PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

Punjab State Board PSEB 10th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar apathit gadyansh अपठित गद्यांश Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class Hindi Grammar अपठित गद्यांश

1. इस संसार में प्रकृति द्वारा मनुष्य को प्रदत्त सबसे अमूल्य उपहार ‘समय’ है। ढह गई इमारत को दुबारा खड़ा किया जा सकता है। बीमार व्यक्ति को इलाज द्वारा स्वस्थ किया जा सकता है; खोया हुआ धन दुबारा प्राप्त किया जा सकता है। किंतु एक बार बीता समय दुबारा नहीं पाया जा सकता। जो समय के महत्त्व को पहचानता है, वह उन्नति की सीढ़ियाँ चढ़ता जाता है। जो समय का तिरस्कार करता है, हर काम में टालमटोल करता है, समय को बर्बाद करता है, समय भी उसे एक दिन बर्बाद कर देता है। समय पर किया गया हर काम सफलता में बदल जाता है जबकि समय के बीत जाने पर बहुत कोशिशों के बावजूद भी कार्य को सिद्ध नहीं किया जा सकता।

समय का सदुपयोग केवल कर्मठ व्यक्ति ही कर सकता है, लापरवाह, कामचोर और आलसी नहीं। आलस्य मनुष्य की बुद्धि और समय दोनों का नाश करता है। समय के प्रति सावधान रहने वाला मनुष्य आलस्य से दूर भागता है तथा परिश्रम, लगन व सत्कर्म को गले लगाता है। विद्यार्थी जीवन में समय का अत्यधिक महत्त्व होता है। विद्यार्थी को अपने समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन में करना चाहिए न कि अनावश्यक बातों, आमोद. प्रमोद या फैशन में।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
प्रकृति द्वारा मनुष्य को दिया गया सबसे अमूल्य उपहार क्या है?
उत्तर:
प्रकृति के द्वारा मनुष्य को दिया गया अमूल्य उपहार समय है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 2.
समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति किससे दूर भागता है?
उत्तर:
समय के प्रति सावधान रहने वाला व्यक्ति आलस्य से दूर भागता है।

प्रश्न 3.
विद्यार्थी को समय का सदुपयोग कैसे करना चाहिये?
उत्तर:
विद्यार्थी को समय का सदुपयोग ज्ञानार्जन से करना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘कर्मठ’ तथा ‘तिरस्कार’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
कर्मठ-परिश्रमी, तिरस्कार-अपमान।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
समय-प्रकृति का अमूल्य उपहार।

2. हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है, क्योंकि हर समाज में ऐश्वर्यपूर्ण, स्वच्छंद और आडंबरपूर्ण जीवन जीने वाले लोग अधिक हैं। आज मनुष्य सुखभोग और धन-दौलत के पीछे भाग रहा है। उसकी असीमित इच्छाएँ उसे स्वार्थी बना रही हैं। वह अपने स्वार्थ के सामने दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता तक की परवाह नहीं करता जबकि विचारों की उच्चता में ऐसी शक्ति होती है कि मनुष्य की इच्छाएँ सीमित हो जाती हैं। सादगीपूर्ण जीवन जीने में उसमें संतोष और संयम जैसे अनेक सदुगुण स्वतः ही उत्पन्न हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त उसके जीवन में लोभ, द्वेष और ईर्ष्या का कोई स्थान नहीं रहता।

उच्च विचारों से उसका स्वाभिमान भी बढ़ जाता है जो कि उसके चरित्र की प्रमुख पहचान बन जाता है। इससे वह छल-कपट, प्रमाद और अहंकार से दूर रहता है। किन्तु आज की इस भाग-दौड़ वाली जिंदगी में हरेक व्यक्ति की यही लालसा रहती है कि उसकी जिंदगी ऐशो-आराम से भरी हो। वास्तव में आज के वातावरण में मानव पश्चिमी सभ्यता, फैशन और भौतिक सुख साधनों से भ्रमित होकर उनमें संलिप्त होता जा रहा है। ऐसे में मानवता की रक्षा केवल सादा जीवन और उच्च विचार रखने वाले महापुरुषों के आदर्शों पर चलकर ही की जा सकती है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
हर देश जाति और धर्म के महापुरुषों ने किस सिद्धांत पर बल दिया है?
उत्तर:
हर देश, जाति और धर्म के महापुरुषों ने ‘सादा जीवन और उच्च विचार’ के सिद्धांत पर बल दिया है।

प्रश्न 2.
अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को किस चीज़ की परवाह नहीं रहती?
उत्तर:
अपने स्वार्थ के सामने मनुष्य को दूसरों की सामान्य इच्छा और आवश्यकता को भी परवाह नहीं रहती।

प्रश्न 3.
सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में कौन-कौन से गुण उत्पन्न हो जाते हैं?
उत्तर:
सादगीपूर्ण जीवन जीने से मनुष्य में संतोष और संयम के गुण उत्पन्न हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
‘प्रमाद’ तथा ‘लालसा’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
प्रमाद-नशा/उन्माद, लालसा-अभिलाषा।

प्रश्न 5.
उपयुक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
सादा जीवन उच्च-विचार।

3. मनुष्य का जीवन कर्म-प्रधान है। मनुष्य को निष्काम भाव से सफलता-असफलता की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करना है। आशा या निराशा के चक्र में फंसे बिना उसे लगातार कर्त्तव्यनिष्ठ रहना है। किसी भी कर्त्तव्य की पूर्णता पर सफलता अथवा असफलता प्राप्त होती है। असफल व्यक्ति निराश हो जाता है, किंतु मनीषियों ने असफलता को भी सफलता की कुंजी कहा है। असफल व्यक्ति अनुभव की संपत्ति अर्जित करता है, जो उसके भावी जीवन का निर्माण करती है। जीवन में अनेक बार ऐसा होता है कि हम जिस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम करते हैं, वह पूरा नहीं होता है। ऐसे अवसर पर सारा परिश्रम व्यर्थ हो गया-सा लगता है और हम निराश होकर चुपचाप बैठ जाते हैं।

उद्देश्य की पूर्ति के लिए पुनः प्रयत्न नहीं करते। ऐसे व्यक्ति का जीवन धीरे-धीरे बोझ बन जाता है। निराशा का अंधकार न केवल उसकी कर्म-शक्ति, बल्कि उसके समस्त जीवन को ही ढंक लेता है। मनुष्य जीवन धारण करके कर्म-पथ से कभी विचलित नहीं होना चाहिए। विघ्नबाधाओं की, सफलता-असफलता की तथा हानि-लाभ की चिंता किए बिना कर्त्तव्य के मार्ग पर चलते रहने में जो आनंद एवं उत्साह है, उसमें ही जीवन की सार्थकता है।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
कर्त्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर कैसा भाव होना चाहिए?
उत्तर:
कर्त्तव्य-पालन में मनुष्य के भीतर सफलता-असफलता की चिंता को त्याग और केवल कर्त्तव्य के पालन का भाव होना चाहिए।

प्रश्न 2.
सफलता कब प्राप्त होती है?
उत्तर:
सफलता की प्राप्ति तब होती है जब मनुष्य बिना किसी आशा या निराशा के चक्र में फंसे हुए निरंतर अपने कार्य में लगा रहता है।

प्रश्न 3.
जीवन में असफल होने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
जीवन में असफल होने पर कभी भी निराश-हतांश नहीं होना चाहिए और निरंतर अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कार्य करते रहना चाहिए।

प्रश्न 4.
‘निष्काम’ और ‘मनीषियों’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
निष्काम-असक्ति से रहित, निरीह।
मनीषियों-विचारशील पुरुषों, पंडितों/विद्वानों।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
जीवन में कर्म का महत्त्व।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

4. व्यवसाय या रोज़गार पर आधारित शिक्षा व्यावसायिक शिक्षा कहलाती है। भारत सरकार इस दिशा में सराहनीय भूमिका निभा रही है। इस शिक्षा को प्राप्त करके विद्यार्थी शीघ्र ही अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है। प्रतियोगिता के इस दौर में तो इस शिक्षा का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। व्यावसायिक शिक्षा में ऐसे कोर्स रखे जाते हैं जिनमें व्यावहारिक प्रशिक्षण अर्थात् प्रैक्टीकल ट्रेनिंग पर अधिक जोर दिया जाता है। यह आत्मनिर्भरता के लिए एक बेहतर कदम है। व्यावसायिक शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए भारत व राज्य सरकारों ने इसे स्कूल-स्तर पर शुरू किया है। निजी संस्थाएं भी इस क्षेत्र में सराहनीय भूमिका निभा रही हैं। कुछ स्कूलों में तो नौवीं कक्षा से ही व्यावसायिक शिक्षा दी जाती है।

परंतु बड़े पैमाने पर इसे ग्यारहवीं कक्षा से शुरू किया गया है। व्यावसायिक शिक्षा का दायरा काफ़ी विस्तृत है। विद्यार्थी अपनी पसंद और क्षमता के आधार पर विभिन्न व्यावसायिक कोरों में प्रवेश ले सकते हैं। कॉमर्स-क्षेत्र में कार्यालय प्रबंधन, आशुलिपि व कंप्यूटर एप्लीकेशन, बैंकिंग, लेखापरीक्षण, मार्कीटिंग एंड सेल्ज़मैनशिप आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफरीजरेशन एवं ऑटोमोबाइल टैक्नोलॉजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं। कृषि-क्षेत्र में डेयरी उद्योग, बागबानी तथा कुक्कुट ( पोल्ट्री) उद्योग से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। गह-विज्ञानक्षेत्र में स्वास्थ्य, ब्यूटी, फैशन तथा वस्त्र उद्योग आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।

हैल्थ एंड पैरामैडिकल क्षेत्र में मैडिकल लैबोरटरी, एक्स-रे टैक्नोलॉजी एवं हैल्थ केयर साइंस आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमैंट, टूरिज्म एंड ट्रैवल, बेकरी से संबंधित व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं। सूचना तकनीक के तहत आई० टी० एप्लीकेशन कोर्स किया जा सकता है। इनके अतिरिक्त पुस्तकालय प्रबन्धन, जीवन बीमा, पत्रकारिता आदि व्यावसायिक कोर्स किए जा सकते हैं।
उपयुक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
व्यावसायिक शिक्षा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
व्यवसाय अथवा रोज़गार पर आधारित शिक्षा को व्यावसायिक शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 2.
इंजीनियरिंग क्षेत्र में कौन-कौन से व्यावसायिक कोर्स आते हैं?
उत्तर:
इंजीनियरिंग क्षेत्र में इलैक्ट्रिकल, इलैक्ट्रॉनिक्स, एयर कंडीशनिंग एंड रेफरीजरेशन और ऑटोमोबाइल टेक्नॉलाजी आदि व्यावसायिक कोर्स आते हैं।

प्रश्न 3.
आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में कौन-कौन से कोर्स किए जा सकते हैं?
उत्तर:
आतिथ्य एवं पर्यटन क्षेत्र में फूड प्रोडक्शन, होटल मैनेजमेंट, टूरिज्म एंड ट्रेवल, बेकरी आदि से संबंधित कोर्स किए जा सकते हैं।

प्रश्न 4.
‘क्षमता’ तथा ‘विस्तृत’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
क्षमता–शक्ति, सामर्थ्य, योग्यता, विस्तृत-फैला हुआ।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
व्यावसायिक शिक्षा का महत्त्व।

1. साहस की ज़िन्दगी सबसे बड़ी जिंदगी है। ऐसी जिंदगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि वह बिल्कुल निडर, बिल्कुल बेखौफ़ होती है। साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नहीं करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं। जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला व्यक्ति दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है। अड़ोस-पड़ोस को देखकर चलना यह साधारण जीव का काम है। क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पड़ोसी के उद्देश्य से करते हैं और न अपनी चाल को ही पड़ोसी की चाल देखकर मद्धम बनाते हैं।

(I) साहसी व्यक्ति की विशेषताएं लिखिए।
(II) साहस की जिंदगी की पहचान क्या है?
(III) क्रांति करने वाले क्या नहीं करते?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) साहसी व्यक्ति निडर होता है। वह इस बात की परवाह नहीं करता कि लोग उसके विषय में क्या कहते हैं। वह बिना किसी की नकल लिए हुए जीवन के मार्ग पर आगे बढ़ता है।
(II) साहस की जिंदगी पूरी तरह से निडर और बेखौफ़ होती है। वह आस-पास और जनमत की चिंता नहीं करता।
(III) क्रांति करने वाले लोग अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए न तो अपनी चाल धीमी करते हैं और न ही पड़ोसियों से अपनी तुलना करते हैं।
(IV) बेखौफ़ = बिना भय के। जनमत = लोगों का समर्थन।
(V) साहस की जिंदगी।

2. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन से नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथि बन कर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शस्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवन के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएं आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है, लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अंधकार भाग जाता है।

(I) महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
(II) आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(III) निराशा की काली घटाएं किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जीवन रूपी संग्राम स्थल से जो रथ गुजरते हैं वे सरल-सीधे मार्ग से नहीं गुज़रते। वे तो कांटों से भरे बीहड़ रास्ते से गुजरते हैं।
(II) जीवन के कष्टों का सामना हम आत्म-विश्वास के शस्त्र से कर सकते हैं।
(III) निराशा की काली घटाएं दृढ़ आत्मविश्वास और आत्मिक शक्ति से समाप्त हो जाती हैं।
(IV) नंदन वन = स्वर्ग लोक में देवताओं का उपवन । सोपानों = सीढ़ियों।
(V) आत्म-विश्वास।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

3. आजकल हमारी शिक्षा पद्धति के विरुद्ध देश के कोने-कोने में आवाज़ उठाई जा रही है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इससे समाज की कितनी हानि हुई है। प्रत्येक मनुष्य जानता है कि इसका उद्देश्य व्यक्ति को पराधीन बना कर सरकारी नौकरी के लिए तैयार करना है। मैकाले ने इसका सूत्रपात शासन चलाने के निमित क्लर्क तैयार करने को किया था, दोषपूर्ण है। आधुनिक शिक्षा व्यय साध्य है। उसकी प्राप्ति पर सहस्रों रुपए व्यय करने पड़ते हैं। सर्व-साधारण ऐसे बहुमूल्य शिक्षा को प्राप्त नहीं कर सकता। यदि ज्यों-त्यों करके करे भी तो इससे उसकी जीविका का प्रश्न हल नहीं होता।

क्योंकि शिक्षित युवकों में बेकारी बहुत बढ़ी हुई है। आधुनिक शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य विद्यार्थियों को सभी विषयों का ज्ञाता बनाना है पर किसी विषय का पण्डित बनाना नहीं। सौभाग्य का विषय है कि अब इस शिक्षा-पद्धति में सुधार की योजना की जा रही है और निकट भविष्य में यह हमारे राष्ट्र के कल्याण का साधन बनेगी।

(I) आधुनिक भारत में चल रही शिक्षा पद्धति का क्या उद्देश्य है?
(II) आधुनिक शिक्षा में कौन-कौन से दोष हैं?
(III) शिक्षा-सुधार से देश में क्या अंतर दिखाई देगा?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) आधुनिक भारत में चल रही शिक्षा पद्धति का उद्देश्य व्यक्ति को पराधीन बना कर सरकारी नौकरी के लिए सस्ते क्लर्क तैयार करना है।
(II) आधुनिक शिक्षा महंगी है जो सब को सुलभ नहीं है। इसके द्वारा किसी व्यक्ति को सभी विषयों का थोड़ाबहुत ज्ञान तो दिया जा सकता है लेकिन किसी विषय का पंडित नहीं बनाया जा सकता।
(III) शिक्षा-पद्धति में सुधार से राष्ट्र का कल्याण होगा तथा सभी शिक्षा को प्राप्त कर सकेंगे।
(IV) मैकाले = अंग्रेज़ी शासन में शिक्षा की नीतियों का रचयिता एक अंग्रेज़ अधिकारी। निमित्त = के लिए।
(V) वर्तमान शिक्षा प्रणाली।

4. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहंकार बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है और एक सीमा तक आवश्यक भी है। किंतु आज के विद्यार्थियों में यह इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र को नहीं रह गए हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है।

इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने अधिकारों के बहुत अधिकारी नहीं है। उसे भी वह अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्तव्य दोनों एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है। एक सीमा की अति का दूसरे पर भी असर पड़ता है।

(I) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(II) विद्यार्थी प्रायः किस का विरोध करते हैं?
(III) विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) आधुनिक विद्यार्थियों में अहं के बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण नम्रता की कमी होती जा रही है।
(II) विद्यार्थी प्रायः अपने गुरुजनों या अपने से बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
(III) विद्यार्थी में अपने अधिकारों और माँगों के प्रति सजगता अधिक है।
(IV) विनय = नम्रता। विमुख = दूर होना, परे हटना।
(V) विद्यार्थी और अहंकार।

5. यह वह समय था जब दिल्ली पर मुसलमान सुल्तानों का राज्य था। एक समय ऐसा भी आया जब यहां के काज़ी को विशेष राजनीतिक शक्ति प्राप्त थी। एक लोक गाथा यह भी है कि रांझे ने न्याय के लिए, इसी नगरी के काज़ी की शरण ली थी। मुगलों के बाद जब यह नगर रियासत पटियाला के अधिकार में आया तो इस नगर की सभ्यता ने भी पलटा खाया और लोगों का रहन-सहन पटियालवी रंग में रंग गया। वही चूड़ीदार पजामा, अचकन और पटियालवी ढंग की पगड़ी। बंटवारे के उपरांत यह रंग-ढंग भी तिरोहित हो गए और अन्य नगरों की भांति सामाना के लोग भी पश्चिमी रंग में रंग गए हैं। एक और बड़े-बूढ़े प्राचीन परंपरा को संभाले हुए हैं और दूसरी ओर युवा पीढ़ी नवीनतम हिप्पी स्टाइल की ओर अग्रसर है।

(I) काज़ी को कब और क्या प्राप्त थी?
(II) सामाना के लोगों पर पटियाला का क्या प्रभाव पड़ा?
(III) सामाना के नये और पुराने लोगों की वेशभूषा कैसी है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) दिल्ली पर मुसलमानों के शासन के समय काजी को विशेष राजनीतिक शक्ति प्राप्त थी।
(II) सामाना के लोगों पर पटियाला के रहन-सहन का प्रभाव पड़ा था जिस कारण वहाँ चूड़ीदार पाजामा, अचकन और पटियालवी ढंग की पगड़ी लोकप्रिय हो गई थी।
(III) सामाना में बड़े-बूढ़े लोग परंपरागत वेशभूषा ही पहनते हैं लेकिन नयी पीढ़ी नवीनतम हिप्पी स्टाइल की ओर बढ़ रहे हैं।
(IV) उपरांत = के पश्चात्। तिरोहित = दूर।
(V) समयानुसार बदलती सभ्यता।

6. प्यासा आदमी कुएं के पास जाता है, यह बात निर्विवाद है। परंतु सत्संगति के लिए यह आवश्यक नहीं कि आप सज्जनों के पास जाएं और उनकी संगति प्राप्त करें। घर बैठे-बैठे भी आप सत्संगति का आनंद लूट सकते हैं। यह बात पुस्तकों द्वारा संभव है। हर कलाकार और लेखक को जन-साधारण से एक विशेष बुद्धि मिली है। इस बुद्धि का नाम प्रतिभा है। पुस्तक निर्माता अपनी प्रतिभा के बल से जीवन भर से संचित ज्ञान को पुस्तक के रूप में उंडेल देता है। जब हम घर की चारदीवारी में बैठकर किसी पुस्तक का अध्ययन करते हैं तब हम एक अनुभवी और ज्ञानी सज्जन की संगति में बैठकर ज्ञान प्राप्त करते हैं। नित्य नई पुस्तक का अध्ययन हमें नित्य नए सज्जन की संगति दिलाता है। इसलिए विद्वानों ने स्वाध्याय को विशेष महत्त्व दिया है। घर बैठे-बैठे सत्संगति दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।

(I) घर बैठे-बैठे सत्संगति का लाभ किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है?
(II) हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का क्यों होता है?
(III) पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता क्या है?
(IV) रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
(I) घर बैठे-बैठे पुस्तकों का अध्ययन करने से लेखकों के ज्ञान के द्वारा सत्संगति का लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
(II) हर लेखक और कलाकार को ईश्वर के द्वारा अलग-अलग प्रकार की बुद्धि मिलती है जिसे वह अपनी पुस्तक के रूप में प्रकट कर देता है। इसलिए हर पुस्तक में संचित ज्ञान अलग-अलग प्रकार का होता है।
(III) घर बैठे-बैठे लोगों को सत्संगति का लाभ दिलाना पुस्तकों की सर्वश्रेष्ठ उपयोगिता है।
(IV) निर्विवाद = बिना किसी विवाद के। स्वाध्याय = अपने आप अध्ययन करना।
(V) स्वाध्याय की उपयोगिता।

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7. संसार में धर्म की दुहाई सभी देते हैं। पर कितने लोग ऐसे हैं, जो धर्म के वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं। धर्म कोई बुरी चीज़ नहीं है। धर्म ही एक ऐसी विशेषता है, जो मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है। अन्यथा मनुष्य और पशु में अंतर ही क्या है। उस धर्म को समझने की आवश्यकता है। धर्म में त्याग की महत्ता है। इस त्याग और कर्तव्यपरायणता में ही धर्म का वास्तविक स्वरूप निहित है। त्याग परिवार के लिए, ग्राम के लिए, नगर के लिए, देश के लिए और मानव मात्र के लिए भी हो सकता है। परिवार से मनुष्य मात्र तक पहुंचते-पहुंचते हम एक संकुचित घेरे से निकल कर विशाल परिधि में घूमने लगते हैं। यही वह क्षेत्र है, जहां देश और जाति की सभी दीवारें गिर कर चूर-चूर हो जाती हैं। मनुष्य संसार भर को अपना परिवार और अपने-आप को उसका सदस्य समझने लगता है। भावना के इस विस्तार ने ही धर्म का वास्तविक स्वरूप दिया है जिसे कोई निर्मल हृदय संत ही पहचान सकता है।

(I) धर्म की प्रमुख उपयोगिता क्या है?
(II) धर्म का वास्तविक रूप किसमें निहित है?
(III) मनुष्य संसार को अपना कब समझने लगता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) धर्म मनुष्य को विवेक और त्याग की भावना प्रदान करता है जिससे मनुष्य पशु से भिन्न बनता है।
(II) धर्म का वास्तविक रूप त्याग और कर्त्तव्यपरायणता में विद्यमान है। त्याग और कर्त्तव्यपरायणता परिवार, ग्राम, नगर, देश, मानव आदि के लिए हो सकता है।
(III) मनुष्य सारे संसार को तब अपना समझने लगता है जब वह व्यक्ति से बाहर निकल मनुष्य-मात्र तक पहुँच जाता है, वहां देश और जाति की सभी दीवारें नष्ट हो जाती हैं और मनुष्य संसार को अपना समझने लगता है।
(IV) अन्यथा = नहीं तो। निहित = विद्यमान।
(V) धर्म का वास्तविक स्वरूप।

8. आधुनिक मानव समाज में एक ओर विज्ञान को भी चकित कर देने वाली उपलब्धियों से निरंतर सभ्यता का विकास हो रहा है तो दूसरी ओर मानव मूल्यों का ह्रास होने से समस्या उत्तरोत्तर गूढ़ होती जा रही है। अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का शिकार आज का मनुष्य विवेक और ईमानदारी को त्याग कर भौतिक . स्तर से ऊंचा उठने का प्रयत्न कर रहा है। वह सफलता पाने की लालसा में उचित और अनुचित की चिंता नहीं करता। उसे तो बस साध्य को पाने का प्रबल इच्छा रहती है। ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए भयंकर अपराध करने में भी संकोच नहीं करता। वह इनके नित नये-नये रूपों की खोज करने में अपनी बुद्धि का अपव्यय कर रहा है। आज हमारे सामने यह प्रमुख समस्या है कि इस अपराध वृद्धि पर किस प्रकार रोक लगाई जाए। सदाचार, कर्तव्यपराणता, त्याग आदि नैतिक मूल्यों को तिलांजलि देकर समाज के सुख की कामना करना स्वप्न मात्र है।

(I) मानव जीवन में समस्याएं निरंतर क्यों बढ़ रही हैं?
(II) आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए क्या कर रहा है जो उसे नहीं करना चाहिए।
(III) किन जीवन मूल्यों के द्वारा सुख प्राप्त की कामना की जा सकती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मानव जीवन में विवेक, ईमानदारी जैसे जीवन मूल्यों की कमी होती जा रही है जिस कारण उसमें समस्याएं निरन्तर बढ़ रही हैं।
(II) आज का मानव सफलता प्राप्त करने के लिए सभी उचित-अनुचित कार्य कर रहा है। उसने विवेक और ईमानदारी को त्याग दिया है जो उसे ऐसा नहीं करना चाहिए।
(III) सदाचार, कर्त्तव्यपरायणता, त्याग आदि जीवन मूल्यों के द्वारा जीवन में सुख की कामना की जा सकती है।
(IV) उत्तरोत्तर = निरंतर, लगातार। ऐश्वर्य = धन-दौलत।
(V) आधुनिक जीवन में नैतिक मूल्यों की आवश्यकता।

9. जीवन घटनाओं का समूह है। यह संसार एक बहती नदी के समान है। इसमें बंद न जाने किन-किन घटनाओं का सामना करती, जूझती आगे बढ़ती है। देखने में तो इस बूंद की हस्ती कुछ भी नहीं। जीवन में कभीकभी ऐसी घटनाएं घट जाती हैं जो मनुष्य को असंभव से संभव की ओर ले जाती हैं। मनुष्य अपने को महान् कार्य कर सकने में समर्थ समझने लगता है। मेरे जीवन में एक रोमांचकारी घटना है जिसे मैं आप लोगों को बताना चाहता हूँ।

(I) जीवन क्या है?
(II) जीवन में अचानक घटी घटनाएँ मनुष्य को कहाँ ले जाती हैं?
(III) लेखक क्या सुनाना चाहती है?
(IV) ‘समूह और रोमांचकारी’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जीवन विभिन्न घटनाओं का समूह है। यह बहती हुई एक नदी के समान है।
(II) जीवन में अनाचक घटी घटनाएँ मनुष्य को असंभव से संभव की ओर ले जाती हैं।
(III) लेखक अपने जीवन की रोमांचकारी घटना सुनाना चाहता है।
(IV) समूह = झुंड। रोमांचकारी = आनंददायक।
(V) जीवन एक संघर्ष।

10. मनोरंजन का जीवन में विशेष महत्त्व है। दिन भर की दिनचर्या से थका-मांदा मनुष्य रात को आराम का साधन खोजता है। यह साधन है–मनोरंजन। मनोरंजन मानव जीवन में संजीवनी-बूटी का काम करता है। यह मनुष्य के थके-हारे शरीर को आराम की सुविधा प्रदान करता है। यदि आज के मानव के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन नीरस बन कर रह जाता। यह नीरसता मानव जीवन को चक्की की तरह पीस डालती और मानव संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य भी न रह पाता।

(I) मनोरंजन क्या है?
(II) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन कैसा होता?
(III) नीरस मानव जीवन का सब से बड़ा नुकसान क्या होता है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मनोरंजन मनुष्य की शारीरिक, मानसिक थकान को कम करके उसे सुख देने का साधन है। वह उसके जीवन की संजीवनी बूटी है।
(II) यदि मनुष्य के पास मनोरंजन के साधन न होते तो उसका जीवन पूर्ण रूप से नीरस होता।
(III) नीरस मानव जीवन उसे पूरी तरह से तोड़ डालता है और वह संघर्ष तथा परिश्रम करने के योग्य न रह जाता।
(IV) दिनचर्या = दिन-भर के काम। संजीवनी बूटी = मृत व्यक्ति को फिर जीवित करने वाली जड़ी-बूटी।
(V) मनोरंजन का महत्त्व।

11. व्याकरण भाषा के मौखिक और लिखित दोनों ही रूपों का अध्ययन कराता है। यद्यपि इस प्रकार के अध्ययन का क्षेत्र मौखिक भाषा ही रहती है, तथापि भाषा के लिखित रूप को भी अध्ययन का विषय बनाया जाता है। भाषा और लिपि के परस्पर संबंध से कभी-कभी यह भ्रांति भी फैल जाती है कि दोनों अभिन्न हैं। वस्तुत: भाषा लिपि के बिना भी रह सकती है। आदिम जातियों की कई भाषाएं केवल मौखिक रूप में ही व्यवहृत हैं, उनके पास कोई लिपि नहीं है। पर लिपि भाषा के बिना नहीं रह सकती। किसी भी भाषा विशेष के लिए परंपरा के आधार पर एक विशेष लिपि रूढ़ि हो जाती है। जैसे-हिंदी के लिए देवनागरी लिपि। पर इसे अन्य लिपि (फ़ारसी या रोमन) में लिखना चाहें, तो लिख सकते हैं।

(I) व्याकरण किस अध्ययन का आधार है?
(II) भाषा की लिपि सदा आवश्यक क्यों नहीं होती?
(III) हिंदी की लिपि का नाम लिखिए।
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) व्याकरण भाषा के मौखिक और लिखित दोनों रूपों के अध्ययन का आधार है।
(II) यद्यपि भाषा और लिपि में गहरा संबंध है तो भी अनेक जातियां और कबीले केवल बोल कर ही व्यवहार करते हैं। उन्हें लिखने की आवश्यकता अनुभव नहीं होती।
(III) हिंदी की लिपि का नाम देवनागरी है।
(IV) अभिन्न = समान। व्यवहृत = प्रयोग में लायी जाती।
(V) भाषा और लिपि।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

12. कुछ लोग सोचते हैं कि खेलने-कूदने से समय नष्ट होता है, स्वास्थ्य-रक्षा के लिए व्यायाम कर लेना ही काफ़ी है। पर खेल-कूद से स्वास्थ्य तो बनता ही है, साथ-साथ मनुष्य कुछ ऐसे गुण भी सीखता है जिनका जीवन में विशेष महत्त्व है। सहयोग से काम करना, विजय मिलने पर अभिमान न करना, हार जाने पर साहस न छोड़ना, विशेष ध्येय के लिए नियमपूर्वक कार्य करना आदि गुण खेलों के द्वारा अनायास सीखे जा सकते हैं। खेल के मैदान में केवल स्वास्थ्य ही नहीं बनता वरन् मनुष्यता भी बनती है। खिलाड़ी वे बातें सीख जाता है जो उसे आगे चल कर नागरिक जीवन की समस्या को सुलझाने में सहायता देती हैं।

(I) कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में क्या विचार है?
(II) खेल-कूद से क्या लाभ हैं?
(III) खेल-कूद का अच्छे नागरिक बनाने में क्या योगदान है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) कुछ लोगों का खेल-कूद के विषय में विचार है कि खेल-कूद से केवल समय ही नष्ट होता है।
(II) खेल-कूद स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है। इससे साहस, नियमित जीवन, धैर्य, निराभिमानता, सहयोग की भावना के गुण उत्पन्न होते हैं।
(III) खेलकूद जीवन की अनेक समस्याओं को सुलझाने में सहायता देते हैं जिससे लोगों को अच्छा नागरिक बनने में योगदान मिलता है।
(IV) अभिमान = घमंड। अनायास = अचानक।
(V) खेलकूद का महत्त्व।

13. वास्तव में जब तक लोग मदिरापान से होने वाले रोगों के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त नहीं कर लेंगे तथा तब तक उनमें यह भावना जागृत नहीं होगी कि शराब न केवल सामाजिक अभिशाप है अपितु शरीर के लिए अत्यंत हानिकारक है, तब तक मद्यपान के विरुद्ध, वातावरण नहीं बन सकेगा। पूर्ण मद्य निषेध तभी संभव हो सकेगा, जब सरकार मद्यपान पर तरह-तरह से अंकुश लगाए और जनता भी इसका सक्रिय विरोध करे।

(I) मद्यपान के विरुद्ध वातावरण कब संभव है?
(II) पूर्ण मद्य निषेध क्या है?
(III) पूर्ण मद्य निषेध कैसे है?
(IV) ‘जागृत’ और ‘मद्यपान’ के शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) मद्यपान के विरुद्ध वातावरण तब तक संभव नहीं है जब तक लोग इस से होने वाले रोगों के विषय में नहीं जान लेते और वे इसे एक सामाजिक अभिशाप नहीं मान लेते।
(II) ‘पूर्ण मद्य निषेध’ का अर्थ है-जब न तो कोई शराब बनाये और न ही इसका सेवन करे।
(III) पूर्ण मद्य निषेध सरकार और जनता के आपस में सहयोग और समझदारी से संभव है।
(IV) जागृत = जागना। मद्यपान = मदिरापान, शराबपीना।
(V) मद्य निषेध।

14. लेखक का काम बहुत अंशों में मधुमक्खियों के काम से मिलता है। मधुमक्खियां मकरंद संग्रह करने के लिए कोसों के चक्कर लगाती हैं और अच्छे-अच्छे फूलों पर बैठकर उनका रस लेती हैं। तभी तो उनके मधु में संसार की सर्वश्रेष्ठ मधुरता रहती है। यदि आप अच्छे लेखक बनना चाहते हैं तो आपकी भी (वृत्ति ) ग्रहण करनी चाहिए। अच्छे-अच्छे ग्रंथों का खूब अध्ययन करना चाहिए और उनकी बातों का मनन करना चाहिए फिर आपकी रचनाओं में से मधु का-सा माधुर्य आने लगेगा। कोई अच्छी उक्ति, कोई अच्छा विचार भले ही दूसरों से ग्रहण किया गया हो, पर यदि यथेष्ठ मनन करके आप उसे अपनी रचना में स्थान देंगे तो वह आपका ही हो जाएगा। मननपूर्वक लिखी गई चीज़ के संबंध में जल्दी किसी को यह कहने का साहस नहीं होगा कि यह अमुक स्थान से ली गई है या उच्छिष्ट है। जो बात आप अच्छी तरह आत्मसात कर लेंगे, वह फिर आपकी ही हो जाएगी।

(I) लेखक और मधुमक्खी में क्या समता है?
(II) लेखक किसी अच्छे भाव को मौलिक किस प्रकार बना लेता है?
(III) कौन-सी बात आप की अपनी हो जाती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) लेखक और मधुमक्खियां एक-सा कार्य करते हैं ! मधुमक्खियां प्रयत्नपूर्वक घूम-घूम कर फूलों से रस इकट्ठा करती हैं और उसे शहद में परिवर्तित करती हैं तथा लेखक अच्छे-अच्छे ग्रन्थों के अध्ययन से ज्ञान अर्जित करके उन्हें अपनी पुस्तकों के द्वारा समाज को प्रदान करता है।
(II) लेखक किसी उक्ति या विचार पर भली-भान्ति मनन करके उसे अपने ही ढंग से भावों के रूप में प्रकट करके उसे मौलिक बना लेता है।
(III) जिस बात को अच्छी तरह से आत्मसात कर लिया जाये और फिर उसे प्रकट किया जाए वह आप की अपनी हो जाती है।
(IV) माधुर्य = मिठास। यथेष्ठ मनन = पूर्ण रूप से सोच-विचार।
(V) श्रेष्ठ लेखक की मौलिकता।

15. शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में लूंस दिया गया है और आत्मसात् हुए बिना वहाँ आजन्म पड़ा रह कर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि आप केवल पांच ही परखे हुए विचार आत्मसात् कर उनके अनुसार अपने जीवन और चरित्र का निर्माण कर लेते हैं तो पूरे ग्रंथालय को कंठस्थ करने वाले की अपेक्षा अधिक शिक्षित हैं। शिक्षा और आचरण अन्योन्याश्रित हैं। बिना आचरण के शिक्षा अधूरी है और बिना शिक्षा के आचरण और अंततोगत्वा ये दोनों ही अनुशासन के ही भिन्न रूप हैं।

(I) शिक्षा का महत्त्व कब स्वीकार किया जा सकता है?
(II) शिक्षा का आचरण से क्या संबंध है?
(III) शिक्षा और आचरण को किस का रूप माना गया है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिए।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) शिक्षा मात्र जानकारियों का ढेर नहीं है। उसका महत्त्व तब स्वीकार किया जा सकता है जब वह जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक होती है।
(II) शिक्षा और आचरण सदा एक-दूसरे पर आश्रित रहते हैं। इनका विकास एक-दूसरे के आपसी सहयोग से होता
(III) शिक्षा और आचरण को अनुशासन का ही रूप माना गया है।
(IV) आत्मसात् = मन में धारण करना। अन्योन्याश्रित = एक-दूसरे पर आश्रित।
(V) शिक्षा और आचरण।

16. शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन व्यक्ति को व्यावहारिक बनाना है, न कि शिक्षित होने के नाम पर अहं और गर्व का हाथी उसके मन मस्तिष्क पर बाँध देना। हमारे देश में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जो शिक्षानीति और पद्धति चली आ रही है वह लगभग डेढ़ सौ साल पुरानी है। उसने एक उत्पादन मशीन का काम किया है। इस बात का ध्यान नहीं रखा गया कि इस देश की अपनी आवश्यकताएं और सीमाएं क्या हैं ? इनके निवासियों को किस प्रकार की व्यावहारिक शिक्षा की ज़रूरत है। बस सुशिक्षितों की ही नहीं, साक्षरों की एक बड़ी पंक्ति इस देश में खड़ी कर दी है जो किसी दफ्तर में क्लर्क और बाबू का सपना देख सकती है। हमारे देशवासियों को कर्म का बाबू बनाने की आवश्यकता है न कि कलम का बाबू-क्लर्क। अतः सरकार को आधुनिक शिक्षा का वास्तविक अर्थ और प्रयोजन को समझने की आवश्यकता है।

(I) स्वतंत्रता से पहले कैसी शिक्षा नीति थी?
(II) देश को कैसी शिक्षा की आवश्यकता है?
(III) सुशिक्षित और साक्षर में क्या अंतर है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें : व्यावहारिक, अहं और गर्व।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) स्वतंत्रता से पहले शिक्षा नीति ऐसी थी जिससे क्लर्क और बाबू बनाये जा सकें।
(II) देशवासियों को कर्म की शिक्षा देने की आवश्यकता है जिससे देशवासी कर्मशील बन सकें।
(III) सुशिक्षित वे होते हैं जो व्यावहारिक जीवन में शिक्षा का उचित उपयोग कर सकें जबकि साक्षर केवल पढ़ालिखा तथा व्यवहार ज्ञान से शून्य व्यक्ति होता है।
(IV) व्यावहारिक = व्यवहार में आने या लाने योग्य।
अहं = अभिमान, अहंकार। गर्व = घमंड।
(V) शिक्षा का प्रयोजन।

17. आजकल भारत में अधिक आबादी की समस्या ने गंभीर रूप धारण कर लिया है। इस अनावश्यक रूप से बढ़ी आबादी के कारण कई प्रकार के प्रदूषण हो रहे हैं। जीवन में हवा, पानी ज़रूरी है पर पानी के बिना हम अधिक दिन नहीं जी सकते। वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी है जिसका औद्योगिक विकास तथा जनवृद्धि से घनिष्ठ संबंध है। कारखानों से काफ़ी मात्रा में गंदगी बाहर फेंकी जाती है। स्रोतों, नदियों, झीलों और समुद्र के जल को कीटनाशक, औद्योगिक, अवशिष्ट खादें तथा अन्य प्रकार के व्यर्थ पदार्थ प्रदूषित करते हैं। बड़े नगरों में सीवर का पानी सबसे बड़ा जल प्रदूषण है। प्रदूषित जल के प्रयोग से अनेक प्रकार की बीमारियाँ होती हैं ; जैसे-हैज़ा, टाइफायड, पेचिश, पीलिया आदि। यदि सागर, नदी और झील का पानी प्रदूषित हो गया, तो जल में रहने वाले प्राणियों को भी बहुत अधिक क्षति पहुंचेगी।

(I) भारत की सबसे गंभीर समस्या क्या है?
(II) जल प्रदूषित कैसे होता है?
(III) प्रदूषण से प्राणियों की क्षति कैसे होती है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें : घनिष्ठ, संबंध, औद्योगिक।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) अधिक आबादी की समस्या भारत की सबसे गंभीर समस्या है।
(II) कारखानों से निकलने वाली गंदगी, औद्योगिक-अवशिष्ट खादें, कीटनाशक आदि व्यर्थ पदार्थ जल को प्रदूषित करते हैं।
(III) प्रदूषण से हैज़ा, पेचिश, पीलिया आदि बीमारियां हो जाती हैं। जल में रहने वाले प्राणियों को भी क्षति होती है।
(IV) घनिष्ठ = गहरा। संबंध = साथ जुड़ना। औद्योगिक = उद्योग संबंधी।
(V) जल प्रदूषण।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

18. जब मक्खन शाह का जहाज़ किनारे लगा तो अपनी मनौती पूर्ण करने के लिए गुरु जी के सम्मुख उपस्थित हुआ। वह गुरुघर का भक्त छठे गुरु जी के काल से ही था। इससे पूर्व कश्मीर के रास्ते में मक्खन शाह की अनुनय पर गुरु जी टांडा नामक गांव गये थे जो कि जेहलम नदी के किनारे बसा हुआ था। सर्वप्रथम वह अमृतसर गया, जहां उसे गुरु जी के दिल्ली में होने की सूचना प्राप्त हुई। दिल्ली में पहुंचकर, गुरु हरिकृष्ण के उत्तराधिकारी का समाचार बाबा के बकाला में रहने का मिला। यहाँ पहुंचकर उसने विभिन्न मसंदों को गुरु रूप धारण किया हुआ पाया।

मक्खन शाह का असमंजस में पड़ना उस समय स्वाभाविक ही था। व्यापारी होने के कारण उसमें विवेकशीलता एवं सहनशीलता भी थी। उसने चतुराई से वास्तविक गुरु को ढूंढ़ने का प्रयास किया। इसके लिए उसने चाल चली। उसने सभी गुरुओं के सम्मुख पाँच-पाँच मोहरें रखकर प्रार्थना की। उसे दृढ़ विश्वास था कि सच्चा गुरु अवश्य उसकी चालाकी को भांप लेगा, परंतु किसी भी पाखंडी ने उसके मन की जिज्ञासा को शांत नहीं किया।

(I) मक्खन शाह के अनुनय पर गुरु जी कहाँ गए थे?
(II) उसने सच्चे गुरु की खोज के लिए कौन-सी चाल चली?
(III) पाखंडी कौन थे?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-विवेकशीलता, दृढ़ विश्वास।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) मक्खन शाह के अनुनय पर गुरु जी टांडा नामक गाँव गए थे।
(II) उसने सबके सामने पाँच-पाँच मोहरें रखीं।
(III) सभी पाखंडी थे।
(IV) विवेकशीलता = समझदारी। दृढ़-विश्वास = पक्का विश्वास।
(V) विवेकशीलता।

19. सहयोग एक प्राकृतिक नियम है, यह कोई बनावटी तत्व नहीं है। प्रत्येक पदार्थ, प्रत्येक व्यक्ति का काम आंतरिक सहयोग पर अवलंबित है। किसी मशीन का उसके पुर्जे के साथ संबंध है। यदि उसका एक भी पुर्जा खराब हो जाता है तो वह मशीन चल नहीं सकती। किसी शरीर का उसके आँख, कान, नाक, हाथ, पांव आदि पोषण करते हैं। किसी अंग पर चोट आती है, मन एकदम वहाँ पहुंच जाता है। पहले क्षण आँख देखती है, दूसरे क्षण हाथ सहायता के लिए पहुंच जाता है। इसी तरह समाज और व्यक्ति का संबंध है। समाज शरीर है तो व्यक्ति उसका अंग है। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अंग परस्पर सहयोग करते हैं उसी तरह समाज के विकास के लिए व्यक्तियों का आपसी सहयोग अनिवार्य है। शरीर को पूर्णता अंगों के सहयोग से मिलती है। समाज की पूर्णता व्यक्तियों के सहयोग से मिलती है। प्रत्येक व्यक्ति, जो जहां पर भी है, अपना काम ईमानदारी और लगन से करता रहे, तो समाज फलता-फूलता है।

(I) समाज कैसे फलता-फूलता है?
(II) शरीर के अंग कैसे सहयोग करते हैं?
(III) समाज और व्यक्ति का क्या संबंध है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-अविलंब, अनिवार्य।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त “शीर्षक” दीजिए।
उत्तर:
(I) समाज व्यक्तियों के आपसी सहयोग से फलता-फूलता है।
(II) शरीर के किसी अंग पर चोट लगने पर सबसे पहले मन पर प्रभाव पड़ता है, फिर आँख उसे देखती हैं और हाथ उसकी सहायता के लिए पहुंच जाता है। इस प्रकार शरीर के अंग आपस में सहयोग करते हैं।
(III) समाज रूपी शरीर का व्यक्ति एक अंग है। इस प्रकार और व्यक्ति का शरीर और अंग का संबंध है।
(IV) अविलंब = तुरंत, बिना देर किए। अनिवार्य = ज़रूरी, आवश्यक।
(V) सहयोग।

20. लोग कहते हैं कि मेरा जीवन नाशवान है। मुझे एक बार पढ़कर लोग फेंक देते हैं। मेरे लिए एक कहावत बनी है “पानी केरा बुदबुदा अस अखबार की जात, पढ़ते ही छिप जात है, ज्यों तारा प्रभात।” पर मुझे अपने इस जीवन पर भी गर्व है। मर कर भी मैं दूसरों के काम आता हूँ। मेरे सच्चे प्रेमी मेरे सारे शरीर को फाइल में क्रम से संभाल कर रखते हैं। कई लोग मेरे उपयोगी अंगों को काटकर रख लेते हैं। मैं रद्दी बनकर भी ग्राहकों की कीमत का एक तिहाई भाग अवश्य लौटा देता हूँ। इस प्रकार महान् उपकारी होने के कारण मैं दूसरे ही दिन नया जीवन पाता हूँ और अधिक जोर-शोर से सजधज के आता हूँ। इस प्रकार एक बार फिर सबके मन में समा जाता हूँ। तुमको भी ईर्ष्या होने लगी है न मेरे जीवन से। भाई ! ईर्ष्या नहीं स्पर्धा करो। आप भी मेरी तरह उपकारी बनो। तुम भी सबकी आँखों के तारे बन जाओगे।

(I) अखबार का जीवन नाशवान कैसे है?
(II) अखबार क्या-क्या लाभ पहुंचाता है?
(III) यह किस प्रकार उपकार करता है?
(IV) इन शब्दों का अर्थ लिखें-उपयोगी, स्पर्धा।
(V) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त ‘शीर्षक’ दीजिए।
उत्तर:
(I) इसे लोग एक बार पढ़ कर फेंक देते हैं। इसलिए अखबार का जीवन नाशवान है।
(II) अखबार ताज़े समाचार देने के अतिरिक्त रद्दी बन कर लिफाफ़े बनाने के काम आता है। कुछ लोग उपयोगी समाचार काट कर फाइल बना लेते हैं।
(III) रद्दी के रूप में बिक कर वह अपना एक-तिहाई मूल्य लौटा कर उपकार करता है।
(IV) उपयोगी = काम में आने वाला। स्पर्धा = मुकाबला।
(V) ‘अखबार’।

21. नारी नर की शक्ति है। वह माता, बहन, पत्नी और पुत्री आदि रूपों में पुरुष में कर्त्तव्य की भावना सदा जगाती रहती है। वह ममतामयी है। अतः पुष्प के समान कोमल है। किंतु चोट खाकर जब वह अत्याचार के लिए सन्नद्ध हो जाती है, तो वज्र से भी ज्यादा कठोर हो जाती है। तब वह न माता रहती है, न प्रिया, उसका एक ही रूप होता है और वह है दुर्गा का। वास्तव में नारी सृष्टि का ही रूप है, जिसमें सभी शक्तियां समाहित हैं।

(I) नारी किस-किस रूप में नर में शक्ति जगाती है?
(II) नारी को फूल-सी कोमल और वज्र-सी कठोर क्यों माना जाता है?
(III) नारी दुर्गा का रूप कैसे बन जाती है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
(I) नारी नर में माता, बहन, पत्नी और पुत्री के रूप में शक्ति जगाती है।
(II) ममतामयी होने के कारण नारी फूल-सी कोमल है और जब उस पर चोट पड़ती है तो वह अत्याचार का मुकाबला करने के लिए वज्र-सी कठोर हो जाती है।
(III) जब नारी अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए वज्र के समान कठोर बन जाती है तब वह दुर्गा बन जाती
(IV) ममतामयी = ममता से भरी हुई। सन्नद्ध = तैयार, उद्यत।
(V) नारी ही नर की शक्ति।

22. चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है। जो मनुष्य अपने चरित्र-निर्माण की ओर ध्यान देता है, वही जीवन में विजयी होता है। चरित्र-निर्माण से मनुष्य के भीतर ऐसी शक्ति जागृत होती है, जो उसे जीवन संघर्ष में विजयी बनाती है। ऐसा व्यक्ति जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता प्राप्त करता है। वह जहां कहीं भी जाता है, अपने चरित्र-निर्माण की शक्ति से अपना प्रभाव स्थापित कर लेता है। वह सहस्त्रों और लाखों के बीच में भी अपना अस्तित्व रखता है। उसे देखते ही लोग उसके व्यक्तित्व के सामने अपना मस्तक झुका लेते हैं। उसके व्यक्तित्व में सूर्य का तेज, आंधी की गति और गंगा के प्रवाह की अबाधता है।

(I) जीवन में चरित्र निर्माण का क्या महत्त्व है?
(II) अच्छे चरित्र का व्यक्ति जीवन में सफलता क्यों प्राप्त करता है?
(III) चरित्रवान् व्यक्ति की तीन विशेषताएं लिखें।
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दें।
उत्तर:
(I) चरित्र-निर्माण जीवन की सफलता की कुंजी है।
(II) चरित्र-निर्माण से मनुष्य को जीवन में आने वाले संघर्षों का मुकाबला करने की शक्ति प्राप्त होती है और वह जीवन-संघर्ष में सफलता प्राप्त कर लेता है।
(III) चरित्रवान् व्यक्ति का सब लोग आदर करते हैं। उस का अपना-अलग व्यक्तित्व होता है। वह जीवन में सदा सफल रहता है।
(IV) सहस्रों = दस-सौवों की संख्या। व्यक्तित्व = व्यक्ति का गुण।
(V) चरित्र निर्माण : सफलता की कुंजी।

23. जिस जाति की सामाजिक अवस्था जैसी होती है, उसका साहित्य भी वैसा ही होता है। जातियों की क्षमता और सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है, तो उनके साहित्य-रूपी आईने में ही मिल सकती है। इस आईने के सामने जाते ही हमें तत्काल मालूम हो जाता है कि अमुक-जाति की जीवन-शक्ति इस समय कितनी या कैसी है और भूतकाल में कितनी और कैसी थी।आज भोजन करना बंद कर दीजिए, आपका शरीर क्षीण हो जाएगा और नाशोन्मुख होने लगेगा। इसी तरह आप साहित्य के रसास्वादन से अपने मस्तिष्क को वंचित कर दीजिए, वह निष्क्रिय होकर धीरे-धीरे किसी काम का न रह जाएगा।

बात यह है कि शरीर के जिस अंग का जो काम है वह उससे यदि न लिया जाए तो उसकी वह काम करने की शक्ति नष्ट हुए बिना नहीं रहती।शरीर का खाद्य भोजन पदार्थ है और मस्तिष्क का खाद्य साहित्य। अतएव यदि हम अपने मस्तिष्क को निष्क्रिय और कालांतर में निर्जीव-सा नहीं कर डालना चाहते, तो हमें साहित्य का सतत सेवन करना चाहिए और उसमें नवीनता तथा पौष्टिकता लाने के लिए उसका उत्पादन भी करते जाना चाहिए। पर याद रखिए, विकृत भोजन से जैसे शरीर रुग्ण होकर बिगड़ जाता है उसी तरह विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है।

मस्तिष्क का बलवान और शक्तिसंपन्न होना अच्छे साहित्य पर ही अवलंबित है। अतएव यह बात निर्धान्त है कि मस्तिष्क के यथेष्ट विकास का एकमात्र साधन अच्छा साहित्य है। यदि हमें जीवित रहना है और सभ्यता की दौड़ में अन्य जातियों की बराबरी करनी है तो हमें श्रमपूर्वक बड़े उत्साह में सत्साहित्य का उत्पादन और प्राचीन साहित्य की रक्षा करनी चाहिए।

(I) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
(II) किसी जाति की क्षमता और सजीवता कहाँ दिखाई देती है?
(III) साहित्य का रसास्वादन न करने से क्या होता है?
(IV) विकृत साहित्य से मस्तिष्क की क्या दशा होती है?
(V) रसास्वादन और अवलंबित शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
(I) साहित्य और विकास
(II) किसी जाति की क्षमता और सजीवता उनके साहित्य रूपी आईने में दिखाई देती है।
(III) साहित्य का रसास्वादन न करने से मस्तिष्क धीरे-धीरे निष्क्रिय हो जाएगा और किसी काम का नहीं रहेगा।
(IV) विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है।
(V) रसास्वादन-आनंद अवलंबित-आधारित।

24. भाषणकर्ता के गुणों में तीन गुण श्रेष्ठ माने जाते हैं-सादगी, असलियत और जोश। यदि भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है तो श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं। इस प्रकार के भाषणकर्ता का प्रभाव समाप्त होने में देरी नहीं लगती। यदि वक्ता में उत्साह की कमी हो तो भी उसका भाषण निष्प्राण हो जाता है। उत्साह से ही किसी भी भाषण में प्राणों का संचार होता है। भाषण को प्रभावोत्पादक बनाने के लिए उसमें उतारचढ़ाव, तथ्य और आंकड़ों का समावेश आवश्यक है। अतः उपर्युक्त तीनों गुणों का समावेश एक अच्छे भाषणकर्ता के लक्षण हैं तथा इनके बिना कोई भी भाषणकर्ता श्रोताओं पर अपना प्रभाव उत्पन्न नहीं कर सकता।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) अच्छे भाषण के कौन-से गुण होते हैं?
(III) श्रोता किसे तत्काल ताड़ जाते हैं?
(IV) कैसे भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता?
(V) ‘श्रोता’ तथा ‘जोश’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) श्रेष्ठ भाषणकर्ता।
(II) अच्छे भाषण में सादगी, तथ्य, उत्साह, आँकड़ों का समावेश होना चाहिए।
(III) जो भाषणकर्ता बनावटी भाषा में बनावटी बातें करता है, उसे श्रोता तत्काल ताड़ जाते हैं।
(IV) जिस भाषण में सादगी, वास्तविकता और उत्साह नहीं होता, उस भाषण का प्रभाव देर तक नहीं रहता।
(V) श्रोता = सुनने वाला। जोश = आवेग, उत्साह।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

25. सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन कहलाता है। व्यक्ति के जीवन में अनुशासन का बहुत महत्त्व है। अनुशासन के बिना मनुष्य अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता तथा चरित्रहीन व्यक्ति सभ्य समाज का निर्माण नहीं कर सकता। अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए भी मनुष्य का अनुशासनबद्ध होना अत्यंत आवश्यक है। विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला होती है। अतः विद्यार्थियों के लिए अनुशासन में रहकर जीवन-यापन करना आवश्यक है।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) अनुशासन किसे कहते हैं?
(III) मनुष्य किसके बिना अपने चरित्र का निर्माण नहीं कर सकता?
(IV) विद्यार्थी जीवन किसकी आधारशिला है?
(V) ‘सुव्यवस्थित’ और ‘आधारशिला’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) अनुशासन।
(II) सुव्यवस्थित समाज का अनुसरण करना अनुशासन है।
(III) अनुशासन के बिना मनुष्य अपना चरित्र-निर्माण नहीं कर सकता।
(IV) विद्यार्थी जीवन मनुष्य के भावी जीवन की आधारशिला है।
(V) सुव्यवस्थित = उत्तम रूप से व्यवस्थित। आधारशिला = नींव।

26. सांप्रदायिक सद्भाव और सौहार्द बनाए रखने के लिए हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि प्रेम से प्रेम और विश्वास से विश्वास उत्पन्न होता है और यह भी नहीं भूलना चाहिए कि घृणा से घृणा का जन्म होता है जो दावाग्नि की तरह सबको जलाने का काम करती है। महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतने में विश्वास करते थे। उन्होंने सर्वधर्म सद्भाव द्वारा सांप्रदायिक घृणा को मिटाने का आजीवन प्रयत्न किया। हिंदू और मुसलमान दोनों की धार्मिक भावनाओं को समान आदर की दृष्टि से देखा। सभी धर्म शांति के लिए भिन्न-भिन्न उपाय और साधन बताते हैं। धर्मों में छोटे-बड़े का कोई भेद नहीं है। सभी धर्म सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं, इसलिए धर्म के मूल में पार्थक्य या भेद नहीं है।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) सभी धर्म किन बातों पर बल देते हैं?
(III) सांप्रदायिक सद्भावना कैसे बनाये रखी जा सकती है?
(IV) महात्मा गांधी घृणा को कैसे जीतना चाहते थे?
(V) ‘सद्भाव’ और ‘सौहार्द’ का अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) सांप्रदायिक सद्भाव।
(II) सभी धर्म, सत्य, प्रेम, समता, सदाचार और नैतिकता पर बल देते हैं।
(III) साम्प्रदायिक सद्भावना बनाये रखने के लिए सब धर्मों वालों को आपस में प्रेम और विश्वास बनाए रखते हुए सब धर्मों का समान रूप से आदर करना चाहिए।
(IV) महात्मा गांधी घृणा को प्रेम से जीतना चाहते थे।
(V) सद्भाव = अच्छा भाव, मेलजोल। सौहार्द = सज्जनता, मित्रता।

27. लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड़ में स्वार्थ सिद्ध करते हैं। बात यह है कि लोग धर्म को छोड़कर संप्रदाय के जाल में फंस रहे हैं। संप्रदाय बाह्य कृत्यों पर जोर देते हैं। वे चिह्नों को अपनाकर धर्म के सार तत्व को मसल देते हैं। धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बनाता है, उसके हृदय के किवाड़ों को खोलता है, उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है। संप्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं, जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेद-भावों से ऊपर नहीं उठने देते।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) लोगों ने धर्म को क्या बना रखा है?
(III) धर्म किसके किवाड़ों को खोलता है?
(IV) संप्रदाय क्या सिखाता है?
(V) ‘कृत्य’ और ‘अंतर्मुखी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) सांप्रदायिक संकीर्णता।
(II) लोगों ने धर्म को धोखे की दुकान बना रखा है। वे इसकी आड में अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं।
(III) धर्म मनुष्य को अंतर्मुखी बना कर उसे हृदय के किवाड़ों को खोलकर उसकी आत्मा को विशाल, मन को उदार तथा चरित्र को उन्नत बनाता है।
(IV) संप्रदाय संकीर्णता सिखाते हैं और मनुष्य को जाति-पाति, रूप-रंग तथा ऊँच-नीच के भेदभावों से ऊपर नहीं उठने देते।
(V) कृत्य = कार्य, काम। अंतर्मुखी = परमात्मा की ओर ध्यान लगाने वाला।

28.
स्वतंत्र भारत का सम्पूर्ण दायित्व आज विद्यार्थियों के ऊपर है, क्योंकि आज जो विद्यार्थी हैं, वे ही कल स्वतंत्र भारत के नागरिक होंगे। भारत की उन्नति और उसका उत्थान उन्हीं की उन्नति और उत्थान पर निर्भर करता है। अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे अपने भावी जीवन का निर्माण बड़ी सतर्कता और सावधानी के साथ करें। उन्हें प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए, ताकि उनके जीवन से राष्ट्र को कुछ बल प्राप्त हो सके। जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप हैं।

(I) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(II) विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षण किसको अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए?
(III) भावी भारत के नागरिक कौन हैं?
(IV) हमारे राष्ट्र और समाज पर भार-स्वरूप कौन हैं?
(V) ‘निर्माण’ और ‘दायित्व’ शब्दों के अर्थ लिखें।
उत्तर:
(I) आज के विद्यार्थी कल के नागरिक।
(II) विद्यार्थियों को प्रत्येक क्षण अपने राष्ट्र, अपने धर्म और अपनी संस्कृति को अपनी आँखों के सामने रखना चाहिए।
(III) आज के विद्यार्थी भावी भारत के नागरिक हैं।
(IV) जो विद्यार्थी राष्ट्रीय दृष्टिकोण से अपने जीवन का निर्माण नहीं करते, वे राष्ट्र और समाज के लिए भार-स्वरूप होते हैं।
(V) निर्माण = रचना करना, बनाना। दायित्व = ज़िम्मेदारी।

29. विद्यार्थी का अहंकार आवश्यकता से अधिक बढ़ता जा रहा है और दूसरे उसका ध्यान अधिकार पाने में है, अपना कर्त्तव्य पूरा करने में नहीं। अहं बुरी चीज़ कही जा सकती है। यह सब में होता है। एक सीमा तक आवश्यक भी है। परंतु आज के विद्यार्थियों में इतना बढ़ गया है कि विनय के गुण उनमें नाम मात्र को नहीं रह गये हैं। गुरुजनों या बड़ों की बात का विरोध करना उनके जीवन का अंग बन गया है। इन्हीं बातों के कारण विद्यार्थी अपने उन अधिकारों को, जिनके वे अधिकारी नहीं हैं, उसे भी वे अपना समझने लगे हैं। अधिकार और कर्त्तव्य दोनों एकदूसरे से जुड़े रहते हैं। स्वस्थ स्थिति वही कही जा सकती है जब दोनों का संतुलन हो। आज का विद्यार्थी अधिकार के प्रति सजग है, परंतु वह अपने कर्तव्यों की ओर से विमुख हो गया है।

(I) आधुनिक विद्यार्थियों में नम्रता की कमी क्यों होती जा रही है?
(II) विद्यार्थी प्रायः किसका विरोध करते हैं?
(III) विद्यार्थी में किसके प्रति सजगता अधिक है?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखिये।
(V) उचित शीर्षक दीजिये।
उत्तर:
(I) आधुनिक विद्यार्थियों में अहंकार बढ़ने और विनम्रता. न होने से नम्रता की कमी होती जा रही है।
(II) विद्यार्थी प्रायः गुरुजनों या बड़ों की बातों का विरोध करते हैं।
(III) विद्यार्थियों में अपने अधिकारों के प्रति सजगता अधिक है।
(IV) विनय = नम्रता। सजग = सावधान।
(V) विद्यार्थियों में अहंकार।

30. आपका जीवन एक संग्राम स्थल है जिसमें आपको विजयी बनना है। महान् जीवन के रथ के पहिए फूलों से भरे नंदन वन में नहीं गुज़रते, कंटकों से भरे बीहड़ पथ पर चलते हैं। आपको ऐसे ही महान् जीवन पथ का सारथी बनकर अपनी यात्रा को पूरा करना है। जब तक आपके पास आत्म-विश्वास का दुर्जय शास्त्र नहीं है, न तो आप जीवन की ललकार का सामना कर सकते हैं, न जीवन संग्राम में विजय प्राप्त कर सकते हैं और न महान् जीवनों के सोपानों पर चढ़ सकते हैं। जीवन पथ पर आप आगे बढ़ रहे हैं, दुःख और निराशा की काली घटाएं आपके मार्ग पर छा रही हैं, आपत्तियों का अंधकार मुंह फैलाए आपकी प्रगति को निगलने के लिए बढ़ा चला आ रहा है। लेकिन आपके हृदय में आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति जगमगा रही है तो इस दुःख एवं निराशा का कुहरा उसी प्रकार कट जाएगा, जिस प्रकार सूर्य की किरणों के फूटते ही अन्धकार भाग जाता है।

(I) महान् जीवन के रथ किस रास्ते से गुज़रते हैं?
(II) आप किस शस्त्र के द्वारा जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं?
(III) निराशा की काली घटाएं किस प्रकार समाप्त हो जाती हैं?
(IV) रेखांकित शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) महान् जीवन के रथ फूलों से भरे वनों से ही नहीं गुज़रते बल्कि कांटों से भरे बीहड़ पथ पर भी चलते हैं।
(II) आत्म-विश्वास के शस्त्र के द्वारा हम जीवन के कष्टों का सामना कर सकते हैं।
(III) आत्म-विश्वास की दृढ़ ज्योति के आगे निराशा की काली घटाएं समाप्त हो जाती हैं।
(IV) सोपानों = सीढ़ियों। ज्योति = प्रकाश।
(V) शीर्षक = आत्मविश्वास।

31. राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश होता है जिसके आधार पर राष्ट्रीयता का जन्म तथा विकास होता है। इस कारण देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है। राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के उद्देश्य से कुछ विघटनकारी शक्तियां हमारे देश को देश न कहकर उपमहाद्वीप के नाम से संबोधित करती हैं। भौगोलिक दृष्टि से भारत के विस्तृत भू-खंड, जिसमें अनेक नदियां और पर्वत कभी-कभी प्राकृतिक बाधायें भी उपस्थित कर देते हैं, को ये शक्तियां संकीर्ण क्षेत्रीयता की भावनायें विकसित करने में सहायता करती हैं।

(I) राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण क्या है?
(II) देश की इकाई किस लिए आवश्यक है?
(III) भौगोलिक दृष्टि से भारत कैसा है?
(IV) ‘उपकरण’ और ‘विघटनकारी’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) इस गद्यांश का उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) राष्ट्रीयता का प्रमुख उपकरण देश है।
(II) देश की इकाई राष्ट्रीयता के लिए आवश्यक है।
(III) भौगोलिक दृष्टि से भारत उपमहाद्वीप जैसा है जिसमें अनेक नदियां, पहाड़ और विस्तृत भूखंड है।
(IV) उपकरण = सामान। विघटनकारी = तोड़ने वाली।
(V) राष्ट्रीयता।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

32. दस गीदड़ों की अपेक्षा एक सिंह अच्छा है। सिंह-सिंह और गीदड़-गीदड़ है। यही स्थिति परिवार के उन . सदस्य की होती है जिनकी संख्या आवश्यकता से अधिक हो। न भरपेट भोजन, न तन ढकने के लिए वस्त्र। न अच्छी शिक्षा, न मनचाहा रोज़गार। गृहपति प्रतिक्षण चिंता में डूबा रहता है। रात की नींद और दिन का चैन गायब हो जाता है। बार-बार दूसरों पर निर्भर होने की विवशता। सम्मान और प्रतिष्ठा तो जैसे सपने की बातें हों। यदि दुर्भाग्यवश गृहपति न रहे तो आश्रितों का कोई टिकाना नहीं। इसलिए आवश्यक है कि परिवार छोटा हो।

(I) परिवार के सदस्यों की क्या स्थिति होती है?
(II) गृहपति प्रतिक्षण चिंता में क्यों डूबा रहता है?
(III) रात की नींद और दिन का चैन क्यों गायब हो जाता है?
(IV) ‘प्रतिक्षण’ और ‘प्रतिष्ठा’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
(I) जिस परिवार की संख्या आवश्यकता से अधिक होती है, उस परिवार को न भरपेट भोजन, न वस्त्र, न अच्छी शिक्षा और न ही मनचाहा रोज़गार मिलता है। उनकी स्थिति दस गीदड़ों जैसी हो जाती है।
(II) गृहपति प्रतिक्षण परिवार के भरण-पोषण की चिंता में डूबा रहता है कि इतने बड़े परिवार का गुज़ारा कैसे होगा?
(III) रात की नींद और दिन का चैन इसलिए गायब हो जाता है क्योंकि बड़े परिवार के गृहपति को दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसका सम्मान तथा प्रतिष्ठा समाप्त हो जाती है। उसे अपने मरने के बाद परिवार की दुर्दशा के संबंध में सोचकर बेचैनी होती है।
(IV) प्रतिक्षण = हर समय। प्रतिष्ठा = इज्ज़त, मान सम्मान।
(V) छोटा परिवार : सुखी परिवार।

33. मैदान चाहे खेल का हो या युद्ध का और चाहे कोई और मन हारा कि बल हारा? मन गिर गया तो समझिए कि तन गिर गया। काम कोई भी, कैसा भी क्यों न हो, मन में उसे करने का उत्साह हुआ तो बस पूरा हुआ। सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है। साधारण छात्र कठिन प्रश्नों से बचता ही रहता है, किन्तु लगन वाला, उत्साही विद्यार्थी कठिन प्रश्नों पर पहले हाथ डालता है। उसमें कुछ नया सीखने और समझने तथा कठिन प्रश्न से जूझने की ललक रहती है। प्रेमचंद के रास्ते में सैंकड़ों कठिनाइयां थीं, लेकिन उन्हें आगे बढ़ने की अजब धुन थी, इसलिए हिम्मतवान रहे। अतः स्पष्ट है कि मनुष्य की जीत अथवा हार उसके मन की ही जीत अथवा हार है।

(I) सामान्य आदमी कैसा होता है?
(II) उत्साही छात्र की क्या विशेषता है?
(III) मन गिरने से तन कैसे गिर जाता है?
(IV) ‘हाथ डालना’ तथा ‘जूझना’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) सामान्य आदमी बड़े काम को देखकर घबरा जाता है।
(II) उत्साही छात्र को लगन होती है। वह कठिन प्रश्न पहले हल करता है। उसमें कुछ नया सीखने, समझने और करने की इच्छा होती है।
(III) मन में उत्साह नहीं हो तो मनुष्य कुछ नहीं कर पाता। वह अपने आप को कोसता रहता है और बीमार हो जाता है, जिससे मन गिरने से उसका तन भी गिर जाता है।
(IV) हाथ डालना = हस्तक्षेप करना, कोशिश करना। जूझना = संघर्ष करना।
(V) मन के हारे हार हैं मन जीते जग जीत।

34. मनुष्य जाति के लिए मनुष्य ही सबसे विकट पहेली है। वह खुद अपनी समझ में नहीं आता है। किसी न किसी रूप में अपनी ही आलोचना किया करता है। अपने ही मनोरहस्य खोला करता है। मानव संस्कृति का विकास ही इसलिए हुआ है कि मनुष्य अपने को समझे। अध्यात्म और दर्शन की भांति साहित्य भी इसी खोज में है, अंतर इतना ही है कि वह इस उद्योग में रस का मिश्रण करते उसे आनंदप्रद बना देता है। इसलिए अध्यात्म और दर्शन केवल ज्ञानियों के लिए है, साहित्य मनुष्य मात्र के लिए है।

(I) मानव संस्कृति का विकास क्यों हुआ है?
(II) अध्यात्म और साहित्य में क्या अंतर है?
(III) मनुष्य के लिए रहस्य क्या है?
(IV) ‘मनोरहस्य’ तथा ‘मिश्रण’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) मानव संस्कृति का विकास इसलिए हुआ है कि मनुष्य स्वयं को समझ सके।
(II) अध्यात्म और साहित्य दोनों का लक्ष्य एक है। अध्यात्मक केवल ज्ञान की बात करता है जबकि साहित्य इसमें रस मिला कर इस प्रयास को आनंदप्रद, बना देता है।
(III) मनुष्य के लिए रहस्य स्वयं को समझना है कि वह क्या है?
(IV) मनोरहस्य = मन के भेद। मिश्रण = मिलावट।
(V) साहित्य और समाज।

35. प्रत्येक राष्ट्र के लिए अपनी एक सांस्कृतिक धरोहर होती है। इसके बल पर वह प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है। मानव युगों-युगों से अपने को अधिक सुखमय, उपयोगी, शांतिमय एवं आनंदपूर्ण बनाने का प्रयास करता है। इस प्रयास का आधार वह सांस्कृतिक धरोहर होती है जो प्रत्येक मानव को विरासत के रूप में मिलती है और प्रयास के फलस्वरूप मानव अपना विकास करता है। यह विकास क्रम सांस्कृतिक आधार के बिना संभव नहीं होता। कुछ लोग सभ्यता एवं संस्कृति को एक ही अर्थ में लेते हैं। वह उनकी भूल है। यों तो सभ्यता और संस्कृति में घनिष्ठ संबंध है, किंतु संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ एवं उन्नत बनाने के साधनों का नाम है और सभ्यता उन साधनों के फलस्वरूप उपलब्ध हुई जीवन प्रणाली है।

(I) सांस्कृतिक धरोहर से क्या तात्पर्य है?
(II) संस्कृति और सभ्यता में क्या अंतर है?
(III) मनुष्य को विरासत में क्या-क्या मिला है?
(IV) ‘विरासत’ तथा ‘घनिष्ठ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) सांस्कृतिक धरोहर से तात्पर्य उन सब बातों से होता है जो किसी व्यक्ति, जाति अथवा राष्ट्र के मन, रुचि, आचार-विचार, कला कौशल और सभ्यता के क्षेत्र में बौद्धिक विकास की सूचक होती है।
(II) संस्कृति मानव जीवन को श्रेष्ठ और उन्नत बनाने का साधन है तथा सभ्यता उन साधनों से प्राप्त जीवन प्रणाली
(III) मनुष्य को विरासत में वह सांस्कृतिक धरोहर मिली है जो उसे अपना जीवन सुखमय, उपयोगी, शांतिमय तथा आनंदपूर्ण बनाने में सहायक होती है।
(IV) विरासत = उत्तराधिकार, पूर्वजों से प्राप्त। घनिष्ठ = गहरा।
(V) संस्कृति और सभ्यता।

36. आधुनिक युग में मानव परोपकार की भावना से विरक्त होता जा रहा है। उसका हृदय स्वार्थ से भर गया है। उसे हर समय अपनी ही सुख-सुविधा का ध्यान रहता है। उसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है। हमारा इतिहास परोपकारी महात्माओं की कथाओं से भरा पड़ा है। महर्षि दधीचि ने देवताओं की भलाई के लिए अपनी अस्थियों तक का दान कर दिया था। महाराज शिवि ने शरणागत की रक्षार्थ अपनी देह का मांस काट कर दे दिया था। हमारे कर्णधारों का नाम इसी कारण उज्ज्वल है। उनका सारा जीवन अपने भाइयों के हित एवं राष्ट्र-कल्याण में बीता। उनके कार्यों को हम कभी नहीं भूल सकते।

(I) किसका हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है?
(II) शरणागत की रक्षार्थ किसने अपनी देह का माँस दे दिया?
(III) हमारे कर्णधारों के नाम क्यों उज्ज्वल हैं?
(IV) ‘विरक्त’ तथा ‘स्वार्थ’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) आधुनिक युग में मानव का हृदय परोपकार की भावना से शून्य हो गया है।
(II) शरणागत की रक्षार्थ महाराज शिवि ने अपनी देह का माँस दे दिया था।
(III) हमारे कर्णधारों के नाम परोपकार की भावना के कारण उज्ज्वल हैं।
(IV) विरक्त = उदासीन। स्वार्थ = अपना मतलब सिद्ध करना।
(V) परोपकार।

37. शिक्षा मनुष्य को मस्तिष्क तथा शरीर का उचित प्रयोग करना सिखाती है। वह शिक्षा जो मनुष्य को पाठ्य-पुस्तकों के ज्ञान के अतिरिक्त कुछ और चिंतन दे, व्यर्थ है। यदि हमारी शिक्षा हमें सुसंस्कृत, सभ्य और सच्चरित्र नहीं बना सकती, तो उससे क्या लाभ? सहृदय, सच्चरित्र परंतु अनपढ़ मज़दूर उस स्नातक से कहीं अच्छा है, जो निर्दय और चरित्रहीन है। संसार के सभी वैभव तथा सुख-साधन भी मनुष्य को तब तक सुखी नहीं बना सकते, जब तक मनुष्य को आत्मिक ज्ञान न हो। हमारे कुछ अधिकार और उत्तरदायित्व भी है। शिक्षित व्यक्ति को उत्तरदायित्व का भी उतना ही ध्यान रखना चाहिए जितना की अधिकारों का।

(I) कौन-सी शिक्षा मनुष्य के लिए व्यर्थ है?
(II) अनपढ़ मज़दूर स्नातक से किस प्रकार अच्छा है?
(III) किस ज्ञान के बिना मनुष्य संसार में सुखी नहीं बन पाता?
(IV) ‘वैभव’ तथा ‘शिक्षित’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) मनुष्य के लिए वह शिक्षा व्यर्थ है, जो उसे सहृदय, सुसंस्कृत, सभ्य और सच्चरित्र नहीं बना सकती।
(II) सहृदय, सच्चरित्र अनपढ़ मज़दूर उस स्नातक से अच्छा है, जो निर्दय और चरित्रहीन है।
(III) आत्मिक ज्ञान के बिना मनुष्य संसार में सुखी नहीं बन सकता।
(IV) वैभव = ऐश्वर्य, धन-संपत्ति। शिक्षित = पढ़ा-लिखा।
(V) सच्ची शिक्षा।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

38. आज भारत का बुद्धिजीवी युवक पाश्चात्य शिक्षा तथा दर्शन से इतना प्रभावित है कि वह भारतीय दर्शन तथा आध्यात्मिकता को थोथा और सारहीन समझने लगा है। आज भौतिकवाद की इतनी बाढ़ आई हुई है कि मनुष्य भारतीय चिंतन-सत्यों के प्रति उपेक्षा का भाव धारण किए हुए है। हमारा दृष्टिकोण राजनीतिक तथा आर्थिक आंदोलनों की सीमा में सिमटकर रह गया है। आज का विज्ञान, दर्शन तथा मनोविज्ञान समाज के बदले हए रूप को सभ्य बनाने में नितांत असमर्थ है। इसका फल यह हुआ कि वैज्ञानिक प्रगति की शक्ति मनुष्य के लिए लाभकारी न होकर उसके संहार में ही अधिक प्रयोग में लाई जा रही है। आण्विक शक्ति ने निर्माण तथा रचनात्मक पहलू को ध्वस्त ही कर डाला है।

(I) भौतिकवादी विचारधारा ने मनुष्य पर क्या प्रभाव डाला है?
(II) आधुनिक मानव के जीवन का क्या लक्ष्य है?
(III) आण्विक शक्ति से क्या हानि हुई?
(IV) ‘उपेक्षा’ तथा ‘नितांत’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) भौतिकतावादी विचारधारा ने मनुष्य को भारतीय चिंतन सत्यों के प्रति उपेक्षित कर दिया है।
(II) आधुनिक मानव के जीवन का लक्ष्य राजनीतिक तथा आर्थिक आंदोलनों की सीमा में सिमट कर रहा गया है।
(III) आणविक शक्ति का संहारक रूप अधिक प्रचलित हो गया है।
(IV) उपेक्षा = उदासीनता, लापरवाही। नितांत = बिल्कुल।
(V) आण्विक शक्ति का दुरुपयोग।

39. मित्र के चुनाव में सतर्कता का व्यवहार करना चाहिये क्योंकि अच्छे मित्र के चुनाव पर ही हमारे जीवन की सफलता निर्भर करती है। जैसी हमारी संगत होगी, वैसे ही हमारे संस्कार भी होंगे। अतः हमें दृढ़ चरित्र वाले व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए। मित्र एक ही अच्छा है। अधिक की आवश्यकता नहीं होती। बेकन का इस संबंध में कहना है-“समूह का नाम संगत नहीं। जहाँ प्रेम नहीं है, वहाँ लोगों की आकृतियाँ चित्रवत है और उनकी बातचीत झांझर की झनकार है।” अतः हमारे जीवन को उत्तम और आनंदमय करने में सहायता दे सके ऐसा एक मित्र सैंकड़ों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ है।

(I) हमें कैसे व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए?
(II) मित्र के चुनाव में सतर्कता क्यों बरतनी चाहिए?
(III) कैसा मित्र श्रेष्ठ है?
(IV) ‘सतर्क’ और ‘समूह’ शब्दों के अर्थ लिखें।
(V) उचित शीर्षक लिखें।
उत्तर:
(I) हमें उन व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए जिनमें उत्तम वैद्य-सी निपुणता, अच्छी-से-अच्छी माता-सा धैर्य और कोमलता हो।
(II) मित्र के चुनाव में सतर्कता इसलिए बरतनी चाहिए क्योंकि जैसी हमारी संगत होगी, वैसे ही हमारे संस्कार भी होंगे। अतः हम दृढ़ चरित्र वाले व्यक्तियों से मित्रता करनी चाहिए।
(III) जो व्यक्ति अपने मित्र को सही दिशा, उचित परामर्श एवं मार्गदर्शन करें वही श्रेष्ठ मित्र है।
(IV) सतर्क = सावधान। समूह = झुंड।
(V) मित्र का चुनाव।

जो गद्यांश पाठ्यक्रम से संबंधित नहीं होता उसे अपठित गद्यांश कहते हैं। यह पाठ्यक्रम से भिन्न किसी पत्रपत्रिका अथवा पुस्तक से संकलित किया जाता है। इसलिए विद्यार्थियों को नियमित पढ़ने की रुचि विकसित करनी चाहिए। अपठित गद्यांश से संबंधित पूछे गए प्रश्नों के उत्तर देने से पहले अपठित अवतरण को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ लेना चाहिए। ऐसा करने से प्रश्नों के उत्तर देने में सरलता होगी। प्रश्नों का उत्तर सोच-विचार कर ही देना चाहिए। अपठित गद्यांश को उचित शीर्षक देना चाहिए। शीर्षक लंबा नहीं होना चाहिए। अपठित गद्यांश में से निम्न प्रश्न पूछे जाएंगे-
1. प्रथम तीन प्रश्न गद्यांश की विषय-सामग्री से सम्बन्धित होंगे।
2. चौथा प्रश्न गद्यांश में से दो कठिन शब्दार्थ-लेखन से संबंधित होगा।
3. पाँचवां प्रश्न गद्यांश के शीर्षक अथवा केंद्रीय भाव से संबंधित होगा।

पाठ्य-पुस्तक पर आधारित अपठित गद्यांश

1. मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई, सन् 1880 को बनारस के लमही नामक ग्राम में हुआ। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। उनका बचपन अभावों में ही बीता और हर प्रकार के संघर्षों को झेलते हुए उन्होंने बी० ए० तक शिक्षा ग्रहण की। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की किंतु असहयोग आंदोलन से प्रभावित होकर सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पूरी तरह लेखन कार्य में जुट गये। वे तो जन्म से ही लेखक और चिंतक थे। शुरू में वे उर्दू में नवाबराय के नाम से लिखने लगे। एक ओर समाज की कुरीतियों और दूसरी ओर तत्कालीन व्यवस्था के प्रति निराशा और आक्रोश था। उनके लेखों में कमाल का जादू था। वे अपनी बात को बड़ी ही प्रभावशाली ढंग से लिखते थे।

जनता की खबरें पहुँच गयीं। अंग्रेज़ सरकार ने उनके लेखों पर रोक लगा दी। किंतु, उनके मन में उठने वाले स्वतंत्र एवं क्रान्तिकारी विचारों को भला कौन रोक सकता था। इसके बाद उन्होंने ‘प्रेमचंद’ के नाम से लिखना शुरू कर दिया। इस तरह वे धनपतराय से प्रेमचंद बन गए। ‘सेवासदन’, ‘प्रेमाश्रम’, ‘निर्मला’, ‘रंगभूमि’, ‘कर्मभूमि’ और ‘गोदान’ आदि इनके प्रमुख उपन्यास हैं जिनमें सामाजिक समस्याओं का सफल चित्रण है। इनके अतिरिक्त उन्होंने ‘ईदगाह’, ‘नमक का दारोगा’, ‘दो बैलों की कथा’, ‘बड़े भाई साहब’ और ‘पंच परमेश्वर’ आदि अनेक अमर कहानियाँ भी लिखीं।

वे आजीवन शोषण, रूढ़िवादिता, अज्ञानता और अत्याचारों के विरुद्ध अबाधित गति से लिखते रहे। गरीबों, किसानों, विधवाओं और दलितों की समस्याओं का प्रेमचंद जी ने बड़ा ही मार्मिक चित्रण किया है। वे समाज में पनप चुकी कुरीतियों से बहुत आहत होते थे इसलिए उन्हें जड़ से उखाड़ फेंकने का प्रयास इनकी रचनाओं में सहज ही देखा जा सकता है। निःसंदेह वे महान् उपन्यासकार और कहानीकार थे। सन् 1936 में इनका देहांत हो गया।

प्रश्न 1.
मंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम क्या था?
उत्तर:
मुंशी प्रेमचंद जी का वास्तविक नाम धनपत राय था।

प्रश्न 2.
प्रेमचंद ने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र क्यों दे दिया था?
उत्तर:
प्रेमचंद ने असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर नौकरी से त्यागपत्र दे दिया था।

प्रश्न 3.
वे आजीवन किसके विरुद्ध लिखते रहे?
उत्तर:
वे आजीवन सामाजिक समस्याओं से जुड़कर शोषण, अज्ञानता, रूढ़िवादी और गरीब किसानों, विधवाओ, दलितों आदि की विभिन्न समस्याओं और कुरीतियों के विरुद्ध लिखते रहे।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 4.
अबाधित तथा आहत शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘अबाधित’- बिना किसी रुकावट के, ‘आहत’-दुःखी।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
महान् उपन्यासकार एवं कहानीकार: मुंशी प्रेमचंद।

2. सच्चरित्र दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ संपत्ति मानी गयी है। पृथ्वी, आकाश, जल, वायु और अग्नि पंचभूतों से बना मानव-शरीर मौत के बाद समाप्त हो जाता है किंतु चरित्र का अस्तित्व बना रहता है। बड़े-बड़े चरित्रवान ऋषि-मुनि, विद्वान्, महापुरुष आदि इसका प्रमाण हैं। आज भी श्रीराम, महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती आदि अनेक विभूतियाँ समाज में पूजनीय हैं। ये अपने सच्चरित्र के द्वारा इतिहास और समाज को नयी दिशा देने में सफल रहे हैं। समाज में विद्या और धन भला किस काम का ।

अत: विद्या और धन के साथसाथ चरित्र का अर्जन अत्यंत आवश्यक है। यद्यपि लंकापति रावण वेदों और शास्त्रों का महान् ज्ञाता और अपार धन का स्वामी था किंतु सीता-हरण जैसे कुकृत्य के कारण उसे अपयश का सामना करना पड़ा। आज युगों बीत जाने पर भी उसकी चरित्रहीनता के कारण उसके प्रतिवर्ष पुतले बनाकर जलाए जाते हैं। चरित्रहीनता को कोई भी पसंद नहीं करता। ऐसा व्यक्ति आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से सदैव वंचित रहता है। वह कभी भी समाज में पूजनीय स्थान नहीं ग्रहण कर पाता है। जिस तरह पक्की ईंटों से पक्के भवन का निर्माण होता है उसी तरह सच्चरित्र से अच्छे समाज का निर्माण होता है। अतएव सच्चरित्र ही अच्छे समाज की नींव है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
दुनिया की समस्त संपत्तियों में किसे श्रेष्ठ माना गया है?
उत्तर:
सच्चरित्र को दुनिया की समस्त संपत्तियों में श्रेष्ठ माना गया है।

प्रश्न 2.
रावण को क्यों अपयश का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
रावण को सीता जी के हरण के कारण अपयश का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 3.
चरित्रहीन व्यक्ति सदैव किससे वंचित रहता है?
उत्तर:
चरित्रहीन व्यक्ति सदैव आत्मशांति, आत्मसम्मान और आत्मसंतोष से वंचित रहता है।

प्रश्न 4.
‘श्रेष्ठ’ तथा ‘प्रमाण’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘श्रेष्ठ’- सबसे बढ़िया (अच्छा), ‘प्रमाण’-सबूत।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
श्रेष्ठ संपत्ति-सच्चरित्रता।

3. हस्तकला ऐसे कलात्मक कार्य को कहा जाता है जो उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है। ऐसे कार्य मुख्य रूप से हाथों से अथवा छोटे-छोटे आसान उपकरणों या साधनों की मदद से ही किए जाते हैं। अपने हाथों से सजावट, पहनावे, बर्तन, गहने, खिलौने आदि से संबंधित चीज़ों का निर्माण करने वालों को हस्तशिल्पी या दस्तकार कहा जाता है। इसमें अधिकतर पीढ़ी दर पीढ़ी परिवार काम करते आ रहे हैं। जो चीजें मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर बनायी जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता। भारत में हस्तशिल्प के पर्याप्त अवसर हैं।

सभी राज्यों की हस्तकला अनूठी है। पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई की विशेष तकनीक को फुलकारी कहा जाता है। इस प्रकार की कढ़ाई से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढाँचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी प्रसिद्ध हैं। राजस्थान वस्त्रों, कीमती हीरे जवाहरात से जड़े आभूषणों, चमकते हुए बर्तनों, मीनाकारी, वड़ियाँ, पापड़, चूर्ण, भुजिया के लिए जाना जाता है। आंध्र प्रदेश सिल्क की साड़ियों, केरल हाथी दांत की नक्काशी और शीशम की लकड़ी के फर्नीचर, बंगाल हाथ से बुने हुए कपड़े, तमिलनाडु ताम्र मूर्तियों एवं कांजीवरम साड़ियों, मैसूर रेशम और चंदन की लकड़ी की वस्तुओं, कश्मीर अखरोट की लकड़ी के बने फर्नीचर, कढ़ाई वाली शालों तथा गलीचों, असम बेंत के फर्नीचर, लखनऊ चिकनकारी वाले कपड़ों, बनारस ज़री वाली सिल्की साड़ियों, मध्य प्रदेश चंदेरी और कोसा सिल्क के लिए प्रसिद्ध है। हस्तकला के क्षेत्र में रोज़गार की अनेक संभावनाएं हैं। हस्तकला के क्षेत्र में निपुणता प्राप्त करके अपने पैरों पर खड़ा हुआ जा सकता है।

इसमें निपुणता के साथ-साथ आत्मविश्वास, धैर्य और संयम की भी आवश्यकता रहती है। इस क्षेत्र के जानकारों का कहना है कि जब आप उत्कृष्ट व अनूठी चीज़ बनाते हैं तो हस्तकला के मुरीद लोगों की कमी नहीं रहती। अपने देश के साथ-साथ विदेशों में भी हाथ से बने सामान की माँग बढ़ती है। केंद्रीय और राज्य सरकारों द्वारा भी हस्तकला को प्रोत्साहित किया जाता है।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
हस्तकला किसे कहते हैं?
उत्तर:
हस्तकला उस श्रेष्ठ कलात्मक कार्य को कहते हैं जो समाज के लिए उपयोगी होने के साथ-साथ सजाने, पहनने आदि के काम आता है।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 2.
किन चीज़ों को हस्तकला की श्रेणी में नहीं लिया जाता?
उत्तर:
वे चीजें जो मशीनों के माध्यम से बड़े स्तर पर तैयार की जाती हैं उन्हें हस्तशिल्प की श्रेणी में नहीं लिया जाता।

प्रश्न 3.
पंजाब में हस्तकला के रूप में कौन-कौन सी चीजें प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
पंजाब में हाथ से की जाने वाली कढ़ाई (फुलकारी) से बने दुपट्टे, सूट, चादरें विश्व भर में बहुत प्रसिद्ध हैं। इसके अतिरिक्त मंजे (लकड़ी के ढांचे पर रस्सियों से बने हुए एक प्रकार के पलंग), पंजाबी जूतियाँ आदि भी अति प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 4.
‘उत्कृष्ट’ तथा ‘निपुणता’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘उत्कृष्ट’-बढ़िया, ‘निपुणता’- कुशलता।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
हस्तकला का महत्त्व अथवा भारतीय हस्तकला।

4. किशोरावस्था में शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन आते हैं और इन्हीं परिवर्तनों के साथ किशोरों की भावनाएँ भी प्रभावित होती हैं। बार-बार टोकना, अधिक उपदेशात्मक बातें किशोर सहन नहीं करना चाहते। कोई बात बुरी लगने पर वे क्रोध में शीघ्र आ जाते हैं। यदि उनका कोई मित्र बुरा है तब भी वे यह दलील देते हैं कि वह चाहे बुरा है किन्तु मैं तो बुरा नहीं हूँ। कई बार वे बेवजह बहस एवं ज़िद्द के कारण क्रोध करने लगते हैं। अभिभावकों को उनके साथ डाँट-डपट नहीं अपितु प्यार से पेश आना चाहिए। उन्हें सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ बाज़ार से स्वयं फल-सब्जियां लाना, बिजली-पानी का बिल अदा करना आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में लगाना चाहिए।

अभिभावकों को उन पर विश्वास दिखाना चाहिए। उनके अच्छे कामों की प्रशंसा की जानी चाहिए। किशोरों को भी चाहिए कि वे यह समझें कि उनके माता-पिता मात्र उनका भला चाहते हैं। किशोर पढ़ाई को लेकर भी चिंतित रहते हैं। वे परीक्षा में अच्छे नंबर लेने का दबाव बना लेते हैं जिससे उनके शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर घातक प्रभाव पड़ता है। इसके लिए उन्हें स्वयं योजनाबद्ध तरीके से मन लगाकर पढ़ना चाहिए। उन्हें दिनचर्या में खेलकूद, सैर, व्यायाम, संगीत आदि को भी शामिल करना चाहिए। इससे उनका तनाव कम होगा। उन्हें शिक्षकों से उचित मार्गदर्शन लेना चाहिए। मातापिता को भी उन पर अच्छे नम्बरों का दबाव नहीं बनाना चाहिए और न ही किसी से उनकी तुलना करनी चाहिए। अपने किसी सहपाठी या पड़ोस में किसी को सफलता मिलने पर कई किशोरों में ईर्ष्या की भावना आ जाती है। जबकि उन्हें ईर्ष्या नहीं, प्रतिस्पर्धा रखनी चाहिए। कई बार कुछ किशोर किसी विषय को कठिन मानकर उससे भय खाने लगते हैं कि इसमें पास होंगे कि नहीं जबकि उन्हें समझना चाहिए कि किसी समस्या का हल डर से नहीं अपितु उसका सामना करने से हो सकता है।

इसके अतिरिक्त कुछ किशोर शर्मीले स्वभाव के होते हैं, अधिक संवेदनशील होते हैं। उनका दायरा भी सीमित होता है। वे अपने उसी दायरे के मित्रों को छोड़कर अन्य लोगों से शर्माते हैं। इसके लिए उन्हें स्कूल की पाठ्येतर क्रियाओं में भाग लेना चाहिए जिससे उनकी झिझक दूर हो सके।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
किशोरावस्था में किशोरों की भावनाएँ किस प्रकार प्रभावित होती हैं?
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के शारीरिक और सामाजिक परिवर्तन किशारोवस्था में आते हैं और इन्हीं के कारण उनकी भावनाएँ बहुत तीव्रता से प्रभावित होती हैं।

प्रश्न 2.
किशोरों की ऊर्जा को उचित देशों में कैसे लगाना चाहिए?
उत्तर:
किशोरों को सृजनात्मक कार्यों में लगाने के साथ-साथ उपयोगी कार्यों की तरफ दिशा दिखानी चाहिए और उन्हें बाज़ार से स्वयं फल-सब्जियाँ लेने भेजना, बिजली-पानी का बिल अदा करने आदि कार्यों में लगाकर उनकी ऊर्जा को उचित दिशा में उन्मुख करना चाहिए।

प्रश्न 3.
किशोर अपनी चिंता और दबाव को किस तरह दूर कर सकते हैं?
उत्तर:
किशोर योजनाबद्ध और व्यवस्थित तरीके से पढ़कर, खेलकूद में भाग लेकर, सैर, व्यायाम और संगीत, सामाजिक गतिविधियों आदि को सम्मिलित करके अपनी चिंता और दबाव को दूर कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
‘प्रतिस्पर्धा’ तथा ‘संवेदनशील’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
‘प्रतिस्पर्धा’-होड़, ‘संवेदनशील’- भावुक।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 4.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
किशोरावस्था का भावनात्मक पक्ष।

5. जब एक उपभोक्ता अपने घर पर बैठे इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न वस्तुओं की खरीददारी करता है तो उसे ऑन लाइन खरीददारी कहा जाता है। इस तरह की खरीददारी आज अत्यंत लोकप्रिय हो गयी है। दुकानों, शोरूमों आदि के खुलने व बंद होने का समय होता है किंतु ऑनलाइन खरीददारी का कोई विशेष समय नहीं है।

आप जब चाहें इंटरनेट के माध्यम से खरीददारी कर सकते हैं। आप फर्नीचर, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं। यद्यपि यह बहुत ही सुविधाजनक व लाभदायक है तथापि इसमें कई जोखिम भी समाविष्ट हैं। अत: ऑनलाइन खरीददारी करते समय सावधानी बर्तनी चाहिए। सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि जिस वैबसाइट से आप खरीदारी करने जा रहे हैं वह वास्तविक है अथवा वस्तुओं की कीमतों का तुलनात्मक अध्ययन करके ही खरीददारी करें। बिक्री के नियम एवं शर्तों को पढ़ने के बाद उसका प्रिंट लेना समझदारी होगी। यदि आप क्रेडिट कार्ड के माध्यम से भुगतान करते हैं तो भुगतान के बाद तुरंत जाँच लें कि आपने जो कीमत चुकाई है वह सही है या नहीं।

यदि आप उससे कोई भी परिवर्तन पाते हैं तो तत्काल संबंधित अधिकारियों से संपर्क स्थापित करके उन्हें सूचित करें। वैसे ऐसी साइटस को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिसमें आर्डर की गई वस्तु की प्राप्ति होने पर नकद भुगतान करने की सुविधा हो एवं खरीदी गई वस्तु नापसंद होने पर वापिस करने का प्रावधान हो।
उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
प्रश्न 1.
ऑनलाइन खरीददारी किसे कहा जाता है?
उत्तर:
जब कोई उपभोक्ता बिना बाजार गए अपने घर बैठे-बैठे इंटरनेट के माध्यम से तरह-तरह वस्तुओं की खरीदारी करता है तो उसे ऑनलाइन खरीदारी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
आप इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन क्या-क्या खरीदारी कर सकते हो?
उत्तर:
हम इंटरनेट के माध्यम से फर्नीचर, वस्त्र, खिलौने, जूते, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, किताबें, सौंदर्य प्रसाधन, आदि कुछ भी ऑनलाइन खरीद सकते हैं।

प्रश्न 3.
क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात् यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो हमें क्या करना चाहिए?
उत्तर:
क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के पश्चात् यदि कोई अनियमितता पायी जाती है तो तुरंत ही संबंधित अधिकारियों को इसकी सूचना दी जानी चाहिए।

प्रश्न 4.
‘समाविष्ट’ और ‘प्राथमिकता’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
समाविष्ट-सम्मिलित होना, प्राथमिकता-वरीयता।

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
ऑनलाइन खरीदारी में सजगता।

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6. पंजाब की संस्कृति का भारतीय संस्कृति में महत्त्वपूर्ण स्थान है। पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई। यहीं प्राचीनतम सिंधु घाटी की सभ्यता का जन्म हुआ। यह गुरुओं की पवित्र धरती है। यहाँ गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिंद सिंह जी तक दस गुरुओं ने धार्मिक चेतना तथा लोक-कल्याण के अनेक सराहनीय कार्य किए हैं। गुरु तेग़ बहादुर जी एवं गुरु गोबिंद सिंह जी के चारों साहिबजादों का बलिदान हमारे लिए प्रेरणादायक है और ऐसा उदाहरण संसार में अन्यत्र कहीं दिखाई नहीं देता।

यहाँ अमृतसर का श्री हरमंदिर साहिब प्रमुख धार्मिक स्थल है। इसके अतिरिक्त आनंदपुर साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब, फतेहगढ़ साहिब के गुरुद्वारे भी प्रसिद्ध हैं। देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के वीरों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। देश के अन्न भंडार के लिए सबसे अधिक अनाज पंजाब ही देता है। पंजाब में लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि त्योहारों के अवसरों पर मेलों का आयोजन भी हर्षोल्लास से किया जाता है। आनंदपुर साहिब का होला मोहल्ला, मुक्तसर का माघी मेला, सरहिंद में शहीदी जोड़ मेला, फ़रीदकोट में शेख फरीद आगम पर्व, सरहिंद में रोज़ा शरीफ पर उर्स और छपार मेला जगराओं की रौशनी आदि प्रमुख हैं। पंजाबी संस्कृति के विकास में पंजाबी साहित्य का भी महत्त्वपूर्ण स्थान है।

मुसलमान सूफी संत शेख फरीद, शाह हुसैन, बुल्लेशाह, गुरु नानकदेव जी, शाह मोहम्मद, गुरु अर्जनदेव जी आदि की वाणी में पंजाबी साहित्य के दर्शन होते हैं। इसके बाद दामोदर, पीलू, वारिस शाह, भाई वीर सिंह, कवि पूर्ण सिंह, धनीराम चात्रिक, शिव कुमार बटालवी, अमृता प्रीतम आदि कवियों, जसवंत सिंह, गुरदयाल सिंह और सोहन सिंह शीतल आदि उपन्यासकारों तथा अजमेर सिंह औलख, बलवंत गार्गी तथा गुरशरण सिंह आदि नाटककारों की पंजाबी साहित्य के उत्थान में सराहनीय भूमिका रही है।

उपर्युक्त गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
चारों वेदों की रचना कहाँ हुई?
उत्तर:
पंजाब की धरती पर चारों वेदों की रचना हुई।

प्रश्न 2.
पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल कौन-से हैं?
उत्तर:
अमृतसर, आनंदपुर साहिब, फतेहगढ़ साहिब, कीरतपुर साहिब, मुक्तसर साहिब आदि पंजाब के प्रमुख ऐतिहासिक स्थल हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब के प्रमुख त्योहार कौन-से हैं?
उत्तर:
लोहड़ी, वैशाखी, होली, दशहरा, दीपावली आदि पंजाब के प्रमुख त्यौहार हैं।

प्रश्न 4.
‘सराहनीय’ तथा ‘हर्षोल्लास’ शब्दों के अर्थ लिखिए।
उत्तर:
सराहनीय-प्रशंसनीय, ‘हर्षोल्लास’-प्रसन्नता और उत्साह।

PSEB 10th Class Hindi Vyakaran अपठित गद्यांश

प्रश्न 5.
उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
उत्तर:
पंजाब की महान् संस्कृति।

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