PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Hindi Guide for Class 11 PSEB स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता क्यों नहीं मिट सकी ?’ पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
लेखिका के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता इसलिए नहीं मिट सकी क्योंकि अर्थ सदा से ही शक्ति का अन्धानुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार धन का बंटवारा करना अपना कर्तव्य समझा। यह सच है कि बाद में समाज के विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह सबल हो या निर्बल, तीव्र बुद्धि हो या मन्द बुद्धि जीवन निर्वाह का साधन देना आवश्यक-सा हो गया। परन्तु उस आवश्यकता में भी शक्ति का दखल रहा। सबल ने दुर्बलों को उसी मात्रा में निर्वाह की सुविधाएँ देना स्वीकार किया, जितनी वे उनके लिए उपयोगी हों। समाज में स्त्री चूंकि निर्बल मानी गई इसलिए सामाजिक व्यवस्था में स्त्री पुरुष में यह विषमता बनी रही।

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प्रश्न 2.
‘आर्थिक दृष्टि से स्त्री की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो सका।’ लेखिका के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं ? अपने विचार स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका की यह बात पूर्णतः सत्य है। भले ही स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्थिति में कुछ बदलाव आया है परन्तु मूल रूप से स्त्री की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसका एक कारण हमारे समाज का पुरुष प्रधान होता है, जिस कारण स्त्री को आर्थिक दृष्टि से पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है। स्त्री की यह परवशता उसके विकास और आत्मविश्वास में बाधक है।

लेखिका के इस विचार से हम पूर्ण रूप से सहमत हैं कि क्यों पुरुष प्रधान समाज में कभी भी स्त्री को आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं होने दिया। पुरुष बाहर जाकर कमाता था और स्त्री घर सम्भालती थी इसलिए स्त्री घर की चार दीवारी में बन्द होकर रह गयी उसे आर्थिक दृष्टि से सदा पुरुष का मुँह ही देखना पड़ा। उसे समाज ने कोई ऐसा अवसर प्रदान नहीं किया जिससे वह आर्थिक दृष्टि से स्वाबलम्बी बन सके।

प्रश्न 3.
नारी जाति की स्थिति में निरन्तर होने वाले सुधारों का ऐतिहासिक क्रम में उल्लेख करते हुए वर्तमान स्थिति में लेखिका द्वारा दिये गए सुझावों से आप कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्राचीन वेदकालीन समाज में विवाह को बहुत महत्त्व दिया गया। सन्तान को जन्म देने के कारण स्त्री को बड़ा गौरवमय स्थान प्राप्त हुआ। स्त्री को घर गृहस्थी की मालिक बनाया गया। उसके मातृत्व को विशेष आदर दिया गया। सभ्यता के विकास के साथ-साथ स्त्री की स्थिति में कई परिवर्तन आए। स्त्री की स्थिति ही समाज के विकास के नापने का मापदंड माना जाता है। इस बर्बर समाज में स्त्री पर पुरुष का वैसा ही अधिकार है जैसे वह अपनी अन्य स्थावर सम्पत्ति पर रखने को स्वतंत्र है। इसके विपरीत पूर्ण विकसित समाज में स्त्री पुरुष की सहयोगिनी तथा समाज का आवश्यक अंग मानी जाकर माता तथा पत्नी के महिमामय आसन पर आसीन रहती है। लेखिका द्वारा दिये गए इन सुझावों से हम पूर्णतया सहमत हैं।

प्रश्न 4.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें। उत्तर-देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार। प्रश्न 5. लेखिका निबन्ध के उद्देश्य को स्पष्ट करने में कहाँ तक सफल रही है ?
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में महादेवी जी का उद्देश्य भारतीय नारी की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर प्रकाश डालना है। लेखिका के अनुसार यह एक कटु सत्य है कि सारी सामाजिक, राजनैतिक और अन्य सुविधाओं की रूप-रेखा शक्ति के अनुसार ही निर्धारित होती रही है। युग आए-युग चले गए, सभ्यता में अनेक परिवर्तन हुए लेकिन आर्थिक दृष्टि से नारी आज भी बहुत कुछ उसी हीन और दुर्बल स्थिति में पड़ी है-जैसी प्राचीनकाल में भी थी। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी निर्बल होने के कारण आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं हो सकी।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
लेखिका ने समाज की व्यवस्था में साम्य न कर सकने का क्या कारण बताया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका का मत है कि धन सदा ही शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली मनुष्य ने अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन किया। शक्तिशाली मनुष्य ने दुर्बलों को उतनी ही मात्रा में सुख-सुविधाएँ दीं जो उनके लिए ज़रूरी एवं उपयोगी थीं। उसने समाज सुविधाएँ सबके लिए नहीं उपलब्ध कराईं। यही कारण था कि समाज की व्यवस्था में साम्यता न आ सकी।

प्रश्न 2.
वैदिक समाज में स्त्री की उन्नति का क्या कारण था ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में पुरुष ने सन्तान की आवश्यकता के कारण और अनाचार रोकने के लिए विवाह को अधिक महत्त्व दिया। सन्तान की जन्मदात्री होने के कारण स्त्री की गरिमा बढ़ गई। उसे यज्ञ जैसे धर्म कार्यों में पति का साथ देने के कारण सहधर्मिणी माना गया और घर की व्यवस्था करने के लिए गृहिणी का पद दिया गया।

प्रश्न 3.
स्त्री को पिता की सम्पत्ति से वंचित करने में क्या उद्देश्य रहा होगा ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
वैसे तो इस उद्देश्य के बारे में कहना कठिन है किन्तु सम्भव है स्त्री के निकट वैवाहिक जीवन को अनिवार्य रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई हो। यह भी हो सकता है पुरुष समाज में इस ओर ध्यान ही न दिया हो। कन्या को पिता की सम्पत्ति में स्थान देने से यह कठिनाई भी आ सकती थी कि पिता की सम्पत्ति पर दूसरे परिवारों को उत्तराधिकार हो जाने पर परिवार की व्यवस्था में अस्थिरता आ सकती हो।

प्रश्न 4.
‘प्राचीन समाज में स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की कभी चिन्ता ही नहीं की गई।’ इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
समाज में स्त्री के मातृत्व को विशेष आदर दिया गया किन्तु सामाजिक व्यक्ति के रूप में उसे विशेष अधिकार न दिए गए। समाज के निकट स्त्री पुरुष की संगिनी होने के कारण ही उपयोगी थी। उससे भिन्न उसका अस्तित्व चिन्ता करने के योग्य नहीं रहता था। दूसरे, समाज भी पुरुष प्रधान था जिसने स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की बात कभी सोची ही नहीं।

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प्रश्न 5.
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास रोक देती है। न व्यक्ति अपनी इच्छा से कुछ कर पाता है न ही करने के योग्य रहता है। व्यक्ति एक घेरे में कैद होकर रह जाता है जिस से बाहर आने के लिए उसके सारे संघर्ष बेकार सिद्ध हो जाते हैं। उसे अभिमन्यु की तरह हर ओर से घेरा जाता है। परिणाम वही होता जो महाभारत के अभिमन्यु का हुआ था।

प्रश्न 6.
सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष का सम्बन्ध कहाँ तक सापेक्ष है ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
समाज में पूर्ण रूप से स्वतन्त्र कोई भी नहीं है क्योंकि सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। व्यक्ति उतना ही दूसरे पर निर्भर करता है जितना वह उससे अपेक्षा रखता है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष सम्बन्ध सापेक्ष नहीं है। दोनों में यह भाव समान नहीं है। दोनों एक-दूसरे पर समान रूप से निर्भर नहीं करते। इसी कारण भारतीय स्त्री की सापेक्षता सीमातीत हो गई है। पुरुष की अपेक्षा स्त्री पुरुष पर अधिक निर्भर है। पुरुष को स्त्री रूपी साधन के नष्ट होने पर कुछ हानि नहीं होती जबकि स्त्री हर बात में पुरुष की सहायता चाहती है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वेदकालीन समाज में नारी को क्या समझा जाता था ?
उत्तर:
केवल संतान पैदा करने वाली और गृहस्थी संभालने वाली।

प्रश्न 2.
भारतीय पुरुष स्त्री को क्या कहता है ?
उत्तर-सहयात्री।

प्रश्न 3.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ कहाँ से संकलित है ?
उत्तर:
महादेवी वर्मा की कृति ‘श्रृंखला की कड़ियों’ से।

प्रश्न 4.
शक्ति का अनुगामी कौन रहा है ?
उत्तर:
धन।

प्रश्न 5.
आदिकाल से स्त्री को क्या समझा जा रहा है ?
उत्तर:
सुख का साधन।

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प्रश्न 6.
आर्थिक रूप से स्त्री को किस पर निर्भर रहना पड़ता था ?
उत्तर:
पुरुष पर।

प्रश्न 7.
वेदकालीन समाज में नारी की …………. पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता।

प्रश्न 8.
वेदकालीन समाज में नारी को पिता की ………. में कोई अधिकार नहीं था।
उत्तर:
सम्पत्ति।

प्रश्न 9.
हमारे समाज में पुरुष को क्या कहा गया है ?
उत्तर:
भर्ता।

प्रश्न 10.
स्त्री सदा किसका मुँह ताकती रहती है ?
उत्तर:
पुरुष का।

प्रश्न 11.
प्राचीन समाज में स्त्री के मातृत्व को …………… दिया गया।
उत्तर:
विशेष आदर।

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प्रश्न 12.
प्रारम्भ से हमारा समाज कैसा रहा है ?
उत्तर:
पुरुष प्रधान।

प्रश्न 13.
किस समाज में विवाह को महत्त्व दिया गया ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में।

प्रश्न 14.
किसकी स्थिति समाज को मापने का मापदण्ड मानी जाती है ?
उत्तर:
स्त्री की।

प्रश्न 15.
पुरुष प्रधान समाज में नारी आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र क्यों नहीं हो सकी ?
उत्तर:
‘निर्बल होने के कारण।

प्रश्न 16.
समाज का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर:
शक्तिशाली व्यक्ति।

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प्रश्न 17.
समाज में पूर्ण रूप से कौन स्वतंत्र है ?
उत्तर:
कोई भी नहीं।

प्रश्न 18.
व्यक्ति का शारीरिक, बौद्धिक तथा मानसिक विकास कौन रोक देता है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक प्राणी के लिए किसका अधिक महत्त्व है ?
(क) धन का
(ख) मन का
(ग) तन का
(घ) मधुवन का ।
उत्तर:
(क) धन का

प्रश्न 2.
धन सदा किसका अनुगामी रहा है ?
(क) भक्ति का
(ख) शक्ति का
(ग) अनुशक्ति का
(घ) विरक्ति का।
उत्तर:
(ख) शक्ति का

प्रश्न 3.
पुरुष को हमारे समाज में क्या कहा जाता है ?
(क) भर्ता
(ख) कर्ता
(ग) अनुकर्ता
(घ) सतर्कता।
उत्तर:
(क) भर्ता

प्रश्न 4.
प्रारम्भ से भारतीय समाज कैसा है ?
(क) पुरुष प्रधान
(ख) स्त्री प्रधान
(ग) देव प्रधान
(घ) भोग प्रधान।
उत्तर:
(क) पुरुष प्रधान !

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कठिन शब्दों के अर्थ :

अनुगामी = पीछे चलने वाला। अर्थ = धन। सबल = शक्तिवान, शक्तिशाली। मेधावी = लायक, तीव्र बुद्धि। मंदबुद्धि = कम अक्ल, कमज़ोर बुद्धि वाला। सुगमतापूर्वक = आसानी से। प्रतिद्वंद्विता = बराबर वालों की लड़ाई । आदिम युग = प्राचीन युग, आरम्भिक युग। अनुगमन = साथ चलना। तुला = तराजू । परालंबन = दूसरे का सहारा, दूसरे पर निर्भर। भर्ता = स्वामी, भरण-पोषण करने वाला। परमुखापेक्षणी = दूसरे के मुँह की तरफ देखने वाली। विषमता = अन्तर, भेद, असमता। श्लाघ्य = प्रशंसनीय। द्रव्य-उपार्जन = धन कमाना। स्पृहणीय = वांछनीय। यीतुक = दहेज । अनिवार्य = ज़रूरी। विधान = नियम। स्वयंवरा = अपने आप वर की तलाश करना। बलात् = बलपूर्वक, ज़बरदस्ती। संगिनी = साथिन । नितान्त = बिलकुल। बर्बर = दुष्ट, अत्याचारी। परवशता = पराये वश में होना, दूसरे पर निर्भर। स्वावलम्बन = आत्मनिर्भरता। सापेक्षता = परस्पर सम्बन्ध और आदान-प्रदान की स्थिति। सीमातीत = सीमा से परे । क्षमता = सामर्थ्य । सहयात्री = हमसफर, साथ यात्रा करने वाली। उपहास = मज़ाक।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) अर्थ सदा से शक्ति का अन्ध-अनुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का प्रथम अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन करना कर्त्तव्य।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से स्त्री की परवशता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता की ऐतिहासिक पृष्ठभमि का उल्लेख करती हुई कहती है कि आदिकाल से ही धन शक्ति का अन्धानुकरण करता रहा है। जो अधिक शक्तिशाली था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आपको माना और धन का बँटवारा अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही किया।

विशेष :

  1. आदिकाल से ही शक्तिशाली व्यक्ति को सभी अधिकार मिले हुए थे।
  2. शक्तिशाली के समक्ष सभी लोग उसकी बात मानने के लिए बाध्य थे।
  3. भाषा संस्कृत-निष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(2) आदिम युग से सभ्यता के विकास तक स्त्री सुख के साधनों में गिनी जाती रही। उसके लिए परस्पर संघर्ष हुए, प्रतिद्वन्द्वता चली, महाभारत रचे गए और उसे चाहे इच्छा से हो और चाहे अनिच्छा से, उसी पुरुष का अनुगमन करना पड़ता रहा जो विजयी प्रमाणित हो सका।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वांतत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने आदिकाल से ही स्त्री को पुरुष के अधीन बताया है, उसकी अपनी इच्छा नहीं है।

व्याख्या :
स्त्री की परवशता पर प्रकाश डालते हुए लेखिका कहती है कि आदिकाल से सभ्यता के विकास तक स्त्री को सुख का साधन माना गया। स्त्री के लिए ही आपस में संघर्ष हुए, आपसी मुकाबला हुआ, महाभारत जैसे भीषण युद्धों की रचना हुई और स्त्री को चाहे मर्जी से न मर्जी से उसी पुरुष के साथ जाना पड़ा जो विजयी हो सका। लेखिका के कहने का भाव यह है कि स्त्री आदिकाल से ही पुरुष की शक्ति की गुलाम रही है।

विशेष :

  1. पुरुष के समक्ष स्त्री की अपनी कोई इच्छा का अर्थ नहीं था।
  2. जिस स्त्री को लेकर पुरुष आपस में युद्ध करते थे उसकी इच्छा का उनके लिए कोई अर्थ नहीं था।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

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(3) जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं, परन्तु किसी को सहायता दे सकने की क्षमता न रहना अभिशाप है । सहयात्री वे कहे जाते हैं, जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कहकर अपना उपहास नहीं करा सकता।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने पुरुष द्वारा स्त्री को हम साथी कहने के साथ बोझ भी समझा है का वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका स्त्री की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती है कि जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं है परन्तु किसी की सहायता न कर सकना या उसकी सामर्थ्य न रखना एक अभिशाप है। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री कहा है। सहयात्री वे कहे जाते हैं जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कह कर अपना मज़ाक नहीं उड़ा सकता। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री भी कहा और उसे एक बोझ भी समझा, अपने सुख का साधन भी समझा।

विशेष :

  1. पुरुषों ने स्त्री को अपने जीवन की संगिनी बताया है परन्तु साथ ही उसे बोझ भी माना है।
  2. सहयात्री जीवन में एक-दूसरे के विकास में सहायता करते हैं।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(4) गृह और सन्तान के लिए द्रव्य-उपार्जन पुरुष का कर्त्तव्य था अतः धन स्वभावतः उसी के अधिकार में रहा। गृहिणी गृहपति की आय के अनुसार व्यय कर गृह का प्रबन्ध और सन्तान पालन आदि का कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें समाज के पुरुष प्रधान होने और स्त्री के आर्थिक रूप से परवश होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखिका वेदकालीन समाज से चली आ रही परंपरा का उल्लेख करते हुए कहती है कि घर और सन्तान के लिए धन कमाना पुरुष का कर्तव्य था। अतः स्वाभाविक रूप से धन उसी के पास रहा। घरवाली घरवाले की आय के अनुसार खर्च कर घर का प्रबंध और सन्तान पालन आदि कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

विशेष :
लेखिका ने स्त्री के आर्थिक दृष्टि से परवश होने का कारण बताया है।
भाषा तत्सम प्रधान तथा शैली विचारात्मक है।

(5) सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही निर्धारित होती रही और सबल की सुविधानुसार ही परिवर्तित और संशोधित होती गयी, इसी से दुर्बल को वही स्वीकार करना पड़ा जो सुगमतापूर्वक मिल गया। यही स्वाभाविक भी था।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने शक्तिशाली मनुष्य के अधिकारों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है’ अपने विचार की व्याख्या करते हुए कहती है कि धन क्योंकि शक्तिशाली के ही अधिकार में रहा, इसलिए सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही बनायी जाती रही और शक्तिशाली की सुविधा के अनुसार ही बदली गयी थी। उसमें कई संशोधन किए गए। यही कारण था कि कमज़ोर को वही स्वीकार करना पड़ा जो उसे आसानी से मिल गया। कमजोर व्यक्ति का ऐसा सोचना या करना स्वाभाविक ही था।

विशेष :

  1. जो व्यक्ति शक्तिशाली है समाज का निर्माण वही करता है।
  2. शक्तिशाली व्यक्ति के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की नहीं चलती। उसे वही स्वीकार करना पड़ता है जो उसे सुगमता से प्राप्त हो जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है।

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(6) शताब्दियाँ-की-शताब्दियाँ आती जाती रहीं, परन्तु स्त्री की स्थिति की एक रसता में कोई परिवर्तन न हो सका। किसी भी स्मृतिकार ने उसके जीवन की विषमता पर ध्यान देने का अवकाश नहीं पाया ; किसी भी शास्त्रकार ने पुरुष से भिन्न करके उसकी समस्या को नहीं देखा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। लेखिका ने आदिकाल से चल आ रही स्त्री की स्थिति के लिए सभी को उत्तरदायी बताया है

व्याख्या :
इसमें लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर किसी ने भी ध्यान देने की बात कही है। लेखिका कहती है कि सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। अर्थात् जैसी स्थिति उसकी पहले थी वही अब है। किसी भी स्मृति ग्रन्थ लेखक को स्त्री के जीवन की इस असमता पर ध्यान देने का समय नहीं मिला। किसी भी शास्त्र लिखने वाले ने पुरुष से अलग करके स्त्री की समस्या को नहीं देखा।

विशेष :

  1. शताब्दियों के बीत जाने पर सब कुछ बदला परन्तु स्त्रियों की स्थिति नहीं बदली। प्राचीनकाल से लेकर अब तक किसी ने भी स्त्रियों की स्थिति बदलने के लिए प्रयास नहीं किए हैं।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

(7) मातृत्व की गरिमा ने गुरु और पत्नीत्व के सौभाग्य से ऐश्वर्यशालिनी होकर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक जीवन में सबसे अधिक क्षुद्र और रंक कैसे रह सकी, यही आश्चर्य है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने स्त्री को पुरुष समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका भारतीय स्त्री के गौरवमयी स्थान प्राप्त करने पर भी आर्थिक दृष्टि से परवश रहने की बात करती हुई कहती है कि माता का बड़ा दर्जा प्राप्त होने पर तथा पत्नी होने के कारण ऐश्वर्यशाली स्थान प्राप्त होने पर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक एवं यथार्थ जीवन में सबसे तुच्छ और निर्धन कैसे रह सकी, यही आश्चर्य की बात है अर्थात् माता का एवं पत्नी का इतना ऊँचा और गौरवमय स्थान प्राप्त होने पर भी आर्थिक दृष्टि से वह आत्मनिर्भर न बन सकी, सदा परवश ही रही।

विशेष :

  1. स्त्री को पुरुष की पत्नी तथा माता होने का गौरव प्राप्त है, फिर भी वह पुरुषों के बनाए समाज में नीच मानी जाती है।
  2. पुरुषों ने कभी भी स्त्री के गौरवमय अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

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(8) धन की उच्छशृंखल बहुलता में जितने दोष हैं वे अस्वीकार नहीं किए जा सकते परन्तु इसके नितान्त अभाव में जो अभिशाप है वह उपेक्षणीय नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने धन के गुण-दोष का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन के महत्त्व पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि धन के अधिक हो जाने पर उसमें अनेक दोष आ जाते हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। किन्तु धन का अभाव अर्थात् निर्धनता भी तो एक अभिशाप है। इस बात की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भाव यह है कि धन का सामाजिक प्राणी के जीवन में विशेष महत्त्व है।

विशेष :

  1. धन की अधिकता या कमी जीवन को नरक बना देती है।
  2. मनुष्य को अधिक धन की प्राप्ति बुरी संगति की ओर अग्रसर कर देती है तथा धन की कमी मनुष्य का जीवन उसके लिए अभिशाप बन जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न Summary

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न का सार

प्रस्तुत निबन्ध महादेवी वर्मा जी की कृति श्रृंखला की कड़ियाँ’ में संकलित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखिका ने मनुष्य के सामाजिक विकास की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से नारी की परवशता पर प्रकाश डाला है।

लेखिका कहती है कि धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली ने ही अपनी इच्छा और सुविधानुसार धन का बँटवारा किया है। सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा इसी शक्ति पर आधारित रही है। आदिकाल से ही स्त्री को सुख का साधन तो समझा गया किन्तु उसे आर्थिक रूप से पुरुष पर ही निर्भर रहना पड़ा है। पुरुष को हमारे समाज में भर्ता कहा गया और स्त्री सदा उसका मुँह ताकती रही है।

वेदकालीन समाज में नारी को केवल सन्तान पैदा करने वाली एवं घर-गृहस्थी सम्भालने वाली के रूप में ही देखा गया। उसकी आर्थिक स्वतन्त्रता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। बस दहेज में जो कुछ दे दिया गया उसे ही काफ़ी समझा गया। पिता की सम्पत्ति में उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया। सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

एक सामाजिक प्राणी के लिए धन कितना महत्त्व रखता है, यह हर कोई जानता है। आर्थिक रूप से परवशता स्त्री के स्वाभाविक विकास और आत्म-विश्वास को प्रभावित करती है। भारतीय पुरुष-स्त्री को सहयात्री तो कहता है सहयोगी नहीं मानता। इसी विषमता को दूर करना होगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 16 युवाओं से

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 युवाओं से Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 16 युवाओं से

Hindi Guide for Class 11 PSEB युवाओं से Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्द ने देश के नवयुवकों को कौन-कौन से गुण विकसित करने के लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी ने देश ने नवयुवकों को अपने अन्दर त्याग और सेवा के गुणों को विकसित करने की प्रेरणा दी है। स्वामी जी का कहना है कि इन गुणों को विकसित करने से तुम में शक्ति अपने आप जाग उठती है। दूसरों के लिए रत्ती भर भी सोचने से हृदय में सिंह जैसा बल आ जाता है। स्वामी जी कहते हैं कि नवयुवकों को निःस्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिए। उस सेवा के बदले में न धन की लालसा करनी चाहिए न कीर्ति की। हे वीर युवक ! गरीबों और पद दलितों के प्रति सहानुभूति रखो,ईश्वर में आस्था रखने, दीन-दुःखियों के दर्द को समझो और ईश्वर से उनकी सहायता करने की प्रार्थना करो। उठो और साहसी बनो, तीर्थवान बनो और सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो। इस तरह जो भी बल या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।

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प्रश्न 2.
भारतवर्ष के राष्ट्रीय आदर्श कौन-कौन से हैं ? स्वामी जी ने उन आदर्शों की क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श-त्याग और सेवा है। स्वामी जी का मत है कि इन आदर्शों का पालन करने से सब काम अपने आप ठीक हो जाएँगे। त्याग से इतनी शक्ति आएगी कि तुम उसे संभाल न सकोगे। दूसरों के हित के लिए सोचो इससे तुम्हारे अन्दर काम करने की शक्ति जाग उठेगी। धीरे-धीरे तुम में सिंह जैसा बल आ जाएगा। – स्वामी जी दूसरे राष्ट्रीय आदर्श सेवा के बारे में कहते हैं कि सेवा निःस्वार्थ भाव से की जानी चाहिए। उसमें किसी प्रकार के धन, यश या किसी दूसरी वस्तु की कामना नहीं करनी चाहिए। मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा तो वह भी बुद्ध बन जाएगा और उसके भीतर से ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से बदल सकती है।

प्रश्न 3.
स्वदेश भक्ति का स्वामी जी ने क्या अर्थ स्पष्ट किया है ?
उत्तर:
स्वामी जी ने स्वदेश भक्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है कि स्वदेश भक्ति के सम्बन्ध में उनका एक आदर्श है। बड़े काम करने के लिए तीन-चीजों की आवश्यकता होती है। बुद्धि और विचार शक्ति हमारी थोड़ी सहायता तो कर सकती है, हमें थोड़ी दूर आगे भी बहा सकती है। किन्तु वह वहीं ठहर जाती है किन्तु हमारा हृदय ही महाशक्ति को प्रेरणा देता है। प्रेम असंभव को भी संभव बना देता है। जगत के सब रहस्यों का द्वार प्रेम ही है। अतः स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनने की प्रेरणा दी है साथ ही स्वामी जी ने कहा है कि जब तक तुम्हारा हृदय भूखेगरीबों के लिए नहीं धड़केगा। जब तक इस निर्धनता को नाश करने की बात नहीं सोचेंगे, तब तक तुम देशभक्ति की पहली सीढ़ी पर कदम नहीं रखोगे।

प्रश्न 4.
‘युवाओं से’ निबन्ध का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के एक व्याख्यान का अंश है। स्वामी जी ने अपने इस व्याख्यान में नवयुवकों को सम्बोधित किया है। अतः प्रस्तुत निबन्ध का शीर्षक अत्यन्त सार्थक है। स्वामी जी ने प्रस्तुत व्याख्यान में राष्ट्रनिर्माण में नवयुवकों की महत्त्वपूर्ण भूमि का उल्लेख किया है। इसके लिए स्वामी जी ने नवयुवकों के मज़बूत एवं निर्भय बनने के लिए कहा है ऐसा वही युवक कर सकते हैं जो सच्चरित्र और अपनी शक्ति में विश्वास रखने वाले हों। जो अपनी शक्ति में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। युवाओं से सम्बोधन इस बात को सिद्ध करता है कि यह निबन्ध नवयुवकों को समर्पित हैं, जिन्हें नवभारत का निर्माण करना है। अतः कहना न होगा कि ‘युवाओं’ से शीर्षक अत्यन्त सार्थक है।

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प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानन्द किस प्रकार का संगठन करना अपना ध्येय मानते थे ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी नवयुवकों का ऐसा संगठन बनाना अपना ध्येय मानते थे जो नवयुवक प्रत्येक नगर में जाकर दीनहीन और पददलित लोगों को सुख-सुविधा प्रदान कर उन्हें धर्म और नैतिकता की शिक्षा देकर उनकी अनपढता या अज्ञानता को दूर कर सकें।

प्रश्न 6.
‘उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ स्वामी जी के इस उद्बोधन का भाव समझाएँ।
उत्तर:
प्रस्तुत उद्बोधन द्वारा स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनकर निर्धनता का नाश करने के उपाय सोचने के लिए कहा। उन्होंने नवयुवकों को स्वयं जाकर दूसरों को भी जगाकर अपने जन्म को सफल बनाने के लिए कहा है कि जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए अर्थात् निर्धनता का नाश नहीं हो जाता तब तक तुम्हें रुकना नहीं चाहिए।

प्रश्न 7.
नास्तिक व्यक्ति की स्वामी जी ने क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है जबकि प्राचीन धर्मों ने कहा है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि व्यक्ति ईश्वर का ही स्वरूप है। अत: व्यक्ति का अपने आप पर विश्वास ईश्वर में विश्वास के बराबर है और जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह ईश्वर में विश्वास कैसे रख सकता है ? वह नास्तिक ही कहलाएगा।

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प्रश्न 8.
स्वामी जी ने नवयुवकों को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत बनने की सलाह क्यों दी है ?
उत्तर:
स्वामी जी नवयुवकों को शक्तिशाली बनने की सलाह देते हैं। धर्म को वे बाद की वस्तु मानते हैं। स्वामी जी का मानना है कि गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल के खेल में दक्षता प्राप्त कर स्वर्ग के अधिक समीप पहुँचा जा सकता है। क्योंकि फुटबाल खेलकर युवकों का शरीर मज़बूत होगा। उनके स्नायु और मांसपेशियाँ अधिक मज़बूत होने पर वे गीता को अच्छी तरह समझ सकेंगे।

प्रश्न 9.
धर्म के सम्बन्ध में स्वामी जी का क्या विचार है ?
उत्तर:
स्वामी जी सब धर्मों को स्वीकार करते हैं और सबकी पूजा करते हैं। वे चाहे हिन्दू हों, चाहे मुसलमान, बौद्ध या ईसाई, उन सबके साथ ईश्वर की उपासना करते हैं, चाहे वे स्वयं ईश्वर की किसी भी रूप में उपासना करते हों। वे मस्जिद में जाएँगे, गिरजा में भी जाएँगे तथा बौद्ध मन्दिर में जाकर बौद्ध शिक्षा को ग्रहण करेंगे। वे उन हिन्दुओं के साथ जंगल में जाकर ध्यान करेंगे जो ज्योतिस्वरूप परमात्मा को प्रत्यक्ष देखने में लगे हुए हैं।

प्रश्न 10.
किस प्रकार की शिक्षा जीवन और चरित्र का निर्माण कर सकती है ?
उत्तर:
स्वामी जी का विचार है कि शिक्षा अब गया है। यह ज्ञान आत्मसात् हुए बिना निष्फल हो जाएगा। हमें उन विचारों को अनुभव करने की ज़रूरत है जो जीवननिर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि कोई केवल पाँच ही जांच-परखे विचारों को आत्मसात् कर ले जो चरित्र निर्माण कर सकते हों तो पूरे संग्रहालय को मुँह-जबानी याद करने वाले की अपेक्षा व्यक्ति अधिक शिक्षित कहलाएगा।

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PSEB 11th Class Hindi Guide युवाओं से Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध का लेखक कौन हैं ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद।

प्रश्न 2.
स्वामी जी ने किससे ऊपर उठने की बात कही है ?
उत्तर:
दलबंदी और ईर्ष्या से।

प्रश्न 3.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
उत्तर:
त्याग और सेवा।

प्रश्न 4.
दूसरों के लिए रत्ती भर सोचने मात्र से अपने अंदर कैसा बल आता है ?
उत्तर:
सिंह जैसा बल।

प्रश्न 5.
राष्ट की सबसे बडी सेवा क्या है ?
उत्तर:
गरीबों, भूखों, दलितों की सेवा करना।

प्रश्न 6.
राष्ट्रभक्ति …………….. नहीं है।
उत्तर:
कोरी भावना।

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प्रश्न 7.
राष्ट्रभक्ति का आधार क्या है ?
उत्तर:
विवेक और प्रेम।

प्रश्न 8.
शिक्षा विचारों को …………… नहीं है।
उत्तर:
ढेर।

प्रश्न 9.
भारत की उन्नति के लिए युवाओं को क्या करना होगा ?
उत्तर:
अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा।

प्रश्न 10.
नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को ………….. बनाती है।
उत्तर:
असफल।

प्रश्न 11.
कमजोर व्यक्ति का जीवन किसके समान है ?
उत्तर:
मृत्यु के समान।

प्रश्न 12.
दूसरों को अपना बनाने के लिए क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।

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प्रश्न 13.
मनुष्य किसका अंश है ?
उत्तर:
परमात्मा का।

प्रश्न 14.
स्वामी जी सब ………… को स्वीकार करते थे।
उत्तर:
धर्मों।

प्रश्न 15.
स्वामी जी धर्म को कैसी वस्तु मानते थे ?
उत्तर:
बाद की वस्तु।

प्रश्न 16.
नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग ……………. भूल जाते हैं।
उत्तर:
सेवा भाव।

प्रश्न 17.
प्राचीन धर्मों में क्या कहा गया है ?
उत्तर:

प्रश्न 18.
जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है।
उत्तर:
जो स्वयं पर ।वश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।

प्रश्न 19.
कौन अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं ?
उत्तर:
देश के युवा।

प्रश्न 20.
कमज़ोरी कभी न हटने वाला …………. है।
उत्तर:
बोझ।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध किनके भाषण का अंश है ?
(क) स्वामी विवेकानंद
(ख) स्वामी दयानंद
(ग) स्वामी परमहंस
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर:
(क) स्वामी विवेकानंद

प्रश्न 2.
प्रस्तुत निबंध में भारतीय नवयुवकों को किसके निर्माण की शिक्षा दी गई है ?
(क) चरित्र
(ख) धर्म
(ग) संस्कृति
(घ) अध्यात्म।
उत्तर:
(क) चरित्र

प्रश्न 3.
कमज़ोर व्यक्ति का जीवन किसके समान होता है ?
(क) धन के
(ख) मृत्यु के
(ग) नरक के
(घ) स्वर्ग के
उत्तर:
(ख) मृत्यु कें

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प्रश्न 4.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
(क) सेवा
(ख) त्याग
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।

कठिन शब्दों के अर्थ :

समग्र = सारे। पुनरुत्थान = दोबारा उन्नति। निःस्वार्थी = स्वार्थ से रहित। अवलंबन = सहारा। अप्रतिहत = जिसे कोई रोकने वाला न हो। पशुतुल्य = पशु के समान। आत्मसात = अपने में मिलाना। कंठस्थ = मुँह जबानी याद करना। क्रूर = दुष्ट। उन्मत्तता = पागलपन।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) भारतवर्ष का पुनरुत्थान होगा, पर वह शारीरिक शक्ति से नहीं, वरन् वह आत्मा की शक्ति द्वारा। यह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं वरन् शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए क्या कुछ करना चाहिए बताया गया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में स्वामी विवेकानन्द जी देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि उन्हें देश की उन्नति के लिए शारीरिक शक्ति की नहीं आत्मिक शक्ति पैदा करनी होगी क्योंकि आत्मिक शक्ति से मनुष्य का चरित्र बनता है। देश की उन्नति विनाश का झंडा लेकर नहीं अपितु शांति और प्रेम का झंडा लेकर होगी। इसलिए हमें प्रेम और शांति का वातावरण बनाना होगा।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत की उन्नति के लिए युवाओं को अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा तथा प्रेम और शान्ति का वातावरण स्थापित करना होगा।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है।
  3. शैली विचारात्मक है।

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(2) कैवल वही व्यक्ति सब की सेवा उत्तम रूप से कर सकता है, जो पूर्णत: नि:स्वार्थी है, जिसे न तो धन की लालसा है, न कीर्ति की और न किसी अन्य वस्तु की ही। और मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा, तो वह भी एक बुद्ध बन जाएगा, और उसके भीतर से एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित कर सकती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में वे युवकों को निष्काम सेवा का महत्त्व बताते हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी कहते हैं कि केवल वही व्यक्ति दूसरों की अच्छी तरह से सेवा कर सकता है जो पूरी तरह स्वार्थ रहित हो। जिसे न धन की इच्छा हो, न यश की तथा न ही किसी दूसरी वस्तु की। जब मनुष्य ऐसा करने में समर्थ हो जाए तो वह भी एक बुद्ध अर्थात् ज्ञानी बन जाएगा और उसके अन्दर एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी जो सारे संसार की हालत को पूरी तरह बदल सकती है।

विशेष :

  1. स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि दूसरों की सेवा निःस्वार्थ भाव से ही की जा सकती है। यह भाव व्यक्ति में एक ऐसी शक्ति को जन्म देगा जो सारे संसार को बदल देने की क्षमता रखती है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान और शैली विचारात्मक है।

(3) तुम लोग ईश्वर की सन्तान हो, अमर आनन्द के भागी हो स्वयं पवित्र और पूर्ण आत्मा हो। अत: तुम कैसे अपने को जबरदस्ती दुर्बल कहते हो ? उठो साहसी बनो, वीर्यवान होओ। सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो- यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहो, सब तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें स्वामी युवाओं को आत्मिक बल को पहचान कर अपना भाग्य निर्माण करने का संदेश दे रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को उनकी भीतरी शक्ति से परिचित करवाते हुए कहते हैं कि तुम ईश्वर की सन्तान हो अर्थात् ईश्वर तुम्हें जन्म देने वाले परम पिता हैं । इस कारण तुम अमर आनन्द को प्राप्त करने वाले हो। तुम पवित्र हो और पूर्ण आत्मा, ईश्वर का रूप हो। इसलिए तुम जबरदस्ती अपने को दुर्बल क्यों कहते हो। उठो और साहसी बनो, शक्तिवान बनो। अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ अपने कंधों पर लो। तुम्हें यह याद रखना होगा कि तुम अपने भाग्य के आप ही निर्माता हो। तुम्हें जो भी शक्ति या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।

विशेष :

  1. स्वामी जी युवकों को याद दिलाना चाहते हैं कि वे अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं और जो काम साहस से शक्ति से ही किया जा सकता है वो कहीं बाहर नहीं तुम्हारे अपने अंदर ही मौजूद है।
  2. शब्दावली तत्सम प्रधान है।
  3. भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

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(4) मेरे मित्रो, पहले मनुष्य बनिए, तब आप देखेंगे कि वे सब बाकी चीजें स्वयं आप का अनुसरण करेंगी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। इसमें स्वामी युवा को मनुष्य बनने का संदेश देते हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से कहते हैं कि धन, यश आदि प्राप्त करने के लिए पहले मनुष्य बनना बहुत ज़रूरी है। मानवता के गुण अपना लेने पर बाकी सभी चीजें तुम्हें अपने आप प्राप्त हो जाएँगी। अतः सर्वप्रथम तुम्हें मनुष्य बनना चाहिए।

विशेष :
दूसरों को अपना बनाने के लिए स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।
भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

(5) मैं तो सिर्फ उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री राम चन्द्र जी के पुल बनाने के समय थोड़ा बालू देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया है। स्वामी जी युवाओं को देश की उन्नति में सहयोग देने के लिए कह रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द सुधार की अपेक्षा स्वाभाविक उन्नति में विश्वास रखने के अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मैं तो केवल उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री रामचंद्र जी के समुद्र पर पुल बनाते समय थोड़ी रेत देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी। इसी तरह भारतीय युवकों में शक्ति और विश्वास की भावना जगाने के अपने कर्त्तव्य या उत्तरदायित्व को पूरा करना चाहता हूँ।

विशेष :

  1. युवा देश की उन्नति में थोड़ा-थोड़ा सहयोग दें तो देश उन्नति के शिखर को छू लेगा।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है।
  3. शैली आत्मकथात्मक है।

(6) जो अपने आप में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है, वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। नया धर्म कहता है, वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से ली गई हैं। स्वामी जी युवाओं को सम्बोधित करते हुए नास्तिक की परिभाषा दे रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से अपने पर विश्वास करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है क्योंकि मनुष्य परमात्मा का ही तो अंश है अतः अपने पर विश्वास न करना परमात्मा पर विश्वास न करने के बराबर है। प्राचीन धर्मों में भी यही कहा गया है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है किन्तु नया धर्म कहता है कि जो अपने पर विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।

विशेष :

  1. धर्म से पहले मनुष्य अपने पर विश्वास करे तो वह धर्म का सही ढंग से पालन कर सकता है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

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(7) यह एक बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमजोरी ही मृत्यु है। शक्ति परम सुख है, जीवन अजरअमर है। कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है, कमज़ोरी ही मृत्यु है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि कमज़ोर व्यक्ति सभी के लिए बोझ है।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमज़ोरी ही मृत्यु है अर्थात् ज़िंदादिली ही जिंदगी का नाम है मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। शक्ति में ही परम सुख है। यह जीवन तो सदा रहने वाला है जबकि कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और पीड़ा के समान है। इसीलिए कमज़ोरी मृत्यु समान मानी गयी है।

विशेष :

  1. मन से शक्तिशाली मनुष्य का जीवन अमर है, जबकि कमज़ोर मन का मनुष्य स्वयं के लिए भी बोझ है तथा दूसरों के लिए भी बोझ है।
  2. कमज़ोर व्यक्ति का जीवन मृत्यु के समान है।
  3. भाषा प्रभावशाली तथा तत्सम प्रधान है।

(8) अपने भाइयों का नेतृत्व करने का नहीं, वरन् उनकी सेवा करने का प्रयत्न करते हैं। नेता बनने की इस क्रूर उन्मत्तता में बड़े-बड़े जहाजों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि नेतृत्व करने से अच्छा सेवा करना है।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी युवकों से कहते हैं कि वे अपने देशवासियों का नेतृत्व नहीं बल्कि उनकी सेवा करने का प्रयत्न करें। नेता बनने के निर्दयी पागलपन ने बड़े-बड़े जहाजों को अर्थात् व्यक्तियों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है अर्थात् जो लोग नेता बनने का प्रयत्न करते हैं वे जीवन में असफल रहते हैं। लोगों की सेवा करना ही व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

विशेष :

  1. नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग सेवा की भावना को भूल जाते हैं। नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को असफल बना देती है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण तथा शैली व्याख्यात्मक है।

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युवाओं से Summary

युवाओं से निबन्ध का सार

प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए दिए गए एक भाषण का अंश है। स्वामी जी को युवाओं से बहुत आशाएँ हैं इसलिए उन्होंने इस भाषण में भारतीय नवयुवकों को चरित्रनिर्माण की शिक्षा देते हुए उन्हें राष्ट्र के नव-निर्माण के लिए प्रेरित किया है। स्वामी जी का कहना है कि इस समय देश को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत निर्भय नवयुवकों की ज़रूरत है जो अपने आप में और अपनी शक्ति में विश्वास रखते हों। स्वामी जी की दृष्टि में जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं। भारतीय आदर्श त्याग और सेवा है। इन्हें अपनाकर गरीबों, भूखों और दलितों की सेवा करना राष्ट्र की सब से बड़ी सेवा है।

राष्ट्रभक्ति कोरी भावना नहीं है, उसका आधार विवेक और प्रेम है। इसका विवेकपूर्वक प्रयोग करते हुए बाहरी भेदभाव भुलाकर प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करना चाहिए। शिक्षा के विषय में स्वामी जी का मत है कि शिक्षा विभिन्न जानकारियों का ढेर नहीं है जो मनुष्य के दिमाग में भर दिया जाए; अपितु शिक्षा उन विचारों की अनुभूति है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक हो। लेखक युवाओं को कहता है कि उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहना चाहिए। स्वामी जी कहते हैं कि दलबंदी और ईर्ष्या से ऊपर उठकर यदि तुम पृथ्वी की तरह सहनशील हो जाओगे तो इस गुण के बल पर संसार तुम्हारे कदमों में लेटेगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

Hindi Guide for Class 11 PSEB भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
भारत में जाति, भाषा और धर्मगत विभिन्नता होते हुए भी सांस्कृतिक एकता किस प्रकार बनी हुई है ? निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
भारत में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी अनेक जातियों के लोग रहते हैं। भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं, किन्तु फिर भी हमारे देश की सांस्कृतिक एकता बनी हुई है। इसका एक कारण तो यह है कि सभी धर्मों में त्याग और लय को महत्त्व दिया गया है। एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए हैं। जैसे भगवान् बुद्ध को हिन्दुओं का तेईसवाँ अवतार माना गया है। इसी प्रकार भगवान् ऋषभ देव का श्रीमद्भागवत में परम आदर के साथ उल्लेख हुआ है। जैन धर्म ग्रंथों में भगवान् राम और श्रीकृष्ण को तीर्थंकर तो नहीं कहा गया उनसे एक श्रेणी नीचे का स्थान मिला है। अन्य हिन्दू देवी-देवाताओं को भी उनके देव मंडल में स्थान मिला है।

प्राचीन काल में भारतीय धर्म और साहित्य ने राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाया है। सभी काव्य ग्रंथ रामायण और महाभारत को अपना प्रेरणा स्रोत बनाते रहे हैं। संस्कृत-प्राकृत और अपभ्रंश के काव्य ग्रंथ उत्तर दक्षिणा में समान रूप से मान्य है।

भाषा की दृष्टि से भी उत्तर भारत की प्रायः सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उर्दु को छोड़ कर प्रायः सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी हैं। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य ने भी भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया। वेषभूषा, रहन-सहन, चाल-ढाल से भारतवासी जल्दी पहचाने जाते हैं। विदेशी प्रभाव पढ़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वही हमारी एकता का मूल सूत्र है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

प्रश्न 2.
‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।

लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।

लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।

मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
विरोधी लोग भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
विरोधी लोग भारत की राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के लिए नदियों के प्रवाह को विभाजक रेखा बता कर और भारत की अनेक भाषाओं, जातियों और धर्मों के आधार बनाकर भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहते हैं। उनकी दृष्टि में भौगोलिक आधार ही मूल विभाजन करते हैं, जोकि पूर्ण रूप से गलत है।

प्रश्न 2.
‘समाज में भेद और अभेद दोनों हैं। लेखक के इस कथन का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
लेखक का अभिप्राय है कि हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ कर हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया ताकि देश में आपसी फूट पैदा हो और इस भेद नीति से उनका उल्लु सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई और उसमें हीनता की भावना पैदा की गई।

प्रश्न 3.
पंचशील से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बौद्धों के पंचशील का अभिप्राय है कि हिंसा न करना, चोरी न करना, काम और मिथ्याचार से बचना, झूठ से बचना, नशीली वस्तुओं और आलस्य से बचना आदि। पंचशील मानव जीवन की उच्चता के आधार हैं।

प्रश्न 4.
धर्म और संस्कृति को लेखक ने हृदय के निकट स्वीकार किया है। निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट हैं। जन-साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है जो उनके अविरोध की परिचायक है। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

प्रश्न 5.
भारत की सांस्कृतिक एकता में सिक्ख गुरुओं का क्या योगदान है ?
उत्तर:
सिक्ख गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कष्ट और अत्याचार भी सहे। भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए सिक्ख गुरुओं विशेषकर गुरु नानक और गुरु गोबिन्द सिंह जी ने, हिन्दी में कविता की है। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में कबीर आदि महात्माओं की वाणी आदर के साथ सुरक्षित है, उनका नित्य पाठ होता है।

प्रश्न 6.
मुसलमान और ईसाई धर्म की भारतीय धर्मों से क्या समानता है ?
उत्तर:
‘दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा कि तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो।’ ईसा मसीह का यह कथन महाभारत के ‘आत्मनः प्रतिकूलानि’ का ही पर्याय है। ईसाइयों की क्षमा और दया बौद्ध धर्म से मिलती जुलती है। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं के से हैं।

प्रश्न 7.
हिन्दू-तीर्थाटन में राष्ट्रीय भावना कैसे निहित है ?
उत्तर:
शिव भक्त ठेठ उत्तर की गंगोत्री से गंगा जल ला कर दक्षिणा के रामेश्वरम महादेव का अभिषेक करते हैं। उत्तर में बदरी-केदार, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ और पश्चिम में द्वारिका पुरी के तीर्थाटन में भारत की चारों दिशाओं की पूजा हो जाती है। ये मानव हृदय में आस्था के भावों को भरकर एकता का पाठ पढ़ाते हैं जिससे राष्ट्रीय भावना व्यक्त होती है।

प्रश्न 8.
भाषागत समानता से आप क्या समझते हो ?
उत्तर:
भाषागत समानता से तात्पर्य यह है कि उत्तर भारत की सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। इन सभी के शब्दों में पारिवारिक समानता है। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उन्होंने भी थोड़ी बहुत संस्कृत की शब्दावली ग्रहण की। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

PSEB 11th Class Hindi Guide भारत की सांस्कृतिक एकता Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक बाबू गुलाबराय ने नदियों को क्या बतलाया है ?
उत्तर:
विभाजक रेखाएँ।

प्रश्न 2.
लेखक बाबू गुलाबराय ने भारत को देश न कहकर क्या कहा है ?
उत्तर:
उपमहाद्वीप।

प्रश्न 3.
लेखक बाबू गुलाबराय के अनुसार राष्ट्रीयता का उपकरण क्या है ?
उत्तर:
देश।

प्रश्न 4.
सभी देशों में किस प्रकार के भेद हैं ?
उत्तर:
जाति, भाषा एवं धर्मगत भेद हैं।

प्रश्न 5.
जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई कैसी है ?
उत्तर:
शून्य की भांति दरिद्र इकाई।

प्रश्न 6.
हमारे समाज में …………….. और …………….. हैं।
उत्तर:
भेद, अभेद।

प्रश्न 7.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन हैं ?
उत्तर:
धर्म और संस्कृति।

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प्रश्न 8.
भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें …………….. है।
उत्तर:
सांस्कृतिक एकता।

प्रश्न 9.
दो मुसलमान कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी, रहीम।

प्रश्न 10.
उत्तर भारत की सभी भाषाएँ ………. से निकली हैं।
उत्तर:
संस्कृत से।

प्रश्न 11.
भाषाओं में विशेषकर किसका भेद है ?
उत्तर:
लिपि का।

प्रश्न 12.
विदेशी प्रभाव के बावजूद भी हमारी राष्ट्रीय एकता ……………
उत्तर:
अक्षुण्ण।

प्रश्न 13.
विरोधी लोग भारत को देश न कहकर क्या कहते हैं ?
उत्तर:
उपमहाद्ववीय।

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प्रश्न 14.
भारत के विरोधी भारत की एकता को तोड़ने के लिए ……….. अपनाते हैं।
उत्तर:
तरह-तरह के हथकंडे।

प्रश्न 15.
सिक्ख धर्म गुरुओं ने किसकी रक्षा के लिए कष्ट सहे ?
उत्तर:
हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए।

प्रश्न 16.
सभी धर्मों में ……………. का महत्त्व है।
उत्तर:
त्याग और लय।

प्रश्न 17.
सभी भाषाओं की वर्णमाला …………. नहीं है।
उत्तर:
एक।

प्रश्न 18.
रामेश्वरम कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
भारत के दक्षिण में।

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प्रश्न 19.
ठेठ शिव भक्त रामेश्वरम महादेव का अभिषेक कैसे करते हैं ?
उत्तर:
गंगोत्री से गंगा जल लाकर।

प्रश्न 20.
भारतवासियों का एक ………….. है।
उत्तर:
जातीय व्यक्तित्व

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में किन किन धर्मों के लोग रहते हैं ?
(क) हिंदू
(ख) सिख।
(ग) ईसाई
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी

प्रश्न 2.
भारत की सांस्कृतिक एकता किस विधा की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक ।
उत्तर:
(क) निबंध

प्रश्न 3.
पंचशील सिद्धांत किसका है ?
(क) बौद्धों का
(ख) जैनों का
(ग) सिक्खों का
(घ) ईसाइयों का।
उत्तर:
(क) बौद्धों का

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प्रश्न 4.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन है ?
(क) धर्म
(ख) संस्कृति
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती देने के निमित्त उत्तर-दक्षिण, अवर्ण-सवर्ण, हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाईजैन के भेद खड़े करके हमारी संगठित ईकाई को क्षति पहुँचाई गई। भाषा का भी बवंडर उठाया गया ताकि आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति का ह्रास हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने विदेशी शासकों अथवा विरोधियों द्वारा भारत को उपमहाद्वीप कहे जाने में देश की राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने की चाल बताया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि विरोधियों द्वारा भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहने से उनका तात्पर्य था कि हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी जाए। इसके लिए उन्होंने उत्तर-दक्षिण, अगड़ी और पिछड़ी जाति, हिन्दू-मुसलमानसिक्ख-ईसाई-जैन धर्मावलंबी लोगों में भेद खड़े करके हमारी संगठित इकाई को हानि पहुँचाई है परन्तु वे अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने भाषा का भी तूफान खड़ा किया गया जिसे आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति क्षीण हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत के विरोधी भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। परन्तु वे भारतीय एकता के समक्ष असफल हो जाते हैं।
  2. भाषा संस्कृत निष्ठ होते हुए भी बोधगम्य है।

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(2) भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समान में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ वश हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया और जिससे हमारे देश में फूट की बेल पनपे और इस भेद नीति से उनका उल्लू सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई या उनको नगण्य समझा गया। इसमें दीनता की मनोवृत्ति पैदा हो गई।

प्रसंग :
यह गद्यांश बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने भारत में स्थित भेदों और उपभेदों को हवा देकर विदेशी शासकों द्वारा अपना उल्लू सीधा करने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि हमारे देश में जाति, धर्म, भाषा आदि के अनेक भेद हैं। इन भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना भी अपने आप को धोखा देने के बराबर होगा। लेखक मानता है कि हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं किन्तु हमारे पूर्व शासकों, अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के कारण हमारे भेदों को अधिक बढ़ावा दिया जिससे हमारे देश में आपसी फूट पैदा हो और विदेशी शासकों का उल्लू सीधा हो। अंग्रेज़ों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की या उन्हें महत्त्व हीन किया। ऐसा करके अंग्रेज़ शासकों द्वारा भारतीयों में हीन भावना पैदा की गई। भारतीयों के मनोबल को कमज़ोर किया गया।

विशेष :

  1. अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक एकता को नष्ट करके अपना उल्लू सीधा करने की बात पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा संस्कृत निष्ठ है। ‘उल्लू सीधा करना’ मुहावरे का प्रयोग करके अंग्रेजों की कूटनीति का वर्णन किया है।
  3. भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

(3) राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट है। यद्यपि राजनीति का सम्बन्ध भौतिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी जन साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उन में एक सांस्कृतिक एकता है, जो उनके अवरोध की परिचायक है।

प्रसंग :
यह अवतरण बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। लेखक ने राजनीति से अधिक धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट होती है अर्थात् धर्म और संस्कृति मनुष्य की जड़ों से सम्बन्धित होती है। हालांकि राजनीति का सम्बन्ध सांसारिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी आम लोग जितने धर्म से अधिक प्रभावित होते हैं राजनीति से उतने नहीं होते। हमारे भारतीय धर्मों में भले ही अनेक भेद हैं किन्तु उनमें सांस्कृतिक एकता भी मौजूद है, जो उनके मेल या सामंजस्य के परिचायक हैं अर्थात् उनके एक होने का प्रमाण है।

विशेष :
भारतीय धर्मों को सांस्कृतिक एकता बनाए रखने वाला बताया है।
भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

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(4) हमारा एक जातीय व्यकितत्व है। वह हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में अभिव्यक्त होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वहीं हमारी एकता का मूल सूत्र है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता बनी रहने के कारण पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि भारतवासियों का एक जातीय व्यक्तित्व है। वह जातीय व्यक्तित्व हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन-मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में प्रकट होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत हद तक अखंडित बना हुआ है। विदेशी शासन का प्रभाव भी इसे नष्ट नहीं कर सका। वही हमारी राष्ट्रीय एकता का मूल सूत्र है। हमारी एकता किसी से प्रभावित नहीं होती।

विशेष :

  1. लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता के अखंडित रहने के कारणों पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है
  3. भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

हितचिन्तक = भला चाहने वाला। अवयवों = शरीर के अंगों। समायोजन = संगठन। उर्वरा = उपजाऊ। शस्यश्यामला = हरा-भरा, धन-धान्य से भरपूर, फल से भरपूर। अबाधित = बिना रुकावट के। अखिल = निरन्तर। अवरोध = मेल सामंजस्य। आराध्य = पूज्य। तीर्थंकर = जैन धर्म के पूज्य 24 श्लाघा पुरुष । आवागमन = बार-बार जन्म लेना आना जाना। मुदिता = प्रज्ञव्रता चित्त की दशा। स्वास्तिक चिह्न = मंगलकारी, गणेश जी की आकृति को दशाने वाला चिह्न । यम = अहिंसा, सत्य चोरी न करना, ब्रह्मचारी, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना यम कहलाते हैं। अणुव्रत = जैनधर्म में अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना को अणुव्रत कहा गया है। तीर्थाटन = तीर्थों की यात्रा करना। जेन्दावेस्ता = पारसियों का धर्म ग्रन्थ एकता। आम्नाय = धर्मशास्त्रीय ग्रंथ। एकध्येयता = लक्ष्य की एकता।

भारत की सांस्कृतिक एकता Summary

भारत की सांस्कृतिक एकता का सार

लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।

लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।

लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।

मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

Hindi Guide for Class 11 PSEB बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘हम तुम’ कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में एक बेटी के माँ से प्यार की कथा कही गई है। विवाह हो जाने पर भी बेटी को अपनी माँ की स्नेहमयी मूर्ति की याद आती रहती है। वह यह याद करती है कि किस तरह वह अपनी माँ के आँचल में सुरक्षित रह कर बड़ी हुई है। किस प्रकार उसने हंसी-खुशी अपना बचपन बिताया है। उसकी माँ ने उसे हर मुसीबत से बचाया है। बड़ी होने पर एक अच्छा घर दिया है अर्थात् उसका विवाह किया है। वह आज भी अपनी माँ के प्यार भरे स्पर्श को याद करती है तथा उसकी गोद में सोना चाहती है।

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प्रश्न 2.
कवयित्री ने अपने आपको किसकी प्रतिच्छाया कहा है और क्यों ?
उत्तर:
कवयित्री ने अपने आपको अपनी माँ की प्रतिच्छाया कहा है क्योंकि वह उसी के मूल से जन्मी थी। हर बेटी अपनी माँ का प्रतिरूप होती है। वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो जाए। वह माँ का आंचल नहीं छोड़ना चाहती।

प्रश्न 3.
कवयित्री आज भी अपनी माँ की गोद में क्यों सोना चाहती है ?
उत्तर:
कवयित्री आज भी अपनी माता की गोद में सोना चाहती है । क्योंकि जो सुख बेटी को अपनी माँ की गोद में सोकर मिलता है वह संसार में और कहीं नहीं मिलता। माँ की गोद में आकर वह सब कुछ भूल जाती है। इसलिए वह माँ की गोद में सोना चाहती है।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता में भावों की उदात्तता और तीव्रता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में भाव तत्व की प्रधानता होने के कारण पाठकों का कवयित्री की भावना से सीधा तादातम्य स्थापित हो जाता है। कवयित्री ने पूरी कविता में बेटी द्वारा मातृभक्ति की अभिव्यक्ति बड़े अनूठे ढंग से प्रदान की है। एक बेटी सदैव माँ को प्रतिच्छाया होती है। इसलिए वह विवाह के बाद भी अपनी माँ के स्नेह को याद करती है और उसकी गोद में सिर रखकर सोने की इच्छा रखती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

PSEB 11th Class Hindi Guide बुद्धम शरणम् गच्छामि Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उषा आर० शर्मा’ का जन्म कब हुआ ?
उत्तर:
24 मार्च, 1953 में।

प्रश्न 2.
‘पिघलती साँकलें’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उषा आर० शर्मा।

प्रश्न 3.
‘पिघलती साँकलें’ कविता में कवयित्री ने किसके लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर नवयुग के निर्माण के लिए।

प्रश्न 4.
मनुष्य को जागृत करने के लिए कवयित्री क्या करना चाहती है ?
उत्तर:
समाज में नई विस्फोटक क्रांति लाना चाहती है।

प्रश्न 5.
नई दुनिया में लोग कैसे रहेंगे ?
उत्तर:
मिलकर।

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प्रश्न 6.
पुरानी परम्पराओं में बँधे मनुष्य के लिए कवयित्री क्या कहती है ?
उत्तर:
परमाणु विस्फोट करने को।

प्रश्न 7.
परमाणु विस्फोट के धमाके से ………… हिल जाए।
उत्तर:
धरती।

प्रश्न 8.
कवयित्री मानव को किससे मुक्त करवाना चाहती है ?
उत्तर:
पुरानी परम्पराओं से।

प्रश्न 9.
जब कोई रोक नहीं होगी तब मानव की ………. बदल जाएगी।
उत्तर:
प्रकृति।

प्रश्न 10.
मनुष्य को कब बदलना चाहिए ?
उत्तर:
युग परिवर्तन के साथ।

प्रश्न 11.
नवयुग के आगमन पर क्या आवश्यक है ?
उत्तर:
परिवर्तन।

प्रश्न 12.
मुंडेरों पर किसके बैठने की बात कही गई हैं ?
उत्तर:
कौए।

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प्रश्न 13.
व्यस्तता की बेड़ियों में बँधा होने के कारण मानव के पास किस चीज़ के लिए समय नहीं हैं ?
उत्तर:
आत्म मंथन।

प्रश्न 14.
‘तुम-हम’ कविता की रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उषा आर० शर्मा।

प्रश्न 15.
मनुष्य की सोच कब बदलेगी ?
उत्तर:
क्रांति आने पर।

प्रश्न 16.
बेटी अपनी माँ की क्या होती है ?
उत्तर:
परछाई।

प्रश्न 17.
बेटी किसे कभी नहीं भूलती ?
उत्तर:
अपनी माँ, उसकी गोद, ममता तथा घर को।

प्रश्न 18.
बेटी का अपना घर कब होता है ?
उत्तर:
विवाह के बाद।

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प्रश्न 19.
आज भी बेटी की क्या इच्छा है ?
उत्तर:
बचपन की भाँति माँ की गोद में छिप जाए।

प्रश्न 20.
पुत्री की माँ क्या सपना देखती है ?
उत्तर:
पुत्री के विवाह का।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवयित्री का जन्म किस परिवार में हुआ था ?
(क) सैनिक
(ख) देशभक्त
(ग) किसान
(घ) वीर।
उत्तर:
(क) सैनिक

प्रश्न 2.
‘पिघलती साँकले’ कविता में कवयित्री किसके निर्माण के लिए प्रेरित करती है ?
(क) आधुनिक युग के
(ख) नवयुग के
(ग) प्राचीन युग के
(घ) धर्मयुग के ।
उत्तर:
(ख) नवयुग के

प्रश्न 3.
इस कविता में कवयित्री किन परंपराओं को तोड़ना चाहती है ?
(क) प्राचीन
(ख) रूढ़िवादी
(ग) प्राचीन और रूढ़िवादी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) प्राचीन और रूढ़िवादी

प्रश्न 4.
नवयुग के आगमन हेतु क्या आवश्यक है ?
(क) परिवर्तन
(ख) अपरिवर्तन
(ग) नियम
(घ) नीति।
उत्तर:
(क) परिवर्तन।

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पिघलती साँकलें सप्रसंग व्याख्या

1.व्यस्तताओं की बेड़ियों
में बंधे
इन्सानों के पास
समय कहाँ है
आत्म-मंथन के लिए
कुण्डली मारे
सुषुप्त शेषनाग की
कौन करे निंद्रा भंग
मुंडेरों पर बैठे
कागों की चहकन
नहीं है पर्याप्त।

कठिन शब्दों के अर्थ :
आत्ममंथन-अंत:करण के अनेक भावों पर विचार करना। सुषुप्त = सोये हुए। चहकन = प्रसन्नता। पर्याप्त = काफ़ी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने प्राचीन एवं रूढ़िवादी परम्पराओं के पिघलने की बात कही है क्योंकि
नवयुग के आगमन पर परिवर्तन ज़रूरी है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि आज मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है कि उसके पास, व्यस्तता की बेड़ियों में बंधा होने पर आत्ममंथन के लिए समय ही नहीं है। वह चाहकर भी सोचने-समझने के लिए समय नहीं निकाल पाती। नवयुग के आगमन पर परिवर्तन जरूरी है। परन्तु मनुष्य को कुण्डली मारे शेषनाग की तरह उसकी निद्रा कौन भंग करे, उसके लिए मुंडेरों पर बैठे कौओं का चहचहाना, काँव-काँव करना ही काफ़ी नहीं होगा बल्कि इसके लिए क्रान्ति करनी होगी। कुछ नया करना होगा।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि मनुष्य को युग परिवर्तन के साथ बदलना चाहिए। कौवों की आवाज़ को ‘चहकना’ कह कर कवयित्री ने व्यंग्य किया है।
  2. मनुष्य को जगाने के लिए अर्थात् उन्हें उनके अधिकार और दायित्व याद दिलाने के लिए कौओं की चहकन ही पर्याप्त नहीं है। उसके लिए क्रांति चाहिए।
  3. भाषा सरल एवं सहज है।
  4. तत्सम शब्दों की अधिकता है।

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2. आवश्यकता है
किसी मर्मभेदी
परमाणु विस्फोट की
जिसके हंगामे मात्र से
आलोड़ित हो जाए
सारा ब्रह्मांड।
तब स्वयं ही
पिघल जाएंगी
गुस्ताख सांकलें
नहीं रहेगा कहीं
कोई प्रतिबंध।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मर्मभेदी = किसी नाजुक (कोमल) स्थान को छेदने वाला। विस्फोट = धमाका। हंगामा = शोर। आलोड़ित होना = हिल जाना। ब्रह्मांड = संपूर्ण सृष्टि। गुस्ताख = ढीठ, बेअदब । प्रतिबंध = रोक। सांकले = जंजीरें।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री पुरानी परम्पराओं में बंधे मनुष्य को नवयुग के लिए जागृत करने के लिए एक परमाणु विस्फोट के लिए कहती है

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि प्राचीन परम्पराओं और रूढ़ियों को बदलने के लिए किसी मर्मभेदी परमाणु धमाके की ज़रूरत है। ऐसा धमाका जिसके शोर से सारी सृष्टि हिल जाए। तब अपने आप परम्परा एवं रूढ़ियों की ये ढीठ जंजीरें पिघल जाएँगी। तब कोई, किसी किस्म की रोक नहीं रहेगी अर्थात् मनुष्य की प्रकृति बदल जाएगी। वह भी नवयुग के साथ चलना सीख जाएगा।

विशेष :

  1. कवयित्री मनुष्य को पुरानी परम्पराओं से मुक्त करवाना चाहती है। मनुष्य को जागृत करने के लिए वह समाज में नई विस्फोटक क्रांति लाना चाहती है।
  2. भाषा परिपक्व तथा आलंकारिक है।
  3. तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग है।

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3. इत्मिनान रखो
तब पहचानेगा
इन्सान
इन्सान को
उदय होगा
एक नया सूर्य
और करेंगे
हम पदार्पण
एक नई दुनिया में।

कठिन शब्दों के अर्थ :
इत्मिनान = भरोसा। पदार्पण = कदम रखना।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री मानव-चेतना जागृत होने पर नए सवेरे के होने का वर्णन करती हैं।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि दुनिया को हिलाकर रख देने वाला धमाका होने पर इस बात का भरोसा रखो कि तब मानव मानव को पहचानेगा, उसमें मानवीय भाव जागृत होंगे। तब एक नया सूर्य उदय होगा और हम एक नई दुनिया में कदम रखेंगे। सभी मनुष्य समान रूप से नई दुनिया में मिलकर रहेंगे।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि क्रांति आने पर मनुष्य की सोच बदलेगी।
  2. नई सोच के साथ मनुष्य आपसी भेदभाव को भुलाकर सबको समान समझने लगेगा।
  3. भाषा परिपक्व तथा आलंकारिक है।
  4. तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

तुम-हम सप्रसंग व्याख्या

1. तुम्हारे मूल से उपजी
तुम्हारी प्रतिच्छाया
-मैं
बढ़ी, पली और
कब जवान हो गई
मुझे पता ही न चला।
तुम मेरा छतनारा
दरख्त रहीं-
जिसकी छाँव तले
मैं कलोल करती
कब सयानी हो गई
मुझे पता ही न चला।

कठिन शब्दों के अर्थ :
प्रतिच्छाया = प्रतिरूप, प्रतिबिम्ब, प्रतिभा। छतनारा = जिस वृक्ष की शाखाएँ छत की तरह दूर-दूर तक फैली हों। कलोल = उछल-कूद, शरारतें।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ में से लिया गया है। इसमें कवयित्री ने अपनी मातृ-भक्ति अनूठे ढंग से प्रस्तुत की है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे माँ! मैं तुम्हारे मूल से ही जन्मी हूँ और तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ। तुम्हारी गोद में मैं पली बढ़ी हुई और कब जवान हो गई इसका मुझे पता ही न चला कि मैं तुम्हारी छाया हूँ।

कवयित्री कहती है कि तुम मेरा छतनारा वृक्ष बन कर रही जिसकी छाया तले मैं शरारतें करती फिरती थीं। कब मैं सयानी हो गई इसका मुझे पता ही न चला। तुम्हारी छाया में मैं कब बड़ी हो गई मुझे पता नहीं चला।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि बेटी माँ का रूप होती है। वह उसकी छाया में सुरक्षित रहती है।
  2. माँ बेटी के लिए वह वृक्ष है जिसमें वह पल कर बड़ी होती है।
  3. भाषा अत्यंत सरल तथा सहज है।
  4. तत्सम और फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

2. तुम्हारे पंखों ने दी
सदा गरमाहट मुझे
और बचाये रखा
हर मुसीबत से
कब बदल गए
मेरे रोयें पंखों में
मुझे पता ही न चला।

कठिन शब्दों के अर्थ : रोयें = नर्म-नर्म बाल।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा रचित कविता ‘तुम-हम’ में से ली गई हैं। इनमें कवयित्री माँ की तुलना उस पक्षी से करती है जो अपने चूजों को बड़े प्यार से बड़ा करती है।

व्याख्या :
कवयित्री अपनी माँ की तुलना एक पक्षी से करती हुई कहती है कि तुम्हारे पंखों ने मुझे सदा गरमाहट दी और अपने पंखों की ओट देकर तुमने मुझे हर मुसीबत से बचाए रखा। इसी दौरान मेरे शरीर नर्म-नर्म बाल रोयें, कब पंखों में बदल गए। मैं बड़ी हो गई मुझे पता ही न चला।

विशेष :

  1. माँ कोई भी हो वह अपने बच्चों की सदैव रक्षा करती है।
  2. माँ की बाँहों में बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, पता भी नहीं चलता।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. तत्सम तथा फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

3. एक दिन
तुमने
मेरा अलग
एक सुन्दर-सा
घौंसला
बना दिया
मैं उसमें
कैसे रम गई
मुझे पता ही न चला।

कठिन शब्दों के अर्थ :
घौंसला = घर। रम गई = लीन हो गई, मस्त हो गई।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम हम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री माँ द्वारा उसके बड़े होने पर विवाह करने का वर्णन करती है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे माँ! एक दिन तुमने मेरा अलग सुन्दर–सा घर बना दिया। मेरी शादी कर दी। मैं उस नए घर में कैसे रम गई प्रसन्नता में भर कर लीन हो गई मुझे पता ही न चला। बेटी के बड़े होने पर माँ उसकी शादी कर देती है तथा उसे ससुराल को अपना घर मानकर उसमें रमने की शिक्षा देती है।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि प्रत्येक माँ अपनी बेटी के विवाह का सपना देखती है।
  2. माँ यह चाहती है कि उसकी बेटी का भी अपना घर हो जिसमें उसके लिए प्रत्येक खुशियाँ मिलें। बेटी कब ससुराल में घुल मिल जाती है उसे पता भी नहीं चलता।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. उपमा अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

4. पर मन अब भी
उड़-उड़ जाता है
पुराने घौंसले में
और मैं महसूस
करती रहती हूँ
सदैव तुम्हारे
स्नेहिल स्पर्श को।

कठिन शब्दों के अर्थ : स्नेहिल स्पर्श = प्यार भरा स्पर्श।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री एक विवाहित बेटी का माँ के प्रति प्यार प्रकट करती है।

व्याख्या :
कवयित्री अपने मायके के घर को याद करती हुई कहती है कि विवाह हो जाने पर एक सुन्दर-सा घर मिल जाने पर मेरा मन अब भी पुराने घर, मायके की ओर उड़-उड़ जाता है। मुझे मायके की बहुत याद आती है और मैं सदा, हे माँ तुम्हारे प्यार भरे स्पर्श को महसूस करती हूँ। ससुराल में रहते हुए भी मुझे अपनी माँ की बहुत याद आती है।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि विवाह के बाद भी बेटी अपनी माँ के घर से जुड़ी रहती है।
  2. ससुराल में रम जाने के बाद भी बेटी माँ के प्यार भरे स्पर्श को सदैव याद रखती है।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. तत्सम शब्दावली है।
  5. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

5. तुम फैलाए रखो
यूँ ही
अपना आँचल
आसमान की तरह
जिसे मैं
जब चाहे
ओढ़ लूँ
और
थक-मांद कर
आऊँ तुम्हारी आगोश में
तो बालों में
फेरती हुई
अपनी उँगलियाँ
तुम सुला लेना
मुझे अपनी गोद में।

कठिन शब्दों के अर्थ : आगोश = गोद।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ से ली गई हैं इन पंक्तियों में कवयित्री अपनी माँ की गोद में सोने की बात करती है।

व्याख्या :
कवयित्री अपनी माँ से प्रार्थना करते हुए कहती है कि हे माँ! तुम अपने आंचल को आसमान की तरह इसी तरह फैलाए रखना कि जिसे मैं जब चाहूं ओढ़ लूं और जब कभी थक-हार कर तुम्हारी गोद में आऊँ तो तुम मेरे बालों में उँगलियां फेरते हुए मुझे अपनी गोद में सुला लेना। बेटी शादी के बाद भी माँ की गोद को छोड़ना नहीं चाहती। वह सदैव अपनी माँ की गोद का स्पर्श पाना चाहती है।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि जीवन के हर मोड़ पर सुख-दुख में हर बेटी अपनी माँ को याद करती है तथा उसकी गोद में सिर रखकर सब कुछ भुला देना चाहती है।
  2. माँ का आँचल बेटी के लिए प्यार और सुरक्षा का कवच है।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. तत्सम और फ़ारसी शब्दावली है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।
  6. ‘थक-मांद’ में समासात्मक शैली का प्रयोग है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

पिघलती साँकलें, तुम-हम Summary

जीवन-परिचय

श्रीमती उषा आर० शर्मा स्वतंत्र भारत की उदीयमान हिन्दी कवयित्रियों में से एक हैं। इनका जन्म मुम्बई में 24 मार्च, सन् 1953 में एक सैनिक परिवार में हुआ। पिता का सेना में होने के कारण बार-बार तबादला होता था इसलिए इनकी पढ़ाई विभिन्न प्रांतों में हुई। विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें संगीत, नाटक तथा प्रकृति से प्रेम था। इन्होंने प्रभाकर के उपरान्त दर्शन शास्त्र तथा लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर स्तर की परीक्षा विशिष्टता के साथ उत्तीर्ण की। इनका भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की प्रतियोगिता में चयन हुआ। इन्होंने अपना कार्य बड़ी कर्मठता से किया। परन्तु संवेदनशील मन के कारण इन्होंने लेखन कार्य आरम्भ किया। इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जीवन में मानवीय संत्रास, यंत्रणा घातों-प्रतिघातों को एक सशक्त अभिव्यक्ति दी है। इनकी रचनाएँ एक वर्ग आकाश (कविता संग्रह 1999)। पिघलती साँकलें (कविता संग्रह 1999) भोजपत्रों के बीच (एक कविता संग्रह) तथा ‘क्यों न कहूँ’ कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। ‘भोज पत्रों के बीच’ भाषा विभाग पंजाब द्वारा पुरस्कृत हुई। इनके लेखन के लिए पंजाब हिन्दी साहित्य द्वारा ‘वीरेन्द्र सारस्वत सम्मान’ आपको सम्मानित किया गया। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित पंजाब की आधुनिक हिन्दी कविता में इनकी सात कविताएँ प्रकाशित हैं।

पिघलती साँकलें कविता का सार

‘पिघलती साँकलें’ की कवयित्री श्रीमती उषा आर० शर्मा है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री मनुष्य को प्राचीन और रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर नवयुग के निर्माण के लिए प्रेरित कर रही है। मनुष्य को पुरानी मान्यताओं से बाहर निकालने के लिए कौओं की आवाज़ ही पर्याप्त नहीं है अपितु एक ऐसे धमाके की आवश्यकता है जिससे मानव मानव पहचान कर एक नई दुनिया का निर्माण करेगा। उस दुनिया में सब मिलकर रहेंगे।

तुम-हम कविता का सार

‘तुम-हम’ कविता की कवयित्री श्रीमती उषा आर० शर्मा हैं। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने एक बेटी के द्वारा मातृ-भक्ति को बहुत ही अनूठे ढंग से अभिव्यक्त किया है। बेटी सदैव अपनी माँ की परछाई होती है। वह अपनी माँ की ममता, गोद और घर को कभी नहीं भूलती। विवाह के बाद बेटी का अपना घर हो जाता है जहाँ पर सभी काम वह बड़े ही अच्छे ढंग से पूरे करती है, परन्तु वह अपनी माँ की गोद को नहीं भूल पाती। आज भी उसकी इच्छा है कि वह बचपन की तरह माँ की गोद में छिप जाए और माँ उसे हर मुसीबत से बचाकर बाँहों में समेट ले। बेटी बड़ी होकर भी माँ की गोद से बाहर निकलना ही नहीं चाहती।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

Hindi Guide for Class 11 PSEB बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘जो किसी भी पंक्ति में शामिल नहीं है’ में कवि ने किन लोगों की ओर इशारा किया है ? उनके लिए कवि ने क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने वर्गहीन-जो न अमीरों में शामिल हैं न ग़रीबों में-की ओर संकेत किया है। कवि प्रार्थना करता है कि सूर्य की रौशनी उनके कीचड़ भरे आँगन में भी उतरे क्योंकि सूर्य की धूप किसी एक की मलकियत नहीं है। उस पर सबका अधिकार है।

प्रश्न 2.
पक्षियों के लिए कवि क्या कामना करता है ?
उत्तर:
कवि प्रार्थना करता है कि आने वाले वर्ष में कोई भी चिड़िया (पक्षी) प्यास के कारण दम न तोड़े। हर पक्षी को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए उचित स्थान और उपयुक्त भोजन प्राप्त हो। लोगों के मन में उनके प्रति हिंसा का भाव न हो।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 3.
सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्दों से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कवि का अभिप्राय यह है कि सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े ये शब्द से लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो और बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद लोगों के हृदय में एक बार फिर गूंज उठे।

प्रश्न 4.
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद एक बार से प्राणों में गूंजे’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि का आशय यह है कि लोगों के हृदय में अहिंसा की भावना फिर से जागृत हो जाए और वे इस भाव को अपने आचरण में शामिल कर लें।

प्रश्न 5.
इस कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में ‘सब का भला’ करने की प्रार्थना की गई है ताकि मनुष्य, पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ खुशियों से भर जाएं। लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो। लोग फिर बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद करें तथा लोगों के हृदय में इसका वास हो।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

PSEB 11th Class Hindi Guide बुद्धम शरणम् गच्छामि Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभाष रस्तोगी का जन्म कब और कहाँ हआ था ?
उत्तर:
सुभाष रस्तोगी का जन्म 17 अक्तूबर 1950 को अम्बाला छावनी में हुआ था!

प्रश्न 2.
‘बुद्धम शरणम् गच्छामि’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
सुभाष रस्तोगी की।

प्रश्न 3.
‘बुद्धम शरणम् गच्छामि’ सुभाष रस्तोगी के किस काव्य संग्रह से ली गई है ?
उत्तर:
समय के सामने।

प्रश्न 4.
कविता में कवि ने क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
जो रस वर्ष घटा है वह अगले वर्ष न हो।

प्रश्न 5.
कवि मानव में किस भावना को जगाना चाहता है ?
उत्तर:
वसुदैव कुटुम्बकम की भावना।

प्रश्न 6.
कवि ने कविता में किस अनहद नाद की बात की है ?
उत्तर:
बुद्धम शरणम् गच्छामि।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 7.
कवि ने पक्षियों के लिए ……….. की है।
उत्तर:
प्रार्थना।

प्रश्न 8.
कवि सभी के लिए ………… माँग रहा है।
उत्तर:
खुशियाँ।

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार धूप किस सी …….. न बने।
उत्तर:
जायदाद।

प्रश्न 10.
कवि के अनुसार बीते वर्ष में …………. आई थी।
उत्तर:
बहत आपदाएँ।

प्रश्न 11.
कवि ईश्वर से मनुष्य को क्या देने की बात करता है ?
उत्तर:
सद्बुद्धि।

प्रश्न 12.
मनुष्य में दूसरे मनुष्य के लिए …………. पनपना चाहिए।
उत्तर:
प्यार, विश्वास एवं त्याग की भावना।

प्रश्न 13.
पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी लोग ………….. न हो।
उत्तर:
बेघर।

प्रश्न 14.
कवि मानव जीवन में फिर से क्या देखना चाहता है?
उत्तर:
बीती हुई खुशियों को।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 15.
कवि वनस्पतियों के लिए क्या प्रार्थना करता है ?
उत्तर:
खूब फले-फूलें।

प्रश्न 16.
मनुष्य भटकना छोड़कर …………. प्राप्त करे।
उत्तर:
अपनी मंज़िल।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सुभाष रस्तोगी किस कविता के प्रसिद्ध कवि हैं ?
(क) समकालीन
(ख) भक्ति
(ग) प्राचीन
(घ) आधुनिक।
उत्तर:
(क) समकालीन

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 2.
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ कविता के लेखक कौन हैं?
(क) सुभाष रस्तोगी
(ख) दुष्यन्त कुमार
(ग) सुभाष भारती
(घ) उषा आर० शर्मा।
उत्तर:
(क) सुभाष रस्तोगी

प्रश्न 3.
बुद्धम् शरणम् गच्छामि किस विधा की रचना है ?
(क) कविता
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) कविता

प्रश्न 4.
कवि मानव में किस भावना को जगाना चाहता है ?
(क) प्रेम
(ख) विरह
(ग) वसुदैव कुटुम्बकम
(घ) देव।
उत्तर:
(ग) वसुदैव कुटुम्बकम ।

बुद्धम् शरणम् गच्छामि सपसंग व्याख्या

1. यही प्रार्थना है
कि इस बरस हुआ जो
वह अगले बरस न हो!
धूप-
किसी एक की मिलकियत न बने
सूरज-
उनके कीच-भरे आँगन में भी उतरे
जो किसी भी पंक्ति में
शामिल नहीं हैं
हर खेत को पानी
हर हाथ को काम मिले
झोपरपट्टी में भी
पीपल की बन्दनवार सजे
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मिलकियत = जागीर, जायदाद, वह चीज़ जिस पर मालकाना हक हो। बन्दनवार = सजावटी दरवाज़े।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री सुभाष रस्तोगी के काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने सब की भलाई की कामना करते हुए लोगों में आपसी प्रेम-प्यार और भाईचारे की भावना जागृत होने की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि इस वर्ष जैसा हुआ वैसा अगले वर्ष न हो। धूप किसी की जायदाद न बने और सूरज भी उन लोगों के कीचड़ भरे आंगन में खिले जो किसी भी वर्ग में शामिल नहीं है। हर खेत को पानी मिले, हर हाथ को काम मिले न कोई भूखा-प्यासा रहे न कोई बेरोज़गार। झोंपड़पट्टी में भी सजावटी दरवाज़े सजें ; वहाँ भी पीपल की वंदन वार रूपी पवित्रता और शोभा बनी रहे। वहां भी खुशियां छा जाएं यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि सभी के लिए खुशियाँ माँग रहा है।
  2. कवि कहता है कि इस वर्ष सभी भेद-भाव भुलाकर, अमीर-गरीब की दीवार हटाकर ईश्वर सभी को खुशियाँ दें।
  3. भाषा सहज तथा सरल है।
  4. तत्सम, फ़ारसी शब्दों का प्रयोग है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

2. कोई चिरैया
प्यास से दम न तोड़े
हर पंथी को छाँव
हर पाँव को ठाँव मिले
घुप्प अँधेरे में
कोई कंदील जले
और सब-कुछ रोशन हो जाये
समय का बायस्कोप
इस बरस तो कम-से-कम
हत्या, आगज़नी और बलात्कार
अकाल
प्रकृति के ताण्डव
और आदमी को
आदमी का निवाला बनने के दृश्य
न दिखाये
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे

कठिन शब्दों के अर्थ :
चिरैया = चिड़िया। ठाँव = ठिकाना। कंदील = दीप, लालटेन। बायस्कोप = परदे पर चलते-फिरते चित्र दिखाने वाला एक यन्त्र। आगजनी = आग लगाना। ताण्डव = विनाश। निवाला = ग्रास।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सुभाष रस्तोगी के काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से लिया गया है। कवि सभी प्राणियों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है कि यह वर्ष पिछले वर्ष की अपेक्षा अच्छा गुजरे।

व्याख्या :
कवि मनुष्यों की ही नहीं सब प्राणियों की भलाई की प्रार्थना करते हुए कहता है कि मेरी यह प्रार्थना है कि कोई भी चिड़िया प्यास के कारण दम न तोड़े। प्रत्येक मुसाफ़िर को छाया मिले और हर पाँव को ठिकाना मिले; उसे अपनी मंजिल की प्राप्ति हो। घुप्प अन्धेरे में कोई शोभा से युक्त दीप जले और जिससे समय का बायस्कोप रोशन हो जाए। इस वर्ष तो कम-से-कम हत्या, आग लगाने और बलात्कार की घटना न घटे और यह बायस्कोप प्रकृति के विनाशकारी रूप तथा आदमी को आदमी का ग्रास बनने के दृश्य न दिखाये। यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि बीते वर्ष में बहुत प्राकृतिक आपदाएं आई हैं जिसमें बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। परन्तु इस वर्ष ऐसा कुछ न हो।
  2. कवि ईश्वर से मनुष्य को भी सद्बुद्धि देने की बात करता है जिससे वह बुराइयों, आतंकी सोच से दूर रहे।
  3. भाषा सरल तथा सहज है।
  4. तत्सम, फ़ारसी और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
  5. उपमा, अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

3. इस बरस तो
आदमी-
विश्वास
प्रार्थना
भलाई
अहिंसा
तप-त्याग
सहिष्णुता
और वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे
सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्द
कम-से-कम
नई सदी में तो
हमारे आचरण में फिर से लौटें
और बुद्धम शरणम् गच्छामि का अनहद नाद
एक बार फिर से
प्राणों में गूंजे
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
सहिष्णुता = सहनशीलता। वसुधैव कुटुम्बकम् = सारा विश्व एक परिवार है। विरासत = उत्तराधिकार में मिलने वाला माल, विरसा, मीरास। अनहद नाद = योगियों को सुनाई देने वाली आन्तरिक ध्वनि-ओइम।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इनमें कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि चारों ओर वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि इस वर्ष तो आदमी में विश्वास, प्रार्थना, भलाई, अहिंसा, तप-त्याग, सहनशीलता और सारा विश्व एक परिवार हो की भावना जागृत हो। जैसे सैंकड़ों वर्ष पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्द नई सदी में तो कम-से-कम हमारे आचरण में लौट आएं और ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि (मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ।) का अनहद नाद (योगियों को सुनाई देने वाली आन्तरिक ध्वनि जैसे ‘ओ३म्’)। एक बार फिर प्राणों में गूंज उठे। मेरी यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ अगले वर्ष न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि मनुष्य में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो।
  2. मनुष्य में दूसरे मनुष्य के लिए प्यार, विश्वास, त्याग की भावना पनपे। जिससे वह अच्छे समाज का निर्माण कर सके।
  3. भाषा सहज और सरल है।
  4. तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  5. उपमा अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

4. नई सदी में तो धरती
कम-से-कम
हमारे कपट-तन्त्र से कलंकित न होवे
धरती के सुजलाम् सुफलाम्
और शस्यश्यामलाम् होने के पुराने दिन
फिर से लौटें

कठिन शब्दों के अर्थ :
सुजलाम् = जल से परिपूर्ण। सुफलाम् = फलों से भरपूर । शस्यश्यामलाम् = फसल से भरपूर।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बद्धम शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इनमें कवि पुराने दिनों को याद करते हुए उनके वर्तमान में फिर से आने की प्रार्थना करता है

व्याख्या :
कवि नई सदी में धरती के पुराने दिन लौट आने की प्रार्थना करते हुए कहता है कि कम-से-कम नई सदी में धरती हमारे छल-कपट से कलंकित, दूषित न हो उसके वही पुराने दिन सुजलाम (जल से परिपूर्ण), सुफलाम् (फलों से भरपूर) और शस्यश्यामलम् (फसल से भरपूर) होने के दिन लौट आवें अर्थात् चारों ओर खुशहाली छा जाए।

विशेष :

  1. कवि बीती हुई खुशियों को मानव जीवन में फिर से देखना चाहता है।
  2. कवि धरती को पाप मुक्त करना चाहता है जिससे फिर से धरती हरी-भरी हो जाए।
  3. भाषा सरल तथा सहज है तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  4. अनुप्रास और उपमा अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

5. यही प्रार्थना है
कि पिछले बरस की तरह
इस बरस
हज़ारों लोग बेघर न हों
और आदमज़ात की
कौड़ियों सरीखी बेजान आँखों के
पेड़ों पर चिपकने के दृश्य
काल-देवता
अगले बरस न दिखाये
अन्न के दाने-दाने को/आदमी न तरसे

कठिन शब्दों के अर्थ :
आदमज़ात = मनुष्य जाति। काल-देवता = समय का देवता!

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी के काव्य-संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि इस वर्ष सभी लोग अपने घरों में रहे और उन्हें भर पेट भोजन मिलें। . व्याख्या-कवि प्रार्थना करता हुए कहता है कि पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी हज़ारों लोग बेघर न हों और मनुष्यों की कौड़ियों जैसी बेजान आँखों के पेड़ों पर चिपकने के दृश्य न दिखाई दें अर्थात् बेघर होने से उनकी सपनों से भरी आँखें बेजान होकर एक ही दिशा में देखने लगती हैं। हे समय के देवता अगले वर्ष न दिखाना कि अन्न के दानेदाने को आदमी तरस रहे हैं। सभी को भरपेट भोजन मिलें।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि बीते वर्षों की तरह इस वर्ष लोग अपने घरों से बेघर न हो। बेघर होने पर लोगों के घर-सम्बन्धी सपने टूट जाने पर वे एक लाश के समान हो जाते हैं।
  2. इस वर्ष सभी लोगों को खाने के लिए भोजन मिले। भाषा सरल है। तत्सम, फारसी, और अरबी शब्दावली है। रूपक, पुनरुक्ति अलंकार विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

6. वनस्पतियाँ
खूब फले-फूलें
नई सदी में/सब
खुशियों के हिंडोले में झूलें
सुबह-
मंगलगान-सी जीवन में उतरे
और साँझ-
सबकी सलामती की दुआ माँगती हुई
हर अँधियारे कोने में
उजाले का एक अन्तरीप रचे
और हर थके पाँव को
मंज़िल मिले
यह प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे !

कठिन शब्दों के अर्थ :
हिंडोले = झूले। सलामती = सुरक्षा । दुआ = प्रार्थना। अन्तरीप = भूमि का नुकीला भाग जो समुद्र में दूर तक चला गया हो। .

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इसमें कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मनुष्य, पशु-पक्षी और वनस्पति सभी को खुशियाँ मिलें।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि नई सदी में सभी वनस्पतियाँ खूब फले-फूलें और सभी खुशियों के झूले में झूलें। सबके लिए सुबह मंगलगान-सी जीवन में उतरे और संध्या सबकी सुरक्षा की प्रार्थना करती हुई आए। प्रत्येक अन्धेरे कोने में उजाले का एक टापू रचा जाए। प्रत्येक थके हुए पाँव को मंजिल मिले। यह प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि इस वर्ष चारों ओर खुशी का वातावरण हो। कहीं भी दुःख का सवेरा नहीं होना चाहिए।
  2. प्रत्येक मुसाफिर अर्थात् मनुष्य भटकना छोड़कर अपनी मंजिल प्राप्त करे। भाषा सरल है। तत्सम, फ़ारसी तथा अरबी शब्दावली का प्रयोग किया गया है। उपमा, अनुप्रास अलंकार विद्यमान है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

बुद्धम् शरणम् गच्छामि Summary

बुद्धम् शरणम् गच्छामि जीवन-परिचय

सुभाष रस्तोगी समकालीन कविता के एक जाने-माने कवि हैं। इनका जन्म 17 अक्टूबर, सन् 1950 ई० को अम्बाला छावनी में हुआ। इन्होंने हिन्दी में एम० ए० तथा पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की है। इनकी कविता के साथ-साथ साहित्य की अन्य विधाओं जैसे कहानी, उपन्यास, जीवनी तथा साक्षात्कार आदि में भी इनकी अच्छी पकड़ है। इनकी मुख्य रचनाएं तथा अन्य उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं काव्य संग्रह-टूटा हुआ आदमी और जीवन छला गया, अग्नि देश, वक्त की साजिश, कत्ल सूरज का, बयान मौसम का, अपना-अपना सच, तपते हुए दिनों के बीच, कठिन दिनों में, अंधेरे में रोशन होती चीजें।

कहानी संग्रह-ठहरी हुई जिंदगी, एक लड़ाई-चुपचाप। उपन्यास-काँच घर, टूटे सपने। साक्षात्कार-संवाद निरंतर। जीवनी-क्रांतिकारी भगतसिंह, रवीन्द्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अमर क्रांतिकारी सुखदेव।

उन्हें ‘कत्ल सूरज का’ के लिए 1980-81 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा, तपते हुए दिनों के बीच 1987-88 में, बयान मौसम का 1991-92 में तथा 1994-95 में क्रांतिकारी भगतसिंह (जीवनी) के लिए प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में कहानियों तथा कविताओं पर एम० फिल० हेतु शोधकार्य सम्पन्न किया। आजकल ये भारत सरकार के एक कार्यालय में सेवारत तथा स्वतंत्र लेखन कार्य में लगे हुए हैं तथा साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

बुद्धम् शरणम् गच्छामि कविता का सार

‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ कविता सुभाष रस्तोगी द्वारा रचित ‘समय के सामने’ कविता संग्रह में ली गई है। इस कविता में कवि ने प्रार्थना की है कि इस वर्ष मानव के जीवन में जो घटा है वह अगले वर्ष नहीं चाहिए। प्रत्येक को सभी प्रकार की सुविधाएं मिलनी चाहिए जैसे रोज़गार, अनाज, सभी की सलामती, खेतों में हरियाली तथा खुशी मिलें। अगले वर्ष लोगों के जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार दूर होकर, ज्ञान-रूपी प्रकाश फैले। कवि ने पक्षियों के लिए भी प्रार्थना की है कि उन्हें भी कहीं न कहीं ठिकाना मिलें। लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो और बुद्धम् शरणम् गच्छामि अनहद नाद एक बार फिर से लोगों के हृदय में गूंजे।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 25 बाल लीला

Punjab State Board PSEB 6th Class Hindi Book Solutions Chapter 25 बाल लीला Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Hindi Chapter 25 बाल लीला

Hindi Guide for Class 6 बाल लीला Textbook Questions and Answers

भाषा-बोध (प्रश्न) पावसातार

1. शब्दों के अर्थ ऊपर दिए जा चुके हैं।

गुसैयाँ = स्वामी, मालिक
रिसैयाँ = क्रोध करना, रूठना
छैयाँ = अधीन
रूहठि = रूठना
पठायो = भेजना
तासौं = उससे
छींका = रस्सी, तार आदि से बनी झोली, जिसे छत से लटकाकर उसमें खाने-पीने की चीजें रखते हैं।
दुहैयाँ = दुहाई देकर
दाउँ = दाँव देना
भोर = सुबह, प्रातः
बरबस = ज़बरदस्ती
मोतै = मुझसे
बिहँसि = हँसकर लाठी
बहियन = बाँहें कंबल
ग्वैया = साथी ग्वाले

2. निम्न शब्दों के हिन्दी रूप लिखो

करत ………………
हमते ………………
गैया ……………….
मैया …………….
पाछे ………….
कछु …………..
मोतै ………….
माखन ……………
उत्तर:
1. करत = करते हो
2. हमते = हमसे
3. मोतै = मुझसे
4. गैया = गाय
5. मैया = माँ
6. माखन = मक्खन
7. पाछे = पीछे
8. केहि = किसे
9. कछु = कुछ
10. बैर = वैर

विचार-बोध

(क)
प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण क्यों गुस्से हो जाते हैं ?
उत्तर:
खेल में श्रीदामा से हार जाने पर श्रीकृष्ण गुस्सा हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
कृष्ण के क्रोध करने पर ग्वाल सखा क्या जवाब देते हैं ?
उत्तर:
कृष्ण के क्रोध करने पर ग्वाल सखा उसे फटकारते हैं कि हम उससे नहीं खेलेंगे जो रूठते फिरते हैं, जाओ तुम भी वहां जाकर बैठो, जहां सब अन्य ग्वाले बैठे हुए हैं।

3. खेल में कौन जीतता है ?
उत्तर:
खेल में श्रीकृष्ण के सखा श्रीदामा जीतते हैं।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 25 बाल लीला

प्रश्न 4.
कृष्ण ने मक्खन न खाने की कौन-कौन सी दलीलें दी ?
उत्तर:
माखन न खाने की दलीलें देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं तो सुबह से शाम तक गौओं को चराने गया हुआ था। तुमने माखन का छींका इतनी ऊँचाई पर लटका रखा है मैं अपने छोटे-छोटे हाथों से इसे कैसे पा सकता हूँ।

प्रश्न 5.
कृष्ण की कौन-सी बात सुनकर माता ने हंसकर उसे गले लगा लिया ?
उत्तर:
सूरदास की बाल सुलभ चंचलता भरी बातें सुनकर यशोदा हंस कर उसे गले से लगा लेती है जब कृष्ण कहते हैं कि ये ले अपनी लाठी और कम्बल तुमने मुझे बहुत ही अपने इशारों पर नचा लिया है।

(ख)
प्रश्न 1.
कृष्ण के क्रोधित होने पर ग्वाल सखा क्या कहते हैं ?
उत्तर:
कृष्ण के क्रोधित होने पर ग्वाल सखा उसे कहते हैं कि खेल में कोई बड़ाछोटा नहीं होता। श्रीदामा के जीत जाने पर तुम गुस्सा क्यों करते हो। जो खेल-खेल में रूठ जाता हो उससे क्या खेलना जाओ तुम भी वहां बैठे रहो जहां सब ग्वाले बैठे हुए हैं।

प्रश्न 2.
सूरदास के इन पदों में बाल-मन की किन-किन भावनाओं को अंकित किया गया है ?
उत्तर:
सूरदास के इन पदों में बाल-मन की चंचल मुद्राओं को चित्रित किया गया। बालक का खेल में हार कर रूठना, रूठ कर बैठ जाना, फिर अपने-आप मान जाना, चालाकी करके न मानना, गुस्सा दिखाना आदि भावनाओं को चित्रित किया गया है।

आत्म-बोध

1. अपने अध्यापक से कृष्ण के जीवन और लीलाओं का परिचय प्राप्त करो।
2. अपने अभिभावक/माता-पिता के साथ जन्माष्टमी पर्व की जानकारी प्राप्त करो वमेला देखो।
3. सूरदास द्वारा लिखित बाल-लीला के अन्य पद पढ़ो।

बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1.
हार जाने पर श्रीदामा से कौन गुस्सा हो जाते हैं ?
(क) श्रीकृष्ण
(ख) बलराम
(ग) घनश्याम
(घ) श्रीदामा
उत्तर:
(क) श्रीकृष्ण

प्रश्न 2.
ग्वालों के अनुसार खेल में क्या नहीं होता ?
(क) छोटा
(ख) बड़ा
(ग) बड़ा-छोटा
(घ) शून्य
उत्तर:
(ग) बड़ा-छोटा

प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण ग्वालों की शिकायत किन-से करते हैं ?
(क) पिता जी से
(ख) माता यशोदा से
(ग) श्रीदामा से
(घ) गोपाला से
उत्तर:
(ख) माता यशोदा से

प्रश्न 4.
श्री कृष्ण क्या न खाने की जिद करते हैं ?
(क) मक्खन
(ख) गुड़
(ग) मिश्री
(घ) मेवा
उत्तर:
(क) मक्खन

प्रश्न 5.
खेल में सब कैसे होते हैं ?
(क) बराबर
(ख) असमान
(ग) ज्यादा-कम बराबर
(घ) कुछ नहीं।
उत्तर:
(क) बराबर

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 25 बाल लीला

प्रद्यांशों के सरलार्थ

1. खेलन में को काको गुसैंयाँ।।
हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबस की कत करत रिसैयां।
जाति पाँति हमते बड़ नाही, नाहीं बसत तुम्हारी छैयां।
अति अधिकार जनावत मोते, जाते अधिक तुम्हारे गैयाँ।
रूठहिं करै तासौं के खेलै, रहे बैठि जहँ-जहँ सब गवैयां।
सूरदास प्रभु खेलन चाहत, दाउँ दियौ करि नन्द दुहैयाँ।

शब्दार्थ-को = कौन। काको = किसका। गुसैंयां = स्वामी, मालिक। बरबस = जबरन। रिसैयां = क्रोध, गुस्सा। बसत = बसते हैं, रहते हैं। छैयां = अधीन। मोतै = मुझसे। तासौं = उससे। गवैयां = ग्वाले। दाउं = दांव। दुहैयां = दुहाई।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद हमारी हिन्दी पुस्तक से सूरदास रचित रचना ‘बाल-लीला’ से लिया गया है। इसमें कवि ने श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन किया है।

सरलार्थ:
कवि कहता है कि जब श्रीकृष्ण अपने साथियों के साथ गौएं चराने गए और वहां पर श्रीदामा और अन्य साथियों के साथ खेलते, गुस्सा करते और रुठते हैं। श्रीकृष्ण खेलते हुए हार जाते हैं और श्रीदामा जीत जाते हैं तो श्रीकृष्ण रूठ कर बैठ जाते हैं तो उनके साथी कहते हैं कि खेल में कौन किसका स्वामी है तुम हार गए और श्रीदामा जीत गए तो जबरदस्ती में क्यों क्रोध करते हो। जाति-पाति में भी तुम हमसे बड़े नहीं हो अर्थात् हम सभी एक ही हैं और न ही हम तुम्हारे अधीन रहते हैं जो तुम हमें अपना गुस्सा दिखाते हो। हाँ तुम हम पर अपना अधिकार इसलिए जताते हो कि तुम्हारी गौएं हमसे अधिक हैं। सभी ने गुस्से में भर कर कहा कि उससे क्या खेलना जो बात-बात पर रूठ जाता हो। तुम तो दूसरे सब ग्वालों के पास जाकर बैठ जाओ हम तुमसे नहीं खेलते। सूरदास जी कहते हैं कि दोस्तों की फटकार सुनकर श्रीकृष्ण फिर से नन्द की दुहाई देकर फिर से खेलने को सहमत हो गए क्योंकि वे खेलना चाहते थे।

भावार्थ:
बाल-मन और बाल क्रीड़ा की अति सुंदर कल्पना की गई है।

2. मैया मोरी ! मैं नहिं माखन खायो।
भोर भये गैयन के पीछे, मधुबन मोहि पठायो॥
चार पहर बंसीबट भटक्यो, सांझ परे घर आयो।
मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि विधि पायो॥
ग्वाल बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुख लपटायो॥
तेरे जिय कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो॥
यह ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतै नाच नचायो।
सूरदास, जब बिहंसि जसोदा, लै कर कंठ लगायो।

शब्दार्थ:
भोर = सवेरा। मोहि = मुझे। पठायो = भेजा। बहियन = बाहें। विधि = तरीका, तरह। बैर = शत्रुता। बरबस = ज़बरदस्ती। जननी = माता। मति = बुद्धि । भोरी = भोली। पतियायो = विश्वास किया। जिय = हृदय। उपजत है = पैदा हो गया है। परायो जायो = दूसरे के द्वारा जन्म दिया हुआ। लकुटी = लाठी। कमरिया = कम्बल। बिहंसि = हंसकर। उर = हृदय, छाती। कंठ = गला।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘बाल-लीला’ शीर्षक पदों में से लिया गया है। इस पद के रचयिता कवि सूरदास जी हैं।

सरलार्थ:
श्रीकृष्ण द्वारा मक्खन चुराने और खाने की जब कोई गोपी शिकायत यशोदा जी से करती है, तो यशोदा माँ के पूछने पर श्रीकृष्ण उत्तर देते हैं-हे माँ! मैंने मक्खन नहीं खाया। सुबह होते ही तूने मुझे गायों के पीछे मधुवन में भेज दिया था। वहां पर चार पहर तक मैं वंशीवट में भटकता रहा हूं और सायंकाल के समय घर आया हूँ। मैं बालक हूँ, मेरे बाजू छोटे हैं, मैं छींके पर किस तरह पहुंच सकता था। ग्वालों के सभी बालक मेरे शत्रु बने हुए हैं, उन्होंने ज़बरदस्ती मक्खन मेरे मुंह में लगा दिया है। तू ऐसी माँ है जो बुद्धि से बहुत भोली है जो इनके कहने पर विश्वास कर रही है। ऐसा लगता है कि मुझे पराया पुत्र समझ कर तेरे मन में मेरे लिए भेद उत्पन्न हो गया है। यह अपने द्वारा दी गई लाठी और कम्बल ले लो। तुमने मुझे बहुत नाच नचवाया है। सूरदास जी कहते हैं कि श्रीकृष्ण के मुंह से ये बातें सुनकर यशोदा ने उन्हें अपने गले से लगा लिया।

भावार्थ:
कवि ने श्रीकृष्ण के बहानों और यशोदा माता के वात्सल्य को सुन्दर ढंग से प्रकट किया है।

बाल लीला Summary

बाल लीला पदों का सार

पहले पद में श्रीकृष्ण खेल में श्रीदामा से हार जाते हैं पर श्री कृष्ण अपनी हार नहीं मानते। श्रीदामा ने उनसे कहा कि वे जात-पात में उनसे बड़े नहीं और नहीं वे उनके घर से मांग कर खाते हैं। उनके पिता के पास कुछ गउएं अवश्य अधिक हैं। जो खेल में झगड़ा करता है उसके साथ कौन खेलना पसंद करेगा। श्रीकृष्ण अभी खेलना चाहते थे इसलिए उन्होंने अपनी हार मान कर बारी दे दी। दूसरे पद में श्रीकृष्ण अपनी माँ से शिकायत करते हैं कि उन्होंने माखन की चोरी नहीं की। वे तो सवेरे-सवेरे गाय ले कर चराने के लिए चले गए थे। वे तो छोटे-से बालक थे और किसी भी प्रकार छींके तक नहीं पहुंच सकते थे। ग्वालों के कुछ बालक उनसे दुश्मनी करते हैं। उन्होंने उनके मुंह पर मक्खन लगा दिया था। माँ पर दोष लगाते हुए कहते हैं कि वह भी पराया समझ कर उन पर आरोप लगाती है। यशोदा माता ने श्रीकृष्ण की बातें सुनकर उन्हें अपने गले से लगा लिया।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 24 ईमानदार बालक

Punjab State Board PSEB 6th Class Hindi Book Solutions Chapter 24 ईमानदार बालक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Hindi Chapter 24 ईमानदार बालक

Hindi Guide for Class 6 ईमानदार बालक Textbook Questions and Answers

भाषा-बोध

1. शब्दार्थउत्तर-पाठ के आरम्भ में दिए गए हैं।

छननी = द्रव पदार्श आदि छानने का महीन कपड़ा, छलनी
रुआँसा = रोने को होने वाला
छुट्टा = रेजगारी
भुनाना = रुपए को सिक्कों में बदलवाना
ऐंबुलेंस = घायलों एवं बीमारों को लिटाकर अस्पताल ले जाने वाली गाड़ी
दुर्लभ = कठिनाई से मिलने वाला

2. शुद्ध करके लिखें

रूपया, मजदूर, परिचीत, बजार, उत्सूक, असी, इमानदार, सूई, जलरी, पल्क।
उत्तर:
1. रूपया = रुपया
2. मजदूर = मज़दूर
3. परिचीत = परिचित
4. बजार = बाज़ार
5. उत्सूक = उत्सुक
6. असी = असि
7. इमानदार = ईमानदार
8. सूई = सुई
9. जलदी = जल्दी
10. पल्क = पलक

3. मुहावरों को वाक्यों में प्रयुक्त करो

पालक मारते ही आना = ……………… ………………………………..
गिड़गिड़ाकर ठगना = ……………….. ……………………………….
घर में ही होना = ……………………. ……………………………….
पाठ पढ़ना = …………………… …………………………………
उत्तर:
1. पलक मारते ही आना = झटपट आना-बाबू जी आप रुकिए ! मैं पलक मारते ही आया।
2. गिड़गिड़ाकर ठगना = दीनतापूर्वक प्रार्थना करके लूट लेना-महेश! तुम इनको नहीं जानते। इन्हें तो गिड़गिड़ाकर ठगने की आदत है।
3. घर में ही होना = घर की बात – तुम चिन्ता मत करो। तुम्हारे रुपए कहीं नहीं जाते। समझो कि वे घर में ही है।
4. पाठ पढ़ना = सबक लेना-सेठ ने कहा, “चलो कोई बात नहीं। समझेंगे एक रुपया देकर एक पाठ ही पढ़ा।”

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 24 ईमानदार बालक

4. अंतर समझो और वाक्यों में प्रयोग करो

शब्द अर्थ वाक्य
1. लौटा वापस आना, ‘लौटना’ क्रिया का भूतकाल रूप ………………………………
लोटा जल रखने का धातु का बना एक बर्तन …………………………………
2. भुनाना भूनने का काम करना ………………………………
भुनाना रुपए को सिक्कों में बदलवाना ………………………………
3. भेजा भेजना ………………………………
भेजा खोपड़ी के अंदर का गूदा, मगज …………………………..
4. दिया ‘देना’ का भूतकाल ………………………..
दिया दीपक ……………………….
उत्तर:
1. लौटा = वापस आना-मोहन कल ही दिल्ली से लौटा था।
लोटा = एक बर्तन-उसने एक लोटा पानी पिया और चल दिया।
2. भुनाना = भूनने का काम करना-वह मज़दूरनी दाना भूनने का काम करके पेट पालती थी।
भुनाना = रुपये को सिक्कों में बदलवाना-मैं ये रुपये भुना कर एक-एक रुपए के सिक्के चाहता हूँ।
3. भेजा = भेजना-मैंने उसे बाज़ार भेजा।
भेजा = दिमाग-तुम मेरा भेजा खराब मत करो।
4. दिया = ‘देना’ का भूतकाल-उसने मुझे रुपया दिया।
दिया = दीपक – घर के बाहर दिया जला कर रखना।

5. समानार्थक शब्द लिखो

माँ-बाप, सेवक, जल्दी, घर, दर्द, डॉक्टर।
उत्तर:
समानार्थक शब्द

1. माँ-बाप = जन्मदाता, मातृ-पितृ
2. सेवक = दास, नौकर
3. ग़रीब = निर्धन, दरिद्र
4. जल्दी = शीघ्र, द्रुत
5. घर = गृह, निकेत
6. दर्द = कष्ट, तकलीफ
7. डॉक्टर = चिकित्सक, वैद्य

6. अनेक शब्दों के लिए एक शब्द लिखो

जिसकी जानकारी हो चुकी हो, जहां रोगियों की चिकित्सा होती है, दवा-इलाज करने वाला, ईमान पर चलने वाला।
उत्तर:
जिसकी जानकारी हो चुकी हो : ज्ञात।
जहां रोगियों की चिकित्सा होती है : चिकित्सालय।
दवा-इलाज करने वाला : डॉक्टर।
ईमान पर चलने वाला : ईमानदार।

7. पाठ में आए अंग्रेजी शब्दों को छांटकर लिखो
उत्तर:
बटन, नोट, डॉक्टर, हैलो, एंबुलेंस।

8. निर्देशानुसार उत्तर लिखो

(क) राजकिशोर कहाँ रहते हैं ? (वाक्य को भूतकाल में बदलो)
(ख) मैं तुम्हारे साथ चलता हूँ। (वाक्य को भविष्यकाल में बदलो)
(ग) प्रताप भाई का सिर पकड़ता है। (वाक्य को भविष्यकाल में बदलो)
(घ) वे मजदूरों के नेता हैं। (वाक्य को भूतकाल में बदलो)
(ङ) वह नोट भुनाने गया है। (वाक्य को वर्तमान काल में बदलो)
उत्तर:
(क) राजकिशोर कहाँ रहते थे ?
(ख) मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।
(ग) प्रताप भाई का सिर पकड़ेगा।
(घ) वे मजदूरों के नेता थे।
(ङ) वह नोट भुनाने जा रहा है।

विचार-बोधन

(क)
प्रश्न 1.
बसंत बाज़ार में क्या-क्या बेच रहा था ?
उत्तर:
बसंत बाज़ार में छन्नी, बटन तथा दियासलाई आदि बेच रहा था।

प्रश्न 2.
राजकिशोर ने बसंत से कोई भी सामान न खरीद पाने का क्या कारण बताया ?
उत्तर:
राजकिशोर ने बसंत से कोई भी सामान न खरीद पाने का कारण पूरे पैसे न होना बताया।

प्रश्न 3.
बसंत बार-बार राजकिशोर से कोई भी चीज़ लेने को क्यों कह रहा था ?
उत्तर:
बसंत बार-बार राजकिशोर से चीज़ खरीद लेने के लिए इसलिए कह रहा था क्योंकि सवेरे से उसका कुछ भी सामान नहीं बिका था।

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प्रश्न 4.
कृष्णकुमार के अनुसार बाज़ार के हर कोने में किस तरह के लड़के मिलते हैं ?
उत्तर:
कृष्णकुमार के अनुसार बाज़ार के हर कोने में ऐसे लड़के मिलते हैं, जिनका काम गिड़गिड़ाकर लोगों को ठग लेना है।

प्रश्न 5.
बसंत का काफ़ी देर प्रतीक्षा करने पर राजकिशोर क्या सोचकर घर चल दिए ?
उत्तर:
काफी देर प्रतीक्षा करने के पश्चात् राजकिशोर यह सोच कर घर चल दिए कि चलो एक रुपया देकर यह भी एक पाठ पढ़ा।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
प्रताप राजकिशोर जी के घर क्यों गया था ?
उत्तर:
प्रताप, राजकिशोर जी के घर बसंत के रहने पर गया था। बसंत ने राजकिशोर जी को उनके पैसे लौटाने के लिए प्रताप को भेजा था।

प्रश्न 2.
राजकिशोर प्रताप के साथ उसके घर क्यों गए ?
उत्तर:
जब राजकिशोर को पता चला कि बसंत दुर्घटनाग्रस्त हो गया है और उसके दोनों पैर कुचले गए हैं तो वह उसे देखने के लिए प्रताप के साथ उसके घर गए।

प्रश्न 3.
डॉक्टर ने बसंत को देखकर क्या कहा?
उत्तर:
डॉक्टर ने बसंत को देखकर कहा कि ऐसा लगता है कि इसके एक पैर की हड्डी टूट गई है। इसे अभी अस्पताल ले जाना होगा।

प्रश्न 4.
राजकिशोर ने ऐसा क्यों कहा कि इसे बचाना ही होगा ?
उत्तर:
राजकिशोर, बसंत की ईमानदारी को देखकर बहुत खुश हुए। इसीलिए उन्होंने डॉ० से उसे हर हाल में बचाने की बात कही।

आत्म-बोध

(क)
1. ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है-इसे जीवन में धारण करें।
2. ‘बाजार के हर कोने पर आजकल ऐसे लड़के मिलते हैं, जिनका काम गिड़गिड़ाकर लोगों को ठगना है।’ कृष्णकुमार ने बिना जाने-समझे बसंत के बारे में राजकिशोर को अपनी राय दी जो कि सर्वथा ग़लत साबित हुई। अतः किसी को जाने-समझे बिना किसी के बारे में ग़लत धारणा मत बनाएं।
कुछ करने को-स्कूल में किसी अवसर पर इस एकांकी का मंचन करें।
उत्तर:
विद्यार्थी अपने अध्यापक की सहायता से इस एकांकी का मंचन कर सकते हैं।

(ख) दिए गए शब्द संकेतों की सहायता से कहानी लिखिए और उचित शीर्षक दीजिए।

मेधावी एक सच्ची लड़की ……………. दुकान पर राशन लेने जाना, भिन्न-भिन्न सामान लेना, नौ सौ पचास रुपए का सामान लेना, मेधावी का दुकानदार को हज़ार रुपए देना ……………….. दुकानदार का मेधावी को सौ रुपए बकाया वापस करना ……. मेधावी का दुकानदार को पचास रुपए ज्यादा देने के कारण पैसे वापस करना – दुकानदार का खुश होना -धन्यवाद करना।
उत्तर:
मेधावी एक सच्ची लड़की थी। एक दिन वह राशन की दुकान पर राशन लेने के लिए गई और उसने भिन्न-भिन्न प्रकार का सामान खरीदा और उसका बिल नौ सौ पचास रुपए का बना। मेधावी ने दुकानदार को हज़ार रुपए का नोट दिया। दुकानदार ने उसे पचास रुपए लौटाने थे मगर उसने गलती से उसे सौ रुपए वापस कर दिए। मेधावी ने रुपए गिने और उसने देखा कि दुकानदार ने उसे पचास रुपए अधिक दे दिए हैं। उसने वे पचास रुपए दुकानदार को वापस लौटा दिए। दुकानदार उसकी ईमानदारी से बहुत खुश हुआ। उसने मेधावी का धन्यवाद किया और ईनाम भी दिया। शिक्षा-ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।

बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1.
बसंत कैसा लड़का था ?
(क) गरीब
(ख) अमीर
(ग) धनी
(घ) निर्धनता
उत्तर:
(क) गरीब

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 24 ईमानदार बालक

प्रश्न 2.
बसंत बाजार में क्या बेच रहा था ?
(क) छन्नी
(ख) बटन
(ग) दियासलाई
(घ) ये सभी
उत्तर:
(घ) ये सभी

प्रश्न 3.
कृष्णकुमार के अनुसार बाजार में किस तरह के लड़के मिलते हैं ?
(क) धनी
(ख) गरीब
(ग) ठग
(घ) लुटेरे
उत्तर:
(ग) ठग

प्रश्न 4.
इस एकांकी से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
(क) ईमानदारी की
(ख) धोखेबाजी की
(ग) चोरी की
(घ) ठगी की
उत्तर:
(क) ईमानदारी की

ईमानदार बालक Summary

ईमानदार बालक पाठ का सार

बसंत नाम का एक गरीब लड़का थैले में रख कर सामान बेच रहा था। थैले में बटन, छन्नी, दियासलाई जैसे छोटे-छोटे सामान थे। उसने मज़दूर नेता राज किशोर से कुछ सामान खरीदने का आग्रह किया। वे उससे एक छन्नी लेकर नोट देते हैं। छुट्टे पैसे लेने के लिए वह गया पर काफ़ी समय तक लौट कर नहीं आया। अपने परिचित कृष्ण कुमार के कहने पर वे घर वापस चले गए कि कोई उन्हें ठग कर ले गया। काफ़ी देर बाद प्रताप नाम का एक युवक उनके घर आया। उसने उनके बचे हुए पैसे उन्हें लौटाए और बताया कि बसंत उसका भाई था जो पैसे भुना कर लाते समय एक बस के नीचे आ गया था। उसके दोनों पाँव कुचले गए। उसके माता-पिता पहले ही दंगों में मारे जा चुके थे। राजकिशोर एक डॉक्टर को ले कर उस के घर गए और उसकी ईमानदारी के विषय में डॉक्टर को बताया।

कठिन शब्दों में अर्थ:

प्रयत्न = कोशिश। दियासलाई = माचिस। छुट्टा = खुले पैसे। परिचित = जान-पहचान का। गिड़गिड़ाकर = मिन्नतें करना। भला = अच्छा। भुनाने = खुल्ले करवाने। कराहता = कष्ट न सहन करते रोना। दुर्लभ = मुश्किल से मिलने वाला।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 23 बाबू जी बारात में

Punjab State Board PSEB 6th Class Hindi Book Solutions Chapter 23 बाबू जी बारात में Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Hindi Chapter 23 बाबू जी बारात में

Hindi Guide for Class 6 बाबू जी बारात में Textbook Questions and Answers

भाषा-बोध (प्रश्न)

1. शब्दों के अर्थ ऊपर आ चुके हैं।

परहेज = किसी चीज़ से दूर रहना
बुजुर्ग = बूढ़ा
चिर-परिचित = पुरानी जाना- पहचान
जनवासा = बारातियों के ठहरने की जगह
उपवास = व्रत
सकुशल = ठीक-ठाक
मंडप = शामियाना
जीमते समय = भोजन करते समय
कोरस = एक साथ मिलकर, वृन्दगान
अट्टहास = जोर की हंसी

2. निम्नलिखित मुहावरों को वाक्यों में प्रयुक्त करें

1. ठहाका लगाना = ……………….. ………………………………
2. सिर मुंडाते ही ओले पड़ना = …………………. ……………………………
3. सन्नाटा छा जाना = …………………….. ……………………………………
4. ढाई मन की लाश होना = …………………. ……………………………………
5. दिन पर दिन सूखता जाना = …………………… ………………………………….
6. कान पकड़ना = ……………………. …………………………………
7. हाथी का बच्चा = …………………….. ………………………………..
8. अक्ल छू भी न जाना = ………………………. …………………………………
9. लानत भेजना = ………………… ……………………………………..
10. धूप खिल उठना = ……………………. ……………………………..
उत्तर:
1. ठहाका लगाना – ज़ोर से हंसना-बाबू जी की तोंद देखकर सभी ठहाका लगाने लगे।
2. सिर मुंडाते ओले पड़ना – कार्य के शुरू में ही बाधा पड़ना-बस अभी चली ही थी कि बस के पहिये में पंक्चर हो गया। इसे कहते हैं-सिर मुंडाते ही ओले पड़े।
3. सन्नाटा छा जाना-चुप्पी रह जाना – कयूं लगने से शहर में सन्नाटा छा गया।
4. ढाई मन की लाश होना-बहुत मोटा होना – राम राम, मूलचन्द तो ढाई मन की लाश है, साइकिल पर कैसे बैठाऊं?
5. दिन पर दिन सूखता जाना – कमज़ोर पड़ते जाना-क्या बात है रामू तुम दिन पर दिन सूखते क्यों जा रहे हो ?
6. कान पकड़ना-किसी बात से तौबा करना – मैं तो अब कान पकड़ता हूँ कि तुम्हारी सलाह पर नहीं चलूँगा।
7. हाथी का बच्चा-बहुत मोटा – बाबू जी को देखकर सभी कहते, “लो हाथी का बच्चा आ गया।”
8. अक्ल छू भी न जाना-निरा मूर्ख होना – मोहन लगता है कि तुम्हें तो अक्ल छू भी नहीं गई है कैसी मूर्खता की बातें कर रहे हो।
9. लानत भेजना-धिक्कारना, कोसना – तुम्हारी इस घटिया बात पर तुम्हें लानत भेजता
10. धूप खिल उठना – चेहरे पर रौनक आ जाना-देखो पिता जी को देखते ही सुधा के चेहरे पर धूप कैसे खिल उठी है।

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3. शुद्ध करके लिखें

अनन, सनाटा, फोटोगराफर, अटहास, चिलाना, कंडकटर, मुस्कराए, डराइबर, पनचर, बुजर्ग, शुकरिया।
उत्तर:
अशुद्ध रूप शुद्ध रूप
1. अनन = अन्न
2. सनाटा = सन्नाटा
3. फ़ोटोगराफर = फ़ोटोग्राफर
4. अटहास = अट्टहास
5. चिलाना = चिल्लाना
6. कंडकटर = कंडक्टर
7. मुस्कराए = मुस्कुराएँ
8. डराइबर = ड्राइवर
9. पनचर = पंक्चर
10. बुज़र्ग = बुजुर्ग
11. शुकरिया = शुक्रिया

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4. वचन बदलें

बेटा, मित्र, हाथी, युवक, देहाती, कार्य, गलती, बहू।
उत्तर:
वचन परिवर्तन
1. बेटा – बेटे
2. हाथी – हाथियों
3. देहाती – देहातियों
4. कार्य – कार्यों
5. गलती – गलतियां
6. बहू – बहुएं

5. निम्नलिखित वाक्यों को भूतकाल तथा भविष्यत्काल में लिखिए।

हम उधार पर जी रहे हैं।
आजकल अन्न की कमी है।
मेरी भूख मिटने वाली नहीं है।
उत्तर:
भूतकाल-हम उधार पर जी रहे थे।
उन दिनों अन्न की कमी थी।
मेरी भूख मिटने वाली नहीं थी।

भविष्यत् काल
हम उधार पर जीते रहेंगे।
आने वाले समय में अन्न की कमी होगी।
मेरी भूख मिटने वाली नहीं होगी।

6. (क)

1. बाबू गजानन्दन लाल का वजन दो मन बीस सेर था।
2. उनका वज़न कुछ बहुत भारी नहीं था।
3. दरवाज़े कुछ तंग थे।

उपर्युक्त पहले वाक्य में रेखांकित शब्द, ‘दो मन बीस सेर’ बाबूगजानंद लाल (संज्ञा) की निश्चित माप-तोल का, दूसरे वाक्य में ‘बहुत’ उनका (सर्वनाम) की अनिश्चित मापतोल की विशेषता तथा ‘कुछ’ शब्द से दरवाज़े (संज्ञा) की अनिश्चित माप-तोल विशेषता का पता चलता है, अतः रेखांकित शब्द विशेषण है। अत: जो विशेषण, संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित माप-तोल विशेषता के बारे में बताते हैं, उन्हें निश्चित परिमाण वाचक तथा जो विशेषण, संज्ञा या सर्वनाम की अनिश्चित माप-तोल विशेषता के बारे में बताते हैं, उन्हें अनिश्चित परिमाण वाचक विशेषण कहते हैं।

(ख)
1. यह मिठाई खाने लायक है।
2. वे बाराती आ रहे हैं।

उपर्युक्त वाक्यों में यह और वे शब्द क्रमशः मिठाई और बाराती (संज्ञा शब्दों) की ओर संकेत करते हैं। अतः ऐसे शब्द संकेतवाचक विशेषण कहलाते हैं। अतएव जो सर्वनाम संकेत द्वारा संज्ञा आदि की विशेषता बताते हैं, वे संकेत वाचक विशेषण कहलाते हैं। क्योंकि संकेतवाचक विशेषण सर्वनाम शब्दों से बनते हैं अतएव ये सार्वनामिक विशेषण कहलाते हैं।

निम्नलिखित में से विशेषण शब्दों को रेखांकित करें

1. इतना नहीं थोड़ा परोसो।
2. मैं एक सप्ताह से आधे दिन का उपवास कर रहा हूँ।
3. ये गजनन्दन लाल जी हैं।
4. यह हाथी का बच्चा इसमें जो सवार था।
5. ये लोग बहू से प्रार्थना कर रहे हैं।
उत्तर:
1. इतना, थोड़ा
2. आधा
3. ये
4. यह
5. ये

विचार-बोध (प्रश्न)

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक ही शब्द में दें

प्रश्न 1.
बाबू गजनन्दन लाल कहां रहते थे ?
उत्तर:
बाबू गजनन्दन लाल पुरानी दिल्ली में एक पुराने मुहल्ले में रहते थे।

प्रश्न 2.
बाबू गजनन्दन लाल का वजन कितना था ?
उत्तर:
बाबू गजनन्दन लाल का वज़न 2 मन, 20 सेर था।

प्रश्न 3.
बाबू गजनन्दन लाल के कमरे में लगी फोटो पर मोटे अक्षरों में क्या लिखा हुआ है ?
उत्तर:
फोटो पर लिखा था-“बाबू गजनन्दन बारात में।”

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प्रश्न 4.
बहू को किसने हंसाया ?
उत्तर:
बहू को गजनन्दन लाल ने हंसाया।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में दें

प्रश्न 1.
बारात में जाते समय बस झटके के साथ क्यों रुक गई ?
उत्तर:
बारात में जाते समय बस झटके के साथ इसलिए रुक गई क्योंकि उसके पहिये में पंक्चर हो गया था।

प्रश्न 2.
बाबू गजनन्दन लाल का स्वभाव कैसा था ?
उत्तर:
बाबू गजनन्दन लाल का स्वभाव विनोदप्रिय था। उनकी हर बात पर हंसी आ जाती थी।

आत्म-बोध (प्रश्न)

1. हंसी और मनोरंजन का महत्त्व समझो।
2. रोज़ थोड़ी देर अवश्य हंसो। (विद्यार्थी स्वयं करें)

बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबू गजनन्दन लाल कहाँ रहते थे ?
(क) नई दिल्ली में
(ख) पुरानी दिल्ली में
(ग) मुंबई में
(घ) पुरानी मुंबई में
उत्तर:
(ख) पुरानी दिल्ली में

प्रश्न 2.
बाबू गजनन्दन लाल का वजन कितना था ?
(क) दो मन
(ख) दो मन बीस सेर
(ग) दो मन तीस सेर
(घ) दो मन दस सेर
उत्तर:
(ख) दो मन बीस सेर

प्रश्न 3.
बहू को किसने हंसाया ?
(क) गजनन्दन लाल ने
(ख) बेटे ने
(ग) दुकानदार ने
(घ) नौकर ने
उत्तर:
(क) गजनन्दन लाल ने

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से परिमाण वाचक विशेषण का उदाहरण है :
(क) दो मन
(ख) पांडव
(ग) कौरव
(घ) अच्छा
उत्तर:
(क) दो मन

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में कौन-सा उदाहरण परिमाणवाचक विशेषण का नहीं है ?
(क) दो मन
(ख) बीस सेर
(ग) एक किलो
(घ) सुंदर
उत्तर:
(घ) सुंदर

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बाबूजी बारात में Summary

बाबू जी बारात में पाठ का सार

बाबू गजनन्दन लाल पुरानी दिल्ली में रहते थे। उनका वज़न दो मन बीस सेर था। एक बार बस के दरवाज़े में फंस गए। खूब हंसाई हुई। एक बार इन्हें अपने मित्र के लड़के की बारात में जाना पड़ा। बड़े दरवाज़े वाली बस थी। गजनन्दन लाल उस में सवार हुए तो खूब . ठहाके लगे। एक मित्र ने पूछा-बाबू जी आप उदास क्यों हैं ? गजनन्दन लाल बोले-मेरी मां का कहना है कि तू दिन पर दिन सूखता जा रहा है। खुराक घट रही है। बारात में संकोच मत करना। खूब खाना-पीना। उन्होंने आगे कहा कि बारात में जाने के लिए एक सप्ताह में आधे दिन का उपवास कर रहा हूं। बाराती यह सुनकर खूब हंसे।। अचानक झटके के साथ बस रुकी। ड्राइवर ने आकर कहा-आप सब लोग नीचे उतर जाएं। पहिए में पंक्चर हो गया है। जब बाबू गजनन्दन लाल को धमक चाल से नीचे उतरते देखा तो वहां इकट्ठे हुए देहाती हंसते हुए कहने लगे-“हम भी कहें कि नई बस क्यों बिगड़ी। यह हाथी का बच्चा इस में सवार जो था।” एक ने बाबूजी से उनका वज़न पूछ लिया तो कहने लगे-बहुत कमजोर हो गया हूं। स्टेशन पर तोला गया तो दो मन पांच सेर निकला। बाबू जी ने कहा-तुम लोग खेत में अनाज उगाते नहीं तो खाऊंगा क्या ? इससे सभी हंस पड़े।

बारात अपने निश्चित स्थान पर पहुंच गई। सभी की निगाहें वर की बजाय बाबू गजनन्दन लाल पर लगी थीं। जब नाश्ते का बुलावा आया तो बाराती परोसने को न-न कर रहे थे, परन्तु बाबू जी खूब लूंस-ठूस कर पेट भर रहे थे। कह रहे थे-सब मेरी तरफ आने दो। बारात धूम-धाम से चढ़ी। सभी बाबू जी को देखकर लोट-पोट हो रहे थे। सभी बहू को मुस्कराने के लिए कह रहे थे, ताकि फ़ोटो खींची जा सके। उसके चेहरे पर मुस्कराहट नहीं आ रही थी। जब गजनन्दन लाल ने कहा-बेटी जरा मेरी ओर देखो। बहू ने जब बाबू जी को देखा तो वह खिलखिला उठी। फिर फ़ोटोग्राफर से कहकर उन्होंने अपनी भी एक फ़ोटो उतरवाई, जिस पर लिखा हुआ है-बाबू गजननन्दन लाल बारात में।

कठिन शब्दों के अर्थ:

संकोच = शर्म। सप्ताह = सात दिन की अवधि । परहेज़ = किसी चीज़ से दूर रहना। अट्टहास = खिलखिला कर हंसना। सकुशल = ठीक-ठाक। जीमते = खाते । बुजुर्ग = बड़े-बूढ़े । चिर परिचित = बहुत दिनों से जाने-पहचाने । मण्डप = शामियाना।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 22 आत्म बलिदान

Punjab State Board PSEB 6th Class Hindi Book Solutions Chapter 22 आत्म बलिदान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Hindi Chapter 22 आत्म बलिदान

Hindi Guide for Class 6 आत्म बलिदान Textbook Questions and Answers

भाषा- बोधन

1. शब्दार्थ:
उत्तर:
शब्दों के अर्थ पाठ के आरम्भ में दिए गए हैं।

चर- अचर = जड़ और चेतन
धूर्त = छली, कपटी
मूसलाधार = तेज बारिशा
पर्णकुटी = पत्तों से बनी कुटिया
बिसात = सामर्थ्य
उल्कापात = जलते तारों का टूटकर गिरना
धराशायी = गिर जाना, पूरी तरह से गिरकर नष्ट हो जाना
मेंड = खेत के इर्द-गिर्द मिट्टी का बनाया घेरा, मेड
विपत्ति = मुसीबत
आलाप = बातचीत, चहचहाहट ( पक्षियों के संदर्भ में)
मंद = धीरे
विस्मय = हैरान

2. मुहावरों के वाक्य बनाइए

1. मन में गुदगुदी होना = ……………. …………………………..
2. अंधेरे में डूब जाना = ……………… ……………………………
3. हाथ धो बैठना = …………………. ………………………………
4. सुधबुध खो बैठना = ………………. ……………………………..
5. हाथ को हाथ न सूझना = ……………… ………………………….
उत्तर:
1. मन में गुदगुदी होना = मन ही मन में खुश होना – पिता जी विदेश से आते हुए मेरे लिए उपहार लेकर आएंगे, यह सोच कर मेरे मन में गुदगुदी होने लगी।
2. अंधेरे में डूब जाना = अंधेरा होना – बिजली चले जाने से सारा शहर अंधेरे में डूब गया।
3. हाथ धो बैठना = गंवा देना-बाबू राम ! अपने बेटे को कुसंगति से बचाकर रखो, ऐसा न हो कि कहीं बेटे से हाथ न धो बैठो।
4. सुधबुध खो बैठना = होश खो जाना – बेटे को घायलावस्था में देखकर मां अपनी सुधबुध खो बैठी।
5. हाथ को हाथ न सूझना = घना अंधकार होना – बाहर इतना अंधेरा था कि हाथ को हाथ नहीं सूझता था।

3. शुद्ध रूप लिखो

1. अतिअंत = …………
2. मुसलाधार = …………
3. गुरूदेव = …………
4. आशीरवाद = ………………
5. पुश्प = ……………….
6. मलीनता = ………………
7. ग्रहण = ………….
8. सुरभी = ……………..
9. गुरूभकती = …………
10. महार्षि = …………………
उत्तर:
1. अतिअंत = अत्यन्त
2. मुसलाधार = मूसलाधार
3. गुरूदेव = गुरुदेव
4. आशीरवाद = आशीर्वाद
5. पुश्प = पुष्प
6. मलीनता = मलिनता
7. गरण = ग्रहण
8. सुरभी = सुरभि
9. गियान = ज्ञान
10. गुरूभकती = गुरुभक्ति
11. महार्षि = महर्षि

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4. प्रत्येक शब्द को उसके सही स्थान पर लिखें

तुम्हें, कुटिया, मज़बूत, फूल, विकसित, लेटना, वह, मिट्टी, आप, आना, चलना, काली, खेत, तेज़, डूबना, मुझे।
उत्तर:

संज्ञा सर्वनाम विशेषण क्रिया
कुटिया तुम्हें मज़बूत लेटना
फूल वह विकसित आना
मिट्टी आप काली चलना
खेत मुझे तेज डूबना।

5. विपरीत शब्द लिखो

कुशल, मधुर, अंधेरा, मज़बूत, सुगंध, ग्रहण, आशीर्वाद, बांधना, प्रिय, शिष्य, नुकसान, संध्यां।
उत्तर:
1. कुशल = अकुशल
2. मधुर = कटु
3. अंधेरा = उजाला
4. मज़बूत = कमज़ोर
5. सुगंध = दुर्गन्ध
6. ग्रहण = त्याग
7. आशीर्वाद = अभिशाप
8. बांधना = खोलना
9. प्रिय = अप्रिय
10. शिष्य = गुरु
11. नुकसान = लाभ
12. संध्या = प्रभात

6. समानार्थी शब्द लिखो

नृत्य, पक्षी, वर्षा, चिंता, बादल, पौधा, अनुमति, ज़रूर, विपत्ति।
उत्तर:
समानार्थी शब्द
नृत्य नाच
पक्षी पंछी
वर्षा मेह
चिंता सोच
बादल मेघ
पौधा पादप
अनुमति आज्ञा
विपत्ति मुसीबत
ज़रूर अवश्य

विचार-बोध

(क)
पश्न 1.
आरुणि ने गुरु धौम्य से किस प्रकार सहावने मौसम का वर्णन किया ?
उत्तर:
आरुणि ने सुहावने मौसम का वर्णन करते हुए कहा कि काली घटाएं सभी चर-अचर के मन में गुदगुदी कर रही हैं। मोर काली घटाओं को देखकर आनन्दित होकर नृत्य कर रहे हैं। पक्षी भी मधुर अलाप कर रहे हैं।

पश्न 2.
आरुणि तेज आंधी और वर्षा में भी में बांधने जाने से क्यों नहीं डरता ?
उत्तर:
आरुणि को विश्वास है कि गुरु जी का आशीर्वाद साथ है तो फिर यह तेज आंधी-पानी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती।

पश्न 3.
गुरु धौम्य ने उपमन्यु को अधखिला पुष्प क्यों कहा ?
उत्तर:
उपमन्यु अभी बाल्यावस्था में था, इसी कारण गुरु धौम्य ने उसे एक अधखिला पुष्प कहा।

पश्न 4.
गुरु धौम्य और उपमन्यु किसे ढूंढ़ने निकले और क्यों ?
उत्तर:
गुरु धौम्य और उपमन्यु, आरुणि को ढूंढ़ने निकले क्योंकि आरुणि वर्षा से बह रहे मेंड़ को ठीक करने के लिए खेतों में चला गया था लेकिन काफ़ी समय बीत जाने पर भी वह लौटकर नहीं आया था।

पश्न 5.
गुरु धौम्य ने उपमन्यु को आरुणि को ढूंढ़ने के लिए क्या करने को कहा ?
उत्तर:
आरुणि को ढूंढ़ने के लिए गुरु धौम्य, उपमन्यु को कहते हैं कि ज़रा ज़ोर से आवाज़ दो जिससे पता चले कि आरुणि किस दिशा में है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखें

पश्न 1.
आरुणि ने खेत की मेंड टूटने की गुरु की चिंता को किस प्रकार दूर किया?
उत्तर:
अपने गुरु के मुख से खेत की मेंड़ टूटने की चिंता को सुनकर गुरुभक्त आरुणि ने झट से कहा कि आप इस मामूली से काम के लिए चिंता क्यों करते हैं। मैं अभी जाकर मेंड़ ठीक कर आता हूं।

पश्न 2.
गुरु धौम्य के द्वारा वरदान देने पर आरुणि ने गुरु से क्या कहा ?
उत्तर:
गुरु धौम्य के मुख से वरदान देने की बाद सुनकर आरुणि ने कहा कि गुरुवर, आज जैसे गुरु को पाकर मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस आपकी कृपा-दृष्टि सदा मुझ पर रहे, यही मेरी इच्छा है।

पश्न 3.
गुरु धौम्य अपने शिष्यों पर क्यों गर्व महसूस करते थे ?
उत्तर:
गुरु धौम्य अपने शिष्यों की गुरुभक्ति पर मुग्ध थे। उनके शिष्य उनके बहुत आज्ञाकारी थे। इसी कारण वह अपने शिष्यों पर गर्व महसूस करते थे।

आत्म-बोध

1. अपने मां-बाप, गुरु और ईश्वर पर श्रद्धा रखें और उनके बताये रास्ते पर चलें।
2. त्याग और समर्पण की भावना आपसी रिश्ते को और भी सुदृढ़ करती है।
3. आप जिस काम को करने के लिए किसी से वादा करते हैं तो उसे हर हाल में करना ही श्रेयस्कर माना जाएगा। (विद्यार्थी स्वयं करें)

हुवैकल्पिक प्रश्न

पश्न 1.
धौम्य ऋषि का शिष्य कौन था ?
(क) आरुणि
(ख) वरुणी
(ग) तरुण
(घ) देवीशरण
उत्तर:
(क) आरुणि

पश्न 2.
आरुणि कैसा शिष्य था ?
(क) मेहनती
(ख) आज्ञाकारी
(ग) अवज्ञाकारी
(घ) डरपोक
उत्तर:
(ख) आज्ञाकारी

पश्न 3.
गुरु धौम्य ने उपमन्यु को क्या कहा ?
(क) फूल
(ख) धूल
(ग) अधखिला फूल
(घ) पुण्य
उत्तर:
(ग) अधखिला फूल

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 22 आत्म बलिदान

पश्न 4.
आरुणि किसकी मिट्टी की रक्षा के लिए स्वयं लेट गया ?
(क) खेत की
(ख) रेत की
(ग) घर की
(घ) आश्रम की
उत्तर:
(क) खेत की

आत्म बलिदान Summary

आत्म बलिदान लघु नाटिका का सार

आकाश में घने काले बदल छाए हुए थे। कुछ समय बाद तेज वर्षा होने लगी धौम्य ऋषि ने अपने शिष्य आरुणी को अपनी चिंता से परिचित कराया कि ऐसे ही मूसलाधार वर्षा होती रही तो खेत की मेंड़ टूट जाएगी। आरुणी मेंड़ को टूटने से बचाने के लिए चला गया पर वह संध्या होने तक वापस नहीं लौटा। ऋषि का दूसरा शिष्य उपमन्यु वर्षा रुकने के बाद कुटिया में वापिस आया। उसने फूल लाने के लिए बाहर जाना चाहा तो ऋषि ने बताया कि आरुणी वहीं था और फूल अवश्य ले आया होगा। बाद में ऋषि को याद आया कि उन्होंने उसे मेंड़ देखने के लिए भेजा था। धौम्य ऋषि और उपमन्यु दोनों तेजी से खेत की ओर गए। आवाज़ देने पर पीछे वाले खेत से आरुणी की आवाज़ आई। वहां मेंड की जगह आरुणी ठंड से कांपता हुआ लेटा था। उसने बताया कि पानी के तेज बहाव के कारण मेंड़ बह गई थी और मिट्टी से उसे रोकना कठिन था। खेत का मिट्टी की रक्षा के लिए वह उसे स्वंय लेट गया था। ऋषि धौम्य उसकी कर्तव्यनिष्ठा और गुरु भक्ति से अपार प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे आशीर्वाद दिया।

कठिन शब्दों के अर्थ:

कृपा = दया। सुहावना = अच्छा। मंद = धीमी। समीर = हवा। अत्यन्त आनन्दित = बहुत अधिक प्रसन्न। मनोरम = सुन्दर। नृत्य = नाच । तपोवन = आश्रम। पर्णकुटी = पत्तों की कुटिया, झोंपड़ी। उल्कापात = तारों का टूटना। धराशायी = धरती पर गिरे होना। निखार = सुन्दरता। पुष्प = फूल। मलिनता = मैला, गन्दा, दूषित। सुधबुध = होश अधखिला = आधा खिला हुआ। अविकसित = जिसका विकास न हुआ हो। ज्ञान-सुरभि = ज्ञान की सुगन्ध। अनुमति = आज्ञा। विपत्ति = मुसीबत। प्रयत्न = कोशिश। बेकार = व्यर्थ। परम = सर्वश्रेष्ठ, सबसे बढ़कर।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 21 साथी हाथ बढ़ाना

Punjab State Board PSEB 6th Class Hindi Book Solutions Chapter 21 साथी हाथ बढ़ाना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Hindi Chapter 21 साथी हाथ बढ़ाना

Hindi Guide for Class 6 साथी हाथ बढ़ाना Textbook Questions and Answers

भाषा-बोध

1. शब्दार्थ
उत्तर:
पद्यांशों के सरलार्थ के साथ-साथ कठिन शब्दों के अर्थ दिए गए हैं।

पौलादी = बहुत मजबूत
लेख = भाग्य
गैरों = दूसरे, अन्य
दरिया = नदी
मंजिल = लक्ष्य
नेक = अच्छा
खातिर = के लिए
जरी = कण

2. नीचे लिखे मुहावरों के अर्थ लिखकर वाक्य बनाओ

1. हाथों-हाथ लगाना = ……….. …………………….
2. हाथ साफ करना = ……………… ……………………
3. राई का पहाड़ बनाना = …………….. ……………………..
4. एक और एक ग्यारह होना = ………………. ………………………
5. सीस झुकाना = ………………. ……………………………
उत्तर:
1. हाथों-हाथ लगाना = साथ देना-हाथों – हाथ लगाने का ही यह फल है कि इतना बड़ा कार्य आसानी से हो गया।
2. हाथ साफ करना = चोरी करना – हमारे पड़ोसी दिल्ली शादी में गए थे कि पीछे से चोर घर पर हाथ साफ कर गए।
3. राई का पहाड़ बनाना = छोटी-सी बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहना – तुम भी क्या छोटी-सी बात को राई का पहाड़ बना देती हो।
4. एक और एक ग्यारह होना = मज़बूत होना-मोहन तुम भी मेरे साथ चलो क्योंकि तुम्हें तो पता है कि एक और एक ग्यारह होते हैं।
5. सीस झुकाना = नमन करना-मेहनती व्यक्ति के आगे तो पर्वत भी सीस झुकाते हैं।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 21 साथी हाथ बढ़ाना

3. पर्यायवाची शब्द लिखो

1. साथी = ……………….
2. सागर  = …………….
3.सीस = ………………
4. बाँट = ………………
5. चट्टान  = …………….
6. कतरा = …………….
7. दरिया = …………….
उत्तर:
1. साथी = मित्र
2. सागर = समुद्र
3. सीस = सिर
4. बांट = भाग
5. चट्टान = शिला
6. कतरा = बूंद
7. दरिया = नदी

4. क्रिया शब्द चुनो

1. एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना।
2. सागर ने रस्ता छोड़ा, परबत ने सीस झुकाया।
3. एक से एक मिले तो राई, बन सकती है परबत।
4. एक से एक मिले तो इंसां बस में कर ले किस्मत।
उत्तर:
(1) जाएगा, बोझ उठाना
(2) छोड़ना, सीस झुकाया
(3) मिलना, बनना
(4) मिलाना, बस में करना

5. वचन बदलकर वाक्य बनाओ

1. बाँह ……………….
2. सीना ………………
3. राह …………………..
4. मंज़िल ……………..
5. चट्टान ………………..
उत्तर:
(1) बाँह = बांहें-भारतीय सैनिकों की बाहें फौलादी हैं।
(2) सीना = सीने-वीर सैनिक सीने पर गोलियां खाते हैं।
(3) राह = राहें-जीवन की राहें आसान नहीं होती।
(4) मंज़िल = मंज़िलें-राम के मकान की चार मंज़िलें हैं।
(5) चट्टान = चट्टानें- भूकंप से अनेक चट्टानें गिर गईं।

6. उपयुक्त शब्द भरकर वाक्य पूरा करो

(1) ……….मिलकर रहना चाहिए। (सर्वनाम)
(2) विविध सुमनों से मिलकर ………………… बनती है। (संज्ञा)
(3) नदी सागर में ……………….. हैं। (क्रिया)
(4) …………………है सीना अपना। (विशेषण)
(5) ……………….मंज़िल सब की मंजिल ………………. रास्ता नेक। (सर्वनाम)
उत्तर:
(1) हमें
(2) माला
(3) गिरती
(4) फौलादी
(5) अपनी, अपना

7. विपरीत शब्द लिखो

1. एक …………
2. मेहनती …………
3. गैर ………….
4. नेक …………
5. फौलादी …………
उत्तर:
(1) एक = अनेक
(2) मेहनती = आलसी
(3) गैर = अपना
(4) नेक = बद
(5) फौलादी = कागजी

विचार-बोध

(क)
प्रश्न 1.
सागर ने रास्ता क्यों छोड़ा ?
उत्तर:
मनुष्य के पक्के इरादे को देखकर सागर ने रास्ता छोड़ा।

प्रश्न 2.
मेहनत से हम क्या-क्या कर सकते हैं ?
उत्तर:
मेहनत से हम असम्भव को भी सम्भव कर सकते हैं। पहाड़ों से भी मार्ग बना सकते हैं।

प्रश्न 3.
दरिया कैसे बनता है ?
उत्तर:
बूंद-बूंद से दरिया बनता है।

प्रश्न 4.
भाग्य की रेखा कैसे बनती है ?
उत्तर:
भाग्य की रेखा मेहनत से बनती है।

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 21 साथी हाथ बढ़ाना

प्रश्न 5.
‘कल गैरों की खातिर’ में गैरों का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
गैरों से अर्थ अंग्रेजों से है।

(ख)
प्रश्न 1.
मेहनत के महत्त्व पर पांच वाक्य लिखें।
उत्तर:

  • मेहनत के बल पर हम पर्वतों में भी रास्ता बना सकते हैं।
  • मेहनत से हम असम्भव को भी सम्भव बना सकते हैं।
  • मेहनत ही सफलती की कुंजी है।
  • मेहनती व्यक्ति आत्मविश्वासी होता है।
  • मेहनती व्यक्ति का सर्वत्र सम्मान होता है।

प्रश्न 2.
‘एक से मिले एक तो इंसां बस में कर ले किस्मत’ पंक्ति का भावार्थ लिखो।
उत्तर:
इस पंक्ति का अर्थ है कि यदि प्रत्येक व्यक्ति मिल जाएं तो वे अपनी किस्मत ही बदल सकते हैं।

प्रश्न 3.
दरिया की क्या विशेषता है ?
उत्तर:
दरिया की विशेषता है कि वह अपने रास्ते में आने वाली हर बाधाओं को तोड़कर आगे बढ़ता जाता है।

प्रश्न 4.
इस कविता से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
इस कविता से हमें शिक्षा मिलती है कि मिलकर काम करने से हम सारी बाधाओं पर विजय पा सकते हैं। इसलिए हमें मिलजुल कर काम करने चाहिए।

आत्म-बोध

1. अपने स्कूल, घर, मुहल्ले में अपने साथियों से मिलकर क्या-क्या काम करोगे जिससे आपको खुशी मिले?
2. किसी असहाय व्यक्ति की सहायता करने का प्रण लो।
3. यह कविता समूहगान में गाएं।
4. किसी ऐसी घटना या कहानी को पढ़ो जिसमें मिलकर काम करने का अच्छा परिणाम मिला हो। (विद्यार्थी स्वयं करें)

बहुवैकल्पिक प्रश्न

प्रश्न 1.
भाग्य की रेखा किससे बनती है ?
(क) मेहनत से
(ख) धन से
(ग) तन से
(घ) बल से
उत्तर:
(क) मेहनत से

प्रश्न 2.
‘कल गैरों की खातिर’ में गैरों का क्या अर्थ है ?
(क) दूसरे
(ख) अन्य
(ग) अंग्रेज़
(घ) यूनानी
उत्तर:
(ग) अंग्रेज़

प्रश्न 3.
इस कविता से क्या शिक्षा मिलती है ?
(क) मिलजुल कर काम करना
(ख) दूर-दूर रहना
(ग) पास-पास रहना
(घ) आगे बढ़ना
उत्तर:
(क) मिलजुल कर काम करना

प्रश्न 4.
मेहनत वालों के आगे किसने रास्ता छोड़ा ?
(क) सागर ने
(ख) लोगों ने
(ग) राजाओं ने
(घ) दुनिया ने
उत्तर:
(क) सागर ने

प्रश्न 5.
मेहनती लोगों के आगे किसको अपना सिर झुकाना पड़ा?
(क) लोगों को
(ख) दानवों को
(ग) पर्वत को
(घ) नदियों को
उत्तर:
(ग) पर्वत को

PSEB 6th Class Hindi Solutions Chapter 21 साथी हाथ बढ़ाना

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से ‘साथी’ का पर्याय है :
(क) मिंत्र
(ख) चित्र
(ग) पित्र
(घ) पिता
उत्तर:
(क) मिंत्र

प्रश्न 7.
निम्नलिखित में ‘कतरा’ का पर्याय है:
(क) बूंद
(ख) मूंद
(ग) गूंद
(घ) इंद
उत्तर:
(क) बूंद

पद्यांशों के सरलार्थ

1. साथी हाथ बढ़ाना.
एक अकेला थक जाएगा, मिलकर बोझ उठाना।
साथी हाथ बढ़ाना।
हम मेहनतवालों ने जब भी, मिलकर कदम बढ़ाया
सागर ने रस्ता छोड़ा, परबत ने सीस झुकाया
फौलादी हैं सीने अपने, फौलादी हैं बाँहें
हम चाहें तो चट्टानों से पैदा कर दें राहें
साथी हाथ बढ़ाना।

कठिन शब्दों के अर्थ:
बोझ = भार। परबत = पहाड़। सीस झुकाया = सम्मान करना। फौलादी = लोहे से।

प्रसंग:
यह पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक से गीतकार साहिर लुधियानवी द्वारा लिखे गीत ‘साथी हाथ बढ़ाना’ से ली गई हैं। इसमें कवि ने देश की प्रगति और विकास के लिए मिल कर काम करने की प्रेरणा दी है।

सरलार्थ:
कवि कहता है कि साथी, साथ देने के लिए हाथ बढ़ाना। एक अकेला थक जाएगा इसलिए मिल कर यह भार उठाना। कवि आगे प्रेरित करते हुए कहता है कि हम मेहनत करने वालों ने जब भी मिलकर अपने कदम आगे बढ़ाएं हैं तो सागर ने भी हमारे लिए रास्ता छोड़ा है और पर्वत ने भी सिर झुकाया है। हमारे सीने भी फौलाद, लोहे के समान मज़बूत हैं और हमारी बाहें भी फौलाद के समान मज़बूत हैं। हम यदि कोशिश करें तो चट्टानों में भी रास्ता बना सकते हैं।

भावार्थ:
परिश्रम करने वालों की राह में कोई बाधा नहीं आ सकती।

2. मेहनत अपने लेख की रेखा, मेहनत से क्या डरना
कल गैरों की खातिर की, आज अपनी खातिर करना
अपना दुःख भी एक है साथी, अपना सुख भी एक
अपनी मंजिल सच की मंज़िल, अपना रास्ता नेक
साथी हाथ बढ़ाना।

कठिन शब्दों के अर्थ:
लेख = भाग्य। गैर = बेगानों। खातिर = के लिए। मंजिल = लक्ष्य। नेक = अच्छा, भला।

प्रसंग-यह पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक से गीतकार साहिर लुधियानवी जी के प्रसिद्ध गीत ‘साथी हाथ बढ़ाना’ से ली गई हैं। इसमें कवि ने देश के विकास और प्रगति के लिए सभी को मिलकर काम करने की प्रेरणा दी है।

सरलार्थ:
कवि सभी को एक साथ मिल कर काम करने की बात करते हुए कहता है कि मेहनत ही अपने भाग्य की रेखा है। मेहनत करना ही हमारा भाग्य है तो मेहनत करने से क्या डरना। कल तक हमने बेगानों (अंग्रेज़ों) के लिए मेहनत की आज अपने लिए, अपने देश के लिए मेहनत करें। हमारा सुख-दुःख सब एक है हमारी मंज़िल (लक्ष्य) भी सच की मंजिल है और हमारा रास्ता सच्चाई का रास्ता है। साथी आओ अपना हाथ बढ़ाना।

भावार्थ:
परिश्रम करना ही जीवन में आगे बढ़ने का एक मात्र मार्ग है।

3. एक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरिया
एक से एक मिले तो ज़र्रा बन जाता है सेहरा
एक से एक मिले तो राई बन सकती है परबत
एक से एक मिले तो इंसां, बस में कर ले किस्मत
साथी हाथ बढ़ाना।

कठिन शब्दों के अर्थ:
कतरा = बूंद। दरिया = नदी। ज़र्रा = कण। इंसां = इन्सान। किस्मत = भाग्य।

प्रसंग:
यह पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक से गीतकर साहिर लुधियानवी जी के प्रसिद्ध गीत ‘साथी हाथ बढ़ाना’ से ली गई हैं। इसमें कवि ने देश की प्रगति और विकास के लिए युवाओं को मिलकर काम करने का आह्वान किया है।

सरलार्थ:
वह कहते हैं कि जिस प्रकार एक-एक बूंद मिल कर दरिया बन जाता है, जिस प्रकार रेत के एक-एक कण मिल कर बड़ा रेगिस्तान बन जाते हैं, जिस प्रकार एकएक राई अगर मिल जाए तो वह पर्वत बन सकती है इसी प्रकार अगर एक-एक व्यक्ति मिलकर काम करें तो वह अपनी किस्मत को भी अपने वश में कर लें अर्थात् भाग्य भी उसकी मेहनत के आगे झुक जाएगी। साथी अपना हाथ बढ़ाना।

भावार्थ:
मिलजुल कर किए जाने वाले परिश्रम से सफलता की प्राप्ति शीघ्र ही हो जाती है।

साथी हाथ बढ़ाना Summary

साथी हाथ बढ़ाना कविता का सार

कवि कहता है कि साथियो, सहायता के लिए अपने हाथ बढ़ाओ। अकेला व्यक्ति काम करते-करते थक जाता है पर मिल कर करने से काम जल्दी हो जाता है। जब भी परिश्रम करने वालों ने मिल कर काम किया तब ही असंभव काम भी संभव हो गए। परिश्रम ही हमारे भाग्य की रेखा है इसलिए उससे कभी नहीं डरना चाहिए। जीवन की राह में परिश्रम करते हुए सुख-दुख दोनों मिलते हैं इसलिए दुःखों से कभी नहीं डरना चाहिए। परिश्रम का रास्ता ही सबसे अच्छा रास्ता है। एक-एक बूंद मिलने से नदियाँ बनती हैं और रेत के कणकण से रेगिस्तान बन जाता है। राई जैसे छोटे-छोटे कण पर्वत का निर्माण कर सकते हैं। हम इन्सान मिलकर काम करें तो हम भाग्य को भी अपने वश में कर सकते हैं।