PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

PSEB 11th Class Economics केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
केन्द्रीय प्रवृत्ति किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आंकड़ों के विस्तार के अन्तर्गत एक ऐसे मूल्य को केन्द्रीय प्रवृत्ति कहते हैं जो शृंखला के सभी मूल्यों की प्रतिनिधता करता है।

प्रश्न 2.
समान्तर माध्य से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समान्तर माध्य किसी श्रृंखला की सभी मदों की औसत होती है।

प्रश्न 3.
समान्तर माध्य का कोई एक लाभ लिखें।
उत्तर-
समान्तर माध्य उपयोग तथा गणना की दृष्टि से / रूप से सरल औसत है।

प्रश्न 4.
समान्तर माध्य को स्थिति की औसत कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

प्रश्न 5.
समान्तर माध्य को गणित्क औसत कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6.
किसी श्रृंखला के सभी मदों के योग को उनकी संख्या से विभाजन करने से ………………. प्राप्त होता है।
(a) समान्तर माध्य
(b) माध्यका
(c) बहुलक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) समान्तर माध्य।

प्रश्न 7.
समान्तर माध्य का सूत्र लिखो।
उत्तर-
\(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}\)

प्रश्न 8.
समान्तर मध्य दो प्रकार की होती है :
(i) सरल समान्तर माध्य
(ii) ……………….
उत्तर-
भारित समान्तर माध्य।

प्रश्न 9.
खण्डित श्रृंखला में समान्तर माध्य के माप का सूत्र लिखो। ..
उत्तर-
\(\overline{\mathrm{X}}=\frac{\Sigma f \mathrm{X}}{\mathrm{N}}\)

प्रश्न 10.
समान्तर माध्य का कोई एक अवगुण लिखो।
उत्तर-
समान्तर माध्य सीमान्त मूल्यों द्वारा प्रभावित होती है।

प्रश्न 11.
पद विचलन विधि द्वारा समान्तर माध्य के माप का सूत्र ..
(a) \(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}\)
(b) \(\overline{\mathbf{X}}=\mathrm{A}+\frac{\boldsymbol{\Sigma} f d x}{\mathbf{N}}\)
(c) \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x^{\prime}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{C}\)
(d) \(\overline{\mathbf{X}}=\frac{\Sigma f x}{\mathrm{~N}}\)
उत्तर-
(c) \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x^{\prime}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{C}\)

प्रश्न 12.
अशुद्ध समान्तर औसत को सही समान्तर माध्य की गणना का सूत्र लिखो।
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 1

प्रश्न 13.
मदों में समान्तर से लिए गए विचलनों का योग शून्य होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
यदि मदों में कोई स्थिर संख्या को जोड़, घटा, गुणा अथवा विभाजित किया जाए तो समान्तर में अन्तर आ जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक अच्छी केन्द्रीय प्रवृत्ति के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-
1. स्पष्ट परिभाषा (Clear Definition)-एक अच्छी केन्द्रीय प्रवृत्ति अथवा औसत की परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए जिससे इसको समझना आसान हो जाता है। इससे अनुसन्धान का कार्य सरलता से किया जा सकता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि औसतों की परिभाषा स्पष्ट तथा स्थिर हो।
2. समझने में आसानी (Easy to Understand)-अच्छी औसत का गुण बताते हुए प्रो० घूली तथा कैंडल का विचार है कि इसको आसानी से समझा जा सके। यदि औसत को सरल ढंग से स्पष्ट करने की जगह पर जटिल धारणाओं का रूप दिया जाता है तो साधारण लोग इन औसतों का प्रयोग अच्छी तरह नहीं कर सकते।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

प्रश्न 2.
समान्तर औसत (Mean) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप में अच्छी औसत को समान्तर औसत कहा जाता है। गणित औसतों में यह सबसे अधिक प्रसिद्ध या लोकप्रिय है। समान्तर औसत की जगह पर मध्यमान (Mean) का प्रयोग किया जाता है। जब हम दी गई सभी मदों का जोड़ करके इस जोड़ को मदों की संख्या से विभाजित कर देते हैं तो इससे हमारे पास समान्तर औसत प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 3.
समान्तर औसत के कोई दो गुण बताएँ।
उत्तर-

  1. सरल-समान्तर औसत एक सरल औसत है, जिसकी स्पष्ट परिभाषा दी जा सकती है। आंकड़ा शास्त्री इस धारणा का सबसे अधिक प्रयोग करते हैं।
  2. आसान माप-समान्तर औसत का माप आसानी से किया जा सकता है। इससे एक समान परिणाम प्राप्त होते

प्रश्न 4.
समान्तर औसत के कोई दो दोष बताएँ।
उत्तर-

  1. गुणात्मक माप के लिए उचित नहीं-समान्तर औसत केवल उस स्थिति में ही माप सकते हैं, जब आंकड़े संख्याओं के रूप में दिए हों, यदि गुणात्मक माप जैसे कि बहादुरी, समझदारी इत्यादि के रूप में करना हो तो गणित औसत उचित नहीं होती।
  2. हद की मदों के लिए उचित नहीं-समान्तर औसत का मुख्य दोष यह होता है कि जब मदों के मूल्य में एक मद बहुत बड़ी अथवा बहुत छोटी होती है तो इस स्थिति में औसत सभी मदों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। उदाहरणस्वरूप पांच विद्यार्थियों के अंक \(\frac{1+2+3+4+90}{5}=\frac{100}{5}\) = 20 तथा 90 हैं तो औसत अंक है, परन्तु यह विद्यार्थियों के अंकों की उचित प्रतिनिधित्व नहीं करती।

प्रश्न 5.
समान्तर औसत का माप कैसे ज्ञात किया जाता है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष विधि-आंकड़ा शास्त्र में समान्तर औसत को \(\bar{X}\) (एक्स बार) द्वारा लिखा जाता है। जिन मदों की औसत का माप करना होता है, उसको X1 X2…. XN प्रथम पद (X1) द्वितीय पद (X2) कुल पद (XN) कहते हैं। प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर औसत के माप के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
फार्मूला \(\overline{\mathrm{X}}=\frac{\mathrm{X}_{1}+\mathrm{X}_{2}+\mathrm{X}_{3}+\mathrm{X}_{4} \cdots \ldots \ldots \mathrm{X}_{\mathrm{N}}}{\mathrm{N}}=\frac{\Sigma \mathrm{X}}{\mathrm{N}} \)

अल्प विधि (Short Cut Method)-
\(\overline{\mathbf{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x}{\mathrm{~N}}\)
पद विचलन विधि (Step Deviation Method)
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\boldsymbol{\Sigma} f d x^{\prime}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{C}\)

प्रश्न 6.
खण्डित श्रेणी द्वारा समान्तर औसत की माप विधि बताएं।
उत्तर-
प्रत्यक्ष विधि \(\bar{X}=\frac{\Sigma f X}{N}\)
अल्पविधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x}{\mathrm{~N}}\)
पद विचलन विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x^{\prime}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{C}\)

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
समान्तर औसत के माप की विधियों का सार लिखो।
उत्तर-
1. व्यक्तिगत श्रेणी (Individual Series)

  • प्रत्यक्षं विधि
    \(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}\)
  • लघु विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma d x}{\mathrm{~N}}\)

खण्डित श्रेणी (Discrete Series)

  • प्रत्यक्ष विधि \(\bar{X}=\frac{\Sigma f X}{N}\)
  • लघु विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x}{\mathrm{~N}}\)
  • पद विचलन विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x^{1}}{\mathrm{~N}} \times \mathrm{C} \)

3. अखण्डित श्रेणी (Continuous Series)

  • प्रत्यक्ष विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\frac{\sum f \mathrm{X}}{\mathrm{N}}\)
  • लघु विधि \(\overline{\mathbf{X}}=\mathrm{A}+\frac{\sum f d x}{\mathrm{~N}}\)
  • पद विचलन विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{X}+\frac{\Sigma f d x^{\prime}}{\mathbf{N}} \times \mathrm{C}\)

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक अच्छी केन्द्रीय प्रवृत्ति औसत के गुणों का वर्णन करें। (Discuss the merits of good Central Tendency.)

  1. स्पष्ट परिभाषा (Clear Definition)-एक अच्छी केन्द्रीय प्रवृत्ति अथवा औसत की परिभाषा स्पष्ट होनी चाहिए जिससे इसको समझना आसान हो जाता है। इससे अनुसन्धान का कार्य सरलता से किया जा सकता है। इसलिए यह अनिवार्य है कि औसतों की परिभाषा स्पष्ट तथा स्थिर हो।
  2. समझने में आसानी (Easy to Understand)-अच्छी औसत का गुण बताते हुए प्रो० घूली तथा कैंडल का विचार है कि इसको आसानी से समझा जा सके। यदि औसत को सरल ढंग से स्पष्ट करने की जगह पर जटिल धारणाओं का रूप दिया जाता है तो साधारण लोग इन औसतों का प्रयोग अच्छी तरह नहीं कर सकते।
  3. माप में आसानी (Easy to Compute)-एक अच्छी केन्द्रीय प्रवृत्ति का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि जहां तक सम्भव हो औसतों को मापने तथा हल करने का ढंग आसान तथा सरल हो। यदि जटिल विधियों द्वारा माप किया जाता है तो इससे औसतों में शुद्धता प्राप्त करनी कठिन हो जाती है। परिणामस्वरूप उचित परिणाम प्राप्त नहीं होते।

4. सभी मदों पर आधारित (Based on All Items) – औसतों का माप करते समय सभी मदों को ही ध्यान में रखना चाहिए। यदि हम किसी मद को छोड़ देते हैं तो प्राप्त परिणाम में परिवर्तन नहीं होना चाहिए। उदाहरणस्वरूप पांच मनुष्यों की रोज़ाना आय ₹ 100, 200, 300, 400, 500 दी है तो औसत आय = \( \frac{100+200+300+400+500}{5}\) = \(\frac{1500}{5} \) = ₹ 300 प्राप्त होती है जोकि सभी मदों पर आधारित है। परन्तु यदि प्रति दिन की आय= \(\frac{100+200+300+400+4000}{5}=\frac{5000}{5}\) = ₹ 1000 औसत आएगी जोकि सभी मदों पर आधारित नहीं है।

5. हद की मदों से कम प्रभावित (Less Effected By Extreme Items) केन्द्रीय प्रवृत्तियों का एक गुण यह होना चाहिए बहुत बड़ी अथवा बहुत छोटी मदों का प्रभाव औसतों पर पड़ना चाहिए। इसलिए यह औसत आंकड़ों की प्रतिनिधिता उस समय करती है जब सभी आंकड़े लगभग समान होते हैं।

6. बीज गणित समीक्षा में आसानी (Easy Algebric Treatment) औसत ऐसी होनी चाहिए जिसकी बीज गणित समीक्षा हो सके। जब हम बीज गणित के आधार पर आंकड़ों का विश्लेषण करते हैं तो इससे अन्य विधियों में इन केन्द्रीय प्रवृत्तियों का प्रयोग किया जा सकता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

प्रश्न 2.
समान्तर औसत से क्या अभिप्राय है ? समान्तर औसत के गुण तथा दोष बताओ। (What is Arithmetic Average ? Explain its Merits and Demerits.)
उत्तर-
केन्द्रीय प्रवृति के माप में अच्छी औसत को समान्तर औसत कहा जाता है। गणित औसतों में यह सबसे अधिक प्रसिद्ध या लोकप्रिय है। समान्तर औसत की जगह पर मध्यमान (Mean) का प्रयोग किया जाता है। जब हम दी गई सभी मदों का जोड़ करके इस जोड़ को मदों की संख्या से विभाजित कर देते हैं तो इससे हमारे पास समान्तर औसत प्राप्त हो जाती है।

उदाहरणस्वरूप तीन बच्चों की आयु 9 वर्ष, 10 वर्ष तथा 11 वर्ष दी है। हम इन बच्चों की औसत आयु निकालना चाहते हैं तो इस उद्देश्य के लिए तीन बच्चों की आयु का जोड़ करके उन बच्चों की संख्या ऊपर विभाजित किया जाता है तो इसको समान्तर औसत कहा जाता है। अर्थात् बच्चों की आयु का जोड़ 9 + 10 + 11 = 30 वर्ष
बच्चों की संख्या = 3
औसत आयु = PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 2 = 10 वर्ष इसकी परिभाषा देते हुए प्रो० होरेश सीकरिस्ट ने कहा, “किसी श्रेणी के मदों के मूल्यों का योग करके उन मदों की संख्या से भाग देने पर जो संख्या प्राप्त होती है, उसको समान्तर औसत कहा जाता है।” (“The Arithmetic Mean is the amount secured by dividing the sum of values of the items in a series by their numbers.”-Harace Secrist)

समान्तर औसत के गुण-समान्तर औसत एक अच्छी औसत मानी जाती है। इसके मुख्य गुण इस प्रकार हैं-

  1. सरल-समान्तर औसत एक सरल औसत है, जिसकी स्पष्ट परिभाषा दी जा सकती है। आंकड़ा शास्त्री इस धारणा का सबसे अधिक प्रयोग करते हैं।
  2. आसान माप-समान्तर औसत का माप आसानी से किया जा सकता है। इससे एक समान परिणाम प्राप्त होते हैं।
  3. सभी मदों पर आधारित-समान्तर औसत में श्रेणी की सभी मदों को ध्यान में रखा जाता है। इसलिए यह औसत आंकड़ों पर अधिक प्रतिनिधित्व करती है।
  4. बीजगणित विवेचन-इस औसत का बीजगणित विवेचन किया जा सकता है। इसलिए आंकड़ा शास्त्र की दूसरी विधियों जैसे कि अपकिरण, सह-सम्बन्ध इत्यादि में इस औसत का अधिक प्रयोग किया जाता है।
  5. शुद्धता-समान्तर औसत निकालते समय प्रत्येक मद को ध्यान में रखा जाता है। इसलिए प्राप्त परिणामों में अधिक शुद्धता पाई जाती है।
  6. तुलना में आसानी-समान्तर औसत के आधार पर समुच्चयों की तुलना आसानी से की जा सकती है। उदाहरण स्वरूप विभिन्न देशों की प्रति व्यक्ति आय की तुलना से किसी देश के अमीर अथवा निर्धन होने का पता लगाया जा सकता है।
  7. स्थिर औसत-समान्तर औसत स्थिर औसत होती है, क्योंकि यदि नमूने में परिवर्तन किया जाए तो इससे औसत में अधिक परिवर्तन नहीं होता।

समान्तर औसत के दोष-समान्तर औसत के दोष इस प्रकार हैं-
1. गुणात्मक माप के लिए उचित नहीं-समान्तर औसत केवल उस स्थिति में ही माप सकते हैं, जब आंकड़े संख्याओं के रूप में दिए हों, यदि गुणात्मक माप जैसे कि बहादुरी, समझदारी इत्यादि के रूप में करना हो तो गणित औसत उचित नहीं होती।

2. हद की मदों के लिए उचित नहीं-समान्तर औसत का मुख्य दोष यह होता है कि जब मदों के मूल्य में एक मद बहुत बड़ी अथवा बहुत छोटी होती है तो इस स्थिति में औसत सभी मदों का प्रतिनिधित्व नहीं करता। उदाहरणस्वरूप पांच विद्यार्थियों के अंक 1, 2, 3, 4, तथा 90 हैं तो औसत अंक \(\frac{1+2+3+4+90}{5}=\frac{100}{5}\) = 20 यह विद्यार्थियों के अंकों की उचित प्रतिनिधित्व नहीं करती।

3. अनुचित परिणाम-समान्तर औसत द्वारा कई बार अनुचित परिणाम निकाले जाते हैं। उदाहरणस्वरूप देश A तथा देश B में लोगों की औसत आय ₹ 2000 है तो हम यह परिणाम निकालते हैं कि दोनों देशों में औसत आय समान है तथा लोगों की आर्थिक स्थिति एक समान है, परन्तु देश A में आय 10, 20, 30, 40 तथा 9000 है। इससे औसत आय \(\frac{100+200+300+400+9000}{5}=\frac{10000}{5}\) = ₹ 2000 है। देश B में 5 मनुष्यों की आय, दो-दो हज़ार रु० अंक है, परन्तु है तो औसत आय \(\frac{2000+2000+2000+2000+2000}{5}=\frac{10000}{5}\) = ₹ 2000 है परन्तु दोनों देशों में लोगों की आर्थिक स्थिति समान नहीं है। A देश में आय का वितरण असमान है, परन्तु औसत आय से इसका ज्ञान प्राप्त नहीं होता।

4. प्रतिनिधि औसत नहीं-कई बार औसत ऐसी संख्या हो सकती है जोकि मदों में नहीं पाई जाती जैसे कि \(\frac{1+2+3+10}{4}=\frac{16}{4}\)= 4 सट संख्याओं में नहीं पाई जाती। मद संख्याओं में नहीं पाई जाती।

5. ग्राफ द्वारा प्रदर्शन सम्भव नहीं-गणित औसत द्वारा ग्राफ विधि द्वारा औसत को प्रकट नहीं किया जा सकता। इस प्रकार यह औसत उचित नहीं है।

6.खले वर्गों में माप सम्भव नहीं-जब हमारे पास खुले वर्ग होते हैं, जैसे कि 10 से कम अथवा 100 से अधिक। ऐसी स्थिति में गणित समान्तर औसत का माप नहीं किया जा सकता क्योंकि इस स्थिति में मदों के उचित मूल्य को शामिल नहीं किया जाता। चाहे समान्तर औसत में कुछ दोष भी पाए जाते हैं परन्तु फिर भी इस औसत को दूसरी औसतों की तुलना में अच्छा माना जाता है, क्योंकि यह औसत न केवल सिद्धान्तक तौर पर ही अलग प्रयोग की जाती है, बल्कि व्यावहारिक तौर पर भी अधिक लाभदायक है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

1. व्यक्तिगत श्रेणी
(Individual Series)

प्रश्न 3.
समान्तर औसत का माप कैसे ज्ञात किया जाता है ?
उत्तर-
(A) प्रत्यक्ष विधि-आंकड़ा शास्त्र में समान्तर औसत को \(\bar{X}\) (एक्स बार) द्वारा लिखा जाता है। जिन मदों की औसत का माप करना होता है, उसको X1X2… XN प्रथम पद (X1) द्वितीय पद (X2) कुल पद (XN) कहते हैं। प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर औसत के माप के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
फार्मूला
\(\bar{X}=\frac{X_{1}+X_{2}+X_{3}+X_{4} \cdots \ldots \ldots X_{N}}{N}=\frac{\Sigma X}{N}\)
इस फार्मूले में
\(\overline{\mathrm{X}}\) = समान्तर औसत (Mean) . X1 X2……XN = यह मदों के मूल्य को प्रकट करते हैं। जैसे कि पहले विद्यार्थी के अंकों को X1 दूसरे विद्यार्थी के अंकों को X2 इत्यादि लिखा जाता है। ΣX = इसमें चिन्ह (Σ) को सिगमा (Sigma) कहते हैं। इसका अर्थ है मदों का कुल योग। X शब्द का प्रयोग मदों के मूल्य के लिए किया जाता है। मदों के मूल्य का कुल योग (ΣX) द्वारा प्रकट किया जाता है। N = मदों की कुल संख्या।

Short Cut Method :
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{d x}{\mathrm{~N}}\)

Step Deviation Method :
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma d x}{\mathrm{~N}} \times \mathrm{C}\)

प्रश्न 4.
ग्यारहवीं कक्षा के 10 विद्यार्थियों द्वारा अंग्रेज़ी के पेपर में से 100 अंकों में से प्राप्त अंक दिए हुए
अंक : 10 50 29 61 52 16 24 18 42 48
प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर मध्य का माप ज्ञात करो।
हल (Solution) :
प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर मध्य का माप…

विद्यार्थियों की संख्या (Number of Students) अंक (Marks)
2 10
2 50
3 29
4 61

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 3

\( \overline{\mathrm{X}}=\frac{\Sigma \mathrm{X}}{\mathrm{N}}=\frac{350}{10}\) = 35 Marks उत्तर।
1 विद्यार्थी ने गणित के पेपर में 100 अंकों में से औसत 35 अंक प्राप्त किए हैं। इससे ज्ञात होता है कि ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थी अंग्रेज़ी में कमज़ोर हैं।

प्रश्न 5.
साबुन बनाने वाले कारखाने में आठ मजदूरों की रोज़ाना मज़दूरी का विवरण निम्नलिखित अनुसार दिया गया है
रोज़ाना मज़दूरी (₹) 100 110 140 150 180 200 210 270 समान्तर औसत का माप ज्ञात करो।
हल (Solution):
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 4
\(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}=\frac{1360}{8}\) = ₹ 170 उत्तर।
साबुन बनाने के कारखाने में मजदूरों की रोज़ाना औसत मज़दूरी ₹ 170 प्रतिदिन प्राप्त होती है।

प्रश्न 6.
आठ मज़दूरों की प्रतिदिन मज़दूरी इस प्रकार दी है।
मज़दूरी : 100 110 140 150 180 200 210 270
हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 5
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma d x}{\mathrm{~N}}\)
सरल विधि अनुसार
\( \bar{X}=150+\frac{160}{8}=₹ 170\)
\(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}=\frac{1360}{8}\)
\(\bar{X}\) = ₹ 170 उत्तर
मज़दूरों की प्रतिदिन औसत मज़दूरी = ₹ 170.

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

प्रश्न 7.
निम्नलिखित मजदूरों की मजदूरी के आंकड़े दिए गए हैं
मज़दूरी (₹) 100 110 140 150 180 200 210 270
कल्पित औसत 200 से लेकर समान्तर मध्य का माप करो।
हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 6
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma d x}{\mathrm{~N}}\)
\(\bar{X}=200+\frac{-240}{8}\)
\(\bar{X}\)= 200 – 30 = ₹ 170 उत्तर।

प्रश्न 8.
पद विचलन विधि द्वारा निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से समान्तर औसत का माप करो –
मज़दूरी (₹) 100 110 140 150 180 200 210 270
हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 7
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma d x^{\prime}}{\mathbf{N}} \times \mathrm{C}\)
\( \bar{X}=150+\frac{16}{8} \times 10\) = ₹ 170 उत्तर
इस प्रकार प्रत्येक विधि से एक ही उत्तर आता है।

2. खण्डित श्रेणी में समान्तर औसत का माप (Calculation of Mean in Discrete Series)

प्रश्न 9.
खण्डित श्रेणी में समान्तर मद के माप की विधि स्पष्ट करो।
उत्तर-
खण्डित श्रेणी में मदों के साथ उनकी आवृत्ति दी होती है। इस स्थिति में औसत का माप तीन विधियों द्वारा किया जा सकता है।

  1. प्रत्यक्ष विधि
  2. लघु विधि
  3. पद विचलन विधि

1. प्रत्यक्ष विधि-प्रत्यक्ष विधि में समान्तर औसत मापने के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है-
\(\overline{\mathbf{X}}=\frac{\sum f x}{\mathbf{N}}\)
इस सूत्र में \(\bar{X}\) = समान्तर औसत
f = आवृत्ति
x = श्रेणी की मदें
N = मदों की संख्या
इसको Σf भी कहा जाता है।

2. लघु विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x}{\mathrm{~N}}\)

3. पद विचलन विधि \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x^{\prime}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{C}\)

प्रश्न 10.
ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों की अर्थशास्त्र की परीक्षा हुई। पेपर 50 अंकों का था। प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर मध्य ज्ञात करो।

अंक : विद्यार्थियों की संख्या :
10 3
20 8
30 9
40 6
50 4

हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 8
\(\overline{\mathrm{X}}=\frac{\Sigma f x}{f}=\frac{900}{30}\) = 30 अंक उत्तर।

अर्थशास्त्र के पेपर में ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों के 50 अंकों में से औसत अंक 30 अंक हैं। इससे ज्ञात होता है कि विद्यार्थी अर्थशास्त्र में होशियार हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

प्रश्न 11.
कम्प्यूटर पर काम करने वाले 30 मजदूरों की प्रति घण्टा मजदूरी का विवरण निम्नलिखित अनुसार दिया गया है। लघु विधि से समान्तर मध्य ज्ञात करो।

प्रति घण्टा मजदूरी (₹) मज़दूरों की संख्या
10 3
20 8
30 9
40 6
50 4

हल (Solution):
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 9
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x}{\mathrm{~N}}\)
x = 30+ 3 = 2 30 उत्तर।
कम्प्यूटर पर काम करने वाले की औसत प्रति घण्टा मज़दरी ₹ 30 है।

प्रश्न 12.
50 मजदूरों की मजदूरी के आंकड़े निम्नलिखित अनुसार दिए गए हैं। औसत मजदूरी का माप पद विचलन विधि द्वारा ज्ञात करो।

मज़दूरी (₹) मज़दूरों की संख्या
20 6
30 8
40 10
50 12
60 9
70 5

हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 10
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x^{\prime}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{C}\)
\(\bar{X}=50+\frac{-25}{50} \times 10\)
\(\bar{X}\) = 50 – 5 = ₹ 45 उत्तर।
इससे ज्ञात होता है कि मज़दूरों की औसत मज़दूरी ₹ 45 है।

3. अखण्डित श्रृंखला में समान्तर माध्य की गणना (Calculation of Arithmetic Mean in Continuous Series)

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से प्रत्यक्ष विधि द्वारा समान्तर औसत ज्ञात करो।

अंक: विद्यार्थियों की संख्या:
0-10 5
10 – 20 10
20 – 30 12
30 – 40 15
40-50 18
50 – 60 10

हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 11
\(\overline{\mathbf{X}}=\frac{\Sigma f x}{\mathrm{~N}}\)
\(\bar{X}=\frac{2360}{70} \) = 33.71 अंक उत्तर।
इससे ज्ञात होता है कि विद्यार्थियों के 33.71/60 औसत अंक हैं। इसलिए विद्यार्थियों का स्तर अच्छा है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

प्रश्न 14.
50 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए अंकों का विवरण इस प्रकार दिया हुआ है। लघु विधि द्वारा समान्तर औसत का माप करो।

अंक : विद्यार्थियों की संख्या :
0 – 10 8
10 – 20 12
20 – 30 15
30 – 40 10
40 – 50 5

हल (Solution):
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 12
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x}{\mathrm{~N}}\)
\(\bar{X}=25+\frac{-80}{50}\)
\(\bar{X}\) = 25 – 1.6 = 23.4 अंक उत्तर
इससे ज्ञात होता है कि विद्यार्थियों का मध्यम स्तर है।

समावेशी श्रेणी में समान्तर मध्य का माप (Calculation of Arithmetic Mean in Inclusive Series)

नोट-खण्डित श्रेणी में यदि वर्गान्तर समावेशी है तो इसको अपवर्जी में परिवर्तन करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। उसी तरह मध्य मूल्य निकालकर हल किया जाता है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आंकड़ों की समान्तर औसत का माप करो।

भूमि (एकड़): किसानों की संख्या :
10 – 19 8
20 – 29 10
30 – 39 16
40 – 49 10
50 – 59 6

हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 13
\(\overline{\mathbf{X}}=\mathrm{A}+\frac{\sum f d x^{l}}{\mathrm{~N}} \times \mathrm{C}\)
\(\bar{X}=34.5+\frac{-4}{50} \times 10\)
\(\bar{X}=34.5+\frac{-4}{5}=34.5-0.8=33.7\)
\(\bar{X}\) = 33.7 एकड़ उत्तर

मध्य मूल्य श्रेणी में समान्तर औसत का माप । (Calculation of Mean in Mid-Value Series)
मध्य मूल्यों वाली श्रेणी में समान्तर मध्य का माप वर्गान्तर श्रेणी में हम मध्य मूल्य (MV) निकाल कर प्रश्न का हल करते हैं। यदि मध्य मूल्य दिए होते हैं तो उसका हल इस प्रकार किया जाता है।

प्रश्न 16.
मजदूरों की मजदूरी का विवरण इस प्रकार है

मध्य मज़दूरी : मज़दूरों की संख्या :
5 10
10 12
15 15
20 18
25 10
30 5
35 2

समान्तर मध्य का माप करो।
हल (Solution) :
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 14
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A}+\frac{\Sigma f d x^{\prime}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{C}\)
\(\bar{X}=20+\frac{(-) 43}{72} \times 5\)
\(\bar{X}=20-\frac{215}{72}\)
\(\bar{X}\) = 20.2.99
\(\bar{X}\) = ₹ 17.01 उत्तर
मज़दूरों की प्रति घण्टा मज़दूरी ₹ 17.01 है। इससे ज्ञात होता है कि मज़दूरों की आर्थिक स्थिति ठीक है।

गलत समान्तर औसत को ठीक करना (Correcting the Incorrect Mean)

प्रश्न 17.
गलत समान्तर औसत को ठीक करने की विधि बताओ।
उत्तर-
समान्तर औसत का माप करते समय कई बार कुछ मदें अशुद्ध लिख ली जाती हैं परन्तु ठीक मदों का पता लगाने के लिए गलत समान्तर औसत को सही किया जा सकता है। इस उद्देश्य के लिए निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग किया जाता है
\(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}\)
N.\(\bar{X}\) = ΣX
इससे अशुद्ध ΣX प्राप्त हो जाता है। सही \(\bar{X}\) का माप इस प्रकार किया जाता है
\(\bar{X}\)= अशुद्ध Σ\(\bar{X}\) = – गलत मद + ठीक मद

प्रश्न 18.
50 विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए गए औसत अंक 30 दिए गए हैं। उसके पश्चात् ज्ञात होता है कि एक विद्यार्थी के उचित अंक 60 हैं, जोकि गलती से 6 लिखे गए। ठीक समान्तर औसत का माप करो।
हल (Solution):
\(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}\) = 30= \(\frac{\Sigma \mathrm{X}}{50}\)
N.\(\bar{X}\) = Σ\(\bar{X}\)
50 × 30 = Σ\(\bar{X}\)
गलत ΣX= 1500
ठीक अंक = 60 गलती से लिखे गए = 6
\(\bar{X}\) = गलत ΣX – गलत मद + ठीक मद
\(\bar{X}\) = \(\frac{1500-6+60}{50} \)
\(\bar{X}\) = \(\frac{1554}{50}\) = 31.08 अंक
विद्यार्थियों द्वारा औसत अंक 30 दिए गए हैं। परन्तु गलत अंकों के स्थान पर ठीक अंक जोड़ने से औसत अंक 31.08 हो गए हैं।

प्रश्न 19.
मदों के समान्तर औसत से लिए गए विचलनों का योग सिफर होता है। स्पष्ट करें।
उत्तर-
समान्तर औसत से लिए गए विचलनों का योग सिफर होता है। जब हम समान्तर औसत से मदों का विचलन निकाल कर योग करते हैं तो यह हमेशा सिफर होता है अर्थात्
Σ (X – \(\bar{X}\)) = 0
उदाहरण-मदें : 2 4 6 8 10
हल (Solution) :
\(\bar{X}=\frac{2+4+6+8+10}{5}=\frac{30}{5}\) = 6
मदों की औसत = 6
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 15

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य

प्रश्न 20.
यदि मदों में स्थिर मूल्य, जोड़, घटाओ, गुणा अथवा वितरण किया जाए तो क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
यदि मदों में स्थिर मूल्य (मान लो 2) जोड़ दिया जाए, घटा दिया जाए, गुणा किया जाए अथवा वितरण किया जाए तो समान्तर औसत उसी अनुपात में बदल जाता है।
स्थिर मूल्य का जोड़, घटाओ, गुणा तथा वितरण प्रभाव
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 22 केंद्रीय प्रवृत्ति के माप-समान्तर माध्य 16

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ

This PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ will help you in revision during exams.

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ

→ ਜਣਨ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਦੁਆਰਾ ਨਵੇਂ ਜੀਵ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜੋ ਜਨਮ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵ ਵਰਗੇ ਹੁੰਦੇ ਹੋਏ ਵੀ ਕੁੱਝ ਵੱਖਰੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸ਼ਿਸ਼ੂ ਵਿਚ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੁੱਢਲੇ ਲੱਛਣ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਮਾਤਾ ਅਤੇ ਪਿਤਾ ਦੋਨੋਂ ਬਰਾਬਰ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਪਦਾਰਥ ਸੰਤਾਨ ਵਿਚ ਸਥਾਨਾਂਤਰਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਹਰ ਸੰਤਾਨ ਵਿਚ ਸਾਰੇ ਲੱਛਣਾਂ ਦੇ ਦੋ ਵਿਕਲਪ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਮੈਂਡਲ ਪਹਿਲੇ ਵਿਗਿਆਨੀ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹਰ ਪੀੜ੍ਹੀ ਦੇ ਇੱਕ-ਇੱਕ ਪੌਦੇ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਲੱਛਣਾਂ ਦਾ ਰਿਕਾਰਡ ਰੱਖਿਆ ਅਤੇ ਗਣਨਾ ਕੀਤੀ ।

→ ਮੈਂਡਲ ਨੇ ਮਟਰ ਦੇ ਪੌਦੇ ਦੇ ਅਨੇਕ ਵਿਕਲਪੀ ਲੱਛਣਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ।

→ DNA ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਲਈ ਸੂਚਨਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਦਾ ਜੀਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪੌਦੇ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਹਾਰਮੋਨ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਤੇ ਉਸਦੀ ਲੰਬਾਈ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

→ ਜੀਨ ਲੱਛਣਾਂ (Traits) ਨੂੰ ਨਿਯੰਤਰਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਹਰ ਸੈੱਲ ਵਿਚ ਹਰ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਦੀਆਂ ਦੋ ਕਾਪੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇੱਕ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਰ ਅਤੇ ਦੂਸਰੀ ਮਾਦਾ ਜਨਕ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਹਰ ਜਨਕ ਸੈੱਲ ਵਿਚ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਦੇ ਹਰੇਕ ਜੋੜੇ ਦਾ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਹੀ ਇੱਕ ਜਣਨ ਸੈੱਲ ਵਿੱਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ

→ ਮਨੁੱਖੀ ਨਰ ਅਤੇ ਮਾਦਾ ਵਿਚ 23 ਜੋੜੇ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਰ ਮਨੁੱਖ ਵਿੱਚ ਇਕ ਜੋੜੀ ‘X Y’ ਅਤੇ ਇਸਤਰੀਆਂ ਵਿਚ ਇਕ ਜੋੜੀ ‘XX’ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਲਿੰਗੀ ਪ੍ਰਜਣਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਜੀਵਾਂ ਵਿੱਚ ਯੁਗਮਕ ਜਾਂ ਜਣਨ ਸੈੱਲ ਵਿਸ਼ਿਸ਼ਟ ਜਣਨ ਟਿਸ਼ੂਆਂ ਵਿੱਚ ਬਣਦੇ ਹਨ ।

→ ਚਾਰਲਸ ਡਾਰਵਿਨ ਨੇ ‘ਕੁਦਰਤੀ ਵਰਣ ਦੁਆਰਾ ਜੈਵ ਵਿਕਾਸ` ਸਿਧਾਂਤ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਕੀਤੀ ਸੀ ।

→ ਅਸੀਂ ਡਾਰਵਿਨ ਨੂੰ ਕੇਵਲ ਜੈਵ ਵਿਕਾਸਵਾਦ ਦੇ ਕਾਰਨ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ ।

→ ਇਕ ਬਿਟਿਸ਼ ਵਿਗਿਆਨੀ ਜੇ.ਬੀ.ਐੱਸ. ਹਾਲਡੇਨ ਨੇ 1929 ਵਿਚ ਸੁਝਾਅ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿ ਜੀਵਾਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਉਤਪੱਤੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਰਲ ਅਕਾਰਬਨਿਕ ਅਣੂਆਂ ਤੋਂ ਹੀ ਹੋਈ ਹੋਵੇਗੀ ਜੋ ਧਰਤੀ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਬਣੇ ਸਨ ।

→ ਸੈੱਲ ਸਾਰੇ ਜੀਵਾਂ ਦੀ ਮੁੱਢਲੀ ਇਕਾਈ ਹੈ ।

→ ਜੀਵਾਣੂ ਸੈੱਲ ਵਿਚ ਕੇਂਦਰਕ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਜਦੋਂ ਕਿ ਹੋਰ ਵਧੇਰੇ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਸੈੱਲਾਂ ਵਿਚ ਕੇਂਦਰਕ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਹੁ-ਕੋਸ਼ੀ ਜੀਵਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਦਾ ਹੋਣਾ ਜਾਂ ਨਾ ਹੋਣਾ ਵਰਗੀਕਰਨ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪਹਿਲੂ ਹੈ ।

→ ਸਮਾਨ ਜਨਕ ਤੋਂ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਹੋਏ ਜੀਵਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਨ ਲੱਛਣ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੰਛੀਆਂ, ਰੀਂਗਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵਾਂ, ਜਲਥਲੀ ਅਤੇ ਥਣਧਾਰੀ ਦੇ ਪੈਰਾਂ ਦੀ ਸੰਰਚਨਾ ਇੱਕ ਸਮਾਨ ਹੈ ਚਾਹੇ ਇਹ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਾਰਜ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਚਮਗਾਦੜ ਅਤੇ ਪੰਛੀ ਚਾਹੇ ਉੱਡਣ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਹਨ ਪਰ ਦੋਨਾਂ ਦੀ ਸੰਰਚਨਾ ਇਕ ਸਮਾਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ।

→ ਚੱਟਾਨਾਂ ਵਿਚ ਜੀਵ ਦੇ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਅਵਸ਼ੇਸ਼ ਫਾਸਿਲ (Fossils) ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ

→ ਵਧੇਰੇ ਡੂੰਘਾਈ ਤੇ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਅਵਸ਼ੇਸ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਵਸ਼ੇਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪੁਰਾਣੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਘੱਟ ਡੂੰਘਾਈ ਤੇ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।

→ ਫਾਂਸਿਲ ਡੇਟਿੰਗ’ ਨਾਲ ਫਾਂਸਿਲ (ਪਥਰਾਹਟ) ਦਾ ਸਮਾਂ ਨਿਰਧਾਰਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪਲੈਨੇਰੀਆ ਨਾਮਕ ਚਪਟੇ ਕਿਰਮੀ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਰਲ ਅੱਖ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜੋ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਨੂੰ ਪਛਾਣ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਕੋਈ ਪਰਿਵਰਤਨ ਜੋ ਇੱਕ ਗੁਣ ਲਈ ਉਪਯੋਗੀ ਹੈ ਉਹ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਕੰਮ ਲਈ ਉਪਯੋਗੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਪੰਖ ਤਾਪ ਗੋਧਨ ਦੇ ਲਈ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਏ ਸਨ ਪਰ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਇਹ ਉੱਡਣ ਵਿਚ ਸਹਾਈ ਹੋਣ ਲੱਗ ਗਏ ਸੀ ।

→ ਪੰਛੀ ਦੀ ਨੇੜਤਾ, ਰੀਂਗਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੈ ।

→ ਮਨੁੱਖ ਨੇ ਦੋ ਹਜ਼ਾਰ ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਜੰਗਲੀ ਗੋਭੀ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਉਗਾਉਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਉਸਨੇ ਚੋਣ ਰਾਹੀਂ ਇਸ ਤੋਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਵਿਕਸਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ।

→ ਸੈੱਲ ਵਿਭਾਜਨ ਦੇ ਸਮੇਂ DNA ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨਾਲ ਉਸ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਆਵੇਗਾ ਜੋ ਨਵੇਂ DNA ਤੋਂ ਬਣੇਗੀ ।

→ ਆਣਵਿਕ ਜਾਤੀ ਵਿਤ ਦੂਰ ਵਾਲੇ ਸੰਬੰਧੀ ਜੀਵਾਂ ਦੇ DNA ਵਿਚ ਵਿਭਿੰਨਤਾਵਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਿਵਿਧਤਾਵਾਂ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਚੋਣ ਦੁਆਰਾ ਸਰੂਪ ਦੇਣਾ ਹੀ ਵਿਕਾਸ ਹੈ ।

→ ਮਨੁੱਖ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵ-ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਲਈ ਕੀਤਾ ਸੀ ।

→ ਉਤਖਣਨ, ਸਮਾਂ ਨਿਰਧਾਰਨ, ਪਥਰਾਟ ਜਾਂ ਫਾਂਸਿਲ ਅਧਿਐਨ ਅਤੇ DNA ਅਣੂਕੂਮ ਦਾ ਨਿਰਧਾਰਨ ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਹਨ ।

→ ਆਧੁਨਿਕ ਮਨੁੱਖ ਸਪੀਸ਼ੀਜ਼ ‘ਹੋਮੋਸੇਪੀਅਨਸ’ ਦੇ ਪ੍ਰਾਚੀਨਤਮ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਅਫ਼ਰੀਕਾ ਵਿਚ ਖੋਜਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ।

→ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਹੋਰ ਸਪੀਸ਼ੀਜ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਇਕ ਘਟਨਾ ਮਾਤਰ ਸੀ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ

→ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕੀ (Genetics)-ਜੀਵ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਜਿਹੜੀ ਸ਼ਾਖਾ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਭਿੰਨਤਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੀ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ (Heredity)-ਪਾਣੀਆਂ ਵਿਚ ਪੀੜ੍ਹੀ-ਦਰ-ਪੀੜ੍ਹੀ ਲੱਛਣਾਂ ਦਾ ਅੱਗੇ ਜਾਣਾ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜੀਨ (Gene)-ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਇਕਾਈ ਜੋ ਪੀੜੀਆਂ ਵਿੱਚ ਗੁਣਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਲੈ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਉਸਨੂੰ ਜੀਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਲਿੰਗੀ ਗੁਣ ਸੂਤਰ (Sex Chromosome)-ਗੁਣ ਸੂਤਰਾਂ ਦਾ ਉਹ ਜੋੜਾ ਜੋ ਨਰ ਅਤੇ ਮਾਦਾ ਲਿੰਗ ਦਾ ਨਿਰਧਾਰਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ਲਿੰਗੀ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਮਲਿੰਗੀ ਗੁਣ ਸੂਤਰ (Homologous Choromosome)-ਗੁਣ ਸੂਤਰਾਂ ਦਾ ਉਹ ਜੋੜਾ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਮਾਨ ਗੁਣ ਮਾਤਾ ਅਤੇ ਪਿਤਾ ਵਿਚੋਂ ਸੰਤਾਨ ਵਿਚ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਟੋਸੋਮਸ (Autosome)-ਕਿਸੇ ਜੀਵ ਵਿਚ ਲਿੰਗ ਗੁਣ ਸੂਤਰਾਂ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਆਟੋਸੋਮਸ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਜੀਵ-ਵਿਕਾਸ (Evolution)-ਜੀਵਧਾਰੀਆਂ ਵਿਚ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਲਗਾਤਾਰ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀ ਵਿਕਾਸ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਜੀਵ-ਵਿਕਾਸ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਮਜਾਤ ਅੰਗ (Homologous Organ)-ਪਾਣੀਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਉਹ ਅੰਗ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਅਤੇ ਮੂਲ ਰਚਨਾ ਸਮਾਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਪਰ ਕਾਰਜ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਬਾਹਰੀ ਰਚਨਾ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਮਰੂਪ ਅੰਗ (Analogous Organ)-ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਉਹ ਅੰਗ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਵਿਚ ਤਾਂ ਸਮਾਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਪਰ ਉਤਪੱਤੀ ਅਤੇ ਮੂਲ ਰਚਨਾ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਪਰਾਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਜੀਵ (Transgenic organism)-ਉਹ ਜੀਵ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਬਾਹਰੀ DNA ਜਾਂ ਜੀਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪਰਾਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਜੀਵ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਥਰਾਟ (Fossils)-ਮਰੇ ਹੋਏ ਜੀਵ-ਜੰਤੂਆਂ ਦੇ ਅਵਸ਼ੇਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਥਰਾਟ ਜਾਂ ਫਾਸਿਲ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਗੁਣਿਤ (Haploid)-ਗੁਣ ਸੂਤਰਾਂ ਦੇ ਇੱਕ ਸੈੱਟ ਨੂੰ ਅਣਿਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਿਉਕਲੋਟਾਈਡ (Nucleotide)-ਜਿਸ ਰਸਾਇਣਿਕ ਅਣੂ ਵਿਚ ਸ਼ੱਕਰ, ਫਾਸਫੇਟ ਅਤੇ ਨਾਈਟਰੋਜਨੀ ਖਾਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਉਸ ਨੂੰ ਨਿਊਕਲੋਟਾਈਡ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਰਧ ਗੁਣ ਸੂਤਰ (Chromatid)-ਜਦੋਂ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਨੂੰ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਹਰ ਭਾਗ ਨੂੰ ਅਰਧ ਗੁਣ ਸੂਤਰ (chromatid) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਵਸ਼ੇਸ਼ੀ ਅੰਗ (Vestigial organs)-ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਬੇਲੋੜੀਆਂ ਸੰਰਚਨਾਵਾਂ ਨੂੰ ਅਵਸ਼ੇਸ਼ੀ ਅੰਗ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਵਿਚਲਨ (Genetic drift)-ਕਿਸੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਿਚ ਵੱਡੇ ਪੈਮਾਨੇ ਤੇ ਵਿਨਾਸ਼. ਇਹ ਬਾਹਰੀ ਗਮਨ ਕਾਰਨਾਂ ਕਰਕੇ ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਬਾਰੰਬਾਰਤਾ ਵਿਚ ਕਮੀ ਨੂੰ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਵਿਚਲਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਿਵਿਧਤਾ ਜਾਂ ਵਿੰਭਿਨਤਾ (Variation)-ਕਿਸੇ ਵੀ ਜਾਤੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਚ ਪਾਈਆਂ ਜਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਅਸਮਾਨਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਵਿਭਿੰਨਤਾਵਾਂ (Variations) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸੰਤਾਨ (ਸੰਤਤੀ) (Offsprings)-ਜੀਵ ਜੰਤੂਆਂ ਵਿਚ ਲਿੰਗੀ ਜਣਨ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਨਵੇਂ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਨੂੰ ਸੰਤਤੀ ਜਾਂ ਸੰਤਾਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਮਲੱਛਨੀ (Phenotype)-ਕਿਸੇ ਵੀ ਜੀਵ ਦੀ ਜੋ ਬਾਹਰੀ ਰਚਨਾ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਲੱਛਮੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਭਾਵੀ ਲੱਛਣ (Dominant traits)-ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਉਹ ਲੱਛਣ ਜੋ ਵਿਖਮ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਵਿਚ ਖੁਦ ਨੂੰ ਪਕਟ ਕਰਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵੀ ਲੱਛਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕਤਾ ਅਤੇ ਜੀਵ ਵਿਕਾਸ

→ ਅਪ੍ਰਭਾਵੀ ਲੱਛਣ (Recessive traits)-ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਉਹ ਲੱਛਣ ਜੋ ਵਿਖਮ ਅਵਸਥਾ ਵਿਚ ਪ੍ਰਕਟ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਪ੍ਰਭਾਵੀ ਲੱਛਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉਪਾਰਜਿਤ ਲੱਛਣ (Acquired traits)-ਜੇ ਕੋਈ ਜੀਵ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਲੱਛਣਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਪਾਰਜਿਤ ਲੱਛਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਕੁਦਰਤੀ ਚੋਣ (Natural selection)-ਜੋ ਜੀਵ ਖ਼ਾਸ ਹਾਲਤਾਂ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਲਈ ਅਨੁਕੂਲਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਕੁਝ ਲਾਭਦਾਇਕ ਭਿੰਨਤਾਵਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ-ਕੁਦਰਤ ਜਾਂ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਕੁਦਰਤੀ ਚੋਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਮਯੂਰਾਮਜੀ ਅਵਸਥਾ (Homozygous condition)-ਜੀਵਾਂ ਦੀ ਉਹ ਸਥਿਤੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਲੱਛਣ ਦਾ ਨਿਰਧਾਰਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦੋਨੋਂ ਜੀਨ ਇਕੋ ਸਮਾਨ ਹੋਣ ਉਸ ਨੂੰ ਸਮਯੁਗਮਜੀ ਅਵਸਥਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਿਖਮ ਯੁਗਮਨੀ ਅਵਸਥਾ (Heterozygous condition)-ਪਾਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਉਹ ਸਥਿਤੀ ਜਿਸ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਲੱਛਣ ਦਾ ਨਿਰਧਾਰਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦੋਨੋਂ ਜੀਨ ਵਿਚ ਸਮਾਨ ਨਾ ਹੋਣ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਜੀਨ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ | ਉਸਨੂੰ ਵਿਖਮ ਯੁਮਨੀ ਅਵਸਥਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਗੁਣ ਸੂਤਰ (Chromosomes)-DNA ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਤੋਂ ਬਣੇ ਮੋਟੇ ਧਾਗੇ, ਵਰਗੀਆਂ ਉਹ ਸੰਰਚਨਾਵਾਂ ਜੋ ਸੈੱਲ ਵਿਭਾਜਨ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸ਼੍ਰੋਮੈਟਿਨ ਦੇ ਸੁੰਗੜਨ ਨਾਲ ਸੈੱਲ ਦੇ ਕੇਂਦਰ ਵਿਚ ਬੱਚਦੀਆਂ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸੰਕਰ (Hybrid)-ਉਹ ਜੀਵ ਜੋ ਅਨੁਵੰਸ਼ਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਨਾਲ ਵੱਖ ਇੱਕ ਹੀ ਜਾਤੀ ਦੇ ਦੋ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਸੰਕਰਨ ਤੋਂ ਬਣਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਸੰਕਰ (Hybrid) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਲਿੰਗੀ ਗੁਣ ਸੂਤਰ (Sex chromosomes)-ਉਹ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਜੋ ਲਿੰਗ ਨਿਰਧਾਰਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲਿੰਗੀ ਗੁਣ ਸੂਤਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੀਨ (Gene)-DNA ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜੀਨ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ਜੋ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਗੁਣ ਦਾ ਨਿਰਧਾਰਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

This PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ will help you in revision during exams.

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਊਰਜਾ ਦਾ ਇੱਕ ਰੂਪ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਾਨੂੰ ਵਸਤੂਆਂ ਦੇਖਣ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਿਖਾਈ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦਾ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਬਿਜਲੀ ਚੁੰਬਕੀ ਤਰੰਗਾਂ (Electromagnetic Waves) ਦਾ ਇੱਕ ਰੂਪ ਹੈ ।

→ ਹਵਾ ਜਾਂ ਨਿਰਵਾਯੂ (Vacuum) ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਵੇਗ 3 × 108 ਮੀ./ਸੈਕਿੰਡ ਹੈ ।

→ ਸੂਰਜ, ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਇੱਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਪ੍ਰਾਕਿਰਤਿਕ ਸਰੋਤ ਹੈ ।

→ ਮੋਮਬੱਤੀ ਅਤੇ ਬਿਜਲੀ ਦਾ ਬਲਬ ਮਨੁੱਖ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਗਏ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਸੋਮੇ ਹਨ ।

→ ਦਰਪਣ ਵਰਗੀਆਂ ਚਮਕਦਾਰ ਪਾਲਿਸ਼ ਕੀਤੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਸਤਿਹਵਾਂ ਤੋਂ, ਪਰਾਵਰਤਨ ਦੇ ਨਿਯਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪਰਾਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੋਮੇ ਤੋਂ ਆ ਰਹੀਆਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਵਸਤੂ ਤੇ ਪੈਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਤਾਂ ਉਸ ਤੋਂ ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਹੋਈਆਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਾਡੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਪੈਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਰੈਟੀਨਾ ‘ਤੇ ਵਸਤੁ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜੇ ਮਾਧਿਅਮ ਉਹੀ ਰਹੇ ਤਾਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਪੱਥ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੀ ਕਿਰਿਆ ਨੂੰ, ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪਰਾਵਰਤਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਇੱਕ ਚੀਨੀ ਅਤੇ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਾਲਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸਤਹਿ ਨੂੰ, ਜੋ ਉਸ ਉੱਪਰ ਪੈ ਰਹੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਬਹੁਤੇ ਹਿੱਸੇ ਨੂੰ ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਹੈ, ਨੂੰ ਦਰਪਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਰਾਵਰਤਨ ਦੇ ਦੋ ਨਿਯਮ ਹਨ-

  1. ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ (Incident ray), ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਕਿਰਨ (Reflected ray) ਅਤੇ ਆਪਨ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਬਣਿਆ ਅਭਿਲੰਬ (Normal) ਸਾਰੇ ਇੱਕੋ ਤਲ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
  2. ਆਪਤਨ ਕੋਣ Zi (Angle of incidence) ਅਤੇ ਪਰਾਵਰਤਨ ਕੋਣ Zr (Angle of reflection) ਹਮੇਸ਼ਾ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਪਾਤੀ ਕਿਰਨ (Incident ray) ਅਤੇ ਅਭਿਲੰਬ (Normal) ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਬਣੇ ਕੋਣ ਨੂੰ ਆਪਤਨ ਕੋਣ (Angle of incidence) ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਕਿਰਨ (Reflected ray) ਅਤੇ ਅਭਿਲੰਭ (Normal) ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਬਣੇ ਕੋਣ ਨੂੰ ਪਰਾਵਰਤਨ ਕੋਣ (angle of reflection) ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜੇ ਕਰ ਕੋਈ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨ ਦਰਪਣ ਨੂੰ ਲੰਬ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਟਕਰਾਉਂਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਇਹ ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਹੋ ਕੇ ਉਸੇ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਵਾਪਸ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।
ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ∠i = 0° ਅਤੇ ∠r = 0° ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਮਤਲ ਦਰਪਣ ਵਿੱਚ ਬਣ ਰਿਹਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ (image) ਸਿੱਧਾ (erect), ਆਭਾਸੀ (virtual) ਅਤੇ ਦਰਪਣ ਦੇ ਪਿੱਛੇ (behind the mirror) ਬਣਦਾ ਹੋਇਆ ਜਾਪਦਾ ਹੈ । ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਦਾ ਆਕਾਰ (size), ਵਸਤੂ ਦੇ ਆਕਾਰ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਦਰਪਣ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਓਨੀ ਦੂਰ ਹੀ ਬਣਦਾ ਹੈ, ਜਿੰਨੀ ਦੂਰ ਵਸਤੂ ਦਰਪਣ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਪਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-

  1. ਅਵਤਲ ਦਰਪਣ (Concave mirror)
  2. ਉੱਤਲ ਦਰਪਣ (Convex mirror) ।

→ ਅਵਤਲ ਦਰਪਣ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ (focal length) ਅਤੇ ਵਤਾ ਅਰਧ-ਵਿਆਸ (Radius of curvature) ਰਿਣਾਤਮਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉੱਤਲ ਦਰਪਣ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਅਤੇ ਵਕਰਤਾ ਅਰਧ-ਵਿਆਸ ਧਨਾਤਮਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉੱਤਲ ਦਰਪਣ ਦਾ ਫੋਕਸ ਦਰਪਣ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਬਣਦਾ ਹੈ ।

→ S.I. ਪੱਧਤੀ ਵਿੱਚ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਦੀ ਇਕਾਈ ਮੀਟਰ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

→ ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ (ਅਵਤਲ ਅਤੇ ਉੱਤਲ ਦਰਪਣ) ਵਿੱਚ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ, ਵਜ੍ਹਾ ਅਰਧ-ਵਿਆਸ ਦਾ ਅੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਰਥਾਤ f= \(\frac{R}{2}\)

→ ਆਪਾਤੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਰਨ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਮਾਪੀਆਂ ਗਈਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਦਰੀਆਂ ਧੁਨਾਤਮਕ ਅਤੇ ਇਸਦੇ ਉਲਟ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਰਿਣਾਤਮਕ ਲਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਵਾਸਤਵਿਕ (Real) ਤਿਬਿੰਬ ਦਰਪਣ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਦੂਰੀ v ਨੂੰ ਰਿਣਾਤਮਕ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਆਭਾਸੀ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਦਰਪਣ ਦੇ ਪਿੱਛੇ ਬਣਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ v ਨੂੰ ਧਨਾਤਮਕ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਦਰਪਣ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਘ ਹਮੇਸ਼ਾ ਰਿਣਾਤਮਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਵਤਲ ਦਰਪਣ ਵਿੱਚ ਵਾਸਤਵਿਕ ਅਤੇ ਆਭਾਸੀ ਦੋਵਾਂ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਬਣ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਸਤੂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਕੁੱਝ ਵੀ ਹੋਵੇ, ਉੱਤਲ ਦਰਪਣ ਹਮੇਸ਼ਾ ਆਭਾਸੀ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਹੀ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਵਸਤੂ ਤੋਂ ਆਕਾਰ ਵਿੱਚ ਛੋਟਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਦਰਪਣ ਫਾਰਮੂਲਾ, (\(\frac{1}{f}=\frac{1}{u}+\frac{1}{v}\)) ਉੱਤਲ, ਅਵਤਲ ਅਤੇ ਸਮਤਲ ਦਰਪਣਾਂ ‘ਤੇ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਮਤਲ ਦਰਪਣ ਦੇ ਲਈ ਵਜ੍ਹਾ ਅਰਧ ਵਿਆਸ (R) ਅਨੰਤ (Infinity) ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ f, R, u, V, h1 ਅਤੇ h2-ਸਾਰੀਆਂ ਦੂਰੀਆਂ ਨੂੰ ਮੀਟਰ ਵਿੱਚ ਮਾਪਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਡਦਰਸ਼ਨ (Magnification) ਇੱਕ ਅਨੁਪਾਤ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਕੋਈ ਇਕਾਈ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਚਾਲ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਮਾਧਿਅਮਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਹਵਾ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿੱਚ ਪਾਣੀ, ਸੰਘਣਾ ਮਾਧਿਅਮ ਹੈ ਅਤੇ ਕੱਚ, ਪਾਣੀ ਨਾਲੋਂ ਸੰਘਣਾ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵਿਰਲੇ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਤੀਬਰ ਗਤੀ ਨਾਲ ਚਲਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੰਘਣੇ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਗਤੀ ਘੱਟ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਨਿਰਵਾਯੂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਿਰਲਾ ਮਾਧਿਅਮ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

→ ਜਦੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਰਨ ਵਿਰਲੇ ਮਾਧਿਅਮ ਤੋਂ ਸੰਘਣੇ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਇਹ ਆਪਤਨ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਬਣੇ ਅਭਿਲੰਬ ਵੱਲ ਮੁੜ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਜਦੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਕਿਰਨ ਸੰਘਣੇ ਮਾਧਿਅਮ ਤੋਂ ਵਿਰਲੇ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਅਭਿਲੰਬ ਤੋਂ ਪਰੇ ਮੁੜ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨ ਜਦੋਂ ਇੱਕ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਮਾਧਿਅਮ ਤੋਂ ਦੂਜੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਇਸਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਤਬਦੀਲੀ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਅਪਵਰਤਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ ਅਤੇ ਅਭਿਲੰਬ ਵਿੱਚ ਬਣਿਆ ਕੋਣ, ਆਪਨ ਕੋਣ (∠i) ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਪਵਰਤਿਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਅਭਿਲੰਬ ਦੇ ਵਿੱਚ ਬਣੇ ਕੋਣ ਨੂੰ ਅਪਵਰਤਨ ਕੋਣ (∠r) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ, ਅਪਵਰਤਿਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਅਭਿਲੰਬ ਇੱਕ ਹੀ ਤਲ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਅਪਵਰਤਨ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਨਿਯਮ ਹੈ ।

→ ਆਪਤਨ ਕੋਣ ਦੇ sine (sin i) ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ ਕੋਣ ਦੇ sine (sin r) ਦਾ ਅਨੁਪਾਤ ਸਥਿਰ ਅੰਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਅਪਵਰਤਨ ਦੇ ਇਸ ਨਿਯਮ ਨੂੰ ਸੁਨੌਲ ਦਾ ਨਿਯਮ ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਿਰਵਾਯੂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਵੇਗ ਅਤੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਵੇਰਾ ਦੇ ਅਨੁਪਾਤ ਨੂੰ ਮਾਧਿਅਮ ਦਾ ਅਪਵਰਤਨ-ਅੰਕ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ 1

→ ਕੱਚ ਦਾ ਅਪਵਰਤਨ-ਅੰਕ 1.5 ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਅਪਵਰਤਨ-ਅੰਕ 1.33 ਅਤੇ ਨਿਰਵਾਯੂ (ਖਲਾਅ) ਦਾ ਅਪਵਰਤਨ-ਅੰਕ 1 ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਲੈੱਨਜ਼ ਇੱਕ ਪਾਰਦਰਸ਼ੀ ਅਪਵਰਤਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮਾਧਿਅਮ ਦਾ ਟੁਕੜਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਦੋ ਗੋਲਾਕਾਰ ਸਤਾਵਾਂ
ਜਾਂ ਇੱਕ ਗੋਲਾਕਾਰ ਅਤੇ ਦੂਜੀ ਸਮਤਲ ਸਤਹਿ ਨਾਲ ਘਿਰਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
ਜੇ ਦੋਵੇਂ ਸੜਾਵਾਂ ਗੋਲਾਕਾਰ ਹੋਣ ਤਾਂ ਲੈੱਨਜ਼ ਗੋਲਾਕਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੋ ਕਿਸਮ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ-
(i) ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼
(ii) ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ।

→ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਵਿੱਚ ਸਮਾਨੰਤਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਅਪਵਰਤਨ ਦੇ ਬਾਅਦ ਫੋਕਸ ਬਿੰਦੂ ‘ਤੇ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਅਭਿਸਾਰੀ ਲੈਂਨਜ਼ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਵਿੱਚ ਸਮਾਨੰਤਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਅਪਵਰਤਨ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਾਹਰ ਨੂੰ ਫੈਲਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਅਵਤਲ ਲੈਂਨਜ਼ ਨੂੰ ਅਪਸਾਰੀ ਲੈਂਨਜ਼ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉੱਤਲ, ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਨੂੰ ਧਨਾਤਮਕ ਅਤੇ ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਨੂੰ ਰਿਣਾਤਮਕ ਮੰਨਿਆਂ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ S.I. ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿੱਚ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਦਾ ਮਾਤ੍ਰਿਕ (ਅ) (ਮੀਟਰ) ਹੈ ।

→ ਮੁੱਖ ਧੁਰੇ ਤੇ ਸਮਾਨੰਤਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਅਪਵਰਤਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘ ਕੇ ਆ ਰਹੀਆਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਅਪਵਰਤਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੁੱਖ ਧੁਰੇ ਦੇ ਸਮਾਨੰਤਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਕੇਂਦਰ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘ ਰਹੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨ ਅਪਵਰਤਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੁੜੇ ਬਿਨਾਂ ਸਿੱਧੀ ਲੰਘ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਵਿੱਚ ਬਿੰਬ (ਵਸਤੂ) ਦੀ ਭਾਵੇਂ ਕੋਈ ਵੀ ਸਥਿਤੀ ਹੋਵੇ, ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਆਭਾਸੀ ਅਤੇ ਸਿੱਧਾ ਬਣਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਦੋਂ ਵਸਤੂ ਅਨੰਤ ਤੇ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਫੋਕਸ ਤੇ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਵਾਸਤਵਿਕ, ਉਲਟਾ ਅਤੇ ਸਾਇਜ਼ ਵਿੱਚ ਛੋਟਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

→ ਜਦੋਂ ਵਸਤੂ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ 2F ਤੇ ਪਈ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਵਾਸਤਵਿਕ, ਉਲਟਾਂ ਅਤੇ ਸਾਇਜ਼ ਵਿੱਚ ਬਰਾਬਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਦੋਂ ਵਸਤੂ Fਅਤੇ 2F ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਵਾਸਤਵਿਕ, ਉਲਟਾ ਅਤੇ ਸਾਇਜ਼ ਵਿਚ ਵੱਡਾ ਬਣਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਦੋਂ ਵਸਤੁ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਤੇ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਅਪਵਰਤਨ ਦੇ ਬਾਅਦ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਅਨੰਤ ਤੇ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਵਾਸਤਵਿਕ, ਉਲਟਾ ਅਤੇ ਸਾਇਜ਼ ਵਿੱਚ ਵੱਡਾ ਬਣਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਦੋਂ ਵਸਤੂ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ F ਅਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਕੇਂਦਰ ਦੇ ਵਿਚਾਲੇ ਪਈ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਆਭਾਸੀ, ਸਿੱਧਾ ਅਤੇ ਸਾਇਜ਼ ਵਿੱਚ ਵੱਡਾ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ ਉਸੇ ਪਾਸੇ ਹੀ ਬਣਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਸਤੂ, ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਅਤੇ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਦੀ ਦੂਰੀ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਕੇਂਦਰ ਤੋਂ ਮਾਪੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਮਾਪੀ ਗਈ ਦੁਰੀ ਧਨਾਤਮਕ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਉਲਟ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਮਾਪੀ ਗਈ ਦੂਰੀ ਰਿਣਾਤਮਕ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਗੋਲਾਕਾਰ ਲੈਂਨਜ਼ ਦਾ ਰੇਖੀ ਵਡਦਰਸ਼ਨ ਲੈਂਨਜ਼ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਗਏ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਦੇ ਸਾਇਜ਼ ਅਤੇ ਵਸਤੂ ਦੇ ਸਾਇਜ਼ ਦਾ ਅਨੁਪਾਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਲੈਂਨਜ਼ ਦਾ ਰੇਖੀ ਵਡਦਰਸ਼ਣ ਸੂਤਰ m = \(\frac{\mathrm{h}_{2}}{\mathrm{~h}_{1}}=-\frac{\mathrm{v}}{\mathrm{u}}\)

→ ਲੈਨਜ਼ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਨੂੰ ਝੁਕਾਉਣ ਦੀ ਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਯੋਗਤਾ, ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ (ਮੀਟਰਾਂ ਵਿੱਚ) ਦਾ ਉਲਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਧਨਾਤਮਕ ਅਤੇ ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਰਿਣਾਤਮਕ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਮਾਤ੍ਰਿਕ ਡਾਈਆਪਟਰ (D) ਹੈ ।

→ ਦਰਪਣ (Mirror)-ਪਾਲਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਜਾਂ ਕਿਸੇ ਚਮਕਦਾਰ ਸਤਹਿ ਨੂੰ ਦਰਪਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਪਰਾਵਰਤਨ (Reflection of Light)-ਜਦੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨ ਕਿਸੇ ਦਰਪਣ ਜਾਂ ਪਾਲਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਸਤਹਿ ‘ਤੇ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਉਸੇ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਬਿਨਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋਏ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਵਾਪਸ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਪੱਥ ਵਿੱਚ ਹੋਏ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਵਰਤਾਰੇ ਨੂੰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪਰਾਵਰਤਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ (Incident Ray)-ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੇ ਸਰੋਤ ਤੋਂ ਕਿਸੇ ਸਤਹਿ ‘ਤੇ ਪੈਣ ਵਾਲੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਕਿਰਨ ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਕਿਰਨ (Reflected Ray)-ਪਰਾਵਰਤਕ ਦੇ ਬਾਅਦ ਆਪਨ ਬਿੰਦੂ ਤੋਂ ਵਾਪਸ ਉਸੇ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਆ ਰਹੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਕਿਰਨ ਨੂੰ ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਕਿਰਨ ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਪਨ ਬਿੰਦੂ (Incident Point)-ਪਰਾਵਰਤਕ ਸਤਹਿ ਦੇ ਜਿਸ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ ਟਕਰਾਉਂਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਨ ਬਿੰਦੂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਪਨ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਅਭਿਲੰਬ (Normal at the Point of Incidence)-ਆਪਨ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਪਰਾਵਰਤਕ ਸਤਹਿ ਤੇ ਲੰਬ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਖਿੱਚੀ ਗਈ ਰੇਖਾ ਨੂੰ ਆਪਨ ਬਿੰਦੂ ‘ਤੇ ਅਭਿਲੰਬ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਪਨ ਕੋਣ (Angle of Incidence)ਆਪਾਤੀ ਕਿਰਨ ਅਤੇ ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਕਿਰਨ ਵਿਚਕਾਰ ਬਣੇ ਕੋਣ ਨੂੰ ਆਪਨ ਕੋਣ (∠i) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਰਾਵਰਤਨ ਕੋਣ (Angle of Reflection)-ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਕਰਨ ਅਤੇ ਅਭਿਲੰਬ ਵਿਚਕਾਰ ਬਣੇ ਕੋਣ ਨੂੰ ਪਰਾਵਰਤਨ ਕੋਣ (∠r) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨ (Ray of Light)-ਸਿੱਧੀ ਰੇਖਾ ਵਿੱਚ ਗਮਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪੱਖ ਨੂੰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਕਿਰਨ ਪੁੰਜ (Beam of Light)-ਕਿਰਨਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਨੂੰ ਕਿਰਨ ਪੁੰਜ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਪਸਾਰੀ ਕਿਰਨਾਂ (Divergent Rays)-ਜਦੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਇੱਕ ਬਿੰਦੁ ਸਰੋਤ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਵੱਲ ਫੈਲ ਰਹੀਆਂ ਹੋਣ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਪਸਾਰੀ ਕਿਰਨਾਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

→ ਅਭਿਸਾਰੀ ਕਿਰਨਾਂ (Convergent Rays)-ਜਦੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਪਰਸਪਰ ਲਗਾਤਾਰ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਦੇ ਨੇੜੇ ਆ ਰਹੀਆਂ ਹੋਣ ਅਤੇ ਇੱਕ ਬਿੰਦੂ ’ਤੇ ਇਕੱਠੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਭਿਸਾਰੀ ਕਿਰਨਾਂ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਮਾਨੰਤਰ ਕਿਰਨਾਂ (Parallel Rays)-ਜਦੋਂ ਕਿਰਨਾਂ ਦੀ ਪਰਸਪਰ ਦੁਰੀ ਹਮੇਸ਼ਾ ਇੱਕ ਸਮਾਨ ਰਹੇ ਤਾਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਿਰਨਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਨੰਤਰ ਕਿਰਨਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ (Spherical Mirror)-ਜਦੋਂ ਦਰਪਣ ਕਿਸੇ ਖੋਖਲੇ ਗੋਲੇ ਦਾ ਭਾਗ ਹੈ, ਜਿਸਦੀ ਇੱਕ | ਸਤਹਿ ਪਾਲਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੋਈ ਹੈ ਅਤੇ ਦੂਜੀ ਸਤਹਿ ਪਰਾਵਰਤਕ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਅਜਿਹਾ ਦਰਪਣ ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਵਤਲ ਦਰਪਣ (Concave Mirror)-ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਜਿਸ ਦੀ ਪਰਾਵਰਤਕ ਸਤਹਿ ਉਸ ਗੋਲੇ ਦੇ ਕੇਂਦਰ ਵੱਲ ਹੋਵੇ ਜਿਸ ਦਾ ਦਰਪਣ ਇਹ ਭਾਗ ਹੈ, ਨੂੰ ਅਵਤਲ ਦਰਪਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉੱਤਲ ਦਰਪਣ (Convex Mirror-ਅਜਿਹਾ ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਜਿਸਦੀ ਪਰਾਵਰਤਨ ਸਤਹਿ ਉਸ ਗੋਲੇ
ਦੇ ਕੇਂਦਰ ਤੋਂ ਪਰੇ ਹੋਵੇ ਜਿਸਦਾ ਉਹ ਦਰਪਣ ਭਾਗ ਹੈ, ਨੂੰ ਉੱਤਲ ਦਰਪਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਕ੍ਰਤਾ ਕੇਂਦਰ (Centre of Curvature)-ਦਰਪਣ ਦਾ ਵਕ੍ਰਤਾ ਕੇਂਦਰ ਉਸ ਖੋਖਲੇ ਗੋਲੇ ਦਾ ਕੇਂਦਰ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਦਰਪਣ ਭਾਗ ਹੈ ।

→ ਧਰੁਵ ਜਾਂ ਸ਼ੀਰਸ਼) (Pole)-ਕਿਸੇ ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਦਾ ਮੁੱਧ ਬਿੰਦੁ ਇਸਦਾ ਧਰੁਵ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਕ੍ਰਤਾ ਅਰਧ-ਵਿਆਸ (Radius of Curvature)-ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਦਾ ਵਕ੍ਰਤਾ ਅਰਧ-ਵਿਆਸ ਉਸ | ਖੋਖਲੇ ਗੋਲੇ ਦਾ ਅਰਧ-ਵਿਆਸ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਦਰਪਣ ਇੱਕ ਭਾਗ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ R ਨਾਲ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਦੁਆਰਕ (Aperture)-ਦਰਪਣ ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜਿਸ ਤੋਂ ਵਾਸਤਵ ਵਿੱਚ ਪਰਾਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਦਰਪਣ ਦਾ ਦੁਆਰਕ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ (Principal Focus)-ਦਰਪਣ ਦਾ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਦਰਪਣ ਦੇ ਮੁੱਖ ਧੁਰੇ ‘ਤੇ ਉਹ ਬਿੰਦੁ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਮੁੱਖ | ਧੁਰੇ ਦੇ ਸਮਾਨੰਤਰ ਆ ਰਹੀਆਂ ਕਿਰਨਾਂ ਪਰਾਵਰਤਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਆ ਕੇ ਵਾਸਤਵ ਵਿੱਚ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ ਜਾਂ ਫਿਰ ਉਸ ਬਿੰਦੂ ਤੋਂ ਅਪਸਰਿਤ ਹੁੰਦੀਆਂ ਜਾਪਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ (Focal Length)-ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਦੇ ਧਰੁਵ ਅਤੇ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਦੀ ਦੂਰੀ ਨੂੰ ਦਰਪਣ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸਨੂੰ f ਨਾਲ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਡਦਰਸ਼ਨ (Magnification)-ਗੋਲਾਕਾਰ ਦਰਪਣ ਦਾ ਵਡਦਰਸ਼ਨ, ਦਰਪਣ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਗਏ ਤਿਬਿੰਬ ਦੇ ਆਕਾਰ (ਉੱਚਾਈ) ਅਤੇ ਵਸਤੂ ਦੇ ਆਕਾਰ (ਉੱਚਾਈ) ਦਾ ਅਨੁਪਾਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਅ ਨਾਲ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਅਪਵਰਤਨ (Refraction of Light)-ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਇੱਕ ਮਾਧਿਅਮ ਤੋਂ ਦੂਜੇ ਪਾਰਦਰਸ਼ਕ ਮਾਧਿਅਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਤੇ ਆਪਣੇ ਪੱਥ ਤੋਂ ਵਿਚਲਿਤ ਹੋਣਾ, ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਅਪਵਰਤਨ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਪਰਾਵਰਤਨ ਅਤੇ ਅਪਵਰਤਨ

→ ਪਾਰਦਰਸ਼ਕ ਮਾਧਿਅਮ (Transparent Medium)-ਹਵਾ, ਕੱਚ, ਪਾਣੀ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਮਾਧਿਅਮ ਜਿਹੜੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿੱਚੋਂ ਸੌਖ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਵਿੱਚੋਂ ਲੰਘਣ ਦਿੰਦੇ ਹਨ, ਨੂੰ ਪਾਰਦਰਸ਼ਕ ਮਾਧਿਅਮ ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਲੈੱਨਜ਼ (Lens)-ਇਹ ਦੋ ਸਤਹਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰਿਆ ਹੋਇਆ ਇੱਕ ਪਾਰਦਰਸ਼ੀ ਅਪਵਰਤਨ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਮਾਧਿਅਮ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀਆਂ ਦੋਨੋਂ ਸਤਹਿ ਕਰ ਜਾਂ ਫਿਰ ਇੱਕ ਸਤਹਿ ਵਕਰ ਅਤੇ ਦੂਜੀ ਸਤਹਿ ਸਮਤਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਜਾਂ ਸ਼ਕਤੀ (Power of Lens)-ਕਿਸੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀਆਂ ਕਿਰਨਾਂ ਨੂੰ ਮੋੜਣ (ਅਪਸਰਿਤ ਜਾਂ ਅਭਿਸਰਿਤ ਕਰਨ) ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਨੂੰ ਉਸ ਬੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ P = \(\frac{1}{f}\)

→ ਮੁੱਖ ਧੁਰਾ (Principal Axis)-ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ ਵਕ੍ਰਤਾ ਕੇਂਦਰਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਹੋ ਕੇ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਰੇਖਾ ਜਾਂ ਵਕਰ ਸਤਹਿ ਦੇ ਵਕੁਤਾ ਕੇਂਦਰ ਵਿੱਚੋਂ ਹੋ ਕੇ ਅਤੇ ਸਮਤਲ ਸਤਹਿ ਤੇ ਲੰਬ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪੈਣ ਵਾਲੀ ਰੇਖਾ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਧੁਰਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਕੇਂਦਰ (Optical Centre)-ਲੈੱਨਜ਼ ਦਾ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਬਿੰਦੁ ਜਿਸ ਵਿੱਚੋਂ ਲੰਘਣ ਵਾਲੀ ਹਰੇਕ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨ ਬਿਨਾਂ ਪੱਥ ਵਿਚਲਿਤ ਹੋਏ ਨਿਕਲਦੀ ਹੈ ਉਸ ਬਿੰਦੂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਕੇਂਦਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਲੈਨਜ਼ ਦਾ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ (Principal Focus of Lens)-ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀਆਂ ਉਹ ਕਿਰਨਾਂ ਜਿਹੜੀਆਂ ਮੁੱਖ ਧੁਰੇ ਦੇ ਸਮਾਨੰਤਰ ਚਲਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਲੈਂਨਜ਼ ਵਿੱਚੋਂ ਅਪਵਰਤਨ ਹੋਣ ਮਗਰੋਂ ਜਿਸ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ (ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼) ਜਾਂ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ (ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼) ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਕਹਿੰਦੇ
ਹਨ ।

→ ਲੈਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ (Focal Length of Lens)-ਕਿਸੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੇ ਮੁੱਖ ਫੋਕਸ ਅਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ੀ ਕੇਂਦਰ ਦੇ ਵਿਚਾਲੇ ਦੀ ਦੂਰੀ ਨੂੰ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਾਸਤਵਿਕ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ (Real Image)-ਜੇਕਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਪਰਾਵਰਤਨ ਜਾਂ ਅਪਵਰਤਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇੱਕ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਵਾਸਤਵਿਕ (ਅਸਲੀ) ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਆਭਾਸੀ ਜਾਂ ਕਾਲਪਨਿਕ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ (Virtual Image)-ਜੇਕਰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਕਿਰਨਾਂ ਪਰਾਵਰਤਨ ਜਾਂ ਅਪਵਰਤਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਿਸੇ ਬਿੰਦੂ ਤੇ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਜਾਪਦੀਆਂ ਹਨ, ਤਾਂ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਆਭਾਸੀ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

PSEB 11th Class Economics आंकड़ों का व्यवस्थिकरण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
आंकड़ों के प्रस्तुतीकरण से हमारा अभिप्राय उन सब क्रियाओं से है जिनके द्वारा आंकड़ों को सरल व व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत करके समझने योग्य बनाया जाता है।

प्रश्न 2.
व्यवस्थिकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आंकड़ों के व्यवस्थिकरण से अभिप्राय आंकड़ों को इस प्रकार क्रम देने से होता है जिसमें विशेषताओं के अनुसार वर्गों में बांटा जा सके। इस क्रिया को व्यवस्थिकरण (Classification) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
वर्गीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वर्गीकरण आंकड़ों को (यथार्थ रूप में या भावात्मक रूप से) समानता तथा सादृश्यता के आधार पर वर्गों या विभागों में क्रमानुसार रखने की क्रिया है और इनसे व्यक्तिगत इकाइयों की भिन्नताओं में पाये जाने वाले गुणों की एकता को व्यक्त किया जाता है।

प्रश्न 4.
वर्गीकरण की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर-
सजातीयता-किसी वर्ग-विशेष का प्रत्येक पद उस गुण के अनुसार होना चाहिए जिसके आधार पर वर्गीकरण किया जा रहा है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

प्रश्न 5.
व्यक्तिगत श्रृंखला से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
व्यक्तिगत श्रृंखला वह श्रृंखला है जिसमें प्रत्येक इकाई का अलग-अलग भाव प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 6.
खण्डित श्रृंखला कौन-सी श्रृंखला है ?
उत्तर-
खण्डित श्रृंखला में प्रत्येक इकाई का निश्चित माप स्पष्ट हो जाता है।

प्रश्न 7.
अखण्डित श्रृंखला से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अखण्डित श्रृंखला में इकाइयों का निश्चित माप सम्भव नहीं होता इसलिए उन्हें कुछ वर्गान्तरों में प्रकट किया जाता है।

प्रश्न 8.
आंकड़ों को समानता के आधार पर वर्गों तथा भागों में विभाजन करने को ……… कहा जाता है।
उत्तर-
वर्गीकरण।

प्रश्न 9.
जब प्रत्येक इकाई का अलग-अलग माप किया जाता है तो इसको … श्रृंखला कहा जाता है।
(a) व्यक्तिगत
(b) खण्डित
(c) अखण्डित
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) व्यक्तिगत।

प्रश्न 10.
जब प्रत्येक मद का निश्चित माप स्पष्ट हो जाता है तो इसको ……….. श्रृंखला कहते हैं।
उत्तर-
खण्डित।

प्रश्न 11.
जब प्रत्येक मद का निश्चित माप स्पष्ट हो जाता है तो इसको व्यक्तिगत श्रृंखला कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 12.
जब इकाइयों का निश्चित माप सम्भव नहीं होता इस लिए उनके वर्गान्तर के रूप में माप स्पष्ट किया जाता है को …………………. कहते हैं।
(a) व्यक्तिगत
(b) खण्डित
(c) अखण्डित
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) अखण्डित।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

प्रश्न 13.
अपवर्जी विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब एक वर्गान्तर की ऊपरी सीमा दूसरे वर्गान्तर की निचली सीमा होती है तो इसको अपवर्जी विधि कहा जाता है।

प्रश्न 14.
जब एक वर्गान्तर की ऊपरी सीमा दूसरे वर्गान्तर से भिन्न होती है तो इसको …………….. विधि कहा जाता है।
उत्तर-
समावेशी।

प्रश्न 15.
टैलीबार विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आंकड़ों को बारम्बरता में विभाजन के लिए मिलान चिन्ह लगा कर के गिनती की जाती है तो इसको टैलीबार विधि कहा जाता है।

प्रश्न 16.
समावेशी विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समावेशी विधि में एक वर्ग की ऊपरी सीमा दूसरे वर्ग की निचली सीमा से कुछ अधिक होती है। एक वर्ग अन्तराल की सभी आवृत्तियां उस वर्ग में ही शामिल होती हैं।

प्रश्न 17.
आंकड़ों को उनकी समानता अथवा विभिन्नता के आधार पर विभिन्न वर्गों में विभाजित करने को …………. कहा जाता है।
उत्तर-
वर्गीकरण।

प्रश्न 18.
जब आंकड़ों को भौगोलिक स्थिति के अनुसार वर्गों में विभाजित किया जाता है तो इसको गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 19.
जब आंकड़ों का वर्गीकरण समय के आधार पर किया जाता है तो इस को ………… वर्गीकरण कहते हैं।
(a) भौगोलिक
(b) समय अनुसार
(c) गुणात्मक
(d) संख्यात्मक।
उत्तर-
(b) समय अनुसार।

प्रश्न 20.
जब आंकड़ों का वर्गीकरण गुणों के आधार पर किया जाता है तो इस को ……… वर्गीकरण कहते हैं।
उत्तर-
गुणात्मक।

प्रश्न 21.
किसी तथ्य की वह विशेषता अथवा प्रक्रिया जिस को संख्याओं के रूप में मापते हैं उस को ………… कहते हैं।
उत्तर-
चर।

प्रश्न 22.
खंडित घर वह घर है जिन के मूल्य पूर्ण अंकों में प्रकट किये जाते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
जो आंकड़े अनुसन्धानकर्ता अपनी खोज के अनुसार इकट्ठे करता है और यह अवस्थित रूप में होते हैं उनको ………. कहा जाता है।
उत्तर-
शुद्ध आंकड़े।

प्रश्न 24.
श्रेणी (Series) से अभिप्राय उन आंकड़ों से है जिनको किसी क्रम अथवा विशेषता के अनुसार प्रस्तुत किया जाता है।
उत्तर-
सही।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

प्रश्न 25.
किसी समग्र में एक मद कितनी बार आती है अर्थात् जितनी बार वह बार-बार आती है उसको आवृत्ति (Frequency) कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 26.
किसी वर्ग में आने वाली मदों अथवा चरों की संख्या को ……….. कहा जाता है।
उत्तर-
वर्ग आवृत्ति।

प्रश्न 27.
वर्ग (Class) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
संख्याओं के किसी निश्चित समूह को जिसमें मदें शामिल होती हैं उसको वर्ग (Class) कहते हैं।

प्रश्न 28.
वर्ग सीमा (Class Limit) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक वर्ग दो संख्याओं के बीच में होता है इन दो संख्याओं को वर्ग की सीमाएँ कहा जाता है।

प्रश्न 29.
किसी वर्ग की ऊपरी सीमा तथा निचली सीमा के अन्तर को वर्ग-अन्तर (Class Interval) कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वर्गीकरण के कोई चार उद्देश्य लिखो।
उत्तर-
वर्गीकरण के उद्देश्य (Objectives of Classification)-वर्गीकरण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित अनुसार होते हैं-

  1. वर्गीकरण का महत्त्वपूर्ण उद्देश्य आंकड़ों को सरल तथा संक्षेप बनाना होता है।
  2. प्राप्त किए आंकड़ों को तुलना योग्य बनाने के लिए भी वर्गीकरण की क्रिया महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
  3. वर्गीकरण का उद्देश्य आंकड़ों को अच्छी तरह समझने तथा उनके उचित ढंग से प्रयोग करने योग्य बनाना होता है।
  4. इसका एक उद्देश्य समस्याओं को मनोवैज्ञानिक रूप प्रदान करना भी होता है।
  5. आंकड़ों को रोचक बनाने के लिए भी वर्गीकरण की क्रिया अनिवार्य मानी जाती है।
  6. आंकड़ों में असमानता होते हुए भी वर्गीकरण द्वारा इनका समान रूप प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 2.
खण्डित श्रृंखला से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खण्डित श्रृंखला (Discrete Series) खण्डित श्रृंखला को आंकड़ा शास्त्री सामूहिक श्रृंखला तथा आवृत्ति श्रृंखला वितरण (Frequency Distribution) भी कहते हैं। इस श्रृंखला में संख्याओं को बार-बार नहीं लिखते। समान मूल्य वाले आंकड़ों को एक बार लिखा जाता है तो उस मूल्य को प्राप्त करने वाले जितने व्यक्ति अथवा वस्तुएं होती हैं उनकी संख्या सामने लिख दी जाती है।

उदाहरणस्वरूप 50 अंक 10 विद्यार्थियों ने प्राप्त किए हैं तो 50 अंक एक बार लिखे जाते हैं। इनके सामने 10 लिख दिया जाता है। दस को आवृत्ति (Frequency) कहते हैं। आवृत्ति का अर्थ किसी मूल्य का बार-बार प्रगटावा करना होता है। इसी तरह खण्डित श्रृंखला में चार के भिन्न-भिन्न मूल्यों को आवृत्ति के आधार पर प्रकट किया जाता है तो ऐसी श्रृंखला को कम खण्डित श्रृंखला कहते हैं।

प्रश्न 3.
अखण्डित श्रृंखला से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अखण्डित श्रृंखला (Continuous Series)-अखण्डित श्रृंखला का प्रयोग अखण्डित चरों के वर्गीकरण के समय किया जाता है। इसमें हम चरों को निश्चित वर्गों के अंदर विभाजित कर लेते हैं, जिनको चरों के वर्ग (Classes of variables) कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप एक कक्षा में विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए अंकों के 0 से 5; 5 से 10; 10 से 15 इत्यादि वर्ग बनाए जाते हैं। इन वर्गों के सामने उस वर्ग की आवृत्ति को लिखा जाता है अर्थात् उस वर्ग में अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या कितनी है। यदि 0 से अधिक तथा 5 से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 2 है तो 0-5 वर्ग के सामने आवृत्ति 2 लिखी जाती है। इस तरह 5 से 10 वाले वर्ग में पांच अथवा 5 से अधिक प्राप्त किए अंक तथा 10 से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या को लिखा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

प्रश्न 4.
अखण्डित श्रृंखला की निर्माण विधि को स्पष्ट करो।
उत्तर-
अखण्डित श्रृंखला की निर्माण विधि-अखण्डित श्रृंखला का निर्माण करते समय निम्नलिखित विधि को अपनाया जाता है।

  1. वर्ग (Class)-प्राप्त किए आंकड़ों को निश्चित वर्गों में विभाजित किया जाता है। यह वर्ग 5 अथवा 5 के गुणक अनुसार बनाए जाते हैं अर्थात् इनमें अन्तर 5, 10, 15, 20, 50, 100 इत्यादि होना चाहिए।
  2. वर्ग सीमाएं (Class limits) वर्ग की दो सीमाएं होती हैं, निचली सीमा तथा ऊपरी सीमा। सूची पत्र में 5-10 के वर्ग में 5 को निचली सीमा तथा 10 को ऊपरी सीमा कहा जाता है।
  3. वर्ग आवृत्ति (Class frequency) किसी वर्ग में आने वाली कुल आवृत्तियों के जोड़ को उस वर्ग की आवृत्ति कहा जाता है। 0-5 के वर्ग में विद्यार्थियों की संख्या 2 दिखाई गई है। 2 को वर्ग आवृत्ति कहते हैं।
  4. वर्ग विस्तार-वर्ग की निचली सीमा तथा ऊपरी सीमा के अन्तर को वर्ग विस्तार कहा जाता है।
  5. मध्य मूल्य (Mid Value)-ऊपरी सीमा तथा निचली सीमा को जोड़ करके इसका आधा किया जाए तो मध्य मूल्य प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार अखण्डित श्रृंखला का निर्माण किया जाता है।

प्रश्न 5.
एक कक्षा में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के भार का विवरण इस प्रकार है :

भार (किलोग्राम) : 20-25 25-30 30-35 35-40 40-45
विद्यार्थियों की संख्या : 2 6 8 12 10

ऊपरी सीमा से कम आधार पर संचयी आवृत्ति (Less than Commulative Frequency) का पता करें।
उत्तर-
ऊपरी सीमा से कम आधार पर संचयी आवृत्ति
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 1

प्रश्न 6.
निचली सीमा से अधिक आधार पर संचयी आवृत्ति का निर्माण करो।

मज़दूरी : 0-10 10-20 20-30 30-40 40-50, 50-60
मजदूरों की संख्या : 5 12 18 20 10 5

उत्तर-
निचली सीमा से अधिक आधार पर संचयी आवृत्ति का निर्माण
मज़दूरी मजदूरों की संख्या संचयी आवृत्ति
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 2

प्रश्न 7.
‘व्यक्तिगत श्रृंखला से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत श्रृंखला (Individual Series)-व्यक्तिगत श्रृंखला वह श्रृंखला होती है, जिसमें प्रत्येक इकाई को व्यक्तिगत तौर पर दिखाया जाता है। इस श्रृंखला में हम व्यक्तियों की आय, बचत, व्यय, निवेश इत्यादि के विवरण देते हैं। इसी तरह की श्रृंखला को बढ़ते क्रम (Ascending order) अथवा घटते क्रम (Descending order) में दिखाया जाता है। जब आंकड़ों की तरतीब इस प्रकार से लिखी जाती है कि आने वाले आंकड़े बढ़ते जाते हैं तो इसको बढ़ते क्रमानुसार आंकड़े कहा जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सांख्यिकीय श्रृंखलाएं क्या होती हैं ? इनके मुख्य प्रकार लिखिए।
उत्तर-
सांख्यिकीय श्रृंखलाओं का अर्थ-आंकड़ों का वर्गीकरण सांख्यिकीय शृंखलाओं के रूप में किया जाता है। होरेस सिक्रेस्ट के शब्दों में, “सांख्यिकीय शृंखला उन आंकड़ों अथवा आंकड़ों के गुणों को कहते हैं जो किसी तर्क पूर्ण क्रमानुसार व्यवस्थित किए जाते हैं। इस प्रकार सांख्यिकीय शृंखलाओं से अभिप्राय उन आंकड़ों से है जिन्हें किसी क्रम के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है। उदाहरणार्थ 11वीं कक्षा के विद्यार्थियों के द्वारा अर्थशास्त्र के पर्चे में प्राप्तांकों को विद्यार्थियों के रोल नम्बर के अनुसार अथवा बढ़ते हुए अंकों के अनुसार अथवा घटते हुए अंकों के अनुसार प्रस्तुत किया जाए तो इन्हें सांख्यिकीय शृंखला कहेंगे।”

सांख्यिकीय श्रृंखलाओं के प्रकार-

  1. व्यक्तिगत श्रृंखला (Individual Series)
  2. आवृत्ति श्रृंखला (Frequency Series)-ये दो प्रकार की होती हैं
  • खण्डित श्रृंखला (Discrete Series) तथा
  • अखण्डित श्रृंखला (Continuous Series)।

प्रश्न 2.
एक सर्वेक्षण के अनुसार एक शहर के 30 परिवारों का औसत दैनिक व्यय (रुपयों में) इस प्रकार है-
11, 12, 14, 16, 16, 17, 18, 18, 20, 20, 20, 21, 21, 22, 22, 23, 23, 24, 25, 25, 26, 27, 28, 28, 31, 32, 32, 33, 36, 38
इन समंकों से आवृत्ति वितरण बनाइए जबकि वर्गान्तर इस प्रकार हों।
11-14, 15-19, 20-24, 25-29, 30-34 और 35-39.
उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 3

प्रश्न 3.
एक स्कूल में ग्यारहवीं कक्षा के 30 विद्यार्थियों की आयु का विवरण निम्नलिखित अनुसार दिया गया है। इसको आवृत्ति वितरण श्रृंखला में स्पष्ट करो।
17, 16, 16, 15, 15, 17, 18, 19, 15, 15 16, 15, 16, 16, 17, 15, 15, 16, 19, 18, 18, 17, 17, 16, 15, 15, 14, 15, 16, 18.
उत्तर-
इन आंकड़ों में कम-से-कम आयु 14 वर्ष तक अधिक-से-अधिक आयु 19 वर्ष है। मिलान चिह्न विधि की सहायता से खण्डित श्रृंखला का निर्माण निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 4

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों को समावेशी श्रृंखला में दिखाया गया है- .

वर्ग : 0- 4 5 -8 9-12 13-16 17-20 21-24 25-28
आवृत्ति : 1 7 8 4 2 1 2

इसको अपवर्जी श्रृंखला (Exclusive Series) में परिवर्तित करें।
उत्तर-
पहले वर्ग की ऊपरी सीमा 4 है तथा दूसरे वर्ग की ऊपरी सीमा 5 है।

  • दूसरे वर्ग की निचली सीमा–पहले वर्ग की ऊपरी सीमा = 5 – 4 = 1
  • ऊंची सीमा तथा निचली सीमा का आधा =\(\frac{1}{2}\) = 0.5
  • समावेशी शृंखला की प्रत्येक निचली सीमा में से 0.5 घटाने से तथा ऊपरी सीमा में 0.5 जमा करने से अपवर्जी श्रृंखला बन जाती है।

समावेशी श्रृंखला को अपवर्जी श्रृंखला में तबदील करना
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 5

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

प्रश्न 5.
निम्नलिखित दिए गए आंकड़ों को वर्गों के रूप में स्पष्ट कीजिए।

मध्य बिन्दु : 2.5 7.5 12.5 17.5 22.5 27.5
आवृत्ति : 8 12 15 20 10 5

उत्तर-
इस स्थिति में पहले वर्गान्तर का माप किया जाता है। वर्गान्तर 2 मध्य बिन्दुओं में अन्तर वर्गान्तर = 7.5 – 2.5 = 5
वर्गान्तर का आधा = \(\frac{5}{2}\) = 2.5
प्रत्येक वर्ग की निचली सीमा = मध्य बिन्दु – 2.5
प्रत्येक वर्ग की ऊपरी सीमा = मध्य बिन्दु + 2.5
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 6

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों की संचयी आवृत्ति दी गई है। साधारण आवृत्ति का पता करो।

भार (किलोग्राम): 20-25 25-30 30-35 35-40 40-45
संचयी आवृत्ति : 2 8 16 28 38

उत्तर-
संचयी आवृत्ति से साधारण आवृत्ति में परिवर्तित-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 7

प्रश्न 7.
निचली तालिका में संचयी आवृत्ति दी गई है। साधारण आवृत्ति ज्ञात कीजिए।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 8
उत्तर-
संचयी आवृत्ति से साधारण आवृत्ति में परिवर्तित मज़दूरी
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 9
.
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वर्गीकरण का अर्थ बताओ। वर्गीकरण के मुख्य उद्देश्य तथा लाभों की व्याख्या करो। (Explain the meaning of classification. Discuss the merits or objectives of classification.)
उत्तर-
वर्गीकरण का अर्थ (Meaning of classification)-प्रो० होरेस सीकरेस्ट के अनुसार, “वर्गीकरण एक ऐसी क्रिया है; जिसमें आंकड़ों के समुच्चयों में उनकी विशेषताओं अनुसार नियमबद्ध किया जाता है ताकि उनको अलग-अलग सम्बन्धित भागों में विभाजित किया जा सके।” (“Classification is the process of arranging data into sequences and groups according to their common characteristic, or separating them into different related parts.”—Horace Secrist)

इसी तरह सपर तथा स्मिथ ने वर्गीकरण की परिभाषा देते हुए कहा, “सम्बन्धित तथ्यों के समुच्चयों को वर्गों में . . विभाजित क्रिया को वर्गीकरण कहा जाता है।” (“Classification is the grouping of related facts into classes.”-Spur and Smith) इससे पता लगता है कि वर्गीकरण की क्रिया में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं-

  1. वर्गीकरण एक प्रक्रिया होती है, जिसमें समान गुणों के आधार पर वर्ग बनाए जाते हैं।
  2. आंकड़ों को वर्गों में विभाजित करते समय उनमें वस्तुओं के गुण, विशेषता अथवा आंकड़ों के मूल्य में समानता हो सकती है, जिस आधार पर वर्गों का निर्माण किया जाता है।
  3. एक वर्ग में एक रूप गुणों तथा विशेषताओं वाले मूल्य होते हैं, जबकि दूसरे वर्ग में असमान गुणों वाले मूल्य अथवा विशेषताएं होती हैं। इसलिए प्रत्येक वर्ग अलग मूल्यों को स्पष्ट करता है।
  4. वर्गीकरण इकाइयों का वितरण असमानता तथा समानता के आधार पर होता है। इसलिए वर्गीकरण अनेकता में एकता को स्पष्ट करता है।

वर्गीकरण के लाभ अथवा उद्देश्य-
(Merits or Objectives of Classification)
वर्गीकरण के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित अनुसार होते हैं

  1. आंकड़ों को सरल तथा संक्षेप बनाना (Simplification and briefness of Data) वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य आंकड़ों को संक्षेप रूप देना होता है। इस क्रिया द्वारा समानता के आधार पर आंकड़ों का इस ढंग से वर्गीकरण किया जाता है कि इनको सरलता से समझा जा सके।
  2. आंकड़ों में तुलना करना (To compare the data)-वर्गीकरण की सहायता से आंकड़ों में तुलना करनी आसान हो जाती है।
  3. उपयोगिता में वृद्धि करना (To increase the utility)-आंकड़ों के वर्गीकरण का एक उद्देश्य इनकी उपयोगिता में वृद्धि करना होता है।
  4. समस्याओं के वैज्ञानिक रूप (Scientific view of Problems)-वर्गीकरण का एक उद्देश्य आंकड़ों को वैज्ञानिक रूप देना होता है। इससे समस्याएं सरल बन जाती हैं।
  5. समस्याओं को रोचक बनाना (Attractive view of Problems)-सांख्यिकी में हम आंकड़ों का अध्ययन करते हैं। वर्गीकरण इन आंकड़ों द्वारा स्पष्ट की जाने वाली समस्याओं को रोचक बनाने में सहायक होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

प्रश्न 2.
वर्गीकरण के मुख्य ढंगों अथवा किस्मों का वर्णन कीजिए। (Explain the main types or methods of classification.)
उत्तर-
वर्गीकरण की क्रिया का अर्थ अलग-अलग किस्म के आंकड़ों को समानता के आधार पर वर्गों में विभाजित करने से होता है। इसलिए आंकड़ा शास्त्रियों ने वर्गीकरण के मुख्य तौर पर चार आधार बताएं हैं, जिनको वर्गीकरण के ढंग अथवा किस्में भी कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 10
1. भौगोलिक वर्गीकरण (Geographical Classification)-जब वर्गों को स्थानानुसार वर्गों में विभाजित किया जाता है तो इसको भौगोलिक वर्गीकरण कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप, भारत में अनाज का उत्पादन स्पष्ट करने के लिए विभिन्न राज्यों के आंकड़े स्पष्ट किए जाते हैं। उदाहरणस्वरूप पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्यों में अनाज की पैदावार का विवरण इस प्रकार दिया है। यह आंकड़े फर्जी के लिए गए हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 11
इस प्रकार के वर्गीकरण को भौगोलिक वर्गीकरण कहा जाता है।

2. समयानुसार वर्गीकरण (Chronological Classification)-जब वर्गों का निर्माण समय को ध्यान में रखकर किया जाता है तो इस तरह के वर्गीकरण को समयानुसार वर्गीकरण कहा जाता है। कुछ आंकड़ा शास्त्री ऐतिहासिक वर्गीकरण का नाम भी देते हैं। यह समय एक दिन, एक माह, एक वर्ष अथवा दस वर्ष इससे अधिक भी हो सकता है। उदाहरणस्वरूप, स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत की जनसंख्या की वृद्धि को स्पष्ट किया जाए तो इसको समय अनुसार वर्गीकरण कहा जाएगा।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 12
3. गुणात्मक वर्गीकरण (Qualitative Classification)-जब आंकड़ों का वर्गीकरण उनके गुणों अनुसार किया जाता है अर्थात् लिंग (Sex), धर्म (Religion), शिक्षा (Education) तथा रंग (Colour) के आधार पर किया जाए तो इस तरह के वर्गीकरण को गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं। गुणात्मक वर्गीकरण दो प्रकार का होता है-
(i) सरल वर्गीकरण (Simple Classification)-सरल वर्गीकरण को दो परतों वाला वर्गीकरण भी कहा जाता है। इस वर्गीकरण में आंकड़ों को दो गुणों के आधार पर विभाजित किया जाता है जैसे कि जनसंख्या में पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 13
(ii) बहुगुण वर्गीकरण (Manifold Classification)—जिस समय वर्गीकरण में एक से अधिक गुणों का प्रकटावा किया जाता है। ऐसे वर्गीकरण को बहुगुण वर्गीकरण कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप, इसको चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 14
4. संख्यात्मक वर्गीकरण (Quantitative Classification-संख्यात्मक वर्गीकरण को मात्रा अनुसार वर्गीकरण भी कहा जाता है। जब हम आंकड़ों को संख्याओं के आधार पर विभाजित करते हैं तो ऐसे वर्गीकरण को संख्यात्मक वर्गीकरण कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप, मनुष्यों की आय (Income), भार (Weight) तथा कद (Height) इत्यादि के आधार पर वर्ग बनाए जाएं तो ऐसे वर्गों को संख्यात्मक वर्ग कहते हैं। इसको चरों द्वारा वर्गीकरण (Classification by variables) भी कहा जाता है।

चर का अर्थ (Meaning of variable)-किसी भी तथ्य को प्रकट करने के लिए संख्याओं के रूप में प्रकट किया जाए। जैसे कि माप तोल, ऊंचाई, लम्बाई, इत्यादि के आधार पर वितरण किया जाए तो उस आधार को चर कहा जाता है जैसे कि विद्यार्थी के होशियार होने का अनुमान उस द्वारा प्राप्त किए अंकों द्वारा लगाया जाता है।

यह चर दो प्रकार के होते हैं-
(i) खण्डित चर (Discrete variables)-खण्डित चर हमेशा एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। इनमें समान अथवा असमान दूरी हो सकती है। उदाहरणस्वरूप, गणित के पेपर में प्राप्त के अंक 5-10-15-20 इत्यादि हो सकते हैं। यदि एक प्रश्न 5 अंकों का होता है। कई बार आधा प्रश्न ठीक होने की स्थिति में अंकों की दूरी असमान भी हो सकती है। ऐसे चरों को खण्डित चर भी कहा जाता है।

(ii) अखण्डित चर (Continuous variables)-अखण्डित चरों का अर्थ माप की इकाइयों को एक निश्चित वर्गों में विभाजित करने से होता है, जैसे कि ऊंचाई को फूटों तथा इंचों में, भार को किलोग्राम तथा ग्रामों में विभाजित किया जाता है। इसी तरह प्रत्येक पूर्ण अंक तथा दशमलव भिन्न को शामिल करके जब वर्ग बनाए जाते हैं तो ऐसे चरों को अखण्डित चर कहा जाता है, जैसे कि प्राप्त किए अंक 0-10, 10-20, 20-30 इत्यादि के रूप में प्रकट किए जाते हैं तो ऐसे चरों को अखण्डित चर कहते हैं।

प्रश्न 3.
सांख्यिकी श्रृंखलाओं से क्या अभिप्राय है? संख्यात्मक वर्गीकरण का वितरण सांख्यिकी श्रृंखलाओं के रूप में कैसे किया जाता है?
(What do you mean by Statistical Series ? How distribution of Quantitative Classification done in the form of Statistical Series ?)
उत्तर-
सांख्यिकी श्रृंखलाओं का अर्थ आंकड़ों को गुणों के आधार पर तर्कपूर्वक विभाजित करने की क्रिया से होता है। आंकड़ों को जिस रूप में एकत्रित किया जाता है, उनको अधूरे आंकड़े (Raw Data) कहते हैं। इन आंकड़ों को सांख्यिकी श्रृंखलाओं में विभाजित किया जाता है ताकि आसानी से वर्गीकरण किया जा सके। इसको स्पष्ट करते हुए होरेस सीकरेस्ट ने कहा है, “सांख्यिकी श्रृंखला में समान गुणों वाले चरों को सिलसिलेवार पेश करने की तकनीक को सांख्यिकी श्रृंखला कहा जाता है।”

सांख्यिकी श्रृंखला की किस्में (Kinds of Statistical Series) सांख्यिकी श्रृंखला को मुख्य तौर पर तीन भागों में विभाजित किया जाता है
1. व्यक्तिगत श्रृंखला (Individual Series)
2. खण्डित शृंखला (Discrete Series)
3. अखण्डित श्रृंखला (Continuous Series)

1. व्यक्तिगत श्रृंखला (Individual Series)-व्यक्तिगत श्रृंखला वह शृंखला होती है, जिसमें प्रत्येक इकाई को व्यक्तिगत तौर पर दिखाया जाता है। इस श्रृंखला में हम व्यक्तियों की आय, बचत, व्यय, निवेश इत्यादि के विवरण देते हैं। इसी तरह की श्रृंखला को बढ़ते क्रम (Ascending order) अथवा घटते क्रम (Descending order) में दिखाया जाता है। जब आंकड़ों की तरतीब इस प्रकार से लिखी जाती है कि आने वाले आंकड़े बढ़ते जाते हैं तो इसको बढ़ते क्रमानुसार आंकड़े कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 15
घटते क्रमानुसार (Descending order) में सबसे बड़े मूल्य को पहले लिखा जाता है तथा जैसे-जैसे अंक घटते जाते हैं उनको बाद में लिखा जाए तो इसी तरह के क्रम को घटते क्रमानुसार आंकड़े कहा जाता है। यह आंकड़े फर्जी हैं तथा जितनी मर्जी संख्या लिखी जा सकती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 16
इस प्रकार घटते क्रमानुसार आंकड़ों को भी स्पष्ट किया जा सकता है, ऐसी श्रृंखला को व्यक्तिगत श्रृंखला कहते हैं। इस श्रृंखला का प्रयोग उस समय किया जाता है, जब आंकड़ों की संख्या कम-से-कम 5 तथा अधिक-से-अधिक 15 होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

2. खण्डित श्रृंखला (Discrete Series)–खण्डित श्रृंखला को आंकड़ा शास्त्री सामूहिक श्रृंखला तथा आवृत्ति श्रृंखला वितरण (Frequency Distribution) भी कहते हैं। इस श्रृंखला में संख्याओं को बार-बार नहीं लिखते। समान मूल्य वाले आंकड़ों को एक बार लिखा जाता है तो उस मूल्य को प्राप्त करने वाले जितने व्यक्ति अथवा वस्तुएं होती हैं उनकी संख्या सामने लिख दी जाती है। उदाहरणस्वरूप 50 अंक 10 विद्यार्थियों ने प्राप्त किए हैं तो 50 अंक एक बार लिखे जाते हैं। इनके सामने 10 लिख दिया जाता है। दस को आवृत्ति (Frequency) कहते हैं। आवृत्ति का अर्थ किसी मूल्य का बार-बार प्रगटावा करना होता है। इसी तरह खण्डित श्रृंखला में चार के भिन्न-भिन्न मूल्यों को आवृत्ति के आधार पर प्रकट किया जाता है तो ऐसी श्रृंखला को हम खण्डित श्रृंखला कहते हैं। इसको उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 17

सूचीपत्र में बच्चों की संख्या को चर कहा जाता है जबकि कितने परिवारों में उतने ही बच्चों की संख्या पाई जाती है, इसको आवृत्ति कहते हैं। इसी प्रकार की श्रृंखला को खण्डित श्रृंखला अथवा खण्डित आवृत्ति वितरण (Discrete frequency distribution) भी कहा जाता है।

3. अखण्डित श्रृंखला (Continuous Series)-अखण्डित श्रृंखला का प्रयोग अखण्डित चरों के वर्गीकरण के समय किया जाता है। इसमें हम चरों को निश्चित वर्गों के अंदर विभाजित कर लेते हैं, जिनको चरों के वर्ग (Classes of variables) कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप एक कक्षा में विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए अंकों के 0 से 5 ; 5 से 10; 10 से 15 इत्यादि वर्ग बनाए जाते हैं। इन वर्गों के सामने उस वर्ग की आवृत्ति को लिखा जाता है अर्थात् उस वर्ग में अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या कितनी है। यदि 0 से अधिक तथा 5 से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 2 है तो 0-5 वर्ग के सामने आवृत्ति 2 लिखी जाती है। इस तरह 5 से 10 वाले वर्ग में पांच अथवा 5 से अधिक प्राप्त किए अंक तथा 10 से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या को लिखा जाता है।
उदाहरण:
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 18
इस तरह की श्रृंखला को अखण्डित श्रृंखला (Continuous series) अथवा अखण्डित आवृत्ति वितरण (Continuous frequency distribution) कहा जाता है। यदि हम अखण्डित श्रृंखला को देखते हैं तो इसमें निम्नलिखित धारणाओं को स्पष्ट करना अनिवार्य है-
1. वर्ग (Class) संख्याओं को एक निश्चित वर्ग में शामिल किया जाता है तो उसको वर्ग कहा जाता है, जैसे कि ऊपर दिए सूची पत्र में 0-5, 5-10 इत्यादि वर्ग हैं।

2. वर्ग सीमाएं (Class limits)-प्रत्येक वर्ग में दो संख्याएं लिखी होती हैं। इनको वर्ग सीमाएं कहा जाता है। निचले अंक को वर्ग की निचली सीमा (Lower limit) कहा जाता है जबकि बड़े अंक को ऊपरी सीमा (Upper limit) कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप 0 से 5 के वर्ग में 0 निचली सीमा है तथा 5 ऊपरी सीमा है।

3. वर्ग आवृत्ति (Class frequency)-किसी वर्ग में आने वाली कुल आवृत्तियों को जिस संख्या से स्पष्ट किया जाता है, उस संख्या को वर्ग आवृत्ति कहते हैं जैसे कि 0-5 के वर्ग में विद्यार्थियों की संख्या 2 दिखाई गई है। जिसको वर्ग आवृत्ति कहा जाता है।

4. वर्ग विस्तार (Magnitude of class interval)-किसी वर्ग में निचली सीमा तथा ऊपरी सीमा के अन्तर को वर्ग विस्तार कहा जाता है जैसे कि ऊपर दिए सूची पत्र में प्रथम वर्ग 0–5 है। इस स्थिति में वर्ग विस्तार 5-0 = 5 होगा अर्थात् निचली सीमा तथा ऊपरी सीमा के अन्तर को वर्ग विस्तार कहा जाता है।

5. मध्य-मूल्य (Mid-Value)-दोनों सीमाओं के औसत मूल्य को मध्य-मूल्य कहते हैं। प्रत्येक वर्ग में ऊपरी सीमा तथा निचली सीमा होती है। इन दोनों का जोड़ करके 2 से बाँट दिया जाए तो मध्य मूल्य प्राप्त हो जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 19
उदाहरणस्वरूप ऊपर दिए सूची पत्र में ऊपरी सीमा 5 है तथा निचली सीमा 0 है
तो मध्य मूल्य = \(\frac{5+0}{2}\) = 2.5 इस तरह की श्रृंखला को अखण्डित श्रृंखला कहा जाता है।

प्रश्न 4.
अखण्डित श्रृंखला की किस्मों को स्पष्ट करो। (Explain the kinds of continuous series.)
उत्तर-
अखण्डित श्रृंखलाओं में आंकड़ों को स्पष्ट करते समय इनको पाँच किस्मों में विभाजित कर सकते हैं –

  1. अपवर्जी श्रृंखलाएं (Exclusive series)
  2. समावेशी श्रृंखलाएं (Inclusive series)
  3. खुले किनारे वाली श्रृंखलाएं (Open end series)
  4. संचयी आकृति श्रृंखलाएं (Comulative frequency series)
  5. असमान श्रृंखलाएं (Unequal series)

1. अपवर्जी श्रृंखलाएं (Exclusive Series)-अपवर्जी श्रृंखला वह श्रृंखला होती है, जिसमें एक वर्ग की ऊपरी सीमा अगले वर्ग की निचली सीमा के समान होती है। ऐसी श्रृंखला में वर्ग की ऊपरी सीमा के समान वाली मदों को उस वर्ग में शामिल नहीं किया जाता, बल्कि इन आवृत्तियों को अगले वर्ग में शामिल किया जाता है। उदाहरणस्वरूप हमारे पास 0 से 10, 10 से 20 के वर्ग अंतर दिए गए हैं। यह वर्ग अंतर विद्यार्थियों के अंकों को प्रकट करते हैं, जिन विद्यार्थियों ने 10 अंक प्राप्त किए हैं, उनको 0 से 10 वाले वर्ग में शामिल नहीं किया जाता, बल्कि उसको 10 से 20 वाले वर्ग में शामिल किया जाता है। इसको निचली उदाहरण द्वारा स्पष्ट कर सकते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 20
सारणी से पता चलता है कि पहले वर्ग की ऊपरी सीमा का मूल्य ₹ 60, दूसरी वर्ग की निचली सीमा ₹ 60 के समान है। इसलिए जो मजदूर ₹ 60 मज़दूरी प्राप्त करते हैं। उन्हें 60 से 70 वाले वर्ग में शामिल किया जाएगा।

2. समावेशी श्रृंखला (Inclusive Series)—समावेशी श्रृंखला में किसी वर्ग की ऊपरी सीमा को उसी वर्ग में शामिल किया जाता है अर्थात् समावेशी श्रृंखला वह श्रृंखला होती है, जिसमें किसी वर्ग की सभी आवृत्तियां उसी वर्ग में शामिल होती हैं, जैसे कि निम्नलिखित सूची पत्र में दिखाया गया है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 21
इस सारणी से पता चलता है कि जिस मज़दूर ने ₹ 59 मज़दूरी प्राप्त की है उसको 50-59 वाले वर्ग में शामिल किया जाता है। ₹ 60 मज़दूरी प्राप्त करने वाले मजदूर को 60-69 वाले वर्ग में जोड़ा जाता है।

समावेशी श्रृंखला को अपवर्जी श्रृंखला में बदलना (Conversion of Inclusive Series into Exclusive Series) समावेशी श्रृंखला में समस्याओं को हल करते समय मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इसलिए सांख्यिकी विधियों में कई बार समावेशी श्रृंखला को अपवर्जी श्रृंखला में परिवर्तन करने की आवश्यकता पड़ती है। इस उद्देश्य के लिए हम प्रथम वर्ग की ऊपरी सीमा (U1) तथा दूसरे वर्ग की निचली सीमा (L2) का अन्तर निकाल लेते हैं। इस अन्तर को साथ-साथ विभाजित किया जाता है। इस प्रकार हमारे पास जो मूल्य प्राप्त होता है समावेशी श्रृंखला को निचली सीमा में इसको घटाया जाता है तो ऊपरी सीमा में जोड़ा जाता है। इस विधि को हम निचले सूत्र के रूप में भी लिख सकते हैं।

\(\frac{\mathrm{L}_{2}-\mathrm{U}_{1}}{2}\)
इस सूत्र में L2 = द्वितीय वर्ग की निचली सीमा
U1 = प्रथम वर्ग की ऊपरी सीमा उदाहरणस्वरूप समावेशी श्रृंखला में दूसरे वर्ग की निचली सीमा 60 दी हुई है तथा प्रथम वर्ग की ऊंची सीमा 59 है। इस प्रकार दुरुस्ती करने के लिए ऊपर दिए सूत्र की सहायता से हम दुरुस्ती अंक प्राप्त कर सकते हैं।
दुरुस्ती अंक = \(\frac{\mathrm{L}_{2}-\mathrm{U}_{1}}{2}=\frac{60-59}{2}=\frac{1}{2}\) = 0.5 प्राप्त हुआ है। समावेशी शृंखला को निचलियां सीमाओं में से 0.5 घटा कर तथा ऊंची सीमाओं में 0.5 जोड़ कर समावेशी विधि को अपवर्जी विधि में बदल लिया जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 22
बदलने की विधि –

  1. सबसे पहले समावेशी श्रृंखला के प्रथम वर्ग की ऊपरी सीमा तथा दूसरे वर्ग की निचली सीमा का अन्तर निकाला जाता है।
  2. प्राप्त हुए अन्तर का आधा करके समावेशी विधि की निचली सीमाओं में से घटाया जाता है तथा ऊपरी सीमाओं में उस आधे को जोड़ा जाता है।
  3. इस क्रिया के पश्चात प्रथम वर्ग की ऊपरी सीमा तथा द्वितीय वर्ग की निचली सीमा एक-दूसरे के समान हो जाती हैं। अपवर्जी विधि में प्रथम वर्ग की ऊपरी सीमा, द्वितीय वर्ग की निचली सीमा के समान होती हैं। इस प्रकार समावेशी श्रृंखला को अपवर्जी श्रृंखला में परिवर्तित किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण

प्रश्न 5.
मिलान रेखाओं से सांख्यिकी श्रृंखलाओं का निर्माण कैसे किया जाता है? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए। (Explain the classification of statistical series with Tally Bars. Explain with the help of Example.)
उत्तर-
मिलान रेखाओं का अर्थ (Meaning of Tally Bars) मिलान रेखाएं वे रेखाएं होती हैं जोकि किसी वर्ग में आने वाले आवृत्तियों की संख्या की सहायता करती हैं। इस उद्देश्य के लिए प्रत्येक वर्ग में आवृत्ति को लंबवत रेखा [(Vertical line (1)] द्वारा प्रकट किया जाता है। इस प्रकार प्रत्येक वर्ग में आने वाली आवृत्ति के सामने लंबवत रेखा खींची जाती है, जब एक वर्ग में चार आवृत्तियों के पश्चात् पांचवीं आवृत्ति को शामिल किया जाता है तो पहली चार लंबवत रेखाओं को पांचवीं रेखा से काट दिया जाता है। इसको चार तथा काटने की विधि (Four and Cross Method) भी कहा जाता है।

इस तरह पाँच-पाँच समुच्चयों के रूप में आवृत्ति की गणना की जाती है। यह क्रिया उस समय तक चलती रहती है, जब तक सभी आवृत्तियों को वर्ग प्रदान नहीं हो जाते। इस प्रकार आवृत्तियों की संख्या को प्रकट करने के लिए जो रेखाएं बनाई जाती हैं, उनको मिलान रेखाएं कहा जाता हैं। मिलान रेखाएं खींचने के पश्चात् उनकी संख्या का जोड़ प्रत्येक वर्ग के सामने लिख देते हैं। इस प्रकार हमारे पास प्रत्येक वर्ग की आवृत्ति प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार जब हम एक सूची पत्र में मिलान रेखाओं को प्रकट करते हैं तो इसको मिलान रेखा सूची (Tally Bar sheet) कहा जाता है।

मिलान रेखाओं द्वारा आवृत्ति श्रृंखलाओं का निर्माण (Formation of frequency Series with Tally Bars) मिलान रेखाओं की सहायता से आवृत्ति शृंखलाओं का निर्माण किया जा सकता है। आवृत्ति शृंखलाएं मुख्य तौर पर तीन प्रकार की होती हैं

  1. व्यक्तिगत श्रृंखलाएं (Individual Series)
  2. खण्डित श्रृंखलाएं (Discrete Series)
  3. अखण्डित श्रृंखलाएं (Continuous Series)

मिलान रेखाओं द्वारा इन शृंखलाओं के निर्माण को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं :
उदाहरण-एक कक्षा में 30 विद्यार्थियों द्वारा गणित के पेपर में प्राप्त किए अंकों का विवरण निम्नलिखित अनुसार हैं – 20, 10, 35, 45, 5, 20, 10, 20, 10, 10, 45, 50, 45, 45, 45, 20, 20, 5, 10, 15, 35, 30, 40, 45, 45, 20, 15, 25, 35, 0.
दी गई सूचना के आधार पर मिलान रेखाओं की सहायता से आवृत्ति श्रृंखलाओं का निर्माण करो।
हल (Solution)-
कक्षा में विद्यार्थियों द्वारा गणित के पेपर में प्राप्त अंकों को तीन श्रृंखलाओं के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है।
1. व्यक्तिगत श्रृंखला (Individual Series)-ऊपर दी सूचना को व्यक्तिगत श्रृंखला के रूप में प्रकट करने के लिए आंकड़ों को बढ़ते क्रम (Ascending order) अथवा घटते क्रमानुसार (Descending order) में लिखा जा सकता है। मान लो हम बढ़ते क्रमानुसार व्यक्तिगत श्रृंखला का निर्माण करना चाहते हैं तो इसका निर्माण निम्नलिखित अनुसार किया जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 23
सारणी में अंकों को बढ़ते क्रमानुसार दिखाया गया है। इसको घटते क्रमानुसार भी लिखा जा सकता है। यदि प्रश्न में अंकों को घटते क्रमानुसार लिखने का आदेश हो।

2. खण्डित श्रृंखला (Discrete Series) खण्डित श्रृंखला में आंकड़ों को इस ढंग से पेश किया जाता है। जब प्राप्त किए आंकड़ों में बराबर के खण्ड बनाए जा सकें। जैसे कि उपरोक्त उदाहरण में 30 विद्यार्थियों के गणित के पेपर के अंक दिए गए हैं। इनको मिलान रेखाओं की सहायता से खण्डित श्रृंखला का रूप दिया जाता है। इसको चार तथा क्रास विधि भी कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 24
खण्डित श्रृंखला का निर्माण करते समय आवृत्तियों के मूल्य क्रमानुसार लिखे जाते हैं। इनके सामने दिए गए आंकड़ों अनुसार आवृत्तियों की संख्या अनुसार मिलान रेखाएं बनाई जाती हैं जैसे कि 0 अंक प्राप्त करने वाला एक विद्यार्थी है। 5 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 2 है। 10 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 5 है। इस प्रकार मिलान रेखाएं खींचने के उपरान्त इन रेखाओं का जोड़ करके अंकों के सामने आवृत्ति प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार की श्रृंखला को खण्डित श्रृंखला कहा जाता है।

3. अखण्डित श्रृंखला (Continuous Series)—जब दी गई आवृत्तियों की संख्या बहुत अधिक होती है तो ऐसी स्थिति में अखण्डित श्रृंखला का निर्माण किया जाता है। यह शृंखला सबसे अधिक प्रचलित किस्म है।

अखण्डित श्रृंखला की रचना विधि-

  1. वर्ग की संख्या (Number of Classes)-वर्ग की संख्या कम-से-कम 5 तथा अधिक से अधिक 15 से 20 तक होनी चाहिए।
  2. वर्गान्तर (Class Interval)-वर्गान्तर साधारण तौर पर 5 अथवा 5 का गुणक अर्थात् 10, 15, 20, 25, 30, 100, 500 इत्यादि लेना चाहिए, चाहे वर्गान्तर 3, 6, 7 इत्यादि भी हो सकता है।
  3. समान वर्गान्तर (Equal Class Interval)-जहां तक सम्भव हो समान वर्गान्तर लेने चाहिए हैं, जैसे कि 0-10, 10-20, 20-30 इत्यादि।
  4. अपवर्जी विधि (Exclusive method)-वर्गों को अपवर्जी विधि में लेना चाहिए है। ऊपर दी उदाहरण के आधार पर अखण्डित श्रृंखला का निर्माण किया जा सकता है-

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 17 आंकड़ों का व्यवस्थिकरण 25

प्रश्न में समावेशी विधि का प्रयोग करने के लिए नहीं कहा गया। इसलिए अपवर्जी विधि का प्रयोग किया गया है। अखण्डित श्रृंखला में ध्यान देने योग्य बात यह है कि 0-10 के वर्ग में 10 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को शामिल नहीं किया जाता। इस विद्यार्थी के अंक 10-20 वाले वर्ग में जोड़े जाते हैं। 10-20 वाले वर्ग में 20 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी को शामिल नहीं किया जाता, बल्कि इसको 20-30 वाले वर्ग में शामिल किया जाता है। इस प्रकार ऊंची सीमा वाले अंक को उस वर्ग में अपवर्जी (Exclude) किया जाता है, जिस कारण इस विधि को अपवर्जी विधि (Exclusive Method) कहते हैं।

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

Punjab State Board PSEB 3rd Class Maths Book Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ Textbook Exercise Questions and Answers

PSEB Solutions for Class 3 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 1:

ਕੀ ਤੁਹਾਨੂੰ ਯਾਦ ਹੈ?

ਸਵਾਲ 1.
ਖਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਵਿੱਚ ਗਿਣਤੀ ਪੂਰੀ ਕਰੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 1

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 2

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 2.
ਦਿੱਤੀਆਂ ਸੰਖਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 3

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 4

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 3.
ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਰੂਪ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 5

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 6

ਸਵਾਲ 4.
ਚੱਕਰ ਵਾਲੇ ਅੰਕ ਦਾ ਸਥਾਨਕ ਮੁੱਲ ਦੱਸੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 7

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 8

ਸਵਾਲ 5.
>, < ਜਾਂ = ਦਾ ਨਿਸ਼ਾਨ ਲਗਾਓ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 9

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 10

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 6.
ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਸੰਖਿਆ ‘ ਤੇ ਚੱਕਰ ਲਗਾਓ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 11

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 12

ਸਵਾਲ 7.
ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਤਾਰੇ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਲਿਖੋ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 13

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 14

ਸਵਾਲ 8.
ਵੱਧਦੇ ਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 15

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 16

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 9.
ਘੱਟਦੇ ਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 17

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 18

ਸਵਾਲ 10.
ਦਿੱਤੀ ਸੰਖਿਆ ਅਨੁਸਾਰ ਗਿਣਤਾਰੇ ਵਿੱਚ ਮੋਤੀ ਪਾਓ |

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 19

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 20

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 11.
ਗਿਣਤਾਰੇ ਦੇ ਮੋਤੀ ਗਿਣੋ ਅਤੇ ਸੰਖਿਆ ਲਿਖੋ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 21

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 22

ਸਵਾਲ 12.
ਚਾਰ ਖਾਨਿਆਂ ਦਾ ਮਿਲਾਨ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਇੱਕ ਹੀ ਰੰਗ ਭਰੋ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 23

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 24

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 13:

ਆਓ ਕਰੀਏ:

ਸਵਾਲ 1.
ਗਿਣਤਾਰੇ ਉੱਤੇ ਮੋਤੀਆਂ ਅਨੁਸਾਰ ਸੰਖਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਅੰਕਾਂ ਅਤੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 25

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 26

ਸਵਾਲ 2.
ਦਿੱਤੀ ਸੰਖਿਆ ਅਨੁਸਾਰ ਗਿਤਾਰੇ ਵਿੱਚ ਮੋਤੀ ਪਾਓ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 27

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 28

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 3.
ਕਰੰਸੀ ਨੋਟ ਗਿਣੋ, ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਅੰਕਾਂ ਅਤੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 29

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 30

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 31

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 4.
ਦੱਸੇ ਅਨੁਸਾਰ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ ।

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 32

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 33]

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

200 ਤੋਂ 299 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 34

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 35

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

300 ਤੋਂ 399 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 36

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 37

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

400 ਤੋਂ 499 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 38

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 39

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

500 ਤੋਂ 599 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 40

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 41

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

600 ਤੋਂ 699 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 42

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 43

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

700 ਤੋਂ 799 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 44

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 45

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

800 ਤੋਂ 899 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 46

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 47

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

900 ਤੋਂ 999 ਤੱਕ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 48

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 49

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 17:

ਸਵਾਲ 5.
ਦਿੱਤੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੁੱਠੀ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 50

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 51

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 52

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 6.
ਬਿਲਕੁੱਲ ਬਾਅਦ ਵਾਲੀ ਸੰਖਿਆ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 53

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 54

ਸਵਾਲ 7.
ਬਿਲਕੁੱਲ ਪਹਿਲਾਂ ਵਾਲੀ ਸੰਖਿਆ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 55

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 56

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 8.
ਵਿਚਕਾਰਲੀ ਸੰਖਿਆ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 57

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 58

ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਵਿੱਚ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 59

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 60

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 19:

ਸਵਾਲ 9.
ਦਿੱਤੀਆਂ ਸੰਖਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 61

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 62

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 10.
ਸੰਖਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਅੰਕਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 63

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 64

ਪੰਨਾ 22:

ਆਓ ਕਰੀਏ:

ਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਚੱਕਰ ਵਾਲੇ ਅੰਕ ਦਾ ਸਥਾਨਕ ਮੁੱਲ ਪਤਾ ਕਰੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 65

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 66

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 25:

ਸਵਾਲ 1.
ਆਓ ਕਰੀਏ ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 67

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 68

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 2.
ਗਣਿਤ ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੀਆਂ ਸੰਖਿਆਵਾਂ ਦਾ ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਰੂਪ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 69

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 70

ਸਵਾਲ 3.
ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਰੂਪ ਤੋਂ ਸੰਖਿਆ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 71

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 72

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 28:

ਆਓ ਕਰੀਏ:

ਸਵਾਲ 1.
ਖਾਲੀ ਖਾਨਿਆਂ ਵਿੱਚ >, < ਜਾਂ = ਦਾ ਚਿੰਨ੍ਹ ਭਰੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 73

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 74

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 2.
ਛੋਟੀ ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਛੋਟੀ ਮੱਛੀ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਵੱਡੀ ਮੱਛੀ ਦੇ ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 75

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 76

ਸਵਾਲ 3.
ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਛੋਟੀ ਮੱਛੀ ਦੇ ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਅਤੇ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਵੱਡੀ ਮੱਛੀ ਦੇ ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 77

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 78

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 29:

ਆਓ ਕਰੀਏ:

ਸਵਾਲ 1.
ਵੱਧਦੇ ਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 79

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 80

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 30:

ਸਵਾਲ 2.
ਘੱਟਦੇ ਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 81

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 82

 PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 83

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 3.
ਵੱਧਦੇ ਕੂਮ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 84

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 85

ਸਵਾਲ 4.
ਘੱਟਦੇ ਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 86

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 87

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 31:

ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਗਿਣਤੀ:

2 ਦੀ ਛਾਲ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 88

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 89

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

3 ਦੀ ਛਾਲ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 90

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 91

5 ਦੀ ਛਾਲ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 92

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 93

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

5 ਦੀ ਛਾਲ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 94

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 95

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਪੰਨਾ 33:

ਆਓ ਕਰੀਏ:

ਸਵਾਲ 1.
ਤਿੰਨ ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਛੋਟੀ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਸੰਖਿਆ ਬਣਾਓ:
(i) 8, 4, 2
ਜਵਾਬ –
248

(ii) 7, 2, 5
ਜਵਾਬ
257

(iii) 1, 0, 8
ਜਵਾਬ –
108

(iv) 3, 8, 1
ਜਵਾਬ –
138

(v) 9, 6, 7
ਜਵਾਬ –
679

(vi) 7, 8, 9
ਜਵਾਬ –
789

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 2.
ਤਿੰਨ ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਵੱਡੀ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਬਣਾਓ:
(1) 6, 0, 2
ਜਵਾਬ –
620

(ii) 4, 1, 3
ਜਵਾਬ –
431

(iii) 5, 9, 7
ਜਵਾਬ –
975

ਸਵਾਲ 3.
ਅੰਕਾਂ ਨੂੰ ਦੁਹਰਾ ਕੇ ਤਿੰਨ ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਬਣਾਓ:
(i) 5, 1
ਜਵਾਬ –
551

(ii) 8, 2
ਜਵਾਬ –
882

(iii) 5, 8
ਜਵਾਬ –
885

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 4.
ਅੰਕਾਂ ਨੂੰ ਦੁਹਰਾ ਕੇ ਤਿੰਨ ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਸੰਖਿਆਂ ਬਣਾਓ:
(i) 2, 5
ਜਵਾਬ –
225

(ii) 7, 6
ਜਵਾਬ –
667

(iii) 7, 2
ਜਵਾਬ –
227

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 5.
ਸਹੀ ਜਵਾਬ ’ਤੇ ਚੱਕਰ ਲਗਾਓ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 96

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 97

ਸਵਾਲ 6.
ਖਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :
2 ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਛੋਟੀ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਸੰਖਿਆ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁੱਲ ਪਹਿਲਾਂ ______ ਸੰਖਿਆ ਹੈ ।
ਜਵਾਬ –
9

2 ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਵੱਡੀ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁੱਲ ਪਹਿਲਾਂ ______ ਸੰਖਿਆ ਹੈ ।
ਜਵਾਬ –
98

3 ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਛੋਟੀ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਸੰਖਿਆ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁੱਲ ਬਾਅਦ ______ ਸੰਖਿਆ ਹੈ ।
ਜਵਾਬ –
101

3 ਅੰਕਾਂ ਦੀ ਵੱਡੀ ਤੋਂ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁੱਲ ਬਾਅਦ ______ ਸੰਖਿਆ ਹੈ।
ਜਵਾਬ –
1000

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 7.
ਤਿੰਨ ਅੰਕੀ ਸੰਖਿਆ ਬਣਾਓ :
ਜਿਸਦਾ ਦਹਾਈ ਦਾ ਅੰਕ 6 ਹੋਵੇ, ਇਕਾਈ ਦਾ ਅੰਕ 7 ਤੋਂ 2 ਵੱਧ ਹੋਵੇ, ਅਤੇ ਸੌ ਦੇ ਸਥਾਨ ਦਾ ਅੰਕ 4 ਅਤੇ 6 ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਵੇ ।
ਜਵਾਬ –
569

ਪੰਨਾ 34:

ਵਰਕਸ਼ੀਟ:

ਸਵਾਲ 1.
ਕਰੰਸੀ ਨੋਟਾਂ ਦੁਆਰਾ ਦੱਸੀ ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਅੰਕਾਂ ਅਤੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ:

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 98

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 99

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 2.
ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਗਿਣਤਾਰੇ ‘ਤੇ ਦਿਖਾਓ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 100

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 101

ਸਵਾਲ 3.
ਸੋਚੋ, ਸਮਝੋ ਅਤੇ ਗਿਣਤੀ ਪੂਰੀ ਕਰੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 102

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 103

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 4.
ਪੁੱਠੀ ਗਿਣਤੀ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 104

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 105

ਸਵਾਲ 5.
ਸੰਖਿਆ ਵਿੱਚ ਚੱਕਰ ਵਾਲੇ ਅੰਕ ਦਾ ਸਥਾਨਕ ਮੁੱਲ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 106

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 107

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 6.
ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 108

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 109

ਸਵਾਲ 7.
ਅੰਕਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 110

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 111

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 8.
ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 112

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 113

ਸਵਾਲ 9.
ਸੰਖਿਆ ਬਣਾਓ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 114

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 115

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 10.
ਗਿਣਤੀਰੇ ‘ ਤੇ ਦੱਸੀ ਸੰਖਿਆ ਅਨੁਸਾਰ ਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਅੰਕਾਂ ਅਤੇ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ :

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 116

ਜਵਾਬ –

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 117

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 11.
100 – 100 ਦੇ, 10-10 ਦੇ ਅਤੇ 1-1 ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਨੋਟਾਂ ਤੋਂ ਸੰਖਿਆ 347 ਬਣਦੀ ਹੈ ?
ਜਵਾਬ –
100-100 ਦੇ 3 ਨੋਟ, 10-10 ਦੇ 4 ਨੋਟ ਅਤੇ 1-1 ਦੇ 7 ਨੋਟਾਂ ਤੋਂ ਸੰਖਿਆ 347 ਬਣਦੀ ਹੈ ।

ਸਵਾਲ 12.
100-100 ਦੇ, 10-10 ਦੇ ਅਤੇ 1-1 ਦੇ ਕਿੰਨੇ ਨੋਟਾਂ ਤੋਂ ਸੰਖਿਆ 865 ਬਣਦੀ ਹੈ ।
ਜਵਾਬ –
100-100 ਦੇ 8 ਨੋਟ 10-10 ਦੇ 6 ਨੋਟ ਅਤੇ 1-1 ਦੇ 5 ਨੋਟਾਂ ਤੋਂ ਸੰਖਿਆ 865 ਬਣਦੀ ਹੈ ।

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਬਹੁਵਿਕਲਪਿਕ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (MCQ):

ਸਵਾਲ 1.
ਅਵਨੀਤ ਦੇ ਘਰ ਦਾ ਨੰਬਰ ਅੱਠ ਸੌ ਉਠਾਹਠ ਹੈ । ਤਰੁਣ ਨੂੰ ਅਵਨੀਤ ਦਾ ਘਰ ਲੱਭਣ ਵਿੱਚ ਮੱਦਦ ਕਰੋ

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 118

ਜਵਾਬ –
(ਸ) PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ 119

ਸਵਾਲ 2.
815, 851, 581, 518 ਨੂੰ ਵੱਧਦੇ ਕੂਮ ਵਿੱਚ ਲਿਖਦੇ ਹੋਏ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਹੜੀ ਸੰਖਿਆ ਆਵੇਗੀ ? .
(ਉ) 581
(ਅ) 518
(ਏ) 851
(ਸ) 815.
ਜਵਾਬ –
(ਅ) 518

PSEB 3rd Class Maths Solutions Chapter 1 ਸੰਖਿਆਵਾਂ

ਸਵਾਲ 3.
ਤਿੰਨ ਅੰਕੀ ਸੰਖਿਆ ਬਣਾਓ ਜਿਸਦਾ ਦਹਾਈ ਦਾ ਅੰਕ 6 ਹੋਵੇ, ਇਕਾਈ ਦਾ ਅੰਕ 7 ਤੋਂ 2 ਵੱਧ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਸੌ ਦੇ ਸਥਾਨ ਦਾ ਅੰਕ 4 ਅਤੇ 6 ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਵੇ ।
(ੳ) 426
(ਅ) 965
(ਏ) 746
(ਸ) 569
ਜਵਾਬ –
(ਸ) 569.

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

PSEB 11th Class Economics संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
न्यादर्श किसे कहते हैं?
उत्तर-
न्यादर्श सांख्यिकी सर्वेक्षण की वह विधि है जिसमें अनुसन्धानकर्ता सभी मदों के सम्बन्ध में सूचना एकत्रित न करके केवल कुछ ऐ मदों के सम्बन्ध में सूचना एकत्रित करता है जो सब का प्रतिनिधित्व करती हैं।

प्रश्न 2.
संगणना विधि किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संगणना विधि वह विधि है जिसमें किसी अनुसन्धान से सम्बन्धित समग्र या जनसंख्या की प्रत्येक मद के सम्बन्ध में आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं तथा इनके आधार पर निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

प्रश्न 3.
निदर्शन का कोई एक आवश्यक तत्त्व लिखिए।
उत्तर-
न्यादर्श इस प्रकार का होना चाहिए कि वह समग्र की सभी विशेषताओं का पूर्ण प्रतिनिधित्व करे। यह तभी सम्भव हो सकता है जब समग्र की प्रत्येक इकाई को न्यादर्श के रूप में चुने जाने का समान अवसर प्राप्त हो।

प्रश्न 4.
दैव निदर्शन (Random Sampling) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
दैव निदर्शन वह विधि है जिसके अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई के न्यादर्श के रूप में चुने जाने के समान अवसर होते हैं।

प्रश्न 5.
स्तरित (Stratified) अथवा मिश्रित (Mixed) निदर्शन किसे कहते हैं?
उत्तर-
स्तरित निदर्शन विधि के अन्तर्गत समग्र की इकाइयों को उनकी विशेषताओं के अनुसार विभिन्न भागों (Strata) में बांट लिया जाता है तथा प्रत्येक भाग से दैव निदर्शन की विधि द्वारा अलग-अलग न्यादर्श का चुनाव किया जाता है जो उस भाग का प्रतिनिधित्व करते हों।

प्रश्न 6.
व्यवस्थित निदर्शन (Systematic Sampling) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
व्यवस्थित निदर्शन विधि में समग्र की इकाइयों को संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा वर्णात्मक आधार पर क्रमबद्ध कर लिया जाता है। इनमें से न्यादर्श की पहली इकाई का चुनाव करके दैव निदर्शन विधि द्वारा न्यादर्श प्राप्त कर लिया जाता है।

प्रश्न 7.
सविचार निदर्शन (Deliberate or Purpose Sampling) किसे कहते हैं?
उत्तर-
इस पद्धति में चयन करने वाला न्यादर्श की इकाइयों का चयन समझ-बूझ कर करता है। चयन करते समय वह प्रयत्न करता है कि समग्र की सब विशेषताएं न्यादर्श में आ जाएं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह समग्र की प्रत्येक प्रकार की विशेषता को प्रकट करने वाले पदों को अपने न्यादर्श में सम्मिलित करता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

प्रश्न 8.
जब किसी अनुसन्धान के लिए समग्र तथा जनसंख्या की प्रत्येक इकाई से सूचना इकट्ठी की जाती है तो इसको …………….. कहा जाता है।
(a) न्यादर्श
(b) गणना
(c) दैव निदर्शन
(d) तरतीबवार निदर्शन।
उत्तर-
(b) गणना।

प्रश्न 9.
जब समग्र में से प्रत्येक इकाई के न्यादर्श के रूप में चुने जाने के बराबर मौके हों तो इसको …………. न्यादर्श कहा जाता है।
(a) दैव निदर्शन
(b) सविचार निदर्शन
(c) स्तरित निदर्शन
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) दैव निदर्शन।

प्रश्न 10.
जब सभी इकाइयों के स्थान पर उनके प्रतिनिधियों से सूचना इकट्ठी की जाती है तो इसको …………. कहा जाता है।
उत्तर-
न्यादर्शन।

प्रश्न 11.
जब अनुसन्धानकर्ता समग्र की प्रत्येक इकाई से सूचना इकट्ठी करता है तो इसको न्यादर्श विधि कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 12.
स्तरित निदर्शन अथवा मिश्रित निदर्शन में समूह की इकाइयों को उनकी विशेषता के आधार पर भागों में बांट के दैव निदर्शन लिए जाते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 13.
न्यादर्श संपूर्ण समग्र की विशेषताओं वाला हो और निष्कर्ष निकालने योग्य हो।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 14.
दैव विधि वह विधि है जिसको समग्र की प्रत्येक इकाई के न्यादर्श के रूप में चुने जाने के सामान्य अवसर होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
सविचार निदर्शन मे अनुसंधानकर्ता समग्र में उन इकाइयों को चुनता है जो उसके अनुसार समग्र की प्रतिनिधिता करती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
जब समग्र में से उन इकाइयों का चुनाव किया जाता है जो अनुसंधानकर्ता के अनुसार समग्र की प्रतिनिधिता करती है इसको ……….. विधि कहा जाता है।
(a) दैव विधि
(b) सविचार निदर्शन
(c) मिश्रित निदर्शन
(d) सुविधा अनुसार निदर्शन।
उत्तर-
(b) सविचार निदर्शन।

प्रश्न 17.
जब निदर्शन विधि अनुसार समग्र की इकाइयों की संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा वरणात्मक आधार पर कर्मबद्ध किया जाता हैं तो उसको ………… विधि कहा जाता है।
(a) दैव विधि
(b) सविचार निदर्शन
(c) व्यवस्थित निदर्शन
(d) सुविधा अनुसार निदर्शन।
उत्तर-
(c) व्यवस्थित निदर्शन।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संगणना विधि से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
संगणना प्रणाली (Census Method) संगणना प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई (Statistical Unit) का अध्ययन किया जाता है और उसमें निष्कर्ष निकाला जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत अनुसन्धान को विस्तृत रूप से लिया जाता है और समग्र की प्रत्येक इकाई से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता है ताकि निष्कर्ष शुद्धता से परिपूर्ण हो भारत में जनसंख्या का अनुसन्धान इस संगणना विधि पर ही आधारित है।

प्रश्न 2.
निदर्शन प्रणाली से क्या आशय है ?
उत्तर-
निदर्शन प्रणाली (Sampling Method) संगणना प्रणाली के विपरीत इस प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन नहीं किया जाता, बल्कि समय में से कुछ इकाइयों को छांट कर उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, “समस्त समूह के एक अंश का अध्ययन किया जाता है, सम्पूर्ण समूह या समग्र का नहीं।” उदाहरणार्थ अगर किसी एक कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित सर्वेक्षण करना है तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थियों का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनका अध्ययन कर सकते हैं और जो निष्कर्ष निकालेंगे वे सम्पूर्ण समग्र पर लागू होंगे। निदर्शन प्रणाली का आधार यह है कि “छांटे हुए न्यादर्श” (Sample) समग्र का सदैव प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् उनमें वही विशेषताएँ होती हैं जो सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण समग्र में देखने को मिलती हैं।”

प्रश्न 3.
निदर्शन इकाइयां किन्हें कहते हैं ?
उत्तर-
निदर्शन इकाइयां (Sampling Units)-न्यादर्श लेने से पहले समग्र को निदर्शन इकाइयों में बांटा जाता है। ये इकाइयां ही वास्तविक निदर्शन विधि का आधार होती हैं। उदाहरणत: किसी देश की जनगणना में ‘व्यक्ति’ निदर्शन इकाई है। कई सर्वेक्षणों में व्यक्तियों का समूह अर्थात् ‘परिवार’ भी निदर्शन इकाई हो सकता है। ये इकाइयां प्राकृतिक (Natural) व कृत्रिम निदर्शन इकाई का एक उदाहरण ‘एक मानचित्र पर आयताकार क्षेत्र’ दिया है। एक समस्या के सर्वेक्षण में निदर्शन इकाइयां एक से अधिक भी हो सकती हैं। यदि हम एक जिले के गांवों में रहने योग्य मकानों के बारे में सर्वेक्षण करना चाहें तो निदर्शन इकाई पहले चरण में ‘गांव’ और दूसरे चरण में मकान हो सकते हैं।

प्रश्न 4.
न्यादर्श के आकार का चुनाव आप कैसे करेंगे ?
उत्तर-
न्यादर्श के आकार का चुनाव (Choice of Sampling Size) सर्वेक्षण करते समय यह निश्चित करना बड़ा महत्त्वपूर्ण है कि न्यादर्श का आकार क्या हो। यदि यह आकार छोटा हो तो वह समग्र का प्रतिनिधित्व नहीं करेगा। ऐसी हालत में न्यादर्श के निष्कर्मों को समग्र पर लागू नहीं किया जा सकेगा। सामान्यतः न्यादर्श का आकार जितना कम होगा, परिणाम उतने ही कम विश्वसनीय होंगे और न्यादर्श का आकार जितना ज्यादा होगा, परिणामों की विश्वसनीयता उतनी ही ज्यादा होगी। दूसरी ओर यदि न्यादर्श का आकार बड़ा होता जाए तो इसमें लागत अधिक आएगी और समंक एकत्र करने में समय व श्रम भी ज्यादा लगेगा। इससे फिर संगणना तथा निदर्शन विधियों में कोई खास अन्तर नहीं रह जाएगा।

इससे स्पष्ट है कि न्यादर्श के आकार का निर्णय लेना एक कठिन कार्य है और इसका निर्णय बहुत सावधानी से करना पड़ता है। लागत तथा विश्वसनीयता में एक तरह का तालमेल रखना पड़ेगा।

प्रश्न 5.
न्यादर्श के आकार का निर्णय करते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-

  1. समग्र का आकार-समग्र का आकार यदि बड़ा है तो न्यादर्श का आकार भी बड़ा होना चाहिए।
  2. उपलब्ध साधन-यदि उपलब्ध साधन बहुत हैं तो न्यादर्श का बड़ा आकार लिया जा सकता है।
  3. वांछित शुद्धता का स्तर-यदि किसी सांख्यिकी जांच में वांछित शुद्धता का स्तर बहुत ऊंचा है तो न्यादर्श का आकार बड़ा होना चाहिए।
  4. समग्र का स्वभाव-यदि समग्र सजातीय है तो न्यादर्श को छोटा आकार उद्देश्य की पूर्ति कर सकता है।5. प्रतिदर्श विधि-अनुकूलतम
  5. आकार प्रतिदर्श विधि पर निर्भर करता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
संगणना विधि तथा न्यादर्श विधि में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
संगणना विधि तथा न्यादर्श विधि में अन्तर (Difference between Census Method and Sample Method)-

संगणना विधि (Census Method) न्यादर्श विधि  (Sample Method)
(1) इस विधि में समग्र की हर एक इकाई का अध्ययन किया जाता है। (1) इस विधि में समग्र की कुछ इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।
(2) इसमें वित्त, समय तथा परिश्रम की काफी मात्रा चाहिए। (2) इसमें धन, समय तथा परिश्रम की कम मात्रा चाहिए।
(3) संगणना विधि में सभी इकाइयों का अध्ययन होता है, इसलिए निकाले गए निष्कर्ष भरोसेमन्द होते हैं। (3) न्यादर्श विधि में कुछ इकाइयों का अध्ययन होता है, इसलिए निकाले गए निष्कर्ष कम भरोसेमन्द होते हैं।
(4) यह विजातीय समग्र के लिए अनुकूल है। (4) यह सजातीय समग्र के लिए अनुकूल है।
(5) यह विधि तब प्रयोग नहीं हो सकती यदि समग्र का समग्र का एक भाग न भी हो। (5) यह विधि उस समय भी प्रयोग हो जाती है जब एक भाग न हो।
(6) यह विधि उन अनुसन्धानों के लिए उपयुक्त है जहां अनुसन्धान का क्षेत्र सीमित है। (6) यह विधि उन अनुसन्धानों के लिए उपयुक्त है जहां अनुसन्धान का क्षेत्र विस्तृत है।
(7) इस विधि में आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए अधिक अन्वेषकों की नियुक्ति करनी होती है। (7) इस विधि में थोड़े-से शिक्षित अन्वेषक आंकड़ों का संकलन करते हैं।
(8) इस विधि में अध्ययन निश्चितता के आधार पर होता  है। (8) इस विधि में अध्ययन सम्भावनाओं के आधार पर होता है।
(9) इस विधि द्वारा एकत्रित की गई सूचना अधिक विश्वसनीय तथा विशुद्ध होती है। (9) इस विधि द्वारा एकत्रित की गई सूचना में शुद्धता तथा विश्वसनीयता कम होती है।
(10) इस विधि में अन्वेषण कार्य का निरीक्षण करना कठिन नहीं होता है। (10) इस विधि में अन्वेषण कार्य का निरीक्षण करना कठिन होता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

प्रश्न 2.
संगणना विधि तथा निदर्शन विधि में चयन करते समय किन कारकों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
सभी अनुसन्धानों में अनुसन्धानकर्ता को संगणना विधि तथा न्यादर्श विधि में से एक का चयन करना पड़ता है। यह चयन निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करता है

  1. समग्र का आकार (Size of Population)-यदि समग्र (Universe) का आकार बहुत छोटा है तो संगणना विधि को प्राथमिकता दी जाती है। जब समय का आकार विस्तृत हो तब न्यादर्श विधि का चयन किया जाता है।
  2. साधनों की उपलब्धता (Availability of Resources) यदि अनुसन्धानकर्ता के पास बहुत अधिक मात्रा में वित्त तथा श्रम हों, तो संगणना विधि का चयन किया जाता है किन्तु यदि यह साधन कम मात्रा में हैं तो न्यादर्श विधि को चुनना चाहिए।
  3. समग्र का स्वभाव (Nature of Population)-यदि समग्र असंख्या तथा नष्ट होने वाला हो तो संगणना विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता, वहां न्यादर्श विधि का प्रयोग करना पड़ता है।
  4. वांछित शुद्धता का स्तर (Degree of Accuracy Desired)–यदि अनुसन्धान में वांछित शुद्धता का स्तर बहुत ऊंचा है तो हमें संगणना विधि को अपनाना चाहिए। इसके विपरीत दशा में हम न्यादर्श विधि का प्रयोग कर सकते हैं।
  5. जांच का उद्देश्य (Purpose of the Enquiry)—यदि जांच का उद्देश्य ऐसा है कि समग्र की हर इकाई का अध्ययन करना है तो न्यादर्श विधि का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इस दशा में संगणना विधि का प्रयोग ही किया जाता है।

प्रश्न 3.
सविचार निदर्शन तथा दैव निदर्शन में अन्तर कीजिए।
उत्तर-
सविचार निदर्शन तथा दैव निदर्शन में अन्तर (Difference between Purposive Sampling and Random Sampling)-

सविचार निदर्शन(Purposive Sampling) दैव निदर्शन (Random Sampling)
(1) सविचार निदर्शन में जान-बूझ कर स्वेच्छा से इकाइयां जाती हैं। (1) दैव निदर्शन में इकाइयां दैव के आधार पर चुनी छोटी ली जाती हैं।
(2) सविचार निदर्शन में एक ही दिशा का संचयी विभ्रम कारण क्षतिपूरक होता है। (2) दैव निदर्शन का विभ्रम सम एवं विषय होने के हो सकता है।
(3) सविचार निदर्शन पक्षपात से प्रभावित हो सकता है। (3) दैव निदर्शन पक्षपात रहित होता है या पक्षपात की सम्भावना कम रहती है।
(4) सविचार निदर्शन ऐसी खोजों के लिए उपयुक्त है, जहां समग्र में एक ही प्रकार की इकाइयां हों। (4) दैव निदर्शन में यह आवश्यक नहीं है कि इकाइयाँ एक ही प्रकार की हों।

प्रश्न 4.
विभिन्न न्यादर्श विधियों में किस विधि का चुनाव सर्वोत्तम है ?
उत्तर-
समग्र में न्यादर्श को चुनने की अनेक विधियां हैं। इन्हें न्यादर्श विधियां (Sampling Techniques) कहा जाता है। इन विधियों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।
1. दैव न्यादर्श विधियां (Random Sampling Rechniques)-इन विधियों में दैव न्यादर्श विधि, स्तरित विधि, क्रमबद्ध विधि (Systematic Sampling) तथा बहु-स्तरीय विधियों को शामिल किया जाता है। कुछ लेखकों ने क्रमबद्ध विधि (Systematic Sampling), बहुस्तरीय विधि तथा स्तरित विधि को पूर्ण रूप से दैव न्यादर्श विधियां नहीं माना, बल्कि अधूरी न्यादर्श विधि तकनीकें (Restricted random sampling techniques) कहा है।

2. गैर-दैव न्यादर्श विधियां (Non-random Sampling Techniques)-इन विधियों में सविचार कोटा तथा सुविधानुसार न्यादर्श विधियों को शामिल किया गया है। अब प्रश्न यह है कि इन विधियों में से सबसे अच्छी विधि कौन-सी है जो कि अनुसंधान में प्रयोग की जानी चाहिए। सब विधियों के अपने-अपने गुण व दोष हैं। किसी अनुसंधान के लिए अनुकूल या उपयुक्त विधि का चुनाव कई तत्त्वों पर निर्भर करता है।

ये तत्त्व हैं-

  1. समय की उपलब्धता (Availability of Time)
  2. वित्त की उपलब्धता (Availability of Finance)
  3. श्रम की उपलब्धता (Availability of Labour)
  4. वांछित शुद्धता का स्तर (Degree of Accuracy Desired)
  5. अन्वेषक की पदवी (Position of Investigator)
  6. समग्र का स्वभाव (Nature of Population)।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अनुसन्धान की संगणना प्रणाली से आप क्या समझते हैं ? अनुसन्धान की संगणना प्रणाली के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का उल्लेख करें।
(What do you mean by Census Method ? Discuss the Main Conditions for Census Enquire.)
उत्तर-
आंकड़ों को दो विधियों से एकत्रित किया जा सकता है अथवा यों कह सकते हैं कि सांख्यिकीय जांच दो रीतियों से की जाती है-

  1. संगणना विधि (Census Method) और
  2. निदर्शन विधि (Sample Method)।

1. संगणना प्रणाली (Census Method) संगणना प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई (Statistical Unit) का अध्ययन किया जाता है और उसमें निष्कर्ष निकाला जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत अनुसन्धान को विस्तृत रूप से लिया जाता है और समग्र की प्रत्येक इकाई से सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयत्न किया जाता है ताकि निष्कर्ष शुद्धता से परिपूर्ण हो भारत में जनसंख्या का अनुसंधान इस संगणना विधि पर ही आधारित है।

संगणना अनुसंधान का प्रयोग कहां उचित है-

  • जब समग्र या क्षेत्र का आकार सीमित हो।
  • जहां सांख्यिकीय इकाई (Statistical Unit)) में विविध गुण पाए जाते हों।
  • जहाँ परिशुद्धता को अधिक मात्रा की आवश्यकता हो,
  • जहां विस्तृत अध्ययन या सूचनाएं एकत्रित करनी हों।

संगणना अनुसंधान के लिए उपयुक्त परिस्थितियां (Proper Conditions for Census Enquiry)-नीचे दी हुई परिस्थितियों में ही इस प्रणाली का प्रयोग करना उचित है –

  1. क्षेत्र सीमित (Limited Scope)-यह रीति उस समय काम में लाई जाती है जब अनुसन्धान का क्षेत्र सीमित हो। यदि क्षेत्र व्यापक हुआ तो अनुसन्धान करने में अधिक धन, समय व व्यक्तियों की आवश्यकता होगी।
  2. आंकड़े कम परिवर्तनशील (Less Flexible Data)-जिस समय के विषय में अनुसन्धान किया जा रहा हो, तत्सम्बन्धी आकंड़ों की प्रकृति व गुण यथासम्भव बहुत कम परिवर्तनशील हों अन्यथा परिवर्तन के उपरान्त प्राप्त आंकड़े महत्त्वहीन हो जाएंगे।
  3. गहरा अध्ययन अपेक्षित (Intensive Study Required)-यह प्रणाली उस समय अपनाई जाती है जब अनुसन्धान विषय से सम्बन्धित पूरी बातों का गहरा अध्ययन अपेक्षित हो।
  4. अधिक.शुद्धता आवश्यक (MoreAccuracy Required)-जहां परिणाम में अधिक-से अधिक शुद्धता प्राप्त करना आवश्यक हो और थोड़ी-सी ढील से भी अनुसन्धान का प्रयोजन व्यर्थ हो जाने की आशंका हो।
  5. न्यादर्श लेने में कठिनाई (Difficulty in Having Sample)-जहां इकाइयां एक-दूसरे से पर्याप्त भिन्न हो, अर्थात् उनमें एकरूपता न हो और प्रत्येक पद में कोई विशेषता या मौलिकता हो, वहाँ न्यादर्श लेना कठिन ही नहीं असम्भव भी होता है। ऐसी स्थिति में संगणना रीति का ही सहारा रह जाता है।

प्रश्न 2.
संगणना प्रणाली के गुण लिखिए। (Write down the merits of Census Method.)
उत्तर-
गुण (Merits)-

  1. गहन अध्ययन सम्भव होना (Possibility of Intensive Study)-इस रीति के द्वारा विषय का गहरा अध्ययन सम्भव है और इस प्रकार अनुसन्धानकर्ता को उस विषय का पूर्ण ज्ञान हो जाता है। उसे उन बातों का भी अच्छी तरह पता लग जाता है जो अक्सर ही ध्यान से ओझल हो जाती हैं।
  2. अप्रत्यक्ष अध्ययन सम्भव होना (Possibility of Indirect Study)-इस रीति द्वारा उन समस्याओं का भी अध्ययन अप्रत्यक्ष रूप से सम्भव हो जाता है जिनका अध्ययन सांख्यिकी प्रत्यक्ष रूप से करने में असमर्थ होती है, जैसे दरिद्रता, ईमानदारी, बेरोज़गारी आदि।
  3. उच्च स्तर की शुद्धता होना (Accuracy of High Degree)-इस रीति का अनुसरण करने पर उच्च स्तर की शुद्धता की आशा होती है। कारण यह है कि अनुसन्धान के प्रत्येक अंग का व्यक्तिगत निरीक्षण हो जाता है जिससे परिणाम बहुत अंश तक शुद्ध होते हैं।
  4. इकाइयों की भिन्नता में उपयुक्त होना (Suitable in case of Heterogenous units)—यह रीति वहां बहुत उपयुक्त है जहां इकाइयां एक-दूसरे से भिन्न हों और निदर्शन पद्धति (Sample Method) का सफल होना कठिन हो।
  5. अनुसन्धान की प्रकृति (Nature of Investigation) यदि जांच की प्रकृति ही ऐसी है कि सभी पदों का समावेश आवश्यक है, तो समग्र अनुसन्धान आवश्यक होती है, जैसे-जनगणना।
  6. कम पक्षपात (Less Favouritism)-इस विधि का एक लाभ यह भी है कि आविष्कारक पक्षपात नहीं कर सकता। पक्षपात करने की बहुत कम सम्भावना होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

प्रश्न 3.
संगणना प्रणाली के दोष लिखिए। (Write down the demerits of Census Method.)
उत्तर-
दोष (Demerits)-

  1. असुविधाजनक होना (Inconvenient)-यह प्रणाली बहुत अधिक असुविधाजनक है। कारण यह है कि इसमें बहुत अधिक व्यय होता है और इसके लिए अलग से एक पूरा बड़ा विभाग बनाना पड़ता है जिससे प्रबन्ध सम्बन्धी कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं।
  2. सबके लिए सम्भव न होना (Not Possible for An)-इस रीति का प्रयोग बहुत धनी व शक्ति-सम्पन्न व्यक्ति या संस्थाएं ही कर सकती हैं। सबके लिए इसका प्रयोग सम्भव नहीं है।
  3. सब परिस्थितियों में सम्भव न होना (Not Possible under all Circumstances)-अधिकांश परिस्थितियों में कई कारणों से समग्र अनुसन्धान सम्भव नहीं होता। जहां क्षेत्र विशाल व जटिल हो, जिसमें समग्र की प्रत्येक इकाई से सम्पर्क स्थापित करना सम्भव न हो वहां संगणना अनुसन्धान करना असम्भव हो जाता है।
  4. अधिक समय व परिश्रम लगना (More Time and Labour)-इस रीति में समय बहुत लगता है तथा अनुसन्धानकर्ता को बहुत परिश्रम करना पड़ता है।
  5. अधिक खर्चीली (Costly)-यह विधि बहुत महंगी होती है। समग्र की हर एक इकाई का अध्ययन करने के लिए बहुत धन खर्च करना पड़ता है।
  6. सांख्यिकीय विभ्रम का ज्ञान न होना (No knowledge of Statistical Error)-इस रीति में एक दोष यह है कि सांख्यिकीय विभ्रम का पता नहीं लगाया जा सकता।
  7. नाशवान मदें (Perishable Items) संगणना विधि उन मदों के सांख्यिकी अनुसन्धान के लिए भी उपयोगी नहीं है जो जांच के दौरान ही समाप्त हो जाती है। मानो आपने 200 रसगुल्ले के एक समग्र की संगणना विधि से जांच करनी है। यदि आप प्रत्येक रसगुल्ले को चख कर उसके बारे में सूचना एकत्रित करेंगे तो जब तक आप अपनी जांच समाप्त करेंगे सभी रसगुल्ले समाप्त हो जाएंगे।

प्रश्न 4.
निदर्शन प्रणाली से क्या आशय है ? इस रीति के प्रयोग के क्या कारण हैं ? (What is a meant by Sampling Method ? What are the causes for the line of this Method ?)
उत्तर-
निदर्शन प्रणाली (Sampling Method) संगणना प्रणाली के विपरीत इस प्रणाली के अन्तर्गत समग्र की प्रत्येक इकाई का व्यक्तिगत रूप से अध्ययन नहीं किया जाता, बल्कि समय में से कुछ इकाइयों को छांट कर उनका विधिवत् अध्ययन किया जाता है। दूसरे शब्दों में, “समस्त समूह के एक अंश का अध्ययन किया जाता है, सम्पूर्ण समूह या समग्र का नहीं।” उदाहरणार्थ अगर किसी एक कॉलेज के विद्यार्थियों के स्वास्थ्य से सम्बन्धित सर्वेक्षण करना है तो कॉलेज के प्रत्येक विद्यार्थियों का अध्ययन न करके, हम कुछ विद्यार्थियों को लेकर ही उनका अध्ययन कर सकते हैं और जो निष्कर्ष निकालेंगे वे सम्पूर्ण समग्र पर लागू होंगे। निदर्शन प्रणाली का आधार यह है कि “छांटे हुए न्यादर्श” (Sample) समग्र का सदैव प्रतिनिधित्व करते हैं अर्थात् उनमें वही विशेषताएं होती हैं जो सम्मिलित रूप से सम्पूर्ण समग्र में देखने को मिलती हैं।”

सांख्यिकीय अनुसन्धान में निदर्शन प्रणाली का प्रयोग अत्यधिक मात्रा में किया जाता है। क्योंकि इस प्रणाली में अनेक गुण हैं। इस प्रणाली को संगणना प्रणाली के विपरीत अधिक अच्छा समझा जाता है क्योंकि संगणना प्रणाली की समस्त सीमाओं को निदर्शन प्रणाली द्वारा दूर कर दिया जाता है। निदर्शन प्रणाली का प्रयोग कहीं-कहीं तो अत्यावश्यक हो जाता है क्योंकि कुछ ऐसी समस्याएं व समग्र होते हैं जहां संगणना प्रणाली का प्रयोग किया ही नहीं जा सकता।

निदर्शन रीति के प्रयोग के कारण-हम निदर्शन रीति के प्रयोग के निम्न कारण पाते हैं-
1. संगणना प्रणाली का प्रयोग सम्भव नहीं (No Possibility of Census Method)-कुछ ऐसी भी वस्तुएं हैं जिनकी जांच संगणना प्रणाली से सम्भव ही नहीं है क्योंकि जांच करने में ही वे समाप्त हो जाएंगी। जैसे, यदि किसी डिब्बे के मक्खन की जांच खाकर करनी हो तो निदर्शन रीति ही अपनानी पड़ेगी अन्यथा सारा मक्खन जांच में समाप्त हो जाएगा।

2. अधिक व्यय (More Expenditure) संगणना रीति में व्यय अधिक होता है, समय तथा परिश्रम भी अधिक लगता है और फल लगभग वही निकलता है जो निदर्शन रीति से।

3. सम्पूर्ण सामग्री का मिलना असम्भव (No Possibility of Complete Data)-कभी-कभी ऐसी भी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं जब सम्पूर्ण सामग्री का मिलना असम्भव हो जाता है। ऐसी दशा में निदर्शन रीति का ही सहारा लेना पड़ता है। जैसे, मान लीजिए कि किसी गोदाम में आग लग गई और अनाज के केवल पांच बोरे ही बच पाए।

4. शीघ्र परिवर्तनशील वस्तुएं (Very Changeable Goods)-जब वस्तुओं की प्रकृति शीघ्र परिवर्तनशील न हो तो समय को अपनाने में अधिक समय लगने के कारण फल असन्तोषजनक रहेगा और इस दशा में निदर्शन रीति का ही प्रयोग करना उपयुक्त होगा।

प्रश्न 5.
निदर्शन प्रणाली के गुण लिखें। (Write down the merits of Census Method.)
उत्तर-
गुण (Merits)

  • सरल प्रणाली (Simple Method)-इस प्रणाली का सबसे बड़ा गुण यह है कि यह बड़ी सरल तथा सुगम है। इसे आसानी से समझा जा सकता है।
  • कम खर्चीली (Less Expensive)-यह रीति कम खर्चीली है। इसको अपनाने पर समय, धन तथा श्रम सभी की बचत होती है।
  • कम समय (Less Time)-चूंकि इस रीति में समय कम लगता है, इसीलिए शीघ्रता से बदलती हुई सामाजिक व आर्थिक समस्याओं से सम्बन्धित अनुसन्धानों के लिए बहुत उपयुक्त है।
  • श्रम की बचत (Labour Saving)-न्यादर्श विधि में क्योंकि समग्र की कुछ इकाइयों को ही लेना होता है, श्रम की भी बचत होती है। न्यादर्श विधि प्रशासनिक पक्ष से संगणना विधि से अधिक उपयुक्त विधि है।
  • फल प्रायः वही (Similar Results) यदि बुद्धिमानी से दैविक निदर्शन या आकस्मिक प्रवरण (random sampling) द्वारा चुनाव किया जाए तो फल लगभग वही होगा जो समग्र रीति द्वारा अनुसन्धान में होगा।
  • वैज्ञानिक (Scientific)-यह रीति अधिक वैज्ञानिक है क्योंकि उपलब्ध समंकों की दूसरे न्यादर्शों या नमूनों द्वारा जांच की जा सकती है।
  • जांच विस्तृत (Detailed Enquiry)-चूंकि चुनी हुई सामग्री बहुत थोड़ी-सी है अत: उसकी विस्तृत जांच की जा सकती है।
  • लोचशीलता (Flexibility) संगणना विधि की तुलना में न्यादर्श विधि अधिक लोच वाली है।
  • विश्वसनीय (Accurate)-यदि न्यादर्श (Sample) को उचित आधार पर छांटा जाए तो उसके निष्कर्ष पूर्णतया विश्वसनीय होंगे।
  • सांख्यिकीय विभ्रम ज्ञात होना (Knowledge of Statistical Error)–अनुसन्धानकर्ता केवल न्यादर्श के आकार से ही अपने अनुसन्धान में सांख्यिकीय विभ्रम ज्ञात कर सकता है और यह भी ज्ञात कर सकता है कि यह विभ्रम सार्थक है अथवा नहीं।

प्रश्न 6.
निदर्शन प्रणाली के दोष लिखिए। (Write down the demerits of Sample Method.)
उत्तर-
दोष (Demerits) –

  1. उच्च स्तरीय शुद्धता के लिए अनुपयुक्त (Not Suitable for High Degree Accuracy)-यदि रीति वहां । के लिए उपयुक्त नहीं जहां बहुत उच्च स्तर की शुद्धता, अपेक्षित हो।
  2. परिणाम भ्रमोत्पादक (Result not Dependable)–यदि न्यादर्श लेने की अच्छी रीति न अपनाई जाए या न्यादर्श की मात्रा अपर्याप्त हो तो परिणाम बहुत भ्रमोत्पादक हो सकते हैं।
  3. पक्षपात (Favouritsm) इस प्रणाली का सबसे बड़ा दोष यह है कि जांचकर्ता केवल मदों की उन संख्याओं का चयन कर सकता है जो उसे अच्छी लगती हैं। वह मनमर्जी के निष्कर्ष निकाल सकता है जिससे पक्षपात की पूर्ण सम्भावना बनी रहती है।
  4. सजातीयता के अभाव में अनुपयुक्त (Unsuitable in case of Lack of Homogeneity)-जहां सजातीयता का पूर्ण अभाव हो अर्थात् इकाई भिन्न प्रकार की प्रकृति की हो वहां यह प्रणाली नहीं अपनाई जा सकती।
  5. जटिल विधि (Complicated Method) इस प्रणाली को समझने के लिए पूरा तजुर्बा और ज्ञान होना चाहिए। बिना ज्ञान के मदों की संख्या के प्रति चयन का चुनाव बहुत कठिन होता है।
  6. प्रतिनिधि सैम्पल के चुनाव की कठिनाई (Selecting Representative Sample is Difficult) कई बार मदों की संख्याओं में से प्रतिनिधि सैम्पल का चयन करने में बड़ी कठिनाई होती है। यदि प्रतिनिधि सैम्पल का चयन ठीक नहीं होगा तो प्राप्त निष्कर्ष ठीक नहीं हो सकते।
  7. कुछ स्थितियों में इसे प्रयोग नहीं किया जा सकता (It cannot be used under some conditions)न्यादर्श विधि को उस स्थिति में प्रयोग नहीं किया जा सकता. जहां समग्र की प्रत्येक इकाई सम्बन्धी सूचना लेना चाहते हों।
  8. बहुत छोटा समग्र (Very Small Population) यदि समग्र इतना छोटा है कि जिसमें बहुत कम इकाइयां हैं तो उस समय का अध्ययन न्यादर्श विधि से लाभदायक नहीं होगा।

प्रश्न 7.
निदर्शन प्रणाली के प्रमुख उद्देश्य लिखिए। निदर्शन अनुसन्धान के लिए उपयुक्त दशाएं लिखिए तथा न्यायदर्श लेने की शर्ते लिखें। (Write down the main objectives of Sampling. Explain the conditions for sampling.)
उत्तर-
निदर्शन के उद्देश्य (Objectives of Sampling)-निदर्शन प्रणाली के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. समग्र की विशेषताएं ज्ञात करना-निदर्शन प्रणाली का प्रथम उद्देश्य यह है कि कम समय, कम खर्च तथा कम श्रम के समय की विशेषताएं ज्ञात करना।
  2. विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति-विभिन्न विषयों के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने एवं विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति हेतु निदर्शन अनुसंधान का ही प्रयोग किया जाता है।
  3. परिणामों की सत्यता की जांच-संगणना अनुसंधान से प्राप्त परिणामों की सत्यता जांचने के लिए भी निदर्शन रीति अपनायी जाती है।
  4. निरन्तर जानकारी प्राप्त होना-जिन इकाइयों के व्यवहार के सम्बन्ध में निरन्तर जानकारी प्राप्त करनी हो, वहां पर निदर्शन रीति ही अपनाई जाती है।

निदर्शन अनुसन्धान के लिए उपयुक्त दशाएं-निम्न दशाओं में निदर्शन द्वारा अनुसन्धान किया जा सकता है –

  • जब अनुसन्धान का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो।
  • जहां संगणना अनुसन्धान असम्भव होता है। उदाहरण के लिए, यदि यह ज्ञात करना हो कि भारत की कोयले की खानों में कुल कितना और किस श्रेणी का कोयला है तो इसके लिए निदर्शन पद्धति ही उपयुक्त है। यहां संगणना अनुसन्धान असम्भव व अवांछनीय है।
  • जहां व्यापक दृष्टि से नियमों का प्रतिपादन करना हो।
  • जहां अनुसन्धान से सम्बन्धित वस्तुएं शीघ्र परिवर्तनशील हों और संगणना रीति अपनाने पर वस्तुओं के गुण व प्रकृति में काफी परिवर्तन हो जाने की सम्भावना हो।
  • जहां पर्याप्त मात्रा में धन, समय व कर्मचारी उपलब्ध न हों।
  • जहां बहुत उच्च स्तर की शुद्धता प्राप्त करना आवश्यक न हो।

न्यादर्श लेने की शर्ते अथवा आवश्यक तत्त्व (Conditions or Essentials of Sampling)निदर्शन प्रणाली में निष्पक्ष एवं यथार्थ निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए निम्न बातों का होना आवश्यक है-

  1. स्वतन्त्रता (Independence)-समग्र के भिन्न-भिन्न पद एक-दूसरे के स्वतन्त्र होने चाहिएं और प्रत्येक पद को न्यादर्श में चुन लिए जाने का समान अवसर होना चाहिए।
  2. सजातीयता (Homogeneity)-उस समय में जहां अनुसन्धान हो रहा है, किसी विशेष प्रकार का परिवर्तन नहीं होना चाहिए अर्थात् पदों के गुण व प्रकृति में परिवर्तन वांछनीय नहीं है।
  3. प्रतिनिधित्वता (Representativeness)-न्यादर्श ऐसा होना चाहिए कि उसमें मूल वस्तु के सभी गुण विद्यमान हों। यदि एक ही समग्र के दो न्यादर्श के लिए जाएं तो दोनों बिल्कुल समान हों।
  4. पर्याप्तता (Adequacy)-न्यादर्श पर्याप्त होना चाहिए। विभिन्न परिस्थितियों पर विचार करके यह निश्चित किया जाएगा कि कहां के लिए यह कितना प्रर्याप्त है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

प्रश्न 8.
निदर्शन नीतियां कौन-कौन सी हैं ? सविचार निदर्शन के गुण तथा दोष बताएं।
(What are the methods of Sampling ? Explain the merits and demerits of Deliberate Sampling.)
उत्तर-
न्यादर्श लेने के ढंग (Methods of Sampling)-न्यादर्श चुनने की कई रीतियां हैं। इनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं-

  1. सविचार निदर्शन (Deliberate, Purposive, Conscious or Representative Sampling),
  2. दैविक अथवा आकस्मिक निदर्शन (Random Sampling or Chance Selection),
  3. मिश्रित या स्तरित निदर्शन (Mixed or Stratified Sampling),
  4. सुविधानुसार निदर्शन (Convenience Sampling),
  5. कोटा निदर्शन (Quota Sampling),
  6. बहुत-से स्तरों पर क्षेत्रीय दैविक निदर्शन (Multi-stage Area Random Sampling),
  7. बहुचरण निदर्शन (Multi-stage Sampling),
  8. विस्तृत निदर्शन (Extensive Sampling),
  9. व्यवस्थित निदर्शन (Systematic Sampling)

सविचार निदर्शन (Deliberate or Purposive Sampling)इस पद्धति में चयन करने वाला न्यादर्श की इकाइयों का चयन समझ-बूझ कर करता है। चयन करते समय वह प्रयत्न करता है कि समय की सब विशेषताएं न्यादर्श में आ जाएं और इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह समग्र की प्रत्येक प्रकार की विशेषता को प्रकट करने वाले पदों को अपने न्यादर्श में सम्मिलित करता है। साधारणतः वह कोई प्रमाप निश्चित कर लेता है और उसी के आधार पर पदों का चयन करता है।

सविचार निदर्शन की तीन प्रमुख रीतियां हैं-
(क) केवल औसत गुण वाली इकाइयों को चुनना ताकि निकाले हुए फल समय को प्रकट कर सकें। बहुत उच्च एवं बहुत कम गुण वाली इकाइयों को छोड़ देना चाहिए ताकि बहुमत पर बुरा प्रभाव न पड़े।

(ख) उद्देश्य के अनुसार जान-बूझ कर न्यादर्श को छांटना चाहिए ताकि कोई महत्त्वपूर्ण इकाई छूटने न पाए।

(ग) प्रत्येक समूह को उसी अनुपात से शामिल किया जाता है जिस अनुपात में वह अनुसन्धान के क्षेत्र में है।

इस प्रकार के चयन करने में चयन करने वाले की भावना का चयन पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। चयन पर चयन करने वाले की प्रवृतियों और उसकी पक्षपात की भावना का प्रभाव पड़ता है और इसलिए इस प्रकार से निकाले गए परिणाम वैज्ञानिक दृष्टि से विश्वसनीय नहीं होते। उदाहरणार्थ, यदि कोई ऐसा व्यक्ति है जिसकी धारणा यह है कि किसी विशेष स्थान के मजदूरों की दशा अच्छी है तो इस प्रकार का न्यादर्श लेते समय उसके चयन में अच्छी दशा वाले परिवार आ जाएंगे और निष्कर्ष यह होगा कि वहां के मज़दूरों की दशा अच्छी है। परन्तु यदि इसके विपरीत, उसकी पूर्व धारणा यह है कि उस स्थान के मजदूरों की दशा बहुत बुरी है तो चयन करते समय बहुत बुरी दशा वाले परिवार ही उसके चुनाव में जाएंगे और परिणाम यह निकलेगा कि वहां के मजदूरों की दशा बहुत बुरी है।
गुण (Merits)-

  1. निदर्शन की यह पद्धति बहुत सरल है।
  2. यह विधि कम खर्चीली है।
  3. इस विधि में कम समय लगता है।
  4. प्रमाप निश्चित कर लेने व योजना बना लेने से न्यादर्श का चुनाव ठीक होने की सम्भावना होती है।
  5. यह उस अनुसन्धान के लिए उपयुक्त है जहां कुछ इकाइयां इतनी महत्त्वपूर्ण हों कि उन्हें शामिल करना अनिवार्य हो। . .

दोष (Demerits)

  • चयन करने वाले की पूर्व धारणाओं का चयन पर बहुत प्रभाव पड़ता है जो निष्कर्ष को अशुद्ध बना देता है।
  • यह विधि अधिक विश्वसनीय तथा शुद्ध नहीं है।
  • आविष्कारक लापरवाही कर सकता है।
  • इस विधि द्वारा पक्षपात की सम्भावना बनी रहती है।
  • इस विधि में संयोग तत्त्व नहीं होता अत: न्यादर्श समस्याओं के समाधान के लिए सम्भावना के सिद्धान्त (Theory of Probability) का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  • न्यादर्श विभ्रमों (Sampling Errors) का अनुमान लगाना भी कठिन होता है।

प्रश्न 9.
दैव निदर्शन से क्या अभिप्राय है? इस विधि के गुण तथा दोष बताएँ। (What is meant by Random Method ? Explain the merits and demerits of this method.)
उत्तर-
दैव अथवा आकस्मिक निदर्शन (Random Sampling or Chance Selection)-
इसमें चयन करने वाले को कोई बुद्धि नहीं लगानी पड़ती है। चयन आकस्मिक ढंग से हो जाता है। किसी पद को चयन में शामिल करने का कोई कारण नहीं होता। इसमें समग्र के किसी भी भाग के न्यादर्श में आ जाने की समान रूप से सम्भावना होती है । दैव निदर्शन में इकाइयों का चयन “अवसर के नियमों” (Laws of Chance) से निर्धारित होता है। इसके लिए यह आवश्यक है कि न्यादर्श को व्यक्तिगत इकाइयों का चयन मानवीय निर्णय से पूर्णतया स्वतन्त्र होना चाहिए । ऐसा ही करके न्यादर्श में सूक्ष्मता व सत्यता लाई जा सकती है ।

दैव निदर्शन रीति से न्यादर्श लेने के निम्नलिखित ढंग हैं –
1. लाटरी डालना (Lottery System)-इस रीति में सभी पदों के लिए अलग-अलग संख्या या चिह्न निश्चित कर लेते हैं और सबको एक-साथ किसी ढोल या डिब्बे में रख कर उसे हाथ से या किसी अन्य यन्त्र से घुमा देते हैं और फिर उनमें से कुछ बिना सोचे-विचारे उठा लेते हैं। जिन पदों को ये संख्याएं या चिह्न प्रकट करते हैं, उन्हें न्यादर्श में शामिल कर लिया जाता है।

2. आँख बन्द करके चुनना (Blindfold Selection)-इस रीति में चुनने वाला पदों की चिह्नित पर्चियों में से आँख बन्द करके कुछ को उठा लेता है और वे ही न्यादर्श में शामिल किए जाते हैं। यह रीति कहीं-कहीं दूसरे ढंग से काम मे लाई जाती है । किसी दीवार या खम्भे पर एक बड़ा वृत्ताकार या चौकोर मानचित्र लटका दिया जाता है । उसमें बराबर आकार व समान रूप से उतने खाने बने होते हैं जितनी पदों की संख्या होती है । एक खाना बिना किसी क्रम के पद का प्रतीक होता है। चुनने वाला आँख पर पट्टी बाँध कर उस मानचित्र पर उतनी बार तीर छोड़ता है जितने पद न्यादर्श में शामिल करने होते हैं । तीर जिन खानों पर लगता है, उन्हें न्यादर्श में सम्मिलित कर लिया जाता है।

3. पदों को किसी रीति से सजा कर (Arrangement of Items in same order)—इस रीति में पहले दो पदों को किसी ढंग से-उदाहरणार्थ, भौगोलिक, वर्णात्मक (alphabetical) या संख्यात्मक ढंग से सजा लेते हैं और उनमें से आकस्मिक ढंग से कुछ पदों को चुन लेते हैं । इसे ही नियमानुसार दैव निदर्शन (Systematic random sampling) कहते हैं। उदाहरण के लिए, कुल 105 इकाइयों में से 15 इकाइयों को चुनना है तो नियमानुसार ढंग के 15 समूह बना लिए जाएंगे। प्रत्येक समूह में सात-सात इकाइयां होंगी। अब प्रत्येक समूह में से दैविक निदर्शन द्वारा एकएक पद चुन लिया जाएगा।

4. ढोल घुमा कर (By Rotating the Drum)-इस रीति में एक ढोल में समान आकार के लकड़ी लोहे या अन्य किसी धातु के गोल टुकड़े जिन पर समय के विभिन्न पदों के लिए संख्या या चिह्न अंकित कर लेते हैं रख कर ढोल को हाथ या बिजली से घुमाते हैं और फिर जितने पद न्यादर्श में लेने होते हैं, उतने टुकड़े कोई भी निष्पक्ष व्यक्ति निकाल लेता है । ये टुकड़े जिन पदों का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें न्यादर्श में शामिल कर लिया जाता है।

5. टिपेट की संख्याओं अथवा दैविक निदर्शन सारणियों द्वारा (By Means of Tipett’s Numbers of Random Tables)-प्रसिद्ध सांख्यिक टिपेट ने 41,600 अंकों के प्रयोग से 10,400 चार अंकों (digits) की संख्याएं बिना किसी क्रम के सारणी में दी हैं । इस प्रकार सारणियां अन्य सांख्यिकी विशेषज्ञों तथा संस्थाओं के द्वारा भी तैयार की गई हैं। इन सारणियों की सहायता से न्यादर्श का चुनाव सरल होता है। सबसे पहले सभी पदों के लिए संख्याएं निश्चित कर लेते हैं और फिर बाद में सारणी की सहायता से किन्हीं पन्द्रह या पचास या अन्य संख्याओं को चुन लेते हैं। ये संख्याएं जिन पदों को प्रकट करती हैं उन्हें न्यादर्श में सम्मिलित कर लिया जाता है।

गुण (Merits)-

  1. पक्षपात रहित-इस रीति से चुनाव करने में पक्षपात के लिए गुंजाइश नहीं रहती है । सभी पदों को चुने जाने का समान अवसर होता है।
  2. अनायास चयन-चयन करने वाले को कोई बुद्धि नहीं लगानी पड़ती है। वह अनायास चयन करता है।
  3. चयन के लिए योजना नहीं-चयन के लिए कोई विस्तृत योजना नहीं बनानी पड़ती है ।
  4. मितव्ययिता-इस रीति में धन, समय व परिश्रम कम खर्च होता है।
  5. शुद्धता की जांच सम्भव-इस रीति में न्यादर्श की शुद्धता की जांच भी दूसरे न्यादर्श से लेकर की जा सकती है तथा निर्देशन विभ्रमों की माप की जा सकती है।
  6. समग्र का वास्तविक दिग्दर्शन-सांख्यिकीय नियमितता नियम और लाटरी नियम पर आधारित होने के कारण इसमें न्यादर्श इकाइयों द्वारा समग्र की वास्तविक विशेषताओं का प्रकटीकरण सम्भव होता है। वास्तव में वह समग्र का एक छोटा रूप बन जाता है।
  7. सम्भावना सिद्धात-संयोग तत्त्व (Chance factor) पर पूरी तरह निर्भर होने के कारण सम्भावना सिद्धान्त की समस्याओं के हल के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

दोष (Demerits)

  1. पूर्ण सूची बनाना-यह विधि समग्र की सभी इकाइयों की सूची की मांग करती है तथा ऐसी सूची उपलब्ध नहीं होती जिन कारण कई जांचों में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। यदि समग्र के एक भाग का ज्ञान है, तो इस विधि का प्रयोग नहीं हो सकता।
  2. विजातीय समन-यदि समग्र में भिन्नता बहुत अधिक हो तो दैविक न्यादर्श की विधि हो सकती है यदि प्रतिनिधि न्यादर्श न दे सके । मानो एक कक्षा में 80 विद्यार्थी हैं जिन में से 30 विद्याथियों के 40% से कम अंक हैं तथा 50 विद्यार्थियों के 70% से अधिक अंक हैं । दैविक न्यादर्श विधि से 10 विद्यार्थियों का न्यादर्श लेना है । यह सम्भव हो सकता है कि दसवां विद्यार्थी दूसरे भाग (अर्थात् जिनके अंक 70% से अधिक हैं) से सम्बन्धित हो, चाहे सम्भावना इसकी कम है । यदि ऐसा है तो हमारा न्यादर्श प्रतिनिधि न्यादर्श नहीं होगा । .
  3. न्यादर्श का आकार-एक निश्चित शुद्धता प्राप्त करने के लिए दैव न्यादर्श विधि के लिए न्यादर्श, स्तरित न्यादर्श . विधि (Stratified Sample Method) की तुलना में बड़ा होना चाहिए ।
  4. खर्चीली विधि-फील्ड सर्वे में यह समझा जाता है कि दैव न्यादर्श विधि द्वारा चुने गए न्यादर्श दूर-दूर स्थानों पर स्थित होते हैं तथा आंकड़े एकत्र करने के लिए समय व धन बहुत अधिक लगता है ।
  5. योग्यता की आवश्यकता-अनियमित प्रतिचयन का प्रयोग करने के लिए योग्यता की आवश्यकता है । एक साधारण व्यक्ति इस विधि का प्रयोग नहीं कर सकता ।

प्रश्न 10.
मिश्रित निदर्शन से क्या अभिप्राय है ? इस विधि के गुण और दोष बताएं। (What is meant by Mixed or Stratified Sampling ? Give its merits and demerits.)
उत्तर-
मिश्रित या स्तरित निदर्शन (Mixed or Stratified Sampling)- यह प्रणाली सविचार निदर्शन और दैव निदर्शन दोनों का सम्मिश्रण है । इसमें सबसे पहले सविचार निदर्शन द्वारा सम्पूर्ण को किसी गुण विशेष के आधार पर कई भागों में बांट देते हैं । इसके उपरान्त दैव निदर्शन द्वारा प्रत्येक भाग में से कुछ पदों को चुन लिया जाता है ।

उदाहरणार्थ, यदि किसी कक्षा में 25 विद्यार्थी हैं और इनमें से न्यादर्श लेना है तो सबसे पहले सविचार निदर्शन द्वारा इन विद्यार्थियों को तीन श्रेणियों में विभक्त कर दिया जैसे प्रथम श्रेणी, द्वितीय श्रेणी व तृतीय श्रेणी। मान लिया कि प्रथम श्रेणी में 5, द्वितीय में 10 और तृतीय में 10 विद्यार्थी हैं। अब दैव निदर्शन प्रणाली से प्रत्येक श्रेणी में से संख्या के अनुपात में विद्यार्थी चुन लिए जाएं, अर्थात् प्रथम श्रेणी से 1, द्वितीय श्रेणी से 2 और तृतीय श्रेणी से 2 विद्यार्थी चुन लिए जाएंगे। इस प्रकार से चुने हुए पांच विद्यार्थी कक्षा का अधिकतम प्रतिनिधित्व करेंगे।

गुण (Merits)—

  • अधिक प्रतिनिधित्व-इस विधि में अधिक प्रतिनिधित्व पाया जाता है । इसमें जनसंख्या को अलग-अलग भागों में समान रूप में बांट दिया जाता है और अनियमित प्रतिचयन द्वारा हर वर्ग में से चयन करने के पश्चात् सैम्पल में शामिल की जाती है।
  • अधिक शुद्धता-इस विधि द्वारा प्रत्येक वर्ग को समान मदों के आधार पर बांटा जाता है। हर वर्ग में से अनियमित प्रतिचयन प्रणाली द्वारा इकाइयों का चयन करने के पश्चात् सैम्पल में शामिल की जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष शुद्धता रखते हैं।
  • कम समय-इस विधि द्वारा कम समय लगता है ।
  • कम खर्च-इस विधि द्वारा कम खर्च आता है ।
  • विषम वितरण-यह विधि न्यादर्श लेने की सबसे अच्छी विधि होती है जब समय धनात्मक दिशा (+ve side) की ओर या फिर ऋणात्मक दिशा (-ve side) की ओर विषम हो।।
  • तुलनात्मक अध्ययन-इस विधि में विभिन्न स्तर के तत्त्वों के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन सम्भव होता
  • इकाइयों का चयन-विभिन्न भागों से इकाइयों का चयन इस प्रकार किया जा सकता है कि वे सब एक ही भौगोलिक क्षेत्र में केन्द्रित हों ।

दोष (Demerits)- इस विधि के निम्न दोष हैं-

  1. जटिल-दूसरी विधियों की तुलना में यह विधि जटिल है । यह इस कारण है कि इसमें वर्ग बनाने की प्रक्रिया पाई जाती है ।
  2. वर्गों को बनाना-स्तरित न्यादर्श विधि में समग्र की बांट विभिन्न समरूप वर्गों में करनी पड़ती है। इसके लिए सांख्यिकीय दक्षता की आवश्यकता है।
  3. समग्र सम्बन्धी सूचना-जब तक समग्र सम्बन्धी सूचना उपलब्ध न हो, स्तरित न्यादर्श सम्भव नहीं होती। यदि किसी उद्योग की 500 इकाइयों में से हमें 50 इकाइयों का न्यादर्श स्तरित विधि द्वारा लेना है, तो वर्गीकरण करने के लिए उसकी बिक्री, लाभ, निवेश सम्बन्धी सूचना का मिलना आवश्यक है। – इन दोषों के होते हुए भी, इस विधि को सबसे अच्छी विधि माना जाता है।
  4. कोटा निदर्शन-यह प्रणाली यद्यपि मिश्रित प्रणाली की तरह है, फिर भी इसमें और मिश्रित प्रणाली दोनों में बहुत बड़ा अन्तर है। मिश्रित प्रणाली में समग्र की इकाइयों के वर्गीकरण के बाद अनुसन्धानकर्ता स्वयं प्रत्येक वर्ग से आवश्यकतानुसार इकाइयां छांटता है, परन्तु इस प्रणाली में इकाइयां छांटने का काम गणकों पर छोड़ दिया जाता है। गणकों को ऐसा करने के लिए अनुसन्धानकर्ता द्वारा पर्याप्त सूचनाएं दे दी जाती हैं और बता दिया जाता है कि उन्हें किस भाग से कितनी इकाइयों का चुनाव करना है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 16 संगणना तथा न्यादर्श विधियाँ

गुण (Merits)-
यदि गुणक अपना काम ईमानदारी व बुद्धिमत्ता से करें तो यह प्रणाली उसी प्रकार सन्तोषजनक फल दे सकती है जैसे मिश्रित प्रणाली द्वारा पाए जाते हैं।

प्रश्न 11.
क्रमबद्ध निदर्शन से क्या अभिप्राय है ? इस विधि के गुण तथा दोष बताएँ ।)
(What is meant by Systematic Sampling ? Explain merits and demerits of this method ?)
उत्तर-
क्रमबद्ध या व्यवस्थित निदर्शन (Systematic Sampling)—व्यवस्थित निदर्शन विधि में समग्र की इकाइयों को संख्यात्मक, भौगोलिक अथवा वर्णात्मक (Alphabetical) आधार पर क्रमबद्ध कर लिया जाता है। इनमें से प्रत्येक इकाई का चयन कर के न्यादर्श प्राप्त कर लिया जाता है। उदाहरणार्थ यदि 100 विद्यार्थियों में से 10 चुनने हैं तो इन्हें संख्यात्मक आधार पर क्रमबद्ध करके प्रत्येक दसवें विद्यार्थी को न्यादर्श में शामिल किया जाएगा। यदि पहली संख्या 5वीं है तो शेष संख्याएं 15वीं, 25वीं, 35वीं, 45वीं, 55वीं, 65वीं, 75वीं, 85वीं तथा 95वीं होगी। यह विधि दैव निदर्शन विधि का ही एक रूप है।

गुण (Merits)

  • यह एक सरल तथा सुगम प्रणाली है । इससे न्यादर्श प्राप्त करने आसान होने हैं ।
  • इस प्रणाली में पक्षपात की सम्भावना कम होती है।

दोष (Demerits)

  • इस विधि में प्रत्येक इकाई को चयन का समान अवसर प्राप्त नहीं होता क्योंकि पहली इकाई का चयन दैव निदर्शन के आधार पर किया जाता है।
  • यदि सभी इकाइयों की विशेषताएं एक समान हैं तो निष्कर्ष प्राप्त नहीं होंगे।

निष्कर्ष (Conclusion)-निदर्शन प्रणाली की उपर्युक्त सभी रीतियां अपने-अपने दृष्टिकोणों से महत्त्वपूर्ण हैं। सभी रीतियों के गुण व दोष हैं। यह कहना कि इन सब रीतियों में से कौन-सी रीति अधिक श्रेष्ठ है अत्यन्त कठिन कार्य है, “क्योंकि रीति का निर्वाचन बहुत कुछ सीमा तक समग्र की प्रकृति, इकाइयों की विशेषता, समग्र का आकार, शुद्धता की मात्रा, समय व साधन पर निर्भर करता है।” वैसे सामान्यतः दैव निदर्शन व स्तरित रीति का प्रयोग अधिक किया जाता है क्योंकि ये दोनों रीतियां निदर्शन के सिद्धान्त पर पूरी तरह से आधारित हैं।

प्रश्न 12.
निदर्शन गलतियां तथा गैर-निदर्शन गलतियां स्पष्ट करें। (Explain the Sampling Errors and Non-Sampling Errors.)
उत्तर-
जब निदर्शन का चुनाव किया जाता है तो दो प्रकार की गलतियां होती हैं
1. निदर्शन (सैंपलिंग) गलतियां (Sampling Errors) ।
2. गैर निदर्शन गलतियां (Non Sampling Errors)।

1. निदर्शन (सैंपसिंग गलतियां) (Sampling Errors) निदर्शन लेते समय कुछ गलतियां हो जाती हैं जो कि इस प्रकार हैं-

  • जन-संख्यक गलती (Population Errors) खोज कर्ता को समझ में नहीं आता कि किन लोगों से आंकड़े इकट्ठे किए जाएं। सुबह के नाश्ते में परिवार के बुजुर्ग, जवान तथा बच्चे अलग अलग तरजीव से नाश्ता करते हैं। चुनाव के समय किन लोगों के आंकड़े लिए जाएं जहां गलती हो सकती हो।
  • गलत नमूना (Wrong Sample)-यदि नमूने का चुनाव गलत हो जाए तो परिणाम गलत हो जाते हैं।
  • जवाब न देना (No Response)-जिन लोगों से आंकड़े इकट्ठे किये जाते हैं यदि वह जवाब नहीं देते तो गल्ती की सम्भावना होती है।
  • गलत चुनाव (Wrong Selection) यदि निदर्शन का चुनाव गलत हो जाता है तो भी ठीक परिणाम प्राप्त नहीं होते। गरीबी देखने के लिए मध्य वर्ग के लोगों से आंकड़े इकट्ठे किए जाएं तो भी गल्ती हो सकती है।
  • सैंपल का आकार (Size of Sample)-सैंपल का आकार यदि बहुत छोटा है तो उचित निष्कर्ष नहीं होगा।

2. गैर-निदर्शन गलतियां (Non-Sampling Errors)

  • माप के समय गलती (Error of Measurement)-यह गलती नमूने के स्केल (Scale) में अन्तर कारण हो सकती है। यदि दौड़ में समय का माप कभी किलोमीटर और कभी प्रति मील में किया जाए तो निष्कर्ष उचित नहीं होगा।
  • प्रश्न समझने में गलती (Error of Mis-Interpretation)- यदि प्रश्नावली ठीक नहीं बनाई गई तो प्रश्न के समझने में गलती हो सकती है तथा निष्कर्ष ठीक नहीं होंगे।
  • उचित सूचना न देना (No Proper Response)-यदि खोजकर्ता को जवाब देने वाले उचित तथा ठीक सूचना नहीं देते तो भी नतीजे में गलती हो सकती है।
  • गणितिक गलती (Error of Calculation)-इकट्ठी की गई सूचना को गणना करते समय गलती हो जाए तो भी प्राप्त नतीजों में गलती हो सकती है।

प्रश्न 13.
भारत में जनगणना पर नोट लिखें। (Write a note on Census in India.)
उत्तर-
भारत में हर 10 वर्ष के पश्चात् जनसंख्या की गणना की जाती है। 2011 तक 15 बार जनगणना हो चुकी है। 1872 सबसे पहले Mayor ने जनगणना की। उसके पश्चात् 1881 में विधिपूर्वक जनगणना की गई। इसके पश्चात् 1891, 1901, 1911, 1921, 1931, 1941 में जनगणना की गई। आज़ादी के पश्चात् 1951, 1961, 1971, 1981, 1991, 2001, 2011 में जनगणना की गई। आज़ादी के बाद जनसंख्या का विवरण इस प्रकार है-

वर्ष जनसंख्या (करोड़ों में) वर्ष जनसंख्या करोड़ों में
1951 36 1991 84
1961 43 2001 102
1971 54 2011 121
1981 67

अब 2021 में जनसंख्या के आंकड़े इकट्ठे किए जाएंगे। भारत की जनसंख्या की विशेषताएं इस प्रकार हैं :

  1. चीन की जनसंख्या विश्व में सबसे अधिक है और भारत की जनसंख्या का दूसरा स्थान है।
  2. विश्व की जनसंख्या में भारत का प्रत्येक 7वां मनुष्य भारतीय है।
  3. भारत की जनसंख्या में 1000 पुरुषों के अनुपात में 896 औरतें हैं।
  4. 2011 की जनगणना से स्पष्ट होता है कि गरीब क्षेत्रों में जनसंख्या अधिक है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ : कालिक श्रृंखला

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ: कालिक श्रृंखला Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 21 रेखीय ग्राफ: कालिक श्रृंखला

PSEB 11th Class Economics रेखीय ग्राफ: कालिक श्रृंखला Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
काल श्रेणी ग्राफ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समय अवधी पर आधारित मूल्यों को श्रेणी को काल श्रेणी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
जो रेखाचित्र वास्तविक मूल्यों के आधार पर बनाए जाते हैं तो उसको निरपेक्ष काल श्रेणी चित्र कहते
उत्तर-
सही।

प्रश्न 3.
यदि रेखाचित्र की रचना आनुपातिक माप के आधार पर की जाती है तो उसको सापेक्ष काल श्रेणी चित्र कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 4.
गलत आधार का प्रयोग कब किया जाता है ?
उत्तर-
जब आंकड़ों में अन्तर तो कम होता है परन्तु शून्य से दूरी अधिक होती है तो उस समय गलत आधार का प्रयोग किया जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ : कालिक श्रृंखला

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Question)

प्रश्न-
एक फ़र्म के स्वर्णिक लाभ के निम्नलिखित आंकड़ों से काल श्रेणी आरेख द्वारा प्रस्तुत करें।

वर्ष : 1977 1978 1979 1980 1981 1982 1983
लाभ (हज़ार ₹): 20 32 35 25 40 30 20

उत्तर:
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 1

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निम्न तालिका में वर्ष 2001 से 2007 तक एक कॉलेज के विद्यार्थियों की संख्या दी गई है। इसे एक बिन्दु-रेखीय चित्र के रूप में प्रदर्शित करें –

वर्ष ( Years) विद्यार्थियों की संख्या (No. of Students)
2001 1,500
2002 2,000
2003 2,200
2004 3,000
2005 3,500
2006 3,800
2007 5,000

हल : रेखाचित्र में प्रदर्शित विभिन्न वर्षों में विद्याथियों की संख्या-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 2

प्रश्न 2.
निम्न आंकड़ों को ग्राफ द्वारा प्रदर्शित करें

वर्ष 2001 2002 2003 2004 2005 2006 2007
उत्पादन(प्रति हैक्टेयर क्विटल) 13.9 12.8 13.9 12.8 6.5 2.9 14.8

उत्तर-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 3
दो या दो से अधिक तथ्यों का रेखाचित्र
एक रेखाचित्र में एक से अधिक रेखाओं का भी प्रदर्शन सम्भव है। रंग, बनावट या लेख के आधार पर रेखाओं में विविधता उत्पन्न की जा सकती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ : कालिक श्रृंखला

प्रश्न 3.
निम्न आंकड़ों को बिन्दुरेखा विधि से प्रदर्शित करें
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 4
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 5

प्रश्न 4.
कृत्रिम आधार रेखा से क्या आशय है ?
उत्तर-
कृत्रिम आधार रेखा
(False Base Line) बिन्दुरेख की रचना में एक महत्त्वपूर्ण नियम यह है कि Vertical Scale को शून्य अर्थात् मूल बिन्दु से प्रारम्भ करना चाहिए ; किन्तु जब चलों के मान अत्यधिक विशाल होते हैं तब इस नियम को तोड़ना पड़ता है क्योंकि ऐसी दशा में यदि पैमाना शून्य से शुरू किया जाएगा तो मान बिन्दुओं को आधार रेखा से बहुत ऊंचाई पर अंकित करना पड़ेगा। बीच में अनावश्यक रूप से स्थान छूट जाएगा और फिर भी यह सम्भव है कि बिन्दुरेख पत्र की सीमित ऊंचाई में सभी बिन्दुओं को अंकित न किया जा सके। अतः कृत्रिम आधार रेखा की विधि अपनाई जाती है। इसके लिए शून्य आधार रेखा और न्यूनतम मान वाले बिन्दु के बीच शून्य रेखा के समीप ही लहरदार रेखाएं एक-दूसरे के निकट खींच कर Vertical Scale को तोड़ देते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 6

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
समंकों के बिन्द-रेखीय प्रदर्शन के क्या लाभ तथा सीमाएं हैं ? (What are the advantages and defects of Graphs ?)
उत्तर-
समंकों के बिन्दु-रेखीय प्रदर्शन के लाभ
(Advantages of Graphs) बिन्दु-रेखीय समंकों के प्रदर्शन के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. रेखाचित्र में समंकों को सरल रूप से प्रस्तुत किया जाता है।
  2. रेखाचित्र में समंकों को आकर्षक रूप में प्रस्तुत किया जाता है
  3. रेखाचित्र से समंकों को प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किया जाता है।
  4. रेखाचित्रों से समंकों को संक्षिप्त करने में सहायता मिलती है।
  5. रेखाचित्रों से तुलनात्मक अध्ययनों में सहायता मिलती है।
  6. रेखाचित्रों से पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलती है।
  7. रेखाचित्रों से सांख्यिकीय विश्लेषण में सहायता मिलती है। इनकी सहायता से माध्यका तथा बहुलक पता किए जा सकते हैं।
  8. रेखाचित्रों से निष्कर्ष निकालने में सहायता मिलती है।

बिन्दु-रेखीय प्रदर्शन की सीमाएं और दोष : (Defects and Limitations of Graphs)
बिन्दु-रेखीय प्रदर्शन की प्रमुख सीमाएं अनलिखित हैं- .

  1. बिन्दु-रेखीय प्रदर्शन द्वारा केवल प्रवृत्ति का प्रदर्शन होता है, वास्तविक मूल्यों का ज्ञान मिलना सम्भव नहीं है।
  2. जो व्यक्ति बिन्दु-रेखीय प्रदर्शन का ज्ञान नहीं रखते उनके लिए इनका कोई मूल्य नहीं होता।
  3. इनमें निश्चितता का अभाव पाया जाता है।
  4. कई बार इनके प्रदर्शन का प्रभाव भ्रामक भी होता है।
  5. बिन्दु-रेखीय चित्रों को किसी तथ्य की पुष्टि के लिए प्रस्तुत नहीं किया जा सकता।
  6. रेखाचित्र में अशुद्ध निष्कर्ष भी निकाले जा सकते हैं।
  7. मापदण्ड में थोड़ा-सा परिवर्तन होने पर भी रेखाचित्र के आकार में बहुत परिवर्तन हो सकता है।

प्रश्न 2.
बिन्दुरेख बनाने के लिए नियम लिखें। (Write down the rules for the construction of Graph.)
उत्तर-
बिन्दुरेख बनाने के नियम
(Rules for the Construction of Graph) बिन्दुरेख बनाते समय निम्नलिखित नियमों का पालन किया जाना चाहिए

1. उचित शीर्षक (Proper Heading)-बिन्दुरेखा का शीर्षक स्पष्ट, उपयुक्त और पूर्ण होना चाहिए जिससे देखते ही यह ज्ञान हो जाए कि उसकी विषय-वस्तु क्या है।

2. बिन्दु रेखाओं का चित्रण (Plotting of graphs)—प्रायः बिन्दुरेख मूल बिन्दु के दाहिनी ओर ऊपर की ओर बनाया जाता है। अतः भुजाक्ष बिन्दुरेख पत्र के नीचे की ओर तथा कोटि अक्ष बायीं ओर होना चाहिए। भुजाक्ष की लम्बाई कोटि-अक्ष से डेढ़ गुना होनी चाहिए।

3. उचित मापदण्ड (Proper Scale)-रेखाचित्र के निर्माण में उचित पैमाने का विशेष महत्त्व है। सामान्यतः पैमाना ऐसा लिया जाना चाहिए कि चित्र पर सुन्दरता से अंकित किया जा सके।

4. कृत्रिम आधार रेखा का प्रयोग (Use of False Base Line)-नियमतः उदग्र पैमाना शून्य से प्रारम्भ होना चाहिए पर यदि प्रदर्शित होने वाले मूल्यों में अन्तर कम हो और न्यूनतम संख्या काफी बड़ी हो तो कृत्रिम आधार रेखा का प्रयोग किया जाना चाहिए।

5. अन्तर को स्पष्ट करना (Clear Difference)-जहां एक ही बिन्दुरेख पत्र पर कई वक्र बनाने हों तो प्रत्येक वक्र को अलग-अलग रंग या चौड़ाई या प्रकार प्रदर्शित करना चाहिए।

6. क्षैतिज और उदग्र मापदण्ड (Vertical and Horizontal Measure) क्षैतिज तथा उदग्र दोनों मापदण्ड अलग-अलग लिए जा सकते हैं और कभी-कभी उदग्र माप श्रेणी पर दो समंक-मालाओं को प्रदर्शित करने के लिए दो मापदण्ड साथ-साथ भी लिए जा सकते हैं।

7. आवश्यक टिप्पणियां (Required footnotes)-बिन्दुरेख के नीचे जहां आश्यक हो तो टिप्पणियां और समंकों का प्राप्ति स्थान भी दे देना चाहिए।

8. मापदण्ड प्रदर्शित करने वाले मूल्य (Table of Data)-इन मूल्यों को भुजाक्ष के नीचे और कोटि-अक्ष की बायीं ओर लिखना चाहिए। वक्रों के साथ समंकों को पास ही सारणी में दे देना चाहिए ताकि उनका विस्तृत अध्ययन किया जा सके जिस में उनकी शुद्धता की जांच सम्भव हो सके।

9. बिन्दु मिलाना (Joining of Points)-जब आंकड़ों को बिन्दु-रेखीय विधि द्वारा ग्राफ-पेपर पर पेश किया जाता है तो आंकड़ों से पहले बिन्दुओं का प्रयोग किया जाता है। बाद में इन बिन्दुओं को पैमाने द्वारा ठीक ढंग से मिलाना चाहिए अर्थात् बिन्दुओं को मिलाते समय जब पैमाने की सहायता ली जाती है तो रेखा बिन्दुओं के बीच ठीक प्रकार से गुज़रनी चाहिए और रेखा को पैन या पैन्सिल द्वारा मिलाया जाए अर्थात् रेखा खींचते समय समानता होनी चाहिए। ऐसा न हो कि रेखा कहीं से मोटी हो और कहीं बारीक या इतनी फीकी कि दिखाई देने में मुश्किल हो। ।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ : कालिक श्रृंखला

10. स्वच्छता (Neatness) आंकड़ों को बिन्दु-रेखीय विधि द्वारा पेश करते समय सफाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए। सफाई रखने से चित्रकारी सुन्दर और आकर्षक होगी।

प्रश्न 3.
समय श्रेणी ग्राफ क्या होता है? मनघडंत उदाहरण द्वारा समय श्रेणी ग्राफ के निर्माण को स्पष्ट करें।
(What is Time Series Graph? Explain the Time Series Graph with the help of a Hypothetical example.)
उत्तर-
समय श्रेणी ग्राफ (Time Series Graph)-ग्राफ कई तरह के होते हैं, परन्तु दो तरह के ग्राफ अधिक प्रचलित हैं
(i) समय श्रेणी ग्राफ (Time Series Graphs)
(ii) आवृत्ति वितरण ग्राफ (Frequency Distribution Graphs)

(i) समय श्रेणी ग्राफ (Time series Graphs)-जब किसी तथ्य को समय के आधार पर प्रस्तुत किया जाता है तो ऐसे ग्राफ को समय श्रेणी ग्राफ कहते हैं। साधारण तौर पर निश्चित समय को जब समान भागों में विभाजित कर मदों के समुच्चय को ग्राफ पेपर पर प्रदर्शन करने की विधि को समय श्रेणी ग्राफ कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप मान लो 1951 से 1991 तक भारत की जनसंख्या की वृद्धि को ग्राफ पेपर पर प्रस्तुत किया जाए तो ऐसे आंकड़ों की श्रेणी को समय श्रेणी कहा जाता है।

समय सारणी के आधार पर जो ग्राफ अथवा चित्र बनाए जाते हैं उनको समय चित्र (Histogram) कहा जाता है। समय श्रेणी ग्राफ बनाने के लिए ग्राफ पेपर पर Ox रेखा तथा OY रेखा बनाई जाती है। Ox रेखा पर स्वतन्त्र चर तथा OY रेखा पर निर्धारित चर लिए जाते हैं। इस प्रकार ग्राफ का निर्माण किया जाता है तो उस विधि को ग्राफ विधि कहते हैं। समय श्रेणी ग्राफ को मुख्य तौर पर दो भागों में विभाजित कर स्पष्ट किया जा सकता है
(A) एक चर से सम्बन्धित ग्राफ (One Variable Graph)
(B) दो अथवा दो से अधिक चरों से सम्बन्धित ग्राफ (Two or more than two variable graph)

(A) एक चर से सम्बन्धित ग्राफ (One variable graph)-एक चर से सम्बन्धित आंकड़े दिए गए हों तो इनका ग्राफ बनाना आसान होता है। ऐसे ग्राफ की व्याख्या भी आसानी से की जा सकती है। उदाहरणस्वरूप भारत की स्वतन्त्रता . के पश्चात् जनसंख्या की वृद्धि को ग्राफ की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।

वर्ष 1951 1961 1971 1981 1991 2001
जनसंख्या (करोड़ों में) 36 43 54 68 84 102

भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् जनसंख्या (एक घर समय चित्र)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 7
(B) दो अथवा दो से अधिक चरों से सम्बन्धित ग्राफ (Two or more than two variable graph)-जब दो अथवा दो से अधिक चरों को एक ही रेखा चित्र द्वारा दिखाया जता है तो ऐसे ग्राफ को दो अथवा दो से अधिक चरों से सम्बन्धित ग्राफ कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप जनसंख्या के आंकड़ों में यदि हमें पुरुष तथा स्त्रियों की संख्या अलग-अलग दी गई है तो इन दोनों तत्त्वों को ही ग्राफ के रूप में प्रकट किया जाए तो ऐसे ग्राफ को दो चरों से सम्बन्धित ग्राफ कहा जाता है। . उदाहरण-भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् पुरुष तथा स्त्रियों की संख्या का विवरण निम्नलिखित सूचीपत्र में दिया गया है। इसको दो चरों से सम्बन्धित ग्राफ के रूप में पेश कीजिए
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 8
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् पुरुष तथा स्त्रियों की जनसंख्या (दो चर समय चित्र)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 21 रेखीय ग्राफ कालिक श्रृंखला 9

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण

PSEB 11th Class Economics रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
रेखाचित्रीय प्रदर्शन के लाभ लिखें।
उत्तर-
रेखाचित्रीय प्रदर्शन आंकड़ों को प्रस्तुत करने का आकर्षक, सरल व प्रभावशाली साधन है।

प्रश्न 2.
आवृत्ति आयत चित्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आवृत्ति आयत चित्र वह रेखाचित्र है जिसमें अखण्डित श्रृंखला से सम्बन्धित मदों तथा उनकी आवृत्तियों को आयतों के रूप में ग्राफ पेपर पर प्रदर्शित किया जाता है।

प्रश्न 3.
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संचयी आवृत्ति वक्र संचयी आवृत्ति वितरण को ग्राफ के रूप में प्रस्तुत करने वाला वक्र है। संचयी वक्र को ओजाइव (Ogive) भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
आवृत्ति बहुभुज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज वह रेखाचित्र है जो आवृत्ति आयत चित्र (Histogram) के प्रत्येक आयत के शीर्ष के मध्य बिन्दुओं को सरल रेखाओं द्वारा मिलाकर बनाया जाता है।

प्रश्न 5.
कृत्रिम आधार रेखा किसे कहते हैं?
उत्तर-
शून्य रेखा अथवा मूल बिन्दु से कुछ ऊपर बनाई जाने वाली टेढ़ी-मेढ़ी रेखा जिस से धनात्मक प्रमाप आरम्भ की जाती है।

प्रश्न 6.
संचयी आवृत्ति वक्र को ओजाइव भी कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 7.
जब अखण्डित श्रृंखला को उनकी मदों के अनुसार आवृत्ति का प्रगटावा एक ग्राफ पेपर पर किया जाता है तो इसको …………………. कहते हैं।
(a) आवृत्ति वितरण
(b) आवृत्ति वक्र
(c) आवृत्ति आयत
(d) आवृत्ति बहुभुज।
उत्तर-
(c) आवृत्ति आयत।

प्रश्न 8.
आवृत्ति आयत (Histogram) की सभी आयतों के मध्य बिन्दुओं को सरल रेखा द्वारा मिला दिया जाता है तो इसको ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज (Polygon)।

प्रश्न 9.
आवृत्ति आयत का क्षेत्रफल = ……………………….. का क्षेत्रफल
उत्तर-
आवृत्ति वक्र।

प्रश्न 10.
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव दो प्रकार की होती है
(i) ऊपरी सीमा से कम
(ii) ……….
उत्तर-
निचली सीमा से अधिक।

प्रश्न 11.
चित्रमयी और बिन्दु रेखीय प्रस्तुतीकरण में कोई एक अन्तर बताएँ।
उत्तर-
बिन्दु रेखीय चित्र को ग्राफ पर बनाते हैं और चित्रमयी को साधारण कागज़ पर बनाते हैं।

प्रश्न 12.
समय श्रेणी चित्र ………. के आधार पर बनाए जाते हैं।
उत्तर-
समय।

प्रश्न 13.
आवृत्ति आयत का क्षेत्रफल = …………….. का क्षेत्रफल।
उत्तर-
आवृत्ति वक्र।

प्रश्न 14.
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव दो प्रकार की होती हैं।
(i) ऊपरी सीमा से कम
(ii) …………….
उत्तर-
निचली सीमा से अधिक।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
आंकड़ों को प्रस्तुत करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि ग्राफ विधि अथवा बिन्दु रेखीय विधि होती है। इस विधि में आंकड़ों को ग्राफ पेपर (Graph Paper) पर प्रस्तुत किया जाता है। जब हम ग्राफ पेपर आंकड़ों को स्पष्ट करते हैं तो कम समय या कम परिश्रम से एक मनुष्य आंकड़ों को समझने योग्य हो जाता है। इसलिए क्राक्सटन तथा काउडन ने ठीक कहा है, “ग्राफ विधियां सीमित सूचना को जल्दी तथा प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने की लाभदायक विधियां हैं।”

प्रश्न 2.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन के कोई दो गुण बताएं।
उत्तर-

  1. आंकड़ों को सरल बनाना (To make data simple) आंकड़े मूल रूप में जटिल होते हैं, जिनको स्पष्ट करना तथा समझना कठिन होता है। इसलिए ग्राफ द्वारा आंकड़ों को आसानी से समझा जा सकता है।
  2. तुलना के लिए आसान (To make easy comparison)-जब आंकड़ों को ग्राफ की विधि द्वारा दिखाया जाता है तो इनमें तुलना करनी बहुत आसान हो जाती है जैसे कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के 10 + 2 कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए प्रतिशत अंकों की तुलना पिछले वर्ष के प्रतिशत अंकों से करते समय ग्राफ विधि लाभदायक होती है। इसी तरह एक मरीज़ के बुखार की स्थिति का अनुमान ग्राफ को देखकर डॉक्टर आसानी से लगा लेता है।

प्रश्न 3.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन की कोई दो सीमाएं बताएं।
उत्तर-

  1. निश्चितता की कमी (Lack of Accuracy)-ग्राफ विधि द्वारा आंकड़ों की प्रवृत्ति का पता चलता है। परन्तु इन आंकड़ों में निश्चितता की कमी होती है। ग्राफ द्वारा प्रदान की गई सूची युद्ध परिणाम प्रदान नहीं करती।
  2. गलत परिणाम (Wrong Results) -ग्राफ विधि द्वारा कई बार गलत परिणाम भी निकाले जा सकते हैं। क्योंकि रेखाचित्र द्वारा रेखाओं के उतार-चढ़ाव को देखकर 100% शुद्ध परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।

प्रश्न 4.
आवृत्ति आयत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आवृत्ति आयत (Histogram)-आवृत्ति आयत चित्र वह चित्र है, जिनमें अखण्डित आवृत्ति वितरण (Continuous Frequency Distribution) को उनकी मदों के अनुसार आवृत्तियों का प्रकटावा एक ग्राफ पेपर पर किया जाता है। इस चित्र में OX पर मदों के वर्गांतर (Class Intervals) तथा OX पर वर्गांतर की आवृत्ति (Frequency) को प्रकट करते हैं। इस प्रकार आयतों के रूप में जो चित्र बन जाता है, उसको आयत आवृत्ति (Histogram) चित्र कहा जाता है।

प्रश्न 5.
आवृत्ति बहुभुज का अर्थ बताएं।
उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygon) आवृत्ति बहुभज वह चित्र होता है जोकि आवृत्ति आयत (Histrogram) की सभी आयतों के ऊपरी भागों के मध्य बिन्दुओं को सीधी रेखा द्वारा मिलाकर बनाया जाता है। इसमें आवृत्ति बहुभुज के दोनों किनारों को आधार रेखाओं तक दोनों ओर बढ़ा दिया जाता है। इससे आवृत्ति बहुभुज का निर्माण हो जाता है। आवृत्ति बहुभुज तथा आवृत्ति आयतों का क्षेत्रफल एक-दूसरे के समान होता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित तालिका में विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए अंकों का विवरण दिया गया है। आवृत्ति आयत चित्र द्वारा प्रदर्शित करो।

अंक : 0-10 10-20 20-30 30-40 40-50
विद्यार्थियों की संख्या : 8 12 20 30 15

उत्तर-
आवृत्ति आयत (Histogram)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 1

प्रश्न 2.
आवृत्ति बहुभुज से क्या अभिप्राय है ? निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से आवृत्ति बहुभुज का निर्माण करो।

अंक : 0-5 5-10 10-15 15-20 20-25 25-30
विद्यार्थी : 10 18 30 50 40 20

उत्तर-
आवृत्ति बहुभुज का अर्थ (Meaning of Frequency Polygon)-आवृत्ति बहुभुज का निर्माण करने से पहले हम आवृत्ति आयत (Histogram) का निर्माण करते हैं। आवृत्ति आयत के ऊपर के किनारों के मध्य बिन्दु को लेकर उनको आपस में मिला दिया जाए तो आधार रेखा तक बढ़ा दिया जाए तो इस प्रकार हमारे पास आवृत्ति बहुभुज का निर्माण हो जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 2नोट-प्रश्न अनुसार दिए आंकड़ों की सहायता से आवृत्ति आयत का निर्माण करने के पश्चात् आवृत्ति आयतों के ऊपर के भागों का मध्य a, b, c, d, e, f किया जाता है। इनको आपस में मिलाकर आधार रेखा तक बढ़ाने से बिन्दु M, N प्राप्त हो जाते हैं। इस प्रकार M & N को आवृत्ति बहुभुज कहा जाता है। इसमें आवृत्ति आयतों का क्षेत्रफल आवृत्ति बहुभुज के क्षेत्रफल के समान होता है।

प्रश्न 3.
संचयी आवृत्ति वक्र से क्या अभिप्राय है ? संचयी आवृत्ति वक्र का निर्माण ऊँची सीमा पर कम विधि (Less than method) द्वारा स्पष्ट कीजिए।

अंक : 0-10 10-20 20-30 30-40 40-50
विद्यार्थी : 5 10 12 15 8

उत्तर-
संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव का अर्थ ऐसे वक्र से होता है, जिसमें आवृत्ति का जोड़ करके ग्राफ पेपर पर दिखाने से जो वक्र बन जाता है, उसको ओजाइव कहते हैं। इसको संचयी आवृत्ति वक्र भी कहा जाता है। इसका. निर्माण दो तरह से किया जाता है। वर्ग अन्तर की ऊँची सीमा तथा कम विधि (Less than method) तथा वर्ग अन्तर की नीचे वाली सीमा से अधिक विधि (More than method) से ओजाइव बनाई जाती है।

ओजाइव वक्र ऊँची सीमा से कम विधि की ओर (Ogive with less than method)-जब हम ऊँची सीमा से कम विधि की आवृत्ति के जोड़ को प्रकट करते हैं तो इससे संचयी आवृत्ति का निर्माण किया जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 3
नोट-समायोजित सूची अनुसार (0 तथा 0), (10 तथा 5) (20 तथा 15), (30 तथा 27) (40 तथा 42), (50 तथा 50) को आपस में मिलाने से जो बिन्दु प्राप्त होते हैं, उनको जिस रेखा द्वारा दिखाया जाता है, उस रेखा को ओजाइव कहते हैं।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 4

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा निम्न सीमा से अधिक विधि (More than Method) द्वारा संचित आवृत्ति वक्र का निर्माण करें।

अंक : 0-10 10-20 20-30 30-40 40-50
विद्यार्थियों की संख्या: 5 10 12 15 8

हल (Solution)-संचय आवृत्ति वक्र निम्न सीमा से अधिक विधि द्वारा (Ogive with More than Method)
इस विधि द्वारा समायोजित सूची का निर्माण अग्रलिखित अनुसार किया जाता है-
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 5
नोट-समायोजित सूची के अनुसार (0 और 50), (10 और 45), (20 और 35), (30 और 23), (40 और 8) अथवा 50 से अधिक अंक प्राप्त करने वाला कोई विद्यार्थी नहीं है, इसलिए (50 और 0) के मिलाने से जो बिंदु प्राप्त होते हैं। उनको मिला दिया जाए तो उस रेखा को निम्न सीमा से अधिक विधि द्वारा ओजाइव कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 6

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ग्राफ द्वारा प्रदर्शन के अर्थ बताओ। ग्राफ की रचना सम्बन्धी साधारण नियमों की व्याख्या करें।
(Explain the meaning of Graphic Presentation of Data. Explain the general rules for the construction of a Graph.)
उत्तर-
आंकड़ों को प्रस्तुत करने की एक महत्त्वपूर्ण विधि ग्राफ विधि अथवा बिन्दु रेखीय विधि होती है। इस विधि में आंकड़ों को ग्राफ पेपर (Graph Paper) पर प्रस्तुत किया जाता है। जब हम ग्राफ पेपर पर आंकड़ों को स्पष्ट करते हैं तो कम समय तथा कम परिश्रम से एक मनुष्य आंकड़ों को समझने योग्य हो जाता है। इसलिए क्राक्सटन तथा काउडन ने ठीक कहा है, “ग्राफ विधियां सीमित सूचना को जल्दी तथा प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करने की लाभदायक विधियां हैं।” (“Graphic devices are extremely useful and effective for quickly presenting a limited amount of information.” —Croxton and Cowden)

ग्राफ प्रदर्शन के अर्थ (Meaning of Graphic Presentation)-ग्राफ प्रदर्शन आंकड़ों को प्रस्तुत करने की वह विधि होती है, जिसमें एक ग्राफ पेपर पर इनको रेखाओं तथा चित्रों के रूप में दिखाया जाता है। इस प्रकार आंकड़ों को ग्राफ पेपर पर प्रदर्शन करने के ढंग को आंकड़ों का ग्राफ द्वारा प्रदर्शन कहा जाता है।

ग्राफ निर्माण के नियम (Rules for constructing a Graph)-ग्राफ का निर्माण करते समय निम्नलिखित नियमों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. शीर्षक (Title)-प्रत्येक ग्राफ का शीर्षक स्पष्ट होना चाहिए। शीर्षक को पढ़ने से ही इस बात का पता लगना अनिवार्य होता है कि ग्राफ किस सूचना की जानकारी देता है।
  2. पैमाना (Scale)- चित्र बनाने से पहले पैमाने का चयन कर लेना चाहिए। पैमाने का चयन एकत्रित किए आंकड़ों पर निर्भर करता है। पैमाना इतना लेना चाहिए जो सभी आंकड़े सरलता से ग्राफ पर प्रस्तुत किए जा सकें।
  3. बिन्दुओं का मिलान (Plotting the Points)- ग्राफ पेपर पर OX अक्ष तथा OY अक्ष पर लिए गए तत्त्वों के सम्बन्ध को स्पष्ट किया जाता है। साधारण तौर पर अर्थशास्त्रियों के आंकड़े धनात्मक होते हैं। इसलिए OX अक्ष को बाएं से दाएं हाथ की ओर तथा OY अक्ष के नीचे से ऊपर की ओर दिखाया जाता है। यदि हम तथ्यों के सम्बन्ध को OX तथा OY रेखाओं पर लम्ब खींचकर स्पष्ट करते हैं तो हमारे पास बिन्दु प्राप्त हो जाते हैं।
  4. रेखाओं का प्रयोग (Use of lines) – ग्राफ में जब अधिक रेखाओं को प्रस्तुत किया जाता है तो इस स्थिति में सीधी रेखाएँ (straight lines), टूटी रेखाएँ (Dotted lines) अथवा बिन्दु रेखाएँ (Point Lines) का प्रयोग किया जाता है।
  5. बनावटी आधार रेखा (False Base Line)-हम जानते हैं कि OX तथा OY रेखाओं का आरम्भ 0 अथवा

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 7
शून्य से होता है अर्थात् जहाँ OX तथा OY पर मदों की संख्या को दिखाने की आवश्यकता पड़ती है। ऐसी स्थिति में बनावटी आधार रेखा का निर्माण किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए हम जिस ओर बनावटी आधार को दिखाना चाहते हैं, उस ओर रेखा पर कटाव पैदा कर देते हैं, क्योंकि वह सभी आंकड़े Ox अथवा OY पर दिखाने से रेखाचित्र का आकार बहुत विशाल हो जाता है, जिसको रेखा चित्र में स्पष्ट करना कठिन होता है। रेखाचित्र 5 (i), (ii) में OY रेखा पर बनावटी आधार रेखा लेने के अलग-अलग ढंग बताए गए हैं। भाग-1 अनुसार दो तिरछी रेखाएं (I/) बनाई जा सकती हैं। भाग-2 अनुसार बनावटी रेखाएं लहरों की तरह बढ़ती घटती हो सकती हैं।

प्रश्न 2.
ग्राफ अथवा रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन के लाभ बताओ। ग्राफ प्रदर्शन की सीमाएँ भी लिखो । (Explain the advantages of Graphic Presentation. Discuss its limitations.)
उत्तर-
ग्राफ द्वारा आंकड़ों को प्रदर्शन करने के बहुत लाभ होते हैं। जैसे कि प्रो० वैसेलो ने ठीक कहा है, “आंकड़ों को समझने का सबसे सरल ढंग उन बिन्दु रेखाओं द्वारा अध्ययन करना होता है।” (“The simplest and commonest aid to the numerical reading is the graph.’ – Vesselo)

ग्राफ विधि द्वारा आंकड़ों को प्रदर्शन करने के मुख्य उद्देश्य तथा लाभ इस प्रकार हैं-
1. आंकड़ों को सरल बनाना (To make data simple)-आंकड़े मूल रूप में जटिल होते हैं, जिनको स्पष्ट करना तथा समझना कठिन होता है। इसलिए ग्राफ द्वारा आंकड़ों को आसानी से समझा जा सकता है।

2. तुलना के लिए आसान (To Make easy comparison)-जब आंकड़ों को ग्राफ की विधि द्वारा दिखाया जाता है तो इनमें तुलना करनी बहुत आसान हो जाती है जैसे कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के 10 + 2 कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा प्राप्त किए प्रतिशत अंकों की तुलना पिछले वर्ष के प्रतिशत अंकों से करते समय ग्राफ विधि लाभदायक होती है। इसी तरह एक मरीज़ के बुखार की स्थिति का अनुमान ग्राफ को देखकर डॉक्टर आसानी से लगा लेता है।

3. आंकड़ों को रोचक बनाना (To make data interesting) आंकड़ों को आकर्षक बनाने के लिए ग्राफ अथवा रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन लाभदायक होता है। कीमत स्तर में परिवर्तनों को देखने के लिए ग्राफ विधि बहुत लाभदायक परिणाम प्रदान करती है।

4. समय श्रेणियों का प्रदर्शन (Presentation of time series)-ग्राफ समय श्रेणियों को प्रदर्शन करने के लिए अच्छी विधि मानी जाती है। इस द्वारा रेखा चित्रों द्वारा आंकड़ों को लाभदायक तथा प्रभावशाली ढंग द्वारा प्रदर्शन किया जा सकता है, जिससे लाभदायक परिणाम प्राप्त किए जाते हैं।

5. सांख्यिकी विधियों का अध्ययन (Study of Statistical methods)-आंकड़ा शास्त्र की बहुत-सी विधियों की व्याख्या ग्राफ विधि द्वारा की जा सकती है, जैसे कि मध्यका, बहुलक, सह-सम्बन्ध इत्यादि को रेखा चित्रों द्वारा प्रस्तुत किया जा सकता है।

ग्राफ विधियों की सीमाएं (Limitations of Graphic method)—ग्राफ द्वारा आंकड़ों का प्रदर्शन करने की मुख्य सीमाएं इस प्रकार हैं –

  1. निश्चितता की कमी (Lack of Accuracy)-ग्राफ विधि द्वारा आंकड़ों की प्रवृत्ति का पता चलता है। परन्तु इन आंकड़ों में निश्चितता की कमी होती है। ग्राफ द्वारा प्रदान की सूची युद्ध परिणाम प्रदान नहीं करती।
  2. गलत परिणाम (Wrong Results)-ग्राफ विधि द्वारा कई बार गलत परिणाम भी निकाले जा सकते हैं। क्योंकि रेखाचित्र द्वारा रेखाओं के उतार-चढ़ाव को देखकर 100% शुद्ध परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।
  3. केवल तुलनात्मक अध्ययन (Only Comparative Study)-ग्राफ विधि द्वारा केवल तुलनात्मक अध्ययन करना ही सम्भव होता है। जब हम आंकड़ों द्वारा मनोवैज्ञानिक अथवा सामाजिक परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं तो ऐसा करना सम्भव नहीं होता।।
  4. बहमुखी सूचना का मुश्किल प्रदर्शन (Difficult Presentation of Multiple Information)-ग्राफ की विधि द्वारा जब किसी तत्त्व की बहुमुखी विशेषताओं को दिखाना हो तो ऐसा करना भी मुश्किल होता है। सारणीकरण की सहायता से हम कई प्रकार की सूचनाएँ एकत्रित तौर पर प्रदर्शित कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
आवृत्ति वितरण ग्राफ से क्या अभिप्राय है ? आवृत्ति वितरण ग्राफ की प्रदर्शन विधियां बताएँ।
(What is Frequency Distribution Graph? Explain the methods of presentation of Frequency Distribution Graphs.)
उत्तर-
ग्राफ मुख्य तौर पर दो प्रकार के होते हैंसमय श्रेणी ग्राफ (Time Series Graphs) तथा आवृत्ति वितरण ग्राफ (Frequency Distribution Graphs) आवृत्ति वितरण ग्राफ का अर्थ (Meaning of Frequency Distribution Graph) आवृत्ति विवरण ग्राफ वह चित्र होते हैं, जिनमें चरों की आवृत्ति वितरण अनुसार उनको प्रस्तुत किया जाता है। इसमें आंकड़ों का प्रदर्शन समय अनुसार नहीं किया जाता, बल्कि मदों के मूल्यों की आवृत्ति के अनुसार ग्राफ बनाने की विधि को आवृत्ति वितरण ग्राफ कहा जाता है।

आवृत्ति वितरण प्रदर्शन की विधियां-आवृत्ति वितरण प्रदर्शन की मुख्य विधियां निम्नलिखित अनुसार हैं –

  1. रेखा आवृत्ति चित्र (Line Frequency Diagram)
  2. आवृत्ति आयत (Frequency Histogram)
  3. आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygon)
  4. आवृत्ति वक्र (Frequency Curve)
  5. संचयी आवृत्ति वक्र अथवा

ओजाइव (Cumulative Frequency curve or ogive)-
1. रेखा आवृत्ति चित्र (Line Frequency Diagram) रेखा आवृत्ति चित्र खण्डित आवृत्ति वितरण (Discrete Frequency Distribution) को प्रकट करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस चित्र में OX वक्र पर मदों (Items) तथा OY वक्र पर आवृत्ति (Frequency) को अंकित किया जाता है। उदाहरण-एक फैक्टरी में पैनों का उत्पादन किया जाता है। मई में तीन लाख, जून में 5 लाख, जुलाई में 4 लाख पैनों का उत्पादन किया गया। इसको रेखा आवृत्ति रेखा आवृत्ति चित्र चित्र कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 8

2. आवृत्ति आयत (Histogram)-आवृत्ति आयत चित्र वह चित्र है, जिनमें अखण्डित आवृत्ति वितरण (Continuous Frequency Distribution) को उनकी मदों के अनुसार आवृत्तियों का प्रकटावा एक ग्राफ पेपर पर किया जाता है। इस चित्र में OX पर मदों के वर्गांतर (Class Intervals) तथा OX पर वर्गांतर की आवृत्ति (Frequency) को प्रकट करते हैं। इस प्रकार आयतों के रूप में जो चित्र बन जाता है, उसको आयत आवृत्ति (Histogram) चित्र कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 9अंक 0-10 10-20 20-30 . 30-40 विद्यार्थी 10 20
15
उदाहरण-एक कक्षा में 0-10 अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 10 है। 10-20 अंक प्राप्त करने वाले आवृत्ति बहुभुज 20 विद्यार्थी हैं तथा 20-30 तक अंक प्राप्त करने वाले 15 20B विद्यार्थी हैं, 30-40 तक अंक प्राप्त करने वाले 8 विद्यार्थी हैं। इस प्रकार के ग्राफ को आवृत्ति आयत (Histogram) कहा जाता है।

3. आवृत्ति बहुभुज (Frequency Polygron)-आवृत्ति बहुभुज वह चित्र होता है जोकि आवृत्ति आयत (Histogram) की सभी आयतों के ऊपरी भागों के मध्य बिन्दुओं को सीधी रेखा द्वारा मिलाकर बनाया जाता है। इसमें आवृत्ति बहुभुज के दोनों किनारों को आधार रेखाओं तक दोनों ओर बढ़ा दिया जाता है। इससे आवृत्ति बहुभुज का निर्माण हो जाता है। आवृत्ति रेखाचित्र 8 बहुभुज तथा आवृत्ति आयतों का क्षेत्रफल एक-दूसरे के समान होता है।

उदाहरण-ऊपर दी गई विधि अनुसार पहले आवृत्ति आयत बनाई जाती है। ऊपरी किनारों के मध्यों को आपस में मिलाकर ABC चित्र का निर्माण होता है, जिसको आवृत्ति बहुभुज कहा जाता है। इसमें धनात्मक किनारों (++) का क्षेत्र जोड़ा जाता है तथा ऋणात्मक किनारा (–) का क्षेत्र कम किया जाता है। इस प्रकार आवृत्ति आयत तथा आवृत्ति बहुभुज का क्षेत्रफल एक-दूसरे के समान हो जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 10

4. आवृत्ति वक्र (Frequency Curve)-आवृत्ति वक्र वह चित्र है जो कि आवृत्ति बहुभुज की तरह सीधी रेखाएं नहीं, बल्कि स्वतन्त्र हाथ से वक्र बनाने की विधि होती है। आवृत्ति वक्र अर्थात् आवृत्ति आयत का निर्माण करने के पश्चात् ऊपर के किनारों के मध्यों को स्वतन्त्र हाथ मिलाकर आधार रेखा से मिला दिया जाए तो आवृत्ति वक्र का निर्माण हो जाता है। उदाहरण-रेखाचित्र में ABC आवृत्ति बहुभुज है, जिसको डॉटड रेखा में दिखाया है। यदि स्वतन्त्र हाथ से एक रेखा DBE खींच देते हैं तो इस रेखा को आवृत्ति वक्र कहते है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 11
5. संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव (Cummulative Frequency curve or ogive)—जब आवृत्ति को संचयी अथवा जोड़ कर लिया जाए तो उस जोड़ की हुई आवृत्ति का चित्र बनाया जाए तो इसको संचयी आवृत्ति वक्र अथवा ओजाइव (Ogive) कहा जाता है।
(i) उदाहरण-ऊँची सीमा से कम (Less than Method)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 12
रेखाचित्र में सूची पत्र अनुसार 10 अंक से कम अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थी 10 हैं। 20 अंक से कम अंक प्राप्त करने वाले 10 + 20 = 30 विद्यार्थी हैं। 30 अंक से कम अंक प्राप्त करने वाले 10 + 20 + 15 = 45 विद्यार्थी हैं। इसलिए (10 तथा 10), (20 तथा 30), (30 तथा 45) को मिलाकर हमारे पास ऊँची सीमा से कम ओजाइव (Ogive) वक्र बन जाती है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 13
सूची पत्र तथा रेखाचित्र अनुसार 0 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 45 है। 10 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 35 तथा 20 से अधिक अंक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों की संख्या 15 है। 30 से अधिक अंक प्राप्त वाला कोई विद्यार्थी नहीं है। यदि हम (0, 45), (10, 35), (20, 15) को आपस में मिला दें तो हमारे पास जो रेखा प्राप्त होती है उसको आगे रेखा से अधिक का ओजाइव कहा जाता है।
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 20 रेखाचित्रों द्वारा प्रस्तुतीकरण 15

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 ਜੈਵਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ

This PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 ਜੈਵਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ will help you in revision during exams.

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 ਜੈਵਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ

→ ਅਜਿਹੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਜੋ ਮਿਲ-ਜੁਲ ਕੇ ਇਕੱਠੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਅਣੂ ਰੱਖਿਆ ਦਾ ਕਾਰਜ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ, ਜੈਵਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਕਹਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਊਰਜਾ ਦੇ ਸੋਮੇ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਸਰੀਰ ਅੰਦਰ ਲੈ ਜਾਣ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਪੋਸ਼ਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਾਂ ।

→ ਸਰੀਰ ਦੇ ਬਾਹਰ ਤੋਂ ਆਕਸੀਜਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਸੈੱਲਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਅਨੁਸਾਰ ਭੋਜਨ ਸਰੋਤਾਂ ਦੇ ਵਿਘਟਨ ਵਿਚ ਉਸਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਨੂੰ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਇਕ ਸੈੱਲੀ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਗ੍ਰਹਿਣ ਕਰਨ, ਗੈਸਾਂ ਦੇ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਅਤੇ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਨਿਸ਼ਕਾਸ਼ਨ ਦੇ ਲਈ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਅੰਗ ਦੀ ਲੋੜ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ।

→ ਬਹੁ ਸੈੱਲੀ ਜੀਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਾਰਜਾਂ ਲਈ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਅੰਗ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚੋਂ ਬਾਹਰ ਕੱਢਣ ਨੂੰ ਮਲ-ਤਿਆਗ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਊਰਜਾ ਦਾ ਸਰੋਤ ਭੋਜਨ ਹੈ ਅਤੇ ਜੋ ਪਦਾਰਥ ਅਸੀਂ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ ਉਹ ਭੋਜਨ ਹੈ । ਸਾਰੇ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਊਰਜਾ ਅਤੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਸਾਧਾਰਨ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਵਿਖਮਪੋਸ਼ੀ ਜੀਊਂਦੇ ਰਹਿਣ ਲਈ ਸਿੱਧੇ ਜਾਂ ਅਸਿੱਧੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਵੈਪੋਸ਼ੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਜੰਤੂ ਅਤੇ ਫੰਗਸ ਵਿਖਮਪੋਸ਼ੀ ਜੀਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਦੁਆਰਾ ਸਵੈਪੋਸ਼ੀ ਬਾਹਰ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਊਰਜਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਕੱਠਾ ਕਰਕੇ ਜਮਾਂ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਪਦਾਰਥ CO2ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜੋ ਸੂਰਜੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਅਤੇ ਕਲੋਰੋਫਿਲ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਵਿਚ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡਰੇਟ ਵਿਚ ਬਦਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੱਤਿਆਂ ਦੀ ਸਤਹਿ ਤੇ ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਛੇਦ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਟਮੈਟਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਲਈ ਗੈਸਾਂ ਦੀ ਅਦਲਾ-ਬਦਲੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਛੇਦਾਂ ਤੋਂ ਹੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਸਟੋਮੈਟਾ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਵੀ ਹਾਨੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਲਈ ਸੂਰਜੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਲੋੜ ਵੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 ਜੈਵਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ

→ ਪ੍ਰਦੇ ਨਾਈਟਰੋਜਨ, ਫਾਸਫੋਰਸ, ਲੋਹਾ ਅਤੇ ਮੈਗਨੀਸ਼ੀਅਮ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਇਕ ਸੈੱਲੀ ਜੀਵ ਆਪਣੀ ਪੂਰੀ ਸਤਹਿ ਤੋਂ ਭੋਜਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਮੀਬਾ ਸੈੱਲੀ ਸਤਹਿ ਤੋਂ ਉਂਗਲੀ ਜਿਹੇ ਅਸਥਾਈ ਵਾਰੇ ਜਾਂ ਪੈਰ ਦੁਆਰਾ ਭੋਜਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਆਹਾਰ ਨਲੀ ਮੂੰਹ ਤੋਂ ਗੁਦਾ ਤਕ ਫੈਲੀ ਇਕ ਲੰਬੀ ਨਲੀ ਹੈ ।

→ ਛੋਟੀ ਆਂਦਰ ਆਹਾਰ ਨਲੀ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਲੰਬਾ ਭਾਗ ਹੈ ।

→ ਐਂਜ਼ਾਈਮ (Enzymes)-ਇਹ ਜੈਵ ਉਤਪ੍ਰੇਰਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਸਰਲ ਪਦਾਰਥਾਂ ਵਿੱਚ ਖੰਡਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਜੀਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਐਂਜ਼ਾਈਮ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੋਸ਼ਣ (Nutrition)-ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦਾ ਇਕੱਠ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਾਣੀ ਆਪਣੀ ਕਿਰਿਆਸ਼ੀਲਤਾ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਅਤੇ ਅੰਗਾਂ ਦੇ ਵਾਧੇ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੁਨਰ-ਨਿਰਮਾਣ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਪਭੋਗ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਪੋਸ਼ਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਵੈਪੋਸ਼ੀ (Autotrophs)-ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜੋ CO2, ਪਾਣੀ ਅਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਵਿੱਚ ਹਰੇ ਪਦਾਰਥ ਕਲੋਰੋਫਿਲ ਦੁਆਰਾ ਆਪਣਾ ਭੋਜਨ ਆਪ ਤਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਵੈਪੋਸ਼ੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਿਖਮਪੋਸ਼ੀ (Heterotrophs)-ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜੋ ਆਪਣੇ ਭੋਜਨ ਲਈ ਦੂਸਰਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵਿਖਮਪੋਸ਼ੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਮ੍ਰਿਤਜੀਵੀ (Saprophytes)-ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜੋ ਆਪਣਾ ਭੋਜਨ ਮਰੇ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸੜੇ-ਗਲੇ ਕਾਰਬਨਿਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ਨੂੰ ਮ੍ਰਿਤਜੀਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਰਜੀਵੀ (Parasites)-ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜੋ ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਆਵਾਸ ਲਈ ਹੋਰ ਜੀਵਾਂ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਪਰਜੀਵੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪਰਜੀਵੀ ਅੰਦਰੂਨੀ ਅਤੇ ਬਾਹਰੀ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਾਣੀ ਸਮਭੋਜੀ ਜੀਵ (Holozoa)-ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਚਨ ਤੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜੋ ਭੋਜਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਇਸ ਦਾ ਪਾਚਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਪਚੇ ਹੋਏ ਭੋਜਨ ਦਾ ਸੋਖਣ ਕਰਕੇ ਬਾਕੀ ਅਣਪਚੇ ਭੋਜਨ ਨੂੰ ਉਤਸਰਜਿਤ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ, ਸਮਝੋਜੀ ਜੀਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ (Herbivorous)ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜੋ ਪੌਦਿਆਂ ਜਾਂ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਹਿਣ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਮਾਸਾਹਾਰੀ (Carnivorous)-ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜੋ ਆਪਣਾ ਭੋਜਨ ਹੋਰ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਮਾਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਰਬ ਆਹਾਰੀ (Omnivorous)-ਅਜਿਹੇ ਜੀਵ ਜੋ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਜੰਤੂਆਂ ਦੋਵਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਰਬ ਆਹਾਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਾਚਣ (Digestion)-ਅਜਿਹੀ ਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਦੁਆਰਾ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਵੱਡੇ, ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਅਤੇ ਅਘੁਲਣਸ਼ੀਲ, ਅਣੂ ਸੂਖ਼ਮ, ਸਰਲ ਅਤੇ ਘੁਲਣਸ਼ੀਲ ਅਣੂਆਂ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਪਾਚਣ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 ਜੈਵਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ

→ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ (Photosynthesis)-ਸੂਰਜ ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਵਿਚ ਕਾਰਬਨ-ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ (CO2) ਅਤੇ ਪਾਣੀ (H2O) ਵਰਗੇ ਸਰਲ ਯੋਗਿਕਾਂ ਤੋਂ ਹਰੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਕਲੋਰੋਫਿਲ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਕਾਰਬਨਿਕ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ (ਕਾਰਬੋਹਾਈਡਰੇਟ) ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੰਤੁਲਨ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਤੀਬਰਤਾ ਬਿੰਦੂ (Compensation point)-ਜਦੋਂ ਛਾਂ ਵਿੱਚ ਸੂਰਜ ਡੁੱਬਣ ਸਮੇਂ ਅਤੇ ਤਰਕਾਲਾਂ ਵੇਲੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਦੀ ਦਰ ਘਟ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਸਮੇਂ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲੀ CO2 ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਵਿਚ ਵਰਤੀ ਗਈ CO2 ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਅਵਸਥਾ ਨੂੰ ਜਦੋਂ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ CO2 ਦਾ ਅਵਸ਼ੋਸ਼ਣ ਨਾ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਸੰਤੁਲਨ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਤੀਬਰਤਾ ਬਿੰਦੂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਾਹ ਲੈਣਾ (Respiration)-ਜੀਵਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਉਹ ਜੈਵ ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਵਿਚ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਕਾਰਬਨਿਕ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ CO2 ਅਤੇ ਪਾਣੀ (ਜਲ-ਵਾਸ਼ਪ) ਬਣਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਊਰਜਾ ਮੁਕਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਆਕਸੀ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ (Aerobic respiration)-ਆਕਸੀਜਨ ਦੀ ਮੌਜੂਦਗੀ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਆਕਸੀ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਣਆਕਸੀ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ (Anaerobic respiration)-ਆਕਸੀਜਨ ਦੀ ਗੈਰ-ਮੌਜੂਦਗੀ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਅਣਆਕਸੀ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਪਦਾਰਥ (Respiratory substance)-ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਕ੍ਰਿਤ ਜਾਂ ਅਪਘਟਿਤ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਦਾਰਥ ਨੂੰ ਸਾਹ ਪਦਾਰਥ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਗਲਾਈਕੋਲਿਸਿਸ (Glycolysis)-ਇਹ ਸੈੱਲਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਗੁਲੂਕੋਜ਼ ਦਾ ਇਕ ਅਣੂ ਅਪਘਟਿਤ ਹੋ ਕੇ ਅਣੂ ਪਾਇਰੂਵੇਟ (Pyruvate) ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਉਸਾਰੂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ (Anabolic activities)-ਉਹ ਜੈਵ ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਸਰਲ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਦੁਆਰਾ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਪਦਾਰਥ ਬਣਦੇ ਹਨ, ਉਸਾਰੂ ਕਿਰਿਆ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਢਾਹੁ ਕਿਰਿਆਵਾਂ (Catabolic activities)-ਉਹ ਜੈਵ ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਅਣੂ ਟੁੱਟ ਕੇ ਸਰਲ ਅਣੂਆਂ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਢਾਹੂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਕਹਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਕਿਣਵਨ (Fermentation)-ਉਹ ਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਸੂਖ਼ਮਜੀਵ ਗੁਲੂਕੋਜ਼ ਜਾਂ ਸ਼ੱਕਰ ਦਾ ਅਧੂਰਾ ਵਿਘਟਨ ਸੈੱਲ ਦੇ ਬਾਹਰ ਕਰਕੇ CO2 ਅਤੇ ਸਰਲ ਕਾਰਬਨਿਕ, ਜਿਵੇਂ-ਈਥਾਈਲ ਅਲਕੋਹਲ, ਲੈਕਟਿਕ ਐਸਿਡ ਅਤੇ ਐਸਟਿਕ ਐਸਿਡ ਆਦਿ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦੇ ਹਨ ਜਿਸਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਕੁਝ ਉਰਜਾ ਵੀ ਮੁਕਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਸਟੋਮੈਟਾ (Stomata)-ਪੱਤਿਆਂ ਦੀ ਸਤਹਿ ਤੇ ਹਵਾ ਅਤੇ ਜਲ-ਵਾਸ਼ਪਾਂ ਦੀ ਅਦਲਾ-ਬਦਲੀ ਦੇ ਲਈ ਖ਼ਾਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸੂਖ਼ਮ ਛੇਦ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਟੋਮੈਟਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਿਸਰਣ (Diffusion)-ਪਦਾਰਥ (liquid, solids and gases) ਦੇ ਅਣੂਆਂ ਦਾ ਵਧੇਰੇ ਸਾਂਦਰਤਾ (ਗਾੜ੍ਹਾਪਨ) ਵਾਲੇ ਸਥਾਨ ਤੋਂ ਘੱਟ ਸਾਂਦਰਤਾ ਵਾਲੇ ਸਥਾਨ ਵੱਲ ਨੂੰ ਜਾਣ ਦੀ ਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਵਿਸਰਣ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਾਹ ਕਿਰਿਆ (Breathing)-ਇਹ ਸਰਲ ਯੰਤਰਿਕ ਕਿਰਿਆ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਹਵਾ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚੋਂ ਸਾਹ ਅੰਗਾਂ (ਫੇਫੜਿਆਂ) ਵਿੱਚ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸਾਹ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਾਹ ਅੰਗਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਬਾਹਰ ਆ ਕੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਵਾਪਸ ਚਲੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਸਾਹ ਲੈਣਾ (Inspiration)-ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿੱਚੋਂ ਹਵਾ (O2) ਦਾ ਫੇਫੜਿਆਂ ਵਿਚ ਭਰਨ ਦੀ ਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਸਾਹ ਲੈਣਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਾਹ ਨਿਕਾਸ (Expiration)-ਅਜਿਹੀ ਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਦੁਆਰਾ ਫੇਫੜਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਹਵਾ (CO2) ਨੂੰ ਬਾਹਰ | ਕੱਢਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 6 ਜੈਵਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ

→ ਵਾਸ਼ਪ ਉਤਸਰਜਨ (Transpiration)-ਪੇੜ-ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਦੁਆਰਾ ਪਾਣੀ ਦਾ ਵਾਸ਼ਪਣ ਵਾਸ਼ਪ ਉਤਸਰਜਨ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਾਈਲਮ (Xylem)-ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਜਿਹੜੇ ਟਿਸ਼ੂ ਮਿੱਟੀ ਅਤੇ ਖਣਿਜਾਂ ਨੂੰ ਪੱਤਿਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਹੈ ਉਸ ਨੂੰ ਜਾਈਲਮ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਫਲੋਇਮ (Pholem)-ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਜਿਹੜੇ ਟਿਸ਼ੂ ਪੱਤਿਆਂ ਵਿੱਚ ਬਣੇ ਭੋਜਨ ਨੂੰ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਹੋਰ ਭਾਗਾਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਫਲੋਇਮ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਥਾਨਾਂਤਰਣ (Translocation)-ਪੱਤਿਆਂ ਤੋਂ ਭੋਜਨ ਦਾ ਪੌਦੇ ਦੇ ਹੋਰ ਭਾਗਾਂ ਤੱਕ ਪੁੱਜਣਾ ਸਥਾਨਾਂਤਰਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਧਮਨੀ (Artery)-ਅਜਿਹੀਆਂ ਨਾਲੀਆਂ ਜੋ ਦਿਲ ਤੋਂ ਆਕਸੀਜਨ-ਯੁਕਤ ਲਹੂ ਨੂੰ ਸਰੀਰ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦੀ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਧਮਨੀਆਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸ਼ਿਰਾਵਾਂ (Veins)-ਅਜਿਹੀਆਂ ਨਾਲੀਆਂ ਜੋ ਸਰੀਰ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਤੋਂ ਲਹੂ ਦਿਲ ਤਕ ਪਹੁੰਚਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਿਰਾਵਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਐਂਟੀਬਾਡੀਜ਼ (Antibodies)-ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਜੀਵਾਣੁਆਂ ਜਾਂ ਰੋਗਾਣੂਆਂ ਦੁਆਰਾ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਗਏ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਨਸ਼ਟ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਨੂੰ ਐਂਟੀਬਾਡੀਜ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਡਾਇਆਲਿਸਿਸ (Dialysis)-ਸਰੀਰ ਵਿਚੋਂ ਬਣਾਵਟੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਯੂਰੀਆ ਆਦਿ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਕੱਢਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਡਾਇਆਲਿਸਿਸ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਰਾਸਰਣ ਨਿਯਮਣ (Osmoregulation)-ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਦੀ ਉੱਚਿਤ ਮਾਤਰਾ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਨੂੰ ਪਰਾਸਰਣ ਨਿਯਮਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਲਸੀਕਾ (Lymph)-ਇਹ ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਪਦਾਰਥ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਸਫ਼ੈਦ ਕਣ, ਗੁਲੂਕੋਜ਼, ਖਣਿਜ ਲੂਣ, ਆਕਸੀਜਨ ਆਦਿ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਮਲ-ਤਿਆਗ (Excretion)-ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਢਾਹੂ-ਉਸਾਰੂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪੈਦਾ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਕੱਢਣ ਨੂੰ ਮਲ-ਤਿਆਗ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨੇਫਰਾਂਨ (Nephron)-ਗੁਰਦਿਆਂ ਵਿਚ ਅਨੇਕ ਫਿਲਟਰੀਕਰਨ ਇਕਾਈਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨੇਫਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

Punjab State Board PSEB 11th Class Economics Book Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Economics Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

PSEB 11th Class Economics प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राथमिक आंकड़ों तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर करें।
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़े वे आंकड़े हैं जो अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्यों के अनुसार पहली बार आरम्भ से अन्त तक एकत्रित करता है। द्वितीयक आंकड़े वे आंकड़े हैं जो पहले ही व्यक्तियों तथा संस्थाओं द्वारा एकत्रित किये जा चुके होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक आंकड़ों का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
आप जेब खर्च, उनके परिवार की आय, शिक्षा, जीवन स्तर सम्बन्धी आंकड़े एकत्रित करते हैं। इन आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जायेगा।

प्रश्न 3.
द्वितीयक आंकड़ों का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
भारतीय रेलवे से सम्बन्धित आंकड़े जो रेलवे बोर्ड द्वारा प्रकाशित किये जाते हैं, किसी अनुसन्धानकर्ता के लिए द्वितीयक आंकड़े हैं।

प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान विधि वह है जिसमें एक अनुसन्धानकर्ता स्वयं अनुसन्धान क्षेत्र में जाकर सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष तथा सीधा सम्पर्क स्थापित करता है और आंकड़े इकट्ठे करता है।

प्रश्न 5.
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान किसे कहते हैं?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान वह विधि है जिसमें किसी समस्या से अप्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध रखने वाले व्यक्तियों से मौखिक (Oral) पूछताछ द्वारा आंकड़े प्राप्त किये जाते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक आंकड़े प्राचीन काल से ही दिए होते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 7.
गौण आंकड़े पहले से ही पुस्तकों इत्यादि में दिए होते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 8.
जो आंकड़े अनुसंधानकर्ता स्वयं इकट्ठा करता है उनको ……. आंकड़े कहते हैं।
(a) प्राथमिक
(b) गौण
(c) तीसरे दर्जे के
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(a) प्राथमिक।

प्रश्न 9.
जो आंकड़े पहले से ही किसी संस्था अथवा व्यक्ति द्वारा इकट्ठे किए गए होते हैं और अनुसन्धानकर्ता उनको अपनी खोज में प्रयोग करता है को ……………… आंकड़े कहा जाता है।
(a) प्राथमिक
(b) गौण
(c) सरकारी
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(b) गौण।

प्रश्न 10.
जब अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वाले को प्रत्यक्ष रूप में सम्बन्ध स्थापित करके आंकड़े इकट्ठे करता है तो इस विधि को ……………… कहते हैं।
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसंधान।

प्रश्न 11.
प्रश्नावली तथा अनुसूची में अन्तर होता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 12.
प्राथमिक आंकड़ों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह आंकड़े जो अनुसंधानकर्ता द्वारा स्वयं इकट्ठे किये जाते हैं उन आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है।

प्रश्न 13.
द्वितीयक आंकड़ों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह आंकड़े जोकि किसी व्यक्ति तथा संस्था द्वारा इकट्ठे किये जाते हैं, जिनको अनुसंधानकर्ता अपनी खोज में प्रयोग करता है उनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।

प्रश्न 14.
जो आंकड़े अनुसंधानकर्ता द्वारा स्वयं इकट्ठे किये जाते हैं उनको प्राथमिक आंकड़े कहा जाता
उत्तर-
सही।

प्रश्न 15.
जो आंकड़े किसी व्यक्ति अथवा संस्था द्वारा इकट्ठे किये जाते हैं और अनुसंधानकर्ता उनको अपनी खोज में प्रयोग करता है उनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग के समय ध्यान रखना चाहिए कि आंकड़े भरोसे योग, उपयुक्त तथा उचित होने चाहिए।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
द्वितीयक आंकड़ों को बगैर अर्थ और सीमाओं के अध्ययन बिना ग्रहण नहीं करना चाहिए।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
NSSO से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे संगठन (NSSO) एक सरकारी संस्था है जोकि देश के विभिन्न क्षेत्रों संबंधी आंकड़ों को इकट्ठा करके रिपोर्ट प्रकाशित करता है। प्रश्न 19. द्वितीयक आंकड़ों के दो स्त्रोत बताएँ।
उत्तर-

  • भारत की जनगणना
  • राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे संगठन के प्रकाशन तथा रिपोर्ट।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में कोई दो अंतर बताओ।
उत्तर-
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. मौलिकता में अन्तर (Difference in Originality)-सर्वप्रथम अन्तर यह है कि प्राथमिक समंक मौलिक समंक होते हैं। अनुसन्धानकर्ता इन्हें स्वयं एकत्रित करता है जबकि द्वितीयक समंक उसके द्वारा एकत्रित नहीं किए जाते, बल्कि किसी अन्य व्यक्ति अथवा संस्था के द्वारा पूर्वकाल में एकत्रित किए जा चुके होते हैं।

2. धन, समय व परिश्रम में अन्तर (Difference in cost, time and labour)-प्राथमिक समंकों के संकलन में धन, समय, परिश्रम व बुद्धि का प्रयोग अधिक करना पड़ता है, क्योंकि नए सिरे से योजना को प्रारम्भ करना पड़ता है। द्वितीयक समंक तो पहले से ही एकत्रित होते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 2.
प्राथमिक समंकों को एकत्र करने की प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation) विधि को स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)-इस रीति में अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध स्थापित करके समंक एकत्र करता है। यह रीति बहुत सरल है। इसमें अनुसन्धानकर्ता स्वयं उन लोगों के सम्पर्क में आता है, जिनके विषय में आंकड़े एकत्र करना चाहता है। यदि अनुसन्धानकर्ता व्यवहार कुशल, धैर्यवान व मेहनती है तो इस रीति द्वारा आंकड़े बहुत विश्वसनीय होते हैं। इस रीति में अनुसन्धानकर्ता को निरीक्षण का भारी सहारा लेना पड़ता है। इस विधि को प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान विधि कहा जाता है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक समंकों को एकत्र करने की कौन-सी विधियां हैं, बताओ।
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने की मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं –

  1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान
  2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान
  3. संवाददाताओं द्वारा सूचना प्राप्ति
  4. डाक प्रश्नावली विधि
  5. गणकों द्वारा अनुसूचियों का भरना।

प्रश्न 4.
द्वितीयक समंकों को एकत्र करने के कोई पांच प्रकाशित स्रोत बताओ।
उत्तर –
द्वितीयक समंकों को एकत्र करने के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक (World Bank)।
  2. सरकारी प्रकाशन जैसे कि सकेन्द्रीय सांख्यिकी संस्था (C.S.0.)
  3. अर्द्ध-सरकारी संस्थाओं के प्रकाशन जैसे नगर-निगम, नगरपालिकाएं तथा जिला बोर्ड।
  4. आयोग व समितियों की रिपोर्ट (Respect of Commissions and Committees)
  5. समाचार-पत्र व पत्रिकाएं।

प्रश्न 5.
प्राथमिक आंकड़ों के मुख्य गुण बताओ।
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़े (Primary Data) प्राथमिक आंकड़े वे आंकड़े होते हैं, जिनको अनुसन्धानकर्ता अनुसन्धान के लिए स्वयं एकत्र करता है। इन आंकड़ों के मुख्य गुण अग्रलिखित हैं-
गुण (Merits)-

  1. मौलिकता (Originality)-यह आंकड़े मौलिक होते हैं तथा अनुसन्धान के उद्देश्य के लिए उचित होते हैं।
  2. शुद्धता (Accuracy)-यह आंकड़े अनुसन्धानकर्ता द्वारा एकत्र किए जाते हैं, इसलिए इन आंकड़ों में शुद्धता होती है।
  3. एकरूपता (Uniformity)-प्राथमिक आंकड़े एकरूपता से एकत्रित किए जाते हैं, इसलिए यह समंक प्रयोग के अनुकूल तथा विश्वसनीय होते हैं।
  4. अधिक उपयोगी (More Suitable)-प्राथमिक आंकड़े वर्तमान सर्वेक्षण को ध्यान में रखकर एकत्रित किए जाते हैं। इसलिए यह आंकड़े अधिक उपयोगी होते हैं। .
  5. सांख्यिकी इकाइयां (Statistical Units)-सांख्यिकी अनुसंधान में जिन सांख्यिकी इकाइयों तथा धारणाओं का प्रयोग किया जाता है, उनके अनुसार ही आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक आंकड़ों के मुख्य दोष बताओ।
उत्तर-
दोष (Demerits)

  1. अधिक समय (More time)-प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए बहुत-से समय की आवश्यकता होती है। इसलिए सूचना प्राप्त करने लिए देरी हो जाती है।
  2. खर्चीले (Expensive)-प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने में बहुत धन, समय तथा परिश्रम खर्च करना पड़ता
  3. पक्षपात (Biased)-प्राथमिक आंकड़े पक्षपात से प्रभावित होते हैं, क्योंकि अनुसन्धानकर्ता अपनी सुविधानुसार आंकड़े पेश करता है।
  4. निजी अनुसन्धान के लिए अनुचित (Unsuitable for Private Investigation)-प्राथमिक आंकड़े सरकारी अनुसन्धान के लिए अधिक उचित होते हैं, परन्तु निजी अनुसन्धान के क्षेत्र के लिए यह आंकड़े अनुचित माने जाते हैं।

प्रश्न 7.
द्वितीयक आंकड़ों के मुख्य गुण (Merits) बताओ।
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए होते हैं। जिनका प्रयोग अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य के लिए करता है।
गुण (Merits)-

  • किफायती (Economical) – द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग में खर्च कम होता है। समय तथा परिश्रम की भी बचत होती है।
  • सरल प्रयोग (Easy to use)-द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग सरलता से किया जा सकता है।
  • विश्वसनीय (Reliable)-सरकार द्वारा एकत्र किए गए आंकड़े विश्वसनीय होते हैं, जिनके प्रयोग अनुसन्धानकर्ता बिना शक कर सकता है।
  • विशाल क्षेत्र (Wide Scope)-द्वितीयक आंकड़े विशाल क्षेत्रों में उपलब्ध होते हैं। इनमें से चयन करने के पश्चात् सम्पादन करके आंकड़ों का उचित प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 8.
अनुसन्धानकर्ता, गणक तथा सूचक की धारणाओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  1. अनुसन्धानकर्ता (Investigator)-किसी अनुसन्धान में लगे व्यक्ति जिस द्वारा अनुसन्धान को नियोजित किया जाता है, उसको अनुसन्धानकर्ता कहते हैं।
  2. गणक (Enumerator)-जिस मनुष्य द्वारा आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। साधारण तौर पर अनुसन्धानकर्ता द्वारा गणकों को आंकड़े एकत्रित करने के लिए काम पर लगाया जाता है, क्योंकि यह मनुष्य आंकड़े एकत्रित करने के लिए माहिर होते हैं।
  3. सूचक (Respondent)–अनुसन्धान सम्बन्धी जिन मनुष्यों द्वारा सूचना प्रदान की जाती है, उसको सूचक अथवा उत्तरदाता कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 9.
एक तालिका तथा प्रश्नावली में क्या अन्तर होता है ?
उत्तर-

  • तालिका (Schedule)-तालिका में भी विभिन्न प्रश्न होते हैं, परन्तु तालिका को गणक तैयार करते हैं। वह उत्तरदाता से प्रश्न पूछकर तालिका तैयार करते हैं।
  • प्रश्नावली (Questionaire) प्रश्नावली में भी प्रश्न होते हैं, परन्तु प्रश्नावली सूचकों को दे दी जाती है, जिसको सूचक भरकर अनुसन्धान को देते हैं।

प्रश्न 10.
आंकड़ों के एकत्रितकरण में गलतियों के मुख्य स्रोत बताओ।
उत्तर-
आंकड़ों के एकत्रितकरण में गलतियां होने की सम्भावना होती है, गलतियों के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं –

  1. अनुसन्धान द्वारा जो गणक आंकड़े एकत्रित करने के लिए रखे जाते हैं, वह विभिन्न पैमाने (Scale) से आंकड़े एकत्रित करते हैं तो गलती की सम्भावना होती है।
  2. सूचक प्रश्न अच्छी तरह नहीं समझ सकते तो गलत सूचना दे सकते हैं।
  3. प्रश्न इस प्रकार के हो सकते हैं, जिनके बारे सूचक उत्तर देना पसन्द नहीं करते।
  4. सूचकों द्वारा दी सूचना को गणक अच्छी तरह नोट नहीं करते।

प्रश्न 11.
द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय कौन-सी सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियों को ध्यान में रखना चाहिए-

  1. अनुकूलता (Suitability) – केवल वह द्वितीयक आंकड़े ही प्रयोग करने चाहिएं, जो अनुसन्धानकर्ता के उद्देश्य की पूर्ति करते हों।
  2. उचितता (Adequacy)-जो आंकड़ा अनुसन्धानकर्ता द्वितीयक आंकड़ों की सहायता से प्राप्त करता है, वह वर्तमान अनुसन्धान के लिए काफ़ी होने चाहिए हैं। .
  3. शुद्धता (Accuracy)-अनुसन्धानकर्ता को आंकड़ों की शुद्धता का विश्वास होना चाहिए।
  4. विश्वसनीय (Reliable)-द्वितीयक आंकड़े सरकारी संस्था द्वारा प्रदान किए गए हैं जो विश्वसनीय होते हैं।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
संग्रहण के विचार से समंक दो प्रकार के होते हैं-
1. प्राथमिक समंक (Primary Data)-प्राथमिक समंक वे आंकड़े हैं जिन्हें अनुसन्धान करने वाला अपने प्रयोग में लाने के लिए पहले-पहल इकट्ठा करता है या उस विषय के सम्बन्ध में यदि आंकड़े पहले भी इकट्ठे किए गए होते हैं तो भी अनुसन्धानकर्ता आरम्भ से अन्त तक सामग्री नये सिरे से एकत्र करता है। इसे प्राथमिक सामग्री कहते हैं। वैसेल (Wessel) के शब्दों में, “अनुसन्धान की प्रक्रिया के अन्तर्गत मौलिक रूप से जो आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं, उन्हें प्राथमिक आंकड़े कहते हैं।”

2. द्वितीयक समंक (Secondary Data)-द्वितीयक समंक वे समंक हैं जिनका संकलन पहले से हो चुका होता है और अनुसन्धानकर्ता उन्हें अपने प्रयोग में लाता हैं। यहां वह स्वयं संग्रहण नहीं करता। किसी अन्य उद्देश्य के लिए संकलित समंक को प्रयोग में लाता है। इस प्रकार के समंक अपने मौलिक रूप में नहीं होते हैं बल्कि सारणी प्रतिशत आदि में व्यक्त होते हैं। ब्लेयर (Blair) के शब्दों में, “द्वितीयक समंक वे हैं जो पहले से ही अस्तित्व में हैं और जो वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं बल्कि किसी दूसरे उद्देश्य के लिए एकत्र किए गए हैं।”

प्रश्न 2.
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान तथा अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान में क्या अन्तर है?
उत्तर-
प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)-इस रीति में अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वालों से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्ध स्थापित करके समंक एकत्र करता है। यह रीति बहुत सरल है। अनुसन्धानकर्ता स्वयं उन लोगों के सम्पर्क में आता है जिनके विषय में आंकड़े एकत्र करना चाहता है। यदि अनुसन्धानकर्ता का व्यवहार कुशल, धैर्यवान् व मेहनती है तो इस रीति द्वारा प्राप्त आंकड़े बहुत विश्वसनीय होते हैं। इस रीति में अनुसन्धानकर्ता को निरीक्षण का भारी सहारा लेना पड़ता है।

अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान (Indirect Oral Investigation)-अनुसन्धान का क्षेत्र विस्तृत होने पर अनुसन्धानकर्ता के लिए यह सम्भव नहीं हो पाता कि वह प्रत्यक्ष रूप से सबसे सम्पर्क स्थापित करे और आंकड़े एकत्र करे। ऐसी दशा में वह किसी ऐसे व्यक्ति से सूचनाएं प्राप्त करता है जिसे उस विषय में जानकारी है। इस नीति में अनुसन्धानकर्ता अप्रत्यक्ष एवं मौखिक रूप से सम्बन्धित व्यक्तियों के बारे में अन्य जानकार व्यक्ति से सूचना प्राप्त करता है। उदाहरण के तौर पर कक्षा के विद्यार्थियों के बारे में कोई सूचना कक्षा के मानीटर या अध्यापक से प्राप्त करनाको सूचकों की साक्षी (Witness) कहते हैं। इस विधि से तभी सफलता मिल सकती है जब प्रश्नकर्ता चतुर तथा लगनशील हो।

प्रश्न 3.
द्वितीयक आंकड़ों के गुण व अवगुण लिखें।
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़ों के गुण –

  • द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करना सुगम है|
  • इन आंकड़ों के प्रयोग में धन, समय और श्रम की बचत होती है।
  • कुछ अनुसन्धानों के लिए प्राथमिक समंक संकलित ही नहीं किये जा सकते।
  • कुछ अनुसन्धानों में विश्वसनीय द्वितीयक आंकड़े मिल जाते हैं।

द्वितीयक आंकड़ों के दोष –

  1. द्वितीयक आंकड़ों में प्राथमिक आंकड़ों की भान्ति शुद्धता का स्तर ऊंचा नहीं होता।
  2. वर्तमान युग के अनुकूल विश्वसनीय और पर्याप्त मात्रा में द्वितीयक आंकड़ों का मिलना कठिन होता है।
  3. प्रत्येक प्रकार के अनुसन्धान के लिए द्वितीयक आंकड़े नहीं मिल पाते।
  4. द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग सावधानी से करना होता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सांख्यिकी अनुसन्धान करते समय कौन-कौन सी सावधानियों का प्रयोग आवश्यक होता है? (What are the precautions necessary for Statistical Investigation ?)
उत्तर-
सांख्यिकी का अर्थ उन विधियों से होता है, जिन द्वारा हम आंकड़ों को एकत्र करने, प्रस्तुतीकरण, विश्लेषण तथा व्याख्या करते हैं। इस उद्देश्य के लिए जब तक अनुसन्धानकर्ता अनुसन्धान का काम आरम्भ करता है तो उसको आंकड़े एकत्रित करते समय बहुत-सी सभी बातों का ध्यान रखना चाहिए।

1. अनुसन्धान का उद्देश्य एवं क्षेत्र (Purpose of Investigation)-किसी समस्या को समझ लेने के पश्चात् अनुसन्धान के उद्देश्य की जानकारी भी आवश्यक होती है। अनुसन्धान करने के लिए सांख्यिकी आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है। हम जानते हैं कि सांख्यिकी विधियों का उद्देश्य सिर्फ आंकड़ों को एकत्रित करना ही नहीं, बल्कि इसमें वर्गीकरण, प्रस्तुतीकरण, सारणियां, विश्लेषण तथा व्याख्या इत्यादि की क्रियाएं की जाती हैं। इससे प्राप्त किए आंकड़ों द्वारा उचित परिणाम निकाले जा सकते हैं। इसलिए बिना उद्देश्य से एकत्रित किए आंकड़े व्यर्थ होते हैं, जिस द्वारा कोई लाभदायक परिणाम प्राप्त नहीं किया जा सकता।

2. सूचना के साधन (Sources of Information)-जब हम आंकड़ों का उद्देश्य निर्धारित कर लेते हैं तो इसके पश्चात् आंकड़ों को एकत्र करने के लिए विभिन्न साधनों का प्रयोग किया जाता है। आंकड़ा एकत्र करने के दो स्रोत होते हैं।

(i) आन्तरिक तथा बाहरी स्त्रोत (Internal and External Sources)-जब आंकड़ों को किसी एक व्यक्ति अथवा संस्था से प्राप्त किया जाता है तथा यह आंकड़े एक स्थान पर ही प्राप्त किए जा सकते हैं तो इनको आन्तरिक साधन कहा जाता है। आन्तरिक आंकड़े निरन्तर तौर पर (Regularly) अथवा विशेष तौर पर (Adhoc) आधार पर एकत्रित किए जा सकते हैं। बाहरी आंकड़े वे आंकड़े होते हैं जोकि एक संस्था से बिना अन्य साधनों द्वारा भी आंकड़ों को प्राप्त किया जाता है। उदाहरणस्वरूप किसी एक फ़र्म द्वारा किए गए उत्पादन, बिक्री, लाभ तथा हानि के आंकड़ों को आन्तरिक आंकड़े कहा जाता है, जबकि एक देश में कारें बनाने वाली बहुत-सी फ़र्मों के उत्पादन बिक्री, लाभ तथा हानि के आंकड़ों को बाहरी आंकड़े कहा जाता है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

(ii) प्राथमिक तथा द्वितीयक स्त्रोत (Primary and Secondary Sources)-प्राथमिक स्रोत का अर्थ उन साधनों से होता है जिनमें एक अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है। यह आंकड़े मौलिक होते हैं। द्वितीयक साधन वह साधन है, जिनमें आंकड़े किसी अन्य मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। इन आंकड़ों को अनुसन्धानकर्ता अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए प्रयोग करता है।

3. सांख्यिकी इकाइयां तथा उनकी परिभाषा (Statistical Units and their Definitions)-सांख्यिकी इकाइयों का अर्थ ऐसे माप से होता है, जिस रूप में हम आंकड़ों को एकत्र करके विश्लेषण तथा व्याख्या करते है, जैसे कि आय को रुपयों में, अनाज को क्विटलों में, दूध-पेट्रोल को लिटरों में स्पष्ट किया जाता है। यह सांख्यिकी इकाइयां उचित होनी चाहिए, जिनकी जानकारी से विशेष परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं, जैसे कि प्रो० किंग ने कहा है, “सिर्फ अनिवार्य ही नहीं, बल्कि अति आवश्यक होता है कि सांख्यिकी इकाइयों को स्पष्ट रूप में परिभाषित किया जाए।” जब हम सांख्यिकी इकाइयों को ठीक रूप में परिभाषित करते हैं तो इससे प्राप्त किए परिणाम शुद्ध तथा उचित होते हैं।

4. शुद्धता की मात्रा (Degree of Accuracy)—एकत्रित किए गए आंकड़ों में जहां तक सम्भव हों, शुद्धता का होना आवश्यक होता है, यदि एकत्रित किए गए आंकड़े शुद्ध नहीं होते तो ऐसे आंकड़ों से उचित परिणाम नहीं निकाले जा सकते। इसमें कोई शक नहीं कि आंकड़ों में 100% शुद्धता नहीं पाई जा सकती। इसका मुख्य कारण यह होता है कि आंकड़ों को एकत्र करते समय कई बार अनुमान का सहारा लेना पड़ता है। कई बार अनुसन्धान पक्षपात न भी करना चाहता हो परन्तु सूचना देने वाला व्यक्ति ठीक आंकड़े प्रदान न करें तो भी शुद्धता के स्तर को प्राप्त नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों से क्या अभिप्राय है ? प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर बताओ।
(What do you mean by primary and secondary data ? What is difference between primary and secondary data)
उत्तर-
प्राथमिक आंकड़े (Primary Data)-प्राथमिक आंकड़े वह आंकड़े होते हैं, जोकि अनुसन्धानकर्ता द्वारा स्वयं एकत्रित किए जाते हैं। ये आंकड़े पहले किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए नहीं होते, ऐसे आंकड़ों को प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० सीकरिस्ट के शब्दों में, “प्राथमिक आंकड़ों से अभिप्राय मौलिक आंकड़ों से होता है अर्थात् मुख्य तौर पर यह कच्चे माल जैसे होते हैं।” (“By Primary data are meant those which are original, that is they are essential Raw Materials.”-Secrist)

प्रो० वैसल के शब्दों में, “अनुसन्धान की प्रक्रिया में जो समंक मौलिक रूप में एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data originally collected in the process of investigation are known as primary data.”-Wessel) द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़ों को दूसरे दर्जे के आंकड़े भी कहा जा सकता है। यह आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं।

परन्तु अनुसन्धान इन आंकड़ों का प्रयोग अपनी जांच-पड़ताल में कर लेता है। इन आंकड़ों को वह खुद एकत्रित नहीं करता, बल्कि अख़बारों, रसालों, पुस्तकों में छपे हुए आंकड़ों का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर लेता है तो ऐसे आंकड़ों को द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० एम० एम० बलेयर के शब्दों में, “द्वितीयक आंकड़े वह हैं जो कि पहले ही अस्तित्व में होते हैं, जोकि वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं, बल्कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। प्रो० वैसल अनुसार, “समंक जो दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data Collected by other persons are called secondary data.” –Wessel)

द्वितीयक आंकड़े (Secondary Data) द्वितीयक आंकड़ों को दूसरे दर्जे के आंकड़े भी कहा जा सकता है। यह आंकड़े पहले ही किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए जाते हैं। परन्तु अनुसन्धान इन आंकड़ों का प्रयोग अपनी जांच-पड़ताल में कर लेता है। इन आंकड़ों को वह खुद एकत्रित नहीं करता, बल्कि अख़बारों, रसालों, पुस्तकों में छपे हुए आंकड़ों का प्रयोग अपने उद्देश्य के लिए कर लेता है तो ऐसे आंकड़ों को द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है। प्रो० एम० एम० बलेयर के शब्दों में, “द्वितीयक आंकड़े वह हैं जो कि पहले ही अस्तित्व में होते हैं, जोकि वर्तमान प्रश्नों के उत्तर में नहीं, बल्कि किसी अन्य उद्देश्य के लिए एकत्रित किए जाते हैं। प्रो० वैसल अनुसार, “समंक जो दूसरे व्यक्तियों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इनको द्वितीयक आंकड़े कहा जाता है।” (“Data Collected by other persons are called secondary data.” –Wessel)

प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़ों में अन्तर (Difference between Primary and Secondary Data)
PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े 1
प्रो० सीकरिस्ट के अनुसार, “प्राथमिक आंकड़े तथा द्वितीयक आंकड़ों में संकेत दर्जे का अन्तर होता है, प्रकार का कोई अन्तर नहीं होता अर्थात् ये आंकड़े जो कि किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए हैं। उस मनुष्य अथवा संस्था के लिए ये आंकड़े प्राथमिक आंकड़े होते हैं, परन्तु ये आंकड़े जब किसी अन्य मनुष्य अथवा संस्था द्वारा प्रयोग किए जाते हैं तो ये द्वितीयक आंकड़े बन जाते हैं। इसलिए इन आंकड़ों में केवल दर्जे का ही अन्तर है प्रकार का कोई अन्तर नहीं।”

प्रश्न 3.
प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने की विधियों की व्याख्या करो। प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान के गुण तथा दोष बताओ।
(Explain the methods of collecting Primary Data. Give the merits and demerits of Direct Personal Investigation.)
उत्तर-
जब सांख्यिकी अनुसन्धान के लिए एक अनुसन्धानकर्ता स्वयं आंकड़े एकत्रित करता है तो इनको प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है। प्राथमिक आंकड़ों को एकत्रित करने की प्रमुख्य विधियां निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)
  2. अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान (Indirect Oral Investigation)
  3. संवाददाता से सूचना (Information from correspondents)
  4. डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना (Information through Mailed Questionnaires)
  5. गणकों के माध्यम द्वारा सूचना (Information through anumerators)

प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान (Direct Personal Investigation)-प्राथमिक आंकड़ों को एकत्र करने के लिए प्रथम विधि प्रत्यक्ष व्यक्तिगत अनुसन्धान विधि है। इस विधि में अनुसन्धानकर्ता आय स्वयं सूचना देने वालों के पास जाता है तथा आंकड़े एकत्रित करता है। इस विधि द्वारा विश्वसनीय आंकड़े एकत्रित किए जा सकते हैं, यदि अनुसन्धानकर्ता मेहनती, धैर्य वाला तथा निरपक्ष स्वभाव वाला होता है। उदाहरणस्वरूप गुरु नानक देव युनिवर्सिटी अमृतसर में काम करने वाले कर्मचारियों सम्बन्धी कोई जांच-पड़ताल करनी है तो जांचकर्ता युनिवर्सिटी में जाकर कर्मचारियों से बात करता है। इस प्रकार जो आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं, उनको प्राथमिक आंकड़े कहा जाता है।

विधि का क्षेत्र (Scope of the method)-यह विधि ऐसे अनुसन्धान के लिए उचित होती है जहां जांच-पड़ताल का क्षेत्र सीमित हो। जहां अनुसन्धान में मौलिक आंकड़ों की आवश्यकता होती है तथा आंकड़ों को गुप्त रखना हो। आंकड़े शुद्ध तथा जटिल हों तो अनुसन्धानकर्ता स्वयं ही ऐसे आंकड़े एकत्र कर सकता है।

गुण (Merits)-इस विधि के मुख्य गुण निम्नलिखित अनुसार हैं

  1. इस विधि द्वारा एकत्रित किए गए आंकड़े मौलिक (original) होते हैं।
  2. यह विधि लचकदार (Elastic) भी है क्योंकि अनुसन्धानकर्ता प्रश्नों की आवश्यकता अनुसार बदल सकता है।
  3. इस विधि द्वारा एकत्रित किए आंकड़ों में शुद्धता का गुण पाया जाता है।
  4. यह विधि विश्वसनीय होती है तथा प्राप्त की जानकारी पर पूर्ण रूप में भरोसा किया जा सकता है।
  5. इस ढंग से मुख्य सूचना के बिना अधिक जानकारी भी प्राप्त हो जाती है।

दोष (Demerits)—
इस विधि में निम्नलिखित दोष भी हैं-

  • इस विधि को विशाल क्षेत्र (Wide Areas) में लागू नहीं किया जा सकता, क्योंकि अनुसन्धानकर्ता प्रत्येक स्थान पर स्वयं जाकर आंकड़े एकत्रित नहीं कर सकता।
  • यह विधि अधिक खर्चीली (More Costly) है, आंकड़ों को एकत्र करने के लिए अधिक मेहनत की आवश्यकता होती है।
  • इस विधि में व्यक्तिगत पक्षपात (Favouritism) भी हो सकता है। इसलिए प्राप्त परिणाम दोषपूर्ण हो सकते हैं।
  • इस विधि द्वारा आंकड़े एकत्र करने के लिए अधिक समय (More time) नष्ट हो जाता है।
  • इस विधि के लिए सिखलाई के माहिर (Trained) व्यक्तियों की आवश्यकता होती है।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 4.
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान प्रयोग कब किया जाता है ? इसके गुण दोष तथा सावधानियां लिखें।
(Describe the suitability of Indirect oral investigation. What are its merits, demerits, and precautions.)
उत्तर-
अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान (Indirect Oral Investigation)-प्राथमिक आंकड़े एकत्र करने के लिए अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान की विधि भी अपनाई जाती है। इस विधि अनुसार अनुसन्धानकर्ता सूचना देने वाले सभी व्यक्तियों को नहीं मिलता, बल्कि ऐसे व्यक्तिों से जानकारी प्राप्त करता है, जिनको एक विशेष वर्ग के लोगों की पूर्ण जानकारी होती है तथा जो अच्छे ढंग से सूचना देने की योग्यता रखते हैं। उदाहरणस्वरूप जैसे कि किसी उद्योग में काम पर लगे मज़दूरों सम्बन्धी जानकारी मज़दूरों से प्राप्त न करके यह सूचना मौखिक रूप में मज़दूर समूहों तथा उद्योगपतियों से प्राप्त की जाती है। इस विधि को अप्रत्यक्ष मौखिक अनुसन्धान की विधि कहा जाता है।

विधि का क्षेत्र (Scope of the Method) यह विधि विशाल क्षेत्र में लागू की जा सकती है। जब सूचना देने वाले अज्ञानी होते हैं तथा उनकी संख्या इतनी अधिक हो कि सम्पर्क करना सम्भव न हो तो ऐसी स्थिति में अप्रत्यक्ष अनुसन्धान की विधि अधिक उचित होती है।

गुण (Merits) इस विधि के गुण निम्नलिखित हैं –

  1. यह विधि विशाल क्षेत्र (Wide Area) में लागू होती है।
  2. यह विधि कम खर्चीली (Less Costly) है। इसमें समय, धन तथा मेहनत कम खर्च होती है।
  3. इस विधि में पक्षपात (Bias) की सम्भावना नहीं होती।
  4. सूचना माहिरों (Experts) द्वारा दी जाती है, इसलिए सरलतापूर्वक जल्दी से आंकड़े प्राप्त किए जाते हैं।

दोष (Demerits)-इस विधि में निम्नलिखित दोष भी हैं-

  1. इस विधि द्वारा आंकड़ों में शुद्धता की कमी (Less Accuracy) हो सकती है, क्योंकि आंकड़ों सम्बन्धी लोगों की जगह पर मज़दूर समूहों अथवा मालिकों से प्राप्त किए जाते हैं।
  2. इस विधि में सूचना देने वाले पक्षपात (Bias) का प्रयोग कर सकते हैं।
  3. आंकड़े व्यक्तिगत दृष्टिकोण अनुसार दिए गए हैं, इसलिए प्राप्त किए परिणाम गलत (Wrong Results) भी हो सकते हैं।

प्रश्न 5.
संवाददाता द्वारा सूचना प्राप्त करने के गुण व दोष लिखें। इनके प्रयोग में क्या सावधानियां बरतनी चाहिए ?
(What are the merits and demerits of correspondent method? What are precautions while using this method ?)
उत्तर-
संवाददाताओं से सूचना (Information from Correspondents)-इस विधि में अनुसन्धानकर्ता स्थानिक एजेन्टों अथवा संवाददाताओं की सहायता से सूचना प्राप्त करता है। ये संवाददाता अपने क्षेत्रों में से ज़रूरी सूचना एकत्रित करके अनुसन्धानकर्ता को भेज देते हैं। इस विधि द्वारा बहुत विशाल क्षेत्र में से उचित तथा नवीन आंकड़े सरलता से प्राप्त हो सकते हैं।

विधि का क्षेत्र (Scope of the Method) यह विधि साधारण तौर पर रसालों, अख़बारों, टेलीविज़न तथा रेडियो द्वारा अपनाई जाती है। स्थानिक संवाददाता दिन-प्रतिदिन की घटनाओं के बारे ताजा जानकारी प्रदान करते हैं।

गुण (Merits) इस विधि के मुख्य गुण इस प्रकार हैं

  • यह विधि किफ़ायती (Economical) होती है। इस विधि में धन, समय तथा परिश्रम की बचत होती है।
  • इस विधि को विशाल क्षेत्र (Wide Area) में लागू किया जा सकता है। इससे दूर-दूर से सूचना प्राप्त की जा सकती है।
  • इस विधि द्वारा निरन्तर (Continuously) तथा निरन्तरता से प्राप्त की जा सकती है।
  • जब बहुत ऊंचे दर्जे की शुद्धता न अनिवार्य हो तो सापेक्षक शुद्धता (Relative Accuracy) के लिए यह विधि अधिक उचित है।

दोष (Demerits)-इस विधि के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं

  1. इस विधि द्वारा एकत्रित किए आंकड़ों की मौलिकता की कमी (Less Originality) पाई जाती है।
  2. संवाददाताओं द्वारा भेजे आंकड़े पक्षपात (Biased Data) वाले हो सकते हैं।
  3. इस विधि अनुसार सूचना प्राप्त करना संवादाताओं की कुशलता पर निर्भर करता है। यदि संवाददाता कुशल न हो तो सूचना प्राप्त करने के लिए बहुत-सा समय (Time) नष्ट हो जाता है।
  4. विभिन्न संवाददाताओं द्वारा भेजी गई सूचना में एकसारता (Uniformity) का अभाव होता है, परिणामस्वरूप जांच-पड़ताल करनी कठिन हो जाती है।
  5. इसी विधि द्वारा सूचना देर से प्राप्त होती है। देरी से एकत्रित किए (Delay in collection) आंकड़े ज्यादा लाभदायक नहीं होते।

प्रश्न 6.
डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना के गुण तथा दोष बताएं। (What are the merits and demerits of information through Mailed Questionnaires ?)
उत्तर-
डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना (Information through Mailed Questionnaires)प्राथमिक आंकड़े एकत्रित करने के लिए डाक प्रश्नावली के माध्यम द्वारा सूचना के ढंग का प्रयोग भी किया जाता है। इस विधि में प्रश्नावली तैयार की जाती है तथा इसको विभिन्न सूचना देने वाले मनुष्यों के पास डाक द्वारा भेजा जाता है। प्रश्नावली के साथ एक विनती-पत्र भी भेजा जाता है, जिसमें प्रश्नावली को भरने के पश्चात् जल्दी वापस भेजने की विनती की जाती है तथा विश्वास दिलाया जाता है कि उसकी सूचना को गुप्त रखा जाएगा। सूचना देने वाला प्रश्नावली में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर भरकर वापिस अनुसन्धानकर्ता को भेज देता है, इस प्रकार प्रश्नावलियों के आधार पर आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं।

विधि का क्षेत्र (Scope of Method) डाक के माध्यम द्वारा सूचना एकत्र करने की इस विधि को उस समय लागू किया जाता है जब जांच-पड़ताल का क्षेत्र विशाल होता है तथा सूचना देने वाले व्यक्ति शिक्षित होते हैं।

गुण (Merits) इस विधि द्वारा आंकड़े एकत्र करने के मुख्य गुण निम्नलिखित हैं –

  1. इस ढंग को बहुत खर्चीली (Economical) विधि भी कहा जाता है क्योंकि विभिन्न स्थानों से कम खर्च करके सूचना एकत्र की जा सकती है।
  2. जब जांच-पड़ताल का विशाल क्षेत्र (Wide Area) होता है तो इस विधि द्वारा सरलता से आंकड़े एकत्र किए जा सकते हैं।
  3. इस विधि द्वारा एकत्रित किए आंकड़े मौलिक (original) होते हैं। क्योंकि सूचना देने वाले मनुष्य आंकड़ों को स्वयं भरकर भेजते हैं।

दोष (Demerits) – इस विधि के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं

  1. इस विधि का मुख्य दोष यह है कि सूचना देने वाले मनुष्य की कम रुचि (Lack of Interest) होने के कारण कई बार प्रश्नावलियों को वापस नहीं भेजा जाता। इसलिए सूचना प्राप्त न होने के कारण अनुसन्धान करने में देर लग जाती है।
  2. इस विधि में लोचशीलता की कमी (Less Elasticity) होने के कारण उचित सूचना प्राप्त नहीं होती, क्योंकि प्रश्न न समझ आने की स्थिति में सूचना देने में मुश्किल आती है।
  3. सूचना पक्षपात पूर्ण (Biased) भी हो सकती है, क्योंकि सूचना देने वाला अपनी इच्छानुसार सूचना प्रदान करता है। इसलिए उचित परिणाम प्राप्त नहीं किए जा सकते।
  4. यह विधि सीमित क्षेत्र (Limited-Area) में लागू की जा सकती है, क्योंकि इसको केवल पढ़े-लिखे लोगों से आंकड़े प्राप्त करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
  5. यह विधि जटिल (Complex) भी होती है, क्योंकि प्रश्नावली में पूछे गए प्रश्न का उत्तर गलत भी दिया जा सकता है। इसलिए आंकड़ों की शुद्धता सौ प्रतिशत पूर्ण नहीं होती।

प्रश्न 7.
एक अच्छी प्रश्नावली में कौन-कौन से गुण होने चाहिए ? (What are the qualities of a good questionnaire ?)
उत्तर-
अच्छी प्रश्नावली के गुण (Qualities of a good questionnaire)-
1. अनुसन्धान का उद्देश्य-अनुसन्धान का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए। इस प्रकार बनाए गए प्रश्न ऐसे होने चाहिए, जिन द्वारा उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनिवार्य सूचना दी गई हो।

2. प्रश्नों की कम संख्या–प्रश्नावली में प्रश्नों की संख्या कम-से-कम होनी चाहिए। प्रश्न केवल अनुसन्धान से सम्बन्धित होने चाहिए तो ही सूचना देने वाला प्रश्नावली को सरलता से भर सकता है।

3. प्रश्नों का उचित क्रम-प्रश्नावली में दिए गए प्रश्न उचित तथा तर्कपूर्वक क्रम में होने चाहिए।

4. प्रश्नावली की सरलता-प्रश्नावली में सरलता का गुण होना चाहिए अर्थात् प्रश्न इस तरह के होने चाहिए कि सूचना देने वाले की समझ में सरलता से आ सकें तथा सूचना देने वाला उचित सूचना सरल ढंग से तथा स्पष्ट कर सके।

5. निजी प्रश्न-सूचना देने वालों को निजी प्रकार के प्रश्न नहीं पूछने चाहिए अर्थात् प्रश्नावली के प्रश्न लोगों की धार्मिक, सामाजिक, भावनाओं को चोट पहुँचाने वाले नहीं होने चाहिए।

6. सूचना का विश्वास-प्रश्नावली का महत्त्वपूर्ण गुण यह होना चाहिए है कि सूचना देने वाला बिना किसी डर से सूचना प्रदान कर सकें। इसलिए सूचना देने वाले बिना डर के उचित सूचना प्रदान करते हैं।

7. पक्षपात का अभाव-प्रश्नावली में ऐसे प्रश्न नहीं होने चाहिए जोकि पक्षपात को स्पष्ट करते हों। प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए, जो बिना पक्षपात तथा मतभेद अनुसार बनाए गए हों। ऐसी स्थिति में प्रश्नावली द्वारा उचित सूचना प्राप्त नहीं होगी, यदि प्रश्नावली पक्षपात रहित नहीं होती।

8. संख्या सम्बन्धी प्रश्न-इस बात का ध्यान रखना चाहिए है कि प्रश्न ऐसे न हों, जिनमें सूचना देने वाले को हिसाब-किताब लगाना पड़े, जैसे कि लोग अपनी आय में से कितने प्रतिशत हिस्सा फल तथा सब्जियों पर खर्च करते हैं। इसलिए प्रश्न बनाते समय अनुसन्धानकर्ता को गणना का स्वयं काम करना चाहिए तथा प्रश्न इस प्रकार के होने चाहिए जिनमें अनिवार्य सूचना अनुसन्धानकर्ता स्वयं प्राप्त करें।

9. पूर्व निरीक्षण-प्रश्नावली को अन्तिम रूप देने से पहले इसकी जांच-पड़ताल कर लेनी चाहिए अर्थात् स्थानिक तौर पर कुछ मनुष्यों को प्रश्नावलियों में विभाजित कर सूचना भरवा लेनी चाहिए। इस प्रकार प्रश्नावली के मार्ग में आने वाली मुश्किलों के अनुसार इसको परिवर्तित कर देना चाहिए। इसलिए पूर्व निरीक्षण का कार्य अच्छी प्रश्नावली के लिए उचित माना जाता है।

10. सच्चाई की परख-सूचना एकत्रित करने वाले को ऐसे प्रश्न भी पूछने चाहिए, जिनसे सच्चाई की परख की जा सके। इस उद्देश्य के लिए प्रश्नावली में सच्चाई की परख की सम्भावना होनी चाहिए।

11. प्रश्नावली का मनमोहक होना-प्रश्नावली मनमोहक तथा प्रभाव पाने वाली होनी चाहिए। प्रश्न ऐसे होने चाहिए जिनमें सूचना देने वाले की रुचि में वृद्धि हो। उत्तर देने के लिए उचित स्थान प्राप्त होना चाहिए।

12. निर्देश-प्रश्नावली को भरने के लिए स्पष्ट तथा उचित निर्देश देने चाहिए जिससे प्रश्नावली भरते समय किसी प्रकार की मुश्किल का सामना न करना पड़े।

13. सूचना देने वाली की सुविधा-प्रश्नावली भेजते समय सूचना देने वाले की सुविधा को ध्यान में रखना चाहिए। प्रश्न सीधे तथा सम्बन्धित होने चाहिए जिनका उत्तर बहुत कम समय में दिया जा सके। अनिवार्य डाक टिकट लिफाफे समेत अपना पूरा पता लिखकर भेजनी चाहिए। इस प्रकार सूचना देने वाले की सुविधा में ध्यान रखना चाहिए।

प्रश्नावली को भरकर वापस भेजने की विनती की जानी चाहिए। सूचना देने वाले को यह विश्वास दिलवाना अनिवार्य होता है कि एकत्रित की गई सूचना अनुसन्धान के लिए ही प्रयोग की जाएगी तथा पूर्ण तौर पर गुप्त रखी जाएगी। इस प्रकार की प्रश्नावली द्वारा कम समय में अधिक-से-अधिक सूचना प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 8.
द्वितीयक आंकड़े एकत्रित करने की विधियों को स्पष्ट कीजिए। (Explain the methods of collecting secondary data.)
उत्तर-
द्वितीयक आंकड़ों को एकत्र करने के दो मुख्य स्रोत होते हैं –
A. प्रकाशित स्रोत (Published Sources)
B. अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources) A.
प्रकाशित स्त्रोत (Published Sources) द्वितीयक आंकड़ों के मुख्य प्रकाशित स्रोत अग्रलिखित अनुसार-
1. अन्तर्राष्ट्रीय प्रकाशन (I.M.F.)-द्वितीयक आंकड़ों को एकत्र करने के दो मुख्य स्रोत होते हैं। विश्व बैंक (World Bank) इत्यादि संस्थाएं सर्वेक्षण करके आंकड़ों को प्रकाशित करती हैं। इन आंकड़ों का प्रयोग व्यक्तियों द्वारा अनुसन्धान में किया जा सकता है।

2. सरकारी प्रशासन-प्रत्येक देश की सरकार देश में विभिन्न प्रकार के आंकड़े प्रकाशित करती है जैसे कि भारत में केन्द्रीय तथा राज्य सरकारें, विभिन्न विभागों से सम्बन्धित आंकड़े प्रकाशित करती हैं। ये आंकड़े सांख्यिकी विशेषज्ञों द्वारा एकत्रित किए जाते हैं, इस उद्देश्य के लिए सूचना मन्त्रालय स्थापित किए होते हैं।

3. अर्द्ध सरकारी प्रकाशन-अर्द्ध सरकारी संस्थाएं जैसे कि पंचायतें, नगरपालिकाएं, नगर-निगम, जिला परिषद् इत्यादि को विभिन्न प्रकार के आंकड़ों का रिकॉर्ड रखते हैं, जैसे कि जन्म, मृत्यु, सेहत, चुंगी द्वारा आय इत्यादि से सम्बन्धित आंकड़े प्रकाशित करती रहती है। ये आंकड़े भी अनुसन्धानकर्ता के लिए लाभदायक होते हैं।

4. आयोगों तथा कमेटियों की रिपोर्ट (Reports of Committees and Commissions) सरकार द्वारा विभिन्न उद्देश्यों के लिए आयोगों तथा कमेटियों की स्थापना की जाती है। इन आयोगों तथा कमेटियों द्वारा रिपोर्ट पेश की जाती हैं। जिनमें लाभदायक आंकड़े प्रदान किए जाते हैं, जैसे कि वित्त आयोग की रिपोर्ट, इजारेदार आयोग की रिपोर्ट, योजना कमीशन की रिपोर्ट इत्यादि द्वारा भी आंकड़े प्राप्त किए जा सकते हैं।

5. अनुसन्धान संस्थाओं के प्रकाशन (Publication of Research Institute) बहुत-सी अनुसन्धान संस्थाएं अनुसन्धान करने के पश्चात् विभिन्न प्रकार के आंकड़े प्रदान करती हैं जैसे कि विश्वविद्यालय तथा अनुसन्धान संस्थाएं जैसे कि भारतीय सांख्यिकी संस्था, राज्य सरकारों की सांख्यिकी संस्थाएं, अनुसन्धान करने के पश्चात् अनुसन्धान पत्र तथा पत्रिकाएं प्रकाशित करती हैं। द्वितीयक आंकड़ों को प्राप्त करने का यह एक महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है।

6. समाचार-पत्र तथा पत्रिकाओं द्वारा प्रकाशन (Papers and Journal Publications)-प्रत्येक देश में समाचार-पत्रों तथा पत्रिकाओं में भी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं जैसे कि आंकड़ों से सम्बन्धित समाचार-पत्र (Economics Times) तथा पत्रिकाएं। जैसे कि कामर्स योजना इत्यादि में भी आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं। यह पत्र तथा पत्रिकाएं भी द्वितीयक आंकड़ों का स्रोत बन सकती हैं।

B. अप्रकाशित स्रोत (Unpublished Sources)-द्वितीयक अथवा दूसरे दर्जा के आंकड़ों का अप्रकाशित साधनों द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। बहुत-से उद्योग अपने पूंजी निर्माण, उत्पादन, बिक्री, मज़दूरों की संख्या का रिकार्ड अपने पास रखते हैं। इस रिकॉर्ड को प्रकाशित नहीं किया जाता। परन्तु अनुसन्धानकर्ता ऐसे अप्रकाशित साधनों से सूचना प्राप्त कर सकता है।

इसी तरह किसी व्यक्ति के पास हाथ देखने ऐतिहासिक पुस्तकों के आंकड़े सम्भाल कर रखे होते हैं अथवा पुराने बुजुर्गों को भूतकाल की दिलचस्प घटनाओं का पता होता है। इस प्रकार ऐसे आंकड़े जिनको प्रकाशित नहीं करवाया जाता, उन साधनों द्वारा भी सूचना प्राप्त की जा सकती है जो कि अनुसन्धान के लिए आंकड़ों का महत्त्वपूर्ण आधार बन सकते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

प्रश्न 9.
द्वितीयक आंकड़ों के प्रयोग सम्बन्धी कौन-कौन सी सावधानियां आवश्यक होती हैं ? (What are the precautions necessary for the use of Secondary Data ?)
उत्तर-
1. आंकड़ों का साधन (Sources of Data)-द्वितीयक आंकड़े प्रयोग करते समय आंकड़ों के स्रोत का पता होना चाहिए। यदि आंकड़े सरकार द्वारा एकत्रित किए गए हैं तो ये आंकड़े आमतौर पर उचित होते हैं। इसलिए प्रो० कुजनेटस अनुसार, “द्वितीयक आंकड़ों की शुद्धता उनके साधन पर निर्भर करती है।”

2. अनुसन्धान एजेन्सी की योग्यता (Ability to Collecting Agency) – द्वितीयक आंकड़े किसी मनुष्य अथवा संस्था द्वारा एकत्रित किए गए हैं। यदि अनुसन्धानकर्ता ईमानदार, तजुर्बेकार कुशल तथा निरपक्ष है तो एकत्रित किए आंकड़े विश्वसनीय होते हैं।

3. आंकड़ों का उद्देश्य तथा क्षेत्र (Motive and Scope of Data) – यदि द्वितीयक आंकड़े एकत्रित किए गए थे तो उन आंकड़ों के उद्देश्य तथा क्षेत्र को ध्यान में रखना चाहिए है। यदि अनुसन्धानकर्ता का उद्देश्य तथा क्षेत्र भी द्वितीयक आंकड़ों के अनुकूल है तो ऐसे आंकड़ों का प्रयोग सरलता से किया जा सकता है। इसलिए द्वितीयक आंकड़े अनुसन्धान के अनुकूल होने चाहिए।

4. आंकड़े एकत्र करने की विधि (Methods of Data Collections)-द्वितीयक आंकड़े किस विधि द्वारा एकत्रित किए गए हैं। इस सम्बन्धी भी अनुसन्धानकर्ता को ज्ञान होना चाहिए है। यदि आंकड़ों को एकत्रित करने के लिए अपनाई गई विधि विश्वसनीय है तो ऐसे आंकड़ों को सरलता से वर्तमान अनुसन्धान के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

5. आंकड़े एकत्रित करने का समय (Time of Collection)—जो आंकड़े हम प्राप्त करना चाहते हैं, उनकी जांच-पड़ताल के समय को भी ध्यान में रखना चाहिए अर्थात् कौन-कौन सी स्थितियों में ये आंकड़े एकत्रित किए गए थे। यदि जांच-पड़ताल कुछ विशेष स्थितियों लड़ाई, बाढ़, भूचाल के समय की गई थी तो ऐसे आंकड़ों से वर्तमान अनुसन्धान लाभदायक नहीं होगा। शान्ति समय स्थितियां असाधारण समय से भिन्न होती हैं।

6. शुद्धता का स्तर (Degree of Accuracy)-जो आंकड़े द्वितीयक आंकड़ों के रूप में प्रयोग किए जाते हैं, उनकी शुद्धता की जांच कर लेनी चाहिए। यदि शुद्धता का स्तर ऊंचा हो तो इन आंकड़ों को विश्वास से प्रयोग किया जा सकता है तथा लाभदायक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

7. सांख्यिकी इकाइयों का प्रयोग (Statistical Units) एकत्रित किए द्वितीयक आंकड़ों में प्रयोग की इकाइयों को भी ध्यान में रखना चाहिए। यदि वर्तमान अनुसन्धान में से उसी प्रकार की इकाइयों को शामिल किया गया है, जिनका प्रयोग पहले की तरह अनुसन्धान में किया गया था तो ऐसे आंकड़े विश्वसनीय परिणाम प्रदान करने में सहायक होते हैं। परन्तु यदि सांख्यिकी इकाइयों में भिन्नता पाई जाती है तो ऐसा आंकड़ों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि अनुसन्धान के लिए ऐसे आंकड़े कम लाभदायक सिद्ध होते हैं।

इसलिए हम यह कह सकते हैं कि द्वितीयक आंकड़े जैसे दिखाई देते हैं, उसी रूप में ही उनको स्वीकार करना नहीं चाहिए। द्वितीयक आंकड़ों का प्रयोग करते समय इनका सम्पादन करके वर्तमान अनुसन्धान के अनुकूल बना लेना चाहिए। इस तरह विश्वसनीय परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।

प्रश्न 10.
भारत में जनगणना संगठन पर नोट लिखो। (Write a note on Census Organisation in India.)
उत्तर –
भारत में विधिपूर्वक जनगणना 1891 में आरम्भ की गई परन्तु वैज्ञानिक ढंग से जनगणना का कार्य स्वतन्त्रता के पश्चात् 1951 में किया गया। जनगणना करने के लिए जिला स्तर पर जिला आंकड़ा विभागों की स्थापना की गई। उसके पश्चात् इस विधि में बहुत-से परिवर्तन किए गए हैं। आरम्भ में जिला स्तर पर जनसंख्या की संख्या तथा सामाजिक तथा आर्थिक आंकड़े भी एकत्रित किए जाते थे। 1961 की जनगणना में गांव, कस्बों तथा शहरों सम्बन्धी विभिन्न-सूचना एकत्रित की जाने लगी। 1971, 1981 तथा 1991 में जनगणना के आंकड़ों को वैज्ञानिक ढंग से पेश करने के लिए तालिका तथा आंकड़े पेश किए जाने लगे।

भारत में रजिस्ट्रार जनरल की नियुक्ति की गई है जो जनगणना के आंकड़े एकत्रित करने तथा पेश करने के लिए ज़िम्मेदार होता है। प्रत्येक दस वर्ष में जनसंख्या के आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। प्रत्येक दहाके के प्रथम वर्ष जनसंख्या के आंकड़ों को एकत्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय स्तर पर नई दिल्ली में रजिस्ट्रार जनरल का दफ़्तर है। सभी राज्यों, केन्द्र प्रशासन राज्यों (Union Territories) में आंकड़ा विभाग बनाए हुए हैं। प्रत्येक सूबे के जिला स्तर पर आंकड़ा अफसर नियुक्त किया गया है जोकि जनगणना का कार्य करता है, जो आंकड़े जिला स्तर पर एकत्रित किए जाते हैं वे सूबे की राजधानी भेजे जाते हैं। प्रत्येक सूबे में आंकड़ों को एकत्रित करके रजिस्ट्रार जनरल के पास नई दिल्ली भेजे जाते हैं, जोकि इन आंकड़ों को प्रकाशित करता है।

जनगणना का कार्य जिले के प्रत्येक गांव, कस्बे तथा शहर में संख्या के आधार पर किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए जनसंख्या से सम्बन्धित आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं। प्रत्येक गांव का क्षेत्रफल, रिहायशी मकानों की संख्या का विवरण एकत्रित किया जाता है। जनसंख्या में पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या आयु के आधार पर की जाती है। जनजातियों तथा पिछड़ी जातियों का विवरण भी एकत्रित किया जाता है। देश में शिक्षित तथा अनपढ़ लोगों की संख्या का ध्यान भी रखा जाता है। इसके अतिरिक्त पुरुष/स्त्री का पेशा भी पूछकर दर्ज किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए श्रमिकों को 9 भागों में विभाजित किया जाता है।

(i) काश्तकार
(ii) कृषि मज़दूर
(iii) पशु पालन, मछली पालन, जंगलात, बागबानी इत्यादि सम्बन्धित कार्य।
(iv) खानों तथा उत्खाने, लट्ठा बनाना
(v)

  • निर्माण कार्य, इनमें मरम्मत का कार्य शामिल होता है।
  • घरेलू तथा छोटे उद्योग तथा मरम्मत

(vi) उसारी
(vii) व्यापार तथा कामर्स
(viii) यातायात, संचार तथा अनुपात।
(ix) अन्य सेवाएं, सीमान्त मज़दूर तथा गैर-मज़दूर तथा उनकी पुरुष-स्त्री अनुपात।

इस प्रकार की सूचना प्रत्येक वार्ड, गांव, कस्बे, शहरी तथा यूनियन टैरीटरी से प्राप्त की जाती है। इस सम्बन्ध में जनगणना संगठन ने कुछ धारणाओं की परिभाषा इस प्रकार दी है-

  1. रिहायशी मकान-जनगणना समय जो कोई मनुष्य तथा परिवार किसी घर में रहता है अथवा दुकान करता है।
  2. अनुसूचित जाति-सरकार द्वारा प्रकाशित नोटिफिकेशन में अनुसूचित जाति की लिस्ट दी हुई है जोकि हिन्दू, सिक्ख, बौद्धी तथा किसी अन्य धर्म के हो सकते हैं।
  3. शिक्षित-जो मनुष्य पढ़-लिख सकता है तथा समझ सकता है, उसको शिक्षित में शामिल किया जाता है। इसमें 0-6 वर्ष के बच्चों को शामिल नहीं किया जाता।
  4. मज़दूर-कोई भी पुरुष अथवा स्त्री जोकि धन कमाने के लिए शारीरिक तथा मानसिक कार्य करते हैं, उनको श्रमिक कहा जाता है। 1991 की जनगणना में सीमान्त मज़दूरों की धारणा को शामिल किया गया है, जिनमें अन्य मज़दूर जिनको वर्ष में 183 दिन कार्य मिलता है। परन्तु जिनको पिछले वर्ष के दौरान कोई कार्य प्राप्त नहीं हुआ उनको गैर मज़दूर कहा जाता है।
  5. काश्तकार-काश्तकार वह होता है जो अपनी भूमि अथवा किराए की भूमि पर कृषि करके अनाज उत्पन्न करता है।
  6. कृषि मज़दूर-जो मनुष्य किसी अन्य मनुष्य की जमीन पर पैसे कमाने के लिए कार्य करता है, उसको कृषि मज़दूर कहा जाता है।
  7. पशु-पालन, मछली-पालन इत्यादि कार्य-जो मनुष्य बागवानी अर्थात् सब्जियां, फल, मिर्च, मसाले इत्यादि उत्पादन के कार्य करते हैं। इनमें पशु-पालन तथा मछली पालन को शामिल किया जाता है।
  8. खाने तथा उत्खनन-खानों में से लोहा, कोयला, मैंगनीज़ इत्यादि खनिज पदार्थ का उत्पादन करना।

इस प्रकार जनगणना संगठन द्वारा जिला आंकड़ा विभाग, सूबा आंकड़ा विभाग के सहयोग से जनसंख्या सम्बन्धी आंकड़े एकत्रित किए जाते हैं तथा इस उद्देश्य के लिए प्राथमिक आंकड़ों (Primary Data) का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय सैम्पल सर्वेक्षण संगठन (National Sample Survey Organisation) पर टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
भारत में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण का कार्य राष्ट्रीय सैम्पल सर्वेक्षण संगठन द्वारा किया जाता है। यह संगठन उद्योगों तथा कृषि के क्षेत्र के आंकड़े एकत्रित करता है। उद्योगों के आंकड़े वार्षिक आधार पर किए जाते हैं तथा कृषि में उत्पादन का अनुमान सैम्पल सर्वेक्षण के आधार पर लगाया जाता है। यह संगठन कौशल के आदेशों अनुसार कार्य करता है। इसमें 5 बुद्धिजीवी 5 आंकड़े विशेषज्ञ होते हैं जोकि केन्द्र राज्य सरकारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह संगठन डायरेक्टर जनरल तथा मुख्य कार्यकारी अफ़सर की अध्यक्षता में कार्य करता है। इसके साथ एक सहायक डायरेक्टर जनरल तथा चार डिप्टी डायरेक्टर जनरल होते हैं।

PSEB 11th Class Economics Solutions Chapter 15 प्राथमिक तथा द्वितीयक आंकड़े

यह संगठन आंकड़े एकत्रित करने के लिए तालिका तैयार करता है। एकत्रित किए आंकड़ों को संगठित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए संगठन का हैड-आफिस कलकत्ता में स्थित है। संगठन का फील्ड उपरेशन डिवीज़न दिल्ली तथा फरीदाबाद में स्थित है। यहां अलग-अलग क्षेत्रों में से आंकड़े एकत्रित करने के आदेश दिए जाते हैं। संगठन के 48 क्षेत्रीय दफ़्तर हैं तथा 117 सब-क्षेत्रीय दफ्तर हैं जोकि देश भर में फैले हुए हैं। आंकड़ों को संगठित करके प्रस्तुतीकरण का कार्य कोलकाता के हैड-आफिस में किया जाता है परन्तु इस उद्देश्य के लिए आंकड़ों के क्रमबद्ध करने के लिए दिल्ली, गिरधी, नागपुर, बंगलौर, अहमदाबाद तथा कोलकाता केन्द्र स्थापित किए गए हैं जहां कि सामाजिक तथा आर्थिक आंकड़ों को एकत्रित करके तालिका तथा तरतीब देने का कार्य किया जाता है।