PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य की परिभाषा दीजिए और इसके तत्त्वों की व्याख्या करें। (Define State. Discuss its elements.)
अथवा
राज्य के मूलभूत तत्त्वों की विवेचना कीजिए। (Discuss the essential elements of a State.)
उत्तर-
राज्य एक प्राकृतिक और सर्वव्यापी, मानवीय संस्था है। व्यक्ति के सामाजिक जीवन को सुखी और सुरक्षित रखने के लिए जो संस्था अस्तित्व में आई, उसे राज्य कहते हैं। मनुष्य के जीवन के विकास के लिए राज्य एक आवश्यक संस्था है। यदि राज्य न हो, तो समाज में अराजकता फैल जाएगी।

राज्य शब्द की उत्पत्ति (Etymology of the word)-स्टेट (State) शब्द लातीनी भाषा के ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द से लिया गया है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीन काल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। परन्तु धीरे-धीरे इसका अर्थ बदलता गया। मैक्यावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

राज्य शब्द का गलत प्रयोग (Wrong use of the word ‘State’) अधिकांश तौर पर सामान्य भाषा में ‘राज्य’ शब्द का गलत प्रयोग किया जाता है। जैसे भारत में इसकी इकाइयों जैसे-पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश एवं अमेरिका में अटलांटा, बोस्टन, न्यूयार्क एवं वाशिंगटन जैसी इकाइयों को राज्य कह दिया जाता है, जबकि ये वास्तविक तौर पर राज्य नहीं हैं।

राज्य की परिभाषाएं (Definitions of State)–विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई राज्य की परिभाषाएं निम्नलिखित

1. अरस्तु (Aristotle) के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर तथा समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।” (“The state is a Union of families and villages having for its end a perfect and self-sufficing life by which we mean a happy and honourable life.”) परन्तु यह परिभाषा बहुत पुरानी है और आधुनिक राज्य पर लागू नहीं होती।

2. ब्लंटशली (Bluntschli) का कहना है कि “एक निश्चित भू-भाग में राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोगों का समूह राज्य कहलाता है।” (“The state is a politically organised people of a definite territory.”)

3. अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन (Woodrow Willson) के अनुसार, “एक निश्चित क्षेत्र में कानून की स्थापना के लिए संगठित लोगों का समूह ही राज्य है।” (“The state is a people organised for law within a definite territory.”) परन्तु यह परिभाषा भी ठीक नहीं समझी जाती क्योंकि इसमें राज्य की प्रभुसत्ता का कहीं भी उल्लेख नहीं है।

4. गार्नर (Garner) द्वारा दी गई राज्य की परिभाषा आजकल सर्वोत्तम मानी जाती है। उसके अनुसार, “राजनीति शास्त्र और सार्वजनिक कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो, बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह से लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।” (“The state, as a concept of political science and public law, is a community of persons, more or less numerous permanently occupying a definite portion of territory, independent or nearly so, of external control and possessing an organised government to which the great body of inhabitants render habitual obedience.”)

5. गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।”
डॉ० गार्नर की परिभाषा सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि इस परिभाषा में राज्य के चारों आवश्यक तत्त्वों का समावेश है-जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। जिस देश या राष्ट्र के पास चारों तत्त्व होंगे, उसी को राज्य के नाम से पुकारा जा सकता है। राजनीति शास्त्र के अनुसार राज्य में इन चार तत्त्वों का होना आवश्यक है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व

राज्य के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements or Attributes of State)-

राज्य के अस्तित्व के लिए चार तत्त्वों का होना आवश्यक है जो कि जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता है। इनमें से किसी एक के भी अभाव में राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। जनसंख्या (Population) और भू-भाग (Territory) को राज्य के भौतिक तत्त्व (Physical Element), सरकार (Government) को राज्य का राजनीतिक तत्त्व (Political Element) और प्रभुसत्ता (Sovereignty) को राज्य का आत्मिक तत्त्व (Spiritual Element) माना जाता है। इन तत्त्वों की व्याख्या नीचे की गई है :-

1. जनसंख्या (Population)-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। राज्य पशु-पक्षियों का समूह नहीं है। वह मनुष्यों की राजनीतिक संस्था है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर बल्कि कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस प्रकार बिना पति-पत्नी के परिवार, मिट्टी के बिना घड़ा और सूत के बिना कपड़ा नहीं बन सकता, उसी प्रकार बिना मनुष्यों के समूह के राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य में कितनी जनसंख्या होनी चाहिए, इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं है। परन्तु राज्य के लिए पर्याप्त जनसंख्या होनी चाहिए। दस-बीस मनुष्य राज्य नहीं बना सकते।

राज्य की जनसंख्या कितनी हो, इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। प्लेटो (Plato) के मतानुसार, एक आदर्श राज्य की जनसंख्या 5040 होनी चाहिए। अरस्तु (Aristotle) के मतानुसार, जनसंख्या इतनी कम नहीं होनी चाहिए कि राज्य आत्मनिर्भर न बन सके और न इतनी अधिक होनी चाहिए कि भली प्रकार शासित न हो सके। रूसो (Rousseau) प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का समर्थक था, इसलिए उसने छोटे राज्यों का समर्थन किया। उसने एक आदर्श राज्य की जनसंख्या 10,000 निश्चित की थी।

प्राचीन काल में नगर राज्यों की जनसंख्या बहुत कम हुआ करती थी, परन्तु आज के युग में बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके हैं।
आधुनिक राज्यों की जनसंख्या करोड़ों में है। चीन राज्य की जनसंख्या लगभग 135 करोड़ से अधिक है जबकि भारत की जनसंख्या 130 करोड़ से अधिक है। परन्तु दूसरी ओर कई ऐसे राज्य भी हैं जिनकी जनसंख्या बहुत कम है। उदाहरणस्वरूप, सान मेरीनो की जनसंख्या 25 हज़ार के लगभग तथा मोनाको की जनसंख्या 32 हज़ार के लगभग है जबकि नारु की जनसंख्या 9500 है। आधुनिक काल में कुछ राज्यों में बड़ी जनसंख्या एक बहुत भारी समस्या बन चुकी है और इन देशों में जनसंख्या को कम करने पर जोर दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारत की अधिक जनसंख्या एक भारी समस्या है।

राज्यों की जनसंख्या निश्चित करना अति कठिन है, परन्तु हम अरस्तु के मत से सहमत हैं कि राज्य की जनसंख्या न इतनी कम होनी चाहिए कि राज्य आत्मनिर्भर न बन सके और न ही इतनी अधिक होनी चाहिए कि राज्य के लिए समस्या बन जाए। राज्य की जनसंख्या इतनी होनी चाहिए कि वहां की जनता सुखी तथा समृद्धिशाली जीवन व्यतीत कर सके। गार्नर के मतानुसार, “राज्य की जनसंख्या इतनी अवश्य होनी चाहिए कि वह राज्य सुदृढ़ रह सके। परन्तु उससे अधिक नहीं होनी चाहिए जिसके लिए भू-खण्ड तथा राज्य साधन पर्याप्त न हों।” प्रो० आर० एच० सोल्टाऊ (Prof. R.H. Soltau) के अनुसार, “राज्य की जनसंख्या तीन तत्त्वों पर आधारित होनी चाहिए-साधनों की प्राप्ति, इच्छित जीवन-स्तर और सुरक्षा उत्पादन की आवश्यकताएं।”

2. निश्चित भू-भाग (Definite Territory)-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भूमि है। बिना निश्चित भूमि के राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता। खानाबदोश कबीले (Nomadic Tribes) राज्य का निर्माण नहीं कर सकते क्योंकि वे एक स्थान पर नहीं रहते बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। यही कारण है कि 1948 से पहले यहूदी लोग संसार-भर में घूमते रहते थे और उनका कोई राज्य नहीं था। यहूदी लोग (Jews) 1948 में ही स्थायी तौर पर अपना इज़राइल (Israel) नामक राज्य स्थापित कर सके। भू-भाग का निश्चित होना राज्यों की सीमाओं के निर्धारण के लिए भी आवश्यक है वरन् सीमा-सम्बन्धी झगड़े सदा ही अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष का कारण बने रहेंगे।

भूमि में पहाड़, नदी, नाले, तालाब आदि भी शामिल होते हैं। भूमि के ऊपर का वायुमण्डल भी राज्य की भूमि का भाग माना जाता है। भूमि के साथ लगा हुआ समुद्र का 3 मील से 12 मील तक का भाग भी राज्य की भूमि में शामिल किया जाता है।

राज्य की भूमि का क्षेत्रफल कितना होना चाहिए, इसके बारे में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। प्राचीन काल में राज्य का क्षेत्रफल बहुत छोटा होता था, परन्तु आधुनिक राज्यों का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है। पर कई राज्यों का क्षेत्रफल आज भी बहुत छोटा है। रूस का क्षेत्रफल 17,075,000 वर्ग किलोमीटर है जबकि भारत का क्षेत्रफल 3,287,263 वर्ग किलोमीटर है। पर सेन मेरीनो का क्षेत्रफल 61 वर्ग किलोमीटर है जबकि मोनाको का क्षेत्रफल 1.95 वर्ग किलोमीटर ही है। मालद्वीप राज्य का क्षेत्रफल 298 वर्ग किलोमीटर है। आज राज्य के बड़े क्षेत्र पर जोर दिया जाता है क्योंकि बड़े क्षेत्र में अधिक खनिज पदार्थ और दूसरे प्राकृतिक साधन होते हैं, जिससे देश को शक्तिशाली बनाया जा सकता है। अमेरिका, रूस, चीन अपने बड़े क्षेत्रों के कारण शक्तिशाली हैं। दूसरी ओर इंग्लैण्ड, स्विट्ज़रलैंड, बैल्जियम इत्यादि देशों का क्षेत्रफल तो कम है परन्तु इन देशों ने भी बहुत उन्नति की है। अतः यह कहना कि देश की उन्नति के लिए बहुत बड़ा क्षेत्र होना चाहिए, ठीक नहीं है। राज्य के क्षेत्र के सम्बन्ध में अरस्तु का मत ठीक प्रतीत होता है। उसने कहा है कि राज्य का क्षेत्र इतना विस्तृत होना चाहिए कि वह आत्मनिर्भर हो सके और इतना अधिक विस्तृत नहीं होना चाहिए कि उस पर ठीक प्रकार से शासन न किया जा सके। अतः राज्य का क्षेत्रफल इतना होना चाहिए कि लोग अपने जीवन को समृद्ध बना सकें और देश की सुरक्षा भी ठीक हो सके।

3. सरकार (Government)-सरकार राज्य का तीसरा अनिवार्य तत्त्व है। जनता का समूह निश्चित भू-भाग पर बस कर तब तक राज्य की स्थापना नहीं कर सकता जब तक उनमें राजनीतिक संगठन न हो। बिना सरकार के जनता का समूह राज्य की स्थापना नहीं कर सकता। सरकार देश में शान्ति की स्थापना करती है, कानूनों का निर्माण करती है तथा कानूनों को लागू करती है और कानून तोड़ने वाले को दण्ड देती है। सरकार लोगों के परस्पर सम्बन्धों को नियमित करती है। सरकार राज्य की एजेन्सी है जिसके द्वारा राज्य के समस्त कार्य किए जाते हैं। बिना सरकार के अराजकता उत्पन्न हो जाएगी तथा समाज में अशान्ति पैदा हो जाएगी। अत: राज्य की स्थापना के लिए सरकार का होना आवश्यक है।

संसार के सब राज्यों में सरकारें पाई जाती हैं, परन्तु सरकार के विभिन्न रूप हैं। कई देशों में प्रजातन्त्र सरकारें हैं, कई देशों में तानाशाही तथा कई देशों में राजतन्त्र है। उदाहरण के लिए भारत, नेपाल, इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी में प्रजातन्त्रात्मक सरकारें हैं जबकि क्यूबा, उत्तरी कोरिया, चीन आदि में कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही है। कुछ देशों में संसदीय सरकार है और कुछ देशों में अध्यक्षात्मक सरकार है। इसी तरह कुछ देशों में संघात्मक सरकार है और कुछ में एकात्मक सरकार है। सरकार का कोई भी रूप क्यों न हो, उसे इतना शक्तिशाली अवश्य होना चाहिए कि वह देश में शान्ति की स्थापना कर सके और देश को बाहरी आक्रमणों से बचा सके।

4. प्रभुसत्ता (Sovereignty)—प्रभुसत्ता राज्य का चौथा आवश्यक तत्त्व है। प्रभुसत्ता राज्य का प्राण है। इसके बिना राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती। प्रभुसत्ता का अर्थ सर्वोच्च शक्ति होती है। इस सर्वोच्च शक्ति के विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठा सकता। सब मनुष्यों को सर्वोच्च शक्ति के आगे सिर झुकाना पड़ता है। प्रभुसत्ता दो प्रकार की होती है-आन्तरिक प्रभुसत्ता (Internal Sovereignty) तथा बाहरी प्रभुसत्ता (External Sovereignty)।

आन्तरिक प्रभुसत्ता (Internal Sovereignty)-आन्तरिक प्रभुसत्ता का अर्थ है कि राज्य का अपने देश के अन्दर रहने वाले व्यक्तियों, समुदायों तथा संस्थाओं पर पूर्ण अधिकार होता है। प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक समुदाय को राज्य की आज्ञा का पालन करना पड़ता है। जो व्यक्ति राज्य के कानून को तोड़ता है, उसे सज़ा दी जाती है। राज्य को पूर्ण अधिकार है कि वह किसी भी संस्था को जब चाहे समाप्त कर सकता है।

बाहरी प्रभुसत्ता (External Sovereignty)-बाहरी प्रभुसत्ता का अर्थ है कि राज्य के बाहर कोई ऐसी संस्था अथवा व्यक्ति नहीं है जो राज्य को किसी कार्य को करने के लिए आदेश दे सके। राज्य पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। यदि किसी देश पर किसी दूसरे देश का नियन्त्रण हो तो वह देश राज्य नहीं कहला सकता। उदाहरण के लिए सन् 1947 से पूर्व भारत पर इंग्लैण्ड का शासन था, अतः उस समय भारत एक राज्य नहीं था। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए और इसके साथ ही भारत राज्य बन गया।

क्या कोई तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है ? (Is any Element the Most Important One ?)-

राज्य की स्थापना के लिए चार तत्त्व-जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार, प्रभुसत्ता-अनिवार्य हैं। यह कहना कि इन तत्त्वों में से कौन-सा तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है, अति कठिन है। जनसंख्या के बिना राज्य की कल्पना नहीं हो सकती। लोगों के स्थायी रूप से रहने के लिए एक निश्चित भू-भाग की भी आवश्यकता होती है। सरकार के बिना राज्य का अस्तित्व नहीं हो सकता और प्रभुसत्ता के बिना राज्य के तीनों तत्त्व अर्थहीन हो जाते हैं। प्रभुसत्ता एक ऐसा तत्त्व है जो राज्यों को अन्य समुदाओं और संस्थाओं से श्रेष्ठ बनाता है। इसलिए कुछ लोगों का विचार है कि चारों तत्त्वों में से प्रभुसत्ता अधिक महत्त्वपूर्ण है। प्रभुसत्ता राज्य की आत्मा और प्राण है। परन्तु वास्तव में चारों तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि यदि इन चारों तत्त्वों में से कोई एक तत्त्व न हो तो राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। कोई भी तीन तत्त्व मिल कर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते। राज्यों के चारों तत्त्वों के समान महत्त्व पर बल देते हुए गैटेल (Gettell) ने कहा है कि, “राज्य न ही जनसंख्या है, न ही भूमि, न ही सरकार बल्कि इन सबके साथ-साथ राज्य के पास वह इकाई होनी आवश्यक है जो इसे एक विशिष्ट व स्वतन्त्र राजनीतिक सत्ता बनाती है।”

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य की परिभाषा करें।
उत्तर-
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई राज्य की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1. अरस्तु के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर और समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।”

2. गार्नर के द्वारा दी गई राज्य की परिभाषा आजकल सर्वोत्तम मानी जाती है। उसके अनुसार, “राजनीति शास्त्र और कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो। बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह या लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।”

3. गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग, एक निश्चित प्रदेश में सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।”
डॉ० गार्नर की परिभाषा सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि इस परिभाषा में राज्य के चारों आवश्यक तत्त्वों का समावेश है-जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। जिस देश या राष्ट्र के पास ये चारों तत्त्व होंगे उसी को राज्य के नाम से पुकारा जा सकता है। राजनीति शास्त्र के अनुसार राज्य में इन चारों तत्त्वों का होना आवश्यक है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व

प्रश्न 2.
राज्य के चार अनिवार्य तत्त्वों के नाम लिखें। किन्हीं दो का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य के चार अनिवार्य तत्त्वों के नाम इस प्रकार हैं-

  1. जनसंख्या
  2. निश्चित भू-भाग
  3. सरकार
  4. प्रभुसत्ता।

1. जनसंख्या-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर, कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य के लिए कितनी जनसंख्या होनी चाहिए इसके विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है, परन्तु राज्य की स्थापना के लिए पर्याप्त जनसंख्या का होना आवश्यक है। दस-बीस मनुष्य मिलकर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते।

2. निश्चित भू-भाग-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भू-भाग है। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता। भू-भाग निश्चित होना इसलिए भी आवश्यक है कि सीमा-सम्बन्धी विवाद न उत्पन्न हो। राज्य की भूमि का क्षेत्रफल कितना होना चाहिए इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। परन्तु राज्य का क्षेत्रफल इतना अवश्य होना चाहिए कि लोग अपने जीवन को समृद्ध बना सकें और राज्य की सुरक्षा भी ठीक ढंग से हो सके।

प्रश्न 3.
क्या पंजाब एक राज्य है ?
उत्तर-
पंजाब भारत सरकार की 29 इकाइयों में से एक इकाई है। वैसे तो इसे राज्य कहा जाता है परन्तु वास्तव में यह राज्य नहीं है। इसके राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. पंजाब की जनसंख्या को इसकी अपनी जनसंख्या नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां रहने वाले व्यक्ति सम्पूर्ण भारत के नागरिक हैं।
  2. पंजाब की प्रादेशिक सीमा तो निश्चित है परन्तु केन्द्रीय सरकार कभी भी इसमें परिवर्तन कर सकती है।
  3. पंजाब की अपनी सरकार तो है परन्तु वह सम्पूर्ण नहीं है। राज्य की कई महत्त्वपूर्ण शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास हैं।
  4. पंजाब के पास न तो आन्तरिक प्रभुसत्ता है और न ही बाहरी प्रभुसत्ता है। इसे दूसरे राज्यों में राजदूत भेजने, उनके साथ युद्ध या सन्धियां करने, अपना संविधान बनाने आदि के अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

प्रश्न 4.
क्या राष्ट्रमण्डल एक राज्य है ?
उत्तर-
राष्ट्रमण्डल में ब्रिटेन के अतिरिक्त वे राष्ट्र सम्मिलित हैं जो कभी अंग्रेजों के अधीन थे और जिन्होंने अब स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है। राष्ट्रमण्डल राज्य नहीं है, क्योंकि उसकी न तो कोई जनसंख्या है, न भू-भाग और न ही कोई सरकार। इस मण्डल के सदस्य प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य होते हैं। इसलिए राष्ट्रमण्डल के पास प्रभुसत्ता के होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। राष्ट्रमण्डल का सदस्य जब चाहे राष्ट्रमण्डल को छोड़ सकता है। अत: इसे राज्य नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 5.
क्या संयुक्त राष्ट्र संघ एक राज्य है ? यदि नहीं तो कारण बताओ।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ राज्य नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. एक राज्य के सदस्य अप्रभुव्यक्ति (Non-sovereign Individuals) होते हैं परन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य तो प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य होते हैं।
  2. एक राज्य की सदस्यता अनिवार्य होती है, परन्तु इस संघ की नहीं।
  3. इस संघ के फैसलों को कानून का स्तर नहीं दिया जा सकता। यदि कोई सदस्य राज्य किसी फैसले को अपने हित के प्रतिकूल समझे तो वह उस आदेश की उपेक्षा कर सकता है और व्यावहारिक रूप में ऐसे कई उदाहरण हैं।
  4. इस संघ की न तो अपनी प्रजा है, न ही नागरिक और न ही कोई भू-क्षेत्र। जिस भू-भाग पर इस संघ के भवन और दफ्तर आदि स्थित हैं, वह भी इसका अपना नहीं बल्कि अमेरिका की सम्पत्ति है।
  5. इस संघ को महासभा, सुरक्षा परिषद् और दूसरे अंगों के बराबर कहना सरासर ग़लत और अमान्य है।

प्रश्न 6.
राज्य शब्द जिसे अंग्रेजी में ‘State’ कहते हैं, की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है और वह शब्द किस भाषा का है ?
उत्तर-
State शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Status’ से हुई है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीनकाल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए राज्य शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। मैक्यिावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व

प्रश्न 7.
राज्य का सबसे आवश्यक तत्त्व कौन-सा है ? वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य की स्थापना के लिए चार तत्त्व-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार, प्रभुसत्ता आवश्यक हैं। यह कहना कि चारों तत्त्वों में से कौन-सा तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है, कठिन है। जनसंख्या के बिना राज्य की कल्पना तक नहीं हो सकती है। निश्चित भू-भाग के बिना भी राज्य नहीं बन सकता। सरकार के बिना समाज में शान्ति एवं व्यवस्था की स्थापना नहीं की जा सकती। अतः सरकार ही राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति करती है। राज्य का चौथा तत्त्व प्रभुसत्ता बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि राज्य के अन्य तीन तत्त्व तो दूसरे समुदायों में भी मिल जाते हैं लेकिन प्रभुसत्ता केवल राज्य के पास ही होती है और इसे राज्य तथा अन्य समुदायों के बीच बांटा जा सकता है। प्रभुसत्ता ही एक ऐसा तत्त्व है जो राज्य को अन्य समुदायों से अलग रखता है या उसे सर्वश्रेष्ठ बनाता है। इसी कारण कुछ लेखक प्रभुसत्ता को अन्य तत्वों से अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। परन्तु वास्तव में चारों तत्त्व महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि इन चारों तत्त्वों में से कोई एक तत्त्व न हो तो राज्य की स्थापना असम्भव है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य शब्द जिसे अंग्रेज़ी में ‘State’ कहते हैं, की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है ?
उत्तर-
State शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Status’ से हुई है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीनकाल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए राज्य शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। मैक्यावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

प्रश्न 2.
राज्य की परिभाषा करें।
उत्तर-

  • अरस्तु के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर और समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।”
  • गार्नर के अनुसार, “राजनीति शास्त्र और कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो। बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह या लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।”

प्रश्न 3.
राज्य के किन्हीं दो का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-

  1. जनसंख्या-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर, कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य के लिए कितनी जनसंख्या होनी चाहिए इसके विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है, परन्तु राज्य की स्थापना के लिए पर्याप्त जनसंख्या का होना आवश्यक है। दस-बीस मनुष्य मिलकर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते।
  2. निश्चित भू-भाग-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भू-भाग है। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता।

प्रश्न 4.
क्या पंजाब एक राज्य है ?
उत्तर-
पंजाब भारत सरकार की 29 इकाइयों में से एक इकाई है। वैसे तो इसे राज्य कहा जाता है परन्तु वास्तव में यह राज्य नहीं है। इसके राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  • पंजाब की जनसंख्या को इसकी अपनी जनसंख्या नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां रहने वाले व्यक्ति सम्पूर्ण भारत के नागरिक हैं।
  • पंजाब की प्रादेशिक सीमा तो निश्चित है परन्तु केन्द्रीय सरकार कभी भी इसमें परिवर्तन कर सकती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. राज्य को अंग्रेजी भाषा में क्या कहा जाता है ?
उत्तर-राज्य को अंग्रेज़ी भाषा में स्टेट (State) कहा जाता है।

प्रश्न 2. स्टेट (State) शब्द किस भाषा से बना है ?
उत्तर-स्टेट (State) शब्द लातीनी भाषा के स्टेट्स (Status) शब्द से बना है।

प्रश्न 3. स्टेट्स (Status) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-स्टेट्स (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है।

प्रश्न 4. राज्य की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-बटलशली के अनुसार, “एक निश्चित भू-भाग में राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोगों का समूह राज्य कहलाता है।”

प्रश्न 5. राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा किसने दी है ?
उत्तर-राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा गार्नर ने दी है।

प्रश्न 6. “मनुष्य स्वभाव और आवश्यकताओं के कारण सामाजिक प्राणी है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन अरस्तु का है।

प्रश्न 7. “जो समाज में नहीं रहता, वह या तो पशु है या फिर देवता” किसका कथन है ?
उत्तर-यह कथन अरस्तु का है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व

प्रश्न 8. प्लेटो ने राज्य की अधिक-से-अधिक जनसंख्या कितनी निश्चित की है?
उत्तर-प्लेटो ने आदर्श राज्य की जनसंख्या 5,040 बताई है।

प्रश्न 9. राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, या ऐच्छिक?
उत्तर-राज्य की सदस्यता अनिवार्य है।

प्रश्न 10. किस विद्वान् ने राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा दी है?
उत्तर-गार्नर ने राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा दी है।

प्रश्न 11. रूसो के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-रूसो के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या 10000 होनी चाहिए।

प्रश्न 12. किस विद्वान् की राज्य की परिभाषा में चार अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन मिलता है?
उत्तर-गार्नर की राज्य की परिभाषा में चार अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन मिलता है।

प्रश्न 13. किस राज्य की जनसंख्या सबसे अधिक है?
उत्तर-साम्यवादी चीन की जनसंख्या सबसे अधिक है।

प्रश्न 14. क्या पंजाब राज्य है?
उत्तर-पंजाब राज्य नहीं है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य के ………….. आवश्यक तत्त्व माने जाते हैं।
2. राज्य के चार आवश्यक तत्त्व जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा ………. है।
3. प्लेटो के अनुसार एक आदर्श राज्य की जनसंख्या …………. होनी चाहिए।
4. रूसो के अनुसार एक आदर्श राज्य की जनसंख्या …………… होनी चाहिए।
5. ………….. के अनुसार राज्य की जनसंख्या तीन तत्त्वों पर आधारित होनी चाहिए–साधनों की प्राप्ति, इच्छित जीवन स्तर और ………… उत्पादन की आवश्यकताएं।
उत्तर-

  1. चार
  2. प्रभुसत्ता
  3. 5040
  4. 10000
  5. प्रो० आर० एच० सोल्टाऊ, सुरक्षा।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राज्य का दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भूमि है।
2. निश्चित भूमि के बिना राज्य की स्थापना हो सकती है।
3. राज्य की स्थापना के लिए सरकार का होना आवश्यक है।
4. प्रभुसत्ता राज्य का प्राण है।
5. प्रभुसत्ता चार प्रकार की होती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य के लिए आवश्यक है ?
(क) संसदीय सरकार
(ख) राजतन्त्र
(ग) गणतन्त्रीय सरकार
(घ) कोई भी सरकार।
उत्तर-
(घ) कोई भी सरकार।

प्रश्न 2.
प्रभुसत्ता किसका आवश्यक गुण है ?
(क) राष्ट्र
(ख) राज्य
(ग) समाज
(घ) सरकार।
उत्तर-
(ख) राज्य।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य नहीं है ?
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ
(ख) जापान
(ग) दक्षिण कोरिया
(घ) नेपाल।
उत्तर-
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 9 राज्य और इसके अनिवार्य तत्त्व

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य नहीं है ?
(क) भारत
(ख) नेपाल
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर-
(ग) मध्य प्रदेश।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

PSEB 11th Class Physical Education Guide शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
जिन्दगी द्वारा पैदा हुई चुनौतियों से किस तरह निपटा जा सकता है ?
(How to handle the challenges generated by the life ?)
उत्तर-
आधुनिक युग में मनुष्य भौतिक पदार्थों को एकत्र करने में इतना उलझा हुआ है कि उसके पास अपने लिए ही समय नहीं है। यह युग मानव के लिए तनाव, दबाव तथा चिंता का युग बन कर रह गया है। इसीलिए अत्याधिक व्यक्ति खुशी से भरपूर और लाभदायक जीवन नहीं गुजार रहे हैं। ऐसे व्यस्तता भरे जीवन कारण प्रत्येक विषय की धारणाओं में परिवर्तन हो रहे हैं जिस कारण शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भी विस्तार हुआ है। आज शारीरिक शिक्षा का सम्बन्ध शारीरिक व्यायाम के साथ-साथ मानव के जीवन के हर पक्ष के साथ है। शारीरिक शिक्षा मनुष्य को अपने व्यस्तता भरे जीवन को ठीक ढंग के साथ व्यतीत करने के लिए उसकी मदद करती है। इसके साथ मनुष्य शारीरिक कौशल, शरीर की जानकारी, जीवन-मूल्य और स्वास्थ्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने के गुण प्राप्त करता है। इन गुणों के साथ व्यक्ति में साहस पैदा होता है और वह जीवन की मुश्किलों का सुदृढ़ता से सामना कर पाता है। आधुनिक मशीनी युग और क्रिया रहित जिंदगी में उत्पन्न हुई चुनौतियों का सामना शारीरिक शिक्षा तथा शारीरिक व्यायाम द्वारा ही किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा की परिभाषा लिखें।
(Write the definition of Physical Education.)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा एक ऐसा ज्ञान है जो शरीर से सम्बन्ध रखता है। शरीर को बनावट, विकास और स्वास्थ्य देता है और इसका साधन शारीरिक क्रियाएं ही हैं। इस विषय के बारे में भिन्न-भिन्न परिभाषायें हैं जिनमें से कुछ इस तरह हैं
डैल्बर्ट उबर्टीउफर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा उन सभी तुजुर्षों का जोड़ है जो किसी व्यक्ति को शारीरिक हरकत द्वारा प्राप्त होते हैं।”
(“Physical Education is the sum of those experiences which come to the individual through movement.”
—Delbert Oberteuffer)
आर० कैसिडी के शब्दों में “शारीरिक शिक्षा उन सभी तबदीलियों का जोड़ है जो व्यक्ति में हरकत के द्वारा आती
(“Physical Education is the sum of change in the individual caused by experiences, which bring in motor Activity.”
—R. Cassedy)
जे०बी०नैश लिखते हैं, “शारीरिक शिक्षा समूची विद्या का वह भाग है जिसका सम्बन्ध मांसपेशियों की क्रियाओं तथा उनसे सम्बन्धित क्रियाओं के साथ है।”
(“Physical Education is that part of whole field of education that deals with big muscle activities and their related responses.”
—J.B. Nash)
चार्ल्स ए० बियोकर के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा सम्पूर्णता का अभिन्न अंग है जिसका उद्देश्य शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक तौर पर ठीक शहरी पैदा करना है, इस तक पहुंचने के लिए शारीरिक क्रियाओं का स्थान चुना गया है ताकि इसको प्राप्त कर सकें।”
(“Physical education is an integral part of total education process and has its aim the development of physical, mentally, educationally and socially fit citizens through the Medium of physical activities, selected with a view to realising these outcomes.”
—Charles A. Bucher)
जे०एफ०विलियम के अनुसार, “शारीरिक शिक्षा व्यक्ति की कुल शारीरिक क्रियाओं का जोड़ है जो कि अपनी भिन्नता के अनुसार चुनी जाती हैं तथा अपने उद्देश्य के अनुसार प्रयोग की जाती हैं।”
(“Physical Education is the sum of man’s physical activities selected and conducted as to their out comes.”
—J.F. Williams)

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा का क्या लक्ष्य है ?
(What is the aim of Physical Education ?)
उत्तर-
‘लक्ष्य’ व ‘उद्देश्य’ शब्दों में अन्तर
(Difference in the terms aim and objective)
शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य व उद्देश्य जानने से पहले हम यह आवश्यक समझते हैं कि लक्ष्य व उद्देश्य शब्द में अंतर स्पष्ट किया जाए।
आम तौर पर लक्ष्य व उद्देश्य एक-दूसरे के लिए प्रयोग किए जाते हैं। लेकिन वास्तव में ये दोनों ही शब्द समानार्थक नहीं हैं। इन दोनों शब्दों में अंतर की एक स्पष्ट रेखा अंकित है जो इनके अर्थों में भिन्नता लाती है।

“लक्ष्य तो अंतिम निशाना होता है। जब कि उद्देश्य एक विशेष नपा-तुला व नज़र आने वाला पड़ाव है। अगर हमारा लक्ष्य सर्व उच्च मंजिल है तो उद्देश्य इस मंजिल तक पहुंचने के छोटे-छोटे पड़ाव हैं जो कि मंज़िल के रास्ते में स्थित हैं जिन से गुजर कर हम मंज़िल पर पहुंच सकते हैं।”
इस तरह हम कह सकते हैं कि मंज़िल रूपी सीढ़ी पर चढ़ने के लिए उद्देश्य सहारे का काम करते हैं।

जब शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य उच्चकोटि के नागरिकों का निर्माण करना है तो उस व्यक्ति को शारीरिक दृष्टि के साथ हृदय-पुष्ट रखना इसका उद्देश्य है। इससे अच्छी आदत विकसित करना व उसको चरित्र वाले गुणों से जोड़ना इसके दूसरे उद्देश्य हैं। एक व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसका शारीरिक, मानसिक व बौद्धिक विकास करना ज़रूरी उद्देश्य है।

शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य (Aim of Physical Education) शारीरिक शिक्षा के लक्ष्य सम्बन्धी अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने तरीके के साथ विचार प्रकट किए हैं। इनमें प्रमुख विद्वानों के विचार इस तरह हैं

“शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य एक कुशल नेतृत्व, उचित सुविधाएं व काफ़ी समय दिलाना है जिससे व्यक्ति या संगठनों को इस तरह की स्थितियों में भाग लेने का अवसर मिल सके ताकि वह शारीरिक रूप के साथ आनंददायक, मानसिक रूप के साथ संतोषजनक व सामाजिक रुख से तंदुरुस्त है।”
(“Physical Education should aim to provide the skilled leadership, adequate facilities and ample time for affording full opportunity for individuals and groups to participate in situation that are physically wholesome, mentally stimulating and satisfying and socially sound.”)

जे०आर० शरमन के विचार (Views of J.R. Sharman)_”शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य लोगों के अनुभवों को इस सीमा तक प्रभावित करना है कि हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार समाज में ठीक तरह रह सके, अपनी ज़रूरतों को बढ़ा सके व सुधार कर सके तथा लोगों को संतुष्ट करने की अपनी योग्यता विकसित कर सके।”
(“The aim of Physical Education is to influence the experiences of person to the extent that each individual within the limits of his capacity may be helped to adjust successfully in society, to increase and improve his wants and to develop the ability to satisfy his wants.”)

शारीरिक शिक्षा के केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के विचार (Views of Central Advisory Board of Physical Education)-“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक व भावात्मक तौर पर योग्य बनाना है व उसमें इस तरह के निजी व सामाजिक गुण विकसित करना है जिससे वह समाज के अन्य सदस्यों के साथ स्वतन्त्रतापूर्वक रह सके व अच्छा नागरिक बन सके।”
(“’The aim of physical education is to make every child physically, mentally fit and also to develop in him such personality and social qualities as will help him live happily with others and build him as a good citizen.”)

शारीरिक शिक्षा कॉलेजों के प्रिंसीपलों के सम्मेलन में प्रकट किए गए विचार (Views expressed in conference of principles of physical training colleges)-“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य भारतीय बच्चों व जवानों को इस तरह के अवसर प्रदान करना है जिससे वह शारीरिक, मानसिक व भावात्मक रूप से स्वस्थ बनें तो उनमें इस तरह कुशलता व दृष्टिकोण का विकास हो जिस द्वारा वह परिवर्तनशील, समाज में अधिक समय तक एक सूत्र पैदा करते रह सकें।”
(“Physical education should aim to provide opportunities that will make the children and youth of India, Physically, mentally and constitutionally fit and develop in them the skills and attitudes conducive to long happy and creative living in the fluid changing society.”)

निष्कर्ष (Conclusion)—उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य मनुष्य का पूर्ण विकास करना है। लगभग सभी विद्वान् इस विचार से सहमत हैं कि शारीरिक शिक्षा के माध्यम से मनुष्य में इस तरह के गुण विकसित किए जाएं जिनसे उनका शारीरिक, मानसिक व भावात्मक विकास हो सके।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 4.
शारीरिक शिक्षा के किन्हीं तीन उद्देश्यों की विस्तारपूर्वक जानकारी दीजिए।
(Explain any three objectives of Physical Education in detail.)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of Physical Education)—जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि लक्ष्य अंतिम निशाना होता है जिसकी प्राप्ति के लिए कुछ उद्देश्य होते हैं। आम तौर पर लक्ष्य एक ही होता है लेकिन उसको एकत्र करने के लिए उद्देश्य अनेक हो सकते हैं। इसी तरह शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य तो एक ही होता है व वह है व्यक्ति का पूर्ण विकास, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कई उद्देश्य हैं। शारीरिक शिक्षा के उद्देश्य सम्बन्धी अलग-अलग विद्वानों ने अपने-अपने विचार पेश किए हैं। प्रमुख विद्वानों के विचार इस तरह हैं—

  1. लॉस्की (Laski) के अनुसार शारीरिक शिक्षा के नीचे लिखे पांच उद्देश्य हैं—
    • शारीरिक पक्ष वाला विकास (Physical aspect of development)
    • भावात्मक पक्ष वाला विकास (Emotional aspect of development)
    • सामाजिक पक्ष वाला विकास (Social aspect of development)
    • बौद्धिक पक्ष वाला विकास (Intellectual aspect of development)
    • न्यूरो मांसपेशी पक्ष वाला विकास (Neuro-muscular aspect of development)
  2. जे०बी०नैश (J.B. Nash) ने शिक्षा के नीचे लिखे चार उद्देश्यों का वर्णन किया है—
    • न्यूरो मांसपेशी विकास (Neuro muscular development)
    • भावात्मक विकास (Emotional development)
    • उचित बात समझने की योग्यता का विकास (Interpretative development)
    • शारीरिक अंगों का विकास (Organic development)
  3. एक अन्य विद्वान बक बाल्टर ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों को तीन वर्गों में बांटा है। ये इस तरह “जए।
    • स्वास्थ्य (Health)
    • नैतिक आचरण (Moral character)
    • व्यर्थ समय का उचित प्रयोग (Worthy use or leisure)
  4. प्रसिद्ध विद्वान् एच० सी० बक ने शारीरिक शिक्षा के उद्देश्यों का वर्गीकरण इस तरह किया है—
    • शारीरिक अंगों का विकास (Organic development)
    • न्यूरो मांस पेशियों में तालमेल का विकास (Development of neuro muscular co-ordination)
    • खेल व शारीरिक क्रियाओं के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास (Development of right attitude towards play and physical activites).

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 5.
शारीरिक शिक्षा का क्या महत्त्व है ? इसकी विस्तारपूर्वक जानकारी दीजिए।
(What is the importance of Physical Education ? Explain in detail.)
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा का महत्त्व (Importance of Physical Education)
1. शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम (Curriculum of Physical Education)—शारीरिक शिक्षा साधारण शिक्षा का ही एक अंग है। इसके द्वारा बहुत-से गुणों को विकसित किया जा सकता है जो कि राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक है। शारीरिक शिक्षा के पाठ्यक्रम द्वारा मनुष्य में सहनशीलता, सामाजिकता, नागरिकता और दूसरों के लिए प्रतिष्ठा की भावना सिखाई जा सकती है। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रमों में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। इसलिए यह राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में अपना पूरा योगदान डालती है।

2. शारीरिक शिक्षा में साम्प्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं (No Place for Communalism in Physical Education)-शारीरिक शिक्षा किसी तरह भी साम्प्रदायिकता को अपने निकट नहीं आने देती। शारीरिक शिक्षा रंग-रूप, जातिवाद, धर्म, वर्ग, समुदाय के भेदभाव को स्वीकार नहीं करती। इसलिए सारी मनुष्य जाति की भलाई का ही विशेष महत्त्व है। घटिया विचारों को यह स्वीकार नहीं करती जिनके द्वारा जातिवाद के झगड़े उत्पन्न हों। साम्प्रदायिकता हमारे देश के लिए बहुत घातक है। शारीरिक शिक्षा इस खतरे को कम करते हुए राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करती है।

3. समानता और शारीरिक शिक्षा (Equality and Physical Education) शारीरिक शिक्षा असमानता को स्वीकार नहीं करती। इसके लिए छोटा-बड़ा, अमीर-ग़रीब सभी एक-जैसे हैं। आज के युग में असमानता एक गम्भीर समस्या है। शारीरिक शिक्षा इस समस्या को समाप्त कर राष्ट्रीय एकता की भावना लोगों को प्रदान करती है।

4. प्रान्तीयवाद और शारीरिक शिक्षा (Provincialism and Physical Education) शारीरिक शिक्षा में प्रान्तीयवाद का कोई स्थान नहीं है। जब कोई खिलाड़ी शारीरिक क्रियाएं करता है उस समय उसमें प्रान्तीयवाद की कोई भावना नहीं होती है कि वह अमुक प्रान्त का निवासी है। उसको केवल मानव भलाई का लक्ष्य ही दिखाई पड़ता है। खिलाड़ी खेलते समय आपस में सहयोग रखते हुए एक-दूसरे की भावनाओं का सत्कार करते हैं, जिससे उनमें एकता में वृद्धि होती है। देश शक्तिशाली बनता है और राष्ट्रीय एकता समृद्ध होती है।

5. भाषावाद और शारीरिक शिक्षा (Linguism and Physical Education)-भारतवर्ष में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं। कई प्रान्तों में भाषा के लिए झगड़े हो रहे हैं। कहीं पर पंजाबी, कहीं तमिल भाषा का झगड़ा, कहीं बंगला एवं उड़िया भाषाओं के नाम पर झगड़ा उत्पन्न हुआ है। एक स्थान की भाषा दूसरे स्थान पर समझने में कठिनाई आती है, परन्तु शारीरिक शिक्षा किसी भी भाषा के झगड़े में न पड़ते हुए इसे स्वीकार ही नहीं करती। अच्छा खिलाड़ी चाहे वह बंगला बोलता हो या पंजाबी, सभी को अपना भाई मानते हैं। सभी खिलाड़ी एक टीम के रूप में मैदान में आते हैं। आपसी सहयोग से अपने देश की मान-मर्यादा को बढ़ाने का प्रयास करते हैं। इस तरह शारीरिक शिक्षा भाषाओं के झगड़े को समाप्त करके राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करने का यत्न करती है।

6. फुर्सत का समय और शारीरिक शिक्षा (Leisure Time and Physical Education)-फुर्सत का समय वह समय है जब मनुष्य के पास कोई काम करने के लिए नहीं होता। बहुत-से लोग फुर्सत का समय उपयोगी ढंग से व्यतीत नहीं करते, व्यर्थ में लड़ते-झगड़ते रहते हैं और अपना और दूसरों का नुकसान करते. रहते हैं। ये झगड़े कई बार इतने बढ़ जाते हैं जिससे देश में बहुत-सी समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं और देश की एकता एवं अखण्डता को खतरा पैदा हो जाता है। फुर्सत के समय को उपयोगी ढंग से व्यतीत करने के लिए शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम में बहुत-सी क्रियाएं हैं। सभी बच्चों और नवयुवकों के फुर्सत के समय के उपयोगी प्रयोग के लिए क्रियाएं होती हैं ताकि नवयुवकों की शक्ति अच्छे मार्ग पर लगाई जाए जिससे राष्ट्रीय एकता की समस्या का समाधान हो सकता है।

7. देश भक्ति , अनुशासन और सहनशीलता (Patriotism, Discipline and Tolerance)-शारीरिक शिक्षा द्वारा देश भक्ति की भावना उत्पन्न होती है। शारीरिक शिक्षा नवयुवकों में देश भक्ति की भावना पैदा करके उसके व्यक्तित्व को विकसित करती है। एन०सी०सी०, ए०सी०सी०, गर्ज़ गाइड और एन०एस०एस० द्वारा शारीरिक शिक्षा देकर उनके स्वास्थ्य में वृद्धि की जाती है। इसके साथ-साथ देश भक्ति और देश प्रेम की भावना भी पैदा की जाती है। खेलों का उद्देश्य खिलाड़ियों में इस भावना को उत्पन्न करना है और सहनशीलता की भावना में वृद्धि करना है। खेलों द्वारा खिलाड़ियों में सहनशीलता, देश भक्ति और अनुशासन आदि गुणों को विकसित करके उनको राष्ट्रीय एकता में वृद्धि करने को प्रेरित करती है।

8. राष्ट्रीय चरित्र और शारीरिक शिक्षा (National Character and Physical Education)-खेलों में सामाजिक गुणों के महत्त्व को ध्यान में रखा गया है। इनके द्वारा राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा करना, उनमें राष्ट्रीय चरित्र का विकास करना तथा सामाजिक ज्ञान को बढ़ाना है। यदि लोगों में राष्ट्रीय चरित्र की कमी हो तो देश या कौम उन्नति नहीं कर सकते। शारीरिक शिक्षा के कार्यक्रम इस प्रकार बनाए जाते हैं जिससे नवयुवकों में देश-प्रेम तथा आदर की भावना पैदा हो जिससे राष्ट्रीय चरित्र एवं राष्ट्रीय एकता मजबूत हो। इन सभी गुणों के बिना राष्ट्रीय एकता बनी नहीं रह सकती। शारीरिक शिक्षा राष्ट्रीय चरित्र द्वारा राष्ट्रीय एकता को हमेशा बनाए रखती है।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
क्या शारीरिक शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा एक ही है ?
उत्तर-
नहीं, शारीरिक शिक्षा और स्वास्थ्य शिक्षा एक नहीं है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 2.
“शारीरिक स्वास्थ्य में वृद्धि, सामाजिक गुण में वृद्धि, संस्कृति।” किसका कथन है ?
(a) एच. कलर्क
(b) हैथरिंगटन
(c) बक वाल्टर
(d) जे० बी० नैश।
उत्तर-
(a) एच. कलर्क।

प्रश्न 3.
“शारीरिक विकास के उद्देश्य , मानसिक विकास के उद्देश्य, हरकत व कार्य शक्ति के विकास, सामाजिक विकास के उद्देश्य।” यह किसका कथन है ?
(a) जे० बी० नैश
(b) हैथरिंगटन
(c) जे०आर०शरमन
(d) लॉस्की।
उत्तर-
(b) हैथरिंगटन।

प्रश्न 4.
“शारीरिक अंगों का विकास, न्यूरो मांसपेशियों में तालमेल का विकास, खेल व शारीरिक क्रियाओं के प्रति उचित दृष्टिकोण का विकास” यह उद्देश्य किस के अनुसार है ?
(a) जे० बी० नैश
(b) एच. कलर्क
(c) एच. सी. बक
(d) हैथरिंगटन।
उत्तर-
(c) एच. सी. बक।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 5.
न्यूरो मांसपेशी विकास, भावात्मक विकास, उचित बात समझने की योग्यता का विकास, शारीरिक अंगों का विकास। यह उद्देश्य किसके अनुसार है ?
(a) जे० बी० नैश
(b) बक वाल्टर
(c) एच. सी. बक
(d) लॉस्की
उत्तर-
(a) जे० बी० नैश।

प्रश्न 6.
“शारीरिक शिक्षा उन सभी तुजुओं का जोड़ है जो किसी व्यक्ति को शारीरिक हरकत द्वारा प्राप्त होते हैं।” यह किसका कथन है ?
(a) डैल्बर्ट उबर्टीउफर
(b) आर कैसिडी
(c) जे०बी०नैश
(a) चार्ल्स ए०बियोकर।
उत्तर-
(a) डैल्बर्ट उबर्टीउफर।

प्रश्न 7.
शारीरिक शिक्षा क्या है ?
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा एक ऐसा ज्ञान है जो शरीर से सम्बन्ध रखता है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 8.
“शारीरिक शिक्षा व्यक्ति की कुल शारीरिक क्रियाओं का जोड़ है जो कि अपनी भिन्नता के अनुसार धुनी जाती हैं तथा अपने उद्देश्य के अनुसार प्रयोग की जाती हैं।” यह किस का कथन है ?
उत्तर-
जे० एफ० विलियम।

प्रश्न 9.
“शारीरिक शिक्षा समूची विद्या का वह भाग है जिसका सम्बन्ध मांसपेशियों की क्रियाओं तथा उनसे सम्बन्धित क्रियाओं के साथ है।” यह किसका कथन है ?
उत्तर-
जे०बी०नैश।

प्रश्न 10 .
शारीरिक शिक्षा सम्पूर्णता का अभिन्न अंग है जिसका उद्देश्य शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक तौर पर ठीक शहरी पैदा करना है, इस तक पहुंचने के लिए शारीरिक क्रियाओं का स्थान चुना गया है ताकि इसको प्राप्त कर सकें।”
उत्तर-
चार्ल्स ए. बूचर।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा के कोई तीन उद्देश्य लिखें।
उत्तर-

  1. शारीरिक विकास,
  2. मानसिक विकास,
  3. भावनात्मक विकास।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र लिखो।
उत्तर-
विद्यार्थियों का बहुमुखी विकास जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास करने की अनगिनत शारीरिक क्रिया द्वारा कोशिश की जाती है।

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा के कोई तीन महत्त्व लिखें।
उत्तर-

  1. शारीरिक शिक्षा का पाठ्यक्रम
  2. शारीरिक शिक्षा में साम्प्रदायिकता के लिए कोई स्थान नहीं।
  3. देशभक्ति, अनुशासन तथा सहनशीलता।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न | (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
जे० एफ० विलियम के अनुसार शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
शारीरिक शिक्षा का लक्ष्य कुशल मार्गदर्शन करना है जिससे मनुष्य या संगठन को इस तरह की स्थिति में भाग लेने का अवसर मिलता है ताकि वह आनन्ददायक मानसिक रूप और प्रेरक रूप से स्वस्थ रहे।

प्रश्न 2.
शारीरिक शिक्षा सलाहकार बोर्ड के अनुसार शारीरिक शिक्षा की परिभाषा लिखो।
उत्तर-
“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक व भावात्मक तौर पर योग्य बनाना है व उसमें इस तरह के निजी व सामाजिक गुण विकसित करना है जिससे वह समाज के अन्य सदस्यों के साथ स्वतन्त्रतापूर्वक रह सके व अच्छा नागरिक बन सके।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा के केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड के अनुसार शारीरिक शिक्षा की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
“शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक बच्चे को शारीरिक, मानसिक व भावात्मक तौर पर योग्य बनाना है। उसमें इस तरह के निजी व सामाजिक गुण विकसित करना है जिससे वह समाज के अन्य सदस्यों के साथ स्वतापूर्वक रह सके व अच्छ नागरिक बन सके।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 2 शारीरिक शिक्षा और इसका महत्त्व

बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न-
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बताओ।
उत्तर-
आज शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र इतना विशाल है कि खेलों से लेकर मनोरंजन और भौतिक चिकित्सा (Physiotheraphy) तक शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में शामिल हैं! आज शारीरिक शिक्षा विद्यार्थियों के शारीरिक मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक और नैतिक विकास में योगदान दे रही है। शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र निम्नलिखित क्रियाओं का सुमेल है-

1. संशोधक व्यायाम (Corrective Exercises)-इन व्यायामों द्वारा किसी खिलाड़ी या व्यक्ति की शारीरिक समस्याओं को दूर किया जा सकता है। कई बार मांसपेशियों की कमज़ोरी, हड्डियों की बनावट या चोट लगने के कारण शारीरिक त्रुटि पैदा हो जाती है। भौतिक चिकित्सा (Physiotheraphy) की मदद से हलके व्यायामों के द्वारा इन त्रुटियों का इलाज किया जा सकता है।

2. आत्म-रक्षक व्यायाम (Self Defence Activities) – इसमें वे सभी क्रियाएं शामिल होती हैं जिनकी सहायता से व्यक्ति आत्म-रक्षा कर सकता है। इन क्रियाओं के द्वारा व्यक्ति को आत्म-रक्षा करने के भिन्न भिन्न कौशल सिखाए जाते हैं। गतका, मुक्केबाजी, कराटे, कुश्ती, जूडो आदि खेल इस क्षेत्र में शामिल होती हैं।

3. ताल नाच (Rhythmics)-संगीत या ताल के साथ की जाने वाली क्रियाएं इसमें शामिल होती हैं। जैसे, डम्बल, लेज़ियम (रिदमिक जिमनास्टिक) लोक-नृत्य क्रियाएं आदि।

4. मनोरंजन क्रियाएं (Recreational Activities)-दैनिक जीवन की भाग-दौड़ के उपरांत जब मानव ऊब जाता है तो मनोरंजन उसके जीवन में दोबारा ताज़गी भरने की शक्ति रखता है। मनोरंजन के लिए मानव कई प्रकार की क्रियाएं कर सकता है, जैसे कैंप लाना, पिकनिक, पहाड़ों की सैर, मछली पकड़ना आदि। मनोरंजन की ये सभी क्रियाएं भी शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में ही शामिल हैं।

5. यौगिक क्रियाएं (Yogic Activites)-योग भारत की एक पुरातन विधि है जो आज पूरे संसार में प्रचलित हो रही है। योग में अलग-अलग आसन, प्राणायाम और अन्य क्रियाएं शामिल होती हैं जिनका प्रयोग व्यायाम, इलाज, ध्यान लगाने आदि के लिए किया जाता है।

6. शैक्षिक क्षेत्र (Educational Scope)-शारीरिक शिक्षा में हम अलग-अलग विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं, जैसे-जीव विज्ञान, शारीरिक बनावट, मनोविज्ञान, भौतिक चिकित्सा आदि। विद्यार्थी भविष्य में इन विषयों को अपने पेशे के रूप में अपना सकते हैं।

7. व्यावसायिक क्षेत्र (Vocational Scope)—शारीरिक शिक्षा सिर्फ एक खिलाड़ी ही नहीं बनाता बल्कि शारीरिक शिक्षा अध्याय, प्रशिक्षक, खेल पत्रकार, कमैंटेटर आदि प्रमुख व्यवसायों में भी जाने का अवसर प्रदान करता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

PSEB 11th Class Agriculture Guide ख़रीफ़ की फसले Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
ख़रीफ़ की दो अनाज वाली फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
धान, मक्की तथा ज्वार ।

प्रश्न 2.
धान की दो उन्नत किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
पी०आर०-123, पी०आर०-122.

प्रश्न 3.
देसी कपास की दोहरी किस्म की एक एकड़ खेती के लिए कितना बीज चाहिए ?
उत्तर-
1.5 किलो बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 4.
मक्की को हानि पहुंचाने वाले मुख्य कीट का नाम बताओ।
उत्तर-
मक्की का गन्डोया।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 5.
गन्ने के दो रोगों के नाम बताओ।
उत्तर-
रत्ता रोग, लाल धारियों वाला रोग।

प्रश्न 6.
हरी खाद के रूप में बोई जाने वाली दो फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
सन् तथा लैंचा।

प्रश्न 7.
मक्की की एक एकड़ की बुआई के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
पर्ल पॉपकार्न के लिए 7 किलो तथा अन्य किस्मों के लिए 8 किलो प्रति एकड़, चारे वाली मक्की के लिए 30 किलो बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 8.
कपास की बुआई का समय बताओ।
उत्तर-
1 अप्रैल से 15 मई।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 9.
गन्ने में बोई जाने वाले एक अन्तर फसल का नाम बताओ। उत्तर-गर्म ऋतु की मूंगी या मांह।। प्रश्न 10. ख़रीफ के चारे की दो फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
मक्की , बाजरा, गवारा आदि।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
फसल चक्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
पूरे वर्ष में एक खेत में जो फसलें उगाई जाती हैं, उसको फसल चक्कर कहा जाता है, जैसे-धान-गेहूँ, धान-आलू-सूर्यमुखी आदि।

प्रश्न 2.
धान आधारित दो फसल चक्रों के नाम लिखो।
उत्तर-
धान-गेहूँ/बरसीम, धान-गेहूँ-सठ्ठी मक्की, धान-आलू-सठ्ठी मूंगी/सूर्यमुखी।

प्रश्न 3.
हरी खाद क्यों दी जाती है ?
उत्तर-
हरी खाद में फलीदार फसलें होती हैं; जैसे-दालों वाली फसलें, सन्, लैंचा आदि। इन फसलों के कारण भूमि में नाइट्रोजन तत्त्व की वृद्धि होती है तथा हरी खाद की फसल को जुताई करके भूमि में दबा दिया जाता है। इससे भूमि में मल्लहड़ की भी वृद्धि होती है तथा भूमि की उपजाऊ शक्ति में वृद्धि होती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 4.
मक्की की बुआई की विधि बताओ।
उत्तर-
मक्की की बुवाई का समय मई के अंतिम सप्ताह से अंत जून तक का है। बुवाई के समय पंक्तियों में फासला 60 सैं०मी० तथा पौधे से पौधे का फासला 22 सैं०मी० रखना चाहिए।

प्रश्न 5.
मक्की में इटसिट की रोकथाम बताओ।
उत्तर-
मक्की में इटसिट की रोकथाम के लिए एट्राटाप नदीन-नाशक का प्रयोग बुवाई से 10 दिनों के अन्दर-अन्दर करना चाहिए।

प्रश्न 6.
धान में कद्दू क्यों किया जाता है ?
उत्तर-
धान की फसल के लिए पानी की अधिक आवश्यकता होती है। कद्दू करने से भूमि में पानी रोकने की शक्ति बढ़ जाती है, पानी का वाष्पीकरण कम होता है। नदीनों की समस्या में कमी आती है। धान की पनीरी लगानी आसान हो जाती है।

प्रश्न 7.
गन्ने की बुआई के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
एक एकड़ कमाद के लिए तीन आंखों वाली 20 हज़ार गुल्लियां या चार आंखों वाली 15 हज़ार गुल्लियां या 5 आंखों वाली 12 हज़ार गुल्लियों की आवश्यकता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 8.
पतझड़ ऋतु के गन्ने की बुआई का समय और विधि बताओ।
उत्तर-
पतझड़ ऋतु की गन्ने की बुआई का समय 20 सितम्बर से 20 अक्तूबर का है। बुवाई 90 सैं०मी० फासले की पंक्तियों में की जाती है।

प्रश्न 9.
मूंगी के पत्ते सुखाने के लिए स्प्रे का समय और मात्रा बताओ।
उत्तर-
जब कम्बाइन से मूंगी की कटाई करनी हो तो जब लगभग 80% फलियां पक जाती हैं तो ग्रैमक्सोन का स्प्रे करके पत्ते तथा तने सुखा दिये जाते हैं।

प्रश्न 10.
धान में खरपतवार की रोकथाम का तरीका बताओ।
उत्तर-
धान में स्वांक तथा मोथा नदीन होते हैं। पनीरी लगाने से 15 तथा 30 दिन बाद पैडीवीडर के साथ दो गुडाइयां करें या नदीनों को हाथ से खींच कर निकाल दें। उचित दवाइयों का उचित मात्रा में तथा उचित समय पर प्रयोग करना चाहिए।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
धान में हरी खाद के उपयोग के बारे में लिखो।
उत्तर-
गेहूँ की कटाई के शीघ्र बाद ही लैंचा (जंतर) की हरी खाद बो देनी चाहिए तथा इसे दबाने के बाद धान की बुवाई करनी चाहिए। सट्ठी मुंगी को भी गेहूँ काटने के तुरन्त बाद बो कर फलियां तोड़कर मूंगी की फसल को खेत में हरी खाद के तौर पर दबाकर शीघ्र ही धान लगा दें।
हरी खाद में देसी खाद के सभी गुण होते हैं। उससे किसान रासायनिक खादें डालने से बच जाता है क्योंकि फलीदार फसल की फलियों में फॉस्फोरस, रेशे में पोटाशियम तथा जड़ों में नाइट्रोजन मिलती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 2.
धान की सीधी बुआई के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
धान की सीधी बुआई केवल मध्यम से भारी भूमियों में ही करनी चाहिए। हल्की (रेतीली) भूमि में फसल में लोहा तत्त्व की कमी हो जाती है तथा फसल की पैदावार कम हो जाती है।

बुवाई का समय-सीधी बुवाई के लिए उचित समय जून का पहला पखवाड़ा है। बीज की मात्रा-इसके लिए बीज की मात्रा 8-10 किलो प्रति एकड़ की आवश्यकता

गहराई तथा पंक्तियों में फासला-बीज को 2-3 सैं०मी० गहराई पर धान वाली ड्रिल से 20 सैं०मी० चौड़ी पंक्तियों में बोना चाहिए। धान की सीधी बुवाई के लिए कम समय पर पकने वाली किस्में ही लेनी चाहिए।

खरपतवार (नदीनों) की रोकथाम-बुवाई से 2 दिनों के अन्दर-अन्दर सटोंप का प्रयोग करना चाहिए। फसल की बुवाई से 30 दिन बाद यदि फसल में स्वांक तथा मोथा नदीन हों तो नोमनीगोल्ड का प्रयोग किया जाता है। चौड़े पत्ते वाले नदीनों के लिए सैगमैंट नदीननाशक का प्रयोग करना चाहिए।

खाद-60 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ के हिसाब से तीन बराबर भागों में बांट कर बुवाई से दो, पांच तथा नौ सप्ताह बाद छट्टा विधि से डालना चाहिए। सिंचाई-फसल को तीन से पांच दिनों के भीतर पानी देते रहें।

प्रश्न 3.
मक्की में रासायनिक खादों के प्रयोग के बारे में बताओ।
उत्तर-
मक्की में प्रति एकड़ के लिए 50 किलो नाइट्रोजन, 24 किलो फॉस्फोरस तथा 12 किलो पोटाश की आवश्यकता होती है। पोटाश तत्व का प्रयोग मिट्टी जांच के आधार पर करना चाहिए। सारी फॉस्फोरस, सारी पोटाश तथा तीसरा भाग नाइट्रोजन खाद बुवाई करते समय ही डाल देनी चाहिए। नाइट्रोजन का एक भाग जब फसल घुटनों तक बढ़ जाए तो डालें तथा दूसरा भाग बूर पड़ने से पहले डाल देना चाहिए। यदि गेहूँ को फॉस्फोरस की खाद सिफारिश मात्रा में डाली हो तो मक्की के लिए इसकी आवश्यकता नहीं रहती।

प्रश्न 4.
कपास के बीज की शुद्धि का विवरण दो।
उत्तर-
बी०टी० नरमा की किस्मों के लिए 750 ग्राम, बी० टी० रहित दोहरी किस्मों के लिए 1 किलो, साधारण किस्मों के लिए 3 किलो, देसी कपास की दोगली किस्मों के लिए 1.5 किलो तथा साधारण किस्मों के लिए 3 किलो प्रति एकड़ बीज की आवश्यकता होती है। सिफारिश की गई उल्लीनाशक दवाइयों से बीज की सुधाई करें। फसल को तेले से बचाने के लिए बीज को गाचो या करुज़र दवाई लगानी चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 5.
गन्ने को गिरने से कैसे बचाया जा सकता है ?
उत्तर-
गन्ने की फसल को गिरने से बचाना चाहिए क्योंकि गिरी फसल पर कोहरे का अधिक प्रभाव पड़ता है। फसल को गिरने से बचाने के लिए मानसून शुरू होने से पहले जून के अन्त में मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए। अगस्त के अंत में या सितम्बर के शुरू में फसलों के पूले बांध देने चाहिएं।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB ख़रीफ़ की फसले Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सावनी (खरीफ) की फसल कब बोई जाती है ?
उत्तर-
जून-जुलाई या मानसून के आने पर।

प्रश्न 2.
सावनी (ख़रीफ) की फसल कब काटी जाती है ?
उत्तर-
अक्तूबर-नवम्बर में।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 3.
सावनी (ख़रीफ) की फसलों को किन श्रेणियों में बांटा जाता है ?
उत्तर-
तीन–1. अनाज 2. दालें तथा तेल बीज 3. कपास, कमाद तथा सावनी के चारे।

प्रश्न 4.
सावनी (ख़रीफ) की अनाज वाली फसलें बतायें।
उत्तर-
धान, बासमती, ज्वार, मक्की, बाजरा।

प्रश्न 5.
धान की पैदावार में कौन-सा देश अग्रणी है ?
उत्तर-
चीन।

प्रश्न 6.
भारत में धान की पैदावार सबसे अधिक कहां होती है ?
उत्तर-
पश्चिमी बंगाल।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 7.
धान को किस नाम से जाना जाता है ?
उत्तर-
धान तथा जीरी।

प्रश्न 8.
पंजाब में धान की काश्त के नीचे कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
28 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 9.
पंजाब में धान की औसत पैदावार कितनी है ?
उत्तर-
60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर।

प्रश्न 10.
धान की कृषि के लिए कद्दू करने से पहले खेत को किस कराहे से समतल करना चाहिए ?
उत्तर-
लेज़र कराहे से।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 11.
धान के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
प्रति एकड़ आठ किलो बीज।।

प्रश्न 12.
चौड़े पत्ते वाले धान के नदीन जैसे घरीला आदि के लिए कौन-सी दवाई का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
एलग्रिप या सेगमैंट।

प्रश्न 13.
धान की सिंचाई में पानी की बचत के लिए किस यंत्र की सहायता ली जाती है ?
उत्तर-
टैंशीयोमीटर।

प्रश्न 14.
धान की सीधी बुवाई किस तरह की भूमि में ठीक रहती है ?
उत्तर-
मध्यम से भारी भूमि।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 15.
धान की फसल के लिए जिंक की कमी के लिए क्या प्रयोग किया जाता है तथा कितनी मात्रा है ?
उत्तर-
जिंक सल्फेट, 25 किलो प्रति एकड़ के अनुसार।

प्रश्न 16.
धान के दानों को गोदाम में रखने के लिए नमी की मात्रा बताओ।
उत्तर-
12%.

प्रश्न 17.
बासमती की किस्में बताएं।
उत्तर-
पंजाब बासमती-3, पूसा पंजाब बासमती 1509, पूसा पंजाब बासमती-1121.

प्रश्न 18.
बासमती की पनीरी की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
पूसा पंजाब बासमती 1509 के लिए पनीरी जून के दूसरे पखवाड़े तथा अन्य किस्मों के लिए जून के पहले पखवाड़े में बोई जाती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 19.
बासमती को अधिक नाइट्रोजन तत्त्व डालने से क्या होता है ?
उत्तर-
फसल अधिक बढ़ कर गिर जाती है तथा पैदावार कम हो जाती है।

प्रश्न 20.
मक्की की पैदावार में कौन-सा देश अग्रणी है ?
उत्तर-
संयुक्त राज्य अमरीका।

प्रश्न 21.
मक्की की पैदावार में भारत में कौन-सा राज्य आगे है ?
उत्तर-
आंध्रा प्रदेश।

प्रश्न 22.
पंजाब में मक्की की कृषि के अधीन क्षेत्रफल बताएं।
उत्तर-
1 लाख 25 हज़ार हैक्टेयर।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 23.
मक्की की पंजाब में औसत पैदावार बताएं।
उत्तर-
15 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 24.
मक्की के लिए कितनी वर्षा ठीक रहती है ?
उत्तर-
50 से 75 सैं०मी०।

प्रश्न 25.
मक्की के लिए कैसी भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
अच्छे जल निकास वाली मध्यम से भारी।।

प्रश्न 26.
मक्की की पर्ल पॉपकार्न के लिए बीज की मात्रा बताएं।
उत्तर-
7 किलो प्रति एकड़।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 27.
मक्की की आम प्रयोग वाली किस्में बताएं।
उत्तर-
पी०एम०एच०-1, पी०एम०एच-2.

प्रश्न 28.
मक्की की विशेष प्रयोग वाली किस्में बताओ।
उत्तर-
पंजाब स्वीट कार्न-1, पर्ल पॉपकार्न ।

प्रश्न 29.
मक्की की बुवाई का समय बताएं।
उत्तर-
मई के अंतिम सप्ताह से अन्त जून तक तथा अगस्त के दूसरे पखवाड़े में मक्की की बुवाई की जा सकती है।

प्रश्न 30.
मक्की की बुवाई के लिए पंक्तियों का तथा पौधों का आपसी फासला बताओ।
उत्तर-
60 सैं०मी०, 22 सैं०मी०।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 31.
मक्की में इटसिट के लिए कौन-सा नदीननाशक प्रभावशाली है ?
उत्तर-
एट्राटाप।

प्रश्न 32.
मक्की में कृषि के ढंग से नदीनों की रोकथाम के लिए क्या बोया जाता है ?
उत्तर-
रवाह (चने)।

प्रश्न 33.
डीला/मोथा की रोकथाम के लिए कौन-सी दवाई का प्रयोग करोगे ?
उत्तर-
2, 4-डी।

प्रश्न 34.
साधारण मक्की को कितनी सिंचाई की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
4-6 सिंचाइयों की।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 35.
भारत में सब से अधिक दालों की पैदावार कहां होती है ?
उत्तर-
राजस्थान।

प्रश्न 36.
पंजाब में मूंगी की कृषि के अधीन कितना क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
5 हज़ार हैक्टेयर।

प्रश्न 37.
पंजाब में मूंगी की पैदावार बतायें।
उत्तर-
350 किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 38.
मुंगी की कृषि के लिए कौन-सी भूमि उचित नहीं है ?
उत्तर-
कलराठी या सेम वाली भूमि।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 39.
मूंगी के लिए बीज की मात्रा बतायें।
उत्तर-
8 किलो बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 40.
मुंगी के लिए बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
जुलाई का पहला पखवाड़ा।

प्रश्न 41.
मुंगी के लिए खालों (सियाड़) का फासला तथा पौधे से पौधे का फासला बताओ।
उत्तर-
खालों (सियाड़) का फासला 30 सैं०मी० तथा पौधे से पौधे का फासला 10 सैं०मी०।

प्रश्न 42.
मूंगी में नदीनों (खरपतवार) की रोकथाम के लिए नदीन-नाशक बताओ।
उत्तर-
ट्रेफलिन या वासालीन।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 43.
पंजाब में मांह की कृषि के अधीन क्षेत्रफल बताओ।
उत्तर-
2 हज़ार हैक्टेयर।

प्रश्न 44.
पंजाब मांह की औसत पैदावार बताओ।
उत्तर-
180 किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 45.
मांह की कृषि के लिए कौन-सी भूमि ठीक नहीं ?
उत्तर-
लवणीय-क्षारीय, कलराठी, सेम वाली।

प्रश्न 46.
मांह के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
6-8 किलो प्रति एकड़।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 47.
अर्द्ध पहाड़ी क्षेत्रों में मांह की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
15 से 25 जुलाई तक।

प्रश्न 48.
अर्द्ध पहाड़ी क्षेत्रों के अतिरिक्त मांह की बुवाई का समय क्या है ?
उत्तर-
जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक।

प्रश्न 49.
मांह की बुवाई के लिए पंक्तियों में फासला बतायें।
उत्तर-
30 सैं०मी०।

प्रश्न 50.
मांह में कौन-सा कीटनाशक प्रयोग होता है ?
उत्तर-
सटोंप।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 51.
सोयाबीन की पैदावार किस देश में सबसे अधिक होती है ?
उत्तर-
संयुक्त राज्य अमरीका में।

प्रश्न 52.
भारत में सोयाबीन किस राज्य में अधिक होती है ?
उत्तर-
मध्य प्रदेश।

प्रश्न 53.
सोयाबीन आधारित फसल चक्र बतायें।
उत्तर-
सोयाबीन-गेहूँ/जौ।

प्रश्न 54.
सोयाबीन की किस्में बताओ।
उत्तर-
एस०एल०-958, एस०एल०-744.

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 55.
सोयाबीन की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
जून का पहला पखवाड़ा।

प्रश्न 56.
सोयाबीन की बुवाई के लिए पंक्तियों का फासला बताओ।
उत्तर-
45 सैं०मी०।

प्रश्न 57.
सोयाबीन में नदीनों की रोकथाम के लिए कौन-सी दवाइयां प्रयोग की जाती हैं ?
उत्तर-
स्टौंप, परिमेज़।

प्रश्न 58.
सोयाबीन के मुख्य कीड़े बताओ।
उत्तर-
बालों वाली सुंडी तथा सफेद मक्खी।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 59.
ऐसी फसल बताओ जो दाल भी है तथा तेल बीज फसल भी है ?
उत्तर-
सोयाबीन।

प्रश्न 60.
सबसे अधिक तेल बीज पैदा करने वाला देश बताओ।
उत्तर-
संयुक्त राज्य अमरीका।

प्रश्न 61.
भारत में तेल बीज पैदा करने वाला प्रदेश बताओ।
उत्तर-
राजस्थान।

प्रश्न 62.
मूंगफली की पैदावार सबसे अधिक कौन-से देश में है ?
उत्तर–
चीन में।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 63.
मूंगफली की पैदावार भारत में कहां अधिक होती है ?
उत्तर-
गुजरात में।

प्रश्न 64.
पंजाब में मूंगफली की कृषि के अधीन क्षेत्रफल बताओ।
उत्तर-
15 हज़ार हैक्टेयर।

प्रश्न 65.
पंजाब में मूंगफली की औसत पैदावार बताओ।
उत्तर-
7 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 66.
मूंगफली का एक फसली चक्कर बताओ।
उत्तर-
मूंगफली – आषाढ़ी की फसलें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 67.
मूंगफली की किस्में बताओ।
उत्तर-
एस०जी०-91, एस०जी०-84.

प्रश्न 68.
मूंगफली के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
38-40 किलो बीज (गिरियां) प्रति एकड़।

प्रश्न 69.
मूंगफली के लिए बरानी बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
मानसून शुरू होने पर।

प्रश्न 70.
सेंजु फसल वाली मूंगफली के लिए बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
अंत अप्रैल से अंत मई तक।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 71.
मूंगफली में नदीनों की रोकथाम के लिए नदीननाशकों के नाम बताओ।
उत्तर-
टरैफलान, सटोंप।

प्रश्न 72.
ख़रीफ के लिए पशुओं के चारे की फसलें बताओ।
उत्तर-
मक्की, ज्वार (चरी), बाजरा।

प्रश्न 73.
कपास की पैदावार में कौन-सा देश आगे है ?
उत्तर-
चीन।

प्रश्न 74.
कपास भारत में कहां अधिक होती है ?
उत्तर-
गुजरात में।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 75.
पंजाब में कपास के अधीन क्षेत्रफल बताओ ।
उत्तर-
5 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 76.
कपास की पंजाब में औसत पैदावार बताओ।
उत्तर-
230 किलो रूई प्रति एकड़।

प्रश्न 77.
कपास के लिए कौन-सी भूमि ठीक नहीं है ?
उत्तर-
कलराठी तथा सेम वाली।

प्रश्न 78.
नरमे की साधारण किस्म बतायें।
उत्तर-
एल०एच०-2108.

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 79.
कपास के लिए बी०टी० नरमे के बीज बताओ।
उत्तर-
750 ग्राम प्रति एकड़।

प्रश्न 80.
देसी कपास की दोहरी किस्में बताओ।
उत्तर-
पी०ए०यू० 626 एच० ।

प्रश्न 81.
कपास की बुवाई के लिए समय बताओ।
उत्तर-
1 अप्रैल से 15 मई।

प्रश्न 82.
कपास के सियाड़ (खाल) में फासला बताओ।
उत्तर-
67 सैं०मी०।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 83.
कपास में प्रयोग किए जाने वाले नदीननाशक के नाम बताओ।
उत्तर-
टरैफलिन, सटोंप, ग्रैमकसोन तथा राऊंडअप।

प्रश्न 84.
कमाद की पैदावार किस देश में अधिक है ?
उत्तर-
ब्राज़ील में।

प्रश्न 85.
भारत में कमाद की पैदावार कहां अधिक है ?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश।

प्रश्न 86.
पंजाब में कमाद की कृषि के अधीन क्षेत्रफल बताओ।
उत्तर-
80 हज़ार हैक्टेयर।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 87.
पंजाब में कमाद की औसत पैदावार कितनी है ?
उत्तर-
280 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 88.
कमाद में से चीनी की प्राप्ति कितनी होती है ?
उत्तर-
9%.

प्रश्न 89.
कमाद के लिए कैसी भूमि ठीक रहती है ?
उत्तर-
मध्यम से भारी भूमि।

प्रश्न 90.
बसंत ऋतु की कमाद की अगेती किस्में बताओ।
उत्तर-
सी०ओ०जे०-85, सी०ओ०जे०-83.

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 91.
कमाद के बीज के लिए चार आंखों वाली कितनी गुल्लियों की आवश्यकता है ?
उत्तर-
15 हज़ार गुल्लियों की एक एकड़ के लिए।

प्रश्न 92.
भार के अनुसार कमाद के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़।

प्रश्न 93.
कमाद की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
मध्य फरवरी से अंत मार्च तक।

प्रश्न 94.
गन्ने में (खरपतवारों) की रोकथाम के लिए प्रयोग की जाती दवाइयां बताओ।
उत्तर-
एट्राटाफ, सैनकोर, 2,4-डी।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 95.
पतझड़ ऋतु की कमाद की किस्में बताओ।
उत्तर-
सी०ओ० जे०-85, सी०ओ०जे०-83.

प्रश्न 96.
पतझड़ ऋतु के कमाद के लिए बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
20 सितम्बर से 20 अक्तूबर।

प्रश्न 97.
कमाद में यदि गेहूँ या राईया बोया हो तो कौन-सा नदीननाशक प्रयोग किया जाना चाहिए ?
उत्तर-
आईसोप्रोटयूरान।

प्रश्न 98.
कमाद में यदि लहसुन बोया हो तो कौन-सा नदीननाशक प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
सटोंप।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 99.
एक बड़े पशु को लगभग कितना चारा प्रतिदिन चाहिए ?
उत्तर-
40 किलो हरा चारा।

प्रश्न 100.
सावनी के चारे कौन-से हैं ?
उत्तर-
बाजरा, मक्की, ज्वार (चरी), नेपीयर बाजरा, गिन्नी घास, गवारा, रवाह आदि।

प्रश्न 101.
मक्की का चारा कितने दिनों में तैयार हो जाता है ?
उत्तर-
50-60 दिनों में।

प्रश्न 102.
मक्की की चारे वाली किस्म बताओ।
उत्तर-
जे 1006.

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 103.
चारे के लिए मक्की की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
मार्च के पहले सप्ताह से मध्य सितम्बर तक।

प्रश्न 104.
चारे वाली मक्की को कौन-सा कीट लगता है ?
उत्तर-
मक्की का गड़यां।

प्रश्न 105.
कौन-से चारे को पशु अधिक खुश होकर खाते हैं ?
उत्तर-
ज्वार (चरी)।

प्रश्न 106.
ज्वार की किस्में बताओ।
उत्तर-
एस०एल०-104.

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 107.
ज्वार के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
20-25 किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 108.
अग्रिम या अगेते ज्वार के लिए बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
अगेते चारे के लिए बुवाई मध्य मार्च से शुरू कर देनी चाहिए।

प्रश्न 109.
ज्वार के लिए बुवाई का ठीक समय बतायें।
उत्तर-
मध्य जून से मध्य जुलाई ।

प्रश्न 110.
ज्वार की पंक्तियों में फासला बताओ।
उत्तर-
22 सैं०मी०।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 111.
यदि गवारा तथा चरी मिला कर बोये गये हों तो कौन-सा नदीननाशक प्रयोग होता है ?
उत्तर-
सटोंप।

प्रश्न 112.
बाजरे वाले फसल चक्र के बारे में बताओ।
उत्तर-
बाजरा – मक्की – बरसीम।

प्रश्न 113.
बाजरे की किस्में बताओ।
उत्तर-
पी०एच०बी०एफ०-1, एफ०बी०सी०-16.

प्रश्न 114.
बाजरे के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
6-8 किलो बीज प्रति एकड़।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 115.
बाजरे के लिए बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
मार्च से अगस्त।

प्रश्न 116.
बाजरे की बुवाई का ढंग बताओ।
उत्तर-
छट्टा विधि द्वारा बुवाई की जाती है।

प्रश्न 117.
बाजरे में नदीनों की रोकथाम के लिए दवाई बतायें।
उत्तर-
ऐटराटाफ।

प्रश्न 118.
बाजरे की सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
आमतौर पर 2-3 सिंचाइयां काफ़ी है ।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 119.
बाजरे की कटाई कितने दिनों बाद की जाती है ?
उत्तर-
45-55 दिनों बाद।

प्रश्न 120.
बाजरे की बीमारियां बताओ।
उत्तर-
सिट्टों का रोग, गुदियां रोग।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
धान की बुवाई के लिए जलवायु और ज़मीन के बारे में बताओ।
उत्तर-
धान के लिए अधिक गर्मी, अधिक नमी और अधिक पानी की ज़रूरत होती है। इसलिए मध्यम से भारी भूमि अच्छी रहती है। इसके लिए तेज़ाबी से क्षारीय भूमि भी ठीक है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 2.
धान की बुवाई के लिए बीज की मात्रा और सुधाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
एक एकड़ की बुवाई के लिए 8 किलो बीज की पनीरी की ज़रूरत होती है। फसल को रोगों से बचाने के लिए बीज की सिफ़ारिश की गई फंफूदी दवाइयों के घोल में 8-10 घण्टे तक भिगो कर सुधाई कर लेनी चाहिए।

प्रश्न 3.
धान में चौड़े पत्ते वाले नदीनों की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
धान में चौड़े पत्ते वाले नदीन जैसे-घरीला, सनी आदि पैदा हो जाते हैं। इनकी रोकथाम के लिए एलग्रिप या सैगमैंट में से किसी एक नदीन-नाशक का प्रयोग पनीरी लगाने से 15-20 दिनों बाद करो।

प्रश्न 4.
धान में जिंक की कमी के संबंध में क्या जानते हैं ?
उत्तर-
ज़िक की कमी के कारण पौधे बौने रह जाते हैं पैदावार कमज़ोर दिखाई देती है। पौधों के पत्ते जंग लगे, भूरे हो जाते हैं। पत्ते के बीच वाली नाड़ी का रंग बदल जाता है तथा बाद में पत्ते सूख जाते हैं। जिंक की कमी पूरी करने के लिए कद् करते समय 25 किलो जिंक सल्फेट प्रति एकड़ के हिसाब से बिखेर दें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 5.
धान की कटाई तथा संभाल के बारे में लिखो।
उत्तर-
जब फसलों की मुंजरें पक जाएं तथा नाड़ी पीली हो जाए तो फसल की कटाई की जाती है। दानों को गोदाम में रखते समय ध्यान रखें कि इनमें नमी की मात्रा 12% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 6.
बासमती की पनीरी की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
पूसा पंजाब बासमती 1509 की पनीरी जून के दूसरे पखवाड़े तथा पंजाब बासमती-3 तथा पूसा बासमती-1121 की पनीरी जून के पहले पखवाड़े में बोई जाती है।

प्रश्न 7.
बासमती की पनीरी को खेतों में लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
पूसा पंजाब बासमती 1509 पनीरी को जुलाई के दूसरे पखवाड़े तथा पंजाब बासमती 3 तथा पूसा बासमती 1121 की पनीरी को जुलाई के पहले पखवाड़े में कद्दू किए खेत में लगाने चाहिएं। प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से 33 पौधे लगाएं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 8.
मक्की के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
मक्की को उगने से लेकर तैयार होने तक सीलन वाली तथा गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है। फसल तैयारी के समय यदि कम सीलन तथा बहुत अधिक तापमान हो तो पत्तों को हानि पहुंचाता है। इससे परागकण सूख जाते हैं तथा परागण क्रिया अच्छी प्रकार नहीं होती तथा दाने कम बनते हैं। 50 सैं०मी० से 75 सें०मी० वर्षा मक्की के लिए ठीक रहती है। अच्छे जल निकास वाली मध्यम से भारी भूमि अच्छी रहती है।

प्रश्न 9.
मक्की के लिए सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
मक्की को 4-6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है परन्तु यह आवश्यकता वर्षा पर निर्भर है। मक्की के तैयार होने तथा सूत कातने के समय पानी देने का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्न 10.
मक्की की कटाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
जब छल्लियों के पर्दे (छिलके या खग्गे) सूखकर भूरे हो जाएं परन्तु टांडे तथा पत्ते बेशक हरे ही रहें। दानों में नमी की मात्रा 15 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 11.
मूगी के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
मूंगी के लिए गर्म जलवायु ठीक रहती है। यह फसल अन्य दाल फसलों से अधिक गर्मी तथा शुष्कता सहन कर सकती है। इस फसल के लिए कलराठी तथा सेम वाली भूमि ठीक नहीं है।

प्रश्न 12.
मूंगी के लिए भूमि की तैयारी तथा खाद के बारे में बताओ।
उत्तर-
भूमि की तैयारी के लिए खेत की 2-3 बार जुताई की जाती है तथा सुहागा चला कर समतल किया जाता है। इस प्रकार प्रति एकड़ के हिसाब से बुवाई के समय 5 किलो नाइट्रोजन तथा 16 किलो फास्फोरस ड्रिल की जाती है।

प्रश्न 13.
मूंगी के लिए नदीनों को रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
नदीनों की रोकथाम के लिए एक या दो गुडाइयां करनी चाहिए। नदीनों की रोकथाम के लिए ट्रेफलिन या वासालीन नदीननाशक को बुवाई से पहले प्रयोग किया जाना चाहिए या सटोंप को बुवाई से 2 दिनों के भीतर-भीतर प्रयोग करना चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 14.
मूंगी की कटाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
मूंगी की जब 80% के लगभग फलियां पक जाएं तो इसको दातरी से काटा जाता है। गहाई के लिए ग्रैशर का प्रयोग भी किया जाता है। यदि कम्बाइन से मूंगी काटनी हो तो जब लगभग 80% फलियां पक जाएं तो ग्रेगकसोन का छिड़काव करके पत्ते तथा तने सुखा दिए जाते हैं।

प्रश्न 15.
मांह के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
इस फसल के लिए गर्म तथा नमी वाली जलवायु उचित है। इस के लिए लगभग हर प्रकार की भूमि ठीक रहती है परन्तु लवणीय क्षारीय, कलराठी या सेम वाली भूमि इसकी कृषि के लिए उचित नहीं है।

प्रश्न 16.
मांह की उन्नत किस्मों, भूमि की तैयारी तथा नदीनों की रोकथाम के बारे में बतायें।
उत्तर-

  1. उन्नत किस्में-मांह 114, मांह 338.
  2. भूमि की तैयारी-दो या तीन बार जुताई के बाद सुहागा चलायें।
  3. नदीनों की रोकथाम-बुवाई से एक माह बाद एक गुडाई करनी चाहिए या बुवाई से 2 दिनों के अन्दर सटोंप का छिड़काव किया जाता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 17.
माह के लिए बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
मांह की नीम पहाड़ी क्षेत्रों में बुवाई 15 से 25 जुलाई तक तथा दूसरे क्षेत्रों में जून के अन्तिम सप्ताह से जुलाई के पहले सप्ताह तक करनी चाहिए। असिंचित (बरानी)
स्थितियों में बुवाई मानसून शुरू होने पर की जाती है। बुवाई 30 सैं०मी० दूरी की पंक्तियों में की जाती है।

प्रश्न 18.
मांह की फसल के लिए सिंचाई तथा कटाई के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. सिंचाई-साधारणतया सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती परन्तु गर्मी अधिक होने पर एक पानी की आवश्यकता होती है।
  2. कटाई-जब पत्ते झड़ जाते हैं तथा फलियां स्लेटी काली हो जाएं तो फसल कटाई के लिए तैयार होती है।

प्रश्न 19.
सोयाबीन के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
इस फसल के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता है। इसको सभी प्रकार की भूमियों में बोया जा सकता है परन्तु अच्छे जल निकास वाली, लवण तथा क्षार से रहित उपजाऊ भूमि इसकी कृषि के लिए उचित रहती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 20.
सोयाबीन वाला फसल चक्र, इसकी उन्नत किस्में तथा भूमि की तैयारी के बारे में बताओ।
उत्तर-
1. फसल चक्र-सोयाबीन-गेहूँ/जौ।
2. उन्नत किस्में-एस०एल०-958, एस०एल० 744.
3. भूमि की तैयारी-भूमि को दो बार जोतकर हर बार सुहागा फेर कर समतल करें।

प्रश्न 21.
सोयाबीन के लिए बीज की मात्रा तथा शुद्धि के बारे में बताओ तथा बुवाई का ढंग भी बताओ।
उत्तर-
बीज की मात्रा 25-30 किलो प्रति एकड़ के हिसाब से आवश्यकता है। शुद्धि सिफ़ारिश की गई फंफूदी नाशक दवाइयों से करनी चाहिए। यदि पहली बार खेत में बुवाई करनी हो तो बीज को जीवाणु खाद कल्चर ज़रूर लगाएं। बुवाई 45 सैं०मी० की पंक्तियों में की जाती है।

प्रश्न 22.
सोयाबीन में नदीनों की रोकथाम के बारे में बतायें।
उत्तर-
दो बार गुडाई करें। गुडाई बुवाई से 20 तथा 40 दिनों बाद करनी चाहिए। बुवाई के 1-2 दिनों के अन्दर सटोंप या बुवाई से 15-20 दिनों बाद परीमेज़ का स्प्रे करके नदीनों की रोकथाम की जा सकती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 23.
सोयाबीन के लिए खादों के बारे में बताओ।
उत्तर-
सोयाबीन की बुवाई से पहले 4 टन प्रति एकड़ के हिसाब से रूड़ी का प्रयोग करें। बुवाई के समय फसल को 13 किलो नाइट्रोजन तथा 32 किलो फास्फोरस प्रति एकड़ के हिसाब से डालें।

प्रश्न 24.
सोयाबीन की सिंचाई के बारे में बतायें।
उत्तर-
सोयाबीन को आमतौर पर 3-4 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है जब फलियों में दाने पड़ जाते हैं तब पानी देना आवश्यक है परन्तु वर्षा ठीक मात्रा में हो जाए तो पानी की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 25.
सोयाबीन की कटाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
जब बहुत सारे पत्ते झड़ जाएं तथा फलियों का रंग बदल जाए तो फसल की कटाई कर देनी चाहिए। जब दाने स्टोर करने हों तो दानों में नमी 7% से अधिक नहीं होनी चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 26.
सोयाबीन के कीट तथा रोगों के बारे में बताओ।
उत्तर-
बालों वाली सूंडी तथा सफेद मक्खी इसके मुख्य कीट हैं तथा चितकबरा रोग इसकी मुख्य बीमारी है।

प्रश्न 27.
मूंगफली के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
बरानी फसल के लिए जुलाई, अगस्त तथा सितम्बर में लगभग 50 सैं०मी० एक जैसी वर्षा बहुत आवश्यक है। हल्की तथा मध्यम भूमि इसके लिए ठीक है।

प्रश्न 28.
मूंगफली के लिए उन्नत किस्में भूमि की तैयारी तथा फसल चक्कर बताओ।
उत्तर-
उन्नत किस्में-एस०जी०-99, एस०जी०-84. भूमि की तैयारी-दो बार जुताई करके खेत तैयार हो जाता है। फसल चक्कर-मूंगफली – आषाढ़ी (रबी) की फसलें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 29.
मूंगफली के लिए बीज की मात्रा तथा सुधाई, बुवाई का ढंग बताओ।
उत्तर-
सिफ़ारिश की गई उल्लीनाशक दवाइयों से बीज की सुधाई की जाती है। बीज की मात्रा 38-40 किलो बीज (गिरी) प्रति एकड़ प्रयोग किया जाता है। फसल की बुवाई के लिए रौणी करके 30 x 15 सैं०मी० की दूरी पर बोया जाना चाहिए।

प्रश्न 30.
मूंगफली के लिए खादों के बारे में बताओ।
उत्तर-
मूंगफली को 6 किलो नाइट्रोजन, 8 किलो फॉस्फोरस तथा 10 किलो पोटाश की एक एकड़ के हिसाब से आवश्यकता होती है। पोटाश का प्रयोग मिट्टी की जांच करवा कर ही करनी चाहिए। फॉस्फोरस तत्त्व के लिए सुपरफॉस्फेट का प्रयोग करना चाहिए। इसमें सल्फर तत्त्व होता है जो कि तेल बीज फसलों के लिए ज़रूरी है। यदि फॉस्फोरस की आवश्यकता न हो तो 50 किलो जिप्सम प्रति एकड़ के हिसाब से प्रयोग करें।

प्रश्न 31.
मूंगफली में नदीनों की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
इसके लिए 3 तथा 6 सप्ताह के बाद दो गुडाइयां की जाती हैं। नदीनों की रोकथाम के लिए बुवाई के दो दिनों के अन्दर सटोंप का छिड़काव किया जाता है या टरैफलान के छिड़काव के बाद उसी दिन मूंगफली बो दें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 32.
मूंगफली की सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
मूंगफली को वर्षा पर निर्भर करते हुए 2 या 3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। यदि वर्षा न हो तो फूल पड़ने पर पहला पानी देना चाहिए। गट्ठियां बन जाने पर वर्षा अनुसार एक या दो पानी लगाए जाते हैं।

प्रश्न 33.
मूंगफली की खुदाई कीट तथा रोगों के बारे में बताओ।
उत्तर-
मूंगफली की खुदाई-सारी फसल जब एक जैसी पीली हो जाए तथा पुराने पत्ते झड़ने लगते हैं तो मूंगफली की खुदाई करनी चाहिए।
कीड़े तथा रोग-कंबल कीड़ा (भब्बू कुत्ता) सफेद सूंड, चेपा इसके मुख्य कीट हैं तथा बीज का गलना, गिच्ची का गलना तथा टिक्का रोग इसके मुख्य रोग हैं।

प्रश्न 34.
कपास के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
कपास के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु की आवश्यकता है। इसकी कृषि के लिए कलराठी तथा सेम वाली भूमियों के अलावा सभी प्रकार की भूमि ठीक रहती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 35.
नरमे की किस्में तथा फसल चक्र बताओ।
उत्तर-
फसल चक्र-कपास-गेहूँ/जौं, कपास-सूर्यमुखी, कपास-राईया, कपास-सेंजी/ बरसीम/जवी।
उन्नत किस्म-बी०टी० किस्म-एन०एस०सी०-855, अंकुर 3028, एम०आर०सी०7017, आर०सी०एच०-650.
बी०टी० रहित दोगली किस्म-एल०एच०-144. साधारण किस्म-एल०एच०-2108. देसी दोहरी किस्में-पी०ए०यू०-626 एच। देसी साधारण किस्में-एफ०डी०के०-124, एल०डी०-694.

प्रश्न 36.
नरमे के लिए बीज की मात्रा तथा शुद्धि के बारे में बताओ।
उत्तर-
बीज की मात्रा-प्रति एकड़ के हिसाब से निम्नलिखित अनुसार हैबी०टी० नरमा-700 ग्राम। बी०टी० रहित दोहरी किस्म-1 किलो। साधारण किस्म-3 किलो। देसी कपास की दोहरी किस्म-1.5 किलो। देसी साधारण किस्म-3 किलो।।
बीज की सुधाई सिफ़ारिश की गई फफूंदीनाशक दवाइयों से की जाती है। फसल को तेले से बचाने के लिए बीज को गाचो या क्रूज़र दवाई लगायें।

प्रश्न 37.
नरमे की बुवाई का समय तथा ढंग बताओ।
उत्तर-
समय-1 अप्रैल से 15 मई। खाइयों की दूरी-67 सैं०मी० ।
पौधे से पौधे का फासला-साधारण किस्मों के लिए 60 सैं०मी०, बी०टी० तथा बी०टी० रहित दोहरी किस्मों के लिए 75 सैं०मी०, देसी कपास की किस्मों के लिए 45 सैं०मी०, देसी कपास की दोहरी किस्मों के लिए 60 सैं०मी०।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 38.
नरमे में नदीनों की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
नदीनों की रोकथाम के लिए गुडाई की जाती है। कुल 2 से 3 गुडाइयां की जाती हैं। पहली गुडाई पहली सिंचाई से पहले की जाती है। गुडाई करने के लिए ट्रैक्टर से चलने वाले टिल्लर या बैलों से चलने वाली त्रिफाली से भी की जा सकती है। इटसिट/ चुपत्ती तथा मधाना/मकड़ा को काबू करने के लिए ट्रैफलिन का प्रयोग बुवाई से पहले किया जाता है या सटोंप का बुवाई के 24 घण्टे के भीतर-भीतर छिड़काव किया जाता है तथा इसके 45 दिनों के बाद एक गुडाई करें या ग्रामैकसोन तथा राऊंडअप में से एक दवाई को सुरक्षित हुड लगा कर फसल की पंक्तियों में नदीनों के ऊपर सीधा छिड़काव करें।

प्रश्न 39.
नरमे के लिए खादों के प्रयोग के बारे में बताओ।
उत्तर-
साधारण किस्में-30 किलो नाइट्रोजन तथा 12 किलो फॉस्फोरस प्रति एकड़।
बी०टी० तथा बी०टी० रहित दोहरी किस्मों के लिए-60 किलो नाइट्रोजन तथा 12 किलो फॉस्फोरस प्रति एकड़ के लिए पोटाश तत्व वाली खाद मिट्टी की जांच करवा कर ही डालें। सारी फॉस्फोरस बुवाई के समय ही तथा आधी नाइट्रोजन पौधे विरले करते समय तथा शेष नाइट्रोजन फूल निकलने के समय डालें।

प्रश्न 40.
नरमे के लिए सिंचाई तथा चुनने के बारे में बताओ।
उत्तर-
वर्षा पर निर्भर करते हुए 4 से 6 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है। पहली सिंचाई बुवाई से 4 से 6 सप्ताह बाद तथा बाद में सिंचाई दो या तीन सप्ताह के अन्तर पर करनी चाहिए।
चुगाई-मण्डी में अच्छा मूल्य लेने के लिए 15-20 दिनों के अन्तर पर साफ़ तथा सूखे नरमे को चुन लेना चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 41.
नरमे के कीड़ों के बारे में बताओ।
उत्तर-
नरमे को हानि पहुंचाने वाले कीड़े हैं-तेला, चेपा, मीली वग, गुलाबी सूंडी, अमरीकन सूंडी, तंबाकू की सूंडी, सफेद मक्खी आदि।

प्रश्न 42.
बी०टी० कपास पर कौन-सा कीड़ा हमला नहीं करता तथा कौन-से करते हैं ?
उत्तर-
बी०टी० कपास पर अमरीकन सूंडी हमला नहीं करती क्योंकि इसमें एक बैक्टीरिया का जीन डाला जाता है जो एक प्रोटीन पैदा करता है जिसको खाने से सूंडियां मर जाती हैं। रस चूसने वाले कीडे तथा तंबाकू की संडी का इस पर हमला हो सकता है।

प्रश्न 43.
कमाद के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
गर्म जलवायु कमाद के लिए ठीक रहती है। इसके लिए मध्यम से भारी भूमि ठीक रहती है। यह फसल क्षारीय तथा लवणी भूमि के प्रति कुछ सीमा तक सहनशील है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 44.
बसंत ऋतु की कमाद के लिए उन्नत किस्मों तथा फसल चक्र के बारे में बताओ।
उत्तर-
फसल चक्र-धान/मक्की/कपास-राईया-कमाद-पहले वर्ष की कटाई के बाद बचा गन्ने का भाग (मूढा)-दूसरे वर्ष का बचा गन्ने का भाग (मूढा)-गेहूं।
उन्नत किस्में-अगेती किस्में-सी०ओ०जे०-85, सी०ओ०जे०-83. मध्यम किस्में-सी०ओ०पी०बी०-91 तथा सी०ओ०जे०-88. पिछेती किस्म-सी०ओ०जे०-89.

प्रश्न 45.
कमाद के लिए भूमि की तैयारी के बारे में बताओ।
उत्तर-
खेत को चार से छः बार जुताई की आवश्यकता है। प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा फेरना चाहिए। इस फसल के लिए 45-50 सैं०मी० गहरी जुताई की आवश्यकता होती है तथा यह फसल के लिए लाभदायक है क्योंकि इस प्रकार भूमि के नीचे बनी सख्त सतह टूट जाती है, पानी की धरती में समाने की शक्ति बढ़ जाती है तथा गन्ने की जड़ों को गहरा जाने में सहायक सिद्ध होती है।

प्रश्न 46.
कमाद के लिए बीज का चुनाव तथा भार अनुसार बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
बुवाई के लिए गन्ने का ऊपरी दो बटा तीन (2/3) निरोल भाग ही प्रयोग करना अच्छा रहता है। भार के अनुसार कमाद के बीज की 30 से 35 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से आवश्यकता पड़ती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 47.
कमाद के लिए बुवाई का समय तथा ढंग बताओ।
उत्तर-
बुवाई का समय-मध्य फरवरी से अंत मार्च तक।
बुवाई का ढंग-75 सैं०मी० वाली खाइयों में गुल्लियां रखकर सुहागा फेरा जाता है तथा फिर पानी लगा दिया जाता है। एक और पानी 4-5 दिनों के बाद लगाया जाता है।

प्रश्न 48.
गन्ने की फसल में अन्तर फसलों के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
गन्ने की दो पंक्तियों में गर्म ऋतु की मूंगी या मांह की एक पंक्ति बो कर इन फसलों का 1 से 2 क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन अधिक लिया जा सकता है। इन फसलों की बुवाई से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है तथा गन्ने की पैदावार पर भी बुरा प्रभाव नहीं होता।

प्रश्न 49.
गन्ने की फसल के लिए खादों के बारे में बताओ।
उत्तर-
गोबर की खाद-गन्ने की फसल के लिए बुवाई से 15 दिन पहले 8 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डाली जाती है।
नाइट्रोजन खाद-बीज वाली (नई) फसल के लिए 60 किलो नाइट्रोजन तथा गन्ने की कटाई के बाद बचे (मूढा) भाग से बोई फसल के लिये 90 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ के हिसाब से डाली जाती है।
फॉस्फोरस तत्व-मिट्टी की जांच के आधार पर यदि फॉस्फोरस की कमी हो जाए तो 12 किलो फॉस्फोरस प्रति एकड़ के हिसाब से डाली जाती है। पंजाब में साधारणत: पोटाश तत्व की कमी नहीं होती।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 50.
कमाद के लिए खादें तथा डालने का ढंग बताओ।
उत्तर-
खाद – डालने का ढंग
नाइट्रोजन:

  1. बीज फसल को नाइट्रोजन खाद का आधा भाग कमाद जमने के बाद पहले पानी के साथ डाला जाता है।
  2. शेष आधी खाद मई-जून में डाली जाती है।
  3. गन्ने को काटने के बाद बचे भाग (मूढा) से तैयार फसल के लिए नाइट्रोजन वाली खाद को फरवरी-अप्रैल तथा मई में डाला जाता है।

फॉस्फोरस

  1. खालों में गुल्लियों के नीचे डाली जाती है।
  2. मूढे वाली फसल में फरवरी से जुलाई के समय कमाद की पंक्तियों के पास ड्रिल की जाती है।

प्रश्न 51.
गन्ने में नदीन की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
नदीनों की रोकथाम के लिए दो तीन गुडाइयां की जाती हैं। नदीनों की रोकथाम पंक्तियों में पुआल बिछा कर भी की जाती है। यदि दवाई का प्रयोग करना हो तो एटराटाफ या सैनकोर की स्प्रे बुवाई से दो-तीन दिनों के भीतर-भीतर की जाती है। लपेटा वेल तथा चौड़े पत्ते वाले नदीनों के लिए 2,4-डी का प्रयोग किया जाता है। यदि गन्ना में मूंगी या मांह बोया हो तो पहले बताए नदीननाशकों की जगह पर बुवाई से दो दिन के अन्दर ‘सटोंप का छिड़काव करना चाहिए।

प्रश्न 52.
गन्ने को सिंचाई की आवश्यकता के बारे में बताओ।
उत्तर-
अप्रैल से जून में गर्म तथा शुष्क मौसम होता है। इसलिए इन दिनों में 7 से 12 दिनों के अन्तर पर पानी लगाते रहना चाहिए। सर्दी में पानी एक महीने के अन्तर पर लगाया जाता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 53.
गन्ने की फसल को कोरे से बचाने के बारे में बताओ।
उत्तर-
गन्ने की फसल को गिरने नहीं देना चाहिए। गिरी हुई फसल पर कोरे का अधिक प्रभाव होता है। सर्दी में फसल को पानी लगाने से भूमि गर्म रहती है तथा फसल पर कोरे का अधिक प्रभाव नहीं होता। यदि फसल मूढे वाली रखने के लिए काटी हो तो खेत को पानी लगा देना चाहिए तथा खेत को पंक्तियों के बीच में से जोतना चाहिए।

प्रश्न 54.
पतझड़ ऋतु के कमाद की उन्नत किस्मों तथा बुवाई का समय तथा ढंग भी बताओ।
उत्तर-
उन्नत किस्में-सी०ओ०जे०-85, सी०ओ०जे०-83. बुवाई का समय-20 सितम्बर से 20 अक्तूबर। पंक्तियों में फासला-90 सैं०मी० अन्तर।

प्रश्न 55.
पतझड़ ऋतु वाली कमाद के लिए अन्तर फसलों तथा नदीनों की रोकथाम के बारे में बताओ।
उत्तर-
अन्तर फसलें-पतझड़ ऋतु वाली कमाद के लिए अन्तर फसलें हैं-आलू, गेहूँ, तोरीया, बंदगोभी, राईया, गोभी सरसों, चने, मटर, मूली, लहसुन आदि।
नदीनों की रोकथाम–गन्ने की फसल में यदि गेहूँ या राईया बोया हो तो आईसोप्रोटयूरान तथा यदि लहसुन बोया हो तो सटोंप का प्रयोग करना चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 56.
पतझड़ की कमाद के लिए खादों के बारे में बताओ।
उत्तर-
पतझड़ की कमाद के लिए 90 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है। नाइट्रोजन खाद के तीन बराबर भाग किए जाते हैं तथा एक भाग बुवाई के समय, एक भाग मार्च के अन्त में तथा शेष रहता तीसरा भाग अप्रैल के अन्त में डाला जाता है। मिट्टी जांच के आधार पर फॉस्फोरस तथा पोटाश खाद का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 57.
चारे वाली मक्की की बुवाई का समय तथा ढंग बताओ।
उत्तर-
बुवाई का समय-मार्च के पहले सप्ताह से लेकर मध्य सितम्बर तक।
पंक्तियों में फासला – 30 सैं०मी० ।

प्रश्न 58.
चारे वाली मक्की के लिए खादों का विवरण दें।
उत्तर-
खेत तैयार करने से पहले 10 टन गोबर की खाद का प्रयोग किया जाता है। बुवाई के समय 23 किलो नाइट्रोजन तथा 12 किलो फॉस्फोरस खाद की आवश्यकता होती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 59.
चारे वाली मक्की के लिए नदीनों की रोकथाम बारे बताओ।
उत्तर-
नदीनों की रोकथाम के लिए एटराटाफ का प्रयोग किया जाता है। इसको बुवाई से पहले दो दिन के भीतर-भीतर प्रयोग करो। छिड़काव, नदीनों के 2 से 3 पत्ते आ जाने पर भी किया जा सकता है। जब मक्की के चारे में खाद मिला कर बोया हो तो सटोंप की बुवाई से 2 दिनों के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।

प्रश्न 60.
चारे की मक्की के लिए कटाई तथा कीड़े के बारे में बताओ।
उत्तर-
मक्की की फसल दोधे पर हो तथा दाने नर्म होने पर फसल कटाई के लिए तैयार होती है। इसको लगभग 50-60 दिन लगते हैं।
मक्की का गड़यां इस का मुख्य कीड़ा है।

प्रश्न 61.
ज्वार (चरी) के लिए जलवायु तथा भूमि के बारे में बताओ।
उत्तर-
ज्वार की फसल के लिए गर्म तथा शुष्क जलवायु ठीक रहती है। यह प्रत्येक प्रकार की भूमि में हो सकती है परन्तु भारी भूमि के लिए उचित रहती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 62.
ज्वार की उन्नत किस्में, भूमि की तैयारी, बीज की मात्रा तथा सुधाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
उन्नत किस्में-एस०एल०-44.
भूमि की तैयार-खेत की तैयारी के लिए एक बार तवियों तथा दो बार कल्टीवेटर से जुताई की जाती है।
बीज की मात्रा तथा सुधाई-20-25 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है। इसकी सिफ़ारिश की गई उल्लीनाशक दवाइयों से सुधाई की जाती है।

प्रश्न 63.
ज्वार के लिए नदीनों की रोकथाम के बारे में बताएं।
उत्तर-
खाद-ज्वार की बुवाई से दो दिनों के अन्दर एटराटाफ का छिड़काव किया जाता है। इससे इटसिट/चुपत्ती की अच्छी तरह रोकथाम हो जाती है। जब गवारा तथा चरी को मिला कर बोया जाता है तो सटोप का छिड़काव बुवाई से दो दिनों के भीतर-भीतर करना चाहिए।

प्रश्न 64.
ज्वार के लिए खाद तथा सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
खाद-इसको बुवाई के समय 8 किलो फॉस्फोरस की आवश्यकता है तथा नाइट्रोजन की 20 किलो मात्रा भी बुवाई के समय तथा महीने बाद शेष 20 किलो नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है। यह सभी खादें एक एकड़ के लिए हैं।
सिंचाई-अगेते मौसम के चारे, मार्च-जून वाले को 5 सिंचाइयों की आवश्यकता है। वर्षा वाली फसल को वर्षा के अनुसार 1-2 पानी देने की आवश्यकता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 65.
ज्वार की कटाई, कीड़े तथा रोग के बारे में बताओ।
उत्तर-
कटाई-जब लगभग 65-80 दिनों की फसल गोभे से दोधे की अवस्था में होती है तो इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। इस अवस्था में अधिक आहारीय तत्त्व प्राप्त हो जाते हैं।
कीड़े तथा रोग-शाख की मक्खी, घोड़ा तथा गुझिया इसके मुख्य कीड़े हैं। बीज सड़ना तथा छोटे पौधों का मरना इसके मुख्य रोग हैं।

प्रश्न 66.
बाजरे के लिए फसल चक्र, उन्नत किस्में, भूमि की तैयारी के बारे में बताओ।
उत्तर-
फसल चक्र-बाजरा-मक्की-बरसीम। उन्नत किस्में-पी०एच०बी०एफ०-1, एफ०बी०सी०-16. भूमि की तैयारी-भूमि की 2-3 बार जुताई करनी चाहिए।

प्रश्न 67.
बीज की मात्रा तथा सुधाई, बुवाई का समय तथा ढंग के बारे में बताओ।
उत्तर-
बीज की मात्रा तथा सुधाई-6-8 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है। सुधाई के लिए सिफ़ारिश की गई उल्लीनाशक दवाई का प्रयोग करो।
बुवाई का ढंग और समय-मार्च से अगस्त में बुवाई करनी चाहिए। बुवाई छट्टा विधि से की जाती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 68.
बाजरे के लिए नदीनों की रोकथाम, सिंचाई, कटाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
नदीनों की रोकथाम-एटराटाफ का छिड़काव बुवाई से 2 दिनों के अन्दर करें। सिंचाई-इसको 2-3 सिंचाइयों की आवश्यकता होती है।
कटाई-बुवाई से 45-55 दिनों बाद जब बल्लियां निकलनी शुरू होने वाली होती हैं, फसल कटाई के लिए तैयार होती है।

प्रश्न 69.
बाजरे के लिए खादों का विवरण दें।
उत्तर-
बाजरे के खेत की तैयारी से पहले 10 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ का प्रयोग किया जाता है। बुवाई के समय 10 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ तथा 10 किलो बुवाई से 3 सप्ताह बाद डाली जाती है ।

प्रश्न 70.
बाजरे के कीड़े तथा बीमारियों के बारे में बताओ।
उत्तर-
बाजरे को हानि पहुंचाने वाले कीड़े हैं-स्लेटी भंडी, जड़ का कीड़ा, घोड़ा इसके मुख्य कीड़े हैं तथा बल्लियों के रोग तथा गुंदीया रोग इसकी मुख्य बीमारियां हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
बाजरे की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 2.
धान की पनीरी की बुवाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
धान की पनीरी की बुवाई के लिए उचित समय 15 से 30 मई का है। भूमि की तैयारी के समय 12-15 टन गली-सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ प्रयोग करनी चाहिए। पनीरी की बुवाई के समय आवश्यक खादें; जैसे-12 किलो नाइट्रोजन, 10 किलो फॉस्फोरस तथा 13 किलो जिंक प्रति एकड़ के हिसाब से डालनी चाहिए। बीजों की सुधाई करके गीली बोरियों के ऊपर 7-8 सैं०मी० मोटी सतह में बिखेर दिया जाता है तथा ऊपर से गीली बोरियों से ढक दिया जाता है। इन ढके बीजों के ऊपर समय-समय पर पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए। बीज 24 से 36 घण्टे के अन्दर अंकुरित हो जाते हैं। इन्हें छट्टा विधि से बो देना चाहिए। साढ़े छ: मरले में 8 किलो बीज की पनीरी एक एकड़ के लिए काफ़ी रहती है। पनीरी में नदीनों की रोकथाम बूटाकलोर या सोफिट के प्रयोग से की जाती है। पनीरी की बुवाई से 15 दिन बाद 12 किलो नाइट्रोजन प्रति एकड़ और डालनी चाहिए। 25-30 दिनों में पनीरी खेत में लगाने के लिए तैयार हो जाती है।

प्रश्न 3.
मकैनीकल ट्रांसप्लांटर द्वारा धान की पनीरी लगाने के बारे में बताओ।
उत्तर-
मशीन से धान लगाने के लिए पनीरी को विशेष ढंग से तैयार किया जाता है। एक प्लास्टिक शीट को छेद करके बिछाया जाता है। इसके ऊपर मशीन के आकार के खानों वाले फ्रेम में रखकर मिट्टी डाली जाती है। इस मिट्टी के ऊपर अंकुरित बीज डाला जाता है। बीज को मिट्टी की पतली परत से ढक दिया जाता है। इस के ऊपर हाथ वाले फव्वारे से पानी का छिड़काव किया जाता है। फ्रेम को ध्यान से धीरे से उठा लिया जाता है। प्रतिदिन पानी का छिड़काव करके मैट को गीला रखा जाता है। एक एकड़ के हिसाब से 10-12 किलो बीज से तैयार 200 मैट की आवश्यकता पड़ती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 4.
बासमती की कृषि के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 5.
मक्की की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 6.
मुंगी की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
स्वयं करें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 7.
मांह की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 8.
मूंगफली की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 9.
कपास की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
स्वयं करें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 1 ख़रीफ़ की फसलें

प्रश्न 10.
कमाद की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
स्वयं करें।

ख़रीफ़ की फसले PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • ख़रीफ़ की फसलें जून-जुलाई या मानसून के आने पर बोई जाती हैं।
  • ख़रीफ़ की फसलों की कटाई अक्तूबर-नवम्बर में की जाती है।
  • ख़रीफ़ की फसलें हैं-अनाज वाली, दालें तथा तेल बीज, कपास, गन्ना, सावन के चारे।
  • कुछ ख़रीफ़ की फसलें हैं-धान, बासमती, मक्की, मांह, मूंगफली, कपास गन्ना, ज्वार तथा बाजरा।
  • धान को जीरी के नाम से भी जाना जाता है।
  • धान की पैदावार में चीन विश्व में तथा पश्चिमी बंगाल भारत में सबसे आगे
  • पंजाब में धान की कृषि के अधीन 28 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल है। इससे औसत पैदावार 60 क्विंटल प्रति हैक्टेयर मिल जाती है।
  • धान को अधिक गर्मी, अधिक सीलन तथा अत्यधिक पानी की आवश्यकत होती है।
  • धान के लिए मध्यम से भारी भूमि अच्छी है।
  • धान की उन्नत किस्में हैं-पी०आर०-123, पी०आर०-122, पी०आर०-121 पी०आर०-118, पी०आर०-116।
  • धान के लिए एक एकड़ के लिए 8 किलो बीज की आवश्यकता है।
  • धान की पनीरी 15 से 30 मई तक बोई जाती है।
  • मशीन (मकैनिकल ट्रांसप्लांटर) से धान लगाने के लिए पनीरी को विशेष ढं से तैयार किया जाता है।
  • धान की पनीरी खेतों में 25-30 दिनों की होने पर जून के दूसरे पखवाड़े में बो जाती है।
  • धान में संवाक तथा मौथा नदीन होते हैं।
  • धान की सीधी बुवाई केवल मध्यम से भारी भूमियों में ही करनी चाहिए।
  • फसल की मुंजरें पक जाएं तथा पराली के पीले होने पर धान की कटाई व लेनी चाहिए।
  • तने का गन्डोया, पत्ता लपेट सूंडी, सफेद पीठ वाले टिड्डे तथा भूरे टिड्डे धान के कीड़े हैं।
  • बासमती की किस्में हैं-पंजाब बासमती-3, पूसा पंजाब बासमती-1509, पूसा बासमती-1121.
  • पूसा बासमती 1509 की पनीरी जून के दूसरे पखवाड़े तथा पंजाब बासमती 3 तथा पूसा बासमती 1121 की पनीरी जून के पहले पखवाड़े में बोई जाती है।
    बासमती को नाइट्रोजन तत्त्व वाली खाद अधिक मात्रा में नहीं डालनी चाहिए।
  • मक्की की पैदावार में संयुक्त राज्य अमरीका विश्व में तथा भारत में आंध्रा प्रदेश सबसे आगे हैं।
  • पंजाब में मक्की की कृषि के अधीन क्षेत्रफल 1 लाख 25 हज़ार हैक्टेयर है। मक्की की औसत पैदावार 15 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • मक्की को उत्पन्न होने से लेकर फसल पकने तक नमी वाली गर्म जलवायु की आवश्यकता है।
  • मक्की की किस्में-पी०एम०एच०-1, पी०एम०एच०-2 मक्की की आम प्रयोग वाली किस्में हैं तथा विशेष प्रयोग वाली किस्में हैं-पंजाब स्वीट कार्न-1 तथा पर्ल पॉपकार्न।
  • मक्की की पर्ल पॉपकर्न किस्म के लिए 7 किलो तथा अन्य किस्मों के लिए 8 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • मक्की की बुवाई मई के अंतिम सप्ताह से अंत जून तक की जाती है।
  • मक्की को 4-6 सिंचाइयों की आवश्यकता है।
  • मक्की का गन्डोया मक्की में मुख्य कीड़ा है।
  • मक्की में बीज का सड़ना, पौधे का झुलसना, टांडे का गलना आदि रोग लग सकते हैं।
  • ख़रीफ़ की दाल वाली फसलें-मूंगी, मांह तथा तेल बीज वाली फसलों में मूंगफली तथा तिल बीज हैं।
  • सोयाबीन, दाल तथा तेल बीज दोनों श्रेणियों में है।
  • दालों की पैदावार में भारत विश्व में अग्रणी देश है परन्तु दालों की खपत भी भारत में अधिक है। इसलिए दालों को आयात करना पड़ता है।
  • पंजाब में मूंगी की कृषि 5 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है। इसकी औसत पैदावार 350 किलो प्रति एकड़ है।
  • मुंगी के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
  • मूंगी के लिए कलराठी या सेम वाली भूमियां ठीक नहीं हैं।
  • मूंगी की उन्नत किस्में हैं-पी०ए०यू०-911, एम०एल०-818.
  • मूंगी की बुवाई जुलाई के पहले पखवाड़े में की जाती है।
  • मूंगी में नदीनों की रोकथाम के लिए ट्रेफलिन या वासालीन का प्रयोग किया जाता है।
  • मूंगी की लगभग 80% फलियां पक जाने पर काट लें।
  • मुंगी को हरा तेला, सफेद मक्खी, बालों वाली संडी (कंबल कीडा), फली छेदक सुंडी तथा जुएं आदि कीड़े लग सकते हैं।
  • पंजाब में मांह की कृषि लगभग 2 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल में होती है तथा इसकी औसत पैदावार लगभग 180 किलो प्रति एकड़ है।
  • मांह की विकसित किस्में हैं-मांह 114, मांह 338.
  • जब पत्ते झड़ जाएं तथा फलियां सलेटी काली हो जाएं तो फसल काटने के लिए तैयार है।
  • सोयाबीन की पैदावार में संयुक्त राज्य अमरीका दुनिया में तथा मध्य प्रदेश भारत में सबसे आगे है।
  • सोयाबीन से खाने वाले तेल, सोया दूध तथा इस से बनने वाली अन्य वस्तुएं, बेकरी की वस्तुएं तथा दवाइयां आदि तैयार होती हैं।
  • सोयाबीन को गर्म जलवायु की आवश्यकता है।
  • सोयाबीन की उन्नत किस्में हैं-एस०एल०-958, एस०एल०-744.
  • सोयाबीन के 25-30 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती है।
  • सोयाबीन की बुवाई जून के पहले पखवाड़े में की जाती है।
  • सोयाबीन की कटाई तब करें जब सारे पत्ते झड़ जाएं तथा फलियों का रंग बदल जाए।
  • सोयाबीन को बालों वाली सूंडी तथा सफेद मक्खी नामक कीड़े लगते हैं।
  • सोयाबीन को चितकबरा रोग लग जाता है।
  • संयुक्त राज्य अमरीका दुनिया में सब से अधिक तेल बीज पैदा करने वाला देश है तथा भारत में राजस्थान ऐसा प्रदेश है।
  • मूंगफली की पैदावार में चीन दुनिया में तथा गुजरात भारत में सबसे आगे है।
  • पंजाब में मूंगफली की कृषि 15 हज़ार हैक्टेयर क्षेत्रफल में होती है।
  • पंजाब में मूंगफली की औसत पैदावार 7 क्विंटल प्रति एकड़ है।
  • मूंगफली की किस्में हैं-एम०जी०-99, एस०जी०-84.
  • मूंगफली के बीज (गिरियां) की मात्रा 38-40 किलो प्रति एकड़ का प्रयोग होता है।
  • मूंगफली की सारी फसल के एक जैसा पीला होने तथा पुराने पत्तों के झड़ने पर फसल की खुदाई की जाती है।
  • मूंगफली की फसल को चेपा, सफेद सुंड तथा कंबल कीड़ा आदि कीड़े लगते
  • मूंगफली की बीमारियां हैं-बीज का गलना, गिच्ची का गलना तथा टिक्का रोग।
  • कपास को धागे के लिए तथा गन्ने को चीनी प्राप्त करने के लिए बोया जाता
  • पशुओं के चारे के लिए मक्की, ज्वार (चरी) तथा बाजरा सावनी की फसलें हैं।
  • कपास की पैदावार दुनिया में चीन में सबसे अधिक तथा भारत में गुजरात में है।
  • ‘पंजाब में कपास की कृषि लगभग 5 लाख हैक्टेयर क्षेत्रफल में होती है।
  • पंजाब में कपास की औसत पैदावार 230 किलो रूई प्रति एकड़ है।
  • कपास गर्म तथा शुष्क जलवायु की फसल है।
  • नरमे (कपास) की किस्में हैं-(i) बी०टी० किस्में-आर०सी०एच०-650, एन०सी०एस०-850, अंकुर 3028, एम०आर०सी० 7017, (ii) बी०टी० रहित दोहरी किस्में हैं-एल०एच०एच०-144, (iii) साधारण किस्में हैं-एल०एच०-2018.
  • देसी कपास की किस्में हैं-दोगली-पी०ए०यू०-626 एच, साधारण किस्में एफ०डी०के०-124, एल०डी०-694.
  • कपास की बुवाई का समय 1 अप्रैल से 15 मई है।
  • कपास में इटसिट/चुपत्ती, मधाना/मकड़ा आदि नदीन होते हैं।
  • कपास के कीट हैं-रस चूसने वाले कीट; जैसे-तेला, चेपा, सफेद मक्खी तथा मीली बग्ग। तंबाकू की सूंडी, गुलाबी सूंडी, चितकबरी सूंडी तथा अमरीकन सूंडी।
  • कपास की बीमारियां हैं-पत्ता मरोड़, बैक्टीरियल ब्लाइट, पत्ते कुम्हला जाना, पैरा विल्ट तथा पत्ते झड़ना आदि।
  • गन्ना (कमाद) की पैदावार में ब्राजील दुनिया में सबसे आगे है तथा उत्तर प्रदेश भारत में सबसे आगे है।
  • पंजाब में गन्ने की कृषि के अधीन 80 हज़ार हैक्टेयर भूमि है।
  • गन्ना की पंजाब में पैदावार लगभग 280 क्विंटल प्रति एकड़ है। इसमें से 9% चीनी की प्राप्ति हो जाती है।
  • गन्ना के लिए गर्म जलवायु तथा मध्यम भूमि उपयुक्त रहती है।
  • बसंत ऋतु के गन्ना की किस्में हैं-सी०ओ०जे०-85, सी०ओ०जे०-83 अगेता, सी०ओ०पी०बी०-91, सी०ओ०जे०-88 मध्यम श्रेणी तथा सी०ओ०जे०-89 पछेती पकने वाली किस्में हैं।
  • एक एकड़ गन्ना के लिए तीन आंखों वाली 20 हज़ार गुल्लियों या चार आंखों वाली 15 हज़ार गुल्लियों या 5 आंखों वाली 12 हज़ार गुल्लियों की आवश्यकता पड़ती है।
  • गन्ने की बुवाई का समय मध्य फरवरी से अंत मार्च तक का है।
  • पतझड़ ऋतु के गन्ने की किस्में हैं-सी०ओ०जे०-85 तथा सी०ओ०जे०-83.
  • पतझड़ में गन्ने की बुवाई का समय 20 सितम्बर से 20 अक्तूबर का है।
  • गन्ने के कीट हैं-कमाद का घोड़ा, सफेद मक्खी, दीमक तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के गड़एं।
  • कमाद के रोग हैं-रत्ता रोग, मुरझाना (सोका), लाल धारियों का रोग, आग का — साड़ा।
  • एक बड़े पशु को लगभग 40 किलो हरा चारा प्रतिदिन चाहिए।
  • मक्की ख़रीफ फसल का मुख्य चारा है। यह 50-60 दिन में कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं। 88. चारे के लिए मक्की की किस्म है-जे०-1006.
  • चारे के लिए मक्की के बीज की मात्रा 30 किलो प्रति एकड़ है।
  • ज्वार (चरी) को पशु अधिक खुशी से खाते हैं।
  • ज्वार को गर्म तथा शुष्क जलवायु की आवश्यकता है।
  • ज्वार की किस्म है-एस०एल०-44.
  • ज्वार के लिए 20-25 किलो बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • ज्वार के अग्रिम चारे के लिए बुवाई मध्य मार्च से शुरू की जाती है।
  • ज्वार की बुवाई का उचित समय मध्य जून से मध्य जुलाई है।
  • ज्वार की कटाई गोभे से दूध की अवस्था पर करने से अधिक पौष्टिक तत्त्व प्राप्त होते हैं।
  • बाजरे की किस्में हैं-पी०एच०बी०एफ०-1, एफ०बी०सी०-16.
  • बाजरे के लिए बीज की मात्रा 6-8 किलो प्रति एकड़ है।
  • बाजरे के कीट हैं-जड़ का कीड़ा, स्लेटी भुंडी तथा घोड़ा है।
  • बाजरे के रोग हैं-हरे सिट्टों का रोग, गुंदिया रोग।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना

प्रश्न-
नक्शों को बड़ा और छोटा करने की विधियाँ बताएँ।
उत्तर-
नक्शों को बड़ा और छोटा करना-कई बार किसी क्षेत्र के अलग-अलग आकार के नक्शों की ज़रूरत होती है। इस उद्देश्य के लिए नक्शे का पैमाना बदलकर उसे बड़ा या छोटा किया जाता है। इस प्रकार नक्शे को बड़ा या छोटा करने का अर्थ है कि नक्शे का पैमाना बदल देना (Change of Scale)।

ज़रूरत (Necessity)-

  1. जब किसी नक्शे पर अधिक वर्णन दिखाने हों, तो नक्शे को बड़ा किया जाता है।
  2. दो नक्शों को आपस में जोड़ने के लिए उनका पैमाना बदलकर एक किया जाता है।
  3. पुस्तकों और एटलसों के लिए नक्शे को छोटा करना पड़ता है।

नक्शे को बड़ा और छोटा करने के लिए नीचे लिखी विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं-

1. ग्राफिक विधियाँ (Graphical Methods)

  • वर्ग विधि (Square Method)
  • समरूप त्रिभुज विधि (Method of Similar Triangles)

2.यांत्रिका विधियाँ (Mechanical Methods)-

  • फोटोग्राफी की मदद से (Camera Method)
  • पैंटोग्राफ द्वारा (By Pantograph)

विधियाँ (Methods)
वर्ग विधि (Square Method)—यह सबसे आसान विधि है, जिसमें किसी यंत्र की आवश्यकता नहीं होती। इसमें मूल नक्शे पर वर्गों का एक जाल बनाकर (Net work of Squares) नक्शे को बड़ा या छोटा किया जाता है।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना 1

रचना विधि (Steps of Construction)-

1. मूल नक्शे (Original map) पर किसी एक इकाई के वर्ग बनाए जाते हैं।
2. इन वर्गों का आकार (Size of the squares) सुविधानुसार निश्चित किया जाता है।
3. यदि नक्शे को बड़ा करना हो, तो नए नक्शे पर वर्ग की भुजा नीचे लिखे फार्मूले के अनुसार निश्चित की जाती है।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना 2

4. एक नए कागज़ पर छोटे या बड़े वर्ग बनाए जाते हैं। इनकी कुल गिनती मूल नक्शे जितनी ही होती है।
5. नए नक्शे पर हर वर्ग में मूल नक्शे के वर्णन को अंकित कर लिया जाता है। इसके लिए वर्गों के कटाव की सहायता ली जाती है।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना

उदाहरण-दिए हुए अफ्रीका के नक्शे, जिसकी प्रतिनिधि भिन्न \(\frac{1}{40,000,000}\) है। इस नक्शे को \(\frac{1}{80,000,000}\) की प्रतिनिधि भिन्न पर बनाएँ।

रचना (Construction)-नया नक्शा मूल नक्शे से छोटे पैमाने पर है, इसलिए नक्शे के आकार को कम करना होगा। मूल नक्शे को 1′ की भुजा के वर्गों में बना लें। पूरे नक्शे पर 10 x 10 = 100 वर्ग बनेंगे। यदि मूल नक्शे के वर्ग की भुजा 1′ है, तो नए नक्शे पर वर्ग की भुजा फार्मूले से ढूँढ़ी जाती है।
PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 3 नक्शों को बड़ा और छोटा करना 3
नए नक्शे पर \(\frac{1}{2}\)” की भुजा वाले 10 × 10 = 100 वर्ग बनाएँ। मूल नक्शे पर वर्गों को देखकर नए नक्शे में ब्यौरा भर लें।

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions फुटबाल (Football) Game Rules.

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. फुटबाल मैदान की लम्बाई = 100 गज़ से 130 गज़ (90 मी. से 120 मी.)
  2. फुटबाल मैदान की चौड़ाई = 50 गज़ से 100 गज़, 45-90 मीटर
  3. मैदान का आकार = आयताकार
  4. खिलाड़ियों की गिनती = 18 (11 खिलाडी + 7 वैकल्पिक खिलाड़ी)
  5. फुटबाल की परिधि = 27″ से 28″, 68 सैं०मी० 70 सैं०मी०
  6. फुटबाल का भार = 14 से 16 औंस, 410 ग्राम से 450 ग्राम
  7. खेल का समय = 45—45 मिनट के दो हाफ
  8. आराम का समय = 15 मिनट
  9. मैच में बदले जा सकने वाले खिलाड़ी = 3
  10. मैच के अधिकारी = एक टेबल आफिशल, एक रैफ़री और दो लाइन मैन
  11. अंतर्राष्ट्रीय मैच के लिए मैदान का आकार = अधिक-से-अधिक 110 × 75 मीटर 100 × 64 मीटर कम-से-कम
  12. अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में मैदान का माप = अधिकतम 110 मी० × 75 मीटर (120 गज़ × 80 गज़) कम-से-कम 100 मी० × 64 मी० (100 गज़ × 70 गज़)
  13. गोल पोस्ट की ऊँचाई = 2.44 मीटर
  14. कार्नर फ्लैग की ऊँचाई = कम-से-कम 5 फीट

फुटबाल खेल की संक्षेप रूप-रेखा (Brief outline of the Football Game)

  1. मैच दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। एक टीम में 16 खिलाड़ी होते . हैं जिनमें से 11 खेलते हैं और 5 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं। इनमें से एक गोलकीपर होता
  2. एक टीम मैच में तीन से अधिक खिलाड़ी और एक गोलकीपर बदल सकती है।
  3. एक बदला हुआ खिलाड़ी दोबारा नहीं बदला जा सकता।
  4. खेल का समय 45-5-45 मिनट का होता है। मध्यान्तर का समय 5 मिनट का होता है।
  5. मध्यान्तर या अवकाश के बाद टीमें अपनी साइडें बदलती हैं।
  6. खेल का आरम्भ खिलाड़ी एक-दूसरे की सैंटर लाइन की निश्चित जगह से पास देकर शुरू करते हैं और साइडों का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
  7. मैच खिलाने के लिए एक टेबल अधिकारी, एक रैफरी और दो लाइनमैन होते हैं।
  8. गोलकीपर की वर्दी अपनी टीम से भिन्न होती है।
  9. खिलाड़ी को कोई ऐसी वस्तु नहीं पहननी चाहिए जो दूसरे खिलाड़ियों के लिए घातक हो।
  10. मैदान के बाहरी भाग से कोचिंग नहीं होनी चाहिए।
  11. जब गेंद गोल रेखा या साइड लाइन को पार कर जाए तो खेल रुक जाता है।
  12. रैफ़री स्वयं भी किसी वजह से खेल बन्द कर सकता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide फुटबाल (Football) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
फुटबाल के मैदान का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
आयताकार।

प्रश्न 2.
फुटबाल के मैच में मैदान की लम्बाई कितनी होती है ?
उत्तर-
100 गज़ से 130 गज़ (90 मी. से 120 मी.)।

प्रश्न 3.
फुटबाल मैच का समय कितना होता है ?
उत्तर-
45-45 मिनट में दो हाफ।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
फुटवाल के मैच में कुल खिलाड़ियों की संख्या कितनी होती है ?
उत्तर-
18 (11 खिलाड़ी +7 वैकल्पिक खिलाड़ी)।

प्रश्न 5.
फुटबाल के मैच में कुल वैकल्पिक खिलाड़ी कितने होते हैं ?
उत्तर-
सात खिलाड़ी।

प्रश्न 6.
फुटबाल का भार कितना होता है ?
उत्तर-
14 से 16 औंस।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB फुटबाल (Football) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
फुटबाल का मैदान, गोल क्षेत्र, गोल, पैनल्टी क्षेत्र, कार्नर क्षेत्र, रेखाएं और गेंद के बारे में बताइए।
उत्तर-
खेल का मैदान
(Playing Field)
आकार-फुटबॉल का मैदान आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 100 m से कम और 120 m से अधिक न होगी। इसकी चौड़ाई 55 m से कम और 90 m से अधिक न होगी। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में इसकी लम्बाई 90 से 120 m तक चौड़ाई 50 से 90 m होगी।
रेखांकन (Lining)-खेल का मैदान स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित होना चाहिए। लम्बी रेखाएं स्पर्श रेखाएं या पक्ष रेखाएं कहलाती हैं और छोटी रेखाओं को गोल रेखाएं कहा जाता है। मैदान के प्रत्येक कोने पर 1.50 m ऊँचे खम्बे पर झंडी (कार्नर फ्लैग) लगाई जाएगी। यह केन्द्रीय रेखा पर कम-से-कम एक गज़ पर होनी चाहिए। मैदान के मध्य में एक वृत्त लगाया जाता है जिसका अर्द्धव्यास 9.15 m गज़ होगा।
FOOTBALL GROUND
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
कार्नर क्षेत्र-प्रत्येक कार्नर क्षेत्र पोस्ट से खेल के क्षेत्र के अन्दर एक गज़ के अर्द्धव्यास का चौथाई वृत्त खींचा – जाएगा।
गोल क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर रेखाएं खींची जाएंगी जो गोल रेखा पर लम्ब होंगी। ये मैदान में 5.5 m की दूरी तक फैली रहेंगी और गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा से मिला दी जाएंगी। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं द्वारा घिरे मध्य क्षेत्र को गोल क्षेत्र कहते हैं।

पैनल्टी क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर प्रत्येक गोल पोस्ट से 16.50 m की दूरी पर गोल रेखा के समकोण पर दो रेखाएं खींची जाएंगी। ये मैदान में 16.50 m की दूरी तक फैली होंगी। इन्हें गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा खींच कर मिलाया जाएगा। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं से घिरे हुए क्षेत्र को पैनल्टी क्षेत्र कहा जाएगा।

गोल-गोल रेखा के मध्य में से 7.32 m की दूरी पर दो पोल (डंडे) गाड़े जाएंगे। इनके सिरों को एक क्रासबार द्वारा मिलाया जाएगा जिसका निचला सिरा भूमि से 2.44 m ऊंचा होगा। गोल पोस्टों तथा क्रासबार की चौड़ाई और गहराई 5 इंच से अधिक नहीं होगी। देखें खेल के मैदान का चित्र।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
गेंद-गेंद का आकार गोल होगा। यह चमड़े या किसी अन्य स्वीकृत वस्तु की बनी होनी चाहिए। इसकी परिधि 27″ से 28″ तक होगी। इसका भार 14 औंस से 16 औंस तक होगा। रैफ़री की आज्ञा के बिना खेल के दौरान गेंद बदली नहीं जा सकती।

खिलाड़ी और उसकी पोशाक
खिलाड़ी प्रायः जर्सी या कमीज़, निक्कर, जुराबें तथा बूट पहन सकता है। गोल कीपर की कमीज़ या जर्सी का रंग बाक़ी खिलाड़ियों से भिन्न होगा। बूट पहनने आवश्यक हैं। कोई भी खिलाड़ी ऐसी वस्तु नहीं पहन सकता जो अन्य खिलाड़ियों के लिए हानिकारक हो।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
निम्नलिखित से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ियों की संख्या, अधिकारियों की गिनती, खेल की अवधि, स्कोर अथवा गोल। खिलाड़ियों की संख्या-फुटबॉल का खेल दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह तथा अतिरिक्त (Extra) 5 खिलाड़ी होते हैं। एक मैच में किसी टीम को तीन से अधिक खिलाड़ियों को बदलने की आज्ञा नहीं होती। बदले हुए खिलाड़ी को पुनः इस मैच में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया जाता। मैच में गोलकीपर बदल सकते हैं।

अधिकारी-एक रैफ़री, दो लाइनमैन, एक टाइम कीपर रैफ़री खेल के नियमों का पालन करवाता है और किसी भी झगड़े वाले प्रश्न का निर्णय करता है। खेल में क्या हुआ और परिणाम क्या निकला इस पर उसका निर्णय अन्तिम होता है। . खेल की अवधि-खेल 45-45 मिनट की दो समान अवधियों में खेला जाएगा। पहले 45 मिनट के खेल के बाद 10 मिनट का मध्यान्तर (Interval) या इससे अधिक होगा।

गोल्डन गोल (Golden Goal) फुटबॉल खेल में यदि समय समाप्ति पर दोनों टीमें बराबर रहती हैं तो बराबर की स्थिति में फालतू समय 15-15 मिनट का खेल होगा। इस समय के खेल में जहां भी गोल हो जाए तो खेल समाप्त हो जाता है। गोल करने वाली टीम विजयी घोषित की जाती है। उसके बाद यदि फिर भी गोल न हो तो दोनों टीमों को 5-5 पैनल्टी किक उस समय तक दिए जाते रहेंगे जब तक फैसला नहीं हो जाता परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।

खेल का आरम्भ-खेल के प्रारम्भ में टॉस द्वारा किक मारने और साइड (पक्ष) चुनने का निर्णय किया जाता है। टॉस जीतने वाली टीम को किक लगाने या साइड चुनने की छूट होती है।
गेंद खेल से बाहर-गेंद खेल से बाहर मानी जाएगी—

  1. जब गेंद भूमि या हवा में गोल रेखा या स्पर्श रेखा पूरी तरह पार कर जाए।
  2. जब रैफरी खेल को रोक दे।

स्कोर (फलांकन) या गोल-जब गेंद नियमानुसार गोल पोस्टों के बीच क्रास बार के नीचे और गोल रेखा के पार चली जाए तो गोल माना जाता है। जो भी टीम अधिक गोल बना लेगी उसे विजयी माना जाएगा। यदि कोई गोल नहीं होता या बराबर संख्या में गोल होते हैं तो खेल बराबर माना जाएगा। परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।

प्रश्न 3.
फुटबाल खेल में ऑफ साइड, फ्री किक, पैनल्टी किक, कार्नर किक और गोल किक क्या होते हैं ?
उत्तर-
ऑफ साइड-कोई भी खिलाड़ी अपने मध्य में ऑफ साइड नहीं होता। ऑफ साइड उस समय होता है जब वह विरोधी टीम के मध्य में हो और उसके पीछे दो विरोधी खिलाड़ी न हों।

  1. उसकी अपेक्षा विरोधी खिलाड़ी अपनी गोल रेखा के निकट न हों।
  2. वह मैदान में अपने अर्द्ध-क्षेत्र में न हो।
  3. गेंद अन्तिम बार विरोधी को न लगी हो या उसके द्वारा खेली न गई हो।
  4. उसे गोल-किक, कार्नर किक, थ्रो-इन द्वारा गेंद सीधी न मिली हो या रैफ़री ने न फेंका हो।

दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर विरोधी खिलाड़ी को उस स्थान से फ्री किक दी जाएगी, जहां पर नियम का उल्लंघन हुआ हो।
फ्री किक-फ्री किक दो प्रकार की होती है-प्रत्यक्ष फ्री किक (Direct Kick) तथा अप्रत्यक्ष फ्री किक (Indirect Kick)। प्रत्यक्ष फ्री किक वह है जहां से सीधा गोल किया जा सकता है। जब तक कि गेंद किसी और खिलाड़ी को छू न जाए।

जब कोई खिलाड़ी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाता है तो अन्य खिलाड़ी गेंद से कम से कम दस गज़ की दूरी पर होंगे। वे अपने परिधि पथ और पैनल्टी क्षेत्र को पार करते ही गेंद फौरन खेलेंगे। यदि गेंद पैनल्टी क्षेत्र से परे सीधे खेल में किक नहीं लगाई गई तो किक पुनः लगाई जाएगी।

दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर रक्षक टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाने को मिलेगी। फ्री किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को दूसरी बार उस समय तक नहीं छू सकता जब तक इसे किसी अन्य खिलाड़ी ने न छू लिया हो।

पैनल्टी किक-पैनल्टी किक पैनल्टी निशान से लगाई जाएगी। पैनल्टी किक लगाने के समय किक मारने वाला (प्रहारक) तथा गोल रक्षक ही पैनल्टी क्षेत्र में होंगे। बाकी खिलाड़ी पैनल्टी क्षेत्र से बाहर और पैनल्टी के निशान से कम से कम 10 गज़ दूर होंगे। गेंद को किक लगने तक गोल रक्षक गोल रेखा पर स्थिर खड़ा रहेगा। किक मारने वाला गेंद को दूसरी बार छू नहीं सकता जब तक कि उसे गोल कीपर छू नहीं लेता।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर—

  1. यदि रक्षक टीम द्वारा उल्लंघन होता है और यदि गोल न हुआ हो तो किक दूसरी बार ली जाएगी।
  2. यदि आक्रामक टीम द्वारा उल्लंघन होता है तो गोल हो जाने पर भी दोबारा किक दी जाएगी।
  3. यदि पैनल्टी किक लेने वाले खिलाड़ी से अथवा उसके साथी से गोल उल्लंघन होता है तो विरोधी खिलाड़ी उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष गोल किक लगाएगा।

थ्रो-इन-जब गेंद भूमि पर या हवा में पार्श्व रेखाओं (Side Lines) से बाहर चली जाती है तो विरोधी टीम का एक खिलाड़ी उस स्थान से जहां से गेंद पार हुई होती है, खड़ा होकर गेंद मैदान के अन्दर फैंकता है।

गेंद अन्दर फेंकने वाला खिलाड़ी मैदान की ओर मुंह करके दोनों पांवों का कोई भाग स्पर्श रेखा या स्पर्श रेखा से बाहर ज़मीन पर रख कर खड़ा हो जाता है। वह हाथों से गेंद पकड़ कर सिर के ऊपर से घुमा कर अन्दर मैदान में फेंकेगा। वह उस समय तक गेंद को नहीं छू सकता जब तक किसी दूसरे खिलाड़ी ने इसे न छू लिया हो।
दण्ड—

  1. यदि थ्रो-इन उचित ढंग से न हो तो विरोधी टीम का खिलाड़ी थ्रो-इन करेगा।
  2. यदि थ्रो-इन करने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले ही स्वयं छू लेता है तो विरोधी टीम को एक अप्रत्यक्ष किक लगाने को दी जाएगी।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
गोल किक-किसी आक्रामक टीम के खिलाड़ी द्वारा खेले जाने पर जब गेंद भूमि के साथ हवा में गोल रेखा को पार कर जाए तो रक्षक टीम का खिलाड़ी इसे गोल क्षेत्र से बाहर किक करता है। यदि वह गोल क्षेत्र से बाहर नहीं निकलती और सीधे खेल के मैदान में नहीं पहुंच पाती तो किक दोबारा लगाई जाएगी। किक करने वाला खिलाड़ी गेंद को उस समय तक पुनः नहीं छू सकता जब तक इसे किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छू न लिया जाए।

दण्ड-यदि किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी अन्य खिलाड़ी द्वारा छूने से पहले पुनः छू ले तो विरोधी को उसी स्थान से एक अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जहां कि उल्लंघन हुआ है।

कार्नर किक-जब रक्षक टीम के किसी खिलाड़ी द्वारा खेले जाने पर गेंद भूमि पर या हवा में गोल रेखा पार कर जाए तो आक्रामक टीम का खिलाड़ी निकटतम कार्नर फ्लैग पोस्ट के चौथाई वृत्त के भीतर से गेंद को किक लगाएगा। ऐसी किक से प्रत्यक्ष गोल भी किया जा सकता है। जब तक कार्नर किक न ले ली जाए, विरोधी टीम के खिलाड़ी 10 गज़ दूर रहेंगे। किक करने वाला खिलाड़ी भी उस समय तक गेंद को दुबारा नहीं छू सकता जब तक किसी अन्य खिलाड़ी ने उसे छू न लिया हो।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर विरोधी टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
फुटबाल खेल में कौन-कौन से फाऊल हो सकते हैं ?
उत्तर-
फाऊल तथा त्रुटियां
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
(क) यदि कोई भी खिलाड़ी निम्नलिखित अवज्ञा या अपराधों में से कोई भी जान-बूझ कर करता है तो विरोधी दल को अवज्ञा अथवा अपराध वाले स्थान से प्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।

  1. विरोधी खिलाड़ी को किक मारे या किक मारने की कोशिश करे।
  2. विरोधी खिलाड़ी पर कूदे या धक्का या मुक्का मारे अथवा कोशिश करे।
  3. विरोधी खिलाड़ी पर भयंकर रूप से आक्रमण करे।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से आक्रमण करे।
  5. विरोधी खिलाड़ी को पकड़े या उसके वस्त्र पकड़ कर खींचे।
  6. विरोधी खिलाड़ी को चोट लगाए या लगाने की कोशिश करे।
  7. विरोधी खिलाड़ी के रास्ते में बाधा बने या टांगों के प्रयोग से उसे गिरा दे या गिराने की कोशिश करे।
  8. विरोधी खिलाड़ी को हाथ या भुजा के किसी भाग से धक्का दे।
  9. गेंद को हाथ से पकड़ता है।

यदि रक्षक टीम का खिलाड़ी इन अपराधों में से कोई एक अपराध पैनल्टी क्षेत्र में जान-बूझकर करता है तो आक्रामक टीम को पैनल्टी किक दी जाएगी।

(ख) यदि निम्नलिखित अपराधों में से कोई एक अपराध करता है तो विरोधी टीम को अपराध वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी—

  1. जब गेंद को खतरनाक ढंग से खेलता है।
  2. जब गेंद कुछ दूर हो तो दूसरे खिलाड़ी को कन्धे मारे।
  3. गेंद खेलते समय विरोधी खिलाड़ी को जान-बूझ कर रोकता है।
  4.  गोलकीपर पर आक्रमण करना, केवल उन स्थितियों को छोड़कर जब वह—
    • विरोधी खिलाड़ी को रोक रहा हो।
    • गेंद पकड़ रहा हो।
    • गोल क्षेत्र से बाहर निकल गया हो।
  5.  गोल रक्षक के रूप में गेंद भूमि पर बिना टप्पा मारे चार कदम आगे को जाना।
    • गोल रक्षक के रूप में ऐसी चालाकी में लग जाना जिससे खेल में बाधा पड़े, समय नष्ट करे और अपने पक्ष को अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश करे।

(ग) खिलाड़ी को चेतावनी दी जाएगी और विरोधी टीम को अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जब कोई खिलाड़ी—

  1. खेल के नियमों का लगातार उल्लंघन करता है।
  2. दुर्व्यवहार का अपराधी होता है।
  3. शब्दों या प्रक्रिया द्वारा रैफरी के निर्णय से मतभेद प्रकट करता है।

(घ) खिलाड़ी को खेल के मैदान से बाहर निकाल दिया जाएगा यदि—

  1. वह गाली-गलौच करता है या फाऊल करता है।
  2. चेतावनी मिलने पर भी बुरा व्यवहार करता है।
  3. वह गम्भीर फाऊल खेलता है या दुर्व्यवहार करता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
फुटबाल की महत्त्वपूर्ण तकनीकों के बारे में लिखें।
उत्तर-
किकिंग-किकिंग वह ढंग है जिसके द्वारा बॉल को इच्छित दिशा में पांवों की सहायता से इच्छित गति से, यह देखते हुए कि बॉल इच्छित स्थान पर पहुंच जाए, आगे बढ़ाया जाता है। किकिंग की कला में सही निशाना, गति, दिशा एवं अन्तर केवल एक पांव, बाएं या दहने में नहीं बल्कि दोनों पांवों से काम किया जाता है। शायद नवसिखयों को सिखलाई जाने वाली सबसे जरूरी बात दोनों पांवों से खेल को खेलने पर बल देने की जरूरत है। युवकों और नवसिखयों को दोनों पांवों से खेलना सिखाना आसान है। इसके बगैर खेल के किसी सफलता के मरतबे पर पहुंच पाना असम्भव है।

  1. पांवों को अंदरूनी भाग से किक मारना—
  2. पावों का बाहरी भाग—

जब बॉल को नज़दीक दूरी पर किक किया जाता है तो इन दोनों परिवर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। ताकत कम लगाई जाती है, परन्तु इस में अधिक शुद्धता होती है और नतीजे के तौर पर यह ढंग गोलों का निशाना बनाते समय अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
हॉफ़ वाली तथा वॉली किक—
जब बॉल खिलाड़ी के पास उछलता हुआ या हवा में आ रहा हो तो उस समय एक अस्थिरता होती है, न केवल फुटबाल के क्रीड़ा स्थल की सतह के कारण इसके उछलन की दिशा के बारे, बल्कि इसकी ऊंचाई और गति के बारे में भी। इसको प्रभावशाली ढंग से साफ करने हेतु जो बात ज़रूरी है वह है शुद्ध समय और मार रहे पांव के चलने का तालमेल और शुद्ध ऊंचाई तक उठाना।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 6

ओवर हैड किक—
इस किक का उद्देश्य तीन पक्षीय होता है
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 7

  1. सामने मुकाबला कर रहे खिलाड़ी से बॉल की और दिशा में मोड़ना,
  2. बॉल को किक की पहली दिशा में ही आगे बढ़ाना और
  3. बॉल को वापिस उसी दिशा में मोड़ना जहां से वह आया होता है। ओवर हैड किक संशोधित वॉली किक है और इसका इस्तेमाल आमतौर पर ऊंचे उछलते हुए बॉल को मारने हेतु किया जाता है।।

पास देना—
फुटबॉल में पास देने का काम टीम वर्क का आधार है। पास टीम को, समन्वय । बढ़ाते हुए और टीम वर्क को अहसास कराते हुए जोड़ता है। पास खेल की स्थिति से जुड़ी हुई खेल की सच्चाई है तथा एक मौलिक तत्त्व है, जिसके लिए टीम की सिखलाई और अभ्यास के दौरान अधिक समय और विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। गोलों में प्रवीणता के लिए टीम का पास व्यक्तिगत खिलाड़ी का शुद्ध आलाम है। यह कहा जाता है कि एक सफल पास तीन किकों से अच्छा होता है। पास देना तालमेल का एक अंग है, व्यक्तिगत बुद्धिमता को खेल में आक्रमण करते समय या सुरक्षा समय खिलाड़ियों में हिलडुल के पेचीदा ढांचे को एक सुर करना है। पास में पास देने वाला, बॉल और पास हासिल करने वाला शामिल होते हैं।
पास देने की क्रिया को आमतौर पर दो भागों में बांटा गया है—लम्बे पास तथा छोटे पास।

  1. लम्बे पास-ऐसे पास का इस्तेमाल खेल की तेज़ गति की स्थिति में किया जाता है, जहां कि लम्बे पास गुणकारी होते हैं और पास दाएं-बाएं या पीछे की ओर भी दिया जा सकता है। सभी लम्बे पासों में पांवों में पांव के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है। लम्बे सुरक्षा पास को मज़बूत करते हैं तथा छोटे पास देने को आसान करते हैं।
  2. छोटे पास-छोटे पास 15 गज़ या इतनी-सी ही दूरी तक पास देने में इस्तेमाल किए जाते हैं। ये पास लम्बे पासों से अधिक तेज़ एवं शुद्ध होते हैं।

पुश पास—
पुश पास का इस्तेमाल आमतौर पर जब दूसरी टीम का खिलाड़ी अधिक नज़दीक न हो, नज़दीक से गोलों में बॉल डालने के लिए और बॉल को बाएं-दाएं ओर फेंकने हेतु किया जाता है।
लॉब पास—
यह पुश पास से छोटा होता है। मगर इसमें बॉल को ऊपर उठाया जाता है या उछाला जाता है। लॉब पास का इस्तेमाल दूसरी टीम का खिलाड़ी जब पास में हो या थ्रो बॉल लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसके सिर के ऊपर से बॉल को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है।

पांव का बाहरी भाग…….फलिक या जॉब पास—
पहले बताए गए दो पासों के विपरीत फलिक पास से पाँव को भीतर की ओर घुमाते हुए बॉल को फलिक किया जाता है या पुश किया जाता है। इस तरह के पास का पीछे की ओर पास देने हेतु बॉल को नियन्त्रण में रखते हुए और धरती पर ही आगे रेंगते हुए इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रैपिंग—
ट्रैपिंग बॉल को नियन्त्रण में रखने का आधार है। बॉल को ट्रैप करने का अर्थ बॉल को खिलाड़ी के नियन्त्रण से बाहर जाने से रोकना है। यह केवल बॉल को रोकने या गतिहीन करने की ही क्रिया नहीं बल्कि आ रहे बॉल को मज़बूत नियन्त्रण में करने के लिए अनिवार्य तकनीक भी है। रोकना तो बॉल नियन्त्रण का पहला अंग है और दूसरा अंग जो खिलाड़ी इससे उपरान्त अपने एवं टीम के लाभ हेतु करता है, भी बराबर अनिवार्य है।
नोट-ट्रैप की सिखलाई

  1. रेंगते बॉल तथा
  2. उछलते बॉल के लिए दी जानी चाहिए।

पांव के निचले भाग से ट्रैप—
यदि कोई शीघ्रता नहीं होती और जिस वक्त काफ़ी स्वतन्त्र अंग होता है खिलाड़ी के आस-पास कोई नहीं होता तो इस तरह की ट्रैपिंग बहुत गुणकारी होती है।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 8

पांव के भीतरी भाग से ट्रैप—
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 9
यह सबसे प्रभावशाली और आम इस्तेमाल किया जाता ट्रैप है। इस तरह का ट्रैप न केवल खिलाड़ी को बॉल ट्रैप करने के योग्य बनाता है, बल्कि उसको किसी भी दिशा में जाने के लिए सहायता करता है और अक्सर उसी गति में ही। यह ट्रैप दाएं-बाएं ओर से या तिरछे आ रहे बॉल के लिए अच्छा है। यदि बॉल सीधा सामने से आ रहा है तो बदन को उसी दिशा में घुमाया जाता है जिस ओर बॉल ने जाना होता है।

पांव के बाहरी भाग से ट्रैप—
यह पहले जैसा ही है, मगर कठिन है, क्योंकि हरकत में खिलाड़ी को बदन का भार बाहर की तथा केन्द्र से बाहर सन्तुलन करने के लिए ज़रूरी होता है।
पेट तथा सीना ट्रैप—
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 10
यदि बॉल कमर से ऊंचा हो और पांव से असरदार ढंग से ट्रैप न हो सकता हो तो बॉल को पेट तथा सीने पर सीधा या धरती से उछलता हुआ लिया जाता है।
हैड ट्रैप—
यह अनुभवी खिलाड़ियों के लिए है और उसके लिए है जो हैडिंग में अपने को अच्छी तरह स्थापित कर चुके हैं।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 11
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 12
(क) सामने की ओर हैडिंग
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 13
(ख) बाईं तथा दाईं ओर हैडिंग
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 14
(ग) नीचे की ओर हैडिंग

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

PSEB 11th Class Physical Education Guide स्वास्थ्य शिक्षा Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य शिक्षा की परिभाषा लिखें।
(Define Health Education.)
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा की परिभाषाएं
(Definitions of Health Education) डॉ० थॉमस वुड के शब्दों में, “स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का योग है जो व्यक्ति, समुदाय या सामाजिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित आदतों, दृष्टिकोण और ज्ञान को ठीक तरह प्रभावित करते हैं।”
(In the words of Dr. Thomas Wood, “Health Education is the sum of experience which favourably influence habit, attitude and knowledge relating to individual, community and social health.”)
ग्राउंट की दृष्टि में, “स्वास्थ्य शिक्षा शैक्षिक प्रक्रिया के माध्यम से स्वास्थ्य विषयक जानकारी को व्यक्ति और सामाजिक व्यवहार के नमूनों में अनूदित करना है।”
(In the views of Grount. “Health Education is the translation of what is known about health into desirable individual and community behaviour pattern by means of educational process.”)
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, “स्वास्थ्य से अभिप्राय है-शरीर या मन की नीरोगता। यह वह स्थिति है जिसमें शरीर और मन के कार्य सुचारु रूप से हों।”
(According to Oxford dictionary, “Health refers to a disease free body and mind. It is such a condition in which the work of body and mind is accomplished in the best way.”)
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1984 ई० में स्वास्थ्य की परिभाषा इस प्रकार दी है, “शरीर केवल रोग और निर्बलता से मुक्त ही न हो बल्कि उसका मानसिक तथा भावनात्मक शक्तियों का पूर्ण विकास भी हो तथा साथ ही सामाजिक रूप से वह एक कुशल व्यक्ति हो।”
(In 1984, WHO defined the word health in the following words, “Health is a dynamic state of complete physical, mental, social and spiritual well being and not merely the absence of disease or infirmity.”)
जॉन लॉक के अनुसार, “स्वस्थ मन एक स्वस्थ शरीर में ही रह सकता है।”
(John Lock says, “healthy mind can live in a healthy body.”)

प्रश्न 2.
W.H.O. से क्या अभिप्राय है ?
(What is the meaning of W.H.O.?)
उत्तर-
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation)

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 3.
स्वास्थ्य शिक्षा की कितनी किस्में हैं ?
(How many types of Health Education are there?)
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा की किस्में—

  1. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health)
  2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)
  3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health)
  4. आत्मिक स्वास्थ्य (Spiritual Health)
  5. वातावरणीय स्वास्थ (Environmental Health)

प्रश्न 4.
स्वास्थ्य शिक्षा की किस्मों को विस्तारपूर्वक लिखें।
(Give detailed description of various types of Health Education.)
उत्तर-
1. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health)-स्वास्थ्य कुल शिक्षा का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसमें शरीर के अलग-अलग भाग जैसे कि चमड़ी, बाल, दांत, आँखें, कान, हाथ, पैर, आराम और नींद, कसरत, मनोरंजन तथा मुद्रा, साँस, कार्डियोवैस्कुलर और शरीर के दूसरे भागों की देखभाल कैसे रखी जाए, के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है। ये हमें ये भी सिखाता है कि सर्वोत्तम स्वास्थ्य के राज्य को कैसे बना के रखा जा सकता है।

2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)–ये स्वास्थ्य के कुल भाग का हिस्सा है। मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ मानसिक बिमारी के रोग की पहचान और इलाज से नहीं है, बल्कि एक अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को कैसे बना के रखना चाहिए, के बारे में भी सिखाता है। मानसिक स्वास्थ्य और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों का आपस में गहरा सम्बन्ध है। एक मशहूर कहावत के अनुसार स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का निकास होता है। मानसिक तौर पर स्वस्थ व्यक्ति आत्म विश्वास शांत और खुशहाल, व्यवस्थित, स्वै-नियन्त्रित और भावनात्मक होता है। वह डर, गुस्से, प्यार, ईर्ष्या, द्वेष या चिन्ताओं से आसानी से प्रभावित नहीं होता और वह हर प्रकार की मुश्किलों का सामना आसानी से कर लेता है।

3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health)—मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है प्रत्येक मानव समाज में अपनी अच्छी पहचान बनाने के लिए भरसक प्रयास करता है। एक व्यक्ति की समाज में पहचान उसके सामाजिक सम्बन्धों पर निर्भर करती है। वह अपनी क्रियाओं और बौद्धिक सामर्थ्य के साथ समाज में अपनी पहचान बनाता है। वह समाज द्वारा बनाए नियमों का पालन करते हुए अपने तालमेल को समुचित रखने के लिए यत्नशील रहता है। यदि किसी व्यक्ति का समाज के साथ तालमेल ठीक न हो तो उसे बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

4. आत्मिक स्वास्थ्य (Spritual Health)- इसे एक धार्मिक विश्वास, संस्कार, विश्वास, नैतिकता के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है। यह मनुष्यों में माफी और सुलह जैसे भाव पैदा करता है। यह व्यक्तियों के जीवन में प्रतिदिन आने वाली चुनौतियों को पूरा करने में भी लाभदायक होता है। मनुष्य के जीवन में अलग-अलग पक्षों में बढ़ रहे दबाव के कारण व्यक्तिगत स्वार्थ तथा कई तरह की त्रुटियां पैदा हुई हैं जिसे आत्मिक स्वास्थ मनुष्य को दुबारा उसके स्वै-चिन्तन से जोड़ता है। यह हमारी जागरूकता को खोलता तथा हमें उसे महसूस करने की समर्था प्रदान करता है।

5. वातावरणीय स्वास्थ्य (Environmental Health)-स्वास्थ्य शिक्षा हमें वातावरण तथा स्वस्थ जीवन के महत्त्व के बारे में सिखाती है। कई तरह की खराब आदतें हमें बिमारी की तरफ ले जाती हैं। प्रदूषित पानी का प्रयोग, मिट्टी, कूड़ा-कर्कट, मल-निकास, खराब रहन-सहन, वास्तव में कई बिमारियों के लिए बहुत ज़िम्मेदार है। स्वास्थ्यवर्धक वातावरण का ज्ञान रोगों की रोकथाम, व्यक्तिगत और समाज के स्वास्थ्य को उत्साहित करने में सहायक सिद्ध होता है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 5.
स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धांत के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
(Give detailed account of the principles of Health Education.)
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धान्त
(Principles of Health Education)

1. स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान प्रत्येक नागरिक में उच्च स्तर का स्वास्थ्य लाभ बनाए रखता है ताकि वह स्वस्थ होने के साथ-साथ अपने जीवन की दैनिक क्रियाओं को ठीक ढंग से कर सकें।

2. अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ स्वास्थ्य सुधार का कार्यक्रम भी आवश्यक रूप में चलाना चाहिए जिसके द्वारा लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हो।

3. स्वास्थ्य सुधार का कार्यक्रम बच्चों की रुचि, आवश्यकता, सामर्थ्य एवं वातावरण के अनुकूल होना चाहिए ताकि बच्चे स्वास्थ्य शिक्षा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त कर सकें और प्राप्त किये गये ज्ञान का प्रयोग अपने जीवन में प्रयुक्त करें।

4. प्रयोगात्मक शिक्षा अधिक प्रभावशाली होती है और इससे अधिक लाभ पहुंच सकता है। इस तरह के कार्यक्रम का प्रबन्ध होना आवश्यक है जिसमें सभी बच्चों को भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सके।

5. प्रत्येक बच्चे में कुछ-न-कुछ गुण मौजूद होते हैं। इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा का कार्यक्रम इस प्रकार का होना चाहिए जिसमें बालक को अपने अन्दर मौजूद गुणों को विकसित करने का अवसर मिल सके जिसके परिणामस्वरूप स्वास्थ्य शिक्षा का महत्त्व बढ़े।

6. स्वास्थ्य शिक्षा को पढ़ने-लिखने तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए अपितु इसकी ठोस उपलब्धियों के लिए कार्यक्रम चलाने चाहिए।

7. स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रमों को केवल स्कूलों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए अपितु घर-घर जाकर समाज के प्रत्येक अंग विशेषकर माता-पिता को इसकी शिक्षा से प्राप्त होने वाले लाभों तथा लापरवाही से होने वाली हानियों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करनी चाहिए ताकि वह अपने परिवार के प्रति लापरवाही न बरतें और सदा जागरूक रहें।

8. स्वास्थ्य से सम्बन्धित कार्यक्रमों में इस प्रकार की समस्याएं शामिल की जानी चाहिए जिनसे वह कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकें और इसके साथ-साथ उनका मनोरंजन भी हो सके।

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य सम्बन्धी कोई दो उपाय लिखें।
(Write about any two Health measures.)
उत्तर-
बच्चों को स्वस्थ बनाने के लिए स्वास्थ्य सम्बन्धी उपाय निम्नलिखित है :

  1. योग (Yoga)—बच्चों को स्वस्थ बनाने के लिए योग का बहुत महत्व है, इसीलिए इसका निरन्तर अभ्यास करवाना चाहिए। योग के द्वारा शरीर की बाहरी तथा आंतरिक अशुद्धियों से छुटकारा मिल जाता है। योग व्यक्ति के मानसिक तथा भावनात्मक पहलुओं को प्रभावित करता है।
  2. साफ़-सुथरा वातावरण (Healthy Environment)-स्कूल में बच्चों को साफ़-सुथरा वातावरण प्रदान करना चाहिए। ताकि उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव न पड़े और वह साफ़-सुथरे वातावरण में पढ़ सकें।
  3. संतुलित भोजन (Balanced diet)
  4. शुद्ध हवा, पानी और प्रकाश (Pure Air, Water and Light)
  5. समुचित फर्नीचर (Adequate Furniture)
  6. बच्चों की चिकित्सीय जांच (Medical examination of children)

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 7.
स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दीजिए।
(Give detailed account of the area of Health Education.)
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र
(Scope of Health Education)
स्वास्थ्य प्रकृति की तरफ से दिया गया मनुष्य को एक वरदान है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए और स्वास्थ्य का स्तर ऊंचा रखने के लिए अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। केवल एक मनुष्य को ही नहीं बल्कि सारे अकेले-अकेले और सारे मिल कर समाज के सेहत का स्तर ऊंचा उठाने के लिए उपाय करें तो हम जीवन की खुशियां और आनन्द ले सकते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है। इनको चार भागों में बांटा जा सकता है

1. शारीरिक बनावट और शारीरिक क्रिया का प्राथमिक ज्ञान
(Elementary Knowledge of Anatomy and Physiology)
हर एक मनुष्य को अपने शरीर की बनावट के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए कि उसके शरीर की बनावट कैसी है और शरीर के अलग-अलग अंग अपनी शारीरिक क्रियाएं किस तरह कर रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, अगर आपको साइकिल की बनावट का पता होगा तो आप उसको ठीक कर सकते हैं या किसी साइकिल ठीक करने वाले को इसकी खराबी को बता कर ठीक करवा लेंगे। लेकिन अगर साइकिल की क्रिया में कोई खराबी हो जाए जैसे कि साइकिल के कुत्ते मर जाएं तो हम साइकिल पर बैठ कर उसके पैडल को पैरों से अवश्य घुमाएंगे लेकिन साइकिल अपना आगे जाने का काम नहीं करेगा, क्योंकि उस साइकिल की क्रिया में खराबी आ गई है। इसलिए साइकिल आगे नहीं जाता। लेकिन अकेले पैडल ही घूमता रहता है। इस तरह अगर साइकिल की क्रिया के बारे में जानकारी होगी तब ही उसको साइकिल के कारीगर के पास ले जा कर उसको फ्राइबल के नए कुत्ते डलवा लेंगे नहीं तो वहां खड़े हो कर पैडल मार-मार कर बिना वजह परेशान होते रहेंगे। इसलिए साइकिल की तरह मनुष्य को भी अपनी सेहत की बनावट और शारीरिक क्रिया के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए। जैसे शरीर में रक्त संचार कैसे हो रहा है। हम आगे-पीछे कैसे आते-जाते हैं, हिलतेडुलते कैसे हैं। इसमें हमारी मांसपेशियों का क्या काम है। हम भोजन कैसे खाते हैं। वह कैसे हमारी शरीर को ताकत देता है और किस तरह हमारे भोजन से ताकत निकल कर बाकी का मल-त्याग और कैसे किन-किन हालतों में निकल कर बाहर आता है।

इस तरह अगर हमारे शरीर की बनावट और शारीरिक क्रिया का ज्ञान हमें होगा तो हम अपने शरीर को निरोग रखने में सफल हो सकते हैं, अपने स्वास्थ्य का ऊंचा स्तर कायम कर सकते हैं, जिससे हमारे काम करने की क्षमता बढ़ेगी। हम अपना जीवन काल खुशियों भरा बिता सकेंगे, परन्तु दूसरी तरफ यदि हमें अपने शरीर की बनावट और शारीरिक क्रिया के बारे में पता नहीं होगा तो हम अपने साइकिल की तरह अन्धेरे में ही रहेंगे और शान्त, सुखी और आनन्दमय जीवन नहीं बिता सकेंगे। इसलिए अब प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण विषय बन गया है। इसके ज्ञान की ज़रूरत प्रत्येक प्राणी महसूस कर रहा है।

2. स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देश
(Instruction Regarding Health)
स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देशों का व्यक्ति के स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यदि उसको अपने स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान और स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देश की जानकारी हो तो वह उन निर्देशों को अपनी सेहत को बनाए रखने के लिए अपना कर्त्तव्य समझेगा और अपने आप में अच्छा सेहत बनाए रखने की आदतें डालेगा जैसे प्रातः समय पर उठना और रात को समय पर सोना तथा रात को पूरी नींद लेना। प्रात: उठकर ब्रुश करना और प्रतिदिन स्नान करना, अपने आपकी सफ़ाई रखना, अपने घर, मुहल्ले और गांव की सफ़ाई की तरफ ध्यान देना, नालियों की सफ़ाई रखना, कूड़े के ढेर अपनी गली, मुहल्ले में जमा नहीं होने देना। उनको शीघ्र उठवा देना या ज़मीन में खोद कर उसमें दबा देना। यह सभी स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देश हैं। इनकी तरफ पूरा-पूरा ध्यान देना चाहिए।

अपने स्वास्थ्य का डॉक्टर से साल में दो बार निरीक्षण करवाना, बच्चों को बी० सी० जी०, पोलियो, डी० पी० टी० इत्यादि के समय पर टीके लगवाए जिससे वह छूत आदि बीमारियों से बच सके। पूरा पका हुआ भोजन खाना और सन्तुलित भोजन खाना, साफ़ पानी पीना, साफ़-सुथरे और स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण में रहना। इन सभी निर्देशों और आदतों पर चल कर व्यक्ति अपने स्वास्थ्य का स्तर ऊंचा कर सकता है और अपनी स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रत्येक खुशी और आनन्द प्राप्त कर सकता है। इस तरह स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देशों को ध्यान में रख कर मनुष्य अपनी आदतें इस तरह की बना लेता है जिससे वह अपने आप स्वास्थ्यवर्द्धक बन जाता है। यह स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देश स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र का एक अंग बन गए हैं।

3. स्वास्थ्य सेवाएं
(Health Services)
स्वास्थ्य सेवा से भाव यह है कि स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाएं जो हम किसी अच्छे पढ़े-लिखे योग्य व्यक्ति से. अपनी सेहत का स्तर ऊंचा करने के लिए प्राप्त करते हैं उनको हम स्वास्थ्य सेवाएं कहते हैं। जैसे-डॉक्टर, नर्स, कम्पाऊंडर और हकीम हमारे स्वास्थ्य का निरीक्षण करके आवश्यकतानुसार हमें दवाई देते हैं। वह उनकी हमारे प्रति स्वास्थ्य सम्बन्धी सेवाएं हैं।

आम जनता को स्वास्थ्य सेवाएं अस्पतालों, डिस्पेंसरियों, स्वास्थ्य केन्द्रों एवं डॉक्टरों के निजी दवाखानों से प्राप्त हो जाती हैं। जब कोई व्यक्ति अपने आपको ठीक न समझे या बीमार हो जाए तो वह उन केन्द्रों से स्वास्थ्य सेवा करवाता है। डॉक्टर इस बीमारी को ठीक करने के लिए दवाई देता है और कुछ निर्देश देता है। जैसे-कोई वस्तु खाने से बीमारी बढ़ जाती है। इस तरह की वस्तुओं का सेवन करने से मना करता है और उन वस्तुओं को खाने का परामर्श देता है जो उसको जल्दी बीमारी से ठीक होने में सहायक हों।

बच्चों के स्वास्थ्य का निरीक्षण स्कूल के डॉक्टर द्वारा किसी क्षण भी किया जाता है। यह सुविधा अभी तक अंग्रेज़ी स्कूलों में ही है, लेकिन सरकारी स्कूलों में इस तरह की कोई सुविधा नहीं है। वर्ष में दो बार प्रत्येक बच्चे का निरीक्षण किया जाना चाहिए। यदि बच्चे में बीमारी के लक्षण दिखाई दें तो उनके माता-पिता को उसके रोग के बारे में जानकारी दी जाती है जिससे समय पर बीमारी का इलाज हो सके। इस तरह यह स्वास्थ्य सेवाएं स्वास्थ्य शिक्षा के केन्द्र का अभिन्न अंग बन गई हैं।

4. स्वास्थ्यवर्द्धक वातावारण
(Healthful Atmosphere)
जैसे व्यक्ति की बोलचाल, बातचीत करने के ढंग से उसकी योग्यता पहचानी जाती है, उसी तरह ही व्यक्ति के स्वास्थ्य से पता चल जाता है कि वह कैसे वातावरण में रहता है। अगर उसका स्वास्थ्य अच्छा है तो वह अच्छे वातावरण में रह रहा होगा लेकिन यदि स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो उससे पता चल जाएगा कि वह किसी साफ़-सुथरे वातावरण में नहीं रह रहा है।

अच्छी सेहत के लिए स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण बहुत ज़रूरी है। यदि हम स्वयं अपनी सफ़ाई रखें तथा अपने आसपास की भी जैसे घर, गली, मुहल्ला, गांव, कस्बा और शहर तो हम एक स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण कायम करने में सफल अवश्य हो जाएंगे। जैसे-हम स्कूल की सफ़ाई करके कूड़ा-कर्कट दूर फेंक कर, कमरों की प्रतिदिन सफ़ाई करके, अपनी कुर्सियां, मेज़ साफ़ करके, स्कूल के बच्चों और स्टाफ के लिए बनाए गए शौचालय की सफ़ाई रखें और स्कूल में वृक्ष लगाएं तथा फूल लगा कर स्कूल का वातावरण स्वास्थ्यवर्द्धक ही नहीं बल्कि सुन्दर भी बनाने में सफल हो जाएंगे। इस तरह ही हमें अपने घर व समाज के वातावरण को स्वास्थ्यवर्द्धक बनाने के लिए उसकी तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए। स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण में ही अपने स्वास्थ्य को तन्दुरुस्त और आरोग्य बना सकते हैं। इसलिए स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण स्वास्थ्य के क्षेत्रों में एक है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

Physical Education Guide for Class 11 PSEB स्वास्थ्य शिक्षा Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
“स्वास्थ्य शिक्षा शैक्षिक प्रक्रिया के माध्यम से स्वास्थ्य जानकारी को व्यक्ति और सामाजिक व्यवहार के नमूने में अनुदित करना है।” किसका कथन है ?
उत्तर-
ग्राउंट का।

प्रश्न 2.
“शरीर केवल रोग तथा निर्बलता से मुक्त ही न हो बल्कि उसकी मानसिक तथा भावनात्मक शक्तियों का पूर्ण विकास भी हो तथा साथ ही सामाजिक रूप से वह एक कुशल व्यक्ति हो।” कथन किसका है ?
उत्तर-
विश्व स्वास्थ्य संगठन।

प्रश्न 3.
‘यह एक वह स्थिति है जिसमें मनुष्य अपनी बौधिक तथा भावनात्मक विशेषताओं द्वारा अपनी दैनिक ज़िन्दगी को हरकत में लाने के समर्थ हो।” किसका कथन है ?
उत्तर-
इनसाइक्लोपीडिया।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 4.
“स्वस्थ मन एक स्वस्थ शरीर में ही रह सकता है।” यह किसका कथन है ?
(a) जानॅ लॉक
(b) डॉ० थामस वुड
(c) ग्राउंट
(d) विश्व स्वास्थ्य संगठन।
उत्तर-
(a) जॉन लॉक।

प्रश्न 5.
स्वास्थ्य शिक्षा की किस्में हैं।
(a) शारीरिक स्वास्थ्य
(b) मानसिक स्वास्थ्य
(c) सामाजिक स्वास्थ्य
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
स्वास्थ्य शिक्षा का लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा का लक्ष्य लोगों के स्वास्थ्य के स्तर को ऊँचा करना है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 7.
स्वास्थ्य शिक्षा के सिद्धांत हैं
(a) बच्चे में विशेष गुण होने चाहिए।
(b) स्वास्थ्य शिक्षा की प्राप्तियों के लिए प्रोग्राम होने चाहिए।
(c) स्वास्थ्य शिक्षा के कार्यक्रम को केवल स्कूलों तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए।
(d) स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों में इस तरह की समस्याएं शामिल की जानी चाहिए जिनसे वे कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकें।
उत्तर-
(d) स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों में इस तरह की समस्याएं शामिल की जानी चाहिए जिनसे वे कुछ शिक्षा प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 8.
स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र है
(a) शारीरिक बनावट और शारीरिक क्रिया का प्राथमिक ज्ञान
(b) स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देश
(c) स्वास्थ्य सेवाएं
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 9.
स्वास्थ्य शिक्षा क्या है ?
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा वह ज्ञान है जो मनुष्य के स्वास्थ्य के उच्च स्तर को बनाने के लिए आवश्यक है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 10.
“स्वास्थ्य शिक्षा उन अनुभवों का योग है जो व्यक्ति, समुदाय या सामाजिक स्वास्थ्य से सम्बन्धित आदतों, दृष्टिकोण और ज्ञान को ठीक तरह प्रभावित करते हैं।” किसका कथन है ?
(a) डॉ० थामस वुड
(b) ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी
(c) विश्व स्वास्थ्य संगठन
(d) जॉन लॉक।
उत्तर-
(a) डॉ० थामस वुड।

प्रश्न 11.
स्वास्थ्य शिक्षा के दो उद्देश्य लिखो।
उत्तर-

  1. लोगों के स्वास्थ्य का स्तर ऊँचा करना।
  2. शारीरिक विकास में वृद्धि।

प्रश्न 12.
“स्वास्थ्य से भाव है शरीर या मन की निरोगता। यह वह स्थिति है जिसमें शरीर तथा मन के कार्य सम्पूर्ण तथा सुचारू रूप से पूर्ण हों।” यह किसका कथन है ?
उत्तर-
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 13.
“स्वास्थ्य केवल बीमारियों या शारीरिक योग्यताओं की हाजरी नहीं बल्कि पूर्ण रूप से शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तन्दरुस्ती की हालत है।” किसकी परिभाषा है ?
उत्तर-
विश्व स्वास्थ्य संगठन की।

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा के बारे में स्वामी विवेकानन्द के विचार लिखो।
उत्तर-
स्वामी विवेकानन्द ने शरीर के बारे में इस तरह लिखा है, “कमज़ोर मनुष्य अगर शरीर से हो या मन से हो, कभी भी आत्मा को प्राप्त नहीं कर सकता।”

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य शिक्षा की कौन-सी किस्में हैं ?
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा की चार किस्में हैं—

  1. शारीरिक स्वास्थ्य
  2. मानसिक स्वास्थ्य
  3. सामाजिक स्वास्थ्य
  4. आत्मिक स्वास्थ्य।
  5. वातावरणीय स्वास्थ्य

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 3.
शारीरिक शिक्षा का क्षेत्र बताओ।
उत्तर-

  1. शारीरिक बनावट और शारीरिक शिक्षा का अधिक ज्ञान।
  2. स्वास्थ्य सम्बन्धी हिदायतें, स्वास्थ्य सेवाएं और वातावरण।

प्रश्न 4.
स्वास्थ्य शिक्षा के कोई दो उपाय लिखो।
उत्तर-

  1. बच्चों की चिकित्सा जांच (Medical Examination of Children)
  2. समुचित फर्नीचर (Adequate Furniture)

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य और लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-

  1. लोगों की सेहत का स्तर ऊंचा करना (To raise the standard of health of people)
  2. शारीरिक विकास में वृद्धि (Physical Development)
  3. अच्छी आदतों और मनोवृत्तियों का विकास (Development of Good habits and Attitude.)
  4. स्वास्थ्य सम्बन्धी लोगों में सामाजिक जिम्मेदारी की भावना को पैदा करना। (To create a spirit of civic responsibility among people about health.)
  5. स्वास्थ्य सम्बन्धी अनपढ़ लोगों को ज्ञान देना। (To educate Illiterate people about health.)
  6. रोगों की रोकथाम और उन पर नियन्त्रण पाना। (Prevention and Control Disease.)

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 2.
स्वास्थ्य शिक्षा का कोई एक उद्देश्य विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
शारीरिक विकास में वृद्धि (Physical Development)-शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्र के प्रत्येक पक्ष का एक साथ विकास करना है। स्वास्थ्य शिक्षा जहां व्यक्ति के मानसिक विकास में वृद्धि करती है वहां वह उसके शारीरिक विकास में वृद्धि करने में बहुत योगदान देती है। क्योंकि प्रत्येक पक्ष की वृद्धि एक सन्तुलन में होनी चाहिए। शारीरिक विकास में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थी अथवा मनुष्य को अच्छे आदर्शों और आदतों पर चलने के लिए प्रेरित करती है और अच्छी सन्तुलित खुराक खाने का ज्ञान देती है, जिससे मनुष्य के शारीरिक विकास में वृद्धि होती है तो वह स्वस्थ तथा शक्तिशाली बन जाता है।

प्रश्न 3.
स्वास्थ्य शिक्षा के कोई चार सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-

  1. स्वास्थ्य शिक्षा का ज्ञान प्रत्येक नागरिक में उच्च स्तर का स्वास्थ्य लाभ बनाए रखता है ताकि वह स्वस्थ्य होने के साथ-साथ अपने जीवन की दैनिक क्रियाओं को ठीक ढंग से कर सकें।
  2. अन्य कार्यक्रमों के साथ-साथ स्वास्थ्य सुधार का कार्यक्रम भी आवश्यक रूप में चलाना चाहिए जिसके द्वारा लोगों के स्वास्थ्य में सुधार हो।
  3. स्वास्थ्य सुधार का कार्यक्रम बच्चों की रुचि, आवश्यकता, सामर्थ्य एवं वातावरण के अनुकूल होना चाहिए ताकि बच्चे स्वास्थ्य शिक्षा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त कर सकें और प्राप्त किये गये ज्ञान का प्रयोग अपने जीवन में प्रयुक्त करें।
  4. प्रयोगात्मक शिक्षा अधिक प्रभावशाली होती है और इससे अधिक लाभ पहुंच सकता है। इस तरह के कार्यक्रम का प्रबन्ध होना आवश्यक है जिसमें सभी बच्चों को भाग लेने का अवसर प्राप्त हो सके।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

प्रश्न 4.
स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र के बारे में लिखो।
उत्तर-
स्वास्थ्य प्रकृति की तरफ से दिया गया मनुष्य को एक वरदान है। मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए और स्वास्थ्य का स्तर ऊंचा रखने के लिए अपने स्वास्थ्य की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। केवल एक मनुष्य को ही नहीं बल्कि सारे अकेले-अकेले और सारे मिल कर समाज की सेहत का स्तर ऊंचा उठाने के लिए उपाय करें तो हम जीवन की खुशियां और आनन्द ले सकते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा का क्षेत्र बहुत विशाल है। इनको चार भागों में बांटा जा सकता है :—

  1. शारीरिक बनावट और शारीरिक क्रिया का प्राथमिक ज्ञान (Elementary Knowledge of Anatomy and Physiology.)
  2. स्वास्थ्य सम्बन्धी निर्देश (Instruction Regarding Health)
  3. स्वास्थ्य सेवाएं (Health Services)
  4. स्वास्थ्यवर्द्धक वातावरण (Healthful Atmosphere)

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य शिक्षा

बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न-
स्वास्थ्य शिक्षा के लक्ष्य और उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
स्वास्थ्य शिक्षा के उद्देश्य और लक्ष्य
(Aim and Objectives of Health Education)
स्वास्थ्य शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य व लक्ष्य निम्नलिखित हैं—

1. लोगों की सेहत का स्तर ऊंचा करना (To Raise the Standard of Health of People)
स्वास्थ्य शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य लोगों के स्वास्थ्य का स्तर ऊंचा करना है। उनको अपनी सेहत को तन्दरुस्त तथा हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए ज्ञान देना जिससे लोगों के स्वास्थ्य का स्तर अच्छा हो और उनकी काम करने की क्षमता बढ़े। अधिक देर तक लगातार काम करने पर भी उन्हें थकावट नहीं होगी या बहुत कम होगी तो वह भी ज्यादा काम करने के योग्य ही नहीं हो जाएंगे बल्कि करेंगे भी। इस तरह ज्यादा काम करने के साथ उनको ज्यादा पैसे मिलेंगे तो वह अपनी खुराक पर आवश्यकता से अधिक पैसा खर्च करने के योग्य हो जाएंगे। वह अच्छी सन्तुलित खुराक खाएंगे जिससे उनका स्वास्थ्य अच्छा बनेगा जिसके फलस्वरूप उनकी सेहत का स्तर ऊंचा होगा जो कि स्वास्थ्य शिक्षा का मुख्य उद्देश्य गिना जाता है, वह पूरा हो जाएगा।

2. शारीरिक विकास में वृद्धि
(Physical Development)
शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्र के प्रत्येक पक्ष का एक साथ विकास करना है। स्वास्थ्य शिक्षा जहां व्यक्ति के मानसिक विकास में वृद्धि करती है वहां वह उसके शारीरिक विकास में भी वृद्धि करने में बहुत योगदान देती है, क्योंकि प्रत्येक पक्ष की वृद्धि एक सन्तुलन में होनी चाहिए। शारीरिक विकास में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य शिक्षा विद्यार्थी अथवा मनुष्य को अच्छे आदर्शों और आदतों पर चलने के लिए प्रेरित करती है और अच्छी सन्तुलित खुराक खाने का ज्ञान देती है जिससे मनुष्य के शारीरिक विकास में वृद्धि होती है तो वह स्वस्थ तथा शक्तिशाली बन जाता

3. अच्छी आदतें और मनोवृत्तियों का विकास
(Development of Good Habits and Attitude)
स्वास्थ्य शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी और लोगों में अच्छी आदतें ग्रहण करने में मदद मिलती है। जैसे अपने शरीर की सफ़ाई रखना, प्रतिदिन दांत साफ़ रखना, नाखून काटकर रखना, प्रतिदिन स्नान करना, आंखों को प्रतिदिन साफ़ पानी से धोना, बालों को प्रति दिन साफ़-सुथरा रखना और कंघी करना इत्यादि आदतें स्वास्थ्य को सुधारने में योगदान देती हैं। अंग्रेजी की एक कहावत स्वास्थ्य सम्बन्धी बहुत प्रचलित है जो स्वास्थ्य सम्बन्धी आदतों को बताती है“Early to bed, early to rise makes a man healthy, wealthy and wise.” “समय पर सोने और समय पर उठने वाला व्यक्ति स्वस्थ, धनवान् और समझदार होता है।” इस तरह अच्छी आदतें और प्रवृत्तियां स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य पूरा करने में बहुत सहायक होती हैं।

4. स्वास्थ्य सम्बन्धी लोगों में सामाजिक ज़िम्मेदारी की भावना को पैदा करना :
(To Create a Spirit of Civic Responsibility among People about Health)
गन्दगी सभी बीमारियों की जननी मानी गई है, क्योंकि गन्दगी वाले ढेर या स्थान से बीमारियां अथवा रोगों के कीटाण पैदा होते हैं। मक्खियां, मच्छर या अन्य कीड़े-मकौड़ों के द्वारा यह कीटाणु हम लोगों तक पहुंचते हैं और हम लोगों के शरीर में बीमारी फैलाने का मुख्य स्थान बनाते हैं।

इसलिए सभी लोगों के स्वास्थ्य को सामने रखकर अपने आप में ज़िम्मेदारी की भावना पैदा करनी चाहिए जिससे हम अपनी और अपने आस-पास की सफ़ाई रखें। जैसे-सार्वजनिक स्थान, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, पार्क और सार्वजनिक शौचालय। इस तरह के स्थानों को साफ़-सुथरा रखना अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए और इन उपायों से समाज की सेवा की भावना पैदा करनी चाहिए जिससे स्वास्थ्य शिक्षा का उद्देश्य प्रत्येक व्यक्ति को स्वस्थ रखने में पूरा हो सकता है।

5. स्वास्थ्य सम्बन्धी अनपढ़ लोगों को ज्ञान देना
(To Educate Iliterate People about Health)
हमारे समाज में जो लोग पढ़े-लिखे नहीं हैं उनको स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञान इस तरह से दिया जाए ताकि वह स्वास्थ्य के ज्ञान को आसानी से जल्दी समझ सकें। जैसे-तस्वीरों के द्वारा, चार्ट बनाकर, मॉडल बनाकर, उनके आवासों में जा कर उनको स्वास्थ्य सम्बन्धी भाषण देकर, अच्छे स्वास्थ्य के द्वारा होने वाले लाभों को बता कर, बीमारी को किस तरह रोकना और स्वास्थ्य सम्बन्धी कई तरह के निर्देश देकर उन लोगों को स्वास्थ्य का ज्ञान देना जिससे वह अपने स्वास्थ्य में सुधार ही न ला सकें बल्कि एक अच्छी सेहत का स्तर प्राप्त करने में सफल हो जाएं।

6. रोगों की रोकथाम और उन पर नियन्त्रण पाना
(Prevention and Control of Diseases)
जब भयानक रोग हों तो उन रोगों या बीमारियों का लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए स्वास्थ्य शिक्षा का एक यह भी उद्देश्य है कि किस तरह से भयानक बीमारियों जैसे मलेरिया, हैजा, प्लेग, चेचक आदि को फैलने से रोकने के उपाय किए. जाएं। यदि कोई बीमारी फैल गई है तो उस पर नियन्त्रण किया जाए जिससे अन्य लोगों में बीमारी को फैलने से रोका जाए। इस तरह की बीमारियों को रोकने के लिए पहले से ही टीके लगवाए जाएं। जैसेछोटे बच्चों को टीके छोटी उम्र में ही लगाए जाते हैं। पहले निर्देशों के अनुसार दवाई खाई जाए ताकि बीमारी को फैलने से रोका जा सके। अगर यह भी पता लग जाए कि यह बीमारी किस तरह फैलती है तो इस बीमारी के फैलने को ठीक समय पर रोकने की कोशिश की जाए तभी हम स्वास्थ्यवर्द्धक और हृष्ट-पुष्ट जीवन व्यतीत कर सकते हैं और स्वास्थ्य शिक्षा का यह उद्देश्य पूरा हो सकता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 2 पैमाना

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 2 पैमाना.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 2 पैमाना

प्रश्न 1.
पैमाना किसे कहते हैं ?
उत्तर-
पैमाना (Scale)-पैमाना नक्शे और धरती के बीच एक अनुपात है। नक्शे पर किन्हीं दो स्थानों के बीच की दूरी और धरती पर स्थित उन्हीं दो स्थानों के बीच की वास्तविक दूरी के अनुपात को पैमाना कहते हैं।

(The scale of a map is the ratio of a distance on the map to the corrosponding distance on the ground.)
उदाहरण (Example)–यदि किसी नक्शे का पैमाना 1 सैं०मी० : 5 किलीमीटर है, तो इसका अर्थ है कि नक्शे पर 1 सैं०मी० की दूरी धरती के 5 किलोमीटर की दूरी को प्रकट करती है।।

प्रश्न 2.
पैमाने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
पैमाने की आवश्यकता-

  • हर नक्शे के लिए पैमाना ज़रूरी होता है। पैमाने के बिना नक्शा एक स्कैच (Sketch) या रेखाचित्र (Diagram) ही रह जाता है। पैमाने के बिना अलग-अलग स्थानों की दूरी का अनुमान नहीं हो सकता।
  • धरती का वास्तविक विस्तार बहुत बड़ा है। नक्शे पर इसका विस्तार वास्तविक विस्तार से कम होता है, इसलिए बड़े क्षेत्र को छोटे रूप में दिखाने के लिए पैमाने का प्रयोग जरूरी होता है।
  • अलग-अलग स्थानों के नक्शे पर सापेक्ष स्थिति दिखाने के लिए पैमाना ज़रूरी होता है।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

प्रश्न 3.
छोटे पैमाने और बड़े पैमाने में अंतर बताएँ।
उत्तर-
छोटे पैमाने (Small Scale)-

  1. इस पैमाने में 1 सैं०मी० के द्वारा एक से अधिक किलोमीटर की दूरी प्रकट की जाती है।
  2. उदाहरण के रूप में 1 सैं०मी० : 10 कि०मी० 1 इंच : 60 मील।
  3. Small Scales are Scales of miles to the inch.
  4. एटलस नक्शे, दीवारी नक्शे छोटे पैमाने पर बनाए जाते हैं।
  5. इन नक्शों पर अधिक वर्णन नहीं दिखाए जा सकते।
  6. नक्शे पर दिखाई दूरी कम होने के कारण इन्हें छोटे पैमाने के नक्शे कहा जाता है।

बड़ा पैमाना (Large Scale)-

  1. इस पैमाने में 1 किलोमीटर की दूरी एक से अधिक सैंटीमीटरों के द्वारा प्रकट की जाती है।
  2. उदाहरण के रूप में 10 सैं०मी० : 1 कि०मी० 6 इंच : 1 मील।
  3. Large Scales are scales of inches to the mile.
  4. जायदाद के नक्शे बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं।
  5. इन नक्शों पर अधिक वर्णन दिखाया जा सकता है।
  6. इन नक्शों पर दिखाई गई दूरी तुलना में अधिक होने के कारण इन्हें बड़े पैमाने के नक्शे कहा जाता है।

प्रश्न 4.
पैमाने के महत्त्व का उल्लेख करें।
उत्तर-
पैमाने का महत्त्व (Importance of Scale)-पैमाना मानचित्र कला (Cartography) का एक ज़रूरी अंग है-

  1. पैमाना एक उपयोगी तकनीक है, जिसके द्वारा बड़े क्षेत्र को संक्षेप रूप में दिखाया जा सकता है।
  2. पैमाने के बिना कोई भी नक्शा एक स्कैच (Sketch) या तस्वीर ही होता है।
  3. पैमाने की मदद से दो स्थानों के बीच की वास्तविक दूरी का पता लगता है।
  4. किसी नक्शे का क्षेत्रफल पैमाने की सहायता से पता लगाया जा सकता है।
  5. पैमाने की सहायता से एक ही क्षेत्र के नक्शे छोटे (Reduce) या बड़े (Enlarge) किए जा सकते हैं।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

प्रश्न 5.
पैमाने की विधियों का वर्णन करें।
उत्तर-
पैमाना (Scale)-साधारण शब्दों में दो स्थानों के बीच की नक्शे पर दूरी (Map Distance) और धरती पर वास्तविक दूरी (Actual Distanc) के अनुपात को पैमाना कहा जाता है। नक्शे पर पैमाना नीचे लिखे तीन रूपों में दिखाया जाता है-

  1. कथनीय पैमाना या वर्णनात्मक पैमाना (Statement Scale)
  2. प्रतिनिधि भिन्न (Representative Fraction)
  3. रेखीय पैमाना या साधारण पैमाना (Linear Scale or Plain Scale)

1. कथनीय पैमाना (Statement Scale)-पैमाना प्रकट करने का यह सबसे आसान तरीका है। इससे पैमाने को शब्दों में प्रकट किया जाता है, इसलिए इसे शाब्दिक या वर्णनात्मक पैमाना भी कहते हैं।

जैसे-1 सैं०मी० : 5 कि०मी० ।
नोट-कथनीय पैमाना सदा अनुपात (:) के द्वारा ही लिखा जाता है, बराबर (=) का प्रयोग नहीं होता। 1 इंच : 6 मील।

गुण (Merits)—

  1. यह सबसे आसान और सरल तरीका है, जिसे एक साधारण मनुष्य भी समझ सकता है।
  2. इससे तुरंत ही स्पष्ट हो जाता है कि एक इंच कितने मील की दूरी नक्शे पर प्रकट करता है।
  3. यह पैमाने का संक्षिप्त रूप है।
  4. इसका अभ्यास जल्दी हो जाता है।

दोष (Demerits)-

  1. इस तरीके से माप की एक ही इकाई का प्रयोग किया जा सकता है।
  2. इस पैमाने को केवल उसी देश के लोग ही समझ सकते हैं, जिस देश की माप प्रणाली नक्शे पर प्रयोग की गई हो।
  3. इस पैमाने के द्वारा नक्शे पर दूरी नापी जा सकती है।

2. प्रतिनिधि भिन्न (Representative Fraction) -पैमाने को नक्शे पर प्रकट करने के लिए एक भिन्न का प्रयोग किया जाता है, जिसे प्रतिनिधि भिन्न या अनुपाती भिन्न या प्रदर्शक भिन्न कहा जाता है। इसे संक्षिप्त रूप में R.F. लिखा जाता है। प्रतिनिधि भिन्न एक ऐसी भिन्न होती है, जिसका अंश (Numerator) सदा एक ही होता है और वह नक्शे पर दूरी (Map Distance) को प्रकट करता है, परंतु उसका हर Denominator धरती पर वास्तविक दूरी (Ground Distance) को प्रकट करता है। इसको नीचे लिखे नियम (Rule) द्वारा लिखा जाता है-

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 1

उदाहरण (Example) यदि किसी नक्शे की प्रतिनिधि भिन्न 1/50,000 है, तो इसका अर्थ है कि नक्शे पर दूरी की एक इकाई, धरती पर 50,000 इकाइयों की दूरी को प्रकट करती है। नक्शे पर 1 सैं०मी० की दूरी धरती पर 50,000 सैं०मी० की दूरी को दर्शाती है।

नियम (Rule) –

  1. प्रतिनिधि भिन्न का अंश सदा एक होना चाहिए।
  2. अंश और प्रत्येक दूरी की माप इकाई सदा एक होनी चाहिए और छोटी-से-छोटी हो।

गुण (Merits)-

  • इस पैमाने में एक इकाई कई इकाइयों को प्रकट करती है, इसलिए इसे प्रतिनिधि भिन्न कहा जाता है।
  • इस पैमाने को संख्यक पैमाना (Numerical Scale) भी कहा जाता है। यह एक प्राकृतिक पैमाना (Natural Scale)
  • प्रतिनिधि भिन्न में दूरी की किसी भी इकाई (Unit) का प्रयोग किया जा सकता है। दूरी इंच या सैंटीमीटरों में भी लिखी जा सकती है। (R.F. is independent of units.)
  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय पैमाना (International Scale) है। इसका प्रयोग विश्व के सभी देशों में किया जा सकता है। यदि किसी नक्शे का कथनीय पैमाना 1″ = 1 मील हो, तो इसे केवल इंग्लैंड के लोग ही समझ सकते हैं। परंतु यदि इस पैमाने को प्रतिनिधि भिन्न के रूप में लिखा जाए, तो R.E. = 1/63,360 होगा। इसे मीट्रिक प्रणाली में भारत और फ्रांस के लोग आसानी से समझ सकते हैं कि नक्शे पर 1 सैं०मी० की दूरी धरती पर 63,360 सैं०मी० की दूरी प्रकट करती है।
  • प्रतिनिधि भिन्न को कथनीय पैमाने में बदला जा सकता है।

दोष (Demerits)-

  • इस पैमाने से नक्शे पर सीधी दूरियाँ नहीं मापी जा सकतीं।
  • गणित के प्रयोग के कारण इसे साधारण मनुष्य नहीं समझ सकता।
  • रेखीय पैमाना (Linear Scale)-इस पैमाने को रेखीय पैमाना या साधारण पैमाना (Plain Scale) या ग्राफिक पैमाना (Graphic Scale) भी कहा जाता है। इसमें एक सरल रेखा को मुख्य भागों और उपभागों में विभाजित करके पैमाने को प्रकट किया जाता है। इसकी लंबाई 15 सैं०मी० या 6 इंच होती है। इस रेखा को समान मुख्य भागों (Primary Division) और उपभागों (Secondary Divisions) में बाँटा जाता है। कुल संख्या एक पूर्ण अंक (Round Number) होती है, जिसके आसानी से उपभाग किए जा सकते हैं।

गुण (Merits)-

  1. इस पैमाने से सीधे रूप में दूरी मापी जा सकती है।
  2. दूरी मापने के लिए किसी हिसाब की ज़रूरत नहीं होती।
  3. नक्शे को फोटोग्राफी की विधि से बड़ा या छोटा करने पर पैमाने की रेखा उसी अनुपात में छोटी या बड़ी हो जाती है।
  4. इस पैमाने के प्रयोग के लिए अभ्यास की आवश्यकता होती है।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

पैमाने का परिवर्तन
(CONVERSION OF SCALE)
कथनीय पैमाने से प्रतिनिधि भिन्न ज्ञात करना ।

प्रश्न 1.
यदि कथनीय पैमाना 1 सैंटीमीटर : 3 किलोमीटर हो, तो प्रतिनिधि भिन्न बताएँ। (If the statement of scale is 1 cm : 3 km, find out the R.F.)
उत्तर-
PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 2

\(\frac{1}{3,00,000}\)(दोनों तरफ माप इकाई समान होनी चाहिए, इसलिए किलोमीटर के सैंटीमीटर बनाएँ)
अथवा 1 : 3,00,000
नोट-प्रतिनिधि भिन्न केवल भिन्न होती है। इसके अंश या हरेक के साथ सैंटीमीटर या इंच आदि माप नहीं लिखे जाते।

प्रश्न 2.
यदि कथनीय पैमाना 1 सैंटीमीटर : 50 मीटर हो, तो प्रतिनिधि भिन्न बताएँ। (If the statement of the scale is 1 cm = 50 m, find out the R.F.)
उत्तर-
कथनीय पैमाना = 1 cm = 50 m.
PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 3
\(\frac{1}{5000}\) या 1 : 5000.

प्रश्न 3.
यदि कथनीय पैमाना 1 इंच : 2 मील हो, तो प्रतिनिधि भिन्न बताएँ। (If the statement of scale is 1 inch : 2 miles, find out the R.F.)
उत्तर-
कथनीय पैमाना = 1 inch = 2 railes.
PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 4
(दोनों तरफ माप इकाई समान होनी चाहिए, इसलिए मीलों के इंच बनाएँ)
= \(\frac{1}{1,26,720}\) या 1 : 1,26,720.

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

प्रश्न 4.
यदि कथनीय पैमाना 6 इंच : 1 मील हो, तो प्रतिनिधि भिन्न बताएँ। (If the statement of scale is 6 inches : 1 mile, find out the R.F.)
उत्तर-
कथनीय पैमाना = 6 inch : 1 miles.
PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 5
= \(\frac{1}{10,560}\) या 1 : 10,560.
नोट-प्रतिनिधि भिन्न का अंश सदा (1) होता है।

QUESTIONS TYPE-II

प्रतिनिधि भिन्न से कथनीय पैमाना ज्ञात करना

प्रश्न 5.
यदि प्रतिनिधि भिन्न 1/5,00,000 हो, तो कथनीय पैमाना किलोमीटरों में बताएँ। (If R.F. of a map is 1/5,00,000, find out the statement of the scale in kilometers.)
उत्तर-
प्रतिनिधि भिन्न (R.F.) = \(\frac{\text { Map Distance }}{\text { Ground Distance }}\)
R.F. = \(\frac{1}{5,00,000}\)
∴ 1 cm : 5,00,000 (क्योंकि किलोमीटर दूरी की मूल इकाई सैंटीमीटर होती है।)
1 cm : \(\frac{5,00,000}{1,00,000}\) km (क्योंकि 1 km = 1,00,000 cm)
कथनीय पैमाना = 1 cm = 5 km.

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

प्रश्न 6.
यदि प्रतिनिधि भिन्न 1/1,90,080 हो, तो कथनीय पैमाना मीलों में बताएँ। (If R.F. of a map is 1/1,90,080, find out the statement scale in miles.)
उत्तर-
प्रतिनिधि भिन्न (R.F.) = \(\frac{\text { Map Distance }}{\text { Ground Distance }}\)
R.F. = \(\frac{1}{1,90,080}\)
1 inch = 1,90,080 inches (क्योंकि मीलों की मूल इकाई इंच होती है।)
1 inch = \(\frac{1,90,080}{63,360}\) miles
= 3 miles (क्योंकि 1 मील = 63,360 इंच)
कथनीय पैमाना = 1 inch : 3 miles.

प्रश्न 7.
यदि प्रतिनिधि भिन्न 1/1,000,000 हो, तो कथनीय पैमाना मीलों में और किलोमीटरों में बताएं।
(If R.F. of a map is 1/1,000,000, find out the statement of the scale in both miles and kilometres.)
उत्तर-
(i) मीलों में (In miles)
R.F. = \(\frac{\text { Map Distance }}{\text { Ground Distance }}\)
R.F. = \(\frac{1}{1,000,000}\)
1 inch = 1,000,000 inches
1 inch = \(\frac{1,000,000}{63,360}\) miles (∵1 mile = 63,360 inches)
= 15.78 miles approximately
कथनीय पैमाना = 1 inch : 15.78 miles.

(ii) किलोमीटरों में (In kms)
R.F. = \(\frac{1}{1,000,000}\)
1 cm. = 1,000,000 cms.
1.cm. = \(\frac{1,000,000}{1,00,000}\)
= 10 kms.
कथनीय पैमाना = 1 cm : 10 km.

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

QUESTIONS TYPE III

प्रतिनिधि भिन्न और वास्तविक दूरी ज्ञात करना

प्रश्न 8.
दो स्थानों के बीच वास्तविक दूरी 40 kms है और नक्शे पर यह दूरी 5 cm रेखा से प्रकट की गई है। नक्शे की प्रतिनिधि भिन्न बताएँ।
उत्तर-
नक्शे पर 5 सैं.मी. दूरी प्रकट करती है = 40 कि०मी० भूमि पर दूरी
नक्शे पर 1 सें.मी. दरी प्रकट करती है = \(\frac{40 \times 1,00,000 \mathrm{~cm}}{5}\)
= 8,00,000 cm
= \(\frac{1}{8,00,000}\)
अथवा दूसरे ढंग से R.F. = \(\frac{\text { Map Distance }}{\text { Ground Distance }}\)
= \(\frac{5 \mathrm{cms}}{40,00,000 \mathrm{~cm}}\)
= \(\frac{1}{8,00,000}\)

प्रतिनिधि भिन्न के नियम-

  • R.F. का अंश सदा एक (1) होना चाहिए।
  • अंश और हरेक की दूरी एक ही इकाई में होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
दो स्थानों की नक्शे पर आपसी दूरी 5 सें.मी. है। नक्शे की प्रतिनिधि भिन्न 1/200,000 है। उन दो स्थानों की भूमि पर वास्तविक दूरी बताएँ।
उत्तर-
प्रतिनिधि भिन्न (R.F.) = \(\frac{1}{2,00,000}\)
नक्शे पर 1 सैं०मी० की दूरी प्रकट करता है = 2,00,000 सैं.मी. भूमि पर
नक्शे पर 5 सैं०मी० की दूरी प्रकट करता है = \(\frac{2,00,000 \times 5}{1,00,000}\) kms
= 10 kms.

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

QUESTIONS TYPE IV

रेखीय पैमाने की रचना-विधि (Drawing of a Linear or Plain Scale)

इस विधि में नक्शे की दूरी को एक सरल रेखा के द्वारा प्रकट किया जाता है। इस रेखा को कुछ मुख्य समान भागों (Primary Divisions) में बाँटा जाता है। प्रत्येक मुख्य भाग को गौण भागों (Secondary Divisions) में बाँटा जाता है।

पहली विधि-मान लो कि किसी सरल रेखा AB को पाँच समान भागों में बाँटना है। A बिंदु पर एक न्यून कोण (Acute angle) ∠OAB बनाएँ। रेखा AO पर A से 0 की ओर बराबर दूरी पर पाँच बिंदु a, b, c, d, e लगाएँ। बिंदु e और b को एक सरल रेखा से मिलाएँ। सैट स्कवैर की सहायता से बिंदु d, c, b और a से समानांतर रेखाएँ खींचें। ये रेखाएँ AB को पाँच बराबर भागों में बांटती हैं।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 6

दूसरी विधि-मान लो कि किसी सरल रेखा AB को पाँच बराबर भागों में बाँटना है। AB रेखा के दोनों सिरों A और B पर विपरीत दिशा में दो लंब कोण बनाएँ। अब बिंदु A से बराबर दूरी पर A से C की ओर पाँच चिहन 1, 2, 3,4,5 लगाएँ। इसी प्रकार बिंदु B से पाँच बराबर चिह्न D की ओर लगाएँ। चित्र के अनुसार इन बिंदुओं को मिलाकर समानांतर रेखाएँ खींचे। ये रेखाएँ AB रेखा को पाँच बराबर भागों में बाँटेंगी।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 7

सावधानियाँ-
1. सरल रेखा की लंबाई-सरल रेखा की आदर्श लंबाई लगभग 6 इंच या 15 सें.मी. हो, ताकि मुख्य भाग और उपभाग आसानी से पढ़े जा सकें।

2. पूर्ण अंक-रेखीय पैमाने के मुख्य भाग और उपभाग पर दिखाई गई दूरी पूर्ण अंक (Round Number) में होनी चाहिए, जैसे-5, 10, 15, 20.

3. मुख्य भाग और उपभाग-रेखीय भाग को मुख्य भाग और उपभाग में बाँटा जाए।

4. कथनीय और प्रतिनिधि भिन्न-रेखीय पैमाने के ऊपर कथनीय पैमाना और सरल रेखा के नीचे प्रतिनिधि भिन्न लिखना चाहिए।

5. पैमाने का शून्य (जीरो)-सरल रेखा पर दायीं ओर मुख्य भाग और बायीं ओर उपभाग शुरू होते हैं। बायीं ओर के पहले भाग से ज़ीरो शुरू होता है।

6. माप इकाई-रेखीय पैमाने पर दूरी अंकों में लिखी जाती है और माप इकाई शब्दों में जैसे-किलोमीटर या मील।

7. शेड करना-पैमाने के आधे भाग पर एक सरल रेखा खींच कर पैमाने के दो भाग हो जाते हैं। एक भाग को छोड़कर ऊपर नीचे शेड किया जाता है।

QUESTIONS TYPE-V

कथनीय पैमाने से रेखीय पैमाना बनाना

प्रश्न 10.
यदि कथनीय पैमाना 1 सैं.मी. : 10 कि.मी. हो, तो रेखीय पैमाना बनाएँ।
(Draw a plain scale for a map whose scale is 1 cm: 10 km.)
उत्तर-
नक्शे पर 1 cm दूरी भूमि पर प्रकट करती है = 10 km.
नक्शे पर 15 cm दूरी भूमि पर प्रकट करती है = 10 x 15
= 150 km.
∴ सरल रेखा की दूरी 15 cm. चाहिए।
(नोट – 150 km. एक पूर्ण अंक है।)
PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 8

रचना (Construction)-15 सैं०मी० लंबी रेखा के 15 मुख्य भाग करें। हर मुख्य भाग 10 कि०मी० की दूरी प्रकट करता है। सबसे बायीं ओर की तरफ मुख्य भाग को दो उपभागों में बाँटें, तो हर एक उपभाग 5 कि०मी० दूरी को दर्शाएगा।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

प्रश्न 11.
1 सैं०मी० : 7 कि०मी० के कथनीय पैमाने के लिए रेखीय पैमाना बनाएँ।
(Draw a plain scale for a map whose scale is 1 cm. : 7 km.)
उत्तर-
कथनीय पैमाने से स्पष्ट है
1 सैं०मी० प्रकट करता है = 7 कि०मी० दूरी
15 सैं०मी० प्रकट करता है = 7 x 15
= 105 कि०मी०
परंतु 105 पूर्ण अंक नहीं है। इसके निकट की पूर्ण संख्या 100 कि०मी० है। इसलिए 100 कि०मी० की दूरी पर नक्शे की दूरी खोजें।
7 कि०मी० की दूरी प्रकट की जाती है = 1 सैं०मी० से
1 कि०मी० की दूरी प्रकट की जाती है = 1/7 सैं०मी० से.
100 कि०मी० की दूरी प्रकट की जाती है = 100/7 सैं०मी० से = 14.3 सैं०मी० (लगभग)

रचना (Construction)-14.3 सैं०मी० लंबी रेखा लेकर इसे पाँच मुख्य भागों में बाँटें । हर मुख्य भाग 20 कि०मी० की दूरी प्रकट करता है सबसे बायीं ओर वाले मुख्य भाग को चार उपभागों में बाँटें, तो हर एक उपभाग 5 कि०मी० की दूरी को दर्शाएगा।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 9

प्रश्न 12.
4 इंच : 1 मील के कथनीय पैमाने के लिए रेखीय पैमाना बनाएँ, जिस पर गज दिखाए जा सकें।
(Draw a plain scale to show yards for a map whose scale is 4 inches : 1 mile)
उत्तर-
4 इंच की दूरी प्रकट करती है = 1 मील
= 1760 गज
1 इंच की दूरी प्रकट करती है = \(\frac{1760}{4}\) गज
6 इंच की दूरी प्रकट करती है = \(\frac{1760}{4}\) x 6
= 2640 गज परंतु 2640 पूर्ण अंक नहीं हैं। इसके निकट की पूर्ण संख्या 3000 गज हैं।
1760 गज की दूरी प्रकट की जाती है = 4 इंच
1 गज की दरी प्रकट की जाती है = \(\frac{4}{1760}\)
3000 गज की दूरी प्रकट की जाती है = \(\frac{4}{1760}\) x 3000
= 6.8 इंच

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 10

रचना (Construction) : 6.8 इंच लंबी रेखा को 6 मुख्य भागों में बाँटें। हर एक मुख्य भाग 500 गज की दूरी प्रकट करेगा। बायीं ओर वाले मुख्य भाग को पाँच उपभागों में बाँटे। हर एक उपभाग 100 गज की दूरी को प्रकट करेगा।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

QUESTIONS TYPE VI

प्रतिनिधि भिन्न से रेखीय पैमाना बनाना

प्रश्न 13.
यदि प्रतिनिधि भिन्न \(\frac{1}{100000}\) हो, तो रेखीय पैमाना बनाएँ।
(Draw a plain scale to show kilometers for a map whose R.F. is \(\frac{1}{100000}\)).
उत्तर-
1 सैं०मी० प्रकट करता है = 1,00,000 सैं०मी०
= 1 कि०मी०
15 सैं०मी० प्रकट करता है = 15 कि०मी०

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 11

रचना (Construction)-15 सैं०मी० रेखा को पाँच मुख्य भागों में बाँटें। हर-एक मुख्य भाग 3 कि०मी० की दूरी को प्रकट करेगा। बायीं ओर वाले मुख्य भाग को तीन उपभागों में बाँटें। हर-एक उपभाग 1 कि०मी० की दूरी को प्रकट करेगा।

प्रश्न 14.
यदि प्रतिनिधि भिन्न \(\frac{1}{50000}\) हो, तो रेखीय पैमाना बनाएँ, जिसमें कि०मी० और मी० प्रकट किए जा सकें। इस पैमाने पर 4 कि०मी० और 600 मीटर की दूरी प्रकट करें।
(Draw a plain scale to show kilometers and meters for a map. Whose scale is \(\frac{1}{50000}\))
Show a distance of 4 km. and 60 meters on this scale.)
उत्तर-
1 सैं०मी० की दूरी प्रकट करता है = 50,000 सैं०मी०
= \(\frac{50000}{100000}\)
= \(\frac{1}{2}\)कि०मी०
16 सै०मी० की दूरी प्रकट करता है = \(\frac{1}{2}\) x 16
= 8 कि०मी०

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 12

रचना (Construction)-16 सैं०मी० लंबी रेखा लें। इसे 8 मुख्य भागों में बाँटें। हर एक भाग 1 कि०मी० को प्रकट करेगा। बायीं ओर वाले मुख्य भाग को पाँच उपभागों में बाँटें। हर एक भाग 200 मीटर को प्रकट करेगा ।
रेखीय पैमाने पर 4 कि०मी० और 600 मी० की दूरी = 4 कि०मी० + 600 मी०
= 4 मुख्य भाग + 3 उपभाग
चिह्न लगाकर यह दूरी चित्र के अनुसार दिखाएँ।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना

प्रश्न 15.
अमृतसर और जालंधर की वास्तविक दूरी 78 कि०मी० है, जिसे नक्शे पर 5.2 सैं०मी० द्वारा दर्शाया गया है। नक्शे का पैमाना बताएँ।
(The distance between Amritsar and Jalandhar is 78 km. It is shown by a distance of 5.2 cm. on the map. Find out the scale of the map.)
उत्तर-
\(\frac{52}{10}\)
1 सैं॰मी॰ दूरी प्रकट करती है =\(\frac{78 \times 10}{52}\)
= 15 कि०मी०
इसलिए पैमाना = 1 cm. : 15 कि०मी०

प्रश्न 16.
यदि प्रतिनिधि भिन्न \(\frac{1}{100000}\) हो, तो रेखीय पैमाना (मीलों में) बनाएँ।
(Draw a plain scale to show miles for a map whose R.F. is \(\frac{1}{100000}\))
उत्तर-
1 इंच दूरी प्रकट करती है = 1,000,000 इंच
\(\frac{100000}{63,360}\) मील
6 इंच दूरी प्रकट करती है =
\(\frac{100000}{63,360}\) x 6
= \(\frac{100,000}{1056}\)
= \(\frac{12500}{132}\)
= \(\frac{3125}{33}\) मील
= 94.69 मील

परंतु \(\frac{3125}{33}\) या 94.69 मील पूर्ण अंक नहीं है।
इसके निकट की पूर्ण संख्या 100 मील है। 100 मील के लिए नक्शे पर दूरी बताएँ। \(\frac{100000}{63360}\)
मील प्रकट किए जाते हैं = 1 इंच से
1 मील प्रकट किया जाता है = \(\frac{63,360 \times 1}{1,000,000}\) इंच
100 मील प्रकट किए जाते हैं = \(\frac{63,360 \times 100}{1,000,000}\)
= \(\frac{6336}{1000}\)
= 6.336 इंच
= 6.3 इंच (लगभग)

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 2 पैमाना 13

रचना (Construction)–6.3 इंच सरल रेखा लें। इसको 10 भागों में बाँटें। हर एक मुख्य भाग 10 मील की दूरी को प्रकट करता है। बायीं ओर वाले मुख्य भाग को 5 उपभागों में बाँटें। हर एक उपभाग 2 मील की दूरी को प्रकट करता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक संबंधों में कई प्रकार के परिवर्तन आते रहते हैं तथा इसे ही सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन के मूल स्त्रोतों के नाम लिखिए।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के तीन मूल स्रोत हैं-Innovation, Discovery and Diffusion.

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन की दो विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. सामाजिक परिवर्तन सर्वव्यापक प्रक्रिया है जो प्रत्येक समाज में आता है।
  2. सामाजिक परिवर्तन में तुलना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
आन्तरिक परिवर्तन क्या है ?
उत्तर-
वह परिवर्तन जो समाज के अन्दर ही विकसित होते हैं, आन्तरिक परिवर्तन होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार कुछ कारकों के नाम लिखो।
उत्तर-
प्राकृतिक कारक, विश्वास तथा मूल्य, समाज सुधारक, जनसंख्यात्मक कारक, तकनीकी कारक, शैक्षिक कारक इत्यादि।

प्रश्न 6.
प्रगति क्या है ?
उत्तर-
जब हम अपने किसी ऐच्छिक उद्देश्य की प्राप्ति के रास्ते की तरफ बढ़ते हैं तो इस परिवर्तन को प्रगति कहते हैं।

प्रश्न 7.
नियोजित परिवर्तन के उदाहरण लिखो।
उत्तर-
लोगों को पढ़ाना लिखाना, ट्रेनिंग देना नियोजित परिवर्तन की उदाहरण हैं।

प्रश्न 8.
अनियोजित परिवर्तन के दो उदाहरण लिखो।
उत्तर–
प्राकृतिक आपदा जैसे कि बाढ़, भूकम्प इत्यादि से समाज पूर्णतया बदल जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ बताइए।
उत्तर-
जब समाज के अलग-अलग भागों में परिवर्तन आए तथा वह परिवर्तन अगर सभी नहीं तो समाज के अधिकतर लोगों के जीवन को प्रभावित करे तो उसे सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। इसका अर्थ है कि समाज के लोगों के जीवन जीने के तरीकों में संरचनात्मक परिवर्तन आ जाता है।

प्रश्न 2.
प्रसार (Diffusion) क्या है ?
उत्तर-
प्रसार का अर्थ है किसी वस्तु को बहुत अधिक फैलाना। उदाहरण के लिए जब सांस्कृतिक विचार एक समूह से दूसरे समूह तक फैल जाते हैं तो इसे प्रसार कहा जाता है। सभी समाजों में सामाजिक परिवर्तन आमतौर पर प्रसार के कारण ही आता है।

प्रश्न 3.
उद्भव तथा क्रान्ति को संक्षिप्त रूप में लिखो।
उत्तर-

  • उद्भव-जब परिवर्तन एक निश्चित दिशा में हो तथा तथ्य के गुणों तथा रचना में परिवर्तन हो तो उसे उद्भव कहते हैं।
  • क्रान्ति-वह परिवर्तन जो अचनचेत तथा अचानक हो जाए, क्रान्ति होता है। इससे मौजूदा व्यवस्था खत्म हो जाती है तथा नई व्यवस्था कायम हो जाती है।

प्रश्न 4.
तीन मुख्य तरीकों की सूची बनाएं जिसमें सामाजिक परिवर्तन होता है।
उत्तर-
समाज में तीन मूल चीजों में परिवर्तन से परिवर्तन आता है-

  1. समूह का व्यवहार
  2. सामाजिक संरचना
  3. सांस्कृतिक गुण।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
वह तीन स्त्रोत क्या हैं जिनसे परिवर्तन आता है ?
उत्तर-

  1. Innovation मौजूदा वस्तुओं की सहायता से कुछ नया तैयार करना Innovation होता है। इसमें मौजूदा तकनीकों का प्रयोग करके नई तकनीक का इजाद किया जाता है।
  2. Discovery-इसका अर्थ है कुछ नया पहली बार सामने आना या सीखना। इसका अर्थ है कुछ नया इजाद जिसके बारे में हमें कुछ पता नहीं है।
  3. Diffusion-इसका अर्थ है किसी वस्तु का फैलना। जैसे सांस्कृतिक विचारक समूह से दूसरे तक फैल जाना फैलाव होता है।

प्रश्न 6.
सामाजिक तथा सांस्कृतिक परिवर्तन के मध्य संक्षिप्त रूप में अन्तर कीजिए।
उत्तर-

  • सामाजिक परिवर्तन चेतन या अचेतन रूप में आ सकता है परन्तु सांस्कृतिक परिवर्तन हमेशा चेतन रूप से आता है।
  • सामाजिक परिवर्तन वह परिवर्तन है जो केवल सामाजिक संबंधों में आता है परन्तु सांस्कृतिक परिवर्तन वह परिवर्तन है जो धर्म, विचारों, मूल्यों, विज्ञान इत्यादि में आता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य प्रकार क्या हैं ? संक्षिप्त रूप में इन पर विचार-विमर्श करें।
उत्तर-
उद्विकास, प्रगति, विकास तथा क्रान्ति सामाजिक परिवर्तन के मुख्य प्रकार हैं। जब परिवर्तन आन्तरिक तौर पर क्रमवार, धीरे-धीरे हों तथा सामाजिक संस्थाएं साधारण से जटिल हो जाएं तो वह उद्विकास होता है। जब किसी चीज़ में परिवर्तन आए तथा यह किसी ऐच्छिक दिशा में आए तो इसे विकास कहते हैं। जब लोग किसी निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के रास्ते की तरफ बढ़े तथा उद्देश्य को प्राप्त कर लें तो इसे प्रगति कहते हैं। जब परिवर्तन अचनचेत तथा अचानक आए व मौजूदा व्यवस्था बदल जाए तो इसे क्रान्ति कहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन के जनसंख्यात्मक परिवर्तन का संक्षिप्त रूप वर्णन करो।
उत्तर-
जनसंख्यात्मक परिवर्तन का भी सामाजिक परिवर्तन पर प्रभाव पड़ता है। सामाजिक संगठन, परम्पराएं, संस्थाएं, प्रथाएं इत्यादि के ऊपर जनसंख्यात्मक कारकों का प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या का घटना-बढ़ना, स्त्री-पुरुष अनुपात में आए परिवर्तन का सामाजिक संबंधों पर प्रभाव पड़ता है। जनसंख्या में आया परिवर्तन समाज की आर्थिक प्रगति में रुकावट का कारण भी बनता है तथा कई प्रकार की सामाजिक समस्याओं का कारण बनता है। बढ़ रही जनसंख्या, बेरोज़गारी, भुखमरी की स्थिति उत्पन्न करती है जिससे समाज में अशांति, भ्रष्टाचार इत्यादि बढ़ता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार चार कारकों को लिखो।
उत्तर-

  • प्राकृतिक कारक-प्राकृतिक कारक जैसे कि बाढ़, भूकम्प इत्यादि के कारण समाज में परिवर्तन आ जाता है तथा इसका स्वरूप ही बदल जाता है।
  • जनसंख्यात्मक कारक-जनसंख्या के घटने-बढ़ने से स्त्री और पुरुष के अनुपात के घटने-बढ़ने से भी सामाजिक परिवर्तन आ जाता है।
  • तकनीकी कारक-समाज में अगर मौजूदा तकनीकों में अगर काफ़ी अधिक परिवर्तन आ जाए तो भी सामाजिक परिवर्तन आ जाता है।
  • शिक्षात्मक कारक-जब समाज की अधिकतर जनसंख्या शिक्षा ग्रहण करने लग जाए तो भी सामाजिक परिवर्तन आना शुरू हो जाता है।

प्रश्न 4.
शैक्षिक कारक तथा तकनीकी कारक के मध्य कुछ अंतरों को दर्शाइए।
उत्तर-

  • शैक्षिक कारक तकनीकी कारक का कारण बन सकते हैं परन्तु तकनीकी कारकों के कारण शैक्षिक कारक प्रभावित नहीं होता।
  • शिक्षा के बढ़ने के साथ जनता का प्रत्येक सदस्य प्रभावित हो सकता है परन्तु तकनीकी कारकों का जनता पर प्रभाव धीरे-धीरे पड़ता है। (iii) शिक्षा से नियोजित परिवर्तन लाया जा सकता है परन्तु तकनीकी कारकों की वजह से नियोजित तथा अनियोजित परिवर्तन दोनों आ सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन को परिभाषित कीजिए । इसकी विशेषताओं पर विस्तृत रूप से विचार विमर्श करें।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ (Meaning of Social Change)-परिवर्तन शब्द एक मूल्य रहित शब्द है। यह हमें अच्छे-बुरे या किसी नियम के बारे में नहीं बताता है। आम भाषा में परिवर्तन वह अन्तर होता है जो किसी वस्तु की वर्तमान स्थिति में व पिछली स्थिति में होता है। जैसे आज किसी के पास पैसा है कल नहीं था। पैसे से उसकी स्थिति में परिवर्तन आया है। परिवर्तन में तुलना अनिवार्य है क्योंकि यदि हमें किसी परिवर्तन को स्पष्ट करना है तो वह तुलना करके स्पष्ट किया जा सकता है। इस तरह सामाजिक परिवर्तन समाज से सम्बन्धित होता है। जब समाज या सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आता है तो उसको सामाजिक परिवर्तन कहते हैं।

मानवीय समाज में मिलने वाले प्रत्येक तरह के परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं होते। सामाजिक परिवर्तन का सम्बन्ध सामाजिक सम्बन्धों में मिलने वाले परिवर्तनों से है। इन सामाजिक सम्बन्धों में हम समाज के भिन्न-भिन्न भागों में पाए गए सम्बन्ध व आपसी क्रियाओं को शामिल करते हैं। परिवर्तन के अर्थ असल में किसी भी चीज़ में उसके पिछले व वर्तमान आकार से तुलना करें तो हमें कुछ अन्तर नज़र आने लगता है। यह पाया गया अन्तर ही सामाजिक परिवर्तन होता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन सामाजिक क्रियाओं, आकार, सम्बन्धों, संगठनों आदि में पाए जाने वाले अन्तर से सम्बन्धित होता है। मानव स्वभाव द्वारा ही परिवर्तनशील प्रकृति वाला होता है। इसी कारण कोई समाज स्थिर नहीं रह सकता।

परिभाषाएं (Definitions) –
1. गिलिन व गिलिन (Gillin & Gillin) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन जीवन के प्रचलित तरीकों में पाए गए अन्तर को कहते हैं, चाहे यह परिवर्तन भौगोलिक स्थिति के परिवर्तन से हों या सांस्कृतिक साधनों, जनसंख्या के आकार या विचारधाराओं के परिवर्तन से व चाहे प्रसार द्वारा सम्भव हो सकते हों या समूह में हुई नई खोजों के परिणामस्वरूप हों।”

2. किंगस्ले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन का अर्थ केवल उन परिवर्तनों से है जो सामाजिक संगठन भाव सामाजिक संरचना व कार्यों में होते हैं।”

3. जोंस (Jones) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन वह शब्द है जिस को हम सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक तरीकों, सामाजिक अन्तक्रियाओं या सामाजिक संगठन इत्यादि में पाए गए परिवर्तनों के वर्णन करने के लिए हैं।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि सभी समाजशास्त्रियों ने सामाजिक अन्तक्रियाओं, सामाजिक संगठन, सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक प्रक्रियाओं इत्यादि में किसी एक पक्ष में जब कोई भी भिन्नता या अन्तर पैदा होता है तो वह सामाजिक परिवर्तन कहलाता है। इस प्रकार हम यह भी कहते हैं कि प्रत्येक परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं होता। सामाजिक परिवर्तन समाज के सामाजिक सम्बन्धों या संगठनों या क्रियाओं में पाया जाता है।

सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति या विशेषताएँ (Nature or Characteristics of Social Change) –

1. सामाजिक परिवर्तन सर्वव्यापक होता है (Social Change is Universal)—सामाजिक परिवर्तन ऐसा परिवर्तन है जो सभी समाज में पाया जाता है। कोई भी समाज पूरी तरह स्थिर नहीं होता क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है। चाहे कोई समाज आदिम हो या चाहे आधुनिक, परिवर्तन प्रत्येक समाज से सम्बन्धित रहा है। समाज में जनसंख्यात्मक परिवर्तन, अनुसन्धान व खोजों के कारण परिवर्तन, आदर्शों व कद्रों-कीमतों में परिवर्तन हमेशा आते रहते हैं। यह ठीक है कि सामाजिक परिवर्तन की गति प्रत्येक समाज में अलग-अलग होती है परन्तु परिवर्तन हमेशा सर्वव्यापक ही होता है।

2. सामाजिक परिवर्तन में निश्चित भविष्यवाणी नहीं हो सकती (Definite prediction is not possible in Social Change) सामाजिक परिवर्तन में किसी प्रकार की भी निश्चित भविष्यवाणी करनी असम्भव होती है। इसका कारण यह है कि समाज में पाए गए सामाजिक सम्बन्धों में कोई भी निश्चितता नहीं होती। इनमें परिवर्तन होता रहता है। सामाजिक परिवर्तन समुदायक परिवर्तन होता है। इस का अर्थ यह नहीं है कि सामाजिक परिवर्तन का कोई नियम नहीं होता या हम इसके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकते। इस का अर्थ सिर्फ इतना है कि कई बार किसी कारण एकदम परिवर्तन हो जाता है जिनके बारे में हमने सोचा भी नहीं होता।

3. सामाजिक परिवर्तन की गति एक समान नहीं होती (Speed of Social Change is not uniform)सामाजिक परिवर्तन चाहे सर्वव्यापक होता है परन्तु उसकी गति भिन्न-भिन्न समाज में भिन्न-भिन्न होती है। किसी समाज में यह बहुत तेजी से पाई जाती है व किसी समाज में इसकी रफतार बहुत धीमी होती है। उदाहरणत: यदि हम प्राचीन समाज व आधुनिक समाज की तुलना करें तो हम क्या देखते हैं कि आधुनिक समाज में इसकी रफ्तार, प्राचीन समाज की तुलना बहुत ही तेज़ होती है।

4. सामाजिक परिवर्तन सामुदायिक परिवर्तन होता है (Social Change is Community Change)जब भी समाज में हम परिवर्तन अकेले व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों के जीवन में देखें तो इस प्रकार का परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं कहलाता क्योंकि सामाजिक परिवर्तन व्यक्तिगत नहीं होता। यह वह परिवर्तन होता है जो विशाल समुदाय में रहते हुए व्यक्तियों के जीवन जीने के तरीके (Life Patterns) में आता है। इस विवरण के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि समाज में जिस परिवर्तन के आने से एक व्यक्ति या कुछ लोग ही परिवर्तित हों तो वह व्यक्तिगत परिवर्तन कहलाता है तथा जिस परिवर्तन के आने से सम्पूर्ण समुदाय प्रभावित हो ऐसे परिवर्तन को ही हम सामाजिक परिवर्तन कहते हैं। इसी कारण ही यह व्यक्तिगत नहीं बल्कि सामाजिक होता है।

5. सामाजिक परिवर्तन कई कारणों की अन्तक्रिया के परिणामस्वरूप होता है (Social Change Results from Interactions of number of Factors) सामाजिक परिवर्तन में पाए जाने वाले कारकों में कोई भी एक कारक उत्तरदायी नहीं होता। हमारा समाज उलझी हुई प्रकृति का है। इसके प्रत्येक क्षेत्र में किसी-न-किसी कारण परिवर्तन होता रहता है। साधारणतः हम देखते हैं कि समाज में अधिक प्रगति, तकनीकी क्षेत्र में विकास, वातावरण में परिवर्तन या जनसंख्या इत्यादि में परिवर्तन होता ही रहता है। चाहे यह ठीक है कि एक विशेष कारक का प्रभाव भी परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होता है परन्तु उस अकेले कारक के ऊपर ही दूसरे कारकों का प्रभाव होता है या वह उससे जुड़े होते हैं। वास्तव में सामाजिक प्रकटन में आपसी निर्भरता पाई जाती है।

6. सामाजिक परिवर्तन प्रकृति का नियम होता है (Change is law of nature)-सामाजिक परिवर्तन का पाया जाना प्रकृति का नियम है। यदि हम न भी चाहें परिवर्तन तो भी समाज में होना ही होता है। प्राकृतिक शक्तियां जिन पर हम पूरी तरह नियन्त्रण नहीं रख सकते यह परिवर्तन अपने आप ही ले आती है। मानव स्वभाव द्वारा ही परिवर्तनशील होता है। समाज में परिवर्तन या तो प्राकृतिक शक्तियों से आता है या फिर व्यक्ति के योजनाबद्ध तरीकों के द्वारा। समाज में व्यक्तियों की आवश्यकताएं, इच्छाएँ इत्यादि परिवर्तित होती रहती हैं। हम हमेशा नई वस्तु की इच्छा करते रहते हैं व उसको प्राप्त करने के लिए यत्न करने शुरू कर देते हैं इसलिए व्यक्ति की परिवर्तनशील प्रकृति भी सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होती है। इस प्रकार जैसे-जैसे व्यक्ति को किसी चीज़ की ज़रूरत पैदा होती है उसी तरह परिवर्तन आना शुरू हो जाता है। इस तरह परिवर्तन प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा भी होती है।

7. सामाजिक परिवर्तन की रफ़्तार में एकरूपता नहीं होती (Social Change is not Uniform)-चाहे हम देखते हैं परिवर्तन सब समाजों में पाया जाता है परन्तु इसकी रफ़्तार समाज में एक जैसी नहीं होती। कुछ समाजों में इसकी रफ़्तार बहुत तेज़ होती है व कुछ में बहुत ही धीमी। जो व्यक्ति जिस समाज में रह रहा होता है उसको उस समाज में हो रहे परिवर्तन की जानकारी होती है। पहले परिवर्तन कैसा था व अब इसकी गति किस प्रकार की है। यदि हम आधुनिक समय में नज़र डालें तो भी हम देखते हैं कि परिवर्तन की गति कुछ क्षेत्रों में बहुत तेज़ है व कुछ में बहुत धीमी। जैसे छोटे शहरों में बड़े शहरों की तुलना में परिवर्तन की गति बहुत ही धीमी पाई गई है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन के स्त्रोतों को विस्तृत रूप में दर्शाइए।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के स्रोतों के बारे में डब्ल्यू० जी० आगबर्न (W.G. Ogburn) ने विस्तार सहित वर्णन किया है। आगबर्न के अनुसार सामाजिक परिवर्तन मुख्य रूप से निम्नलिखित तीन स्रोतों में से एक अधिक स्रोतों के अनुसार आता है तथा वे तीन स्रोत हैं

(i) Innovation
(ii) Discovery
(iii) प्रसार Diffusion

(i) Innovation-Innovation का अर्थ है मौजूदा तत्त्वों का प्रयोग करके कुछ नया तैयार करना। उदाहरण के लिए पुरानी कार की तकनीक का प्रयोग करके कार की नई तकनीक तैयार करके उसके तेज़ भागने की तकनीक ढूंढ़ना तथा उसके ईंधन की खपत को कम करने के तरीके ढूंढ़ना। Innovation भौतिक (तकनीकी) भी हो सकती है तथा सामाजिक भी। यह रूप (Form) में कार्य (Function) में, अर्थ (Meaning) अथवा सिद्धान्त (Principle) में भी परिवर्तन हो सकता है। नए आविष्कारों के साथ सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन आ जाते हैं जिस कारण सम्पूर्ण समाज ही बदल जाता है।

(ii) Discovery-जब किसी वस्तु को पहली बार ढूंढ़ा जाता है अथवा किसी वस्तु के बारे में पहली बार पता चलता है तो इसे Discovery कहा जाता है। उदाहरण के लिए पहली बार किसी ने कार बनाई होगी अथवा स्कूटर बनाया होगा अथवा किसी वैज्ञानिक ने कोई नया पौधा ढूंढ़ा होगा। इसे हम Discovery का नाम दे सकते हैं। इसका अर्थ है कि वस्तुएं तो संसार में पहले से ही मौजूद हैं परन्तु हमें उनके बारे में कुछ पता नहीं है। इससे संस्कृति में काफ़ी कुछ जुड़ जाता है। चाहे इसे बनाने वाली वस्तुएं पहले ही संसार में मौजूद थीं परन्तु इसके सामने आने के पश्चात् यह हमारी संस्कृति का हिस्सा बन गईं। परन्तु यह सामाजिक परिवर्तन का कारक उस समय बनता है जब इसे प्रयोग में लाया जाता है न कि जब इसके बारे में पता चलता है। सामाजिक तथा सांस्कृतिक स्थितियाँ Discovery के सामर्थ्य को बढ़ा या फिर घटा देते हैं।

(iii) प्रसार Diffusion-फैलाव का अर्थ है किसी वस्तु का अधिक-से-अधिक फैलना। उदाहरण के लिए जब एक समूह के सांस्कृतिक विचार दूसरे समूह तक फैल जाते हैं तो इसे फैलाव कहा जाता है। लगभग सभी समाजों में सामाजिक परिवर्तन फैलाव के कारण आता है। यह समाज के बीच तथा समाजों के बीच कार्य करता है। जब समाजों के बीच संबंध बनते हैं तो फैलाव होता है। यह द्वि-पक्षीय प्रक्रिया है। फैलाव के कारण जब एक संस्कृति के तत्व दूसरे समाज में जाते हैं तो उसमें परिवर्तन आ जाते हैं तथा फिर दूसरी संस्कृति उन्हें अपना लेती है। उदाहरण के लिए इंग्लैंड की अंग्रेज़ी तथा भारतीयों की अंग्रेज़ी में काफी अंतर होता है। जब भारत पर अंग्रेजों का कब्जा था तो ब्रिटिश तत्व भारतीय संस्कृति में मिल गए परन्तु उनके सभी तत्वों को भारतीयों ने नहीं अपनाया था। इस प्रकार फैलाव होते समय तत्वों में परिवर्तन भी आ जाता है।

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारक लिखो।
उत्तर-
1. भौतिक वातावरण (Physical Environment)- भौतिक वातावरण में उन प्रक्रियाओं द्वारा परिवर्तन होते हैं जिन के ऊपर मनुष्यों का कोई नियन्त्रण नहीं होता। इन परिवर्तनों की वजह से मनुष्य के लिए नई दिशाएं पैदा होती हैं जो मनुष्यों की संस्कृति को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। भौगोलिक वातावरण में वह सभी निर्जीव घटनाएं आती हैं जो किसी-न-किसी तरीके से सामाजिक जीवन को प्रभावित करती हैं। मौसम में परिवर्तन जैसे वर्षा, गर्मी, सर्दी ऋतु का बदलना, भूचाल, बिजली का गिरना, टोपोग्राफी सम्बन्धी परिवर्तन जैसे मिट्टी में खनिज पदार्थों का होना, नहरों का होना, चट्टानों का होना इत्यादि गहरे रूप से सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं। भौतिक परिवर्तन व्यक्ति के शरीर की कार्य करने की योग्यता को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति का व्यवहार गर्मी तथा सर्दी के दिनों में अलग-अलग होता है। मौसम के बदलने से शरीर के कार्य करने के तरीके में फर्क पड़ता है। सर्दी में लोग तेज़ी से कार्य करते हैं। गर्मी में लोगों को ज़्यादा गुस्सा आता है।

व्यक्ति उन भौगोलिक हालातों में रहना पसन्द करते हैं जहां जीवन आसानी से व्यतीत हो सके। व्यक्ति वहां रहना पसंद नहीं करता जहां प्राकृतिक आपदाएं जैसे कि बाढ़, भूकम्प इत्यादि हमेशा आते रहते हों। इसके विपरीत व्यक्ति वहां रहने लगते हैं जहां जीवन जीने की सभी सुविधाएं उपलब्ध हों। भौगोलिक वातावरण में परिवर्तनों के कारण जनसंख्या का सन्तुलन बिगड़ जाता है जिस कारण कई समस्याएं पैदा हो जाती हैं। भौगोलिक वातावरण संस्कृति को भी प्रभावित करता है। जहां भूमि उपजाऊ होगी, वहां लोग ज्यादातर कृषि करेंगे तथा समुद्र के नजदीक रहने वाले लोग मछलियां पकड़ेंगे।

2. जैविक कारक (Biological Factor)-कई समाज शास्त्रियों के अनुसार जीव वैज्ञानिक कारक सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक है। जीव वैज्ञानिक कारक सामाजिक परिवर्तन का महत्त्वपूर्ण कारक है। जैविक कारक का अर्थ है जनसंख्या के वह गुणात्मक पक्ष जो वंश परम्परा (Heredity) के कारण पैदा होते हैं। जैसे मनुष्य का लिंग जन्म के समय ही निश्चित हो जाता है तथा इस आधार पर ही आदमी तथा औरतों के बीच अलग-अलग शारीरिक अन्तर मिलते हैं। इस अन्तर के कारण उनका सामाजिक व्यवहार भी अलग होता है। औरतें घर को संभालती हैं, बच्चे पालती हैं जबकि आदमी पैसे कमाने का कार्य करता है। यदि किसी समाज में आदमी तथा औरतों में समान अनुपात नहीं होता तो कई सामाजिक मुश्किलें पैदा हो जाती हैं।

शारीरिक लक्षण पैतृकता द्वारा निश्चित होते हैं तथा यह लक्षण समानता तथा अन्तरों को पैदा करते हैं जैसे कोई गोरा है या काला है। अमेरिका में यह गोरे-काले का अन्तर ईर्ष्या का कारण होता है। गोरी स्त्री को सुन्दर समझते हैं तथा काली स्त्री को वह सम्मान नहीं मिलता जो गोरी स्त्री को मिलता है। व्यक्ति का स्वभाव भी पैतृकता के लक्षणों से सम्बन्धित होता है। बच्चे का स्वभाव माता-पिता के स्वभाव के अनुसार होता है। व्यक्तियों में ज्यादा या कम गुस्सा होता है। ग्रन्थियों में दोष व्यक्तियों में सन्तुलन स्थापित करने नहीं देता। पैतृकता तथा बुद्धि का सम्बन्ध भी माना जाता है। मनुष्य का स्वभाव तथा दिमाग सामाजिक जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मनुष्य को विरासत में मिले गुण उसके व्यक्तिगत गुणों को निर्धारित करते हैं। यह गुण मनुष्य की अन्तक्रियाओं को प्रभावित करते हैं। अन्तक्रियाओं के कारण मानवीय सम्बन्ध पैदा होते हैं जिन के आधार पर सामाजिक व्यवस्था तथा संरचना निर्धारित होती है। यदि इनमें कोई परिवर्तन होता है तो वह सामाजिक परिवर्तन होता है।

3. जनसंख्यात्मक कारक (Demographic Factor)-जनसंख्या की बनावट आकार, वितरण इत्यादि भी सामाजिक संगठन पर प्रभाव डालते हैं। जिन देशों की जनसंख्या ज्यादा होती है वहां कई प्रकार की सामाजिक समस्याएं जैसे कि निर्धनता, अनपढ़ता, बेरोज़गारी, निम्न जीवन स्तर इत्यादि पैदा हो जाती हैं। जैसे भारत तथा चीन में ज़्यादा जनसंख्या के कारण कई प्रकार की समस्याएं तथा निम्न जीवन स्तर पाया जाता है। वह देश जहां जनसंख्या कम है-जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि में कम समस्याएं तथा उच्च जीवन स्तर है। जिन देशों की जनसंख्या ज़्यादा होती है वहां जन्म दर कम करने की कई प्रथाएं प्रचलित होती हैं। जैसे भारत में परिवार नियोजन का प्रचार किया जा रहा है। परिवार नियोजन के कारण छोटे परिवार सामने आते हैं तथा छोटे परिवारों के कारण सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन आ जाते हैं।

जिन देशों में जनसंख्या कम होती है वहां अलग प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं। वहां औरतों की स्थिति उच्च होती है तथा परिवार नियोजन की कोई धारणा नहीं होती है। संक्षेप में, जनसंख्या के आकार के कारण लोगों के बीच की अन्तक्रिया के प्रतिमानों में निश्चित रूप से परिवर्तन आ जाता है।

इस तरह जनसंख्या की बनावट के कारण भी परिवर्तन आ जाते हैं। जनसंख्या की बनावट में आम उम्र विभाजन, जनसंख्या का क्षेत्रीय विभाजन, लिंग अनुपात, नस्ली बनावट, ग्रामीण शहरी अनुपात, तकनीकी स्तर पर जनसंख्या का अनुपात, आवास-प्रवास के कारण परिवर्तन पाया जाता है। जनसंख्या के यह गुण सामाजिक संरचना पर बहुत प्रभाव डालते हैं तथा इन तथ्यों को ध्यान में रखे बिना कोई समस्या हल नहीं हो सकती। जैसे बूढ़ों की अपेक्षा जवान परिवर्तन को जल्दी स्वीकार करते हैं तथा ज्यादा उत्साह दिखाते हैं।

4. सांस्कृतिक कारक (Cultural Factors) संस्कृति के भौतिक तथा अभौतिक हिस्से में परिवर्तन सामाजिक सम्बन्धों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। परिवार नियोजन की धारणा ने पारिवारिक संस्था पर प्रभाव डाला है। कम बच्चों के कारण उनकी अच्छी देखभाल, उच्च शिक्षा तथा उच्च व्यक्तित्व का विकास होता है। सांस्कृतिक कारणों के कारण सामाजिक परिवर्तन की दिशा भी निश्चित हो जाती है। यह न सिर्फ सामाजिक परिवर्तन की दिशा निश्चित करती है बल्कि गति प्रदान करके उसकी सीमा भी निर्धारित करती है।

5. तकनीकी कारक (Technological Factor)–चाहे तकनीकी कारक संस्कृति के भौतिक हिस्से के अंग हैं परन्तु इसका अपना ही बहुत ज्यादा महत्त्व है। सामाजिक परिवर्तन में तकनीकी कारक बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। तकनीक हमारे समाज को परिवर्तित कर देती है। यह परिवर्तन चाहे भौतिक वातावरण में होता है परन्तु इससे समाज की प्रथाओं, परम्पराओं, संस्थाओं में परिवर्तन आ जाता है। बिजली से चलने वाले यन्त्रों, संचार के साधनों, रोज़ाना जीवन में प्रयोग होने वाली मशीनों ने हमारे जीवन तथा समाज को बदल कर रख दिया है। मशीनों के आविष्कार से उत्पादन बड़े पैमाने पर शुरू हुआ, श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण बढ़ गया। शहरों का तेजी से विकास हुआ, जीवन स्तर उच्च हुआ, उद्योग बढ़े परन्तु झगड़े, बीमारियां, दुर्घटनाएं बढ़ीं, गांव शहरों तथा कस्बों में बदलने लग गए, धर्म का प्रभाव कम हुआ, संघर्ष बढ़ गया। इस जैसे कुछ सामाजिक जीवन के पक्ष हैं जिन पर तकनीक का बहुत असर हुआ। आजकल के समय में तकनीकी कारक सामाजिक परिवर्तन का बहुत बड़ा कारक

6. विचारात्मक कारक (Ideological Factor)-इन कारकों के अतिरिक्त अलग-अलग विचारधाराओं का आगे आना भी परिवर्तन का कारण बनता है। उदाहरणत: परिवार की संस्था में परिवर्तन, दहेज प्रथा का आगे आना, औरतों की शिक्षा का बढ़ना, जाति प्रथा का प्रभाव कम होना, लैंगिक सम्बन्धों में परिवर्तन आने से सामाजिक परिवर्तन आए हैं। नई विचारधाराओं के कारण व्यक्तिगत सम्बन्धों तथा सामाजिक सम्बन्धों में बहुत परिवर्तन आए संक्षेप में, नए विचार तथा सिद्धान्त, आविष्कारों तथा आर्थिक दशाओं को प्रभावित करते हैं। वह सीधे रूप से प्राचीन परम्पराओं, विश्वासों, व्यवहारों, आदर्शों के विरुद्ध खड़े होते हैं। वास्तव में समाज में क्रान्ति ही नई विचारधारा लेकर आती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन से आपका क्या अर्थ है ? सामाजिक परिवर्तन का जनसंख्यात्मक कारक बताओ।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन का अर्थ-देखें पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न IV (1)

जनसंख्यात्मक कारक (Demographic Factor)-यदि हम समाज को ध्यान से देखें तो हम देखते हैं कि जनसंख्या हमारे समाज में सदैव कम या अधिक होती रहती है। समाज में बहुत-सी समस्याओं का सम्बन्ध जनसंख्या से ही सम्बन्धित होता है। यदि हम 19वीं शताब्दी की तरफ नजर डालें तो हम देखते हैं कि जनसंख्यात्मक कारक काफी सीमा तक सामाजिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। जनसंख्यात्मक कारकों का प्रभाव केवल भारत देश के साथ ही सम्बन्धित नहीं रहा बल्कि इसका प्रभाव प्रत्येक देश में रहा है। यह ठीक है कि हमारे भारत देश में बढ़ती हुई जनसंख्या कई प्रकार की समस्याएं पैदा कर रही है जैसे आर्थिक दृष्टिकोण से देश को कमज़ोर करना। सामाजिक बुराइयां पैदा करना इत्यादि। परन्तु इसका प्रभाव भिन्न-भिन्न देशों में अलग-अलग रहा है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि जनसंख्यात्मक कारक हमारे सामाजिक ढांचे, संगठनों, कार्यों, क्रियाओं, आदर्शों इत्यादि में काफ़ी परिवर्तन लाता है। सामाजिक परिवर्तन इसके साथ सम्बन्धित रहता है। जनसंख्यात्मक कारकों के बारे में विचार पेश करने से पहले हमारे लिए यह समझना आवश्यक हो जाता है कि जनसंख्यात्मक कारकों का क्या अर्थ है।

जनसंख्यात्मक कारकों का अर्थ (Meaning of Demographic Factors)-जनसंख्यात्मक कारकों का सम्बन्ध जनसंख्या के कम या अधिक होने से होता है अर्थात् इसमें हम जनसंख्या का आकार, घनत्व और विभाजन इत्यादि को शामिल करते हैं। जनसंख्यात्मक कारक सामाजिक परिवर्तन का एक ऐसा कारक है जो हमारे समाज के ऊपर सीधा प्रभाव डालता है। किसी भी समाज का अमीर या ग़रीब होना भी जनसंख्यात्मक कारकों के ऊपर निर्भर करता है अर्थात् जिन देशों की जनसंख्या अधिक होती है उन देशों के लोगों का जीवन स्तर निम्न होता है और जिन देशों की जनसंख्या कम होती है, उन समाजों या देशों में लोगों के रहने-सहने का स्तर काफ़ी ऊंचा होता है। उदाहरणत: हम देखते हैं कि भारत व चीन जैसे देशों की जनसंख्या अधिक होने के कारण दिन-प्रतिदिन समस्याएं बढ़ती रहती हैं। दूसरी तरफ़ ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, अमेरिका आदि देशों की जनसंख्या कम होने की वजह से वहां के लोगों का रहन-सहन व जीवन स्तर काफ़ी ऊंचा होता है। इस प्रकार उपरोक्त दोनों उदाहरणों से हम कह सकते हैं कि जनसंख्या का हमारे समाज में सामाजिक परिवर्तन के लिये बहुत बड़ा हाथ होता है।

जनसंख्यात्मक कारकों के बीच जन्म दर और मृत्यु दर बढ़ने एवं कम होने का प्रभाव भी हमारे समाज के ऊपर पड़ता है। उपरोक्त विवरण से हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि समाज में कई प्रकार के परिवर्तन केवल जनसंख्या के बढ़ने व कमी से ही सम्बन्धित होते हैं। किसी भी देश की बढ़ती जनसंख्या उसके लिये कई प्रकार की समस्याएं खड़ी कर देती है।

अब हम यह देखेंगे कि जनसंख्यात्मक कारक कैसे हमारे समाज के बीच सामाजिक परिवर्तन लाने के लिये ज़िम्मेदार होता है। सर्वप्रथम हम वह प्रभाव देखेंगे जो जनसंख्या की वृद्धि की वजह से पाये जाते हैं अर्थात् जन्म दर की वृद्धि के साथ पाये जाने वाले प्रभाव। इस प्रकार हम अब यह वर्णन करेंगे कि जनसंख्यात्मक कारण हमारे जीवन को कैसे प्रभावित करते हैं ?

1.ग़रीबी (Poverty) तेजी के साथ बढ़ती हुई जनसंख्या लोगों को उनकी रोजाना की रोटी की आवश्यकताओं को पूरा करने से भी बाधित कर देती है। मालथस के सिद्धान्त के अनुसार जनसंख्या में वृद्धि रेखा गणित के अनुसार होती है अर्थात् 6×6 = 36 परन्तु आर्थिक स्त्रोतों के उत्पादन में वृद्धि अंक गणित की तरह ही होती है अर्थात् 6 + 6 = 12 । कहने का अर्थ यह है कि यदि देश में 36 व्यक्ति अनाज खाने वाले होते हैं तो उत्पादन केवल 12 व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है। इस कारण ही ग़रीबी या भूखमरी की समस्याओं में वृद्धि होती है। कहने का तात्पर्य यह है कि आर्थिक स्रोतों में विकास काफ़ी मन्द गति के साथ होता है और जब भी जन्म दर में वृद्धि होगी तो उसका सीधा प्रभाव देश की आर्थिक स्थिति पर ही पड़ता है।

2. पैतृक व्यवसाय या कृषि (Hereditary occupation of Agriculture)-भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की अधिकतर जनसंख्या कृषि व्यवसाय से ही सम्बन्धित है अर्थात् कृषि व्यवसाय केवल एक व्यक्ति से सम्बन्धित न होकर बहुत सारे व्यक्तियों से मिल-जुल कर होने वाला व्यवसाय है। इस कारण बच्चों की अधिक संख्या भी आवश्यक हो जाती है क्योंकि यदि परिवार बड़ा होगा तो ही कृषि सम्भव है।

3. अनपढ़ता (Illiteracy)-भारतवर्ष में अनपढ़ता भी जनसंख्या वृद्धि का एक बड़ा कारण है। यहां की अधिकतर जनसंख्या अनपढ़ ही है। अनपढ़ लोग कुछ अंधविश्वासों में अधिक फंस जाते हैं जैसे पुत्र का होना आवश्यक समझना, बच्चे परमात्मा की देन इत्यादि या फिर उनमें छोटे परिवार प्रति चेतनता ही नहीं होती है। उनको छोटे परिवार के कोई लाभ भी नज़र नहीं आते हैं। इसी कारण ही उनका स्तर बिल्कुल निम्न हो जाता है। वह शिक्षा ग्रहण सम्बन्धी, अपना जीवन स्तर ऊपर करने सम्बन्धी, बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति चेतन नहीं होते हैं। यह सब अनपढ़ता के कारण ही होता है।

4. सांस्कृतिक पाबन्दियां (Cultural Restrictions) भारतीयों पर संस्कृति का इतना गहरा प्रभाव पड़ा होता है कि वह अपने आप को इन सांस्कृतिक पाबन्दियों से मुक्त नहीं कर पाते हैं। परन्तु यदि कोई व्यक्ति इन पाबन्दियों को तोड़ता है तो सभी व्यक्ति उसके साथ बातचीत तक करनी बन्द कर देते हैं। उदाहरण के लिये भारत में पिता की मृत्यु के पश्चात् मुक्ति तब प्राप्त होती है यदि उसका पुत्र उसको अग्नि देगा। इस कारण उसके लिये पुत्र प्राप्ति आवश्यक हो जाती है। यहां तक कि उसको समाज में भी पुत्र प्राप्ति पश्चात् ही सत्कार मिलता है। इस प्रकार उपरोक्त सांस्कृतिक पाबन्दियों के कारण वह प्रगति भी नहीं कर पाता।

5. सुरक्षा (Safety)-वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति यह सोचना आरम्भ कर देता है, कि वह जब बूढ़ा होगा और उसके बच्चे ही उसकी सुरक्षा करेंगे। बच्चों की अधिक संख्या ही उसे तसल्ली देती है कि उसके बुढ़ापे का सहारा रहेगा। .

6. बेरोज़गारी (Unemployment)-जैसे-जैसे समाज में औद्योगिकीकरण एवं शहरीकरण का विकास हुआ तो, उसके साथ बेरोज़गारी में भी वृद्धि हो गई। लोगों को रोजगार ढूंढ़ने के लिये अपने घरों से बाहर निकलना पड़ा। गांवों के लोग अधिकतर शहरों में जाकर रहने लग पड़े। इसी कारण शहरों में जनसंख्या की वृद्धि हो गई और जिस कारण रहने-सहने के लिये मकानों की कमी हो गई और महंगाई हो गई। घरेलू उत्पादन का कार्य कारखानों में चला गया। मशीनों के साथ कार्य पहले से बढ़िया एवं कम समय में होने लग गया। इस कारण जब मशीनों ने कई व्यक्तियों की जगह ले ली तो इस कारण बेरोज़गारी का होना स्वाभाविक सा हो गया।

7. रहने-सहने का निम्न स्तर (Low Standard of Living)-जनसंख्या के बढ़ने के साथ जब ग़रीबी एवं बेरोज़गारी भी उस रफ्तार से बढ़ने लगी, तो उसके साथ लोगों के रहने के स्तर में भी कमी आई। कमाने वाले सदस्यों की संख्या कम हो गई, खाने वाले सदस्यों की संख्या में वृद्धि हो गई। दिन-प्रतिदिन बढ़ती महंगाई की वजह से लोगों को अपने बच्चों को सुविधाएं प्रदान करना कठिन हो गया। रहने-सहने की कीमतों में वृद्धि होने से लोगों के रहने-सहने के स्तर में कमी आई।

जनसंख्या सम्बन्धी आई समस्याओं को देखते हुए भारतीय सरकार ने भी कई कदम उठाये। सर्वप्रथम ग़रीबी का कारण बढ़ती हुई जनसंख्या ही माना गया। इसके हल के लिये परिवार नियोजन से सम्बन्धित कार्यों को आरम्भ किया गया। इसके अन्तर्गत कॉपर-टी, गर्भ निरोधक गोलियों का प्रयोग एवं नसबन्दी आप्रेशन इत्यादि नये आधुनिक प्रयोग आरम्भ किये गये। इस के अतिरिक्त लोगों में लड़का पैदा होने सम्बन्धी दृष्टिकोण में परिवर्तन लाने के लिये, फिल्मों, टी० वी० इत्यादि की सहायता ली गई ताकि लोग लड़के एवं लड़की में अन्तर न समझें। इसके साथ ही बढ़ती जनसंख्या पर काबू पाया जायेगा। बड़े परिवारों के स्थान पर छोटे परिवारों को सरकार की तरफ़ से सहायता मिली।

8. आवास (Immigration)-जनसंख्या के ऊपर आवास एवं प्रवास का भी काफ़ी प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के तौर पर हम देखते हैं कि भारत में बाहर के देशों जैसे-बांग्लादेश, तिब्बत, नेपाल, श्रीलंका आदि के लोग काफ़ी संख्या में आकर रहने लग गये हैं। इनके आवास के कारण हमारी जनसंख्या में भी वृद्धि हो जाती है। ग़रीबी, भुखमरी, महंगाई और कई प्रकार की समस्याएं इसी परिणामस्वरूप पैदा होती हैं।

9. प्रवास (Emigration)-जैसे भारत में आवास पाया जाता है वैसे ही प्रवास पाया जाता है। प्रवास का अर्थ यह है कि भारत के लोग यहां से बाहर जाकर बसने लग गये हैं। बड़ी बात तो इस सम्बन्ध में यह है कि भारत में अच्छी शिक्षा प्राप्त करने वाले इन्जीनीयर, डॉक्टर इत्यादि बाहर जाकर बसने में दिलचस्पी दिखाते हैं। भारत देश उनकी शिक्षा प्राप्ति हेतु काफ़ी धन भी लगाता है परन्तु उनके द्वारा प्राप्त शिक्षा का लाभ दूसरे देश के लोग ही उठाते हैं। एक कारण यह भी है कि हमारा देश उनको उनकी योग्यतानुसार धन नहीं देता है। यहां तक कि कई बार उनको बेरोज़गारी का सामना भी करना पड़ता है क्योंकि पढ़े-लिखे लोग जो देश को सुधारने में सहायता कर सकते हैं वह अपनी योग्यता का प्रयोग दूसरे देशों में करते हैं। यहां तक कि उनके विदेश जाने से उनका अपना परिवार तक भी टूट जाता है। उनकी देखभाल करने वाला भी कोई नहीं होता। इसका प्रभाव हमारी सम्पूर्ण संरचना पर पड़ता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया में शैक्षिक कारक की भूमिका पर विचार-विमर्श करो।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तनों को लाने में शिक्षा भी एक महत्त्वपूर्ण कारक है। वास्तव में शिक्षा प्रगति का मुख्य आधार है। इसको प्राप्त करके व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि होती है। इस कारण इसको प्राप्त करके ही व्यक्ति मानवीय समाज में पाई जाने वाली समस्याओं का भी हल ढूंढ लेता है। जिन देशों में पढ़े-लिखे लोगों की संख्या अधिक होती है वह देश दूसरे देशों के मुकाबले अधिक विकासशील एवं प्रगतिशील होते हैं। इसका कारण यह है कि पढ़ालिखा व्यक्ति समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में अपना पूर्ण सहयोग देता है। भारतीय समाज में अनपढ़ लोगों की प्रतिशतता अधिक पाई जाती है। इस कारण लोग अत्यधिक अन्ध विश्वासी, वहम से भरे एवं बुरी परम्पराओं में पूर्णत: जकड़े रहते हैं। इनसे व्यक्ति को बाहर निकालने के लिए यह आवश्यक होता है कि उसके मन को उचित रूप से शिक्षित किया जाये। शैक्षिक कारणों के सामाजिक प्रभावों को जानने से पूर्व इस शिक्षा के अर्थ के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।

शब्द ‘Education’ लातीनी भाषा के शब्द ‘Educere’ से निकला है जिसका अर्थ होता है “To bring up”। शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को केवल पुस्तकों का ज्ञान देना ही नहीं होता बल्कि व्यक्ति के बीच अच्छी आदतों का निर्माण करके उसको भविष्य के लिए तैयार करने से भी होता है। ऐण्डरसन (Anderson) के अनुसार, “शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति उन वस्तुओं की शिक्षा प्राप्त करता है, जो उसको समाज के बीच ज़िन्दगी व्यतीत करने के लिए तैयार करती हैं।”

इस प्रकार हम इस विवरण के आधार पर कह सकते हैं कि शिक्षा के द्वारा समाज की परम्पराएं, रीति-रिवाज, रूढ़ियां, आदि अगली पीढ़ी तक पहुंचाये जाते हैं। यह औपचारिक एवं अनौपचारिक दोनों तरीकों से प्रदान की जाती हैं। रस्मी शिक्षा प्रणाली, व्यक्ति शिक्षण संस्थाओं जैसे स्कूल, कॉलेज एवं यूनिवर्सिटी में से प्राप्त करता है।

शैक्षिक कारक एवं परिवार (Educational Factors and Social Changes)-

1. शैक्षिक कारक एवं परिवार (Educational Factor and Family) शैक्षिक कारकों का परिवार की संस्था के ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा है। प्राचीन समाजों के बीच व्यक्ति केवल अपनी ज़िन्दगी व्यतीत करने के लिए ही रोजी-रोटी का प्रबन्ध करता था। परिवार के सभी सदस्य एक प्रकार के ही व्यवसाय में लगे रहते थे। रहनेसहने का स्तर काफ़ी नीचा था, क्योंकि लोगों में प्रगति करने की चेतनता ही नहीं होती थी। जैसे-जैसे शिक्षा सम्बन्धी चेतनता आई तो धीरे-धीरे नई परम्पराओं एवं कीमतों का विकास हुआ। लोगों के जीवन स्तर-शैली में भी परिवर्तन आया।

जैसे-जैसे पहले-पहले वह एक ही व्यवसाय में लगे रहते थे लेकिन धीरे-धीरे जागृति आयी और अपनी इच्छा व योग्यतानुसार वह अलग-अलग कार्य करने लग गए। इस प्रकार प्राचीन समाज से चली आ रही संयुक्त पारिवारिक प्रणाली की जगह केन्द्रीय परिवार ने ले ली। आधुनिक विचारों के बीच यदि व्यक्ति मेहनत करता है तो वह अपना गुजारा चला सकता है और अपने रहने-सहने के स्तर को भी उठा सकता है। अतः उसको अपनी स्थिति योग्यतानुसार मिलने लगी है न कि नैतिकता के अनुसार। इस प्रकार शैक्षिक कारकों के प्रभाव के साथ परिवारों की संरचना और कार्यों में भी परिवर्तन आया। ऐसे परिवार जिनमें पति-पत्नी दोनों कार्यों में व्यस्त हों तो बच्चों की पढ़ाई व देखभाल करैचों में होने लग पड़ी। इस कारण परिवार का अपने सदस्यों पर नियन्त्रण भी कम हो गया।

2. शैक्षिक कारकों का जाति प्रथा पर प्रभाव (Effect of educational factors on Caste System) भारतीय समाज में जाति प्रथा एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसने प्रगति के रास्ते में कई रुकावटें डाली हैं। जाति प्रथा में शिक्षा केवल उच्च जाति तक ही सीमित थी, और शिक्षा की प्रकार भी धार्मिक ही थी। अंग्रेज़ी सरकार के आने के पश्चात् ही जाति-प्रथा कमजोर होनी आरम्भ हुई क्योंकि उनके लिये सभी जातियों के लोग भारतीय थे। उन्होंने सभी जाति-धर्मों के व्यक्तियों से समान व्यवहार किया। शिक्षा के क्षेत्र में उन्होंने पश्चिमी शिक्षा को महत्त्व दिया। इस कारण ही शिक्षा धर्म-निरपेक्ष हो गई। आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने समानता, स्वतन्त्रता एवं भाईचारे जैसे सिद्धान्तों पर जोर दिया। औपचारिक शिक्षा के लिये स्कूल एवं कॉलेज खोले गये। इनमें प्रत्येक जाति से सम्बन्धित व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने लग गये। सभी जातियों के लोग एक साथ पढ़ने से अस्पृश्यता की बुराई समाप्त हुई।

3. शैक्षिक कारकों का विवाह पर प्रभाव (Effect of Educational Factor on Marriage)-विवाह की संस्था में भी शिक्षा के कारण काफ़ी परिवर्तन आया। पढ़े-लिखे लोगों का विवाह सम्बन्धी नज़रिया ही बदल गया। आरम्भ में विवाह पारिवारिक सहमति के बिना सम्भव नहीं थे। परिवार के बुजुर्ग ही अपने लड़के या लड़की के विवाह को तय करते थे और वह समान परिवार में ही विवाह करने का विचार रखते थे। वह लड़की-लड़के के गुणों की बजाय खानदान की तरफ अधिक ध्यान देते थे परन्तु अब लड़के एवं लड़की के व्यक्तिगत गुणों की तरफ ध्यान दिया जाता है। अब विवाह को धार्मिक संस्कार न मानकर एक सामाजिक समझौता माना गया है जोकि कभी भी तोड़ा जा सकता है। आजकल प्रेम विवाह एवं अदालती (Court) विवाह भी प्रचलित हैं। प्राचीन काल में छोटी आयु में ही विवाह कर दिया जाता था जिसके काफ़ी नुकसान होते थे। अब कानून पास करके विवाह की एक आयु निश्चित कर दी गई है। अब एक निश्चित आयु के पश्चात् ही विवाह सम्भव हो सकता है।

4. शिक्षा का सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव (Effect of Education on Social Stratification)शिक्षा सामाजिक स्तरीकरण के आधारों में एक प्रमुख आधार है। (1) पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ व्यक्ति को समाज में स्थिति शिक्षा के द्वारा ही प्राप्त होती है। व्यक्ति समाज में ऊंचा पद प्राप्त करने हेतु ऊंची शिक्षा ग्रहण करता है। जिस प्रकार की शैक्षणिक योग्यता व्यक्ति के पास होती है उसी प्रकार का पद वह प्राप्त करने योग्य हो जाता है। इस प्रकार आधुनिक समाज की जनसंख्या का शिक्षा के आधार पर स्तरीकरण किया जाता है। पढ़े-लिखे व्यक्तियों को समाज में सम्मान की भी प्राप्ति होती है।

प्राचीन समाज में व्यक्ति की स्थिति प्रदत्त होती थी अर्थात् वह जिस परिवार में जन्म लेता था, उसको उसी प्रकार की स्थिति की प्राप्ति होती थी लेकिन शिक्षा को ग्रहण करने के पश्चात् व्यक्ति की स्थिति अर्जित पद की होती है। वर्तमान समाज में व्यक्ति को अपनी स्थिति योग्यतानुसार ही प्राप्त होती है। व्यक्ति अपनी इच्छानुसार, मेहनत के साथ, योग्यता के साथ ऊंचे से ऊंचा पद प्राप्त कर सकता है।

5. शैक्षिक कारकों के कुछ अन्य प्रभाव (Some other effects of Educational Factors) शैक्षिक कारकों के प्रभावों के साथ स्त्रियों की स्थिति में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया है। आधुनिक समाज की शिक्षित स्त्री देश के प्रत्येक क्षेत्र में बढ़-चढ़ कर भाग ले रही है। भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने काफ़ी लम्बा समय राजनीति में बिताया और देश के ऊपर राज किया। शिक्षा के प्रसार के साथ स्त्रियों की वैवाहिक आयु में भी वृद्धि हो गई। वह अपना जीवन साथी चुनने के लिये पूर्ण तौर पर स्वतन्त्र हो गई है। प्रेम विवाह को महत्त्व दिया गया है और तलाकों की संख्या में भी वृद्धि हो गई है। शिक्षा के प्रभाव से स्त्रियों की दशा में परिवर्तन आया है। वह अपना जीवन साथी चुनने के लिए पूर्णता स्वतन्त्र हो गई है। शिक्षा के प्रभाव के कारण ही परिवारों का आकार छोटा हो गया है। पढ़ी-लिखी औरतें अधिक सन्तान उत्पत्ति की नीति को अच्छा नहीं समझती हैं। बच्चों की परवरिश तो पहले से ही बाहर से ही होती है। दूसरा रहने-सहने के स्तर को ऊँचा उठाने की इच्छा ने आर्थिक दबाव भी डाल दिया। एक या दो बच्चों को पढ़ाना-लिखाना सम्भव है। भारतीय समाज में अब स्त्रियां, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक इत्यादि क्षेत्रों में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं। अब वह पुरुषों की गुलामी न करके, ज़िन्दगी व्यतीत करने में उसके मित्र स्वरूप खड़ी हो रही हैं।

6. सामाजिक कंद्रों एवं कीमतों पर प्रभाव (Effect on Social Values) शिक्षा न केवल व्यक्तिगत कद्रों-कीमतों को उत्पन्न करती है बल्कि सामाजिक कद्रों-कीमतों जैसे लोकतन्त्र, समानता इत्यादि को भी बढ़ाती है। यही शिक्षा के कारण ही कानून के आगे सभी व्यक्ति एक समान समझे जाते हैं। शिक्षा के प्रभाव के कारण ही कई सामाजिक कुरीतियों जैसे-जाति-प्रथा, सती प्रथा, बाल-विवाह, विधवा विवाह का न होना इत्यादि समाप्त हुए हैं। शिक्षा के कारण ही विधवा विवाह तथा अन्तर्जातीय विवाह इत्यादि आगे आये हैं। अब शिक्षा के प्रभाव में ही भेदभाव समाप्त हो गया है। स्त्रियों की दशा में काफ़ी सुधार हो गया है और हो रहा है। आधुनिक समाज एवं आधुनिक समाज की कद्रों-कीमतें शिक्षा की ही देन हैं।

7. शिक्षा का व्यवसायों पर प्रभाव (Effect of Education on Occupations)—प्राचीनकाल में व्यवसायों का आधार शिक्षा न होकर जाति व्यवस्था थी। व्यक्ति जिस किसी जाति विशेष में जन्म लेता था, उन्हीं से सम्बन्धित व्यवसायों को ही अपनाना पड़ता था। उस समय शिक्षा का कोई प्रभाव नहीं था, परन्तु आधुनिक समय में शिक्षा को ही महत्त्व दिया जाता है जिस कारण जाति विशेष के स्थान पर व्यक्तिगत योग्यता को ही केवल महत्त्व दिया जाने लगा है। अब व्यक्ति का व्यवसाय इस बात पर निर्भर नहीं करता कि वह किस जाति से सम्बन्धित है ? बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि वह क्या है ? उसकी शैक्षिक योग्यता क्या है ? आजकल यदि व्यक्ति को अपनी योग्यता में वृद्धि करनी है तो उसके लिए शिक्षा अनिवार्य है। यदि व्यक्ति ने उच्च पद प्राप्त करना है तो उसके लिए पढ़ना-लिखना आवश्यक है। पढ़ाई-लिखाई ने जाति की महत्त्वता को काफ़ी कम कर दिया है। अब कोई भी शिक्षा प्राप्त करके ऊंची पदवी प्राप्त कर सकता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 6.
सामाजिक परिवर्तन की प्रौद्योगिकी (तकनीकी) कारक को विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए तकनीकी कारक भी भारतीय समाज में काफ़ी प्रबल हैं। समाज में दिन-प्रतिदिन नये-नये आविष्कार एवं खोजें होती रहती हैं जिनका प्रभाव सम्पूर्ण समाज के ऊपर पड़ता है। आधुनिक समय में आविष्कारों में काफ़ी तेजी आई है जिस कारण आधुनिक शताब्दी को वैज्ञानिक युग कहा गया है। तकनीकी में लगातार विकास होता रहता है जिस कारण समाज का विकास होता रहता है और उसमें परिवर्तन आता रहता है। किसी भी समाज की प्रगति वहां की तकनीकी पर निर्भर करती है। आजकल यातायात के साधन, संचार के साधन, डाकतार विभाग इत्यादि में तकनीकी पक्ष से बहुत ही परिवर्तन और प्रगति हुई है।

ऐसा युग मशीनी युग कहा जाता है जिसमें समाज में प्रत्येक क्षेत्र में मशीनों का प्रभाव देखने को मिलता है। कई समाजशास्त्रियों ने तकनीकी कारणों को ही सामाजिक परिवर्तन का मुख्य कारण बताया है।

वास्तव में तकनीकी कारणों में मशीनें, हथियार और उन सभी वस्तुओं को शामिल किया जाता है जिसमें मानवीय शक्ति का प्रयोग किया जाता है। ।

तकनीकी कारण एवं सामाजिक परिवर्तन (Technology & Social Change)-यहां पर हम विचार करेंगे कि कैसे तकनीकी कारणों ने समाज को परिवर्तित किया और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में परिवर्तन लाने में योगदान दिया है।

1. उत्पादन के क्षेत्र में परिवर्तन (Change in area of production) तकनीक ने उत्पादन के क्षेत्र को तो अपने अधीन ही कर लिया है। कारखानों के खुलने के साथ घरेलू उत्पादन काफ़ी प्रभावित हुए। सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह आया है कि मशीनों के आने के कारण घरेलू या व्यक्तिगत उत्पादन कारखानों की तरफ चला गया। प्रत्येक क्षेत्र में नई-नई तकनीकों का विकास होने लगा। इसके साथ ही औद्योगीकरण का भी विकास हुआ। घरेलू उत्पादन के समाप्त होने के कारण स्त्रियां भी घर से बाहर निकल आईं। इस कारण स्त्रियों की सामाजिक ज़िन्दगी में काफ़ी परिवर्तन आया। आधुनिक तकनीक का ही बोलबाला होने लग गया। इससे उत्पादन पर खर्च भी कम होने लगा और कम-से-कम समय में अधिक और अच्छा उत्पादन होने लग गया। इन बड़े-बड़े कारखानों में स्त्रियां भी रोज़गार के क्षेत्र में आ गईं। प्राचीन काल में भारत में कपड़े का घरेलू उत्पादन होता था। इसके अतिरिक्त चीनी का निर्माण भी लोग घर में रह कर ही कर लेते थे। परन्तु कारखानों के खुलने के साथ यह उद्योग भी कारखानों में चला गया। आजकल भारतवर्ष में कपड़े एवं चीनी के कई कारखानों के निर्माण के कारण हज़ारों लोग कारखानों में कार्य करने लग गये हैं।

2. संचार के साधनों में विकास (Development in means of communication)-कारखानों में मशीनीकरण होने के साथ बड़े स्तर पर उत्पादन का विकास जिसके साथ संचार का विकास होना भी आवश्यक हो गया था। संचार के साधनों में हुए विकास के साथ, समय एवं स्थान में सम्बन्ध स्थापित हुआ। आधुनिक संचार की तकनीकों जैसे टेलीफोन, रेडियो, टेलीविज़न, पुस्तकें, प्रिंटिंग प्रेस की सहायता के साथ आपसी सम्बन्धों में निर्भरता पैदा हुई।

आरम्भिक काल में संचार केवल बोलचाल, संकेतों की सहायता के साथ पाया जाता था। परन्तु जब बोलचाल के स्थान पर लिखित प्रयोग किया जाने लगा तो उसके साथ व्यक्तियों में निजीपन पाया गया और भिन्न-भिन्न समूहों के लोग एक-दूसरे को समझने लग गये। इसके साथ हमारी ज़िन्दगी के दैनिक समय में बहुत तेजी आई। हम दूर बैठे विदेशों में भी व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध स्थापित करने में सफल हुए। आजकल के समय में व्यक्ति अपने कार्य को योग्यता के अनुसार फैला रहा है जिससे उसकी प्रगति भी हई है, और रहन-सहन के स्तर में भी वृद्धि हई।

3. कृषि में नयी तकनीकें (New Techniques of Argiculture)-ऐसे युग में कृषि व्यवसाय के क्षेत्र में नयी तकनीकों का प्रयोग होने लग पड़ा। जैसे कृषि से सम्बन्धित औज़ार में, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग, नयी मशीनें आदि के प्रयोग के साथ ग्रामीण क्षेत्रों के रहने वालों के स्तर में भी वृद्धि हुई। रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के साथ कृषि के उत्पादन में भी वृद्धि हुई। नये प्रकार के बीजों का उत्पादन भी आरम्भ हो गया। प्राचीन काल में सम्पूर्ण परिवार ही कृषि के व्यवसाय में लगा रहता था। मशीनों के प्रयोग के साथ कम व्यक्ति भी अधिक कार्य करने लग पड़े। इस कारण सम्पूर्ण भारत की प्रगति हुई।

4. यातायात के साधनों का विकास (Development of means of transportation)-विकास के साथ-साथ यातायात के साधनों का भी विकास हआ। यह विकास व्यक्तियों के एक-दूसरे के सम्पर्क में आने की वजह से सम्भव हुआ। हवाई जहाज़, बसें, कारें, सड़कें, रेलगाड़ियां, समुद्री जहाज़ इत्यादि की खोज के साथ एक देश से दूसरे देश तक जाना आसान हो गया। व्यक्ति अपने घर से दूर जाकर भी कार्य करने के लिए जाने लग पड़ा क्योंकि एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए हर प्रकार की सुविधा प्राप्त है। इस कारण व्यक्ति की गतिशीलता में वृद्धि भी हुई।

भारत में पुरातन काल से चला आ रहा अस्पृश्यता का भेदभाव भी यातायात के साधनों के विकास के साथ कम हो गया। बस व रेलगाड़ियों में भिन्न-भिन्न जाति के लोग मिलकर सफर करने लग गये। इसके साथ विभिन्न जातियों के लोगों में भी समानता के सम्बन्ध पैदा हो गए।

यातायात के साधनों में वृद्धि से व्यापार के क्षेत्र में भी काफ़ी विकास हुआ। विभिन्न जातियों एवं विभिन्न देशों के लोगों में आपस में नफरत व ईर्ष्या, दुःख को छोड़कर, प्यार, हमदर्दी एवं सहयोग वाले सम्बन्ध स्थापित किये। व्यक्तियों को अपनी ज़िन्दगी बढ़िया ढंग से जीने का अवसर प्राप्त हुआ। यातायात के साधनों के विकास के कारण हज़ारों मील की यात्रा कुछ घण्टों में ही सम्भव हो गई।

5. तकनीकी कारणों का परिवार की संस्था पर पड़ा प्रभाव (Change in Family) सबसे पहले हम यह देखते हैं कि तकनीकी कारणों के प्रभाव के कारण परिवार की संस्था को बिल्कुल बदल दिया है।

आधुनिक परिवार का तो नक्शा ही बदल गया है। परिवार के सदस्यों को रोजी रोटी कमाने हेतु घर से बाहर जाना पड़ता है। इस कारण वह कार्य (पुराने समय में) जो परिवार के सदस्य स्वयं करते थे, वह दूसरी संस्थाओं के पास चला गया है। बच्चों की देख भाल घर से बाहर करैचों में चली गई है। स्वास्थ्य के कार्य अस्पतालों में चले गये हैं। व्यक्ति अपना मनोरंजन भी घर से बाहर या. देखने एवं सुनने वाले साधनों की सहायता के साथ करता है। उसका नज़रिया (दृष्टिकोण) भी व्यक्तिगत हो गया है। पारिवारिक संगठन का स्वरूप ही बदल गया है। बड़े परिवारों के स्थान पर छोटे एवं सीमित परिवार विकसित हो गये हैं। परिवार को प्राचीन समय में प्राइमरी समूह के फलस्वरूप जो मान्यता प्राप्त थी, वह अब नहीं रही है।

6. तकनीकी कारणों का विवाह की संस्था के ऊपर पड़ा प्रभाव (Effect on institution of marriage)प्राचीन समाज में विवाह को एक धार्मिक बन्धन का नाम दिया जाता था। व्यक्ति का विवाह उसके पूर्वजों की सहमति के साथ होता था। इस संस्था के बीच प्रवेश करके व्यक्ति गृहस्थ आश्रम में प्रवेश कर जाता था, लेकिन तकनीकी कारणों के प्रभाव के साथ विवाह की संस्था के प्रति लोगों का दृष्टिकोण भी बदल गया है।

सबसे पहली बात यह है कि आजकल के समय में विवाह की संस्था एक धार्मिक बन्धन न रह कर एक सामाजिक समझौता बनकर रह गई है। विवाह की नींव समझौते के ऊपर आधारित है और समझौता न होने की अवस्था में यह टूट भी जाती है।

विवाह की संस्था का नक्शा ही बदल गया है। विवाह के चुनाव का क्षेत्र बढ़ गया है। व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी भी जाति में विवाह करवा सकता है। यदि पति-पत्नी के विचार नहीं मिलते तो वह एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। औरतों ने जब से उत्पादन के क्षेत्र में हिस्सा लेना शुरू किया है तब से ही वह अपने आपको आदमियों से कम नहीं समझती है। आर्थिक पक्ष से वह आदमी पर अब निर्भर नहीं है। इस कारण उसकी स्थिति आदमी के बराबर समझी जाने लग गई है।

7. सामाजिक जीवन पर प्रभाव (Impact on Social Life) आधुनिक संचार के साधनों, यातायात के साधनों, नये-नये उद्योगों, काम धन्धों के सामने आने से हमारे समाज के ऊपर काफ़ी गहरा प्रभाव पड़ा है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग स्थापित हो गये हैं, जिस कारण गांवों का कुटीर एवं लघु उद्योग लगभग समाप्त हो गया है। गांवों के लोग कार्यों को करने के लिए शहरों की तरफ जाने लग गए। इस कारण गांवों के संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और उनकी जगह केन्द्रीय परिवार ले रहे हैं। लोग गांवों से शहरों की तरफ बढ़ रहे हैं जिस कारण उनके रहनेसहने के स्तर, खाने-पीने, विचार, व्यवहार एवं तौर-तरीकों में काफ़ी परिवर्तन आ रहा है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions):

प्रश्न 1.
शब्द Progress लातीनी भाषा के किस शब्द से लिया गया है ?
(A) Progressor
(B) Progred
(C) Progredior
(D) Pregrodoir.
उत्तर-
(C) Progredior.

प्रश्न 2.
क्रान्ति की कोई विशेषता बताएं।
(A) अप्रत्याशित परिणाम
(B) शक्ति का प्रतीक
(C) तेज़ परिवर्तन
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
सांस्कृतिक विडम्बना का सिद्धान्त किसने दिया था ?
(A) मैकाइवर
(B) जिन्सबर्ग
(C) ऑगबन
(D) वैबर।
उत्तर-
(C) ऑगबर्न।

प्रश्न 4.
रेखीय परिवर्तन को रेखीय परिवर्तन क्यों कहते हैं ?
(A) क्योंकि यह परिवर्तन चक्र में होता है
(B) क्योंकि यह परिवर्तन घूम कर होता है
(C) क्योंकि यह एक रेखा की तरह सीधी रेखा में होता है
(D) क्योंकि यह कुछ समय के लिए चक्र की तरह घूमता है तथा कुछ समय रेखा की तरह चलता है।
उत्तर-
(C) क्योंकि यह एक रेखा की तरह सीधी रेखा में होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
जब परिवर्तन एक निश्चित दिशा में हो तथा तथ्य में गुणों तथा रचना में भी परिवर्तन हो तो उसे क्या कहते हैं ?
(A) उद्विकास
(B) क्रान्ति
(C) विकास
(D) प्रगति।
उत्तर-
(A) उद्विकास।

प्रश्न 6.
उस परिवर्तन को क्या कहते हैं जो हमारी इच्छाओं तथा लक्ष्यों के अनुरूप हो तथा हमेशा जो लाभदायक स्थिति उत्पन्न करे।
(A) उद्विकास
(B) प्रगति
(C) क्रान्ति
(D) विकास।
उत्तर-
(B) प्रगति।

प्रश्न 7.
उस परिवर्तन को क्या कहते हैं जो सामाजिक व्यवस्था को बदलने के लिए एकदम तथा अचनचेत हो जाए।
(A) प्रगति
(B) विकास
(C) क्रान्ति
(D) उद्विकास।
उत्तर-
(C) क्रान्ति।

प्रश्न 8.
सोरोकिन के अनुसार किस चीज़ में होने वाला परिवर्तन सामाजिक होता है ?
(A) सांस्कृतिक विशेषताओं
(B) समाज
(C) समुदाय
(D) सामाजिक सम्बन्धों।
उत्तर-
(A) सांस्कृतिक विशेषताओं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 9.
किसी समाज विशेष की संस्कृति में होने वाले परिवर्तन को क्या कहते हैं ?
(A) सामाजिक परिवर्तन
(B) सामूहिक परिवर्तन
(C) सांस्कृतिक परिवर्तन
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(C) सांस्कृतिक परिवर्तन।

प्रश्न 10.
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति किस प्रकार की होती है ?
(A) व्यक्तिगत
(B) सामूहिक
(C) सामाजिक
(D) सांस्कृतिक।
उत्तर-
(C) सामाजिक।

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. …………. प्रकृति का नियम है।
2. ………….. का अर्थ है आंतरिक तौर पर क्रमवार परिवर्तन।
3. ………. से समाज में अचानक तथा तेज़ परिवर्तन आते हैं।
4. …………. , …………. तथा ………….. सामाजिक परिवर्तन के प्राथमिक स्रोत हैं।
5. ………… वह प्रक्रिया है जिससे सांस्कृतिक तत्त्व एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में फैल जाते हैं।
6. जब हम अपने ऐच्छिक उद्देश्य की प्राप्ति के रास्ते की तरफ बढ़ते हैं तो इसे ……….. कहते हैं।
उत्तर-

  1. परिवर्तन,
  2. उद्विकास,
  3. क्रान्ति,
  4. Innovation, discovery, diffusion,
  5. प्रसार,
  6. प्रगति।

III. सही/गलत (True/False) :

1. क्रान्ति तेज़ परिवर्तन लाती है।
2. प्रसार से सांस्कृतिक तत्त्व नहीं फैलते।
4. जनसंख्या के बढ़ने या कम होने से सामाजिक परिवर्तन आता है।
5. क्रान्ति सामाजिक परिवर्तन का प्रकार नहीं है।
6. क्रान्ति से संपूर्ण सामाजिक संरचना बदल जाती है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3. गलत,
  4. सही,
  5. गलत,
  6. सही।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन क्या होता है ?
उत्तर-
सामाजिक संबंधों में होने वाला परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन होता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन का कोई कारण बताएं।
उत्तर-
भौगोलिक कारक जैसे कि भूकम्प, बाढ़ इत्यादि से सामाजिक परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 3.
क्या सामाजिक परिवर्तन के बारे में पहले बताया जा सकता है ?
उत्तर-
जी नहीं, समाजिक परिवर्तन के बारे में पहले नहीं बताया जा सकता।

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन के कारकों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के कारकों को दो भागों-प्राकृतिक कारक तथा मानवीय कारक में बाँटा जा सकता

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन की प्रकृति सामाजिक होती है।

प्रश्न 6.
सांस्कृतिक परिवर्तन क्या होता है ?
उत्तर-
किसी विशेष समाज की संस्कृति में होने वाले परिवर्तन को सांस्कृतिक परिवर्तन कहते हैं।

प्रश्न 7.
उद्विकास किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब परिवर्तन एक निश्चित दिशा में हो तथा तथ्य के गुणों व रचना में भी परिवर्तन आए तो उसे उद्विकास कहते हैं।

प्रश्न 8.
प्रगति क्या है ?
उत्तर-
ऐसे परिवर्तन जो हमारी इच्छाओं तथा लक्षणों के अनुसार हों तथा हमेशा लाभदायक स्थिति उत्पन्न करें उसे प्रगति कहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 9.
क्रान्ति क्या है ?
उत्तर-
जब सामाजिक व्यवस्था को बदलने के लिए अचानक परिवर्तन हो जाए तो इसे क्रान्ति कहते हैं।

प्रश्न 10.
मार्क्स के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का क्या कारण है ?
उत्तर-
मार्क्स के अनुसार सामाजिक परिवर्तन का कारण आर्थिक होता है।

प्रश्न 11.
क्रान्ति की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
क्रान्ति से तेज़ परिवर्तन आता है जिसके अचानक परिणाम निकलते हैं।

प्रश्न 12.
सामाजिक परिवर्तन के कौन-से कारक होते हैं ?
उत्तर-
भौगोलिक कारक, जनसंख्यात्मक कारक, जैविक कारक, तकनीकी कारक इत्यादि।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा दें।
उत्तर-
जोंस (Jones) के अनुसार, “सामाजिक परिवर्तन वह शब्द है जिसे हम सामाजिक प्रक्रियाओं, सामाजिक ढंगों, सामाजिक अन्तक्रियाओं अथवा सामाजिक संगठन इत्यादि में पाए गए परिवर्तनों के वर्णन करने के लिए है।”

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. सामाजिक परिवर्तन सर्वव्यापक होता है क्योंकि कोई भी समाज पूर्णतया स्थिर नहीं होता तथा परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
  2. सामाजिक परिवर्तन में किसी प्रकार की निश्चित भविष्यवाणी नहीं हो सकती क्योंकि सामाजिक संबंधों में कोई भी निश्चितता नहीं होती।

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन तुलनात्मक कैसे है ?
उत्तर-
जब हम किसी परिवर्तन की बात करते हैं तो हम वर्तमान स्थिति की तुलना प्राचीन स्थिति से करते हैं कि प्राचीन स्थिति व वर्तमान स्थिति में क्या अंतर है। यह अंतर केवल दो स्थितियों की तुलना करके ही पता किया जा सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन तुलनात्मक होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 4.
उद्विकास को समझने का सूत्र बताएं।।
उत्तर-
उद्विकास को हम निम्नलिखित सूत्र की सहायता से समझ सकते हैंउविकास = गुणात्मक परिवर्तन + रचना में परिवर्तन + निरन्तरता + दिशा।

प्रश्न 5.
सामाजिक परिवर्तन के कौन-से कारक होते हैं ?
उत्तर-

  • भौगोलिक कारकों के कारण सामाजिक परिवर्तन आता है।
  • जैविक कारक भी सामाजिक परिवर्तन लाते हैं।
  • जनसंख्यात्मक कारकों की वजह से भी सामाजिक परिवर्तन आता है।
  • सांस्कृतिक तथा तकनीकी कारक भी सामाजिक परिवर्तन का कारण बनते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक परिवर्तन।
उत्तर-
सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक संगठन, सामाजिक संरचना, सामाजिक अन्तक्रिया में होने वाले किसी भी प्रकार के परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन का नाम दिया जाता है। समाज में होने वाला हरेक प्रकार का परिवर्तन सामाजिक परिवर्तन नहीं होता। केवल सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक क्रियाओं इत्यादि में पाया जाना वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन होता है। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि लोगों के जीवन जीने के ढंगों में पाया जाने वाला परिवर्तन ही सामाजिक परिवर्तन होता है। यह हमेशा सामूहिक तथा सांस्कृतिक होता है। जब भी मनुष्यों के व्यवहार में परिवर्तन आता है तो हम कह सकते हैं कि सामाजिक परिवर्तन हो रहा है।

प्रश्न 2.
सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएं।
उत्तर-
1. सामाजिक परिवर्तन एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है क्योंकि समाज के किसी न किसी हिस्से में परिवर्तन आता ही रहता है। कोई भी समाज ऐसा नहीं है जिसमें परिवर्तन न आया हो, क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

2. सामाजिक परिवर्तन के बारे में निश्चित तौर पर भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि यह कब तथा कैसे होगा क्योंकि व्यक्तियों के बीच मिलने वाले सामाजिक सम्बन्ध निश्चित नहीं होते तथा सम्बन्धों में हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं।

3. सामाजिक परिवर्तन की गति असमान होती है क्योंकि यह किसी समाज में तो काफ़ी तेज़ी से आता है तथा किसी समाज में यह काफ़ी धीमी गति से आता है। परन्तु समाज में होता ज़रूर है।

4. सामाजिक परिवर्तन कई कारकों के आकर्षण का परिणाम होती है। इसके पीछे केवल एक ही कारक.नहीं होता क्योंकि हमारा समाज जटिल प्रवृत्ति का है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
सामाजिक परिवर्तन में भविष्यवाणी नहीं कर सकते।
उत्तर-
हम किसी भी प्रकार के सामाजिक परिवर्तन के बारे में निश्चित तौर पर भविष्यवाणी नहीं कर सकते कि यह कब तथा कैसे होगा। क्योंकि व्यक्तियों के बीच मिलने वाले सामाजिक सम्बन्ध निश्चित नहीं होते। सम्बन्धों में हमेशा परिवर्तन आते रहते हैं जिस कारण हम इनके बारे में निश्चित रूप से कुछ कह नहीं सकते। हम किसी भी व्यक्ति के व्यवहार के बारे में निश्चित अनुमान नहीं लगा सकते कि यह किसी विशेष स्थिति में किस प्रकार का व्यवहार करेगा। इसलिए हम इसके बारे में निश्चित रूप से भविष्यवाणी नहीं कर सकते।

प्रश्न 4.
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के मुख्य कारक निम्नलिखित हैं-

  • सांस्कृतिक कारक (Cultural factor)
  • जनसंख्यात्मक कारक (Demographical factor)
  • शैक्षिक कारक (Educational factor)
  • आर्थिक कारक (Economic factor)
  • तकनीकी कारक (Technological factor)
  • जैविक कारक (Biological factor)
  • मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological factor).

प्रश्न 5.
सामाजिक उदविकास।
उत्तर-
सामाजिक उदविकास सामाजिक परिवर्तन के प्रकारों में से एक है। शब्द उदविकास अंग्रेजी भाषा के शब्द Evolution से निकला है जोकि लातिनी भाषा के शब्द Evolvere से निकला है जिसका अर्थ है बाहर की तरफ फैलना। क्रम विकासीय परिवर्तन से न सिर्फ बढ़ौत्तरी होती है बल्कि उस परिवर्तन से संरचनात्मक बढौत्तरी का ज्ञान होता है। इस तरह क्रम विकासीय परिवर्तन ऐसा परिवर्तन होता है जिसमें निरन्तर क्रम परिवर्तन निश्चित दिशा की तरफ होता है। यह साधारण से जटिल की तरफ जाने की प्रक्रिया है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 6.
उद्विकास की तीन विशेषताएं। (Three Characteristics of Evolution.)
उत्तर-

  1. सामाजिक उद्विकास निरन्तर पाया जाने वाला परिवर्तन होता है तथा यह परिवर्तन लगातार होता रहता है।
  2. निरन्तरता के साथ सामाजिक उद्विकासीय परिवर्तन में निश्चित दिशा भी पायी जाती है क्योंकि यह सिर्फ आकार में नहीं बल्कि संरचना में भी पायी जाती है।
  3. सामाजिक उद्विकास के ऊपर किसी प्रकार का कोई बाहरी दबाव नहीं होता बल्कि इसमें भीतरी गुण बाहर निकलते हैं।
  4. उद्विकासीय परिवर्तन हमेशा साधारण से जटिलता की तरफ पाया जाता है तथा निश्चित दिशा में पाया जाता है।

प्रश्न 7.
क्रान्ति।
उत्तर-
क्रान्ति भी सामाजिक परिवर्तन का एक प्रकार है। इसके द्वारा समाज में इस तरह का परिवर्तन होता है कि जिसका प्रभाव वर्तमान समय पर तो पड़ता ही है परन्तु भविष्य तक भी इसका असर रहता है। वास्तव में समाज में कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जिसके द्वारा समाज विघटन के रास्ते पर चल पड़ता है। ऐसे हालातों को खत्म करने के लिए समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन पैदा हो जाते हैं। यह क्रान्तिक परिवर्तन एकदम तथा अचानक होता है। इस पर बाहरी शक्तियों का भी प्रभाव पड़ता है। क्रान्ति से एकदम परिवर्तन आता है जिससे समाज का ढांचा ही बदल जाता है।

प्रश्न 8.
क्रान्ति की तीन विशेषताएं।
उत्तर-

  1. क्रान्ति में सामाजिक व्यवस्था में एकदम परिवर्तन आ जाता है जिस कारण अचानक परिणाम निकलते हैं।
  2. क्रान्ति से संस्कृति के दोनों भाग, चाहे वह भौतिक हो या अभौतिक, में तेजी से परिवर्तन आता है जिससे समाज पूरी तरह बदल जाता है।
  3. क्रान्ति एक चेतन प्रक्रिया है अचेतन नहीं जिसमें चेतन रूप से काफ़ी समय से प्रयास चलते हैं तथा राज्य सत्ता को बदला जाता है।
  4. क्रान्ति में हिंसक तथा अहिंसक तरीके से पुरानी व्यवस्था को उखाड़ फेंका जाता है तथा नई व्यवस्था को कायम किया जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 9.
क्रान्ति शक्ति की प्रतीक कैसे होती है ?
उत्तर-
क्रान्ति में शक्ति का प्रयोग ज़रूरी होता है। राजनीतिक क्रान्ति तो खून-खराबे तथा कत्ले-आम पर आधारित होती है जैसे 1789 की फ्रांस की क्रान्ति तथा 1917 की रूसी क्रान्ति। राज्य की सत्ता को पलटने के लिए हिंसा को साधन बनाया जाता है जिस कारण लूट-मार, कत्ले-आम तो होता ही है। क्रान्ति के सफल या असफल होने में भी शक्ति का ही हाथ होता है। यदि क्रान्ति करने वालों की शक्ति अधिक है तो वह राज्य सत्ता को पलट देते हैं नहीं तो राज्य उनकी क्रान्ति को असफल कर देता है। इस तरह क्रान्ति शक्ति का प्रतीक है क्योंकि यह तो होती ही शक्ति से है।

प्रश्न 10.
क्रान्ति का सामाजिक कारण।
उत्तर-
बहुत-से सामाजिक कारण क्रान्ति के लिए जिम्मेदार होते हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार यदि समाज में प्रचलित रीति-रिवाज, परम्पराएं ठीक नहीं हैं तो वह क्रान्ति का कारण बन सकते हैं। प्रत्येक समाज में कुछ प्रथाएं, परम्पराएं होती हैं जो समाज की एकता तथा अखण्डता के विरुद्ध होती हैं। क्रान्ति कई बार इन परम्पराओं को खत्म करने के लिए भी की जाती है। कई बार इन परम्पराओं के कारण समाज में विघटन पैदा हो जाता है जिस कारण इस विघटन को खत्म करने के लिए क्रान्ति करनी पड़ती है। जैसे 20वीं सदी में भारत में कई बुराइयों के कारण सामाजिक विघटन पैदा होता था।

प्रश्न 11.
क्रान्ति का राजनीतिक कारण।
उत्तर-
यदि हम इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि साधारणतः सभी ही क्रान्तियों के कारण राजनीतिक रहे हैं तथा यह कारण वर्तमान राज्य की सत्ता के विरुद्ध होते हैं। बहुत बार राज्य की सत्ता इतनी अधिक निरंकुश हो जाती है कि अपनी मनमर्जी करने लग जाती है। उसको लोगों की इच्छाओं का ध्यान भी नहीं रहता। आम जनता की इच्छाओं को दबा दिया जाता है। इच्छाओं के दबने के कारण जनता में असन्तोष फैल जाता है। धीरे-धीरे यह असन्तोष सम्पूर्ण समाज में फैल जाता है तथा यह असन्तोष समय आने पर क्रान्ति बन जाता है।

प्रश्न 12.
विकास।
उत्तर-
सामाजिक विकास एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें कई चीजें अपने बड़े तथा विस्तृत आकार की तरफ बढ़ती हैं। इसका अर्थ है कि विकास ऐसा परिवर्तन है जिसमें विशेषीकरण तथा विभेदीकरण में बढ़ोत्तरी होती है तथा वह चीज़, जिसका हम मूल्यांकन कर रहे हैं, हमेशा उन्नति की तरफ बढ़ती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 13.
विकास की विशेषताएं।
उत्तर-

  • विकास एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है।
  • विकास में एक चीज़ एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिर्वतन हो जाती है।
  • विकास सरलता से जटिलता की तरफ बढ़ने की प्रक्रिया है।
  • विकास जीवन के सभी पक्षों में होता है।
  • विकास करने की कोशिशें हमेशा चलती रहती हैं।

प्रश्न 14.
सामाजिक विकास के तीन मापदण्ड।
उत्तर-

  • जब कानून की दृष्टि में समानता बढ़ जाती है तो यह विकास का प्रतीक होता है।
  • जब देश के सभी बालिगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाए तथा देश में लोकतन्त्र स्थापित हो जाए तो यह राजनीतिक विकास का सूचक है।
  • जब स्त्रियों तथा सभी लोगों को समाज में समान अधिकार प्राप्त हो जाएं तो यह सामाजिक विकास का सूचक है।
  • जब समाज में पैसे या पूँजी का समान विभाजन हो तो यह आर्थिक प्रगति का सूचक माना जाता है।

प्रश्न 15.
विकास की दो परिभाषाएं।
उत्तर-
हाबहाऊस (Hobhouse) के अनुसार, “समुदाय का विकास उस समय माना जाता है जब किसी वस्तु की मात्रा, कार्य सामर्थ्य तथा सेवा की नज़दीकी में बढ़ोत्तरी होती है।”
Oxford Dictionary के अनुसार, “आम प्रयोग में विकास का अर्थ है भूमिका प्रकटन, किसी वस्तु का अधिक-से-अधिक ज्ञान तथा जीवन का विकास।”

प्रश्न 16.
तकनीकी कारक की वजह से आए दो परिवर्तन।
उत्तर-
1. शहरीकरण-उद्योगों के विकास होने के साथ दूर-दूर स्थानों पर रहने वाले लोग रोज़गार को प्राप्त करने के लिए औद्योगिक स्थानों पर इकट्ठे होते हैं। बाद में वह वहीं जाकर रहना शुरू कर देते हैं। इस तरह शहरों का विकास होता जाता है।

2. कृषि के नए तरीकों का विकास-नए आविष्कारों की वजह से कृषि में नए तरीकों का निर्माण हुआ तथा इससे कृषि के उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हुई। लोगों के जीवन में भी सुधार हुआ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 17.
तकनीक तथा शहरीकरण।
उत्तर-
तकनीक की वजह से बड़े-बड़े उद्योग शुरू हो गए तथा देश का औद्योगीकरण हो गया है। औद्योगीकरण के कारण बड़े-बड़े शहर उन उद्योगों के आसपास बस गए। शुरू में गांवों से कारखानों में काम करने के लिए आने वाले मजदूरों के लिए उद्योगों के आसपास बस्तियां बस गईं। फिर उन बस्तियों में जीवन जीने के लिए चीजें देने के लिए दुकानें तथा बाज़ार खुल गए। फिर लोगों के लिए होटल, स्कूल, व्यापारिक कम्पनियां खुल गईं तथा दफ़्तर बन गए। इस तरह धीरे-धीरे इनकी वजह से शहरों का विकास हुआ तथा शहरीकरण बढ़ गया। इस तरह शहरीकरण को बढ़ाने में तकनीक का सबसे बड़ा हाथ है।

प्रश्न 18.
तकनीक का औरतों की दशा में परिवर्तन पर प्रभाव।
उत्तर-
तकनीक ने औरतों की दशा सुधारने में काफ़ी बड़ा योगदान डाला है। तकनीक के बढ़ने के कारण विद्या का प्रसार हुआ तथा औरतों ने शिक्षा लेनी शुरू कर दी। शिक्षा लेकर वह आर्थिक क्षेत्र में मर्दो से कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है। वह दफ्तरों, फैक्टरियों में जाकर काम कर रही है तथा पैसे कमा रही है। मशीनों के बढ़ने की वजह से औरतों के ऊपर परिवार के कार्य करने का बोझ काफ़ी कम हो गया है। आजकल प्रत्येक कार्य के लिए मशीनों का प्रयोग हो रहा है जैसे कपड़े धोने, सफ़ाई करने, बर्तन धोने इत्यादि। इससे औरतों का कार्य काफ़ी कम हो गया है। यह सब तकनीक की वजह से मुमकिन हुआ है।

प्रश्न 19.
तकनीक का विवाह पर प्रभाव।
उत्तर-
पुराने समय में विवाह एक धार्मिक संस्कार होता था परन्तु तकनीक के बढ़ने की वजह से आधुनिक समाज आगे आए जहां विवाह एक धार्मिक संस्कार रहकर एक सामाजिक समझौता माना जाने लग गया। विवाह का आधार समझौता होता है तथा समझौता न होने की सूरत में विवाह टूट भी जाता है। अब विवाह के चुनाव का क्षेत्र काफ़ी बढ़ गया है। व्यक्ति अपनी इच्छा से किसी भी जाति में विवाह करवा सकता है। यदि पति पत्नी के विचार नहीं मिलते तो वह अलग भी हो सकते हैं। औरतें आर्थिक क्षेत्र में भी आगे आ गई हैं तथा अपने आपको मर्दो से कम नहीं समझती हैं। वह अब मर्दो पर बिल्कुल भी निर्भर नहीं है तथा यह सब कुछ तकनीक की वजह से हुआ है।

प्रश्न 20.
जनसंख्यात्मक कारक के दो प्रभाव।
उत्तर-
(i) आर्थिक हालातों पर प्रभाव (Effect on EconomicLife)-जनसंख्यात्मक कारक का उत्पादन के तरीकों, जायदाद की मलकीयत, आर्थिक प्रगति के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है। जैसे जनसंख्या के बढ़ने के कारण कृषि के उत्पादन को बढ़ाना ज़रूरी हो जाता है।

(ii) सामाजिक जीवन पर प्रभाव (Effect on Social Life)-बढ़ रही जनसंख्या, बेरोज़गारी, भूखमरी की स्थिति पैदा करती है जिससे समाज में अशान्ति, भ्रष्टाचार बढ़ता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 21.
शिक्षात्मक कारक।
उत्तर-शिक्षा के द्वारा व्यक्ति का समाजीकरण भी होता है तथा उसके विचारों, आदर्शों, कीमतों इत्यादि के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है। मनुष्य की प्रगति भी शिक्षा के ऊपर ही आधारित होती है। यह व्यक्ति को वहमों, भ्रमों, अज्ञानता से छुटकारा दिलाता है। व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष में परिवर्तन लाने में शिक्षात्मक कारक महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 22.
शिक्षात्मक कारक के दो प्रभाव।
उत्तर-
1. जाति प्रथा पर प्रभाव-अनपढ़ता व्यक्ति को गतिहीन बना देती है तथा व्यक्ति भ्रमों, परम्पराओं में फंसे रहते हैं। आधुनिक शिक्षा के द्वारा जाति प्रथा को काफ़ी कमजोर कर दिया गया है। यह शिक्षा धर्म निरपेक्ष होती है। इसके द्वारा आज़ादी, समानता, भाईचारा इत्यादि जैसी कीमतों पर जोर दिया जाता है।

2. औरतों की स्थिति पर प्रभाव-शिक्षात्मक कारकों के द्वारा औरतों की दशा में काफी सुधार हुआ है। वह घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर अपने अधिकारों तथा फों के प्रति जागरूक हुई है। आर्थिक रूप से वह स्वैः निर्भर हो गई है।

प्रश्न 23.
शिक्षा का शाब्दिक अर्थ।
उत्तर-
शिक्षा अंग्रेज़ी के शब्द Education का हिन्दी रूपान्तर है। Education लातिनी भाषा के शब्द Educere से निकला है जिसका अर्थ होता है to bring up : शिक्षा का अर्थ व्यक्ति को सिर्फ किताबी ज्ञान देने से ही सम्बन्धित नहीं बल्कि व्यक्ति में अच्छी आदतों का निर्माण करके उस को भविष्य के लिए तैयार करना भी होता है। ऐंडरसन के अनुसार, “शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है जिस के द्वारा व्यक्ति उन चीज़ों की सिखलाई प्राप्त करता है जो उसको ज़िन्दगी जीने के लिए तैयार करती है।”

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 24.
शिक्षा का परिवार पर प्रभाव।
उत्तर-
शैक्षिक कारक का परिवार पर गहरा प्रभाव पड़ा है। शिक्षा में प्रगति से लोगों में जागृति आयी है तथा उन्होंने नई कीमतों के अनुसार रहना शुरू कर दिया। अब वह अपनी इच्छा तथा योग्यता के अनुसार अलग-अलग कार्य करने लग गए जिससे संयुक्त परिवारों की जगह केन्द्रीय परिवार अस्तित्व में आए। अब व्यक्ति गांवों से निकल कर शहरों में नौकरी करने के लिए जाने लग गए। लोग अब व्यक्तिवादी तथा पदार्थवादी हो गए हैं। बच्चों ने रस्मी शिक्षा लेनी शुरू कर दी जिस वजह से उन्होंने स्कूल, कॉलेज इत्यादि में जाना शुरू कर दिया। अब शिक्षा की वजह से ही छोटे परिवार को ठीक माना जाने लग गया है। अब बच्चे के समाजीकरण में शिक्षा का काफ़ी प्रभाव है क्योंकि बच्चा अपने जीवन का आरम्भिक समय शैक्षिक संस्थाओं में बिताता है। …

प्रश्न 25.
शैक्षिक कारकों का जाति प्रथा पर प्रभाव।
उत्तर-
पुराने समय में शिक्षा सिर्फ उच्च जाति के लोगों तक ही सीमित थी परन्तु अंग्रेज़ी शिक्षा के आने से अब प्रत्येक जाति का व्यक्ति शिक्षा ले सकता है। पश्चिमी शिक्षा को महत्त्व दिया गया है जिस वजह से शिक्षा धर्म निरपेक्ष हो गई है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली ने समानता, स्वतन्त्रता तथा भाईचारे वाली कीमतों पर जोर दिया है। शिक्षा की वजह से ही सभी व्यक्ति स्कूल में पढ़ने लग गए जिससे अस्पृश्यता का भेदभाव खत्म हो गया है। अब व्यक्ति अपनी शिक्षा तथा योग्यता के अनुसार कोई भी कार्य कर करता है। शिक्षा प्राप्त करके व्यक्ति अपने परिश्रम से समाज में कोई भी स्थिति प्राप्त कर सकता है। अन्तः जाति विवाह भी शिक्षा की वजह से बढ़ गए हैं। हमारे समाज में से जाति प्रथा को खत्म करने में शैक्षिक कार्य महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

प्रश्न 26.
शिक्षा का सामाजिक स्तरीकरण पर प्रभाव।
उत्तर-
शिक्षा सामाजिक स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार है। इसने समाज को दो भागों पढ़े-लिखे तथा अनपढ़ में बांट देता है। व्यक्ति समाज में ऊंची स्थिति प्राप्त करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करता है। जिस तरह की शैक्षिक योग्यता व्यक्ति के पास होती है, वह उसी तरह की समाज में पदवी प्राप्त करता है। इस तरह समाज की जनसंख्या को शिक्षा के आधार पर स्तरीकृत किया जाता है। पढ़े-लिखे व्यक्ति को समाज में आदर प्राप्त होता है। वर्तमान समाज में व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार अपनी मेहनत तथा योग्यता से ऊंचा पद प्राप्त कर सकता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

बड़े उतारों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक उद्विकास के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
सामाजिक उद्विकास सामाजिक परिवर्तन के प्रकारों में से एक है। उदविकास अंग्रेजी भाषा में शब्द EVOLUTION का हिन्दी रूपांतर है जो कि लातिनी भाषा के शब्द Evolvere में से निकला है। उदविकासीय परिवर्तन में न सिर्फ बढ़ोत्तरी होती है बल्कि उस परिवर्तन से संरचनात्मक ज्ञान की भी बढ़ोत्तरी होती है। इस तरह उद्विकास एक ऐसा परिवर्तन होता है जिस में निरन्तर परिवर्तन निश्चित दिशा की तरह पाया जाता है। मैकाइवर तथा पेज (MacIver and Page) का कहना है कि “परिवर्तन में गतिशीलता नहीं होती बल्कि परिवर्तन की एक दिशा होती है तो ऐसे परिवर्तन को विकास में बढ़ोत्तरी कहते हैं।”

मैकाइवर (MacIver) ने एक और स्थान पर लिखा है कि, “जैसे-जैसे व्यक्ति की ज़रूरतें बढती हैं उसी तरह सामाजिक संरचना भी उस के अनुसार बदलती रहती है जिस से इन ज़रूरतों की पूर्ति होती है तथा यह ही उद्विकास का अर्थ होता है।”

हरबर्ट स्पैंसर (Herbert Spencer) के अनुसार, “विकास में बढ़ोत्तरी तत्त्वों का एकीकरण तथा उस से सम्बन्धित वह गति जिस के दौरान कोई तत्त्व एक अनिश्चित तथा असम्बन्धित समानता से निश्चित सम्बन्धित भिन्नता में बदल जाती है।”

इस तरह इन परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि सामाजिक उविकास बाहरी दबाव के कारण नहीं बल्कि आन्तरिक शक्तियों के कारण होने वाले परिवर्तन हैं। अगस्ते काम्ते के अनुसार प्रत्येक समाज उद्विकास के तीन स्तरों में से होकर गुजरता है तथा वह हैं-

  1. धार्मिक स्तर (Theological Stage)
  2. अर्द्धभौतिक स्तर (Metaphysical Stage)
  3. वैज्ञानिक स्तर (Scientific Stage)

मार्गन का कहना था कि, “सभ्यता तथा समाज का विकास एक क्रम में हुआ है। सामाजिक उद्विकास को समझने के लिए हमें सामाजिक संस्थाओं, संगठनों के विभिन्न विकास में बढ़ोत्तरी के स्तरों को जानना ज़रूरी होता

हरबर्ट स्पैंसर (Spencer) के अनुसार, “सामाजिक जनसमूह की आम बढ़ोत्तरी तथा उसको मिलाने तथा दोबारा मिलाने की मदद से एकीकरण को प्रदर्शित करता है। समाज जाति का गैर जातियों में परिवर्तन, आम जनजातियों से लेकर पढ़े-लिखे राष्ट्रों जिन में सभी अंगों में काफ़ी प्रक्रियात्मक विभिन्नता है, को कई उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है। जैसे-जैसे विभेदीकरण तथा एकीकरण बढ़ते जाते हैं उसी तरह सामाजिक इकट्ठ अस्पष्ट होता है। उद्विकास निश्चित व्यवस्था को जन्म देता है जो धीरे-धीरे स्पष्ट होता है। प्रथाओं की जगह कानून ले लेते हैं जो स्थिरता प्राप्ति के कार्यों तथा संस्थाओं में लागू किए जाने पर ज्यादा विशिष्ट हो जाते हैं। सामाजिक इकट्ठ धीरेधीरे अपने विभिन्न अंगों की संरचना को एक-दूसरे से ज्यादा स्पष्ट रूप में अलग कर लेते हैं। बड़ा विशाल आकार निश्चितता की तरफ तरक्की होती है।”

स्पैंसर ने उद्विकास के चार निम्नलिखित नियम बताए हैं-

  • सामाजिक उद्विकास ब्रह्माण्ड (Universe) के विकास के नियम का एक सांस्कृतिक तथा मानवीय रूप होता है।
  • सामाजिक उद्विकास उसी तरह ही घटित होता है जैसे संसार की ओर बढोत्तरियां। (3) सामाजिक उद्विकास की प्रक्रिया बहुत ही धीमी होती है। (4) सामाजिक उद्विकास उन्नति वाला होता है।

मैकाइवर का कहना है कि, “जहां कहीं भी समाज के इतिहास में समाज के अंगों में बढ़ते हुए विशेषीकरण को देखते हैं उसे हम सामाजिक उद्विकास कहते हैं।”
(“Where ever in the history of society, we can see increasing specialization in different parts of society, we call it social evolution.”) ।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि आन्तरिक छुपी हुई वस्तुओं के द्वारा पाया गया परिवर्तन उद्विकास होता है।

विशेषताएं (Characteristics) –
1. उद्विकास का सम्बन्ध जीवित वस्तु या मनुष्यों में होने वाले परिवर्तन से होता है। स्पैंसर ने इसे जैविक उद्विकास कहा है। यह विकास सभी समाजों में समान रूप से विकसित रहता है। उदाहरणतः अमीबा (Amoeba) एक जीव है जिस के शरीर के सभी कार्य केवल सैल (cell) द्वारा पूरे किए जाते हैं। मनुष्य का शरीर जीव का ज्यादा विकसित रूप होता है जिसके विभिन्न कार्य विभिन्न अंगों द्वारा पूर्ण किए जाते हैं। जैविक विकास में जैसे जैसे बढ़ोत्तरी होती है, उसी तरह उस की प्रकृति भी जटिल होती जाती है।

2. सामाजिक उद्विकास निरंतर पाया जाने वाला परिवर्तन होता है। यह परिवर्तन लगातार चलता रहता है।

3. निरन्तरता के साथ सामाजिक उद्विकासीय परिवर्तन में निश्चित दिशा भी पायी जाती है क्योंकि यह केवल आकार में ही नहीं बल्कि संरचना में भी पाया जाता है। यह विकास निश्चित दिशा की तरफ इशारा करता है।

4. सामाजिक उद्विकास के ऊपर किसी प्रकार का बाहरी दबाव नहीं होता है बल्कि इस के अन्दरूनी गुण बाहर निकल आते हैं। परिवर्तन वस्तु में कई तत्त्व मौजूद होते हैं। इसलिए परिवर्तन इन के परिणामस्वरूप पाया जाता

5. अन्दर मौजूद तत्त्वों के द्वारा होने वाला परिवर्तन हमेशा बहुत ही धीमी गति से होता है। इस का कारण यह है कि अन्दर छूपे हुए तत्त्वों का हमें आसानी से पता नहीं लग सकता। प्रत्येक परिवर्तनशील वस्तु में आन्तरिक गुण मौजूद होते हैं।

6. उदविकासीय परिवर्तन साधारणत: से जटिलता की तरफ पाया जाता है। जैसे शुरू में मनुष्यों का समाज सरल था, धीरे-धीरे श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण विकसित हुआ जिस ने मनुष्यों के समाज को जटिल अवस्था की तरफ परिवर्तित कर दिया।

इस तरह हम कह सकते हैं कि सामाजिक उद्विकास अस्पष्टता से स्पष्टता की तरफ परिवर्तन होता है। जैसे मनुष्यों के अंगों में परिवर्तन कुछ समय बाद स्पष्ट रूप से दिखाई देने लग जाता है। परिवर्तन की इस प्रकार की दिशा निश्चित होती है। यह वस्तु में पाए जाने वाले आन्तरिक तत्त्वों के कारण होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 2.
क्रान्ति की परिभाषाएं दें। इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
क्रान्ति भी सामाजिक परिवर्तन की ही एक प्रकार है। इसके द्वारा समाज में इस तरह परिवर्तन होता है कि जिसका प्रभाव वर्तमान समय पर तो पड़ता है परन्तु भविष्य तक भी इसका प्रभाव रहता है। वास्तव में समाज में कई बार ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं जिसके द्वारा समाज विघटन के रास्ते पर चल पड़ता है। ऐसे हालातों को खत्म करने के लिए समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन पैदा हो जाते हैं। यह क्रान्तिकारी परिवर्तन अचानक तथा एकदम होता है। इसके ऊपर बाहरी शक्तियों का भी प्रभाव पड़ता है।

क्रान्ति के द्वारा अचानक ही परिवर्तन हो जाता है जिससे समाज की संरचना ही बदल जाती है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री कार्ल मार्क्स के अनुसार समाज अलग-अलग अवस्थाओं में से क्रान्तिकारी परिवर्तन की प्रक्रिया के परिणामों में से होकर गुजरता है। इस कारण एक सामाजिक अवस्था की जगह दूसरी सामाजिक अवस्था पैदा हो जाती है।

परिभाषाएं (Definitions)-

  • आगबर्न तथा निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) के अनुसार, “क्रान्ति संस्कृति में महत्त्वपूर्ण तथा तेज़ परिवर्तन को कहते हैं।”
  • गाए रोशर (Guy Rochar) के अनुसार, “क्रान्ति एक खतरनाक तथा ज़बरदस्त लोगों की बगावत होती है जिसका उद्देश्य सत्ता या शासन को उखाड़ देना तथा स्थिति विशेष में परिवर्तन करना होता है।”
  • किम्बल यंग (Kimball Young) के अनुसार, “राज्य शक्ति का राष्ट्रीय राज्य के अधीन नए ढंगों से सत्ता हथिया लेना ही क्रान्ति है।”

इस तरह इन परिभाषाओं को देखकर हम कह सकते हैं कि क्रान्ति सामाजिक संरचना में होने वाली अचनचेत प्रक्रिया तथा तेजी से होने वाला परिवर्तन है। इसमें वर्तमान सत्ता को उखाड़ कर फेंक दिया जाता है तथा नई सत्ता को बिठाया जाता है। क्रान्ति खून-खराबे वाली भी हो सकती है तथा इसमें हिंसा का प्रयोग ज़रूरी है। जो शक्ति हिंसा से प्राप्त की जाती है वह कई बार हिंसा से खत्म भी हो जाती है।

क्रान्ति की विशेषताएं (Characteristics of Revolution) –
1. अचानक परिणाम (Contingency Results)-क्रान्ति एक ऐसा साधन हैं जिसमें हिंसा का प्रयोग किया जाता है। यह किसी भी स्वरूप चाहे वह धार्मिक आर्थिक या राजनीतिक को धारण कर सकती है। इस क्रान्ति का परिणाम यह निकलता है कि सामाजिक व्यवस्था तथा संरचना में एकदम परिवर्तन आ जाता है। इस कारण सामाजिक क्रान्ति सामाजिक कद्रों-कीमतों में परिवर्तन करने का प्रमुख साधन है।

2. तेज़ परिवर्तन (Rapid Change)-क्रान्ति की एक विशेषता यह होती है कि इसके परिणामस्वरूप संस्कृति में दोनों हिस्सों, चाहे वह भौतिक हो या अभौतिक में परिवर्तन आ जाता है तथा क्रान्ति के कारण जो भी परिवर्तन होते हैं वह बहुत ही तेज़ गति से होते हैं। इस कारण समाज पूरी तरह बदल जाता है।

3. आविष्कार का साधन (Means of invention)-क्रान्ति एक ऐसा साधन है जिससे सामाजिक व्यवस्था को तोड़ दिया जाता है। इस सामाजिक व्यवस्था के टूटने के कारण बहुत-से नए वर्ग अस्तित्व में आ जाते हैं। इन नए वर्गों के अस्तित्व को कायम रखने के लिए बहुत-से नए नियम बनाए जाते हैं। इस तरह क्रान्ति के कारण बहुत-से नए वर्ग तथा नियम अस्तित्व में आ जाते हैं।

4. शक्ति का प्रतीक (Symbol of power)-क्रान्ति में शक्ति का प्रयोग ज़रूरी तौर पर होता है। राजनीतिक क्रान्ति तो खून-खराबे तथा कत्लेआम पर आधारित होती है जैसे कि 1789 की फ्रांस की क्रान्ति तथा 1917 की रूसी क्रान्ति। राज्य की सत्ता को पलटने के लिए हिंसा को साधन बनाया जाता है जिस कारण लूट-मार, कत्लेआम इत्यादि होते हैं। क्रान्ति के सफल या असफल होने में शक्ति का सबसे बड़ा हाथ होता है। यदि क्रान्ति करने वालों की शक्ति ज़्यादा होगी तो वह राज्य की सत्ता को पलट देंगे नहीं तो राज्य उनकी क्रान्ति को असफल कर देगा।

5. क्रान्ति एक चेतन प्रक्रिया है (Revolution is a conscious process)-क्रान्ति एक अचेतन नहीं बल्कि चेतन प्रक्रिया है। इसमें चेतन तौर पर प्रयास होते हैं तथा राज्य की सत्ता को पलटा जाता है। क्रान्ति के प्रयास काफ़ी समय से शुरू हो जाते हैं तथा वह पूरे वेग से क्रान्ति कर देते हैं। क्रान्तिकारियों को इस बात का पता होता है कि उनकी क्रान्ति के क्या परिणाम होंगे।

6. क्रान्ति सामाजिक असन्तोष के कारण होती है (Revolution is because of Social dissatisfaction)-क्रान्ति सामाजिक असन्तोष का परिणाम होती है। जब समाज में असन्तोष शुरू होता है तो शुरू में यह धीरे-धीरे उबलता है। समय के साथ-साथ यह तेज़ हो जाता है तथा जब यह असन्तोष बेकाबू हो जाता है तो यह क्रान्ति का रूप धारण कर लेता है। समाज का बड़ा हिस्सा वर्तमान सत्ता के विरुद्ध हो जाता है तथा यह असन्तोष क्रान्ति का रूप धारण करके सत्ता को उखाड़ देता है।

7. नई व्यवस्था की स्थापना (Establishment of new system) क्रान्ति में हिंसक या अहिंसक तरीके से पुरानी व्यवस्था को उखाड़ कर फेंक दिया जाता है तथा नई व्यवस्था को कायम किया जाता है। इसकी हम कई उदाहरणे देख सकते हैं जैसे कि 1799 की फ्रांस की क्रान्ति में लुई 16वें की सत्ता को उखाड़ कर नेशनल असैम्बली की सरकार बनाई गई थी तथा 1917 की रूसो क्रान्ति में ज़ार की सत्ता को उखाड़ कर बोल्शेविक पार्टी की सत्ता स्थापित की गई थी। इस तरह क्रान्ति से पुरानी व्यवस्था खत्म हो जाती है तथा नई व्यवस्था बन जाती है।

8. क्रान्ति की दिशा निश्चित नहीं होती (No definite direction of revolution) क्रान्ति की दिशा निश्चित नहीं होती। उदविकास में परिवर्तन की दिशा निश्चित होती है परन्तु क्रान्ति में परिवर्तन की दिशा निश्चित नहीं होती। यह परिवर्तन उन्नति की जगह पतन की तरफ भी जा सकता है तथा समाज की प्रगति उलट दिशा में भी जा सकती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 3.
क्रान्ति के कारणों का वर्णन करो।
अथवा
क्रान्ति कौन-से कारणों की वजह से आती है ? .
उत्तर-
1. सामाजिक कारण (Social Causes)-बहुत-से सामाजिक कारण क्रान्ति के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। समाजशास्त्रियों के अनुसार यदि समाज में प्रचलित रीति-रिवाज, परम्पराएं इत्यादि ठीक नहीं है तो वह क्रान्ति का कारण बन सकती है। प्रत्येक समाज में कुछ ऐसी प्रथाएं, परम्पराएं प्रचिलत होती हैं जो समाज की एकता तथा अखण्डता के विरुद्ध होती हैं जैसे भारत में 19वीं शताब्दी में सती प्रथा, बाल विवाह, विधवा विवाह न होना तथा 20वीं शताब्दी में दहेज प्रथा इत्यादि। कई बार क्रान्ति का उद्देश्य ही समाज में से इन प्रथाओं को खत्म करना होता है। इस तरह समाज में फैली कुछ प्रथाएं विघटन को उत्पन्न करती हैं। वेश्यावृत्ति जुआ, शराब इत्यादि के कारण व्यक्ति की नैतिकता खत्म हो जाती है। उसको इनके बीच समाज की मान्यताओं, कद्रों-कीमतों, नैतिकता इत्यादि का ध्यान ही नहीं रहता। इस तरह इनसे धीरे-धीरे समाज में विघटन फैल जाता है। जब यह विघटन अपनी सीमाएं पार कर जाता है तो समाज में क्रान्ति आ जाती है। इस तरह बहुत-से सामाजिक कारण होते हैं जिनके कारण समाज में क्रान्ति आ जाती है।

2. मनोवैज्ञानिक कारण (Psychological causes)-कई बार मनोवैज्ञानिक कारण भी क्रान्ति का मुख्य कारण बनते हैं। कई बार व्यक्ति या व्यक्तियों की मौलिक इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती। वह इन इच्छाओं को अपने अन्दर ही खत्म कर लेते हैं परन्तु इच्छा की एक विशेषता होती है कि यह कभी भी ख़त्म नहीं होती। यह व्यक्ति के मन में सुलगती हुई चिंगारी के जैसी सुलगती रहती है। कुछ समय बाद किसी के इस चिंगारी को हवा देने से यह आग की तरह जल पड़ती है तथा आग का रूप धारण कर लेती है। इस तरह यह दबी हुई इच्छाएं क्रान्ति को उत्पन्न करती हैं। । कुछ समाजशास्त्रियों का कहना है कि व्यक्तियों में आवेग इकट्ठे होते रहे हैं अर्थात् व्यक्ति की सभी इच्छाएं कभी भी सम्पूर्ण नहीं होती हैं। वे व्यक्ति के मन में इकट्ठी होती रहती हैं। समय के साथ ये आवेग बन जाती हैं। अंत में ये आवेग इकट्ठे हो कर क्रान्ति का कारण बनते हैं।

इनके अतिरिक्त व्यक्तियों के अन्दर कुछ दोष, कुछ समस्याएं अचेतन रूप में पैदा हो जाती हैं तथा समय आने पर यह दोष अपना प्रभाव दिखाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति में हिंसा की प्रवृत्ति होती है जो अचेतन रूप में ही व्यक्ति के मन के अन्दर पनपती रहती है। जब समय आता है तो यह हिंसा धमाके के साथ व्यक्ति में से निकलती है। जब क्रान्ति होती है तो लोग हिंसा पर उतर आते हैं। इस तरह व्यक्ति के अचेतन मन में भी क्रान्ति के कारण पैदा हो सकते हैं।

3. राजनीतिक कारण (Political Causes)-यदि हम इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलेगा कि साधारणतः सभी ही क्रान्तियों के कारण राजनीतिक रहे हैं तथा विशेषकर यह कारण वर्तमान राज्य की सत्ता के विरुद्ध होते हैं। बहुत बार राज्य की सत्ता इतनी ज्यादा निरंकुश हो जाती है कि अपनी मनमर्जी करने लग जाती है। वह लोगों की इच्छाओं का ध्यान भी नहीं रखती। आम जनता की इच्छाओं को दबा दिया जाता है। इच्छाओं के दबने के कारण जनता में असन्तोष फैल जाता है। धीरे-धीरे यह असन्तोष सम्पूर्ण समाज में फैल जाता है तथा यही असन्तोष समय आने से क्रान्ति बन जाता है।

इस तरह बहुत बार ऐसा होता है कि सरकारी अधिकारियों में भ्रष्टाचार फैल जाता है। वह अपने पद का फायदा अपनी जेबों को भरने में लगाते हैं तथा आम जनता की तकलीफों की तरफ कोई ध्यान नहीं देते हैं। आम जनता में उन सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध असन्तोष फैल जाता है तथा वह इन अधिकारियों को उनके पदों से उतारने की कोशिश करते हैं तथा यह प्रयास क्रान्ति का रूप धारण कर लेते हैं।

कई देशों में सरकार किसी विशेष धर्म पर आधारित होती है तथा उस धर्म के लोगों को विशेषाधिकार देती है। कई बार इस कारण और धर्मों के लोगों में असन्तोष पैदा हो जाता है जिस कारण लोग ऐसी सरकार से मुक्ति प्राप्त करने के बारे में सोचने लग जाते हैं। उन का यह सोचना ही क्रान्ति का रूप धारण कर लेता है। इसके साथ ही यदि सरकार आम जनता के रीति-रिवाजों, परम्पराओं में दखल देने लग जाए तो लोग अपनी परम्पराओं को बचाने की खातिर सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर देते हैं। 1857 का विद्रोह इन्हीं कुछ कारणों पर आधारित था।

आजकल के समाज में लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र में एक दल सत्ता में होता है तथा दूसरा सत्ता से बाहर। जो दल सत्ता से बाहर होता है वह आम जनता को सत्ताधारी दल के विरुद्ध भड़काता है तथा कई बार यह भड़काना ही क्रान्ति का रूप धारण कर लेता है।

4. आर्थिक कारण (Economic Causes)-कई बार आर्थिक कारण भी क्रान्ति के लिए ज़िम्मेदार होते हैं। मार्क्सवादी विचारधारा के अनुसार मनुष्यों के समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है। मार्क्स के अनुसार हरेक समाज में दो वर्ग रहे हैं-पूँजीवादी वर्ग अर्थात् शोषक वर्ग तथा मजदूर वर्ग अर्थात् शोषित वर्ग। पूँजीपति वर्ग अपने पैसे तथा राजनीतिक सत्ता के बल पर हमेशा मजदूर वर्ग का शोषण करता आया है। इस शोषण के कारण मज़दूर वर्ग को दो समय का खाना भी मुश्किल से मिल पाता है। मज़दूरों तथा पूंजीपतियों में बहुत ज़्यादा आर्थिक अन्तर आ जाता है। शोषक अर्थात् पूँजीपति वर्ग ऐशो ईशरत का जीवन व्यतीत करता है तथा मजदूर वर्ग को मुश्किल से रोटी ही मिल पाती है। वह इस जीवन से छुटकारा पाना चाहता है। इस कारण धीरे-धीरे मज़दूर वर्ग में असन्तोष फैल जाता है जिस कारण वह क्रान्ति कर देते हैं तथा पूँजीपति वर्ग को उखाड़ देते हैं। इस तरह आर्थिक कारण भी लोगों को क्रान्ति के लिए मजबूर करते हैं।

इस तरह हम देखते हैं कि क्रान्ति एकदम होने वाली प्रक्रिया है जिससे समाज की संरचना तथा व्यवस्था एकदम ही बदल जाते हैं। क्रान्ति सिर्फ एक कारण के कारण नहीं होती बल्कि बहत-से कारणों की वजह से होती है। साधारणतः राजनीतिक कारण ही क्रान्ति के लिए ज़िम्मेदार होते हैं परन्तु और कारणों का भी इसमें महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 4.
सामाजिक विकास क्या होता है ? विस्तार सहित लिखो।
उत्तर-
सामाजिक परिवर्तन के अनेक रूप होते हैं। जैसे क्रम-विकास, प्रगति, क्रान्ति, विकास आदि। इस प्रकार विकास भी परिवर्तन के अनेकों रूपों में से एक है। ये सभी प्रक्रियाएं आपस में इतनी जुड़ी होती हैं कि इन्हें अलग करना बहुत कठिन है।

आजकल के समय में विकास शब्द को आर्थिक विकास के लिए उपयोग किया जाता है। व्यक्ति की आमदनी में बढ़ोत्तरी, पूंजी में बढ़ोत्तरी, प्राकृतिक साधनों का उपयोग, उत्पादन में बढ़ोत्तरी, उद्योग में बढ़ोत्तरी आदि कुछ ऐसे संकल्प हैं, जिनके बढ़ने को पूरे विकास के लिए उपयोग किया जाता है। परन्तु केवल इन संकल्पों में अधिकता को ही हम विकास नहीं कह सकते। समाज में परम्पराएं, संस्थाएं, धर्म, संस्कृति इत्यादि भी होते हैं। इनमें भी विकास होता है। यदि सामाजिक सम्बन्धों में विस्तार होता है पुरानी सामाजिक संरचना, आदतें, कद्रों-कीमतों विचारों में भी परिवर्तन आदि में भी विकास होता है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता, समूह की आमदनी, नैतिकता, सहयोग इत्यादि में भी अधिकता होती है। इस तरह आर्थिक विकास को ही सामाजिक विकास माना जाता है व इस आधार पर अलग-अलग आधारों को देखना आसान होता है।

बोटोमोर (Botomore) के अनुसार, “आधुनिक युग में विकास शब्द का उपयोग दो प्रकार के समाजों में अन्तर दर्शाने की नज़र से किया जाता है। एक ओर तो ऐसे औद्योगिक समाज हैं, व दूसरी ओर वह समाज हैं जो पूरी तरह ग्रामीण हैं व जिनकी आय काफ़ी कम है।”

हॉबहाऊस (Hobhouse) के अनुसार, “समुदाय का विकास उस समय माना जाता है, जब किसी वस्तु की । मात्रा, कार्य सामर्थ्य व सेवा की नज़दीकी में अधिकता होती है।”

चाहे इन परिभाषाओं में विकास शब्द के अस्पष्ट अर्थ दिए हैं, परन्तु समाज शास्त्र में विकास ऐसी स्थिति को दर्शाता है जिसमें मनुष्य अपने लगातार बढ़ते ज्ञान तथा तकनीकी कुशलता से प्राकृतिक वातावरण के ऊपर नियन्त्रण करता जाता है तथा सामाजिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ता जाता है। विकास की

विशेषताएं (Characteristics of Development)-
1. विकास एक सर्वव्यापक प्रक्रिया है, जो कि प्रत्येक समाज में व्याप्त है। विकास नाम की प्रक्रिया आधुनिक समाजों में भी चल रही है। आज का आधुनिक समाज, पुरातन काल में होने वाले विकास का ही परिणाम है। पुरातन समाज के विकास के परिणामस्वरूप ही आधुनिक समाज हमारे सामने है। ज़मींदारी समाज से औद्योगिक समाज में आना विकास के कारण ही सम्भव हुआ।

2. विकास में एक वस्तु एक स्थिति से दूसरी स्थिति में परिवर्तित हो जाती है। यह परिवर्तन सही या गलत भी हो सकता है। इसलिए कहते हैं कि मानवीय विकास का सम्बन्ध दिन-प्रतिदिन परिवर्तन करने से एक स्थिति से दूसरी स्थिति की तरफ़ बढ़ना है।

3. विकास में केवल अच्छाई नहीं होती है बल्कि बुराई भी हो सकती है। इस तरह विकास में बुराई एवं अच्छाई दोनों का अस्तित्व होता है।

4. विकास सरलता से जटिलता की तरफ़ बढ़ने की प्रक्रिया है। यदि किसी भी वस्तु का विकास होगा तो वह सरलता से जटिलता की तरफ़ बढ़ेगी। इस प्रकार विकास एक जटिल प्रक्रिया है।

5. विकास में एक बदली हुई रूपरेखा को बनाना पड़ता है। इसमें उन सभी साधनों का ध्यान रखना पड़ता है, जो विकास की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। इसलिए रूप-रेखा के निर्माण के लिए विकास के कार्यक्रम को निर्धारित करना पड़ता है। यदि हम कार्यक्रम को निर्धारित नहीं करेंगे तो विकास उल्टी दिशा की तरफ़ जा सकता है।

6. विकास केवल आर्थिक विकास ही नहीं होता, बल्कि वह प्रत्येक पक्ष चाहे वह सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक पक्ष हो, सभी में होता है।

7. विकास की प्रक्रिया ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक एवं लैंगिक परिवर्तनों की पूरी जानकारी होना आवश्यक है।

8. विकास करने की कोशिशें हमेशा चलती रहती हैं। परन्तु कई बार ऐसा भी होता है, इस प्रक्रिया के कारण समाज के विकास के साथ-साथ व्यक्तियों का अपना विकास यानि आत्मविकास भी हो जाता है।

सामाजिक विकास के मापदण्ड (Measurement of Development) – कई समाज शास्त्रियों ने सामाजिक विकास के कई मापदण्ड दिये हैं, इनका मिला-जुला रूप इस प्रकार का होगा-

  • जब कानून की नज़रों में लोगों की समानता या बराबरी हो तो यह विकास का प्रतीक होता है।
  • जब लोगों को पढ़ाने-लिखाने या अनपढ़ता दूर करने के लिए कोई आन्दोलन चलाया जाये, तो यह सांस्कृतिक विकास का मापदण्ड है।
  • जब देश के सभी बालिगों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हो जाये और देश में लोकतन्त्र की स्थापना हो जाये तो यह विकास का सूचक है।
  • यदि स्त्रियों को समान अधिकार दिये जाएं, और सभी लोगों को समान समझा जाये तो यह सामाजिक विकास का ही सूचक है।
  • जब समाज में धन या पूंजी का समान बंटवारा हो, तो यह आर्थिक विकास का सूचक माना जाता है।
  • जब समूह या समुदाय के प्रत्येक सदस्य को अपने विचार प्रकट करने, और कोई भी कार्य करने का अधिकार प्राप्त हो तो यह सामाजिक स्वतन्त्रता का सूचक है।
  • जब लोगों में सेवा की भावना या सहयोग की भावना बढ़े, तो यह सामाजिक नैतिकता का सूचक है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

प्रश्न 5.
प्रगति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रगति एक तरफ तो भौतिक विकास से सम्बन्धित है तथा दूसरी तरफ ज्ञान के नए विचारों से सम्बन्धित हैं। प्रगति अंग्रेजी भाषा के शब्द Progress का हिन्दी रूपान्तर है जोकि लातिनी भाषा के शब्द Progredior से लिया गया है। इस का अर्थ है आगे बढ़ना। प्रगति शब्द का अर्थ तुलनात्मक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। जब हम यह कहते हैं कि परिवार आगे बढ़ रहा है तो इस बात का अर्थ हमें उस समय पता चलेगा जब हमें यह पता चलेगा कि वह किस दिशा में आगे बढ़ रहा है। यदि वह गरीबी से अमीरी की तरफ बढ़ रहा है तो इस की दिशा से हमें पता चलेगा कि यह परिवार प्रगति कर रहा है। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि यदि हम किसी कि गिरावट देखें तो यह प्रगति नहीं होगी। उदाहरणत: जब एक अमीर व्यक्ति व्यापार में हानि हो जाने से गरीब हो जाता है तो उसे हम प्रगति नहीं कहेंगे। इसका कारण यह है कि प्रगति हमेशा किसी उद्देश्य की प्राप्ति से सम्बन्धित होती है। जब हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं तो हम कहते हैं कि हमने प्रगति की है। इस प्रकार इच्छुक उद्देश्यों को ही प्राप्ति को प्रगति का नाम दिया जाता है जैसे शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति, आर्थिक क्षेत्र में प्रगति इत्यादि।

इस तरह हम कह सकते हैं कि प्रगति परिवर्तन तो ज़रूर होता है परन्तु यह किसी भी दिशा की तरफ नहीं हो सकता। इस का अर्थ यह है कि इसके द्वारा परिवर्तन सिर्फ इच्छुक दिशा की तरफ पाया जाता है। अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने प्रगति की परिभाषाएं दी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(1) ग्रूवज़ तथा मूर (Groves and Moore) के अनुसार, “प्रगति स्वीकृत कीमतों के आधार पर इच्छुक दिशा की तरफ गतिशील होने को कहते हैं।”

(2) आगबर्न तथा निमकॉफ (Ogburm and Nimkoff) के अनुसार, “उन्नति का अर्थ भलाई के लिए होने वाला परिवर्तन है, जिसमें मूल निर्धारण का आवश्यक तत्त्व है।”

(3) पार्क तथा बर्जस (Park and Burges) के अनुसार, “वर्तमान वातावरण में कोई परिवर्तन या अनुकूलन जो किसी व्यक्ति, समूह, संस्था या जीवन के किसी और संगठित स्वरूप के लिए जीवित रहना ज्यादा आसान कर दे, प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है।” ___ इस तरह इन विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि प्रगति इच्छुक या स्वीकृत दिशा में पाया जाने वाला परिवर्तन होता है। इस परिवर्तन के बारे में हम पहले से ही अनुमान लगा सकते हैं।

प्रगति की विशेषताएं (Characteristics of Progress) –

1. प्रगति ऐच्छिक परिवर्तन होता है (Progress is desired change)-प्रगति ऐच्छिक परिवर्तन होता है क्योंकि हम जब चाहते हैं तो ही परिवर्तन लाया जा सकता है। इस परिवर्तन से समाज की भी प्रगति होती है। प्रगति में हमारा ऐच्छिक उद्देश्य कुछ भी हो सकता है तथा प्रगति द्वारा पाया गया परिवर्तन हमेशा लाभदायक होता है। वास्तव में हम कभी भी अपनी हानि करना नहीं चाहेंगे। इसलिए यह परिवर्तन समाज कल्याण के लिए होता है।

2. प्रगति तुलनात्मक होती है (Progress is comparative)—प्रत्येक समाज में प्रगति का अर्थ विभिन्नता वाला होता है। यदि एक समाज में हुई प्रगति से समाज का लाभ होता है तो यह आवश्यक नहीं है कि किसी दूसरे समाज को भी उसी तरह का ही लाभ प्राप्त होगा। वास्तव में प्रत्येक समाज के ऐच्छिक उद्देश्य अलग-अलग होते हैं क्योंकि प्रत्येक समाज की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं। पहाड़ी इलाके के लोगों की आवश्यकताएं मैदानी इलाके की ज़रूरतों से अलग होती हैं। इस कारण इन के उद्देश्यों में भी भिन्नता पाई जाती है। इस तरह प्रगति का अर्थ तुलनात्मक अर्थों में प्रयोग किया जाता है। विभिन्न ऐतिहासिक कालों, स्थानों तथा इसको विभिन्न अर्थों में परिभाषित किया जाता है।

3. प्रगति परिवर्तनशील होती है (Progress is changeable)-प्रगति हमेशा अलग-अलग देशों तथा कालों से सम्बन्धित होती है परन्तु इस की धारणा हमेशा एक-सी ही नहीं रहती। इसका कारण यह है कि जिसको हम आजकल प्रगति का संकेत समझते हैं उसको दूसरे देशों में गिरावट का संकेत समझते हैं। इसका अर्थ यह है कि प्रगति हमेशा एक-सी ही नहीं रहती। यह समय, काल, देश, हालात इत्यादि के अनुसार बदलती रहती है। हो सकता है कि जो चीज़ पर प्राचीन समय में प्रगति का संकेत समझी जाती हो उसका आजकल कोई महत्त्व ही न हो। इस तरह प्रगति हमेशा परिवर्तनशील होती है तथा बदलती रहती है।

4. प्रगति सामूहिक होती है (Progress is concerned with group)-प्रगति कभी भी व्यक्तिगत नहीं होती। यदि समाज में कुछ व्यक्ति ऐच्छिक लक्ष्यों की प्राप्ति करते हैं तो ऐसी प्रक्रिया को प्रगति नहीं कहते। असल में प्रगति ऐसी धारणा है जिसमें बहुसंख्या में व्यक्ति के जीवन में पाया जाने वाला परिवर्तन प्रगति नहीं होता। इस तरह समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से जब सम्पूर्ण समूह किसी भी ऐच्छिक दिशा की तरफ आगे बढ़ता है तो उसे प्रगति कहते हैं।

5. प्रगति में लाभ की प्राप्ति ज्यादा होती है (More advantages are there in progress)-प्रगति में चाहे हम फायदा या हानि दोनों को ही देख सकते हैं परन्तु इसमें ज्यादातर लाभ की प्राप्ति होती है। यदि नुकसान की मात्रा अधिक हो तो उस को हम प्रगति नहीं कहते। उदाहरणत: जब हम सती प्रथा की बुराई को समाज में से खत्म करना चाहते थे तो हमें नुकसान उठाना पड़ा क्योंकि लोग इस प्रथा को खत्म नहीं करना चाहते थे। परन्तु सरकार ने ज़ोर लगाकर लोगों के आन्दोलन का मुकाबला करके इस बुराई को खत्म करने की पूरी कोशिश की। सरकार ने यह मुकाबला सामाजिक प्रगति को प्राप्त करने के लिए ही किया।

6. प्रगति में चेतन प्रयास होते हैं (Conscious efforts are there in progress)-प्रगति अपने आप नहीं पायी जाती बल्कि व्यक्ति प्रगति प्राप्त करने के लिए चेतन अवस्था में प्रयास करता है। इस कारण वह निर्धारित उद्देश्यों की पूर्ति कर लेता है। जैसे भारत में जनसंख्या की दर को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि देश प्रगति कर सके। यह सभी प्रयास चेतन अवस्था में ही किए जा रहे हैं। इनमें निर्धारित लक्ष्य होता है। उनको प्राप्त करने के लिए हम प्रत्येक तरह से प्रयास करते हैं। प्रगति की सफलता परिश्रम के ऊपर निर्भर करती है। इसमें कोई आन्तरिक गुण नहीं होते। जब हम परिश्रम करके सफलता प्राप्त कर लेते हैं तो हम कह सकते हैं कि प्रगति हुई है।

प्रगति में सहायक दशाएं (Conditions Conducive to Social Progress) –

बोगार्डस ने प्रगति के निम्नलिखित आधार बताए हैं-

  1. स्वस्थ वातावरण का बढ़ना।
  2. ज्यादा से ज्यादा लोगों का मानसिक तथा शारीरिक अरोग्य होना।
  3. सामूहिक कल्याण के लिए प्राकृतिक साधनों का ज्यादा प्रयोग।
  4. मनोरंजन तथा सेहत के साधनों में बढ़ोत्तरी।
  5. पारिवारिक इकट्ठ की मात्रा में बढ़ोत्तरी।
  6. रचनात्मक कार्यों में लगे व्यक्तियों को ज्यादा सुविधाएं।
  7. व्यापार तथा उद्योग में बढोत्तरी।
  8. सरकारी जीवन में बढ़ोत्तरी।
  9. ज्यादातर व्यक्तियों के जीवन स्तर में उन्नति।
  10. विभिन्न कलाओं का प्रसार।
  11. पेशेवर शिक्षा का प्रसार।
  12. जीवन के आध्यात्मिक पक्ष का विकास।

प्रत्येक परिवर्तन को हम प्रगति नहीं कह सकते। केवल विशेष दिशा में होने वाला परिवर्तन ही प्रगति होता है। वास्तव में प्रगति में सहायक दशाओं में भी परिवर्तन आते रहते हैं क्योंकि प्रत्येक समाज की समस्याएं समय के साथ-साथ बदलती रहती हैं। जैसे जब एक आदमी तथा औरत का विवाह होता है तो उनकी इच्छाएं सीमित होती हैं तथा वह उनको प्राप्त करने में व्यस्त हो जाते हैं। जब बच्चे पैदा हो जाते हैं तो वह नई समस्याओं का सामना करने को जुट जाते हैं। इस तरह प्रगति की सहायक दशाएं निश्चित नहीं होतीं। कुछ एक सहायक दशाओं का वर्णन निम्नलिखित है-

1. प्रगति के लिए समाज के सभी सदस्यों को समान मौके प्राप्त होने चाहिएं। यदि हम समाज के सदस्यों के साथ किसी भी आधार पर भेदभाव करेंगे तो प्रगति की जगह समाज में संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है।

2. प्रगति के लिए जनसंख्या भी सीमित होनी चाहिए क्योंकि ज्यादा जनसंख्या के साथ जितनी मर्जी कोशिश की जाए तो भी हम उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफलता हासिल नहीं कर सकते।

3. सामाजिक प्रगति के लिए शिक्षा का प्रसार भी सहायक होता है क्योंकि यदि समाज में साक्षर लोगों की संख्या ज्यादा होगी तो वह प्रगति को जल्दी अपनाएंगे। इसलिए शिक्षा के प्रसार को बढ़ाना ज़रूरी होता है।

4. स्वस्थ व्यक्तियों का होना भी प्रगति के लिए सहायक होता है क्योंकि अगर व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक पक्ष से स्वस्थ होंगे तो चेतन प्रयत्नों के साथ वह समाज के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पूरा जोर लगाएंगे। स्वस्थ व्यक्तियों के लिए उनकी ज़रूरतों का पूरा होना भी ज़रूरी होता है क्योंकि गरीबी, बेरोज़गारी इत्यादि के समय प्रगति करना मुश्किल होता है।

समाज में यदि शान्तमयी वातावरण होगा तो समाज ज्यादा प्रगति करेगा क्योंकि प्रगति के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आएगी। तकनीकी तथा औद्योगिक उन्नति का होना भी प्रगति के लिए जरूरी होता है। व्यक्तियों में आत्म विश्वास भी प्रगति के लिए ज़रूरी होता है। हाबहाऊस ने जनसंख्या, कार्य कुशलता, स्वतन्त्रता तथा आपसी सेवा की भावना को सामाजिक प्रगति का आधार बताया है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 11 सामाजिक परिवर्तन

सामाजिक परिवर्तन PSEB 11th Class Sociology Notes

  • परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इस संसार में कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जिसमें परिवर्तन न आया हो। प्रकृति भी स्वयं में समय-समय पर परिवर्तन लाती रहती है।
  • जब समाज के अलग-अलग भागों में परिवर्तन आए तथा वह परिवर्तन अगर सभी नहीं तो समाज के अधिकतर लोगों के जीवन को प्रभावित करे तो उसे सामाजिक परिवर्तन कहा जाता है। इसका अर्थ है कि समाज के लोगों के जीवन जीने के तरीकों में संरचनात्मक परिवर्तन आ जाता है।
  • सामाजिक परिवर्तन की बहुत सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह सर्वव्यापक प्रक्रिया है, अलग-अलग समाजों में परिवर्तन की गति अलग होती है, यह समुदायक परिवर्तन है, इसके बारे में निश्चित भविष्यवाणी नहीं की जा सकती, यह बहुत सी अन्तक्रियाओं का परिणाम होता है, यह नियोजित भी हो सकता है तथा अनियोजित भी इत्यादि।
  • सामाजिक परिवर्तन में बहुत से प्रकार होते हैं जैसे कि उद्विकास, विकास, प्रगति तथा क्रान्ति। बहुत बार इन शब्दों को एक-दूसरे के लिए प्रयोग कर लिया जाता है परन्तु समाजशास्त्र में यह सभी एक-दूसरे के बहुत ही अलग होते हैं।
  • उद्विकास का अर्थ है आन्तरिक तौर पर क्रमवार परिवर्तन। इस प्रकार का परिवर्तन काफ़ी धीरे-धीरे होता है जिससे सामाजिक संस्थाएं साधारण से जटिल हो जाती हैं।
  • विकास भी सामाजिक परिवर्तन का ही एक पक्ष है। जब किसी वस्तु में परिवर्तन आए तथा वह परिवर्तन ऐच्छिक दिशा में हो तो इसे विकास कहते हैं। अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने विकास के अलग-अलग आधार दिए हैं।
  • प्रगति सामाजिक परिवर्तन का एक अन्य प्रकार है। इसका अर्थ है अपने उद्देश्य की प्राप्ति की तरफ बढ़ना।
    प्रगति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति करने वाले यत्नों को कहते हैं। जो निश्चित है तथा जिसे सामाजिक कीमतों की तरफ से भी सहयोग मिलता है।
  • क्रान्ति सामाजिक परिवर्तन का एक अन्य महत्त्वपूर्ण प्रकार है। क्रान्ति से समाज में अचानक तथा तेज़ गति से परिवर्तन आते हैं जिससे समाज की प्राचीन संरचना खत्म हो जाती है तथा नई संरचना सामने आती है। कई बार मौजूदा संरचना के विरुद्ध जनता में इतना असंतोष बढ़ जाता है कि वह व्यवस्था के विरुद्ध अचानक खड़े हो जाते हैं। इसे क्रान्ति कहते हैं। सन् 1789 में फ्रांस में ऐसा ही परिवर्तन आया था।
  • सामाजिक परिवर्तन की दिशा तथा गति को बहुत से कारक प्रभावित करते हैं जैसे कि प्राकृतिक कारक, विश्वास तथा मूल्य, समाज सुधारक, जनसंख्यात्मक कारक, तकनीकी कारक, शैक्षिक कारक इत्यादि।
  • प्रसार (Diffusion)-वह प्रक्रिया जिससे सांस्कृतिक तत्व एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति तक फैल जाते हैं।
  • आविष्कार (Innovation)-नए विचारों, तकनीक का सामने आना तथा मौजूदा विचारों तथा तकनीकों का बेहतर इस्तेमाल।
  • सामाजिक परिवर्तन (Social Change)—सामाजिक संरचना तथा सामाजिक व्यवस्था के कार्यों में आए परिवर्तन।
  • प्रगति (Progress)—वह परिवर्तन जिससे हम अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ऐच्छिक दिशा की तरफ बढ़ते हैं।

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules.

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. टीम के लिए खिलाड़ियों की गिनती = 12 (4 = 16) (7 + 5)
  2. टीम में खिलाड़ियों की संख्या (कोर्ट में) = 10
  3. गोल रक्षकों की संख्या = 2
  4. एक समय खेल में खिलाड़ी खेलते हैं = 7
  5. गेंद की परिधि = 58 सैं०मी०-60 सैं०मी० पुरुषों के लिए 54 सैं०मी०-56 सैं०मी० महिलाओं के लिए
  6. गेंद का भार पुरुषों के लिए = 425 से 475 ग्राम
  7. गेंद का भार महिलाओं के लिए = 325 से 375 ग्राम
  8. हैंडबाल खेल का समय पुरुषों के लिए = 30-10-30
  9. हैंडबाल खेल का समय महिलाओं = 25-10-25 के लिए
  10. हैंडबाल खेल में अधिकारी = 2 रैफ़री, 1 स्कोरर, 1 टाइम कीपर
  11. गोल पोस्ट के बीच गोल लाइन की चौड़ाई = 8 सैं०मी०
  12. 8 से 14 वर्ष के लड़के और लड़कियों के लिए = 290 से 330 ग्राम बाल का वज़न
  13. 8 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए बल की परिधि = 50 से 52 सैं०मी०
  14. खेल के मैदान की ल. चौ. = 40 मी., 20 मी.
  15. गोल क्षेत्र = 6 मी.
  16. फ्री थ्रो क्षेत्र = 9 मी.
  17. पैनल्टी क्षेत्र = 7 मी.
  18. गोल कीपर बाधा लाइन = 4 मी.
  19. खिलाड़ियों का वैकल्पिक स्थान = केन्द्रीय रेखा से दोनों और 4.5 मी.
  20. मार्किग लाइन की चौ. = 5 सेटीमीटर व गोल लाइन 8 सैंटीमीटर।
  21. गोल पोस्ट की ल. × चौ. = 3 मी. × 2 मी.
  22. अतिरिक्ति समय = 5-1.5 मिंट
  23. बॉल को अधिक से अधिक पकड़ कर रखने का समय = 3 सेंकड
  24. बॉल पकड़ने के उपरांत अधिक्तम कदमों की संख्या = 3 कदम
  25. टाइम आऊट की गिनती = कुल तीन

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

हैंडबाल की संक्षेप रूप-रेख (Brief outline of the Handball)

  1. हैंडबाल का खेल दो टीमों के मध्य खेला जाता है।
  2. हैंडबाल का खेल सैंटर लाइन से दूसरे को पास देकर शुरू होता है।
  3. हैंडबाल का समय पुरुषों के लिए 30-10-30 मिनट का होता है तथा स्त्रियों के लिए 25-10-25 मिनट का होता
  4. एक टीम के कुल खिलाड़ी 12 होते हैं जिनमें से 7 खिलाड़ी खेलते हैं तथा शेष 5 खिलाड़ी बदलवे (Substitutes) होते हैं।
  5. खिलाड़ी को खेल के मध्य किसी समय भी बदला जा सकता है।
  6. हैंडबाल के खेल में दो-दो टाइम आऊट हो सकते हैं। टाइम आऊट का समय एक मिनट का होता है।
  7. यदि किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए तो रैफरी की आज्ञानुसार खेल को रोका जा सकता है तथा आवश्यकतानुसार बदलवां (Substitutes) खिलाड़ी मैदान में आ जाता है।
  8. हैंडबाल के बाल को लेकर दौड़ना फाऊल होता है।
  9. बाल का भार पुरुषों के लिए 475 ग्राम तथा स्त्रियों के लिए 425 ग्राम होता है।
  10. बाल का घेरा 58 से 60 सैंटी मीटर तक होता है।
  11. खेल के समय बाल बाहर चला जाये तो विरोधी टीम को उसी स्थान से थ्रो मिल जाती है।
  12. खेल में धक्का देना फाऊल होता है।
  13. हैंडबाल के खेल में फस्ट रैफ़री तथा सैकिण्ड रैफ़री होता है।
  14. खेल के मैदान की लम्बाई 40 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर होती है।
  15. गोल कीपर बाहर वाली D से बाहर नहीं जा सकता।
  16. हैंडबाल के खेल में दो D होते हैं।
  17. यदि कोई खिलाड़ी बाल लेकर D की ओर जा रहा हो तो विरोधी खिलाड़ी उसकी बाजू पकड ले तो रैफरी पैनल्टी दे देता है।
  18. प्रत्येक खिलाड़ी गोल कीपर बन सकता है।
  19. जो टीम अधिक गोल कर लेती है उसे विजेता घोषित किया जाता है।
  20. रैफ़री खिलाड़ी को दो वार्निंग देकर खेल में से दो मिनट के लिए बाहर निकाल सकता है।
  21. गोल क्षेत्र में गोलकीपर के अतिरिक्त कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
  22. D में से किया गोल बे-नियम होता है।

HAND BALL GROUND
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
3 Goal (Dimension is in cms)
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide हैंडबाल (Hand Ball) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
हैंडबाल खेल के मैदान की लम्बाई तथा चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
हैंडबाल खेल के मैदान की लम्बाई 40 मीटर तथा चौड़ाई 20 मीटर होती है।

प्रश्न 2.
हैंडबाल का गोल क्षेत्र लिखें।
उत्तर-
हैंडबाल का गोल क्षेत्र 6 मी. होता है।

प्रश्न 3.
हैंडबाल का पैनल्टी क्षेत्र लिखें।
उत्तर-
7 मी.

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
हैंडबाल के मैच में पुरुषों के लिए बाल का भार कितना होता है ?
उत्तर-
425 से 475 ग्राम।

प्रश्न 5.
हैंडबाल के मैच में टाइम आऊट की संख्या लिखें।
उत्तर-
कुल तीन।

प्रश्न 6.
हैंडबाल के मैच में कुल कितने अधिकारी होते हैं ?
उत्तर-
रैफरी = 2, स्कोरर = 1, टाइम कीपर =1

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB हैंडबाल (Hand Ball) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
हैंडबाल खेल क्या है ? खेल में कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
हैंडबाल टीम खेल खेल परिचय (Introduction of the Game) हैंडबाल एक टीम खेल है। इसमें एक-दूसरे के विरुद्ध दो टीमें खेलती हैं। एक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 10 कोर्ट खिलाड़ी (Court Players) और दो गोल रक्षक (Goal keepers) होते हैं, परन्तु एक समय में सात से अधिक खिलाड़ी मैदान में नहीं उतरते। इसमें से 6 कोर्ट खिलाड़ी होते हैं और एक गोल रक्षक होता है। शेष 5 खिलाड़ी स्थानापन्न Substitutes होते हैं। एक खिलाड़ी चाहे तो खेल में सम्मिलित हो जाए या किसी समय उसका स्थान स्थानापन्न खिलाड़ियों में से दिया जा सकता है। गोल क्षेत्र में गोल रक्षक के सिवाए कोई भी प्रविष्ट नहीं हो सकता।
रैफ़री के थ्रो ओन (Throw on) के लिए सीटी बजाने के साथ ही खेल कोर्ट के मध्य में से आरम्भ की जाएगी।

प्रत्येक टीम विरोधी टीम के गोल में पैर डालने का प्रयास करती है और अपने गोल को विरोधियों के आक्रमणों से सुरक्षित रखने की कोशिश करती है।
गेंद को हाथों से खेला जाता है, परन्तु इसे घुटनों या इनसे ऊपर शरीर के किसी भाग से स्पर्श किया जा सकता है तथा खेला जा सकता है। केवल गोल रक्षक की सुरक्षा के लिए अपने गोल क्षेत्र में गेंद को शरीर के सभी भागों से स्पर्श कर सकता है।

खिलाड़ी भागते, चलते या खड़े होते हुए एक हाथ से बार-बार गेंद को ठप्पा मार कर उछाल सकते हैं। गेंद को उछालने के बाद पुनः पकड़ कर खिलाड़ी इसे अपने हाथों में लिए आगे तो बढ़ सकता है, परन्तु तीन कदम से अधिक नहीं। गेंद को अधिकतम 3 सैंकिंड तक पकड़ कर रखा जा सकता है।

गोल होने के पश्चात् गेम कोर्ट के मध्य में से थ्रो-इन के साथ पुनः आरम्भ होगी। थ्रो-आन उस टीम का खिलाड़ी करेगा जिसके विरुद्ध गोल अंकित हुआ है। मध्य रेखा के ऊपर पांव रख कर पास देने पर खेल प्रारम्भ होगा। इस अवसर पर विरोधी खिलाड़ी इच्छानुसार कहीं पर भी खड़े रह सकते हैं।

अर्द्ध-अवकाश (Half time) के पश्चात् गोल और थ्रो-आन में परिवर्तन किया जाएगा। उस टीम को जो अधिक संख्या में गोल कर लेती है विजयी घोषित किया जाता है। यदि बाल मैदान के साइड से बाहर जाती है तो रेखा को काट कर थ्रो की जाती है। यदि दोनों टीमों द्वारा किए गए गोलों की संख्या समान हो अथवा कोई भी गोल न हो सके तो खेल अनिणीत (Drawn) होगी। बराबर रहने की स्थिति में मैच का फैसला पैनल्टी थ्रो द्वारा किया जाता है।

प्रत्येक खेल का आयोजन दो रैफरियों के द्वारा किया जाता है जिसको एक स्कोरर और एक टाइम कीपर सहायता प्रदान करते हैं। रैफ़री खेल के नियमों को लागू करते हैं। रैफ़री खेल के क्षेत्र में प्रविष्ट होने के क्षण से लेकर खेल के अन्त तक खेल के संचालक होते हैं।

हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
हैंडबाल खेल का क्षेत्र, गोल, गेंद, खिलाड़ी, गोल क्षेत्र, गोल थ्रो, पैनल्टी थो के बारे में लिखें।
उत्तर-
खेल का क्षेत्र (The Playing Area)-खेल का क्षेत्र दो गोल-क्षेत्रों में विभाजित होता है तथा खेल का कोर्ट आयताकार होता है जिसकी लम्बाई 40 मीटर और चौड़ाई 20 मीटर होती है। विशेष परिस्थितियों में खेल का क्षेत्र 38-44 मीटर लम्बा तथा 18-22 मीटर चौड़ा हो सकता है।

गोल (Goal)—प्रत्येक गोल रेखा के मध्य में गोल होंगे। एक गोल में 2 ऊंचे खड़े स्तम्भ होंगे जो क्षेत्र के कोनों से समान दूरी पर होंगे। स्तम्भ एक-दूसरे से 3 मीटर की दूरी पर होंगे तथा इनकी ऊंचाई 2 मीटर होगी। ये मज़बूती से भूमि में जकड़े होंगे तथा उन्हें एक क्षैतिज क्रॉस बार (Horizontal Cross Bar) द्वारा परस्पर अच्छी तरह मिलाया जाएगा। गोल रेखा का बाहरी सिरा तथा गोल पोस्ट का पिछला सिरा एक पंक्ति में होगा। स्तम्भ तथा क्रास बार वर्गाकार होंगे जिनका आकार 8 सैंटीमीटर × 8 सैंटीमीटर होगा। ये लकड़ी, हल्की धातु या संशलिष्ट पदार्थ के बने होंगे जिनकी सभी साइडों पर 2 रंग किए होंगे जो पृष्ठभूमि में प्रभावशाली ढंग से रखे हों।

प्रत्येक गोल क्षेत्र से 6 मीटर दूर तथा गोल रेखा के समानान्तर 3 मीटर लम्बी रेखा अंकित करके बनाया जाता है। इस रेखा के सिरे चौथाई-वृत्तों द्वारा गोल रेखा से मिले होंगे। इन वृत्तों का अर्द्ध-व्यास गोल स्तम्भों के आन्तरिक कोने के पीछे से मापने पर 6 मीटर होगा। यह रेखा गोल क्षेत्र रेखा (Goal area line) कहलाती है।

गेंद (The Ball)—गेंद गोलाकार (Spherical) होनी चाहिए जिसमें एक रबड़ का ब्लैडर हो और इसका बाहरी खोल एक रंग के चमड़े या किसी एक रंग के संश्लिष्ट पदार्थ (Synthetic meterial) का बना हो। बाहरी खोल चमकदार या फिसलने वाला न हो, गेंद में बहुत ज्यादा हवा नहीं भरी होनी चाहिए। पुरुषों तथा नवयुवकों के लिए गेंद का भार 475 ग्राम से अधिक और 425 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। उसकी परिधि 58 सैंटीमीटर से 60 सैंटीमीटर होनी चाहिए। सभी नवयुवक तथा जूनियर लड़कों के लिए इसका भार 400 ग्राम से अधिक तथा 325 ग्राम से कम नहीं होना चाहिए। इसकी परिधि 54 से 56 सैं० मी० तक होनी चाहिए।

खिलाड़ी (The Players)—प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें से 10 कोर्ट खिलाड़ी और 2 गोलकीपर होते हैं। इनमें से एक समय पर अधिकतम 7 खिलाड़ी मैदान में उतर सकते हैं जिनमें से 6 कोर्ट खिलाड़ी और एक गोलकीपर होंगे।

खेल की अवधि (The Duration of the Game)—पुरुषों के लिए 30-30 मिनट की दो समान अवधि में खेला जाएगा जिनके बीच 10 मिनट का मध्यान्तर होता है।
नोट-टूर्नामैंटों में खेल बिना मध्यान्तर के 15-15 मिनट की दो समान अवधि में खेला जाएगा।

स्त्रियों और जूनियर लड़कों के लिए खेल 25-25 मिनट की दो समान अवधि में खेला जाएगा जिनके बीच 10 मिनट का मध्यान्तर होता है।
गोल (Goal)-प्रत्यक्ष रूप से थ्रो ऑन करके विपक्षियों के विरुद्ध गोल नहीं किया जा सकता।
गेंद का खेलना (Playing the Ball) निम्नलिखित की अनुमति होगी
गेंद को रोकना, पकड़ना, फेंकना, उछालना या किसी भी ढंग से या किसी भी दिशा में हाथ (हथेलियां या खुले हाथ), भुजाओं, सिर, शरीर या घुटनों आदि का प्रयोग करते हुए गेंद पर प्रहार करना।

जब गेंद ज़मीन पर पडी हो तो इसे अधिकतम 3 सैकिण्ड तक पकड़े रखना, गेंद को पकड़ कर अधिकतम 3 कदम लेना।
गोल क्षेत्र (The Goal Area)-केवल गोल रक्षक को ही गोल क्षेत्र में प्रविष्ट होने या रहने की अनुमति होती है। गोलकीपर को इनमें प्रविष्ट हुआ माना जाएगा, यदि कोई खिलाड़ी इसे किसी भी प्रकार से स्पर्श कर लेता है। गोल क्षेत्र में गोल रेखा (Goal area line) सम्मिलित होती है।
गोल क्षेत्र में प्रविष्ट होने के निम्नलिखित दण्ड (Penalties) हैं—

  1. फ्री-थ्रो जब कोर्ट खिलाड़ी के अधिकार में गेंद हो।
  2. फ्री-थ्रो जब कोर्ट खिलाड़ी के अधिकार में गेंद न हो। परन्तु उसने गोल-क्षेत्र में प्रविष्ट हो कर साफ लाभ प्राप्त किया होता है।
  3. पैनल्टी-थ्रो यदि रक्षात्मक टीम का कोई खिलाड़ी जान-बूझ कर और स्पष्ट रूप से सुरक्षा के लिए गोल क्षेत्र में प्रविष्ट हो जाता है।

गोल रक्षक (The Goal Keeper)—गोल रक्षक को अनुमति होगी—

  1. रक्षात्मक कार्य में अपने गोल क्षेत्र में गेंद को अपने शरीर के सभी भागों में स्पर्श करने की।
  2. गोल क्षेत्र के बिना किन्हीं प्रतिबन्धों के गेंद के साथ इधर-उधर चलने की।
    हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
  3. बिना गेंद के गोल क्षेत्र में दौड़ने को, कोर्ट में वह कोर्ट खिलाड़ियों के नियमों का अनुसरण करेगा।

स्कोर (Scoring)—गोल उस समय स्कोर हुआ माना जाता है जब गेंद विरोधियों की गोल रेखा से गोल पोस्टों तथा क्रॉस बार के नीचे गुज़र जाता है। बशर्ते कि गोल करने के लिए स्कोर करने वाले खिलाड़ी या उसकी टीम के खिलाड़ियों द्वारा नियमों का उल्लंघन न किया गया हो।
थ्रो-इन (Throw-in) यदि सारी गेंद भूमि पर या वायु में CATCHING THE BALL साइड लाइन से बाहर चली जाती है तो खेल थ्रो-इन द्वारा पुनः आरम्भ की जाएगी।

थ्रो-इन उस टीम के विरोधी खिलाड़ियों द्वारा ली जाएगी जिसने अन्तिम बार गेंद को स्पर्श किया हो।
थ्रो-इन उसी बिन्दु से ली जाएगी जहां से गेंद ने साइड रेखा को पार किया हो।
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
कार्नर थो (Corner Throw)—यदि भूमि पर या वायु में सारी गेंद रक्षात्मक टीम के खिलाड़ी द्वारा अन्तिम बार स्पर्श किए जाने से गोल के बाहर गोल रेखा के ऊपर से गुज़र जाती है तो आक्रामक टीम को एक कार्नर थ्रो दी जाएगी। यह नियम गोल रक्षक पर अपने ही गोल क्षेत्र में लागू नहीं होता।

कोर्ट रैफ़री द्वारा सीटी बजाने के तीन सैकेंड के अन्दर-अन्दर कार्नर थ्रो गोल को उस साइड के इस बिन्दु से ली जाएगी जहां गोल रेखा तथा स्पर्श रेखा (Touch line) मिलती है, और जहां से गेंद बाहर निकली थी।
रक्षक टीम के खिलाड़ी गोल क्षेत्र रेखा के साथ ग्रहण कर सकते हैं।
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
गोल-थ्रो (Goal throw)—गोल-थ्रो निम्नलिखित अवस्थाओं में दी जाएगी—

  1. यदि सारी गेंद गोल से बाहर भूमि पर वायु में गोल रेखा के ऊपर से गुज़र जाती है जिसे अन्तिम बार आक्रामक टीम के खिलाड़ियों या गोल क्षेत्र के रक्षक टीम के गोलकीपर ने स्पर्श किया हो।
    हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 6
  2. यदि थ्रो-ऑन द्वारा गेंद सीधी विरोधी टीम में चली जाती है।

फ्री-थो (Free Throw)-निम्नलिखित अवस्थाओं में फ्री-थ्रो दी जाती है—

  1. खेल के क्षेत्र में ग़लत ढंग से प्रविष्ट होने पर या छोड़ने पर।
  2. ग़लत थ्रो ऑन करने पर।
  3. नियमों का उल्लंघन करने पर।
  4. जानबूझ कर गेंद को साइड-लाइन से बाहर रोकने पर।

पैनल्टी थ्रो (Penalty Throw)—पैनल्टी थ्रो दी जाएगी—

  1. अपने ही अर्द्धक में नियमों के गम्भीर उल्लंघन करने पर।
  2. यदि कोई खिलाड़ी रक्षा के उद्देश्य से जान-बूझ कर अपने गोल क्षेत्र में प्रविष्ट होता है।
  3. यदि कोई खिलाड़ी जान-बूझ कर गेंद को अपने गोल क्षेत्र में धकेल देता है और गेंद गोल का स्पर्श कर लेती है।
  4. यदि गोल रक्षक गेंद को उठा कर अपने गोल क्षेत्र में जाता है।
  5. यदि कोर्ट के विरोधी अर्द्धक में गोल करने की स्पष्ट सम्भावना गोल रक्षक द्वारा नष्ट कर दी जाती है।
  6. गोल रक्षक के ग़लत प्रतिस्थापन्न (Substitution) पर।

पैनल्टी थ्रो के अवसर पर रैफ़री टाइम आऊट लेकर पैनल्टी थ्रो लगवाने के लिए सीटी बजाएगा जिसके साथ खेल के समय की शुरुआत हो जाएगी।
हैंडबाल (Hand Ball) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 7
Goal Keeper’s Position for Preventing Scoring

अधिकारी (Officials) हैंडबाल की खेल में निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं—

  1. रैफ़री = 1
  2. सैकिंड रैफरी = 1
  3. टाइम कीपर। = 1

निर्णय (Decisions)—जो टीम अधिक गोल कर देती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

PSEB 11th Class Geography Guide प्रमुख भू-आकार Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो शब्दों में दें:

प्रश्न (क)
भारत में अंदरूनी (आंतरिक) पर्वतों का सबसे बड़ा उदाहरण कौन-सा है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत।

प्रश्न (ख)
पूर्व कैंबरीअन काल कितने वर्ष पुराने समय को माना जाता है ?
उत्तर-
4.6 बिलियन (अरब) वर्ष।

प्रश्न (ग)
महाद्वीपों के खिसकने से पहले के सुपर महाद्वीप का नाम क्या था ?
उत्तर-
पैंजीआ।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (घ)
पृथ्वी की ऊपरी प्लेट के दो भाग कौन-कौन से होते हैं ?
उत्तर-
क्रस्ट और मैंटल।

प्रश्न (ङ)
एशिया का दिल’ किस प्रकार की भू-आकृति को कहते हैं ?
उत्तर-
पठार।

प्रश्न (च)
गुंबद पठार का विश्व प्रसिद्ध उदाहरण कौन-सा है ?
उत्तर-
ओज़ारक पठार।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (छ)
अफ्रीका की कौन-सी नदी ‘बाड़ के मैदान’ बनाती है ?
उत्तर-
नील नदी।

प्रश्न (ज)
ऑस्ट्रेलिया में नदियों के मैदानों को क्या नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
मरे-डार्लिंग मैदान।

प्रश्न (झ)
परेरी, पंपाज़ और कैंटरबरी क्या हैं ?
उत्तर-
घास के मैदान।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ब)
पृथ्वी पर ऊँचाई कहाँ से नापी जाती है ?
उत्तर-
समुद्र तल से।

2. प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में दें

प्रश्न (क)
धरातलीय स्वरूपों को कौन-कौन से भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-

  1. पहली श्रेणी के स्थल रूप
  2. दूसरी श्रेणी के स्थल रूप
  3. तीसरी श्रेणी के स्थल रूप।

प्रश्न (ख)
आकार के आधार पर पर्वतों को वर्गीकृत करें।
उत्तर-

  1. बलदार पर्वत
  2. ब्लॉक पर्वत
  3. गुंबददार पर्वत
  4. संग्रह पर्वत।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ग)
बलदार या वलन पर्वत की परिभाषा दें।
उत्तर-
पर्वत भू-पटल की परतों में बल पड़ने के कारण इन्हें बलदार पर्वत कहा जाता है। तलछट में मोड़ पड़ने के कारण ऊँचे उठे भाग को Anticline और नीचे धंसे भाग को Syncline कहा जाता है।

प्रश्न (घ)
अलफ्रेड वैगनर ने कब और कौन-सी पुस्तक में महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त पेश किया था ?
उत्तर-
अल्फ्रेड वैगनर ने 1915 में अपनी पुस्तक ओरिज़न ऑफ कौन्टीनैंट एंड ओशंस (Origin of Continents and Oceans) में महाद्वीपीय विस्थापन का सिद्धान्त पेश किया था।

प्रश्न (ङ)
लुरेशिया में कौन-सा क्षेत्र सम्मिलित था ?
उत्तर-
उत्तरी अमेरिका, ग्रीनलैंड, यूरोप, रूस और चीन लुरेशिया में शामिल थे। इसे अंगारा लैंड भी कहा जाता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (च)
सीमावर्तीय पठार कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
पुरानी पर्वत श्रेणियों के साथ लगते पठारों को सीमावर्तीय पठार कहते हैं। ये पर्वतों के दामन में स्थित होते हैं।

प्रश्न (छ)
मैदान निर्माण के लिए जानी जाती रूस व चीन की नदियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-
रूस में उब, येनसी, लीना और बोलगा नदियाँ और चीन में ह्वांग-हो, यांग-सी-कियांग नदियाँ मैदानों का निर्माण करती हैं।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें

प्रश्न (क)
ब्लॉक पर्वतों की परिभाषा दें।
उत्तर-
तनाव के कारण धरातल पर दरारें पड़ जाती हैं। कुछ भाग नीचे की ओर धंस जाते हैं और कुछ भाग बीच में ही खड़े रह जाते हैं। इन ऊँचे भागों को ब्लॉक पर्वत कहा जाता है। ये पर्वत खड़ी ढलान वाले होते हैं और ऊपरी तल समतल होता है, जैसे जर्मनी में हारझुट पर्वत, भारत में विंध्याचल पर्वत।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ख)
आप अगर कृषि, सिंचाई तथा यातायात की सुविधाओं वाले क्षेत्रों में रह रहे हों, तो भौगोलिक पक्ष से ये कौन-से क्षेत्र होंगे ? विश्व-भर के ऐसे क्षेत्रों के नाम लिखें।
उत्तर-
मैदानों में कृषि की सुविधाएँ होती हैं। यहाँ नदियाँ और नहरें जल सिंचाई प्रदान करती हैं। यहाँ परिवहन के आसान साधन होते हैं। यहाँ सड़कों और रेलों के निर्माण की सुविधा होती है। ये सब क्षेत्र मैदान होते हैं। जैसे-अमेरिका में परेरी, यूरोप में स्टैपे, ऑस्ट्रेलिया में मरे-डार्लिंग, दक्षिण अमेरिका में पंपास, भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र, चीन में ह्वांग-हो और यांग-सी-कियांग।

प्रश्न (ग)
भौगोलिक पक्ष से खनिज पदार्थों की बहुतायत कौन-से धरातलीय क्षेत्रों में होती है ? विश्वभर से उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
विश्व में बहुत-से खनिज पठारों से मिलते हैं। पठार आग्नेय चट्टानों से बनते हैं। इनमें बहुमूल्य खनिज मिलते हैं। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में सोना, अफ्रीका के पठार में हीरा, सोना और तांबा, ब्राजील के पठार में लोहा और मैंगनीज़, दक्षिणी भारत में सोना, अभ्रक, मैंगनीज़ और छोटा नागपुर के पठार में लोहा, तांबा, अभ्रक और मैंगनीज़ के भंडार हैं।

प्रश्न (घ)
प्लेट टैक्टौनिक का सिद्धान्त विस्तार से समझाएँ।
उत्तर-
स्थलमंडल भू-प्लेटों में बंटा हुआ है। इसमें 6 मुख्य प्लेटें और 14 छोटे आकार की प्लेटें हैं। ये भू-प्लेटें खिसकती रहती हैं। परिणामस्वरूप महाद्वीप भी खिसकते रहते हैं। संपीड़न क्रिया प्लेटों की गति के कारण होती है। इससे महाद्वीप खिसकते हैं और पर्वत-निर्माण क्रिया होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ङ)
ताज़ा झरने, कीमती लकड़ी और घने जंगल पृथ्वी के कौन-से धरातलीय भाग में मिलते हैं ? विश्व-भर से उदाहरण देते हुए संक्षेप में चर्चा करें।
उत्तर-

  1. पर्वत धरती पर नदियों और झरनों के स्रोत हैं। ये पूरा वर्ष जल-सिंचाई प्रदान करते हैं। गंगा का मैदान हिमालय पर्वत का वरदान है।
  2. पर्वत घने जंगलों से ढके रहते हैं। यहाँ स्वास्थ्यवर्धक स्थान भी पाए जाते हैं।
  3. पर्वत बहुमूल्य लकड़ी के भंडार हैं। इन पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। कनाडा, स्वीडन, नॉर्वे, फिनलैंड आदि देशों का आर्थिक विकास जंगलों के कारण ही है। नॉर्वे, इटली, स्विट्ज़रलैंड में अनेकों जल-झरने मिलते हैं, जो पनबिजली पैदा करते हैं।

प्रश्न (च)
पर्वत-निर्माण शक्तियाँ या ओरोजैनी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
धरती पर भू-अभिनीतियों में करोड़ों वर्षों से तलछट जमा हो रहे हैं। इन्हें भू-अभिनीति कहते हैं। तलछट में मोड़ पड़ने पर बलदार पर्वतों का निर्माण हुआ। उदाहरण के लिए हिमालय का निर्माण टेथिस भू-अभिनीति के तलछट में बल पड़ने के कारण हुआ। भू-अभिनीतियों में संपीड़न शक्तियों के कारण बलदार पर्वत बने हैं। इसे ओरोजैनी क्रिया कहते हैं।

4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
पर्वतों के वर्गीकरण के आधार क्या-क्या हो सकते हैं ? उत्पत्ति के आधार पर वर्गीकरण का वर्णन करें।
उत्तर-
पर्वत (Mountains)-पर्वत प्रकृति की रहस्यमयी रचनाओं में से एक हैं। इन्होंने धरती का 12 प्रतिशत भाग घेरा हुआ है। _ ‘पर्वत ऐसे ऊँचे उठे हुए भू-खंड को कहते हैं, जो आस-पास के प्रदेश से कम-से-कम 900 मीटर अधिक ऊँचा हो। उसके तल का आधे से अधिक भाग तीखी ढलान वाला हो।’ __पर्वतों का आधार-क्षेत्र बड़ा होता है, पर ऊँचाई के साथ-साथ विस्तार कम होता जाता है, इसीलिए पर्वतों की चोटियों के क्षेत्र छोटे होते हैं। पर्वत और पहाड़ी में केवल ऊँचाई का अंतर होता है। पहाड़ी की ऊँचाई 900 मीटर से कम होती है।

पर्वत की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Mountains)-

  1. आस-पास के क्षेत्रों से अधिक ऊँचाई (Highland Area)
  2. शिखर पर कम विस्तार (Small Summit)
  3. तीखी ढलान (Steep Slope)
  4. ऊँची-नीची भूमि (Rugged Land)
  5. आधार-क्षेत्र का बड़ा होना (Large Base)

पर्वतों के प्रकार (Types of Mountains)-धरातल पर पाए जाने वाले पर्वतों में बहुत भिन्नताएँ हैं। “किन्हीं भी दो पर्वतों में पूर्ण समानता नहीं होती है।” (“No two mountains are exactly alike)” ऊँचाई की दृष्टि से पर्वतों में बहुत अंतर होता है। ऊँचाई के अनुसार पर्वतों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

1. ऊँचाई के अनुसार (According to height)

  • छोटे पर्वत (Low Mountains)—जो पर्वत 3000 मीटर तक ऊँचे होते हैं।
  • कम ऊँचाई के पर्वत (Rugged Mountains)—जो पर्वत 3000 मीटर से 6000 मीटर तक ऊँचे होते हैं।
  • ऊँचे पर्वत (High Mountains)—जो पर्वत 6000 मीटर से अधिक ऊँचे होते हैं।

2. रचना के अनुसार (According to Formation)-

  • बलदार पर्वत (Folded Mountains)
  • ब्लॉक या अवरोधी पर्वत (Block Mountains)
  • अवशेषी पर्वत (Residual Mountains)
  • ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountains)
  • गुंबददार पर्वत (Dome Mountains)

(i) बलदार पर्वत (Folded Mountain)-बलदार पर्वतों का निर्माण भू-गर्भ के संपीड़न (Contraction) की दबाव (Compression) शक्तियों के कारण धरातल की परतों में बल पड़ने या मोड़ पड़ने के कारण होता है। पृथ्वी की अंदरूनी हलचल के कारण धरातल में मोड़ (Folds) पड़ जाते हैं। इस हलचल के कारण धरातल का एक भाग ऊपर उठ जाता है और दूसरा भाग नीचे धंस जाता है। ऊपर उठे हुए भाग को Anticline और नीचे धंसे हुए भाग को Syncline कहते हैं। बलदार पर्वत विश्व में सबसे नवीन, सबसे ऊँचे और अधिक विस्तार वाले हैं। सृजन और आयु के आधार पर ये पर्वत दो तरह के हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 1

(क) नवीन बलदार पर्वत (Young Fold Mountains)—जिस प्रकार भारत में हिमालय, यूरोप में अल्पस (Alps), उत्तरी अमेरिका में रॉकी (Rocky) और दक्षिणी अमेरिका में एंडीज़ (Andes) पर्वत हैं।

(ख) प्राचीन बलदार पर्वत (Old Fold Mountains)-जिस प्रकार उत्तरी अमेरिका में अपैलशियन (Appalachian) पर्वत और नॉर्वे के पर्वत।

(ii) ब्लॉक पर्वत या अवरोधी या भू-खंडीय पर्वत (Block Mountains) ब्लॉक पर्वत आमतौर पर समानांतर दरारों के बीच स्थित होते हैं, जिनका आकार मेज़ के समान होता है। ये पर्वत तनाव की क्रिया (Expansion) से बनते हैं। तनाव के कारण धरातल पर दरारें (Faults) पड़ जाती हैं। दरारों के कारण धरातल का एक बड़ा भाग ब्लॉक (Block) के रूप में ऊपर या नीचे सरक जाता है। इस प्रकार ऊपर उठे हुए भाग को होरस्ट (Horst) कहते हैं और नीचे धंसे भाग को गरैबन्स (Grabens) कहते हैं। इस प्रकार धरती की लंबवर्ती हलचलों (Vertical Movements) के कारण ब्लॉक पर्वत बनते हैं। ब्लॉक पर्वतों का ऊपरी भाग पठार के समान साफ होता है, परंतु चित्र-ब्लॉक पर्वत इसके किनारे तीखी ढलान वाले होते हैं। दरारों के द्वारा निर्माण के कारण इन्हें Fault Mountains भी कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 2

उदाहरण (Examples)-जर्मनी में वॉसजिज़ (Vosges) और ब्लैक फॉरेस्ट (Black Forest), पाकिस्तान में नमक के पहाड़ (Salt Range) और भारत में विंध्याचल पर्वत।

रिफ्ट घाटी (Rift Valley)—इसी प्रकार जब दो समानांतर दरारों (Faults) के बीच का भाग नीचे की ओर सरक जाता है और आस-पास के हिस्से ऊँचे उठे हुए दिखाई देते हैं, तो नीचे को सरका हुआ भाग रिफ्ट घाटी कहलाता है। उदाहरण (Examples)-यूरोप में राइन घाटी (RhineValley) और अमेरिका (U.S.A.) में कैलीफोर्निया घाटी (California Valley), एशिया में मृत सागर (Dead Sea), भारत में नर्मदा घाटी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 3

(iii) अवशेषी पर्वत (Residual Mountains)-ये पर्वत बाहरी साधनों नदी, बर्फ, वायु आदि के खुरचने के कारण बनते हैं। बहुत समय तक लगातार अपरदन होने के कारण पर्वतों की ऊँचाई बहुत कम हो जाती है। ये पर्वत घिस-घिसकर नीची पहाड़ियों के रूप में बदल जाते हैं। इस प्रकार के पर्वत पुराने पर्वतों के बचेखुचे भाग होते हैं। इसलिए इन्हें Relict Mountains भी कहते हैं। कहीं-कहीं कठोर चट्टानों से बने भू-भाग ऊँचे क्षेत्रों के रूप में खड़े रहते हैं। ऐसे ऊँचे क्षेत्रों को अवशेषी पर्वत कहते हैं। अपरदन के साधनों से बने होने के कारण इन्हें अपरदित पर्वत (Mountains of Denudation) भी कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 4

उदाहरण (Examples) भारत में अरावली पर्वत (Aravali Mountains) और पूर्वी घाट, अमेरिका (U.S.A.) में ओज़ार्क (Ozark) पर्वत।

(iv) ज्वालामुखी पर्वत (Valcanic Moun tains) ज्वालामुखी पर्वत धरती के नीचे से निकलने वाला लावा (Lava) राख (Ash) आदि ठोस पदार्थों के जमाव के कारण बनते हैं। ज्वालामुखी के मुँह से निकला हुआ यह पदार्थ उसके मुख या गर्त के चारों तरफ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में लगातार जमता जाता है। इस प्रकार एक शंकु (Cone) का निर्माण हो जाता है। गाढ़े लावे के ऊँचे पर्वत बनते हैं। ऐसे पर्वतों को ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 5

उदाहरण (Examples)-जापान में फ्यूज़ीयामा (Fujiyama) पर्वत, चिली में ऐकनकेगुआ (Aconcagua),
इटली में वेसुवियस (Vesuvious) पर्वत और अफ्रीका में किलीमंजारो (Kilimanjaro) पर्वत।

(v) गुंबददार पर्वत (Dome Mountains)-भीतरी हलचल के कारण गर्म लावा बाहर आने का यत्न करता है।
नीचे की ओर दबाव के कारण धरातल पर एक उभार पैदा हो जाता है। जब धरातल एक चाप (Arch) के आकार में ऊपर उठ जाता है, तो गुंबद के आकार के पर्वत बनते हैं। गुंबद का ऊपरी भाग गोलाकार होता है। लावा के इस उभार से लोकोलिथ (Loccolith) और बैथोलिथ (Batholith) नाम के पर्वत बनते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • हवाई द्वीप में मोना लोआ (Maunaloa)
  • संयुक्त राज्य अमेरिका में हैनरी पर्वत (Henry Mountains)

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ख)
पठारों का वर्गीकरण करें और प्रत्येक किस्म की संक्षेप में व्याख्या करें।
उत्तर-
पठार (Plateau)—पठार एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक इकाई है। धरती का एक बड़ा भाग (33%) पठारों से घिरा हुआ है। “पठार वह प्रदेश होता है, जो आमतौर पर समुद्र तल से एक समान ऊँचाई वाला हो, इर्द-गिर्द के धरातल से एकदम ऊँचा और तीखी ढलान वाला हो।” (A Plateau is a highland with broad, flat summits.”) पठार आमतौर से समुद्र तल से 300 से 1000 मीटर तक ऊँचे होते हैं, पर पठार की ऊँचाई कुछ भी हो सकती है; जैसे अमेरिका (U.S.A.) में पीडमांट पठार (Piedmont Plateau) केवल 600 मीटर ऊँचा है, पर पामीर का पठार कई ऊँचे पर्वतों से भी ऊँचा है और उसे ‘संसार की छत’ (Roof of the world) कहते हैं।

पठारों की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Plateau)-

  1. सपाट और विशाल शिखर।
  2. किनारों से तीखी ढलान।
  3. मेज के समान चौकोर ऊपरी सतह।
  4. पास के क्षेत्रों से एकदम ऊँचा होना।
  5. मैदानों की तुलना में अधिक ऊँचाई।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 6

पठार पठारों की किस्में (Types of Plateaus) –

1. अंतर-पर्वतीय पठार (Intermonteue Plateaus) 2. गिरीपद पठार (Piedmont Plateaus) 3. महाद्वीपीय पठार (Continental Plateaus) 4. ज्वालामुखी पठार (Volcanic Plateaus) 5. अपरदित पठार (Dissected Plateaus) 6. लोएस पठार (Loess Plateaus)

1. अंतर-पर्वतीय पठार (Intermonteue Plateaus) ये पठार चारों तरफ से ऊँचे पर्वतों से घिरे होते हैं।
(Such Plateaus have a mountain rim around them.”) ये पठार आस-पास के पर्वतों के निर्माण के साथ-साथ बनते रहते हैं, पर इन पठारों में मोड़ नहीं पड़ते और ये समतल रह जाते हैं। इन पठारों में नदियाँ किसी झील में गिरती हैं और अंतरवर्ती जल-प्रवाह (Inland Drainage) होता है। संसार के सबसे ऊँचे पठार इसी प्रकार के हैं।

उदाहरण (Examples) –

  • तिब्बत का पठार (Tibet Plateau) हिमाचल और कुनलुन (Kunlun) पर्वतों के बीच में स्थित है, जो कि 3600 मीटर ऊँचा है।
  • दक्षिणी अमेरिका में एंडीज़ (Andes) पर्वतों से घिरा हुआ है-बोलीविया (Bolivia) का पठार।

2. गिरीपद पठार (Piedmont Plateaus)—ये पठार पर्वतों के आधार पर बने होते हैं। इनके एक तरफ ऊँचे पर्वत और दूसरी तरफ मैदान या समुद्र होता है। मैदान की तरफ तीखी ढलान (Escarpment) होती है। इनका क्षेत्रफल बहुत नहीं होता।

उदाहरण (Examples)-

  • दक्षिण अमेरिका में एंडीज़ (Andes) पर्वत और अटलांटिक महासागर (Atlantic Ocean) के बीच स्थित पेटेगोनिया (Patagonia) का पठार।
  • अमेरिका (U.S.A.) में एपलेशीयन (Appalachian) पर्वत के निकट पीडमांट पठार।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 7

3. महाद्वीपीय पठार (Continental Plateaus)—ये पठार ऐसे विशाल पठार हैं, जो किसी महाद्वीप या देश के काफ़ी बड़े क्षेत्र में फैले होते हैं। ये पठार मैदान या समुद्र के निकट एकदम ऊपर उठ जाते हैं। धरातल के सपाट क्षेत्रों में उभार (Uplift) के कारण ये पठार बनते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • सारा अफ्रीका महाद्वीप एक विशाल महाद्वीपीय पठार है।
  • स्पेन, अरब और ग्रीनलैंड के पठार।

4. ज्वालामुखी पठार (Volcanic Plateaus)—ये पठार धरातल पर लावा (Lava) के प्रवाह से बनते हैं। ज्वालामुखी विस्फोट के समय लावा चारों तरफ दूर-दूर तक फैल जाता है। इस प्रकार ये प्रदेश आस-पास के क्षेत्रों से दिखाई देते हैं। इन्हें ज्वालामुखी पठार कहते हैं। उदाहरण (Examples)-भारत का दक्षिणी पठार लगभग 7 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। अमेरिका (U.S.A.) में कोलंबिया पठार।

5. अपरदित पठार (Dissected Plateaus)—ये पठार नदियों के द्वारा अपरदित होते हैं। नदियाँ पठारों को काटकर कई इकाइयों (Platforms) में बाँट देती हैं। नमी वाले प्रदेशों में ढलान वाली ज़मीन पर अधिक कटाव होता है और कई तंग घाटियाँ (Ravines) बन जाती हैं। ऐसे ऊँचे-नीचे धरातल वाले पठार को अपरदित (Dissected) पठार कहते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • भारत में छोटा नागपुर का पठार।
  • स्कॉटलैंड (Scotland) का पठार।

6. लोएस पठार (Loess Plateaus)—वायु द्वारा बने पठार को लोएस पठार (Loess Plateau) कहते हैं। हवा अपने साथ मरुस्थलों से काफी मात्रा में बारीक मिट्टी उड़ाकर लाती है। यह मिट्टी एक परत पर दूसरी परत के रूप में जमा होती रहती है और पठार का रूप धारण कर लेती है।

उदाहरण (Examples)-(i) एशिया (Asia) के गोबी (Gobi) मरुस्थल से आने वाली हवाओं के कारण उत्तर-पश्चिमी चीन में लोएस (Loess) का पठार बन गया है। ये पठार पीली मिट्टी के जमाव के कारण बना है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ग)
मैदानी क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों को पहाड़ों में रहने वाले लोगों के मुकाबले क्या आसानी होती है और क्या परेशानी होती है ? चर्चा करें।
उत्तर-
मैदानों का महत्त्व (Importance of Plains)—मैदानों में कृषि, उद्योग, व्यापार और मानवीय विकास की सभी सुविधाएँ होती हैं।

1. निवास की सुविधाएँ (Settlement of Population)—मैदानों में सपाट ज़मीन पर बस्तियों का विकास – संभव है। मैदानों में संसार की 75% आबादी निवास करती है।
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 8
2. कृषि की सुविधाएँ (Agriculture Facilities)—समतल भूमि और उपजाऊ मिट्टी के कारण, मैदान कृषि योग्य उत्तम क्षेत्र होते हैं।

3. अन्न के भंडार (Storehouse of Grains)-मैदानों में सिंचाई की सुविधाएँ, उपजाऊ मिट्टी और मशीनों के प्रयोग के कारण अन्न का उत्पादन अधिक होता है। संसार की सभी व्यापारिक फसलें गेहूँ, गन्ना, कपास और पटसन आदि मुख्य तौर पर मैदानों में ही होती हैं।

4. सभ्यता (Civilization) संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास मैदानों में ही हुआ है। चीन और मिस्र की सभ्यता ने नदी घाटियों में ही जन्म लिया।

5. आसान परिवहन (Easy Transport)—मैदानों में सपाट भूमि के कारण चौड़ी और लंबी सड़कों (Highways), रेलमार्गों (Railways), जलमार्गों (Waterways) और हवाई अड्डों (Aerodromes) को बनाना आसान होता है। नदियों के द्वारा भी आवाजाही आसान होती है। नदियों की धीमी चाल के कारण इनमें नाव और जहाज़ चलाए जा सकते हैं।

6. उद्योग (Industries)—मैदान आर्थिक जीवन की धुरी होते हैं। सभी सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण, संसार के सभी बड़े उद्योग मैदानों में स्थित होते हैं। इसका कारण यह है कि सबसे पहले, मैदानों में कच्चा माल (Raw Material) आसानी से मिल जाता है। दूसरे, परिवहन और संचार के साधन प्राप्त होने के कारण माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से लाया व ले जाया जा सकता है। तीसरे, जनसंख्या अधिक होने के कारण मज़दूरी सस्ती होती है। व्यापार का विकास होता है।

7. नगर (Towns)-आर्थिक और सामाजिक सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण संसार के प्रमुख नगर मैदानों में ही स्थित हैं।

प्रश्न (घ)
उत्पत्ति के आधार पर मैदानों की भिन्न-भिन्न किस्मों का वर्णन करें।
उत्तर-
मैदान (Plains)-प्रमुख भू-आकारों (Major Landforms) में मैदान सबसे अधिक स्पष्ट और सरल हैं। स्थल के बहुत बड़े भाग (41%) पर इनका विस्तार है। मैदान धरती के निचले और समतल (सपाट) क्षेत्र होते हैं। “मैदान स्थल के वे सपाट भाग हैं, जो समुद्र तल से 150 मीटर से कम ऊँचाई पर हों और उनकी ढलान सपाट, मध्यम और साधारण हो।” (Plains are low lands of low relief and horizontal structure.”) मैदान सागर तल से ऊँचे या नीचे हो सकते हैं, परंतु अपने आस-पास के पठार या पर्वत से कभी भी ऊँचे नहीं हो सकते।

मैदानों के लक्षण (Features of Plains)-

  1. एक तरह की चट्टानें
  2. कम ढलान
  3. नीचा धरातल
  4. सपाट और एक समान सतह।

सभी मैदान समुद्र तल से एक समान ऊँचाई के नहीं होते। कई मैदान समुद्र तल से बहुत ऊँचे होते हैं, जैसे अमेरिका के महान मैदान (Great Plains of U.S.A.) 6000 फुट ऊँचे हैं, पर हॉलैंड (Holland) का तट समुद्र तल से भी नीचा है। धरातल के अनुसार मैदान चार तरह के हैं-

  1. सपाट मैदान (Flat Plains)
  2. ऊँचे-नीचे मैदान (Undulating Plains)
  3. लहरदार मैदान (Rolling Plains)
  4. अपरदित मैदान (Dissected Plains)

मैदान की रचना (Formation of Plains)-
मैदान तीन तरह से बनते हैं-

  1. अपरदन (Erosion) से।
  2. निक्षेप (Deposition) से।
  3. धरती की हलचल (Earth Movements) से।

मैदानों की किस्में (Types of Plains)-
रचना के अनुसार मैदानों की निम्नलिखित किस्में हैं-

  1. जलोढ़ मैदान (Alluvial Plains)
  2. अपरदन के मैदान (Pene Plains)
  3. हिमानी मैदान (Glaciated Plains)
  4. सरोवर से निर्मित मैदान (Lacustrine Plains)
  5. ज्वालामुखी मैदान (Volcanic Plains)
  6. तट के मैदान (Coastal Plains)
  7. चूनेदार मैदान (Karst Plains)
  8. लोएस मैदान (Loess Plains)

1. जलोढ़ मैदान (Alluvial Plains)-नदियों के द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी के जमाव से विशाल जलोढ़ मैदान बनते हैं। नदियों का उद्देश्य थल भाग को काटकर समुद्र तक ले जाना होता है। (Rivers Carry land to sea.) केवल उत्तरी अमेरिका की नदियाँ ही 80 करोड़ टन मिट्टी हर वर्ष समुद्र में जमा करती हैं। पर्वतों से निकलकर नदियाँ भाबर के मैदान (Bhabar Plains) बनाती हैं। निचली घाटी में बाढ़ के समय बारीक मिट्टी के जमाव के कारण बाढ़ के मैदान (Flood Plains) बनते हैं। सागर में गिरने से पहले एक समतल तिकोने आकार का एक मैदान बनता है, जिसे डेल्टा (Delta) कहते हैं। नदियों द्वारा बने मैदान बहुत उपजाऊ होते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • भारत में गंगा-सतलुज का विशाल मैदान।
  • चीन में ह्वांग-हो (Hwang Ho) नदी का मैदान।
  • अमेरिका (U.S.A.) में मिसीसीपी (Missisipi) का मैदान।

2. अपरदन के मैदान (Pene Plains)-‘Pene Plains’ शब्द दो शब्दों ‘Pene’ और ‘Plain’ के जोड़ से बना है। ‘Pene’ शब्द का अर्थ है-‘लगभग’ या आम तौर पर (Almost) और ‘Plain’ का अर्थ है-मैदान। इस प्रकार ‘Pene Plains’ का अर्थ है-लगभग मैदान या आम तौर पर समभूमि। एक लंबे समय तक बाहरी साधन बर्फ, जल, हवा आदि के लगातार कटाव के कारण, पर्वत या पठार घिसकर नीचे हो जाते हैं और मैदान का रूप धारण कर लेते हैं। ये मैदान पूरी तरह से सपाट नहीं होते। इन मैदानों की ढलान अत्यंत हल्की होती है। इनमें कठोर चट्टानों के रूप में ऊँचे टीले मिलते हैं। ऐसे मैदानों में कठोर चट्टानों के टीले नष्ट नहीं होते और बचे रहते हैं। इन्हें मोनैडनॉक (Monadnocks) कहते हैं। संसार में इस तरह के पूर्व सम-मैदान (Perfect Plains) बहुत कम मिलते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • फिनलैंड और साइबेरिया का मैदान।
  • भारत में अरावली प्रदेश।

3. हिमानी मैदान (Glaciated Plains)—ये मैदान हिम नदी या ग्लेशियर के कारण बनते हैं। ग्लेशियर कटाव द्वारा ऊँचे भागों को काट-छाँट कर सपाट मैदान बनाते हैं। इनमें झीलें, झरने, ऊँचे-नीचे और दलदली क्षेत्र मिलते हैं। जब बर्फ पिघलती है, तो अपने साथ बहाकर लाई हुई मिट्टी, बजरी, कंकर आदि निचले स्थानों और खड्डों में भर देती है। इससे सपाट मैदान बन जाता है। इन मैदानों में हिमोढ़ (Moraines) के जमाव से बने मैदान को ड्रिफ्ट मैदान (Drift Plains) भी कहते हैं। हिम नदी के अपरदन से भी मैदान बनते हैं, जिसमें छोटेछोटे टीले इधर-उधर बिखरे होते हैं।

उदाहरण (Examples)-हिम युग (Great Ice age) में उत्तरी अमेरिका और यूरोप बर्फ से ढके हुए थे। बर्फ के पिघलने से वहाँ हिमानी मैदान बन गए।

4. सरोवरी मैदान (Lacustrine Plains)-झीलों के भर जाने या सूख जाने से उन स्थानों पर सरोवरी मैदान बन जाते हैं। झीलों में गिरने वाली नदियाँ अपने साथ लाई हुई मिट्टी आदि झील में जमा करती रहती हैं, जिससे झील का तल (Bed) ऊँचा हो जाता है, गहराई कम हो जाती है और धीरे-धीरे झील पूरी तरह भरकर एक सपाट मैदान बन जाती है। धरती की अंदरूनी हलचल के कारण झील का तल ऊपर उठ जाने से भी ऐसे मैदान बनते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • उत्तरी अमेरिका की परेरीज़ (Prairies) का हरा मैदान प्राचीन काल की अगासीज़ (Agassiz) झील के भर जाने के कारण बना है।
  • कैस्पीयन सागर (Caspian Sea) का उत्तरी भाग सूख जाने के कारण मैदान बन गया है।

5. ज्वालामुखी मैदान (Volcanic Plains)-ज्वालामुखी के मुख से निकला पिघला लावा (Basic Lava) कई
किलोमीटर दूर तक फैल कर जम जाता है। लावा एक पतली चादर के रूप में, परतों में निचले क्षेत्र में जमा हो जाता है। इस प्रकार एक सपाट मैदान बनता है।

उदाहरण (Examples)-

  • इटली में नेपल्स (Naples) नगर के निकट वैसुवियस (Vesuvious) का मैदान।
  • अमेरिका (U.S.A.) के स्नेक (Snake) नदी का क्षेत्र।

6. तट के मैदान (Coastal Plains)-तट के मैदान आम तौर पर समुद्र के किनारे पर स्थित होते हैं। तट के जो भाग, पानी में डूब जाते हैं। वे भाग रेत और मिट्टी बिछ जाने के कारण तट के मैदान बनते हैं। समुद्र के पीछे हटने से भी थल भाग सूखकर मैदान बन जाते हैं। धरती की हलचल के कारण, तट के निकट कम गहरा समुद्र ऊँचा उठ जाता है, जिससे तट के मैदान बनते हैं। आम तौर पर तट के मैदानों की ढलान समुद्र की ओर कम होती है। इनका महत्त्व बंदरगाहों और समुद्री व्यापार के कारण होता है।

उदाहरण (Examples)-

  • अमेरिका (U.S.A.) में खाड़ी के तट का मैदान (Gulf Coast Plain)।
  • भारत के पूर्वी तट का मैदान।।

7. चूनेदार मैदान (Karst Plains)-चूने के क्षेत्रों में भूमिगत पानी के एक विशेष प्रकार के धरातल पर जल प्रवाह नहीं होता। चूने का पत्थर जल में घुल जाता है। सारे प्रदेश में चूने के ढेर और टीले दिखाई देते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • यूगोस्लाविया में कार्ट प्रदेश
  • भारत में जबलपुर क्षेत्र।

8. लोएस का मैदान (Loess Plains)—हवा द्वारा बने मैदानों को रेगिस्तानी या लोएस का मैदान कहते हैं। हवा रेत को उड़ाकर दूर-दूर के स्थानों पर जमा करती है। ऐसे मैदानों में रेत के टीले (Sand Dunes) अधिक होते हैं।

उदाहरण (Examples)-

  • उत्तर-पश्चिमी चीन में शैंसी और शांसी प्रदेशों में लोएस के मैदान मिलते हैं।
  • पंजाब और हरियाणा की सीमा पर लोएस के मैदान मिलते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न (ङ)
भारत के छोटे नागपुर क्षेत्र के लोग, केरल व हिमाचल प्रदेश के लोगों से किन मुद्दों पर भिन्न हो सकते हैं ? चर्चा करें।
उत्तर-
छोटा नागपुर का पठार एक अपरदित पठार है। बहता हुआ जल ऊँचे पर्वत को क्षीण कर पठार का आकार देता है। हिमाचल प्रदेश एक मोड़दार पर्वत है और केरल एक तटीय मैदान है। इन प्रदेशों के लोगों का जीवन और क्रियाएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं। हिमाचल प्रदेश एक पर्वतीय प्रदेश है और यहाँ कृषि की कमी है। पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीनुमा खेती होती है। ठंडी जलवायु के कारण गेहूँ की खेती सीमित होती है। यहाँ फलों की खेती महत्त्वपूर्ण है। हिमाचल के सेबों के बाग विश्व-भर में प्रसिद्ध हैं। यहाँ परिवहन के साधन सीमित हैं।

छोटा नागपुर एक अपरदित पठार है। यहाँ वर्षा की अधिक मात्रा के कारण मिट्टी का कटाव अधिक है। यहाँ खनिज । पदार्थ बहुत मिलते हैं। यहाँ लोहे और कोयले के भंडार हैं। खानें खोदना लोगों का कार्यक्षेत्र है। वनों का घनत्व बहुत अधिक है। आदिवासी लोग जंगलों में रहते हैं और पेड़ काटना भी एक रोज़गार है।

केरल के तटीय मैदानों में वर्षा बहुत अधिक होती है। यहाँ चावल की कृषि होती है। लोगों का मुख्य भोजन चावल है। यहाँ साक्षरता की ऊँची दर है, इसलिए लोग तकनीकी रूप से विकसित हैं। औद्योगिक विकास बहुत अधिक है। जनसंख्या का घनत्व भी अधिक है। मछली पकड़ना लोगों का एक रोज़गार है।

Geography Guide for Class 11 PSEB प्रमुख भू-आकार Important Questions and Answers

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पर्वतों की औसत ऊँचाई कितनी होती है ?
उत्तर-
900 मीटर से अधिक।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 2.
मोड़दार पर्वतों की रचना में कौन-सी शक्ति काम करती है ?
उत्तर-
संपीड़न क्रिया।

प्रश्न 3.
पर्वत के ऊँचे-ऊँचे भागों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
Anticline.

प्रश्न 4.
पर्वतीय भाग में नीचे धंसे भागों को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
Syncline.

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 5.
नवीन मोड़दार पर्वतों का एक उदाहरण बताएँ।
उत्तर-
हिमालय पर्वत।

प्रश्न 6.
ब्लॉक पर्वतों में ऊँचे उठे भाग को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
होरस्ट।

प्रश्न 7.
दो समानांतर दरारों के बीच धंसे भाग को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
रिफ्ट घाटी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 8.
रिफ्ट घाटी का एक उदाहरण बताएँ।
उत्तर-
राइन घाटी।

प्रश्न 9.
भारत में बचे-खुचे पर्वतों के उदाहरण दें।
उत्तर-
अरावली पर्वत।

प्रश्न 10.
अंतर-पर्वतीय पठार का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
तिब्बत पठार।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 11.
मैदानों की औसत ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
150 मीटर।

प्रश्न 12.
लोएस पठार कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
उत्तर-पश्चिमी चीन में।

बहुविकल्पीय प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
किसी पर्वत की कम-से-कम ऊँचाई होती है।
(क) 500 मीटर
(ख) 600 मीटर
(ग) 900 मीटर
(घ) 1000 मीटर।
उत्तर-
900 मीटर।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 2.
नीचे लिखे में से कौन-सा मोड़दार पर्वत है ?
(क) ब्लॉक पर्वत
(ख) हिमालय
(ग) ओज़ारन
(घ) स्कॉटलैंड।
उत्तर-
हिमालय।

प्रश्न 3.
नीचे लिखे में से अंतर-पर्वतीय पठार बताएँ।
(क) पैट्रोलियम
(ख) तिब्बत
(ग) लोएस
(घ) छोटा नागपुर।
उत्तर-
तिब्बत।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न : (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
भू-तल पर प्रमुख भू-आकार बताएँ।
उत्तर-

  1. पर्वत
  2. मैदान
  3. पठार।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 2.
पर्वत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
पर्वत ऐसे ऊँचे उठे हुए भू-खंड को कहते हैं, जो आस-पास के प्रदेश से कम-से-कम 900 मीटर अधिक ऊँचा हो। उसके तल का आधे से अधिक भाग तीखी ढलान वाला हो।

प्रश्न 3.
पर्वत और पहाड़ी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
900 मीटर से कम ऊँचे प्रदेश को पहाड़ी कहते हैं, जबकि 900 मीटर से अधिक ऊँचे प्रदेश को पर्वत कहते हैं।

प्रश्न 4.
Anticline और Syncline में क्या अंतर है ? ।
उत्तर-
किसी वलण या बलदार पर्वत (Folded Mountains) के शिखर को Anticline और नीचे से हुए भाग को Syncline कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 5.
युवा या नवीन बलदार पर्वत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
टरशरी युग (5 करोड़ वर्ष) के बाद बनने वाले पर्वतों को युवा पर्वत कहते हैं, जैसे-हिमालय, अल्पस पर्वत।

प्रश्न 6.
प्राचीन बलदार पर्वत किसे कहते हैं ?
उत्तर-
टरशरी युग से पहले बने पर्वतों को प्राचीन बलदार पर्वत कहते हैं, जैसे-युराल पर्वत और अरावली पर्वत. भारत के सबसे प्राचीन बलदार पर्वत हैं।

प्रश्न 7.
होरस्ट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दरारों के कारण कुछ भाग नीचे धंस जाते हैं। जो बीच वाला भाग ऊपर उठा होता है, तो उसे होरस्ट कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 8.
दरार घाटी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
दो दरारों के बीच वाले भाग के नीचे फँस जाने से दरार घाटी की रचना होती है।

प्रश्न 9.
दरार घाटी के चार उदाहरण दें।
उत्तर-

  1. राइन घाटी
  2. नर्मदा घाटी
  3. मृत सागर
  4. लाल सागर।

प्रश्न 10.
ज्वालामुखी पर्वतों के तीन उदाहरण दें।
उत्तर-

  1. फ्यूज़ीयामा पर्वत
  2. वैसुवीयस पर्वत
  3. कोटोपैक्सी पर्वत।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 11.
पठार की परिभाषा दें।
उत्तर-
पठार वह प्रदेश होता है, जो समुद्र तल से एक जैसी ऊँचाई वाला हो और इर्द-गिर्द से एकदम ऊँचा और तीखी ढलान वाला हो।

प्रश्न 12.
अंतर-पर्वतीय पठार क्या होता है ?
उत्तर-
चारों तरफ से ऊँची पर्वत श्रृंखलाओं से घिरे प्रदेश को अंतर-पर्वतीय पठार कहते हैं, जैसे-तिब्बत का पठार।

प्रश्न 13.
पीडमांट पठार क्या है ?
उत्तर-
पर्वतों की निचली ढलानों पर स्थित पठार को पीडमांट पठार कहते हैं, जैसे-पैंटागोनिया पठार।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 14.
संसार के प्राचीन पठारों के उदाहरण दें।
उत्तर-

  1. ब्राज़ील पठार
  2. कनाडा का पठार
  3. गोंडवाना पठार।

प्रश्न 15.
पृथ्वी के तल पर थल और जल का विभाजन क्या है ?
उत्तर-
थल 29.2% और जल 70.8% ।

प्रश्न 16.
क्या महाद्वीप और महासागर स्थायी हैं ?
उत्तर-
नहीं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 17.
महाद्वीप विस्थापन सिद्धांत किसने पेश किया ?
उत्तर-
सन् 1915 में अल्फ्रेड वैगनर ने।

प्रश्न 18.
पैंजीया से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आदिकाल में जब सारे महाद्वीप इकट्ठे थे, तो उसे पैंजीया कहते थे।

प्रश्न 19.
पैंजीया के मध्यवर्ती भाग में कौन-सा सागर था ?
उत्तर-
टैथीज़ सागर।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 20.
गोंडवाना लैंड में कौन-से महाद्वीप शामिल थे ?
उत्तर-
ऑस्ट्रेलिया, अंटार्कटिका, अफ्रीका और दक्षिणी अमेरिका।

प्रश्न 21.
अंगारालैंड की क्या स्थिति थी ?
उत्तर-
टैथीज़ सागर के उत्तर में यूरेशिया महाद्वीप को अंगारालैंड कहते थे।

प्रश्न 22.
वैगनर के अनुसार अमेरिका के पश्चिम की ओर खिसकने का क्या कारण था ?
उत्तर-
ज्वारीय शक्ति।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 23.
Jig-Saw-Fit से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अंध महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों को यदि जोड़ा जाए, तो ये एक आरे के ब्लेडों के समान एकदूसरे में फिट हो जाते हैं जैसे कि ये दोनों कभी इकट्ठे थे।

प्रश्न 24.
प्लेट-टैक्टौनिक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पृथ्वी की पपड़ी और महासागरीय भू-पटल 6 कठोर भू-प्लेटों पर टिका हुआ है। ये प्लेटें खिसकती रहती हैं। इस क्रिया को Plate-Tectonics कहते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न : (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पर्वत क्या होते हैं ? इनकी तीन प्रमुख विशेषताएँ लिखें।
उत्तर-
पर्वत (Mountains)-पर्वत प्रकृति की रहस्यमयी रचनाओं में एक हैं। इन्होंने धरती का 12 प्रतिशत भाग घेरा हुआ है।
“पर्वत ऐसे उठे हुए भू-खंडों को कहते हैं, जो अपने आस-पास के प्रदेश से कम-से-कम 900 मीटर अधिक ऊँचा हो। उसके तल का आधे से अधिक भाग तीखी ढलान वाला हो।”

पर्वतों का आधार-क्षेत्र बड़ा होता है, पर ऊंचाई के साथ-साथ इनका विस्तार कम होता जाता है, इसलिए पर्वतों की चोटियों के क्षेत्र छोटे होते हैं। पर्वत और पहाड़ी में केवल ऊँचाई का अंतर होता है। पहाड़ी की ऊँचाई 900 मीटर से कम होती है।

पर्वतों की प्रमुख विशेषताएँ (Main Features of Mountains)-

  1. आस-पास के क्षेत्रों से अधिक ऊँचाई (High level area)
  2. शिखर का कम विस्तार (Small Summit)
  3. तीखी ढलान (Steep slope)

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 2.
अवशेषी पर्वत कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
अवशेषी पर्वत (Residual Mountains)-ये पर्वत बाहरी साधनों नदी, बर्फ, वायु आदि के अपरदन के कारण बनते हैं। बहुत समय तक लगातार अपरदन होने के कारण पर्वतों की ऊँचाई बहुत कम हो जाती है। ये पर्वत घिसघिस कर नीची पहाड़ियों के रूप में बदल जाते हैं। इस तरह के पर्वत पुराने पर्वतों के बचे-खुचे भाग होते हैं, इसलिए इन्हें Relict Mountains भी कहते हैं। कहीं-कहीं कठोर चट्टानों के बने भू-भाग ऊँचे क्षेत्रों के रूप में बंधे खड़े रहते हैं। ऐसे ऊँचे क्षेत्रों को अवशेषी पर्वत कहते हैं। अपरदन के साधनों से बने होने के कारण इन्हें अपरदन के पर्वत (Mountains of Denudation) भी कहते हैं।

उदाहरण (Examples)—भारत में अरावली पर्वत (Aravali Mountains) और पूर्वी घाट, अमेरिका (U.S.A.) में ओज़ारक (Ozark) पर्वत।

प्रश्न 3.
पठार क्या होते हैं ? पठारों की प्रमुख विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
पठार (Plateau)—पठार एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक इकाई है। धरती का एक बड़ा भाग (33%) पठारों से घिरा हुआ है। “पठार वह प्रदेश होता है, जो आमतौर पर समुद्र तल से एक समान ऊँचाई वाला हो। इर्द-गिर्द के धरातल से एकदम ऊँची और तीखी ढलान वाला हो।”
(“A Plateau is a highland with broad and flat summits”)

पठार आमतौर पर समुद्र तल से 300 से 1000 मीटर तक ऊँचे होते हैं, पर पठार की ऊँचाई कुछ भी हो सकती है, जैसे अमेरिका (U.S.A.) में पीडमांट पठार (Piedmont Plateau) केवल 600 मीटर ऊँचा है, पर पामीर का पठार कई ऊँचे पर्वतों से ऊँचा है और उसे ‘संसार की छत’ (Roof of the world) कहते हैं।

पठार की प्रमुख विशेषताएँ (Main features of Plateau)-

  1. सपाट और विशाल शिखर
  2. किनारों से तीखी ढलान।
  3. मेज के समान चौकोर ऊपरी सतह।
  4. निकट के क्षेत्रों से एकदम ऊँचा होना।

प्रश्न 4.
मैदान क्या होते हैं ?
उत्तर-
मैदान (Plains)—प्रमुख भू-आकारों (Major Land forms) में मैदान सबसे अधिक स्पष्ट और सरल होते हैं। थल के अधिकांश भाग (41%) पर इनका विस्तार है। मैदान धरती के निचले और समतल (सपाट) क्षेत्र होते हैं। “मैदान थल के वे सपाट भाग होते हैं, जो समुद्र तल से 150 मीटर से कम ऊँचाई पर होते हैं और जिनकी ढलान सपाट, मध्यम और साधारण होती है।” (“Plains are Lowlands of Low relief and horizontal structure”) मैदान सागर-तल से ऊँचे या नीचे हो सकते हैं, परन्तु अपने इर्द-गिर्द के पठार या पर्वत से कभी भी ऊँचे नहीं हो सकते।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 5.
अपरदन के मैदान कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
अपरदन के मैदान (Pene Plains)—’Pene Plains’ शब्द दो शब्दों Pene और Plain के जोड़ से बना है। ‘Pene’ शब्द के अर्थ हैं ‘लगभग’ या आमतौर पर ‘Almost’ और ‘Plain’ का अर्थ है-मैदान। इस प्रकार ‘Pene Plain’ का अर्थ है-लगभग मैदान या आमतौर पर ‘समभूमि। एक लंबे समय तक बाहरी साधनों बर्फ, जल, हवा आदि के लगातार कटाव के कारण पर्वत या पठार घिसकर नीचे हो जाते हैं और मैदान का रूप धारण कर लेते हैं। ये मैदान पूरी तरह से सपाट नहीं होते। इन मैदानों की ढलान अत्यंत हल्की होती है। इनके बीच कठोर चट्टानों के रूप में ऊँचे टीले मिलते हैं। ऐसे मैदानों में कठोर चट्टानों के टीले नष्ट नहीं होते और बचे रहते हैं। इन्हें मोनैडनाक (Monadnaks) कहते हैं। विश्व में इस प्रकार के पूर्ण सम-मैदान (Perfected Pene Plains) बहुत कम मिलते हैं।

उदाहरण (Examples)–

  • फिनलैंड और साइबेरिया के मैदान
  • भारत में अरावली प्रदेश।

प्रश्न 6.
‘पठार खनिज पदार्थों के भंडार होते हैं।’ व्याख्या करें।
उत्तर-
बहुत-से पठारों से लाभदायक खनिज मिलते हैं। कई पठार ज्वालामुखी की प्रक्रिया के कारण खनिज पदार्थों के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत के दक्षिणी पठार में कोयला, लोहा, मैंगनीज़ आदि मिलता है। पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका के पठार चूने की खानों के लिए प्रसिद्ध हैं। कनाडा के पठारों में तांबा और ब्राज़ील में लोहा मिलता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 7.
मैदानों में संसार की सबसे घनी जनसंख्या होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
विश्व की 80% जनसंख्या मैदानों में निवास करती है। मैदानों की सपाट ज़मीन पर बस्तियों का विकास होता है। सपाट भूमि और उपजाऊ भूमि के कारण ये मैदान कृषि योग्य प्रदेश होते हैं। मैदानों में रेलों, सड़कों और हवाई अड्डों का निर्माण आसान होता है। मैदान आर्थिक पक्ष से भी बड़े लाभदायक होते हैं, इसीलिए विश्व की अधिक जनसंख्या मैदानों में मिलती है।

प्रश्न 8.
मैदानों को विश्व का ‘अन्न भंडार’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
मैदान सपाट और उपजाऊ धरती के क्षेत्र हैं। गहरी मिट्टी और ऊँचे जल-स्तर के कारण यहाँ जल-सिंचाई के साधन मिलते हैं। मशीनों के प्रयोग के कारण अधिक अनाज उत्पन्न होता है। संसार की प्रमुख फसलें-कपास, गेहूँ, गन्ना, चावल आदि मैदानों में ही उगाई जाती हैं, इसीलिए मैदानों को संसार का ‘अन्न भंडार’ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पर्वतों से प्राप्त होने वाली संपत्तियों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
पर्वतों से मनुष्यों को अनेक लाभदायक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं-

  1. पर्वत खनिज संपत्ति के भंडार हैं, जैसे-कोयला, सोना, ताँबा, मैंगनीज आदि।
  2. पर्वतों से इमारती लकड़ी प्राप्त होती है। नर्म लकड़ी के कई उद्योग पर्वतों पर निर्भर करते हैं।
  3. पर्वत पन बिजली के स्रोत हैं।
  4. पर्वतों पर कई किस्म की फसलें उगाई जा सकती हैं; जैसे–चाय।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 10.
मैदानों पर मनुष्य का अधिकार सबसे पुराना है। क्यों ?
उत्तर-
प्राचीन काल से ही मैदान मानवीय सभ्यता के केन्द्र रहे हैं। आज भी मैदानों में संसार की 75% जनसंख्या निवास करती है।
नदी घाटियों और जलोढ़ मैदानों पर निवास स्थान, कृषि और आवाजाही की सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं। इन्हीं सुविधाओं के कारण ही प्राचीन सभ्यताओं का जन्म नदी घाटियों में ही हुआ था। रोम, मिस्र और सिंधु घाटी की सभ्यताओं के उदाहरण दिए जा सकते हैं। नदी घाटियों को सभ्यताओं का पालना (Cradle of Civilizations) भी कहा जाता है। यही कारण है कि मैदानों पर मनुष्य का अधिकार सबसे पुराना है।

प्रश्न 11.
अंतर-पर्वतीय पठारों और पर्वत-प्रांतीय पठारों में अंतर बताएँ।
उत्तर –
अंतर-पर्वतीय पठार (Piedmont Plateau) –

  1. ये पठार चारों तरफ से ऊँचे पर्वतों से घिरे होते हैं।
  2. इन पठारों में अंदरूनी जल-प्रवाह होता है।
  3. इनका विस्तार अधिक होता है।
  4. तिब्बत का पठार एक अंतर-पर्वतीय पठार है।

पर्वत-प्रांतीय पठार (Intermont Plateau) –

  1. ये पठार पर्वतों के आधार पर बने होते हैं।
  2. इनके एक तरफ समुद्र या मैदान स्थित होते
  3. इनका क्षेत्रफल सीमित होता है।
  4. पैंटोगोनीया का पठार एक पर्वत-प्रांतीय पठार है।

प्रश्न 12.
ब्लॉक पर्वतों और बलदार पर्वतों में अंतर बताएँ।
उत्तर-
ब्लॉक पर्वत (Fold Mountains)-

  1. ये पर्वत धरती की परतों में दरारें पड़ने से बनते हैं।
  2. इनका निर्माण सिकुड़ने और दबाव की शक्तियों से होता है।
  3. इनका शिखर मेज के समान चौकोर और समतल होता है।
  4. ऊँचे उठे हुए पर्वत को होरस्ट (Horst) और नीचे धंसे हुए पर्वत को दरार घाटी कहते हैं।
  5. विंध्याचल और वासजिस इसके उदाहरण हैं।

बलदार पर्वत (Block Mountains)-

  1. ये पर्वत चट्टानों की परतों में बल पड़ने से बनते हैं।
  2. इनका निर्माण तनाव और खिंचाव की शक्तियों से होता है।
  3. इसका शिखर ऊँचा-नीचा होता है।
  4. ऊपर उठे हुए भाग को Anticline और नीचे फँसे हुए भाग को Syncline कहते हैं।
  5. हिमालय और एल्पस पर्वत इसके उदाहरण हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 13.
ब्लॉक पर्वत और रिफ्ट घाटी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
ब्लॉक पर्वत (Block Mountains)-

  1. दो दरारों के बीच ऊपर उठे हुए भू-खंड को ब्लॉक पर्वत कहते हैं।
  2. इसे होरस्ट पर्वत भी कहते हैं।
  3. इसका निर्माण ऊपर उठने की क्रिया से होता है।
  4. विंध्याचल एक ब्लॉक पर्वत है।

रिफ्ट घाटी (Rift Valley)-

  1. दो दरारों के बीच नीचे धंसे हुए भू-भाग को दरार घाटी कहते हैं।
  2. इसे रिफ्ट घाटी भी कहते हैं।
  3. इसका निर्माण नीचे धंसने की क्रिया से होता है।
  4. राइन घाटी एक रिफ्ट घाटी है।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मैदानों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
मैदानों का महत्त्व (Importance of Plains)-मैदानों में कृषि, उद्योग, ढुलाई, व्यापार और मानवीय विकास की सभी सुविधाएँ होती हैं।
1. निवास की सुविधाएँ (Settlement of Population) मैदानों में सपाट ज़मीन पर बस्तियों का विकास संभव है। मैदानों में संसार की 75% जनसंख्या निवास करती है।

2. कृषि की सुविधाएँ (Agriculture facilities)-समतल भूमि, गहरी और उपजाऊ मिट्टी के कारण मैदान कृषि-योग्य उत्तम क्षेत्र होते हैं।

3. अन्न के भंडार (Store house of foodgrains)—मैदानों में सिंचाई की सुविधाएँ, उपजाऊ मिट्टी और मशीनों के प्रयोग के कारण अधिक अनाज उत्पन्न होता है। संसार की सभी व्यापारिक फसलें गेहूँ, गन्ना, कपास और पटसन आदि मुख्य रूप से मैदानों में होती हैं।

4. सभ्यताएँ (Civilizations)—संसार की सभी प्राचीन सभ्यताओं का विकास मैदानों में ही हुआ था। चीन और मिस्र की सभ्यताओं ने नदी घाटियों में ही जन्म लिया था।

5. आसान आवाजाही (Easy Transport)-मैदानों में सपाट भूमि के कारण चौड़ी और लंबी सड़कों (Highways), रेलमार्गों (Railways), जलमार्गों (Waterways) और हवाई अड्डों (Aerodromes) का निर्माण आसान होता है। नदियों द्वारा भी आवाजाही में आसानी होती है। नदियों की धीमी चाल के कारण इनमें नावें और जहाज़ चलाए जा सकते हैं।

6. उद्योग (Industries)-मैदान आर्थिक जीवन की धुरी होते हैं। सभी सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण संसार के सभी बड़े उद्योग मैदानों में स्थित हैं। इसका कारण यह है कि सबसे पहले, मैदानों में कच्चा माल (Raw materials) आसानी से मिल जाता है। दूसरे, आवाजाही और संचार के साधन उपलब्ध होने के कारण माल एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से लाया व ले जाया जा सकता है। तीसरे, जनसंख्या अधिक होने के कारण मज़दूरी सस्ती होती है। व्यापार का विकास होता है।

7. नगर (Towns/Cities)-आर्थिक और सामाजिक सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण संसार के प्रमुख नगर मैदानों में ही स्थित हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 2.
पठारों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
पठारों का महत्त्व (Importance of Plateaus)-
1. ठंडी जलवायु (Cool Climate)-पठार मैदानों की तुलना में ठंडे होते हैं। यही कारण है कि ऑस्ट्रेलिया और पूर्वी अफ्रीका के पठारों में यूरोप के निवासी जा बसे हैं और जनसंख्या अधिक है।

2. भेड़ें पालना (Sheep rearing)—पठारों में चरागाहों की सुविधा होती है। यहाँ भेड़-बकरियाँ पाली जाती हैं और ऊन प्राप्त होती है।

3. डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming)-पठारों में घास के मैदानों में पशु पाले जाते हैं। यही कारण है कि अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में डेयरी फार्मिंग (Dairy Farming) का अधिक विकास हुआ है।

4. खनिज पदार्थों के भंडार (Storehouse of Minerals)-बहुत से पठार लाभदायक धातुओं और खनिज पदार्थों के भंडार हैं, जिनके आधार पर अलग-अलग उद्योगों का विकास हुआ है, जैसे-ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में ताँबा और सोना, अफ्रीका में हीरा, भारत में लोहा और मैंगनीज़।

5. उपजाऊ मिट्टी (Fertile Land) ज्वालामुखी पठार लावे की मिट्टी के कारण लाभदायक होते हैं; जैसे दक्षिण का पठार काली मिट्टी के कारण कपास की खेती के लिए लाभदायक है।

6. पन-बिजली (Water Power)—पठार की नदियाँ झरने बनाती हैं, जिनसे पन-बिजली प्राप्त होती है। अफ्रीका और भारत के दक्षिणी पठार में पन-बिजली की अधिक संभावनाएँ हैं।

दोष (Demerits)-
नीचे लिखे पठार मनुष्यों के निवास के योग्य नहीं होते-

  1. जहाँ जलवायु प्रतिकूल हो।
  2. जहाँ की भूमि उपजाऊ न हो।
  3. जिनमें कटाव आदि अधिक हो।
  4. जो बहुत ऊँचे और ठंडे हों।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 3.
पर्वतों के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
पर्वत आर्थिक दृष्टि से सहायक हैं और रुकावट भी। इन प्रदेशों में सपाट भूमि की कमी, कम गहरी मिट्टी और पथरीली बनावट के कारण ज़मीन खेती के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं होती है। आवाजाही के साधनों की कमी, प्रतिकूल जलवायु और निवास स्थानों की कमी के कारण जनसंख्या भी बहुत कम होती है। फिर भी पर्वत अनेक प्रकार से लाभदायक हैं1.

1. खनिज संपत्ति के स्त्रोत (Sources of Mineral Wealth)—पर्वत लाभदायक धातुओं और खनिजों के भंडार होते हैं। इन प्रदेशों में खानों के खनन का व्यवसाय विकास कर जाता है। रूस के यूराल पर्वतों में लोहा और मैंगनीज़, दक्षिणी अमेरिका के ऐंडीज़ में सोना, चाँदी, ताँबा, और संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) के एपलेशियन पर्वत में कोयला मिलता है।

2. जंगलों का घर (Home of Forests)-पर्वत अलग-अलग प्रकार की इमारती लकड़ी से ढके होते हैं, जैसे हिमालय पर्वत पर साल और सागवान के जंगल मिलते हैं। कई तरह के उद्योग जंगलों पर आधारित होते हैं। इन जंगलों से ईंधन, कागज़, रेशम, दियासलाई आदि बनाने के लिए लकड़ी प्राप्त होती है। कई पहाड़ी देशों, जैसे स्वीडन और नॉर्वे की उन्नति इन जंगलों पर ही आधारित है।

3. स्वास्थ्यवर्धक स्थान (Health Resorts)-पर्वत मैदानों में रहने वाले लोगों को सदा अपनी ओर आकर्षित करते हैं। पर्वतों का निम्न तापमान, स्वास्थ्यवर्धक, सुहावनी जलवायु और आकर्षक दृश्य गर्मियों की ऋतु में आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। जिस प्रकार कश्मीर और स्विट्ज़रलैंड में लाखों पर्यटक मन बहलाने के लिए विदेशों से घूमने-फिरने के लिए आते हैं, जिससे पर्यटन उद्योग (Tourist Industry) की आमदनी बढ़ जाती है। लोग अनेक पहाड़ी ढलानों पर स्कींग (Skiing) आदि खेल भी खेलते हैं।

4. सुरक्षा (Defence) सुरक्षा की दृष्टि से भी पर्वत लाभदायक हैं। भारत की उत्तरी सीमा पर हिमालय पर्वत देश की रक्षा का काम करता है। परंतु आज के वैज्ञानिक युग में पर्वत भी देश को आक्रमण से नहीं बचा सकते, जैसे-1962 में चीन ने हिमालय पर्वत के तिब्बत की ओर से भारत पर आक्रमण किया था।

5. प्राकृतिक सीमाएँ (Natural Boundaries)—ऊँचे पर्वत अलग-अलग देशों के बीच प्राकृतिक और राजनीतिक सीमाएँ बनाते हैं, जिस प्रकार भारत और चीन के बीच हिमालय पर्वत एक प्राकृतिक सीमा है। पर्वतीय स्थिति वाले बहुत-से छोटे-छोटे देश सदा स्वतंत्र रहते हैं, जैसे-नेपाल, स्विट्ज़रलैंड आदि। परंतु पर्वतीय सीमाएँ सही ढंग से निर्धारित नहीं होती हैं।

6. जलवायु (Climate)-पर्वतों की स्थिति और दिशा, वर्षा और तापमान पर प्रभाव डालती हैं। पर्वत नमी से भरपूर पवनों को रोककर वर्षा करते हैं। जैसे हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोककर भारत में काफी वर्षा करते हैं। पर्वत स्थिति के अनुसार गर्म और ठंडी वायु को एक देश से दूसरे देश में प्रवेश करने से रोकते हैं। हिमालय पर्वत मध्य एशिया की ठंडी हवाओं को रोक लेता है, नहीं तो उत्तरी भारत में सर्दियों की ऋतु चीन के समान अत्यंत कठोर होती। यदि हिमालय पर्वत न होता, तो गंगा का मैदान एक मरुस्थल होता।

7. चरागाह (Pastures)-पर्वतीय ढलानों पर चरागाहों की सुविधा होती है, जहाँ भेड़-बकरियाँ चराई जाती हैं पहाड़ी प्रदेशों में मौसमी पशु चारण (Transhumance) भी होता है।

8. नदियों के स्त्रोत (Sources of Rivers)-ऊँचे पर्वतों से अनेक नदियाँ निकलती हैं। ऊँचे बर्फीले पर्वतों से निकलने वाली नदियों से पूरा साल जल प्राप्त होता रहता है और सिंचाई के लिए स्थायी नहरें निकाली जाती हैं। गंगा का मैदान हिमालय पर्वत से निकलने वाली नदियों के कारण ही बना है।

9. पन-बिजली (Water Power)-पर्वतीय प्रदेशों में नदियों के मार्ग में अनेक झरने बनते हैं, जो पन-बिजली के विकास के लिए आदर्श स्थान होते हैं। जापान, इटली और स्वीडन जैसे पहाड़ी प्रदेशों में पन-बिजली के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।

10. विशेष पैदावार (Special Crops)-पर्वतीय ढलानें कुछ विशेष उपजों के लिए अनुकूल क्षेत्र होती हैं, जैसे-चाय और कहवा/कॉफी आदि। भारत में असम की पहाड़ी ढलानों पर चाय के बाग़ (Tea Estates) मिलते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 4.
पर्वत निर्माणकारी परिकल्पना भू-अभिनीति का वर्णन करें।
उत्तर-
पर्वत निर्माणकारी परिकल्पना भ-अभिनीति (Mountain Building Theory-Geosynclines)-
पर्वत पृथ्वी के रहस्यमय भू-आकार हैं। इनकी रचना बहुत जटिल है। पर्वत-निर्माण एक निरंतर क्रिया नहीं है और कुछ युगों तक सीमित है। पर्वतीय सिलसिले बहुत जटिल हैं। इनके अध्ययन से इनकी विशेषताओं का पता चलता है-

1. तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks) विश्व के सभी पर्वत परतदार चट्टानों से बने हैं। इन चट्टानों का जन्म समुद्र में होता है। पर्वतों के मोड़ों में उपलब्ध जीवाश्म भी प्रकट करते हैं कि पर्वत समुद्री फर्श से ही ऊपर उठे हैं। (Mountains have arisen out of sea.)

2. चाप आकार (Arc Shape)-संसार के बड़े-बड़े पर्वतों की स्थिति समुद्री तटों के समानांतर एक चाप के आकार की है, जैसे रॉकी एंडीज़ और हिमालय पर्वत । इनकी रचना धरातल की समानांतर दिशा पर दबाव पड़ने से हुई है इसीलिए इनका आकार बाहर की ओर चाप के समान है। एक खोज से पता चला है कि पर्वतीय क्षेत्रों की लंबाई अधिक है और चौड़ाई कम है। तलछटी चट्टानों की बहुत अधिक मोटाई का कारण खोजना बहुत कठिन है। इतनी अधिक मोटाई में तलछट के एकत्र होने का कारण भू-अभिनीति (Geosyncline) ही संभव है। भू-अभिनीति धरातल पर एक लंबा, तंग और कम गहरा भाग है, जिसमें नदियों के द्वारा जमा किए गए तलछट इकट्ठे होते हैं और उनके भार के नीचे दबकर वह नीचे को धंसता रहता है। (Geosynclines are long but narrow and shallow depressions in which sedimentation and subsidence take place simultaneously.) 1873 में एक वैज्ञानिक डैना ने इस प्रकार के निर्माण को भू-अभिनीति का नाम दिया। इसके आधार पर पर्वत-निर्माण में तीन चरण ज़रूरी हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 9

(i) भू-अभिनीति चरण (Geosyncline Stage)-पर्वत निर्माण में यह पहला चरण है, जबकि एक कम गहरे स्थान पर तलछट जमा होते हैं जिससे यह स्थान भर जाते हैं, इन्हें भू-अभिनीति कहते हैं। इस अवस्था में भू-अभिनीति की उत्पत्ति, तलछट का जमाव, तल का नीचे धंसना आदि क्रियाएँ होती हैं। इनके लिए कुछ दशाओं का होना ज़रूरी होता है

(क) भू-अभिनीति का समुद्र से नीचे मौजूद होना।
(ख) यह भू-अभिनीति लंबी, तंग और एक गर्त (Trough) के आकार के समान हो।
(ग) भू-अभिनीति के निकट कोई-न-कोई ऊँचा प्रदेश हो, जहाँ से नदियाँ मलबे को बहाकर ला सकें और भू-अभिनीति धीरे-धीरे मलबे से भर जाए।

(ii) पर्वत निर्माण का चरण (Orogenic Stage)-जब भू-अभिनीति पूरी हो जाती है, तो जमा हुई तलछट की मोटाई हज़ारों फुट तक पहुँच जाती है। तनाव और संपीड़न के कारण वलन क्रिया होती है, जिससे पर्वत बनते हैं। इसलिए भू-अभिनीतियों को पर्वतों का झूला (Cradle of Mountains) कहा जाता है।

प्रश्न 5.
वैगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत का वर्णन करें। इसके पक्ष में प्रमाण दें।
उत्तर-
वैगनर की महाद्वीपीय विस्थापन परिकल्पना (Wegner’s Continental Drift Hypothesis). महाद्वीपों के विस्थापन की कल्पना सबसे पहले फ्रांसीसी विद्वान् एंटोनीयो स्नाइडर ने सन् 1858 में की थी। इसके बाद एफ० जी० टेलर (F.G. Taylor) ने भी ऐसा ही विचार पेश किया था। परंतु ये दोनों विद्वान् अपने विचारों को स्पष्ट रूप देने में असमर्थ रहे, इसीलिए उन्हें मान्यता नहीं मिली। सन् 1912 में जर्मन वैज्ञानिक अल्फ्रेड वैगनर (Alfred Wegner) ने कुछ तथ्यों को सामने रखकर महाद्वीपीय विस्थापन की परिकल्पना प्रस्तुत की। सन् 1929 में वैगनर ने इसमें कुछ शोध करके इसे फिर से पेश किया। वैगनर वास्तव में एक मौसम वैज्ञानिक था, जो ऋतु-परिवर्तन (Variation of climate) की समस्याओं का समाधान खोजने में जुटा हुआ था।

थल-मंडल में अनेक क्षेत्रों में उष्ण-कटिबंधीय (Tropical), भू-मध्य-रेखीय (Equatorial) और ध्रुवीय (Polar) जलवायु अपनी वर्तमान स्थिति से दूर के स्थानों में पाई जाती है। इसके दो ही कारण हो सकते हैं-

  1. एक तो यह कि जलवायु में समय-समय पर परिवर्तन होता रहा है।
  2. फिर महाद्वीप खिसककर एक जलवायु खंड से दूसरे जलवायु खंड में आते रहते हैं। वैगनर ने उपरोक्त दूसरे कारण के आधार पर अपनी परिकल्पना पेश की।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 10

वैगनर के सिद्धांत की रूपरेखा (Outline of Wegner’s Hypothesis)-

1. वैगनर ने सियाल (SIAL) के बने हुए महाद्वीपों को बसाल्ट की सीमा पर तैरते हुए माना। वैगनर के अनुसार आदिकाल पुरातन जीवी महाकल्प (Late Palezoic Period-2700 years ago) में सभी महाद्वीप किसी विशाल महाद्वीप का अंग थे। इस विशाल महाद्वीप को उसने पैंजीया का नाम दिया। पैंजीया चारों तरफ से एक विशाल महासागर से घिरा हुआ था जिसे वैगनर ने पैंथालामा (Panthalamma) कहा है।

2. अंगारालैंड और गोंडवानालैंड-जीया के मध्य में पूर्व-पश्चिम दिशा में एक विस्तृत पर कम गहरा सागर था, जिसे टेथीज़ (Tetheys) का नाम दिया जाता है। टेथीज़ सागर के उत्तर के विस्तृत भाग को लुरेशिया (Laurasia) या अंगारालैंड (Angaraland) और सागर के दक्षिण के विस्तृत महाद्वीप को गोंडवानालैंड का नाम दिया गया है।

3. भूमध्यरेखा की ओर विस्थापन-वैगनर के अनुसार यह पैंजीया टूटकर भूमध्य रेखा और पश्चिम दिशा में स्थित हो गया। भूमध्य रेखा की ओर स्थित होने के कारण गुरुत्वाकर्षण में अंतर था।

4. पश्चिम की ओर विस्थापन-पैंजीया के खंडों का पश्चिम की ओर विस्थापन चंद्रमा की ज्वारीय शक्ति (Tide force) के कारण था। भूमध्य रेखा की ओर विस्थापन से मुख्य रूप में यूरोप और अफ्रीका प्रभावित हुए। पश्चिम की ओर विस्थापन से उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका प्रभावित हुए।

5. इसके बाद अलग-अलग युगों में टरशियरी युग (Tertiary Period-60 Lakh years ago) में अलग-अलग महाद्वीप और महासागर बने।

परिकल्पना के पक्ष में प्रमाण (Evidences in favour of the Hypothesis)-इस परिकल्पना के पक्ष में अनेक प्रमाण प्रस्तुत किए गए हैं, जो नीचे लिखे हैं-

1. भौगोलिक प्रमाण (Geographical Proofs)-अंध महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तटों में समानता पाई गई है। ये दोनों तट एक आरे के समान तथा एक-दूसरे में फिट होने की स्थिति में होते हैं। पूर्वी ब्राज़ील का . उभार (Bulge) पश्चिमी अफ्रीका और गिनी तट में आसानी से फिट हो जाता है। इसे Jig-saw fit कहते हैं। अंध महासागर की मध्यवर्ती कटक (Mid-Atlantic Ridge) के एक तरफ अमेरिका और दूसरी तरफ अफ्रीका जुड़ जाते हैं। .

2. भू-गर्भीय प्रमाण (Geological Proofs)-अंध महासागर के दोनों तटों पर स्थित पर्वत श्रेणियों की दिशा और चट्टानों की ओर रेखाओं में समानता देखी गई है। अंध महासागर के पूर्वी और पश्चिमी तट किसो समय एक थे।

3. चट्टानों के प्रमाण (Proofs of Rocks)-अंध महासागर के दोनों तटों पर पाई जाने वाली शैलों में समानता देखी गई है। ब्राज़ील का पठार, दक्षिण अफ्रीका, भारत का प्रायद्वीप पठार और ऑस्ट्रेलिया पठार की चट्टानें लगभग एक जैसी हैं।

4. जैविक प्रमाण (Biological Proofs)-उत्तर-पश्चिमी यूरोप और पूर्वी अमेरिका के भागों में वनस्पति और जीवों के अवशेषों में समानता पाई जाती है।

5. सर्वेक्षण के प्रमाण (Geodesy’s Proofs)—ऐसा प्रतीत होता है कि ग्रीनलैंड 32 मीटर प्रति वर्ष की गति से उत्तरी अमेरिका की ओर खिसक रहा है। यह तथ्य 1832, 1870, और 1917 के माप पर आधारित है।
इस तथ्य से वैगनर के महाद्वीप खिसकने के विचार की पुष्टि होती है।

6. नवीन और आधुनिक प्रमाण प्लेट टैक्टौनिक का सिद्धांत (Plate Tectonic Theory) आधुनिक सर्वेक्षण में प्लेट टैक्टौनिक के सिद्धांत ने वैगनर के सिद्धांत की पुष्टि की है। जब इन भू-प्लेटों की सीमाओं पर संवहन धाराओं (Convection _Currents) की क्रिया होती है, तब भू-प्लेटें खिसकती हैं और महाद्वीप भी खिसकते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार

प्रश्न 6.
भू-प्लेट टैक्टौनिक सिद्धान्त की व्याख्या करें।
उत्तर-
भू-प्लेट टैक्टौनिकस (Plate-tectonics)-आधुनिक परीक्षणों और खोज से पता चलता है कि स्थल मंडल और मैंटल भू-प्लेटों में विभाजित हैं। ये भू-प्लेटें खिसकती रहती हैं। भू-प्लेटों की सीमाओं पर अंदरूनी हलचल होती रहती है। परिणामस्वरूप भू-प्लेटों के साथ-साथ महाद्वीप भी खिसकते रहते हैं और कई क्रियाएँ और भू-आकार जन्म लेते हैं।

भू-प्लेटों के प्रकार (Types of Plates)-स्थल मंडल भू-प्लेटों का समूह है, जिसमें 6 मुख्य भू-प्लेटें और 14 छोटे आकार की प्लेटें हैं। इन भू-प्लेटों की औसत मोटाई 100 कि० मी० है और ये प्लेटें कई हज़ार कि०मी० चौड़ी हैं। भू-प्लेटें मुख्य रूप से दो प्रकार की हैं-

1. महाद्वीपीय भू-प्लेटें (Continental Plates)—इन प्लेटों में अधिक भाग महाद्वीपीय थल मंडल का होता
2. महासागरीय प्लेटें (Oceanic Plates)—इन प्लेटों का विस्तार महासागर के तल पर होता है। सारी पृथ्वी
को 6 मुख्य भू-प्लेटों में बाँटा गया है।

  • प्रशांत महासागरीय प्लेट
  • एशियाई प्लेट
  • अमेरिकी प्लेट
  • भारतीय प्लेट
  • अफ्रीकी प्लेट
  • अंटार्कटिक प्लेट

भू-प्लेटों के खिसकने के कारण-

1. तापीय संवहन-सन् 1928 में आर्थर होमज़ (Arthur Holmes) ने यह सिद्धान्त पेश किया कि मैगमा की संवहन तरंगों (Convection currents) के द्वारा महाद्वीपों का खिसकना होता है। उस समय इस सिद्धान्त को पूरी मान्यता नहीं मिली थी। आधुनिक समय में चुंबकीय सर्वे, रेडियो एक्टिव पदार्थों की खोज, मध्यसागरीय कटकों और सागरीय तल के फैलने (Ocean spreading) की खोज ने सिद्ध कर दिया है कि पृथ्वी के मैटल भाग में मैगमा की संवहन धाराएँ चलती हैं। इस प्रकार यह मैगमा ऊपर उठता है। इसके प्रवाह से भू-प्लेटें खिसकती हैं। परिणामस्वरूप महाद्वीपीय विस्थापन होता है। इस प्रकार पृथ्वी के केंद्रीय भाग में अणु-ऊर्जा के कारण संवहन धाराएं चलती हैं। ये भू-प्लेटें एक-दूसरे से महासागरीय कटकों और ट्रैचों के द्वारा अलग-अलग होती हैं।

2. संचालन क्रिया-गर्म धाराएँ ऊपर की ओर उठती हैं और फ़िर नीचे की ओर जाकर ठंडी हो जाती हैं। ये धाराएँ भू-प्लेटों को गतिशील बना देती हैं।

3. ज्वालामुखी क्रिया-भूतल के नीचे ज्वालामुखी के केंद्र संवहन धाराओं को जन्म देते हैं। इन्हें गर्म स्थल (Hot Spot) कहते हैं। ये भू-प्लेटों को गतिशील करते हैं।

भू-प्लेटों की कार्यविधि-भू-प्लेटों की तीन प्रकार की सीमाएँ बनती हैं-

  • निर्माणकारी प्लेट सीमा निर्माणकारी क्षेत्र वे सीमाएँ हैं, जहाँ प्लेटें एक-दूसरे से अलग होती हैं और मैगमा बाहर आता है। ऐसी सीमाओं पर ज्वालामुखी क्रिया और भूचाल आते हैं।
  • विनाशकारी प्लेट सीमा-ये वे सीमाएँ हैं, जहाँ एक प्लेट का सिरा दूसरी प्लेट के ऊपर चढ़ जाता है।
  • रूपांतर प्लेट सीमा-यहाँ भू-प्लेटें एक-दूसरे की विपरीत दिशा में साथ-साथ खिसकती हैं।

प्रभाव (Effects)-

1. महाद्वीपों का खिसकना (Continental Drift)-भू-प्लेटों के खिसकने का महाद्वीपों पर प्रभाव पड़ता है। महाद्वीप भू-प्लेटों के अंदर स्थापित हैं, इसीलिए वे प्लेटों के साथ गति करते हैं। इस खिसकाव से रिफ्ट घाटी, सागर और महासागर की रचना होती है।

2. पर्वत निर्माणकारी क्रिया (Mountain Building)-भू-प्लेटें अपनी सीमाओं पर सागरीय कटकों के द्वारा अलग-अलग होती हैं। इन सीमाओं पर भू-प्लेटें खिसकती हैं या टकराती हैं। कई स्थानों पर नीचे सरकने से भू-अभिनीति (Geosyncline) की रचना होती है। इसमें करोड़ों वर्षों तक तलछट जमा होते रहते हैं। इनके उठाव (uplift) के कारण मोड़दार पर्वत बनते हैं। गोंडवाना प्लेट के उत्तर की ओर खिसकने के कारण टैथीज़ सागर में हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है। उत्तरी अमेरिका की भू-प्लेट के पश्चिम की ओर खिसकने से रॉकी और एंडीज़ पर्वतों का निर्माण हुआ है। इस प्रकार इस आधुनिक परिकल्पना ने भू-विज्ञान में एक नई क्रांति पैदा की है। इस सिद्धान्त से वैगनर के विस्थापन सिद्धान्त की पुष्टि होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 4 प्रमुख भू-आकार 11