PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 3 फूलों की खेती

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 3 फूलों की खेती Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 3 फूलों की खेती

PSEB 11th Class Agriculture Guide फूलों की खेती Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो –

प्रश्न 1.
डंडी वाले फूल के रूप में उगाई जाने वाली मुख्य फसल कौन सी है ?
उत्तर-
ग्लैडीऑल्स।

प्रश्न 2.
डंडी रहित फूल वाली मुख्य फसल का नाम लिखो।
उत्तर-
गेंदा।

प्रश्न 3.
पंजाब में कुल कितने क्षेत्रफल में फूलों की खेती की जा रही है ?
उत्तर-
2160 हैक्टेयर क्षेत्रफल के अधीन जिसमें 1300 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर ताज़े तोड़ने वाले फूलों की कृषि होती है।

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प्रश्न 4.
पंजाब में उगाई जाने वाली फूलों की फसलों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
दो भागों में-
(i) डंडी रहित फूल।
(ii) डंडी वाले फूल।

प्रश्न 5.
ग्लैडीऑल्स की गांठों की बुआई कब की जाती है ?
उत्तर-
सितम्बर से मध्य नवम्बर।

प्रश्न 6.
गुलदाउदी की कलमें किस महीने में तैयार की जाती हैं ?
उत्तर-
जून के अन्त से मध्य जुलाई तक।

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प्रश्न 7.
जरबरा के पौधे कैसे तैयार किए जाते हैं ?
उत्तर-
टिशु कल्चर द्वारा।

प्रश्न 8.
पंजाब में डंडी रहित फूलों के लिए कौन से रंग का गुलाब लगाया जाता
उत्तर-
लाल गुलाब।

प्रश्न 9.
तेल निकालने के लिए कौन-कौन से फूल उपयोग में लाए जाते हैं ?
उत्तर-
रजनीगंधा, मोतिया के फूल।

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प्रश्न 10.
सुरक्षित ढांचों में कौन-से फूलों की कृषि की जाती है ?
उत्तर-
जरबरा।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
डंडी वाले फूलों की परिभाषा दो और डंडी वाले मुख्य फूलों के नाम बताओ।
उत्तर-
डंडी वाले फूल वह होते हैं जिनको लम्बी डंडी के साथ तोड़ा जाता है। इसके मुख्य फूल हैं-ग्लैडीऑल्स, गुलदाउदी, जरबरा, गुलाब, लिली आदि।

प्रश्न 2.
ग्लैडीऑलस फूल की डंडियों की कटाई और स्टोर करने के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
कटाई उस समय की जाती है जब पहला फूल आधा या पूरा खुल जाए।
ग्लैडीऑल्स की फूल डंडियों को पानी में रख कर नौ दिनों के लिए कोल्ड स्टोर में इनका भंडारण किया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
गुलाब के पौधे कैसे तैयार किए जाते हैं ?
उत्तर-
डंडी वाले फूलों की किस्मों को टी (T) -विधि द्वारा प्योंद करके तैयार किया जाता है। डंडी के बिना फूलों वाले लाल गुलाब को कलमों द्वारा तैयार किया जाता

प्रश्न 4.
गेंदे की नर्सरी किन महीनों में तैयार की जाती है ?
उत्तर-
गेंदे की पनीरी बरसात के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक सर्दियों के लिए मध्य सितम्बर तथा गर्मियों के लिए जनवरी के पहले सप्ताह में लगाई जाती है।

प्रश्न 5
मौसमी फूलों की बुआई का समय बताओ।
उत्तर-
मौसमी फूल एक वर्ष में या एक मौसम में अपना जीवन-चक्र पूर्ण कर लेते हैं। इनकी बुवाई का समय है –

1. गर्मी के फूल-पनीरी-फरवरी-मार्च में।
खेत में चार सप्ताह की पनीरी होने पर।
2. बरसात के फूल-पनीरी-जून का पहला सप्ताह।
खेत में-जुलाई के पहले सप्ताह।
3. सर्दी के फूल-पनीरी-सितम्बर के मध्य में।
खेत में-अक्तूबर के मध्य में।

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित फूलों को कब तोड़ा जाता है ?
(क) ग्लैडीऑल्स
(ख) डंडी वाला गुलाब
(ग) मोतिया।
उत्तर-
ग्लैडीऑल्स-कटाई उस समय की जाती है जब पहला फूल आधा या पूरा खुल जाता है।
(ख) डंडी वाला गुलाब-डंडी वाले फूलों को बंद अवस्था में तोड़ा जाता है।
(ग) मोतिया-मोतिया के फूल को जब इसकी कलियां पूर्ण रूप से न खुली हों, तोड़कर बेचा जाता है।

प्रश्न 7.
अफ्रीकन और फ्रांसीसी गेंदे के पौधों में कितनी दूरी रखी जाती है ?
उत्तर-
अफ्रीकन किस्मों के लिए दूरी 40×30 सैं०मी० तथा फ्रांसीसी किस्मों के लिए 60×60 सैं०मी० रखी जाती है।

प्रश्न 8.
जरबरा के पौधे किस महीने में लगाए जाते हैं ? यह फसल कितने समय तक फूल देती है ?
उत्तर-
जरवरा के पौधे सितम्बर से अक्तूबर माह में लगाए जाते हैं। तीन साल तक यह फसल खेत में रहती है।
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प्रश्न 9.
डंडी रहित फूलों के नाम और उनके उपयोग के बारे में लिखो।
उत्तर-
डंडी के बिना फूल हैं-गेंदा, गुलाब, मोतिया, गुलदाऊदी आदि। इन सारे फूलों | को हार बनाने के लिए, पूजा के कार्यों या अन्य सजावटी कार्यों के लिए प्रयोग किया जाता

प्रश्न 10.
मोतिया की फसल के लिए उपयुक्त ज़मीन कौन-सी है ?
उत्तर-
मोतिया की खेती के लिए मध्यम से भारी भूमियां, जिनमें पानी न ठहरता हो, अच्छी रहती है।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
मनुष्य जीवन में फूलों के महत्त्व के बारे में विस्तार से बताओ।
उत्तर-
फूलों का मनुष्य के जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। हमारे आस-पास की दुनिया । को रंगीन तथा सुंदरता प्रदान करने में इनका बहुत योगदान है। हमारे रीति-रिवाजों के साथ फूलों का गहरा संबंध है। शादी, जन्म दिवस आदि के अवसरों पर फूलों का बहुत प्रयोग होता है। धार्मिक स्थलों, मंदिरों आदि में फूलों के प्रयोग से भगवान् के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं। अन्य समागमों में मुख्य मेहमान का स्वागत करने के लिए हम फूलों के गुलदस्ते तथा हार का प्रयोग करते हैं। फूलों को औरतों द्वारा अपने शृंगार के लिए भी प्रयोग किया जाता है। फूलों की कृषि आर्थिक पक्ष से भी एक लाभदायक धंधा बन गई है। इस प्रकार फूलों का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है।

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प्रश्न 2.
डंडी रहित और डंडी वाले फूलों में क्या अंतर है ? उदाहरण सहित बताओ।
उत्तर-
डंडी रहित फूल-यह ऐसे फूल होते हैं जिनको डंडी के बिना तोड़ा जाता है। यह फूल हैं-गेंदा, गुलाब, मोतिया, गुलदाउदी आदि। इनका प्रयोग हार बनाने के लिए, पूजा के लिए एवं अन्य सजावटी कार्यों के लिए किया जाता है।

डंडी वाले फूल-डंडी वाले फूल वह होते हैं जिनको लम्बी डंडी के साथ तोड़ा जाता है। इनको डंडी के साथ ही बेचा जाता है। इन फूलों का प्रयोग साधारणतः गुलदस्ते बनाने के लिए होता है। इनको तोहफे के रूप में देने के लिए भी प्रयोग किया जाता है। उदाहरण-ग्लैडीऑल्स, गुलदाउदी, जरबरा, गुलाब तथा लिली आदि।

प्रश्न 3.
मोतिया के फूल के महत्त्व के बारे में बताते हुए इसकी कृषि पर नोट लिखें।
उत्तर-
मोतिया सुगंध प्रदान करने वाले फूलों में से एक महत्त्वपूर्ण फूल है। इन फूलों में से सुगंधित तेल प्राप्त किया जाता है तथा इनका पूजा पाठ के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
जलवायु-अधिक तापमान तथा शुष्क मौसम मोतिया की पैदावार के लिए उचित है।
भूमि-मोतिया की भूमि के लिए मध्यम से भारी भूमियां, जिनमें पानी न ठहरता हो, अच्छी रहती है।
कटाई-पौधों को दूसरे वर्ष के बाद कटाई करके 45 से 60 सैं०मी० की ऊंचाई पर ही रखना चाहिए।।
फूलों का समय-फूल अप्रैल से जुलाई-अगस्त माह तक मिलते हैं।
तुड़ाई-मोतिया के फूल की जब कलियाँ अभी पूरी खुली न हों, तोड़ कर बेचे जाते हैं।
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प्रश्न 4.
गेंदे की बुआई, तुड़ाई और पैदावार पर नोट लिखें।
उत्तर-
गेंदा एक डंडी के बिना तोड़े जाने वाला फूल है। पंजाब में इसकी कृषि सारा वर्ष होती है। गेंदे की फसल के लिए पंजाब की मिट्टी बहुत ही उचित है।
नर्सरी तैयार करना-गेंदे की नर्सरी बरसातों के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक, सर्दियों के लिए मध्य सितंबर तथा गर्मियों के लिए जनवरी के पहले सप्ताह में लगाई जाती है। यह पनीरी लगभग एक महीने में खेतों में लगाने के लिए तैयार हो जाती है।

किस्में-गेंदे की दो किस्में हैं-अफ्रीकन तथा फ्रांसीसी।
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फासला 40×30 सैं०मी० तथा फ्रांसीसी किस्म के लिए 60 x 60 सैं०मी०।
फूलों की प्राप्ति-50 से 60 दिनों के बाद फूलों की प्राप्ति होने लगती है। तुड़ाई का मण्डीकरण-फूल पूरे खुल जाने के बाद तोड़ कर मण्डीकरण किया जाता है।
पैदावार ( उत्पादन)-बरसात में औसत पैदावार 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तथा सर्दियों में 150 से 170 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित फूलों की फसलों की पौध वृद्धि कैसे की जाती है ?
(क) ग्लैडीऑल्स
(ख) रजनीगंधा
(ग) गुलदाउदी
(घ) जरबरा।
उत्तर-
(क) ग्लैडीऑल्स-ग्लैडीऑल्स की बुआई बल्बों (गांठों) से की जाती है।
(ख) रजनीगंधा-रजनीगंधा के बल्ब (गांठे) लगाए जाते हैं।
(ग) गुलदाउदी-गुलदाउदी की कलमें पुराने पौधों के टूसों से तैयार की जाती है।
(घ) जरबरा-टिशु कल्चर द्वारा तैयार किए जाते हैं।

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Agriculture Guide for Class 11 PSEB फूलों की खेती Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में ताजे तोड़ने वाले फूलों की कृषि के अधीन क्षेत्रफल लिखो।
उत्तर-
1300 हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
ग्लैडीऑल्स, गुलदाउदी, जरबरा किस तरह के फूल हैं ?
उत्तर-
डंडी वाले।

प्रश्न 3.
गुलाब, मोतिया कैसे फूल हैं ?
उत्तर-
डंडी रहित।

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प्रश्न 4.
ग्लैडीऑल्स की कृषि किससे की जाती है ?
उत्तर-
बल्बों (गांठों) से।

प्रश्न 5.
ग्लैडीऑल्स के बल्ब कब बोए जाते हैं?
उत्तर-
सितंबर से आधे नवंबर तक।

प्रश्न 6.
पंजाब में गेंदे की कृषि कब की जा सकती है?
उत्तर-
पंजाब में गेंदे की कृषि सारा वर्ष की जा सकती है।

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प्रश्न 7.
गेंदे की फसल के लिए कौन-सी मिट्टी ठीक है?
उत्तर-
गेंदे की फसल के लिए पंजाब की सारी भूमियां ठीक हैं।

प्रश्न 8.
गेंदे की किस्में बताओ।
उत्तर-
अफ्रीकन तथा फ्रांसीसी।

प्रश्न 9.
एक एकड़ नर्सरी के लिए गेंदे के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
600 ग्राम।

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प्रश्न 10.
बरसात के लिए गेंदे की पनीरी कब लगाई जाती है ?
उत्तर-
जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह।

प्रश्न 11.
गेंदे के फूल कितने दिनों बाद मिलने लगते हैं?
उत्तर-
50 से 60 दिनों बाद।

प्रश्न 12.
गेंदे की बरसातों के मौसम में उत्पादन बताओ।
उत्तर-
लगभग 200 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।

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प्रश्न 13.
गेंदे के फूलों का सर्दियों में उत्पादन बताओ।
उत्तर-
150-170 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।

प्रश्न 14.
गुलदाउदी की कलमें कहां से ली जाती हैं ?
उत्तर-
पुराने पौधों के टूसों से।

प्रश्न 15.
गुलदाउदी की कलमें कब तैयार की जाती हैं ?
उत्तर-
जून के अंत से मध्य जुलाई तक।

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प्रश्न 16.
गुलदाउदी की कलमें खेतों में कब लगाई जाती हैं?
उत्तर-
मध्य जुलाई से मध्य सितंबर तक।

प्रश्न 17.
गुलदाउदी के पौधों का फासला बताओ।
उत्तर-
30 x 30 सै०मी०।

प्रश्न 18.
गुलदाउदी के फूल कब आते हैं ?
उत्तर-
नवंबर-दिसंबर।

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प्रश्न 19.
गुलदाउदी के फूलों को भूमि से कितनी दूरी पर काटा जाता है ?
उत्तर-
भूमि से पांच सैं०मी० छोड़कर।
आ।

प्रश्न 20.
पंजाब में गुलाब के फूल कब प्राप्त होते हैं?
उत्तर-
नवंबर से फरवरी-मार्च तक।

प्रश्न 21.
जरबरे के फूलों का रंग बताओ।
उत्तर-
लाल, संतरी, सफेद, गुलाबी, पीले।

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प्रश्न 22.
जरबरा के पौधे कब लगाए जाते हैं?
उत्तर-
सितंबर-अक्तूबर।।

प्रश्न 23.
रजनीगंधा कितनी किस्मों में आते हैं ?
उत्तर-
सिंगल तथा डबल किस्म में।

प्रश्न 24.
रजनीगंधा की कौन-सी किस्म सुगंध वाली है?
उत्तर-
सिंगल किस्में।

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प्रश्न 25.
रजनीगंधा के बल्ब कब लगाए जाते हैं?
उत्तर-
फरवरी-मार्च।

प्रश्न 26.
रजनीगंधा के फूल कब लगते हैं ?
उत्तर-
जुलाई-अगस्त ।

प्रश्न 27.
रजनीगंधा की पैदावार बताओ।
उत्तर-
80000 फूल डंडियों वाले या 2 – 2.5 टन प्रति एकड़ डंडी के बिना फूलों का उत्पादन मिलता है।

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प्रश्न 28.
एक सुगंध वाले फूल का नाम बताओ।
उत्तर-
मोतिया।

प्रश्न 29.
मोतिया के फूलों का रंग बताओ।
उत्तर-
सफेद।

प्रश्न 30.
मोतिया के फल कब आते हैं?
उत्तर-
अप्रैल से जुलाई-अगस्त।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्लैडीऑल्स के बल्बों को अगले साल के लिए कैसे तैयार किया जाता है?
उत्तर-
फूल डंडियां काटने से 6-8 सप्ताह बाद भूमि में से बल्बों (गांठों) को निकाल कर छाया में सुखा कर अगले वर्ष की बुवाई के लिए कोल्ड स्टोर में रख लिया जाता है।

प्रश्न 2.
गेंदे की नर्सरी कब लगाई जाती है? .
उत्तर-
बरसातों के लिए जून के अंतिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक, सर्दियों के लिए मध्य सितंबर तथा गर्मियों के लिए जनवरी के पहले सप्ताह में लगाई जाती है।

प्रश्न 3.
गुलदाउदी की कलमों को कब तैयार किया जाता है ?
उत्तर-
कलमों को जून के अंत से मध्य जुलाई तक पुराने पौधे के टूसों से तैयार किया जाता है। मध्य जुलाई से मध्य सितंबर तक खेतों में लगाया जाता है।
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प्रश्न 4.
गुलदाउदी के फूल कब आते हैं तथा इनकी तुड़ाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुलदाउदी के फूल नवंबर-दिसंबर में लगते हैं तथा डंडी वाले फूलों को भूमि से पांच सैं०मी० छोड़कर काटा जाता है जबकि डंडी के बिना फूलों को पूरा खुलने पर तोड़ा जाता है।

प्रश्न 5.
गुलाब के फूल कब आते हैं तथा इनकी तुड़ाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुलाब के फूल पंजाब में नवंबर से फरवरी-मार्च तक आते हैं। गुलाब की डंडी वाले फलों को बंद अवस्था में तथा डंडी रहित फूलों को पूरे खुलने पर तोड़ा जाता है।
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प्रश्न 6.
रजनीगंधा की किस्मों के बारे में बताओ।
उत्तर-
रजनीगंधा की दो किस्में हैं-सिंगल तथा डबल। सिंगल किस्में अधिक सुगंधित हैं तथा इनमें से तेल भी निकाला जाता है।
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प्रश्न 7.
रजनीगंधा के बल्ब कब लगाए जाते हैं तथा फूल कब आते हैं?
उत्तर-
बल्ब (गांठे) फरवरी-मार्च में लगाए जाते हैं तथा फूल जुलाई-अगस्त में आते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्लैडीऑल्स की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
ग्लैडीऑल्स पंजाब में डंडी वाले फूलों में से मुख्य फूल हैं।
बीज-ग्लैडीऑल्स की बुवाई के लिए बल्ब (गांठे) का प्रयोग किया जाता है।
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बोवाई का समय-सितंबर से मध्य नवंबर।
फासला-30 x 20 सै०मी० ।
कटाई-डंडियों की कटाई उस समय की जाती है जब पहला फूल आधा या पूरा खुल जाए।
स्टोर करना-फूल डंडियों को पानी में रख कर नौ दिनों के लिए कोल्ड स्टोर में स्टोर किया जा सकता है।
अगले वर्ष का बीज-जब फूल डंडियां काट ली जाती हैं तो 6-8 सप्ताह बाद भूमि में से बल्ब (गांठे) निकाल कर छाया में सुखा लिए जाते हैं। इनको अगले वर्ष की बुवाई के लिए कोल्ड स्टोर में स्टोर किया जाता है।

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प्रश्न 2.
गुलदाउदी की कृषि के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुलदाउदी के फूल डंडी वाले तथा डंडी रहित भी हो सकते हैं । इनको गमलों में । लगाया जा सकता है।
कलमें तैयार करना-कलमों को जून के अंत से मध्य जुलाई तक पुराने पौधों के टूसियों से तैयार किया जाता है।
बुवाई का समय-कलमों को मध्य जुलाई से मध्य सितंबर तक खेतों में लगाया जाता है।
फासला-30 x 30 सैं० मी० फूल आने का समय-नवंबर-दिसंबर में।
कटाई-डंडी वाले फूलों को भूमि से पांच सैं०मी० छोड़कर काटा जाता है। परन्तु डंडी रहित फूलों को पूरा खुलने पर तोड़ा जाता है।

फूलों की खेती PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • भारतीय समाज में फूलों की महत्ता प्राचीन समय से ही बनी हुई है।
  • फूलों का प्रयोग पूजा के लिए, विवाह-शादियों के लिए तथा अन्य सामाजिक समारोहों के लिए बड़े स्तर पर किया जाता है।
  • पंजाब में 2160 हैक्टेयर क्षेत्रफल फूलों की कृषि के अधीन है।
  • पंजाब में 1300 हैक्टेयर क्षेत्रफल पर ताज़े तोड़ने वाले फूलों की कृषि होती है।
  • पंजाब में मुख्य फूलों वाली फसलों को दो भागों में बांटा जाता है-डंडी रहित फूल (Loose flower), डंडी वाले फूल (Cut flower)।।
  • डंडी रहित फूलों को लम्बी डंडी के बिना तोड़ा जाता है। उदाहरण-गेंदा, गुलाब, मोतिया आदि।
  • डंडी वाले फूलों को लम्बी डंडी के साथ तोड़ा जाता है; जैसे-ग्लैडीऑल्स जरबरा, लिली आदि।
  • ग्लैडीऑल्स, पंजाब में डंडी वाले फूलों की कृषि वाली मुख्य फसल है।
  • ग्लैडीऑल्स की कृषि बल्बों से की जाती है।
  • गेंदा पंजाब का डंडी रहित फूलों वाला मुख्य फूल है।
  • गेंदा दो प्रकार का है-अफ्रीकन, फ्रांसीसी।
  • गेंदे की कृषि के लिए एक एकड़ की नर्सरी के लिए 600 ग्राम बीज की आवश्यकता है।
  • गुलदाउदी डंडी वाला तथा डंडी रहित फूल दोनों तरह प्रयोग होते हैं।
  • गुलदाउदी की कलमें जून के अन्त से मध्य जुलाई तक पुराने पौधों के टूसों से तैयार की जाती हैं।
  • गुलाब की कृषि भी डंडी वाले तथा डंडी रहित फूलों के लिए की जाती है।
  • गुलाब की डंडी वाले फूलों को बंद अवस्था में तथा डंडी के बिना फूलों को पूरी तरह खुलने पर तोड़ा जाता है।
  • जरबरा के लाल, संतरी, सफेद, गुलाब तथा पीले रंग के फूलों की अधिक मांग है।
  • रजनीगंधा के फूल बिना डंडी के, डंडी के साथ तथा तेल निकालने के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
  • रजनीगंधा के बल्ब गांठे फरवरी-मार्च में लगाए जाते हैं।
  • रजनीगंधा से 80,000 फूल डंडियों वाले या 2-2.5 टन प्रति एकड़ डंडी रहित फूलों की पैदावार मिल जाती है।
  • मोतिया के फूल सफेद रंग के तथा खुश्बूदार होते हैं।
  • मोतिया की कृषि के लिए मध्यम से भारी भूमि, जिनमें पानी न ठहरता हो अच्छी रहती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 1 पृथ्वी

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 1 पृथ्वी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 1 पृथ्वी

PSEB 11th Class Geography Guide पृथ्वी Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में लिखो

प्रश्न (क)
नैबुयला का सिद्धान्त सर्वप्रथम किस विचारवान ने पेश किया ?
उत्तर-
फ्रांसीसी गणित शास्त्री लैपलेस (Laplace) ने।

प्रश्न (ख)
पृथ्वी के भूमध्य रेखीय और ध्रुवीय व्यासों में कितना अंतर है ?
उत्तर-
42 किलोमीटर।

प्रश्न (ग)
प्राचीन खगोल विद्या के अनुसार युद्ध, प्रेम और स्वर्ग के देवता कौन-से ग्रह हैं ?
उत्तर-

  1. युद्ध का देवता – मंगल (Mars)
  2. प्रेम का देवता – शुक्र (Venus)
  3. स्वर्ग का देवता – अरुण (Uranus)

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प्रश्न (घ)
सूर्य मंडल के कौन-से ग्रह ‘गैस जॉयंट्स’ (Gas-Giants) माने जाते हैं ?
उत्तर-
गैसों से बने ग्रहों को ‘गैस जॉयंट्स’ कहते हैं। जैसे-बृहस्पति, शनि, अरुण तथा वरुण।

प्रश्न (ङ)
ISRO का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
ISRO = Indian Space Research Organisation.

प्रश्न (च)
पृथ्वी का सबसे ऊँचा व सबसे गहरा स्थान कौन-सा है ?
उत्तर-

  • सबसे ऊँचा स्थान : हिमालय पर्वत और माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर)
  • सबसे गहरा स्थान : प्रशांत महासागर में मैरीन ट्रैच (11033 मीटर)

प्रश्न (छ)
अक्षांशों और देशांतरों की आरंभिक रेखाओं के नाम बताएं।
उत्तर-
अक्षांशों की आरंभिक रेखा : भूमध्य रेखा।
देशांतरों की आरंभिक रेखा : मुख्य मध्यमान रेखा।

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प्रश्न (ज)
मुख्य मध्यमान रेखा पृथ्वी को किन दो गोलार्डों में बाँटती है ?
उत्तर-
पूर्वी गोलार्द्ध और पश्चिमी गोलार्द्ध।

प्रश्न (झ)
IST और GMT का पूरा नाम बताएं।
उत्तर-
IST : Indian Standard Time.
GMT : Greenwich Mean Time.

प्रश्न (ञ)
समोया और फिज़ी के समय का आपसी अंतर कितना है ?
उत्तर-
एक दिन।

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2. प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न (क)
सूर्य मंडल के ग्रहों के कितने-कितने उपग्रह हैं ?
उत्तर-

  1. बुध – कोई नहीं
  2. शुक्र – कोई नहीं
  3. पृथ्वी – 1
  4. मंगल – 2
  5. बृहस्पति – 63
  6. शनि – 47
  7. यूरेनस – 27
  8. नेपच्यून – 13.

प्रश्न (ख)
पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में सिद्धांत किन विचारवानों ने दिए ? लिखें।
उत्तर-
गणित शास्त्री लैपलेस, एमनुअल कांट, चैमबरलेन व मोल्टन, जेमस जीनज़, हैराल्ड जैफरी, आटोस्मिथ तथा ऐडविन हबल।

प्रश्न (ग)
पृथ्वी अपनी गतियों को कितने-कितने समय में पूर्ण करती है ?
उत्तर-

  • दैनिक गति – 23 घंटे, 56 मिनट 4 सैकिंड।
  • वार्षिक गति — 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सैकिंड।

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प्रश्न (घ)
सूर्योदय के समय में भिन्नता किस प्रकार सिद्ध करती है कि पृथ्वी गोल है ?
उत्तर-
पृथ्वी के गोल होने के कारण सभी स्थानों पर सूर्य निकलने का समय भिन्न होता है। यदि पृथ्वी चपटी होती तो सभी स्थानों पर सूर्य एक ही समय पर नज़र आता ।

प्रश्न (ङ)
अक्षांश और देशांतर निश्चित करने में कौन-से वैज्ञानिक शामिल थे ?
उत्तर-
जॉन हैरीसन, एमेरिगो वैसमकी, हिमोरकस, इरेटोस्थनीज़।

प्रश्न (च)
‘जीनिथ’ अथवा ‘शिखर बिंदु’ क्या होता है ?
उत्तर-
किसी स्थान का उच्च सीमा शिखर बिंदु आकाश में काल्पनिक बिंदु है, जो देखने वाले के सिर के ठीक ऊपर हो।

प्रश्न (छ)
दुमेल (क्षितिज) क्या होता है ?
उत्तर-
जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए दिखाई देते हैं, उसे दुमेल (क्षितिज) (Horizon) कहते हैं।

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प्रश्न (ज)
देशान्तर (लंबकार) वास्तव में पूर्ण चक्कर होते हैं, कैसे ?
उत्तर-
देशान्तर रेखाओं की आकृति अर्ध-गोला चाप होती है। दो देशान्तर रेखाएँ मिलकर पूर्ण चक्कर बनाती हैं।

3. प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
‘पृथ्वी चपटी नहीं बल्कि गोलाकार है’, इस स्थिति से पड़ते तीन प्रभाव लिखें।
उत्तर-
(क) समुद्र तल पर दूर से आ रहा समुद्री जहाज़ एक ही समय पूरा दिखाई नहीं देता।
(ख) सूर्य निकलने का समय अलग-अलग स्थानों पर भिन्न होता है।
(ग) जब क्षितिज को अलग-अलग ऊँचाइयों से देखें तो क्षितिज की चौड़ाई भिन्न होती है।

प्रश्न (ख)
दिन व रात के समय नक्षत्रों से दिशाओं का ज्ञान कैसे होता है ?
उत्तर-
पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है, इसलिए यदि हम सूर्य की ओर मुँह करके खड़े हों तो हमारे सामने पूर्व दिशा और पीछे पश्चिम दिशा होगी।

प्रश्न (ग)
पृथ्वी के काल्पनिक अक्षांशों सहित ताप खंडों में विभाजन करें।
उत्तर-
अक्षांश रेखाएँ भूमध्य रेखा के समानांतर होती हैं। सूर्य की किरणें 21 जून और 22 दिसम्बर को क्रमवार कर्क रेखा और मकर रेखा के ऊपर बिल्कुल सीधी पड़ती हैं। इसकी सहायता से पृथ्वी को तापखंडों में बाँटा जाता है। कर्क रेखा और मकर रेखा के मध्यांतर क्षेत्र को उष्ण कटिबंध, ध्रुव चक्र तक के क्षेत्र को शीतोष्ण कटिबंध और ध्रुवों तक के क्षेत्र को शीत कटिबंध कहा जाता है।
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प्रश्न (घ)
पुच्छल तारों (Commets) पर एक संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
लम्बी पूंछ वाले गैसीय आकाशीय पिंडों को धूमकेतु अथवा पुच्छल तारे कहा जाता है। हैली धूमकेतु को सबसे पहले एडमंड हैली ने 1682 ई० में देखा था। यह पूंछ वाला तारा 76 सालों के समय के बाद दिखाई देता है। यह तारा सूर्य के आस-पास 76 वर्षों में 5.3 अरब किलोमीटर लम्बे ग्रह-पथ पर एक चक्कर पूरा करता है। इसकी लम्बाई 3.2 किलोमीटर होती है। यह धूमकेतु 1986 में फिर दिखाई दिया था। यह अन्य ग्रहों के समान सूर्य की परिक्रमा करता है। प्राचीन काल में इसको देखना अपशकुन माना जाता था। अब यह तारा सन् 2062 में फिर नज़र आएगा।

प्रश्न (ङ)
प्रकाश वर्ष क्या होता है ? यह क्या नापने की इकाई है ?
उत्तर-
आकाश में तारों की दूरी नापने के लिए प्रकाश वर्ष (Light year) का प्रयोग किया जाता है। प्रकाश वर्ष वह दूरी है, जो रोशनी की किरणें एक साल में तय करती हैं। प्रकाश की किरणों की गति 3 लाख कि० मी० प्रति सैकिंड है। इस प्रकार प्रकाश वर्ष की दूरी 95 खरब कि० मी० है।
Light year = 3,00,000 x 365 days x 24 hours x 60 minutes x 60 Seconds = 94,60,80,00,000 कि० मी०।

प्रश्न (च)
पृथ्वी से संबंधित आँकड़ों में से कोई तीन तथ्य लिखें।
उत्तर-
पृथ्वी संबंधित आँकड़े (Statistical data of the Earth)-सौर मण्डल में पृथ्वी पाँचवाँ सबसे बड़ा ग्रह है।

व्यास (Diameter)-
भूमध्य रेखीय व्यास (Equatorial Diameter) = 12,756 कि०मी०
ध्रुवीय व्यास (Polar Diameter) = 12,714 कि०मी०

घेरा (Circumference)-
भूमध्य रेखीय घेरा (Equatorial Circumference) = 40,077 कि० मी०
ध्रुवीय घेरा (Polar Circumference) = 40,009 कि० मी०
कुल धरातलीय क्षेत्रफल (Total Surface Area) = 51 करोड़ वर्ग कि०मी०
= (510 million Sq. km.)
= 29% covered by continents
= 71% covered by oceans
= 1,000,000 million Cu. km.

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प्रश्न (छ)
पृथ्वी की वार्षिक गति दर्शाता हुआ चार अवस्थाओं वाला चित्र बनाएँ।
उत्तर-
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प्रश्न (ज)
‘Blue Planet’, ‘Red Planet’ और ‘Veiled Planet’ कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-

  • पृथ्वी को ‘Blue Planet’ कहते हैं क्योंकि इसकी सतह पर 71% पानी है।
  • मंगल ग्रह को Red Planet कहते हैं क्योंकि इसकी मिट्टी में लोहे के कण अधिक होते हैं।
  • शुक्र ग्रह को Veiled Planet कहते हैं क्योंकि इसमें कार्बन-डाइऑक्साइड बहुत अधिक होती है।

4. प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
पृथ्वी की दो गतियों पर सचित्र नोट लिखें।
उत्तर-
पृथ्वी स्थिर नहीं है, बल्कि पृथ्वी की दो गतियाँ हैं-
(i) दैनिक गति (ii) वार्षिक गति।

I. दैनिक गति (Rotation)-जब पृथ्वी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती हुई लगभग 24 ___घंटों में एक चक्कर लगाती है, तो इसको दैनिक गति कहते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर 23 घंटे 56 मिनट 4 सैकिंड में एक चक्कर पूरा करती है। (The spinning of the earth on its polar axis is called rotation), इस समय को एक दिन कहा जाता है। पृथ्वी की धुरी एक कल्पित रेखा है, जो लम्ब रूप में नहीं है, परन्तु लम्ब दिशा पर 23/2° झुकी हुई है। पृथ्वी की धुरी ग्रह-पथ रेखा पर 66%2° का कोण बनाती है, पृथ्वी की दैनिक गति 29 किलोमीटर प्रति मिनट है और भूमध्य रेखा पर सबसे अधिक है।
प्रभाव-पृथ्वी की दैनिक गति के प्रभाव नीचे लिखे हैं-

1. दिन-रात का बनना- गोलाकार पृथ्वी का केवल आधा भाग ही एक समय पर प्रकाश में होता है, बाकी आधा भाग अंधकार में होता है। प्रत्येक भाग क्रम से सूर्य के सामने आता है और वहाँ दिन होता है। जो भाग अंधकार में होता है, वहाँ रात होती है।
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2. समय के माप का होना-दैनिक गति के एक चक्कर की 24 घंटे की लम्बाई होने के कारण एक दिन 24 घंटे के बराबर माना गया है।

3. नक्षत्र, ग्रहों आदि का पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर चलते हुए प्रतीत होना-पृथ्वी पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है परन्तु बाकी ग्रह इसकी विपरीत दिशा में पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए प्रतीत होते हैं। उदाहरण के लिए रेलगाड़ी में बैठे यात्री को बाहर की वस्तुएँ उल्टी दिशा में चलती हुई दिखाई देती हैं।

4. पवनों तथा धाराओं की दिशा में परिवर्तन-दैनिक गति पर फैरल का सिद्धान्त (Ferral’s Law) आारित है। पृथ्वी के घूमने के कारण पवनें तथा धाराएँ उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाएँ ओर मुड जाती हैं। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में पवनें तथा धाराएँ अपने बाएँ ओर मुड़ जाती हैं।

5. देशांतर रेखाओं का निर्माण-दैनिक गति के आधार पर गोलाकार पृथ्वी को 360 देशांतर रेखाओं में बाँटा गया है। इस प्रकार घूमने के फलस्वरूप पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण आदि चार प्रमुख दिशाओं का निर्माण होता है।

6. ध्रुवों का पिचका होना-दैनिक गति के कारण केंद्रमुखी शक्ति के प्रभाव से ध्रुव केंद्र की ओर पिचक या धंस गए हैं।

7. सुबह, दोपहर और शाम का होना-घूमने के कारण जो भाग सूर्य के सामने सबसे पहले आता है, वहाँ सूर्योदय (Sunrise) होता है। सूर्य के ठीक सामने वाले भाग में दोपहर (Noon) होती है। पृथ्वी का वह भाग, जो सूर्य से दूर होने लगता है, वहाँ शाम (Evening) होती है।

8. ज्वारभाटे का आना-चन्द्रमा की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण दिन में दो बार समुद्र के जल में ज्वारभाटा आता है।

II. वार्षिक गति-जब पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ एक अंडाकार पथ पर 365-1/4दिनों में एक चक्कर पूरा करती है, तो इसे वार्षिक गति कहते हैं। पृथ्वी अपने ग्रह-पथ पर 365 दिन 5 घंटे 48 मिनट 46 सैकिंड में एक चक्कर पूरा करती है। इस ग्रहपथ (Orbit) की लम्बाई लगभग 95 करोड़ किलोमीटर है। पृथ्वी की गति 30 किलोमीटर प्रति सैकिंड है। पृथ्वी का यह पथ गोलाकार नहीं है, बल्कि अंडाकार है। इसलिए जब पृथ्वी सूर्य के निकटतम होती है, तो इस स्थिति को पेरीहीलियन (Perihelian) कहा जाता है। इस स्थिति में पृथ्वी और सूर्य के बीच 14 करोड़ 73 लाख किलोमीटर की दूरी होती है। जब पृथ्वी सूर्य से बहुत अधिक दूर होती है, तो इस स्थिति को ऐपहीलियन (Aphelian) कहा जाता है। इस स्थिति में सूर्य और पृथ्वी के बीच 15 करोड़ 21 लाख किलोमीटर की दूरी होती है।
प्रभाव-पृथ्वी की वार्षिक गति के प्रभाव नीचे लिखे हैं-

1. समय का पैमाना-पृथ्वी सूर्य की एक परिक्रमा 365-1/4 दिनों में पूरा करती है, इसीलिए एक वर्ष में 365 दिन गिने जाते हैं। हर चौथा वर्ष 366 दिनों का होता है, जिसको लीप का साल कहते हैं।

2. दिन-रात की लम्बाई में समानता नहीं-परिक्रमा के समय पृथ्वी अपनी स्थिति बदलती रहती है। पृथ्वी के झकाव के कारण कभी उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है और कभी दक्षिणी गोलार्द्ध। इस झुकाव के कारण, एक स्थान पर दिन-रात छोटे होते रहते हैं।

3. ध्रुवों पर छह-छह महीने का दिन और रात का होना-धुरी के झुकाव के कारण उत्तरी ध्रुव 6 महीने सूर्य की ओर झुका रहता है और प्रकाश में रहता है। इसी प्रकार उत्तरी ध्रुव 6 महीने अंधकार में ही रहता है। परिक्रमा के कारण ही उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध में एक-दूसरे के विपरीत ऋतुएँ होती हैं।

4. ऋतु परिवर्तन-परिक्रमण और दूरी के झुकाव के कारण दिन-रात की लम्बाई में अंतर होता रहता है। कभी सूर्य की किरणें लम्ब रूप में और कभी ‘तिरछी पड़ती है, जिस के कारण सूर्य के ताप की मात्रा बदलती रहती है। फलस्वरूप, एक वर्ष में चार स्पष्ट ऋतुओं का निर्माण होता है, जिन्हें गर्मी, पतझड़, सर्दी और वसन्त ऋत कहते हैं।

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5. ताप कटिबंधों की रचना-परिक्रमा के कारण और सूर्य की किरणों के अनुसार अलग-अलग ताप कटिबंधों का विस्तार पता लगता है। कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच सूर्य की किरणें लगभग लम्ब रूप में पड़ती हैं और इसे ऊष्णकटीय बन्ध कहा जाता है। ध्रुवों तथा ध्रुवीय चक्रों के बीच के भाग को शीतकटीय बन्ध कहते हैं। यहां 24 घंटे से अधिक लम्बे दिन और रातें होती हैं और सूर्य की किरणें बहुत ही तिरछी पड़ती हैं। ऊष्णकटीय बन्ध और शीतकटीय बन्ध के बीच वाले भाग को शीत-ऊष्ण कटीय बन्ध (शीतोष्ण-कटीयबंध) कहते हैं।

6. आधी रात का सूर्य-21 मार्च से 23 सितम्बर तक 6 महीने के समय में आर्कटिक चक्र से उत्तर के भाग सूर्य की ओर झुके रहते हैं। इसलिए यहाँ दिन की लम्बाईं 24 घंटे से भी अधिक होती है। यहाँ आधी रात को भी सूर्य चमकता है, इसलिए नॉर्वे को ‘आधी रात के सूर्य का देश’ (Land of Midnight Sun) भी कहा जाता है।

7. भूमध्य रेखा, मकर रेखा और कर्क रेखा को निश्चित करना- जब 21 मार्च और 23 सितम्बर को सूर्य की किरणें पृथ्वी के मध्यवर्ती भाग पर लम्ब रूप में पड़ती हैं, तो इसे भूमध्य रेखा कहते हैं। 21 – जून को सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर और 22 दिसम्बर को मकर रेखा पर लम्ब रूप में पड़ती हैं।

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प्रश्न (ख)
सूर्य मंडल (Solar System) के ग्रहों पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
सूर्य, ग्रह, उपग्रह और अनगिनत खगोलीय पिंड मिलकर सूर्य मंडल की रचना करते हैं। इसे सूर्य परिवार भी कहते हैं। सूर्य, सूर्य मंडल का केन्द्र और संचालक भी है। सूर्य मंडल में 8 ग्रह, 60 उपग्रह, अनगिनत उल्का, तारे और अनेक पुच्छल तारे शामिल हैं। ये सभी खगोलीय पिंड अपने-अपने ग्रह-पथ पर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सूर्य मंडल के अलग-अलग सदस्यों का वर्णन इस प्रकार है-

1. सूर्य (Sun)-सूर्य, सूर्य मंडल का सबसे बड़ा सदस्य है। सूर्य जलती हुई गैसों का एक विशाल तारा है। सूर्य के केंद्र का तापमान लगभग दो करोड़ सैंटीग्रेड है। इसका व्यास 14 लाख 94 हज़ार कि०मी० है। सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सभी ग्रह इसके चारों ओर चक्कर लगाते रहते हैं। सूर्य हमारी धरती से लगभग 15 करोड़ कि० मी० दूर है। इसका प्रकाश धरती पर 812 मिनट में पहुँचता है। इसके ताप तथा प्रकाश के कारण ही पृथ्वी पर जीवन मिलता है।

2. ग्रह (Planets)—सूर्य मंडल के 8 ग्रह हैं, जो सूर्य के इर्द-गिर्द अंडाकार पथ पर परिक्रमा करते हैं।
सूर्य की दूरी के अनुसार इनके नाम हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, वृहस्पति, शनि, अरुण, वरुण। बुध सूर्य के सबसे निकट और वरुण सबसे दूर स्थित है। वृहस्पति सबसे बड़ा और बुध सबसे छोटा है। यदि इन आठ ग्रहों को एक पंक्ति में रखा जाए, तो यह एक सिगार की शक्ल की रचना करते हैं।

i) बुध (Mercury)—यह सूर्य के सबसे निकट और सबसे छोटा ग्रह है। यह 88 दिनों में सूर्य की परिक्रमा करता है। वायु-मंडल रहित ग्रह होने तथा अधिक तापमान के कारण यहाँ जीवन संभव नहीं है। यह सूर्य के उदय होने से दो घंटे पहले दिखाई देता है। इसे पूर्वी आकाश में ‘सुबह का तारा’ (Morning Star) कहा जाता है।

ii) शुक्र (Venus)-यह सूर्य मंडल का सबसे अधिक चमकीला ग्रह है। इसका आकार, व्यास और घनत्व पृथ्वी के समान है। यह आम तौर पर सूर्य अस्त होने के बाद पश्चिमी आकाश में दिखाई देता है। इसे ‘संध्या का तारा’ (Evening Star) कहते हैं। इसे Veiled Planet भी कहा जाता है।

iii) पृथ्वी (Earth)—पृथ्वी एक भाग्यशाली ग्रह है, क्योंकि यहाँ मनुष्य-जीवन संभव है। यह सूर्य से लगभग 15 करोड़ कि० मी० दूर है। इसका एक उपग्रह है, जिसे चन्द्रमा कहते हैं। यह अंडाकार पथ से 36574 दिनों में सूर्य की परिक्रमा करती है। इसे Blue Planet भी कहा जाता है।

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iv) मंगल (Mars)–यह पृथ्वी का पड़ोसी ग्रह है। अंतरिक्ष उपग्रह Viking द्वारा लिए गए इसके चित्रों से अनुमान लगाया गया है कि यहाँ वायुमंडल के कारण जीवन संभव है। मंगल ग्रह पर पहले ही प्रयास में पहुँचने वाला देश भारत है। 24 सितम्बर, 2014 को ISRO के Mars Orbit Mission के अधीन अन्तरिक्ष जहाज़ मंगल यान ने मंगल के Orbit में प्रवेश किया।

v) वृहस्पति (Jupiter)…यह सूर्य मंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इस ग्रह के बहुत कम है और यहाँ हज़ारों किलोमीटर मोटी बर्फ जमी हुई है। मंगल और वृहस्पति ग्रहों के बीच
खाली स्थान पर छोटे-छोटे अवांतर ग्रह (Asteroids) फैले हुए हैं।

vi) शनि (Saturn)—यह सूर्य मंडल का दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है। यह एक सुन्दर परन्तु क्रूर ग्रह माना जाता है। इसके चारों तरफ तीन छल्ले चक्कर लगाते हैं। इसके 62 उपग्रह हैं। इसका सबसे बड़ा उपग्रह टाईटन (Titan) है।

vii) अरुण (Uranus)—इसकी खोज विलियम हरशौल ने 1781 में की थी। यहाँ तापमान कम होने के कारण जीवन की संभावना नहीं है।

viii) वरुण (Neptune)—यह ग्रह सूर्य से 450 करोड़ कि० मी० दूर है। यह सूर्य की परिक्रमा 165 वर्षों में करता है। इसका रंग हरा दिखाई देता है।

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3. उपग्रह (Satellites)-उपग्रह अपने-अपने ग्रहों के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने वाले खगोलीय पिंड होते हैं। इनकी कुल संख्या 153 है। यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि सभी ग्रहों के उपग्रह नहीं हैं। केवल पृथ्वी, मंगल, वृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण के ही उपग्रह हैं। बुध, शुक्र और कुबेर का कोई उपग्रह नहीं है। ग्रहों के समान उपग्रहों का भी न अपना तापमान होता है और न ही अपना प्रकाश होता है। ये अपना ताप और प्रकाश सूर्य से प्राप्त करते हैं।

4. अवांतर ग्रह (Asteroids)—मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच लगभग 1500 छोटे-छोटे ग्रह हैं। ग्रहों के समान ये भी सूर्य से प्रकाश प्राप्त करते हैं और अपने-अपने अंडाकार पथों पर सूर्य के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं।

5. धूमकेतू अथवा पुच्छल तारे (Comets)-ये लम्बी पूंछ वाले पिन्ड हैं, जो गैसीय पदार्थों से बने होते हैं। ये कभी-कभी ही दिखाई देते हैं। पुच्छल तारे का नाम उस वैज्ञानिक के नाम पर रखा जाता है, जो उसका पता लगाता है। हैली (Halley) पुच्छल तारा 76 वर्षों बाद दिखाई देता है।

6. उल्का पिंड (Meteors)-रात के समय चलते हुए पदार्थ आकाश से धरती की ओर आते हुए नज़र आते हैं और पलभर में आलोप भी हो जाते हैं। इन टूटते हुए तारों को उल्का तारे कहते हैं। आमतौर पर ये मार्ग में ही जलकर राख हो जाते हैं और कुछ धरती पर भी गिरते हैं। रूस और अमेरिका की तरफ से छोड़े गए छोटे खगोलीय पिंड (स्पूतनिक) आदि भी पृथ्वी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं।

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प्रश्न (ग)
प्रमाणों का ज़िक्र करते हुए सिद्ध करें कि पृथ्वी गोल है।
उत्तर-
पृथ्वी का रूप (Shape of the Earth)-
प्राचीन विचार-प्राचीन काल में पृथ्वी के रूप के सम्बन्ध में कुछ अजीब विचार थे, परन्तु हज़ारों वर्षों के ज्ञान और अलग-अलग प्रयोगों ने इन्हें ग़लत सिद्ध कर दिया है।
पृथ्वी का चपटा रूप-देखने में पृथ्वी चपटी नज़र आती है, इसलिए बहुत-से विद्वानों ने इसे चपटी (Flat Disc) माना।

यूनान (Greek) के विद्वान् थेलज़ (Thales) के अनुसार ‘पृथ्वी गोल मेज़ की भाँति चपटी और गोल चक्कर (Disc shaped) के समान है।’ अनैक्सीमेंडर के अनुसार, “पृथ्वी बेलनाकार है।”

गोलनुमा पृथ्वी-प्राचीन समय में ही अरस्तु (Aristotle), टॉलमी (Ptolemy), आर्यभट्ट, भास्कर, आचार्य, फिलोलस (Philolaus), पाईथागोरस (Phythagorus) आदि विद्वानों ने प्रमाण प्रस्तुत किए हैं कि पृथ्वी गोलाकार है।

आधुनिक विचार-16वीं सदी में कॉपरनिकस (Copernicous) ने पृथ्वी की परिक्रमा (Revolution) के प्रमाणों से सिद्ध किया है कि पृथ्वी गोल है। परन्तु वास्तव में न्यूटन (Newton) ने 17वीं सदी में वैज्ञानिक प्रमाण पेश किया कि पृथ्वी पूरी तरह एक गोले के समान गोल नहीं है, बल्कि गोल वस्तु का बिगड़ा हुआ रूप है और गोलनुमा (Spheroid) है। 1903 ई० में सर जेमस जीनज़ (Sir James Jeans) ने बताया कि पृथ्वी नाशपाती के आकार (Pear Shaped) की है। पृथ्वी का अपना अलग आकार है। इसे नारंगी (Orange) अथवा नाशपाती आदि में से किसी के बिल्कुल अनुरूप नहीं कहा जा सकता। वास्तव में पृथ्वी का अपना अलग ही आकार है, जिसकी उपमा किसी अन्य वस्तु के साथ नहीं की जा सकती। यह विशेष आकार केवल पृथ्वी का ही है, इसलिए इस आकार को Geoid कहा गया है।
(Geo + Oid) (भू + आकार)

पृथ्वी ध्रुवों पर पिचकी या सी हुई (Flattered) है, पर भूमध्य रेखा पर बाहर की ओर उभरी हुई (Bulging) है। यही कारण है कि पृथ्वी के दोनों व्यास बराबर नहीं हैं जबकि एक गोले (Sphere) के सभी व्यास समान होते हैं।
पृथ्वी के विशेष आकार का कारण-पृथ्वी का विशेष आकार पृथ्वी की रोज़ाना गति (Rotation) के कारण है। पृथ्वी अपनी धुरी (Axis) के इर्द-गिर्द घूमती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 1 पृथ्वी 7

विकेंद्रित शक्ति (Centrifugal force) के कारण प्रत्येक घूमती हुई गोल वस्तु का रूप बिगड़ जाता है, इसीलिए पृथ्वी को भी a sphere of Rotation कहा गया है।
पृथ्वी एक गोलाकार पिंड का बिगड़ा हुआ रूप है। नीचे लिखे प्रमाण इस तथ्य की पुष्टि करते हैं-

1. दूर से आ रहे समुद्री जहाज़ की स्थिति-यदि समुद्र तट से दूर से आते हुए जहाज़ को देखें , तो सबसे पहले हमें उसका ऊपरी भाग भाव चिमनी दिखाई देती है। निकट आने पर धीरे-धीरे समुद्री जहाज़ पूरा दिखाई देने लगता है। यह गोलाकार पृथ्वी के कारण ही है। यदि पृथ्वी चपटी होती तो शुरू से ही समुद्री जहाज़ पूरे का पूरा एक साथ ही नज़र आ जाता।

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2. दूसरे ग्रहों का गोल होना-सूर्य मंडल के दूसरे ग्रह और सूर्य गोलाकार पिंड हैं। पृथ्वी भी सूर्यमंडल का एक सदस्य है। इन्हीं के समान पृथ्वी भी अवश्य गोलाकार ही होगी।
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3. क्षितिज का गोल होना-क्षितिज (जहाँ धरती और आकाश मिलते हुए प्रतीत होते हैं) सभी दिशाओं में गोल प्रतीत होता है। अधिक ऊँचाई पर क्षितिज का आकार बढ़ता जाता है। यदि पृथ्वी चपटी होती, तो क्षितिज का विस्तार हर एक ऊँचाई पर एक समान होता।
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4. सूर्य का उदय और अस्त होना-गोलाकार पृथ्वी के कारण अलग-अलग प्रदेशों में सूर्य के उदय और अस्त होने का समय भिन्न होता है। यदि पृथ्वी चपटी होती है तो पूरे संसार में सूर्योदय और सूर्यास्त का एक ही समय होता और समूचे तल पर एक ही समय में प्रकाश पहुँचता।

5. पृथ्वी की परिक्रमा-मैगेलन (Magallan) और फ्रांसिस ड्रेक नाविकों ने समुद्री जहाज़ से पृथ्वी की __ परिक्रमा करके यह सिद्ध किया कि पृथ्वी गोलाकार है। वे बिना मुड़े उसी स्थान पर पहुँच गए, जहाँ से उन्होंने यात्रा शुरू की थी।
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6. बेडफोर्ड लेवल नहर का प्रयोग-सन् 1870 ई० में इंग्लैण्ड की बेडफोर्ड लेवल नाम की एक नहर में ए० आर० वैलेस (A.R.Wallace) ने एक प्रयोग से सिद्ध किया कि पृथ्वी गोलाकार है। उसने नहर में एक-एक मील की दूरी पर बराबर ऊँचाई के तीन खम्भे इस तरह गाड़े कि वे जल-सतह से 14 फुट ऊँचे थे। सीधा देखने पर बीच वाला खम्भा आठ इंच ऊँचा दिखाई दिया। यह पृथ्वी की गोलाई के कारण है।
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7. अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा प्रमाण-अंतरिक्ष यात्रियों ने अंतरिक्ष और चंद्रमा से धरती के जो चित्र लिए हैं, उनसे सिद्ध होता है कि पृथ्वी गोलाकार है। ऐसे ही चित्र यूरी गार्गिन, नील आर्मस्ट्रांग और राकेश शर्मा ने अन्तरिक्ष में लिए थे।

प्रश्न (घ)
पृथ्वी पर मौसमों का बदलाव कैसे और क्यों होता है ? लिखें।
उत्तर-
ऋतु परिवर्तन-वर्ष भर में एक जैसा मौसम नहीं रहता। परिक्रमण तथा धुरी के झुकाव के कारण पृथ्वी की स्थिति सूर्य के सामने बदलती रहती है। फलस्वरूप दिन-रात की लम्बाई, सूर्य के ताप की मात्रा अलग-अलग होती है। इसी प्रकार परिक्रमा के दौरान पृथ्वी की अलग-अलग अवस्थाओं के अनुसार चार मुख्य ऋतुओं का निर्माण होता है-गर्मी की ऋतु, पतझड़ की ऋतु, सर्दी की ऋतु और वसंत की ऋतु। यह अवस्थाएँ क्रमानुसार 21 जून, 23 सिम्तबर, 21 मार्च और 22 दिसंबर को होती हैं।

ऋतु परिवर्तन के कारण-

  • पृथ्वी की धुरी का अपने ग्रह-पथ तल पर 66%2° के कोण पर झुका हुआ होना।
  • पृथ्वी की धुरी का सदा एक ही दिशा में झुका होना।
  • पृथ्वी की परिक्रमण गति।
  • दिन रात का छोटे और बड़े होना।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 1 पृथ्वी 13
1. 21 जून की अवस्था-

  • इस अवस्था में सूर्य कर्क रेखा पर लम्ब रूप में चमकता है।
  • उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है और दक्षिणी ध्रुव सूर्य से दूर होता है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध का अधिक भाग सूर्य की रोशनी में रहता है। उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। 21 जून उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन होता है।
  • दक्षिणी गोलार्द्ध का अधिक भाग अंधकार में रहता है। यहाँ दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं। 21 जून दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन होता है।
  • इस प्रकार लम्ब रूप किरणों तथा दिन बड़े होने के कारण, उत्तरी गोलार्द्ध में सूर्य के ताप की मात्रा अधिक होती है और गर्मी की ऋतु होती है। इसके विपरीत दक्षिणी गोलार्द्ध में तिरछी किरणों और छोटे दिनों के कारण सर्दी की ऋतु होती है।
  • इस अवस्था को कर्क संक्रांति अथवा कर्क समपात (Summer Solstice) कहते हैं।

2. 22 दिसम्बर की अवस्था-

  • इस अवस्था में सूर्य की किरणें मकर रेखा पर लम्ब रूप में पड़ती हैं।
  • दक्षिणी ध्रुव सूर्य के सामने और उत्तरी ध्रुव सूर्य से परे होता है।
  • दक्षिणी गोलार्द्ध का अधिक भाग सूर्य की रोशनी में रहता है। फलस्वरूप दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। 22 दिसम्बर दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन होता है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में अधिक भाग अंधकार में रहता है। यहाँ दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं। 22 दिसम्बर उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन होता है।
  • इस प्रकार लम्ब रूप में किरणों, बड़े दिनों और अधिक सूर्य के ताप की मात्रा के कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्मी की ऋतु होती है। इसके विपरीत उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु होती है।
  • इस अवस्था को मकर संक्रांति अथवा मकर समपात (Winter Solstice) भी कहते हैं।

3. 21 मार्च और 23 सितम्बर की अवस्थाएँ-

  • इन अवस्थाओं में दोनों ध्रुव सूर्य की ओर समान रूप से झुके होते हैं।
  • सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर लम्ब रूप में चमकती हैं।
  • रोशनी चक्र बिल्कुल ध्रुवों के बीच से निकलता है और दोनों ध्रुवों पर समान रूप से रोशनी पहुँचती है।
  • प्रत्येक अक्षांश का आधा भाग अन्धकार में तथा आधा भाग प्रकाश में रहता है, इसीलिए पृथ्वी पर दिन रात. बराबर होते हैं।
  • दोनों गोलार्डों में सूर्य का ताप और दिन-रात बराबर होने के कारण एक समान ऋतुएँ होती हैं।
  • 21 मार्च को उत्तरी गोलार्द्ध में वसन्त ऋतु और दक्षिणी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु होती है। इस स्थिति को वसन्त समरात्रि (Spring equinox) भी कहते हैं।
  • 23 सितम्बर को उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु और दक्षिणी गोलार्द्ध में वसन्त ऋतु होती है। इस अवस्था को पतझड़ समरात्रि (Autumn equinox) कहते हैं।

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प्रश्न (ङ)
उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी और पश्चिमी गोलार्डों पर नोट लिखें।
उत्तर-
अक्षांश रेखाएँ किसी स्थान की स्थिति के बारे में जानकारी देती हैं। पृथ्वी के मध्य में जो काल्पनिक रेखा खींची गई है, उसे भूमध्य रेखा कहते हैं। पृथ्वी गोल है और इसका नाप 360° है। भूमध्य रेखा और पृथ्वी की धुरी (90° N से 90° S 32) मिलकर पृथ्वी को चार भागों में बाँटते हैं। भूमध्य रेखा को 0° अक्षांश माना जाता है।

इस प्रकार पृथ्वी के चार भाग नीचे लिखे हैं-

  1. उत्तरी गोलार्द्ध – . 0° to 90° N
  2. दक्षिणी गोलार्द्ध – 0° to 90° S
  3. पूर्वी गोलार्द्ध – 0° to 180° E
  4. पश्चिमी गोलार्द्ध – 0° to 180° W.

मुख्य मध्याह्न (Prime Meridian)—यह पृथ्वी को दो भागों में बाँटती है-पूर्वी गोलार्द्ध और पश्चिमी गोलार्द्ध। मुख्य मध्याह्न रेखा के पूर्वी भाग को पूर्वी गोलार्द्ध कहते हैं, जबकि पश्चिमी भाग को पश्चिमी गोलार्द्ध कहते हैं। पूर्वी गोलार्द्ध में समय आगे होता है और पश्चिमी गोलार्द्ध में समय पीछे होता है। 180° देशांतर पर पूर्वी और पश्चिमी देशांतर रेखाएँ मिल जाती हैं।

प्रश्न (च)
पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में कथा का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पृथ्वी की उत्पत्ति के विषय में भिन्न-भिन्न सिद्धान्त-

  • पृथ्वी की उत्पत्ति के सम्बन्ध में लैपलेस के अतिरिक्त ऐमनुअल कांट (Cant), चैम्बरलेन और मोल्टन ने भी अपने सिद्धान्त दिए।
  • जेम्स जीनज़ और हैरोल्ड जैफरी ने चैम्बरलेन के मत का समर्थन किया।
  • सन् 1950 में रूस के ऑटोस्मिथ और जर्मनी के कार्ल वाईजास्कर ने निहारिका परिकल्पना में कुछ सुधार किया। इनके मतानुसार सूर्य एक ओर से निहारिका से घिरा हुआ है, जो मुख्य रूप से हाइड्रोजन, हीलियम और धूल-कणों से बना हुआ है। इन कणों की रगड़ से एक चपटी तश्तरी की आकृति के बादल का निर्माण हुआ।

आधुनिक सिद्धान्त-आधुनिक युग का सबसे अधिक माना जाने वाला सिद्धान्त बिग बैंग सिद्धान्त (Big Bang Theory) है। सन् 1920 में एडेविन हबल ने यह प्रमाण दिए कि ब्रह्मांड फैल रहा है। 1950 और 1960 में इस सिद्धान्त को निश्चित समझ लिया गया।

  • 1972 में यह सही मान लिया गया कि कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर (Cosmic Background Explorer) के प्रमाण के कारण, इस सिद्धान्त के अनुसार वे सभी पदार्थ, जिनसे ब्रह्मांड बना है, अत्यधिक छोटे बिंदुओं के रूप में एक ही स्थान पर स्थित थे।
  • इनमें एक भयानक विस्फोट हुआ। बिग बैंग के पहले तीन मिनट के भीतर ही पहले अण का निर्माण हुआ।
  • यह घटना 15 अरब (Billion) वर्ष पहले घटी थी।
  • इस विस्फोट के फलस्वरूप बाद में आकाश गंगा, तारों और ग्रहों का जन्म हुआ। इस प्रकार जैसे-जैसे ब्रह्मांड फैलता गया, आकाश गंगा (Galaxies) एक-दूसरे से दूर होती गईं। यह माना जाता है कि एक आग के गोले (Single fireball) के धमाके से कई टुकड़े अलग होने की घटना 15 अरब साल (Billion) पहले घटी थी।
    चित्र-बिग बैंग प्रक्रिया का काल्पनिक ग्राफिक थी।

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PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 1 पृथ्वी

Geography Guide for Class 11 PSEB पृथ्वी Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
सूर्य मण्डल के सबसे बड़े ग्रह का नाम बताएँ।
उत्तर-
वृहस्पति।

प्रश्न 2.
सूर्य और पृथ्वी के बीच कितनी दूरी है ?
उत्तर-
15 करोड़ किलोमीटर।

प्रश्न 3.
सूर्य से धरती पर प्रकाश की किरणें कितनी देर में पहुँचती हैं ?
उत्तर-
8 मिनट 22 सैकिंड।

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प्रश्न 4.
पृथ्वी का ध्रुवीय व्यास बताएँ।
उत्तर-
12714 किलोमीटर।

प्रश्न 5.
बेडफोर्ड लेवल नहर का प्रयोग किसने किया था ?
उत्तर-
ए० आर० वैलेस ने।

प्रश्न 6.
सूर्य की किरणें कर्क रेखा पर लम्ब रूप में कब पड़ती हैं ?
उत्तर-
21 जून।

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प्रश्न 7.
भारत का प्रामाणिक समय किस देशांतर से लिया जाता है ?
उत्तर-
82/2° पूर्व।

प्रश्न 8.
कर्क रेखा का अक्षांश बताएँ।
उत्तर-
23172° N.

प्रश्न 9.
पृथ्वी अपनी धुरी पर एक चक्कर कितने समय में लगाती है ?
उत्तर-
23 घंटे 56 मिनट 4 सैकिंड।

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प्रश्न 10.
उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे लंबा दिन बताएँ।
उत्तर-
21 जून।

बहुविकल्पी प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
सूर्य के सबसे निकट के ग्रह का नाम बताएँ-
(क) पृथ्वी
(ख) शुक्र
(ग) बुध
(घ) शनि।
उत्तर-
बुध।

प्रश्न 2.
पृथ्वी का ध्रुवीय व्यास बताएँ-
(क) 12000 कि०मी०
(ख) 12500 कि०मी०
(ग) 12710 कि०मी०
(घ) 12714 कि०मी० ।
उत्तर-
12714 कि०मी०।

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प्रश्न 3.
बैडफोर्ड लेवल नहर कहाँ है ?
(क) इंग्लैंड
(ख) जर्मनी
(ग) फ्रांस
(घ) हॉलैंड।
उत्तर-
इंग्लैंड।

प्रश्न 4.
1° देशांतर के लिए समय में अंतर बताएं-
(क) 2 मिनट
(ख) 3 मिनट
(ग) 4 मिनट
(घ) 5 मिनट।
उत्तर-
4 मिनट।

प्रश्न 5.
‘आधी रात का सूर्य’ किस देश को कहते हैं ?
(क) नॉर्वे
(ख) स्वीडन
(ग) फिनलैंड
(घ) आईसलैंड।
उत्तर –
नॉर्वे!

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अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी की आयु का वर्णन करें।
उत्तर-
पृथ्वी की आयु ब्रह्मांड से लगभग एक-तिहाई है। पृथ्वी का गठन 4.54 अरब वर्ष पहले हुआ। इसकी सतह पर जीवन का विकास लगभग 1 अरब वर्ष पूर्व हुआ।

प्रश्न 2.
बिग बैंग से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
बिग बैंग (Big Bang) एक बहुत बड़े विस्फोट को कहा जाता है, जिसके कारण पृथ्वी की उत्पत्ति हुई।

प्रश्न 3.
नेबुयला सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर-
नेबुयला बहुत ठंडा, गैसों और धूल का बादल था, जिसके सिकुड़ने के कारण पृथ्वी की उत्पत्ति हुई। विकिरण के कारण नेबुयला में से कई छल्ले बाहर की ओर फेंके गए, जो ठंडे होकर ग्रह बन गए। यह सिद्धान्त कांट और लैपलेस ने प्रस्तुत किया।

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प्रश्न 4.
आकाश-गंगा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
रात को तारों की एक चौड़ी और लम्बी चमकदार सड़क दिखाई देती है। इस चमकदार मेहराब (Arch) को आकाश–गंगा कहते हैं।

प्रश्न 5.
सूर्य मंडल के कुल मादे के अलग-अलग पदार्थ बताएँ।
उत्तर-
सूर्य – 99.85%
ग्रह – 0.135%
पूँछ वाले तारे – 0.01%
उपग्रह – 0.00005%
उल्का . – 0.0000001%

प्रश्न 6.
सूर्य के अलग-अलग भाग बताएँ और उनका तापमान बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का जो भाग हमें दिखाई देता है, उसे प्रकाश-मण्डल (Photosphere) कहते हैं, जिसका तापमान 6000° kelvin है। मध्यभाग को क्रोमोस्फीयर (Chromosphere) कहते हैं, जिसका तापमान 10,000 Kelvin है। मध्यवर्ती केंद्रीय भाग को कोरोना (Corona) कहते हैं, जिसका तापमान 10 लाख दर्जे Kelvin है।

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प्रश्न 7.
सूर्य कलंक तथा चुंबकीय क्षेत्र क्या हैं ?
उत्तर-
सूर्य पर बने काले धब्बों को सूर्य कलंक कहते हैं। जब इन धब्बों की गिनती बहुत बढ़ जाती है तो धरती पर चुम्बकीय हवाएं चलती हैं। इससे जहाज़ों की दिशा में भूल हो जाती है।

प्रश्न 8.
सूर्य मण्डल के अन्दरूनी और बाहरी ग्रह कौन-से हैं ?
उत्तर-
सूर्य के निकट घूमने वाले ग्रहों को अदंरूनी ग्रह (Inner Planets) अथवा Terrestial Planets कहते हैं। ये चार ग्रह हैं-बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल।
सूर्य से दूर घूमने वाले ग्रहों को बाहरी ग्रह (Outer Planets) अथवा Jovian Planets कहते हैं। ये चार ग्रह हैं-बृहस्पति, शनि, अरुण और वरुण।

प्रश्न 9.
शनि ग्रह की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-

  • यह सूर्य मण्डल का दूसरा बड़ा ग्रह है।
  • इसके इर्द-गिर्द तीन छल्ले (Rings) चक्कर लगाते हैं।
  • कम तापमान (-150°C) के कारण यहाँ जीवन संभव नहीं है।

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प्रश्न 10.
सुबह का तारा और शाम का तारा किस ग्रह को कहते हैं ?
उत्तर-
बुध ग्रह को सुबह का तारा और शुक्र ग्रह को शाम का तारा कहते हैं।

प्रश्न 11.
बौने ग्रह (Dwarf Planets) कौन-से हैं ?
उत्तर-
छोटे आकार के बौने ग्रह नीचे लिखे हैं.-

  • सीरस
  • एरीज़
  • मेक मेक
  • हयुमीया।

प्रश्न 12.
उल्का से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
रात को कभी-कभी आसमान में टूटते हुए तारे दिखाई देते हैं। इन्हें उल्का अथवा Shooting Stars कहते हैं। इनके छोटे टुकड़े धरती पर भी गिरते हैं, जिन्हें Meteroits कहते हैं। अमेरिका के ऐरीजोना के मरुस्थल में एक उल्का के गिरने से एक बड़ा क्रेटर बन गया था।

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प्रश्न 13.
पृथ्वी के आकार का नाप करने वाले वैज्ञानिकों के नाम बताएँ।
उत्तर-
सबसे पहले हेवरीज नामक विद्वान् ने धरती की आकृति अर्द्ध-चक्र जैसी बताई। इसके बाद थेलज़ ने पृथ्वी को गोल मेज़ की तरह बताया। ऐंगज़ीलैंडर ने पृथ्वी को बेलनाकार बताया। इसके बाद ईरेटोस्थनीज़ ने पृथ्वी को गोल बताया।

प्रश्न 14.
पृथ्वी की प्रमुख अक्षांश रेखाएँ बताएँ।
उत्तर-

  • भूमध्य रेखा – 0°
  • कर्क रेखा – 23.5° N
  • मकर रेखा – 23.5° S
  • 3706f2afi alghi – 66\(\frac{1}{2}\)° N
  • अंटार्कटिक चक्र – 66\(\frac{1}{2}\) S
  • उतरी धुव – 90° N
  • दक्षिणी – 90°S

प्रश्न 15.
भारत के मानक समय पर एक नोट लिखें ।
उत्तर-
भारत में 82\(\frac{1}{2}\)° पूर्व देशांतर के स्थानीय समय को पूरे भारत में मानक समय माना जाता है। \(\frac{1}{2}\)° देशांतर इलाहाबाद और मिर्जापुर के मध्य से निकलती है।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
सूर्य मण्डल के नौ ग्रहों की सूर्य से दूरी के क्रम और आकार के अनुसार नाम बताएँ।
उत्तर-
सूर्य और नौ ग्रह मिलकर सूर्य मण्डल अथवा सूर्य-परिवार की रचना करते हैं। सूर्य से दूरी के अनुसार ग्रहों के नाम इस प्रकार हैं(i) बुध (ii) शुक्र (iii) पृथ्वी (iv) मंगल (v) बृहस्पति (vi) शनि (vii) अरुण (viii) वरुण। इस प्रकार बुध ग्रह सूर्य से सबसे निकट है और वरुण ग्रह सूर्य से सबसे दूर है।

सूर्य मण्डल के ग्रहों का आकार एक समान नहीं है। सूर्य मण्डल में बृहस्पति सबसे बड़ा ग्रह है और बुध सबसे छोटा ग्रह है। बृहस्पति, शनि, अरुण बड़े ग्रह हैं और बुध, वरुण, मंगल, शुक्र और पृथ्वी छोटे ग्रह हैं। आकार के अनुसार इनका क्रम इस प्रकार है(i) बृहस्पति (i) शनि (iii) अरुण (iv) वरुण (v) पृथ्वी (vi) शुक्र (vii) मंगल (viii) बुध ।

प्रश्न 2.
सूर्य के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
सूर्य, सूर्य मण्डल का सबसे बड़ा सदस्य है। सूर्य एक विशाल जलता हुआ खगोलीय पिंड हैं। इस गर्म पिंड की सतह पर तापमान लगभग 6000°C है। इसका व्यास 14 लाख 93 हज़ार किलोमीटर है। आयतन के अनुसार सूर्य धरती से 13 लाख गुणा बड़ा है। आकार की दृष्टि से सूर्य धरती से 3 लाख 30 हज़ार गुणा बड़ा है। सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण सभी ग्रह इसके इर्द-गिर्द चक्कर लगाते हैं। सूर्य चारों तरफ से गैसों के गोलों से घिरा हुआ है। यह सूर्य मंडल को प्रकाश और गर्मी प्रदान करता है।

प्रश्न 3.
चन्द्रमा (Moon) पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर–
चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है। यह पृथ्वी से लगभग 3 लाख 52 हज़ार किलोमीटर दूर है। पृथ्वी के इर्द-गिर्द एक चक्कर लगाने में इसे 29/2 दिन लगते हैं। इसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी की शक्ति का 1/5 भाग है। चन्द्रमा हवा और पानी से रहित उपग्रह है। यहाँ कम तापमान होने के कारण जीवन संभव नहीं है। चन्द्रमा सूर्य से ताप और प्रकाश ग्रहण करता है। सबसे पहले नील आर्मस्ट्रांग (Neil Armstrong) नाम का अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री 28 जुलाई, 1969 को चन्द्रमा पर उतरा था।

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प्रश्न 4.
पुच्छल तारे और उल्का तारे में अंतर बताएँ।
उत्तर-
पुच्छल तारे और उल्का तारे में अंतर-

पुच्छल तारे (Comets)- उल्का तारे (Meteors)-
1. ये गैसों से बने लम्बी पूंछ वाले तारे होते हैं। 1. ये ठोस खगोलीय पिंड होते हैं, जो पृथ्वी की ओर चलते हुए प्रतीत होते हैं।
2. इन्हें धूमकेतू (Comets) भी कहा जाता है। 2. इन्हें टूटते हुए तारे (shooting stars) भी कहा जाता है।
3. ये सूर्य की आकर्षण शक्ति के साथ पृथ्वी के निकट आते हैं। 3. ये पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण वायुमंडल में प्रवेश करते हैं।
4. इनकी अपनी रोशनी नहीं होती। ये अंडाकार रूप में सूर्य की परिक्रमा करते हैं। 4. ये वायुमंडल की रगड़ से जलने लगते हैं और पृथ्वी पर गिरकर धंस जाते हैं।

 

प्रश्न 5.
पृथ्वी और मंगल ग्रह की तुलना करें।
उत्तर-
पृथ्वी और मंगल ग्रह की तुलना-

पृथ्वी (Earth) – मंगल ग्रह
1. पृथ्वी का व्यास 12736 किलोमीटर है। 1. मंगल ग्रह का व्यास 6,752 किलोमीटर है।
2. पृथ्वी सूर्य से 14 करोड़ 90 लाख किलोमीटर दूर है। 2. मंगल ग्रह सूर्य से 22 करोड़ 27 लाख किलोमीटर दूर है।
3. पृथ्वी अपने ग्रह-पथ पर 23 घंटे 56 मिनटों में एक चक्कर पूरा करती है। 3. मंगल ग्रह अपने ग्रह-पथ पर 24 घंटे 37 . मिनटों में एक चक्कर पूरा करता है।
4. पृथ्वी 365-1/4 दिनों में सूर्य के इर्द-गिर्द एक चक्कर पूरा करती है। 4. मंगल ग्रह सूर्य के इर्द-गिर्द 687 दिनों में एक चक्कर पूरा करता है।
5. पृथ्वी का एक उपग्रह है। 5. मंगल ग्रह के दो उपग्रह हैं।

 

प्रश्न 6.
पृथ्वी को एक भाग्यशाली ग्रह क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है, जिस पर जीवन संभव है। ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैसों के कारण यहाँ मनुष्य और वनस्पति जीवित हैं। पृथ्वी पर सूर्य की रोशनी केवल 81 मिनटों में पहुंच जाती है। पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण मौसम बनते हैं। सूर्य ताप, पवनों और वर्षा को जन्म देता है। चन्द्रमा पृथ्वी का उपग्रह है, जो पृथ्वी पर ज्वारभाटा पैदा करता है। यही कारण हैं कि इसे भाग्यशाली ग्रह कहते हैं।

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प्रश्न 7.
“पृथ्वी गोलनुमा होते हुए भी चपटी नज़र आती है।” कारण बताएँ।।
उत्तर-
आमतौर पर पृथ्वी गोलाकार है। यह एक विशाल गोलनुमा पिंड है। इसका घेरा 40,000 किलोमीटर है। इतने बड़े घेरे वाले गोले में साधारण उभार नज़र नहीं आता है। यह गोलाई छोटे-से क्षेत्र में नाम मात्र ही होती है। इस प्रकार प्रत्येक भाग में पृथ्वी चपटी और सपाट ही प्रतीत होती है। अन्तरिक्ष से ही धरती के रूप का अनुभव होता है।

प्रश्न 8.
अन्तरिक्ष यात्री और महासागरों की परिक्रमा करने वाले यात्रियों के नाम बताएँ और प्रमाण सहित बताएँ कि पृथ्वी गोल है।
उत्तर-
अन्तरिक्ष यात्रियों द्वारा प्रमाण–अन्तरिक्ष यात्रियों ने अन्तरिक्ष और चन्द्रमा से धरती के जो चित्र लिए हैं, उनसे सिद्ध होता है कि पृथ्वी गोलाकार है। ऐसे चित्र यूरी गार्गिन, नील आर्मस्ट्रांग, राकेश शर्मा और कल्पना चावला ने अन्तरिक्ष में लिए थे।

पृथ्वी की परिक्रमा–मैगेलिन (Megallan) और फ्रांसिस ड्रेक नाविकों ने समुद्री जहाज़ के द्वारा पृथ्वी की परिक्रमा करके यह सिद्ध किया कि पृथ्वी गोलाकार है। वे बिना मुड़े उसी स्थान पर पहुँच गए, जहाँ से उन्होंने यात्रा शुरू की थी।

प्रश्न 9.
भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने पर देशान्तर की लम्बाई कम क्यों होती जाती है ?
उत्तर-
पृथ्वी गोलाकार पिन्ड है। भूमध्य रेखा धरती पर सबसे बड़ा अक्षांश चक्र है। ध्रुवों की ओर जाने पर अक्षांश चक्र छोटे होते जाते हैं। ऐसा धरती के गोलाकार होने के कारण है। इनके फलस्वरूप प्रत्येक अक्षांश पर 10 देशान्तर की लम्बाई भी कम होती जाती है। ध्रुवों के निकट देशान्तर के लिए स्थान कम हो जाता है, जिस प्रकार-

  • भूमध्य रेखा पर देशान्तर की लम्बाई = 111 km
  • 45° अक्षांश पर देशान्तर को लम्बाई – 79 km
  • 60° अक्षांश पर देशान्तर की लम्बाई = 55 km
  • 90° अक्षांश पर देशान्तर की लम्बाई = Zero

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प्रश्न 10.
प्रत्येक देशान्तर पर समय का चार मिनट का अन्तर क्यों होता है ?
अथवा
देशांतर और समय में क्या संबंध है ?
उत्तर-
देशान्तर और समय का निकट का सम्बन्ध है। पृथ्वी 24 घण्टों में अपने ध्रुवों के इर्द-गिर्द एक चक्कर पूरा करती है भाव पृथ्वी 360° घूम जाती है। इसलिए 1° देशान्तर घूमने के लिए समय = \(\frac{24 \times 60}{360}\) मिनट = 4 मिनट होता है। यदि दो स्थानों में 1° देशान्तर का अन्तर है, तो उनके स्थानीय समय में 4 मिनट का अन्तर होगा। यदि यह अन्तर 15° हो, तो समय में अन्तर 15 x 4 = 60 मिनट अथवा एक घण्टा होगा।

पृथ्वी के पश्चिम से पूर्व की ओर घूमने की गति के कारण पूर्व की ओर जाने पर समय बढ़ जाता है, परन्तु पश्चिम की ओर जाने से समय कम हो जाता है। इस सम्बन्ध में नीचे लिखे नियमों का प्रयोग किया जाता है
(East-Gain–Add)
(West–Lose—Subtract)

प्रश्न 11.
मानक समय की क्या ज़रूरत है ?
उत्तर-
1. ज़रूरत (Necessity)-

  • अलग-अलग स्थानों पर अलग समय होने के कारण स्थानीय समय का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इससे रोज़ाना के जीवन में अनेक कठिनाइयाँ पैदा हो जाती हैं। प्रत्येक देशान्तर पर हमें घड़ी चार मिनट आगे या पीछे करनी पड़ेगी।
  • प्रत्येक स्थान पर स्थानीय समय के प्रयोग से डाक, तार, रेल आदि विभागों के काम में विघ्न पड़ जाता है।
  • प्रत्येक देश में समय की एकरूपता (Uniformity of Time) कायम करने के लिए मानक समय का होना ज़रूरी है।
  • अलग-अलग देशों के समय के साथ सम्बन्ध रखने के लिए मानक समय का होना जरूरी है।
  • हवाई जहाजों, समुद्री जहाजों पर लम्बी यात्रा और संचार साधनों के लिए प्रामाणिक समय का ज्ञान ज़रूरी है।

2. अक्षांश रेखाओं से किसी स्थान की भूमध्य रेखा से दूरी पता की जा सकती है। 1° देशान्तर में लगभग 111 किलोमीटर की दूरी होती है।
3. अक्षांश रेखाओं की मदद से किसी स्थान के तापमान का अनुमान लगाया जा सकता है।
4. ये रेखाएँ मानचित्र बनाने में भी सहायक होती हैं।

प्रश्न 12.
जब साइबेरिया (रूस) में पहली जनवरी की तिथि होती है, तब अलास्का (संयुक्त राज्य) में 31 दिसम्बर की तिथि होगी। क्यों ?
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा 180° देशान्तर रेखा के साथ-साथ निश्चित की गई एक रेखा है। इस तिथि रेखा को पार करने पर समुद्री जहाज़ समय में एक दिन को कम कर लेते हैं या बढ़ा लेते हैं, ताकि अलगअलग देशों का प्रामाणिक समय अलग-अलग होने के कारण समय में विघ्न न पड़े। साइबेरिया पूर्व में स्थित है और अलास्का पश्चिम में। पूर्व से पश्चिम की ओर जाते हुए यात्री अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा पार करने के बाद एक दिन का अंतर करके अगले दिन को भी वही दिन समझ लेते हैं। इस प्रकार अलास्का में पहली जनवरी के स्थान पर 31 दिसम्बर की तिथि होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 1 पृथ्वी

प्रश्न 13.
समय-कटिबंध पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
कई बड़े देशों का पूर्व-पश्चिम में देशान्तरीय विस्तार अधिक है, जिस प्रकार सोवियत रूस का विस्तार 165° देशान्तर है। इन देशों में कई मानक समयों का प्रयोग किया जाता है। देश के अलग-अलग मानक समयों वाले भागों को समय-कटिबंध (Time Zone) कहते हैं। किसी देश को अलग-अलग क्षेत्रों में बांटा जाता है। प्रत्येक क्षेत्र का अपना मानक समय होता है। एक समय-कटिबंध से दूसरे समय-कटिबंध में प्रवेश करने पर घड़ि दूसरे कटिबंध के समय के अनुसार ठीक करनी पड़ती हैं। प्रत्येक समय-कटिबंध का विस्तार 15° देशान्तर होता है और समय में एक घण्टे का अन्तर होता है। संयुक्त राज्य में 4 समय-कटिबंध, कनाडा में 6 समय-कटिबंध और रूस में 11 समय-कटिबंध हैं। ट्रांस-साईबेरियन रेल मार्ग के यात्रियों को अन्तिम स्टेशन तक पहुँचते-पहुँचते कई बार अपनी घड़ियाँ ठीक करनी पड़ती हैं।

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प्रश्न 14.
देशान्तर और देशान्तर रेखाओं में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
देशान्तर और देशान्तर रेखाओं में अन्तर-

देशान्तर (Longitude)- देशान्तर रेखा (Line of Longitude)-
1. पश्चिम की ओर कोणात्मक दूरी को देशान्तर कहते हैं। 1. देशान्तर रेखाएँ उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों को मिलाती हैं और भूमध्य रेखा को लम्ब रूप में काटती हैं।
2. देशान्तर किसी स्थान की दूरी को प्रकट करता है। 2. देशान्तर रेखाएँ किसी स्थान का देशान्तर प्रकट करती हैं।
3. देशान्तर को रेखांश (Parallels) भी कहा जाता है। 3. इन्हें मध्याह्न रेखाएँ (Meridians) भी कहा जाता है।
4. देशान्तर 180° पूर्व और 180° पश्चिम तक होता है। 4. देशान्तर रेखाएँ उत्तर-दक्षिण दिशा में खींची जाती हैं।
5. ग्रीनविच का देशान्तर शून्य माना गया है। 5. देशान्तर रेखाएँ समान लम्बाई वाली होती हैं।

प्रश्न 15.
स्थानीय समय और प्रामाणिक समय में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
स्थानीय समय और प्रामाणिक समय में अन्तर-

मानक समय (Standard Time) स्थानीय समय (Local time)
1. स्थानीय समय प्रत्येक स्थान के देशान्तर के अनुसार होता है। 1. मानक समय किसी देश के केंद्रीय देशान्तर के अनुसार होता है।
2. प्रत्येक स्थान पर स्थानीय समय अलग-अलग होता है। 2. सभी स्थानों पर मानक समय एक समान होता है।
3. जब किसी देशान्तर पर दोपहर को सूर्य लम्ब रूप में हो, तब 12 बजे का समय होता है। 3. मानक समय का दोपहर के समय सूर्य की स्थिति से कोई सम्बन्ध नहीं होता।
4. एक देशान्तर पर सभी स्थानों का समय एक होता है। 4. किसी देश के सभी स्थानों पर मानक समय एक होता है।
5. 1° देशान्तर पर समय में चार मिनट का अन्तर होता है। 5. मानक समय में कोई परिवर्तन नहीं होता।

 

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प्रश्न 16.
दिन-रात किस प्रकार बनते हैं ? चित्र द्वारा समझाएँ।
उत्तर-
धरती की दैनिक गति के कारण दिन और रात बनते हैं। धरती अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है। गोलाकार होने के कारण धरती का आधा भाग सूर्य के सामने प्रकाश में रहता है और वहाँ दिन
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 1 पृथ्वी 17
होता है। बाकी आधा भाग सूर्य से परे अन्धकार में रहता है और वहाँ रात होती है। प्रत्येक भाग क्रम से सूर्य के सामने आता है और दूसरा अन्धकार में चला जाता है। इस प्रकार दिन और रात बनते हैं।

प्रश्न 17.
दिन और रात छोटे-बड़े होने का क्या कारण है ?
उत्तर-
गरमी के मौसम में दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं, जबकि सर्दी के मौसम में दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं। इसके नीचे लिखे कारण हैं-

  • पृथ्वी की वार्षिक गति-परिक्रमा के कारण छह महीने के लिए उत्तरी गोलार्द्ध सूर्य की ओर झुका होता है और वहाँ दिन बड़े होते हैं और रातें छोटी होती हैं, परंतु दूसरे छह महीने दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है। इसलिए उत्तरी गोलार्द्ध में रातें छोटी और दिन बड़े होते हैं।
  • धुरी का झुका होना-पृथ्वी की धुरी ग्रह-पथ पर 66/2° के कोण पर झुकी हुई है, इसलिए प्रत्येक अक्षांश पर दिन-रात समान नहीं होते।

प्रश्न 18.
नॉर्वे को ‘आधी रात के सूर्य का देश’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
नॉर्वे उत्तरी ध्रुवीय चक्र (66/2° अक्षांश) के उत्तर में स्थित है। गर्मी की ऋतु में उत्तरी ध्रुवीय चक्र से उत्तर के प्रदेशों में दिन की लम्बाई 24 घण्टे से अधिक होती है। यह प्रदेश सूर्य की ओर झुके होने के कारण छह महीनों तक लगातार प्रकाश में होता है। यहाँ सूर्य लगातार क्षितिज के ऊपर ही रहता है और उस समय भी दिखाई देता है, जब बाकी के भागों में घड़ी के अनुसार आधी रात का समय होता है। इसीलिए नॉर्वे को आधी रात के सूर्य का देश (Land of midnight sun) भी कहा जाता है।

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प्रश्न 19.
दैनिक गति और वार्षिक गति में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
दैनिक गति और वार्षिक गति में अन्तर-

दैनिक गति (Rotation) – दैनिक गति (Rotation) –
1. जब पृथ्वी अपनी धुरी पर लटू के समान घूमती है, तो इसे दैनिक गति कहते हैं। 1. जब पृथ्वी अपनी धुरी पर लटू के समान घूमती है, तो इसे दैनिक गति कहते हैं।
2. दैनिक गति में एक चक्कर पूरा करने में 23 घण्टे 56 मिनट 4 सैकिंड का समय लगता है। 2. दैनिक गति में एक चक्कर पूरा करने में 23 घण्टे 56 मिनट 4 सैकिंड का समय लगता है।
3. पृथ्वी धुरी पर पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है। 3. पृथ्वी धुरी पर पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमती है।

 

प्रश्न 20.
कर्क संक्रांति और मकर संक्रांति में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
कर्क संक्रांति और मकर संक्रांति में अन्तर-

कर्क संक्रांति (Summer Solstice) मकर संक्रांति (Winter Solstice)
1. परिक्रमा के समय 21 जून को पृथ्वी की अवस्था को मकर संक्रांति कहते हैं। 1. परिक्रमा के समय 22 दिसम्बर को पृथ्वी की अवस्था को कर्क संक्रांति कहते हैं।
2. इस अवस्था में उत्तरी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है और सूर्य मकर रेखा पर लम्ब रूप में चमकता है। 2. इस अवस्था में दक्षिणी ध्रुव सूर्य की ओर झुका होता है और सूर्य कर्क रेखा पर लम्ब रूप में चमकता है।
3. उत्तरी गोलार्द्ध में दिन बड़े होते हैं और गर्मी की ऋतु होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन छोटे हैं और सर्दी की ऋतु होती है। 3. उत्तरी गोलार्द्ध में दिन छोटे होते हैं और सर्दी की ऋतु होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में दिन बड़े और गर्मी की ऋतु होती है।
4. यह अवस्था 22 दिसम्बर की अवस्था के विपरीत होती है। 4. यह अवस्था 21 जून की अवस्था के विपरीत होती है।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी के विस्तार का नाप किस प्रकार किया गया है ?
उत्तर-
पृथ्वी का विस्तार (Size of the Earth)—पृथ्वी का आकार गोलनुमा (Spheroid) है। प्राचीन काल में पृथ्वी को चपटा माना जाता था। जब प्राचीन नक्षत्र वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के गोलाकार होने के प्रमाण दिए, तब पृथ्वी के विस्तार की जानकारी प्राप्त करने के प्रयत्न किए गए।

सबसे पहले सन् 200B.C. में एक यूनानी नक्षत्र वैज्ञानिक ईरेटोस्थनीज़ (Eratosthenes) ने पृथ्वी के विस्तार को मापने का प्रयत्न किया। उसने 21 जून के दिन नील नदी पर स्थित साइन (Syene) शहर (इस समय आसवान शहर) में दोपहर के समय सूर्य की किरणें एक कुएं के पानी पर लम्ब रूप में पड़ती हुई देखीं। उसने अनुमान लगाया कि वहां सूर्य की ऊँचाई 90° है।

अगले वर्ष 21 जून को अल्गज़ानद्रिया शहर में सूर्य की किरणों की ऊँचाई देखी। यह ऊँचाई लम्ब रूप में नहीं थी। यह ऊँचाई साइन शहर में मापी गई ऊँचाई से 7.2° कम थी। साइन शहर और अल्गजानद्रिया शहर के बीच की दूरी 5000 स्टेडिया थी, जो कि 925 किलोमीटर के बराबर है। इस प्रकार पृथ्वी को गोलाकार और इसके केंद्र में चक्र के समान 360° के कोण को मान कर पृथ्वी का घेरा निकालने का प्रयत्न किया गया।
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इस तरह वर्तमान काल में पृथ्वी का मापा गया घेरा, व्यास आदि और ईरेटोस्थनीज़ द्वारा किए गए माप में बहुत अन्तर नहीं है।

प्रश्न 2.
अक्षांश और देशान्तर रेखाओं से क्या तात्पर्य है ? उनकी प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
अक्षांश रेखाएँ (Lines of Latitude)-अक्षांश रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं, जो बराबर अक्षांश वाले स्थानों को मिलाती हैं। ये रेखाएँ भूमध्य रेखा के समानांतर होती हैं और गोल-चक्र होती हैं। ये रेखाएँ पूर्वपश्चिमी दिशा में खींची जाती हैं। भूमध्य रेखा पृथ्वी को दो बराबर भागों में बाँटती हैं। भूमध्य रेखा सबसे बड़ा अक्षांश चक्र है। पृथ्वी की गोलाई के कारण अक्षांश रेखाओं की लम्बाई ध्रुवों की ओर लगातार कम होती जाती है। ध्रुव केवल बिन्दु मात्र ही रह जाते हैं। अक्षांश रेखाओं की कुल गिनती 180 होती है- 90° उत्तर और 90° दक्षिण प्रमुख अक्षांश रेखाएँ नीचे लिखी हैं-

(i) भूमध्य रेखा–0° अक्षांश
(ii) कर्क रेखा-237° उत्तर
(iii) मकर रेखा-23/2° दक्षिण
(iv) उत्तरी ध्रुव चक्र-66/2° उत्तर
(v) दक्षिणी ध्रुव चक्र-66/2° दक्षिण
(vi) उत्तरी ध्रुव-90° उत्तर
(vii) दक्षिणी ध्रुव-90° दक्षिण।

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देशान्तर रेखाएँ (Lines of Longitude)—देशान्तर रेखाएँ वे कल्पित रेखाएँ हैं, जो समान देशान्तर वाले स्थानों को मिलाती हैं। ये रेखाएँ उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव को मिलाती हुई भूमध्य रेखा को समकोण पर काटती हैं। ये अर्धचक्र के समान होती हैं। ये रेखाएँ उत्तर-दक्षिण दिशा में खींची जाती हैं। इनकी कुल संख्या 360 होती है–180° पूर्व और 180° पश्चिम। सभी देशान्तर रेखाओं की लंबाई समान होती है। इन रेखाओं को मध्याह्न रेखाएँ (Meridian) भी कहा जाता है। लंदन के निकट ग्रीनविच में से निकलने वाली देशांतर रेखा को प्रधान मध्याह्न रेखा (Prime Meridian) कहते हैं। इसे शून्य (0°) देशान्तर कहते हैं। यह रेखा धरती को दो बराबर भागों में पूर्वी गोलार्द्ध और पश्चिमी गोलार्द्ध में बाँटती है। सभी देशान्तर रेखाएँ ध्रुवों पर मिलती हैं। 180° पूर्व और 180° पश्चिम देशान्तर एक ही रेखा है, जिसे अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा भी कहते हैं।

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प्रश्न 3.
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा की स्थिति और महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा (International Date Line)-180° देशान्तर रेखा के साथ-साथ खींची गई रेखा को अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं, जिसको पार करने पर तिथि में एक दिन का अंतर कर दिया जाता है।

ज़रूरत (Necessity)—पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए 180° देशान्तर रेखा तक पहुँचने के समय में एक दिन का अन्तर आ जाता है। समुद्री यात्रा करते हुए नाविकों को आम तौर पर एक दिन की भूल हो जाती थी। इस भूल को दूर करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा निश्चित की गई।

प्रत्येक देशान्तर के समय में 4 मिनट का अन्तर आ जाता है। यदि किसी दिन ग्रीनविच (0° देशांतर रेखा) पर रात के 12 बजे हों और हम पूर्व की ओर से 180° देशांतर रेखा पर पहुँचें, तो वहाँ अगले दिन के दोपहर के 12 बजे का समय होगा। यदि ग्रीनविच से पश्चिम की ओर चलते हुए 180° पश्चिम देशान्तर रेखा पर पहुँचें तो वहाँ उसी दिन दोपहर के 12 बजे होंगे। इस प्रकार 180° देशान्तर रेखा पर दो तिथियाँ आ जाती हैं। यदि इसके पूर्व में पहली जनवरी है तो पश्चिम में 31 दिसंबर होगी। .

उदाहरण-जब सन् 1522 में मैगेलन (Magellan) समुद्रीमार्ग से पूरे विश्व का चक्कर लगाकर स्पेन वापस पहुँचा, तो उसने उस दिन को 5 सितम्बर समझ लिया, जबकि वास्तव में उस दिन 6 सितंबर तिथि थी। पश्चिम की ओर से यात्रा करने के कारण उसने 1 दिन का समय गँवा दिया और यह भूल हुई थी।

तिथि परिवर्तन का नियम-

1. पूर्व (जापान) से पश्चिम (संयुक्त राज्य अमेरिका) जाते हुए यात्री इस रेखा को पार करते समय अपनी तिथि से एक दिन कम कर देता है। वह अगले दिन को भी वही दिन समझेगा, जिस दिन वह तिथि- रेखा को पार करता है। इस प्रकार उसका सप्ताह 8 दिन का हो जाता है।

2. पश्चिम (संयुक्त राज्य अमेरिका) से पूर्व (जापान) जाते हुए यात्री अपनी तिथि में एक दिन जोड़ लेता है। उसके लिए अगला दिन एक दिन छोड़ के होगा। इस प्रकार उसका सप्ताह 6 दिन का ४६ हो जाता है।

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अन्तर्राष्ट्रीय तिथि-रेखा की स्थिति-यह रेखा लगभग 180° देशांतर रेखा के साथ-साथ स्थित है। प्रशान्त महासागर में अनेक द्वीप (Island) हैं, जिनके मध्य से 180° देशांतर रेखा निकलती है। कुछ मुश्किलों से बचने के लिए इसे टेढ़ी माना गया है। इस रेखा को सीधी न रख कर कहीं-कहीं टेढ़ा किया गया है, ताकि एक ही टापू के मध्य से न निकले। इस प्रकार एक ही द्वीप के दो भागों में दो अलग-अलग तिथियाँ न हो जाएँ। उत्तरी भाग में यह अल्यूशियन द्वीप के पश्चिम में मुड़ जाती है, जबकि दक्षिणी भाग में यह रेखा फ़िज़ी द्वीप (Fiji Island) के पूर्व की ओर मुड़ जाती है।

प्रश्न 4.
स्थानीय समय और मानक समय किसे कहते हैं ? मानक समय की ज़रूरत का वर्णन करें।
उत्तर-
स्थानीय समय (Local Time) किसी स्थान पर या देशान्तर पर दोपहर के समय सूर्य की स्थिति के अनुसार निश्चित समय को स्थानीय समय कहा जाता है। (Local time of a place is the time of its own Meridian) जब सूर्य लम्ब रूप में हो अथवा उसकी ऊँचाई अधिक-से-अधिक हो, तो वहाँ दोपहर के 12 बजे का समय होता है। उस स्थान की घड़ियाँ उस समय के अनुसार चलाई जाती हैं। इस प्रकार स्थानीय समय दोपहर के सूर्य की ऊँचाई की सहायता से निश्चित किया गया किसी देशान्तर विशेष का समय होता है।

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. पृथ्वी के घूमने के कारण प्रत्येक देशान्तर क्रम से सूर्य के सामने आता है। इसीलिए प्रत्येक देशांतर के दोपहर का समय अथवा स्थानीय समय अलग-अलग होता है।
  2. एक ही देशान्तर पर स्थित सभी स्थानों का स्थानीय समय एक होता है, क्योंकि ये सभी स्थान एक साथ सूर्य के सामने आते हैं।
  3. स्थानीय समय सूर्य की स्थिति पर निर्भर करता है।
  4. यह समय मापने का एक प्राचीन ढंग है, जब दिन के समय धूप-घड़ी (Sun dial) की सहायता से समय को मापा जाता था।
  5. एक ही देश में अलग-अलग शहरों में अलग-अलग स्थानीय समय मिलता है, जैसे बंबई (मुंबई), कोलकाता और दिल्ली अलग-अलग देशान्तरों में स्थित हैं और उनका स्थानीय समय भी अलग-अलग है।
  6. प्रधान मध्याह्न रेखा से पूर्व की ओर जाने पर समय बढ़ता है और पश्चिम की ओर जाने पर समय कम होता है। समय का अंतर 4 मिनट प्रति देशान्तर होता है।

मानक समय (Standard Time)–जब किसी देश के मध्यवर्ती स्थान अथवा केन्द्रीय देशांतर के स्थानीय समय को समूचे देश में लागू कर दिया जाता है, तब उसे प्रामाणिक समय कहा जाता है। यह समय किसी देश के सभी स्थानों पर एक ही होता है।

उदाहरण-भारत में 8272% पूर्व देशांतर केन्द्रीय और मानक देशान्तर रेखा है, इसलिए 8212 पूर्व देशान्तः रेखा का स्थानीय समय भारतीय मानक समय (Indian Standard Time) माना जाता है। यह देशांतर रेखा इलाहाबाः शहर के निकट से निकलती है। इंग्लैण्ड में ग्रीनविच शहर के स्थानीय समय को सारे देश का मानक समय मा जाता है और इसे G.M.T. कहा जाता है। भारतीय मानक समय I.S.T. ग्रीनविच के समय से 5\(\frac{1}{2}\) घं आगे है।

ज़रूरत (Necessity)

  • अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग समय होने के कारण स्थानीय समय का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसमें रोज़ाना के जीवन में कई मुश्किलें पैदा हो जाती हैं। प्रत्येक देशान्तर पर हमें घड़ी चार मिनट आगे या पीछे करनी पड़ेगी।
  • प्रत्येक स्थान के स्थानीय समय के प्रयोग से डाक, तार, रेल आदि विभागों के काम में विघ्न पैदा हो जाता है।
  • प्रत्येक देश में समय की एकरूपता (Uniformity of Time) कायम करने के लिए मानक समय जरूर होता है।
  • अलग-अलग देशों के समय के साथ सम्बन्ध रखने के लिए मानक समय ज़रूरी है।
  • हवाई जहाजों, समुद्री जहाज़ों के लंबे सफर और संचार साधनों के लिए मानक समय का ज्ञान ज़रूरी है।

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स्थानीय समय जानना (To find out the Local Time)

प्रश्न 1.
इलाहाबाद (82\(\frac{1}{2}\) °E) में स्थानीय समय क्या होगा, जबकि ग्रीनविच में शाम के चार बजे हों ?
उत्तर-
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1. देशान्तर में अन्तर (Difference in Longititude)
82″E इलाहाबाद का देशांतर = 82 \(\frac{1}{2}\) E
ग्रीनविच का देशांतर = 0°
अन्तर = 82\(\frac{1}{2}\)°
= \(\frac{165°}{2}\)
(East-Gain-Add)

2. समय में अन्तर (Difference in Time)
यदि देशान्तर में अंतर 1° है तो समय में अन्तर = 4 मिनट
यदि देशान्तर में अंतर \(\frac{165°}{2}\) है तो समय में अन्तर = \(\frac{165 \times 4}{2}\) = 30 मिनट।
= 5 घंटे 30 मिनट।

3. इलाहाबाद का समय निकालना
ग्रीनविच का समय = 4.00 P.M. घंटे मिनट
= 4.00 + 12.00 = 16.00
समय में अन्तर = Add + 5.30
21.30 भाव शाम के 9.30 बजे।

कारण-क्योंकि इलाहाबाद ग्रीनविच के पूर्व में स्थित है, इसलिए वहाँ स्थानीय समय अधिक होगा। इसलिए नियम अनुसार जोड़ करना पड़ेगा।

(Rule-East-sgain-Add)

प्रश्न 2.
न्यूयॉर्क (75°W) में स्थानीय समय क्या होगा जबकि काहिरा (30°E) में दोपहर के 12 बजे हों ?
उत्तर-
न्यूयॉर्क का देशान्तर = 75°W
काहिरा का देशान्तर = 30°E
देशांतर में अन्तर = 75° + 30° = 105°
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 1 पृथ्वी 22
समय में अन्तर 105 x 4 = 420 मिनट
= 7 घंटे।
(क्योंकि न्यूयॉर्क ग्रीनविच के पश्चिम में स्थित है, इसलिए समय में अन्तर को कम करेगा।)
(Ruie = West – Loss – Subtract)
घंटे मिनट
काहिरा का समय = 12.00
समय में अन्तर = – 7.00
न्यूयॉर्क में स्थानीय समय = 5.00 A.M.

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र का दूसरे सामाजिक विज्ञानों, इतिहास, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र और नीतिशास्त्र के साथ सम्बन्ध बताएं। (Textual Question)
(Explain the relationship of Political Science with other Social Sciences i.e. History, Economics, Sociology and Ethics.)
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य तथा राज्य के अन्दर रहने वाले नागरिक हैं। मनुष्य के जीवन के अनेक पहलू हैं-राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक इत्यादि। इन सब पहलुओं का अध्ययन अनेक शास्त्र करते हैं। जैसे-राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र, मनोविज्ञान इत्यादि। परन्तु मनुष्य की आर्थिक अवस्था का उसकी राजनीतिक अवस्था पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार धर्म का राजनीति पर प्रभाव पड़ता है अर्थात् व्यक्ति की विभिन्न अवस्थाओं का एक-दूसरे से घनिष्ठ सम्बन्ध है। अतः राजनीतिशास्त्र का, जो मानव जीवन से सम्बन्धित है तथा समाजशास्त्र है, अन्य समाजशास्त्रों से सम्बन्ध होना स्वाभाविक है। डॉ० गार्नर के अनुसार, “सम्बन्धित विज्ञानों के बिना राजनीतिशास्त्र को समझना उतना ही कठिन है, जितना रसायन विज्ञान (Chemistry) के बिना जीव विज्ञान (Biology) को समझना या गणित (Mathematics) के बगैर यन्त्र विज्ञान (Mechanics) को।” राजनीति शास्त्र का समाज शास्त्र, इतिहास, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान इत्यादि शास्त्रों से गहरा सम्बन्ध है। एक लेखक के शब्दों में-“ये सब शास्त्र एक फूल की पंखुड़ियों (Petals of flower) के समान हैं।”

राजनीति विज्ञान तथा इतिहास में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। सीले (Seeley) ने इन दोनों में सम्बन्ध बताते हुए लिखा है, “बिना राजनीति विज्ञान के इतिहास का कोई फल नहीं। बिना इतिहास के राजनीति विज्ञान की कोई जड़ नहीं।”

बर्गेस (Burgess) ने दोनों के सम्बन्ध के बारे में लिखा है, “इन दोनों को अलग कर दो उनमें से एक यदि मृत नहीं तो पंगु अवश्य हो जाएगा और दूसरा केवल आकाश-पुष्प बनकर रह जाएगा।” (“Separate them and the one becomes a cripple, if not a corpse, the other a will of the wisp.”) फ्रीमैन (Freeman) के अनुसार, “इतिहास भूतकालीन राजनीति है और राजनीति वर्तमान इतिहास है।” (“History is nothing but past politics and politics is nothing but present History.”) इन विद्वानों के कथन से राजनीति तथा इतिहास में घनिष्ठ सम्बन्ध का पता लगता है।

इतिहास की राजनीति विज्ञान को देन (Contribution of History to Political Science)—इतिहास से हमें बीती हुई घटनाओं का ज्ञान होता है। राजनीति विज्ञान में हम राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करते हैं। राजनीति विज्ञान में राज्य तथा अन्य संस्थाओं के अतीत के अध्ययन के लिए हमें इतिहास पर निर्भर करना पड़ता है। राजनीतिक संस्थाओं को समझने के लिए, उनके अतीत को जानना आवश्यक होता है और इतिहास से ही उनके अतीत को जाना जा सकता है। यदि हम इंग्लैंड की संसद् तथा राजतन्त्र का वर्तमान स्वरूप जानना चाहते हैं तो हमें वहां के इतिहास का गहरा अध्ययन करना पड़ेगा। राजनीति विज्ञान की प्रयोगशाला अथवा पथ-प्रदर्शक इतिहास है। मानवीय इतिहास के विभिन्न समयों पर राजनीति क्षेत्र में अनेक कार्य किए गए, जिनके परिणाम और सफलता-असफलता का वर्णन इतिहास से प्राप्त होता है। राजनीति क्षेत्र के ये भूतकालीन कार्य एक प्रयोग के समान ही होते हैं और ये भूतकालीन प्रयोग भविष्य के लिए मार्ग बतलाने का कार्य करते हैं। भारत के इतिहास से पता चलता है कि वही शासक सफल रहेगा जो धर्म-निरपेक्ष हो। धार्मिक सहिष्णुता की नीति के आधार पर अकबर ने विशाल साम्राज्य की स्थापना की जबकि औरंगज़ेब की धर्मान्ध नीति के कारण मुग़ल साम्राज्य का पतन हो गया। इतिहास के ज्ञान का पूरा लाभ उठाते हुए संविधान निर्माताओं ने भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाया। भारत आजकल धर्म-निरपेक्ष नीति को अपनाए हुए है। अतः राजनीति विज्ञान के अध्ययन का आधार इतिहास है।

इतिहास राजनीति विज्ञान का शिक्षक है। इतिहास मनुष्य की सफलताओं एवं विफलताओं का संग्रह है। अतीत में मानव ने क्या-क्या भूलें कीं, किस नीति को अपनाने से अच्छा और बुरा परिणाम निकला आदि बातों का ज्ञानदाता इतिहास ही है। भारतीय इतिहास में अकबर की सफलता और औरंगज़ेब की विफलता हमें राजनीतिक शिक्षा देती है। इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय और फ्रांस के लुई चौदहवें के निरंकुश राजतन्त्र हमें यह पाठ पढ़ाते हैं कि निरंकुश राज्य अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। इतिहास द्वारा बतलाई गई भूलों के आधार पर ही राजनीतिज्ञ भविष्य में त्रुटियों में संशोधन लाते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

कोई भी राजनीतिक संस्था अकस्मात् पैदा नहीं होती। उसका वर्तमान रूप शनैः-शनैः होने वाले क्रमिक विकास का फल है। किसी समय किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए संस्था का जन्म होता है और समयानुसार उसमें परिवर्तन भी आते रहते हैं और कई बार यह संस्था नया रूप भी धारण कर लेती है। इस पृष्ठभूमि में यह आवश्यक है कि राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन पर्यवेक्षण (Observation) विधि के द्वारा किया जाए जिसके लिए इतिहास का सहारा लेना अनिवार्य है। यह कहना उचित ही है कि इतिहास की उपेक्षा करने से राजनीति शास्त्र का अध्ययन केवल काल्पनिक और सैद्धान्तिक ही होगा। ऐसे अध्ययन का दोष बताते हुए लॉस्की (Laski) कहता है, “हर प्रकार के काल्पनिक राजनीति शास्त्र का परास्त होना अनिवार्य ही है क्योंकि मनुष्य कभी भी ऐतिहासिक प्रभावों से उन्मुक्त नहीं हो सकते।” विलोबी (Willoughby) के शब्दों में “इतिहास राजनीति शास्त्र को तीसरी दिशा प्रदान करता है।” (“History gives the third dimension to Political Science …………”)

इतिहास को राजनीति शास्त्र की देन (Contribution of Political Science to History)—परन्तु इतिहास का ही राजनीति शास्त्र पर प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इतिहास भी राजनीति शास्त्र के अध्ययन से बहुत कुछ हासिल करता है। आज की राजनीति कल का इतिहास है। इतिहास में केवल युद्ध, विजयों तथा अन्य घटनाओं का ही वर्णन नहीं आता बल्कि इसमें सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक घटनाओं का भी वर्णन आता है। यदि इतिहास की घटनाओं से राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो इतिहास केवल घटनाओं का संग्रह रह जाता है। राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, व्यक्तिवाद आदि धाराओं की चर्चा के बिना 17वीं शताब्दी का इतिहास अपूर्ण है। भारत के 20वीं शताब्दी के इतिहास से यदि कांग्रेस पार्टी का महत्त्व, असहयोग आन्दोलन, स्वराज्य पार्टी, भारत छोड़ो आन्दोलन, क्रिप्स योजना, केबिनेट मिशन योजना, भारत का विभाजन, चीन का भारत पर आक्रमण तथा पाकिस्तान के आक्रमण आदि राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो भारत का इतिहास महत्त्वहीन रह जाएगा। लॉर्ड एक्टन ने राजनीति शास्त्र तथा इतिहास में गहरा सम्बन्ध बताते हुए लिखा है, “राजनीति इतिहास की धारा में उसी प्रकार इकट्ठी हो जाती है जैसे नदी की रेत में सोने के कण।”

राजनीति की इतिहास को एक महत्त्वपूर्ण देन यह है कि राजनीतिक विचारधाराएं ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म देती हैं। रूसो और मॉण्टेस्क्यू के विचारों का फ्रांस की राज्यक्रान्ति पर, कार्ल मार्क्स के विचारों का सोवियत रूस की राज्यक्रान्ति पर तथा महात्मा गांधी के विचारों का भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन पर निर्णायक प्रभाव पड़ा।

दोनों में अन्तर (Differences between the two)-राजनीतिक विकास तथा इतिहास में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में अन्तर है।

1. इतिहास का क्षेत्र राजनीतिक विज्ञान से व्यापक है (Scope of History is wider than the scope of Political Science)-फ्रीमैन के कथन से समहत होना कठिन है क्योंकि पूर्ण भूतकालीन इतिहास राजनीति नहीं है और वर्तमान राजनीति कल का इतिहास नहीं है। इतिहास में प्रत्येक घटना का वर्णन किया जाता है। इसका क्षेत्र व्यापक है। जब हम 19वीं शताब्दी का इतिहास पढ़ते हैं तो इसमें उस समय की सभी घटनाओं, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक का वर्णन आ जाता है, परन्तु राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध केवल राजनीतिक घटनाओं से होता है।

2. राजनीति विज्ञान भूत, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित है, जबकि इतिहास केवल भूतकाल से सम्बन्धित है-राजनीति शास्त्र में राजनीतिक संस्थाओं के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन किया जाता है। राज्य कैसा था, कैसा है और कैसा होना चाहिए, इन तीनों का उत्तर राजनीति शास्त्र से मिलता है, परन्तु इतिहास में केवल बीती घटनाओं का ही वर्णन आता है।

3. इतिहास वर्णनात्मक है जबकि राजनीति विज्ञान विचारशील है- इतिहास में केवल घटनाओं का वर्णन किया जाता है जबकि राजनीति शास्त्र में इन घटनाओं का मूल्यांकन भी किया जाता है और इस मूल्यांकन के आधार पर निश्चित परिणाम निकाले जाते हैं। इस प्रकार इतिहास वर्णनात्मक है परन्तु राजनीति शास्त्र विचारात्मक भी है।

4. इतिहासकार नैतिक निर्णय नहीं देता, परन्तु राजनीति विज्ञान के विद्वानों के लिए नैतिक निर्णय देना आवश्यक है-इतिहासकार केवल बीती हुई घटनाओं का वर्णन करता है। वह घटनाओं की नैतिकता के आधार पर परख करके कोई निर्णय नहीं देता है। उदाहरण के लिए, दिसम्बर 1971 में भारत का पाकिस्तान से युद्ध हुआ। इतिहासकार का कार्य केवल युद्ध की घटनाओं का वर्णन करना है। इतिहासकार का इस बात के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है कि युद्धबन्दियों के साथ कैसा व्यवहार किया गया, असैनिक आबादी पर बम बरसाए गए तो कोई अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हुआ है या नहीं। परन्तु राजनीति विज्ञान का विद्वान् युद्ध के नैतिक पहलू पर अपना निर्णय अवश्य देगा।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति विज्ञान तथा इतिहास में अन्तर होते हुए भी घनिष्ठ सम्बन्ध है और इस विचार को सब विद्वान् मान्यता प्रदान करते हैं। गार्नर (Garmer) के शब्दों में, ‘अध्ययन विषय के तौर पर यह एक-दूसरे के सहायक व पूरक हैं।’

सीले (Seeley) ने इन दोनों को पूरक सिद्ध करने के लिए कहा है, “इतिहास के उदार प्रभाव के बिना राजनीति अशिष्ट है और राजनीति से अपने सम्बन्ध को भुला देने से इतिहास साहित्य मात्र रह जाता है।”

राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है। प्राचीन काल में अर्थशास्त्र ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ (Political Economy) के नाम से प्रसिद्ध था। विद्वानों ने ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ की परिभाषा इस प्रकार की है-“यह राज्य के लिए राजस्व (Revenue) जुटाने की एक कला है।” भारतीय विद्वान् चाणक्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में राजनीतिक समस्याओं का वर्णन किया । इसी प्रकार राजनीति विज्ञान के कई मान्य ग्रन्थों जैसे अरस्तु की ‘Politics’ तथा लॉक की ‘नागरिक प्रशासन पर दो लेख’ (Two Treatises on Civil Government) में उन विषयों का विवेचन मिलता है, जिन्हें आजकल अर्थशास्त्र में शामिल किया जाता है। इस प्रकार प्राचीन काल में दो शास्त्रों को एक माना जाता था, परन्तु 19वीं शताब्दी में एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप को अनुचित बताया। एडम स्मिथ पहला विद्वान् था जिसने अर्थशास्त्र को राजनीति शास्त्र से अलग किया। 20वीं शताब्दी के अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को एक स्वतन्त्र सामाजिक विषय सिद्ध करने का प्रयत्न किया। अर्थशास्त्र का सम्बन्ध सम्पत्ति के उत्पादन, उपभोग, वितरण तथा विनिमय सम्बन्धी मनुष्य की गतिविधियों से है।

यह ठीक है कि 20वीं शताब्दी के अर्थशास्त्र को एक स्वतन्त्र विज्ञान माना गया है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में कोई सम्बन्ध नहीं। अब भी दोनों शास्त्रों में घनिष्ठ सम्बन्ध है और आपस में आदानप्रदान करते हैं।

अर्थशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन (Contribution of Economics to Political Science)-वर्तमान युग में मनुष्य तथा राज्य की मुख्य समस्याएं आर्थिक हैं। इतिहास से पता चलता है कि आर्थिक समस्याएं मनुष्य की राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक संस्थाओं का उदय व विकास आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम है। जब मनुष्य आखेट अवस्था में से गुज़र रहा था अर्थात् जब मनुष्य का पेशा शिकार करना था तब राज्य के उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं होता था क्योंकि उस समय मनुष्य एक स्थान पर नहीं रहता था। जब मनुष्य ने कृषि करना आरम्भ किया, इसके साथ ही मनुष्य को एक निश्चित स्थान पर रहना पड़ा, जिससे राज्य की उत्पत्ति हुई। पहले सरकार पर बड़ेबड़े ज़मींदारों का प्रभाव होता था, परन्तु यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् सरकार पर उद्योगपतियों का प्रभाव हो गया है। आजकल हमारे देश में भी उद्योगपतियों का ही अधिक प्रभाव है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

व्यक्तिवाद, समाजवाद तथा साम्यवाद मुख्यतः आर्थिक सिद्धान्त हैं परन्तु इनका अध्ययन राजनीतिशास्त्र में भी किया जाता है क्योंकि इन आर्थिक सिद्धान्तों ने राज्य के ढांचे को ही बदल दिया है। चीन में साम्यवाद है। उत्पादन के साधनों पर सरकार का पूर्ण नियन्त्रण है। सरकार की समस्त शक्तियां कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) के हाथ में ही हैं। अमेरिका में पूंजीवाद है, जिसके कारण वहां की सरकार संगठन तथा सरकार के उद्देश्य चीन की सरकार से भिन्न हैं। अतः आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन आने पर राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के अनुसार, उत्पादन के साधनों में परिवर्तन होने पर राजनीतिक परिवर्तन होना अनिवार्य है। कार्ल मार्क्स का यह कथन सर्वथा सत्य तो नहीं है परन्तु इतना अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा कि आर्थिक परिवर्तन ही राजनीतिक परिवर्तन का मुख्य कारण भी होता है।

राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियां मुख्यतः आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम होती हैं। 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड और यूरोप के अन्य देशों में जो औद्योगिक क्रान्तियां हुई हैं उनके परिणामस्वरूप ही यूरोप के इन देशों में उपनिवेशवाद और समाजवाद की नीति अपनाई। इस सम्बन्ध में बिस्मार्क और जोज़फ चैम्बरलेन के कथन महत्त्वपूर्ण हैं। बिस्मार्क का कथन था, “मुझे यूरोप के बाहर नए राज्यों की नहीं, बल्कि व्यापारिक केन्द्रों की आवश्यकता है।” (“I want outside Europe…not provinces but commerical enterprises.”)

राजनीतिक क्षेत्र की अनेक मत्त्वपूर्ण घटनाएं आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप ही घटित हुई हैं। भारत में आज लोकतन्त्र को इतनी सफलता नहीं मिली जितनी कि अमेरिका तथा इंग्लैंड में प्राप्त हुई है। भारत में सफलता न मिलने का मुख्य कारण लोगों की आर्थिक दशा है। भारत की अधिकांश जनता ग़रीब है, अधिकारों तथा कर्तव्यों का स्वतन्त्रतापूर्वक प्रयोग नहीं कर पाती। लोगों के वोट खरीद लिए जाते हैं। दूसरे विश्व-युद्ध के पश्चात् बहुत से देशों को अमेरिका से आर्थिक सहायता लेनी पड़ी जिसका परिणाम यह हुआ कि उन देशों की नीतियों पर भी अमेरिका का प्रभाव पड़ा।

अर्थशास्त्र को राजनीति विज्ञान की देन (Contribution of Political Science to Economics)-अर्थशास्त्र के अध्ययन में राजनीति विज्ञान से भी बहुत सहायता मिलती है। राजनीतिक संगठन का देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। शासन-व्यवस्था यदि दृढ़ और शक्तिशाली है तो वहां की जनता की आर्थिक दशा अच्छी होगी। आर्थिक दशाओं का ही नहीं सरकार की नीतियों का भी आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। सरकार की कर नीति, आयात-निर्यात नीति, विनिमय की दर, बैंक नीति, व्यापार तथा उद्योग सम्बन्धी कानून, सीमा शुल्क नीति आदि का राज्य की अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ता है। सरकार पूंजीवाद तथा साम्यवाद को अपना कर देश की आर्थिक व्यवस्था को बदल सकती है। भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं हैं ताकि लोगों के जीवन-स्तर को ऊंचा किया जा सके। सरकार बड़े-बड़े उद्योगों को अपने हाथों में ले रही है। बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया है जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ा।

युद्ध एक सैनिक और राजनीतिक क्रिया है परन्तु इसका देश की अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव पड़ता है। अमेरिका की आर्थिक स्थिति में गिरावट होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण वियतनाम युद्ध रहा है। इसी प्रकार 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों ने भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत प्रभावित किया है।

अतः इस विवेचना से स्पष्ट हो जाता है कि अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। एक का अस्तित्व दूसरे के अस्तित्व पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में समानताएं (Points of Similarity between Economics and Political Science) अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में निम्नलिखित समानताएं पाई जाती हैं-

दोनों का विषय समाज में रह रहा मनुष्य है-समाज में रह रहा मनुष्य दोनों शास्त्रों का विषय है। दोनों का उद्देश्य मानव कल्याण है और उसी के लिए दोनों कार्य करते हैं।

दोनों ही आदर्शात्मक सामाजिक विज्ञान हैं-दोनों ही भूतकाल के आधार पर वर्तमान का विश्लेषण करके भविष्य के लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में मानव जीवन के लिए ऐसे आदर्श स्थापित करते हैं जिनके द्वारा अधिक-से-अधिक मानव हित हो।

दोनों ही भूतकाल, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित हैं- राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र दोनों ही भूतकाल, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित हैं।

दोनों में अन्तर (Difference between the two) राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में अन्तर है, जो इस प्रकार है

1. विभिन्न विषय-क्षेत्र (Different Subject Matter) राजनीति विज्ञान मनुष्य की राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन करता है और इस विज्ञान का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। परन्तु अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है। मनुष्य धन कैसे कमाता है, कैसे उसका उपयोग करता है इत्यादि प्रश्नों का उत्तर अर्थशास्त्र देता है। इस प्रकार दोनों का विषय-क्षेत्र अलग-अलग है।

2. दृष्टिकोण (Approach)—मिस्टर ब्राऊन (Mr. Brown) ने राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में भेद करते हुए लिखा है, “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध वस्तुओं से है जबकि राजनीति विज्ञान का मनुष्यों से। अर्थशास्त्र वस्तुओं की कीमतों का अध्ययन करता है और राजनीति विज्ञान सदाचार सम्बन्धी मूल्यों का।” इस प्रकार अर्थशास्त्र व्याख्यात्मक विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक विज्ञान है।

3. अध्ययन पद्धति (Method of Study)—दोनों में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि दोनों तथा अध्ययन पद्धतियां अलग-अलग हैं। अर्थशास्त्र का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अध्ययन के अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक ढंग से किया जा सकता है और इसके निष्कर्ष और सिद्धान्त अधिक सही होते हैं। इसका कारण यह है कि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं से है और इन आवश्यकताओं तथा इनकी पूर्ति का उल्लेख अंकों द्वारा दर्शाया जा सकता है। अर्थशास्त्र में मात्रात्मक आंकड़ों का संग्रह राजनीति विज्ञान की अपेक्षा अधिक सम्भव है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में भिन्नता होने के बावजूद भी यह कहा जा सकता है कि वर्तमान युग में दोनों ही अपने उद्देश्यों की प्राप्ति एक-दूसरे के सहयोग और सहायता के बिना नहीं कर सकते। डॉ० गार्नर (Dr. Garner) ने ठीक ही कहा है, “बहुत-सी आर्थिक समस्याओं का हल राजनीतिक आर्थिक हालतों से आरम्भ होता है।” विलियम एसलिंगर (William Esslinger) के विचारानुसार, “अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र की एकता का पाठ्यक्रम उपकक्षा में पढ़ाया जाना चाहिए।”

राजनीति शास्त्र तथा समाजशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन का शास्त्र है। समाज- शास्त्र समाज की उत्पत्ति, विकास, उद्देश्य तथा संगठन का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र में मानव जीवन के सभी पहलुओं राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक इत्यादि का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीति शास्त्र में मानव जीवन के राजनीतिक पहलू का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार राजनीति शास्त्र समाजशास्त्र की एक शाखा है। प्रसिद्ध विद्वान् रेटजनहाफर ने ठीक ही कहा है, “राज्य अपने विकास के प्रारम्भिक चरणों में एक सामाजिक संस्था ही थी।” हम आगस्ट काम्टे (August Comte) के इस कथन से सहमत हैं, “समाजशास्त्र सभी समाजशास्त्रों की जननी है।” राजनीति शास्त्र तथा समाजशास्त्र परस्पर बहुत कुछ आदान-प्रदान करते हैं। प्रो० कैटलिन (Catline) ने तो यहां तक कहा है, “राजनीति और समाजशास्त्र अखण्ड हैं और वास्तव में एक ही तस्वीर के दो पहलू हैं।”

राजनीति विज्ञान को समाजशास्त्र की देन (Contribution of Sociology to Political Science) समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान के लिए नींव का काम करता है और इसके नियम राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों को समझने के लिए बहुत सहायक हैं। बिना समाजशास्त्र के अध्ययन के राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों को समझना कठिन है। प्रो० गिडिंग्स (Prof. Giddings) ने ठीक ही कहा है, “समाजशास्त्र के मूल सिद्धान्तों से अनभिज्ञ लोगों को राज्य के सिद्धान्त पढ़ाना उसी प्रकार है जिस प्रकार न्यूटन के गति नियमों से अनभिज्ञ व्यक्ति को खगोल विज्ञान अथवा ऊष्मा गति की शिक्षा देना।” (“To teach the theory of the state to men who have not learned the first principles of sciology is like teaching Astronomy or Thermodynamics to men who have not learned Newton’s Laws of Motion.”) दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार न्यूटन के गति नियमों को न जानने वाले व्यक्ति को खगोल विज्ञान की शिक्षा देना व्यर्थ है उसी प्रकार बिना समाजशास्त्र के मूल सिद्धान्तों से अनजान व्यक्ति को राज्य के सिद्धान्त पढ़ाना व्यर्थ है। समाजशास्त्रों में समाज के रीति-रिवाजों का अध्ययन किया जाता है। हम जानते हैं कि राज्य के कानून का पालन तभी किया जाता है यदि वह समाज के रीति-रिवाजों के अनुसार हो।

राज्य की उत्पत्ति, राज्य का विकास, जनमत, दल प्रणाली आदि समझने में समाज शास्त्र की बहुत देन है। समाजशास्त्र से पता चलता है कि राज्य मानव की सामाजिक भावना का परिणाम है। समाज के विकास के स्तर के साथसाथ राज्य का विकास हुआ है। राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology) राजनीति विज्ञान की एक शाखा पनप रही है, जो इस बात की स्पष्ट सूचक है कि राजनीतिक तथ्यों के विधिवत अध्ययन के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेना आवश्यक है। इस प्रकार समाज शास्त्र का राजनीति शास्त्र पर बहुत प्रभाव पड़ा है।

राजनीति विज्ञान की समाजशास्त्र को देन (Contribution of Political Science to Sociology)-परन्तु दूसरी ओर राजनीति शास्त्र का समाजशास्त्र पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। राजनीति विज्ञान का मुख्य विषय राज्य हैराज्य की उत्पत्ति कैसे हुई, राज्य क्या है, राज्य का विकास कैसे हुआ, राज्य का उद्देश्य क्या है इन सब प्रश्नों का उत्तर राजनीति विज्ञान में मिलता है। समाजशास्त्र को राज्य से सम्बन्धित प्रत्येक जानकारी राजनीति शास्त्र से मिलती है। राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र का एक अंग है जिसके बिना समाजशास्त्र की विषय सामग्री पूर्ण नहीं हो सकती।

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राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र के आपसी सम्बन्ध का एक प्रणाम यह है कि मॉरिस, गिन्सबर्ग, आगस्त काम्टे, लेस्टर वार्ड, समवर आदि समाजशास्त्रियों ने राज्य की प्रकृति और उद्देश्यों में इतनी रुचि दिखाई है, मानो वे समाजशास्त्र की मुख्य समस्याएं हों। इसी प्रकार डेविड ईस्टन, हैरल्ड लासवैल, ग्रेवीज ए० ऑल्मण्ड, पावेल, कोलमेन, मेक्स वेबर और राजनीति शास्त्र के अन्य आधुनिक विद्वानों द्वारा समाज शास्त्र से अधिक-से-अधिक मात्रा में अध्ययन सामग्री और अध्ययन पद्धतियां प्राप्त की गई हैं।

दोनों में अन्तर (Differences between the two) राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में अन्तर है-

दोनों के क्षेत्र अलग हैं-राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र के क्षेत्र एक-दूसरे से पृथक् हैं। राजनीतिक शास्त्र का मुख्य विषय-क्षेत्र राज्य है जबकि समाजशास्त्र का मुख्य क्षेत्र समाज है।

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र समाजशास्त्र से संकुचित है-राजनीति विज्ञान का क्षेत्र समाजशास्त्र के क्षेत्र से संकुचित है। राजनीति शास्त्र मनुष्य के राजनीतिक पहलू का ही अध्ययन कराता है जबकि समाजशास्त्र मनुष्य के सभी पहलुओं का अध्ययन कराता है।

राजनीति विज्ञान यह मानकर चलता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसमें हम यह अध्ययन नहीं करते कि मनुष्य सामाजिक प्राणी क्यों है। परन्तु समाजशास्त्र में इस प्रश्न का भी अध्ययन किया जाता है।

समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान से पहले बना–राजनीति शास्त्र में समाज बनने से पूर्व के मानव का अध्ययन नहीं किया जाता जबकि समाजशास्त्र के विषय का अध्ययन वहीं से शुरू होता है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत मानव जाति के दोनों युगों-संगठित तथा असंगठित-का अध्ययन किया जाता है, परन्तु राजनीति शास्त्र केवल संगठित युग का अध्ययन करता है।

समाजशास्त्र केवल भूत और वर्तमान से सम्बन्धित है परन्तु राजनीति विज्ञान भूत, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित है-राजनीति शास्त्र में राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का भी अध्ययन किया जाता है जबकि समाज शास्त्र में समाज के अतीत तथा वर्तमान का ही अध्ययन किया जाता है।

समाजशास्त्र वर्णनात्मक है जबकि राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक है-समाजशास्त्र समाज की उत्पत्ति तथा विकास का विस्तृत रूप से अध्ययन करता है, परन्तु इस अध्ययन के पश्चात् कोई परिणाम नहीं निकलता। यह केवल सामाजिक घटनाओं का वर्णन करता है। उन घटनाओं में अच्छी तथा बुरी घटनाओं की पहचान नहीं कराता। राजनति शास्त्र केवल घटनाओं का वर्णन ही नहीं करता बल्कि परिणाम भी निकालता है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का उद्देश्य एक आदर्श राज्य की स्थापना करना तथा आदर्श नागरिक पैदा करना है।

समाजशास्त्र में मनुष्य के चेतन (conscious) और अचेतन (unconscious) दोनों प्रकार के कार्यों का अध्ययन किया जाता है परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल चेतन प्रकार के कार्यों का ही अध्ययन किया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में अन्तर होते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध न होकर पूरक हैं। राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से आदान-प्रदान करते हैं।

राजनीति विज्ञान तथा नीतिशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है। नीतिशास्त्र साधारण मनुष्य की भाषा में वह शास्त्र है, जो अच्छे-बुरे में अन्तर स्पष्ट करता है। नीतिशास्त्र वह शास्त्र है जिसके द्वारा धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, पाप-पुण्य, अहिंसा-हिंसा, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य तथा शुभ-अशुभ में अन्तर का पता चलता है। डीवी (Deewey) के अनुसार, “नीतिशास्त्र आचरण का वह विज्ञान है जिसमें मानवीय आचरण के औचित्य तथा अनौचित्य तथा अच्छाई तथा बुराई पर विचार किया जाता है।” नीतिशास्त्र के द्वारा हम निश्चित करते हैं कि मनुष्य का कौन-सा कार्य अच्छा है और कौनसा कार्य बुरा । यह शास्त्र नागरिकको आदर्श नागरिक बनाने में सहायक है। दूसरी ओर राज्य का मुख्य उद्देश्य भी आदर्श नागरिक बनाना है। इस प्रकार दोनों शास्त्रों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्राचीन यूनानी लेखकों प्लेटो तथा अरस्तु ने राजनीति शास्त्र को नीतिशास्त्र का ही एक अंग माना है। प्लेटो तथा अरस्तु के अनुसार, “राज्य एक सर्वोच्च नैतिक संस्था है। इसका उद्देश्य नागरिकों के नैतिक स्तर को ऊंचा करना है।” प्लेटो की प्रसिद्ध पुस्तक ‘रिपब्लिक’ (Republic) में राजनीति ही नहीं बल्कि नैतिक दर्शन भी भरा हुआ है। अरस्तु ने कहा था “राज्य जीवन को सम्भव बनाने के लिए उत्पन्न हुआ, परन्तु अब वह जीवन को अच्छा बनाने के लिए विद्यमान है।”

इटली के विद्वान् मैक्यावली ने सर्वप्रथम राजनीति तथा नीतिशास्त्र में भेद किया। इसके अनुसार राजा के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह नैतिकता के नियमों के अनुसार शासन चलाए। आवश्यकता पड़ने पर अनैतिकता का रास्ता भी अपनाया जा सकता है। मैक्यावली के अनुसार-राजा के सामने सबसे बड़ा उद्देश्य राज्य की सुरक्षा है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसे सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य की परवाह नहीं करनी चाहिए। हाब्स (Hobbes) ने भी मैक्यावली के विचारों का समर्थन किया। बोदीन (Bodin), ग्रोशियस (Grotius) तथा लॉक (Locke) ने भी इन दोनों शास्त्रों को अलग किया, परन्तु रूसो (Rouseau) ने फिर इन दोनों शास्त्रों में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया। कांट (Kant), ग्रीन (Green) ने भी रूसो के मत का समर्थन किया।

नीतिशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन (Contribution of Ethics to Political Science)-वर्तमान समय में इन दोनों शास्त्रों में गहरा सम्बन्धा समझा जाता है। महात्मा गांधी ने दोनों शास्त्रों को अभिन्न माना है। उनके अनुसारसरकार को अपनी नीति नैतिकता के सिद्धान्तों पर बनानी चाहिए। सरकार की नीतियों में असत्य, अधर्म, कपट तथा पाप इत्यादि की मिलावट नहीं होनी चाहिए। कॉक्स के मतानुसार, “जो बात नैतिक दृष्टि से गलत है, वह राजनीतिक दृष्टि से सही नहीं हो सकती।” कोई भी सरकार ऐसे कानून पास नहीं कर सकती जो नैतिकता के विरुद्ध हों। यदि पास किए जाएंगे तो उनका विरोध होगा। इसके अतिरिक्त नैतिक नियम जो स्थायी और प्रचलित हो जाते हैं, कानून का रूप धारण कर लेते हैं। गैटेल (Gettell) ने लिखा है, “जब नैतिक विचार स्थायी और प्रचलित हो जाते हैं तो वे कानून का रूप ले लेते हैं।” लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) ने ठीक ही कहा है, “समस्या यह नहीं है कि सरकार क्या करती है बल्कि यह है कि उन्हें क्या करना चाहिए।” यदि राजनीति विज्ञान को नीतिशास्त्र से पृथक् कर दें तो यह निस्सार और निरर्थक हो जाएगी। उसमें प्रगतिशीलता और आदर्शता नहीं रह पाएगी। इसलिए लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) ने भी कहा है, “नीतिशास्त्र के अध्ययन के बिना राजनीति शास्त्र का अध्ययन विफल है।” इसके अतिरिक्त राजनीति विज्ञान की अनेक शाखाएं आचार शास्त्र की नींव पर खड़ी हैं, जैसे अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्पूर्ण शास्त्र अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता पर आधारित है। आचार शास्त्र से संविधान भी प्रभावित होता है क्योंकि अनेक प्रकार के आदर्शों को संविधान में उचित स्थान देना अनिवार्य है। भारत और आयरलैंड के संविधान में हमें दिए गए राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व’ ही स्पष्ट उदाहरण है।

राजनीति विज्ञान की नीतिशास्त्र को देन (Contribution of Political Science to Ethics)—वर्तमान राज्य कल्याणकारी राज्य है। सरकार लोगों के नैतिक स्तर को ऊंचा करने के लिए कई प्रकार के कानून बनाती है। इसके साथ ही सरकार सामाजिक बुराइयों को दूर करती है। भारत सरकार ने सती-प्रथा, दहेज-प्रथा, छुआछूत आदि बुराइयों को कानून के द्वारा रोकने का प्रयत्न किया है और काफ़ी सफलता भी मिली है। भारत सरकार अहिंसा के सिद्धान्तों पर चल रही है और इन्हीं सिद्धान्तों का प्रचार कर रही है। भारत के प्रधानमन्त्री स्वर्गीय श्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचशील की स्थापना की थी ताकि संसार के दूसरे देशों में भी अहिंसा का प्रचार किया जा सके। सरकार राज्य में शान्ति की स्थापना करती है और नैतिकता शान्ति के वातावरण में ही विकसित हो सकती है। यदि राज्य शान्ति का वातावरण उत्पन्न न करे, तो नैतिक जीवन बिताना असम्भव हो जाएगा। इस प्रकार सरकार कानून द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करती है जिसमें नैतिकता विकसित हो सके। क्रोशे के मतानुसार, “नैतिकता अपनी पूर्णता और उच्चतम स्पष्टता राजनीति में ही पाती है।”

दोनों में अन्तर (Difference between the two)-राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी उन दोनों में अन्तर है, जो इस प्रकार हैं-

नीतिशास्त्र मनुष्य के प्रत्येक कार्य से सम्बन्धित रहता है जब कि राजनीति विज्ञान मनुष्य के जीवन के केवल राजनीतिक पहलू से सम्बन्ध रखता है। नीतिशास्त्र मनुष्य के आन्तरिक तथा बाहरी दोनों कार्यों से सम्बन्धित है, परन्तु राजनीति विज्ञान मनुष्य के केवल बाहरी कार्यों से सम्बन्धित है।

राज्य के नियमों का पालन करवाने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता है। यदि सरकार के किसी कानून का उल्लंघन कोई मनुष्य करता है तो उसे न्यायालय द्वारा दण्ड दिया जाता है, परन्तु नीतिशास्त्र के नियमों का उल्लंघन करने पर कोई दण्ड नहीं दिया जाता क्योंकि नीतिशास्त्र के नियमों को तोड़ना अपराध नहीं केवल पाप है।

राजनीति विज्ञान मुख्यतः वर्णनात्मक है क्योंकि इसमें राज्य, सरकार की शक्तियां, संविधान इत्यादि का वर्णन करता है जबकि नीतिशास्त्र मुख्यतः आदर्शात्मक है और यह विषय जनता के सामने कुछ आदर्श रखे हुए हैं।

राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक सिद्धान्तों से है जबकि नीतिशास्त्र का सम्बन्ध केवल सिद्धान्तों से है। नीतिशास्त्र वास्तविकता से बहुत दूर है। यह केवल काल्पनिक है।

राज्य के नियमों तथा नैतिकता के नियमों में सदैव एकरूपता नहीं होती। सड़क के दाईं ओर चलना राज्य के नियम के विरुद्ध है, परन्तु नैतिकता के विरुद्ध नहीं।

राजनीति विज्ञान में हम राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करते हैं, परन्तु इस शास्त्र का मुख्य सम्बन्ध इस बात से है कि वे क्या हैं परन्तु नीतिशास्त्र का मुख्य सम्बन्ध इससे है कि वे क्या होने चाहिएं।
राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र के सम्बन्ध और अन्तर दोनों को स्पष्ट करते हुए कैटलिन ने कहा, “नीतिशास्त्र से एक राजनीतिज्ञ यह सीखता है कि अनेक मार्गों में से कौन-सा मार्ग सही है और राजनीति विज्ञान बतलाता है कि व्यावहारिक दृष्टि से कौन-सा मार्ग अपनाना सम्भव होगा।”

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

निष्कर्ष (Conclusion)-नीतिशास्त्र और राजनीति विज्ञान में भले ही कई भिन्नताएं हैं, फिर भी इनकी समीपता से इन्कार नहीं किया जा सकता। नीतिशास्त्र राजनीति विज्ञान के अध्ययन को समृद्ध बनाता है और व्यावहारिक राजनीति को उदात्त बनाने (To ennoble) के लिए प्रेरित करता है। आजकल की व्यावहारिक राजनीति में भ्रष्टाचार के उदाहरण सर्वप्रसिद्ध हैं और इन भ्रष्टाचारी तरीकों ने समाज के हर पक्ष को दूषित कर दिया है। इस भ्रष्टाचार से बचने के साधन नीतिशास्त्र ही सुझा सकता है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान एवं इतिहास में सम्बन्ध बताएं।
(Discuss the relation between Political Science and History.)
उत्तर-
राजनीति विज्ञान तथा इतिहास में बहुत घनिष्ठ सम्बन्ध है। सीले (Seeley) ने इन दोनों में सम्बन्ध बताते हुए लिखा है, “बिना राजनीति विज्ञान के इतिहास का कोई फल नहीं। बिना इतिहास के राजनीति विज्ञान की कोई जड़ नहीं।”

बर्गेस (Burgess) ने दोनों के सम्बन्ध के बारे में लिखा है, “इन दोनों को अलग कर दो उनमें से एक यदि मृत नहीं तो पंगु अवश्य हो जाएगा और दूसरा केवल आकाश-पुष्प बनकर रह जाएगा।” (“Separate them and the one becomes a cripple, if not a corpse, the other a will of the wisp.”) फ्रीमैन (Freeman) के अनुसार, “इतिहास भूतकालीन राजनीति है और राजनीति वर्तमान इतिहास है।” (“History is nothing but past politics and politics is nothing but present History.”) इन विद्वानों के कथन से राजनीति तथा इतिहास में घनिष्ठ सम्बन्ध का पता लगता है।

इतिहास की राजनीति विज्ञान को देन (Contribution of History to Political Science)—इतिहास से हमें बीती हुई घटनाओं का ज्ञान होता है। राजनीति विज्ञान में हम राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करते हैं। राजनीति विज्ञान में राज्य तथा अन्य संस्थाओं के अतीत के अध्ययन के लिए हमें इतिहास पर निर्भर करना पड़ता है। राजनीतिक संस्थाओं को समझने के लिए, उनके अतीत को जानना आवश्यक होता है और इतिहास से ही उनके अतीत को जाना जा सकता है। यदि हम इंग्लैंड की संसद् तथा राजतन्त्र का वर्तमान स्वरूप जानना चाहते हैं तो हमें वहां के इतिहास का गहरा अध्ययन करना पड़ेगा। राजनीति विज्ञान की प्रयोगशाला अथवा पथ-प्रदर्शक इतिहास है। मानवीय इतिहास के विभिन्न समयों पर राजनीति क्षेत्र में अनेक कार्य किए गए, जिनके परिणाम और सफलता-असफलता का वर्णन इतिहास से प्राप्त होता है। राजनीति क्षेत्र के ये भूतकालीन कार्य एक प्रयोग के समान ही होते हैं और ये भूतकालीन प्रयोग भविष्य के लिए मार्ग बतलाने का कार्य करते हैं। भारत के इतिहास से पता चलता है कि वही शासक सफल रहेगा जो धर्म-निरपेक्ष हो। धार्मिक सहिष्णुता की नीति के आधार पर अकबर ने विशाल साम्राज्य की स्थापना की जबकि औरंगज़ेब की धर्मान्ध नीति के कारण मुग़ल साम्राज्य का पतन हो गया। इतिहास के ज्ञान का पूरा लाभ उठाते हुए संविधान निर्माताओं ने भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाया। भारत आजकल धर्म-निरपेक्ष नीति को अपनाए हुए है। अतः राजनीति विज्ञान के अध्ययन का आधार इतिहास है।

इतिहास राजनीति विज्ञान का शिक्षक है। इतिहास मनुष्य की सफलताओं एवं विफलताओं का संग्रह है। अतीत में मानव ने क्या-क्या भूलें कीं, किस नीति को अपनाने से अच्छा और बुरा परिणाम निकला आदि बातों का ज्ञानदाता इतिहास ही है। भारतीय इतिहास में अकबर की सफलता और औरंगज़ेब की विफलता हमें राजनीतिक शिक्षा देती है। इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय और फ्रांस के लुई चौदहवें के निरंकुश राजतन्त्र हमें यह पाठ पढ़ाते हैं कि निरंकुश राज्य अधिक दिनों तक टिक नहीं सकता। इतिहास द्वारा बतलाई गई भूलों के आधार पर ही राजनीतिज्ञ भविष्य में त्रुटियों में संशोधन लाते हैं।

कोई भी राजनीतिक संस्था अकस्मात् पैदा नहीं होती। उसका वर्तमान रूप शनैः-शनैः होने वाले क्रमिक विकास का फल है। किसी समय किसी आवश्यकता की पूर्ति के लिए संस्था का जन्म होता है और समयानुसार उसमें परिवर्तन भी आते रहते हैं और कई बार यह संस्था नया रूप भी धारण कर लेती है। इस पृष्ठभूमि में यह आवश्यक है कि राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन पर्यवेक्षण (Observation) विधि के द्वारा किया जाए जिसके लिए इतिहास का सहारा लेना अनिवार्य है। यह कहना उचित ही है कि इतिहास की उपेक्षा करने से राजनीति शास्त्र का अध्ययन केवल काल्पनिक और सैद्धान्तिक ही होगा। ऐसे अध्ययन का दोष बताते हुए लॉस्की (Laski) कहता है, “हर प्रकार के काल्पनिक राजनीति शास्त्र का परास्त होना अनिवार्य ही है क्योंकि मनुष्य कभी भी ऐतिहासिक प्रभावों से उन्मुक्त नहीं हो सकते।” विलोबी (Willoughby) के शब्दों में “इतिहास राजनीति शास्त्र को तीसरी दिशा प्रदान करता है।” (“History gives the third dimension to Political Science …………”)

इतिहास को राजनीति शास्त्र की देन (Contribution of Political Science to History)—परन्तु इतिहास का ही राजनीति शास्त्र पर प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि इतिहास भी राजनीति शास्त्र के अध्ययन से बहुत कुछ हासिल करता है। आज की राजनीति कल का इतिहास है। इतिहास में केवल युद्ध, विजयों तथा अन्य घटनाओं का ही वर्णन नहीं आता बल्कि इसमें सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक घटनाओं का भी वर्णन आता है। यदि इतिहास की घटनाओं से राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो इतिहास केवल घटनाओं का संग्रह रह जाता है। राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, व्यक्तिवाद आदि धाराओं की चर्चा के बिना 17वीं शताब्दी का इतिहास अपूर्ण है। भारत के 20वीं शताब्दी के इतिहास से यदि कांग्रेस पार्टी का महत्त्व, असहयोग आन्दोलन, स्वराज्य पार्टी, भारत छोड़ो आन्दोलन, क्रिप्स योजना, केबिनेट मिशन योजना, भारत का विभाजन, चीन का भारत पर आक्रमण तथा पाकिस्तान के आक्रमण आदि राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो भारत का इतिहास महत्त्वहीन रह जाएगा। लॉर्ड एक्टन ने राजनीति शास्त्र तथा इतिहास में गहरा सम्बन्ध बताते हुए लिखा है, “राजनीति इतिहास की धारा में उसी प्रकार इकट्ठी हो जाती है जैसे नदी की रेत में सोने के कण।”

राजनीति की इतिहास को एक महत्त्वपूर्ण देन यह है कि राजनीतिक विचारधाराएं ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म देती हैं। रूसो और मॉण्टेस्क्यू के विचारों का फ्रांस की राज्यक्रान्ति पर, कार्ल मार्क्स के विचारों का सोवियत रूस की राज्यक्रान्ति पर तथा महात्मा गांधी के विचारों का भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन पर निर्णायक प्रभाव पड़ा।

दोनों में अन्तर (Differences between the two)-राजनीतिक विकास तथा इतिहास में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में अन्तर है।
1. इतिहास का क्षेत्र राजनीतिक विज्ञान से व्यापक है (Scope of History is wider than the scope of Political Science)-फ्रीमैन के कथन से समहत होना कठिन है क्योंकि पूर्ण भूतकालीन इतिहास राजनीति नहीं है और वर्तमान राजनीति कल का इतिहास नहीं है। इतिहास में प्रत्येक घटना का वर्णन किया जाता है। इसका क्षेत्र व्यापक है। जब हम 19वीं शताब्दी का इतिहास पढ़ते हैं तो इसमें उस समय की सभी घटनाओं, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनीतिक का वर्णन आ जाता है, परन्तु राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध केवल राजनीतिक घटनाओं से होता है।

2. राजनीति विज्ञान भूत, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित है, जबकि इतिहास केवल भूतकाल से सम्बन्धित है-राजनीति शास्त्र में राजनीतिक संस्थाओं के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन किया जाता है। राज्य कैसा था, कैसा है और कैसा होना चाहिए, इन तीनों का उत्तर राजनीति शास्त्र से मिलता है, परन्तु इतिहास में केवल बीती घटनाओं का ही वर्णन आता है।

3. इतिहास वर्णनात्मक है जबकि राजनीति विज्ञान विचारशील है- इतिहास में केवल घटनाओं का वर्णन किया जाता है जबकि राजनीति शास्त्र में इन घटनाओं का मूल्यांकन भी किया जाता है और इस मूल्यांकन के आधार पर निश्चित परिणाम निकाले जाते हैं। इस प्रकार इतिहास वर्णनात्मक है परन्तु राजनीति शास्त्र विचारात्मक भी है।

4. इतिहासकार नैतिक निर्णय नहीं देता, परन्तु राजनीति विज्ञान के विद्वानों के लिए नैतिक निर्णय देना आवश्यक है-इतिहासकार केवल बीती हुई घटनाओं का वर्णन करता है। वह घटनाओं की नैतिकता के आधार पर परख करके कोई निर्णय नहीं देता है। उदाहरण के लिए, दिसम्बर 1971 में भारत का पाकिस्तान से युद्ध हुआ। इतिहासकार का कार्य केवल युद्ध की घटनाओं का वर्णन करना है। इतिहासकार का इस बात के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है कि युद्धबन्दियों के साथ कैसा व्यवहार किया गया, असैनिक आबादी पर बम बरसाए गए तो कोई अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन हुआ है या नहीं। परन्तु राजनीति विज्ञान का विद्वान् युद्ध के नैतिक पहलू पर अपना निर्णय अवश्य देगा।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति विज्ञान तथा इतिहास में अन्तर होते हुए भी घनिष्ठ सम्बन्ध है और इस विचार को सब विद्वान् मान्यता प्रदान करते हैं। गार्नर (Garmer) के शब्दों में, ‘अध्ययन विषय के तौर पर यह एक-दूसरे के सहायक व पूरक हैं।’

सीले (Seeley) ने इन दोनों को पूरक सिद्ध करने के लिए कहा है, “इतिहास के उदार प्रभाव के बिना राजनीति अशिष्ट है और राजनीति से अपने सम्बन्ध को भुला देने से इतिहास साहित्य मात्र रह जाता है।”

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में सम्बन्ध बताएं।
(Discuss the relation between Political Science and Economics.)
उत्तर-
राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है। प्राचीन काल में अर्थशास्त्र ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ (Political Economy) के नाम से प्रसिद्ध था। विद्वानों ने ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ की परिभाषा इस प्रकार की है-“यह राज्य के लिए राजस्व (Revenue) जुटाने की एक कला है।” भारतीय विद्वान् चाणक्य ने अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में राजनीतिक समस्याओं का वर्णन किया । इसी प्रकार राजनीति विज्ञान के कई मान्य ग्रन्थों जैसे अरस्तु की ‘Politics’ तथा लॉक की ‘नागरिक प्रशासन पर दो लेख’ (Two Treatises on Civil Government) में उन विषयों का विवेचन मिलता है, जिन्हें आजकल अर्थशास्त्र में शामिल किया जाता है। इस प्रकार प्राचीन काल में दो शास्त्रों को एक माना जाता था, परन्तु 19वीं शताब्दी में एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में राज्य के हस्तक्षेप को अनुचित बताया। एडम स्मिथ पहला विद्वान् था जिसने अर्थशास्त्र को राजनीति शास्त्र से अलग किया। 20वीं शताब्दी के अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को एक स्वतन्त्र सामाजिक विषय सिद्ध करने का प्रयत्न किया। अर्थशास्त्र का सम्बन्ध सम्पत्ति के उत्पादन, उपभोग, वितरण तथा विनिमय सम्बन्धी मनुष्य की गतिविधियों से है।

यह ठीक है कि 20वीं शताब्दी के अर्थशास्त्र को एक स्वतन्त्र विज्ञान माना गया है, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में कोई सम्बन्ध नहीं। अब भी दोनों शास्त्रों में घनिष्ठ सम्बन्ध है और आपस में आदानप्रदान करते हैं।

अर्थशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन (Contribution of Economics to Political Science)-वर्तमान युग में मनुष्य तथा राज्य की मुख्य समस्याएं आर्थिक हैं। इतिहास से पता चलता है कि आर्थिक समस्याएं मनुष्य की राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक संस्थाओं का उदय व विकास आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम है। जब मनुष्य आखेट अवस्था में से गुज़र रहा था अर्थात् जब मनुष्य का पेशा शिकार करना था तब राज्य के उत्पन्न होने का प्रश्न ही नहीं होता था क्योंकि उस समय मनुष्य एक स्थान पर नहीं रहता था। जब मनुष्य ने कृषि करना आरम्भ किया, इसके साथ ही मनुष्य को एक निश्चित स्थान पर रहना पड़ा, जिससे राज्य की उत्पत्ति हुई। पहले सरकार पर बड़ेबड़े ज़मींदारों का प्रभाव होता था, परन्तु यूरोप में औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् सरकार पर उद्योगपतियों का प्रभाव हो गया है। आजकल हमारे देश में भी उद्योगपतियों का ही अधिक प्रभाव है।

व्यक्तिवाद, समाजवाद तथा साम्यवाद मुख्यतः आर्थिक सिद्धान्त हैं परन्तु इनका अध्ययन राजनीतिशास्त्र में भी किया जाता है क्योंकि इन आर्थिक सिद्धान्तों ने राज्य के ढांचे को ही बदल दिया है। चीन में साम्यवाद है। उत्पादन के साधनों पर सरकार का पूर्ण नियन्त्रण है। सरकार की समस्त शक्तियां कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party) के हाथ में ही हैं। अमेरिका में पूंजीवाद है, जिसके कारण वहां की सरकार संगठन तथा सरकार के उद्देश्य चीन की सरकार से भिन्न हैं। अतः आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन आने पर राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन होना स्वाभाविक है। कार्ल मार्क्स (Karl Marx) के अनुसार, उत्पादन के साधनों में परिवर्तन होने पर राजनीतिक परिवर्तन होना अनिवार्य है। कार्ल मार्क्स का यह कथन सर्वथा सत्य तो नहीं है परन्तु इतना अवश्य स्वीकार करना पड़ेगा कि आर्थिक परिवर्तन ही राजनीतिक परिवर्तन का मुख्य कारण भी होता है।

राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियां मुख्यतः आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम होती हैं। 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड और यूरोप के अन्य देशों में जो औद्योगिक क्रान्तियां हुई हैं उनके परिणामस्वरूप ही यूरोप के इन देशों में उपनिवेशवाद और समाजवाद की नीति अपनाई। इस सम्बन्ध में बिस्मार्क और जोज़फ चैम्बरलेन के कथन महत्त्वपूर्ण हैं। बिस्मार्क का कथन था, “मुझे यूरोप के बाहर नए राज्यों की नहीं, बल्कि व्यापारिक केन्द्रों की आवश्यकता है।” (“I want outside Europe…not provinces but commerical enterprises.”)

राजनीतिक क्षेत्र की अनेक मत्त्वपूर्ण घटनाएं आर्थिक गतिविधियों के परिणामस्वरूप ही घटित हुई हैं। भारत में आज लोकतन्त्र को इतनी सफलता नहीं मिली जितनी कि अमेरिका तथा इंग्लैंड में प्राप्त हुई है। भारत में सफलता न मिलने का मुख्य कारण लोगों की आर्थिक दशा है। भारत की अधिकांश जनता ग़रीब है, अधिकारों तथा कर्तव्यों का स्वतन्त्रतापूर्वक प्रयोग नहीं कर पाती। लोगों के वोट खरीद लिए जाते हैं। दूसरे विश्व-युद्ध के पश्चात् बहुत से देशों को अमेरिका से आर्थिक सहायता लेनी पड़ी जिसका परिणाम यह हुआ कि उन देशों की नीतियों पर भी अमेरिका का प्रभाव पड़ा।

अर्थशास्त्र को राजनीति विज्ञान की देन (Contribution of Political Science to Economics)-अर्थशास्त्र के अध्ययन में राजनीति विज्ञान से भी बहुत सहायता मिलती है। राजनीतिक संगठन का देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। शासन-व्यवस्था यदि दृढ़ और शक्तिशाली है तो वहां की जनता की आर्थिक दशा अच्छी होगी। आर्थिक दशाओं का ही नहीं सरकार की नीतियों का भी आर्थिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। सरकार की कर नीति, आयात-निर्यात नीति, विनिमय की दर, बैंक नीति, व्यापार तथा उद्योग सम्बन्धी कानून, सीमा शुल्क नीति आदि का राज्य की अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ता है। सरकार पूंजीवाद तथा साम्यवाद को अपना कर देश की आर्थिक व्यवस्था को बदल सकती है। भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं हैं ताकि लोगों के जीवन-स्तर को ऊंचा किया जा सके। सरकार बड़े-बड़े उद्योगों को अपने हाथों में ले रही है। बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया है जिससे देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ा।

युद्ध एक सैनिक और राजनीतिक क्रिया है परन्तु इसका देश की अर्थव्यवस्था पर भारी प्रभाव पड़ता है। अमेरिका की आर्थिक स्थिति में गिरावट होने का एक महत्त्वपूर्ण कारण वियतनाम युद्ध रहा है। इसी प्रकार 1962 में चीन के साथ युद्ध और 1965 तथा 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्धों ने भारत की अर्थव्यवस्था को बहुत प्रभावित किया है।

अतः इस विवेचना से स्पष्ट हो जाता है कि अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। एक का अस्तित्व दूसरे के अस्तित्व पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में समानताएं (Points of Similarity between Economics and Political Science) अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में निम्नलिखित समानताएं पाई जाती हैं-

  • दोनों का विषय समाज में रह रहा मनुष्य है-समाज में रह रहा मनुष्य दोनों शास्त्रों का विषय है। दोनों का उद्देश्य मानव कल्याण है और उसी के लिए दोनों कार्य करते हैं।
  • दोनों ही आदर्शात्मक सामाजिक विज्ञान हैं-दोनों ही भूतकाल के आधार पर वर्तमान का विश्लेषण करके भविष्य के लिए आदर्श प्रस्तुत करते हैं। दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में मानव जीवन के लिए ऐसे आदर्श स्थापित करते हैं जिनके द्वारा अधिक-से-अधिक मानव हित हो।
  • दोनों ही भूतकाल, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित हैं- राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र दोनों ही भूतकाल, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित हैं।

दोनों में अन्तर (Difference between the two) राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में अन्तर है, जो इस प्रकार है

1. विभिन्न विषय-क्षेत्र (Different Subject Matter) राजनीति विज्ञान मनुष्य की राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन करता है और इस विज्ञान का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। परन्तु अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है। मनुष्य धन कैसे कमाता है, कैसे उसका उपयोग करता है इत्यादि प्रश्नों का उत्तर अर्थशास्त्र देता है। इस प्रकार दोनों का विषय-क्षेत्र अलग-अलग है।

2. दृष्टिकोण (Approach)—मिस्टर ब्राऊन (Mr. Brown) ने राजनीति विज्ञान तथा अर्थशास्त्र में भेद करते हुए लिखा है, “अर्थशास्त्र का सम्बन्ध वस्तुओं से है जबकि राजनीति विज्ञान का मनुष्यों से। अर्थशास्त्र वस्तुओं की कीमतों का अध्ययन करता है और राजनीति विज्ञान सदाचार सम्बन्धी मूल्यों का।” इस प्रकार अर्थशास्त्र व्याख्यात्मक विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक विज्ञान है।

3. अध्ययन पद्धति (Method of Study)—दोनों में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि दोनों तथा अध्ययन पद्धतियां अलग-अलग हैं। अर्थशास्त्र का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अध्ययन के अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक ढंग से किया जा सकता है और इसके निष्कर्ष और सिद्धान्त अधिक सही होते हैं। इसका कारण यह है कि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध मनुष्य की आर्थिक आवश्यकताओं से है और इन आवश्यकताओं तथा इनकी पूर्ति का उल्लेख अंकों द्वारा दर्शाया जा सकता है। अर्थशास्त्र में मात्रात्मक आंकड़ों का संग्रह राजनीति विज्ञान की अपेक्षा अधिक सम्भव है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में भिन्नता होने के बावजूद भी यह कहा जा सकता है कि वर्तमान युग में दोनों ही अपने उद्देश्यों की प्राप्ति एक-दूसरे के सहयोग और सहायता के बिना नहीं कर सकते। डॉ० गार्नर (Dr. Garner) ने ठीक ही कहा है, “बहुत-सी आर्थिक समस्याओं का हल राजनीतिक आर्थिक हालतों से आरम्भ होता है।” विलियम एसलिंगर (William Esslinger) के विचारानुसार, “अर्थशास्त्र तथा राजनीतिशास्त्र की एकता का पाठ्यक्रम उपकक्षा में पढ़ाया जाना चाहिए।”

प्रश्न 4.
राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में सम्बन्ध बताएं।
(Discuss the relations between Political Science and Sociology.)
उत्तर-
राजनीति शास्त्र तथा समाजशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाजशास्त्र मनुष्य के सामाजिक जीवन का शास्त्र है। समाज- शास्त्र समाज की उत्पत्ति, विकास, उद्देश्य तथा संगठन का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र में मानव जीवन के सभी पहलुओं राजनीतिक, धार्मिक, आर्थिक इत्यादि का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीति शास्त्र में मानव जीवन के राजनीतिक पहलू का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार राजनीति शास्त्र समाजशास्त्र की एक शाखा है। प्रसिद्ध विद्वान् रेटजनहाफर ने ठीक ही कहा है, “राज्य अपने विकास के प्रारम्भिक चरणों में एक सामाजिक संस्था ही थी।” हम आगस्ट काम्टे (August Comte) के इस कथन से सहमत हैं, “समाजशास्त्र सभी समाजशास्त्रों की जननी है।” राजनीति शास्त्र तथा समाजशास्त्र परस्पर बहुत कुछ आदान-प्रदान करते हैं। प्रो० कैटलिन (Catline) ने तो यहां तक कहा है, “राजनीति और समाजशास्त्र अखण्ड हैं और वास्तव में एक ही तस्वीर के दो पहलू हैं।”

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

राजनीति विज्ञान को समाजशास्त्र की देन (Contribution of Sociology to Political Science) समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान के लिए नींव का काम करता है और इसके नियम राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों को समझने के लिए बहुत सहायक हैं। बिना समाजशास्त्र के अध्ययन के राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों को समझना कठिन है। प्रो० गिडिंग्स (Prof. Giddings) ने ठीक ही कहा है, “समाजशास्त्र के मूल सिद्धान्तों से अनभिज्ञ लोगों को राज्य के सिद्धान्त पढ़ाना उसी प्रकार है जिस प्रकार न्यूटन के गति नियमों से अनभिज्ञ व्यक्ति को खगोल विज्ञान अथवा ऊष्मा गति की शिक्षा देना।” (“To teach the theory of the state to men who have not learned the first principles of sciology is like teaching Astronomy or Thermodynamics to men who have not learned Newton’s Laws of Motion.”) दूसरे शब्दों में, जिस प्रकार न्यूटन के गति नियमों को न जानने वाले व्यक्ति को खगोल विज्ञान की शिक्षा देना व्यर्थ है उसी प्रकार बिना समाजशास्त्र के मूल सिद्धान्तों से अनजान व्यक्ति को राज्य के सिद्धान्त पढ़ाना व्यर्थ है। समाजशास्त्रों में समाज के रीति-रिवाजों का अध्ययन किया जाता है। हम जानते हैं कि राज्य के कानून का पालन तभी किया जाता है यदि वह समाज के रीति-रिवाजों के अनुसार हो।

राज्य की उत्पत्ति, राज्य का विकास, जनमत, दल प्रणाली आदि समझने में समाज शास्त्र की बहुत देन है। समाजशास्त्र से पता चलता है कि राज्य मानव की सामाजिक भावना का परिणाम है। समाज के विकास के स्तर के साथसाथ राज्य का विकास हुआ है। राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology) राजनीति विज्ञान की एक शाखा पनप रही है, जो इस बात की स्पष्ट सूचक है कि राजनीतिक तथ्यों के विधिवत अध्ययन के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेना आवश्यक है। इस प्रकार समाज शास्त्र का राजनीति शास्त्र पर बहुत प्रभाव पड़ा है।

राजनीति विज्ञान की समाजशास्त्र को देन (Contribution of Political Science to Sociology)-परन्तु दूसरी ओर राजनीति शास्त्र का समाजशास्त्र पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। राजनीति विज्ञान का मुख्य विषय राज्य हैराज्य की उत्पत्ति कैसे हुई, राज्य क्या है, राज्य का विकास कैसे हुआ, राज्य का उद्देश्य क्या है इन सब प्रश्नों का उत्तर राजनीति विज्ञान में मिलता है। समाजशास्त्र को राज्य से सम्बन्धित प्रत्येक जानकारी राजनीति शास्त्र से मिलती है। राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र का एक अंग है जिसके बिना समाजशास्त्र की विषय सामग्री पूर्ण नहीं हो सकती।

राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र के आपसी सम्बन्ध का एक प्रणाम यह है कि मॉरिस, गिन्सबर्ग, आगस्त काम्टे, लेस्टर वार्ड, समवर आदि समाजशास्त्रियों ने राज्य की प्रकृति और उद्देश्यों में इतनी रुचि दिखाई है, मानो वे समाजशास्त्र की मुख्य समस्याएं हों। इसी प्रकार डेविड ईस्टन, हैरल्ड लासवैल, ग्रेवीज ए० ऑल्मण्ड, पावेल, कोलमेन, मेक्स वेबर और राजनीति शास्त्र के अन्य आधुनिक विद्वानों द्वारा समाज शास्त्र से अधिक-से-अधिक मात्रा में अध्ययन सामग्री और अध्ययन पद्धतियां प्राप्त की गई हैं।

दोनों में अन्तर (Differences between the two) राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी दोनों में अन्तर है-

  • दोनों के क्षेत्र अलग हैं-राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र के क्षेत्र एक-दूसरे से पृथक् हैं। राजनीतिक शास्त्र का मुख्य विषय-क्षेत्र राज्य है जबकि समाजशास्त्र का मुख्य क्षेत्र समाज है।
  • राजनीति विज्ञान का क्षेत्र समाजशास्त्र से संकुचित है-राजनीति विज्ञान का क्षेत्र समाजशास्त्र के क्षेत्र से संकुचित है। राजनीति शास्त्र मनुष्य के राजनीतिक पहलू का ही अध्ययन कराता है जबकि समाजशास्त्र मनुष्य के सभी पहलुओं का अध्ययन कराता है।
  • राजनीति विज्ञान यह मानकर चलता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। इसमें हम यह अध्ययन नहीं करते कि मनुष्य सामाजिक प्राणी क्यों है। परन्तु समाजशास्त्र में इस प्रश्न का भी अध्ययन किया जाता है।
  • समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान से पहले बना–राजनीति शास्त्र में समाज बनने से पूर्व के मानव का अध्ययन नहीं किया जाता जबकि समाजशास्त्र के विषय का अध्ययन वहीं से शुरू होता है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत मानव जाति के दोनों युगों-संगठित तथा असंगठित-का अध्ययन किया जाता है, परन्तु राजनीति शास्त्र केवल संगठित युग का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र केवल भूत और वर्तमान से सम्बन्धित है परन्तु राजनीति विज्ञान भूत, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित है-राजनीति शास्त्र में राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का भी अध्ययन किया जाता है जबकि समाज शास्त्र में समाज के अतीत तथा वर्तमान का ही अध्ययन किया जाता है।
  • समाजशास्त्र वर्णनात्मक है जबकि राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक है-समाजशास्त्र समाज की उत्पत्ति तथा विकास का विस्तृत रूप से अध्ययन करता है, परन्तु इस अध्ययन के पश्चात् कोई परिणाम नहीं निकलता। यह केवल सामाजिक घटनाओं का वर्णन करता है। उन घटनाओं में अच्छी तथा बुरी घटनाओं की पहचान नहीं कराता। राजनति शास्त्र केवल घटनाओं का वर्णन ही नहीं करता बल्कि परिणाम भी निकालता है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का उद्देश्य एक आदर्श राज्य की स्थापना करना तथा आदर्श नागरिक पैदा करना है।
  • समाजशास्त्र में मनुष्य के चेतन (conscious) और अचेतन (unconscious) दोनों प्रकार के कार्यों का अध्ययन किया जाता है परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल चेतन प्रकार के कार्यों का ही अध्ययन किया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति विज्ञान तथा समाजशास्त्र में अन्तर होते हुए भी यह मानना पड़ेगा कि दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध न होकर पूरक हैं। राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से आदान-प्रदान करते हैं।

प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान तथा नीतिशास्त्र में सम्बन्ध बताएं।
(Discuss the relations between Political Science and Ethics.)
उत्तर-
राजनीति विज्ञान तथा नीतिशास्त्र में गहरा सम्बन्ध है। नीतिशास्त्र साधारण मनुष्य की भाषा में वह शास्त्र है, जो अच्छे-बुरे में अन्तर स्पष्ट करता है। नीतिशास्त्र वह शास्त्र है जिसके द्वारा धर्म-अधर्म, सत्य-असत्य, पाप-पुण्य, अहिंसा-हिंसा, कर्त्तव्य-अकर्त्तव्य तथा शुभ-अशुभ में अन्तर का पता चलता है। डीवी (Deewey) के अनुसार, “नीतिशास्त्र आचरण का वह विज्ञान है जिसमें मानवीय आचरण के औचित्य तथा अनौचित्य तथा अच्छाई तथा बुराई पर विचार किया जाता है।” नीतिशास्त्र के द्वारा हम निश्चित करते हैं कि मनुष्य का कौन-सा कार्य अच्छा है और कौनसा कार्य बुरा । यह शास्त्र नागरिकको आदर्श नागरिक बनाने में सहायक है। दूसरी ओर राज्य का मुख्य उद्देश्य भी आदर्श नागरिक बनाना है। इस प्रकार दोनों शास्त्रों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्राचीन यूनानी लेखकों प्लेटो तथा अरस्तु ने राजनीति शास्त्र को नीतिशास्त्र का ही एक अंग माना है। प्लेटो तथा अरस्तु के अनुसार, “राज्य एक सर्वोच्च नैतिक संस्था है। इसका उद्देश्य नागरिकों के नैतिक स्तर को ऊंचा करना है।” प्लेटो की प्रसिद्ध पुस्तक ‘रिपब्लिक’ (Republic) में राजनीति ही नहीं बल्कि नैतिक दर्शन भी भरा हुआ है। अरस्तु ने कहा था “राज्य जीवन को सम्भव बनाने के लिए उत्पन्न हुआ, परन्तु अब वह जीवन को अच्छा बनाने के लिए विद्यमान है।”

इटली के विद्वान् मैक्यावली ने सर्वप्रथम राजनीति तथा नीतिशास्त्र में भेद किया। इसके अनुसार राजा के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह नैतिकता के नियमों के अनुसार शासन चलाए। आवश्यकता पड़ने पर अनैतिकता का रास्ता भी अपनाया जा सकता है। मैक्यावली के अनुसार-राजा के सामने सबसे बड़ा उद्देश्य राज्य की सुरक्षा है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसे सत्य-असत्य, धर्म-अधर्म, पाप-पुण्य की परवाह नहीं करनी चाहिए। हाब्स (Hobbes) ने भी मैक्यावली के विचारों का समर्थन किया। बोदीन (Bodin), ग्रोशियस (Grotius) तथा लॉक (Locke) ने भी इन दोनों शास्त्रों को अलग किया, परन्तु रूसो (Rouseau) ने फिर इन दोनों शास्त्रों में घनिष्ठ सम्बन्ध स्थापित किया। कांट (Kant), ग्रीन (Green) ने भी रूसो के मत का समर्थन किया।

नीतिशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन (Contribution of Ethics to Political Science)-वर्तमान समय में इन दोनों शास्त्रों में गहरा सम्बन्धा समझा जाता है। महात्मा गांधी ने दोनों शास्त्रों को अभिन्न माना है। उनके अनुसारसरकार को अपनी नीति नैतिकता के सिद्धान्तों पर बनानी चाहिए। सरकार की नीतियों में असत्य, अधर्म, कपट तथा पाप इत्यादि की मिलावट नहीं होनी चाहिए। कॉक्स के मतानुसार, “जो बात नैतिक दृष्टि से गलत है, वह राजनीतिक दृष्टि से सही नहीं हो सकती।” कोई भी सरकार ऐसे कानून पास नहीं कर सकती जो नैतिकता के विरुद्ध हों। यदि पास किए जाएंगे तो उनका विरोध होगा। इसके अतिरिक्त नैतिक नियम जो स्थायी और प्रचलित हो जाते हैं, कानून का रूप धारण कर लेते हैं। गैटेल (Gettell) ने लिखा है, “जब नैतिक विचार स्थायी और प्रचलित हो जाते हैं तो वे कानून का रूप ले लेते हैं।” लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) ने ठीक ही कहा है, “समस्या यह नहीं है कि सरकार क्या करती है बल्कि यह है कि उन्हें क्या करना चाहिए।” यदि राजनीति विज्ञान को नीतिशास्त्र से पृथक् कर दें तो यह निस्सार और निरर्थक हो जाएगी। उसमें प्रगतिशीलता और आदर्शता नहीं रह पाएगी। इसलिए लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) ने भी कहा है, “नीतिशास्त्र के अध्ययन के बिना राजनीति शास्त्र का अध्ययन विफल है।” इसके अतिरिक्त राजनीति विज्ञान की अनेक शाखाएं आचार शास्त्र की नींव पर खड़ी हैं, जैसे अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्पूर्ण शास्त्र अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता पर आधारित है। आचार शास्त्र से संविधान भी प्रभावित होता है क्योंकि अनेक प्रकार के आदर्शों को संविधान में उचित स्थान देना अनिवार्य है। भारत और आयरलैंड के संविधान में हमें दिए गए राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्व’ ही स्पष्ट उदाहरण है।

राजनीति विज्ञान की नीतिशास्त्र को देन (Contribution of Political Science to Ethics)—वर्तमान राज्य कल्याणकारी राज्य है। सरकार लोगों के नैतिक स्तर को ऊंचा करने के लिए कई प्रकार के कानून बनाती है। इसके साथ ही सरकार सामाजिक बुराइयों को दूर करती है। भारत सरकार ने सती-प्रथा, दहेज-प्रथा, छुआछूत आदि बुराइयों को कानून के द्वारा रोकने का प्रयत्न किया है और काफ़ी सफलता भी मिली है। भारत सरकार अहिंसा के सिद्धान्तों पर चल रही है और इन्हीं सिद्धान्तों का प्रचार कर रही है। भारत के प्रधानमन्त्री स्वर्गीय श्री जवाहरलाल नेहरू ने पंचशील की स्थापना की थी ताकि संसार के दूसरे देशों में भी अहिंसा का प्रचार किया जा सके। सरकार राज्य में शान्ति की स्थापना करती है और नैतिकता शान्ति के वातावरण में ही विकसित हो सकती है। यदि राज्य शान्ति का वातावरण उत्पन्न न करे, तो नैतिक जीवन बिताना असम्भव हो जाएगा। इस प्रकार सरकार कानून द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करती है जिसमें नैतिकता विकसित हो सके। क्रोशे के मतानुसार, “नैतिकता अपनी पूर्णता और उच्चतम स्पष्टता राजनीति में ही पाती है।”

दोनों में अन्तर (Difference between the two)-राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी उन दोनों में अन्तर है, जो इस प्रकार हैं-

  • नीतिशास्त्र मनुष्य के प्रत्येक कार्य से सम्बन्धित रहता है जब कि राजनीति विज्ञान मनुष्य के जीवन के केवल राजनीतिक पहलू से सम्बन्ध रखता है। नीतिशास्त्र मनुष्य के आन्तरिक तथा बाहरी दोनों कार्यों से सम्बन्धित है, परन्तु राजनीति विज्ञान मनुष्य के केवल बाहरी कार्यों से सम्बन्धित है।
  • राज्य के नियमों का पालन करवाने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता है। यदि सरकार के किसी कानून का उल्लंघन कोई मनुष्य करता है तो उसे न्यायालय द्वारा दण्ड दिया जाता है, परन्तु नीतिशास्त्र के नियमों का उल्लंघन करने पर कोई दण्ड नहीं दिया जाता क्योंकि नीतिशास्त्र के नियमों को तोड़ना अपराध नहीं केवल पाप है।
  • राजनीति विज्ञान मुख्यतः वर्णनात्मक है क्योंकि इसमें राज्य, सरकार की शक्तियां, संविधान इत्यादि का वर्णन करता है जबकि नीतिशास्त्र मुख्यतः आदर्शात्मक है और यह विषय जनता के सामने कुछ आदर्श रखे हुए हैं।
  • राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक सिद्धान्तों से है जबकि नीतिशास्त्र का सम्बन्ध केवल सिद्धान्तों से है। नीतिशास्त्र वास्तविकता से बहुत दूर है। यह केवल काल्पनिक है।
  • राज्य के नियमों तथा नैतिकता के नियमों में सदैव एकरूपता नहीं होती। सड़क के दाईं ओर चलना राज्य के नियम के विरुद्ध है, परन्तु नैतिकता के विरुद्ध नहीं।
  • राजनीति विज्ञान में हम राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करते हैं, परन्तु इस शास्त्र का मुख्य सम्बन्ध इस बात से है कि वे क्या हैं परन्तु नीतिशास्त्र का मुख्य सम्बन्ध इससे है कि वे क्या होने चाहिएं।
    राजनीति विज्ञान और नीतिशास्त्र के सम्बन्ध और अन्तर दोनों को स्पष्ट करते हुए कैटलिन ने कहा, “नीतिशास्त्र से एक राजनीतिज्ञ यह सीखता है कि अनेक मार्गों में से कौन-सा मार्ग सही है और राजनीति विज्ञान बतलाता है कि व्यावहारिक दृष्टि से कौन-सा मार्ग अपनाना सम्भव होगा।”

निष्कर्ष (Conclusion)-नीतिशास्त्र और राजनीति विज्ञान में भले ही कई भिन्नताएं हैं, फिर भी इनकी समीपता से इन्कार नहीं किया जा सकता। नीतिशास्त्र राजनीति विज्ञान के अध्ययन को समृद्ध बनाता है और व्यावहारिक राजनीति को उदात्त बनाने (To ennoble) के लिए प्रेरित करता है। आजकल की व्यावहारिक राजनीति में भ्रष्टाचार के उदाहरण सर्वप्रसिद्ध हैं और इन भ्रष्टाचारी तरीकों ने समाज के हर पक्ष को दूषित कर दिया है। इस भ्रष्टाचार से बचने के साधन नीतिशास्त्र ही सुझा सकता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 2 राजनीति विज्ञान का अन्य सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्ध

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र, इतिहास के ऊपर निर्भर है ? वर्णन करें।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र और इतिहास में घनिष्ठ सम्बन्ध है। राजनीति शास्त्र में राज्य तथा अन्य संस्थाओं के अतीत के अध्ययन के लिए राजनीति शास्त्र को इतिहास पर निर्भर करना पड़ता है। निःसन्देह राजनीति विज्ञान की प्रयोगशाला अथवा पथ-प्रदर्शक इतिहास है। भारत के इतिहास से हमें पता चलता है कि वही शासक सफल रहेगा जो धर्म-निरपेक्ष हो। इतिहास के ज्ञान का पूरा लाभ उठाते हुए संविधान निर्माताओं ने भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाया। इतिहास राजनीति विज्ञान का शिक्षक है। इतिहास की उपेक्षा करने से राजनीति शास्त्र का अध्ययन केवल काल्पनिक और सैद्धान्तिक ही होगा।

प्रश्न 2.
राजनीति शास्त्र का समाजशास्त्र से सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र तथा समाजशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान के लिए नींव का काम करता है और इसके नियम राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों को समझने के लिए बहुत सहायक हैं। राज्य की उत्पत्ति, राज्य का विकास, जनमत, दल प्रणाली आदि समझने में समाजशास्त्र की बहुत बड़ी देन है।
राजनीति शास्त्र का समाजशास्त्र पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। समाजशास्त्र को राज्य से सम्बन्धित प्रत्येक जानकारी राजनीति शास्त्र से मिलती है। राजनीति शास्त्र समाजशास्त्र का एक अंग है जिसके बिना समाजशास्त्र की विषय सामग्री पूर्ण नहीं हो सकती।

प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र का अर्थशास्त्र से सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
प्राचीनकाल में अर्थशास्त्र ‘राजनीतिक अर्थशास्त्र’ के नाम से प्रसिद्ध था। 20वीं शताब्दी में अर्थशास्त्रियों ने अर्थशास्त्र को एक स्वतन्त्र सामाजिक विषय सिद्ध करने का प्रयत्न किया। इतिहास से पता चलता है कि आर्थिक समस्याएं मनुष्य की राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक संस्थाओं का उदय व विकास आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम है। आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन आने पर राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन होना अनिवार्य है। राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियां मुख्यतः आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम होती हैं।

राजनीतिक संगठन का देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। शासन व्यवस्था यदि सुदृढ़ और शक्तिशाली है तो वहां की जनता की आर्थिक दशा अच्छी होगी। सरकार पूंजीवाद तथा साम्यवाद को अपनाकर देश की आर्थिक व्यवस्था को बदल सकती है। निःसन्देह राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।

प्रश्न 4.
इतिहास, राजनीति शास्त्र के ऊपर कैसे निर्भर है ?
उत्तर-
इतिहास, राजनीति शास्त्र के अध्ययन से बहुत कुछ प्राप्त करता है। आज की राजनीति कल का इतिहास है। यदि इतिहास की घटनाओं से राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो इतिहास केवल घटनाओं का संग्रह रह जाएगा। राष्ट्रवाद, साम्राज्यवाद, व्यक्तिवाद जैसी धाराओं की चर्चा के बिना 17वीं शताब्दी का इतिहास अधूरा है। भारत के 20वीं शताब्दी के इतिहास से यदि कांग्रेस पार्टी का महत्त्व, असहयोग आन्दोलन, स्वराज्य दल, भारत छोड़ो आन्दोलन, क्रिप्स योजना, कैबिनेट मिशन योजना, भारत का विभाजन, चीन तथा पाकिस्तान द्वारा आक्रमण आदि राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो भारत का इतिहास महत्त्वहीन रह जाएगा। राजनीति की इतिहास को महत्त्वपूर्ण देन यह है कि राजनीतिक विचारधाराएं ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म देती हैं। रूसो और माण्टेस्क्यू के विचारों का फ्रांस की राज्य क्रान्ति पर, कार्ल मार्क्स के विचारों का रूस की राज्य क्रान्ति पर तथा महात्मा गांधी के विचारों का भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन पर निर्णायक प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 5.
राजनीति शास्त्र को इतिहास की देन का वर्णन करें।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान में राज्य तथा अन्य संस्थाओं के अतीत के अध्ययन के लिए हमें इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है। राजनीतिक संस्थाओं को समझने के लिए उनके अतीत को जानना आवश्यक होता है और इतिहास से ही उनके अतीत को जाना जा सकता है। राजनीति विज्ञान की प्रयोगशाला अथवा पथ-प्रदर्शक इतिहास है। मानवीय इतिहास के विभिन्न समयों पर राजनीतिक क्षेत्र में अनेक कार्य किए गए, जिनके परिणाम और सफलता-असफलता का पता इतिहास से ही लगता है। राजनीतिक क्षेत्र के ये प्रयोग एक भूतकालीन प्रयोग के समान ही होते हैं और ये भूतकालीन प्रयोग भविष्य के लिए मार्ग बताने का कार्य करते हैं। इतिहास के ज्ञान का पूरा लाभ उठाते हुए ही संविधान निर्माताओं ने भारत को एक धर्म-निरपेक्ष राज्य बनाया है। इतिहास, राजनीति विज्ञान का शिक्षक है। इतिहास मनुष्य की सफलताओं एवं विफलताओं का संग्रह है। अतीत में मानव ने क्या-क्या भूलें कीं, किस नीति को अपनाने से अच्छा व बुरा परिणाम निकला आदि बातों का ज्ञानदाता इतिहास ही है। इतिहास द्वारा बताई गई भूलों के आधार पर राजनीतिज्ञ भविष्य में त्रुटियों में संशोधन करते हैं।

प्रश्न 6.
राजनीति शास्त्र तथा इतिहास में कोई चार अन्तर बताएं।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र तथा इतिहास में घनिष्ठता होते हुए भी निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • इतिहास का क्षेत्र राजनीति विज्ञान से अधिक व्यापक है-इतिहास की विषय-वस्तु का क्षेत्र राजनीति शास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक है। जब हम 19वीं शताब्दी का इतिहास पढ़ते हैं तो इसमें उस समय की सभी धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक घटनाओं का वर्णन होता है, परन्तु राजनीति शास्त्र केवल राजनीति घटनाओं से सम्बन्धित है।
  • राजनीति शास्त्र भूत, वर्तमान तथा भविष्य से सम्बन्धित है जबकि इतिहास केवल भूतकाल से सम्बन्धित है-राजनीति शास्त्र में राज्य के भूतकाल के अलावा उसके वर्तमान तथा भविष्य का भी अध्ययन किया जाता है जबकि इतिहास में केवल बीती घटनाओं का वर्णन होता है।
  • इतिहास वर्णनात्मक है, जबकि राजनीति शास्त्र विचारशील है-इतिहास में केवल घटनाओं का वर्णन किया जाता है जबकि राजनीति शास्त्र में घटनाओं के वर्णन के साथ-साथ उनका मूल्यांकन करके निश्चित परिणाम निकाले जाते हैं।
  • इतिहास नैतिक निर्णय नहीं देता, परन्तु राजनीति विज्ञान में विद्वानों के लिए नौतिक निर्णय देना आवश्यक है।

प्रश्न 7.
अथशास्त्र की राजनीति शास्त्र को देन बताइए।
उत्तर-
आर्थिक समस्याएं मनुष्य की राजनीतिक संस्थाओं को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक संस्थाओं का उदय व विकास आर्थिक समस्याओं का ही परिणाम है। व्यक्तिवाद, समाजवाद, पूंजीवाद तथा साम्यवाद मुख्यतः आर्थिक सिद्धान्त है परन्तु इनका अध्ययन राजनीति शास्त्र में किया जाता है क्योंकि इन सिद्धान्तों ने राज्य के ढांचे को ही बदल दिया है। आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन आने पर राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन होना स्वाभाविक ही है। राजनीतिक परिवर्तनों का मुख्य कारण आर्थिक परिवर्तन होते हैं। राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियां मुख्यतः आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम होती हैं। 18वीं शताब्दी में इंग्लैंड और यूरोप के अन्य देशों में जो औद्योगिक क्रान्तियां हुईं, उनके परिणामस्वरूप ही उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की नीतियां अपनाई गईं। राजनीतिक क्षेत्र की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाएं, आर्थिक गतिविधियों के फलस्वरूप ही घटित हुई हैं। भारत में लोकतन्त्र को अमेरिका और इंग्लैंड के समान सफलता न मिलने का मुख्य कारण इसकी आर्थिक दशा है।

प्रश्न 8.
राजनीति शास्त्र की अर्थशास्त्र को देन का वर्णन करें।
उत्तर-
अर्थशास्त्र के अध्ययन में राजनीति शास्त्र से भी बहुत सहायक मिलती है। राजनीतिक संगठन का देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत प्रभाव पड़ता है। शासन व्यवस्था यदि दृढ़ व शक्तिशाली है तो देश की आर्थिक दशा अच्छी होगी। आर्थिक दशाओं का ही नहीं सरकार की नीतियों का भी देश की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सरकार पूंजीवाद और साम्यवाद जैसी नीतियों को अपनाकर देश की अर्थव्यवस्था को बदल सकती है। सरकार द्वारा बड़े-बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किए जाने से देश की अर्थव्यवस्था पर विशेष प्रभाव पड़ता है। युद्ध बेशक एक सैनिक और राजनीतिक प्रक्रिया है परन्तु इसका देश की अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 9.
राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अन्तर बताएं।
उत्तर-
अर्थशास्त्र तथा राजनीति शास्त्र में गहरा सम्बन्ध होते हुए भी निम्नलिखित अन्तर हैं

  • विभिन्न विषय क्षेत्र-राजनीति विज्ञान मनुष्य की राजनीतिक समस्याओं का अध्ययन करता है और इसका मुख्य विषय राज्य तथा सरकार हैं परन्तु अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार दोनों का विषय क्षेत्र अलग-अलग है।
  • दृष्टिकोण-राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण में भी अन्तर पाया जाता है। अर्थशास्त्र व्याख्यात्मक विज्ञान है जबकि राजनीति शास्त्र मुख्यतः आदर्शात्मक विज्ञान है।
  • अध्ययन पद्धति में अन्तर-दोनों में एक महत्त्वपूर्ण अन्तर यह है कि दोनों की अध्ययन पद्धतियां अलग-अलग हैं। अर्थशास्त्र का अध्ययन राजनीति शास्त्र की अपेक्षा अधिक वैज्ञानिक ढंग से किया जा सकता है।

प्रश्न 10.
समाजशास्त्र की राजनीति विज्ञान को देन का वर्णन करें।
उत्तर-
समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान के लिए नींव का कार्य करता है। बिना समाजशास्त्र के सिद्धान्तों को समझे राजनीति शास्त्र के नियमों को समझना अति कठिन है। दूसरे शब्दों में जिस प्रकार न्यूटन के गति नियमों से अनभिज्ञ व्यक्ति को खगोल विज्ञान की शिक्षा देना व्यर्थ है उसी प्रकार समाजशास्त्र के मूल सिद्धान्तों से अनभिज्ञ व्यक्ति को राज्य के सिद्धान्त पढ़ाना व्यर्थ है। राज्य के अधिकतर कानून समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं। राज्य की उत्पत्ति, राज्य का विकास, जनमत प्रणाली आदि समझने में समाजशास्त्र की बहुत देन है। समाजशास्त्र से पता चलता है कि राज्य मनुष्य की सामाजिक भावना का परिणाम है। समाज के विकास के स्तर के साथ-साथ राज्य का विकास हुआ है। राजनीतिक समाजशास्त्र, राजनीति विज्ञान की एक शाखा है, जो इस बात की स्पष्ट सूचक है कि राजनीतिक तथ्यों के विधिवत् एवं पूर्ण अध्ययन के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेना बहुत आवश्यक है। इस प्रकार समाजशास्त्र राजनीतिक विज्ञान के अध्ययन में सहायता प्रदान करता है।

प्रश्न 11.
राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र में किन्हीं चार अन्तरों का वर्णन करें।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र में निम्नलिखित मुख्य अन्तर पाए जाते हैं-

  1. दोनों के विषय क्षेत्र अलग-अलग हैं-राजनीति शास्त्र तथा समाजशास्त्र दोनों के विषय क्षेत्र एक-दूसरे से पृथक् हैं। राजनीति विज्ञान का मुख्य विषय क्षेत्र राज्य है जबकि समाजशास्त्र समाज से सम्बन्धित है।
  2. समाजशास्त्र का क्षेत्र राजनीति शास्त्र की अपेक्षा व्यापक है-समाजशास्त्र का क्षेत्र राजनीति शास्त्र की अपेक्षा अधिक व्यापक है। राजनीति शास्त्र मनुष्य के जीवन के केवल राजनीतिक पहलू का ही अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र में मानव जीवन के सभी पहलुओं का अध्ययन किया जाता है।
  3. समाजशास्त्र की उत्पत्ति राजनीति शास्त्र से पहले हुई-राजनीति शास्त्र में राज्य बनने से पूर्व के मानव का अध्ययन नहीं किया जाता परन्तु समाजशास्त्र के विषय का अध्ययन मानव की उत्पत्ति से शुरू होता है।
  4. समाजशास्त्र वर्णनात्मक है, जबकि राजनीति शास्त्र आदर्शात्मक है।

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प्रश्न 12.
नीतिशास्त्र की राजनीति शास्त्र को चार देनों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. सरकार नैतिकता के सिद्धान्तों के अनुसार कानून बनाती है। कोई भी सरकार नैतिकता के विरुद्ध कानून नहीं बना सकती।
  2. जब राजनीति शास्त्र में हम यह निर्णय करते हैं कि राज्य कैसा होना चाहिए तब नीति शास्त्र हमारी बहुत सहायता करता है।
  3. नैतिक नियम जो स्थायी और लोकप्रिय हो जाते हैं, कुछ समय कानून का रूप धारण कर लेते हैं।
  4. नीति शास्त्र राजनीति शास्त्र को प्रगतिशीलता और आदर्शता प्रदान करती है।

प्रश्न 13.
नीतिशास्त्र किस प्रकार राजनीति शास्त्र से भिन्न है ? चार अन्तर बताइये।
उत्तर-
नीतिशास्त्र अग्रलिखित प्रकार से राजनीति शास्त्र से भिन्न है-

  • नीतिशास्त्र मनुष्य के प्रत्येक कार्य से सम्बन्धित है जबकि राजनीति शास्त्र मनुष्य के जीवन के केवल राजनीतिक पहलू से सम्बन्धित है। नीति मनुष्य के आन्तरिक तथा बाहरी दोनों कार्यों से सम्बन्धित है परन्तु राजनीति विज्ञान केवल मनुष्य के बाहरी कार्यों से सम्बन्धित है।
  • राज्य के नियमों का पालन करवाने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता है। यदि कोई मनुष्य सरकार के किसी कानून का उल्लंघन करता है तो उसे न्यायालय द्वारा दण्ड दिया जाता है, परन्तु नीतिशास्त्र के नियमों का उल्लंघन करने पर कोई दण्ड नहीं दिया जाता क्योंकि नीतिशास्त्र के नियमों को तोड़ना अपराध नहीं केवल पाप है।
  • राजनीति शास्त्र मुख्यतः वर्णनात्मक है क्योंकि इसमें राज्य, सरकार की शक्तियां, संविधान आदि का वर्णन रहता है, जबकि नीतिशास्त्र मुख्यत: आदर्शात्मक है और यह विषय जनता के सामने कुछ आदर्श रखे हुए हैं।
  • राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक सिद्धान्तों से है, जबकि नीतिशास्त्र का सम्बन्ध केवल सिद्धान्तों से है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र का समाजशास्त्र से सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र तथा समाजशास्त्र में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान के लिए नींव का काम करता है और इसके नियम राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों को समझने के लिए बहुत सहायक हैं। राज्य की उत्पत्ति, राज्य का विकास, जनमत, दल प्रणाली आदि समझने में समाजशास्त्र की बहुत बड़ी देन है।

प्रश्न 2.
राजनीति शास्त्र का अर्थशास्त्र से सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
राजनीतिक संस्थाओं का उदय व विकास आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम है। आर्थिक क्षेत्र में परिवर्तन आने पर राजनीतिक क्षेत्र में परिवर्तन होना अनिवार्य है। राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियां मुख्यतः आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम होती हैं।
शासन व्यवस्था यदि सुदृढ़ और शक्तिशाली है तो वहां की जनता की आर्थिक दशा अच्छी होगी। निःसन्देह राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं।

प्रश्न 3.
इतिहास, राजनीति शास्त्र के ऊपर कैसे निर्भर है ?
उत्तर-
इतिहास, राजनीति शास्त्र के अध्ययन से बहुत कुछ प्राप्त करता है। आज की राजनीति कल का इतिहास है। यदि इतिहास की घटनाओं से राजनीतिक घटनाओं को निकाल दिया जाए तो इतिहास केवल घटनाओं का संग्रह रह जाएगा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. राजनीति शास्त्र को इतिहास की किसी एक देन का वर्णन करें।
उत्तर- इतिहास द्वारा बतलाई गई भूलों के आधार पर ही राजनीतिज्ञ भविष्य में त्रुटियों में संशोधन लाते हैं।

प्रश्न 2. इतिहास को राजनीति शास्त्र की किसी एक देन का वर्णन करें।
उत्तर-राजनीतिक विचारधाराएं ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म देती हैं।

प्रश्न 3. राजनीति विज्ञान एवं इतिहास में कोई एक अन्तर बताएं।
उत्तर-इतिहास का क्षेत्र राजनीतिक विज्ञान से व्यापक है।

प्रश्न 4. किस विद्वान् ने सर्वप्रथम अर्थशास्त्र को राजनीति शास्त्र से अलग किया ?
उत्तर-एडम स्मिथ ने।

प्रश्न 5. अर्थशास्त्र की राजनीति विज्ञान को किसी एक देन का वर्णन करें।
उत्तर-राज्य द्वारा अपनाई जाने वाली नीतियां मुख्यतः आर्थिक अवस्थाओं का परिणाम होती हैं।

प्रश्न 6. अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में एक समानता बताएं।
उत्तर-अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान दोनों का ही विषय समाज में रह रहा मनुष्य है।

प्रश्न 7. अर्थशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान में एक अन्तर बताएं।
उत्तर-अर्थशास्त्र एवं राजनीति विज्ञान की अध्ययन पद्धतियां अलग-अलग हैं।

प्रश्न 8. राजनीति विज्ञान एवं समाज शास्त्र में एक अन्तर बताएं।
उत्तर-राजनीति विज्ञान का क्षेत्र समाजशास्त्र से संकुचित है।

प्रश्न 9. राजनीति विज्ञान एवं नीति शास्त्र में एक अन्तर बताएं।
उत्तर-नीति शास्त्र मनुष्य के प्रत्येक कार्य से सम्बन्धित है, जबकि राजनीति विज्ञान मनुष्य के जीवन के केवल राजनीतिक पहलू से संबंध रखता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. शासन व्यवस्था यदि शक्तिशाली है, तो वहां की जनता की आर्थिक दशा ………. होगी।
2. अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान, दोनों ही भूतकाल, वर्तमान और …………… से सम्बन्धित हैं।
3. ………… का सम्बन्ध वस्तुओं से है, जबकि राजनीति विज्ञान का मनुष्यों से।
4. ………… के अनुसार बहुत-सी आर्थिक सम्स्याओं का हल राजनीतिक आर्थिक हालतों से आरम्भ होता है।
5. राजनीति शास्त्र समाज शास्त्र की एक ……….. है।
उत्तर-

  1. अच्छी
  2. भविष्य
  3. अर्थशास्त्र
  4. डॉ० गार्नर
  5. शाखा।

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प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. समाज शास्त्र राजनीति विज्ञान के लिए नींव का काम करता है।
2. राजनीति शास्त्र एवं समाज शास्त्र का मुख्य विषय राज्य है।
3. समाज शास्त्र राजनीति विज्ञान से पहले बना।
4. राजनीति शास्त्र का विषय क्षेत्र समाज शास्त्र से व्यापक है।
5. समाज शास्त्र वर्णनात्मक है, जबकि राजनीति विज्ञान आदर्शात्मक है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
यह कथन किसका है कि, “राज्य जीवन को सम्भव बनाने के लिए उत्पन्न हुआ, परन्तु अब वह जीवन को अच्छा बनाने के लिए विद्यमान है।”
(क) प्लेटो
(ख) अरस्तु
(ग) हॉब्स
(घ) लॉक।
उत्तर-
(ख) अरस्तु

प्रश्न 2.
नीतिशास्त्र की राजनीति विज्ञान को क्या देन है ?
(क) जो नैतिक नियम स्थायी एवं प्रचलित होते हैं, वे कानून का रूप धारण कर लेते हैं।
(ख) नैतिकता के कारण राजनीति विज्ञान में प्रगतिशीलता एवं आदर्शता बनी रहती है।
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्पूर्ण शास्त्र अन्तर्राष्ट्रीय नैतिकता पर आधारित है।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान की नैतिक शास्त्र को क्या देन है ?
(क) सरकार लोगों के नैतिक स्तर को ऊंचा करने के लिए कानून बनाती है।
(ख) सरकार सामाजिक बुराइयों को दूर करती है।
(ग) सरकार राज्य में शान्ति की स्थापना करती है और नैतिकता शान्ति के वातावरण में ही विकसित होती है।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र एवं नीति शास्त्र में क्या अन्तर पाया जाता है ?
(क) नीति शास्त्र मनुष्य के प्रत्येक कार्य से सम्बन्धित रहता है, जबकि राजनीति विज्ञान मनुष्य के जीवन के केवल राजनीतिक पक्ष से सम्बन्धित रहता है।
(ख) राज्य के कानूनों का पालन न करने वाले को दण्ड दिया जाता है, जबकि नीतिशास्त्र के नियमों को तोड़ना केवल पाप माना जाता है।
(ग) राजनीति विज्ञान मुख्यतः वर्णात्मक है, जबकि नीति शास्त्र आदर्शात्मक है।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र के अर्थ और क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
(Discuss the definition and scope of political science.)
अथवा
राजनीति शास्त्र की परिभाषा दें तथा इसके क्षेत्र का वर्णन करें।
(Define political science and describe its scope.)
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में जन्म लेता है और समाज में ही रह कर अपने जीवन का पूर्ण विकास करता है। समाज के बिना वह रह नहीं सकता। संगठित समाज में जब एक ऐसी संस्था की स्थापना हो जाए जिसके द्वारा उस समाज का शासन चलाया जा सके तथा वह समाज सत्ता सम्पन्न हो और एक निश्चित भाग पर निवास करता हो तो वह राज्य बन जाता है।

राज्य के अन्दर रहकर ही मनुष्य अपना विकास कर सकता है। राज्य की एजेंसी सरकार द्वारा राज्य की इच्छा को व्यक्त किया जाता है और वही इस इच्छा को लागू करती है। वह शास्त्र जो राज्य और सरकार की जानकारी देता है, उसे हम राजनीति शास्त्र कहते हैं।

राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटिकल साइंस (Political Science) कहते हैं । यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगर-राज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था परन्तु आज बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना हो गई है, इसलिए अब हम इसका अर्थ राज्य के अध्ययन से लेते हैं। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है। राजनीति विज्ञान के अर्थ को समझने के लिए विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं का अध्ययन करना अति आवश्यक है।

राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाएं (Traditional definitions of Political Science)-राजनीति विज्ञान की परम्परागत परिभाषाओं को हम तीन भागों में बांट सकते हैं :-

(क) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को केवल राज्य का अध्ययन करने वाला विषय मानते हैं।
(ख) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को केवल सरकार से सम्बन्धित विषय मानते हैं।
(ग) उन विद्वानों की परिभाषाएं जो राजनीति शास्त्र को राज्य तथा सरकार दोनों से सम्बन्धित मानते हैं।

(क) राजनीति विज्ञान राज्य से सम्बन्धित है (Political Science is concerned with the state only)कुछ विद्वानों के मतानुसार, राजनीति शास्त्र का सम्बन्ध केवल राज्य से है। ब्लंटशली (Bluntschli), प्रो० गार्नर (Prof. Garner), गैटेल (Gettell), गैरीज़ (Garies) आदि इस विचार के मुख्य समर्थक हैं :-

  • ब्लंटशली (Bluntschli) के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र उस विज्ञान को कहा जाता है जिसका सम्बन्ध राज्य से है और जिसमें राज्य की मूल प्रकृति, उसके रूपों, विकास तथा उसकी आधारभूत स्थितियों को समझने और जानने का प्रयत्न किया जाता है।”
  • प्रो० गार्नर (Prof. Garner) के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।” (“Political Science begins and ends with the State.”)
  • लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) के शब्दों में, “राजनीति शास्त्र और राज्य उसके विकास की आवश्यक अवस्थाओं के साथ सम्बन्धित है।” (Political Science is concerned with the State and with the conditions essential for its development.)

(ख) राजनीति विज्ञान सरकार के साथ सम्बन्धित है (Political Science is concerned with the Government)-कुछ विद्वान् राजनीति विज्ञान को सरकार के अध्ययन तक सीमित मानते हैं। सीले, लीकॉक आदि विद्वान् इसी विचार के समर्थक हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

1. सीले (Seeley) का कहना है कि “जिस प्रकार राजनीतिक अर्थव्यवस्था सम्पत्ति का, प्राणिशास्त्र जीवन का, बीजगणित अंकों का और रेखागणित स्थान और इकाई का अध्ययन करता है उसी प्रकार राजनीति शास्त्र शासन-प्रणाली का अध्ययन करता है।” (“Political Science investigates the phenomena of government, or Political Economy deals with wealth, Biology with life, Algebra with number and Geometry with space and magnitude.”)
2. डॉ० लीकॉक (Dr. Leacock) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से सम्बन्धित है।” (“Political Science deals with Government only.)”.

(ग) राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार से सम्बन्धित (Political Science is concerned with State and Government)-कुछ विद्वानों के विचारानुसार राजनीति विज्ञान में राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन किया जाता है। गैटेल, गिलक्राइस्ट, पाल जैनेट तथा लॉस्की ने इसी विचार का समर्थन किया है।

  • फ्रांसीसी लेखक पाल जैनेट (Paul Janet) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र समाज शास्त्र का वह भाग है जो राज्य के आधारों तथा सरकार के सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।” (“Political Science is that part of Social Science which treats the foundations of the State and principles of government.”)
  • गैटेल (Gettell) के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध उन व्यक्तियों के समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य सरकार तथा कानून हैं।”
  • गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का विवेचन करता है।” (“Political Science deals with the general problems of the State and Government.”)

राजनीति विज्ञान की आधुनिक परिभाषाएं (Modern Definitions of Political Science)-द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद राजनीति शास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में एक नवीन दृष्टिकोण का उदय हुआ है, जो निश्चित रूप से अधिक व्यापक और अधिक यथार्थवादी है। व्यवहारवादी क्रान्ति ने राजनीति शास्त्र की परिभाषाओं को नया रूप दिया है। कैटलिन, लासवैस, मेरियम, राबर्ट डाहल, डेविड ईस्टन, आल्मण्ड तथा पॉवेल, मैक्स वेबर आदि राजनीति शास्त्र के आधुनिक दृष्टिकोण के प्रतिनिधि विद्वान् हैं।

  • बैन्टले (Bentley) का कहना है कि राजनीति में महत्त्वपूर्ण ‘शासन’ और उसकी संस्थाएं नहीं हैं, बल्कि शासन के कार्य की प्रक्रिया है और उस पर प्रभाव डालने वाले ‘दबाव समूह’ हैं। अतः राजनीति विज्ञान शासन की प्रक्रिया और दबाव समूहों के अध्ययन का शास्त्र है।
  • लासवैल और कैपलॉन (Lasswell and Kaplan) के अनुसार, “एक आनुभाविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और सहभागिता का अध्ययन है।” (“Political Science as an empirical inquiry is the study of the shaping and sharing of power.”)
  • डेविड ईस्टन (David Easton) के अनुसार, “राजनीति मूल्यों का सत्तात्मक निर्धारण है जैसा कि यह शक्ति के वितरण और प्रयोग से प्रभावित होता है।” (“Politics is the study of authoritative allocation of values, as it is influenced by the distribution and use of power.”) ईस्टन ने राजनीति शास्त्र के अध्ययन-क्षेत्र में तीन बातों-नीति, सत्ता और समाज (Policy, Authority and Society) को प्रमुख माना है।
  • आलमण्ड और पॉवेल (Almond and Powell) ने कहा है कि आधुनिक राजनीति विज्ञान में हम ‘राजनीतिक व्यवस्था’ का अध्ययन और विश्लेषण करते हैं।
    स्पष्ट है कि आधुनिक विद्वान् राजनीति शास्त्र की परिभाषा पर एक मत नहीं हैं। कोई उसे मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन का शास्त्र मानता है, कोई उसे शक्ति के अध्ययन का और कोई सत्ता के अध्ययन का। इन समस्त आधुनिक दृष्टिकोणों का समन्वय करते हुए राबर्ट डाहल (Robert Dahl) ने कहा है कि “राजनीतिक विश्लेषण का शक्ति , शासन अथवा सत्ता के सम्बन्ध है।” (“Political analysis deals with power, rule or authority.”)

आधुनिक राजनीतिक विद्वानों में कई मतभेदों के बावजूद भी इस सम्बन्ध में विचार साम्य है कि वे राजनीति शास्त्र को अब राज्य या सरकार का विज्ञान नहीं मानते हैं। उनका कहना है कि राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार का, शक्ति का, सत्ता का तथा मानव समूह की अन्तः क्रियाओं का विज्ञान है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति शास्त्र की परिभाषा के सम्बन्ध में अपनाया गया यह आधुनिक दृष्टिकोण भी एकांगी ही है। शक्ति राजनीति शास्त्र के विभिन्न अध्ययन विषयों में से केवल एक है, एकमात्र नहीं। अतः राजनीति शास्त्र के कुछ विद्वानों विशेषतया वी० ओ० के (V.0. Key), जे० रोलैण्ड, पिनॉक और डेविड जी० स्मिथ आदि के द्वारा इस विषय की परिभाषा के सम्बन्ध में परम्परागत और आधुनिक दृष्टिकोण में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया गया है।

पिनॉक और स्मिथ (Penock and Smith) ने पूर्णतया सन्तुलित दृष्टिकोण अपनाते हुए लिखा है कि, “इस प्रकार राजनीति विज्ञान किसी भी समाज में उन सभी शक्तियों, संस्थाओं तथा संगठनात्मक ढांचों से सम्बन्धित होता है जिन्हें उस समाज में सुव्यवस्था की स्थापना और उसको बनाए रखने, अपने सदस्यों के अन्य सामूहिक कार्यों के उत्पादन तथा उनके मतभेदों का समाधान करने के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण और अन्तिम सत्ता माना जाता है।”

राजनीति शास्त्र का विषय क्षेत्र (Scope of Political Science)-

राजनीति शास्त्र के क्षेत्र में तीन विचारधाराएं प्रचलित हैं :

  • पहली विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र का विषय राज्य है।
  • दूसरी विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र का विषय-क्षेत्र सरकार के अध्ययन तक ही सीमित है।
  • तीसरी विचारधारा के अनुसार, राजनीति शास्त्र राज्य तथा सरकार का अध्ययन करता है।

कुछ विद्वानों के अनुसार राजनीति शास्त्र राज्य तथा सरकार का ही अध्ययन नहीं, बल्कि मनुष्य का भी अध्ययन करता है। प्रो० लॉस्की ने ऐसा ही मत प्रकट किया है। उन्होंने लिखा है कि “राजनीति शास्त्र के अध्ययन का सम्बन्ध संगठित राज्यों से सम्बन्धित मनुष्यों के जीवन से है।”
संयुक्त राष्ट्र शौक्षणिक, वैज्ञानिक-सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) के नेतृत्व में सितम्बर, 1948 में राजनीतिक वैज्ञानिकों का एक सम्मेलन हुआ जिसमें उन्होंने राजनीति शास्त्र के क्षेत्र को निम्नलिखित शीर्षकों के अधीन निश्चित किया :

  • राजनीतिक सिद्धान्त (Political Theory)—इसमें राजनीतिक सिद्धान्त और राजनीतिक विचारों के इतिहास का अध्ययन शामिल है।
  • राजनीतिक संस्थाएं (Political Institutions)—इसमें संविधान, प्रान्तीय और स्थानीय सरकार के प्रशासनिक, आर्थिक और सामाजिक कार्यों का अध्ययन शामिल है।
  • राजनीतिक दल (Political Parties)—इसमें राजनीतिक दलों, समूहों, जनमत इत्यादि का अध्ययन शामिल है।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध (International Relation)—इसमें अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय कानून इत्यादि शामिल हैं।

इस विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजनीति शास्त्र निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करता है :

1. राज्य का अध्ययन (Study of State)-राजनीति शास्त्र राज्य का विज्ञान है और इसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता है। गैटल के मतानुसार राजनीति शास्त्र राज्य के अतीत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन करता है।

(क) राज्य के अतीत का अध्ययन (The State as it had been)-राज्य वह धुरी है जिसके इर्द-गिर्द राजनीति शास्त्र घूमता है। परन्तु राज्य का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसमें राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राजनीतिक संस्थाओं, विचारधाराओं के बदलते हुए स्वरूप का अध्ययन किया जाता है।

(ख) राज्य के वर्तमान का अध्ययन (The State as it is)-राजनीति शास्त्र राज्य के वर्तमान स्वरूप का अध्ययन भी करता है। इसमें राज्य क्या है, राज्य के तत्त्व कौन-से हैं, राज्य की प्रकृति, राज्य के उद्देश्य, राज्य के अपने नागरिकों के साथ सम्बन्ध तथा राज्य अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए क्या-क्या साधन प्रयोग करता है आदि का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन का सीमा क्षेत्र बहुत विस्तृत है।

(ग) राज्य के भविष्य का अध्ययन (The State as it ought to be)-राज्य का अध्ययन इसके वर्तमान रूप के अध्ययन के साथ ही समाप्त नहीं हो जाता। परिवर्तन प्रकृति का नियम है, इसलिए राज्य प्रगतिशील है। राज्य का लगातार विकास हो रहा है। राज्य जन-कल्याण के लिए है, इसलिए भविष्य में भी राज्य का ढांचा इस प्रकार का होना चाहिए कि जनता को अधिक-से-अधिक लाभ मिले। राज्य-शास्त्री का यह कर्त्तव्य है कि वह राज्य के अतीत तथा वर्तमान का पूर्ण ज्ञान लेकर भविष्य के लिए सुझाव दे ताकि राज्य की मशीनरी इस ढंग की हो कि जनता का अधिकसे-अधिक कल्याण हो सके। इसमें हम यह देखते हैं कि भविष्य में राज्य कैसा होना चाहिए तथा क्या एक अन्तर्राष्ट्रीय राज्य की स्थापना हो सकेगी कि नहीं।

2. सरकार का अध्ययन (Study of Government)-सरकार राज्य का अभिन्न भाग है। सरकार के बिना राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती। सरकार राज्य की ऐसी एजेंसी है जिसके द्वारा राज्य की इच्छा को प्रकट तथा कार्यान्वित किया जाता है। राज्य के उद्देश्यों की पूर्ति सरकार द्वारा ही की जाती है। राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं किसरकार क्या है, इसके अंग कौन-से हैं, इसके कार्य क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं।

3. शासन प्रबन्ध का अध्ययन (Study of Administration)-राजनीति शास्त्र लोक प्रशासन से सम्बन्धित है। शासन प्रबन्ध एक जटिल क्रिया है। राज्य प्रबन्ध में सरकारी कर्मचारी योगदान देते हैं और इन्हीं सरकारी कर्मचारियों से सम्बन्धित शास्त्र को लोक प्रशासन कहा जाता है। कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, अवकाश आदि सभी बातें जोकि लोक प्रशासन में आती हैं, राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित होती हैं, अतः उन सबके लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन आवश्यक है।

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4. मनुष्य का अध्ययन (Study of Man)-मनुष्यों को मिलाकर राज्य बनता है। राजनीति शास्त्र, जिसमें मुख्यतः राज्य का अध्ययन किया जाता है, मनुष्य का अध्ययन भी करता है। इसमें मनुष्यों का राज्य के साथ क्या सम्बन्ध है, उनके अधिकार और कर्त्तव्य तथा नागरिकता की प्राप्ति तथा लोप इत्यादि बातों का अध्ययन किया जाता है।

5. समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन (Study of Associations and Institutions)-राज्य के अन्दर कई प्रकार के समुदाय और संस्थाएं होती हैं जिनके द्वारा मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा किया जाता है। राजनीति शास्त्र इन विभिन्न समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन भी करता है। इसके अतिरिक्त चुनाव प्रणाली, जनमत का संगठन, दबाव गुट, लोक-सम्पर्क की व्यवस्था, प्रसारण के साधन आदि के बारे में भी राजनीति शास्त्र में अध्ययन किया जाता है।

6. राजनीतिक विचारधारा का अध्ययन (Study of Political Thought)-राज्य क्या है, राज्य के पास कौनकौन से अधिकार और शक्तियां हैं और उनकी क्या सीमाएं हो सकती हैं ? राज्य की आज्ञाओं को लोग क्यों माने, किन-किन व्यवस्थाओं में लोगों को राज्य की आज्ञाओं की अवहेलना करने का अधिकार होना चाहिए, राज्य की शक्ति व लोगों के अधिकारों के मध्य कहां लकीर खींची जाए जैसे बहुत-से महत्त्वपूर्ण और मौलिक प्रश्नों के उत्तर समयसमय पर विभिन्न राजनीतिक विद्वान् विचारकों ने दिए हैं। अतः इन सब बातों का अध्ययन हम राजनीति शास्त्र में करते हैं। आदर्शवाद, व्यक्तिवाद, उपयोगितावाद, फासिज्म, गांधीवाद आदि का अध्ययन राजनीति शास्त्र में किया जाता है।

7. राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन (Study of Political Culture)-राजनीति शास्त्र में राज्य और सरकार का ही नहीं बल्कि राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन पर भी विशेष बल दिया जाता है। राजनीति के विद्वान् इन बातों का विश्लेषण करते हैं कि भौगोलिक परिस्थितियों, जातीय और भाषायी विभिन्नताओं, परम्पराओं और जनता के विश्वासों का राजनीतिक प्रक्रिया पर क्या प्रभाव पड़ता है।

8. नेतृत्व का अध्ययन (Study of Leadership)-राजनीति शास्त्र का एक महत्त्वपूर्ण विषय नेतृत्व है। जब लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति और हितों की रक्षा के लिए संगठित होते हैं तब उन्हें नेतृत्व की आवश्यकता अनुभव होती है। कोई भी संगठन अपने उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाता जब तक उस संगठन का अच्छा नेतृत्व नहीं किया जाता। नेतृत्व के बिना कोई संगठन सफल नहीं हो सकता। समाज में सदा कुछ ऐसे व्यक्ति होते हैं जो अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक योग्यता रखते हैं और दूसरे व्यक्तियों को शीघ्र प्रभावित कर लेते हैं। ऐसे लोगों को नेतागण कहा जाता है। राजनीति शास्त्र में नेतृत्व और अच्छे नेता के गुणों का अध्ययन किया जाता है।

9. राजनीतिक दलों का अध्ययन (Study of Political Parties)-लोकतन्त्रीय प्रणाली बिना राजनीतिक दलों के नहीं चल सकती। राजनीतिक दल क्या हैं, राजनीतिक दलों के प्रकार, राजनीतिक दलों की भूमिका इत्यादि का राजनीति शास्त्र में अध्ययन किया जाता है।

10. अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय संगठन का अध्ययन (Study of International Politics and Organisation) वर्तमान समय में कोई भी राज्य आत्मनिर्भर नहीं है। प्रत्येक राज्य को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसलिए एक राज्य दूसरे राज्यों से सम्बन्ध स्थापित करता है, जिससे कई समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। राजनीति शास्त्र अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का भी अध्ययन करता है। राजनीति शास्त्र में अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का भी अध्ययन किया जाता है। राजनीति शास्त्र में युद्ध, शान्ति तथा शक्ति-सन्तुलन की समस्याओं पर विचार किया जाता है। प्रथम महायुद्ध के पश्चात् राष्ट्र संघ और द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना की गई थी। राजनीति शास्त्र में राष्ट्र संघ और संयुक्त राष्ट्र संघ के संगठन, कार्यों, सफलताओं एवं असफलताओं आदि का अध्ययन किया जाता है।

11. शक्ति तथा सत्ता का अध्ययन (Study of Power and Authority)-मैक्स वैबर, मैरियम, लासवैल, राबर्ट डाहल, डेविड ईस्टन आदि विद्वानों के मतानुसार राजनीति शास्त्र में सभी प्रकार की शक्ति तथा सत्ता का भी अध्ययन किया जाता है। शक्ति तथा सत्ता के क्या अर्थ हैं ? शक्ति तथा सत्ता किस प्रकार प्राप्त होती है, व्यक्ति और व्यक्ति समूह किस प्रकार से शासन संचालन और सार्वजनिक नीतियों के निर्माण को अपनी शक्ति तथा सत्ता से प्रभावित करते हैं इत्यादि ऐसे प्रश्न हैं जिनका उत्तर राजनीति शास्त्र से ही प्राप्त किया जा सकता है।

12. राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के सम्बन्ध में आधुनिक दृष्टिकोण (Scope of Political Science-Most Modern Point of View)-आधुनिक दृष्टिकोण का राजनीतिक क्षेत्र अत्यधिक व्यापक है। आधुनिक विद्वानों ने राजनीति शास्त्र की नई दिशाएं निर्धारित की हैं। डॉ० वीरकेश्वर प्रसाद सिंह के शब्दों में, “इसे वैज्ञानिकता प्रदान करने के दृष्टिकोण से रूढ़िवादी विषयों, जैसे-राज्य के लक्ष्य, सर्वश्रेष्ठ सरकार, औपचारिक संस्थाओं का अध्ययन, ऐतिहासिक पद्धति आदि को इससे अलग कर दिया गया है। मूल्यों, राज्यों एवं उसकी संस्थाओं के बदले मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार तथा राजनीतिक गतिविधियों का अध्ययन राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत किया जाने लगा है।” 1967 में अमेरिकन पोलिटिकल साइंस एसोसिएशन ने राजनीति शास्त्र के विषय क्षेत्र का निर्धारण करते समय इसके 27 उपक्षेत्रों की चर्चा की। जिनमें मुख्य हैं-मनुष्य और उसका राजनीतिक व्यवहार, समूह, संस्थाएं, प्रशासन, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, सिद्धान्त, विचारवाद, मूल्य, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, सांख्यिकीय सर्वेक्षण, शोध पद्धतियां आदि।

आर्नल्ड ब्रेश्ट (Arnold Brecht) ने ‘International Encyclopaedia of Social Sciences’ 1968 में राजनीतिक सिद्धान्त के अन्तर्गत अग्र अध्ययन इकाइयां बताई हैं :

(1) समूह (Group), (2) सन्तुलन (Equilibrium), (3) शक्ति, नियन्त्रण एवं प्रभाव (Power, Control and Influence), (4) क्रिया (Action), (5) विशिष्ट वर्ग (Elite), (6) निर्णय (Decision) तथा विनिश्चय-प्रक्रिया, (7) पूर्वाभासित प्रतिक्रिया (Anticipated Action) तथा (8) कार्य (Function)।

13. नई धारणाओं का अध्ययन (Study of New Concepts)-राजनीति शास्त्र में कुछ नई धारणाओं ने जन्म लिया है। इसमें राजनीतिक प्रणाली (Political System), शक्ति की धारणा (Concept of Power), राजनीतिक समाजीकरण (Political Socialization), राजनीतिक सत्ता की धारणा (Concept of Political Authority), उचितता की धारणा (Concept of Legitimacy), प्रभाव की धारणा (Concept of Influence) आदि कुछ नई धारणाएं हैं। इन धारणाओं का अध्ययन राजनीति शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में शामिल है।

इसके अतिरिक्त कुछ समाज-शास्त्र से सम्बन्ध रखने वाली अवधारणाओं का अध्ययन भी इसके अन्तर्गत करते हैं। जैसे-राजनीति, संस्थाएं, सरकार, न्याय, स्वतन्त्रता, समानता आदि। कुछ नवीन अवधारणाएं-समाजीकरण, राजनीतिक विकास, राजनीतिक संचार आदि हैं। अब अत्यधिक वैज्ञानिकता पर बल दिया जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-राजनीति शास्त्र के विषय क्षेत्र के अध्ययन से पता चलता है कि इसका क्षेत्र बहुत विशाल है। इसमें राज्य, सरकार, मनुष्य, समुदाय तथा संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है। इसमें कानून तथा विश्व समस्याओं का भी अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
राजनीति शास्त्र पढ़ने से क्या लाभ हैं?
(What are the advantages of studying Political Science ?)
अथवा
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के महत्त्व की व्याख्या करें। (Discuss the significance of the study of Political Science.)
उत्तर-
कुछ विद्वान् आज के वैज्ञानिक युग में राजनीति विज्ञान के सिद्धान्तों के अध्ययन का कोई मूल्य नहीं समझते, परन्तु उनकी यह धारणा ठीक नहीं है। आइवर ब्राउन (Ivor Brown) ने ठीक ही कहा है कि, “यदि इसे सामाजिक जीवन के यथार्थ मूल्यों के प्रति सहज बुद्धि के दृष्टिकोण से तथा उचित रीति से अध्ययन किया जाए तो राजनीतिक सिद्धान्त ठोस भी हैं और लाभप्रद भी।” प्रत्येक व्यक्ति, व्यक्ति होने के साथ-साथ राज्य का नागरिक भी है। उसका राज्य के साथ अटूट सम्बन्ध है। अतः प्रत्येक के लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन करना अनिवार्य है। इसके अध्ययन के अनेक लाभ हैं जिनमें से मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

1. राजनीतिक शब्दावली का ठीक ज्ञान प्राप्त होता है (The Knowledge of the Political Terminology)राजनीति शास्र के अध्ययन का पहला लाभ यह है कि इससे राजनीतिक शब्दावली का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त होता है। इसके अध्ययन के बिना राज्य, सरकार, समाज, राष्ट्र, राष्ट्रीयता इत्यादि शब्दों के अर्थों का ठीक-ठीक ज्ञान प्राप्त नहीं होता। साधारण मनुष्य राज्य तथा राष्ट्र, राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं करता। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से पता चलता है कि इन सब शब्दों में अन्तर है और एक शब्द को दूसरे शब्द के स्थान पर प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसके अध्ययन से नागरिकों को स्वतन्त्रता तथा समानता के अर्थों का ठीक-ठीक पता चलता है।

2. राज्य तथा सरकार का ज्ञान (Knowledge of State and Government)-राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से यह पता चलता है कि राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई, राज्य क्या है, राज्य के उद्देश्य क्या हैं, इन उद्देश्यों की पूर्ति किस तरह की जा सकती है, सरकार क्या है, सरकार के कौनसे अंग हैं और इन अंगों का आपस में क्या सम्बन्ध है।

3. राज्य का व्यक्ति से सम्बन्ध दर्शाता है (It shows relationship between the State and Man)राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा व्यक्ति के सम्बन्ध का ज्ञान होता है। प्राचीन काल से यह प्रश्न चला आ रहा है कि राज्य तथा व्यक्ति में क्या सम्बन्ध है ? राज्य व्यक्ति के लिए या व्यक्ति राज्य के लिए है? पहले यह समझा जाता था कि राज्य ही सब कुछ है। राज्य व्यक्ति पर मनमाने अत्याचार कर सकता है, इसलिए व्यक्ति पर बहुत अत्याचार किए गए। परन्तु आज हमें राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा व्यक्ति के ठीक सम्बन्ध का ज्ञान होता है।

4. अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान (Knowledge of Rights and Duties)-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को अपना विकास करने में सहायता देने के लिए राज्य की तरफ से अधिकार दिए तथा उसके कर्त्तव्य निश्चित किए जाते हैं। मनुष्य तभी अपना विकास कर सकता है जब उसे अधिकारों तथा कर्तव्यों का पूरा ज्ञान प्राप्त हो। यह ज्ञान राजनीति शास्त्र से प्राप्त होता है।

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5. सहनशीलता (Toleration)-आज के युग में नागरिकों के अन्दर सहनशीलता की भावना का होना बहुत आवश्यक है। राजनीति शास्त्र लोगों को सहनशीलता का पाठ सिखाता है। राजनीति शास्त्र यह शिक्षा देता है कि प्रत्येक राज्य एक दूसरे की अखण्डता, प्रभुसत्ता का आदर करे। लोकतन्त्र में तो सहनशीलता की भावना का होना विशेष रूप में अनिवार्य है, क्योंकि लोकतन्त्र में यदि एक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने व भाषण देने की स्वतन्त्रता है तो उसका कर्त्तव्य भी है कि दूसरे के अच्छे न लगने वाले विचारों को भी सहनशीलता से सुने और समझे। अत: यह भावना राजनीति शास्त्र के अध्ययन से उत्पन्न होती है।

6. विभिन्न देशों की शासन-प्रणालियों का ज्ञान (Knowledge of the Governmental Systems of Various countries) राजनीति शास्त्र के अध्ययन से विभिन्न देशों की शासन प्रणालियों का ज्ञान होता है। इसमें विश्व के संविधानों का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार हमें इंग्लैंड, फ्रांस, अमेरिका, स्विट्ज़लैण्ड, जर्मनी, जापान, पाकिस्तान इत्यादि देशों के संविधानों का ज्ञान मिलता है। दूसरे देशों के शासन सम्बन्धी ज्ञान से हम अपने देश के शासन में सुधार कर सकते हैं।

7. लोगों में जागरूकता उत्पन्न करता है (Promotes Vigilance among the People)-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से नागरिकों के अधिकारों तथा कर्त्तव्य के ज्ञान, विश्व के दूसरे देशों की शासन प्रणाली के ज्ञान, राज्य तथा सरकार के ज्ञान से नागरिकों में जागरूकता उत्पन्न होती है जिससे वे देश के शासन को कार्य कुशल बनाने का प्रयत्न करते हैं। वे शासन कार्यों में दिल से भाग लेते हैं, सरकार की नीतियों की आलोचना करते तथा अपने सुझाव देते हैं। प्रजातन्त्र शासन प्रणाली की सफलता के लिए नागरिकों में जागरूकता होनी अति आवश्यक है। यह सत्य है कि सतत् चौकसी स्वतन्त्रता का मूल्य है (Enternal vigilance is the price of liberty)। यदि नागरिक अपनी स्वतन्त्रता को कायम रखना चाहते हैं तो उन्हें हमेशा ही जागरूक रहना होगा और जागरूकता राजनीति शास्त्र के अध्ययन से आती है।

8. स्वस्थ राजनीतिक दलों की उत्पत्ति (Growth of Healthy Political Parties)–लोकतन्त्र शासन के लिए स्वस्थ राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। अच्छे व स्वस्थ राजनीतिक दल किसे कहा जा सकता है, इसका पता राजनीति शास्त्र से चल सकता है। हमें राजनीति शास्त्र से ही पता चलता है कि देश के अन्दर स्वार्थ सिद्धि के लिए उत्पन्न हुए छोटे-छोटे गुट व राजनीतिक दल नहीं अपितु इनका ढांचा तो राजनीतिक तथा आर्थिक आधार पर खड़ा होना चाहिए। राजनीति शास्र का ज्ञान रखने वाले नागरिक ही स्वस्थ दलों का निर्माण कर पायेंगे और ऐसे दल सदैव राष्ट्र हित के लिए कार्य करेंगे।

9. राजनीतिज्ञों तथा शासकों के लिए विशेष उपयोगिता (Special advantages to Politicians and Administrators)-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राजनीतिज्ञों तथा शासकों को विशेष लाभ है। देश के शासन को किस प्रकार चलाया जाए, किस प्रकार के कानून बनाए जाएं कि जनता के लिए अधिक लाभदायक हों? दूसरे देशों के साथ किस प्रकार की नीति को अपनाया जाए? नागरिकों को कौन-से अधिकार दिए जाएं? सरकार के कार्यों में किस प्रकार कुशलता लाई जाए? सार्वजनिक वित्त (Public Finance) के क्या सिद्धान्त हैं ? जनता पर किस प्रकार के टैक्स लगाने चाहिएं? वे कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनका सामना प्रत्येक राजनीतिज्ञ तथा शासक को करना पड़ता है और इन प्रश्नों के स्पष्ट उत्तर राजनीति शास्र देता है।

10. वर्तमान समस्याओं का हल (Solution of Current Problems)-राजनीति शास्त्र ठोस सिद्धान्तों पर आधारित है और उन सिद्धान्तों को वर्तमान समस्याओं पर लागू करके समस्याओं को सुलझाया जा सकता है। यदि नागरिकों और शासकों को यह पता है कि अमुक दशा में कौन-से कानून लागू करने चाहिएं तो देश में राजनीतिक प्रगति बड़ी सन्तोषप्रद होगी। यदि शासक अच्छी प्रकार सोच-विचार कर कदम उठाएं तो कोई कारण नहीं कि देश-विदेश की वर्तमान समस्याएं हल न हों।

11. प्रजातन्त्र की सफलता (Success of Democracy)-लोकतन्त्र की सफलता बहुत हद तक राजनीति शास्त्र के अध्ययन पर निर्भर है। लोकतन्त्र जनता का, जनता द्वारा, जनता के लिए शासन होता है। प्रतिनिधियों का सुयोग्य होना अथवा न होना जनता पर निर्भर करता है। जनता को अच्छी सरकार प्राप्त करने के लिए अच्छे प्रतिनिधि चुनने होंगे और यह तभी हो सकता है जब जनता को राजनीतिक शिक्षा मिली हो।

लोकतन्त्र की सफलता में राजनीति शास्त्र का अध्ययन काफ़ी सहयोग देता है, क्योंकि इससे नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का, सरकार के संगठन कार्यों तथा सरकार के उद्देश्यों का, शासन की विभिन्न समस्याओं का ज्ञान प्राप्त होता है।

12. विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं का ज्ञान (Knowledge of Various Political Ideology)राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं आदर्शवाद (Idealism), व्यक्तिवाद (Individualism), गांधीवाद (Gandhism), समाजवाद (Socialism), अराजकतावाद (Anarchism), साम्यवाद (Communism) आदि का अध्ययन होता है। इन विचारधाराओं के भिन्न-भिन्न उद्देश्य होते हैं।

13. विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों की जानकारी (Knowledge of Various International Organisations)-राजनीति शास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है। इन संस्थाओं में संयुक्त राष्ट्र (United Nations), संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organisation), विश्व स्वास्थ्य संघ (World Health Organisation), अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संघ (I.L.O.) आदि महत्त्वपूर्ण संगठन हैं।

14. छात्र वर्ग के लिए उपयोगी (Useful for Student-Class)-राजनीति शास्त्र विद्यार्थियों के लिए विशेष रूप से उपयोगी तथा अनिवार्य है। आज का छात्र भविष्य का नागरिक व शासक है। अतः छात्र वर्ग को राजनीतिक विचारधाराओं, राजनीतिक प्रणालियों, अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होना अनिवार्य है।

निष्कर्ष (Conclusion)-अन्त में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति शास्त्र के अध्ययन के अनेक लाभ हैं। भारत में लोकतन्त्र की सफलता तभी हो सकती है जब जनता को शासन के बारे में ज्ञान प्राप्त हो और वे अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का उचित प्रयोग करें। इसके लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन अति आवश्यक है। भारत में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। सरकार भी विद्यार्थियों में राजनीतिक शिक्षा का प्रचार करने के लिए प्रयत्नशील है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र का शाब्दिक अर्थ बताओ।
अथवा
राजनीति (Politics) शब्द की उत्पत्ति तथा इसका अर्थ बताओ।
उत्तर-राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटिकल साईंस (Political Science) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगरराज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था परन्तु आज बड़े-बड़े राज्यों की स्थापना हो गई है। इसलिए अब हम इसका अर्थ राज्य के अध्ययन से लेते हैं। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान की चार परम्परागत परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र की महत्त्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • प्रो० गार्नर के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।”
  • लीकॉक के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से सम्बन्धित है।”
  • गैटेल के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध व्यक्तियों के उन समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य, सरकार तथा कानून हैं।”
  • गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार की सामान्य समस्याओं का विवेचन करता है।”

प्रश्न 3.
राजनीति विज्ञान की चार आधुनिक परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  • बैन्टले का कहना है कि राजनीति में महत्त्वपूर्ण ‘शासन’ और उसकी संस्थाएं नहीं हैं बल्कि शासन के कार्य की प्रक्रिया है और उस पर प्रभाव डालने वाले दबाव समूह हैं। अत: राजनीति विज्ञान शासन प्रक्रिया और दबाव समूहों के अध्ययन का शास्त्र है।
  • लासवैल और कैपलॉन के अनुसार, “एक आनुभाविक खोज के रूप में राजनीति विज्ञान शक्ति के निर्धारण और सहभागिता का अध्ययन है।”
  • डेविड ईस्टन के अनुसार, “राजनीति मूल्यों का सत्तात्मक निर्धारण है जैसे कि यह शक्ति के वितरण और प्रयोग से प्रभावित होता है।”
  • आलमण्ड और पॉवेल के अनुसार, “आधुनिक राजनीति विज्ञान में हम राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन और विश्लेषण करते हैं।”

प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र के किन्हीं चार क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र निम्नलिखित विषयों का अध्ययन करता है

  • राज्य का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राज्य का है, राज्य के तत्त्व, राज्य की प्रकृति और राज्य के भविष्य आदि का अध्ययन किया जाता है।
  • सरकार का अध्ययन–राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं कि सरकार क्या है ? इसके कौन-कौन से अंग हैं ? इसके कार्य क्या-क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं ?
  • शासन प्रबन्ध का अध्ययन-कर्मचारियों की नियुक्ति, स्थानान्तरण, अवकाश सभी बातें जोकि लोक प्रशासन में आती हैं, राजनीति शास्त्र से सम्बन्धित होती हैं।
  • समुदायों और संस्थाओं का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में चुनाव प्रणाली, राजनीतिक दल, दबाव समूह, लोक सम्पर्क की व्यवस्था तथा अन्य समुदायों का अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 5.
राजनीति विज्ञान के अध्ययन के चार लाभ बताइये।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान के अध्ययन से अनेक लाभ हैं जिनमें से मुख्य निम्नलिखित हैं-

  • राजनीतिक शब्दावली का ठीक ज्ञान प्राप्त होता है-राजनीति शास्त्र के अध्ययन का पहला लाभ यह है कि इससे राजनीतिक शब्दावली का ठीक-ठाक ज्ञान प्राप्त होता है। इसके अध्ययन के बिना राज्य, सरकार, राष्ट्र, राष्ट्रीयता आदि शब्दों के अर्थों का सही ज्ञान प्राप्त नहीं होता।
  • राज्य तथा सरकार का ज्ञान-राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य तथा सरकार है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन से यह पता चलता है कि राज्य की उत्पत्ति कैसे हुई ? राज्य क्या है ? राज्य के उद्देश्य क्या हैं ? इन उद्देश्यों की पूर्ति किस प्रकार की जा सकती है ? सरकार क्या है ? सरकार के कौन-से अंग हैं और उनका आपस में क्या सम्बन्ध है ?
  • अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान-मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। मनुष्य को अपना विकास करने में सहायता देने के लिए उसे राज्य की तरफ से अधिकार व कर्त्तव्य दिए गए हैं। मनुष्य तभी अपना पूर्ण विकास कर सकता है जब उसे अपने अधिकारों व कर्त्तव्यों का ज्ञान हो। यह ज्ञान उसे राजनीति शास्त्र से प्राप्त होता है।
  • राजनीति विज्ञान लोगों को सहनशीलता का पाठ सिखाता है।

प्रश्न 6.
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान है। इसके पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र के विज्ञान होने के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं.-

  • राजनीति शास्त्र में प्रयोग सम्भव है-राजनीति शास्त्र में प्राकृतिक विज्ञानों की तरह प्रयोग, प्रयोगशाला में नहीं होते बल्कि इतिहास राजनीति शास्त्र के लिए एक प्रयोगशाला है। ऐतिहासिक घटनाएं एक प्रयोग हैं जिनसे राज्यशास्त्री अपने परिणाम निकालते हैं।
  • राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण का सिद्धान्त-यह ठीक है कि प्राकृतिक विज्ञानों की तरह राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण में सम्बन्ध स्थापित नहीं किया जा सकता, परन्तु फिर भी यदि घटनाओं का अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से किया जाए तो घटनाओं के ऐसे कारण ढूंढ निकाले जा सकते हैं जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि समान कारणों का काफ़ी सीमा तक समान प्रभाव होता है। विद्वानों ने यह परिणाम निकाला है कि यदि किसी देश की जनता अधिक ग़रीब होती जाएगी तो इसका परिणाम उस देश में क्रान्ति है।
  • तुलनात्मक तथा निरीक्षण पद्धति सम्भव-राजनीति शास्त्र विज्ञान है क्योंकि इसमें भौतिक विज्ञानों की तरह तुलनात्मक प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है। अरस्तु ने 158 संविधानों का अध्ययन करके अपने जो सिद्धान्त प्रस्तुत किए उनमें आज बहत हद तक सच्चाई है।
  • राजनीति विज्ञान में भी भविष्यवाणी की जा सकती है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीति विज्ञान का अर्थ, क्षेत्र तथा महत्व

प्रश्न 7.
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान नहीं है। इस कथन के पक्ष में चार तर्क दीजिए।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र एक विज्ञान नहीं है। इस विषय में निम्नलिखित तर्क दिए जाते हैं-

  • राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों में एकता नहीं है-रसायन शास्त्र तथा भौतिक शास्त्र के सिद्धान्तों पर वैज्ञानिकों के एक ही विचार होते हैं अर्थात् इनके सिद्धान्तों में एकता पाई जाती है। परन्तु राजनीति शास्त्र में ऐसे सिद्धान्तों की कमी है जिनके विषय में विद्वानों के समान विचार हों।
  • राजनीति शास्त्र में कार्य-कारण सिद्धान्त का न लागू होना-राजनीति शास्त्र को इस आधार पर भी विज्ञान नहीं माना जा सकता क्योंकि इसमें रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान या अन्य किसी विज्ञान की तरह कार्य-कारण का सिद्धान्त पूर्ण रूप से लागू नहीं होता।
  • राजनीति शास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग असम्भव है-राजनीति शास्त्र विज्ञान नहीं है क्योंकि इसमें उस ढंग से प्रयोग नहीं किए जा सकते जिस ढंग से प्राकृतिक विज्ञानों में किए जाते हैं। राजनीति शास्त्र में रसायन विज्ञान की तरह ऐसे प्रयोग सम्भव नहीं हैं जिनका परिणाम सब समयों पर एक जैसा हो।
  • राजनीति विज्ञान में भविष्यवाणी करने में कठिनाई आती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीति शास्त्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में पोलिटीकल साईंस (Political Science) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स (Politics) से निकला है। इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के शब्द पोलिस (Polis) से हुई है जिसका अर्थ है नगरराज्य। ग्रीक लोग नगर-राज्यों में रहते थे, इसलिए उस समय पोलिटिक्स का अर्थ नगर-राज्य के अध्ययन से होता था। इस प्रकार शाब्दिक अर्थ में राजनीति शास्त्र वह विषय है जो राज्य का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान की दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-

  1. प्रो० गार्नर के मतानुसार, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अन्त राज्य के साथ होता है।”
  2. गैटेल के अनुसार, “राजनीति शास्त्र को राज्य का विज्ञान कहा जा सकता है। इसका सम्बन्ध व्यक्तियों के उन समुदायों से है जो राजनीतिक संगठन का निर्माण करते हैं, उनकी सरकारों के संगठन से है और सरकारों के कानून बनाने तथा लागू करने और अन्तर्राज्यीय सम्बन्धों वाली गतिविधियों से है। इसके मुख्य विषय राज्य, सरकार तथा कानून हैं।”

प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र के क्षेत्र की व्याख्या करो।
उत्तर-

  1. राज्य का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में राज्य की उत्पत्ति, उसके विस्तार, राज्य का है, राज्य के तत्त्व, राज्य की प्रकृति और राज्य के भविष्य आदि का अध्ययन किया जाता है।
  2. सरकार का अध्ययन-राजनीति शास्त्र में हम अध्ययन करते हैं कि सरकार क्या है ? इसके कौन-कौन से अंग हैं ? इसके कार्य क्या-क्या हैं तथा इसके विभिन्न रूप कौन-से हैं ?

प्रश्न 4.
विद्यार्थियों के लिए राजनीति शास्त्र का अध्ययन किस प्रकार महत्त्व रखता है ?
उत्तर-
विद्यार्थियों को राजनीतिक विचारधाराओं, राजनीतिक प्रणालियों और अपने अधिकारों, कर्तव्यों व सरकार की समस्याओं की जानकारी प्राप्त होना आवश्यक है। राजनीति शास्त्र के अध्ययन के द्वारा विद्यार्थियों को इन सभी विषयों की जानकारी प्राप्त होती है। राजनीति शास्त्र विद्यार्थियों को सूझवान व सचेत नागरिक बनने में मदद करता है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. राजनीति शास्त्र का पिता किसे माना जाता है ?
उत्तर-अरस्तु को।

प्रश्न 2. ‘Polis’ किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर-ग्रीक भाषा का।

प्रश्न 3. ‘Polis’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर-‘Polis’ का अर्थ है-नगर राज्य (City State)।

प्रश्न 4. ग्रीक लोग कहाँ रहते थे ?
उत्तर-ग्रीक लोग नगर राज्यों में रहते थे।

प्रश्न 5. ‘Political Science’ शब्द किस शब्द से निकला है ?
उत्तर-Politics से ।।

प्रश्न 6. ‘Politics’ शब्द की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है?
उत्तर-Politics शब्द की उत्पत्ति ‘Polis’ से हुई है।

प्रश्न 7. अरस्तु ने कितने संविधानों का अध्ययन किया?
उत्तर-158 संविधानों का।

प्रश्न 8. किसी एक विद्वान् का नाम लिखें, जो राजनीति शास्त्र को विज्ञान मानता है?
उत्तर-अरस्तु।

प्रश्न 9. किसी एक विद्वान् का नाम बताएं, जो राजनीति शास्त्र को विज्ञान नहीं मानता है ?
उत्तर-मैटलैंड।

प्रश्न 10. “जब मैं ऐसे परीक्षा प्रश्नों के समूह को देखता हूँ, जिनका शीर्षक राजनीतिक विज्ञान होता है, तो मुझे प्रश्नों पर नहीं, बल्कि शीर्षक पर खेद होता है।” यह कथन किसका है?
उत्तर-मैटलैंड।

प्रश्न 11. राजनीति शास्त्र की कोई एक उपयोगिता लिखें।
उत्तर-राजनीति शास्त्र के अध्ययन से राज्य तथा सरकार का ज्ञान मिलता है।

प्रश्न 12. नगर राज्यों का अध्ययन करने वाले विषय को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-राजनीति शास्त्र।।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. रिपब्लिक पुस्तक के लेखक ………… हैं
2. मैटलैंड राजनीति विज्ञान को विज्ञान ………….. मानता है।
3. राजनीति शास्त्र में राज्य और …………का अध्ययन किया जाता है।
4. अरस्तु ने …………. संविधानों का अध्ययन किया।
उत्तर-

  1. प्लेटो
  2. नहीं
  3. सरकार
  4. 158.

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प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राजनीति शास्त्र के अध्ययन का मुख्य विषय मशीन को ही समझा जाना चाहिए क्योंकि राजनीति शास्त्र की समस्त मशीनरी मशीन के इर्द-गिर्द ही घूमती है।
2. राजनीति शास्त्र को अंग्रेज़ी में अर्थशास्त्र (Economics) कहते हैं। यह शब्द पोलिटिक्स से निकला है।
3. पोलिस (Polis) का अर्थ है-नगर-राज्य।
4. गार्नर के अनुसार, “राजनीति शास्त्र केवल सरकार से संबंधित है।”
5. राजनीति शास्त्र के क्षेत्र के संबंध में तीन विचारधाराएं प्रचलित हैं।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
Political Science शब्द किस शब्द से निकला है ?
(क) State से
(ख) Right से
(ग) Politics से
(घ) Freedom से।
उत्तर-
(ग) Politics से।

प्रश्न 2.
यह कथन किसका है, “राजनीति शास्त्र का आरम्भ तथा अंत राज्य के साथ होता है।”
(क) लॉस्की
(ख) गार्नर
(ग) विलोबी
(घ) गैरीज।
उत्तर-
(ख) गार्नर ।

प्रश्न 3.
राजनीति शास्त्र तथा राजनीति विज्ञान में क्या अंतर पाया जाता है ?
(क) राजनीति शास्त्र का जन्म राजनीति से पहले हुआ।
(ख) राजनीति विज्ञान नैतिकता पर आधारित है, जबकि राजनीति सुविधा पर।
(ग) दोनों के लक्ष्य अलग-अलग हैं।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
राजनीति शास्त्र के विषय-क्षेत्र में शामिल हैं-
(क) राज्य का अध्ययन
(ख) सरकार का अध्ययन
(ग) राजनीतिक विचारधारा का अध्ययन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
किस विचारक ने समाजशास्त्र तथा मानवविज्ञान को जुड़वा बहनें माना है ?
उत्तर-
एल० क्रोबर (L. Kroeber) ने समाजशास्त्र तथा मानवविज्ञान को जुड़वा बहनें माना है।

प्रश्न 2.
समाजशास्त्रियों तथा अर्थशास्त्रियों द्वारा अध्ययन किये जाने वाले कुछ विषयों के नाम बताइये।
उत्तर-
पूँजीवाद, औद्योगिक क्रान्ति, मज़दूरी के संबंध, विश्वव्यापीकरण इत्यादि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिनका दोनों समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र अध्ययन करते हैं।

प्रश्न 3.
मानवविज्ञान के अध्ययन के कोई दो क्षेत्र बताइये।
उत्तर-
भौतिक मानव विज्ञान तथा सांस्कृतिक मानव विज्ञान।

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II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समाज के विज्ञान को समाजशास्त्र कहा जाता है। समाजशास्त्र में समूहों, संस्थाओं, संगठन तथा समाज के सदस्यों के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है तथा यह अध्ययन वैज्ञानिक ढंग से होता है। साधारण शब्दों में समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है।

प्रश्न 2.
राजनीति विज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार का विज्ञान है। यह मुख्य रूप से उन सामाजिक समूहों का अध्ययन करता है जो राज्य की स्वयं की सत्ता में आते हैं। इसके अध्ययन का मुद्दा शक्ति, राजनीतिक व्यवस्थाएं, राजनीतिक प्रक्रियाएं, सरकार के प्रकार तथा कार्य, अन्तर्राष्ट्रीय संबंध, संविधान इत्यादि होते हैं।

प्रश्न 3.
शारीरिक मानवविज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भौतिक मानवविज्ञान, मानवविज्ञान की ही एक शाखा है जो मुख्य रूप से मनुष्य के उद्भव तथा उद्विकास, उनके वितरण तथा उनके प्रजातीय लक्षणों में आए परिवर्तनों का अध्ययन करती है। यह आदि मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करके प्राचीन तथा आधुनिक संस्कृतियों को समझने का प्रयास करती है।

प्रश्न 4.
सांस्कृतिक मानवविज्ञान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सांस्कृतिक मानव विज्ञान, मानव विज्ञान की वह शाखा है जो संस्कृति के उद्भव, विकास तथा समय के साथ-साथ उसमें आए परिवर्तनों का अध्ययन करती है। मानवीय समाज की अलग-अलग संस्थाएं किस प्रकार सामने आईं, उनका अध्ययन भी मानव विज्ञान की यह शाखा करती है।

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प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मनुष्य की आर्थिक गतिविधियों से संबंधित है। यह हमारे पास मौजूद संसाधनों तथा कम हो रहे संसाधनों को संभाल कर रखने के ढंगों के बारे में बताता है। यह कई क्रियाओं जैसे कि उत्पादन, उपभोग, वितरण तथा लेन-देन से भी संबंधित है।

प्रश्न 6.
इतिहास किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इतिहास बीत गई घटनाओं का अध्ययन करने वाला विज्ञान है। यह तारीखों, स्थानों, घटनाओं तथा संघर्ष का अध्ययन है। यह मुख्य रूप से पिछली घटनाओं तथा समाज पर उन घटनाओं के पड़े प्रभावों से संबंधित है। इतिहास को पिछले समय का माइक्रोस्कोप, वर्तमान का राशिफल तथा भविष्य का टैलीस्कोप भी कहते हैं।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान के मध्य कोई दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  • समाजशास्त्र समाज तथा सामाजिक संबंधों का विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान राज्य तथा सरकार का विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र संगठित, असंगठित तथा अव्यवस्थित समाजों का अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक तौर पर संगठित समाजों का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र का विषयक्षेत्र बहुत बड़ा अर्थात् असीमित है जबकि राजनीति विज्ञान का विषय क्षेत्र बहुत ही सीमित है।
  • समाजशास्त्र एक साधारण विज्ञान है जबकि राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है।
  • समाजशास्त्र मनुष्य का सामाजिक मनुष्यों के तौर पर अध्ययन करता है जबकि राजनीति विज्ञान मनुष्यों का राजनीतिक मनुष्यों के तौर पर अध्ययन करता है।

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प्रश्न 2.
समाजशास्त्र तथा इतिहास के बीच क्या संबंध है ? दो बिन्द बताइये।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के बीत चुके समय का अध्ययन करता है। यह आरंभ से लेकर अब तक मानवीय समाज का क्रमवार वर्णन करता है। केवल इतिहास पढ़कर ही पता चलता है कि समज, इसकी संस्थाएं, संबंध, रीति रिवाज इत्यादि कैसे उत्पन्न हुए। इसमें विपरीत समाजशास्त्र वर्तमान का अध्ययन करता है। इसमें सामाजिक संबंधों, परंपराओं, संस्थाओं, रीति रिवाजों, संस्कृति इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार समाजशास्त्र वर्तमान समाज की संस्थाओं, अलग-अलग संबंधों इत्यादि का अध्ययन करता है। अगर हम दोनों विज्ञानों का संबंध देखें तो इतिहास प्राचीन समाज के प्रत्येक पक्ष अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र उस समाज के वर्तमान पक्ष का अध्ययन करता है। दोनों विज्ञानों को अपना अध्ययन करने के लिए एक दूसरे की सहायता लेनी पड़ती है क्योंकि एक-दूसरे की सहायता किए बिना यह अपना कार्य नहीं कर सकते।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र तथा मानव विज्ञान के मध्य संबंधों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मानव विज्ञान को अपनी संस्कृति व सामाजिक क्रियाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र की मदद लेनी पड़ती है, मानव वैज्ञानिकों ने आधुनिक समाज के ज्ञान के आधार पर कई परिकल्पनाओं का निर्माण किया है। इसके आधार पर प्राचीन समाज का अध्ययन अधिक सुचारु रूप से किया जाता है। संस्कृति प्रत्येक समाज का एक हिस्सा होती है। बिना संस्कृति के हम किसी समाज बारे सोच भी नहीं सकते। यह सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए मानव विज्ञान को सामूहिक स्थिरता को पैदा करने वाले सांस्कृतिक व सामाजिक तत्त्वों के साथ-साथ उन तत्त्वों का अध्ययन भी करता है जो समाज में संघर्ष व विभाजन पैदा करते हैं।

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र किस प्रकार अर्थशास्त्र से संबंधित है ? संक्षेप में बताइये।
उत्तर-
किसी भी आर्थिक समस्या का हल करने के लिए हमें सामाजिक तथ्य का भी सहारा लेना पड़ता है। उदाहरण के लिए बेकारी की समस्या के हल के लिए अर्थशास्त्र केवल आर्थिक कारणों का पता लगा सकता है परन्तु सामाजिक पक्ष इसको सुलझाने के बारे में विचार देता है कि बेकारी की समस्या का मुख्य कारण सामाजिक कीमतों की गिरावट है। इस कारण आर्थिक क्रियाएं सामाजिक अन्तक्रियाओं का ही परिणाम होती हैं इनको समझने के लिए अर्थशास्त्र को समाजशास्त्र का सहारा लेना पड़ता है।

कई प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के पश्चात् सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। समाजशास्त्र ने जब सामाजिक सम्बन्धों के टूटने या समाज की व्यक्तिवादी दृष्टि क्यों है का अध्ययन करना होता है तो उसे अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। जैसे अर्थशास्त्र समाज में पैसे की बढ़ती आवश्यकता इत्यादि जैसे कारणों को बताता है। इसके अतिरिक्त कई सामाजिक बुराइयां जैसे नशा करना भी मुख्य कारण से आर्थिक क्षेत्र से ही जुड़ा हुआ है। इन समस्याओं को समाप्त करने के लिए समाजशास्त्र को अर्थशास्त्र का सहारा लेना पड़ता है।

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प्रश्न 5.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के मध्य सम्बन्ध की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मनोविज्ञान, समाजशास्त्रियों को आधुनिक उलझे समाज की समस्याओं को सुलझाने में मदद देता है। मनोविज्ञान प्राचीन व्यक्तियों का अध्ययन करके समाजशास्त्री को आधुनिक समाज को समझने में मदद करता है। इस प्रकार समाजशास्त्री को मनो वैज्ञानिक द्वारा एकत्रित की सामग्री पर ही निर्भर रहना पड़ता है। इस तरह मनोविज्ञान का समाजशास्त्र को काफी योगदान है।

मनोविज्ञान को व्यक्तिगत व्यवहार के अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की विषय-वस्तु की ज़रूरत पड़ती है। कोई भी व्यक्ति समाज से बाहर नहीं रह सकता इसी कारण अरस्तु ने भी मनुष्य को एक सामाजिक पशु कहा है। मनोवैज्ञानिक को मानसिक क्रियाओं को समझने के लिए उसकी सामाजिक स्थितियों का ज्ञान प्राप्त करना ज़रूरी हो जाता है। इस प्रकार व्यक्तिगत व्यवहार को जानने के लिए समाजशास्त्र की आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान किस प्रकार अन्तर्सम्बन्धित हैं ? संक्षेप में समझाइये।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान में जब भी कानून बनाते हैं तो सामाजिक परिस्थितियों को भी ध्यान में रखना पड़ता है, क्योंकि यदि सरकार कोई भी कानून बिना सामाजिक स्वीकृति के बना देती है तो लोग आन्दोलन की राह पकड़ लेते हैं। ऐसे में समाज के विकास में रुकावट पैदा हो जाती है। इस कारण राजनीतिक विज्ञान को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है।

किसी भी समाज में बिना नियन्त्रण के विकास नहीं होता। राजनीति विज्ञान द्वारा समाज पर नियन्त्रण बना रहता है। बहु विवाह की प्रथा, सती प्रथा, विधवा विवाह इत्यादि जैसी सामाजिक बुराइयां जो समाज की प्रगति के लिए रुकावट बन गई हैं, को समाप्त करने के लिए राजनीति विज्ञान का सहारा लेना पड़ा है। इस प्रकार समाज में परिवर्तन लाने के लिए हमें राजनीति विज्ञान से मदद लेनी पड़ती है।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र तथा मानव विज्ञान के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. समाजशास्त्र आधुनिक समाज की आर्थिक व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था, कला आदि का अध्ययन अपने ही ढंग से करता है अर्थात् यह केवल सामाजिक आकार, सामाजिक संगठन व विघटन का अध्ययन करता है। परन्तु सामाजिक मानव-विज्ञान की विषय-वस्तु किसी एक समाज की राजनीतिक, आर्थिक व्यवस्था, सामाजिक संगठन, धर्म, कला आदि प्रत्येक वस्तु का अध्ययन करता है व यह सम्पूर्ण समाज की पूर्णता का अध्ययन करता है।

2. मानव विज्ञान अपने आप को समस्याओं के अध्ययन तक सीमित रखता है। परन्तु समाजशास्त्र भविष्य तक भी पहुंचता है।

3. समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों से सम्बन्धित है व मानव विज्ञान समाज की सम्पूर्णता से सम्बन्धित होता है। इस प्रकार दोनों समाज शास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में ही आते हैं।

4. समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र काफ़ी विशाल है जबकि मानव विज्ञान का विषय क्षेत्र काफ़ी सीमित है क्योंकि यह समाजशास्त्र का ही एक हिस्सा है।

5. समाजशास्त्र आधुनिक, सभ्य तथा जटिल समाजों का अध्ययन करता है जबकि मानव विज्ञान प्राचीन तथा अनपढ़ समाजों का अध्ययन करता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 8.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  • समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग हिस्सों का वर्णन करता है व अर्थशास्त्र समाज के केवल आर्थिक हिस्से का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र की इकाई दो या दो से अधिक व्यक्ति होते हैं परन्तु अर्थशास्त्र की इकाई मनुष्य व उसके आर्थिक हिस्से के अध्ययन से है। .
  • समाजशास्त्र में ऐतिहासिक, तुलनात्मक विधियों का प्रयोग होता है जबकि अर्थशास्त्र में निगमन व आगमन विधि का प्रयोग किया जाता है।
  • समाजशास्त्र व अर्थशास्त्र के विषय क्षेत्र में भी अन्तर होता है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग हिस्सों का चित्र पेश करता है। इस कारण इसका क्षेत्र विशाल होता है परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से का अध्ययन करने तक सीमित होता है। इस कारण इसका विषय क्षेत्र सीमित होता है।

प्रश्न 9.
समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान के मध्य अंतर कीजिए।
उत्तर-

  • मनोविज्ञान मनुष्य के मन का अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र समूह से संबंधित है।
  • मनोविज्ञान का दृष्टिकोण व्यक्तिगत है जबकि समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है।
  • मनोविज्ञान में प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग होता है जबकि समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग होता है।
  • समाजशास्त्र मानवीय व्यवहार के सामाजिक पक्ष का अध्ययन करता है जबकि मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार के मनोवैज्ञानिक पक्ष का अध्ययन करता है।
  • समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र काफ़ी विशाल है जबकि मनोविज्ञान का विषय क्षेत्र काफ़ी सीमित है।

प्रश्न 10.
समाजशास्त्र तथा इतिहास के मध्य अन्तरों की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. इतिहास में सामाजिक इतिहास की नई शाखा का विकास, समाजशास्त्र के कई संकल्पों, विचारों व विधियों आदि को अपने अध्ययन क्षेत्र में शामिल कर लिया है। इस प्रकार इतिहासकार को कई तरह की समस्याओं को सुलझाने में समाजशास्त्र से मदद मिलती है।

2. समाजशास्त्र व इतिहास में अलग-अलग विधियों को इस्तेमाल किया जाता है। समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है तो वहां इतिहास में वर्णनात्मक विधि का।

3. दोनों विज्ञान की विश्लेषण की इकाइयों में भिन्नता है। समाजशास्त्र की विश्लेषण की इकाई मानवीय समूह है परन्तु इतिहास मानव के कारनामों के अध्ययन पर बल देता है।

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IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र कैसे अन्य सामाजिक विज्ञानों से भिन्न है ? किसी दो पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
व्यक्ति का जीवन कई दिशाओं से सम्बन्धित है। जब समाजशास्त्र को किसी भी समाज का अध्ययन करना हो तो उसको अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान इत्यादि से भी सहायता लेनी पड़ती है। जैसे अर्थ वैज्ञानिक उत्पादन, वितरण, उपभोग इत्यादि सम्बन्धी बताता है, इतिहास हमें प्राचीन घटनाओं का ज्ञान देता है, इत्यादि। समाजशास्त्र इनकी सहायता से विस्तारपूर्वक अध्ययन योग्य हो जाती है। इसलिए इसे सभी सामाजिक विज्ञानों की मां भी कहते इसके अतिरिक्त समाजशास्त्र के विषय प्रति अलग-अलग समाजशास्त्रियों की अलग-अलग धारणाएं हैं, जैसे कुछ समाजशास्त्रियों के अनुसार यह एक स्वतन्त्र विज्ञान है और दूसरे विद्वानों के अनुसार यह शेष सामाजिक विज्ञानों का मिश्रण है। हरबर्ट स्पैंसर जैसे समाजशास्त्रियों ने यह बताया है कि समाजशास्त्र संपूर्ण तौर पर बाकी सामाजिक विज्ञानों से अलग नहीं किया जा सकता क्योंकि इसमें सभी सामाजिक विज्ञानों के विषय वस्तु को अध्ययन हेतु प्रयोग किया जाता है। मैकाइवर ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ में इस बात का जिक्र किया है कि हम इन सभी सामाजिक विज्ञानों को बिल्कुल एक-दूसरे से अलग करके अध्ययन नहीं कर सकते। इन विद्वानों के अनुसार, समाजशास्त्र की अपनी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं अपितु यह शेष विज्ञानों का मिश्रण है।

कई समाजशास्त्री इसको एक स्वतन्त्र विज्ञान के रूप में स्वीकार करते हैं। जैसे गिडिंग्स, वार्ड कहते हैं कि समाज शास्त्र को अपने विषय क्षेत्र को समझने हेतु समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित होना पड़ता है परन्तु जब यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है तो इसे बाकी सामाजिक विज्ञानों के विषय-क्षेत्र का अध्ययन करने की आवश्यकता पड़ती है।

बार्स (Barmes) के अनुसार, “समाजशास्त्र न तो दूसरे सामाजिक विज्ञानों की रखैल है और न ही दासी अपितु उनकी बहन है।”

इस तरह हम देखते हैं कि दूसरा कोई भी सामाजिक विज्ञान सामाजिक संस्थाओं, प्रक्रियाओं, सम्बन्धों इत्यादि का अध्ययन नहीं करता केवल समाजशास्त्र इनका अध्ययन करता है। इस प्रकार समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का सम्पूर्ण अध्ययन करता है। इसकी अपनी विषय-वस्तु है। समाज के जिन भागों का अध्ययन समाज-विज्ञान करता है उनका अध्ययन दूसरे सामाजिक विज्ञान नहीं करते।

उपरोक्त वर्णन से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि यदि समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के लिए दूसरे सामाजिक विज्ञानों की सहायता लेता है तो इसका यह अर्थ नहीं कि वह सहायता लेनी ही जानता है पर देनी नहीं। दे तो वो सकता है यदि हम इस बात को स्वीकार लें कि इसकी अपनी विषय-वस्तु भी है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि किसी भी सामाजिक समस्या का हल ढूंढ़ना हो तो अकेले किसी भी सामाजिक विज्ञान के लिए सम्भव नहीं कि वह ढूंढ़ सके। यदि समस्या आर्थिक क्षेत्र से सम्बन्धित है तो केवल अर्थशास्त्री ही नहीं उस समस्या का हल ढूंढ़ सकते, अपितु दूसरे सामाजिक विज्ञानों की सहायता भी हमें लेनी पड़ती है। इसीलिए यह सभी सामाजिक विज्ञान (Social Sciences) एक-दूसरे से सम्बन्धित भी हैं परन्तु इनकी विषय-वस्तु अलग भी है।

(i) समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology Economics)-

समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित भी हैं और अलग भी। इसलिए दोनों के सम्बन्धों और अन्तरों को जानने से पूर्व हमारे लिए यह आवश्यक है कि पहले हम यह जान लें कि समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र के क्या अर्थ हैं।

साधारण शब्दों में, मनुष्य जो भी आर्थिक क्रियाएं करता है, अर्थशास्त्र उनका अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र यह बताता है कि मनुष्य अपनी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति अपने सीमित स्रोतों के साथ कैसे करता है। मनुष्य अपनी आर्थिक इच्छाओं की पूर्ति पैसा करता है। इसीलिए पैसों के उत्पादन, वितरण और उपभोग से सम्बन्धित मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन भी अर्थ की विज्ञान करता है। इस प्रकार इस व्याख्या में पैसे को अधिक महत्त्व दिया गया है पर आधुनिक अर्थशास्त्री पैसे की जगह पर मनुष्य को अधिक महत्त्व देते हैं।

समाजशास्त्र मानव संस्थाओं, सम्बन्धों, समूहों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, कीमतों, आपसी सम्बन्धों, सम्बन्धों की व्यवस्था, विचारधारा और उनमें होने वाले परिवर्तनों और परिणामों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है जो कि सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। – मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया व्यक्तियों की अन्तक्रियाओं का परिणाम होती है। इसके साथ-साथ आर्थिक क्रियाएं, सामाजिक क्रियाओं और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती हैं। इसलिए सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धी जानने हेतु आर्थिक संस्थाओं के बारे में पता होना आवश्यक है और आर्थिक क्रियाओं सम्बन्धी पता करने के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं का पता होना आवश्यक है।

समाजशास्त्र का अर्थशास्त्र को योगदान (Contribution of Sociology to Economics)-अर्थशास्त्र व्यक्ति को यह बताता है कि कम साधन होने के साथ वह किस प्रकार अपनी अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अर्थशास्त्री व्यक्ति का कल्याण तभी कर सकता है यदि उसे सामाजिक परिस्थितियों का पूरा ज्ञान हो परन्तु इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वह समाजशास्त्र से सहायता लेता है।

अतः ऊपर दी गई चर्चा से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि अर्थशास्त्री समाजशास्त्रियों की सहायता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। कुछ भी नहीं से अर्थ है समाज में न तो प्रगति ला सकते हैं और न ही अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि अर्थशास्त्री अपने क्षेत्र के अध्ययन के लिए समाज शास्त्रियों पर निर्भर हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया, सामाजिक अन्तक्रिया का परिणाम होती है। इसीलिए मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया को उसके सामाजिक सन्दर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। इसीलिए समाज के आर्थिक विकास के लिए या समाज के लिए कोई आर्थिक योजना बनाने के लिए, उस समाज के सामाजिक पक्ष के पता होने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार अर्थशास्त्र समाजशास्त्र पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Economics to Sociology)-समाज शास्त्र भी अर्थशास्त्र से बहुत सारी सहायता लेता है। आधुनिक समाज में आर्थिक क्रियाओं ने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। कई प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों मैक्स वैबर, कार्ल मार्क्स, दुर्थीम और सोरोकिन इत्यादि ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के बाद सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। जब भी समाज में समय-समय पर आर्थिक कारणों में परिवर्तन आया तो उनका प्रभाव हमारे समाज पर ही हुआ। समाजशास्त्री ने जब यह अध्ययन करना होता है कि हमारे समाज में सामाजिक सम्बन्ध क्यों टूट रहे हैं या समाज में व्यक्ति का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण क्यों हो रहा है तो इसका अध्ययन करने के लिए वह समाज की आर्थिक क्रियाओं पर नज़र डालता है तो यह महसूस करता है कि जैसे-जैसे समाज में पैसे की आवश्यकता बढ़ती जा रही है लोग अधिकाधिक सुविधाओं वाली चीजें प्राप्त करने के पीछे लग जाते हैं।

उसके साथ समाज का दृष्टिकोण भी पूंजीपति हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को समाज में जीने के लिए खुद मेहनत करनी पड़ रही है। इसी कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और व्यक्तियों की दृष्टि भी व्यक्तिवादी हो जाती है। इसके अतिरिक्त और भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उसको अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए नशा करने जैसी सामाजिक समस्या ही ले लो। इस समस्या ने जवान पीढ़ी को काफ़ी कमज़ोर बना दिया है। इस समस्या का मुख्य कारण आर्थिक है क्योंकि जैसे-जैसे लोग गलत तरीकों का इस्तेमाल करके (स्मगलिंग इत्यादि) आवश्यकता से अधिक पैसा कमा लेते हैं तब वह पैसों का दुरुपयोग करने लग जाते हैं। अत: यह नशे के दुरुपयोग जैसी बुरी सामाजिक समस्या, जोकि समाज को खोखला कर रही है, से बचने के लिए हमें ग़लत साधनों से पैसे कमाने पर निगरानी रखनी चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा, नशे का प्रयोग, जुआ खेलना आदि बुरी सामाजिक समस्याओं का अन्त किया जा सके। इन समस्याओं को खत्म करने के लिए समाजशास्त्र अर्थशास्त्र पर निर्भर रहता है।

आजकल के समय में बहुत सारे आर्थिक वर्ग, जैसे मज़दूर वर्ग, पूंजीपति वर्ग, उपभोक्ता और उत्पादक वर्ग सामने आए हैं। इसलिए इन वर्गों और उनके सम्बन्धों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र इन वर्गों के सामाजिक सम्बन्धों को समझे। इन आर्थिक सम्बन्धों को समझने के लिए उसे अर्थ विज्ञान की सहायता लेनी ही पड़ती है।

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology & Economics)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में जहां इतना गहरा सम्बन्ध पाया जाता है और यह भी पता चलता है कि कैसे यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे के नियमों व परिणामों का खुलकर प्रयोग करते हैं। इन दोनों विज्ञानों में भिन्नता भी पाई जाती है, जो निम्नलिखित अनुसार है-

1. विषय क्षेत्र (Scope)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र में भी अन्तर है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग भागों का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है। इसलिए समाजशास्त्र का क्षेत्र विशाल है, परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से के अध्ययन तक ही सीमित है, इसीलिए इसका विषय क्षेत्र सीमित है।

2. सामान्य और विशेष (General & Specific) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है क्योंकि यह उन सब प्रकार के सामाजिक प्रकटनों का अध्ययन करता है जो हरेक समाज के हरेक भाग से सम्बन्धित नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज से सम्बन्धित हैं। परन्तु अर्थशास्त्र एक विशेष विज्ञान है, क्योंकि इसका सम्बन्ध आर्थिक क्रियाओं तक सीमित है।

3. दृष्टिकोण में अन्तर (Different Points of View)-समाजशास्त्र का कार्य समाज में पाई गई सामाजिक क्रियाओं को समझना है, सामाजिक समस्याओं आदि का अध्ययन करना है। इसलिए इसका दृष्टिकोण सामाजिक है। दूसरी ओर अर्थशास्त्री का सम्बन्ध व्यक्ति की पदार्थ खुशी से है जैसे अधिकाधिक पैसा कैसे कमाना है, उसका विभाजन कैसे करना है और उसका प्रयोग कैसे करना है आदि। इसीलिए इसका दृष्टिकोण आर्थिक है।

4. इकाई के अध्ययन में अन्तर (Difference in Study of Unit)-समाजशास्त्र की इकाई समूह है। वह समूह में रह रहे व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। परन्तु दूसरी ओर अर्थशास्त्री व्यक्ति के आर्थिक पक्ष के अध्ययन से सम्बन्धित होता है। इसीलिए इसकी इकाई व्यक्ति है।

(ii) समाजशास्त्र तथा राजनीतिक विज्ञान में अंतर (Difference between Sociology and Political Science)-

राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाज शास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर लिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की व्यवस्था और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। दूसरी ओर समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अलग-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान, राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर, समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। ये दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान उस राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है। मैकाइवर और पेज के अनुसार ‘समाज’ और ‘राज्य’ का दायरा एक नहीं और न ही दोनों का विस्तार साथ-साथ हुआ है। अपितु राज्य की स्थापना समाज में कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए हुई है। . रॉस (Ross) के अनुसार, “राज्य अपनी पुरानी अवस्था में राजनीतिक अवस्था से अधिक सामाजिक संस्था थी। यह सत्य है कि राजनीतिक तथ्यों का ज्ञान सामाजिक तथ्यों में ही है। इन दोनों विज्ञानों में अन्तर केवल इसीलिए है कि इन दोनों विज्ञानों के क्षेत्र की विशालता अध्ययन के लिए विशेष होती है, बल्कि इसीलिए नहीं है कि इनमें कोई स्पष्ट विभाजन रेखा है।” __ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध समाज में पाई जाने वाली संस्थाओं, सरकार और संगठनों का अध्ययन करने से है जबकि समाजशास्त्र का सम्बन्ध समाज का अध्ययन करने से है परन्तु राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र समूचे समाज का ही हिस्सा है जिसका समाजशास्त्र अध्ययन करता है। इस प्रकार इन दोनों विज्ञानों में अन्तर-निर्भरता भी पाई जाती है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिक कैसे और कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाज शास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः, उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है। इसी के साथ समाज की तरक्की, विकास और संगठन आदि भी बना रहता है। इस उपरोक्त विवरण का अर्थ यह नहीं कि समाजशास्त्र ही राजनीति विज्ञान की सहायता करता है अपितु राजनीति विज्ञान की भी समाजशास्त्र में बहुत ज़रूरत रहती है।

राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Political Science to Sociology)यदि समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान को कुछ देता है तो उससे बहुत कुछ लेता भी है। समाजशास्त्र भी राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है और उससे मदद लेता है।

किसी भी समाज की बिना नियन्त्रण के कल्पना ही नहीं की जा सकती। समाजशास्त्र की इस शाखा को राजनीति समाजशास्त्र भी कहते हैं। यदि देखा जाए तो समाज या सामाजिक जीवन को असली जीवन ही राजनीति विज्ञान से प्राप्त हुआ है। समाज की प्रगति, संगठन, संस्थाओं, प्रक्रियाओं, परम्पराओं, संस्कृति तथा सामाजिक सम्बन्धों आदि पर आधारित है। यदि हम प्राचीन समाज का ज़िक्र करें, जब राजनीतिक विज्ञान की पूर्णतया शुरुआत नहीं हुई थी, तब व्यक्ति. की ज़िन्दगी काफ़ी सरल थी परन्तु फिर भी उस सरल जीवन पर अनौपचारिक नियन्त्रण था। धीरे-धीरे समाज जैसे-जैसे विकसित होता गया, वैसे-वैसे हमें कानून की आवश्यकता महसूस होने लगी। उदाहरण के लिए, जब भारत में जाति प्रथा विकसित थी, तब कुछ जातियों के लोगों की स्थिति समाज में अच्छी थी, वह समाज को अपने ही ढंग से चलाते थे। दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की स्थिति जाति प्रथा में निम्न थी वे जाति के बनाए हुए नियमों से बहुत तंग थे। जाति प्रथा के बनाए जाने का मुख्य कारण समाज में सन्तुलन कायम करना था। जब राजनीति विज्ञान ने अपनी जड़ें मज़बूत कर ली तो उसने लोगों पर कानून द्वारा नियन्त्रण करना शुरू कर दिया। जो प्रथाएं समाज के लिए एक बुराई बन गई थीं और लोग भी उनको समाप्त करना चाहते थे तो कानून ने वहां अपने प्रभाव से लोगों को मुक्त करवाया क्योंकि इस कानून ने सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना ठीक समझा और लोगों ने भी इसका सम्मान किया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर समाज में वहमों-भ्रमों के आधार पर कई ऐसी प्रथाएं लोगों द्वारा कायम हुई थीं जिन्होंने समाज को अन्दर ही अन्दर से खोखला कर दिया था। इन प्रथाओं को समाप्त करना समाजशास्त्र के वश का काम नहीं था। इसीलिए उसने राजनीति विज्ञान का सहारा लिया।

उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि चाहे समस्या राजनीतिक हो या सामाजिक, हमें दोनों की इकट्ठे सहायता की आवश्यकता पड़ती है। समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान दोनों ही समाज के अध्ययन से यद्यपि अलग-अलग दृष्टिकोण से जुड़े हुए हैं, परन्तु फिर भी इनकी समस्याएं समाज से सम्बन्धित हैं। इसीलिए इनमें काफ़ी अन्तर-निर्भरता होती है।

समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Political Science)—यदि समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर हैं तो उनमें कुछ अन्तर भी हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है। समाज शास्त्र समाज में पाए जाने वाले व्यक्ति के हर पक्ष के अध्ययन से सम्बधित होता है। इसमें सामाजिक प्रक्रियाओं, परम्पराओं, सामाजिक नियन्त्रण आदि सब आ जाते हैं अर्थात् .समाजशास्त्र, उन सब प्रकार के प्रपंचों का अध्ययन करता है, जोकि हर प्रकार की मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है। इसीलिए सामान्य विज्ञान है परन्तु दूसरी ओर राजनीति विज्ञान व्यक्ति के जीवन के राजनीतिक हिस्से का अध्ययन करता है, अर्थात् उन क्रियाओं का अध्ययन करता है, जहां मनुष्य, सरकार या राज्य द्वारा दी गई रक्षा और अधिनिम प्राप्त करता है। इसीलिए यह विशेष विज्ञान है।

(2) समाजशास्त्र एक सकारात्मक विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक आदर्शवादी विज्ञान है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज के स्वरूप से भी होता है। इसमें समाज द्वारा प्रमाणित नियमों को भी स्वीकारा जाता है। परन्तु समाजशास्त्र काफ़ी स्वतन्त्र रूप में अध्ययन करता है, अर्थात् इसकी दृष्टि निष्पक्षता वाली होती है।

(3) राजनीति विज्ञान व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी मानकर ही अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इससे भी सम्बन्धित होता है कि व्यक्ति किस तरह और क्यों राजनीतिक प्राणी बना ?

(4) समाजशास्त्र असंगठित और संगठित सम्बन्धों समुदायों आदि का अध्ययन करता है क्योंकि इसमें चेतन और अचेतन प्रक्रियाओं दोनों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है और इसमें चेतन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। राज्य के चार तत्त्व जनसंख्या, निश्चित स्थान, सरकार, प्रभुत्व इसमें आ जाते हैं। यह चारों तत्त्व चेतन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र क्यों और कैसे राजनीतिक विषय बना।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र और इतिहास में संबंधों पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
इतिहास और समाजशास्त्र दोनों मानव समाज का अध्ययन करते हैं। इतिहास आदिकाल से लेकर अब तक मानवीय समाज की प्रमुख घटनाओं की सूची तैयार करता है और उन्हें कालक्रम के आधार पर संशोधित करके मानवीय जीवन की एक कहानी प्रस्तुत करता है। समाजशास्त्र और इतिहास दोनों मानवीय समाज का अध्ययन करते हैं। वास्तविकता में समाज शास्त्र की उत्पत्ति इतिहास से हुई है। समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधियों का प्रयोग किया जाता है जो इतिहास से ली गई हैं।

इतिहास मानव समाज के बीते हुए समय का अध्ययन करता है। यह आदिकाल से लेकर अब तक के मानवीय समाज का कालबद्ध वर्णन तैयार करता है। इतिहास केवल ‘क्या था’ का ही वर्णन नहीं करता अपितु ‘कैसे हुआ’ का भी विश्लेषण करता है। इसलिए इतिहास पढ़ने से हमें पता चलता है कि समाज किस तरह पैदा हुआ, इसमें सम्बन्ध, संस्थाएं, रीति-रिवाज कैसे आए। इस प्रकार इतिहास हमारे भूतकाल से सम्बन्धित है कि भूतकाल में क्याक्या हुआ, क्यों और कैसे हुआ।

इसके विपरीत समाजशास्त्र वर्तमान के मानवीय समाज का अध्ययन करता है। इसमें सामाजिक सम्बन्धों, उनके स्वरूपों, रीति-रिवाजों, परम्पराओं, संस्थाओं आदि का अध्ययन होता है। इसके साथ-साथ समाजशास्त्र में मानवीय संस्कृति, संस्कृति के अलग-अलग स्वरूपों का भी अध्ययन किया जाता है। इस तरह समाजशास्त्र वर्तमान समाज के अलग-अलग सम्बन्धों, संस्थाओं इत्यादि का अध्ययन करता है।

दोनों का विश्लेषण करें तो पता चलता है कि इतिहास बीते हुए समाज के प्रत्येक पहलू का अध्ययन करता है और समाजशास्त्र उसी कार्य को वर्तमान में आगे बढ़ाते हैं।

इतिहास का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of History to Sociology)- समाजशास्त्र इतिहास द्वारा दी गई सामग्री का प्रयोग करता है। मानवीय समाज पुराने समय से चले आ रहे सामाजिक सम्बन्धों का जाल है जिसे समझने के लिए किसी-न-किसी समय पूर्व-काल में जाना पड़ता है। जीवन की उत्पत्ति, ढंग, सारा कुछ अतीत का भाग है। इनका अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्री को इतिहास की सहायता लेनी ही पड़ती है क्योंकि इतिहास से ही सामाजिक तथ्यों का ज्ञान प्राप्त होता है। इसलिए वर्तमान को समझने के लिए इतिहास की आवश्यकता पड़ती है।

समाज शास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग अलग-अलग संस्थाओं की तुलना करने के लिए किया जाता है। इस तरह करने के लिए ऐतिहासिक सामग्री की आवश्यकता पड़ती है। दुर्थीम द्वारा किए गए ‘सामाजिक तथ्य’ में भी इतिहास द्वारा दी गई सूचनाओं का प्रयोग किया गया है। वास्तविकता में तुलनात्मक विधि का प्रयोग करने वाले समाजशास्त्रियों को इतिहास की सहायता लेनी ही पड़ती है।

अलग-अलग सामाजिक संस्थाएं एक दूसरे को प्रभावित करती रहती हैं। इन प्रभावों के कारण ही इनमें परिवर्तन आते रहते हैं। इन परिवर्तनों को देखने के लिए दूसरी संस्थाओं के प्रभाव को देखना आवश्यक हो जाता है। ऐतिहासिक सामग्री इन सबको समझने में सहायता करती है।

समाजशास्त्र का इतिहास को योगदान (Contribution of Sociology to History)- इतिहास भी समाजशास्त्र की सामग्री का प्रयोग करता है। आधुनिक इतिहास ने समाजशास्त्र के कई संकल्पों को अपने अध्ययन क्षेत्र में शामिल किया है। इसलिए सामाजिक इतिहास नाम की नयी शाखा का निर्माण हुआ है। सामाजिक इतिहास किसी राजा का नहीं, अपितु किसी संस्था के क्रमिक विकास अथवा किसी कारण से हुए परिवर्तनों का अध्ययन करता है। इस प्रकार इतिहास जो चीज़ पहले फिलॉसफी से उधार लेता था, अब वह समाजशास्त्र से उधार लेता

अन्तर (Differences) –
1. दृष्टिकोण में अन्तर (Difference of point of view)-दोनों एक ही विषय सामग्री का अलग-अलग दृष्टिकोणों से अध्ययन करते हैं। इतिहास युद्ध का वर्णन करता है लेकिन समाजशास्त्र उन घटनाओं का अध्ययन करता है जो युद्ध का कारण बनीं। समाजशास्त्री उन घटनाओं का सामाजिक ढंग के साथ अध्ययन करता है। इस तरह इतिहास पुराने ज़माने पर बल देता है और समाजशास्त्र वर्तमान के ऊपर बल देता है।

2. विषय क्षेत्र में अन्तर (Difference of subject matter)-समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र इतिहास के विषय क्षेत्र से ज्यादा व्यापक है क्योंकि इतिहास कुछ विशेष घटनाओं का या नियमों का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र साधारण घटनाओं का या नियमों से अध्ययन करता है। इतिहास सिर्फ यह बताता है कि कोई घटना क्यों हुई, पर समाजशास्त्र अलग-अलग घटनाओं के अन्तर्सम्बन्धों के बीच रुचि रखता है और फिर घटनाओं के कारण बताने की कोशिश करता है।

3. विधियों में अन्तर (Difference of methods) समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि का प्रयोग होता है जबकि इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग होता है। इतिहास किसी घटना का वर्णन करता है और उसके विकास के अलग-अलग पड़ावों (stages) का अध्ययन करता है, जिसके लिए वर्णन विधि ही उचित है। इसके विपरीत समाजशास्त्र किसी घटना के अलग-अलग देशों और अलग-अलग समय में मिलने वाले स्वरूपों का अध्ययन करके उस घटना में होने वाले परिवर्तनों के नियमों को स्थापित करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इतिहास और समाजशास्त्र की विधियों में भी काफ़ी अन्तर पाया जाता है।

4. इकाई में अन्तर (Difference in Unit)-समाजशास्त्र के विश्लेषण की इकाई मानवीय समाज और समूह है जबकि इतिहास मानव के कारनामों या कार्यों के अध्ययन पर बल देता है।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक वैज्ञानिकों के लिए समाजशास्त्रीय समझ क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
राजनीतिक विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाजशास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर दिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की प्रणाली और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मानव के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

दूसरी ओर, समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अगल-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीतिक विज्ञान उसी राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिज्ञ कैसे कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। यदि राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने के हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन ‘ करने के लिए समाज शास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है।

प्रश्न 4.
मनोविज्ञान समाजशास्त्र को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
समाजशास्त्र और मनोविज्ञान, दोनों का आपस में गहरा सम्बन्ध होता है। यह दोनों ही विज्ञान मानव के व्यवहार का अध्ययन करते हैं। क्रैच एंड क्रैचफील्ड ने अपनी पुस्तक ‘सोशल साईकोलोजी’ में बताया “सामाजिक मनोविज्ञान समाज में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।
संक्षेप में हम देखते हैं कि समाजशास्त्र का अर्थ सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करना है और मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के मानसिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। अब हम सामाजिक मनोविज्ञान का शाब्दिक अर्थ देखेंगे।

सामाजिक मनोविज्ञान का अर्थ (Meaning of Social Psychology)-सबसे पहली बात तो इस सम्बन्ध में यह कही जाती है कि यह व्यक्तिगत व्यवहार का अध्ययन करता है अर्थात् समाज का जो प्रभाव उसके मानसिक भाग पर पड़ता है, उसका अध्ययन किया जाता है। व्यक्तिगत व्यवहार के अध्ययन को समझने के लिए, वह उसकी सामाजिक परिस्थितियों को नहीं देखता अपितु तन्तु ग्रन्थी प्रणाली के आधार पर करता है।

मानसिक प्रक्रियाओं जिनका अध्ययन सामाजिक मनोविज्ञान करता है; यह है मन, प्रतिक्रिया, शिक्षा, प्यार, नफरत, भावनाएं इत्यादि। मनोविज्ञान इन सामाजिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।

हम यह कह सकते हैं कि सामाजिक प्रकटन के वैज्ञानिक अध्ययन का आधार मनोवैज्ञानिक है और इनका हम सीधे तौर पर ही निरीक्षण कर सकते हैं। अतः इस तरह हम यह विश्लेषण करते हैं कि ये दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं। अब हम इस सम्बन्धी चर्चा करेंगे कि इन दोनों विज्ञानों की आपस में एक-दूसरे को देन है और इन दोनों में पाए गए नज़दीकी सम्बन्धों के आधार पर मनोविज्ञान की नई शाखा का जन्म हुआ, जो है सामाजिक मनोविज्ञान।

मनोविज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Psychology to Sociology) समाज शास्त्र में हम सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं। सामाजिक सम्बन्धों को समझने हेतु व्यक्ति के व्यवहार को समझना आवश्यक है क्योंकि मानव की मानसिक और शारीरिक आवश्यकताएं दूसरे व्यक्ति के साथ सम्बन्धों को प्रभावित करती हैं।

मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति मानव की इन मानसिक प्रक्रियाओं, विचारों, मनोभावों इत्यादि का सूक्ष्म अध्ययन करती है। समाजशास्त्र की व्यक्ति को या समाज के व्यवहारों को समझने हेतु मनोविज्ञान की आवश्यकता ज़रूर पड़ती है। ऐसा करने के लिए मनोविज्ञान की शाखा सामाजिक मनोविज्ञान सहायक होती है जो मनुष्य को सामाजिक स्थितियों में रखकर उनके अनुभवों, व्यवहारों और उनके व्यक्तित्व का अध्ययन करती है।

समाजशास्त्री यह भी कहते हैं कि समाज में होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक आधार बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि समाज को समझने के लिए व्यक्ति के व्यवहार को समझना आवश्यक है और यह काम मनोविज्ञान का है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
पुस्तक Das Capital के लेखक कौन हैं ?
(A) वैबर
(B) दुर्थीम
(C) मार्क्स
(D) स्पैंसर।
उत्तर-
(C) मार्क्स।

प्रश्न 2.
इनमें से किसके साथ अर्थशास्त्र का सीधा सम्बन्ध नहीं है ?
(A) उपभोग
(B) धार्मिक क्रियाएं
(C) उत्पादन
(D) वितरण।
उत्तर-
(B) धार्मिक क्रियाएं।

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र का इतिहास को क्या योगदान है ?
(A) इतिहास समाजशास्त्र की सामग्री का प्रयोग करता है
(B) इतिहास ने समाजशास्त्र के कई संकल्पों को अपने क्षेत्र में शामिल किया है
(C) सामाजिक इतिहास किसी संस्था के क्रमिक विकास तथा परिवर्तनों का अध्ययन करता है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
यह शब्द किसके हैं ? “समाज व्यक्ति का विस्तृत रूप है।” .
(A) मैकाइवर
(B) अरस्तु
(C) वैबर
(D) दुर्थीम।
उत्तर-
(B) अरस्तु।

III. सही/गलत (True/False) :

1. तारा विज्ञान प्राकृतिक विज्ञान है।
2. अर्थशास्त्र सामाजिक समस्याओं को समझाने में समाजशास्त्र की सहायता लेता है।
3. अरस्तु को राजनीति विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।
4. विज्ञान को चार भागों में विभाजित किया जा सकता है।
5. राजनीति विज्ञान का दृष्टिकोण सामाजिक होता है।
6. अर्थशास्त्र में आगमन व निगमन विधियों का प्रयोग होता है।
7. अर्थशास्त्र उत्पादन, उपभोग तथा विभाजन से संबंधित होता है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. गलत,
  6. सही,
  7. सही।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Word/line Question Answers) :

प्रश्न 1.
यदि समाजशास्त्र वर्तमान की तरफ देखता है तो इतिहास…………..की तरफ देखता है।
उत्तर-
यदि समाजशास्त्र वर्तमान की तरफ देखता है तो इतिहास भूत की तरफ देखता है।

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प्रश्न 2.
मानवशास्त्र …………से सम्बन्ध रखता है।
उत्तर-
मानवशास्त्र मानव के विकास एवं वृद्धि से सम्बन्ध रखता है।

प्रश्न 3.
मानवशास्त्र का कौन-सा हिस्सा समाजशास्त्र से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
मानवशास्त्र का हिस्सा, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानव विज्ञान समाजशास्त्र से सम्बन्धित है।

प्रश्न 4.
समाज किसके साथ बनता है ?
उत्तर-
समाज व्यक्तियों के साथ बनता है।

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प्रश्न 5.
इतिहास किसके अध्ययन पर बल देता है ?
उत्तर-
इतिहास मनुष्य के कारनामों के अध्ययन पर बल देता है।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक विज्ञान की कोई उदाहरण दें।
उत्तर-
रसायन विज्ञान, पौधा विज्ञान, भौतिक विज्ञान इत्यादि सभी प्राकृतिक विज्ञान हैं।

प्रश्न 7.
समाजशास्त्र को क्या समझने के लिए इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है ?
उत्तर-
समाजशास्त्र को आधुनिक समाज को समझने के लिए इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है।

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प्रश्न 8.
इतिहास किस प्रकार का विज्ञान है ?
उत्तर-
इतिहास मूर्त विज्ञान है।

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र किस चीज़ को समझने के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र सामाजिक समस्याओं को समझने के लिए समाजशास्त्र की सहायता लेता है।

प्रश्न 10.
इतिहास में कौन-सी विधि का प्रयोग होता है ?
उत्तर-
इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग होता है।

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प्रश्न 11.
अर्थशास्त्र किससे सम्बन्धित है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र, उत्पादन, उपभोग तथा विभाजन से सम्बन्धित है।

प्रश्न 12.
सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के क्या होते हैं ?
उत्तर-
सभी सामाजिक विज्ञान एक-दूसरे के अनुपूरक तथा प्रतिपूरक होते हैं।

प्रश्न 13.
राजनीति शास्त्र का जन्मदाता………….को माना जाता है।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का जन्मदाता अरस्तु को माना जाता है।

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प्रश्न 14.
किताब ‘अर्थशास्त्र’ का लेखक………था।
उत्तर-
किताब अर्थशास्त्र का लेखक कौटिल्य था।

प्रश्न 15.
राजनीति शास्त्र किस प्रकार की घटनाओं का अध्ययन करता है ?
उत्तर-
राजनीति शास्त्र केवल राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 16.
शास्त्र को हम कितने भागों में बांट सकते हैं?
उत्तर-
शास्त्र को हम दो भागों में बांट सकते हैं-प्राकृतिक शास्त्र तथा सामाजिक शास्त्र।

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प्रश्न 17.
प्राकृतिक शास्त्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
प्राकृतिक शास्त्र वे शास्त्र होते हैं, जो जीव वैज्ञानिक घटनाओं से तथा प्राकृतिक घटनाओं से सम्बन्धित होते हैं जैसे रसायन शास्त्र, भौतिक शास्त्र, वनस्पति शास्त्र इत्यादि।

प्रश्न 18.
सामाजिक शास्त्र क्या होते हैं ?
उत्तर-
सामाजिक शास्त्र में वे शास्त्र शामिल किए जाते हैं जो मानवीय समाज से सम्बन्धित घटनाओं, प्रक्रियाओं, विधियों इत्यादि से सम्बन्धित हों जैसे अर्थशास्त्र, मनोशास्त्र, मानवशास्त्र।

प्रश्न 19.
समाजशास्त्र में इतिहास से सम्बन्धित किस नई शाखा का विकास हुआ है?
उत्तर-
समाज शास्त्र में इतिहास से सम्बन्धित नई शाखा ऐतिहासिक समाजशास्त्र का निर्माण हुआ है।

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प्रश्न 20.
इतिहास क्या होता है?
उत्तर-
इतिहास आदि काल से लेकर आज तक मानवीय समाज की प्रमुख घटनाओं की सूची तैयार करता है तथा उन्हें कालक्रम के आधार पर संशोधित करके मानवीय जीवन की एक कहानी प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 21.
बार्स ने समाजशास्त्र और सामाजिक शास्त्रों के सन्दर्भ में क्या शब्द कहे थे?
उत्तर-
बार्स ने कहा था कि, “समाजशास्त्र न तो दूसरे सामाजिक शास्त्रों की रखैल है तथा न ही दासी बल्कि उनकी बहन है।”

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विज्ञानों का विभाजन।
उत्तर-
विज्ञान में हम सिद्धांतों तथा विधियों को ढूंढ़ते हैं। इसे दो भागों में बाँटा जा सकता है तथा वह हैं:(i) प्राकृतिक विज्ञान (ii) सामाजिक विज्ञान।

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प्रश्न 2.
प्राकृतिक विज्ञान।
उत्तर-
प्राकृतिक विज्ञान वह विज्ञान होता है जिसका संबंध प्रकृति तथा जैविक घटना से होता है, जिनका संबंध, तथ्यों, सिद्धांतों इत्यादि को ढूंढ़ने का प्रयास करता है। जैसे भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान।

प्रश्न 3.
सामाजिक विज्ञान।
उत्तर-
यह विज्ञान होते हैं जो मानवीय समाज से संबंधित तथ्यों, सिद्धांतों इत्यादि की खोज करते हैं। इसमें सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है जैसे अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान, मानव विज्ञान इत्यादि।

प्रश्न 4.
इतिहास।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के बीते हुए समय का अध्ययन करता है। यह बीते हुए समय की घटनाओं तथा इनके आधार पर ही सामाजिक जीवन की विचारधारा को समझने तथा उसे समझाने का प्रयास करता है।

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प्रश्न 5.
आर्थिक संस्थाएं।
उत्तर-
आर्थिक संस्थाएं मनुष्य के आर्थिक क्षेत्र का अध्ययन करती हैं। इसमें धन का उत्पादन, वितरण तथा उपभोग किस ढंग से किया जाना चाहिए, इन सबका अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 6.
समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ।
उत्तर-
शब्द समाज शास्त्र अंग्रेजी भाषा के शब्द Sociology का हिन्दी रूपांतर है। Socio का अर्थ है समाज तथा Logos का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार समाज के विज्ञान को समाजशास्त्र का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 7.
राजनीति विज्ञान।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं इत्यादि से लेकर राज्य के संगठन, सरकार की शासन व्यवस्था इत्यादि से संबंधित सभाओं, संस्थाओं तथा उनके कार्यों का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 8.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में प्रयोग होने वाली विधियाँ।
उत्तर-
समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि (Historical Method), तुलनात्मक विधि (Comparative method) का प्रयोग किया जाता है। अर्थशास्त्र में आगमन विधि तथा निगमन विधि का प्रयोग किया जाता है।

लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राकृतिक विज्ञान।
उत्तर-
प्राकृतिक विज्ञान वह होता है जिसका सम्बन्ध प्राकृतिक व जैविक घटनाओं से होता है जिनसे यह सम्बन्धित तथ्यों, सिद्धान्तों, इत्यादि को ढूंढने का यत्न करते हैं जैसे भौतिक विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, तारा विज्ञान, जीव विज्ञान इत्यादि।

प्रश्न 2.
सामाजिक विज्ञान।
उत्तर-
यह विज्ञान वह विज्ञान होते हैं जो मानवीय समाज का सम्बन्धित तथ्यों, सिद्धान्तों आदि की खोज करते हैं। इसमें सामाजिक जीवन की वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। जैसे अर्थ विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, मानव विज्ञान, समाजशास्त्र इत्यादि।

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प्रश्न 3.
समाजशास्त्र बाकी सामाजिक विज्ञान से कैसे सम्बन्धित है ?
उत्तर-
सभी सामाजिक विज्ञान में विषय क्षेत्र का अंतर नहीं बल्कि दृष्टिकोण में ही केवल अंतर होता है परन्तु सभी सामाजिक विज्ञान केवल मानवीय समाज का ही अध्ययन करते हैं जिस कारण हम समाजशास्त्र को इन बाकी सामाजिक विज्ञानों से अलग नहीं कर सकते। जैसे अर्थशास्त्र, आर्थिक समस्याओं से चाहे सम्बन्धित है परन्तु ये समस्याएं समाज का ही एक हिस्सा है। किसी भी समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए बाकी विज्ञानों का भी सहारा लेना पड़ता है।

प्रश्न 4.
इतिहास।
उत्तर-
इतिहास मानवीय समाज के भूतकाल का अध्ययन करता है। यह बीते हुए समय की घटनाओं तथा इनके आधार पर ही सामाजिक ज़िन्दगी की विचारधारा को समझने का यत्न करता है। इस प्रकार यह “क्या था” व “किस से हुआ” दोनों अवस्थाओं का विश्लेषण करता है। इस प्रकार इतिहास के द्वारा हमें मानवीय इतिहास के सामाजिक संगठन, रीति-रिवाजों, परम्पराओं इत्यादि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

प्रश्न 5.
समाजशास्त्र व इतिहास कैसे एक-दूसरे से अलग होते हैं ?
उत्तर-
ये दोनों सामाजिक विज्ञान एक ही विषय सामग्री का अलग-अलग दृष्टिकोण से अध्ययन करते हैं। इतिहास कुछ विशेष घटनाओं का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र साधारण घटनाओं में नियमों की खोज करता है व इनके अन्तर्सम्बन्धों का वर्णन करता है। समाजशास्त्र में तुलनात्मक विधि व इतिहास में विवरणात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है। समाजशास्त्र मानवीय समूह का विश्लेषण करता है परन्तु इतिहास मानव के कारनामों के अध्ययन पर जोर देता है। इतिहास का सम्बन्ध भूतकाल की घटनाओं से है जबकि समाजशास्त्र समाज से ही अपना सम्बन्ध रखता है।

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प्रश्न 6.
समाजशास्त्र इतिहास पर आधारित।
उत्तर-
समाजशास्त्र को आधुनिक समाज को समझने के लिए प्राचीन समाज का सहारा लेना पड़ता है। इतिहास से ही इसके प्राचीन समाज के सामाजिक तत्त्व प्राप्त होते हैं। तुलनात्मक विधि का प्रयोग करने के लिए भी इतिहास से प्राप्त सामग्री की आवश्यकता पड़ती है जिस कारण समाजशास्त्र को इस पर आधारित होना पड़ता है। अलगअलग सामाजिक संस्थाएं जिनमें एक-दूसरे के प्रभाव के कारण परिवर्तन होता है तो इस परिवर्तन को समझने के लिए ऐतिहासिक सामग्री ही हमारी मदद करती है। ऐतिहासिक समाजशास्त्र, समाजशास्त्र की एक ऐसी शाखा है जिसके द्वारा सामाजिक परिस्थितियों को समझा जा सकता है।

प्रश्न 7.
मानव विज्ञान।
उत्तर-
मानव विज्ञान का अंग्रेजी रूपान्तर दो यूनानी शब्दों (Two Greeks Words) से मिलकर बना है Anthropo का अर्थ है मनुष्य व logy का अर्थ है विज्ञान अर्थात् मनुष्य का विज्ञान। इस विज्ञान का विषय बहुत विशाल है जिस कारण हम इसे तीन भागों में बांटते हैं

  • शारीरिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)-इसमें मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है, जिसमें मनुष्य की उत्पत्ति, विकास व नस्लों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • पूर्व ऐतिहासिक पुरासरी विज्ञान (Pre-historic Archedogy)-इस शाखा में मनुष्य के प्राथमिक इतिहास की खोज की जाती है जिस के लिए हमें कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता जैसे खण्डहरों की खुदाई आदि करके।
  • सामाजिक व सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Social And Cultural Anthropology)-इसमें सम्पूर्ण मानवीय समाज का पूरा अध्ययन किया जाता है। सामाजिक मानव विज्ञान में आदिम (Primitive) समाज का अध्ययन किया जाता है अर्थात् गांव, कबीले, इत्यादि।

प्रश्न 8.
आर्थिक संस्थाएं।
उत्तर-
आर्थिक संस्थाओं को सामाजिक संस्थाओं से अलग नहीं किया जा सकता। आर्थिक संस्थाएं मनुष्य के आर्थिक क्षेत्र का अध्ययन करती हैं। इसमें धन का उत्पादन, वितरण व उपभोग किस ढंग से किया जाना चाहिए इसका वर्णन किया जाता है। अर्थ विज्ञान, आर्थिक सम्बन्धों व उनसे पैदा होने वाले संगठनों, संस्थाओं व समूहों का अध्ययन करता है। आर्थिक घटनाएं सामाजिक ज़रूरतों द्वारा ही निर्धारित होती हैं।

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प्रश्न 9.
मनोविज्ञान।
उत्तर-
मनोविज्ञान व्यक्तिगत का अध्ययन करता है व यह व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं व व्यवहार को समझने के लिए तन्तु ग्रन्थी प्रणाली द्वारा ही करता है। इसमें यादादश्त बुद्धि, योग्यताएं, हमदर्दी इत्यादि आती है। इसमे मानव से सम्बन्धित तत्त्वों का अध्ययन किया जाता है। इसके अध्ययन का केन्द्र बिन्दु व्यक्ति होता है। इसी कारण यह व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है।

प्रश्न 10.
राजनीति विज्ञान।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं इत्यादि से लेकर राज्य के संगठन, सरकार की शासन प्रणाली आदि से सम्बन्धित सभाओं, संस्थाओं तथा उनके देश का अध्ययन करता है। इसके द्वारा राजनीतिक शक्ति व सत्ता को व्यक्त किया जाता है।

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V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में सम्बन्ध स्थापित करें।
उत्तर-
समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र दोनों एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित भी हैं और अलग भी। इसलिए दोनों के सम्बन्धों और अन्तरों को जानने से पूर्व हमारे लिए यह आवश्यक है कि पहले हम यह जान लें कि समाज शास्त्र और अर्थशास्त्र के क्या अर्थ हैं।

साधारण शब्दों में, मनुष्य जो भी आर्थिक क्रियाएं करता है, अर्थशास्त्र उनका अध्ययन करता है। अर्थशास्त्र यह बताता है कि मनुष्य अपनी न खत्म होने वाली इच्छाओं की पूर्ति अपने सीमित स्रोतों के साथ कैसे करता है। मनुष्य अपनी आर्थिक इच्छाओं की पूर्ति पैसा करता है। इसीलिए पैसों के उत्पादन, वितरण और उपभोग से सम्बन्धित मनुष्य के व्यवहार का अध्ययन भी अर्थ की विज्ञान करता है। इस प्रकार इस व्याख्या में पैसे को अधिक महत्त्व दिया गया है पर आधुनिक अर्थशास्त्री पैसे की जगह पर मनुष्य को अधिक महत्त्व देते हैं।

समाजशास्त्र मानव संस्थाओं, सम्बन्धों, समूहों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों, कीमतों, आपसी सम्बन्धों, सम्बन्धों की व्यवस्था, विचारधारा और उनमें होने वाले परिवर्तनों और परिणामों का अध्ययन करता है। समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है जो कि सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। – मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया व्यक्तियों की अन्तक्रियाओं का परिणाम होती है। इसके साथ-साथ आर्थिक क्रियाएं, सामाजिक क्रियाओं और सामाजिक व्यवस्था पर भी प्रभाव डालती हैं। इसलिए सामाजिक व्यवस्था सम्बन्धी जानने हेतु आर्थिक संस्थाओं के बारे में पता होना आवश्यक है और आर्थिक क्रियाओं सम्बन्धी पता करने के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं का पता होना आवश्यक है।

समाजशास्त्र का अर्थशास्त्र को योगदान (Contribution of Sociology to Economics)-अर्थशास्त्र व्यक्ति को यह बताता है कि कम साधन होने के साथ वह किस प्रकार अपनी अनगिनत इच्छाओं की पूर्ति कर सकता है। अर्थशास्त्री व्यक्ति का कल्याण तभी कर सकता है यदि उसे सामाजिक परिस्थितियों का पूरा ज्ञान हो परन्तु इस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए वह समाजशास्त्र से सहायता लेता है।

अतः ऊपर दी गई चर्चा से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है कि अर्थशास्त्री समाजशास्त्रियों की सहायता के बिना कुछ भी नहीं कर सकते। कुछ भी नहीं से अर्थ है समाज में न तो प्रगति ला सकते हैं और न ही अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ सकते हैं। इस तरह हम देखते हैं कि अर्थशास्त्री अपने क्षेत्र के अध्ययन के लिए समाज शास्त्रियों पर निर्भर हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया, सामाजिक अन्तक्रिया का परिणाम होती है। इसीलिए मनुष्य की प्रत्येक आर्थिक क्रिया को उसके सामाजिक सन्दर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। इसीलिए समाज के आर्थिक विकास के लिए या समाज के लिए कोई आर्थिक योजना बनाने के लिए, उस समाज के सामाजिक पक्ष के पता होने की आवश्यकता पड़ती है। इस प्रकार अर्थशास्त्र समाजशास्त्र पर निर्भर करता है।

अर्थशास्त्र का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Economics to Sociology)-समाज शास्त्र भी अर्थशास्त्र से बहुत सारी सहायता लेता है। आधुनिक समाज में आर्थिक क्रियाओं ने समाज के प्रत्येक पक्ष को प्रभावित किया है। कई प्रसिद्ध समाजशास्त्रियों मैक्स वैबर, कार्ल मार्क्स, दुर्थीम और सोरोकिन इत्यादि ने आर्थिक क्षेत्र के अध्ययन के बाद सामाजिक क्षेत्र का अध्ययन किया। जब भी समाज में समय-समय पर आर्थिक कारणों में परिवर्तन आया तो उनका प्रभाव हमारे समाज पर ही हुआ। समाजशास्त्री ने जब यह अध्ययन करना होता है कि हमारे समाज में सामाजिक सम्बन्ध क्यों टूट रहे हैं या समाज में व्यक्ति का व्यक्तिवादी दृष्टिकोण क्यों हो रहा है तो इसका अध्ययन करने के लिए वह समाज की आर्थिक क्रियाओं पर नज़र डालता है तो यह महसूस करता है कि जैसे-जैसे समाज में पैसे की आवश्यकता बढ़ती जा रही है लोग अधिकाधिक सुविधाओं वाली चीजें प्राप्त करने के पीछे लग जाते हैं।

उसके साथ समाज का दृष्टिकोण भी पूंजीपति हो रहा है। प्रत्येक व्यक्ति को समाज में जीने के लिए खुद मेहनत करनी पड़ रही है। इसी कारण संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और व्यक्तियों की दृष्टि भी व्यक्तिवादी हो जाती है। इसके अतिरिक्त और भी कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का अध्ययन करने के लिए उसको अर्थशास्त्र की सहायता लेनी पड़ती है। उदाहरण के लिए नशा करने जैसी सामाजिक समस्या ही ले लो। इस समस्या ने जवान पीढ़ी को काफ़ी कमज़ोर बना दिया है। इस समस्या का मुख्य कारण आर्थिक है क्योंकि जैसे-जैसे लोग गलत तरीकों का इस्तेमाल करके (स्मगलिंग इत्यादि) आवश्यकता से अधिक पैसा कमा लेते हैं तब वह पैसों का दुरुपयोग करने लग जाते हैं। अत: यह नशे के दुरुपयोग जैसी बुरी सामाजिक समस्या, जोकि समाज को खोखला कर रही है, से बचने के लिए हमें ग़लत साधनों से पैसे कमाने पर निगरानी रखनी चाहिए जिससे कि दहेज प्रथा, नशे का प्रयोग, जुआ खेलना आदि बुरी सामाजिक समस्याओं का अन्त किया जा सके। इन समस्याओं को खत्म करने के लिए समाजशास्त्र अर्थशास्त्र पर निर्भर रहता है।

आजकल के समय में बहुत सारे आर्थिक वर्ग, जैसे मज़दूर वर्ग, पूंजीपति वर्ग, उपभोक्ता और उत्पादक वर्ग सामने आए हैं। इसलिए इन वर्गों और उनके सम्बन्धों को समझने के लिए यह आवश्यक है कि समाजशास्त्र इन वर्गों के सामाजिक सम्बन्धों को समझे। इन आर्थिक सम्बन्धों को समझने के लिए उसे अर्थ विज्ञान की सहायता लेनी ही पड़ती है।

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अंतर (Difference between Sociology & Economics)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में जहां इतना गहरा सम्बन्ध पाया जाता है और यह भी पता चलता है कि कैसे यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे के नियमों व परिणामों का खुलकर प्रयोग करते हैं। इन दोनों विज्ञानों में भिन्नता भी पाई जाती है, जो निम्नलिखित अनुसार है-

1. विषय क्षेत्र (Scope)-समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र के विषय-क्षेत्र में भी अन्तर है। समाजशास्त्र समाज के अलग-अलग भागों का स्पष्ट चित्र प्रस्तुत करता है। इसलिए समाजशास्त्र का क्षेत्र विशाल है, परन्तु अर्थशास्त्र केवल समाज के आर्थिक हिस्से के अध्ययन तक ही सीमित है, इसीलिए इसका विषय क्षेत्र सीमित है।

2. सामान्य और विशेष (General & Specific) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है क्योंकि यह उन सब प्रकार के सामाजिक प्रकटनों का अध्ययन करता है जो हरेक समाज के हरेक भाग से सम्बन्धित नहीं, अपितु सम्पूर्ण समाज से सम्बन्धित हैं। परन्तु अर्थशास्त्र एक विशेष विज्ञान है, क्योंकि इसका सम्बन्ध आर्थिक क्रियाओं तक सीमित है।

3. दृष्टिकोण में अन्तर (Different Points of View)-समाजशास्त्र का कार्य समाज में पाई गई सामाजिक क्रियाओं को समझना है, सामाजिक समस्याओं आदि का अध्ययन करना है। इसलिए इसका दृष्टिकोण सामाजिक है। दूसरी ओर अर्थशास्त्री का सम्बन्ध व्यक्ति की पदार्थ खुशी से है जैसे अधिकाधिक पैसा कैसे कमाना है, उसका विभाजन कैसे करना है और उसका प्रयोग कैसे करना है आदि। इसीलिए इसका दृष्टिकोण आर्थिक है।

4. इकाई के अध्ययन में अन्तर (Difference in Study of Unit)-समाजशास्त्र की इकाई समूह है। वह समूह में रह रहे व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन करता है। परन्तु दूसरी ओर अर्थशास्त्री व्यक्ति के आर्थिक पक्ष के अध्ययन से सम्बन्धित होता है। इसीलिए इसकी इकाई व्यक्ति है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 2.
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान के सम्बन्धों की चर्चा करो।
अथवा
समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में क्या सम्बन्ध है ? अन्तरों सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र का आपस में बहत गहरा सम्बन्ध है। दोनों एक-दूसरे से अन्तरसम्बन्धित हैं। प्लैटो और अरस्तु के अनुसार, राज्य और समाज के अर्थ एक ही हैं। बाद में इनके अर्थ अलग कर दिए गए और राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध केवल राज्य के कार्यों से सम्बन्धित कर दिया गया। इसी समय 1850 ई० के बाद समाज शास्त्र ने भी अपने विषय-क्षेत्र को कांट-छांट करके अपना अलग विषय-क्षेत्र बना लिया और अपने आपको राज्य से अलग कर लिया।

इस विज्ञान में राज्य की उत्पत्ति, विकास, राज्य का संगठन, सरकार के शासनिक प्रबन्ध की व्यवस्था और इसके साथ सम्बन्धित संस्थाओं और उनके कार्यों का अध्ययन किया जाता है। यह व्यक्ति के राजनीतिक जीवन से सम्बन्धित समूह और संस्थाओं का अध्ययन करता है। संक्षेप में, हम यह कह सकते हैं कि राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।

राजनीति विज्ञान मनुष्य के राजनीतिक जीवन और उससे सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। यह राज्य की उत्पत्ति, विकास, विशेषताओं, राज्य के संगठन, सरकार, उसकी शासन प्रणाली, राज्य से सम्बन्धित संस्थाओं का अध्ययन करता है। इस प्रकार राजनीति विज्ञान केवल राजनीतिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। . दूसरी ओर समाजशास्त्र समाज सम्बन्धों, सम्बन्धों के अलग-अलग स्वरूपों, समूहों, प्रथाओं, प्रतिमानों, संरचनाओं, संस्थाओं, इनके अन्तर्सम्बन्धों, रीति-रिवाजों, रूढ़ियों, परम्पराओं का अध्ययन करता है।

जहां राजनीति विज्ञान, राजनीति अर्थात् राज्य और सरकार का अध्ययन करता है, दूसरी ओर, समाजशास्त्र सामाजिक निरीक्षण की प्रमुख एजेंसियों में राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन करता है। ये दोनों विज्ञान समूचे समाज का अध्ययन करते हैं। समाजशास्त्र ‘राज्य’ को एक राजनीतिक संस्था के रूप में देखता है और राजनीति विज्ञान उस राज्य को संगठन और कानून के रूप में देखता है। मैकाइवर और पेज के अनुसार ‘समाज’ और ‘राज्य’ का दायरा एक नहीं और न ही दोनों का विस्तार साथ-साथ हुआ है। अपितु राज्य की स्थापना समाज में कुछ विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति करने के लिए हुई है। . रॉस (Ross) के अनुसार, “राज्य अपनी पुरानी अवस्था में राजनीतिक अवस्था से अधिक सामाजिक संस्था थी। यह सत्य है कि राजनीतिक तथ्यों का ज्ञान सामाजिक तथ्यों में ही है। इन दोनों विज्ञानों में अन्तर केवल इसीलिए है कि इन दोनों विज्ञानों के क्षेत्र की विशालता अध्ययन के लिए विशेष होती है, बल्कि इसीलिए नहीं है कि इनमें कोई स्पष्ट विभाजन रेखा है।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि राजनीतिक विज्ञान का सम्बन्ध समाज में पाई जाने वाली संस्थाओं, सरकार और संगठनों का अध्ययन करने से है जबकि समाजशास्त्र का सम्बन्ध समाज का अध्ययन करने से है परन्तु राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र समूचे समाज का ही हिस्सा है जिसका समाजशास्त्र अध्ययन करता है। इस प्रकार इन दोनों विज्ञानों में अन्तर-निर्भरता भी पाई जाती है।

समाजशास्त्र का राजनीति विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Political Science)राजनीति विज्ञान में मानव को राजनीतिक प्राणी माना जाता है पर यह नहीं बताया जाता कि वह राजनीतिक कैसे और कब बना। यह सब पता करने के लिए राजनीति विज्ञान समाज शास्त्र की सहायता लेता है। यदि राजनीतिक विज्ञान समाजशास्त्र के सिद्धान्तों की सहायता ले तो मनुष्य से सम्बन्धित उसके अध्ययनों को बहुत सरल और सही बनाया जा सकता है। राजनीति विज्ञान जब अपनी नीतियां बनाता है तो उसको सामाजिक कीमतों और आदर्शों को मुख्य रखना पड़ता है।

राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों का ध्यान रखकर ही कानून बनाना पड़ता है। हमारी सामाजिक परम्पराएं, संस्कृति, प्रथाएं समाज के सदस्यों पर नियन्त्रण रखने हेतु और समाज को संगठित तरीके से चलाने के लिए बनाई जाती हैं परन्तु जब इनको सरकार द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है तो यह कानून बन जाती हैं।

जब सरकार समाज की बनाई हुई उन प्रथाओं को, जो समूह द्वारा भी प्रमाणित होती हैं, को नज़र-अंदाज कर देती है तो ऐसी स्थिति में समाज विघटन के पथ पर चला जाता है। इससे समाज के विकास में भी रुकावट आ जाती है। राजनीति विज्ञान को सामाजिक परिस्थितियों की या प्रथाओं इत्यादि की जानकारी प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है। समाज में हम कानून का सहारा लेकर समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। अतः, उपरोक्त विवरण से यह काफ़ी हद तक स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक विज्ञान को अपने क्षेत्र में अध्ययन करने के लिए समाजशास्त्र की बहुत आवश्यकता पड़ती है। इसी के साथ समाज की तरक्की, विकास और संगठन आदि भी बना रहता है। इस उपरोक्त विवरण का अर्थ यह नहीं कि समाजशास्त्र ही राजनीति विज्ञान की सहायता करता है अपितु राजनीति विज्ञान की भी समाजशास्त्र में बहुत ज़रूरत रहती है।

राजनीति विज्ञान का समाजशास्त्र को योगदान (Contribution of Political Science to Sociology)यदि समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान को कुछ देता है तो उससे बहुत कुछ लेता भी है। समाजशास्त्र भी राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है और उससे मदद लेता है।

किसी भी समाज की बिना नियन्त्रण के कल्पना ही नहीं की जा सकती। समाजशास्त्र की इस शाखा को राजनीति समाजशास्त्र भी कहते हैं। यदि देखा जाए तो समाज या सामाजिक जीवन को असली जीवन ही राजनीति विज्ञान से प्राप्त हुआ है। समाज की प्रगति, संगठन, संस्थाओं, प्रक्रियाओं, परम्पराओं, संस्कृति तथा सामाजिक सम्बन्धों आदि पर आधारित है। यदि हम प्राचीन समाज का ज़िक्र करें, जब राजनीतिक विज्ञान की पूर्णतया शुरुआत नहीं हुई थी, तब व्यक्ति. की ज़िन्दगी काफ़ी सरल थी परन्तु फिर भी उस सरल जीवन पर अनौपचारिक नियन्त्रण था। धीरे-धीरे समाज जैसे-जैसे विकसित होता गया, वैसे-वैसे हमें कानून की आवश्यकता महसूस होने लगी। उदाहरण के लिए, जब भारत में जाति प्रथा विकसित थी, तब कुछ जातियों के लोगों की स्थिति समाज में अच्छी थी, वह समाज को अपने ही ढंग से चलाते थे। दूसरी ओर जिन व्यक्तियों की स्थिति जाति प्रथा में निम्न थी वे जाति के बनाए हुए नियमों से बहुत तंग थे। जाति प्रथा के बनाए जाने का मुख्य कारण समाज में सन्तुलन कायम करना था।

जब राजनीति विज्ञान ने अपनी जड़ें मज़बूत कर ली तो उसने लोगों पर कानून द्वारा नियन्त्रण करना शुरू कर दिया। जो प्रथाएं समाज के लिए एक बुराई बन गई थीं और लोग भी उनको समाप्त करना चाहते थे तो कानून ने वहां अपने प्रभाव से लोगों को मुक्त करवाया क्योंकि इस कानून ने सभी लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार करना ठीक समझा और लोगों ने भी इसका सम्मान किया। इसके अतिरिक्त समय-समय पर समाज में वहमों-भ्रमों के आधार पर कई ऐसी प्रथाएं लोगों द्वारा कायम हुई थीं जिन्होंने समाज को अन्दर ही अन्दर से खोखला कर दिया था। इन प्रथाओं को समाप्त करना समाजशास्त्र के वश का काम नहीं था। इसीलिए उसने राजनीति विज्ञान का सहारा लिया।

उपरोक्त विवरण के आधार पर हम कह सकते हैं कि चाहे समस्या राजनीतिक हो या सामाजिक, हमें दोनों की इकट्ठे सहायता की आवश्यकता पड़ती है। समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान दोनों ही समाज के अध्ययन से यद्यपि अलग-अलग दृष्टिकोण से जुड़े हुए हैं, परन्तु फिर भी इनकी समस्याएं समाज से सम्बन्धित हैं। इसीलिए इनमें काफ़ी अन्तर-निर्भरता होती है।

समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Political Science)—यदि समाजशास्त्र और राजनीति विज्ञान एक-दूसरे पर निर्भर हैं तो उनमें कुछ अन्तर भी हैं जिनका वर्णन निम्नलिखित है-

(1) समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक विशेष विज्ञान है। समाज शास्त्र समाज में पाए जाने वाले व्यक्ति के हर पक्ष के अध्ययन से सम्बधित होता है। इसमें सामाजिक प्रक्रियाओं, परम्पराओं, सामाजिक नियन्त्रण आदि सब आ जाते हैं अर्थात् .समाजशास्त्र, उन सब प्रकार के प्रपंचों का अध्ययन करता है, जोकि हर प्रकार की मानवीय क्रियाओं से सम्बन्धित होते हैं। यह सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है। इसीलिए सामान्य विज्ञान है परन्तु दूसरी ओर राजनीति विज्ञान व्यक्ति के जीवन के राजनीतिक हिस्से का अध्ययन करता है, अर्थात् उन क्रियाओं का अध्ययन करता है, जहां मनुष्य, सरकार या राज्य द्वारा दी गई रक्षा और अधिनिम प्राप्त करता है। इसीलिए यह विशेष विज्ञान है।

(2) समाजशास्त्र एक सकारात्मक विज्ञान है और राजनीति विज्ञान एक आदर्शवादी विज्ञान है, क्योंकि राजनीति विज्ञान का सम्बन्ध राज के स्वरूप से भी होता है। इसमें समाज द्वारा प्रमाणित नियमों को भी स्वीकारा जाता है। परन्तु समाजशास्त्र काफ़ी स्वतन्त्र रूप में अध्ययन करता है, अर्थात् इसकी दृष्टि निष्पक्षता वाली होती है।

(3) राजनीति विज्ञान व्यक्ति को एक राजनीतिक प्राणी मानकर ही अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इससे भी सम्बन्धित होता है कि व्यक्ति किस तरह और क्यों राजनीतिक प्राणी बना ?

(4) समाजशास्त्र असंगठित और संगठित सम्बन्धों समुदायों आदि का अध्ययन करता है क्योंकि इसमें चेतन और अचेतन प्रक्रियाओं दोनों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु राजनीति विज्ञान में केवल संगठित सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है और इसमें चेतन प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। राज्य के चार तत्त्व जनसंख्या, निश्चित स्थान, सरकार, प्रभुत्व इसमें आ जाते हैं। यह चारों तत्त्व चेतन प्रक्रियाओं से सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र क्यों और कैसे राजनीतिक विषय बना।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 3.
समाजशास्त्र और मानव विज्ञान के सम्बन्धों की चर्चा करो।
अथवा
समाजशास्त्र और मानव विज्ञान अलग होते हुए भी एक-दूसरे के पूरक हैं। स्पष्ट करो।
उत्तर-
समाजशास्त्र की उत्पत्ति का स्रोत इतिहास है जबकि मानव विज्ञान की उत्पत्ति का स्रोत जीव-विज्ञान है। यदि इन दोनों की विधियों, विषय-क्षेत्र को देखें तो यह अलग-अलग हैं, पर इन दोनों का सम्बन्ध बहुत गहरा है। इन दोनों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है। यह अपनी पहचान बनाए रखने के लिए एक-दूसरे से सहायता लेते रहते हैं। इन दोनों को समझने हेतु इन दोनों की विषय-सामग्री की ओर देखें तो इन दोनों के रिश्तों को समझने में आसानी होगी।

समाजशास्त्र आधुनिक समाज का अध्ययन है। समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संस्थाओं, सामाजिक समूहों और उनके अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। इसके साथ-साथ समाजशास्त्र में संस्कृति के अलग-अलग भागों, समाज में मिलने वाली कई प्रकार की संस्थाओं का भी अध्ययन किया जाता है।

मानव विज्ञान (Anthropology) दो यूनानी शब्दों को मिलाकर बना है। Anthropos, जिसका अर्थ है ‘मनुष्य’ और ‘Logies’ जिसका अर्थ है ‘विज्ञान’। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ है ‘मानव विज्ञान’। मानव विज्ञान मनुष्य का विज्ञान है। मानव विज्ञान मनुष्य विज्ञान, मनुष्य की उत्पत्ति और विकास के भौतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक . . दृष्टिकोण का अध्ययन है।।

मानव विज्ञान का विषय और क्षेत्र काफ़ी विशाल है। इसलिए इसे तीन भागों में बांटा गया है।
1. भौतिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)- मानव विज्ञान की यह शाखा मानव के शारीरिक लक्षणों का अध्ययन करती है जिनसे मनुष्य की उत्पत्ति और विकास हुआ।

2. पूर्व-ऐतिहासिक पुरासरी विज्ञान (Pre-Historical Archeology)-इसमें मनुष्य के इतिहास की खोज करना है जिनके बारे में कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता है। पुराने खण्डहरों की खुदाई करके, हड्डियों, पुरानी वस्तुओं से उस समय के बारे में पता लगाया जाता है। इन भौतिक सबूतों के आधार पर मनुष्य की उत्पत्ति, उसके विकास, संस्कृति इत्यादि के ऊपर रोशनी डाली जाती है। इस प्रकार यह पुराने समय के मनुष्य की संस्कृति को ढूंढ़ता

3. सामाजिक और सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Social and Cultural Anthropology)- यह मानवीय समाज का पूर्णतया से अध्ययन करता है। यह एक समाज की आर्थिक, राजनीतिक, पारिवारिक व्याख्या, धर्म, कला, विश्वासों इत्यादि प्रत्येक चीज़ का अध्ययन करता है। इसमें प्राचीन और आधुनिक समाज में उनके समकालीन ढांचों, संस्थाओं और व्यवहारों का विश्लेषणात्मक और तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

सामाजिक मानव विज्ञान वाली मानव विज्ञान की शाखा समाजशास्त्र से काफ़ी सम्बन्धित है जबकि समाज शास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, उनके स्वरूपों, संस्थाओं, समूहों और प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इन दोनों विज्ञानों के उद्देश्य एक-दूसरे से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। इसीलिए यह दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।

उपरोक्त लिखे विवरण से स्पष्ट है कि मानव विज्ञान में आदिम समाज का अध्ययन किया जाता है। आदिम समाज का अर्थ उन समूहों से है जो छोटे-से भौगोलिक क्षेत्र में, कम संख्या में रहते थे और जिनका बाह्य दुनिया से कम सम्बन्ध था और जो साधारण तकनीक का प्रयोग करते हैं। संक्षेप में, सामाजिक मानव विज्ञान सम्पूर्ण समाज का पूर्णता से अध्ययन करता है।

मानव विज्ञान की समाज शास्त्र को देन (Contribution of Anthropology to Sociology)- समाज शास्त्र मानव विज्ञान के अध्ययन का काफ़ी लाभ उठाता है। भौतिक मानव विज्ञान जो समूहों और नस्लों का ज्ञान उपलब्ध करवाता है, उसे समाजशास्त्री अलग-अलग संस्थाओं और व्यवस्थाओं को समझने के लिए प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त समाजशास्त्रियों ने सामाजिक स्तरीकरण को प्रजातीय आधार पर समझने की कोशिश की है। इसके अतिरिक्त मानव विज्ञान यह भी बताता है कि आदिम समाज की संस्थाएं, व्यवस्था और संगठन बहुत सरल थे जिसकी सहायता से समाजशास्त्र आज के समाज को समझ सका है। मानव विज्ञान ने धर्म की उत्पत्ति की सामग्री समाजशास्त्र को दी है। इस प्रकार आदिम समाज का अध्ययन जो कि मानव विज्ञान का विषय वस्तु है। उसमें समाज शास्त्र की दिलचस्पी काफ़ी बढ़ गई है। वास्तविकता में समाजशास्त्र की प्रमुख शाखा सामाजिक उत्पत्ति और कुछ नहीं, अपितु सामाजिक मानव विज्ञान है। समाजशास्त्र ने तो कुछ संकल्प, जैसे-सांस्कृतिक क्षेत्र, सांस्कृतिक गुण, सांस्कृतिक जटिलता, सांस्कृतिक पीड़ा इत्यादि मानव विज्ञान से उधार लिये हैं और इनका प्रयोग समाजशास्त्रियों के लिए काफ़ी लाभदायक सिद्ध हुआ है। तभी तो समाजशास्त्र में एक नयी शाखा सांस्कृतिक समाजशास्त्र का विकास हुआ है।

समाजशास्त्र का मानव विज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Anthropology)केवल समाजशास्त्र ही नहीं, अपितु मानव विज्ञान भी समाजशास्त्र की सहायता लेता है। मानव विज्ञान को संस्कृति की उत्पत्ति और विकास के लिए सामाजिक अन्तक्रियाओं और सम्बन्धों को समझना पड़ता है जो समाजशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। संस्कृति के बिना कोई समाज नहीं हो सकता और इसकी उत्पत्ति अन्तक्रियाओं और सम्बन्धों पर निर्भर करती है।

समाजशास्त्र का एक दूसरा योगदान मानव विज्ञान को यह है कि मानव विज्ञान ने आधुनिक समाज के ज्ञान के आधार पर कई परिकल्पनाओं का निर्माण करके आदिम समाज का अध्ययन किया है, जिनसे मानव विज्ञान को अपनी विषय सामग्री समझने में काफ़ी सहायता मिली है।

मानव विज्ञान ने समाजशास्त्र के कुछ विषयों, संकल्पों और विधियों को अपने क्षेत्र में शामिल करके अपनी विषय सामग्री को सम्बोधित किया है। मानव विज्ञान ने सामूहिक एकता को उत्पन्न करने वाले सांस्कृतिक और सामाजिक तथ्यों के साथ-साथ और तथ्यों का भी अध्ययन किया है जिनके कारण संघर्ष की आदत मानव में आई।

समाजशास्त्र और मानव विज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Anthropology)-
1. समाजशास्त्र और मानव विज्ञान की विषय-वस्तु में भी अन्तर डाला गया है। समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों, संगठन, संरचना, सामाजिक व्यवस्था इत्यादि का अध्ययन करता है और मानव विज्ञान सम्पूर्ण समाज के अध्ययन से अपने आपको सम्बन्धित रखता है अर्थात् कि इसमें समाज की धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक आदि भाव के हर पक्ष का अध्ययन करता है। इसीलिए इसे सामाजिक विरासत का विज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि इसके द्वारा ही संस्कृति संभाल कर रखी जाती है।

2. मानव विज्ञान उन संस्कृतियों का अध्ययन करता है, जो छोटी और स्थिर होती हैं। परन्तु समाजशास्त्र उन संस्कृतियों का अध्ययन करता है जो विशाल और परिवर्तनशील होती हैं। इस आधार पर हम देखते हैं कि मानव विज्ञान तेजी से विकसित होता है और समाजशास्त्र से बढ़िया समझा जाता है।

3. मानव विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों अलग-अलग विज्ञान हैं। मानव विज्ञान प्राचीन समय में पाए गए मानव और उसकी संस्कृति का अध्ययन करता है परन्तु समाजशास्त्र इसी विषय वस्तु को आधुनिक व्यवस्था से सम्बन्धित रखकर अध्ययन करता है।
इस प्रकार समाजशास्त्र भविष्य तक भी ले जाता है परन्तु दूसरी ओर मानव विज्ञान समस्याओं के अध्ययन तक अपने आपको सीमित रखता है।

4. समाजशास्त्र और मानव विज्ञान दोनों में अध्ययन की अलग-अलग विधियां प्रयोग की जाती हैं। मानव विज्ञान में अवलोकन, आगमन आदि विधियों का प्रयोग किया जाता है। समाजशास्त्र सर्वेक्षण, प्रश्नावली, अनुसूची, आंकड़ों आदि पर आधारित है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

प्रश्न 4.
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान को क्या योगदान है ? दोनों विज्ञानों के बीच अंतरों का भी वर्णन करें।
उत्तर-
समाजशास्त्र का मनोविज्ञान को योगदान (Contribution of Sociology to Psychology)मनोविज्ञान को मानव के व्यवहार को समझने हेतु समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि मनुष्य के व्यवहार को समाज की संस्कृति प्रभावित करती है और संस्कृति सम्बन्धी आवश्यक जानकारी समाजशास्त्र देता है।

मानव एक सामाजिक प्राणी है। पशुओं के स्थान पर मानव अपने मां-बाप और समाज पर अधिक निर्भर करता है। समाज में रहते हुए उसमें समाजीकरण की प्रक्रिया के कारण कई गुणों का विकास होता है। प्रत्येक समाज में रहने के कुछ नियम होते हैं। यह नियम व्यक्ति समाज में रहकर सीख सकता है और इन नियमों का पीढी दर पीढी विकास होता है और परिवर्तन भी होता रहता है। प्रत्येक संस्कृति एक व्यक्तित्व बनाती है और यह व्यक्तित्व बचपन के सांस्कृतिक अनुभवों का परिणाम होता है। मनोविज्ञान के लिए मानव के व्यवहार और मानसिक क्रियाओं को समझने के लिए आवश्यक है कि वह उनका सामाजिक वातावरण में ज्ञान प्राप्त करे जिसमें व्यक्ति का व्यक्तित्व बनता है। यह सब विषय समाजशास्त्र के क्षेत्र में आते हैं। इसीलिए इस प्रकार के ज्ञान के लिए मनोविज्ञान को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ता है।

उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि दोनों विज्ञान एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर ही नहीं, अपितु एक-दूसरे के पूरक भी हैं। दोनों में से कोई भी एक विज्ञान दूसरे के क्षेत्र में जाए बिना अपने विशेष विषय का पूर्ण तौर पर अध्ययन नहीं कर सकता। जिस प्रकार मनोविज्ञान को मनुष्य की मानसिक प्रक्रियाओं की वास्तविकता को समझने के लिए समाजशास्त्रीय ज्ञान पर निर्भर रहना पड़ता है, उसी प्रकार सामाजिक व्यवहारों, सम्बन्धों और अन्तक्रियाओं सम्बन्धी सही ज्ञान प्राप्त करने के लिए समाजशास्त्री को मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों पर निर्भर होना पड़ता है।

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अन्तर (Difference between Sociology & Psychology) –
1. दृष्टिकोण में अन्तर (Difference in Outlook)-मनोविज्ञान के अनुसार मानव के व्यवहार का आधार । मन और चेतना है जबकि समाजशास्त्र के अनुसार सामाजिक आधार मानव का समूह में रहने का स्वभाव है। इस प्रकार मनोविज्ञान का दृष्टिकोण व्यक्तिगत और समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है।

2. अध्ययन विधियों में अन्तर (Difference in Methods)—मनोविज्ञान में अधिकतर प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग किया जाता है, जिसका कि समाजशास्त्र में काफ़ी कम प्रयोग होता है। समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि, तुलनात्मक विधि, संगठनात्मक कार्यात्मक विधि इत्यादि का अधिकतर प्रयोग होता है।

3. विषय-सामग्री में अन्तर (Difference in subject matter)-मनोविज्ञान एक ही व्यक्ति की अलगअलग क्रियाओं के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र अनेकों व्यक्तियों में होने वाले सम्बन्धों का अध्ययन करता है।

4. इकाई में अन्तर (Difference in Unit)-मनोविज्ञान में हमेशा एक व्यक्ति का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र में कम-से-कम दो व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।

इस प्रकार उपरोक्त चर्चा से स्पष्ट है कि दोनों विज्ञानों में कोई भी पूर्ण रूप से स्वतन्त्र नहीं है। दोनों एक-दूसरे की सहायता कर रहे हैं। एक-दूसरे के बिना यह नहीं रह सकते। अपनी पहचान बनाए रखने के लिए इनको एकदूसरे की सहायता करनी और लेनी ही पड़ती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 2 समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध

समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों से संबंध PSEB 11th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कई पक्ष होते हैं जैसे कि आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक इत्यादि। इस प्रकार समाजशास्त्र को समाज के अलग-अलग पक्षों का अध्ययन करने के लिए अलग-अलग सामाजिक विज्ञानों की सहायता लेनी पड़ती है।
  • समाजशास्त्र चाहे अलग-अलग सामाजिक विज्ञानों से कुछ सामग्री उधार लेता है परन्तु वह उन्हें भी अपनी सामग्री प्रयोग करने के लिए देता है। इस प्रकार अन्य सामाजिक विज्ञान अपने अध्ययन के लिए समाजशास्त्र पर निर्भर होते हैं।
  • समाजशास्त्र तथा राजनीति विज्ञान गहरे रूप से अन्तर्सम्बन्धित हैं। समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है तथाराजनीति विज्ञान समाज के एक पक्ष का विज्ञान है जिसमें राज्य तथा सरकार प्रमुख हैं। दोनों विज्ञान एक दूसरे पर निर्भर करते हैं जिस कारण इनमें बहुत ही गहरा रिश्ता है। परन्तु इनमें बहुत से अंतर भी पाए जाते हैं।
  • इतिहास अतीत की घटनाओं का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र वर्तमान घटनाओं का अध्ययन करता है। दोनों विज्ञान मानवीय समाज का अध्ययन अलग-अलग पक्ष से करते हैं। इतिहास की जानकारी समाजशास्त्र प्रयोग करता है तथा समाजशास्त्र की सामग्री इतिहासकार प्रयोग करते हैं। इस कारण यह एक दूसरे पर निर्भर करते हैं परन्तु इनमें काफी अंतर भी होते हैं।
  • समाजशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में भी काफ़ी गहरा रिश्ता है क्योंकि आर्थिक संबंध सामाजिक संबंधों का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। हमारे सामाजिक संबंध आर्थिक संबंधों से निश्चित रूप से प्रभावित होते हैं। इस प्रकार यह अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। दोनों विज्ञान एक-दूसरे से सहायता लेते तथा देते भी हैं।
  • समाजशास्त्र का मनोविज्ञान से भी काफी गहरा रिश्ता है। मनोविज्ञान मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है तथा मनुष्य का अध्ययन आवश्यक है। इस प्रकार दोनों विज्ञान अपने अध्ययनों में एक दूसरे की सहायता लेते हैं तथा एक दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  • मानव विज्ञान से भी समाजशास्त्र का गहरा रिश्ता है। मानव विज्ञान पुरातन समाज का अध्ययन करता है तथा समाजशास्त्र वर्तमान समाज का। दोनों विज्ञानों को एल० क्रोबर (Kroeber) ने जुड़वा बहनों (Twin Sisters) का नाम दिया है। मानव वैज्ञानिक अध्ययनों से समाजशास्त्री काफी सामग्री उधार लेते हैं। इस प्रकार मानव विज्ञान भी समाजशास्त्र की सहायता पुरातन मानवीय समाज को समझने के लिए करता है।
  • सांस्कृतिक मानव विज्ञान (Cultural Anthropology)—मानव विज्ञान की वह शाखा जो मनुष्यों के बीच सांस्कृतिक अंतरों का अध्ययन करती हैं।
  • पुरातत्त्व (Archaeology)—यह पुरातन समय की मानवीय क्रियाओं का ज़मीन के अंदर से मिली वस्तुओं की सहायता से अध्ययन करती है। .
  • राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology)-समाजशास्त्र की वह शाखा जो यह अध्ययन करती है कि किस प्रकार बहुत-सी सामाजिक शक्तियां इकट्ठे होकर राजनीतिक नीतियों को प्रभावित करती हैं।
  • भौतिक मानव विज्ञान (Physical Anthropology)-मानव विज्ञान की वह शाखा जो मनुष्यों के उद्भव, उनमें आए परिवर्तनों तथा वातावरण से अनुकूलता करने के उसके तरीकों के बारे में बताती है।
  • सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology)-वह वैज्ञानिक अध्ययन जिसमें इस बात का अध्ययन किया जाता है कि किस प्रकार लोगों के विचार तथा व्यवहार अन्य लोगों की मौजूदगी से प्रभावित होते हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
नगर योजना, तकनीकी विज्ञान, कृषि तथा व्यापार के बारे में प्राप्त जानकारी के आधार पर सिन्धु घाटी के लोगों के जीवन के बारे में बताएं।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता से हमारा अभिप्राय उस प्राचीन सभ्यता से है जो सिन्धु नदी की घाटी में फली-फूली। इस सभ्यता के लोगों ने नगर योजना, तकनीकी विज्ञान, कृषि तथा व्यापार के क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिभा का परिचय दिया।

श्री के० एम० पानिक्कर के शब्दों में-“सैंधव लोगों ने उच्चकोटि की सभ्यता का विकास कर लिया था।” (“A very high state of civilization had been reached by the people of the Indus.”’) इस सभ्यता के विभिन्न पहलुओं का वर्णन इस प्रकार है :-

I. नगर योजना

1. नगर के दो भाग-मोहनजोदड़ो और हड़प्पा का घेरा चार-पांच किलोमीटर था। ये नगर मुख्यत: दो भागों में बंटे हुए थे-गढ़ी और नगर।

(क) गढ़ी-हड़प्पा की गढ़ी का आकार समानान्तर चतुर्भुज जैसा था। इसकी लम्बाई 410 मीटर और चौड़ाई 195 मीटर थी। इस सभ्यता की अन्य गढ़ियों की तरह इसकी लम्बाई उत्तर से दक्षिण की ओर थी और चौड़ाई पूरब से पश्चिम की ओर। गढ़ी का निर्माण मुख्य रूप से प्रशासकीय एवं धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता था। आवश्यकता पड़ने पर इसे सुरक्षा के लिए भी प्रयोग किया जाता था।

(ख) नगर या कस्बा-गढ़ी के नीचे कस्बे की भी चारदीवारी होती थी। कस्बे की योजना भी उत्तम थी। उसकी मुख्य सड़कें काफ़ी चौड़ी थीं। सड़कों की दिशा उत्तर से दक्षिण एवं पूरब से पश्चिम की ओर थी और यह नगर को आयताकार टुकड़ों में बांटती थीं।

2. विशाल भवन-मोहनजोदड़ो की गढ़ी में विशाल अन्न भण्डार था। हड़प्पा में यह भण्डार गढ़ी से बाहर था। इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो की गढ़ी में एक सरोवर भी मिला है जो 39 फुट लम्बा, 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा था। यह उस समय का विशाल स्नानकुंड (Great Bath) था। विशाल स्नानकुंड में पानी निकट स्थित कुएं में से डाला जाता था। स्नानकुंड का फर्श पक्की ईंटों का बना हुआ था। इसमें जाने के लिए ईंटों की सीढ़ियां थीं। ऐसा अनुमान है कि इसका प्रयोग किसी महत्त्वपूर्ण धार्मिक रीति के लिए होता था।

3. निवास स्थान-मकानों के लिए पक्की ईंटों का उपयोग होता था। बड़े मकानों में रसोई, शौचघर एवं कुएं के अतिरिक्त बीस-बीस कमरे थे। परन्तु साधारण मकानों में लगभग आधा दर्जन कमरे थे। कुछ मकानों में केवल एक या दो कमरे भी थे। प्रत्येक मकान में वायु और प्रकाश के लिए दरवाजे और खिड़कियां थीं। स्नान एवं शौचालय के पानी के निकास के लिए ढकी हुई नालियों की उत्तम व्यवस्था थी।

II. तकनीकी विज्ञान

हडप्पा संस्कृति के लोगों के तकनीकी विज्ञान में काफ़ी सीमा तक एकरूपता पाई जाती है। सभी नगरों में लगभग एकसी बनावट के तांबे और कांसे के औज़ार प्रयोग में लाए जाते थे। ये औज़ार नमूने एवं बनावट में सादे थे। नगरों में कुशल शिल्पी तांबे और कांसे के कटोरे, प्याले, थालियां, मनुष्य एवं पशुओं की मूर्तियां और छोटी खिलौना बैल-गाड़ियां बनाते थे। मोहरें बनाने की कला भी अत्यन्त विकसित थी। मनके बनाने का काम भी कम उत्कृष्ट न था, विशेषकर लम्बे इन्द्रगोप (cornelian) के मनके। सिन्धु घाटी के लोगों की बढ़इगिरी में प्रवीणता की जानकारी उनके द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली आरी से मिलती है। इस आरी के दांते ऊंचे-नीचे हैं ताकि लकड़ी का बुरादा आसानी से निकल सके। सच तो यह है कि तकनीकी विज्ञान में हड़प्पा के लोग मिस्र और बेबीलोन वालों से कहीं आगे थे। इतने बड़े इलाके में फैली हुई तकनीकी समरूपता के कारण यह सभ्यता प्राचीन काल में संसार भर में अद्वितीय थी।।

सिन्धु घाटी के लोग शस्त्र निर्माण में भी निपुण थे। उनके मुख्य शस्त्र छोटी तलवार, भाला, तीर का सिरा, कुल्हाड़ी और चाकू थे। ये अधिकतर तांबे और कांसे के बने हुए थे। धातु के हथियारों के अतिरिक्त शत्रु पर वार करने के लिए पत्थर के गदा और आग में पकाई गई गोलियों का प्रयोग किया जाता था। दूर से वार करने के लिए गुलेल प्रयोग में लाई जाती थी।

III. कृषि तथा व्यापार

1. कृषि-सिन्धु नदी का क्षेत्र उपजाऊ था। अत: यहां के लोगों ने कृषि की ओर विशेष ध्यान दिया। वे मुख्यतः गेहूँ और जौ की कृषि करते थे जो उनके मुख्य खाद्यान्न थे। खाने वाली अन्य वस्तुएं दाल और खजूर थीं। तिल और सरसों का तेल भी प्रयोग में आता था। भेड़, बकरियां और मवेशी प्रमुख पालतू पशु थे। इस सभ्यता के लोगों की अति महत्त्वपूर्ण उपज कपास थी जिससे कपड़ा बनाया जाता था। इस समय दुनिया के और किसी भाग में न तो कपास का उत्पादन होता था और न ही कपड़ा बनता था। सिन्धु घाटी की सभ्यता में नहरों द्वारा सिंचाई नहीं होती थी। गहरी खुदाई करने वाले हल से वे अपरिचित थे। बाढ़ के जल से सिंचाई के लिए बांध बनाए जाते थे। हैरो जैसे यन्त्र का प्रयोग फसल बोने के लिए होता था।

2. व्यापार-सिन्धु घाटी के लोग अनेक वस्तुओं का व्यापार करते थे। व्यापार में कच्चा माल भी शामिल था और तैयार माल भी। व्यापार के लिए भार-वाहक जानवरों, पशु-गाड़ियों तथा छोटी-छोटी नौकाओं का प्रयोग किया जाता था। सिन्धु घाटी से निर्यात होने वाली वस्तुओं में सूती कपड़ा, मोती, हाथी दांत तथा हाथी दांत से बनी वस्तुओं प्रमुख थीं। लंगूर, बन्दर, मोर आदि जीव-जन्तु भी बाहर भेजे जाते थे। लोथल कस्बे से जोकि एक प्रमुख बन्दरगाह थी, मोतियों का निर्यात होता था। सिन्धु घाटी के लोगों के आयात में अनेक बहुमूल्य पदार्थ शामिल थे। वे राजस्थान, मैसूर तथा दक्षिणी भारत से सोना, चाँदी और संगमरमर मंगवाते थे। सोना तथा चाँदी अफ़गानिस्तान से भी मंगवाया जाता था। यहां से तांबा भी आता था। मध्य एशिया से हीरे, फिरोज़े आदि का आयात किया जाता था।

उपर्युक्त बातों से स्पष्ट है कि सिन्धु घाटी की नगर योजना सिन्धु घाटी के लोगों के उच्च जीवन-स्तर की प्रतीक है। उसका तकनीकी ज्ञान मैसोपोटामिया तथा अन्य समकालीन सभ्यताओं से किसी प्रकार कम नहीं था। निःसन्देह सिन्धु घाटी के लोगों ने कृषि तथा व्यापार में भी पर्याप्त उन्नति की थी। संक्षेप में, हम जॉन मार्शल के इन शब्दों से सहमत हैं, “लोग सैधव (अच्छे बने) नगरों में निवास करते थे। उनकी संस्कृति परिपक्व थी जिसमें कला तथा कारीगरी अपने उत्कर्ष पर थी।” (“People lived in well-built cities and had a mature culture with a high standard of art and craftsmanship.”)

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म, कला, मुहरों तथा लिपि की विशेषताओं पर लेख लिखें।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता प्राचीन काल में सिन्धु नदी की घाटी में फली-फूली। इस सभ्यता के लोगों ने जीवन के अन्य क्षेत्रों में विकास के साथ-साथ धर्म, कला, मुहरों तथा लिपि से सम्बद्ध नवीनता का परिचय दिया। इन नवीन तथ्यों का विस्तृत विवरण इस प्रकार है

I. धर्म

सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं :
1. प्रमुख देवता-सिन्धु घाटी के देवी-देवताओं का पता हमें उनकी मुहरों से लगता है। खुदाई से मिली कुछ मुहरों पर एक देवता की मूर्ति बनी हुई है जिसके तीन मुख हैं। यह चित्र चार पशुओं के साथ योग मुद्रा में दिखाया गया है। इन पशुओं में एक बैल भी है। प्रायः बैल के साथ शिवजी महाराज का नाम जुड़ा हुआ है। इसलिए सर जॉन मार्शल (Sir John Marshall) का अनुमान है कि यह शिवजी की मूर्ति है और सिन्धु घाटी के लोग शिव पूजा में विश्वास रखते थे। खुदाई में मिली मुहरों पर एक अर्द्ध-नग्न नारी भी अंकित है। उसकी कमर पर भाला और शरीर पर विशेष प्रकार का वस्त्र है। सर जॉन मार्शल ने इसे मातृ देवी कहा है। उनका विचार है कि सिन्धु घाटी के लोग मातृ देवी की पूजा किया करते थे।

2. अन्य धार्मिक विश्वास-खुदाई में लिंग तथा योनि की मूर्तियां भी मिली हैं। सिन्धु घाटी के लोग जनन शक्ति के रूप में इन मूर्तियों की पूजा करते थे। इससे यह भी स्पष्ट है कि उनका मूर्ति पूजा में विश्वास था। खुदाई से मिली कुछ मुहरों पर हाथी, बैल, बाघ आदि के चित्र मिले हैं। इस बात से यह संकेत मिलता है कि उनमें पशु-पक्षियों की पूजा प्रचलित थी। पशुओं के अतिरिक्त सिन्धु घाटी के लोग पीपल आदि वृक्षों तथा अग्नि की पूजा करते थे। उनमें सम्भवतः सांपों तथा नदियों की पूजा भी प्रचलित थी। सिन्धु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार तीन प्रकार से करते थे। कुछ लोग मुर्दो को धरती में दबा देते थे, परन्तु कुछ उन्हें जला देते थे। कई लोग मुर्दे को जला कर उनकी राख तथा अस्थियों को किसी पात्र में रखकर उसे धरती में दबा देते थे। पात्र के साथ मृतक व्यक्ति की मन पसन्द वस्तुएं भी रख दी जाती थीं।

II. कला

सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों द्वारा निर्मित कलाकृतियां काफ़ी उच्च स्तर की थीं। नाचती हुई मुद्रा में खड़ी लड़की की लघु कांस्य प्रतिमा इस बात का स्पष्ट प्रमाण है।

वहां की मूर्तिकला के अनेक नमूने उपलब्ध हुए हैं। इनमें मानव एवं पशु दोनों की आकृतियां मिलती हैं। सिर और कंधों की टूटी हुई दाढ़ी वाले व्यक्ति की एक मूर्ति सिन्धु घाटी की कला का प्रभावशाली नमूना है।

सिन्धु घाटी की कुछ मूर्तियां पालथी मारकर बैठी हुई आकृति की हैं। इसे देव प्रतिमा समझा जाता है। वहां से कुछ पशुओं की मूर्तियां भी मिली हैं। उनमें शक्ति और वीरता झलकती है। खुदाई में एक संयुक्त पशु-मूर्ति भी मिली है जो किसी प्रकार की दैवी प्रतिमा प्रतीत होती है। एक अन्य प्रतिमा शिव के नटाज रूप का आदि स्वरूप प्रतीत होती है।
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता 1

पकी मिट्टी की लघु प्रतिमाएं काफ़ी संख्या में मिली हैं। इनमें पशु और मानवीय प्रतिमाएं दोनों शामिल हैं। बहुत-सी लघु प्रतिमाएं स्त्रियों की हैं। इनमें से कुछ बिस्तर नृत्य मुद्रा में खड़ी लड़की पर बच्चों के साथ या अकेली लेटी हुई दिखाई गई हैं। पशुओं की प्रतिमाओं में काफ़ी सारे पशु हैं। इनमें कूबड़ बैल, भैंसा, कुत्ता, भेड़, गैंडा, बन्दर, समुद्री कछुआ और कुछ मानवीय सिरों वाले पशु शामिल हैं। यहां गाय की कोई प्रतिमा नहीं मिली है। ठोस पहियों वाली पकी मिट्टी की बैलगाड़ियां भी मिली हैं। हड़प्पा से तांबे से बनी एक इक्कानुमा गाड़ी मिली है। मिट्टी के बर्तन प्रायः कुम्हार के चाक पर बनाए हुए हैं। उनके हाथ से बने बर्तन भी मिले हैं। सिन्धु घाटी के मिट्टी के बर्तनों में अधिकतर पर फूल, पत्ती, पक्षी और पशुओं के चित्र बने हुए हैं। अंगूठियों और चूड़ियों के अतिरिक्त वहां सोने, चांदी, तांबे, फेस, चाक पत्थर, कीमती पत्थर और शंख के बने अनेक सुन्दर मनके मिले हैं। इन मनकों को पिरो कर माला बनाई जाती थी।
दाढ़ी वाला आदमी (मोहनजोदड़ो)
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता 2

III. मोहरें

मोहरें प्राचीन शिल्पकला को सिन्धु घाटी की विशिष्ट देन समझी जाती हैं। केवल मोहनजोदड़ो से ही 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। ये कृतियां भले ही छोटी हैं फिर भी इन की कला इतनी श्रेष्ठ है कि इनके चित्रों में शक्ति और ओज झलकता है। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा के लिए किया जाता था। ऐसा भी विश्वास किया जाता है कि मोहरों का प्रयोग एक प्रकार का प्रतिरोधक (taboo) लगाने के लिए होता था। इन मोहरों से ऐसा भी प्रतीत होता है कि सिन्धु घाटी के समाज में विभिन्न पदवियों और उपाधियों की व्यवस्था प्रचलित थी। इन मोहरों पर पशुओं तथा मनुष्यों की आकृतियां बनी हुई हैं। पशुओं से सम्बन्धित आकृतियां बड़ी कलात्मक हैं। परन्तु मोहरों पर बनी मानवीय आकृतियां उतनी कलात्मकता से नहीं बनी हुई हैं। मोहरों के अधिकांश नमूने उनकी किसी धार्मिक महत्ता के सूचक हैं। एक आकृति के दाईं तरफ हाथी और चीता हैं, बाईं ओर गैंडा और भैंसा हैं। उनके नीचे दो बारहसिंगे या बकरियां हैं। इन ‘पशुओं के स्वामी’ को शिव का पशुपति रूप समझा जाता है। मोहरों पर पीपल के वृक्ष के बहुत चित्र मिले हैं।

IV. लिपि

सिन्धु घाटी के लोगों ने एक विशेष प्रकार की लिपि का आविष्कार किया जो चित्रमय थी। उनकी यह लिपि खुदाई में मिली मोहरों पर अंकित है। यह लिपि बर्तनों तथा दीवारों पर लिखी हुई पाई गई है। इसमें कुल 270 के लगभग वर्ण हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। यह लिपि आजकल की तथा अन्य ज्ञात लिपियों से काफ़ी भिन्न है। इसलिए इसे पढ़ना बहुत ही कठिन है। भले ही विद्वानों ने इसे पढ़ने के लिए अथक प्रयत्न किए हैं, तो भी वे अब तक इसे पूरी तरह पढ़ नहीं पाए हैं। आज भी इसे पढ़ने के प्रयत्न जारी हैं। अतः जैसे ही इस लिपि को पढ़ लिया जाएगा, सिन्धु घाटी की सभ्यता के अनेक नए तथ्य प्रकाश में आ जाएंगे।

यदि गहनता से सिन्धु घाटी की सभ्यता का अध्ययन किया जाए तो इतिहास की अनेक गुत्थियां सुलझाई जा सकती हैं। सिन्धु घाटी का धर्म आज के हिन्दू धर्म से मेल खाता है। उनकी कला-कृतियां उत्कृष्टता लिए हुए थीं। उनकी लिपि अभी तक पढ़ी नहीं गई। इसे पढ़े जाने पर सिन्धु घाटी का चित्र अधिक स्पष्ट हो जाएगा।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज कब हुई ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता की खोज 1922 ई० में हुई।

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प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के दो प्रमुख केन्द्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
हड़प्पा और मोहनजोदड़ो सिन्धु घाटी की सभ्यता के दो प्रमुख केन्द्र थे।

प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी के लोगों के दो देवी-देवताओं के नाम लिखो।
उत्तर-
पशुपति शिव तथा मातृदेवी।

प्रश्न 4.
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा आजकल किस देश में हैं ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा आजकल पाकिस्तान में हैं।

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प्रश्न 5.
मोहनजोदड़ो की खोज किसने की थी ?
उत्तर-
आर० डी० बैनर्जी ने।

प्रश्न 6.
हड़प्पा की खोज करने वाले व्यक्ति का नाम बताओ।
उत्तर-
दयाराम साहनी।

प्रश्न 7.
मृतकों का टीला किस स्थान के लिए प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो के लिए।

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प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी का पूजनीय पशु कौन-सा था ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी का पूजनीय पशु कुबड़ा बैल था।

प्रश्न 9.
सिन्धु घाटी के नगर मुख्य रूप से कौन-कौन से दो भागों में बंटे हुए थे ?
उत्तर-
दुर्ग और सामान्य नगर।

प्रश्न 10.
सिन्धु घाटी के धर्म की वे दो विशेषताएं बताओ जो आज भी हिन्दू धर्म का अंग हैं ।
उत्तर-
शिव-पूजा तथा पीपल-पूजा।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) ………. भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता है।
(ii) सिन्धु घाटी की सभ्यता लगभग …….. वर्ष पुरानी है।
(iii) ……… की सभ्यता सिंधु घाटी की समकालीन सभ्यता थी।
(iv) सिन्धु घाटी के मकान ……… ईंटों के बने हुए थे।
(v) सिन्धु सभ्यता के स्थलों की खुदाई करने वाले पुरातत्ववेत्ता सर ……….. थे।
उत्तर-
(i) सिन्धु घाटी की सभ्यता
(ii) 5,000
(iii) मैसोपोटामिया
(iv) पकी
(v) जॉन मार्शल।

3. सही/ग़लत कथन सही कथनों के लिए (√) तथा ग़लत कथनों के लिए (×) का निशान लगाएं।

(i) सिन्धु घाटी के लोग लिंग और योनि की मूर्तियों की पूजा करते थे। — (√)
(ii) सिन्धु घाटी के लोग शिलाजीत का प्रयोग मसाले के रूप में करते थे।– (×)
(iii) सिन्धु घाटी का विशाल स्नानागार हड़प्पा में मिला है। — (×)
(iv) सिन्धु घाटी के लोगों की लिपि चित्रमय थी। — (√)
(v) पंजाब में संघोल (‘लुधियाना जिले’) में सिंधु सभ्यता के अवशेष मिले हैं। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
सिन्धु सभ्यता में लोथल क्या था ?
(A) एक देवता
(B) एक बन्दरगाह
(C) एक स्नानागार
(D) लेखन कला केंद्र।
उत्तर-
(C) एक स्नानागार

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प्रश्न (ii)
सिन्धु सभ्यता का कौन-सा केन्द्र आज पंजाब में स्थित है ?
(A) मोहनजोदड़ो
(B) धौलावीरा
(C) रोपड़
(D) अमरी।
उत्तर-
(C) रोपड़

प्रश्न (iii)
हरियाणा में स्थित सिन्धु सभ्यता का स्थल है ?
(A) बनावली
(B) मिताथल
(C) राखीगढ़ी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न (iv)
सिन्धु घाटी की खुदाई में मिली नर्तकी की मूर्ति बनी हुई है ?
(A) कांसे की
(B) पीतल की
(C) सोने की
(D) तांबे की।
उत्तर-
(A) कांसे की

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प्रश्न (v)
सिन्धु घाटी की सभ्यता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है-
(A) ऊंचे भवन
(B) सुनियोजित जल-निकासी व्यवस्था
(C) पॉलिशदार मकान
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(B) सुनियोजित जल-निकासी व्यवस्था

॥. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

विशेष नोट-विद्यार्थी प्रत्येक अध्याय में इन प्रश्नों का अध्ययन अवश्य करें। ये प्रश्न उन्हें विषय-वस्तु को बारीकी से समझने में सहायता करेंगे। साथ ही, ये वस्तुनिष्ठ प्रश्नों को हल करने में उपयोगी सिद्ध होंगे।

प्रश्न 1.
सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई करवाने वाले चार व्यक्तियों के नाम बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई करवाने वाले चार व्यक्तियों के नाम थे : आर० डी० बनर्जी, एम० एस० वत्स, दया राम साहनी तथा सर जान मार्शल।

प्रश्न 2.
वर्तमान भारत के कौन-से चार राज्य हैं, जिनमें सिन्धु घाटी की सभ्यता के केन्द्र मिले हैं ? (Sure)
उत्तर-
वर्तमान भारत के चार राज्य पंजाब (रोपड़). राजस्थान (कालीबंगन), उत्तर प्रदेश (आलमगीरपुर) तथा गुजरात में सिन्धु घाटी सभ्यता के केन्द्र मिले हैं।

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प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के कोई चार केन्द्रों के नाम बताओ जो अब पाकिस्तान में हैं।
उत्तर-
पाकिस्तान में सिन्धु घाटी सभ्यता के चार केन्द्र चन्हुदड़ो, कोटडीजी, मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा हैं।

प्रश्न 4.
हडप्पा संस्कृति का काल बताओ।
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति का आरम्भ 2300 ई० पू० से भी पहले हुआ और इस संस्कृति का विकास 1900 ई० पू० तक जारी रहा।

प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी सभ्यता में किन तीन दों या आकारों की बस्तियां मिली हैं और इनमें से सबसे बड़े केन्द्र कौनसे हैं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता गांव, कस्बे तथा शहर-इन तीन दर्जी अथवा आकारों की बस्तियों में विकसित थी। इनमें सबसे बड़े केन्द्र मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा थे।

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प्रश्न 6.
हड़प्पा की गढ़ी की लम्बाई तथा चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
हड़प्पा की गढ़ी की लम्बाई 410 मीटर चौड़ाई 195 मीटर थी।

प्रश्न 7.
विशाल स्नान-कुण्ड कहां मिला है तथा इसकी लम्बाई, चौड़ाई व गहराई क्या है ?
उत्तर-
विशाल स्नान-कुण्ड मोहनजोदड़ो की गढ़ी में मिला है। यह 39 फुट लम्बा, 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा है।

प्रश्न 8.
मकानों के भीतरी भाग की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के मकान हवादार तथा पकी ईंटों से बने थे। मकानों में रसोई घर, स्नानागार तथा नालियां भी थीं।

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प्रश्न 9.
सिन्धु सभ्यता के लोगों के प्रयोग में आने वाले किन्हीं चार हथियारों के नाम लिखो।
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों के प्रयोग में आने वाले हथियारों में छोटी तलवार, भाला, तीर और चाकू थे।

प्रश्न 10.
मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़कों की दिशा क्या थी ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो की सड़कों की दिशा उत्तर से दक्षिण तथा पूर्व से पश्चिम की ओर थी।

प्रश्न 11.
सबसे अधिक प्रयोग की जाने वाली धातु के आधार पर सिन्धु सभ्यता को क्या नाम दिया गया है ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी में सबसे अधिक कांसे का प्रयोग होता था। इसीलिए इस सभ्यता को कांस्य युग की सभ्यता भी कहा गया है।

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प्रश्न 12.
किन्हीं चार धातुओं के नाम बताओ जिनसे सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग परिचित थे।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग सोना, चांदी, तांबा तथा कांसे की धातुओं से परिचित थे।

प्रश्न 13.
सिन्धु घाटी की दो मुख्य फसलों तथा खाद्य पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की दो मुख्य फसलें गेहूँ और जौ थीं। वहां के दो खाद्य पदार्थ भी गेहूँ और जौ ही थे।

प्रश्न 14.
खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त सिन्धु घाटी की सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण उपज क्या थी और इसका क्या प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर-
खाद्य पदार्थों के अतिरिक्त सिन्धु घाटी की सभ्यता की सबसे महत्त्वपूर्ण उपज कपास थी। इससे कपड़ा बनाया जाता था।

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प्रश्न 15.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोगों द्वारा मिट्टी के बर्तन बनाने की दो विधियां लिखो।
उत्तर-
मिट्टी के बर्तन आमतौर पर कुम्हार के चाक पर बनाए जाते थे। वे हाथ से भी बर्तन बनाते थे।

प्रश्न 16.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के मिट्टी के बर्तनों पर बने चार प्रकार के नमूनों के नाम लिखो।
उत्तर-
इन चार प्रकार के नमूनों में फूल, पत्ती, पक्षी और पशुओं के चित्र सम्मिलित हैं।

प्रश्न 17.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लोग माला में कौन-कौन से चार प्रकार के मनके पिरोते थे ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग सोने, चांदी, तांबे तथा कांसे के मनकों को माला में पिरोते थे।

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प्रश्न 18.
सिन्धु घाटी में लोथल कस्बा कौन-से दो काम देता था ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी में लोथल कस्बा बन्दरगाह और गोदाम का काम देता था।

प्रश्न 19.
केवल मोहनजोदड़ो से प्राप्त मोहरों की संख्या बताएं। इन मोहरों का प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो से 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा अथवा उन पर ‘सील’ लगाने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 20.
सिन्धु घाटी से प्राप्त मोहरों पर कौन-कौन से पशुओं के चित्र अंकित हैं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की मोहरों पर सांड, शेर, हाथी तथा बारहसिंगा के चित्र अंकित हैं।

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प्रश्न 21.
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के प्राप्त वर्णों की संख्या तथा यह किन चार चीजों पर मिलती है ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के अब तक 270 वर्ण प्राप्त हो चुके हैं। यह लिपि फलकों, मिट्टी के बर्तनों, आलेखों और मोहरों पर लिखी है।

प्रश्न 22.
भारत तथा एशिया के चार क्षेत्र बताओ जिनके साथ इस सभ्यता के लोगों के व्यापारिक सम्बन्ध थे।
उत्तर-
भारत के दो क्षेत्र थे राजस्थान तथा मैसूर। एशिया के दो क्षेत्रों में अफगानिस्तान तथा मैसोपोटामिया के नाम लिए जा सकते हैं।

प्रश्न 23.
सिन्धु घाटी में नर्तकी की धातु की मूर्ति कहां से मिली है ? यह किस धातु की बनी है ?
उत्तर-
नर्तकी की धातु की मूर्ति मोहनजोदड़ो से मिली है। यह कांसे की बनी है।

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प्रश्न 24.
सिन्धु घाटी से निर्यात की जाने वाली चार वस्तुओं के नाम बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी से मुख्य रूप से सूती कपड़ा, मोती, हाथी दांत और इससे बनी वस्तुएं निर्यात की जाती थीं।

प्रश्न 25.
सिन्धु घाटी के लोगों के धर्म की चार विशेषताएं बताओ जो बाद के समय में भी कायम रहीं।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के धर्म की स्थायी विशेषताओं में पशुपति शिव तथा मातृदेवी की पूजा सम्मिलित थी। वे लोग वृक्षों तथा पशुओं की भी पूजा करते थे।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हड़प्पा संस्कृति की खोज कब हुई ? इसके विस्तार का वर्णन करते हुए बताओ कि इसे हड़प्पा संस्कृति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति की खोज 1921 ई० में हुई। इस संस्कृति का विस्तार बहुत अधिक था। इसमें पंजाब, सिन्ध, राजस्थान, गुजरात तथा बिलोचिस्तान के कुछ भाग और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती भाग सम्मिलित थे। इस प्रकार इसका विस्तार उत्तर में जम्मू से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी के मुहाने तक और पश्चिम में बिलोचिस्तान के मकरान समुद्र तट से लेकर उत्तर-पूर्व में मेरठ तक था। उस समय कोई अन्य संस्कृति इतने बड़े क्षेत्र में विकसित नहीं थी। इस संस्कृति को हड़प्पा संस्कृति का नाम इसलिए दिया जाता है, क्योंकि सर्वप्रथम इस सभ्यता से सम्बन्धित जिस स्थान की खोज हुई, वह हड़प्पा था। यह स्थान अब पाकिस्तान में स्थित है।

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प्रश्न 2.
हड़प्पा संस्कृति के मुख्य केन्द्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति का क्षेत्र बहुत ही विस्तृत था। अब तक इस संस्कृति से सम्बन्धित 1000 से भी अधिक केन्द्रों की खोज हो चुकी है। इनमें से 6 केन्द्र विशेष रूप में उल्लेखनीय हैं। ये हैं-हडप्पा, मोहनजोदडो, चन्दडो, लोथल, कालीबंगां और बनावली। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो पाकिस्तान में स्थित हैं और इनमें 483 किलोमीटर की दूरी है। हड़प्पा संस्कृति के कुछ अन्य केन्द्र सुतकांगेडोर और सुरकोतड़ा हैं। ये दोनों ही समुद्रतटीय नगर हैं। गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में रंगपुर और रोजड़ी में हड़प्पा संस्कृति की उत्तर अवस्था के चिन्ह मिलते हैं।

प्रश्न 3.
हड़प्पा संस्कृति के लोगों के सामाजिक जीवन की प्रमुख विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-
हड़प्पा संस्कृति के लोगों के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है :

  • भोजन-ये लोग गेहूँ, चावल, सब्जियां तथा दूध का प्रयोग करते थे। मांस-मछली तथा अण्डे भी भोजन के अंग थे।
  • वेश-भूषा-हड़प्पा संस्कृति के लोग सूती और ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। पुरुष प्रायः धोती और शाल धारण करते थे। स्त्रियां प्राय: रंगदार और बेल-बूटों वाले वस्त्र पहनती थीं। स्त्रियां और पुरुष दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे।
  • मनोरंजन के साधन-लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन घरेलू खेल थे। वे प्रायः नृत्य, संगीत और चौपड़ आदि खेल कर अपना मन बहलाया करते थे। बच्चों के खेलने के लिए विभिन्न प्रकार के खिलौने थे।

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प्रश्न 4.
हडप्पा संस्कृति के लोगों के जीवन-यापन के स्त्रोतों का वर्णन करो।
अथवा
सिन्धु घाटी के लोगों के आर्थिक जीवन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोगों का आर्थिक जीवन अनेक व्यवसायों पर आधारित था। इन्हीं व्यवसायों द्वारा उनका जीवनयापन होता था। इन व्यवसायों का वर्णन इस प्रकार है-

  • कृषि-सिन्धु घाटी के लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। वे लोग मुख्य रूप से गेहूँ, जौ, चावल और कपास की खेती करते थे। खेती के लिए वे लकड़ी के हल का प्रयोग करते थे। उन्होंने सिंचाई की बड़ी अच्छी व्यवस्था की हुई थी।
  • पशु पालन-सिन्धु घाटी के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय पशु पालन था। वे मुख्य रूप से गाय, बैल, हाथी, बकरियां, भेड़, कुत्ते आदि पशु पालते थे।
  • व्यापार-व्यापार सिन्धु घाटी के लोगों का मुख्य व्यवसाय था। नगरों में आपसी व्यापार होता था। अफ़गानिस्तान तथा ईराक के साथ भी उनकी व्यापार चलता था।
  • उद्योग-यहां के कुछ लोग छोटे-छोटे उद्योग-धन्धों में भी लगे हुए थे। मिट्टी, तांबा तथा पीतल के बर्तन बनाने में वहां के कारीगर बड़े कुशल थे। वे सोने-चांदी के सुन्दर आभूषण भी बनाते थे। ..

प्रश्न 5.
सिन्धु घाटी की सभ्यता अथवा हड़प्पा संस्कृति के कोई ऐसे तत्त्व बताओ जो आज भी भारतीय जीवन में दिखाई देते हैं।
अथवा
भारतीय सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति की क्या देन है ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता के निम्नलिखित चार तत्त्व आज भी भारतीय जीवन में देखे जा सकते हैं :

  • नगर योजना-सिन्धु घाटी के नगर एक योजना के अनुसार बसाए गए थे। नगर में चौड़ी-चौड़ी सड़कें और गलियां थीं। यह विशेषता आज के नगरों में देखी जा सकती है।
  • निवास स्थान-सिन्धु घाटी के मकानों में आज की भान्ति खिड़कियां और दरवाज़े थे। हर घर में एक आंगन, स्नान गृह तथा छत पर जाने के लिए सीढ़ियां थीं।
  • आभूषण एवं श्रृंगार-आज की स्त्रियों की भान्ति सिन्धु घाटी की स्त्रियां भी श्रृंगार का चाव रखती थीं। वे सुर्जी तथा पाऊडर का प्रयोग करती थीं और विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनती थीं। उन्हें बालियां, कड़े तथा गले का हार पहनने का बहुत शौक था।
  • धार्मिक समानता-सिन्धु घाटी के लोगों का धर्म आज के हिन्दू धर्म से बहुत हद तक मेल खाता है। वे शिव, मात देवी तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते थे। आज भी हिन्दू लोगों में उनकी पूजा प्रचलित है।

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प्रश्न 6.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की नगर योजना की विशेषताएं क्या थीं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी की नगर योजना उच्च कोटि की थी। इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार से है :-
1. नगर के दो भाग-मोहनजोदड़ो और हड़प्पा का घेरा चार-पांच किलोमीटर था। ये नगर मुख्यतः दो भागों में बंटे हुए थे-गढ़ी और नगर।

(क) गढ़ी- हड़प्पा की गढ़ी का आकार समानान्तर चतुर्भुज जैसा था। इसकी लम्बाई 410 मीटर और चौडाई 195 मीटर थी। गढ़ी का निर्माण मुख्य रूप से प्रशासकीय एवं धार्मिक कार्यों के लिए किया जाता था। आवश्यकता पड़ने पर इसे सुरक्षा के लिए भी प्रयोग किया जा सकता था।

(ख) नगर या कस्बा-गढ़ी के नीचे कस्बे की चारदीवारी होती थी । कस्बे की योजना भी उत्तम थी। उसकी मुख्य सड़कें चौड़ी थीं। सड़कों की दिशा उत्तर से दक्षिण एवं पूरब से पश्चिम की ओर थी और नगर को आयताकार टुकड़ों में बांटती थीं।

2. विशाल भवन-मोहनजोदड़ो की गढ़ी में विशाल अन्न भण्डार था। हड़प्पा में यह भण्डार गढ़ी से बाहर था। इसके अतिरिक्त मोहनजोदड़ो की गढ़ी में एक सरोवर भी मिला है जो 39 फुट लम्बा, 23 फुट चौड़ा और 8 फुट गहरा था। यह उस समय का विशाल स्नानकुंड (Great Bath) था। इसका प्रयोग संभवतः किसी महत्त्वपूर्ण धार्मिक रीति के लिए होता था।

3. निवास स्थान-मकानों के लिए पकी ईंटों का उपयोग होता था। बड़े मकानों में रसोई, शौचघर एवं कुएं के अतिरिक्त बीस-बीस कमरे थे। परन्तु कुछ मकानों में केवल एक या दो कमरे भी थे। प्रत्येक में वायु और प्रकाश के लिए दरवाज़े और खिड़कियां थीं। गंदे पानी के निकास के लिए ढकी हुई नालियों की व्यवस्था थी।।

प्रश्न 7.
सिन्धु घाटी की सभ्यता का तकनीकी विज्ञान किस प्रकार का था ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोगों के तकनीकी विज्ञान (तकनॉलोजी) में काफ़ी समरूपता थी। सभी नगरों में तांबे और कांसे के लगभग एक-जैसी बनावट वाले औजार प्रयोग में लाए जाते थे। औज़ार देखने में सादे और काम करने में अच्छे थे। नगरों में कुशल शिल्पी तांबे और कांसे के कटोरे, प्याले, थालियां, मनुष्य एवं पशुओं की मूर्तियों और छोटी खिलौना बैलगाड़ियां बनाते थे। बर्तन बनाने के लिए कुम्हार के चाक का प्रयोग किया जाता था। मुहरें बनाना अत्यन्त विकसित कला थी। मनके बनाने का काम भी कम उत्कृष्ट न था। सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों की बढ़इगिरी में प्रवीणता का पता उनके द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली आरी से चलता है। इस आरी के दांते ऊंचे-नीचे हैं ताकि लकड़ी का बुरादा आसानी से निकल सके। हड़प्पा संस्कृति के लोग नावें तथा अस्त्र-शस्त्र बनाना भी जानते थे। सच तो यह है कि सिन्धु घाटी के निवासी तकनीकी विज्ञान में मिस्र और बेबीलोन वालों से भी आगे थे।

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प्रश्न 8.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म की विशेषताएं क्या थीं ?
उत्तर-
खुदाई में एक मोहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति बनी हुई है। देवता के चारों ओर कुछ पशु दिखाए गए हैं। इनमें से एक बैल भी है। सर जॉन मार्शल का कहना है कि यह पशुपति महादेव की मूर्ति है और लोग इसकी पूजा करते थे। खुदाई में मिली एक अन्य मोहर पर एक नारी की मूर्ति बनी हुई है। इसने विशेष प्रकार के वस्त्र पहने हुए हैं। विद्वानों का मत है कि यह धरती माता (मातृ देवी) की मूर्ति है और हड़प्पा संस्कृति के लोगों में इसकी पूजा प्रचलित थी। लोग पशुपक्षियों, वृक्षों तथा लिंग की पूजा में भी विश्वास रखते थे। वे जिन पशुओं की पूजा करते थे, उनमें से कूबड़ वाला बैल, सांप तथा बकरा प्रमुख थे। उनका मुख्य पूजनीय वृक्ष पीपल था। खुदाई में कुछ तावीज़ इस बात का प्रमाण हैं कि सिन्धु घाटी के लोग अन्धविश्वासी थे और जादू-टोनों में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 9.
सिन्धु घाटी की सभ्यता की कला की क्या विशेषताएँ थीं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों द्वारा बनी कलाकृतियां उच्चकोटि की थीं। खुदाई में एक लघु कांस्य प्रतिमा मिली है जो नृत्य की मुद्रा में है। इस मूर्ति से उन लोगों की मूर्तिकला में निपुणता का पता चलता है। यहां मूर्तियों के कई नमूने उपलब्ध हुए हैं। इनमें मानव एवं पशु दोनों की आकृतियां मिलती हैं। सिर और कंधों की टूटी हुई दाढ़ी वाले व्यक्ति की एक मूर्ति सिन्धु घाटी की कला का प्रभावशाली नमूना है। यहां की कुछ मूर्तियां पालथी मारकर बैठी हुई आकृति की हैं, जिसको कोई देव प्रतिमा समझा जाता है। यहां से प्राप्त पकी मिट्टी की लघु प्रतिमाओं की संख्या बहुत अधिक है। पशुओं की प्रतिमाओं में कूबड़ वाला बैल, भैंसा, कुत्ता, भेड़, हाथी, गैंडा, बन्दर, समुद्री कछुआ और कुछ मानवीय सिरों वाले-पशु देखे जा सकते हैं। मिट्टी के बर्तन आमतौर पर कुम्हार के चाक पर बनाए हुए हैं। हाथ से बने बर्तन भी मिले हैं। इन बर्तनों में अधिकांश पर फूलपत्ती, पक्षी और पशुओं के चित्र बने हुए हैं। अंगूठियों और चूड़ियों के अतिरिक्त यहां सोने, चांदी, तांबे, फैंस, चाक पत्थर, कीमती पत्थर और शंख बने अनेक सुन्दर मनके हैं। इन मनकों को पिरो कर माला बनाई जाती थी।

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प्रश्न 10.
सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के बारे में अब तक क्या पता चल सका है ? ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोगों ने एक विशेष प्रकार की लिपि का आविष्कार किया जो चित्रमय थी। यह लिपि खुदाई में मिली मोहरों पर अंकित है। यह लिपि बर्तनों तथा दीवारों पर लिखी हुई भी पाई गई है। इनमें 270 के लगभग वर्ण हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। यह लिपि आजकल की तथा अन्य ज्ञात लिपियों से काफ़ी भिन्न है, इसलिए इसे पढ़ना बहुत ही कठिन है। भले ही विद्वानों ने इसे पढ़ने के लिए अथक प्रयत्न किए हैं तो भी वे अब तक इसे पूरी तरह पढ़ नहीं पाए हैं। आज भी इसे पढ़ने के प्रयत्न जारी हैं। अत: जैसे ही इस लिपि को पढ़ लिया जाएगा, सिन्धु घाटी की सभ्यता के अनेक नए तत्त्व प्रकाश में आएंगे।

प्रश्न 11.
मोहनजोदड़ो से किस प्रकार की मोहरें मिली हैं ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी से मिली मोहरें उनकी उन्नत शिल्पकला की परिचायक हैं। केवल मोहनजोदड़ो से ही 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनकी निर्माण कला इतनी श्रेष्ठ है कि छोटा आकार होते हुए भी इनके चित्रों में से शक्ति और ओज झलकता है। इन मोहरों का प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा अथवा उन पर ‘सील’ लगाने के लिए किया जाता है। इन पर कई प्रकार से पशु तथा मानवीय एवं अर्द्ध-मानवीय आकृतियां बनी हुई हैं। पशु आकृतियों में छोटे सींगों वाला सांड, शेर, हाथी, बारहसिंगा, खरगोश, गरुड़ आदि प्रमुख हैं। मोहरों के अधिकांश नमूने लोगों की धार्मिक महत्ता के सूचक हैं। एक आकृति के दाईं तरफ हाथी और चीता है, बाईं ओर गैंडा और भैंसा है। उनके नीचे दो बारहसिंगा या बकरियां हैं। इस पशु स्वामी को शिव का पशुपति रूप माना जाता है।

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प्रश्न 12.
इस (सिन्धु घाटी की) सभ्यता के पतन के कारण बताओ।
उत्तर-
सिन्धु घाटी की सभ्यता के पतन के अनेक कारण बताए जाते हैं :-

  • बाढ़-कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि यह सभ्यता सिन्धु नदी में बाढ़ें आने के कारण लुप्त हुई।
  • बाहरी आक्रमण-कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यों तथा अन्य विदेशी जातियों ने यहां के लोगों पर अनेक आक्रमण किए। इन युद्धों में यहां के निवासी हार गए. और इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • वर्षा की कमी-कुछ विद्वानों का कहना है कि इस सभ्यता का अन्त वर्षा की कमी के कारण हुआ। उनका अनुमान है कि इस प्रदेश में काफ़ी लम्बे समय तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा और इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • भूकम्प-कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह सभ्यता भूकम्प आने के कारण नष्ट हुई।
  • अन्य कारण-(i) कुछ विद्वानों के विचार में इस प्रदेश में भयानक महामारियां फैली होंगी। इससे अनेक लोग मारे गए और जो लोग बचे होंगे, वे मृत्यु के भय से यह प्रदेश छोड़ गए होंगे। (ii) एक अन्य मत के अनुसार शायद सिन्धु नदी ने अपना रास्ता बदल लिया होगा जिससे इस प्रदेश की भूमि बंजर हो गई होगी। लोग इस बंजर भूमि को छोड़ कर कहीं और चले गए होंगे।

इन सब कारणों को दृष्टि में रखते हुए बी० जी० गोखले (B.G. Gokhale) ने ठीक कहा है- “मानव और प्रकृति ने सामूहिक रूप से इस सभ्यता का पूर्ण विनाश किया होगा।” (Nature and man must have combined to cause its complete annihilation.)

प्रश्न 13.
सिन्धु घाटी के लोगों के किन-से सीधे या अन्य माध्यम द्वारा सम्पर्क थे ?
उत्तर–
सिन्धु घाटी के लोगों का विश्व तथा देश के अन्य भागों के निवासियों के साथ सीधा या अन्य माध्यम से सम्पर्क था। राजस्थान, मैसूर तथा दक्षिणी भारत के लोगों के साथ उनका सीधा सम्बन्ध था। देश के इन भागों से वे संगमरमर, चांदी तथा सोना मंगवाते थे। बाहरी देशों जैसे अफ़गानिस्तान, मध्य एशिया तथा सुमेर के लोगों के साथ उनके गहरे सम्बन्ध थे। अफ़गानिस्तान से वे लोग सोना, चांदी और तांबा मंगवाते थे। मध्य एशिया से वे हरे रंग के हीरे, फिरोज़े आदि मंगवाते थे। उनके मैसोपोटामिया के लोगों के साथ भी अप्रत्यक्ष सम्बन्ध थे।

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प्रश्न 14.
सिन्धु घाटी के लोगों की व्यापारिक वस्तुओं के विषय में तुम क्या जानते हो ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग अनेक वस्तुओं का व्यापार करते थे। सिन्धु घाटी से निर्यात होने वाली वस्तुओं में सूती कपड़ा, मोती, हाथी दांत तथा हाथी दांत से बनी वस्तुएं प्रमुख थीं। लंगूर, बन्दर, मोर आदि जीव-जन्तु बाहर भी भेजे जाते थे। लोथल कस्बे से जोकि एक प्रमुख बन्दरगाह थी, मोतियों का निर्यात होता था। सिन्धु घाटी के लोगों के आयात में अनेक बहुमूल्य पदार्थ शामिल थे। वे राजस्थान, मैसूर तथा दक्षिणी भारत से सोना, चांदी और संगमरमर मंगवाते थे। सोना, चांदी तथा तांबा अफ़गानिस्तान से भी मंगवाया जाता था। मध्य एशिया से हीरे, फिरोज़े आदि का आयात किया जाता था।

प्रश्न 15.
सिन्धु घाटी के लोग किन हथियारों का प्रयोग करते थे ?
उत्तर-
सिन्धु घाटी के लोग तांबे तथा कांसे से बने अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोग करते थे। बढ़ई का मुख्य हथियार आरी था जिसके दाँत ऊंचे-नीचे होते थे। खेती में मुख्यत: हैरो जैसे यन्त्र का प्रयोग किया जाता था। सिन्धु घाटी के लोग युद्ध-प्रिय न होने के कारण युद्ध-शस्त्रों को अधिक महत्त्व नहीं देते थे। फिर भी वे कुछ युद्ध-शस्त्र अवश्य बनाते थे। इन शस्त्रों में तांबे तथा कांसे की बनी तलवारें, बर्छियां, तीर, कुल्हाड़ियां, गुलेल और चाकू मुख्य थे। इन शस्त्रों के अतिरिक्त शत्रु पर फेंकने के लिए पत्थर के बने भालों का भी प्रयोग किया जाता था।

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प्रश्न 16.
सिन्धु घाटी की सभ्यता कब फली-फूली ? इसके निर्माता कौन थे ? इस काल में लोगों के सामाजिक जीवन का वर्णन करो।
उत्तर–
सिन्धु घाटी की सभ्यता कब पनपी, इस विषय में सभी इतिहासकार एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों का विचार है कि इस सभ्यता की उत्पत्ति तथा विकास 2500 ई० पू० से 1500 ई० पू० के बीच हुआ। इसके विपरीत सर जॉन मार्शल इस सभ्यता का जन्म आज से लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व बताते हैं। प्रायः इसी मत को ठीक माना जाता है। सिन्धु घाटी के लोगों के विषय में भी इतिहासकारों के भिन्न-भिन्न मत हैं। कुछ विद्वान् उन्हें आर्य जाति का मानते हैं और कुछ उन्हें सुमेरियन जाति का बताते हैं। इस विषय में सबसे अधिक मान्य मत यह है कि सिन्धु घाटी में अनेक जातियों के लोग रहते थे।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोगों के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोगों के सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-
1. भोजन तथा वस्त्र-सिन्धु घाटी के लोग गेहूँ, चावल, दूध, खजूर तथा सब्जियों का प्रयोग करते थे। वे मांस, मछली और अण्डे भी खाते थे। कुछ घरों में सिल-बट्टे भी मिले हैं। इससे यह अनुमान लगाया गया है कि वे लोग चटनी जैसी कोई चीज़ भी खाते थे। सिन्धु घाटी के लोग सूती तथा ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र पहनते थे। वे कुर्ता, धोती और कन्धों पर शाल या दुपट्टे आदि का प्रयोग करते थे। कढ़ाई किए हुए शाल ओढ़ने का भी रिवाज था।

2. आभूषण-सिन्धु घाटी के पुरुष और स्त्रियां दोनों ही आभूषण पहनने के शौकीन थे। उस समय हार, बालियां, अंगूठी, कंगन, चूड़ियां और पांवों में कड़े पहनने का रिवाज़ था। धनी लोग सोने, चांदी तथा हाथी दांत के आभूषण पहनते थे। गरीब लोग केवल तांबे आदि के आभूषण ही प्रयोग में लाते थे। आभूषण बनाने वाले कारीगर बड़े निपुण थे। सर जॉन मार्शल लिखते हैं कि सोने-चांदी के इन आभूषणों को देखकर ऐसा लगता है जैसे “ये आज से पांच हजार साल पहले बने हए नहीं सिन्धु घाटी के आभूषण बल्कि अभी लन्दन के जौहरी बाज़ार से खरीदे गए हैं।

3. श्रृंगार-स्त्रियां काजल, सुर्जी, सुगन्धित तेल तथा दर्पण का प्रयोग करती थीं। दर्पण कांसी के बने हए होते थे। वे कई तरीकों से अपने बाल गूंथती थीं। पुरुष दाढ़ी मुंडवाते थे और कई तरह के बाल बनवाते थे। वे बालों को संवारने के लिए कंघी का प्रयोग करते थे।

4. मनोरंजन-सिन्धु घाटी के लोग नाच और गाने से अपना दिल बहलाया करते थे। उन्हें घरों में खेले जाने वाले खेल अधिक पसन्द थे। खुदाई से प्राप्त कुछ मोहरों से पता चलता है कि लोग जुआ भी खेलते थे। उनका एक खेल आधुनिक शतरंज जैसा था। बच्चों के लिए प्रत्येक घर में खिलौने हुआ करते थे। खुदाई में हिरणों तथा बारहसिंगा के सींग भी मिले हैं। इनसे यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धु घाटी के लोगों को शिकार खेलने का भी चाव था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता 3

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 1 सिन्धु घाटी की सभ्यता

प्रश्न 2.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के आर्थिक तथा धार्मिक जीवन का वर्णन करो।
उत्तर-
आर्थिक जीवन-सिन्धु घाटी के लोगों के आर्थिक जीवन का वर्णन इस प्रकार है :

  • कृषि–सिन्धु घाटी के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। वे गेहूँ, जौ, कपास, फल, सब्जियों आदि की खेती करते थे।
  • पशु पालन-सिन्धु घाटी के लोगों का दूसरा बड़ा व्यवसाय पशु पालना था। ये लोग गाय, बैल, भेड़, बकरियां, कुत्ते, सूअर आदि पालते थे।
  • व्यापार—यहां के लोगों का व्यापार काफ़ी उन्नत था। वे विदेशों के साथ भी व्यापार करते थे। प्रोफैसर चाइड लिखते हैं कि सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा बनी वस्तुएं दजला और फरात की घाटी के बाजारों में बिका करती थीं। वस्तुओं को तोलने के लिए बाट थे।
  • कुटीर उद्योग-सिन्धु घाटी के कांसी तथा पीतल के बहुत सुन्दर बर्तन बनाते थे। उनके बनाए हुए खिलौने बड़े ही सुन्दर होते थे। सूत कातना, कपड़ा बुनना, आभूषण बनाना, पकी ईंटें बनाना आदि भी उनके प्रमुख उद्योग-धन्धे थे।

धार्मिक जीवन-सिन्धु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन का वर्णन इस प्रकार है :-

  • शिव उपासना-खुदाई में एक ऐसी मूर्ति मिली है जिसकी तीन आँखें और तीन मुँह हैं। इस मूर्ति में एक बैल का चित्र भी है। प्रायः बैल के साथ शिवजी महाराज का नाम जुड़ा हुआ है। इसलिए सर जॉन मार्शल का अनुमान है कि यह शिवजी की मूर्ति है और सिन्धु घाटी के लोग इसकी पूजा किया करते थे।
  • मातृदेवी की पूजा-खुदाई में मिली मोहरों पर एक अर्धनग्न नारी का चित्र बना हुआ है। विद्वानों का विचार है कि यह मातृदेवी की मूर्ति है और सिन्धु घाटी के लोग इसकी पूजा करते थे।
  • मूर्ति पूजा–खुदाई में शिवलिंग तथा कई मूर्तियां मिली हैं। अनुमान है कि सिन्धु घाटी के लोग इन मूर्तियों की पूजा करते थे।
  • पशु पूजा-खुदाई से मिली कुछ मोहरों पर हाथी, बैल, बाघ आदि के चित्र मिले हैं। सिन्धु घाटी के लोग इन पशुओं की भी पूजा किया करते थे।
  • जादू-टोनों में विश्वास-खुदाई में कुछ तावीज़ भी मिले हैं। इनसे यह अनुमान लगाया गया है कि सिन्धु घाटी के लोग जादू-टोनों में भी विश्वास रखते थे।
  • मृतक संस्कार-सिन्धु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार तीन प्रकार से किया करते थे। कुछ लोग मुर्दो को धरती में दबा देते थे और कुछ उन्हें जला देते थे। कई लोग मुर्दो को जलाकर उनकी राख तथा अस्थियों को किसी पात्र में रखकर उसे धरती में गाढ़ देते थे।

प्रश्न 3.
सिन्धु घाटी की सभ्यता के लुप्त होने के क्या कारण (पतन के कारण) बताए जाते हैं ?
उत्तर-

  • बाढ़ें–कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि सिन्धु नदी की घाटी में आने वाली बाढ़ों ने इस सभ्यता को नष्टभ्रष्ट कर दिया।
  • बाहरी आक्रमण-कुछ विद्वानों के अनुसार आर्यों तथा अन्य विदेशी जातियों ने यहां के लोगों पर अनेक आक्रमण किए। इन युद्धों में यहां के निवासी हार गए इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • वर्षा की कमी-कुछ विद्वानों का कहना है कि इस सभ्यता का अन्त वर्षा की कमी के कारण हुआ। इनका अनुमान है कि इस प्रदेश में काफी लम्बे समय तक वर्षा न होने के कारण भयंकर अकाल पड़ा और इस सभ्यता का अन्त हो गया।
  • भूकम्प-कुछ इतिहासकारों का मत है कि यह सभ्यता भूकम्प आने के कारण नष्ट हुई।
  • अन्य कारण-
    • कुछ विद्वानों के विचार में इस प्रदेश में भयानक महामारियां फैली होंगी। इससे अनेक लोग मारे गए और जो लोग बचे होंगे, वे मृत्यु के भय से यह प्रदेश छोड़ गए होंगे।
    • एक अन्य मत के अनुसार शायद सिन्धु नदी ने अपना रास्ता बदल लिया होगा जिससे इस प्रदेश की भूमि बंजर हो गई होगी। लोग बंजर भूमि को छोड़ कर कहीं और चले गए होंगे।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
संविधान शब्द की परिभाषा कीजिए। संविधान के विभिन्न प्रकार क्या हैं ?
(Define the term Constitution. What are the different kinds of Constitution ?)
उत्तर–
प्रत्येक राज्य का अपना एक संविधान होता है। संविधान उन नियमों तथा सिद्धान्तों का समूह होता है जिनके अनुसार शासन चलाया जाता हो। प्रत्येक राज्य का शासन कुछ निश्चित नियमों तथा सिद्धान्तों के अनुसार चलाया जाता है। अर्थात् प्रत्येक राज्य में कुछ ऐसे सिद्धान्त तथा नियम निश्चित कर लिए जाते हैं जिनके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किए जाते हैं। इन नियमों के समूह को ही संविधान कहा जाता है। इसकी परिभाषा कई विद्वानों द्वारा की गई है-

प्रो० जैलिनेक (Jellinek) का कहना है कि, “संविधान उन नियमों का समूह है जो राज्य के सर्वोच्च अंगों को निर्धारित करते हैं, उनकी रचना, उनके आपसी सम्बन्धों, उनके कार्यक्षेत्र तथा राज्य में उनके वास्तविक स्थान को निश्चित करते हैं।”
(“The constitution is a body of juridicial rules which determine the supreme organs of the state, prescribe their modes of creation, their mutual relations, their sphere of action and finally the fundamental place of each of them in relation of the state.”)

वुल्ज़े (Woolsey) के अनुसार, “संविधान उन नियमों का समूह है जिनके अनुसार सरकार की शक्तियां, शासितों के अधिकार तथा इन दोनों के आपसी सम्बन्धों को व्यवस्थित किया जाता है।” (“A constitution is the collection of the principles according to which the powers of government, the rights of the governed and the relation between the two are adjusted.”)

डायसी (Dicey) का कहना है कि, “राज्य के संविधान में वे सब नियम सम्मिलित होते हैं जिनका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य में प्रभुसत्ता के वितरण या प्रयोग पर प्रभाव पड़ता है।” (“The constitution of the state consists of all rules which directly or indirectly affect the distribution or exercise of sovereign power in the state.”)

ब्राइस (Bryce) का कहना है कि, “किसी राज्य के संविधान में वे कानून या नियम सम्मिलित होते हैं जिनके अनुसार सरकार के स्वरूप तथा इसके नागरिकों के प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों और नागरिकों के इसके प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है।” (“The constitution of a state consists of those rules or laws which determines the form of its government and the respective rights and duties of it towards its citizens and of the citizens towards government.”)

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प्रो० गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के शब्दों में, “राज्य का संविधान लिखित या अलिखित कानूनों या नियमों का वह समूह है जो सरकार के संगठन, सरकार के विभिन्न अंगों में शक्तियों के वितरण और शक्ति-प्रयोग के सामान्य नियमों को निश्चित करता है।” (“The constitution of a state is that body of rules of laws, written or unwritten, which determine the organisation of government, the distribution of powers of the various organs of government and the general principles on which these powers are to be exercised.”)

गैटल (Gettell) का कहना है कि, “संविधान उन नियमों का संग्रह है जिनके द्वारा सरकार और उसके नागरिकों के कानूनी सम्बन्धों को निश्चित किया जाता है और जिनके अनुसार राज्य की शक्ति का प्रयोग होता है।” (“The constitution is a collection of norms by which the legal relations between the government and its subjects are determined and in accordance with which the power of the state is exercised.”)

ऑस्टिन (Austin) ने कहा है कि, “संविधान वह है जो सर्वोच्च शासन के ढांचे को निश्चित करता है।” (“The constitution is that which fixes the structure of the supreme government.”)
ऊपर दी गई इन विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर संविधान की सरल परिभाषा इस प्रकार कर सकते हैं कि राज्य का संविधान राज्य का वह सर्वोच्च कानून है, जिसके अनुसार वहां की सरकार का स्वरूप, सरकार के विभिन्न अंगों और उनकी रचना, उनकी शक्तियां, उनके आपसी सम्बन्ध, राज्य और व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों तथा नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है। संविधान में मुख्यतः पांच बातों का वर्णन होता है-

  1. सरकार का स्वरूप।
  2. सरकार के अंगों की रचना और उनके आपसी सम्बन्ध ।
  3. सरकार के विभिन्न अंगों की शक्तियां।
  4. नागरिकों और राज्य के आपसी सम्बन्ध अथवा नागरिकों के अधिकार तथा कर्त्तव्य।
  5. राज्य की नागरिकता व भू-क्षेत्र सम्बन्धी कानून।

संविधानों का वर्गीकरण (Classification of Constitutions)-
सभी राज्यों के संविधान एक से नहीं होते। प्रत्येक राज्य में वहां की राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक परिस्थितियों तथा लोगों की राजनैतिक विचारधारा के अनुसार वहां का संविधान निश्चित होता है। प्रत्येक राज्य के mising

(1) विकसित संविधान तथा निर्मित संविधान (Evolved Constitution and Enacted Constitution) संविधान की रचना किस प्रकार हुई है, इसके आधार पर संविधान दो तरह के होते हैं-

(क) विकसित संविधान (Evolved Constitution)—जो संविधान ऐतिहासिक उपज या विकास का परिणाम हो, उसे विकसित संविधान कहा जाता है। यह संविधान किसी एक समय में किसी एक व्यक्ति या सभा द्वारा जानबूझ कर नहीं बनाया जाता बल्कि उसके नियम इतिहास के साथ-साथ ही सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार, रीतिरिवाज़ों और परम्पराओं के आधार पर बनते तथा विकसित होते हैं। इसके बनाने के लिए कोई संविधान सभा नहीं बुलाई जाती बल्कि संविधान की विभिन्न बातें समय-समय पर निश्चित होती चली जाती हैं। इंग्लैण्ड का संविधान ऐसे संविधान का सर्वोत्तम उदाहरण है। इंग्लैण्ड में आज तक कोई संविधान सभा संविधान बनाने के लिए नहीं बनाई गई है।

(ख) निर्मित संविधान (Enacted Constitution) निर्मित संविधान वह संविधान है जो किसी एक ही समय में किसी एक व्यक्ति, समिति या संविधान सभा के द्वारा निर्मित किया जाए। ऐसे संविधान का निर्माण इसी उद्देश्य के लिए बुलाई गई संविधान सभा के द्वारा किया जाता है। इसका यह अर्थ नहीं कि एक बार बनने के बाद इसमें कोई संशोधन नहीं हो सकता। बाद में इसकी धाराओं में समय-समय पर संशोधन होता रहता है। इसकी समस्त बातें सोचसमझ कर निश्चित की जाती हैं। भारत का संविधान निर्मित संविधान है। अधिकतर राज्यों के संविधान निर्मित हैं।

(2) लिखित संविधान तथा अलिखित संविधान (Written Constitution and Unwritten Constitution)
(क) लिखित संविधान (Written Constitution)-लिखित संविधान उसे कहा जाता है जिसके लगभग सभी नियम लिखित रूप में उपलब्ध हों। लिखित संविधान प्रायः निर्मित होता है जिसका निर्माण किसी संविधान सभा के द्वारा एक ही समय में काफ़ी सोच-विचार के बाद किया जाता है। लिखित संविधान को बनाते हुए शब्दों का प्रयोग इस प्रकार किया जाता है कि वे इस उद्देश्य को पूरी तरह से स्पष्ट कर दें जिस उद्देश्य के लिए वे लिखे जा रहे हैं। लिखित संविधान देश का सर्वोच्च कानून और एक पवित्र वस्तु माना जाता है। संविधान में इस बात का भी स्पष्ट वर्णन किया जाता है कि उसमें किस प्रकार संशोधन किया जा सकता है। इसके संशोधन का तरीका प्रायः साधारण कानून बनाने के तरीकों से भिन्न और कठोर होता है। भारत, अमेरिका, रूस, कनाडा, जापान आदि अधिकतर राज्यों के संविधान लिखित हैं।

(ख) अलिखित संविधान (Unwritten Constitution)—अलिखित संविधान उसे कहते हैं जिसकी धाराएं लिखित रूप में न हों बल्कि शासन संगठन अधिकतर रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं पर आधारित हो। अलिखित संविधान पूर्णतः अलिखित नहीं होता, उसका कुछ अंश लिखित रूप में भी मिलता है। संसद् द्वारा समय-समय पर बनाए गए कानून और न्यायालयों द्वारा दिए गए निर्णय, जो शासन संगठन से सम्बन्धित हों, अलिखित संविधान का एक भाग होते हैं। अलिखित संविधान विकसित होता है, निर्मित नहीं होता। इंग्लैण्ड का संविधान अलिखित संविधान का एक उदाहरण है। वहां सरकार का संगठन और व्यक्ति तथा राज्य के आपसी सम्बन्ध रीति-रिवाजों तथा परम्पराओं पर आधारित हैं।

(3) लचीला संविधान तथा कठोर संविधान (Flexible Constitution and Rigid Constitution)संविधान में संशोधन कैसे किया जा सकता है, इस बात के आधार पर भी संविधान दो प्रकार के होते हैं-लचीला या परिवर्तनशील संविधान तथा कठोर या अपरिवर्तनशील संविधान।

(क) लचीला या परिवर्तनशील संविधान उसे कहा जाता है कि जिसमें आसानी से संशोधन या परिवर्तन किया जा सके। जिस साधारण तरीके से संसद् साधारण कानून बनाती है, उसी साधारण तरीके से संविधान में बड़े से बड़ा परिवर्तन भी किया जा सकता है अर्थात् संवैधानिक कानून (Constitution Law) को बनाते समय संसद् को किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं होती। प्रो० बार्कर का कहना है कि जब किसी सरकार का रूप जनता या उसके प्रतिनिधियों की इच्छानुसार आसानी से बदला जा सकता है तो उसे लचीला संविधान कहा जाता है। ऐसे संविधान में संसद् को कानून बनाने की असीमित शक्ति प्राप्त होती है। इंग्लैण्ड का संविधान लचीला है। वहां की संसद् संविधान के बारे में कोई भी कानून बिल्कुल साधारण तरीके से पास कर सकती है।

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(ख) कठोर या अपरिवर्तनशील संविधान उसे कहा जाता है कि जिसे आसानी से बदला न जा सके। जब साधारण कानून के बनाने के तरीके और संविधान में संशोधन करने के तरीके में अन्तर हो अर्थात् संशोधन करने का तरीका कठिन हो तो उसे कठोर संविधान कहा जाता है। साधारण कानून बनाने वाली सत्ता संविधान का संशोधन नहीं कर सकती बल्कि कोई दूसरी ही सत्ता इसमें संशोधन करती है। कठोर संविधान को राज्य का सर्वोच्च कानून माना जाता है। संघात्मक राज्यों के संविधान प्रायः निर्मित, लिखित तथा कठोर होते हैं। अमेरिका का संविधान कठोर है जिसमें संशोधन करने के लिए संसद् के दोनों सदनों का 2/3 बहुमत और कम-से-कम 3/4 राज्यों का समर्थन प्राप्त होना आवश्यक है। भारत का संविधान भी कठोर है।

प्रश्न 2.
‘लचीले’ तथा ‘कठोर’ संविधान में भेद बताओ।
(Distinguish between “Flexible” and “Rigid” Constitutions.)
उत्तर–
प्रत्येक राज्य का अपना संविधान होता है। संविधान उन नियमों और सिद्धान्तों का संग्रह होता है जिनके अनुसार सरकार का स्वरूप, सरकार का संगठन, सरकार की शक्तियों, नागरिकों के अधिकार निश्चित होते है। संविधान कई प्रकार के होते हैं जैसे कि विकसित व निर्मित संविधान, लिखित व अलिखित संविधान तथा लचीले व कठोर संविधान । लचीले और कठोर संविधान का भेद संविधान में संशोधन के तरीके के आधार पर है।

लचीला या परिवर्तनशील संविधान (Flexible Constitution)-
लचीला संविधान उसे कहा जाता है जिसे आसानी से बदला जा सकता हो। लचीलने संविधान को देश की संसद् या व्यवस्थापिका साधारण तरीके से बदल सकती है तथा उसके लिए किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं पड़ती। संवैधानिक कानून और साधारण कानून में कोई विशेष अन्तर नहीं रहता तथा साधारण कानून जितनी आसानी से पास हो जाता है उसी प्रकार से संवैधानिक कानून भी पास हो जाता है। प्रो० बार्कर (Barker) का कहना है कि जब संविधान में परिवर्तन जनता या उसके प्रतिनिधियों की इच्छानुसार आसानी से किया जा सके तो उसे लचीला संविधान कहा जाता है।

लचीले संविधान वाले राज्य में कानून बनाने वाली सत्ता और संविधान में संशोधन करने वाली सत्ता में कोई अन्तर नहीं होता और इस प्रकार व्यवस्थापिका को कानून बनाने की अपार शक्ति प्राप्त होती है। प्रो० डायसी (Dicey) का कहना है कि “लचीले संविधान में हर प्रकार का कानून एक ही सत्ता द्वारा एक ही तरीके से आसानी से बदला जा सकता है।” इंग्लैंड का संविधान एक लचीला संविधान है। ब्रिटिश संसद् किसी भी प्रकार कानून बना सकती है और किसी भी कानून को अपनी इच्छानुसार आसानी से बदल सकती है। ब्रिटिश संसद् संवैधानिक कानून उसी साधारण तरीके से पास कर सकती है जिस तरह से दूसरे साधारण कानून । ऐसा कोई कानून नहीं जिसे ब्रिटिश संसद् बना न सकती हो या जिसमें परिवर्तन न कर सकती हो।

कठोर संविधान (Rigid Constitution)-
जिस संविधान को आसानी से न बदला जा सकता हो तथा उसे बदलने के लिए किसी विशेष तरीके को अपनाना पड़ता हो, उसे कठोर संविधान या परिवर्तनशील संविधान कहा जाता है। कठोर संविधान में संविधान को बदलने वाली सत्ता और साधारण कानून बनाने वाली सत्ता में अन्तर होता है तथा साधारण कानून के बनाने के तरीके और संविधान में संशोधन के तरीके में भी अन्तर होता है। कठोर संविधान में संसद् को असीमित शक्ति प्राप्त नहीं होती बल्कि उसकी वैधानिक शक्तियां संविधान द्वारा सीमित होती हैं। इसके अतिरिक्त संसद् के बनाए कानूनों पर न्यायपालिका को पुनर्निरीक्षण (Judicial Review) का अधिकार होता है। कठोर संविधान की व्यवस्था संघात्मक शासन प्रणाली में अवश्य की जाती है ताकि संविधान को केन्द्र या इकाइयां कोई भी अपनी इच्छा से संशोधन न कर सकें बल्कि दोनों की सहमति से ही उसमें परिवर्तन हो सके।

संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान एक कठोर संविधान है। वहां संविधान में संशोधन करने का तरीका साधारण कानून बनाने के तरीके से भिन्न है। संविधान में संशोधन का प्रस्ताव जब संसद् के दोनों सदनों में 2/3 बहुमत से पास हो जाए तो उसे राज्यों के पास भेजा जाता है। उस प्रस्ताव को उसी समय पास समझा जा सकता है जबकि कम-से-कम 3/4 राज्यों के विधानमण्डल उस पर अपनी स्वीकृति दे दें। संशोधन का प्रस्ताव 2/3 राज्यों के द्वारा भी पेश किया जा सकता है, जिसके आधार पर अमेरिकन संसद् एक सभा (Convention) बुलाती है । यदि वह सभा 2/3 बहुमत से उसे पास कर दे तो फिर 3/4 राज्यों का समर्थन मिलने पर ही वह संशोधन पास समझा जाता है तथा उसके बाद ही लागू हो सकता है। भारत का संविधान भी आंशिक रूप से कठोर है। इसकी महत्त्वपूर्ण धाराओं को बदलने के लिए संशोधन का प्रस्ताव पहले संसद् के दोनों सदनों 2/3 बहुमत से पास हो जाना चाहिए और इसके बाद कम-से-कम आधे राज्यों का समर्थन उसे मिलना चाहिए। साधारण कानून तो संसद् के दोनों सदनों के द्वारा साधारण बहुमत से पास होता है। इस प्रकार कठोर संविधान को आसानी से और साधारण तरीके से बदला नहीं जा सकता।

लचीले और कठोर संविधान में भेद को बताते हुए ब्राइस (Bryce) ने कहा है कि “लचीला संविधान वह संविधान है जिसमें परिवर्तन आसानी से तथा साधारण कानून निर्माण क्रिया के अनुसार ही हो सकते हैं। इसके विपरीत कठोर संविधान वह संविधान है जिसके संविधान का एक विशेष तरीका होता है।” अर्थात् संशोधन के तरीके के आधार पर ही लचीले और कठोर संविधान में भेद है, किसी दूसरे आधार पर नहीं।

प्रश्न 3.
लचीले संविधान के गुण तथा दोष लिखो।
(Describe merits and demerits of Flexible Constitution.)
उत्तर-
लचीले संविधान के गुण (Merits of Flexible Constitution)-
लचीले संविधान के निम्नलिखित गुण हैं-

1. यह समय के अनुसार बदलता जाता है (It changes according to time) लचीले संविधान का एक गुण तो यह है कि यह समयानुसार बदलता रहता है। इसमें संशोधन करने में कठिनाई नहीं होती और इसलिए समाज की बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार, समय की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए इसमें आवश्यक परिवर्तन किए जा सकते हैं। इस प्रकार राज्य का संविधान समाज के इतिहास का प्रतिबिम्ब बन जाता है जिसके द्वारा हम समाज की किसी भी समय की सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक दशा को बड़ी आसानी से जान सकते हैं। इस प्रकार ‘लचीला संविधान’ समय की आवश्यकताओं का उचित ढंग से पूरा कर सकता है।

2. क्रान्ति की कम सम्भावनाएं (Less possibilities of revolution)-जिस देश में लचीला संविधान हो, वहां क्रान्ति और विद्रोह की सम्भावना नहीं रहती। संविधान लोगों की इच्छा के अनुसार आसानी से बदल जाता है, जिसके बदलने के लिए लोगों को न तो कोई विशेष तरीका अपनाने की आवश्यकता होती है और न ही उसके बदलने में किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। शासन के स्वरूप को बदलने के लिए लोगों को क्रान्ति का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जनता जब चाहे संविधान को बदल सकती है।

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3. यह राष्ट्र की प्रगति के साथ-साथ विकास करता है (It develops with the development of the Nation) लचीले संविधान का एक गुण यह भी है कि ऐसा संविधान राष्ट्र की प्रगति के साथ-साथ आगे बढ़ता है और सभ्यता के विकास में सहायता देता है, उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न नहीं करता। जब राष्ट्र आगे बढ़ता है तो संविधान उसके अनुकूल अपने आपको ढाल लेता है और इस प्रकार राष्ट्र को आगे बढ़ने में और अधिक सहायता देता है।

4. लचीला संविधान संकटकाल में सहायक रहता है (Flexible Constitution is helpful in the times of emergency) लचीले संविधान का एक लाभ यह है कि संकटकाल में सहायता देता है। संकटकालीन स्थिति का सामना करने के लिए संविधान में आसानी से परिवर्तन किया जा सकता है। संकट की स्थिति साधारण शासन-व्यवस्था से दूर नहीं की जा सकती। संविधान को संशोधित करके सरकार को असाधारण शक्तियां देकर उस संकट का आसानी से मुकाबला किया जा सकता है। ऐसा करना कठोर संविधान को खींचकर और मोड़कर, शासन व्यवस्था को भंग किए बिना परिस्थितियों का सामना किया जा सकता है और जब आपत्ति टल जाए तो संविधान अपनी पहेली परिस्थिति में आ जाता है जैसे किसी पेड़ की टहनियां किसी गाड़ी के गुजरने के बाद अपने स्थान पर वापस आ जाती हैं।

लचीले संविधान के दोष
(Demerits of Flexible Constitution)-

लचीले संविधान में दोष भी बहुत से हैं जिनका वर्णन नीचे किया गया है-

1. यह स्थिर नहीं होता (It is not Stable) लचीले संविधान का एक दोष यह है कि इसमें स्थिरता नहीं होती। लचीला संविधान जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। संविधान में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होने के कारण शासन ठीक प्रकार से नहीं चल सकता। शासन में दृढ़ता का आना ऐसी स्थिति में सम्भव नहीं।

2. यह राजनैतिक दलों के हाथ में खिलौना बन जाता है (It becomes a plaything in the hands of political parties)–लचीले संविधान में यह भी दोष है कि वह राजनैतिक दलों के हाथों में एक खिलौना बनकर रह जाता है। जो भी राजनैतिक दल संसद् में बहुमत प्राप्त कर लेता है, वह उसको अपनी इच्छानुसार बदलने का प्रयत्न करता है। कई बार तो बहुमत दल इस प्रकार बदलने का प्रयत्न करता है जिससे उस दल को भविष्य में लाभ पहुंचता रहे, चाहे राष्ट्र को उससे हानि ही क्यों न हो। दलबन्दी की भावना के प्रभाव में आकर जब संविधान में कोई परिवर्तन किया जाता है तो उससे शासन व्यवस्था में अस्त-व्यस्तता का आना स्वाभाविक है।

3. संघात्मक राज्य के लिए यह उपयुक्त नहीं है (It is not suitable for a federation)-संघात्मक राज्य के लिए लचीला संविधान उपयुक्त नहीं है क्योंकि संघात्मक राज्य में संघ तथा प्रान्तों में शक्तियों का बंटवारा होता है और किसी को भी दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने का अवसर नहीं दिया जा सकता। संघात्मक राज्य के लिए कठोर संविधान ही ठीक रहता है।

4. यह संविधान पिछड़े हुए देशों के लिए उपयुक्त नहीं (It is not suitable for undeveloped countries)लचीला संविधान उसी देश के लिए उपयुक्त हो सकता है जो विकसित हो, जहां नागरिकों में राजनैतिक शिक्षा का अभाव न हो तथा नागरिकों में राष्ट्र हित की भावनाएं विकसित हों। जिस देश के नागरिक स्वार्थी हों और साम्प्रदायिकता आदि के
चक्कर में पड़े हुए हों वहां कठोर संविधान ही ठीक रहता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति संविधान को अपनी स्वार्थ-सिद्धि के लिए बदलने का प्रयत्न करता है।

प्रश्न 4.
कठोर संविधान के गुण और दोषों की व्याख्या करें।
(Discuss merits and demerits of Rigid Constitution.)
उत्तर
कठोर संविधान के गुण (Merits of Rigid Constitution)-
कठोर संविधान के निम्नलिखित गुण हैं-

1. यह स्थिर होता है (It is stable)-कठोर संविधान की यह एक विशेषता है कि यह स्थिर होता है। इसमें सोचसमझ कर ही शासन के स्वरूप, सरकार के संगठन और शक्तियों तथा नागरिकों के अधिकारों का वर्णन किया जाता है, जो सभी परिस्थितियों में उचित रूप से लागू हो सकें, इसलिए यह काफ़ी समय तक चलता है और इससे राजनैतिक निरन्तरता प्राप्त होती है।

2. यह राजनैतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता (It does not become a plaything in the hands of political parties) कठोर संविधान की यह एक विशेषता है कि यह राजनैतिक दलों के हाथों में खिलौना नहीं बनता क्योंकि कोई भी दल आसानी से इसमें संशोधन नहीं करवा सकता। छोटी-छोटी बात पर बहुमत दल इसमें परिवर्तन करके इसे अपने हितों की पूर्ति के लिए तरोड़-मरोड़ नहीं सकते।

3. यह संघात्मक राज्य के लिए लाभदायक है (It is useful for a federation)—संघात्मक राज्य के लिए कठोर संविधान बड़ा आवश्यक है। यदि संविधान कठोर न हो तो इस बात की सम्भावना रहती है संघ सरकार इकाइयों (units) की शक्तियों पर हस्तक्षेप न करने लगे।

4. यह लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा करता है (It protects the rights and liberties of the individuals)-कठोर संविधान का यह भी एक लाभ है कि इसके द्वारा लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा अच्छी प्रकार से हो सकती है। आजकल नागरिकों के अधिकार संविधान में लिख दिये जाते हैं और ऐसी व्यवस्था भी की जाती है कि कोई उनमें हस्तक्षेप न कर सके । संविधान मे लिखे अधिकारों से नागरिकों को आसानी से वंचित नहीं किया जा सकता।

5. यह शासन की निरंकुशता को रोकता है (It prevents the absolutism of the government) कठोर संविधान का एक यह भी लाभ है कि वह शासन को निरंकुश नहीं होने देता। कठोर संविधान द्वारा सरकार के सभी अंगों पर सीमाएं लगाई जाती हैं और उनकी शक्तियों को स्पष्ट रूप से निश्चित किया जाता है। कठोर संविधान में इस बात की सम्भावना नहीं रहती कि सरकार अपनी शक्ति का अपनी इच्छानुसार मनमाने तरीके से प्रयोग करे।

कठोर संविधान के दोष (Demerits of Rigid Constitution)-
कठोर संविधान के दोष भी कई हैं, जिनकी व्याख्या नीचे दी गई है-

1. यह समयानुसार बदलता नहीं (It does not change according to time) कठोर संविधान का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह समयानुसार नहीं बदलता। इससे शासन अच्छी तरह से नहीं चल सकता। कई बार संविधान में आवश्यक संशोधन भी समय पर नहीं हो पाता जिसका परिणाम यह होता है कि परिस्थितियां सुधरने की बजाय और भी बिगड़ती चली जाती हैं।

2. यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है (It encourages revolution)-कठोर संविधान का एक दोष यह भी है कि यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है। यह बदलती हुई परिस्थितियों के साथ नहीं चल सकता और इस कारण लोगों की आवश्यकताओं को भी अच्छी तरह से पूरा नहीं कर सकता। जब लोग इसे आसानी से नहीं बदल सकते, तो वे इसके लिए क्रान्ति का सहारा लेते हैं। लोग यह समझने पर मजबूर हो जाते हैं कि अब क्रान्ति के अतिरिक्त कोई ओर चारा ही नहीं।

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3. यह राष्ट्र की प्रगति में बाधा डालता है (It puts an obstacle in the development of the Nation)कठोर संविधान को इस कारण भी अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि यह राष्ट्र की प्रगति में वक उत्पन्न करता है। राष्ट्र आगे बढ़ना चाहता है, तो संविधान उसे ऐसा करने से रोकने का प्रयत्न करता है। कठोर संविधान राष्ट्र को उन्हीं परिस्थितियों तथा दशाओं में हमेशा के लिए रखने का प्रयत्न करता, जिनमें कि उसका निर्माण हुआ था। कठोर संविधान प्रगतिशील राजनैतिक विचारधारा को प्रोत्साहित नहीं करता।

4. कठोर संविधान जजों के हाथ में एक खिलौना होता है (It is a plaything in the hands of judges)लचीला संविधान राजनीतिक दलों के हाथ का खिलौना बनता है तो कठोर संविधान जजों और वकीलों के हाथ में एक खिलौना बन जाता है। कठोर संविधान के होने का अर्थ है-न्यायपालिका की सर्वोच्चता। कठोर संविधान की व्याख्या करने, उसकी रक्षा करने, संघ तथा राज्यों के झगड़ों को निपटाने, संविधान के विरुद्ध कानूनों को रद्द करने आदि के सब अधिकार न्यायपालिका के पास होते हैं। इस कारण संविधान वह नहीं होता जोकि उसके निर्माताओं ने बनाया है बल्कि संविधान वह होता है जोकि न्यायाधीश बनाते हैं अर्थात् न्यायपालिका कई बार संविधान का एक नया ही रूप जनता के सामने रखती है।

5. यह संकटकाल में ठीक नहीं रहता (It is not suitable for emergency)-आपत्ति के समय में कठोर संविधान ठीक नहीं रहता क्योंकि आपत्ति का सामना करने के लिए उसमें आवश्यक परिवर्तन आसानी से नहीं किया जा सकता। इससे शासक परिस्थितियों का ठीक प्रकार से सामना नहीं कर पाते । संकटकाल में सरकार के पास विशेष शक्तियों का होना आवश्यक है। शान्ति के समय में सरकार के पास साधारण शक्तियां होती हैं। इसलिए संविधान में संकटकाल में संशोधन एकदम हो जाना चाहिए जोकि एक कठोर संविधान में सम्भव नहीं होता।

6. कठोर संविधान कुछ समय बाद महत्त्वहीन हो जाता है (Rigid Constitution after sometime becomes a thing of the past)-कठोर संविधान का एक दोष यह भी है कि यह कुछ समय बाद महत्त्वहीन बन जाता है। संविधान की बातें उस समय के अनुसार होती हैं जबकि वह बनाया गया हो। समय परिवर्तन के कारण यदि उसमें परिवर्तन नहीं होता तो उसका कोई महत्त्व नहीं रहता और लोग उसे आदर की दृष्टि से नहीं देखते।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान का क्या अर्थ है ? इसकी दो परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
संविधान ऐसे नियमों तथा सिद्धान्तों का समूह है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। इन नियमों के समूह को ही संविधान कहा जाता है।

परिभाषाएं-

  • ब्राइस के अनुसार, “किसी राज्य के संविधान में वे कानून या नियम सम्मिलित होते हैं, जिनके अनुसार सरकार के स्वरूप तथा इसके नागरिकों के प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों और नागरिकों के इसके प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है।”
  • गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य का संविधान लिखित कानूनों या नियमों का वह समूह है, जो सरकार के संगठन, सरकार के विभिन्न अंगों में शक्तियों का वितरण और शक्ति प्रयोग के सामान्य नियमों को निश्चित करता है।”

प्रश्न 2.
अलिखित संविधान के चार गुण लिखिए।
उत्तर-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-अलिखित संविधान का अर्थ यह है कि संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-अलिखित संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।
  3. क्रान्ति का भय नहीं होता-अलिखित संविधान के होने से क्रान्ति का भय नहीं होता। संविधान में आसानी से परिवर्तन हो जाता है। जनता को इसमें परिवर्तन करवाने के लिए क्रान्ति का सहारा नहीं लेना पड़ता।
  4. राष्ट्र की प्रगति में सहायक-अलिखित संविधान का एक लाभ यह है कि वह राष्ट्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न नहीं करता बल्कि उसकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 3.
अलिखित संविधान के चार दोष बताइए।
उत्तर-
अलिखित संविधान को निम्नलिखित बातों के आधार पर दोषपूर्ण बताया जाता है-

  1. यह निश्चित और अस्पष्ट होता है-अलिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होता। इसकी धाराएं लिखी हुई न होने के कारण उनके बारे में लोगों में प्रायः मतभेद तथा लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।
  2. शक्तियों का दुरुपयोग–अलिखित संविधान सरकार के विभिन्न अंगों को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने या एक दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहन देता है।
  3. संघ सरकार में इसका कोई लाभ नहीं-संघात्मक राज्यों के लिए लिखित संविधान का होना आवश्यक है क्योंकि अलिखित संविधान के कारण संघ और प्रान्तों में शक्तियों के बारे में मतभेद और झगड़े बहुत होते हैं।
  4. यह स्थिर नहीं होता-अलिखित संविधान में स्थिरता नहीं रहती बल्कि वह जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। जहां संविधान में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होता हो, वहां राजनीतिक जीवन में स्थिरता और एकता स्थापित नहीं हो पाती।

प्रश्न 4.
लिखित संविधान क्यों आवश्यक है ? दो कारण बताइए।
उत्तर-
लिखित संविधान उसे कहा जाता है जिसके लगभग सभी नियम लिखित रूप में उपलब्ध हों। लिखित संविधान प्रायः निर्मित होता है, जिसका निर्माण एक संविधान सभा द्वारा एक ही समय में काफ़ी सोच-विचार के बाद किया जाता है। आज अधिकतर राज्यों में लिखित संविधान पाया जाता है। लिखित संविधान के अनेक गुण होते हैं। लिखित संविधान निम्नलिखित कारणों से आवश्यक माना जाता है-

  • यह सोच-समझकर बनाया जाता है-लिखित संविधान एक संविधान सभा द्वारा बनाया जाता है और उसकी सब बातें अच्छी प्रकार से सोच-समझकर निश्चित की जाती हैं। भावना के आवेश में आकर इसका निर्माण नहीं होता।
  • यह निश्चित तथा स्पष्ट होता है-लिखित संविधान का एक गुण यह है कि यह लिखित तथा स्पष्ट होता है।
  • नागरिकों के अधिकारों की रक्षा नागरिकों के अधिकारों की रक्षा लिखित संविधान द्वारा अधिक अच्छी तरह हो सकती है।
  • संघात्मक सरकार में आवश्यक-संघात्मक शासन प्रणाली के लिए संविधान का लिखित होना बड़ा आवश्यक है। संविधान द्वारा ही संघ तथा इकाइयों में शक्तियों का बंटवारा किया जाता है और इस बंटवारे को लिखित रूप देने से संघ और राज्यों में शक्तियों के बारे में मतभेद पैदा नहीं होते।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

प्रश्न 5.
लिखित संविधान की चार कमियां बताओ।
उत्तर-
लिखित संविधान की मुख्य कमियां इस प्रकार हैं-

  • यह कुछ समय बाद लाभदायक नहीं रहता-लिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह समय के बाद बदलता नहीं और कुछ समय बाद यह लाभदायक नहीं रहता। परिवर्तित वातावरण में लिखा हुआ संविधान एक अतीत की वस्तु बनकर रह जाता है।
  • यह समयानुसार नहीं बदलता-लिखित संविधान और सामाजिक आवश्यकता में तालमेल नहीं हो पाता, इसीलिए इसे कई लोग अच्छा नहीं समझते।
  • क्रान्ति का भय-लिखित संविधान में क्रान्ति का भय अधिक होता है। लिखित संविधान समय की आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकता और न ही उसमें आसानी से संशोधन किया जा सकता है क्योंकि लिखित संविधान प्रायः कठोर ही होता है। समय के अनुसार परिवर्तन लाने के लिए जनता को कई बार विद्रोह तथा क्रान्ति का सहारा लेना पड़ता है।
  • राष्ट्र की प्रगति में बाधा-लिखित संविधान का एक दोष यह भी है कि वह राष्ट्र की प्रगति में रुकावट डालता है।

प्रश्न 6.
लचीला संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लचीला संविधान उसे कहा जाता है जिसमें आसानी से संशोधन या परिवर्तन किया जा सके। जिस साधारण तरीके से संसद् साधारण कानून बनाती है, उसी साधारण तरीके से संविधान में बड़े-से-बड़ा परिवर्तन भी किया जा सकता है अर्थात् संवैधानिक कानून (Constitutional Law) को बनाते समय संसद् को किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं है। प्रो० बार्कर का कहना है कि जब किसी सरकार का रूप जनता या उसके प्रतिनिधियों की इच्छानुसार आसानी से बदला जा सकता है तो उसे लचीला संविधान कहा जाता है। ऐसे संविधान में संसद् को कानून बनाने की असीमित शक्तियां प्रदान होती हैं। इंग्लैंड का संविधान लचीला है। ब्रिटिश संसद् संविधान के सम्बन्ध में कोई भी कानून साधारण बहुमत से पास कर सकती है।

प्रश्न 7.
लचीले संविधान के चार गुण लिखो।
उत्तर-
लचीले संविधान में निम्नलिखित गुण होते हैं-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-लचीले संविधान का लाभ यह है कि यह संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-लचीला संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।
  3. क्रान्ति का भय नहीं होता-लचीले संविधान के होने से क्रान्ति का भय नहीं होता। संविधान में आसानी से परिवर्तन हो जाता है। जनता को इसमें परिवर्तन करवाने के लिए क्रान्ति का सहारा नहीं लेना पड़ता है।
  4. राष्ट्र की प्रगति में सहायक-लचीले संविधान का एक लाभ यह भी है कि वह राष्ट्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न नहीं करता बल्कि उसकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

प्रश्न 8.
लचीले संविधान के चार दोष लिखो।
उत्तर-
लचीले संविधान को निम्नलिखित बातों के आधार पर दोषपूर्ण बताया जाता है-

  • यह अनिश्चित और अस्पष्ट होता है-लचीले संविधान का एक दोष यह है कि यह स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होता। इसकी धाराएं लिखी हुई न होने के कारण उनके बारे में लोगों में प्रायः मतभेद तथा लडाई-झगडे होते रहते हैं।
  • शक्तियों का दुरुपयोग-लचीला संविधान सरकार के विभिन्न अंगों को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने या एक दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहन देता है।
  • संघ सरकार में इसका कोई लाभ नहीं-संघात्मक राज्यों के लिए संविधान का होना आवश्यक है क्योंकि लचीले संविधान के कारण संघ और प्रान्तों में शक्तियों के बारे में मतभेद और झगड़े बहुत होते हैं।
  • यह स्थिर नहीं होता-लचीले संविधान में स्थिरता नहीं रहती बल्कि यह जल्दी-जल्दी बदलता रहता है। जहां संविधान में जल्दी-जल्दी परिवर्तन होता हो, राजनीतिक जीवन में स्थिरता और एकता स्थापित नहीं हो पाती।

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प्रश्न 9.
कठोर संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कठोर संविधान उसे कहा जाता है जिसे आसानी से बदला न जा सके। जब साधारण कानून को बनाने के तरीके और संविधान में संशोधन करने के तरीके में अन्तर हो अर्थात् संशोधन का तरीका कठिन हो तो उसे कठोर संविधान कहा जाता है। साधारण कानून वाली सत्ता संविधान का संशोधन नहीं कर सकती बल्कि कोई दूसरी ही सत्ता इसमें संशोधन करती है। कठोर संविधान को राज्य का सर्वोच्च कानून माना जाता है। संघात्मक राज्यों के संविधान प्रायः निर्मित, लिखित तथा कठोर होते हैं। अमेरिका का संविधान कठोर है जिसमें संशोधन करने के लिए संसद् के दोनों सदनों का 2/3 बहुमत और कम-से-कम 3/4 राज्यों का समर्थन होना आवश्यक है। भारत के संविधान के कुछ भाग कठोर हैं।

प्रश्न 10.
कठोर संविधान के चार गुण लिखिए।
उत्तर-
कठोर संविधान के निम्नलिखित गुण हैं-

  • यह स्थिर होता है-कठोर संविधान की एक विशेषता यह है कि यह स्थिर होता है। इसलिए यह काफ़ी समय तक चलता है और इससे राजनीतिक निरन्तरता प्राप्त होती है।
  • यह राजनीतिक दलों के हाथों में खिलौना नहीं बनता-कठोर संविधान की यह भी एक विशेषता है कि यह राजनीतिक दलों के हाथों में खिलौना नहीं बनता क्योंकि कोई भी दल आसानी से इसमें संशोधन नहीं करवा सकता। छोटी-छोटी बातों पर बहुमत दल इसमें परिवर्तन करके इसे अपने हितों की पूर्ति के लिए तोड़-मोड़ नहीं सकते।
  • यह संघात्मक राज्य के लिए बड़ा लाभदायक है-संघात्मक राज्य के लिए कठोर संविधान बड़ा आवश्यक है। यह संविधान कठोर न हो तो इस बात की सम्भावना रहती है कि संघ सरकार राज्यों (प्रान्तों) की शक्तियों में हस्तक्षेप न करने लगे।
  • यह लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा करता है-कठोर संविधान का यह भी एक लाभ है कि इसके द्वारा लोगों के अधिकारों और स्वतन्त्रता की रक्षा अच्छी प्रकार से हो सकती है। संविधान में लिखे अधिकारों से नागरिकों को आसानी से वंचित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 11.
कठोर संविधान की चार हानियां लिखिए।
उत्तर-
कठोर संविधान के कई दोष भी हैं जिनकी व्याख्या नीचे दी गई है-

  1. यह समयानुसार बदलता नहीं-कठोर संविधान का सबसे बड़ा दोष है कि यह समयानुसार नहीं बदलता। इससे शासन अच्छी तरह से नहीं चल सकता।
  2. यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है-कठोर संविधान का एक दोष यह भी है कि यह क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है। जब लोग इसे आसानी से नहीं बदल सकते तो वे इसके लिए क्रान्ति का सहारा लेते हैं।
  3. यह राष्ट्र की प्रगति में बाधा डालता है-कठोर संविधान को इस कारण भी अच्छा नहीं माना जाता क्योंकि यह राष्ट्र की प्रगति में बाधा उत्पन्न करता है।
  4. कठोर संविधान जजों के हाथों में एक खिलौना होता है-कठोर संविधान के होने का अर्थ है-न्यायपालिका की सर्वोच्चता। कठोर संविधान की व्याख्या करने, उनकी रक्षा करने, संघ तथा राज्यों के झगड़ों को निपटाने, संविधान के विरुद्ध कानूनों को रद्द करने आदि के सब अधिकार न्यायपालिका के पास होते हैं। इस कारण संविधान वह नहीं होता जोकि उसके निर्माताओं ने बनाया है बल्कि संविधान वह होता है जोकि न्यायाधीश बनाते हैं अर्थात् न्यायपालिका कई बार संविधान का एक नया रूप जनता के सामने रखती है।

प्रश्न 12.
लचीले और कठोर संविधान में भेद स्पष्ट करें।
उत्तर-
लचीले और कठोर संविधान में मुख्य अन्तर निम्नलिखित पाए जाते हैं-

  • लचीले संविधान का संशोधन किसी विशेष प्रक्रिया द्वारा नहीं होता। जिस पद्धति से कानूनों का निर्माण होता है उसी पद्धति से संविधान में भी संशोधन होता है, परन्तु कठोर संविधान के संशोधन के लिए विशेष प्रक्रिया अपनाई जाती है।
  • कठोर संविधान की अपेक्षा लचीले संविधान में संशोधन करना अत्यन्त सरल है। (3) कठोर संविधान में संवैधानिक तथा साधारण कानूनों में भेद होता है, परन्तु लचीले संविधान में ऐसा नहीं होता।
  • कठोर संविधान में विधानमण्डल की सत्ता सीमित होती है, परन्तु लचीले संविधान में उसकी सत्ता असीमित होती है।
  • कठोर संविधान में प्रायः नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख होता है, परन्तु लचीले संविधान में ऐसा नहीं देखा जाता।

प्रश्न 13.
किस प्रकार का संविधान अधिक उपयोगी है-लचीला अथवा कठोर ? कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर-
संविधान ऐसे नियमों और सिद्धान्तों का समूह होता है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्यों के बीच सम्बन्ध स्थापित किए जाते हैं। प्रत्येक राज्य अपनी आवश्यकता एवं परिस्थितियों के अनुसार लिखित या अलिखित तथा कठोर या लोचशील संविधान अपनाता है। यह कहना अत्यन्त कठिन है कि लचीले और कठोर संविधान में से कौन-सा संविधान अधिक उपयोगी है। दोनों ही प्रकार के संविधानों के अपने गुण भी हैं और दोष भी हैं। लचीले या कठोर संविधान को तब उपयोगी माना जा सकता है यदि उसमें निम्नलिखित गुण पाए जाते हों

  • विश्व में अधिकांश नव-स्वतन्त्र राज्य अस्थिरता के दौर से गुज़र रहे हैं। तीसरी दुनिया के देशों में क्रान्ति व तख्ता पलट की सम्भावनाएं अधिक होती हैं। अतः इन दोनों में राजनीतिक स्थायित्व के लिए कठोर संविधान आवश्यक है।
  • संविधान में बदलती हुई ज़रूरतों के अनुसार परिवर्तित होने का गुण भी होना चाहिए। परन्तु यह इतना भी लोचशील न हो कि सत्ताधारी दल के हाथों का खिलौना बन जाए।
    अतः संविधान न तो अत्यधिक कठोर हो और न ही अत्यधिक लोचशील हो।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
संविधान से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
संविधान ऐसे नियमों तथा सिद्धान्तों का समूह है, जिसके अनुसार शासन के विभिन्न अंगों का संगठन किया जाता है, उनको शक्तियां प्रदान की जाती हैं, उनके आपसी सम्बन्धों को नियमित किया जाता है तथा नागरिकों और राज्य के बीच सम्बन्ध स्थापित किये जाते हैं। इन नियमों के समूह को ही संविधान कहा जाता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

प्रश्न 2.
संविधान को परिभाषित करें।
उत्तर-

  • ब्राइस के अनुसार, “किसी राज्य के संविधान में वे कानून या नियम सम्मिलित होते हैं, जिनके अनुसार सरकार के स्वरूप तथा इसके नागरिकों के प्रति अधिकारों तथा कर्त्तव्यों और नागरिकों के इसके प्रति अधिकारों तथा कर्तव्यों को निश्चित किया जाता है।”
  • गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य का संविधान लिखित कानूनों या नियमों का वह समूह है, जो सरकार के संगठन, सरकार के विभिन्न अंगों में शक्तियों का वितरण और शक्ति प्रयोग के सामान्य नियमों को निश्चित करता है।”

प्रश्न 3.
अलिखित संविधान के दो गुण लिखिए।
उत्तर-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-अलिखित संविधान का अर्थ यह है कि संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-अलिखित संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।

प्रश्न 4.
अलिखित संविधान के दो दोष बताइए।
उत्तर-

  1. यह निश्चित और अस्पष्ट होता है-अलिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह स्पष्ट तथा निश्चित नहीं होता। इसकी धाराएं लिखी हुई न होने के कारण उनके बारे में लोगों में प्रायः मतभेद तथा लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं।
  2. शक्तियों का दुरुपयोग- अलिखित संविधान सरकार के विभिन्न अंगों को अपनी शक्तियों के दुरुपयोग करने या एक दूसरे की शक्तियों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रोत्साहन देता है।

प्रश्न 5.
लिखित संविधान के दो गुण लिखो।
उत्तर-

  1. यह सोच-समझकर बनाया जाता है-लिखित संविधान एक संविधान सभा द्वारा बनाया जाता है और उसकी सब बातें अच्छी प्रकार से सोच-समझकर निश्चित की जाती हैं। भावना के आवेश में आकर इसका निर्माण नहीं होता।
  2. यह निश्चित तथा स्पष्ट होता है-लिखित संविधान का एक गुण यह है कि यह लिखित तथा स्पष्ट होता है।

प्रश्न 6.
लिखित संविधान की दो कमियां बताओ।
उत्तर-

  1. यह कुछ समय बाद लाभदायक नहीं रहता-लिखित संविधान का एक दोष यह है कि यह समय के बाद बदलता नहीं और कुछ समय बाद यह लाभदायक नहीं रहता। परिवर्तित वातावरण में लिखा हुआ संविधान एक अतीत की वस्तु बनकर रह जाता है।
  2. यह समयानुसार नहीं बदलता-लिखित संविधान और सामाजिक आवश्यकता में तालमेल नहीं हो पाता, इसीलिए इसे कई लोग अच्छा नहीं समझते।।

प्रश्न 7.
लचीला संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लचीला संविधान उसे कहा जाता है जिसमें आसानी से संशोधन या परिवर्तन किया जा सके। जिस साधारण तरीके से संसद् साधारण कानून बनाती है, उसी साधारण तरीके से संविधान में बड़े-से-बड़ा परिवर्तन भी किया जा सकता है अर्थात् संवैधानिक कानून (Constitutional Law) को बनाते समय संसद् को किसी विशेष तरीके को अपनाने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 8.
लचीले संविधान के दो गुण लिखो।
उत्तर-

  1. यह समयानुसार बदलता रहता है-लचीले संविधान का लाभ यह है कि यह संविधान समय की परिस्थितियों के अनुसार बदलता रहता है।
  2. इतिहास का स्पष्ट चित्रण-लचीला संविधान देश के इतिहास का स्पष्ट चित्रण करता है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. संविधान की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-बुल्जे के अनुसार, “संविधान उन नियमों का समूह है, जिनके अनुसार सरकार की शक्तियां, शासितों के अधिकार तथा इन दोनों के आपसी सम्बन्धों को व्यवस्थित किया जाता है।”

प्रश्न 2. संविधान के कोई दो रूप/प्रकार लिखें।
उत्तर-

  1. विकसित संविधान
  2. निर्मित संविधान।

प्रश्न 3. विकसित संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-जो संविधान ऐतिहासिक उपज या विकास का परिणाम हो, उसे विकसित संविधान कहा जाता है।

प्रश्न 4. लिखित संविधान किसे कहते हैं ? ।
उत्तर-लिखित संविधान उसे कहा जाता है, जिसके लगभग सभी नियम लिखित रूप में उपलब्ध हों।

प्रश्न 5. अलिखित संविधान किसे कहते हैं ?
उत्तर-अलिखित संविधान उसे कहते हैं, जिसकी धाराएं लिखित रूप में न हों, बल्कि शासन संगठन अधिकतर रीति-रिवाज़ों और परम्पराओं पर आधारित हो।

प्रश्न 6. कठोर एवं लचीले संविधान में एक अन्तर लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान की अपेक्षा लचीले संविधान में संशोधन करना अत्यन्त सरल है।

प्रश्न 7. लचीले संविधान का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर- लचीला संविधान समयानुसार बदलता रहता है।

प्रश्न 8. किसी एक विद्वान् का नाम लिखें, जो लिखित संविधान का समर्थन करता है?
उत्तर-डॉ० टॉक्विल ने लिखित संविधान का समर्थन किया है।

प्रश्न 9. कठोर संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता।

प्रश्न 10. एक अच्छे संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-संविधान स्पष्ट एवं सरल होता है।

प्रश्न 11. अलिखित संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-यह समयानुसार बदलता रहता है।

प्रश्न 12. अलिखित संविधान का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-अलिखित संविधान में शक्तियों के दुरुपयोग की सम्भावना बनी रहती है।

प्रश्न 13. लिखित संविधान का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-लिखित संविधान निश्चित तथा स्पष्ट होता है।

प्रश्न 14. लिखित संविधान का एक दोष लिखें।
उत्तर-लिखित संविधान समयानुसार नहीं बदलता।

प्रश्न 15. जिस संविधान को आसानी से बदला जा सके, उसे कैसा संविधान कहा जाता है ?
उत्तर-उसे लचीला संविधान कहा जाता है।

प्रश्न 16. जिस संविधान को आसानी से न बदला जा सकता हो, तथा जिसे बदलने के लिए किसी विशेष तरीके को अपनाया जाता हो, उसे कैसा संविधान कहते हैं ?
उत्तर-उसे कठोर संविधान कहते हैं। प्रश्न 17. लचीले संविधान का एक दोष लिखें। उत्तर-यह संविधान पिछड़े हुए देशों के लिए ठीक नहीं।

प्रश्न 18. कठोर संविधान का एक गुण लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान निश्चित एवं स्पष्ट होता है।

प्रश्न 19. कठोर संविधान का एक दोष लिखें।
उत्तर-कठोर संविधान क्रान्ति को प्रोत्साहन देता है।

प्रश्न 20. शक्तियों के पृथक्करण (Separation of Power) का सिद्धान्त किसने प्रस्तुत किया?
उत्तर-शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धान्त मान्टेस्क्यू ने प्रस्तुत किया।

प्रश्न 21. संविधानवाद की साम्यवादी विचारधारा के मुख्य समर्थक कौन हैं ?
उत्तर-संविधानवाद की साम्यवादी विचारधारा के मुख्य समर्थक कार्ल-मार्क्स हैं।

प्रश्न 22. संविधानवाद के मार्ग की एक बड़ी बाधा लिखें।
उत्तर-संविधानवाद के मार्ग की एक बाधा युद्ध है।

प्रश्न 23. अरस्तु ने कितने संविधानों का अध्ययन किया?
उत्तर-अरस्तु ने 158 संविधानों का अध्ययन किया।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……………. संविधान उसे कहा जाता है, जिसमें आसानी से संशोधन किया जा सके।
2. जिस संविधान को सरलता से न बदला जा सके, उसे …………… संविधान कहते हैं।
3. लिखित संविधान एक ……………. द्वारा बनाया जाता है।
4. ……………. संविधान समयानुसार बदलता रहता है।
5. ……………. में क्रांति का डर बना रहता है।
उत्तर-

  1. लचीला
  2. कठोर
  3. संविधान सभा
  4. अलिखित
  5. लिखित संविधान।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. अलिखित संविधान अस्पष्ट एवं अनिश्चित होता है।
2. लचीले संविधान में क्रांति की कम संभावनाएं रहती हैं।
3. कठोर संविधान अस्थिर होता है।
4. एक अच्छा संविधान स्पष्ट एवं निश्चित होता है।
5. कठोर संविधान समयानुसार बदलता रहता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत ।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कठोर संविधान का गुण है
(क) यह राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता
(ख) संघात्मक राज्य के लिए उपयुक्त नहीं है
(ग) समयानुसार नहीं बदलता
(घ) संकटकाल में ठीक नहीं रहता।
उत्तर-
(क) यह राजनीतिक दलों के हाथ में खिलौना नहीं बनता

प्रश्न 2.
एक अच्छे संविधान का गुण है-
(क) संविधान का स्पष्ट न होना
(ख) संविधान का बहुत विस्तृत होना
(ग) व्यापकता तथा संक्षिप्तता में समन्वय
(घ) बहुत कठोर होना।
उत्तर-
(ग) व्यापकता तथा संक्षिप्तता में समन्वय

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 13 संविधान और इसके प्रकार

प्रश्न 3.
“संविधान उन नियमों का समूह है, जो राज्य के सर्वोच्च अंगों को निर्धारित करते हैं, उनकी रचना, उनके आपसी सम्बन्धों, उनके कार्यक्षेत्र तथा राज्य में उनके वास्तविक स्थान को निश्चित करते हैं।” किसका कथन है ?
(क) सेबाइन
(ख) जैलिनेक
(ग) राबर्ट डाहल
(घ) आल्मण्ड पावेल।
उत्तर-
(ख) जैलिनेक

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से एक अच्छे संविधान की विशेषता है-
(क) स्पष्ट एवं निश्चित
(ख) अस्पष्टता
(ग) कठोरता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) स्पष्ट एवं निश्चित

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 12 राज्य और सरकार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
(Explain the difference between the State and Government.)
उत्तर-
प्राचीनकाल में राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं किया जाता था। प्लेटो तथा अरस्तु ने राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं किया। फ्रांस का बादशाह लुई चौदहवां कहा करता था कि, “मैं ही राज्य हूं।” (“I am the State.”) इंग्लैण्ड के स्टूअर्ट राजाओं ने अपनी असीमित शक्तियों को प्रमाणित करने के लिए राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं किया। जॉन-लॉक (John Locke) प्रथम लेखक था जिसने राज्य तथा सरकार में स्पष्ट भेद किया। आज भी साधारण नागरिक राज्य तथा सरकार में कोई अन्तर नहीं करता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि इन दोनों में अन्तर है। राज्य तथा सरकार में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

1. सरकार राज्य का अंग है (Government is a part of State)—सरकार राज्य का एक अंग है। राज्य के चार तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। सरकार राज्य के चार तत्त्वों में से एक तत्त्व है, परन्तु सरकार स्वयं राज्य नहीं है। जिस प्रकार शरीर का एक अंग स्वयं शरीर नहीं कहला सकता, उसी तरह राज्य का अंग स्वयं राज्य नहीं कहला सकता।

2. राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित (State is more comprehensive then Government)—’राज्य’ शब्द सरकार से अधिक व्यापक है। राज्य में सरकार के सदस्य तथा उस प्रदेश में रहने वाले सभी लोग शामिल होते हैं। सरकार में कुल जनसंख्या का थोड़ा भाग ही शामिल होता है।

3. सरकार राज्य का एजेन्ट है (Government is an agent of the State)-सरकार राज्य की नौकर अथवा एजेण्ट है। सरकार का कार्य राज्य की इच्छा का पालन करना है। राज्य की इच्छा को लागू करना सरकार का परम कर्तव्य है। प्रो० लॉस्की ने भी सरकार को राज्य का एजेण्ट कहा है।

4. राज्य अमूर्त तथा सरकार मूर्त है (State is abstract, Government is concrete)-राज्य अमूर्त है जिसे देखा नहीं जा सकता। राज्य का कोई रूप नहीं है, राज्य की केवल कल्पना की जा सकती है। परन्तु सरकार मूर्त है जिसका रूप है और जिसको देखा जा सकता है। जिस प्रकार आत्मा को नहीं देखा जा सकता उसी तरह राज्य को नहीं देखा जा सकता, परन्तु शरीर की तरह सरकार को भी देखा जा सकता है।

4. राज्य स्थायी है, सरकार अस्थायी (State is permanent, Government is temporary)-राज्य स्थायी है जबकि सरकार अस्थायी है। राज्य तब तक बना रहता है जब तक इसके पास प्रभुसत्ता बनी रहती है। प्रभुसत्ता के खो जाने से राज्य राज्य नहीं रहता। राज्य कम परिवर्तनशील है, परन्तु सरकार अस्थायी है। सरकारें बदलती रहती हैं। इंग्लैण्ड में कभी लेबर पार्टी की सरकार होती है और कभी अनुदार पार्टी की। जून, 2017 में इंग्लैण्ड में अनुदार पार्टी एवं डेमोक्रेटिक यूनियनिस्ट पार्टी की गठबन्धन सरकार बनी। भारत में मई, 2014 में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबन्धन की सरकार बनी।

5. राज्य के पास प्रभुसत्ता है सरकार के पास नहीं (State possesses sovereignty, Government does not)—प्रभुसत्ता राज्य का अनिवार्य तत्त्व है। जिस प्रकार बिना पति-पत्नी परिवार का निर्माण नहीं हो सकता, उसी तरह बिना प्रभुसत्ता के राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। राज्य के पास सर्वोच्च शक्ति है, राज्य के अधिकार मौलिक होते हैं और इसकी शक्तियों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता, परन्तु सरकार के पास प्रभुसत्ता नहीं होती। सरकार अपनी शक्तियां राज्य से प्राप्त करती है। सरकार की शक्तियां सीमित होती हैं।

6. राज्य की सदस्यता अनिवार्य होती है, सरकार की नहीं (Membership of the State is compulsory, not of the Government)-मनुष्य का जन्म जिस राज्य में होता है, वह उसी राज्य का नागरिक बन जाता है। मनुष्य को किसी-न-किसी राज्य का सदस्य होना पड़ता है, परन्तु सरकार की सदस्यता ऐच्छिक होती है। सरकार का सदस्य बनने के लिए योग्यता तथा इच्छा का होना आवश्यक है। यदि कोई नागरिक सरकार का सदस्य नहीं बनना चाहता, तो उसे इसके लिए मजबूर नहीं किया जा सकता।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार

7. राज्य के लिए निश्चित भूमि अनिवार्य तत्त्व है, सरकार के लिए नहीं (Territory is essential for State, not for Government)-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भूमि आवश्यक है, इसके बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। परन्तु सरकार के लिए निश्चित भूमि आवश्यक तत्त्व नहीं है। दूसरे महायुद्ध में फ्रांस पर जब जर्मनी ने कब्जा कर लिया तब फ्रांस की सरकार इंग्लैण्ड में चलती थी।

8. राज्य के विरुद्ध क्रान्ति नहीं हो सकती (No revolution against the State)-राज्य के पास सर्वोच्च शक्ति होती है, इसलिए नागरिक राज्य के विरुद्ध क्रान्ति नहीं कर सकते। परन्तु नागरिक सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर सकते हैं। लोकतन्त्र सरकार में जनता को सरकार के विरुद्ध भाषण देने तथा शान्तिपूर्ण जुलूस निकालने का अधिकार होता है।

राज्य एक समान होते हैं, सरकार विभिन्न प्रकार की होती है (States are similar, Governments differ)-राज्य एक समान होते हैं। राज्य जनसंख्या तथा क्षेत्र के आधार पर छोटे-बड़े हो सकते हैं, परन्तु सभी राज्यों के पास प्रभुसत्ता होती है। प्रत्येक राज्य के चार तत्त्व अनिवार्य होते हैं। परन्तु सरकार के विभिन्न रूप होते हैं। किसी राज्य में लोकतन्त्रीय सरकार होती है, किसी में तानाशाही सरकार, किसी में संसदीय सरकार, किसी में अध्यक्षात्मक सरकार, किसी में एकात्मक सरकार तो किसी में संघात्मक सरकार।

निष्कर्ष (Conclusion)-उपर्युक्त चर्चा के आधार पर यह परिणाम निकालना आसान ही है कि राज्य और सरकार दो अलग-अलग धारणाएं और संस्थाएं हैं। साथ ही यह भी कह देना उचित होगा कि सरकार भले ही राज्य के अधीन होती है फिर भी सरकार के बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। सरकार का महत्त्व राज्य के निर्माण और संचालन में इतना अधिक है कि कई लेखक व्यावहारिक दृष्टिकोण से सरकार को राज्य का सकारात्मक रूप बताते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार में चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
राज्य और सरकार में अग्रलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

  • सरकार राज्य का अंग है-सरकार राज्य का एक अंग है। राज्य के चार तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। सरकार राज्य के चार तत्त्वों में से एक तत्त्व है, परन्तु सरकार स्वयं राज्य नहीं है। जिस प्रकार शरीर का एक अंग स्वयं शरीर नहीं कहला सकता, उसी तरह राज्य का अंग स्वयं राज्य नहीं कहला सकता।
  • राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित-‘राज्य’ शब्द सरकार से अधिक व्यापक है। राज्य में सरकार के सदस्य तथा उस प्रदेश में रहने वाले सभी लोग शामिल होते हैं। सरकार में कुल जनसंख्या का थोड़ा भाग ही शामिल होता है।
  • सरकार राज्य की एजेण्ट है–सरकार राज्य की नौकर अथवा एजेण्ट है। सरकार का कार्य राज्य की इच्छा का पालन करना है। राज्य की इच्छा को लागू करना सरकार का परम कर्तव्य है। प्रो० लॉस्की ने भी सरकार को राज्य का एजेण्ट कहा है।
  • राज्य अमूर्त तथा सरकार मूर्त है-राज्य अमूर्त है, जिसे देखा नहीं जा सकता। परंतु सरकार मूर्त है, जिसका रूप है और जिसको देखा जा सकता है।

प्रश्न 2.
कानूनी प्रभुसत्ता की कोई चार मुख्य विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
कानूनी प्रभुसत्ता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • राज्य में कानूनी प्रभु निश्चित प्रभु होता है जिसके बारे में कोई सन्देह नहीं हो सकता।
  • कानूनी प्रभुसत्ता एक व्यक्ति में भी निहित हो सकती है जैसे कि निरंकुश राजतन्त्र में राजा के पास और व्यक्तियों के समूह में भी हो सकता है जैसे कि लोकतन्त्र में संसद् के पास। इंग्लैण्ड में कानूनी प्रभुसत्ता संसद् के पास है।
  • राष्ट्र की इच्छा का निर्माण कानूनी प्रभु ही करता है तथा उसकी घोषणा करता है। राष्ट्र की इच्छा को कानून बनाकर घोषित किया जाता है।
  • कानूनी प्रभु ही अधिकारों का स्रोत होता है। लोगों को वही अधिकार प्राप्त होते हैं जो कानूनी प्रभु द्वारा दिए जाते हैं और उन अधिकारों को कानूनी प्रभु जब चाहे वापिस ले सकता है।

प्रश्न 3.
राज्य, सरकार से अधिक स्थायी है, कैसे ?
उत्तर-
राज्य स्थायी है जबकि सरकार अस्थायी है। राज्य तब तक बना रहता है जब तक इसके पास प्रभुसत्ता रहती है। राज्य कम परिवर्तनशील है, परन्तु सरकार अस्थायी है। सरकारें बदलती रहती हैं। आज़ादी से पूर्व भारत पर अंग्रेजों का राज्य था और आज़ादी प्राप्त होने के बाद सत्ता भारतीयों के हाथ में आ गई। भारत में कभी कांग्रेस की सरकार होती है तो कई बार कई दल आपस में मिलकर गठजोड़ सरकार बनाते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 12 राज्य और सरकार

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार में दो अन्तर लिखें।
उत्तर-

  • सरकार राज्य का अंग है-सरकार राज्य का एक अंग है। राज्य के चार तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। सरकार राज्य के चार तत्त्वों में से एक तत्त्व है, परन्तु सरकार स्वयं राज्य नहीं है। जिस प्रकार शरीर का एक अंग स्वयं शरीर नहीं कहला सकता, उसी तरह राज्य का अंग स्वयं राज्य नहीं कहला सकता।
  • राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित-‘राज्य’ शब्द सरकार से अधिक व्यापक है। राज्य में सरकार के सदस्य तथा उस प्रदेश में रहने वाले सभी लोग शामिल होते हैं। सरकार में कुल जनसंख्या का थोड़ा भाग ही शामिल होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. समुदाय का अर्थ लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्तियों का ऐसा समूह है, जिसका एक विशेष उद्देश्य होता है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिल-जुल कर अर्थात् संगठित होकर कार्य करते हैं।

प्रश्न 2. समुदाय की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-जिन्सबर्ग के अनुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है,जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”

प्रश्न 3. समुदाय का कोई एक तत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय का निर्माण व्यक्तियों द्वारा किसी सामान्य या विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4. समुदाय के वर्गीकरण के कोई दो आधार बताएं।
उत्तर-

  1. सदस्यता के आधार पर
  2. अवधि के आधार पर।

प्रश्न 5. समुदाय का कोई एक महत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्ति के सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति करता है।

प्रश्न 6. सदस्यता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर-सदस्यता के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 7. अवधि के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं?
उत्तर-अवधि के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 8. प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 9. पूर्ण सत्ताधारी समुदाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-राज्य को पूर्ण सत्ताधारी समुदाय कहते हैं।

प्रश्न 10. ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, जिला परिषद् तथा नगर-निगम किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-ये सभी अर्धसत्ता प्राप्त समुदाय कहलाते हैं।

प्रश्न 11. भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय चार प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 12. नगर एवं गांव किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-नगर एवं गांव स्थानीय प्रकार के समुदाय हैं।

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प्रश्न 13. शिरोमणि अकाली दल किस प्रकार का संघ है ?
उत्तर-शिरोमणि अकाली दल प्रादेशिक समुदाय है।

प्रश्न 14. कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय समुदाय हैं।

प्रश्न 15. संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को किस प्रकार के संघ हैं?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय हैं।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य की सदस्यता ………….. है, जबकि समुदाय की ऐच्छिक है।
2. …………. के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है, समुदाय के लिए नहीं।
3. राज्य का उद्देश्य व्यापक होता है, जबकि ………….. का उद्देश्य सीमित होता है।
4. ………….. के पास प्रभुसत्ता है, समुदाय के पास नहीं है।
5. राज्य ……….. होता है, जबकि समुदाय अस्थायी होता है।
उत्तर-

  1. अनिवार्य
  2. राज्य
  3. समुदाय
  4. राज्य
  5. स्थायी ।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. फ्रांस का बादशाह लुई 14वां कहा करता था, कि “मैं ही राज्य हूँ”।
2. राज्य सरकार का अंग है।
3. राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित है।
4. राज्य सरकार की एजेन्ट है।
5. राज्य अमूर्त है तथा सरकार मूर्त है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार-
(क) दो अलग-अलग धारणाएं हैं
(ख) एक ही धारणा है
(ग) दोनों समान हैं
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) दो अलग-अलग धारणाएं हैं

प्रश्न 2.
सरकार के कितने अंग होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ग) तीन

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प्रश्न 3.
एक राज्य के लिए आवश्यक है-
(क) संसदीय
(ख) राजतन्त्रीय
(ग) अध्यक्षात्मक
(घ) कोई भी सरकार।
उत्तर-
(घ) कोई भी सरकार।

प्रश्न 4.
भारत में कैसी सरकार है ?
(क) संसदीय
(ख) अध्यक्षात्मक
(ग) राजतन्त्रीय
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) संसदीय

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 11 राज्य और समुदाय

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
समुदाय के अर्थ की विवेचना कीजिए। (Discuss the meaning of association.)
उत्तर-
अरस्तु ने ठीक ही कहा है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका स्वभाव और आवश्यकता दोनों ही उसे समाज में रहने के लिए बाध्य करते हैं। आज मनुष्य की आवश्यकताएं इतनी जटिल और अधिक हो गई हैं कि समाज और राज्य उन सबको अच्छी प्रकार से पूरा नहीं कर सकता। राज्य अपने सदस्यों की छोटी-छोटी तथा विशेष आवश्यकताओं की ओर ध्यान नहीं दे सकता। इसी कारण अपने विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यक्तियों ने विशेष समुदाय बनाए हैं। समुदाय को अंग्रेज़ी में ‘एसोसिएशन’ (Association) कहते हैं जिसका अर्थ है ‘मनुष्यों का एक संगठित निकाय अथवा संघ’ (An organised body of persons)। एक प्रकार के विशेष उद्देश्य रखने वाले व्यक्ति एक-दूसरे के समीप आते हैं और समूह बना कर अर्थात् संगठित होकर इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं। इसी को समुदाय कहते हैं। ‘समुदाय’ की विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं-

  • मैकाइवर और पेज (Maclver and Page) का कहना है कि “एक या कुछ सामान्य हितों के अनुसरण के लिए संगठित हुए व्यक्तियों के समूह को समुदाय कहा जाता है।” (Association is a group organised for the pursuit of interest of group or interests in common.”)
  • जिन्सबर्ग (Ginsberg) के मतानुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”
  • बोगार्डस (Bogardus) के शब्दों में, “प्राय: किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलकर कार्य करने को समुदाय कहते हैं।” (‘Association is usually a working together of people to achieve some purpose.”)
  • जी० डी० एच० कोल (G.D.H. Cole) के शब्दों में, “समुदाय से मेरा अभिप्राय लोगों के ऐसे समूह से है जो किसी साझे उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सहयोगी रूप में काम करते हैं और इस उद्देश्य के लिए साझे प्रयत्नों के लिए कोई नियम चाहे प्रारम्भिक रूप से ही निश्चित करते हैं।”
    विभिन्न परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समुदाय व्यक्तियों का ऐसा समूह है कि जिसका एक विशेष उद्देश्य होता है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलजुल कर अर्थात् संगठित होकर कार्य करते हैं।

समुदाय के महत्त्वपूर्ण तत्त्व (Important Elements of Associations)-समुदाय के महत्त्वपूर्ण तत्त्व इस प्रकार हैं-

  • व्यक्तियों का समूह-समुदाय व्यक्तियों का समूह होता है। बिना व्यक्ति के समूह के समुदाय की स्थापना नहीं हो सकती।
  • सामान्य या विशेष उद्देश्य-समुदाय का निर्माण व्यक्तियों द्वारा किसी सामान्य या विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है। समुदाय बनाने के लिए सामान्य हित या उद्देश्य का होना अनिवार्य है। विद्यार्थी संघ विद्यार्थी के हितों की रक्षा करता है।
  • संगठन-समुदाय के लिए संगठन का होना अनिवार्य है। संगठन का अर्थ है, कुछ नियमों के अनुसार कार्य करना और यदि कोई सदस्य समुदाय के नियमों के अनुसार नहीं चलता तो उसे समुदाय की सदस्यता से वंचित कर दिया जाता
  • सहयोग की भावना-समुदाय अपने उद्देश्य को तभी प्राप्त कर सकता है यदि समुदाय के सदस्य पारस्परिक सहयोग करें। सहयोग की भावना के बिना समुदाय को सफलता नहीं मिल सकती।
  • नियमों का पालन-समुदाय के प्रत्येक सदस्य के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने समुदाय के नियमों का पालन करे। यदि सदस्य समुदाय के नियमों का पालन नहीं करेंगे तो समुदाय का शीघ्र ही पतन हो जाएगा।
  • कुछ समुदाय अपने सदस्यों की अपेक्षा गैर-सदस्यों के हितों को बढ़ावा देते हैं- यद्यपि समुदाय प्रायः अपने सदस्यों के हितों को ही बढ़ावा देते हैं तथापि कई समुदाय गैर-सदस्यों के हितों को बढ़ावा देते हैं। अनेक समुदाय पशुओं के कल्याण और बच्चों के कल्याण के लिए बने हुए हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

प्रश्न 2.
राज्य और समुदाय में अन्तर स्पष्ट करो।
(Discuss the distinction between State and Association.)
उत्तर-
मनुष्य की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति राज्य के द्वारा नहीं होती। मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न समुदायों की स्थापना करता है। समुदाय मनुष्यों का समूह होता है जिसका निर्माण किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है। राज्य भी एक समुदाय है क्योंकि राज्य व्यक्तियों का समूह है और राज्य का एक निश्चित उद्देश्य भी है, फिर भी राज्य और समुदाय में अन्तर है, जो इस प्रकार है

1. राज्य की सदस्यता अनिवार्य, समुदाय की ऐच्छिक-मनुष्य का जन्म जिस राज्य में होता है उसे उस राज्य की नागरिकता ग्रहण करनी पड़ती है। मनुष्य अपनी इच्छा से किसी राज्य की नागरिकता न तो छोड़ सकता है और न ही प्राप्त कर सकता है। परन्तु समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक होती है। किसी समुदाय का सदस्य बनना अथवा न बनना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है और वह जिस समय चाहे समुदाय की सदस्यता छोड़ सकता है।

2. राज्य के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है, समुदाय के लिए नहीं-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भूभाग आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं, राज्य इन सीमाओं के अन्तर्गत ही कार्य करता है। परन्तु समुदाय की स्थापना के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक नहीं है। समुदाय का क्षेत्र एक मुहल्ले तक भी सीमित हो सकता है और एक शहर तक भी। कई समुदायों का क्षेत्र समस्त संसार में भी फैला होता है, जैसे कि रैड-क्रास सोसाइटी (Red Cross Society)।

3. मनुष्य एक ही समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है, परन्तु कई समुदायों का सदस्य एक ही बार बन सकता है-मनुष्य एक समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है। यदि किसी मनुष्य को किसी तरह दो राज्यों की नागरिकता प्राप्त हो जाती है, तब उसे एक राज्य की नागरिकता छोड़नी पड़ती है। परन्तु वह एक समय में कई समुदायों का सदस्य बन सकता है।

4. राज्य का उद्देश्य व्यापक है, समुदाय का उद्देश्य सीमित है-राज्य का उद्देश्य समुदाय से व्यापक होता है। राज्य का उद्देश्य मनुष्य के राजनीतिक जीवन को ही उन्नत नहीं करना होता बल्कि राज्य मनुष्य के आर्थिक, सामाजिक आदि पहलुओं को भी उन्नत करने का प्रयत्न करता है ताकि मनुष्य का पूर्ण विकास हो सके। समुदाय का निर्माण किसी विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है। उदाहरणस्वरूप मनोरंजन समिति का उद्देश्य सदस्यों के मनोरंजन तक ही सीमित है। इसके अतिरिक्त समुदाय केवल अपने सदस्यों के हित के लिए ही कार्य करता है।

5. राज्य के पास प्रभुसत्ता है, समुदाय के पास नहीं-राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है। राज्य की शक्तियां असीमित होती हैं। राज्य के नियम तोड़ने वाले को सजा दी जाती है। राज्य किसी भी व्यक्ति को मृत्यु दण्ड भी दे सकता है। प्रभुसत्ता के बिना राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। परन्तु समुदाय के पास प्रभुसत्ता नहीं होती।

6. अन्य समुदाय राज्य के अधीन होते हैं-राज्य अन्य समुदायों से श्रेष्ठ है। राज्य का अन्य समुदायों पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। अन्य समुदाय राज्य के अधीन कार्य करते हैं। परिवार तथा धार्मिक समुदायों को छोड़ कर बाकी सब समुदायों के निर्माण के लिए राज्य की आज्ञा की आवश्यकता होती है। राज्य समुदायों के कार्यों में हस्तक्षेप भी कर सकता है और आवश्यकता समझे तो समुदाय को समाप्त भी कर सकता है।

7. राज्य स्थायी, समुदाय अस्थायी-राज्य तब तक चलता है जब तक इसके पास प्रभुसत्ता रहती है। प्रभुसत्ता खो जाने से राज्य भी समाप्त हो जाता है। परन्तु ऐसा बहुत कम होता है। लेकिन समुदाय अस्थायी है। समुदाय किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए बनाया जाता है और उद्देश्य की पूर्ति के पश्चात् समाप्त हो जाता है। कई समुदाय अपने उद्देश्य में सफल नहीं होते तब भी समुदाय को समाप्त करना पड़ता है। राज्य भी किसी समुदाय को समाप्त कर सकता है।

8. राज्य करों द्वारा अपना धन इकट्ठा करता है परन्तु समुदाय चन्दों द्वारा-अपने सदस्यों पर कर अथवा टैक्स लगा कर राज्य धन की आवश्यकताओं को पूरा करता है और टैक्स देना अनिवार्य होता है। जो व्यक्ति टैक्स नहीं देता उसको दण्ड दिया जाता है। समुदाय अपने सदस्यों से चन्दा लेकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है यदि कोई सदस्य चन्दा नहीं देता तो समुदाय उसे केवल समुदाय से निकाल सकता है।

9. राज्य सार्वजनिक हित का रक्षक है, समुदाय केवल अपने सदस्यों के हित का राज्य समाज के किसी विशेष हित स्थान पर सभी के हितों को देखता है। समुदाय केवल अपने सदस्यों के हितों को देखता है।

10. राज्य समुदाय को समाप्त कर सकता है-राज्य जब चाहे किसी भी समुदाय पर प्रतिबन्ध लगा सकता है और उसे समाप्त कर सकता है। कई समुदायों की स्थापना राज्य भी करता है। जैसे-विश्वविद्यालय, कॉलेज, स्कूल आदि। परन्तु समुदाय न तो राज्य को बना सकते हैं और न ही समाप्त कर सकते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-ऊपर की चर्चा से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि राज्य स्वयं एक प्रकार का समुदाय होते हुए भी अन्य समुदायों से भिन्न और सर्वश्रेष्ठ है। राज्य ‘एक सर्वोच्च समुदाय’ (A Supreme Association) या ‘समुदायों का समुदाय’ (Association of Associations) कहलाता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समुदाय का अर्थ तथा परिभाषा लिखें।
उत्तर-
समुदाय को अंग्रेज़ी में ऐसोसिएशन’ (Association) कहते हैं जिसका अर्थ है ‘मनुष्यों का एक संगठित निकाय अथवा संघ’। एक प्रकार के विशेष उद्देश्य वाले व्यक्ति जब एक-दूसरे के समीप आते हैं और समूह बना कर अर्थात् संगठित होकर इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, इसी को समुदाय कहते हैं। समुदाय की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य अग्रलिखित हैं-

  1. मैकाइवर और पेज का कहना है कि, “एक या कुछ सामान्य हितों के अनुसरण के लिए संगठित हुए व्यक्तियों के समूह को समुदाय कहते हैं।”
  2. जिन्सबर्ग के मतानुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”
  3. बोगार्डस के शब्दों में, “प्रायः किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिलकर काम करने को समुदाय कहते हैं।”

प्रश्न 2.
समुदाय की चार उपयोगिताएं लिखें।
उत्तर-
समुदाय समाज में उतना ही स्वाभाविक है जितना स्वयं राज्य। मनुष्य जीवन में समुदायों की उपयोगिता निम्नलिखित बातों से स्पष्ट है-

  • विशेष उद्देश्यों की पूर्ति-समाज व्यक्ति के विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करता है परन्तु व्यक्ति को अपने विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए समुदायों पर निर्भर रहना पड़ता है। व्यक्ति का विशेष उद्देश्य चाहे जो भी हो, वह उससे सम्बन्धित समुदाय बनाकर उसकी पूर्ति कर सकता है और अपने जीवन का विकास कर सकता है।
  • मानव-स्वभाव की तृप्ति-समुदाय द्वारा मनुष्य के सामाजिक स्वभाव की तृप्ति होती है। प्रत्येक मनुष्य में दूसरों के साथ अपने सुख-दुःख को बांटने की इच्छा होती है। समुदाय के सदस्यों से मित्रता करके उसकी यह सामाजिक भावना अच्छी प्रकार से पूरी हो जाती है।
  • जीवन में अधिक सहायता, सहयोग व सफलता मिलती है-समुदाय संगठित होते हैं और उनके सदस्य संगठित होकर कार्य करते हैं। इससे उद्देश्य की पूर्ति में अधिक सहायता मिलती है और पूर्ति भी शीघ्र हो जाती है। इससे लोगों में पारस्परिक सम्बन्ध घनिष्ठ हो जाते हैं।
  • भाईचारा एवं सहयोग की भावना-समुदायों से समाज में भाईचारा एवं परस्पर सहयोग की भावना पैदा होती है।

प्रश्न 3.
राज्य व समुदाय में चार अन्तर बताओ।
उत्तर-
राज्य और समुदाय में पाए जाने वाले मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं-

  • राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक-मनुष्य अपनी इच्छा से न तो किसी राज्य की नागरिकता छोड़ सकता है और न ही प्राप्त कर सकता है, परन्तु समुदाय का सदस्य बनना या न बनना उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  • राज्य के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक, समुदाय के लिए नहीं-राज्य के निर्माण के लिए एक निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समुदाय की स्थापना के लिए निश्चित भूभाग का होना आवश्यक नहीं है। समुदाय का कार्य एक मुहल्ले से लेकर सारे संसार तक में फैला हो सकता है।
  • मनुष्य एक समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है, परन्तु कई समुदायों का सदस्य एक ही समय में बन सकता है-मनुष्य एक समय में एक ही राज्य का सदस्य बन सकता है। यदि किसी मनुष्य को दो राज्यों की नागरिकता प्राप्त हो जाती है तो उसे एक राज्य की नागरिकता छोड़नी पड़ती है। परन्तु वह एक ही समय में एक साथ कई समुदायों का सदस्य बन सकता है।
  • राज्य का उद्देश्य व्यापक है, समुदाय का उद्देश्य सीमित होता है-राज्य का उद्देश्य समुदाय के उद्देश्य से अधिक व्यापक होता है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समुदाय का अर्थ लिखें।
उत्तर-
समुदाय को अंग्रेज़ी में ‘एसोसिएशन’ (Association) कहते हैं जिसका अर्थ है ‘मनुष्यों का एक संगठित निकाय अथवा संघ’। एक प्रकार के विशेष उद्देश्य वाले व्यक्ति जब एक-दूसरे के समीप आते हैं और समूह बना कर अर्थात् संगठित होकर इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रयत्न करते हैं, इसी को समुदाय कहते हैं।

प्रश्न 2.
राज्य व समुदाय में दो अन्तर बताओ।
उत्तर-

  1. राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक-मनुष्य अपनी इच्छा से न तो किसी राज्य की नागरिकता छोड़ सकता है और न ही प्राप्त कर सकता है, परन्तु समुदाय का सदस्य बनना या न बनना उसकी इच्छा पर निर्भर करता है। समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  2. राज्य के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक, समुदाय के लिए नहीं राज्य के निर्माण के लिए एक निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समुदाय की स्थापना के लिए निश्चित भूभाग का होना आवश्यक नहीं है। समुदाय का कार्य एक मुहल्ले से लेकर सारे संसार तक में फैला हो सकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. समुदाय का अर्थ लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्तियों का ऐसा समूह है, जिसका एक विशेष उद्देश्य होता है और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मिल-जुल कर अर्थात् संगठित होकर कार्य करते हैं।

प्रश्न 2. समुदाय की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-जिन्सबर्ग के अनुसार, “समुदाय सामाजिक प्राणियों का एक समूह है,जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक सामान्य संगठन बना लेते हैं।”

प्रश्न 3. समुदाय का कोई एक तत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय का निर्माण व्यक्तियों द्वारा किसी सामान्य या विशेष उद्देश्य के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4. समुदाय के वर्गीकरण के कोई दो आधार बताएं।
उत्तर-

  1. सदस्यता के आधार पर
  2. अवधि के आधार पर।

प्रश्न 5. समुदाय का कोई एक महत्त्व लिखें।
उत्तर-समुदाय व्यक्ति के सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 11 राज्य और समुदाय

प्रश्न 6. सदस्यता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं ?
उत्तर-सदस्यता के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 7. अवधि के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के हो सकते हैं?
उत्तर-अवधि के आधार पर समुदाय दो प्रकार का होता है।

प्रश्न 8. प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-प्रभुसत्ता के आधार पर समुदाय तीन प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 9. पूर्ण सत्ताधारी समुदाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-राज्य को पूर्ण सत्ताधारी समुदाय कहते हैं।

प्रश्न 10. ग्राम सभा, ग्राम पंचायत, जिला परिषद् तथा नगर-निगम किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-ये सभी अर्धसत्ता प्राप्त समुदाय कहलाते हैं।

प्रश्न 11. भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-भू-क्षेत्र के आधार पर समुदाय चार प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 12. नगर एवं गांव किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-नगर एवं गांव स्थानीय प्रकार के समुदाय हैं।

प्रश्न 13. शिरोमणि अकाली दल किस प्रकार का संघ है ?
उत्तर-शिरोमणि अकाली दल प्रादेशिक समुदाय है।

प्रश्न 14. कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी किस प्रकार के समुदाय हैं ?
उत्तर-कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय समुदाय हैं।

प्रश्न 15. संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को किस प्रकार के संघ हैं?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र एवं यूनेस्को अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय हैं।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य की सदस्यता ………….. है, जबकि समुदाय की ऐच्छिक है।
2. …………. के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है, समुदाय के लिए नहीं।
3. राज्य का उद्देश्य व्यापक होता है, जबकि ………….. का उद्देश्य सीमित होता है।
4. ………….. के पास प्रभुसत्ता है, समुदाय के पास नहीं है।
5. राज्य ……….. होता है, जबकि समुदाय अस्थायी होता है।
उत्तर-

  1. अनिवार्य
  2. राज्य
  3. समुदाय
  4. राज्य
  5. स्थायी ।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. फ्रांस का बादशाह लुई 14वां कहा करता था, कि “मैं ही राज्य हूँ”।
2. राज्य सरकार का अंग है।
3. राज्य व्यापक है, सरकार संकुचित है।
4. राज्य सरकार की एजेन्ट है।
5. राज्य अमूर्त है तथा सरकार मूर्त है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य और सरकार-
(क) दो अलग-अलग धारणाएं हैं
(ख) एक ही धारणा है
(ग) दोनों समान हैं
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क)।

प्रश्न 2.
सरकार के कितने अंग होते हैं ?
(क) एक
(ख) दो
(ग) तीन
(घ) चार।
उत्तर-
(ग)।

प्रश्न 3.
एक राज्य के लिए आवश्यक है-
(क) संसदीय
(ख) राजतन्त्रीय
(ग) अध्यक्षात्मक
(घ) कोई भी सरकार।
उत्तर-
(घ)।

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प्रश्न 4.
भारत में कैसी सरकार है ?
(क) संसदीय
(ख) अध्यक्षात्मक
(ग) राजतन्त्रीय
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क)।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 6 वायुमण्डल-बनावट और रचना

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 6 वायुमण्डल-बनावट और रचना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 6 वायुमण्डल-बनावट और रचना

PSEB 11th Class Geography Guide वायुमण्डल-बनावट और रचना Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो शब्दों में दीजिए-

प्रश्न (क)
धरती के इर्द-गिर्द लिप्त हवा के गिलाफ का क्या नाम है ?
उत्तर-
वायुमंडल।

प्रश्न (ख)
थर्मामीटर की खोज किस वैज्ञानिक ने, कब की थी ?
उत्तर-
गैलीलियो ने 1593 में।

प्रश्न (ग)
सूर्य से आ रही UV किरणों का नाम क्या है ?
उत्तर-
अल्ट्रा वायलेट किरणें।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 6 वायुमण्डल-बनावट और रचना

प्रश्न (घ)
वायुमंडलीय गैसों में सबसे अधिक मात्रा किस गैस की है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन 78.03%.

प्रश्न (ङ)
वायुमंडल में ऑक्सीजन और कार्बन-डाई-ऑक्साइड दोनों का मिलकर कितने प्रतिशत हिस्सा है ?
उत्तर-
20.95 + 0.03 = 20.98%.

प्रश्न (च)
जलवाष्प धरती से कितनी दूरी तक वायुमंडल में मिलते हैं ?
उत्तर-
5 किलोमीटर की ऊँचाई तक।

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प्रश्न (छ)
समताप मंडल की ऊँचाई कहाँ से कहाँ तक होती है ?
उत्तर-
16 किलोमीटर से 50 किलोमीटर तक।

प्रश्न (ज)
गैसीय और तरल पदार्थों के ताप-स्थानांतरण विधि का क्या नाम है ?
उत्तर-
वाष्पीकरण।

प्रश्न (झ)
सूर्य-सतह का तापमान कितने डिग्री सैल्सियस है ?
उत्तर-
10,180° F.

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प्रश्न (ज)
10. Green House का प्रभाव कायम रखने के लिए कौन-सी गैस सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-
कार्बन-डाई-ऑक्साइड।

2. प्रश्नों के उत्तर एक या दो वाक्यों में दो :

प्रश्न (क)
वायुमंडलीय गैसीय मिश्रण की दो क्षीण विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
गैसीय मिश्रण रंगहीन, गंधहीन और स्वादहीन है। यह अदृश्य भी है।

प्रश्न (ख)
वायुमंडलीय आंकड़े भेजने वाले दो उपग्रहों के नाम लिखें।
उत्तर-
TIROS और GOES नामक उपग्रह।

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प्रश्न (ग)
ऑक्सीजन मानवीय शरीर में किस स्रोत पर कार्य करती है ?
उत्तर-
ऊर्जा का स्रोत।

प्रश्न (घ)
जलवाष्प किन रूपों में धरती पर बरसते हैं ?
उत्तर-
वर्षा, ओले, बर्फबारी, ओस आदि।

प्रश्न (ङ)
वायुमंडल में मौसम से संबंधित कौन-सी दो क्रियाएँ होती हैं ?
उत्तर-
वाष्पीकरण और संघनन।

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प्रश्न (च)
टरोपोपॉज़ (Tropopause) वायुमंडल की किन परतों के मध्य स्थित होता है ?
उत्तर-
परिवर्तन मंडल और समताप मंडल।

प्रश्न (छ)
पराबैंगनी किरणों की ज्यादा मात्रा से मनुष्य को कौन-से रोग हो सकते हैं ?
उत्तर-
पराबैंगनी किरणें मनुष्य को अंधा कर देती हैं और चमड़ी के रोग लग जाते हैं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें:

प्रश्न (क)
धरती से छोड़ा एक गुब्बारा जो 700 किलोमीटर ऊपर चला जाए, तो वह वायुमंडल की परतों को किस क्रम में पार करेगा ?
उत्तर-

  1. परिवर्तन मंडल – 16 कि०मी० तक
  2. समताप मंडल – 50 कि०मी० तक
  3. मध्य मंडल – 80 कि०मी० तक
  4. आयन मंडल – 640 कि०मी० तक
  5. बाहरी मंडल — 640 कि.मी. से आगे।

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प्रश्न (ख)
परिवर्तन मंडल का अंग्रेजी नाम Troposphere रखने संबंधी संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
यूनानी भाषा से लिए गए शब्द Tropos का अर्थ है-परिवर्तन या हलचल या मिक्सिंग। इस मंडल में मौसमीय परिवर्तन मिलते हैं।

प्रश्न (ग)
Ozone की परत की आवश्यकता और उस पर हो रहे नुकसान की चर्चा करें।
उत्तर-
ओज़ोन गैस की परत मानवीय जीवन के लिए ज़रूरी है। यह सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों को सोख लेती है और धरती को पराबैंगनी किरणों से बचाती है। वायुमंडल में ओजोन गैस की परत कम हो रही है, इसीलिए धरती का तापमान बढ़ रहा है और हिम-खंड पिघल रहे हैं और समुद्र-तल ऊँचा हो रहा है।

प्रश्न (घ)
वायुमंडल का विभाजन रासायनिक रचना के आधार पर करें।
उत्तर-
वायुमंडल में गैसें, जलवाष्प, धूलकण आदि शामिल होते हैं। नाइट्रोजन (78.03%) सबसे अधिक होता है, ऑक्सीजन (20.95%), कार्बनडाईऑक्साइड (0.03%) और जलवाष्प (2%) होते हैं।

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प्रश्न (ङ)
सूर्य-तापन (Insolation) क्या है ? एक नोट लिखें।
उत्तर-
धरती से प्राप्त होने वाले सूर्य-विकिरण को सूर्य-तापन कहते हैं। सूर्य धरती और वायुमंडल के लिए ऊर्जा का प्रमुख साधन है। सूर्य-ताप का केवल 1/2 करोड़वां हिस्सा ही धरती पर पहुँचता है। यह ताप केवल 1.94 कैलोरी . प्रति सैंटीमीटर प्रति मिनट है। इस ऊर्जा का केवल 51 प्रतिशत भाग धरती पर पहुँचता है और धरातल को गर्म करता है।

प्रश्न (च)
भूमध्य रेखीय कम वायुदाब पेटी की उत्पत्ति के तीन बिंदु लिखें।
उत्तर-

  1. उच्च तापमान
  2. संवहन धाराएँ
  3. दैनिक गति।

प्रश्न (छ)
सम-दाब रेखाएँ क्या होती हैं ? नोट लिखें।
उत्तर-
धरातल पर सम वायु-दाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाओं को सम-दाब रेखाएँ कहते हैं। ये वायु-दाब को समुद्र तल पर कम करके दिखाती हैं।

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4. प्रश्नों का उत्तर 150 से 250 शब्दों में दो-

प्रश्न (क)
वायुदाब पर असर डालने वाले कौन-से कारक होते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
वायुमंडल का दबाव (Atmospheric Pressure)
धरती की आकर्षण-शक्ति (Gravity) के कारण हर वस्तु में भार होता है। हवा में भी भार होता है। आमतौर पर एक घन फुट में 1.2 औंस भार होता है।

हवा का दबाव सभी दिशाओं में एक समान होता है। यह एक प्रकार का स्तंभ होता है, जो वायुमंडल की सबसे ऊँची सीमा तक पहुँचता है। समुद्र-तल पर प्रति वर्ग इंच पर वायुमंडल का दबाव 14.7 पौंड या 6.68 किलोग्राम होता है या 1.03 किलोग्राम प्रति वर्ग सैंटीमीटर होता है। वायुमंडल का औसत या साधारण दबाव (Normal Pressure) 45° अक्षांश और समुद्र तल पर 29.92 इंच या 76 सैंटीमीटर या 1013.2 मिलीबार होता है।

तत्त्व (Factors) अनेक स्थानों पर समान दशाओं के कारण वायु दबाव समान होता है या वायुमंडल में कोई गति नहीं होती, परंतु कई कारणों से समय और स्थान के अनुसार वायु-दबाव बदलता रहता है। वे कारण हैं-

1. तापमान (Temperature)—गर्म होने पर हवा फैलकर हल्की हो जाती है। ठंडी हवा सिकुड़कर भारी हो जाती है। इसलिए यदि तापमान अधिक होगा, तो हवा का दबाव कम होगा। यदि तापमान कम होगा, तो हवा का दबाव अधिक होगा। जैसे कहा जाता है कि, “A rising Thermometer shows a falling Barometer.” यही कारण है कि वायु-दबाव दिन में कम और रात को अधिक होता है।

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2. ऊँचाई (Altitude) हवा की ऊपरी सतहों का भार निचली सतहों पर पड़ता है। नीचे की हवा भारी और घनी हो जाती है। समुद्र तल पर अधिक वायु दबाव पड़ता है। ऊपर जाने पर प्रत्येक 300 मीटर की ऊंचाई पर हवा का दबाव 1 इंच या 34 मिलीबार गिर जाता है। अनुमान है कि वायुमंडल का आधा दबाव केवल 5000 मीटर की ऊँचाई तक सीमित होता है।

3. जल-कण (Water vapours)-जल-कण हवा की तुलना में हल्के होते हैं, इसीलिए शुष्क हवा नम हवा की अपेक्षा भारी होती है। यही कारण है कि स्थलीय पवनें (Land winds) शुष्क होने के कारण समुद्री पवनों (Sea winds) की अपेक्षा भारी होती हैं।

4. दैनिक गति (Rotation)-धरती की दैनिक गति के कारण कई स्थानों पर हवा इकट्ठी हो जाती है और दूसरे
स्थानों पर हवा का दबाव कम हो जाता है। 60° अक्षांश पर कम वायु धरती की दैनिक गति के कारण ही होती है।

प्रश्न (ख)
जनवरी और जुलाई के महीनों के ताप-विभाजन की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
तापमान का विश्व-विभाजन (World Distribution of Temperature)-
1. जनवरी की समताप रेखाएँ (January Isotherms) जनवरी का महीना उत्तरी गोलार्द्ध में ठंडा और दक्षिणी गोलार्द्ध में गर्म होता है। इसका कारण यह है कि इस समय सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा के निकट लंबवत् होता है, जिसके कारण वहाँ गर्मी की ऋतु और उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल भाग की प्रधानता होती है, इसलिए बहुत-से भाग पर सागरीय प्रभाव नहीं होता, जिसके फलस्वरूप उच्च अक्षांशों में महाद्वीपों के भीतरी भागों में तापमान तेजी से कम हो जाता है। इस समय न्यूनतम तापमान के तीन क्षेत्र साईबेरिया, ग्रीनलैंड और उत्तरी कनाडा में पाए जाते हैं। उत्तर-पूर्वी साईबेरिया में स्थित वोयांस्क (Verkhoyansk) का तापमान -50° सैल्सियस तक गिर जाता है। यह संसार का सबसे अधिक ठंडा स्थान है। फरवरी सन् 1892 में यहाँ तापमान -69° सैल्सियस (Minus 69° Celsius) तक कम हो गया था। गर्म जल-धाराओं के प्रभाव के कारण उत्तर-पश्चिमी यूरोप उत्तरी अमेरिका की तुलना में कम ठंडा है। दक्षिणी गोलार्द्ध में सूर्य की किरणों के लंबवत पड़ने के कारण सूर्य-ताप की प्राप्ति अधिक होती है, इसीलिए यहाँ तापमान अधिक रहता है। ब्राजील, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में 30° सैल्सियस से अधिक तापमान पाया जाता है।

2. जुलाई की समताप रेखाएँ (July Isotherms)-जुलाई, उत्तरी गोलार्द्ध का अत्यंत गर्म और दक्षिणी गोलार्द्ध का ठंडा महीना होता है। इस समय सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा के निकट लंबवत् होता है, जिसके कारण वहाँ गर्मी की ऋतु और दक्षिणी गोलार्द्ध में सर्दी की ऋतु होती है।

इस समय उत्तरी गोलार्द्ध के एक बहुत विस्तृत भाग में 30° सैल्सियस से भी अधिक तापमान रहता है। उत्तरी अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के मरुस्थलों और अर्ध शुष्क भूमियों में भी ज़ोरदार गर्मी पड़ती है। पाकिस्तान के जैकबाबाद (Jocobabad) और लीबिया में एल अज़ीज़ीया (El Azizia) संसार के सबसे अधिक गर्म स्थान हैं। एलअज़ीज़ीया में तो 58° सैल्सियस तापमान रिकॉर्ड किया गया है।

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प्रश्न (ग)
धरती पर सूर्य-ताप की गतिशीलता के बारे में चार विधियाँ बताएँ।
उत्तर-
वायुमंडल का गर्म और ठंडा होना (Heating and Cooling of the Atmosphere)-
चाहे वायुमंडल के ताप का स्रोत सूर्य ही है, परंतु यह ताप भू-तल द्वारा ही प्राप्त होता है। वायुमंडल सूर्य की किरणों के लिए पारदर्शी है, जोकि भू-तल पर पहुँचकर उसे गर्म करती हैं। भू-तल का ताप वायुमंडल को प्राप्त होता है। वायुमंडल के गर्म और ठंडा होने के नीचे लिखे ढंग हैं-

1. संचालन (Conduction)—एक अणु दूसरे अणु को स्पर्श द्वारा गर्मी देता है। इस क्रिया को संचालन कहते हैं। दिन के समय सूर्य-ताप द्वारा भू-तल गर्म हो जाता है। जब वायुमंडल की सबसे निचली परत गर्म भू-तल के संपर्क में आती है, तो संचालन द्वारा यह गर्मी ग्रहण कर लेती है। फिर निचली परत ऊपरी परत को गर्मी प्रदान करती है। इस प्रकार वायुमंडल गर्म होने लगता है। रात के समय भू-तल ठंडा हो जाता है और इसके संपर्क में आकर वायु भी ठंडी हो जाती है। तब वह ऊपरी परतों को संचालन द्वारा ठंडक प्रदान करती है। फलस्वरूप वायुमंडल धीरे-धीरे ठंडा होना आरंभ हो जाता है।

2. संवहन (Convection)-दिन के समय जब भू-तल सूर्य-ताप द्वारा गर्म हो जाता है, तो वायुमंडल की निचली तह गर्म भू-तल को स्पर्श करके गर्म हो जाती है। गर्म होकर हवा फैलती है, जिससे इसका आयतन (Volume) बढ़ जाता है और वह हल्की हो जाती है। हल्की वायु ऊपर उठने लगती है। उस खाली स्थान को पूरा करने के लिए आस-पास से ठंडी और भारी हवा आने लगती है। थोड़े समय के बाद वह भी गर्म होकर ऊपर उठने लगती है। इस प्रकार वायु की तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं, जिन्हें संवहन धाराएँ (Convectional Currents) कहते हैं। संवहन धाराएँ पूरे वायुमंडल को गर्म कर देती हैं। वायुमंडल के गर्म होने का सबसे बड़ा कारण ये धाराएँ ही हैं।

3. विकिरण (Radiation)-किसी गर्म वस्तु से जब ताप, तरंगों के रूप में प्रसारित होता है, तो उस क्रिया को विकिरण कहा जाता है। सूर्य-ताप द्वारा भू-तल के गर्म हो जाने पर इससे ताप का विकिरण होता है। इस प्रकार विकिरण लंबी तरंगों (Long waves) के रूप में होता है। वायुमंडल की गैसें सूर्य-ऊर्जा से आने वाली लघु और सूक्ष्म तरंगों को अधिक सोख नहीं सकतीं, परंतु भू-तल से उठने वाली लंबी तरंगों का अधिकांश भाग सोख लेती हैं। फलस्वरूप भू-तल की गर्मी से वायुमंडल गर्म होता रहता है। यही कारण है कि जिस दिन बादल होते हैं, उस दिन अधिक गर्मी होती है। मरुस्थलों के बादल रहित वायुमंडल में गर्मी का विकिरण उत्तम ढंग से होता है। शाम के समय और इसके बाद विकिरण के द्वारा भू-तल ठंडा होता रहता है, जिससे वायुमंडल भी अपनी गर्मी छोड़नी आरंभ कर देता है।

4. संपीड़न और समतापन द्वारा गर्म और ठंडा होना (Compression and Adiabatic Heating and Cooling) हवा का भार होता है। इस भार के कारण वायु भू-तल पर दबाव डालती है। इस दबाव के कारण संपीड़न (Compression) उत्पन्न होता है और वायु गर्म हो जाती है। वायुमंडल की ऊपरी परतें अपने दबाव से निचली परतों में संपीड़न उत्पन्न करके उन्हें गर्म कर देती हैं। इस प्रकार वायु के संपीड़न के कारण गर्म होने को समताप तापन (Adiabatic Heating) कहा जाता है। फलस्वरूप संपीड़न के कारण वायु गर्म होने और फैलने के कारण ठंडी हो जाती है।

प्रश्न (घ)
धरती पर तापमान के विभाजन पर कौन-से स्थायी तत्त्व प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर
तापमान का क्षैतिजीय विभाजन (Horizontal Distribution of Temperature)-
भू-तल पर अक्षांशों के अनुसार तापमान विभाजन के अध्ययन को तापमान का क्षैतिजीय विभाजन कहकर पुकारा जाता है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें पूरा वर्ष लंब पड़ती हैं और ध्रुवों पर सदा तिरछी (Oblique) पड़ती हैं। इसके फलस्वरूप भूमध्य रेखीय प्रदेश (Equatorial Region) में सूर्य-ताप (Insolation) सबसे अधिक और ध्रुवीय प्रदेशों में बहुत कम प्राप्त होता है। इस प्रकार भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर सूर्य-ताप की प्राप्ति कम होती जाती है।

तापमान के क्षैतिजीय विभाजन को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Controlling the Horizontal Distribution of Temperature)—किसी भी स्थान पर वहां के वायु के तापमान को उस स्थान का तापमान (Temperature of a Place) कहते हैं। यह तापमान छाया में लिया जाता है। किसी भी स्थान के तापमान को नीचे लिखे कारक प्रभावित करते हैं-

1. भूमध्य रेखा से दूरी (Distance from the Equator)-भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर अक्षांशों में वृद्धि के साथ-साथ तापमान कम होता जाता है। (Temperature decreases from the equator to the poles.) किसी भी अक्षांश पर गर्मी, सूर्य की किरणों के कोण (Angle of Sun’s rays) पर निर्भर करती है। इसका मूल कारण यह है कि भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सारा साल लगभग लंब पड़ती हैं और अक्षांशों के बढ़ने के साथ-साथ ये किरणें तिरछी होती जाती हैं। तिरछी किरणें लंब किरणों की तुलना में भू-तल के अधिक भाग को घेरती हैं। फलस्वरूप ये भू-तल के अधिक भाग को गर्म करती हैं और उनकी गर्मी अधिक क्षेत्र में फैलकर कम रह जाती है। इस प्रकार भूमध्य रेखा पर पड़ने वाली लंब किरणें, ध्रुवों पर पड़ने वाली तिरछी किरणों की तुलना में अधिक गर्मी प्रदान करती हैं। परिणामस्वरूप भूमध्य रेखा पर तापमान अधिक और ध्रुवों पर तापमान कम होता है।
उदाहरण-चेन्नई, कोलकाता की तुलना में अधिक गर्म होता है।

2. वायुमंडल की मोटाई (Thickness of the Atmosphere)-भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें लंब पड़ती हैं और अक्षांशों में वृद्धि होने से सूर्य की किरणें तिरछी होती जाती हैं। लंब किरणों की तुलना में तिरछी किरणों को वायुमंडल का अधिकांश भाग पार करना पड़ता है, फलस्वरूप उनकी अधिक गर्मी वायुमंडल के जलवाष्प और गैसें सोख लेती हैं। इस प्रकार भूमध्य रेखा पर उच्च ताप और ध्रुवों पर निम्न ताप रहता है।

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3. भूमि की ढलान (Slope of the land)—सूर्यमुखी ढलानें सूर्य विमुखी ढलानों की अपेक्षा गर्म होती हैं। जिस भूमि की ढलान सूर्य की ओर होती है, वहाँ सूर्य की किरणें तुलना में सीधी पड़ती हैं, इसलिए ऐसी भूमि अधिक गर्मी प्राप्त करती है। इसके विपरीत जिस भूमि की ढलान सूर्य से परे होती है, वहाँ किरणें तुलना में तिरछी पड़ती हैं। फलस्वरूप ऐसी भूमि को कम गर्मी प्राप्त होती है। उदाहरण के तौर पर हिमालय की उत्तरी ढलान पर स्थित तिब्बत के पठार पर तापमान कम और भारत की ओर दक्षिणी ढलान के अधिकांश भागों और नीचे स्थित गंगा-सतलुज के मैदान में तापमान अधिक रहता है। अल्पस पर्वत में इन्हें धूपदार ढलाने (Sunny Slopes) कहते हैं।

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4. सागर तल से ऊँचाई (Altitude above sea-level) भू-तल के निकट वायु की मात्रा अधिक होती है। ऊँचाई के साथ-साथ वायु की मात्रा कम होती जाती है। उष्णता का ग्रहण करना वायु की मात्रा पर निर्भर करता है। परिणामस्वरूप सागर-तल और कुछ ऊँचाई पर स्थित स्थानों का तापमान उच्च और अधिक ऊँचाई पर निम्न होता है। सागर-तल से प्रति 165 मीटर की ऊँचाई के साथ तापमान 1° सैंटीग्रेड कम होता जाता है, इसीलिए मैदानों की तुलना में पर्वत ठंडे होते हैं। (Mountains are cooler than plains.) उदाहरण-शिमला और नैनीताल, दिल्ली और इलाहाबाद की तुलना में अधिक ठंडे होते हैं।

5. सागर तट से दूरी (Distance from the sea-coast)-गर्मियों में सागर, स्थल की तुलना में ठंडे होते हैं क्योंकि सागर की ठंडी पवनें (Sea Breeze) तटों की ओर चलती हैं और वहाँ के तापमान को कम कर देती हैं। इसके विपरीत सर्दियों में सागर, स्थल की तुलना में गर्म होते हैं क्योंकि ठंडी पवनें सागर की ओर चलती हैं और तटों की ठंडक अपने साथ सागर की ओर ले जाती हैं और तटों का तापमान कम नहीं होने देतीं। इस प्रकार तटों का तापमान वर्ष भर एक समान रहता है। इसके विपरीत सागर से दूर स्थित स्थान गर्मी की ऋतु में बहुत गर्म (Extreme climate) और सर्दी की ऋतु में बहुत ठंडे रहते हैं क्योंकि ये सागर के प्रभाव से दूर होते हैं। समुद्र का प्रभाव समकारी होता है और समकारी जलवायु (Equable Climate) होती है।
उदाहरण-दिल्ली की जलवायु कोलकाता की तुलना में कठोर होती है।

6. महासागरीय धाराएँ (Ocean Currents)-तटवर्ती प्रदेशों के तापमान पर महासागरीय धाराओं का प्रभाव पड़ता है। गर्म धाराएँ तापमान को बढ़ा देती हैं और ठंडी धाराएँ तापमान को कम कर देती हैं। गर्म धाराओं के ऊपर से प्रवाहित करने वाली पवनें गर्म होकर निकटवर्ती क्षेत्र को गर्मी प्रदान करती हैं। इसके विपरीत ठंडी धाराओं के ऊपर से प्रवाहित करने वाली पवनें निकटवर्ती क्षेत्रों को ठंडा कर देती हैं। दक्षिणी अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पश्चिमी तट की तुलना में अधिक गर्म होते हैं। इसका मूल कारण है कि पश्चिमी तटों पर ठंडी धाराएँ और पूर्वी तटों पर गर्म धाराएँ प्रवाहित करती हैं।
उदाहरण-खाड़ी की गर्म धाराओं के कारण पश्चिमी यूरोप के बंदरगाह सर्दी की ऋतु में भी खुले रहते हैं।

7. प्रचलित पवनें (Prevailing Winds)-प्रचलित पवनें भी किसी स्थान के तापमान को प्रभावित करती हैं। उष्ण प्रदेशों की ओर से आने वाली पवनें तापमान अधिक कर देती हैं और शीत प्रदेशों की ओर से आने वाली पवनें तापमान को कम कर देती हैं। सर्दी की ऋतु में मध्य एशिया से आने वाली ठंडी पवनें उत्तरी और मध्य चीन के तापमान को बहुत कम कर देती हैं। हिमालय पर्वत इन पवनों को भारत की ओर आने से रोक देते हैं। नहीं तो, भारत भी उत्तरी चीन की भाँति बहुत ठंडा होता। इसी प्रकार सहारा मरुस्थल की गर्म पवनें इटली
के तापमान को अधिक कर देती हैं।

8. भूमि की प्रकृति (Nature of the land) रेत और काली मिट्टी तापमान बहुत जल्दी ग्रहण करने की शक्ति रखती हैं और जल्दी ही इसका विकिरण (Radiation) करके ठंडी हो जाती हैं। परिणामस्वरूप मरुस्थल तर (Wet) भूमि की तुलना में जल्दी गर्म और जल्दी ही ठंडे भी हो जाते हैं। मरुस्थलों में दिन के समय तापमान अधिक और रात को काफी कम हो जाता है। बर्फ से या वनस्पति से ढकी हुई भूमि सूर्य-ताप की अधिक मात्रा परावर्तित (Reflect) कर देती है जो बर्फ को पिघलाने और वनस्पति में से जल का वाष्पीकरण करने में खर्च हो जाता है।

9. वर्षा और बादल (Rainfall and Clouds)-जिन प्रदेशों में अधिक वर्षा होती है और वे बादलों से ढके रहते हैं, वहाँ तापमान अधिक नहीं होता क्योंकि बादल सूर्य-ताप के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देते हैं। वर्षा का जल भूमि को ठंडक प्रदान करता है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें चाहे पूरा वर्ष लंब पड़ती हैं, परंतु फिर भी वर्षा और बादलों के कारण तापमान बहुत अधिक नहीं होता। इसके विपरीत उष्ण मरुस्थलों में बादल और वर्षा की कमी के कारण तापमान अधिक रहता है। (Highest temperature of the world are found on the tropics and not on the equator.)

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प्रश्न (ङ)
वायुमंडल की रचना का तापमान के आधार पर वर्णन करें और प्रत्येक सतह के बारे में संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
वायुमंडल (Atmosphere)-
वायु अनेक गैसों के मिश्रण से बनी है। वायु ने पृथ्वी को चारों तरफ से एक विशाल आवरण के रूप में समेटा हुआ है। यह आवरण रंगहीन (Colourless), गंधरहित (Odourless) और स्वादरहित (Tasteless) है। पृथ्वी के चारों तरफ लिपटे वायु के इस विशाल आवरण को वायुमंडल कहते हैं। इसका अध्ययन ऋतु विज्ञान के अंतर्गत आता है। __ट्रीवार्था (Trevartha) के अनुसार, “पृथ्वी के इर्द-गिर्द गैसों का एक विशाल आवरण है, जो पृथ्वी का अटूट अंग है, वायुमंडल कहलाता है।” (“Surrounding the earth and yet an integral part of the planet is a gaseous envelope called the atmosphere.”)

मोंकहाऊस (Monkhouse) के अनुसार, “वायुमंडल गैसों की एक पतली परत है, जो गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी से चिपटी हुई है।” (“The atmosphere is a thin layer of gases held to the earth by gravitational attraction.”)
क्रिचफील्ड (Critchfield) के अनुसार, “वायुमंडल गैसों का एक गहरा आवरण है, जिसने पृथ्वी को पूरी तरह से घेरा हुआ है।” (“The atmosphere is a deep blanket of gases which entirely envelopes the earth.’)

वायुमंडल की ऊँचाई (Height of the Atmosphere) वायुमंडल रंगहीन (Colourless), गंधहीन (Odourless) स्वादहीन (Tasteless) और पारदर्शी (Transparent) है, जोकि पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण इसके साथसाथ पश्चिम से पूर्व दिशा में घूमता है। वर्तमान समय में, स्पूतनिक और अन्य कृत्रिम उपग्रहों की सहायता से वायुमंडल की ऊँचाई 16,000 किलोमीटर से 32,000 किलोमीटर तक बताई गई है। परंतु मनुष्य के लिए पहले 5-6 किलोमीटर ी महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि उसी ऊँचाई तक मनुष्य के लिए अत्यंत उपयोगी गैसें-ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, कार्बनडाईऑक्साइड आदि काफी मात्रा में उपलब्ध हैं। भू-तल के निकट वायुमंडल सघन (Dense) होता है, परंतु ऊँचाई के साथ-साथ वायु की मात्रा कम होती जाती है भाव ऊँचाई के बढ़ने से वायुमंडल सूक्ष्म (Rarefied) होता जाता है। लगभग 572 किलोमीटर की ऊंचाई पर वायु की मात्रा आधी और 11 किलोमीटर की ऊँचाई पर एक-चौथाई रह जाती है। वायुमंडल की जानकारी के लिए अनेक स्रोतों का प्रयोग किया जाता है।

वायुमंडल का महत्त्व (Importance of Atmosphere)—वायुमंडल मानव-जीवन पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है-

  1. ऑक्सीजन गैस धरती पर मानव-जीवन का आधार है।
  2. नाइट्रोजन गैस वनस्पति का आधार है।
  3. वायुमंडल सूर्य के ताप को जब्त करके एक काँच के घर (Glass House) का काम करता है और पृथ्वी पर औसत दर्जे का तापमान (35°C) बनाए रखता है।
  4. वायुमंडल के जलवाष्प वर्षा का साधन हैं।
  5. वायुमंडल फसलों, मौसम, जलवायु, हवाई मार्गों पर प्रभाव डालता है।
  6. वायुमंडल की ओज़ोन गैस पराबैंगनी किरणों को रोककर पृथ्वी को हानिकारक प्रभावों से सुरक्षित करती है।

वायुमंडल की रचना (Composition of Atmosphere)-
वायुमंडल की रचना अलग-अलग गैसों (Gases), जलवाष्प (Water vapours) और धूलकणों (Dust Particles) के मेल से हुई है। वायुमंडल का 99 प्रतिशत भाग नाईट्रोजन (Nitrogen) और ऑक्सीजन (Oxygen) गैसों से बना हुआ है।

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1. गैसें (Gases)—वायुमंडल का 99% भाग दो गैसों-ऑक्सीजन (Oxygen) और नाइट्रोजन (Nitrogen) से बना है। वायुमंडल में कुछ भारी गैसें भी हैं। ऊपरी सतहों में हल्की गैसें भी होती हैं। वायुमंडल में पाई जाने वाली गैसें नीचे लिखी हैं-

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  • सक्रिय गैसें (Active Gases)—ऑक्सीजन, हाईड्रोजन, कार्बन-डाईऑक्साइड और ओज़ोन गैसें किसी स्थान की जलवायु पर प्रभाव डालती हैं। इन्हें सक्रिय गैसें कहा जाता है।
  • प्रभाव रहित गैसें (Inert Gases)-ऑर्गन, नियॉन, हीलियम, क्रिप्टोन और ज़ेनॉन प्रभावरहित गैसें हैं।

महत्त्वपूर्ण गैसें (Important Gases)-
1. नाइट्रोजन-वायुमंडल में इस गैस की सबसे अधिक मात्रा (4/5 भाग) है। यह गैस वस्तुओं को तेजी से जलने से बचाती है। यह पेड़-पौधों के जीवन के लिए लाभदायक होती है।

2. ऑक्सीजन (Oxygen)-मनुष्य के अस्तित्व के लिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण गैस है। इसके बिना मनुष्य साँस नहीं ले सकता। यह ऊर्जा की स्रोत है और वस्तुओं के जलने में सहायक होती है। ऊँचाई के साथ साथ इसकी मात्रा कम होती जाती है।

3. कार्बन-डाईऑक्साइड (Carbon Dioxide)—यह भारी गैस पृथ्वी की निचली सतह पर मिलती है।
औद्योगीकरण और ईंधन के अधिक प्रयोग के कारण इसकी मात्रा बढ़ रही है, जिसके प्रभाव से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ गया है।

4. ओज़ोन (Ozone) यह अधिक ऊँचाई पर मिलती है और सूर्य की पराबैंगनी किरणों (Ultra Violet Rays) को सोख लेती है। इससे पृथ्वी और मानव जीवन की सुरक्षा होती है।

5. ऑर्गन और हाइड्रोजन भी महत्त्वपूर्ण गैसें हैं।

2. धूल-कण (Dust Particles)-वायुमंडल में धूल-कण काफी मात्रा में होते हैं। इनके कारण ही आकाश में धुंधलापन छा जाता है। सूर्य के उदय होने और सूर्य के अस्त होने की लालिमा और अन्य रंग धूल-कणों के कारण ही होते हैं। सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के बाद का धुंधलका (Twilight) इन धूल कणों के कारण ही उत्पन्न होता है। जल-कण धूल-कणों के साथ चिपके रहते हैं। यहीं से संघनन (Condensation) या जल वाष्प के जल में परिवर्तन हो जाने की क्रिया आरंभ होती है। फलस्वरूप यह धूल-कण आर्द्रताग्राही केंद्र (Hygroscopic Nuclei) कहलाते हैं। इसके अतिरिक्त ये सूर्य की गर्मी को ग्रहण करने और फैलाने में बहुत प्रभावशाली होते हैं। ये धूल-कण भू-तल की मिट्टी के अलावा धुएँ, ज्वालामुखी विस्फोट से निकली राख, समुद्री नमक से भी उत्पन्न होते हैं। ये धूल-कण उल्कापात से भी प्राप्त होते हैं।

धूल कणों का महत्त्व (Importance of Dust Particles)-

  • धूल-कण सूर्य से ताप को सोख लेते हैं, जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है।
  • धूल-कणों के चारों तरफ जल-वाष्प का संघनन हो जाता है, जिससे वर्षा, कोहरा, बादल आदि बनते हैं।
  • धूल-कणों के कारण दृश्यता (Visibility) कम हो जाती है और कोहरा छा जाता है।
  • धूल-कणों के कारण सूर्य का निकलना, सूर्य का डूबना और इंद्रधनुष जैसे रंग-बिरंगे नज़ारे देखने को मिलते हैं।

3. जलवाष्प (Water-Vapours) वायुमंडल में गैसों की तरह अदृश्य रूप में जल भी होता है, जिसे जलवाष्प कहा जाता है। ये वाष्प-कण समुद्रों, झीलों, नदियों आदि से वाष्पीकरण क्रिया (Evaporation) द्वारा प्राप्त होते हैं। ये अधिकतर वायुमंडल की निचली सतहों में पाए जाते हैं। वायुमंडल में इसका बहुत महत्त्व है। भू-तल और वनस्पति, मनुष्य और पशु जीवन इसी के फलस्वरूप संभव हो पाया है। वाष्पकण के कारण ही बादलों की रचना होती है जिससे वर्षा और हिमपात होता है। ओस, कोहरा आदि वाष्पकणों से ही बनते हैं। वायुमंडल में वाष्पकणों के कारण ही इंद्रधनुष (Rainbow) और माला या प्रभामंडल (Halo) की रचना होती है। बादलों में बिजली चमकने और गर्जने (Roaring) की क्रिया भी जलवाष्प के कारण होती है। वायुमंडल के केवल 2% भाग में जलवाष्प मिलते हैं पर ये धरती के इर्द-गिर्द ताप के विभाजन पर काबू रखते हैं। इनके कारण ही पैदा हुई शक्ति से चक्रवात, अंधेरियाँ और तूफान चलते हैं।

विश्व के औसत तापमान का बढ़ना (Global Warming)-कार्बन-डाई-ऑक्साइड गैस पृथ्वी से विकिरण को सोख लेती है। बढ़ते औद्योगीकरण, परिवहन के तेज़ साधन, ईंधन के प्रयोग और जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण वायुमंडल में कार्बन-डाई-ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। इसी कारण पृथ्वी का ग्रीन-हाऊस प्रभाव भी बढ़ रहा है। – पृथ्वी का औसत तापमान 0.5° बढ़ गया है और डर है कि अगली सदी के अंत तक तापमान 3.5° बढ़ जाएगा। इससे समुद्र के पानी की सतह 11 मीटर ऊँची हो जाएगी और विश्व के कई तटवर्ती भाग पानी में डूब जाएंगे।

वायुमंडल का ढाँचा (Structure of the Atmosphere)-वायुमंडल के ढाँचे में अनेक सतहें हैं, जिनका वर्गीकरण तापमान और वायु-दबाव के आधार पर किया गया है। इन सतहों और उनकी विशेषताओं के बारे में आगे लिखा गया है

1. परिवर्तन मंडल (Troposphere)-वायुमंडल की यह सबसे निचली तह है। भू-तल से इसकी ऊँचाई 12 किलोमीटर तय की गई है। ध्रुवों की तुलना में भूमध्य रेखा की ओर इसकी ऊँचाई अधिक होती है। भूमध्य रेखा पर यह 16 किलोमीटर और ध्रुवों पर 6 किलोमीटर ऊँचा होता है। भारी गैसें, जलवाष्प और धूल-कण इसी मंडल में अधिक होते हैं। इसमें प्रति 165 मीटर की ऊँचाई पर 1° सैल्सियस तापमान कम हो जाता है। अंधेरी, तूफान, बादल गर्जन, बिजली चमकने आदि क्रियाएँ इसी मंडल में होती हैं। इसमें वायु कभी शांत नहीं रहती, निरंतर संवहन धाराएँ (Convection Currents) उठती रहती हैं और पवनें निरंतर रूप में प्रवाहित होती रहती हैं। फलस्वरूप इसे अशांत मंडल भी कहते हैं। इसमें संवहन धाराओं के उत्पन्न होने के फलस्वरूप इसे संवहनीय प्रदेश (Convectional Zone) का नाम भी दिया जाता है। ट्रोपोस्फीयर (Troposhere) दो शब्दों ‘ट्रोपो’ और ‘स्फीयर’ के मेल से बना है। ‘ट्रोपो’ का अर्थ है-परिवर्तन और ‘स्फीयर’ का अर्थ है-मंडल। इस प्रकार ट्रोपोस्फीयर का अर्थ हुआ-परिवर्तन मंडल, इसलिए इसे परिवर्तन मंडल कहा जाता है। इसे इस नाम से पुकारने का मुख्य कारण इसमें तापमान और वायु दिशा आदि में होने वाला परिवर्तन है।

महत्त्व (Importance)—परिवर्तन मंडल वायुमंडल की सबसे महत्त्वपूर्ण और निचली परत है।

  1. इस परत में जलवायु पर प्रभाव डालने वाली क्रियाएँ काम करती हैं।
  2. इस परत में गैसें, धूल-कण और जल-वाष्प मिलते हैं, जिनके कारण बादल, वर्षा, कोहरा आदि बनते
  3. इस परत में संवहन धाराएँ चलती हैं, जिससे ताप और नमी ऊँचाई तक पहुँच जाती है।
  4. इस क्षेत्र में ऊँचाई के साथ-साथ 1°C प्रति 165 मीटर की दर से तापमान कम होता है। इसे साधारण ताप कम होने की दर (Normal Lapse Rate) कहते हैं।
  5. इस परत में चक्रवात, अंधेरियाँ, तूफान आदि मौसम पर प्रभाव डालते हैं।

2. मध्य मंडल (Tropopause)-परिवर्तन मंडल की सीमा के ऊपर केवल 1/2 किलोमीटर चौडी एक परत है, जिसे मध्य मंडल कहते हैं। इसमें परिवर्तन मंडल की पवनें और संवहन धाराएँ चलनी बंद हो जाती हैं। यहाँ हर प्रकार की मौसमी घटनाएँ (Weather Phenomena) नहीं होतीं। यहाँ शांतमय वातवरण बना रहता है, इसलिए इसे शांत मध्यमंडल भी कहते हैं।

3. समताप मंडल (Stratosphere)-मध्य मंडल से ऊपर 13 से 80 किलोमीटर की ऊँचाई वाले वायुमंडल को समताप मंडल (Isothermal Zone) कहते हैं। इस मंडल की ऊँचाई अक्षाशों और ऋतुओं के अनुसार बदलती रहती है। ग्रीष्म ऋतु में इसकी ऊँचाई शीत ऋतु की तुलना में अधिक होती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि ग्रीष्म ऋतु में वायुमंडल की सभी परिवर्तनकारी क्रियाएँ अपनी अधिकतम सीमा पर होती हैं। इसका प्रभाव समताप मंडल की ऊँचाई में अंतर ला देता है। इस मंडल में तापमान लगभग एक समान रहता है, जिसके कारण उसका नाम समताप मंडल पड़ा है। इस खोज से पहले लोगों की यह धारणा थी कि वायुमंडल की ऊपरी सीमा तक तापमान कम होता जाता है। यह मंडल पूर्णरूप से संवहन-रहित (Non-Convective) होता है और इसमें अंधेरी, तूफान, बादल गर्जने और बिजली चमकने की क्रियाएँ नहीं होती। इसमें जल-कणों और धूल कणों की भी कमी होती है। महत्त्व (Importance)—इस क्षेत्र में जेट हवाई जहाज़ और रॉकेट आदि उड़ानों के लिए आदर्श दशाएँ
मिलती हैं।

4. ओज़ोन मंडल (Ozonosphere) वायुमंडल की यह सतह 80 किलोमीटर की ऊँचाई तक विस्तृत है। कुछ मौसम-वैज्ञानिक इसे समताप मंडल का भाग मानते हैं। इसमें ओजोन गैस की प्रधानता होती है। यह गैस सूर्य से निकलने वाली अत्यंत गर्म पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet-Rays) को सोख लेती है।

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यदि यह मंडल न होता, तो ये पराबैंगनी किरणें पृथ्वी के वासियों को अंधा कर देतीं और उनकी त्वचा को जला देतीं। इसके विपरीत यदि ओज़ोन मंडल की मोटाई अधिक होती, तो पराबैंगनी किरणों की अधिकांश ऊर्जा नष्ट हो जाती और पृथ्वी पर जीवमंडल (Biosphere) होने की संभावना कम हो जाती क्योंकि भू-तल पर पर्याप्त मात्रा में गर्मी न पहुंचती। थोड़ी मात्रा में ये किरणें प्राणी-जीवन के लिए ज़रूरी हैं। इनसे शरीर को आवश्यक विटामिन मिलते हैं। यह वायुमंडल की मध्य वाली सतह है, इसलिए इसे मध्यमंडल (Mesosphere) भी कहते हैं।

ओज़ोन मंडल में सुराख (Ozone Hole)-सन् 1980 में, ओज़ोन मंडल की सतह पर अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर एक बहुत बड़ा सुराख देखने में आया है, जिससे पराबैंगनी किरणें पृथ्वी पर पहुँच सकती हैं।

5. आयन मंडल (Ionosphere)—इस मंडल की ऊँचाई 80 से 40 किलोमीटर तक है। इस मंडल में ऊँचाई के साथ तापमान कम होता जाता है। लगभग 80 किलोमीटर पर तापमान -100° (Minus 100°) सैल्सियस तक पहुँच जाता है। इससे ऊपर तापमान में बढ़ौतरी होती जाती है। लगभग 100 किलोमीटर पर तापमान 100° सैल्सियस तक पहुँच जाता है। आयन मंडल में स्वतंत्र रूप में आयन कण (Ionised Particles) काफ़ी मात्रा में मिलते हैं, जो रेडियो तरंगों (Radio Waves) को पृथ्वी की ओर मोड़ देते हैं। यदि यह मंडल न होता तो रेडियो तरंगें दूर आकाश में चली जाती और वापस न आतीं। इन आयन कणों के कारण इस मंडल में अनेक विचित्र बिजली तथा चुंबकीय घटनाएँ होती हैं। ध्रुवीय प्रदेशों में आकाश की ओर एक विचित्र और मनोरंजक प्रकाश देखने को मिलता है। इस आयन मंडल में एक बिजली-चुंबकीय घटना (Electromagnetic Phenomena) होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में इस उत्तर-ध्रुवीय ज्योति (Aurora Borealis) और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी ध्रुवीय ज्योति (Aurora Australis) के नाम दिए जाते हैं। उच्च तापमान के कारण इसे ताप मंडल (Thermosphere) भी कहते हैं। इसमें हिम-किरणें (Cosmic Rays) भी मिलती हैं।

6. बाहरी मंडल (Exosphere)—यह वायुमंडल की सबसे ऊपरी सतह है, जिसकी ऊँचाई 640 किलोमीटर से अधिक है। यहां वायु अति सूक्ष्म होती है। इस मंडल से संबंधित अधिक जानकारी प्राप्त नहीं है। इसमें हीलियम और हाइड्रोजन गैसें मिलती हैं। यह सतह धीरे-धीरे अंतरिक्ष (Space) में विलीन हो जाती है।

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प्रश्न 6.
(च) जलवायु विज्ञान में कई सम मूल-रेखाएं (Isopleths) प्रयोग में लाई जाती हैं। किन्हीं 10 सम मूल रेखाओं के नाम और उनकी किस्म की चर्चा करें।
उत्तर-
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Geography Guide for Class 11 PSEB वायुमण्डल-बनावट और रचना Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न तु (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
जर्मनी के किस वैज्ञानिक ने जलवायु का वर्गीकरण पेश किया था ?
उत्तर-
कौपन।

प्रश्न 2.
सूर्य से आने वाली हानिकारक किरणों का नाम बताएँ।
उत्तर-
पराबैंगनी किरणे।

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प्रश्न 3.
वायुमंडल की अधिक-से-अधिक ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
16000 से 32000 कि०मी० ।

प्रश्न 4.
ऊँचाई के साथ तापमान कम होने की दर बताएँ।
उत्तर-
6.5°C प्रति कि०मी० ।

प्रश्न 5.
वायुमंडल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पृथ्वी के इर्द-गिर्द गैसों का आवरण।

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प्रश्न 6.
वायुमंडल की दो प्रमुख गैसों के नाम बताएँ।
उत्तर-
ऑक्सीजन और नाइट्रोजन।

प्रश्न 7.
वायुमंडल में नाइट्रोजन गैस कितने प्रतिशत है ?
उत्तर-
78%.

प्रश्न 8.
वायुमंडल में ऑक्सीजन गैस कितने प्रतिशत है ?
उत्तर-
21%.

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प्रश्न 9.
वायुमंडल पृथ्वी के साथ क्यों जुड़ा हुआ है ? ।
उत्तर-
गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण।

प्रश्न 10.
वायुमंडल की निचली परत को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
परिवर्तन मंडल।

प्रश्न 11.
वायुमंडल की ऊपरी परत में मिलने वाली गैसों के नाम बताएँ।
उत्तर-
ऑर्गन, हीलियम।

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प्रश्न 12.
ओज़ोन गैस किन किरणों को सोख लेती है ?
उत्तर-
पराबैंगनी किरणों को।

प्रश्न 13.
वायुमंडल की कौन-सी परत मौसम की रचना करती है ?
उत्तर-
परिवर्तन मंडल।

प्रश्न 14.
किस परत में वायुमंडलीय विघ्न मिलते हैं ?
उत्तर-
परिवर्तन मंडल।

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प्रश्न 15.
किस परत में तापमान स्थिर होता है ?
उत्तर-
समताप मंडल।

प्रश्न 16.
सूर्य की किरणों की गति बताएँ।
उत्तर-
3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड।।

प्रश्न 17.
पृथ्वी के ताप का प्रमुख स्रोत बताएँ।
उत्तर-
सूर्य।

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प्रश्न 18.
सूर्य की किरणें सबसे पहले किसे गर्म करती हैं-वायुमंडल या धरती ?
उत्तर-
धरती।

प्रश्न 19.
समताप रेखा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समान तापमान वाली रेखाएँ।

प्रश्न 20.
तटीय भागों में कौन-सी जलवायु मिलती है ?
उत्तर-
समकारी सागरीय।

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प्रश्न 21.
महाद्वीपों के भीतरी भागों की जलवायु के बारे में बताएँ।
उत्तर-
अति गर्मी और अति सर्दी।

प्रश्न 22.
उत्तरी-पश्चिमी यूरोप की समकारी जलवायु किस धारा के कारण है ?
उत्तर-
खाड़ी की धारा।

प्रश्न 23.
किस धारा के कारण कनाडा की जलवायु ठंडी है ?
उत्तर-
लैबरेडार की धारा।

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प्रश्न 24.
कौन-सी ढलान अधिक गर्म है-उत्तरी या दक्षिणी ?
उत्तर-
दक्षिणी।

प्रश्न 25.
पर्वत ठंडे होते हैं या मैदान ?
उत्तर-
पर्वत।

प्रश्न 26.
सूर्य की कौन-सी किरणें अधिक गर्म होती हैं-लंब या तिरछी ?
उत्तर-
लंब।

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प्रश्न 27.
पृथ्वी पर तापमान के बढ़ने का एक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
सागरीय जल की सतह में वृद्धि।

प्रश्न 28.
समुद्र तल पर एक वर्ग सैं०मी० क्षेत्रफल पर वायु का भार बताएँ।
उत्तर-
1.03 किलोग्राम।

प्रश्न 29.
हमारे शरीर पर लगभग कितना वायुदाब है ?
उत्तर-
लगभग 1 टन।

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प्रश्न 30.
ऊँचाई के साथ-साथ वायुमंडलीय दाब कम होने की दर क्या है ?
उत्तर–
प्रति 100 मीटर पर 12 मिलीबार या 300 मीटर पर 1 इंच।

प्रश्न 31.
सामान्य वायुदाब कितना होता है ?
उत्तर-
29.92 इंच या 76 सैं०मी० या 10.32 मिलीबार।

प्रश्न 32.
वायुमंडलीय दाब मापने वाले यंत्र का नाम बताएँ।
उत्तर-
बैरोमीटर।

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प्रश्न 33.
भूमध्य रेखीय कम वायु दाब पेटी का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
5°N – 5°S.

प्रश्न 34.
भूमध्य रेखीय कम वायु दाब पेटी का नाम बताएँ।
उत्तर-
डोलड्रम।

प्रश्न 35.
उप-उष्ण कम दाब पेटी का नाम बताएँ।
उत्तर-
घोड़ा अक्षांश।

प्रश्न 36.
पृथ्वी की दैनिक गति से पैदा होने वाली शक्ति का नाम बताएँ।
उत्तर-
कोरोलिस बल।

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बहुविकल्पी प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
वायुमंडल की सबसे निचली परत को क्या कहते हैं ?
(क) मध्य मंडल
(ख) आयन मंडल
(ग) अधोमंडल
(घ) बाहरी मंडल।
उत्तर-
अधोमंडल।

प्रश्न 2.
वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा कितने % है ?
(क) 15.95%
(ख) 71.95%
(ग) 20.95%
(घ) 25.95%.
उत्तर-
20.95%.

प्रश्न 3.
कौन-सी गैस ग्रीन हाऊस गैस है ?
(क) कार्बनडाइऑक्साइड
(ख) ओज़ोन
(ग) ऑक्सीजन
(घ) नाइट्रोजन।
उत्तर-
कार्बनडाइऑक्साइड।

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प्रश्न 4.
कितनी ऊँचाई पर ऑक्सीजन गैस कम हो जाती है ?
(क) 100 कि०मी०
(ख) 110 कि०मी०
(ग) 120 कि०मी०
(घ) 130 कि०मी०।
उत्तर-
120 कि०मी०।

प्रश्न 5.
मानव-जीवन के लिए जरूरी है
(क) नाइट्रोजन
(ख) ऑक्सीजन
(ग) ऑर्गन
(घ) ओजोन।
उत्तर-
ऑक्सीजन।

प्रश्न 6.
प्रकाश की गति बताएँ।
(क) 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(ख) 5 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(ग) 10 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड
(घ) 100 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड।
उत्तर-
3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड।

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प्रश्न 7.
सूर्य से पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को क्या कहते हैं ?
(क) तापमान
(ख) सूर्य ताप
(ग) सौर-विकिरण
(घ) ऊर्जा।
उत्तर-
सूर्य ताप।

प्रश्न 8.
सूर्य से आने वाले ताप का कितना प्रतिशत भाग पृथ्वी पर पहुँचता है ?
(क) 51%
(ख) 47%
(ग) 65%
(घ) 44%.
उत्तर-
51%.

प्रश्न 9.
कर्क रेखा पर सूर्य की किरणें किस दिन लंब पड़ती हैं ?
(क) 21 मार्च
(ख) 23 सितंबर
(ग) 22 दिसंबर
(घ) 21 जून।
उत्तर-
21 जून।

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प्रश्न 10.
सामान्य वायु दाब कितना होता है ?
(क) 34 मिलीबार
(ख) 300 मिलीबार
(ग) 1013 मिलीबार
(घ) 900 मिलीबार।
उत्तर-
1013 मिलीबार।

प्रश्न 11.
भूमध्य रेखीय खंड में कम वायुदाब का क्या कारण है ?
(क) दैनिक गति
(ख) चक्रवात
(ग) धाराएँ
(घ) संवाहक धाराएँ।
उत्तर-
संवाहक धाराएँ।

प्रश्न 12.
वायुदाब मापने की इकाई क्या है ?
(क) बार
(ख) मिलीबार
(ग) कैलोरी
(घ) मीटर।
उत्तर-
मिलीबार।

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अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न : (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
मौसम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी स्थान के थोड़े और विशेष समय में वायुमंडल की दशाओं (तापमान, वायुदाब, पवनों, नमी, बादल और वर्षा) के अध्ययन को मौसम कहते हैं।

प्रश्न 2.
मौसम मानचित्र क्या है ? भारत के मौसम मानचित्र कहाँ बनाए जाते हैं ?
उत्तर-
किसी स्थान या प्रदेश के किसी निश्चित दिन और समय पर वायुमंडलीय दशाओं को दिखाने वाले मानचित्रों को मौसम मानचित्र (Weather Maps) कहते हैं। भारत के मौसम मानचित्र पुणे (Pune) में तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 3.
जलवायु से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी स्थान की एक लंबे समय के लिए (35 साल) औसत वायुमंडलीय दशाओं को जलवायु कहते हैं। जलवायु एक लंबे समय के बदलते मौसम का वर्णन होता है। (Climate is a composite picture of weather conditions.)

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प्रश्न 4.
जलवायु और मौसम में क्या अंतर है ?
उत्तर-
जलवायु और मौसम वायुमंडल की दशाओं का अध्ययन है, पर मौसम एक निश्चित और थोड़े समय का अध्ययन होता है, जबकि जलवायु एक लम्बे समय (35 साल) की वायुमंडलीय दशाओं का अध्ययन है। मौसम हर रोज़ बदलता रहता है, पर जलवायु एक स्थायी अवस्था है।

प्रश्न 5.
मौसम विज्ञान (Meteorology) और जलवायु विज्ञान (Climatology) में क्या अंतर है ?
उत्तर-
मौसम विज्ञान भौतिक विज्ञान की एक शाखा है, जिसमें एक छोटे-से क्षेत्र पर थोड़े समय के लिए वायुमंडलीय दशाओं का अध्ययन किया जाता है। जलवायु विज्ञान भौतिक भूगोल की एक शाखा है, जिसमें पृथ्वी पर अलग-अलग जलवायु के विभाजन का वर्णन किया जाता है।

प्रश्न 6.
वायुमंडल की परिभाषा बताएँ।
उत्तर-
पृथ्वी के इर्द-गिर्द गैसों का एक विशाल आवरण है, जो गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी से चिपका हुआ है और उसने पृथ्वी को पूरी तरह से घेरा हुआ है।

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प्रश्न 7.
वायुमंडल की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
कृत्रिम उपग्रहों की सहायता से पता लगा है कि वायुमंडल की ऊंचाई 16000 कि०मी० से 32000 कि०मी० तक है, पर मनुष्य के लिए निचले 5-6 कि०मी० ही महत्त्वपूर्ण होते हैं।

प्रश्न 8.
वायुमंडल की जानकारी के तीन स्रोत बताएँ।
उत्तर-

  1. उल्का
  2. उपग्रह
  3. मानव-रहित गुब्बारे।।

प्रश्न 9.
वायुमंडल की रचना के मूल तत्त्व कौन-से हैं ?
उत्तर-

  1. गैसें
  2. धूलकण
  3. जलवाष्प।

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प्रश्न 10.
वायुमंडल की रचना किन गैसों से हुई है ? इन गैसों की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
गैस — ऊँचाई

1. नाइट्रोजन — 125 कि०मी० (78.03%)
2. ऑक्सीजन — 95 कि०मी० (20.95%)
3. कार्बनडाइऑक्साइड– 30 कि०मी० (0.03%)
4. हाइड्रोजन — 200 कि०मी० (0.01%)
5. ऑर्गन, हीलियम और ओज़ोन — (.08%)

प्रश्न 11.
वायुमंडल की प्रमुख परतों के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. अशांत मंडल (परिवर्तन मंडल)
  2. समताप मंडल
  3. ओज़ोन मंडल
  4. आयन मंडल
  5. बाहरी मंडल।

प्रश्न 12.
ओज़ोन गैस का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
ओजोन गैस सूर्य की पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet rays) को सोखकर पृथ्वी की हानिकारक प्रभावों से रक्षा करती है। यह गैस 80 कि०मी० तक मिलती है।

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प्रश्न 13.
ओज़ोन मंडल में सुराख (Ozone Holes) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सन् 1980 में ओज़ोन मंडल में अंटार्कटिका महाद्वीप के ऊपर एक बड़ा सुराख देखने में आया है, जिससे पराबैंगनी किरणें धरती पर पहुँच सकती हैं।

प्रश्न 14.
वायुमंडल में पाई जाने वाली ओज़ोन परत को समाप्त करने वाले प्रदूषणों के नाम बताएँ।
उत्तर-
उद्योगों से प्राप्त प्रदूषण ओजोन परत को समाप्त कर रहे हैं, जैसे-कार्बनडाइऑक्साइड, क्लोरीन, फ्लोरीन और क्लोरोफ्लोरो कार्बन।।

प्रश्न 15.
वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड गैस में वृद्धि क्यों हो रही है? इसका क्या प्रभाव हो सकता है ?
उत्तर-
औद्योगीकरण और ईंधन के अधिक प्रयोग के कारण कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, जिसके प्रभाव से पृथ्वी का तापमान भी बढ़ रहा है।

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प्रश्न 16.
वायुमंडल में वाष्यकण क्यों महत्त्वपूर्ण हैं ?
उत्तर-
वाष्पकण सूर्य के ताप को सोख लेते हैं। ये धरती के ताप पर नियंत्रण रखते हैं। वाष्प कणों की गुप्त ऊर्जा से तूफान चलते हैं। जल वाष्प से वर्षा, बादल, ओस आदि बनते हैं।

प्रश्न 17.
वायुमंडल में धूल-कणों का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
धूल-कणों के आस-पास जल-वाष्प का संघनन होता है, जिससे वर्षा होती है। धूल-कणों के कारण दृश्यता कम हो जाती है। वायुमंडल में सूर्य के ताप को धूल कण सोख लेते हैं। धूलकणों को नमी-ग्रहण कण (Hygroscopic Nuclie) कहते हैं।

प्रश्न 18.
विश्वव्यापी ताप (Global Warming) में वृद्धि के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
औद्योगीकरण, तेज़ आवाजाही, जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, जिससे पृथ्वी का औसत तापमान 0.5° C बढ़ गया है।

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प्रश्न 19.
वायुमंडल की निचली परत कौन-सी है ? भूमध्य रेखा और ध्रुवों पर इसकी कितनी ऊँचाई है?
उत्तर-
वायुमंडल की निचली परत को परिवर्तन मंडल (अशांत मंडल) कहते हैं। भूमध्य रेखा पर इसकी ऊँचाई 16 कि०मी० और ध्रुवों पर 6 कि०मी० है।

प्रश्न 20.
परिवर्तन मंडल सबसे महत्त्वपूर्ण परत क्यों है ?
उत्तर-
इस परत में जलवायु पर प्रभाव डालने वाली क्रियाएँ होती हैं। इस परत में गैसें, धूल-कण, जल-वाष्प और संवहन धाराएँ चलती हैं, जिससे ताप और नमी पर प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 21.
मध्य परत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अशांत मंडल और समताप मंडल को अलग करने वाली 17 कि०मी० चौड़ी परत को मध्य परत (Tropo Pause) कहते हैं।

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प्रश्न 22.
समताप मंडल जैट जहाजों की उड़ान के लिए लाभदायक क्यों है ?
उत्तर-
यह मंडल संवहन-रहित है और इसमें वायुमंडलीय विघ्न नहीं हैं, इसीलिए यह मंडल रॉकेट, जैट जहाजों आदि की उड़ान के लिए आदर्श है।

प्रश्न 23.
सूर्य तापन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
धरती की सतह पर प्राप्त होने वाले सूर्य विकिरण को सूर्य तापन (Insolation) कहते हैं। यह कुल सूर्यविकिरण का V2,000,000,000 भाग है।

प्रश्न 24.
सूर्य तापन और विकिरण में अंतर बताएँ।
उत्तर-
सूर्य की सतह से पृथ्वी की सतह पर प्राप्त होने वाले सूर्य विकिरण को सूर्य तापन कहते हैं, जबकि सूर्य की बाहरी सतह-फोटोस्फीयर (Photosphere) से चारों ओर सूर्य की किरणों के फैलने को विकिरण कहते हैं।

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प्रश्न 25.
सूर्य तापन की किरणों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
ये किरणें 3 लाख कि०मी० प्रति सैकिंड की गति से चलती हैं। ये लघु तरंगों के रूप में चलती हैं।

प्रश्न 26.
सूर्य के स्थिर अंक (Solar Constant) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पृथ्वी प्रति मिनट 1.94 कैलोरी ताप प्रति वर्ग सैंटीमीटर प्राप्त करती है। इसे सूर्य का स्थिर अंक कहते हैं।

प्रश्न 27.
सूर्य तापन के कोई दो महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
सूर्य तापन के कारण पृथ्वी मनुष्य के निवास योग्य है। सूर्य तापन के प्रभाव के कारण ऋतुओं का परिवर्तन, पवनें, धाराएँ, मौसम और जलवायु निर्भर करते हैं।

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प्रश्न 28.
उन दो प्रमुख कारकों के नाम बताएँ, जो सूर्य तापन की मात्रा पर प्रभाव डालते हैं।
उत्तर-

  1. सूर्य की किरणों का आप्तन कोण।
  2. दिन की लंबाई।

प्रश्न 29.
सूर्य ताप का कितना भाग वायुमंडल में नष्ट होता है और कितना भाग पृथ्वी पर पहुँचता है ?
उत्तर-
सूर्य ताप का 49% भाग वायुमंडल में नष्ट हो जाता है और 51% भाग पृथ्वी की सतह तक पहुँचता है। यह सूर्य विकिरण का दो अरबवां भाग है।

प्रश्न 30.
सूर्य ताप किन क्रियाओं के कारण वायुमंडल में नष्ट होता है ?
उत्तर-
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प्रश्न 31.
वायुमंडल को गर्म करने वाली पाँच क्रियाओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. विकिरण (Radiation)
  2. संवहन (Convection)
  3. संचालन (Conduction)
  4. संपीड़न (Compression)
  5. अभिवहन (Advection)

प्रश्न 32.
भूमध्य रेखा पर संसार के सबसे ऊँचे तापमान क्यों नहीं मिलते ?
उत्तर-
लंब किरणें पड़ने के बावजूद, अधिक बादलों के कारण भूमध्य रेखा पर सूर्य का ताप कम होता है, परन्तु कर्क रेखा पर साफ़ आकाश के कारण अधिक तापमान होता है।

प्रश्न 33.
सौर कलंक (Sun Spot) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सूर्य के तल पर पाए जाने वाले धब्बों को सौर कलंक कहते हैं।

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प्रश्न 34.
किसी स्थान के तापमान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी स्थान पर, छाया में (In Shade), भूमि तल से 4 फुट ऊँची वायु की मापी हुई गर्मी को उस स्थान का तापमान कहते हैं।

प्रश्न 35.
सूर्य ताप और तापमान में क्या अंतर है ?
उत्तर-
सूर्य से धरती को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को सूर्य ताप कहते हैं। यह लघु तरंगों के रूप में भू-तल को गर्म करती है, पर तापमान से अभिप्राय किसी स्थान पर धरातल से एक मीटर ऊंची हवा में गर्मी की मात्रा से है।

प्रश्न 36.
किसी स्थान के औसत दैनिक तापमान से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी दिन के उच्चतम तापमान और न्यूनतम तापमान के औसत को दैनिक तापमान कहते हैं।

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प्रश्न 37.
समताप रेखा क्या होती है ?
उत्तर-
धरातल पर एक समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा को समताप रेखा कहते हैं। इस तापमान को समुद्र तल पर कम करके दिखाया जाता है।

प्रश्न 38.
साधारण ताप कम होने की दर (Normal lapse rate) क्या होती है ?
उत्तर-
वायुमंडल में ऊँचाई के साथ 1°C प्रति 165 मीटर की दर से तापमान कम होता है। इसे साधारण ताप कम होने की दर कहते हैं।

प्रश्न 39.
संसार के तीन प्रमुख ताप कटिबंधों के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. उष्ण कटिबंध
  2. शीतोष्ण कटिबंध
  3. शीत कटिबंध।

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प्रश्न 40.
औसत या नार्मल वायु दाब कितना होता है?
उत्तर-
45° अक्षांश पर समुद्र तल पर वायुमंडल का औसत या नार्मल दाब 29.92 इंच या 76 सैंटीमीटर या 1013.2 मिलीबार होता है।

प्रश्न 41.
वायु दाब और तापमान में क्या संबंध है ? ।
उत्तर-
वायु दाब और तापमान में विपरीत संबंध है। तापमान बढ़ने पर वायुदाब कम हो जाता है।

प्रश्न 42.
वायु दाब ऊँचाई के साथ किस दर से कम होता है ?
उत्तर-
ऊँचाई पर जाने से प्रति 300 मीटर पर हवा का दाब 1 इंच या 34 मिलीबार कम हो जाता है।

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प्रश्न 43.
वायु दाब और परिक्रमण (Rotation) गति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दैनिक गति के प्रभाव से विकेंद्रित बल के कारण कई क्षेत्रों में हवा बिखर जाती है और हवा का दाब कम हो जाता है। दैनिक गति के कारण विक्षेप भी साथ में उत्पन्न होता है, जिसे करोलिस बल कहते हैं। इस बल के कारण वायु दाब और पवनों की दिशा बदल जाती है। .

प्रश्न 44.
मिलीबार (Milibar) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
1000 डाईनज़ (Dynes) प्रति वर्ग सैंटीमीटर के वायु भार को मिलीबार कहते हैं।

प्रश्न 45.
वायु दाब किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-

  1. तापमान
  2. ऊँचाई
  3. जल वाष्प
  4. परिक्रमण।

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प्रश्न 46.
वायु दाब पेटियों के उत्पन्न होने के दो प्रमुख कारण बताएँ।
उत्तर-

  1. तापीय कारण (Thermal)
  2. गति संबंधी कारण (Dynamic)

प्रश्न 47.
भू-तल पर कुल कितनी वायु दाब पेटियाँ हैं ?
उत्तर-
भू-तल पर कुल 7 वायु दाब पेटियाँ हैं-उच्च वायु दाब पेटियाँ कम वायु दाब पेटियों को अलग करती हैं।

प्रश्न 48.
डोलड्रमज़ (Doldrums) की स्थिति बताएँ।
उत्तर-
भूमध्य रेखीय कम वायु दाब पेटी को डोल ड्रमज़ (शांत मंडल) कहते हैं, जिसका विस्तार 10° N और 10°S अक्षांशों के मध्य होता है।

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प्रश्न 49.
अश्व अक्षांश (Horse Latitudes) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
30°-35° उत्तर-दक्षिण अक्षांशों पर स्थित उच्च वायु दाब पेटी (शांत मंडल) को अश्व अक्षांश कहते हैं।

प्रश्न 50.
उप-ध्रुवीय कम दाब की पेटी के बनने के कोई तीन कारण बताएँ।
उत्तर-

  1. पृथ्वी की दैनिक गति के कारण वायु का ध्रुवों की ओर खिसकना।
  2. चक्रवातों के कारण कम वायु दाब का होना।
  3. गर्म धाराओं के कारण कम वायु दाब का होना।

प्रश्न 51.
समदाब रेखा (Isobars) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
धरातल पर समान वायु दाब वाले क्षेत्रों को जोड़ने वाली रेखा को समदाब रेखा कहते हैं। यह वायु दाब समुद्र तल पर कम करके दिखाया जाता है।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न । (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
वायुमंडल में धूल-कणों का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
वायुमंडल की निचली परत में धूल-कण मिलते हैं। इन धूल-कणों की कई तरह से विशेष महत्ता है।

  1. धूल-कण सूर्य ताप को सोख लेते हैं, जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ जाता है।
  2. धूल-कणों के चारों ओर जल-वाष्प का संघनन हो जाता है जिससे वर्षा, धुंध, बादल आदि बनते हैं।
  3. धूल-कणों के कारण दृश्यता (Visibility) कम हो जाती है और धुंध छा जाती है।
  4. धूल-कणों के कारण सूर्य के निकलने, सूर्य के डूबने और इंद्रधनुष जैसे रंग-बिरंगे नजारे देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 2.
परिवर्तन मंडल को वायुमंडल की सबसे महत्त्वपूर्ण परत क्यों माना जाता है ?
उत्तर-
परिवर्तन मंडल वायुमंडल की सबसे महत्त्वपूर्ण और निचली परत है-

  1. इस परत में जलवायु पर प्रभाव डालने वाली क्रियाएँ काम करती हैं।
  2. इस परत में गैसें, धूल-कण और जल-वाष्प मिलते हैं, जिनके कारण बादल, वर्षा, धुंध आदि बनते हैं।
  3. इस परत में संवाहक धाराएँ चलती हैं, जिनके कारण ताप और नमी ऊँचाई तक पहुँच जाती है।
  4. इस क्षेत्र में ऊँचाई के साथ-साथ 1°C प्रति 165 मीटर की दर से तापमान कम होता है।
  5. इस परत में चक्रवात, अंधेरियाँ, तूफान आदि मौसम पर प्रभाव डालते हैं।

प्रश्न 3.
वायुमंडल में जल-वाष्य का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
वायुमंडल के 2% भाग में जल-वाष्प मिलते हैं। ये वायुमंडल की निचली परत पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं। ये सूर्य के ताप को सोख लेते हैं। ये धरती के आस-पास ताप के विभाजन को नियंत्रित रखते हैं। इनके कारण ही पैदा हुई शक्ति से चक्रवात, अंधेरियाँ और तूफान चलते हैं। जल-वाष्प के कारण ही वर्षा, धुंध, कोहरा, ओस, बादल आदि बनते हैं।

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प्रश्न 4.
वायुमंडल का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
वायुमंडल मानव-जीवन पर कई प्रकार से प्रभाव डालता है

  1. ऑक्सीजन गैस धरती पर मानव-जीवन का आधार है।
  2. कार्बन-डाइऑक्साइड गैस वनस्पति का आधार है।
  3. वायुमंडल सूर्य ताप को सोखकर एक काँच के घर (Glass House) का काम करता है।
  4. वायुमंडल के जल-वाष्प वर्षा का साधन हैं।
  5. वायुमंडल फसलों, मौसम, जलवाय, हवाई मार्गों पर प्रभाव डालता है।

प्रश्न 5.
परिवर्तन मंडल और समताप मंडल में अंतर बताएँ।
उत्तर –
परिवर्तन मंडल (Troposphere)

  1. यह वायुमंडल की सबसे निचली परत है।
  2. इसकी ऊँचाई ध्रुवों पर 8 कि०मी० और भूमध्य रेखा पर 20 कि०मी० होती है।
  3. इस परत में तापमान 1°C प्रति 165 मीटर की दर से कम होता है।
  4. इसमें उच्चवर्ती धाराएँ, बादल और अंधेरियाँ चलती हैं और इसे अशांत मंडल कहते हैं।

समताप मंडल (Stratosphere)

  1. यह भू-तल से ऊपर वायुमंडल की दूसरी परत है।
  2. इसकी ऊँचाई 16 कि०मी० से लेकर 72 कि०मी० तक होती है।
  3. इस परत में तापमान लगभग एक समान रहता है।
  4. इसमें उच्चवर्ती धाराएँ, बादल और अंधेरियाँ नहीं चलतीं और इसे शांत मंडल कहते हैं।

प्रश्न 6.
सूर्य तापन (Insolation) की परिभाषा दें।
उत्तर-
सूर्य वायुमंडल को गर्मी और रोशनी प्रदान करने वाला एक प्रमुख और मूल साधन है। सूर्य का व्यास पृथ्वी से सौ गुणा बड़ा है। सूर्य के धरातल का तापमान 10,000° F से अधिक है। सूर्य से सब दिशाओं में ताप तरंगें निकलती हैं। सूर्य का ताप रोशनी की गति से (186,000 मील या 3000,000 कि०मी० प्रति सैकिंड की दर से) वायुमण्डल में से निकलता है। धरती को सूर्य ताप का केवल दो अरबवां भाग ही (1/2000,000,000) प्राप्त होता है। अनुमान है कि धरती प्रति मिनट 1.94 calories गर्मी प्रति वर्ग सैंटीमीटर प्राप्त करती है। इसे सूर्य का स्थिर अंक (Solar Constant) कहते हैं। इस प्रकार धरती पर प्राप्त होने वाले सूर्य विकिरण को सूर्य तापन कहते हैं।

In = In coming
Insolation = Sol = Solar
Ation = Radiation
(Insolation means Incoming Solar Radiation.)

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प्रश्न 7.
ताप बजट सिद्धान्त की व्याख्या करें।
उत्तर-
ताप बजट (Heat Budget)-ताप बजट से अभिप्राय ताप सन्तुलन से है। धरती पर औसत तापमान एक समान रहता है। धरती जितनी मात्रा में सूर्य ताप प्राप्त करती है, उतनी ही मात्रा में ताप धरातलीय विकिरण के द्वारा ब्रह्मांड में वापिस चला जाता है। इस प्रकार धरती और वायुमण्डल के ताप में एक सन्तुलन कायम हो जाता है। मान लो कि वायुमण्डल की ऊपरी सतह से प्राप्त होने वाला ताप 100 इकाई है। इसमें से 51 इकाई ताप ही धरती पर पहुँचता है, जैसे वायुमण्डल की ऊपरी सतह से प्राप्त ताप = 100%

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धरती की सतह पर प्राप्त ताप = 100 – 49 = 51%
धरती की सतह पर प्राप्त 51% ताप धरातलीय विकिरण के द्वारा ब्रह्माण्ड में वापिस चला जाता है। इससे वायुमण्डल गर्म हो जाता है।

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प्रश्न 8.
किसी स्थान का तापमान किस प्रकार अक्षांश पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
भूमध्य रेखा से दूरी (Distance from the Equator)–धरातल पर तापमान सदा अक्षांश के अनुसार होता है। भूमध्य रेखा के निकट वाले स्थान दूर वाले स्थानों से अधिक गर्म होते हैं। भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने से तापमान लगातार कम होता जाता है। (Temperature decreases from the Equator to the Poles.) किसी भी अक्षांश पर गर्मी सूर्य की किरणों के कोण (Angle of sun’s rays) पर निर्भर करती है। सीधी किरणें तिरछी किरणों की तुलना में अधिक गर्म होती हैं और कम सतह घेरने के कारण भूमि को जल्दी गर्म करती हैं। इसके अलावा सीधी किरणों को तिरछी किरणों की तुलना में वायुमण्डल में कम फासला तय करना पड़ता है। वायुमण्डल में मिली गैसें और वाष्प सूर्य की किरणों की गर्मी चूस लेते हैं। इसलिए तिरछी किरणों की बहुत सारी गर्मी नष्ट हो जाती है। अक्षांश के अनुसार सूर्य की किरणों का कोण बदलता रहता है और दिन की लम्बाई भी कम होती या बढ़ती रहती है।

भूमध्य रेखा पर सारा साल सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, इसलिए ये प्रदेश पूरा वर्ष समान रूप में गर्म रहते हैं ध्रुवों की ओर जाते हुए सूर्य की किरणें लगातार तिरछी होती जाती हैं, इसलिए उच्च अक्षांशों (Higher Latitudes) के प्रदेश ठंडी जलवायु वाले होते हैं।

उदाहरण (Example)-

  1. मद्रास (चेन्नई), कोलकाता की तुलना में अधिक गर्म है।
  2. भारत की जलवायु इंग्लैण्ड की जलवायु की तुलना में अधिक गर्म है।

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प्रश्न 9.
ऊँचाई और तापमान का क्या सम्बन्ध है ?
अथवा
पर्वत मैदानों की तुलना में अधिक ठण्डे क्यों होते हैं ?
उत्तर-
समुद्र तल से ऊँचाई के साथ-साथ तापमान कम होता जाता है। तापमान के कम होने की दर 1°C प्रति 165 मीटर है। वायुमण्डल धरती से छोड़े गए ताप विकिरण (Radiation) से गर्म हो जाता है, इसलिए निचली सतहें पहले गर्म होती हैं और ऊपरी सतहें बाद में। पहाड़ी प्रदेश धरातल या गर्मी के साधन से दूर होने के कारण ठण्डे रहते हैं। पर्वत मैदानों की अपेक्षा अधिक ठण्डे होते हैं। (Mountains are cooler than plains.) ऊँचाई के अनुसार हवा का दबाव, घनत्व, भाप और धूल के कणों की कमी होती है। इस प्रकार ऊँचे प्रदेशों की शुद्ध और स्वच्छ हवा गर्मी को ज़ब्त नहीं करती। पहाड़ी प्रदेशों की कठोर चट्टानें जल्दी ही गर्मी छोड़ देती हैं, जो बिना रोक-टोक के वायुमण्डल से बाहर निकल जाती हैं। इस प्रकार कोई भी स्थान जितना ऊँचा होगा, वह उतना ही ठण्डा होगा।

उदाहरण (Examples)–शिमला और लुधियाना लगभग एक ही अक्षांश पर स्थित हैं, पर लुधियाना में जून का औसत तापमान 35°C होता है, जबकि शिमला में जून का औसत तापमान 20°C होता है।

प्रश्न 10.
किसी स्थान के दैनिक तापान्तर और वार्षिक तापान्तर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दैनिक तापांतर (Daily range of Temperature)-किसी स्थान पर किसी दिन के अधिक-सेअधिक और कम-से-कम तापमान के अन्तर को उस स्थान का दैनिक तापान्तर कहते हैं। इसे Diurnal या Daily Range of Temperature भी कहते हैं।

Daily Range of Temperature = Daily Maximum Temperature – Daily Minimum Temperature

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. यह तटीय प्रदेशों में कम होता है।
  2. देश के भीतरी भागों में तापान्तर अधिक होता है।
  3. बादलों से घिरे प्रदेशों में तापान्तर अधिक होता है।
  4. खुले और साफ आकाश के कारण मरुस्थलों में तापान्तर अधिक होता है।

वार्षिक तापान्तर (Annual range of Tempeature)—किसी वर्ष के सबसे गर्म और सबसे ठण्डे महीनों के औसत तापमान के अन्तर को वार्षिक तापान्तर कहते हैं। आम तौर पर जुलाई महीने को सबसे गर्म और जनवरी महीने को सबसे ठण्डा महीना माना जाता है।

Annual Range of Temperature = Mean monthly Temperature of the hottest month (July) — Mean monthly Temperature of the coldest month (January)

विशेषताएँ (Characteristics)

  1. भूमध्य रेखा पर वार्षिक तापान्तर कम होता है।
  2. ध्रुवों की ओर यह लगातार बढ़ता जाता है।
  3. अन्दरूनी क्षेत्रों की अपेक्षा तटीय प्रदेशों में वार्षिक तापान्तर कम होता है।
  4. विश्व में सबसे अधिक वार्षिक तापान्तर साइबेरिया में वरखोयांस्क (Verkhoyansk) में 38°C होता है।

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प्रश्न 11.
समताप रेखाओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समताप रेखाएँ (Isotherms)-‘Iso’ शब्द का अर्थ है-समान और ‘Therms’ शब्द का अर्थ है’ तापमान।
इसलिए Isotherms’ शब्द का अर्थ है-समान तापमान की रेखाएँ (Lines of equal temperature) (Isotherms are lines joining the places of same (equal) temperature reduced to sea-level.) धरातल पर एक समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखाओं को समताप रेखाएँ कहते हैं। इस तापमान को समुद्र तल से कम करके दिखाया जाता है। इस प्रकार ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने का यत्न किया जाता है। यह कल्पना की जाती है कि सभी स्थान समुद्र तल पर स्थित हैं। यदि कोई स्थान 1650 मीटर ऊँचा है और उसका वास्तविक तापमान 20°C है, तो उस स्थान का समुद्र तल पर तापमान 20°C + 10°C = 30°C होगा, क्योंकि प्रति 165 मीटर पर 1°C तापमान कम हो जाता है।

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. ये रेखाएँ पूर्व-पश्चिम दिशा की ओर फैली होती हैं।
  2. ये उत्तरी गोलार्द्ध की अपेक्षा दक्षिणी गोलार्द्ध में सीधी होती हैं क्योंकि यहाँ थल भाग की कमी होती है।
  3. ये रेखाएँ गर्मी की ऋतु में समुद्रों से भूमध्य रेखा की ओर तथा सर्दी की ऋतु में ध्रुवों की ओर मुड़ जाती हैं।
  4. जलवायु मानचित्रों में तापमान के विभाजन को समताप रेखाओं द्वारा दिखाया जाता है।

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प्रश्न 12.
समदाब रेखाओं पर नोट लिखें।
उत्तर-
समदाब रेखाएँ (Isobars)- Iso’ शब्द का अर्थ है-समान और ‘Bar’ शब्द का अर्थ है-दबाव। इसलिए ‘Isobars’ का अर्थ हुआ-समदाब रेखाएँ (Lines of Equal Pressure.)। .
(“’Isobars are lines joining the places of same pressure reduced to sea level.”) धरातल पर समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाओं को समदाब रेखाएँ कहते हैं।
इस वायु दाब को समुद्र तल से कम करके दिखाया जाता है। ऊँचाई के प्रभाव को दूर करने का यत्न किया जाता है। यह कल्पना की जाती है कि सभी स्थान समुद्र तल पर स्थित हैं। यदि कोई स्थान 300 मीटर ऊँचा है और उसका वास्तविक वायु दाब 900 मिलीबार है, तो समुद्र तल पर उसका वायु दाब 900 + 34 = 934 मिलीबार होगा, क्योंकि प्रति 300 मीटर पर 34 मिलीबार वायु दाब कम हो जाता है।

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. ये रेखाएँ पूर्व-पश्चिम दिशा की ओर फैली होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में ये अक्षांश रेखाओं के लगभग समानांतर हैं।
  2. दक्षिणी गोलार्द्ध में ये अक्षांश रेखाओं के लगभग समानांतर हैं।
  3. ये अधिक दबाव से कम दबाव की ओर खिंची चली जाती हैं।
  4. ये स्थल की अपेक्षा समुद्रों पर अधिक नियमित (Regular) होती हैं।
  5. जलवायु मानचित्रों में वायुदाब को समदाब रेखाओं से दिखाया जाता है।
  6. इनसे पवनों की दिशा और गति का पता चलता है।

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प्रश्न 13.
अश्व अक्षांश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
22° से 35° के बीच के अक्षांशों को अश्व अक्षांश (Horse latitudes) कहते हैं। कर्क रेखा और मकर रेखा के निकट का यह प्रदेश शांत मण्डल (Belt of calm) कहलाता है। शांत भू-खण्ड में धरातल पर समानान्तर (Horizontal) गति नहीं होती। हवाएँ ऊपर से नीचे (Descending) या नीचे से ऊपर (Ascending) को चलती रहती हैं। ये हवाएँ न तो स्थायी होती हैं और न ही अधिक तेजी से बहती हैं। (“It is a zone where no permanent winds blow.”) वायुमण्डल शान्त होता है और मौसम साफ़ रहता है।

लगातार नीचे आती हुई वायु और दबाव (Compression) के कारण यहाँ उच्च वायुदाब होता है। इन अक्षांशों से ध्रुवों की ओर पश्चिमी पवनें और भूमध्य रेखा की ओर व्यापारिक पवनें चलती हैं।

प्रभाव (Effects)-नीचे आती हुई हवाएँ नमी के अंश को कम कर देती हैं और तापमान को बढ़ाती हैं, इसलिए इन प्रदेशों में वर्षा नहीं होती और इन अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी भागों पर संसार के प्रसिद्ध गर्म मरुस्थल (Hot Deserts) मिलते हैं, जैसे-अरब, सहारा, कैलेफोर्निया, ऐटेकामा, कालाहारी।

नाम का कारण (Reason of Calling it Horse Latitudes)-इन अक्षांशों को घोड़ा या अश्व अक्षांश (Horse Latitude) इसलिए कहते हैं क्योंकि इन अक्षांशों में वायु शान्त हो जाने के कारण जहाज़ों को चलाने में कठिनाई होती थी। प्राचीन काल में जहाज़ों में घोड़े भरकर अमेरिका में ले जाए जाते थे। जब ये जहाज़ इन अक्षांशों में से गुज़रते थे, तो उन्हें हल्का करने के लिए कुछ घोड़ों को समुद्र में फेंक दिया जाता था।

प्रश्न 14.
भूमध्य रेखा के शान्त खण्ड की स्थिति और प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
स्थिति (Location)—यह शान्त खण्ड भूमध्य रेखा के दोनों ओर 5°N और 5°S के बीच स्थित है। इसे . भूमध्य रेखा का शान्त खण्ड (Equatioral Calm) कहते हैं। धरातल पर या तो वायु होती ही नहीं या बहुत शान्त वायु चलती है। यह शान्त खण्ड भूमध्य रेखा के चारों ओर फैला हुआ है।

कारण (Causes)—इस खण्ड में सूर्य की किरणें पूरा वर्ष सीधी पड़ती हैं और औसत तापमान ऊँचा रहता है। हवा गर्म और हल्की होकर लगातार संवाहक धाराओं (Convection Currents) के रूप में ऊपर उठती रहती है और धरातल पर वायु दबाव कम हो जाता है। _प्रभाव (Effects)-गर्म हवा ऊपर उठने के कारण ठण्डी हो जाती है और द्रवीकरण (condensation) की क्रिया होती है। इसलिए इस खण्ड में पूरा वर्ष वर्षा होती रहती है। औसत वार्षिक वर्षा 200 सैंटीमीटर होती है। प्राचीन समय में हवाओं से चलने वाले जहाज़, इन अक्षांशों में हवा की कमी के कारण फँस जाते थे। उन्हें चलाने में बहुत कठिनाई होती थी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 6 वायुमण्डल-बनावट और रचना

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
वायुमण्डल की बनावट का वर्णन करें। उत्तर
वायुमण्डल की बनावट (Composition of the Atmosphere)-
उत्तर-
वायुमण्डल की बनावट अलग-अलग गैसों, जलवाष्प (Water-vapours), धूल-कणों (Dust particles) के मिश्रण के फलस्वरूप हुई है। वायुमण्डल का 99 प्रतिशत नाइट्रोजन (Nitrogen) और ऑक्सीजन (Oxygen) द्वारा बना होता है।

I. गैसें (Gases)-वायुमण्डल में अनेक गैसें होती हैं, जिनमें नाइट्रोजन (Nitrogen), ऑक्सीजन (Oxygen), ऑर्गन (Organ), कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbondioxide), हाइड्रोजन (Hydrogen), नीओन (Neon), हीलियम (Helium), क्रिप्टन (Krypton), जेनॉन (Xenon) और ओज़ोन (Ozone) प्रमुख हैं। इनमें से कुछ भारी गैसें और कुछ हल्की गैसें होती हैं। भारी गैसें वायुमण्डल की निचली परतों में और हल्की गैसें ऊपरी परतों में होती हैं, परन्तु वायुमण्डल में ऑक्सीजन और नाइट्रोजन गैसों की प्रधानता होती है। ये दोनों मिलकर वायुमण्डल में 99% होती हैं। वायुमण्डल में गैसों और उनकी मात्रा अग्रलिखित अनुसार है-

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वायुमण्डल में कार्बन-डाइऑक्साइड.20 किलोमीटर की ऊँचाई तक, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन 100 किलोमीटर की ऊँचाई तक और हाइड्रोजन 150 किलोमीटर से भी अधिक ऊँचाई में होती है।

1. सक्रिय गैसें (Active Gases)-ऑक्सीजन, हाइड्रोजन, कार्बन-डाइऑक्साइड और ओजोन गैसें किसी . स्थान की जलवायु पर प्रभाव डालती हैं। इन्हें सक्रिय या क्रियाशील गैसें कहते हैं।
2. प्रभाव रहित गैसें (Inert Gases)-ऑर्गन, निओन, हीलियम, क्रिप्टॉन और जेनॉन प्रभाव रहित गैसें हैं।
3. महत्त्वपूर्ण गैसें (Important Gases)-

  • नाइट्रोजन (Nitrogen)-इस गैस की वायुमण्डल में सबसे अधिक मात्रा (4/5 भाग) होती है। यह गैस वस्तुओं को तेज़ी से जलने से बचाती है। यह पेड-पौधों के जीवन के लिए लाभदायक है।
  • ऑक्सीजन (Oxygen)—मनुष्य के अस्तित्व के लिए यह सबसे महत्त्वपूर्ण गैस है। इसके बिना मनुष्य साँस नहीं ले सकता। यह ऊर्जा का स्रोत है और वस्तुओं के जलने में सहायक होती है। ऊँचाई के साथ साथ यह कम होती जाती है।
  • कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon-dioxide)—यह भारी गैस पृथ्वी की निचली सतह पर मिलती है।
    औद्योगीकरण और ईंधन के अधिक प्रयोग के कारण इसकी मात्रा बढ़ रही है, जिसके प्रभाव से पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ गया है।
  • ओज़ोन (Ozone)—यह अधिक ऊँचाई पर मिलती हैं और सूर्य की पराबैंगनी किरणों (Ultra violet rays) को जब्त कर लेती है। इससे यह पृथ्वी पर मानव-जीवन की
    सुरक्षा करती है।
  • आर्गन और हाइड्रोजन (Argon and Hydrogen)—ये भी महत्त्वपूर्ण गैसें हैं।

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II. जल-वाष्प (Water Vapours) ताप से वायु गर्म हो जाती है और यह गर्म वायु भूमि पर स्थित जल का कुछ अंश और वर्षा के जल का कुछ भाग सोख लेती है। यह सोखा हुआ जल वायुमण्डल में न दिखाई देने वाले (Invisible) रूप में उपस्थित होता है। इसे जल-वाष्प कहते हैं। वायुमण्डल की ऊँचाई के साथ-साथ वाष्प की मात्रा कम हो जाती है। आम तौर पर ये 12 किलोमीटर से अधिक ऊँचाई पर नहीं होते। ताप द्वारा वायु के गर्म हो जाने पर इसमें जल-वाष्प धारण करने की सामर्थ्य बढ़ जाती है। शीतल वायु उष्ण वायु के टकराने से जल-वाष्प ग्रहण करती है। अवक्षेपण (Precipitation) का मुख्य स्रोत जल-वाष्प ही हैं। वायुमण्डल में संघनन क्रिया (Condensation) द्वारा जल-वाष्प जल में बदलकर अवक्षेपण से वर्षा, हिमपात आदि रूपों में धरती पर गिरते हैं। वायुमण्डल के केवल 2% भाग में जल-वाष्प मिलते हैं, परन्तु ये धरती के आस-पास ताप के विभाजन पर नियन्त्रण रखते हैं।

III. धूल-कण (Dust Particles)-चट्टानों के टूटने-फूटने और ज्वालामुखी के विस्फोट के कारण बहुत बारीक और सूक्ष्म कण वायु में लटकते रहते हैं। ये प्रकाश को फैलाने में सहायता करते हैं। वाष्प के रूप में जल इन धूल-कणों के आस-पास ही एकत्र होता है। फलस्वरूप आकाश नीले रंग का प्रतीत होता है। ये धूलकण कोहरा और धुंध बनाने में भी सहायता करते हैं। धूल-कणों के साथ चिपके जल-वाष्प संघनन क्रिया द्वारा बादलों का रूप धारण कर लेते हैं क्योंकि धूल-कण ठण्डे होकर जल-वाष्प में संघनन करते हैं। इस प्रकार धूल-कणों के कारण बादलों की रचना होती है, जो कि अवक्षेपण (Precipitation) करते हैं। इस प्रकार वायुमण्डल में स्थित धूल-कण मनुष्य के लिए बहुत महत्त्व रखते हैं। इन्हें आर्द्रताग्राही कण (Hygroscopic nuclei) कहते हैं।

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प्रश्न 2.
वायुमण्डल की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
वायुमण्डल की विशेषताएँ (Properties of the Atmosphere)-

  • भू-तल के निकट वायुमण्डल घना (Dense) होता है। ऊपर ऊँचाई के साथ-साथ यह पतला होता जाता है।
  • जल-वाष्प अधिकतर 2000 मीटर की ऊँचाई तक और पूर्ण रूप में 1 किलोमीटर की ऊँचाई तक ही वायुमण्डल में स्थित होते हैं।
  • जल-वाष्प शुष्क वायु के मुकाबले में हल्के होते हैं। इस प्रकार यदि वायु में जल-वाष्प अधिक मात्रा में हों, तो वायु का घनत्व कम हो जाता है।
  • वायुमण्डल तापधारक (Diathermous) होता है, भाव इसमें ताप-किरणें ज़ब्त हो सकती हैं।
  • वायुमण्डल पारदर्शी (Transparent) होता है।
  • वायुमण्डल में अनेक गैसें, जलवाष्प, धूल-कण आदि पाए जाते हैं, परन्तु इसमें ऑक्सीजन और नाइट्रोजन दो गैसों की प्रधानता होती है। वायुमण्डल के लगभग 99 प्रतिशत भाग में ये दो गैसें ही होती हैं।
  • नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, ऑर्गन, कार्बन-डाइ-ऑक्साइड आदि भारी गैसें वायुमण्डल की निचली सतहों पर और निओन, हीलियम, क्रिप्टॉन, ओज़ोन आदि हल्की गैसें ऊपरी सतहों में मिलती हैं।
  • वायुमण्डल की निचली सतहों में धूल-कण पाए जाते हैं। सूर्योदय और सूर्यास्त के समय लालिमा इन धूल कणों के फलस्वरूप ही होती है। धुंधलका भी इन धूल-कणों के कारण ही होता है।
  • वायुमण्डल में प्रवेश करने वाली उल्काओं (Meteors) के लिए यह रुकावट होता है। यह अपनी घर्षण क्रिया द्वारा इन्हें जला देता है, फलस्वरूप बहुत-सी उल्काएँ भूतल पर पहुँचने से पहले ही जल के राख हो जाती हैं।
  • वायुमण्डल संवहन, विकिरण और दबाव (Compression) द्वारा गर्म होता है। वायु पर जब दबाव पड़ता है, तो यह गर्म हो जाती है और फैलने पर वायु ठंडी हो जाती है।

प्रश्न 3.
वायुमण्डल की महत्ता के बारे में बताएँ।
उत्तर-
वायुमण्डल की महत्ता (Importance of Atmosphere)-
वायुमण्डल नीचे लिखे क्षेत्रों में मनुष्य के लिए महत्त्वपूर्ण है –

1. जीवन का आधार-वायुमण्डल में ऑक्सीजन गैस मानव-जीवन के लिए महत्त्वपूर्ण है। कार्बन-डाइऑक्साइड गैस वनस्पति के विकास के लिए ज़रूरी है। वायुमण्डल के बिना पृथ्वी के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इतना महत्त्वपूर्ण होने के कारण ही सौर-मण्डल में पृथ्वी को एक अद्वितीय ग्रह (Unique Planet) कहा जाता है।

2. तापमान का सन्तुलन-वायुमण्डल एक ग्लास-हाऊस के समान काम करता है और पृथ्वी के तापमान में सन्तुलन रखता है। दिन के समय वायुमण्डल सूर्य की किरणों को जब्त करता है और रात के समय भू-तल से होने वाले विकिरण को रोककर पृथ्वी के तापमान को मध्यम रखता है। पृथ्वी का औसत तापमान 35°C बना रहता है।

3. पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा-ऊपरी परतों में ओज़ोन गैस (Ozone Gas) सूर्य की पराबैंगनी किरणों (Ultra violet rays) को जब्त करके पृथ्वी पर मनुष्यों और जीव-जन्तुओं की सुरक्षा करती है।

4. मौसम और जलवायु-वायुमण्डल मौसम और जलवायु पर प्रभाव डालता है, जिसके कारण पृथ्वी के अलग-अलग भागों में अनेक प्रकार की जलवायु मिलती है।

5. रेडियो प्रसारण-आयन मण्डल पृथ्वी की रेडियो तरंगों को पृथ्वी पर वापस भेजकर रेडियो प्रसारण में सहायता करता है।

6. उल्काओं से सुरक्षा-वायुमण्डल में प्रवेश करके कई उल्काएँ (Meteors) नष्ट हो जाती हैं और पृथ्वी को सुरक्षा प्रदान करती हैं।

7. वायु मार्ग-वायुमण्डल की सतह में शांत हवा के कारण जैट जहाज़ तेज़ गति से उड़ सकते हैं।

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प्रश्न 4.
ताप कटिबन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
ताप कटिबन्ध (Temperature Zones)-धरती की धुरी (Axis) पर तिरछा स्थित होने के कारण सूर्य की किरणें भू-मध्य रेखा पर तो सीधी पड़ती हैं, पर भू-मध्य रेखा से दूर जाने पर लगातार तिरछी होती जाती हैं। परिणामस्वरूप अक्षांश के अनुसार तापमान कम होता जाता है, इसलिए तापखण्ड अलग-अलग अक्षांश रेखाओं के साथ ही निर्धारित होते हैं। अलग-अलग अक्षांशों की स्थिति सूर्य की किरणों के कोण पर आधारित होती है।
धरातल पर ताप विभाजन कई ताप-खण्डों द्वारा दिखाया जाता है। पुरातन यूनानी विद्वानों ने इन अक्षांश रेखाओं के आधार पर धरती को नीचे लिखे पाँच खण्डों में विभाजित किया है-

1. उष्ण कटिबन्ध (तप्त खण्ड) (Torrid Zone)—यह कटिबन्ध कर्क रेखा (23 \(\frac{1}{2}\)°N) और मकर रेखा (23 \(\frac{1}{2}\)°S) के मध्य स्थित है। इस खण्ड में पूरा वर्ष सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं, इसलिए यह कटिबन्ध धरती का सबसे गर्म कटिबन्ध है।

2. उत्तरी शीतोष्ण कटिबन्ध (Northern Temperate Zone)—यह कटिबन्ध कर्क रेखा (66\(\frac{1}{2}\)°N) और उत्तरी ध्रुव-चक्र (Arctic Circle) [66\(\frac{1}{2}\)°N) के मध्य स्थित है। इस खण्ड में तापमान की मध्यम दशाएँ होती हैं। इस खण्ड में सूर्य की किरणें सीधी नहीं पड़तीं।

3. दक्षिणी शीतोष्ण कटिबन्ध (Southern Temprate Zone)—यह खण्ड मकर रेखा (23\(\frac{1}{2}\)° S) दक्षिणी ध्रुव-चक्र (Antarctic Circle) (\(\frac{1}{2}\) °S) के मध्य स्थित है। इस खण्ड में न तो अधिक गर्मी पड़ती है और न ही अधिक सर्दी। इस खण्ड में गर्मियों में दिन लम्बे और सर्दियों में छोटे होते हैं।

4. उत्तरी शीत कटिबन्ध (Northern Frigid Zone)—यह खण्ड उत्तरी ध्रुव 90° N और 66\(\frac{1}{2}\) °N के मध्य स्थित है। यहाँ हर स्थान पर दिन या रात की लम्बाई 24 घण्टों से अधिक होती है और अत्यन्त सर्दी पड़ती है।

5. दक्षिणी शीत कटिबन्ध (Southern Frigid Zone)—यह खण्ड दक्षिणी ध्रुव 90° 5 और 66\(\frac{1}{2}\)°S के मध्य स्थित है। यहाँ पूरा वर्ष सूर्य की किरणें बहुत तिरछी पड़ती हैं, इसलिए यहाँ बहुत कम तापमान होता है। ध्रुवों पर छह-छह महीनों के दिन-रात होते हैं।