PSEB 7th Class Science Notes Chapter 11 जंतुओं और पादपों में परिवहन

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 11 जंतुओं और पादपों में परिवहन

→ सभी सजीवों को विभिन्न टूटने-बनने की क्रियाओं के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो प्राप्त किए भोजन से मिलती है।

→ पत्तों को प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन तैयार करने के लिए जल तथा CO2 की आवश्यकता होती है।

→ जानवरों में भोजन, ऑक्सीजन तथा जल शरीर के प्रत्येक सैल तक पहुँचाया जाता है तथा व्यर्थ पदार्थ सैलों से शरीर के निकासी अंग तक पहुंचाए जाते हैं।

→ जीवों में पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचना परिवहन कहलाता है।

→ विकसित जीवों की रक्त संचार प्रणाली में हृदय, रक्त वाहिनियां तथा रक्त होता है जो ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड, भोजन, हार्मोनों तथा एंजाइमों का शरीर के एक भाग से दूसरे भागों में परिवहन करता है।

→ एक सैली जीवों में रक्त संचार प्रणाली नहीं होती।

→ रक्त में लाल रक्त सैल, श्वेत रक्त सैल, प्लेटलेट्स तथा प्लाज्मा होते हैं। रक्त का लाल रंग होमोग्लोबिन नाम के वर्णक के कारण होता है।

→ हृदय एक पेशीदार अंग है, जो रक्त के संचार के लिए पम्प की तरह निरन्तर धड़कता रहता है।

→ एक मिनट में धड़कनों की गिनती को नब्ज़ दर कहा जाता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 11 जंतुओं और पादपों में परिवहन

→ धमनियों में ऑक्सीजन युक्त रक्त होता है तथा शिराओं में कार्बन डाइऑक्साइड युक्त रक्त होता है।

→ रक्त तथा टिशु द्रवों के बीच पोषक तत्त्वों, गैसों तथा फोकट (व्यर्थ) पदार्थों का आदान-प्रदान कोशिकाओं द्वारा होता है।

→ मनुष्य के उत्सर्जन तन्त्र में जोड़ा गुर्दा, एक जोड़ा मूत्र वाहिनियां, एक मूत्राशय तथा एक मूत्र मार्ग उत्सर्जन होता है।

→ गुर्दे व्यर्थ पदार्थों को मूत्र के रूप में, फेफड़े कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में तथा चमड़ी पसीने के रूप में शरीर से बाहर निकालते हैं।

→ मानवीय गुर्यों में उपलब्ध रक्त कोशिकाएं रक्त को छानने का कार्य करती हैं।

→ एक मशीन की सहायता से रक्त में व्यर्थ पदार्थों तथा फोकट तरल को बाहर निकालने की प्रक्रिया को डायलाइसिस कहते हैं।

→ प्रसरण वह प्रक्रिया है जिसमें गैसों तथा द्रवों के अणु अधिक सघनता वाले माध्यम से कम सघनता वाले माध्यम की ओर गति करते हैं।

→ परासरण वह प्रक्रिया है जिसमें घोलक एक अर्ध पारगामी (Semi Permeable) झिल्ली द्वारा कम सघनता वाले घोल से अधिक सघनता वाले घोल की ओर जाता है।

→ एक सैली जीव बाहरी पर्यावरण में पदार्थों की अदला-बदली सैल की सतह से करते हैं।

→ प्रकाश संश्लेषण : सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में कार्बन-डाइऑक्साइड तथा जल जैसे सरल यौगिकों से हरे पौधों द्वारा क्लोरोफिल की मौजूदगी में कार्बोहाइड्रेट के निर्माण की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहा जाता है।

→ परासरण : यह वह प्रक्रिया है जिसमें घोलक एक अर्द्ध-पारगामी झिल्ली द्वारा कम सघनता वाले घोल से अधिक सघनता वाले घोल की ओर जाता है तथा दोनों ओर के घोलों की सघनता बराबर हो जाती है। इस प्रकार का परिवहन बहुत कम दूरी तक ही होता है। पौधों के जड़बाल परासरण विधि द्वारा मिट्टी से जल ग्रहण करते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 11 जंतुओं और पादपों में परिवहन

→ वाष्प उत्सर्जन : पौधों के पत्तों द्वारा जल के वाष्पन को वाष्प उत्सर्जन कहते हैं।

→ स्थानान्तरण : पत्तों से भोजन का पौधों के अन्य भागों (हिस्सों) तक पहुंचना स्थानान्तरण कहलाता है।

→ फ्लोएम : पौधों के जो टिशु पत्तों में बने भोजन को पौधों के अन्य हिस्सों तक पहुँचाता है, उसे ‘फ्लोएम’ कहते हैं।

→ धमनियाँ : ऐसी वाहिनियाँ जो हृदय से ऑक्सीजन युक्त रक्त को शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुँचाती हैं, उन्हें धमनियाँ कहते हैं।

→ शिराएँ : ऐसी वाहिनियाँ जो शरीर के भिन्न-भिन्न भागों से रक्त हृदय तक पहुँचाती हैं, उन्हें शिराएँ कहते हैं।

→ मानव उत्सर्जन तन्त्र : शरीर में कई क्रियाओं द्वारा पैदा हुए अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने की प्रक्रिया को उत्सर्जन तन्त्र कहते हैं।

→ डायलाइसिस : शरीर के गुर्दो में से बनावटी मशीन की सहायता से यूरिया तथा अन्य हानिकारक पदार्थों को बाहर निकालने की प्रणाली को डायालाइसिस कहते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 10 जीवों में श्वसन

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 10 जीवों में श्वसन

→ साँस लेना, श्वसन प्रक्रम का एक हिस्सा है, जिस दौरान सजीव ऑक्सीजन युक्त हवा अंदर लेते हैं तथा कार्बनडाइऑक्साइड युक्त हवा बाहर निकालते हैं।

→ साँस लेते समय हम जो ऑक्सीजन लेते हैं यह ग्लूकोज़ को पानी तथा कार्बन डाइऑक्साइड में तोड़ती है तथा ऊर्जा भी मुक्त करती है जो सजीवों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है।

→ सैंलमयी (कोशकीय) श्वसन क्रिया के दौरान जीव के सैलों (कोशिकाओं) में ग्लूकोज़ का विखण्डन होता है।

→ वायवीय श्वसन क्रिया के दौरान ऑक्सीजन की उपस्थिति में ग्लूकोज़ का विखण्डन होता है।

→ अवायवीय श्वसन क्रिया के दौरान ग्लूकोज़ का विखण्डन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है।

→ भारी व्यायाम के समय जब ऑक्सीजन की पूरी उपलब्धता नहीं होती तो भोजन का विखंडन अवायवीय श्वसन क्रिया द्वारा होता है।

→ तेज़ शारीरिक गतिविधियों के समय साँस लेने की दर भी बढ़ जाती है।

→ विभिन्न जीवों में साँस लेने के अंग भी भिन्न-भिन्न होते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 10 जीवों में श्वसन

→ साँस अंदर लेने पर फेफडे फैलते हैं तथा सांस छोड़ते (उच्छ्वसन) समय जब हवा बाहर निकलती है तो वापिस पहली स्थिति में आ जाते हैं।

→ रक्त में हीमोग्लोबिन होता है जो ऑक्सीजन को शरीर के भिन्न-भिन्न भागों (हिस्सों) तक ले जाता है।

→ गाय, भैंस, कुत्ते, बिल्लियों तथा अन्य स्तनधारियों में भी श्वसन अंग मनुष्य के श्वसन अंगों जैसे होते हैं तथा श्वसन क्रिया भी मनुष्य की तरह होती है।

→ केंचुए में गैसों की अदला-बदली गीली त्वचा द्वारा होती है। मछलियों में यह क्रिया गलफड़ों द्वारा तथा कीटों में श्वासनली द्वारा होती है।

→ पौधों में भी ग्लूकज़ का विखण्डन दूसरे जीवों के जैसा ही होता है।

→ पौधों में जड़ें मिट्टी से हवा लेती हैं।

→ पत्तों में छोटे-छोटे छेद होते हैं। जिन्हें स्टोमैटा कहते हैं। इनके द्वारा गैसों की अदला-बदली होती है।

→ श्वसन : जीवों में होने वाली वह जैव-रासायनिक क्रिया जिसमें जटिल कार्बनिक भोजन पदार्थों का ऑक्सीकरण होता है। जिसके फलस्वरूप कार्बनडाइऑक्साइड तथा पानी बनते हैं तथा ऊर्जा मुक्त होती है।

→ वायवीय श्वसन : ऑक्सीजन की मौजूदगी में होने वाली श्वसन क्रिया को वायवीय श्वसन क्रिया कहा जाता है।

→ अवायवीय श्वसन : ऑक्सीजन की गैर-मौजूदगी में होने वाली श्वसन क्रिया अवायवीय श्वसन क्रिया कहलाती है।

→ स्टोमैटा : पत्तों की सतह पर हवा तथा जलवाष्पों का आदान-प्रदान के लिए खास प्रकार के बहुत सूक्ष्म छिद्र होते हैं, जिन्हें स्टोमैटा कहते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 10 जीवों में श्वसन

→ श्वसन-क्रिया : यह सरल यांत्रिक क्रिया है जिसमें ऑक्सीजन से भरपूर हवा वातावरण में से खींच कर फेफड़ों में जाती है। इस क्रिया को श्वसन क्रिया (साँस लेना) कहते हैं। साँस लेने के बाद कार्बन डाइऑक्साइड युक्त हवा बाहर वातावरण (पर्यावरण) में निकाल दी जाती है, जिसे साँस छोड़ना (उच्छ्वसन) कहते हैं, श्वसन क्रिया कहलाती है।

→ साँस लेना : पर्यावरण में से ऑक्सीजन से भरपूर हवा खींच कर श्वास अंगों (फेफड़ों) को भरने की क्रिया को साँस लेना कहते हैं।

→ श्वास छोड़ना : ऐसी क्रिया जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड से युक्त हवा को फेफड़ों से बाहर निकाला जाता है।

→ सैंलमयी/कोशिकीय श्वसन क्रिया : सैल/ कोशिका के अंदर होने वाली वह प्रक्रिया जिसमें भोजन का रासायनिक श्वसन क्रिया अपघटन होने के उपरांत (पश्चात्) ऊर्जा पैदा होती है, को सैंलमयी/कोशिकीय श्वसन क्रिया कहते हैं।

→ श्वास दर : कोई व्यक्ति एक मिनट में जितनी बार साँस लेता है, उसे श्वास दर कहते हैं। आम (सामान्य) व्यक्ति की श्वास दर 12 से 20 प्रति मिनट होती है।

→ गलफड़े : यह रक्त-बहनियाँ पंखों जैसी विशेष अंग होती हैं जिनकी सहायता से कुछ जलजीव जैसे मछली आदि साँस लेते हैं। इनमें पानी तथा रक्त उल्ट (विपरीत) दिशा में बहते हैं जिससे ऑक्सीजन का प्रसरण (Diffusion) अधिक होता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 9 मृदा

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 9 मृदा

→ धरती की सबसे ऊपर की पर्त जिसमें पौधे या फसलें उग सकती हैं, मृदा कहलाती है।

→ मृदा, टूटी चट्टानों, कार्बनिक पदार्थ, जन्तु, पौधे तथा सूक्ष्मजीवों से बनी है।

→ मृदा की भिन्न-भिन्न पर्ते होती हैं, जिन्हें मृदा की परिछेदिका में देखा जा सकता है।

→ मृदा कार्बनिक तथा अकार्बनिक दोनों प्रकार के घटकों से बनी होती है।

→ पौधों के मृत तथा गले सड़े पत्ते या पौधे, कीट या मृत जन्तुओं के मृदा में दबे शरीर, पशुओं का गोबर आदि मिल कर कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं, जिसे ह्यूमस (Humus) कहते हैं।

→ मृदा जिसमें कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों का मिश्रण होता है, फसलों के लिए अधिक लाभदायक है।

→ कणों के आकार के आधार पर मृदा चिकनी, रेतीली, पथरीली तथा दोमट होती है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 9 मृदा

→ रासायनिक गुण के आधार पर मृदा अम्लीय, क्षारीय तथा उदासीन हो सकती है।

→ अम्लीय मिट्टी का pH 1 से 6 तक होता है।

→ क्षारीय मृदा का pH 8 से 14 तक होता है।

→ उदासीन मृदा का pH 7 होता है।

→ मृदा अथवा मृदा का गुण जानने के लिए pH पेपर का प्रयोग किया जाता है।

→ काली मृदा में लोहे के लवण होते हैं तथा यह कपास उगाने के लिए अच्छी होती है।

→ जिस मृदा में गंधक होती है, वह मृदा प्याज उगाने के लिए अच्छी होती है।

→ विभिन्न फसलें उगाने के लिए भिन्न-भिन्न मृदा की आवश्यकता होती है।

→ मृदा की ऊपरी पर्त बनने में कई साल लगते हैं।

→ बाढ़, आँधी, तूफ़ानों तथा खदानें खोदने के कारण मृदा की ऊपरी पर्त नष्ट हो जाने को मृदा अपरदन कहते हैं।

→ खदानें खोदने से, चरने वाले पशुओं के खुरों से मृदा नर्म हो जाती है तथा आँधी, जल से नर्म हुई मृदा का जल्दी मृदा अपरदन हो जाता है।

→ वृक्ष लगाकर, चैक डैम बनाकर, खेतों की मेडों पर घास लगाकर तथा नदियों या नहरों के किनारे पक्के करके मृदा अपरदन को रोका जा सकता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 9 मृदा

→ मृदा : चट्टान/शैल कणों तथा ह्यूमस का मिश्रण मृदा कहलाता है।

→ मृदा परिच्छेदिका : मृदा की विभिन्न परतों से गुजरती हुई ऊर्ध्वाकाट मृदा परिच्छेदिका कहलाती है।

→ ह्यूमस : मृदा में उपस्थित सड़े-गले जैव पदार्थ ह्यूमस कहलाते हैं।

→ मृदा-आर्द्रता या नमी : मृदा अपने अंदर जल को रोक के रखती है, जिसे मृदा आर्द्रता या नमी कहते हैं।

→ मृदा-अपरदन : जल, पवन या बर्फ के द्वारा मृदा की ऊपरी तह का हटना मृदा अपरदन कहलाता है।

→ अपक्षय : वह प्रक्रम जिसमें पवन, जल और जलवायु की क्रिया से चट्टानों के टूटने पर मृदा का निर्माण होता है, अपक्षय कहलाता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 8 पवन, तूफ़ान और चक्रवात

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 8 पवन, तूफ़ान और चक्रवात

→ हमारे इर्द-गिर्द की हवा दबाव डालती है।

→ गतिशील हवा को पवन/आँधी कहते हैं।

→ बहुत तेज़ हवा चलने से दबाव घटता है।

→ गर्म होने पर हवा फैलती है और ठंडी होने पर सिकुड़ जाती है।

→ ठंडी हवा की तुलना में गर्म हवा हल्की होती है।

→ हवा अधिक दाब वाले क्षेत्रों से कम दाब वाले क्षेत्रों की ओर बहती है।

→ हवा की गति अनीमोमीटर यंत्र से मापी जाती है।

→ हवा की गति की दिशा पवन/विंड वेन (Wind Vane) से मापी जाती है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 8 पवन, तूफ़ान और चक्रवात

→ पवन धाराएँ पृथ्वी के असमान रूप से गर्म होने के कारण उत्पन्न होती हैं।

→ मानसूनी पवन जल से भरी होती है तथा वर्षा लाती है।

→ चक्रवात विनाशकारी होते हैं।

→ उड़ीसा के तट को 18 अक्तूबर, 1999 में एक चक्रवात ने पार किया था।

→ चक्रवात का पवन वेग ज्यादा होता है।

→ चक्रवात बहुत ही शक्तिशाली चक्रीय रूप में घूमने वाला तूफ़ान होता है जो बहुत कम दबाव वाले केन्द्र के गिर्द घूमता है।

→ कीप आकार के बादलों के साथ घूमती तेज़ हवाओं वाले भयानक तूफ़ान को आंधी कहते हैं।

→ आसमानी बिजली (Lightning) के समय पैदा हुई ऊँची आवाज़ को गर्जन (Thunder) कहते हैं।

→ तेज़ आंधी के साथ आने वाली भारी वर्षा को तूफ़ान (Storm) कहते हैं। ।

→ अमेरिका का हरीकेन तथा जापान का टाइफून चक्रवात ही है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 8 पवन, तूफ़ान और चक्रवात

→ टारनेडो गहरे हरे रंग के कीपाकार बादल होते हैं, जो पृथ्वी तल और आकाश के बीच समाते हैं।

→ हर प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ जैसे कि चक्रवात, टारनेडो आदि संपत्ति, तारों, संचार प्रणाली तथा वृक्षों का नुकसान करते हैं।

→ आपदा के समय विशेष नीतियाँ अपनाई जाती हैं।

→ उपग्रहों तथा राडार की सहायता से चक्रवात चेतावनी 48 घंटे पहले दी जाती है।

→ स्वयं की सहायता सबसे अच्छी सहायता है। इसलिए किसी भी चक्रवात के आने से पहले अपनी सुरक्षा की योजना बना लेना तथा सुरक्षा के उपायों को तैयार रखना लाभदायक होता है।

→ पवन : गतिशील हवा पवन कहलाती है।

→ मानसून पवन : समुद्र से आने वाली पवन जो जलवाष्पों से भरी होती है, मानसून पवन कहलाती है।

→ टारनेडो : गहरे रंग के कीप के बादल जिनकी कीपकार संरचना आकाश से धरती तल की ओर आती है, टारनेडो कहलाती है।

→ चक्रवात : उच्च वेग से वायु की अनेक परतों को कुंडली के रूप में घूमना चक्रवात कहलाता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 7 मौसम, जलवायु तथा जलवायु के अनुसार जंतुओं में अनुकूलन

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 7 मौसम, जलवायु तथा जलवायु के अनुसार जंतुओं में अनुकूलन

→ किसी स्थान का मौसम दिन-प्रतिदिन तथा सप्ताह दर सप्ताह परिवर्तित होता रहता है।

→ मौसम तापमान, आर्द्रता तथा वर्षा पर निर्भर करता है।

→ नमी (आर्द्रता), वायु के जलवाष्पों का माप है।

→ भारतीय मौसम विभाग, मौसम के पूर्वानुमान के लिए प्रतिदिन विभिन्न स्थानों के ताप, वायु वेग आदि के आँकड़े एकत्रित करता है।

→ किसी स्थान पर तापमान, आर्द्रता, वर्षा, वायु वेग आदि के संदर्भ में वायुमंडल की परिस्थिति, उस स्थान का मौसम कहलाती है।

→ मौसम क्षण भर में परिवर्तित हो सकता है।

→ वे कारक जिन पर मौसम निर्भर करता है, मौसम के घटक कहलाते हैं।

→ तापमान मापने के लिए विशेष अधिकतम-न्यूनतम तापमापी उपयोग में लाए जाते हैं।

→ दिन का अधिकतम तापमान सामान्यतः दोपहर के बाद होता है और न्यूनतम तापमान सामान्यतः प्रात: में होता है।

→ मौसम में सभी परिवर्तन सूर्य के कारण होते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 7 मौसम, जलवायु तथा जलवायु के अनुसार जंतुओं में अनुकूलन

→ सर्दियों में दिन की लंबाई कम होती है और रात जल्दी हो जाती है।

→ किसी स्थान के मौसम की लंबाई, उस स्थान पर इकट्ठे आंकड़ों के आधार पर बने मौसम का पैटर्न, उस
स्थान की जलवायु कहलाता है।

→ विभिन्न स्थानों का जलवायु विभिन्न होता है। यह गर्म और शुष्क से गर्म और आर्द्र तक बदलता है।

→ जलवायु का जीवों पर गहरा प्रभाव है।

→ जंतु उन स्थितियों में जीने के लिए अनुकूलित होते हैं, जिनमें वे रहते हैं।
ध्रुवीय क्षेत्र, ध्रुवों के समीप होते हैं, जैसे-उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव।

→ कनाडा ग्रीनलैंड, आइसलैंड, नार्वे, स्वीडन, फिनलैंड, अमेरिका में अलास्का और रूस के साइबेरियाई क्षेत्र ध्रुवीय क्षेत्र हैं ।

→ भारत, मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राजील, काँगो गणतंत्र, केन्या, युगांडा और नाइजीरिया में ऊष्ण कटिबंधीय वर्षा वन पाए जाते हैं।

→ ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी जलवायु पाई जाती है।

→ पेंग्विन और ध्रुवीय भालू, ध्रुवीय क्षेत्रों में रहते हैं।

→ ध्रुवीय क्षेत्र सफेद बर्फ से ढके रहते हैं।

→ ध्रुवीय भालू के शरीर पर सफेद बाल इसकी रक्षा और शिकार पकड़ने में सहायता करते हैं।

→ पैंग्विन भी अच्छे तैराक होते हैं इसलिए यह आसानी से सफेद पृष्ठभूमि में मिल जाते हैं।

→ ध्रुवीय भालू और पेंग्विन के अतिरिक्त कई अन्य जंतु भी ध्रुवीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।

→ कई मछलियाँ ठंडे पानी में रह सकती हैं।

→ उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में जलवायु सामान्यतः गर्म होती है, क्योंकि ये क्षेत्र भूमध्य रेखा के आस-पास स्थित होते हैं। इन क्षेत्रों में तापमान 15°C से 40°C तक बदलता रहता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 7 मौसम, जलवायु तथा जलवायु के अनुसार जंतुओं में अनुकूलन

→ भूमध्य रेखा के आस-पास के क्षेत्रों में वर्ष भर रात और दिन की लंबाई लगभग बराबर होती हैं।

→ मौसम : किसी स्थान पर तापमान, आर्द्रता, वर्षा, वायु वेग आदि के संदर्भ में वायुमंडल की प्रतिदिन की परिस्थिति उस स्थान का मौसम कहलाती है।

→ जलवायु : किसी स्थान के मौसम की लंबी अवधि, जैसे 25 वर्ष में एकत्रित आँकड़ों के आधार पर बना मौसम का पैटर्न, उस स्थान की जलवायु कहलाता है।

→ अनुकूलन : पौधों और जीवों के विशेष लक्षण अर्थात् स्वभाव जो उन्हें एक आवास में रहने के अनुकूल बनाते हैं, को अनुकूलन कहते हैं।

→ प्रवास : जंतुओं द्वारा सख्त जलवायु परिस्थितियों से बचने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान का स्थानांतरण प्रवास कहलाता है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 6 भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 6 भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन

→ परिवर्तन जीवन की प्रवृत्ति है। हमारे दैनिक जीवन में कई परिवर्तन होते हैं।

→ परिवर्तन दो प्रकार के होते हैं-

  1. भौतिक परिवर्तन
  2. रासायनिक परिवर्तन।

→ परिवर्तन का सदैव कोई कारण होता है।

→ कुछ परिवर्तनों को नियन्त्रित किया जा सकता है और कुछ को नहीं किया जा सकता।

→ भौतिक परिवर्तन में कोई नया पदार्थ नहीं बनता।

→ रासायनिक परिवर्तन सामान्यतः अनुत्क्रमणीय होते हैं।

→ रासायनिक परिवर्तनों में पैदा होने वाले नए पदार्थों के गुण बिल्कुल अलग (नए) होते हैं।

→ परिवर्तनों को उनकी समानताओं के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

→ पदार्थों के आकार, माप, रंग, अवस्था जैसे गुण उसके भौतिक गुण कहलाते हैं।

→ वह परिवर्तन जिसमें किसी पदार्थ के भौतिक गुणों में परिवर्तन हो जाता है, भौतिक परिवर्तन कहलाता है।

→ मैग्नीशियम की पट्टी (रिबन) चमकीले सफेद प्रकाश से जलती है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 6 भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन

→ जब चूने के पानी में से कार्बन डाइऑक्साइड गुजारी जाती है, तो वह दुधिया हो जाता है।

→ रासायनिक परिवर्तनों में ध्वनि, प्रकाश, ताप (ऊष्मा), गंध, गैस, रंग आदि उत्पन्न होता है।

→ जलना एक रासायनिक परिवर्तन है जिसमें सदैव ऊष्मा निष्कासित होती है।

→ वायुमंडल में ओज़ोन की एक परत है।

→ जंग लगने के लिए ऑक्सीजन तथा पानी दोनों की आवश्यकता होती है।

→ गैल्वेनाइजेशन प्रक्रिया में लोहे पर जिंक की परत चढ़ाई जाती है।

→ लोहे को पेंट करके जंग लगने से बचाया जा सकता है।

→ क्रिस्टलीकरण विधि से किसी भी पदार्थ के विलयन में से बड़े आकार के क्रिस्टल प्राप्त किए जा सकते हैं।

→ भौतिक परिवर्तन : वे परिवर्तन, जिनमें केवल पदार्थों के भौतिक गुण ही बदलें और कोई नया पदार्थ न बने, भौतिक परिवर्तन कहलाता है। उदाहरण-जल में नमक का घोल।

→ रासायनिक परिवर्तन : वे परिवर्तन जिनके द्वारा बिल्कुल नए पदार्थ उत्पन्न हों, रासायनिक परिवर्तन कहलाता है। उदाहरण-कोले को जलाना।

→ जंग लगना : लोहे द्वारा नमी युक्त वायु में भूरे रंग की परत से ढक जाने की प्रक्रिया को जंग लगना कहते हैं।

→ गैल्वेनाइजेशन : लोहे को जंग से बचाने के लिए जिंक की परत चढ़ाई जाती है इस प्रक्रिया को गैल्बेनाइजेशन कहते हैं।

→ क्रिस्टलीकरण : किसी घुलनशील पदार्थ से बड़े आकार के क्रिस्टल प्राप्त करने की प्रक्रिया को क्रिस्टलीकरण कहते हैं।

PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 8 डॉस कमांडज्र

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PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 8 डॉस कमांडज्र

जान पहचान-डॉस फाइलों का प्रबंध करती है। यह यूजर को असल तकनीक से दूर रखती है। यूजर सिर्फ हिदायतें देता है बाकी काम आपरेटिंग सिस्टम स्वयं ही करता है।

एम एस डॉस की ज़रूरी फाइल :
एम एस डॉस के लिए आवश्यक फाइल निम्न अनुसार है –
1. MSDOS.SYS
2. IO.SYS
3. Command.Com

एम एस डॉस की कमांड : डॉस में दो प्रकार की कमांडज़ होती हैं।
1. इंटरनल कमांड
2. एक्सटरनल कमांड

1. इंटरनल कमांड वे होती हैं जिन्हें चलाने के लिए किसी कमांड की ज़रूरत नहीं होती।

2. एक्सटर्नल कमांड वह होती है जिसे चालने के लिए बाहरी फाइल की आवश्यकता होती है।

डॉस का डिस्क प्रबंध :
डॉस ट्री रूप की डायरैक्टरी स्ट्रकचर में फाइलें सेव करती है। सबसे ऊपर रूट डायरैक्टरी होती है। उसके बाद अन्य डायरैक्टरी तथा अन्दर सव डायरैक्टरी आती-
PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 8 डॉस कमांडज्र 1
फाइल को नाम देना : डॉस में फाइल को नाम देने के निम्न नियम हैं –

  1. फाइल के नाम के दो हिस्से होते हैं।
  2. स्पैशल क्रैक्टर का प्रयोग नहीं कर सकते।’
  3. अपर या लोअर केस दोनों में नाम लिख सकते हैं।

PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 8 डॉस कमांडज्र

रूट डायरैक्टरी :
रूट डायरैक्टरी वह डायरैक्टरी होती है जिसके अन्दर अन्य सभी डायरैक्टरी होती हैं।

डॉस की डायरैक्टरी स्ट्रक्चर :
डॉस की डायरैक्टरी स्ट्रक्टर अलमारी के दराज की तरह है। इसमें सबसे उपर रूट डायरैक्टरी होती है। उस के अंदर डायरैक्टरी तथा सब डायरैक्टरी होती है। यह सब मिल कर एक ट्री बनाती है। एक डायरैक्टरी में कई चाइलड डायरैक्टरी हो सकती हैं, परन्तु चाईल्ड की एक ही पेरेंट डायरैक्टरी होती है। डास की डायरैक्टरी स्ट्रक्चर निम्न प्रकार की होती है।
PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 8 डॉस कमांडज्र 2

इंटर्नल कमांडज़ :
इंटर्नल कमांडज़ वो होती हैं जिसके चलने के लिए किसी फाइल की आवश्यकता नहीं होती। डॉस की इंटरनल कमांड निम्न हैं –
1. Cls : Cls कमांड का प्रयोग स्क्रीन के कंटेंट को साफ करने के लिए किया जाता है। इससे सिर्फ स्क्रीन साफ होती है। कंटैंट डिलीट नहीं होता। इसका सिंटैक्स निम्न प्रकार हैCls

2. Date : Date कमांड का प्रयोग कम्प्यूटर पर तारीख देखने तथा बदलने के लिए किया जाता है। Date टाइप करने से पहले हमें तारीख दिखाई देती है फिर डॉस उसको बदलने के लिए पुछता है। यदि तारीख बदलनी हो तो बदली जा सकती है। Date

3. Time : Time कमांड का प्रयोग कम्प्यूटर पर टाइम देखने तथा बदलने के लिए किया जाता है। यह कमांड भी Date की तरह ही कार्य करती है।
Time

एक्सटर्नल कमांडज़ :
एक्सटर्नल कमांडज़ वो होती हैं जिनके चलने के लिए किसी फाइल की आवश्यकता होती है। इंटर्नल तथा एक्सटर्नल कमांडज़ में अंतर : Internal तथा External कमांड में निम्नलिखित अंतर हैं-

Internal External
1. ये कमांड DOS के अंदर होती है। 1. ये कमांड डॉस की बाहरी होती है।
2. इनकी कोई अपनी फाइल नहीं होती। 2. इनकी अपनी फाइल होती है।
3. ये छोटी होती हैं। 3. ये काफी बड़ी भी हो सकती हैं।
4. इनसे सरल कार्य किए जाते हैं। 4. इनका प्रयोग कठिन कार्य करने में होता है।
5. इनकी संख्या निश्चित है। 5. इनकी संख्या घटाई या बढ़ाई जा सकती है।

डॉस एडीटर :
डॉस एडीटर वह यूटिलिटी है जिसमें हम अपनी फाइल को एडिट कर सकते हैं। इसमें हम नई फाइल भी तैयार कर सकते हैं। इसमें काफी सारे अन्य विकल्प भी मौजूद होते हैं।

PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 8 डॉस कमांडज्र

बैच फाइल :
वैच फाइल वह फाइल होती है जिसमें डॉस की काफी कमांडज़ स्टोर की जाती हैं ताकि उनको इक्ट्ठा ही चलाया जा सके। इस प्रकार हम ज्यादा कमांडज़ को इकट्ठा चला सकते हैं। बैच फाइल की एक्सटेंशन .bat होती है। इनके द्वारा हमारा काम काफी आसान तथा जल्दी हो जाता है।

PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 7 एम० एस० डॉस

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PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 7 एम० एस० डॉस

जान पहचान-आपरेटिंग सिस्टम सबसे ज़रूरी साफ्टवेयर होता है। यह हार्डवेयर तथा मैमरी का प्रबंध करता है। कम्प्यूटर इस के बिना कार्य नहीं कर सकता। यह प्रोग्रामों में तालमेल बना कर चलता है। डॉस एक महत्त्वपूर्ण आपरेटिंग सिस्टम है।

यूजर इंटरफेस :
यूजर इंटरफेस से अभिप्राय उस इंटरफेस से है जिसके द्वारा कोई यूजर कम्प्यूटर के साथ बातचीत करता है। ये दो प्रकार के होते हैं

  1. क्रैक्टर यूजर इंटरफेस।
  2. ग्राफिकल यूजर इंटरफेस।

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  • क्रैक्टर यूजर इंटरफेस : इस इंटरफेस में कम्प्यूटर को कमांड टाइप करके दी जाती है। इसमें कीबोर्ड का ज्यादा कार्य होता है तथा नतीजा भी टैक्सट रूप में ही मिलता है। डॉस इसकी उदाहरण है।
  • ग्राफिकल यूजर इंटरफेस: इस इंटरफेस में कम्प्यूटर के साथ ग्राफिकल ऑबजैक्ट के द्वारा बातचीत की जाती है। इसमें आइकन तथा माऊस का ज्यादा प्रयोग होता है।

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ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस के निम्न. लाभ होते हैं –

  1. यह देखने में सुन्दर होता है।
  2. इसमें कमांड याद नहीं रखनी पड़ती।
  3. कमांडों को टाइप भी नहीं करना पड़ता।
  4. ये दिखने में रंगीन होते हैं।
  5. इन में विभिन्न प्रकार के कार्य किये जा सकते हैं।
  6. एक समय पर हम एक से ज्यादा कार्य भी कर सकते हैं।

सी यू आई तथा जी यू आई में अंतर:
सी यू आई तथा जी यू आई में निम्न अंतर है

जी यू आई सी यू आई
1. सी यू आई का अर्थ है क्रैक्टर यूजर इंटरफेस। 1. जी यू आई का अर्थ है ग्राफिकल यूजर इंटरफेस।
2. इसमें कमांड टाइप की जाती है। 2. इसमें कमांड सिलैक्ट की जाती है।
3. इसमें कमांड याद रखनी पड़ती है। 3. इसमें कमांड याद नहीं रखनी पड़ती।
4. इसमें ग्राफिक्स नहीं होते। 4. इसमें ग्राफिक्स प्रयोग होते हैं।
5. ये आकार में छोटे होते हैं। 5. ये आकार में बड़े होते हैं।
6. डॉस इसकी उदाहरण है। 6. विंडोज इसकी उदाहरण है।

डॉस :
डास का पूर्ण अर्थ है डिस्क ऑप्रेटिंग सिस्टम। यह माइक्रोसॉफ्ट कम्पनी का उत्पाद है। इसमें डिस्क को मैनेज करने के लिए कमांड का प्रयोग किया जाता है। इसमें काफी सारी कमांडज़ होती हैं।
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एम०एस०डॉस को शुरू करना :
डॉस को शुरू करने के निम्न पग हैं-

  1. Start बटन पर क्लिक करें।
  2. Run कमांड पर क्लिक करें।
  3. cmd टाइप करें तथा OK बटन दबाएँ।

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कमांड प्रोम्पट:
कमांड प्रोम्पट वह स्थान होता है जहां डॉस में कमांड दाखिल की.जाती है। यह निम्न प्रकार का होता है।

कमांड टाइप करना :
डॉस में कमांड टाइप करके दी जाती है। इसको कमांड प्रोम्पट पर टाइप किया जाता है। इसके लिए हमें कमांड के सिटैक्स का पूरा पता होना चाहिए। कमांड को टाइप करने के निम्न पग हैं-

  1. डॉस खोलें।
  2. कमांड का नाम टाइप करें।
  3. कमांड के विकल्प टाइप करें।
  4. कमाडं के आर्गुमैंट टाइप करें।
  5. एंटर की दबाएं। (कमांड चल पड़ेगी।)

PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 6 मल्टीमीडिया से जान-पहचान

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PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 6 मल्टीमीडिया से जान-पहचान

जान-पहचान : कम्प्यूटर की मदद से हम अलग-अलग प्रकार की तस्वीरें बना सकते हैं और उन को छाप भी सकते हैं। कम्प्यूटर हमें अलग-अलग तस्वीरें बनाने के लिए अलग-अलग साफ्टवेयर प्रदान करवाता है। पेंट, अडोब फोटोशॉप, कोरल ड्रा, ग्राफिकल साफ्टवेयर हैं।

मल्टीमीडिया:
जब बहुत से मीडिया जैसे तस्वीरें, टैक्सट, आवाज़, मूवी आदि एकत्रित हो जाते हैं तो मल्टीमीडिया बन जाता है। मल्टीमीडिया का प्रयोग मनोरंजन के साधनों के लिए, शिक्षा देने के लिए किया जा रहा है।

मल्टीमीडिया के भाग :
मल्टीमीडिया के निम्न भाग होते हैं :

  1. टैक्सट : टैक्सट मल्टीमीडिया का बेसिक भाग होता है। किसी भी प्रकार के मल्टीमीडिया प्रोजैक्ट में जानकारी या शाब्दिक रूप देने के लिए टैक्सट का प्रयोग होता है। टैक्सट किसी भी भाषा में लिखा जा सकता है।
  2. पिक्चर : पिक्चर या तस्वीर मल्टीमीडिया का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। जो जानकारी हम टैक्सट रूप में नहीं पेश कर सकते उसे हम तस्वीर के रूप में पेश कर सकते हैं। तस्वीर द्वारा पेश की जानकारी ज्यादा प्रभावशाली होती है। तस्वीरें कई प्रकार तथा फारमैट की होती हैं।

ग्राफिकस की किस्में :
इनकी दो मुख्य किसमें नीचे लिखी गई हैं –

  1. वैक्टर इमेज़: यह इमेज़ ड्राईंग प्रोग्राम के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। इनको सीधे रूप से नहीं बनाया जा सकता। यह बहुत कम मैमरी घेरती है।
  2. बिटमैप इमेज़: इनका आकार वैक्टर इमेज़ से बड़ा होता है। यह सीधे रूप से पेंट आदि सफ्टवेयर इस्तेमाल करके बनाई जा सकती है।

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PSEB 7th Class Computer Notes Chapter 6 मल्टीमीडिया से जान-पहचान

3आवाज: आवाज़ भी मल्टीमीडिया का महत्त्वपूर्ण भाग है। इससे हमारे मल्टीमीडिया ऑबजैक्ट में प्रभाव बढ़ता है। आवाज़ दो प्रकार की होती है। एनालॉग तथा डिजीटल। डिजीटल प्रकार से स्टोर की आवाज़ ज्यादा प्रभावशाली होती है।

4. वीडियो: वीडियो को चलचित्र भी कहते हैं। ये असल में तस्वीरें ही होती हैं जिनको क्रमवार तेज़ी से चलाया जाता है। जिससे वे हमें चलती दिखाई देती हैं।

5. एनीमेश: एनीमेशन तस्वीरों को तेज़ी से चलता दिखाने से ही बनती है। इसमें तस्वीरें कृत्रिम होती है। कई प्रकार के कार्टून इसी तकनीक से बनते हैं।

मल्टीमीडिया की ज़रूरतें : मल्टीमीडिया की निम्न ज़रूरतें हैं-
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(1) हार्डवेयर ज़रूरतें : मल्टीमीडिया के लिए प्रयोग होने वाले इनपुट डिवाइस निम्न हैं

  • कीअ-बोर्ड
  • माऊस
  • स्क्रीन
  • स्के नर
  • वॉयस रैकोगनीशन सिस्टम
  • डिजीटल कैमरा।

(2) आऊटपुट यंत्र : मल्टीमीडिया के लिए निम्न आऊटपुट डिवाइस चाहिए-

  • मॉनीटर
  • आडियो डिवाइस
  • वीडियो डिवाइस
  • प्रोजैक्टर
  • प्रिंटर

(3) स्टोरेज डिवाइस : मल्टीमीडिया के लिए निम्न स्टोरेज डिवाइस चाहिए-

  • रैम
  • हार्ड डिस्क ड्राइव
  • मैगनेटिक टेप
  • CD/DVD
  • USB पैन ड्राइव।

(4) साफ्टवेयर :
मल्टीमीडिया के लिए कई साफ्टवेयर प्रयोग होते हैं, उनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं-

  • अडोव डायरैक्टर
  • मीडिया वलैंडर
  • मीडिया वर्कस
  • क्रिऐट टूगेदर
  • पूले एम ओ
  • मल्टीमीडिया बिल्डर।

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एनीमेशन : तस्वीरों को प्रभावशाली बनाने के लिए हम तस्वीरों पर अलग-अलग प्रकार के प्रभाव डालते हैं। इन प्रभावों को ही एनीमेशन कहा जाता है। एनीमेशन बनाने के लिए विण्डो के द्वारा एक साफ्टवेयर प्रदान करवाया गया है, जिसका नाम विण्डो मूवी मेकर है।

मल्टीमीडिया प्रैजनटेशन :
किसी खास विषय से संबंधित जानकारी को मल्टीमीडिया की मदद से पेश करने के ढंग को मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन कहते हैं। इसके लिए सबसे पहले स्क्रिप्ट लिखी जाती है। इसमें यह दर्शाया जाता है कि प्रेजेंटेशन के लिए कौन-कौन सी ज़रूरतें होती हैं। इसको दर्शकों के सामने किस प्रकार पेश किया जाता है। इसके बाद इसके भागों जैसे टैक्सट, आडियो, वीडियो आदि की तैयारी की जाती है।

मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन बनाने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-

  1. मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन तैयार करने से पहले प्रयोग की जाने वाली टूल की जानकारी होनी बहुत ज़रूरी है।
  2. दर्शकों की रुचि को ध्यान में रख के टैक्सट और तस्वीरों के रंग अनुकूल इस्तेमाल करने चाहिए।
  3. हमेशा अच्छे विषय की प्रेजेंटेशन बनायें, जो दर्शकों को ज्ञान दें।
  4. मल्टीमीडिया का आकार छोटा होना चाहिए।
  5. ग्राफिक्स का इस्तेमाल ज्यादा और टैक्सट का इस्तेमाल कम होनी चाहिए।
  6. ऐनीमेशन में फालतू ट्रांजीशन से भी गुरेज करना चाहिए।
  7. पहले दर्शकों की दिलचस्पी का ज्ञान कर लेना चाहिए कि वह क्या चाहते हैं।

मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन : मल्टीमीडिया प्रेजेंटेशन की कई किस्में हो सकती हैं। इनमें से कुछ नीचे लिखे अनुसार हैं-
1. सलाइड प्रैजेंटेशन-यह पावर प्वाईंट में तैयार की जाती है। इन में सलाइडें तैयार की जाती हैं। सलाइडों में टैक्सट, तस्वीरें, आवाजें, वीडियो आदि भरे जा सकते हैं।

2. प्रेजेंटेशन- इनमें यूज़र कम्प्यूटर से सीधा ही जुड़ जाता है। यूज़र काम करने या उत्तरों का चुनाव करने के लिए सक्रीन पर नज़र आने वाली तस्वीरों का चुनाव करता है।

3. वैब पेज-मल्टीमीडिया की प्रेजेंटेशन तैयार करने के लिए वैब पेज़ों का इस्तेमाल किया जा सकता है। वैब पेजों में अलग-अलग मल्टीमीडिया तत्त्व भरे जा सकते हैं। वैब पेजों को . एकत्रित करके वैब साईट तैयार की जा सकती है।

मल्टीमीडिया में फाइल फारमेंट-जिन फाइलों में ग्राफिक्स स्टोर किये जाते हैं उन्हें ग्राफिक्स फाइलें कहा जाता है। ग्राफिक्स फाइलों का अलग-अलग फारमैट होता है। कुछ फारमैट नीचे दिये अनुसार हैं –
1. GIF – GIF का पूरा नाम है-ग्राफिक इंटरचेंज फारमेंट-इसमें 256 रंग होते हैं। यह फारमैट सभी कम्प्यूटरों में चल सकता है। इस फारमैट वाली फाइलें कम्परैस्ड होती हैं। यही कारण है कि इनका आकार काफ़ी छोटा होता है। यह मैमरी में कम स्थान घेरती हैं। इन फाइलों की ऐक्स्टेंशन gif होती हैं। यह फाइलें वैब ब्राओज़र की तरफ से सबसे अधिक पसन्द की जाती हैं।

2. JPEG JPEG का पूरा नाम है-जुआइंट फोटोग्राफिक एकस्पर्ट ग्रुप-इनमें लाखों रंग होते हैं। यह फोटोज़ और गुंझलदार तस्वीरों के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इनमें jpeg या jpg ऐक्स्टैंशन होती है। यह फाइलें कम्परैस्ड होती हैं। यह फाइलें सभी कम्प्यूटरों पर चल सकती हैं।

3. BMP बी० एम० पी० का पूरा नाम-बिट मैप पिक्चर होता है। इनमें लाल, हरे और नीले (प्राइमरी) रंगों से तस्वीरें बनती हैं। इनका आकार बड़ा होता है। यह ज़्यादा मैमरी घेरती हैं। इनकी ऐक्स्टेंशन bmp होती है।
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4. PDF पी० डी० एफ० का पूरा नाम है-पोरटेबल डाकूमैंट फारमैट। जैसे कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह फारमैट इधर-उधर बदले जा सकने वाले (पोरटेबल) डाकूमैंटस के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यह फारमैट सिर्फ अडोब ऐकरोबेट (Adobe Acrobat) द्वारा इस्तेमाल किये जाते हैं। यह वैक्टर और बिटमैप दोनों का मेल होती हैं। इन फाइलों में लिंक होते हैं। फोटोशॉप (Photoshop) में भी यह फाइलें प्रयोग की जा सकती हैं। इनकी ऐक्स्टेंशन pdf होती है।

मल्टीमीडिया के क्षेत्र : मल्टीमीडिया के प्रयोग के निम्न क्षेत्र हैं :
1. शिक्षा : शिक्षा के क्षेत्र में इसका प्रयोग विद्यार्थियों को सामग्री देने के लिए किया जाता है। ई-लर्निंग भी इसी का एक भाग है। इसके प्रयोग से अध्यापन को काफी प्रभावशाली बनाया जा सकता है। .

2. व्यापार : मल्टीमीडिया के प्रयोग से एक व्यापारी अपने व्यापार की पेशकारी बढ़िया ढंग से कर सकता है। इसके अलावा इसका प्रयोग ट्रेनिंग, बाजारीकरण तथा मशहूरी करने के लिए भी किया जाता है। वीडियो कानफ्रेंसिंग द्वारा व्यापारी एक-दूसरे से दूर बैठे बात कर सकते हैं।

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3. मैडीकल सेवा : मल्टीमीडिया के प्रयोग से मैडीकल क्षेत्र में कृत्रिम वस्तुएं बनाई जा सकती हैं। इसके लिए एनीमेशन या वरचुयल टैकनालॉजी का प्रयोग किया जाता है।

4. मनोरंजन : मनोरंजन क्षेत्र में मल्टीमीडिया का प्रयोग रेडियो, टेलीविज़न, गेम, वीडियो तथा फिल्मों में किया जाता है। इससे इनकी कवालिटी को बढ़िया बनाया जा सकता है।

5. जनतक स्थान : मल्टीमीडिया का प्रयोग लाइब्रेरी, शापिंग मॉल, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन तथा होटलों आदि में ज़रूरी सूचना देने के लिए किया जाता है।

6. मल्टीमीडिया कानफ्रंस : मल्टीमीडिया कानफ्रंस दूर बैठ कर दूसरे व्यक्तियों से बात करने की प्रक्रिया को कहते हैं। इसके द्वारा हम अपनी बातें दूसरों के आगे रख सकते हैं।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 5 अम्ल, क्षारक और लवण

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PSEB 7th Class Science Notes Chapter 5 अम्ल, क्षारक और लवण

→ हम दैनिक जीवन में विभिन्न स्वादों के अनेक पदार्थों का सेवन करते हैं।

→ कुछ पदार्थों का स्वाद कड़वा, खट्टा, मीठा और नमकीन होता है।

→ पदार्थों का खट्टा स्वाद इनमें अम्लों की उपस्थिति के कारण होता है।

→ ऐसिड शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द एसियर से हुई जिसका अर्थ है-खट्टा।

→ ऐसे पदार्थ जिनका स्वाद कड़वा होता है तथा स्पर्श करने पर साबुन जैसे लगते हैं, क्षार कहलाते हैं।

→ सूचक वह पदार्थ हैं जो अम्लीय तथा क्षारीय प्रकृति के पदार्थों को भिन्न-भिन्न रंग देते हैं। इन पदार्थों को अम्लीय या क्षारीय प्रकृति के परीक्षण के लिए प्रयोग करते हैं।

→ हल्दी, लिटमस तथा गुड़हल (चाईना रोज़) की पत्तियाँ प्राकृतिक सूचक हैं।

→ उदासीन विलयन (घोल) लाल या नीले लिटमस के रंग को परिवर्तित नहीं करते क्योंकि यह न तो अम्लीय । होते हैं और न ही क्षारीय।

→ फ़िनॉल्फथेलीन एक संश्लिष्ट सूचक है जिसे प्रयोगशाला में तैयार किया जाता है।

→ कुछ अम्ल प्रबल (तेज़) तथा कुछ दुर्बल (कमज़ोर) होते हैं।

→ किसी अम्ल और क्षार की परस्पर होने वाली अभिक्रिया, उदासीनीकरण अभिक्रिया कहलाती है।

PSEB 7th Class Science Notes Chapter 5 अम्ल, क्षारक और लवण

→ अपाचन (बदहज़मी) को दूर करने के लिए प्रति अम्ल (ऐंटऐसिड) का प्रयोग किया जाता है।

→ कीट के डंक के प्रभाव के उपचार के लिए खाने के सोडे (बेकिंग सोडा) से रगड़ कर या कैलेमाइन (जिंक कार्बोनेट) विलयन लगाया जाता है।

→ मिट्टी के तेज़ाबीपन (अम्लीयता) को बुझे चूने (क्षार) से उपचारित किया जाता है। यह उदासीनीकरण का ही उदाहरण है।

→ मिट्टी के खारेपन को जैविक पदार्थों के प्रयोग से समाप्त किया जाता है।

→ कारखानों से निकले अपशिष्ट उत्पादों को क्षार पदार्थों से उदासीन करके ही पानी में छोड़ना चाहिए।

→ अम्ल (ऐसिड) : ऐसे पदार्थ जिनका स्वाद खट्टा होता है तथा जो नीले लिटमस के घोल (विलयन) से क्रिया करके उसके रंग को लाल कर देते हैं, अम्ल कहलाते हैं।

→ क्षार (एल्कली) : ऐसे पदार्थ जिनका स्वाद कड़वा होता है तथा जो लाल लिटमस के घोल (विलयन) से क्रिया करके उसके रंग को नीला कर देते हैं, क्षार कहलाते हैं।

→ उदासीनीकरण : किसी अम्ल तथा क्षार की आपस में होने वाली प्रतिक्रिया उदासीनीकरण क्रिया कहलाती है।

→ उदासीन विलयन (घोल) : ऐसा घोल जो न अम्लीय प्रकृति का हो और न ही क्षारीय प्रकृति का है, उसे उदासीन विलयन (घोल) कहते हैं या फिर जो घोल सूचक के रंग को नहीं बदलता, उदासीन घोल कहलाता है।

→ सूचक : ऐसे पदार्थों के विलयन या ऐसे पदार्थ जो विभिन्न अम्लीय, क्षारों तथा उदासीन पदार्थों से क्रिया करके भिन्न-भिन्न रंग दर्शाते हैं, को सूचक कहते हैं।