PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Patra Lekhan पत्र-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 1.
अपने मुख्याध्यापक को बीमारी के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
खालसा हाई स्कूल,
जालन्धर।

श्रीमान् जी,
सविनय निवेदन यह है कि मुझे कल रात सख्त बुखार हो गया है। डॉक्टर ने दवा देने के साथ-साथ आराम करने को कहा है। इसलिए मैं आज स्कूल नहीं आ सकता। कृपा करके मुझे दो दिन 14-4-20….. से 15-4-20…… की छुट्टी देकर कृतार्थ करें। मैं आपका बहुत धन्यवादी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
विजय सिंह।
कक्षा सातवीं ‘ए’।

तिथि : 14 अप्रैल, 20……

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 2.
आवश्यक काम के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
गवर्नमैंट हाई स्कूल,
नकोदर।

श्रीमान् जी,
विनम्र निवेदन यह है कि आज मुझे घर पर एक अति आवश्यक कार्य पड़ गया है। इसलिए मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपा करके मुझे एक दिन का अवकाश देकर कृतार्थ करें। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद होगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
बलदेव सिंह।
तिथि : 5 मई, 20……
कक्षा सातवीं ‘बी’।

प्रश्न 3.
बड़े भाई/बड़ी बहन के विवाह के कारण अवकाश के लिए प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापिका महोदया,
गुरु तेग बहादुर हाई स्कूल,
फिरोज़पुर।

श्रीमती जी,
सविनय प्रार्थना यह है कि मेरे बड़े भाई/बड़ी बहन का विवाह 12 अक्तूबर को होना निश्चित हुआ है। मेरा इसमें सम्मिलित होना आवश्यक है। इसलिए इन दिनों मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकती। कृपया आप मुझे 11 अक्तूबर से 13 अक्तूबर तक का अवकाश प्रदान करें।

आपकी अति कृपा होगी।

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या,
निर्मल कौर।
रोल नं05
कक्षा सातवीं ‘ए’।

तिथि : 11 अक्तूबर, 20……

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प्रश्न 4.
फीस माफी के लिए मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
गवर्नमैंट हाई स्कूल,
नवांशहर।

श्रीमान् जी,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में सातवीं श्रेणी में पढ़ता हूँ। मैं एक निर्धन विद्यार्थी हूँ। मेरे पिता जी एक छोटे से दुकानदार हैं। उनकी मासिक आमदनी केवल चार हज़ार रुपये है। इस आय से परिवार का गुजारा बहुत मुश्किल से होता है। अत: मेरे पिता जी मेरी फीस नहीं दे सकते। मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, परन्तु आपके सहयोग की आवश्यकता है। कृपा करके मेरी पूरी फीस माफ करने का कष्ट करें। इस हेतु मैं आपका जीवन भर आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
महेन्द्र सिंह।
कक्षा सातवीं ‘ए’
रोल नं0 15

तिथि : 10 मई, 20……

प्रश्न 5.
जुर्माना माफ करवाने के लिए मुख्याध्यापिका को प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापिका महोदया,
खालसा हाई स्कूल,
अमृतसर।

श्रीमती जी,
सविनय प्रार्थना है कि इस शनिवार को मेरी अंग्रेजी विषय की अध्यापिका जी ने हमारा टैस्ट लेना था। उस दिन मेरे माता जी बीमार थे। घर में मेरे अलावा कोई नहीं था। अत: उस दिन मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकी। मेरी अध्यापिका ने मुझे बीस रुपए विशेष जुर्माना किया। मेरे पिता जी बहुत गरीब हैं। मैं यह जुर्माना नहीं दे सकती। वैसे मैं अंग्रेज़ी विषय में बहुत अच्छी हूँ। इस बार त्रैमासिक परीक्षा में मेरे 100 में से 80 अंक आए थे।

आपसे सविनय प्रार्थना है कि आप कृपया मेरा जुर्माना माफ कर दीजिए। मैं आपकी अत्यन्त आभारी रहूँगी।

आपकी आज्ञाकारिणी शिष्या,
सिमरन,
कक्षा सातवीं ‘ए’।

तिथि : 12 अगस्त, 20……

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 6.
स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र लेने के लिए मुख्याध्यापक को प्रार्थना-पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
गुरु नानक मिंटगुमरी हाई स्कूल,
कपूरथला।

श्रीमान् जी,
सविनय प्रार्थना यह है कि मेरे पिता जी की बदली फिरोज़पुर की हो गई है। इसलिए हम सबको यहाँ से जाना पड़ रहा है। मेरा यहाँ अकेला रहना मुश्किल है। अत: मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र देने की कृपा करें ताकि फिरोज़पुर जाकर मैं अपनी पढ़ाई जारी रख सकूँ। मैं आपका बहुत आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
सुखबीर सिंह,
कक्षा सातवीं ‘बी’
रोल नं0 18

तिथि : 15 सितम्बर, 20……..

प्रश्न 7.
पुस्तकें मँगवाने के लिए पुस्तक विक्रेता को पत्र लिखो।
उत्तर :
सेवा में
प्रबन्धक महोदय,
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड,
जालन्धर।

श्रीमान् जी,
कृपया निम्नलिखित पुस्तकें वी०पी०पी० द्वारा शीघ्र भेज दें। पुस्तकें भेजते समय इस बात का ध्यान रखें कि कोई पुस्तक मैली और फटी न हो। आपके नियमानुसार दो सौ रुपए मनीआर्डर द्वारा भेज रहा हूँ।

ये सब पुस्तकें सातवीं श्रेणी के लिए और नए संस्करण (एडीशन) की होनी चाहिएँ।
1. MBD हिन्दी गाइड 10 प्रतियाँ
2. MBD इंग्लिश गाइड 12 प्रतियाँ
3. MBD पंजाबी गाइड 8 प्रतियाँ

भवदीय,
मोहन सिंह (मुख्याध्यापक),
माता गुजरी स्कूल,
तिथि : 15 मई, 20…..
अबोहर।

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 8.
रुपए मँगवाने के लिए पिता जी को पत्र लिखो।
उत्तर :
गवर्नमैंट हाई स्कूल,
गढ़दीवाला।
15 मई, 20….
पूज्य पिता जी,

सादर प्रणाम।
आपको यह जानकर बड़ी खुशी होगी कि मैं छठी कक्षा में से अच्छे अंक लेकर उत्तीर्ण अब मैंने सातवीं श्रेणी में दाखिला लेना है। इस श्रेणी की मैंने पुस्तकें एवं कापियाँ भी खरीदनी हैं। इसलिए कृपा करके मुझे पाँच सौ रुपए मनीआर्डर द्वारा शीघ्र भेज दें ताकि मैं ठीक समय पर सातवीं श्रेणी में दाखिला ले सकूँ। माता जी को प्रणाम। बिट्ट और मधु को प्यार।

आपका आज्ञाकारी बेटा,
राजीव कुमार

प्रश्न 9.
अपने जन्म-दिन पर चाचा जी को निमन्त्रण पत्र लिखो।
उत्तर :
205, मॉडल टाऊन,
जालन्धर शहर।
20 अप्रैल, 20……
पूज्य चाचा जी,

सादर प्रणाम।
आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि 23 अप्रैल को मेरा जन्म-दिन है। इसलिए मैं अपने मित्रों को शाम को चाय पार्टी दे रहा हूँ। आप भी चाची जी एवं रिंकू और नीतू को लेकर इस छोटी-सी चाय पार्टी पर आएँ।

चाची जी को प्रणाम। रिंकू और नीतू को प्यार।

आपका भतीजा,
विजय सिंह

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प्रश्न 10.
मित्र के प्रथम आने पर बधाई पत्र लिखो।
उत्तर :
208, प्रेमनगर,
लुधियाना।
11 अप्रैल, 20…..

प्रिय मित्र प्रताप,
कल ही तुम्हारा पत्र मिला। यह पढ़कर बहुत खुशी हुई कि तुम पाँचवीं कक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गए हो। मेरी ओर से अपनी इस शानदार सफलता पर हार्दिक बधाई स्वीकार करो। मैं कामना करता हूँ कि तुम अगली परीक्षा में भी इसी प्रकार सफलता प्राप्त करोगे। मैं एक बार फिर तुम्हें बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना।

तुम्हारा मित्र,
मनोहर सिंह

प्रश्न 11.
चाचा जी को जन्म-दिन पर भेजे गए उपहार का धन्यवाद देते हुए पत्र लिखो।
उत्तर :
16, जवाहर नगर,
जालन्धर शहर।
24 अगस्त, 20…..
पूज्य चाचा जी,

सादर प्रणाम।
आपका भेजा हुआ उपहार मुझे परसों मिल गया था। जब मैंने उसे खोला तो उसमें अपने लिए एक पैन देखकर बहुत खुश हुआ। यह बहुत बढ़िया पैन है। यह बहुत सुन्दर लिखता है। मैं इसे हर रोज़ अपने स्कूल लेकर जाता हूँ। मेरे मित्रों को यह बहुत पसन्द है। मैं इस सुन्दर उपहार के लिए आपका बहुत आभारी हूँ। चाची जी को प्रणाम। रमा और बिट्ट को प्यार।

आपका भतीजा,
बलवन्त सिंह

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

प्रश्न 12.
अपने मित्र को बड़े भाई के विवाह पर निमन्त्रण-पत्र लिखो।
उत्तर :
105, आदर्श नगर,
लुधियाना।
12 सितम्बर, 20…..

प्रिय मित्र दिनेश,
तुम्हें यह जानकर बड़ी खुशी होगी कि मेरे बड़े भाई का विवाह 15 सितम्बर को होना निश्चित हुआ है। बारात गुरदासपुर जा रही है। इसी खुशी के मौके पर मैं तुम्हें भी विवाह पर आने का निमन्त्रण देता हूँ। कृपया इस शुभ अवसर पर आकर मंडप की शोभा बढ़ाएँ। तुम्हें बारात के साथ भी चलना पड़ेगा। सचमुच अगर तुम साथ होगे तो बड़ा मज़ा आएगा। भैया और माता-पिता जी को साथ लाना न भूलना।

तुम्हारा मित्र,
उदय सिंह

प्रश्न 13.
अपने मित्र को पत्र लिखकर बतायें कि आपका नया स्कूल किन-किन बातों में अच्छा है।
उत्तर :
81, विजय नगर,
पटियाला।
17 मई, 20…..
प्रिय मित्र सुरेश,

सादर प्रणाम!
तुम्हारी इच्छा के अनुसार मैं इस पत्र में अपने स्कूल के बारे में कुछ पंक्तियां लिख रहा हूं। मेरे स्कूल का नाम राजकीय हाई स्कूल है। यह अपने नगर के सभी स्कूलों में सबसे अच्छा स्कूल है। यहां खेलों का बहुत ही अच्छा प्रबंध है। प्रत्येक छात्र किसी-न-किसी खेल में अवश्य भाग लेता है। इसका भवन बहुत बड़ा है। इसमें लगभग 1500 छात्र पढ़ते हैं तथा 50 अध्यापक पढ़ाते हैं। इसके चारों और सुंदर बाग हैं, जिसमें कई प्रकार के फूल खिले रहते हैं। हमारे अध्यापक बहुत ही सदाचारी तथा मेहनती हैं। मुख्याध्यापक तो बहुत ही योग्य, शांत तथा अनुशासन-प्रिय व्यक्ति हैं। मुझे अपने स्कूल पर गर्व है।

तुम्हारा मित्र,
गुरदेव।

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प्रश्न 14.
मान लो आपका नाम गणेश है। आप 15, पटेल नगर, दिल्ली में रहते हैं। अपने मित्र, जिसका नाम हरीश है, को गर्मी की छुट्टियाँ किसी पर्वत पर बिताने के लिए निमन्त्रण-पत्र लिखें।
अथवा
अपने मित्र को एक पत्र लिखें, जिसमें उसे गर्मी की छुट्टियाँ शिमला में बिताने के लिए कहा गया हो।
उत्तर :
15, पटेल नगर,
दिल्ली।
20 मार्च, 20…..
प्रिय मित्र हरीश,

सप्रेम नमस्ते।
तुम्हारा पत्र मिला। तुमने ग्रीष्मावकाश में मेरा कार्यक्रम जानने की इच्छा प्रकट की। तुम्हें याद होगा कि मैंने गत गर्मियों की छुट्टियाँ तुम्हारे साथ जयपुर में बिताई थीं। इस समय तुमने वायदा किया था कि अगली गर्मी की छुट्टियाँ किसी पर्वतीय स्थान पर बिताएंगे। इस बार मेरा विचार शिमला जाने का है। अपने वचन के अनुसार तुम्हें भी मेरे साथ चलना है। मेरे मामा जी वहाँ अध्यापक हैं। अत: वहाँ मनोरंजन के साथ-साथ पढ़ाई भी हो सकेगी।

इस प्रकार शिमला में गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने में एक पंथ और दो काज होंगे। तुम तो जानते ही होगे कि शिमला को पहाड़ों की रानी कहा जाता है। गर्मियों में वहाँ का मौसम बहुत ही सुहावना होता है। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य तो अद्भुत हैं। चीड़ और देवदार के ऊँचे-घने पेड़ उसकी शोभा को चार चाँद लगाते हैं। वहाँ जब शाम के समय हम रिज और माल रोड पर घूमेंगे तो मज़ा आ जाएगा।

आशा है कि तुम मेरा शिमला चलने का सुझाव अवश्य स्वीकार करोगे। तुम्हारी स्वीकृति आने पर मैं मामा जी को पत्र लिखूगा। पूज्य माता-पिता जी को मेरी चरण वन्दना कहना। पत्रोत्तर की प्रतीक्षा में –

तुम्हारा अभिन्न मित्र,
गणेश।

प्रश्न 15.
खिड़की का शीशा टूट जाने पर क्षमा माँगते हुए प्रार्थना पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक महोदय,
राजकीय हाई स्कूल,
जालन्धर।

श्रीमान् जी,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में सातवीं श्रेणी में पढ़ता हूँ। मैं एक निर्धन विद्यार्थी हूँ। आधी छुट्टी के समय मैं अपने सहपाठियों के साथ खेल रहा था। अचानक मेरे हाथ से गेंद छूटकर खिड़की के शीशे पर लगी और शीशा टूट गया। मेरे कारण विद्यालय की संपत्ति को नुकसान पहुँचा है। इस नुकसान के लिए मुझं पर ₹ 500 का जुर्माना किया गया है। मुझे अपनी गलती पर दुख एवं शर्मिंदगी है। मेरे पिता जी की मासिक आमदनी बहुत कम है। वह यह जुर्माना नहीं भर पाएँगे। अत: आपसे मेरी करबद्ध प्रार्थना है कि मेरी इस भूल तथा मुझ पर लगाए जुर्माने को क्षमा करने का कष्ट करें। इस हेतु मैं आपका जीवन भर आभारी रहूँगा।

PSEB 7th Class Hindi रचना पत्र-लेखन (2nd Language)

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
प्रेम कुमार,
कक्षा सातवीं बी,
तिथि : 10 दिसंबर, 20.
रोल नं0 25

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

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PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

निबंध सूची :

  1. श्री गुरु नानक देव जी
  2. श्री गुरु तेग़ बहादुर का बलिदान
  3. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी
  4. गुरु रविदास
  5. महाराजा रणजीत सिंह
  6. लाला लाजपत राय
  7. महात्मा गांधी
  8. पं० जवाहर लाल नेहरू
  9. अमर शहीद सरदार भगत सिंह
  10. हमारा देश
  11. मेरा पंजाब
  12. मेरा गाँव
  13. मेरी पाठशाला (स्कूल)
  14. मेरा प्रिय अध्यापक
  15. मेरा मित्र
  16. लोहड़ी
  17. दशहरा
  18. दीवाली
  19. वैशाखी
  20. होली
  21. बसंत ऋतु
  22. प्रातः काल की सैर
  23. स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त)
  24. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)
  25. समाचार पत्र 26. विद्यार्थी जीवन
  26. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या
  27. टेलीविज़न के लाभ-हानियां
  28. मेरी पर्वतीय यात्रा
  29. आँखों देखी प्रदर्शनी
  30. जनसंख्या की समस्या
  31. देशभक्त/स्वदेश प्रेम
  32. आँखों देखा मैच

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

1. श्री गुरु नानक देव जी

श्री गुरु नानक देव जी सिक्खों के पहले गुरु थे। इनका जन्म सन् 1469 में तलवण्डी नामक गाँव में हुआ। इनके पिता जी का नाम मेहता कालू राय जी और माता का नाम तृप्ता देवी जी था।

वह बचपन से ही प्रभु भक्ति में लीन रहते थे। इसलिए इनका मन पढ़ने में नहीं लगता था। एक बार पिता जी ने इनको कुछ रुपए दिए और सौदा ले आने को कहा। मार्ग में इन्होंने भूखे साधुओं को देखा, इन्होंने उनको भोजन करा दिया और खाली हाथ लौट आए। पिता जी इन पर बहुत गुस्से हुए। फिर उन्होंने गुरु नानक जी को सुल्तानपुर लोधी के मोदी खाने में नौकरी दिलवा दी। यहाँ भी वे अपना वेतन गरीबों और साधुओं में बाँट देते थे।

14 वर्ष की आयु में इनका विवाह सुलक्षणी देवी से हो गया। इनके दो पुत्र हुए श्री चन्द और लखमी दास। लेकिन घर में मन न लगने पर वह घर छोड़कर स्थान-स्थान पर घूमे। इन्होंने अपना सारा जीवन लोगों की भलाई में लगा दिया। लोगों को उपदेश देने के लिए इन्होंने कई यात्राएँ कीं। वह मक्का मदीना भी गए। इन्होंने ईश्वर को निराकार बताया और कहा कि ईश्वर एक है। हम सब भाई-भाई हैं। सदा सच बोलना चाहिए। इनकी वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब में है। अन्त में वह करतारपुर में आ गए और वहीं ईश्वर का भजन करते स्वर्ग सिधार गए।

2. श्री गुरु तेग़ बहादुर का बलिदान

सिक्खों के नवम् गुरु श्री गुरु तेग़ बहादुर का आत्म-बलिदान इतिहास की एक अद्भुत घटना है। गुरु जी का जन्म 1 अप्रैल, सन् 1621 ई० को अमृतसर में हुआ। आपके पिता श्री गुरु हरगोबिन्द जी थे। आप शुरू से ही प्रभु के भक्त थे। आप में भलाई की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी।

एक बार कश्मीर का शासक ब्राह्मणों पर घोर अत्याचार कर रहा था। वह ब्राह्मणों को ज़बरदस्ती मुसलमान बनाना चाहता था। तब दुःखी ब्राह्मण गुरु जी के पास आए और उन्हें अपने दुःख का कारण बताया। कारण सुनकर गुरु तेग़ बहादुर जी भी चिन्ता में डूब गए। तभी पुत्र गोबिन्द राय ने चिन्ता का कारण पूछा। तब गुरु तेग बहादुर ने कहा कि किसी बड़े भारी बलिदान की आवश्यकता है। तब गोबिन्द राय ने कहा कि आप से बढ़कर कौन महान् है। अपने पुत्र के इस कथन से गुरु जी बहुत प्रसन्न हुए।

गुरु जी दिल्ली में औरंगजेब के दरबार में पहुंचे। उन्होंने औरंगजेब को काफ़ी समझाया। लेकिन इनके महान् उपदेश का उस पर कोई प्रभाव न पड़ा। उसने गुरु जी को मौत के घाट उतारने का हुक्म दे दिया। जैसे ही जल्लाद ने तलवार से गुरु जी पर प्रहार किया, आँधी चलने लगी। भाई जैता जी गुरु जी का शीश उठाकर आनन्दपुर गुरु गोबिन्द सिंह जी के पास ले गया। यहाँ शीश का अन्तिम संस्कार किया गया। भाई लखी शाह गुरु जी के शव को उठाकर अपने घर ले गया और घर को आग लगाकर उनका अन्तिम संस्कार कर दिया। दिल्ली में गुरुद्वारा शीश गंज उनके बलिदान की याद दिलाता है।

इस प्रकार गुरु जी ने अपने बलिदान से लोगों को यह प्रेरणा दी कि मौत से नहीं डरना चाहिए। सत्य की रक्षा के लिए उन्होंने अपनी जान की बाज़ी लगा दी। इनका बलिदान सदैव अमर रहेगा।

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

3. श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी

श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के दसवें गुरु थे। आपका जन्म सन् 1666 ई० में पटना में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री गुरु तेग बहादुर और माता का नाम माता गुजरी देवी जी था। आपको बचपन से ही तीर चलाने और घुड़सवारी का शौक था। आपने फ़ारसी और संस्कृत की शिक्षा प्राप्त की। आप बहुत निडर और शक्तिशाली योद्धा थे।

9 वर्ष की आयु में पिता के बलिदान के बाद आप गुरुगद्दी पर बैठे। समाज में फैले अत्याचारों को रोकने के लिए आपने सन् 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना की तथा पाँच प्यारों को अमृत छकाया। धर्म की रक्षा के लिए आपके चारों पुत्रों ने अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। आप सारे सिक्खों को अपने पुत्रों के समान समझते थे तथा उनसे प्रेम का व्यवहार करते थे।

अपने अन्तिम समय में आप नंदेड़ चले गए। वहाँ पर गुलखां नामक पठान ने अपनी पुरानी शत्रुता के कारण आपको छुरा घोंप दिया। घाव गहरा था। यहीं पर आपने बन्दा बैरागी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में, बुराई के विरुद्ध लड़ने का संदेश देकर भेजा। सन् 1708 ई० में गुरु जी ज्योति जोत समा गए। आपने देश व धर्म के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। इतिहास में आपका नाम हमेशा अमर रहेगा।

4. गुरु रविदास जी

आचार्य पृथ्वीसिंह आजाद के अनुसार भक्तिकाल के महान् संत कवि रविदास (रैदास) जी का जन्म विक्रमी संवत् 1433 ई० में माघ की पूर्णिमा को रविवार के दिन बनारस के निकट मंडुआडीह नामक गाँव में हुआ।

गुरु जी बचपन से ही संत स्वभाव के थे। उनका अधिकांश समय साधु संगति और ईश्वर भक्ति में व्यतीत होता था। गुरु जी जातिपांति या ऊँच-नीच में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने अहंकार के त्याग, दूसरों के प्रति दया भाव रखना तथा नम्रता का व्यवहार करने का उपदेश दिया। उन्होंने लोभ, मोह को त्याग कर सच्चे हृदय से ईश्वर भक्ति करने की सलाह दी।

गुरु जी की वाणी में ऐसी शक्ति थी कि लोग उनके उपदेश सुनकर सहज ही उनके अनुयायी बन जाते थे। उनके अनुयायियों में महारानी झालाबाई और कृष्ण भक्त कवयित्री मीरा बाई का नाम उल्लेखनीय है। गुरु जी की वाणी के 40 पद आदिग्रन्थ श्री गुरु ग्रन्थ साहब में संकलित हैं जो समाज कल्याण के लिए आज भी अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। रहती दुनिया तक गुरु जी की अमृतवाणी लोगों का मार्ग दर्शन करती रहेगी।

5. महाराजा रणजीत सिंह

महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के एक महान् और वीर सपूत थे। इतिहास में वे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से मशहूर है। उनका जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजराँवाला में हुआ। आपके पिता सरदार महासिंह सुकरचकिया मिसल के मुखिया थे। आपकी माता राज कौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था। सरदार महासिंह ने जम्मू को जीतने की खुशी में बुध सिंह की जगह अपने बेटे का नाम रणजीत सिंह रख दिया।

PSEB 7th Class Hindi रचना निबंध-लेखन (2nd Language)

महाराजा रणजीत सिंह को वीरता विरासत में मिली थी। उन्होंने दस साल की उम्र में गुजरात के भंगी मिसल के सरदार साहिब सिंह को लड़ाई में करारी हार दी थी। महासिंह के बीमार होने के कारण सेना की बागडोर रणजीत सिंह ने सम्भाली थी।

महाराजा रणजीत सिंह के पिता की मौत इनकी छोटी उम्र में ही हो गई थी। इसी कारण ग्यारह साल की उम्र में उन्हें राजगद्दी सम्भालनी पड़ी। पन्द्रह साल की उम्र में महाराजा रणजीत सिंह का विवाह कन्हैया मिसल के सरदार गुरबख्श सिंह की बेटी महताब कौर से हुआ। इन्होंने दूसरा विवाह नकई मिसल के सरदार की बहन से किया।

महाराजा रणजीत सिंह ने बड़ी चतुराई से सभी मिसलों को इकट्ठा किया और हुकूमत अपने हाथ में ले ली। 19 साल की उम्र में आपने लाहौर पर अधिकार कर लिया और उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुलतान, पेशावर आदि सब इलाके अपने अधीन करके एक विशाल राज्य की स्थापना की। आपने सतलुज की सीमा तक सिक्ख राज्य की जडें पक्की कर दी।

महाराजा अनेक गुणों के मालिक थे। वे जितने बड़े बहादुर थे, उतने ही बड़े दानी और दयालु भी थे। छोटे बच्चों से उन्हें बहुत प्यार था। चेचक के कारण उनकी एक आँख खराब हो गई थी। इस पर भी उनके चेहरे पर तेज था। वे प्रजा-पालक थे। उनकी अच्छाइयाँ आज भी हमारे दिलों में उत्साह भर रही हैं। उनमें एक आदर्श प्रशासक के गुण थे, जो आज के प्रशासकों को रोशनी दिखा सकते हैं।

6. लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय भारत के वीर शहीदों में सबसे आगे हैं। लाला जी का जन्म जगराओं के समीप दुढिके ग्राम में 28 जनवरी, सन् 1865 में हुआ। इनके पिता लाला राधाकृष्ण एक अध्यापक थे। मैट्रिक परीक्षा में वज़ीफा प्राप्त कर वे गवर्नमैंट कॉलेज में प्रविष्ट हुए। एम० ए० पास करके फिर इन्होंने वकालत पास की। फिर हिसार में वकालत शुरू की।

इनमें देश-भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। देश की स्वतन्त्रता के लिए इन्होंने आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। वे इंग्लैण्ड भी गए। वहाँ से वापस आकर इन्होंने बंग-भंग आन्दोलन में भाग लिया जिस कारण इनको जेल में बन्दी बना लिया गया। फिर यूरोप और अमेरिका की यात्रा की।

सन् 1928 ई० में साइमन कमीशन भारत आया तब इन्होंने उसका काली झण्डियों से स्वागत किया। पुलिस ने इन पर लाठियाँ बरसाईं। लाला जी की छाती पर कई चोटें आईं। इन घावों के कारण वे 17 नवम्बर, सन् 1928 को संसार से सदा के लिए विदा हो गए। इन्होंने देश की आज़ादी के लिए अपने जीवन का बलिदान कर दिया। भारत इनके महान् बलिदान को हमेशा याद रखेगा।

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7. महात्मा गांधी

महात्मा गांधी भारत के महान नेताओं में से एक थे। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को पोरबन्दर (गुजरात) में हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गांधी और माता का नाम पुतली बाई था जो एक धार्मिक स्वभाव की स्त्री थी। इन्होंने मैट्रिक परीक्षा पोरबन्दर में ही पास की। 13 वर्ष की आयु में आपका विवाह हो गया। उच्च शिक्षा के लिए आप विदेश गए। फिर आप बैरिस्टर बनकर भारत में आए तथा बम्बई (मुम्बई) में वकालत शुरू की। किसी मुकद्दमे के सिलसिले में ये दक्षिणी अफ्रीका गए। वहाँ भारतीयों के साथ अंग्रेज़ों का दुर्व्यवहार देखकर ये बहुत दुःखी हुए।

सन् 1915 में भारत वापस आकर सत्याग्रह आन्दोलन चलाया। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन चलाया। सन् 1928 में साइमन कमीशन का बायकॉट किया। देश के आन्दोलनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेने के कारण कई बार जेल गए। सन् 1947 में अपने अहिंसा के शस्त्र से इन्होंने देश को आजाद करवाया। सारा देश इन्हें बापू गांधी कहता है। वे सारे राष्ट्र के पिता थे। 30 जनवरी, सन् 1948 को वे नाथू राम गोडसे की गोली का शिकार हो गए जिससे इनकी मृत्यु हो गई। गांधी जी मर कर भी अमर हैं। हमें गांधी जी के जीवन से शिक्षा लेनी चाहिए।

8. पं० जवाहर लाल नेहरू

पं० जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमन्त्री थे। इनका जन्म 14 नवम्बर, सन् 1889 को इलाहाबाद में हुआ था। इनके पिता का नाम मोती लाल नेहरू तथा माता का नाम स्वरूप रानी था। इनका बचपन बड़े लाड़-प्यार से बीता। 15 वर्ष की आयु में ये इंग्लैण्ड गए। पहले ये हैरो स्कूल में पढ़े फिर कैम्ब्रिज में। वहाँ से बैरिस्टरी पास करके ये भारत लौटे।

वापस आने पर इनका विवाह कमला नेहरू से हुआ। दोनों पति-पत्नी ने बढ़-चढ़ कर देश के कार्यों में भाग लेना शुरू कर दिया। इनमें शुरू से ही देश-प्यार कूट कूट कर भरा हुआ था। देश को स्वतन्त्र कराने के लिए इन्हें कई बार कारावास का दण्ड मिला। सन् 1942 में कांग्रेस ने ‘भारत छोड़ो’ का नारा लगाया। अन्य नेताओं के साथ नेहरू जी भी कारावास में बन्द कर दिए गए। सन् 1947 में जब भारत आज़ाद हुआ तो ये प्रधानमन्त्री बने।

ये सादगी को पसन्द करते थे। ये शान्ति के अवतार और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ थे। बच्चे प्यार से इन्हें ‘चाचा नेहरू’ कहते थे। 27 मई, सन् 1964 को पं० जवाहर लाल नेहरू स्वर्ग सिधार गए। उन्होंने देश के लिए जितने कष्ट सहन किए, उनकी कोई तुलना नहीं हो सकती। वे भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे।

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9. अमर शहीद सरदार भगत सिंह

सरदार भगत सिंह पंजाब के महान सपूत थे। उन्होंने देश को आजाद करवाने के लिए क्रान्तिकारी रास्ता अपनाया। देश की खातिर हँसते-हँसते फाँसी के तख्ने पर झूल गए। उनकी कुर्बानी रंग लाई और आजादी के लिए तड़प पैदा की। उनका जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को जन्म हुआ था। इनके पिता सरदार किशन सिंह और चाचा सरदार अजीत सिंह कट्टर देशभक्त थे। उन्होंने शिक्षा गाँव में तथा लाहौर के डी० ए० वी० स्कूल में प्राप्त की।

उनमें देशभक्ति और क्रान्ति के संस्कार बचपन से थे। सन् 1919 में सारे भारत में रौलेट-एक्ट का विरोध हुआ था। भगत सिंह सातवीं में पढ़ते थे, जब जलियाँवाला बाग का हत्याकाण्ड हुआ था। सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन शुरू हुआ। भगत सिंह पढ़ाई छोड़कर कांग्रेस के स्वयं सेवकों में भर्ती हो गए। इन्होंने अपना जीवन देश को अर्पण करने की प्रतिज्ञा ली। सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना हुई।

भगत सिंह उसके जनरल सैक्रेटरी बने। इस सभा का उद्देश्य क्रान्तिकारी आन्दोलन को बढ़ावा देना था। अक्तूबर, सन् 1927 में लाहौर में दशहरे के अवसर पर किसी ने बम फेंका। पुलिस ने सरदार भगत सिंह को गिरफ्तार कर लिया। वे दो सप्ताह हवालात में रहे। 30 अक्तूबर, सन् 1928 को ‘साइमन कमीशन’ लाहौर पहुँचा तो इसके विरोध का नेतृत्व “नौजवान भारत सभा” ने अपने हाथ में लिया। कांग्रेसी नेता लाला लाजपत राय साइमन कमीशन के विरुद्ध निकाले गए जुलूस में सबसे आगे थे। वे पुलिस द्वारा किए गए लाठीचार्ज से बुरी तरह घायल हो गए। कुछ दिन बाद उनकी मृत्यु हो गई।

भगत सिंह ने अपने प्यारे नेता की हत्या का बदला सांडर्स की जान लेकर किया। 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक काला कानून बनाया जा रहा था। सरदार भगत सिंह और उनके साथी बटुकेश्वर दत्त ने अपना रोष प्रकट करने के लिए केन्द्रीय विधानसभा में बम फेंका। उन्होंने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के नारे लगाते हुए अपने आपको गिरफ्तारी के लिए पेश किया। उन पर मुकद्दमा चला। 17 अक्तूबर, सन् 1930 को उन्हें फाँसी की सजा हुई।

23 मार्च, सन् 1931 को अंग्रेज़ सरकार ने सरदार भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव और राजगुरु को फाँसी के तख्ते पर चढ़ा दिया। सरदार भगत सिंह अपनी शहादत से भारतीय नौजवानों के सामने एक महान् आदर्श कायम कर गए। सदियों तक भारत की आने वाली पीढ़ियाँ भगत सिंह और उनके साथियों की कुर्बानी से प्रेरणा लेती रहेंगी।

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10. हमारा देश

हमारे देश का नाम भारत है। यह हमारी मातृभूमि है। दुष्यन्त और शकुन्तला के पुत्र भरत के नाम पर इसका भारत नाम पड़ा। यह एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से यह संसार में दूसरे स्थान पर है। इसकी जनसंख्या 125 करोड़ से ऊपर पहुँच चुकी है। यहाँ पर अलग-अलग जातियों के लोग रहते हैं।

भारत के उत्तर में हिमालय है और शेष तीनों ओर समुद्र है। इस पर अनेक पर्वत, नदियाँ, मैदान और मरुस्थल हैं। स्थान-स्थान पर हरे-भरे वन इसकी शोभा हैं। यह एक कृषि-प्रधान देश है। यहाँ की अधिकतर जनता गाँवों में रहती है। यहाँ गेहूँ, मक्का, बाजरा, ज्वार, गन्ना आदि फसलें होती हैं। यहाँ की धरती बहुत उपजाऊ है। यहाँ गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियाँ बहती हैं। इसकी भूमि से लोहा, कोयला, सोना आदि कई प्रकार के खनिज पदार्थ निकलते हैं।

यहाँ पर कई धर्मों के लोग निवास करते हैं। सभी प्रेम से रहते हैं। यहाँ पर अनेक तीर्थ स्थान हैं। ताजमहल, लाल किला, सारनाथ, शिमला, मसूरी, श्रीनगर आदि प्रसिद्ध स्थान हैं जो देखने योग्य हैं। यहाँ पर कई महापुरुषों ने जन्म लिया। श्री राम, श्री कृष्ण, गुरु नानक, स्वामी दयानन्द, रामतीर्थ, तिलक, महात्मा गाँधी आदि इस देश की शोभा हैं। यह देश दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति कर रहा है।

11. मेरा पंजाब

पौराणिक ग्रंथों में पंजाब का पुराना नाम ‘पंचनद’ मिलता है। मुस्लिम शासन के आगमन पर इसका नाम पंजाब अर्थात् पाँच पानियों (नदियों) की धरती पड़ गया। किन्तु देश के विभाजन के पश्चात् अब रावी, ब्यास और सतलुज तीन ही नदियाँ पंजाब में रह गई हैं। 15 अगस्त, 1947 को इसे पूर्वी पंजाबी की संज्ञा दी गई। 1 नवम्बर 1966 को इसमें से हिमाचल प्रदेश और हरियाणा प्रदेश अलग कर दिए गए किन्तु फिर से इस प्रदेश को पंजाब पुकारा जाने लगा।

आज के पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर तथा सन् 2001 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.42 करोड़ है।।

पंजाब के लोग बड़े मेहनती हैं। यही कारण है कि कृषि के क्षेत्र में यह प्रदेश सबसे आगे है। औद्योगिक क्षेत्र में भी यह प्रदेश किसी से पीछे नहीं है। पंजाब का प्रत्येक गाँव पक्की सड़कों से जुड़ा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी पंजाब देश में दूसरे नम्बर पर है। यहाँ छ: विश्वविद्यालय हैं।

गुरुओं, पीरों, वीरों की यह धरती. उन्नति के नए शिखरों को छू रही है।

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12. मेरा गाव

मेरे गाँव का नाम…….है। यह होशियारपुर का सबसे बड़ा गाँव है। यहाँ की जनसंख्या पन्द्रह हज़ार है। यह होशियारपुर से छ: मील की दूरी पर स्थित है। यह पक्की सड़कों द्वारा शहर के साथ जुड़ा हुआ है। यहाँ पर रेल लाइन भी बिछी है जिस कारण यहाँ के रहने वालों को आने-जाने में कोई मुश्किल नहीं होती।

इस गाँव में एक हाई स्कूल तथा एक प्राइमरी स्कूल भी है। यहाँ लड़के और लड़कियाँ शिक्षा प्राप्त करते हैं। यहाँ पर अधिकतर लोग खेती-बाड़ी करते हैं। वे नए ढंगों से खेती करते हैं। यहाँ सब लोग मिल-जुलं कर रहते हैं।

मेरे गाँव में एक सरकारी अस्पताल भी है जहाँ पर रोगियों की देखभाल की जाती है। एक पंचायत घर भी है जहाँ लोगों को सच्चा न्याय मिलता है। यहाँ पर ट्यूबवैल और कुओं आदि से खेती की जाती है। पीने के पानी का विशेष प्रबन्ध है।

अधिकतर मकान कच्चे हैं। कुछ पक्के भी हैं। गाँव की गलियाँ पक्की बनी हुई हैं। लोग आपस में मिल-जुल कर रहते हैं। गाँव की सफाई का पूर्ण ध्यान रखते हैं। मुझे अपने गाँव की मिट्टी के कण-कण से प्यार है तथा मैं इस पर गर्व करता हूँ।

13. मेरी पाठशाला (स्कूल)

मेरी पाठशाला का नाम………..है। यह एक बहुत बड़ी इमारत है। यह जी० टी० रोड पर स्थित है। इसमें 20 कमरे हैं। सभी कमरे खुले और हवादार हैं। प्रत्येक कमरे में दो खिड़कियाँ और दो-दो दरवाज़े हैं। ये बहुत साफ़-सुथरे हैं।

पानी पीने के लिए यहाँ पर चार नलके लगे हुए हैं। पुस्तकें पढ़ने के लिए एक पुस्तकालय है। यहाँ पर लगभग 12 हज़ार पुस्तकें हैं। पाठशाला के सामने ही एक वाटिका है। यहाँ पर कई प्रकार के फूल लगे हैं जो पाठशाला की शोभा को चार चाँद लगा देते हैं।

पाठशाला में अन्दर आते ही मुख्याध्यापक का दफ्तर है और दूसरी तरफ अध्यापकों का कमरा है। इनके साथ ही एक साईंस-रूम है। यहाँ बच्चों को क्रियात्मक कार्य करवाया जाता है।

मेरी पाठशाला में पच्चीस अध्यापक हैं जो बहुत योग्य हैं और परिश्रम से बच्चों को पढ़ाते हैं। वे मुख्याध्यापक का सम्मान करते हैं और बच्चों के साथ भी प्रेम का व्यवहार करते हैं। पाठशाला के पीछे एक खेल का मैदान है जहाँ पर बच्चे शाम को खेलते हैं। मेरी पाठशाला का परिणाम हर साल बहुत अच्छा निकलता है। अनुशासन और प्रेम का व्यवहार यहाँ पर सिखाया जाता है। मुझे अपनी पाठशाला पर गर्व है।

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14. मेरा प्रिय अध्यापक

मेरे स्कूल में बहुत से अध्यापक हैं लेकिन उन सबमें से मुझे श्री वेद प्रकाश जी बहुत अच्छे लगते हैं। वह हमें हिन्दी पढ़ाते हैं। उनके पढ़ाने का ढंग बहुत अच्छा है। उन्होंने बी० ए० और प्रभाकर किया हुआ है। वह ओ० टी० भी हैं। वह सभी विद्यार्थियों से स्नेह का व्यवहार करते हैं और पाठ को अच्छी तरह से समझाते हैं।

वह एक उच्च विचारों वाले और नम्र स्वभाव के व्यक्ति हैं। वह सादगी को बहुत पसन्द करते हैं और बच्चों को भी सादा रहने का उपदेश देते हैं। वह सदा सच बोलते हैं। वह हमेशा समय पर स्कूल आते हैं। वह अन्य सभी अध्यापकों का तथा मुख्याध्यापक का बहुत सम्मान करते हैं। उनकी वाणी में मिठास है। वह किसी बच्चे को पीटते नहीं हैं बल्कि उन्हें प्यार से समझाते हैं। वे किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं हैं।

वह बहुत रहम दिल हैं और वह कमज़ोर और ग़रीब बच्चों की सहायता करते हैं। वह बच्चों के सच्चे हित को चाहने वाले हैं। वह एक खिलाड़ी हैं और बच्चों को भी खेलने की प्रेरणा देते हैं। बच्चे उनकी शिक्षाओं से अच्छे बन सकते हैं। सभी विद्यार्थी उनका बहुत सम्मान करते हैं। मुझे उन पर गर्व है।

15. मेरा मित्र

रमेश मेरा बहुत अच्छा मित्र है। वह मेरे साथ ही सातवीं कक्षा में पढ़ता है। उसकी आयु बारह साल के लगभग है। उसके पिता जी एक डॉक्टर हैं। उसकी माता जी एक धार्मिक स्वभाव की स्त्री हैं। वह उसे सदाचार की शिक्षा देती हैं।

रमेश पढ़ने में बहुत होशियार है। परीक्षा में वह सदा प्रथम रहता है। वह हमारे घर के पास ही रहता है। उसके पिता जी उसे और मुझे सुबह सैर करने ले जाते हैं। वह सुबह जल्दी ही उठ जाता है। वह प्रतिदिन स्नान करता है और समय पर स्कूल जाता है। वह सभी के साथ बड़ा नम्र व्यवहार करता है। वह हमेशा सादे कपड़े पहनता है और सदा सत्य बोलता है। उसका चेहरा हँसमुख और स्वभाव सरल है। वह किसी बुरे और शरारती लड़के की संगति नहीं करता है और मुझे भी बुरी संगति करने से रोकता है। वह कमजोर विद्यार्थियों की सहायता करता है।

रमेश खेलों में भी बहुत रुचि लेता है। वह स्कूल की हॉकी टीम में खेलता है। वह शाम को खेलने जाता है। वह बड़ा स्वस्थ दिखाई देता है। वह रात को पढ़ता है। वह बड़ा मन व्याकरण तथा रचना भाग लगाकर पढ़ाई करता है। इसी कारण वह हमेशा प्रथम रहता है। उसे कई इनाम भी मिल चुके हैं। सभी अध्यापक उसे बहुत प्यार करते हैं। मुझे अपने इस मित्र पर गर्व है।

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16. लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति से एक दिन पहले मनाया जाता है। अंग्रेज़ी महीने के अनुसार यह दिन प्राय: 13 जनवरी को पड़ता है। इस दिन सामूहिक तौर पर या व्यक्तिगत रूप में घरों में आग जलाई जाती है और उसमें मूंगफली, रेवड़ी और फूल-मखाने की आहुतियाँ डाली जाती हैं। लोग एक दूसरे को तिल, गुड़ और मूंगफली बाँटते हैं।

पता नहीं कब और कैसे इस त्योहार को लड़के के जन्म के साथ जोड़ दिया गया। प्रायः उन घरों में लोहडी विशेष रूप से मनाई जाती है जिस घर में लड़का हआ हो। किन्तु पिछले वर्ष से कुछ जागरूक और सूझवान लोगों ने लड़की होने पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है।

लोहड़ी, अन्य त्योहारों की तरह ही पंजाबी संस्कृति के साँझेपन का, प्रेम और भाईचारे का त्योहार है। खेद का विषय है कि आज हमारे घरों में ‘दे माई लोहडी-तेरी जीवे जोडी’ या ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन बेचारा’ जैसे गीत कम ही सुनने को मिलते हैं। लोग लोहड़ी का त्योहार भी होटलों में मनाने लगे हैं जिससे इस त्योहार की सारी गरिमा कम होती जा रही है।

17. दशहरा

दशहरा प्रधान त्योहारों में से एक है। यह आश्विन मास की शुक्ला दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन श्री राम ने लंका के सम्राट् रावण पर विजय पाई थी। भगवान् राम के वनवास के दिनों में रावण छल से सीता को हर कर ले गया था। राम जी ने हनमान और सुग्रीव आदि मित्रों की सहायता से लंका पर हमला किया तथा रावण को मार कर लंका पर विजय पाई। तभी से यह दिन मनाया जाता है।

दशहस रामलीला का आखिरी दिन होता है। भिन्न-भिन्न स्थानों में अलग-अलग प्रकार से यह दिन मनाया जाता है। बड़े-बड़े नगरों में रामायण के पात्रों की झांकियाँ निकाली जाती हैं। दशहरे के दिन रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के कागज़ के पुतले बनाए जाते हैं। सायँकाल के समय राम और रावण के दलों में बनावटी लड़ाई होती है। राम रावण को मार देते हैं। रावण, कुम्भकर्ण तथा मेघनाद के पुतले जलाए जाते हैं। पटाखे आदि छोड़े जाते हैं। बाजारों में दुकानें खूब सजी होती हैं और बाजारों में खूब रौनक होती है। लोग मिठाइयाँ तथा खिलौने लेकर घरों को लौटते हैं।

इस दिन कुछ लोग शराब पीते हैं और जुआ आदि भी खेलते हैं। यह सब ठीक नहीं है। यदि ठीक ढंग से इस त्योहार को मनाया जाए तो बहुत लाभ हो सकता है।

18. दीवाली

दीवाली हमारे देश का एक पवित्र और प्रसिद्ध त्योहार है। यह त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। यह दशहरे के बीस दिन बाद आता है। इस दिन भगवान् राम लंका के राजा रावण को मार कर तथा वनवास के चौदह वर्ष खत्म कर अयोध्या लौटे थे। तब लोगों ने उनके स्वागत में रात को दिये जलाए थे। उनकी पवित्र याद में यह दिन बड़े सम्मान से मनाया जाता है।

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इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द जी ग्वालियर के किले से जहाँगीर की कैद से मुक्त होकर लौटे थे। लोगों ने उनके स्वागत में घर-घर दीपमाला की थी।

दीवाली से कई दिन पूर्व तैयारी आरम्भ हो जाती है। लोग घरों की लिपाई-पुताई करते हैं। कमरों को सजाते हैं। घरों का कूड़ा-कर्कट बाहर निकालते हैं। अमावस को दीपमाला की जाती है।

इस दिन लोग मित्रों को बधाई देते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं। बच्चे नए-नए कपड़े पहनते हैं। रात को लक्ष्मी पूजा के बाद बच्चे आतिशबाजी चलाते हैं। कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं।

दीवाली हमारा धार्मिक त्योहार है। इसे उचित रीति से मनाना चाहिए। विद्वान लोगों को जन-साधारण को उपदेश देकर अच्छे रास्ते पर चलाना चाहिए। कुछ लोग इस दिन जुआ खेलते और शराब पीते हैं जो कि बहुत बुरा है, लोगों को इससे बचना चाहिए। आतिशबाजी पर अधिक खर्च नहीं करना चाहिए।

19. वैशाखी

भारत में हर साल अनेक प्रकार के उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं। वैशाखी भी ऐसा ही पर्व है जिसमें लोग अपनी खुशी प्रकट करते हैं। यह त्योहार हर साल नवीन उत्साह एवं उमंग लेकर आता है तथा लोगों में एक नई चेतना भरता है। वैशाखी वैशाख मास की संक्रान्ति को होती है। 13 अप्रैल को यह मेला मनाया जाता है। सूर्य के गिर्द वर्ष भर का चक्कर काट कर पृथ्वी जब दूसरा चक्कर आरम्भ करती है तो उस दिन वैशाखी होती है। वैशाख महीने से नया साल शुरू होता है। इसी दिन वर्ष भर के कामों का लेखा-जोखा किया जाता है। इस समय नई फसल पक कर तैयार हो जाती है। किसान अपनी फसल को पाकर झूम उठते हैं। वे कहते हैं –

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फसलां दी मुक गई राखी
ओ जट्टा, आई वैशाखी

इस प्रकार इस पर्व का सम्बन्ध मौसम से माना जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह एक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। इस दिन अर्थात् 13 अप्रैल, सन् 1699 ई० को दशम गुरु श्री को गुरु गोबिन्द सिंह जी ने आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की नींव रखकर पाँच प्यारों को अमृत छकाया था। सन् 1919 में वैशाखी वाले दिन ही अमृतसर में जलियाँवाले बाग में अंग्रेज़ हाकिम डायर ने निहत्थे भारतीयों पर गोली चलाई थी और सैंकड़ों लोगों को मौत की नींद सुला दिया था।

वैशाखी के दिन पंजाब के कई स्थानों पर मेले लगते हैं। लोग नए-नए रंग-बिरंगे कपड़े पहन कर मेला देखने आते हैं। वहाँ कई प्रकार की दुकानें सजी होती हैं जहाँ से लोग अपनी मन पसंद चीजें खरीदते हैं। लोगों की बहत भीड होती है। पशुओं की मंडियाँ लगती हैं। जगह-जगह पर कुश्तियाँ होती हैं। मदारी अपने करतब दिखाते हैं। बच्चे तो बड़े खुश दिखाई देते हैं। गीत गाते हैं और झूम-झूम कर अपनी मस्ती और खुशी प्रकट करते हैं। किसानों के दल खुशी से अपने लहलहाते खेतों को देखकर भंगड़ा डालते हैं। ढोल की आवाज़ सबको अपनी ओर आकर्षित करती है।

इस दिन लोग पवित्र नदियों और सरोवरों में स्नान करते हैं। इसके बाद वे श्रद्धा अनुसार दान-पुण्य करते हैं और मित्रों में मिठाई बाँटते हैं। अमृतसर में वैशाखी का मेला देखने योग्य होता है।

20. होली

होली बसन्त का उल्लासमय पर्व है। इसे ‘बसन्त का यौवन’ कहा जाता है।

होली प्रकृति की सहचरी है। बसन्त में जब प्रकृति के अंग-अंग में यौवन फूट पड़ता है तो होली का त्योहार उसका श्रृंगार करने आता है। होली ऋतु सम्बन्धी त्योहार है। शीत की समाप्ति पर किसान आनन्द विभोर हो जाते हैं। खेती पक कर तैयार होने लगती है। इसी कारण सभी मिल कर हर्षोल्लास में खो जाते हैं।

कहते हैं कि भक्त प्रह्लाद भगवान् का नाम लेता था। उसका पिता हिरण्यकश्यप ईश्वर को नहीं मानता था। वह प्रह्लाद को ईश्वर का नाम लेने से रोकता था। प्रह्लाद इसे किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार न था। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि आग उसे जला नहीं सकती। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई। इसमें होलिका जल गई और प्रह्लाद बच गया। इसी कारण होली के दिन होलिका दहन होता है।

आज कुछ लोगों ने होली का रूप बिगाड़ कर रख दिया है। सुन्दर एवं कच्चे रंगों के स्थान पर कुछ लोग काली स्याही व तवे की कालिमा का प्रयोग करते हैं। कुछ मूढ़ व्यक्ति एक-दूसरे पर गन्दगी फेंकते हैं। प्रेम और आनन्द के त्योहार को घृणा और दुश्मनी का त्योहार बना दिया जाता है। इन बुराइयों को समाप्त करने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।

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होली के पवित्र अवसर पर हमें ईर्ष्या, द्वेष, कलह आदि बुराइयों को दूर भगाना चाहिए। समता और भाईचारे का प्रचार करना चाहिए।

21. वसंत ऋतु

वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु विक्रमीसंवत के महीने चैत्र और वैशाख महीने में आती है। इस ऋतु के आगमन की सूचना हमें कोयल की कूहू-कूहू की आवाज़ से मिल जाती है। वृक्षों पर, लताओं पर नई कोंपलें आनी शुरू हो जाती हैं। प्रकृति भी सरसों के फूले खेतों में पीली चुनरिया ओढ़ें प्रतीत होती है। इसी ऋतु में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। जो पूर्णमासी तक कौमदी महोत्सव तक मनाया जाता है इस त्योहार में लोग पीले वस्त्र पहनते हैं। घरों में पीला हलवा या पीले चावल बनाया जाता है। कुछ लोग वसंत पंचमी वाले दिन व्रत भी रखते हैं।

पुराने जमाने में पटियाला और कपूरथला की रियासतों में यह दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। पतंगबाजी के मुकाबले होते थे। कुश्तियों और शास्त्रीय संगीत का आयोजन किया जाता था। पुराना मुहावरा था कि आई वसंत तो पाला उड़त किंतु पर्यावरण दूषित होने के कारण अब तो पाला वसंत के बाद ही पड़ता है। पंजाबियों को ही नहीं समूचे भारतवासियों को अमर शहीद सरदार भगत सिंह का मेरा रंग दे वसंती चोला इस दिन की सदा याद दिलाता रहेगा।

22. प्रातः काल की सैर

प्रात:काल की सैर मनुष्य के लिए बहुत आवश्यक है। यह स्वास्थ्य के लिए बड़ी लाभदायक होती है। सुबह के समय सैर करना वैसे भी मनोरंजन करने के समान है। सुबह के समय प्राकृतिक छटा निराली होती है। सुबह की लाली चारों ओर फैली होती है। पक्षियों के कलरव हो रहे होते हैं जो बहुत अच्छे लगते हैं। शीतल हवा चल रही होती है। खिले हुए फूल बड़े सुन्दर लगते हैं। पेड़-पौधों का दृश्य बड़ा लुभावना होता है।

सुबह की सैर के लाभ भी बहुत होते हैं। शरीर में फुर्ती आती है। स्वच्छ वायु के सेवन से खून साफ़ होता है। शरीर की कसरत होती है। शारीरिक रोगों से बचाव होता है। दिमाग की ताकत बढ़ती है। आलस्य दूर भागता है। सदाचार की वृद्धि होती है। काम करने में मन लगता है।

अत: हमें नियमित रूप से प्रातः भ्रमण करना चाहिए।

23. स्वतन्त्रता दिवस (15 अगस्त)

पन्द्रह अगस्त, 1947 का दिन भारत के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाने योग्य है। इस दिन भारत माता की गुलामी के बन्धन टूटे थे। इस आज़ादी को प्राप्त करने के लिए अनेक देशभक्तों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे। पण्डित जवाहर लाल जी स्वतन्त्र भारत के पहले प्रधानमन्त्री बने। संसद् भवन पर तिरंगा झण्डा लहराया गया। उस दिन दिल्ली के लाल किले पर पं० जवाहर लाल नेहरू जी ने अपने हाथों से तिरंगा झण्डा लहराया। लाखों लोगों ने इसमें भाग लिया।

तब से लेकर अब तक यह त्योहार हर वर्ष सारे भारतवर्ष में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। दिल्ली में वायुयानों द्वारा फूलों की वर्षा की जाती है। उसके बाद तीन सेनाओं के जवान सलामी देते हैं। इस दिन लाल किले के सामने विशाल जन समूह इस शोभा को देखता है। प्रधानमन्त्री जी का भाषण होता है। इण्डिया गेट की शोभा निराली ही होती है। देश के सभी नगरों में यह उत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। रात को समस्त सरकारी भवन बिजली के बल्बों से जगमगा रहे होते हैं।

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आज हमें आजादी तो मिल गई है परन्तु हमें देश के प्रति कर्त्तव्यों को निभाना चाहिए। हमें उन शहीदों को याद रखना चाहिए जिन्होंने अपनी कुर्बानी देकर हमें आजादी दिलवाई।

24. गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)

भारत पर्यों तथा त्योहारों की भूमि है। भारत में साल-भर में भिन्न-भिन्न ऋतुओं में भिन्न-भिन्न पर्व मनाए जाते हैं। 26 जनवरी का दिन भारत के लिए विशेष महत्त्व का दिन है। यह एक राष्ट्रीय त्योहार है। इस दिन अर्थात् 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन हमारे देश का संविधान लागू हुआ था और इसी दिन भारत एक गणराज्य घोषित किया गया था। भारत की सभी जातियाँ-हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध तथा जैनी बिना किसी भेदभाव के इसे बड़े उत्साह से मनाती हैं।

26 जनवरी का दिन प्रतिवर्ष भारत के प्रत्येक प्रांत में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। नगर-नगर में सभाएँ तथा जुलूस निकलते हैं। राष्ट्रीय झण्डे लहराए जाते हैं। किन्तु दिल्ली में यह दिन जिस धूमधाम से मनाया जाता है, उसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। वहां इस त्योहार की शान तो निराली ही होती है। यह समारोह भारत के राष्ट्रपति की सवारी से शुरू होता है।

राष्ट्रपति की सवारी को सलामी देने के लिए स्थल सेना, जल सेना और वायु सेना तीनों की चुनी हुई टुकड़ियाँ सवारी के साथ-साथ चलती हैं। सवारी इण्डिया गेट से शुरू होती है और नई दिल्ली के खास-खास स्थानों से होती हुई आगे बढ़ती है। अनगिनत नर-नारी सवारी को देखने के लिए इकट्ठे हो जाते हैं। सवारी के पीछे-पीछे अलग-अलग प्रान्तों के लोग अपने कार्यक्रम की झांकियाँ दिखाते हैं। राष्ट्रपति को 21 तोपों से सलामी दी जाती है।

26 जनवरी का दिन मनोरंजन का दिन ही नहीं मानना चाहिए बल्कि इस दिन हमें कुछ प्रतिज्ञाएँ करनी चाहिए ताकि देश में बढ़ती हुई रिश्वतखोरी, लूटमार, पक्षपात आदि दूर किए जा सकें। हमें उन वीरों का कर्जा चुकाना होगा जिन्होंने अपनी कुर्बानियों द्वारा हमें आजादी से साँस लेने का अवसर दिया। तभी हमारी आज़ादी सफल तथा पूर्ण होगी।

25. समाचार-पत्र

मनुष्य एक जिज्ञासु प्राणी है। वह अपने आस-पास घटने वाली घटनाओं की जानकारी प्राप्त करना चाहता है। प्राचीन काल में उसकी यह जिज्ञासा पूरी न हो पाती थी। विज्ञान ने जहाँ हमें अन्य प्रकार की सुविधाएँ दी हैं, उनमें समाचार-पत्र के द्वारा हम घर पर बैठे ही देश-विदेश के समाचारों को जान लेते हैं। संसार के किसी कोने में घटने वाली घटना तार, टेलीफोन अथवा टेलीप्रिंटर के द्वारा समाचार-पत्रों के कार्यालयों में पहुँच जाती है।

समाचार-पत्रों से हमें अनेक लाभ हैं। नगर, प्रान्त, देश तथा विदेश आदि के समाचारों को हम समाचार-पत्र द्वारा घर बैठे जान लेते हैं। इससे हमारे ज्ञान में भी वृद्धि होती है। समय-समय पर इनमें अनेक प्रकार के चित्र भी छपते रहते हैं। इन चित्रों के द्वारा जहाँ हमारा मनोरंजन होता है, वहाँ इनसे अनेक प्रकार के ऐतिहासिक, धार्मिक, प्राकृतिक स्थानों की भी जानकारी होती है।

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समाचार-पत्रों में कहानियाँ, कविताएँ, जीवनियाँ तथा हास्य की सामग्री भी छपती रहती हैं। इन्हें पढ़कर हमारा मनोरंजन होता है। इनमें नौकरी सम्बन्धी विज्ञापन भी छपते हैं। पाठक अपने विचारों को भी समाचार-पत्र में छपवा सकते हैं। इस प्रकार ये समाचार-पत्र हमारे लिए वरदान का काम करते हैं। उनके द्वारा हमें घर बैठे ही बहुत-सी जानकारी प्राप्त होती है।

26. विद्यार्थी जीवन

विद्यार्थी जीवन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। यह मानव जीवन की नींव है। इसी पर उसके जीवन की सफलता-असफलता निर्भर करती है। यह जीवन तैयारी का जीवन है।

विद्यार्थी जीवन विद्या प्राप्ति का समय है। विद्यार्थी का यह कर्त्तव्य है कि वह पढ़ाई में अपना मन लगाए। उसे घर के अन्य छोटे-छोटे कामों में हाथ बँटाना चाहिए। विद्यार्थी जीवन की सफलता अच्छी बातों के पालन पर निर्भर करती है। उसे अपने अध्यापकों के उपदेश के अनुसार चलना चाहिए। माता-पिता की आज्ञा का पालन करना भी उसका प्रमुख कर्त्तव्य है। उसे स्वभाव का नम्र और मधुरभाषी होना चाहिए। उसे अपने स्वास्थ्य की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का वास होता है। उसे हमेशा अच्छे छात्रों का संग करना चाहिए। अच्छी संगति स्वयं में एक शिक्षा है। समय का पालन करना चाहिए।

विद्यार्थी जीवन में खूब परिश्रम करना चाहिए। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य उन्नति कर सकता है। आलसी व्यक्ति तो अपने लिए ही बोझ बनकर जीता है। अतः प्रत्येक विद्यार्थी का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने विद्यार्थी जीवन का सदुपयोग करे। अच्छा विद्यार्थी ही अच्छा नागरिक तथा अच्छा नेता बन सकता है।

27. पर्यावरण प्रदूषण की समस्या

वनस्पति जगत् से मानव का बहुत प्राचीन सम्बन्ध है। आम, तुलसी, केला, आँवला, बरगद आदि वृक्षों की लोग पूजा करते रहे हैं। प्रकृति और मानव का मधुर सम्बन्ध था, इसी कारण मानव-समाज सुखी था। आज प्रकृति पर विजय पाने की इच्छा से प्रदूषण फैल रहा है। इसके कारण अनेक समस्याएं जन्म ले रही हैं।

जनसंख्या की वृद्धि के साथ-साथ वनों को काटकर उद्योग-धंधों के विस्तार से कल कारखानों से दूषित विषैले पदार्थ बाहर निकलने लगे हैं। इससे वायुमण्डल दूषित हो रहा है तथा पर्यावरण संतुलन भी बिगड़ रहा है। प्रदूषण के कारण ही समय पर वर्षा नहीं होती, कहीं कम होती है तो कहीं बाढ़ें आती हैं।

भीड़-भाड़ वाले बड़े नगरों में वाहनों से निकलने वाले धुएँ तथा पेट्रोल की गंध से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सीसा के तत्व आदि हानिकारक पदार्थ निकलते हैं। इनसे साँस, फेफड़े आदि के रोग तथा दमा, जुकाम, कैंसर जैसे अन्य रोग फैलते हैं। गंदी वायु में साँस लेने से खून शुद्ध नहीं रह पाता। आँखों की रोशनी कमजोर हो जाती है और चर्म रोग भी हो जाते हैं। वायु का प्रदूषण ‘धीमा विष’ जो धीरे-धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

वायु प्रदूषण की तरह जल प्रदूषण भी होता है। गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल तथा कल-कारखानों से निकलने वाले अवशिष्ट पदार्थ नदियों में बहा दिए जाते हैं जिससे पानी पीने योग्य नहीं रहता तथा फसलों तथा फलों को भी हानि पहुंचाता है। सुख के लिए काम मानव के दुःख के कारण बन गए। पेड़, पौधों की कटाई से हरियाली समाप्त हो गई, सुन्दरता नष्ट हो गई।

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कृषि योग्य भूमि की कमी हो जाने से लोगों को शहरों की तंग गलियों में रहना पड़ रहा है। विज्ञान का वरदान उसके लिए अभिशाप बन गया। प्रदूषण के कारण गंगा का जल विषैला बन गया। विश्व प्रसिद्ध ताजमहल, मथुरा तेल शोधक कारखाने की चिमनियों के धुएँ तथा आगरा के चमड़ा उद्योगों से अपना सौन्दर्य खो रहा है।

प्रदूषण की समस्या भारत में ही नहीं सम्पूर्ण विश्व में बढ़ रही है। इसे रोकना हमारा परम कर्त्तव्य है। इसे रोकने के लिए हम गंदगी न फैलाएँ तथा वृक्ष लगाएँ।

28. टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

टेलीविज़न का आविष्कार सन् 1926 ई० में स्काटलैण्ड के इन्जीनियर जान एल० बेयर्ड ने किया। भारत में इसका प्रवेश सन् 1964 में हुआ। दिल्ली में ऐशियाई खेलों के अवसर पर टेलीविज़न रंगदार हो गया। टेलीविज़न को आधुनिक युग का मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन माना जाता है। केवल नेटवर्क के आने पर इस में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो गया है। आज देश भर में दूरदर्शन के अतिरिक्त 300 से अधिक चैनलों द्वारा कार्यक्रम प्रसारित किये जा रहे है। इन में कुछ चैनल तो केवल समाचार, संगीत या नाटक ही प्रसारित करते हैं।

टेलीविज़न के आने पर हम दुनिया के किसी भी कोने में होने वाले मैच का सीधा प्रसारण देख सकते हैं। आज व्यापारी वर्ग अपने उत्पाद की विक्री बढ़ाने के लिए टेलीविज़न पर प्रसारित होने वाले विज्ञापनों का सहारा ले रहे हैं। ये विज्ञापन टेलीविजन चैनलों की आय का स्रोत भी है। शिक्षा के प्रचार प्रसार में टेलीविज़न का महत्त्वपूर्ण योगदान है।

टेलीविज़न की कई हानियाँ भी हैं। सबसे बड़ी हानि छात्र वर्ग को हुई है। टेलीविज़न उन्हें खेल के मैदान से तो दूर ले जाता ही है अतिरिक्त पढ़ाई में भी रूचि कम कर रहा है। टेलीविज़न अधिक देखना छात्रों की नेत्र ज्योति को भी प्रभावित कर रहा है। हमें चाहिए कि टेलीविज़न के गुणों को ही ध्यान में रखें, इसे बीमारी न बनने दें।

29. मेरी पर्वतीय यात्रा

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। एक स्थान पर रहते-रहते मनुष्य का मन ऊब जाता है। वह इधर-उधर घूम कर अन्य प्रदेशों के रीति-रिवाजों आदि से परिचित होना चाहता है और इस प्रकार अपना ज्ञान बढ़ाता है। – दशहरे की छुट्टियां आने वाली थीं। मेरे मित्र सुरेन्द्र ने आकर शिमला चलने की बात कही। माता जी से परामर्श करने के पश्चात् बात पक्की हो गई। अगले दिन प्रात:काल ही हम दोनों मित्र रेलगाड़ी में जा बैठे। मैदान तो मैंने देखे ही थे पर जब पर्वतीय क्षेत्र आया तो मैं देख रहा था कि नदियां कलकल ध्वनि के साथ इठलाती बहुत सुन्दर लग् रही थीं। रास्ते का दृश्य बड़ा मनोहारी था।

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हम प्रसन्न मुद्रा में शिमला पहुंचे। शिमला हिमाचल प्रदेश की राजधानी है। अधिकतर मकान आधुनिक ढंग से बने हुए हैं। शहर के अन्दर आधुनिक ढंग के कई होटल तथा सिनेमा गृह हैं जो कि वहां की सुन्दरता को चार चांद लगाते हैं।

मुझे स्केटिंग रिंक बहुत सुन्दर लगा। सुरेन्द्र के पिता जी ने मुझे बताया कि शरद् ऋतु में युवक तथा युवतियां इस ऋतु का आनन्द लूटने के लिये यहां पर आते हैं। सुरेन्द्र को यह सब सुनने में कोई आनन्द नहीं आ रहा था। वह तो राजभवन देखने का इच्छुक था। अतः कुछ समय के पश्चात् हम लोग विशाल भवन के सम्मुख थे। इस दो दिवसीय यात्रा से हमने इस विशाल नगरी का प्रत्येक ऐतिहासिक स्थान देख लिया।

दो दिवसीय यात्रा के पश्चात् हम सब वहां से चल पड़े। मैं और सुरेन्द्र तो वहां से चलना नहीं चाहते थे। कारण कि हमें पर्वतीय छटा ने अत्यधिक आकृष्ट कर लिया था। वहां का शान्त एवं सुन्दर वातावरण मुझे अधिक प्रिय लग रहा था। पर सुरेन्द्र के पिता केवल चार दिन का अवकाश लेकर ही चले थे। अत: मन को मार कर हम सब वापस लौट पड़े। यह यात्रा सदा स्मरण रहेगी।

30. आँखों देखी प्रदर्शनी

हमारे देश में हर साल अनेक प्रदर्शनियां आयोजित होती हैं। लाखों लोग इनसे मनोरंजन प्राप्त करते हैं। प्रदर्शनियां देख-कर व्यक्ति का ज्ञान भी बढ़ता है। दिल्ली में लगी उद्योग प्रदर्शनी मझे कभी नहीं भल सकती। मेरे मन-मस्तिष्क पर इस की छाप आज भी ज्यों की त्यों बनी हुई है। इस अन्तर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी का विवरण इस प्रकार है –

विगत मास दिल्ली में एक अन्तर्राष्ट्रीय उद्योग प्रदर्शनी आयोजित की गई थी। यह प्रदर्शनी एक विशाल उद्योग मेला ही था। क्योंकि इसमें विश्व के लगभग साठ विकसित और विकासशील देशों ने भाग लिया था। तीन किलोमीटर की परिधि में फैली इस महान् एवं आकर्षक प्रदर्शनी में प्रत्येक देश ने अपने मंडप सजाए थे, जिनमें अपने देश की औद्योगिक झांकी प्रदर्शित की थी। मुख्य द्वार पर प्रदर्शनी में भाग लेने वाले देशों के झंडे फहरा रहे थे। जिधर भी नज़र उठती दूर तक मंडप ही दिखाई देते। इतनी बड़ी प्रदर्शनी को कुछ समय में देखना असम्भव था।

छात्रों को यह प्रदर्शनी दिखाने की विशेष व्यवस्था की गई थी। सब से पहले हमारी टोली भारतीय मंडप में पहुँची। यह मंडप क्या था मानो एक विशाल भारत का लघु रूप था। देश में तैयार होने वाले छोटे-से-छोटे पुर्जे से लेकर युद्ध पोत तक का प्रदर्शन किया गया था। कहीं आधुनिक राडार युक्त तोपें थीं। कहीं नेट-जेट विमान और कहीं टैंक। वहां स्वदेश निर्मित साइकिलों, स्कूटरों, विभिन्न तरह की कारों, बसों का मॉडल देखकर आश्चर्य होने लगा था।

अमेरिका, रूस, इंग्लैंड, पश्चिमी जर्मनी, जापान आदि विकसित देशों में मंडप देखकर हमारी टोली का प्रत्येक सदस्य चकित रह गया। एक से बढ़िया इलैक्ट्रानिक उपकरण। हर काम मिनटों-सैकिंडों में करने वाली मशीनें मनुष्य की दास बनी प्रतीत हुईं। मिनटों में मैले कपड़े धुल कर प्रैस होकर और तह लगकर आपके सामने लाने वाली धुलाई मशीनें। धड़कते दिल का साफ चित्र लेने वाले श्रेष्ठतम उपकरण चिकित्सा क्षेत्र में एक नई उपलब्धि है।

दिन भर हमारी टोली औद्योगिक प्रदर्शनी का कोना-कोना झांकती रही। इधर से उधर घूमते-घूमते हमारी टांगें जवाब देने लगी थीं, परन्तु दिल नहीं भरे थे। आँखें हर नई चीज़ देखने को तरस रही थीं। शाम तक बहुत कुछ देखा, बहुत कुछ सुना। ज्ञान के नये चूंट पीने को मिले। इसलिये यह अन्तर्राष्ट्रीय औद्योगिक प्रदर्शनी सदा याद रहेगी।

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31. जनसंख्या की समस्या

बढ़ती हुई जनसंख्या देश के लिए एक भयानक समस्या बन गई है। प्राचीन काल में लोग अधिक संतान की इच्छा करते थे। आज स्थिति बदल गई है। आज बड़े परिवार का पालन-पोषण एक समस्या है। अधिक आबादी किसी भी देश के लिए लाभकारी नहीं। भारत इस समय जनसंख्या की दृष्टि से चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। इस समय भारत की जनसंख्या 121 करोड़ से अधिक है।

बढ़ती हुई जनसंख्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। बेकारी की समस्या, महंगाई की समस्या तथा अन्न का संकट इसी की देन है। यही कारण है कि आज जनसंख्या के नियन्त्रण की ज़रूरत समझी जा रही है। छोटा परिवार सुखी परिवार का नारा लगाया जा रहा है।

जिस परिवार के पास आय के साधन कम हों और बच्चों की संख्या अधिक होगी, वहां अनेक प्रकार की कठिनाइयां जन्म लेंगी। न तो बच्चों का ठीक तरह से पालन-पोषण हो पाएगा और न ही उनकी शिक्षा-दीक्षा का प्रबन्ध हो सकेगा। जीवन स्तर भी ऊँचा उठने की बजाए गिर जाएगा। ऐसे परिवार में निर्धनता अपना अड्डा जमा लेगी। देश और समाज भी तो परिवारों का योग है।

यदि देश के लोगों का स्तर ऊंचा न होगा तो देश का स्तर भी ऊंचा न हो सकेगा। यदि इसी तरह जनसंख्या बढ़ती गई तो एक दिन ऐसा आएगा कि न तो रोगियों के लिए अस्पताल में जगह रहेगी और न ही जीवन की अन्य आवश्यकताएं पूरी हो सकेंगी।

अतः जीवन को सुखी बनाने के लिए जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाना ज़रूरी है। सरकार की ओर से इस दिशा में कई कदम उठाए गए हैं। लोगों को परिवार नियोजन का महत्त्व बताएं। सरकार को चाहिए कि वह परिवार नियोजन का पालन करने वालों को प्रोत्साहन दे। यदि हम स्वयं को तथा अपने देश को उन्नति के पथ पर ले जाना चाहते हैं तो बढ़ती हुई जनसंख्या पर रोक लगानी होगी।

32. देश-भक्ति अथवा स्वदेश-प्रेम

देश-भक्ति का अर्थ है अपने देश से प्यार अथवा अपने देश के प्रति श्रद्धा। जो मनुष्य जिस देश में पैदा होता है, उसका अन्न-जल खा पीकर बड़ा होता है, उसकी मिट्टी में खेल कर हृष्ट-पुष्ट होता है, वहीं पढ़-लिख कर विद्वान् बनता है, वही उसकी जन्म-भूमि है। – प्रत्येक मनुष्य तथा प्राणी अपने देश से प्यार करता है। वह कहीं भी चला जाए, संसार भर की खुशियों तथा महलों के बीच में क्यों न विचरण कर रहा हो उसे अपना देश, अपना स्थान ही प्रिय लगता है।

देश-भक्त सदा ही अपने देश की उन्नति के बारे में सोचता है। हमारा इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब-जब देश पर विपत्ति के बादल मंडराए, जब-जब हमारी आजादी को खतरा रहा, तब-तब हमारे देश-भक्तों ने अपनी भक्ति भावना दिखाई। सच्चे देश-भक्त अपने सिर पर लाठियां खाते हैं, जेलों में जाते हैं, बार-बार अपमानित किए जाते हैं तथा हँसते-हँसते फांसी के फंदे चूम जाते हैं। जंगलों में स्वयं तो भूख से भटकते हैं और साथ ही अपने बच्चों को भी बिलखते देखते हैं।

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महाराणा प्रताप के नाम को कौन भूल सकता है। जो अपने देश की आजादी के लिए.. दर-दर भटकते रहे परन्तु शत्रु के सामने सिर नहीं झुकाया। हमारे देश के न जाने कितने वीरों ने अपना बलिदान दे कर अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति प्राप्त की थी। वे कट मरे लेकिन शत्रु के सामने उन्होंने सिर नहीं झुकाया। आज हम जो भी हैं वे सब उन देशभक्तों के कारण ही हैं। उन्हीं के त्याग के कारण हम सब स्वतन्त्र देश में सुख-चैन भरी सांस ले रहे हैं। हमें उन वीरों से प्रेरणा लेकर नि:स्वार्थ भाव से अपने देश की सेवा करने का वचन लेना चाहिए।

33. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सबसे आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये।

परन्तु नामधारी, एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेजी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा।

इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ।

रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

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34. मेरी कक्षा का कमरा

मैं सातवीं कक्षा का छात्र हूँ। मेरे विद्यालय का नाम राजकीय सीनियर सैकण्डरी विद्यालय है। हमारा विद्यालय चार मंजिला इमारत का है। मेरी कक्षा का कमरा तीसरी मंजिल पर है। इसकी लम्बाई 20 फुट तथा चौड़ाई 15 फुट है। इसमें 20 बैंच हैं। बैंच और डैस्क एक साथ जुड़े हैं। कमरे में दो दरवाजें हैं। एक आगे की तरफ तथा दूसरा पीछे की तरफ। इसमें हवादार खिड़कियाँ भी हैं। कमरे की दीवार पर एक बुलेटिन बोर्ड भी है।

दूसरी तरफ डिस्पले बोर्ड है। इस पर हम हर महीने नई-नई चीजें लगाते रहते हैं। इसमें अध्यापक के लिए एक लैक्चर स्टैण्ड है। एक श्यामपट्ट भी है। हमारी कक्षा की दीवारों पर सुंदर-सुंदर चित्र लगे हुए हैं। पढ़ाई करने का एक उपयुक्त वातावरण हमें यहाँ मिलता है। मेरी कक्षा का कमरा मुझे बहुत अच्छा लगता है। हम इसे कभी गंदा नहीं करते। इसकी स्वच्छता का हम पूरा ध्यान रखते हैं।

PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Nibandh Lekhan निबंध लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Rachana निबंध लेखन (2nd Language)

श्री गुरु नानक देव जी

सिक्खों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ई० में लाहौर के निकट स्थित ‘राय भोए की तलवंडी (वर्तमान में पाकिस्तान स्थित ननकाना साहब)’ में हुआ। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी जी तथा पिता का नाम मेहता कालू राय था। बचपन से आप आत्म-चिंतन में लीन रहा करते थे और आपका अधिकतर समय साधु संतों की सेवा में बीतता था। गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी मूलचन्द की सुपुत्री सुलक्खणी जी के साथ हुआ जिनसे इन्हें दो पुत्र-श्रीचन्द और लखमी दास प्राप्त हुए।

जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तब वह ज़िला कपूरथला के सुल्तानपुर लोधी नामक स्थान में अपनी बहन नानकी के पास आ गए। वहाँ इनके बहनोई ने इन्हें वहाँ के गवर्नर दौलत खाँ के यहाँ मोदीखाने में नौकरी दिलवा दी। यहीं गुरु नानक देव जी के तोलने में तेरह-तेरह की जगह ‘तेरा-तेरा’ रटने की कथा भी विख्यात है। यहीं उनके बेईं में प्रवेश करने और तीन दिन तक अदृश्य रहने की घटना घटी। वास्तव में उन दिनों गुरु जी ‘सच्चखण्ड’ में पहुँच गए थे। यहीं गुरु जी ने ‘न को हिन्दू न को मुसलमान’ की घोषणा की।

सन् 1500 से 1521 तक गुरु जी ने देश-विदेश की चार.यात्राएँ की जो गुरु जी की चार उदासियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन यात्राओं में गुरु जी ने हिन्दुओं और मुसलमानों के तीर्थ रथानों की यात्रा भी की और वहाँ के पंडितों और मुल्लाओं के आडंबर का खंडन करते हुए उन्हें रागात्मक भक्ति का उपदेश दिया।

जीवन के अन्तिम भाग सन् 1521 से 1539 गुरु जी करतारपुर (पाकिस्तान) में रहे। वहाँ उन्होंने अनेक गोष्ठियों का आयोजन किया। इनमें सिद्ध गोष्ठी विशेष उल्लेखनीय है। सन् 1539 ई० में गुरु गद्दी भाई लहना जी, जो बाद में गुरु अंगद देव जी कहलाए, को सौंप कर ईश्वरीय ज्योति में विलीन हो गए।

गुरु तेग़ बहादुर जी

गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए जो बलिदान दिया, उसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या धर्म की चादर कहा जाता है। गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल सन् 1621 ई० (5 वैसाख सं० 1678) को अमृतसर में छठे गुरु हरगोबिन्द जी के घर हुआ।

आतार में यह पवित्र स्थान ‘गुरु के महल’ के नाम से जाना जाता है। आपका बचपन का नाम त्यागमल था। सन् 1635 ई० में 14 वर्षीय त्यागमल ने सिक्खों और मुग़ल सेना के बीच करतारपुर में हुए युद्ध में तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि प्रसन्न होकर उनका नाम तलवार के धनी अर्थात् तेग़ बहादुर रख दिया।

गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता सैनिक गतिविधियों का संचालन करने के लिए कीरतपुर आ गए परन्तु गुरु तेग बहादुर जी अपने ननिहाल बाबा बकाला में ही रहे और प्रभचिंतन में अपना समय बिताने लगे। सन् 1645 में इनके पिता ने अपने पौत्र हरराय को गुरु गद्दी

निबन्ध-लेखन सौंप दी किन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी ने कोई आपत्ति नहीं की। बाबा बकाला में आप कोई बीस वर्ष तक रहे। 30 मार्च, सन् 1664 में गुरु हरकृष्ण जी के ज्योति जोत समाने के बाद उन्हीं के आदेशानुसार गुरु तेग़ बहादुर जी अगस्त, 1664 ई० में गुरु गद्दी पर आसीन हुए। गुरु गद्दी मिलने के बाद आप 1664 में हरमन्दिर साहब दर्शनों के लिए गए किन्तु मसन्दों ने उन्हें दर्शन नहीं करने दिये और गुरु घर को ताले लगा दिये। इस पर बिना रुष्ट हुए आप निकट के गाँव वल्ला में चले गए। ग्रंथियों की क्षमा याचना के बाद भी गुरु जी हरमन्दिर साहब नहीं गए और वापस बाबा बकाला लौट आए।

गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म प्रचार के लिए किसी सुरक्षित स्थान के लिए बिलासपुर के राजा से माखोवाल गाँव से कुछ ज़मीन खरीदी। वहाँ अपनी माता के नाम पर चक्क नानकी’ नामक नगर बसाया, जो बाद में आनन्दपुर साहब के नाम से विख्यात हुआ। इसी दौरान औरंगज़ेब के हिन्दुओं पर आत्याचार बढ़ रहे थे। उन्हीं अत्याचारों से बचने के लिए गुरु जी के पास कुछ कश्मीरी पण्डित आए और गुरु जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की।

गुरु जी ने कहा कि ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ तभी पास बैठे उनके नौ वर्षीय पुत्र गोबिन्द राय बोल पड़े, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान के योग्य महापुरुष और कौन हो सकता है ?’ गुरु जी अपने पुत्र की बात को समझ गए और धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली पहुंच गए। उन्हें बन्दी बना लिया गया और इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। गुरु जी अपने धर्म पर अडिग रहे। 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० को गुरु जी ने चाँदनी चौक में शहीदी प्राप्त की। वहीं आजकल गुरुद्वारा शीशगंज स्थित है।

गुरु गोबिन्द सिंह जी

महान योद्धा, कुशल प्रशासक, प्रबुद्ध धर्म गुरु और योग्य राष्ट्र नायक गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर, सन् 1666 ई० को पटना (बिहार) में सिक्खों के नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी के घर हुआ। छ: वर्ष की अवस्था तक गुरु जी पटना में ही रहे फिर आप पिता द्वारा बसाए नगर आनन्दपुर साहब में आ गए।

आनन्दपुर में ही एक दिन कुछ कश्मीरी पण्डितों ने आकर गुरु तेग़ बहादुर जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। गुरु जी ने कहा, ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ पास बैठे नौ वर्षीय बालक गोबिन्दराय ने कहा, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान योग्य महापुरुष कौन हो सकता है।’ पुत्र की बात समझ कर गुरु जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० में शहीदी प्राप्त की।

नवम् गुरु की शहीदी के बाद नौ वर्ष की अवस्था में गोबिन्द राय जी गुरु गद्दी पर बैठे। गद्दी पर बैठते ही गुरु जी ने अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी जिससे अनेक राजाओं और मुगल सरदारों को ईर्ष्या होने लगी। इसी ईर्ष्या के फलस्वरूप गुरु जी को पांवटा से छ: मील दूर भंगाणी नामक स्थान पर कहलूर के राजा भीम चन्द के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। उस युद्ध में गुरु जी को पहली जीत प्राप्त हुई। इसके बाद गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं की ओर से लड़ते हुए नादौन में आलिफ खाँ को पराजित किया। इस युद्ध से पहाड़ी राजाओं को गुरु जी की शक्ति का पता चल गया।

सन् 1699 की वैशाखी को गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने आनन्दपुर साहिब में पाँच प्यारों को अमृत छकाया और उनसे स्वयं अमृत छका। इस अवसर पर गुरु जी ने अपना नाम गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह कर लिया और अपने सब शिष्यों को अपने नाम के साथ सिंह लगाने का आदेश दिया।

गुरु जी की शक्ति को बढ़ता देख औरंगजेब ने उसे समाप्त करने का निश्चय कर लिया। अप्रैल 1704 को मुगल सेना ने आनन्दपुर साहब को घेर लिया। यह घेरा दिसम्बर 1704 तक जारी रहा। मुग़ल सेना ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आनन्दपुर साहब को छोड़ने पर उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई जाएगी। किन्तु सरसा नदी को पार करते समय मुग़ल सेना ने विश्वासघात करते हुए गुरु जी की सेना पर आक्रमण कर दिया। अफरातफरी में गुरु जी की माता और दोनों छोटे साहिबजादे उनसे बिछुड़ गए। गुरु जी किसी तरह चमकौर की गढ़ी पहुँचे। चमकौर के युद्ध में सिक्खों ने मुग़ल सेना का डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में गुरु जी के दोनों बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। उधर गुरु जी के दोनों छोटे साहिबजादों जोरावार सिंह और फतेह सिंह को सरहिन्द के नवाब ने जीवित दीवार में चुनवाकर शहीद कर दिया। अपने चारों साहिबजादों की कुर्बानी से गुरु जी विचलित नहीं हुए।

अपने अन्तिम दिनों में गुरु जी नांदेड़ (महाराष्ट्र) में रहने लगे। वहीं एक दिन गुल खाँ नामक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया। गुरु जी का घाव कई दिनों बाद भरा। अभी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए थे कि एक कठोर धनुष पर चिल्ला चढ़ाते हुए उनका घाव खुल गया और 7 अक्तूबर, सन् 1708 को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

महात्मा गाँधी

देश के महान् नेता महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता पोरबन्दर, राजकोट और बीकानेर राज्यों के दीवान पद पर रहे। इनकी माता पुतलीबाई बड़ी धर्मनिष्ठ स्वभाव वाली स्त्री थी। उन्हीं की शिक्षा का बाल मोहनदास पर यथेष्ठ प्रभाव पड़ा। सन् 1887 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। सन् 1888 में आप इंग्लैण्ड में बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए चले गए। इंग्लैण्ड से वापस आकर आप ने पोरबन्दर में वकालत शुरू कर दी। कुछ समय पश्चात् इन्हें एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा। वहां आप ने भारतीयों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से आहत होकर आपने एक आन्दोलन चलाया जिसके कारण वहाँ भारतीयों के सम्मान की रक्षा होने लगी।

भारत लौटकर गाँधी जी ने देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1914 के प्रथम महा युद्ध में आपने अंग्रेज़ों की इस शर्त पर सहायता की कि युद्ध जीतने की सूरत में अंग्रेज़ भारत को आजाद कर देंगे किन्तु अंग्रेजों ने विश्वासघात करते हुए रोल्ट एक्ट और जलियांवाला बाग के नरसंहार की घटना पुरस्कार रूप में दी।

सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया जिसमें हिंसा आ जाने पर सन् 1922 में इन्होंने यह आन्दोलन वापस ले लिया। सन् 1930 में गाँधी जी ने नमक आन्दोलन शुरू किया। सन् 1942 में गाँधी जी ने देश को भारत छोड़ो का नारा दिया। इसी दौरान देश की जनता सरदार भगत सिंह और चन्द्र शेखर जैसे क्रांतिकारियों के बलिदान से जागरूक हो चुकी थी। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज के बढ़ते आक्रमण से डरकर अंग्रेज़ों ने 15 अगस्त, सन् 1947 को भारत को एक स्वाधीन देश घोषित कर दिया किन्तु जाते-जाते अंग्रेज़ देश का बंटवारा कर गए जिसके परिणामस्वरूप देश में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। दंगों को शान्त करने के लिए गाँधी जी ने मरण व्रत रखा।

30 जनवरी, सन् 1948 की शाम 6 बजे नात्थूराम गोडसे नामक युवक ने गाँधी जी की हत्या कर दी। इस तरह देश से एक युग पुरुष उठ गया।

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, सन् 1865 ई० में ज़िला फिरोजपुर के एक गाँव दुडिके में हुआ। सन् 1880 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद आपने मुख्तारी की परीक्षा पास की और हिसार में वकालत शुरू कर दी। सन् 1892 में आप लाहौर चले गए। वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक बिना वेतन लिए डी० ए० वी० कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। आपने अपने गाँव दुडिके में अपने पिता के नाम पर राधा कृष्ण हाई स्कूल खोला।

लाला जी का राजनीति में प्रवेश संयोग से हुआ। उस समय सर सैय्यद अहमद खां मुसलमानों को भड़काने वाले और राष्ट्र विरोधी लेख लिख रहे थे। लाला जी पहले व्यक्ति थे जिसने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई। इसी के परिणामस्वरूप सन् 1888 में कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में लाला जी का जोरदार स्वागत हुआ। सन् 1893 के कांग्रेस अधिवेशन में भी लाला जी ने ओजपूर्ण भाषण दिए और कांग्रेस को अपनी कार्रवाई अंग्रेज़ी में न कर हिन्दुस्तानी में करने पर विवश कर दिया।

लाला जी सन् 1902, सन् 1908 और सन् 1913 में इंग्लैंड गए और वहाँ के लोगों को अपने भाषणों और लेखों द्वारा भारत की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाया। सन् 1914 में प्रथम महायुद्ध छिड़ने पर लाला जी अमेरिका चले गए। वहाँ उन्होंने ‘इंडियन होम लीग’ की स्थापना की और ‘यंग इंडिया’ नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला।

देश में वापस आने पर सन् 1921 में लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने पर इन्हें जेल भी जाना पड़ा।

30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। सरदार भगत सिंह की नौजवान भारत सभा ने इसका विरोध किया। इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई लाला जी ही कर रहे थे। जुलूस पर लाठीचार्ज किया गया। लाहौर के डी० एस० पी० सांडर्स ने लाला जी पर ताबड़तोड़ लाठियाँ बरसाईं। जिसके परिणामस्वरूप 17 नवम्बर, सन् 1928 की सुबह लाला जी का देहान्त हो गया। बाद में सरदार भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या कर लाला जी की मौत का बदला लिया।

शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह

देश की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वालों में सरदार भगत सिंह का नाम प्रमुख है। सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को ज़िला लायलपुर (पाकिस्तान) के गाँव बंगा में हुआ। आपका पैतृक गाँव नवांशहर के निकट खटकड़ कलां है। आपकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। फिर आपने लाहौर के डी०ए०वी० स्कूल से मैट्रिक पास की। कॉलेज में दाखिला लेते ही आप क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गए, जिसके परिणामस्वरूप आपने पढ़ाई छोड़ दी। देश भक्ति और क्रान्ति के संस्कार भगत सिंह को विरासत में मिले थे। आपके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह इन्कलाबी गतिविधियों में भाग लेते रहे थे।

सरदार भगत सिंह महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति को पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि उनका विचार था अहिंसात्मक आन्दोलन से देश को आजादी नहीं मिल सकती। इसी उद्देश्य से उन्होंने सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया। उनके जोश और उत्साह को देखकर महात्मा गाँधी को भी मानना पड़ा कि जिस वीरता और साहस का ये नौजवान प्रदर्शन कर रहे थे उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। सरदार भगत सिंह और क्रान्तिकारी साथियों का समर्थन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पं० जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने भी किया।

9 सितम्बर, सन् 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में क्रान्तिकारी युवकों की एक बैठक हुई, जिसमें हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र सेना का गठन किया गया। सरदार भगत सिंह इसके सचिव और चन्द्र शेखर आजाद को कमांडर बनाया गया।

30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। नौजवान भारत सभा ने उसके विरोध में प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में जुलूस की अगुवाई कर रहे लाला लाजपत राय घायल हो गए। 17 नवंबर, सन् 1928 को उनका निधन हो गया। सरदार भगत सिंह ने लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले डी० एस० पी० सांडर्स की हत्या कर अपने प्रिय नेता की हत्या का बदला ले लिया। गिरफ्तारी से बचने के लिए आप भेस बदलकर रातों-रात लाहौर से निकलकर बंगाल चले गए।

ब्रिटिश सरकार की शोषण नीतियों के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक धमाके वाला खाली बम फेंका। वे वहाँ से भागे नहीं बल्कि इन्कबाल जिंदाबाद के नारे लगाते रहे। सरदार भगत सिंह जानते थे कि अंग्रेजी सरकार इस जुर्म में उन्हें फाँसी की सज़ा देगी। वे अपनी कुर्बानी से देश में जागृति लाना चाहते थे।

17 अक्तूबर, सन् 1930 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा सुना दी गई। सज़ा सुनाए जाने के अवसर पर सरदार भगत सिंह और उनके साथियों ने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के खूब नारे लगाए। उनकी फांसी की सज़ा के बारे में सुनकर जनता में खूब रोष फैल गया। अंग्रेज़ी सरकार ने जनता के रोष से डरकर 23 मार्च, सन् 1931 को ही लाहौर जेल में फाँसी दे दी और उनके शव सतलुज किनारे हुसैनीवाला नामक स्थान पर जला दिए।

सरदार भगत सिंह ने शहीदी पाकर भारतीय जनता में एक नया जोश भर दिया। आखिर 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश आजाद हुआ। भारतवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे।

स्वामी विवेकानन्द

कलकत्ता हाईकोर्ट में सफल वकील श्री विश्वनाथ दत्त के घर 12 जनवरी, सन् 1863 को स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र दत्त था। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी इन्हें स्नेह से केवल रामायण व महाभारत की कहानियाँ सुनाकर साहसी, बहादुर और निडर बनाने की प्रेरणा देती थी। नरेन्द्र उन्हें अपना प्रथम गुरु मानते थे। उन्हीं से नरेन्द्र ने अंग्रेजी और बंगला भाषाएँ सीखीं। परिणामतः नरेन्द्र में प्रारम्भ से ही देश-प्रेम, त्याग, तपस्या और ध्यान के संस्कार फलने फूलने लगे। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् इनके पिता इनका विवाह कर देना चाहते थे किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। नरेन्द्र परमहंस राम कृष्ण के सम्पर्क में आए और उनकी असाधारण आध्यात्मिक व धार्मिक उपलब्धियों से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए और सन् 1883 में उन्होंने संन्यास ले लिया और नरेन्द्र दत्त से स्वामी विवेकानन्द हो गए। 16 अगस्त, सन् 1886 परमहंस राम कृष्ण का देहान्त हो जाने पर उन्होंने अपने साथी संन्यासियों और भक्तजनों ने मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्थान ने देश और विदेश में अनेक प्रशंसनीय और अभूतपूर्ण कार्य किये हैं।

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में कलकत्ता में प्लेग का भयंकर रोग फैल गया। स्वामी जी ने अनेक रोगियों को मौत के मुँह से बचाया। उनकी सेवा की और बंगाल से प्लायन करने से रोका। सेवा कार्य में धन की कमी आने पर उन्होंने अपना बैलूर मठ बेचने का निर्णय किया। यह सुनकर बहुत से धनवान् लोगों ने उन्हें धन दिया जिससे सेवा कार्य बिना किसी बाधा के चलता रहा।

11 सितम्बर, सन् 1893 को अमरीका के शिकागो शहर में स्वामी जी ने विश्व धर्म सम्मेलन की धर्म संसद् में जो ओजस्वी, ज्ञानपूर्ण और मौलिक भाषण दिया उससे प्रभावित होकर लाखों अमरीकन उनके भक्त और शिष्य बन गए। उनके प्रवचनों से अमरीका में धूम मच गई। स्वामी जी लगभग ढाई वर्षों तक अमरीका में रहे और वहाँ भारतीय संस्कृति, अध्यात्म व वेदान्त का प्रचार-प्रसार करते रहे।

भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। सारे देश ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया। किन्तु 4 जुलाई, सन् 1902 को इस धर्म वीर, कर्म सूर्य और ज्ञान समुद्र का मात्र 39 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया।

स्वामी जी का यह सन्देश हमें सदा प्रेरणा देता रहेगा। “जिस समय तुम भयभीत होते हो, उसी समय तुम दुर्बल होते हो। भय ही जगत में सब अनर्थ का मूल है। सबसे पहले हमारे नवयुवक बलवान होने चाहिए, धर्म बाद में आवेगा मेरे तरुण मित्रो निडर और बलवान बनो।”

सतगुरु राम सिंह जी

नामधारी सिक्ख समुदाय के संस्थापक सतगुरु राम सिंह जी का जन्म 3 फरवरी, सन् 1816 ई० में जिला लुधियाना के एक गाँव राइयाँ में बाबा जस्सा सिंह जी के घर हुआ। छ: वर्ष की छोटी सी आयु में आपका विवाह कर दिया गया। युवावस्था में आप महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र नौनिहाल सिंह की फौज में भर्ती हो गए। कुछ समय बाद नौकरी छोड़कर श्री भैणी साहब में आकर प्रभु सिमरन और समाज सेवा में लग गए। साथ ही देश को आजाद करवाने के लिए यत्न करने लगे।

12 अप्रैल, सन् 1857 ई० को वैशाखी के पावन दिन आपने पाँच शिष्यों को अमृतपान कराकर नामधारी सिक्ख समुदाय की नींव रखी। गुरु जी ने लोगों में आत्म सम्मान जगाने, भक्ति और वीरता पैदा करने तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रचार शुरू किया। गुरु जी ने देश में कई जगह प्रचार केन्द्र स्थापित किए और प्रत्येक केन्द्र को सूबे की संज्ञा दी। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर हज़ारों लोग नामधारी बन गए। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध कूकें (हुंकार) मारने के कारण इतिहास में नामधारी सिक्ख कूका नाम से प्रसिद्ध हो गए।

कूका समुदाय के प्रमुख धार्मिक सिद्धान्त-नामधारी ईश्वर को एक मानते हैं। गुरवाणी का पाठ, पाँच ककारों का धारण करना, सफेद रंग के कपड़े पहनना, सफेद रंग की ऊन के 108 मनकों की माला धारण करना इनके मुख्य धार्मिक सिद्धान्त हैं।

सामाजिक बुराइयों का विरोध-सत् गुरु राम सिंह जी ने अनेक सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए जन साधारण को जागरूक किया। इनमें बाल विवाह, कन्या वध, गौवध, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा, माँस एवं नशीले पदार्थों के सेवन का विरोध प्रमुख थीं। गुरु जी ने दहेज प्रथा का विरोध करते हुए मात्र सवा रुपए में सामूहिक अंतर्जातीय विवाह की प्रथा आरम्भ की।

स्वतन्त्रता संग्राम में नामधारी समुदाय का योगदान-नामधारी समुदाय ने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भाग लिया। सतगुरु राम सिंह जी ने भारत को आजाद कराने के उद्देश्य से असहयोग व स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ किया। इसी आन्दोलन का महात्मा गाँधी ने सन् 1920 में प्रयोग किया। गुरु जी ने अपनी अलग डाक व्यवस्था के प्रबन्ध कर लिए। उन्होंने अंग्रेज़ी अदालतों और स्कूलों का बहिष्कार कर न्याय और शिक्षा के अपने प्रबन्ध किये। अंग्रेज़ों को लगने लगा कि गुरु जी ने एक समानान्तर सरकार बना ली है। नामधारी सिक्खों ने अंग्रेजों द्वारा स्थापित गौवध के लिए बनाये जाने वाले बूचड़खानों का डटकर विरोध किया। उन्होंने ऐसे बूचड़खानों पर हमला करके अंग्रेजों को बता दिया कि भारतीय अपने धर्म में किसी का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकते।

अंग्रेज़ों से विरोध करने के कारण सन् 1871 में रायकोट, अमृतसर और लुधियाना में 9 नामधारी सिक्खों को फाँसी दी और सन् 1872 में मालेरकोटला के खुले मैदान में 65 नामधारियों को खड़े करके तोपों से उड़ाकर शहीद कर दिया। नामधारियों के आन्दोलन को सरकार विरुद्ध घोषित करके गुरु जी को गिरफ्तार करने रंगून (तत्कालीन बर्मा) भेज दिया गया जहाँ सन् 1885 में गुरु जी ने इस नश्वर शरीर को त्यागा।

सत् गुरु राम सिंह जी द्वारा चलाया नामधारी समुदाय आज भी भैणी साहब से सादा, पवित्र और आडम्बर रहित जीवन का प्रचार कर रहा है। आजकल गुरु गद्दी पर सत् गुरु जगजीत सिंह जी महाराज विराजमान हैं।

बाबा साहब अम्बेदकर

बाबा साहब अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल, सन् 1891 को मध्य प्रदेश में इन्दौर के निकट मऊ-छावनी नामक स्थान पर हुआ। आपके पिता श्री राम जी राव ने आपका नाम भीम राव रखा। आपने सोलह वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। स्कूल में ही एक अध्यापक ने इनके नाम के साथ अम्बेदकर शब्द जोड़ दिया।

स्कूली जीवन में अम्बेदकर जी को कई कठिनाइयाँ सहनी पड़ीं, किन्तु अम्बेदकर जी ने हिम्मत नहीं हारी और सन् 1912 में बी० ए० की डिग्री प्राप्त कर ली। सन् 1913 में बड़ौदा नरेश से छात्रवृत्ति पाकर आप विदेश चले गए। वहाँ आप सन् 1917 तक रहे और कोलम्बिया विश्वविद्यालय से आपने एम० ए०, पी० एच-डी० एवं एल० एल० बी० की डिग्रियाँ प्राप्त की। स्वदेश लौटकर बड़ौदा राज्य के सैनिक सचिव नियुक्त हुए। कुछ समय पश्चात् आपने आजीविका चलाने के लिए वकालत का पेशा अपना कर निम्न वर्ग को छुआछूत से छुटकारा दिलाने के लिए काम शुरू कर दिया। लोगों में जागृति लाने के लिए आपने ‘बहिष्कृत हितकारिणी’ और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार-पत्र निकाले। सन् 1927 में आप मुम्बई विधानसभा के सदस्य मनोनीत हुए।

इसी बीच महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ मिलकर निम्न वर्ग के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये, अनेक आन्दोलन चलाये। इनमें 20 मार्च, सन् 1927 में चलाया चोबदार-तालाब सत्याग्रह उल्लेखनीय है।

सन् 1947 में देश की पहली राष्ट्रीय सरकार में आप कानून मन्त्री बने । आपको संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। आपके ही प्रयत्नों से भारतीय संविधान को धर्म-निरपेक्ष बनाया। जिसमें प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण का हो, समान अधिकार दिए गए। आप ही के यत्नों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान मिला।

किन्हीं अज्ञात कारणों से बाबा साहब अम्बेदकर जी ने नागपुर में बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली।

6 दिसम्बर, सन् 1956 को यह महान विभूति इस दुनिया से चाहे सदा के लिए उठ गयी लेकिन उनके कार्यों और ख्याति को कभी कोई नहीं भुला पाएगा।

मेरी क्यूरी

मेरी क्यूरी का नाम उसकी सेवाओं के कारण दुनिया भर में प्रसिद्ध है। वह पहली महिला थी जिसे नोबेल पुरस्कार (इनाम) दिया गया था। मेरी क्यूरी का जीवन हमारे सामने एक महान् आदर्श पेश करता है।

आपका जन्म 7 नवम्बर, सन् 1867 को हुआ। बचपन का नाम ‘मार्यास्कोटोस्को’ था। उसकी चार बहनें और एक भाई था। पिता स्कूल में अध्यापक होने के साथ-साथ देश-भक्त भी थे। देश को रूसी अत्याचारों से मुक्त कराने के लिए उसे नौकरी छोड़नी पड़ी। उन्होंने अपने बच्चों में भी देश-भक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी थी।

बचपन में मार्या की बुद्धि अनोखी थी। उसे विज्ञान (साईंस) में रुचि थी। वह हाई स्कूल की परीक्षा में प्रथम आई। उसे स्वर्ण पदक (सोने का मैडल) मिला। मार्या को नृत्य (नाच)
और संगीत का भी शौक था।

23 वर्ष की आयु में मार्या पढ़ने के लिए बहन ब्रोन्या के पास चली गई। उसने विश्वविद्यालय में अपना नाम ‘मेरी’ लिखवाया। वह विज्ञान विभाग की छात्रा थी। वह एम० एससी० में प्रथम आई। उसके बाद वह पैरिस लौट आई।

सन् 1895 में एक युवक “पियरी क्यूरी” से उसका विवाह सम्पन्न हो गया। वह पेरिस के रसायन विज्ञान और भौतिक विज्ञान संस्थान में प्रयोगशाला का अध्यक्ष था। दोनों की विज्ञान में रुचि थी। दोनों इकट्ठे मिल कर अनुसंधान (प्रयोग) करने लगे।

क्यूरी पति-पत्नी हेनरी बेकरेल के प्रयोगों में रुचि लेने लगे। हेनरी बेकरेल पहला वैज्ञानिक था जिसने यह खोज की थी कि यूरेनियम के लवणों में अजीब गुण हैं। उससे विकरित होने वाली किरणें अपारदर्शी पदार्थों को भी बींध सकती हैं। क्यूरी दम्पति ने यह खोज की कि केवल यूरेनियम ही नहीं, बल्कि कई दूसरे तत्वों के परमाणुओं में भी उपरोक्त किरणें विकरित करने (फैलाने) की क्षमता होती है। कुछ समय बाद उन्होंने किरणें विकरित करने वाले एक और अज्ञात तत्व की खोज की। उन्होंने उसका नाम ‘रेडियम’ रखा। इस खोज पर उन्हें सन् 1903 में नोबेल पुरस्कार मिला।

बदकिस्मती से पियरी क्यूरी की दुर्घटना ( हादसे) में मृत्यु हो गई। उसके पति की जगह उसे प्रोफेसर बना दिया गया। उसने पति के काम को आगे बढ़ाया। उसे दूसरा नोबेल पुरस्कार सन् 1911 में मिला।

सन् 1914 में विश्व युद्ध छिड़ा। मेरी क्यूरी ने घायल सैनिकों के लिए कई चिकित्सक दल संगठित किए। एक-दूसरे के माध्यम से डॉक्टरों की सहायता की। घायलों का इलाज किया। सन् 1918 में युद्ध समाप्त हुआ। युद्ध के पश्चात् फिर मेरी क्यूरी पर उपाधियों और पार्टियों की वर्षा हुई।

मेरी क्यूरी का एक ही सन्देश था कि मानव जाति की सेवा में अपने आपको न्योछावर कर दो। उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया कि महिलाएँ हर क्षेत्र में आगे बढ़ सकती हैं। सन् 1934 में मेरी क्यूरी स्वर्ग सिधार गईं।

महाराजा रणजीत सिंह

शेरे पंजाब कहे जाने वाले महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआ। आपके पिता का नाम महासिंह था जो सुकरचकिया मिसल के सरदार थे। आपकी माता राजकौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था, किन्तु आपके पिता ने अपनी जम्मू विजय को याद रखने के लिए आपका नाम रणजीत सिंह रख दिया।

महाराजा रणजीत सिंह ने उस समय छोटे-छोटे राज्यों को और मिसलों को एक किया। मुसलमानों और पठानों को हरा कर समय की माँग को देखते हुए रोपड़ (रूपनगर) के स्थान पर अंग्रेजों के साथ समझौता कर एक सुदृढ़ सिक्ख राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह एक महान् योद्धा और कुशल प्रशासक थे। दस वर्ष की आयु में आपने पहली जीत प्राप्त की। विजयी रणजीत सिंह जब लौटे तो उनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी, किन्तु उन्होंने अपनी योग्यता और वीरता से अपने अधिकार को स्थिर रखा।

महाराजा रणजीत सिंह ने पन्द्रह वर्ष की आयु में महताब कौर से विवाह किया। किन्तु यह विवाह सफल न हो सका। तब उन्होंने सन् 1798 ई० में दूसरा विवाह किया जो सफल रहा।

सत्रह वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते आपने सारी मिसलों का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। उन्नीस वर्ष की अवस्था में लाहौर पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे आपने जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुल्तान, पेशावर आदि क्षेत्रों को अपने अधीन कर एक विशाल पंजाब राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह की उदारता और छोटे बच्चों से प्रेम की अनेक घटनाएँ प्रचलित हैं। आप एक कुशल प्रशासक और न्यायप्रिय शासक थे। सभी जातियों के लोग आपकी सेना में थे। महाराजा जहाँ वीरों, विद्वानों का आदर कर उन्हें इनाम देते थे, वहाँ अत्याचारी जागीरदारों को दण्ड भी देते थे। वे बिना किसी भेदभाव से सभी उत्सवों और पर्यों में भाग लेते थे। यही कारण है कि जब सन् 1839 में आपकी मृत्य हुई तो सभी धर्मों के लोगों ने आप की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की।

अमर शहीद मेजर भूपेन्द्र सिंह

मेजर भूपेन्द्र सिंह का नाम उन शहीदों में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा जिन्होंने देशहित में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। सन् 1965 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में मेजर भूपेन्द्र सिंह ने जो अद्भुत शौर्य दिखाया उसके लिए भारतीय सदा उनके ऋणी रहेंगे।

मेजर भूपेन्द्र सिंह लुधियाना जिले के रहने वाले थे। देश सेवा और देश भक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने पाकिस्तान के साथ स्यालकोट फ्रंट की लड़ाई में अपने उच्च अधिकारी से टैंकों के संचालन की आज्ञा माँगी। आज्ञा पाकर अगले ही दिन मेजर भूपेन्द्र ने तुरन्त शत्रु पर आक्रमण करने का निश्चय किया। मेजर सिंह के टैंकों ने इतनी भयंकर गोलाबारी की कि शत्रु पक्ष के अनेक टैंक ध्वस्त हो गए। मेजर सिंह के नेतृत्व वाले टैंक दल ने शत्रु के 21 टैंक नष्ट कर दिए, इनमें सात तो अकेले मेजर सिंह ने नष्ट किये थे। कुछ टैंकों को मेजर सिंह ने सही हालत में अपने अधिकार में ले लिया। पाकिस्तानी टैंकों की सहायता उनके विमान भी करने लगे। वे हड़बड़ी में बम फेंक रहे थे। दुर्भाग्य से जिस टैंक में मेजर सिंह बैठे थे उस पर पाकिस्तानी विमान द्वारा फेंकी गई एक मिजाइल आ लगी। उनका टैंक जलने लगा। मेजर सिंह साहस से काम लेते हुए टैंक से बाहर कूद पड़े। अभी वे अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूँढ़ ही रहे थे कि उनके साथियों की जलते हुए टैंकों से बचाओ-बचाओ की आवाजें सुनाई दी। मेजर सिंह ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने तीन साथियों को जलते हुए टैंकों से बाहर निकाला। उनके कपड़ों को आग लग चुकी थी जिससे उनका सारा शरीर झुलस चुका था। अपने साथियों की जान बचाने के बाद वे स्वयं बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें तुरन्त सेना अस्पताल पठानकोट पहुँचाया गया। वहाँ से उन्हें दिल्ली लाया गया। उनकी वीरता और साहस की कहानी सुन कर प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री स्वयं अस्पताल आए। उनके आने पर मेजर सिंह ने कहा-‘काश मेरे हाथ इस योग्य होते कि मैं उन्हें सैल्यूट कर सकता’-इस वीर की यह हालत देख शास्त्री जी की भी आँखें भर आईं। मेजर सिंह कुछ दिन मौत से लड़ते रहे फिर एक दिन भारत माँ का यह शूरवीर हम से सदा के लिए विदा हो गया।

भारत सरकार ने इस वीर सपूत को महावीर चक्र (मरणोपरान्त) देकर सम्मानित किया। मेजर भूपेन्द्र सिंह की शहादत युवा पीढ़ी को सदा प्रेरित करती रहेगी।

पंजाब के ग्रामीण मेले और त्योहार

देवी-देवताओं, गुरुओं, पीर-पैगम्बरों, ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं की पंजाब की धरती अपने कर्मठ किसानों और वीर सपूतों के कारण देश भर के सभी प्रान्तों में शिरोमणि है। पंजाब को मेले और त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। साल के शुरू में ही लोहड़ी का त्योहार और माघी का मेला आता है। लोहड़ी पौष मास के अंतिम दिन मनाया जाता है। कड़ाके की सर्दी की परवाह न करते हुए युवक-युवतियों की टोलियाँ-दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी या सुंदर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-के गीत गाते हुए उन घरों से विशेषकर लोहड़ी माँगते हैं जिनके घरों में पुत्र का विवाह हुआ हो या पुत्र उत्पन्न हुआ हो। लोहड़ी से अगले दिन मुक्तसर में चालीस मुक्तों की याद में माघी का मेला मनाया जाता है। वैसे माघ महीने की संक्रान्ति को सभी पवित्र सरोवरों और नदियों में स्नान कर लोग पुण्य लाभ कमाते हैं।

माघी के बाद बसंत पंचमी का त्योहार आता है, जो सारे पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं और घरों में पीले चावल या पीला हलवा बनाते हैं और पीले वस्त्र पहनते हैं। प्रकृति भी उस दिन पीली चुनरी (सरसों के फूल खेतों के रूप में) ओढ़ लेती है। पुरानी पटियाला और कपूरथला रियासतों में यह दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता था। इसी दिन बटाला में वीर हकीकत राय की समाधि पर एक बड़ा भारी मेला लगता है।

बसन्त पंचमी के बाद बैसाखी का त्योहार आता है। इस दिन किसान अपनी गेहूँ की फसल को तैयार देखकर झूम उठता है और गा उठता है-‘जट्टा ओ आई बिसाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। गाँव-गाँव शहर-शहर मेले लगते हैं।

इसके बाद सावन महीने में पूर्णिमा को रक्षा बन्धन का त्योहार आता है। यह त्योहार भाईबहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इसी महीने पंजाब का एक ग्रामीण त्योहार भी आता है। इस त्योहार को मायके आई विवाहित लड़कियों का तीज का त्योहार कहा जाता है। मायके आई विवाहित लड़कियाँ सखियों संग झूला झूलती हैं और मन की बातें खुल कर करती हैं। । उपर्युक्त मेलों और त्योहारों के अतिरिक्त पंजाब में कुछ धार्मिक मेले भी होते हैं। इनमें सबसे बड़ा आनन्दपुर साहब में लगने वाला होला-मुहल्ला का मेला है। ग्रामीण मेलों में किला रायपुर का मिनी ओलिम्पिक मेला प्रसिद्ध है। कुछ मेलों में पशुओं की मण्डियाँ भी लगती हैं।

पंजाब के ये मेले और त्योहार आपसी भाई-चारे के प्रतीक हैं। हमें इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

जीवन में त्योहारों का महत्त्व

कहा जाता है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है और मनुष्य शुरू से संघर्ष के बाद, आराम या मनोरंजन चाहता है। इसलिए मनुष्य ने ऐसे अवसरों की तलाश की जिनमें वह अपने सब दुःख-दर्द भूल कर कुछ क्षणों के लिए खुल कर हँस गा सके। हमारे पर्व या त्योहार यही काम करते हैं। त्योहार वाले दिन, चाहे एक दिन के लिए ही सही हम यह भूलने की कोशिश करते हैं कि हम गरीब हैं, दु:खी हैं। आराम जीवन की जरूरत है, परिवर्तन मानव-स्वभाव की माँग है। हमारे पर्व या त्योहार इस ज़रूरत और माँग को पूरा करते हैं।

त्योहार का नाम सुनते ही सभी के मन में उल्लास एवम् स्फूर्ति भर जाती है। त्योहार के दिन हम आनन्द के साथ-साथ जातीय गौरव का भी अनुभव करते हैं। ये त्योहार आपसी भाईचारे के प्रतीक हैं। इनमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। जहाँ ये त्योहार आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़ करते हैं, वहाँ राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा देते

हमारे देश में मनाए जाने वाले त्योहार धर्म और राजनीति के उच्चतम आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक पर्व या त्योहार किसी-न-किसी आदर्श चरित्र से जुड़ा है। जैसे बसन्तोत्सव हमें भगवान् शंकर के कामदहन और श्रीकृष्ण के पूतनावध की याद दिलाता है। आषाढ़ में काल की दुर्निवार गति की याद में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा होती है। श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबन्धन के त्योहार द्वारा हिन्दू समाज में भ्रातृत्व का स्मरण दिलाया जाता है। दीवाली के दिन हम लक्ष्मी पूजन के साथ नरकासुर वध की घटना को याद करते हैं। रामनवमी के दिन हमें भगवान् राम के जीवन से त्याग, तपस्या और जन सेवा की शिक्षा मिलती है।

हमारे देश में अनेक त्योहार ऋतुओं या फसलों से भी जुड़े हैं जैसे लोहड़ी, होली, बैशाखी, श्रावणी पूर्णिमा आदि। कुछ त्योहारों पर व्रत रखने की भी परम्परा है जैसे महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि । स्वास्थ्य की दृष्टि से इन व्रतों की बहुत उपयोगिता है। ये व्रत व्यक्ति की पाचन क्रिया को सही रखते हैं। संक्षेप में कहा जाए तो हमारे पर्व या त्योहार आत्म शुद्धि का साधन हैं। त्योहार हमारे जीवन में खुशियाँ लाते हैं। त्योहारों के अवसर पर हम अपने सब राग, द्वेष, मद, मोह को भस्मीभूत करके, ऊँच-नीच का, जाति-पाति का भेद भुला कर, एक होकर आनन्द मनाते हैं। इन्हीं त्योहारों ने हमारी प्राचीन संस्कृति को और सामाजिक मूल्यों को बचाए रखा है।

लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति (माघी) से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे हम ऋतु सम्बन्धी त्योहार भी कह सकते हैं। अंग्रेज़ी कलैण्डर के अनुसार साल का यह पहला त्योहार होता है। इस दिन सर्दी अपने पूर्ण यौवन पर होती है। लोग अपने-अपने घरों में आग जलाकर उसमें मूंगफली, रेवड़ियों, फूलमखानों की आहुति डालते हैं और लोक गीतों को गाते हुए नाचते हुए आग तापते हैं।

लोहड़ी वाले दिन माता-पिता अपनी विवाहिता बेटियों के घर उपर्युक्त चीजें और वस्त्राभूषण भेजते हैं। जिनके घर लड़के की शादी हुई हो या लड़का पैदा हुआ हो, वे लोग अपने नाते-रिश्तेदारों को बुलाकर धूमधाम से लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। कुछ क्रांतिकारी लोगों ने अब लड़की के जन्म पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है।

पुराने जमाने में लड़के-लड़कियाँ समूह में घर-घर जाकर लोहड़ी माँगते थे और आग जलाने के लिए उपले और लकड़ियाँ एकत्र करते थे। साथ ही वे ‘दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी’, ‘गीगा जम्यां परात गुड़ वंडिया’ तथा ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-दुल्ला भट्ठी वाला’ जैसे लोक गीत भी गाया करते थे। युग और परिस्थितियाँ बदलने के साथ-साथ लोहड़ी माँगने की यह प्रथा लुप्त होती जा रही है। लोग अब अपने घरों में कम होटलों में अधिक लोहड़ी मनाते हैं और आग जलाने के स्थान पर डी०जे० पर फिल्मी गाने गाते हैंलोक गीत तो जैसे लोग भूल ही गए हैं। बस लोहड़ी के अवसर पर पीना-पिलाना और नाचना-गाना ही शेष बचा है।

कुछ लोग लोहड़ी के त्योहार को फसली त्योहार मानते हैं। गन्ने की फसल तैयार हो जाती है और गुड़-शक्कर बनना शुरू हो जाता है। सरसों की फसल भी तैयार हो जाती। मकई की फसल घरों में आ चुकी होती है। शायद इन्हीं कारणों से आज भी गन्ने के रस की खीर, सरसों का साग और मकई की रोटी बनाने का रिवाज है।

समय चाहे कितना बदल गया हो, किन्तु लोहड़ी के त्योहार को आपसी भाईचारे और पंजाबी संस्कृति का त्योहार माना जाता है।

होली

हिंदुओं के त्योहारों में होली का त्योहार एक प्रमुख त्योहार है। रंगों का यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिन को हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जोड़ कर देखा जाता था। होलिका दहन की घटना को याद कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित की जाती थी और यह कल्पना की जाती थी राक्षसी प्रवृत्ति वाली होलिका जल गई है। आज भी कुछ स्थानों पर होली बसन्त के बाद महीना भर मनाई जाती है। वृन्दावन और बरसाने की होली देखने तो देश-विदेश से कई लोग आते हैं।

होली रंगों का और मेल मिलाप का त्योहार है, किन्तु आज की युवा पीढ़ी ने इसे हुड़दंग बाजी का त्योहार बना दिया है। होली के त्योहार को ही कई लोग गांजा, सुल्फा, भांग या शराब पीना शुभ समझते हैं, किन्तु ऐसा करना कभी भी शुभ नहीं माना जाता। यदि किसी पवित्र त्योहार के दिन हम व्यसनों और कुरीतियों की ओर बढ़ते हैं तो इससे हम त्योहार के वास्तविक महत्त्व से बहुत दूर हट जाते हैं।

होली के अवसर पर पहले लोग अबीर, गुलाल से रंग खेलते थे, किन्तु आज हम सस्ते के चक्कर में सिंथेटिक रंगों से होली खेलते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। इन रंगों के आँखों में पड़ने से आँखों की रोशनी जाने का खतरा बना रहता है। आज आवश्यकता है होली के त्योहार की पवित्रता से युवा पीढ़ी को, बच्चों को परिचित करवाने की। इसके लिए हमारे धार्मिक और सामाजिक नेताओं को आगे आना चाहिए, होली आपसी भाईचारे का, मेल-मिलाप का त्योहार है, हमें यह त्योहार ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का भेद भुला देना सिखाता है। हमें इस दिन लोगों में खुशियाँ बाँटनी चाहिए न कि दुःख या कष्ट पहुँचाना। हमें बड़ों की ही नहीं डॉक्टरों की सलाह पर भी ध्यान देना चाहिए।

वैशाखी

वैशाखी का त्यौहार वैशाख मास की संक्रान्ति को मनाया जाता है। पहले पहल यह त्योहार फसली त्योहार माना जाता था जिसे किसान लोग अपनी गेहूँ की फसल तैयार हो जाने पर मनाते थे। इस दिन गाँव-गाँव मेले लगते हैं। कई स्थानों पर यह मेला दो-दो अथवा तीन-तीन दिनों तक चलता है। नौजवान लोग भाँगड़ा डालते हैं । लोग सजधज कर इन मेलों में शामिल होते हैं । इस त्योहार को शीत ऋतु के प्रस्थान और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का त्योहार भी माना जाता है। लोग पवित्र नदियों व सरोवरों में जाकर स्नान करते हैं और गुरुद्वारों में मत्था टेक कर निहाल होते हैं।

वैशाखी के दिन रबी की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है जिससे किसानों के ही नहीं, मज़दूरों और शिल्पकारों और दुकानदारों के चेहरे पर रौनक आ जाती है। वास्तव में सारा व्यापार रबी की अच्छी फसल पर ही निर्भर करता है।

वैसाखी का यह पर्व हमें सन् 1699 का वह दिन भी याद दिलाता है जिस दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसे की साजना की थी। गुरु जी कहा करते थे-जब शान्ति एवं समझौते के सभी तरीके असफल हो जाते हैं तब तलवार उठाने में नहीं झिझकना चाहिए।

वैशाखी का यह पर्व पहले उत्तर भारत में ही विशेषकर गाँवों में मनाया जाता था, किंतु सन् 1919 में इसी दिन जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार को याद करते हुए वैशाखी का यह पर्व सारे भारत में मनाया जाता है और जलियांवाला बाग में शहीदों को याद किया जाता है।

वैशाखी वाले दिन से ही नवीन विक्रमी वर्ष का आरम्भ माना जाता है। कई जगहों पर इसी दिन साहुकार लोग अपने नए बही खाते खोलते हैं और मनौतियाँ मनाते हैं। पंजाब के किसान तो खुशी से झूम कर गा उठते हैं-‘जट्टा ओ आई वैशाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। युवक भाँगड़ा डालते हैं तो युवतियाँ गिद्दा डालती हैं। इसी कारण वैशाखी के त्योहार को पंजाब के ग्रामीण मेलों का सिरताज कहा जाता है।

रक्षाबंधन

रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी कारण कई लोग इसे श्रावणी पर्व के नाम से भी याद करते हैं। इसी त्योहार के दिन से कार्तिक शुक्ला एकादशी तक चतुर्मास भी मनाया जाता है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनि और ब्राह्मण इन चार महीनों में यात्रा नहीं करते थे, अपने आश्रमों में ही रहते थे। राज्य की ओर से उनके रहने खाने-पीने का प्रबंध किया जाता था। आजकल इस नियम का पालन केवल जैन साधु एवं साधवियाँ ही कर रहे हैं।

रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्यार से कब से सीमित हो गया इसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता। केवल चित्तौड़ की महारानी करमवती द्वारा मुग़ल सम्राट् हुमायूँ को भेजी राखी की घटना का ही उल्लेख मिलता है। हुमायूँ ने राखी मिलने पर गुजरात के मुसलमान शासक को हरा कर अपनी मुँह बोली बहन के राज्य की रक्षा की थी, किन्तु शुरूशुरू में रक्षाबंधन केवल ब्राह्मण ही अपने यजमानों के ही बाँधा करते थे। समय के परिवर्तन के साथ राजपूत स्त्रियों ने अपने पतियों की कलाई पर युद्ध में जाते समय रक्षाबंधन बाँधना शुरू कर दिया।

आजकल यह त्योहार केवल भाई-बहनों का त्योहार बन कर ही रह गया है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और भाई उसकी सुरक्षा की प्रतिज्ञा करता है। किंतु आज बहन स्वयं आत्मनिर्भर हो गई है। अपने परिवार का (माता-पिता, भाई-बहन का) भरण पोषण करती है फिर वह अपनी सुरक्षा की गारंटी क्यों चाहेगी। दूसरे आज यह त्योहार मात्र परंपरा का निर्वाह बन कर रह गया है। आज बहन अबला नहीं सबला नारी हो गई है।

पुराने जमाने में विवाहित स्त्रियाँ अपने मायके चली जाती थीं। वह अपनी सहेलियों संग झूला झुलती, आमोद-प्रमोद में दिन बिताती हैं। शायद इसीलिए बड़े-बुजुर्गों ने श्रावण महीने में सास-बहु के इकट्ठा रहने पर रोक लगा दी थी, किंतु आज बड़ों के इस आदेश या नियम की कोई पालना नहीं करता। … हमें चाहिए कि आज प्रत्येक त्योहार को हम पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाएँ और अपनी जाति के गौरव और अपने देश की संस्कृति का ध्यान रखें। समय और परिस्थिति के अनुसार उसमें उचित सुधार कर लें।

दशहरा (विजयदशमी)

दशहरा (विजयदशमी) का त्योहार देश भर में शारदीय नवरात्रों के बाद दशमी तिथि को मनाया जाता है। प्रसिद्ध एवं सर्वज्ञात रूप से विजयदशमी के त्योहार को भगवान् श्रीराम की लंकापति रावण पर विजय के रूप में अथवा धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में देश के विभिन्न नगरों और गाँवों में दशहरे का मेला लगता है जिसमें रामलीला का मंचन होता है और श्रीराम के जीवन से जुड़ी अनेक झाँकियाँ निकाली जाती हैं। जिन गाँवों में यह मेला नहीं लगता वहाँ के लोग निकट के नगर में यह मेला देखने जाते हैं। दशमी के दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के बड़े-बड़े पुतले, जो रामलीला मैदान में स्थापित किए होते हैं, जलाए जाते हैं।

विजयदशमी का यह त्योहार बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। प्रान्त भर में माँ दुर्गा की विशाल मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और विजयदशमी के दिन गंगा में या निकट की नदियों में विसर्जित की जाती हैं। प्राचीन काल में क्षत्रिय लोग शक्ति के प्रतीक शस्त्रों की पूजा किया करते थे।

महाराष्ट्र में विजयदशमी सीमोल्लंघन के रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव के लोग नए वस्त्र पहन गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘सोना’ लूट कर गाँव लौटते हैं और उस सुवर्ण का आदान-प्रदान करते हैं।

प्राचीन इतिहास के अनुसार इसी दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की थी। पाण्डवों ने भी इसी दिन अपना तेरह वर्षों का अज्ञातवास पूरा कर द्रौपदी का वरण किया था।

विजयदशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का पर्व है। राष्ट्रीय दृष्टि से यह दिन सैन्य संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की पूजा का दिन है। हम स्वयं को आराधना और तप से उन्नत करें, धर्म की, सत्य की अधर्म और असत्य पर विजय को याद रखें और राष्ट्र की सैन्य शक्ति को सुदृढ़ करें, यही विजयदशमी का संदेश है।

दीपावली

दीपावली का त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार को भगवान् श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण जी सहित लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे। इस अवसर पर अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। यह त्योहार प्रायः सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। लोग अपने घरों और दुकानों को साफ़ कर सजाते हैं। बाज़ारों में चहल-पहल बढ़ जाती है। लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ और उपहार भेंट करते हैं।

दीपावली का यह त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्र्योदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन या गहने खरीदना शुभ मानते हैं। इससे अगला दिन नरक चौदस अथवा छोटी दीवाली के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। अमावस्या की रात को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। इस रात धन की देवी लक्ष्मी जी और विघ्ननाशक गणेश जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी और गणेश जी की समन्वित पूजा का अर्थ है धन का मंगलमय संचयन और उसका धर्म सम्मत उपयोग। अमावस्या से अगला दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का भी विधान है तथा कार्तिक शुक्ला द्वितीया को भाई-बहन का दूसरा बड़ा त्योहार भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। इस तरह पाँच दिनों तक चलने वाला दीवाली का त्योहार समाप्त हो जाता है।

दीवाली के अवसर पर जुआ खेलने की कुप्रथा का भी प्रचलन है। इस कुप्रथा को बन्द होना चाहिए। भले ही जुआ खेलना एक कानूनी अपराध है, किन्तु फिर भी लोग जुआ खेलते हैं। दीवाली के अवसर पर पटाखे चलाने और आतिशवाजी भी हमें बंद कर देने चाहिए। हर वर्ष करोड़ों रुपए पटाखे चलाकर ही हम नष्ट कर देते हैं । इन रुपयों से लाखों भूखों को रोटी दी जा सकती है। लाखों गरीब बच्चों को पढ़ाया जा सकता है। चण्डीगढ़ में सन् 2008 में छात्रों ने पटाखे न चलाने का प्रण करते हुए एक जुलूस भी निकाला था, जो एक सराहनीय कदम है। दीवाली के इस त्योहार को हमें बदली परिस्थितियों के अनुसार मनाना चाहिए।

वसंत ऋतु

वसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु अंग्रेज़ी महीने के मार्च-अप्रैल और विक्रमी संवत् के महीनों चैत्र-वैशाख महीनों में आती है, किन्तु लोग वसंत आगमन का त्योहार वसंत पंचमी का त्योहार माघ महीने की पंचमी को ही मना लेते हैं। कहा जाता है आया वसंत तो पाला उड़त अर्थात् इस ऋतु में शीत का अंत हो जाता है। मानव शरीर में नई चेतना एवं स्फूर्ति का अनुभव होने लगता है। इस ऋतु में शरीर में नए रक्त का संचार होता है। प्रकृति भी नए रूप और यौवन के साथ प्रकट होती है। हर तरफ मादकता छायी रहती है। वृक्षों पर नई कोंपलें फूट निकलती हैं और बागों में तरह तरह के फूल खिल उठते हैं। खेतों में फूली सरसों देखकर लगता है जैसे प्रकृति ने पीली चुनरी ओढ़ रखी हो। शायद इसीलिए वसंत को कामदेव का पुत्र माना जाता है। कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाकर प्रकृति नाच उठती है। हर तरफ हरियाली छा जाती है। शीत मंद और सुगंध भरी वायु बहने लगती है। फूलों पर भौरे मँडराने लगते हैं।

वसंतागमन की सूचना हमें कोयल की कूहू कुहू से मिल जाती है और प्रकृति की इस मादकता का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ना शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म इसी दिन हुआ था। इसी दिन धर्मवीर हकीकत राय ने धर्म के नाम पर अपना बलिदान दिया था। वसंत पंचमी के दिन बटाला में उनकी समाधि पर बड़ा भारी मेला लगता है। साहित्य जगत् के लोग भी कविवर निराला का जन्म दिन वसंत पंचमी वाले दिन ही मनाते हैं।

वसंत पंचमी के दिन अनेक नगरों में मेले लगते हैं। दिन में कुश्तियाँ होती हैं और शास्त्रीय गायन की सभा सजती है। दिन में लोग पतंग उड़ाते हैं। लखनऊ में पतंगबाजी के मुकाबले सारे देश में प्रसिद्ध हैं। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते हैं। घरों में पीले चावल या पीला हलवा बनाया जाता है।

जब तक ‘मेरा रंग दे वसन्ती चोला नी माए’ गीत गाया जाता रहेगा, वसंत ऋतु हमें सरदार भगत सिंह और वीर हकीकत राय शहीदों की याद दिलाती रहेगी।

मेरे जीवन का उद्देश्य

संसार में मनुष्य के दो ही उद्देश्य होते हैं। पहला आध्यात्मिक और दूसरा भौतिक या सांसारिक। आध्यात्मिक लक्ष्य-ईश्वर प्राप्ति सबका समान होता है किन्तु सांसारिक लक्ष्य मनुष्य अपनी योग्यता और परिस्तिथतियों के अनुसार चुनता है और उसे पूरा करने का यत्न करता है।

मैंने बचपन से ही यह सोच रखा है कि मैं बड़ा होकर एक प्राध्यापक बनूँगा। प्राध्यापक बन कर जहाँ मैं अपनी ज्ञान की भूख मिटा सकूँगा वहाँ समाज, देश की भी सेवा कर सकूँगा। जितने भी डॉक्टर, इंजीनियर बनते हैं उन्हें बनाने वाले प्राध्यापक ही होते हैं। कहते हैं सारा पानी इसी पुल के नीचे से गुज़रता है। बड़ों ने ठीक कहा है कि किसी भी देश या जाति के भविष्य को अगर कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। किसी भी देश या जाति के चरित्र को यदि कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। शायद इसी कारण कबीर जी गुरु (अध्यापक) को ईश्वर से बड़ा मानते हैं। भले ही आज न तो वैसे शिष्य रहे हैं और न ही अध्यापक किन्तु फिर भी अध्यापक की महत्ता कम नहीं हुई।

आज के माता-पिता के पास अपने बच्चों को पढ़ाने, सिखाने या कुछ बनाने का समय ही नहीं है। केवल अध्यापक ही है जो अपने छात्रों के अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचानता है और उसे सही रूप देता है। इसलिए मैं भी एक अच्छा और आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे पहले एम० ए० करना पड़ेगा फिर बी० एड० या पी एच- डी०।

इसके लिए काफ़ी मेहनत की ज़रूरत है। आजकल प्रतियोगिता का युग है। अतः मुझे सभी परीक्षाएँ अच्छे नम्बरों से पास करनी होंगी। इसके लिए हिम्मत और लग्न चाहिए क्योंकि कहा भी है हिम्मत करे इन्सान तो क्या हो नहीं सकता।

परोपकार या सेवा धर्म

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की यह विशेषता रही है कि व्यक्ति अपने हित की बात छोड़कर दूसरों की सेवा करता रहा है। इसी लिए तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है’परहित सरिस धर्म नहीं भाई।’ सच है परोपकार ही जीवन का सार है, स्वार्थ नहीं निस्वार्थ और परोपकार ही मनुष्य को सच्चा मनुष्य बनाते हैं। पर उपकार से बढ़कर कोई दूसरी सेवा या पुण्य नहीं। ऐसा ही उदाहरण भाई कन्हैया ने सन् 1704 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी की सेना और मुग़ल सेना के बीच हो रहे युद्ध में घायलों को बिना किसी भेदभाव के पानी पिलाकर पर सेवा का अद्भुत नमूना प्रस्तुत किया था।

कालान्तर में महात्मा बुद्ध, भगवान् महावीर, महात्मा गाँधी और मदर टेरेसा जैसी महान् विभूतियों ने भी परोपकार को ही अपनाकर नाम कमाया। उन्होंने दूसरों को सुखी बनाने के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया। इन महापुरुषों ने अहिंसा को अपना आदर्श बनाया। क्योंकि स्वार्थ परपीड़ा और हिंसा को जन्म देता है। हिंसा में सभी अधर्मों और पापों का समावेश हो जाता है। परपीड़ा यदि अधर्म की सीमा है तो परहित, दूसरों की निस्वार्थ सेवा करना धर्म की दीन दुखियों की सेवा करना एक अनुपम गुण है। यह गुण जिस व्यक्ति में आ जाए, वह महान् आत्मा है।

परोपकार की शिक्षा मनुष्य ने प्रकृति से ली है। नदियाँ कभी अपना जल नहीं पीती हैं, वे सदा दूसरों की प्यास शान्त करती हैं। वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, वे उनको संसार के प्राणियों के लिए अर्पित कर देते हैं। बादल सदा दूसरों की सेवा के लिए बनते हैं, वे स्वयं नष्ट होकर धरती को हरियाली प्रदान करते हैं। इसी प्रकार सज्जन लोग भी परोपकार के लिए ही धन संचय करते हैं। हमारा इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब लोगों ने परोपकार के लिए अपनी धन सम्पत्ति ही नहीं घरबार को त्याग दिया। महर्षि दधीचि का वह त्याग कैसे भुलाया जा सकता है जब उन्होंने देवताओं की सहायता के लिए अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया था।

भले ही आज रेडक्रास जैसी संस्था यही कार्य कर रही है किन्तु स्वार्थ भरे इस युग में परोपकार के लिए किसी के पास समय नहीं है आज तो बस इतना ही कहा जाता है-पहले पूत फिर परोहित।

सदाचार

सदाचार का अर्थ है अच्छा आचरण अर्थात् व्यवहार। सदाचार से मनुष्य में अनेक अच्छे गुण आते हैं जैसे वह दूसरों के प्रति विनम्रता, आदर भाव, दया भाव रखता है। सदाचार से ही व्यक्ति में नैतिकता और सत्यनिष्ठा आती है। सदाचार ही मनुष्य को आदर्श नागरिक बनाता है। सदाचारी मनुष्य में साम्प्रदायिक भेद नहीं होता और न ही ईर्ष्या द्वेष होता है। वह मानव मात्र से प्रेम करता है जिससे समाज में व्यवस्था और शान्ति स्थापित होती है।

प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके पास बौद्धिक शक्ति होती है। इसी शक्ति के आधार पर व्यक्ति अच्छे बुरे या सत् असत् का निर्णय करता है शास्त्रों में सत् को धर्म तथा सदाचार अर्थात् सत् को जानता और उस पर आचरण करना परम धर्म माना गया है। गुरुओं ने भी सच्चे आचरण को ही महत्त्व दिया है। सदाचार का मुख्य गुण सत् है। हमारी आस्था है कि सदा सत्य की जीत होती है, झूठ की नहीं। सत्यवादी हरिश्चन्द्र की कथा सुन कर ही बचपन में महात्मा गाँधी इतने प्रभावित हुए कि जीवन भर उन्होंने सत्य का सहारा लिया और देश को स्वतन्त्र कराया।

बच्चा सामान्य रूप से सत्य ही बोलता है। हम स्वार्थवश ही उसे झूठ बोलना सिखाते हैं। हमें बच्चे को झूठ बोलने का अवसर नहीं देना चाहिए क्योंकि सत्यवादी बालक निर्भय हो जाता है और छल कपट या अपराध से दूर भागता है। ऐसा बालक सबका विश्वास पात्र बन जाता है।

अहिंसा, नम्रता और नैतिकता सदाचार के अन्य गुण हैं इनमें से नैतिकता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बच्चों में नैतिकता लाने के लिए उनकी संगति का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। अच्छी संगति से ही बच्चों का चरित्र निर्माण होता है। वह स्वस्थ एवं नीरोग रहता है। माता-पिता की सेवा करता है, उनका कहा मानता है।

इस तरह सदाचार में सत्यवादिता, नम्रता, प्रेम भावना, नैतिकता आदि गुणों का समावेश है। जिसे अपनाने से मनुष्य अपना जीवन सार्थक करता है, मान-सम्मान पाता है, समाज तथा राष्ट्र का हित करता है।

सहयोग

एक-दूसरे का साथ देना सहयोग कहलाता है। हर आदमी को एक-दूसरे की सहायता अथवा रास्ता दिखाने की ज़रूरत पड़ती है। हम उन कमियों को एक-दूसरे का सहयोग प्राप्त कर दूर कर लेते हैं। सहयोग से ही हम कठिनाइयों पर विजय पा सकते हैं। सहयोग जीवन का आधार है।

अन्धे और लंगड़े की कहानी भी सहयोग का एक उदाहरण है। किसी गाँव में अन्धा और लंगड़ा रहते थे। गाँव में वर्षा के दिनों पानी भर गया। गाँव के लोग वहाँ से चले गए। अन्धा और लंगड़ा ही केवल वहाँ रह गए। मुसीबत को सामने देख लंगड़े को एक बात सूझी। उसने अन्धे से कहा कि तुम मुझे अपने कन्धे पर बैठा लो। मैं तुम्हें रास्ता बताता जाऊँगा। इस तरह हम बच जाएँगे। अन्धे को उसकी बात पसन्द आई। ऐसा करके अर्थात् एक-दूसरे के सहयोग से दोनों इस संकट को पार कर गए।

जीवन का कोई भी क्षेत्र हो चाहे बचपन हो, चाहे जवानी या बुढ़ापा, सहयोग के बिना हम कहीं भी आगे नहीं बढ़ सकते। बड़ी-से-बड़ी विपत्ति का मुकाबला सहयोग द्वारा किया जा सकता है। जैसे एक छोटा-सा तिनका तो एकदम आप तोड़कर नष्ट कर सकते हैं परन्तु यदि 50-100 तिनके इकट्ठे करके आप उन्हें तोड़कर नष्ट कर देना चाहें तो कठिनाई आएगी। यह उनका आपसी सहयोग ही आपके लिए कठिनाई ला सकता है।

इसी तरह आपने कबूतरों की कहानी सुनी होगी कि जब वे इकटे आकाश में उड़े जा रहे थे तो किसी शिकारी ने उन्हें पकड़ने के लिए जंगल में चावलों के दाने बिखेर कर ऊपर जाल बिछा दिया। कबूतरों की दृष्टि जब जंगल में पड़े दानों पर पड़ी तो उनका मन ललचा गया। सभी उन दानों पर टूट पड़े। नीचे बैठते ही जाल में फँस गए। अब क्या किया जा सकता था ? कबूतरों के राजा को एक युक्ति (ढंग) सूझी। उसने सबसे आपसी सहयोग की प्रार्थना की। ऐसा सुनते ही सभी कबूतरों ने इकट्ठे होकर (सहयोग से) उड़ान भरी और शिकारी का जाल उठाकर उड़ गए। शिकारी मुँह देखता ही रह गया। कबूतर आपसी सहयोग से ही शिकारी के जाल से छुटकारा पा सके।

सहयोग के बिना हम किसी क्षेत्र में भी अकेले सफल नहीं हो सकते। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थी को अध्यापक, चपड़ासी अथवा अन्य किसी भी कर्मचारी के सहयोग की आवश्यकता बनी रहती है। खेल जगत् में तो सहयोग ही सफलता प्राप्त करने का एकमात्र साधन है।

हमें आपसी सहयोग को ध्यान में रखते हुए हर हालत में एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए या सहयोग देना चाहिए तभी हम ऊँचे-से-ऊँचे पद प्राप्त कर सकते हैं। बड़े-बड़े कार्य कर सकते हैं और बड़े-से-बड़े दुश्मन को दबा सकते हैं। इसलिए सहयोग शब्द का अनुसरण करना ही हमारे लिए सब सुख देने वाला है।

दाँतों की आत्म-कथा
अथवा
दाँत कुछ कहते हैं

हमारा निवास स्थान मुँह है। हमारी टीम के 32 सदस्य हैं। हमारा मुख्य काम भोजन को चबाना है। भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े करना और पीस कर चबाना हमारे परिवार के विभिन्न सदस्यों का काम है।

भोजन को चबाने के अलावा ठीक प्रकार से और सही बोलने के लिए भी हमारा होना बहुत ज़रूरी है। हमारा जन्म शरीर के दूसरे अंगों की तरह न होकर बाद में एक-एक, दोदो करके मसूढ़ों पर होता है।

हम आपकी सेवा तभी कर सकेंगे यदि आप भी हमारा ठीक से ध्यान रखेंगे। नियमित रूप से हमारी सफ़ाई होनी चाहिए। अगर सफ़ाई न हो तो भोजन के छोटे-छोटे टुकड़ें हम में फंसे रह जाते हैं। वे वहाँ पड़े-पड़े सड़ने लगते हैं। इनमें कीटाणु पैदा होकर एक प्रकार का तेज़ाब तैयार कर देते हैं। इस तेज़ाब के प्रभाव से एनेमल की ऊपरी तह संक्षारित (नष्ट) हो जाती है। एनेमल की तह हटते ही ये कीटाणु हमारी जड़ों तक पहुँच कर हमें खोखला कर देते हैं। अन्त में हम एक-एक करके आपकी सेवा करना छोड़ देते हैं।

सफ़ाई के अलावा हमें अपने व्यायाम की भी ज़रूरत होती है। सख्त पदार्थ खाने से हमारा व्यायाम होता है। मगर बहुत सख्त चीज़ हम से तुड़वाने की कोशिश न करो। हो सकता है ऐसा करने में हमारा कोई साथी जवाब दे जाए।

यदि आप अपने आपको तन्दरुस्त रखना चाहते हैं तो पहले हमें स्वस्थ रखें। हमें स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम, फॉस्फोरस, विटामिन सी और डी युक्त भोजन खाना चाहिए।

अगर किसी भी कारण से हमारी सेहत कमज़ोर होती दिखाई दे तो तुरन्त ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए न कि खुद ही कोई उल्टा-पुल्टा इलाज करने लग जाएँ। क्योंकि नीमहकीम खतरा जान। आप हमारे मालिक हैं और हम आपके सेवक हैं। हम आपके दाँत हैं जिनके महत्त्व के बारे में किसी ने कहा है-दाँत गए तो स्वाद ही गया।

सबको अपने दाँतों का ख्याल रखना चाहिए। बच्चों में दाँतों की देख-रेख के विचार शुरू से ही पैदा करने चाहिएँ। खूबसूरत दाँत सबको अच्छे लगते हैं। बहुत-सी बीमारियां दाँतों की खराबी के कारण पैदा हो जाती हैं। इसलिए हमेशा अपने दाँतों की रक्षा करो।

मोबाइल के लाभ और हानियाँ

एक समय था जब टेलीफ़ोन पर किसी दूसरे से बात करने के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। किसी दूसरे नगर या देश में रहने वालों से बातचीत टेलीफ़ोन एक्सचेंज के माध्यम से कई-कई घण्टों के इन्तजार के बाद संभव हो पाती थी किन्तु अब मोबाइल के माध्यम से कहीं भी कभी भी सेकेंडों में बात की जा सकती है। सेटेलाइट मोबाइल फ़ोन के लिए यह कार्य और भी अधिक आसानी से सम्भव हो जाता है। तुरन्त बात करने और सन्देश पहुँचाने को इससे सुगम उपाय सामान्य लोगों के पास अब तक और कोई नहीं है। विज्ञान के इस अद्भुत करिश्मे की पहुंच इतनी सरल, सस्ती और विश्वसनीय है कि आज यह छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े सभी के पास दिखाई देता है।

मोबाइल फ़ोन दुनिया को वैज्ञानिकों की ऐसी अद्भुत देन है जिसने समय की बचत कर दी है, धन को बचाया है और दूरियाँ कम कर दी हैं। व्यक्ति हर अवस्था में अपनों से जुड़ा-सा रहता है। कोई भी पल-पल की जानकारी दे सकता है, ले सकता है और इसी कारण यह हर व्यक्ति के लिए उसकी सम्पत्ति-सा बन गया है, जिसे वह सोते-जागते अपने पास ही रखना चाहता है। कार में, रेलगाड़ी में, पैदल चलते हुए, रसोई में, शौचालय में, बाज़ार में मोबाइल फ़ोन का साथ तो अनिवार्य-सा हो गया है। व्यापारियों और शेयर मार्किट से सम्बन्धित लोगों के लिए तो प्राण वायु ही बन चुका है। दफ्तरों, संस्थाओं और सभी प्रतिष्ठिानों में इसकी रिंग टोन सुनाई देती रहती है।

मोबाइल फ़ोन की उपयोगिता पर तो प्रश्न ही नहीं किया जा सकता। देश-विदेश में किसी से भी बात करने के अतिरिक्त यह लिखित संदेश, शुभकामना संदेश, निमंत्रण आदि मिनटों में पहुँचा देता है। एस. एम. एस. के द्वारा रंग-बिरंगी तस्वीरों के साथ संदेश पहुँचाए जा सकते हैं। अब तो मोबाइल फ़ोन चलते-फिरते कम्प्यूटर ही बन चुके हैं, जिनके माध्यम से आप अपने टी०वी० के चैनल भी देख-सुन सकते हैं। यह संचार का अच्छा माध्यम तो है ही, साथ ही साथ वीडियो गेम्स का भंडार भी है। यह टॉर्च, घड़ी, संगणक, संस्मारक, रेडियो आदि की विशेषताओं से युक्त है। इससे उच्च कोटि की फोटोग्राफ़ी की जा सकती है। वीडियोग्राफ़ी का काम भी इससे लिया जा सकता है। इससे आवाज़ रिकॉर्ड की जा सकती है और उसे कहीं भी, कभी भी सुनाया जा सकता है। एक तरह से यह छोटा-सा उपकरण अलादीन का चिराग ही तो है।

मोबाइल फ़ोन के केवल लाभ ही नहीं हैं बल्कि इसकी कई हानियाँ भी हैं। बारबार बजने वाली इसकी घंटी परेशानी का बड़ा कारण बनती है। जब व्यक्ति गहरी नींद में डूबा हो तो इसकी घंटी कर्कश प्रतीत होती है। मन में खीझ-सी उत्पन्न होती है। अनचाही गुमनाम कॉल आने से असुविधा का होना स्वाभाविक ही है। मोबाइल फ़ोन से जहाँ रिश्तों में प्रगाढ़ता बढ़ी है वहाँ इससे छात्र-छात्राओं की दिशा में भटकाव भी आया है। फ़ोन-मित्रों की संख्या बढ़ी है जिससे उनका वह समय जो पढ़ने-लिखने में लगना चाहिए था वह गप्पें लगाने में बीत जाता है। इससे धन भी व्यर्थ खर्च होता है। अधिकांश युवा वाहन चलाते समय भी मोबाइल फ़ोन से चिपके ही रहते हैं और ध्यान बँट जाने के कारण बहुत बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। मोबाइल फ़ोन अपराधी तत्वों के लिए सहायक बनकर बड़े-बड़े अपराधों के संचालन में सहायक बना हुआ है। जेल में बंद अपराधी भी चोरी-छिपे इसके माध्यम से अपने साथियों को दिशा-निर्देश देकर अपराध, फिरौती और अपहरण का कारण बनते हैं।

मोबाइल फ़ोन अदश्य तरंगों से ध्वनि संकेतों का प्रेषण करते हैं जो मानव-समाज के लिए ही नहीं अपितु अन्य जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक होती हैं। ये मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। कानों पर बुरा प्रभाव डालती हैं और दृश्य के तारतम्य को बिगाड़ती है। यही कारण है कि चिकित्सकों द्वारा पेसमेकर प्रयोग करने वाले रोगियों को मोबाइल फ़ोन प्रयोग न करने का परामर्श दिया जाता है।

वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि भविष्य में नगरों में रहने वाली चिड़ियों की अनेक प्रजातियाँ अदृश्य तरंगों के प्रभाव से वहाँ नहीं रह पाएँगी। वे वहाँ से कहीं दूर चली जाएँगी या मर जाएँगी, जिससे खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी।

प्रत्येक सुख के साथ दुःख किसी-न-किसी प्रकार से जुड़ा ही रहता है। मोबाइल फ़ोन के द्वारा दिए गए सुखों और सुविधाओं के साथ कष्ट भी जुड़े हुए हैं।

मेरा पंजाब

पंजाब को पाँच पानियों की धरती कहा जाता है किन्तु विभाजन के बाद यह प्रदेश तीन पानियों (नदियों) की धरती ही रह गया है। 1 नवम्बर, सन् 1966 से पंजाब में से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अलग कर दिए गए, जिससे वर्तमान पंजाब और छोटा हो गया है। वर्तमान पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है तथा सन् 2011 को जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.77 करोड़ है।

गुरुओं, पीरों पैगम्बरों, ऋषिमुनियों की पंजाब की इस धरती ने भारत पर होने वाले प्रत्येक आक्रमण का सामना किया। यूनान के सिकन्दर महान् के आक्रमण को तो पंजाबियों ने खदेड़ दिया था किन्तु मुहम्मद गौरी के आक्रमण का आपसी फूट के कारण मुकाबला न कर सके। राष्ट्रीयता की कमी के कारण यहाँ मुसलमानी शासन स्थापित हो गया। किन्तु शूरवीरता, देशभक्ति पंजाबियों की रग-रग में भरी रही। इसका प्रमाण पंजाबियों ने पहले तथा दूसरे विश्व युद्ध में तथा सन् 1948, 1965 और 1971 के पाकिस्तान के हुए युद्धों तथा मई, सन् 1999 में हुए कारगिल युद्ध में दिया।

पंजाबी लोग दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं वहाँ उन्होंने अपने परिश्रमी स्वरूप की धाक जमा दी है। पंजाब के किसान देश के अन्य भण्डार में सबसे अधिक अनाज देते हैं इसका कारण यहाँ की उपजाऊ भूमि, आधुनिक कृषि तकनीक तथा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार है। यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, कपास, गन्ना, मक्की और मूंगफली आदि है। सब्जियों में आलू, मटर की पैदावार के लिए पंजाब जाना जाता है।

पंजाब में औद्योगिक क्षेत्र में भी काफ़ी उन्नति की है। लुधियाना हौजरी के सामान के लिए, जालन्धर खेलों के सामान के लिए, अमृतसर सूती व ऊनी कपड़े के उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। मण्डी गोबिन्दगढ़ इस्पात उद्योग तथा नंगल व बठिण्डा खाद बनाने के कारखानों के लिए जाने जाते हैं।

शिक्षा के प्रसार के लिए पंजाब देशभर में दूसरे नम्बर पर है। पंजाब में छः विश्वविद्यालय, सैंकड़ों कॉलेज और हज़ारों स्कूल हैं।

पंजाब की इस प्रगति के कारण इस प्रदेश में प्रति व्यक्ति की औसत आय 20 से 30 हज़ार वार्षिक है। गुरुओं, पीरों, महात्माओं और वीरों की यह धरती उन्नति के शिखरों को छू रही है।

चण्डीगढ़

चण्डीगढ़ देश का पहला आयोजित (Planned) शहर है। इस शहर की नींव 7 अक्तूबर, सन् 1953 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा रखी गयी थी। इस सुन्दर और आदर्श शहर की योजना फ्रांस के एक इंजीनियर एस० डी० कारबूजियर द्वारा तैयार की गई है। पूरा शहर आयतकार सैक्टरों में बँटा हुआ है। प्रत्येक सैक्टर को स्वावलम्बी बनाने के लिए स्कूल, डाकखाना, डिस्पैंसरी, धार्मिक स्थान, मार्कीट, पार्क आदि की व्यवस्था की गई है। सैक्टर 17 को केवल क्रय-विक्रय, होटलों, कार्यालयों आदि के लिए ही रखा गया है। अधिकांश उद्योग राम दरबार में स्थापित हैं।

पयर्टकों के लिए भी यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं, जिनमें रॉक-गार्डन, सुखना लेक, रोज़ गार्डन आदि प्रमुख हैं। जहाँ की चौड़ी-चौड़ी सड़कें और सड़कों के दोनों ओर लगे छायादार वृक्ष इस शहर की शोभा को चार चाँद लगाते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ किसी से पीछे नहीं है। पूरा सैक्टर 14 पंजाब विश्वविद्यालय के लिए रखा गया है। सैक्टर 12 में इन्जीनियरिंग कॉलेज, सैक्टर 32 में मैडिकल कॉलेज तथा कोई दर्जन भर लड़के-लड़कियों के कॉलेज हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ पंजाब और हरियाणा की सेवा कर रहा है। सैक्टर 12 में पी० जी० आई०, सैक्टर 16 और सैक्टर 32 में सरकारी अस्पताल हैं।

सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए सैक्टर 15 में गुरु गोबिन्द सिंह भवन, लाला लाजपतराय भवन विद्यमान है तो सैक्टर 18 में टैगोर थियेटर बना है। चण्डीगढ़ के विषय में एक विशेष बात यह है कि इसमें कोई 13 नम्बर का सैक्टर नहीं है।

चण्डीगढ़ में सचिवालय, विधानसभा तथा उच्च न्यायालय के भवन आधुनिक वास्तुकला का सुन्दर नमूना है। चण्डीगढ़ को बाबूओं का शहर भी कहा जाता है क्योंकि बहुत-से सरकारी कर्मचारी अवकाश प्राप्त करने के बाद यहीं बस गए हैं। चण्डीगढ़ में अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय खोलकर इस शहर की रौनक को और भी बढ़ा दिया है। केन्द्रीय आँकड़ा संस्थान सन् 2005-06 की जो रिपोर्ट भारतीय संसद् में 5-12-2007 को प्रस्तुत की गई थी उसके अनुसार चण्डीगढ़ देश भर में प्रतिव्यक्ति की वार्षिक औसत आय के हिसाब से सबसे आगे है। रिपोर्ट के अनुसार यहाँ के प्रत्येक व्यक्ति की औसत वार्षिक आय 67910 रुपए है।

सन् 2011 की जनगणना के अनुसार चण्डीगढ़ की जनसंख्या 10.5 लाख के करीब है। जो निश्चय ही अगामी जनगणना में 20 लाख के करीब हो जाएगी।

प्रातःकाल की सैर

अंग्रेज़ी की एक कहावत है कि Early to bed and early to rise, makes a man. healthy, wealthy and wise अर्थात् शीघ्र सोने और शीघ्र उठने से व्यक्ति स्वस्थ, सम्पन्न और बुद्धिमान बनता है। आजकल कोई भी छात्र इस नियम का पालन नहीं करता। इस का बड़ा कारण तो यह है कि छात्र देर रात तक टेलीविज़न से चिपके रहते हैं और फिर सुबह सवेरे स्कूल जाने की तैयारी करनी होती है। छात्रों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनके लिए जितनी पढ़ाई ज़रूरी है उतना ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है और स्वस्थ रहने के लिए छात्रों को ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रात:काल में सैर अवश्य करनी चाहिए।

प्रात:काल का समय अत्यन्त सुहावना होता है। व्यक्ति को शुद्ध प्रदूषण रहित वायु मिलती है। प्रातःकालीन सैर के अनेक लाभ हैं। यह ईश्वर द्वारा दी गई ऐसी औषधि है जो प्रत्येक अमीर-गरीब को समान रूप से निःशुल्क मिलती है। प्रात:काल की सैर मनुष्य को नीरोग रखने में सहायक होती है। व्यक्ति का शरीर बलिष्ठ और सुन्दर बनता है। मस्तिष्क को शक्ति और शान्ति मिलती है जिससे व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है, जिसकी विद्यार्थियों को बहुत ज़रूरत है।

हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रात:काल में, सूर्योदय से पहले, पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर 21 बार गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि पीपल का वृक्ष यों तो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है किन्तु ब्रह्म मुहूर्त में वह दुगुनी ऑक्सीजन छोड़ता है और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है जिसके उच्चारण से शरीर के प्रत्येक अंग में ऑक्सीजन पहुँचती है। अतः इस तथ्य को प्रात: सैर करते हुए ध्यान में रखना चाहिए।

प्रात:काल की सैर करते समय हमें अपनी चाल न बहुत तेज़ और न बहुत धीमी रखनी चाहिए। दूसरे प्रात:काल की सैर नियमित रूप से की जानी चाहिए तभी उसका लाभ होगा। हमें याद रखना चाहिए कि प्रात:कालीन सैर शारीरिक दृष्टि से ही नहीं मानसिक दृष्टि से भी अत्यन्त गुणकारी है।

स्वतंत्रता दिवस-15 अगस्त

15 अगस्त भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है। इस दिन भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से भारत मुक्त हुआ था। राष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम में अनेक युवाओं ने बलिदान दिए थे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का लाल किले पर तिरंगा फहराने का सपना इसी दिन सच हुआ था।

देश में स्वतंत्रता दिवस सभी भारतवासी बिना किसी प्रकार के भेदभाव के अपने-अपने ढंग से प्रायः हर नगर, गाँव में तो मनाते ही हैं, विदेशों में रहने वाले भारतवासी भी इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर स्वतंत्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम दिल्ली के लाल किले पर होता है। लाल किले के सामने का मैदान और सड़कें दर्शकों से खचाखच भरी होती हैं। 15 अगस्त की सुबह देश के प्रधानमंत्री पहले राजघाट पर जाकर महात्मा गाँधी की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं फिर लाल किले के सामने पहुँच सेना के तीनों अंगों तथा अन्य बलों की परेड का निरीक्षण करते हैं। उन्हें सलामी दी जाती है और फिर प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर पर जाकर तिरंगा फहराते हैं, राष्ट्रगान गाया जाता है और राष्ट्र ध्वज को 31 तोपों से सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात् प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हुए एक भाषण देते हैं। अपने इस भाषण में प्रधानमंत्री देश के कष्टों, कठिनाइयों, विपदाओं की चर्चा कर उनसे राष्ट्र को मुक्त करवाने का संकल्प करते हैं। देश की भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं। अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री तीन बार जयहिंद का घोष करते हैं। तीन बार जयहिंद का घोष करने की प्रथा भारत के पहले प्रधानमंत्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी, जिसका उनके बाद आने वाले सारे प्रधानमंत्री अनुसरण करते हैं। प्रधानमंत्री के साथ एकत्रित जनसमूह जयहिंद का नारा लगाते हैं। अन्त में राष्ट्रीय गीत के साथ प्रात:कालीन समारोह समाप्त हो जाता है।

सायंकाल में सरकारी भवनों पर विशेषकर लाल किले में रोशनी की जाती है। प्रधानमंत्री दिल्ली के प्रमुख नागरिकों, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, विभिन्न धर्मों के आचार्यों और विदेशी राजदूतों एवं कूटनीतिज्ञों को सरकारी भोज पर आमंत्रित करते हैं।

हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रात:काल में, सूर्योदय से पहले, पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर 21 बार गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि पीपल का वृक्ष यों तो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है किन्तु ब्रह्म मुहूर्त में वह दुगुनी ऑक्सीजन छोड़ता है और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है जिसके उच्चारण से शरीर के प्रत्येक अंग में ऑक्सीजन पहुँचती है। अतः इस तथ्य को प्रात: सैर करते हुए ध्यान में रखना चाहिए।

प्रात:काल की सैर करते समय हमें अपनी चाल न बहुत तेज़ और न बहुत धीमी रखनी चाहिए। दूसरे प्रात:काल की सैर नियमित रूप से की जानी चाहिए तभी उसका लाभ होगा। हमें याद रखना चाहिए कि प्रात:कालीन सैर शारीरिक दृष्टि से ही नहीं मानसिक दृष्टि से भी अत्यन्त गुणकारी है।

15 अगस्त राष्ट्र की स्वतंत्रता के लिए शहीद होने वाले वीरों को याद करने का दिन भी है। इस दिन शहीदों की समाधियों पर माल्यार्पण किया जाता है।

15 अगस्त अन्य कारणों से भी महत्त्वपूर्ण है। इस दिन पाण्डिचेरी के सन्त महर्षि अरविन्द का जन्मदिन है तथा स्वामी विवेकानन्द के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि है। इस दिन हमें अपने राष्ट्र ध्वज को नमस्कार कर यह संकल्प दोहराना चाहिए कि हम अपने तन, मन, धन से अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे।

गणतंत्र दिवस-26 जनवरी

भारत के राष्ट्रीय पर्यों में 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतंत्र दिवस विशेष महत्त्व रखता है। हमारा देश 15 अगस्त, सन् 1947 को अनेक बलिदान देने के बाद, अनेक कष्ट सहने के बाद स्वतंत्र हुआ था। किन्तु स्वतंत्रता के पश्चात् भी हमारे देश में ब्रिटिश संविधान ही लागू था। अतः हमारे नेताओं ने देश को गणतंत्र बनाने के लिए अपना संविधान बनाने का निर्णय किया। देश का अपना संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन लागू किया गया। संविधान लागू करने की तिथि 26 जनवरी ही क्यों रखी गई इसकी भी एक पृष्ठभूमि है। 26 जनवरी, सन् 1930 को पं० जवाहर लाल नेहरू ने अपनी दृढ़ता एवं ओजस्विता का परिचय देते हुए पूर्ण स्वतन्त्रता के समर्थन में जुलूस निकाले, सभाएँ कीं। अतः संविधान लागू करने की तिथि भी 26 जनवरी ही रखी गई।

26 जनवरी को प्रातः 10 बजकर 11 मिनट पर मांगलिक शंख ध्वनि से भारत के गणराज्य बनने की घोषण की गई। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से देश का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। राष्ट्रपति भवन जाने से पूर्व डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। उस दिन संसार भर के देशों से भारत को गणराज्य बनने पर शुभकामनाओं के सन्देश प्राप्त हुए।

गणतंत्र दिवस का मुख्य समारोह देश की राजधानी दिल्ली में मनाया जाता है। सबसे पहले देश के प्रधानमंत्री इण्डिया गेट पर प्रज्ज्वलित अमर ज्योति जाकर राष्ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुख्य समारोह विजय चौक पर मनाया जाता है। यहाँ सड़क के दोनों ओर अपार जन समूह गणतंत्र के कार्यक्रमों को देखने के लिए एकत्रित होते हैं। शुरू-शुरू में राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति की सवारी छ: घोड़ों की बग्गी पर चला करती थी। किन्तु सुरक्षात्मक कारणों से सन् 1999 से राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस समारोह में बग्घी में नहीं कार में पधारते हैं। परंपरानुसार किसी अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रपति अतिथि रूप में उनके साथ होते हैं। तीनों सेनाध्यक्ष राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् राष्ट्रपति प्रधानमंत्री का अभिवादन स्वीकार कर आसन ग्रहण करते हैं।

इसके बाद शुरू होती है गणतंत्र दिवस की परेड। सबसे पहले सैनिकों की टुकड़ियाँ होती हैं, उसके बाद घोड़ों, ऊँटों पर सवार सैन्य दस्तों की टुकड़ियाँ होती हैं। सैनिक परेड के पश्चात् युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन होता है। इस प्रदर्शन से दर्शकों में सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना पैदा होती है। सैन्य प्रदर्शन के पश्चात् विविधता में एकता दर्शाने वाली विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झांकियाँ एवं लोक नृतक मण्डलियाँ इस परेड में शामिल होती हैं।

सायंकाल को सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है तथा रंग-बिरंगी आतिशबाजी छोड़ी जाती है। इस प्रकार सभी तरह के आयोजन भारतीय गणतंत्र की गरिमा और गौरव के अनुरूप ही होते हैं। जिन्हें देखकर प्रत्येक भारतीय यह प्रार्थना करता है कि अमर रहे गणतंत्र हमारा।

राष्ट्र भाषा हिंदी

भारत 15 अगस्त, सन् 1947 को स्वतन्त्र हुआ और 26 जनवरी, सन् 1950 से अपना संविधान लागू हुआ। भारतीय संविधान के सत्रहवें अध्याय की धारा 343 (1) के अनुसार ‘देवनागरी लिपि में हिंदी’ को भारतीय संघ की राजभाषा और देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया है। संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई थी सन् 1965 से देश के सभी कार्यालयों, बैंकों, आदि में सारा कामकाज हिंदी में होगा। किन्तु खेद का विषय है कि स्वतंत्रता प्राप्ति के साठ वर्ष बाद भी सारा काम काज अंग्रेज़ी में ही हो रहा है। देश का प्रत्येक व्यक्ति यह बात जानता है कि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है और हिंदी हमारी अपनी भाषा है।

महात्मा गाँधी जैसे नेताओं ने भी हिंदी भाषा को ही अपनाया था हालांकि उनकी अपनी मातृ भाषा गुजराती थी। उन्होंने हिंदी के प्रचार के लिए ही ‘दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा’ प्रारम्भ की थी। उन्हीं के प्रयास का यह परिणाम है कि आज तमिलनाडु में हिंदी भाषा पढ़ाई जाती है, लिखी और बोली जाती है। वास्तव में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि यह भाषा देश के अधिकांश भाग में लिखी-पढ़ी और बोली जाती है। इसकी लिपि और वर्णमाला वैज्ञानिक और सरल है। आज हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान की राजभाषा हिंदी घोषित हो चुकी है।

हिंदी भाषा का विकास उस युग में भी होता रहा जब भारत की राजभाषा हिंदी नहीं थी। मुगलकाल में राजभाषा फ़ारसी थी, तब भी सूर, तुलसी, आदि कवियों ने श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य की रचना की। उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज़ी शासन के दौरान अंग्रेज़ी राजभाषा रही तब भी भारतेन्दु, मैथिलीशरण गुप्त और प्रसाद जी आदि कवियों ने उच्च कोटि का साहित्य रचा। इसका एक कारण यह भी था कि हिंदी सर्वांगीण रूप से हमारे धर्म, संस्कृति और सभ्यता और नीति की परिचायक है। भारतेन्दु हरिशचन्द्र जी ने आज से 150 साल पहले ठीक ही कहा था –

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल।

लेकिन खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के 68 वर्ष बाद भी हिंदी के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। अपने विभिन्न राजनीतिक स्वार्थों के कारण विभिन्न राजनेता इसके वांछित और स्वाभाविक विकास में रोड़े अटका रहे हैं। अंग्रेजों की विभाजन करो और राज करो की नीति पर आज हमारी सरकार भी चल रही है जो देश की विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों और वर्गों के साथ-साथ भाषाओं में जनता को बाँट रही है ऐसा वह अपने वोट बैंक को ध्यान में रख कर कर रही है। यह मानसिकता हानिकारक है और इसे दूर किया जाना चाहिए। हमें अंग्रेज़ी की दासता से मुक्त होना चाहिए।

राष्ट्रीय एकता

भारत एक अरब से ऊपर जनसंख्या वाला देश है जिसमें विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों के लोग रहते हैं। उनकी भाषाएं भी अलग-अलग हैं, उनकी वेश-भूषा, रीति-रिवाज भी अलग-अलग हैं किन्तु फिर भी सब एक हैं जैसे एक माला में रंग-बिरंगे फूल होते हैं। भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। हमारी राष्ट्रभाषा एक है। देश के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं।

नवम्बर, 2008 में मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों के आक्रमण के समय भारतवासियों ने जिस प्रकार एक जुटता दिखाई उसका उदाहरण मिलना कठिन है। इससे पूर्व भी पाकिस्तानी आक्रमणों के समय अथवा प्राकृतिक आपदाओं के समय ऐसी ही एक जुटता दिखाई थी। इस से यह स्पष्ट होता है कि भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी है। वे चाहे किसी धर्म को मानते हों, किसी जाति के हों, यही कहते हैं-गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं।

पाकिस्तान और उसके भारत में मौजूद कुछ पिठू पाण्डवों की इस उक्ति को भूल जाते हैं कि उन्होंने कहा था पाण्डव पाँच हैं और कौरव 100 किसी बाहरी शत्रु के लिए हम एक सौ पाँच हैं। वास्तव में पाकिस्तान हमारी उन्नति और विकास को देखकर ईर्ष्या से जलभुन रहा है। पिछले साठ वर्षों में भी वहाँ लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली चालू नहीं हो सकी। इसलिए अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने लोगों का ध्यान बँटाने के लिए कभी कश्मीर का मुद्दा और कभी कोई दूसरा मुद्दा उठाता रहा है।

पड़ोसी देश ही नहीं कुछ भारतीय भी हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने पर तुले हैं। ऐसे लोग अपने स्वार्थ, अपने वोट बैंक और सत्ता हथियाने के चक्र में जो प्रांतवाद का नारा लगाते हैं। अभी हाल ही में महाराष्ट्र में प्रांतवाद के नाम पर जो हिंसा और गुंडागर्दी हुई वह हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने वाला ही कदम है।

हमारा ऐसा मानना है कि सरकार ने भी भाषा के नाम पर देश का बंटवारा कर राष्ट्रीयता को ठेस पहुँचाई है। रही-सही कसर वोट बैंक की राजनीति कर रही है। यदि ईमानदारी से इन बातों को दूर करने का प्रयत्न किया जाए तो राष्ट्रीय एकता के बलबूते भारत विकसित देशों में शामिल हो सकता है।

सांप्रदायिक सद्भाव

सांप्रदायिक एकता के प्रथम दर्शन हमें सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान देखने को मिले। उस समय हिन्दू-मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजों से टक्कर ली थी। अंग्रेज़ बड़ी चालाक कौम थी। उस की चालाकी से मुहम्मद अली जिन्ना ने सन् 1940 में पाकिस्तान की माँग की और अंग्रेज़ों ने देश छोड़ने से पहले सांप्रदायिक आधार पर देश के दो टुकड़े कर दिये। विश्व में पहली बार आबादी का इतना बड़ा आदान-प्रदान हुआ। हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें लाखों मारे गए। . सन् 1950 में देश का संविधान बना और भारत को एक धर्म-निरपेक्ष गणतंत्र घोषित किया गया। प्रत्येक जाति, धर्म, संप्रदाय को पूर्ण स्वतंत्रता दी गई और सब धर्मों को समान सम्मान दिया गया। आप जानकर शायद हैरान होंगे कि विश्व में सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या भारत में ही है। बहुत-से देशभक्त मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए। लेकिन पाकिस्तान क्योंकि बना ही धर्म पर आधारित देश था अतः वह आज तक हमारे देश के सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान में स्वतन्त्रता के साठ वर्ष बाद भी जनतांत्रिक प्रणाली लागू नहीं हो सकी और भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतांत्रिक देश बन गया है।

हम यह जानते हैं कि कोई भी धर्म हिंसा, घृणा या विद्वेष नहीं सिखाता। सभी धर्म या संप्रदाय मनुष्य की नैतिकता, सहिष्णुता और शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं। किंतु कुछ कट्टरपन्थी धार्मिक नेता अपने स्वार्थ के लिए लोगों में धार्मिक भावनाएँ भड़का कर देश में अशान्ति और अराजकता फैलाने का यत्न करते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि –

मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना,
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा।

संप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने पर ही हम विकासशील देशों की सूची से निकल कर विकसित देशों में शामिल हो सकते हैं।

हमारी सरकार भले ही धर्म-निरपेक्ष होने का दावा करती है किन्तु वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर वह एक ही धर्म की तुष्टिकरण के लिए जो कुछ कर रही है उसके कारण धर्मों और जातियों में दूरी कम होने की बजाए और भी बढ़ रही है। धर्मनिरपेक्षता को यदि सही अर्थों में लागू किया जाए तो कोई कारण नहीं कि धार्मिक एवं सांप्रदायिक सद्भाव न बन सके। जनता को भी चाहिए कि वह सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले नेताओं से चाहे वे धार्मिक हों या राजनीतिक, बचकर रहे, उनकी बातों में न आएँ।

टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

मानव आदिकाल से ही काम के बाद मनोरंजन के साधनों की खोज में रहा है। प्राचीन काल में नाटक, रासलीला, रामलीला या त्योहार मनुष्य के मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। फिर रेडियो, सिनेमा या ग्रामोफोन द्वारा लोगों के मनोरंजन के साधन बने। आज सबसे प्रभावी मनोरंजन का साधन टेलीविज़न है।

टेलीविज़न का आविष्कार स्काटलैण्ड के इंजीनियर जॉन एलन बेयर्ड ने सन् 1926 ई० में किया था। इस का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश इण्डिया कार्पोरेशन ने किया था। भारत में इसका प्रसारण सन् 1964 से ही सम्भव हो सका और इसे रंगीन बनाने में लगभग बीस वर्ष लग गए। पंजाब में पहला टेलीविजन केन्द्र अमृतसर में स्थापित हुआ जो बाद में दूरदर्शन केन्द्र जालन्धर में स्थानांतरित कर दिया गया। पहल पहले लोग कार्यक्रम दूरदर्शन पर ही देखा करते थे किन्तु सैटेलाइट नैटबर्क के आगमन से टेलीविजन की दुनिया में क्रान्तिकारी मोड़ ला दिया। आज देश भर में कोई सवा-सौ चैनल अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिसमें समाचार, खेलकूद, धार्मिक, नाटक, संगीत, सामान्य जानकारी के अलग से चैनल हैं। आज अनेक चैनल क्षेत्रीय भाषाओं में अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। आज टेलीविज़न नैटवर्क (केबल) दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। इन चैनलों द्वारा शिक्षा एवं धर्म का प्रचार भी किया जा रहा है। टेलीविजन के कारण हम घर बैठे अपने मन पसंद सीरियल, गीत, फिल्में आदि देख सकते हैं।

कहते हैं जहाँ फूल होते हैं वहाँ काँटे भी होते हैं। टेलीविज़न के जहाँ अनेक लाभ हैं वहाँ कई हानियाँ भी हैं। सब से बड़ी हानि यह है कि लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। लोग मिलने-जुलने की अपेक्षा अपना मनपसन्द सीरियल या फिल्म देखना पसन्द करते हैं। विद्यार्थियों की खेलकूद और अतिरिक्त पढ़ाई में रुचि कम हो गई है। युवावर्ग टेलीविज़न पर अश्लील गाने देखकर बिगड़ रहा है। लगातार कई घण्टे टेलीविज़न से चिपके रहने के कारण बच्चों की आँखों पर नज़र की ऐनकें लग गई हैं।

हमें चाहिए कि टेलीविज़न के लाभ को ध्यान में रखकर ही इसका उपयोग करना चाहिए। हमें वही कार्यक्रम देखने चाहिए जो ज्ञानवर्धक हों। टेलीविज़न एक वरदान है इसे शाप न बनने देना चाहिए।

समाचार-पत्रों के लाभ-हानियाँ

आज भले ही टेलीविज़न पर अनेक चैनल केवल समाचार ही प्रसारित कर रहे हैं फिर भी समाचार-पत्रों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। आज के युग में समाचार-पत्र हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। जिस दिन घर में समाचार-पत्र नहीं आता या देर से आता है तो हम उतावले हो उठते हैं। जिज्ञासा मानव स्वभाव की एक प्रवृत्ति रही है और समाचार-पत्र हमारी इस जिज्ञासा को शान्त करते हैं। समाचार-पत्र हमें घर बैठे ही देशविदेश में हुई घटनाओं, समाचारों की सूचना दे देते हैं। समाचार-पत्रों के अनेक लाभ हैं जिनमें से कुछ का उल्लेख हम यहां पर कर रहे हैं।

समाचार-पत्र प्रचार का एक बहुत बड़ा साधन है। चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दल समाचार-पत्रों में विज्ञापन देकर अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष को प्रस्तुत करते हैं। विभिन्न व्यापारिक संस्थान भी अपने उत्पाद का विज्ञापन समाचार-पत्र में देकर अपने उत्पाद की बिक्री में वृद्धि करते हैं।

समाचार-पत्रों के माध्यम से ही आजकल हम नौकरी, विवाह, प्रवेश सूचना आदि सूचनाएँ प्राप्त करते हैं। समाचार-पत्रों में वर्गीकृत विज्ञापन का स्तम्भ हमें अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के मैगज़ीन अनुभाग हमें धर्म, स्वास्थ्य, समाजशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, आयकर सम्बन्धी सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें रेडियो, टेलीविज़न के कार्यक्रमों की समय सारणी भी प्राप्त हो जाती है। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें पुस्तकों, फिल्मों की समीक्षा भी पढ़ने को मिल जाती समाचार-पत्र पाठकों को भ्रष्टाचार, समाज की कुरीतियों जैसे भ्रूण हत्या आदि से जागरूक करते हैं और समाज में सुधार या नव-निर्माण का कार्य करते हैं।

समाचार-पत्रों की कुछ हानियाँ भी हैं। कुछ समाचार-पत्र अपने पत्र की बिक्री बढ़ाने के लिए झूठी तथा सनसनी भरे समाचार छाप कर जनमानस को दूषित करते हैं। ऐसा ही कार्य वे समाचार-पत्र भी करते हैं जो पक्षपात पूर्ण समाचार और टिप्पणियाँ छापते हैं। समाचार-पत्रों में बड़ी शक्ति है। इस का सही प्रयोग होना चाहिए।

दहेज प्रथा एक अभिशाप

कोई भी प्रथा जब शुरू होती है तो अच्छे उद्देश्य से शुरू होती है किन्तु धीरे-धीरे वही प्रथा कुप्रथा बन जाती है। कुछ ऐसा ही हाल दहेज प्रथा का भी है। दहेज प्रथा कितनी प्राचीन है यह तो नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना अवश्य है कि यह प्रथा जब शुरू हुई होगी तब लड़की को अपने पिता की सम्पत्ति में भागीदार नहीं माना जाता था और मातापिता उसके विवाह अवसर पर अपनी सम्पत्ति में से कुछ भाग लड़की को उपहार के रूप में भेंट करते थे। इसी उपहार को कालान्तर में दहेज का नाम दे दिया गया। किन्तु आज जब लड़की अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर की हिस्सेदार है, लड़की अब स्वयं कमाने लगी है और पुरुष की आर्थिक दृष्टि से गुलाम नहीं रही है, दहेज देने का तर्क नज़र नहीं आता। किन्तु हम लकीर के फकीर अभी तक इस प्रथा को चलाए जा रहे हैं।

समय के परिवर्तन के साथ-साथ दहेज प्रथा एक कुप्रथा बन गई है और इसे नारी जाति के लिए ही नहीं समाज के लिए भी एक अभिशाप बन कर रह गई है। कुछ अमीर लोगों ने लड़की की शादी पर दिखावे के लिए ज़रूरत से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया। देखादेखी मध्यमवर्ग में भी यह रोग फैलता गया। यह समझा जाने लगा कि लड़के के मातापिता लड़की को नहीं लड़के को या उसके माता-पिता को उपहार दे रहे हैं। देखा-देखी लड़कों वालों की भूख बढ़ती गई और खुल कर दहेज की माँग की जाने लगी। मनवांछित दहेज न मिल पाने पर लड़की को ससुराल में तंग किया जाने लगा। दहेज के लालच में लक्ष्मी मानी जाने वाली बहू को जला कर मार दिया जाने लगा। दहेज की बलि पर न जाने आज तक कितनी ही भोली-भाली लड़कियाँ चढ़ चुकी हैं।

भले ही सरकार ने दहेज विरोधी कई कानून बनाए हैं लेकिन इन कानूनों की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जनवरी, सन् 2007 में शादी विवाह में बारातियों की संख्या सम्बन्धी एक आदेश जारी किया था किन्तु इस आदेश की न तो कोई पालना कर रहा है और न ही कोई अधिकारी पालना करवा रहा है।

हमारे विचार से दहेज के इस अभिशाप से युवा वर्ग ही समाज को मुक्ति दिलवा सकता है। बिना दहेज के विवाह करके।

कंप्यूटर का जीवन में महत्त्व

आज के युग को कंप्यूटर का युग कहा जाता है। यह आधुनिक युग का एक ऐसा आविष्कार है जिसने मनुष्य की अनेक समस्याओं का समाधान कर दिया है। कंप्यूटर ने मनुष्य का समय और श्रम बचा दिया है। साथ ही दी है पूर्णता और शुद्धता अर्थात् एक्युरेसी। कंप्यूटर का प्रयोग आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाभकारी सिद्ध हो रहा है। इसी बात को देखते हुए पंजाब सरकार ने स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। इस आदेश से कंप्यूटर का प्रवेश आज आम घरों में भी हो गया है।

कम्प्यूटर का सबसे बड़ा लाभ शिक्षा विभाग को हुआ है। कंप्यूटर की सहायता से परीक्षा परिणाम कुछ ही दिनों में घोषित होने लगे हैं। चुनाव प्रक्रिया में भी इसका प्रयोग चुनाव नतीजों को कुछ ही घंटों में घोषित किया जाने लगा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में कंप्यूटर के प्रयोग से काम को बड़ा सरल बना दिया है। यहाँ तक कि अब तो कई दुकानदार भी अपने बही खाते रखने या बिल बनाने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग करने लगे हैं। आज प्रत्येक समाचार-पत्र कंप्यूटर पर ही तैयार होने लगा है। कंप्यूटर की एक अन्य चमत्कारी सुविधा इंटरनैट के उपयोग की है। इंटरनेट पर हमें विविध विषयों की जानकारी तो प्राप्त होती ही है, साथ ही हमें अपने मित्रों, रिश्तेदारों को ई-मेल द्वारा संदेश भेजने की सुविधा भी प्राप्त होती है। कंप्यूटर के साथ एक विशेष उपकरण (कैमरा इत्यादि) लगा कर हम दूर बैठे अपने मित्रों, रिश्तेदारों से सीधे बातचीत भी कर सकते हैं।

प्रकृति का यह नियम है कि जो वस्तु हमारे लिए लाभकारी होती है उसकी कई हानियाँ भी होती हैं। बच्चे कंप्यूटर वीडियो गेम्स खेलने में व्यस्त रहते हैं और अपना कीमती समय नष्ट करते हैं। युवा वर्ग अश्लील वैवसाइट देख कर, इंटरनैट पर अश्लील चित्र एवं चित्र भेज कर बिगड़ रहे हैं। कंप्यूटर पर अधिक देर तक बैठने पर नेत्रों की ज्योति पर तो प्रभाव पड़ता ही है शरीर में अनेक रोग भी पैदा होते हैं। अतः हमें चाहिए कि इस मशीनी मस्तिष्क के गुणों को ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए।

बढ़ते प्रदूषण की समस्या

मानव और प्रकृति के बीच जब संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारा वातावरण दूषित हो जाता है। आज हमारे देश में प्रदूषण की समस्या बड़ी गम्भीर बनी हुई है। प्रदूषण के कारण ही हमारे जीवन की सुरक्षा को भी खतरा बना हुआ है। हमारे देश में प्रदूषण चार प्रकार का है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण। इन्हीं प्रदूषणों के कारण हमें शुद्ध पीने का पानी, शुद्ध वायु, शांत वातावरण और भूमि की उर्वरा शक्ति नहीं मिल पा रही है।

देश में तेजी से हो रहा औद्योगीकरण प्रदूषण फैलाने का बड़ा कारण बन रहा है। कल कारखानों से उठने वाला धुआँ हमारी वायु को तो प्रदूषित करता है। इन कल कारखानों से छोड़ा जा रहा रसायन युक्त जल हमारे जल और भूमि को भी प्रदूषित कर रहा है। औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरीकरण ने भी जल और वायु को दूषित कर दिया है। बड़ेबड़े नगरों में सीवरेज और कल कारखानों का दूषित जल पास की नदियों में डाला जाता है, शहरों में चलने वाले वाहनों का धुआँ वायु को दूषित कर रहा है और कूड़े कर्कट के ढेर वातावरण को दूषित कर रहे हैं शहरीकरण के कारण अनेक वृक्षों की कटाई हो रही है। हम यह नहीं समझते कि वृक्ष ही हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। पीपल जैसा वृक्ष तो हमें 24 घंटे शुद्ध ऑक्सीजन प्रदान करता है किन्तु हम धड़ाधड़ वृक्षकाट रहे हैं।

शहरों में ही नहीं गाँवों में भी प्रदूषण फैलाने के अनेक कार्य होते हैं। किसान लोग अधिक पैदावार की होड़ में कीटनाशक दवाओं और कृत्रिम खादों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरा शक्ति को घटा रहे हैं। चावल की पराली को खेतों में ही जलाकर वायु प्रदूषण फैला रहे हैं। आज हम जो फल सब्जियाँ खाते हैं वे सब कीटनाशक दवाइयों से ग्रसित होती हैं। ये सब प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ जन-साधारण के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।

यदि इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने का कोई उपाय न किया गया तो आने वाला समय हमारे लिए अत्यन्त भयानक और घातक सिद्ध होगा। प्रदूषण रोकने के लिए हमें बड़े-बड़े उद्योगों के स्थान पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। वृक्ष लगाने के अभियान को और तेज़ करना होगा। वाहनों में धुआँ रहित पेट्रोल-डीज़ल के प्रयोग को अनिवार्य बनाना होगा। कल कारखानों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने अनिवार्य करने होंगे। प्रदूषण का जन्म ही न हो, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।

बढ़ती जनसंख्या की समस्या

किसी भी देश की उन्नति और आर्थिक विकास बहुत कुछ उस देश की जनसंख्या पर निर्भर होता है। भारत को जिन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है उनमें तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या प्रमुख है। देश के विभाजन के समय सन् 1947 में देश की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब बढ़कर 125 करोड़ से ऊपर हो गई है। आज जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखकर लगता है कि यह शीघ्र ही चीन को पीछे छोड़ जाएगा।

देश की बढ़ती जनसंख्या अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। जैसे खाद्य सामग्री की कमी, आवास की कमी, रोज़गार के साधनों की कमी आदि। देश की धरती तो उतनी ही है उस पर देश के औद्योगीकरण और बिजली परियोजनाओं के लिए बहुत-सी उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। इस तरह खेती योग्य भूमि भी दिनों दिन घटती जा रही है। माना कि नई तकनीक से उपज में काफ़ी वृद्धि हुई है। अनाज के क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो गया है किन्तु यह स्थिति कब तक रहेगी कहा नहीं जा सकता।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार परिवार नियोजन जैसी कई योजनाओं पर काम कर रही है किन्तु इस योजना का लाभ अशिक्षित और गरीब लोग नहीं उठा रहे। कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और रूढ़िवादिता है।

जनसंख्या वृद्धि में एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत में औसत आयु गत पैंसठ सालों में 21 से बढ़कर 65 तक जा पहुँची है। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से शिशु मृत्यु दर में भी काफी कमी आई है। बालविवाह अभी भी रुके नहीं।

यदि सरकार और जनता ने मिलजुल कर जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने का कोई उपाय न किया तो देश को एक दिन खाने के लाले पड़ जाएँगे। हरित क्रान्ति, सफेद क्रान्ति जैसी कोई भी क्रान्ति कारगर सिद्ध न हो सकेगी अतः इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना अत्यावश्यक है।

बढ़ती महँगाई की समस्या

आज आम लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या महंगाई की बनी हुई है। बड़ों के मुँह से हम खाद्य पदार्थों के जो भाव सुनते हैं तो हमें या तो झूठ लगता है या सपना। आज महँगाई इतनी बढ़ गई है कि आम आदमी को दो जून की रोटी जुटाना भी कठिन हो रहा है। पंजाबी कवि सूबा सिंह ने ठीक ही कहा है-‘घयो लभदा नहीं धुन्नी नूँ लान जोगा, कित्थों खानियाँ रांझे ने चूरियाँ’-सचमुच आज देसी घी दो सौ रुपए किलो से ऊपर बिक रहा है जो कभी तीन-चार रुपए किलो मिला करता था। तेल, घी, दालें तो अमीर आदमी की पहँच वाली बन कर रह गई हैं। गरीब तो बस यही कहकर संतोष कर लेते हैं कि ‘रूखी सूखी खायकर, ठंडा पानी पी।’.

पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने तो जलती पर तेल छिडकने का काम किया है। पेट्रोल, डीज़ल की कीमतें बढ़ने से बसों की यात्रा तो महँगी हुई ही है ट्रकों का माल भाड़ा भी बढ़ गया है, जिसके कारण फलों, सब्जियों, दालों इत्यादि खाद्य पदार्थों के दाम भी बढ़ गए हैं। सरकार अपने कर्मचारियों का प्रत्येक वर्ष दो बार महँगाई भत्ता बढ़ाती है, इससे कर्मचारियों को तो राहत मिलती नहीं उलटे चीज़ों की कीमतें अवश्य बढ़ जाती हैं।

महँगाई बढ़ने के साथ ही कालाबाजारी, तस्करी और काला धन, जमाखोरी जैसी समस्या बढ़ने लगती है। वर्ष 2008 के अन्त में विश्वव्यापी जो मंदी का दौर आया उसने महँगाई को और भी बढ़ा दिया। उस पर सोने पर सुहागे का काम किया सरकार की दुलमुल नीतियों ने। सरकार अपने मन्त्रियों के वेतन तो हर साल बढ़ा देती है किन्तु सरकारी कर्मचारी पे कमीशनों का कई वर्षों तक मुँह ताकते रहते हैं। मन्त्री अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए सत्ता में बने रहने के लिए बड़े-बड़े उद्योगों को जो सहूलतें दे रहे हैं उससे महँगाई बढ़ रही है।

महँगाई कैसे रुके या कैसे रोकी जाए यह हमारी समझ से तो बाहर है। हाँ यदि सरकार चाहे और दृढ़ संकल्प हो महँगाई पर कुछ हद तक रोक लग सकती है।

नशा बंदी

भारत में नशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखे मरते हों वहाँ शराब पीना, गरीबों के रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महँगी होने के कारण नकली शराब का धंधा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है, यह हर कोई जानता है। कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबंदी लागू करने का प्रयास किया। किन्तु वे असफल रहीं। ताज़ा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चाँदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबंदी समाप्त करनी पड़ी।

पंजाब में भी सन् 1964 में टेकचन्द कमेटी ने नशाबंदी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किंतु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किंतु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता।

सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबंदी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

यह देखने में आया है कि देश का युवा वर्ग ही नहीं, किशोर वर्ग नशों की लपेट में आ रहा है। हमारे नेता यह कहते नहीं थकते कि देश में मादक द्रव्यों का प्रसार विदेशी शत्रुओं के कारण हो रहा है किन्तु अपने युवाओं को, बच्चों को समझाया तो जा सकता है।

नशीले पदार्थों से इस पीढ़ी को बचाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए नहीं तो देश कमज़ोर हो जाएगा और साँप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का कोई लाभ न होगा।

खेलों का जीवन में महत्त्व

खेल-कूद हमारे जीवन की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। ये हमारे मनोरंजन का प्रमुख साधन भी हैं। पुराने जमाने में जो लोग व्यायाम नहीं कर सकते थे अथवा खेल-कूद में भाग नहीं ले सकते थे वे शतरंज, ताश जैसे खेलों से अपना मनोरंजन कर लिया करते थे। दौड़ना भागना, कूदना इत्यादि भी खेलों का ही एक अंग है। ऐसी खेलों में भाग लेकर हमारे शरीर की मांसपेशियाँ तथा शरीर के दूसरे अंग स्वस्थ हो जाया करते हैं। खेल-कूद में भाग लेकर व्यक्ति की मासिक थकावट दूर हो जाती है।

अंग्रेज़ी की प्रसिद्ध कहावत है कि All work and no play makes jack a dull boy. इस कहावत का अर्थ यह है कि कोई सारा दिन काम में जुटा रहेगा, खेल-कूद या मनोरंजन के लिए समय नहीं निकालेगा तो वह कुंठित हो जाएगा उसका शरीर रोगी बन जाएगा तथा वह निराशा का शिकार हो जाएगा। अतः स्वस्थ जीवन के लिए खेलों में भाग लेना अत्यावश्यक है। इस तरह व्यक्ति का मन भी स्वस्थ होता है। उसकी पाचन शक्ति भी ठीक रहती है, भूख खुलकर लगती है, नींद डटकर आती है, परिणामस्वरूप कोई भी बीमारी ऐसे व्यक्ति के पास आते डरती है।

खेलों से अनुशासन और आत्म-नियन्त्रण भी पैदा होता है और अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। बिना अनुशासन के व्यक्ति जीवन में उन्नति और विकास नहीं कर सकता। खेल हमें अनुशासन का प्रशिक्षण देते हैं। किसी भी खेल में रैफ्री या अंपायर नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ी को दण्डित भी करता है। इसलिए हर खिलाड़ी खेल के नियमों का पालन कड़ाई से करता है। खेल के मैदान में सीखा गया यह अनुशासन व्यक्ति को आगे चलकर जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काम आता है। देखा गया है कि खिलाड़ी सामान्य लोगों से अधिक अनुशासित होते हैं।

खेलों से सहयोग व सहकार की भावना भी उत्पन्न होती है। इसे Team Spirit या Sportsmanship भी कहा जाता है। केवल खेल ही ऐसी क्रिया है जिसमें सीखे गए उपयुक्त गुण व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन में बहुत काम आते हैं। आने वाले जीवन में व्यक्ति सब प्रकार की स्थितियों, परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ काम करने में सक्षम हो जाता है। Team spirit से काम करने वाला व्यक्ति दूसरों से अधिक सामाजिक होता है। वह दूसरों में जल्दी घुल-मिल जाता है। उसमें सहन शक्ति और त्याग भावना दूसरों से अधिक मात्रा में पाई जाती है।

खेल-कूद में भाग लेना व्यक्ति के चारित्रिक गुणों का भी विकास करता है। खिलाड़ी चाहे किसी भी खेल का हो अनुशासनप्रिय होता है। क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि हानिकारक भावनाओं का वह शिकार नहीं होता। खेलों में ही उसे देश प्रेम और एकता की शिक्षा मिलती है। एक टीम में अलग-अलग धर्म, सम्प्रदाय, जाति, वर्ग आदि के खिलाड़ी होते हैं। वे सब मिलकर अपने देश के लिए खेलते हैं।

इससे स्पष्ट है कि खेल जीवन की वह चेतन शक्ति है जो दिव्य ज्योति से साक्षात्कार करवाती है। अतः उम्र और शारीरिक शक्ति के अनुसार कोई न कोई खेल अवश्य खेलना चाहिए। खेल ही हमारे जीवन में एक नई आशा, महत्त्वाकांक्षा और ऊर्जा का संचार करते हैं। खेलों के द्वारा ही जीवन में नए-नए रंग भरे जा सकते हैं, इन्द्रधनुषी सुन्दर या मनोरम बनाया जा सकता है।

व्यायाम का महत्त्व

महार्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का प्रथम कर्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की नितांत आवश्यकता है।

व्यायाम से हमारा अभिप्राय: वह नहीं है जो आज से कुछ वर्ष पहले समझा जाता था। अर्थात् दंड पेलना, बैठक लगाना आदि किन्तु आज के संदर्भ में व्यायाम का अर्थ किसी ऐसे काम करने से है जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। पुराने जमाने में स्त्रियाँ दूध दोहती थीं, बिलोती थीं, घर में झाड़ देती थीं, कपड़े धोती थीं और बाहर से कुएँ से खींचकर पीने के लिए पानी लाया करती थीं। ये सब क्रियाएँ व्यायाम का ही एक भाग हुआ करती थीं। किन्तु आजकल की स्त्रियों के पास इन सब व्यायामों के लिए समय ही नहीं है। जिसका परिणाम यह है कि आज की स्त्री अनेक रोगों का शिकार हो रही है।

पुराने जमाने में पुरुष भी सुबह सवेरे सैर को निकल जाया करते थे। बाहर ही स्नान इत्यादि करते थे। इस तरह उनका व्यायाम हो जाता था। हमारे बड़े बुर्जुगों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित कर दी जिससे हमारा व्यायाम भी होता रहे और हमें पता भी न चले। जैसे सूर्य उदय होने से पहले उठना, बाहर सैर को जाना, दातुन कुल्ला करना आदि व्यायाम के ही अंग थे। समय बदलने के साथ-साथ हम व्यायाम के उस परिणाम को भूलते जा रहे हैं कि व्यायाम करने से व्यक्ति निरोग रहता है। उसके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है। पाचन शक्ति ठीक रहती है और शरीर सुडौल बना रहता है।

जो लोग व्यायाम नहीं करते, वे आलसी और निकम्मे बन जाते हैं। सदा किसी-नकिसी रोग का शिकार बने रहते हैं। आज का न ही पुरुष न ही स्त्री, घर का छोटा-मोटा काम भी अपने हाथ से नहीं करना चाहता। सारा दिन कुर्सी पर बैठ कर काम करने वाला कर्मचारी यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो वह स्वयं बीमारी को बुलावा देने का ही काम करेगा। भला हो स्वामी रामदेव का जिन्होंने लोगों को योग और प्राणायाम की ओर मोड़कर थोड़ा-बहुत व्यायाम करने की प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति और शारीरिक आवश्यकता के अनुसार व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

एक विद्यार्थी के लिए व्यायाम का अधिक महत्त्व है क्योंकि अपनी इस चढ़ती उम्र में जितना सुन्दर और अच्छा शरीर वह बना सकता है, जितनी भी शक्ति का संचय वह कर सकता है, उसे कर लेना चाहिए। यदि इस उम्र में उसने अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान न दिया तो सारी उम्र वह पछताता ही रहेगा। अतः हमारी विद्यार्थी वर्ग को सलाह है कि वह अपने इस जीवन में खेल-कूद में अवश्य भाग लें, योगासन और प्राणायाम, जो शरीर के लिए श्रेष्ठ व्यायाम है अवश्य करें। प्रातः और सायं भ्रमण के लिए अवश्य घर से बाहर निकलें क्योंकि आने वाला जीवन कोई सरलता लिए हुए नहीं आएगा। तब संघर्ष की मात्रा अधिक बढ़ जाएगी और व्यायाम के लिए समय निकालना कठिन हो जाएगा। अत: जो कुछ करना है इसी विद्यार्थी जीवन में ही कर लेना चाहिए।

समय का सदुपयोग

कहा जाता है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो। जिस किसी ने भी यह बात कही है उसने समय के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही कही है। समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। खोया हुआ धन फिर प्राप्त हो सकता है किन्तु खोया हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता। इसीलिए कहा गया है ‘The Time is Gold’ क्योंकि समय बीत जाने पर सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं आता फिर तो वही बात होती है कि ‘औसर चूकि डोमनी गावे तालबेताल।’ कछुआ और खरगोश की कहानी में भी कछुआ दौड़ इसलिए जीत गया था कि उसने समय के मूल्य को समझ लिया था। इसीलिए वह दौड़ जीत पाया। विद्यार्थी जीवन में भी समय के महत्त्व को एवं उसके सदुपयोग को जो नहीं समझता और विद्यार्थी जीवन आवारागर्दी और ऐशो आराम से जीवन व्यतीत कर देता है वह जीवन भर पछताता रहता है।

इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने भी समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे। पृथ्वी राज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मनी के महान दार्शनिक कांट ने जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर जाते देख अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज जीवन में भागम भाग और जटिलता इतनी अधिक बढ़ गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। आज समय का सदुपयोग करते हुए सही समय पर सही काम करना हमारे जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग करना बहुत ज़रूरी है। क्योंकि विद्यार्थी जीवन बहुत छोटा होता है। इस जीवन में प्राप्त होने वाले समय का जो विद्यार्थी सही सदुपयोग कर लेते हैं वे ही भविष्य में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। और जो समय को नष्ट करते हैं, वे स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए हमारे दार्शनिकों, संतों आदि ने अपने काम को तुरन्त मनोयोग से करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि ‘काल करे सो आज कर आज करे सो अब।’ कल किसने देखा है अतः दृष्टि वर्तमान पर रखो और उसका भरपूर प्रयोग करो। कर्मयोगी की यही पहचान है। जीवन दुर्लभ ही नहीं क्षणभंगुर भी है अतः जब तक साँस है तब तक समय का सदुपयोग करके हमें अपना जीवन सुखी बनाना चाहिए।

आँखों देखा हॉकी मैच
अथवा
मेरा प्रिय खेल

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारतं हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाडियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेज़ी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया। गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेजी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

आँखों देखा फुटबाल मैच

विश्वभर में फुटबाल का खेल सर्वाधिक लोकप्रिय है। केवल यही एक ऐसा खेल है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में दर्शक जुटते हैं। फुटबाल के खिलाड़ी भी विश्व भर में सबसे अधिक सम्मान एवं धन प्राप्त करते हैं। 90 मिनट का यह खेल अत्यन्त रोचक, जिज्ञासा भरा होता है। संयोग से पिछले महीने मुझे पंजाब पुलिस और जे० सी० टी० फगवाड़ा की टीमों के बीच हुए मैच को देखने का अवसर मिला। जे० सी० टी० की टीम पिछले वर्ष संतोष ट्राफी की विजेता टीम रही थी। मैच शुरू होते ही पंजाब पुलिस ने विरोधी टीम पर काफी दबाव बनाये रखा परन्तु जे० सी० टी० की टीम भी कोई कम नहीं थी। उसके खिलाड़ियों को थोड़ा अवसर भी मिलता तो वे पंजाब पुलिस के क्षेत्र में जा पहुँचते। पंजाब पुलिस ने अपना आक्रमण और भी तेज़ कर दिया। उनके खिलाड़ियों में आपसी तालमेल और पासिंग तो देखते ही बनता था। उनकी हर मूव को देखकर दर्शक वाह! वाह। कर उठते थे। इस मैच को देखने के लिए पंजाब पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी भी मैदान में मौजूद थे। सैंकड़ों की संख्या में सिपाही भी अपने खिलाड़ियों को , उत्साहित करने के लिए बक-अप कर रहे थे। पहले मध्यान्तर के 26वें मिनट में पंजाब पुलिस के खिलाड़ियों ने इतना बढ़िया मूव बनाया कि जे० सी० टी० के खिलाड़ी देखते ही रह गये और पंजाब पुलिस ने एक गोल दाग दिया। दर्शक दीर्घा में बैठे लोग खुशी से नाच उठे। इस गोल के बाद जे० सी० टी० के खिलाड़ी रक्षा पर उतर आए। जब भी बाल लेकर आगे बढ़ते पंजाब पुलिस के खिलाड़ी उन से बाल छीन लेते। इसी बीच जे० सी० टी० की टीम ने एक ज़ोरदार आक्रमण किया किन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर की दाद देनी होगी कि उसने गोल को फुर्ती से बचा लिया। उधर पंजाब पुलिस ने अपना दबाव फिर बढ़ाना शुरू किया। मध्यान्तर के समय पंजाब पुलिस की टीम एक शून्य से आगे थी। दूसरे मध्यान्ह के 45 मिनट में खेल में काफ़ी तेज़ी आई परन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर ने कई निश्चित गोल बचा कर अपनी टीम को जीत दिलाई। मैच समाप्त होते ही पंजाब पुलिस के कर्मचारियों ने अपनी टीम के खिलाड़ियों को कंधों पर उठा लिया। आज उन्होंने देश की एक प्रसिद्ध टीम को हराया था। कोई दो घण्टे तक मैंने इस मैच का जैसा आनन्द उठाया वह मुझे वर्षों याद रहेगा।

विद्यार्थी और अनुशासन

अनुशासन दो शब्दों से मिलकर बना है-अनु और शासन। अनु का अर्थ है पीछे और शासन का अर्थ है आज्ञा। अतः अनुशासन का अर्थ है-आज्ञा के आगे-पीछे चलना। समाज और राष्ट्र की व्यवस्था और उन्नति के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पालन करना ही अनुशासन है। अतः हम जो भी कार्य अनुशासनबद्ध होकर करेंगे तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। अनुशासन के अन्तर्गत उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना-चलना, सीखानासिखाना, आदर-सत्कार करना आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं। इन सभी कार्यों में अनुशासन का महत्त्व है।

अनुशासन की शिक्षा स्कूल की परिधि में ही सम्भव नहीं है। घर से लेकर स्कूल, खेल के मैदान, समाज के परकोटों तक में अनुशासन की शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के जीवन को जगमगा देती है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के समय खेलना चाहिए। एकाग्रचित होकर अध्ययन करना, बड़ों का आदर करना, छोटों से स्नेह करना ये सभी गुण अनुशासित छात्र के हैं। जो छात्र माता-पिता तथा गुरु की आज्ञा मानते हैं वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं तथा उनका जीवन अच्छा बनता है। वे आत्मविश्वासी, स्वावलम्बी तथा संयमी बनते हैं और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं।

अनुशासन में रहने वाले छात्र को अपने जीवन में कदम-कदम पर यश तथा सफलता मिलती है। उनका भविष्य उज्ज्वल हो जाता है। ऐसे ही छात्र राष्ट्र नेता बनते हैं और देश का संचालन करते हैं। विद्यार्थी का जीवन सुखी तथा सम्पन्न अनुशासनप्रियता से ही बनता है। अनुशासन भी दो प्रकार का होता है-

  • आन्तरिक,
  • बाह्य।

दूसरे प्रकार का अनुशासन परिवार तथा विद्यालयों में देखने को मिलता है। यह भय पर आधारित होता है। जब तक विद्यार्थी में भय बना रहता है तब तक वह नियमों का पालन करता है। भय समाप्त होते ही वह उद्दण्ड हो जाता है। भय से प्राप्त अनुशासन से बालक डरपोक हो जाता है।

आन्तरिक अनुशासन ही सच्चा अनुशासन है। जो कुछ सत्य है, कल्याणकारी है, उसे स्वेच्छा से मानना ही आन्तरिक अनुशासन कहा जाता है। आत्मानुशासित व्यक्ति अपने शरीर, बुद्धि, मन पर पूरा-पूरा नियन्त्रण स्थापित कर लेते हैं। जो अपने पर नियन्त्रण कर लेता है वह दुनिया पर नियन्त्रण कर लेता है।

बड़े दुर्भाग्य की बात है कि छात्र-वर्ग अनुशासन के महत्त्व को भली-भांति नहीं समझ पाता है जिसका परिणाम यह होता है कि यह नित्य-प्रति स्कूल तथा कालेजों में तोड़-फोड़, परीक्षा में नकल करना, अध्यापकों को पीटना आदि कार्य करता है। तोड़-फोड़, लूट-पाट, आगज़नी, पथराव आदि तो नित्य देखने को मिलते हैं। ऐसे छात्र न विद्या ग्रहण कर पाते हैं और न अपने संस्कारों को ही ठीक कर पाते हैं। वे समाज के लिए कलंक बन जाते हैं और समाज को सदैव दुःख ही देते हैं। ऐसे छात्रों से न माता-पिता को सुख मिलता है और न गुरुजनों को। वे देश के लिए भार बन जाते हैं।

अनुशासन से जीवन सुखमय तथा सुन्दर बनता है। अनुशासनप्रिय व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। हमें चाहिए कि अनुशासन में रहकर अपने जीवन को सुखी, सम्पन्न एवं सुन्दर बनाएँ।

किसी धार्मिक स्थान की यात्रा
अथवा
किसी पर्वतीय यात्रा का वर्णन
अथवा
वैष्णो देवी की यात्रा

आश्विन के नवरात्रे शुरू होते ही हमने मित्रों सहित माता वैष्णो देवी के दर्शन का निश्चय किया। प्रातः आठ बजे हम चण्डीगढ़ के बस स्टैण्ड पर पहुँचे। वहाँ से हमने पठानकोट के लिए बस ली। वहाँ से हमने जम्मू के लिए बस ली। जम्मू हम सायँ कोई सात बजे पहुँच गए। रात हमने जम्मू की एक धर्मशाला में गुजारी। रात में ही हमने जम्मू के ऐतिहासिक रघुनाथ जी तथा शिव मन्दिर के दर्शन किये। अगले दिन प्रात:काल में ही कटरा जाने वाली बस में सवार हुए। रास्ते भर सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए जय माँ शेराँ वाली के नारे लगा रहे थे। कटरा जम्मू से कोई पचास किलोमीटर दूर है। कटरा पहुँचकर हमने अपना नाम दर्ज करवाया और पर्ची ली। रात हमने कटरा में बिताई। दूसरे दिन सुबह ही हम माता की जय पुकारते हुए माँ के दरवार की और पैदल चल दिए। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरा से माँ के दरबार को जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक सीढ़ियों वाला मार्ग है और दूसरा साधारण। हमने साधारण रास्ता ही चुना। सभी भक्त जन माँ की जय पुकारते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। पाँच किलोमीटर चलकर हम चरण पादुका मंदिर पहुंचे।

चरण पादुका मन्दिर से चलकर हम आदकुमारी मंदिर पहुंचे। यह मन्दिर कटरा और माता के भवन के मध्य में स्थित है। यहाँ श्रद्धालुओं के रहने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। आदकुमारी मन्दिर से हम गर्भवास गुफा की ओर चल पड़े। हमने भी इस गुफा को पार किया और माँ से जन्म मरण से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की।

आगे का मार्ग बड़ा दुर्गम था। शायद इसी कारण इसे हाथी-मत्था की चढ़ाई कहते हैं। इस चढ़ाई को पार करके हम बाण गंगा और भैरों घाटी को पार कर माता के मन्दिर के निकट पहुँच गए। वहाँ हमने अपना नाम दर्ज करवाया बारी आने पर हमने माँ वैष्णो देवी के दर्शन किये। मन्दिर की गुफा में तीन पिण्डियां हैं, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से विख्यात हैं। हमने माँ के चरणों में माथा टेका, प्रसाद लिया और पीछे के रास्ते से बाहर आ गए। बाहर आकर हमने कन्या पूजन किया और कन्याओं को दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। वापसी पर हम भैरव मन्दिर के दर्शन करते हुए कटरा आ गए। कटरा से जम्मू और पठानकोट होते हुए चण्डीगढ़ वापस आ गए।

सत्संगति

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे दूसरे के साथ किसी-न-किसी रूप में संपर्क स्थापित करना पड़ता है। अच्छे लोगों की संगति जीवन को उत्थान की ओर ले जाती है तो बुरी संगति पतन का द्वार खोल देती है।

संगति के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता। हम जैसी संगति करते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन जाता है। रहीम ने कहा –

कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसे संगति बैठिए, तैसोई गुण दीन॥

सत्संगति का महत्त्व-सत्संगति जीवन के लिए वरदान की तरह है। सत्संगति के द्वारा मनुष्य अनेक प्रकार की अच्छी बातें सीखता है। जिसको अच्छी संगति प्राप्त हो जाए उसका जीवन सफल बन जाता है। अच्छी संगति में रहने पर अच्छे संस्कार पैदा होते हैं। बुरी संगति बुरे विचारों को जन्म देती है। मनुष्य की पहचान उसकी संगति से होती है। अच्छे परिवार में जन्म लेने वाला बालक बुरी संगति में पड़ कर बुरा बन जाता है। इसी प्रकार बुरे परिवार में जन्म लेने वाले बालक को यदि अच्छी संगति प्राप्त हो जाती है तो वह अच्छा एवं सदाचारी बन जाता है।

बिनु सत्संगु विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥

सत्संगति मनुष्य के जीवन को सफल बनाती है तो कुसंगति जीवन को नष्ट करती है। कहा भी है, “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसका साथ छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला सांप क्या भयंकर नहीं होता।” बुरी आदतें मनुष्य बुरी संगति से सीखता है। बुरी पुस्तकें, अश्लील चल-चित्र आदि भी मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं। बुरे लोगों से बचने की प्रेरणा देते हुए सूरदास जी ने कहा है –

छाडि मन हरि बिमुखन को संग।
चाके संग कुबुद्धि उपजत हैं परत भजन में भंग॥

स्वच्छता अभियान

स्वच्छता अभियान को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ या ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भी कहा जाता है। यह अभियान भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के स्वप्न स्वच्छ भारत को पूर्ण करने हेतू शुरू किया गया। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है। इस अभियान को अधिकारिक तौर पर राजघाट, नई दिल्ली में 2 अक्तूबर, 2014 को महात्मा गाँधी जी की 145वीं जयन्ती पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया।

स्वच्छता अभियान में प्रत्येक भारतवासी से आग्रह किया था कि वे इस अभियान से जुड़े और अपने आसपास के क्षेत्रों की साफ-सफाई करें। इस अभियान को सफल बनाने के लिए उन्होंने देश के 11 महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी लोगों को इसका प्रचार करने के लिए चुना जिनमें कुछ ऐसे फिल्मकार, क्रिकेटर तथा महान लोग हैं जिनको लोग सुनना पसंद करते हैं। इस अभियान के अंतर्गत कई शहरी तथा ग्रामीण योजनाएं बनाई गई जिसमें शहरों तथा गांवों में सार्वजनिक शौचालय बनाने की योजनाएं हैं। सरकारी कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थलों पर पान, गुटखा, धूम्रपान जैसे गंदगी फैलाने वाले उत्पादों पर रोक लगा दी गई। इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वयं मोदी जी ने सड़कों पर साफसफाई की थी जिसे देखकर लोगों में भी साफ-सफाई के प्रति उत्साह पैदा हो गया।

स्वच्छता अभियान के लिए बहुत सारे नारों का भी प्रयोग किया गया है ; जैसे –

  • एक कदम स्वच्छा की ओर।
  • स्वच्छता अपनाना है, समाज में खुशियां लाना है।
  • गाँधी जी के सपनों का भारत बनाएंगे, चारों तरफ स्वच्छता फैलाएंगे।

स्वच्छता अभियान को अपनाने से कोई हानि नहीं अपितु लाभ ही लाभ होंगे। इससे हमारे आस-पास की हर जगह साफ-सुथरी होगी। साफ-शुद्ध वातावरण में हम और हमारा परिवार बीमार कम पड़ेगा। देश में हर तरफ खुशहाली आएगी और आर्थिक विकास होगा।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Kahani Lekhan कहानी-लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 7th Class Hindi Rachana कहानी-लेखन (2nd Language)

कहानी – रचना

1. प्यासा कौआ
गर्मियों के दिन थे। दोपहर के समय बहुत सख्त गर्मी पड़ रही थी। एक कौआ पानी की तलाश में इधर – उधर भटकता रहा लेकिन कहीं भी पानी न मिला। अन्त में वह थका हुआ एक बाग में पहुँचा। वह पेड़ की शाखा पर बैठा हुआ था कि अचानक उसकी नज़र वृक्ष के नीचे पड़े एक घड़े पर गई। वह उड़कर वहाँ गया उसने देखा कि घड़े में पानी है। वह पानी पीने के लिए नीचे झुका लेकिन उसकी चोंच पानी तक न पहुँच सकी, क्योंकि घड़े में पानी बहुत कम था।

वह हताश नहीं हुआ बल्कि पानी पीने के लिए उपाय सोचने लगा। तभी उसे एक उपाय सूझा। उसने आस – पास बिखरे हुए कंकर उठाकर घड़े में डालने शुरू कर दिये। कंकड़ पड़ने से पानी ऊपर आ गया। उसने पानी पिया और उड़ गया।

शिक्षा – जहाँ चाह वहाँ राह।
अथवा
आवश्यकता आविष्कार की जननी है।

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2. चालाक लोमड़ी
एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की खोज में इधर – उधर घूमने लगी। जब उसे सारे जंगल में भटकने के बाद भी कुछ न मिला तो वह गर्मी और भूख से परेशान होकर एक पेड़ के नीचे बैठ गई। अचानक उसकी नज़र ऊपर गई। वृक्ष पर एक कौआ बैठा हुआ था। उसके मुँह में रोटी का टुकड़ा था। लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। वह कौए से रोटी छीनने का उपाय सोचने लगी।

तभी उसने कौए को कहा, “क्यों भई कौआ भैया ! सुना है तुम गीत बहुत अच्छे गाते हो। क्या मुझे गीत नहीं सुनाओगे ?’ कौआ अपनी प्रशंसा को सुनकर बहुत खुश हुआ। वह उसकी बातों में आ गया। गाना गाने के लिए उसने जैसे ही मुँह खोला, रोटी का टुकड़ा नीचे गिर गया। लोमड़ी ने झट से वह टुकड़ा उठाया और नौ दो ग्यारह हो गई। अब कौआ अपनी मूर्खता पर पछताने लगा।

शिक्षा – झूठी प्रशंसा से बचो।

3. दो बिल्लियाँ और बन्दर
किसी नगर में दो बिल्लियाँ रहती थीं। एक दिन उन्हें रोटी का टुकड़ा मिला। वे आपस में लड़ने लगीं। वे उसे आपस में समान भागों में बाँटना चाहती थीं लेकिन उन्हें कोई ढंग न मिला।

उसी समय एक बन्दर उधर आ निकला। वह बहुत चालाक था। उसने बिल्लियों से लड़ने का कारण पूछा। बिल्लियों ने उसे सारी बात सुनाई। वह तराजू ले आया और बोला, “लाओ, मैं तुम्हारी रोटी को बराबर बाँट देता हूँ।” उसने रोटी के दो टुकड़े लेकर एक – एक पलड़े में रख दिये। जिस पलड़े में रोटी अधिक होती, बन्दर उसे थोड़ी – सी तोड़ कर खा लेता।

इस प्रकार थोड़ी – सी रोटी रह गई। बिल्लियों ने अपनी रोटी वापस मांगी। लेकिन बन्दर ने शेष बची रोटी भी मुँह में डाल ली। बिल्लियाँ मुँह देखती रह गईं।

शिक्षा – आपस में लड़ना – झगड़ना अच्छा नहीं।

4. एकता में बल
किसी गाँव में एक बूढा किसान रहता था। उसके चार पुत्र थे। वे चारों बहुत आलसी थे। आपस में लड़ते – झगड़ते रहते थे। किसान ने उन्हें बहुत समझाया लेकिन व्यर्थ । एक दिन उसने अपने चारों पुत्रों को अपने पास बुलाया तथा एक लकड़ियों का गट्ठा लाने को कहा। वे . लकड़ियों का गट्ठा ले आए। उसने हर एक लड़के को वह गट्ठा तोड़ने के लिए दिया लेकिन कोई भी उसे न तोड़ सका । तब उसने गट्ठा खोलकर एक – एक लकड़ी सभी को तोड़ने को दी। अब सभी ने तोड़ दी। तब उसने उन्हें समझाया कि “अगर तुम इन लकड़ियों की तरह इकटे रहोगे तो तुम्हारा कोई कुछ बिगाड़ नहीं सकता। अगर तुम अकेले – अकेले रहोगे तो लोग तुम्हें नष्ट कर देंगे। अतः तुम सब इकट्ठे रहो। लड़ना, झगड़ना नहीं। एकता में ही बल है।” यह सुनकर वे सब मिल – जुल कर रहने लगे।

शिक्षा – मिल – जुल कर रहना चाहिए
अथवा
एकता में बल है।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

5. अंगूर खट्टे हैं
एक बार एक लोमड़ी बहुत भूखी थी। वह भोजन की तलाश में इधर – उधर भटकती रही लेकिन कहीं से भी उसे कुछ भी खाने को नहीं मिला। अन्त में थक हार कर वह एक बाग में गई। वहाँ उसने अंगूर की बेल पर कुछ अंगूरों के गुच्छे देखे। वह उन्हें देखकर बहुत प्रसन्न हुई। वह अंगूरों को खाना चाहती थी। अंगूर बहुत ऊँचे थे। वह उन्हें पाने के लिए ऊँची – ऊँची छलांगें लगाने लगी। किन्तु वह उन तक पहुँच न सकी। वह बहुत थक चुकी थी। आखिर वह बाग से बाहर जाती हुई कहने लगी कि अंगूर खट्टे हैं। यदि मैं इन्हें खाऊँगी तो बीमार हो जाऊँगी।

शिक्षा – जो चीज़ प्राप्त न कर सको, उसे बुरा मत कहो।

6. लालची कुत्ता
एक कुत्ता था। वह बहुत लालची था। वह भोजन की खोज में इधर – उधर गया। परन्तु कहीं भी उसे भोजन न मिला। अन्त में उसे एक होटल में से मांस का एक टुकड़ा मिला। वह उसे अकेले में बैठकर खाना चाहता था। वह उसे लेकर भाग गया। एकान्त स्थान की खोज करते – करते वह एक नदी के किनारे पहुँचा। अचानक उसने अपनी परछाईं नदी में देखी। उसने समझा कि कोई दूसरा कुत्ता है जिसके मुँह में भी मांस का टुकड़ा है। उसने सोचा क्यों न इसका टुकड़ा भी छीन लिया जाए। वह ज़ोर से भौंका। भौंकने से उसका अपना मांस का टुकड़ा भी नदी में गिर पड़ा। अब वह अपना टुकड़ा भी खो बैठा। अब वह बहुत पछताया तथा मुंह लटकाता गाँव को वापस आ गया।

शिक्षा – लालच बुरी बला है,
अथवा
लालच अच्छा नहीं होता।

7. शेर और चुहिया
एक जंगल में एक शेर रहता था। एक दिन वह एक वक्ष के नीचे सो रहा था। पास ही एक चुहिया का बिल था। अचानक चुहिया बाहर निकली और शेर को सोया देखकर उस पर कूदने लगी। शेर की नींद उचट गई। वह जाग पड़ा। उसने चुहिया को अपने पंजे में पकड़ लिया। वह उसे मारने लगा था कि चुहिया ने विनय की कि मुझे क्षमा कर दो। मैं भी कभी आपके काम आऊँगी। शेर ने हँसकर उसे छोड़ दिया।

एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। उसने वहाँ जाल बिछा दिया। अचानक शेर उस जाल में फँस गया। शेर ने वहाँ से छूटने का बहुत प्रयत्न किया परन्तु वह अपने आपको छुड़ा न पाया और ज़ोर – ज़ोर से गरजने लगा। शेर की गरज को सुनकर चुहिया बिल से निकल कर उसकी सहायता के लिए दौड़ी। चुहिया ने अपने मित्र को जाल में फँसा देखकर सारा जाल काट दिया और शेर आज़ाद हो गया। उसने चुहिया का धन्यवाद किया और चला गया।

शिक्षा – किसी को छोटा मत समझो।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

8. हाथी और दर्जी
किसी राजा के पास एक हाथी था। हाथी प्रतिदिन स्नान करने के लिए नदी पर जाया करता था। रास्ते में एक दर्जी की दुकान पड़ती थी। दर्जी बहुत दयालु तथा उदार था। उसकी हाथी से मित्रता हो गई। वह हाथी को प्रतिदिन कुछ – न – कुछ खाने के लिए देता था।

एक दिन दर्जी क्रोध में बैठा हुआ था। हाथी आया और कुछ प्राप्त करने के लिए अपनी सूंड आगे की। दर्जी ने उसे कुछ खाने के लिए नहीं दिया, परन्तु उसकी सूंड में सूई चुभो दी। हाथी को क्रोध आ गया। वह नदी पर गया। उसने स्नान किया और लौटते समय अपनी सूंड में गन्दा पानी भर लिया। दर्जी की दुकान पर पहुँच कर उसने सारा गन्दा पानी उसके कपड़ों पर फेंक दिया। दर्जी के सारे कपड़े खराब हो गए। इस तरह हाथी ने दर्जी से बदला लिया।

शिक्षा – जैसे को तैसा।

9. नकलची बन्दर और सौदागर
एक सौदागर था। वह टोपियाँ बेचकर अपना पेट पाला करता था। एक दिन वह टोपियाँ बेचने दूसरे गाँव में गया। गर्मी से व्याकुल होकर वह वृक्ष के नीचे बैठ गया। बैठते ही उसे नींद आने लगी। वह टोपियों से भरा सन्दूक पास रखकर सो गया। उसी वृक्ष पर कुछ बन्दर बैठे थे। वे झट नीचे उतरे, सौदागर के सन्दूक से टोपियाँ निकाल कर उन्होंने अपने सिर पर पहन लीं और छलांगें लगाते हुए वृक्ष पर चढ़ गए। नींद तथा रचना भाग खुलने पर सौदागर ने सन्दूक खुला देखा और टोपियाँ उसमें से गुम पाईं। क्या मेरी टोपियाँ कोई चुरा ले गया है ? वह यह सोच ही रहा था कि तभी उसकी निगाह वृक्ष के ऊपर टोपियाँ पहने बन्दरों पर पड़ी।

सौदागर ने बन्दरों को बहुत डराया लेकिन टोपियाँ प्राप्त करने में उसे सफलता न मिली। अन्त में उसने एक उपाय सोचा और सोचते ही अपने सिर से टोपी उतार कर नीचे फेंक दी। इस पर बन्दरों ने भी अपनी – अपनी टोपियाँ सिर से उतार कर ज़मीन पर फेंक दी। सौदागर ने टोपियाँ इकट्ठी की और अपने घर की ओर चल पड़ा।

शिक्षा – जो काम बुद्धि से हो सकता है, वह ताकत से नहीं।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

10. झूठा गडरिया
किसी गाँव में एक गडरिया रहता था। वह प्रतिदिन भेड़ों को चराने के लिए जंगल में ले जाता था। सायँकाल को वह सब भेड़ों के साथ गाँव को लौट आता था। एक दिन गडरिया बालक को गाँव वालों से मज़ाक करने की सूझी। उसने भेड़िया ! भेड़िया ! की आवाज़ दी। गाँव वाले हाथ में लाठियाँ लिए दौड़े आए। उनको देखकर गडरिया बालक हँस पड़ा। उसने कहा, मैंने तो मज़ाक किया था। वे नाराज होकर चले गए। एक – दो बार उसने फिर वैसा ही किया।

एक दिन सचमुच भेड़िया वहाँ आ गया। बालक ने बड़ा शोर मचाया। पर उसकी सहायता के लिए कोई नहीं आया। भेड़िये ने बहुत – सी भेड़ें मार दी। गडरिये ने वृक्ष पर चढ़कर अपनी जान बचाई।

शिक्षा – झूठे व्यक्ति पर कोई विश्वास नहीं करता।

11. ईमानदार लकड़हारा
एक गाँव में एक गरीब लकड़हारा रहता था। वह जंगल से लकड़ियाँ काट कर लाता और उन्हें बेचकर अपना गुजारा करता था।

एक दिन वह नदी के किनारे वृक्ष पर चढ़कर लकड़ियाँ काट रहा था। अचानक उसके हाथ से कुल्हाड़ा छूटकर नदी में गिर पड़ा। लकड़हारा सोचने लगा कि अब मैं अपना निर्वाह कैसे करूंगा ? सोचते – सोचते उसकी आँखों में आँसू आ गए। वह कुछ देर तक रोता रहा। इतने में वहाँ एक देवता प्रकट हुआ। उसने लकड़हारे से पूछा तुम रो क्यों रहे हो ? लकड़हारे ने सारी बात बताई। देवता पानी में कूद पड़ा और सोने का कुल्हाड़ा निकाल कर बाहर लाया। उसने लकड़हारे से पूछा क्या यही तुम्हारा कुल्हाड़ा है ? लकड़हारे ने कहा – नहीं श्रीमान् जी, यह कुल्हाड़ा मेरा नहीं है। देवता ने फिर पानी में डुबकी लगाई और एक चाँदी का कुल्हाड़ा निकाल लाया। परन्तु लकड़हारे ने वह भी नहीं लिया। अन्त में देवता ने लोहे का कुल्हाड़ा बाहर निकाला। इसे देखकर लकड़हारे ने कहा – श्रीमान् जी, यही मेरा कुल्हाड़ा है। देवता उसकी ईमानदारी पर बहुत प्रसन्न हुआ और उसे तीनों कुल्हाड़े दे दिए।

शिक्षा –

  • मनुष्य को ईमानदार बनना चाहिए।
  • ईमानदारी सबसे अच्छी नीति है।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

12. दो मित्र और रीछ
एक बार दो मित्र इकटे व्यापार करने घर से चले। दोनों ने एक – दूसरे को वचन दिया कि वे मुसीबत के समय एक – दूसरे की सहायता करेंगे। चलते – चलते दोनों एक भयंकर जंगल में जा पहँचे।

जंगल बहुत विशाल तथा घना था। दोनों मित्र सावधानी से जंगल में से गुजर रहे थे। एकाएक उन्हें सामने से एक रीछ आता हुआ दिखाई दिया। दोनों मित्र भयभीत हो गए। उस रीछ को पास आता देखकर एक मित्र जल्दी से वृक्ष पर चढ़कर पत्तों में छिप कर बैठ गया। दूसरे मित्र को वृक्ष पर चढ़ना नहीं आता था। वह घबरा गया, परन्तु उसने सुना था कि रीछ मरे हुए आदमी को नहीं खाता। वह झट अपना साँस रोक कर भूमि पर लेट गया। – रीछ ने पास आकर उसे सूंघा और मरा हुआ समझकर वहाँ से चला गया। कुछ देर बाद पहला मित्र वृक्ष से नीचे उतरा। उसने दूसरे मित्र से कहा – “उठो, रीछ चला गया। यह तो बताओ कि उसने तुम्हारे कान में क्या कहा था ?” भूमि पर लेटने वाले मित्र ने कहा कि रीछ केवल यही कह रहा था कि स्वार्थी मित्र पर विश्वास मत करो।

शिक्षा –

  1. मित्र वह है जो विपत्ति में काम आए।
  2. स्वार्थी मित्र से हमेशा दूर रहो।

13. खरगोश और कछुआ
किसी वन में खरगोश और कछुआ पक्के मित्र रहते थे। खरगोश अपनी तेज़ दौड़ का अभिमान करता था। एक दिन दोनों सैर को निकले। खरगोश तेज़ चलता तो कछुआ धीरे धीरे। खरगोश ने कछुए से कहा – भाई कछुए तुम तो बहुत सुस्त हो। यदि मेरे साथ दौड़ लगाओ तो मैं तुम्हें बुरी तरह हरा सकता हूँ। कछुआ भी अपनी बुराई सहन न कर सका। उसने दौड़ लगाना स्वीकार कर लिया।

दोनों की दौड़ शुरू हो गई। खरगोश इतना तेज़ भागा कि कछुआ बहुत पीछे रह गया। रास्ते में एक सुन्दर बगीचे को देखकर खरगोश ने सोचा क्यों न कुछ देर यहाँ आराम कर लिया जाए। जब कछुआ यहाँ आएगा फिर दौड़ लगा लूँगा और उससे पहले तालाब पर पहुँच जाऊँगा। यह सोचकर खरगोश वहाँ लेट गया। ठण्डी – ठण्डी वायु चल रही थी। लेटते ही उसे नींद आ गई। थोड़ी देर के बाद कछुआ भी वहाँ आ गया। खरगोश को सोता देखकर वह चुपके से आगे निकल गया। धीरे – धीरे वह तालाब पर पहले पहुँच गया।

PSEB 7th Class Hindi रचना कहानी-लेखन (2nd Language)

खरगोश की जब नींद खुली तो उसने सोचा कछुआ अभी पीछे ही होगा। उसने फिर दौड़ना शुरू कर दिया। जब वह तालाब पर पहुँचा तो कछुआ पहले ही वहाँ पहुँचा हुआ था। यह देखकर वह बहुत लज्जित हुआ।

शिक्षा –

  1. सहज पके सो मीठा होय।
  2. घमण्डी का सिर नीचा।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 7th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Muhavare Ka Vakya Mein Prayog मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 7th Class Hindi Grammar मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग (2nd Language)

1. अन्धे की लकड़ी एकमात्र सहारा,
प्रयोग – अब तो रमेश ही बुढ़ापे में मुझ अन्धे की लकड़ी है।

2. अंगूठा दिखाना – साफ़ इन्कार करना,
प्रयोग – जब मैंने सुरेश से दस रुपए मांगे तो उसने अंगूठा दिखा दिया।

3. अपना उल्लू सीधा करना – अपना मतलब निकालना,
प्रयोग – आजकल हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है।

4. अंग – अंग हिल जाना – थक जाना,
प्रयोग – दिन भर मेहनत करने से मजदूरों का अंग – अंग हिल जाता है।

5. अपने पैरों पर खड़े होना आत्मनिर्भर होना,
प्रयोग – बच्चों को प्रारम्भ से ही ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिए जिससे वे बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

6. आँखों का तारा बहुत प्यारा,
प्रयोग – सुनील अपने माता – पिता की आँखों का तारा है।

7. आँख में खटकना – बुरा लगना,
प्रयोग – शरारती बच्चे अध्यापक की आँख में खटकने लगते हैं।

8. आँख बदलना – मुँह फेर लेना,
प्रयोग – मुसीबत के समय अपने भी आँख बदल लेते हैं।

9. आँखों में धूल झोंकना – धोखा देना,
प्रयोग – ठग, राम की आँखों में धूल झोंक कर पाँच सौ रुपए ले गया।

10. आँखें खुलना – होश आना,
प्रयोग – हानि उठाकर ही आँखें खलती हैं।

11. आत्म – समर्पण करना अपने आप को दूसरे के हवाले करना,
प्रयोग – चोर ने पुलिस के सामने आत्म – समर्पण कर दिया।

12. आनाकानी करना टालमटोल करना,
प्रयोग – जब मैंने पीयूष से सौ रुपये उधार माँगे, तो वह आनाकानी करने लगा

13. आव देखा न ताव – बिना सोचे समझे,
प्रयोग – डूबते हुए बच्चे को बचाने के लिए सुरेन्द्र ने आव देखा न ताव नदी में छलांग लगा दी।

14. आसमान सिर पर उठाना बहुत शोर करना,
प्रयोग – अध्यापक के क्लास से बाहर निकलते ही लड़कों ने आसमान सिर पर उठाना शुरू कर दिया।

15. ईंट से ईंट बजाना – नाश करना,
प्रयोग – बन्दा बहादुर ने सरहिन्द की ईंट से ईंट बजा दी।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

16. ईद का चाँद होना बहुत दिनों बाद दिखाई देना,
प्रयोग – अरे सुरेश तुम तो ईद के चाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो?

17. एक आँख से देखना बराबर का बर्ताव,
प्रयोग – माता – पिता अपने सभी बच्चों को एक आँख से देखते हैं।

18. काम आना – युद्ध में मारे जाना,
प्रयोग – भारत – पाक युद्ध में अनेक भारतीय वीर काम आए।

19. कलम तोड़ना – बहुत बढ़िया लिखना,
प्रयोग – सुन्दर ने चाहे थोड़ा लिखा है पर कलम तोड़ कर रख दी है।

20. कान पर जूं न रेंगना कोई असर न पड़ना,
प्रयोग – मेरे कहने पर तो उसके कान पर जूं तक नहीं रेंगती।

21. कान भरना – चुगली करना,
प्रयोग – अपने सहपाठियों के विरुद्ध कान भरने वाले विद्यार्थी अच्छे नहीं होते।

22. कानों का कच्चा होना किसी बात पर बिना सोचे – समझे विश्वास कर लेना,
प्रयोग – किसी अफसर के लिए कानों का कच्चा होना ठीक नहीं है।

23. खाला जी का घर – आसान काम,
प्रयोग – आठवीं श्रेणी पास करना खाला जी का घर नहीं है।

24. गले का हार – बहुत प्यारा,
प्रयोग – सुरेश अपने माता – पिता के गले का हार है।

24. गहरी नींद सो जाना – मर जाना।
प्रयोग – फाँसी के बाद सद्दाम हुसैन गहरी नींद सो गया।

25. घी के दीये जलाना – बहुत खुशी मनाना,
प्रयोग – जब श्री रामचन्द्र अयोध्या वापस पहुँचे तो लोगों ने घी के दीये जलाए।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

26. घोड़े बेचकर सोना – बे – फिक्र होकर सोना,
प्रयोग – परीक्षा के बाद सब विद्यार्थी घोड़े बेचकर सोते हैं।

27. घड़ी समीप होना – मृत्यु निकट होना,
प्रयोग – रोगी की साँस बहुत धीमे चल रही थी, ऐसा लगता था जैसे उसकी घड़ी समीप हो।

28. चार चाँद लगाना – शोभा बढ़ाना,
प्रयोग – आपने यहाँ पधार कर उत्सव को चार चाँद लगा दिए।

29. छक्के छुड़ाना बुरी तरह हराना,
प्रयोग – युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना के छक्के छुड़ा दिए।

30. जान हथेली पर रखना अपने को जोखिम में डालना,
प्रयोग – युद्ध में भारतीय सैनिक अपनी जान हथेली पर रखकर लड़ते हैं।

31. जी की कली खिलना – बहुत खुश होना,
प्रयोग – विदेश से वापस आए पुत्र को देखकर माता – पिता के जी की कली खिल उठी।

32. झाँसा देना धोखा देना,
प्रयोग – अपराधी पुलिस को झांसा देकर भाग खड़ा हुआ।

33. टका – सा जवाब देना – साफ़ इन्कार करना,
प्रयोग – मैंने जब महेन्द्र से पुस्तक मांगी तो उसने मुझे टका – सा जवाब दे दिया।

34. टेढ़ी खीर – कठिन काम,
प्रयोग – आठवीं की परीक्षा पास करना टेढ़ी खीर है।

35. डींग मारना शेखी मारना,
प्रयोग – डींग मारने वालों पर विश्वास मत कीजिए।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

36. तलवे चाटना – खुशामद करना,
प्रयोग – बलबीर दूसरों के तलवे चाटकर काम निकालने में निपुण है।

37. दांत खट्टे करना – बुरी तरह हराना,
प्रयोग – भारत ने युद्ध में दो बार पाकिस्तान के दांत खट्टे किए।

38. दांतों तले उंगली दबाना – चकित होना,
प्रयोग – ताजमहल की सुन्दरता को देखकर विश्व के लोग दांतों तले उंगली दबाते हैं।

39. दिल बल्लियों उछलना बहुत खुश होना,
प्रयोग – लाटरी निकलने का समाचार सुनकर जसदेव का दिल बल्लियों उछलने लगा।

40. दिल टूट जाना – हताश हो जाना,
प्रयोग – इकलौते पुत्र की मृत्यु से माँ – बाप का दिल टूट गया।

41. धुन का पक्का – इरादे का पक्का,
प्रयोग – जीवन में वही व्यक्ति उन्नति कर सकता है, जो धुन का पक्का होता है।

42. नस – नस पहचानना हर बात की जानकारी होना,
प्रयोग – राजेन्द्र का विश्वास मत करो, मैं उसकी नस – नस पहचानता

43. नाक कटवाना – बदनामी करवाना,
प्रयोग – सोहन ने चोरी करके अपने कुल की नाक कटवा दी है।

44. नौ दो ग्यारह होना – भाग जाना,
प्रयोग – सिपाही को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गया।

45. नाक में दम करना – बहुत तंग करना,
प्रयोग – वर्षा ने नाक में दम कर दिया है, कहीं जाना भी कठिन हो गया है।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

46. पानी – पानी होना बहुत लज्जित होना,
प्रयोग – सच्चाई सामने आने पर बलदेव पानी – पानी हो गया।

47. पीठ दिखाना – युद्ध से भाग जाना,
प्रयोग – युद्ध के मैदान में पीठ दिखाना कायरों का काम है, वीरों का नहीं।

48. प्राण पखेरू उड़ना – मर जाना,
प्रयोग – डॉक्टर के आने से पहले रोगी के प्राण पखेरू उड़ गए।

49. पीठ थपथपाना – शाबाश देना,
प्रयोग – कक्षा में प्रथम आने पर अध्यापक ने सुरेश की पीठ थपथपाई।

50. प्राणों की खैर मनाना – अपना बचाव करना,
प्रयोग – भारतीय सैनिकों ने शत्रु सैनिकों को ललकार कर कहा – प्राणों की खैर मनानी है तो हथियार डाल दो।

51. फूला न समाना – बहुत खुश होना,
प्रयोग – परीक्षा में प्रथम आने का समाचार सुनकर दिनेश फूला नहीं समाता था।

52. फूट – फूट कर रोना बहुत अधिक रोना,
प्रयोग – पिता के मरने का समाचार सुनकर पुत्र फूट – फूट कर रोने लगा।

53. बेसिर पैर की बातें करना – फजूल की बातें करना।
प्रयोग – सुच्चा सिंह हर वक्त बेसिर पैर की बातें करता है।

54. भीगी बिल्ली बनना – डर से दबे रहना,
प्रयोग – जब तक मास्टर जी कक्षा में रहते हैं, लड़के भीगी बिल्ली बनकर बैठे रहते हैं।

55. मन चंगा तो कठौती में गंगा – मन स्वस्थ हो तो घर में ही पुण्य पाया जा सकता है।
प्रयोग – रविदास जी ने तीर्थ यात्रा को निरर्थक बताया। उनका कहना था – मन चंगा तो कठौती में गंगा।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

56. मन मोह लेना – अच्छा लगना, मन लुभाना।
प्रयोग – जसवंत के नृत्य ने सबका मन मोह लिया।

57. मखमल में लपेट कर कहना – चिकनी – चुपड़ी बात कहना।
प्रयोग – आजकल मखमल में लपेटकर कहने वाले ही सफल होते हैं।

58. मुँह मोड़ना – नाराज़ होना।
प्रयोग – संकट में मित्र भी मुँह मोड़ते हैं।

59. मौत के घाट उतारना – मार देना।
प्रयोग – अमेरिका ने इराक में हजारों को मौत के घाट उतार दिया।

60. मृत्यु – तुल्य जीवन बिताना – मरे हुए के समान रहना।
प्रयोग – कालाहांडी में लोग मृत्यु – तुल्य जीवन बिता रहे हैं।

61. मृत्यु की गोद में सो जाना – मर जाना।
प्रयोग – सुनामी लहरों के कहर से लाखों लोग मृत्यु की गोद में सो गए।

62. मुँह की खाना – बुरी तरह हारना,
प्रयोग – 1971 के भारत – पाक युद्ध में पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी।

63. मुट्ठी गर्म करना – रिश्वत देना,
प्रयोग – आजकल मुट्ठी गर्म करने से ही प्रत्येक काम बनता है।

64. रंग में भंग डालना मजा किरकिरा होना,
प्रयोग – विवाह में दादा जी की मृत्यु ने रंग में भंग डाल दिया।

65. रफूचक्कर होना – भाग जाना,
प्रयोग – पुलिस को देखते ही डाकू रफू चक्कर हो गए।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

66. लाल – पीला होना क्रुद्ध होना, गुस्से में आना,
प्रयोग – पहले बात तो सुन लो व्यर्थ में क्यों लाल – पीले हो रहे हो।

67. लोहा लेना युद्ध करना,
प्रयोग – अधिकतर मुग़ल सम्राट् राजपूतों से लोहा नहीं लेना चाहते थे।

68. लोहे के चने चबाना अति कठिन काम करना, कष्ट अनुभव करना,
प्रयोग – भारत पर आक्रमण करके चीन को लोहे के चने चबाने पड़े थे।

69. वीरगति प्राप्त करना – वीरों की मौत मरना, शहीद होना,
प्रयोग – युद्ध में कई भारतीय सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की।

70. वार देना – कुर्बान करना,
प्रयोग – गुरु गोबिन्द सिंह ने धर्म की रक्षा के लिए अपने चारों पुत्र वार दिए थे।

71. श्रीगणेश करना – काम आरम्भ करना,
प्रयोग – सोहन ने कल ही अपने नये व्यवसाय का श्रीगणेश किया है।

72. सिर चढ़ाना – लाड़ प्यार से आदतें खराब करना,
प्रयोग – बच्चों को ज्यादा सिर पर नहीं चढ़ाना चाहिए।

73. हवा से बातें करना बहुत तेज़ दौड़ना,
प्रयोग – महाराणा प्रताप का घोड़ा हवा से बातें करता था।

74. हवा हो जाना – भाग जाना,
प्रयोग – पहरेदार को अपनी तरफ आते देखकर चोर हवा हो गया।

75. हाथ – फैलाना – मांगना,
प्रयोग – स्वाभिमान – रहित व्यक्ति हर किसी के आगे हाथ फैलाने लगता है।

PSEB 7th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

76. हाथ मलना – पछताना,
प्रयोग – अब फेल होने पर हाथ मलने से क्या लाभ? पहले ही डट कर मेहनत करते तो पास हो जाते।

77. हाथ लगना – अधिकार में होना,
प्रयोग – युद्ध में अनेक पाकिस्तानी टैंक भारतीय सेना के हाथ लगे।

78. हथियार डालना – हार मान लेना,
प्रयोग – बांग्लादेश में पाकिस्तान ने साधारण से युद्ध के बाद हथियार डाल दिए।

79. हृदय पर साँप लोटना – बुरा लगना,
प्रयोग – दूसरे की उन्नति देखकर ईष्यालु व्यक्ति के हृदय पर साँप लोटने लगता है।

80. हँसते – हँसते लोट – पोट होना – बहुत हँसना।
प्रयोग – लाल बुझक्कड़ के किस्से सुनकर बच्चे हँसते – हँसते लोट – पोट हो गए।

PSEB 8th Class Hindi Grammar व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Vyavaharik Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

भाववाचक संज्ञाएँ :

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language) 1

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PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language) 5
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PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language) 7
PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language) 8

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में से भाववाचक संज्ञाएँ छाँटो :

प्रश्न 1.
एकता में बहुत शक्ति है।
उत्तर :
एकता

प्रश्न 2.
अब रोने की आवश्यकता नहीं है।
उत्तर :
आवश्यकता

प्रश्न 3.
यह गाँव ऊँचाई पर बसा है।
उत्तर :
ऊँचाई

प्रश्न 4.
दान में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
उत्तर :
कंजूसी

प्रश्न 5.
आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
उत्तर :
आलस्य

प्रश्न 6.
बड़े अपना बड़प्पन कभी नहीं छोड़ते।
उत्तर :
बड़प्पन

प्रश्न 7.
मुझ से यह काम अज्ञानता में हो गया।
उत्तर :
अज्ञानता

प्रश्न 8.
इस बार सुन्दर बड़ी कठिनता से पास हुआ।
उत्तर :
कठिनता

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

प्रश्न 9.
दूर तक पैदल चलने से थकावट हो जाती है।
उत्तर :
थकावट

प्रश्न 10.
बसन्त ऋतु में प्राकृतिक सुन्दरता बढ़ जाती है।
उत्तर :
सुन्दरता

प्रश्न 11.
आजकल कई लोग चालाकी से काम निकालना चाहते हैं।
उत्तर :
चालाकी

प्रश्न 12.
नम्रता विद्यार्थी का गहना है।
उत्तर :
नम्रता
दुहराई
प्यास

प्रश्न 13.
बार – बार पाठ की दुहराई करो।
उत्तर :
चमक

प्रश्न 14.
गर्मियों में प्यास अधिक लगती है।
उत्तर :
जड़ता

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

प्रश्न 15.
किसी चीज़ की ऊपरी चमक पर मोहित नहीं होना चाहिए।
उत्तर :
मनुष्यता

प्रश्न 16.
हमारे देश में आज भी जड़ता है।
उत्तर :
दुर्बलता

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव ने मनुष्यता का प्रचार किया था।
उत्तर :
नीचता

प्रश्न 18.
दुर्बलता भी एक अभिशाप है।
उत्तर :
गुलामी

प्रश्न 19.
नीच अपनी नीचता नहीं छोड़ता।
उत्तर :
उदारता

प्रश्न 20.
गुलामी से मौत अच्छी है।
उत्तर :
समता

प्रश्न 21.
उदारता से दान देना चाहिए।
उत्तर :
बुद्धिमत्ता

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

प्रश्न 22.
गुरु नानक देव समता चाहते थे।
उत्तर :
समता

प्रश्न 23.
प्रत्येक काम बुद्धिमत्ता से करो।
उत्तर :
बुद्धिमत्ता

प्रश्न 24.
मेरी लिखाई सुन्दर है।
उत्तर :
लिखाई

प्रश्न 25.
भारत की वीरता दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
उत्तर :
वीरता

विशेषण रचना

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वचन परिवर्तन :

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(7) आकारान्त पुल्लिग शब्दों को छोड़कर शेष पुल्लिग शब्द एकवचन और बहुवचन में समान रहते हैं। जैसे –

  • एकवचन – बहुवचन
  • आम वृक्ष से गिर पड़ा। – आम वृक्षों से गिर पड़े।
  • उल्लू रात को निकलता है। – उल्लू रात को निकलते हैं।
  • शेर गरजता है। – शेर गरजते हैं।

(8) किसी संज्ञा के एकवचन के साथ गण, लोग, वंद, वर्ग, जाति, दल आदि शब्द लगाने से एकवचन का बहुवचन बन जाता है। जैसे –
पाठकगण, आप लोग, सज्जनवृंद, आर्यजन, मित्र वर्ग, स्त्री जाति, वीरदल, खालसा पंथ, राजागण आदि।

(9) दर्शन, प्राण, बाल, समाचार, भाग्य आदि शब्द प्रायः बहुवचन में आते हैं; जैसे –
आपके दर्शन दुर्लभ हो गए। प्राण बच गए। मेरे बाल सफ़ेद हो गए हैं। विधवा के भाग्य खुल गए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में वचन बदलो तथा आवश्यक परिवर्तन करो –

प्रश्न 1.
प्रश्न – पत्र में अशुद्धि थी।
उत्तर :
प्रश्न – पत्रों में अशुद्धियाँ थीं।

प्रश्न 2.
मैं भाई के साथ जाता हूँ।
उत्तर :
हम भाइयों के साथ जाते हैं।

प्रश्न 3.
पुस्तक मेज़ पर पड़ी है।
उत्तर :
पुस्तकें मेज़ों पर पड़ी हैं।

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प्रश्न 4.
मेरी बोली मीठी नहीं है।
उत्तर :
हमारी बोलियाँ मीठी नहीं हैं।

प्रश्न 5.
कौआ काँव – काव कर रहा है।
उत्तर :
कौए काँव – काँव कर रहे हैं।

प्रश्न 6.
अध्यापिका पढ़ा रही है।
उत्तर :
अध्यापिकाएँ पढ़ा रही हैं।

प्रश्न 7.
वह मुझे देख रहा है।
उत्तर :
वे मुझे देख रहे हैं।

प्रश्न 8.
सिपाही ने गोली चलाई।
उत्तर :
सिपाहियों ने गोलियां चलाईं।

प्रश्न 9.
बच्चा रात भर जागता रहा।
उत्तर :
बच्चे रात भर जागते रहे।

प्रश्न 10.
मक्खी भिनभिना रही है।
उत्तर :
मक्खियाँ भिनभिना रही हैं।

प्रश्न 11.
सर्दी में रात लंबी होती है।
उत्तर :
सर्दियों में रातें लंबी होती हैं।

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प्रश्न 12.
मैं गुड़िया से खेलती हूँ।
उत्तर :
हम गुड़ियों से खेलती हैं।

प्रश्न 13.
बच्चे ने वस्त्र गंदा कर दिया।
उत्तर :
बच्चों ने वस्त्र गंदे कर दिए।

प्रश्न 14.
यह हमारे स्कूल का विद्यार्थी है।
उत्तर :
ये हमारे स्कूल के विद्यार्थी हैं।

प्रश्न 15.
मेरा मित्र बहुत अच्छा है।
उत्तर :
मेरे मित्र बहुत अच्छे हैं।

प्रश्न 16.
मेरे पास गेंद है।
उत्तर :
हमारे पास गेंदें हैं।

लिंग परिवर्तन :

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केवल पुल्लिंग में – चीता, मच्छर, खरगोश, खटमल, बाज, भेड़िया, कछुआ, कौआ।
केवल स्त्रीलिंग में – मछली, दीमक, जूं, जोंक, गिलहरी, चील, कोयल, मक्खी।
कई शब्दों का लिंग बदला नहीं जाता है। जैसे – सती, धाय, सुहागिन, नर्स, राष्ट्रपति, राज्यपाल आदि।

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प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों में मोटे (काले) संज्ञा शब्दों के लिंग बदलिए –

प्रश्न 1.
अध्यापक पढ़ा रहा है।
उत्तर :
अध्यापिका पढा रही है।

प्रश्न 2.
मैंने चिड़िया घर में एक सिंह और एक मोर देखा।
उत्तर :
मैंने चिड़िया घर में एक सिंहनी और एक मोरनी देखी।

प्रश्न 3.
दर्जी कपड़े सी रहा है।
उत्तर :
दर्जिन कपड़े सी रही है।

प्रश्न 4.
गाय चर रही है।
उत्तर :
बैल चर रहा है।

प्रश्न 5.
सेठ अन्दर है और सेवक द्वार पर खड़ा है।
उत्तर :
सेठानी अन्दर है और सेविका द्वार पर खड़ी है।

प्रश्न 6.
गायिका गाना गा रही है।
उत्तर :
गायक गाना गा रहा है।

प्रश्न 7.
कौआ उड़ रहा है।
उत्तर :
कौव्वी उड़ रही है।

प्रश्न 8.
बंदर उछल रहा है।
उत्तर :
बंदरिया उछल रही है।

प्रश्न 9.
विद्वान् का सम्मान होता है।
उत्तर :
विदुषी का सम्मान होता है।

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प्रश्न 10.
देवता का मंदिर निकट ही है।
उत्तर :
देवी का मंदिर निकट ही है।

प्रश्न 11.
नर्तक नाचता है।
उत्तर :
नर्तकी नाचती है।

प्रश्न 12.
क्षत्रिय वचन का पक्का होता है।
उत्तर :
क्षत्राणी वचन की पक्की होती है।

प्रश्न 13.
शेर ने बकरी को मार डाला।
उत्तर :
शेरनी ने बकरे को मार डाला।

प्रश्न 14.
ठठेरा बर्तन बना रहा है।
उत्तर :
ठठेरिन बर्तन बना रही है।

विपरीतार्थक या विलोम शब्द :

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पर्यायवाची या समानार्थक शब्द :

अपमान अनादर, उपेक्षा, तिरस्कार, निरादर।
अमृत सुधा, पीयूष, अमिय, सोम।
अरण्य जंगल, वन, विपिन, कांतर, गहन, कानन, अटवी।
असुर राक्षस, दैत्य, दानव, दनुज, इन्द्रारि, निशाचर, रजनीचर, तमीचर।
अन्धकार तम, तिमिर, तमिस्त्र, तमिस, अन्धेरा, तारीक।
अहंकार अभिमान, गर्व, घमंड, मद, दर्प।
आनन्द मोद, प्रमोद, हर्ष, आमोद, प्रसन्नता, उल्लास।
आँख नेत्र, चक्षु, नयन, लोचन, अक्षि।
आकाश व्योम, गगन, अंबर, नभ, आसमान, अन्तरिक्ष, अनन्त।
आग अनल, ज्वाला, अग्नि, पावक, शिखी।
आभूषण अलंकार, भूषण, आभरण, गहना।
इच्छा अभिलाषा, चाह, मनोरथ, कामना, लिप्सा, लालसा।
इन्द्र देवेन्द्र, सुरेन्द्र, सुरपति, पुरंदर, देवराज, शचीपति।
ईश्वर ईश, परमात्मा, परमेश्वर, प्रभु, भगवान्, जगदीश।
उषा प्रभात, सवेरा, अरुणोदय, निशांत।
उद्यम प्रयास, प्रयत्न, यल, पुरुषार्थ, उद्योग।
उपाय उद्यम, उद्योग, यत्न, साधन, तरीका।
उत्सव र्व, त्योहार, जलसा, समारोह।
कपड़ा वस्त्र, अम्बर, पट, वसन, परिधान।
कमल अरविन्द, जलज, नलिन, पंकज, सरोज, पद्म।
कान कर्ण, श्रोत, श्रवण। किनारा – तट, तीर, कूल, पुलिन।
केश बाल, अलक, कच, कुंतल।
कृष्ण वासुदेव, गोपाल, गिरधर, केशव।
क्रोध गुस्सा, रोष, कोप, आमर्ष खुशी – प्रसन्नता, हर्ष, उल्लास।
गणेश गणपति, भालचंद्र, लंबोदर, गजानन।
गंगा भागीरथी, देवनदी, सुरसरी, मन्दाकिनी, नदीश्वरी।
गुरु आचार्य, अध्यापक, शिक्षक, उपाध्याय।
गौ गाय, सुरभी, धेनु।
घर गृह, सदन, निकेतन, भवन, वास, आनन, शाला।
घोड़ा अश्व, हय, वाजी, घोटक, तुरंग।
चन्द्र शशि, चन्द्रमा, राकेश, इन्दु, चाँद, सोम, सुधाकर।
चतुर दक्ष, प्रवीण, निपुण, कुशल, योग्य, होशियार।
जल वारि, नीर, पानी, पय, सलिल।
जीभ जिह्वा, रसना, रसज्ञा, रसा।
तलवार खड्ग, कृपाण, असि, शमशीर, करताल।
तारा नक्षत्र, तारक, ऋक्ष, नखत।
तीर बाण, शर, शायक, शिलीमुख।
दन्त दाँत, दशन, रद, द्विज।
दरवाजा कपाट, द्वार, फाटक, किवाड़।
दास भृत्य, नौकर, सेवक, अनुचर, परिचारक।
दिवस दिन, वार, वासर, अह।
देवता सुर, अमर, देव, त्रिदश, गीर्वाण, आदित्य।
दुःख पीड़ा, कष्ट, व्यथा, विषाद, यातना, वेदना।
दूध दुग्ध, पय, गोरस, स्तन्य।
धरती पृथ्वी, भू, भूमि, वसुधा, धरा।
धनुष धनु, कोदण्ड, चाप, कमान, शरासन।
धन द्रव्य, अर्थ, वित्त, सम्पत्ति, लक्ष्मी।
नदी सरिता, तरंगिणी, जलमाला, नद, तटिनी।
नमस्कार नमः, प्रणाम, अभिवादन, नमस्ते।
नौका नाव, तरंगिणी, जलयान, बेड़ी, तरी।
पण्डित विद्वान्, प्राज्ञ, बुद्धिमान्, धीमान्, धीर, सुधी।
पवन हवा, वायु, समीर, अनिल, प्रकम्पन।
पक्षी खग, नभचर, विहग, विहंगम, पतंग।
पिता जनक, तात, बापू, बाप।
पुत्री बेटी, सुता, तनया।
पुत्र बेटा, सुत, तनय।
प्रण प्रतिज्ञा, संकल्प।
पति स्वामी, नाथ, भर्ता, प्राणेश्वर।
पत्ता पात, दल, पत्र, पल्लव।
पर्वत गिरि, पहाड़, शैल, नग, अचल।
पुस्तक किताब, पोथी, पुस्तिका।
पेड़ वृक्ष, तरु, पादप, विटप।
प्रकाश उजाला, ज्योति, प्रभा, विभा, आलोक।
प्रेम प्यार, स्नेह, अनुराग, प्रीति, प्रणय।
फूल सुमन, पुष्प, कुसुम, प्रसून।
बाग बगीचा, वाटिका, उपवन, उद्यान।
बादल मेघ, घन, जलद, नीरद।
बल ताकत, शक्ति, सामर्थ्य।
बाल बालक, बच्चा, लड़का, शिशु।
बिजली विद्युत, तड़ित, दामिनी, चपला।
बंदर कपि, वानर, शाखामृग, हरि।
भाई सहोदर, भ्राता, भैया।
भयानक डरावना, भयजनक, विकट, गम्भीर।
भूख क्षुधा, बुभुक्षा, अन्नलिप्सा, आहारेच्छा।
भौंरा भुंग, भ्रमर, मधुकर, मधुप, अलि।
भूषण गहना, ज़ेवर, आभूषण, मण्डन।
मदिरा शराब, सुरा, मद्य, वारुणी।
माता जननी, माँ, मात, मैया, अम्मा।
मित्र सखा, सहचर, साथी, मीत, दोस्त।
मुख मुंह, मुखड़ा, आनन, वदन।
मृत्यु निधन, देहांत, अन्त, मौत।
मनुष्य मनुज, नर, आदमी, मानव, पुरुष।
मोर मयूर, शिखी, शिखण्डी, कलापी।
युद्ध संग्राम, रण, समर, लड़ाई।
युवक युवा, तरुण, जवान, नौजवान।
यौवन जवानी, युवावस्था, जीवन – शिरोमणि, तरुणाई।
रक्त खून, शोणित, रुधिर, लहू।
राजा नृप, भूपति, भूप, नरेश, सम्राट, नरेन्द्र, नरपति।
रात रजनी, निशा, रात्रि, यामिनी, शर्वरी।
लक्ष्मी कमला, इन्दिरा, पद्मा, चंचला।
लहर हिलोर, तरंग, उर्मि।
विद्यालय स्कूल, पाठशाला।
वायु पवन, समीर, हवा, अनिल, समीरण।
सूर्य रवि, भानु, दिनकर, दिवाकर।
सर्प भुजंग, साँप, विषधर, व्याल।
संसार दुनिया, विश्व, जगत्, जग।
सरोवर तालाब, सर, तड़ाग, ताल।
सरस्वती शारदा, भारती, वाणी – वादिनी, हंस – वाहिनी, वाणी।
स्वर्ग देवलोक, सुरलोक, द्यौ, नाक।
सागर समुद्र, सिन्धु, जलधि, रत्नाकर।
सांझ सायंकाल, शाम, संध्याकाल।
सचेत सजग, चौकस, चुस्त, चौकन्ना, सावधान।
सुगंध सुरभि, सौरभ, सुवास, खुशबू।
स्त्री नारी, महिला, कामिनी, औरत, अबला, वनिता।
सिंह शेर, केसरी, मृगेन्द्र, वनराज।
शरीर तनु, वपु, काया, अंग, देह, गात।
शत्रु दुश्मन, वैरी, अरि, रिपु।
शिष्य चेला, शागिर्द, विद्यार्थी, अनुयायी।
शिक्षा पढ़ाई, शिक्षण, विद्या।
हाथ कर, पाणि, हस्त।
हाथी हस्ती, करि, गज, मतंग।
वीर बहादुर, शूर, साहसी, पराक्रमी।

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बहुविकल्पीय प्रश्न
सही उत्तर छाँट कर लिखें :

प्रश्न 1.
‘अग्नि’ का पर्यायवाची नहीं है
(क) पवन
(ख) पावक
(ग) शिखी
(घ) ज्वाला।
उत्तर :
पवन।

प्रश्न  2.
‘वस्त्र’ का पयार्यवाची है
(क) अम्बर
(ख) जलज
(ग) जलद
(घ) साधन।
उत्तर :
अम्बर।

प्रश्न  3.
‘सुधाकर’ किसका पर्यायवाची है ?
(क) सागर
(ख) राकेश
(ग) सलिल
(घ) वसुधा।
उत्तर :
राकेश।

प्रश्न 4.
‘अनिल’ का पर्यायवाची नहीं है
(क) अनल
(ख) समीर
(ग) पवन
(घ) वायु।
उत्तर :
समीर।

प्रश्न 5.
‘गंगा’ का पर्यायवाची है
(क) भागीरथी
(ख) सरिता
(ग) तटिनी
(घ) प्रवाहनि।
उत्तर :
भागीरथी।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन – सा शब्द ‘पक्षी’ का पर्याय नहीं है ?
(क) खग
(ख) पंछी
(ग) विहग
(घ) तोता।
उत्तर :
तोता।

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प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन – सा शब्द ‘फूल’ का पर्याय है ?
(क) अम्बर
(ख) पुष्प
(ग) बीज
(घ) गुलाब।
उत्तर :
पुष्प।

वाक्यांशों के लिए एक शब्द :

वाक्यांश – एक शब्द
जिसमें धैर्य न हो – अधीर
जिसे दिखाई न दे – अन्धा
जिसका अन्त न हो – अनन्त
जो न्याय न करता हो – अन्यायी
अच्छा व्यवहार – सद्व्यवहार
जो कभी बूढ़ा न हो – अजर
जो कभी न मरे – अमर
जिसको कोई जीत न सके – अजेय
जिसका कोई पार न हो – अपार
जिसे काफ़ी अनुभव हो – अनुभवी
जो पढ़ा हुआ न हो – अशिक्षित, अनपढ़
जो कानून के विरुद्ध हो – अवैध
जिसका अनुकरण किया जा सके – अनुकरणीय
ईश्वर को मानने वाला – आस्तिक
जीवन से अन्त तक – आजीवन
पीछे चलने वाला – अनुयायी
अत्याचार करने वाला – अत्याचारी
जिसमें अपनी कथा हो – आत्मकथा
जिसके समान दूसरा न हो – अद्वितीय
जिसकी उपमा (मिसाल) न हो – अनुपम
जिसकी तुलना न हो सके – अतुलनीय
जो योग्य न हो – अयोग्य
जिसका कोई मूल्य न हो – अमूल्य
जिसके पार न देखा जा सके – अपारदर्शी
जिसके पार देखा जा सके – पारदर्शी
सरलता से होने वाला – सहज
करुणा से भरा – कारुणिक
प्रबन्ध करने वाला – प्रबन्धक
सत्य बोलने वाला – सत्यवादी
झूठ बोलने वाला – मिथ्यावादी
अपना मतलब सिद्ध करने वाला – स्वार्थी
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समानोच्चारित भिन्नार्थक शब्द :

शब्द अर्थ वाक्य
1. अचल पर्वत वह अचल के शिखर पर जा पहुंचा।
अचला पृथ्वी अचला के गर्भ में संपत्ति का भंडार है।
2. अनल आग अनल जल रही है।
अनिल वायु अनिल चल रही है।
3. अन्न अनाज भारत अन्न के उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है।
अन्य दूसरा पहाड़ पर पहुँचने का अन्य मार्ग कौन सा है ?
4. अपेक्षा तुलना में या बराबरी में म की अपेक्षा गणेश चतुर है।
उपेक्षा तिरस्कार, लापरवाही दूसरों की उपेक्षा मत करो।
5. आकर भण्डार, खज़ाना डाकू सारा आकर लूट कर ले गए।
आकार रूप, फैलाव, लम्बाई चौड़ाई – पृथ्वी का आकार गोल है।
6. उदर पेट उसके उदर में दर्द है।
उदार दानी, बड़े दिल वाला वह व्यक्ति उदार नहीं है।
7. उधार ऋण उधार लेना अच्छी आदत नहीं है।
उद्धार भलाई, छुटकारा ईश्वर तुम्हारा उद्धार करे।
8. और तथा म और नरेश मेरे पक्के मित्र हैं।
ओर तरफ़ हमारा गाँव नहर के उस ओर है।
9. कपट छल, धोखा कपट से दूर रहो।
कपाट किवाड़ कपाट बन्द कर दो।
10. कुल वंश, खानदान वह अच्छे कुल में जन्मा है।
कल (नदी का) किनारा नदी के कल में बना भवन दर्शनीय है।
11. कृपण कंजूस वह सेठ कृपण है।
कृपाण तलवार वह कृपाण चलाने में कुशल है।
12. कक्षा श्रेणी वह चौथी कक्षा का छात्र है।
कक्ष कमरा वह इस समय अपने कक्ष में सो रहा है।
13. कि (समुच्चयबोधक) मेहनत करो ऐसा न हो कि फ़ेल हो जाओ।
की (संबंधबोधक) यह पुस्तक मोहन की है।
14. कोष खज़ाना उसे सरकारी कोष से सहायता मिली।
कोश शब्द भण्डार स शब्द का अर्थ कोश में देखो।
15. कर्म काम सदा अच्छे कर्म करो।
क्रम तरतीब, सिलसिला सभी छात्र एक क्रम में खड़े हो जाएँ।
16. ग्रह नक्षत्र नव ग्रह की पूजा करो।
गृह घर रा गृह निकट ही है।
17. जल पानी एक गिलास जल ले कर आओ।
जाल ताना बाना – मछली जाल में फंस गई।
18. जल कमल सरोवर में जलज खिले हैं।
जलज बादल आकाश में जलद छाए हुए हैं।
19. जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय आदि जातियां देव जाति से ब्राह्मण है।
जाती जाना क्रिया से बनी स्त्रीवाचक क्रिया रमा प्रतिदिन स्कूल जाती है।
20. दशा स्थिति, अवस्था इसकी दशा शोचनीय है।
दिशा ओर, तरफ़ उस दिशा में नदी बह रही है।
21. धारा प्रवाह नदी की धारा देखो।
धरा पृथ्वी यह धरा हमारी जननी है।
22. निर्धन ग़रीब मोहन निर्धन माँ – बाप का बेटा है।
निधन मृत्यु लंबी बीमारी के पश्चात् उसका निधन हो गया।
23. प्रमाण सबूत प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है।
परिमाण नाप तोल – भोजन उचित परिमाण में ही करना चाहिए।
24. प्रणाम नमस्कार बड़ों को सदा प्रणाम करो।
परिणाम नतीजा आठवीं का परीक्षा परिणाम कब निकलेगा ?
25. पुरुष मर्द शिवाजी एक वीर पुरुष थे।
परुष कठोर परुष वचन मत बोलो।
26. भुवन संसार लाल किला इस भुवन का एक दर्शनीय स्थान है।
भवन घर, स्थान हमारा भवन बहुत बड़ा है।
27. मैं खुद मैं सदा सच बोलता हूँ।
में बीच तालाब में कमल खिले हुए हैं।
28. मूल्य कीमत इस पुस्तक का मूल्य क्या है ?
मूल जड़, असल इस झगड़े का मूल कारण राजन ही है।
29. मेला उत्सव, खेल हम वैशाखी का मेला देखने जाएंगे।
मैला गन्दा, कूड़ा कपड़ों को मैला मत करो।
30. वात हवा कई लोग वात रोग से पीड़ित हैं।
बात बातचीत मुझे झूठी बात कभी अच्छी नहीं लगती।
31. स्त्री औरत लक्ष्मीबाई एक वीर स्त्री थी।
इस्तरी प्रेस धोबी ने कपड़े इस्तरी कर दिए हैं।
32. सम्मान आदर बड़ों का सम्मान करना चाहिए।
समान बराबर गुरु नानक देव जी ने सभी मनुष्यों को समान बताया है।
33. सामान असबाब, चीजें म्हारे पास क्या सामान ?
सामान्य साधारण देव सामान्य बुद्धि वाला बालक है।
34. संग साथ मैं पिता जी के संग मेला देखने जाऊंगा।
संघ दल संघ में शक्ति है।
35. शोक अफ़सोस महात्मा गाँधी की मृत्यु से सारा देश शोक में डूब गया था।
शौक रुचि मुझे फुटबाल खेलने का शौक है।

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अशुद्ध – शुद्ध :

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बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
शुद्ध शब्द छाँट कर लिखें
(क) परीक्षा
(ख) परिक्शा
(ग) परीक्शा
(घ) प्रीक्षा।
उत्तर :
(क) परीक्षा

प्रश्न 2.
शुद्ध शब्द छाँट कर लिखें
(क) आर्शीवाद
(ख) आरशीवाद
(ग) आशीर्वाद
(घ) आशीरवाद।
उत्तर :
(ग) आशीर्वाद

प्रश्न 3.
शुद्ध शब्द छाँट कर लिखें
(क) विद्यालय
(ख) विधालय
(ग) विद्यालय
(घ) विदियालय।
उत्तर :
(ख) विधालय

प्रश्न 4.
शुद्ध शब्द छाँट कर लिखें
(क) लड़कियाँ
(ख) लड़कीयाँ
(ग) लड़कयिं
(घ) लड़कियीं।
उत्तर :
(क) लड़कियाँ

प्रश्न 5.
शुद्ध शब्द छाँट कर लिखें
(क) विशम
(ख) विसम
(ग) विषय
(घ) विष्सय।
उत्तर :
(ग) विषय

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

प्रश्न 6.
शुद्ध शब्द छांट कर लिखें
(क) शक्तिशाली
(ख) शक्तिशालि।
(ग) सक्तिशाली
(घ) शकतीशाली।
उत्तर :
(क) शक्तिशाली

प्रश्न 7.
शुद्ध शब्द छांट कर लिखें
(क) बुराईयाँ
(ख) बूराइयाँ
(ग) बुराइयाँ
(घ) बुराईयाँ।
उत्तर :
बुराइयाँ।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करके लिखो –

अशुद्ध जोड़ा हुआ धन काम आएगी।
शुद्ध जोड़ा हुआ धन काम आएगा।
अशुद्ध माता – पिता का आज्ञा मानो।
शद्ध माता – पिता की आज्ञा मानो।
अशुद्ध मैं आपका दर्शन करने आया हूँ।
शुद्ध मैं आपके दर्शन करने आया हूँ।
अशुद्ध हवा चलता है, भ्रमण करना चाहिए।
शुद्ध हवा चलती है, भ्रमण करना चाहिए।
अशुद्ध हमारे देश की दशा हमसे देखी नहीं जाती।
शुद्ध अपने देश की दशा हमसे देखी नहीं जाती।
अशुद्ध कृपा करके चार दिन की छुट्टी दो।
शुद्ध कृपा करके चार दिन की छुट्टी दीजिये।
अशुद्ध मेरी माता जी घर में है, पिता जी बाहर गया है।
शुद्ध मेरी माता जी घर में हैं, पिता जी बाहर गए हैं।
अशुद्ध बचत करना चाहिए।
शुद्ध बचत करनी चाहिए।
अशुद्ध आप यहाँ से चले जाओ।
शुद्ध आप यहाँ से चले जाइए।
अशुद्ध उस पर घड़ों पानी फिर गया।
शुद्ध उस पर घड़ों पानी पड़ गया।
अशुद्ध मुझे शोक है कि मैं आपके पत्र का उत्तर न दे सका।
शुद्ध मुझे खेद है कि मैं आपके पत्र का उत्तर न दे सका।
अशुद्ध बापू की मृत्यु पर मुझे बड़ा कष्ट हुआ।
शुद्ध बापू की मृत्यु पर मुझे बड़ा दुःख हुआ।
अशुद्ध आज मेरी प्रीक्षा है।
शुद्ध आज मेरी परीक्षा है।
अशुद्ध मैंने उन्हें अनेकों बार समझाया।
शुद्ध मैंने उन्हें कई बार समझाया।
अशुद्ध आपकी सफलता का सन्देह है।
शुद्ध आपकी सफलता में सन्देह है।
अशुद्ध यह बहुत महत्त्वपूर्ण घटना है।
शुद्ध यह बड़ी महत्त्वपूर्ण घटना है।
अशुद्ध अपनी प्रतिग्या को पूरा करो।
शुद्ध अपनी प्रतिज्ञा को पूरा करो।
अशुद्ध वस्तुता वह मेरा शत्रु है।
शुद्ध वस्तुतः वह मेरा शत्रु है।
अशुद्ध यद्यपि उसने मेहनत तो बड़ी की फिर भी पास न हुआ।
शुद्ध यद्यपि उसने बड़ी मेहनत की तथापि पास न हुआ।
अशुद्ध जाने, वह मेरे पीछे क्यों पड़ा है।
शुद्ध न जाने वह मेरे पीछे क्यों पड़ा है।
अशुद्ध विद्यारथी शरीरिक काम से डरते हैं।
शुद्ध विद्यार्थी शारीरिक काम से डरते हैं।
अशुद्ध भक्ति से मुकती मिलती है।
शुद्ध भक्ति से मुक्ति मिलती है।
अशुद्ध अपने अध्यापिक का सन्मान करो।
शुद्ध अपने अध्यापक का सम्मान करो।
अशुद्ध उसके पिता धरमातमा है।
शद्ध उसके पिता धर्मात्मा हैं।
अशुद्ध आज विग्यान का युग है।
शुद्ध आज विज्ञान का युग है।
अशुद्ध सरदार भगत सिंह क्रांतीकारी थे।
शुद्ध सरदार भगत सिंह क्रांतिकारी थे।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण (2nd Language)

वाक्यों की कुछ अन्य अशुद्धियाँ

अशुद्ध शुद्ध
यह लोग कहाँ रहते हैं ? ये लोग कहाँ रहते हैं ?
हम सबों ने उसे देखा। हम सब ने उसे देखा।
हम तेरे को पुस्तक न देंगे। हम तुझे पुस्तक न देंगे।
राम ने भोजन किया और सो गया। राम ने भोजन किया और वह सो गया।
वृक्षों पर कोयल कूक रही थी। वृक्ष पर कोयल कूक रही थी।
वह वहां जाकर बैठ गया और कहा। वह वहाँ जाकर बैठ गया और कहने लगा।
तुम कहते थे कि तुम नहीं जाओगे। तुम कहते थे कि मैं नहीं जाऊँगा।
वहाँ फूलों की प्रदर्शनी बुलाई जाने वाली है। वहाँ फूलों की प्रदर्शनी लगाई जाने वाली है।
उसका प्राण निकल गया। उसके प्राण निकल गये।
इस मूल्य में गेहूँ न मिलेगा। इस मूल्य पर गेहूँ न मिलेगा।
वह प्रत्येक छोटी छोटी बुराइयों को देखता है। वह प्रत्येक छोटी मोटी बुराई को देखता है।
विनय सहित निवेदन है। विनयपूर्वक निवेदन है।
मैं आठ सात दिन में आऊंगा। मैं सात आठ दिनों में आऊंगा।
तुम तुम्हारा काम करो और हम हमारा करेंगे। तुम अपना काम करो और हम अपना करेंगे।
राम गया न रमेश। न राम गया न रमेश।
यद्यपि वह छोटा है परन्तु बड़ी बातें जानता है। यद्यपि वह छोटा है तथापि बड़ी बातें करना जानता है।
श्री राम की स्त्री का नाम सीता था। श्री राम की पत्नी का नाम सीता था।
दीन पर कृपा करना पुन्य है। दीन पर दया करना पुण्य है।
मेरे मत में यह अच्छा नहीं। मेरे विचार में यह अच्छा नहीं।
यह धर्मार्थ के लिए अस्पताल है। यह धर्मार्थ अस्पताल है।
मैंने उसे इकन्नी दी। बालक ने उत्साह कहा, “अहा इकन्नी।” मैंने उसे इकन्नी दी। बालक ने उत्साह से कहा, “अहा ! कन्नी।”

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Lokoktiyan लोकोक्तियाँ Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar लोकोक्तियाँ (2nd Language)

ऐसी प्रचलित उक्तियाँ जो अपने विशेष अर्थों से किसी सच्चाई को प्रकट करती हैं, उन्हें लोकोक्तियाँ कहा जाता है।

वाक्य प्रयोग सहित आवश्यक लोकोक्तियाँ :

अन्त बुरे का बुरा = बुरे काम का बुरा फल होता है – नन्हें मल ने धन के लोभ में अपने सम्बन्धी की हत्या कर दी। आज वह जेल की यातना भुगत रहा है। सच है, अन्त बुरे का बुरा।

अन्धा क्या चाहे दो आँखें = जब मनचाही वस्तु बिना प्रयत्न के मिल जाये तब कहा जाता है – मुंशी प्रेमचन्द जी नौकरी की तलाश में थे। इतने में दुकान पर खड़े एक मुख्याध्यापक ने उन्हें नौकरी करने के लिए पूछा। तब प्रेमचन्द जी कहने लगे – अन्धा क्या चाहे दो आँखें।

अन्धों में काना राजा = मूों में थोड़ा जानकार भी मान पाता है – रामू ने तो मैट्रिक भी पास नहीं की। ग्राम के लोग उसे बहुत पढ़ा – लिखा समझ कर चौधरी मानते हैं, यह अन्धों में काना राजा वाली बात है।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ (2nd Language)

अब पछताए क्या होत हैं जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत = काम बिगड़ जाने के बाद पछताना व्यर्थ है – मोता सिंह साल भर पढ़ा नहीं। जब परीक्षा में फेल हो गया, तो रोने लगा। तब उसके पिता कहने लगे – अब पछताए क्या होत है जब चिड़ियाँ चुग गईं खेत।

अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता = अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता,

प्रयोग – इस कार्यालय में सभी लोग रिश्वतखोर हैं। अनिल अकेला भला इस बुराई का कैसे अन्त कर सकता है। कहा भी है – अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।

अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है = अपने क्षेत्र में शक्तिहीन भी बल का दिखावा करता है – राजेश राजीव को अपनी गली में गालियाँ निकालने लगा। राजीव ने कहा मुहल्ले से बाहर निकलो जरा, मजा चखा। अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है।

आगे कुआँ पीछे खाई = दोनों ओर संकट – पाकिस्तान में रहने वाले लोग पाकिस्तान छोड़कर भारत आते हैं तो उन्हें काम – धन्धा नहीं मिलता। वहाँ रहते हैं तो जीवन सुरक्षित नहीं। उनके लिए तो आगे कुआँ पीछे खाई वाली बात है।

आ बैल मुझे मार = जान – बूझकर मुसीबत मोल लेना – मोहन सिंह और राकेश लड़ रहे थे। सुरेन्द्र सिंह उनके बीच आ धमका और अपने दाँत तुड़वा बैठा। वहाँ उपस्थित लोगों ने कहा कि सुरेन्द्र सिंह पर तो आ बैल मुझे मार वाली लोकोक्ति घटती है।

उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे = अपना अपराध स्वीकार न करना, निर्दोष को अपराधी ठहराना – मोहन ने अपनी पुस्तक चोरी करते सोहन को पकड़ लिया। सोहन तपाक से बोला कि तुम अपनी पुस्तक क्लास रूम में क्यों छोड़ गए थे ? इस पर मोहन के मुँह से निकला, उल्टा चोर कोतवाल को डाँटें।

दुकान फीका पकवान = सार कम दिखावा ज्यादा – नाम तो सेठ धनी राम परन्तु वह अपनी लड़की की शादी में बारात को अच्छा खाना भी न दे सका। इस पर कुछ लोगों ने कहा ऊँची दुकान फीका पकवान।

एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत है = सेहत अमूल्य धन है – तुम पैसा कमाने के चक्कर में रात – दिन काम करते रहते हो अपनी सेहत का ध्यान नहीं रखते, याद रखो एक तन्दुरुस्ती हज़ार नियामत है।

एक करेला दूसरा नीम चढ़ा = एक तो वैसे ही बुरा हो फिर उसकी संगत भी अच्छी न हो – राम दास एक तो व्यापारी है और दूसरा फिर बनिया कंजूस क्यों न हो, क्योंकि कहा गया है एक करेला दूसरा नीम चढ़ा।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ (2nd Language)

एक पंथ दो काज = एक काम करने से दो लाभ – मैं अमृतसर में किसी काम के लिए गया था और वहाँ हरिमन्दिर साहिब के दर्शन भी कर आया। इसी को कहते हैं – एक पंथ दो काज।

कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली = अमीर – गरीब का क्या मुकाबला, दो व्यक्तियों में बड़ा फ़र्क – तुम गरीब मोहन की सेठ धनी राम से बराबरी करते हो। कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली।

काठ की हाँडी बार – बार नहीं चढ़ती = बेइमानी बार – बार नहीं होती – वर्षों हलवाई दूध में मिलावट करता रहा। आज जब उसके दूध की जाँच की गई तो पकड़ा गया और दो हज़ार रुपया जुर्माना किया गया। सच ही कहा है – काठ की हाँडी बार – बार नहीं चढ़ती।

कौआ कैसे चल सके राज हंस की चाल = छोटा व्यक्ति महापुरुषों का मुकाबला नहीं कर सकता – गरीब धनी राम की नकल करके अपनी थोड़ी – सी पूंजी भी गंवा बैठा। ठीक ही कहा है – कौआ कैसे चल सके राजहंस की चाल।

घर की मुर्गी दाल बराबर = घर की वस्तु का आदर नहीं होता – मोहन की माँ पकौड़े भी देसी घी के बनाती है। बनाए भी क्यों न, चार भैंसें घर में हैं। उसके लिए तो कहा जा सकता है – घर की मुर्गी दाल बराबर।

चोर की दाढ़ी में तिनका = अपराधी को अपने अपराध के प्रकट होने की चिन्ता लगी रहती है – चोरी के आरोप में पकड़े लोगों के सामने सिपाही ने थानेदार से कहा कि मैंने असली चोर पकड़ लिया है तो एक आदमी बोल पड़ा – थानेदार साहब, मैंने चोरी नहीं की है, इसी को कहते हैं चोर की दाढ़ी में तिनका।

चिराग तले अन्धेरा = अपनी बुराई न दिखाई देना-मास्टर जी दूसरों को परिवार – कल्याण का उपदेश देते हैं, परन्तु उनके अपने सात बच्चे हैं। सच कहा है – चिराग तले अन्धेरा।

चार दिन की चाँदनी फिर अन्धेरी रात = सुख और ऐश्वर्य क्षणिक होता है – अरे महेश, धन – दौलत के नशे में तुम्हें ईश्वर को नहीं भूलना चाहिए। चार दिन की चाँदनी फिर अन्धेरी रात वाली लोकोक्ति का तुम्हें ध्यान रखना चाहिए।

छोटा मुँह बड़ी बात = अनुचित काम कहना या अपनी सामर्थ्य से बड़ा काम करना अरे सुरेश, तुम्हें छोटा मुँह बड़ी बात करते शर्म आनी चाहिए। आखिर मैं तुम्हारा बड़ा भाई छछूदर के सिर में चमेली का तेल = अयोग्य व्यक्ति को उत्तम वस्तु देना – मैट्रिक फेल घनश्याम का विधानसभा के लिए चुना जाना एक प्रकार से छछूदर के सिर में चमेली का तेल वाली कहावत है।

जल में रह कर मगर से वैर = जिसके अधीन रहा जाए उसी से वैर करना – मित्रवर, अपने मैनेजर के विरुद्ध बातें बनाना छोड़ दो। जल में रह कर मगर से वैर करना उचित नहीं है।

जिसकी लाठी उसी की भैंस = बलवान् का सर्वत्र बोलबाला होता है – आज के युग में जिसकी लाठी, उसकी भैंस वाली कहावत ही चरितार्थ होती है।

तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर = शक्ति के अनुसार काम करना चाहिए – मित्र, शादी पर अपनी ताकत से बढ़कर खर्च मत करो, कहा भी है कि तेते पाँव पसारिए जेती लम्बी सौर।

नीम हकीम खतरा जान = अनजान आदमी लाभ की अपेक्षा हानि करता है – रोगी को किसी अच्छे डॉक्टर या वैद्य को दिखाओ। अपने घरेलू इलाज छोड़ दो क्योंकि नीम हकीम खतरा जान।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ (2nd Language)

नौ नकद न तेरह उधार = कभी उधार नहीं करना चाहिए – उधार माँगने पर दुकानदार ने कहा कि हम लोग उधार का व्यवहार नहीं रखते, हमारा तो नियम नौ नकद न तेरह उधार वाला है।

पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं = पराधीनता में कभी सुख नहीं मिलता, नौकरी में पराधीन रहना पड़ता है। मेला हो, त्योहार हो, नौकर को मालिक की खुशी देखनी पड़ती है। ठीक ही कहा है – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।

यह मुंह और मसूर की दाल = किसी काम के योग्य न होना, अपने से अधिक की इच्छा करना – तुम शीला से विवाह करना चाहते हो। तुम आठवीं पास, वह बी० ए० पास। यह तो वही बात हुई यह मुँह और मसूर की दाल।

रस्सी जल गई पर बल न गया = सब नष्ट होने पर भी अपनी अकड़ न छोड़ना परीक्षा में असफल होने पर भी राजेश अपनी विद्वता की डींग मारता फिरता है। इसी को कहते हैं – रस्सी जल गई पर बल न गया।

लातों के भूत बातों से नहीं मानते = बुरे व्यक्ति मार खाए बिना सीधे नहीं होते रामचन्द्र जी ने रावण को सीता जी को छोड़ने के लिए कई सन्देश भेजे लेकिन वह बिल्कुल न माना और अन्त में रामचन्द्र जी को युद्ध करना ही पड़ा। ठीक ही कहा है – लातों के भूत बातों से नहीं मानते।

सावन हरे न भादों सूखे = सदा एक – सी अवस्था में रहना – सुरेश निर्धन होने के कारण पाई – पाई के लिए मरता ही था, लेकिन अब जबकि उसका व्यापार चमक उठा है, अब भी उसकी पाई – पाई के लिए मरने की आदत नहीं गई। उसकी तो सावन हरे न भादों सूखे वाली बात है।

सिर मुंडाते ही ओले पड़ना = तुरन्त मुसीबत आना – मोहन घर से निकला ही था कि दंगे भड़क उठे, उसके गोली आ लगी। सिर मुंडाते ही ओले पड़ने की उक्ति चरितार्थ हो गई।

सौ सुनार की एक लोहार की = कमजोर की सौ चोटों से बलवान् की एक चोट ही करारी होती है – प्रतिदिन तंग किए जाने पर प्रमोद ने बलदेव से कहा – ध्यान से सुन लो, किसी दिन इतना पीटूंगा कि नानी याद आ जाएगी। तुम शायद जानते नहीं कि सौ सुनार
की, एक लोहार की होती है।

साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे = काम भी बन जाए और हानि भी न हो बीरबल ने अकबर को समझाया कि राजपूतों से युद्ध करना मौत को बुलाना है। अतः हमें ऐसा उपाय निकालना चाहिए जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे।

सहज पके सो मीठा होय = धीरे – धीरे किया जाने वाला काम दृढ़ तथा फलदायक होता है – अरे महेश ! यदि परीक्षा की शुरू से ही तैयारी करोगे, तब ही प्रथम स्थान प्राप्त कर सकोगे क्योंकि सहज पके सो मीठा होय।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran लोकोक्तियाँ (2nd Language)

होनहार बिरवान के होत चीकने पात = महान् व्यक्ति बनने के लक्षण पहले ही प्रकट हो जाते हैं – मुन्शी प्रेमचन्द जी छोटी अवस्था में ही सुन्दर कहानियाँ तथा लेख लिखने लग पड़े थे। आगे चलकर वे महान् साहित्यकार बने। सच है – होनहार बिरवान के होत चीकने पात।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Muhavare मुहावरे Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar मुहावरे (2nd Language)

मुहावरे जब कोई वाक्य या वाक्यांश अपने साधारण अर्थ को छोड़कर एक विशेष अर्थ को प्रकट करे, उसे मुहावरा या वाक्यांश कहा जाता है।

वाक्य प्रयोग सहित आवश्यक मुहावरे :

अन्धे की लकड़ी = एकमात्र सहारा,
प्रयोग – राकेश ही बुढ़ापे में मुझ अन्धे की लकड़ी है।

अंग – अंग ढीला होना = थक जाना,
प्रयोग – दिन भर के परिश्रम से मजदूरों का अंग अंग ढीला हो जाता है।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

अपनी पीपनी बजाना = अपनी बातें करते रहना,
प्रयोग – तुम अपनी पीपनी बजाते रहोगे या कुछ मेरी भी सुनोगे।

अंगूठा दिखाना = इन्कार कर देना,
प्रयोग – नेता लोग चुनाव के दिनों में बीसियों वायदे करते हैं, परन्तु बाद में अंगूठा दिखा देते हैं।

अंगुलियों पर नचाना = वश में रखना,
प्रयोग – सुधा के क्या कहने, वह तो घर वालों को अंगुलियों पर नचाती है।

अंगुली उठाना = दोष लगाना, निन्दा करना,
प्रयोग कर्त्तव्यपरायण व्यक्ति पर कोई अंगुली नहीं उठा सकता।

अन्धेरे घर का उजाला = इकलौता पुत्र,
प्रयोग – मनोहर सिंह राम सिंह के अंधेरे घर का उजाला है।

अपना उल्लू सीधा करना = स्वार्थ निकालना,
प्रयोग – आज हर कोई अपना उल्लू सीधा करना चाहता है।

अगर – मगर करना = टाल मटोल करना,.
प्रयोग – कभी भी अगर – मगर नहीं करना चाहिए, सदैव हाँ या नहीं में उत्तर देना ही उचित है।

आँख से आँख न मिलाना = लज्जा से सामने न देखना,
प्रयोग – अध्यापक महोदय ने जब प्रदीप को नकल करते रंगे हाथों पकड़ लिया तो वह आँख से आँख न मिला सका।

आँख उठाना = बुरी नजर से देखना,
प्रयोग – अब चीन और पाकिस्तान की क्या हिम्मत जो भारत की ओर आँख उठा सके।

आँखें भर आना = आँसू निकलना,
प्रयोग – अपने प्यारे नेता के देहांत का समाचार सुनकर देशवासियों की आँखें भर आईं।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

आँखें खुलना = होश आना,
प्रयोग – हानि उठा कर ही अक्सर इन्सान की आँखें खुलती हैं।

आँखें दिखाना = क्रोध से घूरना,
प्रयोग – बेटा बड़ा हो गया है, अब इसे आँखें दिखाना छोड़ दें।

आँखें चुराना = नज़र बचाना,
प्रयोग – स्वार्थी मित्र संकट में आँखें चुराने लगते हैं।

आँखें बिछाना = स्वागत करना,
प्रयोग – प्रधानमन्त्री के आने पर नगरवासियों ने उनके स्वागत में अपनी आँखें बिछा दीं।

आड़े हाथों लेना = खरी – खरी सुनाना,
प्रयोग – सोहन के लगातार बोलने पर मैंने उसे आड़े हाथों लिया।

आग बबूला होना = बहुत क्रुद्ध होना,
प्रयोग – अंगद की खरी – खोटी सुन कर रावण आग बबूला हो गया।

आँखों का तारा = बहुत प्यारा,
प्रयोग – सुनील तो माता – पिता की आँखों का तारा है।

आकाश – पाताल एक करना = बहुत प्रयत्न करना,
प्रयोग – चोर ने बचने के लिए आकाश – पाताल एक कर दिया लेकिन उसकी एक न चली।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

आग में घी डालना = झगड़े को बढ़ाना,
प्रयोग – बलदेव ने आकर तो आग में घी डाल दिया।

आँखों में खटकना = बुरा लगना,
प्रयोग – शरारती लड़के सदा दूसरों की आँखों में खटकते हैं।

आँखों में धूल झोंकना = धोखा देना,
प्रयोग – ठग राम की आँखों में धूल झोंक कर पाँच सौ रुपये ले गया। आसमान सिर पर उठाना = बहुत शोर करना, निकलते ही लड़कों ने आसमान सिर पर उठा लिया।

आँखें मल – मल कर देखना = हैरान होना,
प्रयोग – भारत की विजय होते देख शत्रु देश आँखें मल – मल कर देखने लगे।

ईद का चाँद होना = बहुत दिनों बाद दिखाई देना,
प्रयोग-अरे सुरेश! तुम तो ईद के चाँद हो गए हो, कहाँ रहते हो ?

ईंट से ईंट बजाना = नाश करना, तबाही मचाना,
प्रयोग – शिवाजी ने मुग़ल सल्तनत की ईंट से ईंट बजा दी थी।

ईंट का जवाब पत्थर से देना = करारा जवाब,
प्रयोग – भारत ने हर आक्रमणकारी को ईंट का जवाब पत्थर से दिया है।

उधेड़ – बुन में होना = चिन्ता या फ़िक्र में पड़ना,
प्रयोग – अरे राकेश! उधेड़ – बुन में क्यों पड़े हो ? कुछ काम – धाम करो।

अथवा

परीक्षा सिर पर है, अब उधेड़ – बुन में पड़ना व्यर्थ है।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

उल्टी गंगा बहाना = उल्टा कार्य करना,
प्रयोग – हर बात में बेटे की सलाह मानकर अपने घर में उल्टी गंगा बहा रखी है।

उन्नीस – बीस का अन्तर = बहुत कम फर्क,
प्रयोग – मोहन तथा सोहन में कद का उन्नीस – बीस का अन्तर है।

एक आँख से देखना = बराबर का बर्ताव,
प्रयोग – माता – पिता अपने सभी बच्चों को एक आँख से देखते हैं।

एड़ी चोटी का जोर लगाना = पूरा जोर लगाना,
प्रयोग – औरंगजेब ने शिवाजी को पकड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया लेकिन सफल. न हो सका।

कदम चूमना = स्वागत करना,
प्रयोग – सफलता परिश्रमी आदमी के कदम चूमती है।

कमर कसना = तैयार होना,
प्रयोग – आज से मैंने पढ़ाई के लिए कमर कस ली है।

कमर टूटना = निराशा होना, उत्साह भंग होना,
प्रयोग – जवान बेटे की मौत पर वृद्ध की कमर टूट गई।

काम आना = युद्ध में मारे जाना,
प्रयोग – भारत – पाक युद्ध में अनेक भारतीय वीर काम आए।

कलम तोड़ना = बहुत बढ़िया लिखना,
प्रयोग – सुंदर ने चाहे थोड़ा लिखा है पर कलम तोड़ कर रख दी।

कसौटी पर कसना = बहुत परखना,
प्रयोग – मैं पहले व्यक्ति को कसौटी पर कस लेने के पश्चात् ही मित्र बनाता हूँ।

काला अक्षर भैंस बराबर = अनपढ़ व्यक्ति,
प्रयोग – ग्रामों में बहुत – से व्यक्ति ऐसे हैं जिनके लिए काला अक्षर भैंस बराबर है।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

कान भरना = चुगली करना,
प्रयोग – कान भरने की आदत अच्छी नहीं होती।

कान पर जूं न रेंगना = कोई असर न होना,
प्रयोग – मेरे लाख कहने पर भी उसके कान पर जूं तक न रेंगी।

कलेजा मुँह को आना = बहुत बेचैनी या घबराहट होना,
प्रयोग – बस दुर्घटना में घायल यात्रियों की दशा देखकर कलेजा मुँह को आता था।

कलेजे पर साँप लोटना = ईर्ष्या से जलना,
प्रयोग – हरि सिंह की लाटरी का समाचार पाकर कश्मीरा सिंह के कलेजे पर साँप लोटने लगा।

कोल्हू का बैल = रात – दिन काम करने वाला,
प्रयोग – कोल्हू का बैल बनने पर भी आजकल निर्वाह कठिनता से होता है।

कोरा जवाब देना = साफ़ इन्कार करना,
प्रयोग – जब मैंने सोहन से साइकिल माँगी तो उसने मुझे कोरा जवाब दे दिया।

क्रोध पी जाना = गुस्से को प्रकट न करना,
प्रयोग – सास की जली कटी बातें सुनकर भी बहू क्रोध पी जाती है।

खन के प्यासे होना = कट्टर शत्रु, जानी दुश्मन होना,
प्रयोग – आजकल तो भाई – भाई खून के प्यासे हो जाते हैं।

खून का चूंट पीना = क्रोध को दिल में दबाए रखना,
प्रयोग – लाभ सिंह की पत्नी अपनी सास की गालियाँ सुनकर खून का चूंट पीये रहती है।

खाला जी का घर = आसान काम,
प्रयोग – बोर्ड की दसवीं श्रेणी में प्रथम आना खाला जी का घर नहीं है।

खदेड़ देना = पछाड़ देना।
प्रयोग – कारगिल के युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को बुरी तरह खदेड़ दिया।

खाक छानना = मारे – मारे फिरना,
प्रयोग – बचपन में राम पढ़ा नहीं और अब खाक छानता फिरता है।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

गला भारी होना = दुःख से आवाज़ न निकलना,
प्रयोग – भिखारी की दुःखभरी कहानी सुनकर मेरा गला भारी हो गया।

गले लगाना = बहुत प्यार करना,
प्रयोग – बुढ़िया ने देर से बिछुड़े हुए पुत्र के मिलने पर उसे गले लगा लिया।

गड़े मुर्दे उखाड़ना = बीती यादें याद करना,
प्रयोग – छोड़ो इस बात को, गड़े मुर्दे उखाड़ने से लड़ाई बढ़ सकती है।

गले का हार = बहुत प्रिय,
प्रयोग – दर्शन कौर इकलौती बेटी होने के कारण अपने माता – पिता के गले का हार है।

गाँठ का पूरा होना = मालदार होना,
प्रयोग – आप उसे साधारण आदमी समझते हैं श्रीमान् जी ! वह तो गाँठ का पूरा है। गागर में सागर भरना = संक्षेप में बहुत कुछ कह देना,

प्रयोग – कबीर ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।

गुदड़ी का लाल = छुपा रुस्तम,
प्रयोग – सचमुच मनमोहन सिंह गुदड़ी का लाल है। निर्धनता की अवस्था में भी परीक्षा में जिले भर में प्रथम आया है।

घर में गंगा = सहज प्राप्ति,
प्रयोग – अरे गुरचरण! तुम्हें पढ़ाई की क्या चिन्ता ? तुम्हारा भाई अध्यापक है, तुम्हारे तो घर में गंगा बहती है।

घुटने टेकना = आत्म – समर्पण करना,
प्रयोग – सन् 1971 के भारत – पाक युद्ध में पाकिस्तानी सेना ने शीघ्र ही भारतीय सेना के आगे घुटने टेक दिए थे।

घाव पर नमक छिड़कना = दुखी को और दुखाना,
प्रयोग – उसने मुझसे ऐसी बातें कह – कह कर मेरे दुःख को कम नहीं किया बल्कि मेरे घावों पर नमक छिड़क दिया है।

घोड़े बेचकर सोना = बेफ़िक्र होकर सोना,
प्रयोग – परीक्षा के बाद सब विद्यार्थी घोडे बेचकर सोते हैं।

घी के दिये जलाना = प्रसन्न होना,
प्रयोग – जब अयोध्या में श्री रामचन्द्र वापस पहुँचे तो लोगों ने घी के दिये जलाये।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

घाट – घाट का पानी पीना = अनुभवी होना,
प्रयोग – गुरदर्शन को कोई धोखा नहीं दे सकता, क्योंकि उसने तो घाट – घाट का पानी पीया है।

घात लगाकर बैठना = आक्रमण या शिकार आदि की ताक में रहना,
प्रयोग-शिकारी हाथ में बंदूक लेकर बाघ की प्रतीक्षा में पेड़ की डाल पर घात लगाकर बैठ गया।

चकमा देना = धोखा देना,
प्रयोग – डाकू पुलिस को चकमा देकर चम्पत हो गए।

चाल में आना = धोखे में फंसना,
प्रयोग – तुम्हें राम सिंह की चाल में नहीं आना चाहिए, वह ठग है।

चम्पत होना = खिसक जाना,
प्रयोग – सिपाही का जैसे ही ध्यान दूसरी तरफ़ हुआ कि चोर चम्पत हो गया।

चार चाँद लगाना = मान बढ़ाना,
प्रयोग – आपने हमारे स्कूल में पधार कर उत्सव को चार चाँद लगा दिए हैं।

चादर से बाहर पैर पसारना = आमदनी से बढ़कर खर्च करना,
प्रयोग – चादर से बाहर पैर पसारने वाले लोग अन्त में पछताते हैं।

चेहरा खिलना = मुँह पर खुशी दिखाई देना,
प्रयोग – बेटे के परीक्षा में प्रथम आने का समाचार सुनकर पिता का चेहरा खिल गया।

चल बसना = मर जाना।
प्रयोग – श्याम के पिता दो वर्ष की लम्बी बीमारी के बाद कल चल बसे।

छक्के छुड़ाना – परेशान कर देना,
प्रयोग – महात्मा गाँधी जी के आन्दोलनों ने अंग्रेज़ सरकार के छक्के छुड़ा छाती पर पत्थर

रखना = चुपचाप दुःख सहना,
प्रयोग – शीला जिस दिन अपने ससुराल आई थी उसी दिन से उसने अपनी छाती पर।

पत्थर रख लिया था। जली कटी सुनाना = बुरा भला कहना,
प्रयोग – सास ने जली कटी सुनाई तो बहू रोने लगी।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

जलती आग में घी डालना = क्रोध को अथवा लड़ाई को बढ़ाना,
प्रयोग – चानन सिंह पहले से ही सोहन से नाराज़ था, ऊपर से हरीश ने सोहन के विरुद्ध भड़का कर जलती आग में घी डाल दिया।

जान हथेली पर रखना = मरने की बिल्कुल परवाह न करना,
प्रयोग – रणक्षेत्र में भारत के वीर सदा जान हथेली पर रखकर लड़ते हैं।

जान पर खेलना = खुशी से प्राण देना, प्राणों की परवाह न करना,
प्रयोग – भगत सिंह जैसे देशभक्त भारत की स्वतन्त्रता के लिए अपनी जान पर खेल गए।

जान की बाजी लगाना = प्राण न्योछावर करने को तैयार रहना,
प्रयोग – आज़ादी की रक्षा के लिए जान की बाज़ी लगा देनी चाहिए।

जान के लाले पड़ना = मुश्किल में फँसना,
प्रयोग – आज की कमरतोड़ महँगाई से जान के लाले पड़ गए हैं।

जान में जान आना = ढाढ़स बंधना, तसल्ली होना,
प्रयोग – जंगल के रास्ते होते हुए जब हम गाँव पहुँचे तो हमारी जान में जान आई।

जी चुराना = परिश्रम से भागना,
प्रयोग – अच्छे विद्यार्थी कभी पढाई से जी नहीं चराते।

टांग अड़ाना = व्यर्थ दखल देना, रुकावट डालना,
प्रयोग – अरे चंचल ! अगर तुम सुरेन्द्र सिंह की सहायता नहीं कर सकते तो उसके काम में टाँग क्यों अड़ाते हो ?।

टकटकी बाँधना = एकटक या लगातार देखना,
प्रयोग – सभी दर्शक जादूगर के खेल टकटकी बाँध कर देख रहे थे।

टका – सा जवाब देना = साफ़ इन्कार कर देना,
प्रयोग – जब मैंने बलदेव से बीस रुपये उधार मांगे तो उसने मुझे टका – सा जवाब दे दिया।

टूट पड़ना = हमला करना,
प्रयोग – देखते – ही – देखते भारतीय सेना शत्रु पर टूट पड़ी।

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टेढ़ी खीर = कठिन कार्य,
प्रयोग – सरकारी नौकरी प्राप्त करना आजकल टेढ़ी खीर है।

टक्कर लेना = मुकाबला करना,
प्रयोग – महाराणा प्रताप ने मुग़लों से डटकर टक्कर ली।

टस से मस न होना = ज़रा भी प्रभाव न होना, बात पर डटे रहना,
प्रयोग – बहुत समझाने पर भी जब वह टस से मस न हुआ, तो मैंने उससे बोलना बन्द कर दिया।

ठाठे मारना = लहरें उठना,
प्रयोग – वर्षा ऋत में सतलज नदी का जल ठाठे मारने लगता है।

ठोकरें खाना = धक्के खाना,
प्रयोग गेंदासिंह पहले बचपन में पढ़ा नहीं और अब ठोकरें खाता फिरता है।

ठिकाने लगाना = मार देना, नाश कर देना,
प्रयोग – गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कितने मुग़लों को ठिकाने लगा दिया।

ठनठन गोपाल = जेब खाली होना,
प्रयोग – तुझे पैसे कहाँ से दूँ, आज तो मेरी भी ठन – ठन गोपाल है।

डींग मारना = शेखी मारना,
प्रयोग – राकेश डींग तो मारता है, लेकिन वैसे पाई – पाई के लिए मरता है।

डंका बजाना = प्रभाव होना, अधिकार होना, विजय पाना,
प्रयोग – आज विश्व भर में रूस की शक्ति का डंका बज रहा है।

डूबते को तिनके का सहारा = संकट में थोड़ी – सी सहायता मिलना,
प्रयोग – इस मुसीबत में तुम्हारे पाँच रुपये ही मेरे लिए डूबते को तिनके का सहारा सिद्ध होंगे।

तलवे चाटना = चापलूसी करना,
प्रयोग – सुन्दर दूसरों के तलवे चाटकर काम निकालने में बड़ा निपुण है।

ताक में रहना = अवसर देखते रहना,
प्रयोग – डाकू सदैव डाका मारने की ताक में रहते हैं।

तिल का ताड़ बनाना = बात को बढ़ाना,
प्रयोग – क्यों तिल का ताड़ बनाते हो ? इतनी छोटी – सी लड़ाई पर मुख्याध्यापक के पास जाकर शिकायत करना ठीक नहीं है।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

तिल धरने की जगह न होना = बहुत अधिक भीड़ होना,
प्रयोग – वार्षिक परीक्षा के नतीजे के दिन पाठशाला में इतनी भीड़ थी कि तिल धरने की जगह न थी।

तूती बोलना = प्रभाव होना, बात का माना जाना,
प्रयोग – धनी व्यक्ति को प्रत्येक स्थान पर तृती बोलती है।

दम घुटना : – प्रवास लेने में कठिनाई होना,
प्रयोग घर में इतनी मोड़ थी कि दम घुटने लगा।

दंग रह जाना = हैरान रह जाना,
प्रयोग – महासिंह के द्वारा चोरी किए जाने का समाचार सुनकर सभी दंग रह गए।

दिल दहला देना (डरा देना),
प्रयोग – सड़क दुर्घटना में चकनाचूर कार में मृतकों को देख मेरा दिल दहल गया।

दिन दुगुनी रात चौगुनी = अत्यधिक,
प्रयोग – आजादी मिलने के बाद भारत ने दिन दुगुनी रात चौगुनी उन्नति की है।

दिन में तारे नज़र आना = कोई अनहोनी घटना होने से घबरा जाना,
प्रयोग – जंगल में शेर को अपनी ओर लपकते देखकर प्रमोद को दिन में तारे नज़र आ गये।

दिन फिरना = अच्छे दिन आना,
प्रयोग – मित्रवर ! निर्धनता के कारण इतना घबराओ नहीं, दिन – फिरते देर नहीं लगती।

दाँत खट्टे करना = बुरी तरह हराना,
प्रयोग – महाराणा प्रताप ने युद्ध में कई बार मुग़लों के दाँत खट्टे किए।

दाल न गलना = वश न चलना,
प्रयोग – बहादुर सिंह ने अनिल तथा सुनील को लड़ाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उसकी दाल न गली।

दिल बैठ जाना = घबरा जाना,
प्रयोग – कारखाने को आग लगी देखकर सेठ का दिल बैठ गया।

दाँतों तले उंगली दबाना = आश्चर्य प्रकट करना,
प्रयोग – महान् तपस्वी भी रावण की कठिन तपस्या देखकर दाँतों तले उंगली दबाते थे।

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धाक जमना = रौब या प्रभाव पैदा होना,
प्रयोग – सिकन्दर की वीरता की धाक शीघ्र ही सारे संसार में जम गई।

धूप में बाल सफ़ेद न करना = अनुभवहीन न होना,
प्रयोग – इस विषय में मेरी भी राय ले लेनी चाहिए थी, मैंने भी दुनिया देखी है, धूप में बाल सफ़ेद नहीं किये।

धूनी तपना = तप करना।
वाक्य – महर्षि दधीचि ने सैंकड़ों वर्ष धूनी तपने के बाद अपनी हड्डियाँ देवताओं को दान कर दी थीं।

नाक में दम करना = बहुत तंग करना,
प्रयोग – वर्षा ने नाक में दम कर दिया है, कहीं जाना भी कठिन हो गया है।

नाक कटवाना = बदनाम होना,
प्रयोग – सोहन ने चोरी करके अपने कुल की नाक कटवा दी है।

नाक रगड़ना = गिड़गिड़ाना।
प्रयोग – परीक्षा में नकल करते पकड़े जाने पर श्याम नाक रगड़ने लगा।

नमक मिर्च लगाना = छोटी – सी बात को बढ़ा – चढ़ा कर कहना,
प्रयोग – बलदेव की बात पर ध्यान न दो, क्योंकि उसे नमक मिर्च लगाने की आदत है।

नानी याद आना = संकट में पड़ना, घबराना,
प्रयोग – जब दुर्योधन को भीम की गदा की चोटें सहनी पड़ी तो उसे नानी याद आ गई।

नाकों चने चबाना = खूब तंग करना, भारी कष्ट पहुँचाना,
प्रयोग – सुभाष चन्द्र बोस जैसे वीरों ने अंग्रेजी सेना से टक्कर लेकर उसको नाकों चने चबा दिए थे।

नौ दो ग्यारह होना = भाग जाना,
प्रयोग – सिपाही को देखते ही चोर नौ दो ग्यारह हो गया।

नीचा दिखाना = अपमानित करना, हराना,
प्रयोग – पाकिस्तान हमेशा भारत को नीचा दिखाने की ताक में रहता है।

नज़रों से गिर जाना = आदर का भाव न रहना,
प्रयोग-नालायक विद्यार्थी अध्यापक की नजरों से गिर जाते हैं।

पसीना – पसीना होना = पसीने से तर – बतर होना,
प्रयोग – पहाड़ पर चढ़ते हुए सभी यात्री पसीना – पसीना हो गए।

पानी – पानी होना = बहुत लज्जित होना,
प्रयोग – रमेश ने सच्ची बात कह दी तो राकेश पानी – पानी हो गया।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

पाँव उखड़ना = हार जाना,
प्रयोग – युद्ध में पाकिस्तानी सेना के पाँव उखड़ गये।

पीठ दिखाना = डरकर भाग जाना,
प्रयोग – युद्ध में पीठ दिखाना कायरों का काम है, वीरों का नहीं।

पीठ ठोंकना = उत्साह बढ़ाना,
प्रयोग – अध्यापक ने प्रथम आने वाले छात्र की पीठ ठोंकी।

पगड़ी उछालना = अपमान करना,
प्रयोग – बड़ों की पगड़ी उछालना सज्जन पुरुषों को शोभा नहीं देता।

प्राण सूख जाना = व्याकुल होना, घबरा जाना,
प्रयोग – साँप को देखते ही बड़ों – बड़ों के प्राण सूख जाते हैं।

प्राण पखेरू उड़ना = मर जाना,
प्रयोग – डॉक्टर के आने से पहले ही रोगी के प्राण पखेरू उड़ गए।

प्राण न्योछावर करना = बलिदान देना,
प्रयोग – अनेक वीरों ने देश की बलि – वेदी पर प्राण न्योछावर कर दिए।

पत्थर की लकीर = अटल बात,
प्रयोग – श्री जय प्रकाश नारायण का कथन पत्थर की लकीर सिद्ध हुआ।

पहाड़ टूट पड़ना = बहुत मुसीबत आना,
प्रयोग – पहाड़ टूट पड़ेगा तो भी मैं नहीं घबराऊँगा।

पापड़ बेलना = कई तरह के काम करना,
प्रयोग – राज सिंह ने कई पापड़ बेले हैं, लेकिन टिक कर कहीं भी काम नहीं किया।

पोल खोलना = भेद बताना,
प्रयोग – पकड़े जाने पर चोर ने अपने सारे साथियों की पोल खोल दी।

फूला न समाना = बहुत प्रसन्न होना,
प्रयोग – पुत्र के प्रथम आने का समाचार सुनकर माता – पिता फूले न समाये।

फूट – फूट कर रोना = बहुत विलाप करना,
प्रयोग – पिता जी की मृत्यु का समाचार सुनकर वह फूट – फूट कर रोने लगा।

बात का धनी = वचन का पक्का,
प्रयोग – तेज सिंह बात का धनी है, वह अवश्य आपकी सहायता करेगा।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

बन्दर घुड़की = प्रभावहीन धमकी, कोरी धमकी,
प्रयोग – भगत सिंह जैसे वीर अंग्रेजों की बन्दर घुड़कियों से डरने वाले नहीं थे।

बाल की खाल निकालना = बहुत छानबीन करना,
प्रयोग – विद्यार्थी को अपनी पढ़ाई में दत्तचित्त होना चाहिए, उसे बाल की खाल नहीं निकालनी चाहिए।

बाल बांका न होना = हानि न पहुँचना,
प्रयोग – भगवान् अपने भक्तों की रक्षा स्वयं करते हैं, अतः उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता।

बाँह पकड़ना = सहारा देना, सहायता करना,
प्रयोग – उनकी बाँह पकड़ोगे तो सारा मुहल्ला शत्रु हो जायेगा।

बाएँ हाथ का खेल = आसान काम,
प्रयोग – दसवीं की परीक्षा पास करना बाएँ हाथ का खेल नहीं है।

बगुला भक्त = कपटी,
प्रयोग – मोहन पर विश्वास न करो, वह तो बगुला भक्त है।

बीड़ा उठाना = ज़िम्मेदारी लेना,
प्रयोग – श्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने किसानों को ऊँचा उठाने का बीड़ा उठाया था।

बड़े घर चलना = जेल जाना,
प्रयोग – अगर तुमने चोरी करने की आदत न छोडी, तो किसी दिन बड़े घर जाना पड़ेगा।

बेल मेढ़ न चढ़ना = काम सम्पन्न न होना,
प्रयोग – अरे मनोज ! एम० ए० करने का विचार छोड़ दो, तुमसे यह बेल मेढ़ न चढ़ सकेगी।

भला – बुरा कहना = खरी – खोटी सुनाना,
प्रयोग – सास ने बहू को खूब भला – बुरा कहा, लेकिन वह चुपचाप सुनती रही।

भांडा फोड़ना = भेद प्रकट करना,
प्रयोग – राजेश ने भरी सभा में मोहन की करतूतों का भ्रांडा फोड़ दिया।

भाड़े का टट्ट = किराये का आदमी, कुछ लेकर काम करने वाला,
प्रयोग – आजकल सच्चा देशभक्त मिलना कठिन है, सभी भाड़े के टट्ट हैं।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

भीगी बिल्ली बनना = डर से दबे रहना,
प्रयोग – जब तक मास्टर जी क्लास में रहते हैं, लड़के भीगी बिल्ली बन कर बैठे रहते हैं।

मन मारना = इच्छा रोकना, मन को काबू में करना,
प्रयोग – सच्चा देशभक्त बनने के लिए मन मारना पड़ता है।

मन भारी होना = बहुत दुखी होना,
प्रयोग – मित्र के अकस्मात् निधन का समाचार सुनकर हरजीत का मन भारी हो गया।

मन में समा जाना = बस जाना।
प्रयोग – श्री कृष्ण की मोहक छवि मेरे मन में समा गई है।

मस्तक ऊँचा होना = गौरव बढ़ना,
प्रयोग – पोखरन परमाणु परीक्षण से भारत का मस्तक ऊँचा हुआ है।

मिट्टी का माधो = निरा मूर्ख,
प्रयोग – सभी विद्यार्थी रमेश को मिट्टी का माधो समझते थे, लेकिन वह बहुत चालाक निकला।

मुँह देखना = दूसरे पर आश्रित रहना,
प्रयोग – हमें आत्म – निर्भर बनना चाहिए, छोटी – छोटी बातों पर दूसरे का मुँह नहीं देखना चाहिए।

मुँह की खाना = बुरी तरह हारना,
प्रयोग – सन् 1971 के भारत – पाक युद्ध में पाकिस्तान को मुँह की खानी पड़ी थी।

मुँह उतर जाना = उदास होना,
प्रयोग – परीक्षा में असफल होने का समाचार सुनकर रमेश का मुँह उतर गया।

मैदान मारना = जीतना,
प्रयोग – भारतीय फ़ौज ने देखते – ही – देखते छम्ब क्षेत्र में मैदान मार लिया था।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

रंग उड़ना = डर जाना, हैरान होना,
प्रयोग – रीछ को देखते ही दोनों मित्रों का रंग उड़ गया।

रंग जमना = प्रभाव होना,
प्रयोग – सभी योद्धाओं पर अभिमन्यु की वीरता का रंग जम गया।

रंगा सियार = धोखेबाज़,
प्रयोग – तुम्हें पूर्ण सिंह की बातों में नहीं आना चाहिए, वह तो निरा रंगा सियार है।

राई का पर्वत बनाना = बात को बढ़ा – चढ़ा कर बताना,
प्रयोग – छोटी – सी बात को लेकर बुढ़िया ने राई का पर्वत बना दिया।

रंग में भंग पड़ना = मजा किरकिरा होना,
प्रयोग – साँप का नाम लेते ही जनसभा में रंग में भंग पड़ गई।

राम कहानी सुनाना = दुःख भरी कहानी,
प्रयोग – भिखारी की राम – कहानी सुनकर मेरी आँखों में आँसू आ गए।

रफू – चक्कर होना = भाग जाना,
प्रयोग – डाकू पुलिस को देखते ही रफू – चक्कर हो गए।

रोड़ा अटकाना = रुकावट डालना,
प्रयोग – अगर तुम रोड़ा न अटकाते, तो मेरा काम कभी का बन जाता।

लानत भेजना = धिक्कारना, कोसना,
प्रयोग – मैं देशद्रोहियों को लानत भेजता हूँ।

लाल पीला होना = क्रुद्ध होना,
प्रयोग-अरे सुरेश, क्यों लाल – पीले हो रहे हो ? कसूर तुम्हारा ही है।

लोहा लेना = युद्ध करना,
प्रयोग – अकबर राजपूतों से लोहा लेना नहीं चाहता था।

लेने के देने पड़ जाना = लाभ के बदले हानि होना,
प्रयोग – भारत पर आक्रमण करके पाकिस्तान को लेने के देने पड़ गए।

लोहे के चने चबाना = अति कठिन काम, कष्ट अनुभव करना,
प्रयोग – भारत पर आक्रमण करके चीन को लोहे के चने चबाने पड़े थे।

वीरगति पाना = वीरों की मौत मरना, शहीद होना,
प्रयोग – युद्ध में कई भारतीय सैनिकों ने वीरगति प्राप्त की।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

वार देना = कुर्बान करना,
प्रयोग – गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अपने चारों पुत्र धर्म के लिए वार दिए थे।

श्री गणेश करना = काम आरम्भ करना,
प्रयोग – सोहन ने कल ही अपने नए व्यवसाय का श्री गणेश किया है।

सिक्का जमना = प्रभाव या अधिकार होना,
प्रयोग – प्रधानमन्त्री के भाषण से जनता में उनके दल का सिक्का जम गया।

सितारा चमकना = किस्मत खुलना,
प्रयोग – परिश्रम करने से मनुष्य का सितारा अवश्य चमकता है।

सिर खाना = फ़िजूल की बातें करके तंग करना,
प्रयोग – नालायक विद्यार्थी कक्षा में अध्यापक का सिर खाते रहते हैं।

सिर मारना (बार – बार प्रयास करना),
प्रयोग – गणित के इस प्रश्न को हल करने के लिए बहुत सिर मारा पर यह हल ही नहीं हो रहा है।

सिर पर भूत सवार होना = अत्यधिक क्रोध में आ जाना,
प्रयोग-अरे सुनील ! राम के तो सिर पर भूत सवार है, तुम्हारी वह एक न मानेगा। हवा से बातें करना = तेज़ भागना, प्रयोगशीघ्र ही हमारी गाड़ी हवा से बातें करने लगी।

हक्का – बक्का रह जाना = हैरान रह जाना,
प्रयोग – सुरेश की दोस्ती पर मुझे नाज़ था। जब वह मेरे विरुद्ध बोलने लगा तो मैं हक्का – बक्का रह गया।

हवा हो जाना = भाग जाना,
प्रयोग – पहरेदार को अपनी तरफ आता देख चोर हवा हो गया।

हँसी खेल = साधारण बात,
प्रयोग – एवरेस्ट पर चढ़ना कोई हँसी खेल नहीं।

हाथों के तोते उड़ जाना = बुरा समाचार सुन कर डर जाना,
प्रयोग – कारखाने में आग लगने की खबर सुनकर सेठ हरिदत्त के हाथों के तोते उड़ गए।

हाथ तंग होना = पैसे का अभाव होना,
प्रयोग – हमारा आजकल हाथ बहुत तंग है, कृपया नकद रुपया दें।

हाथ मलना = पछताना,
प्रयोग – अब फेल होने पर हाथ मलने से क्या लाभ ? पहले डटकर परिश्रम करते तो पास हो जाते।

हाथ धो बैठना = खो देना, छिन जाना,
प्रयोग – पाकिस्तान युद्ध में कई युद्धपोतों तथा पनडुब्बियों से हाथ धो बैठा।

हाथ पकड़ना = सहारा देना,
प्रयोग – आखिर छोटे पुत्र ने ही अपने माता – पिता का हाथ पकड़ा।

PSEB 6th Class Hindi Vyakaran मुहावरे (2nd Language)

हाथ साफ़ कर देना = चुराना,
प्रयोग – चोरों ने सेठ के सारे माल पर हाथ साफ़ कर दिया।

हाथ पैर मारना = प्रयत्न करना,
प्रयोग – आजकल बहुत हाथ पैर मारने पर भी कठिनता से निर्वाह होता है।

हाथ पसारना = माँगना,
प्रयोग – स्वाभिमान – शून्य व्यक्ति हर किसी के सामने हाथ पसारने लगता है।

हथियार डालना = हार मान लेना,
प्रयोग – बांग्लादेश में पाकिस्तानी सेना ने साधारण युद्ध के बाद हथियार डाल दिए थे।

खोपड़ियाँ खुलना = अक्ल आ जानी,
प्रयोग – जीवन के अनुभवों ने राज की खोपड़ी खोल दी।

पैरों तले जमीन खिसक जाना = घबरा जाना,
प्रयोग – दुकान में आग लगने का समाचार सुन सेठ जी के पैरों तले जमीन खिसक गई।

पैरों में पर लगना = अत्यधिक प्रसन्न होना,
प्रयोग – परीक्षा में प्रथम आने की सूचना पाकर सुनीता के पैरों में तो जैसे पर ही लग गये।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Patra Lekhan पत्र लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Rachana पत्र लेखन (2nd Language)

प्रश्न-ज्ञान परीक्षा प्रश्न-पत्र में दो पत्र दिए जाएंगे, जिनमें से एक अवश्य प्रार्थना-पत्र होगा। इन दोनों में से कोई एक करना होगा।

आवश्यक निर्देश पत्र या प्रार्थना-पत्र का आरम्भ तथा अन्त उचित ढंग से करना चाहिए। तिथि अवश्य लिखनी चाहिए। प्रश्न में दिए गए नाम एवं पते का ही उपयोग करना चाहिए।

पत्र की परिभाषा-प्रत्येक आदमी अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचाने की कोशिश करता है। पास के आदमी से साधारण बातचीत द्वारा विचारों का आदान-प्रदान होता है। परन्तु जिसके माध्यम से हम दूर गए व्यक्ति के साथ विचारों का आदान-प्रदान करते हैं, उसे पत्र कहा जाता है।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

पत्र के प्रकार-पत्र चार प्रकार के हैं-

  • व्यक्तिगत पत्र
  • व्यावहारिक पत्र
  • समाचारात्मक पत्र
  • आवेदन या प्रार्थना-पत्र।

पत्र के छ: अंग होते हैं-

  1. स्थान तथा तिथि-यह प्रायः पत्र के ऊपर दाएं कोने में लिखी जाती है। यदि हो सके तो भेजने वाले का पूरा पता ऊपर की दो पंक्तियों में होना चाहिए। अन्तिम पंक्ति में तिथि। आजकल पूरा पता न लिख कर केवल स्थान ही लिख दिया जाता है।
  2. प्रशस्ति-प्रेष्य को (जिस व्यक्ति को पत्र लिखा जाता है) जिन शब्दों से सम्बोधित व प्रणाम आदि किया जाता है उसे प्रशस्ति कहते हैं। इसमें प्रेष्य की अवस्था, पदवी आदि के अनुसार परिवर्तन हो जाता है।
  3. विषय-यह पत्र का मुख्य अंग है। इसी को प्रकट करने के लिए पत्र लिखा जाता है। इस विषय में अनेक बातें लिखी जा सकती हैं।
  4. विषय का स्पष्टीकरण- इसमें विषय को स्पष्ट करने के लिए उसे कई भागों में बाँटा जा सकता है।
  5. प्रेषक का परिचय-इसमें केवल प्रेषक का नाम ही लिखा होना चाहिए।
  6. पता-पता कार्ड के पिछले भाग पर दायीं ओर लिखते सेवा में हैं। इसमें क्रमशः पाने वाले का नाम, ग्राम या शहर, पोस्ट ऑफिस का नाम और ज़िला लिखते हैं। लिफाफे पर बायीं ओर प्रेषक का नाम और पता लिखा जाता है।

पत्र सम्बन्धी कुछ ज्ञातव्य बातें –

  1. बड़ों की प्रशस्ति में पूज्य, पूजनीय, श्रद्धेय, आदरणीय, मान्यवर आदि कोई शब्द लिख कर अन्त में ‘जी’ अवश्य जोड़ना चाहिए।
  2. दूसरी पंक्ति में बड़ों के लिए नमस्कार वाचक कोई शब्द (सादर प्रणाम, नमस्कार, चरण वन्दना आदि) तथा छोटों के लिए आशीर्वाद वाचक कोई शब्द (चिरंजीव, स्नेह, प्यार आदि) लिखना उचित है।
  3. लगभग समान अवस्था वाले भाई-बहिन, भावज, मित्र आदि के लिए प्रिय, प्रियवर, स्नेही, स्नेहमयी आदि शब्द प्रयुक्त करने चाहिए। इसके साथ दूसरी पंक्ति में नमस्ते, नमस्कार आदि शब्द लिखने चाहिए।
  4. छोटों के लिए अथवा जहाँ परस्पर प्रेम बहुत अधिक हो वहाँ प्रिय के पश्चात् भाई मित्र आदि के स्थान पर पूरा अथवा अधूरा नाम लिखा जा सकता है। जैसे प्रिय सुषमा, प्रिय राजन।
  5. पति के लिए प्राणनाथ, प्राणेश्वर तथा पत्नी के लिए प्राणप्रिय, प्यारी आदि का प्रयोग होता है। आजकल पत्नी के लिए उसका संक्षिप्त नाम ही लिखा जाता है।
  6. बड़ों को लिखा गया पत्र हो तो अन्त में आपका आज्ञापालक, कृपापात्र, विनीत आदि कोई शब्द लिखा होना चाहिए।
  7. समान अवस्था वाले सम्बन्धियों और मित्रों के लिए तुम्हारा मित्र, भाई, अभिन्न हृदय आदि कोई शब्द लिखा जा सकता है।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

अनौपचारिक (पारिवारिक या सामाजिक) पत्र की रूप-रेखा

अपने से बड़ों को पत्र-पिता को पत्र

18 लाजपतराय नगर
जी० टी० रोड़,
जालन्धर।
दिसम्बर 18, ………..
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम।
आपका कृपा पत्र मिला, समाचार ज्ञात हुआ। निवेदन है कि ………………………………………………………………………… …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
…………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………..
पूज्य माता जी को मेरा प्रणाम कहना।

आपका आज्ञाकारी,
……………………
……………………

प्रशासनिक पत्र की रूप-रेखा

उच्च अधिकारियों को लिखा जाने वाला पत्र

सेवा में
उपायुक्त महोदय,
ज़िला ……………………
पंजाब।
विषय-लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पाबन्दी लगाये जाने बारे।
श्रीमान जी,
सविनय निवेदन है कि …………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………… ………….
धन्यवाद सहित,
आपका आज्ञाकारी,
(हस्ताक्षर)
नाम और पता …………
…………..
दिनांक……

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

आपके पाठ्यक्रम में केवल दो ही प्रकार के पत्र रखे गये हैं। जैसे-
(क) प्रार्थना पत्र या आवेदन पत्र तथा
(ख) व्यक्तिगत पत्र या पारिवारिक पत्र।।

(क) प्रार्थना पत्र/आवेदन पत्र प्रशासनिक पत्रों की कोटि में आते हैं-इसमें मुख्याध्यापक/ मुख्याध्यापिका को लिखे जाने वाले पत्र, उच्च अधिकारियों को लिखे जाने वाले शिकायत या सुझाव सम्बन्धी पत्र आते हैं। इन्हें अनौपचारिक पत्रों की कोटि में रखा जाता है।

हाथ से लिखे बधाई पत्र, निमन्त्रण पत्र, सांत्वना पत्र आदि भी अनौपचारिक पत्रों की कोटि में आते हैं। इनमें और व्यक्तिगत पत्रों में अन्तर यह होता है कि ये बहुत लम्बे नहीं लिखे जाते अर्थात् ऐसे पत्र संक्षेप में ही लिखने चाहिएं –

निमन्त्रण पत्र या शोक पत्र छपे हुए भेजे जाते हैं उन्हें औपचारिक पत्रों की कोटि में रखा जाता है। जैसे किसी बड़े नेता को उसके जन्म दिवस पर या चुनाव में जीत प्राप्त करने पर लिखे जाने वाले पत्र दो चार पंक्तियों में ही होते हैं-इसी कारण इन्हें औपचारिक पत्र कहते हैं-

विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बात

ऊपर दी गई रूप रेखा के अनुसार ही पत्र लिखने चाहिएं, चाहे वे व्यक्तिगत पत्र हों या प्रशासनिक (प्रार्थना पत्र आदि) प्रायः देखने में आता है कि लोग इन नियमों का पालन नहीं करते हैं। हालांकि इस छोटी-सी बात को दफ़्तरों का साधारण कर्मचारी जानता है। वह ऊपर दिये गए नियमों के अनुसार ही पत्र लिखता अथवा टाइप करता है। आगे चल कर इन नियमों का पालन करते हुए लिखे गये पत्र को ही अच्छे अंक दिये जाते हैं। आशा है आप पत्र लिखते समय इन नियमों का पूरी तरह पालन करेंगे।

आवश्यक प्रार्थना-पत्र एवं अन्य पत्र

प्रश्न 1.
मान लो आपका नाम सिमरन है और आप सरकारी हाई स्कूल, तरनतारन में पढ़ती हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को (घर में जरूरी काम है) छुट्टी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखें।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
राजकीय उच्च विद्यालय,
तरनतारन।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मेरी माता जी कल से सख्त बीमार हैं। पिता जी बाहर गए हुए हैं। माता जी की देखभाल के लिए मेरा घर पर रहना बहुत आवश्यक है। इसलिए मैं स्कूल नहीं आ सकती। कृपया मुझे दो दिन का अवकाश दीजिए।

धन्यवाद,
आपकी आज्ञाकारी शिष्या,
सिमरन।
आठवीं कक्षा
रोल नं0 21
तिथि : 15 फरवरी, 20…..

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प्रश्न 2.
मान लो आपका नाम सतवन्त कौर है और आप कन्या खालसा हाई स्कूल, अमृतसर में पढ़ती हैं। अपने स्कूल की मुख्याध्यापिका को एक प्रार्थना-पत्र लिखो, जिसमें बीमारी के कारण छुट्टी के लिए प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापिका,
खालसा कन्या हाई स्कूल,
अमृतसर।
महोदया,
सविनय निवेदन है कि मुझे कल रात से ज्वर आ रहा है। तबीयत खराब होने के कारण कमज़ोरी हो गई है। इसलिए मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकती। कृपया मुझे दो दिन का अवकाश प्रदान कीजिए।
धन्यवाद,
आपकी आज्ञाकारी शिष्या,
सतवन्त कौर।
कक्षा आठवीं ‘ए’।
19 अप्रैल, 20……

प्रश्न 3.
मान लो आपका नाम परमजीत है। आप अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें भाई या बहन के विवाह के कारण अवकाश के लिए प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
सरकारी हाई स्कूल,
फरीदकोट।
महोदय,
सविनय प्रार्थना है कि मेरे बड़े भाई का शुभ विवाह 12 अक्तूबर को होना निश्चित हुआ है। मेरा इसमें सम्मिलित होना बहुत आवश्यक है। इसलिए इन दिनों मैं स्कूल में उपस्थित नहीं हो सकता। कृपया मुझे दो दिन का अवकाश देकर अनुगृहीत करें।
धन्यवाद सहित,
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
परमजीत।
कक्षा आठवीं ‘बी’
11 अक्तूबर, 20….

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प्रश्न 4.
मान लो आपका नाम विजय है और आप सरकारी हाई स्कूल, वेरका में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें जुर्माना माफी के लिए प्रार्थना करो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
सरकारी हाई स्कूल,
वेरका।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि कल हमारे इंग्लिश के अध्यापक महोदय ने हमारी मासिक परीक्षा लेनी थी, किन्तु प्रातः स्कूल आते समय रास्ते में मेरी साइकिल पंक्चर हो गई। इस कारण मैं स्कूल देर से पहुँचा और परीक्षा में भाग न ले सका। अध्यापक महोदय ने मेरी इस सच्ची बात का विश्वास न किया और मुझे बीस रुपये जुर्माना कर दिया। मैं यह जुर्माना नहीं दे सकता क्योंकि मेरे पिता जी बड़े ग़रीब हैं। वैसे मैं इंग्लिश में बहुत अच्छा हूँ। इस बार त्रैमासिक परीक्षा में मेरे 100 में से 80 अंक आए थे। मैं आज तक स्कूल में अकारण अनुपस्थित नहीं रहा।

कृपया मेरा जुर्माना माफ कर दें। मैं आपका अत्यन्त आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
विजय।
कक्षा आठवीं ‘ए’
27 अगस्त, 20…

प्रश्न 5.
आप अपने विद्यालय के मुख्याध्यापक को अपने घर की आर्थिक स्थिति बताते हुए फीस माफी के लिए प्रार्थना-पत्र लिखें।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
डी० ए० वी० हाई स्कूल,
नकोदर।
महोदय,

सविनय प्रार्थना यह है कि मैं आपके स्कूल की आठवीं कक्षा का विद्यार्थी हूँ। मेरे पिता जी एक डाकखाने में क्लर्क हैं। उनकी मासिक आय केवल पच्चीस सौ रुपये है। हम घर के सात सदस्य हैं। इस महंगाई के जमाने में निर्वाह होना बहुत मुश्किल हो गया है। अतः मेरे पिता जी मेरी स्कूल की फीस देने में असमर्थ हैं।

मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि है। मैं हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम स्थान पर रहता आया हूँ। मैं स्कूल की जूनियर हॉकी टीम का कैप्टन भी हूँ। मेरे सभी अध्यापक मुझ से प्रसन्न हैं।

अतः आपसे मेरी नम्र प्रार्थना है कि आप मेरी पूरी फीस माफ करें। ताकि में अपनी पढ़ाई जारी रख सकूँ।

मैं आपका आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
जसदेव सिंह।
कक्षा आठवीं ‘ए’
रोल नं० 11
10 मई, 20…

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प्रश्न 6.
आप अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र देने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
राजकीय उच्च विद्यालय,
अबोहर।
महोदय,

सविनय निवेदन है कि मेरे पिता जी की तबदीली यहाँ से फिरोजपुर की हो गई है। इसलिए हमारा सारा परिवार फिरोजपुर जा रहा है। ऐसी हालत में मेरा यहाँ अकेला रहना कठिन है। कृपया मुझे स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र देकर कृतार्थ करें जिससे मैं अपनी आगे की पढ़ाई वहाँ जाकर जारी रख सकू।

मैं इस कृपया के लिए आपका आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
दर्शन सिंह।
कक्षा आठवीं ‘बी’
रोल नं0 22
15 मार्च, 20…

प्रश्न 7.
मान लो आपका नाम मनोहर लाल है और आप एस० डी० हाई स्कूल, नवांशहर में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें उचित कारण बताते हुए सैक्शन बदलने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
एस० डी० हाई स्कूल,
नवांशहर।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में आठवीं श्रेणी ‘बी’ सैक्शन (रोल नम्बर 40) में पढ़ रहा हूँ। मैं अपना सैक्शन बदलना चाहता हूँ। मेरे सैक्शन ‘बी’ में अधिकतर छात्र ड्राइंग विषय के हैं, जबकि मैंने संस्कृत विषय ले रखा है। पढ़ाई की सुविधा के विचार से मैं ‘ए’ सैक्शन में जाना चाहता हूँ। इसी सैक्शन में मेरे मुहल्ले के सभी छात्र पढ़ते हैं। सैक्शन अलग-अलग होने से मेरे लिए पढ़ाई में कुछ रुकावट पड़ जाती है क्योंकि मैं उनसे पूर्ण सहयोग प्राप्त नहीं कर पा रहा।

इसके अतिरिक्त ‘ए’ सैक्शन में पढ़ने वाले छात्रों को योग्यता के आधार पर रखा जाता है। मैं इस त्रैमासिक परीक्षा में अपनी श्रेणी में प्रथम आया हूँ। इस कारण मुझे ‘ए’ सैक्शन के उन योग्य छात्रों में बैठकर पढ़ने की अनुमति दी जाए, जिससे मेरा उचित विकास हो सके।

मेरी प्रार्थना है कि मुझे आठवीं ‘बी’ सैक्शन से ‘ए’ सैक्शन में जाने की अनुमति प्रदान की जाए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि पढ़ाई में मैं किसी भी छात्र से पीछे नहीं रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
मनोहर लाल।
कक्षा आठवीं ‘बी’,
रोल नं0-40
5 मई, 20….

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प्रश्न 8.
मान लो आपका नाम सुरिन्द्र है और आप एस० डी० हायर सैकण्डरी स्कूल, जालन्धर में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को पत्र लिखो जिसमें किसी स्कूल फण्ड से पुस्तकें लेकर देने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक
एस० डी० हायर सैकण्डरी स्कूल,
जालन्धर।
महोदय,
सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके स्कूल में कक्षा आठवीं ‘ए’ में पढ़ता हूँ। मेरे पिता जी एक छोटे से दुकानदार हैं। उनकी मासिक आय केवल पच्चीस सौ रुपये है। हम घर के 6 सदस्य हैं। आजकल इस महंगाई के समय में निर्वाह होना बहुत मुश्किल है। ऐसी दशा में मेरे पिता जी मुझे पुस्तकें खरीद कर देने में असमर्थ हैं।

मुझे पढ़ाई का बहुत शौक है। मैं हमेशा अपनी कक्षा में प्रथम रहता आया हूँ। मेरे सभी अध्यापक मुझ से पूरी तरह सन्तुष्ट हैं। अतः आपसे मेरी नम्र प्रार्थना है कि आप मुझे स्कूल के ‘विद्यार्थी सहायता कोष’ (फण्ड) से सभी विषयों की पुस्तकें लेकर देने की कृपा करें, ताकि मैं अपनी पढ़ाई आगे जारी रख सकूँ।

मैं आपका आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
सुरिन्द्र कुमार
कक्षा आठवीं ‘ए’
रोल नं0 10
8 मई, 20…

प्रश्न 9.
मान लो आपका नाम बलदेव प्रकाश है और आप एस० डी० हाई स्कूल, कपूरथला में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें अपनी आर्थिक कठिनाइयों का उल्लेख करते हुए छात्रवृत्ति देने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
एस० डी० हाई स्कूल,
कपूरथला।
मान्यवर,

सविनय निवेदन है कि मैं आपके स्कूल में कक्षा आठवीं ‘ए’ में पढ़ता हूँ। मेरे पिता जी एक छोटे से दुकानदार हैं। उनकी मासिक आमदनी केवल पन्द्रह सौ रुपये है। हम घर के सात सदस्य हैं। इस महँगाई के ज़माने में उन्हें अकेले ही सारे परिवार का पालन-पोषण करना पड़ता है। जिस कारण वे मुझे आगे पढ़ाने से इन्कार कर रहे हैं।

मेरी पढ़ाई में विशेष रुचि है। मैं सदा अपनी कक्षा में प्रथम रहता आया हूँ। सभी अध्यापक मेरे आचरण से प्रसन्न हैं। मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप मुझे स्कूल के ‘निर्धन विद्यार्थी सहायता कोष’ से छात्रवृत्ति प्रदान करने की कृपा करें, ताकि मैं अपनी पढ़ाई भली-भांति जारी रख सकूँ।

मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
बलदेव प्रकाश।
कक्षा आठवीं ‘ए’
रोल नं० 11
5 अप्रैल, 20…

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

प्रश्न 10.
मान लो आपका नाम महेन्द्र है और आप गवर्नमैंट हाई स्कूल, आदमपुर में पढ़ते हैं। अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें अपने द्वारा हुई गलती/कसूर के लिए क्षमा याचना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
गवर्नमैंट हाई स्कूल,
आदमपुर।
महोदय,
सविनय प्रार्थना है कि कल श्रेणी के कमरे में जो झगड़ा हुआ है, उसके लिए मैं अपने आपको दोषी मानता हूँ। मैंने गुस्से में आकर करतार सिंह को चाँटा मार दिया था। यह मेरी गलती थी। चाहे उसने मुझे गाली दी थी पर मुझे उस पर हाथ नहीं उठाना चाहिए था। अच्छा तरीका तो यह था कि मैं आपसे करतार सिंह की शिकायत करता। परन्तु मुझ पर गुस्से का भूत सवार हो गया और मैंने श्रेणी के कमरे में ऐसी बुरी हरकत कर डाली।

अब मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आगे के लिए कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा। कृपया इस बार मुझे क्षमा कर दें। मैं आपका सदा आभारी रहूँगा।

आपका आज्ञाकारी शिष्य, महेन्द्र,
आठवीं ‘ए’
रोल नं0 20
2 जनवरी, 20……

प्रश्न 11.
मान लीजिए आपका नाम मनजिन्दर है और आप प्रेमसभा हाई स्कूल, बरनाला में पढ़ते हैं। अपने स्कूल में साइकिल स्टैंड बनवाने के लिए अपने स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
प्रेमसभा हाई स्कूल,
बरनाला।
महोदय,

सविनय प्रार्थना है कि हमारे स्कूल में साइकिल खड़ी करने की उचित व्यवस्था नहीं है। भवन के पिछले भाग में साइकिल स्टैंड के लिए जो स्थान छोड़ा गया है, वह तीसचालीस साइकिलों के लिए भी अपर्याप्त है। सुबह ज्यादातर विद्यार्थी स्कूल के मुख्य गेट के सामने ही अपनी साइकिल खड़ी कर देते हैं। छुट्टी के समय वहाँ इतनी धक्कम-पेल होती है कि साइकिलें एक-दूसरे के ऊपर गिर जाती हैं जिससे विद्यार्थियों को बड़ी असुविधा का सामना करना पड़ता है। अतः आप से नम्र निवेदन है कि स्कूल के मैदान के एक कोने में साइकिल स्टैंड का निर्माण करवाया जाए तथा सभी विद्यार्थियों को अपनी साइकिल वहाँ खड़ी करने का आदेश दिया जाए।

धन्यवाद सहित,
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
मनजिन्दर।
कक्षा आठवीं ‘ए’
रोल नं0 20
दिनांक : 10 अगस्त, 20…

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प्रश्न 12.
मान लो आपका नाम मदन मोहन है और आप सरकारी हाई स्कूल, रोपड़ में पढ़ते हैं। अपने मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखें जिसमें विद्यालय की सफ़ाई के बारे में कुछ सुझाव दिए गए हों।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
राजकीय उच्च विद्यालय,
रोपड़।
महोदय,
मैं आपका ध्यान पिछले कुछ मास से विद्यालय में सफ़ाई की बिगड़ती हालत की ओर दिलाना चाहता हूँ। अकसर विद्यालय लगने के समय देखा गया है कि कई श्रेणी-कक्षाओं के सामने कूड़े के ढेर लगे रहते हैं। नल के निकट हमेशा कीचड़ बना रहता है।

मेरा विनम्र सुझाव है कि सफाई कर्मचारियों को चेतावनी दी जाए ताकि वह किसी भी कक्षा के सामने कूड़े के ढेर न लगाएं। वह सारा कूड़ा स्कूल लगने से एक घण्टा पूर्व बाहर ले जाकर किसी गड़े में फेंके।

इसके अतिरिक्त सभी छात्रों को भी हिदायत की जाय कि फलों, मूंगफली आदि के छिलके कूड़दानों में ही फेंकें, इधर-उधर न बिखेरें। साथ ही और कूड़ादानों की व्यवस्था की जाये। प्रत्येक श्रेणी-कक्ष के सामने एक कूड़ादान अवश्य होना चाहिए।

नल के निकट का स्थान चूंकि कच्चा है, इसलिए वहाँ पक्की ईंटों का फर्श लगाना चाहिए ताकि जो भी छात्र पानी पीने के लिए आएं, उन्हें असुविधा न हो। कइयों का वहाँ पाँव फिसलते देखा है। आशा है कि आप मेरे इन सुझावों को अवश्य ध्यान में रखते हुए आवश्यक कार्यवाही करेंगे।

धन्यवाद सहित।
आपका शिष्य, मदन मोहन
8वीं कक्षा।
तिथि : 15 फरवरी, 20….

प्रश्न 13.
मान लो आपका नाम अनिल है और आप अमृतसर में रहते हैं। वहाँ के सरकारी हाई स्कूल के मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखो, जिसमें अपना नाम आठवीं श्रेणी में प्रवेश देने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
राजकीय उच्च विद्यालय,
अमृतसर।
महोदय,

सविनय निवेदन है कि मेरे पिता जी की पटियाला से अमृतसर में स्थानांतरण हो गया है। इससे पहले मैं पटियाला के गवर्नमैंट हाई स्कूल में पढ़ता था। पिता जी के स्थानांतरण के साथ ही हमारा सारा परिवार भी अमृतसर आ गया है। अब मैं आपके स्कूल में आठवीं श्रेणी में प्रवेश प्राप्त करना चाहता हूँ। मेरा पटियाला का स्कूल छोड़ने का प्रमाण-पत्र प्रार्थना-पत्र के साथ संलग्न है। कृपया मुझे अपने स्कूल में दाखिला देकर कृतार्थ करें।

भवदीय,
अनिल।
तिथि : 17 फरवरी, 20….

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प्रश्न 14.
मान लो आपका नाम राजबीर है और आप गाँव गढ़दीवाला, जिला होशियारपुर के निवासी हैं। अपने जिले के लिए मुख्य-स्वास्थ्य अधिकारी को एक प्रार्थना-पत्र लिखो जिसमें अपने गाँव में एक अस्पताल खोलने की प्रार्थना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में
मुख्य-स्वास्थ्य अधिकारी,
होशियारपुर।
महोदय,

निवेदन है कि हमारा गाँव गढ़दीवाला, होशियारपुर से 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसकी जनसंख्या लगभग सात हज़ार है। परन्तु बड़े खेद की बात है कि इस गाँव में कोई अस्पताल नहीं है। गाँववासियों को छोटी-छोटी बीमारियों के इलाज के लिए शहर भागना पड़ता है। इसमें उन्हें काफ़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। सर्दी के मौसम में छोटे बच्चों और बूढ़ों को बीमारी की हालत में शहर ले जाना बहुत ही कठिन है।

इस गाँव में अस्पताल की बहुत आवश्यकता है। हमारा आपसे निवेदन है कि इस पिछड़े क्षेत्र के लोगों के स्वास्थ्य की ओर भी ध्यान दिया जाए। हमारे गाँव में यदि अस्पताल खुल जाता है तो इससे आसपास के गाँवों को भी लाभ पहुँच सकता है। आशा है कि आप हमारी इस प्रार्थना की ओर तुरन्त ध्यान देकर अस्पताल खोलने के लिए शीघ्र उचित कदम उठाएंगे।

निवेदक,
राजबीर।
तिथि : 8 अगस्त, 20…

प्रश्न 15.
मान लो आपका नाम दिनेश है और आप 45-आदर्श नगर, फिरोजपुर में रहते हैं। अपने पिता जी को एक पत्र लिखें जिसमें अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण (पास) होने की सूचना देते हुए खर्चे के लिए रुपये मंगवाओ।
उत्तर :
45, आदर्श नगर,
फिरोजपुर।
27 अप्रैल, 20….
आदरणीय पिता जी,
सादर प्रणाम !

आपको यह जानकर हर्ष होगा कि हमारा परीक्षा-परिणाम निकल आया है। मैं 540 अंक लेकर प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गया हूँ। अपनी कक्षा में मेरा दूसरा स्थान है। मुझे स्वयं इस बात का दुःख है कि मैं प्रथम स्थान प्राप्त न कर सका। इसका कारण यह है कि मैं दिसम्बर मास में बीमार हो गया था और लगभग 20-25 दिन स्कूल न जा सका। यदि मैं बीमार न हुआ होता तो सम्भवतः छात्रवृत्ति (वज़ीफा) प्राप्त करता। अब मैं मैट्रिक में अधिक अंक प्राप्त करने का यत्न करूँगा।

अब मुझे नई कक्षा के लिए नई पुस्तकें आदि खरीदनी हैं। इधर कुछ दिनों में मेरे पास अच्छे वस्त्र भी नहीं हैं। कुछ मित्र मेरी इस सफलता पर पार्टी भी माँग रहे हैं। इसलिए आप मुझे 1000 रुपये शीघ्र ही भेजने की कृपा करें ताकि मैं अगली कक्षा की पुस्तकें खरीद सकूँ और मित्रों को भी पार्टी दे सकूँ।

आपका आज्ञाकारी पुत्र,
दिनेश।

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प्रश्न 16.
मान लो आपका नाम निर्मल कौर है और आप गुप्ता कॉलोनी, तरनतारन में रहती हैं। अपनी सहेली यशवन्त को एक पत्र लिखो जिसमें यह वर्णन करो कि आपके स्कूल में 15 अगस्त का दिन कैसे मनाया गया।
उत्तर :
गुप्ता कॉलोनी,
तरनतारन।
18 अगस्त, 20….
प्यारी सहेली यशवन्त,
सत् श्री अकाल।
कई दिन से तुम्हारा पत्र नहीं मिला। क्या कारण है। मैं तुम्हें दो पत्र डाल चुकी हूँ पर उत्तर एक का भी नहीं मिला। कोई नाराज़गी तो नहीं ? अगर ऐसी-वैसी कोई बात हो तो क्षमा कर दें।

हाँ, इस बार हमारे स्कूल में 15 अगस्त का दिन बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया। इसकी थोड़ी-सी झलक मैं पत्र द्वारा पेश कर रही हूँ। 15 अगस्त मनाने की तैयारियां एक महीना पहले शुरू कर दी गई थीं। स्कूल में सफेदी कर दी गई थी। लड़कियों को लेजियम की ट्रेनिंग देनी कई दिन पहले ही शुरू हो गई थी। हमारे अमर शहीद’ एकांकी नाटक की रिहर्सल भी कई बार करवाई गई। निश्चित दिन को ठीक-सुबह सात बजे 15 अगस्त का समारोह शुरू हो गया। सबसे पहले तिरंगा झण्डा फहराने की रस्म क्षेत्र के जाने-माने समाज सेवक सरदार महासिंह जी ने अदा की। इसके बाद स्कूल की छात्राओं ने रंगारंग कार्यक्रम पेश करने शुरू कर दिए। गिद्धा नाच ने सबका मन मोह लिया। इसके बाद देश-प्रेम के गीत गाए गए। मैंने भी एक गीत गया था। मैंने लेजियम की टीम में भी भाग लिया।

इसके बाद एकांकी ‘हमारे अमर शहीद’ का अभिनय हुआ। इसके हर सीन पर तालियाँ बजती थीं। समारोह के अन्त में प्रधान महोदय और हमारी बड़ी बहन जी ने भाषण दिये, जिनमें देश भक्ति की प्रेरणा थी।

15 अगस्त का यह समारोह मुझे हमेशा याद रहेगा। क्योंकि मुझे इसमें दो खूबसूरत इनाम मिले हैं। पूज्य माता जी और भाभी को सत् श्री अकाल। अक्षत और गुड्डी को प्यार देना। इस बार पत्र का उत्तर ज़रूर देना।

तुम्हारी सहेली,
निर्मल कौर।

प्रश्न 17.
मान लो आपका नाम प्रेम सिंह है और आप 405 वसन्त विहार, कादियां में रहते हैं। अपने चाचा जी को एक पत्र लिखिए जिसमें जन्म-दिवस की भेंट पर धन्यवाद प्रकट किया गया हो।
उत्तर :
405, वसन्त निवास,
कादियां।
11 जुलाई, 20…
पूज्य चाचा जी,
सादर प्रणाम!

मेरे जन्म दिन पर आपके द्वारा भेजा हुआ पार्सल प्राप्त हुआ। जब मैंने इस पार्सल को खोला तो उसमें एक सुन्दर घड़ी देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। कई वर्षों से इसका अभाव मुझे खटक रहा था।

कई बार विद्यालय जाने में भी विलम्ब (देर) हो जाता था। निःसन्देह अब मैं अपने आपको नियमित बनाने का प्रयत्न करूँगा। इसको पाकर मुझे असीम प्रसन्नता हुई। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।

पूज्य चाची जी को चरण वन्दना। रमेश को नमस्ते। मुझे शैली बहुत याद आती है। उसे मेरी प्यार भरी चपत लगाइए। सबको यथा योग्य।

आपका भतीजा,
प्रेम सिंह।

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प्रश्न 18.
मान लो आपका नाम रमन है और आप सत्य निवास, फगवाड़ा में रहते हैं। अपने पिता जी को एक पत्र लिखो जिसमें आपके स्कूल का सुन्दर वर्णन हो।
उत्तर :
सत्य निवास,
फगवाड़ा।
17 मई, 20….
पूज्य पिता जी,
सादर प्रमाण
मैं परमात्मा की दया और आपके आशीर्वाद से पास हो गया हूँ। मेरे स्कूल का वातावरण मेरे बड़ा अनुकूल (ठीक) है। यहाँ पर विद्यार्थियों की गिनती बहुत है। लगभग एक हजार विद्यार्थी हमारे स्कूल में पढ़ते हैं। प्रत्येक श्रेणी के चार-चार विभाग हैं। स्कूल का भवन बड़ा सुन्दर और हवादार है। इसके अगले भाग में बड़ी सुन्दर फुलवाड़ी है।

हमारे स्कूल के कमरे साफ़-सुथरे तथा विशाल हैं। उनमें बिजली के पंखों का प्रबन्ध और सफ़ाई का खास ध्यान रखा जाता है। यहाँ के अध्यापकों का चरित्र बड़ा ऊंचा है। ये अपने-अपने विषय में विद्वान् हैं। मुख्याध्यापक जी बड़े परिश्रमी तथा छात्रों के साथ सहानुभूति (हमदर्दी) रखने वाले हैं। विद्यार्थियों के खेलने के लिए एक खेल का बड़ा मैदान है, जिसमें शाम को विद्यार्थी खेलते हैं। हमारे स्कूल में एक पुस्तकालय (लाइब्रेरी) भी है, जिसमें अलग-अलग विषयों पर हज़ारों पुस्तकें हैं। इसके अतिरिक्त एक विज्ञानशाला है, जिसमें विज्ञान का सारा सामान है।

इस प्रकार मेरा स्कूल पढ़ाई, खेलों तथा अन्य विषयों में अपने शहर में सबसे बढ़िया स्कूल है। इसका परिणाम हर वर्ष बहुत बढ़िया रहता है। मैं सब प्रकार से ठीक हूँ। कुशल समाचार लिखते रहा करें। माता जी को प्रणाम।

आपका सपुत्र
रमन।

प्रश्न 19.
मान लो आपका नाम रणवीर है। आप डी० ए० वी० हाई स्कूल, अमृतसर में पढ़ते हैं और छात्रावास (होस्टल) में रहते हैं। अपने पिता जी को एक पत्र लिखो जिसमें ‘मेरे जीवन का उद्देश्य’ विषय पर विचार प्रकट करो।
उत्तर :
छात्रावास,
डी० ए० वी० हाई स्कूल,
अमृतसर।
20 अप्रैल, 20…
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम !

आज मैं अपने स्कूल की परीक्षा से निपट चुका हूँ। अब आगे मुझे क्या करना चाहिए ? मेरे जीवन का उद्देश्य क्या होगा-मैं अपने जीवन में क्या बन पाऊँगा, इसका उत्तर कठिन है। फिर भी मैं अपने मन के विचार लिखता हूँ।

पिता जी आप मेरी स्वाभाविक रुचियों से परिचित ही हैं। उन्हीं के अनुसार मैं अपने जीवन का उद्देश्य निश्चित करना चाहता हूँ। मेरा विचार एक अच्छा डॉक्टर बनने का है। आप जानते हैं कि हमारा देश सेहत के विचार से पिछड़ा हुआ है। हर साल लाखों लोग विभिन्न रोगों का शिकार हो जाते हैं। चिकित्सा (इलाज) के अभाव में बेमौके ही मौत के मुँह में चले जाते हैं। सरकार ने रोगों को दूर करने के लिए अनेक कदम उठाए हैं। फिर भी इतने बड़े देश के लिए वे ऊँट के मुँह में जीरा के समान हैं। हमारे देश में डॉक्टरों और वैद्यों की कमी तो नहीं, फिर भी निर्धन लोग धन न होने के कारण उनकी सेवा से वंचित रह जाते हैं। कस्बों और ग्रामों के अस्पतालों में ख़तरनाक रोगों की दवाएँ ही नहीं मिलती। इसलिए ग्रामीण भाई इलाज के अभाव में तड़प-तड़प कर जीवन का सफर पूरा करते हैं।

पिता जी की ऐसी बुरी हालत देखकर मेरा विचार डॉक्टर बनने का है। इससे देश सेवा होगी और जीवन का उद्देश्य भी पूरा होगा।

आशा है आप मेरे विचारों से सहमत होंगे। माता जी को चरण वन्दना।

आपका आज्ञाकारी पुत्र,
रणवीर।

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प्रश्न 20.
मान लो आपका नाम बलदेव है और आप मल्होत्रा निवास जी० टी० रोड, करतारपुर में रहते हैं। अपने छोटे भाई कृष्ण को एक पत्र लिखो कि वह किताबी कीड़ा न बनकर खेलों में भाग लिया करे।
अथवा
अपने छोटे भाई को खेलों का महत्त्व बताते हुए एक पत्र लिखें।
उत्तर :
मल्होत्रा निवास,
जी० टी० रोड,
करतारपुर।
17 मार्च, 20….
प्रिय कृष्ण,
चिरंजीव रहो !

परीक्षा में तुम्हारी शानदार सफलता ने मेरा मन प्रसन्नता से भर दिया। पर यह जानकर मुझे दुःख भी हुआ कि यह सफलता तुझे सेहत गँवा कर मिली है। मुझे पता लगा है कि तुम आगे से भी अधिक किताबी कीड़ा बन गए हो। न तुम खेलों में भाग लेते हो और न तुम बाहर भ्रमण के लिए ही जाते हो। यह मेरी अभिलाषा है कि तुम बड़े विद्वान् बनो। पर साथ ही मैं यह भी चाहता हूँ कि तुम शरीर से भी पूर्ण स्वस्थ रहो। व्यक्ति पर जब संकट आता है तब बलवान् व्यक्ति ही उसका मुकाबला करने में समर्थ होते हैं।

यह ठीक है कि काम भगवान् है, पर रात-दिन काम में जुटे रहना भी अभिशाप ही है। मस्तिष्क (दिमाग) भी अवकाश माँगता है। स्मरण रखो कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। केवल पढ़ना व्यर्थ है। उसका मनन भी करना चाहिए। उसके लिए समय पर मस्तिष्क को विश्राम देना अनिवार्य है। मैं तुम्हें अच्छी सलाह देता हूँ कि तुम खेलों में भाग लिया करो।

खेलों का विद्यार्थी जीवन में बड़ा महत्त्व है। खेलों का सर्वप्रथम लाभ है-शरीर की पुष्टि। खेलने-कूदने और दौड़ने से शरीर के प्रत्येक अवयव (अंग) की कसरत हो जाती है। शरीर के रोमकूप पसीने के निकलने से स्वच्छ हो जाते हैं। खेलों से मनोरंजन के साथसाथ शारीरिक शक्ति भी बढ़ती है और मानसिक विकास भी होता है। खेलों से आपसी सहयोग, संगठन, अनुशासन, सहनशीलता आदि गुणों का विकास अपने आप हो जाता है। अत: तुम्हें मेरा परामर्श है कि तुम खेलों में भाग लेने के लिए कुछ समय अवश्य निकाल लिया करो।

तुम्हारा बड़ा भाई,
बलदेव।

प्रश्न 21.
मान लें आपका नाम मीना है। आप 2, एकता नगर, पटियाला में रहती हैं। अपनी सखी अंजु को अपनी ऐतिहासिक यात्रा का वर्णन देते हुए पत्र लिखें।
उत्तर :
2, एकता नगर,
पटियाला।
15 अगस्त, 20….
प्रिय सखी अंजु,
सप्रेम नमस्ते।

अब की बार तुम्हें पत्र लिखने में देरी हो गई है क्योंकि मैं एक मास के लिए दिल्ली गई हई थी। वहाँ मेरे चाचा जी रहते हैं और उन्होंने हमें छुट्टियाँ बिताने के लिए बुलाया था। इस ऐतिहासिक नगर की यात्रा अत्यन्त आनन्ददायक रही, इसलिए उसका कुछ अनुभव तुम्हें लिख रही हूँ।

भारत की राजधानी दिल्ली एक ऐतिहासिक नगर है। पुराना किला, लाल किला, कुतुबमीनार, हुमायूं का मकबरा, जन्तर मन्तर आदि दिल्ली के प्राचीन इतिहास के स्मारक हैं। हिन्दुओं का “बिड़ला मन्दिर’, मुसलमानों की विशाल जामा मस्जिद’ एवं सिक्खों का गुरुद्वारा ‘सीस गंज’ धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। चिड़िया घर, बुद्धा गार्डन, ओखला और बाल-भवन प्रमुख विहार केन्द्र हैं। यहीं पर ही दिल्ली गेट के बाहर राष्ट्रपिता बापू, चाचा नेहरू और शास्त्री जी की समाधियां हैं जहाँ देश-विदेश के लोग श्रद्धा के पुष्प चढ़ाने आते हैं।

दिल्ली का नया रूप नई दिल्ली में देखने को मिलता है। दिन को नई दिल्ली के दफ्तरों की भीड़-भाड़ और रात को कनाट प्लेस की शोभा देखते ही बनती है। गोलाकार संसद् भवन, राष्ट्रपति भवन, रेल भवन, विज्ञान भवन, कृषि भवन, आकाशवाणी केन्द्र जैसे बड़ेबड़े भवन दिल्ली की शोभा हैं। जहाँ नई दिल्ली में विशाल भवन और खुली-चौड़ी सड़कें हैं, तो वहाँ पुरानी दिल्ली में तंग गलियाँ और भीड़-भाड़ वाले बाजार हैं। पुरानी दिल्ली उत्तर भारत में व्यापार का मुख्य केन्द्र है।

मुझे विश्वास है कि शीघ्र ही तुम्हें दिल्ली देखने का अवसर मिलेगा। पूज्य माता जी की सेवा में चरण वन्दना।

तुम्हारी प्रिय सखी,
मीना।

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प्रश्न 22.
मान लो आपका नाम प्रेम पाल है और आप 27 सी० 208, चण्डीगढ़ में रहते हैं। अपने मित्र हरजीत को एक पत्र लिखो जिसमें पर्वतीय यात्रा का वर्णन किया गया हो।
उत्तर :
27 सी० 208,
चण्डीगढ़।
16 जून, 20…
प्रिय हरजीत,
सप्रेम नमस्ते।
अब की बार तुम्हें पत्र लिखने में देरी हो गई है क्योंकि मैं एक मास के लिए शिमला गया हुआ था। वहाँ मेरे चाचा जी रहते हैं और उन्होंने हमें छुट्टियाँ बिताने के लिए बुलाया था। यह यात्रा अत्यन्त आनन्ददायक रही, इसलिए उसका कुछ अनुभव तुम्हें लिख रहा हूँ।

अवकाश होते ही हम 15 मई की रात्रि को रेल द्वारा कालका जा पहुँचे। कालका से शिमला तक छोटी पहाड़ी रेल जाती है। टैक्सियाँ भी जाती हैं। हमने शिमला के लिए टैक्सी ली। कालका से शिमला तक सड़क पहाड़ काट कर बनाई गई है। स्थान-स्थान पर ऊँचाईनिचाई तथा असंख्य मोड़ हैं। केवल 15 या 20 फुट की सड़क है। उसके दोनों ओर खाइयाँ तथा गड्डे हैं जिन्हें देखने से डर लगता है। ड्राइवर की ज़रा-सी आँख चूक जाए तो मोटर पाँचछ: सौ फुट नीचे गड्ढे में गिर सकती है। इसलिए बड़ी चौकसी रखनी पड़ती है।

हम कालका से सोलन और वहाँ से शिमला पहुँचे। पर्वतीय स्थलों में पैदल चलने और स्केटिंग करने में आनन्द आता है। वहाँ की मनोहारी छटा देखकर हमारी सारी थकान दूर हो गई। शिमला के लोअर बाज़ार और माल रोड की सैर हम हर रोज़ करते थे।

वापसी यात्रा हमने रेल से की। रेलयात्रा का दृश्य तो और भी मनोरम था। रेल की पटरी के दोनों ओर 200-300 फुट तक गड्ढे ही गड्डे। रेल की पटरी चक्कराकार थी। गाड़ी में बैठे नीचे की पटरियाँ बड़ी दिखाई देती थीं। सुरंगों में घुसने पर तो अन्धेरा ही अन्धेरा होता था।

इस प्रकार कुदरत की खूबसूरती के दर्शन करते हुए हम परसों ही वापस आए हैं। अपनी माता जी को मेरा सादर प्रणाम कहिए।

आपका मित्र, प्रेम पाल।

प्रश्न 23.
मान लो आपका नाम गणेश है। आप 15, पटेल नगर, दिल्ली में रहते हैं।
अपने मित्र, जिसका नाम हरीश है, को गर्मी की छुट्टियाँ किसी पर्वत पर बिताने के लिए निमन्त्रण-पत्र लिखें।
अथवा
अपने मित्र को एक पत्र लिखें, जिसमें उसे गर्मी की छुट्टियाँ शिमला में बिताने के लिए कहा गया हो।
उत्तर :
15, पटेल नगर,
दिल्ली।
20 मार्च, 20…
प्रिय मित्र हरीश,
सप्रेम नमस्ते।

तुम्हारा पत्र मिला। तुमने ग्रीष्मावकाश में मेरा कार्यक्रम जानने की इच्छा प्रकट की। तम्हें याद होगा कि मैंने गत गर्मियों की छुट्टियाँ तुम्हारे साथ जयपुर में बिताई थीं। इस समय तुमने वायदा किया था कि अगली गर्मी की छुट्टियाँ किसी पर्वतीय स्थान पर बिताएंगे। इस बार मेरा विचार शिमला जाने का है। अपने वचन के अनुसार तुम्हें भी मेरे साथ चलना है। मेरे मामा जी वहाँ अध्यापक हैं। अत: वहाँ मनोरंजन के साथ-साथ पढ़ाई भी हो सकेगी। इस प्रकार शिमला में गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने में एक पंथ और दो काज होंगे।

तुम तो जानते ही होगे कि शिमला को पहाड़ों की रानी कहा जाता है। गर्मियों में वहाँ का मौसम बहुत ही सुहावना होता है। वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य तो अद्भुत है। चीड़ और देवदार के ऊँचे-घने पेड़ उसकी शोभा को चार चाँद लगाते हैं। वहाँ जब शाम के समय हम रिज और माल रोड पर घूमेंगे तो मज़ा आ जाएगा।

आशा है कि तुम मेरा शिमला चलने का सुझाव अवश्य स्वीकार करोगे। तुम्हारी स्वीकृति आने पर मैं मामा जी को पत्र लिखूगा। पूज्य माता-पिता जी को मेरी चरण वन्दना कहना। आपके पत्र की प्रतीक्षा रहेगी।

तुम्हारा अभिन्न मित्र,
गणेश।

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प्रश्न 24.
मान लो आपका नाम चाँद कौर है और आप मकान नं० 264, विजय नगर, जालन्धर में रहती हैं। अपनी सखी उर्मिला को एक पत्र लिखकर अपने स्कूल में हुए वार्षिक पारितोषिक वितरण उत्सव का विवरण दो।
उत्तर :
मकान नं० 264,
विजय नगर,
जालन्धर।
25 नवम्बर, 20…
प्रिय सखी उर्मिला,
सप्रेम नमस्ते।

तीन-चार दिन हुए मुझे तुम्हारा पत्र मिला। पत्र का उत्तर देने में मुझे इसलिए देरी हो गई क्योंकि 22 नवम्बर को हमारे स्कूल का पारितोषिक वितरण उत्सव मनाया गया। इसके लिए कई दिन पहले ही तैयारियाँ आरम्भ हो गई थीं।

उत्सव के दिन सारा स्कूल नववधू की तरह सजाया गया। राज्य के शिक्षा मन्त्री इस अवसर पर प्रधान अतिथि थे। ज्योंही उनकी कार स्कूल के मुख्य द्वार पर आकर रुकी, स्कूल के बैंड ने उनके स्वागत में सुरीली धुन बजाई। स्कूल की गर्ल्स स्काउटों ने उनको सलामी दी। फिर मुख्याध्यापक महोदय ने कुछ विशेष सज्जनों सहित उनका स्वागत किया और उनके गले में फूल मालाएँ डालीं। शिक्षा मन्त्री जी के पण्डाल में पधारते ही सभी छात्राओं और उपस्थित लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। तत्पश्चात् छात्राओं ने गीत, कविताएँ, नाटक और अन्य मनोरंजक कार्यक्रम प्रस्तुत किये। मुख्याध्यापक महोदय ने स्कूल की वार्षिक रिपोर्ट पढ़ कर सुनाई। इसके बाद शिक्षा मन्त्री जी ने अपने कर-कमलों से छात्राओं में पारितोषिक बांटे और भाषण दिया। उन्होंने अपने भाषण से स्कूल की बहुत प्रशंसा की।

मुझे भी अपनी कक्षा में प्रथम आने के कारण ईनाम मिला। अपने माता-पिता को मेरा प्रणाम कहना। ज्योति को प्यार। तुम्हारी सखी चाँद कौर।

प्रश्न 25.
मान लो आपका नाम सुमीता है, आप 212 ‘ए’ मॉडल कालोनी, जालन्धर में रहती हैं। अपने भाई मोहन को, जो छात्रावास में रहता है, बुरी संगति से बचने के लिए प्रेरणा-पत्र लिखें।
अथवा
कुसंगति से बचने के लिए अपने छोटे भाई को एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
212 ‘ए’ मॉडल कालोनी,
जालन्धर।
2 फरवरी, 20…..
प्रिय मोहन,
प्रसन्न रहो।

हमें पूर्ण विश्वास है कि तुम सदा मेहनत करते हो और मिडल परीक्षा में कोई अच्छा रस्थान लेकर उत्तीर्ण होंगे। तुम्हारी नियमितता और अनुशासन-पालन को देख कर हमें यह विश्वास हो गया है कि तुम्हारा भविष्य उज्ज्वल है। लेकिन एक बात का ध्यान अवश्य रखना कि कुसंगति में फँस कर अपने को दूषित न कर लेना। यदि तुम बुरे लड़कों के जाल से न बचोगे तो तुम्हारा भविष्य अन्धकारमय बन जाएगा और तुम अपने रास्ते से भटक जाओगे। तुम्हें जीवन भर कष्ट उठाने पड़ेंगे और तुम अपने उद्देश्य में सफल हो सकोगे।

कुसंगति छात्र का सबसे बड़ा शत्रु है। दुराचारी बच्चे होनहार बच्चों को भी भ्रष्ट कर देते हैं। प्रारम्भ में बुरे बच्चों की संगति बड़ी मनोरम लगा करती है, लेकिन यह भविष्य धूमिल कर देती है। दूसरी ओर अच्छे बच्चों की संगति करने से चरित्र ऊँचा होता है, कई अच्छे गुण आते हैं। अच्छे बालक की सभी प्रशंसा करते हैं।

आशा है कि तुम कुसंगति के पास तक नहीं फटकोगे। फिर भी तुम्हें सचेत कर देना मैं अपना कर्त्तव्य समझती हूँ। माता और पिता जी का आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। किसी वस्तु की ज़रूरत हो तो लिखना।

तुम्हारी बड़ी बहन,
सुमीता।

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प्रश्न 26.
मान लो आप का नाम वरुण है, आप 15, आदर्श नगर, लुधियाना में रहते हैं। अपनी छोटी बहन रमा को जीवन में अनुशासन का महत्त्व बताते हुए पत्र लिखें।
उत्तर :
15, आदर्श नगर,
लुधियाना।
15 मार्च, 20…..
प्रिय बहन रमा,
प्यार भरी नमस्ते।

मुझे कल माता जी का पत्र मिला। उन्होंने पत्र में तुम्हारी शिकायत करते हुए लिखा है कि तुम न तो प्रातः जल्दी उठती हो और न ही समय पर विद्यालय जाती हो। पत्र पढ़ कर मेरे हृदय को बड़ी ठेस लगी है।

प्रिय बहन, अनुशासन जीवन का मुख्य आधार है। यह उस सदाचार की नींव है जो जीवन का गौरव है। यह बड़प्पन और गौरव की कुंजी है। यह जीवन की वह प्राणवायु है, जिसके बिना न मानव और न समाज कभी भी जीवित रह सकता है। अनुशासनहीन जीवन वैसा ही है, जैसे पतवार के बिना नाव। यह हमारे उन भावों पर अंकुश रखता है जो हमारे विनाश के निमित्त हो सकते हैं। विद्यार्थी काल में ही हम इसका शिक्षण सुचारु ढंग से प्राप्त कर सकते हैं।

वैसे तो जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का महत्त्व है, पर विद्यालय में इसका महत्त्व सबसे ज्यादा है। विद्यालय के प्रत्येक विद्यार्थी को अनुशासन का पालन करना चाहिए क्योंकि यही जीवन में उन्नति का प्रतीक है। कक्षा में, क्रीडा क्षेत्र में और अन्यत्र भी अनुशासन की आवश्यकता है। अनुशासन का पालन करना आरम्भ में कुछ अखरता अवश्य है, पर इसका फल मधुर होता है। अनुशासनप्रिय छात्र ही अपने देश के गौरव को बढा सकता है।

आशा है, तुम इस पत्र को पढ़ने के बाद अनुशासनप्रिय बन जाओगी। ऐसा करने पर ही तुम एक अच्छी नागरिक बन कर देश की सेवा कर सकोगी। इसी से तुम्हारी सफलता का मार्ग है।

प्रशस्त होगा।
तुम्हारा भाई
वरुण

प्रश्न 27.
मान लो आपका नाम प्रमोद है। आप 208, कृष्ण नगर, लुधियाना में रहते हैं। अपने छोटे भाई अनिल को एक पत्र लिखिए जिसमें व्यायाम (कसरत) के लाभ बताए गए हों।
उत्तर :
208, कृष्ण नगर,
लुधियाना। 11 जुलाई, 20….
प्रिय अनिल,
चिरंजीव।

कुछ दिनों से तुम्हारा कोई पत्र प्राप्त नहीं हुआ। मुझे तुम्हारे स्वास्थ्य (सेहत) की बहुत चिन्ता है। व्यक्ति का स्वास्थ्य उसकी पूंजी होता है। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ आत्मा निवास करती है। गत वर्ष के टाइफाइड का प्रभाव अभी तक तुम्हारे ऊपर बना हुआ है। मेरा एक ही सुझाव है कि तुम हर रोज़ व्यायाम (कसरत) अवश्य किया करो। यह स्वास्थ्य सुधार के लिए अनिवार्य है। इससे मनुष्य को अनेक लाभ प्राप्त होते हैं।

व्यायाम से शरीर चुस्त रहता है। कोई बीमारी पास नहीं फटकती। व्यायाम से नए रक्त का संचार होता है। मन खिल उठता है। मांसपेशियाँ बलवान् बनती हैं। स्मरण शक्ति बढ़ती है। प्रात:कालीन खेतों की हरियाली से आँखें ताज़ा हो जाती हैं।

मुझे पूर्ण आशा है कि तुम मेरे आदेश का पालन करोगे। नित्य प्रात: उठ कर सैर के लिए जाया करोगे।

तुम्हारा अग्रज,
प्रमोद कुमार

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प्रश्न 28.
मान लो आपका नाम विजय है और आप 121, गान्धी नगर, जालन्धर में रहते हैं। अपने मित्र राज को एक पत्र लिखो जिसमें उसे नव वर्ष पर बधाई दी गई हो।
उत्तर :
121, गान्धी नगर,
जालन्धर।
31 दिसम्बर, 20…
प्रिय राज,
सप्रेम नमस्ते।
कल नव वर्ष का पहला शुभ दिन है। इस शुभ अवसर पर मैं आपको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। कामना करता हूँ कि यह नूतन वर्ष आपको सुख और समृद्धि देने वाला हो। परिवार में सुख और शान्ति का प्रसार हो। शारीरिक आरोग्यता के साथ-साथ लक्ष्मी अपनी कृपा की वर्षा करती रहे।

अन्त में पुनः-पुनः मंगल कामना।
आपका अपना,
विजय।

प्रश्न 29.
मान लो आपका नाम राजेश है और आप मकान नं0 534, गली 3C, मोहाली में रहते हैं। अपने मित्र मनोहर को एक पत्र लिखो जिसमें उसे परीक्षा में उत्तीर्ण (सफल) होने पर बधाई दी गई हो।
अथवा
आपका मित्र आठवीं कक्षा में 90% अंक लेकर जिले भर में प्रथम रहा है। उसे उसकी सफलता पर बधाई देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर :
मकान नं0 534, गली 3C,
मोहाली।
9 मई, 20….
प्रिय मित्र मनोहर,
सप्रेम नमस्ते।
पूज्य माता जी का पत्र मिला। यह शुभ समाचार पाकर कि तुम आठवीं की परीक्षा में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण हो गए हो, मन गद्-गद् हो उठा! मुझे तुम से ऐसी ही आशा थी। इस शुभ अवसर पर मेरी हार्दिक बधाई हो। मैं कामना करता हूँ कि तुम जीवन में इसी प्रकार उन्नति के शिखर पर चढ़ते जाओगे। अपने माता-पिता और वंश का नाम चमकाओ।

मैं एक सप्ताह में तुम्हारे पास आऊँगा। उसी दिन मित्रों से जलपान कार्यक्रम की तिथि निश्चित कर लेना। इस बार मैं अच्छा खासा मुँह मीठा करूँगा। तुम्हारी इस सफलता पर मेरे माता-पिता जी भी बहुत प्रसन्न हुए हैं! उन्होंने बहुत-बहुत बधाई दी है।

पूज्य माता जी को चरण वन्दना।

तुम्हारा मित्र,
राजेश

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

प्रश्न 30.
मान लो आपका नाम विजय है और आप मकान नं० 628, गली 4A, जालन्धर में रहते हैं। अपने मित्र मोहन को एक पत्र लिखो, जिसमें उसे अपने भाई के विवाह पर बुलाया गया हो।
उत्तर :
मकान नं० 628,
गली 4A,
जालन्धर।
12 मार्च, 20…
प्रिय मित्र मोहन,

सप्रेम नमस्ते।
तुम्हें यह जान कर अत्यन्त प्रसन्नता होगी कि मेरे बड़े भाई संजीव का शुभ विवाह दिल्ली में श्री राम लाल जी की सुपुत्री सुनीता से इसी मास की 24 तारीख को होना निश्चित हआ है। इस विवाह में आप जैसे सभी इष्ट-मित्र तथा बन्धुओं का शामिल होना बहुत ज़रूरी है। अतः आप को भाई साहब की बारात में भी चलना पड़ेगा। विवाहोत्सव का प्रोग्राम नीचे दिया जा रहा है –

23 तारीख दोपहर – 1 बजे प्रीतिभोज
23 तारीख सायं – 6 बजे घुड़चढ़ी
24 तारीख बारात का दिल्ली प्रस्थान – प्रात: 5 बजे

आशा है कि तुम 22 तारीख को पहुँच जाओगे। राकेश और सुरेश भी 22 तारीख को यहाँ पहुँच जाएंगे।

तुम्हारा मित्र,
विजय।

प्रश्न 31.
मान लो आप का नाम हर्ष देव है और आप मकान नं0 203 ‘ए’, शिवालय रोड, पटियाला में रहते हैं। आपके मित्र दर्शन के भाई का विवाह हुआ है। अपने मित्र दर्शन को बधाई पत्र लिखें।
उत्तर :
203 ‘ए’
शिवालय रोड,
पटियाला।
10 मार्च, 20….
प्रिय मित्र दर्शन।
प्यार भरी नमस्ते।
पन्द्रह दिन पूर्व तुमने अपने बड़े भाई के विवाह के शुभ अवसर पर मुझे आमन्त्रण पत्र भेजा था। उन दिनों मैं ‘टाइफाइड’ रोग से ग्रस्त था। लगभग दस दिन मैं उपचाराधीन रहा। बीमारी हटने का नाम नहीं ले रही थी। विवाह की निश्चित तिथि तक मैं रोग-शय्या पर ही पड़ा था। अतः विवाह के शुभ अवसर पर उपस्थित न हो सका। विधि का विधान है कि कई बार मनुष्य चाहते हुए भी कुछ करने में विवश रहता है। विवाह में शामिल होने में भी भाग्य ने रुकावट डाल दी।

पूज्य भाई साहिब का विवाह बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुआ होगा, इसमें दो मत नहीं हो सकते। बारात का जाना और खूब चहल-पहल की मैं कल्पना ही कर सकता हूँ। ऐसे शुभ अवसर यदा-कदा ही आते हैं। मेरी ओर से इस शुभ अवसर की आप को बहुत-बहुत बधाई हो।

पूज्य माता जी को चरण वन्दना। बहन स्नेहलता को नमस्ते।

आपका मित्र,
हर्ष देव।

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प्रश्न 32.
मान लो आपका नाम सुखदेव है और आप 201, मॉडल टाऊन, लुधियाना में रहते हैं। आपके मित्र युद्धवीर की माता जी का अचानक निधन हो गया है। उसको एक पत्र लिखो जिसमें उनकी मृत्यु पर शोक प्रकट किया गया हो।
उत्तर :
201, मॉडल टाऊन,
लुधियाना।
20 मई, 20…..
प्रिय युद्धवीर,

अभी-अभी तुम्हारा पत्र मिला। पूज्य माता जी की मृत्यु की दुःखदायी खबर पाकर आँखों के आगे अन्धेरा-सा छा गया। पैरों तले से ज़मीन खिसक गई। बार-बार सोचता हूँ-कहीं यह स्वप्न तो नहीं। अभी कुछ दिन की तो बात है, जब मैं उन्हें कोलकाता मेल पर चढ़ा कर आया तो न कोई दुःख था न कष्ट। उनका हँसता हुआ चेहरा अभी तक मेरे सामने मंडरा रहा है। उनके आशीर्वाद कानों में गूंज रहे हैं। उनकी मधुर वाणी, समुद्र के समान गम्भीर और शान्त स्वभाव, सबके साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार सदा स्मरण रहेगा।

प्रिय मित्र, भाग्य रेखा मिटाई नहीं जा सकती। मनुष्य सोचता कुछ है, होता कुछ और ही है। ईश्वरीय कार्यों में कौन दखल दे सकता है। इसलिए धैर्य के सिवा और कोई चारा नहीं है। मेरी प्रार्थना है कि अब शोक को छोड़कर कर्त्तव्य की चिन्ता करो। रोने-धोने से कुछ नहीं बनेगा। इससे तो स्वास्थ्य ही बिगड़ता है। अनिल और नलिनी को सांत्वना दो। अन्त में मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि वह दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करे।

तुम्हारा अपना,
सुखदेव।

प्रश्न 33.
मान लो आप 101, मुहल्ला चरणजीत पुरा, जालन्धर के निवासी हैं। आपके मुहल्ले का डाकिया सुन्दर सिंह बहुत लापरवाह है। इसकी शिकायत पोस्टमास्टर को एक पत्र द्वारा करो।
उत्तर :
सेवा में,
पोस्टमास्टर,
मुख्य डाकघर,
जालन्धर।
महोदय,
निवेदन है कि हमारे मुहल्ले का डाकिया सुन्दर सिंह बहुत आलसी और लापरवाह है। वह ठीक समय पर पत्र नहीं पहुँचाता। कभी-कभी तो हमें पत्रों का उत्तर देने से भी वंचित रहना पड़ता है। इसके अतिरिक्त वह बच्चों के हाथ पत्र देकर चला जाता है। उसे वे इधरउधर फेंक देते हैं। कल ही रामनाथ का पत्र नाली में गिरा हुआ पाया गया। हमने उसे कई बार सावधान किया है पर वह आदत से मजबूर है।

अतः आप से विनम्र प्रार्थना है कि या तो उसे आगे के लिए समझा दें या कोई और डाकिया नियुक्त कर दें जिससे हमें और हानि न उठानी पड़े।

भवदीय,
दिनेश सिंह,
101, चरणजीत पुरा,
जालन्धर।
दिनांक : 15 फरवरी, 20….

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प्रश्न 34.
मान लो आप 20, मुहल्ला बेदियां, बंगा के निवासी हैं। आप नगरपालिका के स्वास्थ्य अधिकारी को एक पत्र लिखो जिसमें ठीक से सफ़ाई न करने के कारण अपने क्षेत्र के सफाई सेवादार की शिकायत करो।
उत्तर :
सेवा में,
स्वास्थ्य अधिकारी,
नगरपालिका,
बंगा।
महोदय,
हम आपका ध्यान एक आवश्यक बात की ओर दिलवाना अपना कर्त्तव्य समझते हैं। मेन रोड के दाहिने मोड़ के साथ लगे हुए बेदियां मुहल्ला का सफाई सेवादार मोहन लाल अपने कर्तव्य का पूरी तरह से पालन नहीं कर रहा है। बार-बार रोकने पर भी वह बाहर से लाई हुई गन्दगी को मकान नं0 70 की नुक्कड़ पर डाल देता है। सारे मुहल्ले का कूड़ाकर्कट भी वहीं फेंकता है, कई-कई दिन तक वहाँ कूड़ा-कर्कट पड़ा रहता है जिससे सड़ांध उत्पन्न हो जाती है। चलने-फिरने वालों को नाक बन्द करके जाना पड़ता है। दुर्गन्ध के अतिरिक्त (अलावा) 24 घण्टे मक्खी-मच्छरों के झुंड उस पर मंडराते हैं। नालियों का पानी खड़ा हो जाता है और चलने-फिरने में बाधा पड़ती है। रात के समय अन्धेरे में तो यह स्थान नरक बन जाता है। गन्दी वायु के कारण रोग फूटने का भय बना रहता है। हमने उसे कई बार समझाया, किन्तु उसके कानों पर जॅ तक नहीं रेंगती। उलटे गाली-गलोच पर उतर आता है। कृपा करके इस विषय में कोई पग उठायें।

भवदीय,
जसदेव सिंह,
20, मुहल्ला बेदियां,
बंगा।
दिनांक : 12 मार्च, 20….

प्रश्न 35.
मान लो आपका नाम रमा है। आप अपनी छोटी बहन पूजा को विद्या (पढ़ाई) के लाभ बताते हुए एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
20, माल रोड,
अमृतसर।
प्रिय बहन पूजा,
प्रेम भरी नमस्ते।
तीन दिन पहले मुझे माता जी का पत्र मिला, जिसमें लिखा था कि तुम्हारा मन पढ़ाई से उचट हो गया है। तुमने स्कूल जाना भी छोड़ दिया है। मुझे यह जानकर बहुत दुःख हुआ है। व्यक्ति को विद्या ही ज्ञान प्रदान करती है। यही उसकी उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। संक्षेप में मैं तुम्हें विद्या के कुछ लाभ लिख रही हूँ, इन्हें अपने दिल में उतार लेना।

  1. दुनिया की हर घटना की जानकारी पढ़ा-लिखा व्यक्ति ही प्राप्त कर सकता है। अनपढ़ तो कुएँ का मेंढक होता है।
  2. विद्या ही व्यक्ति की उन्नति के सभी मार्ग खोलती है। अनपढ़ तो जीवन भर भटकता रहता है। उसे कोई मार्ग नहीं सूझता।
  3. पढ़-लिखकर ही व्यक्ति समाज और देश की सेवा कर सकता है, क्योंकि समाज में फैली हुई कुरीतियाँ पढ़ा-लिखा ही दूर कर सकता है। देश की समस्याओं का समाधान अनपढ़ व्यक्ति नहीं कर सकता।
  4. फिर नारी जाति की जागृति के लिए आज की नारी का पढ़ा-लिखा होना परमावश्यक है। तभी वह देश की उन्नति में पुरुषों के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चल सकती है।

संक्षेप में अनपढ़ता अभिशाप है। विद्या ही ज्ञान का प्रकाश फैलाकर उसे सच्चा इन्सान बनाती है। अतः पक्का निश्चय करके पढ़ाई के लिए पूरी तरह डट जाओ। माता जी और पिता जी को चरण वन्दना। कुक्कू को प्यार। तुम्हारी बहन रमा।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

प्रश्न 36.
अपने मित्र को पत्र लिखिए जिसमें नव-वर्ष (नए साल) की बधाई दी गई हो।
उत्तर :
20, गांधी नगर,
पटियाला।
27 दिसम्बर, 20…
प्रिय बहन दीपा,
प्यार भरी नमस्ते।
परसों पुराना साल विदाई ले रहा है। दो दिन बाद नया वर्ष आरम्भ हो रहा है। नव वर्ष तुम्हारे लिए मंगलमय और शुभ हो, मैं यह हार्दिक कामना करता हूँ। प्रसन्नताओं से तुम्हारी झोली भरी रहे। उन्नति एवं सफलता तुम्हारा हर कदम चूमती रहे। सुख-शान्ति, समृद्धि तथा आरोग्यता के फूल हमेशा आपकी झोली में महकते रहें। यह मेरी नव वर्ष पर शुभ कामना है। माता जी और पिता जी को नमस्कार। मोहन और मीना को प्यार।

तुम्हारा प्रिय मित्र
अक्षय।

प्रश्न 37.
अपनी भूल के लिए क्षमा-याचना करते हुए अपने पिताजी को एक पत्र लिखें।
उत्तर :
छात्रावास
पंजाबी विश्वविद्यालय,
पटियाला
14 अगस्त, 20……….
आदरणीय पिताजी
सादर प्रणाम !
कल ही आपका कृपा-पत्र मिला। आपने प्रश्न किया है कि मेरे वार्षिक परीक्षा में इतने कम अंक आने का कारण क्या है ? पिता जी इस बार मेरी संगति कुछ बुरे लड़कों से हो गई थी। मुझे अध्यापक महोदय ने भी एक-दो बार चेतावनी दी पर मैंने ध्यान नहीं दिया। आपके पत्र ने मुझे सचेत कर दिया है।

मैं अपनी इस भूल के लिए आपसे क्षमा-याचना करता हूँ और आपको आश्वासन दिलाता हूँ कि भविष्य में ऐसी भूल कभी न करूँगा। अभी से परिश्रम में जुट जाऊँगा। आप कृपा कर मुझे कुछ परीक्षोपयोगी पुस्तकें अवश्य भेज दें।

आशा है कि आप मुझे क्षमा कर देंगे। मैं पुनः आपको वचन देता हूँ कि मैं आपकी इच्छानुसार अध्ययन करूँगा और परीक्षा में शानदार सफलता प्राप्त करूँगा।

आपका आज्ञाकारी पुत्र
ललित कपूर।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

प्रश्न 38.
मान लीजिए आपका नाम मनजीत है और आप आर्य कन्या हाई स्कूल, धूरी की छात्रा हैं। अपने स्कूल की मुख्याध्यापिका को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए जिसमें अपने द्वारा हुई गलती के लिए क्षमा याचना की गई हो।
उत्तर :
सेवा में,
मुख्याध्यापिका,
आर्य कन्या हाई स्कूल,
धूरी।
महोदया,

सविनय निवेदन यह है कि मैं आपके स्कूल की आठवीं कक्षा की विद्यार्थी हूँ। कल मध्यावकाश के समय हम कुछ लड़कियाँ कक्षा में ही खेल रही थीं कि अचानक मेरे हाथ से गेंद छूटने पर कक्षा की खिड़की की काँच में जा लगी और उससे दो काँच टूट गए। कक्षा-अध्यापक ने इस गलती के लिए मुझे डाँटा व अपने माता-पिता को बुला कर लाने के लिए कहा है। मेरी आपसे विनम्र प्रार्थना है कि कृपया आप इस बार मेरी गलती को माफ कर दें। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि आगे से भविष्य में ऐसी गलती दुबारा नहीं करूँगी।

आपकी आज्ञाकारिणी,
मनजीत।
कक्षा आठवीं-बी
रोल नं० 27.
तिथि 16 अप्रैल, 20…..

प्रश्न 39.
मान लीजिए आपका नाम पंकज है। आप प्रेम सभा हाई स्कूल के छात्र हैं। स्कूल में पीने के पानी की कमी की ओर ध्यान दिलाते हुए अपने स्कूल में मुख्याध्यापक को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।
उत्तर :
सेवा में
मुख्याध्यापक,
प्रेम सभा हाई स्कूल,
अमृतसर।
महोदय,

सविनय प्रार्थना है कि स्कूल में पीने के पानी की उचित व्यवस्था नहीं है। एक ही नल है, जो स्कूल के चार सौ विद्यार्थियों के लिए काफ़ी नहीं है। जब दोपहर के समय आधी छुट्टी होती है तो प्यास के कारण विद्यार्थी नल की ओर लपकते हैं। वहाँ इतनी भीड़ हो जाती है कि आधी छुट्टी का सारा समय पानी पीने की धक्कम-पेल में ही बीत जाता है। बहुत से विद्यार्थी फिर भी पानी प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं।

नये नल लगवाने की कृपा करें। गर्मियों के मौसम में तो हर विद्यार्थी पानी पीने की इच्छा रखता है।

आपका आज्ञाकारी शिष्य,
पंकज।
आठवीं-बी
रोल नं0 28
1 मार्च, 20….

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

प्रश्न 40.
अपने मित्र को पत्र लिखिए जिसमें किसी आँखों देखे मेले का वर्णन हो।
उत्तर :
परीक्षा भवन,
….. नगर,
15 अप्रैल, 20…..
प्रिय मित्र रमेश,
सप्रेम नमस्ते।
मुझे पिछले बुधवार को आपके पास आना था। पर मालूम हुआ कि वीरवार को अमृतसर में वैशाखी का मेला लगेगा, इसलिए मैंने अपने चार सहपाठियों के साथ मेला देखने का कार्यक्रम बना लिया। हम सभी साथी बुधवार को सवेरे ही घर से चलकर पहली बस में बैठकर अमृतसर पहुँच गए। वहाँ जाकर देखा कि जैसे पुरुषों और स्त्रियों का समूह-सा उमड़ आया हो। ज्यों-ज्यों दिन बढ़ता गया, मेले में आने वालों की संख्या बढ़ती गई। दरबार साहब में तो तिल धरने की भी जगह नहीं थी। चाहे पुलिस ने इस सम्बन्ध में कड़े प्रबन्ध कर रखे थे। फिर भी भीड़ के इस सैलाब को रोक पाना मुश्किल कार्य था।

मेले में एक स्थान पर नौजवानों की टोली ‘जट्टा आई वैशाखी’ की तान के साथ भंगड़ा डाल रही थी तो कहीं स्त्रियों का ‘गिद्दा’ चल रहा था। किसी दुकान पर गर्म-गर्म पकौड़े तले जा रहे थे तो कहीं पर गर्मागर्म जलेबियाँ तली जा रही थीं। कहीं झूले झूले जा रहे थे तो कहीं मदारी अपना खेल दिखाने में जुटे थे। अतः यह एक यादगारी मेला था जिसकी स्मृतियाँ मेरे मानस-पटल पर सदा बनी रहेंगी।

माता व पिता जी को मेरा प्रणाम कहना,
तुम्हारा मित्र,
हर्षदेव।

प्रश्न 41.
मान लो आपका नाम निर्मल कौर है और आप गुरु नानक कालोनी, तरनतारन में रहती हैं। अपनी सहेली यशवन्त को एक पत्र लिखो जिसमें यह वर्णन करो कि आपके स्कूल में 26 जनवरी का दिन कैसे मनाया गया।
उत्तर :
गुरु नानक कालोनी,
तरनतारन।
29 जनवरी, 20……..
प्यारी सहेली यशवन्त,
सत् श्री अकाल।
कई दिन से तुम्हारा पत्र नहीं मिला। क्या कारण है। मैं तुम्हें दो पत्र डाल चुकी हूँ पर उत्तर एक का भी नहीं मिला। कोई नाराज़गी तो नहीं ? अगर ऐसी-वैसी कोई बात हो तो क्षमा कर दें।

हाँ, इस बार हमारे स्कूल में 26 जनवरी/गणतंत्र दिवस का दिन बड़ी ही धूमधाम से मनाया गया। इसकी थोड़ी-सी झलक मैं पत्र द्वारा पेश कर रही हूँ। 26 जनवरी मनाने की तैयारियां एक महीना पहले शुरू कर दी गई थीं। स्कूल में सफेदी कर दी गई थी। लड़कियों को लेजियम की ट्रेनिंग देनी कई दिन पहले ही शुरू हो गई थी। ‘हमारे अमर शहीद’ एकांकी नाटक की रिहर्सल भी कई बार करवाई गई। निश्चित दिन को ठीक-सुबह सात बजे गणतंत्र दिवस का समारोह शुरू हो गया। सबसे पहले तिरंगा झण्डा फहराने की रस्म क्षेत्र के जाने-माने समाज सेवक सरदार महासिंह जी ने अदा की। इसके बाद स्कूल की छात्राओं ने रंगारंग कार्यक्रम पेश करने शुरू कर दिए। गिद्धा नाच ने सबका मन मोह लिया। इसके बाद देश-प्रेम के गीत गाए गए। मैंने भी एक गीत गाया था। मैंने लेजियम की टीम में भी भाग लिया।

इसके बाद एकांकी ‘हमारे अमर शहीद’ का अभिनय हुआ। इसके हर सीन पर तालियाँ बजती थीं। समारोह के अन्त में प्रधान महोदय और हमारी बड़ी बहन जी ने भाषण दिये, जिनमें देश भक्ति की प्रेरणा थी।

गणतंत्र दिवस का यह समारोह मुझे हमेशा याद रहेगा। क्योंकि मुझे इसमें दो खूबसूरत इनाम मिले हैं। पूज्य माता जी और भाभी को सत् श्री अकाल। अक्षत और गुड्डी को प्यार देना। इस बार पत्र का उत्तर ज़रूर देना।

तुम्हारी सहेली
निर्मल कौर।

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प्रश्न 42.
खोई हुई वस्तु लौटाने के लिए आभार प्रदर्शित करते हुए अपरिचित को पत्र लिखें।
उत्तर :
436, परेड ग्राउंड,
लुधियाना।
24 मार्च, 20…
आदरणीय श्री मेहता जी
सादर नमस्कार!
कल मुझे डाक द्वारा अपनी खोई हुई पुस्तक प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता का अनुभव हुआ। यह पुस्तक मैं बस में भूल गया था। आपने यह पुस्तक लौटाकर बड़ा उपकार किया। यदि इस पुस्तक के ऊपर मेरा पता न लिखा होता तो इसे प्राप्त करना संभव न होता। यह पुस्तक मेरे लिए बड़ी उपयोगी है। यह पुस्तक मुझे इसलिए भी प्रिय है, क्योंकि यह मुझे जन्मदिवस पर एक मित्र द्वारा भेंट के रूप में दी गई थी।

आपने इस पुस्तक को भेजने के लिए जो कष्ट किया है, उसके लिए मैं आपके प्रति आभार प्रदर्शित करता हूँ। पुस्तक भेजने के लिए आपने जो डाक-व्यय किया है, उसने मुझे और भी उपकृत कर दिया है।

मेरे योग्य कोई सेवा हो तो लिखें।
भवदीय
आकाश चौधरी।

प्रश्न 43.
मित्र के जन्मदिन पर उसे बधाई देते हुए पत्र लिखें।
उत्तर :
208, प्रेमनगर,
पटियाला।
25, अगस्त, 20……,
प्रिय राज,
सप्रेम नमस्ते।
कल आपका जन्मदिन है। मैं इस शुभ अवसर पर आपको हार्दिक बधाई देता हूँ। कामना करता हूँ कि यह नूतन वर्ष आपको सुख और समृद्धि देने वाला हो। शारीरिक आरोग्यता के साथ-साथ लक्ष्मी आप पर अपनी कृपा की वर्षा करती रहे।

अन्त में पुनः-पुन: मंगल कामना।
आपका अपना
राजेश।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

प्रश्न 44.
छुट्टी वाले दिन स्कूल के क्रीडाक्षेत्र (खेल के मैदान) में क्रिकेट मैच खेलने की अनुमति लेने के लिए प्रिंसिपल को प्रार्थना-पत्र लिखें।
उत्तर :
सेवा में,
मुख्याध्यापक,
आर्य उच्च विद्यालय,
राजपुरा।
विषय-क्रिकेट मैच खेलने की अनुमति हेतु।
महोदय,
हमारे विद्यालय, आर्य उच्च विद्यालय की क्रिकेट टीम का मैच, गुरुकुल विद्यालय, राजपुरा की क्रिकेट टीम के साथ रविवार, मई 2000 को होना निश्चित हुआ। हमारा प्रस्ताव है कि यह मैच हमारे विद्यालय के खेल मैदान में ही खेला जाए क्योंकि इससे हमारे विद्यालय का ही नाम होगा। हम यह विश्वास दिलाते हैं कि मैच के दौरान विद्यालय के किसी भी सामान को क्षति नहीं पहुंचेगी।

आशा है कि आप हमारी प्रार्थना स्वीकार करेंगे और शीघ्र स्वीकृति-पत्र देंगे।
भवदीय
मनोहर शर्मा,
कप्तान, क्रिकेट टीम।

प्रश्न 45.
अपने गाँव के सरपंच को अपने स्कूल के विकास में योगदान देने के लिए पत्र लिखें।
उत्तर :
सेवा में,
ग्राम पंचायत सरपंच महोदय,
गांव धनौला,
जिला संगरूर।
विषय-स्कूल के विकास में योगदान हेतु।
मान्यवर महोदय,
हमारे विद्यालय का ज़िले में ही नहीं बल्कि सारे प्रदेश में नाम है, परंतु यह बड़े दुःख की बात है कि विद्यालय में पहले जैसी वह सुंदरता नहीं रही, जो इसकी शान समझी जाती थी। इस संबंध में मेरे कुछ सुझाव हैं, जो मैं आपकी सेवा में निवेदन करना चाहता हूँ।

सबसे पहले विद्यालय की फुलवाड़ी और वाटिका की ओर ध्यान देना चाहिए, जो बिना माली के मुरझा गई है। फूल-पौधे डंठल बन गए हैं। इसके लिए एक अच्छे माली का होना अत्यंत आवश्यक है। दूसरे मुख्य द्वार से लेकर विद्यालय के हॉल तक मार्ग के दोनों ओर सुंदर रंग-बिरंगे फूल लगाए जाएँ।

इसके अतिरिक्त विद्यालय के समस्त भवनों में हर छः मास के पश्चात् सफ़ेदी कराई जानी चाहिए। प्रत्येक कमरे की हर रोज़ सफ़ाई होनी चाहिए। विद्यालय का सफाई कर्मचारी इधर-उधर कूड़े के ढेर लगाए रखता है। ये बहुत ही बुरे लगते हैं। सफाई कर्मचारी को कड़ी चेतावनी दी जाए कि वह विद्यालय का सारा कूड़ा-कर्कट बाहर ले जाकर फेंकें। छात्रों को भी निर्देश हो कि वे फलों आदि के छिलके और रद्दी कागज़ कूड़ादानों में ही फैंकें।

विद्यालय का क्रीडा क्षेत्र सुधारा जाए। इसके चारों ओर दीवार खींची जानी चाहिए ताकि कोई पशु या बाहर के लोग उसमें न आ सकें। इसके अतिरिक्त विद्यालय के नलों पर पक्की ईंटों के फर्श लगाए जाएँ, जिससे वहाँ कीचड़ आदि न हो सके।

PSEB 8th Class Hindi रचना पत्र लेखन (2nd Language)

भवदीय
मोहन लाल।
धनौला गांव,
जिला संगरूर।
2 मई, 20……।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विराम चिह्न (2nd Language)

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Grammar Viram Chinh विराम चिह्न Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi Grammar विराम चिह्न (2nd Language)

विराम चिह्न – बोलते समय हम सब कुछ एक ही गति से नहीं बोलते जाते। एक वाक्य के मध्य में कहीं – कहीं कुछ क्षणों के लिए रुकते हैं और इसी प्रकार वाक्य के समाप्त होने पर भी रुकना पड़ता है। इसी रुकने को ‘विराम’ कहते हैं। इसी विराम को प्रकट करने के लिए हम जिन चिह्नों को लिखते हैं, उन्हें विराम चिह्न कहते हैं।

विराम चिहन निम्नलिखित हैं –

  1. पूर्ण विराम ( । ) – वाक्य की पूर्ति की सूचना देने वाले चिह्न को पूर्ण विराम कहते हैं। जैसे – भारत एक शान्तिप्रिय देश है।
  2. अर्द्ध विराम ( ; ) – वाक्य की पूर्ण समाप्ति न होने पर भी जहाँ बीच में समाप्ति – सी लगे। अगले वाक्य से जोड़ने वाले अव्यय का अभाव हो, तब इसका प्रयोग होता है। जैसे – आजकल शिक्षा का उद्देश्य नौकरी है; इसलिए उसका वास्तविक महत्त्व जाता रहा है।
  3. अल्प विराम ( , ) – पढ़ते समय जहाँ थोड़ी देर ठहरना हो, वहाँ अल्प विराम ( , ) लगाते हैं। जैसे – लोकमान्य तिलक, मालवीय, महात्मा गाँधी आदि महान् नेता थे।
  4. अपूर्ण विराम ( – ) – आगे जाने वाली बात के लिए पहले वाक्य से संकेत करना हो तो इसका निर्देशक वाक्य के साथ प्रयोग होता है। जैसे – निम्नलिखित प्रश्नों में से किन्हीं चार का उत्तर दीजिए :
  5. प्रश्न सूचक ( ? ) – वाक्य को प्रश्नवाचक सूचित करने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे – क्या मूर्ख को समझाना सरल है ?
  6. विस्मयादिबोधक ( ! ) – मानसिक आवेगों को प्रकट करने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे – हाय ! मैं मारा गया। उफ! इतनी पीड़ा।
  7. निर्देशक ( – ) – किसी शब्द के भाव को साफ – साफ स्पष्ट करने के लिए उसके आगे लगाया जाता है। जैसे – लाला लाजपतराय – पंजाब केसरी ने अंग्रेजी साम्राज्य की जड़ें हिला दी थीं। यथा, जैसे आदि शब्द के बाद भी इसका प्रयोग होता है।
  8. संयोजक ( – ) – यह समस्त पदों के बीच लगकर समास की सूचना देता है। जैसे – माता – पिता, सुख – दुःख।।
  9. कोष्ठक चिह्न ( ) – किसी बात के स्पष्टीकरण के लिए उसका अर्थ वाक्य का अंग न बनाते हुए उसे कोष्ठक ( ) लिखा जाता है। जैसे – 30 जनवरी हमारे राष्ट्रपिता (महात्मा गांधी) की बलिदान तिथि है।
  10. उद्धरण चिह्न ( “” ) – जब किसी वक्ता या लेख की उक्ति को ज्यों का त्यों उद्धत करना हो। जैसे – लाला लाजपत राय ने कहा था, “मेरे शरीर पर पड़ी एक – एक लाठी ब्रिटिश साम्राज्य के कफ़न में कील का काम देगी।”
  11. लाघव चिहन ( ० ) – किसी शब्द को संक्षेप में लिखने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे – पं० नेहरू। ला० लाजपत राय। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद।
  12. सम्बोधन चिह्न ( ! ) – किसी को बुलाने या पुकारने में इसका प्रयोग होता है। जैसे – हे ईश्वर! हम पर दया करो।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विराम चिह्न (2nd Language)

उदाहरण

प्रश्न 1.
विराम चिह्न लगाकर लिखो:

प्रश्न 1.
बुढ़िया बोली महाराज मैंने सुना है कि आप पारस हैं
उत्तर :
बुढ़िया बोली, “महाराज ! मैंने सुना है कि आप पारस हैं।”

प्रश्न 2.
सड़कों पर इधर – उधर कूड़ा कर्कट न फेंकें एक तरफ रखे हुए कूड़ेदानों में डालें
उत्तर :
सड़कों पर इधर – उधर कूड़ा कर्कट न फेंकें; एक तरफ रखे हुए कूड़ेदानों में डालें।

प्रश्न 3.
बेटी क्या बात है इतनी अधीर क्यों हो
उत्तर :
‘बेटी ! क्या बात है इतनी अधीर क्यों हो ?’

प्रश्न 4.
वाह क्या मोतियों से अक्षर हैं कलम तोड़ दी है
उत्तर :
वाह ! क्या मोतियों से अक्षर हैं, कलम तोड़ दी है।

प्रश्न 5.
तम भी शिवाजी की तरह बद्ध हो उसने उत्तर दिया
उत्तर :
“तुम भी शिवाजी की तरह बुद्ध हो,” उसने उत्तर दिया।

प्रश्न 6.
अजी आप तो बात ऐसे कर रहे हैं जैसे हम बिना टिकट सफ़र कर रहे हैं
उत्तर :
अजी ! आप तो बात ऐसे कर रहे हैं, जैसे हम बिना टिकट सफ़र कर रहे हैं।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विराम चिह्न (2nd Language)

प्रश्न 7.
विजय ने पूछा रामू चिन्ता में क्यों डूबे हो
उत्तर :
विजय ने पूछा, “रामू ! चिंता में क्यों डूबे हो ?”

प्रश्न 8.
राजदूत ने कहा महाराज हमारे सम्राट ने एक उपहार और भी आपके लिए भेजा है
उत्तर :
राजदूत ने कहा, “महाराज ! हमारे सम्राट ने एक उपहार और भी आपके लिए भेजा है।”

प्रश्न 9.
मैंने उसे इकन्नी दी बालक ने उत्साह से कहा अहा इकन्नी
उत्तर :
मैंने उसे इकन्नी दी। बालक ने उत्साह से कहा, “अहा ! इकन्नी !”

प्रश्न 10.
मैंने घृणा और आश्चर्य से देखा सचमुच उसके पैरों में बेड़ी थी
उत्तर :
मैंने घृणा और आश्चर्य से देखा, सचमुच उसके पैरों में बेड़ी थी।

प्रश्न 11.
मैंने मन ही मन में कहा हे भगवान् पेट के लिए बाप भीख मँगवाने के लिए बेटे के पैरों में बेड़ी भी डाल सकता है
उत्तर :
मैंने मन – ही – मन में कहा, “हे भगवान् ! पेट के लिए, बाप भीख मंगवाने के लिए बेटे के पैरों में बेड़ी भी डाल सकता है।”

प्रश्न 12.
बूढ़े ने कहा दाता जुग जुग जियो
उत्तर :
बूढ़े ने कहा, “दाता जुग जुग जियो।”

प्रश्न 13.
मैंने पूछा उसका पता नहीं लगा कितने दिन हुए
उत्तर :
मैंने पूछा, “उसका पता नहीं लगा। कितने दिन हुए।”

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विराम चिह्न (2nd Language)

प्रश्न 14.
गाड़ी मोटर तांगे भागे जा रहे थे
उत्तर :
गाड़ी, मोटर, तांगे भागे जा रहे थे।

प्रश्न 15.
उसने पुस्तकें कापियाँ तथा कुछ अन्य सामान खरीदा सामान को थैले में डालकर दुकानदार से पूछा कितने पैसे दूँ
उत्तर :
उसने पुस्तकें, कापियाँ तथा कुछ अन्य सामान खरीदा; सामान को थैले में डालकर दुकानदार से पूछा “कितने पैसे दूँ ?”

प्रश्न 16.
घुड़सवार ने कहा वह राही शिवा जी ही थे
उत्तर :
घुड़सवार ने कहा, “वह राही शिवा जी ही थे।”

प्रश्न 17.
रास्ते में उस्ताद साहब बोले मैं एक गिलास लस्सी पी लें।
उत्तर :
रास्ते में उस्ताद साहब बोले, “मैं एक गिलास लस्सी पी लूँ।”

प्रश्न 18.
उसकी पत्नी बोल उठी भैया अंदर आ जाओ बहुत भीग गए हो
उत्तर :
उसकी पत्नी बोल उठी, “भैया ! अंदर आ जाओ। बहुत भीग गए हो।”

प्रश्न 19.
दूत ने अपने शाह का आग्रह प्रकट किया उसको हर हालात में इसी पल जाना होगा
उत्तर :
दूत ने अपने शाह का आग्रह प्रकट किया, “उसको हर हालात में इसी पल जाना होगा।”

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विराम चिह्न (2nd Language)

प्रश्न 20.
अच्छा अबकी ज़रूर देंगे हामिद अल्ला कसम ले जा
उत्तर :
“अच्छा अबकी ज़रूर देंगे। हामिद, अल्ला कसम ले जा।”

प्रश्न 21.
रखे रहो क्या मेरे पास पैसे नहीं हैं
उत्तर :
“रखे रहो, क्या मेरे पास पैसे नहीं हैं ?”

प्रश्न 22.
मिट्टी ही के तो हैं गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ
उत्तर :
“मिट्टी ही के तो हैं। गिरे तो चकनाचूर हो जाएँ।”

प्रश्न 23.
मिठाई क्या बड़ी चीज़ है किताब में इसकी कितनी बुराइयाँ लिखी हैं
उत्तर :
“मिठाई क्या बड़ी चीज़ है ? किताब में इसकी कितनी बुराइयाँ लिखी हैं।”

प्रश्न 24.
हम से गुलाब जामुन ले जा हामिद
उत्तर :
“हम से गुलाब – जामुन ले जा, हामिद।”

प्रश्न 25.
बाद में बापू ने अपने साथियों से कहा यह बच्चा मेरा गुरु है
उत्तर :
बाद में बापू ने अपने साथियों से कहा, “यह बच्चा मेरा गुरु है।”

प्रश्न 26.
कुश ने कहा अयोध्या नरेश किस चिंता में डूबे हो
उत्तर :
कुश ने कहा, “अयोध्या नरेश ! किस चिंता में डूबे हो ?”

प्रश्न 27.
राजन ने कहा मनुष्य इतना बेसमझ क्यों हो रहा है पिता जी
उत्तर :
राजन ने कहा, “मनुष्य इतना बेसमझ क्यों हो रहा है ?” पिता जी।

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विराम चिह्न (2nd Language)

प्रश्न 28.
राही ने परेशान होकर पछा आप क्यों हँस रहे हैं
उत्तर :
राही ने परेशान होकर पूछा, “आप क्यों हँस रहे हैं ?”

प्रश्न 29.
नहीं बेटा मैंने जो पढ़ाया है वह झूठ नहीं है अधूरा अवश्य है
उत्तर :
नहीं बेटा, मैंने जो पढ़ाया है, वह झूठ नहीं है। अधूरा अवश्य है।

प्रश्न 30.
अहमदशाह का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा वह बोला क्यों कुफ्र बकता है
उत्तर :
अहमदशाह का चेहरा क्रोध से तमतमा उठा। वह बोला, “क्यों कुफ्र बकता

प्रश्न 31.
उसने कहा बाबू जी यह मेरा लड़का है
उत्तर :
उसने कहा, “बाबू जी ! यह मेरा लड़का है।”

प्रश्न 32.
मैंने कहा सूरदास यह तुमको कहाँ से मिल गया
उत्तर :
मैंने कहा, “सूरदास ! यह तुम को कहाँ से मिल गया ?”

प्रश्न 33.
वह मुस्कुराता हुआ बोला बाबू जी नौकरी खोजने गया था
उत्तर :
वह मुस्कुराता हुआ बोला, “बाबू जी ! नौकरी खोजने गया था।”

PSEB 8th Class Hindi Vyakaran विराम चिह्न (2nd Language)

प्रश्न 34.
तिवारी बोले तो क्या जो साइकिल चलाते हैं वे किसी की बात नहीं सुनते हैं बड़ी ज़रूरी बात है ज़रा उतर जाओ
उत्तर :
तिवारी बोले, “तो क्या जो साइकिल चलाते हैं, वे किसी की बात सुनते हैं ? बड़ी ज़रूरी बात है, ज़रा उतर जाओ।”

प्रश्न 35.
राजन ने पूछा पिताजी इस प्रदूषण को दूर करने के लिए हमें क्या करना चाहिए
उत्तर :
राजन ने पूछा, “पिता जी, इस प्रदूषण को दूर करने के लिए हमें क्या करना चाहिए ?”

प्रश्न 36.
ओ शरारती वहां इस तरह की फिल्में नहीं होती
उत्तर :
ओ, शरारती! वहां इस तरह की फिल्में नहीं होती।