PSEB 12th Class History Notes Chapter 10 गुरु गोबिंद सिंह जी : खालसा पंथ की स्थापना, उनकी लड़ाइयाँ एवं व्यक्तित्व

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 10 गुरु गोबिंद सिंह जी : खालसा पंथ की स्थापना, उनकी लड़ाइयाँ एवं व्यक्तित्व

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर, 1666 ई० को पटना में हुआ-उनके पिता जी का नाम गुरु तेग बहादुर जी और माता जी का नाम गुजरी था-

→ गुरु जी के नाबालिग काल में उनकी सरपरस्ती उनके मामा श्री कृपाल चंद जी ने की-गुरु तेग़ बहादुर ने शहीदी देने से पूर्व उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-

→ 11 नवंबर, 1675 ई० को सिख परंपरा के अनुसार उन्हें गुरुगद्दी पर बैठाया गया-गुरु साहिब को चार साहिबजादों-साहिबजादा अजीत सिंह जी, साहिबजादा जुझार सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फतह सिंह जी की प्राप्ति हुई थी।

→ पूर्व खालसा काल की लड़ाइयाँ (Battles of Pre-Khalsa Period)-गुरुगद्दी पर बैठने के पश्चात् गुरु साहिब ने सेना का संगठन करना आरंभ कर दिया-उनकी गतिविधियों से पहाड़ी राजा उनके विरुद्ध हो गए-गुरु साहिब और पहाड़ी राजाओं के मध्य प्रथम लड़ाई 22 सितंबर, 1688 ई० को हुई-

→ इसे भंगाणी की लड़ाई कहा जाता है-इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने शानदार विजय प्राप्त की-भंगाणी की लड़ाई के पश्चात् गुरु साहिब ने श्री आनंदपुर साहिब में आनंदगढ़, लोहगढ़, फतहगढ़ और केशगढ़ नामक चार दुर्गों का निर्माण करवाया-

→ 20 मार्च, 1690 ई० को हुई नादौन की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़लों को पराजित किया-औरंगज़ेब ने गुरु जी की बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के लिए अनेक सैनिक अभियान भेजे परंतु वह असफल रहा।

→ खालसा पंथ की स्थापना और महत्त्व (Creation and Importance of the Khalsa Panth)-मुग़ल अत्याचारों का अंत करने के लिए और समाज को एक नया स्वरूप प्रदान करने के लिए गुरु साहिब ने खालसा पंथ की स्थापना 30 मार्च, 1699 ई० को बैसाखी वाले दिन श्री आनंदपुर साहिब में केशगढ़ नामक स्थान पर की-

→ गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई दयाराम जी, भाई धर्मदास जी, भाई मोहकम चंद जी, भाई साहिब चंद जी और भाई हिम्मत राय जी को पाँच प्यारे चुनाखालसा की पालना के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए-

→ खालसा पंथ की स्थापना से ऊँच नीच से रहित एक आदर्श समाज का जन्म हुआ इससे सिखों में अद्वितीय वीरता और निडरता की भावनाओं का संचार हुआ-खालसा पंथ की स्थापना से सिखों के इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ।

→ उत्तर-खालसा काल की लड़ाइयाँ (Battles of Post-Khalsa Period) खालसा पंथ की स्थापना से पहाड़ी राजाओं के मन की शांति भंग हो गई थी-

→ 1701 ई० में पहाड़ी राजाओं और गुरु गोबिंद सिंह जी के मध्य श्री आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई हुई यह लड़ाई अनिर्णीत रही1704 ई० में श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई हुई-

→ सिखों के निवेदन पर गुरु जी ने श्री आनंदपुर साहिब का दुर्ग छोड़ दिया-1704 ई० में ही हुई चमकौर साहिब की लड़ाई में गुरु जी के दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह जी तथा जुझार सिंह ज़ी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए-

→ 1705 ई० में खिदराना की लड़ाई गुरु जी तथा मुग़लों में लड़ी जाने वाली अंतिम निर्णायक लड़ाई थी-इसमें गुरु गोबिंद सिंह जी ने शानदार विजय हासिल की।

→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1708 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड आए-यहाँ पर सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ के भेजे गए दो पठानों में से एक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया-

→ 7 अक्तूबर, 1708 ई० में गुरु जी ज्योति-जोत समा गए-ज्योति-जोत समाने से पूर्व उन्होंने सिखों को आदेश दिया कि अब के बाद वे गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानें।

→ गुरु गोबिंद सिंह जी का चरित्र और व्यक्तित्व (Character and Personality of Guru Gobind Singh Ji)-गुरु गोबिंद सिंह जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली और आकर्षक थावह बड़े आज्ञाकारी पुत्र, विचारवान पिता और आदर्श पति थे-वह एक उच्चकोटि के कवि और साहित्यकार थे-

→ वह अपने समय के महान योद्धा और सेनापति थे-उन्होंने युद्धकाल में भी अपने धार्मिक कर्तव्यों को कभी नहीं भूला था-वह एक महान् समाज सुधारक और उच्चकोटि के संगठनकर्ता थे।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)- गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई० को अमृतसर में हुआ–आपके पिता जी का नाम गुरु हरगोबिंद जी तथा माता जी का नाम नानकी थागुरु तेग़ बहादुर जी ने बाबा बुड्डा जी और भाई गुरदास जी से शिक्षा प्राप्त की-

→ गुरु जी का विवाह करतारपुर. वासी लाल चंद की सुपुत्री गुजरी से हुआ-अपने पिता जी के आदेश पर गुरु जी 20 वर्ष तक बकाला में रहे-मक्खन शाह लुबाणा द्वारा उन्हें ढूंह निकालने पर सिखों ने उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया-वे 1664 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।

→ गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राएँ (Travels of Guru Tegh Bahadur Ji)- गुरु पद संभालने के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ने पंजाब तथा बाहर के प्रदेशों के अनेक स्थानों की यात्राएँ की-इन यात्राओं का उद्देश्य सिख धर्म का प्रचार करना तथा सत्य और प्रेम का संदेश देना था-

→ गुरु जी ने सर्वप्रथम 1664 ई० में पंजाब के अमृतसर, वल्ला, घुक्केवाली, खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, तरनतारन, कीरतपुर साहिब और बिलासपुर आदि प्रदेशों की यात्रा की-

→ इसके उपरांत गुरु जी पूर्वी भारत के सैफाबाद, धमधान, दिल्ली, मथुरा, वृंदावन, आगरा, कानपुर, बनारस, गया, पटना, ढाका तथा असम की यात्रा पर गए-1673 ई० में गुरु तेग़ बहादुर ने पंजाब के मालवा और बांगर प्रदेश की दूसरी बार यात्रा की-

→ इन यात्राओं से गुरु साहिब तथा सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई।

→ गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं-

→ कारण (Causes)-सिखों तथा मुग़लों में शत्रुता बढ़ती जा रही थी-औरंगज़ेब बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था-नक्शबंदियों ने सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए औरंगजेब को खूब भड़कायारामराय गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए कई हथकंडे अपना रहा था-कश्मीरी पंडितों ने गुरु साहिब से अपने धर्म की रक्षा के लिए सहायता माँगी।

→ बलिदान (Martyrdom)-गुरु तेग़ बहादुर जी को अपने तीन साथियों-भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी और भाई दयाला जी के साथ 6 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली दरबार में पेश किया गया-

→ उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया जिसका उन्होंने स्पष्ट शब्दों में इंकार कर दियागुरु जी के तीनों साथियों को शहीद करने के बाद 11 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली के चाँदनी चौक में गुरु साहिब को शहीद कर दिया गया।

→ महत्त्व (Importance)-समूचे पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के प्रति घृणा और प्रतिशोध की लहर दौड़ गई–हिंदू धर्म को लुप्त होने से बचा लिया गया-

→ गुरु गोबिंद सिंह जी को खालसा पंथ की स्थापना की प्रेरणा मिली-सिखों में धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक परंपरा आरंभ हो गई-मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

→ गुरु हर राय जी (Guru Har Rai Ji)-गुरु हर राय जी का जन्म 30 जनवरी, 1630 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ-

→ आप गुरु हरगोबिंद जी के पौत्र थे-आपका विवाह अनूप शहर के दया राम जी की सुपुत्री सुलक्खनी जी से हुआ-

→ आप 8 मार्च, 1645 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-आपने सिख धर्म के प्रचार के लिए तीन केंद्र स्थापित किए जिन्हें ‘बख्शीशें’ कहा जाता था-

→ मुग़ल सम्राट शाहजहाँ का पुत्र दारा प्रायः उनके दर्शनों के लिए आता था गुरु जी ने दारा की औरंगजेब के विरुद्ध सहायता की औरंगजेब द्वारा दिल्ली बुलाए जाने पर आपने अपने पुत्र रामराय को दिल्ली भेजा-

→ रामराय द्वारा दिल्ली दरबार में गुरुवाणी का गलत अर्थ बताने पर, उसे गुरुगद्दी से वंचित कर दिया गया-आपने अपने छोटे पुत्र हर कृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी चुना-

→ आप 6 अक्तूबर, 1661 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु हर कृष्ण जी (Guru Har Krishan Ji)-गुरु हर कृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ-

→ आपके पिता जी का नाम गुरु हर राय साहिब तथा माता जी का नाम सुलक्खनी था-

→ आप मात्र 5 वर्ष की आयु में 1661 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-आपको बाल गुरु के नाम से स्मरण किया जाता है-

→ आपको औरंगजेब द्वारा दिल्ली बुलाया गया-आप 1664 ई० में दिल्ली गए यहाँ आपने चेचक और हैज़ा से पीड़ित बीमारों की अथक सेवा की आप स्वयं इस भयंकर बीमारी का शिकार हो गए-

→ आप 30 मार्च, 1664 ई० को दिल्ली में ज्योति जोत समा गए- ज्योति जोत समाने से पूर्व आपने “बाबा बकाला” शब्द का उच्चारण किया-

→ जिससे अभिप्राय था कि सिखों का अगला गुरु बाबा बकाला में है।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था-

→ आपके पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी और माता जी का नाम गंगा देवी था-

→ आपके घर पाँच पुत्रों तथा एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया—आप 1606 ई० में गुरुगद्दी पर विराजम्प्रन हुए।

→ गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ कारण (Causes)-मुग़ल बादशाह जहाँगीर इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को विकसित होता नहीं देख सकता था-

→ जहाँगीर ने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था-

→ गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं नई नीति अपनाने का गुरु हरगोबिंद जी को आदेश दिया था।

→ विशेषताएँ (Features)-गुरु हरगोबिंद जी ने सांसारिक तथा धार्मिक सत्तां का प्रतीक मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की-

→ गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना का संगठन किया गया-अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया गया-

→ गुरु जी राजसी ठाठ-बाट से रहने लगे और उन्होंने राजनीतिक प्रतीकों को अपना लिया-अमृतसर शहर की किलेबंदी की गई-

→ लोहगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया गया—गुरु साहिब ने अपने दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन किए।

→ महत्त्व (Importance)-सिख संत सिपाही बन गए—सिखों के परस्पर भाईचारे में वृद्धि हुई-

→ सिख धर्म का प्रचार और प्रसार बढ़ा-सिखों तथा मुग़लों के संबंधों में तनाव और बढ़ गया—नई नीति ने खालसा पंथ की स्थापना का आधार तैयार किया।

→ गुरु हरगोबिंद जी और जहाँगीर (Guru Hargobind Ji and Jahangir)-जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को 1606 ई० में बंदी बना लिया उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में रखा गया-

→ गुरु साहिब के बंदी काल के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है- जब गुरु साहिब को रिहा किया गया तो उनकी जिद्द पर वहाँ बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा-

→ इस कारण गुरु जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा—रिहाई के बाद गुरु साहिब के जहाँगीर के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रहे।

→ गुरु हरगोबिंद जी और शाहजहाँ (Guru Hargobind Ji and Shah Jahan)-1628 ई० में शाहजहाँ के मुग़ल बादशाह बनते ही मुग़ल-सिख संबंध पुनः बिगड़ गए-

→ शाहजहाँ ने अपनी कट्टरतापूर्ण कारवाइयों से सिखों को अपने विरुद्ध कर लिया-1634 ई० में मुग़लों तथा सिखों में प्रथम लड़ाई अमृतसर में हुई—इसमें सिख विजयी रहे-

→ मुग़लों तथा सिखों के मध्य हुई लहरा, करतारपुर और फगवाड़ा की लड़ाइयों में भी सिखों की जीत हुई—इन विजयों से गुरु हरगोबिंद जी की ख्याति दूर दूर तक फैल गई।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नगर बसाया उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहाँ व्यतीत किए-

→ ज्योति जोत समाने से पूर्व उन्होंने हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-गुरु हरगोबिंद जी 3 मार्च, 1645 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

→ आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties): गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ–

→ आपके पिता जी का नाम गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी था-आपका विवाह मऊ गाँव के वासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ-आप 1581 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-

→ आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का आपके बड़े भाई पृथी चंद ने कड़ा विरोध किया-आपको नक्शबंदी संप्रदाय तथा ब्राह्मण वर्ग का भी कड़ा विरोध सहना पड़ा-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी आपसे नाराज़ था।

→ गरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji): गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरुगद्दी काल दौरान सिख पंथ के विकास के लिए बहुपक्षीय कार्य किए-

→ उनके गुरु काल में हरिमंदिर साहिब का निर्माण 1588 ई० में आरंभ करवाया गया-इसका निर्माण कार्य 1601 ई० में पूर्ण हुआ-

→ 1590 ई० में तरनतारन, 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर तथा 1595 ई० में हरगोबिंदपुर नामक नगरों की स्थापना की गई-

→ आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था-यह महान् कार्य 1604 ई० में पूर्ण हुआ-गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया-

→ गुरु साहिब ने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया- उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति कर सिख पंथ के द्वार खुले रखे।

→ गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji): गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ कारण (Causes)-जहाँगीर बड़ा ही कट्टर सुन्नी मुसलमान था–सिख पंथ की हो रही उन्नति उसके लिए असहनीय थी-गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथी चंद ने गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए षड्यंत्र आरंभ कर दिए थे-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी अपने अपमान का गुरु साहिब से बदला लेना चाहता था-

→ नक्शबंदियों ने जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध खूब भड़काया-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तत्कालीन कारण बनी।

→ बलिदान (Martyrdom)- जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाया गया-उन्हें 2 लाख रुपये जुर्माना देने को कहा गया जो गुरु जी ने इंकार कर दिया-30 ‘मई, 1606 ई० को गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया गया।

→ महत्त्व (Importance)- गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिख इतिहास की एक महान् घटना माना जाता है क्योंकि गुरु अर्जन देव जी शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे, इसलिए उन्हें ‘शहीदों का सरताज’ कहा जाता है-

→ इस शहीदी के परिणामस्वरूप सिख धर्म के स्वरूप में परिवर्तन आ गयागुरु हरगोबिंद जी ने मीरी तथा पीरी नामक नई नीति धारण करने का निर्णय किया-सिख एकता के सत्र में बंधने लगे-सिखों तथा मुग़लों में तनावपूर्ण संबंध स्थापित हो गए-

→ मुग़ल अत्याचारों का दौर प्रारंभ हो गया-सिख धर्म पहले से अधिक लोकप्रिय हो गया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

→ गुरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ-उनका आरंभिक नाम भाई लहणा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम फेरूमल तथा माता जी का नाम सभराई देवी थाआपका विवाह आपके ही गाँव के श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी से हुआ-एक बार आप ज्वाला जी की यात्रा पर गए तो आपने करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन किए-

→ गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आप उनके अनुयायी बन गए-आपकी अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु नानक देव जी ने 7 सितंबर, 1539 ई० को आपको गुरु गद्दी सौंप दी।

→ गुरु अंगद देव जी के अधीन सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji): गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया-गुरु जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित किया-

→ उन्होंने स्वयं 62 शब्दों की रचना की-उन्होंने भाई बाला जी से गुरु नानक देव जी के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई-

→ गुरु जी ने लंगर प्रथा का विकास किया-संगत संस्था को और अधिक संगठित किया-उदासी मत का खंडन करके गुरु जी ने सिखमत के अलग अस्तित्व को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की-आपने खडूर साहिब के समीप 1546 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नए नगर की स्थापना की-

→ आपने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को आशीर्वाद देकर सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): अपना अंत समय निकट देखकर गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-29 मार्च, 1552 ई० को गुरु अंगद देव जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das ji): गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के गाँव बासरके में हुआ-

→ आपके पिता जी का नाम तेजभान भल्ला था-आपका विवाह देवी चंद जी की सुपुत्री मनसा देवी जी से हुआ-आप 62 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव जी के अनुयायी बने-आप मार्च, 1552 ई० में सिखों के तीसरे गुरु नियुक्त हुए-

→ उस समय आपकी आयु 73 वर्ष थी-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू ने कड़ा विरोध किया-आपको गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्री चंद जी का भी विरोध सहना पड़ा-गुरु अमरदास जी को कट्टर मुसलमानों तथा ब्राह्मण वर्ग के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

→ गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji): गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरगद्दी पर आसीन रहे।

→ गुरु अमरदास जी की गतिविधियों का केंद्र गोइंदवाल साहिब था-गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में 84 सीढ़ियों वाली एक बाऊली का निर्माण करवाया-उन्होंने लंगर संस्था का विकास किया-

→ गुरु जी ने गुरु नानक देव जी और गुरु अंगद देव जी की बाणी का संग्रह किया-गुरु अमरदास जी ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की-गुरु जी ने दूर-दूर के क्षेत्रों में सिख धर्म के प्रचार के लिए 22 मंजियों की स्थापना की-गुरु जी ने उदासी संप्रदाय का खंडन किया-

→ गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुप्रथाओं का डट कर विरोध किया-गुरु जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की-1568 ई० में अकबर के गोइंदवाल साहिब आगमन से सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने दामाद भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1574 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Ram Das Ji): गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हआ था-आपका आरंभिक नाम भाई जेठा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम हरिदास और माता जी का नाम दया कौर था-आप गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन गए-1553 ई० में आपका विवाह गुरु अमरदास जी की छोटी लड़की बीबी भानी जी के साथ हुआ-1574 ई० में आप गुरु गद्दी पर विराजमान हुए-आप सिखों के चौथे गुरु थे।

→ गुरु रामदास जी के समय सिख मत का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji): 1577 ई० में गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना की-

→ रामदासपुरा में अमृतसर और संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया-सिख मत्त के प्रचार तथा संगतों से धन को एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा आरंभ की गईउदासी संप्रदाय तथा सिखमत में समझौता सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुआसंगत, पंगत और मंजी संस्थाओं को जारी रखा गया-मुग़ल बादशाह अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और दृढ़ हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): ज्योति जोत समाने से पूर्व, गुरु रामदास जी ने अपने छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1581 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

→ गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोय की तलवंडी में हआ-आपके पिता जी का नाम मेहता कालू तथा माता जी का नाम तृप्ता जी था

→ आपकी बहन का नाम बेबे नानकी था। गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे-गुरु साहिब के आध्यात्मिक ज्ञान से उनके अध्यापक चकित रह गए

→ गुरु नानक देव जी के पिता जी ने उन्हें कई व्यवसायों में लगाने का प्रयत्न किया परंतु गुरु जी ने कोई रुचि न दिखाई

→ 14 वर्ष की आयु में आपका विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया

→ 20 वर्ष की आयु में आप सुल्तानपुर लोधी के मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी करने लगे-सुल्तानपुर लोधी में आपको बेईं नदी में स्नान के दौरान सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई-उस समय आपकी आयु 30 वर्ष की थी।

→ गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji): 1499 ई० में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा पर निकल पड़े-गुरु साहिब ने कुल 21 वर्ष इन उदासियों अथवा यात्राओं में व्यतीत किए

→ इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और एक ईश्वर की आराधना का प्रचार करना था-गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में भाई मरदाना के साथ अपनी पहली उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने सैदपुर, तालुंबा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, गोरखमता, बनारस, कामरूप, गया, जगन्नाथपुरी, लंका और पाकपटन के प्रदेश की यात्रा की-

→ गुरु नानक देव जी ने 1513-14 ई० में अपनी दूसरी उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने पहाड़ी रियासतों, कैलाश पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, हसन अब्दाल और स्यालकोट की यात्रा की-

→ 1517 ई० में आरंभ की गई अपनी तृतीय उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने मुलतान, मक्का, मदीना, बगदाद, काबुल, पेशावर और सैदपुर के प्रदेशों की यात्रा कीइन उदासियों के दौरान गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके अनुयायी बन गए।

→ गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ (Teachings of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल और प्रभावशाली थीं-गुरु जी के अनुसार ईश्वर एक है-

→ वह इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और नाशवान्कर्ता हैं-वह निराकार और सर्वव्यापक है-उनके अनुसार माया मनुष्य के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है-हऊमै (अहं) मनुष्य के सभी दुःखों का मूल कारण है-

→ गुरु जी ने जाति प्रथा तथा खोखले रीति रिवाजों का जोरदार शब्दों में खंडन किया-गुरु जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान देने के लिए आवाज़ उठाई-गुरु जी द्वारा नाम जपने पर विशेष बल दिया गया-उन्होंने गुरु को मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी माना है।

→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 22 सितंबर, 1539 ई० को गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत समा गए। ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

→ राजनीतिक दशा (Political Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी दयनीय थी-पंजाब दिल्ली सल्तनत के अधीन था जिस पर लोधी सुल्तानों का शासन था

→ 1469 ई० में दिल्ली सुल्तान बहलोल लोधी ने ततार खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त कियाततार खाँ लोधी सुल्तान के खिलाफ किए गए असफल विद्रोह में मारा गया

→ 1500 ई० में एक नए लोधी सुल्तान सिकंदर लोधी ने दौलत खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त किया- इब्राहीम लोधी के नए सुल्तान बनते ही दौलत खाँ लोधी ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए

→ दौलत खाँ ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया-बाबर ने 1519 ई० से 1526 ई० तक पंजाब पर पाँच आक्रमण किए

→ अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान बाबर ने दौलत खाँ लोधी को हरा कर पंजाब पर अधिकार कर लिया-21 अप्रैल, 1526 ई० को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को परास्त किया

→ परिणामस्वरूप पंजाब लोधी वंश के हाथों से निकल कर मुग़ल वंश के हाथों में चला गया।

→ सामाजिक दशा (Social Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की सामाजिक दशा बड़ी ही दयनीय थी

→ समाज हिंदू और मुसलमान नामक दो मुख्य वर्गों में विभाजित था

→ शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण मुसलमानों को विशेष अधिकार प्राप्त थे

→ मुस्लिम समाज उच्च, मध्य तथा निम्न वर्गों में विभाजित था

→ मुस्लिम स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी

→ हिंदू बहुसंख्या में थे, परंतु उन्हें अधिकारों से वंचित रखा गया था-हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था–हिंदू स्त्रियों को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था

→ समाज का अमीर वर्ग स्वादिष्ट भोजन करता और बहुमूल्य वस्त्र पहनता था

→ निम्न वर्गों का भोजन और वस्त्र साधारण होते थे

→ उस समय शिकार, चौगान, जानवरों की लड़ाइयाँ, शतरंज, नृत्य, संगीत और ताश आदि मनोरंजन के साधन थे

→ शिक्षा मस्जिदों, मदरसों और मंदिरों में प्रदान की जाती थी।

→ आर्थिक दशा (Economic Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की आर्थिक दशा बहुत अच्छी थी

→ पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था

→ यहाँ की मुख्य फसलें गेहूँ, कपास, जौ, मकई और गन्ना थीं

→ फसलों की पर्याप्त उपज होती थी

→ लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग था

→ उद्योगों में वस्त्र उद्योग सर्वाधिक प्रसिद्ध था

→ चमड़ा, शस्त्र, बर्तन, हाथी दाँत और खिलौने आदि के उद्योग भी प्रचलित थे

→ पशु पालन का व्यवसाय भी किया जाता था

→ पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार बड़ा उन्नत था

→ विदेशी व्यापार अफ़गानिस्तान, ईरान, अरब, सीरिया, तिब्बत और चीन आदि देशों के साथ था

→ लाहौर और मुलतान पंजाब के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध नगर थे

→ कम मूल्यों के कारण साधारण लोगों का निर्वाह भी सुगमता से हो जाता था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

→ पंजाब के इतिहास संबंधी समस्याएँ (Difficulties Regarding the History of the Punjab): मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखे गए फ़ारसी के स्रोतों में पक्षपातपूर्ण विचार प्रकट किए गए हैं—पंजाब में फैली अराजकता के कारण सिखों को अपना इतिहास लिखने का समय नहीं मिला— विदेशी आक्रमणों के कारण पंजाब के अमूल्य ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए-1947 ई० के पंजाब के बँटवारे कारण भी बहुत से ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए।

→ स्त्रोतों के प्रकार (Kinds of Sources)-पंजाब के इतिहास से संबंधित स्रोतों के मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ सिखों का धार्मिक साहित्य (Religious Literature of the Sikhs): आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस काल की सर्वाधिक प्रमाणित ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है। इसका संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया-दशम ग्रंथ साहिब जी गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है—इसका संकलन भाई मनी सिंह जी ने 1721 ई० में किया-ऐतिहासिक पक्ष से इसमें ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं.

→ भाई गुरदास जी द्वारा लिखी गई 39 वारों से हमें गुरु साहिबान के जीवन तथा प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों का पता चलता है—गुरु नानक देव जी के जीवन पर आधारित जन्म साखियों में पुरातन जन्म साखी, मेहरबान जन्म साखी, भाई बाला जी की जन्म साखी तथा भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी महत्त्वपूर्ण हैं—सिख गुरुओं से संबंधित हुक्मनामों से हमें समकालीन समाज की बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है—गुरु गोबिंद सिंह जी के 34 हुक्मनामों तथा गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी के 23 हुक्मनामों का संकलन किया जा चुका है।

→ पंजाबी और हिंदी में ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ (Historical and SemiHistorical works in Punjabi and Hindi): ‘गुरसोभा’ से हमें 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना से लेकर 1708 ई० तक की घटनाओं का आँखों देखा वर्णन मिलता है—गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबारी कवि सेनापत ने की थी—’सिखाँ दी भगतमाला’ से हमें सिख गुरुओं के काल की सामाजिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है—इसकी रचना भाई मनी सिंह जी ने की थी—केसर सिंह छिब्बड़ द्वारा रचित ‘बंसावली नामा’ सिख गुरुओं से लेकर 18वीं शताब्दी तक की घटनाओं का वर्णन है—भाई संतोख सिंह द्वारा लिखित ‘गुरप्रताप सूरज ग्रंथ’ तथा रत्न सिंह भंगू द्वारा लिखित ‘प्राचीन पंथ प्रकाश’ का भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में विशेष स्थान है।

→ फ़ारसी में ऐतिहासिक ग्रंथ (Historical Books in Persian): मुग़ल बादशाह बाबर की रचना ‘बाबरनामा’ से हमें 16वीं शताब्दी के प्रारंभ के पंजाब की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती हैअबुल फज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ और ‘अकबरनामा’ से हमें अकबर के सिख गुरुओं के साथ संबंधों का पता चलता है—मुबीद जुलफिकार अरदिस्तानी द्वारा लिखित ‘दबिस्तान-ए-मज़ाहिब’ में सिख गुरुओं से संबंधित बहुमूल्य ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है—सुजान राय भंडारी की ‘खुलासत-उत-तवारीख’, खाफी खाँ की ‘मुंतखिब-उल-लुबाब’ और काज़ी नूर मुहम्मद की ‘जंगनामा’ से हमें 18वीं शताब्दी के पंजाब की जानकारी प्राप्त होती है—सोहन लाल सूरी द्वारा रचित ‘उमदत-उततवारीख’ तथा गणेश दास वडेहरा द्वारा लिखित ‘चार बाग़-ए-पंजाब’ में महाराजा रणजीत सिंह के काल से संबंधित घटनाओं का विस्तृत विवरण है।

→ भट्ट वहियाँ (Bhat vahis): भट्ट लोग महत्त्वपूर्ण घटनाओं को तिथियों सहित अपनी वहियों में दर्ज कर लेते थे—इनसे हमें सिख गुरुओं के जीवन, यात्राओं और युद्धों के संबंध में काफ़ी नवीन जानकारी प्राप्त होती है।

→ खालसा दरबार रिकॉर्ड (Khalsa Darbar Records): ये महाराजा रणजीत सिंह के समय के सरकारी रिकॉर्ड हैं—ये फ़ारसी भाषा में हैं और इनकी संख्या 1 लाख से भी ऊपर है—ये महाराजा रणजीत सिंह के काल की घटनाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।

→ विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ (Writings of Foreign Travellers and Europeans): विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं—इनमें जॉर्ज फोरस्टर की ‘ऐ जर्नी फ्राम बंगाल टू इंग्लैंड’, मैल्कोम की ‘स्केच ऑफ़ द सिखस्’, एच० टी० प्रिंसेप की ‘ओरिज़न ऑफ़ सिख पॉवर इन पंजाब’, कैप्टन विलियम उसबोर्न की ‘द कोर्ट एण्ड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह’, सटाईनबख की ‘द पंजाब’ और जे० डी० कनिंघम द्वारा रचित ‘हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्’ प्रमुख हैं।

→ ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के (Historical Buildings, Paintings and Coins): पंजाब के ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के पंजाब के इतिहास के लिए एक अमूल्य स्रोत हैं—खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, अमृतसर, तरनतारन, करतारपुर और पाऊँटा साहिब आदि नगरों, विभिन्न दुर्गों, गुरुद्वारों में बने चित्रों तथा सिख सरदारों के सिक्कों से तत्कालीन समाज पर विशेष प्रकाश पड़ता है।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

→ पंजाब के विभिन्न नाम (Different Names of the Punjab): पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ और ‘आब’ से मिलकर बना है-पंजाब का शाब्दिक अर्थ है पाँच नदियों का प्रदेश-पंजाब को प्राचीन काल में टक देश, ऋग्वैदिक काल में ‘सप्त-सिंधु’, पुराण काल में ‘पंचनद’, यूनानियों द्वारा ‘पैंटापोटामिया’, मध्यकाल में ‘लाहौर सूबा’ तथा अंग्रेजों द्वारा ‘पंजाब प्रांत’ कहा जाता था।

→ पंजाब की भौतिक विशेषताएँ (Physical Features of the Punjab): पंजाब की भौतिक विशेषताओं से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ हिमालय और सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ (The Himalayas and Sulaiman Mountain Ranges): हिमालय पर्वत पंजाब के उत्तर में स्थित है-यह पर्वत आसाम से लेकर अफ़गानिस्तान तक फैला हुआ है-यह पंजाब के लिए वरदान सिद्ध हुआ है-हिमालय पर्वत के फलस्वरूप पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ बन गई है-सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ पंजाब के उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं – इन्हीं श्रेणियों में खैबर, कुर्रम, बोलान, टोची तथा गोमल नामक दर्रे स्थित हैं।

→ अर्द्ध-पर्वतीय प्रदेश (Sub-Mountainous Region): यह प्रदेश शिवालिक पहाड़ियों और पंजाब के मैदानी भाग के मध्य स्थित है-इसे तराई प्रदेश भी कहा जाता है-इसमें होशियारपुर, काँगड़ा, अंबाला, गुरदासपुर तथा स्यालकोट के प्रदेश आते हैं।

→ मैदानी प्रदेश (The Plains): मैदानी प्रदेश पंजाब का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण खंड है-यह प्रदेश सिंध और यमुना नदियों के मध्य स्थित है-इसका अधिकाँश भाग पाँच दोआबों से घिरा हुआ हैइन दोबाओं को बिस्त जालंधर दोआब, बारी दोआब, रचना दोआब, चज दोआब और सिंध सागर दोआब कहा जाता है-पंजाब के मैदानी भाग में सतलुज और घग्घर नदियों के बीच के क्षेत्र को मालवा तथा बांगर कहा जाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का प्रदेश रेगिस्तानी है। अतः यहाँ की जनसंख्या बहुत कम है।

→ भौतिक विशेषताओं का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव (Influence of Physical Features on the History of the Punjab): पंजाब पर उसकी भौतिक विशेषताओं के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक प्रभावों से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ राजनीतिक प्रभाव (Political Effects): उत्तर-पश्चिम में विभिन्न दर्रे स्थित होने के कारण पंजाब विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भारत का प्रवेश द्वार बन गया सभी महत्त्वपूर्ण और निर्णायक लड़ाइयाँ इसी क्षेत्र में हुईं-पंजाब के शहरों का राजनीतिक महत्त्व बढ़ गया-पंजाबियों को शताब्दियों तक भारी कष्टों और अत्याचारों का सामना करना पड़ा।

→ सामाजिक प्रभाव (Social Effects): पंजाबियों में वीरता, साहस, कष्ट सहने और बलिदान के विशेष गुण उत्पन्न हो गए-यहाँ पर जातियों तथा उपजातियों की संख्या में वृद्धि हुई-पंजाब में कला और साहित्य के विकास को धक्का लगा।

→ धार्मिक प्रभाव (Religious Effects): पंजाब को हिंदू धर्म की जन्म भूमि कहा जाता हैपंजाब में इस्लाम का प्रसार भारत के अन्य भागों की तुलना में अधिक हुआ-पंजाब की भूमि को सिख धर्म की उत्पत्ति और विकास का श्रेय जाता है।

→ आर्थिक प्रभाव (Economic Effects): पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ होने के कारण पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है-पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार काफ़ी उन्नत हो गयापंजाब में अनेक व्यापारिक नगर अस्तित्व में आए-पंजाबी आर्थिक रूप से काफ़ी समृद्ध हो गए।