Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 19 भारत में कृषि Textbook Exercise Questions, and Answers.
PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 19 भारत में कृषि
PSEB 12th Class Economics भारत में कृषि Textbook Questions and Answers
I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में कृषि का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
भारत में कृषि का महत्त्वभारत की राष्ट्रीय आय का अधिक भाग कृषि से प्राप्त होता है और कृषि उत्पादन रोज़गार का मुख्य स्रोत है।
प्रश्न 2.
कृषि उत्पादन तथा कृषि उत्पादकता में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
कृषि उत्पादकता में खाद्य उपज जैसे गेहूं इत्यादि और कृषि उत्पादकता द्वारा प्रति हेक्टेयर उत्पादन का माप किया जाता है।
प्रश्न 3.
भूमि सुधारों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भूमि सुधारों से अभिप्राय है
- ज़मींदारी प्रथा का खात्मा
- काश्तकारी प्रथा में सुधार
- चकबंदी
- भूमि की अधिक-से-अधिक सीमा निर्धारित करना
- सहकारी खेती।
प्रश्न 4.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के कोई दो कारण बताओ।
उत्तर-
- सिंचाई की कमी।
- कृषि के पुराने ढंग।
प्रश्न 5.
किसी खेत में पशुओं तथा फ़सलों के उत्पादन सम्बन्धी कला तथा विज्ञान को ……….. कहते हैं।
(a) अर्थशास्त्र
(b) समाजशास्त्र
(c) कृषि
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) कृषि।
प्रश्न 6.
कृषि उत्पादकता में .. …………. उत्पादन का माप किया जाता है।
(a) कुल उत्पादन
(b) प्रति हेक्टेयर
(c) फसलों के
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) प्रति हेक्टेयर।
प्रश्न 7.
कृषि उत्पादन में ………….. में परिवर्तन का माप किया जाता है।
उत्तर-
उपज।
प्रश्न 8.
भूमि के भू-स्वामी से सम्बन्धित तत्त्वों को ……………. तत्त्व कहा जाता है।
उत्तर-
संस्थागत तत्त्व।
प्रश्न 9.
(1) ज़मींदारी प्रथा की समाप्ति
(2) चक्कबंदी
(3) सहकारी खेती आदि को ……………… सुधार कहा जाता है।
उत्तर-
भूमि सुधार।
प्रश्न 10.
गेहूं, चावल, दालें, आदि फ़सलों को ……………. फ़सलें कहा जाता है।
उत्तर-
खाद्य फ़सलें।
प्रश्न 11.
भारत में वर्ष 2019-20 में 296.65 मिलियन टन अनाज की पैदावार हुई।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 12.
जिस नीति द्वारा उन्नत बीज, रासायनिक खाद, सिंचाई, कृषि, वित्त आदि में सुधार किया गया है उसको नई कृषि नीति कहा जाता है।
उत्तर-
सही।
प्रश्न 13.
कृषि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक खेत में फसलों तथा पशुओं की पैदावार को कृषि कहा जाता है।
प्रश्न 14.
कृषि में संस्थागत तत्त्वों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भूमि के आकार और स्वामित्व से सम्बन्धित तत्त्वों को कृषि के संस्थागत तत्त्व कहा जाता है।
प्रश्न 15.
कृषि में तकनीकी तत्त्वों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कृषि में खेतीबाड़ी की विधियों को कृषि के तकनीकी तत्त्व कहा जाता है।
प्रश्न 16.
भारत में कृषि की उत्पादकता के पिछड़ेपन के लिए मुख्य तीन प्रकार के तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादकता के पिछड़ेपन के लिए मानवीय, संस्थागत और तकनीकी तत्त्व आते हैं।
प्रश्न 17.
नई कृषि नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में उन्नत बीज, रासायनिक खाद्य, सिंचाई और कृषि सुधारों को कृषि की नई नीति कहा जाता है।
प्रश्न 18.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में नई कृषि के फलस्वरूप अनाज की वृद्धि को हरित क्रान्ति कहा जाता है।
प्रश्न 19.
भारत में 2019-20 में चावल का उत्पादन 117.47 मिलियन टन और गेहूँ का उत्पादन 106.21 मिलियन टन हुआ।
उत्तर-
सही।
II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में कवि की कोई दो समस्याएं बताएं।
उत्तर-
1. कम उत्पादकता (Less Productivity)-भारत में विकसित देशों की तुलना में प्रति श्रमिक उत्पादकता बहुत कम है। भारत में प्रति श्रमिक उत्पादकता 1146 डालर जबकि नार्वे में 97879 डालर है। इसी तरह विभिन्न फसलों का उत्पादन भी बहुत कम है। गेहूं, चावल, कपास, पटसन इत्यादि उपज की पैदावार पश्चिमी देशों से बहुत कम है।
2. कृषि उत्पादन तथा रोज़गार (Agriculture and Employment)-भारत में कृषि रोज़गार का महत्त्वपूर्ण साधन है। 1951 में 97 मिलियन लोगों को रोज़गार कृषि उत्पादन में प्राप्त होता था। 2019-20 में 519 मिलियन लोग (57.9%) कृषि उत्पादन के पेशे में लगे हुए थे। भारत में लगभग दो तिहाई जनसंख्या का कृषि उत्पादन क्षेत्र पर निर्भर रहना, जहां कृषि के महत्त्व का सूचक है, वहां देश के अल्पविकसित होने का प्रमाण है।
प्रश्न 2.
भारत में कृषि की कोई दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादन की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं-
1. कम उत्पादकता- भारत में कृषि उत्पादकता में वृद्धि हो हुई है परंतु विश्व के कई देशों से यह अब भी बहुत कम है। 2019-20 में भारत में गेहूं का उत्पादन 3307 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि इंग्लैंड में 8810 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। चावल को पैदावार भारत में 2659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जबकि अमेरिका में 686 किलोगाम पनि हेक्टेयर है ! इस्पसे गना लगता है कि भारत की तुलना में प्रत्येक देशों में फसलों की उपज अति है।
2. क्षेत्रीय असमानता–भारतीय ताषि में क्षेत्रीय असमानता बहुत अधिक पाई जाती है। भारत के कई राज्यों जैसे कि हरियाणा, पंजाब, आग प्रदेश, महाराष्ट्र, इत्यादि में अनाज का उत्पादन काफ़ी बढ़ा है। परन्तु कुछ राज्यों जैसे कि बिहार, छतीसगढ़, उड़ीसा इत्यादि में खुराक-अनाज के उत्पादन में बहुत कम वृद्धि हुई है।
प्रश्न 3.
भारत में कृषि की समस्याओं को हल करने के लिए कोई दो सुझाव दें।
उत्तर-
- जनसंख्या का कम दवाय-कृषि की उन्नति के लिए अनिवार्य है कि भूमि पर जनसंख्या का दबाव कम किया जाए। इसीलिए उद्योगों का विकास अनिवार्य है।
- मशीनीकरण-कृषि के विकास के लिए नए यन्त्र बनाए जाने चाहिए। इससे उत्पादकता में वृद्धि होगी।
प्रश्न 4.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् किसी एक भूमि सुधार का वर्णन करें।
उत्तर-
भूमि की उच्चतम सीमा- भूमि की उच्चतम सीमा का अर्थ है कि एक मनुष्य अथवा परिवार अधिक-सेअधिक कितनी कृषि योग्य भूमि का मालिक हो सकता है। यदि किसी मनुष्य अथवा परिवार के पास उच्चतम सीमा से अधिक भूमि है तो भूमि भू-स्वामियों से ले ली जाएगी इसके बदले में मुआवजा दिया जाएगा। यह अधिक प्राप्त भूमि छोटे किसानों, काश्तकारों तथा भूमिहीन कृषि मज़दूरों में विभाजित की जाएगी। इसका मुख्य उद्देश्य देश में भूमि का समान तथा उचित वितरण करके उत्पादन में वृद्धि करना है।
प्रश्न 5.
कृषि की नई नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नई कृषि नीति का अर्थ- भारत में कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए लॉर्ड फाऊंडेशन की प्रधानगी अधीन एक दल 1959 में अमेरिका से आया। इस दल की सिफारिशों को ध्यान में रखकर जो नीति अपनाई गई उसको नई कृषि नीति कहा जाता है। नई कृषि नीति से अभिप्राय उस नीति से है जिसका उद्देश्य कृषि विकास के नए साधनों, उन्नत बीजों, रासायनिक खाद, सिंचाई, कृषि वित्त, पौधों की सुरक्षा करना तथा किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना है।
प्रश्न 6.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप अनाज में हुई 25% वृद्धि को हरित क्रान्ति का नाम दिया गया है। प्रो० जे० जी० हुगर के शब्दों में, “हरित क्रान्ति शब्द का प्रयोग 1968 में होने वाले आश्चर्यजनक परिवर्तन के लिए किया जाता है, जो भारत में अनाज के उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।” हरित क्रान्ति के मुख्य कारण-
- सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि,
- रासायनिक खादों का प्रयोग,
- उन्नत बीज,
- बहु-फसली कृषि,
- आधुनिक कृषि यंत्र,
- साख सुविधाएं हैं।”
III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत में कृषि के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
भारत में कृषि बहुत महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि 60% जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर निर्भर करती है। कृषि के महत्त्व को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
- राष्ट्रीय आय-भारत में राष्ट्रीय आय का लगभग आधा भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है।
- रोज़गार-भारत में कृषि रोज़गार का मुख्य स्रोत है। सन् 2015 में 60 प्रतिशत कार्यशील जनसंख्या कृषि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रही थी।
- विदेशी व्यापार–भारत के विदेशी व्यापार में कृषि का बहुत महत्त्व है। कृषि पदार्थों का निर्यात करके विदेशों से मशीनों का आयात किया जाता है।
- आर्थिक विकास- भारत की कृषि देश के आर्थिक विकास का आधार है। दशम् योजना में कृषि के विकास पर अधिक जोर दिया गया है।
प्रश्न 2.
भारत में कृषि विकास के लिए किए गए प्रयत्नों पर प्रकाश डालें।
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि के विकास के लिए बहुत प्रयत्न किए गए हैं।
1. उत्पादकता में वृद्धि-कृषि की उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए नए बीजों का प्रयोग किया गया है। फसलों के ढांचे के रूप में परिवर्तन किया जा रहा है।
2. तकनीकी उपाय-तकनीकी उपायों में-
- सिंचाई का विस्तार,
- बहुफसली कृषि
- खाद्य
- अधिक उपज देने वाले बीज
- वैज्ञानिक ढंग से कृषि इत्यादि द्वारा कृषि विकास किया गया है।
3. संस्थागत उपाय-संस्थागत उपायों में
- ज़मींदारी का खात्मा
- काश्तकारी प्रथा
- साख-सुविधाएं
- बिक्री संबंधी सुधार शामिल हैं।
4. नई कृषि नीति-कृषि के विकास के लिए सरकार ने नई कृषि नीति अपनाई है, इसमें
- अनुसंधान
- पूंजी निर्माण
- बिक्री तथा स्टोरज़
- जल संरक्षण
- सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि करना शामिल किए गए हैं।
प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है? हरित क्रान्ति के प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत में नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप अनाज में हुई 25% वृद्धि को हरित क्रान्ति का नाम दिया गया है। प्रो० जे० जी० हुगर के शब्दों में, “हरित क्रान्ति शब्द का प्रयोग 1968 में होने वाले आश्चर्यजनक परिवर्तन के लिए किया जाता है, जो भारत में अनाज के उत्पादन में हुआ था तथा अब भी जारी है।” हरित क्रान्ति के मुख्य कारण-
- सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि,
- रासायनिक खादों का प्रयोग,
- उन्नत बीज,
- बहु-फसली कृषि,
- आधुनिक कृषि यंत्र,
- साख सुविधाएं हैं।
प्रभाव-हरित क्रांति के मुख्य प्रभाव निम्नलिखित हैं
- हरित क्रांति के फलस्वरूप उत्पादन में बहुत वृद्धि हो गई है।
- हरित क्रांति के फलस्वरूप किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।
- हरित क्रांति से गांवों में रोज़गार बढ़ने की संभावना हो सकती है।
- हरित क्रांति के कारण उद्योगों के विकास पर अच्छा प्रभाव पड़ा है।
- भारत में आर्थिक विकास तथा स्थिरता के उद्देश्यों की पूर्ति हो सकी है।
- देश में कीमतों के स्तर में कम वृद्धि हुई है।
- हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भोज्य पदार्थों के आयात में कमी आई है।
प्रश्न 4.
भारत में दूसरी हरित क्रान्ति के लिए क्या प्रयत्न किये गए?
उत्तर-
भारत में बाहरवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में दूसरी हरित क्रान्ति लाने के लिए निम्नलिखित प्रयत्न किये गए-
- सिंचाई सुविधाओं को दो गुणा क्षेत्र में बढ़ाया जाएगा।
- वर्षा के पानी से सिंचाई की जाएगी।
- बेकार भूमि को खेती योग्य बनाया जाएगा।
- खेती प्रति किसानों को अधिक ज्ञान प्रदान किया जाएगा।
- साधारण फसलों के स्थान पर फल, फूल की खेती पर अधिक जोर दिया जाएगा।
- पशुपालन तथा मछली पालन को अधिक महत्त्व दिया जाएगा।
- कृषि मंडीकरण में सुधार करने की आवश्यकता है।
- भूमि सुधारों को लागू किया जाएगा।
- खोज के काम में तेजी लाई जाएगी।
- कृषि उत्पादन में वृद्धि की जाएगी।
ग्यारहवीं योजना का लक्ष्य दूसरी हरित क्रान्ति को प्राप्त करना था।
IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)
प्रश्न 1.
भारत के कृषि-उत्पादन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
(Explain the main features of Agriculture production in India.)
उत्तर-
कृषि उत्पादन को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। भारत में कुल मज़दूर शक्ति का 65% भाग कृषि उत्पादन में लगा हुआ है। 1950-51 में सकल घरेलू उत्पाद का 55.4% हिस्सा कृषि उत्पादन का योगदान था, जोकि 1990-91 में 30.9% रह गया। 2019-20 में सकल घरेलू उत्पाद का 25% भाग कृषि उत्पादन का योगदान था। 2019-20 में 296.65 मिलियन टन अनाज की पैदावार हुई।
भारत की कृषि उत्पादन की कुछ मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-
1. कम उत्पादकता (Less Productivity)-भारत में विकसित देशों की तुलना में प्रति श्रमिक उत्पादकता बहुत कम है। भारत में प्रति श्रमिक उत्पादकता 1146 डालर जबकि नार्वे में 97879 डालर है। इसी तरह विभिन्न फसलों का उत्पादन भी बहुत कम है। गेहूं, चावल, कपास पटसन इत्यादि उपज की पैदावार पश्चिमी देशों से बहुत कम है।
2. कृषि उत्पादन तथा रोज़गार (Agriculture and Employment) भारत में कृषि रोज़गार का महत्त्वपूर्ण साधन है। 1951 में 97 मिलियन लोगों को रोज़गार कृषि उत्पादन में प्राप्त होता था। 2019-20 में 57.9% लोग कृषि उत्पादन के पेशे में लगे हुए थे। भारत में लगभग दो तिहाई जनसंख्या का कृषि उत्पादन क्षेत्र पर निर्भर रहना, जहां कृषि के महत्त्व का सूचक है, वहां देश के अल्पविकसित होने का प्रमाण है।
3. कृषि उत्पादन तथा उद्योग (Agriculture and Industry)-भारत जैसे अल्पविकसित देश में आर्थिक विकास की आरम्भिक स्थिति में कृषि का औद्योगिक क्षेत्र के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। इससे उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है। कृषि के विकास से लोगों की आय बढ़ जाती है। इसीलिए औद्योगिक वस्तुओं की मांग में वृद्धि होती है।
4. वर्षा पर अधिक निर्भरता (More Dependence on Rains)-भारत में कृषि उत्पादन प्रकृति पर अधिक निर्भर करती है। भारत में कुल भूमि का 70% हिस्सा वर्षा पर निर्भर करता है। यदि भारत में वर्षा नहीं पड़ती तो कोई फसल नहीं होती, क्योंकि पानी नहीं होता।
5. अर्द्ध व्यापारिक कृषि (Semi-Commercial Farming)—भारत में न तो कृषि जीवन निर्वाह के लिए की जाती है तथा न ही पूर्ण तौर पर व्यापारिक फ़सलों की बिजाई की जाती है। वास्तव में कृषि उत्पादन इन दोनों का मिश्रण है, जिसको अर्द्ध व्यापारिक कहा जाता है।
6. छोटे तथा सीमांत किसान (Small and Marginal Farmers)-देश में अधिकतर किसान छोटे तथा सीमांत हैं। इसका अभिप्राय है कि किसानों के पास भूमि के छोटे-छोटे टुकड़े हैं, जिन पर जीवन निर्वाह के लिए कृषि की जाती है। बहुत-से किसानों के पास अपनी भूमि नहीं है, वह दूसरे किसानों से भूमि किराए पर लेकर कृषि करते हैं।
7. आन्तरिक व्यापार (Internal Trade)-भारत में 90% लोग अपन – 7765% हिस्सा अनाज, चाय, चीनी, दालें, दूध इत्यादि पर खर्च करते हैं। भारत जैसे अल्पविकसित देशों में कृषि का अधिक महत्त्व है।
8. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार (International Trade)-बहुत-सी कृषि आधारित वस्तुएं जैसे कि चाय, चीनी, मसाले, तम्बाकू, तेलों के बीज निर्यात किए जाते हैं। इससे विदेशी मुद्रा प्राप्त की जाती है। बारहवीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) में कृषि पैदावार में 4% वार्षिक वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। इस योजनाकाल में कृषि पर 1,34,636 करोड़ रुपए व्यय किए गए। 2020-21 में कृषि क्षेत्र में 3.4% वृद्धि की संभावना है।
प्रश्न 2.
भारत में कृषि उत्पादन की मुख्य समस्याओं का वर्णन करो। इन समस्याओं के हल के लिए सुझाव दीजिए।
(Explain the main problems of Agriculture Production in India. Suggest measures to solve the problems.)
अथवा
भारत के कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन के कारण बताओ। पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
(Discuss the main causes of backwardness of Agricultural Productivity. Suggest measures to remove the backwardness.)
उत्तर-
भारत में कृषि उत्पादन की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं
1. कम उत्पादकता-भारत में कृषि उत्पादकता में वृद्धि तो हुई है परंतु विश्व के कई देशों से यह अब भी बहुत कम है। 2019-20 में भारत में गेहूं का उत्पादन 3509 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, जबकि इंग्लैंड में 8810 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। चावल की पैदावार भारत में 2659 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है जबकि स्पेन में 6323 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इससे पता लगता है कि भारत की तुलना में प्रत्येक देशों में फसलों की उपज अधिक है।
2. क्षेत्रीय असमानता-भारतीय कृषि में क्षेत्रीय असमानता बहुत अधिक पाई जाती है। भारत के कई राज्यों जैसे कि हरियाणा, पंजाब, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र इत्यादि में अनाज का उत्पादन काफ़ी बढ़ा है। परन्तु कुछ राज्यों जैसे कि बिहार, छत्तीसगढ़, उड़ीसा इत्यादि में खुराक-अनाज के उत्पादन में बहुत कम वृद्धि हुई
3. संस्थागत तत्त्व-भारत में कृषि उत्पादन कम होने का एक कारण संस्थागत तत्त्व है। इसका एक मुख्य कारण भू-माल की प्रणाली (Land Tenure System) रही है। चाहे स्वतन्त्रता के पश्चात् ज़मींदारी प्रथा को खत्म कर दिया गया है, परंतु भू-मालिक आज भी मनमानी करते हैं। दूसरा, खेतों का छोटा आकार (Small size of farms) भी भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का कारण है। भारत में खेतों का औसत आकार लगभग 2.3 हेक्टेयर है।
4. भूमि पर जनसंख्या का भार-कृषि के पिछड़ेपन का एक मुख्य कारण है हमारे देश में कृषि पर बहुत अधिक लोग निर्भर करते हैं। भारत में सामाजिक वातावरण भी कृषि के लिए रुकावट है। भारतीय किसान अनपढ़ तथा अज्ञानी हैं, इसलिए नई तकनीकों का प्रयोग आसानी से खेतों पर लागू नहीं कर सकता।
5. कृषि के पुराने ढंग-भारत में कृषि करने का ढंग पुराना है। आज भी पुराने कृषि यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। ट्रैक्टर तथा आधुनिक कृषि यन्त्रों का कम प्रयोग होता है। अधिक ऊपज वाले बीजों का भी कम प्रयोग किया जाता है। कृषि उत्पादन की वृद्धि के लिए खाद्य का अधिक महत्त्व है, परन्तु भारत के किसान उचित मात्रा में खाद्य का प्रयोग भी नहीं कर सकते।
6. तकनीकी तत्त्व-तकनीकी तत्त्वों में सिंचाई की कम सुविधा, मानसून का जुआ, मिट्टी के दोष, कमज़ोर पशु, पुराने यन्त्रों का प्रयोग, फसलों की बीमारियाँ, दोषपूर्वक बिक्री प्रथा, साख-सुविधाओं की कमी इत्यादि शामिल हैं।
समस्याओं का समाधान अथवा कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए सुझाव –
- जनसंख्या का कम दबाव-कृषि की उन्नति के लिए अनिवार्य है कि भूमि पर जनसंख्या का दबाव कम किया जाए। इसीलिए उद्योगों का विकास अनिवार्य है।
- मशीनीकरण-कृषि के विकास के लिए नए यन्त्र बनाए जाने चाहिए। इससे उत्पादकता में वृद्धि होगी।
- सिंचाई सुविधाएं-सबसे अधिक ध्यान सिंचाई की सुविधाओं में वृद्धि करने की ओर देना चाहिए इससे आधुनिक खाद्य, अच्छे बीज तथा वैज्ञानिक कृषि सम्भव होगी।
- वित्त सुविधाएं-किसानों को सस्ते ब्याज पर काफ़ी मात्रा में धन मिलना चाहिए। व्यापारिक बैंकों को गांवों में अधिक-से-अधिक शाखाएं खोलनी चाहिए।
- भूमि सुधार-भारत में कृषि की उन्नति के लिए अनिवार्य है कि भूमि सुधार किए जाएं। काश्तकारी का लगान निश्चित होना चाहिए। यदि किसान लगान देते रहें, उनको बेदखल नहीं किया जाना चाहिए।
- कृषि मण्डीकरण-कृषि मण्डीकरण में अन्य सुधार करने की आवश्यकता है। किसानों को उनकी फ़सल की उचित कीमत दिलाने के प्रयत्न करने चाहिए। शिक्षा प्रसार, छोटे किसानों को सहायता, योग प्रशासन, नई तकनीक का प्रयोग इत्यादि बहुत-से उपायों से कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने की समस्याओं का हल किया जा सकता है। इसके फलस्वरूप कृषि पैदावार 2019-20 में 296.65 मिलियन टन हुआ है।
प्रश्न 3.
भारत में स्वतन्त्रता के बाद होने वाले मुख्य भूमि सुधारों का वर्णन करो। भूमि सुधारों की धीमी गति के कारण तथा सफलता के लिए सुझाव दीजिए।
(Explain the main Land Reforms undertaken after the independence in India. Discuss the causes of slow progress and suggest measures for the success of Land Reforms.)
उत्तर-
कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए संस्थागत तत्त्वों (Institutional factors) का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। प्रो० मिर्डल अनुसार, “मनुष्य तथा भूमि में पाए जाने वाले नियोजित तथा संस्थागत पुनर्गठन को भूमि सुधार कहा जाता है” भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् निम्नलिखित भूमि सुधार किए गए-
1. ज़मींदारी प्रथा का अन्त-ब्रिटिश शासन दौरान ज़मींदारी प्रथा आरम्भ की गई थी। इसमें भूमि का स्वामी ज़मींदार होता था। वह किसानों को लगान पर भूमि काश्त करने के लिए देता था। 1950 में सबसे पहले बिहार में तथा बाद में सारे भारत में कानून पास किया गया, जिस अनुसार ज़मींदारी प्रथा का अन्त किया गया है। ज़मींदारी प्रथा में काश्तकारों का शोषण किया जाता था। ज़मींदारी प्रथा का खात्मा देश के भूमि सुधारों में पहला विशेष पग है।
2. काश्तकारी प्रथा में सुधार-जब कोई कृषि भूमि का मालिक स्वयं कृषि नहीं करता, बल्कि दूसरे मनुष्य को लगान पर जोतने के लिए भूमि दे देता है तो उस मनुष्य को काश्तकार (Tenant) कहते हैं। इस प्रथा को काश्तकारी प्रथा कहा जाता है। भारत में लगभग 40% भूमि इस प्रथा के अन्तर्गत है। इस सम्बन्ध में सुधार करने के लिए स्वतन्त्रता के पश्चात् कानून पास किए गए हैं। इस द्वारा लगान को निर्धारित किया गया है तथा काश्त अधिकारों की सुरक्षा सम्बन्धी कानून पास किए गए हैं। इसके परिणामस्वरूप भूमि उपज में वृद्धि हुई है।
3. भूमि की उच्चतम सीमा-भूमि की उच्चतम सीमा का अर्थ है एक मनुष्य अथवा परिवार अधिक-से अधिक कितनी कृषि योग्य भूमि का मालिक हो सकता है। यदि किसी मनुष्य अथवा परिवार के पास उच्चतम सीमा से अधिक भूमि है तो भूमि भू-स्वामियों से ले ली जाएगी इसके बदले में मुआवजा दिया जाएगा। यह अधिक प्राप्त भूमि छोटे किसानों, काश्तकारों तथा भूमिहीन कृषि मजदूरों में विभाजित की जाएगी। इसका मुख्य उद्देश्य देश में भूमि का समान तथा उचित वितरण करके उत्पादन में वृद्धि करना है।
4. चकबन्दी-भारत में किसानों के खेत छोटे-छोटे तथा इधर-उधर बिखरे हुए हैं। जब तक खेतों का आकार उचित नहीं होगा भूमि तथा अन्य साधनों का उचित प्रयोग नहीं किया जा सकता। छोटे-छोटे खेतों को एक बड़े खेत में बदलने को चकबन्दी कहा जाता है। पंजाब तथा हरियाणा में चकबन्दी का काम पूरा हो चुका है। शेष राज्यों में यह कार्य तेजी से चल रहा है।
5. सहकारी कृषि-सहकारी कृषि वह कृषि है जिसमें प्रत्येक किसान का अपनी भूमि पर पूरा हक होता है, परन्तु कृषि सामूहिक रूप से की जाती है। परन्तु भारत में सहकारी कृषि में सफलता प्राप्त नहीं हुई, क्योंकि किसान अपनी भूमि की साझ का प्रयोग करना पसन्द नहीं करते।। भूमि के सम्बन्ध में मिलकियत, उपज, काश्तकारों के अधिकारों सम्बन्धी रिकार्ड रखने के लिए कम्प्यूटर का 26 राज्यों में प्रयोग किया जा रहा है।
भूमि सुधारों की धीमी गति के कारण-भारत में भूमि सुधारों की धीमी गति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
- भूमि सुधारों की नीति को धीरे-धीरे तथा बिना तालमेल के लागू किया गया।
- राजनीतिक इच्छा की कमी के कारण भूमि सुधारों की प्रगति धीमी रही।
- विभिन्न राज्यों में भूमि सुधार सम्बन्धी कानूनों का भिन्न-भिन्न होना।
- भूमि सुधार सम्बन्धी कानून दोषपूर्ण होने के कारण मुकद्दमेबाजी होती है।
- भूमि सुधारों की प्रभावपूर्ण अमल की कमी।
भूमि सुधारों की सफलता के लिए सुझाव-भूमि सुधारों की सफलता के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-
- भूमि सम्बन्धी नए रिकार्ड तैयार किए जाएं।
- भूमि सुधार सम्बन्धी कानून सरल तथा स्पष्ट होने चाहिए।
- भूमि सुधारों में मुकद्दमे का फैसला करने के लिए विशेष अदालतों द्वारा कम समय में फैसले किए जाएं।
- भूमि सुधारों सम्बन्धी गांवों के लोगों को पूरी तरह प्रचार द्वारा जानकारी दी जाए।
- उच्चतम सीमा के कानून में दोष दूर करके एकत्रित की भूमि को तुरन्त काश्तकारों में विभाजित किया जाए।
- भूमि सुधारों के कारण जिन किसानों को भूमि प्राप्त होती है, उनको वित्त की सुविधा देनी चाहिए ताकि भूमि का उचित प्रयोग किया जा सके।
प्रश्न 4.
नई कृषि नीति से क्या अभिप्राय है? नई कृषि नीति की विशेषताओं तथा प्राप्तियों का वर्णन कीजिए।
(What is New Agricultural Strategy ? Discuss the main features and achievement of New Agricultural Strategy.)
उत्तर-
नई कृषि नीति का अर्थ-भारत में कृषि उत्पादन के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए लॉर्ड फाऊंडेशन की प्रधानगी अधीन एक दल 1959 में अमेरिका से आया। इस दल की सिफारिशों को ध्यान में रखकर जो नीति अपनाई गई उसको नई कृषि नीति कहा जाता है। नई कृषि नीति से अभिप्राय उस नीति से है जिसका उद्देश्य कृषि विकास के नए साधनों, उन्नत बीजों, रासायनिक खाद, सिंचाई, कृषि वित्त, पौधों की सुरक्षा करना तथा किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना है। विशेषताएं-नई कृषि नीति की मुख्य विशेषताएं हैं-
- नई कृषि तकनीक को अपनाया गया है।
- देश के चुने हुए भागों में उन्नत बीज, सिंचाई, रासायनिक खाद का प्रयोग करना।
- एक से अधिक फसलों की पैदावार करना।
- ग्रामीण विकास के सभी कार्यों में तालमेल करना।
- कृषि पदार्थों की उचित कीमत का निर्धारण करना।
भारत में नई कृषि नीति 17 जिलों में आरम्भ की गई। पंजाब में लुधियाना जिले में घनी कृषि जिला कार्यक्रम अपनाया गया है। नई कषि नीति की प्राप्तियां (Achievements of New Agricultural Strategy)-
1. खाद्य पदार्थों की उपज में वृद्धि-कृषि विकास की नई नीति से उत्पादन में तीव्र गति से वृद्धि हुई। इसके परिणामस्वरूप 1966 में हरित क्रान्ति आ गई। अनाज का उत्पादन 1951 में 62 मिलियन टन था। 2017-18 में अनाज का उत्पादन 284.83 मिलियन टन हो गया।
2. प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में वृद्धि-कृषि वृद्धि की नई नीति के परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई है। 1970-71 में गेहूँ का उत्पादन 23.8 मिलियन टन था। 2016-17 गेहूँ का उत्पादन 97.4 मिलियन टन हो गया।
3. दूसरे किसानों से प्रेरणा-कृषि की नई नीति की सफलता से इस प्रोग्राम के बाहर के क्षेत्रों में रहने वाले किसानों को भी उन्नत बीजों, कीड़ेमार दवाइयों तथा खाद्यों का प्रयोग करने की प्रेरणा मिली है। किसान के दृष्टिकोण में परिवर्तन-नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप किसानों की कृषि सम्बन्धी दृष्टिकोण में परिवर्तन आया है। किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है तथा किसान की सामाजिक, आर्थिक तथा संस्थागत सोच बदल गई है।
5. वर्ष में एक से अधिक फ़सलें-नई कृषि नीति लागू होने के कारण किसान वर्ष में एक से अधिक फ़सलें प्राप्त करने लगे हैं। किसानों की आय तथा जीवन स्तर में वृद्धि हुई है।
6. अनाज में आत्म-निर्भरता-नई कृषि नीति लागू होने से कृषि उत्पादन में बहुत अधिक वृद्धि हुई है। इसलिए भारत में किसान आत्म-निर्भरता होने में सफल हुए हैं। बढ़ती हुई जनसंख्या की अनाज सम्बन्धी आवश्यकताओं को देश में से ही पूरा किया जाता है।
7. औद्योगिक विकास-नई कृषि नीति के परिणामस्वरूप अनाज का आयात नहीं किया जाएगा। इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी। उसका इस्तेमाल उद्योगों के विकास के लिए सम्भव होगा।
8. इंद्रधनुष क्रान्ति-राष्ट्रीय कृषि नीति 2015 में इंद्रधनुष क्रान्ति लाने का लक्ष्य रखा गया है। इन्द्रधनुष जैसे कृषि उत्पादन पैदावार में 4% वार्षिक वृद्धि (हरित क्रान्ति) दूध की पैदावार में वृद्धि (सफेद क्रान्ति) मछली पालन उद्योग का विकास (नीली क्रान्ति) करने का लक्ष्य रखा गया है। यह मुख्यतया नई कृषि नीति का परिणाम है।
9. न्यूनतम सुरक्षित मूल्य-वर्ष 2020-21 में गेहूँ की सुरक्षित कीमत ₹ 1975 प्रति क्विंटल तथा चावल की कीमत ₹ 1860 प्रति क्विंटल और कपास ₹ 4600 प्रति क्विंटल निर्धारण की गई है। दिल्ली-यूपी सीमा पर किसानों के प्रदर्शन के बाद केन्द्र सरकार ने रबी की उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) इस प्रकार बढ़ा दिया है-
अनाज |
MSP |
1. गेहूँ |
1975 |
2. सरसों |
7520 |
3. चना |
4800 |
प्रश्न 5.
भारत में हरित क्रान्ति की कठिनाइयां बताएं। उसमें सुधार के सुझाव दें।
(Discuss the deficulties of Green Revolution in India. Suggest measures for its improvement.)
उत्तर-
कठिनाइयां –
1. केवल गेहूं क्रान्ति-इसमें कोई सन्देह नहीं कि हरित क्रान्ति के अधीन कुछ फसलों का उत्पादन बहुत बढ़ा है परन्तु अधिकतर गेहूं का ही उत्पादन, आधुनिक बीज जैसे कल्याण, सोना सोनालिका, सफ़ेद लर्मा तथा छोण लर्मा आदि के प्रयोग से, बढ़ा है जिसके कारण अधिकतर लोग इसे गेहूं क्रान्ति का नाम देना पसन्द करते हैं। इसी कारण हरित क्रान्ति के अधीन दूसरी फसलों का उत्पादन भी बढ़ाना चाहिए।
2. केवल अनाज की फसलों में ही क्रान्ति-हरित क्रान्ति अनाज की फसलों में ही आई है। ऐसी क्रान्ति व्यापारिक फसलों में भी आनी चाहिए। व्यापारिक फसलों में अभी तक अधिक फसल देने वाले बीज प्रयोग नहीं किये गये हैं । इस कारण यदि इनकी ओर अधिक ध्यान न दिया गया तो व्यापारिक फसलें बहुत धीरे-धीरे उन्नति करेंगी। कई व्यक्तियों को तो इस बात का सन्देह है कि यदि व्यापारिक फसलों का उत्पादन बढ़ाया गया तो कुल उत्पादन बढ़ने के स्थान पर कम हो जाएगा। वह इसलिए कि लोग व्यापारिक फसलों के स्थान पर उपभोक्ता वस्तुएं बीजने लग जायेंगे।
3. केवल बड़े-बड़े किसानों को ही लाभ-इसके अतिरिक्त यह देखने में आया है कि छोटे किसानों को इसका कोई लाभ नहीं हुआ है। लाभ केवल बड़े किसानों को ही पहुंचा है। छोटे किसानों को तो हरित क्रान्ति के कारण हानि ही हुई है क्योंकि कृषि साधनों में वृद्धि के कारण उनकी उत्पादन लागत बहुत बढ़ गई है। इस तरह क्रान्ति के कारण धन के असमान वितरण में वृद्धि हुई है।
4. असन्तुलित विकास-कुछ विशेषज्ञों का विचार है कि यदि हरित क्रान्ति समस्त देश में न लाई गई तो कुछ भाग दूसरे भागों से आगे निकल जायेंगे अर्थात् आर्थिक रूप से उन्नत हो जायेंगे जिसके कारण देश में क्षेत्रीय असन्तुलन की समस्या पैदा हो जाएगी।
5. कृषि आदानों की काले बाज़ार में बिक्री-यह ठीक है कि कृषि आदानों (Inputs) की मांग बहुत बढ़ गई है और उनकी पूर्ति दुर्लभ हो गई है जिसके फलस्वरूप कृषि उत्पादनों की बिक्री काले बाज़ार में ऊंचे दामों पर हो रही है। धनी किसान उन्हें खरीद सकते थे, पर निर्धन किसान उन्हें खरीद नहीं पाते।
6. पूंजीकृत फार्मों को प्रोत्साहन-हरित क्रान्ति से बड़े-बड़े पूंजीकृत फार्मों को प्रोत्साहन मिल रहा है। बढ़िया खाद का प्रयोग करने में तथा ट्यूबवैल लगाने में काफ़ी मात्रा में धन लगाना पड़ता है। एक निर्धन किसान इसके बारे में कभी सोच भी नहीं सकता। इसका लाभ तो केवल धनी किसानों को ही हो रहा है जो बड़े-बड़े फार्म बना रहे हैं।
7. तालमेल का अभाव-हरित क्रान्ति की रफ्तार इस कारण भी धीमी है क्योंकि विभिन्न संस्थाओं में आपसी तालमेल नहीं है। सरकार तो अधिक बल केवल रासायनिक खाद के उत्पादन पर ही दे रही है। यह ठीक है कि हरित क्रान्ति लाने में खाद का बड़ा महत्त्व है, पर अकेली खाद भी क्या कर सकती है, जब तक किसान के पास पूंजी, मशीनें तथा सिंचाई आदि सुविधाओं का अभाव हो। ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं, खाद प्रदान करने वाली संस्थाओं, बीज प्रदान करने वाली संस्थाओं तथा सिंचाई की सुविधाएं प्रदान करने वाली संस्थाओं में तालमेल नहीं है।
सुझाव-
1. बढ़िया बीजों का खुला प्रयोग-हरित क्रान्ति को अधिक सफल बनाने के लिए देश में ऐसी सुविधाएं होनी चाहिएं जिनके साथ हरित क्रान्ति लानी सम्भव हो जाए। हम जानते हैं कि गेहूं की आधुनिक प्रकार की फसल की तरह दूसरी फसलों में अधिक उपज देने वाले बीजों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। शुष्क भूमि पर अधिक उपज देने वाली फसलों के बीजों का प्रयोग करने के लिए किसानों को प्रेरणा देनी चाहिए।
2. उर्वरकों का खुला प्रयोग-उर्वरकों का प्रयोग बढ़ाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना चाहिए। गोबर को खाद के रूप में प्रयोग पर अधिक बल देना चाहिए। रासायनिक खादों की मांग हरित क्रान्ति के साथ बढ़ेगी। इस कारण देश में और कारखाने खाद तैयार करने के लिए लगाने चाहिएं।
3. सिंचाई की सुविधाएं-हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए अधिक बल सिंचाई की सुविधाओं को प्रदान करने पर देना चाहिए। सरकार को छोटे स्तर की सिंचाई योजनाएं बनानी चाहिएं। ट्यूबवैल लगाने के लिए ऋण की सुविधाएं देनी चाहिएं।
4. मशीनों का प्रयोग-हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए अधिक मशीनों का प्रयोग आवश्यक है। इसलिए देश में सस्ती मशीनें बनानी चाहिएं। किसानों को मशीनें खरीदने के लिए ऋण देने चाहिएं। विशेषतया ऐसी मशीनें बनानी चाहिए, जो छोटे किसान भी प्रयोग कर सकें
5. लाभों का समान वितरण-अब तक हुई हरित क्रान्ति से पैदा हुए लाभ सभी धनी किसानों या बड़े किसानों को हुए हैं। छोटे किसानों को तो कृषि साधनों पर व्यय बढ़ने के कारण हानि ही हुई है। सरकार को अनुकूल रणनीति अपनाकर इन लाभों की असमान बांट पर नियन्त्रण रखना चाहिए।
6. अन्य प्रकार की क्रान्तियां-कृषक के उपज क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्र जैसे दूध देने वाले पशु पालना, फल पैदा करना आदि में भी क्रान्ति लानी चाहिए।