PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

PSEB 12th Class Economics मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते हैं ?
अथवा
वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था की परिभाषा दीजिए। उत्तर-वस्तु विनिमय प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है।

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है।

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प्रश्न 4.
विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के कार्य को स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का प्राथमिक कार्य विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग है। एक किसान गेहूँ बेचकर मुद्रा प्राप्त कर लेता है तथा बाज़ार में मुद्रा से कपड़ा, बूट, चीनी, साबुन इत्यादि वस्तुएं खरीद सकता है। इस प्रकार दो वस्तुओं के सुमेल की समस्या हल हो गई है।

प्रश्न 5.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
मुद्रा के कार्य को ‘पछेते भुगतान के म्यार’ के रूप में स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा के रूप में उधार दिया जाता है तो मुद्रा के रूप में इसकी वापसी हो जाती है। इस उद्देश्य के लिए ब्याज दिया जाता है ताकि उधार देने वाले को कोई हानि न हो।

प्रश्न 7.
भारत में वैधानिक मुद्रा का क्या नाम है ?
उत्तर-
भारत में वैधानिक मुद्रा का नाम रुपया है।

प्रश्न 8.
मुद्रा M, के घटक बताइए।
उत्तर-
M1 = C + D + 0
M1 = करन्सी (C) + मांग जमा (O) + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि (O)

प्रश्न 9.
मुद्रा M2 के घटक बताएँ।
उत्तर-
M2 = M1 + Deposits with Post office Savings (Except NSC)
M2 = C + D + 0 + D P.O.S. = करन्सी + माँग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + डाकघरों में बचत जमा (NSC के बगैर)

प्रश्न 10.
मुद्रा M3 के घटक बताएं।
उत्तर-
M3 = M1 + T.D of Banks
= C + D + O + TDB
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि।

प्रश्न 11.
मुद्रा M4 से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
M4 = D.P.O.S
M4 = C + D + O + TDB. + DPOS
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि + डाकघरों में बचत जमा |

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प्रश्न 12.
भारत में रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा आपूर्ति के कौन-कौन से समग्र तैयार किये जाते हैं ?
उत्तर-
M1, M2 , M3, और M4, तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 13.
मुद्रा आपूर्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
समस्त मुद्रा की मात्रा को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं जिसमें सिक्के, नोट तथा बैंक मुद्रा शामिल होती है।

प्रश्न 14.
उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उच्च शक्ति मुद्रा लोगों के पास नकदी तथा समय अवधि जमा राशि होती है।

प्रश्न 15.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा प्रतिभूतियां तथा हिस्सेदारियां होती हैं, जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 16.
वह समाप्तियाँ जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है , को ……….. कहते हैं।
(क) मुद्रा समाप्तियाँ
(ख) अचल समप्तियाँ
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) निकट मुद्रा।
उत्तर-
(घ) निकट मुद्रा।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से कौन-सा मुद्रा का आकस्मिक कार्य है ?
(क) विनिमय का माध्यम
(ख) मूल्य का भण्डार
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) मूल्य का हस्तांतरण।
उत्तर-
(ग) साख निर्माण का आधार।

प्रश्न 18.
एक अर्थव्यवस्था जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है, को ………….. कहते हैं।
(क) विनिमय प्रणाली
(ख) वस्तुओं के लिए वस्तुओं की प्रणाली
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली।

प्रश्न 19.
उधार मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार मुद्रा वह मुद्रा है जो कि वर्तमान में प्राप्त करके भविष्यकाल में ब्याज समेत अदा करने का वचन होता है।

प्रश्न 20.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा उन वस्तुओं को कहा जाता है जिनको सरलता से मुद्रा के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से मुद्रा के गौण कार्य कौन-कौन से हैं ?
(क) भंडार का साधन
(ख) कर्जे का साधन
(ग) एक स्थान से दूसरे स्थान हस्तांतरण का साधन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 22.
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ सभी मुद्रा की मात्रा से होता है जिसमें सिक्के, नोट और बैंक मुद्रा शामिल होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
M1 = ………
उत्तर-
M1 = C + D + O

प्रश्न 24.
M2 = …..
उत्तर-
M2 = C + D + O + DPOS

प्रश्न 25.
M3 = ……….
उत्तर-
M3 = C + D + O + TDB

प्रश्न 26.
M4 = …….
उत्तर-
M4 = C + D + O+ TDB + DPOS.

प्रश्न 27.
उस वस्तु का नाम बताएं जिसको विनिमय के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(a) मुद्रा
(b) पैट्रोल
(c) धातु
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) मुद्रा।

प्रश्न 28.
आपस में आवश्यकताओं की सन्तुष्टि को ……….. कहते हैं।
(a) वस्तु विनिमय प्रणाली
(b) विनिमय का साधन
(c) मांग का दोहरा संयोग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) मांग का दोहरा संयोग।

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प्रश्न 29.
उच्च बलयुक्त मुंद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोगों के पास नगद मुद्रा तथा बैकों के पास नकद कोष को उच्च बलयुक्त मुद्रा करते हैं।

प्रश्न 30.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश में पुरानी करन्सी के स्थान पर नई करन्सी के लागू करने को विमुद्रीकरण कहते हैं।

प्रश्न 31.
अवमूल्यन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश की करन्सी का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में कम करने को अवमूल्यन कहते हैं।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है। मुद्रा को सरकार की स्वीकृति होती है जिसको कोई मनुष्य स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है। मुद्रा की पूर्ति के सम्बन्ध में दो बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं-

  • मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक धारणा है जिसका सम्बन्ध निश्चित समय से है |
  • मुद्रा की पूर्ति का अर्थ लोगों के पास मुद्रा के भण्डार से होता है।

प्रश्न 3.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है। देश में जो वस्तुएं उत्पादन की जाती हैं, उनके नाप-तोल विभिन्न होते हैं। गेहूँ क्विटलों में, कपड़ा मीटरों में, दूध लीटरों में मापते हैं। परन्तु इन वस्तुओं का मूल्य मुद्रा में मापते हैं तो भिन्न-भिन्न नाप-तोल की समस्या हल हो जाती है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष क्या हैं ?
उत्तर-
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-
1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या-आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से अभिप्राय है कि एक मनुष्य की वस्तु दूसरे मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे तथा दूसरे मनुष्य की वस्तु पहले मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे। परन्तु इस तरह की अवस्था मुश्किल से उत्पन्न होती थी।

2. मूल्य की राभान इकाई का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का माप करना मुश्किल होता था। एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा दी जाए, इस सम्बन्धी कोई निश्चित पैमाना नहीं था। यदि बाज़ार में 1000 वस्तुएं तथा सेवाएं हैं तो प्रत्येक वस्तु का मूल्य 999 वस्तुओं की तुलना में बताना कठिन होता था।

3. भविष्य में किए जाने वाले भुगतान की प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य के भुगतान करने के लिए उचित प्रणाली नहीं थी यदि एक मनुष्य एक गाय तथा एक भैंस उधार दे देता था तो उसकी वापसी उसी रूप में मुश्किल हुआ करती थी, क्योंकि वस्तु गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता था।

4. मूल्य भण्डार प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में कोई ऐसी विधि नहीं थी, जिस द्वारा वस्तुओं का भण्डार किया जा सके। यदि वस्तुओं को गेहूँ, चावल अथवा पशुओं इत्यादि के रूप में भण्डार किया जाता था तो इनका मूल्य बहुत जल्दी कम हो जाता था, क्योंकि वस्तुएं खराब हो जाती थीं।

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प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को दूर करने के लिए मुद्रा का प्रयोग कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को निम्नलिखित अनुसार दूर किया जा सकता है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या का हल-मुद्रा के प्रयोग से आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या हल हो जाती है। उत्पादक अपनी वस्तु बाज़ार में बेचकर मुद्रा प्राप्त करते हैं। इस मुद्रा से दूसरी अनिवार्य वस्तुओं की खरीद की जा सकती है।
  2. मूल्य निर्धारण की समस्या का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करने की समस्या का हल मुद्रा द्वारा हो गया है। मुद्रा वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का मापदण्ड है।
  3. धन को संग्रहित करने की समस्या का हल-मुद्रा के रूप में धन का संग्रह आसानी से किया जा सकता है। मुद्रा को बैंकों में जमा करवा दिया जाए तो चोरी का कोई डर नहीं रहता तथा इस राशि पर ब्याज भी प्राप्त होता है।
  4. उधार लेने-देने की समस्या का हल-मुद्रा द्वारा उधार लेना-देना आसान हो गया है। उधार देने के कारण यदि मुद्रा का मूल्य कीमतों के बढ़ने से कुछ कम हो जाता है तो ब्याज द्वारा उस हानि की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
मुद्रा का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है-

  • मुद्रा का मूल्य मुद्रा के रूप में
  • मुद्रा का मूल्य वस्तु के रूप में।

मुद्रा के वर्गीकरण को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. पूर्ण काय मुद्रा (Full bodied money)-पूर्ण काय मुद्रा वह मुद्रा है जिसका अंकित मूल्य तथा उस सिक्के द्वारा लगी हुई धातु का मूल्य समान होता है जैसे कि भारत में स्वतन्त्रता से पहले रुपया 11/12 शुद्ध चांदी का बना हुआ था, उसको पूर्ण काय मुद्रा कहा जाता था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा (Representative full bodied Money)-प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा साधारण तौर पर काग़ज़ की बनी हुई होती है। इस प्रकार की मुद्रा का अपना न तो कोई मूल्य होता है, परन्तु इस मुद्रा को छापते समय उस मूल्य का सोना अथवा चांदी सरकार ख़जाने में रख लेती है।

3. उधार मुद्रा (Credit Money)-उधार मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसका मुद्रा के रूप में मूल्य अधिक होता है जबकि उस वस्तु का मूल्य कम होता है जिस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण किया जाता है। परन्तु उधार मुद्रा अधिक मूल्य कैसे प्राप्त करती है ? ऐसा इस कारण होता है कि जिस वस्तु का उधार मुद्रा निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है वह वस्तु बाज़ार में कुल वस्तु की पूर्ति का कुछ अंश होता है। जैसे कि किसी सिक्के को पिघला दिया जाए तो उसमें लगी धातु का मूल्य सिक्के पर लिखे मूल्य से कम होगा, उधार मुद्रा के मुख्य रूप में इस प्रकार हो सकते हैं-

  • संकेतक सिक्के-सभी सिक्के ₹ 5, ₹ 2 ₹ 1, 50 पैसे इत्यादि संकेतक सिक्के हैं।
  • प्रतिनिधि संकेतक सिक्के-यह साधारण तौर पर कागज़ के नोट होते हैं।
  • केन्द्रीय बैंक के प्रामिसरी नोटों का प्रचलन-यह कागजीय नोट केन्द्रीय बैंकों द्वारा प्रचलित किए जाते हैं, जिस पर लिखा होता है, “मैं धारक को ₹ 100 अदा करने का वचन देता हूँ।”
  • बैंकों की मांग जमा-बैंकों में जमा पैसों को चैक द्वारा निकलवाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक बताएं।
अथवा
मुद्रा के घटकों (Components) की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक इस प्रकार हैं-
1. M1 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंक की मांग जमा
2. M2 (i) जनता के पास नकद करंसी + बैंक की मांग जमा + (iii) डाकखानों के बचत खाते में जमा
3. M3 (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों की मांग जमा + (iii) बैंकों की अवधि जमा (Time Deposit) ।
4. M4 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों के पास मांग जमा + (iii) बैंकों के पास अवधि जमा + (iv) डाकखानों की कुल जमा (राष्ट्रीय बचत सर्टीफिकेटस को छोड़ कर)।

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प्रश्न 5.
मुद्रा के प्राथमिक कार्य बताओ।
उत्तर-
प्रो० किनले के अनुसार मुद्रा के प्राथमिक कार्य इस प्रकार हैं –
1. विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा का मुख्य कार्य वस्तुओं में विनिमय करना होता है जैसा कि एक किसान के पास गेहूँ है उस को वह किसान बाज़ार में बेच कर मुद्रा प्राप्त करता है तथा उस मुद्रा से बाकी ज़रूरतों को पूरा करता है इस प्रकार मुद्रा विनिमय का माध्यम है।

2. मूल्य का माप (Measure of Value)- मुद्रा की सहायता से हम वस्तुओं के मूल्य का माप करते हैं जैसा कि गेहूँ की कीमत ₹ 1120 प्रति क्विटल है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु की कीमत मुद्रा के रूप में माप सकते हैं।

प्रश्न 6.
मुद्रा के गौत्र अथवा द्वितीयक कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा के द्वितीयक कार्य इस प्रकार हैं –
1. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जाता है। मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है तथा इस को स्वीकार किया जाता है । इसलिए मुद्रा का प्रयोग करके मूल्य का भण्डार किया जा सकता

2. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव है। मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान किया जा सकता है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन बहुत कम होता है। जिस की भरपाई ब्याज द्वारा की जा सकती है।

3. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)- मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, ज़मीन एक स्थान पर बेच कर मुद्रा प्राप्त कर सकता है और इस मुद्रा से किसी और स्थान पर खरीद सकता है।

प्रश्न 7.
मुद्रा के आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करो।
उत्तर-
मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं-
1. राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-राष्ट्रीय आय, उत्पादन के साधनों के बीच वितरण की जाती है। उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूंजी और संगठन का मेहनताना लगान, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का माप मुद्रा द्वारा किया जाता है। इस प्रकार मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

2. साख निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा होती है उस द्वारा बैंक कई गुणा अधिक साख निर्माण करते हैं। इस प्रकार स्तख निर्माण का कार्य मुद्रा की सहायता से ही संभव हुआ है।

3. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction)-उपभोगी अपनी सीमित आय से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है। उसको अपनी मुद्रा भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार से व्यय करनी चाहिए कि प्रत्येक वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता एक-दूसरे के बराबर हो। इस प्रकार उपभोगी को अधिक्तम सन्तुष्टि प्राप्त होगी।

4. भुगतान की गारंटी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारंटी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक भविष्य में भुगतान की गारंटी दे देता है।

प्रश्न 8.
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? इसे उच्च शक्ति योग्य मुद्रा क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा आधुनिक युग में मुद्रा की पूर्ति का मुख्य निर्धारक माना जाता है। उच्च शक्ति मुद्रा देश में व्यापारिक बैंकों में मौद्रिक भंडार और जनता के पास नकदी (सिक्के अथवा नोट) का जोड़ होता है उच्च शक्ति मुद्रा आधार है जोकि बैंक जमा के रूप में व्यक्त किया जाता है और मुद्रा की पूर्ति का निर्माण करता है। इसको उच्च शक्ति योग्य मुद्रा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस द्वारा वस्तुओं और सेवाओं में तबादला बहुत जल्दी और आसानी से होता है। इस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण भी किया जाता है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति में वृद्धि से मुद्रा की पूर्ति निर्धारण करती है।

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प्रश्न 9.
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर –

अंतर का आधार मुद्रा निकट मुद्रा
1. मुद्रा के अंश मुद्रा में नोट सिक्के तथा बैंक की माँग जमा को शामिल किया जाता है। निकट मुद्रा में ट्रेजरी बिल विनिमय बिल, बान्ड सरकारी प्रतिभूतियाँ और बैंकों की निश्चित कालीन जमा राशि आदि को शामिल किया जाता है।
2. तरलता मुद्रा में अधिक तरलता होती है। निकट मुद्रा में कम तरलता होती है।
3. कानूनी तथा साधारण स्वीकृति मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति होती है। निकट मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति नहीं होती।
4. आय मुद्रा से आय की प्राप्ति नहीं होती। निकट मुद्रा से आय की प्राप्ति हो ती है।
5. प्रयोग मुद्रा का प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं, से विनिमय के लिए किया जाता है। निकट मुद्रा को पहले मुद्रा में तबदील किया जाता है और बाद में विनिमय किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें बताओ। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए मुद्रा कैसे सहायक हुई है ?
(State the inconveniences of barter exchange. How does money help in removing the drawbacks of barter system ?)
उत्तर-
जब किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रयोग न किया जाए तथा वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाए तो इस प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है। इसको C-C (Commodity-Commodity) अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। वस्तु विनिमय की मुश्किलें (Inconveniences or Difficulties or Drawbacks of Barter Exchange) वस्तु विनिमय की मुश्किलें निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी (Lack of Double Co-incidence of Wants)-खरीददारों तथा बेचने वालों की आवश्यकताओं की साथ-साथ पूर्ति को आवश्यकताओं का दोहरा मेल कहा जाता है। विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी होती है। उदाहरणस्वरूप एक किसान के पास गेहूँ है। इसके बदले में वह कपड़ा प्राप्त करना चाहता है। वह जुलाहे के पास जाकर कपड़े की मांग करता है, परन्तु जुलाहे को गेहूँ की आवश्यकता नहीं, बल्कि उसको जूते अनिवार्य हैं। इसलिए किसान को पहले गेहूँ देकर जूते प्राप्त करने पड़ेंगे तथा फिर वह कपड़े की आवश्यकता को पूरा कर सकता है। इस प्रकार वस्तु विनिमय में दोहरे मेल की कमी के कारण मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

2. मूल्य के माप की काठिनाई (Difficulty in easure of Value)-विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के मूल्य के माप की कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वस्तुओं का मूल्य वस्तुओं के रूप में निश्चित किया जाए तो बहुत अधिक विनिमय मूल्य याद रखने पड़ते हैं। मान लो अर्थव्यवस्था में 1000 वस्तुएँ हैं तो प्रत्येक वस्तु के 999 मूल्य याद रखने आसान नहीं होते, बल्कि बहुत कठिन होते हैं।

3. भविष्य के भुगतानों में मुश्किलें (Difficulty in Future Payments)-भविष्य भुगतानों में मुश्किल का अर्थ है कि ठेके के भुगतानों (Contractual Payments) में कठिनाई। यदि वस्तु के रूप में भुगतान किया जाता है तो उसी रूप में वस्तु की वापसी करनी मुश्किल होती थी। गाय के रूप में उधार दिया जाता है तो उसी तरह की गाय वापिस करनी मुश्किल होती है। वस्तुओं की गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता है।

4. मूल्य-संचय में कठिनाई (Difficulty in Store of Value)-वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एकत्रित करना मुश्किल होता है। वस्तुओं के रूप में धन को अधिक समय के लिए भण्डार नहीं किया जा सकता। यदि पशुओं के रूप में धन संचय किया जाता है तो पशुओं के बीमार पड़ने की स्थिति में धन जल्दी नष्ट हो जाता था। गेहूँ, चावल, इत्यादि के रूप में धन जल्दी नष्ट हो जाता है।

5. धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की कठिनाई (Difficulty in Transport of Wealth) वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना मुश्किल होता है। किसी मनुष्य के पास मकान अथवा ज़मीन है तो इस प्रकार के धन के दूसरे स्थानों पर ले जाने की कठिनाई आती है। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें दूर करने के लिए मुद्रा का योगदान (Role or Importance of money in removing drawbacks of barter system)-आधुनिक युग में मुद्रा का योगदान महत्त्वपूर्ण है। मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान डाला है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

इससे वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर किया गया है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल-मुद्रा के भाव में आने से आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल हो गया है। मुद्रा की सहायता से वस्तुओं का विनिमय आसानी से किया जाता है।
  2. वस्तुओं के मूल्य का माप-मुद्रा के विकास से वस्तुओं के मूल्य का माप आसान हो गया है। प्रत्येक वस्तु का मूल्य मात्रा के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
  3. मूल्य संचय की कठिनाई का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य संचय करना मुश्किल था। मुद्रा के निर्माण से मूल्य संचय करना आसान हो गया है।
  4. उधार लेने-देने में आसानी-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना आसान हो गया है। मुद्रा के रूप में उधार का भविष्य में भुगतान किया जा सकता है।
  5. व्यापार में आसानी-मुद्रा की सहायता से व्यापार करने में आसानी हो गई है।
  6. अधिकतम सन्तुष्टि-उपभोगी द्वारा मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है।
  7. आर्थिक समस्याओं का हल-मुद्रा से मुद्रा स्फीति, मुद्रा अस्फीति, मन्दीकाल इत्यादि आर्थिक समस्याओं का हल किया जा सकता है। मार्शल के शब्दों में, “मुद्रा धुरा है, जिसके इर्द-गिर्द आर्थिक विज्ञान घूमता है।”
    (“Money is the hub around which economic science clusters.”)

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है? मुद्रा के विकास को स्पष्ट करो। मुद्रा के मुख्य कार्यों की व्याख्या करो। (What is money ? Explain the Evolution of money. Discuss the functions of money.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के प्राथमिक, गौण तथा आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करें।
(What is Money ? Discuss the primary, secondary and contingent functions of money.)
उत्तर-
मुद्रा का अर्थ (Meaning of Money)-मुद्रा की परिभाषा निम्नलिखित भागों में विभाजित करके दी जा सकती है –

  1. मुद्रा की कानूनी परिभाषा (Legal Definition of Money)-मुद्रा कोई भी ऐसी वस्तु होती है, जिसको कानूनी तौर पर विनिमय के रूप में सरकार द्वारा घोषित किया जाता है। ऐसी मुद्रा के पीछे सरकारी आदेश होता है, जिस कारण कोई मनुष्य इस मुद्रा को स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।
  2. मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा (Functional Definition of Money)-मुद्रा कोई भी वस्तु हो सकती है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है तथा यह मूल्य के माप तथा मूल्य के संचय करने का कार्य भी करती है।
  3. मुद्रा की संकुचित परिभाषा (Narrow Definition of Money)-मुद्रा की संकुचित परिभाषा में मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा को शामिल किया जाता है। इस परिभाषा में मुद्रा के कार्य
  • विनिमय का साधन
  • मूल्य का माप
  • मूल्य का संचय करना
  • भविष्य भुगतान का आधार के रूप में लिया जाता है।

4. मुद्रा की विस्तृत परिभाषा (Broad Definition of Money)-मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में करन्सी नोट, सिक्के, बैंकों में मांग जमा, अवधि जमां, डाकखानों में जमा, जिसको कम समय के नोटिस पर प्राप्त किया जा सकता है तथा निकट मुद्रा परिसम्पत्तियों जैसे कि भागीदारियां, ब्रांड, प्रतिभूतियां इत्यादि को शामिल किया जाता है।

मुद्रा का विकास (Evolution of Money) वस्तु विनिमय बाज़ार की मुश्किलों को दूर करने के लिए मनुष्य ने मुद्रा का विकास किया। मुद्रा निम्नलिखित पड़ावों में से गुजर कर वर्तमान रूप में आई है-

  1. वस्तु मुद्रा-आरम्भ में वस्तुएं जैसे कि गेहूँ, दाल, चावल इत्यादि का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया गया।
  2. धातु मुद्रा-पश्चात् में कुछ धातुओं जैसे कि लोहा, तांबा, चांदी, सोना इत्यादि ने मुद्रा का रूप धारण किया।
  3. कागजी मुद्रा-कागज़ी मुद्रा को पहले चीन में तथा फिर शेष विश्व में मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया। आज- कल कागज़ी मुद्रा प्रत्येक देश में प्रचलित है।
  4. बैंक मुद्रा-धीरे-धीरे बैंकों के विस्तार से चैक, ड्राफ्ट तथा इलैक्ट्रॉनिक मुद्रा (A.T.M.) प्रचलित हो गई है।

मुद्रा के मुख्य कार्य (Main Functions of Money)-मुद्रा के कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(A) मुद्रा के प्राथमिक कार्य (Primary Functions of Money)-मुद्रा के दो मुख्य कार्य हैं –

  • विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा वस्तुओं के विनिमय के लिए माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती है। मुद्रा का यह महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  • मूल्य का माप (Measure of Value)-वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है। यह लेखे की इकाई है, जैसे कि गेहूं का मूल्य ₹ 700 क्विटल है।

(B) मुद्रा के द्वितीयक कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के तीन द्वितीयक कार्य हैं3. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जा सकता है। इसका मूल्य स्थिर रहता है तथा इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जा सकता है।

4. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव होता है। इसका भुगतान भविष्य में किया जा सकता है, क्योंकि इसके मूल्य में परिवर्तन नहीं होता तथा यह प्रयोग करने योग्य होती है।

5. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)-मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, जमीन एक स्थान पर बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा दूसरे स्थान पर खरीद सकता है।

(C) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent Functions of Money)-मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं –

6. आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-मुद्रा की सहायता से राष्ट्रीय आय का माप किया जा सकता है। राष्ट्रीय आय उत्पादन के साधनों में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में विभाजित की जाती है। इसलिए मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

7. उधार निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंक, जमा मुद्रा की सहायता से उधार निर्माण करने में सफल होते हैं।

8. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction) उपभोगी अपनी सीमित मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए समसीमान्त तुष्टिगुण का नियम सहायक होता है।

9. पूंजी को तरलता प्रदान करती है (Provides Liquidity to Capital)—मुद्रा में यह गुण है कि इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जाता है। इसलिए मुद्रा, पूंजी को तरलता प्रदान करती है।

10. भुगतान की गारण्टी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारण्टी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक आपके भविष्य के भुगतान की गारण्टी दे देता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 3.
मुद्रा एक अच्छा सेवक तथा बुरा स्वामी है। स्पष्ट करें।
(Money is a good servant but a bad master. Explain.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के गुण तथा अवगुण बताएँ।
(What is Money ? Give Merits and Demerits of Money.)
उत्तर-
प्रो० कराऊथर के अनुसार, “वह वस्तु जिसे लोग वस्तुओं की खरीद बेच और ऋण के रूप में स्वीकार करते हैं उसको मुद्रा कहते हैं।” मुद्रा वह तरल पदार्थ है जो एक देश में बटांदरे के रूप में पाए जाते हैं। मुद्रा के लाभ तथा मुद्रा एक अच्छा स्वामी है (Merits of Money or Money is a Good Servant)मुद्रा एक अच्छा स्वामी है इस का मुद्रा से प्राप्त होने वाले लाभों से ज्ञात होता है।

  1. मुद्रा और आर्थिक विकास (Money & Economic Growth)- मुद्रा एक ऐसा आधार है जिस के ऊपर आर्थिक विकास की इमारत बनती है।
  2. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantage to the Consumers)- मुद्रा उपभोक्ताओं के लिए लाभदायिक होती है। उपभोगी अपनी सीमित आय से मुद्रा द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करते हैं।
  3. उत्पादकों को लाभ (Advantage to the Producers)- मुद्रा की सहायता से उत्पादक तथा बिक्री की क्रियाओं का संचालन होता है, जिस द्वारा उत्पादक अधिकतम लाभ प्राप्त करता है। बढ़े पैमाने पर उत्पादन मुद्रा की सहायता से ही संभव हो सका है।
  4. विनिमय में लाभ (Advantage in Exchange)-मुद्रा की सहायता से वस्तु बटांदरा प्रणाली के दोषों को दूर करके कीमत निर्धाण करना आसान हो गया है। इस द्वारा उत्पादन के साधनों का मेहनताना निर्धाण करना आसान हो गया है।
  5. विभाजन में लाभदायिक (Advantage in Distribution)-मुद्रा द्वारा उत्पादन के साधनों, भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन का मेहनताना निर्धारण करना आसान हो पाया है। इस द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी संभव हो गया है।
  6. पूँजी निर्माण (Capital Formuation)-मुद्रा द्वारा आसानी से बचत की जा सकती है। इस बचत को निवेश करके पूँजी निर्माण किया जा सकता है। मुद्रा द्वारा नये उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं और मानवीय पूँजी का विकास होता है। मुद्रा के अवगुण अथवा मुद्रा
  7. बुरा स्वामी है (Demerits of Money or Money is a Bad Master)-मुद्रा से अच्छी तरह से संचालन न किया जाए तो बहुत-सी बुराइयां पैदा हो जाती हैं। इसलिए मुद्रा को बुरा स्वामी कहा जाता है।

इस के मुख्य दोष इस प्रकार हैं –

  • मुद्रा के मूल्य में अस्थिरता (Instability in Value of Money)-मुद्रा के फैलने से इस के मूल्य में कमी हो जाती है और मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  • आय का असामान्य वितरण (Unequal distribution of Income)-मुद्रा द्वारा आय के असामान्य वितरण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अमीर लोग और अमीर हो जाते हैं और ग़रीब ज्यादा ग़रीब हो जाते हैं।
  • व्यापारिक चक्र (Trade Cycle)-पूँजीवाद देशों में मुद्रा के कारण व्यापारिक चक्रों की समस्या उत्पन्न हो जाती है । तेजीकाल तथा मंदीकाल की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। मंदीकाल में बेरोज़गारी फैल जाती है।
  • ऋण में वृद्धि (Increase in Debt)- मुद्रा के कारण लोगों पर ऋण का भार तेजी से बढ़ रहा है। ऋण की प्राप्ति आसानी से होने के कारण लोग गैर आवश्यक वस्तुओं पर व्यय करते हैं। इस से फ़जूल खर्चों में वृद्धि होती है।
  • बुरा स्वामी (Bad Master)-यदि मुद्रा पर ठीक ढंग से काबू न पाया जाए तो इससे भ्रष्टाचार, मुद्रा स्फीति काला धन और शोषण की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इस से तंग आकर लोग आन्दोलन करते हैं और देश में अराजकता फैल जाती है।

प्रश्न 4.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ? भारत में 8 नवम्बर, 2016 को किए गए विमुद्रीकरण को स्पष्ट करें। इसके लाभ एवं हानियां बताएं।
(What is meant by Demonetisation ? Explain the demonetisation of 8th November, 2016 in India. Explain its advantages and dis-advantages.)
उत्तर-
1. विमुद्रीकरण क्या है ? (What is demonetisation ?)—जब सरकार पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर बन्द कर देती है और नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण (demonetisation) कहते हैं। इसके बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती। सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है ताकि वह पुराने नोटों को नए नोटों में बदल सकें।

2. विमुद्रीकरण क्यों किया जाता है ? (Why demonetisation ?) काला धन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकारें विमुद्रीकरण का फैसला लेती हैं। अवैध गतिविधियों में लोग नोटों को अपने पास नकदी के रूप में ही रखते हैं। इस प्रकार विमुद्रीकरण से सीधे उन पर चोट होती है। कई बार नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबन्दी की जाती है। मोदी सरकार को भी उम्मीद है कि नोटबन्दी के चलते काले धन, नकली नोट और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा। नोटबन्दी के कारण भारत में आम आदमी को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

3. भारत में विमुद्रीकरण (Demonetisation in India)-भारत में 8 नवम्बर, 2016 को रात 8 बजे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबन्दी की घोषणा कर दी। इस घोषणा में ₹ 500 और ₹ 1000 के नोटों को रात 12 बजे के बाद कानूनी मुद्रा (Legal Tender) न होने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियन्त्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था। इससे पहले भारत में दो बार विमुद्रीकरण किया गया था। 1946 में ₹ 1000 और ₹ 10,000 के नोटों को वापस ले लिया गया था और 1954 में भारत सरकार ने ₹ 1000, ₹ 5,000 और ₹ 10,000 के नए नोट शुरू किए। दूसरी बार 1978 में ₹ 1000, ₹ 5000 और ₹ 10,000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया गया ताकि काले धन पर अंकुश लगाया जा सके।

28 अक्तूबर, 2016 को भारत में ₹ 17.77 लाख करोड़ मुद्रा प्रचलित थी, जिसमें से 86% ₹ 500 और ₹ 1000 के नोट थे। देश में जाली नकदी में लगातार वृद्धि हो रही थी जिसको भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया था। इस कारण पुराने नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया। इसके स्थान पर ₹ 500 और ₹ 2000 के नए नोट चालू किए गए। ₹ 500 के नोट का आकार 66 मि० मीटर x 150 मि० मीटर है। नोट के पीछे लाल किले की तस्वीर और स्वच्छ भारत अभियान का लोगो भी है। इन नोटों को महात्मा गांधी न्यू सीरीज़ ऑफ नोट्स का नाम दिया गया है। ₹ 2000 का नोट गुलाबी रंग का है। इसके पीछे की ओर मंगलयान की तस्वीर है। 25 अगस्त, 2017 से ₹ 200 का नोट भी बाजार में आ गया है। नोट के सीरियल नम्बरों का फोंट साइज़ बदला गया है।

4. विमुद्रीकरण में नोट बदलने की विधि (Procedure for Exchange of Notes in demonetisation)भारत में 8 नवम्बर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा के पश्चात् 30 दिसम्बर, 2016 तक बैंकों से नोट बदलने की प्रक्रिया चली। इसके बाद पुराने नोट बदलने का कार्य केवल R.B.I. द्वारा ही किया जाएगा।

नोट बदलने के नियम इस प्रकार ङ्केरखे गए –

  • ATM से एक दिन में ₹ 2500 तक निकाल सकते हैं।
  • एक दिन में ग्राहक बैंक से ₹ 24000 से ज्यादा नहीं निकाल सकता और एक हफ्ते के बाद ही बैंक से ₹ 24000 दोबारा निकाले जा सकते हैं।
  • एक दिन में कोई भी व्यक्ति ₹ 2000 तक के नोट बदल सकता है।
  • कोई भी व्यक्ति अपने निजी बैंक खाते में जितना चाहे पैसा जमा करवा सकता है। ₹ 2,50,000 तक जमा की गई रकम का जवाब नहीं मांगा जाएगा। इससे ज्यादा जमा रकम के बारे में आयकर विभाग जांच करेगा।
  • ई-बैंकिंग लेन-देन पर कोई भी रोक नहीं है और कोई व्यक्ति आर०टी०जी०एस०, एन०ई०एफ०टी०, आई०एम०पी०एल०, पे०टी०एम०, मोबाईल बैंकिंग आदि के ज़रिए जितने चाहे पैसे किसी दूसरे को दे सकता है।

5. विमुद्रीकरण के लाभ (Advantages of Demonetisation) –

1. काले धन पर प्रहार-विमुद्रीकरण की सबसे करारी चोट काले धन पर पड़ी है। अनुमान लगाया जाता है कि भारत में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ काले धन के रूप में छुपा कर रखे गए थे। इन रुपयों का हवाला कारोबार, तस्करी, आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों में धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा था। कश्मीर में जारी हिंसा में भी काला धन मुख्य भूमिका निभा रहा था। देश की राजनीति में भी काले धन का मुद्दा काफ़ी समय से चर्चा में था। इसलिए विमुद्रीकरण से काले धन पर पूर्ण तो नहीं आंशिक रूप में रोक ज़रूर लगेगी।

2. आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर प्रहार-विमुद्रीकरण द्वारा आतंकवाद, नक्सली समूहों, नशे के व्यापारियों और गैर-कानूनी गतिविधियों को करारा आघात पहुंचा है। इसका प्रभाव कश्मीर में खास तौर पर देखने को मिल रहा है। इन आपराधिक गतिविधियों के लिए इकट्ठे किए गए नोट कागज़ के टुकड़े बन गए हैं और इनकी गतिविधियां ठप्प हो गई हैं।

3. काला धन्धा करने वालों पर प्रहार-देश में जो व्यापारी काला धन्धा करते थे और इससे प्राप्त काले धन को नकदी के रूप में अपने पास रखते थे उन पर भी विमुद्रीकरण से करारी चोट की गई है। काले धन्धे में लगे लोग तथा भ्रष्ट लोग, ग़रीब लोगों का सहारा ले रहे हैं ताकि काले धन को सफेद किया जा सके।

4. अर्थ-व्यवस्था में वृद्धि-विमुद्रीकरण से अर्थव्यवस्था में वृद्धि होने की संभावना है। विमुद्रीकरण से सरकारी खाते में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ आएंगे और ₹ 70,000 करोड़ विभिन्न करों से आने की उम्मीद है। इसका प्रभाव अल्पकाल में नहीं बल्कि दीर्घकाल में ज़रूर नज़र आएगा। इस रकम के आने से सरकार आधारभूत ढांचे में निवेश करेगी जिससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी।

5. कर द्वारा आय में वृद्धि-सरकार ने विमुद्रीकरण से पहले और विमुद्रीकरण के दौरान काले धन को छिपाकर रखने वाले लोगों को काला धन घोषित करने को कहा और बिना पैनलटी के कर जमा करने की छूट दी। बाद में पैनलटी के साथ कर जमा करने को कहा। इससे सरकार की कर आय में 14.5% वृद्धि हो चुकी है।

6. रोज़गार में वृद्धि-विमुद्रीकरण के बाद सरकार की मुद्रा योजना को बल मिलेगा। सरकार की योजनाओं को बैंकों से सहयोग नहीं मिल रहा था इसलिए सरकार के पास नकदी का संकट था, परन्तु अब बैंकों में नकदी का प्रवाह बढ़ा है जिस कारण औद्योगिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं और रोज़गार में वृद्धि होगी।

7. ब्याज दर में कमी-विमुद्रीकरण के बाद काले धन के एक बड़े भाग को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में लाया जाएगा। इससे बैंकों के पास जमा राशि में बढ़ोत्तरी होगी जिससे ब्याज दरों में कमी आएगी। इससे लोग व्यापार में निवेश करेंगे और मकानों की बिक्री बढ़ने की सम्भावना है।

8. नकद लेन-देन में कमी-विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था कैशलेस अर्थव्यवस्था (Cashless Economy) की तरफ बढ़ रही है। सरकार नकद लेन-देन पर रोक लगा रही है ताकि काले धन से लेन-देन खत्म हो सके। नकद लेन-देन को सरकार नि:उत्साहित कर रही है।

9. लोक कल्याणकारी योजनाएं-विमुद्रीकरण द्वारा सरकार के पास जैसे-जैसे धन की प्राप्ति होती है लोक कल्याणकारी योजनाओं में निवेश में वृद्धि की जाएगी। 2022 तक सरकार प्रत्येक का अपना घर का लक्ष्य लिए हुए है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

6. विमद्रीकरण की हानियां (Dis-advantages of demonetisation) –

1. विमुद्रीकरण से देश की जी०डी०पी० (GDP) पर सुस्ती आने की सम्भावना है परन्तु यह अल्पकाल के लिए होगा और दीर्घकाल में इसमें वृद्धि ही होगी।

2. विमुद्रीकरण से पर्यटन उद्योग को धक्का लगा है। भारत आने वाले पर्यटकों ने अपना दौरा रद्द कर दिया क्योंकि नकद पैसा निकलवाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता था। विमुद्रीकरण लम्बे समय में लाभदायक ही सिद्ध होगी। नोटबन्दी के बारे में रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट 30 अगस्त, 2017 को प्रकाशित हुई है जिसमें यह कहा गया है कि नोटबन्दी में ₹ 1000 और ₹ 500 के 99% नोट वापिस आ गए हैं। 8 नवम्बर, 2017 को ₹ 1000 और ₹ 500 के ₹ 15.44 लाख करोड़ के नोट चलन में थे। 30 जून, 2017 को ₹ 15.28 करोड़ के नोट वापिस आ गए। सरकार के नोटबंदी पर ₹ 21 हजार करोड़ खर्च हुए और ₹ 16.5 करोड़ के नोट वापिस नहीं आए।

प्रश्न 5.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव स्पष्ट करें।
(What is meant by Supply of Money ? Discuss the effects of the Supply of Money ?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति एक अर्थव्यवस्था में करंसी के समस्त भंडार को कहा जाता है। इसमें निश्चित समय पर प्रचलत मौद्रिक भंडार भी शामिल होते हैं। मुद्रा में नकद मुद्रा, सिक्के और बचत खातों में रकम को शामिल किया जाता है समष्टि अर्थशास्त्र को समझने के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। अर्थशास्त्रियों का विचार है कि मुद्रा की पूर्ति, नीति निर्माण के लिए अति आवश्यक होती है। सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की सफलता के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति, कीमत के स्तर, मुद्रा स्फीति और व्यापारिक चक्र देश के व्यापार पर प्रभाव डालते हैं। मुद्रा पूर्ति को मुद्रा स्टाक (Money stock) भी कहा जाता है।

मुद्रा पूर्ति का माप (Measurement of Supply of Money)-मुद्रा की पूर्ति (Ms) के बहुत से रूप होते हैं। जैसे कि –

  1. M0 = देश में मुद्रा की कुल पूर्ति को Mo कहा जाता है जिसमें हर प्रकार की मुद्रा शामिल होती है।
  2. M1 = (Narrow Money) = (CC + DD + Other Deposits) इसमें देश के करंसी नोटों (C.C.) को शामिल किया जाता है। इस के इलावा इसमें मांग जमा (Demand Deposits (D.D.) को भी शामिल करते हैं। बैंकों में और प्रकार के खातों जैसे कि चालू खाते में जमा (Current Deposits) को भी शामिल किया जाता है।
  3. M2 = (M1 + Saving Deposits of Post-Office Savings) यदि हम M1 = CC + DD + Other Deposits of the banks) के साथ डाकखानों में बचत खाते में जमा राशि को शामिल कर लेते हैं तो इसको M2 कहा जाता है।

M3 = Broad Money = (M1 + Time Deposits of Banks)
विशाल मुद्रा में हम M1 = CC + Cash Currency) + DD + Other deposits of Bank (Current Deposits) के साथ यदि बैकों में समय अवधि जमा को शामिल कर लेते हैं तो इसको M3 का नाम दिया जाता है।
M4 = (Wide Measure) = M3 + Post Office saving deposits)
M3 = में हमने (CC + DD + Other deposits) को शामिल करके इसमें बैंकों में समय अवधि जमा (Time Deposits) को भी शामिल किया था। यदि इसमें डाकखानों में जमा बचत खातों में जमा रकम को जोड़ लिया जाए तो इसको M4 का नाम दिया जाता है।

अर्थव्यवस्था पर मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव (Effects of Supply of Money on the Economy)-मुद्रा की पूर्ति अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती है। जब मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तो इससे ब्याज की दर (Rate of Interest) कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप निवेश में वृद्धि होती है। लोगों की मौद्रिक आय बढ़ने से व्यय में भी वृद्धि होती है। उत्पादन बढ़ने लगता है और रोज़गार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

इसके विपरीत यदि मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है तो इस का अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मुद्रा की कम पूर्ति के कारण व्यापारिक चक्र पैदा होते हैं जैसे कि सुस्ती और मंदीकाल (Depression) की स्थिति पैदा हो जाती है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जाए तो पुनरुत्थान (Recovery) और तेजीकाल (Boom) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार मुद्रा की पूर्ति से देश में आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।

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