधिकार प्रतियोगिता में कौन-सी दो समानताएँ होती हैं ?
उत्तर-

  • दोनों बाजारों में खरीददार और बेचने वालों की संख्या अधिक होती है।
  • दोनों बाज़ारों में दीर्घकाल में साधारण लाभ प्राप्त होता है।

प्रश्न 26.
बिक्री लागत अथवा प्रचार लागत अथवा प्रेरणा प्रचार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एकाधिकार प्रतियोगिता में वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिए बिक्री लागतें अथवा प्रचार लागतें व्यय की जाती हैं जिससे लाभ में वृद्धि होती है।

प्रश्न 27.
एकाधिकार प्रतियोगिता के बाजार में कीमत तथा सीमान्त लागत का क्या सम्बन्ध हैं ?
उत्तर-
एकाधिकारी प्रतियोगिता के बाज़ार में सन्तुलन MR = MC द्वारा स्थापित होता है परन्तु इसमें कीमत, औसत लागत से अधिक होती है (P > HC)

प्रश्न 28.
अपूर्ण बाज़ार (Imperfect-Competition) के तीन रूप कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-

  • एकाधिकारी प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)
  • अल्पाधिकार (Oligopoly)
  • दोहरा अधिकार (Duopoly)

प्रश्न 29.
अल्पाधिकार (Oligopoly) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस बाज़ार में 2 से 8 तक उत्पादक होते हैं उस बाज़ार को अल्पाधिकार का बाज़ार कहा जाता है।

प्रश्न 30.
दोहरा अधिकार (Duopoly) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब एक बाज़ार में दो उत्पादक होते हैं तो इसको दोहरा अधिकार का बाज़ार कहा जाता है।

प्रश्न 31.
एकाधिकार प्रतियोगिता के बाज़ार की दो उदाहरणे दें।
उत्तर-

  • टूथपेस्ट बाज़ार
  • टेलीविज़न बाज़ार।

प्रश्न 32.
पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुएँ ……. होती हैं।
(a) समरूप
(b) विषमांगी
(c) वस्तु विभिन्नता
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(a) समरूप।

प्रश्न 33.
एकाधिकार में वस्तुएँ ………. होती हैं।
(a) समरूप
(b) लासानी
(c) विषमांगी
(d) इन में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) लासानी।

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प्रश्न 34.
एकाधिकार प्रतियोगिता में वस्तुएँ ……….. होती है।
(a) समरूप
(b) लासानी
(c) वस्तु विभिन्नता
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) वस्तु विभिन्नता।

प्रश्न 35.
पर्ण प्रतियोगिता में फ़र्म कीमत …………. करती है।
(a) निर्धारण
(b) स्वीकार
(c) निर्धारण तथा स्वीकार
(d) ननिर्धारण न स्वीकार
उत्तर-
(a) स्वीकार।

प्रश्न 36.
पूर्ण प्रतियोगिता में फ़र्म की माँग वक्र …….. होती है।
(a) पूर्ण लचकदार
(b) पूर्ण बेलोचदार
(c) अधिक लचकदार
(d) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) पूर्ण लचकदार।

प्रश्न 37.
पूर्ण प्रतियोगिता और शुद्ध प्रतियोगिता में अन्तर ………. का होता है।
उत्तर-
डिग्री।

प्रश्न 38.
एकाधिकार बाजार में उत्पादक इस प्रकार की वस्तु का उत्पादन करता है जिसका ………… नहीं होता।
उत्तर-
निकट स्थानापन्न।

प्रश्न 39.
एकाधिकार प्रतियोगिता का मुख्य लक्षण …………… होता है।
(a) समरूप वस्तुएँ
(b) लासानी वस्तुएँ
(c) वस्तु विभिन्नता
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) वस्तु विभिन्नता।

प्रश्न 40.
एकाधिकार में उत्पादक वस्तु की कीमत को ……… करता है।
(a) निर्धारित
(b) स्वीकार
(c) निर्धारित और स्वीकार
(d) निर्धारित और न ही स्वीकार।
उत्तर-
(a) निर्धारित।

प्रश्न 41.
एकाधिकार प्रतियोगिता में प्रचार पर व्यय को ………. कहते हैं।
उत्तर-
बिक्री लागतें।

प्रश्न 42.
उत्पादक के सन्तुलन की शर्ते बताएँ।
उत्तर-

  1. MR = MC.
  2. MC वक्र MR रेखा को नीचे से ऊपर की तरफ जाती हुई काटे।

प्रश्न 43.
उत्पादक के सन्तुलन की पहली शर्त ………. होती है और दूसरी शर्ते MC वक्र MR को नीचे से ऊपर को जाती हुई काटे।
उत्तर-
MR = MC.

प्रश्न 44.
सामाजिक दृष्टिकोण से एकाधिकार सामाजिक भार (Dead Weight) है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 45.
एकाधिकार प्रतियोगिता व्यावहारिक बाज़ार की स्थिति होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 46.
एकाधिकार प्रतियोगिता में प्रचार पर किये गए व्यय को ….. लागतें कहा जाता है।
उत्तर-
बिक्री।

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प्रश्न 47.
पूर्ण प्रतियोगिता में औसत आय और सीमान्त आय ……… लोचदार रेखाएँ होती हैं।
उत्तर-
आंशिक।

प्रश्न 48.
विभिन्न ग्राहकों को एक वस्तु अलग-अलग कीमतों पर बेचने को ……. का बाज़ार कहते हैं।
उत्तर-
कीमत विभेद।

प्रश्न 49.
एकाधिकार और एकाधिकारी प्रतियोगिता में औसत आय तथा सीमान्त आय ……. ढलान वाली रेखाएं होती हैं।
उत्तर-
ऋणात्मक।

प्रश्न 50.
एकाधिकार में वस्तु ….. होती है।
(a) समरूप
(b) विलक्षण
(c) विषमरूप
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) विलक्षण।

प्रश्न 51.
एक व्यवस्था जिसमें केवल दो उत्पादक ही होते हैं को ………. कहते हैं।
(a) एकाधिकार
(b) दो-अधिकार
(c) अल्पाधिकार
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) दो-अधिकार।

प्रश्न 52.
अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तुएँ ……… होती हैं।
(a) समरूप
(b) विलक्षण
(c) विषम अंगी
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) विषम अंगी।

प्रश्न 53.
अल्प-अधिकार बाज़ार 2 से 10 तक उत्पादक होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 54.
जिस बाज़ार में दो उत्पादक होते हैं, उसको …….. कहा जाता है।
उत्तर–
दोहरा अधिकार (Duopoly) ।

प्रश्न 55.
दोहरा-अधिकार बाजार अल्प-अधिकार का सरल रूप है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 56.
अल्प-अधिकार बाज़ार में बिक्री लागतें (Selling Costs) नहीं होती।
उत्तर-
गलत।

प्रश्न 57.
अल्प-अधिकार में मांग वक्र ………… होती है।
(a) पूर्ण लोचदार
(b) पूर्ण बेलोचदार
(c) अनिश्चित
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) अनिश्चित।

प्रश्न 58.
अल्प बाज़ार एक व्यावहारिक बाज़ार है।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

(A) पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition)

प्रश्न 1.
बाजार से आपका क्या अभिप्राय है ? बाजार के विभिन्न रूप बताओ।
उत्तर-
बाज़ार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें वस्तु के विक्रेताओं तथा खरीददारों को एकत्रित किया जाता है। यह कोई निश्चित भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता। बाज़ार के विभिन्न रूप हैं-

  • पूर्ण प्रतियोगिता
  • एकाधिकार
  • एकाधिकारी प्रतियोगिता
  • अल्पाधिकार (oligopoly)।

अल्पाधिकार में बड़े आकार के थोड़े से बेचने वाले होते हैं, जैसे पैप्सी कोला तथा कोका कोला।

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता की दो मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. खरीददारों तथा बेचने वालों की बड़ी संख्या- इस बाज़ार में बेचने तथा खरीदने वालों की बड़ी संख्या होती है। कोई एक बेचने अथवा खरीदने वाला वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।
  2. एक समान वस्तुएं-प्रत्येक उत्पादक द्वारा उत्पादन की वस्तुएं (Homogenous) होती हैं जिनका रंग, रूप, आकार, स्वाद तथा कीमत, एक दूसरे से मिलती-जुलती होती हैं।

प्रश्न 3.
सम्पूर्ण प्रतियोगिता में एक फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली क्यों होती है ?
उत्तर-

  1. सम्पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता एक समान वस्तु (Homogenous Product) की बिक्री करते हैं। इसलिए अलग कीमत प्राप्त करनी सम्भव नहीं होती।।
  2. सम्पूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेताओं की संख्या बहुत अधिक होती है। यदि फ़र्म अधिक कीमत प्राप्त करने का प्रयत्न करती है तो मांग बहुत कम हो जाएगी तथा यदि कीमत प्राप्त करती है तो मांग इतनी बढ़ जाएगी, जिसको पूरा करना सम्भव नहीं होगा तथा उस फ़र्म को हानि होगी। इसलिए फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली होती है।

प्रश्न 4.
पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में फ़र्म का सन्तुलन किस स्थिति में होता है ?
अथवा
दीर्घकाल में पूर्ण प्रतियोगिता फ़र्म अधिकतम लाभ कब प्राप्त करती है ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में तथा दीर्घकाल में सभी फ़र्मों को असाधारण लाभ शून्य (zero abnormal profits) प्राप्त होते हैं। प्रत्येक फ़र्म केवल साधारण लाभ प्राप्त करती है। फ़र्म का सन्तुलन न उस स्थिति में होता है। जहां उसको अधिकतम लाभ प्राप्त होता है। MR = LMC and P = LAC OR P = LMC = LAC

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प्रश्न 5.
पूर्ण प्रतियोगिता में एक समान वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? इसका बाज़ार में कीमत पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर–
पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक उत्पादक एक समान (Homogenous Product) का उत्पादन करता है। एकसमान वस्तुओं का अर्थ है कि वस्तु का रंग, रूप, आकार, स्वाद, गुणवता इत्यादि एक-दूसरे से मिलती जुलती होती हैं। इससे बाज़ार में उस वस्तु की एक कीमत (one price) निश्चित हो जाती है।

प्रश्न 6.
पूर्ण प्रतियोगिता में मांग वक्र पूर्ण लोचशील क्यों होती है ?
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में मांग वक्र पूर्ण लोचशील होती है, जोकि Ox के समान्तर बनती है। इसमें मांग की लोच पूर्ण लोचशील (Ed = ∝) होती है। यदि कोई फ़र्म बाज़ार कीमत से थोड़ी अधिक कीमत लेती है, तो उसकी मांग शून्य हो जाएगी। यदि कम कीमत लेती है तो मांग अनन्त तक बढ़ जाती है। इस कारण मांग वक्र पूर्ण लोचशील होती है।

प्रश्न 7.
पूर्ण प्रतियोगिता में यदि कुछ फ़र्मों को असाधारण लाभ होता है तो फ़र्मों की संख्या पर क्या प्रभाव पड़ता है ? यदि असाधारण हानि होती है तो फ़र्मों की संख्या पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-

  1. पूर्ण प्रतियोगिता में यदि कुछ फ़र्मों को असाधारण लाभ होता है तो इस उद्योग में दीर्घकाल में नई फ़र्मे प्रवेश कर जाती हैं।
  2. यदि कुछ फ़र्मों को हानि होती है तो दीर्घकाल में जिन फ़र्मों को हानि होती है, वह उद्योग को छोड़ जाती हैं।

(B) एकाधिकार (Monopoly)

प्रश्न 8.
एकाधिकार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एकाधिकार, बाजार की वह स्थिति होती है, जिसमें वस्तु का उत्पादक एक होता है तथा उस वस्तु का कोई नज़दीकी स्थानापन्न (Close substitute) नहीं होता। इसलिए एकाधिकार वह स्थिति है, जिसमें उत्पादन पर केवल एक फ़र्म का नियन्त्रण हो। फ़र्म तथा उद्योग में कोई अन्तर नहीं होता।

प्रश्न 9.
व्यापारिक गुट से आपका क्या अभिप्राय है ? जब दो फ़र्मे मिल जाती हैं तो इससे कार्य कुशलता में वृद्धि कैसे होती है ?
उत्तर-
जब फ़र्फे स्वतन्त्र तौर पर कार्य करती हैं परन्तु उत्पादन तथा कीमत सम्बन्धी समझौता कर लेती हैं तो इसको व्यापारिक गुट कहा जाता है। मान लो एक उद्योग में दो फ़मैं हैं, दोनों की कार्यकुशलता कम है। एक फ़र्म के पास तकनीकी माहिर श्रमिक हैं, परन्तु अच्छे मण्डीकरण की जांच नहीं है। दूसरी फ़र्म के पास मण्डीकरण की अच्छी महारत है, परन्तु तकनीकी माहिर श्रमिक नहीं हैं। यदि यह फ़मैं एकत्रित होकर एकाधिकार स्थापित कर लें तो दोनों फ़र्मों के मिल जाने से दोनों की कार्य कुशलता बढ़ जाएगी।

प्रश्न 10.
एकाधिकार में कुल आय वक्र का क्या आकार होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार में कुल आय आरम्भ में घटती दर पर बढ़ती है। जब सीमान्त आय घटती है। कुल आय अधिकतम होती है, जब सीमान्त आय शून्य हो जाती है। कुल आय घटती है, जब सीमान्त आय ऋणात्मक हो जाती है। इस प्रकार कुल आय वक्र का आकार उलटे U जैसा होता है।

प्रश्न 11.
एकाधिकार में औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र का आकार किस प्रकार का होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार में औसत आय को कीमत वक्र भी कहा जाता है। कीमत में कमी करके ही मांग में वृद्धि की जा सकती है। इसलिए औसत आय AR नीचे को घटती रेखा होती है जब AR घटती है तो MR तीव्रता से घटती है। इस प्रकार औसत आय तथा सीमान्त आय का ऋणात्मक आकार होता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 1

प्रश्न 12.
एकाधिकारी सन्तुलन में उत्पादन तथा MC कीमत पूर्ण प्रतियोगिता में सन्तुलन उत्पादन तथा कीमत से तुलनात्मक कैसे होती है ?
उत्तर-

  1. एकाधिकारी में सन्तुलन AR तथा MR घटती रेखाओं से सन्तुलन E बिन्दु पर होता है। इससे कीमत Pm तथा उत्पादन Qm होता है।
  2. पूर्ण प्रतियोगिता में AR = MR सीधी रेखा पर सन्तुलन E1 पर होता है तथा कीमत Pp तथा उत्पादन Qp होता है। स्पष्ट है कि एकाधिकारी में कीमत अधिक तथा उत्पादन कम किया जाता है।

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प्रश्न 13.
कीमत विभेद से आपका क्या अभिप्राय है ? कीमत विभेद कौन-से बाज़ार में सम्भव होता है ?
उत्तर-
जब एक एकाधिकारी अपनी वस्तु की विभिन्न ग्राहकों से विभिन्न कीमत प्राप्त करता है ताकि अधिक लाभ प्राप्त कर सके तो इसको कीमत विभेद कहा जाता है। कीमत विभेद केवल एकाधिकार बाजार में ही सम्भव होता है। उदाहरणस्वरूप एक डॉक्टर अमीर लोगों से दवाई की कीमत के साथ मश्वरा फीस प्राप्त करता है तथा निर्धनों से दवाई के पैसे ही लेता है अथवा पुरुषों से स्त्रियों को आय कर कम कर देना पड़ता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

प्रश्न 14.
पेटेंट अधिकार क्या है ? पेटेंट अधिकारों का क्या उद्देश्य होता है ?
उत्तर-
जब कोई फ़र्म नई वस्तु अथवा तकनीक की खोज के पश्चात् पेटेंट अधिकार प्राप्त करती है तो कोई अन्य फ़र्म उस वस्तु अथवा तकनीक का प्रयोग नहीं कर सकती। इसका उद्देश्य यह होता है कि अन्य फ़मैं नई खोजें करने तथा नई खोजों से वस्तु का उत्पादन किया जाए ताकि खोज के कार्य का विकास हो। कितने वर्ष के लिए पेटेंट अधिकार दिया जाता है, उसको पेटेंट जीवन (Patent life) कहा जाता है।

प्रश्न 15.
ट्रस्ट विपक्षीय कानून क्या है ?
उत्तर-
ट्रस्ट विपक्षीय कानून (Anti Trust Legistation)-वह कानून है जोकि बड़ी फ़र्मों को ट्रस्ट बनाने से रोकते हैं ताकि यह फ़र्मे व्यापारिक गुट बनाकर एकाधिकार न बना लें। एकाधिकार बनाने से बड़ी फ़र्मे लोगों का शोषण करने लगती है। इसलिए ट्रस्ट विपक्षीय कानून बनाए जाते हैं।

प्रश्न 16.
एकाधिकारी फ़र्म की सीमान्त आय (MR) औसत आय (AR) से कम क्यों होती है ?
उत्तर-
एकाधिकार फ़र्मे की सीमान्त आय (MR) औसत आय (AR) से कम होती है, क्योंकि एकाधिकार फ़र्म वस्तु की कीमत (AR) में कमी करके ही अधिक वस्तुओं की बिक्री कर सकती है। जब कीमत अथवा औसत आय घटाई जाती है तो सीमान्त आय में कमी तीव्रता से होती है। इस कारण एकाधिकार में मांग वक्र DD ऋणात्मक ढलान वाली होती है।
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(C) एकाधिकारी प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)

प्रश्न 17.
एकाधिकारी प्रतियोगिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एकाधिकारी प्रतियोगिता में खरीददार तथा बेचने वाले बहुत होते हैं। प्रत्येक उत्पादक वस्तु भिन्नता द्वारा अपनी वस्तु को विभिन्न बनाने का प्रयत्न करता है। वस्तु की कीमत पर फ़र्म का आंशिक नियन्त्रण होता है। प्रचार लागतों द्वारा वस्तु अधिक बेचने का प्रयत्न किया जाता है। आधुनिक बाजार को एकाधिकारी प्रतियोगिता का बाज़ार कहा जाता है।

प्रश्न 18.
वस्तु भिन्नता से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एकाधिकारी प्रतियोगिता में प्रत्येक उत्पादक अपनी वस्तु को विभिन्न बनाने के प्रयत्न करता है। वस्तु के रंग, रूप, आकार, भार, गुणवत्ता में अन्तर लाकर ग्राहकों को खींचने का प्रयत्न किया जाता है। जब उत्पादक वस्तुओं के उत्पादन में थोड़ा अन्तर करते हैं तो इसको वस्तु भिन्नता कहा जाता है।

प्रश्न 19.
बिक्री लागतों से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
प्रचार लागतें क्या होती हैं ?
अथवा
प्रेरणा प्रचार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एकाधिकारी प्रतियोगिता में प्रत्येक फ़र्म वस्तु की बिक्री बढ़ाने के लिए बिक्री लागतों अथवा प्रचार लागतों पर व्यय करती है। प्रचार द्वारा लोगों को वस्तु के गुणों की जानकारी दी जाती है ताकि इससे प्रेरणा लेकर लोग वस्तु की अधिक मात्रा की खरीद करें।

प्रश्न 20.
बाज़ार की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
बाज़ार की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. क्षेत्र-वह सारा क्षेत्र जहां वस्तुएं बेची अथवा खरीदी जाती हैं।
  2. क्रेता और विक्रेता-किसी बाजार के लिए खरीदने तथा बेचने वालों का होना अति आवश्यक है।
  3. सम्पर्क-क्रेता और विक्रेता में परस्पर व्यापारिक सम्बन्ध होना ज़रूरी है।
  4. एक वस्तु-अर्थशास्त्र में हर एक वस्तु का बाज़ार अलग-अलग होता है।
  5. प्रतियोगिता-क्रेता तथा विक्रेता में प्रतियोगिता पाई जाती है।
  6. एक कीमत-सारे बाज़ार में एक प्रकार की वस्तु की एक कीमत निश्चित हो जाती है।

(D) अल्प-अधिकार (Oligolopy)

प्रश्न 21.
अल्प अधिकार से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
अल्प अधिकार एक व्यावहारिक बाज़ार है जो कि वास्तविक नज़र आता है। इस बाज़ार में विक्रेताओं की संख्या 2 से 10 तक होती है। यह उत्पादक एक दूसरे के नज़दीकी स्थानापन्न उत्पाद बनाते हैं। प्रत्येक उत्पादक वस्तु से भिन्नता करके उत्पाद को अलग बनाने का यत्न करता है।

प्रश्न 22.
अल्प-अधिकार की कोई दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
अल्प-अधिकार बाज़ार की दो विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. अन्तर्निर्भरता-अल्प-अधिकार बाज़ार में फर्मे एक-दूसरे पर निर्भर होती हैं। इस बाज़ार में जिन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है वह एक-दूसरे के स्थानापन्न होते हैं। जैसे टी०वी० वाशिंग मशीन आदि एक उत्पादक द्वारा लिया गया निर्णय दूसरे उत्पादकों को प्रभावित करता है। यदि एक उत्पादक कीमत में कमी करता है तो दूसरे उत्पादकों को भी कमी करनी पड़ती है।
  2. प्रचार-इस बाज़ार पर बहुत व्यय किया जाता है। प्रचार करके प्रत्येक उत्पादक अधिक बिक्री करने का यत्न करता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

A. पूर्ण प्रतियोगिता (Perfect Competition)

प्रश्न 1.
बाज़ार से क्या अभिप्राय है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र में बाज़ार का अर्थ आम भाषा से अलग लिया जाता है। अर्थशास्त्र में बाज़ार का अर्थ विशेष स्थान से नहीं होता बल्कि उस क्षेत्र से होता है जहां तक एक वस्तु की एक कीमत होने की प्रवृत्ति होती है। क्रेताओं तथा विक्रेताओं में एक दूसरे से सम्पर्क टैलीफोन, तार, एजैन्ट द्वारा स्थापित किया जा सकता है उनका प्रत्यक्ष सम्पर्क ज़रूरी नहीं होता। विशेषताएं (Characteristics)-

  1. बाज़ार से अभिप्राय उस क्षेत्र से होता है जहां पर खरीददार और विक्रेता फैले होते हैं।
  2. क्रेताओं और विक्रेताओं से प्रत्यक्ष सम्बन्ध ज़रूरी नहीं बल्कि किसी माध्यम से हो सकता है।
  3. अर्थशास्त्र में प्रत्येक वस्तु का भिन्न बाज़ार होता है। जैसा कि गेहूं का बाज़ार, चीनी का बाज़ार इत्यादि।
  4. क्रंताओं तथा विक्रेताओं में प्रतियोगिता पाई जाती है।

प्रश्न 2.
पूर्ण प्रतियोगिता की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य चार विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. खरीदने तथा बेचने वालों की बड़ी संख्या-पूर्ण प्रतियोगिता में खरीदने तथा बेचने वालों की संख्या इतनी अधिक होती है कि कोई एक खरीददार अथवा विक्रेता वस्तु की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता।
  2. एकसमान वस्तुएं-सभी उत्पादक एक समान वस्तुओं का उत्पादन करते हैं अर्थात् प्रत्येक उत्पादक की वस्तु का रंग रूप, आकार, स्वाद, एक दूसरे से मिलता जुलता होता है।
  3. प्रवेश तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता-कोई भी फ़र्म अथवा उत्पादक किसी उद्योग में जब मर्जी शामिल हो सकता है तथा जब चाहे उस उद्योग को छोड़ सकता है। प्रवेश करने अथवा छोड़ते समय किसी से आज्ञा नहीं लेनी पड़ती।
  4. एक कीमत-इस बाज़ार में एक समय एक वस्तु की एक कीमत निर्धारण हो जाती है। इस कीमत पर एक फ़र्म जितनी चाहें वस्तुएं बेच सकती हैं।

प्रश्न 3.
“पूर्ण प्रतियोगिता में एक फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली क्यों होती है ?” स्पष्ट करें।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत सभी उद्योगों में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है। इस कीमत को प्रत्येक फ़र्म स्वीकार करती है। इसलिए फ़र्म की औसत आय तथा सीमान्त आय सीधी रेखा होती है, जैसेकि रेखाचित्र 4 में दिखाया है। पूर्ण प्रतियोगिता में फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली क्यों होती है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित अनुसार हैं-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 4
1. फ़र्मों की बड़ी संख्या (Large Number of Firms)-पूर्ण प्रतियोगिता में फ़र्मों की संख्या बहुत अधिक होती है। प्रत्येक फ़र्म का आकार इतना छोटा होता है कि बाजार में पूर्ति को प्रभावित नहीं कर सकती। इसलिए कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती।

2. एक समान वस्तुएं (Homogeneous Product)-पूर्ण प्रतियोगिता में सभी फ़मैं एक समान तथा समरूप वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। कोई फ़र्म यदि बाजार कीमत से अधिक कीमत निर्धारण करती है, तो उस फ़र्म की वस्तु बिकती नहीं। इसलिए बाज़ार में प्रचलित कीमत को ही स्वीकार करती है।

3. कम कीमत के कारण हानि (Loss due to less Price)- यदि फ़र्म बाजार कीमत से कम कीमत निश्चित करती है तो उसको हानि होगी, क्योंकि पूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में सभी फ़र्मों को साधारण लाभ प्राप्त होता है। कीमत कम की जाती है तो हानि होगी।

4. प्रवेश तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता (Freedom of Entry and Exit)-पूर्ण प्रतियोगिता में यदि कुछ फ़र्मों को लाभ होता है तो नई फ़र्मे प्रवेश कर जाती है, जिससे कीमत कम हो जाती है। यदि कुछ फ़र्मों को हानि होती है तो वह फ़र्फे उद्योग को छोड़ जाती है, जिससे वस्तुओं की पूर्ति कम हो जाती है तथा कीमत बढ़ जाती है। इसलिए प्रत्येक फ़र्म उस कीमत को अपनाती है जो बाज़ार में उद्योग द्वारा निश्चित होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

प्रश्न 4.
साधारण रूप में फ़र्म का अधिकतम MR = MC द्वारा क्यों होता है ? स्पष्ट करो।
उत्तर-
साधारण रूप में प्रत्येक फ़र्म को अधिकतम लाभ उस स्थिति में प्राप्त होता है, जहां फ़र्म की सीमान्त आय (MR) = सीमान्त लागत (MC) होती है। इसको रेखाचित्र को 5 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र 5 में सन्तुलन MR = MC द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर होता है तथा फ़र्म OK उत्पादन करती है। कीमत OP निश्चित होती है।

फ़र्म का लाभ DEC है जोकि अधिकतम है। यदि फ़र्म OK, वस्तुओं का उत्पादन करती है। लाभ DR1C1C प्राप्त होगा तथा DR1C1 लाभ DEC से कम है। यदि फ़र्म OK2 वस्तुओं का उत्पादन करती है तो OK उत्पादन तक लाभ DEC है तथा KK2 उत्पादन से EC2R2 हानि होगी, क्योंकि K2C2 सीमान्त लागत अधिक है तथा K2R2 सीमान्त आय कम है। DEC में से EC2R2 घटा दिया जाएं तो लाभ DEC MR से कम प्राप्त होगा। स्पष्ट है कि फ़र्म को अधिकतम लाभ उस स्थिति में होता है, जहां सीमान्त आय (MR) समान सीमान्त लागत (MC) होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 5

प्रश्न 5.
स्पष्ट करो कि पूर्ण प्रतियोगिता तथा दीर्घकाल में जब फ़र्मों के प्रवेश तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता होती है तो फ़र्म को असाधारण लाभ शून्य कैसे होता है।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता तथा दीर्घ समय में जब फ़र्मों फ़र्म का सन्तुलन के निवेश तथा निकास की स्वतन्त्रता होती है तो उस स्थिति में केवल असाधारण लाभ अथवा साधारण प्राप्त | होता है। जैसे कि रेखाचित्र 6 द्वारा दिखाया गया है। रेखाचित्र 6 में जब कीमत उद्योग में कीमत OP, OP1 अथवा OP2 निश्चित होती है तो फ़र्म के सन्तुलन पर क्या प्रभाव पड़ता है। इसको स्पष्ट करते हैं।
(1) यदि कीमत OP निर्धारण होती है तो फ़र्म की मांग वक्र AR = MR सीधी रेखा बनती है। सन्तुलन MR = MC द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होती है। OK उत्पादन किया जाता है। फ़र्म की AR = AC है। इसलिए साधारण लाभ होगा अथवा असाधारण लाभ शून्य होगा।
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(2) यदि कीमत OP1 निर्धारण होती है तो दीर्घकाल में नई फ़र्में प्रवेश कर सकती हैं। इस स्थिति में सन्तुलन MR = MC द्वारा E, पर स्थापित होता है। फ़र्म OK1 उत्पादन करती है। फ़र्म की औसत आय K1E1 अधिक है, औसत लागत K1C1 कम है। इसलिए साधारण लाभ E1C1 होता है। परन्तु नई फ़र्मे प्रवेश करेगी। वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाएगी तथा कीमत OP1 से बढ़कर OP हो जाएगी। जहां कि असाधारण लाभ शून्य हो जाएगा।

(3) यदि कीमत OP2 निर्धारण होती है तो फ़र्म को हानि होगी। सन्तुलन MR = MC द्वारा E2 पर स्थापित होता है। K2C2 औसत लागत अधिक है। K2E2 औसत आय कम है। C2E2 हानि होगी। जिन फ़र्मों को हानि होती है। वह दीर्घकाल में उद्योग को छोड़ जाती है। वस्तुओं की पूर्ति कम हो जाएंगी। कीमत OP2 से बढ़कर OP हो जाती है। इस स्थिति में फ़र्म को साधारण लाभ होगा अथवा असाधारण लाभ शून्य हो जाता है।

B. एकाधिकार (Monopoly)

प्रश्न 6.
एकाधिकारी फ़र्म की बाज़ार मांग वक्र किस प्रकार की होती है ?
अथवा
एकाधिकार से क्या अभिप्राय है ? एक एकाधिकारी की मांग वक्र की प्रकृति का संक्षेप वर्णन करो।
उत्तर-
एकाधिकार (Monopoly) एक ऐसी स्थिति है, जिसमें वस्तु अथवा सेवा का एक उत्पादक होता है तथा जिस वस्तु का उत्पादन किया जाता है, उस वस्तु का नजदीकी स्थानापन्न नहीं होता। एकाधिकारी वस्तु की कीमत स्वयं निश्चित करता है। एकाधिकार में वस्तु की मांग (Demand Curve) ऋणात्मक ढाल वाली होती है। जैसे कि रेखाचित्र 7 में DD/ AR दिखाई गई है। जब कीमत OP है तो वस्तु की OK मात्रा की बिक्री की जाती है। यदि एकाधिकारी OK, वस्तु बेचनी चाहता है तो कीमत घटाकर OP, करनी पड़ती है। इससे मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली बनती है। इसमें कीमत को घटाए बगैर वस्तु की अधिक मात्रा नहीं बेची जा सकती। इस कारण कीमत एक रुकावट होती है।
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प्रश्न 7.
एकाधिकार बाज़ार संरचना का निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर-
एकाधिकार बाजार संरचना का निर्माण निम्नलिखित ढंगों से होता है-

  1. सरकार द्वारा आज्ञा-सरकार किसी वस्तु के उत्पादन के लिए किसी फ़र्म को लाइसेस अथवा आज्ञा प्रदान करती है तो एकाधिकार का निर्माण होता है, जैसेकि डाकखाने, रेलवे, हवाई सेवा इत्यादि की एकाधिकारी।
  2. प्राकृतिक एकाधिकारी-एकाधिकार का निर्माण प्राकृति की ओर से भी हो सकता है। एक मनुष्य को ऐसा चश्मा मिल जाता है, जिसके पाने से हर बीमारी दूर हो जाती है तो इसको प्राकृतिक एकाधिकारी कहा जाता है।
  3. व्यापारिक गुण-बाज़ार में बहुत सी फ़में मिल जाती हैं तथा व्यापारिक गुट (cartels) बना लेती है। यह फ़र्मे वस्तु की कीमत तथा उत्पादन सम्बन्धी समझौता कर लेती हैं। जिससे एकाधिकारी का निर्माण होता है। कई बार सरकार ट्रस्ट विपक्षीय कानून (Anti-trust Legislation) भी बनाती है।
  4. पेटेंट अधिकार-कुछ फ़र्मे वस्तु का पेटेंट अधिकार प्राप्त कर लेती हैं। इसमें अन्य फ़र्मे उस वस्तु का निर्माण उसी रंग, रूप, आकार, स्वाद अथवा नाम इत्यादि से नहीं कर सकती।

प्रश्न 8.
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार में मांग वक्र में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
1. पूर्ण प्रतियोगिता में मांग वक्र-पूर्ण प्रतियोगिता में मांग वक्र पूर्ण लोचशील तथा OX के समान्तर होती है। इससे अभिप्राय है कि OP कीमत पर एक फ़र्म OQ, OQ1 अथवा इससे अधिक जितनी चाहें वस्तुएं बेच सकती हैं। कीमत निर्धारण तो उद्योग द्वारा होती है, जिसको प्रत्येक फ़र्म अपना लेती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 8

2. एकाधिकार में मांग वक्र-एकाधिकार में मांग वक्र बाईं से दाईं ओर नीचे की ओर झुकी रेखा होती है, जब मांग वक्र अथवा AR घंटती है तो MR तीव्रता से घटती है। इससे अभिप्राय है कि यदि कीमत OP से घटाकर OP1 की जाती है तो मांग OQ से बढ़कर OQ1 हो जाती है। इसलिए मांग में वृद्धि कीमत को घटाकर की जा सकती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 9

प्रश्न 9.
एकाधिकार के मुख्य गुण तथा दोष बताओ।
उत्तर-
एकाधिकार के मुख्य गुण (Merits) निम्नलिखित हैं-

  1. कार्यकुशलता में वृद्धि-जब एकाधिकार स्थापित हो जाता है तो उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है इससे पैमाने की बचतें प्राप्त होती हैं। तकनीक का विकास किया जाता है। श्रम के विभाजन के लाभ प्राप्त होते हैं। इसीलिए कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
  2. अनुसन्धान तथा विकास का ऊंचा स्तर-एकाधिकार फ़र्म के पास साधन बहुत अधिक होते हैं। इसलिए यह फ़र्म वस्तु के विकास के लिए नए अनुसन्धानों पर व्यय कर सकती है। इससे उत्पादन लागत में कमी होती है।

एकाधिकार के दोष (Demerits of Monopoly)-
1. ऊंची कीमत-एकाधिकार बाज़ार में विक्रेता एक फ़र्म होती है जोकि अधिकतम लाभ के उद्देश्य से उत्पादन करती है। इसलिए कीमत निर्धारण इस प्रकार की जाती है, जिसमें उस फ़र्म द्वारा निश्चित की कीमत फ़र्म की सीमान्त लागत से अधिक (P> MC) होती है।

2. कम उत्पादन-एकाधिकार द्वारा जो उत्पादन किया जाता है वह पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में कम होता है, चाहे सन्तुलन MR = MC द्वारा स्थापित किया जाता है, परन्तु पूर्ण प्रतियोगिता में AR = MR सीधी रेखा होती है, परन्तु एकाधिकार में AR घटती है तो MR तीव्रता से घटती है, इसलिए सन्तुलन की स्थिति में एकाधिकार का उत्पादन कम होता है।

3. केन्द्रीयकरण को उत्साह-एकाधिकार के पास आर्थिक शक्ति बढ़ जाती है। एक बार एकाधिकार प्राप्त करने के पश्चात् यह फ़र्म किसी अन्य फ़र्म को बाज़ार में आने नहीं देती। इससे शोषण में वृद्धि होती है तथा बाज़ार पर एकाधिकारी का नियन्त्रण हो जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

प्रश्न 10.
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार बाज़ार में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार बाज़ार में मुख्य अन्तर इस प्रकार है –
1. खरीददारों तथा बेचने वालों की संख्या-पूर्ण प्रतियोगिता में खरीददारों तथा बेचने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है। एकाधिकार में बेचने के लिए एक फ़र्म तथा खरीददार अधिक होते हैं।

2. वस्तुओं की प्रकृति-पूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फ़र्म समरूप वस्तु (Homogenous Products) का उत्पादन करती है। परन्तु एकाधिकार में ऐसी वस्तु का उत्पादन किया जाता है जिसका कोई नज़दीकी स्थानापन्न नहीं होता। (No close substitute)

3. प्रवेश पर पाबन्दी-पूर्ण प्रतियोगिता में फ़मैं उद्योग मांग वक्र में जब चाहें प्रवेश कर सकती है तथा उन पर कोई पाबन्दी नहीं होती। एकाधिकार में नई फ़र्मों के प्रवेश पर पाबन्दी होती है।

4.मांग वक्र का आकार-पूर्ण प्रतियोगिता में मांग वक्र पूर्ण लोचशील होती है, जिसमें वस्तु की कीमत एक समान रहती है। वक्र AR = MR सीधी रेखा होती है, जोकि Ox के समान्तर बनती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 10
एकाधिकार में मांग वक्र नीचे की ओर झुकी होती है, क्योंकि कीमत में कमी करके ही मांग में वृद्धि की जा सकती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 115. कीमत विभेद-पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत विभेद सम्भव नहीं होता क्योंकि प्रत्येक फ़र्म एक समान कीमत निश्चित करती है। एकाधिकार में कीमत विभेद सम्भव होता है।

प्रश्न 11.
एकाधिकार में दीर्घकाल में असाधारण लाभ प्राप्त किया जाता है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
दीर्घकाल में सन्तुलन में एकाधिकारी फ़र्म असाधारण लाभ (Abnormal Profit) प्राप्त करती है। इसको रेखाचित्र 12 द्वारा स्पष्ट करते हैं। रेखाचित्र 12 में आय रेखाएं AR तथा MR है जोकि घटती रेखाएं हैं। दीर्घकाल की लागत रेखाएं (ATC तथा LMC है। सन्तुलन MR = LMC द्वारा E बिन्दु पर होता है। OQ LMC उत्पादन किया जाता है। QR = OP कीमत निर्धारण हो जाती है। औसत लागत QT = OC दिखाई गई है। इस स्थिति में PRTC असाधारण लाभ प्राप्त होता है। एकाधिकार में दीर्घकाल में साधारण से अधिक लाभ प्राप्त होते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 12

(C) एकाधिकारी प्रतियोगिता (Monopolistic Competition)

प्रश्न 12.
एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषताओं का संक्षेप वर्णन करो।
उत्तर-
एकाधिकार प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. खरीददारों तथा बेचने वालों की बड़ी संख्या-आधुनिक युग में बाज़ार को एकाधिकारी प्रतियोगिता कहा जाता है। इसमें बेचने वालों की संख्या 20 तक होती है तथा खरीददारों की संख्या बहुत अधिक है।

2. वस्तु भिन्नता- इस बाज़ार की सबसे प्रमुख विशेषता वस्तु भिन्नता (Product differentiation) होती है। वस्तु भिन्नता का अर्थ है कि प्रत्येक उत्पादक वस्तु के रंग, रूप, आकार, स्वाद इत्यादि में परिवर्तन करके अपनी वस्तु को भिन्न बनाने का प्रयत्न करता है।

3. प्रवेश तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता-इस बाज़ार में फ़र्मों को किसी उद्योग में प्रवेश करने अथवा किसी उद्योग को छोड़ने की आज्ञा होती है। जब किसी उद्योग में लाभ प्राप्त होता है तो नई फ़ प्रवेश कर सकती हैं। हानि की स्थिति में फ़र्म उद्योग को छोड़ सकती हैं।

4. बिक्री लागतें-इस बाज़ार में प्रचार पर व्यय किया जाता है। जो व्यय प्रचार पर होता है, उसको बिक्री लागत कहा जाता है। इससे वस्तु की बिक्री बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
एकाधिकार अथवा एकाधिकार प्रतियोगिता में कीमत सीमान्त लागत से अधिक कैसे होती है रेखा चित्र स्पष्ट करो ?
उत्तर-
एकाधिकार अथवा एकाधिकार प्रतियोगिता में कीमत सीमान्त लागत से अधिक होती है। इन दोनों बाजारों में औसत आय (AR) तथा सीमान्त आय (MR) नीचे को घटती रेखाएं होती हैं। जब औसत आय घटती है तो सीमान्त आय तीव्रता से घटती है। प्रत्येक फ़र्म का मुख्य उद्देश्य अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है, जोकि सीमान्त आय MR तथा सीमान्त लागत MC के समान होने से प्राप्त होता है। (MR = MC) क्योंकि AR > MR होती है, इसलिए Por AR > MC होगी। जैसेकि रेखाचित्र 13 में स्पष्ट किया गया है कि औसत आय तथा सीमान्त आय घटती रेखाएं हैं। सन्तुलन MR = MC द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होता है। OQ उत्पादन किया जाता है। फ़र्म की औसत आय QR है अथवा कीमत OP निर्धारण की जाती है। हम देखते हैं कि OP or QR > QE अर्थात् कीमत, सीमान्त लागत से अधिक है ।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 13

प्रश्न 14.
स्पष्ट करो कि एकाधिकार प्रतियोगिता में मांग वक्र अधिक लोचशील होती है।
अथवा
स्पष्ट करो कि एकाधिकार प्रतियोगिता में मांग वक्र पूर्ण लोचशील से कम तथा पूर्ण प्रतियोगिता में पूर्ण लोचशील होती है।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में मांग पूर्ण लोचशील होती है। क्योंकि इस बाज़ार में कीमत उद्योग में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है, जिसको प्रत्येक फ़र्म अपना लेती है। इस कीमत पर फ़र्म जितनी चाहें वस्तु की मात्रा बेच सकती है। इसलिए मांग वक्र ox के समान्तर होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 14
एकाधिकार प्रतियोगिता में मांग अधिक लोचशील होती है, क्योंकि इस बाजार में वस्तुएं एक-दूसरे की स्थानापन्न होती हैं। वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी PP1 से मांग में बहुत अधिक वृद्धि QQ1 होती है। इसीलिए मांग वक्र अधिक लोचशील होती है। परन्तु यह पूर्ण लोचशील नहीं, क्योंकि PD पूर्ण प्रतियोगिता में दिखाई है। बल्कि पूर्ण लोचशील से कम है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 15

प्रश्न 15.
स्पष्ट करो कि दीर्घकाल में स्वतन्त्र प्रवेश तथा छोड़ने से एकाधिकारी प्रतियोगिता में असाधारण लाभ शून्य प्राप्त होता है ?
उत्तर-
एकाधिकारी प्रतियोगिता में दीर्घ काल में सभी फ़र्मों के असाधारण लाभ शून्य प्राप्त होते हैं, क्योंकि-
1. पूर्ति में वृद्धि–यदि एकाधिकारी प्रतियोगिता में फ़र्मों को असाधारण लाभ प्राप्त होता है तो नई फ़र्मों के प्रवेश से वस्तुओं की पूर्ति बढ़ जाती है। इससे कीमत कम हो जाती है तथा असाधारण लाभ शून्य हो जाता है।

2. लागत में वृद्धि-जब नई फ़र्मे प्रवेश करती हैं तो इससे उत्पादन के साधनों की लागत बढ़ जाती है। पुरानी फ़र्मों की लागत बढ़ने के कारण उनके असाधारण लाभ शून्य हो जाते हैं।

3. कीमत में कमी-जब एकाधिकारी प्रतियोगिता में नई फ़में प्रवेश करती हैं तो वस्तु बेचने की कीमत कम निर्धारण करती हैं ताकि जो वस्तु की मांग में वृद्धि हों। पुरानी फ़र्मों को भी वस्तु की कीमत घटानी पड़ती है तथा उनको असाधारण लाभ शून्य प्राप्त होता है।

4. हानि-यदि कुछ फ़र्मों को हानि होती है तो वह फ़र्मों उद्योग को छोड़कर चली जाती हैं। इससे वस्तुओं की पूर्ति कम हो जाती है। कीमत बढ़ जाती है तथा फ़र्मों को साधारण लाभ ही प्राप्त होता है। रेखाचित्र 16 में फ़र्म के दीर्घकाल के सन्तुलन को स्पष्ट किया गया है। सन्तुलन MR = LMC द्वारा स्थापित होता है। फ़र्म OQ उत्पादन करती है। OR औसत आय के समान है। इसलिए प्रत्येक फ़र्म को साधारण लाभ प्राप्त होते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 16

प्रश्न 16.
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर–
पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अन्तर इस प्रकार है –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 17

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

प्रश्न 17.
एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
एकाधिकार तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अन्तर इस प्रकार है –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 18

प्रश्न 18.
पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार तथा एकाधिकार प्रतियोगिता में फ़र्म के मांग वक्र अथवा AR की तुलना करो।
उत्तर-
1. पूर्ण प्रतियोगिता में फ़र्म की मांग वक्र फ़र्म की मांग वक्र (Demand curve of a firm in Perfect Competition)-पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में फ़र्म की मांग वक्र पूर्ण लोचशील होती है, जोकि OX के समान्तर होती है। इसका मुख्य कारण यह होता है कि कीमत AR=MR सभी उद्योगों में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है, इसको प्रत्येक फ़र्म अपना लेती है। फ़र्म की मांग वक्र DD अथवा AR = MR सीधी रेखा होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 19
2. एकाधिकार में फ़र्म की मांग वक्र (Demand curve of a firm in Monopoly)-एकाधिकार में मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली होती है, क्योंकि एक एकाधिकारी वस्तु की कीमत में कमी करके ही वस्तु की मांग में वृद्धि कर सकता है। परन्तु एकाधिकार में मांग वक्र कम लोचशील होती है, क्योंकि यदि उत्पादक वस्तु की कीमत में बहुत अधिक कमी करता है तो बिक्री में वृद्धि अधिक नहीं होती। जैसे कि रेखाचित्र 18 में कीमत में कमी (PP1 > QQ1) से उत्पादन में वृद्धि कम अनुपात पर होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 20

3. एकाधिकारी प्रतियोगिता में फ़र्म की मांग वक्र (Demand Curve of a firm in Monopolistic Competition)-एकाधिकारी प्रतियोगिता में मांग वक्र ऋणात्मक ढलान वाली अधिक लोचशील है। जैसे कि रेखाचित्र 19 में DD अथवा AR नीचे की ओर जाती वक्र दिखाई गई है अर्थात् यदि कीमत PP1 थोड़ी-सी कम हो जाती है तो मांग में वृद्धि QQ1 अधिक होती है। इसका मुख्य कारण प्रत्येक उत्पादक की वस्तु दूसरे उत्पादकों का नज़दीकी स्थानापन्न होती है। इसलिए एक उत्पादक द्वारा थोड़ी सी कीमत घटाने से मांग बहुत बढ़ जाती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 21

प्रश्न 19.
पूर्ण प्रतियोगिता में फ़र्म का कीमत पर कोई नियन्त्रण नहीं होता, जबकि एकाधिकारी प्रतियोगिता में फ़र्म का कीमत पर आंशिक नियन्त्रण होता है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता में कीमत मांग तथा पूर्ति द्वारा उद्योग में निर्धारण होती है, जो कीमत उद्योग में निर्धारण हो जाती है, वह कीमत प्रत्येक फ़र्म को अपनानी पड़ती है, क्योंकि इस बाज़ार में प्रत्येक फर्म समरूप वस्तुओं का उत्पादन करती है। इसलिए फ़र्म वस्तु की कीमत में परिवर्तन नहीं कर सकती तथा उसका कीमत पर कोई नियन्त्रण नहीं होता।

एकाधिकारी प्रतियोगिता में वस्तु भिन्नता पाई जाती है। इसलिए प्रत्येक फ़र्म अपनी वस्तु के रंग, रूप, आकार, स्वाद, प्रचार इत्यादि द्वारा भिन्न बनाकर बेचने का प्रयत्न करती है। इसलिए एकाधिकारी प्रतियोगिता में फ़र्म अपनी वस्तु की विभिन्न कीमत रख सकती है। परन्तु इस बाज़ार में वस्तुएं एक-दूसरे की नज़दीकी स्थानापन्न होती हैं। इसलिए कीमत में अधिक परिवर्तन नहीं किया जा सकता। बल्कि थोड़ी-सा परिवर्तन सम्भव होता है। इस कारण फ़र्म का कीमत पर आंशिक नियन्त्रण होता है।

(D) अल्प अधिकार (Oligopoly)

प्रश्न 20.
अल्प-अधिकार की चार विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

अल्प-अधिकार आज कल के युग में एक व्यावहारिक बाज़ार है। इसमें कम फर्मे (A few Firms) होती हैं। यह फर्मे एक समान वस्तुओं का उत्पादन करती हैं जैसे कि सीमेंट, आटा आदि अथवा एक दूसरे के नज़दीक की वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। इस बाज़ार में विक्रेताओं की संख्या 2 से 10 तक होती है जो विलियम फैलनर के अनुसार, “अल्प-अधिकार कम फर्मों में प्रतियोगिता का बाज़ार होता है।” (Oligopoly is a market with competition among the few. -Fellner)

अल्प-अधिकार की विशेषताएं (Features of Oligopoly) –

  1. आत्मनिर्भरता (Independence)-इस बाज़ार में फर्मे एक-दूसरे पर निर्भर होती हैं। एक फर्म का निर्णय दूसरी फर्मों को प्रभावित करता है। यदि एक फर्म कीमत कम कर देती है तो दूसरी फर्म को भी कीमत कम करनी पड़ती
  2. प्रचार (Advertisement)-इस बाज़ार में प्रचार पर बहुत व्यय किया जाता है। प्रचार करके प्रत्येक उत्पादक अधिक बिक्री करने का यत्न करता है।
  3. प्रतियोगिता (Competition)- इस बाज़ार में फर्मों में प्रतियोगिता पाई जाती है। यदि एक उत्पादक वस्तु के साथ कोई तोहफा देता है तो दूसरे उत्पादकों को भी ऐसा ही करना पड़ता है।
  4. मांग वक्र (Demand Curve)-इस बज़ार में मांग वक्र स्पष्ट नहीं होती। एक फर्म द्वारा कीमत कम अथवा अधिक करने से दूसरी फर्मे भी वैसा ही करती हैं। टेढ़ी मांग वक्र इसलिए माँग वक्र टेढ़ी रेखा होती है।
  5. एकसारता का अभाव (No Uniformity)प्रत्येक फर्म का आकार अलग होता है। एक फर्म बढ़ी तथा दूसरी फर्मे छोटे आकार की हो सकती हैं।
  6. समूह व्यवहार (Group Behaviour)-प्रत्येक फर्म का अपना विशेष बाज़ार होता है। नई फमें आ सकती हैं। परन्तु जो फर्मे लगी होती हैं वह आसानी से फर्मों को आने नहीं देतीं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 25

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार से क्या अभिप्राय है ? पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं बताओ। (What is Perfectly Competitive Market ? Explain the main features of Perfect Competition.)
उत्तर-
पूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ (Meaning of Perfect Competition)-पूर्ण प्रतियोगिता बाज़ार की वह अवस्था है जहां कि वस्तु के खरीददार तथा बेचने वाले बहुत अधिक होते हैं। एक समान वस्तुएं (Homogenous) का उत्पादन किया जाता है। खरीददारों तथा बेचने वालों में प्रतियोगिता इस ढंग से होती है कि सारे बाज़ार में एक वस्तु की एक समय सीमा निश्चित हो जाती है। वस्तु की कीमत उद्योग द्वारा मांग तथा पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित हो जाती है, जिसको प्रत्येक फ़र्म स्वीकार करती है। प्रो० बिलास के अनुसार, “पूर्ण प्रतियोगिता एक ऐसी दशा है, जिसमें बहुत सी फ़में होती हैं। सभी फ़मैं एक समान वस्तुओं का उत्पादन करती है तथा फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली होती है।” (“Perfect competition is characterised by presence of many firms. All the firms sell identical products and a firm is a price taper.”-Bilas)

पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं (Features of Perfect Competition) –
पूर्ण प्रतियोगिता में बाज़ार की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित अनुसार है-
1. खरीददार तथा बेचने वालों की अधिक संख्या (Large number of Buyers and Sellers)-पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार में खरीददारों तथा बेचने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है अर्थात् कोई भी खरीदने वाला अथवा बेचने वाला कीमत को प्रभावित नहीं कर सकता। प्रत्येक खरीददार बाज़ार में बहुत कम मात्रा में वस्तु की खरीद करता है तथा बेचने वाला बहुत कम मात्रा में वस्तु की बिक्री करता है, जिससे वस्तु की कीमत पर कोई प्रभाव नहीं पाया जा सकता।

2. एक समान वस्तुएं (Homogenous Products)-पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में भिन्न-भिन्न उत्पादकों द्वारा बेची जाने वाली वस्तुएं एक समान होती हैं। इन वस्तुओं का रंग-रूप, आकार, स्वाद इत्यादि एक समान होता है। इसलिए खरीददार किसी भी उत्पादक द्वारा उत्पादन की वस्तु को खरीद सकते हैं। पूर्ण प्रतियोगिता के बाजार की एक विशेष विशेषता है।

3..फर्मों को उद्योग में प्रवेश तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता (Freedom of entry and exist of firms)-पूर्ण प्रतियोगिता में फ़र्मे बाज़ार में जब चाहे प्रवेश कर सकती हैं तथा उन्हें बाजार को छोड़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। बाज़ार में सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करती अर्थात् फ़में किसी भी समय वस्तु का उत्पादकता आरम्भ कर सकती हैं तथा किसी भी समय फ़र्मों को बन्द कर सकती है। नई फ़र्मों के खुलने तथा पुरानी फ़र्मों के बन्द होने पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।

4. पूर्ण ज्ञान (Perfect Knowledge)-इस बाज़ार में वस्तुएं बेचने वालों को तथा वस्तुएं खरीदने वालों को पूर्ण ज्ञान होता है। उनको यह ज्ञात होता है कि बाज़ार के किस भाग में किस कीमत पर वस्तु के सौदे हो रहे हैं। न तो बेचने वाला बाजार की अज्ञानता के कारण वस्तु को कम कीमत पर बेचता है तथा न ही खरीदने वाला वस्तुओं को अधिक कीमत पर खरीदता है।

5. पूर्ण गतिशीलता (Perfect Mobility)-पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में उत्पादन के साधनों में पूर्ण गतिशीलता पाई जाती है, जिन कार्यों में उत्पादन के साधनों की मांग अधिक होती है तथा कीमत बढ़ा दी जाती है। उन कार्यों में उत्पादन के साधनों की पूर्ति बढ़ जाती है। इस प्रकार उत्पादन के साधन एक उद्योग से दूसरे उद्योग में जाने के लिए स्वतन्त्र होते हैं।

6. यातायात व्यय का न होना (No Transportation Cost)-पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में यातायात की लागत नहीं होती। यदि फ़र्मों को यातायात का व्यय सहन करना पड़ता है तथा इस व्यय को कीमत में शामिल किया जाता है तो विभिन्न स्थानों पर वस्तु विभिन्न होने की सम्भावना होती है। परन्तु पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की एक कीमत निश्चित होती है। इसलिए यातायात के साधनों की लागत को वस्तु की कीमत में शामिल नहीं किया जाता।

7. मांग वक्र (Demand curve)-पूर्ण प्रतियोगिता के बाज़ार में मांग वक्र पूर्ण लोचशील होती है, जोकि OX रेखा के समान्तर होती है। इस बाज़ार में फ़र्म कीमत स्वीकार करने वाली (Firm is a Price taker) होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 22

प्रश्न 2.
एकाधिकार से क्या अभिप्राय है ? एकाधिकार की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।
(What is Monopoly ? Explain the characteristics of Monopoly.)
उत्तर-
एकाधिकार शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है, मोनो (Mono) तथा पोली (Poly)। मोनो का अर्थ है एक तथा पोली का अर्थ है बेचने वाला अर्थात् एकाधिकार से अभिप्राय है कि मंडी की वह स्थिति जिसमें वस्तु को बेचने वाला एक हो तथा खरीदने वाले बहुत से हों। बाजार में जो वस्तु एकाधिकार द्वारा उत्पादन की जाती है, उस वस्तु का नज़दीकी स्थानापन्न नहीं होना चाहिए। इसलिए बाज़ार में कोई प्रतियोगिता नहीं होती।

(Monopoly is a market in which there is only one producer, producing a commodity which has no close substitute.) .
इससे स्पष्ट होता है कि एकाधिकार उस बाजार को कहा जाता है, जिसमें वस्तु को पैदा करने वाला एक व्यक्ति होता है, जिस वस्तु का उत्पादन किया जाता है, उसका नज़दीकी स्थानापन्न प्राप्त नहीं होता। कोई फ़र्म उद्योग में प्रवेश नहीं कर सकती।

एकाधिकार की विशेषताएं (Characteristics of Monopoly)-
1. एक उत्पादक (One Producer)-एकाधिकार बाज़ार में वस्तु का उत्पादन एक व्यक्ति होता है, जबकि वस्तु . के खरीददार बहुत से होते हैं। इसमें एक मनुष्य अकेला भी फ़र्म का संचालन कर सकता है अथवा साझीदार बनाकर एकाधिकारी स्थापित की जा सकती है, परन्तु वस्तु का उत्पादन एक फ़र्म के हाथ में ही होता है।

2. नज़दीकी स्थानापन्न नहीं होता (No Close Substitute)-एकाधिकारी बाज़ार की यह एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि जो वस्तु एकाधिकारी द्वारा पैदा की जाती है। उस वस्तु का बाज़ार में कोई भी स्थानापन्न नहीं होता। इस कारण कोई नई फ़र्म बाज़ार में शामिल नहीं हो सकती, क्योंकि उस वस्तु की जगह पर प्रयोग की जाने वाली वस्तु का उत्पादन नहीं किया जा सकता।

3. प्रतियोगिता का अभाव (No Competition) एकाधिकारी बाज़ार में प्रतियोगिता का अभाव होता है। कोई नई फ़र्म वस्तु की पैदावार नहीं कर सकती। इसलिए एकाधिकारी फ़र्म वस्तु की मर्जी से कीमत निश्चित कर सकती है।

4. वस्तु की कीमत पर नियन्त्रण (Control over Price)-बाज़ार में एकाधिकारी अकेला ही उत्पादक होता है। इसलिए वस्तु की कीमत पर उसका पूरा नियन्त्रण होता है। जब चाहे वस्तु की कीमत में वृद्धि अथवा कमी कर सकता है। देश में विभिन्न वर्ग के लोगों से वस्तु की विभिन्न कीमत भी प्राप्त की जा सकती है।

5. एकाधिकार फ़र्म उद्योग भी होते हैं (Firm is also an Industry) बाज़ार में वस्तु का उत्पादन करने वाला एक व्यक्ति अथवा एक फ़र्म होने कारण इसके उद्योग भी कहा जाता है। कोई अन्य फ़र्म इस उद्योग में शामिल नहीं हो सकती तथा एक फ़र्म होने कारण इसको छोड़ने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता।

6. कीमत विभेद (Price Discrimination) एकाधिकारी अपनी वस्तु की कीमत विभिन्न ग्राहकों से अलग-अलग प्राप्त कर सकता है। एकाधिकारी ही कीमत विभेद कर सकता है।

7. मांग वक्र (Demand Curve)-एकाधिकारी का कीमत पर नियन्त्रण होता है, परन्तु यदि एकाधिकारी कीमत अधिक रखता है तो मांग कम होगी। मांग में वृद्धि करने के लिए उसको कीमत घटानी पड़ती है। इसलिए मांग वक्र ऋणात्मक ढाल वाली होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप 23
8. एकाधिकारी की संरचना (Formation of Monopoly)-एकाधिकारी बाज़ार

  • सरकार से लाइसेंस लेकर
  • वस्तु रजिस्टर्ड करवाकर
  • व्यापारिक गुटबन्दी द्वारा
  • प्राकृतिक साधनों पर नियन्त्रण द्वारा स्थापित की जाती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

प्रश्न 3.
एकाधिकारी प्रतियोगिता से क्या अभिप्राय है ? एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषताओं का वर्णन करो।
(What is Monopolistic Competition? Explain the characteristics of Monopolistic Competition.)
उत्तर-
एकाधिकारी प्रतियोगिता एक ऐसा बाज़ार है, जिसमें वस्तु को बेचने वालों की संख्या अधिक होती है, परन्तु प्रत्येक उत्पादक अपनी वस्तु को दूसरे उत्पादकों से विभिन्न बनाकर बेचने का प्रयत्न करता है। वस्तु भिन्नता (Product differention) इस बाज़ार की विशेष विशेषता होती है। वास्तविक जीवन में एकाधिकारी प्रतियोगिता की स्थिति पाई जाती है। यदि हम वास्तविक जीवन में देखते हैं तो प्रत्येक उत्पादक अपनी वस्तु का नाम रजिस्टर्ड करवा लेता है।

उस नाम पर कोई अन्य उत्पादन वस्तु की उत्पादकता नहीं कर सकता जैसे कि टैक्सला टेलीविज़न रजिस्टर्ड नाम है, परन्तु बाजार में अन्य टेलीविज़न जैसे कि बी० पी० एल०, ओनीडा, एल० जी०, अकाई, थामसन, फिलिप्स इत्यादि की प्रतियोगिता भी होती है। इसलिए इस बाज़ार में एक ओर एकाधिकारी पाई जाती है तथा दूसरी ओर प्रतियोगिता पाई जाती है। जिस कारण इस बाज़ार को एकाधिकारी प्रतियोगिता का बाज़ार कहा जाता है।

एकाधिकारी प्रतियोगिता की विशेषताएं (Characteristics of Monopolistic Competition) –
एकाधिकारी, प्रतियोगिता के बाज़ार की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. बेचने वालों की अधिक संख्या (Large Number of Sellers)—इस बाज़ार में फ़र्मों की संख्या बहुत अधिक होती है। यह फ़में एक-दूसरे का मुकाबला करती हैं। बाज़ार में प्रत्येक फ़र्म का आकार सीमित होता है।

2. खरीदने वालों की अधिक संख्या (Large Number of buyers)-एकाधिकारी प्रतियोगिता में खरीदने वालों की संख्या बहुत अधिक होती है। प्रत्येक खरीदने वाला वस्तु की कीमत पर वस्तु के गुणों को ध्यान में रखकर इसकी खरीद करता है।

3. वस्तुओं में भिन्नता (Product Differentiation)-इस बाज़ार की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता वस्तुओं में भिन्नता होती है, प्रत्येक उत्पादक अपनी वस्तु को हटकर बनाने का प्रयत्न करता है। इसलिए वस्तुओं का उत्पादन करते समय इनके रंग रूप, गुण आकार, पैकिंग, नाम इत्यादि में अन्तर पाकर वस्तु को अलग बनाने का प्रयत्न किया जाता है। यह वस्तुएं एक-दूसरे की नज़दीकी स्थानापन्न होती है। जैसे कि बाज़ार में टैक्सला, बी० पी० एल०, ओनीडा, फिलिप्स, एल० जी० इत्यादि टेलीविज़न एक-दूसरे के स्थानापन्न हैं।

4. बाज़ार में प्रवेश करने तथा छोड़ने की स्वतन्त्रता (Freedom of entry and exist)-एकाधिकारी प्रतियोगिता में फ़र्मे बाज़ार में जब चाहे प्रवेश कर सकती है अथवा फ़र्मे बाज़ार को छोड़कर कोई अन्य कार्य भी कर सकती हैं। इस बाज़ार में प्रवेश करना बहुत कठिन होता है, क्योंकि कार्य आरम्भ करने से पहले वस्तु का नाम इत्यादि रजिस्टर्ड करवाने पड़ते हैं तथा सरकार से आज्ञा लेकर कार्य आरम्भ किया जाता है। परन्तु हानि होने की स्थिति में फ़र्म उत्पादन बन्द कर सकती है।

5. बिक्री लागतें (Selling Costs)-बिक्री लागतों को प्रचार की लागतें भी कहा जाता है। प्रत्येक उत्पादक अपनी वस्तु की बिक्री को बढ़ाने के लिए वस्तु का प्रचार करता है। इसका मुख्य उद्देश्य ग्राहकों को वस्तु सम्बन्धी जानकारी देना होता है, ताकि लोग अधिक से अधिक वस्तु की खरीद करें। इस उद्देश्य के लिए अखबार, रसाले, टेलीविज़न, रेडियो, सिनेमा इत्यादि द्वारा अपनी वस्तु के गुण बताकर मनचाहे फिल्मी कलाकारों से प्रचार करवाया जाता है ताकि वस्तु की अधिक बिक्री हो सके।

6. अपूर्ण ज्ञान (Imperfect Knowledge)- अपूर्ण प्रतियोगिता में खरीददारों को वस्तु की कीमत वस्तु के गुणों तथा प्रकार के प्रति पूर्ण ज्ञान नहीं होता। सभी बाज़ार में बिकने वाली वस्तुओं में इतनी समानता होती है कि वस्तु सम्बन्धी पूर्ण जानकारी प्राप्त करनी असम्भव नहीं होती। इसलिए प्रचार, रीति-रिवाज, फैशन इत्यादि तत्त्वों से प्रभावित होकर वस्तु की खरीद की जाती है।

7. अपूर्ण गतिशीलता (Imperfect Mobility) -अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन के साधनों में पूर्ण गतिशीलता नहीं होती अर्थात् इनको एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना सम्भाव नहीं होता। विशेष तौर पर मजदूरों में कम गतिशीलता पाई जाती है, बोली, खान-पीन, पहरावा इत्यादि तत्त्व गतिशीलता के मार्ग में रुकावट बन जाते हैं।

8. कीमत प्रतियोगिता का अभाव (Absence of Price Competition)-इस बाज़ार में विशेष तौर पर फ़र्मों में कीमत प्रतियोगिता नहीं होती, क्योंकि फ़र्मों को यह ज्ञात होता है कि कीमत घटाने से न केवल विपक्षीय फ़र्मों को ही नुकसान होगा, बल्कि उनको स्वयं भी हानि सहन करनी पड़ेगी। इसलिए लाभ बढ़ाने के लिए फ़र्मे गुटबन्दी बना लेती हैं।

प्रश्न 4.
पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकारी तथा एकाधिकारी प्रतियोगिता में अन्तर बताओ। (Explain the difference between Perfect Competition, Monopoly and Monopolistic Competition.)
उत्तर-
इनमें अन्तर को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 12 बाज़ार के रूप

(D) अल्प अधिकार (Oligopoly)

प्रश्न 5.
अल्प-अधिकार से क्या अभिप्राय है ? इसकी विशेषताएं बताएं। (What is meant by Oligopoly ? Explain the main features of Oligopoly.)
उत्तर-
अल्प-अधिकार आज कल के युग में एक व्यावहारिक बाज़ार है। इसमें कम फर्मे (A few Firms) होती हैं। यह फर्मे एक समान वस्तुओं का उत्पादन करती हैं जैसे कि सीमेंट, आटा आदि अथवा एक दूसरे के नज़दीक की वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। इस बाज़ार में विक्रेताओं की संख्या 2 से 10 तक होती है जो विलियम फैलनर के अनुसार, “अल्प-अधिकार कम फर्मों में प्रतियोगिता का बाज़ार होता है।” (Oligopoly is a market with competition among the few. -Fellner)

अल्प-अधिकार की विशेषताएं (Features of Oligopoly) –

  1. आत्मनिर्भरता (Independence)-इस बाज़ार में फर्मे एक-दूसरे पर निर्भर होती हैं। एक फर्म का निर्णय दूसरी फर्मों को प्रभावित करता है। यदि एक फर्म कीमत कम कर देती है तो दूसरी फर्म को भी कीमत कम करनी पड़ती
  2. प्रचार (Advertisement)-इस बाज़ार में प्रचार पर बहुत व्यय किया जाता है। प्रचार करके प्रत्येक उत्पादक अधिक बिक्री करने का यत्न करता है।
  3. प्रतियोगिता (Competition)- इस बाज़ार में फर्मों में प्रतियोगिता पाई जाती है। यदि एक उत्पादक वस्तु के साथ कोई तोहफा देता है तो दूसरे उत्पादकों को भी ऐसा ही करना पड़ता है।
  4. मांग वक्र (Demand Curve)-इस बज़ार में मांग वक्र स्पष्ट नहीं होती। एक फर्म द्वारा कीमत कम अथवा अधिक करने से दूसरी फर्मे भी वैसा ही करती हैं। टेढ़ी मांग वक्र इसलिए माँग वक्र टेढ़ी रेखा होती है।
  5. एकसारता का अभाव (No Uniformity)प्रत्येक फर्म का आकार अलग होता है। एक फर्म बढ़ी तथा दूसरी फर्मे छोटे आकार की हो सकती हैं।
  6. समूह व्यवहार (Group Behaviour)-प्रत्येक फर्म का अपना विशेष बाज़ार होता है। नई फमें आ सकती हैं। परन्तु जो फर्मे लगी होती हैं वह आसानी से फर्मों को आने नहीं देतीं।

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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 8 लागत की धारणाएँ

PSEB 11th Class Economics लागत की धारणाएँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक उत्पादक द्वारा उत्पादन के साधनों तथा गैर-साधनों पर किए गए व्यय को लागत कहा जाता है।

प्रश्न 2.
मुद्रा लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वस्तु का उत्पादन करने के लिए एक उत्पादक को उत्पादन पर जो पैसे व्यय करने पड़ते हैं उसको मुद्रा लागत कहा जाता है।

प्रश्न 3.
वास्तविक लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वस्तु का उत्पादन करने के लिए जो दिमागी तथा भौतिक कोशिश की जाती है उसको वास्तविक लागत कहते हैं।

प्रश्न 4.
अवसर लागत से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अवसर लागत किसी साधन के वैकल्पिक प्रयोग का मूल्य है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

प्रश्न 5.
बाहरी लागतों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बाहरी लागतें वे लागतें हैं जिनका भुगतान उत्पादक द्वारा दूसरे साधनों को किया जाता है।

प्रश्न 6.
आन्तरिक लागतों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आन्तरिक लागतें वे लागतें हैं जो कि उत्पादक के अपने साधनों पर व्यय होती हैं जैसा कि उत्पादक की अपनी पूँजी का ब्याज, मेहनत की मज़दूरी इत्यादि।

प्रश्न 7.
निजी लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी लागत वह लागत है जो कि उत्पादक को वस्तुओं के उत्पादन पर व्यय करनी पड़ती है।

प्रश्न 8.
सामाजिक लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सामाजिक लागत वह लागत है जो कि समाज को वस्तुओं के उत्पादन के लिए, समाज को होने वाली हानि के रूप में सहन करनी पड़ती है।

प्रश्न 9.
कुल लागत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
कुल लागत वह लागत होती है जोकि उत्पादक को स्थिर तथा परिवर्तनशील साधनों पर व्यय करनी पड़ती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

प्रश्न 10.
स्थिर लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्थिर अथवा बन्धी लागतों से अभिप्राय उन लागतों से है जो उत्पादन के बन्धे साधनों पर व्यय की जाती हैं।

प्रश्न 11.
परिवर्तनशील लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जो लागत उत्पादन के परिवर्तनशील साधनों पर व्यय की जाती है, उसको परिवर्तनशील लागतें कहा जाता है।

प्रश्न 12.
औसत लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तु की प्रति इकाई लागत को औसत लागत कहा जाता है।
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प्रश्न 13.
सीमान्त लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तु की एक अन्य इकाई का उत्पादन करने से जितनी कुल लागत में वृद्धि होती है उसको सीमान्त लागत कहा जाता है।
MC = TCn – TCn-1

प्रश्न 14.
औसत लागत वक्र का अल्पकाल से साधारण आकार क्या होता है ?
अथवा
औसत लागत अल्पकाल में U आकार की क्यों होती है ?
उत्तर-
अल्पकाल में औसत लागत वक्र U आकार की होती है इसका कारण घटते-बढ़ते अनुपात का नियम है।

प्रश्न 15.
दीर्घकाल लागतों का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
दीर्घकाल लागत वक्र होते तो U आकार के हैं परन्तु यह चपटे आकार की होती हैं।

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प्रश्न 16.
निम्नलिखित में स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागतें बताएं
(i) शेड का किराया,
(ii) न्यूनतम टेलीफ़ोन बिल
(iii) कच्चे माल की लागत
(iv) स्थाई कर्मचारियों का वेतन
(v) पूँजी का ब्याज
(vi) सामान का परिवहन पर खर्च
(vii) न्यूनतम से ऊपर की टेलीफ़ोन बिल की राशि
(vii) दैनिक मज़दूरी।
उत्तर –

स्थिर लागत परिवर्तनशील लागत
(i) शेड का किराया (i) कच्चे माल की लागत
(ii) न्यूनतम टेलीफ़ोन का बिल (ii) सामान का परिवहन पर खर्च
(iii) स्थाई कर्मचारियों का वेतन (iii) न्यूनतम से ऊपर का टेलीफ़ोन का बिल
(iv) पूँजी का ब्याज (iv) दैनिक मज़दूरी।

प्रश्न 17.
जो लागतें उत्पादन के बदलने के साथ बदल जाती हैं को ……….. कहते हैं।
(a) मुख्य लागतें
(b) प्रत्यक्ष लागतें
(c) कुल परिवर्तनशील लागतें
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 18.
जो लागतें उत्पादन की मात्रा के परिवर्तन के कारण परिवर्तत नहीं होती उन लागतों को कहते हैं।
(a) पूरक लागतें
(b) अप्रत्यक्ष लागते
(c) स्थिर लागतें
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 19.
प्रति वस्तु लागत को ……… कहते हैं।
(a) कुल स्थिर लागत
(b) परिवर्तनशील लागत
(c) औसत लागत
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) औसत लागत।

प्रश्न 20.
उत्पादन में परिवर्तन करने से जो लागत परिवर्तित नहीं होती को ………..कहा जाता है।
(a) स्थिर लागत
(b) परिवर्तनशील लागत
(c) सामाजिक लागत
(d) अवसर लागत।
उत्तर-
(a) स्थिर लागत।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें:
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 2
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 3

प्रश्न 22.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करो :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 4
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 5

प्रश्न 23.
उत्पादन के परिवर्तनशील साधन किये गए व्यय को ……… कहते हैं।
उत्तर-
परिवर्तनशील लागत।

प्रश्न 24.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 6
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 7

प्रश्न 25.
उत्पादन के स्थिर साधन पर किये गए व्यय को ………. कहते हैं।
उत्तर-
स्थिर लागत

प्रश्न 26.
वस्तु की प्रति इकाई लागत को ………. कहते हैं।
उत्तर-
औसत लागत।

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प्रश्न 27. MC = …..
उत्तर-
MC = \(\frac{\Delta \mathrm{TC}}{\Delta \mathrm{Q}}\)

प्रश्न 28.
एक वस्तु का उत्पादन करने में जो पैसे व्यय करने पढ़ते उस को वास्तविक लागत कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 29.
अवसर लागत किसे साधन के वैकल्पिक का प्रयोग का मूल्य है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 30.
उत्पादन के स्थिर साधनों पर व्यय की गई लागत को स्थिर लागत अथवा पूरक लागत अथवा अप्रत्यक्ष लागत कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 31.
अल्पकाल में लागत वक्र आकार के होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 32.
इमारत का किराया, स्थाई मजदूरों की मजदूरी, पूँजी का ब्याज को स्थिर लागत कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 33.
AC = ……
उत्तर-
AC = \(\frac{\mathrm{TC}}{\mathrm{Q}}\)

प्रश्न 34.
दीर्घकाल में समुची लागते स्थिर लागतें बन जाती हैं।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादन लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक उत्पादक जब उत्पादन करता है तो उसको उत्पादन के साधनों भूमि, श्रम, पूंजी, संगठन पर व्यय करना पड़ता है। इसके बिना कच्चे माल, बिजली, यातायात के साधनों इत्यादि पर व्यय किया जाता है। इस प्रकार के किए गए व्ययों को कुल लागत कहते हैं।

प्रश्न 2.
मुद्रा लागत तथा वास्तविक लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वस्तु का उत्पादन करने के लिए एक उत्पादक को मुद्रा के रूप में जो पैसे व्यय करने पड़ते हैं, उसको मुद्रा लागत कहा जाता है, जबकि एक वस्तु का उत्पादन करने के लिए जो दिमागी तथा भौतिक कोशिश की जाती है, उसको वास्तविक लागत कहा जाता है।

प्रश्न 3.
बाहरी लागतों तथा आन्तरिक लागतों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बाहरी लागतें वह लागतें हैं, जिनका भुगतान उत्पादक द्वारा दूसरे साधनों को किया जाता है, जैसे कि मज़दूरी, लगान, ब्याज इत्यादि। इसको लेखे की लागत (Accounting Cost) भी कहा जाता है। आन्तरिक लागतें वह लागतें हैं, जोकि उत्पादक के अपने साधनों के प्रयोग पर व्यय होती हैं, जैसे कि उत्पादक की अपनी पूंजी का ब्याज, अपनी मेहनत की मजदूरी, अपनी भूमि का लगान।

प्रश्न 4.
अवसर लागत से आपका क्या अभिप्राय है ? उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
किसी साधन के दूसरे अच्छे विकल्पीय प्रयोग में लागत को अवसर लागत (Opportunity Cost) कहते हैं। यदि किसी साधन को कार्य A में ₹ 500 तथा कार्य B में से ₹ 400 प्राप्त होते हैं। वह साधन कार्य A में लग जाएगा तथा उसकी, अवसर लागत ₹ 400 हैं जो कार्य B में से प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
निजी लागत तथा सामाजिक लागत में अन्तर बताओ।
उत्तर-
निजी लागत (Private Cost)-निजी लागत वह लागत है जोकि निजी फ़र्मों को वस्तुओं के उत्पादन पर व्यय करना पड़ता है। एक मनुष्य द्वारा साधनों तथा कच्चे माल इत्यादि के व्यय को निजी लागत कहते हैं। सामाजिक लागत (Social Cost)-सामाजिक लागत वह लागत है जोकि एक समाज को वस्तु के उत्पादन के हानि के रूप में सहन करनी पड़ती हैं। जैसे कि फ़र्मों के उत्पादन करते समय जो धुआं फैक्टरियों में से निकलता है, उससे लोगों की सेहत पर बुरे प्रभाव को सामाजिक लागत कहते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

प्रश्न 6.
स्थिर तथा परिवर्तनशील लागतों में अन्तर स्पष्ट करो।
अथवा
कुल लागत से आपका क्या अभिप्राय है ? इसमें कौन-कौन सी लागतों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
कुल लागत (Total Cost)-किसी वस्तु का उत्पादन करने से जो कुल खर्च सहन करना पड़ता है उसको कुल लागत कहते हैं। इसमें दो प्रकार की लागतें होती हैं-

  • स्थिर लागत (Fixed Cost)-इसको वृद्धि करने वाली लागत (Supplementary Cost) भी कहा जाता है। यह वह लागतें हैं जो उत्पादन में परिवर्तन से परिवर्तित नहीं होती, जैसे कि भूमि अथवा इमारत का किराया, उधार के लिए पूंजी का ब्याज, पक्के कर्मचारियों का वेतन इत्यादि।
  • परिवर्तनशील लागत (Variable Cost)-इसको मुख्य लागत (Prime Cost)-  भी कहा जाता है, वह लागतें जो उत्पादन में वृद्धि करने से बढ़ जाती हैं तथा उत्पादन को घटाने से कम हो जाती हैं। इनको परिवर्तनशील लागतें कहते हैं, जैसे कि कच्चे माल का व्यय, यातायात के साधनों का व्यय, कच्चे कार्य पर लगे कर्मचारियों की मज़दूरी इत्यादि।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित लागतों का स्थिर लागतों तथा परिवर्तनशील लागतों में वर्गीकरण करो।
(a) शैड का किराया
(b) न्यूनतम टेलीफोन बिल
(c) कच्चे माल का व्यय
(d) पक्के कर्मचारियों की मजदूरी
(e) पूंजी का ब्याज
(f) वस्तुओं का यातायात पर व्यय
(g) न्यूनतम से अधिक टेलीफोन का व्यय
(h) रोज़ाना मज़दूरी।
उत्तर-
स्थिर लागतें (Fixed Costs)-
(a) शैड का किराया
(b) न्यूनतम टेलीफोन बिल
(d) पक्के कर्मचारियों की मजदूरी
(e) पूंजी का ब्याज।

परिवर्तनशील लागते (Variable Costs)-
(c) कच्चे माल का व्यय (
(f) वस्तुओं का यातायात पर व्यय
(g) न्यूनतम से अधिक टेलीफोन का व्यय
(h) रोज़ाना मज़दूरी।

प्रश्न 8.
अल्पकाल की सीमान्त लागत (MC) वक्र U आकार की क्यों होती है ?
उत्तर-
अल्पकाल में कुल सीमान्त लागत स्थिर होती है। जब उत्पादन में वृद्धि की जाती है तो इससे आरम्भ में बढ़ते प्रतिफल का नियम लागू होता है। इसलिए सीमान्त लागत तीव्रता से घटती है, परन्तु पश्चात् में घटते प्रतिफल का नियम लागू होने के कारण सीमान्त लागत बढ़ती है। इसीलिए अल्पकाल की सीमान्त लागत U आकार की होती है।

प्रश्न 9.
सीमान्त लागत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तु की एक इकाई का अन्य उत्पादन करने से जितनी कुल लागत में वृद्धि होती है, उसको सीमान्त लागत कहा जाता है। जैसे कि 10 वस्तुओं का उत्पादन करने से 100 रुपए लागत आती है। वस्तुओं से कुल लागत 109 हो । जाती है तो वो कुल लागत में वृद्धि 109 – 100 = ₹ 9 है, इसको सीमान्त लागत कहा जाता है।
MC = TUn – TUn-1

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
दीर्घकाल की लागत रेखाओं को स्पष्ट करो।।
उत्तर-
दीर्घकाल में स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत में अन्तर समाप्त हो जाता है। दीर्घकाल में सभी लागतें ही परिवर्तनशील हो जाती हैं। इसलिए दीर्घकाल में दीर्घकाल की औसत लागत (LAC) तथा दीर्घकाल की सीमान्त लागत (LMC) होती हैं। उत्पादन में वृद्धि करने से दीर्घकाल में पैमाने के प्रतिफल प्राप्त होते हैं।

  • पैमाने का बढ़ता प्रतिफल-इस कारण LAC घटती है।
  • पैमाने का समान प्रतिफल-इस कारण LAC समान रहती है।
  • पैमाने का घटता प्रतिफल-इस कारण LAC घटती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 8

रेखाचित्र 1 में पैमाने के प्रतिफल की तीन स्थितियों को दिखाया गया है। दीर्घकाल की लागत रेखाएं अंग्रेज़ी के अक्षर U जैसी होती हैं, परन्तु यह चपटी (Flattened) हैं।

प्रश्न 2.
रेखाचित्र द्वारा कुल लागत (TC), कुल स्थिर लागत (TFC) तथा कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
कुल लागत (TC), कुल स्थिर लागत (TFC) तथा कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) की सहायता से प्राप्त की जाती है।-

  1. कुल स्थिर लागत (TFC) स्थिर रहती है, जैसे कि इस स्थिति में ₹ 10 है। यह हमेशा OX रेखा के समान्तर होती है।
  2. कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) शून्य से आरम्भ होती है। बदलवें अनुपातों के नियम अनुसार इसमें परिवर्तन होता है जोकि उल्टे आकार की बनती है।
  3. कुल लागत (TC) का निर्माण कुल स्थिर लागत (TFC) तथा कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) के जोड़ से बनाई जाती हैं, क्योंकि कुल स्थिर लागत स्थिर रहती है। इसलिए कुल लागत (TC) कुल परिवर्तनशील लागत के समान्तर होती है। इनमें हमेशा अन्तर कुल स्थिर लागत के समान होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 9

प्रश्न 3.
स्थिर लागत तथा परिवर्तन शील लागत में अंतर बताओ।
उत्तर-
स्थिर लागतें (Fixed Costs)-स्थिर लागतें वह लागते हैं, जोकि स्थिर साधनों पर व्यय की जाती हैं तथा उत्पादन किया जाएं अथवा न किया जाएं। यह लागतें स्थिर रहती हैं। यह कभी भी शून्य नहीं होतीं। जैसे कि

  • इमारत का किराया।
  • पक्के कर्मचारियों की मज़दूरी
  • उधार के लिए पूंजी का ब्याज,
  • बीमे की किस्त इत्यादि।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

2. परिवर्तनशील लागतें (Variable Costs) परिवर्तनशील लागते वह लागतें होती हैं, जो किसी वस्तु के उत्पादन में परिवर्तन करने से परिवर्तित हो जाती हैं। उत्पादन में वृद्धि करने से अधिक हो जाती है तथा उत्पादन में कमी करने से कम हो जाती हैं। जैसे कि

  • कच्चे लगे मजदूरों की मज़दूरी
  • कच्चे माल का व्यय
  • बिजली का व्यय
  • यातायात के साधनों का व्यय इत्यादि।

प्रश्न 4.
कुल औसत लागत (TAC), औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) तथा सीमान्त लागत (MC) के सम्बन्ध को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
कुल औस’ लागत (TAC), औसत परिवर्तनशील ATC (AVC) तथा सीमान्त लागत के सम्बन्ध को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट |5 किया जा सकता है। यह वक्र अंग्रेजी के अक्षर U जैसी हैं, क्योंकि परिवर्तनशील अनुपातों का नियम लागू होता है।

औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) पहले घटती है फिर बढ़ती है। सीमान्त लागत (MC) AVC को E बिन्दु पर काटती है-

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 10

  • कुल औसत लागत (ATC) पहले घटती है फिर समान रहती है तथा अन्त में बढ़ती है। सीमान्त लागत इसको E, पर काटती है, जोकि न्यूनतम बिन्दु है तथा OQ, उत्पादन होता है।
  • सीमान्त लागत (MC) रेखा, औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) तथा औसत कुल लागत (ATC) को न्यूनतम बिन्दुओं पर काटकर गुज़रती हैं।

प्रश्न 5.
सीमान्त लागत तथा औसत परिवर्तनशील लागत के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
सीमान्त लागत तथा औसत परिवर्तनशील लागत के सम्बन्ध को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 11
सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 4 के अनुसार-

  1. जब उत्पादन में वृद्धि होती है तो आरम्भ में औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) घटती है, जैसे कि 50, 45, 40, 35 तो सीमान्त लागत तीव्रता से घटती है। ₹ 50, 40, 30, 24 है।
  2. जब औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) समान रहती है तो सीमान्त लागत, AVC के समान हो जाती है, जिसको E बिन्दु द्वारा दिखाया है।
  3. जब औसत परिवर्तनशील लागत बढ़ती है तो सीमान्त लागत तीव्रता से बढ़ती है।

प्रश्न 6.
स्पष्ट करो कि सीमान्त लागत वक्र का बढ़ता भाग, प्रतियोगिता वाली फ़र्म की पूर्ति वक्र होता है।
उत्तर-
एक प्रतियोगिता वाली फ़र्म का सन्तुलन उस MC स्थिति में होता है, जहां कि सीमान्त आय (MR) तथा सीमान्त लागत (MC) समान होती है। पूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की एक कीमत निर्धारण हो जाती है। इसलिए आय AR=MR वक्र AR = MR सीधी रेखा बनती हैं।

  • फ़र्म का सन्तुलन MR = MC द्वारा E1 पर होता है। कीमत OP1 निश्चित हो जाती है, उत्पादन OQ1 किया जाता है।
  • जब कीमत बढ़कर OP2 हो जाती है तो सन्तुलन E2 पर होता है तथा फ़र्म OQ2 वस्तुओं का उत्पादन
    करके पूर्ति करती है।
  • जब कीमत OP3 हो जाती है तो सन्तुलन E3 पर होता है। इससे फ़र्म OQ3 वस्तुओं का उत्पादन करती है तथा पूर्ति OQ3 हो जाती है। इससे ज्ञात होता है कि सीमान्त लागत का बढ़ता हिस्सा प्रतियोगिता वाली फ़र्म का पूर्ति वक्र होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 12

प्रश्न 7.
औसत लागत तथा सीमान्त लागत के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
औसत लागत तथा सीमान्त लागत के सम्बन्ध को रेखाचित्र 6 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-

  • आरम्भ में उत्पादन में वृद्धि करने से औसत लागत (AC) घटती है तो सीमान्त लागत (MC) तीव्रता से घटती है, परन्तु सीमान्त लागत से औसत लागत अधिक होती है।
  • E बिन्दु पर जब OQ उत्पादन किया जाता है तो औसत लागत समान रहती है तो सीमान्त लागत इसके समान हो जाती है।
  • OQ से अधिक उत्पादन करने से औसत लागत बढ़ती है, परन्तु सीमान्त लागत तीव्रता से बढ़ती है। इस स्थिति में औसत लागत सीमान्त लागत से कम होती है।
  • औसत लागत को सीमान्त लागत न्यूनतम बिन्दु पर काटकर गुज़रती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 13

प्रश्न 8.
एक फ़र्म की कुल लागत का सूची पत्र निम्नलिखित अनुसार है –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 14

(a) इस फ़र्म की कुल स्थिर लागत कितनी है ?
(b) इस सूची से AFC, AVC, ATC तथा MC ज्ञात करो।
उत्तर-
(a) फ़र्म की कुल स्थिर लागत ₹ 40 है।
(b) AFC, AVC, ATC तथा MC का माप
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 15

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अल्पकाल की लागत रेखाओं को स्पष्ट करो।अल्पकाल की लागत रेखाएं U आकार की क्यों होती (Explain short run cost curves. Why are short period cost curves U shaped ?)
अथवा
अल्पकाल की निम्नलिखित धारणाओं को स्पष्ट करो।
(i) औसत स्थिर लागत (AFC)
(ii) औसत परिवर्तनशील लागत (AVC)
(iii) औसत कुल लागत (ATC)
(iv) सीमान्त लागत (MC)
उत्तर-
अल्पकाल इतना कम समय होता है, जिसमें स्थिर साधनों में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इस समय में लागतें दो प्रकार की होती हैं-स्थिर लागत तथा परिवर्तनशील लागत। अल्पकाल को निश्चित नहीं किया जा सकता। यह तो विभिन्न फ़र्मों पर निर्भर करता है कि अल्पकाल कितना होगा। यह समय कुछ महीनों अथवा कुछ वर्षों का भी हो सकता है, जैसे कि साइकिल का उद्योग स्थापित करने के लिए एक वर्ष का समय चाहिए है तो एक वर्ष के समय को कम समय कहा जाता है। हौजरी का कार्य तीन महीनों में आरम्भ किया जा सकता है तो तीन महीने का समय कम समय है। अल्पकाल की मुख्य लागतें इस प्रकार होती हैं

  • औसत स्थिर लागत (Average Fixed Cost)
  • औसत परिवर्तनशील लागत (Average Variable Cost)
  • औसत कुल लागत (Average Total Cost)
  • सीमान्त लागत (Marginal Cost)

अल्पकाल की लागत रेखाओं को एक सूचीपत्र द्वारा स्पष्ट करते हैं। (विद्यार्थियों के लिए नोट विद्यार्थी इस सूची को आसानी से याद कर सकते हैं।)

  1. कॉलम 1 में 1, 2, 3, 4 इत्यादि संख्याएं लिखो।
  2. कॉलम 2 में (FC), 100, 100, 100 लिखो।
  3. कॉलम 3 की आंकड़े कॉलम 2 : 1 से विभाजित कर AFC प्राप्त करो।
  4. इसके पश्चात् प्रथम कॉलम 5में (AVC) 0, 50, 45, 40, 35 अर्थात् 5,5 घटाओ तथा फिर इसको विपरीत करके लिखो 35, 40, 45, 50 लिखो।
  5. कॉलम 4 में AC की संख्याओं को कॉलम 5 x 1 द्वारा प्राप्त करो।
  6. AFC + AVC द्वारा कॉलम 6 में कुल लागत (Total Cost) प्राप्त करो।
  7. कुल लागत को उत्पादन पर विभाजित करके औसत कुल लागत (ATC) प्राप्त करो |
  8. कुल लागत (TC) कॉलम 6 में एक इकाई की वृद्धि से कुल लागत में वृद्धि द्वारा सीमान्त लागत का माप करो।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 16
(i) औसत स्थिर लागत (Average Fixed Cost)प्रो० डूली अनुसार, “कुल स्थिर लागत को उत्पादन की इकाइयों से विभाजित करने से औसत स्थिर लागत प्राप्त होती है।” (“Average Fixed cost may be derived by dividing fixed cost with output.”—Dooley)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 17
यदि कॉलम 2 में 100,100 को उत्पादन की इकाइयों से विभाजित करते हैं तो AFC प्राप्त होती है। AFC घटती जाती है। जब उत्पादन में वृद्धि होती है, परन्तु AFC कभी शून्य नहीं होती।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 18
(ii) औसत परिवर्तनशील लागत (Average Variable Cost) कुल परिवर्तनशील लागत (TVC) को उत्पादन की इकाइयों पर विभाजित करने से औसत परिवर्तनशील लागत प्राप्त होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 19
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 20
कुल परिवर्तनशील लागत को उत्पादन की इकाइयों से विभाजित करने से औसत परिवर्तनशील लागत 50, 45, 40, 35 पहले घटती है, फिर 35, 40, 45, 50 बढ़ती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 21
(iii) औसत कुल लागत (Average Total Cost)-कुल लागत हम कुल स्थिर तथा कुल परिवर्तनशील लागत के योग से प्राप्त करते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 22
कुल लागत उत्पादन
औसत स्थिर लागत + औसत परिवर्तनशील लागत

(iv) सीमान्त लागत (Marginal Cost)-प्रो० डूली अनुसार, “उत्पादन में परिवर्तन से कुल लागत में जो परिवर्तन होता है, उसको सीमान्त लागत कहा जाता है।”
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 23
उत्पादित वस्तुओं की कुल लागत-उत्पादित वस्तुओं से एक कम वस्तु उत्पादन करने से कुल लागत जैसे कि 2 वस्तुओं का उत्पादन करने से कुल लागत ₹ 190 है। एक वस्तु उत्पादन करने से कुल लागत ₹ 150 तो दूसरी वस्तु की सीमान्त लागत ₹ 190 – 150 = ₹40 है। सीमान्त लागत पहले तीव्रता से घटती है, जैसे कि रेखाचित्र में दिखाया है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 24

अल्पकाल की लागत रेखाएं U आकार की होती हैं (Short Period Cost Curves are U Shaped)-अल्पकाल की लागत TY रेखाएं अंग्रेजी के अक्षर U जैसी होती हैं।
(i) AVC, ATC तथा MC पहले घटती है तथा फिर बढ़ती हैं।
(ii) AVC रेखा OQ तक घटती हैं तो MC इसके समान हो जाती हैं अर्थात् न्यूनतम बिन्दु पर काटती हैं।
(iii) ATC रेखा OQ, तक घटती है तो MC इसके समान हो जाती हैं, अर्थात् न्यूनतम बिन्दु पर काटती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 25
अल्पकाल की लागत रेखाएं U आकार की क्यों होती हैं ?

  • घटते-बढ़ते प्रतिफल का नियम-अल्पकाल में लागत वक्र U आकार की होती है, क्योंकि अल्पकाल में घटते-बढ़ते प्रतिफल का नियम लागू होता है।
  • आन्तरिक तथा बाहरी बचतें तथा हानियां-उत्पादन को बढ़ाने से पहले आन्तरिक तथा बाहरी बचतें प्राप्त होती हैं। इसलिए लागत वक्र पहले घटती हैं। बाद में हानियाँ प्राप्त होती हैं। इसलिए लागत वक्र बढ़ने लगते हैं।
  • उत्पादन के साधनों का अविभाजन-साधनों का आकार बड़ा होता है तो अधिक प्रयोग से लागत घटती हैं, परन्तु अधिक प्रयोग से लागतें बढ़ने लगती हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

V. संरव्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
एक फ़र्म 20 इकाइयाँ उत्पादन करती है। उत्पादन के इस स्तर पर औसत कुल लागत (ATC) तथा औसत परिवर्तनशील लागत (AVC) ₹ 40 तथा ₹ 37 के समान है। फ़र्म की कुल स्थिर लागत पता करो।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 26

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचीपत्र को पूरा करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 27
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 28

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सारणी से उत्पादन के दर्शाए स्तर पर औसत परिवर्तनशील लागत ज्ञात करें।

उत्पादन (इकाइयाँ) 1 2 3 4
सीमान्त लागत 40 30 35 39

उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 29

प्रश्न 4.
एक फ़र्म की उत्पादन लागत के आँकड़े निम्नलिखित हैं। इनकी सहायता से
(क) कुल परिवर्तनशील लागत
(ख) कुल स्थिर लागत
(ग) औसत परिवर्तनशील लागत
(घ) सीमान्त लागत ज्ञात करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 30
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 31

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ

प्रश्न 5.
एक फर्म की कुल लागत अनुसूची निम्नलिखित है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 32
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 33

प्रश्न 6.
एक फर्म की कुल लागत अनुसूची निम्नलिखित है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 34
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 35

प्रश्न 7.
एक फर्म की कुल लागत अनुसूची निम्नलिखित है। उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर औसत स्थिर लागत और सीमान्त लागत ज्ञात करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 36
उत्तर –
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 37

प्रश्न 8.
निम्नलिखित सूची में औसत लागत (AC) ज्ञात करें।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 38
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 8 लागत की धारणाएँ 39

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

PSEB 11th Class Economics आय की धारणाएँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पूर्ति की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
प्रो० थॉमस के अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति वह मात्रा है जो एक बाज़ार में किसी निश्चित समय पर विभिन्न कीमतों पर बिकने के लिए प्रस्तुत की जाती है।”

प्रश्न 2.
पूर्ति के नियम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ति के नियम अनुसार, अन्य बातें सामान रहें तो वस्तु की कीमत बढ़ने पर पूर्ति बढ़ जाती है और कीमत कम होने पर पूर्ति कम हो जाती है।

प्रश्न 3.
एक ही पूर्ति वक्र पर ऊपर की ओर संचलन का क्या कारण होता है ?
उत्तर-
कीमत में वृद्धि।

प्रश्न 4.
एक ही पूर्ति वक्र पर नीचे की ओर संचलन का क्या कारण होता है ?
उत्तर-
कीमत में कमी।

प्रश्न 5.
किसी वस्तु की पूर्ति वक्र पर संचलन का क्या कारण होता है ?
उत्तर-
कीमत में परिवर्तन।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 6.
पूर्ति तालिका से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ति तालिका वह तालिका है जो किसी वस्तु की विभिन्न कीमतों पर बिक्री के लिए प्रस्तुत की जाने वाली विभिन्न मात्राओं को प्रकट करती है।

प्रश्न 7.
बाज़ार पूर्ति तालिका अथवा बाज़ार पूर्ति अवसूची से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी वस्तु की पूर्ति करने वाली सभी फ़र्मों की पूर्ति के जोड़ को बाजार पूर्ति तालिका कहते हैं।

प्रश्न 8.
पूर्ति के विस्तार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यदि अन्य बातें समान रहें, तो किसी वस्तु की कीमत के बढ़ने पर पूर्ति में वृद्धि हो जाती है तो इसको पूर्ति का विस्तार कहते हैं।

प्रश्न 9.
पूर्ति के संकुचन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
यदि अन्य बातें समान रहें तो किसी वस्तु की कीमत में कमी आने से पूर्ति घटती है तो इसको पूर्ति का संकुचन कहते हैं।

प्रश्न 10.
पूर्ति में वृद्धि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उसी कीमत पर अधिक मात्रा की पूर्ति या कम कीमत पर पहले जितनी मात्रा की पूर्ति को पूर्ति में वृद्धि कहा जाता है।

प्रश्न 11.
पूर्ति में कमी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उसी कीमत पर कम मात्रा की पूर्ति या कीमत के बढ़ने पर पहले जितनी मात्रा की पूर्ति को पूर्ति की कमी कहा जाता है।

प्रश्न 12.
कीमत पूर्ति की लोच से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के कारण पूर्ति में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन को कीमत पूर्ति की लोच कहते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 13.
पूर्ण लोचदार पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कीमत में थोड़े से परिवर्तन के कारण पूर्ति में अंततः परिवर्तन हो जाए तो इसको पूर्ण लोचदार पूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 14.
पूर्ण बेलोचदार पूर्ति कब होती है ?
उत्तर-
जब कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता तो पूर्ति पूर्ण बेलोचदार होती है।

प्रश्न 15.
इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कीमत में परिवर्तन की दर से पूर्ति में अधिक दर से परिवर्तन होता है तो इसको इकाई से अधिक लोचदार पूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 16.
इकाई से कम लोचदार पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस दर से कीमत में परिवर्तन होता है यदि उससे कम दर पर पूर्ति में परिवर्तन हो तो इसको कम लोचदार पूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 17.
कीमत पूर्ति की लोच के माप की आनुपातिक विधि का सूत्र लिखें।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 1

प्रश्न 18.
कीमत पूर्ति की लोच के माप की ज्यामितीय विधि (Geometric Method) का सूत्र लिखें।
उत्तर-
Es = \(\frac{\Delta \mathrm{Q}}{\Delta \mathrm{S}} \times \frac{\mathrm{P}}{\mathrm{Q}} \)

प्रश्न 19.
यदि कीमत 10 रुपए प्रति इकाई है और इसमें कोई परिवर्तन नहीं होता परन्तु पूर्ति 20 वस्तुओं से बढ़ कर 30 वस्तुएँ हो जाती हैं तो यह पूर्ति के किस प्रकार के परिवर्तन को बताता है ?
उत्तर-
पूर्ति में वृद्धि।

प्रश्न 20.
यदि वस्तु की कीमत 10 रु० प्रति वस्तु से बढ़ कर 20 रु० प्रति वस्तु हो जाती है और पर्ति 100 वस्तुओं से बढ़ कर 200 वस्तुएँ हो जाती हैं तो इस परिवर्तन को पूर्ति का विस्तार/पूर्ति की वृद्धि।
उत्तर-
पूर्ति का विस्तार।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 21.
एक विक्रेता के पास निश्चित समय वस्तु की जो मात्रा बाजार में उपलब्ध होती है उसको कहा जाता है …………… ।
(a) स्टॉक
(b) माँग की मात्रा
(c) प्रवाह
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) स्टॉक।

प्रश्न 22.
अन्य बातें समान रहने पर कीमत की वृद्धि से पूर्ति में जो वृद्धि होती है इसको पूर्ति का …….. कहा जाता है।
(a) वृद्धि
(b) विस्तार
(c) संकुचन
(d) इन में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) विस्तार।

प्रश्न 23.
अन्य बातें समान रहने पर कीमत की कमी से पूर्ति में जो कमी होती है इसको पूर्ति का ……….. कहते हैं।
(a) वृद्धि
(b) विस्तार
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) संकुचन।

प्रश्न 24.
कीमत समान रहती है और पूर्ति में वृद्धि होती है तो इस को पूर्ति का ………. कहते हैं।
(a) वृद्धि
(b) विस्तार
(c) संकुचन
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(a) वृद्धि।

प्रश्न 25.
कीमत बढ़ने से वस्तु की पहले जितनी पूर्ति को कहा जाता है।
(a) पूर्ति की वृद्धि
(b) पूर्ति का विस्तार
(c) पूर्ति का संकुचन
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) पूर्ति की वृद्धि।

प्रश्न 26.
समान कीमत पर कम मात्रा में पूर्ति अथवा कम कीमत पर पहले जितनी पूर्ति को ………… कहा जाता है।
(a) पूर्ति की वृद्धि
(b) पूर्ति का विस्तार ।
(c) पूर्ति में कमी
(d) पूर्ति का संकुचन।
उत्तर-
(c) पूर्ति में कमी।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 27.
कीमत में वृद्धि के कारण, पूर्ति में हुई वृद्धि को ………. कहते हैं।
(a) पूर्ति में वृद्धि
(b) पूर्ति में कमी
(c) पूर्ति में विस्तार
(a) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) पूर्ति का विस्तार।

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से पूर्ति का निर्धारित कौन सा है ?
(a) माँग
(b) माँग की लोच
(c) कीमत
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) कीमत।

प्रश्न 29.
किस स्थिति में कीमत स्थिर रहेगी जब माँग तथा पूर्ति दोनों बढ़ती अथवा घटती हैं ?
उत्तर-
जब माँग तथा पूर्ति दोनों एक ही अनुपात में बढ़ती अथवा कम होती हैं तो कीमत स्थिर रही है।

प्रश्न 30.
कीमत में कमी कारण पूर्ति में कमी को पूर्ति का ……… कहते हैं।
उत्तर-
कीमत में कमी कारण पूर्ति में कमी को पूर्ति का संकुचन कहते हैं।

प्रश्न 31.
पूर्ति की कीमत लोच, कीमत और पर्ति के किस प्रकार का सम्बन्ध दर्शाती है।
उत्तर-
पूर्ति की कीमत लोच कीमत में होने वाले परिवर्तन के परिणाम स्वरूप पूर्ति में होने वाले परिवर्तन के सम्बन्ध को दर्शाती हैं।

प्रश्न 32.
बाकी बातें सामान्य रहें कीमत में वृद्धि से पूर्ति में वृद्धि होती तो इस को पूर्ति का विस्तार कहते
उत्तर-
सही।

प्रश्न 33.
Σs = …………. हैं।
उत्तर-
Σs = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\)

प्रश्न 34.
कीमत सामान्य रहे और पूर्ति में वृद्धि हो जाए तो इसको पूर्ति में वृद्धि कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 35.
कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता तो इस को पूर्ण बेलोचदार पूर्ति कहते
उत्तर-
सही।

प्रश्न 36.
जब पूर्ति में कमी, आय, फैशन आदि कारणों से होती है तो इसको ………. कहते हैं।
(a) पूर्ति में संकुचन
(b) पूर्ति में कमी
(c) पूर्ति में विस्थापन
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) पूर्ति में कमी।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 37.
जब आय, फैशन आदि करके पूर्ति में वृद्धि होती है तो ……… कहते हैं।
(a) पूर्ति में संकुचन
(b) पूर्ति में कमी
(c) पूर्ति में विस्थापन
(d) पूर्ति में विस्तार।
उत्तर-
(d) पूर्ति में विस्तार।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? पूर्ति अनुसूची तथा वक्र द्वारा स्पष्ट करो।
उत्तर-
पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से होता है, जो निश्चित समय निश्चित कीमत पर विक्रेता बेचने के लिए तैयार होता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 2


सूची तथा रेखाचित्र 1 में ₹ 10 कीमत पर पूर्ति 100 वस्तुओं की पूर्ति है तथा ₹ 20 पर 200 वस्तुओं की पूर्ति है। SS पूर्ति वक्र है।

प्रश्न 2.
पूर्ति के नियम से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
एक काल्पनिक पूर्ति वक्र द्वारा पूर्ति के नियम को स्पष्ट करो।
उत्तर-
पूर्ति का नियम यह बताता है कि जब शेष बातें समान रहती हैं, कीमत में वृद्धि से पूर्ति बढ़ जाती है तथा कीमत के घटने से पूर्ति कम हो जाती है, इसको पूर्ति का नियम कहते हैं। (इसको सूची पत्र तथा रेखाचित्र 1 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।)

प्रश्न 3.
पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन (Change in Quantity Supplied) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
पूर्ति के विस्तार तथा संकुचन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब कीमत में परिवर्तन से पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है तो इसको पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन कहते हैं, जैसे कि कीमत के बढ़ने से पूर्ति बढ़ जाती है तो इसको पूर्ति का विस्तार (Extension in Supply) कहते हैं, परन्तु जब कीमत के घटने से पूर्ति कम हो जाती है तो इसको पूर्ति का संकुचन (Contraction in Supply) कहा जाता है, जैसे कि रेखाचित्र 1 में दिखाया गया है।

प्रश्न 4.
पूर्ति में परिवर्तन (Change in Supply) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
पूर्ति में वृद्धि तथा कमी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब कीमत के बिना अन्य कारणों करके पूर्ति में परिवर्तन होता है तो इसको पूर्ति में परिवर्तन कहते हैं, जब कीमत समान रहती है तथा पूर्ति बढ़ जाती है तो इसको पूर्ति की वृद्धि कहा जाता है, जैसे SS से S1S1 हो जाता है अथवा उसी कीमत पर कम पूर्ति SS से S2S2 हो जाती है तो इसको पूर्ति की कमी कहते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 4

प्रश्न 5.
पूर्ति वक्र पर परिवर्तन तथा पूर्ति वक्र में परिवर्तन का अन्तर बताओ।
उत्तर-
जब कीमत के बढ़ने तथा घटने से पूर्ति में वृद्धि अथवा कमी होती है तो इसको पूर्ति वक्र पर परिवर्तन कहा जाता है, जब कीमत के बिना अन्य तत्त्वों के कारण पूर्ति वक्र दाईं ओर अथवा बाईं ओर खिसक जाती है तो इसको पूर्ति वक्र में परिवर्तन कहते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 6.
पूर्ति तथा भण्डार में अन्तर बताओ।
उत्तर-
निश्चित समय निश्चित कीमत पर वस्तु की वह मात्रा जो बेचने के लिए पेश की जाती है, उसको पूर्ति कहते स्टॉक में से जितनी वस्तुएं बेची जाती हैं, उसको पूर्ति कहते हैं।

प्रश्न 7.
पूर्ति की लोच से क्या अभिप्राय है ? इसका माप कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के कारण पूर्ति में हुए प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात को पूर्ति की लोच कहा जाता
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 5

प्रश्न 8.
यदि दो पूर्ति रेखाएं एक-दूसरे को काटती हैं तो।कौन-सी रेखा पर पूर्ति अधिक लोचशील होगी ? | Y|
उत्तर-
यदि दो पूर्ति रेखाएं एक-दूसरे को काटती हैं तो जो पूर्ति वक्र चपटी होगी, उस वक्र पर पूर्ति अधिक लोचशील होगी। रेखाचित्र 3 में S1S1 खड़वी है तथा S2S2 चपटी है। चपटी वक्र पर पूर्ति अधिक लोचशील है, क्योंकि कीमत OP से OP, होने से S2S2 पर अधिक पूर्ति की जाती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 6

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत पूर्ति तथा वस्तु की बाज़ार पूर्ति को स्पष्ट करो।
उत्तर-
मान लो बाज़ार में दो उत्पादक हैं। उनके द्वारा विभिन्न कीमतों पर की पूर्ति के योग को बाजार पूर्ति कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप सूचीपत्र में जब A उत्पादक द्वारा विभिन्न कीमत पर विभिन्न पूर्ति को दिखाया गया
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 7
है तो इसको व्यक्तिगत पूर्ति सूची तथा वक्र (Individual Supply Schedule & Curve) कहा जाता है। जब B उत्पादक की पूर्ति को A उत्पादन की पूर्ति में जोड़ दिया जाता है तो इसको बाज़ार मांग सूची तथा बाज़ार पूर्ति वक्र कहा जाता है।

प्रश्न 2.
पूर्ति में परिवर्तन लाने वाले तत्त्वों को स्पष्ट करो।
अथवा
पूर्ति वक्र दाईं ओर क्यों खिसक (Shifting of Supply Curve) जाती है ?
उत्तर-
जब कीमत समान रहती है, परन्तु पूर्ति बढ़ जाती है तो इसको पूर्ति की वृद्धि कहते हैं तथा पूर्ति वक्र दाईं ओर को खिसक जाती है। जैसे कि रेखाचित्र में पूर्ति वक्र SS से दाईं ओर खिसककर S1S1 दिखाई गई है। निम्नलिखित तत्त्व पूर्ति में वृद्धि लाते हैं :

  1. साधनों की कीमतें-जब उत्पादन के साधनों की कीमतें घट जाती हैं तो उत्पादन लागत कम हो जाती है। इसलिए उत्पादक अधिक वस्तुओं की पूर्ति करते हैं। यदि साधनों की कीमतें बढ़ जाती हैं तो पूर्ति वक्र बाईं ओर खिसक जाएगी।
  2. तकनीक में परिवर्तन-यदि तकनीक का विकास हो जाता है तो उत्पादन की लागत कम हो जाती है तथा पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाएगी।
  3. संबंधित वस्तुओं की कीमतें-यदि स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतें कम हो जाती हैं तो एक वस्तु की पूर्ति बढ़ जाएगी तथा पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाती है।
  4. बाज़ार में फ़र्मों की संख्या-यदि बाज़ार में फ़र्मों की संख्या बढ़ जाती है तो बाज़ार में पूर्ति बढ़ जाएगी तथा पूर्ति वक्र दाईं ओर पूर्ति खिसक जाती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 9

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 3.
पूर्ति में वृद्धि तथा पूर्ति में विस्तार में अन्तर स्पष्ट करो।
अथवा
पूर्ति में परिवर्तन तथा पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
1. पूर्ति में विस्तार (Expansion of Supply)-जब कीमत में वृद्धि से पूर्ति में वृद्धि होती है तो इसको पूर्ति की वृद्धि कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 10
सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 6 में जब कीमत ₹ 10 से बढ़कर ₹ 20 हो जाती है तो वस्तुओं की पूर्ति 50 वस्तुओं से बढ़कर 100 वस्तुएं हो जाती हैं। EE1 को पूर्ति का विस्तार कहा जाता है। इसको पूर्ति में परिवर्तन भी कहते हैं।

2. पूर्ति की वृद्धि (Increase in Supply)-वस्तु की कीमत समान रहती है परन्तु स्थानापन्न वस्तु की कीमत कम हो जाती है, जैसे कि चाय की कीमत कम हो जाती है तो कॉफी की पूर्ति दाईं ओर खिसक जाएंगी।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 11
सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 7 में कीमत ₹ 5, 5 समान हैं परन्तु मांग 50 वस्तुओं से बढ़कर 100 वस्तुओं की हो जाती है। इसको मांग की वृद्धि कहा जाता है। इसको पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
पूर्ति का संकुचन तथा पूर्ति में कमी के अन्तर को स्पष्ट करो।
उत्तर-
1. पूर्ति का संकुचन (Contraction in Supply)-वस्तु की कीमत में कमी होने से पूर्ति कम हो जाती है तो इसको पूर्ति का संकुचन कहते हैं, जैसे कि सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 8 में कीमत ₹ 5 से कम होकर ₹ 3 रह जाती है तो पूर्ति 50 वस्तुओं से कम होकर 30 वस्तुएं रह जाती हैं तो इसको पूर्ति का संकुचन कहते हैं। रेखाचित्र 8 में SS पर E से E1 तक पूर्ति का संकुचन है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 12
2. पूर्ति की कमी (Decrease in Supply)-जब वस्तु की कीमत समान रहती है, परन्तु किसी अन्य कारण करके पूर्ति पहले से कम हो जाती है तो इसको पूर्ति की कमी कहते हैं। सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 9 में कीमत ₹ 5,5 प्रति 50 वस्तुओं से कम होकर 30 वस्तुएं रह जाती हैं। इसको पूर्ति की कमी कहते हैं। रेखाचित्र में पूर्ति वक्र SS की जगह पर S1S1 बन जाती है।
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प्रश्न 5.
लागत घटाने वाली तकनीकी विकास पूर्ति वक्र पर क्या प्रभाव डालती है ? दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-
लागत घटाने वाली तकनीकी प्रगति से उत्पादन की सीमान्त लागत कम हो जाती है। जब किसी फ़र्म की लागत में कमी हो जाती है तो पूर्ति में वृद्धि होगी। लागत घटाने वाली तकनीक से पूर्ति में वृद्धि होगी। उदाहरणस्वरूप :

  1. कम्प्यूटर के प्रयोग से दफ्तरों में कम क्लर्कों से काम होने लगा है। इससे लागत घट गई है। इससे पूर्ति वक्र दाईं ओर को खिसक जाती है।
  2. बड़े पैमाने पर कोका कोला फैक्ट्रियों में स्वयं-चालक मशीनों से बोतलें भरी जाती हैं। बोतलों को धोने से लेकर दोबारा कोका कोला भरने का सभी काम मशीनों द्वारा किया जाता है, इससे लागत कम हो गई है तथा पूर्ति वक्र दाईं ओर खिसक जाती है।

प्रश्न 6.
कीमत पूर्ति की लोच से क्या अभिप्राय है ? पूर्ति की लोच की मात्राएं अथवा किस्मों को स्पष्ट करो।
अथवा
कीमत पूर्ति की लोच के माप के लिए जमैट्रिक विधि की व्याख्या करो।
उत्तर-
वस्तु की पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन जोकि कीमत में प्रतिशत परिवर्तन से उत्पन्न होती है, इनके अनुपात को कीमत पूर्ति की लोच कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 14
कीमत में % परिवर्तन कीमत पूर्ति की लोच की मात्राएं अथवा किस्में :
1. पूर्ण लोचशील पूर्ति-जब कीमत में थोड़ा-सा परिवर्तन होने से पूर्ति में अनन्त परिवर्तन हो जाता है तो इसको पूर्ण लोचशील पूर्ति कहते हैं। पूर्ति वक्र OX के समानान्तर होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 15
2. पूर्ण अलोचशील पूर्ति-जब कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता तो इसको पूर्ण अलोचशील पूर्ति कहा जाता है। पूर्ति वक्र OY के समानान्तर होती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 16
3. अधिक लोचशील पूर्ति-जब कीमत में थोड़ा-सा से परिवर्तन होने से पूर्ति में अधिक अनुपात पर परिवर्तन होता है, तो इसको अधिक लोचशील पूर्ति कहा जाता है। रेखाचित्र में (MM1 > PP1) पूर्ति में परिवर्तन अधिक है। कीमत में परिवर्तन से तो इसको अधिक लोचशील पूर्ति कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 17

4. समान लोचशील पूर्ति-जब कीमत में परिवर्तन तथा पूर्ति में परिवर्तन का अनुपात समान होता है तो इसको समान लोचशील कहा जाता है। (MM1 = PP1) पूर्ति में वृद्धि, कीमत में वृद्धि के समान है, इसको समान लोचशील पूर्ति कहते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 18
5. कम लोचशील पूर्ति-कीमत में वृद्धि बहुत अधिक हो, परन्तु पूर्ति में वृद्धि कम अनुपात पर होती है तो इसको कम लोचशील पूर्ति कहते हैं। जैसे कि (MM1 < PP1) पूर्ति में वृद्धि, कीमत में वृद्धि से कम है, इसको कम लोचशील पूर्ति कहते हैं।
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PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? पूर्ति के नियम की व्याख्या करो। इस नियम की सीमाएं बताओ।
(What is Supply ? Explain the Law of Supply. Explain the limitations/Exceptions of the Law.)
उत्तर-
पूर्ति से अभिप्राय (Meaning of Supply)-पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से होता है, जोकि निश्चित समय विशेष कीमत पर एक विक्रेता बेचने के लिए तैयार होता है। यदि एक दुकानदार के पास 100 बोरियां चीनी की भण्डार में हैं। यदि एक बोरी की कीमत ₹ 2000 है तो दुकानदार 50 बोरियां ही बेचने के लिए तैयार है तो चीनी की पूर्ति 50 बोरी होगी। यदि कीमत बढ़कर 2200 प्रति बोरी हो जाती है तथा इस कीमत पर दुकानदार 80 बोरियां बेचने के लिए तैयार है तो चीनी की 80 बोरियों की पूर्ति होगी। इसलिए प्रो० अनातोल मुराद के अनुसार, “किसी वस्तु की पूर्ति से अभिप्राय वस्तु की उस मात्रा से है, जिसको बेचने वाला विशेष समय उचित कीमत पर बाज़ार में बेचने के लिए तैयार है।”
(“Supply refers to the quantity of a commodity offered for sale at a given price in a given market at a given time.”
-Anatol Murad) पूर्ति का नियम (Law of Supply)-पूर्ति के नियम में किसी वस्तु की कीमत तथा पूर्ति के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। कीमत तथा पूर्ति का सम्बन्ध सकारात्मक (Positive) होता है, अर्थात् अन्य बातें समान रहें, वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है तथा कीमत घटने से वस्तु की पूर्ति कम हो जाती है।

प्रो० डूली के शब्दों में, “पूर्ति का नियम यह स्पष्ट करता है कि अधिक कीमत हो तो वस्तु की पूर्ति अधिक होती है अथवा कम कीमत हो तो वस्तु की पूर्ति कम होती है।” (“The Law of supply states that higher the price, the greater the quantity supplied or the lower the price the smaller the quantity supplied.” -Dooley) उदाहरणस्वरूप एक दुकानदार रूमाल बेचता है, यदि एक रूमाल की कीमत ₹ 10 निश्चित होती है तो वह दुकानदार 100 रूमाल बेचने को तैयार है। जैसे-जैसे रूमाल की कीमत बढ़ती जाती है, पूर्ति में वृद्धि होगी तथा कीमत घटने से पूर्ति घटती जाती है। हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं तो पूर्ति के नियम में यह अनिवार्य नहीं होता कि जिस अनुपात पर कीमत बढ़ जाती है, उसी अनुपात पर ही पूर्ति में वृद्धि होगी, बल्कि पूर्ति में वृद्धि कम अनुपात पर हो सकती है अथवा अधिक अनुपात पर भी हो सकती है। इसको एक सूचीपत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 20

सूचीपत्र में स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे वस्तु की कीमत बढ़ रही है, उसकी पूर्ति की मात्रा में वृद्धि होती है। जब रूमाल की कीमत ₹ 10 है तो उत्पादक 100 रूमाल बेचने को तैयार हैं, जब कीमत ₹ 15 हो जाती है तो पूर्ति 200 रूमाल है, ₹ 20 पर 300 रूमालों की पूर्ति तथा ₹ 25 पर 400 रूमालों की पूर्ति की जाती है। पूर्ति सूची को हम पूर्ति वक्र की सहायता से भी स्पष्ट कर सकते हैं। जैसे कि ₹ 10 पर रूमाल 100 बेचे जाते हैं तथा ₹ 25 कीमत पर 400 रूमालों की पूर्ति है तो SS पूर्ति वक्र है। जैसा रेखाचित्र 15 द्वारा स्पष्ट किया गया है।

मान्यताएं (Assumptions) –

  • बेचने वाले तथा खरीददारों की आय में कोई परिवर्तन नहीं होता।
  • उत्पादन लागत में परिवर्तन नहीं होता।
  • यह नियम साधारण समय में लागू होता है।
  • स्थानापन्न वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहती हैं।
  • भविष्य में कीमतों के परिवर्तन होने की सम्भावना नहीं।

नियम की सीमाएं अथवा अपवाद –

  1. असाधारण स्थितियों तथा असाधारण वस्तुओं पर नियम लागू नहीं होता।
  2. नाशवान वस्तुओं तथा कृषि की उपज पर नियम लागू नहीं होता।
  3. कारोबार बन्द करना हो अथवा पुराना स्टॉक बेचना हो तो नियम लागू नहीं होता।

प्रश्न 2.
पूर्ति वक्र पर परिवर्तन तथा पूर्ति वक्र में परिवर्तन के अन्तर को स्पष्ट करो। (Explain the difference between movement on supply curve and shift in supply curve.)
अथवा
पूर्ति में विस्तार तथा संकुचन, वृद्धि तथा कमी में अन्तर स्पष्ट करो। (Distinguish between Extension and Contraction, increase and decrease in supply.)
उत्तर-
पूर्ति वक्र पर परिवर्तन (Movement on Supply Curve)
अथवा
पर्ति में विस्तार तथा संकुचन (Extension & Contraction in Supply)-
(i) पूर्ति में विस्तार (Extension in Supply)-पूर्ति में विस्तार उसी समय कहा जाता है, जब कीमत में वृद्धि होने से पूर्ति बढ़ जाती है :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 21
सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 16 में स्पष्ट किया है कि उत्पादक कुल्फी की बिक्री करता है। कुल्फी की कीमत एक रुपया प्रति कुल्फी है तो एक कुल्फी बेचने के लिए तैयार है। जब कुल्फी की कीमत बढ़कर ₹ 5 प्रति कुल्फी हो जाती है तो पांच कुल्फियों की बिक्री की जाती है। इसी तरह उत्पादन का सन्तुलन बिन्दु A से बिन्दु B तक बदल जाता है तथा । उत्पादक SS पूर्ति वक्र पर ही रहता है। इसको पूर्ति का विस्तार कहा जाता है।

(ii) पूर्ति का संकुचन (Contraction in Supply)-जब कुल्फी की कीमत कम हो जाती है तो उत्पादक कम कुल्फियां बेचने को तैयार होता है तो इसको पूर्ति का संकुचन कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 22
सूचीपत्र अनुसार जब कुल्फी की कीमत ₹ 5 से कम होकर एक रुपया रह जाती है तो कुल्फी की पूर्ति पांच से कम होकर एक रह जाती है, जैसे कि रेखाचित्र 17 में सन्तुलन बिन्दु A से बदलकर B पर O स्थापित हो जाता है। इसको पूर्ति का संकुचन कहा जाता है।

पूर्ति की वृद्धि तथा कमी (Increase and decrease in Supply)-
अथवा
पूर्ति वक्र में परिवर्तन (Shift in the Supply Curve)- जब कीमत की पूर्ति कीमत के बिना दूसरे कारणों करके परिवर्तन होती है तो इसको पूर्ति में वृद्धि अथवा कमी कहा जाता है। अर्थात् फैशन, आदत, रीति-रिवाज, उत्पादन की लागतों, उत्पादन करने के ढंग इत्यादि करने के कारण पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है।
(i) पूर्ति में वृद्धि (Increase in Supply)-पूर्ति की वृद्धि की व्याख्या दो भागों में की जा सकती है।
I. पहले जितनी कीमत पर अधिक पूर्ति (Same Price More Supply)
II. कम कीमत पर पहले जितनी पूर्ति (Less Price Same Supply)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 23
सूची पत्र तथा रेखाचित्र 18 अनुसार

  • कीमत समान ₹ 5,5 है परन्तु पूर्ति 2 से 4 हो जाती है।
  • कीमत पांच रुपए से तीन रुपये हो जाती है परन्तु पूर्ति 2, 2 समान हो तो इसको पूर्ति की वृद्धि कहा जाता है तथा पूर्ति वक्र SS से बदलकर S1S1 बन जाती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 24
(ii) पूर्ति की कमी (Decrease in Supply)-पूर्ति के घटने से अभिप्राय कीमत के बिना जिस समय दूसरे कारणों करके पूर्ति कम हो जाती है, जैसे कि कच्चे माल की कीमत घटने के कारण अथवा कच्चे माल की पैदावार के घटने के कारण पूर्ति घट जाती है तो इसको पूर्ति की कमी कहा जाता है। इसकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है :
1. पहले वाली कीमत पर कम पूर्ति (Same Price Less Supply)
2. अधिक कीमत पर पहले जितनी पूर्ति (More Price Same Supply)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 25

सूची पत्र तथा रेखाचित्र 19 अनुसार-

  • कीमत समान ₹ 5,5 है, परन्तु पूर्ति 2 से कम होकर एक वस्तु ही रह जाती है।
  • कीमत ₹ 5 से बढ़कर ₹ 7 हो जाती है तो पूर्ति 2,2 वस्तुएं समान रहती हैं, जैसे कि A से B तथा A से C तक दिखाया है। पूर्ति रेखा SS से बदलकर S1S1 हो जाती है तो इसको पूर्ति की कमी कहा जाता है।
    PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 26

प्रश्न 3.
कीमत पूर्ति की लोच के माप की विधियां बताओ।
(Explain the methods of measurement of Price Elasticity of Supply.)
अथवा
पूर्ति की मात्राएं अथवा किस्मों को स्पष्ट करो। (Explain the kinds or degrees of Elasticity of Demand.)
उत्तर-
प्रो० बिलास के अनुसार, “पूर्ति की लोच से अभिप्राय वस्तु की पूर्ति में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन को कीमत में होने वाले परिवर्तन से विभाजित करने से होता है।”
(“’Elasticity of supply is defined as the percentage change in quantity supplied divided by percentage change in price.” -Bilas)

कीमत पूर्ति की लोच के माप की विधियां (Methods of Measurement of Price Elasticity of Supply)-
1. आनुपातिक अथवा प्रतिशत विधि (Proportionate or Percentage Method)-इस विधि अनुसार वस्तु की मात्रा में प्रतिशत परिवर्तन तथा कीमत में प्रतिशत परिवर्तन के अनुपात को पूर्ति की लोच कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 27
उदाहरणस्वरूप : एक उत्पादन ₹ 10 कीमत पर 100 वस्तुओं की पूर्ति करता है, यदि कीमत ₹ 20 हो जाती है तो 200 वस्तुओं की पूर्ति की जाती है। पूर्ति की लोच ज्ञात करो।
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}=\frac{100}{10} \times \frac{10}{100}\)= 1
∴ Es = 1
2. जमैट्रिक विधि (Geometric Method)-
अथवा
पूर्ति की लोच की मात्राएं (Degrees of Elasticity of Supply) जमैट्रिक विधि अनुसार पूर्ति की लोच की पांच मात्राएं होती हैं
1. अधिक लोचशील पूर्ति (More Elastic Supply)यदि कीमत में थोड़ा-सा परिवर्तन होता है, परन्तु पूर्ति में परिवर्तन बहुत अधिक हो जाए तो इसको अधिक लोचशील पूर्ति कहा जाएगा। जैसे कि कीमत 10% बढ़ जाती है तथा पूर्ति में वृद्धि 50% हो जाती है, इसको अधिक लोचशील पूर्ति कहते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 28
इसको पढ़ा जाएगा MM1 पूर्ति में परिवर्तन PP1 कीमत में परिवर्तन से अधिक है तो पूर्ति अधिक लोचशील है। रेखाचित्र 20 में अधिक लोचशील पूर्ति को दिखाया गया है। इस स्थिति में पूर्ति रेखा OY रेखा को टकराती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 29

2. समान लोचशील पूर्ति (Equal Elastic Supply)-पूर्ति की लोच को समान लोचशील कहां जाता है, जब कीमत में परिवर्तन की अनुपात तथा पूर्ति में परिवर्तन की अनुपात समान होती है। रेखाचित्र 21 अनुसार पूर्ति की लोच इस प्रकार है :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 30
पूर्ति की लोच इकाई के समान है तथा पूर्ति रेखा मुख्य बिन्दु 0 को मिलती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 31

3. कम लोचशील पूर्ति (Less Elastic Supply)-पूर्ति की लोच कम लोचशील होती है, जब पूर्ति में परिवर्तन कम होता है, परन्तु कीमत में परिवर्तन अधिक अनुपात पर होता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 32
पूर्ति की लोच कम है, इस स्थिति में पूर्ति रेखा Ox से टकराती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 33

4. पूर्ण लोचशील पूर्ति (Perfectly Elastic Supply)पूर्ति को पूर्ण लोचशील कहा जाता है, जब वस्तु की कीमत OS समान रहती है, परन्तु इस पर वस्तु की पूर्ति शून्य अथवा OM अथवा OM1 हो जाती है। इसको पूर्ति वक्र की लोच का अनन्त (∝) होना कहा जाता है। यदि कीमत थोड़ी-सी कम हो जाए तो पूर्ति शून्य हो जाएगी।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 34
5. पूर्ण अलोचशील पूर्ति (Perfectly Inelastic Supply)- इसको पूर्ति की लोच का शून्य होना कहा जाता है। जब कीमत में परिवर्तन होने से पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता तो इस स्थिति को पूर्ण अलोचशील पूर्ति कहा जाता है। कीमत OP से OP1 बढ़ जाती है, परन्तु पूर्ति OM में कोई परिवर्तन नहीं होता। इस प्रकार पूर्ति की लोच की 5 मात्राएं होती हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 35

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 4.
निम्नलिखित व्यक्तिगत तथा बाज़ार अनुसूची को देखो।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 36
(a) ऊपर दिए सूचीपत्र को पूरा करो, जिसमें फ़र्मों तथा बाज़ार द्वारा आलुओं की मात्रा की पूर्ति की जाती है।
(b) एक रेखाचित्र में प्रत्येक फ़र्म की पूर्ति वक्र तथा बाज़ार पूर्ति वक्र का निर्माण करो। व्यक्तिगत पूर्ति वक्र तथा बाज़ार पूर्ति वक्र में आप क्या सम्बन्ध देखते हो ? स्पष्ट करो।
(c) फ़र्म A की पूर्ति की लोच का माप करो, जब कीमत ₹ 2 से ₹ 3 हो जाती है।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 37
फ़र्म A द्वारा पूर्ति पंक्ति I = 100 – (20 + 45) = 35
बाज़ार पूर्ति पंक्ति II = 37 + 30 + 50 = 117
फ़र्म B द्वारा पूर्ति पंक्ति III = 135 – (40 + 55) = 40 फ
फ़र्म C द्वारा पूर्ति पंक्ति IV = 154 – (44 + 50) = 60
बाज़ार पूर्ति पंक्ति V = 48 + 60 + 65 = 173

(b) रेखाचित्र द्वारा प्रत्येक फ़र्म तथा बाज़ार का पूर्ति वक्र-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 38
रेखाचित्र 25 में –

  • S1SA फ़र्म A की पूर्ति वक्र है।
  • S2SB फ़र्म B की पूर्ति वक्र है।
  • S3SC फ़र्म C की पूर्ति वक्र है।
  • S4SM बाज़ार की पूर्ति वक्र है।

(c) फ़र्म A की पूर्ति की लोच जब कीमत 2 रुपये से बढ़कर 3 रुपए हो जाती है तो पूर्ति 37 kg आलुओं से बढ़कर 40 kg आलू हो जाती है। _इसमें P = 2, S = 37, AP = 1, ΔS = 3
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 39

प्रश्न 5.
वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें। (Explain the factors Affecting Supply of a Commodity.)
उत्तर-
वस्तु की पूर्ति को प्रभावित करने वाले तत्त्वों को पूर्ति फलन (Supply Function) भी कहा जाता है। पूर्ति फलन को निम्नलिखित समीकरण के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है-
S = f (Px, PQ, PF, NF G, Gp, T. Ec Ep)
(यहाँ S = पूर्ति, f (फलन), Px = वस्तु की कीमत, P0 = अन्य वस्तुओं की कीमतें, PF = उत्पादन के साधनों की कीमतें, NF = फ़र्मों की संख्या G = फ़र्मों का उद्देश्य, GP = सरकारी नीति, T = तकनीक, EC = सम्भावित प्रतियोगिता, EP = भविष्य में कीमत सम्भावना।)

1. वस्तु की कीमत (Price of Commodity)-किसी वस्तु की कीमत तथा पूर्ति में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। कीमत बढ़ने से पूर्ति बढ़ जाती है और कीमत कम होने से पूर्ति कम हो जाती है।

2. अन्य वस्तुओं की कीमत (Price of Other Commodities)-अन्य वस्तुओं की कीमत में वृद्धि होने से इस वस्तु की कीमत में भी वृद्धि हो जाएगी। इस से फ़र्म को लाभ होने लगता है और वस्तु की पूर्ति में वृद्धि हो जाती

3. उत्पादन के साधनों की कीमत (Price of Factors of Productions) – उत्पादन के साधनों की कीमत भी पूर्ति को प्रभावित करती है। यदि उत्पादन के साधनों की कीमत में वृद्धि होती है तो इससे उत्पादन लागत बढ़ जाएगी और पूर्ति में कमी हो जाती है।

4. फ़र्मों की संख्या (Numbers of Firms)-वस्तु की पूर्ति फ़र्मों की संख्या पर भी निर्भर करती है। फ़र्मों की संख्या अधिक होने पर वस्तु की पूर्ति अधिक हो जाती है और फ़र्मों की संख्या कम होने से पूर्ति कम हो जाती है।

5. फ़र्म का उद्देश्य (Goal of the Firm)–यदि फ़र्म का उद्देश्य लाभ को अधिकतम करना है तो कीमत में वृद्धि होने पर पूर्ति अधिक की जाएगी। इसके विपरीत यदि फ़र्म का उद्देश्य उत्पादन तथा रोज़गार में वृद्धि करना है तो परचलित कीमत पर पूर्ति अधिक की जाएगी।

6. सरकारी नीति (Government Policy)-सरकार की नीति भी पूर्ति पर प्रभाव डालती है। यदि सरकार करों में वृद्धि करती है तो पूर्ति में कमी हो जाएगी। यदि सरकार आर्थिक सहायता देती है तो पूर्ति में वृद्धि हो जाती है।

7. तकनीक में सुधार (Improvement in Technology)-तकनीक सुधार का पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है। यदि उत्पादन तकनीक में सुधार होता है तो लाभ में वृद्धि हो जाती है और इससे पूर्ति में वृद्धि होती है।

8. फ़र्मों में मुकाबला (Competition among Firms)-यदि बाद में मुकाबला अधिक है तो पूर्ति में वृद्धि हो जाती है मुकाबला कम होने की हालत में पूर्ति में कमी हो जाती है।

9. भविष्य में कीमत सम्भावना (Expected Price in Future)-भविष्य में कीमत सम्भावना भी पूर्ति को प्रभावित करती है। यदि भविष्य में कीमत बढ़ने की सम्भावना है तो वर्तमान में पूर्ति कम हो जाएगी।

प्रश्न 6.
कीमत पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्वों का वर्णन करें। (Explain the factors affecting Price elasticity of Supply.)
उत्तर-
कीमत पूर्ति की लोच को प्रभावित करने वाले तत्त्व इस प्रकार हैं-

  1. वस्तु की प्रकृति-नाशवान वस्तुओं की पूर्ति बेलोचदार होती है क्योंकि कीमत में वृद्धि होने पर उनकी पर्ति में वृद्धि नहीं की जा सकती। इस के विपरीत टिकाऊ वस्तुओं की पूर्ति लोचदार होती है। कीमत में परिवर्तन होने पर टिकाऊ वस्तुओं की पूर्ति में परिवर्तन हो जाता है।
  2. उत्पादन लागत-यदि उत्पादन पर घटती लागत का नियम लागू होता है तो पूर्ति लोचदार होगी और यदि उत्पादन पर बढ़ती लागत का नियम लागू होता है तो पूर्ति बेलोचदार होगी।
  3. उत्पादन तकनीक-यदि तकनीक पूँजी प्रधान हो तो पूर्ति बेलोचदार होगी क्योंकि पूर्ति को सरलता से बढ़ाया नहीं जा सकता। यदि उत्पादन तकनीक सरल है तो पूर्ति अधिक लचकदार होगी।
  4. समय-अति अल्पकाल में समय बहुत कम होता है और पूर्ति में परिवर्तन नहीं किया जा सकता इसलिए पूर्ति पूर्ण बेलोचदार होगी। जितना समय लम्बा होगा पूर्ति अधिक लोचदार होगी।
  5. जोखिम-उत्पादक यदि जोखिम उठाने के लिए तैयार है तो पूर्ति लोचदार होगी। यदि वह जोखिम नहीं उठाना चाहते तो पूर्ति बेलोचदार होगी।

V. संरव्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
एक वस्तु की कीमत ₹ 10 प्रति इकाई है तथा 500 इकाइयों की पूर्ति की जाती है। यदि कीमत 10 प्रतिशत कम हो जाती है तथा पूर्ति 400 इकाइयों की हो जाती है तो पूर्ति की लोच बताओ।
उत्तर-
कीमत (P) = ₹ 10
पूर्ति (S) = 500
कीमत में कमी = 10%

नई कीमत (P1) = 10 – (10 x \(\frac{10}{100}\) ) 1 = ₹ 9 पूर्ति (S1) = 400
कीमत में परिवर्तन ΔP (P1 – P) = 9 – 10 = – 1
पूर्ति में परिवर्तन ΔS (S1 – S) = 400 – 500 = – 100
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta \mathrm{P}} \times\frac{\mathrm{P}}{\mathrm{S}}=\frac{-100}{-1} \times \frac{10}{500}=2 \)
Es = 2 उत्तर

प्रश्न 2.
यदि वस्तु की कीमत ₹ 5 है तथा बेचने वाला 600 इकाइयां वस्तु बेचने को तैयार है। जब कीमत बढ़कर ₹ 6 हो जाती है तो वह 720 इकाइयां वस्तु बेचता है। कीमत पूर्ति की लोच का माप करो।
उत्तर-
कीमत (P) = 5 पूर्ति (S) = 600
नई कीमत (P1) = 6
नई पूर्ति (S1) = 720
कीमत में परिवर्तन (P1 – P) (6 – 5) = 1
पूर्ति में परिवर्तन (S1– S) (720 – 600) = 120
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}=\frac{120}{1} \times \frac{5}{600}=1 \)
Es = 1
कीमत पूर्ति की लोच इकाई के समान है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 3.
जब सेबों की कीमत ₹4 प्रति किलोग्राम है तो बेचने वाला प्रतिदिन 80 क्विटल सेबों की बिक्री करता है। यदि कीमत पूर्ति की लोच 2 है तथा सेबों की कीमत ₹ 5 प्रति किलोग्राम की जाती है तो विक्रेता कितने सेबों की बिक्री करेगा ?
उत्तर-
दिया है : कीमत (P) = 4, पूर्ति (S) = 80
नई कीमत (P1) = 5 नई पूर्ति (S1) = ?
कीमत में परिवर्तन (P1 – P) (5 – 4) = 1
पूर्ति में परिवर्तन (S1 – S) (S1 – 80)
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\) = 2 = \(\frac{\left(S_{1}-80\right)}{1} \times \frac{4}{80}\)
= 40 = S1 – 80
40 + 80 = S1
अथवा
S1 = 120 क्विटल सेब उत्तर।

प्रश्न 4.
वस्तु की पूर्ति की लोच 5 है। वस्तु की कीमत ₹ 5 पर फ़र्म 500 इकाइयों की पूर्ति करती है।
यदि कीमत बढ़कर ₹ 6 हो जाए तो फ़र्म कितनी वस्तुओं की बिक्री करेगी ?
उत्तर-
कीमत (P) = 5, पूर्ति (S) = 500 नई कीमत
(P1) = 6, नई पूर्ति (S1) = ?
पूर्ति की लोच = S, ΔP = 6 – 5 = 1, ΔS = S1-500
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\)
5 = \(\frac{S_{1}-500}{1} \times \frac{5}{500}\)
⇒ 500 = S1 – 500
⇒ 500 + 500 = S1
अथवा
S1 = 1000 इकाइयां उत्तर।

प्रश्न 5.
एक वस्तु की कीमत ₹ 5 प्रति इकाई पर 100 इकाइयां वस्तु की पूर्ति की जाती है। जब कीमत ₹ 6 प्रति इकाई हो जाती है तो पूर्ति में 10% वृद्धि हो जाती है। पूर्ति की लोच का पता करो।
उत्तर –
कीमत (P) = 5,
पूर्ति (S) = 100 नई
कीमत (P1) = 6, नई पूर्ति (S1) = 10% वृद्धि
= \(\frac{10}{100} \times 100\) = 10+100 = 110
ΔP1 = 6 – 5 = 1
ΔS = 110-100 = 10
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}=\frac{10}{1} \times \frac{5}{100}=\frac{1}{2} \) = 0.5
∴ पूर्ति की लोच (Es) < 1 उत्तर

प्रश्न 6.
एक वस्तु की कीमत 20% बढ़ जाती है तो वस्तु की पूर्ति 50 से 60 इकाइयां हो जाती है। पूर्ति की लोच ज्ञात करो।
उत्तर-
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 20%
पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन = \(\frac{60-50}{50} \times 100\) = 20%
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 40
पूर्ति की लोच (Es) = 1 उत्तर

प्रश्न 7.
एक वस्तु का पूर्ति लोच गुणांक 3 है। एक विक्रेता ₹ 8 प्रति इकाई की कीमत पर वस्तु की 20 इकाइयों की पूर्ति करता है। यदि वस्तु की कीमत ₹ 2 प्रति इकाई बढ़ जाती है तो इस स्थिति में विक्रेता वस्तु की कितनी इकाइयों की पूर्ति करेगा।
उत्तर-
दिया है . P = ₹ 8
Es = 3
S = 20
S = ?
ΔP = ₹ 2
ΔS = S1 – 20
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\)
⇒ 3 = \(\frac{S_{1}-20}{2} \times \frac{8}{20}=3=\frac{S_{1}-20}{2}\)
= 3 × 5 = S1 – 20
= 15 = S1 – 20
= 15 + 20 = S1 अथवा
S1 = 35 उत्तर।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर पूर्ति की मात्रा ज्ञात करो।
पूर्ति की लोच (Es) = 4, कीमत (P) = 5
पूर्ति की मात्रा (Q) = 100
प्रति इकाई कीमत में परिवर्तन (P1) = 6
पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन (Q1) = ?
उत्तर-
दिया है- पूर्ति की लोच (Es) = 4, कीमत (P) = ₹ 5
पूर्ति की मात्रा (Q) = 100
प्रति इकाई कीमत में परिवर्तन (P1) = ₹ 6
पूर्ति की मात्रा में परिवर्तन (Q1) = ?
Es = 4, P = 5, Q = 100, ΔP = 1, ΔQ = Q1 – 100
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\) अथवा \(\frac{\Delta Q}{\Delta P} \times \frac{P}{Q}\)
⇒ 4 = \(\frac{Q_{1}-100}{1} \times \frac{5}{100}\)
⇒ 4 = \(\frac{Q_{1}-100}{20}\)
⇒ 80 = Q1 – 100
⇒ 80 + 100 = Q1 अथवा
Q1 = 180 वस्तुएं उत्तर।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 9.
एक वस्तु की प्रति इकाई वस्तु की कीमत ₹ 8 है, जिस पर 400 इकाइयों की पूर्ति की जाती है। यदि पूर्ति की लोच 2 है, वह कीमत ज्ञात करो, जिस पर 600 इकाइयों की पूर्ति की जाएगी ?
उत्तर-
दिया है
P = 8,S = 400, Es = 2
P1 = ? S1 = 600
ΔP = P1 – P (P1 – 8),
ΔS = S1 – S (600 – 400) = 200
∴ ES = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\)

⇒ 2 = \(\frac{200}{P_{1}-8} \times \frac{8}{400}\)
⇒ 2 = \(\frac{4}{P_{1}-8}\)
⇒ 2(P1 – 8) = 4
⇒ 2P1 – 16 = 4
⇒ 2P1 = 4+16
⇒ 2P1 = 20
⇒ P1 = \(\frac{20}{2}\) = 10 उत्तर।

प्रश्न 10.
एक वस्तु की कीमत ₹ 5 प्रति इकाई दी है तथा इस पर 600 वस्तुओं की इकाइयों की पूर्ति की जाती है। यदि कीमत बढ़कर ₹ 6 प्रति इकाई हो जाती है तो पूर्ति में वृद्धि 25% हो जाती है। पूर्ति की लोच का माप करो।
उत्तर-
दिया है- P = ₹ 5 P1= ₹ 6
ΔP = ₹1
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन का माप
₹5 कीमत पर परिवर्तन = 1
₹ 1 कीमत पर परिवर्तन = \(\frac{1}{5}\)
₹ 100 कीमत पर परिवर्तन = \(\frac{1}{5}\) × 100 = 20%
S = 600, ΔS = 25%
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 41
पूर्ति की लोच इकाई से अधिक है। उत्तर।

प्रश्न 11.
यदि एक वस्तु की कीमत ₹ 10 इकाई से कम होकर ₹ 9 प्रति इकाई रह जाती है तो वस्तु की पूर्ति में कमी 20% हो जाती है। पूर्ति की लोच का माप करो।
उत्तर-
दिया है P = ₹ 10, P1 = ₹ 9, ΔP = 9- 10 = – 1
₹ 10 कीमत पर परिवर्तन = – 1
₹ 1 कीमत पर परिवर्तन = –\(\frac{1}{10}\)
₹ 100 कीमत पर परिवर्तन = – \(\frac{1}{10}\) x 100 = – 10%
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = – 10%
पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन = – 20%
∴ कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = -10%
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 42
∴ Es = 2 उत्तर।

प्रश्न 12.
वस्तु की कीमत में 10% वृद्धि होने से, वस्तु की पूर्ति 400 इकाइयों से बढ़कर 450 इकाइयां हो जाती हैं। पूर्ति की लोच का माप करो। क्या पूर्ति लोचशील है ?
उत्तर-
कीमत में प्रतिशत परिवर्तन = 10%
S = 400, S1 = 450, ΔS = S1 – S (450 – 400) = 50
पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन का माप
400 इकाइयों पर वृद्धि = 50
1 इकाई पर वृद्धि = \(\frac{50}{400}\)
100 इकाइयों पर वृद्धि = \( \frac{50}{400} \times 100=\frac{25}{2} \%\)
∴ पूर्ति में प्रतिशत परिवर्तन = \(\frac{25}{2} \%\)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 43
⇒ \(\frac{25}{2} \times \frac{1}{10}=\frac{25}{20}\) = 1.25
पूर्ति की लोच = 1.25 Es > 1
∴ पूर्ति लोचशील है। उत्तर।।

प्रश्न 13.
एक वस्तु की कीमत 5% कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वस्तु की मात्रा 400 इकाइयों से कम होकर 370 हो जाती है, पूर्ति की लोच का माप करो। क्या पूर्ति लोचशील है ?
उत्तर-
दिया है- वस्तु की कीमत में कमी = -5%
S = 400, S1 = 370, ΔS = S1 – S (370 – 400) = – 30
400 इकाइयों पर परिवर्तन = – 30
1 इकाई पर परिवर्तन = \(\frac{-30}{400}\)
100 इकाइयों पर परिवर्तन = \(\frac{-30}{400} \times 100=\frac{-30}{4} \%\)
वस्तु की पूर्ति में कमी = \(\frac{-30}{4} \%\)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच 44
Es = 1.5
∴ पूर्ति लोचशील है। उत्तर।

प्रश्न 14.
एक वस्तु की कीमत ₹ 8 प्रति इकाई है तथा पूर्ति की मात्रा 200 इकाइयां हैं। पूर्ति की लोच 1.5 है। यदि कीमत बढ़कर ₹ 10 प्रति इकाई हो जाती है तो नई कीमत पर उस वस्तु की पूर्ति मात्रा ज्ञात करो।
उत्तर-
दिया है :
P = 8, P1 = 10, Es = 1.5
S = 200, S1 = ?
∴ ΔP = P1 – P = 10 – 8 = 2
ΔS = S1 – S = (S1 – 200)
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\)
⇒ 1.5 = \(\frac{S_{1}-200}{2} \times \frac{8}{200}\)
⇒ 1.5 = \(\frac{S_{1}-200}{50}\)
⇒ 75 = S1 – 200
⇒ 75 + 200 = S1
∴ S1= 275 इकाइयां उत्तर।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 15.
एक वस्तु की पूर्ति की लचक 5 है। उत्पादक ₹ 5 प्रति इकाई पर वस्तु की 500 इकाइयों की पूर्ति करता है। कीमत ₹ 6 प्रति इकाई होने पर उत्पादक इस वस्तु की कितनी मात्रा की पूर्ति करेगा।
उत्तर-
दिया है :
P = 5, P1 = 6, ΣS = 5S
S= 500 S1 = ?
ΔP= P1 – P = 6 – 5 = 1
ΔS = S1 – S = S1 – 500
ΣS = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\)
5 = \(\frac{S_{1}-500}{1} \times \frac{5}{100}\)
5 = \(\frac{S_{1}-500}{1} \times \frac{1}{100}\)
5 x 100 = S1 – 500
500 + 500 = S1
∴ S1 = 1000 उत्तर

प्रश्न 16.
एक वस्तु की कीमत लचक 2.5 है। ₹ 10 प्रति इकाई कीमत होने पर इसकी पूर्ति 200 इकाइयां हैं। ₹ 8 प्रति इकाई कीमत होने पर पूर्ति की मात्रा ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
दिया है :
P = 10, P1 = 8,ΣS = 2.5
S = 200, S1 = ?
∴ ΔP = P1 – P = 8 – 10 = – 2
ΔS = S1 – S = S1 – 200
∴ ΣS = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}\)
2.5 = \(\frac{S_{1}-200}{-2} \times \frac{10}{200}\)
2.5 = \(\frac{S_{1}-200}{-2} \times \frac{1}{20}\)
2.5 = \(\frac{S_{1}-200}{-40}\)
– 100 = S1 – 200
– 100 + 200 = S1
S1 = 100 उत्तर

प्रश्न 17.
जब किसी वस्तु की कीमत ₹ 3 से बढ़कर ₹ 4 प्रति इकाई हो जाती है और इस वस्तु की पूर्ति 200 इकाइयों से बढ़कर 300 इकाइयां हो जाती है तो पूर्ति की लोच ज्ञात करें।
उत्तर-
कीमत (P) = ₹ 3 पूर्ति (S) = 200 इकाइयां
नई कीमत (P1) = ₹4
नई पर्ति (S1) = 300
इकाइयां कीमत में परिवर्तन (ΔP) = (P1 – P) = 4 – 3 = 1
पूर्ति में परिवर्तन (ΔS) = (S1 – S) = 300 – 200 = 100.
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}=\frac{100}{1} \times \frac{3}{200}=\frac{300}{200}\) = 1.5
पूर्ति की लोच इकाई से अधिक है। उत्तर

प्रश्न 18.
जब किसी वस्तु की कीमत बढ़कर ₹ 4 से ₹ 5 प्रति इकाई हो जाती है इससे पूर्ति 100 इकाइयों से बढ़कर 200 इकाइयां हो जाती है। पूर्ति की लोच ज्ञात करें। उत्तरकीमत (P) = ₹4
पूर्ति (S) = 100 इकाइयां
नई कीमत (P) = ₹5
नई पूर्ति (S1) = 200 इकाइयां
कीमत में परिवर्तन (ΔP) = P1 – P = 5 – 4 = 1
पूर्ति में परिवर्तन (ΔS) = S1 – S = 200 – 100 = 100 इकाइयां
Es = \(\frac{\Delta S}{\Delta P} \times \frac{P}{S}=\frac{100}{1} \times \frac{4}{100}\) = 4
पूर्ति की लोच इकाई से अधिक है। उत्तर

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 11 पूर्ति तथा कीमत पूर्ति की लोच

प्रश्न 19.
जब किसी वस्तु की कीमत ₹ 2 से बढ़कर ₹ 3 हो जाती है और पूर्ति 300 इकाइयों से बढ़कर 400 इकाइयां हो जाती है तो पूर्ति की लोच ज्ञात करें।
उत्तर-
कीमत (P) = ₹ 2 पूर्ति (S) = 300 इकाइयां
नई कीमत (P) = ₹ 3. नई पूर्ति (S) = 400 इकाइयां
कीमत में परिवर्तन ΔP = P1 – P = 3 – 2 = 1
पूर्ति में परिवर्तन ΔS = S1 – S = 400 – 300 = 100
Es = \(\frac{\Delta \mathrm{S}}{\Delta \mathrm{P}} \times \frac{\mathrm{P}}{\mathrm{S}}=\frac{100}{1} \times \frac{2}{300}=\frac{200}{300}=\frac{2}{3}\) = 0.66
पूर्ति की लोच इकाई से कम है। उत्तर