PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां

SST Guide for Class 10 PSEB प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Textbook Questions and Answers

I. नीचे दिये गये प्रत्येक प्रश्न का एक शब्द या एक वाक्य में उत्तर दीजिए

(अ) प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 1.
देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों के नाम व मात्रा बताइए।
उत्तर-

  1. देश में मौजूद विदेशी वनस्पति जातियों को बोरिअल (Boreal) और पेलियो-उष्ण खण्डीय (PaleoTropical) के नाम से पुकारते हैं।
  2. भारत की वनस्पति में विदेशी वनस्पति की मात्रा 40% है।

प्रश्न 2.
‘बंगाल का डर’ किस वनस्पति को कहा जाता है?
उत्तर-
जल हायसिंथ (Water-Hyacinth) नामक पौधे को ‘बंगाल का डर’ (Terror of Bengal) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
देश में वन भूमि का प्रतिशत कितना है।
उत्तर-
हमारे देश के कुल वन क्षेत्र का 57% भाग प्रायद्वीपीय पठार और इसके साथ लगी पर्वत श्रृंखलाओं में फैला

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प्रश्न 4.
देश के सबसे कम और सबसे अधिक वन क्षेत्रफल वाले राज्यों का नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में सबसे कम वन क्षेत्रफल पंजाब में और सबसे अधिक वन क्षेत्रफल त्रिपुरा में है।

प्रश्न 5.
राज्य वन (State Forests) किसको कहते हैं?
उत्तर-
राज्य वन (State Forests) वे वन हैं जिन पर किसी राज्य सरकार का एकाधिकार होता है।

प्रश्न 6.
उष्ण सदाबहार वनस्पति के वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वनस्पति क्षेत्र में पाये जाने वाले वृक्षों में महोगनी, बांस, रबड़, आम, मैचीलश और कदम्ब आदि मुख्य हैं।

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प्रश्न 7.
अर्द्ध-शुष्क पतझड़ी वनस्पति का विनाश कौन-कौन से तत्त्व करते हैं?
उत्तर-
अर्द्ध-शुष्क पतझड़ी वनस्पति के विनाश का मुख्य कारण कृषि क्षेत्र का विस्तार है।

प्रश्न 8.
शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पति के नाम बताओ।
उत्तर-
(i) शुष्क क्षेत्रों में मिलने वाली वनस्पति में मुख्यत: कीकर, बबूल, जण्ड, तमारिक्श, रामबांस, बेर, नीम, कैक्टस और मंजु घास आदि शामिल है।

प्रश्न 9.
ज्वारीय वनस्पति को दूसरे किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर-
ज्वारीय वनस्पति को मैंग्रोव, दलदली (Swamps), समुद्री किनारे वाली अथवा सुन्दर-वन (Sundervan) जैसे नामों से भी पुकारा जाता है।

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प्रश्न 10.
पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-
पूर्वी हिमालय क्षेत्र में 2500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर मिलने वाले वृक्षों में मुख्यतः सिलवर फर, पाईन, स्पूस, देवदार, नीला पाईन आदि शामिल हैं।

प्रश्न 11.
दक्षिणी पठार में पर्वतीय वनस्पति किन स्थानों पर पैदा होती है ?
उत्तर-
दक्षिणी पठार में पर्वतीय वनस्पति बस्तर, पंचमढ़ी, महाबलेश्वर, नीलगिरि, पलनी शिवराय और अन्नामलाई के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती है।

प्रश्न 12.
किन-किन वनस्पतियों से हमें औषधियां प्राप्त होती हैं?
उत्तर-
खैर, सिनकोना, नीम, सृपगम्पा झाड़ी, बहेड़ा, आंवला आदि वनस्पतियों से हमें औषधियां प्राप्त होती हैं।

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प्रश्न 13.
चमड़ा रंगने के लिए किन-किन वृक्षों से सामग्री प्राप्त की जाती है?
उत्तर-
चमड़ा रंगने के लिए मैंग्रोव कंच, गैम्बीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और कीकर के वृक्षों से सामग्री प्राप्त की जाती है।

(आ) जीव-जन्तु

प्रश्न 1.
जीव-जन्तु कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
जीव-जन्तु हज़ारों प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 2.
हाथी किस तरह के क्षेत्र में रहना पसन्द करता है?
उत्तर-
हाथी अधिक वर्षा और घने जंगल वाले क्षेत्र में रहना पसन्द करता है।

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प्रश्न 3.
भारत में हिरणों की कौन-कौन सी किस्में पाई जाती हैं?
उत्तर-
भारत में पाई जाने वाली हिरणों की जातियों में चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं।

प्रश्न 4.
देश में शेर किन स्थानों पर मिलते हैं?
उत्तर-
भारतीय शेर का प्राकृतिक निवास स्थान गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वन हैं।

प्रश्न 5.
हिमालय में मिलने वाले जीवों के नाम बताओ।
उत्तर-
हिमालय में जंगली भेड़, पहाड़ी बकरी, साकिन (एक लम्बे सींग वाली जंगली बकरी) तथा टैपीर आदि जीव-जन्तु पाये जाते हैं, जबकि उच्च पहाड़ी क्षेत्रों में पांडा तथा हिमतेंदुआ नामक जन्तु मिलते हैं।

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प्रश्न 6.
हमारे देश के राष्ट्रीय पशु व पक्षी का नाम बताओ।
उत्तर-
हमारे देश का राष्ट्रीय पशु बाघ और राष्ट्रीय पक्षी मोर है।

प्रश्न 7.
देश में किन जीवों के समाप्त हो जाने का डर है?
उत्तर-
भारत में बाघ, गैंडा, सोहन चिड़िया, सिंह आदि जीवों के विलुप्त होने का डर है।

(इ) मिट्टी

प्रश्न 1.
मिट्टी की परिभाषा बताइए।
उत्तर-
पृथ्वी के धरातल पर पाये जाने वाले हल्के, ढीले तथा असंगठित चट्टानी चूरे (शैल चूर्ण) तथा बारीक जीवांश के संयुक्त मिश्रण को मिट्टी अथवा मृदा कहा जाता है।

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प्रश्न 2.
मिट्टी कैसे बनती है?
उत्तर-
मिट्टी मौसमी क्रियाओं द्वारा चट्टानों की तोड़-फोड़ से बनती है।

प्रश्न 3.
मिट्टी के मूल तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
मिट्टी के मूल तत्त्व हैं-

  1. प्रारम्भिक चट्टान,
  2. जलवायु,
  3. क्षेत्रीय ढलान,
  4. प्राकृतिक वनस्पति और
  5. अवधि।

प्रश्न 4.
काली मिट्टी में कौन-कौन से रासायनिक तत्त्व पाये जाते हैं?
उत्तर-
काली मिट्टी में मुख्य रूप से लोहा, पोटाश, एल्यूमीनियम, चूना तथा मैग्नीशियम आदि तत्त्व पाये जाते हैं।

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प्रश्न 5.
लैटराइट मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
लैटराइट मिट्टी विन्ध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल की बेसाल्टिक पर्वत चोटियां, दक्षिणी महाराष्ट्र, कर्नाटक की पश्चिमी घाट की पहाड़ियां, केरल में मालाबार तथा शिलांग के पठार के उत्तर एवं पूर्वी भाग में पाई जाती हैं।

प्रश्न 6.
‘भूड़’ मिट्टी कहां पाई जाती है?
उत्तर-
पंजाब तथा हरियाणा के सीमावर्ती जिलों में।

प्रश्न 7.
खारी या नमकीन मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
खारी मिट्टी उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा तथा पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है।

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प्रश्न 8.
चाय उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी देश के किन भागों में मिलती है?
उत्तर-
चाय उत्पादन के लिए उपयुक्त मिट्टी असम, हिमाचल प्रदेश (लाहौल-स्पीति, किन्नौर), पश्चिमी बंगाल, उत्तराखण्ड तथा दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में पाई जाती है।

प्रश्न 9.
मिट्टी के कटाव से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
भौतिक तत्वों द्वारा धरातल की ऊपरी परत का हटा दिया जाना मिट्टी का कटाव कहलाता है।

प्रश्न 10.
मरुस्थल को बढ़ने से रोकने के लिए क्या-क्या उपाय किये जाते हैं?
उत्तर-
वृक्षों की कतारें लगाना तथा घास उगाना।

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II. प्रत्येक प्रश्न का संक्षिप्त उत्तर दीजिए

(अ) प्राकृतिक वनस्पति

प्रश्न 1.
दूसरे देशों से आयी वनस्पति से हमारे देश में किस प्रकार की समस्याएं बन गयी हैं? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारतीय वनस्पति का 40 प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है, जिन्हें बोरिअल तथा पेलियो-उष्ण खण्डीय जातियां कहा जाता है। इनमें से अधिकतर पौधे सजावट के लिए (डैकोरेटिव प्लांट) हैं। हमारे देश में आयी इस विदेशी वनस्पति से निम्नलिखित समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं —

  1. यहां के गर्म-शुष्क मौसम के कारण देश की नदियों, तालाबों, नहरों आदि में इन पौधों की संख्या इतनी अधिक बढ़ गई है कि इनको फलने-फूलने से रोक पाना असम्भव सा हो गया है।
  2. ये विदेशी पौधे स्थानीय लाभकारी वनस्पति के विकास में रुकावट बन गए हैं। ये उपयोगी भूमि को कम करने तथा खतरनाक रोगों को फैलाने में भी अपना प्रभाव दिखा रहे हैं।
  3. जल हयास्थि (Water-Hyacinth) पौधे के जल-स्रोतों में फैल जाने के कारण इसको ‘बंगाल का डर’ कहा जाता है। इसी प्रकार लेनटाना’ नामक पौधे ने देश के हरे-भरे चरागाहों तथा वनों में तेजी से फैलकर अपना प्रभाव जमा लिया है।
  4. पारथेनियम घास अथवा कांग्रेसी घास ने भी तेजी से देश के अन्दर फैलकर लोगों में सांस तथा त्वचा के रोगों में भारी मात्रा में वृद्धि की है।
  5. खाद्यान्नों की कमी के दौरान आयात किये गये गेहूँ के दानों के साथ आए अवांछनीय बीज भी तेजी से फैले हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए विदेशी दवाइयों पर काफ़ी धन व्यय होता है।

प्रश्न 2.
विदेशी पौधों से हमें क्या नुक्सान हो सकते हैं?
उत्तर-
विदेशी पौधों से हमें निम्नलिखित हानियां हो सकती हैं —

  1. हमारी स्थानीय लाभकारी वनस्पति नष्ट हो सकती है।
  2. विदेशी वनस्पति को नष्ट करने में हमारा बहुत-सा धन व्यय होगा।
  3. विदेशी वनस्पति से सांस तथा त्वचा सम्बन्धी खतरनाक रोग फैल सकते हैं।
  4. हमारे जल-भण्डार विदेशी वनस्पति से प्रदूषित हो सकते हैं।
  5. हमारी उपयोगी भूमि कम हो सकती है, चरागाहों में कमी आ सकती हैं तथा वन्य क्षेत्र नष्ट हो सकते हैं।

प्रश्न 3.
हमारी प्राकृतिक वनस्पति का असल में प्राकृतिक न रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
हमारी प्राकृतिक वनस्पति वास्तव में प्राकृतिक नहीं रही। यह केवल देश के कुछ ही भागों में दिखाई पड़ती है। अन्य भागों में इसका बहुत बड़ा भाग या तो नष्ट हो गया है या फिर नष्ट हो रहा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं —

  1. तेजी से बढ़ती हुई हमारी जनसंख्या
  2. परम्परागत कृषि विकास की प्रथा
  3. चरागाहों का विनाश या अति चराई
  4. ईंधन व इमारती लकड़ी के लिए वनों का अन्धाधुन्ध कटाव
  5. विदेशी पौधों में बढ़ती हुई संख्या।

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प्रश्न 4.
पतझड़ या मानसूनी वनस्पति पर संक्षेप में टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
वह वनस्पति जो ग्रीष्म ऋतु के शुरू होने से पहले अधिक वाष्पीकरण को रोकने के लिए अपने पत्ते गिरा देती है, पतझड़ या मानसून की वनस्पति कहलाती है। इस वनस्पति को वर्षा के आधार पर आई व आर्द्र-शुष्क दो उपभागों में बाँटा जा सकता है।

  1. आर्द्र पतझड़ वन-इस तरह की वनस्पति उन चार बड़े क्षेत्रों में पाई जाती है, जहाँ पर वार्षिक वर्षा 100 से 200 सें. मी. तक होती है।
    इन क्षेत्रों में पेड़ कम सघन होते हैं परन्तु इनकी ऊँचाई 30 मीटर तक पहुंच जाती है। साल, शीशम, सागौन, टीक, चन्दन, जामुन, अमलतास, हलदू, महुआ, शारबू, ऐबोनी, शहतूत इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं।
  2. शुष्क पतझड़ी वनस्पति-इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें. मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
    इसकी लम्बी पट्टी पंजाब से आरम्भ होकर दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों तक फैली हुई है। कीकर, बबूल, बरगद, हलदू यहां के मुख्य वृक्ष हैं।

प्रश्न 5.
पूर्वी हिमालय में किस प्रकार की वनस्पति मिलती है?
उत्तर-
पूर्वी हिमालय में 4000 किस्म के फूल और 250 किस्म की फर्न मिलती है। यहां की वनस्पति पर ऊँचाई के बढ़ने से तापमान और वर्षा में आए अन्तर का गहरा प्रभाव पड़ता है।

  1. यहां 1200 मीटर की ऊँचाई तक पतझड़ी वनस्पति के मिश्रित वृक्ष अधिक मिलते हैं।
  2. यहां 1200 से लेकर 2000 मीटर की ऊँचाई तक घने सदाबहार वन मिलते हैं। साल और मैंगनोलिया इन वनों के प्रमुख वृक्ष हैं। इनमें दालचीनी, अमूरा, चिनोली तथा दिलेनीआ के वृक्ष भी मिलते हैं।
  3. यहां पर 2000 से 2500 मीटर की ऊँचाई तक तापमान कम हो जाने के कारण शीतोष्ण प्रकार (Temperate type) की वनस्पति पाई जाती है। इसमें ओक, चेस्टनट, लॉरेल, बर्च, मैपल तथा ओलढर जैसे चौड़ी पत्ती वाले वृक्ष मिलते हैं।
  4. इस क्षेत्र में 2500 से लेकर 3500 मीटर तक तीखे पत्ते वाले कोणधारी तथा शंकुधारी वृक्ष दिखाई देते हैं। इनमें सिलवर फर, पाईन, स्यूस, देवदार, रोडोढेन्ढरोन, नीला पाईन जैसे कम ऊँचाई वाले वृक्ष पाए जाते हैं।
  5. यहां इससे अधिक ऊँचाई पर छोटी-छोटी प्राकृतिक घास तथा फूल आदि के पौधे ही उगते हैं।

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प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति किस प्रकार उद्योगों के लिए जीवन दान का कार्य करती है?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति अनेक प्रकार से उद्योगों का आधार है। वनों पर आधारित कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग निम्नलिखित हैं —

  1. दियासलाई उद्योग-वनों से प्राप्त नर्म प्रकार की लकड़ी दियासलाई बनाने के काम आती है।
  2. लाख उद्योग-लाख एक प्रकार के कीड़े से प्राप्त होती है। इसे रिकार्ड, बूट पॉलिश, बिजली का सामान आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है।
  3. कागज़ उद्योग-कागज़ उद्योग में बांस, सफेदा तथा कई प्रकार की घास प्रयोग की जाती है। बांस तराई प्रदेश में बहुत अधिक मिलता है।
  4. वार्निश तथा रंग-वार्निश तथा रंग गन्दे बिरोजे से तैयार होते हैं जो वनों से प्राप्त होता है।
  5. औषधि-निर्माण-वनों से प्राप्त कुछ वृक्षों से उपयोगी औषधियां भी बनाई जाती हैं। उदाहरण के लिए सिनकोना से कुनीन बनती है।
  6. अन्य उद्योग-वनों पर पैंसिल, डिब्बे बनाना, रबड़, तारपीन, चन्दन का तेल, फ़र्नीचर तथा खेलों का सामान बनाने के उद्योग भी आधारित हैं।

प्रश्न 7.
प्राकृतिक वनस्पति के अन्धाधुन्ध कटाव से होने वाली हानियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व है। परंतु पिछले कुछ वर्षों में प्राकृतिक वनस्पति की अन्धाधुन्ध कटाई की गई है। इस कटाई से हमें निम्नलिखित हानियां हुई हैं —

  1. प्राकृतिक वनस्पति की कटाई से वातावरण का सन्तुलन बिगड़ गया है।
  2. पहाड़ी ढलानों और मैदानी क्षेत्रों के वनस्पति विहीन होने के कारण बाढ़ व मृदा अपरदन की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  3. पंजाब के उत्तरी भागों में शिवालिक पर्वतमालाओं के निचले भाग में बहने वाले बरसाती नालों के क्षेत्रों में वनकटाव से भूमि कटाव की समस्या के कारण बंजर जमीन में वृद्धि हुई है।
  4. मैदानी क्षेत्रों का जल-स्तर भी प्रभावित हुआ है जिससे कृषि को सिंचाई की समस्या से जूझना पड़ रहा है।

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(आ) जीव-जन्तु

प्रश्न 1.
देश में जीव-जन्तुओं की देख-रेख के लिए कौन-कौन से कार्य किये जा रहे हैं?
उत्तर-

  1. 1972 में भारतीय वन्य जीवन सुरक्षा अधिनियम बनाया गया। इसके अन्तर्गत देश के विभिन्न भागों में 1,50,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र (देश का 2.7 प्रतिशत तथा कुल वन क्षेत्र का 12 प्रतिशत भाग) को राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य प्राणी अभ्यारण्य घोषित कर दिया गया।
  2. संकटापन्न (Near Extinction) वन्य जीवों पर विशेष ध्यान दिया जाने लगा है।
  3. पशु-पक्षियों की गणना का कार्य राष्ट्रीय स्तर पर आरम्भ किया गया है।
  4. देश के विभिन्न भागों में इस समय बाघों के 16 आरक्षित क्षेत्र हैं।
  5. असम में गैंडे के संरक्षण की एक विशेष योजना चलायी जा रही है।
    सच तो यह है कि देश में अब तक 18 जीव आरक्षित क्षेत्र (Biosphere Reserves) स्थापित किये जा चुके हैं। योजना के अधीन सबसे पहला जीव आरक्षण क्षेत्र नीलगिरि में बनाया गया था। इस योजना के अन्तर्गत प्रत्येक जन्तु का – संरक्षण अनिवार्य है। यह प्राकृतिक धरोहर (Natural heritage) भावी पीढ़ियों के लिए है।

(इ) मिट्टियां

प्रश्न 1.
मिट्टियों के जन्म में प्राथमिक चट्टानों का क्या योगदान है?
उत्तर-
देश में प्राथमिक चट्टानों में उत्तरी मैदानों की तहदार चट्टाने अथवा पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें आती हैं। इनमें विभिन्न प्रकार के खनिज होते हैं। इसलिए इनसे अच्छी किस्म की मिट्टी बनती है। प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करता है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में, जलवायु में रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव तथा ह्यूमस के कारण मृदा अति विकसित होती है। परन्तु राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। इसी तरह अधिक वर्षा तथा तेज़ पवनों वाले क्षेत्र में मिट्टी का कटाव अधिक होता है। परिणामस्वरूप उपजाऊपन कम हो जाता है।

प्रश्न 2.
मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाने के लिए क्या उपाय करने चाहिएं?
उत्तर-
मिट्टी बहुमूल्य संसाधन है। इसके संरक्षण तथा उपजाऊपन को बनाये रखने के लिए आज हमारी सबकी नैतिक ज़िम्मेदारी है।

  1. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में पवनों की गति को कम करने के लिए वृक्षों की कतारें लगाई जानी चाहिएं। साथ ही रेतीले टीलों पर घास उगाई जानी चाहिये।
  2. पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत, ढाल के विपरीत दिशा में मेड़ें (Contour Bending) बनानी तथा छोटे-छोटे जल भण्डार बनाये जाने चाहिये।
  3. मैदानी भागों में भूमि पर वनस्पति उगानी चाहिये।
  4. इसके अतिरिक्त, फसल-चक्र, ढाल के विपरीत खेतों को जोतना तथा गोबर की खाद का प्रयोग करना चाहिये। इससे मिट्टी के उपजाऊपन में वृद्धि की जा सकती है।

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प्रश्न 3.
पीट तथा दलदली मिट्टी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
पीट तथा दलदली मिट्टी केवल 1500 वर्ग कि० मी० के क्षेत्र में मिलती है। इसका विस्तार सुन्दरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण इसका रंग काला तथा स्वभाव तेजाबी होता है। इस रंग के कारण इसे केरल में ‘काली मिट्टी’ (Black Soil) के नाम से भी जाना जाता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण यह नीले रंग वाली मिट्टी भी बन जाती है।

प्रश्न 4.
मिट्टी का कटाव कितने प्रकार का होता है?
उत्तर-
धरातल के ऊपर मिलने वाली मिट्टी की सतह का भौतिक व गैर-भौतिक तत्त्वों द्वारा टूटना अथवा हटना मिट्टी का कटाव कहलाता है। यह कटाव तीन प्रकार का हो सकता है —

  1. सतहदार कटाव-इस तरह के कटाव में पवनों के तथा नदी जल के लम्बे समय तक बहने के बाद धरातल की ऊपरी सतह बह जाती है या उड़ाकर ले जाती है।
  2. नालीदार कटाव-मूसलाधार वर्षा के समय अधिक जल कम चौड़ाई वाली नालियों में बहने लगता है। इससे धरातल पर लम्बी-लम्बी खाइयां व खड्डे बन जाते हैं। इन्हें नालीदार कटाव कहते हैं।
  3. खड्डेदार कटाव-पवनें तथा जल धरातल के विशिष्ट स्थानों पर मिट्टी के उड़ने या धुलने के पश्चात् गहरे खड्डे बना देते हैं। धीरे-धीरे ये खड्डे बहुत बड़े हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
मिट्टी कटाव के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मिट्टी का कटाव मुख्य रूप से दो कारणों से होता है-भौतिक क्रियाओं द्वारा तथा मानव क्रियाओं द्वारा। आज के समय में मानव क्रियाओं से मिट्टियों के कटाव की प्रक्रिया बढ़ती जा रही है।
भौतिक तत्त्वों में उच्च तापमान, बर्फीले तूफान, तेज़ हवाएं, मूसलाधार वर्षा तथा तीव्र ढलानों की गणना होती है। ये मिट्टियों के कटाव के प्रमुख कारक हैं। मानवीय क्रियाओं में जंगलों की कटाई, पशुओं की बेरोकटोक चराई, स्थानांतरी कृषि की दोषपूर्ण पद्धति, खानों की खुदाई आदि तत्त्व आते हैं।

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III. निम्नलिखित का उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय वनस्पति के वर्गीकरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारतीय वनस्पति का कई आधारों पर वर्गीकरण किया जा सकता है। इनमें मुख्य आधार निम्नलिखित हैं —

  1. पहुंच के आधार पर इस दृष्टि से वन दो प्रकार के हैं-दुर्गम वन तथा अगम्य वम। देश में 18% वन क्षेत्र ऐसे हैं जोकि हिमालय की ऊंची ढलानों पर स्थित हैं। इस कारण यह मानव पहुंच से बाहर हैं अर्थात् अगम्य है। हम केवल 82% वन क्षेत्र का ही प्रयोग कर पाते हैं।
  2. पत्तियों के आधार पर-देश में कुल उपलब्ध वनों के 5% क्षेत्र केवल नुकीली पत्तियों वाले हैं। ये बहुमूल्य शंकुधारी वन हिमालय की ऊबड़-खाबड़ ढलानों पर स्थित होने के कारण लगभग अछूते ही रह जाते हैं। इसके विपरीत हम चौड़े पत्ती वाले साल व टीक जैसे 95% वनों का प्रयोग कर सकते हैं।
  3. प्रशासनिक अथवा प्रबन्ध के आधार पर वनों के प्रबन्धन को ध्यान में रखते हुए इन्हें तीन भागों में विभाजित किया गया है। इसके अनुसार 95% (717 लाख हेक्टेयर) वन क्षेत्र राज्य के अधीन हैं। इन पर राज्य सरकार का एकाधिकार होता है। दूसरे प्रकार के वन स्थानीय नगरपालिका अथवा जिला परिषद् की देख-रेख के अधीन होते हैं। ये सामूहिक वन भी कहलाते हैं। शेष वन क्षेत्र लोगों के निजी अधिकार (Private Forest) में आता है।
  4. वन कानून के आधार पर-वनों के कानूनी नियंत्रण तथा सुरक्षा की दृष्टि से वनों को तीन वर्गों में बांटा जाता है-सुरक्षित वन, संरक्षित वन तथा अवर्गीकृत वन। सुरक्षित वनों में 52% वन क्षेत्र आता है। इन्हें देश में भूमि कटाव को रोकने, वातावरण की सम्भाल तथा लकड़ी की पूर्ति के लिए सुरक्षित रखा गया है। इन वनों में पशुओं को चराना तथा लकड़ी काटना मना है। दूसरे 32% (233 लाख हेक्टेयर) वन संरक्षित वन क्षेत्र हैं। सरकारी कानून के अनुसार
    इन्हें नष्ट नहीं किया जा सकता। परन्तु यहां पर पशु चराना, लकड़ी काटना आदि सुविधाएं मिल जाती हैं। अवर्गीकृत वन 16% हैं। इनमें भी लोगों को सुविधाएं प्राप्त हैं।
  5. भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर-भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर देश की प्राकृतिक वनस्पति को निम्नलिखित खण्डों में विभाजित किया जा सकता है —
    1. उष्ण सदाबहार वनस्पति
    2. पतझड़ या मानसूनी वनस्पति
    3. शुष्क वनस्पति
    4. ज्वारीय या मैंग्रोव वनस्पति
    5. पर्वतीय वनस्पति।

प्रश्न 2.
देश में भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर प्राकृतिक वनस्पति का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-
भौगोलिक तत्त्वों के आधार पर भारत की वनस्पति को निम्नलिखित पाँच भागों में बांटा जा सकता है —

  1. उष्ण सदाबहार वन-इस प्रकार के वन मुख्य रूप से अधिक वर्षा (200 सें० मी० से अधिक) वाले भागों में मिलते हैं। इसलिए इन्हें बरसाती वन भी कहते हैं। ये वन अधिकतर पूर्वी हिमालय के तराई प्रदेश, पश्चिमी घाट, पश्चिमी अण्डमान, असम, बंगाल तथा उड़ीसा के कुछ भागों में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष महोगनी, ताड़, बांस, बैंत, रबड़, चपलांस, मैचीलश तथा कदम्ब हैं। .
  2. पतझड़ी अथवा मानसूनी वन-पतझड़ी या मानसूनी वन भारत के उन प्रदेशों में मिलते हैं जहां 100 से 200 सें. मी. तक वार्षिक वर्षा होती है। भारत में ये मुख्य रूप से हिमालय के निचले भाग, छोटा नागपुर, गंगा की घाटी, पश्चिमी घाट की पूर्वी ढलानों तथा तमिलनाडु क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन वनों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष सागवान, साल, शीशम, आम, चन्दन, महुआ, ऐबोनी, शहतूत तथा सेमल हैं। गर्मियों में ये वृक्ष अपनी पत्तियां गिरा देते हैं, इसलिए इन्हें पतझड़ी वन भी कहते हैं।
  3. मरुस्थलीय वन-इस प्रकार के वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहां वार्षिक वर्षा का मध्यमान 20 से 60 सें. मी० तक होता है। भारत में ये वन राजस्थान, पश्चिमी हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी पंजाब और गुजरात में पाए जाते हैं। इन वनों में रामबांस, खैर, पीपल और खजूर के वृक्ष प्रमुख हैं।
  4. ज्वारीय वन-ज्वारीय वन नदियों के डेल्टाओं में पाए जाते हैं। यहां की मिट्टी भी उपजाऊ होती है और पानी भी अधिक मात्रा में मिल जाता है। भारत में इस प्रकार के वन महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि के डेल्टाई प्रदेशों में मिलते हैं। यहां की वनस्पति को मैंग्रोव अथवा सुन्दर वन भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में ताड़, कैंस, नारियल आदि के वृक्ष भी मिलते हैं।
  5. पर्वतीय वन-इस प्रकार की वनस्पति हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों तथा दक्षिण में नीलगिरि की पहाड़ियों पर पायी जाती है। इस वनस्पति में वर्षा की मात्रा तथा ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ अन्तर आता है। कम ऊंचाई पर सदाबहार वन पाये जाते हैं, तो अधिक ऊंचाई पर केवल घास तथा कुछ फूलदार पौधे ही मिलते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां

प्रश्न 3.
प्राकृतिक बनस्पति के लाभों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से हमें कई प्रत्यक्ष तथा परोक्ष लाभ होते हैं। प्रत्यक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से होने वाले प्रत्यक्ष लाभों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. वनों से हमें कई प्रकार की लकड़ी प्राप्त होती है। जिसका प्रयोग इमारतें, फ़र्नीचर, लकड़ी-कोयला आदि बनाने में होता है। इसका प्रयोग ईंधन के रूप में भी होता है।
  2. खैर, सिनकोना, कुनीन, बहेड़ा व आंवले से कई प्रकार की औषधियां तैयार की जाती हैं।
  3. मैंग्रोव, कंच, गैम्बीअर, हरड़, बहेड़ा, आंवला और कीकर आदि के पत्ते, छिलके व फलों को सुखाकर चमड़ा रंगने का पदार्थ तैयार किया जाता है।
  4. पलाश व पीपल से लाख, शहतूत से रेशम, चंदन से तुंग व तेल और साल से धूपबत्ती व बिरोजा तैयार किया जाता है।

परोक्ष लाभ-प्राकृतिक वनस्पति से हमें निम्नलिखित परोक्ष लाभ होते हैं

  1. वन जलवायु पर नियन्त्रण रखते हैं। सघन वन गर्मियों में तापमान को बढ़ने से रोकते हैं तथा सर्दियों में तापमान को बढ़ा देते हैं।
  2. सघन वनस्पति की जड़ें बहते हुए पानी की गति को कम करने में सहायता करती हैं। इससे बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है। दूसरे जड़ों द्वारा रोका गया पानी भूमि के अन्दर समा लिए जाने से भूमिगत जल-स्तर (Water-table) ऊंचा उठ जाता है। वहीं दूसरी ओर धरातल पर पानी की मात्रा कम हो जाने से पानी नदियों में आसानी से बहता रहता है।
  3. वृक्षों की जड़ें मिट्टी की जकड़न को मज़बूत किए रहती हैं और मिट्टी के कटाव को रोकती हैं।
  4. वनस्पति के सूखकर गिरने से जीवांश के रूप में मिट्टी को हरी खाद मिलती है।
  5. हरी-भरी वनस्पति बहुत ही मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है। इससे आकर्षित होकर लोग सघन वन क्षेत्रों में यात्रा, शिकार तथा मानसिक शान्ति के लिए जाते हैं। कई विदेशी पर्यटक भी वन-क्षेत्रों में बने पर्यटन केन्द्रों पर आते हैं। इससे सरकार को विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  6. सघन वन अनेक उद्योगों के आधार हैं। इनमें से कागज़, लाख, दियासिलाई, रेशम, खेलों का सामान, प्लाईवुड, गोंद, बिरोज़ा आदि उद्योग प्रमुख हैं।

प्रश्न 4.
मिट्टी की बनावट किन-किन तत्त्वों पर निर्भर करती है?
उत्तर-
मिट्टी की बनावट निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है —

  1. प्रारम्भिक चट्टान-देश के उत्तरी मैदानों की मोड़दार चट्टानें भिन्न-भिन्न खनिजों की बनी होने के कारण अच्छी किस्म की मिट्टी प्रदान करती है। दूसरी ओर देश के पठारी भाग की लावा निर्मित चट्टानें ज़ोनल मिट्टियों को जन्म देती हैं। इनमें कई प्रकार के खनिज पदार्थ मिलते हैं जिसके कारण ये सभी मिट्टियां उपजाऊ होती हैं।
  2. जलवायु-प्राथमिक चट्टानों से बनने वाली मिट्टी का रंग, गठन, बनावट आदि इस बात पर निर्भर करती है कि चट्टानें कितने समय से तथा किस तरह की जलवायु द्वारा प्रभावित हो रही हैं। पश्चिमी बंगाल जैसे प्रदेश में जलवायु, रासायनिक क्रियाओं के प्रभाव व ह्यमस के कारण मृदा बहुत ही विकसित होती है। इसके विपरीत राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्र में वनस्पति के अभाव के कारण मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती है। इसी प्रकार अधिक वर्षा व तेज़ पवनों वाले क्षेत्रों में मिट्टी का कटाव अधिक होने से मिट्टी की ऊपजाऊ शक्ति कम हो जाती है।
  3. ढलान-जलवायु के अलावा क्षेत्रीय ढलान भी मृदा के विकास को प्रभावित करती है। देश के तीव्र ढलान वाले पहाड़ी क्षेत्रों में पानी के तेज बहाव तथा गुरुत्वाकर्षण के कारण मिट्टी खिसकती रहती है। यही कारण है कि पर्वतीय क्षेत्रों की ढलानों की बजाय गंगा, सिन्धु एवं ब्रह्मपुत्र जैसी नदियों की घाटियों में मिट्टी ज्यादा उपजाऊ होती है।
  4. प्राकृतिक वनस्पति-प्राकृतिक वनस्पति जैविक चूरे की पूर्ति करके मिट्टी का विकास करने वाला मुख्य तत्त्व है। परन्तु हमारे देश की अधिकतर भूमि कृषि के अधीन होने के कारण प्राकृतिक वनस्पति की कमी है। देश के लावे वाली मिट्टियों में व सुरक्षित वन क्षेत्र की मिट्टियों में 5-10% तक जैविक अंश मिलता है।
  5. अवधि-इन सभी तत्त्वों के अतिरिक्त मिट्टी के विकास में अवधि अर्थात् समय का भी अपना महत्त्व होता है। मिट्टियों में प्रत्येक वर्ष ह्यमस व जीवांश प्राप्त हो जाती है तथा लाखों वर्ष निर्विघ्न क्रिया द्वारा ही बढ़िया मिट्टी का निर्माण होता है।

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प्रश्न 5.
भारतीय मिट्टियों की किस्मों एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
भारत में कई प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं। इनके गुणों के आधार पर इन्हें निम्नलिखित वर्गों में बांटा जा सकता है —

  1. जलोढ़ मिट्टी (Alluvial Soil)-भारत में जलोढ़ मिट्टी उत्तरी मैदान, राजस्थान, गुजरात तथा दक्षिण के तटीय मैदानों में सामान्य रूप से मिलती है। इसमें रेत, गाद तथा मृत्तिका मिली होती है। जलोढ़ मिट्टी दो प्रकार की होती हैखादर तथा बांगर। जलोढ़ मिट्टियां सामान्यतः सबसे अधिक उपजाऊ होती हैं। इन मिट्टियों में पोटाश, फॉस्फोरस अम्ल तथा चूना पर्याप्त मात्रा में होता है। परन्तु इनमें नाइट्रोजन तथा जैविक पदार्थों की कमी होती है।
  2. काली अथवा रेगड़ मिट्टी (Black Soil)-इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। यह मिट्टी कपास की फसल के लिए बहुत लाभदायक है। अतः इसे कपास वाली मिट्टी भी कहा जाता है। इस मिट्टी का स्थानीय नाम ‘रेगड़’ है। यह मिट्टी दक्कन ट्रैप प्रदेश की प्रमुख मिट्टी है। यह पश्चिम में मुंबई से लेकर पूर्व में अमरकंटक पठार, उत्तर में गुना (मध्य प्रदेश) और दक्षिण में बेलगाम तक त्रिभुजाकार क्षेत्र में फैली हुई है। काली मिट्टी नमी को अधिक समय तक धारण कर सकती है। इस मृदा में लौह, पोटाश, चूना, एल्यूमीनियम तथा मैगनीशियम की मात्रा अधिक होती है। परन्तु नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा जीवांश की मात्रा कम होती है।
  3. लाल मिट्टी (Red Soil)-इस मिट्टी का लाल रंग लोहे के रवेदार तथा परिवर्तित चट्टानों में बदल जाने के कारण होता है। इसका विस्तार तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, दक्षिणी बिहार, झारखंड, पूर्वी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतीय राज्यों में हैं। लाल मिट्टी में नाइट्रोजन तथा चूने की कमी, परन्तु मैग्नीशियम, एल्यूमीनियम तथा लोहे की मात्रा अधिक होती है।
  4. लैटराइट मिट्टी (Laterite Soil)-इस मिट्टी में नाइट्रोजन, चूना तथा पोटाश की कमी होती है। इसमें लोहे तथा एल्यूमीनियम ऑक्साइड की मात्रा अधिक होने के कारण इसका स्वभाव तेज़ाबी हो जाता है। इसका विस्तार विन्ध्याचल, सतपुड़ा के साथ लगे मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल की बैसाल्टिक पर्वतीय चोटियों, दक्षिणी महाराष्ट्र तथा उत्तर-पूर्व में शिलांग के पठार के उत्तरी तथा पूर्वी भाग में है।
  5. मरुस्थलीय मिट्टी (Desert Soil)-इस मिट्टी का विस्तार पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर पूर्व में अरावली पर्वतों तक है। यह राजस्थान, दक्षिणी पंजाब व दक्षिणी हरियाणा में फैली हुई है। इसमें घुलनशील नमक की मात्रा अधिक होती है। परन्तु इसमें नाइट्रोजन तथा ह्यूमस की बहुत कमी होती है। इसमें 92% रेत व 8% चिकनी मिट्टी का अंश होता है। इसमें सिंचाई की सहायता से बाजरा, ज्वार, कपास, गेहूँ, सब्जियां आदि उगाई जा रही हैं।
  6. खारी व तेजाबी मिट्टी (Saline & Alkaline Soil)-यह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा व पंजाब के दक्षिणी भागों में छोटे-छोटे टुकड़ों में मिलती है। खारी मिट्टियों से सोडियम भरपूर मात्रा में मिलता है। तेज़ाबी मिट्टी में कैल्शियम व नाइट्रोजन की कमी होती है। इसी लवणीय मिट्टी को उत्तर प्रदेश में औसढ़’ या ‘रेह’, पंजाब में ‘कल्लर’ या ‘थुड़’ तथा अन्य भागों में ‘रक्कड़’ कार्ल और. ‘छोपां’ मिट्टी भी कहा जाता है।
  7. पीट एवं दलदली मिट्टी (Peat & Marshy Soil)-इसका विस्तार सुन्दरवन डेल्टा, उड़ीसा के तटवर्ती क्षेत्र, तमिलनाडु के दक्षिण-पूर्वी तटवर्ती भाग, मध्यवर्ती बिहार तथा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में है। इसका रंग जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण काला तथा तेजाबी स्वभाव वाला होता है। जैविक पदार्थों की अधिकता के कारण कहीं-कहीं इसका रंग नीला भी है।
  8. पर्वतीय मिट्टी (Mountain Soil)-इस मिट्टी में रेत, पत्थर तथा बजरी की मात्रा अधिक होती है। इसमें चूना कम लेकिन लोहे की मात्रा अधिक होती है। यह चाय की खेती के लिए अनुकूल होती है। इसका विस्तार असम, लद्दाख, लाहौल-स्पीति, किन्नौर, दार्जिलिंग, देहरादून, अल्मोड़ा, गढ़वाल व दक्षिण में नीलगिरि के पर्वतीय क्षेत्र में है।

प्रश्न 6.
मिट्टी का कटाव क्या होता है? इसके क्षेत्रीय प्रारूप का वर्णन कीजिए तथा मिट्टी संरक्षण के उपायों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
धरातल पर मिलने वाली 15 से 30 सें० मी० मोटी सतह का भौतिक व गैर-भौतिक तत्त्वों द्वारा अपने मूल स्थान से टूट जाना या हट जाना मिट्टी का कटाव कहलाता है।
क्षेत्रीय प्रारूप-मिट्टी के कटाव का देश के अग्रलिखित भागों पर प्रभाव पड़ा है —

  1. बाह्य हिमालय (शिवालिक) क्षेत्रों में प्राकृतिक वनस्पति का अत्यधिक कटाव हुआ है। इसने उपजाऊ भूमि को गारे (कीचड़) से लादकर कृषि विहीन कर दिया है।
  2. पंजाब के होशियारपुर, रोपड़ जिले, यमुना, चम्बल, माही व साबरमती नदियों के अपवाह क्षेत्र में नालियों व ‘चोअ’ ने वनस्पति की कमी के कारण भूमि को बंजर बना दिया है।
  3. दक्षिणी पंजाब, हरियाणा व पूर्वी राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश व उत्तर-पूर्वी गुजरात के शुष्क क्षेत्रों में पवनों के द्वारा कटाव हुआ है।
  4. देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में पश्चिमी बंगाल, समेत भारी वर्षा, बाढ़ व नदी-किनारों की कटाई से सैंकड़ों टन मिट्टी बंगाल की खाड़ी में चली जाती है।
  5. दक्षिण व दक्षिणी पूर्वी भारत में मिट्टी का कटाव तीव्र ढलानों, भारी वर्षा व कृषि की दोषपूर्ण पद्धति अपनाने से हुआ है। मिट्टी का संरक्षण-

मिट्टी के संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किये जा रहे हैं —

  1. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात में पवनों के वेग को कम करने के लिए वृक्षों की कतारें लगाई जा रही हैं।
  2. रेतीले टीलों पर घास उगाई जा रही है।
  3. पर्वतीय क्षेत्रों में सीढ़ीनुमा खेत, ढाल के विपरीत दिशा में मेडें बनाकर छोटे-छोटे जल भण्डार बनाये जाते हैं।
  4. मैदानी भागों में भूमि पर वनस्पति उगाकर, फसल चक्र, ढाल के विपरीत खेतों को जोतकर तथा गोबर की खाद प्रयोग करके मिट्टी का कटाव कम किया जा सकता है और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बढ़ाई जा सकती है।
  5. झारखण्ड सरकार ने छोटा नागपुर के पठारी भाग में स्थानान्तरी कृषि के लिए कठोर नियम बनाये हैं।

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IV. भारत के मानचित्र में निम्न को दर्शाएं:

  1. शुष्क वनस्पति क्षेत्र।
  2. मैंग्रोव वनस्पति क्षेत्र।
  3. काली एवं जलोढ़ मिट्टी क्षेत्र।

उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
भारत में कई प्रकार की वनस्पति पाए जाने का क्या कारण है?
उत्तर-
भारत की प्राकृतिक दशा, इसकी जलवायु और इसकी मिट्टी में भिन्नता के कारण यहां कई प्रकार की वनस्पति पाई जाती है।

प्रश्न 2.
उष्ण सदाबहार वन भारत के किन भागों में पाए जाते हैं?
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वन भारत के पश्चिमी तट, पश्चिमी घाट, असम, नागालैंड, त्रिपुरा और पश्चिमी बंगाल में पाए जाते हैं।

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प्रश्न 3.
मानसूनी वन भारत के किन भागों में पाए जाते हैं?
उत्तर-
मानसूनी वन महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, बिहार तथा उड़ीसा में पाये जाते हैं।

प्रश्न 4.
मानसूनी वनों में पाए जाने वाले चार मुख्यं वृक्षों के नाम बताएं।
उत्तर-
साल, सागवान, शीशम तथा ऐबोनी।

प्रश्न 5.
डैल्टाई वनों में पाए जाने वाले एक प्रमुख वृक्ष का नाम बताएं।
उत्तर-
सुन्दरी।

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प्रश्न 6.
फर्नीचर, समुद्री जहाज तथा रेलों के डिब्बों के लिए कौन-सी लकड़ी सबसे अच्छी रहती है?
उत्तर-
इनके लिए सागवान की लकड़ी सबसे अच्छी रहती है।

प्रश्न 7.
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वनों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता बताइए।
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन सदा हरित रहते हैं।

प्रश्न 8.
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाले वनों के व्यापारिक उपयोग में क्यों कठिनाई आती है?
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वाले वनों में एक साथ मिले हुए अनेक जातियों के वृक्ष पाए जाते हैं।

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प्रश्न 9.
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन किस जलवायु प्रदेश के विशिष्ट वन हैं?
उत्तर-
उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन मानसून प्रदेश के विशिष्ट वन हैं।

प्रश्न 10.
मानसूनी (उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती) वनों के कौन-कौन से दो उप वर्ग हैं?
उत्तर-
मानसूनी वनों के दो उप वर्ग हैं-

  1. आई पर्णपाती वन
  2. शुष्क पर्णपाती वन।

प्रश्न 11.
(i) मेनग्रोव के वृक्ष कहां पाये जाते हैं?
(ii) इनकी मुख्य विशेषता क्या है?
उत्तर-
(i) मेनग्रोव के वृक्ष समुद्र तट के साथ-साथ तथा नदियों के ज्वारीय क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
(ii) इन वृक्षों की विशेषता यह है कि ये खारे पानी तथा ताजे पानी दोनों में ही पनप सकते हैं।

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प्रश्न 12.
मरुस्थलों में वृक्षों की जड़ें लम्बी क्यों होती हैं?
उत्तर-
प्रकृति ने उन्हें लम्बी जड़ें इसलिए प्रदान की हैं ताकि ये गहराई से नमी प्राप्त कर सकें।

प्रश्न 13.
क्या कारण है कि.वनों से बाढ़ की भयंकरता कम हो जाती है?
उत्तर-
वनों की रोक के कारण बाढ़ का बहाव धीमा हो जाता है।

प्रश्न 14.
मरुस्थलीय मृदा के उपजाऊ होने पर भी इसमें कृषि कम होती है, क्यों?
उत्तर-
वर्षा की कमी के कारण इस मृदा में नाइट्रोजन तथा जीवांश का अभाव रहता है।

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प्रश्न 15.
जलोढ़ मृदा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जलोढ़ मृदा से हमारा अभिप्राय ऐसी मृदा से है जिसका निर्माण नदियों द्वारा होता है।

प्रश्न 16.
जलोढ़ मृदा के चार प्रकार कौन-से हैं?
उत्तर-
जलोढ़ मृदा के चार प्रकार हैं-बांगर मृदा, खादर मृदा, डेल्टाई मृदा और तटवर्ती जलोढ़ मृदा।

प्रश्न 17.
काली मृदा का कोई एक गुण बताओ।
उत्तर-
काली मृदा में नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है।

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प्रश्न 18.
काली मृदा किस उपज के लिए आदर्श मानी जाती है?
उत्तर-
कपास।

प्रश्न 19.
लैटराइट मृदा में किन तत्त्वों की मात्रा अधिक होती है?
उत्तर-
लैटराइट मृदा में लोहा और एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक होती है।

प्रश्न 20.
भारत में पाई जाने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति का कितने प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है?
उत्तर-
40%

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प्रश्न 21.
किस विदेशी वनस्पति ने लोगों में त्वचा तथा सांस सम्बन्धी रोगों में वृद्धि की है?
उत्तर-
पारथेनियम अथवा कांग्रेसी घास।

प्रश्न 22.
भारत में पहली बार वन नीति (राष्ट्रीय वन नीति) की घोषणा कब की गई थी?
उत्तर-
1951 में।

प्रश्न 23.
भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र कितना है?
उत्तर-
0.14 हेक्टेयर।

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प्रश्न 24.
किस केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र है?
उत्तर-
अण्दमान व निकोबार द्वीप समूह।

प्रश्न 25.
केन्द्रीय शासित प्रदेशों में सबसे कम वन क्षेत्र किस प्रदेश का है?
उत्तर-
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली का।

प्रश्न 26.
हम अपने कितने प्रतिशत वन क्षेत्र का प्रयोग कर पाते हैं?
उत्तर-
82 प्रतिशत का।

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प्रश्न 27.
कीकर और बबूल किस प्रकार की वनस्पति के वृक्ष हैं?
उत्तर-
मरुस्थलीय अथवा शुष्क वनस्पति।

प्रश्न 28.
स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाला शाकाहारी पशु किसे माना जाता है?
उत्तर-
हाथी।

प्रश्न 29.
थार मरुस्थल का सामान्य पशु कौन-सा है?
उत्तर-
ऊंट।

प्रश्न 30.
भारत में जंगली गधे कहां पाये जाते हैं?
उत्तर-
कच्छ के रण में।

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प्रश्न 31.
भारत में एक सींग वाला गेंडा कहां मिलता है?
उत्तर-
असम तथा पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों में।

प्रश्न 32.
जंगली जीवों में सबसे शक्तिशाली पश कौन-सा है?
उत्तर-
शेर।

प्रश्न 33.
प्रसिद्ध बंगाली शेर अथवा बंगाल टाईगर का प्राकृतिक आवास कौन-सा है?
उत्तर-
गंगा डेल्टा के सुन्दर वन।

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प्रश्न 34.
गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वन किस विशिष्ट पशु का प्राकृतिक आवास है?
उत्तर-
भारतीय सिंह का।

प्रश्न 35.
हिमालय के उच्च क्षेत्रों में पाये जाने वाले दो जानवरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
लामचिता तथा हिम-तेन्दुआ।

प्रश्न 36.
भारत का सबसे पहला वन आरक्षित क्षेत्र कब और कहां बनाया गया था?
उत्तर-
भारत का पहला वन आरक्षित क्षेत्र 1986 में नीलगिरी में बनाया गया था।

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प्रश्न 37.
दरियाई जलोढ़ मिट्टी को कौन-कौन से दो उपभागों में बांटा जाता है?
उत्तर-
खादर तथा बांगर।

प्रश्न 38.
आग्नेय चट्टानों के टूटने से बनी मिट्टी क्या कहलाती है?
उत्तर-
काली मिट्टी।

प्रश्न 39.
केन्द्रीय मृदा रक्षा बोर्ड की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1953 में।

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प्रश्न 40.
किस प्रकार के वनों को बरसाती वन कहा जाता है?
उत्तर-
उष्ण सदाबहार वनों को।

प्रश्न 41.
भारत में संकटापन्न वन्य जीवों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में दो संकटापन्न वन्य जीव बाघ तथा गैंडा हैं।

प्रश्न 42.
(i) राष्ट्रीय उद्यान किसे कहते हैं ?
(ii) इसके दो उदाहरण भारत से दीजिए।
उत्तर-
(i) राष्ट्रीय उद्यान से अभिप्राय उन सुरक्षित स्थलों से है जहां पर जानवरों को उनकी नस्लें सुरक्षित रखने के लिए रखा जाता है।
(ii) कार्बेट नेशनल पार्क तथा काजीरंगा नेशनल पार्क।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. फर्नीचर, समुद्री जहाज़ तथा रेल के डिब्बे बनाने के लिए ……………. की लकड़ी सबसे अच्छी रहती है।
  2. …………………………..वर्षा वन सदा हरे-भरे रहते हैं।
  3. भारत में पाई जाने वाली सम्पूर्ण वनस्पति जाति का ………….प्रतिशत भाग विदेशी जातियों का है।
  4. विदेशी वनस्पति की ……….. घास ने लोगों में त्वचा तथा सांस सम्बन्धी रोगों में वृद्धि की है।
  5. थार मरुस्थल का सामान्य पशु ……………….. है।
  6. भारत में जंगली गधे ………………… में पाए जाते हैं।
  7. जंगली जीवों में ……………………. सबसे शक्तिशाली पशु है।
  8. भारत का पहला वन आरक्षित क्षेत्र ……………… में बनाया गया।
  9. आग्नेय चट्टानों के टूटने से बनी मिट्टी …………….. मिट्टी कहलाती है।
  10. केन्द्रीय मृदा रक्षा बोर्ड की स्थापना ………………….. ई० में की गई।

उत्तर-

  1. सागवान,
  2. उष्ण कटिबंधीय,
  3. 40,
  4. कांग्रेसी,
  5. ऊंट,
  6. रण के कच्छ,
  7. शेर,
  8. नीलगिरी,
  9. काली,
  10. 1953

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डेल्टाई वनों में पाया जाने वाला मुख्य वृक्ष है —
(A) साल
(B) शीशम
(C) सुन्दरी
(D) सागवान।
उत्तर-
(C) सुन्दरी

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प्रश्न 2.
काली मृदा किस उपज के लिए आदर्श मानी जाती है?
(A) कपास
(B) गेहूं
(C) चावल
(D) गन्ना।
उत्तर-
(A) कपास

प्रश्न 3.
किस मृदा में लोहे तथा एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक होती है?
(A) काली मृदा
(B) लैटराइट मृदा
(C) मरूस्थलीय मृदा
(D) जलोढ़ मृदा।
उत्तर-
(B) लैटराइट मृदा

प्रश्न 4.
भारत में पहली बार वन नीति (राष्ट्रीय वन नीति) की घोषणा की गई.
(A) 1947 ई० में
(B) 1950 ई० में
(C) 1937 ई० में
(D) 1951 ई० में
उत्तर-
(D) 1951 ई० में

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 4 प्राकृतिक वनस्पति, जीव-जन्तु तथा मिट्टियां

प्रश्न 5.
भारत में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र है —
(A) 0.14 हेक्टेयर
(B) 1.4 हेक्टेयर
(C) 14.0 हेक्टेयर
(D) 4.1 हेक्टेयर।
उत्तर-
(A) 0.14 हेक्टेयर

प्रश्न 6.
किस केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे अधिक वन क्षेत्र है?
(A) चण्डीगढ़ में
(B) अण्डेमान तथा निकोबार द्वीप समूह में
(C) दादरा तथा नगर हवेली में
(D) पाण्डिचेरी (पुड्डूचेरी) में।
उत्तर-
(B) अण्डेमान तथा निकोबार द्वीप समूह में

प्रश्न 7.
निम्न केन्द्र शासित प्रदेश में सबसे कम वन क्षेत्र है —
(A) चण्डीगढ़
(B) लक्षद्वीप
(C) दिल्ली
(D) दमन-द्वीप।
उत्तर-
(C) दिल्ली

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प्रश्न 8.
स्तनधारियों में राजसी ठाठ-बाठ वाला शाकाहारी पशु माना जाता है —
(A) बन्दर
(B) हाथी
(C) लंगूर
(D) भैंस।
उत्तर-
(B) हाथी

प्रश्न 9.
भारत में एक सींग वाला गेंडा मिलता है —
(A) तमिलनाडु में
(B) असम तथा उत्तर प्रदेश में ।
(C) असम तथा पश्चिमी बंगाल में
(D) उत्तराखण्ड तथा उत्तर प्रदेश में।
उत्तर-
(C) असम तथा पश्चिमी बंगाल में

प्रश्न 10.
भारत में पहला वन आरक्षित क्षेत्र बनाया गया
(A) 1986 ई० में
(B) 1976 ई० में
(C) 1971 ई० में
(D) 1981 ई० में।
उत्तर-
(A) 1986 ई० में

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं.

  1. सुंदरवन का जीव आरक्षित क्षेत्र मध्य प्रदेश में स्थित है।
  2. राष्ट्रीय वन नीति 1951 के अनुसार देश के कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई (33.3 प्रतिशत) भाग पर वन होने चाहिए।
  3. बबूल, कीकर आदि वृक्ष आर्द्र पतझड़ी वनों के वृक्ष हैं।
  4. सघन वन गर्मियों में तापमान बढ़ने से रोकते हैं।
  5. पर्वतीय मिट्टी चाय उत्पादन के अनुकूल होती है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. जल हायसिंध (Water-Hyacinth) — सुन्दर वन
  2. भारत में सबसे अधिक वन क्षेत्रफल — पंजाब तथा हरियाणा
  3. ज्वारीय वनस्पति — बंगाल का डर
  4. भूड़ मिट्टी — त्रिपुरा।

उत्तर-

  1.  जल हायसिंध (Water-Hyacinth) — बंगाल का डर,
  2. भारत में सबसे अधिक वन क्षेत्रफल — त्रिपुरा,
  3. ज्वारीय वनस्पति — सुन्दर वन,
  4. भूड़ मिट्टी — पंजाब तथा हरियाणा।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शुष्क पतझड़ी वनस्पति पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
इस प्रकार की वनस्पति 50 से 100 सें० मी० से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है।
क्षेत्र-इसकी एक लम्बी पट्टी पंजाब से लेकर हरियाणा, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, काठियावाड़, दक्षिण के पठार के मध्यवर्ती भाग के आस-पास के क्षेत्रों में फैली हुई है।
प्रमुख वृक्ष-इस वनस्पति में शीशम या टाहली, कीकर, बबूल, बरगद, हलदू जैसे वृक्ष प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसमें चन्दन, महुआ, सीरस तथा सागवान जैसे कीमती वृक्ष भी मिलते हैं। ये वृक्ष प्रायः गर्मियां शुरू होते ही अपने पत्ते गिरा देते हैं। घास-इन क्षेत्रों में दूर-दूर तक काँटेदार झाड़ियाँ व कई प्रकार की घास नजर आती हैं जोकि घास के मैदान की तरह नज़र आती है। इस घास को मंजु, कांस व सवाई कहा जाता है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणियां लिखिए
(i) वन्य जीवों का संरक्षण।
(ii) मिट्टी का संरक्षण।
उत्तर-
(i) वन्य जीवों का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार के वन्य जीव पाए जाते हैं। उनकी उचित देखभाल न होने से जीवों की कई एक जातियाँ या तो लुप्त हो गई हैं या लुप्त होने वाली हैं। इन जीवों के महत्त्व को देखते हुए अब इनकी सुरक्षा और संरक्षण के उपाय किये जा रहे हैं। नीलगिरि में भारत का पहला जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किया गया। यह कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल के सीमावती क्षेत्रों में फैला हुआ है। इसकी स्थापना 1986 में की गई थी। नीलगिरि के पश्चात् 1988 ई० में उत्तराखंड (वर्तमान) में नन्दा देवी का जीव आरक्षित क्षेत्र बनाया गया। उसी वर्ष मेघालय में तीसरा ऐसा ही क्षेत्र स्थापित किया गया। एक और जीव आरक्षित क्षेत्र अण्दमान तथा निकोबार द्वीप समूह में स्थापित किया गया है। इन जीव आरक्षित क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान, गुजरात तथा असम में भी जीव आरक्षित क्षेत्र स्थापित किए गए हैं।
(ii) मिट्टी का संरक्षण-भारत में विभिन्न प्रकार की मिट्टियां मिलती हैं। इन मिट्टियों में कई प्रकार की फ़सलें पैदा की जा सकती हैं। देश में पाई जाने वाली उपजाऊ मिट्टियों के कारण ही भारत कृषि उत्पादों में आत्म-निर्भर हो सका है। परन्तु मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि वैज्ञानिक तरीके अपनाए जाएं। हमें मिट्टियों का उचित संरक्षण करना चाहिए तथा उन्हें अपरदन से बचाना चाहिए। मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों के साथ-साथ जैविक खादों की सहायता भी लेनी चाहिए। अतः स्पष्ट है कि भूमि की उत्पादकता को निरन्तर बनाए रखने के लिए मिट्टी का संरक्षण बहुत आवश्यक है।

प्रश्न 3.
रेगड़ मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
रेगड मिट्टी तथा लैटराइट मिट्टी में निम्नलिखित अन्तर है

रेगड़ मिट्टी (काली मिट्टी) लैटराइट मिट्टी
(1) इस मिट्टी का निर्माण लावा के प्रवाह से हुआ है। (1) इस मिट्टी का निर्माण भारी वर्षा से होने वाली निक्षालन क्रिया से हुआ है।
(2) इसमें मिट्टी के पोषक तत्त्व काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी उपजाऊ होती है। (2) इस मिट्टी के अधिकतर पोषक तत्त्व वर्षा में बह जाते हैं। इसलिए यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है।
(3) यह मिट्टी कपास की उपज के लिए आदर्श होती है। (3) इस मिट्टी में केवल घास और झाड़ियां ही उग पाती हैं।
(4) इस मिट्टी में अधिक समय तक नमी. धारण करने की क्षमता होती है। (4) इस मिट्टी में अधिक समय तक नमी धारण करने की क्षमता नहीं होती है।

 

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प्रश्न 4.
हमारी मदा की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है। इसे दूर करने के लिए आप क्या सुझाव देंगे?
उत्तर-
भारत की मृदा की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं

  1. रासायनिक खादों का प्रयोग-हमारे देश के किसान अधिकतर गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं जिससे उपज कम होती है। रासायनिक खाद का प्रयोग करने से आवश्यक तत्त्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है। इसलिए किसानों को गोबर की खाद के साथ-साथ रासायनिक खादों का भी प्रयोग करना चाहिए।
  2. भूमि को खाली छोड़ना-यदि भूमि को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाए तो वह उर्वरा शक्ति में आई कमी को पूरा कर लेती है। इसलिए भूमि को कुछ समय के लिए खाली छोड़ देना चाहिए।
  3. फसलों की फेर-बदल-पौधे अपना भोजन भूमि से प्राप्त करते हैं। प्रत्येक पौधा भूमि से अलग-अलग प्रकार के तत्त्व प्राप्त करता है। यदि एक फसल को बार-बार बोया जाए तो भूमि में एक विशेष तत्त्व की कमी हो जाती है। इसलिए फसलों को अदल-बदल कर बोना चाहिए।

प्रश्न 5.
भारत में पाई जाने वाली काली तथा लाल मृदा की तुलना करो।
उत्तर-
भारत में पाई जाने वाली काली मृदा तथा लाल मृदा की तुलना अग्र प्रकार है

काली मृदा लाल मृदा
(1) यह मृदा लावा से बनी हुई चट्टानों के टूटने से बनती है। (1) यह मृदा उन चट्टानों के टूटने से बनती है जिनमें लोहे की मात्रा अधिक होती है।
(2) इस मृदा में पोटाशियम, मैग्नीशियम, लोहा और जीवांश मिले हुए होते हैं। (2) इस मृदा में मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, चूना और नाइट्रोजन नहीं होता। इसमें लोहे का ऑक्साइड अधिक मात्रा में होता है।
(3) काली मृदा पानी को बहुत देर तक सोख सकती है। अतः इसे अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। (3) लाल मृदा बहुत देर तक पानी नहीं सोख सकती। र इसमें वर्षा के समय ही कृषि हो सकती है।
(4) यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है। (4) यह मृदा अधिक उपजाऊ नहीं होती।

 

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प्रश्न 6.
जलोढ़ मृदा से क्या अभिप्राय है? यह भारत के किन-किन भागों में पाई जाती है? इस मृदा के गुण तथा लक्षणों का वर्णन करो।
उत्तर-
नदियां अपने साथ लाई हुई मृदा और मृत्तिका के बारीक कणों को मैदान में बिछा देती हैं। इस प्रकार से जो मृदा बनती है, उसे जलोढ़ मृदा कहते हैं। जलोढ़ मृदा बड़ी उपजाऊ होती है।
जलोढ़ मृदा के क्षेत्र-भारत में जलोढ़ मृदा गंगा-सतलुज के मैदान, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टाओं, ब्रह्मपुत्र की घाटी और पूर्वी तथा पश्चिमी तटीय मैदानों में पाई जाती है।
गुण तथा लक्षण-

  1. यह मृदा बहुत उपजाऊ होती है।
  2. यह मृदा कठोर नहीं होती। इसलिए इसमें आसानी से हल चलाया जा सकता है।
  3. वर्षा कम होने पर इस मृदा में नाइट्रोजन तथा जीवांश की मात्रा कम हो जाती है और पोटाश तथा फॉस्फोरस की मात्रा बढ़ जाती है और तब यह कृषि योग्य नहीं रहती।

प्रश्न 7.
जलोढ़ मृदा कितने प्रकार की होती है? वर्णन करो।
उत्तर-
जलोढ़ मृदा में वर्षा की भिन्नता के कारण क्षार, बालू और चीका की मात्रा अलग-अलग होती है। इसी आधार पर इसको चार भागों में बांटा जा सकता है

  1. बांगर मृदा-यह प्राचीन जलोढ़ मृदा है। जहां ऐसी मृदा पाई जाती है वहां बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। इसमें बालू और चीका की मात्रा लगभग बराबर होती है। इसमें कहीं-कहीं कंकड़ और चूने की डलियां भी मिलती हैं।
  2. खादर मृदा-इसे नवीन जलोढ़ भी कहते हैं। इस प्रकार की मृदा के क्षेत्र नदियों के समीप पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी प्रति वर्ष पहुंच जाता है जिससे नई जलोढ़ का जमाव होता रहता है।
  3. डैल्टाई मृदा-इसे नवीनतम कछारी मृदा भी कहते हैं। यह नदियों के डेल्टाओं के आस-पास पाई जाती है। इसमें चीका की मात्रा अधिक होती है।
  4. तटवर्ती जलोढ़ मिट्टी-इस प्रकार की मृदा का निर्माण तटों के साथ समुद्री लहरों के निक्षेप से प्राप्त चूरे से होता है।

प्रश्न 8.
वन्य प्राणियों की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य क्यों है?
उत्तर-
हमारे वनों में बहुत-से महत्त्वपूर्ण पशु-पक्षी पाए जाते हैं। परन्तु खेद की बात यह है कि पक्षियों और जानवरों की अनेक जातियां हमारे देश से लुप्त हो चुकी हैं। अतः वन्य प्राणियों की रक्षा करना हमारे लिए बहुत आवश्यक है। मनुष्य ने अपने व्यक्तिगत लाभ के लिए वनों को काटकर तथा जानवरों का शिकार करके दुःखदायी स्थिति उत्पन्न कर दी है। आज गैंडा, चीता, बन्दर, शेर और सारंग नामक पशु-पक्षी बहुत ही कम संख्या में मिलते हैं। इसलिए प्रत्येक नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह वन्य प्राणियों की रक्षा करे।

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प्रश्न 9.
किसान के लिए पशुधन/पशुपालन का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
हमारे देश में विशाल पशु धन पाया जाता है, जिन्हें किसान अपने खेतों पर पालते हैं। पशुओं से किसान को गोबर प्राप्त होता है, जो मृदा की उर्वरता को बनाए रखने में उसकी सहायता करता है। पहले किसान गोबर को ईंधन के रूप में प्रयोग करते थे, परन्तु अब प्रगतिशील किसान गोबर को ईंधन और खाद दोनों रूपों में प्रयोग करते हैं। खेत में गोबर को खाद के रूप में प्रयोग करने से पहले वे उससे गैस बनाते हैं जिस पर वे खाना बनाते हैं और रोशनी प्राप्त करते हैं। पशुओं की खालें बड़े पैमाने पर निर्यात की जाती हैं। पशुओं से उन्हें ऊन प्राप्त होती है। सच तो यह है कि पशुधन भारतीय किसान के लिए अतिरिक्त आय का साधन है।

प्रश्न 10.
मृदा के प्रमुख पांच उपयोग बताओ।
उत्तर-
मृदा एक अत्यन्त उपयोगी प्राकृतिक उपहार है। इससे हमें भिन्न-भिन्न उत्पाद प्राप्त होते हैं। इसके मुख्य पांच उपयोग निम्नलिखित हैं

  1. इससे गेहूं, चावल, बाजरा, ज्वार आदि अनाज प्राप्त होता है।
  2. इसमें पशुओं के लिए घास और चारा उगता है।
  3. इससे कपास, पटसन, सीसल आदि रेशेदार पदार्थ मिलते हैं।
  4. इससे हमें दालें मिलती हैं।
  5. इससे उपयोगी लकड़ी प्राप्त होती है।

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बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न
भारत में पाये जाने वाले वन्य प्राणियों का वर्णन करो।
उत्तर-
वनस्पति की भान्ति ही हमारे देश के जीव-जन्तुओं में भी बड़ी विविधता है। भारत में इनकी 81,000 जातियां पाई जाती हैं। देश के ताजे और खारे पानी में 2500 जातियों की मछलियां मिलती हैं। इसी प्रकार यहां पर पक्षियों की भी 2000 जातियां पाई जाती हैं। मुख्य रूप से भारत के वन्य प्राणियों का वर्णन इस प्रकार है

  1. हाथी-हाथी राजसी ठाठ-बाठ वाला पशु है। यह ऊष्ण आर्द्र वनों का पशु है। यह असम, केरल तथा कर्नाटक के जंगलों में पाया जाता है। इन स्थानों पर भारी वर्षा के कारण बहुत घने वन मिलते हैं।
  2. ऊँट-ऊँट गर्म तथा शुष्क मरुस्थलों में पाया जाता है।
  3. जंगली गधा-जंगली गधे कच्छ के रण में मिलते हैं।
  4. एक सींग वाला गैंडा-एक सींग वाले गैंडे असम और पश्चिमी बंगाल के उत्तरी भागों के दलदली क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
  5. बन्दर-भारत में बन्दरों की अनेक जातियां मिलती हैं। इनमें से लंगूर सामान्य रूप से पाया जाता है। पूंछ वाला बन्दर (मकाक) बड़ा ही विचित्र जीव है। इसके मुंह पर चारों ओर बाल उगे होते हैं जो एक प्रभामण्डल के समान दिखाई देते हैं।
  6. हिरण-भारत में हिरणों की अनेक जातियां पाई जाती हैं। इनमें चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा तथा सामान्य हिरण प्रमुख हैं। यहां हिरणों की कुछ अन्य जातियां भी मिलती हैं। इनमें कश्मीरी बारहसिंघा, दलदली मृग, चित्तीदार मृग, कस्तूरी मृग तथा मूषक मृग उल्लेखनीय हैं।
  7. शिकारी जन्तु–शिकारी जन्तुओं में भारतीय सिंह का विशिष्ट स्थान है। अफ्रीका के अतिरिक्त यह केवल भारत में ही मिलता है। इसका प्राकृतिक आवास गुजरात में सौराष्ट्र के गिर वनों में है। अन्य शिकारी पशुओं में शेर, तेंदुआ, लामचिता (क्लाउडेड लियोपार्ड) तथा हिम तेन्दुआ प्रमुख हैं।
  8. अन्य जीव-जन्तु-हिमालय की श्रृंखलाओं में भी अनेक प्रकार के जीव-जन्तु रहते हैं। इनमें जंगली भेडें तथा पहाड़ी बकरियां विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। भारतीय जन्तुओं में भारतीय मोर, भारतीय भैंसा तथा नील गाय प्रमुख हैं। भारत सरकार कुछ जातियों के जीव-जन्तुओं के संरक्षण के लिए विशेष प्रयत्न कर रही है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण

PSEB 10th Class Home Science Guide रेशों का वर्गीकरण Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
रेशों की लम्बाई के आधार पर उन्हें कौन-सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
अथवा
छोटे रेशे तथा लम्बे रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
रेशों को लम्बाई के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है

  1. छोटे रेशे या स्टेप्ल रेशे (Staple Fibre)-इन रेशों की लम्बाई छोटी होती है। इसकी लम्बाई इंचों या सेंटीमीटरों में मापी जाती है। साधारणतः 1/4″ से लेकर 18 इंच तक लम्बे होते हैं। सिल्क के अतिरिक्त सभी प्राकृतिक रेशे स्टेप्ल रेशे हैं।
  2. लम्बे रेशे/फिलामैंट (Filament)-इन रेशों की लम्बाई ज्यादा होती है। इसको मीटरों में मापा जाता है। सिल्क तथा कृत्रिम रेशे फिलामैंट रेशे होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे सिर्फ सिल्क ही हैं।

प्रश्न 3.
सैलूलोज रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
सैलूलोज रेशे कपड़े के रेशों या लकड़ी के गुद्दे को कृत्रिम रेशों से मिलाकर तैयार होते हैं। इनकी भिन्न-भिन्न किस्में हैं-जैसे कि विस्कोल क्यूपरामोनियम तथा नीटरो सैलूलोज।

प्रश्न 4.
(i) प्राकृतिक रेशे कहाँ-कहाँ से प्राप्त किये जाते हैं?
(ii) प्राकृतिक रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
(i) प्राकृतिक रेशे पौधों के तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन तथा कपास से प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त जानवरों के बालों से ऊन के रूप में तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है। कच्ची धातु या खनिज पदार्थ के रूप में ऐसबेसटास के रूप में मिलते हैं।
(ii) जूट, पटसन, कपास, रेशम आदि।

प्रश्न 5.
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को कौन-कौन सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को मुख्य चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  1. सैलूलोज के पुनः निर्माण से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे-यह रेशे लकड़ी के गुद्दे या कपास के छोटे रेशों को रसायन पदार्थों से मिलाकर बनाए जाते हैं।
  2. थर्मोप्लास्टिक रेशे (Thermoplastic Fibres)-गर्म होने से यह रेशे सड़ने के स्थान पर पिघल जाते हैं। इसलिये इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है। जैसे कि नाइलॉन, पौलिएस्टर तथा ऐसिटेट आदि।
  3. धातु से बने रेशे-गोटे तथा जरी के लिये प्रयोग किये जाने वाले रेशे सोना. चांदी, एल्यूमीनियम धातुओं से बनते हैं।
  4. गलास फाइबर/शीशे से बने रेशे-ये रेशे शीशे को पिघला कर बनते हैं।

प्रश्न 6.
थर्मोप्लास्टिक रेशों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कृत्रिम रेशे हैं अभिप्राय यह कि मनुष्य द्वारा बनाये हुए। यह रेशे गर्मी से सड़ने की अपेक्षा पिघल जाते हैं। इस कारण इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है।

प्रश्न 7.
थर्मोप्लास्टिक रेशों के चार उदाहरण दें।
उत्तर-
नाइलोन, टैरीलीन, पौलिएस्टर, ऐकरिलिक तथा ऐसिटेट थर्मोप्लास्टिक रेशों की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 8.
रेयॉन कितनो प्रकार की होती है तथा कौन-कौन सी?
उत्तर-
रेयॉन भी मनुष्य द्वारा तैयार किया रेशा है। परन्तु ये रेशे प्राकृतिक रेशों में जैसे कपास या पटसन या जूट के गुद्दे में रासायनिक पदार्थ मिलाकर तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 9.
धातु से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
गोटे तथा जरी के रेशे सोना, चांदी तथा एल्यूमीनियम धातुओं से प्राप्त किये जाते हैं। इन धातओं को पिघला कर बारीक रेशे तैयार किये जाते हैं। पर आजकल सोना, चाँदी, महँगी धातुएँ होने के कराण एल्यूमीनियम रेशे बनाकर उस पर सोने तथा चांदी की परत चढ़ाई जाती है।

प्रश्न 10.
प्रोटीन वाले रेशों के दो उदाहरण दो।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे प्रोटीन युक्त रेशे होते हैं जैसे कि जानवरों भेड़ों, ऊँट तथा खरगोशों के बालों से बनी ऊन प्रोटीन युक्त रेशों की उदाहरणें हैं। इसी प्रकार सिल्क के कीड़ों से तैयार हुए सिल्क के रेशे भी प्रोटीन वाले होते हैं।

प्रश्न 11.
मिश्रित रेशे कौन-से होते हैं? कोई चार उदाहरण दें।
उत्तर-
मिश्रित रेशे दो भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशे मिलाकर तैयार होते हैं, जैसे कपास तथा पटसन आदि से पौलिस्टर या टैरीलीन मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार होते हैं। इस प्रकार ऊन तथा एक्रिलिक रेशे मिलाकर कैशमिलोन तैयार की जाती है।

प्रश्न 12.
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे निम्नलिखित हैंलिनन-यह फलैक्स पौधे के तने से प्राप्त होती है। पटसन-यह जूट के पौधे के तने से प्राप्त होता है। रेमी-यह भी पौधे के तने से प्राप्त होता है। जूट-यह रेशा भी पौधे के तने से प्राप्त किया जाता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
(13) मूल गुणों के अलावा रेशों में कौन-कौन से और गुण हो सकते
उत्तर-
रेशों में उनके मूल गुणों के अतिरिक्त निम्नलिखित गुण भी होने आवश्यक हैं

  1. चमक (Lusture)
  2. पानी सोखने की क्षमता (Absorption of Water)
  3. चिपकना (Felting)
  4. आग पकड़ने की क्षमता (Flammability)
  5. संघनता (Density)
  6. ताप प्रतिरोधिकता (Resistence to heat)
  7. अम्ल तथा खारापन सहन करने की शक्ति (Resistence to acid and alkalies)
  8. बल न पड़ें (Resiliience)
  9. बलदार होना (Crimp) आदि।

प्रश्न 2.
(14) सूती रेशों को रेशों का सरताज क्यों कहा जाता है?
अथवा
सूती रेशों को सबसे अच्छा क्यों कहा जाता है?
उत्तर- सूती रेशे को रेशों का सरताज कहा जाता है क्योंकि इस रेशे में बहुत गुण होते हैं जैसे प्राकृतिक चमक का होना, मज़बूत रेशा तथा ताप का संचालक होने के साथसाथ इसमें पानी सोखने की क्षमता भी होती है। इस कारण ही ये कपड़े गर्मियों तथा सर्दियों में ठीक रहते हैं। इस रेशे के कपड़े चमड़ी के लिये आरामदायक होते हैं। इसको उबाला भी जा सकता है। इस कारण ही अस्पताल में पट्टी बनाने के लिये इसको प्रयोग किया जाता है। सूती रेशा इन गुणों के कारण ही रेशों का सरताज माना जाता है।

प्रश्न 3.
(15) कौन-से गुणों के कारण सूती कपड़ों को गर्मियों में पहना जाता है?
उत्तर-
सूती कपड़े ताप के संचालक तथा पानी सोखने की क्षमता रखते हैं जिससे ये शरीर का पसीना सोख लेते हैं। इस कारण ही इनको गर्मियों में पहना जाता है। इसके अतिरिक्त ताप के संचालक होने के कारण ताप इनमें से गुज़र जाता है, जो पसीना सूखने में मदद करते हैं। इन दोनों गुणों के कारण ये रेशे ठण्डे होते हैं तथा गर्मियों में सबसे आरामदायक रहते हैं। इसके अतिरिक्त हल्के क्षार तथा अम्लों का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता जिस कारण पसीने से खराब नहीं होते।

प्रश्न 4.
(16) सूती रेशों से बनाये कपड़ों की देखभाल कैसे की जाती है तथा यह कपड़ा कहाँ इस्तेमाल किया जाता है?
उत्तर-

  1. सूती रेशों के कपड़ों को उबाल कर भी धोया जा सकता है। पर रंगदार सूती कपड़ों को उबालना नहीं चाहिए तथा न ही तेज़ धूप में सुखाना चाहिए जबकि सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से ज्यादा सफ़ेदी आती है।
  2. सूती रेशों पर क्षार का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, अतः किसी भी साबुन से धोये जा सकते हैं।
  3. सूती कपड़ों पर रंगकाट का भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। अतः लिशेषतया क्लोरीन रंगकाट प्रयोग करने चाहिएं। तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।
  4. सूती कपड़ों को पूरा सुखाकर ही अल्मारी में सम्भालना चाहिए अन्यथा फंगस लग सकती है।
  5. इनको नम तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। जिससे कपड़े के पूरे बल निकल कर चमक आ जाती है।
    सूती रेशे पहनने वाले कपड़ों, चादरों, खेस, मेज़पोश, तौलिये तथा पर्दे आदि के लिये प्रयोग किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
(17) सूती रेशे के गुण बताएं।
उत्तर-
सूती रेशा कपास के पौधे से तैयार होता है। इस रेशे में 87 से 90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। सूती रेशे के गुण निम्नलिखित हैं

  1. सूती रेशे की लम्बाई आधे इंच से दो इंच तक होती है तथा साधारणतया इस का रंग सफ़ेद होता है।
  2. इस रेशे में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
  3. यह एक मज़बूत तथा टिकाऊ रेशा है।
  4. इस रेशे में पानी सोखने की क्षमता काफ़ी होती है। जिस कारण यह शरीर का पसीना सोख लेता है। इस गुण के कारण ही तौलिये सूती रेशे के बनाये जाते हैं।
  5. यह रेशा ताप का बढ़िया संचालक है। गर्मी इसमें से गुज़र सकती है। सूती रेशे की पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता के कारण ही सूती कपड़े गर्मियों में पहनने के लिये सबसे आरामदायक होते हैं।

प्रश्न 6.
(18) लिनन तथा सूती कपड़े में क्या समानता है?
उत्तर-
लिनन तथा सूती कपड़े में निम्नलिखित समानताएँ हैं

  1. ये दोनों रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। सूती रेशा कपास से बनता है तथा लिनन फलैक्स पौधे के तने से तैयार होता है।
  2. लिनन तथा सूती रेशे दोनों में पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है।
  3. दोनों रेशे ताप के बढ़िया संचालक हैं।
  4. लिनन तथा सूती दोनों रेशे मज़बूत होते हैं। इनकी गीले होने पर मजबूती और भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
(19) लिनन के कपड़ों की विशेषताएँ बताओ।
अथवा
लिनन का प्रयोग तथा इसकी देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
सती कपडे की तरह लिनन को जलाते समय कागज़ के सड़ने जैसी गंध होती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बन जाती है। लिनन को मध्यम से तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। इसके रेशे मज़बूत तथा टिकाऊ होते हैं। इसलिये बिस्तरों की चादरें आदि बनाई जाती हैं। लिनन पर क्षार का प्रभाव कम होता है। इस रेशे में प्राकृतिक चमक होती है।

प्रश्न 8.
(20) लिनन के कपड़े कौन-सी ऋतु में पहने जाते हैं तथा क्यों? इनकी देखभाल कैसे करोगे?
उत्तर-
लिनन के कपड़े गर्मियों में ही पहने जाते हैं। क्योंकि इसके रेशों में पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता अधिक होती है। जिससे ये गर्मियों में ठंडक पहुँचाते हैं। लिनन के कपड़ों की देखभाल अग्रलिखित ढंग से की जा सकती है

  1. ये रेशे मज़बूत होने के कारण रगड़ कर धोये जा सकते हैं। परन्तु इनको उबालना नहीं चाहिए क्योंकि गर्मी से खराब हो जाते हैं।
  2. लिनन के रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी साबुन से धोए जा सकते हैं।
  3. इनको नमी पर ही प्रेस करना चाहिए।
  4. लिनन के रंग पक्के नहीं होते, इसलिए इन कपड़ों को छाँओं में सुखाना चाहिए।
  5. लिनन के कपड़े को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इस कारण धोकर अच्छी तरह सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भालना चाहिए।

प्रश्न 9.
(21) सूती तथा लिनन के अलावा और कौन-से प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सैलूलोज़ रेशे हैं?
उत्तर-
सूती तथा लिनन के अतिरिक्त पटसन, नारियल के रेशे, कपोक, रेमी, जूट, पिन्ना तथा साइसल रेशे हैं जो प्राकृतिक रूप में प्राप्त होते हैं।

  1. पटसन- यह रेशा जूट के पौधे के तने से मिलता है। यह रेशा ज्यादा मज़बूत नहीं होता तथा इसमें प्राकृतिक चमक होती है। ये रेशे थोड़े खुरदरे होते हैं। यह आमतौर पर सजावटी सामान, थैले, बोरियाँ, मैट तथा गलीचे आदि के लिये प्रयोग किया जाता है। परन्तु आजकल इसमें थोड़ा सूती या लिनन के रेशे मिलाकर इसको पोशाकों के लिये प्रयोग किया जाता है।
  2. नारियल के रेशे – ये रेशे नारियल के बीज के छिलके से प्राप्त किये जाते हैं। गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य यह रेशे होते हैं। ये भूरे रंग के होते हैं तथा इनकी आमतौर पर रंगाई नहीं की जा सकती। यह आम तौर पर टाट, सोफों तथा गद्दों में भरने तथा जूतों के तले बनाने के काम आता है।
  3. कपोक-यह कपोक पौधे के बीजों के बालों से प्राप्त होता है। यह हल्का, नर्म तथा हवा में उड़ने वाला होता है। इस रेशे को अधिकतर तकियों, सोफों तथा गद्दों में भरने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह गीला होने पर जल्दी सूख जाता है।
  4. रेमी-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसको लिनन के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार तथा सफ़ेद रंग के होते हैं पर इनमें तनाव ज्यादा होता है।
  5. जूट-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है, परन्तु यह लिनन तथा पटसन से मज़बूत होता है। यह लम्बा, मज़बूत तथा भूरे रंग का रेशा है। साधारणतया रस्सियां, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनाने के लिये भी प्रयोग किया जाता है।
  6. पिन्ना-यह रेशा अनानास के पत्तों से मिलता है। यह सफ़ेद से क्रीम रंग का बारीक, चमकदार तथा मज़बूत रेशा है। इसको बैग या अन्य ऐसा सामान बनाने के लिये प्रयोग किया जाता है।
  7. साइसल-ये रेशे असेण नामक पौधे के पत्तों से मिलता है। इस रेशे को तेज़ रंगों में रंगाकर गलीचें, मैट, रस्सियां तथा ब्रश आदि बनाए जाते हैं।

प्रश्न 10.
(22) जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे ऊन तथा ऊन की विभिन्न किस्में जैसे-मैरीनो, लामा, मुहीर, पशमीना तथा कश्मीर ऊन। सिल्क जो रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होता है। फर जो मिंक तथा अंगोरा खरगोशों के बालों से प्राप्त होती है।

प्रश्न 11.
(23) जानवरों के रेशे जानवरों के किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर-
जानवरों के रेशे जानवरों के विभिन्न भागों से प्राप्त किये जाते हैं जैसे निम्नलिखित बताया गया है —

रेशे जानवरों के शरीर का भाग जहाँ से रेशे प्राप्त किये जाते हैं
(1) ऊन तथा इसकी किस्में जैसे मैरीनो, मुहेर, लामा, पशमीना तथा कश्मीयर ऊन। भेड़ के बालों से तथा विशेष किस्म की ऊन विशेष किस्म की भेड़ों, अंगोरा तथा कश्मीरी बकरी, ऊंट, लामा तथा खरगोश के बालों से मिलती है।
(2) सिल्क रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होती है।
(3) फर मिंक तथा अंगोरा जानवरों की चमड़ी के बालों से।

प्रश्न 12.
(24) रेशम किस जानवर से तथा कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर-
रेशम जानवर वर्ग का रेशा है। यह रेशम के कीड़े की लार से बनता है। यह प्रोटीन युक्त रेशा है।
रेशम का कीड़ा जो कि शहतूत के पत्तों पर पलता है तथा अपने मुँह में से एक लारसी निकालता है जो हवा के सम्पर्क में आकर जम जाती है तथा रेशे का रूप धारण कर लेती है। यह रेशा लारवे के आस-पास लिपट कर एक खोल सा बना लेता है। इसको कोका कहा जाता है। लारवा आठ सप्ताह का होकर लार निकालने लगता है तथा अपने खोल में ही बंद हो जाता है। इस कोकून में लगभग 1800-3600 मीटर लम्बा धागा होता है। धागे का रंग कभी-कभी सफ़ेद पीला तथा कभी-कभी हरा होता है। लारवे के बढ़कर बाहर निकलने से पहले ही इन कोकूनों को इकट्ठे करके पानी में उबाल लिया जाता है, इससे रेशे पर लगी गंद उतर जाती है तथा लारवा अन्दर मर जाता है। फिर रेशे को उतारा जाता है। यह रेशा बहत नर्म होता है। इसलिये 3 से 6 रेशे इकट्ठे करके लपेट कर लच्छियां बनाई जाती हैं। रेशों की संख्या धागे की मोटाई के अनुसार ली जाती है। फिर इस धागे से कपडा तैयार किया जाता है। कीड़े पालने तथा सिल्क तैयार करने को मैरी कल्चर कहा जाता है।

प्रश्न 13.
(25) रेशों की प्राप्ति के साधन के अनुसार उनका वर्गीकरण करो।
अथवा
तन्तुओं का विस्तृत वर्गीकरण करें।
उत्तर-
साधनों के आधार पर रेशों की प्राप्ति का वर्गीकरण निम्नलिखित दिया है —
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 1

प्रश्न 14.
(26) रेशम को किन गुणों के कारण कपड़ों की रानी माना जाता है?
उत्तर-
रेशम प्राकृतिक रेशों में सबसे लम्बा रेशा है। यह रेशा मज़बूत तथा लचकदार होता है। परन्तु गीला हो कर कमजोर हो जाता है। इस रेशे में चमक सबसे अधिक होती है जिससे देखने को सुन्दर लगता है। इसीलिये इसको कपड़ों की रानी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
(27) रेशम (सिल्क) की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
सिल्क की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. बनावट-खुर्दबीन के नीचे इसके रेशे चमकदार तथा दोहरे धागे के बने दिखाई देते हैं जिस पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
  2. लम्बाई-यह प्राकृतिक रेशों में से सबसे लम्बा रेशा है। इस रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक होती है।
  3. चमक-इस रेशे की सबसे अधिक चमक होती है।
  4. मज़बूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से यह मज़बूत होता है पर गीला होकर कमजोर हो जाता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 2
  5. रंग-इसका रंग सफ़ेद, पीला या स्लेटी होता है।
  6. लचकीलापन-यह रेशा चमकदार होता है इसलिये इसमें बल कम पड़ते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता- यह रेशा आसानी से पानी सोख लेता है तथा जल्दी ही सूख जाता है।
  8. ताप संचालकता-इस में से ताप निकल नहीं सकता इसलिये यह ताप का संचालक नहीं है। इस कारण गर्मियों में नहीं पहना जाता।
  9. अम्ल का प्रभाव-हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता।
  10. क्षार का प्रभाव-हल्की क्षार भी इस रेशे को खराब कर देती है इसलिये क्लोरीन युक्त रंगकाट नहीं प्रयोग करनी चाहिए।
  11. रंगाई-इस रेशे पर रंग जल्दी तथा पक्का चढ़ता है। इसलिये हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
  12. ताप से-सिल्क के जलने पर बाल या पंख सड़ने की गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है तथा सड़ने के पश्चात् इक्का-दुक्का काला मनका सा बन जाता है। इसलिये गर्म पानी से धोने, धूप में सुखाने तथा गर्म प्रेस से प्रेस करने से खराब हो जाता है।

प्रश्न 16.
(28) रेशम तथा ऊन दोनों ही ताप के कुचालक हैं परन्तु ऊन अधिक गर्म क्यों होती है?
उत्तर-
ऊन तथा सिल्क दोनों ही प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त रेशे हैं इसके अतिरिक्त दोनों ही ताप के कुचालक हैं तथा दोनों का प्रयोग गर्मियों में किया जाता है पर फिर भी सिल्क से ऊन ज्यादा गर्म है क्योंकि सिल्क का कपड़ा बारीक तथा ऊपरी परत मुलायम होने के कारण बाहर वाली ठण्ड से ठण्डा हो जाता है पर ऊन का कपड़ा मोटा तथा खुरदरा होने के कारण ठण्डा नहीं होता तथा शरीर की गर्मी बाहर नहीं आने देता। इस कारण ऊन सिल्क से ज्यादा गर्म होती है।

प्रश्न 17.
(29) ऊन में ऐसा कौन-सा तत्त्व होता है जो दूसरे रेशों में नहीं होता तथा इसकी विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
ऊन में एक विशेष विशेषता है जो बाकी रेशों में नहीं होती। ऊन के रेशे में लहरिया होता है जिसको क्रिंप (Crimp) कहा जाता है। लहरिये की संख्या रेशे की मज़बूती तथा आकार पर निर्भर करती है। रेशा जितना बारीक हो उतना ही मज़बूत होता है। इस विशेषता के कारण रेशे एक दूसरे से जुड़ जाते हैं जिसको फैलटिंग (Felting) कहा जाता है। इस विशेषता के कारण इससे नमदा, कंबल, गलीचे आदि बनते हैं। ऊन की विशेषताएँ निम्नलिखित दी हैं

  1. खुर्दबीन के नीचे इस रेशे की परतें एक दूसरे पर चढ़ी दिखाई देती हैं। जितनी ये परतें सघन होंगी उतनी ही ऊन गर्म होगी। ।
  2. इस रेशे की लम्बाई भी कम है लगभग 1 से 8 इंच तक।
  3. इन रेशों में कोई चमक नहीं होती।
  4. यह रेशा काफ़ी लचकदार होता है इसलिये ऊनी कपड़ों में बल नहीं पड़ते।
  5. ऊन के रेशे में पानी सोखने की क्षमता बहुत होती है। परन्तु गीले होकर ये रेशे कमजोर हो जाते हैं।
  6. ये रेशे ताप के कुचालक हैं इसलिये ही सर्दियों में प्रयोग किये जाते हैं। ये शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते।
  7. इस रेशे पर हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता। परन्तु क्षार से रेशा खराब हो जाता है। इसलिये ऊनी कपड़े धोने के लिये सोडा नहीं प्रयोग करना चाहिए।
  8. ऊनी रेशे को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है।
  9. ताप से ही ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये कभी भी सीधा प्रैस नहीं करना चाहिए बल्कि मलमल का गीला कपड़ा बिछाकर हल्की प्रैस करनी चाहिए।
  10. तेज़ाब वाले रंगों का प्रयोग करना चाहिए पर रंगकाटों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 18.
(30) रेशम तथा ऊन के गुणों में समानता क्यों है?
उत्तर-
सिल्क तथा ऊन दोनों रेशे प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त होते हैं। दोनों रेशे प्रोटीन युक्त तथा इनमें क्राबोहाइड्रेट, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन होते हैं। इसलिये इनमें कई समानताएं हैं जैसे कि इन का प्रयोग सर्दियों में ही किया जाता है। दोनों ही ताप के कुचालक हैं। इन रेशों को कीड़ा जल्दी लग जाता है। दोनों की बहुत सम्भाल करनी पड़ती है। इस के अतिरिक्त इन पर ताप का बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 19.
(31) सूती तथा लिनन के रेशों में समानता क्यों है?
अथवा
सूती तथा लिनन के रेशों के गुणों में क्या समानता है?
उत्तर-
ये दोनों रेशे प्राकृतिक तथा पौधों से मिलते हैं। सूती रेशा कपास की रूई से बनता है तथा लिनन का रेशा फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होते हैं। इन दोनों रेशों में सैलूलोज अधिक होता है। इस कारण इनमें काफ़ी समानता है। जैसे दोनों रेशों की लम्बाई छोटी होती है, ये रेशे मज़बूत होते हैं तथा पानी सोखने की क्षमता भी अधिक होती है। ये दोनों रेशे ही ताप के संचालक हैं जिस कारण गर्मियों में पहनने के लिये आरामदायक होते हैं।

प्रश्न 20.
(32) ऊनी कपड़ों की देखभाल कैसे होती है?
अथवा
ऊल की देखभाल के बारे में विस्तार से बताएं।
उत्तर-
ऊनी रेशे कमजोर होते हैं तथा गीले होकर और भी कमजोर हो जाते हैं। इसलिये बहुत ध्यान से धोना चाहिए। गीला होने से कपड़ा भारा हो जाता है तथा इनको लटका कर नहीं सुखाना चाहिए क्योंकि भारी होने के कारण इनका आकार बिगड़ जाता है। ऊन के कपड़ों को ज्यादा देर तक भिगो कर नहीं रखना चाहिए तथा न ही रगड़ कर धोना चाहिए। इसलिये पानी के तापमान का भी ध्यान रखना आवश्यक है। पानी न ज्यादा गर्म तथा न ही ठण्डा होना चाहिए। ऊनी कपड़े को सुखाने के लिये अखबार या कागज़ पर धोने से पहले कपड़े के आकार का नक्शा बनाकर समतल स्थान पर रख कर सुखाना चाहिए। यदि हो सके तो ड्राइक्लीन करवा लेना चाहिए।

ऊनी कपड़े को प्रैस भी बहुत ध्यान से करना चाहिए। कपड़े पर सीधी प्रैस नहीं करनी चाहिए। नमी वाला सूती कपड़ा बिछाकर हल्की गर्म प्रैस करनी चाहिए। इन कपड़ों को अच्छी प्रकार से सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भाल कर रखना चाहिए क्योंकि ऊनी रेशे को कीड़ा जल्दी लग जाता है।

प्रश्न 21.
(33) ऐसबेसटास कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला रेशा है। यह कच्ची धातु या खनिज पदार्थ से प्राप्त होता है। यह आग में रखने पर सड़ता नहीं। इस पर न ही तेज़ाबी तथा क्षार का कोई प्रभाव पड़ता है। आग बुझाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले कपड़े भी इस रेशे से बनाये जाते हैं। साधारण पहनने वाले कपड़े इससे नहीं बनाए जाते।

प्रश्न 22.
(34) ऐसी रेयॉन का नाम बताएँ जो थर्मोप्लास्टिक भी है?
उत्तर-
ऐसिटेट रेयन के रेशे थर्मोप्लास्टिक रेशों से मेल खाते हैं। ये रेशे देखने को नर्म तथा चमकदार होते हैं तथा आम तौर पर घरेलू पोशाकों तथा वस्त्र बनाने के काम आते हैं।

प्रश्न 23.
(35) कृत्रिम ढंग से रेशा कैसे बनाया जाता है?
उत्तर-
कृत्रिम ढंग से रेशा तैयार करने के लिये रासायनिक पदार्थों को नियत स्थितियों में क्रिया करके रेशे बनाए जाते हैं, फिर बारीक छेदों वाली छाननी में से निकाला जाता है। यह भाग हवा के सम्पर्क में आकर रेशों का रूप धारण कर लेते हैं।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 3

प्रश्न 24.
(36) थर्मोप्लास्टिक रेशों के मुख्य गुण बताएँ।
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्वों से मिलकर बनता है। इस रेशे की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. ये फिलामैंट रेशे होते हैं। इनकी लम्बाई इच्छा अनुसार रखी जा सकती है।
  2. ये रेशे मज़बूत तथा चमकदार होते हैं तथा इसके कपड़े टिकाऊ होते हैं।
  3. इन रेशों की पानी सोखने की क्षमता बहुत कम होती है। इसलिये ये जल्दी सख जाते हैं। इस कारण यह कपड़े पसीना भी नहीं सोखते।
  4. ये रेशे ताप के कुचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में नहीं प्रयोग किये जाते।
  5. थर्मोप्लास्टिक रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं होता जबकि तेज़ाब में यह रेशे घुल जाते हैं।
  6. थर्मोप्लास्टिक रेशे ताप से पिघल जाते हैं तथा जलने पर प्लास्टिक के सड़ने जैसी गन्ध आती है। यह ज्यादा गर्मी नहीं बर्दाश्त कर सकते इसलिये कम गर्म प्रेस से प्रेस करने चाहिएं।
  7. इन रेशों को कोई फंगस या टिडी आदि नहीं लगती।

प्रश्न 25.
(37) थर्मोप्लास्टिक रेशों का प्रयोग दिन प्रतिदिन क्यों.बढ़ रहा है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे मज़बूत, लचकदार, टिकाऊ, धोने तथा सम्भालने में आसान होते हैं । इसलिये इसको जुराबें, खेलों में पहनने वाले कपड़े तथा आम पहनने वाले कपड़ों के लिये प्रयोग किया जाता है। मज़बूती के कारण इसकी रस्सियां, डोरियां आदि भी बनाई जाती हैं। इसको दूसरे रेशों से मिलाकर भी प्रयोग किया जाता है। इस रेशे की मजबूती कारण ही इसका प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 26.
(38) मिश्रित रेशे बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
मिश्रित रेशे बनाने से उनकी मज़बूती तथा टिकाऊपन बढ़ जाता है। इससे इनकी सम्भाल भी आसान हो जाती है। मिश्रित रेशे सस्ते भी होते हैं तथा दाग भी कम लगते हैं। इनके रंग भी पक्के होते हैं तथा देखने में भी सुन्दर लगते हैं।

प्रश्न 27.
(39) कृत्रिम कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
कृत्रिम कपड़ों की देखभाल तथा सम्भाल आसान होती है क्योंकि यह धोने आसान होते हैं। गर्म पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती। इनके रंग पक्के होने के कारण धोने से या धूप से खराब नहीं होते। प्रैस की भी ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती। टिड्डियों, कीड़ों या फंगसों द्वारा कोई हानि नहीं होती क्योंकि यह रसायनों से बने होते हैं। इसलिये सम्भालने भी आसान हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
(40) रेशे से कपड़ा बनाने के लिये कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं?
अथवा
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए मूल गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रकृति में अनेक प्रकार के रेशे मिलते हैं, परन्तु रेशों से कपड़ा बनाने के लिये इनमें कुछ मूल गुण होने आवश्यक हैं तभी इन रेशों से कपड़ा बनाया जा सकता है। ये मूल गुण निम्नलिखित हैं

  1. रेशे के रूप में होना (Staple)
  2. मज़बूती (Strength/Tenacity)
  3. लचकीलापन (Elasticity/Flexibility)
  4. समरूपता (Uniformity)
  5. जुड़ने की शक्ति (Spinning Quality/Cohesiveness)।

1. रेशे के रूप में होना (स्टेपल) – रेशे स्टेपल या फिलामैंट दो प्रकार के हो सकते हैं। स्टेपल से अभिप्राय है कि रेशे से कपड़ा बनाने के लिये उन की विशेष लम्बाई तथा व्यास का होना आवश्यक है तभी उनका संतोषजनक प्रयोग हो सकता है। व्यास की तुलना में रेशों की लम्बाई बहुत ज्यादा होती है जो कम-से-कम 1 : 100 के अनुपात में होनी चाहिए। यदि रेशों की लम्बाई आधा इंच से कम हो तो वह धागा बनाने के लिये इस्तेमाल नहीं किये जा सकते। मनुष्य द्वारा तैयार किये तथा सिल्क के रेशों की लम्बाई तो बहुत होती है, परन्तु ऊन तथा कपास के रेशों की लम्बाई कम होती है परन्तु इनके रेशों में आपस में जुड़कर काते जाने का गुण बहुत ज्यादा होता है जो कपड़ा बनाने के लिये लाभकारी है। कपास के छोटे रेशे जिनसे धागा नहीं बनाया जा सकता उन पर रासायनिक पदार्थों की प्रक्रिया से रेशे का पुनः निर्माण करके रेयोन का रेशा बनाया जाता है। इसलिये ही रेयॉन के गुण सूती कपड़े से काफ़ी मिलते हैं।

2. मज़बूती-रेशे से कपड़ा बनाना एक लम्बी प्रक्रिया है। रेशे इतने मज़बूत होने चाहिएं कि कताई, सफ़ाई तथा बुनाई समय पड़ रही खींच का मुकाबला कर सकें तथा टिकाऊ कपड़े के रूप में बदले जा सकें। रेशों की मज़बूती तथा वातावरण की नमी का प्रभाव पड़ता है। साधारणतया प्राकृतिक रूप में पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे जब गीले हों तो ज्यादा मज़बूत होते हैं, जबकि दूसरे रेशे जैसे रेयोन तथा ऊन, सिल्क आदि गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं।

3. लचकीलापन रेशों में टूटे बिना मुड़ सकने का गुण होना चाहिए ताकि इनको एक-दूसरे पर लपेट कर बल देकर धागा बनाया जा सके, जिससे कि कपड़ा बनाया जाता है। यह गुण कपड़े को टिकाऊ बनाने तथा पुन: पुरानी सूरत तथा आकार कायम रखने में मदद करता है। जिन रेशों में लचक अधिक होती है। उनमें बल कम पड़ते हैं।

4. समरूपता-रेशों की लम्बाई तथा व्यास में समरूपता होने से उनसे साफ़ तथा समरूप धागा बनाया जा सकता है जिससे कपड़ा भी मुलायम तथा साफ़ बनता है।

5. जुड़ने की शक्ति – अच्छी कताई के लिये रेशों में आपस में जुड़ सकने की शक्ति का होना आवश्यक है ताकि उनकी कताई हो सके। रेशों की जुड़ने की शक्ति चार बातों पर निर्भर करती है

  1. रेशे की लम्बाई
  2. रेशे की बारीकी
  3. रेशे की सतह की किस्म
  4. लचकीलापन।

रेशे में जितनी जुड़ने की शक्ति ज्यादा होगी उतनी ही कताई उपरान्त धागे की बारीकी तथा मज़बूती होगी तथा यही गुण कपड़े में भी आयेंगे।

प्रश्न 2.
(41) गर्मियों में पहनने के लिये किस किस्म के रेशों से बने वस्त्र ठीक रहते हैं ? कृत्रिम ढंग से बनाए रेशों से बने हुए वस्त्र गर्मियों में क्यों नहीं पहने जाते?
उत्तर-
गर्मियों में पहनने के लिये सूती तथा लिनन रेशे के कपड़े ठीक रहते हैं क्योंकि इनमें पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है जिससे यह पसीना सोख लेते हैं – तथा ताप के संचालक होने के कारण पसीने को सूखने में मदद करते हैं तथा ठण्डे रहते हैं। इसलिये यह कपड़े गर्मियों में अधिक आरामदायक होते हैं। ये रेशे मज़बूत होते हैं पर गीले होने पर और भी मज़बूत हो जाते हैं।

सूती तथा लिनन के कपड़ों के विपरीत कृत्रिम रेशे गर्मियों में नहीं पहने जाते क्योंकि ये पानी नहीं सोखते तथा पसीना आने पर गीले हो जाते हैं, परन्तु पसीना सूखता नहीं।
ताप के कुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल सकती। इसलिये इनमें अधिक गर्मी लगती है। इसलिये ये कपड़े गर्मियों में नहीं पहने जाते।

प्रश्न 3.
( 42 ) (i) प्रकृति से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएँ, रचना और देखभाल के बारे में बताओ।
(ii) सूती रेशे की विशेषताएँ तथा देखभाल के बारे में विस्तार में बतायें।
उत्तर-
प्राकृतिक रूप में पौधों, जानवरों तथा खनिज पदार्थों या कच्ची धातु से प्राप्त होने वाले रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। इनको प्राप्ति के साधन के आधार पर तीन वर्गों में बांटा जाता है
(क) पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे-ये पौधों के बीजों के बालों के रूप में कपास तथा तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन आदि हैं।
(ख) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे-जानवरों के बालों के रूप में ऊन तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है।
(ग) धातु से प्राप्त होने वाले रेशे-कच्ची धातु का खनिज पदार्थों के रूप में ऐसबैस्टास प्राकृतिक रूप में धरती की सतह से प्राप्त होने वाला रेशा है।
प्राकृतिक रेशे-ये रेशे विभिन्न पौधों से प्राप्त किये जाते हैं। पौधों से मिलने वाले ये रेशे जैसे कपास (सूती), लिनन, जूट तथा नारियल के रेशे मनुष्य के लिये बहुत लाभकारी हैं। ये पौधों के भिन्न-भिन्न भागों जैसे-बीज, तने, पत्ते या फल से प्राप्त होते हैं।
सूती रेशे-यह रेशा पुराने समय से भारत में उगाया जाता है। सूती रेशा कपास के पौधे के बीजों के बाल हैं। कपास का पौधा 90-120 सेंटीमीटर ऊंचा होता है जो गर्म, नम तथा काली मिट्टी वाली ज़मीन में उगाया जाता है। इसकी डोडी जो फूल में बदल जाती है जहाँ बाद में टींडा बन जाता है। टींडा पक कर फूट जाता है। जिससे रूई (कपास) बाहर निकल आती है। रूई ही वास्तव में कपास के पौधे के फल हैं जिससे बीज तथा कपास (बीजों के बाल) अलग-अलग कर लिये जाते हैं। कपास की कंघी करके छोटे तथा लम्बे रेशे अलग-अलग कर लिये जाते हैं। लम्बे रेशों से मशीनों से धागा बनाकर कपड़ा बना लिया जाता है। पहले घरों में ही चरखे से धागा बनाया जाता था जिससे खद्दर या खेस आदि भी घर ही बनाये जाते हैं।
रचना-सूती रेशे में 87-90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ

  1. बनावट-कपास का रेशा खुर्दबीन से देखने पर नाली की तरह दिखाई देता है। जिसमें रस होता है जब कपास पकती है तो यह रस सूख जाता है तथा रेशा चपटा, मुड़े हुए रिबन की तरह लगता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 4
  2. लम्बाई-यह छोटा रेशा है इसकी लम्बाई इंच से दो इंच तक हो सकती है।
  3. रंग-साधारणतया रंग सफ़ेद होता है पर कपास की किस्म अनुसार इसका रंग क्रीम या हल्का भूरा भी हो सकता है।
  4. चमक-इसमें प्राकृतिक चमक नहीं होती पर रासायनिक प्रक्रिया जिसको मीराइजेशन कहते हैं, से इसकी चमक सुधारी जा सकती है।
  5. मजबूती-यह एक मज़बूत रेशा है इसलिये काफ़ी रगड़ सह सकता है। गीले होने से मज़बूती और बढ़ जाती है मर्सीराइजेशन से पक्के तौर पर मज़बूत हो जाता है।
  6. लचकीलापन-इनमें लचक नहीं होती इसलिये सूती कपड़े पर बल जल्दी पड़ जाते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता-इनकी नमी या पानी सोखने की शक्ति अच्छी होती है जिस कारण पसीना सोख सकते हैं इसलिये इनको गर्मियों में पहना जाता है। इस गुण कारण ही सूती रेशे के तौलिये बनाए जाते हैं।
  8. ताप चालकता-ये ताप के अच्छे संचालक होते हैं। गर्मी इनमें से गुज़र सकती है इसलिये ही ये पसीने को सूखने में मदद करते हैं। सूती रेशों की अच्छी पानी सोखने की क्षमता तथा अच्छी ताप सुचालकता के कारण भी ये ठण्डे रेशे हैं तथा गर्मियों में पहनने के लिये सब से अधिक उचित तथा उपयुक्त हैं।
  9. रसायनों का प्रभाव-क्षार का इन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है परन्तु हल्के या गाढ़े तेज़ाब से खराब हो जाते हैं।
  10.  रंगाई-इनको रंगना आसान है परन्तु धूप तथा धोने से इनके रंग खराब हो जाते हैं।
  11. फंगस का प्रभाव-नमी वाले कपड़ों को फंगस बहुत लग जाती है तथा खराब कर देती है परन्तु कीड़ा नहीं लगता।
  12. अन्य विशेषताएँ-इन पर गर्मी का प्रभाव कम होता है जिससे ये कपड़े उबाले भी जा सकते हैं तथा धूप में सुखाये भी जा सकते हैं। परन्तु रंगदार कपड़ों का रंग खराब हो जाता है जिस कारण उनको न तो उबाला जाता है तथा न ही धूप में सुखाना चाहिए।
  13. ताप का प्रभाव-सूती रेशा आग जल्दी पकड़ता है तथा पीली लाट से जलता है। जलते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से दूर करने पर भी अपने आप जलता रहता है। जलने के उपरान्त स्लेटी रंग की राख बनती है।

देखभाल-

  1. सफ़ेद सूती कपड़ों को गर्म पानी में या उबाल कर तथा रगड़ कर धोया जा सकता है। रंगदार कपड़ों को ठण्डे पानी में धोना चाहिए तथा छाया में ही सुखाना चाहिए, परन्तु सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से उनमें और सफ़ेदी आती है।
  2. क्षार का बुरा प्रभाव नहीं होता इसलिये किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं।
  3. इनको नमी में प्रैस करना चाहिए। मध्यम तथा तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है।
  4. रंगकाट का इन पर बुरा प्रभाव नहीं होता विशेषतया क्लोरीन वाले रंगकाट का तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।

इनको कभी भी नमी में नहीं सम्भालना चाहिए क्योंकि इनको फंगस जल्दी लग जाती है।
लिनन-यह फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होने वाला रेशा है। यह पौधा कम गर्म, परन्तु ज्यादा नमीदार मौसम में होता है। इन पौधों की लम्बाई 10 इंच से 40 इंच तक हो सकती है। यह रेशा गूंद से तने के साथ जुड़ा होता है। इन रेशों को पौधों से सही रूप में उतारने के लिये पौधों के तनों को औस, रसायन या पानी में रखकर जैसे नदी या तालाब या रसायनों से प्रक्रिया करके अपनाया जाता है जिसको गलाना (Retting) कहा जाता है। गलाने से गूंद सा गलकर अलग हो जाता है तथा रेशे ढीले पड़ जाते हैं तथा अलग हो जाते हैं।
रचना- इसमें 70-85 प्रतिशत सैलूलोज होता है तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ

  1. बनावट-लिनन का रेशा खुर्दबीन के नीचे लम्बा, सीधा एक समान, चमकदार तथा चिकना दिखाई देता है जिसमें बांस जैसी थोड़ीथोड़ी दूरी पर गांठें होती हैं।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 5
  2. लम्बाई-यह भी छोटा रेशा ही है तथा रेशे की लम्बाई 6-40 इंच तक हो सकती है। 12 इंच से छोटे रेशे को कपड़े की बुनाई के लिये इस्तेमाल नहीं किया जाता।
  3. रंग-इसका रंग फीके पीले से फीका भूरा हो सकता है।
  4. चमक-इसमें सूती रेशे से ज्यादा चमक होती है, परन्तु सिल्क से थोड़ी कम।
  5. लचकीलापन-यह सूती रेशे से भी कम लचकीले होते हैं इसलिये बल और ज्यादा पड़ते हैं।
  6. मज़बूती-यह रेशा सूती रेशे से भी अधिक मज़बूत होता है। गीला होकर इसकी मज़बूती और भी बढ़ जाती है।
  7. पानी सोखने की क्षमता-पानी सोखने की शक्ति सूती रेशे से भी ज्यादा होती है।
  8. ताप चालकता-सूती रेशों से भी अधिक ताप के संचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में सूती रेशे से अधिक ठण्डक पहुँचाते हैं।
  9. रसायनों का प्रभाव-ये तेज़ तेज़ाब से खराब हो जाते हैं जबकि सूती कपड़े की तरह क्षार का प्रभाव कम होता है।
  10. रंगाई-सूती कपड़े की तरह सीधे रंगों से रंगे जाते हैं तथा रंगाई सूती कपड़े से मुश्किल होती है परन्तु धोने पर धूप में सुखाते समय रंग जल्दी फीके हो जाते हैं। रंग पक्के नहीं होते।
  11. फंगस तथा कीड़े का प्रभाव-इसको कीड़ा बहुत जल्दी लग जाता है।
  12. अन्य विशेषताएँ-सूती कपड़े की तरह ही इसको जलाते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बनती है। मध्यम तथा तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। लिनन की कई विशेषताएँ सूती कपड़े से मेल खाती हैं पर ज्यादा गर्मी से ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये

इनको उबालना नहीं चाहिए। ये रेशे मज़बूत होने के कारण इनको भी रगड़ कर धोया जा सकता है।
देखभाल-इन रेशों पर क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं। इनको सूती कपड़ों की तरह नमी में प्रेस करना चाहिए। ये मज़बूत होते हैं इसलिये रगड़ कर धोया जा सकता है। गर्मी से खराब होते हैं इसलिये उबालना नहीं चाहिए। इनमें रंग पक्के नहीं होते इसलिये छाया में ही सुखाना चाहिए। इनको कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इसलिये अच्छी तरह धोकर सुखाकर साफ़ जगह पर रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
(43) लिनन की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
(44) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं? इनकी रचना और आम विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशों में प्रोटीन का अंश अधिक होता है जिस कारण इनको प्रोटीन रेशे कहते हैं। इनके कई गुण एक समान होते हैं तथा अधिकतर जानवरों के बालों से प्राप्त किये जाते हैं।
सिल्क (रेशम)- यह जानवरों से मिलने वाला प्रोटीन युक्त रेशा है जो सिल्क के कीड़े के लारवे की लार से बनता है।
रचना-ये रेशे प्रोटीन से बने होते हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्व होते हैं।
(क) विशेषताएँ

  1. बनावट-खुर्दबीन के नीचे रेशम के रेशे चमकदार, दोहरे धागे के बने हुए दिखाई देते हैं जिन पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
    (टसर सिल्क)
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 6
  2. लम्बाई-प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक ही फिलामैंट रेशा है। रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है।
  3. रंग-इसका रंग क्रीम से भूरा या स्लेटी-सा हो सकता है।
  4. चमक-इन रेशों में सबसे अधिक चमक होती है। इसलिये सिल्क को कपड़ों . की रानी कहा जाता है।
  5. मजबूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से मजबूत होता है, परन्तु गीला होने पर इनकी मज़बूती घटती है।
  6. लचकीलापन-लचक अच्छी होती है। इसलिये ही बल कम पड़ते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता-आसानी से पानी सोख लेती है तथा अनुभव भी नहीं होता कि कपड़ा गीला है। सुखाने पर कपड़ा बराबर सूखता है।
  8. ताप चालकता-ऊन की तरह ताप के अच्छे चालक नहीं जिस कारण इनको सर्दियों में पहना जाता है। इनकी सतह मुलायम होने के कारण ऊन जितने गर्म नहीं होते।
  9. रसायनों का प्रभाव-ऊन की तरह हल्के तेज़ाब द्वारा खराब नहीं होते, परन्तु हल्की क्षार भी इन पर बुरा प्रभाव डालती है। क्लोरीन युक्त रंगकाटों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  10. रंगाई-इनको रंग जल्दी तथा पक्के चढ़ते हैं जो धूप तथा धोने से भी खराब नहीं होते। इनको हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
  11. ताप का प्रभाव-सिल्क के जलते समय चर-चर की आवाज़ आती है तथा पंखों या बालों के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है। जलने के उपरान्त इक्का-दुक्का काला मनका बनता है। धूप में सुखाने से या गर्म पानी से धोने से तथा गर्म प्रेस करने से कपड़ा कमजोर हो जाता है। चमक तथा रंग भी खराब हो जाते हैं।
  12. अन्य विशेषताएँ-गीले होकर कपड़ा कमज़ोर होता है इसलिये रगड़ने से फट सकता है।
    ऊन-रचना-ऊन का मुख्य तत्त्व किरेटिन (Keratin) नामक प्रोटीन है जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के अतिरिक्त सल्फर भी होती है।

Home Science Guide for Class 10 PSEB रेशों का वर्गीकरण Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटे रेशों (स्टेपल) की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
1/4 से 18 इंच।

प्रश्न 2.
लम्बे (फिलामेंट) रेशों की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
मीटरों में होती है।

प्रश्न 3.
छोटे रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
लगभग सारे प्राकृतिक रेशे।

प्रश्न 4.
रेशम कैसा रेशा है?
उत्तर-
लम्बा रेशा।

प्रश्न 5.
बनावटी फिलामेंट रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
नाईलोन, पॉलिएस्टर।

प्रश्न 6.
दो प्राकृतिक रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
सन्, पटसन, कपास।

प्रश्न 7.
धातु से बने रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
गोटा, ज़री।

प्रश्न 8.
थर्मोप्लासटिक रेशों की उदाहरणें।
उत्तर-
नायलान, पोलिस्टर, ऐसीटेट।

प्रश्न 9.
कैशमीलोन कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह मिश्रित रेशा है।

प्रश्न 10.
प्रोटीन वाला रेशा कौन-सा है?
उत्तर-
ऊन, सिल्क।

प्रश्न 11.
सूती रेशे के कितने प्रतिशत सैलूलोज़ होता है?
उत्तर-
87-90%.

प्रश्न 12.
लिनन कहां से प्राप्त होता है?
उत्तर-
फलैक्स पौधों के तने से।

प्रश्न 13.
किन्हीं दो वनस्पतिक तंतुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
सूती, लिनन, नारियल के रेशे।

प्रश्न 14.
लम्बाई और चौड़ाई में चलने वाले धागे का नाम लिखिए।
अथवा
ताना तथा बाना क्या होता है?
उत्तर-
जब कपड़ा बनाया जाता है तो लम्बाई वाले धागे को ताना तथा चौड़ाई वाले धागे को बाना कहते हैं।

प्रश्न 15.
टैरीलीन तंतु का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर-
पोलीएस्टर।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नारियल के रेशे किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं तथा किस काम आते हैं?
उत्तर-
नारियल के रेशे नारियल के बीज के छिलके से तैयार होते हैं। यह गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य होते हैं। इनको समुद्र के पानी में भिगो कर नर्म किया जाता है फिर कूट-कूट कर साफ़ करके बाहर निकाल लिया जाता है। इन रेशों को आमतौर पर रंगा नहीं जाता। इनका अपना रंग गहरा भूरा होता है। नारियल के रेशे तनाव वाले तथा मज़बूत होते हैं। इनको बल नहीं पड़ते। ज्यादातर ये रेशे सोफों तथा गद्दों को भरने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। परन्तु इनसे टाट तथा जूतों के तले भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
चीन की लिनात किस रेशे से तैयार की जाती है तथा इसके कौन-से गुण हैं?
उत्तर-
चीन की लिनन पौधे के तने से तैयार की जाती है तथा इसको रेमी भी कहा जाता है। यह पौधे जापान, फ्राँस, मिस्र, इटली तथा रूस में उगाये जाते हैं। इसके पौधे 4 से 8 फुट ऊँचे हो सकते हैं। इसके तनों को काटकर पानी में गलाया जाता है तथा फिर रसायनों के प्रयोग से फालतू गूंद निकाल दी जाती है। उसके उपरान्त कंघी करके इसके रेशों को साफ़ किया जाता है। यह रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार, बारीक तथा सफ़ेद रंग के होते हैं। इन रेशों में तनाव अधिक तथा लचक कम होती है।

प्रश्न 3.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
पिछले प्रश्न देखें।

प्रश्न 4.
पटसन क्या है?
उत्तर-
यह पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत तथा भूरे रंग के हैं। इससे रस्सियाँ, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनता है।

प्रश्न 5.
ऊन क्या है? इसकी विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
ऊन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
बनावटी कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
बनावटी कपड़ों को कीड़े तथा फफूंदी नहीं लगती। इसलिए इन्हें सम्भालना आसान है।

प्रश्न 7.
सूती रेशे और लिनन के प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
सूती रेशे का प्रयोग

  1. सूती रेशे से बने वस्त्र गर्मियों के लिए उत्तम तथा त्वचा के लिए आरामदायक होते हैं।
  2. सूती रेशों को दूसरे रेशों के साथ मिलाकर मिश्रित धागे बनाए जाते हैं।
  3. सूती कपड़े को उबाला जा सकता है। इसलिए अस्पतालों में इससे पट्टियां बनाई ५ जाती हैं।

लिनन के प्रयोग

  1. गर्मियों की पोशाकें बनती हैं, ठण्डक देने वाली होती हैं।
  2. मज़बूत तथा लम्बे समय तक चलने वाला होता है। इसलिए चादरें आदि बनाते हैं।
  3. मेज़पोश आदि भी बनते हैं।
  4. गर्मियों में अन्दर पहनने वाले वस्त्र भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 8.
बनावटी रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
ऐसे रेशे. जो मनुष्य द्वारा बनाए जाते हैं उन्हें बनावटी रेशे कहते हैं, जैसेरेयोन, नाइलोन, टैरालीन, आरलोन आदि बनावटी रेशे हैं। इन रेशों से बने कपड़ों को सिंथेटक कपड़े भी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
ऊन की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 10.
सिल्क पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 11.
लिनन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।।

प्रश्न 12.
सिल्क की देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
सिल्क से बने कपड़े बहुत नाजुक होते हैं। यह गीले होने पर ओर भी कमज़ोर हो जाते हैं। इसलिए इन्हें धीरे-धीरे दबाकर धोना चाहिए। रगड़ने से यह फट सकते हैं। क्षार तथा गर्म पानी का इन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन्हें ड्राईक्लीन करवा लेना चाहिए। जब यह नम ही हो तो प्रैस कर लेना चाहिए। पसीने से भी यह कमज़ोर हो जाते हैं। इनके अन्दर सूती कपड़े का अन्दरग लगा लेना चाहिए।

प्रश्न 13.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए उसमें लचकीलापन होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 14.
मिश्रित रेशे कौन-से हैं तथा इनकी देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
देखभाल-मिश्रित रेशों की देखभाल सरल है इन्हें धोना भी सरल है। ऊली नहीं लगती, धूप में रंग खराब नहीं होता। कीड़े भी हानी नहीं पहुंचाते।

प्रश्न 15.
रेशे से कपड़े बनाने के लिए रेशे का रूप में होना तथा जुड़न शक्ति का होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 16.
प्राकृतिक रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 17.
सूती रेशे की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 18.
ताप तथा रंगाई का ऊन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 19.
लम्बे रेशे/फिलामेंट रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 20.
पटसन तथा नारियल के रेशे के बारे में बताएं
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 21.
रेशों का लम्बाई के अनुसार वर्गीकरण करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 22.
धातुओं से प्राप्त रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 23.
कपास और सिल्क की विशेषताओं की तुलना कीजिये।
उत्तर-

कपास सिल्क
1. यह स्टेपल रेशा है। इसकी लम्बाई 1/2 इंच से 2 इंच तक होती है। यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक मात्र फिलामेंट रेशा है। इसकी लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है।
2. इसका रंग प्रायः सफेद होता है। इसका रंग क्रीम से भूरा होता है या स्लेटी होता है।
3. प्राकृतिक चमक नहीं होती। प्राकृतिक चमक होती है।
4. लचक नहीं होती तथा सिलवटें पड़ जाती हैं। लचक अधिक होती है तथा सिलवटें नहीं पड़तीं।
5. रंगाई करना सरल है परन्तु धुलने तथा धूप से रंग खराब हो जाता है। रंगाई करना सरल है, रंग पक्के चढ़ते हैं जो धूप अथवा धुलने से छूटते नहीं।
6. रेशे गीले होने पर मज़बूत होते हैं। गीले होने पर कमज़ोर होते हैं।

प्रश्न 24.
रेशे एवं फिलामेंट की परिभाषा दें और रेशे के वर्गीकरण के बारे में लिखें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 25.
कृत्रिम रेशे को खरीदना लोग क्यों अधिक पसन्द करते हैं?
उत्तर-
कृत्रिम रेशे मज़बूत होते हैं। इन पर कीड़ों, फंगस आदि का प्रभाव भी कम होता है। इनको धो कर सुखाना तथा सम्भालना भी सरल है। यह देखने में भी सुंदर लगते हैं। इसलिए कृत्रिम रेशों की पसन्द बढ़ गई है।

प्रश्न 26.
मिश्रित कपड़े क्या होते हैं ? ग्रीष्म व शीत प्रत्येक ऋतु में पहने जाने वाले मिश्रित वस्त्र का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
कृत्रिम रेशे तथा प्राकृतिक रेशे को मिला कर जो रेशे तैयार किए जाते हैं, मिश्रित रेशे कहा जाता है। जैसे
पोलीएस्टर + सूती = पोलीवस्त्र
टैरालीन + सूती = टैरीकाट
पोलीएस्टर + ऊन = टैरीवूल।
टैरीकाट ऐसा मिश्रित कपड़ा है जिसे गर्मी सर्दी में पहना जा सकता है।

प्रश्न 27.
सूती रेशों के गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

दीर्घ उत्तरीय प्रश

प्रश्न 1.
रेयॉन का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
रेयॉन का प्रयोग-रेयॉन में रेशम जैसी चमक होने के कारण इसे नकली रेशम भी कहा जाता है। इससे कम तथा अधिक चमक वाले कपड़े, जैसे-जार्जट, क्रेप, बम्बर आदि बनाए जाते हैं। इसका प्रयोग आम पहनने वाली पोशाक के लिए भी होता है।
विशेषताएं-रेयॉन पुनर्निर्मित सैलुलोज़ के रेशे होते हैं। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन जैसे तत्त्व होते हैं —

  1. सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-रेशा एक समान तथा गोल होता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 7
  2. लम्बाई-यह लम्बे रेशे (फिलामैंट) होते हैं।
  3. रंग-इन रेशों का रंग नहीं होता। ये पारदर्शी हैं।
  4. लचकीलापन-इनमें लचक कम होती है। धोने पर सिकुड़ जाते हैं तथा प्रैस करने पर फिर पहले जैसे हो जाते हैं।
  5. ताप चालकता-यह ताप के चालक हैं।
  6. मज़बूती-पानी में डालने से कमजोर होते हैं, वैसे इनकी मज़बूती कम या ज्यादा हो सकती है।
  7. जल शोषकता-रेयॉन की जल शोषकता प्राकृतिक सैलुलोज़ रेशों से अधिक होती है।
  8. रसायनों का प्रभाव-अम्ल का प्रभाव होता है परन्तु क्षार का प्रभाव नहीं पड़ता।
  9. रंगाई-इसे रंगना सरल है। कोई भी रंग किया जा सकता है तथा रंग पक्का चढ़ता है। धूप में रंग खराब नहीं होता परन्तु रंगकाट से रंग कमज़ोर पड़ जाते हैं।
  10. ताप का प्रभाव-आग में एकदम जलते हैं तथा कागज़ जैसे गन्ध से जलते देखभाल- यह रेशे गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं। रगड़ से भी जल्दी खराब हो जाते हैं। इन कपड़ों को निचोड़ना तथा इन पर अधिक दबाव नहीं डालना चाहिए। अधिक गर्म प्रैस भी नहीं करनी चाहिए। इन्हें सुखा कर ही सम्भालना चाहिए। सिल्वर फिश तथा फफूंदी इनको हानि पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न 2.
पॉलिएस्टर (टैरीलीन ) का प्रयोग, विशेषताएँ और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
पॉलिएस्टर की विशेषताएं तथा प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
प्रयोग-

  1. इन रेशों को दूसरे रेशों से मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार किए जाते हैं, जैसे
    टैरीकॉट – टैरीलीन + सूती
    टैरीवूल – टैरीलीन + ऊनी
    टैरी रूबिया – टैरीलीन + सूती
    टैरी सिल्क – टैरीलीन + सिल्क
  2. कपड़े शरीर के लिए ठीक होते हैं तथा मज़बूत होते हैं।
  3. इन्हें दाग़ कम लगते हैं तथा धोना भी आसान है।
  4. इनसे आम पहनने वाले तथा दूसरी प्रकार के कपड़े भी बनाए जाते हैं। विशेषताएंरचना-यह एक बहुलक है।

सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-इसके रेशे गोल, सीधे, चीकने तथा एक जैसे होते हैं। रंग-इसके रेशे सफ़ेद रंग के होते हैं।
मज़बूती-यह मज़बूत होते हैं। मजबूती को और भी बढ़ाया जा सकता है।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 8
लम्बाई-यह फिलामैंट तथा स्टेपल दोनों चित्र-पोलिएस्टर का रेशा तरह के होते हैं।
लचक-इनमें सूती तथा लिनन से अधिक लचक होती है, परन्तु नायलॉन से कम होती है।
दिखावट-चमक आवश्यकता अनुसार कम या अधिक की जा सकती है। ताप चालकता-ताप के अच्छे चालक नहीं हैं। रसायनों का प्रभाव- अम्ल तथा क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। रंगाई-कुछ विशेष रंगों से ही रंगा जा सकता है। ताप का प्रभाव-जलने पर तेज़ गन्ध आती है। गर्मी से पिघल जाते हैं।
देखभाल-धोना आसान है, फफूंदी तथा कीड़े भी नहीं लगते। धूप से रंग खराब नहीं होता। अधिक प्रेस की भी आवश्यकता नहीं है। इसलिए इन्हें सम्भालना सरल है।

प्रश्न 3.
सिल्क की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
विशेषताओं के लिए देखें उपरोक्त प्रश्न।
प्रयोग-सिल्क के रेशों से बने वस्त्रों का प्रयोग उत्सवों, शादियों के अवसरों या विशेष अवसरों पर पहनने के लिए होता है। सिल्क से घर की सजावट का सामान जैसेगलीचे, कुश्न, पर्दे आदि तथा अन्य सजावटी सामान भी बनाया जाता है। सिल्क महंगा है इसलिए इसका प्रयोग अमीर लोग अधिक करते हैं।
देखभाल-रेश्म का रेशा अधिक कमज़ोर होता है तथा गीला होने पर और भी कमज़ोर हो जाता है। इन्हें धोने के लिए रगड़ना नहीं चाहिए बल्कि पोला-पोला दबा कर धोना चाहिए।

प्रश्न 4.
कैश्मीलोन और फाइबर ग्लास के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. कैश्मीलोन-यह आरलोन की ही एक किस्म है तथा इससे स्वैटर, शालें, कोट आदि बनाए जाते हैं।
    विशेषताएं-कश्मीलोन में नाइलोन जैसे गुण होते हैं, परन्तु इसकी दिखावट ऊन के रेशों जैसी होती है। यह ऊन से सस्ते होते हैं तथा इनका रंग पक्का तथा यह मज़बूत होते हैं। कुछ समय तक प्रयोग के बाद इन वस्त्रों पर बुर आ जाती है।
  2. फाइबर ग्लास-इन रेशों का प्रयोग वस्त्र बनाने के लिए कम ही होता है, परन्तु इन का प्रयोग पारदर्शी पर्दे बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
(रेशम) सिल्क की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
सूती तथा रेशनी तन्तुओं की मौलिक विशेषताओं का मूल्यांकन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 7.
मानव निर्मित तन्तु कौन-से हैं? किसी एक तन्तु की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 8.
सूती रेशे की विशेषताएँ बताएं।
अथवा
सूती रेशे के गुणों के बारे में विस्तार से बताइए।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 9.
लिनन के रेशों की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 10.
थर्मोप्लास्टिक रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक थर्मोप्लास्टिक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में विस्तार से लिखिए ।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 11.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं? विस्तार सहित लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 12.
लिनन रेशों की विशेषताएं और देखभाल के बारे में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 13.
रेयान का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 14.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 15.
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? इनकी विशेषताओं के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 16.
पॉलिएस्टर का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 17.
सिलक के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह के दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 18.
लिनन और सूती कपड़ों में क्या समानता है?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 19.
शीतल एक फुटबाल का खिलाड़ी है। उसे खेलों के मुकाबले में भाग लेना है। उसे कौन से रेशे का बना हुआ ट्रैकसूट खरीदना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 20.
कपास का रेशा खुर्दबीन के नीचे किस तरह का दिखता है? चित्र बनाओ। इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 21.
सिल्क को कपड़ों की रानी क्यों कहा जाता है ? आप सिल्क के कपड़ों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 22.
रीमा को बारिश के मौसम में पिकनिक के लिए जाना है। उसे अपने पहनने वाले कपड़ों के लिए कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 23.
ऊन के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 24.
सूती रेशे को रेशों का सिरताज क्यों कहा जाता है ? आप इन रेशों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 25.
सुनीता की बहन की शादी 15 दिसम्बर को होनी है। उसे शादी के लिए प्राकृतिक रेशे का सूट सिलवाना है। उसे कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए? इस रेशे की क्या-क्या विशेषता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

विस्तानष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. छोटे रेशे ………………. इंच तक लम्बे होते हैं।
  2. लिनन ……………… पौधे के तने से प्राप्त होता है।
  3. प्राकृतिक फिलामैंट रेशा केवल ……………. है।
  4. ऊन तथा एकरेलिक रेशे मिला कर ………………. रेशा बनता है।
  5. सूती रेशे में …………….. प्रतिशत सैलूलोज़ होता है।
  6. ……… तथा …….. ऐंठन के दो प्रकार हैं।
  7. अधिकतर मानव निर्मित तन्तुओं में ………….. लचीलापन होता है।
  8. प्रोटीन तन्तु को ……………….. तन्तु भी कहते हैं।
  9. रेशमी रेशा ………. किस्म का रेशा है।
  10. …….. तथा ……….. दो प्राकृतिक प्रोटीन तन्तु हैं।
  11. ………… एक मानव निर्मित तन्तु है।

उत्तर-

  1. 18,
  2. फलैक्स,
  3. सिल्क,
  4. कैशमिलान,
  5. 87-90%,
  6. S, Z,
  7. बहुत,
  8. प्राकृतिक,
  9. प्राकृतिक फिलामैंट,
  10. रेशम, ऊन,
  11. रेयान।

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. छोटे रेशे 18 इंच तक लम्बे होते हैं।
  2. सन् प्राकृतिक रेशा है।
  3. रेयान मनुष्य द्वारा निर्मित रेशा है।
  4. सूती रेशों में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
  5. साईसल एक कीट है।
  6. रेशम ताप का संचालक नहीं है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ग़लत,
  6. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊन के लिए ठीक है
(क) प्राकृतिक रेशा
(ख) प्रोटीन रेशा
(ग) जानवर से प्राप्त
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
रेशों में जुड़न शक्ति निर्भर है
(क) रेशों की लम्बाई
(ख) रेशे की बारीकी
(ग) लचकीलापन
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
पौधे से प्राप्त होने वाला रेशा नहीं है
(क) सन
(ख) ऊन
(ग) पटसन
(घ) कपास।
उत्तर-
(ख) ऊन

प्रश्न 4.
थर्मोप्लास्टिक रेशा नहीं है
(क) नायलोन
(ख) पोलीस्टर
(ग) कपास
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(ग) कपास

रेशों का वर्गीकरण PSEB 10th Class Home Science Notes

कपड़ा मानवीय जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिये हम भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़े पहनते हैं तथा घर में और कई कार्यों के लिये प्रयोग करते हैं, जैसे-पर्दे, चादरें, तौलिये तथा मेज़पोश आदि। यह भिन्न-भिन्न कपड़े धागों से बनते हैं। यदि कपड़े को किनारे से देखें तो धागे निकल आते हैं। परन्तु यह धागे बालों जैसे बारीक रेशों से बनते हैं। ये रेशे कपड़े की एक मूल इकाई है। विभिन्न किस्म के कपड़े, जैसे-ऊनी, सूती, | रेशमी भिन्न-भिन्न रेशों से बनते हैं तथा यह विभिन्न रेशे प्राप्त भी भिन्न-भिन्न साधनों से होते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

SST Guide for Class 10 PSEB पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव Textbook Questions and Answers

(क) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/ एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखें

प्रश्न 1.
पंजाब किस भाषा के शब्द-जोड़ से बना है? इसके अर्थ भी लिखें।
उत्तर-
‘पंजाब’ फ़ारसी के दो शब्दों-‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। जिसका अर्थ है-पांच पानियों अर्थात् पांच दरियाओं (नदियों) की धरती।

प्रश्न 2.
भारत के बंटवारे का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
भारत के बंटवारे से पंजाब भी दो भागों में बंट गया।

प्रश्न 3.
पंजाब को ‘सप्तसिन्धु’ किस काल में कहा जाता था तथा क्यों?
उत्तर-
पंजाब को वैदिक काल में ‘सप्तसिन्धु’ कहा जाता था क्योंकि उस समय यह सात नदियों का प्रदेश था।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

प्रश्न 4.
हिमालय की पश्चिमी पहाड़ी-श्रृंखला में स्थित चार दरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
हिमालय की पश्चिमी पहाड़ी-श्रृंखला में स्थित चार दर्रे हैं-खैबर, कुर्रम, टोची तथा बोलान।

प्रश्न 5.
अगर पंजाब के उत्तर में हिमालय न होता तो यह कैसा इलाका होता?
उत्तर-
अगर पंजाब के उत्तर में हिमालय न होता तो यह इलाका शुष्क तथा ठण्डा बन कर रह जाता।

प्रश्न 6.
‘दोआबा’ शब्द से क्या भाव है?
उत्तर-
दो दरियाओं के बीच के भाग को दोआबा कहते हैं।

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प्रश्न 7.
दरिया सतलुज तथा दरिया घग्गर के बीच के इलाके को क्या कहा जाता है तथा यहां के निवासियों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
दरिया सतलुज तथा दरिया घग्गर के बीच के इलाके को ‘मालवा’ कहा जाता है। यहां के निवासियों को मलवई कहते हैं।

प्रश्न 8.
दोआबा बिस्त का यह नाम क्यों पड़ा ? इसके किन्हीं दो प्रसिद्ध शहरों के नाम लिखिए।
उत्तर-
दोआबा बिस्त ब्यास तथा सतलुज नदियों के बीच का प्रदेश है जिनके नाम के पहले अक्षरों के जोड़ से ही इस दोआबा का नाम बिस्त पड़ा है। जालन्धर तथा होशियारपुर इस दोआबे के दो प्रसिद्ध शहर हैं।

प्रश्न 9.
दोआबा बारी को ‘माझा’ क्यों कहा जाता है तथा यहां के निवासियों को क्या कहते हैं?
उत्तर-
दोआबा बारी पंजाब के मध्य में स्थित होने के कारण माझा कहलाता है। इसके निवासियों को ‘मझैल’ कहते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

(ख) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
हिमालय की पहाड़ियों के कोई तीन लाभ लिखिए।
उत्तर-
हिमालय की पहाड़ियों के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. हिमालय से निकलने वाली नदियां सारा साल बहती हैं। ये नदियां पंजाब की भूमि को उपजाऊ बनाती हैं।
  2. हिमालय की पहाड़ियों पर घने वन पाये जाते हैं। इन वनों से जड़ी-बूटियां तथा लकड़ी प्राप्त होती है।
  3. इस पर्वत की ऊंची बर्फीली चोटियां शत्रु को भारत पर आक्रमण करने से रोकती हैं। (कोई तीन लिखें)
  4. हिमालय पर्वत मानसून पवनों को रोक कर वर्षा लाने में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
किन्हीं तीन दोआबों का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-

  1. दोआबा सिन्ध सागर-इस दोआबे में दरिया सिन्ध तथा दरिया जेहलम के मध्य का प्रदेश आता है। यह भाग अधिक उपजाऊ नहीं है।
  2. दोआबा चज-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआबा के नाम से पुकारते हैं। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. दोआबा रचना-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।

प्रश्न 3.
पंजाब के दरियाओं ने इसके इतिहास पर क्या प्रभाव डाला है?
उत्तर-
पंजाब के दरियाओं (नदियों) ने सदा शत्रु के बढ़ते कदमों को रोका। बाढ़ के दिनों में तो यहां के दरिया (नदियां) समुद्र का रूप धारण कर लेते हैं और उन्हें पार करना असम्भव हो जाता है। यहां के दरिया (नदियां) जहां आक्रमणकारियों के मार्ग में बाधा बने, वहां ये उनके लिए मार्ग-दर्शक भी बने। लगभग सभी आक्रमणकारी अपने विस्तार क्षेत्र का अनुमान इन्हीं नदियों की दूरी के आधार पर ही लगाते थे। पंजाब के दरियाओं (नदियों) ने प्राकृतिक सीमाओं का काम भी किया। मुग़ल शासकों ने अपनी सरकारों, परगनों तथा सूबों की सीमाओं का काम इन्हीं दरियाओं (नदियों) से ही लिया। यहाँ के दरियाओं (नदियों) ने पंजाब के मैदानों को उपजाऊ बनाया और लोगों को समृद्धि प्रदान की।

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प्रश्न 4.
विभिन्न कालों में पंजाब की सीमाओं की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
पंजाब की सीमाएं समय-समय पर बदलती रही हैं —

  1. ऋग्वेद में बताए गए पंजाब में सिन्ध, जेहलम, रावी, चिनाब, ब्यास, सतलुज तथा सरस्वती नदियों का प्रदेश सम्मिलित था।
  2. मौर्य तथा कुषाण काल में पंजाब की पश्चिमी सीमा हिन्दुकुश के पर्वतों तक चली गई थी तथा तक्षशिला इसका एक भाग बन गया था।
  3. सल्तनत काल में पंजाब की सीमाएं लाहौर तथा पेशावर तक थीं जबकि मुग़ल काल में पंजाब दो प्रान्तों में बंट गया था-लाहौर तथा मुल्तान।
  4. महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब (लाहौर) राज्य का विस्तार सतलुज नदी से पेशावर तक था।
  5. लाहौर राज्य के अंग्रेजी साम्राज्य में विलय के पश्चात् इसका नाम पंजाब रखा गया।
  6. भारत विभाजन के समय पंजाब के मध्यवर्ती प्रदेश पाकिस्तान में चले गए।
  7. पंजाब भाषा के आधार पर तीन राज्यों में बंट गया-पंजाब, हरियाणा तथा हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 5.
पंजाब के इतिहास को हिमालय पर्वत ने किस तरह से प्रभावित किया?
उत्तर-
हिमालय पर्वत ने पंजाब के इतिहास पर निम्नलिखित प्रभाव डाले हैं —

  1. पंजाब भारत का द्वार पथ-हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के कारण पंजाब अनेक युगों से भारत का द्वार पथ रहा। इन पर्वतीय श्रेणियों में स्थित दरों को पार करके अनेक आक्रमणकारी भारत पर आक्रमण करते रहे।
  2. उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या-पंजाब का उत्तर-पश्चिमी भाग भारतीय शासकों के लिए सदा एक समस्या बना रहा। जो शासक इस भाग में स्थित दरों की उचित रक्षा नहीं कर सके, उन्हें पतन का मुंह देखना पड़ा।
  3. विदेशी आक्रमणों से रक्षा-हिमालय पर्वत ऊंचा है तथा हमेशा बर्फ से ढका रहता है। इस लिये इसे पार करना बड़ा कठिन था। परिणामस्वरूप पंजाब उत्तर की ओर से एक लम्बे समय तक आक्रमणकारियों से सदा सुरक्षित रहा।
  4. आर्थिक समृद्धि-हिमालय के कारण पंजाब एक समृद्ध प्रदेश बना। हिमालय की नदियां प्रत्येक वर्ष नई मिट्टी ला-लाकर पंजाब के मैदानों में बिछाती रहीं। परिणामस्वरूप पंजाब का मैदान संसार के उपजाऊ मैदानों में गिना जाने लगा।

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(ग) नीचे लिखे प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
हिमालय तथा उत्तरी-पश्चिमी पहाडियों का वर्णन करो।
उत्तर-
पंजाब का धरातल अनेक विशेषताओं से सम्पन्न है। इस प्रदेश का आकार त्रिकोण है। यह उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में सिन्ध तथा राजस्थान तक फैला हुआ है। पश्चिम में इसकी सीमा सुलेमान तथा पूर्व में यमुना नदी को छूती हैं। अपनी सीमाओं के भीतर पंजाब अंगड़ाइयां लेता हुआ दिखाई देता है।
‘हिमालय तथा उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां-पंजाब के इस भौतिक भाग का वर्णन इस प्रकार है.
1. हिमालय-हिमालय की पहाड़ियां पंजाब में श्रृंखलाबद्ध हैं। इन पहाड़ियों को ऊंचाई के अनुसार तीन भागों में बांटा जाता है-महान् हिमालय, मध्य हिमालय तथा बाहरी हिमालय।

  1. महान् हिमालय-महान् हिमालय की पहाड़ियां पूर्व में नेपाल तथा तिब्बत की ओर चली जाती हैं। पश्चिम में भी इन्हें महान् हिमालय कहा जाता है। यह श्रृंखला पंजाब के लाहौल-स्पीति तथा कांगड़ा ज़िला को कश्मीर से अलग करती है। इन पहाड़ी इलाकों में कुल्लू की रमणीक घाटी तथा रोहतांग दर्रा है। इस श्रृंखला की ऊंचाई लगभग 5851 मीटर से लेकर 6718 मीटर के बीच है। ये पहाड़ियां सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं।
  2. मध्य हिमालय-मध्य हिमालय को प्रायः पांगी पहाड़ियों की श्रृंखला कहा जाता है। ये पहाड़ियां रोहतांग दर्रे से आरम्भ होती हैं। ये चम्बा में से निकलती हुई चिनाब तथा रावी दरियाओं की घाटियों को अलग करती हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई लगभग 2155 मीटर है।
  3. बाहरी हिमालय-बाहरी हिमालय की पहाड़ियां चम्बा तथा धर्मशाला के बीच से गुज़रती हैं। ये कश्मीर से रावलपिंडी, जेहलम तथा गुजरात जिलों के प्रदेश तक जा पहुंचती हैं। इन पहाड़ियों की ऊंचाई लगभग 923 मीटर है। इन पहाड़ियों को ‘धौलाधार की पहाड़ियां’ भी कहा जाता है।

2. उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां-पंजाब के उत्तर-पश्चिम में हिमालय की पश्चिमी शाखाएं स्थित हैं। इन शाखाओं में किरथार तथा सुलेमान की पर्वत-श्रेणियां सम्मिलित हैं। इन पर्वतों की ऊंचाई अधिक नहीं है। इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनमें अनेक रॆ हैं इन दरों में खैबर का दर्रा महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। अधिकतर आक्रमणकारियों के लिए यही दर्रा प्रवेश-द्वार बना रहा।

प्रश्न 2.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब का मैदानी भाग जितना विस्तृत है उतना समृद्ध भी है। यह पंजाब का रंगमंच था जिस पर इतिहास रूपी नाटक खेला गया। यह उत्तर-पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण-पूर्व में यमुना नदी तक फैला हुआ है। इस मैदान की गणना संसार के सबसे अधिक उपजाऊ मैदानों में की जाती है।

  1. मैदानी क्षेत्र के दो मुख्य भाग-पंजाब के मैदानी क्षेत्र को दो भागों में बांटा गया है-पूर्वी मैदान तथा पश्चिमी मैदान। यमुना तथा रावी के मध्य स्थित भाग को ‘पूर्वी मैदान’ कहते हैं। यह प्रदेश अधिक उपजाऊ है। यहां की जनसंख्या भी घनी है। रावी तथा सिंध के मध्य वाले भाग को ‘पश्चिमी मैदान’ कहते हैं। यह प्रदेश पूर्वी मैदान की तुलना में कम समृद्ध है।
  2. पाँच दोआब-दो नदियों के बीच की भूमि को दोआब कहते हैं। पंजाब का मैदानी भाग निम्नलिखित पाँच दोआबों से घिरा हुआ है।
    1. सिन्ध सागर दोआब-जेहलम तथा सिन्ध नदियों के बीच के प्रदेश को सिन्ध सागर दोआब कहा जाता है। यह प्रदेश अधिक उपजाऊ नहीं है। जेहलम तथा रावलपिंडी यहां के प्रसिद्ध नगर हैं।
    2. रचना दोआब-इस भाग में रावी तथा चिनाब नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है जो काफ़ी उपजाऊ है। गुजरांवाला तथा शेखूपुरा इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।
    3. बिस्त-जालन्धर दोआब-इस दोआब में सतलुज तथा ब्यास नदियों के बीच का प्रदेश सम्मिलित है। यह प्रदेश बड़ा उपजाऊ है। जालन्धर और होशियारपुर इस दोआब के प्रसिद्ध नगर हैं।
    4. बारी दोआब-ब्यास तथा रावी नदियों के बीच के प्रदेश को बारी दोआब कहा जाता है। यह अत्यन्त उपजाऊ क्षेत्र है। पंजाब के मध्य में स्थित होने के कारण इसे ‘माझा’ भी कहा जाता है। पंजाब के दो सुविख्यात नगर लाहौर तथा अमृतसर इसी दोआब में स्थित हैं। घज दोआब-चिनाब तथा जेहलम नदियों के मध्य क्षेत्र को चज दोआब के नाम से पुकारा जाता है। इस दोआब के प्रसिद्ध नगर गुजरात, भेरा तथा शाहपुर हैं।
  3. मालवा तथा बांगर-पांच दोआबों के अतिरिक्त पंजाब के मैदानी भाग में सतलुज तथा यमुना के मध्य का विस्तृत मैदानी क्षेत्र भी सम्मिलित है। इसको दो भागों में बांटा जा सकता है-मालवा तथा बांगर।
    1. मालवा-सतलुज तथा घग्घर नदियों के मध्य में फैले प्रदेश को ‘मालवा’ कहते हैं। लुधियाना, पटियाला, नाभा, संगरूर, फरीदकोट, भटिंडा आदि प्रसिद्ध नगर इस भाग में स्थित हैं।
    2. बांगर अथवा हरियाणा-यह प्रदेश घग्घर तथा यमुना नदियों के मध्य में स्थित है। इसके मुख्य नगर अम्बाला, कुरुक्षेत्र, पानीपत, जीन्द, रोहतक, करनाल, गुड़गांव तथा हिसार हैं। यह भाग एक ऐतिहासिक मैदान भी है जहां अनेक निर्णायक युद्ध लड़े गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

PSEB 10th Class Social Science Guide पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
किस मुगल शासक ने पंजाब को दो प्रान्तों में बांटा?
उत्तर-
मुग़ल शासक अकबर ने पंजाब को दो प्रान्तों में बांटा।

प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को किस नाम से पुकारा जाने लगा था?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को ‘लाहौर राज्य’ के नाम से पुकारा जाने लगा था।

प्रश्न 3.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब मिलाया गया?
उत्तर-
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में 1849 ई० में मिलाया गया।

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प्रश्न 4.
पंजाब को भाषा के आधार पर कब बांटा गया?
उत्तर-
पंजाब को भाषा के आधार पर 1966 ई० में बांटा गया।

प्रश्न 5.
हिमालय के पश्चिमी दरों के मार्ग से पंजाब पर आक्रमण करने वाली किन्हीं चार जातियों के नाम बताओ।
उत्तर-
इन दरों के मार्ग से पंजाब पर आक्रमण करने वाली चार जातियां थीं-आर्य, शक, यूनानी तथा कुषाण।

प्रश्न 6.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को कौन-कौन से दो भागों में विभक्त किया जाता है?
उत्तर-
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को पूर्वी मैदान.तथा पश्चिमी मैदान में विभक्त किया जाता है।

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प्रश्न 7.
भारतीय पंजाब में अब कौन-से दो दरिया रह गये हैं?
उत्तर-
सतलुज तथा ब्यास।

प्रश्न 8.
रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
सेकिया।

प्रश्न 9.
दिल्ली को भारत की राजधानी किस गवर्नर-जनरल ने बनाया?
उत्तर-
लार्ड हार्डिंग ने।

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प्रश्न 10.
हिमालय की पश्चिमी श्रृंखलाओं में स्थित किन्हीं दो दरों के नाम बताओ।
उत्तर-
खैबर तथा टोची।

प्रश्न 11.
दिल्ली भारत की राजधानी कब बनी?
उत्तर-
1911 में।

प्रश्न 12.
सिकंदर ने भारत पर कब आक्रमण किया?
उत्तर-
326 ई० पू० में।

प्रश्न 13.
शाह जमान ने भारत (पंजाब) पर आक्रमण कब किया?
उत्तर-
1798 ई० में।

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प्रश्न 14.
अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच कौन-सा दरिया सीमा का काम करता था?
उत्तर-
सतलुज।

प्रश्न 15.
आज किस दरिया का कुछ भाग हिन्द-पाक सीमा का काम करता है?
उत्तर-
रावी।

प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
लाहौर।

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प्रश्न 17.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र को वास्तविक पंजाब’ क्यों कहा गया है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
यह क्षेत्र अत्यन्त उपजाऊ है और समस्त पंजाब की समृद्धि का आधार है।

प्रश्न 18.
पंजाब के मैदानी क्षेत्र के किन्हीं चार दोआबों के नाम लिखो।
उत्तर-
पंजाब के मैदानी क्षेत्र के चार दोआब हैं-बिस्त-जालन्धर दोआब, बारी दोआब, रचना दोआब तथा चज दोआब।

प्रश्न 19.
मालवा प्रदेश किन नदियों के बीच स्थित है?
उत्तर-
मालवा प्रदेश सतलुज और घग्घर नदियों के बीच में स्थित है।

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प्रश्न 20.
पंजाब के मालवा प्रदेश का नाम किसके नाम पर पड़ा?
उत्तर-
पंजाब के मालवा प्रदेश का नाम यहां बसने वाले मालव कबीले के नाम पर पड़ा।

प्रश्न 21.
पंजाब के किन्हीं चार नगरों के नाम बताओ जहां निर्णायक ऐतिहासिक युद्ध हुए।
उत्तर-
तराइन, पानीपत, पेशावर तथा थानेसर में निर्णायक युद्ध हुए।

प्रश्न 22.
पाकिस्तानी पंजाब को किस नाम से पुकारा जाता है?
उत्तर-
पश्चिमी पंजाब।

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प्रश्न 23.
हिंदी-बाखत्री तथा हिन्दी-पारथी राजाओं के अधीन पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
साकला (सियालकोट)।

प्रश्न 24.
‘सप्तसिंधु’ शब्द से क्या भाव है?
उत्तर-
‘सप्तसिंधु’ शब्द से भाव सात नदियों के प्रदेश अर्थात् वैदिक काल के पंजाब से है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. पंजाब को …………… काल में सप्तसिंधु कहा जाता था।
  2. दो दरियाओं के बीच के भाग को …………. कहते हैं।
  3. मुग़ल शासक अकबर ने पंजाब को ………… प्रांतों में बांटा।
  4. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब को ………….. राज्य के नाम से पुकारा जाने लगा।
  5. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब को ………. कहा जाता था।
  6. सिकंदर ने भारत पर ………………. ई० पू० में आक्रमण किया।

उत्तर-

  1. वैदिक,
  2. दोआबा,
  3. दो,
  4. लाहौर,
  5. सेकिया,
  6. 326.

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिलाया गया
उत्तर-
(A) 1947 ई० में
(B) 1857 ई० में
(C) 1849 ई० में
(D) 1889 ई० में।
उत्तर-
(C) 1849 ई० में

प्रश्न 2.
पंजाब को भाषा के आधार पर दो भागों में बांटा गया
(A) 1947 ई० में
(B) 1966 ई० में
(C) 1950 ई० में
(D) 1971 ई० में।
उत्तर-
(B) 1966 ई० में

प्रश्न 3.
अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच सीमा का काम करता था-
(A) सतलुज दरिया
(B) चिनाब दरिया
(C) रावी दरिया
(D) ब्यास दरिया।
उत्तर-
(A) सतलुज दरिया

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प्रश्न 4.
आज हिन्द-पाक सीमा का काम कौन-सा दरिया करता है?
(A) रावी दरिया
(B) चिनाब दरिया
(C) ब्यास दरिया
(D) सतलुज दरिया।
उत्तर-
(A) रावी दरिया

प्रश्न 5.
शाह ज़मान ने भारत (पंजाब) पर आक्रमण किया
(A) 1811 ई० में
(B) 1798 ई० में
(C) 1757 ई० में
(D) 1794 ई० में।
उत्तर-
(B) 1798 ई० में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. पंजाब को वैदिक काल में ‘सप्तसिंधु’ कहा जाता था।
  2. लार्ड हार्डिंग ने दिल्ली को भारत की राजधानी बनाया।
  3. महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी अमृतसर थी।
  4. मालवा प्रदेश सतलुज और घग्गर नदियों के बीच में स्थित है।
  5. पंजाब को भाषा के आधार पर 1947 में बांटा गया।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✗).

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 1 पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

V. उचित मिलान

  1. दो दरियाओं के बीच का भाग – बिस्त दोआब
  2. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब – सेकिया
  3. जालंधर तथा होशियारपुर – दोआबा
  4. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब – लाहौर राज्य।

उत्तर-

  1. दो दरियाओं के बीच का भाग – दोआबा,
  2. महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पंजाब – लाहौर राज्य,
  3. जालंधर तथा होशियारपुर – बिस्त दोआब,
  4. रामायण तथा महाभारत काल में पंजाब – सेकिया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
पंजाब ने भारतीय इतिहास. में क्या भूमिका निभाई है?
उत्तर-
पंजाब ने अपनी अद्वितीय भौगोलिक स्थिति के कारण भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह प्रदेश भारत में सभ्यता का पालना बना। भारत की सबसे प्राचीन सभ्यता (सिन्धु घाटी की सभ्यता) इसी क्षेत्र में फलीफूली। आर्यों ने भी अपनी सत्ता का केन्द्र इसी प्रदेश को बनाया। उन्होंने वेद, पुराण, महाभारत, रामायण आदि महत्त्वपूर्ण कृतियों की रचना की। पंजाब ने भारत के प्रवेश द्वार के रूप में भी कार्य किया। मध्यकाल तक भारत में आने वाले सभी आक्रमणकारी पंजाब के मार्ग से ही भारत आये। अतः पंजाब वासियों ने बार-बार आक्रमणकारियों के बढ़ते कदमों को रोकने के लिए बार-बार उनसे युद्ध किए। इसके अतिरिक्त पंजाब हिन्दू तथा सिक्ख धर्म की जन्म-भूमि भी रहा है। गुरु नानक देव जी ने अपना पावन सन्देश इसी धरती पर दिया। यहीं रहकर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा पन्थ की स्थापना की और मुग़लों के धार्मिक अत्याचारों का विरोध किया। बन्दा बहादुर तथा महाराजा रणजीत सिंह के कार्य भी भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। निःसन्देह पंजाब ने भारत के इतिहास में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है।

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प्रश्न 2.
पंजाब के इतिहास को दृष्टि में रखते हुए पंजाब के भौतिक भागों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब के इतिहास को दृष्टि में रखते हुए पंजाब को मुख्य रूप से तीन भौतिक भागों में बांटा जा सकता है-

  1. हिमालय तथा उत्तरी-पश्चिमी पर्वतीय श्रेणियां
  2. तराई प्रदेश तथा
  3. मैदानी क्षेत्र। पंजाब के उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत फैला है। इसकी ऊंची-ऊंची चोटियां सदैव बर्फ से ढकी रहती हैं। हिमालय की तीन श्रेणियां हैं जो एक-दूसरे के समानान्तर फैली हैं। हिमालय की उत्तर-पश्चिमी शाखाओं में अनेक महत्त्वपूर्ण दर्रे हैं जो प्राचीन काल में आक्रमणकारियों, व्यापारियों तथा धर्म प्रचारकों को मार्ग जुटाते रहे। पंजाब का दूसरा भौतिक भाग तराई (तलहटी) प्रदेश है। यह पंजाब के पर्वतीय तथा उपजाऊ मैदानी भाग के मध्य में विस्तृत है। इस भाग में जनसंख्या बहुत कम है। पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण भौतिक भाग इसका उपजाऊ मैदानी प्रदेश है। यह उत्तर-पश्चिम में सिन्धु नदी से लेकर दक्षिण-पूर्व में यमुना नदी तक फैला हुआ है। यह हिमालय से निकलने वाली नदियों द्वारा लाई गई उपजाऊ मिट्टी से बना है और आरम्भ से ही पंजाब की समृद्धि का आधार रहा है।

प्रश्न 3.
पंजाब की भौतिक विशेषताओं ने पंजाब के इतिहास को किस प्रकार प्रभावित किया है?
उत्तर-
पंजाब की भौतिक विशेषताओं ने पंजाब के इतिहास को अपने-अपने ढंग से प्रभावित किया है।

  1. हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के दरों ने अनेक आक्रमणकारियों को मार्ग दिया। अतः पंजाब के शासकों के लिए उत्तरी-पश्चिमी सीमा की सुरक्षा सदा एक समस्या बनी रही। इसके साथ-साथ हिमालय की बर्फ से ढकी ऊंचीऊंची चोटियां पंजाब की आक्रमणकारियों (उत्तर की ओर से) से रक्षा भी करती रहीं।
  2. हिमालय के कारण पंजाब में अपनी एक विशेष संस्कृति का भी विकास हुआ।
  3. पंजाब का उपजाऊ एवं धनी प्रदेश आक्रमणकारियों के लिए सदा आकर्षण का कारण बना रहा। फलस्वरूप इस धरती पर बार-बार युद्ध हुए।
  4. तराई प्रदेश ने संकट के समय सिक्खों को शरण दी। यहां रहकर सिक्खों ने अत्याचारी शासकों का विरोध किया और अपने अस्तित्व को बनाए रखा। अतः स्पष्ट है कि पंजाब का इतिहास वास्तव में इस प्रदेश के भौतिक तत्त्वों की ही देन है।

प्रश्न 4.
पंजाब को अंग्रेजी राज्य में कब और किसने मिलाया ? स्वतन्त्रता आन्दोलन में पंजाब के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब को 1849 में लॉर्ड डल्हौज़ी ने अंग्रेजी राज्य में मिलाया। स्वतन्त्रता आन्दोलन में पंजाब का योगदान अद्वितीय था। पंजाब में ही भाई राम सिंह ने कूका आन्दोलन की नींव रखी। 20वीं शताब्दी में सिंह सभा लहर, गदर पार्टी, गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन, बब्बर अकाली आन्दोलन, नौजवान सभा तथा अकाली दल के माध्यम से यहां के वीरों ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को सक्रिय बनाया। भगत सिंह ने मातृभूमि की जंजीरें तोड़ने के लिए फांसी के फंदे को चूम लिया। करतार सिंह सराभा तथा सरदार ऊधम सिंह जैसे पंजाबी वीरों ने भी हँसते-हँसते भारत माता के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये। अन्ततः 1947 में भारत की स्वतन्त्रता के साथ पंजाब भी अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया।

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प्रश्न 5.
पंजाब की पर्वतीय तलहटी अथवा तराई प्रदेश की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
तराई प्रदेश हिमाचल प्रदेश के उच्च प्रदेशों और पंजाब के मैदानी प्रदेशों के मध्य स्थित है। इसकी ऊंचाई 308 से 923 मीटर तक है। यह भाग अनेक घाटियों के कारण हिमालय पर्वत श्रेणियों से अलग-सा दिखाई देता है। इस भाग में सियालकोट, कांगड़ा, होशियारपुर, गुरदासपुर तथा अम्बाला का कुछ क्षेत्र सम्मिलित है। सामान्य रूप से यह एक पर्वतीय प्रदेश है। अतः यहां उपज बहुत कम होती है। वर्षा के कारण यहां अनेक रोग फैलते हैं। यहां आने-जाने के साधनों का भी पूरी तरह से विकास नहीं हो पाया है। इसलिए यहां की जनसंख्या कम है। यहां के लोगों को अपना जीवन-निर्वाह करने के लिए कड़ा परिश्रम करना पड़ता है। इस परिश्रम ने उन्हें बलवान् तथा हृष्ट-पुष्ट बना दिया है।

प्रश्न 6.
पंजाब के मैदानी प्रदेश ने पंजाब के इतिहास को कहां तक प्रभावित किया है?
उत्तर-
पंजाब के इतिहास पर पंजाब के मैदानी प्रदेश की स्पष्ट छाप दिखाई देती है।

  1. इस प्रदेश की भूमि अत्यन्त उपजाऊ है जिसके कारण यह प्रदेश सदा समृद्ध रहा। पंजाब के मैदानों की यह सम्पन्नता बाह्य शत्रुओं के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गई।
  2. पंजाब निर्णायक युद्धों का केन्द्र बना रहा। पेशावर, कुरुक्षेत्र, करी, थानेश्वर, तराइन, पानीपत आदि नगरों में घमासान युद्ध हुए। केवल पानीपत के मैदान में तीन बार निर्णायक युद्ध हुए।
  3. अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण जहां पंजाबियों ने अनेक युद्धों का सामना किया, वहां निर्मम अत्याचारों का सामना भी किया। उदाहरण के लिए तैमूर ने पंजाब के लोगों पर अनगिनत अत्याचार किए थे।
  4. निरन्तर युद्धों में उलझे रहने के कारण पंजाब के लोगों में वीरता एवं निर्भीकता के विशेष गुण उत्पन्न हुए।
  5. पंजाब के मैदानी प्रदेश में आर्यों ने हिन्दू धर्म का विकास किया। इसी प्रदेश ने मध्यकाल में गुरु नानक साहिब जैसे महान् सन्त को जन्म दिया जिनकी सरल शिक्षाएं सिक्ख धर्म के रूप में प्रचलित हुई। इन सब तथ्यों से स्पष्ट है कि पंजाब के मैदानी प्रदेश ने पंजाब के इतिहास में अनेक अध्यायों का समावेश किया।

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बड़े उत्तर वाला प्रश्न (Long Answer Type Question)

प्रश्न
“हिमालय पर्वत ने पंजाब के इतिहास पर गहरा प्रभाव डाला है।” इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत पंजाब के उत्तर में एक विशाल दीवार की भान्ति स्थित है। इस पर्वत ने पंजाब के इतिहास को पूरी तरह प्रभावित किया है —

  1. पंजाब भारत का द्वार पथ — हिमालय की-पश्चिमी शाखाओं के कारण पंजाब अनेक युगों में भारत का द्वार पथ रहा। आर्यों से लेकर ईरानियों तक सभी आक्रमणकारी इन्हीं मार्गों द्वारा भारत पर आक्रमण करते रहे। परन्तु सर्वप्रथम उन्हें पंजाब के लोगों से संघर्ष करना पड़ा। इस प्रकार पंजाब भारत के लिए द्वार की भूमिका निभाता रहा है।
  2. उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या — पंजाब का उत्तर-पश्चिमी भाग भारतीय शासकों के लिए सदा एक समस्या बना रहा। भारतीय शासकों को इनकी रक्षा के लिए काफ़ी धन व्यय करना पड़ा। डॉ० बुध प्रकाश ने ठीक ही कहा है, “जब कभी शासकों का इस प्रदेश (उत्तर-पश्चिमी सीमा) पर नियन्त्रण ढीला पड़ गया, तभी उनका साम्राज्य छिन्न-भिन्न होकर अदृश्य हो गया।”
  3. विदेशी आक्रमणों से रक्षा — हिमालय पर्वत बहुत ऊंचा है और सदा बर्फ से ढका रहता है। परिणामस्वरूप यह प्रदेश उत्तर की ओर से एक लम्बे समय तक आक्रमणकारियों से सुरक्षित रहा।
  4. आर्थिक समृद्धि — हिमालय के कारण पंजाब एक समद्ध प्रदेश बना। इसकी नदियां प्रत्येक वर्ष नई मिट्टी लाकर पंजाब के मैदानों में बिछाती रहीं। परिणामस्वरूप पंजाब का मैदान संसार के उपजाऊ मैदानों में गिना जाने लगा। उपजाऊ भूमि के कारण यहां अच्छी फसल होती रही और यहां के लोग समद्ध होते चले गए।
  5. विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध — उत्तर-पश्चिमी पर्वत श्रेणियों में स्थित दरों के कारण पंजाब के विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित हुए। एशिया के देशों के व्यापारी इन्हीं दरों के मार्ग से यहां आया करते थे और पंजाब के व्यापारी उन देशों में जाया करते थे।
  6. पंजाब की विशेष संस्कृति — हिमालय की पश्चिमी शाखाओं के दरों द्वारा यहां ईरानी, अरब, तुर्क, मुग़ल, अफ़गान आदि जातियां आईं और यहां अनेक भाषाओं जैसे संस्कृत, अरबी, फारसी, तुर्की आदि का संगम हुआ। इस मेल-मिलाप से पंजाब में एक विशिष्ट संस्कृति का जन्म हुआ जिसमें देशी तथा विदेशी तत्त्वों का संगम था।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 2 सन्तुलित भोजन

PSEB 10th Class Physical Education Guide सन्तुलित भोजन Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
प्रोटीन कितने प्रकार के होते हैं ? उनके नाम लिखें।
(Name the type of Protein.)
उत्तर-
प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-पशु प्रोटीन तथा वनस्पति प्रोटीन।

प्रश्न 2.
कार्बोहाइड्रेट्स क्या है ?
(What is Carbohydrates ?)
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स कार्बन और हाइड्रोजन का मिश्रण है।

प्रश्न 3.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं ?
(Mention the types of Vitamins ?)
उत्तर-
विटामिन छ: प्रकार के होते हैं-A, B, C, D, E और K.

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प्रश्न 4.
कौन-से विटामिन पानी में घलनशील नहीं हैं ?
(Which Vitamins are not soluble in water ?)
उत्तर-
विटामिन C, D, E और K.

प्रश्न 5.
छोटे बच्चे के लिए कौन-सा दूध अच्छा होता है ?
(Which Milk is better for a child ?)
उत्तर-
मां का दूध।।

प्रश्न 6.
हमारे दैनिक भोजन में प्रोटीन की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
(How much Proteins we should take in our daily by meals ?)
उत्तर-
70 से 100 ग्राम।

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प्रश्न 7.
कार्बोहाइड्रेट किन दो रूपों में मिलते हैं ?
(Mention the forms of Carbohydrates.)
उत्तर-
स्टार्च तथा शक्कर के रूप में।

प्रश्न 8.
प्रोटीन किन तत्त्वों का मिश्रण है ?
(Which elements Protein in mixture ?)
उत्तर-
कार्बन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन तथा गन्धक।

प्रश्न 9.
जीवन तत्त्व किन्हें कहते हैं ?
(Which thing is known as life saving ?)
उत्तर-
विटामिनों को।

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प्रश्न 10.
हमारे भोजन में चर्बी (वसा) की मात्रा कितनी होनी चाहिए ?
(How much fat one should take daily ?)
उत्तर-
50 से 70 ग्राम।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भोजन क्या होता है ? हम भोजन क्यों करते हैं ?
(What is Food ? Why we take food ?)
उत्तर-
भोजन क्या होता है ? (What is Food ?)-भोजन एक ऐसी वस्तु का नाम है जो हमारे शरीर में जा कर शरीर का भाग बन जाती है, नई वस्तुओं का निर्माण करती है, भीतरी टूट-फूट की मुरम्मत करती है और शरीर में गर्मी तथा शक्ति उत्पन्न करती है।

  1. क्षतिपूर्ति या नए तन्तुओं का बनाना (Formation of new Tissues)-मानव शरीर के हर समय क्रियाओं के करने से शरीर के तन्तु (Tissues) टूटते-फूटते रहते हैं। उचित भोजन के द्वारा शरीर के पुराने तन्तुओं की मुरम्मत होती है और नए तन्तुओं का निर्माण होता है।
  2. भोजन शरीर को शक्ति देता है (Food supplies energy to Body)-दैनिक जीवन के कार्यों को करने के लिए शरीर को शक्ति की आवश्यकता होती है। भोजन के जलने (Combustion) से ताप पैदा होता है जिससे शरीर में काम करने के लिए शक्ति पैदा होती है।
  3. भोजन शरीर को ताप प्रदान करता है (Food supplies heat to Body)भोजन द्वारा शरीर को ताप मिलता है। यदि शरीर में ताप की मात्रा कम हो जाती है तो जीवन असम्भव हो जाता है।
  4. भोजन शरीर की वृद्धि में सहायक होता है (Food helps in the growth of Body)-भोजन द्वारा शरीर के अंगों में विकास होता है। यदि किसी बच्चे को भोजन न

मिले या उचित मात्रा में न मिले तो उसके शरीर के अंगों का उचित विकास नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
भोजन के कौन-कौन से मुख्य कार्य हैं ?
(What are the main functions of Food ?)
उत्तर-
हम जो भोजन खाते हैं, वह पचने के बाद शरीर में कई कार्य करता है। उन कार्यों का विवरण निम्नलिखित है—

  1. शारीरिक वृद्धि में सहायक-भोजन शरीर की वृद्धि में सहायता करता है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण और वृद्धि होती है।
  2. शरीर को शक्ति प्रदान करता है-भोजन शरीर को शक्ति प्रदान करता है। हमारा शरीर कई प्रकार की क्रियाएं करता है। इन क्रियाओं के लिए आवश्यक शक्ति भोजन से ही प्राप्त होती है।
  3. शरीर में गर्मी पैदा करना-भोजन शरीर में गर्मी पैदा करता है। जब खाया हुआ भोजन पचकर सांस द्वारा प्राप्त ऑक्सीजन में मिलकर खून में उबलता है तो गर्मी पैदा होती है। यह गर्मी शरीर के लिए बहुत ही ज़रूरी है। इसके बिना हम जीवित नहीं रह सकते।
  4. नए तन्तुओं का निर्माण और टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत करना-भोजन टूटेफूटे तन्तुओं की मुरम्मत करता है। भोजन से नए तन्तु भी बनते हैं। शरीर में चल रही क्रियाओं के कारण कुछ तन्तु नष्ट हो जाते हैं और कुछ टूट जाते हैं। भोजन का सबसे बड़ा काम टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत करना होता है। नष्ट हुए तन्तुओं के स्थान पर नए तन्तु भी भोजन ही तैयार करता है।
  5. बीमारियों से रक्षा-भोजन शरीर की बीमारियों से रक्षा करता है। भोजन खाने से शक्ति उत्पन्न होती है। यह शक्ति हमें बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य बनाती है। इस प्रकार हम कई प्रकार की बीमारियों से बच सकते हैं।
    ऊपर बताए गए सभी कार्य भोजन के मुख्य कार्य होते हैं।

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प्रश्न 3.
विटामिन क्या होते हैं ? ये हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं ?
(What are Vitamins ? Why these are needed for our body ?)
उत्तर-
विटामिन-विटामिन ऐसे रासायनिक पदार्थ हैं जो हमारे शरीर के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। अब तक कई प्रकार के विटामिनों की खोज की जा चुकी है। परन्तु प्रमुख विटामिन छ: ही हैं। ये हैं-विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’। इनमें विटामिन ‘बी’ और ‘सी’ पानी में घुलनशील हैं और रोप विटामिन ‘ए’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ चर्बी में घुलनशील होते हैं। विटामिन एक प्रकार के विशेष पदार्थों में पाए जाते हैं। भोजन में विटामिनों का उचित मात्रा में होना बहुत ज़रूरी है। विटामिन का जीवन के लिए बहुत अधिक महत्त्व अनुभव करते हुए इन्हें ‘जीवनदाता’ भी कहा जाता है। विटामिन डी धूप से मिलता है।
विटामिनों की शरीर को आवश्यकता — विटामिनों की हमारे शरीर के लिए आवश्यकता निम्नलिखित तथ्यों से बिल्कुल स्पष्ट हो जाती है

  1. विटामिन हमारे स्वास्थ्य को ठीक रखते हैं।
  2. ये हमारी शारीरिक वृद्धि में सहायता करते हैं।
  3. ये हमारी पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
  4. ये हमारा खून साफ़ करते हैं और खून की मात्रा को बढ़ाते हैं।
  5. ये हड्डियों और दांतों को मज़बूत बनाते हैं।
  6. ये हमें बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य बनाते हैं।
  7. विटामिनों के प्रयोग से चमड़ी के रोग दूर हो जाते हैं।
  8. विटामिन शरीर की शक्ति बढ़ाते हैं।

प्रश्न 4.
कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाई (वसा) हमारे शरीर के लिए क्यों आवश्यक हैं ?
(Why Carbohydrates and Fats are necessary for us ?)
उत्तर-
कार्बोहाइड्रेट्स-ये हमें शक्कर तथा स्टॉर्च के रूप में मिलने वाले पदार्थों से प्राप्त होते हैं; जैसे कि-आम, गन्ने का रस, गुड़, शक्कर , अंगूर, खजूर, गाजर, सूखे मेवे, गेहूं, मक्की, जौ, ज्वार, शकरकन्दी, अखरोट, केले आदि से प्राप्त होता है।
आवश्यकता-

  1. कार्बोहाइड्रेट्स हमारे शरीर को गर्मी तथा शक्ति देते हैं।
  2. ये शरीर में चर्बी पैदा करते हैं।
  3. ये चर्बी से सस्ते होते हैं।
  4. ग़रीब तथा कम आय वाले लोग भी इसका प्रयोग कर सकते हैं। चिकनाई

यह हमें वनस्पति तथा पशुओं की चर्बी से प्राप्त होती है। यह सब्जियों, सूखे मेवों, फलों, अखरोट, बादाम, मूंगफली, बीजों से प्राप्त तेल, घी, दूध, मक्खन, मछली का तेल, अण्डे आदि में मिलती है।
आवश्यकता-

  1. चिकनाई शरीर में शक्ति पैदा करती है
  2. इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है।
  3. यह शरीर में ईंधन का काम करती है।
  4. चर्बी से शरीर मोटा हो जाता है।

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बड़े उत्तरों ले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विटामिन कितने प्रकार के होते हैं ? इनके मुख्य कार्य बताओ। यह किन-किन खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं ?
(Give the types of Vitamins. Describe their main functions and sources.)
उत्तर-
अब तक बहुत-से विटामिनों की खोज हो चुकी है, परन्तु प्रसिद्ध विटामिन ‘ए’, ‘बी’, ‘सी’, ‘डी’, ‘ई’ और ‘के’ ही माने जाते हैं। इनमें से प्रत्येक विटामिन के मुख्य कार्य और प्राप्ति स्रोत निम्नलिखित हैं
1. विटामिन ‘ए’-विटामिन ‘ए’ के कार्य निम्नलिखित हैं—

  1. इससे आंखों की ज्योति बढ़ती है।
  2. भूख बढ़ती है।
  3. पाचन-शक्ति ठीक रहती है।
  4. यह विटामिन शरीर के विकास और शक्ति की वृद्धि में योगदान देते हैं।

कमी से हानियां—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 1

  1. इसकी कमी से अन्धराता हो जाता है।
  2. त्वचा शुष्क हो जाती है।
  3. गर्दन, नाक और आंखों की त्वचा को प्रत्येक छूत की बीमारी शीघ्र लगती है।
  4. शरीर दुर्बल हो जाता है और वृद्धि रुक जाती है।
  5. फेफड़े कमजोर हो जाते हैं।

प्राप्ति स्रोत—ये अधिकतर दूध, दही, मक्खन, पनीर, अण्डों, मछली, पत्तों वाली सब्जियों जैसे पालक और ताज़ी सब्जियों; जैसे-गाजर, बन्दगोभी, टमाटर तथा केले, संगतरे, आम, पपीता और अनानास आदि फलों में मिलते हैं।

2. विटामिन ‘बी’—विटामिन ‘बी’ के कार्य इस प्रकार हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 2

  1. इस विटामिन से नर्वस सिस्टम (नाड़ी (बी) प्रणाली) ठीक रहता है।
  2. यह नाड़ियों, पेशियों, दिल और दिमाग़ को शक्ति प्रदान करता है।
  3. भूख को बढ़ाता है।
  4. चमड़ी रोगों से सुरक्षा करता है।

कमी से हानियां—

  1. भूख कम लगती है।
  2. बच्चों का विकास रुक जाता है।
  3. बेरी-बेरी रोग तथा त्वचा के कई रोग लग जाते हैं।
  4. जिह्वा पर छाले पड़ जाते हैं।
  5. बाल झड़ने लग पड़ते हैं।

प्राप्ति स्त्रोत — -यह दूध, दही, मक्खन, पनीर, दालों, अनाज, सोयाबीन, मटर, अण्डे, हरी और पत्तों वाली सब्जियों जैसे-पालक, बन्दगोभी, शलगम, टमाटर, प्याज़ और सलाद आदि में पाया जाता है।

3. विटामिन ‘सी’—विटामिन ‘सी’ के निम्नलिखित कार्य हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 3

  1. यह विटामिन लहू (खून, रक्त) को साफ़ रखता है।
  2. दांतों को मजबूत करता है।
  3. ज़ख्मों और टूटी हुई हड्डियों को भी शीघ्र ठीक करता है।
  4. शरीर की छूत की बीमारियों से रक्षा करता है।
  5. गले को ठीक रखता है।
  6. जुकाम से बचाता है।

कमी से हानियां—

  1. दांतों को पायोरिया रोग लग जाता है।
  2. हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
  3. घाव शीघ्र ठीक नहीं होते।
  4. अनीमिया हो जाता है।
  5. रक्त बहना शीघ्र बन्द नहीं होता।

प्राप्ति स्त्रोत — यह प्रायः रसदार और खट्टे पदार्थों में से होता है; जैसे-संगतरा, माल्टा, मुसम्मी, अंगूर, अनार, नींबू, अमरूद और आंवला आदि। इसके अतिरिक्त हरी सब्जियों, जैसे टमाटर, बन्दगोभी, गाजर, पालक, शलगम आदि में भी मिलता है।

4. विटामिन ‘डी’—विटामिन ‘डी’ के कार्य निम्नलिखित हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 4

  1. यह विटामिन हड्डियों और दांतों का निर्माण करता है।
  2. उन्हें मज़बूत भी बनाता है।
  3. बच्चों के शारीरिक विकास के लिए इसकी बहुत आवश्यकता होती है।

कमी से हानियां—

  1. हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
  2. दांत ठीक समय पर नहीं निकलते।
  3. मिरगी, हिस्टीरिया और सोकड़ा हो जाता है।
  4. मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं।

प्राप्ति स्त्रोत—यह दूध, अण्डे की ज़र्दी, मक्खन, घी, मछली के तेल आदि में बहुत होता है। यह विटामिन सूर्य की किरणों के प्रभाव से स्वयं ही बनता रहता है।

5. विटामिन ‘ई’—विटामिन ‘ई’ के कार्य इस प्रकार हैं
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 5

  1. यह विटामिन स्त्रियों और पुरुषों में सन्तान उत्पन्न करने की शक्ति को बढ़ाता है।
  2. यह नपुंसकता और बांझपन को रोकता

कमी से हानियां—

  1. फोड़े फिनसियां निकलती हैं।
  2. बांझपन का रोग हो जाता है।

प्राप्ति स्रोत–यह बन्दगोभी, गाजर, सलाद, मटर, प्याज, टमाटर, फूलगोभी में होता है। इसके अतिरिक्त शहद, गेहूं, चावल, बीजों के तेल, अण्डे की जर्दी, बादाम, पिस्ता, चने की दाल और दलिया में अधिक मात्रा में होता है।

6. विटामिन ‘के’-विटामिन ‘के’ के कार्य निम्नलिखित हैं—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 6

  1. यह विटामिन जख्मों से रिस रहे रक्त को रोकता है।
  2. उसके जमाव में सहायता करता है।
  3. यह चमड़ी के रोगों से सुरक्षा करता है।

कमी से हानियां—

  1. रक्त जमने की क्रिया में रुकावट पड़ती है।
  2. त्वचा के रोग हो जाते हैं।

प्राप्ति स्रोत-यह अधिकतर बन्दगोभी, पालक, मछली, सोयाबीन, टमाटर की ज़र्दी आदि में होता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 2.
मुख्य भोज्य पदार्थों और उनके गुणों का वर्णन कीजिए।
(Discuss the main constituents of food and give their advantages.)
उत्तर-
अनाज, दालें, सब्जियां, फल, सूखे फल (मेवे), दूध, मांस, मछली आदि खाद्य पदार्थ मुख्य हैं। इसके गुण इस प्रकार हैं

  1. अनाज-गेहूं, चावल, चने, जौ, मक्की और बाजरा आदि अनाज प्रायः खाए जाते गुण-अनाज के गुण निम्नलिखित अनुसार हैं
    • इनसे हमारे शरीर का निर्माण होता है।
    • ये शरीर को शक्ति भी प्रदान करते हैं।
    • इनमें कार्बोहाइड्रेट्स अधिक मात्रा में होते हैं।
    • इनके छिलकों में लोहा, चूना, विटामिन और प्रोटीन होते हैं।
  2. दालें-सोयाबीन, मांह, मूंगी, मसूर, अरहर, सूखे मटर, राजमांह आदि की गणना मुख्य दालों में होती है। गुण-दालों के निम्नलिखित गुण हैं
    • इनका प्रयोग करने से शरीर को शक्ति मिलती है।
    • भूख बढ़ती है।
    • पाचन शक्ति तेज़ होती है। इनमें विटामिन ‘ए’, ‘बी’ और ‘सी’ अधिक मात्रा में होते हैं। इसके अतिरिक्त इनमें प्रोटीन, खनिज लवण, लोहा, फॉस्फोरस भी होते हैं।
  3. सब्जियां-बन्दगोभी, पालक, सरसों का साग, मेथी, गाजर, मूली, सलाद, चुकन्दर, टमाटर, आलू, मटर, करेला, बैंगन, भिंडी, फूलगोभी और शलगम आदि मुख्य सब्जियां हैं।
    गुण-सब्जियों के गुण इस प्रकार हैं

    • ये शरीर की रक्षा करती हैं।
    • ये शरीर को स्वस्थ रखती हैं।
    • ये खून को साफ़ करती हैं।
    • ये कब्ज नहीं होने देती।
  4. फल-अंगूर, अमरूद, आंवला, नारंगी, संगतरा, माल्टा, अनार, मुसम्मी, नींबू, आम, केला, सेब, नाशपाती और आलू बुखारा आदि फलों का अधिक मात्रा में प्रयोग करना चाहिए।
    गुण-फलों में गुण निम्नलिखित प्रकार हैं

    • ये शरीर की सफ़ाई में सहायता करते हैं।
    • इनमें लोहा, लवण और सारे विटामिन होते हैं।
    • ये शरीर की रोगों से सुरक्षा करते हैं।
  5. सूखे मेवे (फल)-बादाम, अखरोट, पिस्ता, काजू, खजूर और मूंगफली आदि सूखे मेवे होते हैं। इनमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन और चर्बी बहुत होती है।
    गुण-

    • ये शारीरिक विकास में सहायता करते हैं।
    • ये दिमागी ताकत को बढ़ाते हैं।
  6. दूध और उससे बनने वाले पदार्थ-मक्खन, घी, दही, पनीर और लस्सी आदि दूध से तैयार होते हैं। इनमें भोजन के सारे तत्त्व होते हैं। ये शरीर में गर्मी और शक्ति पैदा करते हैं। ये शरीर का विकास करते हैं और टूटे-फूटे तन्तुओं की मुरम्मत भी करते हैं। ये साफ खून भी तैयार करते हैं।
  7. मांस, मछली, अण्डे आदि-मांस, मछली और अण्डों का प्रयोग बहुत किया जाता है। इनमें प्रोटीन, चर्बी, कैल्शियम, लोहा और विटामिन ए, बी और डी अधिक मात्रा में होते हैं। ये शरीर के विकास में सहायता करते हैं और इसे कई रोगों से बचाते हैं।

प्रश्न 3.
हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक खनिज लवणों का वर्णन करो।
(Why the different salts are useful for our body ?)
उत्तर-
हमारे शरीर में कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, लोहा, मैग्नीशियम, पोटाशियम, आयोडीन, क्लोरीन और गन्धक जैसे तत्त्वों की बहुत आवश्यकता है। हमारे भोजन में इन खनिज लवणों का होना नितान्त आवश्यक है। ये खनिज लवण हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत आवश्यक हैं। इन खनिज लवणों की हमारे शरीर के लिए उपयोगिता का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है

  1. कैल्शियम और फॉस्फोरस-ये खनिज लवण दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियां तथा ताज़ा फलों, दलिया, दालों और बादामों में अधिक होते हैं। इनसे शरीर का विकास होता है। दांतों और हड्डियों का निर्माण होता है। ये दिल और दिमाग के लिए लाभदायक होते हैं।
  2. लोहा-लोहा हरी सब्जियों, फलों, अनाजों, अण्डों और मांस में अधिक होता है। यह नया खून उत्पन्न करता और भूख को बढ़ाता है। यह रक्त को साफ करता है।
  3. सोडियम-यह प्रायः भिण्डी, अंजीर, नारियल, आलू बुखारा, मूली, गाजर और शलगम आदि में मिलता है। यह जिगर और गुर्दो की कई बीमारियों को रोकता है।
  4. पोटाशियम-यह नाशपाती, आलू बुखारा, नारियल, नींबू, अंजीर, बन्दगोभी, करेला, मूली, शलगम आदि में मिलता है। यह जिगर और दिल को शक्ति प्रदान करता है तथा कब्ज को दूर करता है।
  5. आयोडीन – यह समुद्री मछली, समुद्री लवण, प्याज, लहसुन, टमाटर, पालक, गाजर और दूध आदि से प्राप्त होती है। इससे शरीर का भार और शक्ति बढ़ती है। इस की कमी से गिलट का रोग हो जाता है।
  6. मैग्नीशियम- यह नारंगी, संगतरे, अंजीर, आलू-बुखारे, टमाटर और पालक आदि में पर्याप्त मात्रा में मिलता है। यह चर्म रोगों की रोकथाम करता है और पट्ठों को मजबूत बनाता है।
  7. गन्धक-यह प्याज, मूली, बन्दगोभी, फूलगोभी में बहुत होती है। यह नाखूनों और बालों को बढ़ाती है तथा चमड़ी को साफ रखती है।
  8. क्लोरीन-यह प्याज़, पालक, मूली, गाजर, बन्दगोभी और टमाटर में बहुत होती है। यह शरीर से गन्दे पदार्थों को बाहर निकालती है। यह शरीर की सफ़ाई करती है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 4.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए
(क) सन्तुलित भोजन
(ख) प्रोटीन
(ग) कैल्शियम
(घ) फॉस्फोरस
(ङ) विटामिनों की कमी।
[Write down a brief note on the following:
(a) Balanced diet
(b) Proteins
(c) Calcium
(d) Phosphorus
(e) Lack of Vitamins.)
उत्तर-
(क) सन्तुलित भोजन-जिस भोजन में सारे आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में विद्यमान हों और जो शरीर की सारी की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के योग्य हो, उसे सन्तुलित भोजन कहते हैं। सन्तुलित भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी, खनिज लवण, विटामिन और पानी उचित मात्रा में होने चाहिएं। शरीर के पूर्ण विकास और अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमें सन्तुलित भोजन ही करना चाहिए। कोई भी अकेला भोज्य पदार्थ सन्तुलित भोजन नहीं। केवल दूध ही एक ऐसा पदार्थ है जिसमें सभी पौष्टिक तत्त्व मिलते हैं।

(ख) प्रोटीन-प्रोटीन, कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और गन्धक के रासायनिक मिश्रण से बनते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं-पशु प्रोटीन तथा वनस्पति प्रोटीन। पशु प्रोटीन मांस, मछली, अण्डे और दूध आदि से प्राप्त होते हैं। वनस्पति प्रोटीन दालों, मटर, फूल गोभी, सोयाबीन, चने, पालक, हरी मिर्च, प्याज और सूखे मेवों में मिलते हैं। प्रोटीन शरीर में शक्ति पैदा करते हैं। हड्डियों का निर्माण और भोजन के पचाने में सहायता करते हैं। इनके कम प्रयोग से शरीर कमज़ोर हो जाता है।

(ग) कैल्शियम-कैल्शियम दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियों, ताजे फलों, लवणों, दलिए, दालों और बादाम में अधिक मात्रा में होता है। इससे शरीर का विकास होता है। दांतों और हड़ियों के लिए यह बहुत लाभदायक हैं। यह दिल और दिमाग के लिए लाभदायक है। इसकी कमी से हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं और दांत गिर जाते हैं।

(घ) फॉस्फोरस-फॉस्फोरस दूध, दही, पनीर, अण्डे, मछली, मांस, हरी सब्जियों और ताजे फलों में होती है। इससे भी हड्डियां और दांत मज़बूत होते हैं। इसकी कमी से हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।

(ङ) विटामिनों की कमी-मुख्य विटामिन ए, बी, सी, डी, ई और के हैं। इनकी कमी से शरीर में जो विकार उत्पन्न होते हैं उनका विवरण क्रमानुसार इस प्रकार है

  1. विटामिन ‘ए’
    • इसकी कमी से अन्धराता रोग हो जाता है।
    • गले तथा नाक के रोग लग जाते हैं।
    • फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं।
    • चमड़ी के रोग लग जाते हैं।
    • छूत के रोग लग जाते हैं।
  2. विटामिन ‘बी’-
    • भूख नहीं लगती।
    • चमड़ी के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।
    • बाल झड़ने लगते हैं।
    • जिह्वा में छाले पड़ जाते हैं।
    • खून की कमी हो जाती है।
  3. विटामिन ‘सी’-
    • हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
    • घाव शीघ्र नहीं भरते।
    • आंखों में मोतिया (मोती बिन्द) उत्पन्न हो जाता है।
    • पायोरिया रोग लग जाता है।
    • इसकी कमी से स्कर्वी रोग उत्पन्न हो जाता है।
  4. विटामिन ‘डी’-
    • हड्डियां कमज़ोर हो जाती हैं।
    • मिर्गी तथा सोकड़े के रोग हो जाते हैं।
    • हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं।
    • मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं।
  5. विटामिन ‘ई’
    • इसकी कमी से नपुंसकता तथा बांझपन के रोग लग जाते हैं।
    • फोड़े-फुन्सियां निकल आते हैं।
    • शरीर कमज़ोर हो जाता है।
  6. विटामिन ‘के’-
    • चमड़ी के रोग हो जाते हैं।
    • घावों से बहता रक्त शीघ्र बन्द नहीं होता।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 5.
सन्तुलित भोजन के भिन्न-भिन्न तत्त्व कौन-से हैं ?
(What are the various constituents of Balanced Diet ?)
उत्तर-
सन्तुलित भोजन (Balanced Diet)-सन्तुलित भोजन वह भोजन है जिसमें शरीर के लिए ज़रूरी सभी आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में होते हैं जैसे प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट्स, खनिज लवण, विटामिन, जल तथा फोट तत्त्वों की मात्रा व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य तथा कार्य पर निर्भर करती है।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 7
सन्तुलित भोजन के तत्त्व (Constituents of Balanced Diet)-सन्तुलित भोजन के विभिन्न तत्त्वों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार हैं

  1. प्रोटीन (Proteins)-प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक तथा फ़ॉस्फोरस के रासायनिक मेल से बना एक मिश्रित पदार्थ है। प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-वनस्पति प्रोटीन तथा पशु प्रोटीन।
  2. प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)
    • वनस्पति प्रोटीन-यह सोयाबीन, मूंगफली, काजू, बादाम, पिस्ता, अखरोट, गेहूं, बाजरा, मक्की आदि में पाया जाता है।
    • पशु प्रोटीन-यह मांस, मछली, कलेजी, अण्डा, दूध, पनीर आदि में पाया जाता है।

प्रोटीन के लाभ (Advantages)-

  1. इससे शारीरिक वृद्धि और विकास होता है।
  2. ये शरीर के टूटे-फूटे सैलों की मुरम्मत करते हैं।
  3. ये शरीर का तापमान ठीक रखते हैं।
  4. शरीर में कार्बोहाइड्रेट्स या वसा की मात्रा कम हो जाती है तो शक्ति पैदा करने का कार्य भी प्रोटीन ही करते हैं।

प्रोटीन की कमी से हानियां -प्रोटीन की कमी से निम्नलिखित रोग लग जाते हैं—

  1. क्वाशियोरकर (Kwashiorkar)—प्रोटीन की कमी से एक वर्ष से लेकर तीन वर्ष तक की आयु के बच्चों को यह रोग हो जाता है। पहले बच्चे की टांगें सूख जाती हैं
    और फिर उसके मुंह और सारे शरीर में सूजन हो जाती है। त्वचा खुरदरी और लाल हो जाती है। बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है।
  2. सोका-प्रोटीन की कमी से बच्चों को सोका नामक रोग लग जाता है। बच्चा पतला और कमजोर हो जाता है। उसके मांस के नीचे हड्डियां दिखाई देती हैं।
  3. भूख के कारण सूजन (Hunger edema)-भूखे रहने तथा प्रोटीन की कमी के कारण मनुष्य के शरीर में कम खुराक पहुंचती है तथा सैलों में पानी अधिक एकत्र हो जाता है तथा सारा शरीर सूजा हुआ नज़र आता है।
  4. प्लैगरा (Pellagra) -इस रोग के कारण त्वचा खुरदरी और शुष्क हो जाती है।
  5. जिगर की खराबी-प्रोटीन की कमी से जिगर खराब हो जाता है।

प्रोटीन की अधिकता से हानियां–प्रोटीन की अधिक मात्रा लेने से गुर्दो की कई. बीमारियां लग जाती हैं। रक्त नाड़ियों की लचक में भी अन्तर आता है और जोड़ों के दर्द भी हो जाते हैं।
प्रोटीन की उचित मात्रा (Proper Quantity)-एक वर्ष से लेकर छ: वर्ष तक की आयु के बच्चों को प्रोटीन की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। एक साधारण व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 100 ग्राम तक प्रोटीन की मात्रा लेनी चाहिए।
कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) (P.S.E.B. 2002 C, 2003 E, 2011B)कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को शक्ति और गर्मी प्रदान करते हैं। भारतीयों के भोजन का 70-80% भाग इसी तत्त्व से पूरा किया जाता है।
प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)-कार्बोहाइड्रेट्स गेहूं, चावल, ज्वार, जौ, मक्की, चीनी, शकरकन्दी, आल आदि वस्तुओं में पाये जाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स के लाभ (Advantages)—

  1. कार्बोहाइड्रेट्स से शरीर को शक्ति और गर्मी प्राप्त होती है।
  2. वे वसा को बचाने में सहायता करते हैं।
  3. इनसे अमाशय तथा आंतों की सफ़ाई होती है।
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कमी से हानियां-

  1. कार्बोहाइड्रेट्स की उचित मात्रा न मिलने से रक्त में एलक्लीन कम हो जाती है तथा तेज़ाब (Acidity) बढ़ जाता है। इस दशा में व्यक्ति बेहोश हो सकता है। ऐसी दशा अधिक भूखा रहने से मधुमेह (Diabetes) के रोगी की हो सकती है।
  2. आंतों की पूरी तरह सफ़ाई नहीं होती।
  3. कार्बोहाइड्रेट्स के कम खाने से शरीर की वसा ठीक प्रकार से हज़म नहीं की जा सकती।
  4. कार्बोहाइड्रेट्स के कम खाने से अमाशय में तेज़ाबी तत्त्वों की वृद्धि हो जाती है जिससे शरीर को हानि पहुंचती है।
  5. इनकी अधिक कमी से शरीर बहुत कमजोर हो जाता है तथा व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है।

अधिकता की हानियां-कार्बोहाइड्रेट्स की अधिकता से शरीर में मोटापा आ जाता है और उच्च रक्त चाप, मधुमेह तथा जोड़ों के दर्द आदि रोग हो जाते हैं।
कार्बोहाइड्रेट्स की उचित मात्रा (Proper Quantity)-हमारे भोजन में 50-80% कार्बोहाइड्रेट्स तत्त्व होते हैं। सन्तुलित भोजन का 50-60% भाग कार्बोहाइड्रेट्स का ही होता है। एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन 400 से 700 ग्राम कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा होनी चाहिए।

3. वसा या चिकनाई (Fats) —वसा या चिकनाई दो प्रकार की होती है-वनस्पति वसा तथा पशु वसा।
प्राप्ति के स्त्रोत (Sources)—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 9

  1. वनस्पति वसा-यह सरसों, मूंगफली तथा नारियल के तेल, अखरोट, बादाम, मूंगफली, सोयाबीन आदि में पाई जाती है।
  2. पशु वसा-यह घी, मक्खन, दूध, मांस, मछली, अण्डों आदि में पाई जाती है। वसा के लाभ (Advantages)
    • इससे शरीर में शक्ति उत्पन्न होती है।
    • यह शरीर के तापमान को स्थिर रखती |
    • शरीर के सभी अंगों की बाहरी चोट मछली का तेल से रक्षा करती है।
    • यह विटामिन ए, डी, ई तथा के को शारीरिक आवश्यकता के अनुसार सम्भाल कर रखती है।

कमी से हानियां–वसा की कमी से कई हानियां होती हैं—

  1. त्वचा (Skin) शुष्क हो जाती है। ।
  2. विटामिन ए, डी, ई तथा के की कमी | हो जाती है।
  3. वसा-तेज़ाबों की कमी से त्वचा शुष्क हो जाती है।

अधिकता से हानियां—भोजन में वसा की अधिक मात्रा भी हानिकारक होती है।

  1. शरीर में मोटापा आ जाता है।
  2. हृदय के रोग लग जाते हैं।
  3. हाजमा खराब हो जाता है।
  4. मधुमेह (Diabetes) रोग हो जाता है।
  5. पेट में पत्थरी (Stone) बन जाती है।

वसा की उचित मात्रा (Proper Quantity) —एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन लगभग 50 ग्राम वसा की मात्रा होनी चाहिए।

4. खनिज लवण (Mineral Salts)-हमारे शरीर में खनिज लवण 4% होते हैं। फ़ॉस्फोरस, कैल्शियम, सोडियम, क्लोरीन, पोटाशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज़, आयोडीन तथा जिंक आदि मुख्य खनिज लवण हैं।
प्राप्ति के स्रोत (Sources)—ये खनिज हरे पत्तों वाले साग तथा फलों, मांस, मछली, दूध आदि में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। दूध में लोहे की मात्रा कम परन्तु अन्य सभी खनिज लवण प्राप्त हो जाते हैं।
अधिकता से लाभ (Advantages)—

  1. ये दांतों तथा हड्डियों को मजबूत बनाते
  2. ये मांसपेशियों के तन्तुओं (Muscular Tissues) का विकास करते हैं।
  3. ये रक्त के रंग को लाल बनाते हैं।
  4. कैल्शियम खून के जमाव में योगदान देते हैं।
  5. खनिज लवण शरीर के सभी कार्यों को ठीक तरह से चलाते हैं।

कमी से हानियां (Disadvantages)—

  1. कैल्शियम की कमी से हड्डियां और दांत कमजोर हो जाते हैं।
  2. शरीर प्रत्येक रोग का जल्दी शिकार हो जाता है।
  3. लोहे की कमी से त्वचा का रंग पीला हो जाता है।
  4. आयोडीन की कमी से गिल्लड़ नामक रोग हो जाता है।

5. पानी (Water)-हमारे शरीर का 2/3 भाग पानी का होता है। यह ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन के मेल से बनता है। इसका हमारे शरीर के लिए उतना ही महत्त्व है जितना कि वायु का।
स्रोत (Sources)—पानी हमें कई प्रकार के भोजन के तत्त्वों दूध, फल तथा सब्जियों में शुद्ध रूप में मिलता है। पानी के लाभ (Advantages of Water)

  1. पानी सैलों के निर्माण में सहायता देता है।
  2. यह सैलों तक खुराक पहुंचाता है। यह शरीर से गन्दे पदार्थों का निकास करता
  3. यह भोजन को पचाने में सहायता करता है।
  4. यह हमारे शरीर की गर्मी को नियमबद्ध करता है।
  5. पानी के द्वारा भोजन के तत्त्व रक्त में मिलते हैं।
  6. यह शरीर के जोड़ों तथा अंगों को नर्म रखता है।
  7. पानी के सहारे ही शरीर में रक्त चक्कर लगाता है।

पानी की कमी से हानियां (Harm of taking less water)—पानी की कमी से बहुत-सी हानियां होती हैं।

  1. पानी कम पीने से खाया हुआ भोजन भली भान्ति नहीं पचता।
  2. अमाशय भारी रहता है।
  3. कब्ज हो जाती है।
  4. सिर सदा थका सा महसूस होता है।
  5. शरीर कमजोर हो जाता है।
  6. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  7. शरीर से गन्दे पदार्थों का कम निकास होता है।
  8. जोड़ों का दर्द हो जाता है।
  9. गुर्दो में पत्थरी बन जाती है।

पानी की अधिकता से हानियां (Harm of taking excess water)-पानी सदा उचित मात्रा में ही पीना चाहिए। अधिक पानी पीने से अमाशय भरा रहता है और भूख कम लगती है। भोजन करते समय साथ-साथ पानी पीने से भोजन शीघ्र ही हज़म हो जाता है।

पानी की उचित मात्रा (Proper Quantity)-पानी की मात्रा में ऋतु, व्यवसाय या खुराक के अनुसार परिवर्तन होता रहता है। साधारणतया एक दिन में 5-6 गिलास पानी पीना चाहिए।

6. विटामिन (Vitamins) -2016 भोजन में विटामिन भी उचित मात्रा में होने चाहिएं। इनका मानव शरीर के लिए विशेष महत्त्व है। इनके बिना शरीर का कोई काम नहीं हो सकता। विटामिनों से रहित भोजन सन्तुलित भोजन नहीं कहला सकता। विटामिन, प्राय: ताजे फल, हरी तरकारियों तथा अण्डों में मिलते हैं। ये मुख्यतः 6 प्रकार के होते हैं। विटामिन ए, बी, सी, डी, ई तथा के।
लाभ (Advantages)-

  1. ये पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं।
  2. विभिन्न रोगों को रोकते हैं।
  3. हमारे शरीर की चर्म रोगों से रक्षा करते हैं।
  4. हमारी हड्डियों को मजबूत बनाते हैं।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 6.
प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स तथा चिकनाई की प्राप्ति के क्या साधन हैं तथा इनकी उचित मात्रा कितनी होनी चाहिए ? (What are the sources of carbohydrates, fats and proteins ? How much quantity we should take all of these ?)
उत्तर-
(क) प्रोटीन (Proteins)-प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, गन्धक तथा फ़ॉस्फोरस के रासायनिक मेल से बना मिश्रित पदार्थ है। प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-वनस्पति प्रोटीन तथा पशु प्रोटीन। वनस्पति प्रोटीन सोयाबीन, मूंगफली, बादाम, अखरोट, गेहूं, बाजरा, मक्की आदि में पाई जाती है। पशु प्रोटीन मांस, ‘ मछली, अण्डा, दूध, पनीर आदि में पाई जाती है। एक साधारण व्यक्ति को प्रतिदिन 70 से 100 ग्राम तक प्रोटीन की मात्रा लेनी चाहिए।

(ख) कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) कार्बोहाइड्रेट्स शरीर को गर्मी और शक्ति प्रदान करते हैं। भारतीयों के भोजन में तो 70-80% तक ही यह तत्त्व पाया जाता है। एक साधारण व्यक्ति के दैनिक भोजन में 400 से 700 ग्राम तक कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा होनी चाहिए।

(ग) वसा की मात्रा (Quantity of Fats)—वसा शरीर को शक्ति देती है। वसा दो प्रकार की होती है-वनस्पति वसा तथा पशु वसा। वनस्पति वसा सरसों, मूंगफली तथा नारियल के तेल, सोयाबीन, अखरोट, बादाम, मूंगफली, अखरोट आदि में पाई जाती है। घी, मक्खन, दूध, मछली, मांस, अण्डे आदि पशु वनस्पति के मुख्य स्रोत हैं।
एक साधारण व्यक्ति के भोजन में प्रतिदिन लगभग 50 से 75 ग्राम तक वसा की मात्रा होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
खनिज लवण तथा विटामिनों के लाभ बताओ।
(Describe the advantages of Mineral Salts and Vitamins.)
उत्तर-
खनिज लवणों के लाभ (Advantages of Mineral Salts) मानव शरीर में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट्स, वसा तथा पानी की मात्रा 96% होती है तथा शेष 4% खनिज लवण होते हैं। कैल्शियम, फॉस्फोरस, सोडियम, क्लोरीन, सल्फर, आयरन, आयोडीन आदि मुख्य खनिज लवण हैं। खनिज लवणों के निम्नलिखित लाभ हैं

  1. ये दांतों तथा हड्डियों की वृद्धि करते हैं और इन्हें मज़बूत बनाते हैं।
  2. ये मांसपेशियों के तन्तुओं (Muscular Tissues) की वृद्धि करते हैं।
  3. ये रक्त का रंग लाल बनाते हैं।
  4. कैल्शियम रक्त के जमाव में योगदान देते हैं।
  5. ये शरीर का सारा काम ठीक ढंग से चलाने के लिए आवश्यक हैं। विटामिनों के लाभ (Advantages of Vitamins) विटामिन भोजन के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। ये संख्या में छः हैं-विटामिन ए, बी, सी, डी, ई तथा के। इनके लाभ क्रमशः इस प्रकार हैं

विटामिन ‘ए’ के लाभ

  1. यह आंखों की सेशनी तेज़ करता है।
  2. यह आंखों, आमाशय तथा आंतों की झिल्लियों को मज़बूत बनाता है।
  3. छूत के रोगों से रक्षा करता है।
  4. यह शरीर को बढ़ाने तथा विकसित करने में सहायता प्रदान करता है।
  5. यह भूख बढ़ाता है और पाचन-क्रिया को ठीक रखता है।

विटामिन ‘बी’ के लाभ—

  1. यह मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है।
  2. यह हड्डियों को मजबूत बनाता है।
  3. बच्चों की वृद्धि में सहायता पहुंचाता है।
  4. इससे पाचन-शक्ति ठीक होती है और भूख लगती है।
  5. त्वचा को ठीक रखता है।

विटामिन ‘सी’ के लाभ—

  1. शरीर की छूत के रोगों से रक्षा करता है।
  2. दांतों तथा मसूड़ों को मजबूत बनाता है।
  3. घावों को भरने तथा टूटी हड्डियों को ठीक करने में सहायता करता है।

विटामिन ‘डी’ के लाभ-हड्डियों को मजबूत करता है।
विटामिन ‘ई’ के लाभ-यह प्रजनन शक्ति को बढ़ाता है।
विटामिन ‘के’ के लाभ-यह रक्त के जमने की क्रिया में सहायता पहुंचाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन

प्रश्न 8.
एक सामान्य खिलाड़ी के लिए उचित खराक की मात्रा बताओ।
(Describe the Balanced Diet of an ordinary sports person.)
उत्तर-
एक सामान्य साधारण खिलाड़ी के लिए उचित खुराक की मात्रा नीचे दी जाती है—
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 10
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 11
मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम चिकनाई एवं तेल जोड़े जा सकते हैं।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 12
मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम चिकनाई एवं तेल जोड़े जा सकते हैं।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सन्तुलित भोजन 13
मूंगफली के स्थान पर भोजन में 30 ग्राम अतिरिक्त चिकनाई एवं तेल जोड़ा जा सकता है।

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(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पंजाब में कितनी किस्म के चूहे मिलते हैं ?
उत्तर-
8 किस्मों के।

प्रश्न 2.
झाड़ियों का चूहा पंजाब के किस इलाके में मिलता है ?
उत्तर-
रेतीले तथा खुश्क इलाके में मिलता है।

प्रश्न 3.
सियालू मक्की उगने के समय चूहे कितना नुकसान कर देते हैं ?
उत्तर-
10.7%.

प्रश्न 4.
जहरीला चुग्गा प्रति एकड़ कितने स्थानों पर रखना चाहिए ?
उत्तर-
40 स्थानों पर 10 ग्राम के हिसाब से प्रत्येक स्थान पर रखो।

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प्रश्न 5.
चूहों को खाने वाले दो मित्र पक्षियों के नाम लिखिए।
उत्तर-
उल्लू तथा गिद्ध।

प्रश्न 6.
फसलों को कौन-सा पक्षी सर्वाधिक नुकसान पहुंचाता है ?
अथवा
कृषि में सबसे हानिकारक पक्षी कौन-सा है?
उत्तर-
तोता।

प्रश्न 7.
उजका (डरावा) फसल से कम-से-कम कितना ऊंचा होना चाहिए ?
उत्तर-
एक मीटर।

प्रश्न 8.
एक चिड़िया एक दिन में अपने बच्चों को कितनी बार चुग्गा देती है ?
उत्तर-
250 बार।

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प्रश्न 9.
टिटिहरी अपना घोंसला कहां बनाती है ?
उत्तर-
भूमि पर।

प्रश्न 10.
चक्की राहा अपनी खराक में क्या खाता है?
उत्तर-
कीड़े-मकौड़े।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
खेती-उत्पादों को हानिकारक जीवों से बचाने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
कृषि के क्षेत्र में हुई उन्नति तभी बनी रह सकती है यदि कृषि उत्पादों को अच्छी तरह सम्भाल कर रखा जाए। कृषि उत्पादकों को हानि पहुंचाने वाले जीवों से रक्षा करना बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
चूहों को आदत डालने का क्या ढंग है?
उत्तर-
अधिक चूहे पकड़े जाएं इसके लिए चूहों को पिंजरों में आने के लिए आदत डालें। इसके लिए प्रत्येक पिंजरे में 10-15 ग्राम बाजरा अथवा ज्वार अथवा गेहूं का दलिया, जिसमें 2% पिसी हुई चीनी तथा मूंगफली अथवा सूरजमुखी का तेल भरा हो, 23 दिन तक रखते रहें तथा पिंजरों का मुँह खुला रहने दें।

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प्रश्न 3.
बरोमाडाइलोन के प्रभाव को कैसे कम किया जा सकता है ?
उत्तर-
बरोमाडाइलोन का प्रभाव विटामिन ‘के’ के प्रयोग से कम किया जा सकता है। इस विटामिन का प्रयोग डॉक्टर की निगरानी में होना चाहिए।

प्रश्न 4.
ग्रामीण स्तर पर चूहे को मारने के अभियान के द्वारा चूहों का खात्मा कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
थोड़े क्षेत्र में चूहों की रोकथाम का कोई अधिक लाभ नहीं होता क्योंकि साथ वाले खेतों से चूहे फिर आ जाते हैं। इसलिए अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए चूहे मारने 1. के अभियान को गांव स्तर पर अपनाना बहुत ही आवश्यक है। इसके अन्तर्गत गांव की सारी भूमि (बोई हुई, बागों वाली, जंगलात वाली तथा खाली) पर सामूहिक तौर पर चूहों का खात्मा किया जाता है।

प्रश्न 5.
उजका (डरावा) से क्या अभिप्राय है ? फसलों की रक्षा में इसकी क्या भूमिका है ?
उत्तर-
एक पुरानी मिट्टी की हांडी लेकर उस पर रंग से मानवीय सिर बना दिया जाता है तथा उसको खेत में गाड़े डंडों पर टिका कर मानवीय पोशाक पहना दी जाती है। इसको डरना कहते हैं। पक्षी इसको मनुष्य समझ कर खेत में नहीं आते। इस तरह पक्षियों से फसल का बचाव हो जाता है।

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प्रश्न 6.
तोते से तेल बीजों वाली फसलों का बचाव कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
तोते का कौओं से तालमेल बहुत कम है। इसलिए एक अथवा दो मरे कौओं अथवा उनके पुतले अधिक नुकसान करने वाले स्थानों पर लटका दिये जाते हैं। इस तरह तोते खेत के नज़दीक नहीं आते।

प्रश्न 7.
सघन वृक्षों वाले स्थानों के पास सूर्यमुखी की फसल क्यों नहीं बोयी जानी चाहिए ?
उत्तर-
क्योंकि वृक्षों पर पक्षियों का घर होता है तथा वह इन पर आसानी से बैठतेउठते रहते हैं तथा फसलों को आसानी से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

प्रश्न 8.
मित्र पक्षी फसलों की रक्षा में किसान की कैसे मदद करते हैं ?
उत्तर-
मित्र पक्षी जैसे उल्लू, गिद्ध, बाज, शिकरे आदि चूहों को खा लेते हैं, तथा कुछ अन्य पक्षी जैसे नीलकंठ, गाय, बगुला, छोटा उल्लू / चुगल टटिहरियां आदि हानिकारक कीड़े-मकौड़े खाकर किसान की सहायता करते हैं।

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प्रश्न 9.
गाय बगुले की पहचान आप कैसे करेंगे ?
उत्तर-
यह सफेद रंग का पक्षी है जिसकी चोंच पीली होती है। इस पक्षी को अक्सर खेत को जोतते समय ट्रैक्टर अथवा बैलों के पीछे भूमि पर कीड़े खाते देख सकते हैं।

प्रश्न 10.
जहरीले चुग्गे का प्रयोग करते समय आवश्यक सावधानियों के बारे में आप क्या जानते हो? . .
उत्तर-
जहरीले चोगे के प्रयोग सम्बन्धी सावधानियां-

  • चोगे में ज़हरीली दवाई मिलाने के लिए डंडे अथवा खुरपे की सहायता लो, नहीं – तो हाथों पर रबड़ के दस्ताने पहन लो। मुंह, नाक तथा आंखों को ज़हर से बचा कर रखो।
  • चूहेमार दवाइयां तथा ज़हरीला चोगा बच्चों तथा पालतू जानवरों से दूर रखना चाहिए।
  • ज़हरीला चोगा कभी भी रसोई के बर्तनों में न बनाओ।
  • जहरिला चोगा रखने तथा ले जाने के लिए पॉली थिन के लिफाफे का प्रयोग करो तथा बाद में इन्हें मिट्टी में दबा देना चाहिए।
  • मरे हुए चूहे इकट्ठे करके तथा बचा चोगा मिट्टी में दबा देना चाहिए।
  • जिंक फॉस्फाइड मनुष्यों के लिए काफ़ी हानिकारक है। इसलिए हादसा होने पर मरीज़ के गले में उंगलियां मारकर उल्टी करवा देनी चाहिए तथा मरीज़ को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
चूहे कितनी किस्म के होते हैं ? पंजाब में भिन्न-भिन्न इलाकों में मिलने वाले चूहों का विवरण दीजिए।
उत्तर-
पंजाब के खेतों में मुख्यत: 8 किस्मों के चूहे तथा चुहियां मिलती हैं। यह हैंझाड़ियों का चूहा, भूरा चूहा, नर्म चमड़ी का चूहा, अन्धा चूहा, घरों की चुहिया, भूरी चुहिया तथा खेतों की चुहिया।
अन्धा चूहा तथा नर्म चमड़ी वाला चूहा गन्ना तथा गेहूं-धान उगाने वाले तथा बेट के इलाके में मिलते हैं। नर्म चमड़ी वाला चूहा कल्लरी भूमि में, झाड़ियों का चूहा तथा भूरा चूहा रेतीले तथा खुश्क इलाकों में तथा झाड़ियों का चूहा कण्डी के इलाके (ज़िला होशियारपुर) में पाया जाता है।

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प्रश्न 2.
जहरीला चुग्गा तैयार करने की दो विधियों के बारे में बताइए।
उत्तर-
1. 2% जिंक फॉस्फाइड (काली दवाई) वाला चोगा-1 किलो बाजरा, ज्वार अथवा गेहूं का दलिया अथवा इन सभी अनाजों का मिश्रण लेकर उसमें 20 ग्राम तेल तथा 25 ग्राम जिंक फॉस्फाइड दवाई डालकर अच्छी तरह मिला लो, चोगा तैयार है। इसका ध्यान रखें कि इस चोगे में कभी भी पानी न डाला जाए तथा हमेशा ताज़ा तैयार किया चोगा ही प्रयोग करो।

2. 0.005% ब्रोमाइडिलोन तथा चोगा-0.25% ताकत का 20 ग्राम ब्रोमाइडिलोन पाऊडर, 20 ग्राम तेल तथा 20 ग्राम पिसी हुई चीनी को एक किलो पिसी हुई गेहूं अथवा किसी अन्य अनाज के आटे में डाल कर यह चोगा तैयार किया जाता है।

प्रश्न 3.
बहुद्देश्यीय योजना से चूहों की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
किसी एक तरीके से कभी भी सारे चूहे नहीं मारे जा सकते। किसी एक समय चूहों की रोकथाम करने के पश्चात् बचे हुए चूहे बड़ी तेजी से बच्चे पैदा करके अपनी संख्या में वृद्धि कर लेते हैं। इसलिए एक-से-अधिक तरीके अपनाकर चूहों को मारना चाहिए। खेतों में पानी लगाते समय चूहों को डंडों से मारो। फसल बोने के पश्चात् उचित समयों पर रासायनिक ढंग प्रयोग करो। ज़हरीला चोगा खेतों में डालने के पश्चात् बचे खड्डों में गैस वाली गोलियां भी डाल दो। जिंक फॉस्फाइड दवाई के प्रयोग से तुरन्त पश्चात् आवश्यक हो तो ब्रोमाइडिलोन अथवा गैस वाली गोलियों का प्रयोग करो।

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प्रश्न 4.
पक्षियों से फसलों को होने वाले नुकसान से बचाव के लिए कौन-से परम्परागत तरीके हैं ?
उत्तर-
पक्षियों के कारण फसलों को होने वाली हानि से बचाव के पारंपरिक ढंग-

  • कई कीमती फसलें जैसे सूरजमुखी तथा मक्की आदि को बचाने के लिए इन फसलों के इर्द-गिर्द बाहर वाली दो-तीन पंक्तियों में बैंचा या बाजरा जैसी कम कीमत वाली फसलें लगा देनी चाहिए।
    पक्षी इन फसलों को पसंद करते हैं तथा इनको पहले खाते हैं तथा मुख्य फसल बच जाती है।
  • पक्षियों के बैठने वाले स्थान जैसे घने वृक्ष तथा बिजली की तारों के पास सूरजमुखी की बोबाई नहीं करनी चाहिए।
  • सूरजमुखी तथा मक्की की फसल को तोते द्वारा हानि से बचाने के लिए इनकी बुआई कम-से-कम दो तीन एकड़ के क्षेत्र में करो। तोता फसल के अंदर जाकर फसल को कम हानि पहुंचाता है।

प्रश्न 5.
भिन्न-भिन्न यांत्रिक विधियों से आप फसलों का पक्षियों से बचाव कैसे कर सकते हो ?
उत्तर-
यांत्रिक विधियों द्वारा फसलों का पक्षियों से बचाव-

  • धमाका करना-भिन्न-भिन्न समय पर पक्षी उड़ाने के लिए बंदूक से धमाका करना चाहिए।
  • डरने का प्रयोग-एक पुरानी मिट्टी की हांडी लेकर उस पर रंग से मानवीय सिर बना दिया जाता है तथा उसको खेत में गाड़े डंडों पर टिका कर मानवीय पोशाक पहना दी जाती है। इसको डरना कहते हैं। पक्षी इसको मनुष्य समझ कर खेत में नहीं आते। इस तरह पक्षियों से फसल का बचाव हो जाता है।
  • कौओं के पुतले लगाना-तोते का कौओं से तालमेल बहुत कम है। इसलिए एक अथवा दो मरे कौओं अथवा उनके पुतले अधिक नुकसान करने वाले स्थानों पर लटका दिये जाते हैं। इस तरह तोते खेत के नज़दीक नहीं आते।
  • पटाखों की रस्सी का प्रयोग-एक रस्सी के साथ छ: से आठ ईंच की दूरी पर पटाखों के छोटे-छोटे बडंल बांध दिए जाते हैं तथा रस्से के निचले भाग को सुलगा दिया जाता है। इस तरह थोड़ी-थोड़ी देर बाद धमाके होते रहते हैं तथा पक्षी डर कर उड़ जाते हैं। बीज अंकुरित हो रहे हों तो रस्सी खेत में तथा फसल पकने के समय खेत के किनारे . से दूर लटकानी चाहिए।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव Important Questions and Answers

वस्तनिष्ठ प्रश्न

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
किसानों के मित्र पक्षी हैं –
(क) नीलकंठ
(ख) गुटार
(ग) गाय बगला
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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प्रश्न 2.
उल्लू एक दिन में कितने चूहे खा जाते हैं ?
(क) 4-5
(ख) 8-10
(ग) 1-2
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(क) 4-5

प्रश्न 3.
टिटहरी अपना घोंसला कहां बनाती है?
(क) भूमि पर
(ख) वृक्षों पर
(ग) पानी में
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) भूमि पर

प्रश्न 4.
चूहे मारने के लिए प्रयोग होने वाले रसायन हैं
(क) सोडियम
(ख) पोटाशियम क्लोराइड
(ग) जिंक फास्फाइड
(घ) सभी।
उत्तर-
(ग) जिंक फास्फाइड

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प्रश्न 5.
पंजाब में कितनी किस्म के पक्षी मिलते हैं?
(क) 100
(ख) 50
(ग) 300
(घ) 500.
उत्तर-
(ग) 300

प्रश्न 6.
कौन-सा पक्षी अपना घोंसला वृक्षों की गुहायों (खोड़ों) में बनाता है ?
(क) कठफोड़वा
(ख) टिटीहरी
(ग) गाय बगुला
(घ) नीलकंठ।
उत्तर-
(ग) गाय बगुला

प्रश्न 7.
कौन-सा पक्षी अपना घोंसला समूहों में वृक्षों के ऊपर बनाता है ?
(क) कठफोड़वा
(ख) टिटीहरी
(ग) गाय बगुला
(घ) उल्लू।
उत्तर-
(ग) गाय बगुला

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प्रश्न 8.
गेहूँ के उगते समय चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
(क) 2.9%
(ख) 10.7%
(ग) 4.5%
(घ) 1.1%
उत्तर-
(क) 2.9%

II. ठीक/गलत बताएँ

1. नीलकंठ पक्षी कीड़े-मकौड़े तथा चूहों को खाता है।
2. पंजाब के खेतों में 8 प्रकार के चूहे मिलते हैं।
3. कृषि में सब से हानिकारक पक्षी तोता है।
4. चूहे मारने के लिए प्रयोग में आने वाला रसायन जिंक फास्फाइड है।
5. उल्लू, बाज आदि किसान के मित्र पक्षी हैं।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. डरना (बजूका) फ़सलों से कम से कम ………… मीटर ऊँचा होना चाहिए।
2. चूहों को पकड़ने के लिए कम से कम ……………… पिंजरे प्रति एकड़ के हिसाब से रखे जाते हैं।
3. घुग्गीयां, कबूतर तथा बया वर्ष में लगभग ………….. रुपये मूल्य का धान खा जाते हैं।
4. …………… पक्षी की चोंच का रंग पीला होता है।
5. कल्लरी भूमि में …………. चमड़ी का चूहा होता है।
उत्तर-

  1. एक
  2. 16
  3. दो करोड़
  4. गाय बगुला
  5. नर्म।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चूहे कहां रहते हैं ?
उत्तर-
चूहे बिलों में रहते हैं।

प्रश्न 2.
गन्ना तथा गेहूं-धान उगाने वाले तथा बेट के इलाके में कौन-से चूहे होते हैं ?
उत्तर-
अन्धा तथा नर्म चमड़ी वाले चूहे।

प्रश्न 3.
कल्लरी भूमि में कौन-सा चूहा होता है ?
उत्तर-
नर्म चमड़ी वाला।

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प्रश्न 4.
कण्डी के इलाके में कौन-सा चूहा होता है ?
उत्तर-
झाड़ियों का चूहा।

प्रश्न 5.
गेहूं के उगने तथा पकने के समय चूहों द्वारा कितना नुकसान किया जाता है?
उत्तर-
उगने के समय 2.9% तथा पकने के समय 4.5% ।

प्रश्न 6.
मटरों में पकते समय चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
1.1.% ।

प्रश्न 7.
बेट के इलाके में गेहूं के पकने तक चूहे कितना नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
25% |

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प्रश्न 8.
सिंचाई के समय बिलों से निकले चूहों को कैसे मारोगे ?
उत्तर-
डंडों से।

प्रश्न 9.
चूहे पकड़ने के लिए एक एकड़ में कितने पिंजरे रखने चाहिएं ?
उत्तर-
16 पिंजरे।

प्रश्न 10.
पिंजरों का दुबारा प्रयोग कितने दिनों बाद करना चाहिए ?
उत्तर-
30 दिनों के फासले के पश्चात्।

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प्रश्न 11.
जिंक फॉस्फाइड वाला एक किलो चोगा कितने क्षेत्र के लिए प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
29 एकड़ के लिए।

प्रश्न 12.
चूहों की प्राकृतिक रोकथाम कैसे की जाती है ?
उत्तर-
कुछ पक्षी तथा जानवर कैसे गिद्ध, उल्लू, बाज़, शिकरा, सांप, बिल्लियां, नेवला तथा गीदड़ चूहों को मारकर खा जाते हैं।

प्रश्न 13.
पंजाब में कितनी किस्मों के पक्षी मिलते हैं ?
उत्तर-
300 किस्मों के।

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प्रश्न 14.
घुग्गियां, कबूतर तथा बया वार्षिक कितने मूल्य का धान खा जाते
उत्तर-
2 करोड़ रुपए मूल्य का।

प्रश्न 15.
डरने के स्थान, दिशा तथा पोशाक कितने दिनों के पश्चात् बदलनी चाहिए ?
उत्तर-
दस दिनों के बाद।

प्रश्न 16.
उल्लू एक दिन में कितने चूहे खा जाते हैं ?
उत्तर-
4-5 चूहे।

प्रश्न 17.
चूहे मारने के लिए प्रयुक्त किये जाने वाले किसी एक रसायन का नाम बताओ।
उत्तर-
जिंक फॉस्फाइड।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
हमें अपने आसपास पक्षियों को बचाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए ?
उत्तर-

  • हमें अपने आसपास पारंपरिक वृक्ष जैसे बरगद, पीपल, कीकर, शीशम, शहतूत आदि लगाने चाहिए।
  • लकड़ी तथा मिट्टी के बनावटी घोंसले लाकर पक्षियों को घोंसलों के लिए स्थान उपलब्ध करवाने चाहिए।

प्रश्न 2.
नीलकंठ के बारे बताओ।
उत्तर-
इसका पेट हल्के पीले रंग का तथा छाती भूरे रंग की होती है। इसका आकार कबूतर जैसा होता है। इसका आहार कीड़े-मकौड़े होते हैं। इसका घोंसला वृक्षों की खोखलों में होता है।

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प्रश्न 3.
टटिहरी के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
इस पक्षी का सिर, छाती तथा गर्दन का रंग काला होता है। यह ऊपर से सुनहरी रंग तथा नीचे से सफेद होता है। यह कीड़े-मकौड़े तथा घोघे खाता है तथा अपना घोंसला भूमि पर बनाता है।

प्रश्न 4.
बिजूका/डरने से फसलों की रखवाली कैसे की जाती है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चूहों को मारने के रासायनिक ढंगों के बारे में लिखें।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 2.
मशीनी ढंगों से चूहों से फसलों को कैसे बचाया जाता है ?
उत्तर-

  • चूहों को मारना-फसल की कटाई के बाद पानी देने से बिलों में पानी भरने से चूहे बाहर निकलते हैं। उन्हें डंडे से मारो।
  • पिंजरों का प्रयोग-स्वयं लिखें।
  • आदत डालना-स्वयं लिखें।

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प्रश्न 3.
पिंजरों का उपयोग करके फसलों को चूहों से कैसे बचाते हैं ?
उत्तर-
पिंजरों का प्रयोग करके चूहे पकड़कर पानी में डुबोकर मार दिए जाते हैं। पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा दो खानों वाला पिंजरा विकसित किया गया है। इससे एक बार में ही कई चूहे पकड़े जा सकते हैं। खेतों में प्रति एकड़ के हिसाब से 16 पिंजरे चूहों के आने-जाने वाले रास्तों, चूहों के नुकसान वाले स्थानों पर रखने चाहिएं। घरों, मुर्गी खानों, गोदामों आदि में एक पिंजरा 4 से 8 प्रति वर्ग मी० के हिसाब से दीवारों के साथ, कमरों के कोनों, अनाज जमा करने वाली वस्तुओं तथा सन्दूकों आदि के पीछे रखने चाहिएं। कोल्ड स्टोरों में पिंजरों को अखबार के कागज़ में लपेट कर रखना चाहिए। चूहों को पकड़ने के लिए उन्हें पहले पिंजरे में 10-15 ग्राम बाजरा, 2% पिसी हुई चीनी तथा 2% मूंगफली के तेल मिले हुए चोगे की आदत डालनी चाहिए। इस तरह चूहों को तीन दिन तक पकड़ो तथा इस तरह पिंजरों का प्रयोग करके चूहों को पकड़कर फसलों की हानि होने से बचाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
हमें फसलों के लिए लाभदायक पक्षियों को क्यों नहीं मारना चाहिए?
उत्तर-
लाभदायक पक्षी चूहों तथा कीड़े-मकौड़ों को खा जाते हैं। यहां तक कि चिड़िया तथा बया अपने बच्चों को कीड़े-मकौड़े खिलाते हैं। कई पक्षी जैसे उल्ल, चील, बाज आदि भी चूहों को खा जाते हैं। एक उल्लू एक दिन में 4-5 चूहों को खा लेता है। इस तरह यह पक्षी किसान के मित्र हैं तथा इन्हें मारना नहीं चाहिए।

प्रश्न 5.
चूहे मारने के लिए जहरीला चोगा प्रयोग करते समय किन-किन सावधानियों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 10 फसलों के लिए लाभदायक तथा हानिकारक जीव

प्रश्न 6.
आप कठफोड़वे की पहचान कैसे करेंगे ?
उत्तर-
इस की चोंच लम्बी, नुकीली तथा थोड़ी सी मुड़ी होती है। इस के पंख, शरीर तथा पूंछ के ऊपरी तरफ सफेद तथा काले रंग की धारियां होती हैं। इसके सिर पर कलगी होती है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

PSEB 10th Class Agriculture Guide प्रमाणित बीज उत्पादन Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
गेहूँ की दो मक्सीकन किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
लरमा रोहो, सोनारा 64.

प्रश्न 2.
बीज साफ करने वाली मशीन का नाम लिखिए।
उत्तर-
सीड ग्रेडर।

प्रश्न 3.
गेहूं की दो नई विकसित किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
डब्ल्यू० एच० 1105, पी० बी० डल्ल्यू० 621.

प्रश्न 4.
प्रमाणित बीज के थैले के ऊपर कितने टैग लगते हैं?
उत्तर-
दो, हरा तथा नीला।

प्रश्न 5.
बुनियादी बीज पर कौन-से रंग का टैग लगता है ?
उत्तर-
सफेद टैग।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 6.
टी० एल० बीज का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
टरुथफुली लेबलड (Truthfully Labelled)।

प्रश्न 7.
बीज कानून कौन-से वर्ष में बना था?
उत्तर-
वर्ष 1966 में।

प्रश्न 8.
गेहूँ के प्रमाणीकृत बीज की कम-से-कम कितनी उर्वरक शक्ति होनी चाहिए?
उत्तर-
85% से कम नहीं होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
धान के प्रमाणीकृत बीज के लिए कम-से-कम कितनी शुद्धता होती है?
उत्तर-
98%.

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 10.
नरमे के किसी एक आनुवंशिकी (पुश्तैनी) गुण का नाम लिखिए।
उत्तर-
टींडों की संख्या, टींडों का औसत भार ।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
बीज अधिनियम के क्या उद्देश्य हैं तथा इसे कब लागू किया गया था?
उत्तर-
इस एक्ट का उद्देश्य था किसानों को उचित नस्ल का बीज उचित दाम पर प्रदान करवाना। इस कानून को 1966 में लागू किया गया।

प्रश्न 2.
नरमे की फसल के दो आनुवंशिकी गुण लिखिए।
उत्तर-
नरमे की फ़सल के आनुवंशिकी गुण हैं-टीडों की संख्या, टीडों का औसत भार, फलदार शाखाओं की संख्या आदि।

प्रश्न 3.
बुनियादी बीज से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
बुनियादी बीज वह बीज है जिससे प्रमाणित बीज तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 4.
बीज को प्रमाणित करने वाली संस्था का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर-
बीज को प्रमाणित करने वाली संस्था का पूरा नाम पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था (Punjab State Seed Certification Authority) है।

प्रश्न 5.
गेहूँ की फ़सल के तीन महत्त्वपूर्ण आनुवंशिकी गुण लिखिए।
उत्तर-
गेहूँ की फ़सल के आनुवंशिकी गुण हैं-प्रति पौधा शाख की संख्या, प्रति बल्ली दानों की संख्या, दानों का वजन, बल्ली की लम्बाई आदि।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 6.
ब्रीडर बीज किस संस्था की ओर से तैयार किया जाता है?
उत्तर-
जिस संस्था द्वारा उस किस्म की खोज की जाती है वह प्राथमिक बीज तैयार करती है।

प्रश्न 7.
बीज के कोई तीन बाहरी आभा वाले गुणों के बारे में लिखिए।
उत्तर-
बीज के बाहरी दिखाई देने वाले गुण हैं-बीज का रंग-रूप, आकार, भार आदि।

प्रश्न 8.
प्रमाणीकृत बीज की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
प्रमाणीकृत बीज वह बीज है जो निश्चित किए गए मानकों के अनुसार पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था की निगरानी अधीन पैदा किए जाते हैं।

प्रश्न 9.
बीज उत्पादन में विलक्षण दूरी का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
इस तरह दूसरी फ़सलों का प्रभाव बीज की गुणवत्ता पर नहीं पड़ता।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 9 प्रमाणित बीज उत्पादन

प्रश्न 10.
अनजान पौधों को बीज फसल में से निकालना क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
इस तरह बीज गुणवत्ता वाले मिलते हैं तथा मिलावटी नहीं होते।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
बीजों के आनुवंशिकी तथा बाहरी आभा वाले गुणों में क्या तर है ?
उत्तर-
बीज की बाहरी दिखावट वाले गुण-बीज का रंग-रूप, आकार, भार, टूट फूट रहित, कूड़ा-कर्कट रहित, नदीन रहित तथा अन्य फ़सलों के बीजों की मिलावट से रहित बीजों को अच्छी गुणवत्ता के शुद्ध बीज माना जाता है।
फसलों के आनुवंशिक गुण-यह वह गुण है जो बाहर से देख कर पता नहीं लगते, यह बीज के अंदर होते हैं, यह एक फ़सल से अगली फसल में प्रवेश करते हैं। इन्हें नसली गुण भी कहा जाता है। भिन्न-भिन्न पौधों के नस्ली गुण भी भिन्न-भिन्न होते हैं। किसी फ़सल की भिन्न-भिन्न किस्मों में जो अन्तर दिखाई देते है वह इन्हीं गुणों के कारण है।

प्रश्न 2.
बीज फसल के कोई तीन स्तर लिखिए।
उत्तर-

  • बीज वाली फसल की दूसरी फसलों से दूरी।
  • बीज वाली फसल में अन्य पौधों की संख्या।
  • बीज वाली फसल में रोग वाले पौधों की संख्या।

प्रश्न 3.
प्रमाणित बीज गुणवत्ता के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रमाणित बीजों का उत्पादन करने के लिए दो तरह के मानकों की पालना की जाती है-

  1. खेत में बीज वाली फसल के मानक
  2. बीजों के मानक।

1. खेत में बीज वाली फसल के मानक-बीज फसल को फेल या पास करने के लिए निम्नलिखित मानक हैं –

  • बीज वाली फसल की दूसरी फसलों से दूरी।
  • बीज वाली फसल में अन्य पौधों की संख्या।
  • बीज वाली फसल में बीमारी वाले पौधों की संख्या।

2. बीजों के मानक-प्रयोगशाला में बीज के नमूनों की जांच करके ऐसे मानकों के बारे पड़ताल की जाती है। यह मानक इस तरह हैं-

  • बीज की उगने योग्य शक्ति
  • बीज की शुद्धता
  • बीमारी वाले बीजों की मात्रा
  • बीजों में नदीन के बीजों की मात्रा।

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प्रश्न 4.
व्यापारिक स्तर पर प्रमाणित बीज उत्पादन करने के लिए विधि लिखिए।
उत्तर-
व्यापारिक स्तर पर यह धंधा शुरू करने के लिए ढंग इस तरह हैं-

  • यह धंधा शुरू करने से पहले बीज उत्पादन सम्बन्धी पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। यह जानकारी पी० ए० यू० लुधियाना, कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि विभाग, पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था, पनसीड जैसी संस्था, विभागों से ली जा सकती है।
  • कौन-सी फसल का उत्पादन करना है उसकी चयन, बीज उत्पादन के लिए आवश्यक ढांचा, मण्डीकरण आदि के बारे में उचित योजनाबंदी करना आवश्यक है।
  • कंपनी बना कर कृषि विभाग से लाइसेंस लेना।
  • बीज साफ करने वाली मशीन, पक्का फर्श, स्टोर, थैले सिलने वाली मशीन, बीज पैक करने वाली थैलियां आदि प्राथमिक आवश्यकताएं हैं जिनके बारे में फैसला करने के लिए पूर्ण जानकारी तथा अनुभव की आवश्यकता है।
  • बुनियादी बीज को निर्देशक बीज, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना से लिया जा सकता है। बीज का बिल फर्म/कंपनी के नाम पर होना ज़रूरी है।
  • फाऊंडेशन बीज से सिफ़ारिश अनुसार फसल पैदा करके फसल को पंजाब राज्य सीड सर्टीफिकेशन विभाग में रजिस्ट्रेशन करवानी चाहिए।
  • फसल में अन्य पौधे, रोग वाले पौधे तथा नदीनों को निकालते रहना चाहिए। ऊपर बताए विभाग द्वारा फसल का दो तीन बार निरीक्षण किया जाता है।
  • फसल काट कर साफ करके उचित ढंग से पैक करना चाहिए तथा आवश्यक टैग बीज वाले थैले पर लगा देने चाहिए। इससे पहले बीज को विभाग द्वारा बीज जांच प्रयोगशाला में जांचा जाता है।

प्रश्न 5.
प्रमाणीकृत बीज उत्पादन का व्यापार करने के लिए महत्त्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रमाणीकृत बीज उत्पादन का व्यापार करने के लिए महत्त्वपूर्ण बिन्दु इस तरह है-

  • इस बात की अच्छी तरह जांच कर लें कि कौन-सी फसल का बीज उत्पादन अच्छा लाभ,देगा तथा इसको पैदा करना सरल है या नहीं।
  • फसल का चयन क्षेत्र के अनुसार करें या जिसकी कृषि करते हो उसे चुनो।
  • बड़े स्तर पर उपयोग होने वाला बीज चुनना चाहिए, जैसे-गेहूँ का।
  • पनसीड के रजिस्टर्ड किसान बन कर बीज पनसीड को बेचा जा सकता है।
  • जिस भी क्षेत्र से सम्बन्धित बीज उत्पादन करना है। उस की अच्छी जांच-पड़ताल करके, पूर्ण जानकारी तथा ट्रेनिंग ले कर ही धंधा शुरू करें।
  • हाइब्रीड बीज का उत्पादन करके अच्छा लाभ लिया जा सकता है परन्तु इसके लिए बहुत मेहनत, प्रशिक्षण तथा सब्र की आवश्यकता है।
  • इस कार्य के लिए प्राथमिक ढांचा तैयार करना पड़ता है जिस पर पैसा खर्च होता है। प्राथमिक ढांचे में स्टोर, पक्का फ़र्श, सीड ग्रेडर तथा अन्य मशीनों आदि की आवश्यकता होती है।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB प्रमाणित बीज उत्पादन Important Questions and Answers

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
बीज की श्रेणियां हैं.
(क) प्राथमिक
(ख) ‘ब्रीडर
(ग) बुनियादी तथा प्रमाणिक
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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प्रश्न 2.
बुनियादी बीज के थैले पर कौन-से रंग का टैग होता है ?
(क) सफेद
(ख) नीला
(ग) लाल
(घ) पीला।
उत्तर-
(क) सफेद

प्रश्न 3.
जनक (ब्रीडर) बीज के थैले के ऊपर किस रंग का टैग लगाया जाता है ?
(क) गोल्डन
(ख) सफेद
(ग) गुलाबी
(घ) नीला।
उत्तर-
(क) गोल्डन

प्रश्न 4.
गेहूँ को नई विकसित किस्में जिनको रोग कम लगता है
(क) डब्ल्यू० एच० 1105
(ख) पी० बी० डब्ल्यू० 621
(ग) एच० डी० 3086
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 5.
प्रमाणिक बीज के थैले पर सरकारी टैग का रंग क्या होता है?
(क) नीला
(ख) हरा
(ग) सफेद
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) नीला

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प्रश्न 6.
बुनियादी (फाऊंडेशन) बीज के थैले के ऊपर किस रंग का टैग लगाया जाता है ?
(क) गोल्डन
(ख) सफेद
(ग) गुलाबी
(घ) नीला।
उत्तर-
(ख) सफेद

प्रश्न 7.
प्रमाणित (सर्टिफाइड) बीज के थैले के ऊपर कितने टैग लगे होते हैं ?
(क) 2
(ख) 3
(ग) 5
(घ) 4.
उत्तर-
(क) 2

प्रश्न 8.
धान के प्रमाणित बीजों की कम-से-कम शुद्धता कितनी होनी चाहिए ?
(क) 98%
(ख) 80%
(ग) 85%
(घ) 13%.
उत्तर-
(क) 98%

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II. ठीक/गलत बताएँ-

1. आनुवंशिक गुणों को नस्ली गुण भी कहा जाता है।
2. पी० बी० डब्ल्यू० 621 गेहूँ की किस्म है।
3. प्रमाणित बीजों के थैले पर दो टैग लगे होते हैं।
4. लरमा रोहो गेहूँ की मैक्सीकन किस्म है।
5. धान के प्रमाणीकृत बीज की कम से कम शुद्धता 98% है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. टींडों की संख्या ……………… का एक आनुवंशिक गुण है।
2. प्रमाणीकृत बीज के बैग पर सरकारी विभाग की तरफ से ………… रंग का टैग लगा होता है।
3. हरित क्रांति का मूल ……………… गेहूँ की किस्में हैं।
4. गोल्डन (सुनहरा) रंग का टैग ……………. बीज के थैले पर लगा होता है।
5. बुनियादी बीज के बैग पर …………… टैग लगा होता है।
उत्तर-

  1. नरमा
  2. नीले
  3. मैक्सीकन
  4. ब्रीडर
  5. सफेद।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मैक्सीकन गेहूँ की किस्मों की कृषि पहली बार कब की गई ?
उत्तर-
1955-56 में।

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प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति का मूल कहां से बना ?
उत्तर-
मैक्सीकन गेहूँ की किस्मों की कृषि से।

प्रश्न 3.
मक्की की फसल के आनुवंशिक गुण बताओ।
उत्तर-
मक्की की लम्बाई तथा मोटाई, प्रति छल्ली दानों की औसत संख्या, 1000 दानों का औसत भार, पकने के लिए समय आदि।

प्रश्न 4.
चावल के प्रमाणित बीज में उगने योग्य शक्ति के बारे में बताओ।
उत्तर-
उगने योग्य शक्ति 70% से कम नहीं होनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
प्रमाणित बीज के बैग तथा सरकारी विभाग द्वारा कौन-से रंग का बैग लगाया जाता है ?
उत्तर-
नीले रंग का।

प्रश्न 6.
पनसीड द्वारा गेहूँ के बीज तैयार करने के कितने रुपए सरकार द्वारा निश्चित मूल्य से अधिक दिए जाते हैं ?
उत्तर-
250/- रुपये प्रति क्विंटल।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अच्छे बीजों का अहसास किसानों को कब हुआ ?
उत्तर-
लगभग 50 वर्ष पहले जब मैक्सीकन गेहूँ की बौनी किस्मों की कृषि की गई तथा पैदावार एकदम दोगुणा हो गई।

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प्रश्न 2.
बीज क्या है ?
उत्तर-
ऐसे दाने या पौधे के भाग, जैसे कि जड़ें, तना, ट्यूबर, गांठे आदि जिनको बो कर नई फसल पैदा की जाती है। इन सब को बीज कहा जाता है।

प्रश्न 3.
प्रमाणित बीजों के गुण बताओ।
उत्तर-
प्रमाणित बीज के निम्नलिखित गुण हैं –

  • यह बीज़ निश्चित शुद्धता वाला होता है।
  • रोग तथा नदीनों के बीजों से रहित होता है।
  • निश्चित उगने योग्य शक्ति वाला होता है।

प्रश्न 4.
गेहूँ के प्रमाणित बीज़ के संभव गुण बताओ।
उत्तर-

  • उगने योग्य शक्ति -85% से कम न हो।
  • शुद्धता-98% से कम न हो।
  • नमी-12% से अधिक न हो।

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प्रश्न 5.
प्रमाणित बीज पर लगे हरे टैग से क्या जानकारी मिलती है ?
उत्तर-
टैग के ऊपर बीज के उगने योग्य शक्ति, शुद्धता, रोग तथा अन्य मानकों का पूरा विवरण दिया होता है।

प्रश्न 6.
पंजाब राज्य बीज प्रमाणित संस्था का मुख्य कार्यालय कहां है ?
उत्तर-
क्षेत्रीय कार्यालय लुधियाना, जालन्धर, कोटकपुरा में है।

प्रश्न 7.
प्रमाणित बीज तक कैसे पहुंचा जाता है ?
उत्तर-
प्राथमिक बीज से ब्रीडर बीज मिलता है, ब्रीडर बीज से बुनियादी बीज तथा बुनियादी बीज से प्रमाणित बीज मिलता है।

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प्रश्न 8.
भिन्न-भिन्न बीजों की थैलियों से कैसे टैग लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
ब्रीडर बीज पर गोल्डन टैग, बुनियादी बीज पर सफेद टैग, प्रमाणित बीज पर नीले टैग लगाए जाते हैं।

प्रश्न 9.
बीज कानून अनुसार बीज कितनी किस्म के हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक बीज, ब्रीडर बीज, बुनियादी बीज़, प्रमाणित बीज, चार प्रकार के हैं।

प्रश्न 10.
टी० एल० बीज के बारे में बताओ।
उत्तर-
यदि किसी बीज की प्रमाणिकता नहीं करवाई गई तो इसको (Truthfully Labelled) टी० एल० कहा जाता है परन्तु ऐसे बीज की गुणवत्ता, जैसे आनुवंशिक शुद्धता, उगने योग्य शक्ति आदि ठीक होनी चाहिए।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीज के संबंध में लाभ-हानि की संभावना तथा मण्डीकरण के बारे में बताओ।
उत्तर-
प्रमाणित बीज का धंधा लाभ वाला होता है। ऐसे बीजों की कीमत साधारण बीजों से अधिक होती है। परन्तु उन्हें पैदा करने के लिए कुछ प्राथमिक खर्चे भी होते हैं, जैसे-फाऊंडेशन बीज का खर्चा, सर्टीफिकेशन फीस, सील करना तथा बीज को स्टोर करना आदि। एक अनुमान के अनुसार गेहूँ तथा चावल के बीज पैदा करने पर ₹ 200 प्रति क्विंलट बीज का खर्चा हो जाता है। अप्रैल 2017 में गेहूँ का प्रमाणित बीज मार्किट में प्रमाणित बीज उत्पादन 2500 रु० प्रति क्विंटल से भी अधिक बेचा गया जबकि कुल लागत सारे खर्चे डाल कर 1825 रुः प्रति क्विंटल बनती थी। इस तरह बीज उत्पादन का धंधा प्रमाणित तथा हाइब्रीड बीज बहुत लाभदायक है।

इस धंधे में भी हानि होने का डर अन्य धंधों जैसे ही होता है। कई बार बीज बिना बिके ही रह जाता है तथा यह फेल भी हो सकता है। परन्तु बिना बिके रहने की संभावना बहुत ही कम होती है क्योंकि बीज की पहले ही इतनी मांग है कि जो पूरी नहीं हो रही। इसलिए यह धंधा बहुत ही लाभदायक है।

प्रश्न 2.
प्रमाणित (सर्टिफाइड) बीज का क्या अर्थ है ? इसके तीन गुण लिखो।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 3.
बीज परख प्रयोगशाला में बीजों की परख करके कौन-कौन से चार मानकों की पड़ताल की जाती है ?
उत्तर-
प्रयोगशाला में बीज के नमूनों की परख करके ऐसे मानकों के बारे पड़ताल की जाती है। यह मानक इस तरह हैं-

  • बीज की उगने योग्य शक्ति
  • बीज की शुद्धता
  • बीमारी वाले बीजों की मात्रा
  • बीजों में नदीन के बीजों की मात्रा।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न.

PSEB 10th Class Social Science Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

Class 10th Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(1)

प्रत्येक देश की सरकार समाज में कानून की व्यवस्था और शांति स्थापित करती है। इस कार्य को सरकार कानूनों के निर्माण और व्यवस्था की स्थापना करके करती है। परन्तु सरकार अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाकर मनमानी नहीं कर सकती। देश की सरकार को संविधान मौलिक कानून के अनुसार ही कार्य करने होते हैं। इस प्रकार संविधान देश के प्रशासन और राज्य प्रबन्ध को निर्धारित करने वाले नियमों का मूल स्रोत होता है और यह शक्ति के दुरुपयोग पर प्रतिबन्ध लगाता है। जहाँ यह सरकार के अंगों के परस्पर और नागरिक के साथ सम्बन्धों को निर्धारित करता है, वहाँ यह सरकार द्वारा शक्ति के दुरुपयोग पर रोक भी लगाता है।

(a) संविधान से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
संविधान एक मौलिक कानूनी दस्तावेज़ या लेख होता है जिसके अनुसार देश की सरकार अपना कार्य करती

(b) प्रस्तावना में वर्णित कोई तीन उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
संविधान की प्रस्तावना में भारतीय शासन प्रणाली के स्वरूप तथा इसके बुनियादी उद्देश्यों को निर्धारित किया गया है। ये उद्देश्य निम्नलिखित हैं —
(1) भारत एक प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, धर्म-निरपेक्ष, लोकतन्त्रात्मक गणराज्य होगा।
(2) सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिले।
(3) नागरिकों को विचार अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता प्राप्त होगी।
(4) कानून के सामने सभी नागरिक समान समझे जाएंगे।
(5) लोगों में बन्धुत्व की भावना को बढ़ाया जाए ताकि व्यक्ति की गरिमा बढ़े और राष्ट्र की एकता एवं अखण्डता को बल मिले।

(2)

अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। ये दोनों साथ-साथ चलते हैं। अन्य शब्दों में कर्तव्यों के बिना अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं। अतः सारे देशों ने संविधान में अपने नागरिकों के अधिकारों के साथ-साथ उनके मौलिक कर्त्तव्य भी अंकित किये हैं। भारतीय संस्कृति में सदा ही अधिकारों के स्थान पर कर्तव्यों पर अधिक बल दिया गया है। मूल संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों की व्यवस्था नहीं की गई थी। 1976 में संविधान के बयालीसवें संशोधन द्वारा नया अध्याय IV A में नागरिकों के दस कर्तव्य निर्धारित किये गए हैं। सन् 2002 में संविधान के 86वें संशोधन द्वारा एक नया कर्तव्य जोड़ा गया है।

(a) भारतीय संविधान में नागरिकों के कर्त्तव्यों को कब और क्यों जोड़ा गया?
उत्तर-
मूल संविधान में नागरिकों के कर्तव्यों की व्यवस्था नहीं की गई थी। इन्हें 1976 में (संविधान के 42वें संशोधन द्वारा) संविधान में सम्मिलित किया गया।

(b) भारतीय नागरिकों के तीन कर्त्तव्य बताएं।
उत्तर-
भारतीय नागरिकों के कर्त्तव्य निम्नलिखित हैं —

  1. संविधान का पालन करना तथा इसके आदर्शों, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रीय गीत का सम्मान करना।
  2. भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष को प्रोत्साहित करने वाले आदर्शों का सम्मान तथा पालन करना।
  3. भारत की प्रभुसत्ता, एकता एवं अखण्डता की रक्षा करना।
  4. भारत की रक्षा के आह्वान पर राष्ट्र की सेवा करना।
  5. धार्मिक, भाषायी, क्षेत्रीय अथवा वर्गीय विभिन्नताओं से ऊपर उठ कर भारत के सभी लोगों में परस्पर मेलजोल और बन्धुत्व की भावना का विकास करना।
  6. सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करना और इसे बनाए रखना।
  7. वनों, झीलों, नदियों, वन्य जीवन तथा प्राकृतिक वातावरण की रक्षा करना।
  8. वैज्ञानिक स्वभाव, मानवतावाद, अन्वेषण और सुधार की भावना का विकास करना।
  9. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना और हिंसा का त्याग करना।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(3)

लोकतांत्रिक शासन प्रणाली सबसे उत्तम समझी जाती है। वर्तमान समय में संसार के बहुत से देशों ने लोकतांत्रिक शासन को अपनाया हुआ है और यह बहुत लोकप्रिय हो चुकी है। इसके बावजूद लोकतांत्रिक शासन प्रणाली प्रत्येक देश में पूर्ण रूप से सफल नहीं हुई।
लोकतन्त्र की सफलता के लिए प्रत्येक नागरिक अच्छे आचरण वाला, चेतन तथा बुद्धिमान सुशिक्षित, विवेकशील तथा समझदार, उत्तरदायी तथा सार्वजनिक मामलों में रुचि लेने वाला होना चाहिए। समाज में अच्छे तथा योग्य नेता, सामाजिक और आर्थिक समानता तथा निष्पक्ष प्रैस तथा न्यायपालिका, अच्छे राजनैतिक संगठित दल और नागरिकों में सहनशक्ति तथा सहयोग का होना लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं। जे.एस. मिल के अनुसार लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए लोगों में लोकतांत्रिक शासन को नियमित करने की इच्छा और उसे चलाने की योग्यता, लोकतन्त्र की रक्षा के लिए सदा प्रयत्नशील रहना और नागरिकों में अधिकारों की रक्षा और कर्तव्यों के पालन की इच्छा बेहद आवश्यक है।

(a) लोकतन्त्र से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
लिंकन के अनुसार, लोकतन्त्र लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा शासन होता है।

(b) लोकतन्त्र को सफल बनाने की तीन शर्ते लिखिए।
उत्तर-
हमारे देश में लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं

  1. शिक्षा का प्रसार-सरकार को शिक्षा के प्रसार के लिए उचित कदम उठाने चाहिएं। गांव-गांव में स्कूल खोलने चाहिए, स्त्री शिक्षा का उचित प्रबन्ध किया जाना चाहिए तथा प्रौढ़ शिक्षा को प्रोत्साहन देना चाहिए।
  2. पाठ्यक्रमों में परिवर्तन-देश के स्कूलों तथा कॉलजों के पाठ्यक्रमों में परिवर्तन लाना चाहिए। बच्चों को राजनीति शास्त्र से अवगत कराना चाहिए। शिक्षा केन्द्रों में प्रजातान्त्रिक सभाओं का निर्माण करना चाहिए। जिनमें बच्चों को चुनाव तथा शासन चलाने का प्रशिक्षण मिल सके।
  3. चुनाव-प्रणाली में सुधार-देश में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि चुनाव एक ही दिन में सम्पन्न हो जाएं और उनके परिणाम भी उसी दिन घोषित हो जाएं।
  4. न्याय-प्रणाली में सुधार-देश में न्यायधीशों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि मुकद्दमों का निपटारा जल्दी हो सके। निर्धन व्यक्तियों के लिए सरकार की ओर से वकीलों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  5. समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता-देश में समाचार-पत्रों को निष्पक्ष विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए।
  6. आर्थिक विकास-सरकार को नये-नये उद्योगों की स्थापना करनी चाहिए। उसे लोगों के लिए अधिक-सेअधिक रोज़गार जुटाने चाहिएं। ग्रामों में कृषि के उत्थान के लिए उचित पग उठाने चाहिएं।

(4)

लोकतन्त्र और लोकमत के गहरे सम्बन्ध को समझने के लिये यह जान लेना आवश्यक है कि लोकमत, लोकतन्त्र का आधार होता है। आज का युग लोकतन्त्र का युग है और लोकतन्त्र सदैव लोगों के कल्याण हेतु चलाया जाता है। इसके अतिरिक्त सही अर्थों में लोकमत, लोकतांत्रिक सरकार की आत्मा होता है क्योंकि लोकतांत्रिक सरकार अपनी सारी शक्ति जनमत से ही प्राप्त करती है और इसी के आधार पर कायम रहती है। ऐसी सरकार का हमेशा यह प्रयत्न रहता है कि लोकमत उनके पक्ष में रहे भाव उसके विरुद्ध न जाये। इस प्रकार हम लोकमत को कल्याणकारी सरकार की आत्मा भी कह सकते हैं। इसके अतिरिक्त लोकतांत्रिक सरकार में सरकार को राह पर चलाने के लिए जाग्रत जनमत की बहुत आवश्यकता है।

(a) लोकमत से आपका क्या भाव है?
उत्तर-
लोकमत से हमारा अभिप्राय जनता की राय अथवा मन से है।

(b) (लोकतंत्र में) लोकमत की भूमिका बताओ।
उत्तर-
लोकमत अथवा जनमत लोकतान्त्रिक सरकार की आत्मा होता है, क्योंकि लोकतान्त्रिक सरकार अपनी शक्ति लोकमत से ही प्राप्त करती है। ऐसी सरकार का सदा यह प्रयत्न रहता है कि लोकमत उनके पक्ष में रहे। इसके अतिरिक्त लोकतन्त्र लोगों का राज्य होता है। ऐसी सरकार जनता की इच्छाओं और आदेशों के अनुसार कार्य करती है। प्रायः यह देखा गया है कि आम चुनाव काफ़ी लम्बे समय के पश्चात् होते हैं जिसके फलस्वरूप जनता का सरकार से सम्पर्क टूट जाता है और सरकार के निरंकुश बन जाने की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है। इससे लोकतन्त्र का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। ऐसी अवस्था में जनमत लोकतान्त्रिक सरकार की सफलता का मूल आधार बन जाता है।

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(5)

प्रधानमंत्री राष्ट्रपति और मंत्रिमण्डल में एक कड़ी की भूमिका निभाता है। मंत्रिमण्डल के निर्णयों को राष्ट्रपति को अवगत कराना उसका संवैधानिक कर्तव्य है। राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से किसी भी विभाग सम्बन्धी सूचना प्राप्त कर सकता है। यदि कोई मंत्री राष्ट्रपति से मिलना चाहता है या परामर्श लेना चाहता है तो वह ऐसा प्रधानमंत्री के द्वारा ही कर सकता है। संक्षेप में वह राष्ट्रपति और मंत्रिमण्डल के सदस्यों में मध्यस्थ का कार्य करता है।
प्रधानमंत्री लोकसभा का नेता माना जाता है। प्रत्येक विपरीत परिस्थिति में लोकसभा इसके नेतृत्व की इच्छा करती है। प्रधानमंत्री की इच्छा के विपरीत लोकसभा कुछ भी नहीं कर सकती क्योंकि उसे लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है। वह लोकसभा में सरकार की नीतियों और निर्णयों की घोषण करता है। अक्ष्यक्ष प्रधानमंत्री के परामर्श से सदन का कार्यक्रम निश्चित करता है।

(a) प्रधानमन्त्री की नियुक्ति कैसे होती है?
उत्तर-
राष्ट्रपति संसद् में बहुमत प्राप्त करने वाले दल के नेता को प्रधानमन्त्री नियुक्त करता है।

(b) प्रधानमंत्री के किन्हीं तीन महत्त्वपूर्ण कार्यों (शक्तियों) का वर्णन करो।
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रधानमन्त्री मन्त्रिमण्डल का धुरा होता है।

  1. वह मन्त्रियों की नियुक्ति करता है और वही उनमें विभागों का बंटवारा करता है।
  2. वह जब चाहे प्रशासन की कार्यकुशलता के लिए मन्त्रिमण्डल का पुनर्गठन कर सकता है। इसका अभिप्राय यह है कि वह पुराने मन्त्रियों को हटा कर नए मन्त्री नियुक्त कर सकता है। वह मन्त्रियों के विभागों में परिवर्तन कर सकता है। यदि प्रधानमन्त्री त्याग-पत्र दे दे तो पूरा मन्त्रिमण्डल भंग हो जाता है।
  3. यदि कोई मन्त्री त्याग-पत्र देने से इन्कार करे तो वह त्याग-पत्र देकर पूरे मन्त्रिमण्डल को भंग कर सकता है। पुनर्गठन करते समय वह उस मन्त्री को मन्त्रिमण्डल से बाहर रख सकता है। इसके अतिरिक्त वह मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करता है और उनकी तिथि, समय तथा स्थान निश्चित करता है।

(6)

संविधान के अनुसार यदि राज्यपाल राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट दे या राष्ट्रपति को किसी भरोसेमन्द सूत्रों से यह सूचना मिले कि राज्य सरकार संवैधानिक ढंग से नहीं चल रही तो वह राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है। ऐसी घोषणा के उपरान्त राष्ट्रपति राज्य की मंत्रि परिषद् को बर्खास्त कर देता है और विधान सभा को भंग कर सकता है या स्थगित कर सकता है राष्ट्रपति शासन के अधीन राज्यपाल राज्य का वास्तविक कार्याध्यक्ष बन जाता है भाव वह केन्द्रीय सरकार के एजेन्ट के रूप में कार्य करता है। संवैधानिक ढाँचा फेल होने पर राज्य की समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास होती हैं और वैधानिक शक्तियाँ संसद को प्राप्त हो जाती हैं।

(a) राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है?
उत्तर-
राज्य के राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा पांच वर्ष के लिए की जाती है।

(b) संवैधानिक संकट की घोषणा का राज्य प्रशासन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
राज्य में संवैधानिक संकट की स्थिति में राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति राज्य में संवैधानिक आपात्काल की घोषणा कर सकता है। इसका परिणाम यह होता है कि सम्बद्ध राज्य की विधानसभा को भंग अथवा निलम्बित कर दिया जाता है। राज्य की मन्त्रिपरिषद् को भी भंग कर दिया जाता है। राज्य का शासन राष्ट्रपति अपने हाथ में ले लेता है। इसका अर्थ यह है कि कुछ समय के लिए राज्य का शासन केन्द्र चलाता है। व्यवहार में राष्ट्रपति राज्यपाल को राज्य का प्रशासन चलाने की वास्तविक शक्तियां सौंप देता है। विधानमण्डल की समस्त शक्तियां अस्थाई रूप से केन्द्रीय संसद् को प्राप्त हो जाती हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(7)

भारत ने गुट निरपेक्षता को अपनी विदेश नीति का मूल सिद्धान्त बनाया है। जब भारत आजाद हुआ तब सारा विश्व दो गुटों में बँटा हुआ था-रूस और एंग्लो-अमरीकन गुट। भारत की विदेश नीति के निर्माता पंडित नेहरू ने अनुभव किया कि राष्ट्र के निर्माण हेतु भारत को शक्ति-गुटों के संघर्ष से दूर रहना चाहिए। इसलिए पंडित नेहरू ने गुट निरपेक्ष नीति को अपनाया-गुट निरपेक्षता का अर्थ है कि प्रतियोगी शक्ति-गुटों से जानबूझ कर अलग रहना, किसी देश के प्रति वैर-विरोध का भाव न रखना और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का गुण के आधार पर निर्णय करना तथा स्वतन्त्र नीति अपनाना। भारत के प्रयत्नों के फलस्वरूप गुट-निरपेक्ष आन्दोलन समूचे विश्व में एक शक्तिशाली तथा प्रभावशाली आन्दोलन बन गया है।

(a) भारत की परमाणु नीति क्या है?
उत्तर-
भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है। परंतु हमारी विदेश नीति शांतिप्रियता पर आधारित है। इसलिए भारत की परमाणु नीति का आधार शांतिप्रिय लक्ष्यों की प्राप्ति करना और देश का विकास करना है। वह किसी पड़ोसी देश को अपनी परमाणु शक्ति के बल पर दबाने के पक्ष में नहीं है। हमने स्पष्ट कर दिया है कि युद्ध की स्थिति में भी हम परमाणु शक्ति का प्रयोग करने की पहल नहीं करेंगे।

(b) गुट-निरपेक्ष नीति का अर्थ और भारत का इसे अपनाने का क्या कारण है?
उत्तर-
गुट-निरपेक्ष नीति भारतीय विदेश नीति के मूल सिद्धान्तों में से एक है।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ-गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सैनिक गुटों से अलग रहना। इसका यह भाव नहीं है कि हम अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दर्शक बने रहेंगे बल्कि गुण के आधार पर निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। हम अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहेंगे। भारत द्वारा गुट-निरपेक्ष नीति अपनाने का कारण-भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व दो मुख्य शक्ति गुटोंऐंग्लो-अमरीकन शक्ति गुट और रूसी शक्ति गुट में बंटा हुआ था। विश्व की सारी राजनीति इन्हीं गुटों के गिर्द घूम रही थी और दोनों में शीत युद्ध चल रहा था। नव स्वतन्त्र भारत इन शक्ति गुटों के संघर्ष से दूर रह कर ही उन्नति कर सकता था। इसीलिए पं० नेहरू ने गुट-निरपेक्षता को विदेश नीति का आधार स्तम्भ बनाया।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

SST Guide for Class 10 PSEB भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
भारत की विदेश नीति का एक मूल सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-

  1. गुट-निरपेक्षता की नीति में विश्वास।
  2. पंचशील के सिद्धान्तों में विश्वास।
  3. संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण विश्वास।
  4. साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध। (कोई एक लिखें)

प्रश्न 2.
पंचशील से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
अप्रैल, 1954 को भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई ने जो पांच सिद्धान्त स्वीकार किए। उन्हें सामूहिक रूप से पंचशील कहते हैं।

प्रश्न 3.
गुट-निरपेक्षता की नीति से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
गुट-निरपेक्षता की नीति से अभिप्राय सैनिक गुटों से अलग रहने की नीति से है।

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प्रश्न 4.
भारत और संयुक्त राज्य में सम्बन्ध बिगड़ने का एक मुख्य कारण लिखो।
उत्तर-
भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में सम्बन्ध बिगड़ने का एक मुख्य कारण यह है कि अमेरिका पाकिस्तान को सैनिक सहायता देता रहता है।

प्रश्न 5.
भारत की परमाणु नीति क्या है?
उत्तर-
भारत एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है। परंतु हमारी विदेश नीति शांतिप्रियता पर आधारित है। इसलिए भारत की परमाणु नीति का आधार शांतिप्रिय लक्ष्यों की प्राप्ति करना और देश का विकास करना है। वह किसी पड़ोसी देश को अपनी परमाणु शक्ति के बल पर दबाने के पक्ष में नहीं है। हमने स्पष्ट कर दिया है कि युद्ध की स्थिति में भी हम परमाणु शक्ति का प्रयोग करने की पहल नहीं करेंगे।

प्रश्न 6.
सुरक्षा परिषद् में स्थायी और अस्थायी सदस्य कितने हैं?
उत्तर-
सुरक्षा परिषद् 5 सदस्य स्थायी तथा 10 सदस्य अस्थायी हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र का जन्म कब हुआ और कितने देश इसके मूल सदस्य थे?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र का जन्म 24 अक्तूबर, 1945 ई० को हुआ। इसके मूल सदस्य 51 देश थे।

(ख) निम्नलिखित की व्याख्या करो

  1. विश्व शान्ति में भारत की भूमिका
  2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice)
  3. निःशस्त्रीकरण (Disarmament)
  4. महासभा (General Assembly)
  5. भारत-चीन सम्बन्धों में तनाव का मूल कारण।

उत्तर-

  1. भारत ने विश्व-शान्ति को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित कार्य किए
    (क) गुट-निरपेक्षता की नीति पर चलते हुए भारत ने सदा आक्रामक शक्तियों की निन्दा की।
    (ख) भारत ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से शान्ति सेनाओं के लिए सैनिक भेजे तथा निःशस्त्रीकरण का समर्थन किया।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल 15 न्यायाधीश होते हैं। इसका मुख्य कार्यालय हेग [Hague, हालैण्ड में है। इसका मुख्य कार्य राष्ट्रों के आपसी झगड़ों का निर्णय करना है।
  3. निःशस्त्रीकरण से अभिप्राय शस्त्रों की होड़ को कम करना है। हमने आरम्भ से ही घातक शस्त्रों का विरोध किया है क्योंकि ये विश्व-शान्ति के लिए सदा खतरा रहे हैं।
  4. महासभा-यह एक तरह से संयुक्त राष्ट्र की संसद् है। इसमें प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के पांच प्रतिनिधि होते हैं।
  5. भारत-चीन सम्बन्धों में तनाव का मूल कारण-भारत-चीन सम्बन्धों में तनाव का मूल कारण दोनों देशों में सीमा विवाद है। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण करके इस विवाद को और गहन बना दिया।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
पंचशील के सिद्धान्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
29 अप्रैल, 1954 को भारत के प्रधानमन्त्री पण्डित नेहरू और चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई की दिल्ली में संयुक्त वार्ता हुई। इस वार्ता में उन्होंने आपसी सम्बन्धों को पांच सिद्धान्तों के अनुसार ढालने का निर्णय लिया। इन्हीं पांच सिद्धान्तों को ‘पंचशील’ कहा जाता है। ये पांच सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. परस्पर प्रभुसत्ता और एकता का आदर।
  2. एक-दूसरे पर आक्रमण न करना।
  3. एक-दूसरे के आन्तरिक विषयों में हस्तक्षेप न करना।
  4. समानता और परस्पर सहयोग।
  5. शान्तिमय सह-अस्तित्व। पंचशील का मुख्य उद्देश्य विश्व शान्ति को बनाये रखना और मानव जाति को युद्धों के विनाश से बचाना है। चीन के पश्चात् संसार के अन्य देशों ने पंचशील को मान्यता प्रदान की। आज पंचशील भारतीय विदेश नीति का आधार स्तम्भ है।

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प्रश्न 2.
गुट-निरपेक्ष नीति का अर्थ और भारत का इसे अपनाने का क्या कारण है?
उत्तर-
गुट-निरपेक्ष नीति भारतीय विदेश नीति के मूल सिद्धान्तों में से एक है।
गुट-निरपेक्षता का अर्थ-गुट-निरपेक्षता का अर्थ है सैनिक गुटों से अलग रहना। इसका यह भाव नहीं है कि हम अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति दर्शक बने रहेंगे बल्कि गुण के आधार पर निर्णय लेने का प्रयास करेंगे। हम अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा कहेंगे।

भारत द्वारा गुट-निरपेक्ष नीति अपनाने का कारण-भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व दो मुख्य शक्ति गुटोंऐंग्लो-अमरीकन शक्ति गुट और रूसी शक्ति गुट में बंटा हुआ था। विश्व की सारी राजनीति इन्हीं गुटों के गिर्द घूम रही थी और दोनों में शीत युद्ध चल रहा था। नव स्वतन्त्र भारत इन शक्ति गुटों के संघर्ष से दूर रह कर ही उन्नति कर सकता था। इसीलिए पं० नेहरू ने गुट-निरपेक्षता को विदेश नीति का आधार स्तम्भ बनाया।

प्रश्न 3.
संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
सुरक्षा परिषद् संयुक्त राष्ट्र के छ: अंगों में से एक है। यह संयुक्त राष्ट्र की कार्यपालिका के समान है। इसके कुल 15 सदस्य हैं। इनमें से पांच स्थायी सदस्य और दस अस्थायी सदस्य हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, चीन और फ्रांस इसके स्थायी सदस्य हैं। इन्हें वीटो का अधिकार है। वीटो से अभिप्राय यह है कि यदि इनमें से कोई भी एक सदस्य किसी प्रस्ताव का विरोध करता है तो वह प्रस्ताव रद्द हो जाता है। सुरक्षा परिषद् के मुख्य कार्य हैं

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति को बनाए रखना।
  2. राष्ट्रों के परस्पर झगड़ों को शान्तिपूर्वक सुलझाना।
  3. महासचिव के पद के लिए सिफ़ारिश करना।
  4. संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए नए राष्ट्रों की सिफ़ारिश करना।

प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की भूमिका संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
भारत संयुक्त राष्ट्र के 51 मूल सदस्यों में से एक है। आरम्भ से ही भारतीय नेताओं ने इस महान् संस्था में अपनी आस्था रखी है और इस देश ने निम्नलिखित ढंग से संयुक्त राष्ट्र के कार्यों में क्रियाशील भूमिका निभाई है

  1. भारत ने अन्य देशों के साथ मिलकर 1950 में उप-निवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरुद्ध महासभा में प्रस्ताव पास करवाया।
  2. भारत ने मिस्र, कांगो, कोरिया तथा हिन्द-चीन के देशों में हुए युद्धों में संयुक्त राष्ट्र के शान्ति प्रयासों में सहयोग दिया।
  3. नस्ली भेदभाव और रंगभेद के सन्दर्भ में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से दक्षिण अफ्रीका के विरुद्ध आवाज़ उठाई और उसके विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध में भाग लिया।
  4. भारत ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से प्रत्येक उस देश के विरुद्ध आवाज़ उठाई जिसने मानव अधिकारों का उल्लंघन करने का प्रयास किया।
  5. विश्व में आतंकवाद की समाप्ति की प्रक्रिया में भारत संयुक्त राष्ट्र के साथ है।

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प्रश्न 5.
भारत और संयुक्त राष्ट्र अमरीका के परस्पर सम्बन्धों का संक्षेप में नोट लिखो।
उत्तर-
भारत का संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के उद्देश्यों और सिद्धान्तों में पूर्ण विश्वास है। हमने संयुक्त राष्ट्र के प्रत्येक अंग और विशेष एजेंसियों के कार्यों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत संयुक्त राष्ट्र को विश्व-शान्ति का रक्षक मानता है। इसलिए भारत ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सैनिक सहायता प्रत्येक सम्भव ढंग से की है। भारत ने सदा संयुक्त राष्ट्र में इस बात पर जोर दिया है कि वह राजनीतिक मामलों तक ही अपने को सीमित न करे, बल्कि मानव की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक समस्याओं को सुलझाने का भी प्रयास करे। ऐसी समस्याओं को सुलझाने में भारत ने संयुक्त राष्ट्र को आर्थिक सहायता और पूरा सहयोग दिया है। 22 दिसम्बर, 1994 को भारतीय संसद् के दोनों सदनों ने एक प्रस्ताव पास कर संयुक्त राष्ट्र के प्रति भारत की वचनबद्धता को दोहराया है।

प्रश्न 7.
भारत पाकिस्तान सम्बन्ध तथा इनके बीच तनाव के मुख्य तीन कारणों पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध आरम्भ से ही तनावपूर्ण तथा शत्रुतापूर्ण रहे हैं। इनके बीच तनाव का मुख्य कारण
कश्मीर समस्या है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। परन्तु पाकिस्तान इस प्रदेश पर अपना दावा जताता रहता है। 1999 में पाकिस्तान तथा भारत के बीच कारगिल युद्ध के कारण तनाव और अधिक बढ़ गया। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान, सीमा पार से भारत में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है। ये एक अच्छे पड़ोसी के लक्षण नहीं हैं। भारत आज भी पाकिस्तान से मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना चाहता है और इसके लिए प्रयास कर रहा है। परन्तु यह तभी सम्भव हो सकता है, जब पाकिस्तान सीमा पार से आतंकवाद को समाप्त करे और युद्ध-विराम की शर्तों का पालन करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

1. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का एक कारण बताइए।
उत्तर-
पाकिस्तान कश्मीर पर अपना दावा जताता रहता है, जबकि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
अथवा
पाकिस्तान द्वारा विदेशी सहायता से शस्त्रों का भण्डार भी दोनों देशों के मध्य तनाव का एक कारण है।

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प्रश्न 2.
भारत की वर्तमान विदेश नीति के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
पं० जवाहर लाल नेहरू।

प्रश्न 3.
भारत की विदेश नीति का एक मूल सिद्धान्त बताओ।
उत्तर-
गुट निरपेक्षता।

प्रश्न 4.
पंचशील के सिद्धान्तों को कब अपनाया गया?
उत्तर-
29 अप्रैल, 1954 को।

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प्रश्न 5.
पंचशील का समझौता किन दो नेताओं के बीच हुआ?
उत्तर-
पंचशील का समझौता भारत के प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू तथा चीन के प्रधानमन्त्री चाउ-एन-लाई के बीच हुआ।

प्रश्न 6.
पंचशील के सिद्धान्तों को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में मान्यता कब दी गई?
उत्तर-
14 दिसम्बर, 1959 को।

प्रश्न 7.
संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पंचशील के सिद्धान्तों को मान्यता देने वाले देशों की संख्या कितनी थी?
उत्तर-
82.

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प्रश्न 8.
सार्क (दक्षेस) की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
7 दिसम्बर, 1985 को।

प्रश्न 9.
‘दक्षेस’ का पूरा नाम क्या है?
उत्तर-
दक्षेस का पूरा नाम है दक्षिण-एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन।

प्रश्न 10.
भारत ने पोखरन (राजस्थान) में परमाणु धमाका (प्रयोग) कब किया?
उत्तर-
1974 में।

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प्रश्न 11.
भारत ने राष्ट्रमण्डल की सदस्यता कब ग्रहण की थी?
उत्तर-
17 मई, 1945 को।

प्रश्न 12.
आजकल राष्ट्रमण्डल के सदस्यों की संख्या कितनी है?
उत्तर-
49.

प्रश्न 13.
भारत के दो पड़ोसी देशों के नाम बताओ जो परमाणु शक्ति सम्पन्न हैं।
उत्तर-
चीन तथा पाकिस्तान।

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प्रश्न 14.
भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व कौन-कौन से दो शक्ति गुटों में बंटा हुआ था?
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता के समय विश्व ऐंग्लो-अमेरिकन शक्ति गुट तथा रूसी शक्ति गुट में बंटा हुआ था।

प्रश्न 15.
द्वितीय विश्वयुद्ध कब-से-कब तक चला?
उत्तर-
द्वितीय विश्वयुद्ध 1939 से 1945 तक चला।

प्रश्न 16.
संयुक्त राष्ट्र का चार्टर कब और कहां स्वीकार किया गया?
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र का चार्टर सानफ्रांसिसको में 26 जून, 1945 को स्वीकार किया गया।

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प्रश्न 17.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
24 अक्तूबर, 1945 को।

प्रश्न 18.
संयुक्त राष्ट्र के चार्टर को कितने देशों के प्रतिनिधियों ने स्वीकार किया?
अथवा
स्थापना के समय संयुक्त राष्ट्र के कितने सदस्य थे?
उत्तर-
51.

प्रश्न 19.
आज (2017) संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों की लगभग संख्या कितनी है?
उत्तर-
195.

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प्रश्न 20.
संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों ( 5) को क्या विशेषाधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर-
वीटो।

प्रश्न 21.
अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल कितने न्यायाधीश होते हैं?
उत्तर-
15.

प्रश्न 22.
संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय के अध्यक्ष को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
महासचिव।

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प्रश्न 23.
भारत ने महासभा में दक्षिणी अफ्रीका द्वारा नस्ली भेदभाव का त्याग करने संबंधी प्रस्ताव कब पेश किया?
उत्तर-
1962 में।

प्रश्न 24.
संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने मानव अधिकारों की सर्वव्यापी घोषणा कब की?
उत्तर-
10 दिसम्बर, 1948 को।

प्रश्न 25.
भारत की श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित संयुक्त राष्ट्र की सभा में प्रथम महिला प्रधान कब चुनी गई?
उत्तर-
1954 में।

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प्रश्न 26.
बांग्लादेश कब और किस युद्ध के परिणामस्वरूप बना?
उत्तर-
बांग्लादेश 1971 में भारत-पाक युद्ध के परिणामस्वरूप बना।

प्रश्न 27.
भारत ने किस परमाणु सन्धि पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया है?
उत्तर-
परमाणु अप्रसार संधि ।

प्रश्न 28.
चीन में साम्यवादी शासन की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1949 में।

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प्रश्न 29.
भारत-चीन युद्ध कब हुआ?
उत्तर-
1962 में।

प्रश्न 30.
नेहरू-लियाकत अली समझौता कब हुआ?
उत्तर-
1960 में।

प्रश्न 31.
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक देशों के नाम बताइए।
उत्तर-
गुट-निरपेक्ष आन्दोलन के संस्थापक राष्ट्र हैं-भारत, युगोस्लाविया तथा मिस्री

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प्रश्न 32.
सुरक्षा परिषद् का एक महत्त्वपूर्ण कार्य बताओ।
उत्तर-
विश्व शान्ति और सुरक्षा में योगदान देना।

प्रश्न 33.
मानव अधिकारों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
मनुष्य की सामाजिक प्रकृति में निहित अधिकारों को मानव अधिकार कहते हैं।

प्रश्न 34.
निःशस्त्रीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
मानव जाति को सर्वनाश से बचाने के लिए।

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II. रिक्त स्थानों की पर्ति

  1. सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्यों की संख्या ………..
  2. सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों की संख्या ………… है।
  3. संयुक्त राष्ट्र संघ का जन्म …………… को हुआ।
  4. संयुक्त राष्ट्र के मूला सदस्यों की संस्था :……….. थी।
  5. भारत की वर्तमान विदेश नीति के संस्थापक …………… थे।
  6. आज संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राष्ट्रों की संख्या ……….. है।
  7. संयुक्त राष्ट्र में निषेधाधिकार अथवा वीटो का अधिकार संस्था के ………….. सदस्यों को प्राप्त है।
  8. भारत-चीन युद्ध………… में हुआ।

उत्तर-

  1. 5,
  2. 10;
  3. 24 अक्टूबर, 1945,
  4. 51,
  5. पं० जवाहरलाल नेहरू,
  6. 195,
  7. स्थायी,
  8. 1962।

III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में कौन-सा सिद्धान्त भारत की विदेश नीति का नहीं है?
(A) परमाणु शस्त्रों में वृद्धि
(B) संयुक्त राष्ट्र में पूर्ण विश्वास
(C) पंचशील के सिद्धांतों में विश्वास
(D) साम्राज्यवाद तथा उपनिवेशवाद का विरोध ।
उत्तर-
(A) परमाणु शस्त्रों में वृद्धि

प्रश्न 2.
निम्न में से कौन-सा संयुक्त राष्ट्र का स्थायी सदस्य नहीं है?
(A) रूस
(B) चीन
(C) भारत
(D) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर-
(C) भारत

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प्रश्न 3.
बंगलादेश की स्थापना कब हुई?
(A) 1969
(B) 1971
(C) 1973
(D) 1975
उत्तर-
(B) 1971

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन-सा देश परमाणु शक्ति है?
(A) भारत
(B) चीन
(C) पाकिस्तान
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में कुल न्यायाधीश हैं
(A) 15
(C) 11
(B) 10
(D) 25
उत्तर-
(A) 15

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IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में छः स्थायी सदस्य देश हैं।
  2. भारत सुरक्षा परिषद् का स्थायी सदस्य है।
  3. 26 जनवरी, 1950 को पंचशील के सिद्धान्तों को अपनाया गया।
  4. भारत ने राष्ट्रमण्डल की सदस्यता 17 मई, 1945 को ग्रहण की।
  5. भारत पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने में विश्वास रखता है।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. गुट-निरपेक्षता — भारत, यूगोस्लाविया तथा मित्र
  2. महासचिव — चीन, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान
  3. गुट-निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक राष्ट्र — भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धान्त
  4. भारत के पड़ोसी राष्ट्र — संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय का अध्यक्ष

उत्तर-

  1. गुट-निरपेक्षता — भारत की विदेश नीति का मूल सिद्धान्त,
  2. महासचिव — संयुक्त राष्ट्र के सचिवालय का अध्यक्ष,
  3. गुट-निरपेक्ष आंदोलन के संस्थापक राष्ट्र — भारत, यूगोस्लाविया तथा मिस्र,
  4. भारत के पड़ोसी राष्ट्र — चीन, पाकिस्तान तथा अफगानिस्तान।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अब भारत को सुरक्षा की अधिक आवश्यकता क्यों है? दो तर्क दें।
उत्तर-
प्राचीन काल में भारत की सीमाओं की रक्षा करना अपेक्षाकृत सरल था। उत्तर में स्थित हिमालय एक दीवार का कार्य करता था। दक्षिण में समुद्र भारत की रक्षा करता था। परन्तु अब न तो ऊंचे पर्वत और न ही विशाल समुद्र देश की रक्षा में कोई योगदान दे सकते हैं। आज विज्ञान की उन्नति के कारण पहाड़ और समुद्र बाधा नहीं रहे। इसलिए भारत की सीमाओं की रक्षा करना आवश्यक हो गया है। दूसरे, कुछ पड़ोसी देशों से हमारे अच्छे सम्बन्ध नहीं हैं। हमें उनसे अपनी रक्षा करनी है। इसलिए भारत को सुरक्षा की अधिक आवश्यकता है।

प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र के किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण अंगों के नाम लिखें। प्रत्येक अंग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य बताइए।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र के चार महत्त्वपूर्ण अंग हैं-साधारण सभा, सुरक्षा परिषद्, आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् तथा अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय।
कार्य —

  1. साधारण सभा सुरक्षा परिषद् के अस्थायी सदस्यों का चुनाव करती है।
  2. सुरक्षा परिषद् अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा की व्यवस्था करती है।
  3. आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् मानव जाति की आर्थिक स्थिति सुधारने का प्रयास करती है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय सदस्य राष्ट्रों के बीच झगड़ों पर विचार करता है।

प्रश्न 3.
भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार के कुछ उपाय बताओ।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्धों में दोनों देशों के सामान्य हितों को बढ़ावा देकर निश्चित रूप से सुधार लाया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित पग उठाने होंगे —

  1. दोनों देशों में व्यापार सम्बन्धों को मजबूत बनाया जाए।
  2. दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक आदान-प्रदान किया जाए।
  3. दोनों देशों में खेल–सम्बन्धों को सुदृढ़ किया जाए। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि ये उपाय तभी सफल हो सकते हैं, जब पाकिस्तान आतंकवाद का दामन छोड़ें।

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प्रश्न 4.
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना कब हुई थी? इसके उद्देश्य बताइए।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र की स्थापना 24 अक्तूबर, 1945 को हुई। इसके आरम्भिक सदस्यों की संख्या 51 थी। परन्तु आज इनकी संख्या 195 हो गई है। भारत इसके आरम्भिक सदस्यों में से एक है।
उद्देश्य-संयुक्त राष्ट्र का अपना संविधान है, जिसे चार्टर कहते हैं। चार्टर में संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। इसमें इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि इन उद्देश्यों की पूर्ति किस प्रकार की जाएगी। इसके मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं —

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति एवं सुरक्षा की स्थापना करना।
  2. राष्ट्रों के बीच अच्छे सम्बन्धों को बढ़ावा देना। ये सम्बन्ध समानता तथा आपसी सहयोग पर आधारित होंगे।
  3. अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से सुलझाना।

प्रश्न 5.
I.L.O., UNESCO, F.A.O. तथा W.H.0. के पूरे नाम लिखो। इनमें से किन्हीं दो संगठनों के कार्य लिखो।
उत्तर-
I.L.O., UNESCO, F.A.O. तथा W.H.O. संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट समितियां हैं।

  1. I.L.O. — इसका पूरा नाम अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (International Labour Organisation) है। इसका कार्य श्रमिकों के काम की दशाओं में सुधार लाना है। यह संगठन इस बात का भी प्रयास करता है कि श्रमिकों को कुछ न्यूनतम अधिकार प्राप्त हों।
  2. UNESCO — इसका पूरा नाम संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक संगठन (The U.N. Educational, Scientific and Cultural Organisation) है। यह संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों के बीच वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देता है।
  3. F.A.O. — इसका पूरा नाम खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agricultural Organisation) है। विश्वभर में यह कृषि के विकास तथा खाद्यान्न पूर्ति के कार्य करता है।
  4. W.H.O. — इसका पूरा नाम विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) है। विश्व भर में स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य इसका विशेष उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखो
(क) सार्क
(ख) निषेधाधिकार।
उत्तर-
(क) सार्क-सार्क का पूरा नाम है-दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन। हिन्दी में इसका संक्षिप्त नाम है-दक्षेस। यह दक्षिण एशिया के विकासशील देशों का संगठन है। इसके प्रमुख सदस्य भारत, पाकिस्तान, बांग्ला देश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका तथा मालदीव हैं। इन देशों की संस्कृति तथा आर्थिक समस्याओं में कई समानताएं पाई जाती हैं। इन्हीं समानताओं के कारण ही ये राष्ट्र आपस में संगठित हुए हैं। ये आपसी सहयोग से अपना विकास करना चाहते हैं।
(ख) निषेधाधिकार-निषेधाधिकार (वीटो) सुरक्षा परिषद् के 5 स्थायी सदस्यों (संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्रांस तथा चीन) को प्राप्त है। सुरक्षा परिषद् के सभी महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर इन पांचों सदस्यों की सहमति होना अनिवार्य है। यदि इनमें से एक भी सदस्य किसी निर्णय का विरोध करता है, तो उस निर्णय को रद्द माना जाता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 5 भारत की विदेश नीति तथा संयुक्त राष्ट्र

प्रश्न 7.
भारत की विदेश नीति की छः विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
भारत की विदेश नीति की निम्नलिखित छ: विशेषताएं हैं —

  1. अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति तथा सुरक्षा के लिए प्रयास करना।
  2. उपनिवेशों की जनता के लिए आत्म-निर्णय के अधिकार का समर्थन करना।
  3. जातिवाद का विरोध करना।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय विवादों का शान्तिपूर्ण ढंग से निपटारा करना।
  5. संयुक्त राष्ट्र तथा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ सहयोग करना।
  6. गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण करना तथा विश्व के सैनिक गुटों से दूर रहना।

प्रश्न 8.
भारत-चीन सम्बन्धों के सकारात्मक पहलू बताओ।
उत्तर-

  1. सीमा विवाद को आपसी बातचीत द्वारा हल करने का प्रयास किया जा रहा है।
  2. एक समझौते के अनुसार दोनों देश आपस में आर्थिक सहयोग तथा सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने पर वचन बद्ध हैं।
  3. विश्व शांति सम्मेलनों में दोनों देशों के प्रतिनिधि एक-दूसरे का भरोसा जीतने का प्रयास करते रहते हैं।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 8 कृषि आधारित औद्योगिक धंधे

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 8 कृषि आधारित औद्योगिक धंधे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 8 कृषि आधारित औद्योगिक धंधे

PSEB 10th Class Agriculture Guide कृषि आधारित औद्योगिक धंधे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो शब्दों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
घरेलू स्तर पर कौन-सी फसलों को सुखाकर पाऊडर बनाया जा सकता है ?
उत्तर-
हल्दी, मिर्च आदि।

प्रश्न 2.
कृषि पर आधारित कामों के लिए कहां से प्रशिक्षण लिया जा सकता है?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।

प्रस्न 3.
एग्रो प्रोसेसिंग कंपलैक्स में लगने वाली कोई दो (चार) मशीनों के नाम लिखिए।
उत्तर-
मिनी चावल मिल, छोटी आटा चक्की, ग्राईंडर, पेंजा, कोहलू।

प्रश्न 4.
मैंथा का तेल कौन-सी चीज़ों में प्रयुक्त होता है?
अथवा
मैंथे का तेल क्या-क्या काम आता है?
उत्तर-
दवाइयां, सेंट, शृंगार का सामान आदि में।

प्रश्न 5.
एक क्विटल गन्ना पेर कर कितना गुड़ तैयार किया जा सकता है?
उत्तर-
10-12 किलो ग्राम।

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प्रश्न 6.
दानों में कटाई के बाद कितना नुकसान होता है ?
उत्तर-
10%.

प्रश्न 7.
विद्यार्थियों को पढ़ाई के साथ-साथ और क्या करना चाहिए ? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर-
किसी औद्योगिक धंधे सम्बन्धी सामर्थ्य विकसित करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
कोई भी व्यापार करने से पहले किस चीज़ की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
प्राथमिक प्रशिक्षण की।

प्रश्न 9.
प्रोसेसिंग के दौरान 100 किलो ग्राम कच्ची हल्दी से कितना पाऊडर तैयार किया जा सकता है?
अथवा
100 किलो कच्ची हल्दी में से प्रोसेसिंग के दौरान कितना हल्दी पाऊडर तैयार किया जा सकता है?
उत्तर-
15-20 कि० ग्रा० ।

प्रश्न 10.
मैंथा प्रोसेसिंग के दौरान तेल तथा पानी को कैसे अलग किया जाता है?
उत्तर-
सैपरेटर की सहायता से।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक – दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
सहकारी स्तर पर किस तरह की खेती आधारित कारखाने लगाए जा सकते हैं ?
उत्तर-
फलों तथा सब्जियों की प्रोसेसिंग के लिए डीहाईड्रेशन प्लांट तथा फ्रीजिंग प्लांट आदि लगाने के लिए बहुत खर्चा (लगभग 30 लाख रुपए) होता है। इसलिए ऐसे कारखाने सहकारी स्तर पर लगाए जा सकते हैं।

प्रश्न 2.
कौन-से प्रमुख साधनों की कमी के कारण हमारे देश में अनाज का नुकसान हो रहा है?
उत्तर-
हमारे देश में भंडारण तथा प्रोसेसिंग के बढ़िया साधनों की कमी के कारण कटाई के बाद अनाज की हानि हो रही है।

प्रश्न 3.
अनाज के हो रहे नुकसान को रोकने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-
अनाज के हो रहे नुकसान को रोकने के लिए कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
कृषि पर आधारित व्यापार किस तरह किसानों की आमदन बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं?
उत्तर-
कृषि उत्पादों की छोटे स्तर पर प्रोसेसिंग कर के बेचने से किसान अधिक आमदन कमा सकता है तथा कृषि आधारित व्यापार; जैसे मुर्गी पालन, डेयरी का धंधा आदि की छोटे स्तर पर एग्रो प्रोसेसिंग करके भी आय प्राप्त की जा सकती है।

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प्रश्न 5.
मैंथे की प्रोसेसिंग कैसे की जाती है?
उत्तर-
मैंथे की फसल में से तेल निकालने के लिए मैंथे प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जा सकता है।
मैंथे की फसल को खुले में सुखाया जाता है ताकि नमी की मात्रा कम की जा सके। फिर इन को हवा बंद टैंकों में डाल कर अंदर दबाव द्वारा भाप भेजी जाती है। गर्म होने पर तेल भाप में मिल जाता है। तेल तथा भाप के कणों को एक दम ठंडा किया जाता है। पानी तथा तेल के मिश्रण को टैंक में इकट्ठा किया जाता है। इस टैंक को सैपरेटर कहा जाता है। तेल, पानी से हल्का होने के कारण ऊपर तैरता है। इसको ऊपर से नितार लिया जाता है तथा प्लास्टिक के बर्तनों में बंद कर लिया जाता है।

प्रश्न 6.
हल्दी की प्रोसेसिंग के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से विकसित की गई मशीन के बारे में लिखिए।
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा हल्दी को धोने तथा पालिश करने के लिए मशीन तैयार की गई है। इस मशीन में एक घण्टे में 2.5-3.0 क्विटल हल्दी को धो सकते हैं तथा बाद में पालिश भी कर सकते हैं।

प्रश्न 7.
गुड़ की प्रोसेसिंग में बुनियादी तकनीकी काम कौन-से होते हैं ?
उत्तर-
बेलना नामक मशीन द्वारा गन्ने का रस निकाला जाता है तथा जो रस प्राप्त होता है उसको गर्म करके सघन किया जाता है तथा गुड़ बनाया जाता है।

प्रश्न 8.
एग्रो प्रोसेसिंग कम्पलैक्स में लगाई जाने वाली किन्हीं तीन मशीनों के नाम तथा उनके काम के बारे में बताइए।
उत्तर-
फल सब्जियां धोने वाली मशीन, डीहाइड्रेटर, स्लाइसर मशीनों का प्रयोग क्रमश: फलों सब्जियों को धोने के लिए, नमी सुखाने के लिए तथा स्लाइस बनाने में प्रयोग होता है।

प्रश्न 9.
फल सब्जियों के लिए फ्रीजिंग प्लांट किसानी स्तर पर क्यों नहीं लगाए जा सकते ?
उत्तर-
इनकी लागत बहुत अधिक है। लगभग 30 लाख रुपए का खर्चा आ जाता है। इसलिए इन्हें किसानी स्तर पर नहीं लगाया जा सकता।

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प्रश्न 10.
कौन-से खेती पदार्थों को घरेलू स्तर पर सुखाकर प्रतिदिन घर में प्रयोग किया जा सकता है?
अथवा
कोई चार कृषि उत्पादों के नाम लिखो, जिनका प्रयोग घरेलू स्तर पर सुखा कर किया जा सकता है ?
उत्तर-
मेथी, धनिया, मैंथा, मिर्च आदि को घर में सुखाकर प्रयोग किया जा सकता है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच – छः वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
गांवों में कृषि पर आधारित व्यापार शुरू करने से क्या लाभ होगा ?
उत्तर-
साधारणतया कटाई के बाद अनाज की 10% तथा फलों सब्जियों की 3040% हानि हो जाती है। परन्तु यदि ग्रामीण स्तर पर प्रोसेसिंग यूनिट लगा लिए जाए तो इस हानि को काफ़ी कम किया जा सकता है। किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है। बेरोज़गार नौजवानों को काम मिल सकता है तथा खाने पीने के लिए ताज़ी तथा उच्च स्तरीय वस्तुएं प्राप्त हो सकती हैं। रोज़गार के अधिक अवसरों तथा अधिक आमदन के कारण शहरों की तरफ जाने का रुझान भी कम होता है।

प्रश्न 2.
एक छोटे कृषि आधारित कारखाने में किस तरह की मशीनें लगाई जा सकती हैं तथा यह मशीनें कौन-सी फ़सलों की प्रोसेसिंग करेंगी?
उत्तर-
एक छोटे कृषि आधारित कारखाने में कई प्रकार की मशीनें लगाई जा सकती हैं, जैसे–

  • मिनी चावल मिल
  • तेल निकालने वाला कोल्हू
  • आटा चक्की
  • ग्राइंडर
  • दालों का कलीनर ग्रेडर तथा मिनी दाल मिल
  • पेंजा
  • छोटी फीड मिल आदि।

इन मशीनों में दालें, अनाज, तेल बीज, मसाले, कपास आदि की प्रोसेसिंग की जा सकती है।

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प्रश्न 3.
गांवों से शहरों की ओर लोगों का रूझान रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिएं ?
उत्तर-
गांव से शहरों की ओर लोगों का रूझान इसलिए है कि गांव में अधिक रोज़गार के अवसर नहीं है तथा आमदन भी कम होती है। यदि गांव में रोज़गार के अवसर उपलब्ध करवाए जाएं तथा आमदन भी बढ़ाई जा सके तो यह रूझान रुक सकता है। इसलिए कृषि आधारित उद्योग धंधों को शुरू करने को बढ़ावा देना चाहिए।

नौजवान अपनी कृषि वस्तुओं के छोटे प्रोसेसिंग यूनिट लगा सकते हैं। कई कृषि सम्बन्धी उद्योग-धंधे शुरू कर सकते हैं, जैसे-डेयरी फार्म, मछली पालन, मुर्गी पालन, खुम्भे उगाना, शहद की मक्खियां पालना आदि तथा इनके उत्पादों का स्वयं मण्डीकरण करके अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 4.
अधिक धन से लगने वाले कृषि पर आधारित काम शुरू करने के लिए कौन-सी नीति होनी चाहिए?
उत्तर-
कई ऐसे कार्य हैं जो कृषि आधारित हैं परन्तु उनको शुरू करने के लिए आरम्भिक खर्चा बहुत अधिक हो जाता है, जैसे-फल सब्जियों के लिए डीहाइड्रेशन तथा फ्रीजिंग प्लांट लगाने पर लगभग 30 लाख रुपए का खर्चा आ जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्लांट किसानी स्तर पर न लगा कर, सहकारी स्तर पर या किसानों के समूहों द्वारा लगाए जाने चाहिए। इस तरह एक प्लांट का प्रयोग कई किसान कर सकते हैं तथा अपनी उपज की प्रोसेसिंग करवा कर मण्डीकरण के लिए ले जाया जा सकता है।

प्रश्न 5.
हल्दी की प्रोसेसिंग के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
कच्ची हल्दी से हल्दी पाऊडर कैसे तैयार किया जाता है?
उत्तर-
हल्दी की प्रोसेसिंग करने के लिए ताज़ी हल्दी की गांठों को अच्छी तरह धो कर मिट्टी रहित किया जाता है। इस कार्य के लिए पी० ए० यू० द्वारा तैयार हल्दी धोने तथा पालिश करने वाली मशीन का प्रयोग किया जा सकता है। इस मशीन में 2.5-3.0 क्विटल हल्दी को एक ही समय पर धोया जा सकता है। धोने के बाद हल्दी को उबाला जाता है तथा इस प्रकार गांठें नर्म हो जाती हैं। इनका रंग भी एक जैसा हो जाता है। हल्दी को खुले बर्तन में उबालने पर लगभग एक घण्टा लगता है परन्तु प्रेशर कुक्कर में 20 मिनट लगते हैं। उबालने के बाद हल्दी को धूप में सुखाया जाता है ताकि नमी की मात्रा 10% से कम हो जाए। इस कार्य के लिए अच्छी धूप में 15 दिन लग जाते हैं। इसके बाद हल्दी की ऊपरी सतह को उतारने के लिए पालिश किया जाता है तथा फिर हल्दी को ग्राइंडर में पीस लिया जाता है। इस प्रकार 100 कि० ग्र० ताजा हल्दी से 15-20 किलो हल्दी पाऊडर प्राप्त हो जाता है।

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Agriculture Guide for Class 10 PSEB कृषि आधारित औद्योगिक धंधे Important Questions and Answers

वस्तनिष्ठ प्रश्न

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
100 किलो ताजी हल्दी से ………….. किलो हल्दी पाऊडर मिल सकता
(क) 25-30
(ख) 15-20
(ग) 5-10
(घ) 45-50.
उत्तर-
(ख) 15-20

प्रश्न 2.
एक क्विटल गन्ने में से ………. किलो गुड़ तैयार हो जाता है।
(क) 21-22
(ख) 30-35
(ग) 10-12
(घ) 18-20
उत्तर-
(ग) 10-12

प्रश्न 3.
दानों का कटाई के बाद लगभग ………. नुकसान होता है।
(क) 5%
(ख) 10%
(ग) 20%
(घ) 50%.
उत्तर-
(ख) 10%

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प्रश्न 4.
मैंथा का तेल …………. में प्रयोग होता है-
(क) दवाइयों
(ख) सेंट
(ग) श्रृंगार का सामान
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 5.
कटाई के बाद सब्जियों तथा फलों का …… नुकसान होता है।
(क) 15-20%
(ख) 20-30%
(ग) 30-40%
(घ) 10-15%.
उत्तर-
(ग) 30-40%

प्रश्न 6.
100 किलो गन्ना पेर (पीड़) कर कितना गुड़ तैयार किया जा सकता है ?
(क) 10-12 किलो
(ख) 40-45 किलो
(ग) 60-70 किलो
(घ) 30-35 किलो।
उत्तर-
(क) 10-12 किलो

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प्रश्न 7.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से हर महीने प्रकाशित किये जाने वाले पंजाबी पत्र (मैगज़ीन) का नाम क्या है ?
(क) चंगी खेती
(ख) मॉडर्न खेती
(ग) खेती दुनिया
(घ) कृषि जागरण।
उत्तर-
(क) चंगी खेती

प्रश्न 8.
कपड़ा उद्योग के लिए कच्चा माल कौन-सी फसल से प्राप्त होता है ?
(क) गेहूँ
(ख) नरमा
(ग) गन्ना
(घ) सरसों।
उत्तर-
(ख) नरमा

प्रश्न 9.
तेल बीजों में से तेल निकालने वाली मशीन को क्या कहा जाता है ?
(क) कोल्हू
(ख) आटा चक्की
(ग) सीड ग्रेडर
(घ) ग्राइंडर।
उत्तर-
(ख) आटा चक्की

प्रश्न 10.
बीज साफ करने वाली मशीन को क्या कहा जाता है ?
(क) कोल्हू
(ख) आटा चक्की
(ग) सीड ग्रेडर
(घ) ग्राइंडर।
उत्तर-
(ग) सीड ग्रेडर

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॥. ठीक/गलत बताएं-

1. दानों में कटाई के बाद लगभग 10% हानि होती है।
2. मेंथा एक खरपतवार है।
3. 100 किलो ताज़ी हल्दी में से 15-20 किलो हल्दी पाऊडर मिल सकता है।
4. एक क्विंटल गन्ने में से 30-40 किलो गुड़ तैयार हो सकता है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. गलत
  3. ठीक
  4. गलत।

II. रिक्त स्थान भरें-

1. कटाई के बाद फलों सब्जियों का …………… नुकसान हो जाता है।
2. सब्जियों को सुखाने के लिए …………….. का प्रयोग किया जाता है।
3. मैंथा प्रोसेसिंग के दौरान तेल तथा पानी को ……………… की सहायता से अलग किया जाता है।
4. ………………… फ़सल में से तेल निकालने के लिए मैंथा प्रोसेसिंग प्लांट लगाया जाता है।
उत्तर-

  1. 30-40%
  2. सोलर ड्रायर
  3. सेपरेटर
  4. मैंथा।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
बेरोज़गारी का एक कारण बताओ।
उत्तर-
नौकरियां सीमित गिनती में होना।

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प्रश्न 2.
कटाई के बाद सब्जियों तथा फलों को कितनी हानि होती है?
उत्तर-
30-40%.

प्रश्न 3.
एग्रो प्रोसेसिंग कम्पलैक्स वाली मशीनों का खर्चा कितना है?
उत्तर-
5 से 20 लाख रुपए।

प्रश्न 4.
उबालने के बाद हल्दी सुखाने को कितने दिन लगते हैं ?
उत्तर-
अच्छी धूप में 15 दिन।

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प्रश्न 5.
हल्दी के प्रयोग के बारे में बताओ।
उत्तर-
दवाइयाँ, शारीरिक सुंदरता के सामान तथा सूती वस्त्रों को बनाने में।

प्रश्न 6.
सब्जियों को सुखाने के लिए किस का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
सोलर ड्रायर।

प्रश्न 7.
कृषि से सम्बन्धित मासिक पत्रिका का नाम लिखें।
उत्तर-
‘चंगी खेती’।

प्रश्न 8.
पी० ए० यू० के कितने कृषि विज्ञान केन्द्र हैं ?
उत्तर-
17.

प्रश्न 9.
सौर (सोलर) ऊर्जा से सब्जियों को सुखाने के लिए कौन-सा उपकरण काम में लाया जाता है ?
उत्तर-
सोलर ड्रायर।

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प्रश्न 10.
आटा चक्की क्या काम आती है ?
उत्तर-
इसमें गेहूँ तथा अन्य दानों को पीस कर आटा तैयार किया जाता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
क्या कृषि आधरित उद्योग-धंधों के बारे सरकार की तरफ से या किसी अन्य संस्था की तरफ से आर्थिक सहायता उपलब्ध है ?
उत्तर–
सरकार तथा अन्य कई संस्थाओं द्वारा इन धंधों का प्रशिक्षण तथा आर्थिक सहायता दी जाती है।

प्रश्न 2.
एग्रो प्रोसेसिंग यूनिट पर कितना खर्चा आता है तथा कितनी आय हो जाती है ?
उत्तर-
इन मशीनों पर 5 से 20 लाख का खर्चा आता है तथा 10 हज़ार से लेकर 50 हज़ार प्रति महीना कमाई हो जाती है।

प्रश्न 3.
हल्दी के प्रयोग के बारे में बताओ ( भोजन में)।
उत्तर-
हल्दी का प्रयोग कढ़ी, तरी, कई प्रकार की सब्जियों, बड़े स्तर पर भोजन से चटनी बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 4.
कृषि से सम्बन्धित कोई दस सहायक धन्धों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. पशु पालना,
  2. पोल्टरी फार्म,
  3. मधुमक्खी पालन,
  4. मच्छी पालन,
  5. डेयरी फार्म,
  6. गुड़-शक्कर बनाना,
  7. सब्जियों को सुखा कर पैक करना,
  8. एग्रो प्रोसेलिंग कॉम्लेक्स,
  9. हल्दी प्रोसेसिंग प्लांट,
  10. खुम्भे लगाना।

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प्रश्न 5.
सौर (सोलर) ड्रायर से कौन-कौन-सी वस्तुएँ सुखाई जा सकती हैं ?
उत्तर-
मेथी, धनिया, मिर्च, लहसुन और अनेक दवाइयों की तरह प्रयुक्त होने वाले पौधों आदि को सौर ड्रायर से सुखाया जाता है।

प्रश्न 6.
ग्रामीण स्तर पर आरम्भ किए जा सकने वाले कोई चार कृषि आधारित औद्योगिक धन्धों के नाम लिखें।
उत्तर-
स्वयं करें।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
हल्दी की प्रोसेसिंग के बारे में विस्तारपूर्वक बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 2.
मैंथा की प्रोसेसिंग के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 गर्भावस्था

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 9 गर्भावस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 9 गर्भावस्था

PSEB 10th Class Home Science Guide गर्भावस्था Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
गर्भावस्था गर्भ धारण करने से लेकर जन्म तक के समय को कहा जाता है जोकि साधारणतया 280 दिन का होता है। परन्तु कई बार कई कारणों से यह समय कमसे-कम 190 तथा अधिक-से-अधिक 330 दिन भी हो सकता है। बच्चे के वि स की दृष्टि से यह समय बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस समय एक अण्डकोश से ही वह पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।

प्रश्न 2.
गर्भ के समय को हम कितने तथा कौन-से भागों में बांट सकते हैं?
उत्तर-
गर्भ धारण से लेकर जन्म तक की अवस्था को गर्भावस्था कहा जाता है। हम इस समय को तीन भागों में बांट सकते हैं। गर्भ समय में बच्चा एक अण्डकोश से पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।

  1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage) समय-गर्भधारण से दो सप्ताह तक
  2. एम्ब्रियो की अवस्था (Embryo Stage) समय-दूसरे सप्ताह से शुरू होकर दूसरे महीने के अन्त तक।
  3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage) समय-तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक।

प्रश्न 3.
अण्डे की अवस्था से आप क्या समझते हैं तथा यह कितनी देर की होती है?
उत्तर-
अण्डे की अवस्था (ओवम अवस्था) का समय गर्भ आरम्भ होने से दो सप्ताह तक गिना जाता है। इस काल के दौरान इसमें कोई ज्यादा परिवर्तन नहीं आता। इस समय के दौरान यह अपनी जर्दी पर जीवित रहता है। इस समय यह फैलोपियन ट्यूब से बच्चेदानी में पहुंचता है तथा अपने आपको बच्चेदानी की दीवार के साथ जोड़कर मां के आहार पर निर्भर हो जाता है।

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प्रश्न 4.
भ्रूण की पूर्व अवस्था से आप क्या समझते हैं तथा यह कितनी देर की होती है?
उत्तर-
यह अवस्था गर्भ के दूसरे सप्ताह से आरम्भ होकर दूसरे माह के अंत तक चलती है। पहले माह में एम्ब्रियो में रक्त पहुंचाने के लिए छोटी-छोटी रगें बनती हैं। इस काल में बच्चे के शारीरिक विकास में बहुत तीव्र गति से वृद्धि होती है। इस अवस्था के अन्त में एम्ब्रियो मानवीय जीव का रूप धारण कर लेता है।

प्रश्न 5.
प्लेसैंटा क्या होता है?
उत्तर-
जहां अण्डा अपने आपको बच्चेदानी से जोड़ देता है वहां पर ही प्लेसेंटा बनने लग जाता है तथा होने वाले बच्चे को मां के शरीर से खुराक पहुंचाता है। यह एक ओर बच्चेदानी तथा दूसरी ओर बच्चे की नाभिनाल से जुड़ा होता है।

प्रश्न 6.
नाभिनाल से आप क्या समझते हैं? गर्भ के दौरान इसका क्या कार्य है?
अथवा
नाभिनाल क्या है?
उत्तर-
नाभिनाल एक ओर एम्ब्रियो के पेट की दीवार से तथा दूसरी ओर प्लेसैंटा से जुड़ा होता है। यह रस्सी की बनावट का होता है। गर्भ के अन्त तक यह 10 से 20 इंच तक हो जाता है। नाभिनाल द्वारा एम्ब्रियो का मल-मूत्र छनकर प्लेसैंटा द्वारा मां के रक्त की नलियों में चला जाता है तथा मां के शरीर द्वारा बाहर आ जाता है।

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प्रश्न 7.
ऐमनियोटिक सैक का गर्भ समय क्या कार्य होता है?
उत्तर-
ऐमनियोटिक सैक एम्ब्रियो के समय बढ़ता है। यह एक थैली जैसा होता है। इसमें एक लेसदार तरल पदार्थ होता है जिसमें बच्चा रहता है। यह तरल पदार्थ बच्चे को चोट लगने से बचाता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 8.
भ्रूण के बढ़ने से किन-किन सहायक अंगों का ढांचा तैयार होता है?
अथवा
एम्ब्रियो के बढ़ने में कौन-कौन से सहायक अंग काम करते हैं? बताएं।
अथवा
एम्ब्रियो के बढ़ने से कौन-कौन से सहायक अंग बन जाते हैं?
उत्तर-
गर्भ अवस्था दौरान एम्ब्रियो के बढ़ने का समय दूसरे सप्ताह से लेकर दूसरे माह के अन्त तक होता है। पहले माह में एम्ब्रियो में रक्त पहुंचाने वाली छोटी-छोटी नसों का विकास होता है, इस दौरान बच्चे की वृद्धि तेज़ी से होती है। इस समय दौरान एम्ब्रियो मानवीय जीव का रूप धारण कर लेता है। एम्ब्रियो के अपने बढ़ने के साथसाथ इस समय दौरान विशेष सहायक अंगों का ढांचा भी तैयार हो जाता है जिसको प्लेसैंटा, नाभिनाल तथा ऐमनियोटिक सैक कहा जाता है। यह विशेष ढांचा पैदा होने तक बच्चे को खुराक पहुंचाने के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 9.
भ्रूण की अवस्था कितनी लम्बी होती है तथा इस दौरान भ्रूण में क्याक्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-
गर्भ की तीसरी तथा सबसे लम्बी अवस्था भ्रूण की होती है। यह तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक चलती है। इस अवस्था में नए अंग नहीं बनते परन्तु एम्ब्रियो अवस्था के समय के बने हुए अंगों का विकास होता है। तीसरे माह तक भ्रूण की लम्बाई तीन इंच हो जाती है। पांचवें माह तक बच्चे के सभी अंग मनुष्य की तरह विकास करने लगते हैं। मां को पेट में बच्चे की हरकत अनुभव होने लगती है। सातवें माह में बच्चा पूरा मानवीय जीव के रूप में होता है। इसकी चमड़ी लाल होती है। जन्म के समय तक बच्चे की लम्बाई 19-20 इंच हो जाती है तथा साधारण बच्चे का भार 7 पौंड के लगभग होता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 9 गर्भावस्था

प्रश्न 10.
कौन-कौन से कारक भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-
इस प्रश्न के उत्तर के लिए देखें प्रश्न नम्बर 12 में से भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारक वाला भाग लिखें।

प्रश्न 11.
गर्भ के समय की आम तकलीफें कौन-कौन सी होती हैं?
अथवा
गर्भ के समय की तीन तकलीफों के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 12.
गर्भावस्था के दौरान भ्रूण की अवस्था से आप क्या समझते हो ? भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
भ्रूण की अवस्था-गर्भ की तीसरी तथा सबसे लम्बी अवस्था भ्रूण की होती है। यह तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक चलती है। इस अवस्था में नए अंग नहीं बनते, परन्तु एम्ब्रियो की अवस्था के समय बने हुए अंगों का विकास होता है। तीसरे माह तक भ्रूण की लम्बाई तीन इंच हो जाती है। गर्भ की इस अवस्था में पांचवें माह तक भीतर के सभी अंग बड़े मनुष्य के समान ही बनने लगते हैं तथा मां अपने शरीर में बच्चे की हरकतें अनुभव करने लगती है। सातवें माह तक बच्चा पूरा मानवीय जीव के रूप में आ जाता है। जन्म के समय बच्चे की लम्बाई 19-20 इंच तथा भार 7 पौंड के लगभग हो जाता है।
भ्रूण की वृद्धि पर प्रभाव डालने वाले कारक जन्म के समय प्रत्येक बच्चे की लम्बाई तथा भार अलग-अलग होता है। इसके बहुतसे कारण हैं जो गर्भावस्था के समय बच्चे के विकास पर प्रभाव डालते हैं-

  1. मां का पोषण – गर्भावस्था दौरान बच्चे को भोजन मां से मिलता है। मां की खुराक का प्रभाव भ्रूण के विकास पर पड़ता है। इसलिए आवश्यक है कि मां आवश्यकता अनुसार सन्तुलित भोजन ले ताकि बच्चे को खुराक के सभी आवश्यक तत्त्व मिल जाएं।
  2. मां-बाप की आयु – खोज द्वारा यह बात सिद्ध हो चुकी है कि बच्चे को जन्म देने के लिए मां की सबसे अच्छी आयु 21 से 35 वर्ष तक है। इससे बड़ी या छोटी आयु की मां ऐसे बच्चों को जन्म देती है जिनमें कई कमियां रह सकती हैं।
  3. मां का स्वास्थ्य – मां के स्वास्थ्य का भ्रूण की वृद्धि से सीधा सम्बन्ध है। यदि मां किसी छूत की बीमारी से पीड़ित हो या किसी भयानक बीमारी की पकड़ में हो तो बच्चा अन्धा, गूंगा या बहरा हो सकता है तथा रोगी भी। मां के एड्स या एच० आई० वी० पोज़ीटिव का शिकार होने पर यह रोग बच्चे में भी जा सकता है जिसका अभी तक कोई इलाज नहीं।
  4. नशीले पदार्थों का सेवन-यदि गर्भावस्था के समय मां सिगरेट, शराब आदि का सेवन करे तो बच्चा मानसिक तौर पर रोगी हो सकता है तथा उसके दिल की धड़कन भी सामान्य बच्चों से तीव्र होती है।
  5. माता-पिता का दृष्टिकोण-यदि मां गर्भावस्था में बच्चे के लिंग प्रति ज्यादा चिन्ताग्रस्त रहे तो बच्चे की शारीरिक तथा मानसिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है, उसका विकास रुक जाता है तथा बच्चे में जन्म के साथ ही शारीरिक तथा मानसिक विकार पैदा हो जाते हैं।
  6. आर० एच० तत्त्व – जिस मनुष्य में आर० एच० तत्त्व होता है उसको आर० एच० पोज़ीटिव (RH+) कहते हैं। जिसमें यह तत्त्व नहीं होता उसको आर० एच० नैगिटिव (RH) कहते हैं। यदि मां तथा पिता के आर० एच० मेल न खाते हों तो सम्भव है कि बच्चे तथा मां का आर० एच० तत्त्व अलग हो सकता है। आर० एच० तत्त्व अलग होने पर रक्त में लाल कण नष्ट होने के कारण बच्चा अनीमिया का शिकार हो सकता है या जन्म के तुरन्त पश्चात् मर भी सकता है। इसलिए गर्भ धारण करने से पूर्व आदमी तथा औरत को अपने आर० एच० तत्त्व की जांच करवा लेनी चाहिए।
  7. एक्स-रे (X-Rays) – गर्भावस्था दौरान कई बार एक्सरे करवाना पड़ सकता है। यदि बार-बार एक्स-रे करवाना पड़े तो गर्भपात हो सकता है या बच्चे में शारीरिक तथा मानसिक विकार भी पैदा हो सकते हैं। एक्स-रे के प्रभाव से बच्चे मन्द बुद्धि या अंगहीन भी पैदा हो सकते हैं। इसलिए केवल आवश्यकता पड़ने पर ही एक्स-रे करवाना चाहिए।

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प्रश्न 13.
गर्भावस्था को कितने भागों में बांटा जा सकता है? इस दौरान क्याक्या परिवर्तन आते हैं?
उत्तर-
गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म तक के समय को गर्भावस्था कहा जाता है। यह समय साधारणतया 280 दिनों का होता है। यह समय बच्चे के विकास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इस समय दौरान ही बच्चा एक कोश से पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।
गर्भावस्था के इस समय को हम तीन भागों में बांट सकते हैं

  1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage)
  2. एम्ब्रियो की अवस्था (Embryo Stage)
  3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage)।

1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage)—यह समय गर्भ आरम्भ होने से दो सप्ताह तक गिना जाता है। इस समय में उपजाऊ अण्डा ज्यादा नहीं बदलता क्योंकि उसको खुराक सातवें माह में बच्चा पूरा मानवीय जीव के रूप में होता है। इसकी चमड़ी लाल होती है। भ्रूण एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाता है कि यदि बच्चा किसी कारण वक्त से पहले पैदा हो जाए तो उसके बचने की सम्भावना होती है। परन्तु ऐसा बच्चा कमजोर होता है।

जन्म के समय बच्चे की लम्बाई 19 से 20 इंच तथा एक साधारण बच्चे का भार लगभग 7 पौंड या इससे अधिक होता है।
पहुंचाने का बाहरी साधन अभी तक नहीं बना होता तथा यह अपनी जर्दी पर ही जीवित रहता है। इसी समय ही फैलोपियन ट्यूब से गर्भ स्थान या बच्चेदानी में जाता है। इसका नया जीवन आरम्भ होने के दस दिन से चौदह दिनों के अन्दर अपने आपको गर्भ स्थान की दीवार से जोड़ लेता है तथा मां के आहार पर निर्भर हो जाता है।

2. एम्ब्रियो (भ्रूण की प्रथम अवस्था) की अवस्था (Embryo Stage)—यह अवस्था गर्भ के दूसरे सप्ताह से शुरू होकर दूसरे माह के अन्त तक चलती है। पहले माह में एम्ब्रियो में रक्त पहुंचाने के लिए छोटी-छोटी रगें बन जाती हैं। इस समय पैदा होने वाले बच्चे के शारीरिक विकास में बहुत तेजी से वृद्धि होती है। इस अवस्था में एम्ब्रियो की लम्बाई डेढ़ से दो इंच तथा भार 2-3 औंस हो जाता है। इस अवस्था के अन्त में एम्ब्रियो मानवीय जीव का रूप धारण कर लेता है तथा चेहरे के लगभग सभी महत्त्वपूर्ण अंग बन जाते हैं। आंखें, नाक, कान, होंठ उभरे हुए दिखाई देने लग पड़ते हैं। टांगें तथा बाहों का विकास आरम्भ हो जाता है। हाथों तथा पैरों की उंगलियां बनने लग पड़ती हैं तथा बाहरी लिंग अंग भी मामूली से दिखाई देने लग पड़ते हैं।
एम्ब्रियो के बढ़ने के साथ-साथ इस दौरान एक विशेष ढांचा भी तैयार हो जाता है जिसको सहायक अंग (प्लेसैंटा, नाभिनाल तथा ऐमनियोटिक सैक) कहा जाता है। यह विशेष ढांचा पैदा होने तक बच्चे को खुराक पहुंचाने के लिए आवश्यक है।
सहायक अंग

  1. प्लेसैंटा-जहां अण्डा बच्चेदानी की दीवार से अपने आपको जोड़ लेता है वहीं प्लेसैंटा बनने लग जाता है। प्लेसैंटा ही होने वाले बच्चे को मां के शरीर से खुराक पहुंचाता है। क्योंकि यह एक ओर बच्चेदानी तथा दूसरी ओर से जुड़ा होता है।
  2. नाभिनाल-नाभिनाल एक ओर एम्ब्रियो के पेट की बाहरी दीवार से तथा दूसरी ओर प्लेसेंटा से जुड़ी होती है। यह रस्सी जैसा होता है। गर्भ के अन्त तक नाभि नाल एक पुरुष के अंगूठे की मोटाई जितनी हो जाती है तथा इसकी लम्बाई 10 इंच से 20 इंच तक हो जाती है। नाभिनाल द्वारा एम्ब्रियो का मलमूत्र छनकर प्लेसैंटा द्वारा मां के रक्त की नलियों में चला जाता है तथा मां के शरीर द्वारा बाहर आ जाता है।
  3. ऐमनियोटिक सैक-तीसरा अंग जो एम्ब्रियो के समय बढ़ता है, ऐमनियोटिक सैक या थैली है। यह थैली प्लेसैंटा से जुड़ी होती है तथा बीच में एक लेसदार तरल पदार्थ होता है जिसमें बच्चा रहता है। यह तरल पदार्थ बच्चे को चोट लगने से बचाता है।

3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage)-गर्भ की तीसरी तथा सबसे लम्बी अवस्था भ्रूण होती है। यह तीसरे माह से आरम्भ होकर बच्चे के जन्म तक चलती है। इस अवस्था में नये अंग नहीं बनते परन्तु एम्ब्रियो की अवस्था समय बने हुए अंगों का विकास होता है। तीसरे माह तक भ्रूण की लम्बाई लगभग तीन इंच हो जाती है। गर्भ की इस अवस्था में पांचवें माह तक भीतर के सभी अंग बड़े मनुष्य के समान ही बनने लग पड़ते हैं तथा मां अपने शरीर में बच्चे की हरकतें अनुभव करने लग पड़ती है। पांचवें माह में ही बच्चे के दिल की धड़कन की आवाज़ ऊंची हो जाती है।

Home Science Guide for Class 10 PSEB गर्भावस्था Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भ अवस्था कितने दिनों की होती है?
उत्तर-
280 दिनों की।

प्रश्न 2.
गर्भ अवस्था कितने भागों में बांट सकते हैं?
उत्तर-
तीन भागों में।

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प्रश्न 3.
गर्भ अवस्था के तीन भागों के नाम बताएं।
उत्तर-
अण्डे की अवस्था, एम्ब्रियो की अवस्था, भ्रूण की अवस्था।

प्रश्न 4.
अण्डे की अवस्था का समय गर्भ शुरू होने से कितने सप्ताह तक होता है?
उत्तर-
दो सप्ताह तक।

प्रश्न 5.
एम्ब्रिया अवस्था कितनी देर की होती है?
उत्तर-
गर्भ समय के दूसरे सप्ताह से दूसरे महीने के अन्त तक।

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प्रश्न 6.
नाभिनाल की लम्बाई बताएं।
उत्तर-
10 से 20 इंच।

प्रश्न 7.
जन्म समय तक बच्चे की लम्बाई कितनी हो जाती है?
उत्तर-
19-20 इंच।

प्रश्न 8.
प्रायः जन्म के समय बच्चे का भार कितना होता है?
उत्तर-
7 पौंड।

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प्रश्न 9.
बच्चे को जन्म देने के लिए मां की उचित आयु क्या है?
उत्तर-
21 से 35 तक।

प्रश्न 10.
गर्भ समय बार-बार एक्सरे करवाने की क्या हानि है?
उत्तर-
इससे गर्भपात हो सकता है।

प्रश्न 11.
एम्ब्रियो के सहायक अंग बताओ।
उत्तर-
प्लेसैंटा, नाभिनाल, एमनियोटिक सैक।

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प्रश्न 12.
भ्रूण अवस्था का समय बताओ।
अथवा
गर्भ अवस्था की कौन-सी अवस्था सब से लम्बी होती है?
उत्तर-
गर्भ समय के तीसरे माह से जन्म समय तक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भ के समय की कोई दो तीन तकलीफों के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 2.
गर्भवती स्त्री की पीठ और मांस-पेशियों में दर्द क्यों होता है?
उत्तर–
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 3.
ऐमनियोटिक सैक क्या है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 4.
गर्भ के समय नशीले पदार्थों का सेवन क्यों नहीं करना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
गर्भ के समय दिल क्यों मितलाता है तथा पीठ में दर्द क्यों रहता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 6.
भ्रूण की वृद्धि पर मां-बाप की आयु का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 7.
गर्भ के समय औरत के शरीर पर खुजली क्यों होती है तथा छाले क्यों पड़ जाते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 8.
अण्डे, एम्ब्रियो तथा भ्रूण की अवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 9.
भ्रूण की अवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 10.
R.H. कारक में क्या जानते हैं?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 11.
एम्ब्रियो के विकास में कौन-कौन से सहायक अंग काम करते हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था से क्या अभिप्राय है? इस दौरान गर्भवती औरत को कौन-सी साधारण तकलीफें हो सकती हैं?
अथवा
गर्भावस्था में कौन-कौन से दुःख होते हैं, विस्तार में बताओ।
अथवा
गर्भवती स्त्री को कौन-से कष्टों से निकलना पड़ता है?
उत्तर-
गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म तक मां के पेट के अन्दर बच्चे की अवस्था को गर्भावस्था कहते हैं। साधारणतया यह समय 280 दिन का होता है पर कई बार मां को किसी बीमारी या अन्य कारण से यह समय कम होकर 190 दिन भी हो सकता है तथा अधिक-से-अधिक 330 दिन। इस दौरान बच्चे का विकास एक अण्डकोश से लेकर एक पूर्ण मानवीय जीव के रूप में होता है। इस काल का प्रभाव जीवन भर रहता है। गर्भावस्था को तीन भागों में बांटा जा सकता है

  1. अण्डे की अवस्था (Ovum Stage)
  2. एम्ब्रियो की अवस्था (Embryo Stage)
  3. भ्रूण की अवस्था (Foetus Stage)।

गर्भवती औरत की तकलीफें-गर्भावस्था की तकलीफें सभी औरतों को नहीं होतीं। कई औरतें गर्भ के पूरे 9 माह पूरे आराम से गुज़ार लेती हैं। पर कई औरतों को पूरे 9 माह कोई-न-कोई तकलीफ रहती है। गर्भ समय होने वाली साधारण तकलीफें निम्नलिखित हैं

  1. जी मितलाना-यह अधिकतर सुबह के समय होता है परन्तु कई बार किसी समय भी हो सकता है जिससे खाने को मन नहीं करता। आम तौर पर यह तकलीफ गर्भ के पहले तीन महीने ही होती है। इस तकलीफ का होना गर्भ की प्राकृतिक अवस्था समझा जाता है। इसको मार्निंग सिकनैस भी कहा जाता है। इसको खुराक तथा आराम से ठीक किया जा सकता है। बिस्तर से उठने से पूर्व हल्की नींबू वाली चाय तथा मीठा बिस्कुट खाने से आराम मिलता है।
  2. कब्ज़-गर्भ के दौरान औरतों को कब्ज़ की शिकायत साधारण हो जाती है। उसकी रोज़ाना खुराक, कसरत तथा शौच जाने की आदत इस तरह हो कि उसको कब्ज़ न हो। साधारणतया पानी अधिक पीने तथा सन्तुलित भोजन लेने से यह शिकायत दूर हो जाती है। नाश्ते में फल तथा रूक्षांश वाले पदार्थ तथा फल विशेषकर सेब खाने से कब्ज़ की शिकायत दूर होती है।
  3. दिल की जलन तथा बदहजमी – गर्भ के महीनों में कई बार मां को दिल की जलन अनुभव होती है जिससे बदहजमी हो जाती है। इसका दिल से कोई सम्बन्ध नहीं पर यह जलन पाचन प्रणाली में होती है। ज्यादा मसालेदार, तली हुई, ज्यादा घी वाली तथा गैस वाली चीज़ों से परहेज़ करने से इस तकलीफ से छुटकारा पाया जा सकता है।
  4. सिर चकराना तथा बेहोश होना-गर्भवती औरत का ज्यादा काम करना, बहुत सुबह उठना, बहुत देर तक खड़े होने से या ज्यादा चलने से सिर चकराने लग पड़ता है तथा खून का दबाव कम हो जाने से कई बार बेहोश भी हो जाती है। यदि सिर चकराने लगे या बेहोशी-सी अनुभव हो तो पैरों तथा शरीर के स्तर से सिर नीचा करके लेट जाएं। घबराहट या सिर चकराने की स्थिति में एक गिलास ठण्डा नींबू पानी पी लेना चाहिए।
  5. पैरों की सूजन – गर्भ के अन्तिम महीनों में कई बार गर्भवती मां के पैर सूज जाते हैं। यह तकलीफ विशेषकर गर्मी के महीनों में होती है। यह एक प्राकृतिक अवस्था समझी जाती है तथा बच्चा पैदा होने के बाद अपने आप पहली अवस्था में आ जाते हैं। आराम करते समय पैर तथा टांगें शरीर से ऊंचे रखने से इस स्थिति में सुधार आता है।
  6. योनि में से खून बहना-यदि कभी गर्भवती स्त्री की योनि में से खून निकलने लग जाए तो उसको अपने पैर ऊँचे करके लेटना चाहिए तथा डॉक्टर की सलाह जल्दी लेनी चाहिए। ज्यादा खून निकलने से कई बार गर्भपात हो जाता है या बच्चा समय से पहले पैदा हो जाता है। जब तक डॉक्टर की सहायता न पहुंचे, कोई दवाई नहीं लेनी चाहिए।
  7. शरीर पर खारिश होना – कभी-कभी गर्भवती स्त्री को शरीर पर खारिश होने लग जाती है। इसके बारे में डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। सुबह नहाने के पानी में थोड़ा-सा मीठा सोडा पाने से भी लाभ होता है जो योनि के आसपास किसी किस्म की खारिश हो तो डॉक्टर को बताकर इलाज करवाना चाहिए।
  8. चमड़ी पर धब्बे पड़ने – कई औरतों के मुंह पर भूरे धब्बे पड़ जाते हैं। गर्भ की अन्तिम स्थिति में कई बार औरतों के बाल ज्यादा खुष्क रहते हैं तथा झड़ने लग पड़ते हैं। इस के बारे में ज्यादा चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। बच्चा पैदा होने के पश्चात् यह अपने आप प्राकृतिक अवस्था में आ जाते हैं। बालों को रोज़ कंघी करनी चाहिए तथा तेल की मालिश सिर तथा बालों के लिये लाभदायक है।
  9. पीठ तथा पट्ठों में दर्द – गर्भ के अन्तिम दिनों में पीठ, पट्ठों तथा टांगों में दर्द होना साधारण बात है। बच्चेदानी के बढ़ने से फेफड़ों तथा टांगों पर ज्यादा भार पड़ता है। बच्चा शरीर में हरकत करके अपनी स्थिति तथा जगह बदलता है तो दर्द होती है। यह दर्द कम एड़ी वाली चप्पल पहनने तथा आराम करने से कम हो जाती है। यदि अन्तिम दिनों में पीठ में इस प्रकार की दर्द हो जैसे मासिक धर्म के दिनों में होती है तो डॉक्टर को जल्दी बुलाना चाहिए। यह बच्चा होने समय की दर्द हो सकती है।
  10. कुछ अन्य तकलीफें- उपरोक्त गर्भ की तकलीफों के अतिरिक्त कुछ अन्य तकलीफें जैसे सिर दर्द, नज़र में कमज़ोरी, मुंह तथा हाथों पर सूजन, बुखार, अचानक शरीर के किसी अंग विशेषकर पीठ, टांगों तथा पेट में दर्द, ज्यादा उल्टियां आना, योनि में से ज़ोर से पानी निकलना तथा रुक-रुक कर सांस आना आदि हो सकती हैं।

इनमें से यदि कोई भी तकलीफ हो तो डॉक्टर की सलाह तुरन्त लेनी चाहिए क्योंकि इनके प्रति लापरवाही करने से कई बार खतरा भी हो सकता है। थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् डॉक्टर को दिखाने से इन तकलीफों को रोका जा सकता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. गर्भ अवस्था …………………. दिनों की होती है।
  2. ………………. होने वाले बच्चे को मां के शरीर से आहार पहुंचाता है।
  3. नाडु की लम्बाई ………… होती है।
  4. गर्भ अवस्था को ………………. भागों में बांटा गया है।
  5. अण्डे की अवस्था को ………… भी कहा जाता है।

उत्तर-

  1. 280,
  2. प्लेसैंटा,
  3. 10-20 इंच,
  4. तीन,
  5. ओवम अवस्था ।

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II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. गई अवस्था सामान्यत: 280 दिन की होती है।
  2. एम्ब्रियों की अवस्था गर्भ-धारण से दूसरे सप्ताह से शुरु होती है।
  3. जन्म के समय बच्चे की लम्बाई 19-20 ईंच होती है।
  4. नाडु की लम्बाई 10-20 इंच होती है।
  5. जन्म समय बच्चे का भार 4 पौंड होता है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ग़लत।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एम्ब्रियो के सहायक अंग हैं
(क) प्लेसैंटा
(ख) नाडु
(ग) एमनियोटीकसैक
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

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प्रश्न 2.
नाडु की लम्बाई होती है
(क) 10-20 ईंच
(ख) 30 ईंच
(ग) 30-40 ईंच
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) 10-20 ईंच

प्रश्न 3.
भ्रूण अवस्था का समय है
(क) गर्भ समय से तीसरे महीने से
(ख) पहला सप्ताह
(ग) दूसरे सप्ताह से
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) गर्भ समय से तीसरे महीने से

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गर्भावस्था PSEB 10th Class Home Science Notes

  • गर्भ धारण से लेकर बच्चे के जन्म तक की अवस्था को गर्भावस्था कहा जाता है।
  • गर्भावस्था के तीन भाग होते हैं।
  • भ्रूण अवस्था सबसे लम्बी होती है।
  • प्लेसैंटा द्वारा बच्चा मां के शरीर से खुराक प्राप्त करता है।
  • एम्ब्रियो अवस्था में ही सहायक अंगों का ढांचा तैयार हो जाता है।
  • मां के स्वास्थ्य तथा खुराक का बच्चे के स्वास्थ्य पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
  • बच्चे की गर्भावस्था के स्वास्थ्य का जीवन भर स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है।
  • गर्भावस्था में मां द्वारा किए गये नशीले पदार्थों के सेवन का बच्चे पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • गर्भ धारण से पहले पुरुष तथा औरत को आर०एच० तत्त्व की जांच करवा लेनी चाहिए।

गर्भ धारण से लेकर जन्म तक के समय को गर्भावस्था कहा जाता है। यह समय साधारणतया 280 दिनों का होता है। यह काल बच्चे के विकास की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। इस काल का प्रभाव जीवन भर रहता है। इसी समय दौरान बच्चा एक अण्डकोश से पूर्ण मानवीय जीव के रूप में विकसित होता है।