PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ

PSEB 12th Class Economics अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
अभावी मांग (Deficient Demand) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अभावी मांग (Deficient Demand) ऐसी स्थिति है, जोकि एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए, कुल मांग, कुल पूर्ति से कम होती है।

प्रश्न 2.
अस्फीति अन्तर (Deflationary Gap) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
अभावी मांग की स्थिति कब उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन तथा पूर्ण रोज़गार की स्थिति के अन्तर को अस्फीति अन्तर कहा जाता है। इस को अभावी मांग भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में अभावी मांग से क्या अभिप्राय है ? इसका रोज़गार तथा उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
अभावी मांग वह स्थिति है, जिसमें कुल मांग, पूर्ण रोजगार की स्थिति से कम होती है। इससे निवेश पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए रोज़गार कम हो जाता है। जब रोज़गार कम होगा तो देश में उत्पादन कम हो जाता है।

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प्रश्न 4.
अधिक मांग से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था में अधिक मांग (Excess Demand) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब कुल मांग, पूर्ण रोज़गार के स्तर से अधिक होती है तो इस स्थिति को अधिक मांग की स्थिति कहा जाता है।

प्रश्न 5.
स्फीतिक अन्तर (Inflationary Gap) का अर्थ बताओ।
उत्तर-
स्फीतिक अन्तर वह स्थिति है, जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल मांग, कुल पूर्ति से अधिक होती है (AD > AS)। इस स्थिति को स्फीतिक अन्तर कहा जाता है, जोकि मुद्रा स्फीति (Inflation) को जन्म देती है।

प्रश्न 6.
स्फीतिक अन्तर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्फीतिक अन्तर वह स्थिति है, जिसमें पूर्ण रोज़गार प्राप्त करने के लिए अनिवार्य कुल मांग से कुल मांग (AD) अधिक होती है। इससे स्फीतिक अन्तर उत्पन्न होता है।

प्रश्न 7.
स्फीतिक अन्तर का उत्पादन और कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
इसके परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि नहीं होती बल्कि कीमतों में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
‘से’ के बाज़ार नियम का सार दें।
उत्तर-
जे०बी०से० के अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा कर लेती हैं” प्रत्येक देश में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है।

प्रश्न 9.
अधिक मांग में ……
(क) AD = AS
(ख) AD > AS
(ग) AD < AS (घ) इनमें से कोई नहीं। उत्तर- (ख) AD > AS.

प्रश्न 10.
अभावी मांग में .
(क) AD = AS
(ख) AD > AS
(ग) AD < AS
(घ) उपरोकत सभी।
उत्तर-
(ग) AD < AS.

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प्रश्न 11.
‘पूर्ति अपनी मांग स्वयं पैदा कर लेती है’ नियम किसने दिया।
(क) एडम स्मिथ
(ख) रोबिन्ज
(ग) मार्शल
(घ) प्रो० जे० बी० ‘से’।
उत्तर-
(घ) प्रो० जे० बी० से।

प्रश्न 12.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में जब कुल मांग कुल पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को कहते हैं ?
उत्तर-
अधिक मांग अथवा स्फीति अन्तर।

प्रश्न 13.
स्फीति अन्तर में उत्पादन, रोज़गार और कीमत ……… हो जाते हैं।
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) सामान्य
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) कम।

प्रश्न 14.
जब स्फीति अन्तराल की स्थिति होती है तो उसको …………… कहते हैं ।
(क) पूर्ण रोजगार
(ख) अपूर्ण रोजगार
(ग) छुपी बेरोज़गारी
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) अपूर्ण रोजगार।

प्रश्न 15.
कम मांग की स्थिति में अर्थव्यवस्था में कम उत्पादन, कम आय और कम रोज़गार की स्थिति होती है। इस स्थिति को ………………. कहते हैं।
(क) स्फीतिक
(ख) तेजी
(ग) अस्फीतिक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) अस्फीतिक।

प्रश्न 16.
कुल मांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल मांग = उपभोग व्यय + निजी निवेश + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात।

प्रश्न 17.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति = उपभोग + बचत।

प्रश्न 18.
जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल मांग कुल पूर्ति से अधिक होती है तो इस को स्फिति अन्तर कहा जाता है ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 19.
अधिक माँग की स्थिति को अस्फीति अन्तर भी कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अभावी मांग (Deficient Demand) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अभावी मांग (Deficient Demand) ऐसी स्थिति है, जोकि एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए, कुल मांग, कुल पूर्ति से कम होती है अर्थात् यदि कुल मांग पूर्ण रोज़गार के स्तर से कम होती है तो ऐसी स्थिति को अभावी मांग कहा जाता है।

प्रश्न 2.
अस्फीति अन्तर (Deflationary Gap) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
अभावी मांग की स्थिति कब उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन AS = AD द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होता है, जोकि पूर्ण रोज़गार F की स्थिति से पहले की स्थिति है। इस स्थिति में FG, अस्फीति अन्तर कहा जाता है। जिसके परिणामस्वरूप आय तथा रोज़गार कम हो जाता है। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन E की स्थिति को अभावी मांग की स्थिति कहा जाता है।
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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अधिक मांग (Excess Demand) को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
अथवा
स्फीति अन्तर से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र की सहायता से स्फीति अन्तर की धारणा को स्पष्ट करो।
उत्तर-
स्फीति अन्तर (Inflationary Gap) वह स्थिति होती है, जोकि एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार स्थापित करने के लिए अनिवार्य कुल मांग से अधिक मांग (Excess Demand) को प्रकट करती है।
रेखाचित्र 2 में कुल मांग तथा कुल पूर्ति द्वारा सन्तुलन F बिन्दु पर स्थापित होता है। इससे ON रोज़गार का स्तर है, जिसको पूर्ण रोज़गार की स्थिति कहा जाता है। यदि कुल मांग AD से बढ़कर AD1 हो जाती है तो कुल मांग में वृद्धि FG हो जाती है, इसको स्फीति अन्तर कहा जाता है।
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प्रश्न 2.
विस्फीति अन्तर (Deflationary Gap) से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र की सहायता से विस्फीति अन्तर को स्पष्ट करो।
उत्तर-
जब उत्पादन के निश्चित स्तर पर कुल मांग पूर्ण रोज़गार के स्तर से कम होती है तो इस स्थिति को अभावी मांग कहा जाता है, जिस कारण अस्फीति अन्तर जन्म लेता है। इसके परिणामस्वरूप देश में उत्पादन तथा रोज़गार कम हो जाता है तथा अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। रेखाचित्र 3 में पूर्ण रोज़गार का स्तर F बिन्दु है, जहां उत्पादन अथवा रोजगार ON है। इस स्थिति में कुल मांग का है, जोकि AD1 पर G बिन्दु पर दिखाई गई है। इस स्थिति में FG को विस्फीति अन्तर कहा जाता
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प्रश्न 3.
अभावी मांग से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र की सहायता से अभावी मांग की स्थिति को स्पष्ट करो।
उत्तर-
अभावी मांग की स्थिति उस स्थिति में होती है, जब पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल मांग की कमी पाई जाती है। इस स्थिति को अभावी मांग (Deficit Demand) की स्थिति कहा जाता है। रेखाचित्र 4 में AS = AD द्वारा F बिन्दु पर सन्तुलन स्थापित होता है। इसको पूर्ण रोजगार की स्थिति कहा जाता है। पूर्ण रोजगार की स्थिति में उत्पादन ON है अथवा FN है। परन्तु कुल मांग GN है। इसलिए FN – GN = FG को अभावी मांग कहा जाता है। इसको विस्फीति अन्तर भी कहते हैं।
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प्रश्न 4.
कम मांग के प्रभावों की व्याख्या करें।
उत्तर-
कम शंग (Eyeficient Remand) से अभिप्राय ऐसी अवस्था से होता है जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कम होती है। इस स्थिति को अस्फीति अन्तर भी (Deflationary Gap) भी कहते हैं। कम मांग के प्रशाद –

  • देश में कीमतें तेजी से घटने लगती हैं।
  • आय तथा धन का अभाव हो जाता है।
  • कर अधिक होने के कारण लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाती है।
  • देश में साधनों का अल्प उपयोग होने लगता है।
  • देश में उत्पादकों के लाभ कम होने लगते हैं।
  • उत्पादन में कमी होने लगती है।
  • देश में बेरोज़गारी फैल जाती है।

प्रश्न 5.
अधिक मांग के प्रभात्रों की व्याख्या करें।
उत्तर-
अधिक मांग (Excess Demand) से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल मांग कुल पूर्ति से अधिक होती है इस स्थिति को स्फीति अन्तर (Inflationary Gap) कहा जाता है।

अधिक मांग के प्रभाव-

  • देश में कीमतें तेजी से बढ़ने लगती हैं।
  • आय तथा धन का असमान वितरण हो जाता है।
  • उधार देने वाले लोगों को हानि होती है।
  • नौकरी पेशा लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
  • लोगों का विश्वास सरकार में कम हो जाता है।
  • देश में अनैतिकता की स्थिति फैल जाती है।

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IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अधिक मांग तथा अभावी मांग से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र द्वारा (a) अधिक मांग (b) अभावी मांग को स्पष्ट करो।।
[What is excess and deficient demand? Explain with the help of diagrams the situation of
(a) Excess demand
(b) Deficient Demand.]
अथवा
रेखाचित्र की सहायता से एक अर्थव्यवस्था में (a) अपूर्ण रोजगार सन्तुलन तथा (b) अधिक मांग सन्तुलन को स्पष्ट करो।
[Explain with the help of Diagrams the situation of (a) Under Employment Equilibrium and (b) Excess Demand in an Economy.]
अथवा
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति को स्पष्ट करो। रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो कि अधिक निवेश से पूर्ण रोज़गार सन्तुलन स्थापित किया जा सकता है।
(Explain the concept of Under Employment Equilibrium with the help of a diagram. Show on the same diagram the additional investment expenditure required to reach Full Employment Equilibrium.)
अथवा
स्फीति अन्तर तथा विस्फीति अन्तर को रेखाचित्रों की सहायता से स्पष्ट करो। (Explain Inflation Gap and Deflationary Gap with the help of diagrams.)
उत्तर-
1. अधिक मांग का अर्थ (Meaning of Excess Demand)-अधिक मांग वह स्थिति होती है, जब एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के स्तर से कुल मांग अधिक होती है। (Excess demand is a situation in which the aggregate demand is for a level of output is more their the full employment.) पूर्ण रोज़गार से सम्बन्धित कुल पूर्ति से जब कुल मांग अधिक होती है तो इसको अधिक मांग कहा जाता है।
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अधिक मांग (Excess Demand)-रेखाचित्र 5 में कुल पूर्ति (AS) तथा कुल मांग (AD) एक-दूसरे को F बिन्दु पर काटते हैं। इसको पूर्ण रोज़गार का बिन्दु कहा जाता है। यदि कुल मांग AD, हो जाती है तो नया सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। इस स्थिति में EF को अधिक मांग कहा जाता है।

स्फीति अन्तर (Inflationary Gap)-स्फीति अन्तराल, अधिक मांग का माप होता है। रेखाचित्र में EF को स्फीति अन्तर कहते हैं। पूर्ण रोज़गार स्थापित करने के लिए जितनी कुल मांग की आवश्यकता होती है तथा उस मांग से कुल मांग अधिक हो जाती है तो उस भाग को स्फीति अन्तर कहा जाता है।

इस स्थिति में

  • उत्पादन का स्तर समान रहता है।
  • कुल मांग अधिक होने के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमत बढ़ने लगती है।
  • इससे मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

2. अभावी मांग का अर्थ (Meaning of Deficient Demand)-अभावी मांग वह स्थिति है जोकि पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल मांग, कुल पूर्ति से कम होती है-
अथवा
कुल मांग, पूर्ण रोज़गार के उत्पादन स्तर से कम होती (Deficient Demand is a situation to which the aggregate demand is for a level of output, Less than the full employment level.) रेखाचित्र 6 में OX पर आय तथा रोजगार तथा OY पर कुल मांग तथा कुल पूर्ति को दिखाया गया है। पूर्ण रोज़गार की स्थिति F बिन्दु पर दिखाई गई है, जहां AS = AD है तथा OQ उत्पादन किया जाता है। यदि वास्तव में मांग AD, है तो सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल मांग QG है, जोकि पूर्ण रोजगार की मांग QF से कम है। इसलिए QF – QG = FG को अभावी मांग कहा जाता है।

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इसके परिणामस्वरूप

  • साधनों का कम प्रयोग किया जाता है।
  • उत्पादकों के स्टॉक में वृद्धि हो जाती है।
  • स्टॉक बढ़ने से नियोजित उत्पादन कम हो जाता है।
  • नियोजित उत्पादन घटने से आय तथा रोज़गार कम हो जाता है।

विस्फीतिक अन्तराल (Deflationary Gap)- किसी देश में पूर्ण रोजगार स्थापित करने के लिए जितनी कुल मांग की आवश्यकता होती है, यदि कुल मांग उस मांग से कम है तो इनके अन्तर को विस्फीतिक अन्तराल कहा जाता है। रेखाचित्र में अभावी मांग के माप को विस्फीतिक अन्तराल कहा जाता है, जिसको EG अभावी मांग = विस्फीतिक अन्तराल द्वारा दिखाया गया है।

अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium)-जब कुल मांग (AD) तथा कुल पूर्ति (AS) समान है तो सन्तुलन F बिन्दु पर स्थापित होता है, इसको पूर्ण रोजगार का बिन्दु कहा जाता है। यदि कुल मांग कम है, जिसको AD1, द्वारा दिखाया है, यह अभावी मांग को प्रकट करता है। इसके परिणामस्वरूप सन्तुलन F बिन्दु से E बिन्दु पर परिवर्तित हो जाएगा। इसी तरह अभावी मांग पूर्ण रोजगार की स्थिति से अपूर्ण रोजगार की स्थिति की ओर ले जाएगा। जब सन्तुलन E बिन्दु पर रेखाचित्र 6 स्थापित होता है तो AS = AD1, है। OU मजदूरों को रोजगार प्राप्त होता है, इसको अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है।
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अधिक मांग तथा अभावी मांग में अन्तर (Difference between Excess Demand and Deficient Demand) –

  1. कुल मांग-अभावी मांग की स्थिति में कुल मांग पूर्ण रोज़गार की स्थिति के लिए कुल मांग से कम होती है, जबकि अधिक मांग की स्थिति में कुल मांग पूर्ण रोजगार की स्थिति से अधिक होती है।
  2. स्फीतिक तथा विस्फीतिक अन्तराल अधिक मांग के कारण स्फीतिक अन्तराल तथा अभावी मांग के कारण विस्फीतिक अन्तराल उत्पन्न होता है।
  3. कीमतों में परिवर्तन-अधिक मांग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि होती है, परन्तु अभावी मांग में कीमतों में कमी होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

PSEB 12th Class Economics आय तथा रोजगार का निर्धारण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector) तथा फर्में (Firms) अथवा उत्पादन क्षेत्र होता है।

प्रश्न 2.
सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर–
सन्तुलन वह स्थिति होती है यहाँ पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति बराबर होते हैं।

प्रश्न 3.
सन्तुलन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सन्तुलन आय वह स्थिति होती है यहां पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति द्वारा आय अथवा उत्पादन का निश्चित स्तर स्थापित हो जाता है।

प्रश्न 4.
अनैच्छिक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अनैच्छिक बेरोज़गारी एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें कुशल लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं, काम प्राप्त नहीं कर पाते।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

प्रश्न 5.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार वह स्थिति है जिसमें कुशल लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं, रोज़गार पर लगे होते हैं।

प्रश्न 6.
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अपूर्ण रोजगार सन्तुलन, सन्तुलन की वह स्थिति है यहाँ कुछ साधन बेरोज़गार होते हैं।

प्रश्न 7.
इच्छित बेरोज़गारी का अर्थ बताओ।
उत्तर-
इच्छित बेरोज़गारी वह स्थिति है यहां पर मज़दूर वर्तमान मज़दूरी पर काम प्राप्त होने पर भी काम नहीं करना चाहते।

प्रश्न 8.
अपूर्ण रोज़गार की स्थिति में AB और AS सन्तुलन में कैसे होते हैं ? रेखाचित्र द्वारा दिखाएं ।
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति रेखाचित्र 1.
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 1

प्रश्न 9.
आय के सन्तुलन स्तर पर क्या हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति होती है ?
उत्तर-
आय के सन्तुलन स्तर पर हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति होनी ज़रूरी नहीं। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन भी हो सकता है।

प्रश्न 10.
परम्परावादी अर्थशास्त्रियों के अनुसार एक पूँजीवाद अर्थव्यवस्था में सदैव ……… की स्थिति होती है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) पूर्ण बेरोज़गार
(c) छुपी बेरोज़गारी
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) पूर्ण रोज़गार।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

प्रश्न 11.
केन्ज के अनुसार एक पूँजीवाद अर्थव्यवस्था में सन्तुलन ………… की स्थिति में होता है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) अपूर्ण रोज़गार
(c) पूर्ण रोजगार से अधिक
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में ………. प्रकार की बेरोज़गारी हो सकती है ?
(a) इच्छित बेरोज़गारी
(b) मौसमी बेरोज़गारी
(c) संरचनात्मक बेरोज़गारी
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 13.
जब मज़दूरों को वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम तो प्राप्त होता है परन्तु वह काम करना नहीं चाहते तो इसको इच्छित बेरोज़गारी कहते हैं ?
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
रोज़गार का स्तर उस बिन्दु पर निश्चित होता है जिस बिन्दु पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति एक दूसरे के बराबर हो जाते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पूर्ण रोजगार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार उस स्थिति को कहते हैं जिसमें वह श्रमिक जो वर्तमान प्रचलित मज़दूरी दर पर कार्य करना चाहते हैं तथा उनको बिना देरी से कार्य प्राप्त हो जाता है। पूर्ण रोज़गार में अनइच्छित बेरोज़गारी का अभाव होता है।

प्रश्न 2.
पूर्ण रोज़गार सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार सन्तुलन-
पूर्ण रोज़गार सन्तुलन वह स्थिति है जहां कुल मांग (AD) = कुल पूर्ति (AS) होती है। इस स्थिति में साधनों का पूर्ण प्रयोग होता है। पूर्ण रोज़गार सन्तुलन एक स्थिर सन्तुलन होता है, जिसमें हम परिवर्तन नहीं चाहते। पूर्ण रोज़गार सन्तुलन से अधिक उत्पादन से स्फीति अन्तर उत्पन्न होता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 2

प्रश्न 3.
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन से क्या अभिप्राय
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन वह स्थिति है जहां कुल मांग (AD) = कुल पूर्ति (AS) होती है। इस स्थिति में साधनों का पूर्ण प्रयोग नहीं होता। अपूर्ण रोजगार सन्तुलन एक अस्थिर सन्तुलन होता है, जिसमें हम परिवर्तन चाहते हैं। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन से अधिक उत्पादन से स्फीति अन्तर उत्पन्न नहीं होता।
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प्रश्न 4.
‘से’ के बाजार नियम से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
‘से’ का बाजार नियम (Say’s Law of Markets)-जे० बी० से फ्रांस के अर्थशास्त्री थे। उनके अनुसार कुल पूर्ति तथा कुल मांग हमेशा समान होती है। इसको स्पष्ट करने के लिए उन्होंने कहा, “पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand) और देश में हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति रहती है।

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प्रश्न 5.
केन्ज़ के अनुसार आय तथा रोज़गार कैसे निर्धारण होते हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय तथा रोजगार का निर्धारण (Determination of Income and Employment)- राष्ट्रीय आय का स्तर उस स्थान पर निर्धारित होता है जहां पर समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति समान होते हैं उस बिन्दु को प्रभावी मांग (Effective demand) का बिन्दु कहा जाता है। यह बिन्दु सन्तुलन का प्रतीक होता है। इसको रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पूर्ण रोज़गार तथा अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन में अन्तर बताओ।
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार तथा अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन में अन्तर –
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प्रश्न 2.
राष्ट्रीय आय के सन्तुलन की रेखाचित्र द्वारा व्याख्या करो।
उत्तर-
केन्ज़ के रोज़गार सिद्धान्त को आय तथा रोज़गार निर्धारण का आधुनिक सिद्धान्त कहा जाता है। उनके अनुसार किसी अर्थव्यवस्था में किसी समय राष्ट्रीय आय का सन्तुलन कुल माँग तथा कुल पूर्ति की समानता द्वारा निर्धारित होता है।
AD = C +I
AS = C + S
∴ S = I
∴ AD = AS
AD (C+I)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 6
रेखाचित्र 5 में कुल माँग तथा कुल पूर्ति (AD = AS) बिन्दु E पर सन्तुलन में है। इससे OY राष्ट्रीय आय निर्धारण हो जाती है। यदि राष्ट्रीय आय कम है, जैसे कि OY1 तो आय होने की सम्भावना Y1 R1 अधिक है तथा लागत Y1C2 कम है। इसलिए उत्पादन में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन E बिन्दु पर पहुंच जाएगा। यदि राष्ट्रीय आय OY2 है तो आय होने की सम्भावना Y2 R2 कम है तथा लागत Y2C2 अधिक है। इसलिए उत्पादन कम हो जाएगा तथा सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होगा जहां AD = AS है। इसको अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
रेखाचित्र द्वारा बचत तथा निवेश दृष्टिकोण की सहायता से एक अर्थव्यवस्था में आय तथा उत्पादन के सन्तुलन को स्पष्ट करो। अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा, जब अर्थव्यवस्था में सन्तुलन नहीं होता तथा बचत निवेश से अधिक होती है ?
अथवा
आय में सन्तुलन बचत तथा निवेश वक्रों द्वारा स्पष्ट करो। यदि बचतें, नियोजित निवेश से बढ़ जाती हैं तो इनके सन्तुलन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था में नियोजित बचत नियोजित निवेश से अधिक होती है तो सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ?
उत्तर-
रेखाचित्र 6 में बचत तथा निवेश के सन्तुलन को दिखाया | गया है। बचत तथा निवेश एक-दूसरे के समान E बिन्दु पर दिखाए | गए हैं। इससे OY राष्ट्रीय आय का स्तर निर्धारण हो जाता है। इसको सन्तुलन की स्थिति कहा जाता है।
सन्तुलन = बचत = नियोजित निवेश यदि बचत, नियोजित निवेश से अधिक है।
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यदि बचत निवेश से बढ जाती है, जैसे कि रेखाचित्र में राष्ट्रीय आय OY1 पर बचत Y1S1 है तथा निवेश Y1I1 कम है। इस स्थिति में उत्पादकों की वस्तुओं का भण्डार बढ़ जाएगा, क्योंकि वस्तुओं का उपभोग अथवा माँग कम हो जाती है। इसलिए कीमतें कम हो जाती हैं। उत्पादकों के लाभ कम हो जाते हैं। इसलिए उत्पादक उत्पादन घटा देते हैं, परिणामस्वरूप रोज़गार कम हो जाता है तथा आय में कमी हो जाती है।इसलिए राष्ट्रीय आय OY1 से कम होकर OY रह जाएगी, जहां बचत तथा निवेश में सन्तुलन स्थापित हो जाएगा।

प्रश्न 4.
बचत तथा निवेश द्वारा आय का सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ? आय के सन्तुलन । की स्थिति में क्या हमेशा पूर्ण रोज़गार की स्थिति होगी ?
अथवा
बचत तथा निवेश द्वारा आय का सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ? स्पष्ट करो।
उत्तर-
जब नियोजित बचत तथा नियोजित निवेश एक-दूसरे के समान होते हैं तो सन्तुलन की स्थिति होती है, जैसे कि रेखाचित्र में बचत तथा निवेश का सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है तो OY आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 8
निर्धारित हो जाती है। यदि आय OY1 अधिक होती है तो निवेश Y1I1 अधिक है तथा बचत Y1S1 कम है। इससे आय पर रोज़गार में वृद्धि होती है, जब तक सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित नहीं हो जाता। यदि आय OY2 है तो बचत Y2S2 अधिक है तथा निवेश Y2I2 कम है तो राष्ट्रीय आय कम है तो राष्ट्रीय आय कम हो जाती है तथा अन्त में सन्तुलन बचत तथा निवेश की समानता द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होता है तथा राष्ट्रीय आय OY निश्चित हो जाएंगी। आय सन्तुलन तथा पूर्ण रोज़गार-आय सन्तुलन की स्थिति में पूर्ण रोज़गार की स्थिति भी हो सकती है, परन्तु यह अनिवार्य नहीं कि उस स्थिति में पूर्ण रोज़गार भी हो।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आय तथा रोज़गार के परम्परागत सिद्धान्तों को स्पष्ट करो। (Explain Classical Theory of Income and Employment determination.)
अथवा
कुल माँग तथा कुल पूर्ति की समानता से आय तथा रोजगार निर्धारण के परम्परागत दृष्टिकोण को स्पष्ट करो।
उत्तर-
परम्परागत आय तथा रोजगार निर्धारण के दो दृष्टिकोण हैं

  1. कुल माँग तथा कुल पूर्ति में सन्तुलन (Equilibrium with AD & AS)
  2. बचत तथा निवेश में सन्तुलन (Equilibrium with Saving & Investment)

1. कुल माँग तथा कुल पूर्ति में सन्तुलन (Equilibrium with AD & AS)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों का विचार था कि एक मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है। इसके मुख्य दो आधार होते हैं।

(a) ‘से’ का बाज़ार नियम (Say’s Law of Markets)-जे० बी० से फ्रांस के अर्थशास्त्री थे। उनके अनुसार कुल पूर्ति तथा कुल माँग हमेशा समान होती है। इसको स्पष्ट करने के लिए उन्होंने कहा, “पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.) मान लो एक देश में वस्तु विनिमय प्रणाली है। विभिन्न मनुष्य विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। किसान गेहूँ उत्पन्न करता है। जुलाहा कपड़ा बनाता है। लकड़हारा लकड़ी की वस्तुओं का उत्पादन करता है। किसान गेहूँ देकर कपड़ा प्राप्त करता है। गेहूँ का मूल्य कपड़े के मूल्य के समान होगा। इस प्रकार देश में वस्तुओं का एक-दूसरे से विनिमय किया जाता है तथा कुल पूर्ति, कुल मांग के समान हो जाती है।

(b) मज़दूरी कीमत लोचशीलता (Wage Price Flexibility)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों के अनुसार पूर्ण रोज़गार का दूसरा आधार मज़दूरी कीमत लोचशीलता होती है। मजदूरी की दर में परिवर्तन मज़दूर की माँग तथा पूर्ति में परिवर्तन उत्पन्न करती है। किसी समय मज़दूरी अधिक है तो मज़दूरों की पूर्ति अधिक हो जाएगी तथा माँग कम होगी।

इसलिए मज़दूरी कम हो जाएगी। यदि मजदूरी कम है तो मजदूरों की मांग अधिक होगी तथा पूर्ति कम होगी तो मज़दूरी बढ़ जाएगी। इस प्रकार मजदूरों की माँग तथा पर्ति द्वारा सन्तुलन स्थापित होता है। कुल पूर्ति, कुल माँग के समान होती है तथा पूर्ण रोजगार की स्थिति होती है। रेखाचित्र 8 में कुल पूर्ति AS पूर्ण अलोचशील होती है। ON रोज़गार की स्थिति को प्रकट करती है। सन्तुलन AS = AD द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होता है। इसको पूर्ण रोजगार का बिन्दु कहा जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 9

2. बचत तथा निवेश में सन्तुलन (Equilibrium with Saving & Investment)- यदि लोगों की आय का कुछ भाग उपभोग पर व्यय किया जाता है तथा कुछ भाग बचत की जाती है तो इससे भी अर्थव्यवस्था में सन्तुलन रहता है, क्योंकि बचत तथा निवेश हमेशा समान रहते हैं तथा इनमें सन्तुलन ब्याज की दर से स्थापित हो जाता है। इसलिए प्रत्येक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार की स्थिति ही स्थापित हो जाती है।
अर्थात्
∵ S = f (r) and
I = f (7)
∴ S = I
किसी देश में ब्याज की दर पर बचत निर्भर करती है तथा इनका परस्पर सीधा सम्बन्ध होता है। ब्याज की दर तथा निवेश का परस्पर में विपरीत सम्बन्ध होता है। बचत तथा निवेश द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित हो जाता है। इस प्रकार परम्परागत अर्थशास्त्रियों के अनुसार बचत तथा निवेश में सन्तुलन ब्याज की दर से स्थापित होता है। परम्परागत रोज़गार सिद्धान्त अनुसार एक मुक्त अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 10

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

प्रश्न 2.
कुल माँग तथा कुल पूर्ति द्वारा आय तथा रोज़गार निर्धारण करने के केन्ज़ के सिद्धान्त की व्याख्या करो।
(Explain Keynes theory of determination of income and employment with the help of aggregate demand and aggregate supply.)
उत्तर-
केन्ज़ का विचार है कि कुल पूर्ति तथा कुल माँग में समानता में आवश्यक नहीं कि पूर्ण रोज़गार की स्थिति हो। कुल पूर्ति तथा कुल माँग के सन्तुलन में अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति में भी हो सकता है। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium) की स्थिति में कुछ साधन बेरोज़गार होते हैं। केन्ज़ ने कुल पूर्ति तथा कुल मांग में समानता परम्परागत अर्थशास्त्रियों से विभिन्न ढंग से पेश की है।

1. कुल पूर्ति (Aggregate Supply)-कुल पूर्ति को केन्ज़ ने दो ढंगों से स्पष्ट किया-
(a) कीमत स्तर तथा कुल पूर्ति-कीमत स्तर के संदर्भ में पूर्ति रेखा OX के समान्तर होती है, क्योंकि मज़दूरों की संख्या में परिवर्तन से प्रति इकाई उत्पादन लागत स्थिर रहती है। इसलिए कीमत स्थिर रहती है तथा मज़दूरों की मज़दूरी में स्थिरता पाई जाती | है। इसको मज़दूरी कीमत कठोरता (Wage Price Rigdity) कहा | जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 11
(b) रोज़गार तथा कुल पूर्ति–रोज़गार तथा कुल पूर्ति के | संदर्भ में केन्ज़ के अनुसार कुल पूर्ति (AS) वक्र 0 से 45° के कोण पर बढ़ती है। यदि रोज़गार ON1 है तो उत्पादन अथवा आय OY1 है। रोज़गार N1N2 बढ़ जाता है तो आय 12 बढ़ जाती है। रोज़गार के पक्ष से केन्ज़ ने कुल पूर्ति (AS) को इस रेखाचित्र 7.11 अनुसार दिखाया है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 12

2. कुल माँग (Aggregate Demand)–केन्ज़ ने कुल माँग को इस प्रकार स्पष्ट किया AD = उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (I)
1. उपभोग व्यय-उपभोग व्यय रेखा OC से आरम्भ होती है। अर्थात्
C = a + by
इसमें C = उपभोग, a = स्वतन्त्र उपभोग, by = सीमांत उपभोग प्रवृत्ति
यदि आय O है तो भी OC उपभोग किया जाता है इसको a द्वारा दिखाया गया है तथा आय बढ़ने से by = MPC अनुसार उपभोग बढ़ता है।

2. निवेश व्यय-यह निवेश व्यय स्वतन्त्र है जोकि II द्वारा दिखाया है तथा OX के समान्तर है। कुल मांग (AD) =उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (I)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण 13

रोजगार तथा आय का निर्धारण (Determination of Income & Employment)-
(a) अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium)-केन्ज़ अनुसार आय तथा रोज़गार कुल पूर्ति तथा कुल माँग के सन्तुलन द्वारा निर्धारण होता है, जैसे कि रेखाचित्र 13 में AS = AD बिन्दु E पर सन्तुलन में है। इसलिए ON रोज़गार का स्तर स्थापित हो जाएगा, इसको अपूर्ण रोज़गार (Under Employment Equilibrium) कहा जाता है। यदि ON1 रोज़गार स्थापित होता है तो कुल माँग AD अधिक है तथा कुल पूर्ति AS कम है। आय होने की सम्भावना अधिक है। इसलिए रोज़गार में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन E पर पहुंच AD जाएगा। यदि ON2 रोज़गार का स्तर है तो OC2 लागत अधिक है तथा OR2 आय कम है, इसलिए उत्पादन का स्तर कम हो जाएगा तथा रोजगार E बिन्दु पर पहुंच जाता है। इसको अपूर्ण रोजगार सन्तुलन कहा जाता है।
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(b) रोज़गार तथा कुल पूर्ति-रोजगार तथा कुल पूर्ति के संदर्भ में केन्ज़ के अनुसार कुल पूर्ति (AS) व 0 से 45° के कोण पर बढ़ती है। यदि रोज़गार ON1 है तो उत्पादन अथवा आय OY1 है। रोज़गार N1N2 बढ़ जाता है तो आय ½ ½ बढ़ जाती है। 1Y, रोज़गार के पक्ष से केन्ज़ ने कुल पूर्ति (AS) को इस रेखाचित्र 7.11 अनुसार दिखाया है।
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2. कल माँग (Aggregate Demand) केन्ज ने कुल माँग को इस प्रकार स्पष्ट किया…..
AD = उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (1) 1. उपभोग व्यय-उपभोग व्यय रेखा OC से आरम्भ होती है।
AD (C+ 1) अर्थात्
C = a + by
इसमें C = उपभोग, a = स्वतन्त्र उपभोग, by == सीमांत .. उपभोग प्रवृत्ति
यदि आय O है तो भी OC उपभोग किया जाता है इसको a द्वारा दिखाया गया है तथा आय बढ़ने से by = MPC अनुसार उपभोग बढ़ता है।

2. निवेश व्यय-यह निवेश व्यय स्वतन्त्र है जोकि II द्वारा दिखाया है तथा OX के समान्तर है। कुल मांग (AD) = उपभोग व्यय (C) + निवेश व्यय (I) रेखाचित्र 12 रोज़गार तथा आय का निर्धारण (Determination of Income & Employment)-

(a) अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium)-केन्ज़ अनुसार आय तथा रोजगार कुल पूर्ति तथा कुल माँग के सन्तुलन द्वारा निर्धारण होता है, जैसे कि रेखाचित्र 13 में AS = AD बिन्दु E पर सन्तुलन में है। इसलिए ON रोज़गार का स्तर स्थापित हो जाएगा, इसको अपूर्ण रोज़गार (Under Employment Equilibrium) कहा जाता है।

यदि AS ON1 रोज़गार स्थापित होता है तो कुल माँग AD अधिक है तथा कुल पूर्ति AS कम है। आय होने की सम्भावना अधिक है। इसलिए रोज़गार में वृद्धि होगी तथा सन्तुलन E पर पहुंच जाएगा। यदि ON2 रोज़गार का स्तर है तो OC2 लागत अधिक है तथा OR2 आय कम है, इसलिए उत्पादन का स्तर कम हो जाएगा तथा रोज़गार E बिन्दु पर पहुंच जाता है। इसको अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है।
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(b) पूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Full Employment Equilibrium)-केन्ज़ अनुसार कुल पूर्ति से कुल माँग अधिक प्रभावशाली होती है। यदि कुल माँग AD अधिक हो जाती है तथा उद्यमियों को अधिक आय होने की सम्भावना होती है तो पूर्ण रोजगार भी स्थापित हो सकता है, जैसे F बिन्दु द्वारा दिखाया गया है।
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PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 10 आय तथा रोजगार का निर्धारण

(c) अतिपूर्ण रोजगारसन्तुलन (Over Full Employment Equilibrium)- जब कुल माँग (AD) में अधिक वृद्धि हो जाती है तो सन्तुलन पूर्ण रोजगार से अधिक स्थिति में पहुंच जाता है। इस स्थिति को अति पूर्ण रोजगार सन्तुलन की स्थिति कहते हैं। इस प्रकार की स्थिति अमरीका में 1929-30 से पहले हो गई थी। रेखाचित्र 15 के अनुसार रोज़गार का सन्तुलन AS = AD द्वारा E बिन्दु पर दिखाया गया है। पूर्ण रोज़गार F बिन्दु द्वारा प्रकट किया गया है तथा सन्तुलन E बिन्दु पर है जिसे अति पूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है। इस को मुद्रा स्फीति की हालत भी कहते हैं।
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PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 11 Conic Sections Ex 11.3

Punjab State Board PSEB 11th Class Maths Book Solutions Chapter 11 Conic Sections Ex 11.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 11 Conic Sections Ex 11.3

Question 1.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of mqjor axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the ellipse \(\frac{x^{2}}{36}+\frac{y^{2}}{16}\) = 1.
Answer.
The given equation is \(\frac{x^{2}}{36}+\frac{y^{2}}{16}\) = 1.
Here, the denominator of \(\frac{x^{2}}{36}\) is greater than the denominator of \(\frac{y^{2}}{16}\).
Therefore, the major axis is along the x-axis, while the minor axis is along the y-axis.
On comparing the given equation with \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1, we otain a = 6 and b = 4.
c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{36-16}\)
= √20 = 2√5.
Therefore,
The coordinates of the foci are (2√5, 0) and (- 2√5, 0).
The coordinates of the vertices are (6, 0) and (- 6, 0).
Length of major axis = 2a = 12.
Length of minor axis = 2b = 8
Eccentricity, e = \(\frac{c}{a}=\frac{2 \sqrt{5}}{6}=\frac{\sqrt{5}}{3}\)
Length of latus rectum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 16}{6}=\frac{16}{3}\).

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Question 2.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the ellipse \(\frac{x^{2}}{4}+\frac{y^{2}}{25}\) = 1.
Answer.
The given equation is \(\frac{x^{2}}{4}+\frac{y^{2}}{25}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{2^{2}}+\frac{y^{2}}{5^{5}}\) = 1.

Here, the denominator of \(\frac{y^{2}}{25}\) is greater than the denominator of \(\frac{x^{2}}{4}\).

Therefore, the major axis is along the y-axis, while the minor axis is along the x-axis.
On comparing the given equation with \(\frac{x^{2}}{b^{2}}+\frac{y^{2}}{a^{2}}\)= 1, we obtain
b = 2 and a = 5
∴ c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{25-4}=\sqrt{21}\)
Therefore, the coordinates of the foci are (0, √21) and (0, – √21).
The coordinates of the vertices are (0, 5) and (0, – 5).
Length of major axis = 2a = 10
Length of minor axis = 2b = 4
Eccentricity e = \(\frac{c}{a}=\frac{\sqrt{21}}{5}\)
Length of latus rectum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 4}{5}=\frac{8}{5}\)

Question 3.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the ellipse \(\frac{x^{2}}{16}+\frac{y^{2}}{9}\) = 1.
Answer.
The given equation is \(\frac{x^{2}}{16}+\frac{y^{2}}{9}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{4^{2}}+\frac{y^{2}}{3^{2}}\) = 1

Here, the denominator of \(\frac{x^{2}}{16}\) is greater than the denominator of \(\frac{y^{2}}{9}\).

Therefore, the major axis is along the x-axis, while the minor axis is along the y-axis.

On comparing the given equation with \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1 , we obtain a = 4 and b = 3.
c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{16-9}=\sqrt{7}\)
Therefore, the coordinates of the foci are (± c, 0) i.e., (± √7, 0).
The coordinates of the vertices are (± a, 0) i.e., (± 4, 0).
Length of major axis = 2a = 8
Length of minor axis = 2b = 6
Eccentricity e = \(\frac{c}{a}=\frac{\sqrt{7}}{4}\)

Length of latus rectum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 9}{4}=\frac{9}{2}\)

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Question 4.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the ellipse \(\frac{x^{2}}{25}+\frac{y^{2}}{100}\) = 1.
Answer.
The given equation is \(\frac{x^{2}}{25}+\frac{y^{2}}{100}\) = 1 or \(\) = 1

Here, the denominator of \(\frac{y^{2}}{100}\) is greater than the denominator of \(\frac{x^{2}}{25}\)
Therefore, the major axis is along the y-axis, while the minor axis is along the x-axis.

On comparing the given equation with \(\frac{x^{2}}{b^{2}}+\frac{y^{2}}{a^{2}}\) = 1 , we obtain
b = 5 and a = 10.
∴ c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{100-25}=\sqrt{75}=5 \sqrt{3} .\)
Therefore, the coordinates of the foci are (0, ± 5√3).
The coordinates of the vertices are (0, ± 10).
Length of major axis = 2a = 20
Length of minor axis = 2b = 10
Eccentncity, e = \(\frac{c}{a}=\frac{5 \sqrt{3}}{10}=\frac{\sqrt{3}}{2}\)
Length of lattis rectum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 25}{10}\)

Question 5.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the lattis rectum of the ellipse \(\frac{x^{2}}{49}+\frac{y^{2}}{36}\) = 1.
Answer.
The given equation is \(\frac{x^{2}}{49}+\frac{y^{2}}{36}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{7^{2}}+\frac{y^{2}}{6^{2}}\) = 1.

Here, the denominator of \(\frac{x^{2}}{49}\) is greater than the denominator of \(\frac{y^{2}}{36}\).

Therefore, the major axis is along the x-axis, while the minor axis is along the y-axis.

On comparing the given equation with \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1 , we obtain a = 4 and b = 3.

∴ c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{49-36}=\sqrt{13}\)
Therefore, the coordinates of the foci are (± c, 0)
The coordinates of the vertices are (± a, 0) i.e., (± √13, 0)
Length of major axis = 2a = 14
Length of minor axis = 2b = 12
Eccentricity, e = \(\frac{c}{a}=\frac{\sqrt{13}}{7}\)
Length of latus rectum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 36}{7}=\frac{72}{7}\).

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Question 6.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the ellipse \(\frac{x^{2}}{100}+\frac{y^{2}}{400}\) = 1.
Answer.
The given equation is \(\frac{x^{2}}{100}+\frac{y^{2}}{400}\) = 1 or + \(\frac{x^{2}}{10^{2}}+\frac{y^{2}}{20^{2}}\) = 1

Here, the denominator of \(\frac{y^{2}}{400}\) is greater than the denominator of \(\frac{x^{2}}{100}\).

Therefore, the major axis is along the y-axis, while the minor axis is along the x-axis.

On comparing the given equation with \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{400-100}=\sqrt{300}=10 \sqrt{3}\) = 1 , we obtain b = 10 and a = 20

∴ c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{400-100}=\sqrt{300}=10 \sqrt{3}\)

Therefore, the coordinates of the foci are (0, ± 10√3)
The coordinates of the vertices are (0, ± 20)
Length of major axis = 2a = 40
Length of minor axis = 2b = 20
Eccentricity, e = \(\frac{c}{a}=\frac{10 \sqrt{3}}{20}=\frac{\sqrt{3}}{2}\)
Length of latus recrum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 100}{20}\) =10.

Question 7.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the ellipse 36x2 + 4y2 = 144.
Answer.
The given equation is 36x2 + 4y2 = 144
It can be writen as 36x2 + 4y2 = 144
or \(\frac{x^{2}}{4}+\frac{y^{2}}{36}\) = 1

or \(\frac{x^{2}}{2^{2}}+\frac{y^{2}}{6^{2}}\) = 1

Here, the denominator of \(\frac{y^{2}}{6^{2}}\) is greater than the denominator of \(\frac{x^{2}}{2^{2}}\)
Therefore, the major axis is along the y-axis, while the minor axis is along the x-axis.

On comparing equation (i) with \(\frac{x^{2}}{b^{2}}+\frac{y^{2}}{a^{2}}\) = 1, we obtain b = 2 and a = 6.

∴ c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{36-4}=\sqrt{32}=4 \sqrt{2}\)

Therefore, The coordinates of the foci are (0, ± 4√2)
The coordinates of the vertices are (0, ± 6)
Length of major axis = 2a = 12
Length of minor axis = 2b = 4
Eccentricity, e = \(\frac{c}{a}=\frac{4 \sqrt{2}}{6}=\frac{2 \sqrt{2}}{3}\)

Length of latus recrum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 4}{6}=\frac{4}{3}\).

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Question 8.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the effipse 16x2 + y2 = 16.
Answer.
The given equation is 16x2 + y2 = 16
It can be writen as 16x2 + y2 = 16

or \(\frac{x^{2}}{1}+\frac{y^{2}}{16}\)

or \(\frac{x^{2}}{1^{2}}+\frac{y^{2}}{4^{2}}\) ……………….(i)

Here, the denominator of \(\frac{y^{2}}{4^{2}}\) is greater than the denominator of \(\frac{x^{2}}{1^{2}}\).

Therefore, the major axis is along the y-axis, while the minor axis is along the x-axis.
On comparing the equation (i) with \(\) = 1, we obtain b = 1 and a = 4.
∴ c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{16-1}=\sqrt{15}\)
Therefore, the coordinates of the foci are (0, ± √15)
The coordinates of the vertices are (0, ± 4)
Length of major axis = 2a = 8
Length of minor axis = 2b = 2 c V15
Eccentncity e = \(\frac{c}{a}=\frac{\sqrt{15}}{4}\)

Length of latus rectum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 1}{4}=\frac{1}{2}\)

Question 9.
Find the coordinates of the foci, the vertices, the length of major axis, the minor axis, the eccentricity and the length of the latus rectum of the ellipse 4x2 + 9y2 = 36.
Answer.
The given equation is 4x2 + 9y2 = 36
It can be writen as 4x2 + 9y2 = 36
or \(\frac{x^{2}}{9}+\frac{y^{2}}{4}\) = 1

or \(\frac{x^{2}}{3^{2}}+\frac{y^{2}}{2^{2}}\) = 1 ……………..(i)

Here, the denominator of \(\frac{x^{2}}{3^{2}}\) is greater than the denominator of \(\frac{y^{2}}{2^{2}}\).

Therefore, the major axis is along the x-axis, while the minor axis is along they-axis.

On comparing the given equation with \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1, we obtain
a = 3 and b = 2.
∴ c = \(\sqrt{a^{2}-b^{2}}=\sqrt{9-4}=\sqrt{5}\)
Therefore, the coordinates of the foci are (± √5, 0)
The coordinates of the vertices are (± 3,0)
Length of major axis = 2a = 6
Length of minor axis = 2b = 4
Eccentricity, e = \(\frac{c}{a}=\frac{\sqrt{5}}{3}\)

Length of latus rectum = \(\frac{2 b^{2}}{a}=\frac{2 \times 4}{3}=\frac{8}{3}\).

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Question 10.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Vertices (± 5, 0), foci (± 4, 0).
Answer.
Given, vertices (± 5, 0), foci (± 4 ,0)
Here, the vertices are on the x-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, a = 5 and c = 4.
It is known that, a2 = b2 + c2
∴ 52 = b2 + 42
⇒ 25 = b2 + 16
⇒ b2 = 25 – 16 = 9
b = √9 = 3.
Thus, the equation of the ellipse is
\(\frac{x^{2}}{5^{2}}+\frac{y^{2}}{3^{2}}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{25}+\frac{y^{2}}{9}\) = 1.

Question 11.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Vertices (0, ± 13), foci (0, ± 5).
Answer.
Given, vertices (0, ± 13), foci (0, ± 5)
Here, the vertices are on the y-axis.
Conic Sections
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\frac{x^{2}}{b^{2}}+\frac{y^{2}}{a^{2}}\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, a = 13 and c = 5.
It is known that, a2 = b2 + c2
132 = b2 + 52
⇒169 = 2 + 25
⇒ b2 = 169 – 25
⇒ b = √144 = 12
Thus, the equation of the ellipse is
\(\frac{x^{2}}{12^{2}}+\frac{y^{2}}{13^{2}}\) = 1 or

\(\frac{x^{2}}{144}+\frac{y^{2}}{169}\) = 1.

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Question 12.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Vertices (± 6, 0), foci (± 4, 0).
Answer.
Given, vertices (± 6, 0), foci (± 4, 0)
Here, the vertices are on the x-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, a = 6 and c = 4
It is known that,
a2 = b2 + c2
⇒ 62 = b2 + 42
⇒ 36 = b2 + 16
⇒ b2 = 36 – 16
⇒ b = √20
Thus, the equation of the ellipse is \(\frac{x^{2}}{6^{2}}+\frac{y^{2}}{(\sqrt{20})^{2}}\) or \(\frac{x^{2}}{36}+\frac{y^{2}}{20}\) = 1.

Question 13.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Ends of major axis (± 3, 0), ends of minor axis (0, ± 2).
Answer.
Given, ends of major axis (± 3, 0), ends of monor axis (0, ± 2).
Here, the major axis is along the x-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, a = 3 and b = 2
Thus, the equation of the ellipse is \(\frac{x^{2}}{3^{2}}+\frac{y^{2}}{2^{2}}\) i.e., \(\frac{x^{2}}{9}+\frac{y^{2}}{4}\) = 1.

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Question 14.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Ends of major axis (0, ±V5), ends of minor axis (± 1, 0).
Answer.
Given, ends of major axis (0, ± √5), ends of minor axis (± 1, 0).
Here, the vertices are on the y-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\frac{x^{2}}{b^{2}}+\frac{y^{2}}{a^{2}}\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, a = √5 and b = 1
Thus the equation of the ellipse is \(\frac{x^{2}}{1^{2}}+\frac{y^{2}}{(\sqrt{5})^{2}}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{1}+\frac{y^{2}}{5}\) = 1.

Question 15.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Length of major axis 26, foci (+5,0).
Answer.
Given, length of major axis = 26, foci (± 5, 0)
Since the foci are on the x-axis, the major axis is along the x-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, 2a = 26
⇒ a = 13 and c = 5
It is known that a2 = b2 + c2
Thus, the equation of the ellipse is \(\frac{x^{2}}{13^{2}}+\frac{y^{2}}{12^{2}}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{169}+\frac{y^{2}}{144}\) = 1.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 11 Conic Sections Ex 11.3

Question 16.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Length of major axis 16, foci (0, ± 6).
Answer.
Length of minor axis = 16, foci (0, ± 6)
Since the foci are on the y-axis, the major axis is along they-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\frac{x^{2}}{b^{2}}+\frac{y^{2}}{a^{2}}\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, 2b = 16
⇒ b = 8 and c = 6
It is known that a2 = b2 + c2
∴ a2 = 82 + 62
= 64 + 36 = 100
a = √100 = 10
Thus, the equation of the ellipse is \(\frac{x^{2}}{8^{2}}+\frac{y^{2}}{10^{2}}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{64}+\frac{y^{2}}{100}\) = 1.

Question 17.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: foci (± 3, 0), a = 4.
Answer.
Given, foci (± 3, 0), a = 4
Since the foci are on the x-axis, the major axis is along the x-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, c = 3 and a = 4
It is known that, a2 = b2 + c2
42 = b2 + 32
⇒ 16 = b2 + 9
⇒ b2 = 16 – 9 = 7
Thus, the equation of the ellipse is \(\frac{x^{2}}{16}+\frac{y^{2}}{7}\) = 1.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 11 Conic Sections Ex 11.3

Question 18.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: b = 3, c = 4, centre at the origin; foci on the x- axis. Answer.
It is given that b = 3, c = 4, centre at the origin; foci on the x-axis.
Since the foci are on the x-axis, the major axis is along the x-axis.
Therefore, the equation of the ellipse will be of the form \(\) = 1,
where a is the semi-major axis.
Accordingly, b = 3 and c = 4
It is known that a2 = b2 + c2
∴ a2 = 32 + 42
= 9 + 16 = 25
⇒ a = 5
Thus, the equation of the ellipse is \(\frac{x^{2}}{5^{2}}+\frac{y^{2}}{3^{2}}\) = 1 or \(\frac{x^{2}}{25}+\frac{y^{2}}{9}\) = 1.

Question 19.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Centre at (0, 0), major axis on the y-axis and passes through the points (3, 2) and (1, 6).
Answer.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 11 Conic Sections Ex 11.3 1

Since, major axis is along Y-axis, so equation of ellipse is
\(\frac{x^{2}}{b^{2}}+\frac{y^{2}}{a^{2}}\) = 1, a > b ……………(i)

Thus, the equation of ellipse is passing through the points (3, 2) and (1, 6).
So, point (3, 2) lies on eq. (i), gives \(\frac{9}{b^{2}}+\frac{4}{a^{2}}\) = 1 ……………(ii)

Also, point (1, 6) lies on eq. (i), therefore

\(\frac{1}{b^{2}}+\frac{36}{a^{2}}\) = 1

\(\frac{9}{b^{2}}+\frac{324}{a^{2}}\) = 9

On subtracting eq. (ii) from eq. (iii), we get
\(\frac{20}{a^{2}}\) = 8

a2 = \(\frac{320}{8}\) = 4o
On putting the value of a2 in eq. (ii), we get
\(\frac{9}{b^{2}}+\frac{4}{40}\) = 1

⇒ \(\frac{9}{b^{2}}=1-\frac{1}{10}=\frac{9}{10}\)

⇒ b2 = 10
On putting the values of a and b in eq. (i), we get \(\frac{x^{2}}{10}+\frac{y^{2}}{40}\) = 1.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 11 Conic Sections Ex 11.3

Question 20.
Find the equation for the ellipse that satisfies the given conditions: Major axis on the x-axis and passes through the points (4, 3) and (6, 2).
Answer.
Let the major axis is along X-axis, then the equation of ellipse be \(\frac{x^{2}}{a^{2}}+\frac{y^{2}}{b^{2}}\) = 1 ………………(i)

Since, the equation of ellipse is passing through the points (4, 3) and (6, 3).
So, point (4, 3) lies on it.
\(\frac{16}{a^{2}}+\frac{9}{b^{2}}\) = 1 ……………..(ii)

Also, point (6, 2) lies on it.
\(\frac{36}{a^{2}}+\frac{4}{b^{2}}\) = 1 ………………..(iii)

On multiplying eq. (ii) by 4 and eq. (iii) by 9 and subtracting eq. (ii) from eq. (iii), we get
\(\frac{324}{a^{2}}-\frac{64}{a^{2}}\) = 9 – 4

⇒ \(\frac{260}{a^{2}}\) = 5

⇒ a2 = \(\frac{260}{5}\) = 52

∴ a2 = 52
On putting the value of a2 in eq. (ii), we get

\(\frac{16}{52}+\frac{9}{b^{2}}\) = 1

⇒ \(\frac{9}{b^{2}}=1-\frac{16}{52}=\frac{36}{52}\)

⇒ b2 = 13

Hence, equation of ellipse is \(\frac{x^{2}}{52}+\frac{y^{2}}{13}\) = 1 [put a2 = 52 and b2 = 13].

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 10 ਕਿਸ਼ੋਰ ਅਵਸਥਾ ਵੱਲ

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PSEB 8th Class Science Notes Chapter 10 ਕਿਸ਼ੋਰ ਅਵਸਥਾ ਵੱਲ

→ ਬਲ, ਇਕ ਧੱਕਾ ਜਾਂ ਖਿੱਚ ਹੈ, ਜੋ ਵਸਤੁ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਦਲਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਕ ਹੈ ।

→ ਬਲ ਦਾ ਅਸਰ ਸਿਰਫ਼ ਉਸ ਦੇ ਮੁੱਲ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ਬਲਕਿ ਉਸਦੇ ਖੇਤਰਫਲ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਲ, ਵਸਤੂ ਦੀ ਗਤੀ, ਗਤੀ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਜਾਂ ਵਸਤੂ ਦਾ ਆਕਾਰ ਬਦਲ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਲ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਪੇਸ਼ੀ ਬਲ, ਚੁੰਬਕੀ ਬਲ, ਰਗੜ ਬਲ, ਗੁਰੁਤਾ ਬਲ ਅਤੇ ਸਥਿਰ | ਬਿਜਲਈ ਬਲ । 0 ਇਕਾਈ ਖੇਤਰਫਲ ਤੇ ਲਗਾਇਆ ਬਲ, ਦਾਬ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਤਰਲ ਬਰਤਨ ਦੀਆਂ ਕੰਧਾਂ ਤੇ ਦਾਬ ਲਗਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

PSEB 8th Class Science Notes Chapter 10 ਕਿਸ਼ੋਰ ਅਵਸਥਾ ਵੱਲ

→ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵੀ ਦਾਬ ਲਗਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸਨੂੰ ਵਾਯੂਮੰਡਲੀ ਦਾਬ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਤਰਲ, ਬਰਤਨ ਦੀਆਂ ਦੀਵਾਰਾਂ ਤੇ ਬਰਾਬਰ ਡੂੰਘਾਈ ਤੇ ਬਰਾਬਰ ਦਾਬ ਪਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸ਼ਬਦ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਰਥ

  1. ਬਲ (Force) -ਕੋਈ ਵੀ ਬਾਹਰੀ ਕਾਰਨ ਜਿਹੜਾ ਕਿ ਵਸਤੁ ਦੀ ਵਿਸ਼ਰਾਮ ਅਵਸਥਾ ਅਤੇ ਗਤੀਸ਼ੀਲ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਬਦਲਾਅ ਲਿਆਏ, ਜਾਂ ਲਿਆਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰੇ, ਉਸ ਨੂੰ ਬਲ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਇਕ ਸਦਿਸ਼ ਰਾਸ਼ੀ ਹੈ ।
  2. ਪਰਿਣਾਮੀ ਨੇਟ ਬਲ (Resultant Force)- ਜਦੋਂ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਬਲ ਵਸਤੁ ਤੇ ਇੱਕ ਹੀ ਸਮੇਂ ਲਗਦੇ ਹਨ, ਤਾਂ ਵਸਤੂ ਤੇ ਲੱਗ ਰਹੇ ਕੁੱਲ ਬਲ ਦੇ ਅਸਰ ਨੂੰ ਪਰਿਣਾਮੀ (ਨੇਟ) ਬਲ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  3. ਰਗੜ ਬਲ (Force of Friction)-ਦੋ ਸਤਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਲੱਗਣ ਵਾਲਾ ਬਲ ਜੋ ਵਸਤੂ ਦੀ ਗਤੀ ਦੇ ਉਲਟ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਲਗਦਾ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਰਗੜ ਬਲ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  4. ਗੁਰੂਤਾਬਲ (Gravitation)-ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਹਰ ਦੋ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਲੱਗ ਰਹੇ ਖਿੱਚ ਬਲ ਨੂੰ ਗੁਰੂਤਾ ਬਲ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
  5. ਭਾਰ (Weight) -ਜਿਹੜੇ ਬਲ ਦੁਆਰਾ ਕੋਈ ਵਸਤੂ ਧਰਤੀ ਵੱਲ ਖਿੱਚ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ।
  6. ਦਾਬ (Pressure)- ਤੀ ਇਕਾਈ ਖੇਤਰਫਲ ਤੇ ਲੱਗਿਆ ਬਲ ।
  7. ਵਾਯੂਮੰਡਲੀ ਦਾਬ (Atmospheric Pressure)-ਧਰਤੀ ਤੇ ਸਥਿਤ ਸਾਰੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਤੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਲੱਗਿਆ ਬਲ ।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 18 ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰ

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 18 ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 18 ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰ

SST Guide for Class 6 PSEB ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰ Textbook Questions and Answers

ਅਭਿਆਸ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ
I. ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ ਲਿਖੋ :

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਰੇਸ਼ਮੀ-ਮਾਰਗ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਚੀਨ ਨੂੰ ਯੂਰਪ ਨਾਲ ਜੋੜਨ ਵਾਲੇ ਮਾਰਗ ਨੂੰ ਰੇਸ਼ਮੀ-ਮਾਰਗ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਇਸ ਮਾਰਗ ਦੁਆਰਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਰੇਸ਼ਮ ਦਾ ਵਪਾਰ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਾਤਵਾਹਨ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਬੰਦਰਗਾਹਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਾਤਵਾਹਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੱਖਣੀ ਅਤੇ ਪੱਛਮੀ ਸਮੁੰਦਰੀ ਤੱਟ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਅਨੇਕਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਬੰਦਰਗਾਹਾਂ ਸਨ ।
(1) ਦੱਖਣੀ ਤੱਟ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਬੰਦਰਗਾਹਾਂ-

  • ਕਾਵੇਰੀਪੱਟਨਮ,
  • ਮਹਾਂਬਲੀਪੁਰਮ,
  • ਪੁਹਾਰ,
  • ਕੋਰਕਈ ।

(2) ਪੱਛਮੀ ਤੱਟ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਬੰਦਰਗਾਹਾਂ-

  • ਸ਼ੂਰਪਾਰਕ,
  • ਭ੍ਰਿਗੂਕੱਛ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਭਾਰਤ ਦੇ ਇਰਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਕਿਵੇਂ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋਏ ?
ਉੱਤਰ-
600 ਈ: ਪੂ: ਵਿੱਚ ਇਰਾਨ ਦੇ ਵੇਚੈਮੀਨਿਡ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਭਾਗਾਂ ‘ਤੇ ਆਪਣਾ ਅਧਿਕਾਰ ਜਮਾ ਲਿਆ । ਫਲਸਰੂਪ ਭਾਰਤ ਦੇ ਇਰਾਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਸਥਾਪਤ ਹੋਏ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਭਾਰਤ ਤੋਂ ਰੋਮ ਨੂੰ ਕੀ ਨਿਰਯਾਤ (ਭੇਜਿਆ) ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਰਤ ਤੋਂ ਰੋਮ ਨੂੰ ਮਸਾਲੇ, ਕੀਮਤੀ ਹੀਰੇ, ਵਧੀਆ ਕੱਪੜਾ, ਇਤਰ, ਹਾਥੀ ਦੰਦ ਦਾ ਸਾਮਾਨ, ਲੋਹਾ, ਰੰਗ, ਚਾਵਲ, ਤੋਤੇ ਤੇ ਮੋਰ ਆਦਿ ਪੰਛੀਆਂ ਤੇ ਬਾਂਦਰ ਆਦਿ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਨਿਰਯਾਤ (ਭੇਜਿਆ) ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਯੂਰਪ ਤੋਂ ਕਿਹੜੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਆਯਾਤ (ਮੰਗਵਾਈਆਂ) ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਯੂਰਪ ਤੋਂ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਅਤੇ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਦੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਆਯਾਤ ਕੀਤੀਆਂ ਮੰਗਵਾਈਆਂ। ਜਾਂਦੀਆਂ ਸਨ ।

II. ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਾਕਾਂ ਵਿਚ ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :

(1) ……………………. ਈ: ਪੂ: ਵਿਚ ਈਰਾਨ ਦੇ …………………… ਵੰਸ਼ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਉੱਤਰ| ਪੱਛਮੀ ਭਾਗਾਂ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
600, ਵੇਚੈਮੀਨਿਡ

(2) ਅਸ਼ੋਕ ਅਤੇ ਕਨਿਸ਼ਕ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਦੇ ਕਾਰਜਕਾਲ ਸਮੇਂ ਬੋਧੀ ਭਿਕਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨ ਲਈ ……………………, ………….. …………………… ਅਤੇ …………………… ਵਿਚ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ੍ਰੀਲੰਕਾ, ਬਰਮਾ, ਚੀਨ, ਮੱਧ ਏਸ਼ੀਆ

(3) ……………………. ,……………………… ਅਤੇ ………………………. ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ਜਹਾਜ਼ ਬਣਾਉਣ ਅਤੇ ਸਮੁੰਦਰੋਂ ਪਾਰ ਖੋਜਾਂ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
ਚੇਰ, ਚੋਲ ਅਤੇ ਪਾਂਡੇਯ

(4) ਅਰਬਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ …………………………… ਈ: ਵਿਚ ਅਧਿਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ |
ਉੱਤਰ-
712

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(5) ਕੰਪੂਚੀਆ ਦੇ …………………….. ਮੰਦਰ ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਦੇ ਮਹਾਂਕਾਵਿ ……………………….. ਅਤੇ …………………………. ਵਿਚੋਂ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਮੂਰਤੀਕਲਾ ਵਿਚ ਚਿੱਤਰਾਏ ਗਏ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਕੋਰਟ, ਰਮਾਇਣ, ਮਹਾਂਭਾਰਤ ।

III. ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਸਹੀ ਜੋੜੇ ਬਣਾਓ :

(1) ਸੋਨੇ ਦੇ ਸਿੱਕੇ (ਉ) ਸ਼ੂਰਪਾਰਕ
(2) ਬੰਦਰਗਾਹ (ਅ) ਰੇਸ਼ਮ
(3) ਚੀਨ (ੲ) ਬਲੋ-ਮਾਰਗ
(4) ਰੇਸ਼ਮੀ-ਮਾਰਗ (ਸ) ਰੋਮ

ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ ਜੋੜੇ-

(1) ਸੋਨੇ ਦੇ ਸਿੱਕੇ (ਸ) ਰੋਮ
(2) ਬੰਦਰਗਾਹ (ਉ) ਸ਼ੂਰਪਾਰਕ
(3) ਚੀਨ (ਅ) ਰੇਸ਼ਮ
(4) ਰੇਸ਼ਮੀ-ਮਾਰਗ (ੲ) ਬਲੋ-ਮਾਰਗ

IV. ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਵਾਕਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਸਹੀ (√) ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ (×) ਦਾ ਨਿਸ਼ਾਨ ਲਗਾਓ:

(1) ਭਾਰਤ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੇ ਭਾਰਤੀਆਂ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਬਣਾਈ ।
(2) ਭਾਰਤ ਦੇ ਮਿਸਰ ਨਾਲ ਕੋਈ ਸੰਬੰਧ ਨਹੀਂ ਸਨ ।
(3) ਬੁੱਧ ਦੀਆਂ ਪੱਥਰ ਤਰਾਸ਼ੀ ਦੀਆਂ ਵੱਡੀਆਂ ਮੂਰਤੀਆਂ ਬਾਮੀਆਨ (ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ) ਵਿਖੇ ਮਿਲੀਆਂ ਸਨ ।
(4) ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਰੋਮ ਦੀਆਂ ਮੰਡੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵੱਧ ਕੀਮਤਾਂ ‘ਤੇ ਵਿਕਦੀਆਂ ਸਨ ।
(5) ਚੇਰ, ਚੋਲ ਅਤੇ ਪਾਂਡਯ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ਸਮੁੰਦਰੋਂ ਪਾਰ ਜਹਾਜ਼ ਬਣਾਉਣ ਅਤੇ ਖੋਜਾਂ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਤ ਕੀਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(1) (√)
(2) (×)
(3) (√)
(4) (√)
(5) (×)

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PSEB 6th Class Social Science Guide ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਸੰਸਾਰ Important Questions and Answers

ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ
ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿਚ ਉੱਤਰ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਚੀਨ ਨੂੰ ਯੂਰਪ ਦੇ ਨਾਲ ਜੋੜਨ ਵਾਲਾ ਵਪਾਰਿਕ ਮਾਰਗ ਕੀ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਰੇਸ਼ਮੀ ਮਾਰਗ/ਸਿਲਕ ਮਾਰਗ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਬਾਮੀਆਨ (ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ) ਵਿਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਬੁੱਧ ਸਮਾਰਕਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸਨੇ ਨਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਤਾਲੀਬਾਨ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਅਰਬਾਂ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਕਦੋਂ ਅਧਿਕਾਰ ਕੀਤਾ ? .
ਉੱਤਰ-
712 ਈ: ਵਿਚ ।

ਬਹੁ-ਵਿਕਲਪੀ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਅੰਗਕੋਰਵਾਟ ਦਾ ਮੰਦਿਰ ਕਿੱਥੇ ਸਥਿਤ ਹੈ ?
(ਉ) ਚੰਪਾ
(ਅ) ਚੀਨ
(ੲ) ਕੰਪੂਚੀਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ੲ) ਕੰਪੂਚੀਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਿਰਫ਼ ਸੰਖਿਆ ਭਾਰਤ ਦੀ ਦੇਣ ਹੈ । ਵਿਸ਼ਵ ਵਿਚ ਇਸ ਸੰਖਿਆ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੇਠਾਂ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਸ ਨੇ ਕੀਤਾ ?
(ਉ) ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੇ
(ਅ) ਅਰਬਾਂ ਨੇ
(ੲ) ਬੋਧਾਂ ਨੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਉ) ਹਿੰਦੂਆਂ ਨੇ

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਕਾਲ ਵਿਚ ਭਾਰਤੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਮੱਧ ਏਸ਼ੀਆ ਅਤੇ ਏਸ਼ੀਆ ਦੇ ਕੁਝ ਹੋਰ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਕੰਮ ਵਿਚ ਹੇਠਾਂ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਹੜੇ ਰਾਜੇ ਨੂੰ ਯੋਗਦਾਨ ਨਹੀਂ ਸੀ ?
(ੳ) ਸਮੁਦਰ ਗੁਪਤ
(ਅ) ਕਨਿਸ਼ਕ
(ੲ) ਅਸ਼ੋਕ ।
ਉੱਤਰ-
(ੳ) ਸਮੁਦਰ ਗੁਪਤ

ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੂਜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਭਾਰਤ ਦੇ ਦੂਜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਵਪਾਰ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਅੰਗਕੋਰਵਾਟ ਦਾ ਮੰਦਰ ਕਿੱਥੇ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਗਕੋਰਵਾਟ ਦਾ ਮੰਦਰ ਕੰਬੂਜ ਵਿੱਚ ਹੈ । ਇਸ ਮੰਦਰ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਰਾਜਾ ਸੂਰਜ ਵਰਮਾ ਦੂਜੇ ਨੇ ਕਰਵਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਚੰਪਾ (ਵਿਅਤਨਾਮ) ਦੇ ਕੋਈ ਦੋ ਭਾਰਤੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਚੰਪਾ (ਵਿਅਤਨਾਮ) ਦੇ ਦੋ ਭਾਰਤੀ ਰਾਜੇ ਸਨ-

  1. ਭਦਰਵਰਮਾ ਅਤੇ
  2. ਰੂਦਰਦਮਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਚੰਪਾ (ਵਿਅਤਨਾਮ) ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਚੰਪਾ (ਵਿਅਤਨਾਮ) ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਮਾਈਸਨ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਇੰਡੋਨੇਸ਼ੀਆ ਦੇ ਮੁੱਖ ਟਾਪੂਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ਜਿੱਥੇ ਭਾਰਤੀ ਸਭਿਅਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਹੋਇਆ ।
ਉੱਤਰ-
ਭਾਰਤੀ ਸਭਿਅਤਾ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਇੰਡੋਨੇਸ਼ੀਆ ਦੇ ਜਾਵਾ, ਸੁਮਾਤਰਾ, ਬਾਲੀ ਅਤੇ ਬੋਰਨੀਓ ਟਾਪੂਆਂ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਬੋਰੋਬਰ ਦਾ ਮੰਦਰ ਕਿੱਥੇ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੋਰੋਬੁਦੁਰ ਦਾ ਮੰਦਰ ਜਾਵਾ ਵਿੱਚ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਕਿਹੜੇ ਬੋਧੀ ਵਿਦਵਾਨ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ ਕੇ ਲੈ ਗਏ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਬੋਧੀ ਵਿਦਵਾਨ ਕੁਮਾਰਜੀਵ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ ਕੇ ਲੈ ਗਏ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕਿਹੜੇ ਭਾਰਤੀ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਦੇ ਦੋ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਅਰਬ ਲੋਕ ਆਪਣੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਵਿਸਤਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।
  2. ਉਹ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਸਿੰਧ ਦਾ ਰਾਜਾ ਕੌਣ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਸਿੰਧ ਦਾ ਰਾਜਾ ਦਾਹਿਰ ਸੀ ।

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ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕੰਬੋਡੀਆ ਨਾਲ ਭਾਰਤੀ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਕੰਬੋਡੀਆ ਵਿੱਚ ਚੌਥੀ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ । 357 ਈ: ਵਿੱਚ ਇੱਥੇ ਚੰਦਰਗੁਪਤ ਨਾਂ ਦਾ ਰਾਜਾ ਗੱਦੀ ‘ਤੇ ਬੈਠਾ। ਪੰਜਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਇੱਥੇ ਕੌਂਡਨਯ ਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇ ਆਪਣਾ ਰਾਜ ਸਥਾਪਤ ਕੀਤਾ । ਉਸਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਅਧੀਨ ਕੰਬੋਡੀਆ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਸਭਿਆਚਾਰ ਨੂੰ ਅਪਣਾ ਲਿਆ । ਕੰਬੋਡੀਆ ਦੇ ਇੱਕ ਸ਼ਾਸਕ ਗੁਣ ਵਰਮਨ ਨੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਮੰਦਰ ਬਣਵਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਜਾਵਾ ਦੇ ਭਾਰਤ ਨਾਲ ਕੀ ਸੰਬੰਧ ਸਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਾਵਾ ਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 56 ਈ: ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਹਿੰਦੂ ਰਾਜੇ ਨੇ ਕੀਤੀ । ਦੂਸਰੀ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਉੱਥੇ ਭਾਰਤੀ ਉਪਨਿਸ਼ਦਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਹੋਇਆ । ਚੀਨੀ ਯਾਤਰੀ ਫ਼ਾਗਿਆਨ ਨੇ 418 ਈ: ਵਿੱਚ ਜਾਵਾ ਦੀ ਯਾਤਰਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਨੇ ਦੇਖਿਆ ਕਿ ਉੱਥੇ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੈ । ਜਾਵਾ ਵਿੱਚ ਕਈ ਮੰਦਰ ਬਣਵਾਏ ਗਏ ਸਨ । ਇਹਨਾਂ ਮੰਦਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਵ, ਵਿਸ਼ਨੂੰ ਅਤੇ ਮਾ ਦੀ ਪੂਜਾ ਹੁੰਦੀ ਸੀ ।ਉੱਥੇ ਹਿੰਦੂ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਵੀ ਹਰਮਨ-ਪਿਆਰਾ ਹੋਇਆ । ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਬੋਰੋਬੁਦੂਰ ਦਾ ਬੁੱਧ ਮੰਦਰ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਬਰਮਾ (ਮਾਇਆਂਮਾਰ) ਵਿੱਚ ਭਾਰਤੀ ਸਭਿਅਤਾ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਰਮਾ (ਮਾਇਆਂਮਾਰ) ਦੇ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਮਹਾਤਮਾ ਬੁੱਧ ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਹੀ ਸਨ । ਹਿੰਦੁ ਉਪਨਿਵੇਸ਼ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇੱਥੇ ਭਾਰਤੀ ਸਭਿਅਤਾ ਅਤੇ ਸਭਿਆਚਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਹੋਣ ਲੱਗਾ | ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੀ ਹੀਨਯਾਨ ਸ਼ਾਖਾ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਸਨ । 11ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਅਨੀਰੁਧ ਨੇ ਬਰਮਾ (ਮਾਇਆਂਮਾਰ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਰਾਜ ਸਥਾਪਤ ਕੀਤਾ । ਉਸਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨੇ ਇੱਥੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਆਨੰਦ ਮੰਦਰ ਬਣਵਾਇਆ । ਅੱਜ ਵੀ ਬਰਮਾ (ਮਾਇਆਂਮਾਰ) ਵਿੱਚ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਹਮਲਿਆਂ ਦਾ ਤਤਕਾਲੀ ਕਾਰਨ ਕੀ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਰਬ ਦੇ ਕੁਝ ਵਪਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਦੇਵਲ (ਸਿੰਧ ਰਾਜ) ਬੰਦਰਗਾਹ ‘ਤੇ ਡਾਕੂਆਂ ਨੇ । ਲੁੱਟ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਖਲੀਫ਼ਾ ਨੇ ਸਿੰਧ ਦੇ ਰਾਜਾ ਦਾਹਿਰ ਤੋਂ ਇਸ ਘਟਨਾ ਦਾ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਮੰਗਿਆ । ਪਰ ਰਾਜਾ ਦਾਹਿਰ ਨੇ ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਮੁਆਵਜ਼ਾ ਦੇਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਕਿ ਦੇਵਲ ਦੇ ਡਾਕੂ ਉਸਦੇ ਅਧੀਨ ਨਹੀਂ ਹਨ । ਇਹ ਸੁਣ ਕੇ ਬਸਰਾ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ‘ ਨੇ ਰਾਜਾ ਦਾਹਿਰ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਦਾਹਿਰ ਨੇ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ।

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ਵੱਡੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇੰਡੋਨੇਸ਼ੀਆ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇੰਡੋਨੇਸ਼ੀਆ ਵਿੱਚ ਜਾਵਾ, ਸੁਮਾਤਰਾ, ਬਾਲੀ, ਬੋਰਨੀਓ ਆਦਿ ਕਈ ਦੀਪ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਇੱਥੇ ਪਹਿਲੀ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤੀਆਂ ਦਾ ਆਗਮਨ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ।

  • ਜਾਵਾ – ਜਾਵਾ ਵਿੱਚ 56 ਈ: ਵਿੱਚ ਹਿੰਦੂ ਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ਸੀ । ਉੱਥੇ ਕਈ ਮੰਦਰ ਬਣੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਵ, ਵਿਸ਼ਨੂੰ, ਬ੍ਰਹਮਾ ਆਦਿ ਭਾਰਤੀ ਦੇਵਤਿਆਂ ਦੀ ਪੂਜਾ ਹੁੰਦੀ ਸੀ । ਜਾਵਾ ਵਿੱਚ 15ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਭਾਰਤੀ ਸਭਿਆਚਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਚਲਨ ਰਿਹਾ ।
  • ਸੁਮਾਤਰਾ – ਸੁਮਾਤਰਾ ਦਾ ਪੁਰਾਤਨ ਹਿੰਦੂ ਰਾਜਾ ਸ਼੍ਰੀ ਵਿਜੇ ਸੀ । ਇਸ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਚੌਥੀ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਹੋਈ । ਚੀਨੀ ਯਾਤਰੀ ਇਤਸਿੰਗ ਲਿਖਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸੁਮਾਤਰਾ ਬੋਧੀ ਗਿਆਨ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਸੀ । 684 ਈ: ਵਿੱਚ ਸੁਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਬੋਧੀ ਰਾਜਾ ਸ਼ਾਸਨ ਕਰਦਾ ਸੀ ।
  • ਬਾਲੀ – ਬਾਲੀ ਵੀ ਹਿੰਦੂ ਉਪਨਿਵੇਸ਼ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਵੀ ਹਿੰਦੂ ਮੰਦਰ ਸਨ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਵੇਦਾਂ, ਮਹਾਂਭਾਰਤ ਅਤੇ ਰਾਮਾਇਣ ਦਾ ਗਿਆਨ ਸੀ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਚਾਰ ਜਾਤੀਆਂ ਸਨ । ਚੀਨੀ ਬਿਰਤਾਂਤ ਤੋਂ ਪਤਾ ਚੱਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਬਾਲੀ ਇੱਕ ਸਭਿਆ ਅਤੇ ਅਮੀਰ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਸੀ ।
  • ਬੋਰਨੀਓ – ਬੋਰਨੀਓ ਵੀ ਹਿੰਦੁ ਉਪਨਿਵੇਸ਼ ਸੀ । ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਰਾਜਾ ਮੁਲਵਰਮਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਉਸਨੇ ਇੱਕ ਯੁੱਗ ਵਿੱਚ 20,000 ਗਊਆਂ ਦਾਨ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸਨ । ਬਾਹਮਣਾਂ ਦਾ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਵੀ, ਮੰਦਰਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸ੍ਰੀ ਲੰਕਾ, ਚੀਨ ਅਤੇ ਤਿੱਬਤ ਵਿੱਚ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੋਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ੍ਰੀ ਲੰਕਾ, ਚੀਨ ਅਤੇ ਤਿੱਬਤ ਵਿੱਚ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦਾ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

  • ਸ੍ਰੀ ਲੰਕਾ – ਸ੍ਰੀ ਲੰਕਾ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਅਸ਼ੋਕ ਨੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਲਈ ਪ੍ਰਚਾਰਕ ਭੇਜੇ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਮਹਿੰਦਰ ਅਤੇ ਪੁੱਤਰੀ ਸੰਘਮਿੱਤਰਾ ਨੂੰ ਉੱਥੇ ਭੇਜਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੋਰ ਕਈ ਬੋਧੀ ਭਿਖਸ਼ੂ ਵੀ ਸ੍ਰੀ ਲੰਕਾ ਗਏ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਉੱਥੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਉੱਥੇ ਕਈ ਬੋਧੀ ਗ੍ਰੰਥ ਵੀ ਲਿਖੇ । ਅੱਜ ਵੀ ਸੀ ਲੰਕਾ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਹਨ ।
  • ਚੀਨ – ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਬੋਧੀ ਭਿਖਸ਼ੂ ਪਹਿਲੀ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਗਏ । ਭਿਖਸ਼ ਕੁਮਾਰਜੀਵ ਨੇ ਇੱਥੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਪ੍ਰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ। ਉਸ ਨੇ ਕਈ ਬੋਧੀ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦਾ ਚੀਨੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਅਨੁਵਾਦ ਕੀਤਾ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਇਹ ਧਰਮ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਫੈਲ ਗਿਆ । ਇਸ ਧਰਮ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਕਈ ਚੀਨੀ ਯਾਤਰੀ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ਲਈ ਭਾਰਤ ਆਏ । ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਫ਼ਾਹਿਆਨ ਅਤੇ ਹਿਊਨਸਾਂਗ ਮੁੱਖ ਸਨ ।
  • ਤਿੱਬਤ – ਤਿੱਬਤ ਇੱਕ ਪਹਾੜੀ ਤ ਹੈ । ਇਹ ਚੀਨ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਸਥਿਤ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਸੱਤਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਕੁਝ ਤਿੱਬਤੀ ਵਿਦਵਾਨ ਭਾਰਤ ਆਏ ਅਤੇ ਇੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ । ਦੋ ਭਾਰਤੀ ਵਿਦਵਾਨ ਸ਼ਾਂਤੀ ਰਕਰਸ਼ਕ ਅਤੇ ਪਦਮ ਸੰਭਵ ਨੇ ਤਿੱਬਤ ਵਿੱਚ ਜਾ ਕੇ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ । ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਲਹਾਸਾ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਬੋਧੀ ਮੱਠ ਬਣਵਾਏ ਗਏ | ਅੱਜ ਵੀ ਤਿੱਬਤ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਬੁੱਧ ਧਰਮ ਦੇ ਪੈਰੋਕਾਰ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਹਮਲੇ ਦੇ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ । ਉੱਤਰ-ਮੁਹੰਮਦ-ਬਿਨ-ਕਾਸਿਮ ਨੇ 712 ਈ: ਵਿੱਚ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਸੀ ।
ਕਾਰਨ-
(1) ਅਰਬ ਦੇ ਮੁਸਲਮਾਨ ਸ਼ਾਸਕ ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਕੇ ਇਸ ਨੂੰ ਅਰਬ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਇੱਕ ਭਾਗ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

(2) ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਪਾਰ ਧਨ-ਦੌਲਤ ਬਾਰੇ ਸੁਣ ਰੱਖਿਆ ਸੀ । ਉਹ ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਕੇ ਇੱਥੋਂ ਦਾ ਧਨ ਲੁੱਟਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

(3) ਉਹ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਸਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।

(4) ਅਰਬ ਦੇ ਕੁਝ ਵਪਾਰੀ ਆਪਣੇ ਜਹਾਜ਼ ਲੈ ਕੇ ਦੇਵਲ ਬੰਦਰਗਾਹ ‘ਤੇ ਰੁਕੇ । ਉੱਥੇ ਕੁਝ ਸਮੁੰਦਰੀ ਡਾਕੂਆਂ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਮਾਲ ਲੁੱਟ ਲਿਆ । ਖਲੀਫ਼ਾ ਨੂੰ ਜਦੋਂ ਇਸ ਗੱਲ ਦਾ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਗੁੱਸਾ ਆਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਬਸਰਾ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਨੂੰ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦਿੱਤੀ । ਬਸਰਾ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਨੇ ਸਿੰਧ ਦੇ ਰਾਜੇ ਦਾਹਿਰ ਤੋਂ ਲੁਟੇਰਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਲੁੱਟੇ ਹੋਏ ਮਾਲ ਦਾ ਹਰਜ਼ਾਨਾ ਮੰਗਿਆ । ਪਰ ਦਾਹਿਰ ਨੇ ਇਹ ਕਹਿ ਕੇ ਹਰਜ਼ਾਨਾ ਦੇਣ ਤੋਂ ਨਾਂਹ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਸਮੁੰਦਰੀ ਲੁਟੇਰੇ ਉਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਨਹੀਂ ਹਨ । ਇਹ ਜਵਾਬ ਮਿਲਦਿਆਂ ਹੀ ਬਸਰਾ ਦੇ ਗਵਰਨਰ ਨੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ, ਪਰ ਉਹ ਹਾਰ ਗਿਆ । ਇਸ ਹਾਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਨੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸੈਨਾ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀ ਅਤੇ 712 ਈ: ਵਿੱਚ ਮੁਹੰਮਦ-ਬਿਨ-ਕਾਸਿਮ ਨੂੰ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਹਮਲੇ ਦਾ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਿਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਅਰਬਾਂ ਦੇ ਸਿੰਧ ’ਤੇ ਹਮਲੇ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਬਹੁਤ ਥੋੜੇ ਸਮੇਂ ਲਈ ਹੀ ਰਿਹਾ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਸਥਾਈ ਨਹੀਂ ਸੀ | ਪਰ ਇਸ ਹਮਲੇ ਦੇ ਕੁਝ ਅਪ੍ਰਤੱਖ ਸਿੱਟੇ ਨਿਕਲੇ, ਜਿਹਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੈ-

  1. ਅਰਬ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਪਤਾ ਲੱਗ ਗਿਆ ।
  2. ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਰਸਤਾ ਖੁੱਲ੍ਹ ਗਿਆ ।
  3. ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਸਲਾਮ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਅਤੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਹੋਇਆ ।
  4. ਅਰਬ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਸਿੱਖਿਆ, ਜਿਵੇਂ ਤਾਰਿਆਂ ਦੀ ਵਿੱਦਿਆ, ਚਿੱਤਰਕਾਰੀ, ਦਵਾਈਆਂ ਅਤੇ ਸੰਗੀਤ ਆਦਿ ।
  5. ਕਈ ਭਾਰਤੀ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਬਗ਼ਦਾਦ ਸੱਦਿਆ ਗਿਆ । ਉੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਸਭਿਆਚਾਰ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

Physical Education Guide for Class 11 PSEB ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ Textbook Questions and Answers

ਅਭਿਆਸ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਆਮ ਪ੍ਰਚੱਲਿਤ ਨਸ਼ੇ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਹਨ ? (What are the various of intoxicants which are. prevailing in our society.)
ਉੱਤਰ-

  • ਸ਼ਰਾਬ,
  • ਅਫ਼ੀਮ,
  • ਤੰਬਾਕੂ,
  • ਭੰਗ,
  • ਹਸ਼ੀਸ਼,
  • ਨਸਵਾਰ,
  • ਕੈਫ਼ੀਨ,
  • ਐਡਰਵੀਨ,
  • ਨਾਰਕੋਟਿਕਸ,
  • ਐਨਾਬੋਲਿਕ ਸਟੀਰਾਇਡ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਨਸ਼ੇ ਕੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ? (What are intoxicants ?)
ਉੱਤਰ-
ਨਸ਼ਾ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਪਦਾਰਥ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਨ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਉਤੇਜਨਾ ਜਾਂ ਨਿੱਸਲਪਣ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਨਾੜੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਉੱਤੇ ਸਾਰੀਆਂ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਬਹੁਤ ਭੈੜਾ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਰ, ਕਲਪਨਾ ਅਤੇ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਕੋਈ ਸੁੱਧ-ਬੁੱਧ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਨੁਕਸਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੱਸੋ । (What are the types of intoxicants ?)
ਉੱਤਰ-
ਨਸ਼ੇ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ-ਸ਼ਰਾਬ, ਤੰਬਾਕੂ, ਅਫੀਮ, ਭੰਗ, ਚਰਸ, ਕੈਫੀਨ ਅਤੇ ਮੈਡੀਕਲ ਨਸ਼ੇ ਆਦਿ ।
1. ਸ਼ਰਾਬ (ਅਲਕੋਹਲ)-ਸ਼ਰਾਬ ਇੱਕ ਨਸ਼ੀਲਾ ਤਰਲ ਪਦਾਰਥ ਹੈ ਜੋ ਅਨਾਜਾਂ ਦੇ ਸਾੜ ਜਾਂ ਸੜਨ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਤੇਜ਼ਾਬਾਂ ਤੋਂ ਬਣਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਲਗਾਤਾਰ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਤੇ ਕਈ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਂਦੇ ਹਨ ।

2. ਤੰਬਾਕੂ (Tobacco-ਤੰਬਾਕੂ ਨਿਕੋਟੀਆਨਾ ਨਾਮਕ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਸ਼ੀਲਾ ਪਦਾਰਥ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਪਰ ਵਿਸ਼ਵ ਵਿੱਚ ਇਸ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਰਤੋਂ ਚਬਾਉਣ, ਪੀਣ ਅਤੇ ਸੁੰਘਣ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਤੰਬਾਕੂ ਦੇ ਧੂੰਏਂ . ਵਿੱਚ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਸੰਯੋਗ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਬੈਂਜਪਾਇਰੀਨ, ਫਾਰਮੈਲਡੀਹਾਈਡ, ਕੈਡਮੀਅਮ, ਗਿਲਟ, ਸੰਖੀਆਂ, ਫੀਨੋਲ ਅਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਪਦਾਰਥ ਉਪਜਦੇ ਹਨ ਜੋ ਕਿ ਮਨੁੱਖੀ ਸਰੀਰ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੀ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਹਨ ।

3. ਅਫ਼ੀਮ-ਅਫ਼ੀਮ ਇਕ ਕਾਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਕਸੈਲਾ ਮਾਦਕ ਪਦਾਰਥ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜੋਕਿ ਪੈਪੇਬਰ ਸੋਲਿਫੇਰਸ ਨਾਂ ਦੇ ਪੌਦੇ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅਫ਼ੀਮੀ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਅੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਤਲੀਆਂ ਸੁੰਗੜ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਰਾਤ ਨੂੰ ਘੱਟ ਦਿਸਦਾ ਹੈ, ਥਕਾਵਟ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਹ ਫੁੱਲਦਾ ਹੈ ।

4. ਚਰਸ-ਇਹ ਭੰਗ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਨਸ਼ੀਲਾ ਪਦਾਰਥ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਮਸਤੀ, ਨੀਂਦ, ਉਤੇਜਨਾ, ਬਿਮਾਰੀ ਆਦਿ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਣ ਲੱਗਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਯਾਦਾਸ਼ਤ ਉੱਤੇ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਪਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

5. ਕੋਕੀਨ-ਕੋਕੀਨ ਕੋਕਾ ਨਾਮਕ ਪੱਤੀਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਨਸ਼ੀਲਾ ਪਦਾਰਥ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਬਲੱਡ ਪ੍ਰੈਸ਼ਰ ਵਿਚ ਵਾਧਾ, ਸੁਭਾਅ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਅਸਥਿਰਤਾ ਅਤੇ ਚਿੜਚਿੜਾਪਣ ਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਦਿਲ ਦਾ ਦੌਰਾ ਪੈ ਸਕਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦਿਲ ਫ਼ੇਲ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

6. ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ-ਕੁੱਝ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਭਿਆਨਕ ਬਿਮਾਰੀ ਜਾਂ ਅਪਰੇਸ਼ਨ ਸਮੇਂ ਦਰਦ ਤੋਂ ਰਾਹਤ ਲਈ ਦਿੱਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਪਰ ਇਹ ਦਰਦ ਨਿਵਾਰਕ ਦਵਾਈਆਂ ਅੱਜ-ਕੱਲ੍ਹ, ਬਿਨਾਂ ਡਾਕਟਰੀ ਸਲਾਹ ਤੋਂ ਨਸ਼ੇ ਲਈ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਲਿਆਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਵਾਈਆਂ ਵਿਚ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਗੋਲੀਆਂ, ਟੀਕੇ, ਕੈਪਸੂਲ ਆਦਿ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਵੇਂ-ਡਾਇਆਜੇਪਾਮ, ਨੈੱਬੂਟਾਲ, ਸੇਕੋਨਾਲ, ਬੈਂਜੋਡਾਇਆਜੇਪਾਈਨ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਤੰਬਾਕੂ ‘ਤੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write the note on ‘Tobacco’)
ਉੱਤਰ-
ਤੰਬਾਕੂ ਨਿਕੋਟੀਆਨਾ ਕੁੱਲ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਨਸ਼ੀਲਾ ਪਦਾਰਥ ਹੈ । ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਤੰਬਾਕੂ ਪੀਣਾ ਅਤੇ ਤੰਬਾਕੂ ਖਾਣਾ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਬੁਰੀ ਲਾਹਨਤ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਹੈ । ਤੰਬਾਕੂ ਪੀਣ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਢੰਗ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਬੀੜੀ, ਸਿਗਰਟ ਪੀਣਾ, ਸਿਗਾਰ ਪੀਣਾ, ਚਿਲਮ ਪੀਣੀ ਆਦਿ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖਾਣ ਦੇ ਢੰਗ ਵੀ ਅਲੱਗ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਤੰਬਾਕੂ, ਵਿੱਚ ਰਲਾ ਕੇ ਸਿੱਧੇ ਮੂੰਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖ ਕੇ ਖਾਣਾ ਜਾਂ ਪਾਨ ਵਿੱਚ ਰੱਖ ਕੇ ਖਾਣਾ ਆਦਿ । ਤੰਬਾਕੂ ਵਿੱਚ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਜ਼ਹਿਰ ਨਿਕੋਟੀਨ (Nicotine) ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅਮੋਨੀਆ ਕਾਰਬਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਆਦਿ ਵੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਤੰਬਾਕੂ ਦੇ ਧੂੰਏਂ ਵਿੱਚ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਸੰਯੋਗ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਬੈਂਜਪਾਇਰੀਨ, ਫਾਰਮੈਲਡੀਹਾਈਡ, ਕੈਡਮੀਅਮ, ਗਿਲਟ, ਸੰਖੀਆਂ, ਫੀਨੋਲ ਅਤੇ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਪਦਾਰਥ ਉਪਜਦੇ ਹਨ ਜੋ ਕਿ ਮਨੁੱਖੀ ਸਰੀਰ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੀ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਹਨ ।

ਤੰਬਾਕੂ ਦੇ ਨੁਕਸਾਨ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਨ –

  • ਤੰਬਾਕੂ ਖਾਣ ਜਾਂ ਪੀਣ ਨਾਲ ਨਜ਼ਰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਇਸ ਨਾਲ ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਣ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਦਿਲ ਦਾ ਰੋਗ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਮੌਤ ਦਾ ਕਾਰਨ ਵੀ ਬਣ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਖੋਜ ਤੋਂ ਪਤਾ ਲੱਗਾ ਹੈ ਕਿ ਤੰਬਾਕੂ ਪੀਣ ਜਾਂ ਖਾਣ ਨਾਲ ਖੂਨ ਦੀਆਂ ਨਾੜੀਆਂ ਸੁੰਗੜ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।
  • ਤੰਬਾਕੂ ਸਰੀਰ ਤੇ ਤੰਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸੁੰਨ ਕਰੀ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਨੀਂਦ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦੀ ਅਤੇ ਨੀਂਦ ਨਾ ਆਉਣ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਤੰਬਾਕੂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਪੇਟ ਖ਼ਰਾਬ ਰਹਿਣ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਤੰਬਾਕੂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਖੰਘ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਫੇਫੜਿਆਂ ਦੀ ਟੀ.ਬੀ.ਦਾ ਖਤਰਾ ਵੱਧ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਤੰਬਾਕੂ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਲੱਗਣ ਦਾ ਡਰ ਵੱਧ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਖਾਸਕਰ ਛਾਤੀ ਦਾ ਕੈਂਸਰ ਅਤੇ ਗਲੇ ਦੇ ਕੈਂਸਰ ਦਾ ਡਰ ਵੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਅਫ਼ੀਮ ਦੇ ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਪੈਣ ਵਾਲੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੱਸੋ । (What are the ill effect of our body Opium on human body ?)
ਉੱਤਰ-
ਅਫ਼ੀਮ ਦੇ ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਪੈਣ ਵਾਲੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ (Ill effect of taking Opium on our body) -ਅਫ਼ੀਮ ਪੈਪੇਬਰ ਸੋਨਿਵੇਸ ਨਾਂ ਦੇ ਪੌਦੇ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਇੱਕ ਕਾਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਕਸੈਲਾ ਮਾਦਕ ਪਦਾਰਥ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਸ਼ੇ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

  • ਚਿਹਰਾ ਪੀਲਾ ਪੈ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਕਦਮ ਲੜਖੜਾਉਂਦੇ ਹਨ ।
  • ਮਾਨਸਿਕ ਸੰਤੁਲਨ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਪਾਚਨ ਸ਼ਕਤੀ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਤੇਜ਼ਾਬੀ ਅੰਸ਼ ਜਿਗਰ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
  • ਕਈ ਕਿਸਮ ਦੇ ਪੇਟ ਦੇ ਰੋਗ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
  • ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਖਿਡਾਰੀ ਖੇਡ ਦਾ ਚੰਗਾ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਕੈਂਸਰ ਅਤੇ ਦਮੇ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।
  • ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦੀ ਯਾਦ-ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਅੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਤਲੀਆਂ ਸੁੰਗੜ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਕੋਈ ਵੀ ਵਸਤੁ ਸਾਫ਼ ਦਿਖਾਈ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੀ ।
  • ਛਾਤੀ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਮਹਿਸੂਸ ਹੁੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
  • ਡਰ, ਘਬਰਾਹਟ ਅਤੇ ਬਿਮਾਰੀ ਦੀ ਹਾਲਤ ਮਹਿਸੂਸ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  • ਕੋਈ ਵੀ ਨਿਰਣਾ ਲੈਣ ਦੀ ਕਾਬਲੀਅਤ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਨ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਨਸ਼ੇ ਕਰਨ ਦੇ ਕੀ ਕਾਰਨ ਹਨ ? (What are the causes of intoxicant ?)
ਉੱਤਰ-

  • ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ-ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵੀ ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੇ ਵੱਧ ਰਹੇ ਰੁਝਾਨ ਦਾ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਖਿਡਾਰੀ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ ਨਾ ਮਿਲਣ ਤੇ ਉਸਦਾ ਝੁਕਾਅ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵੱਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਇਕੱਲਾਪਨ-ਜਦੋਂ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ ਨੌਕਰੀ ਕਰਦੇ ਹੋਣ ਤਾਂ ਬੱਚਾ ਇਕੱਲਾ ਰਹਿ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਸਦਾ ਝੁਕਾਅ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵੱਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਵੱਡਾ ਸਾਬਤ ਕਰਨਾ-ਜਦੋਂ ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਰੋਕਿਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਗੁੱਸੇ ਵਿੱਚ ਜਾਂ ਆਪਣੇ ਆਪ ਨੂੰ ਵੱਡਾ ਸਾਬਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਨਸ਼ੇ ਕਰਨ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਮਾਨਸਿਕ ਦਬਾਅ-ਕੁੱਝ ਨੌਜਵਾਨ ਮਾਨਸਿਕ ਦਬਾਅ ਕਾਰਨ ਜਿਵੇਂ ਪੜ੍ਹਾਈ ਦਾ ਬੋਝ, ਕਿਸੇ ਸਮੱਸਿਆ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕਣ ਦੀ ਹਾਲਤ ਵਿੱਚ ਨਸ਼ੇ ਕਰਨ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
  • ਦੋਸਤਾਂ ਵੱਲੋਂ ਦਬਾਓ-ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਉਸਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਨਸ਼ੇ ਦੀ ਇੱਕ ਦੋ ਦਫ਼ਾ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਲਈ ਦਬਾਅ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ੇਦਾਰ ਚੀਜ਼ ਦੱਸ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਸ਼ਾ ਕਰਵਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਨਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਖਿਡਾਰੀ, ਪਰਿਵਾਰ, ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੈ ? (What are the effect of intoxicants on ployer, family, society and country.)
ਉੱਤਰ-
ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦਾ ਖਿਡਾਰੀ, ਪਰਿਵਾਰ, ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ (Effects of Intoxicants on Individual, Family, Society and Country)- ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਭਾਵੇਂ ਹੀ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਦੇ ਲਈ ਵੱਧ ਕੰਮ ਲਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਵੱਧ ਕੰਮ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਰੋਗ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਕੇ ਮੌਤ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਾਰੂ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੁੱਝ ਨਸ਼ੇ ਤਾਂ ਕੋੜ੍ਹ ਦੇ ਰੋਗ ਤੋਂ ਵੀ ਬੁਰੇ ਹਨ ।

ਸ਼ਰਾਬ, ਤੰਬਾਕੂ, ਅਫ਼ੀਮ, ਭੰਗ, ਹਸ਼ੀਸ਼, ਐਡਰਨਵੀਨ ਅਤੇ ਕੈਫ਼ੀਨ ਅਜਿਹੀਆਂ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਹਨ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੇਵਨ ਸਿਹਤ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੀ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਹੈ । | ਹਰੇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੇ ਮਨੋਰੰਜਨ ਲਈ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਖੇਡ ਵਿੱਚ ਭਾਗ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਸਾਥੀਆਂ ਅਤੇ ਗੁਆਂਢੀਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਮੇਲ-ਮਿਲਾਪ ਅਤੇ ਸਦਭਾਵਨਾ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਰੱਖਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਇੱਕ ਨਸ਼ੇ ਦਾ ਗੁਲਾਮ ਵਿਅਕਤੀ ਦੂਸਰਿਆਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਨਾ ਤਾਂ ਦੂਰ ਰਿਹਾ ਆਪਣਾ ਬੁਰਾ-ਭਲਾ ਵੀ ਨਹੀਂ ਸੋਚ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਅਜਿਹਾ ਵਿਅਕਤੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਲਈ ਬੋਝ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਦੂਸਰਿਆਂ ਦੇ ਲਈ ਸਿਰ-ਦਰਦ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਨਾ ਕੇਵਲ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਦੁੱਖੀ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ਸਗੋਂ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਅਤੇ ਸੰਬੰਧੀਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਵੀ ਨਰਕ ਬਣਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਚ ਕਲੇਸ਼ ਰਹਿਣ ਕਰਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਵਾਧੇ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ‘ਤੇ ਵੀ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਸੇਵਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਆਦਮੀ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਕੋਈ ਕਦਰ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ । ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿਚ ਉਸ ਦੇ ਨੇੜੇ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਨਹੀਂ ਆਉਂਦਾ ।

ਉਸਦੀ ਸਾਂਝ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਦੀ ਹੈ ! ਸੱਚ ਤਾਂ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਸਿਹਤ ‘ਤੇ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਗਿਆਨ ਸ਼ਕਤੀ, ਪਾਚਨ ਸ਼ਕਤੀ, ਖੂਨ, ਫੇਫੜਿਆਂ ਆਦਿ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਅਨੇਕਾਂ ਰੋਗ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ! ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨਾ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਵੀ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ । ਨਸ਼ਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਖਿਡਾਰੀ ਵਿਚ ਸਰੀਰਕ ਤਾਲਮੇਲ ਅਤੇ ਫੁਰਤੀ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ । ਨਸ਼ੇ ਵਿਚ ਧੁਤ ਖਿਡਾਰੀ ਇਕਾਗਰਚਿੱਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ।ਉਹ ਬੇਫਿਕਰਾ ਤੇ ਬੇਪਰਵਾਹ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ !

ਉਹ ਖੇਡ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਹੀ ਮਰਜ਼ੀ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਅਜਿਹੀਆਂ ਗਲਤੀਆਂ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਉਸ ਦੀ ਟੀਮ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਜਿਹੇ ਨਸ਼ਾਖੋਰ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਤਰੱਕੀ ਵਿੱਚ ਰੋੜਾ ਬਣੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਦੇਸ਼ ਵਿਕਸਿਤ ਰਾਹਾਂ ‘ਤੇ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਅੰਤਰ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਉਲੰਪਿਕ ਕਮੇਟੀ ‘ਤੇ ਨੋਟ ਲਿਖੋ । (Write a brief note on international olympic (Doping) Commitee.)
ਉੱਤਰ-
ਅਜੋਕੇ ਦੌਰ ਵਿੱਚ ਖੇਡਾਂ ਵਿੱਚ ਮੁਕਾਬਲਾ ਬਹੁਤ ਸਖ਼ਤ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ । ਹਰੇਕ ਖਿਡਾਰੀ ਜਾਂ ਟੀਮ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਹਰ ਹੀਲਾ-ਵਸੀਲਾ ਵਰਤਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ | ਖਾਸ ਕਰਕੇ ਘੱਟ ਸਫਲ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦੇ ਮਨ ਵਿੱਚ ਇਹ ਖਿਆਲ ਬਹੁਤ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਜੇਤੂ ਖਿਡਾਰੀ ਸਰੀਰਕ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਤਿਆਰੀ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਚੀਜ਼ ਦਾ ਵੀ ਸਹਾਰਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸਨੂੰ ਉਹ ਦਵਾਈਆਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਦੇਖਦੇ ਹਨ ।

ਇਹ ਖਿਆਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ‘ਡੋਪ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲੈਣ ਵੱਲ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਖੇਡਾਂ ਵਿੱਚ ਪੇਸ਼ਾਵਰਾਨਾ ਪਹੁੰਚ ਅਤੇ ਜਿੱਤ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵ ਦੇਣਾ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਮਾਨ-ਸਨਮਾਨ ਨਾਲ ਜੋੜਨਾ ਵੀ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਡੋਪ ਲੈਣ ਵੱਲੋਂ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ।’ ਅੰਤਰ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਉਲੰਪਿਕ ਕਮੇਟੀ ਦੁਆਰਾ ਲੰਡਨ 2012 ਉਲੰਪਿਕ ਖੇਡਾਂ ਵਿੱਚ 1001 ਡੋਪ ਟੈਸਟ ਕੀਤੇ ਗਏ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਟੈਸਟਾਂ ਵਿੱਚ 100 ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੇ ਪਾਬੰਦੀਸ਼ੁਦਾ ਦਵਾਈ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸੀ ।

ਇਸ ਲਈ ਅੰਤਰ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਉਲੰਪਿਕ ਕਮੇਟੀ ਦੁਆਰਾ ਅਜਿਹੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਜਾਂ ਮਾਦਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ‘ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਹੋਈ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸੇਵਨ ਨਾਲ ਖਿਡਾਰੀ ਦੀ ਫ਼ਾਰਮੈਂਸ ਵੱਧਦੀ ਹੈ । | ਵੱਖ-ਵੱਖ ਖੇਡਾਂ ਦੀਆਂ ਲੋੜਾਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਖਿਡਾਰੀ ਡੋਪ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ |

ਇਨਾ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-
ਉਤੇਜਕ (Stimulants)-ਇਹ ਖਿਡਾਰੀ ਨੂੰ ਉਤੇਜਕ ਕਰਕੇ ਮੁਕਾਬਲੇ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਵਧਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅਸਰ ਦਿਮਾਗ ਉੱਪਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਉਤੇਜਨਾ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
ਬੁਰੇ ਪ੍ਰਭਾਵ (Bad Effects)-ਉਤੇਜਨਾ ਦੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਬੂਟੇ ਪ੍ਰਸ੍ਤਾਵ ਹਨ !

  • ਭੁੱਖ ਘੱਟਦੀ ਹੈ ।
  • ਨੀਂਦ ਘੱਟਦੀ ਹੈ ।

ਬੀਟਾ ਬਲੌਕਰਜ਼ (Beta-Blockers)-ਇਹ ਦਵਾਈਆਂ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਦਿਲ ਦੇ ਰੋਗਾਂ ਲਈ ਲਹੂ ਦਬਾਅ ਘਟਾਉਣ ਤੇ ਦਿਲ ਧੜਕਣ ਦੀ ਦਰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਪਰ ਨਿਸ਼ਾਨੇਬਾਜ਼ੀ ਤੇ ਤੀਰ ਅੰਦਾਜ਼ੀ ਵਾਲੇ ਖਿਡਾਰੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਵਾਈਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਨ ਦੀ ਦਰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਅਤੇ ਨਸਾਂ (Nerves) ਨੂੰ ਸਥਿਰ ਕਰਨ ਲਈ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਬੁਰੇ ਪ੍ਰਭਾਵ (Bad Effects) -ਦਿਲ ਦਾ ਕੰਮ ਰੁਕ ਸਕਦਾ ਹੈ । -ਦਮਾ ਹੋਣ ਦਾ ਖਤਰਾ ਵੱਧ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਦਬਾਅ (Depression) ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਣ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਨੀਂਦ ਵਿੱਚ ਅਸਥਿਰਤਾ ਆਉਂਦੀ ਹੈ : -ਲਿੰਗਕ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਮਾਸਕਿੰਗ ਏਜੰਟ (Marking Agents)-ਇਹ ਉਹ ਦਵਾਈਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਦੂਜੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਦੀ ਹੋਂਦ ਨੂੰ ਲੁਕਾ ਲੈਂਦੀਆਂ ਹਨ ਜਿਹੜੀਆਂ ਡੋਪ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਬਲੱਡ ਡੋਪਿੰਗ (Blood Doping)-ਇਸ ਵਿੱਚ ਖਿਡਾਰੀ ਆਪਣਾ ਖੂਨ ਮੁਕਾਬਲੇ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਕੱਢ ਕੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦੌਰਾਨ ਖੂਨ ਦੀ ਘਾਟ ਨੂੰ ਸਰੀਰ ਆਪਣੇ ਆਪ ਲਾਲ ਰਕਤਾਣੂ ਪੈਦਾ ਕਰਕੇ ਪੂਰਾ ਕਰ ਮੁਕਾਬਲੇ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਕੱਢ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਖੂਨ ਦੁਬਾਰਾ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਚੜ੍ਹਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਤੱਤਾਂ ਹੋਮੋਗਲੋਬਿਨ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਲੰਮੀਆਂ ਦੌੜਾਂ ਵਿੱਚ ਫਾਇਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

ਬੁਰੇ ਪ੍ਰਭਾਵ (Bad Effects)

  • ਲਹੂ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਲੱਗਣ ਦਾ ਡਰ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
  • ਖੁਨ ਗਾੜ੍ਹਾ ਹੋਣ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ।

1912 ਉਲਪਿਕ ਵਿੱਚ ਅਲਬੇਨੀਅਨ ਵੇਟਲਿਫ਼ਟਰ ਹਸਨ ਪੂਲਾਕੂ, ਉਹ ਖਿਡਾਰੀ ਸੀ ਜਿਸ ਦੇ ਟੈਸਟ ਵਿੱਚ ਐਨਾਬੋਲਿਕ ਸਟੀਰਾਈਡ ਪਾਈ ਗਈ । ਕਮੇਟੀ ਦੁਆਰਾ ਅਜਿਹੇ ਸਾਰੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਹੋਈ ਹੈ । ਜੋ ਖਿਡਾਰੀ ਦੀ ਖੇਡ ਭਾਵਨਾ ਅਤੇ ਸਿਹਤ ਨੂੰ ਨੁਕਸਾਨ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਵਾਈਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਾਲਿਆਂ ਖਿਲਾਫ਼ ਸਖ਼ਤ ਕਾਰਵਾਈ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਜਿੱਤਿਆ ਹੋਇਆ ਮੈਡਲ ਵਾਪਿਸ ਲੈ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਖੇਡਣ ‘ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਸ਼ਨ
ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪੈਪੇਬਰ ਸੋਨਿਫੇਰਸ ਪੌਦੇ ਤੋਂ ਕਿਹੜਾ ਨਸ਼ੀਲਾ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੈਪੇਬਰ ਸੋਨਿਫੇਰਸ ਪੌਦੇ ਤੋਂ ਅਫ਼ੀਮ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸ਼ਰਾਬ, ਤੰਬਾਕੂ ਅਤੇ ਅਫੀਮ ਕੀ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਰਾਬ, ਤੰਬਾਕੂ ਅਤੇ ਅਫ਼ੀਮ ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥ ਹਨ |

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
Central Nervose System ਨੂੰ ਕੌਣ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
Central Nervose System ਨੂੰ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਨਿਕੋਟੀਆਨਾ ਕੁੱਲ ਦੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਤੋਂ ਕਿਹੜਾ ਨਸ਼ਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਿਕੋਟੀਆਨਾ ਕੁੱਲ ਦੋ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਤੋਂ ਤੰਬਾਕੂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਐਮਫੇਟੇਮਿਨ, ਕੈਫ਼ੀਨ, ਕੋਕੀਨ, ਨਾਰਕੋਟਿਕ ਕਿਹੜੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਉਤੇਜਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਪਾਬੰਦੀਸ਼ੁਦਾ ਦਵਾਈਆਂ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦਾ ਭਾਰ ਘਟਾਉਣ ਵਾਲੀ ਕਿਹੜੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਡਿਊਰੈਟਿਕਸ ਦਵਾਈ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦਾ ਭਾਰ ਘਟਾਉਣ ਵਾਲੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਅੰਤਰ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਉਲੰਪਿਕ ਕਮੇਟੀ (ਡੋਪਿੰਗ) ਦੇ ਕੰਮ ਹਨ ?
(a) ਉਲੰਪਿਕ ਵਿੱਚ ਭਾਗ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਰਨੀ
(b) ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਰਨੀ !
(c) ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰਨਾ ।
(d) ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਇਨਾਮ ਦੇਣੇ ।
ਉੱਤਰ-
(a) ਉਲਪਿੰਕ ਵਿੱਚ ਭਾਗ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਰਨੀ ।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਉਲੰਪਿਕ ਕਮੇਟੀ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਉਂਦੀ ਹੈ ।
(a) ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥ
(b) ਪੀਣ ਵਾਲੇ ਪਦਾਰਥ
(c) ਖਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਤਾਕਤਵਰ ਚੀਜ਼ਾਂ
(d) ਉਪਰੋਕਤ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(a) ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  • ਸ਼ਰਾਬ,
  • ਅਫ਼ੀਮ,
  • ਤੰਬਾਕੂ ਆਦਿ ਨਸ਼ੀਲੇ ਪਦਾਰਥ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਉਲੰਪਿਕ ਕਮੇਟੀ ਨੇ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ‘ਤੇ ਕਿਹੜੀਆਂ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ‘ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਐਮਫੇਟੇਮਿਨ, ਕੈਫ਼ੀਨ, ਕੋਕੀਨ, ਨਾਰਕੋਟਿਕ ਆਦਿ ਵਸਤੂਆਂ ‘ਤੇ ਪਾਬੰਦੀ ਲਗਾਈ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਅੰਤਰ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਕਮੇਟੀ ਦੇ ਕੋਈ ਦੋ ਕੰਮ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ,
  2. ਜੇਤੂ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਇਨਾਮ ਦੇਣੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਨਸ਼ਿਆਂ ਨਾਲ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਿਹਤ ‘ਤੇ ਕੀ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾੜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿਗੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦਿਮਾਗ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦਾ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਖੇਡ ‘ਤੇ ਕੀ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਖੇਡ ਭਾਵਨਾ ਦਾ ਅੰਤ, ਨਿਯਮਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ, ਮੈਦਾਨ ਲੜਾਈ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਸ਼ਰਾਬ ਨਾਲ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਿਹਤ ‘ਤੇ ਕੀ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾੜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿਗੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਦਿਮਾਗ਼ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਤੰਬਾਕੂ ਨਾਲ ਕੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੰਬਾਕੂ ਖਾਣ ਜਾਂ ਪੀਣ ਨਾਲ ਨਜ਼ਰ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਕੈਂਸਰ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ ਦਾ ਡਰ ਵੱਧ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਣ ਨਾਲ ਕਿਸ ਵਿਟਾਮਿਨ ਦੀ ਘਾਟ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਣ ਨਾਲ ਵਿਟਾਮਿਨ B’ ਦੀ ਘਾਟ ਆਉਂਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਣ ਨਾਲ ਕਿਹੜਾ ਰੋਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਣ ਨਾਲ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡਾ ਰੋਗ “ਜਿਗਰ ਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਸਿਗਰੇਟ, ਬੀੜੀ, ਨਸਵਾਰ ਤੇ ਸਿਗਾਰ ਕਿਸ ਨਸ਼ਾਖੋਰੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਤੰਬਾਕੂ ਪੀਣ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਸਿਗਰੇਟ ਪੀਣ ਨਾਲ ਕਿਹੜਾ ਜ਼ਹਿਰੀਲਾ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਿਕੋਟਿਨ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਤੰਬਾਕੂ ਪੀਣ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਖੂਨ ਦਾ ਦਬਾਅ ਕਿੰਨਾ ਵੱਧ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
20 mg ਖੂਨ ਦਾ ਦਬਾਅ ਵੱਧ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Very Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਜੇ ਕਰ ਖਿਡਾਰੀ ਉਲੰਪਿਕ ਵਿੱਚ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਦਵਾਈਆਂ ਦਾ ਸੇਵਨ ਕਰਦਾ ਫੜਿਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਕੀ ਜੁਰਮਾਨਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੇ ਕਰ ਖਿਡਾਰੀ ਨੇ ਕੋਈ ਮੈਡਲ ਜਿੱਤਿਆ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਹ ਵਾਪਿਸ ਲੈ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਕਦ ਜੁਰਮਾਨਾ ਵੀ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਨਸ਼ੀਲੀ ਵਸਤੁਆਂ ਦੇ ਕੋਈ ਦੋ ਦੋਸ਼ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਨਸ਼ੀਲੀ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਦੋਸ਼ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਨ-

  • ਚਿਹਰਾ ਪੀਲਾ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਮਾਨਸਿਕ ਸੰਤੁਲਨ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ !

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਨਸ਼ੀਲੀ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ‘ਤੇ ਪੈਂਦੇ ਕੋਈ ਦੋ ਬੁਰੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਨਸ਼ੀਲੀ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ‘ਤੇ ਪੈਂਦੇ ਦੋ ਬੁਰੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਨ-

  • ਫੁਰਤੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਮਾਨਸਿਕ ਸੰਤੁਲਨ ਦੀ ਇਕਾਗਰਤਾ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਨਾ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਨਾਂ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹਨ.

  1. ਸਰਾਬ
  2. ਅਫ਼ੀਮ
  3. ਤਬਾਕੂ
  4. ਭਗ
  5. ਨਾਰਕੋਟਿਕਸ
  6. ਹਸ਼ੀਸ
  7. ਨਸਵਾਰ
  8. ਕੈਫੀਨ
  9. ਐਡਰਵੀਨ
  10. ਐਨਾਬੋਲਿਕ ਸਟੀਰਾਇਡ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸ਼ਰਾਬ ਦਾ ਸਿਹਤ ਉੱਤੇ ਕੀ ਅਸਰ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-

  • ਸਾਹ ਦੀ ਗਤੀ ਤੇਜ਼ ਅਤੇ ਸਾਹ ਦੀਆਂ ਦੂਸਰੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।
  • ਸ਼ਰਾਬ ਦਾ ਅਸਰ ਪਹਿਲਾਂ ਦਿਮਾਗ ਉੱਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਨਾੜੀ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿਗੜ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਦਿਮਾਗ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸੋਚਣ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਸ਼ਰਾਬ ਪੀਣ ਨਾਲ ਪਾਚਕ ਰਸ ਘੱਟ ਪੈਦਾ ਹੋਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜਿਸ ਨਾਲ ਪੇਟ ਖ਼ਰਾਬ ਰਹਿਣ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰਦੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਤੰਬਾਕੂ ‘ਤੇ ਇੱਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਤੰਬਾਕੂ ਪੀਣਾ ਅਤੇ ਤੰਬਾਕੂ ਖਾਣਾ ਇੱਕ ਬਹੁਤ ਬੁਰੀ ਲਾਹਨਤ ਬਣ ਚੁੱਕੀ ਹੈ । ਤੰਬਾਕੂ ਪੀਣ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਢੰਗ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਬੀੜੀ, ਸਿਗਰਟ ਪੀਣਾ, ਸਿਗਾਰ ਪੀਣਾ, ਚਿਲਮ ਪੀਣੀ ਆਦਿ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਖਾਣ ਦੇ ਢੰਗ ਵੀ ਅਲੱਗ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ ਤੰਬਾਕੂ ਵਿੱਚ ਰਲਾ ਕੇ ਸਿੱਧੇ ਮੁੰਹ ਵਿੱਚ ਰੱਖ ਕੇ ਖਾਣਾ ਜਾਂ ਪਾਨ ਵਿੱਚ ਰੱਖ ਕੇ ਖਾਣਾ ਆਦਿ । ਤੰਬਾਕੂ ਵਿੱਚ ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਜ਼ਹਿਰ ਨਿਕੋਟੀਨ (Nicotine) ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਅਮੋਨੀਆ ਕਾਰਬਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਆਦਿ ਵੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਨਿਕੋਟੀਨ ਦਾ ਬੁਰਾ ਅਸਰ ਸਿਰ ‘ਤੇ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਿਰ ਚਕਰਾਉਣ ਲੱਗ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਫਿਰ ਦਿਲ ਤੇ ਅਸਰ ਕਰਦਾ ਹੈ |

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਅਫ਼ੀਮ ਦੇ ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਪੈਣ ਵਾਲੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  • ਪਾਚਨ ਸ਼ਕਤੀ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਚਿਹਰਾ ਪੀਲਾ ਪੈ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਕਦਮ ਲੜਖੜਾਉਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਨਸ਼ੇ ਕਰਨ ਦੇ ਕੋਈ ਦੋ ਕਾਰਨ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-

  • ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ-ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵੀ ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੇ ਵੱਧ ਰਹੇ ਰੁਝਾਨ ਦਾ ਵੱਡਾ ਕਾਰਨ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਖਿਡਾਰੀ ਨੂੰ ਨੌਕਰੀ | ਨਾ ਮਿਲਣ ਤੇ ਉਸਦਾ ਝੁਕਾਅ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵੱਲ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਦੋਸਤਾਂ ਵੱਲੋਂ ਦਬਾਓ-ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਉਸਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਨਸ਼ੇ ਦੀ ਇੱਕ ਦੋ ਦਫ਼ਾ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਲਈ ਦਬਾਅ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ੇਦਾਰ ਚੀਜ਼ ਦੱਸ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਸ਼ਾ ਕਰਵਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਨਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਖਿਡਾਰੀ, ਪਰਿਵਾਰ, ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਦੇਸ਼ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਨਸ਼ਾ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਨਾਮੁਰਾਦ ਪਦਾਰਥ ਹੈ । ਜਿਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਵਿਅਕਤੀ ਆਪਣੀ ਸੁੱਧ ਖੋ ਬੈਠਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੀ ਸਿਹਤ ਤਾਂ ਖ਼ਰਾਬ ਕਰਦਾ ਹੀ ਹੈ ਬਲਕਿ ਆਪਣੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਜਿਉਣਾ ਵੀ ਮੁਹਾਲ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਆਪਣੇ ਨਸ਼ੇ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਹਰ ਗ਼ਲਤ ਤਰੀਕਾ ਵਰਤਦਾ ਹੈ । ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ ਕਲੇਸ਼ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ! ਜਿਸ ਦਾ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ ਬੱਚੇ ਦੇ ਵਾਧੇ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ‘ਤੇ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਇੱਜ਼ਤ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
ਹਰ ਕੋਈ ਅਜਿਹੇ ਨਸ਼ੇੜੀ ਵਿਅਕਤੀ ਤੋਂ ਦੂਰ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਵੱਡੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Long Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ‘ਤੇ ਪੈਣ ਵਾਲੇ ਮਾੜੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਰਾਬ, ਅਫ਼ੀਮ, ਤੰਬਾਕੂ, ਹਸ਼ੀਸ਼ ਆਦਿ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨਾਲ ਭਾਵੇਂ ਹੀ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਦੇ ਲਈ ਵੱਧ ਕੰਮ ਲਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਪਰ ਵੱਧ ਕੰਮ ਨਾਲ ਮਨੁੱਖ ਰੋਗ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋ ਕੇ ਮੌਤ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਾਰੂ ਨਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੁੱਝ ਨਸ਼ੇ ਤਾਂ ਕੋੜ੍ਹ ਦੇ ਰੋਗ ਤੋਂ ਵੀ ਬੁਰੇ ਹਨ । ਸ਼ਰਾਬ, ਤੰਬਾਕੂ, ਅਫ਼ੀਮ, ਭੰਗ, ਹਸ਼ੀਸ਼, ਐਡਰਨਵੀਨ ਅਤੇ ਕੈਫ਼ੀਨ ਅਜਿਹੀਆਂ ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਹਨ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸੇਵਨ ਸਿਹਤ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਹੀ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਹੈ । ਨਸ਼ੀਲੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਤੇ ਪੈਣ ਵਾਲੇ ਮਾੜੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਹਨ

  • ਕਦਮ ਲੜਖੜਾਉਂਦੇ ਹਨ ।
  • ਮਾਨਸਿਕ ਸੰਤੁਲਨ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  • ਚਿਹਰਾ ਪੀਲਾ ਪੈ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਪਾਚਨ ਸ਼ਕਤੀ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਕਈ ਕਿਸਮ ਦੇ ਪੇਟ ਦੇ ਰੋਗ ਲੱਗ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
  • ਤੇਜ਼ਾਬੀ ਅੰਸ਼ ਜਿਗਰ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
  • ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਦੀ ਯਾਦ-ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਅੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਪੁਤਲੀਆਂ ਸੁੰਗੜ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਕੋਈ ਵੀ ਵਸਤੂ ਸਾਫ਼ ਦਿਖਾਈ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੀ ।
  • ਖੇਡ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚ ਖਿਡਾਰੀ ਖੇਡ ਦਾ ਚੰਗਾ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
  • ਕੈਂਸਰ ਅਤੇ ਦਮੇ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।
  • ਦਿਲ ਦੀ ਧੜਕਨ ਤੇਜ਼ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਛਾਤੀ ਵਿੱਚ ਦਰਦ ਮਹਿਸੂਸ ਹੁੰਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
  • ਕੋਈ ਵੀ ਨਿਰਣਾ ਲੈਣ ਦੀ ਕਾਬਲੀਅਤ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
  • ਡਰ, ਘਬਰਾਹਟ ਅਤੇ ਬਿਮਾਰੀ ਦੀ ਹਾਲਤ ਮਹਿਸੂਸ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਡੋਪਿੰਗ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ? ਬਲੱਡ ਡੋਪਿੰਗ ਤੇ ਜੀਨ ਡੋਪਿੰਗ ਬਾਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਡੋਪਿੰਗ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਅਜਿਹੇ ਕੁੱਝ ਸ਼ਕਤੀ ਵਧਾਓ ਤਰੀਕਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨਾ ਜਿਸ ਨਾਲ ਖੇਡ ਪ੍ਰਫਾਰਮੈਂਸ ਨੂੰ ਵਧਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਅੰਤਰ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਉਲੰਪਿਕ ਕਮੇਟੀ ਅਨੁਸਾਰ, “ਕੋਈ ਅਜਿਹਾ ਤਰੀਕਾ ਜਾਂ ਪਦਾਰਥ ਜੋ ਅਥਲੀਟ ਦੁਆਰਾ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਫਾਰਮੈਂਸ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਡੋਪਿੰਗ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਬਲੱਡ ਡੋਪਿੰਗ-ਇਸ ਵਿੱਚ ਖਿਡਾਰੀ ਆਪਣਾ ਖੁਨ ਮੁਕਾਬਲੇ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਕੱਢ ਕੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦੌਰਾਨ ਖੂਨ ਦੀ ਘਾਟ ਨੂੰ ਸਰੀਰ ਆਪਣੇ ਆਪ ਲਾਲ ਰਕਤਾਣੂ ਪੈਦਾ ਕਰਕੇ ਪੂਰਾ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਮੁਕਾਬਲੇ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਕੱਢ ਕੇ ਰੱਖਿਆ ਖੁਨ ਦੁਬਾਰਾ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਚੜ੍ਹਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 ਨਸ਼ਿਆਂ ਅਤੇ ਡੋਪਿੰਗ ਦੇ ਮਾਰੂ ਪ੍ਰਭਾਵ

ਇਸ ਨਾਲ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਲੈ ਕੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਤੱਤਾਂ (ਹੋਮੋਗਲੋਬਿਨ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਲੰਮੀਆਂ ਦੌੜਾਂ ਵਿੱਚ ਫਾਇਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
ਜੀਨ ਡੋਪਿੰਗ-ਜੀਨ ਡੋਪਿੰਗ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਰੀਰ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਆਪਣੇ ਹੀ ਜੀਨਜ਼ ਨੂੰ ਮੌਡੀਫਾਈ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਡੋਪਿੰਗ ਨਾਲ ਮਾਸਪੇਸ਼ੀਆਂ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ | ਸਰੀਰ ਦੀ ਸਹਿਣ ਸ਼ਕਤੀ ਵੱਧਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਵੱਧ ਦਰਦ ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਆਦਿ ਵੱਧਦੀ ਹੈ ।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 3 ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ

Physical Education Guide for Class 7 PSEB ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ Textbook Questions and Answers

ਅਭਿਆਸ ਦੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਸਾਡਾ ਸਰੀਰ ਦੋ ਲੱਤਾਂ ਉੱਪਰ ਕਿਵੇਂ ਸਿੱਧਾ ਖੜ੍ਹਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ (Posture) ਤੋਂ ਭਾਵ ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਦੀ ਬਣਤਰ ਹੈ ! ਜੇ ਸਰੀਰ ਦਾ ਢਾਂਚਾ ਵੇਖਣ ਵਿਚ ਸੁੰਦਰ, ਸਿੱਧਾ ਤੇ ਸੁਭਾਵਿਕ ਲੱਗੇ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਭਾਰ ਉੱਪਰ ਵਾਲੇ ਅੰਗਾ ਤੋਂ ਹੇਠਲੇ | ਅੰਗਾਂ ਤੇ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਠੀਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ! ਪਰ ਜੇ ਬੈਠਣ-ਉੱਠਣ, ਸੌਣ ਤੇ ਤੁਰਨ ਤੇ ਭੱਜਣ ਵੇਲੇ ਸਰੀਰ ਟੇਢਾ-ਮੇਢਾ ਤੇ ਦੁਖਦਾਈ ਲੱਗੇ ਤਾਂ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਖ਼ਰਾਬ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਅੱਗੇ-ਪਿੱਛੇ ਜ਼ਰੂਰਤ ਅਨੁਸਾਰ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਲੱਗੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ । ਇਹ ਹੱਡੀਆਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਹੀ ਟਿਕਾਣੇ ਤੇ ਥੰਮੀ ਰੱਖਦੀਆਂ ਹਨ | ਪੈਰਾਂ ਦੀਆਂ ਮਾਸਪੇਸ਼ੀਆਂ ਪੈਰਾਂ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਨੂੰ ਠੀਕ ਰੱਖਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਸਿੱਧਾ ਖੜਾ ਰੱਖਣ ਵਿਚ ਇਕ ਉੱਚਿਤ ਆਧਾਰਨ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਲੱਤ ਦੇ ਅਗਲੇ ਅਤੇ ਪਿਛਲੇ ਭਾਗ ਦੀਆਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਲੱਤ ਨੂੰ ਪੈਰ ਤੇ ਸਿੱਧਾ ਖੜ੍ਹਾ ਰਹਿਣ ਵਿਚ ਮੱਦਦ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਚੂਲ੍ਹੇ ਦੇ ਆਸ-ਪਾਸ ਦੀਆਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਸਰੀਰ ਦੇ ਉਤਲੇ ਭਾਗ ਨੂੰ ਅਤੇ ਸਿਰ ਨੂੰ ਪਿੱਛੇ ਵਲ ਖਿੱਚ ਕੇ ਰੱਖਦੀਆਂ ਹਨ | ਪੇਟ ਅਤੇ ਛਾਤੀ ਦੀਆਂ ਮਾਸਪੇਸ਼ੀਆਂ ਧੜ ਅਤੇ ਸਿਰ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪਿੱਛੇ ਵਲ ਨਹੀਂ ਜਾਣ ਦਿੰਦੀਆਂ । ਇਸ ਲਈ ਸਾਡਾ ਸਰੀਰਕ ਢਾਂਚਾ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸਿੱਧਾ ਅਤੇ ਸੁਭਾਵਿਕ ਰੂਪ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਵਧੀਆ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਰੀਰ ਦੇ ਅੰਗਾਂ ਦੀ ਇਕ-ਦੂਸਰੇ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਵਿਚ ਉੱਚਿਤ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਵਧੀਆ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਾਹਮਣੇ ਦਿੱਤੇ ਚਿਤਰ ਵਿਚ ਵਧੀਆ ਢਾਂਚਾ ਵਿਖਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ | ਅਜਿਹੇ ਢਾਂਚੇ ਵਿਚ ਸਰੀਰ ਦੇ ਉੱਪਰ ਵਾਲੇ ਅੰਗਾਂ ਦਾ ਭਾਰ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੇਠਲੇ ਅੰਗਾਂ ਉੱਤੇ ਪੈ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਅਜਿਹਾ ਢਾਂਚਾ ਬੈਠਣ, ਉੱਠਣ, ਸੌਣ, ਪੜ੍ਹਨ ਆਦਿ ਵਿਚ ਆਰਾਮ ਵਾਲਾ ਤੇ ਚੁਸਤ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ ।
PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ 1

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਚੰਗੇ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੇ ਸਾਨੂੰ ਕੀ ਲਾਭ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਚੰਗਾ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਵੇਖਣ ਵਿਚ ਸੋਹਣਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ । ਸਾਨੂੰ ਬੈਠਣ, ਉੱਠਣ, ਨੱਠਣ, ਭੱਜਣ, ਪੜ੍ਹਨ ਆਦਿ ਵਿਚ ਸੌਖ ਤੇ ਚੁਸਤੀ ਮਹਿਸੂਸ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਚੰਗੇ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਨਾਲ ਸਿਹਤ ਚੰਗੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਚੰਗੇ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਵਿਚ ਦਿਲ, ਫੇਫੜਿਆਂ ਤੇ ਗੁਰਦਿਆਂ ਆਦਿ ਦੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਕੋਈ ਰੁਕਾਵਟ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦੀ । ਚੰਗੇ ਢਾਂਚੇ ਦੀਆਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਨੂੰ ਘੱਟ ਜ਼ੋਰ ਲਾਉਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਕਿਵੇਂ ਖਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? ਇਸ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰੁਪੀਆਂ (deformities) ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਤਾਲਮੇਲ ਅਤੇ ਸੰਤੁਲਨ ਠੀਕ ਨਾ ਰਹੇ, ਤਾਂ ਸਾਡਾ ਸਰੀਰ ਅੱਗੇ ਜਾਂ ਪਿੱਛੇ ਵੱਲ ਝੁਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਅਤੇ ਫਿਰ ਹੱਡੀਆਂ ਦੇ ਟੇਢ-ਮੇਢੇ ਹੋਣ ਨਾਲ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਵਿਚ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕਰੁਪੀਆਂ ਆ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਜੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਵੱਲ ਖ਼ਾਸ ਧਿਆਨ ਨਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵੀ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਵੱਡੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਵੀ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਆਦਤ ਕਾਰਨ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਖੁਰਾਕ ਵੱਲ ਵੀ ਜੇ ਧਿਆਨ ਨਾ ਦਿੱਤਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਵੀ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ |

ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਕਰੁਪੀਆਂ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਹਨ –

  • ਕੁੱਬ ਨਿਕਲਣਾ (Kyphosis)
  • ਲੱਕ ਦਾ ਅੱਗੇ ਵੱਲ ਨਿਕਲ ਜਾਣਾ (Lordosis)
  • ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦਾ ਵਿੰਗਾ ਹੋ ਜਾਣਾ (Spinal Curvature)
  • ਕੁੱਬ ਸਹਿਤ ਲੱਕ ਦਾ ਅੱਗੇ ਨਿਕਲਣਾ (Sclerosis)
  • ਗੋਡਿਆਂ ਦਾ ਭਿੜਨਾ (Knee Locking)
  • ਪੈਰਾਂ ਦਾ ਚਪਟਾ ਹੋ ਜਾਣਾ (Flat Foot)
  • ਦੱਬੀ ਹੋਈ ਛਾਤੀ (Depressed Chest)
  • ਕਬੂਤਰ ਵਰਗੀ ਛਾਤੀ (Pigeon Chest)
  • ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ (Flat Chest)
  • ਵਿੰਗੀ ਗਰਦਨ (Sliding Neck) ।

ਸਰੀਰ ਦੀਆਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਖ਼ਰਾਬੀਆਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਾਡੀ ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਨੂੰ ਕੁੱਬ (Kyphosis) ਕਿਵੇਂ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? ਇਸ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਵਾਉਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ ਪਿੱਠ ਅਤੇ ਗਰਦਨ ਦੀਆਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਢਿੱਲੀਆਂ ਹੋ ਕੇ ਲੰਮੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਛਾਤੀ ਦੀਆਂ ਮਾਸਪੇਸ਼ੀਆਂ ਸੁੰਗੜ ਕੇ ਛੋਟੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਵਿਚ ਕੁੱਬ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਸ਼ਾ ਵਿਚ ਗਰਦਨ ਅੱਗੇ ਵੱਲ ਝੁਕੀ ਹੋਈ ਨਜ਼ਰ ਆਉਂਦੀ ਹੈ । ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਪਿੱਛੇ ਵੱਲ ਨਿਕਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਕੂਲ਼ੇ ਕੁਝ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਘੁੰਮ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
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ਕੁੱਬ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਪੈਂਦਾ ਹੈ (Causes of Kyphosis) –

  • ਨਜ਼ ਦਾ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋਣਾ ਜਾਂ ਉੱਚਾ ਸੁਣਾਈ ਦੇਣਾ
  • ਘੱਟ ਰੌਸ਼ਨੀ ਵਿਚ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਝੁਕ ਕੇ ਪੜ੍ਹਨਾ ।
  • ਬੈਠਣ ਲਈ ਨਿਕੰਮਾ ਅਤੇ ਖ਼ਰਾਬ ਕਿਸਮ ਦਾ ਫ਼ਰਨੀਚਰ ।
  • ਘੱਟ ਕਸਰਤ ਨਾਲ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਦਾ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਣਾ ।
  • ਤੰਗ ਅਤੇ ਗਲਤ ਢੰਗ ਦੇ ਕੱਪੜੇ ਪਾਉਣਾ ।
  • ਸਰੀਰ ਦਾ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਧ ਜਾਣਾ ।
  • ਕੁੜੀਆਂ ਦੇ ਜਵਾਨ ਹੋ ਜਾਣ ‘ਤੇ ਸ਼ਰਮਾ ਕੇ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਝੁਕੇ ਰਹਿਣਾ ।
  • ਲੋੜ ਤੋਂ ਵੱਧ ਝੁਕ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਆਦਤ ਹੋਣਾ ।
  • ਕਈ ਧੰਦਿਆਂ ; ਜਿਵੇਂ, ਤਰਖਾਣ ਦਾ ਆਰਾ ਖਿੱਚਣਾ, ਮਾਲੀ ਦਾ ਕਿਆਰੀਆਂ ਗੁੱਡਣਾ, ਦਫ਼ਤਰਾਂ ਵਿਚ ਫਾਈਲਾਂ ਤੇ ਅੱਖਾਂ ਟਿਕਾਈ ਰੱਖਣੀਆਂ ਤੇ ਦਰਜ਼ੀਆਂ ਦਾ ਕੱਪੜੇ ਸੀਉਣਾ ਆਦਿ ।
  • ਬਿਮਾਰੀ ਜਾਂ ਦੁਰਘਟਨਾ ਦੇ ਕਾਰਨ |

ਕੁੱਬ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗ (Methods to rectify Kyphosis) –
ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ –

  • ਬੈਠਣ-ਉੱਠਣ ਅਤੇ ਤੁਰਨ ਸਮੇਂ ਠੋਡੀ ਥੋੜੀ ਉੱਪਰ ਵਲ, ਛਾਤੀ ਅੱਗ ਵਲ ਅਤੇ ਸਿਰ ਸਿੱਧਾ ਰੱਖੋ ।
  • ਕੁਰਸੀ ਤੇ ਬੈਠ ਕੇ ਪਿੱਠ ਬੈਕ ਨਾਲ ਲਾ ਕੇ ਤੇ ਸਿਰ ਪਿੱਛੇ ਵਲ ਰੱਖ ਕੇ ਉੱਪਰ ਵਲ ਦੇਖਣਾ । ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਪਿੱਛੇ ਪਕੜ ਲੈਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
  • ਪਿੱਠ ਦੇ ਹੇਠਾਂ ਤਕੀਆ ਰੱਖ ਕੇ ਲੇਟਣਾ ।
  • ਕੰਧ ਨਾਲ ਲਾਈ ਪੌੜੀ ਨਾਲ ਲਟਕਣਾ | ਇਸ ਸਮੇਂ ਪੌੜੀ ਵਲ ਪਿੱਠ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
  • ਪੇਟ ਹੇਠਾਂ ਵੱਲ ਕਰ ਕੇ ਲੇਟਣਾ, ਹੱਥਾਂ ਉੱਤੇ ਭਾਰ ਪਾ ਕੇ ਸਿਰ ਅਤੇ ਧੜ ਦੇ ਅਗਲੇ ਭਾਗ ਨੂੰ ਉੱਪਰ ਵੱਲ ਚੁੱਕਣਾ ।
  • ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸਾਹ ਖਿੱਚਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਨਾ ਜਾਂ ਲੰਮੇ ਸਾਹ ਲੈਣੇ ।
  • ਡੰਡ ਕੱਢਣੇ, ਤੈਰਨਾ ਆਦਿ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ।
  • ਇਕ ਨੁੱਕਰ ਵਿਚ ਖੜ੍ਹੇ ਹੋ ਕੇ ਦੋਹਾਂ ਕੰਧਾਂ ਉੱਤੇ ਇਕ-ਇਕ ਹੱਥ ਲਾ ਕੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਭਾਰ ਨਾਲ ਵਾਰੀ-ਵਾਰੀ ਇਕ ਬਾਂਹ ਨੂੰ ਕੂਹਣੀ ਨਾਲ ਝੁਕਾਉਣਾ ਅਤੇ ਸਿੱਧਾ ਕਰਨਾ ।

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ਇਹਨਾਂ ਕਸਰਤਾਂ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਸਰੀਰਕ ਢਾਂਚੇ ਨੂੰ ਠੀਕ ਰੱਖਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਿਹਤਮੰਦ ਗੱਲਾਂ ਨੂੰ ਵੀ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਾਡੇ ਲੱਕ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਅੱਗੇ ਨਿਕਲ ਜਾਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦੱਸੋ । ਇਸ ਕਰੂਪੀ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਲਈ ਕੁੱਝ ਕਸਰਤਾਂ ਵੀ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਈ ਵਾਰੀ ਚੁਲ੍ਹੇ ਦੀਆਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਛੋਟੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਪੇਟ ਦੀਆਂ ਮਾਸਪੇਸ਼ੀਆਂ ਵਧ ਕੇ ਲੰਮੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦਾ ਹੇਠਲਾ ਮੋੜ ਜ਼ਿਆਦਾ ਅੱਗੇ ਵਲ ਹੋ ਜਾਣ ਨਾਲ ਪੇਟ ਵੀ ਅੱਗੇ ਵਲ ਨਿਕਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨਾਲ ਸਾਹ ਲੈਣ ਦੀ ਕਿਰਿਆ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਤਬਦੀਲੀ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
ਇਸ ਦੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ –

  1. ਛੋਟੇ ਬੱਚਿਆਂ ਵਿਚ ਪੇਟ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਤੁਰਨ ਦੀ ਆਦਤ ।
  2. ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਭੋਜਨ ਨਾ ਮਿਲਣਾ !
  3. ਜ਼ਰੂਰਤ ਤੋਂ ਵੱਧ ਭੋਜਨ ਖਾਹ ਜਾਣਾ ।
  4. ਔਰਤ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦੇਣਾ ।

ਉਪਰੋਕਤ ਕਾਰਨਾਂ ਕਾਰਕੇ ਕਮਰ ਅੱਗੇ ਨਿਕਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ |
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ਇਸ ਕਰੁਪੀ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ –

  • ਖੜੇ ਹੋ ਕੇ ਧੜ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਲ ਝੁਕਾਉਣਾ ਅਤੇ ਸਿੱਧਾ ਕਰਨਾ |
  • ਪਿੱਠ ਭਾਰ ਲੇਟ ਕੇ ਬੈਠਣਾ ਅਤੇ ਫੇਰ ਲੇਟ ਜਾਣਾ ।
  • ਪਿੱਠ ਭਾਰ ਲੇਟ ਕੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਸਿਰ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਲੱਤਾਂ ਵਾਲੇ ਭਾਗ ਨੂੰ ਵਾਰੀ-ਵਾਰੀ ਉੱਪਰ ਚੁੱਕਣਾ ।
  • ਪਿੱਠ ਭਾਰ ਲੇਟ ਕੇ ਲੱਤਾਂ ਨੂੰ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ 45 ਤਕ ਉੱਪਰ ਨੂੰ ਚੁੱਕਣਾ ਅਤੇ ਹੇਠਾਂ ਕਰਨਾ
  • ਸਾਵਧਾਨ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਖੜੇ ਹੋ ਕੇ ਘੜੀ-ਮੁੜੀ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ ਛੂਹਣਾ |
  • ਸਾਹ-ਕਸਰਤਾਂ ਦਾ ਅਭਿਆਸ ਕਰਨਾ ।
    ਜੇਕਰ ਉੱਪਰ ਲਿਖੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਲਗਾਤਾਰ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਣ ਤਾਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲੀ ਹੋਈ ਕਰ ਠੀਕ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸਾਡੇ ਪੈਰ ਚਪਟੇ ਕਿਵੇਂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ? ਚਪਟੇ ਪੈਰ ਦੀ ਪਰਖ ਦੱਸਦੇ ਹੋਏ ਇਸ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਵੀ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ ਪੈਰਾਂ ਦੀਆਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਢਿੱਲੀਆਂ ਪੈ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਡਾਟਾਂ ਸਿੱਧੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਪੈਰ ਚਪਟਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਇਸ ਤੋਂ ਬਿਨਾਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਭਾਰਾ ਹੋਵੇ, ਕਸਰਤ ਨਾ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਗ਼ਲਤ ਬਨਾਵਟ ਦੀਆਂ ਜੁੱਤੀਆਂ ਪਾਈਆਂ ਜਾਣ ਤਾਂ ਵੀ ਪੈਰ ਚਪਟੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
ਜੇ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਲਗਾਤਾਰ ਕਾਫ਼ੀ ਸਮੇਂ ਤਕ ਖਲੋਣਾ ਪਵੇ ਜਾਂ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਸੰਬੰਧੀ ਗਲਤ ਆਦਤਾਂ ਹੋਣ ਤਾਂ ਵੀ ਪੈਰ ਚਪਟੇ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
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ਚਪਟੇ ਪੈਰ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ :-

  1. ਪੰਜਿਆਂ ਦੇ ਭਾਰ ਚਲਣਾ ਤੇ ਭੱਜਣਾ ।
  2. ਪੰਜਿਆਂ ਦੇ ਭਾਰ ਸਾਈਕਲ ਚਲਾਉਣਾ ।
  3. ਡੰਡੇਦਾਰ ਪੌੜੀਆਂ ਉੱਪਰ ਚੜ੍ਹਨਾ ।

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4.ਪੈਰ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਕੇ ਅੱਡੀ ਤੇ ਉਂਗਲੀਆਂ ਦੇ ਸਹਾਰੇ ਤੁਰਨਾ ।
5. ਨੱਚਣਾ ।
6. ਲੱਕੜੀ ਦੇ ਤਿਕੋਨੇ ਤਖ਼ਤੇ ਦੇ ਢਲਾਨ ਵਾਲੇ ਭਾਗਾਂ ਉੱਪਰ ਪੈਰ ਰੱਖ ਕੇ ਤੁਰਨਾ ।
7. ਪੈਰਾਂ ਦੀਆਂ ਉਂਗਲੀਆਂ ਨਾਲ ਕਿਸੇ ਵਸਤੂ ਨੂੰ ਪਕੜ ਕੇ ਉੱਪਰ ਉਠਾਉਣਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਛਾਤੀ ਦੀਆਂ ਹੱਡੀਆਂ ਵਿਚ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ ਆ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ? ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਕਿਵੇਂ ਠੀਕ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਛਾਤੀ ਦੀਆਂ ਹੱਡੀਆਂ ਵਿਚ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ ਆ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਇਹਨਾਂ ਦਾ ਹਾਲ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੈ
1. ਦੱਬੀ ਹੋਈ ਛਾਤੀ (Depressed Chest)-ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਛਾਤੀ ਕੁਝ ਅੰਦਰ ਨੂੰ ਦੱਬੀ ਹੋਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
2. ਕਬੂਤਰ ਵਰਗੀ ਛਾਤੀ (Pigeon Chest)-ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਛਾਤੀ ਦੀ ਹੱਡੀ ਉੱਪਰ ਵਲ ਉਭਰੀ ਹੋਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
3. ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ (Flat Chest)-ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਛਾਤੀ ਵਿਚ ਪਸਲੀਆਂ ਵਧੇਰੇ ਇਧਰ-ਉਧਰ ਉਭਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਤੇ ਛਾਤੀ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦੇ ਲਗਪਗ ਸਮਤਲ ਹੀ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਛਾਤੀ ਦੀਆਂ ਹੱਡੀਆਂ ਦੀ ਕਰੂਪਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ –

  • ਕਸਰਤ ਦੀ ਕਮੀ ।
  • ਭੋਜਨ ਵਿਚ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ, ਫਾਸਫੋਰਸ ਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ਡੀ ਦੀ ਕਮੀ ।
  • ਭਿਆਨਕ ਬਿਮਾਰੀਆਂ |
  • ਬਹੁਤਾ ਅੱਗੇ ਵਲ ਝੁਕ ਕੇ ਬੈਠਣਾ, ਖੜ੍ਹੇ ਹੋਣਾ ਜਾਂ ਤੁਰਨਾ ਆਦਿ ।

ਕਸਰਤ-

  • ਡੰਡ ਕੱਢਣਾ ।
  • ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸਵਾਸ ਕਿਰਿਆ ਦੀ ਕਸਰਤ ।
  • ਬਾਹਵਾਂ ਤੇ ਧੜ ਦੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦਾ ਅਭਿਆਸ ਕਰਨਾ ।
  • ਚਾਰਾ ਕੁਤਰਨ ਦੀ ਮਸ਼ੀਨ ਨੂੰ ਹੱਥ ਨਾਲ ਚਲਾ ਕੇ ਚਾਰਾ ਕੁਤਰਨਾ ।
  • ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਨਾਲ ਲਟਕ ਕੇ ਡੰਡ ਕੱਢਣਾ !

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਰੁਪੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦੱਸਦੇ ਹੋਏ ਇਹਨਾਂ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਵੀ ਲਿਖੋ –
(ਉ) ਵਿੰਗੀ ਧੌਣ
(ਅ) ਗੋਡੇ ਭਿੜਨਾ
(ਇ) ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਉ) ਵਿੰਗੀ ਧੌਣ (Sliding Neck-ਕਈ ਵਾਰੀ ਧੌਣ ਦੇ ਇਕ ਪਾਸੇ ਦੀਆਂ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਢਿੱਲੀਆਂ ਹੋ ਕੇ ਲੰਮੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਦੂਸਰੇ ਪਾਸੇ ਮਾਸ-ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਸੁੰਗੜ ਜਾਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਛੋਟੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਧੌਣ ਇਕ ਪਾਸੇ ਝੁਕੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।
ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਪੰਣ ਵਿੰਗੀ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਕਾਰਨ (Causes) -ਧੌਣ ਟੇਢੀ ਹੋਣ ਦੇ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ –

  • ਬਾਲਾਂ ਨੂੰ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਇਕ ਪਾਸੇ ਹੀ ਚੁੱਕਣਾ ਜਾਂ ਇਕ ਪਾਸੇ ਹੀ ਮੋਢੇ ਨਾਲ ਲਗਾਈ ਰੱਖਣਾ ।
  • ਬਾਲ ਨੂੰ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਇਕ ਪਾਸੇ ਦੇ ਭਾਰ ਹੀ ਲਿਟਾਈ ਰੱਖਣਾ ।
  • ਪੜ੍ਹਨ ਦਾ ਗ਼ਲਤ ਢੰਗ
  • ਇਕ ਪਾਸੇ ਧੌਣ ਝੁਕਾ ਕੇ ਵੇਖਣ ਦੀ ਆਦਤ ।
  • ਇਕ ਅੱਖ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਦਾ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਣਾ ।

ਕਰੂਪੀਆਂ ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗ (Methods to rectify Deformities) –

  1. ਸਿੱਧੀ ਧੌਣ ਰੱਖ ਕੇ ਤੁਰਨ ਤੇ ਪੜਣ ਦੀ ਆਦਤ ਪਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
  2. ਹਰ ਰੋਜ਼ ਪੌਣ ਦੀ ਕਸਰਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

(ਅ), ਗੋਡੇ ਭਿੜਨਾ (Knee Locking) -ਛੋਟੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਭੋਜਨ ਵਿਚ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ, ਫਾਸਫੋਰਸ ਅਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ‘ਡੀ’ ਦੀ ਘਾਟ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਹੱਡੀਆਂ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਕੇ ਵਧ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਲੱਤਾਂ ਸਰੀਰ ਦਾ ਭਾਰ ਨਾ ਸਹਾਰ ਸਕਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਗੋਡਿਆਂ ਤੋਂ ਅੰਦਰ ਵੱਲ ਟੇਢੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਗੋਡੇ ਭਿੜਨ ਲੱਗ ਪੈਂਦੇ ਹਨ । ਬੱਚਾ ਸਾਵਧਾਨ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਖੜੋ ਸਕਦਾ । ਅਜਿਹਾ ਬੱਚਾ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨੱਠ-ਭੱਜ ਨਹੀਂ ਸਕਦਾ ।

ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗ (Methods to rectify Deformities)-ਇਸ ਨੁਕਸ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਵਾਉਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ

  • ਬੱਚੇ ਤੋਂ ਸਾਈਕਲ ਚਲਵਾਇਆ ਜਾਵੇ ।
  • ਬੱਚੇ ਤੋਂ ਰੋਜ਼ ਤੈਰਨ ਦੀ ਕਸਰਤ ਕਰਵਾਈ ਜਾਵੇ ।
  • ਬੱਚੇ ਨੂੰ ਲੱਕੜ ਜਾਂ ਸੀਮਿੰਟ ਦੇ ਘੋੜੇ ਤੇ ਰੋਜ਼ ਕੁਝ ਦੇਰ ਬਿਠਾਇਆ ਜਾਵੇ ।

(ੲ) ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ (Flat Chest)- ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ ਵਿਚ ਪਸਲੀਆਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਉਭਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਛਾਤੀ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਫੈਲ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।
ਇਸ ਖ਼ਰਾਬੀ ਨਾਲ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਵਿਚ ਰੁਕਾਵਟ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ।

ਕਾਰਨ (Causes) -ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ ਹੋਣ ਦੇ ਅੱਗੇ ਲਿਖੇ ਕਾਰਨ ਹਨ –

  1. ਭੋਜਨ ਵਿਚ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ, ਫਾਸਫੋਰਸ ਅਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ‘ਡੀ’ ਦੀ ਘਾਟ ।
  2. ਕਸਰਤ ਨਾ ਕਰਨਾ ।
  3. ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੀਆਂ ਗੰਦੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ; ਜਿਵੇਂ, ਜ਼ਿਆਦਾ ਅੱਗੇ ਵੱਲ ਝੁਕ ਕੇ ਬੈਠਣਾ, ਖੜ੍ਹੇ ਹੋਣਾ ਜਾਂ ਤੁਰਨਾ ।
  4. ਖ਼ਤਰਨਾਕ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ।

ਕਰੁਪੀਆਂ ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗ (Methods to rectify Deformities) –
ਜੇਕਰ ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਕਰੜੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ

  • ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸਾਹ ਦੀ ਕਸਰਤ ਦਾ ਅਭਿਆਸ ਕਰਨਾ ।
  • ਡੰਡ ਕੱਢਣਾ ।
  • ਪੱਠੇ ਕੁਤਰਨ ਵਾਲੀ ਮਸ਼ੀਨ ਚਲਾਉਣੀ ।
  • ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਨਾਲ ਲਮਕ ਕੇ ਡੰਡ ਕੱਢਣੇ |
  • ਬਾਹਾਂ ਅਤੇ ਧੜ ਦੀਆਂ ਫੁਟਕਲ ਕਸਰਤਾਂ ਦਾ ਅਭਿਆਸ ਕਰਨਾ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਸਿਹਤਮੰਦ ਆਦਤਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਨੂੰ ਚੰਗਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਚੰਗੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਅਪਣਾਉਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ

  • ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਭੋਜਣ ਵਿਚ ਲੋੜ ਅਨੁਸਾਰ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ, ਫਾਸਫੋਰਸ ਅਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ‘ਡੀ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
  • ਹਫ਼ਤੇ ਵਿਚ ਇਕ ਦੋ ਵਾਰੀ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਨੰਗੇ ਪਿੰਡੇ ਧੁੱਪ ਵਿਚ ਬਿਠਾ ਕੇ ਮਾਲਿਸ਼ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
  • ਪੜ੍ਹਦੇ ਸਮੇਂ ਚੰਗੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਅਤੇ ਚੰਗਾ ਫ਼ਰਨੀਚਰ ਵਰਤਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
  • ਕਦੀ-ਕਦੀ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਟੈਸਟ ਕਰਵਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
  • ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਬੈਠਣ, ਉੱਠਣ, ਖੜ੍ਹੇ ਹੋਣ, ਤੁਰਨ ਅਤੇ ਪੜ੍ਹਣ ਲਈ ਚੰਗੇ ਤਰੀਕੇ ਦੱਸਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ।
  • ਜ਼ਿਆਦਾ ਦੇਰ ਪੈਰਾਂ ਭਾਰ ਖੜ੍ਹਾ ਨਹੀਂ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ |
  • ਹਰ ਰੋਜ਼ ਸਾਹ-ਕਸਰਤਾਂ ਦਾ ਅਭਿਆਸ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
  • ਜੁੱਤੀਆਂ ਅਤੇ ਘੁਟਵੇਂ ਕੱਪੜੇ ਨਹੀਂ ਪਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ |
  • ਹਰ ਰੋਜ਼ ਕਸਰਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।
  • ਬੈਠਣ ਲਈ ਚੰਗੇ ਫ਼ਰਨੀਚਰ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

ਸਰੀਰਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਨਾਲ ਸੁਧਾਰਾਤਮਕ ਉਪਾਅ (Physical Activities for Corrective Measures)
ਪਿੱਛੇ ਵਲ ਕੁੱਬ ਨਾਲ ਜੁੜੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ (Exercises Related to Kyphoses) –
(1) ਪਿੱਠ ਦੇ ਬਲ ਲੇਟ ਜਾਓ, ਗੋਡਿਆਂ ਨੂੰ ਉੱਪਰ ਚੁੱਕੋ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪੈਰ ਦੇ ਤਲਵੇ ਜ਼ਮੀਨ ‘ਤੇ ਲੱਗੇ ਰਹਿਣ ਫੇਰ ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਸਿਰ ਦੇ ਉੱਪਰ ਲੈ ਜਾਓ, ਕੁੱਝ ਸਮਾਂ ਇਸੇ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਰਹੋ ਅਤੇ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਪਹਿਲੀ ਪੁਜ਼ੀਸ਼ਨ ਵਿਚ ਆ ਜਾਓ ।

(2) ਛਾਤੀ ਦੇ ਬਲ ਲੇਟ ਜਾਓ, ਆਪਣੇ ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਕੁਲੇ (Hips) ਉੱਤੇ ਰੱਖੋ । ਇਸ ਦੇ ਮਗਰੋਂ ਸਿਰ ਅਤੇ ਧੜ ਨੂੰ ਜ਼ਮੀਨ ਤੋਂ ਕੁਝ ਇੰਚ ਉੱਤੇ ਚੁੱਕੋ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਬੋਡੀ ਅੰਦਰ ਨੂੰ ਰਹਿਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਕੁਝ ਦੇਰ ਰੁਕਣ ਤੋਂ ਮਗਰੋਂ ਆਪਣੀ ਪਹਿਲੀ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਆ ਜਾਓ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 10 ਵਾਰ ਕਰੋ ।

(3) ਇਕ ਛੜੀ ਲੈ ਕੇ ਆਪਣੇ ਦੋਨੋਂ ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਖੁੱਲ੍ਹਾ ਰੱਖ ਕੇ ਸਿਰ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਲੈ ਜਾ ਕੇ ਬੈਠ ਜਾਓ । ਧੜ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਸਿੱਧਾ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਪਿੱਛੋਂ ਛੜੀ ਨਾਲ ਦੋਨੋਂ ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਸਿਰ ਅਤੇ ਮੋਢੇ ਤੋਂ ਪਿੱਛੇ ਲੈ ਜਾਓ ਅਤੇ ਫਿਰ ਉੱਪਰ ਪਾਸੇ ਵਲ ਲੈ ਜਾਓ । ਇਹ ਕਸਰਤ 10-12 ਵਾਰ ਕਰੋ ।

ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦੇ ਅੱਗੇ ਹੋਣ ਦੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ (Exercises Related to Lordosis) –
(1) ਛਾਤੀ ਦੇ ਬਲ ਲੇਟ ਕੇ ਦੋਨੋਂ ਹੱਥ ਪੇਟ ‘ਤੇ ਰੱਖੋ । ਪੇਟ ਨੂੰ ਹੱਥਾਂ ਨਾਲ ਜ਼ੋਰ ਲਾ ਕੇ ਪਿਛਲੇ ਭਾਗ ਨੂੰ ਉੱਤੇ ਚੁੱਕਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰੋ ।

(2) ਗੋਡਿਆਂ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਮੋੜੋ ਜਿਸ ਨਾਲ ਕੁਝੇ ਪਿੱਛੇ ਮੁੜ ਜਾਣ | ਕਮਰ ਸਿੱਧੀ ਰੱਖੋ ਤਾਂ ਜੋ ਮੋਢੇ ਪੈਰਾਂ ਦੇ ਪਾਸੇ ਰਹਿਣ ।ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਹੇਠਾਂ ਨੂੰ ਜਾਓ ਜਦੋਂ ਤਕ ਪੇਟ ਫ਼ਰਸ਼ ਦੇ ਸਮਾਨਅੰਤਰ ਨਾ ਹੋ ਜਾਏ । ਕੁਝ ਦੇਰ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਰੁਕ ਕੇ ਪਹਿਲੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿਚ ਆ ਜਾਓ ।

(3) ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਲੰਮਾ ਮਟਰਾਇਡ ਲਵੋ, ਪਿਛਲੇ ਪੈਰ ਦਾ ਗੋਡਾ ਜ਼ਮੀਨ ਤੇ ਲਗਾਓ, ਅਗਲਾ ਪੈਰ ਗੋਡੇ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਰਹਿਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਦੋਨੋਂ ਹੱਥ ਅਗਲੇ ਗੋਡੇ ਤੇ ਰੱਖੋ, ਪਿਛਲੀ ਲੱਤ ਕੁਲੇ ਅੱਗੇ ਲੈ ਕੇ ਕੁਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਸਿੱਧਾ ਕਰੋ ।ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਕੁਝ ਦੇਰ ਰੁਕ ਕੇ ਪਹਿਲੀ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਆ ਜਾਓ । ਇਹ ਕਿਰਿਆ ਲੱਤ ਨੂੰ ਬਦਲ ਕੇ ਵੀ ਕਰੋ ।

(4) ਕੁਰਸੀ ‘ਤੇ ਪੈਰ ਚੌੜੇ ਕਰ ਕੇ ਬੈਠ ਜਾਓ ਅਤੇ ਅਗਲੇ ਪਾਸੇ ਝਕੋ ।ਦੋਨੋਂ ਮੋਢੇ ਗੋਡਿਆਂ ਵਿਚ ਲੈ ਜਾਓ । ਹੱਥਾਂ ਨੂੰ ਹੇਠਾਂ ਕੁਰਸੀ ਦੀ ਪਿੱਠ ਤਕ ਲੈ ਜਾਓ, ਕੁਝ ਦੇਰ ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਰੁਕੋ ।

(5) ਫ਼ਰਸ਼ ਉੱਤੇ ਛਾਤੀ ਦੇ ਬਲ ਲੇਟ ਜਾਓ । ਆਪਣੇ ਦੋਵੇਂ ਹੱਥ ਮੋਢਿਆਂ ਦੀ ਚੌੜਾਈ ਅਨੁਸਾਰ ਲੈ ਕੇ ਹਥੇਲੀਆਂ ਨੂੰ ਫ਼ਰਸ਼ ਤੇ ਰੱਖੋ | ਧੜ ਨੂੰ ਫ਼ਰਸ਼ ‘ਤੇ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਉੱਪਰ ਚੁੱਕੋ । ਕੁਝ ਦੇਰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰੁਕੋ ।

(6) ਗੋਡੇ ਖੋਲ ਕੇ ਬੈਠ ਜਾਓ, ਦੋਨੋਂ ਪੈਰ ਮਿਲੇ ਹੋਣ ਅਤੇ ਹੱਥ ਬਰਾਬਰ ਰੱਖੋ । ਇਸ ਪਿੱਛੋਂ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਝੁਕ ਕੇ ਉਂਗਲੀਆਂ ਨਾਲ ਪੈਰਾਂ ਦੇ ਅੰਗੂਠਿਆਂ ਨੂੰ ਫੜੋ । ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਦੇਰ ਰੁਕੋ ।

ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦੇ ਇਕ ਪਾਸੇ ਝੁਕਣ ਦੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ (Exercises Related Sclerosis) –

  • ਛਾਤੀ ਦੇ ਬਲ ਲੇਟ ਕੇ ਸੱਜੇ ਹੱਥ ਨੂੰ ਉੱਪਰ ਚੁੱਕੋ ਅਤੇ ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਨੂੰ ਬਰਾਬਰ ਰੱਖੋ ।ਇਸ ਮਗਰੋਂ ਸੱਜੇ ਹੱਥ ਨੂੰ ਸਿਰ ਦੇ ਉੱਪਰ ਦੀ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਲੈ ਜਾਉ ਅਤੇ ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਨਾਲ ਉਸ ਨੂੰ ਦਬਾਓ ਤੇ ਖੱਬੇ ਕੁਲੇ ਨੂੰ ਥੋੜਾ ਉੱਪਰ ਕਰੋ ।
  • ਪੈਰਾਂ ਵਿਚ ਕੁੱਝ ਇੰਚ ਦੂਰੀ ਰੱਖ ਕੇ ਸਿੱਧੇ ਖੜ੍ਹੇ ਹੋ ਜਾਉ । ਉਸ ਦੇ ਮਗਰੋਂ ਖੱਬੀ ਅੱਡੀ ਨੂੰ ਉੱਪਰ ਚੁੱਕੋ । ਸੱਜੀ ਬਾਂਹ ਨੂੰ ਸਿਰ ਦੇ ਉੱਪਰ ਤੋਂ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਲੈ ਜਾਓ । ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਨਾਲ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਪਸਲੀਆਂ (Ribs) ਨੂੰ ਦਬਾਉ ।
  • ਪੈਰ ਖੋਲ੍ਹ ਕੇ ਸਿੱਧੇ ਖੜ੍ਹੇ ਹੋ ਜਾਉ । ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਦੀਆਂ ਉਂਗਲੀਆਂ ਨੂੰ ਖੱਬੇ ਮੋਢੇ ਤੇ ਰੱਖੋ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਉੱਪਰਲੇ ਭਾਗ ਨੂੰ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਝੁਕਾਓ ਅਤੇ ਰੀੜ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦਾ ਕਰਵ (C) ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਵਿਰੋਧ ਹੋ ਜਾਵੇ । ਇਸ ਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਕੁਝ ਦੇਰ ਲਈ ਦੋਹਰਾਓ।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ

PSEB 7th Class Physical Education Guide ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ Important Questions and Answers

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਚੰਗੇ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਚੇ ਦੇ ਲਾਭ ਹਨ :
(ਉ) ਢਾਂਚਾ ਸੋਹਣਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ।
(ਅ) ਭੱਜਣ, ਨੱਠਣ ਵਿਚ ਚੁਸਤੀ-ਫੁਰਤੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ
(ੲ) ਸਿਹਤ ਚੰਗੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ।
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੇ ਨੁਕਸ :
(ਉ) ਕੁੱਬ ਨਿਕਲਣਾ
(ਅ) ਲੱਕ ਅੱਗੇ ਵਲ ਨਿਕਲਣਾ
(ਈ) ਰੀੜ੍ਹ ਦੀ ਹੱਡੀ ਦਾ ਵਿੰਗਾ ਹੋਣਾ
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਕੁੱਬ ਪੈਣ ਦੇ ਕਾਰਨ :
(ਉ) ਨਜ਼ਰ ਦਾ ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋਣਾ
(ਅ) ਉੱਚਾ ਸੁਣਨਾ
(ਈ) ਘੱਟ ਰੌਸ਼ਨੀ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਝੁਕ ਕੇ ਪੜ੍ਹਨਾ
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਕੁੱਬ ਦੂਰ ਕਰਨ ਦਾ ਢੰਗ :
(ਉ) ਬੈਠਣ, ਤੁਰਨ ਸਮੇਂ ਠੋਡੀ ਥੋੜੀ ਉੱਪਰ ਨੂੰ ਰੱਖਣਾ
(ਅ) ਪਿੱਠ ਦੇ ਹੇਠਾਂ ਤਕੀਆ ਰੱਖ ਕੇ ਲੇਟਣਾ
(ਈ) ਕੰਧ ਨਾਲ ਲਾਈ ਪੌੜੀ ਨਾਲ ਲਟਕਣਾ
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਲੱਕ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਅੱਗੇ ਨਿਕਲ ਜਾਣ ਦਾ ਕਾਰਨ :
(ਉ) ਬੱਚਿਆਂ ਵਿਚ ਪੇਟ ਅੱਗੇ ਨੂੰ ਕੱਢ ਕੇ ਤੁਰਨਾ
(ਅ) ਜ਼ਰੂਰਤ ਤੋਂ ਵੱਧ ਭੋਜਨ ਖਾਣਾ
(ੲ) ਔਰਤ ਦਾ ਵੱਧ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦੇਣਾ
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਲੱਕ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੇ ਢੰਗ :
(ਉ) ਖੜੇ ਹੋ ਕੇ ਧੜ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਲ ਝੁਕਾਉਣਾ
(ਅ) ਪਿੱਠ ਭਾਰ ਲੇਟ ਕੇ ਬੈਠਣਾ ।
(ਇ) ਸਾਵਧਾਨ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਖੜੇ ਹੋ ਕੇ ਘੜੀ-ਮੁੜੀ ਪੈਰਾਂ ਨੂੰ ਛੂਹਣਾ ਸਿ
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਚਪਟੇ ਪੈਰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਦੀਆਂ ਕਸਰਤਾਂ :
(ੳ) ਪੰਜਿਆਂ ਦੇ ਭਾਰ ਚਲਣਾ ਅਤੇ ਭੱਜਣਾ
(ਆ) ਪੰਜਿਆਂ ਦੇ ਭਾਰ ਸਾਈਕਲ ਚਲਾਉਣਾ
(ਈ) ਡੰਡੇਦਾਰ ਪੌੜੀਆਂ ਉੱਪਰ ਚੜ੍ਹਨਾ
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।

ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਦੋਹਾਂ ਲੱਤਾਂ ਤੇ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋਣ ਦਾ ਇਹ ਢਾਂਚਾ ਕਿੰਨੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਅਪਣਾਇਆ ?
ਉੱਤਰ-
ਲੱਖਾਂ ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹੱਡੀਆਂ ਦੇ ਅੱਗੇ-ਪਿੱਛੇ ਜ਼ਰੂਰਤ ਅਨੁਸਾਰ ਕੀ ਲੱਗਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਾਸਪੇਸ਼ੀਆਂ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਜੇ ਮਾਸਪੇਸ਼ੀਆਂ ਵਿਚ ਆਪਸੀ ਤਾਲਮੇਲ ਅਤੇ ਸੰਤੁਲਨ ਠੀਕ ਨਾ ਰਹੇ ਤਾਂ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਰੀਰ ਝੁਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਿੱਧਾ ਸਰੀਰ ਵੇਖਣ ਵਿਚ ਕਿਹੋ ਜਿਹਾ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੁੰਦਰ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਕਿੰਨੀ ਉਮਰ ਤੱਕ ਚੰਗਾ ਜਾਂ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
20 ਸਾਲ ਤੱਕ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਰੀਰ ਨੂੰ ਠੀਕ ਰੱਖਣ ਲਈ ਕੀ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਸਰਤ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕਿਹੋ ਜਿਹੇ ਪੈਰ ਸਰੀਰ ਦੇ ਭਾਰ ਨੂੰ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਹੀਂ ਸਹਾਰ ਸਕਦੇ ?
ਉੱਤਰ-
ਚਪਟੇ ਪੈਰ ।

ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਬਾਰੇ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਦੀ ਕੋਈ ਇਕ ਰਾਇ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਸਰੀਰ ਦਾ ਪਿੰਜਰ ਦੇਖਣ ਵਿਚ ਸੁੰਦਰ, ਸਿੱਧਾ ਤੇ ਸੁਚੱਜਾ ਲੱਗੇ ਅਤੇ ਇਸ ਦਾ ਭਾਰ ਉੱਪਰਲੇ ਅੰਗਾਂ ਤੋਂ ਹੇਠਲੇ ਅੰਗਾਂ ਉੱਪਰ ਠੀਕ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਵੇ ਤਾਂ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਰੀਰਕ ਢਾਂਚਾ ਬਿਲਕੁਲ ਠੀਕ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੀ ਚੰਗੀ ਜਾਂ ਮਾੜੀ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਦੱਸਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 3 ਸਰੀਰਿਕ ਢਾਂਚਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀਆਂ ਕਰੂਪੀਆਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਛਾਤੀ ਦੀਆਂ ਹੱਡੀਆਂ ਵਿਚ ਕਿਹੜੀਆਂ ਕਰੁਪੀਆਂ ਆ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਛਾਤੀ ਦੀਆਂ ਹੱਡੀਆਂ ਵਿਚ ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਰੁਪੀਆਂ ਆ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ –

  1. ਦੱਬੀ ਹੋਈ ਛਾਤੀ |
  2. ਕਬੂਤਰ ਵਰਗੀ ਛਾਤੀ ।
  3. ਚਪਟੀ ਛਾਤੀ ।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैन धर्म के आरंभ के बारे आप क्या जानते हैं ? वर्णन करो। (What do you know about the origin of Jainism ? Explain.)
उत्तर-
जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। इसका साधुओं वाला मार्ग और योग की रीतियों का आरंभ हड़प्पा काल में से ढूँढा जा सकता है। वैदिक साहित्य में जैन आचार्यों का वर्णन मिलता है। इससे पता चलता है कि जैन धर्म उस समय प्रचलित था। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार ऋषभनाथ जो कि उनका पहला तीर्थंकर था वह पहला व्यक्ति था जिससे मनुष्य की सभ्यता का आरंभ हुआ। इस तरह सभ्यता के आरंभ के समय पर ही जैन धर्म मौजूद था।
जैन शब्द संस्कृत के शब्द जिन से निकला है जिससे भाव है विजेता। विजेता से भाव उस व्यक्ति से है जिसने अपनी इंद्रियों और मन को जीत लिया हो। जैन धर्म को आरंभ में निरग्रंथ के नाम से जाना जाता है। निरग्रंथ से भाव था बंधनों से रहित अथवा मुक्त। जैन आचार्यों को तीर्थंकर भी कहा जाता है। तीर्थंकर से भाव है पुल बनाने वाला अथवा संसार के भवसागर से पार करने वाला गुरु। जैन दर्शन को अर्हत दर्शन भी कहा जाता है। अर्हत से भाव है पूजनीय। जैन धर्म को मानने वाले जैनी कहलाते हैं। जैन 24 तीर्थंकरों में विश्वास रखते हैं। इनके नाम ये हैं:—

  1. ऋषभनाथ
  2. अजित
  3. संभव
  4. अभिनंदन
  5. सुमति
  6. पद्मप्रभु
  7. सुपार्श्व
  8. चंद्रप्रभु
  9. पुष्पदंत
  10. शीतल
  11. श्रेयांसम
  12. वासुपूज्य
  13. विमल
  14. अनंत
  15. धर्म
  16. शाँति
  17. कुंथ
  18. अरह
  19. मल्लि
  20. मुनिसुव्रत
  21. नामि
  22. नेमि
  23. पार्श्वनाथ
  24. महावीर

जैनी ऋषभनाथ को जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार उनका जन्म अयोध्या में हुआ। उन्होंने कई वर्षों तक राज्य किया। बाद में उन्होंने अपना राज्य अपने पुत्र भरत को सौंप दिया और स्वयं संसार त्याग कर तपस्या में लग गये। अंत में उनको ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने इस ज्ञान के बारे लोगों को उपदेश दिया। इस तरह वह पहले तीर्थंकर कहलाये। ऋषभनाथ के बाद होने वाले 21 तीर्थंकरों को ऐतिहासिक बताना संभव नहीं है, परंतु जैनियों की पवित्र अनुश्रुतियों में इनका वर्णन आता है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ और 24वें तीर्थंकर महावीर ऐतिहासिक व्यक्ति थे। स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले बनारस के राजा अश्वसेन के घर हुआ था। उनकी माता जी का नाम वामादेवी था। उनका बचपन बहुत ही ऐश-ओ-आराम में बीता। 30 वर्षों की आयु में पार्श्वनाथ ने अपने सारे सुखों का त्याग कर दिया और सच्चे ज्ञान की खोज में निकल गये। उनको 83 दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के बाकी 70 वर्ष अपने उपदेशों का प्रचार करने में व्यतीत किये। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊंट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया। पार्श्वनाथ की शिक्षा को चार्तुयाम अथवा चार प्रण कहते हैं। यह चार प्रण ये हैं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)।

स्वामी महावीर ने इन चार असूलों में एक और असूल जोड़ा जिसको ब्रह्मचर्य कहा जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि स्वामी महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं बल्कि सुधारक थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 2.
(क) जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर हुए हैं ?
(ख) भगवान् महावीर के जीवन पर प्रकाश डालें।
[(a) Give the total number of Tirthankaras in Jainism.
(b) Throw light on the life of Lord Mahavira.]
अथवा
महावीर की माता का क्या नाम था ? भगवान् महावीर के जन्म से पहले उनकी माता को कितने स्वप्न आए थे? भगवान महावीर के जीवन पर एक नोट लिखें।
(Give the name of Mahavir as mother. How many dreams Lord Mehavira’s mother had before giving birth to Mahavira ? Write a note on the life of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म में कितने तीर्थंकर हुए हैं ? 24वें तीर्थंकर के जीवन पर नोट लिखें।
(Give the number of Tirthankaras in Jainism. Write a note on the life of 24th Tirthankara.)
अथवा
भगवान् महावीर जैन धर्म के कौन से तीर्थंकर थे ? उनके जीवन के संबंध में जानकारी दें।
(What was Lord Mahavira’s number among Jain Tirthankaras ? Write about Mahavira’s life.)
उत्तर-
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। 24वें तीर्थंकर स्वामी महावीर के जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ 1
LORD MAHAVIRA

1. महावीर का जन्म और बचपन (Birth and Childhood of Mahavira)- महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली (बिहार) के नज़दीक कुंडग्राम में हुआ। कुछ इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 540 ई० पू० बताते हैं। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर जी के पिता जी का नाम सिद्धार्थ था और वह एक क्षत्रिय कबीले जनत्रिका के मुखिया थे। महावीर जी की माता जी का नाम तृषला था। वह लिच्छवी वंश के शासक चेटक की बहन थी। भगवान् महावीर के जन्म से पूर्व उसे 14 स्वप्न आए थे। महावीर को शिक्षा देने के लिए विशेष प्रबंध किये गये थे। महावीर जी का बचपन से ही सांसारिक वस्तुओं से कोई लगाव नहीं था। वह अपने ही विचारों में डूबे रहते थे।

2. विवाह (Marriage)—सांसारिक कार्यों की ओर महावीर जी का ध्यान लगाने के लिए उनके पिता जी ने महावीर का विवाह एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से कर दिया। विवाह के समय महावीर जी की आयु कितनी थी इसके बारे हमें कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। कुछ समय पश्चात् महावीर जी के घर एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका नाम प्रियादर्शना रखा गया।

3. महान् त्याग और ज्ञान प्राप्ति (Renunciation and Enlightenment)-गृहस्थी जीवन भी महावीर जी की धार्मिक रुचियों की राह में किसी तरह की अड़चन (रुकावट) न बन सका। अपने माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद महावीर अपने बड़े भाई नंदीवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग्न कर जंगलों में ज्ञान की खोज के लिए चले गये। उस समय महावीर जी की आयु 30 वर्ष थी। उन्होंने 12 वर्षों तक बड़ा कठोर तप किया। अंततः उनको ऋजुपालिका नदी के नज़दीक जरिमबिक गाँव में कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च सत्य) प्राप्त हुआ। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वर्धमान जिन (इंद्रियों पर जीत प्राप्त करने वाला) और महावीर (महान् विजयी) कहलाये। ज्ञान प्राप्ति के समय महावीर जी की आयु 42 वर्ष थी।

4. धर्म प्रचार (Preachings)-ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जी ने लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूंर करने के लिए और उनको सच्चा मार्ग बताने के लिए अपने उपदेशों का प्रचार किया। उनके उपदेशों से बहुत सारे लोग प्रभावित हुए और वे महावीर जी के अनुयायी बन गये। महावीर जी के प्रसिद्ध प्रचार केंद्र राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथिला, विदेह और अंग थे। जैन परंपराओं के अनुसार मगध के शासक बिंबिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु ने जैन मत को स्वीकार कर लिया।

5. निर्वाण (Nirvana)—स्वामी महावीर ने लगभग 30 वर्षों तक अपना प्रचार किया। 72 वर्ष की आयु में पावा (पटना) में 527 ई० पू० में उन्होंने निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त किया। उस समय महावीर जी के 14,000 अनुयायी थे।

प्रश्न 3.
जैन धर्म के आरंभ तथा विकास के बारे में प्रकाश डालें। (Discuss the origin and development of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में से एक है। इसका साधुओं वाला मार्ग और योग की रीतियों का आरंभ हड़प्पा काल में से ढूँढा जा सकता है। वैदिक साहित्य में जैन आचार्यों का वर्णन मिलता है। इससे पता चलता है कि जैन धर्म उस समय प्रचलित था। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार ऋषभनाथ जो कि उनका पहला तीर्थंकर था वह पहला व्यक्ति था जिससे मनुष्य की सभ्यता का आरंभ हुआ। इस तरह सभ्यता के आरंभ के समय पर ही जैन धर्म मौजूद था।
जैन शब्द संस्कृत के शब्द जिन से निकला है जिससे भाव है विजेता। विजेता से भाव उस व्यक्ति से है जिसने अपनी इंद्रियों और मन को जीत लिया हो। जैन धर्म को आरंभ में निरग्रंथ के नाम से जाना जाता है। निरग्रंथ से भाव था बंधनों से रहित अथवा मुक्त। जैन आचार्यों को तीर्थंकर भी कहा जाता है। तीर्थंकर से भाव है पुल बनाने वाला अथवा संसार के भवसागर से पार करने वाला गुरु। जैन दर्शन को अर्हत दर्शन भी कहा जाता है। अर्हत से भाव है पूजनीय। जैन धर्म को मानने वाले जैनी कहलाते हैं। जैन 24 तीर्थंकरों में विश्वास रखते हैं। इनके नाम ये हैं:—

  1. ऋषभनाथ
  2. अजित
  3. संभव
  4. अभिनंदन
  5. सुमति
  6. पद्मप्रभु
  7. सुपार्श्व
  8. चंद्रप्रभु
  9. पुष्पदंत
  10. शीतल
  11. श्रेयांसम
  12. वासुपूज्य
  13. विमल
  14. अनंत
  15. धर्म
  16. शाँति
  17. कुंथ
  18. अरह
  19. मल्लि
  20. मुनिसुव्रत
  21. नामि
  22. नेमि
  23. पार्श्वनाथ
  24. महावीर

जैनी ऋषभनाथ को जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं। जैन अनुश्रुतियों के अनुसार उनका जन्म अयोध्या में हुआ। उन्होंने कई वर्षों तक राज्य किया। बाद में उन्होंने अपना राज्य अपने पुत्र भरत को सौंप दिया और स्वयं संसार त्याग कर तपस्या में लग गये। अंत में उनको ज्ञान प्राप्त हुआ। उन्होंने इस ज्ञान के बारे लोगों को उपदेश दिया। इस तरह वह पहले तीर्थंकर कहलाये। ऋषभनाथ के बाद होने वाले 21 तीर्थंकरों को ऐतिहासिक बताना संभव नहीं है, परंतु जैनियों की पवित्र अनुश्रुतियों में इनका वर्णन आता है। जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ और 24वें तीर्थंकर महावीर ऐतिहासिक व्यक्ति थे। स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले बनारस के राजा अश्वसेन के घर हुआ था। उनकी माता जी का नाम वामादेवी था। उनका बचपन बहुत ही ऐश-ओ-आराम में बीता। 30 वर्षों की आयु में पार्श्वनाथ ने अपने सारे सुखों का त्याग कर दिया और सच्चे ज्ञान की खोज में निकल गये। उनको 83 दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के बाकी 70 वर्ष अपने उपदेशों का प्रचार करने में व्यतीत किये। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊंट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया। पार्श्वनाथ की शिक्षा को चार्तुयाम अथवा चार प्रण कहते हैं। यह चार प्रण ये हैं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)।

स्वामी महावीर ने इन चार असूलों में एक और असूल जोड़ा जिसको ब्रह्मचर्य कहा जाता है। इससे यह सिद्ध होता है कि स्वामी महावीर जैन धर्म के संस्थापक नहीं बल्कि सुधारक थे।

1. महावीर का जन्म और बचपन (Birth and Childhood of Mahavira)- महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली (बिहार) के नज़दीक कुंडग्राम में हुआ। कुछ इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 540 ई० पू० बताते हैं। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर जी के पिता जी का नाम सिद्धार्थ था और वह एक क्षत्रिय कबीले जनत्रिका के मुखिया थे। महावीर जी की माता जी का नाम तृषला था। वह लिच्छवी वंश के शासक चेटक की बहन थी। भगवान् महावीर के जन्म से पूर्व उसे 14 स्वप्न आए थे। महावीर को शिक्षा देने के लिए विशेष प्रबंध किये गये थे। महावीर जी का बचपन से ही सांसारिक वस्तुओं से कोई लगाव नहीं था। वह अपने ही विचारों में डूबे रहते थे।

2. विवाह (Marriage)—सांसारिक कार्यों की ओर महावीर जी का ध्यान लगाने के लिए उनके पिता जी ने महावीर का विवाह एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से कर दिया। विवाह के समय महावीर जी की आयु कितनी थी इसके बारे हमें कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। कुछ समय पश्चात् महावीर जी के घर एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका नाम प्रियादर्शना रखा गया।

3. महान् त्याग और ज्ञान प्राप्ति (Renunciation and Enlightenment)-गृहस्थी जीवन भी महावीर जी की धार्मिक रुचियों की राह में किसी तरह की अड़चन (रुकावट) न बन सका। अपने माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद महावीर अपने बड़े भाई नंदीवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग्न कर जंगलों में ज्ञान की खोज के लिए चले गये। उस समय महावीर जी की आयु 30 वर्ष थी। उन्होंने 12 वर्षों तक बड़ा कठोर तप किया। अंततः उनको ऋजुपालिका नदी के नज़दीक जरिमबिक गाँव में कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च सत्य) प्राप्त हुआ। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वर्धमान जिन (इंद्रियों पर जीत प्राप्त करने वाला) और महावीर (महान् विजयी) कहलाये। ज्ञान प्राप्ति के समय महावीर जी की आयु 42 वर्ष थी।

4. धर्म प्रचार (Preachings)-ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जी ने लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूंर करने के लिए और उनको सच्चा मार्ग बताने के लिए अपने उपदेशों का प्रचार किया। उनके उपदेशों से बहुत सारे लोग प्रभावित हुए और वे महावीर जी के अनुयायी बन गये। महावीर जी के प्रसिद्ध प्रचार केंद्र राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथिला, विदेह और अंग थे। जैन परंपराओं के अनुसार मगध के शासक बिंबिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु ने जैन मत को स्वीकार कर लिया।

5. निर्वाण (Nirvana)—स्वामी महावीर ने लगभग 30 वर्षों तक अपना प्रचार किया। 72 वर्ष की आयु में पावा (पटना) में 527 ई० पू० में उन्होंने निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त किया। उस समय महावीर जी के 14,000 अनुयायी थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 4.
जैन धर्म की बुनियाद नैतिक शिक्षाएँ हैं चर्चा करो।
(“Ethical teachings are the foundation of Jainism.” Discuss.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं के विषय में जानकारी दीजिए। (Describe the Ethical teachings of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की बुनियादी शिक्षाओं के विषय में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण जानकारी दीजिए।
(Describe in brief but meaningful the basic teachings of Jainism.)
अथवा
“नैतिक मूल्य जैन धर्म का आधार हैं।” प्रकाश डालिए।
(“Moral values are the basis of Jainism.” Elucidate.)
अथवा
जैन सदाचार पर एक विस्तृत नोट लिखो।
(Write a detailed note on Jain Ethics. )
अथवा
जैन धर्म के सदाचारक गुणों संबंधी जानकारी दो। (Discuss the Ethical values of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं की चर्चा करो।
(Discuss the main teachings of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं संबंधी जानकारी दो। (Give information about moral teachings of Jainism.)
अथवा
भगवान् महावीर की नैतिक शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the Ethical teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म की शिक्षाओं के बारे में बताएँ।
(Write the teachings of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक कीमतों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the Ethical values of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं के बारे में चर्चा कीजिए। (Discuss about the Ethical teachings of Jainism.)
अथवा
भगवान् महावीर की मूल शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the basic teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म की मुख्य सदाचारक कीमतें कौन-सी हैं ? प्रकाश डालें। (What were the main Ethical values of Jainism ? Elucidate.)
अथवा
जैन धर्म की सदाचारक शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the Ethical teachings of Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म की अथवा महावीर जी की मुख्य नैतिक शिक्षाओं ने भारतीय संस्कृति को एक ऐसी देन दी जिस पर हमें आज भी गर्व है। जैन धर्म ने लोगों को त्रि-रत्न, अहिंसा, शुद्ध आचरण और आपसी भाइचारे का पाठ पढ़ाया। इसने समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। इसका यज्ञों, बलियों, वेदों और संस्कृत भाषा की पवित्रता में कोई विश्वास नहीं था। इसने मनुष्य को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। निस्संदेह जैन धर्म की नैतिक शिक्षाओं ने भारतीय समाज को एक नई दिशा देने का एक महान् कार्य किया।—

1. त्रि-रत्न (Tri-Ratna)-जैन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करना है। इसको प्राप्त करने के लिए जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए त्रि-रत्नों पर चलना अति ज़रूरी है। ये तीन रत्न हैं-सच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार। पहले रत्न के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 24 तीर्थंकरों, नौ सच्चाइयों और जैन शास्त्रों में अटल विश्वास होना चाहिए। दूसरे रत्नानुसार जैनियों को सच्चा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यह तीर्थंकरों के उपदेशों के गहरे अध्ययन से प्राप्त होता है। इस ज्ञान के दो रूप बताये गये हैं जिनको प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। आत्मा द्वारा प्राप्त ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं और वह ज्ञान जो इंद्रियों के द्वारा प्राप्त होता है उसको परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। ज्ञान की पाँच किस्में हैं, जिनके नाम इस तरह हैं-मति ज्ञान, श्रुति ज्ञान, अवधि ज्ञान, मनपर्याय ज्ञान और केवल्य ज्ञान। तीसरे रत्नानुसार प्रत्येक व्यक्ति को सच्चे आचार के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सच्चा आचार वह है जिसकी शिक्षा जैन धर्म देता है। ये तीनों रत्न साथ-साथ चलते हैं। इनमें से किसी एक की अनुपस्थिति मनुष्य को उसकी मंजिल तक नहीं पहुँचा सकती। उदाहरण के तौर पर जैसे एक दीये को प्रकाश देने के लिए उसमें तेल, बाती और आग का होना ज़रूरी है। यदि इसमें से एक भी वस्तु की कमी हो तो वह प्रकाश नहीं दे सकता।

2. अहिंसा (Ahimsa)-जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत जोर दिया गया है। अहिंसा की महत्ता बताते हुए आचारांग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना-अपना जीवन प्यारा है, सब ही सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सारे ही जीने की इच्छा रखते हैं।” इसीलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है। हिंसा दो तरह की होती है-मन से हिंसा और कर्म से हिंसा। कर्म अथवा अमल में आने वाली हिंसा से पहले मन भाव विचारों में हिंसा आती है। गुस्सा, अहंकार, लालच और धोखा मन की हिंसा है। इसलिए हिंसा से बचने के लिए मन के विचारों को शुद्ध करना अति ज़रूरी है। जैन धर्म के अनुसार मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं, पत्थरों और वृक्षों आदि में भी आत्मा निवास करती है। इसलिए हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी कारण जैनी लोग नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और अंधेरा हो जाने के बाद कुछ नहीं खाते ताकि किसी जीव की हत्या न हो जाये। बी० एन० लूनीया के अनुसार,
“अहिंसा जैन धर्म की आधारशिला है।”1

3. नौ सच्चाइयाँ (Nine Truths)-जैन दर्शन नौ सच्चाइयों की शिक्षा देता है। ये सच्चाइयाँ हैं(1) जीव-जैन दर्शन में आत्मा को जीव कहा गया है। यह चेतन सुरूप है। यह शरीर के कर्मों के अच्छे-बुरे फल भुगतता है और आवागमन के चक्र में पड़ता है। (2) अजीव-यह जंतु पदार्थ है। यह निर्जीव है और इनमें समझ नहीं होती। इनकी दो श्रेणियाँ हैं रूपी और अरूपी। (3) पुण्य-यह अच्छे कर्मों का नतीजा है। इसके नौ साधन हैं। (4) पाप-यह जीव के बंधन का मुख्य कारण है। इसके परिणामस्वरूप घोर सज़ायें मिलती हैं। (5) अशर्व-यह वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार आत्मा अपने अंदर कर्मों को संचित करती रहती है। कर्म 8 किस्मों के होते हैं। (6) संवर-कर्म को आत्मा की ओर आने की क्रिया को रोकने को संवर कहते हैं। कर्म को रोकने की 57 विधियाँ हैं। (7) बंध-इससे भाव बंधन है। यह जीव (आत्मा) का पुदगल (परमाणु) से मेल है। बंध के लिए पाँच कारण जिम्मेवार हैं। (8) निर्जर-इस से भाव है दूर भगाना। यह कर्मों को नष्ट करने और जला देने का कार्य करता है। (9) मोक्ष-इसमें जीव कर्मों के जंजाल से मुक्त हो जाता है। यह पूर्ण शाँति की अवस्था है जिसमें हर तरह के दुःखों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है।

4. कर्म सिद्धांत (Karma Theory)-जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस सिद्धांत के अनुसार, “जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसे बीजोगे वैसा काटोगे, यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा, किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकारा नहीं मिलेगा।” जैसे ही हमारे मन में कोई अच्छा या बुरा विचार आता है वह तुरंत जीव (आत्मा) से उसी तरह जुड़ जाता है, जैसे तेल लगे हुए शरीर में धूलि कण चिपक जाते हैं। ये कर्म आठ प्रकार के हैं-(1) ज्ञानवर्णीय कर्म-यह आत्मा के ज्ञान को रोकते हैं। (2) दर्शनवर्णीय कर्म-यह आत्मा की इच्छा शक्ति को रोकते हैं। (3) वैदनीय कर्म-ये सुख-दुःख उत्पन्न करने वाले कर्म हैं। (4) मोहनीय कर्म-ये आत्मा को मोह माया में फंसाने वाले कर्म हैं। (5) आयु कर्मये कर्म मनुष्य की आय को निर्धारित करते हैं। (6) नाम कर्म-ये कर्म मनुष्य की आय को निर्धारित करते हैं। (7) गोत्र कर्म-ये व्यक्ति के गोत्र और समाज में उसके ऊँचे या नीचे स्थान को निर्धारित करते हैं। (8) अंतरीय कर्म-ये अच्छे कर्म को रोकने वाले कर्म हैं।
कर्मों के कारण मनुष्य आवागमन के चक्रों में फंसा रहता है। कर्मों का नाश करके ही मनुष्य इससे छुटकारा प्राप्त कर सकता है।

5. अनेकांतवाद (The Doctrine of Manyness)-अनेकांतवाद जैन दर्शन का एक अनोखा दार्शनिक सिद्धांत है। अनेकांत शब्द किसी भी पदार्थ के अनेक धर्मों या गुणों का संकेत करता है। इसका भाव यह है कि जिस वस्तु का ज्ञान हमें जिस रूप में होता है, उसी वस्तु का ज्ञान किसी अन्य व्यक्ति को किसी और रूप में हो सकता है। उदाहरणतया जैसे एक बच्चे को उसकी माँ पुत्र समझती है, बहन भाई समझती है, दादी पोता समझती है, नानी दोहता समझती है और बच्चे उसको अपना मित्र समझते हैं। कहने से.भाव यह है कि हर पदार्थ अनेकांत या अनेक गुणों वाला है। इसी कारण हर पदार्थ के बारे में हमारा ज्ञान आंशिक होता है। इसको स्यादवाद कहा जाता है। यह अनेकांतवाद का दूसरा रूप है।

6. पाँच अणुव्रत अथवा महाव्रत (Five Annuvartas or Mahavartas)-जैन धर्म के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन में पाँच अणुव्रतों अथवा महाव्रतों की पालना करनी चाहिए। इनके अनुसार (i) मनुष्य को सदा अहिंसा की नीति पर चलना चाहिए। (ii) उसको हमेशा सत्य बोलना चाहिए। (iii) उसको कोई भी ऐसी वस्तु अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो उसको दान में प्राप्त न हुई हो। (iv) उसको अपने पास धन नहीं रखना चाहिए। (v) उसको ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
इनमें से पहले चार सिद्धांतों का प्रचलन पार्श्वनाथ ने किया जबकि पाँचवां सिद्धांत महावीर जी ने शामिल किया। डॉक्टर के० सी० सौगानी के अनुसार,
“इन पाँच अणुव्रतों का पालन व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति लाने में सहायक है।’2

7. शुद्ध आचरण (Good Character) स्वामी महावीर ने शुद्ध आचरण को विशेष महत्त्व दिया। उन्होंने कहा कि हमें चोरी, झूठ, चुगली, लालच आदि बुराइयों से दूर रहना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। मनुष्य को पापी से नहीं, बल्कि पाप से नफरत करनी चाहिए।

8. चौबीस तीर्थंकरों की पूजा (Worship of Twenty Four Tirthankaras) जैन धर्म को मानने वाले अपने 24 तीर्थंकरों को देवते मान कर उनकी पूजा करते हैं। उनका विश्वास है कि तीर्थंकरों में पक्का विश्वास रखने से मनुष्य को निर्वाण की प्राप्ति होती है।

9. समानता में विश्वास (Belief in Equality)-जैन धर्म समानता के सिद्धांत में विश्वास रखता है। इसके अनुसार सारे मनुष्य बराबर हैं। इसलिए मनुष्यों को अमीर-गरीब, ऊँच-नीच आदि का भेदभाव नहीं करना चाहिए।

10. यज्ञों, बलियों आदि में अविश्वास (Disbelief in Yajnas and Sacrifices etc.)—जैन धर्म यज्ञों, बलियों और अन्य झूठे रीति-रिवाजों को एक अन्य ढोंग मात्र ही बताता है। उनके अनुसार कोई भी मनुष्य धर्म के बाह्य दिखावे से निर्वाण प्राप्त नहीं कर सकता। इसलिए जैन धर्म के लोगों को इन अंध-विश्वासों से दूर रहने को कहा।

11. वेदों और संस्कृत भाषा में अविश्वास (Disbelief in Vedas and Sanskrit Language)-स्वामी महावीर जी हिंदुओं के पवित्र ग्रंथ-वेदों में कोई विश्वास नहीं रखते थे। उनका कहना था कि वेदों की रचना ईश्वरीय ज्ञान से नहीं हुई। इसलिए वेदों के मंत्रों को पढ़ना बिल्कुल व्यर्थ है। वह संस्कृत भाषा की पवित्रता में भी विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने सारी भाषाओं को पवित्र माना। उन्होंने अपने उपदेशों का प्रचार उस समय में प्रचलित अर्धमगधी भाषा में किया।

12. ईश्वर में अविश्वास (Disbelief in God)-जैन धर्म ईश्वर की उपस्थिति में विश्वास नहीं रखता है। इसके अनुसार ईश्वर संसार की रचना, इसकी पालना और समाप्ति करने वाला नहीं है। निर्वाण प्राप्त करने के लिए ईश्वर की कोई जरूरत नहीं है। मनुष्य की आत्मा ही उसकी महान् शक्ति है। मनुष्य सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करके निर्वाण की प्राप्ति कर सकता है।

13. निर्वाण (Nirvana) ‘महावीर जी के अनुसार मनुष्य के जीवन का मुख्य उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है। जैनमत में निर्वाण से भाव आवागमन के चक्र से मुक्ति प्राप्त करना है। निर्वाण प्राप्ति के बाद मनुष्य का इस संसार में जन्म-मरण का चक्र समाप्त हो जाता है और उसको स्थाई शाँति मिलती है।

1. “Ahimsa is the sheet anchor of Jainism.” B.N. Luniya, Life and Culture in Ancient India (Agra : 1982) p. 162.
2. “The observance of these five vows is capable of bringing about individual as well as social progress.” Dr. K.C. Sogani, Jainism (Patiala : 1986) p. 65.

प्रश्न 5.
भगवान् महावीर का जीवन तथा प्रसिद्ध शिक्षाएँ बताएँ।
(Describe the life and important teachings of Bhagwan Mahavira.)
उत्तर-
जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। 24वें तीर्थंकर स्वामी महावीर के जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. महावीर का जन्म और बचपन (Birth and Childhood of Mahavira)- महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली (बिहार) के नज़दीक कुंडग्राम में हुआ। कुछ इतिहासकार उनकी जन्म तिथि 540 ई० पू० बताते हैं। महावीर के बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर जी के पिता जी का नाम सिद्धार्थ था और वह एक क्षत्रिय कबीले जनत्रिका के मुखिया थे। महावीर जी की माता जी का नाम तृषला था। वह लिच्छवी वंश के शासक चेटक की बहन थी। भगवान् महावीर के जन्म से पूर्व उसे 14 स्वप्न आए थे। महावीर को शिक्षा देने के लिए विशेष प्रबंध किये गये थे। महावीर जी का बचपन से ही सांसारिक वस्तुओं से कोई लगाव नहीं था। वह अपने ही विचारों में डूबे रहते थे।

2. विवाह (Marriage)—सांसारिक कार्यों की ओर महावीर जी का ध्यान लगाने के लिए उनके पिता जी ने महावीर का विवाह एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से कर दिया। विवाह के समय महावीर जी की आयु कितनी थी इसके बारे हमें कोई निश्चित जानकारी प्राप्त नहीं है। कुछ समय पश्चात् महावीर जी के घर एक पुत्री ने जन्म लिया। उसका नाम प्रियादर्शना रखा गया।

3. महान् त्याग और ज्ञान प्राप्ति (Renunciation and Enlightenment)-गृहस्थी जीवन भी महावीर जी की धार्मिक रुचियों की राह में किसी तरह की अड़चन (रुकावट) न बन सका। अपने माता-पिता की मृत्यु हो जाने के बाद महावीर अपने बड़े भाई नंदीवर्मन से आज्ञा लेकर गृह त्याग्न कर जंगलों में ज्ञान की खोज के लिए चले गये। उस समय महावीर जी की आयु 30 वर्ष थी। उन्होंने 12 वर्षों तक बड़ा कठोर तप किया। अंततः उनको ऋजुपालिका नदी के नज़दीक जरिमबिक गाँव में कैवल्य ज्ञान (सर्वोच्च सत्य) प्राप्त हुआ। इस ज्ञान की प्राप्ति के बाद वर्धमान जिन (इंद्रियों पर जीत प्राप्त करने वाला) और महावीर (महान् विजयी) कहलाये। ज्ञान प्राप्ति के समय महावीर जी की आयु 42 वर्ष थी।

4. धर्म प्रचार (Preachings)-ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर जी ने लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूंर करने के लिए और उनको सच्चा मार्ग बताने के लिए अपने उपदेशों का प्रचार किया। उनके उपदेशों से बहुत सारे लोग प्रभावित हुए और वे महावीर जी के अनुयायी बन गये। महावीर जी के प्रसिद्ध प्रचार केंद्र राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथिला, विदेह और अंग थे। जैन परंपराओं के अनुसार मगध के शासक बिंबिसार और उसके पुत्र अजातशत्रु ने जैन मत को स्वीकार कर लिया।

5. निर्वाण (Nirvana)—स्वामी महावीर ने लगभग 30 वर्षों तक अपना प्रचार किया। 72 वर्ष की आयु में पावा (पटना) में 527 ई० पू० में उन्होंने निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त किया। उस समय महावीर जी के 14,000 अनुयायी थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 6.
जैन धर्म में त्रि-रत्न से क्या अभिप्राय है ? चर्चा करें।
(What is meant by three Jewels in Jainism ? Discuss.)
अथवा
‘त्रि-रत्न’ की व्याख्या करो और बताओ कि यह किस धर्म से संबंधित है ? (Explain Tri-Ratna and tell to which religion, do they belong.)
अथवा
जैन मत के तीन हीरों की व्याख्या करें।
(Explain the three Jewels of Jainism.).
अथवा
जैन धर्म के त्रि-रत्नों के बारे में चर्चा करो।
(Discuss the Tri-Ratnas of Jainism.)
उत्तर-
जैन दर्शन के सिद्धांतों से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पहले जीव (आत्मा) शुद्ध रूप में होता है। बाद में यह कार्मिक पदार्थों के कारण दूषित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप व्यक्ति को घोर दुःखों का सामना करना पड़ता है। यदि कार्मिक पदार्थों का नाश कर दिया जाये तो व्यक्ति इस भवसागर से पार उतर सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है। जैन दर्शन मोक्ष प्राप्ति को मनुष्य के जीवन का सबसे ऊँचा उद्देश्य मानता है। कोई भी व्यक्ति बिना किसी जाति, लिंग, धर्म, वर्ग या आयु पर इस मार्ग पर चल सकता है। इस मार्ग पर चलने के लिए जैन धर्म में त्रि-रत्न निर्धारित किये गये हैं। ये त्रि-रत्न हैं-(1) सच्चा विश्वास (2) सच्चा ज्ञान (3) सच्चा आचार। ये त्रि-रत्न मोक्ष प्राप्ति के तीन भिन्न-भिन्न मार्ग नहीं हैं, बल्कि एक मार्ग के तीन साथ-साथ चलने वाले रास्ते हैं। यदि इनमें से एक की भी कमी हो तो व्यक्ति अपने उद्देश्य की प्राप्ति नहीं कर सकता। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति ने अपने मकान की छत पर जाना हो तो उसको सीढ़ी लगानी पड़ेगी और यदि इस सीढ़ी के सिरे पर लगे दो और बीच में लगे डंडों में से एक चीज़ की भी कमी हो तो व्यक्ति किसी भी स्थिति में ऊपर नहीं पहुँच सकता। त्रि-रत्नों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित है—

1. सच्चा विश्वास (Right Belief)-जैन दर्शन के त्रि-रत्नों में सच्चा विश्वास नामक रत्न को पहला अथवा प्रमुख स्थान दिया गया है। क्योंकि यदि व्यक्ति में सच्चा विश्वास न हो तो वह सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार कभी प्राप्त नहीं कर सकता। सच्चा विश्वास से भाव यह है कि जो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहता है, उसे 24 जैन तीर्थंकरों, नौ महान् सच्चाइयों और जैन शास्त्रों में पक्की श्रद्धा होनी चाहिए। जैन शास्त्रों के अनुसार सच्चा विश्वास तभी पूरा हो सकता है यदि संबंधित व्यक्ति 8 अंगों को धारण करे। ये 8 अंग हैं—

  • जैन धर्म के सिद्धांतों के बारे कोई शंका नहीं होनी चाहिए।
  • सांसारिक वस्तुओं से कोई प्यार नहीं होना चाहिए।
  • शरीर में चाहे अनगिनत बुराइयाँ हैं, परंतु इसके प्रति कोई तिरस्कार की भावना नहीं होनी चाहिए।
  • गलत मार्ग की ओर कोई झुकाव नहीं होना चाहिए।
  • पवित्र व्यक्तियों की प्रशंसा की जानी चाहिए, परंतु दूसरे व्यक्तियों की निंदा नहीं की जानी चाहिए।
  • जो व्यक्ति धर्म की राह से भटक गये हों उनको ठीक मार्ग दर्शाना चाहिए।
  • धार्मिक व्यक्तियों का पूरा आदर किया जाना चाहिए।
  • जैन सिद्धांतों के प्रचार के लिए पूरे यत्न करने चाहिए।

सच्चा विश्वास किसी भी व्यक्ति द्वारा तब ही प्राप्त किया जा सकता है यदि वह तीन प्रकार के अंध-विश्वासों और आठ प्रकार के घमंडों से दूर रहे। तीन तरह के अंध-विश्वास ये हैं—

  • पहाड़ पर चढ़कर, नदी में नहाकर या आग पर चल कर अपने आप को पवित्र समझना।
  • झूठे देवी-देवताओं में विश्वास करना।
  • झूठे तपस्वियों का सत्कार करना।

आठ प्रकार के घमंड ये हैं—

  • ज्ञान का घमंड
  • पूजा का घमंड
  • परिवार का घमंड
  • जाति का घमंड
  • शक्ति का घमंड
  • दौलत का घमंड
  • तप का घमंड
  • सुंदर शरीर का घमंड।

सच्चा विश्वास हमारे लिए समृद्धि तथा मोक्ष का आधार तैयार करता है।

2. सच्चा ज्ञान (Right Knowledge)-सच्चा विश्वास ही सच्चे ज्ञान की आधारशिला है। इस कारण सच्चा विश्वास और सच्चे ज्ञान के मध्य गहरा संबंध है। सच्चा ज्ञान वह है जो जैन शास्त्रों में दिया गया है। जो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करना चाहता है उसके लिए सच्चे ज्ञान को प्राप्त करना अति ज़रूरी है। यह ज्ञान बाहर से नहीं आता बल्कि जीव पर पड़े कर्म पदार्थों के पर्दे को दूर हटाने से उत्पन्न हो जाता है। इस ज्ञान के दो रूप बताये गये हैं जिनको प्रत्यक्ष ज्ञान और परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। वह ज्ञान जो आत्मा द्वारा सीधा प्राप्त किया जाता है प्रत्यक्ष ज्ञान कहलाता है और वह ज्ञान जो इंद्रियों के रास्ते से प्राप्त होता है परोक्ष ज्ञान कहलाता है।
जैनी ज्ञान को पाँच तरह का बताते हैं—

  • मति ज्ञान-यह ज्ञान इंद्रियों द्वारा प्राप्त किया जाता है और यह सीमित होता है।
  • श्रुती ज्ञान-यह ज्ञान शास्त्रों को पढ़ने और या सुनने से प्राप्त होता है। इससे भूत, वर्तमान और भविष्य संबंधी ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। यह ज्ञान भी इंद्रियों के द्वारा जाना जा सकता है।
  • अवधि ज्ञान-दूर के समय या स्थान के बारे जो ज्ञान आत्मा के द्वारा होता है उसको अवधि ज्ञान कहते हैं।
  • मनपर्याय ज्ञान-यह वह ज्ञान है जिस द्वारा व्यक्ति किसी दूसरे के मन के विचारों को जान सकता है। यह ज्ञान भी आत्मा द्वारा होता है।
  • कैवल्य ज्ञान-यह पूर्ण सच्चा ज्ञान है। इसको परमार्थिक ज्ञान भी कहा जाता है। इस ज्ञान को प्राप्त करने वाले व्यक्ति को सिद्ध कहा जाता है।

ज्ञान दोष तीन तरह से पैदा होता है—

  • इंद्रियों की गलती के कारण।
  • गलत अध्ययन के कारण।
  • अस्पष्ट दृष्टिकोण के कारण।

जैसे दूध की भारी मात्रा में थोड़ा-सा खट्टा डाल दिया जाये तो वह सारे दूध को खट्टा कर देता है। ठीक उसी तरह यदि व्यक्ति द्वारा प्राप्त ज्ञान में थोड़ा-सा भी दोष आ जाये तो वह सच्चा ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता।

3. सच्चा आचार (Right Conduct)-मोक्ष को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति के लिए सच्चा विश्वास और सच्चा ज्ञान होने के बाद सच्चा आचार का होना अति ज़रूरी है। व्यक्ति का सच्चा आचार ही जीव के कार्मिक पदार्थों का नाश करता है और उसके लिए मोक्ष का मार्ग तैयार करता है। सच्चे आचार पर चलने के लिए जैन धर्म में कुछ नियम निर्धारित किये गये हैं। ये नियम यद्यपि समान रूप में आम लोगों और जैन मुनियों पर लागू होते हैं परंतु उन पर सख्ती का अंतर है । जैन मुनियों को इन नियमों की सख्ती से पालना करनी पड़ती है जबकि आम लोगों को कुछ छूट दी गई है। इन नियमों को पाँच महाव्रत या पाँच अणुव्रत कहा जाता है इनके अनुसार—

  • मनुष्य को कभी किसी जीव को दु:ख नहीं देना चाहिए और उसको अहिंसा की नीति पर चलना चाहिए।
  • उसको सदा सत्य बोलना चाहिए। उसके बोल मीठे और हितकारी होने चाहिए।
  • उसको कोई भी ऐसी वस्तु अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो उसको दान में प्राप्त न हुई हो।
  • उसको सांसारिक वस्तुओं से मोह नहीं करना चाहिए।
  • उसको ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

ऊपरलिखित त्रि-रत्नों पर चलने के कारण जीव के कर्म पदार्थ धीरे-धीरे नष्ट होने शुरू हो जाते हैं और वह अपने परम उद्देश्य मोक्ष को प्राप्त करता है। अंत में हम प्रसिद्ध लेखक जे० पी० सुधा के इन शब्दों से सहमत हैं,
“जैनियों के अनुसार सच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार जो त्रि-रत्नों के तौर पर जाने जाते हैं उस मार्ग का निर्धारण करते हैं जो जीव अपने अंदर कार्मिक पदार्थों को आने से रोकते हैं और व्यक्ति को आवागमन के बंधनों से मुक्त करते हैं।”3

3. “According to the three jewels of right faith, right knowledge and right conduct, known as Triratna constitute the path which prevents fresh Karmic matter from entering the soul and frees the individual from the bonds of rebirth.” J.P. Sudha, Religions in India (New Delhi : 1978) p. 211.

प्रश्न 7.
जैन धर्म में अहिंसा पर नोट लिखें। (Write a note on Ahimsa (non-violence) of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म में अहिंसा के सिद्धांत के बारे में प्रकाश डालें।
(Throw light on the Jain principle of Ahimsa.)
अथवा
अहिंसा से क्या भाव है ? जैन धर्म में इसका क्या महत्त्व है ? (What is meant by Ahimsa ? What is its importance in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में अहिंसा के सिद्धांत पर नोट लिखें।
(Write a note on the concept of Ahimsa in Jainism.)
उत्तर-
1. अहिंसा से अभिप्राय (Meaning of Ahimsa)-जैन धर्म में अहिंसा की नीति को जितना महत्त्व दिया गया है उतना विश्व के किसी अन्य धर्म में नहीं दिया गया। यदि अहिंसा को जैन धर्म की आधारशिला कह दिया तो इसमें कोई अतिकथनी नहीं होगी। अहिंसा से अभिप्राय है किसी भी जीवित चीज़ को कोई कष्ट न देना। जीवित जीवों को कस के बाँधने, उनको मारने-पीटने, उनकी हिम्मत से अधिक भार जोतने, उनको खुराक और पानी से वंचित रखने में जैन धर्म में मनाही है। इनके अतिरिक्त उनको अपने भोजन के लिए मारना बिल्कुल अनुचित है।
जैन दर्शन के अनुसार वृक्षों और पत्थरों आदि में भी जान होती है। इसलिए हमें उनको भी किसी किस्म का दु:ख नहीं देना चाहिए। आचारांग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना जीवन प्यारा है, सभी सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सभी जीने की इच्छा रखते हैं।” इसलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है।

2. दो प्रकार की हिंसा (Two types of Ahimsa)-हिंसा दो प्रकार की होती है-विचार या मन से हिंसा और कर्म से भाव शारीरिक और बाहरी हिंसा। बाहरी हिंसा के व्यवहार में आने से पहले मनुष्य के विचारों में हिंसा आती है। जब मनुष्य के मन में आवेग उठते हैं और इन आवेगों के प्रति विचार उत्पन्न होते हैं तो व्यक्ति पाप करता है और हिंसा का दोषी बन जाता है। मनुष्य संसार के लालचों में फंसकर अपनी काम वासना को पूरा करने के लिए , किसी को धोखा देने के लिए, किसी से अपना बदला लेने के लिए हिंसा करता है। जब इससे संबंधित विचार व्यक्ति के मन में आते हैं तो वह पहले अपनी आत्मा को दूषित करता है। वह यहाँ ही बस नहीं करता और बाद में बाहरी हिंसा के द्वारा दूसरों को दुःख पहुँचाता है और स्वयं भी दुःखी होता है। हिंसा को रोकने के लिए व्यक्ति का अपने विचारों को शुद्ध करना ज़रूरी है। महावीर ने अपने शिष्यों को शिक्षा देते हुए कहा, “हे श्रमणो, पहले अपने आप से युद्ध करो और आत्म शुद्धि की ओर कदम बढ़ाओ। बाहरी युद्ध से कुछ नहीं होगा।”

3. अहिंसा जीवन का एक मार्ग (Ahimsa is a way of Life)-जैन दर्शन में अहिंसा को जीवन का एक मार्ग कहा गया है। किसी भी व्यक्ति द्वारा अहिंसा के प्रति प्रतिज्ञा का पूरी तरह पालन तभी संभव है यदि उसको हिंसा की किस्मों और रूपों के बारे में पूर्ण ज्ञान हो। जैनी सूत्रों में 108 प्रकार की हिंसा का वर्णन मिलता है जिन्हें चार वर्गों में बाँटा जा सकता है। पहले वर्ग में हिंसा तीन स्तर की है। हिंसा व्यक्ति स्वयं कर सकता है, यह दूसरों से करवाई जा सकती है और यह उसकी अपनी सहमति के द्वारा की जा सकती है। व्यक्ति मन, वाणी और शरीर द्वारा हिंसा कर सकता है। दूसरे वर्ग में तीन स्तरीय हिंसा नौ स्तरीय बन जाती है क्योंकि यह मन, वाणी और शरीर रूपी तीन साधनों में प्रत्येक साधन द्वारा की जा सकती है। तीसरे वर्ग में नौ स्तरीय हिंसा सताईस स्तरीय बन जाती है क्योंकि हिंसा की तीन स्थितियाँ हैं, भाव हिंसा के बारे में सोचना, हिंसा के लिए तैयारी करना और फिर उस को व्यावहारिक रूप देना। चौथे वर्ग में सत्ताईस स्तरीय हिंसा 108 स्तरीय हिंसा बन जाती है क्योंकि यह चार मनोवेगों में से किसी न किसी से उत्तेजित होती है।

4. हिंसा से बचने के साधन (Ways to Escape Ahimsa)-हिंसा के सभी रूपों में किसी से बचना आसान नहीं है। फिर भी जैनी अपने जीवन में इनसे बचने के लिए अनेक नियमों का पालन करते हैं। वे नंगे पाँव चलते हैं ताकि कोई कीड़ा उनके पाँवों के नीचे आकर मर न जाये। वे मुँह पर पट्टी बाँध कर रखते हैं ताकि कोई कीटपतंगा सांस से उनके अंदर न चला जाए। इस उद्देश्य से वे पानी छान कर पीते हैं और सूर्य ढलने के बाद भोजन नहीं करते। जैनी ज्यादातर व्यापार का धंधा करते हैं और खेतीबाड़ी बिल्कुल नहीं करते क्योंकि उनका विचार है कि खेतीबाड़ी करते समय अनेक जीवों की हत्या हो जाती है।
जैन धर्म में व्यक्ति के मन में हिंसा के विचारों को उभरने से रोकने के लिए शराब और दूसरी नशीली वस्तुओं के सेवन, माँस खाने और युद्ध करने की मनाही है। नशीली वस्तुओं का प्रयोग करने से हमारे अंदर काम वासना और अन्य कई वासनाएँ उत्तेजित होती हैं। इनसे पाप की भावना और हिंसा उत्पन्न होती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति लापरवाही में ही हिंसा कर देता है। माँस का प्रयोग करने पर इसलिए पाबंदी लगाई गई है ताकि मनुष्य पशुओं और पक्षियों को अपने भोजन के लिए न मारे और न ही वह हिंसा का भागीदार बने। युद्ध के दौरान व्यक्ति अपने दुश्मनों को मार कर बहुत बहादुरी का काम समझता है परंतु जैन दर्शन के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मारना बिल्कुल अयोग्य है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

ऊपरलिखित विवरण से स्पष्ट है कि जैन धर्म में अन्य नियमों के मुकाबले अहिंसा के सिद्धांत पर अधिक बल दिया गया है। डॉक्टर ज्योति प्रसाद जैन का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“अहिंसा का जीवन सारी नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक बुराइयों का राम बाण इलाज है। अहिंसा सर्वोच्च धर्म है और जहाँ अहिंसा है वहाँ जीत है।”4

4. “The Ahimstic way of life is the sure panacea for all moral, social, economic and political ills. Ahimsa is the highest religion, and where there is Ahimsa, there is victory.” Dr. Jyoti Prasad Jain, Religion and Culture of the Jains (New Delhi : 1983) p. 101.

प्रश्न 8.
जैन धर्म की नौ सच्चाइयों से क्या भाव है ? इनका संक्षेप वर्णन करो। (What is meant by Nine Truths of Jainism ? Explain briefly.)
अथवा
जैन धर्म के नौ तत्त्व कौन से हैं ? चर्चा करें।
(Which are the nine tatvas in Jainism ? Discuss.)
अथवा
जैन धर्म के नौ तथ्यों पर एक नोट लिखो।
(Write a note on nine tatvas of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के नौ तत्त्वों से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
(What do we learn from nine tatvas of Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म के नौ रत्नों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the Nine Rattans of Jainism.)
उत्तर-
नौ सच्चाइयों अथवा तत्त्वों को जैन दर्शन में केंद्रीय स्थान प्राप्त है। वह व्यक्ति जो निर्वाण प्राप्त करने का चाहवान है उसके लिए इन नौ सच्चाइयों के बारे जानकारी होना अति जरूरी है। ये नौ सच्चाइयाँ हैं—
(i) जीव
(ii) अजीव
(iii) पुण्य ”
(iv) पाप
(v) आश्रव
(vi) बंध
(vii) संवर
(viii) निर्जर
(ix) मोक्ष।

दिगंबर संप्रदाय के अनुसार सात सच्चाइयाँ हैं । वे पाप और पुण्य को अलग नहीं मानते। उनके अनुसार ये अश्रव और बंध में शामिल हैं। इन सच्चाइयों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. जीव (Jiva)-जीव शब्द का अर्थ है आत्मा। यह चेतन तथ्य है। जैन दर्शन में जीव दो प्रकार के हैं। इनको सांसारिक जीव और मुक्त जीव कहा जाता है। सांसारिक जीव को बंधन जीव भी कहते हैं। यह जीव आवागमन के चक्र में रहता है और अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और अपने अच्छे बुरे फल भुगतता है। मुक्त जीव वह जीव है जो पुनर्जन्म से रहित है। यह जीव अनंत ज्ञान वाला, अनंत शक्ति वाला और अनंत गुणों वाला होता है। यह जीव कर्मों के जाल से मुक्त होता है।

2. अजीव (Ajiva)-अजीव से भाव उन जड़ पदार्थों से है जिनमें चेतना नहीं होती जैसे पुस्तक, कागज़, मेज़ और स्याही आदि। उदाहरण के तौर पर ऊँट के शरीर में जीव फैल कर ऊँट जितना बड़ा हो जाता है और कीड़ी के शरीर में सिकुड़ कर कीड़ी जितना हो जाता है। यह जीव तब नहीं दिखाई देता है परंतु शरीर की क्रियाओं के आधार पर इसकी उपस्थिति का ज्ञान हो जाता है। परंतु जब शरीर का अंत हो जाता है तो जीव लोप हो जाता है। जीव जिस शरीर को धारण करता है वह उस के आकार का ही हो जाता है। अजीव दो प्रकार के होते हैं रूपी और अरूपी । रूपी वह हैं जो दिखाई देते हैं जैसे कुर्सी, पैन, घड़ा आदि। अरूपी वह हैं जो दिखाई नहीं देते जैसे समय, चिंता और खुशी आदि। जैन दर्शन में अजीवों के पाँच अचेतन तत्त्व बताए गए हैं। इनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित है

  • पुदगल (Pudgala)-पुदगल से भाव पदार्थ या परमाणु है। यह पुदगल रूप, स्पर्श, रस और गंध-चार गुणों वाले होते हैं। अग्नि के पुदगल रूप गुण वाले, वायु के पुदगल स्पर्श गुण वाले, जल के पुदगल रस गुण वाले और पृथ्वी के पुदगल गंध गुण वाले होते हैं। पुदगलों के दो रूप माने गए हैं-अणु रूप वाले और स्कंध रूप वाले। अणु रूप वाले पुदगल जीवों के भोग के लायक नहीं होते हैं जबकि स्कंध रूप वाले होते हैं। पुदगलों को सारे भौतिक जगत् की रचना का मूल आधार माना जाता है।
  • धर्म (Dharma) यह तत्त्व जीव और पुदगलों में गति पैदा करता है और उनके आपसी सहयोग में सहायक माना जाता है। जैसे मछली की गति के लिए पानी की ज़रूरत अति आवश्यक है ठीक उसी प्रकार जीवों और पुदगलों की गति के लिए धर्म की ज़रूरत अति आवश्यक है। धर्म के बिना गति पैदा नहीं हो सकती।
  • अधर्म (Adharma)-इसका स्वरूप और कार्य धर्म से बिल्कुल उल्ट है। यह जीवों की ओर पुदगलों की गति में रुकावट पैदा करता है। परंतु अधर्म को धर्म का विरोधी नहीं समझा जाता। अधर्म के द्वारा गति में पाई गई रुकावट जीव के आराम के लिए सहायक मानी गई है।
  • आकाश (Akasha)-आकाश से भाव वह स्थान है जिसमें जीव, मुदगल, धर्म और अधर्म सारे विस्तार वाले तत्त्व रहते हैं। इन तत्त्वों के आधार पर ही आकाश की उपस्थिति का अनुमान किया जाता है। जैन दर्शन के अनुसार आकाश दो प्रकार के हैं-लोकाकाश और अलोकाकाश। लोकाकाश उस आकाश को कहा गया है जिस भाग में भौतिक लोक की स्थिति है और उससे ऊपर जो आकाश है उसको अलोकाकाश कहा गया है।
  • काल (Kala)-काल से भाव समय है। यह विस्तार वाला तत्त्व नहीं है। इसकी उपस्थिति का ज्ञान अनुमान के द्वारा प्राप्त होता है। काल को जगत् के परिवर्तन का मूल कारण माना गया है। भूत, वर्तमान, भविष्य से काल का संबंध है। काल को आदि और अंत वाला तत्त्व कहा जाता है।

3. पुण्य (Punya)-पुण्य वह कर्म है जो अच्छे अमलों से कमाये जाते हैं। पुण्य कमाने के अलग-अलग ढंग हैं। भूखे को खाना देना, प्यासे को पानी पिलाना, नंगे को कपड़ा देना, हाथों से सेवा करनी, मीठा बोलना आदि पुण्य के काम हैं, पुण्य को मानने के 42 साधन हैं। अच्छी सेहत, आर्थिक समृद्धि, प्रसिद्धि, अच्छा वैवाहिक जीवन, अच्छे रिश्तेदारों और दोस्तों का मिलना, अच्छी पढ़ाई और उच्च पदवियों पर नियुक्ति आदि अच्छे पुण्यों का ही नतीजा है। पुण्य को आत्मा का सहायक माना जाता है क्योंकि इससे खुशी प्राप्त होती है।

4. पाप (Papa)-पाप को जीव के बंधन का मुख्य कारण माना जाता है। जीवों को मारना, झूठ, चोरी, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, धोखा, नशा और दुश्मनी आदि सब पापों के भार में वृद्धि करते हैं। पापियों को घोर सजाएँ . मिलती हैं। आपने देखा होगा कि एक ही घर में पैदा हुए दो सगे भाइयों के जीवन में भारी अंतर होता है। एक ऊँची पदवी पर सुशोभित होता है और उसको प्रसिद्धि प्राप्त होती है। दूसरा दर-दर की ठोकरें खाता फिरता है, चोरियाँ करता है और बदनामी कमाता है। ऐसा क्यों होता है ? जैन दर्शन के अनुसार ऐसा व्यक्ति के पुण्य और पाप कमाने का कारण होता है। पापी मनुष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता और उसको अपने जीवन में घोर संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा भी तड़पती रहती है। जैन सूत्रों के अनुसार पापों के 82 अलग-अलग परिणाम निकलते हैं।

5. आशरव (Asrava) ब्रह्मांड में अनगिनत सूक्ष्म अणु (कार्मिक पदार्थ) घूमते रहते हैं जिनको आत्मा अपने अच्छे बुरे कर्मों के अनुसार अपनी ओर खींचती है। इस अंदर आने की कारवाई को आश्व कहते हैं। मनुष्य के कर्म आत्मा में उसी तरह शामिल होते हैं जैसे एक सुराख के रास्ते से नाव में पानी। कर्म जीव के बंधन का एक मुख्य कारण है। कर्म जड़ हैं। इसलिए आप जीव में प्रवेश नहीं करते, वे मन, वचन और शरीर की सहायता से जीव में प्रवेश करते हैं। कर्म दो प्रकार के हैं शुभ और अशुभ। यदि शुभ कर्म जीव में प्रवेश होंगे तो उसको सुख की प्राप्ति होगी और यदि कर्म अशुभ होंगे तो जीव को कष्ट होगा। इसलिए कर्मों का शुभ अथवा अशुभ होना व्यक्ति की प्रवृत्ति पर निर्भर करता है।

6. बंध (Bandha)-जब कर्म पदार्थ का पर्दा जीव के शुद्ध स्वरूप पर पड़ जाता है तो वह दूषित हो जाता है। यह जीव के बंधन का कारण बनता है। जैन दर्शन के अनुसार इस दिशा की ओर ले जाने वाले पाँच कारण हैं।

  • मिथ्या दर्शन-इससे भाव गलत विश्वास है।
  • आवृत्ति-इससे भाव है प्रतिज्ञा की कमी।
  • प्रसाद-इससे भाव है लापरवाही।
  • काश्य-इससे भाव है काम वासना।
  • योग-इससे भाव है शरीर, मन और बोल की प्रक्रिया।
    बंध चार प्रकार के हैं—
  • प्रकृति-जीव से जुड़े कर्म पदार्थों का स्वरूप।
  • स्थिति-कर्म पदार्थ जीव से कितने समय के लिए जुड़े हैं।
  • अनुभाग-कर्म पदार्थ सख्त चरित्र के हैं या नर्म चरित्र के। (घ) प्रदेश जीव-जीव से जुड़े कर्म पदार्थों में अणुओं की संख्या।
    कर्मों के जाल में फंस कर जीव का व्यावहारिक रूप नष्ट हो जाता है और वह बंधन में फंस जाता है। इस कारण वह बार-बार जन्म लेता है और शरीर रूपी कैद भोगता है।

7. संवर (Sanvara)—योग क्रिया के द्वारा कर्म पदार्थ जीव की ओर खींचे आते हैं। मोक्ष प्राप्त करने के लिए इस क्रिया को रोकना अति ज़रूरी है। इसको संवर कहते हैं। इसको आश्व निरोध भी कहते हैं, जिससे भाव है कर्मों का हमारे अंदर प्रवेश करने से रुक जाना। कर्म को रोकने की 57 विधियाँ हैं। इनमें आत्म संयम, शुभ विचार, लोभ, मोह, अहंकार, क्रोध और पापों से परहेज़ आदि शामिल हैं। इस कारण जीव के इर्द-गिर्द एक ऐसी ऊँची दीवार बन जाती है जिसके अंदर कर्म पदार्थों का दाखिल होना असंभव है। जैसे एक तालाब में जिस नाली के द्वारा पानी जा रहा है उसको रोकना संभव है ठीक उसी प्रकार कर्म पदार्थों को संवर के द्वारा जीव में प्रवेश करने से रोकना संभव है।

8. निर्जर (Nirjara)-निर्जर से भाव कर्म पदार्थों को जीव से दूर हटाना है। यह जीव के द्वारा संचित कर्मों को नष्ट करने का एक मुख्य साधन है। संवर द्वारा जीव में कर्मों के बढ़ने और प्रवेश को रोका जाता है। परंतु पुराने कर्मों को जिन का जीव के भीतर आश्व हो गया है निर्जर के द्वारा नाश किया जा सकता है। निर्जर में तपस्या शामिल है। तपस्या अग्नि की तरह कर्म पदार्थों के इकट्ठे हुए ढेर को जला कर राख कर देती है। इसी प्रकार जब जीव पर से कर्म पदार्थों का पड़ा पर्दा हट जाता है तो उसका शुद्ध स्वरूप प्रकट हो जाता है। जैसे बिलौर के सामने काला कपड़ा रखने से वह काला नज़र आने लग जाता है। परंतु जब कपड़ा हटा लिया जाता है तो उसकी अपनी चमक दुबारा प्रकट हो जाती है।

9. मोक्ष (Moksha)-जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष अथवा निर्वाण को प्राप्त करना है। इसमें जीव कर्मों के सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है। कर्मों की समाप्ति से मनुष्य मोक्ष प्राप्त करता है। इसलिए संवर और निर्जर आवश्यक है। कर्मों के बंधन को तोड़ने के लिए जैनी तीन सद्गुणों के पालन की सिफ़ारिश करते हैं, जिनको त्रि-रत्न कहा जाता है। ये हैं सच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार। मोक्ष जीव की प्राप्ति की सर्वोच्च अवस्था है। जो व्यक्ति मोक्ष प्राप्त कर लेता है उसको सिद्ध कहते हैं । सिद्ध पुरुष जन्म, मृत्यु, सुख और दुःख से दूर है। वह ब्रह्मांड में चिरंजीवी शाँति प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 9.
जैन धर्म के पाँच महाव्रतों के महत्त्व का उल्लेख करें। (Describe the importance of Five Mahavartas in Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के पाँच महाव्रतों के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the Five Mahavartas of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म में पाँच महाव्रतों का क्या महत्त्व है ? प्रकाश डालिए।
(What is the importance of Five Mahavartas in Jainism ? Elucidate.)
अथवा
जैन धर्म के पाँच अणुव्रतों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the Five Anuvartas of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के पाँच अणुव्रतों का क्या महत्व है ? प्रकाश डालें।
(What is the importance of Five Anuvartas of Jainism ? Elucidate.) ।
उत्तर-
जैन धर्म में पाँच महाव्रतों को विशेष स्थान प्राप्त है। इन नियमों की पालना करनी प्रत्येक जैनी के लिए आवश्यक है। ये नियम बहुत कठोर हैं। ये नियम जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए बनाए गए थे। गृहस्थियों के लिए ये नियम इतने कठोर नहीं थे। इनके लिए बनाए गए नियमों को पाँच अणुव्रत (Five Anuvartas) कहा जाता है। इन पाँच महाव्रतों या अणुव्रतों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. अहिंसा (Ahimsa)-जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत ज़ोर दिया गया है। अहिंसा की महत्ता बताते हुए आचारांग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना-अपना जीवन प्यारा है सब ही सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सारे ही जीने की इच्छा रखते हैं।” इसीलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है। हिंसा दो तरह की होती है-मन से हिंसा और कर्म से हिंसा। कर्म अथवा अमल में आने वाली हिंसा से पहले मन भाव विचारों में हिंसा आती है। गुस्सा, अहंकार, लालच और धोखा मन की हिंसा है। इसलिए हिंसा से बचने के लिए मन के विचारों को शुद्ध करना अति ज़रूरी है। जैन धर्म के अनुसार मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं, पत्थरों और वृक्षों आदि में भी आत्मा निवास करती है। इसलिए हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी कारण जैन लोग नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और अंधेरा हो जाने के बाद कुछ नहीं खाते ताकि किसी जीव की हत्या न हो जाये। बी० एन० लूनीया के अनुसार,
“अहिंसा जैन धर्म की आधारशिला है।”5

2. सत्य (Satya)-जैन धर्म में सत्य बोलने पर बहुत बल दिया गया है। हमें हमेशा सत्य और मीठे वचन बोलने चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति दूसरे के मन को मोह लेता है। झूठ बोलने से आत्मा को दुःख होता है। झूठ बोलने वाला व्यक्ति कभी सुखी नहीं हो सकता। वास्तव में झूठ बोलने से कलह-क्लेश बढ़ता है और इसका अंत नहीं होता। विवश होकर अंत में व्यक्ति को सत्य मानना ही पड़ता है। झूठ के परिणाम हमेशा बुरे ही होते हैं। हमें किसी के डर के कारण, लालच के कारण अथवा हंसी-मज़ाक में भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। इसलिए हमें हमेशा सोच-समझ कर बोलना चाहिए। गुस्सा आने पर शांत बने रहना चाहिए। जैन धर्म में इस बात पर भी बल दिया गया है कि हमें किसी पर भी झूठा आरोप नहीं लगाना चाहिए। हमें किसी के साथ भी धोखा नहीं करना चाहिए। हमें किसी को भी गलत परामर्श देकर उसे मार्ग से विचलित नहीं करना चाहिए। झूठ बोलकर किसी का रिश्ता तय नहीं करना चाहिए। पंचायत अथवा किसी भी और स्थान पर झूठी गवाही नहीं देनी चाहिए। झूठ ही हिंसा को जन्म देता है। सत्य अहिंसा का आधार है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

3. अस्तेय (Asteya)—जैन धर्म में अस्तेय को बहुत महत्त्व दिया गया है। अस्तेय का भाव है चोरी न करना। जैन धर्म में चोरी का अर्थ बहुत विशाल है। किसी की वस्तु चुरा लेनी एक सीधा अपराध है, लेकिन जैन धर्म में उसको चोरी ही माना गया है जो कोई भी व्यक्ति किसी द्वारा भूली हुई वस्तु का प्रयोग भी करता है। हमें किसी की वस्तु उसके मालिक की आज्ञा के बिना नहीं लेनी चाहिए। हमें किसी के घर में भी बिना आज्ञा के प्रवेश नहीं करना चाहिए। गुरु की स्वीकृति के बिना भिक्षा में प्राप्त अनाज को ग्रहण नहीं करना चाहिए। बिना स्वीकृति के हमें किसी के घर निवास नहीं करना चाहिए। यदि घर में रहने की स्वीकृति मिले तो उसकी आज्ञा के बिना उसकी वस्तु को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जैन धर्म के अनुसार चोरी के दो प्रकार हैं। ये हैं-सूक्ष्म चोरी और स्थूल चोरी। सूक्ष्म चोरी उसको कहते हैं जिस में मनुष्य अपने परिवार के हित के लिए संयम स्वभाव से काम करता है। जैसे जंगल में लकड़ी और फल आदि प्राप्त करना। समाज और कानून की नज़रों में जिस चोरी को दंड योग्य माना जाता है उसको स्थूल चोरी कहा जाता है। मिलावट करनी, चोर की सहायता करनी, चोरी का माल खरीदना, कम मापदंड करना, लोगों से धोखे के सा. अधिक ब्याज प्राप्त करने को स्थूल चोरी कहा जाता है। एक बार चोरी करने वाला मनुष्य ग़रीब घर में जन्म लेता है बार-बार चोरी करने वाला मनुष्य अगले जन्म में गुलाम के रूप में जन्म लेगा।

4. अपरिग्रह (Aparigraha) जैन धर्म में अपरिग्रह महाव्रत को बहुत महत्ता दी गई है। अपरिग्रह से भाव है सांसारिक वस्तुओं के प्रति मोह न रखना। ये सामान्य देखने में आता है कि गृहस्थी लोग आवश्यक वस्तुओं को आवश्यकता से ज्यादा इकट्ठा करते हैं। जीवन की आवश्यक वस्तुओं को इकट्ठा करने में कोई बुराई नहीं, लेकिन वस्तुओं का आवश्यकता से अधिक भंडार इकट्ठा करना वास्तव में अन्य लोगों के अधिकार को मारना है। जितनी अधिक वस्तुओं को इकट्ठा करने की आकांक्षा बढ़ेगी उतना ही मन अशांत रहेगा। ऐसा मनुष्य कभी भी मोक्ष प्राप्त – * कर सकता। आवश्यकता से ज्यादा संपत्ति इकट्ठा करना भी एक अनुचित कर्म है। जैन साधुओं को आवप्रगकता से अधिक भोजन करने, कपड़े पहनने और बिस्तर आदि रखने की मनाही है। इस महाव्रत की पालना करने वाला व्यक्ति मोक्ष को प्राप्त करता है।

5. ब्रह्मचर्या (Brahmacharya)—जैन धर्म में ब्रह्मचर्या महाव्रत को विशेष महत्त्व प्राप्त है। इससे भाव है काम वासना से दूर रहना। जैन साधुओं के लिए इस सम्बन्धी कठोर नियम बनाए गए हैं। उनके लिए ये आवश्यक कि वे किसी स्त्री की ओर न देखें, उनसे बातें न करें, किसी भी स्त्री के साथ भूतकाल में बिताए समय को याद न करें। ऐसे किसी घर में न जाए जहाँ कोई स्त्री अकेली रहती हो। शुद्ध और थोड़ा भोजन खाना चाहिए। इस तरह जैन साधवियों के लिए भी नियम निश्चित हैं। उनके लिए किसी पुरुष के साथ बातचीत करने और उनके बारे में सोचने की मनाही है। ग्रहस्थियों के लिए केवल अपनी स्त्री का साथ करना ही ब्रह्मचर्या है। जैन धर्म में काम को वास्तव में जीवन को समाप्त करने वाला रोग माना गया है।
उपरोक्त पाँच महाव्रतों की पालना करने वाला व्यक्ति संयमी बन जाता है और निर्वाण अथवा मोक्ष प्राप्त करता है। डॉ० के० सी० सोगानी के अनुसार,
“इन पाँच महाव्रतों की पालना व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नति के लिए सहायक है।”6

5. “Ahimsa is the sheet anchor of Jainism.” B.B. Luniya, Life and Culture in Ancient India (Agra : 1982) p. 162.
6. “The observance of these five rows is capable of bringing about individual as well as social progress.”: Dr. K.C. Sogani, op. cit., p, 65.

प्रश्न 10.
प्रमुख जैन संप्रदायों के बारे में जानकारी दें।
(Write about the main sects in Jainism.)
उत्तर-
जैनी अनेक संप्रदायों में बंटे हुए हैं। इनमें से कुछ प्रमुख संप्रदायों का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार—

1. अजीविक (The Ajivika)-इस संप्रदाय का संस्थापक गोशाल था। वह स्वामी महावीर का शिष्य था और 6 वर्षों के पश्चात् उनसे अलग हो गया था। यह संप्रदाय अपने नियति (किस्मत) के विशेष सिद्धांत के लिए प्रसिद्ध है। इसके अनुसार हर वस्तु की किस्मत पहले से ही निश्चित है। इस को मनुष्य के यत्नों के द्वारा बदला नहीं जा सकता। गोशाल के द्वारा प्रचारित धर्म भारत में 13वीं शताब्दी तक प्रफुल्लित रहा और बाद में लोप हो गया।

2. दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय (The Digambara and Shvetambra Sects)-जैन धर्म के सब संप्रदायों में से दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय सबसे अधिक प्रसिद्ध थे। चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के समय मगध में भयंकर अकाल पड़ा था। इसलिए भद्रबाहु जो जैनी भिक्षुकों का नेता था अपने साथ बहुत सारे भिक्षुओं को लेकर मैसूर (कर्नाटक) चला गया। जो भिक्षुक मगध में रह गये थे उन्होंने स्थूलभद्र को अपना मुखिया चुन लिया। इन भिक्षुकों ने पाटलिपुत्र में एक सभा का आयोजन किया और अपने साहित्य को एक नया रूप दिया। इस साहित्य को उन्होंने अंग का नाम दिया। इसके अतिरिक्त इन भिक्षुओं ने नंगे रहने की प्रथा को त्याग दिया और सफ़ेद कपड़े पहनने शुरू कर दिये। 12 वर्षों के पश्चात् जब भद्रबाहु अपने अन्य भिक्षुकों के साथ दुबारा मगध आया तो उसने स्थूलभद्र द्वारा किए गए परिवर्तनों को स्वीकार न किया। परिणामस्वरूप जैनी दो संप्रदायों दिगंबर और श्वेतांबर में बाँटे गए। दिगंबर से भाव था नग्न रहने वाले और श्वेतांबर से भाव था सफ़ेद वस्त्र पहनने वाले। इन दोनों में प्रमुख अंतर निम्नलिखित हैं—

  • दिगंबर संप्रदाय वाले नंगे रहते थे जबकि श्वेतांबर जाति वाले सफ़ेद वस्त्र पहनते थे।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्त्रियाँ तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं लेती। श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस सिद्धांत को गलत मानते हैं। उनका कहना है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
  • दिगंबर संप्रदाय वाले स्त्रियों को जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा नहीं देते। दूसरी ओर श्वेतांबर संप्रदाय वाले स्त्रियों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगाते। उनका कहना था कि 19वीं तीर्थंकर मल्ली एक स्त्री थी। दिगंबर संप्रदाय वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह नहीं करवाया था। श्वेतांबर संप्रदाय वाले यह मानते हैं कि स्वामी महावीर ने विवाह करवाया था। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम प्रियादर्शना था।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों का यह मत है कि ज्ञान प्राप्त करने वाले साधुओं को भोजन की ज़रूरत नहीं रहती जबकि श्वेतांबर मत वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  • दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय वालों का धार्मिक साहित्य अलग-अलग है।
  • दिगंबर संप्रदाय वालों की मूर्तियाँ नंगेज होती हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वालों की मूर्तियों को कपड़े पहनाये जाते हैं और उनको गहनों से सजाया जाता है।

3. लोक संप्रदाय (Lonka Sect)-इस संप्रदाय का मुखिया लोंक सा था। वह अहमदाबाद का रहने वाला था। 1474 ई० में एक जैनी साधु ज्ञान जी ने कुछ धार्मिक जैनी ग्रंथों का उतारा करने के लिए लोक सा को कहा। इन ग्रंथों को पढ़ते समय लोंक सा ने देखा कि मूर्ति पूजा का वर्णन कहीं भी नहीं आया जबकि जैनी कई सदियों से मूर्ति पूजा करते आ रहे थे। इसलिए उसने जैन धर्म में प्रचलित मूर्ति पूजा का खंडन किया। इससे जैनियों में एक बड़ा विवाद शुरू हो गया ? भानाजी लोंक सा के मत से सहमत हुआ और इस तरह वह लोंक सा संप्रदाय का पहला आचार्य बना।

4. स्थानकवासी (Sthanakvasi)-इस संप्रदाय का संस्थापक वीराजी था। वह सूरत का रहने वाला था। इस नए संप्रदाय का नाम स्थानकवासी इसलिए पड़ा क्योंकि इस संप्रदाय के साधु मंदिरों की जगह मठों में रहते थे। वे बहुत ही सादा जीवन व्यतीत करते थे। वे मूर्ति पूजा और तीर्थ यात्राओं में विश्वास नहीं रखते थे।

5. तेरा पंथ (Terapanth)-इंस संप्रदाय के संस्थापक मारवाड़ के भीखनजी थे। इसकी स्थापना 1706 ई० में की गई थी। इस संप्रदाय के तेरह धार्मिक नियम थे जिस कारण इस संप्रदाय का नाम तेरा पंथ पड़ा। यह संप्रदाय भी मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखता। यह तप और अनुशासन पर बहुत ज़ोर देता है।

6. तारना पंथ (Taranapanina)-इस पंथ की स्थापना स्वामी तारना ने ग्वालियर में की थी। इस पंथ को मानने वाले मूर्ति पूजा, धर्म के बाहरी दिखावे और जाति भेदों के विरुद्ध हैं। उनके अपने अलग मंदिर हैं जिनमें मूर्तियाँ ही नहीं बल्कि पवित्र धार्मिक ग्रंथों की पूजा भी की जाती है।

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प्रश्न 11.
जैन मत के प्रमुख संप्रदाय कौन से हैं ? उनके मध्य समानताएँ तथा भिन्नताएँ स्पष्ट करें।
(What are the main sects in Jainism ? Explain their similarities and differences.)
अथवा
जैन धर्म के फिरके दिगंबर और श्वेतांबर के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the sects Digambara and Shvetambra of Jainism.)
उत्तर-
दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय (The Digambara and Shvetambra Sects)-जैन धर्म के सब संप्रदायों में से दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय सबसे अधिक प्रसिद्ध थे। चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के समय मगध में भयंकर अकाल पड़ा था। इसलिए भद्रबाहु जो जैनी भिक्षुकों का नेता था अपने साथ बहुत सारे भिक्षुओं को लेकर मैसूर (कर्नाटक) चला गया। जो भिक्षुक मगध में रह गये थे उन्होंने स्थूलभद्र को अपना मुखिया चुन लिया। इन भिक्षुकों ने पाटलिपुत्र में एक सभा का आयोजन किया और अपने साहित्य को एक नया रूप दिया। इस साहित्य को उन्होंने अंग का नाम दिया। इसके अतिरिक्त इन भिक्षुओं ने नंगे रहने की प्रथा को त्याग दिया और सफ़ेद कपड़े पहनने शुरू कर दिये। 12 वर्षों के पश्चात् जब भद्रबाहु अपने अन्य भिक्षुकों के साथ दुबारा मगध आया तो उसने स्थूलभद्र द्वारा किए गए परिवर्तनों को स्वीकार न किया। परिणामस्वरूप जैनी दो संप्रदायों दिगंबर और श्वेतांबर में बाँटे गए। दिगंबर से भाव था नग्न रहने वाले और श्वेतांबर से भाव था सफ़ेद वस्त्र पहनने वाले। इन दोनों में प्रमुख अंतर निम्नलिखित हैं—

  1. दिगंबर संप्रदाय वाले नंगे रहते थे जबकि श्वेतांबर जाति वाले सफ़ेद वस्त्र पहनते थे।
  2. दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्त्रियाँ तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकतीं जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं लेती। श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस सिद्धांत को गलत मानते हैं। उनका कहना है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
  3. दिगंबर संप्रदाय वाले स्त्रियों को जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा नहीं देते। दूसरी ओर श्वेतांबर संप्रदाय वाले स्त्रियों पर ऐसी कोई पाबंदी नहीं लगाते। उनका कहना था कि 19वीं तीर्थंकर मल्ली एक स्त्री थी। दिगंबर संप्रदाय वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  4. दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह नहीं करवाया था। श्वेतांबर संप्रदाय वाले यह मानते हैं कि स्वामी महावीर ने विवाह करवाया था। उनकी एक पुत्री थी, जिसका नाम प्रियादर्शना था।
  5. दिगंबर संप्रदाय वालों का यह मत है कि ज्ञान प्राप्त करने वाले साधुओं को भोजन की ज़रूरत नहीं रहती जबकि श्वेतांबर मत वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  6. दिगंबर और श्वेतांबर संप्रदाय वालों का धार्मिक साहित्य अलग-अलग है।
  7. दिगंबर संप्रदाय वालों की मूर्तियाँ नंगेज होती हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वालों की मूर्तियों को कपड़े पहनाये जाते हैं और उनको गहनों से सजाया जाता है।

प्रश्न 12.
जैन संघ की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो। (Explain the salient features of Jain Sangha.)
अथवा
जैन धर्म के संघ-अनुशासन के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss the Sangha discipline of Jainism.)
उत्तर-
जैन संघ की स्थापना स्वामी महावीर जी ने पावा नगर में की थी। इसने जैन धर्म के प्रसार में प्रशंसनीय योगदान दिया।

1. सदस्य (Member)-जैन संघ में चार प्रकार के लोग शामिल होते हैं जिनको भिक्षु और भिक्षुणियाँ तथा श्रावक और श्राविका कहा जाता था। भिक्षु और भिक्षुणियाँ वे थे जिन्होंने संसार का त्याग कर दिया था। श्रावक और श्राविका वे थे जो गृहस्थी का जीवन व्यतीत करते थे।

2. दीक्षा (Initiation)—जो व्यक्ति संघ में शामिल होना चाहता था उसको अपने माता-पिता और संरक्षक से आज्ञा लेनी पड़ती थी। इसके बाद वह अपना मुंडन करके, स्नान करके, सफ़ेद कपड़े पहन के भिक्षा का बर्तन लेकर किसी प्रमुख जैन आचार्य के पास जा कर दीक्षा लेता था। इस संस्कार को निष्कर्म संस्कार कहते थे। स्त्रियाँ भी जैन संघ में शामिल हो सकती थीं। जैन संघ के दरवाज़े सभी जातियों के लिए खुले थे। केवल अधर्मी व्यक्तियों को संघ में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं थी।

3. अनुशासित जीवन (Disciplined Life)-दीक्षा प्राप्त करने के बाद भिक्षु-भिक्षुणियों को बहुत अनुशासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था। उनको पाँच महाव्रतों, अहिंसा, सुनित, अस्तेय, अपरिगृह और ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता था। उनको मन, वचन और शरीर से किसी को भी हिंसा पहुँचाने की मनाही थी। उनको झूठ बोलने, चोरी करने, अपने पास संपत्ति रखने, सुगंधित वस्तुओं का प्रयोग करने, जूते, छाता, पलंग और कुर्सी आदि का प्रयोग करने, बिना आज्ञा किसी के घर जाने, गृहस्थी के बर्तनों में भोजन करने, अधिक खाने, रात हो जाने के बाद भोजन करने, किसी की निंदा करने, किसी स्त्री के साथ बातचीत करने, जिस घर में स्त्री हो वहाँ ठहरने आदि की सख्त मनाही थी। गृहस्थी व्यक्तियों को भी यद्यपि इन नियमों का पालन करने के लिए कहा गया है, परंतु उन पर इतनी सख्ती लागू नहीं की गई थी।

4. प्रतिदिन जीवन (Daily Life)-प्रत्येक भिक्षु अथवा भिक्षुणी अपने रोज़ाना जीवन को 8 भागों में बाँटता था। इनमें 4 भाग धार्मिक ग्रंथों की पढ़ाई के लिए, 2 तप के लिए, 1 खाने के लिए और 1 आराम करने के लिए निश्चित होता था। वे अपना भोजन प्रतिदिन माँग कर खाते थे। उनको एक से अधिक घर से भिक्षा लेने की मनाही थी। जैन संघ के सारे सदस्य वर्षा के चार महीनों में एक स्थान पर रह कर जैन धर्म का प्रचार करते थे। बाकी के आठ महीने वे अलग-अलग स्थानों पर जा कर जैन धर्म के प्रचार में व्यतीत करते थे।

5. जैन संघ का मुखिया (Chief of the Jain Sangha)-जैन संघ का मुखिया आचार्य कहलाता था। वह संघ के सारे भिक्षुओं पर नियंत्रण रखता था। केवल उसी को ही दीक्षा देने, संघ का सदस्य बनाने अथवा किसी को सज़ा देने का अधिकार था। इस पदवी के लिए बहुत ही सुलझे हुए और उच्च चरित्र के व्यक्ति को नियुक्त किया जाता था। स्त्रियों के अपने अलग संघ होते थे। इसके प्रमुख को प्रवर्तिनी कहा जाता था। उसका प्रमुख कार्य जैन संघ में अनुशासन स्थापित रखना था।

6. जैन संघ की भूमिका (Role of Jain Sangha)-जैन संघ ने भारत में जैन धर्म को लोकप्रिय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। जैन संघ में सम्मिलित होने वाले भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों ने जैन धर्म के प्रसार के लिए कोई प्रयास शेष नहीं छोड़ा। प्रसिद्ध लेखक एस० सी० रैचौधरी के अनुसार,

“वास्तव में जैन संघ के प्रयासों के कारण जैन धर्म ने भारत की भूमि में अपनी गहरी जड़ें बना लीं तथा यह आज भी कायम हैं।”7

7. “In fact, it is mainly due to their efforts that Jainism took root into Indian soil and still survives,” S.C. Raychoudhary, History of Ancient India (Delhi : 2006) p. 107.

प्रश्न 13.
जैन धर्म ग्रंथों की भाषा क्या है ? जैन धर्म ग्रंथों के बारे में प्रारंभिक जानकारी दें।
(What is the language of Jain scriptures ? Give preliminary information about Jain scriptures.)
अथवा
जैन धर्म ग्रंथों के बारे में प्रारंभिक जानकारी दें।
(Give preliminary information about the major Jain scriptures.)
अथवा
जैन मत के प्रमुख धार्मिक ग्रंथों की जानकारी दो। (Give information about the prominent scriptures of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथों के बारे में आप क्या जानते हो ?
(What do you know about the prominent scriptures of Jainism ?)
अथवा
प्रमुख जैन धार्मिक ग्रंथों पर प्रकाश डालें।
(Throw light on the prominent Jain scriptures.)
उत्तर-
जैनियों ने अनेक धार्मिक ग्रंथों की रचना की। इनमें से जो ग्रंथ हमें आज उपलब्ध हैं उनकी संख्या 45 है। ये सारे ग्रंथ जैन धर्म के श्वेतांबर संप्रदाय के साथ संबंधित हैं। ये ग्रंथ प्राकृत अथवा अर्ध मगधी जो उस समय लोगों की बोलचाल की आम भाषा थी में लिखे गए हैं। इन ग्रंथों को गुजरात में वल्लभी के स्थान पर 5वीं शताब्दी में लिखित रूप दिया गया। इनको एक प्रसिद्ध जैनी साधु देवरिद्धी ने संपूर्ण किया। इन ग्रंथों को 6 वर्गों में बाँटा गया है। इनके नाम हैं—
(1) 12 अंम
(2) 12 उपांग
(3) 10 प्राकिरण
(4) 6 छेदसूत्र
(5) 4 मूलसूत्र
(6) 2 विविध पुस्तकें।
इनका संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. 12 अंग (The Twelve Angas)-जैनियों के धार्मिक ग्रंथों में 12 अंगों को सब से अधिक पवित्र समझा जाता है। इन अंगों के नाम और उनका संक्षेप वर्णन इस प्रकार है

  • आचारांग सूत्र-इसमें जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के लिए नियमों का वर्णन किया गया है। इसमें महावीर के जीवन का भी वर्णन मिलता है।
  • सूत्रक्रितांग- इसमें कर्म और अहिंसा के सिद्धांतों के बारे में और नरक के दु:खों के बारे में वर्णन मिलता है। इनके अतिरिक्त इसमें विरोधी धर्मों के सिद्धांतों का खंडन इस उद्देश्य से किया गया है ताकि जैनियों का अपने धर्म में पक्का विश्वास रहे।
  • स्थानांग-इसमें जैन धर्म के अलग-अलग विषयों के बारे जानकारी दी गई है।
  • समवायांग-इसमें जैन सिद्धांतों का संख्यात्मक ढंग से वर्णन किया गया है।
  • भगवती सूत्र-इसको जैन धार्मिक साहित्य का सबसे महत्त्वपूर्ण ग्रंथ समझा जाता है। इसमें जैन सिद्धांतों का प्रश्न-उत्तर रूप में वर्णन किया गया है। ये प्रश्न स्वामी महावीर के प्रमुख शिष्य गौतम इंद्रभूति द्वारा पूछे गये थे और इनका उत्तर स्वामी महावीर ने स्वयं दिया था।
  • ज्ञात धर्म कथा-इसमें जैन धर्म से संबंधित प्रसिद्ध कथाओं का वर्णन मिलता है। इन कथाओं को उदाहरणों सहित समझाया गया है।
  • उपासकदशा-इसमें स्वामी महावीर के समय के 10 उन अमीर व्यक्तियों की कहानियाँ दी गई हैं जो महावीर के शिष्य बन गए थे और जिन्होंने कठोर तपस्या के बाद मोक्ष प्राप्त किया।
  • अंतक्रिदशा-इसमें उन जैन मुनियों के जीवन का वर्णन मिलता है जिन्होंने कठोर तप के बाद मोक्ष प्राप्त किया।
  • अनउत्तरोपपातिक-इसमें भी कुछ जैन मुनियों के जीवन का वर्णन मिलता है।
  • प्रश्न व्याकरण- इसमें पाँच महाव्रतों और पाँच अणुव्रतों का वर्णन किया गया है।
  • विपाकसूत्र-इसमें अच्छे या बुरे कर्मों से मिलने वाले फलों का वर्णन किया गया है।
  • दृष्टिवाद-यह अंग अब लोप हो चुका है। अन्य ग्रंथों में से इस अंग से संबंधित मिलते विवरणों के आधार पर कहा जा सकता है कि इसमें विभिन्न सिद्धांतों का संक्षेप वर्णन किया गया था।

2. 12 उपांग (The Twelve Upangas)-प्रत्येक अंग का एक-एक उपांग है। इनमें मिथिहासिक कथाओं का अधिक वर्णन मिलता है। इनसे ज्योतिष, भूगोल और ब्रह्मांड आदि के संबंध में जानकारी प्राप्त होती है। कहीं-कहीं ऐतिहासिक घटनाओं का भी जिक्र आता है। 12 उपांगों में राज्य प्रश्नीय नामक उपांग सब से अधिक प्रसिद्ध है। इसमें जैन मुनी केश और पायोस नामक राजा के मध्य हुई वार्तालाप का विवरण लिखा हुआ है।

3. 10 प्राकिरण (The Ten Prakirans)-इनमें जैन धर्म से संबंधित विभिन्न विषयों को पद्य रूप में लिखा गया है। इनसे स्वामी महावीर के जीवन और उसके उपदेशों संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।

4. 6 छेदसूत्र (The Six Chhedasutras)-इनमें जैन भिक्षुओं और भिक्षुणियों के आचार से संबंधित नियमों का वर्णन किया गया है। छेदसूत्रों में कल्पसूत्र को सबसे प्रसिद्ध माना जाता है। इसकी रचना भद्रबाह ने की थी। इसमें स्वामी महावीर की जीवन कथा का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

5. 4 मूलसूत्र (The Four Mulasutras)-4 मूलसूत्रों को जैनी साहित्य में बहुमूल्य समझा जाता है। इनमें जैन धर्म से संबंधित कथाओं और उनसे मिलने वाली शिक्षा, जैन संघ के नियमों और कुछ जैन मुनियों के जीवन तथा उनके उपदेशों के बारे जानकारी प्राप्त होती है। ये सारे मूलरूप में लिखे गये हैं। मूलसूत्रों में उत्तर अध्ययन नामक सूत्र को सबसे महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।

6. 2 विविध पुस्तकें (Two Miscellaneous Texts)—इनमें नंदीसूत्र और अनुयोगद्वार नामक पुस्तकें शामिल हैं। ये एक प्रकार से विश्वकोष हैं। इनमें जैन धर्म की विभिन्न शाखाओं, धार्मिक सिद्धांतों, अर्थशास्त्र और काम शास्त्र के विषयों के संबंध में जानकारी दी गई है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 14.
जैन धर्म का भारतीय सभ्यता को क्या योगदान है ? (What is the Legacy of Jainism to Indian Civilization ?)
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं कि जैन धर्म बौद्ध धर्म की तरह उन्नत हो सका परंतु फिर भी इसने भारत में सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में अपनी गहरी छाप छोड़ी।।

1. सामाजिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Social Field) सामाजिक क्षेत्र में जैनियों ने बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। छठी शताब्दी में हिंदू धर्म में जाति प्रथा बड़ी कठोर हो गई थी। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से सख्त नफ़रत करते थे। शूद्र जाति के लोगों के साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया जाता था। महावीर ने जाति प्रथा का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने अपने धर्म में प्रत्येक धर्म से संबंधित लोगों को शामिल किया। उन्होंने लोगों में आपसी भाईचारे और बराबरी का प्रचार किया। परिणामस्वरूप वह लोगों में फैली आपसी घृणा को काफी सीमा तक दूर करने में सफल हुए। इस प्रकार जैनियों ने भारतीय समाज को एक नया रूप दिया।

2. धार्मिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Religious Field)-धार्मिक क्षेत्र में भी जैनियों का योगदान बहुत प्रशंसनीय था। जैन धर्म ने लोगों को सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। जैन धर्म में फ़िजूल के रीति-रिवाजों, यज्ञों और बलियों आदि के लिए कोई स्थान नहीं था। जैन धर्म के यत्नों के कारण धार्मिक क्षेत्र में फैले बहुत सारे अंध-विश्वासों का अंत हो गया। जैन धर्म की बढ़ती हुई प्रसिद्धि को देखकर हिंदू धर्म के नेताओं ने अपने धर्म को सुरजीत करने के उद्देश्य से अपने धर्म में आवश्यक सुधार किए।

3. सांस्कृतिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Cultural Field)—सांस्कृतिक क्षेत्र में भी जैन धर्म का योगदान बहुत महत्त्वपूर्ण था। जैन धर्म के सिद्धांतों ने अपने ग्रंथ प्राकृत, गुजराती, हिंदी, मराठी, कन्नड़ और तामिल भाषाओं में लिखे। परिणामस्वरूप इन क्षेत्रीय भाषाओं को बहुत उत्साह मिला। इन ग्रंथों में यद्यपि धर्म से संबंधित बातें लिखी गई हैं पर फिर भी इनसे हमें उस समय की भारत की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। इस कारण इन जैनी ग्रंथों को भारतीय इतिहास का एक अमूल्य स्रोत माना जाता है। जैनियों ने कई प्रभावशाली और प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। इन मंदिरों में कई बहुत मनमोहक मूर्तियाँ रखी जाती थीं। राजस्थान में माऊँट आबू और कर्नाटक में श्रावण बेलगोला में बने जैनियों के मंदिर अपनी भूवन निर्माण कला के कारण न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त जैनियों ने भारत में कई प्रसिद्ध स्तूपों का निर्माण भी करवाया।

4. लोक कल्याण के क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Field of Public Welfare)-स्वामी महावीर ने अपने शिष्यों को समाज सेवा का उपदेश दिया था। इसी कारण जैनमत वालों ने लोगों की सहायता के लिए बहुत सी धर्मशालाएँ बनाईं। शिक्षा के प्रचार के लिए शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की, मनुष्यों और पशुओं के इलाज के लिए कई अस्पताल खुलवाए और कई अन्य लोक कल्याण के कार्य भी किए। जैनियों द्वारा स्थापित की गई कई शिक्षा संस्थाएँ आज भी प्रसिद्ध हैं। उनके द्वारा खोले गए अस्पतालों में आज भी ग़रीब रोगियों का मुफ्त इलाज होता है और जानवरों की देखभाल की जाती है।

5. राजनीतिक क्षेत्र में योगदान (Legacy in the Political Field) जैन मत में अहिंसा के सिद्धांत पर बहुत ज़ोर दिया जाता था। इसने लोगों को शांतमयी जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप कई राजाओं ने लड़ाई में हिस्सा लेना बंद कर दिया ताकि निर्दोष लोगों का खून न बहाया जाये। वे शांतिप्रिय बन गए। इसी कारण भारत में काफी समय तक शाँति और खुशहाली का वातावरण रहा परंतु दूसरी ओर इसका भारतीय राजनीति पर कुछ बुरा प्रभाव भी पड़ा। युद्धों में भाग न लेने के कारण भारतीय सेना कमजोर हो गई। परिणामस्वरूप वह बाद में होने वाले विदेशी आक्रमणों का डट कर मुकाबला न कर सकी। इसी कारण भारतीयों को सैंकड़ों वर्षों तक गुलामी का जीवन व्यतीत करना पड़ा।

समूचे रूप में हम यह कह सकते हैं कि जैनियों ने भारतीय समाज को कई क्षेत्रों में बहुमूल्य योगदान दिया। अंत में हम डॉक्टर वी० ए० मंगवी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“वास्तव में भारत में जैनियों की सबसे प्रमुख विशेषता भारतीय संस्कृति को दिया गया उनका बहुमूल्य योगदान का रिकार्ड है। उनकी सीमित एवं थोड़ी जनसंख्या को देखते हुए जैनियों ने जो योगदान भारतीय संस्कृति के विभिन्न पक्षों को दिया वह वास्तव में महान् है।”8

8. “In fact, the most outstanding characteristic of Jainism in India is their very impressive record of contributions to Indian culture in comparison with the limited and small population of Jains, the achievements of Jains in enriching the various aspects of Indian culture are re great.” Dr. V.A. Sangve, Aspects of Jaina Religion (New Delhi: 1990) p. 98.

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
तीर्थंकर से क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Tirthankara ?)
उत्तर-
जैन आचार्यों को तीर्थंकर कहा जाता है। तीर्थंकर से अभिप्राय है संसार के भवसागर से पार करने वाला गुरु। जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर हुए हैं। पहले तीर्थंकर का नाम ऋषभनाथ था। 23वां तीर्थंकर पार्श्वनाथ था। वह स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले हुए। 24वें तीर्थंकर स्वामी महावीर थे। उनको जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उनके समय में जैन धर्म ने अद्वितीय विकास किया।

प्रश्न 2.
पार्श्वनाथ। (Parshvanatha.)
उत्तर-
पार्श्वनाथ जैन धर्म का 23वां तीर्थंकर था। उसकी मुख्य शिक्षाएँ यह थीं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊँट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया।

प्रश्न 3.
स्वामी महावीर। (Lord Mahavira.)
उत्तर-
स्वामी महावीर का जन्म 599 ई० पू० वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ। आपके पिता जी का नाम सिद्धार्थ तथा माता जी का नाम त्रिशला था। महावीर के बचपन का नाम वर्द्धमान था। महावीर की शादी एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से हुई। महावीर ने 30 वर्षों की आयु में गृह त्याग दिया था। उन्होंने 12 वर्ष तक घोर तपस्या के पश्चात् ज्ञान प्राप्त किया। आपने 30 वर्षों तक अपने ज्ञान का प्रसार किया। राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथला, विदेह तथा अंग उनके प्रसिद्ध प्रचार केंद्र थे। 527 ई० पू० उन्होंने पावा में निर्वाण प्राप्त किया।

प्रश्न 4.
भगवान महावीर की शिक्षाओं के बारे में चर्चा कीजिए। (Discuss about the teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
स्वामी महावीर की शिक्षाएँ। (Teachings of Lord Mahavira.)
उत्तर-
स्वामी महावीर ने अपने अनुयायियों को तीन रत्नों पर चलने के लिए कहा। उन्होंने कठोर तप, अहिंसा तथा उच्च आचरण पर जोर दिया। वह समानता, आवागमन तथा कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे। वह ईश्वर, यज्ञों, बलियों, वेद तथा संस्कृत में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार प्रत्येक जैनी को अपने जीवन में पाँच महाव्रतों की पालना करनी चाहिए। उनके अनुसार मानव जीवन का अंतिम उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है।

प्रश्न 5.
त्रि-रत्न। (Tri-Ratna.)
अथवा
त्रि-रत्न क्या हैं ? (What is Tri-Ratna ?)
उत्तर-
स्वामी महावीर जी ने अपने अनुयायियों को तीन रत्नों पर चलने के लिए कहा। ये त्रि-रत्न थे-सच्ची श्रद्धा, सच्चा ज्ञान तथा शुद्ध आचरण। पहले रत्न के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 24 तीर्थंकरों में अटल विश्वास होना चाहिए। दूसरे रत्नानुसार जैनियों को सच्चा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए तथा इनको व्यर्थ के रीति-रिवाज़ों में विश्वास नहीं रखना चाहिए। तीसरे रत्नानुसार प्रत्येक व्यक्ति को सच्चे आचार के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। इनमें से किसी एक ही अनुपस्थिति मनुष्य को उसकी मंज़िल तक नहीं पहुँचा सकती।

प्रश्न 6.
अहिंसा। (Ahimsa.)
उत्तर-
जैन धर्म में अहिंसा की नीति को जितना महत्त्व दिया गया है, उतना विश्व के किसी अन्य धर्म में नहीं दिया गया। अगर अहिंसा को जैन धर्म की आधारशिला कहा जाए तो इसमें कोई संदेह नहीं होगा। अहिंसा से अभिप्राय है कि किसी भी जैव वस्तु को कष्ट न देना। जैन दर्शन के अनुसार मनुष्यों और पशुओं के अतिरिक्त वृक्षों तथा पत्थरों में भी आत्मा का निवास होता है। इस कारण हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी उद्देश्य से जैनी नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और सूर्य छिपने के पश्चात् भोजन नहीं करते।

प्रश्न 7.
स्वामी महावीर की शिक्षा के अनुसार एक जैन भिक्षु को कैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता था ? (According to the teachings of Lord Mahavira how a Jaina monk led his life ?)
उत्तर-

  1. स्वामी महावीर की शिक्षा के अनुसार जैन भिक्षुओं को बहुत स्वच्छ जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
  2. प्रत्येक भिक्षु को पाँच प्रतिज्ञाओं की पालना करनी पड़ती थी।
  3. प्रत्येक भिक्षु को सदैव सत्य बोलना चाहिए। उनको अहिंसा की नीति की पालना करनी पड़ती थी।
  4. प्रत्येक भिक्षु के लिए आवश्यक था कि उनकी वेशभूषा और खाना-पीना बिल्कुल सादा हो।

प्रश्न 8.
स्वामी महावीर जी की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ?
(What was the importance of the teachings of Lord Mahavira in the life of a common man ?)
उत्तर-
स्वामी महावीर जी की शिक्षाएँ साधारण मनुष्य के लिए महत्त्वपूर्ण थीं। भगवान् महावीर ने अपने धर्म में बिना किसी भेद-भाव के प्रत्येक वर्ग के लोगों को शामिल किया। इससे समाज में प्रचलित परस्पर घृणा बहुत सीमा तक दूर हुई और लोगों में परस्पर बंधुत्व एवं प्रेम-भाव बढ़ गया। स्वामी महावीर जी ने समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। साधारण लोग भी इन परंपराओं के विरुद्ध थे। इसलिए उनके हृदयों पर स्वामी महावीर जी की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव पड़ा। स्वामी महावीर जी ने लोगों को समाज सेवा का उपदेश दिया।

प्रश्न 9.
स्वामी महावीर ने कौन-सी धार्मिक तथा सामाजिक बुराइयों का खंडन किया ? (Which religious and social evils were condemned by Lord Mahavira ?)
उत्तर-
स्वामी महावीर ने यज्ञों, बलियों, पुरोहितवाद तथा धर्म के बाहरी दिखावों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। वह मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे। उनको वेदों तथा संस्कृत भाषा की पवित्रता में विश्वास नहीं था। वह जाति प्रथा तथा समाज में प्रचलित अन्य रूढ़िवादी विचारों के घोर विरोधी थे। उन्होंने इन रीतियों को एक ढोंग बताया तथा कहा कि कोई भी व्यक्ति इनका पालन करने से निर्वाण को प्राप्त नहीं कर सकता।

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प्रश्न 10.
दिगंबर। (Digambaras.)
उत्तर-
दिगंबर जैनियों का एक प्रमुख संप्रदाय है। दिगंबर से अभिप्राय है नग्न रहने वाले। इस संप्रदाय के भिक्षु नग्न रहते हैं। इस संप्रदाय को मानने वालों का कहना है कि स्त्रियाँ तब तक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं, लेतीं। उन्हें जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा नहीं दी जा सकती। इस संप्रदाय का कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह नहीं करवाया था। इनका अपना अलग साहित्य है।

प्रश्न 11.
श्वेतांबर। (Svetambaras.)
उत्तर-
श्वेतांबर जैन धर्म का एक प्रमुख संप्रदाय है। श्वेतांबर से अभिप्राय है सफेद वस्त्र धारण करने वाले। इस कारण इस संप्रदाय के लोग सफेद वस्त्र पहनते हैं। इस संप्रदाय के लोगों का कहना है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में ही मुक्ति प्राप्त कर सकती हैं। वे स्त्रियों को जैन संघ में शामिल होने की आज्ञा देते थे। उनका कहना है कि स्वामी महावीर ने विवाह करवाया था। इस संप्रदाय का अपना अलग साहित्य है।

प्रश्न 12.
जैन धर्म भारत में लोकप्रिय क्यों नहीं हो सका ? (Why could not Jainism become popular in India ?)
उत्तर-
जैन धर्म की शिक्षाएँ यद्यपि सरल थीं, परंतु कई कारणों से यह धर्म लोगों में लोकप्रिय न हो सका। पहला, जैन धर्म वालों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया। दूसरा, जैन धर्म को बौद्ध धर्म की भाँति राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं हो सका। तीसरा, जैन धर्म वाले कठोर तप, शरीर को अत्यधिक कष्ट देने में विश्वास रखते थे। इसके अतिरिक्त उनका अहिंसा में आवश्यकता से अधिक विश्वास था। जन सामान्य के लिए इन नियमों का पालन करना बहुत कठिन था। चौथा, बौद्ध धर्म के सिद्धांत सरल थे। परिणामस्वरूप लोगों ने जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म को अपनाना आरंभ कर दिया।

प्रश्न 13.
जैन संघ के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Jain Sangha ?)
उत्तर-
जैन संघ की स्थापन स्वामी महावीर जी ने की थी। इसमें शामिल होने वाले प्रत्येक भिक्षु तथा भिक्षुणियों को अपने माता-पिता और संरक्षक से आज्ञा लेनी पड़ती थी। उनको बहुत अनुशासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था। जैन संघ के सारे सदस्य वर्षा के चार महीनों को छोड़कर बाकी समय अलग-अलग स्थानों पर जाकर धर्म प्रचार करने में व्यतीत करते थे। जैन संघ का मुखिया आचार्य कहलाता था। स्त्रियों के अपने अलग संघ होते थे।

प्रश्न 14.
जैन मत की देन। (Legacy of Jainism.)
अथवा
जैन मत का प्रभाव। (Effects of Jainism.)
उत्तर-
जैन मत ने भारतीय सभ्यता को कई क्षेत्रों में बहुमूल्य देन दी। उन्होंने परस्पर भ्रातृत्व तथा समानता का प्रचार किया। जैन मत ने लोगों को सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। जैन धर्म के विद्वानों ने अनेक भाषाओं में अपने ग्रंथ लिखे। इस कारण क्षेत्रीय भाषाओं को उत्साह मिला। जैनियों ने अनेक प्रभावशाली तथा प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। इस कारण भारतीय भवन निर्माण कला को एक नया उत्साह मिला। जैन धर्म ने शांति का संदेश दिया।

प्रश्न 15.
स्वामी पार्श्वनाथ पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on Lord Parshvanatha.)
उत्तर-
स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म स्वामी महावीर के जन्म से 250 वर्ष पहले बनारस के राजा अश्वसेन के घर हुआ था। उनकी माता जी का नाम वामादेवी था। उनका बचपन बहुत ही ऐश-ओ-आराम में बीता। 30 वर्षों की आयु में पार्श्वनाथ ने अपने सारे सुखों का त्याग कर दिया और सच्चे ज्ञान की खोज में निकल गये। उनको 83 दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने अपने जीवन के बाकी 70 वर्ष अपने उपदेशों का प्रचार करने में व्यतीत किये। 777 ई० पू० के लगभग उन्होंने बिहार के माऊँट समेता नामक पहाड़ी पर निर्वाण प्राप्त किया। पार्श्वनाथ की शिक्षा को चार्तुयाम अथवा चार प्रण कहते हैं। यह चार प्रण ये हैं—

  1. सजीव वस्तुओं को कष्ट न पहुँचायें (अहिंसा)।
  2. झूठ न बोलो (सुनृत)।
  3. बिना दिये कुछ न लो (अस्तेय)।
  4. सांसारिक पदार्थों से मोह न करो (अपरिग्रह)।

प्रश्न 16.
स्वामी महावीर पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर के महत्त्व को दर्शाइए।
(Describe the importance of 24th Tirthankar of Jainism.)
उत्तर-
स्वामी महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे। उन्हें जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। उनका जन्म 599 ई० पू० वैशाली के निकट कुंडग्राम में हुआ। उनके पिता जी का नाम सिद्धार्थ तथा माता जी का नाम त्रिशला था। महावीर का बचपन का नाम वर्द्धमान था। वे शुरू से ही बहुत विचारशील थे। वे सांसारिक कार्यों में बहुत कम रुचि लेते थे। महावीर की शादी एक सुंदर राजकुमारी यशोदा से की गई। उनके घर एक पुत्री ने जन्म लिया जिसका नाम प्रियदर्शना अथवा अनोजा रखा गया। महावीर ने 30 वर्षों की आयु में गृह त्याग दिया था। उन्होंने 12 वर्ष तक घोर तपस्या के पश्चात् ज्ञान प्राप्त किया। उन्होंने लोगों में फैले अंधकार को दूर करने के लिए अपने ज्ञान का प्रसार किया। राजगृह, वैशाली, कौशल, मिथला, विदेह तथा अंग उनके प्रसिद्ध प्रचार केंद्र थे। महावीर ने त्रि-रत्न अहिंसा, कठिन तप, शुद्ध आचरण आदि पर बल दिया। वह यज्ञों, बलियों, वेदों, संस्कृत भाषा तथा ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखते थे। 527 ई० पू० उन्होंने पावा में निर्वाण प्राप्त किया। निस्संदेह जैन धर्म के विकास में उनका योगदान बहुमूल्य था।

प्रश्न 17.
भगवान महावीर की शिक्षाओं के बारे में चर्चा कीजिए।
(Discuss about the teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
स्वामी महावीर की शिक्षाएँ का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Discuss briefly the teachings of Lord Mahavira.)
अथवा
जैन धर्म की मुख्य शिक्षाएँ क्या थीं?
(What were the main teachings of Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म की प्रमुख शिक्षाओं के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the pre-eminent teaching of Jainism.)
अथवा
जैन धर्म का आधार उसकी नैतिक कीमतें हैं। संक्षिप्त चर्चा करें।
(The base of Jainism is their Ethical values. Discuss in brief.)
अथवा
जैन धर्म की नैतिक कीमतों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the moral-values of Jainism.)
अथवा
नैतिक कीमतें जैन धर्म में प्रमुख हैं। चर्चा कीजिए।
(Moral values are supreme in Jainism. Discuss.)
उत्तर-
स्वामी महावीर जी की शिक्षाएँ अत्यंत सरल एवं प्रभावशाली थीं। उनके अनुसार मानव जीवन का परम उद्देश्य निर्वाण (मुक्ति) प्राप्त करना है। अतः उन्होंने अपने अनुयायियों को तीन रत्नों—

  1. सच्ची श्रद्धा,
  2. सच्चा ज्ञान,
  3. और शुद्ध आचरण पर चलने के लिए कहा।

वे कठोर तप में विश्वास रखते थे। वे अहिंसा पर बहुत ज़ोर देते थे। उनके अनुसार मनुष्य और पशुओं के अतिरिक्त हमें पेड़-पौधों और पक्षियों आदि को भी कष्ट नहीं देना चाहिए। वे आवागमन और कर्म सिद्धांतों में विश्वास रखते थे। उन्होंने समानता व आपसी भाईचारे का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने हिंदू धर्म में फैले झूठे रीति-रिवाजों और यज्ञों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। वे वेदों और संस्कृत भाषा की पवित्रता में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने अपना प्रचार लोगों की साधारण भाषा में किया। वे परमात्मा के अस्तित्व में भी विश्वास नहीं रखते थे। उनका कथन था कि मनुष्य अपने भाग्य का स्वयं निर्माता है। अतः उसे ईश्वर की सहायता की आवश्यकता नहीं है। जैसा मनुष्य कर्म करेगा उसे वैसा ही फल प्राप्त होगा। वे तीर्थंकरों की उपासना में विश्वास रखते थे।

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प्रश्न 18.
त्रि-रत्न से क्या भाव है ? इसका क्या महत्त्व है ? (What is meant by Tri-Ratnas ? What is its importance ?)
अथवा
त्रि-रत्न से क्या भाव है ?
(What is meant by Tri-Ratnas ?)
अथवा
आप त्रि-रत्न के बारे में क्या जानते हैं ? (What do you understand by Tri-Ratna ?)
अथवा
जैन धर्म के तीन रत्नों का उल्लेख करें। (Write about the Tri-Ratnas of Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम उद्देश्य मोक्ष अथवा निर्वाण प्राप्त करना है। इसको प्राप्त करने के लिए जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए त्रि-रत्नों पर चलना अति ज़रूरी है। ये तीन रत्न हैंसच्चा विश्वास, सच्चा ज्ञान और सच्चा आचार। पहले रत्न के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को 24 तीर्थंकरों, नौ सच्चाइयों और जैन शास्त्रों में अटल विश्वास होना चाहिए। दूसरे रत्नानुसार जैनियों को सच्चा और पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यह तीर्थंकरों के उपदेशों के गहरे अध्ययन से प्राप्त होता है। इस ज्ञान के दो रूप बताये गये हैं जिनको प्रत्यक्ष और परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। आत्मा द्वारा प्राप्त ज्ञान को प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं और वह ज्ञान जो इंद्रियों के द्वारा प्राप्त होता है उसको परोक्ष ज्ञान कहा जाता है। तीसरे रत्नानुसार प्रत्येक व्यक्ति को सच्चे आचार के अनुसार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए। सच्चा आचार वह है जिसकी शिक्षा जैन धर्म देता है। ये तीनों रत्न साथ-साथ चलते हैं। इनमें से किसी एक की अनुपस्थिति मनुष्य को उसकी मंज़िल तक नहीं पहुँचा सकती। उदाहरण के तौर पर जैसे एक दीये को प्रकाश देने के लिए उसमें तेल, बाती और आग का होना ज़रूरी है। यदि इसमें से एक भी वस्त की कमी हो तो वह प्रकाश नहीं दे सकता।

प्रश्न 19.
जैन धर्म में अहिंसा का क्या महत्त्व है ? (What is the importance Ahimsa in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में अहिंसा के महत्त्व का वर्णन करें।
(Explain the importance of Ahimsa in Jainism.)
उत्तर-
जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत ज़ोर दिया गया है। अहिंसा की महत्ता बताते हुए आचारंग सूत्र में कहा गया है, “सभी को अपना-अपना जीवन प्यारा है, सब ही सुख चाहते हैं, दुःख कोई नहीं चाहता, अधिक कोई नहीं चाहता, सब को जीवन प्यारा है और सारे ही जीने की इच्छा रखते हैं।” इसीलिए जो हमारे लिए सुखमयी है वह दूसरों के लिए भी सुखमयी है। हिंसा दो तरह की होती है-मन से हिंसा और कर्म से हिंसा। कर्म अथवा अमल में आने वाली हिंसा से पहले मन भाव विचारों में हिंसा आती है। गुस्सा, अहंकार, लालच और धोखा मन की हिंसा है। इसलिए हिंसा से बचने के लिए मन के विचारों को शुद्ध करना अति ज़रूरी है। जैन धर्म के अनुसार मनुष्यों के अतिरिक्त पशुओं, पत्थरों .और वृक्षों आदि में भी आत्मा निवास करती है। इसलिए हमें किसी जीव या निर्जीव को कष्ट नहीं देना चाहिए। इसी कारण जैनी लोग नंगे पाँव चलते हैं, मुँह पर पट्टी बाँधते हैं, पानी छान कर पीते हैं और अंधेरा हो जाने के बाद कुछ नहीं खाते ताकि किसी जीव की हत्या न हो जाये।

प्रश्न 20.
जैन धर्म की नौ सच्चाइयों पर नोट लिखो। (Write a short note on the Nine Truths of the Jainism.)
अथवा
जैन धर्म के नौ-तत्त्वों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the Nine Tatvas of Jainism.)
उत्तर-
जैन दर्शन नौ सच्चाइयों की शिक्षा देता है। ये सच्चाइयाँ हैं—

  1. जीव-जैन दर्शन में आत्मा को जीव कहा गया है। यह चेतन सुरूप है। यह शरीर के कर्मों के अच्छे-बुरे फल भुगतता है और आवागमन के चक्र में पड़ता है।
  2. अजीव-यह जंतु पदार्थ है। यह निर्जीव है और इनमें समझ नहीं होती। इनकी दो श्रेणियाँ हैं रूपी और अरूपी।
  3. पुण्य-यह अच्छे कर्मों का नतीजा है। इसके नौ साधन हैं।
  4. पाप-यह जीव के बंधन का मुख्य कारण है। इसके परिणामस्वरूप घोर सजायें मिलती हैं।
  5. अशर्व-यह वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार आत्मा अपने अंदर कर्मों को संचित करती रहती है। कर्म 8 किस्मों के होते हैं।
  6. संवर-कर्म को आत्मा की ओर आने की क्रिया को रोकने को संवर कहते हैं। कर्म को रोकने की 57 विधियाँ हैं।
  7. बंध-इससे भाव बंधन है। यह जीव (आत्मा) का पुदगल (परमाणु) से मेल है। बंध के लिए पाँच कारण जिम्मेवार हैं।
  8. निर्जर-इस से भाव है दूर भगाना। यह कर्मों को नष्ट करने और जल देने का कार्य करता है।
  9. मोक्ष-इसमें जीव कर्मों के जंजाल से मुक्त हो जाता है। यह पूर्ण शाँति की अवस्था है जिसमें हर तरह के दुःखों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है।

प्रश्न 21.
जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of Karma Theory in Jain Philosophy ?)
अथवा
जैन धर्म का कार्य सिद्धांत के बारे में क्या विचार है ? (What is meant by Karma Theory of Jainism ?)
उत्तर-
जैन दर्शन में कर्म सिद्धांत को एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस सिद्धांत के अनुसार, “जैसा करोगे वैसा भरोगे, जैसा बीजोगे वैसा काटोगे, यदि कर्म अच्छे होंगे तो अच्छा फल मिलेगा, बुरा करोगे तो बुरा होगा, किसी भी स्थिति में कर्मों से छुटकारा नहीं मिलेगा।” जैसे ही हमारे मन में कोई अच्छा या बुरा विचार आता है वह तुरंत जीव (आत्मा) से उसी तरह जुड़ जाता है, जैसे तेल लगे हुए शरीर से धूलि कण चिपक जाते हैं। ये कर्म आठ प्रकार के हैं-

  1. ज्ञानवर्णीय कर्म- यह आत्मा के ज्ञान को रोकते हैं।
  2. दर्शनवीय कर्म- यह आत्मा की इच्छा शक्ति को रोकते हैं।
  3. वैदनीय कर्म-ये सुख-दुःख उत्पन्न करने वाले कर्म हैं।
  4. मोहनीय कर्म-ये आत्मा को मोह माया में फंसाने वाले कर्म हैं।
  5. आयु कर्म-ये कर्म मनुष्य की आयु को निर्धारित करते हैं।
  6. नाम कर्म-ये कर्म मनुष्य के व्यक्तित्व को निर्धारित करते हैं।
  7. गोत्र कर्म-ये व्यक्ति के गोत्र और समाज में उसके ऊँचे या नीचे स्थान को निर्धारित करते हैं।
  8. अंतरीय कर्म-ये अच्छे कर्म को रोकने वाले कर्म हैं।

प्रश्न 22.
जैन धर्म में जीव एवं अजीव से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Jiva and Ajiva in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में जीव से क्या अभिप्राय है?
(What is meant by Jiva in Jainism ?)
उत्तर-
1. जीव-जीव शब्द का अर्थ है आत्मा। यह चेतन तथ्य है। जैन दर्शन में जीव दो प्रकार के हैं। इनको सांसारिक जीव और मुक्त जीव कहा जाता है। सांसारिक जीव को बंधन जीव भी कहते हैं। यह जीव आवागमन के चक्र में रहता है और अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और अपने अच्छे बुरे फल भुगतता है। मुक्त जीव वह जीव है जो पुनर्जन्म से रहित है। यह जीव अनंत ज्ञान वाला, अनंत शक्ति वाला और अनंत गुणों वाला होता है। यह जीव कर्मों के जाल से मुक्त होता है।

2. अजीव-अजीव से भाव उन जड़ पदार्थों से है जिनमें चेतना नहीं होती जैसे पुस्तक, कागज़, मेज़ और स्याही आदि। उदाहरण के तौर पर ऊँट के शरीर में जीव फैल कर ऊँट जितना बड़ा हो जाता है और कीड़ी के शरीर में सिकुड़ कर कीड़ी जितना हो जाता है । यह जीव तब नहीं दिखाई देता है परंतु शरीर की क्रियाओं के आधार पर इसकी उपस्थिति का ज्ञान हो जाता है। परंतु जब शरीर का अंत हो जाता है तो जीव लोप हो जाता है। जीव जिस शरीर को धारण करता है वह उस के आकार का ही हो जाता हैं।

प्रश्न 23.
जैन धर्म में पाप एवं पुण्य से क्या अभिप्राय है ? (What is meant by Papa and Punya in Jainism ?)
अथवा
जैन धर्म में पाप से क्या अभिप्राय है ?
(What is meant by Paap in the Jainism ?)
उत्तर-
1. पाप-पाप को जीव के बंधन का मुख्य कारण माना जाता है। जीवों को मारना, झूठ, चोरी, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, धोखा, नशा और दुश्मनी आदि सब पापों के भार में वृद्धि करते हैं। पापियों को घोर सजायें मिलती हैं। आपने देखा होगा कि एक ही घर में पैदा हुए दो सगे भाइयों के जीवन में भारी अंतर होता है। एक ऊँची पदवी पर सुशोभित होता है और उसको प्रसिद्धि प्राप्त होती है। दूसरा दर-दर की ठोकरें खाता फिरता है, चोरियाँ करता है और बदनामी कमाता है। ऐसा क्यों होता है ? जैन दर्शन के अनुसार ऐसा व्यक्ति के पुण्य और पाप कमाने का कारण होता है। पापी मनुष्य कभी भी सुखी नहीं हो सकता और उसको अपने जीवन में घोर संकट का सामना करना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति की आत्मा भी तड़पती रहती है। जैन सूत्रों के अनुसार पापों के 82 अलगअलग परिणाम निकलते हैं।

2. पुण्य-पुण्य वह कर्म है जो अच्छे अमलों से कमाये जाते हैं। पुण्य कमाने के अलग-अलग ढंग हैं। भूखे को खाना देना, प्यासे को पानी पिलाना, नंगे को कपड़ा देना, हाथों से सेवा करनी, मीठा बोलना आदि पुण्य के काम हैं, पुण्य को मानने के 42 साधन हैं। अच्छी सेहत, आर्थिक समृद्धि, प्रसिद्धि, अच्छा वैवाहिक जीवन, अच्छे रिश्तेदारों और दोस्तों का मिलना, अच्छी पढ़ाई और उच्च पदवियों पर नियुक्ति आदि अच्छे पुण्यों का ही नतीजा है। पुण्य को आत्मा का सहायक माना जाता है क्योंकि इससे खुशी प्राप्त होती है।

प्रश्न 24.
महावीर जी की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ? (What was the importance of Mahavira’s teachings in the life of a common man ?)
उत्तर-
महावीर जी की शिक्षाएँ साधारण मनुष्य के लिए महत्त्वपूर्ण थीं। उस समय हिंदू धर्म में जाति प्रथा बहुत कठोर हो गई थी। उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से घृणा करते थे। भगवान महावीर ने अपने धर्म में _बिना किसी भेद-भाव के प्रत्येक वर्ग के लोगों को शामिल किया। इससे समाज में प्रचलित परस्पर घृणा बहुत सीमा तक दूर हुई और लोगों में परस्पर बंधुत्व एवं प्रेम-भाव बढ़ गया। महावीर जो ने समाज में प्रचलित अंध-विश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। साधारण लोग भी इन परंपराओं के विरुद्ध थे। इसलिए उनके हृदयों पर महावीर जी की शिक्षाओं का गहरा प्रभाव पड़ा। महावीर जी की अहिंसा नीति के कारण लोगों को युद्ध से घृणा हो गई और वे शाँति को पसंद करने लगा। महावीर जी ने लोगों को समाज सेवा का उपदेश दिया। परिणामस्वरूप जैन मत वालों ने लोगों की सहायता के लिए बहुत-सी धर्मशालाएँ बनवाईं। शिक्षा प्रचार के लिए शिक्षा संस्थाएँ और मनुष्यों एवं पशुओं की चिकित्सा के लिए अस्पताल खोले।

प्रश्न 25.
महावीर की शिक्षा के अनुसार एक जैन भिक्षु को कैसा जीवन व्यतीत करना पड़ता था ?
(What type of life a Jain monk had to lead according to the teachings of Mahavira ?)
उत्तर-
महावीर की शिक्षा के अनुसार जैन भिक्षुओं को बहुत स्वच्छ जीवन व्यतीत करना पड़ता था। प्रत्येक भिक्षु को पाँच प्रतिज्ञाओं की पालना करनी पड़ती थी।

  1. प्रत्येक भिक्षु को सदैव सत्य बोलना चाहिए।
  2. उसको अहिंसा की नीति पर चलना चाहिए।
  3. उसको कोई भी ऐसी वस्तु अपने पास नहीं रखनी चाहिए जो उसको दान में प्राप्त न हुई हो।
  4. उसको अपने पास धन नहीं रखना चाहिए।
  5. उसको ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।

इनके अतिरिक्त भिक्षु के लिए आवश्यक था कि उनकी वेश-भूषा और खाना-पीना बिल्कुल सादा हो। उनके लिए छाता और सुगंध देने वाली वस्तुओं के प्रयोग करने पर प्रतिबंध था। भिक्षु के लिए किसी स्त्री से बातचीत करने पर भी प्रतिबंध था। उनको सदैव मीठे वचन बोलने के लिए कहा गया था जिससे किसी को दुःख न पहुँचे। उनको इस बात का भी ध्यान रखना पड़ता था कि उनके चलने से या खान-पीने में किसी जीव की हत्या न हो।

प्रश्न 26.
दिगंबर और श्वेतांबर पर एक नोट लिखें। (Write a note on Digambara and Svetambara.)
अथवा
दिगंबर तथा श्वेतांबर से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you understand by Digambara and Svetambara ?)
उत्तर-
जैन धर्म के सभी संप्रदायों में से दिगंबर तथा श्वेतांबर संप्रदायों को प्रमुख स्थान प्राप्त है। दिगंबर से अभिप्राय था नग्न रहने वाले तथा श्वेतांबर से अभिप्राय था श्वेत (सफ़ेद) वस्त्र धारण करने वाले। इन दोनों संप्रदायों में प्रमुख अंतर निम्नलिखित अनुसार थे—

  1. दिगंबर संप्रदाय के अनुयायी नग्न रहते हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय के अनुयायी सफ़ेद वस्त्र धारण करते हैं।
  2. दिगंबर संप्रदाय स्त्रियों को जैन संघ में सम्मिलित होने की आज्ञा नहीं देता जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वाले ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाते।
  3. दिगंबर संप्रदाय वालों का कहना है कि स्त्रियां तब एक मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकती जब तक वे पुरुष के रूप में जन्म नहीं लेतीं। श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस सिद्धांत को गलत मानते हैं। उनका कथन है कि स्त्रियाँ इसी जन्म में मोक्ष प्राप्त कर सकती हैं।
  4. दिगंबर संप्रदाय वालों का यह कथन है कि स्वामी महावीर जी ने विवाह नहीं करवाया था। श्वेतांबर संप्रदाय वालों का यह कथन है कि स्वामी महावीर जी ने विवाह करवाया था तथा उनकी एक पुत्री थी जिसका नाम प्रियदर्शना था।
  5. दिगंबर संप्रदाय वालों का कथन है कि ज्ञान प्राप्त करने वाले साधुओं को भोजन की आवश्यकता नहीं रहती जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वाले इस बात का खंडन करते हैं।
  6. दिगंबर तथा श्वेतांबर संप्रदायों का साहित्य भी अलग-अलग है।
  7. दिगंबर संप्रदाय वालों की मूर्तियाँ नंगेज हैं जबकि श्वेतांबर संप्रदाय वालों की मूर्तियों को वस्त्र पहनाए जाते हैं तथा उन्हें गहनों से सुसज्जित किया जाता है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 27.
जैन धर्म भारत में लोकप्रिय क्यों नहीं हो सका ? (Why could not Jainism become popular in India ?)
उत्तर-
जैन धर्म की शिक्षाएँ यद्यपि सरल थीं, परंतु कई कारणों से यह धर्म लोगों में लोकप्रिय न हो सका। पहला, जैन धर्म वालों ने अपने धर्म के प्रचार के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया। किसी भी धर्म की सफलता के लिए ऐसा किया जाना आवश्यक होता है। दूसरा, जैन धर्म को बौद्ध धर्म की भाँति राजकीय संरक्षण प्राप्त नहीं हो सका। यह सही है कि बिंबिसार, अजातशत्रु और खारवेल जैसे शासकों ने जैन धर्म को अपना संरक्षण दिया, परंतु वे बौद्ध धर्म की भाँति जैन धर्म को प्रगति के शिखर तक पहुँचाने में विफल रहे। तीसरा, जैन धर्म वाले कठोर तप, शरीर को अत्यधिक कष्ट देने में विश्वास रखते थे। इसके अतिरिक्त उनका अहिंसा में आवश्यकता से अधिक विश्वास था। वे मुँह पर पट्टी बाँधते थे, नंगे पाँव चलते थे और पानी छान कर पीते थे ताकि किसी जीव की मृत्यु न हो जाए। वे वृक्षों और पत्थरों को भी प्राणवान् मानते थे। इसलिए इन्हें कष्ट देना भी पाप समझा जाता था। वे बीमार पड़ने पर औषधि का भी प्रयोग नहीं करते थे। जन सामान्य के लिए इन नियमों का पालन करना बहुत कठिन था। चौथा, जैन धर्म के लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी था कि उस समय बौद्ध धर्म के सिद्धांत भी बहुत सरल थे। परिणामस्वरूप लोगों ने जैन धर्म की अपेक्षा बौद्ध धर्म को अपनाना आरंभ कर दिया। पाँचवां, समय के साथ-साथ जैन लोगों ने हिंदू धर्म के कई सिद्धांतों को अपना लिया। परिणामस्वरूप वे अपने अलग अस्तित्व को न बनाए रख सके।

प्रश्न 28.
जैन स्रोत। (The Jaina Sources.)
उत्तर-
जैन स्रोत प्राचीन भारत के इतिहास पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं। जैनियों ने अनेक ग्रंथों की रचना की। ये ग्रंथ प्राकृत अथवा अर्द्ध मगधी जो उस समय लोगों की बोलचाल की आम भाषा थी में लिखे गए हैं। जैनियों के धार्मिक ग्रंथों में 12 अंशों को सबसे महत्त्वपूर्ण एवं पवित्र समझ जाता है। इनमें महावीर के जीवन तथा जैन धर्म के सिद्धांतों पर प्रकाश डाला गया है। जैन धर्म के 12 उपांग भी हैं। इनमें अधिकाँश मिथिहासिक कथाओं का वर्णन मिलता है। जैन धर्म के 10 प्राकिरणों से महावीर के जीवन एवं उसके उपदेशों संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। 6 छेदसूत्रों में जैन भिक्षु एवं भिक्षुणियों के नियमों का वर्णन किया गया है। जैनी साहित्य में 4 मूलसूत्रों को बहुमूल्य समझा जाता है। इनसे जैन धर्म से संबंधित कथाओं के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध होती है।

प्रश्न 29.
जैन मत की भारतीय सभ्यता को क्या देन है ? (What is the legacy of Jainism to the Indian Civilization ?)
उत्तर-
जैन मत ने भारतीय सभ्यता को कई क्षेत्रों में बहुमूल्य देन दी। महावीर ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने अपने धर्म में प्रत्येक जाति से संबंधित लोगों को शामिल किया। उन्होंने परस्पर भ्रातृत्व तथा समानता का प्रचार किया। परिणामस्वरूप समाज में फैली घृणा को काफ़ी सीमा तक दूर किया जा सका। जैन मत ने लोगों को सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। इसके प्रयत्नों के कारण लोगों में फैले बहुत-से धार्मिक अंध-विश्वासों का अंत हो गया। जैन धर्म की बढ़ती हुई प्रसिद्धि को देख कर हिंदू धर्म के नेताओं ने इसमें आवश्यक सुधार किए। जैन धर्म के विद्वानों ने अनेक भाषाओं में अपने ग्रंथ लिखे। इस कारण क्षेत्रीय भाषाओं को उत्साह मिला। ये ग्रंथ भारतीय इतिहास के बहुमूल्य स्रोत हैं। जैनियों ने अनेक प्रभावशाली तथा प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया। इस कारण भारतीय भवन निर्माण कला को एक नया उत्साह मिला। जैन धर्म ने लोगों के कल्याण के लिए अनेक धर्मशालाएँ, शौक्षिक संस्थाएँ तथा अस्पतालों आदि की स्थापना की जो आज भी जारी हैं। जैन धर्म ने शाँति का संदेश दिया। यह युद्धों के विरुद्ध था। इसका भारतीय राजनीति पर बुरा प्रभाव पड़ा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. ‘जैन’ शब्द से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-विजेता।

प्रश्न 2. जैन धर्म को आरंभ में क्या नाम दिया गया था ?
उत्तर-निग्रंथ।

प्रश्न 3. निग्रंथ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-बंधनों से मुक्त।

प्रश्न 4. जैन आचार्यों को किस अन्य नाम से जाना जाता था ?
उत्तर-तीर्थंकर।

प्रश्न 5. तीर्थंकर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-संसार के भवसागर से पार कराने वाला गुरु।

प्रश्न 6. जैन धर्म में कुल कितने तीर्थंकर हुए हैं ?
उत्तर-24 तीर्थंकर।।

प्रश्न 7. जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर का क्या नाम था ?
अथवा
जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम बताओ।
उत्तर-ऋषभदेव।

प्रश्न 8. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर कौन थे ?
उत्तर-पार्श्वनाथ।

प्रश्न 9. स्वामी पार्श्वनाथ जैन धर्म के कौन-से तीर्थंकर थे ?
उत्तर-23वें।

प्रश्न 10. स्वामी पार्श्वनाथ का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-बनारस में।

प्रश्न 11. स्वामी पार्श्वनाथ के पिता जी कौन थे ?
उत्तर- बनारस के राजा अश्वसेन।

प्रश्न 12. स्वामी पार्श्वनाथ ने जब अपना घर त्याग दिया उस समय उनकी आयु कितनी थी ?
उत्तर-30 वर्ष।

प्रश्न 13. स्वामी पार्श्वनाथ ने कितने दिनों के घोर तप के बाद परम ज्ञान प्राप्त किया ?
उत्तर-83 दिनों के।

प्रश्न 14. स्वामी पार्श्वनाथ ने कितने सिद्धांतों का प्रचलन किया ?
उत्तर-स्वामी पार्श्वनाथ ने चार सिद्धांतों का प्रचलन किया।

प्रश्न 15. स्वामी पार्श्वनाथ के सिद्धांतों को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-चातुर्याम।

प्रश्न 16. स्वामी पार्श्वनाथ का कोई एक सिद्धांत बताएँ।
उत्तर-कभी झूठ न बोलो।

प्रश्न 17. स्वामी पार्श्वनाथ ने कितने वर्ष प्रचार किया ?
उत्तर-स्वामी पार्श्वनाथ ने 70 वर्ष प्रचार किया।

प्रश्न 18. स्वामी पार्श्वनाथ ने कब निर्वाण प्राप्त किया?
उत्तर-777 ई० पू०।

प्रश्न 19. जैन धर्म का संस्थापक कौन था और वह कितना तीर्थंकर था ?
उत्तर-जैन धर्म का संस्थापक स्वामी महावीर था और वह 24वां तीर्थंकर था।

प्रश्न 20. जैन धर्म का अंतिम तीर्थंकर कौन था ?
अथवा
जैन धर्म का 24वां तीर्थंकर कौन था ?
उत्तर-स्वामी महावीर जी।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 21. जैन धर्म के पहले व आखिरी तीर्थंकर का नाम बताएँ।
उत्तर-जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम ऋषभदेव था तथा आखिरी तीर्थंकर का नाम स्वामी महावीर था।

प्रश्न 22. स्वामी महावीर जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-599 ई० पू० कुंडग्राम में।

प्रश्न 23. स्वामी महावीर जी का जन्म कहाँ हुआ ?
उत्तर-कुंडग्राम में।

प्रश्न 24. स्वामी महावीर जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-सिद्धार्थ।

प्रश्न 25. स्वामी महावीर जी की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-त्रिशला।

प्रश्न 26. भगवान् महावीर जी के जन्म से पूर्व उनकी माता को कितने स्वप्न आए थे ?
उत्तर-14.

प्रश्न 27. स्वामी महावीर जी का आरंभिक नाम क्या था ?
उत्तर-वर्धमान।

प्रश्न 28. स्वामी महावीर जी का संबंध किस कबीले के साथ था ?
उत्तर-जनत्रिका।

प्रश्न 29. स्वामी महावीर जी का विवाह किसके साथ हुआ ?
उत्तर-यशोदा से।

प्रश्न 30. स्वामी महावीर जी की पुत्री का क्या नाम था ?
उत्तर-प्रियदर्शना।

प्रश्न 31. घर त्याग के समय स्वामी महावीर जी की आयु कितनी थी?
उत्तर-30 वर्ष।

प्रश्न 32. स्वामी महावीर जी ने कितने वर्षों तक कठोर तप किया ?
उत्तर-12 वर्ष।

प्रश्न 33. स्वामी महावीर जी ने कौन-सी आयु में ज्ञान प्राप्त किया ?
उत्तर-42 वर्ष की।

प्रश्न 34. कैवल्य ज्ञान से क्या भाव है ?
उत्तर-सर्वोच्च सत्य।

प्रश्न 35. स्वामी महावीर जी ने कितने वर्षों तक प्रचार किया ?
उत्तर-30 वर्ष।

प्रश्न 36. स्वामी महावीर जी के कोई दो प्रसिद्ध प्रचार केंद्रों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. राजगृह
  2. वैशाली।

प्रश्न 37. स्वामी महावीर जी ने कब निर्वाण प्राप्त किया?
उत्तर-527 ई० पू०।

प्रश्न 38. स्वामी महावीर जी ने कहाँ निर्वाण प्राप्त किया था ?
उत्तर-पावा में।

प्रश्न 39. स्वामी महावीर जी ने जब निर्वाण प्राप्त किया तब उनकी आयु क्या थी ?
उत्तर-72 वर्ष।

प्रश्न 40. जैन धर्म की बुनियादी कीमतें किसने निर्धारित की ?
उत्तर-स्वामी महाबीर जी ने।

प्रश्न 41. जैन धर्म की कोई एक प्रमुख शिक्षा बताएँ।
उत्तर-जैन धर्म अहिंसा में विश्वास रखता था।

प्रश्न 42. त्रिरत्न किस धर्म के साथ संबंधित है ?
उत्तर-जैन धर्म के साथ।

प्रश्न 43. जैन धर्म के तीन रत्न कौन-से हैं ?
अथवा
जैन धर्म के त्रिरत्नों के नाम बताएँ।
अथवा
जैन धर्म के तीन रत्न क्या हैं ?
उत्तर-

  1. सत्य-श्रद्धा
  2. सत्य-ज्ञान
  3. सत्य-आचरण।

प्रश्न 44. जैन धर्म में ब्रह्मचर्य का सिद्धांत किसने प्रचलित किया ?
उत्तर-स्वामी महावीर जी ने।

प्रश्न 45. जैन धर्म दर्शन में कितने तत्त्व माने गए हैं ?
उत्तर-9.

प्रश्न 46. जैन धर्म की कोई दो सच्चाइयाँ बताएँ।
उत्तर-

  1. पाप
  2. पुण्य।

प्रश्न 47. जैन दर्शन में आत्मा को क्या कहा गया है ?
उत्तर-जीव।

प्रश्न 48. जैन दर्शन में अजीव की कौन-सी दो श्रेणियाँ हैं ?
उत्तर-

  1. रूपी
  2. अरूपी

प्रश्न 49. जैन दर्शन में कर्म को आत्मा की ओर आने की क्रिया को रोकने को क्या कहते हैं ?
उत्तर-संवर।

प्रश्न 50. जैन धर्म में अशर्व के क्या अर्थ है ?
उत्तर-वह प्रक्रिया जिसके अनुसार आत्मा अपने अंदर कर्मों को संचित करती रहती है।

प्रश्न 51. जैन धर्म में पुदगल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-परमाणु।

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प्रश्न 52. जैन धर्म के अनुसार कर्म कितनी प्रकार के हैं ?
उत्तर-8 प्रकार के।

प्रश्न 53. जैन धर्म के किसी एक प्रकार के कर्म का नाम बताएँ।
उत्तर-ज्ञानवर्णनीय कर्म।

प्रश्न 54. जैन धर्म में जीव से क्या भाव है ?
उत्तर-आत्मा।

प्रश्न 55. जैन धर्म में अजीव से क्या भाव है ?
उत्तर-जड़ पदार्थ।

प्रश्न 56. जैन दर्शन में कितनी प्रकार की हिंसा का वर्णन मिलता है ?
उत्तर-108 प्रकार की।

प्रश्न 57. जैन दर्शन में पुण्य को मानने के कितने साधन हैं ?
उत्तर-42.

प्रश्न 58. जैन दर्शन के अनुसार पाप के कितनी प्रकार के परिणाम निकलते हैं ?
उत्तर-82 प्रकार के।

प्रश्न 59. अनेकांतवाद का सिद्धांत किस धर्म के साथ संबंधित है ?
उत्तर-जैन धर्म के साथ।

प्रश्न 60. जैन दर्शन के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन में कितने अणुव्रतों की पालना करनी चाहिए ?
उत्तर-पाँच अणुव्रतों की।

प्रश्न 61. जैन धर्म में निर्वाण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-आवागमन के चक्र से मुक्ति।

प्रश्न 62. जैन धर्म को नास्तिक धर्म क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-क्योंकि यह धर्म ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं रखता।

प्रश्न 63. अजीविक संप्रदाय का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-गौशाल।

प्रश्न 64. अजीविक संप्रदाय का प्रमुख सिद्धांत क्या था ?
उत्तर-इस संप्रदाय का प्रमुख सिद्धांत नियति (किस्मत) था।

प्रश्न 65. जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदाय कौन-से हैं ?
उत्तर-जैन धर्म के दो प्रमुख संप्रदायों के नाम दिगंबर एवं श्वेतांबर है।

प्रश्न 66. दिगंबर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-दिगंबर से अभिप्राय है नग्न रहने वाला।

प्रश्न 67. श्वेतांबर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-श्वेतांबर से अभिप्राय है श्वेत वस्त्र धारण करने वाला।

प्रश्न 68. लोंक सा कौन था ?
उत्तर-लोक सा लोंक संप्रदाय का मुखिया था।

प्रश्न 69. स्थानकवासी संप्रदाय का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-वीराजी।

प्रश्न 70. तेरा पंथ का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-भीखनजी।

प्रश्न 71. जैन संघ में कितनी तरह के लोग शामिल होते हैं ?
उत्तर-चार तरह के।

प्रश्न 72. जैन संघ में किन्हें सम्मिलित होने की आज्ञा नहीं थी ?
उत्तर- अधर्मी व्यक्तियों को।

प्रश्न 73. जैन धर्म में सम्मिलित होने वाले स्त्री एवं पुरुषों को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-

  1. भिक्षुणियाँ
  2. भिक्षु।

प्रश्न 74. जैन धर्म ग्रंथों की भाषा क्या है ?
उत्तर-प्राकृत अथवा अर्ध मगधी।

प्रश्न 75. जैन धर्म में सर्वाधिक पवित्र पुस्तकें कौन-सी हैं ?
उत्तर-12 अंग।

प्रश्न 76. जैन धर्म के किसी एक अंग का नाम बताएँ।
उत्तर-आचारांग सूत्र।

प्रश्न 77. जैन धर्म के किस ग्रंथ में जैन भिक्षुओं से संबंधित नियम दिए गए हैं ?
उत्तर-आचारांग सूत्र में।

प्रश्न 78. जैन धर्म में कितने उपांग हैं ?
उत्तर-12 उपांग।

प्रश्न 79. कल्पसूत्र की रचना किसने की थी ?
उत्तर-भद्रबाहू ने।

प्रश्न 80. कल्पसूत्र का विषय क्या है ?
उत्तर-स्वामी महावीर जी का जीवन।

प्रश्न 81. जैन धर्म में कितने छेदसूत्र हैं ?
उत्तर-जैन धर्म में 6 छेदसूत्र हैं।

प्रश्न 82. जैन धर्म से संबंधित मूलसूत्र कितने हैं ?
उत्तर-4.

प्रश्न 83. जैन धर्म के दिगंबर से संबंधित कितनी पुस्तकें उपलब्ध हैं ?
उत्तर-4.

प्रश्न 84. दिगंबर संप्रदाय से संबंधित एक पुस्तक का नाम बताएँ।
उत्तर-पर्थमानु योग।

नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—

प्रश्न 1. जैन धर्म को आरंभ में ………….. के नाम से जाना जाता था।
उत्तर-निग्रंथ

प्रश्न 2. जैन धर्म में कुल ………. तीर्थंकर थे।।
उत्तर-24

प्रश्न 3. जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम ………… था।
उत्तर-ऋषभनाथ

प्रश्न 4. जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर …………… थे।
उत्तर- पार्श्वनाथ

प्रश्न 5. जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर …………… थे।
उत्तर-स्वामी महावीर

प्रश्न 6. स्वामी महावीर का जन्म ……….. में हुआ।
उत्तर-599 ई०पू०

प्रश्न 7. स्वामी महावीर की माता जी का नाम ………. था।
उत्तर-त्रिशला

प्रश्न 8. स्वामी महावीर के जन्म से पहले उनकी माता जी को ………… स्वप्न आए थे।
उत्तर-14

प्रश्न 9. स्वामी महावीर जी की पुत्री का नाम ………. था।
उत्तर-प्रियदर्शना

प्रश्न 10. ज्ञान प्राप्ति के समय स्वामी महावीर जी की आयु ………. थी।
उत्तर-42 वर्ष

प्रश्न 11. स्वामी महावीर जी ने ………. में निर्वाण प्राप्त किया।
उत्तर-527 ई० पू०

प्रश्न 12. जैन धर्म ……….. रत्नों में विश्वास रखता है।
उत्तर-तीन

प्रश्न 13. जैन धर्म में ब्रह्मचर्य का सिद्धांत ………. ने प्रचलित किया।
उत्तर-स्वामी महावीर

प्रश्न 14. जैन धर्म ………… सच्चाइयों में विश्वास रखता है।
उत्तर-नौ

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 15. जैन धर्म के अनुसार ………. वह प्रक्रिया है जिसके अनुसार आत्मा अपने आंतरिक कर्मों को संचित करती रहती है।
उत्तर-अशर्व

प्रश्न 16. जैन धर्म ………. प्रकार के कर्मों में विश्वास रखता है।
उत्तर-आठ

प्रश्न 17. अनेकांतवाद को ………… के नाम से भी जाना जाता है।
उत्तर-स्यादवाद

प्रश्न 18. जैन धर्म ………… महाव्रतों में विश्वास रखता है।
उत्तर-पाँच

प्रश्न 19. जैन धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का सर्वोच्च उद्वेश्य …………. प्राप्त करना है।
उत्तर-निर्वाण

प्रश्न 20. जैन धर्म के अनुसार पुदगल से भाव ……….. है।
उत्तर-परमाणु

प्रश्न 21. अजीविक संप्रदाय का संस्थापक ………… था।
उत्तर-गौशाल

प्रश्न 22. अजीविक संप्रदाय ……….. के सिद्धांत में विश्वास रखता था।
उत्तर-नियति

प्रश्न 23. ………. संप्रदाय वाले श्वेत वस्त्र धारण करते थे।
उत्तर-श्वेतांबर

प्रश्न 24. लोक संप्रदाय का संस्थापक ………. था।
उत्तर-लोक सा

प्रश्न 25. तेरा पंथ संप्रदाय का संस्थापक ……….. था।
उत्तर-भीखनजी

प्रश्न 26. जैन धर्म का संस्थापक ……….. कहलाता था।
उत्तर-आचार्य

प्रश्न 27. जैन धर्म ………… अंगों में विश्वास रखता है।
उत्तर-12

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा ग़लत चुनें—

प्रश्न 1. जैन धर्म कुल 20 तीर्थंकरों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 2. जैन धर्म के पहले तीर्थंकर का नाम विमल था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 3. स्वामी पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 4. स्वामी पार्श्वनाथ को 23 दिनों के कठिन तप के पश्चात् ज्ञान प्राप्त हुआ था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 5. स्वामी पार्श्वनाथ की शिक्षा को चातुरयाम कहते हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 6. स्वामी महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 7. स्वामी महावीर का जन्म 567 ई०पू० में हुआ था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 8. स्वामी महावीर जी के बचपन का नाम वर्धमान था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 9. स्वामी महावीर जी की माता का नाम महामाया था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 10. ज्ञान प्राप्ति के समय स्वामी महावीर जी की उनकी आयु 42 वर्ष थी।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 11. स्वामी महावीर जी ने पावा में निर्वाण प्राप्त किया था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 12. जैन धर्म त्रि-रत्नों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 13. जैन धर्म अहिंसा में विश्वास नहीं रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 14. जैन धर्म के अनुसार तत्व नौ प्रकार के हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 15. जैन धर्म तीन प्रकार के कर्मों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 16. जैन धर्म के अनुसार मनुष्य को अपने जीवन में पाँच अनुव्रतों की पालना करनी चाहिए।
उत्तर-ठीक

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 17. जैन धर्म के अनुसार मानवीय जीवन का मुख्य उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 18. जैन धर्म के अनुसार सच्चा विश्वास सच्चे ज्ञान की आधारशिला है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 19. जैन धर्म के अनुसार ज्ञान पाँच प्रकार का होता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 20. जैन धर्म के अनुसार हिंसा आठ प्रकार की होती है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 21. जैन धर्म में जीव शब्द का अर्थ है ‘आत्मा’।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 22. जैन धर्म के अनुसार पुण्य प्राप्त करने के 42 साधन हैं।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 23. जैन धर्म के अनुसार कर्म को रोकने की 57 विधियां हैं। .
उत्तर-ठीक

प्रश्न 24. जैन धर्म चार महाव्रतों में विश्वास रखता है।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 25. अजीविक संप्रदाय किस्मत के सिद्धांत में विश्वास रखता है।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 26. तारना संप्रदाय का संस्थापक भीखनजी था।
उत्तर-ग़लत

प्रश्न 27. स्थानकवासी संप्रदाय का संस्थापक वीराजी था।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 28. जैनियों के धार्मिक ग्रंथों में 12 अंगों को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
उत्तर-ठीक

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चनें—

प्रश्न 1.
जैन धर्म कुल कितने तीर्थंकरों में विश्वास रखता है ?
(i) 20
(ii) 23
(iii) 24
(iv) 25
उत्तर-
(iii) 24

प्रश्न 2.
जैन धर्म का पहला तीर्थंकर कौन था ?
(i) पार्श्वनाथ
(ii) महावीर
(iii) विमल
(iv) ऋषभनाथ।
उत्तर-
(iv) ऋषभनाथ।

प्रश्न 3.
जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर कौन थे ?
(i) विमल
(ii) अनंत
(iii) ऋषभनाथ
(iv) पार्श्वनाथ।
उत्तर-
(iv) पार्श्वनाथ।

प्रश्न 4.
जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर कौन थे ?
(i) अभिनंदन
(ii) महावीर
(iii) पुष्पदंत
(iv) अजित।
उत्तर-
(ii) महावीर

प्रश्न 5.
स्वामी महावीर जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 566 ई० पू०
(ii) 567 ई० पू०
(iii) 569 ई० पू०
(iv) 599 ई० पू०।
उत्तर-
(iv) 599 ई० पू०।

प्रश्न 6.
स्वामी महावीर जी का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) लुंबिनी में
(ii) कुंडग्राम में
(iii) कुशीनगर में
(iv) कपिलवस्तु में।
उत्तर-
(ii) कुंडग्राम में

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 7.
स्वामी महावीर जी के पिता जी का नाम क्या था ?
(i) सिद्धार्थ
(ii) राहुल
(iii) वर्धमान
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i) सिद्धार्थ

प्रश्न 8.
स्वामी महावीर जी की माता जी का नाम क्या था ?
(i) त्रिशला
(ii) यशोधरा
(iii) महामाया
(iv) प्रजापति गौतमी।
उत्तर-
(i) त्रिशला

प्रश्न 9.
स्वामी महावीर जी के जन्म से पूर्व उनकी माता जी को कितने स्वप्न आए थे ?
(i) 8
(ii) 10
(iii) 12
(iv) 14.
उत्तर-
(iv) 14.

प्रश्न 10.
स्वामी महावीर जी के बचपन का नाम क्या था ?
(i) वर्धमान
(ii) सिद्धार्थ
(ii) राहुल
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i) वर्धमान

प्रश्न 11.
स्वामी महावीर जी की ज्ञान प्राप्ति के समय उनकी आयु कितनी थी ?
(i) 20 वर्ष
(ii) 30 वर्ष
(iii) 35 वर्ष
(iv) 42 वर्ष।
उत्तर-
(iv) 42 वर्ष।

प्रश्न 12.
स्वामी महावीर जी को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई थी ?
(i) जरिमबिक गाँव
(ii) बौद्ध गया
(ii) वैशाली
(iv) कुंडग्राम।
उत्तर-
(i) जरिमबिक गाँव

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में कौन-सा स्वामी महावीर जी का प्रचार केंद्र नहीं था ?
(i) राजगृह
(ii) वैशाली
(iii) अंग
(iv) पुरुषपुर।
उत्तर-
(iv) पुरुषपुर।

प्रश्न 14.
स्वामी महावीर जी को कहाँ निर्वाण प्राप्त हुआ था ?
(i) विदेह
(ii) अंग
(iii) राजगृह
(iv) पावा।
उत्तर-
(iv) पावा।

प्रश्न 15.
स्वामी महावीर जी की निर्वाण प्राप्ति के समय उनकी आयु कितनी थी ?
(i) 60 वर्ष
(ii) 62 वर्ष
(iii) 72 वर्ष
(iv) 80 वर्ष।
उत्तर-
(iii) 72 वर्ष

प्रश्न 16.
निम्नलिखित में से कौन-सा धर्म त्रि-रत्नों में विश्वास रखता था ?
(i) बौद्ध धर्म
(ii) जैन धर्म
(iii) ईसाई धर्म
(iv) पारसी धर्म।
उत्तर-
(ii) जैन धर्म

प्रश्न 17.
जैन धर्म कितनी सच्चाइयों में विश्वास रखता है ?
(i) 3
(i) 5
(iii) 7
(iv) 9.
उत्तर-
(iv) 9.

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 18.
जैन धर्म जीव के बंधन का मुख्य कारण किसे मानते हैं ?
(i) पाप
(ii) पुण्य
(iii) मोक्ष
(iv) अजीव।
उत्तर-
(i) पाप

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से कौन-सी स्वामी महावीर जी की शिक्षा नहीं है ?
(i) वह अहिंसा में विश्वास रखते थे
(ii) वह कर्म सिद्धांत में विश्वास रखते थे ।
(iii) वह समानता में विश्वास रखते थे
(iv) वह ईश्वर में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
(iv) वह ईश्वर में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 20.
जैन धर्म कितने अनुव्रतों में विश्वास रखता है ?
(i) 3
(ii) 5
(iii) 7
(iv) 9.
उत्तर-
(ii) 5

प्रश्न 21.
जैन धर्म के अनुसार हिंसा कितने प्रकार की होती है ?
(i) 2
(ii) 3
(iii) 4
(iv) 5.
उत्तर-
(i) 2

प्रश्न 22.
कौन-सा तत्व जीव और पुदगल के मध्य गति पैदा करता है ?
(i) पुदगल
(ii) धर्म
(iii) अधर्म
(iv) पाप।
उत्तर-
(ii) धर्म

प्रश्न 23.
अजीविक संप्रदाय का संस्थापक कौन था ?
(i) गोशाल
(ii) स्वामी महावीर
(iii) वीराजी
(iv) भीखनजी।
उत्तर-
(i) गोशाल

प्रश्न 24.
निम्नलिखित में से कौन जैन धर्म के साथ संबंधित संप्रदाय नहीं हैं ?
(i) दिगंबर
(ii) श्वेतांबर
(iii) लोंक
(iv) महायान।
उत्तर-
(iv) महायान।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 8 जैन धर्म की नैतिक शिक्षाएँ

प्रश्न 25.
निम्नलिखित में से कौन-सा धर्म जैन धर्म के साथ संबंधित नहीं है ?
(i) दीपवंश
(ii) कल्पसूत्र
(iii) भगवती सूत्र
(iv) आचारंग सूत्र।
उत्तर-
(i) दीपवंश

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा जंगली जीवन

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 1a भारत : आकार व स्थिति Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 1a भारत : आकार व स्थिति

SST Guide for Class 9 PSEB भारत : आकार व स्थिति Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
भारत के रेखाचित्र में भरें(i) कुदरती वनस्पति के कोई 3 किस्म के क्षेत्र। (ii) किसी पांच राज्यों में राष्ट्रीय पार्क। (iii) पंजाब की सुरक्षित जलगाहें (पंजाब के रेखाचित्र में)।
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी MBD Map Master की सहायता से स्वयं करें।

प्रश्न 2.
निम्न दी गई तस्वीरों में वृक्ष पहचान कर वनस्पति की प्रकार बताएं।
PSEB 9th Class Social Science Guide भारत आकार व स्थिति Important Questions and Answers (1)
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र के 10 वृक्षों, 5 जानवरों तथा 5 पक्षियों की तस्वीरें चार्ट पर लगाकर नाम लिखें।
उत्तर-
यह प्रश्न विद्यार्थी स्वयं करें।

(ख) निम्न के उत्तर एक शब्द से एक वाक्य में दें:

  1. पौधे ………. की ……….. से ………… विधि द्वारा अपना भोजन तैयार करते हैं।
  2. पंजाब का ………… फीसदी क्षेत्र वनों के अधीन है जो कि ……….. वर्ग किलोमीटर है।
  3.  …………. मंडल में वनस्पति उगती है और ……… की प्रकार ……… पर असर डालती है।

उत्तर-

  1. सूर्य, किरणें, फोटोसिंथेसिस
  2. 6.07%, 3058.
  3. जीव, मिट्टी, वनस्पति।

प्रश्न 4.
पृथ्वी का वो कौन-सा मंडल है जिसमें जीवन है :
(i) वायु मंडल
(ii) थल मंडल
(iii) जल मंडल
(iv) जीव मंडल।
उत्तर-
(iv) जीव मंडल में।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-से जिले में सबसे अधिक वन मिलते हैं ?
(i) मानसा
(ii) रूपनगर
(iii) अमृतसर
(iv) बठिंडा।
उत्तर-
(ii) रूपनगर में।

प्रश्न 6.
चिंकारा कौन-से जानवर की प्रकार है ?
उत्तर-
चिंकारा एक छल्लेदार सींगों वाला हिरन है।

प्रश्न 7.
बीड़ क्या होती है ?
उत्तर-
कुछ क्षेत्रों में घनी वनस्पति होती थी तथा इसके छोटे बड़े टुकड़ों को बीड़ कहते हैं।

प्रश्न 8.
उप उष्ण झाड़ीदार वनस्पति में मिलती घास का नाम लिखें।
उत्तर-
यहां लंबी प्रकार का घास-सरकंडा मिलता है।

प्रश्न 9.
पंजाब के कुल क्षेत्रफल का कितने फीसदी क्षेत्र वनों के अधीन है ?
उत्तर-
6.07%.

प्रश्न 10.
झाड़ियां व कांटेदार वनस्पति वाले क्षेत्रों में कौन-से जानवर मिलते हैं ?
उत्तर-
यहां ऊंट, शेर, बब्बर शेर, खरगोश, चूहे इत्यादि मिलते हैं।

(ग) इन प्रश्नों के संक्षेप उत्तर दें :

प्रश्न 1.
फलोरा व फौना क्या है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
किसी विशेष क्षेत्र में मिलने वाले पौधों के लिए फलोरा शब्द प्रयोग किया जाता है। उस क्षेत्र के पौधे उस क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी, वर्षा इत्यादि पर निर्भर करते हैं। इस प्रकार किसी क्षेत्र में मिलने वाले जानवरों की प्रजातियों को फौना कहा जाता है। प्रत्येक क्षेत्र में मिलने वाले जानवरों की प्रजातियां भी अलग-अलग होती हैं।

प्रश्न 2.
वनों की रक्षा क्यों आवश्यक है, लिखें।
उत्तर-

  1. वन जलवायु पर नियंत्रण रखते हैं। सघन वन गर्मियों में तापमान को बढ़ने से रोकते हैं तथा सर्दियों में तापमान को बढ़ा देते हैं।
  2. सघन वनस्पति की जड़ें बहते हुए पानी की गति को कम करने में सहायता करती हैं। इससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है। दूसरे जड़ों द्वारा रोका गया पानी भूमि के अंदर समा लिए जाने से भूमिगत जल-स्तर (Water-table) ऊंचा उठ जाता है। वहीं दूसरी ओर धरातल पर पानी की मात्रा कम हो जाने से पानी नदियों में आसानी से बहता रहता है।
  3. वृक्षों की जड़ें मिट्टी की जकड़न को मज़बूत किए रहती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
  4. वनस्पति के सूखकर गिरने से जीवांश के रूप में मिट्टी को हरी खाद मिलती है।
  5. हरी-भरी वनस्पति बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इससे आकर्षित होकर लोग सघन वन क्षेत्रों में यात्रा, शिकार तथा मानसिक शांति के लिए जाते हैं। कई विदेशी पर्यटक भी वन-क्षेत्रों में बने पर्यटन केंद्रों पर आते हैं। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  6. सघन वन अनेक उद्योगों के आधार है। इनमें से कागज़, लाख, दियासिलाई, रेशम, खेलों का सामान, प्लाईवुड, गोंद, बिरोजा आदि उद्योग प्रमुख हैं।

प्रश्न 3.
सदाबहार वनों की विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. सदाबहार वनों के सभी पत्ते एक साथ नहीं झड़ते तथा हमेशा हरे रहते हैं।
  2. यह वन गर्म तथा नमी वाले क्षेत्रों में मिलते हैं जहां पर 200 सैंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है।
  3. सदाबहार वनों के पेड़ 60 मीटर या उससे ऊंचे भी जा सकते हैं।
  4. यह वन घने होने के कारण एक छतरी (Canopy) बना लेते हैं। जहां से कई बार तो सूर्य की किरणें धरातल तक नहीं पहुंच पातीं।
  5. पेड़ों के नीचे बहुत-से छोटे-छोटे पौधे उग जाते हैं तथा आपस में उलझ जाते हैं जिस कारण इनमें निकलना मुश्किल होता है।

प्रश्न 4.
पंजाब की प्राकृतिक वनस्पति से जान-पहचान करवाएं।
उत्तर-
इस समय पंजाब के कुल क्षेत्रफल का केवल 6.07% हिस्सा ही वनों के अंतर्गत आता है। इसका काफी बड़ा भाग मनुष्यों द्वारा उगाया जा रहा है। पंजाब की प्राकृतिक वनस्पति को कई भागों में बांटा जा सकता है

  1. हिमालय प्रकार की सीधी शीत उष्ण वनस्पति
  2. उपउष्ण झाड़ीदार पर्वतीय वनस्पति
  3. उपउष्ण झाड़ीदार वनस्पति वनस्पति
  4. उष्ण शुष्क पतझड़ी वनस्पति
  5. उष्ण कांटेदार वनस्पति।

प्रश्न 5.
आंवला, तुलसी तथा सिनकोना के क्या लाभ हो सकते हैं, लिखें।
उत्तर-

  1. आंवला-आंवला विटामिन सी से भरा होता है तथा यह व्यक्ति की पाचन शक्ति को ठीक करने में सहायता करता है। आंवला कब्ज, शूगर तथा खांसी को दूर करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
  2. तुलसी-अगर किसी को बुखार, खांसी या जुकाम हो जाए तो तुलसी काफी लाभदायक होती है।
  3. सिनकोना-सिनकोना के पौधे की छाल को कुनीन बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है जिसे मलेरिया ठीक करने के लिए दिया जाता है।

(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के विस्तृत उत्तर दें:

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति मानव समाज के फेफड़े होते हैं, कैसे ?
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि प्राकृतिक वनस्पति मानवीय समाज के फेफड़े होते हैं। अग्रलिखित बिंदुओं से यह स्पष्ट हो जाएगा

  1. जंगल बड़ी मात्रा में ऑक्सीजन छोड़ते हैं तथा कार्बन-डाइऑक्साइड का प्रयोग करते हैं। यह ऑक्सीजन जानवरों तथा मनुष्यों को जीवन देती है।
  2. जंगल पृथ्वी में मौजूद पानी के स्तर को ऊंचा करने में काफी सहायता करते हैं।
  3. जंगल के पेड़ों में मौजूद पानी सूर्य की गर्मी के कारण वाष्प बनकर उड़ता रहता है जो वायु के तापमान को कम करने में सहायता करता है।
  4. जंगलों में बहुत-से जीव रहते हैं तथा उन्हें भोजन तथा रहने का स्थान जंगल में ही मिलता है।
  5. हमारे वातावरण को सुंदर तथा स्वस्थ बनाने में भी जंगल काफी सहायक होते हैं।
  6. पवन की गति को कम करने, ध्वनि प्रदूषण को कम करने तथा सूर्य में चमक को कम करने में जंगल काफी सहायता करते हैं।
  7. वृक्ष की जड़ें मिट्टी के कणों को पकड़ कर रखती हैं जिस कारण जंगलों से भूमि क्षरण नहीं होती।
  8. वर्षा करवाने में भी जंगल काफी सहायक होते हैं।
  9. जंगलों से हम कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त करते हैं।
  10. जंगलों के कारण ही कई प्रकार के उद्योगों का विकास हो पाया है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति को कौन-से भौगोलिक तत्त्व प्रभावित करते हैं ?
उत्तर-
अलग-अलग क्षेत्रों में बहुत-सी भौगोलिक विभिन्नताएं होती हैं जिस कारण वहां की प्राकृतिक वनस्पति भी अलग-अलग होती है। इस कारण प्राकृतिक वनस्पति को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है

  1. भूमि अथवा धरातल (Land on Relief)-किसी भी क्षेत्र की भूमि का वनस्पति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। मैदानों, पर्वतों, डैल्टा इत्यादि की वनस्पति एक समान नहीं हो सकती। भूमि के स्वभाव का वनस्पति पर प्रभाव पड़ता है। ऊंचे पर्वतों पर लंबे वृक्ष मिलते हैं परंतु मैदानों पर पर्णपाती (Deciduous) वृक्ष मिलते हैं।
  2. मृदा (Soil)-मृदा पर ही वनस्पति पैदा होती है। अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार की मिट्टी मिलती है, जो अलग-अलग प्रकार की वनस्पति का आधार है। जैसे कि मरुस्थल में रेतली मिट्टी मिलती है जिस कारण वहां पर कांटेदार झाड़ियां मिलती हैं। नदियों के डैल्टे पर बढ़िया प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। पर्वतों की ढलानों पर मिट्टी की परत गहरी होती है जिस कारण वहां पर लंबे पेड़ मिलते हैं।
  3. तापमान (Temperature) वनस्पति की विविधता तथा विशेषता तापमान तथा वायु की नमी पर निर्भर करती है। हिमालय पर्वत की ढलानों तथी दक्षिणी पठार के पर्वतों पर 915 मीटर की ऊंचाई से ऊपर तापमान में नयी वनस्पति के उगने तथा बढ़ने को प्रभावित करती है। इस कारण वहां की वनस्पति मैदानी क्षेत्रों से अलग होती है।
  4. सूर्य की रोशनी (Sunlight) किसी भी क्षेत्र में कितनी सूर्य की रोशनी आती है, इस पर भी वनस्पति निर्भर करती है। किसी भी स्थान पर कितनी सूर्य की रोशनी आएगी यह वहां की अक्षांश रेखाओं (Parallels of Latitudes) तथा भूमध्य रेखा से दूरी, समुद्र तल से ऊंचाई तथा ऋतु पर निर्भर करता है। गर्मियों में अधिक रोशनी मिलने के कारण वृक्ष तेजी से बढ़ते हैं।
  5. वर्षा (Rainfall)-जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है वहां पर सदाबहार वन मिलते हैं। वह घने भी होते हैं। परंतु वहां कम वर्षा होती है जहां पर पर्णपाती वन (Deciduous Forests) मिलते हैं। जहां पर बहुत ही कम वर्षा होती है, जैसे कि मरुस्थल, वहां पर जंगल भी काफी कम या न के समान होते हैं। इस प्रकार वर्षा की मात्रा पर भी वनस्पति का प्रकार निर्भर करता है।

प्रश्न 3.
भारतीय जंगलों को जलवायु के आधार पर बांटें व वृक्षों के नाम भी लिखें।
उत्तर-
भारतीय जंगलों को जलवायु के आधार पर कई भागों में विभाजित किया जा सकता है जिसका वर्णन इस प्रकार है

  1. उष्ण सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)-इस प्रकार के वन मुख्य रूप से अधिक वर्षा (200 सें०मी० से अधिक) वाले भागों में मिलते हैं। इसलिए इन्हें बरसाती वन भी कहते हैं। ये वन अधिकतर पूर्वी हिमालय के तराई प्रदेश पश्चिमी घाट, पश्चिमी अंडमान, असम, बंगाल तथा ओडिशा के कुछ भागों में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष महोगनी, ताड़, बांस, रबड़, चपलांस, मैचोलश तथा कदंब हैं।
  2. पतझड़ी अथवा मानसूनी वन (Tropical Deciduous or Monsoon Forests)-पतझड़ी या मानसूनी वन भारत के उन प्रदेशों में मिलते हैं जहां 100 से 200 सें.मी. तक वार्षिक वर्षा होती है। भारत में ये मुख्य रूप से हिमालय के निचले भाग, छोटा नागपुर, गंगा की घाटी, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानों तथा तमिलनाडु क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष सागवान, साल, शीशम, आम, चंदन, महुआ, ऐबोनी, शहतूत तथा सेमल हैं। गर्मियों में ये वृक्ष अपनी पत्तियां गिरा देते हैं, इसलिए इन्हें पतझड़ी वन भी कहते हैं।
  3. झाड़ियां या कांटेदार जंगल (The Scrubs and Thorny Forest)-इस प्रकार के वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वार्षिक वर्षा का मध्यमान 20 से 60 सें० मी० तक होता है। भारत में ये वन राजस्थान, पश्चिमी हरियाणा, दक्षिणपश्चिमी पंजाब और गुजरात में पाए जाते हैं। इन वनों में रामबांस, खैर, पीपल, बबूल, थोअर और खजूर के वृक्ष प्रमुख हैं।
  4. ज्वारीय वन (Tidal Forests)-ज्वारीय वन नदियों के डेल्टाओं में पाए जाते हैं। यहां की मिट्टी भी उपजाऊ होती है और पानी भी अधिक मात्रा में मिल जाता है। भारत में इस प्रकार के वन महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि के डेल्टाई प्रदेशों में मिलते हैं। यहां की वनस्पति को मैंग्रोव अथवा सुंदर वन भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में ताड़, कैंस, नारियल इत्यादि के वृक्ष भी मिलते हैं।
  5. पर्वतीय वन (Mountains Forests) – इस प्रकार को वनस्पति हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों तथा दक्षिण में नीलगीर की पहाड़ियों पर पायी जाती हैं। इस वनस्पति में वर्षा की मात्रा तथा ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ अंतर आता है। कम ऊंचाई पर सदाबहार वन पाये जाते हैं, तो अधिक ऊंचाई पर केवल घास तथा कुछ फूलदार पौधे ही मिलते हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत आकार व स्थिति Important Questions and Answers (2)

प्रश्न 4. पंजाब की प्राकृतिक वनस्पति के वर्गीकरण पर प्रकाश डालें।
उत्तर-पंजाब के अलग-अलग भागों में धरातल, जलवायु तथा मिट्टी की प्रकार अलग-अलग होने के कारण यहां अलग-अलग प्रकार की वनस्पति मिलती है तथा इनका वर्णन इस प्रकार है

1. हिमालय प्रकार की आर्द्र शीत-उष्ण वनस्पति (Himalayan Type Moist Temperate Vegetation)पंजाब के पठानकोट की धार कलां तहसील में इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। पंजाब के इस हिस्से में वर्षा भी अधिक होती है तथा यह पंजाब के अन्य भागों से ऊंचाई पर भी स्थित है। यहां कई प्रकार के वृक्ष मिल जाते हैं जैसे कि कम ऊंचाई वाले चील के वृक्ष, शीशम, शहतूत, पहाड़ी बबूल, आम इत्यादि।

2. उप उष्ण चील वनस्पति (Sub Tropical Pine Vegetation)—पंजाब के कई जिलों की कई तहसीलों में इस प्रकार की वनस्पति मिलती है जैसे कि पठानकोट जिले की पठानकोट तहसील तथा होशियारपुर जिले की मुकेरियां, दसूहा तथा होशियारपुर तहसीलें। यहां चील के वृक्ष काफी कम मिलते हैं तथा उनकी प्रकार भी बढ़िया नहीं होती। यहां शीशम, खैर, शहतूत तथा अन्य कई प्रकार के वृक्ष पाए जाते हैं।

3. उप उष्ण झाड़ीदार पर्वतीय वनस्पति (Sub Tropical Scrub Hill Vegetation)-होशियारपुर तथा रूपनगर ज़िलों के पूर्वी भागों तथा पठानकोट जिले के बाकी बचे भागों में इस प्रकार की वनस्पति मिलती है। इस क्षेत्र में आज से चार-पांच सदियों पहले तक काफी घने जंगल मिलते हैं परंतु काफी अधिक वृक्षों की कटाई, जानवरों के चरने, जंगलों की आग तथा भूमि-क्षरण के कारण यहां की वनस्पति झाड़ीदार हो गई है। यहां कई प्रकार के वृक्ष मिलते हैं जैसे कि शीशम, खैर, बबूल, शहतूत, बकायन, नीम, सिंबल, बांस, अमलतास इत्यादि। यहां लंबी घास भी उगती है जिसे सरकंडा कहते हैं जिसे रस्सियों तथा कागज़ बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।

4. उष्ण-शुष्क पतझड़ी वनस्पति (Tropical Dry Deciduous Vegetation)-पंजाब के शुष्क तथा गर्म क्षेत्रों में इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। कंडी क्षेत्र के मैदान, पंजाब के लहरदार तथा ऊंचे नीचे मैदान तथा मध्यवर्तीय मैदानों में इस प्रकार की वनस्पति मिलती है। किसी समय यहां पर घनी वनस्पति हुआ करती थी। आज भी घनी वनस्पति के कुछ छोटे बड़े टुकड़े मिल जाते हैं जिन्हें बीड़, झंगीया झिड़ी के नाम से पुकारा जाता है। एस०ए०एस० नगर तथा पटियाला के क्षेत्रों में भी घने वृक्षों वाले क्षेत्र मिलते हैं जिन्हें बीड़ कहा जाता है। बीड़ भादसों, छत्तबीड़, बीड़ भुन्नरहेड़ी, बीड़ मोती बाग इत्यादि इनमें प्रमुख हैं। यहां नीम, टाहली, बरगद, पीपल, आम, बबूल, निम्ब इत्यादि के वृक्ष मिलते हैं। यहां सफैदा तथा पापुलर के पेड़ भी लगाए जाते हैं।

5. उष्ण कांटेदार वनस्पति (Tropical Thorny Vegetation)—पंजाब के कई क्षेत्र ऐसे भी हैं जहां कम वर्षा होती है तथा वहां इस प्रकार की वनस्पति मिलती है। बठिंडा, मानसा, फाजिलका के कई भागों, फिरोजपुर तथा फरीदकोट के मध्य दक्षिण भागों में कांटेदार वनस्पति मिलती है। यहां के कई क्षेत्रों में तो वनस्पति है ही नहीं। कांटेदार झाड़ियां, थोहर (Cactus), शीशम, जण्ड, बबूल इत्यादि वृक्ष यहां पर मिलते हैं।

प्रश्न 5.
जंगली जीवन व उसकी सुरक्षा विधियों पर विस्तार से लिखें।
उत्तर-
वनस्पति की तरह ही हमारे देश में जीव-जंतुओं की काफी विभिन्नता है। भारत में इनकी 89000 प्रजातियां मिलती हैं। देश के ताज़ा तथा खारे पानी में 2500 से अधिक प्रकार की मछलियां मिलती हैं। इस प्रकार पक्षियों की भी 2000 से ऊपर प्रजातियां पाई जाती हैं। हमारे वनों में काफी महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षी मिलते हैं। परंतु अफसोस की बात है कि पक्षियों तथा जानवरों की अनेक प्रजातियां देश में से लुप्त हो चुकी हैं। इस कारण जंगली जीवों की रक्षा करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक है। मनुष्य ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वनों को काट कर तथा जानवरों का शिकार करके एक दुखद स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज गैंडा, चीता, बंदर, शेर इत्यादि काफी कम संख्या में मिलते हैं।

इस कारण प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह जंगली जीवों की रक्षा करे।
PSEB 9th Class Social Science Guide भारत आकार व स्थिति Important Questions and Answers (3)

जंगली जीवों की सुरक्षा विधियां-

  1. वैसे तो सरकार ने कई राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव अभ्यारण्य बनाए हैं परंतु और राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव अभ्यारण्य बनाए जाने की आवश्यकता है।
  2. वन्य जीवों के शिकार पर कठोर पाबंदी लगाई जानी चाहिए तथा इस पाबंदी को कठोरता से लागू किया जाना चाहिए।
  3. राष्ट्रीय उद्यानों तथा वन्य जीव अभ्यारण्यों में जीवों के खाने का उचित प्रबंध होना चाहिए।
  4. जो प्रजातियां खत्म होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं उन्हें संभालने तथा बचाने की तरफ विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।
  5. जंगलों तथा राष्ट्रीय उद्यानों में शिकारियों तथा चरवाहों को दाखिल होने की आज्ञा नहीं दी जानी चाहिए।
  6. अभ्यारण्यों तथा राष्ट्रीय उद्यानों में जीवों के लिए मैडिकल सुविधाएं भी होनी चाहिए ताकि किसी बिमारी होने की स्थिति में उन्हें बचाया जा सके।
  7. बड़े स्तर पर प्रशासकीय निर्णय लिए जाने चाहिए ताकि इन्हें बचाने के निर्णय जल्दी लिए जा सकें। 8. आम जनता में जंगली जीवों को संभालने के प्रति जागरुकता फैलाने के लिए सैमीनार करवाए जाने चाहिए।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत : आकार व स्थिति Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
किसी क्षेत्र में मौजूद सभी प्राणियों को ……… कहा जाता है।
(क) फौना
(ख) फलौरा
(ग) वायुमंडल
(घ) जलमंडल।
उत्तर-
(क) फौना

प्रश्न 2.
भारतीय जंगल सर्वेक्षण विभाग का हैडक्वाटर कहां पर है ?
(क) मंसूरी
(ख) देहरादून
(ग) दिल्ली
(घ) नागपुर।
उत्तर-
(ख) देहरादून

प्रश्न 3.
इनमें से कौन-सा तत्त्व प्राकृतिक वनस्पति की भिन्नता के लिए उत्तरदायी है ?
(क) भूमि
(ख) मिट्टी
(ग) तापमान
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
उष्ण सदाबहार वन के पत्ते हमेशा ………….. रहते हैं।
(क) हरे
(ख) पीले
(ग) झड़ते
(घ) लाल।
उत्तर-
(क) हरे

प्रश्न 5.
कौन-से जंगलों के वृक्ष 60 मीटर या उससे ऊपर जा सकते हैं ?
(क) उष्ण पतझड़ी जंगल
(ख) उष्ण सदाबहार जंगल
(ग) ज्वारीय जंगल
(घ) कांटेदार जंगल।
उत्तर-
(ख) उष्ण सदाबहार जंगल

प्रश्न 6.
इनमें से कौन-सा वृक्ष हमें कोणधारी जंगलों में मिलता है ?
(क) स्परूस
(ख) चील
(ग) फर
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
घनी वनस्पति के छोटे-बड़े टुकड़ों को पंजाब में क्या कहते हैं ?
(क) झांगी
(ख) झिड़ी
(ग) बीड़
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8.
पंजाब का कितना क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत आता है ?
(क) 5.65%
(ख) 3.65%
(ग) 4.65%
(घ) 6.65%.
उत्तर-
(ख) 3.65%

प्रश्न 9.
पंजाब के किस जिले में सबसे अधिक प्राकृतिक वनस्पति है ?
(क) बठिंडा
(ख) पटियाला
(ग) रूपनगर
(घ) फरीदकोट।
उत्तर-
(ग) रूपनगर

प्रश्न 10.
पंजाब के जंगलात विभाग में लगभग …… लोग कार्य कर रहे हैं।
(क) 5500
(ख) 6500
(ग) 7500
(घ) 8500.
उत्तर-
(ख) 6500

प्रश्न 11.
भारत में सबसे बड़ा स्तनधारी प्राणी कौन-सा है ?
(क) हाथी
(ख) गैंडा
(ग) हिप्पो
(घ) जिराफ।
उत्तर-
(क) हाथी

प्रश्न 12.
……….. भारत का राष्ट्रीय पक्षी है।
(क) कबूतर
(ख) मोर
(ग) कोयल
(घ) फलैमिंगो।
उत्तर-
(ख) मोर

रिक्त स्थान की पूर्ति करें :

  1. भारत में ………. राष्ट्रीय उद्यान तथा ……… वन्यजीव अभ्यारण्य बनाए गए हैं।
  2.  ………. विटामिन सी से भरपूर होता है।
  3. ……… की गुठलियां शूगर कंट्रोल करने के लिए प्रयोग की जाती हैं।
  4. नीम को संस्कृत में ……… कहा जाता है।
  5. पृथ्वी पर जीवन के चार मंडल-जीव मंडल, …………. , ………….. तथा वायु मंडल के कारण ही संभव है।
  6. मनुष्य के चारों मंडलों का एक-दूसरे पर निर्भर होना ही ……………… कहलाता है।

उत्तर-

  1. 103, 544
  2. आंवला
  3. जामुन
  4. सर्व रोग निवारक
  5. थलमंडल, जलमंडल
  6. ईको सिस्टम।

सही/ग़लत:

  1. जंगली जीव सुरक्षा कानून 1972 में बना था।
  2. किसी क्षेत्र की संपूर्ण वनस्पति को फलौरा कहते हैं।
  3. भारत की प्राकृतिक वनस्पति को आठ श्रेणियों में बांटा गया है।
  4. ऊष्ण पतझड़ी वनस्पति में वृक्ष सारा साल हरे-भरे रहते हैं।
  5. भारत का 21.53% हिस्सा ही जंगलों के अंतर्गत आता है।
  6. ज्वारी जंगल नमकीन पानी में रह सकते हैं।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)
  6. (✓)

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी के चार मंडल कौन-से हैं ?
उत्तर-
थलमंडल, वायुमंडल, जलमंडल तथा जीवमंडल।

प्रश्न 2.
जीव मंडल क्या है ?
उत्तर-
जीव मंडल पृथ्वी का वह मंडल है जिसमें कई प्रकार के जीव रहते हैं।

प्रश्न 3.
फौना (Fauna) क्या है ?
उत्तर-
किसी भी क्षेत्र में किसी समय पर रहने वाले सभी प्राणियों को फौना कहा जाता है।

प्रश्न 4.
फ्लौरा (Flora) क्या है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र या समय में मौजूद संपूर्ण वनस्पति को फलौरा कहा जाता है।

प्रश्न 5.
ईकोसिस्टम कैसे बनता है ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र में प्राणियों तथा पौधों की एक-दूसरे पर निर्भर प्रजातियां ईकोसिस्टम का निर्माण करती है।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति क्या होती है ?
उत्तर-
वह वनस्पति जो स्वयं तथा बिना किसी मानवीय प्रभाव के उत्पन्न होती है उसे प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं।

प्रश्न 7.
प्राकृतिक वनस्पति कौन-से तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति भूमि, मृदा, तापमान, सूर्य की रोशनी का समय, वर्षा इत्यादि पर निर्भर करती है।

प्रश्न 8.
ऊंचे पहाड़ों पर कौन-से वक्ष उगते हैं ?
उत्तर-
ऊंचे पहाड़ों पर चील तथा स्परूस के वृक्ष उगते हैं।

प्रश्न 9.
कौन-सी मिट्टी में बहुत घनी वनस्पति उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
डैल्टाई मिट्टी में बहुत घनी वनस्पति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 10.
प्रकाश संश्लेषण क्या होता है ?
उत्तर-
पौधों की सूर्य की रोशनी से भोजन तैयार करने की विधि को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है।

प्रश्न 11.
भारतीय वनस्पति को कितनी श्रेणियों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
भारतीय वनस्पति को पांच श्रेणियों में विभाजित किया जाता है।

प्रश्न 12.
उष्ण सदाबहार जंगलों की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
यहां वृक्षों के पत्ते एक साथ नहीं झड़ते जिस कारण यह संपूर्ण वर्ष हरे ही रहते हैं।

प्रश्न 13.
ऊष्ण सदाबहार जंगल किन क्षेत्रों में मिलते हैं ?
उत्तर-
जो भाग गर्म तथा नम होते हैं तथा जहां वार्षिक 200-300 सैंटीमीटर वर्षा होती है।

प्रश्न 14.
कौन से जंगलों को वर्षा वन कहा जाता है ?
उत्तर-
ऊष्ण सदाबहार वनों को वर्षा वन कहा जाता है।

प्रश्न 15.
ऊष्ण सदाबहार वनों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ?
उत्तर-
महोगनी, रोज़वुड, ऐबोनी, बांस, शीशम, रबड़, सिनकोना, मैगवोलिया इत्यादि।

प्रश्न 16.
सिनकोना वृक्ष की छाल कहाँ पर प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
सिनकोना वृक्ष की छाल कुनीन की दवा बनाने के लिए प्रयोग की जाती है।

प्रश्न 17.
ऊष्ण सदाबहारी वन किन प्रदेशों में मिलते हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढलानों, उत्तर-पूर्व भारत की पहाड़ियों, तमिलनाडु तट, पश्चिमी बंगाल के कुछ हिस्से, ओडिशा, अंडेमान निकोबार, लक्षद्वीप।

प्रश्न 18.
ऊष्ण पतझड़ी वन कितनी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं ?
उत्तर-
70 से 200 सैंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 19.
ऊष्ण पतझड़ी जंगलों की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
इन जंगलों में ऋतु के हिसाब से पत्ते झड़ते हैं।

प्रश्न 20.
ऊष्ण पतझड़ी जंगल कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
दो प्रकार-नम तथा शुष्क पतझड़ी जंगल।

प्रश्न 21.
नम पतझड़ी जंगल कितनी वर्षा वाले क्षेत्रों में होते हैं ?
उत्तर-
100 से 200 सैंटीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 22.
नम पतझड़ी जंगल कहां पर मिलते हैं ?
उत्तर-
उत्तर-पूर्वी राज्यों में, पश्चिमी घाट, ओडिशा, छत्तीसगढ़ के कुछ भागों में।

प्रश्न 23.
नम पतझड़ी जंगलों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ?
उत्तर-
साल, टीक, देओदार, संदलवुड, शीशम, खैर इत्यादि।

प्रश्न 24.
शुष्क पतझड़ी जंगलों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ? ।
उत्तर-
पीपल, टीक, नीम, सफ़ेदा, साल इत्यादि।

प्रश्न 25.
झाड़ियां तथा कांटेदार जंगल कहां पर मिलते हैं ?
उत्तर-
यह जंगल उन क्षेत्रों में मिलते हैं जहां 70 सैंटीमीटर से कम वर्षा होती है।

प्रश्न 26.
झाड़ियां तथा कांटेदार जंगल कौन-से राज्यों में मिलते हैं ?
उत्तर-
राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, उत्तर प्रदेश इत्यादि।

प्रश्न 27.
कौन-सी नदियों के डैल्टा में ज्वारी जंगल होते हैं ?
उत्तर-
गंगा-ब्रह्मपुत्र, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी।

प्रश्न 28.
सुंदरवन क्या है ?
उत्तर-
गंगा तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के डैल्टा क्षेत्र में मिलने वाले जंगलों को सुंदरवन कहा जाता है क्योंकि यहां सुंदरी वृक्ष काफी मिलते हैं।

प्रश्न 29. पर्वतीय जंगलों में कौन-से वृक्ष मिलते हैं ?
उत्तर-चील, स्परूस, दियार, फर, ओक, अखरोट इत्यादि।

प्रश्न 30.
पर्वतीय जंगलों में कौन-से जानवर मिलते हैं ?
उत्तर-
हिरन, याक, बर्फ में रहने वाला चीता, बारासिंगा, भालू, जंगली भेड़ें, बकरियां इत्यादि।

प्रश्न 31.
पंजाब में कौन-सी मृदाएं मिलती हैं ?
उत्तर-
जलोढ़ी मृदा, रेतली मृदा, चिकनी मृदा, दोमट मृदा, पर्वतीय मृदा तथा खारी मृदा।

प्रश्न 32.
अंग्रेजों ने प्राकृतिक वनस्पति को बचाने के लिए क्या किया ?
उत्तर-
उन्होंने जंगलों की हदबंदी की तथा पशुओं के चरने पर रोक लगाई।

प्रश्न 33.
पंजाब में कौन-से प्रकार की वनस्पति मिलती है ?
उत्तर-
हिमालय प्रकार की आई शोत ऊष्ण वनस्पति, उप ऊष्णू चील वनस्पति, उप ऊष्ण झाड़ेदार पर्वतीय वनस्पति, ऊष्ण खुष्क पतझड़ी वनस्पति तथा ऊष्ण कांटेदार वनस्पति।

प्रश्न 34.
बीड़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
मैदानों में घनी वनस्पति के कुछ छोटे-बड़े टुकड़े मिलते हैं जिन्हें बीड़ कहा जाता है।

प्रश्न 35.
पंजाब का कितना क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पति के अंतर्गत आता है ?
उत्तर-
केवल 6.07%।

प्रश्न 36.
पंजाब के किस जिले में प्राकृतिक वनस्पति सबसे अधिक है ?
उत्तर-
रूपनगर जिले में – 37.19%.

प्रश्न 37.
जंगलों का एक महत्त्व बताएं।
उत्तर-
वृक्ष कार्बन-डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं जो मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 38.
जंगली जीवन क्या होता है ?
उत्तर-
प्राकृतिक अरण्यों अर्थात् वनों में मौजूद जानवरों, पक्षियों तथा कीड़े-मकौड़े इत्यादि को जंगली जीवन कहा जाता है।

प्रश्न 39.
हमारे देश में जानवरों की कितनी प्रजातियां रहती हैं ?
उत्तर-
हमारे देश में जानवरों की 89,000 प्रजातियां रहती हैं जो विश्व के जानवरों की प्रजातियों का 6.5% बनता है।

प्रश्न 40.
भारतीय जंगलों में मिलने वाले जानवरों के नाम लिखें।
उत्तर-
हाथी, गैंडे, बारासिंगा, शेर, बंदर, लंगूर, लोमड़ी, मगरमच्छ, घड़ियाल, कछुए इत्यादि।

प्रश्न 41.
किस जानवर को ‘बर्फ का बैल’ कहा जाता है ?
उत्तर-
याक को।

प्रश्न 42.
कस्तूरी किस जानवर से प्राप्त होती है ?
उत्तर-
कस्तूरी थम्मन नामक हिरन से प्राप्त होती है।

प्रश्न 43.
भारत में पक्षियों की कितनी प्रजातियां रहती हैं ?
उत्तर-
लगभग 2000 प्रजातियां।

प्रश्न 44.
शीत ऋतु में भारत आने वाले कुछ प्रवासी पक्षियों के नाम लिखें।
उत्तर-
साइबेरियाई सास, ग्रेटर फलैमिंगो, स्टालिंग, रफ्फ, रोज़ी पैलीकन, आमटील इत्यादि।

प्रश्न 45.
जंगली जीवों के लिए भारतीय बोर्ड कब तथा क्यों स्थापित किया गया था ?
उत्तर-
1972 में ताकि लोगों को जंगली जानवरों को संभालने के लिए जागृत किया जा सके।

प्रश्न 46.
आरक्षित जीव मंडल क्या है ?
उत्तर-
यह बहुउद्देशीय सुरक्षित क्षेत्र हैं जिनका कार्य ईकोसिस्टम में प्रवृत्ति की अनेकता को संभाल कर रखता है।

प्रश्न 47.
बिल को क्यों प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
बिल को कब्ज तथा दस्त ठीक करने के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 48.
सर्पगंधा को क्यों प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
रक्त प्रवाह में सुधार करने के लिए।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवमंडल पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
पृथ्वी के चार मंडल होते हैं तथा उनमें से जीव मंडल ऐसा मंडल है जहां कई प्रकार के जीव रहते हैं। यह एक जटिल क्षेत्र है जहां पर बाकी तीन मंडल आपस में मिलते हैं। क्योंकि इस मंडल में जीवन मौजूद है, इस कारण इसका हमारे जीवन में काफी महत्त्व है। इसमें बैक्टीरिया जैसे सूक्ष्मजीव से लेकर हाथी जैसे बड़े जीव रहते हैं। सभी प्रकार के जीवों को दो भागों में विभाजित किया जाता है तथा वह हैं-वनस्पति जगत् तथा प्राणी जगत्। वनस्पति जगत् को फ्लौरा कहा जाता है जिसमें प्रत्येक प्रकार की वनस्पति आ जाती है। प्राणी जगत् को फौना कहा जाता है जिसमें जीव मंडल में मौजूद सभी प्राणी आ जाते हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग क्यों होती है ?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग होती है क्योंकि प्राकृतिक वनस्पति को अलगअलग भौगोलिक तत्त्व प्रभावित करते हैं। किसी स्थान पर जिस प्रकार के भौगोलिक तत्त्व होंगे, वहां उस प्रकार की वनस्पति ही उत्पन्न होगी। प्राकृतिक वनस्पति को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं जैसे कि:

  1. भूमि (Land)
  2. मृदा (Soil)
  3. तापमान (Temperature)
  4. वर्षा (Rainfall)
  5. सूर्य की रोशनी का समय (Duration of Sunlight)।

प्रश्न 3.
ऊष्ण सदाबहार जंगलों की विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. ऊष्ण सदाबहार जंगल वह क्षेत्र होते हैं जहां 200 सैंटीमीटर से अधिक वर्षा होती है।
  2. वृक्षों के पत्ते इकट्ठे नहीं झड़ते जिस कारण यह संपूर्ण वर्ष हरे रहते हैं।
  3. यह घने जंगल गर्म तथा नम क्षेत्रों में मिलते हैं।
  4. इन जंगलों के वृक्ष 60 मीटर से भी ऊंचे हो जाते हैं तथा घने होने के कारण यह एक छतरी (Canopy) बना लेते हैं। इस कारण कई स्थानों पर सूर्य की रोशनी भूमि तक भी नहीं पहुंच पाती।
  5. महोगनी, रोज़वुड, ऐबोनी, बांस, शीशम, सिनकोना रबड़ इत्यादि इस क्षेत्र में मिलने वाले वृक्ष हैं।
  6. यह पश्चिमी घाट की ढलानों, उत्तर पूर्वी भारत की पहाड़ियों, पश्चिमी बंगाल तथा ओडिशा के कुछ भागों, लक्षद्वीप तथा अंडमान निकोबार में मिलते हैं।

प्रश्न 4.
ऊष्ण पतझड़ी अथवा मानसूनी जगलों की कुछ विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. ऊष्ण पतझड़ी जंगल उन क्षेत्रों में होते हैं जहां 70 से 200 सैंटीमीटर तक वर्षा होती है।
  2. इन जंगलों के वृक्षों के पत्ते मौसम के अनुसार झड़ते हैं जो गर्मियों में लगभग छ: से आठ हफ्तों के बीच होता है।
  3. यह जंगल दो प्रकार के होते हैं-नम पतझड़ी जंगल (100 से 200 सैंटीमीटर वर्षा) तथा शुष्क पतझड़ी जंगल (70-100 सैंटीमीटर वर्षा)।
  4. यहां टीक, संदलवुड, साल, शीशम, देओदार, खैर, पीपल, नीम, टीक, सफैदा इत्यादि वृक्ष उगते हैं।
  5. यह सदाबहार जंगलों की तरह घने तो नहीं होते परंतु फिर भी काफी घने होते हैं।

प्रश्न 5.
पंजाब में मिलने वाली मिट्टियों (मृदाओं) के नाम बताएं।
उत्तर-
पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में मिट्टी के कई प्रकार मिलते हैं जिनके नाम निम्नलिखित हैं :

  1. जलोढ़ या दरियाई मिट्टी (Alluvial or River Soil)
  2. रेतली मिट्टी (Sandy Soil)
  3. चिकनी मिट्टी (Clayey Soil)
  4. दोमट मिट्टी (Loamy Soil)
  5. पर्वतीय मिट्टी अथवा कंडी की मिट्टी (Hill Soil or Kandi Soil)
  6. सोडिक अथवा ख़ारी मिट्टी. (Sodic and Saline Soil)।

प्रश्न 6.
अंग्रेजों ने प्राकृतिक वनस्पति को बचाने के लिए कौन-से प्रयास किए ?
उत्तर-
वृक्षों की लगातार कटाई के कारण, पशुओं के चरने तथा कानूनों की कमी के कारण पंजाब में वनस्पति का क्षेत्र काफी तेजी से कम हो रहा था। इस कारण अंग्रेजों ने वनस्पति को बचाने के लिए कुछ प्रयास किए जैसे कि :

  1. जंगलों की हदबंदी की गई तथा जंगलों को कई भागों में विभाजित किया गया।
  2. जंगलों में पशुओं के चरने पर रोक लगा दी गई ताकि प्राकृतिक वनस्पति बची रह सके।
  3. कृषि को बढ़ाने के लिए अतिरिक्त वनस्पति को साफ किया गयाँ तथा भूमि को कृषि योग्य बनाया गया। इससे अधिक अनाज पैदा करके जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति की गई।

प्रश्न 7.
भारत के जंगली जीवन पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
जो जंगली जीव, पक्षी तथा कीड़े-मकौड़े, प्राकृतिक आरण्य अर्थात् जंगलों में रहते हैं, उन्हें जंगली जीवन कहा जाता है। भारत में कई प्रकार की प्राकृतिक स्थितियों के मिलने के कारण तथा मिट्टी के प्रकार के अंतर होने के कारण यहां कई प्रकार के प्राकृतिक आरण्य मिलते हैं। इस कारण यहां जंगली जीवन भी कई प्रकार का मिलता है। भारत में 89,000 से अधिक जानवरों की प्रजातियां मिलती हैं जोकि संसार में मिलने वाले जानवरों की प्रजातियों का लगभग 6.5% बनता है। इस प्रकार हमारे देश में पक्षियों की 2000 प्रजातियां, मछलियों की 2546 प्रजातियां, रेंगने वाले जीवों की 458 प्रजातियां तथा कीड़े-मकौड़ों की 60,000 से भी अधिक प्रजातियां मिल जाती हैं।

प्रश्न 8.
भारत में सर्दियों में कौन-से प्रवासी पक्षी आते हैं ?
उत्तर-
सर्दियों में कई अन्य देशों से प्रवासी पक्षी हमारे देश में आते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं :

  1. ग्रेटर फलैमिंगो
  2. साइबेरिआई सारस
  3. काले पंखों वाली स्टिलट
  4. आम ग्रीन सारक
  5. रफ़ल
  6. रोज़ी पैलीकन
  7. लांगबिल्ड।
  8. आम टील
  9. गढ़वाल।

प्रश्न 9.
भारत में गर्मियों में आने वाले प्रवासी पक्षियों के नाम लिखें।
उत्तर-
भारत में गर्मियों में कई प्रकार के प्रवासी पक्षी आते हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं :

1. ब्लु चीकड बी ईटर
2. कूम्ब डक
3. कुकु (कोयल)
4. ब्लु टेल्ड बी ईटर
5. युरेशियन गोलफन ओरीओल
6. एशियन कोयल।
7. ब्लैक क्राऊनड नाइट हैरोन।

प्रश्न 10.
जंगली जीवों को बचाने के सरकारी प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. 1952 में सरकार ने जंगली जीवों के लिए भारतीय बोर्ड का गठन किया जिसका कार्य सरकार को जीवों को संभालने की सलाह देना, लोगों को जंगली जानवरों को संभालने के लिए जागृत करना तथा जंगली जीव अभ्यारण्य इत्यादि का निर्माण करना है।
  2. 1972 में जंगली जीव सुरक्षा कानून बनाया गया ताकि खत्म होने की कगार तक पहुंच चुके जंगली जीवों की संभाल तथा उनका शिकारियों से बचाव किया जा सके।
  3. देश में कई आरक्षित जीव मंडल (Biosphere Reserves) का निर्माण किया गया ताकि जानवरों की अनेकता को संभाल कर रखा जा सके। अब तक 18 आरक्षित जीव मंडल बनाए जा चुके हैं।
  4. जंगली जीवों को बचाने के लिए तथा उन्हें संभालने के लिए देश में 103 राष्ट्रीय उद्यान तथा 555 जंगली जीव अभ्यारण्य बन चुके हैं जहां शिकार करना गैर कानूनी है।

प्रश्न 11.
हमारी प्राकृतिक वनस्पति का वास्तव में प्राकृतिक न रहने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
हमारी प्राकृतिक वनस्पति वास्तव में प्राकृतिक नहीं रही। यह केवल देश के कुछ ही भागों में दिखाई पड़ती है। अन्य भागों में इसका बहुत बड़ा भाग या तो नष्ट हो गया है या फिर नष्ट हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं

  1. तेजी से बढ़ती हुई हमारी जनसंख्या
  2. परंपरागत कृषि विकास की प्रथा
  3. चरागाहों का विनाश या अति चराई
  4. ईंधन व इमारती लकड़ी के लिए वनों का अंधाधुंध कटाव
  5. विदेशी पौधों में बढ़ती हुई संख्या।

प्रश्न 12.
देश के वन क्षेत्र का क्षेत्रीय तथा राज्यों के स्तर पर वर्णन कीजिए।
उत्तर-
देश के विकास तथा वातावरण के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए देश की कम-से-कम 33 प्रतिशत भूमि पर वन अवश्य होने चाहिएं। परंतु भारत की केवल 22.7 प्रतिशत भूमि ही वनों के अधीन है। राज्यों के स्तर पर इसका वितरण बहुत ही असमान है, जो निम्नलिखित ब्योरे से स्पष्ट है-

  1. त्रिपुरा (59.6%), हिमाचल प्रदेश (48.1%), अरुणाचल प्रदेश (45.8%), मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ (32.9%) तथा असम (29.3%) में अपेक्षाकृत अधिक वन क्षेत्र हैं।
  2. पंजाब (2.3%), राजस्थान (3.6%), गुजरात (8.8%), हरियाणा (12.1%), पश्चिमी बंगाल (12.5%) तथा उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में 15% से भी कम भूमि वनों के अधीन है।
  3. केंद्रीय शासित प्रदेशों में अंडमान व निकोबार द्वीप समूह में सबसे अधिक (94.6%) तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में सबसे कम (2.1%) वन क्षेत्र हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide भारत आकार व स्थिति Important Questions and Answers (4)

प्रश्न 13.
पतझड़ या मानसूनी वनस्पति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वह वनस्पति जो ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने से पहले अधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए अपने पत्ते गिरा देती है, पतझड़ या मानसून की वनस्पति कहलाती है। इस वनस्पति को वर्षा के आधार पर आई व आर्द्र-शुष्क दो उपभागों में बांटा जा सकता है।

  1. आई पतझड़ वन-इस तरह की वनस्पति उन चार बड़े क्षेत्रों में पाई जाती है, जहां पर वार्षिक वर्षा 100 से 200 से० मी० तक होती है।
    इन क्षेत्रों में पेड़ कम सघन होते हैं परंतु इनकी ऊंचाई 30 मीटर तक पहुंच जाती है। साल, शीशम, सागौन, टीक, चंदन, जामुन, अमलतास, हलदू, महुआ, शारबू, ऐबोनी, शहतूत इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। .
  2. शुष्क पतझड़ी वनस्पति-इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें. मी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
    इसकी लंबी पट्टी पंजाब से आरंभ होकर दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है। बबूल, बरगद, हलदू यहां के मुख्य वृक्ष हैं।

प्रश्न 14.
पूर्वी हिमालय में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है ?
उत्तर-
पूर्वी हिमालय में 4000 किस्म के फूल और 250 किस्म की फर्न मिलती है। यहां की वनस्पति पर ऊंचाई के बढ़ने से तापमान और वर्षा में आए अंतर का गहरा प्रभाव पड़ता है।

  1. यहां 1200 मीटर की ऊंचाई तक पतझड़ी वनस्पति के मिश्रित वृक्ष अधिक मिलते हैं।
  2. यहां 1200 से लेकर 2000 मीटर की ऊंचाई तक घने सदाबहार वन मिलते हैं। साल और मैंगनोलिया इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। इनमें दालचीनी, अमूरा, चिनोली तथा दिलेनीआ के वृक्ष भी मिलते हैं। .
  3. यहां पर 2000 से 2500 मीटर की ऊंचाई तक तापमान कम हो जाने के कारण शीतोष्ण प्रकार (Temperate type) की वनस्पति पाई जाती है। इसमें ओक, चेस्टनट, लॉरेल, बर्च, मैपल तथा ओलढर जैसे चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष मिलते हैं।

प्रश्न 15.
प्राकृतिक वनस्पति के अंधाधुंध कटाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक वनस्पति की अंधाधुंध कटाई की गई है। इस कटाई से हमें निम्नलिखित हानियां हुई हैं

  1. प्राकृतिक वनस्पति की कटाई से वातावरण का संतुलन बिगड़ गया है।
  2. पहाड़ी ढलानों और मैदानी क्षेत्रों के वनस्पति विहीन होने के कारण बाढ़ व मृदा अपरदन की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  3. पंजाब के उत्तरी भागों में शिवालिक पर्वतमालाओं के निचले भाग में बहने वाले बरसाती नालों के क्षेत्रों में वनकटाव से भूमि कटाव की समस्या के कारण बंजर जमीन में वृद्धि हुई है।
  4. मैदानी क्षेत्रों का जल-स्तर भी प्रभावित हुआ है जिससे कृषि को सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

प्रश्न 16.
मिट्टी कटाव के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मिट्टी का कटाव मुख्य रूप से दो कारणों से होता है-

  1. भौतिक क्रियाओं द्वारा तथा मानव क्रियाओं द्वारा। आज के समय में मानव क्रियाओं से मिट्टियों के कटाव की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है।
  2. भौतिक तत्त्वों में उच्च तापमान, बर्फीले तूफान, तेज़ हवाएं, मूसलाधार वर्षा तथा तीव्र ढलानों की गणना होती है। ये मिट्टियों के कटाव के प्रमुख कारक हैं। मानवीय क्रियाओं में जंगलों की कटाई, पशुओं की बेरोकटोक चराई, स्थानांतरी कृषि की दोषपूर्ण पद्धति, खानों की खुदाई आदि तत्त्व आते हैं।

प्रश्न 17.
शुष्क पतझड़ी वनस्पति पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 से० मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
क्षेत्र-इसकी एक लंबी पट्टी पंजाब से लेकर हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, काठियावाड़, दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों में फैली हुई है।
प्रमुख वृक्ष-इस वनस्पति में शीशम या टाहली, बबूल, बरगद, हलदू जैसे वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें चंदन, महुआ, सीरस तथा सागवान जैसे कीमती वृक्ष भी मिलते हैं। ये वृक्ष प्रायः गर्मियां शुरू होते ही अपने पत्ते गिरा देते हैं।

प्रश्न 18.
वन्य प्राणियों की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य क्यों है ?
उत्तर-
हमारे वनों में बहुत-से महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षी पाए जाते हैं। परंतु खेद की बात यह है कि पक्षियों और जानवरों की अनेक जातियां हमारे देश से लुप्त हो चुकी हैं। अत: वन्य प्राणियों की रक्षा करना हमारे लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्य ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वनों को काटकर तथा जानवरों का शिकार करके दुःखदायी स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज गैंडा, चीता, बंदर, शेर और सारंग नामक पशु-पक्षी बहुत ही कम संख्या में मिलते हैं। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह वन्य प्राणियों की रक्षा करे।

प्रश्न 19.
हमारे जीवन में पशुओं का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
हमारे देश में विशाल पशु धन पाया जाता है, जिन्हें किसान अपने खेतों पर पालते हैं। पशुओं से किसान को गोबर प्राप्त होता है, जो मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में उसकी सहायता करता है। पहले किसान गोबर को ईंधन के रूप में प्रयोग करते थे, परंतु अब प्रगतिशील किसान गोबर को ईंधन और खाद दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। खेत में गोबर को उर्वरक के रूप में प्रयोग करने से पहले वे उससे गैस बनाते हैं जिस पर वे खाना बनाते हैं और रोशनी प्राप्त करते हैं। पशुओं की खालें बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती हैं। पशुओं से हमें ऊन प्राप्त होती है।

प्रश्न 20.
वन्य जीवों के संरक्षण पर एक संक्षेप टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वन्य जीवों का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाए जाते हैं। उनकी उचित देखभाल न होने से जीवों की कई एक जातियां या तो लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने वाली हैं। इन जीवों के महत्त्व को देखते हुए अब इनकी सुरक्षा और संरक्षण के उपाय किये जा रहे हैं। नीलगिरि में भारत का पहला जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किया गया। यह कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के सीमावर्ती क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1986 में की गई थी। नीलगिरि के पश्चात् 1988 ई० में उत्तराखंड (वर्तमान) में नंदा देवी का जीव आरक्षित क्षेत्र बनाया गया। उसी वर्ष मेघालय में तीसरा ऐसा ही क्षेत्र स्थापित किया गया। एक और जीव आरक्षित क्षेत्र अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह में स्थापित किया गया है। इन जीव आरक्षित क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात तथा असम में भी जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
“देश में उष्ण सदाबहार वनस्पति से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक का क्रम मिलता है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
भारत की वनस्पति में व्यापक विविधता देखने को मिलती है। इसका मुख्य कारण है-देश में पाई जाने वाली विविध प्रकार की जलवायु दशाएं तथा धरातलीय असमानता। केवल पर्वतीय क्षेत्रों में ही ऊंचाई के साथ-साथ एक के बाद एक वनस्पति क्षेत्र पाए जाते हैं। यहां उष्ण सदाबहार वनस्पति से लेकर अल्पाइन वनस्पति तक देखने को मिलती है। निम्नलिखित विवरण से यह बात स्पष्ट हो जाएगी-

  1. शिवालिक श्रेणियों के वन-हिमालय की गिरिपाद शिवालिक श्रेणियों में ऊष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन पाए जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से इन वनों का सबसे महत्त्वपूर्ण वृक्ष साल हैं। यहां पर बांस भी बहुत होता है।
  2. 1200 से 2000 मीटर की ऊंचाई पर पाए जाने वाले वन-समुद्र तल से 1200 से लेकर 2000 मीटर तक की ऊंचाई पर घने सदाबहार वन पाए जाते हैं। इन वनों में सदा हरित चौड़ी पत्ती वाले साल तथा चेस्टनट के वृक्ष सामान्य रूप में मिलते हैं। ऐश तथा बीच इन वनों के अन्य वृक्ष हैं।
  3. 2000 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर पाये जाने वाले वन-समुद्र तल से 2000 से लेकर 2500 मीटर की ऊंचाई तक शीतोष्ण कटिबंध के शंकुधारी वन पाए जाते हैं। इन वनों में मुख्य रूप से बीच, चीड़, सीडर, सिल्वर, फ़र तथा स्परूस के वृक्ष मिलते हैं। हिमालय की आंतरिक श्रेणियों में तथा अपेक्षाकृत शुष्क भागों में देवदार का वृक्ष भलीभांति पनपता है।
  4. 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पाये जाने वाले वन-समुद्र तल से 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर अल्पाइन वन पाये जाते हैं। सिल्वर, फ़र, चीड़, भुर्ज (बर्च) तथा जूनिपर (हपूशा) इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। इसके पश्चात् अल्पाइन वनों का स्थान झाड़ियां, गुल्म तथा घास-भूमियां ले लेती हैं।
    दक्षिणी पठार के पहाड़ी भागों में भी पर्वतीय वनस्पति मिलती है। यहां के नीलगिरि पर्वतीय क्षेत्रों में 200 सें० मी० से अधिक वर्षा होती है। इसी कारण यहां पर चौड़े-पत्तों वाले सदाबहार वन 1800 मीटर तक की ऊंचाई पर मिल जाते हैं। दक्षिण भारत में इनको ‘शोला वन’ कहा जाता है। इनमें जामुन, मैचीलस, मैलियोसोमा, सैलटिस आदि प्रमुख वृक्ष हैं। परंतु 1800 से 3000 की ऊंचाई पर शीतोष्ण कोणधारी वनस्पति मिलती है। इसमें सिल्वर, फर, चीड़, बर्च, पीला चम्पा जैसे वृक्ष मिलते हैं। इससे अधिक ऊंचाई पर छोटी-छोटी घास मिलती है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति (वनों) के लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से हमें कई प्रत्यक्ष तथा परोक्ष लाभ होते हैं।
प्रत्यक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से होने वाले प्रत्यक्ष लाभों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. वनों से हमें कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती है, जिसका प्रयोग इमारतें, फ़र्नीचर, लकड़ी-कोयला इत्यादि बनाने में होता है। इसका प्रयोग ईंधन के रूप में भी होता है।
  2. खैर, सिनकोना, कुनीन, बहेड़ा व आंवले से कई प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं।
  3. मैंग्रोव, कंच, गैंबीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और बबूल इत्यादि के पत्ते, छिलके व फलों को सूखाकर चमड़ा रंगने का पदार्थ तैयार किया जाता है।
  4. पलाश व पीपल से लाख, शहतूत से रेशम, चंदन से तुंग व तेल और साल से धूपबत्ती व बिरोज़ा तैयार किया जाता है।

परोक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से हमें निम्नलिखित परोक्ष लाभ होते हैं-

  1. वन जलवायु पर नियंत्रण रखते हैं। सघन वन गर्मियों में तापमान को बढ़ने से रोकते हैं तथा सर्दियों में तापमान को बढ़ा देते हैं।
  2. सघन वनस्पति की जड़ें बहते हुए पानी की गति को कम करने में सहायता करती हैं। इससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है। दूसरे जड़ों द्वारा रोका गया पानी भूमि के अंदर समा लिए जाने से भूमिगत जल-स्तर (Water-table) ऊंचा उठ जाता है। वहीं दूसरी ओर धरातल पर पानी की मात्रा कम हो जाने से पानी नदियों में आसानी से बहता रहता है।
  3. वृक्षों की जड़ें मिट्टी की जकड़न को मज़बूत किए रहती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
  4. वनस्पति के सूखकर गिरने से जीवांश के रूप में मिट्टी को हरी खाद मिलती है।
  5. हरी-भरी वनस्पति बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इससे आकर्षित होकर लोग सघन वन क्षेत्रों में यात्रा, शिकार तथा मानसिक शांति के लिए जाते हैं। कई विदेशी पर्यटक भी वन-क्षेत्रों में बने पर्यटन केंद्रों पर आते हैं। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  6. सघन वन अनेक उद्योगों के आधार हैं। इनमें से कागज़, लाख, दियासिलाई, रेशम, खेलों का सामान, प्लाईवुड, गोंद, बिरोज़ा इत्यादि उद्योग प्रमुख हैं।

प्रश्न 3.
भारतीय मिट्टियों की किस्मों एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारत में कई प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं। इनके गुणों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है-

  1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil) भारत में जलोढ़ मिट्टी उत्तरी मैदान, राजस्थान, गुजरात तथा दक्षिण के तटीय मैदानों में सामान्य रूप से मिलती है। इसमें रेत, गाद तथा मृत्तिका मिली होती है। जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती हैखादर तथा बांगर।
    जलोढ़ मिट्टियां सामान्यतः सबसे अधिक उपजाऊ होती हैं। इन मिट्टियों में पोटाश, फॉस्फोरस अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है। परंतु इनमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।-
  2. काली अथवा रेगड़ मिट्टी (Black Soil)—इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत लाभदायक है। अतः इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगड़’ है। यह मिट्टी दक्कन ट्रैप प्रदेश की प्रमुख मिट्टी है। यह पश्चिम में मुंबई से लेकर पूर्व में अमरकंटक पठार, उत्तर में गुना (मध्य प्रदेश) और दक्षिण में बेलगाम तक त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई है।
    काली मिट्टी नमी को अधिक समय तक धारण कर सकती है। इस मृदा में लौह, पोटाश, चूना, एल्यूमीनियम तथा मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। परंतु नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा जीवांश की मात्रा कम होती है।
  3. लाल मिट्टी (Red Soil)-इस मिट्टी का लाल रंग लोहे के रवेदार तथा परिवर्तित चट्टानों में बदल जाने के कारण होता है। इसका विस्तार तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, दक्षिणी बिहार, झारखंड, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय राज्यों में है। लाल मिट्टी में नाइट्रोजन तथा चूने की कमी, परंतु मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम तथा लोहे की मात्रा अधिक होती है।।
  4. लैटराइट मिट्टी (Laterite Soil) इस मिट्टी में नाइट्रोजन, चूना तथा पोटाश की कमी होती है। इसमें लोहे तथा एल्यूमीनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण इसका स्वभाव तेज़ाबी हो जाता है। इसका विस्तार विंध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, ओडिशा पश्चिमी बंगाल की बैसाल्टिक पर्वतीय चोटियों, दक्षिणी महाराष्ट्र तथा उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार के उत्तरी तथा पूर्वी भाग में है।
  5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)—इस मिट्टी का विस्तार पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर पूर्व में अरावली पर्वतों तक है। यह राजस्थान, दक्षिणी पंजाब व दक्षिणी हरियाणा में फैली हुई है। इसमें घुलनशील नमक की मात्रा अधिक होती है। परंतु इसमें नाइट्रोजन तथा ह्यूमस की बहुत कमी होती है। इसमें 92% रेत व 8% चिकनी मिट्टी का अंश होता है। इसमें सिंचाई की सहायता से बाजरा, ज्वार, कपास, गेहूं, सब्जियां आदि उगाई जा रही हैं।
  6. खारी व तेजाबी मिट्टी (Saline & Alkaline Soil)—यह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा व पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है। खारी मिट्टियों से सोडियम भरपूर मात्रा में मिलता है। तेज़ाबी मिट्टी में कैल्शियम व नाइट्रोजन की कमी होती है। इसी लवणीय मिट्टी को उत्तर प्रदेश में औसढ़’ या ‘रेह’, पंजाब में ‘कल्लर’ या ‘थुड़’ तथा अन्य भागों में ‘रक्कड़’ कार्ल और ‘छोपां’ मिट्टी भी कहा जाता है।
  7. पीट एवं दलदली मिट्टी (Peat & Marshy Soil)-इसका विस्तार सुंदरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। इसका रंग जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण काला तथा तेजाबी स्वभाव वाला होता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण कहीं-कहीं इसका रंग नीला भी है।
  8. पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)—इस मिट्टी में रेत, पत्थर तथा बजरी की मात्रा अधिक होती है। इसमें चूना कम लेकिन लोहे की मात्रा अधिक होती है। यह चाय की खेती के लिए अनुकूल होती है। इसका विस्तार असम, लद्दाख, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, दार्जिलिंग, देहरादून, अल्मोड़ा, गढ़वाल व दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में है।

प्रश्न 4.
भारत में पाये जाने वाले वन्य प्राणियों का वर्णन करो।
उत्तर-
वनस्पति की भांति ही हमारे देश के जीव-जंतुओं में भी बड़ी विविधता है। भारत में इनकी 81,000 जातियां पाई जाती हैं। देश के ताज़े और खारे पानी में 2500 जातियों की मछलियां मिलती हैं। इसी प्रकार यहां पर पक्षियों की भी 2000 जातियां पाई जाती हैं। मुख्य रूप से भारत के वन्य प्राणियों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. हाथी-हाथी राजसी ठाठ-बाठ वाला पशु है। यह ऊष्ण आर्द्र वनों का पशु है। यह असम, केरल तथा कर्नाटक के जंगलों में पाया जाता है। इन स्थानों पर भारी वर्षा के कारण बहुत घने वन मिलते हैं।
  2. ऊंट-ऊंट गर्म तथा शुष्क मरुस्थलों में पाया जाता है।
  3. जंगली गधा-जंगली गधे कच्छ के रण में मिलते हैं।
  4. एक सींग वाला गैंडा-एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों के दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  5. बंदर-भारत में बंदरों की अनेक जातियां मिलती हैं। इनमें से लंगूर सामान्य रूप से पाया जाता है। पूंछ वाला बन्दर (मकाक) बड़ा ही विचित्र जीव है। इसके मुंह पर चारों ओर बाल उगे होते हैं जो एक प्रभामण्डल के समान दिखाई देते हैं।
  6. हिरण-भारत में हिरणों की अनेक जातियां पाई जाती हैं। इनमें चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं। यहां हिरणों की कुछ अन्य जातियां भी मिलती हैं। इनमें कश्मीरी बारहसिंघा, दलदली मृग, चित्तीदार मृग, कस्तूरी मृग तथा मूषक मृग उल्लेखनीय हैं।
  7. शिकारी जंतु-शिकारी जंतुओं में भारतीय सिंह का विशिष्ट स्थान है। अफ्रीका के अतिरिक्त यह केवल भारत में ही मिलता है। इसका प्राकृतिक आवास गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वनों में है। अन्य शिकारी पशुओं में शेर, तेंदुआ, लामचिता (क्लाउडेड लियोपार्ड) तथा हिम तेंदुआ प्रमुख हैं।
  8. अन्य जीव-जंतु-हिमालय की श्रृंखलाओं में भी अनेक प्रकार के जीव-जंतु रहते हैं। इनमें जंगली भेड़ें तथा पहाड़ी बकरियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारतीय जंतुओं में भारतीय मोर, भारतीय भैंसा तथा नील गाय प्रमुख हैं। भारत सरकार कुछ जातियों के जीव-जंतुओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयत्न कर रही है।

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2

Punjab State Board PSEB 12th Class Maths Book Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2 Textook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Maths Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2

Direction (1 – 8): Differentiate the following functions with respect to x.

Question 1.
sin(x2 + 5)
Solution.
The given function is sin(x2 + 5)
On differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d}{d x}\) [sin(x2 + 5)] = cos(x2 + 5) \(\frac{d}{d x}\) (x2 + 5)
= cos (x2 + 5) [\(\frac{d}{d x}\) (x2 + \(\frac{d}{d x}\) (5)]
= cos (x2 + 5) . [2x + 0]
= 2x cos(x2 + 5)

Question 2.
cos(sin x)
Solution.
The given function is cos(sinx)
On differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d}{d x}\) [cos(sin x)] = – sin(sin x) . \(\frac{d}{d x}\) (sin x)
= – sin(sin x) . cos x
= – cos x sin(sin x)

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2

Question 3.
sin(ax + b)
Solution.
The given function is sin(ax + b)
On differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d}{d x}\) [sin (ax + b)] = cos(ax + b) \(\frac{d}{d x}\) (ax + b)
= cos (ax + b) . [\(\frac{d}{d x}\) (ax) + \(\frac{d}{d x}\) (b)]
= cos(ax + b) . (a + 0)
= a cos (ax + b)

Question 4.
sec(tan √x)
Solution.
The given function is sec (tan (√x))
On differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d}{d x}\) [sec(tan √x)] = sec (tan √x) . tan(tan √x) (tan √x) . \(\frac{d}{d x}\) (tan √x)
= sec(tan √x) . tan(tan √x) sec2 (√x). \(\frac{d}{d x}\) (√x)
= sec(tan √x) . tan(tan √x) . sec2 (√x) . \(\frac{1}{2 \sqrt{x}}\)
= \(\frac{\sec (\tan \sqrt{x}) \cdot \tan (\tan \sqrt{x}) \cdot \sec ^{2}(\sqrt{x})}{2 \sqrt{x}}\).

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2

Question 5.
\(\frac{\sin (a x+b)}{\cos (c x+d)}\)
Solution.
Let y = \(\frac{\sin (a x+b)}{\cos (c x+d)}=\frac{u}{v}\)
u = sin (ax + b)
differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d u}{d x}\)= cos (ax + b) \(\frac{d}{d x}\) (ax + b) = a cos (ax + b)
v = cos (cx + d)
differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d v}{d x}\) = – sin (cx + d) \(\frac{d}{d x}\) (cx + d)
= – sin (cx + d) × c
= – c sin (cx + d)

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2 1

Question 6.
cos x3 . sin2 (x5)
Sol.
The given function is cos x3 . sin2 (x5)
On differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d}{d x}\) [cos x3 . sin2 (x5)] = sin 2 (x5) × \(\frac{d}{d x}\) (cos x3) + cos x3 × \(\frac{d}{d x}\) [sin2 (x5)]

= sin2 (x5) × (- sin x3) × \(\frac{d}{d x}\) (x3) + cos x3 x 2 sin (x5) – (sin x5)

= – sin x3 sin2 (x5) × 3x2 + 2 sin x5 cos x3 cos x5 × \(\frac{d}{d x}\) (x5)

= – 3x2 sin x3 sin2 (x5) + 2 sin x5 cos x5 cos x3 . 5x4
= x2 sin x5 (- 3 sin x3 sin x5 + 10x2 cos x3 cos x5).

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2

Question 7.
2 \(\sqrt{\cot \left(x^{2}\right)}\)
Solution.
The given function is 2 \(\sqrt{\cot \left(x^{2}\right)}\)
On differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d}{d x}\left[2 \sqrt{\cot \left(x^{2}\right)}\right]=2 \cdot \frac{1}{2 \sqrt{\cot \left(x^{2}\right)}} \times \frac{d}{d x}\left[\cot \left(x^{2}\right)\right]\)

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2 2

Question 8.
cos (√x)
Solution.
The given function is cos(√x)
On differentiating w.r.t. x, we get
\(\frac{d}{d x}\) [cos (√x)] = – sin(√x) . \(\frac{d}{d x}\) (√x)
= \(-\sin (\sqrt{x}) \times \frac{d}{d x}\left(x^{\frac{1}{2}}\right)=-\sin \sqrt{x} \times \frac{1}{2} x^{-\frac{1}{2}}=\frac{-\sin \sqrt{x}}{2 \sqrt{x}}\)

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2

Question 9.
Prove that the function f given by f(x) =|x – 1|, x ∈ R is not differentiable at x = 1.
Solution.
The given function may be written as
f(x) = PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2 3
RHD = Right hand derivative at x = 1
= \(\lim _{h \rightarrow 0} \frac{f(1+h)-f(1)}{h}=\lim _{h \rightarrow 0} \frac{[(1+h)-1]-(1-1)}{h}\)

= \(\lim _{h \rightarrow 0} \frac{h}{h}\) = 1

LHD = Left hand derivative at x = 1
= \(\lim _{h \rightarrow 0} \frac{f(1-h)-f(1)}{-h}=\lim _{h \rightarrow 0} \frac{1-(1-h)-(1-1)}{-h}\)

= \(\lim _{h \rightarrow 0} \frac{h}{-h}\) = – 1

RHD ≠ LHD
⇒ f is not differentiable at x = 1.

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2

Question 10.
Prove that the greatest integer function defined by f(x) = [x], 0 < x < 3 is not differentiable at x – 1 and x = 2.
Solution.
The given function f is f(x) – [x], 0 < x < 3.
It is known that a function f is differentiable at a point x = c in its domain if both
\(\lim _{h \rightarrow 0^{-}} \frac{f(c+h)-f(c)}{h}\) and lim \(\lim _{h \rightarrow 0^{+}} \frac{f(c+h)-f(c)}{h}\) are finite and equal.

To check the differentiability of the given function at x = 1, consider the left hand limit of / at x = 1.

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2 4

Since, the left and right hand limits of f at x = 1 are not equal, therefore, f is not differentiable at x = 1.
To check the differentiability of the given function at x = 2, consider the left hand limit of f at x = 2.

PSEB 12th Class Maths Solutions Chapter 5 Continuity and Differentiability Ex 5.2 5

Since, the left and right hand limits of f at x = 2 are not equal, therefore, f is not differentiable at x = 2.