PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

PSEB 12th Class Economics विदेशी विनिमय दर Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
विदेशी विनिमय भण्डार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा तथा सोने के भण्डार को विदेशी विनिमय कहते हैं।

प्रश्न 2.
विदेशी विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रो० क्राऊथर के शब्दों में, “विदेशी विनिमय दर उस दर का माप है कि एक मुद्रा की इकाई के बदले दूसरी मुद्रा की कितनी इकाइयाँ मिलती हैं।”

प्रश्न 3.
सन्तुलन विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सन्तुलन विनिमय दर दो मुद्राओं में वह विनिमय दर है, जहां पर विदेशी मुद्रा की माँग और विदेशी मुद्रा की पूर्ति एक-दूसरे के बराबर हो जाती है।

प्रश्न 4.
विदेशी मुद्रा बाजार की परिभाषा दें।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है, जिसमें विभिन्न देशों की मुद्राओं को बेचा-खरीदा जाता है।

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प्रश्न 5.
विदेशी मुद्रा बाज़ार की भूमिकाएँ बताएँ।
उत्तर-
यह बाज़ार क्रय शक्ति के अंतरण, साख सुविधा और जोखिम से बचाव आदि भूमिकाएं निभाता है।

प्रश्न 6.
विदेशी मुद्रा बाज़ार में सन्तुलन कैसे स्थापित होता है ?
उत्तर-
स्वतन्त्र रूप से उच्चावचन कर रहे मुद्रा बाज़ार में विदेशी मुद्राओं की माँग तथा पूर्ति से सन्तुलन स्थापित होता है।

प्रश्न 7.
स्थिर विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर होती है, जो देश की सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।

प्रश्न 8.
समता मान क्या है ?
उत्तर-
मुद्रा की इकाई में स्वर्ण मान की समानता के आधार पर निर्धारित होने वाली विदेशी विनिमय दर को समता मान कहा जाता है।

प्रश्न 9.
विनिमय दर की ब्रैनवुड प्रणाली से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
1945 में ब्रैनवुड के स्थान पर अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) की स्थापना के साथ हर एक देश की करंसी का मूल्य सोने के रूप में निर्धारण किया गया। इसे स्थिर विनिमय दर प्रणाली कहते हैं।

प्रश्न 10.
I.M.F. द्वारा स्थिर विनिमय दर कब तक प्रचलित रही ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर 1946 से 1971 तक प्रचलित रही।

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प्रश्न 11.
विश्व में 1972 के बाद विनिमय दर कैसे निर्धारण होती है ?
उत्तर-
विनिमय दर 1972 के बाद करंसी की माँग तथा पूर्ति द्वारा विदेशी विनिमय बाज़ार में निर्धारण होती है।

प्रश्न 12.
विदेशी मुद्रा में चालू बाज़ार (Spot Market) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
यदि विदेशी मुद्रा की प्रकृति दैनिक किस्म की हो तो इसको चालू बाज़ार कहते हैं।

प्रश्न 13.
बढ़ोत्तरी बाज़ार से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
यदि विदेशी मुद्रा का भुगतान भविष्य में करना होता है तो इसको बढ़ौत्तरी बाज़ार (Forward Market) कहा जाता है।

प्रश्न 14.
चलत सीमा बन्ध (Crawling Peg) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चलत सीमा बन्ध एक ऐसी स्थिति है, जिसमें देश की करंसी के मूल्य में 1% तक परिवर्तन किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
प्रबन्धित तरल चलिता (Managed Floting) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रबन्धित तरल चलिता ऐसी स्थिति है, जिसमें करंसी का मूल्य नियमों तथा अधिनियमों के अनुसार ही निर्धारण किया जा सकता है और परिवर्तन सीमा नहीं होती।

प्रश्न 16.
NEER (Nominal Effective Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी मुद्रा की औसत सापेक्ष शक्ति का मान प्रभावी विनिमय दर कहा जाता है।

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प्रश्न 17.
REER (Real Effective Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER) वास्तविक विनिमय दर होती है। यह प्रचलित कीमतों पर आधारित होती है।

प्रश्न 18.
RER (Real Exchange Rate) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक विनिमय दर (RER) का अर्थ स्थिर कीमतों पर आधारित विनिमय दर से होता है। इसमें कीमत परिवर्तन के प्रभाव को दूर किया जाता है।

प्रश्न 19.
अवमूल्यन क्या है ?
उत्तर-
सरकार द्वारा अपने देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के मुकाबले कम करना ही अवमूल्यन होता है।

प्रश्न 20.
वह विनिमय दर जो देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है इसको ………….. कहते हैं।
(क) स्थिर विनिमय दर
(ख) परिवर्तनशील विनिमय दर
(ग) अनुमानित विनिमय दर
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) स्थिर विनिमय दर।

प्रश्न 21.
विनिमय दर का सन्तुलन ………………. द्वारा स्थापित होता है।
(क) सरकार
(ख) विश्व बैंक
(ग) केन्द्रीय बैंक
(घ) मांग तथा पूर्ति।
उत्तर-
(घ) मांग तथा पूर्ति।

प्रश्न 22.
विदेशी मुद्रा और सोने के भंडार को विदेशी मुद्रा कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

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प्रश्न 23. मुद्रा की एक इकाई में सोने की समानता के आधार पर निर्धारण होने वाली विदेशी विनिमय दर को समता मान कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
जब विदेशी मुद्रा की प्रकृति दैनिक किस्म की हो तो इस को चालू बाज़ार कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
सरकार द्वारा अपने देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में बढ़ाने को अवमूल्यन कहते ङ्केहैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 26.
विनिमय दर से अभिप्राय अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बाजार में एक करंसी की बाकी करंसियों के रूप में
(क) कीमत से है
(ख) विनिमय के अनुपात से है
(ग) दोनों (क) और (ख)
(घ) वस्तु विनिमय से है।
उत्तर-
(क) कीमत से है।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विदेशी विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
प्रो० क्राऊघर के शब्दों में, “विनिमय दर इसका माप है कि एक मुद्रा की इकाई के बदले में दूसरी मुद्रा की कितनी और इकाइयां मिलती हैं। विनिमय दर उस दर को कहते हैं जिससे एक देश की करेन्सी की एक इकाई के बदले विदेशी मुद्रा की कितनी और इकाइयां मिल सकती हैं।”

प्रश्न 2.
विदेशी मुद्रा बाज़ार को परिभाषित करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जहां भिन्न-भिन्न राष्ट्रों की मुद्रा का व्यापार होता है। हर एक देश अपनी मुद्रा को बेचकर दूसरे देश की मुद्रा की खरीद करता है ताकि विदेशों से वस्तुएं और सेवाएं आयात की जा सकें। जिस बाज़ार में अलग-अलग देशों की मुद्रा का विनिमय किया जाता है उस बाज़ार को विदेशी मुद्रा बाज़ार कहा जाता है।

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प्रश्न 3.
सन्तुलन विनिमय दर से क्या भाव है ?
उत्तर-
सन्तुलन विनिमय दर दो मुद्रा में वह विनिमय दर है जहां पर विदेशी मुद्रा की मांग और विदेशी मुद्रा की पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होती है। विनिमय दर वह दर होती है जिससे एक देश की मुद्रा का विनिमय दूसरे देश की मुद्रा के साथ किया जाता है।

प्रश्न 4.
बढ़ौत्तरी बाज़ार (Forward Market) से क्या भाव है ?
उत्तर-
बढ़ौत्तरी बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच की वृद्धि तो आज की जाती है परन्तु खरीद बेच निश्चित पहले निर्धारित समय के बाद की जाती है। इस बाज़ार में भविष्य की विनिमय दर का उल्लेख आज fabell GIII (A forward market is that in which the foreign exchange is promised to be delivered in future.)

प्रश्न 5.
विदेशी मुद्रा के चालू बाज़ार और वृद्धि बाज़ार में अन्तर करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा का चालू बाज़ार वह बाज़ार होता है जहां दैनिक स्वभाव की खरीद बेच रोज़ाना की है। बढ़ौत्तरी बाज़ार में समझौता आज किया जाता है। परन्तु विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच भविष्य में निश्चित समय के बाद होती है।

प्रश्न 6.
चलत सीमा बन्ध (Crawling Peg) और पबंदित तरलचलिता (Manged Float) में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
चलत सीमा बन्ध एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें देश की करेन्सी का मूल्य 1% परिवर्तन किया जा सकता है। पबंधित तरलचलिता एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें करेन्सी का मूल्य नियमों तथा अर्धनियमों के अनुसार ही किया जा सकता है तथा परिवर्तन सीमा नहीं होती।

प्रश्न 7.
विदेशी मुद्रा की मांग क्यों की जाती है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा की मांग निम्नलिखित कारणों से की जाती है-

  • बाकी विश्व से वस्तुएं तथा सेवाएं आयात करने के लिए।
  • बाकी विश्व को अनुदान देने के लिए।
  • बाकी विश्व में निवेश करने के लिए।
  • अन्तर्राष्ट्रीय ऋण का भुगतान करने के लिए।

प्रश्न 8.
विदेशी मुद्रा की पूर्ति के स्त्रोत बताएं।
उत्तर-

  1. घरेलू वस्तुओं की विदेशों में मांग हो तो वस्तुओं का निर्यात करके विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  2. विदेशी निवेशकों द्वारा देश में किया गया प्रत्यक्ष विदेशी निवेश।
  3. देश के नागरिकों द्वारा विदेशों में काम करके विदेशी मुद्रा का हस्तांतरण।

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प्रश्न 9.
विदेशी विनिमय दर का सन्तुलन कैसे निर्धारित होता है ?
उत्तर-
विदेशी विनिमय दर का सन्तुलन दर को विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति निर्धारण करती है।

प्रश्न 10.
स्थिर विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर है जो कि देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है और विनिमय दर में परिवर्तन भी सरकार द्वारा ही किया जाता है। करेंसी का मूल्य, उसमें छुपी हुई सोने की मात्रा के अनुसार निश्चित किया जाता है।

प्रश्न 11.
लोचशील विनिमय दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर वह दर है जो कि देश मुद्रा की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है। जिस बाज़ार में करेंसी की विनिमय दर निर्धारण होती है उस को विनिमय दर बाज़ार कहा जाता है। जिस प्रकार एक वस्तु की कीमत खुले बाज़ार में मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होती है वैसे ही देश की करेंसी का मूल्य मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारण होता है।

प्रश्न 12.
स्थिर विनिमय दर तथा लोचशील विनिमय दर में अन्तर बताएं।
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर-स्थिर विनिमय दर वह दर है जो कि किसी देश की सरकार द्वारा निर्धारण की जाती है और इसमें परिवर्तन भी सरकार द्वारा ही किया जाता है। लोचशील विनिमय दर-लोचशील विनिमय दर वह दर है जो कि करेंसी की मांग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है और इसमें परिवर्तन मांग तथा पूर्ति में तबदीली कारण होता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
विदेशी मुद्रा बाजार से क्या भाव है ? विदेशी मुद्रा बाज़ार के मुख्य कार्य बताओ।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार वह बाज़ार है जिसमें विदेशी मुद्रा का व्यापार किया जाता है। हर देश की मुद्रा की विनिमय दर उस मुद्रा की माँग और पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। विदेशी मुद्रा के मुख्य कार्य-

  1. हस्तांतरण कार्य-विदेशी मुद्रा बाज़ार का मुख्य कार्य भिन्न-भिन्न देशों की करन्सी के व्यापार द्वारा खरीद शक्ति का हस्तांतरण करना होता है।
  2. साख कार्य-विदेशी व्यापार करने के लिए विदेशी मुद्रा के रूप में साख मुद्रा का प्रबन्ध करना ही विदेशी ङ्के मुद्रा का मुख्य कार्य होता है।
  3. जोखिम से बचाव का कार्य-विदेशी मुद्रा के मूल्य में उतार-चढ़ाव के जोखिम के बाद का काम ही विदेशी मुद्रा बाज़ार करता है, जहां माँग तथा पूर्ति द्वारा विदेशी मुद्रा का मूल्य निश्चित हो जाता है।

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प्रश्न 2.
विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति के चार स्त्रोत बताओ।
अथवा
विदेशी मुद्रा की मांग क्यों की जाती है ? इसकी पूर्ति कैसे होती है ?
उत्तर-
विदेशी मुद्रा की माँग (Demand for Foreign Exchange)

  • विदेशों के साथ आयात तथा निर्यात करने के लिए।
  • विदेशों को तोहफे तथा ग्रांट भेजने के लिए।
  • विदेशों में परिसम्पत्तियां (Assets) खरीदने के लिए।
  • विदेशी मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन के कारण लाभ कमाने के लिए।

विदेशी मुद्रा की पूर्ति (Supply of Foreign Exchange)

  1. विदेशी जब देश की वस्तुओं और सेवाओं की खरीद निर्यात के लिए करते हैं तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति होती
  2. विदेशों द्वारा देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश करने के साथ विदेशी मुद्रा की पूर्ति होती है।
  3. विदेशी मुद्रा के व्यापारी लाभ कमाने के लिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करते हैं।
  4. देश के नागरिक जो विदेशों में रहते हैं उस परिवार को विदेशी मुद्रा के रूप में पैसे बेचते हैं ताकि विदेशी मुद्रा की पूर्ति हो सके।

प्रश्न 3.
स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
अथवा
स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर सरकार द्वारा निश्चित की जाती है। विश्व में 1880 से 1914 ई० तक स्वर्ण मान प्रणाली अपनाई जाती थी। इस प्रणाली में विदेशी मुद्रा में विनिमय करने के लिए करन्सी का मूल्य सोने के रूप में मापते थे। हर एक देश की मुद्रा विनिमय मूल्य सोने के मूल्य की तुलना द्वारा किया जाता था।

इस प्रकार सोने को विभिन्न-विभिन्न देशों की करन्सी में एक सांझी इकाई माना जाता था। उदाहरण के तौर पर अगर भारत में 1 ग्राम सोने का मूल्य ₹ 50 है और अमेरिका में सोने का मूल्य 1 डॉलर है तो भारत के रुपये का विनिमय मूल्य 50 होगा। डॉलर के रूप में इस विनिमय प्रणाली को स्वर्ण मान प्रणाली कहा जाता था| दूसरे महायुद्ध के बाद ब्रटनवुड प्रणाली अपनाई गई है जिसमें हर एक मुद्रा का मूल्य अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा सोने के रूप में व्यक्त किया जाता था। हर एक मुद्रा के सोने के मूल्य की तुलना के साथ विनिमय दर निश्चित की जाती है।

प्रश्न 4.
विदेशी मुद्रा बाजार में सन्तुलन को स्पष्ट करो।
अथवा
विनिमय दर के सन्तुलन को स्पष्ट करो।
उत्तर-
विदेशी मुद्रा बाज़ार में विनिमय दर उस बिन्दु पर होती है जहां विदेशी मुद्रा की माँग और पूर्ति बराबर होती है। रेखाचित्र 1 अनुसार अमेरिका के डॉलर की माँग DD और SS है। सन्तुलन E बिन्दु पर होता है। इसलिए विनिमय दर निर्धारित हो जाती है। अगर विनिमय दर OR1, हो जाए तो रुपये के रूप में डॉलर ज्यादा मात्रा में पैसे देने पड़ेंगे तो डॉलर की माँग R1D1 हो जाएगी। OR पूर्ति R1S1 हो जाएगी। इसलिए विनिमय दर OR1 से कम होकर OR निश्चित हो जाएगी।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर 1
अगर किसी समय विनिमय दर OR1 निश्चित होती है तो पूर्ति R2S2 कम है और माँग R2D2 ज्यादा है। इसलिए विनिमय रेखाचित्र 1 दर बढ़कर OR हो जाएगी। विनिमय दर का सन्तुलन माँग और पूर्ति द्वारा विदेशी मुद्रा बाज़ार में निर्धारित होता है।

प्रश्न 5.
स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर देश की सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है और यह वह स्थिर दर रहती है। स्थिर विनिमय दर माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित नहीं होती बल्कि विनिमय दर 1920 से पहले स्वर्णमान प्रणाली द्वारा निर्धारित की जाती थी। इस प्रणाली में हर एक देश की मुद्रा का मूल्य सोने के रूप में परिभाषित किया जाता था। हर देश की मुद्रा के स्वर्ण मुद्रा मूल्य की तुलना करके विनिमय दर निर्धारित की जाती थी। उदाहरण के लिए रुपये का मूल्य = 2 ग्राम सोना और डॉलर का मूल्य 100 ग्राम सोना तो 1 डॉलर = 100/2 = ₹ 50 निर्धारित होता था। ब्रैटनवुड कुछ सुधार करके समान योजक सीमा प्रणाली अपनाई गई।

प्रश्न 6.
लोचशील विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ?
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर किसी देश की माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है। अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में हर एक देश की मुद्रा की माँग और पूर्ति उस देश की करंसी के विनिमय मूल्य को निर्धारित करती है।

जैसा कि रेखाचित्र में विदेशी करन्सी की माँग और पर्ति द्वारा सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। जहां OR विनिमय दर निर्धारित हो जाती है। अगर विदेशी करन्सी की माँग बढ़ जाती है तो विनिमय दर में वृद्धि हो जाएगी अर्थात् विदेशी मुद्रा प्राप्त करने के लिए ज्यादा देशी मुद्रा देनी पड़ेगी। अगर विदेशी मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तो विनिमय दर कम हो जाएगी। इससे यह नतीजा प्राप्त होता है कि विदेशी मुद्रा की जितनी माँग बढ़ जाएगी विनिमय मूल्य उतना अधिक हो जाएगा और विदेशी मुद्रा की पूर्ति जितनी ज्यादा होगी विनिमय मूल्य उतना कम हो जाएगा।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर 2

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प्रश्न 7.
स्थिर विनिमय दर के लाभ और हानियां बताओ।
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर वह दर होती है जोकि देश की सरकार द्वारा निश्चित होती है और इसके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं-
मुख्य लाभ (Merits)

  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय विदेशी मुद्रा बाज़ार में स्थिरता स्थापित होती है।
  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि होती है।
  • इसके साथ बड़े पैमाने के उतार-चढ़ाव उत्पन्न नहीं होते।

हानियां (Demerits)-

  • इसके साथ व्यापक रूप में अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखनी पड़ती हैं क्योंकि मुद्रा सोने में परिवर्तनशील होती है।
  • इसके साथ पूँजी का विदेशों में आना-जाना कम हो जाता है क्योंकि स्वर्ण भण्डार ज़्यादा रुपये पड़ते हैं।
  • यह जोखिम पूँजी को उत्साहित करती है।

प्रश्न 8.
लोचशील विनिमय दर के लाभ और हानियां बताओ।
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर बाज़ार में माँग और पूर्ति की शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है।
मुख्य लाभ (Merits)-

  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखने की कोई जरूरत नहीं पड़ती।
  • इसके साथ पूँजी का निवेश करना आसान होता है।
  • यह जोखिम पूँजी को उत्साहित करती है।

हानियां (Demerits)

  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में अस्थिरता पैदा हो जाती है।
  • इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • इसके साथ बड़े पैमाने पर उतार-चढ़ाव पैदा होता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
स्थिर विनिमय दर से क्या भाव है ? स्थिर विनिमय दर कैसे निर्धारित की जाती है ? इसके गुण और . अवगुण बताओ।
(What is Fixed Exchange Rate ? How is fixed exchange rate determined ? Give its merits and demerits ?)
उत्तर-
स्थिर विनिमय दर का अर्थ (Meaning of Fixed Exchange Rate)-स्थिर विनिमय दर विनिमय की वह दर है जोकि सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है। इस प्रणाली में विनिमय दर सरकार निश्चित करती है और यह दर स्थिर होती है। (Fixed Exchange rate is that exchange rate which is fixed by the government and it is fixed) स्थिर विनिमय दर में सरकार अपनी इच्छा अनुसार थोड़ा परिवर्तन कर सकती है।

स्थिर विनिमय दर का निर्धारण (Determination of Fixed Exchange Rate)-इसके निर्धारण के लिए दो प्रणालियां अपनाई गई हैं-
1. स्वर्ण मान प्रणाली (Gold Standard System)-स्थिर विनिमय दर प्रणाली का सम्बन्ध 1880-1914 तक स्वर्ण मान प्रणाली के साथ था। इस प्रणाली में हर एक देश को अपनी करन्सी का मूल्य सोने के रूप में बताना पड़ता था। एक करन्सी का मूल्य दूसरी करन्सी में निर्धारित करने के लिए हर एक करन्सी के सोने के रूप में मूल्य की तुलना दूसरी करन्सी के सोने के रूप में मूल्य के साथ की जाती थी। इस प्रकार स्थिर विनिमय दर निर्धारित होती थी जिसको विनिमय का टक्साली समता मूल्य (What for value of exchange) कहा जाता था। उदाहरण के लिए भारत के एक रुपये के साथ 100 ग्राम सोना तथा अमेरिका के एक डॉलर के साथ 20 ग्राम सोने का विनिमय किया जा सकता है तो भारत के रुपये का विनिमय मूल्य \(\frac{100}{20}\) = 5 अमेरिकन डॉलर निर्धारित किया जाता था या विनिमय दर 1 : 5 थी।

2. समानयोजक सीमा प्रणाली (Adjustable Peg System)-बैटनवुड प्रणाली (Bretton Wood System) दूसरे महायुद्ध के बाद ब्रैटनवुड के स्थान पर विश्व के देशों ने समानयोजक सीमा प्रणाली को अपनाया था। यह प्रणाली स्थिर विनिमय दर को सोने के रूप में ही परिभाषित करके निश्चित की जाती थी। परन्तु इसमें कुछ समानयोजक या परिवर्तनशील की सम्भावना रखी गई। हर एक करन्सी का मूल्य अमेरिका के डॉलर के रूप में ही परिभाषित किया गया। कोई करन्सी के मूल्य में समानयोजक या तबदीली अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्वीकृति के साथ ही की जा सकती थी।

स्थिर विनिमय दर के लाभ (Merits of Fixed Exchange System)-
1. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)-इस प्रणाली का मुख्य लाभ यह था कि सभी देशों में आर्थिक उतार-चढ़ाव की सम्भावना नहीं होती थी। व्यापारिक चक्रों पर नियन्त्रण करने के लिए यह प्रणाली लाभदायक सिद्ध हुई है। इसके साथ आर्थिक नीतियों का निर्माण अच्छे ढंग के साथ किया जाने लगा।

2. विश्व आधार का विस्तार (Expansion of World Trade)-स्थिर दर के साथ विश्व व्यापार का विस्तार हो गया क्योंकि इस के साथ विनिमय पर अनिश्चित परिवर्तन नहीं होता है। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को उत्साह प्राप्त हो गया।

3. समष्टि नीतियों का तालमेल (Co-ordination of Macro Policies)-स्थिर विनिमय दर समष्टि नीतियों में तालमेल उत्पन्न करने में सहायक हुई है। इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के समझौते ज़्यादा समय तक किये जा सकते हैं। इस प्रकार विश्व अर्थव्यवस्था में विनिमय दर नीतियों में सहायता करती है।

हानियां (Demerits)-स्थिर विनिमय दर के दोष निम्नलिखित हैं-
1. विशाल अन्तर्राष्ट्रीय निधियां (International Reserved)-स्थिर विनिमय प्रणाली का प्रतिपादन करने के लिए अधिक मात्रा में अन्तर्राष्ट्रीय निधियों की ज़रूरत पड़ती थी। हर एक देश को बहुत सारा धन सोने के रूप में सम्भालना पड़ता था क्योंकि देश की करन्सी सीधे या उल्टे रूप में सोने में बदली जा सकती थी।

2. पूँजी की कम गति (Less movement of Capital)—स्थिर विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर को स्थिर रखने के लिए सरकार को सोने के रूप में भण्डार स्थापित करने पड़ते थे। इसलिए पूँजी में गतिशीलता बहुत कम थी। पूँजी का निवेश विदेशों में कम मात्रा में किया जाता था।

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3. साधनों की अनुकूल बांट (Inefficient Resource Allocation)-स्थिर विनिमय दर में साधनों की बांट कुशल ढंग के साथ नहीं की जा सकती थी। उत्पादन के साधनों के उत्तम प्रयोग के लिए हर एक देश में पूँजी की ज़रूरत होती है। पूँजी निर्माण की कम प्राप्ति के कारण साधनों की अनुकूल बाँट सम्भव थी। स्थिर विनिमय दर के साथ जोखिम पूँजी को ही उत्साह प्राप्त नहीं होता। जिन कार्यों में पूँजी लगानी जोखिम का कार्य होता है उनके कार्य में कोई देश पूँजी लगाने को तैयार नहीं होता था क्योंकि विनिमय दर स्थिर रहती थी।

प्रश्न 2.
लोचशील विनिमय दर से क्या भाव है ? लोचशील विनिमय दर कैसे निर्धारित होती है ? इस प्रणाली के गुण और अवगुण बताओ।
(What is Flexible Exchange Rate? How is Flexible Exchange Rate determined? Explain the merits and demerits of this system.)
उत्तर-
लोचशील विनिमय दर का अर्थ (Meaning of Flexible Exchange Rate)-लोचशील विनिमय दर वह दर होती है जो कि किसी करन्सी की माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इस दर का निर्धारित करने के लिए कोई सरकारी हस्तक्षेप नहीं होता। इस हालत में करन्सी को बाजार में खुला छोड़ दिया जाता है जो कि विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति द्वारा बाज़ार शक्तियां निर्धारित होती हैं। विनिमय दर में लगातार परिवर्तन होता रहता है जहाँ विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाती है। इसको विनिमय दर की समता दर (Per Rate of Exchange) कहते हैं। इस को सन्तुलन दर भी कहा जाता है।

लोचशील विनिमय दर का निर्धारण (Determination of Flexible Exchange Rate)-प्रो० के० के० कुरीहारा के अनुसार, “मुफ्त विनिमय दर उस जगह पर निश्चित होगी जहां विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति बराबर हो जाएगी।” लोचशील विनिमय दर दो तत्त्वों द्वारा निर्धारित होती है-
(A) विदेशी मुद्रा की माँग (Demand for Foreign Exchange)-विदेशी मुद्रा का जब भुगतान किया जाता है तो इस महत्त्व के लिए विदेशी मुद्रा की मांग उत्पन्न होती है। एक देश में विदेशी मुद्रा की माँग निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है-

  • विदेशों में वस्तुएं तथा सेवाएं आयात करने के लिए।
  • अन्तर्राष्ट्रीय कर्जे का भुगतान करने के लिए।
  • विश्व के दूसरे देशों में निवेश करने के लिए।
  • बाकी विश्व को तोहफे तथा ग्रांट देने के लिए।
  • विदेशी मुद्रा के सट्टा उद्देश्य के साथ लाभ कमाने के लिए।

अगर हम भारत के रुपये तथा अमेरिका के डॉलर के सम्बन्ध में डॉलर की माँग और विनिमय मूल्य का प्रतिपादन करना चाहते हैं तो विदेशी मुद्रा की माँग और विनिमय मूल्य का उल्ट सम्बन्ध होता है अर्थात् अमेरिका के डॉलर की कीमत जो रुपये के रूप में की जाती है इसका उल्ट सम्बन्ध होता है। इसके लिए जब विनिमय मूल्य कम होता जाता है तो डॉलर की माँग में वृद्धि होती है। इस प्रकार माँग वक्र ऋणात्मक ढलान की तरफ़ होता है।

विदेशी मुद्रा की पूर्ति (Supply of foreign exchange)–विदेशी मुद्रा की प्राप्ति द्वारा इसकी पूर्ति निश्चित होती है। विदेशी मुद्रा की पूर्ति निम्नलिखित तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  • वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात के साथ अर्थात् जब विदेशी भारत में वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद करते
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के साथ।
  • विदेशी मुद्रा के दलाल या सट्टा खेलने वालों के द्वारा भारत में भेजी गई विदेशी मुद्रा के साथ। ‘
  • विदेशों में काम कर रहे भारतीयों द्वारा देश में भेजी गई बचतों के साथ।
  • विदेशी राजदूत द्वारा भारत में सैर-सपाटे के साथ।

विनिमय दर और विदेशी मुद्रा की पूर्ति का सीधा सम्बन्ध होता है। जब विनिमय दर बढ़ती है तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि होती है। जब विनिमय दर कम हो जाती है तो विदेशी मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है। इस प्रकार पूर्ति वक्र धनात्मक ढलान वाली हो जाती है।

विनिमय की सन्तुलन दर (Equilibrium Exchange Rate)-विनिमय की सन्तुलन दर उस बिन्दु पर निर्धारित होती है जहां विदेशी मुद्रा की मांग तथा पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं। इसको रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता रेखाचित्र 3 में विनिमय दर निर्धारण को स्पष्ट किया गया है। विदेशी मुद्रा (डॉलर) की माँग तथा पूर्ति को OX रेखा पर और रुपये की तुलना में डॉलर के विनिमय मूल्य को OY रेखा पर दिखाया गया है।

विदेशी मुद्रा की मांग DD और पूर्ति SS एक-दूसरे को E बिन्दु पर काटते हैं। इसके साथ OR विनिमय दर निश्चित हो जाती है। अगर कोई समय विनिमय दर OR1 हो जाती है तो विदेशी मुद्रा की माँग R1d1 कम हो जाएगी और पूर्ति R2S2 बढ़ जाएगी। इसके साथ विनिमय दर कम होकर OR रह जाएगी। इसके विपरीत अगर विनिमय दर कम होकर OR2 रह जाती है तो विदेशी मुद्रा की माँग R2d2 ज़्यादा है और पूर्ति R2S2 कम है। इसलिए विनिमय दर OR2 से बढ़कर OR हो जाएगी। इस प्रकार विनिमय दर विदेशी मुद्रा की माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर 3

लोचशील विनिमय दर के गुण (Merits of Flexible Rate of Exchange)लोचशील विनिमय दर के गुण इस प्रकार हैं –

  1. अन्तर्राष्ट्रीय निधियों की ज़रूरत न होना-इस प्रणाली में देश के केन्द्रीय बैंक को अन्तर्राष्ट्रीय भंडारे की कोई ज़रूरत नहीं होती।
  2. पूँजी में वृद्धि (More Capital Movement)-लोचशील विनिमय दर प्रणाली में देश विदेशों में पूँजी निवेश करते हैं क्योंकि देश के केन्द्रीय बैंक को अन्तर्राष्ट्रीय नीतियां रखने की ज़रूरत नहीं होती। इसलिए पूँजी गतिशीलता का लाभ सारे देशों को होता है।
  3. व्यापार में वृद्धि (Increase in Trade)-विनिमय प्रणाली में व्यापार पर पाबन्दियां लगाने की ज़रूरत नहीं होती है। हर एक देश स्वतन्त्रता के साथ अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार कर सकता है।
  4. साधनों की उत्तम बांट-लोचशील विनिमय दर में देश के साधनों की उत्तम बाँट सम्भव होती है। इसके साथ साधनों की कागज़ सुविधा में वृद्धि होती है और देश के विकास के अनुकूल प्रभाव पड़ता है।

लोचशील विनिमय दर के दोष (Demerits of Flexible Exchange Rate)-लोचशील विनिमय दर के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं –

  1. विनिमय दर में अस्थिरता (Instability of Exchange Rate)-विनिमय दर में परिवर्तन लोचशील विनिमय दर प्रणाली में निरन्तर होता रहता है। इसके साथ अन्तर्राष्ट्रीय बाज़ार में विदेशी मुद्रा की कीमत में अस्थिरता पैदा हो जाती है।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अस्थिरता (Instability in International Trade)-लोचशील विनिमय दर में अस्थिरता होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में भी अस्थिरता पाई जाती है। हर एक अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के राह में रुकावटें खड़ी कर देता है।
  3. समष्टि नीतियों में समस्या (Problems in Macro Policies)-समष्टि आर्थिक नीतियों के निर्माण में बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। विनिमय दर दिन-प्रतिदिन परिवर्तित होती है। इसलिए समय की नीतियों का न्याय करना मुश्किल हो जाता है। अमेरिका के डॉलर, इंग्लैण्ड के पौंड और यूरोप के यूरो को मज़बूत और सख्य करन्सियां कहा जाता है। क्योंकि करन्सी की माँग विश्व भर में है और लोगों का विश्वास अधिक है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 16 विदेशी विनिमय दर

दूसरी तरफ भारत, पाकिस्तान के रुपये और विकासशील देशों की करन्सियों को कमज़ोर तथा नर्म (Weak and Soft) करन्सी कहा जाता है क्योंकि इनकी मांग कम है और इनका मूल्य लगातार कम होने का कारण इनकी विनिमय दर कम है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

PSEB 12th Class Economics भुगतान सन्तुलन Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन एक वर्ष में एक देश का बाकी विश्व के देशों से आर्थिक लेन-देन के लेखांकन का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
भुगतान सन्तुलन लेखे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वित्त वर्ष में एक देश द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन के सार को भुगतान सन्तुलन लेखा कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भुगतान शेष खाता सदैव सन्तुलित होता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
भुगतान शेष खाता तकनीकी दृष्टि से सदैव सन्तुलित होता है और इसको दोहरी लेखा पद्धति (Double Entry System) में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें भुगतान तथा प्राप्तियां बराबर होती हैं।

प्रश्न 4.
आर्थिक नीतियों का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन प्राप्त करना।

प्रश्न 5.
व्यापार शेष से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में वस्तुओं के निर्यात और आयात का विवरण होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 6.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
व्यापार शेष, भुगतान शेष का अंश है।

प्रश्न 7.
दृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दृश्य मदों में वस्तुओं के लेन-देन का विवरण होता है।

प्रश्न 8.
व्यापार शेष में किस प्रकार की मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में दृश्य मदों के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 9.
भुगतान शेष में अदृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष में अदृश्य मदों में सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष में किस प्रकार की मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
भुगतान शेष में दृश्य तथा अदृश्य मदों को शामिल किया जाता है।
अथवा
भुगतान शेष में वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11.
भुगतान सन्तुलन के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन के चालू खाते में दृश्य मदों, अदृश्य मदों और एक पक्षीय अन्तरण को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 12.
भुगतान सन्तुलन के पूँजी खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश के निवासियों तथा सरकार की परिसम्पत्तियों और देनदारियों के लेन-देन को पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 13.
भुगतान शेष में चालू खाते तथा पूँजी खाते के बिना और कौन-कौन सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
चालू खाते और पूँजी खाते के बिना भुगतान शेष में सरकारी रिज़र्व सौदे और भूल चूक को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 14.
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन क्या है ?
उत्तर-
जब किसी देश की देनदारियां उसकी लेनदारियों से कम होती हैं, तो इसको प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन कहते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 15.
व्यापार शेष में ₹ 5000 करोड़ का घाटा है और आयात का मूल्य ₹ 9000 करोड़ है। निर्यात का मूल्य कितना है ?
उत्तर-
निर्यात का मूल्य = ₹ 4000 करोड़ क्योंकि व्यापार शेष निर्यात के मूल्य तथा आयात के मूल्य का अन्तर होता है।

प्रश्न 16.
व्यापार शेष में ₹ 300 करोड़ का घाटा है, निर्यात का मूल्य ₹ 500 करोड़ है। आयात का मूल्य कितना है ?
उत्तर-
आयात का मूल्य ₹ 800 करोड़ होगा क्योंकि व्यापार शेष निर्यात के मूल्य तथा आयात के मूल्य का अन्तर होता है।

प्रश्न 17.
कौन-सी मदें व्यापार शेष का निर्धारण करती है ?
उत्तर-
निर्यात तथा आयात, व्यापार शेष का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 18.
व्यापार शेष में अतिरेक (Surplus) कब होता है ?
उत्तर-
व्यापार शेष अतिरेक (Surplus) तब होता है जब निर्यात, आयात से अधिक हों।

प्रश्न 19.
चालू खाते की चार मदें बताएँ।
उत्तर-
चालू खाते की मदें-

  1. वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात
  2. वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात
  3. निजी अन्तरण (उपहार) (Private Transfers)
  4. सरकारी अन्तरण (विदेशों से सहायता) (Official Transfers)।

प्रश्न 20.
पूँजी खाते की चार मदें बताएँ।
उत्तर-
पूँजी खाते की मदें-

  • निजी लेन-देन
  • सरकारी लेन-देन
  • अप्रत्यक्ष निवेश
  • पत्राधार निवेश।

प्रश्न 21.
दृश्य मदों में ……………. के लेन-देन का विवरण होता है।
उत्तर-
वस्तुओं।

प्रश्न 22.
अदृश्य मदों में …………. के लेन-देन का विवरण होता है।
उत्तर-
सेवाओं।

प्रश्न 23.
भुगतान सन्तुलन में …………. मदों के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है।
(क) दृश्य मदों
(ख) अदृश्य मदों
(ग) दृश्य और अदृश्य मदों
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) दृश्य और अदृश्य मदों।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 24.
व्यापार संतुलन में दृश्य के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
व्यापार सन्तुलन और भुगतान सन्तुलन में कोई अन्तर नहीं होता।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
भुगतान सन्तुलन लेखे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन एक वर्ष में एक देश का बाकी विश्व के देशों से आर्थिक लेन-देन के लेखांकन का विवरण होता है। एक वित्त वर्ष में एक देश द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन के सार को भुगतान शेष लेखा कहा जाता है। यह समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्वपूर्ण अंश है।

प्रश्न 2.
व्यापार शेष से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में वस्तुओं के निर्यात तथा आयात के लेन-देन का विवरण होता है। एक देश द्वारा एक वर्ष में निर्यात वस्तुओं तथा आयात वस्तुओं के अन्तर को व्यापार सन्तुलन कहा जाता है। इसको दृश्य मदें (Visible goods) भी कहा जाता है। व्यापार शेष में सेवाओं (अदृश्य मदों) के लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 3.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर बताएं।
उत्तर-
व्यापार शेष एक वित्त वर्ष में दृश्य मदों (वस्तुओं) के लेन-देन का विवरण होता है जबकि भुगतान सन्तुलन एक वित्त वर्ष में दृश्य मदों (वस्तुओं) के आयात और निर्यात के साथ-साथ अदृश्य मदों (सेवाओं) के आयात-निर्यात को भी शामिल किया जाता है। जहाज़रानी, बीमा बैंकिंग ब्याज, भुगतान, लाभांश, सैलानियों के खर्च को दृश्य मदों में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 4.
भुगतान सन्तुलन की दृश्य तथा अदृश्य मदें क्या हैं ?
उत्तर-
दृश्य मदें (Visible Items)-दृश्य मदों में वस्तुओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। अदृश्य मदें (Invisible Items)—इसमें विदेशों की दी गईं सेवाएं तथा विदेशों से प्राप्त की गई सेवाओं को शामिल किया जाता है। इनको अदृश्य मदें इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका निर्माण धातु से नहीं होता जैसे कि –

  • समुद्री जहाजों की सेवाओं का आयात तथा निर्यात
  • बैंकिंग सेवाओं का आयात तथा निर्यात।

प्रश्न 5.
भुगतान शेष के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष के चालू खाते का अर्थ है कि अल्पकाल में वस्तुओं के वास्तविक लेन-देन का लेखा-जोखा। इसमें दृश्य तथा अदृश्य दोनों प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 6.
भुगतान शेष के पूंजी खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष के पूंजी खाते का अर्थ है कि अल्पकाल तथा दीर्घकाल में पूंजी के अन्तर प्रवाह तथा बाहरी प्रवाह का लेखा-जोखा। इसमें व्यक्तियों तथा सरकार द्वारा विदेशों से प्राप्त ऋण उधार देना। अनुदान तथा स्वर्ण के आदान-प्रदान को शामिल किया जाता है। यह अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन का लेखा-जोखा होता है।

प्रश्न 7.
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन का अर्थ बताएं।
उत्तर-
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन-भुगतान सन्तुलन को प्रतिकूल कहा जाता है जब देश की प्राप्तियां कम होती हैं और देनदारी अधिक होती है इस स्थिति में भुगतान सन्तुलन को बराबर करने के लिए स्वर्ण में भुगतान करना पड़ता है अथवा अल्पकालीन ऋण लेकर सन्तुलन स्थापित करना पड़ता है। इस स्थिति में देश की प्राप्तियां कम होती हैं और भुगतान अधिक होता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है ? भुगतान शेष की दृश्य तथा अदृश्य मदों को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
भुगतान शेष एक वित्त वर्ष में एक देश और शेष विश्व के देशों के साथ लेन-देन का विवरण होता है। इसमें दृश्य (Visible) तथा अदृश्य (Invisible) मदें शामिल होती हैं।
(i) दृश्य मदें (Visible Items)-दृश्य मदों में वस्तुओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है। जब निर्यात वस्तुओं तथा आयात वस्तुओं का चालू लेखा पेश किया जाता है तो इसको व्यापार सन्तुलन कहा जाता है। जैसा कि गेहूँ, कपड़े, लोहे आदि का आयात तथा निर्यात।

(ii) अदृश्य मदें (Invisible Items)-जब एक देश बाकी विश्व के देशों को सेवाएं प्रदान करता है और बाकी विश्व के देशों से सेवाएं प्राप्त की जाती हैं तो इनको अदृश्य मदें कहा जाता है। इसमें सेवाओं के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है। अदृश्य मदों में निम्नलिखित मदों को शामिल किया जाता है –

  1. जहाज़रानी, वस्तु सेवाओं की आयात और निर्यात
  2. बैंकिंग सेवाओं की आयात और निर्यात
  3. बीमा सेवाओं की आयात और निर्यात
  4. ब्याज का भुगतान तथा प्राप्ति
  5. लाभांश के रूप में भुगतान तथा प्राप्ति। ङ्केप्रश्न

2. भुगतान शेष के लेन-देन के वगीकरणण की पाँच श्रेणियों की व्याख्या करें। उत्तर- भुगतान शेष के लेन-देन के वर्गीकरण को मुख्य पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-

  1. श्रेणी I. वस्तुओं तथा सेवाओं का लेखा-इस श्रेणी में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।
  2. श्रेणी II. एक पक्षीय अन्तरण लेखा-इस खाते में एक देश द्वारा बाकी विश्व को दिए गए उपहार तथा अनुदान और प्राप्त किए अनुदान और उपहार का विवरण होता है।
  3. श्रेणी III. दीर्घकालीन पूँजी लेखा-देश के निवासियों तथा सरकार विदेशी परिसम्पत्तियों की वृद्धि या कमी का विवरण होता है। इसी प्रकार विदेशी निवासियों तथा सरकार के पास इस देश की दीर्घकालिक परिसम्पत्तियों ” की वृद्धि तथा कमी का विवरण होता है।
  4. श्रेणी IV अल्पकालीन निजी पूँजी लेखा-देश के निवासियों के पास निजी विदेशी परिसम्पत्तियों में वृद्धि या कमी का विवरण होता है। इसी प्रकार विदेशी निवासियों के पास इस देश की परिसम्पत्तियों में वृद्धि या कमी का विवरण भी इस खाते में शामिल किया जाता है।
  5. श्रेणी V अल्पकालीन सरकारी पूँजी लेखा-इस देश की सरकार तथा किसी मौद्रिक अधिकारियों द्वारा विदेशी अल्पकालिक परिसम्पत्तियों की मालकी में वृद्धि या कमी के साथ-साथ विदेशी सरकार तथा उनकी एजेन्सियों द्वारा अल्पकालिक परिसम्पत्तियों की वृद्धि तथा कमी का विवरण होता है।

प्रश्न 3.
(a) चालू लेखे
(b) पूँजी लेखे के अंशों (Components) की व्याख्या करें। उत्तर-भुगतान शेष के दो खाते होते हैं-
A. चालू खाता (Current Account) चालू खाते के मुख्य अंश निम्नलिखित हैं –

  • दृश्य मदें-वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात और निर्यात।
  • अदृश्य मदें-सेवाओं का आयात और निर्यात।
  • एक पक्षीय अन्तरण-एक देश द्वारा विदेशों को दिए गए तथा प्राप्त किए उपहार तथा अनुदान।

B. पूँजी खाता (Capital Account)-पूँजी खाते के मुख्य अंश निम्नलिखित हैं –

  • सरकारी सौदे-एक देश द्वारा विदेशों को ऋण देना तथा प्राप्त करना जिस द्वारा परिसम्पत्तियों तथा देनदारियों की स्थिति प्रभावित होती है।
  • निजी सौदे-इस देश के व्यक्तियों द्वारा विदेश में निवेश करना तथा विदेशी व्यक्तियों द्वारा इस देश में निवेश करना शामिल करते हैं।
  • प्रत्यक्ष निवेश-विदेशों में निजी व्यक्तियों द्वारा किया गया निवेश तथा उस निवेश पर नियन्त्रण रखना।
  • पोर्ट फोलियो निवेश-विदेशों में शेयर, बान्ड आदि की खरीद परन्तु इस निवेश पर नियन्त्रण न होना। विदेशी पूँजीपतियों द्वारा इस देश में किया गया पोर्ट फोलियो निवेश भी पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 4.
भुगतान शेष के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ? इस खाते की मुख्य मदों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
भुगतान शेष का चालू खाता वह खाता है जिसमें वस्तुओं, सेवाओं तथा एक पक्षीय अन्तरण का लेखा-जोखा रखा जाता है। मुख्य मदें (Main Components)-

  1. दृश्य मदें (Visible Items) चालू खाते में दृश्य मदों अर्थात् वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। जब किसी देश की वस्तुओं के आयात तथा निर्यात का विवरण दिया जाता है तो इसको व्यापार शेष कहा जाता है।
  2. अदृश्य मदें (Invisible Items)-इसमें सेवाओं (Services) के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। इनमें यातायात, संचार, बीमा, बैंकिंग आदि सेवाएं शामिल की जाती हैं।
  3. निवेश आय (Investment Income)-एक देश द्वारा विदेशों में किए गए निवेश से प्राप्त ब्याज तथा लाभ और इनके भुगतान के विवरण को चालू खाते में शामिल किया जाता है।
  4. उपहार तथा ग्रांट (Gifts and Grants) चालू खाते में एक पक्षीय भुगतान जैसा कि उपहार और ग्रांट जो विदेशों से प्राप्त किया गया तथा एक पक्षीय भुगतान जो विदेशों को दिया गया, इसको शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
भुगतान शेष के पूँजी खाते से क्या अभिप्राय है ? इस खाते की मुख्य मदों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
पूँजी खाते से अभिप्राय उस खाते से है जिसमें एक देश की सरकार तथा निवासियों का शेष विश्व की सरकार तथा निवासियों से सम्बन्ध होता है। इसमें परिसम्पत्तियों तथा देनदारियों में परिवर्तन होता है। पूँजी खाते की मुख्य मदें इस प्रकार हैं-

  • सरकारी सौदे-जब एक देश की सरकार दूसरे देशों की सरकार से ऋण प्राप्त करती है जिस द्वारा परिसम्पत्तियों में परिवर्तन होता है तो इनको सरकारी सौदे कहा जाता है।
  • निजी सौदे-यह गैर-सरकारी सौदे होते हैं जब एक देश के निवासी विदेशों में तथा विदेशी इसमें निवेश करते हैं तो इनको निजी सौदे कहा जाता है। इनको भी पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-जब इस देश के निवासियों द्वारा विदेशों में तथा विदेशी निवासियों द्वारा इस देश में निवेश करके उस पर नियन्त्रण रखा जाता है तो इसको प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा जाता है।
  • पोर्ट फोलियो निवेश (Port folio Investment)-एक देश के निवासी विदेशों में शेयर्स, बान्ड तथा प्रतिभूतियों की खरीद करते हैं और विदेशियों द्वारा इसमें शेयर्स, बान्ड आदि की खरीद की जाती है तो इसको पोर्ट फोलियो निवेश कहा जाता है। इस निवेश पर निवेशकर्ता का नियन्त्रण नहीं होता।

प्रश्न 6.
भुगतान शेष हमेशा सन्तुलन में होता है। स्पष्ट करें।
अथवा
भुगतान शेष के लेखे को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक देश की प्राप्तियां तथा भुगतान को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा रिकार्ड किया जाता है। दोहरी अंकन प्रणाली में प्राप्तियां तथा देनदारियां हमेशा बराबर होती हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि भुगतान शेष सदैव सन्तुलित रहता है परन्तु व्यावहारिक तौर पर यह असन्तुलित हो सकता है। इसको एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 1
लेखे की दृष्टि से भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में होता है। जैसा कि प्राप्तियां 300 + 300 + 100 + 300 = ₹ 1000. करोड़ भुगतान 600 + 100 + 80 + 220 == ₹ 1000 करोड़ के बराबर है।

प्रश्न 7.
भुगतान शेष की स्वप्रेरित मदों तथा समायोजक मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष को अर्थशास्त्री दो भागों में बांटते हैं-

  • स्वप्रेरित मदें (Autoxomous Items)-स्वप्रेरित मदों का अर्थ उन मदों से होता है जिनका मुख्य उद्देश्य , अधिकतम लाभ कमाना होता है। इनका सम्बन्ध भुगतान शेष में समानता स्थापित करना नहीं होता। इन मदों को रेखा से ऊपर की मदों का नाम भी दिया जाता है।
  • समायोजक मदें (Accomodating Items)-समायोजक मदें वे मदें होती हैं जिनका उद्देश्य लाभ अधिकतम – करना होता है। इनका सम्बन्ध लाभ के धनात्मक तथा ऋणात्मक होने से होता है। समायोजक मदों द्वारा भुगतान शेष में समानता स्थापित की जाती है। इन मदों को रेखा से नीचे की मदें भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष में असन्तुलन से क्या अभिप्राय है ? इसकी किस्मों का वर्णन करें।।
उत्तर-
भुगतान शेष में असन्तुलन दो प्रकार का हो सकता है-घाटे का भुगतान सन्तुलन, बचत का भुगतान सन्तुलन।
1. घाटे का भुगतान सन्तुलन (Deficit Balance of Payments)-जब किसी देश की प्राप्तियां (Receipts) कम होती हैं और देनदारियां (Payments) अधिक होती हैं तो इस स्थिति को घाटे का भुगतान सन्तुलन कहा जाता है। इस स्थिति को प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन (Unfavourable Balance of Payment) की स्थिति भी कहा जाता है। जब देश के निर्यात कम होते हैं और आयात अधिक होते हैं तो देश को सन्तुलन स्थापित करने के लिए ऋण लेना पड़ता है अथवा सोने के रूप में भुगतान करना पड़ता है।

2. बचत का भुगतान शेष (Surplus Balance of Payments)-जब किसी देश की प्राप्तियां (Credits or Receipts) अधिक होती हैं और देनदारियां (Debits or Payments) कम होती हैं तो इस स्थिति को अनुकूल भुगतान शेष (Favourable Balance of Payments) कहा जाता है। जब देश का निर्यात अधिक होता है और आयात कम होता है तो देश को विदेशों से सोना प्राप्त होता है अथवा देश द्वारा विदेशों को अल्पकालिक ऋण दिए जाते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 9.
भुगतान शेष में असन्तुलन के कारण बताओ।
उत्तर-
भुगतान शेष में असन्तुलन के मुख्य कारण इस प्रकार हैं-
A. आर्थिक कारण (Economic Causes)

  • बड़े पैमाने पर विकासवादी खर्च कारण, आयात में बहुत वृद्धि होती है और असन्तुलन पैदा हो जाता है।
  • किसी देश में व्यापार चक्रों के कारण सुस्ती और मन्दीकाल की अवस्था के कारण भुगतान सन्तुलन में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • देश में मुद्रा स्फीति के कारण विदेशों से आयात में वृद्धि होती है और असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
    देश में विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं के स्थान पर प्रतिस्थापनों का विकास हो जाता है तो इससे शेष. घाटे में कमी हो
  • जाती है।
  • देश में उत्पादन लागत में कमी कारण भुगतान शेष में परिवर्तन उत्पन्न होता है।

B. राजनीतिक कारण (Political Causes)-जब देश में राजनीतिक स्थिरता नहीं होती तो पूँजी का निकास विदेशों में अधिक होता है और पूँजी का आयात कम हो जाता है तो भुगतान शेष में असन्तुलन पैदा हो जाता है।

C. सामाजिक कारण (Social Causes)-देश में लोगों के स्वाद, फैशन तथा प्राथमिकता में परिवर्तन के कारण भी असन्तुलन पैदा हो सकता है।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष के असन्तुलन को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर-
भुगतान शेष के असन्तुलन को निम्नलिखित विधियों से ठीक किया जा सकता है-

  • निर्यात प्रोत्साहन (Export Promotion)-देश के निर्यात में वृद्धि करने के लिए उद्यमियों तथा निर्यातकर्ता को सहायता प्रदान करनी चाहिए। इस प्रकार भुगतान असन्तुलन ठीक किया जा सकता है!
  • आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)–विदेशों से आयात करने वाला वस्तुओं के स्थान पर देश में ही उन वस्तुओं का उत्पादन करके भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की आवश्यकताएं देश में ही पूर्ण हो जाती हैं। आयात पर रोक लगानी चाहिए।
  • अवमूल्यन (Devaluation)-देश की करन्सी का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में घटाने को अवमूल्यन कहा जाता है। यह लोचशील विनिमय प्रणाली में सम्भव होता है। इससे निर्यात में वृद्धि होती है।
  • मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control over Inflation) देश में मुद्रा स्फीति की दर को नियन्त्रण में करके देश की वस्तुओं की माँग विदेशों में बढ़ाई जा सकती है। इससे भुगतान असन्तुलन की स्थिति ठीक हो जाती है।

प्रश्न 11.
भुगतान सन्तुलन तथा राष्ट्रीय आय लेखे में सम्बन्ध स्पष्ट करें। .
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन के खाते में भुगतान और प्राप्तियों को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय आय के लेखे भी दोहरी अंकन प्रणाली के अनुसार ही बनाए जाते हैं। राष्ट्रीय आय में अन्तिम उपभोग को इस प्रकार स्पष्ट किया जाता है-
Y = C+ I + G + X
इसमें Y = राष्ट्रीय आय, C = वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग, I = निवेश खर्च, X = निर्यात खर्च राष्ट्रीय आय का माप खुली अर्थव्यवस्था में इस प्रकार किया जाता है-
Y = C + S + T + M
इसमें Y = राष्ट्रीय आय, C = उपभोग खर्च, S = बचत, T = करों का भुगतान, M = आयात खर्च।
∴ C+ I + G + X = C+ S + T + M
I+ G+ X = S + T + M
Injections = Leakages
देश में निवेश, सरकारी खर्च तथा निर्यात द्वारा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तथा बचत, कर और आयात द्वारा आय का विकास होता है। इस प्रकार भुगतान सन्तुलन हमेशा सन्तुलन में रहता है।

प्रश्न 12.
भारत में भुगतान सन्तुलन के ढांचे को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में भुगतान सन्तुलन लेखे में सरकार की प्राप्तियां तथा भुगतान का विवरण होता है। भुगतान सन्तुलन ढांचे में तीन सैक्शन होते हैं-
(i) चालू खाता
(ii) पूँजी खाता
(iii) रिज़र्व प्रयोग अथवा समष्टि भुगतान सन्तुलन।
भारत के भुगतान सन्तुलन ढांचे को 2011-12 के आंकड़ों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
India’s Balance of Payments : Summary (2011-12)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 2

Source : Economic Survey 2012-13. इस सूची पत्र से स्पष्ट होता है कि (i) चालू लेखा सन्तुलन (-) 78155 मिलियन डालर था। व्यापार सन्तुलन (-) 189759 मिलियन डालर और अदृश्य मदों से प्राप्ति 111604 मिलियन डालर थी। (ii) पूँजी लेखे में 67755 मिलियन डालर की आय प्राप्त हुई। इस प्रकार (ii) विदेशी मुद्रा के रिज़र्व भण्डार में प्रयोग के लिए 12831 मिलियन डालर की कमी हुई।

प्रश्न 13.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यापार शेष एक देश में वस्तुओं के आयात मूल्य तथा निर्यात मूल्य का अन्तर होता है। भुगतान शेष एक विशाल धारणा है। इसमें व्यापार शेष के साथ-साथ चालू खाते तथा पूँजी खाते के लेन-देन को भी शामिल किया जाता है। इनमें मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं –

व्यापार शेष (Balance of Trade) भुगतान शेष (Balance of Payments)
(1) इसमें वस्तुओं के निर्यात तथा आयात का विवरण होता है। (1) इसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात तथा आयात का विवरण होता है।
(2) इसमें पूँजीगत लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता जैसे कि परिसम्पत्तियों की खरीद बेच। (2) इसमें पूँजीगत लेन-देन को शामिल किया जाता है।
(3) यह एक सीमित धारणा है जोकि भुगतान शेष का एक भाग है। (3) यह एक विशाल धारणा है। व्यापार शेष इस धारणा का एक भाग होता है।
(4) व्यापार शेष प्रतिकूल, अनुकूल या सन्तुलन में हो सकता है। (4) भुगतान शेष सदैव बराबर होता है क्योंकि प्राप्तियां तथा भुगतान बराबर होते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान शेष लेखे से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य अंशों को स्पष्ट करें।
(What is meant by Balance of Payment Account ? Describe components of Balance of Payment Account.)
अथवा
भुगतान शेष की दृश्य मदों तथा अदृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ? उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
(What is meant by Visible and Invisible Items in Balance of Payment Account ? Explain with examples.)
उत्तर-
भुगतान शेष लेखांकन का अर्थ (Meaning of Balance of Payments Account)-भुगतान शेष लेखांकन का अर्थ एक देश का शेष विश्व के साथ आर्थिक लेन-देन के विवरण का लेखा-जोखा होता है। (The B.O.P. account is a summary of international transactions of a country in a financial year.)
भुगतान सन्तुलन को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इसलिए भुगतान शेष लेखांकन का ढांचा इस प्रकार का होता है जिसमें भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में रहता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 3
भुगतान शेष के मुख्य अंश अथवा तत्त्व (Components) of B.O.P.)
अथवा
भुगतान शेष की दृश्य तथा अदृश्य मदें (Visible and Invisible Items of Balance of Payments)-
भुगतान शेष की मुख्य मदों को ऊपर दिए ढांचे अथवा संरचना में दिखाया गया है। इनको निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. वस्तुओं का निर्यात तथा आयात (दृश्य मदें)[Export and Import of Goods (Visible Items)] वस्तुओं के निर्यात तथा आयात को दृश्य मदें कहा जाता है। ऊपर दिए सूची पत्र 7.1 के अनुसार, वस्तुओं का निर्यात ₹ 300 करोड़ और वस्तुओं का आयात ₹ 600 करोड़ है। इस किस्म के व्यापार को दृश्य मदें कहा जाता है। इन मदों का विवरण कस्टम अधिकारियों द्वारा रखा जाता है।

2. सेवाओं का निर्यात तथा आयात (अदृश्य मदें) [Export and Import of Services (Invisible Items)]-हर एक देश विदेशों की सेवाएं प्रदान करता है और विदेशों से सेवाएं आयात की जाती हैं। सेवाओं के आदान-प्रदान को अदृश्य मदें कहा जाता है। सेवाओं में मुख्य रूप से निम्नलिखित मदों से आय को शामिल किया जाता है।

  • जहाज़रानी, बैंकिंग तथा बीमा (Shipping, Banking and Insurance) हर एक देश विदेशों को जहाज़रानी, बैंकिंग तथा बीमा की सेवाएं प्रदान करता है और बाकी विश्व के देशों से यह सेवाएं प्राप्त की जाती हैं। इनको अदृश्य मदें कहा जाता है।
  • टूरिज्म से आय (Income from Tourism)-टूरिज्म से आय को भी अदृश्य निर्यात कहा जाता है।
  • ब्याज तथा लाभांश (Interest and Dividends)-अदृश्य मदों में एक देश के निवासियों द्वारा निवेश करने से प्राप्त ब्याज तथा लाभांश को भी सेवाओं के निर्यात में शामिल किया जाता है। इस प्रकार सेवाओं के निर्यात तथा आयात द्वारा अदृश्य मदों से शुद्ध प्राप्त आय को भुगतान सन्तुलन में शामिल किया जाता है। इनको अदृश्य मदें (Invisible Items) कहा जाता है।

3. एक पक्षीय अन्तरण (Unilateral Transfers)-एक पक्षीय अन्तरण का अर्थ है एक देश द्वारा विश्व के शेष देशों को उपहार (Gifts), सहायता (Donations) आदि भेजना तथा बाकी विश्व के देशों से उपहार सहायता विदेशी धन प्राप्त करता है। जब विदेशों से उपहार या सहायता प्राप्त की जाती है तो इसके बदले में वर्तमान अथवा भविष्य में कोई भुगतान नहीं करना पड़ता। ये प्राप्तियां तथा भुगतान देश की सरकार तथा निजी नागरिकों द्वारा लिए या दिए जाते हैं।

4. पूँजीगत प्राप्तियां तथा भुगतान (Capital Receipts and Payments)-पूँजीगत प्राप्तियों में निवेश आय जैसा कि लगान, व्याज, लाभ और मज़दूरी के रूप में विश्व के शेष देशों से प्राप्त की जाती है। इसको पूँजीगत प्राप्ति में शामिल किया जाता है। इस प्रकार पूँजीगत भुगतान में लगान, ब्याज, लाभ और मजदूरी के रूप में बाकी विश्व के देशों को किए गए भुगतान को पूंजीगत भुगतान में शामिल किया जाता है। इनको भुगतान सन्तुलन लेखे में प्राप्तियां तथा भुगतान के रूप में लिखा जाता है। इनमें ऋण, निवेश, परिसम्पत्तियों की बिक्री, सोना चांदी तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार को शामिल किया जाता है। भारत में भुगतान शेष के लेन-देन के वर्गीकरण को भागों में बांटा जाता है-

  • वस्तुओं तथा सेवा का खाता (Goods and Services Account)
  • एक पक्षीय अन्रण खाता (Unilateral Transfers Account)
  • दीर्घकालिक पूँजी खाता (Long Term Capital Account)
  • अल्पकालिक निजी पूँजी खाता (Short Term Private Capital Account)
  • अल्पकालिक सरकारी पूँजी खाता (Short Term Official Capital Account)

प्रश्न 2.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है ? भुगतान शेष के प्रतिकूल होने के कारण बताएं। भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक करने के उपाय बताएं।
(What is meant by B.O.P. ? Discuss the Causes of adverse B.O.P. Suggest measures to correct dis-equilibrium in B.O.P.)
उत्तर-
भुगतान शेष एक देश का बाकी विश्व के देशों से निश्चित समय में अन्य देशों से आदान-प्रदान का विवरण होता है। हर एक देश विदेशों को वस्तुएं तथा सेवाएं भेजता है जिससे उस देश को आय प्राप्त होती है। वस्तुएं तथा सेवाएं मंगवाने से उस देश को भुगतान करना पड़ता है। भुगतान शेष वस्तुएं, सेवाएं तथा हर प्रकार के पूँजी आदान-प्रदान को शामिल करता है। सी० पी० किंडलबरजर के अनुसार, “एक देश का भुगतान शेष उस देश के निवासियों और विदेशी निवासियों के अन्तर्गत आर्थिक लेन-देन का विधिपूर्वक लेखा जोखा होता है।’ (The balance of payment of country is a systematic record of all economic transactions between its residents and residents of foreign countries.” C.P. Kindle-berger
भुगतान शेष = शुद्ध व्यापार शेष + शुद्ध सेवाओं में सन्तुलन + शुद्ध एक पक्षीय भुगतान + शुद्ध पूँजीगत लेखा सन्तुलन। व्यापार शेष (B.O.T.), भुगतान सन्तुलन का एक भाग होता है।

असन्तुलित भुगतान शेष के कारण (Causes of Disequilibrium in Balance of Payments)-
भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में होता है परन्तु जब भुगतान शेष घाटे वाला (Deficit) अथवा बचत वाला (Surplus) होता है तो इसको पूँजी लेखे की सहायता से सन्तुलन में किया जाता है। जब हम भुगतान शेष में असन्तुलन की बात करते हैं तो इसका सम्बन्ध चालू खाते (Current Account) से होता है। भुगतान सन्तुलन के असन्तुलित होने के मुख्य कारण निम्नलिखित होते हैं-

1. आर्थिक तत्त्व (Economic Factors) –

  • अधिक विकासवादी खर्च (Huge Development Expenditure)-जब देश की सरकार देश के आर्थिक विकास पर बहुत अधिक खर्च करती है तो इस स्थिति में विदेशों से मशीनें और औज़ार आयात किए जाते हैं। इस कारण भुगतान शेष में घाटे का असन्तुलन पैदा हो जाता है।
  • व्यापारिक चक्र (Trade Cycles)-सुस्ती तथा मन्दी के कारण देश में सरकार को अधिक खर्च करना । पड़ता है। इसके फलस्वरूप घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। तेज़ीकाल के समय सरकार अधिक निर्यात करके विदेशी मुद्रा कमाती है। इससे बचत वाला असन्तुलन उत्पन्न होता है।
  • मुद्रा स्फीति (Inflation)-देश में मुद्रा स्फीति के कारण वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। देश के निर्यात कम हो जाते हैं और आयात बढ़ जाते हैं। इसलिए घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)-आयात प्रतिस्थापन का अर्थ है विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का देश में ही उत्पादन करना। इस उद्देश्य के लिए विदेशों से नई मशीनें आयात की जाती हैं और भुगतान शेष घाटे वाला हो जाता है।
  • उत्पादन लागत में परिवर्तन (Change in Cost of Production)—जब तकनीक का विकास होता है तो इससे उत्पादन लागत में परिवर्तन हो जाता है। लागत कम होने से निर्यात में वृद्धि होती है और भुगतान शेष में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

2. राजनीतिक तत्त्व (Political Factors)-

  • राजनीतिक अस्थिरता (Political Instability)-जब किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति होती है तो इससे पूँजी का विकास होता है और पूंजी का प्रवेश कम होने से घाटे के असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • आयात कर में कमी (Reduction in Import duty)-जब देश की सरकार, आयात कर में कमी करती है तो इस कारण आयात में वृद्धि होती है और घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

3. सामाजिक तत्त्व (Social Factors) –

  • स्वाद तथा फैशन में परिवर्तन (Changes in Tastes and Fashion)-जब किसी देश के लोगों के स्वाद, फैशन तथा प्राथमिकताओं में परिवर्तन होता है तो इसके परिणामस्वरूप आयात और निर्यात में परिवर्तन हो जाता है। इससे भी असन्तुलन उत्पन्न होता है।
  • जनसंख्या में वृद्धि (Population Growth)-जब एक देश में जनसंख्या में वृद्धि तेजी से होती है जो इससे वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप भुगतान शेष में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक करने के उपाय (Measures to Correct dis-equilibrium in B.O.P.) –
भुगतान शेष को निम्नलिखित विधियों से ठीक किया जा सकता है –

  1. निर्यात प्रोत्साहन (Export Promotion)-जब किसी देश में भुगतान शेष घाटे वाला होता है तो उस स्थिति में निर्यात में वृद्धि हो सके। इस प्रकार घाटे वाला असन्तुलन ठीक हो सकता है।
  2. आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)-सरकार को आयात की जाने वाली वस्तुओं के स्थान पर देश में ही उन वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए। इससे आयात मूल्य में कमी हो जाएंगी और भुगतान शेष का असन्तुलन ठीक हो जाएगा।
  3. विदेशी मुद्रा पर नियन्त्रण (Exchange Control)-सरकार को विदेशी मुद्रा पर नियन्त्रण रखना चाहिए। निर्यात करने वाले उद्यमियों की विदेशी मुद्रा में आय को केन्द्रीय बैंक में जमा करवाना चाहिए और अधिक · महत्त्वपूर्ण आयात पर ही विदेशी मुद्रा को खर्च करना चाहिए। इससे भी भुगतान शेष में सुधार हो सकता है।
  4. मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation of Currency)-एक देश को घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना चाहिए। अवमूल्यन का अर्थ है किसी देश की मुद्रा का मूल्य दूसरे देशों की मुद्रा की तुलना में कम करना होता है। इससे विदेशी लोग इस देश की वस्तुओं तथा सेवाओं की अधिक खरीददारी करते हैं। इससे भुगतान असन्तुलन ठीक हो जाता है। परन्तु यह स्थिर विनिमय दर प्रणाली में ही सम्भव होता है।

5. मुद्रा की मूल्य कमी (Depreciation of Currency)-देश की मुद्रा की ख़रीद शक्ति को कम करने की प्रक्रिया को मुद्रा की मूल्य कमी कहा जाता है। यह परिवर्तनशील विनिमय दर प्रणाली में सम्भव होता है। यहां पर विनिमय दर माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इससे निर्यात को प्रोत्साहन प्राप्त होता है और आयात कम हो जाता है।

6. मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control Over Inflation)-जब किसी देश के कीमत स्तर में वृद्धि होती है तो उस देश की वस्तुओं की माँग विदेशों में कम हो जाती है, इसलिए स्फीति के स्तर को कम करके निर्यात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे भुगतान असन्तुलन ठीक हो जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

v. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
व्यापार का घाटा ₹ 5000 करोड़ है। आयात का मूल्य ₹ 9000 करोड़ है तो निर्यात का मूल्य ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार का घाटा = ₹5000 करोड़, आयात
= ₹ 9000 करोड़ व्यापार का घाटा = निर्यात – आयात
= (-) 5000 = निर्यात –9000
= (-) 5000 + 9000 = निर्यात
निर्यात = ₹4000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
व्यापार शेष का घाटा ₹ 300 करोड़ है। निर्यात का मूल्य ₹ 500 करोड़ है। आयात का मूल्य ज्ञात करो।
उत्तर-
व्यापार शेष का घाटा = ₹ 300 करोड़, निर्यात = ₹ 500 करोड़
व्यापार शेष का घाटा = निर्यात – आयात
(-) 300 = 500 – आयात
आयात = 500 + 300
= ₹ 800 करोड़ उत्तर

प्रश्न 3.
एक देश का निर्यात ₹ 10,000 करोड़ है। आयात ₹ 12,000 करोड़ है। व्यापार शेष ज्ञात करो।
उत्तर –
व्यापार शेष = निर्यात – आयात
= 10,000 – 12,000
= (-) ₹ 2000 करोड़
व्यापार शेष का घाटा = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 4.
एक देश का आयात मूल्य ₹ 70050 करोड़ है। निर्यात मूल्य ₹ 85025 करोड़ है। व्यापार सन्तुलन ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
= 85025 – 70050 = ₹ 14975 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹600 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹ 500 करोड़ है तो आयत की कीमत पता कीजिए।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
-600 = 500 – आयात – 600 – 500 = – आयात
-1100 = – आयात
आयात की कीमत = ₹ 1100 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹ 900 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹600 करोड़ है तो आयात की कीमत पता कीजिए।
उत्तर –
व्यापार बाकी = निर्यात की कीमत – आयात की कीमत
– 900 = 600 – आयात की कीमत
– 900 – 600 = – आयात की कीमत
– 1500 = – आयात की कीमत
आयात की कीमत = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 7.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹ 1000 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹ 600 करोड़ है तो आयात की कीमत पता कीजिए।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात की कीमत – आयात की कीमत
(-) 1000 = 600 – आयात की कीमत
– 1000 – 600 = – आयात की कीमत
– 1600 = – आयात की कीमत
आयात की कीमत = ₹ 1600 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
यदि व्यापार बाकी ₹ 800 करोड़ का घाटा दर्शाता है। निर्यात की कीमत ₹ 900 करोड़ है तो आयात की कीमत ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
– 800 = 900 – आयात
– 800 – 900 = – आयात
– 1700 = – आयात
आयात = ₹ 1700 करोड़ उत्तर

प्रश्न 9.
यदि व्यापार बाकी ₹ 1600 करोड़ का घाटा दर्शाता है। निर्यात की कीमत ₹ 1800 करोड़ है तो आयात की कीमत पता करें।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
– 1600 = 1800 – आयात
– 1600 – 1800 = – आयात
– 3400 = – आयात
आयात = ₹ 3400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
व्यापार शेष ₹ 1200 करोड़ का घाटा दर्शाता है। यदि निर्यात की कीमत ₹ 1100 करोड़ है तो आयात की कीमत पता करें।
उत्तर-
व्यापार शेष = निर्यात – आयात
– 1200 = 1100 – आयात
– 1200 – 1100 = – आयात
– 2300 = – आयात
आयात = ₹ 2300 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 11.
जब निर्यातों का मूल्य आयातों के मूल्य से ……….. होता है तो व्यापार शेष पक्ष का होगा।
उत्तर-
अधिक।

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प्रश्न 12.
जब निर्यातों का मूल्य आयातों के मूल्य से ………… होता है तो व्यापार शेष प्रतिकूल होगा।
उत्तर-
कम।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

PSEB 12th Class Economics सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बजट एक वित्तीय वर्ष दौरान सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
बजट के कोई दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर-

  • संसाधनों का पुनः वितरण
  • आय तथा धन का समान वितरण।

प्रश्न 3.
बजट के मुख्य अंश बताओ।
अथवा
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर बताओ।
उत्तर-
बजट के मुख्य दो अंश होते हैं-

  1. राजस्व बजट-इसमें आय प्राप्तियां तथा आय व्यय को शामिल किया जाता है, जोकि सरकार को भिन्न-भिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।
  2. पूंजीगत बजट-इसमें पूंजीगत प्राप्तियां तथा पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 4.
आय मदें क्या हैं ?
उत्तर-
आय मदों से अभिप्राय सरकार को प्राप्त होने वाली सब साधनों से आय से होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 5.
सरकारी आय के मुख्य अंश बताओ।
उत्तर-
सरकारी आय के मुख्य दो अंश होते हैं

  • कर प्राप्तियां
  • गैर-कर प्राप्तियां।

प्रश्न 6.
कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कर एक कानूनो भुगतान है जोकि एक देश के निवासी सरकार को अदा करते हैं ताकि सरकार संयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति कर सके।

प्रश्न 7.
कर आय को परिभाषित करो।
उत्तर-
कर आय- कर आय एक अनिवार्य भुगतान होता है, जोकि एक देश के लोग सरकार को अदा करते हैं।

प्रश्न 8.
गैर कर आप से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर कर आय-और-कर आय अनिवार्य भुगतान नहीं है। यह आय लोगों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान करके प्राप्त की जाती है। गैर-कर आय तथा लाभ का सीधा सम्बन्ध होता है, जैसे कि ब्याज द्वारा आय, लाभ तथा लाभांश।

प्रश्न 9.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जोकि बदली नहीं किया जा सकता। जितने मनुष्यों पर कर . लगाया जाता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 10.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर-अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जिसका भार बदली किया जा सकता है, जैसे कि बिक्री कर। यह कर दुकानदारों पर लगता है, परन्तु इसका भार ग्राहकों को सहन करना पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 11.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर की दो-दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-
(i) प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर जिन मनुष्यों पर लगता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है, जैसे कि

  • आय कर
  • निगम कर।

(ii) अप्रत्यक्ष कर-यह कर वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगता है तथा इस कर का भार बदली किया जा सकता है जैसे कि

  • बिक्री कर
  • उत्पादन कर।

प्रश्न 12.
प्रगतिशील कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रगतिशील कर वह कर है जिसमें आय बढ़ने के साथ कर की दर बढ़ जाती है।

प्रश्न 13.
प्रतिगामी कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रतिगामी कर वह कर है जिनमें आय बढ़ने के साथ कर की दर कम हो जाती है।

प्रश्न 14.
आनुपातिक कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आनुपातिक कर वह कर है जिसमें आय बढ़ने से कर की दर समान रहती है।

प्रश्न 15.
कर, पूंजी प्राप्ति क्यों नहीं है ?
उत्तर-
कर इसलिए पूंजी प्राप्ति नहीं है क्योंकि इससे न तो सरकार की देनदारी में वृद्धि होती है तथा न ही सरकार के भण्डार में कमी होती है।

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प्रश्न 16.
ऋण की वापसी को पूंजी प्राप्ति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति से अभिप्राय वह प्राप्तियां हैं जोकि देनदारी में वृद्धि करती हैं अथवा परिसम्पत्तियों में कमी करती हैं।

प्रश्न 17.
पूंजी प्राप्तियों में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्तियों में मुख्य तौर पर-

  1. सरकार द्वारा प्राप्त किए गए उधार
  2. सार्वजनिक उद्यमों अथवा परिसम्पत्तियों के विनिवेश द्वारा आय
  3. सरकार द्वारा जो ऋण दिया गया था, उस ऋण की वापसी इत्यादि पूंजी प्राप्तियां हैं।

प्रश्न 18.
उधार को पूंजी प्राप्तियां क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति वे प्राप्तियां होती हैं जोकि

  • सरकार की देनदारी में वृद्धि करती हैं
  • इनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है। इसलिए उधार को पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

प्रश्न 19.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था 1

प्रश्न 20.
राजस्व व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वह व्यय है जो सरकार की देनदारियों में कमी नहीं करते तथा न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं, जैसे कि ब्याज का भुगतान तथा आर्थिक सहायता कानून तथा व्यवस्था पर व्यय इत्यादि।

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प्रश्न 21.
पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय है, जो सरकार की देनदारियों में कमी करते हैं तथा सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं, जैसे कि सरकारी भवनों का निर्माण अथवा ऋण की वापसी, सड़कें तथा डैमों का निर्माण।

प्रश्न 22.
नियोजन व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजन व्यय-देश द्वारा तैयार की गई वार्षिक योजना अनुसार जो व्यय किया जाता है, उसको योजना व्यय कहा जाता है।

प्रश्न 23.
गैर-नियोजन व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर-नियोजन व्यय-सरकार द्वारा तैयार की गई वार्षिक योजना के बिना सरकार द्वारा जो अन्य व्यय किया जाता है उसको गैर-नियोजन व्यय कहा जाता है।

प्रश्न 24.
ब्याज के भुगतान को राजस्व व्यय क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
ब्याज के भुगतान को राजस्व व्यय कहा जाता है, क्योंकि इससे ब्याज देने वाले की देनदारी में कमी नहीं होती, क्योंकि मूलधन का भार उस पर रहता है।

प्रश्न 25.
सबसिडी को राजस्व व्यय क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
सरकार विभिन्न उद्यमियों तथा विभिन्न वर्ग के लोगों को सबसिडी के रूप में सहायता करती है। इसको राजस्व व्यय कहा जाता है।

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प्रश्न 26.
विकासवादी व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विकासवादी व्यय वह व्यय होता है, जिसका सम्बन्ध देश के आर्थिक विकास से होता है।

प्रश्न 27.
गैर-विकासशील व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
और-विकासशील व्यय वह व्यय है जो सरकार देश में गैर-विकासशील परन्तु अनिवार्य कार्यों पर व्यय करती है।

प्रश्न 28.
बजट घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार का कुल अनुमानित व्यय सरकार की कुल वार्षिक प्राप्तियों से अधिक है तो इसको बजट का घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 29.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार के कुल व्यय में से यदि राजस्व प्राप्तियों तथा ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियों को बगैर उधार के घटा दिया जाए तो शेष राशि को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) |
अथवा
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य देनदारियां

प्रश्न 30.
प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक घाटे से अभिप्राय है राजकोषीय घाटे में से यदि ब्याज भुगतान को घटा दिया जाए तो शेष राशि को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान|

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प्रश्न 31.
राजस्व घाटे तथा राजकोषीय घाटे में अंतर बताओ।
उत्तर

  • राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां
  • राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)

प्रश्न 32.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार का अनुमानित व्यय अधिक होता है तथा अनुमानित प्राप्तियां कम होती हैं तो ऐसे बजट को घाटे का बजट कहा जाता है।

प्रश्न 33.
सन्तुलित बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ऐसा बजट जिसमें सरकार का अनुमानित व्यय सरकार की अनुमानित आय के समान होता है तो ऐसे बजट को सन्तुलित बजट कहा जाता है।

प्रश्न 34.
वृद्धि के बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह बजट जिसमें सरकार की आय, सरकार के व्यय से अधिक होती है, ऐसे बजट को वृद्धि का बजट कहा जाता है।

प्रश्न 35.
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था दो तरह से की जाती है-

  • उधार (Borrowing)
  • नई करन्सी छापकर (Printing New Currency)।

प्रश्न 36.
जब आय में वृद्धि के कारण कर की दर में वृद्धि होती है तो इसको ………….. कहते हैं।
(क) आनुपातिक कर
(ख) प्रगतिशील कर
(ग) मूल्य वृद्धि कर
(घ) विशिष्ट कर।
उत्तर-
(ख) प्रगतिशील कर।

प्रश्न 37.
जब आय में परिवर्तन होने से कर की दल में तबदीली नहीं होती तो उस कर को ……….. कहते
(क) प्रगतिशील कर
(ख) आनुपातिक कर
(ग) विशिष्ट कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) आनुपातिक कर।

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प्रश्न 38.
जब वह कर जिस का भुगतान उस व्यक्ति को करना पड़ता है जिस पर यह कर लगाया जाता है तो इसको ………….. कहते हैं।
(क) अप्रत्यक्ष कर
(ख) प्रत्यक्ष कर
(ग) मूल्य वृद्धि कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 39.
पूँजीगत बजट किसको कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार की पूँजीगत प्राप्तियों और पूँजीगत व्यय के विवरण को पूँजीगत बजट कहते हैं।

प्रश्न 40.
राजस्व बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजस्व बजट वह बजट है जिसमें राजस्व प्राप्तियों तथा राजस्व व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 41.
निम्नलिखित में से कौन सा प्रत्यक्ष कर है?
(a) बिक्री कर
(b) वैट
(c) आय कर
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) आय कर।

प्रश्न 42.
निम्नलिखित में से कौन सा अप्रत्यक्ष कर है?
(a) सम्पत्ति कर
(b) आबकारी कर
(c) आय कर
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) आबकारी कर।

प्रश्न 43.
जब राजस्व व्यय, राजस्व प्राप्तियों से अधिक होता है तो इस स्थिति को ………………….. कहते हैं।
(a) राजकोषीय घाटा
(b) राजस्व घाटा
(c) राजस्व व्यय
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) राजस्व घाटा।

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प्रश्न 44.
यदि आयात की कीमत निर्यात की कीमत से अधिक हो तो देश का व्यापार बाकी ……….. होता
(a) प्रतिकूल
(b) सन्तुलित
(c) दोनों
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) प्रतिकूल।

प्रश्न 45.
जब कुल व्यय कुल प्राप्तियों से अधिक हो तो इस हालत को ………. कहते हैं।
(a) राजस्व घाटा
(b) राजकोषीय घाटा
(c) बजट घाटा
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(c) बजट घाटा।

प्रश्न 46.
मूल्य वृद्धि कर (VAT) से क्या अभिप्राय है।
उत्तर–
प्रत्येक फर्म द्वारा वस्तु और सेवा की लागत से अधिक निर्धारित कीमत अर्थात् मूल्य वृद्धि पर लगाए गए कर को मूल्य वृद्धि कर कहते हैं।

प्रश्न 47.
सरकारी बजट एक निजी वर्ष में सरकार की ………. आय और व्यय का विवरण है।
उत्तर-
अनुमानित।

प्रश्न 48.
इन में से कौन सा प्रत्यक्ष कर है ?
(a) आय कर
(b) बिक्री कर
(c) वैट
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) आय कर।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बजट एक वित्तीय वर्ष दौरान सरकार की अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है। भारत में सरकारी बजट फरवरी महीने के आखिरी दिन संसद् में पेश किया जाता है। यह बजट सरकार को 1 अप्रैल से 31 मार्च तक के समय की आय तथा व्यय का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
बजट के कोई दो उद्देश्य बताओ।
उत्तर-

  1. संसाधनों का पुनः वितरण-सरकारी बजट का मुख्य उद्देश्य संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है ताकि आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण में वृद्धि की जा सके।
  2. आय तथा धन का समान वितरण-सरकारी बजट देश में आय तथा धन का समान वितरण करने का स होता है।

प्रश्न 3.
बजट के मुख्य अंश बताओ।
अथवा
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर बताओ।
उत्तर-
बजट के मुख्य दो अंश होते हैं –

  • राजस्व बजट- इसमें आय प्राप्तियां तथा आय व्यय को शामिल किया जाता है, जोकि सरकार को भिन्न भिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है।
  • पूंजीगत बजट-इसमें पूंजीगत प्राप्तियां तथा पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।

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प्रश्न 4.
कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कर एक अनिवार्य भुगतान है जोकि एक देश के निवासी सरकार को अदा करते हैं ताकि सरकार संयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति कर सके। कर देकर किसी सेवा की मांग नहीं की जा सकती। कर का भुगतान कानूनी तौर पर अनिवार्य होता है। कर न देने वाले मनुष्य अथवा संस्था को सज़ा भी हो सकती है।

प्रश्न 5.
कर तथा गैर-कर आय को परिभाषित करो।
उत्तर-

  • कर आय-कर आय एक अनिवार्य भुगतान होता है, जोकि एक देश के लोग सरकार को अदा करते हैं। कर देने तथा लाभ का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता, जैसे कि आय कर, बिक्री कर इत्यादि।
  • गैर-कर आय-गैर-कर आय अनिवार्य भुगतान नहीं है। यह आय लोगों को वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान करके प्राप्त की जाती है। गैर-कर आय तथा लाभ का सीधा सम्बन्ध होता है, जैसे कि ब्याज द्वारा आय, लाभ तथा लाभांश।

प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जोकि बदली नहीं किया जा सकता। जितने मनुष्यों पर कर लगाया जाता है, उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है।
  2. अप्रत्यक्ष कर–अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है, जिसका भार बदली किया जा सकता है, जैसे कि बिक्री कर। यह कर दुकानदारों पर लगता है, परन्तु इसका भार ग्राहकों को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 7.
कर, पूंजी प्राप्ति क्यों नहीं है ?
उत्तर-
कर इसलिए पूंजी प्राप्ति नहीं है क्योंकि इससे न तो सरकार की देनदारी में वृद्धि होती है तथा न ही सरकार के भण्डार में कमी होती है। पंजी प्राप्ति से सरकार की देनदारी अधिक होती है तथा भण्डार में कमी होती है, परन्तु कर से पूंजी प्राप्ति की दो विशेषताएं लागू नहीं होती।

प्रश्न 8.
ऋण की वापसी को पूंजी प्राप्ति क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति से अभिप्राय वह प्राप्तियां हैं जोकि देनदारी में वृद्धि करती हैं अथवा परिसम्पत्तियों में कमी करती हैं। सरकार द्वारा दिया गया ऋण, सरकार की परिसम्पत्ति होती है। जब ऋण की वापसी होती है तो सरकारी परिसम्पत्तियों में कमी होती है। इसलिए इसको पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पूंजी प्राप्तियों में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्तियों में मुख्य तौर पर-

  1. सरकार द्वारा प्राप्त किए गए उधार
  2. सार्वजनिक उद्यमों अथवा परिसम्पत्तियों के विनिवेश द्वारा आय
  3. सरकार द्वारा जो ऋण दिया गया था, उस ऋण की वापसी इत्यादि पूंजी प्राप्तियां हैं। पूंजी प्राप्तियों से सरकार की देनदारी बढ़ती है अथवा सरकारी परिसम्पत्तियों में कमी होती है।

प्रश्न 10.
उधार को पूंजी प्राप्तियां क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
पूंजी प्राप्ति वे प्राप्तियां होती हैं जोकि-

  • सरकार की देनदारी में वृद्धि करती हैं
  • इनसे सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी होती है।

जब सरकार देश में से अथवा विदेशों में से उधार प्राप्त करती है तो इससे सरकार की देनदारी बढ़ जाती है क्योंकि प्राप्त किए उधार को ब्याज समेत करने की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है। इसलिए उधार को पूंजी प्राप्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 11.
सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
सार्वजनिक व्यय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है –
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प्रश्न 12.
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय की दो-दो उदाहरणे दीजिए।
उत्तर-

  • राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वह व्यय है जो सरकार की देनदारियों में कमी नहीं करते तथा न ही सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं। जैसे कि ब्याज का भुगतान तथा आर्थिक सहायता कानून तथा व्यवस्था पर व्यय इत्यादि।
  • पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय है, जो सरकार की देनदारियों में कमी करते हैं तथा सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि करते हैं। जैसे कि सरकारी भवनों का निर्माण अथवा ऋण की वापसी, सड़कें तथा डैमों का निर्माण।

प्रश्न 13.
बजट घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार वित्तीय वर्ष के लिए वार्षिक बजट का निर्माण करती है। इसमें वर्ष की अनुमानित प्राप्तियों तथा अनुमानित व्यय का विवरण होता है। यदि सरकार का कुल अनुमानित व्यय सरकार की कुल वार्षिक प्राप्तियों से अधिक है तो इसको बजट का घाटा कहा जाता है।

प्रश्न 14.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकार के कुल व्यय में से यदि राजस्व प्राप्तियों तथा ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियों को बगैर उधार के घटा दिया जाए तो शेष राशि को राजकोषीय घाटा कहा जाता है।
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)
अथवा
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य देनदारियां

प्रश्न 15.
प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक घाटे से अभिप्राय है राजकोषीय घाटे में से यदि ब्याज भुगतान को घटा दिया जाए तो शेष राशि को प्राथमिक घाटा कहते हैं।
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान

प्रश्न 16.
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे के बजट की वित्त व्यवस्था दो तरह से की जाती है-

  • उधार (Borrowing)-घाटे के बजट को पूरा करने के लिए सरकार बाज़ार में जनता, व्यापारिक बैंकों अथवा केन्द्रीय बैंक से उधार लेती है।
  • नई करेन्सी छापकर (Printing New Currency)-घाटे के बजट की पूर्ति यदि उधार द्वारा न हो तो सरकार नई करेन्सी छापकर घाटे के बजट की पूर्ति करती है।

प्रश्न 17.
सरकारी व्यय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सरकारी व्यय का अर्थ (Meaning of Public Expenditure)-सरकारी व्यय से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा किए गए आनुपातिक व्यय से होता है। सार्वजनिक व्यय द्वारा सरकार लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न करती है। इससे आर्थिक उतार-चढ़ाव पर नियन्त्रण किया जाता है। देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। इसलिए सरकारी व्यय राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा किए गए व्यय से होता है जोकि एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा व्यय किया जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बजट के कोई चार उद्देश्य बताओ।
उत्तर-
सरकार की वार्षिक वित्तीय अनुमानित आय तथा अनुमानित व्यय के विवरण को बजट कहा जाता है। सरकारी बजट के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. संसाधनों का पुन:वितरण-सरकारी बजट का उद्देश्य देश के संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है, आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण प्राप्त करना भी होता है।
  2. आय तथा धन का समान वितरण-बजट का उद्देश्य देश में आय तथा धन का समान वितरण करना होता है। इससे देश में अमीर तथा गरीब का अन्तर कम हो जाता है।
  3. आर्थिक स्थिरता-बजट का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता प्राप्त करना भी होता है। इससे मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल की अवस्थाओं को नियन्त्रण में किया जाता है।
  4. निर्धनता तथा बेरोज़गारी को दूर करना-बजट द्वारा निर्धनता तथा बेरोजगारी को घटाने के उद्देश्य की पूर्ति भी की जाती है। इससे निर्धनता की समस्या का हल किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में क्या अन्तर होता है ?
उत्तर-
राजस्व बजट तथा पूंजीगत बजट में अन्तर –

अंतर का आधार राजस्व बजट पूंजीगत बजट
1. प्राप्तियां राजस्व बजट में राजस्व प्राप्तियों का विवरण होता है। पूंजीगत बजट में पूंजीगत प्राप्तियों का विवरण होता है।
2. व्यय राजस्व बजट में राजस्व व्यय का विवरण होता है। पूंजीगत बजट में पूंजीगत व्यय का विवरण होता है।
3. देनदारियां राजस्व प्राप्तियों से सरकार पर कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती। कर द्वारा प्राप्त आय से कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती तथा राजस्व व्यय सरकार की देनदारी को कम नहीं करते। पूंजीगत प्राप्ति से सरकार पर देनदारी उत्पन्न होती है। उधार लेने से देनदारी उत्पन्न होती है तथा पूंजीगत व्यय सरकार की देनदारी को कम करते हैं।
4. परिसम्पत्तियां राजस्व प्राप्ति से सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी नहीं होती, राजस्व व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं होता है। पूंजीगत प्राप्तियों से सरकार की परिसम्पत्तियों में कमी नहीं होती, पूंजीगत व्यय से परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर में अन्तर –

अन्तरका आधार प्रत्यक्ष कर अप्रत्यक्ष कर
1. कर लाभ तथा कर भार प्रत्यक्ष कर जिस मनुष्य पर लगाया जाता है, कर का भार भी उसी मनुष्य को सहन करना पड़ता है, जैसे कि आयकर। अप्रत्यक्ष कर एक मनुष्य पर लगाया जाता है, कर का भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है, जैसे कि बिक्री कर।
2. कर बदली प्रत्यक्ष कर की बदली (shifting) नहीं की जा सकती। अप्रत्यक्ष कर की बदली (shifting) की जा सकती है।
3. कर की दर प्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर प्रगतिशील होते हैं। आय में वृद्धि होने से कर की दर बढ़ती जाती है। अप्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर आनुपातिक होते हैं। आय अधिक अथवा कम होने की स्थिति में कर की दर समान रहती है।
4. वास्तविक भार प्रत्यक्ष कर का वास्तविक भार अमीर लोगों से अधिक होता है। अप्रत्यक्ष कर का वास्तविक भार गरीब लोगों से अधिक होता है।

प्रश्न 4.
प्रगतिशील कर, आनुपातिक कर तथा प्रतिगामी कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. प्रगतिशील कर-प्रगतिशील कर वह कर होता है, जिसमें आय के बढ़ने से कर की दर बढ़ती जाती है। इस कर का भार गरीबों पर बहुत कम तथा अमीर लोगों पर अधिक होता है। प्रत्यक्ष कर साधारण तौर पर प्रगतिशील कर होते हैं।
  2. आनुपातिक कर-आनुपातिक कर वह कर होता है, जिसमें आय के बढ़ने अथवा घटने से कर की दर समान रहती है, जैसे कि बिक्री कर में कर की दर समान होती है। इस कर का वास्तविक भार गरीब लोगों पर अधिक होता है।
  3. प्रतिगामी कर-प्रतिगामी कर वह कर है जिसमें आय के बढ़ने से कर की दर घटती जाती है। ऐसे कर का भार अमीर लोगों पर कम तथा निर्धन लोगों पर अधिक होता है। इन करों को एक चार्ट की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है।

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प्रश्न 5.
राजस्व प्राप्तियां तथा पूंजीगत प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? इनमें अन्तर स्पष्ट करो।
अथवा
किस आधार पर राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों के बीच सरकारी बजट में अन्तर किया जा सकता है ?
उत्तर-
1. राजस्व प्राप्तियां-राजस्व प्राप्तियां वे प्राप्तियां होती हैं, जिनसे सरकार की देनदारियाँ उत्पन्न नहीं होती तथा न ही परिसम्पत्तियों (Assets) में कमी होती है। इसके दो अंश हैं-

  • कर प्राप्तियां जैसे कि आय कर, निगम कर, बिक्री कर इत्यादि
  • गैर-कर प्राप्तियां जैसे कि ब्याज, लाभ, लाभांश तथा विदेशी सहायता इत्यादि।

2. पूंजीगत प्राप्तियां-पूंजीगत प्राप्तियां वे प्राप्तियां होती हैं, जिनसे सरकार की देनदारियां उत्पन्न होती हैं तथा परिसम्पत्तियों में कमी होती है, जैसे कि उधार (Borrowings) तथा ऋण की प्राप्ति, विनिवेश द्वारा प्राप्तियां इत्यादि। राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों में अन्तर राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों में मुख्य तौर पर यह अन्तर होता है कि राजस्व प्राप्तियों से सरकार की देनदारियां उत्पन्न नहीं होतीं। सरकार की परिसम्पत्तियों में भी कोई कमी नहीं होती। दूसरी ओर पूंजीगत प्राप्तियों से सरकार की देनदारियों में वृद्धि होती है तथा परिसम्पत्तियों में कमी हो जाती है।

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प्रश्न 6.
राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय से क्या अभिप्राय है ? इनमें अन्तर को स्पष्ट करो।
अथवा
किस आधार पर राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय के बीच सरकारी बजट में अन्तर किया जा सकता है ?
उत्तर-

  1. राजस्व व्यय-राजस्व व्यय वे व्यय होता है, जिस द्वारा न तो देनदारियों में कमी होती है तथा न ही परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। उदाहरणस्वरूप सरकार का अनुशासन पर व्यय, कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने पर व्यय, सेना पर व्यय।
  2. पूंजीगत व्यय-पूंजीगत व्यय वह व्यय होता है, जिस द्वारा सरकार की देनदारियों में कमी होती है तथा परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। उदाहरणस्वरूप, सड़कें, नहरें, डैम, बिजली इत्यादि का निर्माण अथवा सार्वजनिक ऋण की वापसी। राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय में अन्तर-राजस्व व्यय तथा पूंजीगत व्यय में मुख्य अन्तर यह होता है कि राजस्व व्यय द्वारा देनदारियों में कमी नहीं होती तथा न ही परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है। दूसरी ओर पूंजीगत व्यय में सरकार की देनदारियों में कमी होती है तथा परिसम्पत्तियों का निर्माण होता है।

प्रश्न 7.
विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में अन्तर बताओ।
उत्तर-

  • विकासशील व्यय-विकासशील व्यय सरकार का वह व्यय होता है, जिस द्वारा देश का आर्थिक तथा सामाजिक विकास होता है, जैसे कि कृषि, उद्योगों, सेहत, शिक्षा, ग्रामीण विकास तथा भलाई इत्यादि पर किए गए व्यय को विकासशील व्यय कहा जाता है। विकासशील व्यय में अन्य मदें रेलें, डाकखाने, तार तथा संचार विभाग इत्यादि को भी शामिल किया जाता है।
  • गैर-विकासशील व्यय-गैर-विकासशील व्यय में सरकार द्वारा सेवाओं पर किए गए व्यय को शामिल किया जाता है, जैसे कि पुलिस, सुरक्षा, न्यायपालिका, अनुशासन, सहायता, कर एकत्रित करने के व्यय इत्यादि को शामिल किया जाता है। विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में अन्तर-विकासशील तथा गैर-विकासशील व्यय में मुख्य अन्तर यह है कि विकासशील व्यय से राष्ट्रीय आय तथा उत्पादन में प्रत्यक्ष तौर पर वृद्धि होती है। इससे सरकार की परिसम्पत्तियों में वृद्धि होती है। दूसरी ओर गैर-विकासशील व्यय सरकार द्वारा साधारण सेवाएं प्रदान करने पर व्यय किया जाता है। इस व्यय से राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि प्रत्यक्ष तौर पर नहीं होती। यह केवल विकास की वृद्धि में सहायक तत्त्व होता है।

प्रश्न 8.
राजकोषीय घाटे का अर्थ तथा महत्त्व स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजकोषीय घाटा किसी देश में कुल व्यय में से राजस्व प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों (बगैर उधार के) के योग को घटाने से प्राप्त होता है।
Fiscal Deficit = Total Expenditure – (Revenue Receipts + Capital Receipts excluding Borrowings)
इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह है कि राजकोषीय घाटे में हम उधार को लेखे-जोखे में नहीं लेते जो कि पूंजीगत प्राप्तियों का हिस्सा होता है। सरकार की कुल प्राप्तियों में राजस्व प्राप्तियों तथा गैर उधार पूंजीगत प्राप्तियों को शामिल किया जाता है। गैर उधार पूंजीगत प्राप्तियों में ऋण की वापसी तथा विनिवेश से आय को जोड़ते हैं। इसलिए हम यह कह सकते हैं कि
Fiscal Deficit = Borrowings Requirements of the Government
महत्त्व-राजकोषीय घाटा एक देश की सरकार की वित्तीय वर्ष में उधार आवश्यकताओं को स्पष्ट करता है। (Significance or Implications)

प्रश्न 9.
राजस्व घाटे से क्या अभिप्राय है ? राजस्व घाटे के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
राजस्व घाटे से अभिप्राय सरकार के कुल राजस्व व्यय तथा कुल राजस्व प्राप्तियों का अन्तर होता है।
Revenue Deficit =Total Revenue Expenditure – Total Revenue Receipts
उदाहरणस्वरूप भारत सरकार के वार्षिक बजट 2005-06 में कुल राजस्व व्यय ₹ 446512 करोड़ तथा कुल राजस्व प्राप्तियां ₹ 351200

करोड़ थीं। इस प्रकार राजस्व घाटा ₹ 95312 करोड़ हैं। महत्त्व (Significance or Implications) –

  • बचतों में कमी-राजस्व घाटे सरकार की बचतों में कमी को प्रकट करता है। इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है अथवा भण्डारों की बिक्री करनी पड़ती है।
  • मुद्रा स्फीति-सरकार द्वारा प्राप्त किया उधार उपभोग व्यय के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसलिए देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रश्न 10. योजना खर्च और गैर-योजना खर्च में अन्तर स्पष्ट करें।

उत्तर-योजना खर्च (Plan Expenditure)-यह खर्च योजना आयोग की स्वीकृति से सरकार व्यय करती है। योजना आयोग, योजना काल के लिए खर्च करने के निश्चित निर्देश जारी करता है। इसमें केन्द्र सरकार की योजनाओं का विवरण होता है, राज्य तथा केन्द्र प्रशासित क्षेत्रों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता का विवरण भी होता है।

गैर-योजना खर्च (Non Plan Expenditure)-और-योजना खर्च वह व्यय है जोकि योजना के व्यय के बिना कार्य की पूर्ति करता है गैर-योजना खर्च, योजना खर्च के बगैर शेष सभी प्रकार के खर्च होते हैं।

प्रश्न 11.
घाटे की वित्त पूर्ति कैसे की जाती है ?
उत्तर-
घाटे की वित्त पूर्ति कैसे की जाती है। इसके मुख्य ढंग इस प्रकार हैं-

  1. मुद्रा विस्तार (Monetary Expansion)-इस ढंग अनुसार सरकार घाटे (Deficit) को पूरा करने के लिए घाटे की राशि के समान नए नोट छाप लेती है। इस विधि में देश की सरकार खज़ाना बिल केन्द्रीय बैंक को देकर उसके बदले में नकद मुद्रा प्राप्त कर लेती है। इस प्रकार घाटे को पूरा किया जा सकता है।
  2. जनता से उधार (Borrowing from the Public)-घाटे की वित्त पूर्ति का दूसरा महत्त्वपूर्ण ढंग सरकार लोगों से उधार प्राप्त कर लेती है। बाज़ार में सरकार लोगों को उधार देने के लिए कहती है तो लोग सरकार की प्रतिभूतियां ब्रांड इत्यादि खरीद लेते हैं। इनको बाज़ार ऋण कहा जाता है।

प्रश्न 12.
कर की परिभाषा दें। कर की विभिन्न किस्में बताएँ।
उत्तर-
कर का अर्थ-कर कानूनी तौर पर लाज़मी भुगतान है जो कि देश की सरकार द्वारा लोगों की आय अथवा जायदाद पर लगाया जाता है। यह कंपनियों के उत्पादन पर भी लगता है, परन्तु इसके बदले में लाभ प्रदान करना अनिवार्य नहीं होता।

कर की किस्में (Types of Taxes)
1. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर-

  • प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जो कि जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं कर का भार भी उन व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है। यह कर और व्यक्तियों अथवा संस्थाओं पर बदली नहीं किये जा सकते।
  • अप्रत्यक्ष कर वह कर हैं जो एक व्यक्ति पर लगाए जाते हैं, परन्तु उनका भार किसी और व्यक्ति अथवा व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है।

2. प्रगतिशील, आनुपातिक और प्रतिगामी कर-

  • प्रगतिशील कर वह कर है जिनमें आय में वृद्धि से कर की दर में वृद्धि होती है।
  • आनुपातिक कर वह कर है जिन में आय में वृद्धि होने से कर की दर में कोई वृद्धि नहीं होती अथवा कर की दर सामान्य रहती है।
  • प्रतिगामी कर वह कर है जिन में आय में वृद्धि से कर की दर कम होने लगती है।

3. मूल्य वृद्धि और वज़न अनुसार कर –

  • मूल्य वृद्धि कर वह कर है जिन में वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से, मूल्य वृद्धि की राशि पर लगाए जाते हैं।
  • वज़न अनुसार कर वह कर है जो कि वस्तुओं के नाप-तोल पर लगाए जाते हैं।

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प्रश्न 13.
राजस्व प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है? राजस्व प्राप्तियों के अंशों की व्याख्या करें।
उत्तर-
बजट प्राप्तियों का अर्थ (Meaning of Budget Receipts)-किसी वित्तीय वर्ष सरकार को प्राप्त होने वाली अनुमानित आय जोकि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, उसे बजट प्राप्तियां कहा जाता है। बजट प्राप्तियों के दो स्रोत हैं-
(1) राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)-राजस्व प्राप्तियों की दो विशेषताएं होती हैं

  • इन प्राप्तियों से सरकार की कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती।
  • इन प्राप्तियों से सरकारी भण्डारों में कोई कमी उत्पन्न नहीं होती। राजस्व प्राप्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।

1. कर प्राप्तियां (Tax Receipts)-सरकार द्वारा लगाए गए करों द्वारा जो आय प्राप्त होती है, उसको कर प्राप्तियां कहा जाता है। कर (Tax) एक अनिवार्य भुगतान होता है जोकि एक देश के निवासी बिना किसी प्रतिफल की आशा से अदा करते हैं। कर की विशेषताएं हैं-

  • यह अनिवार्य भुगतान होता है।
  • कर तथा लाभ में कोई-सीधा सम्बन्ध नहीं होता।
  • कर लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है।
  • कर के पीछे कानून व्यवस्था होती है।
  • कर देना, व्यक्ति की निजी ज़िम्मेदारी होती है।

2. गैर कर प्राप्तियां (Non Tax Receipts) यह सरकार की वह प्राप्तियां हैं जो गैर कर साधनों से होती हैं। इन प्राप्तियों के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं।

  • लाभ तथा लाभांश ।
  • फीस तथा जुर्माने।
  • विशेष कर
  • ब्याज
  • ग्रांट और तोहफे।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न माम। (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सरकारी बजट से क्या अभिप्राय है ? बजट के मुख्य उद्देश्य तथा अंश बताओ। (What is Government Budget ? Explain its main objectives and components.)
उत्तर-
सरकारी बजट का अर्थ (Meaning of Government Budget)-सरकारी बजट वार्षिक आय तथा व्यय का विवरण है जो आने वाले वर्ष के अनुमानों को प्रकट करता है। (“The budget is an annual statement of the estimated receipts and expenditures of the government over the fiscal year.”)
भारत में वार्षिक बजट 1 अप्रैल से अगले वर्ष 31 मार्च तक बनाया जाता है। बजट में पिछले वर्ष की प्राप्तियों का विवरण भी होता है, परन्तु आने वाले वर्ष में रखे गए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए साधनों के प्रयोग सम्बन्धी नीति का निर्माण किया जाता है। इसमें आगामी वर्ष की सम्भावित आय तथा व्यय का विवरण होता है। बजट की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • सरकारी बजट सरकार की आय तथा व्यय का विवरण होता है।
  • बजट आने वाले वर्ष के अनुमानों से सम्बन्धित होता है।
  • सरकार कुछ उद्देश्यों को सामने रखकर बजट का निर्माण करती है।
  • अनुमानित आय तथा व्यय को प्रकट किया जाता है।
  • सरकारी बजट को सरकार की स्वीकृति लेनी अनिवार्य होती है। .

सरकारी बजट के उद्देश्य (Objectives of Government Budget)-सरकार बजट का निर्माण करते समय कुछ उद्देश्यों को ध्यान में रखती है। बजट के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखितानुसार हैं-
1. संसाधनों का पुनःवितरण (Reallocation of Resources)-सरकारी बजट का उद्देश्य देश के संसाधनों का वितरण इस प्रकार करने से होता है, जिससे आर्थिक लाभ के साथ-साथ सामाजिक कल्याण भी प्राप्त किया जा सके। इसलिए आर्थिक विकास के उद्देश्य को पूरा करने के साथ-साथ सरकार यह भी ध्यान रखती है कि लोगों के जीवन स्तर में वृद्धि हो।

2. आय तथा धन का समान वितरण (Equal distribution of Income and Wealth)-बजट द्वारा सरकार, आय तथा धन का समान वितरण का प्रयत्न करती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अमीर लोगों पर अधिक कर लगाए जाते हैं तथा गरीब लोगों को सहायता प्रदान करके उनकी आय में वृद्धि करने के प्रयत्न लिए जाते हैं। भारत में आर्थिक नियोजन का यह मुख्य उद्देश्य रहा है।

3. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability)-सरकार व्यापारिक चक्रों (Trade Cycles) को नियन्त्रण करने का प्रयत्न करती है। अर्थव्यवस्था में मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल की अवस्थाओं पर नियन्त्रण करके असन्तुलन स्थापित करने के प्रयत्न किए जाते हैं। बजट में करों की दर में परिवर्तन इस प्रकार किया जाता है, जिससे देश में आर्थिक स्थिरता स्थापित की जा सके।

4.निर्धनता तथा बेरोज़गारी को दूर करना (Eradication of Poverty and Unemployment)-भारत जैसे देशों में निर्धनता तथा बेरोज़गारी नज़र आती है। इसका मुख्य कारण देश में तीव्रता से बढ़ रही जनसंख्या होती है। बजट में ऐसी नीतियों का निर्माण किया जाता है, जिससे निर्धनता तथा बेरोज़गारी की समस्या का हल किया जा सके।

5. सार्वजनिक उद्यमों का प्रबन्ध (Management of Public Entreprises) सरकार ऐसे उद्यम आरम्भ करती है, जिनमें प्राकृतिक एकाधिकारी (Natural Monopoly) हो। प्राकृतिक एकाधिकारी में बड़े पैमाने पर कार्य किया जाता है। इससे पैमाने की बचतें प्राप्त होती हैं। इससे उत्पादन लागत कम आती है। इसीलिए सरकार रेलवे, बिजली, डाकखाने इत्यादि उद्योगों में निवेश करके लोगों की सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न भी करती है।

बजट का प्रभाव (Impact of the Budget)-अर्थव्यवस्था के तीन स्तरों (Levels) पर बजट का प्रभाव पड़ता है-
1. कुल राजकोषीय अनुशासन (Aggregate Fiscal Discipline)—सरकार को व्यय का विवरण तैयार करते समय अपनी आय को ध्यान में रखना चाहिए। यदि सरकार अपनी आय से अधिक व्यय करती है तो घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाएगी। इससे देश में कीमत स्तर तीव्रता से बढ़ जाता है।

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2. संसाधनों का वितरण (Allocation of Resources)-सामाजिक प्राथमिकताओं को ध्यान में रखकर __संसाधनों का वितरण करना चाहिए। बजट का प्रभाव संसाधनों के वितरण के स्तर पर भी डालता है।

3. सरकारी सेवाएँ (Government Services)-सरकारी सेवाओं द्वारा भी अर्थव्यवस्था को बजट प्रभावित करता है। सरकार द्वारा प्रभावी तथा कुशल नीति का निर्माण करना चाहिए, जिस द्वारा सरकारी सेवाएं अच्छी तरह प्रदान की जा सकें तथा अर्थव्यवस्था में सामाजिक भलाई में वृद्धि हो। इस उद्देश्य के लिए सड़कें, नहरें, शिक्षा, सेहत सुविधाएं अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती हैं।

बजट के अंश (Components of the Budget) बजट को दो भागों में बांटा जा सकता है –
1. राजस्व बजट (Revenue Budget)
2. पूंजीगत बजट (Capital Budget)

1. राजस्व बजट (Revenue Budget)-राजस्व जट में प्राप्तियों तथा आय, व्यय का विवरण होता है। यह आय सरकार को विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है तथा उस आय के व्यय का विवरण होता है।
2. पूंजीगत बजट (Capital Budget)-पूंजीगत बजट में पूंजीगत प्राप्तियों तथा दीर्घकाल के व्यय का विवरण होता है। इस प्रकार बजट की रचना के दो अंश होते हैं
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प्रश्न 2.
बजट प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? सरकारी प्राप्तियों को आय प्राप्तियों तथा पूँजीगत प्राप्तियों में किस आधार तथा वर्गों में वितरण किया जाता है ?
(What do you understand Budget Receipts ? What is the basis of classifying Government Receipts into Revenue Receipts and Capital Receipts ?)
अथवा
आय प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों से क्या अभिप्राय है ? आय प्राप्तियों तथा पूंजीगत प्राप्तियों के अंश बताओ।
(What are Revenue Receipts and Capital Receipts ? Explain the components of Revenue Receipts and Capital Receipts.)
उत्तर-
बजट प्राप्तियों का अर्थ (Meaning of Budget Receipts)-किसी वित्तीय वर्ष सरकार को प्राप्त होने वाली अनुमानित आय जोकि विभिन्न स्रोतों से प्राप्त होती है, उसे बजट प्राप्तियां कहा जाता है। बजट प्राप्तियां दो प्रकार की होती हैं-
1. राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)
2. पूंजीगत प्राप्तियां (Capital Receipts)
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राजस्व प्राप्तियां (Revenue Receipts)-राजस्व प्राप्तियों की दो विशेषताएं होती हैं

  • इन प्राप्तियों से सरकार की कोई देनदारी उत्पन्न नहीं होती।
  • इन प्राप्तियों से सरकारी भण्डारों में कोई कमी उत्पन्न नहीं होती।

राजस्व प्राप्तियों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1. कर प्राप्तियां (Tax Receipts)—सरकार द्वारा लगाए गए करों द्वारा जो आय प्राप्त होती है, उसको कर प्राप्तियां कहा जाता है। कर (Tax) एक अनिवार्य भुगतान होता है जोकि एक देश के निवासी बिना किसी प्रतिफल की आशा से अदा करते हैं।

कर की विशेषताएं हैं –

  • यह अनिवार्य भुगतान होता है।
  • कर तथा लाभ में कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता।
  • कर लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है।
  • कर के पीछे कानूनी व्यवस्था होती है।
  • कर देना, व्यक्ति की निजी ज़िम्मेदारी होती है।

कर की किस्में (Types of Taxes)
(a) प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर (Direct and Indirect Taxes)

  • प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह कर है जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, कर का भार भी उन मनुष्यों को ही सहन करना पड़ता है जैसे कि आय कर, जायदाद कर इत्यादि।
  • अप्रत्यक्ष कर-अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाए तो एक मनुष्य पर जाते हैं, परन्तु इनका भार पूर्ण अथवा आंशिक तौर पर दूसरे मनुष्यों पर पाया जा सकता है।

(b) प्रगतिशील, आनुपातिक तथा प्रतिगामी कर (Progressive, Proportional and Regressive Tax)

  • प्रगतिशील कर-प्रगतिशील कर वह कर है, जिनमें आय के बढ़ने से कर की दर बढ़ती जाती है, जैसे कि एक लाख रुपये आय वाले को 5% तथा 2 लाख आय वाले व्यक्ति को 10% कर देना पड़े तो यह प्रगतिशील कर है।
  • आनुपातिक कर में आय के बढ़ने से कर की दर समान रहती है।
  • प्रतिगामी कर में आय के बढ़ने से कर की दर घटती जाती है।

(c) मूल्य वृद्धि तथा वज़न अनुसार कर (Advalorem and Specific Tax)

  • मूल्य वृद्धि कर (Value Added Tax)—वह कर है जोकि वस्तु के मूल्य में वृद्धि होने से मूल्य वृद्धि की राशि पर लगाए जाते हैं।
  • वज़न अनुसार कर-वस्तुओं के नाप-तोल पर लगते हैं।

2. गैर-कर राजस्व प्राप्तियां (Non Tax Revenue Receipts)-यह सरकार की आय की वे प्राप्तियां हैं जोकि गैर-कर साधनों से होती हैं, इन प्राप्तियों के मुख्य स्रोत इस प्रकार हैं-
(i) लाभ तथा लाभांश (Profits and Dividends) सरकार ने बहुत से उद्यम जैसे कि बैंक, बीमा कम्पनियां, रेलवे, बिजली पूर्ति इत्यादि स्थापित किए हैं। इनको सार्वजनिक उद्यम कहा जाता है। सरकार को उद्यमों से लाभ प्राप्त होता है। सरकार द्वारा किए गए निवेश पर लाभांश भी मिलता है।

(ii) फ़ीस तथा जुर्माने (Fees and Fines)-सरकार द्वारा प्रदान की सेवाओं के बदले में फ़ीस प्राप्त की जाती है, जैसे कि स्कूलों, अस्पतालों, कचहरी इत्यादि में सुविधा देने के लिए सरकार फ़ीस प्राप्त करती है। कानून भंग करने वाले लोगों पर जुर्माने लगाए जाते हैं, जोकि सरकार की आय का स्रोत होता है।

(iii) विशेष कर (Special Assessment)—सरकार द्वारा सड़कों, पार्क इत्यादि सुविधाएं प्रदान करने से इस क्षेत्र की जायदाद का मूल्य बढ़ जाता है तो सरकार विकास व्यय कर के एवज़ में विशेष कर लगाती है तो इसको विशेष कर कहा जाता है, जोकि सरकार की आय का स्रोत होती है।

(iv) ब्याज (Interest)-सरकार द्वारा दिए ऋण का ब्याज सरकार की आय का महत्त्वपूर्ण स्रोत होता है।

(v) ग्रान्ट तथा उपहार (Grants and Gifts) सरकार विदेशों से सहायता ग्रान्ट तथा उपहार प्राप्त करती है जोकि गैर कर राजस्व प्राप्ति होती है।

3. पूंजी प्राप्तियां (Capital Receipts)-पूँजी प्राप्तियों से

(i) सरकार की देनदारी उत्पन्न होती है।
(ii) सरकार की परिसम्पत्तियों (भण्डारों) में कमी होती है।

प्रमुख पूंजी प्राप्तियां इस प्रकार हैं –

  • छोटी बचतें (Small Savings)-सरकार डाकखानों में छोटी बचतें, G.P.F., N.S.S., किसान विकास पत्र इत्यादि के रूप में पंजी प्राप्त करती है।
  • उधार (Borrowings)-सरकार देश से उधार लेती है तथा विदेशी सरकारों अथवा अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं I.M.F., विश्व बैंक इत्यादि से उधार प्राप्त करती है। ऐसा राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए किया जाता है।
  • ऋण की वसूली (Recovery of Loans) केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों, सार्वजनिक उद्यमों तथा विदेशों को दिए गए ऋण की वसूली द्वारा भी पूँजी प्राप्ति का स्रोत है।
  • विनिवेश (Dis-Investment) सार्वजनिक उद्यम जिनमें सरकार को हानि होती है उनके बिक्री द्वारा प्राप्त होने वाली आय को विनिवेश कहा जाता है। यह भी पूंजी प्राप्ति का एक स्रोत है।

प्रश्न 3.
सरकारी व्यय से क्या अभिप्राय है ? सार्वजनिक व्यय का वर्गीकरण स्पष्ट करो। (What is meant by Government Expenditure. Explain its Classification.)
अथवा
राजस्व तथा पूंजीगत व्यय, योजना तथा गैर-योजना व्यय, विकास तथा गैर-विकास व्यय में अन्तर स्पष्ट करो। (Distinguish between Revenue and Capital Expenditure, Plan and Non-Plan Expenditure, Development and non-development expenditure.)
उत्तर-
सरकारी व्यय का अर्थ (Meaning of Public Expenditure)-सरकारी व्यय से अभिप्राय एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा किए गए आनुपातिक व्यय से होता है। सार्वजनिक व्यय द्वारा सरकार लोगों की आर्थिक तथा सामाजिक भलाई में वृद्धि करने का प्रयत्न करती है। इससे आर्थिक उतार-चढ़ाव पर नियन्त्रण किया जाता है। देश के आर्थिक विकास में तेजी लाने के उद्देश्य की पूर्ति की जाती है। इसलिए सरकारी व्यय राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों को ध्यान में रखकर सरकार द्वारा किए गए व्यय से होता है जो कि एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा व्यय किया जाता है।

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सरकारी व्यय का वर्गीकरण (Classification of Government Expenditure)-सरकारी व्यय का वर्गीकरण तीन भागों में किया जाता है
1. राजस्व तथा पूंजीगत व्यय (Revenue and Capital Expenditure)
2. योजना तथा गैर-योजना व्यय (Plan and Non-plan Expenditure)
3. विकासवादी तथा गैर विकासवादी व्यय (Development and Non-development Expenditure)

1. राजस्व तथा पूंजीगत व्यय (Revenue and Capital Expenditure)
(a) राजस्व व्यय (Revenue Expenditure)-राजस्व व्यय की दो विशेषताएं होती हैं

  • यह व्यय सरकार के लिए परिसम्पत्तियों का निर्माण नहीं करते
  • इस प्रकार के व्यय से सरकार की देनदारी में कमी नहीं होती। राजस्व व्यय सरकार की उपभोगी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। यह व्यय सरकारी विभागों के संचालन, कर्मचारियों के वेतन, पैंशन इत्यादि पर व्यय किया जाता है

(b) पूँजीगत व्यय (Capital Expenditure)-पूंजीगत व्यय से

  • सरकार परिसम्पत्तियों का निर्माण करती है।
  • यह सरकार की देनदारी में कमी करते हैं। ऐसे व्यय से अर्थव्यवस्था के भण्डार में वृद्धि होती है तथा सरकार की देनदारियों में कमी करता है। सरकार द्वारा वित्तीय वर्ष में किए गए व्यय जिसके द्वारा नहरें, सड़कें, रेलों इत्यादि का निर्माण होता है, उनको पूंजीगत व्यय कहा जाता है।

2. योजना तथा गैर-योजना व्यय (Plan and Non-Plan Expenditure)-भारत में पंचवर्षीय योजनाएँ चलाई जाती हैं। ग्यारहवीं योजना 1 अप्रैल, 2007 से आरम्भ होकर 31 मार्च, 2012 तक चलीं। अब बारहवीं योजना चल रही है जो 31 मार्च, 2017 को पूरी होगी। प्रत्येक वर्ष योजना का निर्माण करते समय कुछ व्यय का अनुमान लगाया जाता है, जबकि कुछ व्यय गैर-नियोजित होता है।

(a) योजना व्यय (Plan Expenditure)-योजना का निर्माण करते समय रखे गए उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक वर्ष में सरकार द्वारा जो व्यय बजट में निर्धारित किया जाता है, उसको योजना व्यय कहा जाता है। वर्तमान नियोजन अधीन विकासवादी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जो व्यय सम्बन्धी सुझाव पेश किए जाते हैं, उनको योजना व्यय कहा जाता है। इसमें उपभोग तथा निवेश सम्बन्धी व्यय शामिल होते हैं, जिनको विभिन्न क्षेत्रों, कृषि, उद्योग, यातायात इत्यादि का विकास किया जाता है।

(b) गैर-योजना व्यय (Non-Plan Expenditure)-और-योजना व्यय वह व्यय है, जोकि योजना में व्यय के बिना अन्य कार्य की पूर्ति पर व्यय किया जाता है। गैर-योजना व्यय, योजना व्यय के बगैर शेष सभी व्यय होते हैं। (Non-Plan Expenditure is the expenditure other than the plan expenditure) सरकार को कुछ व्यय सुरक्षा, कानून तथा व्यवस्था अनुदान इत्यादि के रूप में करना पड़ता है, जिससे जनता को सामाजिक सुविधाएं प्रदान की जा सकें। ऐसे व्ययों को गैर-योजना व्यय कहा जाता है।

3. विकास तथा गैर-विकासशील व्यय (Development and Non-Development Expenditure)-
(a) विकास व्यय (Development Expenditure)-देश के आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए सरकार द्वारा किए गए व्यय को विकास व्यय कहा जाता है। इसमें ग्रामीण, शहरी, कृषि, उद्योगों, सड़कें, नहरें, बिजली, पानी, सेहत सुविधाएँ तथा शिक्षा इत्यादि पर किया गया व्यय शामिल होता है। इसमें रेलें, डाकखानों तथा व्यापारिक उद्यमों के विकास के लिए किया गया व्यय भी शामिल किया जाता है।

(b) गैर-विकासशील व्यय (Non-Development Expenditure)-इसमें सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली साधारण सुविधाओं पर व्यय शामिल होता है, जैसे कि प्रशासन, सेना, पुलिस, ऋण का ब्याज़, बुढ़ापा पेंशन इत्यादि पर किया जाने वाला व्यय शामिल होता है। करों को एकत्रित करने पर व्यय भी गैर
विकासशील व्यय होता है।

सार्वजनिक व्यय का महत्त्व (Importance of Public Expenditure)-वर्तमान में सार्वजनिक व्यय का महत्त्व बढ़ गया है, क्योंकि –

  • सरकार के कार्यों में निरन्तर वृद्धि हो रही है। प्रत्येक राज्य कल्याण के कार्यों में भाग लेता है, इसलिए सार्वजनिक व्यय महत्त्वपूर्ण हो गया है।
  • आर्थिक विकास की वृद्धि के लिए भी सरकारी व्यय महत्त्वपूर्ण होता है। इससे आर्थिक विकास की दर बढ़ जाती है।
  • आर्थिक भलाई के कार्यों में वृद्धि होने के कारण सरकार सड़कें, बिजली, बुढ़ापा पेंशन, सेहत सुविधाएं प्रदान करती हैं।
  • व्यापारिक चक्रों को नियन्त्रण करने के लिए भी सरकारी व्यय का योगदान अधिक है।
  • आय तथा धन के समान वितरण के उद्देश्य की पूर्ति भी सरकारी व्यय से की जाती है।

प्रश्न 4.
सन्तुलित, वृद्धि तथा घाटे के बजट को स्पष्ट करो। इनके गुण तथा अवगुण बताओ। (Explain balanced, deficit or deficit Budgets. Give their relative merits and demerits.)
अथवा
सन्तुलित तथा असन्तुलित बजट में तुलना करो। इनके गुण तथा अवगुण बताओ। (Compare a balanced and unbalanced Budget. Give their merits and demerits.)
उत्तर-
बजट सरकार की वार्षिक अनुमानित प्राप्तियों तथा व्यय का विवरण होता है। (Budget is defined as an annual statement of the estimated receipts and expenditure of the government during a fiscal year)

बजट तीन प्रकार का होता है।

Estimates
1. Revenue = Expenditure Balanced Budget
2. Revenue > Expenditure Surplus Budget
3. Revenue < Expenditure Deficit Budget

1. सन्तुलित बजट (Balanced Budget)-एक सरकारी बजट को सन्तुलित बजट कहा जाता है यदि सरकार की राजस्व तथा पूंजीगत प्राप्तियां, सरकार के राजस्व तथा पूंजीगत व्यय के समान हों। प्राचीन काल में सन्तुलित बजट को अच्छा बजट माना जाता था। जैसे कि अर्थशास्त्र के पिता एड्म स्मिथ (Adam Smith) ने कहा था, “सरकारी व्यय, सरकारी आय से अधिक नहीं होना चाहिए” सरकार जनता के पैसे का प्रयोग अच्छी तरह नहीं कर सकती। व्यक्ति अपनी आय का प्रयोग निजी तौर पर अच्छी तरह कर सकते हैं। इसलिए परम्परागत अर्थशास्त्री सन्तुलित बजट के पक्ष में थे।

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गुण (Merits)-

  • फिजूल व्यय (Wasteful Expenditure)-सरकार द्वारा जो व्यय किया जाता है, उसमें फिजूल व्यय की सम्भावना अधिक होती है। इसलिए फिजूल व्यय से बचने के लिए सन्तुलित बजट अच्छा होता है।
  • वित्तीय स्थिरता (Financial Stability)-सन्तुलित बजट से वित्तीय स्थिरता प्राप्त होती है। वित्तीय साधनों की प्राप्ति पर अधिक ज़ोर नहीं दिया जाता। अवगुण (Demerits)

(i) व्यापारिक चक्रों के लिए अनुचित (Unsuitable for Trade cycles)-व्यापारिक चक्रों के लिए सन्तुलित बजट उचित नहीं क्योंकि मन्दीकाल तथा तेज़ीकाल का हल सन्तुलित बजट द्वारा नहीं किया जा सकता।

(ii) आर्थिक विकास के लिए अनुचित (Unsuitable for Economic Development) अल्प-विकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए सन्तुलित बजट उचित नहीं होता। आर्थिक विकास के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। जब सरकार की प्राप्तियां सरकार के अनुमानित व्यय से अधिक अथवा कम होती हैं तो इस स्थिति को असन्तुलित बजट (Unbalanced Budget) कहते हैं।

असन्तुलित बजट दो प्रकार का हो सकता है
(i) बचत का बजट (Surplus Budget) तथा
(ii) घाटे का बजट (Deficit Budget)

2. बचत का बजट (Surplus Budget)-बचत का बजट वह बजट होता है, जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से अधिक होती है। इससे अभिप्राय है कि सरकार करों द्वारा अर्थव्यवस्था में से अधिक मुद्रा प्राप्त कर रही है तथा सरकार व्यय द्वारा अर्थव्यवस्था में कम मुद्रा भेज रही है। ऐसी स्थिति में लोगों की मांग कम हो जाएगी तथा मुद्रा स्फीति पर रोक लग जाती है। जब सरकार लोगों की मांग को घटाना चाहती है तो बचत का बजट बनाया जाता है।

गुण (Merits)

  • मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control over Inflation)-यदि देश में कीमत स्तर में तीव्रता से वृद्धि होती है तो बचत के बजट द्वारा मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण पाया जा सकता है।
  • मांग में कमी (Decrease in Demand)-जब देश में मुद्रा स्फीति का कारण मांग में वृद्धि होता है तो मांग में कमी करने के लिए बचत का बजट लाभदायक सिद्ध होता है।

अवगुण (Demerits)

  • मन्दीकाल (Depression) यदि बचत का बजट दीर्घ समय के लिए अपनाया जाता है तो इससे अर्थव्यवस्था में मन्दीकाल की स्थिति उत्पन्न होने का डर उत्पन्न हो जाता है।
  • बेरोज़गारी (Unemployment)-मांग की कमी के कारण देश में बेरोज़गारी फैल जाती है। इसलिए बचत का बजट अन्य कई आर्थिक समस्याओं को जन्म देता है।

3. घाटे का बजट (Deficit Budget)-घाटे का बजट वह बजट है जिसमें सरकार की अनुमानित आय सरकार के अनुमानित व्यय से कम होती है अथवा हम कह सकते हैं कि सरकार का व्यय, सरकार की आय से अधिक हो जाता है तो इसी तरह के बजट को घाटे का बजट कहा जाता है। 1929-30 में अमेरिका में महामन्दी की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। अमेरिका अमीर देश था। वस्तुओं की पूर्ति अधिक थी, परन्तु मांग कम होने के कारण कीमतें तथा लाभ कम हो गए। उत्पादन घटने से बेरोजगारी फैल गई तो प्रो० जे० एम० केन्ज़ ने घाटे के बजट को अपनाने की सिफारिश की थी। आजकल घाटे का बजट अल्प-विकसित देशों में भी अपनाया जाता है।

गुण (Merits)

  • आर्थिक विकास (Economic Growth) अल्पविकसित देशों के आर्थिक विकास की गति तीव्र करने के लिए घाटे का बजट अच्छा होता है।
  • आर्थिक भलाई (Economic Welfare)-सरकार लोगों की आर्थिक भलाई में वृद्धि करना चाहती है तो घाटे के बजट द्वारा भलाई कार्यों पर अधिक व्यय किया जा सकता है।

अवगुण (Demerits)-

  1. फिजूल व्यय (Wasteful Expenditure)-घाटे के बजट द्वारा सरकार द्वारा फिजूल व्यय किया जाता है, इससे देश में भ्रष्टाचार में वृद्धि होती है।
  2. मुद्रा स्फीति (Inflation)-घाटे के बजट द्वारा देश में कीमतों का स्तर तीव्रता से बढ़ने लगता है। कीमतों की वृद्धि से आर्थिक तथा राजनीतिक संकट उत्पन्न होता है।

प्रश्न 5.
घाटे के बजट से क्या अभिप्राय है ? घाटे के बजट की किस्में बताओ। इनका माप कैसे किया जाता है ?
(What is meant by Budget Deficit? Explain the types of Budget deficit. How can these be measured ?)
अथवा
राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे तथा प्राथमिक घाटे से क्या अभिप्राय है ? इसके माप को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
(What is meant by Revenue Deficit, Fiscal Deficit and Primary Deficit ? Explain the measurement of these deficits with the help of an example.)
उत्तर–
बजट घाटे से सम्बन्धित चार धारणाएं हैं-

  1. बजट घाटा
  2. राजस्व घाटा
  3. राजकोषीय घाटा
  4. प्राथमिक घाटा।

इनकी व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है-

1. बजट घाटा (Budget Deficit)-जब सरकार का कुल व्यय अधिक होता है तथा कुल प्राप्तियां कम होती हैं तो इस प्रकार के बजट को घाटे का बजट कहा जाता है। इसमें एक ओर सरकार के कुल व्यय में से राजस्व प्राप्तियां तथा पूंजीगत प्राप्तियों को घटा दिया जाता है तो इनके अन्तर को बजट घाटा कहा जाता है। बजट घाटा कुल व्यय (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय) (-) कुल प्राप्तियां (राजस्व प्राप्तियां + पूंजी प्राप्तियां) इसलिए बजट घाटा सरकार की कुल व्यय तथा कुल प्राप्तियों का अंतर होता है। (Budget deficit is the excess of government expenditures over the receipts) बजट घाटे को भारत सरकार के 2003-04 के बजट अनुमानों के आंकड़ों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
Budget Deficit of Centre, State & Union territory. Govt’s as per 2004-05
Budgetary Estimates

No. Item ₹ (in crores)
1. Total outlay (Expenditure) 902287
2. Current Revenue 655618
3.Gap (1-2) 246669
4. Net Capital Receipts 241587
5. Overall Budget Deficit (3-4) 5082

Source: Economic Survey 2005-06

भारत सरकार के बजट 2004-05 अनुसार बजट घाटा ₹ 5082 करोड़ था। कुल व्यय में से कुल प्राप्तियां घटाने से बजट घाटा प्राप्त होता है। कुल प्राप्तियों में चालू आय तथा शुद्ध पूंजी प्राप्तियां शामिल की जाती हैं।

2. राजस्व घाटा (Revenue Deficit)-राजस्व घाटे का सम्बन्ध सरकार के अधिक राजस्व व्यय तथा राजस्व प्राप्तियों के अन्तर से होता है। (The revenue deficit is the excess of government’s revenue expenditure over revenue receipts.) राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां (Revenue Deficit = Revenue Expenditure – Revenue Receipts) जब किसी देश में राजस्व घाटा होता है तो इसकी पूर्ति पूंजी प्राप्तियों के रूप में उधार लेकर की जाती है जब उधार इस घाटे को पूरा किया जाता है तो सरकार की देनदारी बढ़ जाती है।

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महत्त्व अथवा निहित तत्त्व (Importance or Implications)-

  1. मुद्रा स्फीति (Inflation)-राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए उधार प्राप्त किया जाता है। इसलिए देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  2. बचतों में कमी (Dis-savings)-सरकार राजस्व घाटे को पूरा करने के लिए भण्डारों की तथा परिसम्पत्तियों की बिक्री करती है। इससे भण्डारों की कमी हो जाती है।
  3. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)-राजकोषीय घाटे का अर्थ सरकार के राजस्व तथा पूंजीगत व्यय तथा उधार को छोड़कर राजस्व तथा पूंजीगत प्राप्तियों से होता है। (Fiscal deficit is the excess of total expenditure over the seem of revenue receipts and capital receipts excluding borrowings during a year)

जब सरकार का कुल व्यय कहते हैं तो इसमें राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय शामिल होता है तथा कुल प्राप्तियों में राजस्व प्राप्तियां + पूंजीगत प्राप्ति होती है, पर उधार को छोड़ दिया जाता है।
Fiscal deficit = Total Budget Expenditure – Total Budget Receipts other than borrowings
राजकोषीय घाटा = कुल बजट व्यय – उधार के बिना कुल बजट प्राप्तियाँ उधार पूंजीगत प्राप्तियों का हिस्सा होता है, परन्तु राजकोषीय घाटे में हम राजस्व प्राप्तियों तथा गैर-उधार पूंजीगत प्राप्तियों को शामिल करते हैं।

महत्त्व अथवा निहित तत्त्व (Importance or Implications) –

  1. मुद्रा स्फीति (Inflation) राजकोषीय घाटे का अधिक होना मुद्रा स्फीति का सूचक होता है।
  2. ऋण में अधिक भार (More Burden of Debt)-ऋण तथा ऋण का ब्याज अधिक हो जाता है। इसलिए राजकोषीय घाटे से देश की देनदारी बढ़ जाती है।
  3. विदेशी निर्भरता (Foreign Dependence)-राजकोषीय घाटा अधिक होने से विदेशी ऋण का भार बढ़ जाता है। इसलिए विदेशी निर्भरता बढ़ जाती है।
  4. प्राथमिक घाटा (Primary Deficit)—प्राथमिक घाटा, राजकोषीय घाटे तथा ब्याज भुगतान का अन्तर होता है।

प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान Primary Deficit = Fiscal Deficit – Interest Payments
महत्त्व अथवा छिपे तत्त्व (Importance or Implications) राजकोषीय घाटे में सरकार की उधार आवश्यकताओं तथा ब्याज भुगतान की जानकारी प्राप्त होती है, परन्तु प्राथमिक घाटे में सरकार को व्यय पूरा करने के लिए कितना उधार अनिवार्य है, इसकी जानकारी प्राप्त होती है, पर ब्याज भुगतान को इसमें छोड़ दिया जाता है।

राजस्व घाटे, राजकोषीय घाटे तथा प्राथमिक घाटे का उदाहरण द्वारा स्पष्टीकरण
भारत सरकार का 2005-06 (बजट अनुसार) प्राप्तियां तथा व्यय

₹ करोड़
1. राजस्व प्राप्तियां = 351200
2. राजस्व व्यय = 446512
3. राजस्व घाटा (2-1) = 95312
4. पूंजीगत प्राप्तियां = 163144
5. पूंजीगत व्यय = 67832
6. कुल व्यय (2+5) = 514344
7. ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियां = 12000
8. राजकोषीय घाटा (6-7-1) = 151144
9. ब्याज भुगतान = 133945
10. प्राथमिक घाटा (8-9) = 17199

Source : Economic Survey 2005-06
पीछे दी सूचना अनुसार

  1. राजस्व घाटा = राजस्व व्यय-राजस्व प्राप्तियां = 351200 – 44612 = ₹ 95312 करोड़
  2. राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – ऋण वसूली तथा अन्य प्राप्तियां – राजस्व प्राप्तियां = 514344 – 12000 – 351200 = ₹ 151144 करोड़
  3. प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान = 151144 – 133945 = ₹ 17199 करोड़

V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों के अनुसार –
बजट घाटे का माप करो।

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 50,000
(ii) कुल प्राप्तियां 48,000

उत्तर-
बजट घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां
= 50000 – 48000 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर बजट घाटे का माप करो-

मदें ₹ करोड़
(i) राजस्व प्राप्तियाँ 80,000
(ii) पूंजीगत प्राप्तियां 45,000
(iii) राजस्व व्यय 10,000
(iv) पूंजीगत व्यय 40,000

उत्तर-
बजट घाटा = (राजस्व व्यय + पूंजीगत व्यय)- (राजस्व प्राप्तियां + पूंजीगत प्राप्तियां)
= (10,0000 + 40,000) — (80,000 + 45000) = 1,40,000 – 1,25000
= ₹ 15,000 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित सूचना के आधार पर राजस्व घाटे का माप करो

मदें ₹ करोड़
(i) राजस्व प्राप्तियां 45,000
(ii) राजस्व व्यय 75,000

उत्तर-
राजस्व घाटा = राजस्व व्यय – राजस्व प्राप्तियां
= 75000 – 45000
= ₹30.000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा राजकोषीय घाटे का माप करो –

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 50,000
(ii) कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) 40,000

उत्तर –
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के)
= 50,000 – 40,000 = ₹ 10,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
राजकोषीय घाटा बताओ।

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 90,000
(ii) राजस्व प्राप्तियां 50,000
(iii) पूंजीगत प्राप्तियां (बगैर उधार के) 22,000

उत्तर –
राजकोषीय घाटा = कुल व्यय – राजस्व प्राप्तियां – पूंजीगत प्राप्तियां (बगैर उधार के)
= 90,000 – 50000 = 22,000
= ₹ 18,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
राजकोषीय घाटा ज्ञात करो –

मदें ₹ करोड़
(i) उधार तथा अन्य प्राप्तियां 151144
(ii) ब्याज भुगतान 133945
(iii) ऋण वसूली 12000

उत्तर-
राजकोषीय घाटा = उधार तथा अन्य प्राप्तियाँ
= ₹ 151144 करोड़ उत्तर

प्रश्न 7.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करोमदें

मदें ₹ करोड़
(i) राजकोषीय घाटा 10,000
(ii) ब्याज भुगतान 4.000

उत्तर –
प्राथमिक घाटा = राजकोषीय घाटा – ब्याज भुगतान = 10,000 – 4000 = ₹ 6,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
प्राथमिक घाटा ज्ञात करें –

मदें ₹ करोड़
(i) कुल व्यय 90,000
(ii) कुल प्राप्तियां (बगैर उधार के) 70,000
(iii) सरकार द्वारा व्याज का भुगतान 10,000

उत्तर-
प्राथमिक घाटा = कुल व्यय – कुल प्राप्तियाँ (बगैर व्याज के) – सरकार द्वारा व्याज का भुगतान = 90,000 – 70,000 – 10,000 = ₹ 10,000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 14 सरकारी बजट तथा अर्थव्यवस्था

प्रश्न 9.
सरकार द्वारा ब्याज भुगतान ज्ञात करें –

मदें ₹ करोड़
(i) राजकोषीय घाटा 50,000
(ii) प्राथमिक घाटा 41,000

उत्तर-
सरकार द्वारा ब्याज का भुगतान  = राजकोषीय घाटा (-) प्राथमिक घाटा।
= 50,000 – 41,000 = ₹ 9,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
सरकार के बजट में प्राथमिक घाटा ₹ 4400 करोड़ रुपए है ब्याज भुगतान पर खर्च ₹ 400 करोड़ है, राजकोषीय घाटा ज्ञात करें-
उत्तर-
राजकोषीय घाटा = प्राथमिक घाटा + ब्याज भुगतान
= 4400 + 400 = ₹ 4800 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

PSEB 12th Class Economics अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था।

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 4.
अभावी मांग में वृद्धि के लिए राजकोषीय नीति के कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए कोई एक राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में कमी-अभावी मांग की वृद्धि के लिए, करों में कमी करनी चाहिए। इससे मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल में कमी होगी।

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

प्रश्न 6.
मौद्रिक नीति के कोई एक उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना।

प्रश्न 7.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।

प्रश्न 8.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है।

प्रश्न 9.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 10.
उधार की सीमान्त शर्ते (Marginal Requirements of Laws) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार की सीमान्त शर्तों का अर्थ है उधार लेने के लिए गिरवी रखी जाने वाली वस्तु का प्रचलित कीमत तथा दिए जाने वाले ऋण की मात्रा का अन्तर होता है।

प्रश्न 11.
सस्ती मुद्रा नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सस्ती मुद्रा नीति वह स्थिति होती है, जिसमें लोगों को कम ब्याज की दर पर आसानी से मुद्रा प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 12.
महंगी मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
महंगी मौद्रिक नीति वह स्थिति होती है, जिसमें ब्याज की दर अधिक होती है तथा आसानी से ऋण प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस नीति का उद्देश्य लोगों के व्यय को घटाना होता है ताकि मुद्रा स्फीति की समस्या का हल किया जा सके।

प्रश्न 13.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, उन मनुष्यों को ही कर का भार सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाया एक मनुष्य पर जाता है, परन्तु उसका भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 15.
वह कर जो जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है को …………….. कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16.
वह कर जो लगाए एक व्यक्ति पर जाते हैं परन्तु कर का भार और व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है को ………………… कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) प्रतिगामी कर।
उत्तर-
(ख) अप्रत्यक्ष कर।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 17.
व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं
(क) खुशहाली,
(ख) सुस्ति,
(ग) मन्दी,
(घ)……. हैं।
उत्तर-
पूर्ण चेतना।

प्रश्न 18.
वह दर जो केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त करता है को कहते हैं।
उत्तर-
बैंक दर।

प्रश्न 19.
घाटे की वित्त व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार उदार मुद्रा लेकर अथवा नए नोट छुपा कर सार्वजनिक व्यय करती है तो इस को घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं।

प्रश्न 20.
किसी व्यापारिक बैंक की जमा राशि का वह न्यूनतम भाग जो केन्द्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता है को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
न्यूनतम नकद निधि अनुपात।

प्रश्न 21.
वह नीति जिस द्वारा देश की सरकार और केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए मुद्रा और ब्याज दर को नियंत्रित करते हैं को …………. कहते हैं।
उत्तर-
मौद्रिक नीति।

प्रश्न 22.
निश्चित उद्देश्यों को प्राप्ति करने के लिए आमदन, व्यय और ऋण संबंधी नीति को ……………. कहते हैं।
(क) मौद्रिक नीति
(ख) राजकोषीय नीति
(ग) वित्त नीति
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) राजकोषीय नीति।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 23.
मंदीकाल और तेज़ीकाल की स्थिति को व्यापारिक चक्र कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
देश का केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय जो ब्याज की दर प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है। यह नीति अधिक मांग तथा अभावी मांग की समस्याओं का हल करने के लिए अपनाई जाती है। इसलिए सरकार के निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आमदन (कर) तथा व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता।

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सेहत, शिक्षा तथा आर्थिक सहायता के रूप में दी जाने वाली सहायता तथा कम व्यय करना चाहिए। इससे स्फीतिक अन्तर कम हो जाता है।

प्रश्न 4.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा –
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति के कोई दो उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ जाती है तथा उधार निर्माण कम हो जाता है।
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना। जब साख निर्माण करना होता है तो केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदता है।

प्रश्न 6.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  1. बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।
  2. खुले बाज़ार की नीति-खुले बाज़ार में सरकार प्रतिभूतियाँ बेचती है। इसे लोग बैंकों में से पैसे लेकर केन्द्रीय बैंक की प्रतिभूतियाँ खरीद लेते हैं तथा स्फीतिक अन्तर तथा अधिक मांग कम हो जाती है।

प्रश्न 7.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  • बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है। ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार मुद्रा की मांग में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार की नीति-केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ खरीदता है। इससे अर्थव्यवस्था की कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। नकद रिज़र्व अनुपात देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा निश्चित किया जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक चक्रों से क्या अभिप्राय है ? व्यापारिक चक्रों की मुख्य अवस्थाएं बताओ। ..
अथवा
चक्रीय परिवर्तनों की अवस्थाओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यापारिक चक्र एक अर्थव्यवस्था में अच्छे समय तथा बुरे समय की स्थिति में होता है। अभावी मांग तथा अधिक मांग के परिणामस्वरूप किसी देश में आमदन, उत्पादन तथा रोज़गार में जो उतार-चढ़ाव आते हैं, उनको चक्रीय परिवर्तन अथवा व्यापारिक चक्र कहते हैं। व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं होती हैं।

  1. प्रथम अवस्था (खुशहाली)-इस स्थिति में आमदन, रोज़गार, व्यय, बचत, निवेश, लाभ में वृद्धि होती है।
  2. द्वितीय अवस्था (सुस्ती)-कुछ उद्योगों में आय रोज़गार उत्पादन घटता है, जिसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों में पड़ता है।
  3. तीसरी अवस्था (मन्दी)-इस स्थिति में आमदन तथा रोज़गार बहुत कम हो जाते हैं तथा बुरी स्थिति होती है।
  4. चौथी अवस्था (पुनः चेतना)-इस स्थिति में रोज़गार बढ़ने लगता है तथा आर्थिक गति में वृद्धि होने लगती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय 1

प्रश्न 2.
सरकारी क्षेत्र से अर्थव्यवस्था ( अधिक मांग की समस्या) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
सरकारी क्षेत्र का महत्त्व प्रो० केन्ज़ ने स्पष्ट किया था। जब सरकार व्यय करती है तो इससे अभावी मांग को दूर किया जा सकता है तथा कर लगाकर सरकार अधिक मांग की समस्या का हल करती है। सरकार के योगदान के कारण अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  1. कर (Taxes)-सरकार लोगों पर कर लगाती है। प्रत्यक्ष कर लगाने से लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाती है तथा अप्रत्यक्ष करों से लोगों की खरीद शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार करों में वृद्धि तथा कमी करके सरकार अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या का हल करती है।
  2. सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure)-सरकार द्वारा जो आय प्राप्त की जाती है, इसको लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है। सरकार द्वारा लोक निर्माण कार्यों, सड़कों, नहरों, पुलों इत्यादि पर व्यय किया जाता है तथा सरकार हस्तांतरण भुगतान, बुढ़ापा पैन्शन इत्यादि देती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति पर वृद्धि होती है।
  3. सार्वजनिक ऋण (Public Debt)-जब देश में अधिक मांग की स्थिति होती है तो सरकार लोगों से ऋण लेती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  4. घाटे की वित्त व्यवस्था (Deficit Financing) अभावी मांग के समय सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रयोग करती है। इससे लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि होती है तथा मांग बढ़ जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 3.
उधार नियन्त्रण के विभिन्न ढंगों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
बैंक दर नीति तथा खुले बाज़ार की नीति उधार की उपलब्धता को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिसमें-

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत (ब्याज की दर) तथा
  • मुद्रा की उपलब्धता उधार (नियन्त्रण) द्वारा आवश्यक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है।

मौद्रिक नीति के मुख्य औज़ार निम्नलिखित अनुसार हैं –

  1. बैंक दर (Bank Rate)-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त करता है।
  2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)-इस नीति में देश का केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की खरीद-बेच करता है। जब प्रतिभूतियां बेची जाती हैं तो लोगों के पास पैसा केन्द्रीय बैंक के पास चला जाता है तथा लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति भी कम हो जाती है।
  3. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को अपने पास जमा राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास नकद रखना पड़ता है, जिसको नकद रिज़र्व अनुपात कहते हैं। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जाता है तथा नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर उधार बढ़ाया जाता है।
  4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को जमा राशि का कुछ भाग अपने पास नकद रखना पड़ता है, जिसको तरलता अनुपात कहा जाता है। इसमें वृद्धि करके उधार निर्माण को घटाया जाता है।
  5. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirement) केन्द्रीय बैंक द्वारा दिए जाने वाले उधार की कटौती निर्धारण की जाती है। ₹ 100 की वस्तु गहने रखकर बैंक ₹ 80 का उधार दे सकते हैं तो 100 – 80 = ₹ 20 अथवा 20% सीमान्त आवश्यकता होगी। इसमें परिवर्तन करके उधार को प्रभावित किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति में सार्वजनिक व्यय तथा आय द्वारा (i) अधिक मांग (ii) अभावी मांग को कैसे नियन्त्रित किया जाता है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ सरकार की आय तथा व्यय की नीति से होता है। प्रो० डाल्टन के अनुसार, “सरकार के निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, व्यय तथा उधार सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं।” इस नीति से अधिक मांग तथा अभावी मांग की स्थिति का हल किया जाता है।
1. अधिक मांग दौरान राजकोषीय नीति-

  • कर नीति-करों में वृद्धि करनी चाहिए ताकि लोगों की मांग में कमी हो सके।
  • व्यय नीति-सरकार को सार्वजनिक कार्यों, भलाई कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान पर कम व्यय करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-ऐसे समय घाटे की वित्त व्यवस्था को घटाकर मुद्रा की पूर्ति में कमी करनी चाहिए।
  • ऋण नीति-सरकार को लोगों से उधार लेना चाहिए जिससे मांग में कमी हो जाएगी।

2. अभावी मांग दौरान राजकोषीय नीति –

  • करों में कमी-अभावी मांग (Deficient Demand) समय सरकार को कर घटा देने चाहिए इससे लोगों की मांग में वृद्धि हो जाती है।
  • व्यय में वृद्धि-अभावी मांग समय सरकार को व्यय अधिक करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाकर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करनी चाहिए।
  • सार्वजनिक ऋण की वापसी-सरकार को ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि हो जाएगी।

प्रश्न 5.
अधिक मांग से क्या अभिप्राय है ? अधिक मांग को ठीक करने के लिए दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जोकि पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल पूर्ति से कुल मांग की वृद्धि के कारण उत्पन्न होती है। इस स्थिति में कुल मांग का स्तर पूर्ण रोज़गार के लिए कुल पूर्ति से अधिक हो जाता है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के दो उपाय निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. करों में वृद्धि-ऐसे समय जब अधिक मांग की स्थिति होती है, सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए। नए कर लगाने चाहिए तथा पुराने करों की दर में वृद्धि करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप देश के लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाएगी तथा मांग में कमी होने से अधिक मांग की समस्या का हल हो जाएगा।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को अधिक मांग की समस्या का हल करने के लिए सार्वजनिक व्यय में कमी करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप लोगों की आय कम हो जाएगी। लोगों की मांग में कमी होगी।

प्रश्न 6.
अधिक मांग तथा अभावी मांग का हल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
अधिक मांग (Excess Demand)-यह ऐसी स्थिति है जोकि पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से अधिक मांग को प्रकट करती है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-
1. राजकोषीय नीति-

  • सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय को सार्वजनिक कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान के रूप में घटा देना चाहिए
  • सार्वजनिक ऋण अधिक लेना चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर में वृद्धि करके ब्याज की दर बढ़ानी चाहिए ताकि उधार निर्माण कम हों।
  • खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ बेचनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए।
  • उधार की सीमान्त शतों में वृद्धि करनी चाहिए।

अभावी मांग (Deficient Demand)-यह स्थिति ऐसी होती हैं, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इसका हल इस प्रकार करना चाहिए –
1. राजकोषीय नीति- इसका प्रयोग अधिक मांग के विपरीत करना चाहिए-

  • कर घटाने चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय बढ़ाना चाहिए
  • ऋण की वापसी करनी चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर घटानी चाहिए
  • खुले बाजार में प्रतिभूतियां खरीदनी चाहिए
  • नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए
  • उधार की शर्ते नरम करनी चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 7.
कोई चार उपाय बताओ जिनके द्वारा अभावी मांग की स्थिति को ठीक किया जा सकता है ?
अथवा
अस्फीतिक अन्तर का हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अभावी मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इस स्थिति को अस्फीतिक अन्तर कहा जाता है। इसका हल करने के लिए चार उपाय इस प्रकार हैं-

  1. करों में कमी-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में कमी करनी चाहिए । इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होगी।
  2. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर अधिक व्यय करना चाहिए। सरकार को निवेश में वृद्धि करके रोजगार बढ़ाना चाहिए ।
  3. बैंक दर में कमी-सरकार को बैंक दर घटानी चाहिए। इससे ब्याज़ की दर घट जाती है तथा लोग अधिक उधार लेते हैं। इससे मांग में वृद्धि होती है।
  4. नकद रिज़र्व अनुपात में कमी-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक, अधिक उधार देने में सफल होते हैं तथा मांग में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
कोई चार उपाय बताओ, जिसके द्वारा अधिक मांग की समस्या का हल किया जा सकता है ?
अथवा
स्फीतिक अन्तर को हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग अधिक होती है। इस स्थिति को स्फीतिक अन्तर की स्थिति कहा जाता है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-

  • करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर बढ़ाने चाहिए।
  • सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सार्वजनिक कार्यों सड़कों, नहरों, बिजली इत्यादि पर व्यय कम करना चाहिए।
  • बैंक दर में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक को उधार देते समय जो ब्याज प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं। इसमें वृद्धि करनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं तथा मांग में कमी हो जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न । (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग के समय राजकोषीय नीति को स्पष्ट करो।
(What is Fiscal Policy ? Discuss the instruments of Fiscal Policy. Explain Fiscal Policy during deficient and Excess Demand.)
अथवा
राजकोषीय नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तर तथा स्फीतिक अन्तर का हल कैसे किया जाता है ?
(How is the problem of Deflationary Gap and the Inflationary Gap be solved with Fiscal Policy ?)
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ (Meaning of Fiscal Policy)-एक देश में निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार की आय, व्यय तथा ऋण सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है। इसलिए राजकोषीय नीति सरकार की आय तथा व्यय की नीति होती है, जिस द्वारा अभावी मांग अथवा अधिक मांग की समस्याओं का हल किया जाता है।

राजकोषीय नीति के औज़ार (Instruments of Fiscal Policy)-राजकोषीय नीति के औज़ारों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
(A) सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार (Instrument related to Government Expenditure)सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं

  • सार्वजनिक निर्माण के कार्य जैसे कि सड़कें, नहरें, पुल इत्यादि का निर्माण करवाना।
  • लोक सेवाएं जैसे कि शिक्षा, सेहत, बुढ़ापे में सहायता इत्यादि पर व्यय।
  • उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए सबसिडी देना।
  • देश की आन्तरिक तथा बाहरी सुरक्षा पर व्यय करना।

(B) सरकारी आय से सम्बन्धित औज़ार (Instruments related to Public Revenue)-इस सम्बन्ध में मुख्य औज़ार निम्नलिखित हैं

  • कर-प्रत्येक देश की सरकार की आय का मुख्य स्रोत कर होते हैं। सरकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर लगाती है।
  • उधार-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए लोगों से उधार भी लेती है।
  • बजट नीति-सरकार द्वारा व्यय को पूरा करने के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाती है।

अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग तथा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति इस प्रकार की अपनानी चाहिए –

  1. करों में कमी-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए करों में कमी की जाए तो मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल समाप्त हो जाएगा।
  2. सरकारी व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर व्यय बढ़ा देना चाहिए। इससे लोगों की आय में वृद्धि होगी तथा मांग बढ़ जाएगी।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनानी चाहिए। इससे कुल मांग में वृद्धि होगी।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को नया ऋण नहीं लेना चाहिए, बल्कि पुराने ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि की जा सकती है।

अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Excess Demand & Inflationary Gap)-अधिक मांग तथा मुद्रा स्फीति समय सरकार को निम्नलिखित अनुसार राजकोषीय नीति अपनानी चाहिए-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को लोगों पर कर अधिक लगाने चाहिए। इससे लोगों की मांग में कमी हो जाएगी।
  2. सरकारी व्यय में कमी-सरकार को मुद्रा स्फीति समय अपना व्यय घटा देना चाहिए।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था में कमी-सरकार को ऐसी स्थिति में घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाना नहीं चाहिए।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को लोगों से अधिक ऋण लेना चाहिए ताकि अधिक मांग में कमी आए तथा स्फीतिक अन्तर समाप्त हो सके।

प्रश्न 2.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ? मौद्रिक नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या को हल करने के लिए मौद्रिक नीति के योगदान को स्पष्ट करो।
(What is Monetary Policy ? Explain the instruments of Monetary Policy. How can Monetary Policy be used during Excess Demand & Deficient Demand ?)
अथवा
मौद्रिक नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तराल तथा स्फीति अन्तराल का हल कैसे किया जा सकता है ?
(How can the problem of Deflationary Gap & Inflationary Gap be solved with Monetary Policy ?)
उत्तर-
मौद्रिक नीति का अर्थ (Meaning of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिस द्वारा एक देश की सरकार केन्द्रीय बैंक द्वारा

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत अथवा ब्याज की दर तथा
  • मुद्रा की उपलब्धि द्वारा स्थिरता प्राप्त करने का प्रयत्न करती है।

मौद्रिक नीति के औज़ार (Instruments of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति के औज़ारों का वर्गीकरण अग्रलिखित अनुसार किया जा सकता है
(A) मात्रात्मक औजार (Quantitative Instruments) मौद्रिक नीति के मात्रात्मक औज़ार वे औज़ार हैं, जिन के द्वारा उधार मुद्रा को नियन्त्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए केन्द्रीय बैंक निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करता है-
1. बैंक दर (Bank Rate)- बैंक दर वह दर होती है, जोकि केन्द्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त की जाती है। बैंक दर बढ़ने से देश में ब्याज दर बढ़ जाती है। इसलिए उधार मुद्रा की मांग कम हो जाती है। जब केन्द्रीय बैंक द्वारा बैंक दर घटा दी जाती है तो बाज़ार में ब्याज की दर कम हो जाएगी तथा उधार मुद्रा विस्तार हो जाता है।

2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)- उधार मिया के लिए केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों (Securities) की खरीद बेच करता है। जब केन्द्रीय प्रतिभूतियाँ बेचता है तो लोग केन्द्र की प्रतिभूतियां खरीद लेते हैं तथा व्यापारिक बैंकों को उधार देन को शक्ति का ही जागो है। अब केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदने लगता है तो बाज़ार में पैसे चले जाते हैं, इससे ज्यादा का अधिक उधार देने लगते

3. न्यूनतम नकद रिज़र्व अनुपात (Minimum Cash Reserve Ratio)- नाना नकद रिजाव अनुपात वह दर होती है, जो कि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ ‘हे ? बैंक के पास नत्र के रूप में रखना आवश्यक होता है। यदि रिज़र्व अनुपात 10% से बढ़ाकर मा. काया जाता है तो व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं। पहले वह ₹ 100 में से ₹ 90 परन्तु अन् मारो

4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-प्रत्येक व्यापारिक बैंक को अपनी जमा छ प्रतिशत हिस्सा अपने पास नकदी अथवा प्रतिभूतियों के रूप में रखना अनिवार्य होता है। इसको तरलता अनुपात कहा जाता है। जब केन्द्रीय बैंक तरलता अनुपात में वृद्धि कर देता है तो उधार मुद्रा का कम निर्माण होता है।

(B) गुणात्मक औज़ार (Quantitative Instruments)-यह औज़ार विशेष प्रकार के उधार को नियंत्रित करते हैं
1. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirements)-जब उधार लेते समय किसी वस्तु को गिरवी रखा
जाता है, उसको गिरवी रखकर कितना उधार दिया जाता है। इसके अन्तर को सीमान्त आवश्यकता कहा जाता है, जैसे कि ₹ 100 की वस्तु गिरवी रखकर ₹ 80 का उधार प्राप्त हुआ तो उधार की सीमान्त आवश्यकता 20% है। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जा सकता है।

2. उधार का राशन (Rationing of Credit) केन्द्रीय बैंक स्टेट के लिए उधार दी जाने वाली राशि का कोटा निर्धारण कर देता है, इसको उधार का राशन कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

3. नैतिक दबाव (Moral Pressure) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों पर दबाव डालकर अधिक अथवा कम देने के लिए निवेदन करता है जोकि व्यापारिक बैंकों के लिए आदेश होता है।

अस्फीतिक अन्तर अथवा अभावी मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय निम्नलिखित अनुसार मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर घटा दी जाती है। इससे ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार निर्माण में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों की खरीद करता है। लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात को घटा दिया जाता है, इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार देने लगते हैं।
  • तरलता अनुपात को घटाया जाता है, व्यापारिक बैंक की उधार देने की शक्ति बढ़ जाती है।
  • उधार की सीमान्त शर्ते नर्म की जाती हैं।
  • उधार अधिक देने के लिए नैतिक प्रभाव का प्रयोग किया जाता है।

इस नीति को सस्ती मौद्रिक नीति (Cheap Monetary Policy) कहा जाता है। स्फीतिक अन्तराल अथवा अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Excess Demand or Inflationary Gap)-मुद्रा स्फीति अथवा अधिक मांग के समय निम्नलिखित मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर बढ़ा दी जाती है। इससे ब्याज की दर बढ़ जाती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचने लगता है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि की जाती है। व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं।
  • तरलता अनुपात में वृद्धि की जाती है। बैंक कम उधार देने लगते हैं।
  • सीमान्त शर्ते सख्त की जाती हैं।
  • उधार का राशन किया जाता है। इस नीति को महंगी मौद्रिक नीति (Dear Monetary Policy) कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 11 निवेश गुणक Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 निवेश गुणक

PSEB 12th Class Economics निवेश गुणक Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में 10 करोड़ रु० की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 1

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 2
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 3

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है गुणक का आकार इस प्रक
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 4. गुणक (K) = ——- .
उत्तर-
गुणक K = \(\frac{\Delta \mathrm{y}}{\Delta \mathrm{I}}\)|

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 5. यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{\frac{1}{1}}{2}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 6.
गुणक दोधारी तलवार है जो राष्ट्रीय आय में तेज़ी से वृद्धि करती है अथवा कमी करती है ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 7.
यदि MPC = 1 है तो गुणक का आकार ———– होगा।
उत्तर-
(a) शुन्य (0)
(b) 1
(c) अनंत
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) अनंत।

प्रश्न 8.
यदि राष्ट्रीय आय में वृद्धि 4 करोड़ रुपये और निवेश में वृद्धि 2 करोड़ रुपये है तो गुणक ज्ञात करें।
उत्तर-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 4

प्रश्न 9.
यदि MPS = \(\frac{1}{4}\) है गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)

प्रश्न 10.
जितनी सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होगी गुणक का प्रभाव उतना ही कम होता है।
उत्तर-
गलत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में ₹ 10 करोड़ की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 5

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ। ‘
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 6
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 7

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-M P C}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)

III. लघु उत्तरीय प्रश्न | (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक की धारणा को स्पष्ट करो। यह सीमान्त बचत प्रवृत्ति से कैसे सम्बन्धित है ?
अथवा
गुणक से क्या अभिप्राय है ? गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ है, निवेश में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि की अनुपात (The rate of change in Income due to change in investment)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPC}}\)
इसमें K =गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन, MPC = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, MPS = सीमान्त बचत प्रवृत्ति
Example : यदि ΔI = 100 करोड़, MPC = \(\frac{3}{4}\) , MPS = 1- \(\frac{3}{4}\) = \(\frac{1}{4}\)= तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि को स्पष्ट करो।

K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
अथवा
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
यदि हमें MPC अथवा MPS का पता हो तो गुणक का आकार माप सकते हैं
∴ K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा K. ΔI = ΔY = 4 x 10 = 40 करोड़ रुपए।

(i) स्पष्ट है कि MPC का पता हो तो K का आकार माप सकते हैं। जितनी MPC अधिक होगी, गुणक का आकार उतना बड़ा होगा। K तथा MPC का सीधा सम्बन्ध होता है।
(ii) MPS जितनी अधिक होगी गुणक का आकार उतना कम होगा अर्थात् K तथा MPS का विपरीत सम्बन्ध होता है।

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प्रश्न 2.
एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो कि निवेश वृद्धि आय स्तर में वृद्धि को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि महत्त्वपूर्ण होती है, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि कई गुणा अधिक हो जाती है। इसका कारण गुणक की धारणा का लागू होना होता है। गुणक की धारणा अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि अधिक होगी। परन्तु गुणक की धारणा स्वयं सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) अधिक होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होगा। मान लो एक देश में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC = \(\frac{1}{2}\) = 0.5 है तथा निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपये की जाती है। निवेश की वृद्धि राष्ट्रीय आय में कितनी वृद्धि करेगी, इसको निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट करते हैं-
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=K \times \Delta I=\Delta Y\)
अथवा
ΔY= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \times \Delta \mathrm{I}\) (∵ K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \))
ΔY = \(\frac{1}{1-0.5} \times 100=\frac{1}{\frac{1}{2}} \times 100\)
100 x 2 = ₹ 200 करोड़ उत्तर
निवेश की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि गुणक के आकार अनुसार हो जाती है।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में ₹ 1000 करोड़ की वृद्धि की जाती है। यदि MPC = 0.75 है तो आय तथा बचत में वृद्धि का पता करो।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
ΔY = K. ΔI
= 4 x 1000 = 4000 करोड़

MPS = 1 – MPC
= 1 – 0.75 = 0.25
बचत में वृद्धि = AY x MPS
= 4000 x 0.25 = ₹ 1000 करोड़ उत्तर

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निवेश गुणक की परिभाषा दीजिए। इसका सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या सम्बन्ध है ? निवेश गुणक की कार्यकुशलता को स्पष्ट करो।।
(What is Multiplier ? How is it related to MPC ? Explain the working of Investment multiplier.)
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ (Meaning of Multiplier)-इस धारणा का अर्थशास्त्र में केन्ज़ ने प्रयोग किया। निवेश गुणक की धारणा निवेश में परिवर्तन होने से आय में होने वाले परिवर्तन के सम्बन्ध को प्रकट करती है। जब निवेश में वृद्धि की जाती है तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको निवेश गुणक कहा जाता है। (The rate of change in Income due to change in investment is called Multiplier) इसका अनुमान इस प्रकार लगाया जाता है-
Κ. ΔΙ = ΔΥ
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
इसमें K = गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन। उदाहरणस्वरूप सरकार द्वारा 50 करोड़ रु० निवेश किया जाता है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि 100 करोड़ रु० हो जाती है तो
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{100}{50}\) = 2

गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध (Relationship between K and M.P.C.)-गुणक का मूल्य सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति द्वारा निर्धारण होता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी कम होगी, गुणक का आकार उतना कम होगा। इनके सम्बन्ध को एक समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{Y}-\Delta \mathrm{C}}\)
[∵ Y = C+S
ΔY = ΔC + ΔS
ΔS = ΔI
∴ ΔY = ΔC+ΔI
ΔY – ΔC = ΔI]

दाईं ओर की समीकरण को ΔY से विभाजित करने से
K = \(\frac{\Delta Y / \Delta Y}{\Delta Y / \Delta Y-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-M P C}\)
अथवा
K= \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
∵ (MPS = 1 – MPC)

उदाहरणस्वरूप-

  • यदि MPC शून्य है- यदि MPC शून्य है तो MPS = 1 होगी तथा गुणक का आकार इकाई के समान होगा अथवा आय में वृद्धि निवेश से एक गुणा होगी।
  • यदि MPC एक है- यदि MPC एक के समान है तो आय में वृद्धि बहुत अधिक गुणा होगी। परन्तु MPC न तो शून्य होती है तथा न ही एक के समान होती है। यह 0 से अधिक तथा 1 से कम होती है।
  • यदि MPC शून्य से अधिक तथा एक से कम है-MPC जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होता है।

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MPC = \(\frac{1}{2} \) = तो K = 2, MPC =\(\frac{9}{10} \) तो K = 10.
गुणक की कार्यकुशलता (Working of Multiplier)-गुणक की कार्यकुशलता को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैंयदि
Y = ₹ 100 करोड़, Y1 = ₹ 200 करोड़, I = ₹ 10 करोड़,
I1 = ₹ 30 करोड़ तो गुणक का पता करो।
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
ΔY = (Y1 – Y) = 200 – 100 = 100
ΔI = (I1 – I) = 30 -10 = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5

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जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होगा। MPC जब अधिक होगी तो MPS कम होती है। इसलिए MPS तथा गुणक का विपरीत सम्बन्ध होता है। जब सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होता है। रेखाचित्र 1 अनुसार मौलिक सन्तुलन E बिन्दु पर है तथा राष्ट्रीय आय OY है। निवेश में वृद्धि ΔI होने से राष्ट्रीय अन्य OY से बढ़कर OY1 हो जाती है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय में वृद्धि YY1 है इसे गुणक की Forward Working कहते हैं। यदि निवेश ΔI कम हो जाता है तो राष्ट्रीय आय YY2 कम हो जाती है इसे गुणक की Backward working कहते हैं।
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V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
यदि गुणक का मूल्य 3 है और एक अर्थव्यवस्था में ₹ 100 करोड़ का निवेश किया जाए तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि कितनी होगी ?
उत्तर-
गुणक के सूत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
3 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 3 × 100 = ΔY
∴ ΔY = ₹ 300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक का मूल्य, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। इनका आपस में सीधा सम्बन्ध होता है।
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि
MPC = \(\frac{1}{2}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)
MPC = \(\frac{4}{5}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{4}{5}}=\frac{1}{\frac{1}{5}}=\frac{1 \times 5}{1} \) = 5

स्पष्ट है कि MPC जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है। MPC जितनी कम होती है, गुणक का मूल्य उतना कम होता है।

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का सम्बन्ध विपरीत होता है-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
यदि
MPS = \(\frac{1}{3}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{3}}=\frac{1 \times 3}{1}\) = 3
यदि MPS = \(\frac{1}{10}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 10
स्पष्ट है कि सीमान्त बचत प्रवृत्ति जितनी कम होती है गुणक का आकार उतना अधिक होता है तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना कम होता है। इनका परस्पर में विपरीत सम्बन्ध होता है।

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प्रश्न 4.
यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो गुणक का आकार (मूल्य ) क्या होगा ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
= \(\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10 करोड़ होती है तथा परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 50 करोड़ हो जाती है। गुणक का मूल्य क्या होगा ?
उत्तर-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 10

प्रश्न 6.
यदि MPC = 0.8 है, निवेश में परिवर्तन ₹ 1000 है तो आय में परिवर्तन का पता करो।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{1 \times 10}{2}=5\)
आय में परिवर्तन Κ X ΔΙ
= 5 x 1000
= ₹ 5000 उत्तर

प्रश्न 7.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10,000 है, परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 40,000 है तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{40,000}{10,000} \) = 4
अथवा
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\) अथवा MPS = \(\frac{1}{K}=\frac{1}{4}\)
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = \(\frac{1}{4}\) or 0.25 उत्तर

प्रश्न 8.
यदि MPC = 0.75 है तो गुणक का मूल्य बताओ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
= \(1 \times \frac{100}{25}\) = 4

प्रश्न 9.
यदि एक अर्थव्यवस्था में MPC = 0.75 है, निवेश व्यय में वृद्धि ₹ 500 करोड़ होती है। कुल आय में वृद्धि बताओ तथा उपभोग व्यय ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75} \frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}\) = 4
आय में वृद्धि = ΔI x K
= 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़
उपभोग व्यय = 2000 x 0.75 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निवेश में ₹ 20 करोड़ की वृद्धि के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 100 करोड़ हो जाती है। MPC ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 (1 – MPC) = 1
5 – 5 MPC = 1
5 – 1 = 5 MPC
4 = 5MPC
MPC = \(\frac{4}{5}\) = 0.8 उत्तर

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। ₹ 500 करोड़ की निवेश में वृद्धि की जाती है। उपभोग व्यय तथा आय में कुल वृद्धि की गणना करें।
उत्तर-
K= \(\frac{1\cdot}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{10}{12}=5\)
K = \(\frac{\Delta y}{\Delta \mathrm{I}}\)
∴ 5 = \(\frac{\Delta y}{500}\)
ΔΙx K
आय में वृद्धि (Δy) = 500 x 5 = ₹ 2500 करोड़
उपभोग में वृद्धि (ΔC) = Δy x MPC
= 2500 x 0.8
= 2500 x \(\frac{8}{10}\) = ₹ 2000 करोड उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में वास्तविक आय ₹ 500 करोड़ है, जबकि पूर्ण रोज़गार पर राष्ट्रीय आय ₹ 800 करोड़ है। यदि MPC = 0.75 है तो कितना निवेश बढ़ाया जाए कि पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त हो जाए ?
उत्तर-
वास्तविक आय = ₹ 500 करोड़
पूर्ण रोज़गार पर आय = ₹ 800 करोड़
आय में अनिवार्य वृद्धि = 800 – 500 = ₹ 300 करोड़
M.P.C. = 0.75
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) =4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा ΔI = \(\frac{\Delta Y}{K}=\frac{300}{4}\) = ₹ 75 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 13.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। निवेश खर्च में वृद्धि 500 करोड़ रुपये की जाती है। आमदन और उपभोग में वृद्धि का माप करो ।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75. ΔI = ₹ 500 करोड़
गुणक
= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25}\)
= 4
(i) आमदन में वृद्धि
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\), K × ΔI = ΔY
ΔΥ = 4 × 500 = ₹ 2000 करोड़

(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = MPC ×ΔY = 0.75 × 2000 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश खर्च की वृद्धि ₹ 700 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.9 है। आमदन और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर –
ΔI = ₹ 700 करोड़, MPC = 0.9
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{.1}\) = 10
(i) आमदन में वृद्धि = KΔI = 10 x 700 = ₹ 7000 करोड़
(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = ΔY x MPC = 7000 x 0.9 = ₹ 6300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 15.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि ₹ 600 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है। आमदन में वृद्धि और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
ΔI = 600, MPC = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{\frac{1}{4}}{\frac{4}{10}}=\frac{10}{4} \) = 2.5
(i) आमदन में वृद्धि (ΔY) = K x ΔI = 2.5 x 600 = ₹ 1500 करोड़
(ii) उपभोग में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC = 1500 x 0.6 = ₹ 900 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
यदि MPC = 0 है तो गुणक पता करें।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0}=\frac{1}{1}\) = 1 उत्तर

प्रश्न 17.
यदि MPS = 0 है तो गुणक का आकार बताओ।
उत्तर-
MPC = 1 – MPS = 1 – 0 = 1
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-1}=\frac{1}{0}\) = ∞(Infinity)
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0}\) = ∞ (Infinity)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 18.
यदि गुणक 5 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPS}}\) = 5 = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
∴ MPS = \(\frac{1}{5}\) = 0.2
और MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 19.
यदि MPS = 0.2 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 100 करोड़ करनी हो तो निवेश में वृद्धि कितनी करनी चाहिए ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.2}=\frac{\frac{1}{2}}{\frac{10}{10}}=\frac{10}{2}\) = 5
और
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = K x ΔI = ΔY = 5 x ΔI = 100
ΔI = \(\frac{100}{5}\) = ₹ 20 करोड़ उत्तर

प्रश्न 20.
यदि MPC = 0.75 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 2000 करोड़ करनी हो तो कितना निवेश करने की ज़रूरत है ?
उत्तर-
K=\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\Delta\mathrm{Y}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{\frac{1}{25}}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25} \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) या KΔI = ΔY
= 4 x ΔI = 2000 = ΔI = \(\frac{2000}{4}\) = ₹ 500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में ₹ 200 करोड़ का अतिरिक्त निवेश होने पर यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{1}{2}\) हो तो कितनी अतिरिक्त आय का सृजन होगा ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
2 = \(\frac{\Delta Y}{200}\) = 400 = BY
ΔY = ₹400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 22.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाए तो आय में कितनी वृद्धि होगी ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4
= \(\frac{\Delta Y}{500}\) = 4 x 500 = ΔY
ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.95 है। निवेश में ₹ 100 करोड़ की वृद्धि होने पर आय में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.95}=\frac{1}{0.05}=\frac{1}{\frac{5}{100}}=\frac{1 \times 100}{5}\) = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 20 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 20 x 100 ΔY
∴ ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 24.
यदि एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवत्ति \( \frac{3}{4}\) में है और निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाती है तो आय में वृद्धि ज्ञात करो।
उत्तर –
दिया है MPC = \( \frac{3}{4}\)
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4 = \(\frac{\Delta Y}{500}\)
ΔY = 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 25.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.4 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.4}=\frac{1}{\frac{0.4}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 2.5 उत्तर

प्रश्न 26.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.5 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.5}=\frac{1}{\frac{0.5}{10}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \) उत्तर

प्रश्न 27.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.8 है ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.8}=\frac{1}{\frac{8}{10}}=\frac{1 \times 10}{8}\) = 1.25

प्रश्न 28.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश ₹ 300 करोड़ की वृद्धि होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो आय तथा उपभोग में वृद्धि कर ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (Δ I) = ₹ 300 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC = 0.6)
गुणक = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणाक के सूत्र अनुसार-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 2.5 = \(\frac{\Delta Y}{300}\)
= 750 = (ΔY)
आय में वृद्धि (ΔY) = ₹ 750 करोड़ उत्तर
उपभोग व्यय में वृद्धि (Δ C)ΔY x MPC = 750 x 0.6 = ₹ 450 करोड़ उत्तर

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प्रश्न 29.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 900 करोड़ की होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (ΔI) = ₹ 900 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणक के सुत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
2.5 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{900}\)
= 2.5 x 900 = AY
2250 = ΔY
आय में वृद्धि ΔY = ₹ 250 करोड़
उपभोग व्यय में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC
= 2250 x 0.6
= ₹ 1350 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

PSEB 12th Class Economics उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग फलन का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को ही उपभोग फलन कहते हैं।

प्रश्न 2.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कुल उपभोग में परिवर्तन और कुल आय में परिवर्तन के अनुपात को व्यक्त करती है।
अर्थात्
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 1

प्रश्न 3.
औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-समग्र उपभोग व्यय को समग्र आय से विभाजित करने पर जो भागफल आता है, उसको औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
अर्थात्
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 2

प्रश्न 4.
बचत फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बचत फलन बचत और आय के सम्बन्ध को व्यक्त करता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 5.
औसत बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समग्र बचत को समग्र आय से विभाजित करने पर जो भजनफल आता है उसे औसत बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 3

प्रश्न 6.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय में परिवर्तन से बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 4

प्रश्न 7.
बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक अनुसूची जिसमें बचत और आय के सम्बन्ध को प्रकट किया जाता है, उस अनुसूची को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

प्रश्न 8.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का माप कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का माप करने के लिए उपभोग में परिवर्तन को आय में परिवर्तन से बांट दिया जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 5

प्रश्न 9.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति आय के स्तर पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर-
जितनी सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति अधिक होगी आय में उतनी अधिक वृद्धि होगी।

प्रश्न 10.
क्या औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक हो सकती है ? यदि हाँ तो कब ऐसा होता है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) ऋणात्मक हो सकती है जब APC > 1. ऐसा तब होता है जब उपभोग (C) आय (Y) से अधिक हो।

प्रश्न 11. सीमान्त बचत प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-सी
मान्त बचत प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का योग इकाई के बराबर होता है। अर्थात् (MPS + MPC = 1)|

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प्रश्न 12.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति शून्य (Zero) होती है।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई (1) के बराबर होगा।

प्रश्न 13.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य क्या हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य इकाई (1) के बराबर हो सकता है।

प्रश्न 14.
औसत बचत प्रवृत्ति और औसत उपभोग प्रवृत्ति में से किस का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है और कब ?
उत्तर-
APC का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है जब उपभोग, आय से अधिक होता है (C > Y).

प्रश्न 15.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य कितना हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य इकाई (1) के बराबर हो सकता है।

प्रश्न 16.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई (1) से अधिक क्यों नहीं होता ?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि उपभोग में परिवर्तन, आय में परिवर्तन से अधिक नहीं हो सकता।

प्रश्न 17.
यदि MPC = 0.8 है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1 MPS
= 1 – 0.8 = 0.2 उत्तर

प्रश्न 18.
यदि MPS = 0.75 है तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
MPC + 0.75 = 1
MPC = 1 – 0.75 = 0.25 उत्तर

प्रश्न 19.
यदि खर्चयोग आय (Disposable Income) 1000 करोड़ रुपए है और उपभोग व्यय 750 करोड़ रुपए है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{250(1000-750)}{1000}=\frac{1}{4}\)  = 0.25 or 25%.

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 20.
यदि MPS = 1 तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
1 – MPS = 1-1 = 0(Zero)

प्रश्न 21.
नियोजन बचत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजन बचत (Planned or Ex-ante) का अर्थ जितनी बचत करने की लोग इच्छा रखते हैं।

प्रश्न 22.
वास्तविक बचत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक बचत (Actual or Ex-Post) का अर्थ जितनी बचत लोगों द्वारा की जाती है।

प्रश्न 23.
क्या वास्तविक बचत और नियोजन बचत बराबर हो सकती है ?
उत्तर-
बराबर हो भी सकती है परन्तु ज़रूरी नहीं बराबर ही हो।

प्रश्न 24.
APC और APS में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
APC + APS = 1

प्रश्न 25.
उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक सूचीपत्र जिसमें उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को प्रकट किया जाता है उस सूचीपत्र को उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

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प्रश्न 26.
अल्पकालीन उपभोग प्रवृत्ति का सूत्र लिखिए।
उत्तर-
C = a + by
C = अल्पकालीन उपभोग
a = स्वतन्त्र उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
Y = आय।

प्रश्न 27. ‘
दीर्घकालीन उपभोग प्रवृत्ति का सूत्र लिखिए।
उत्तर-
C = by
समें C = दीर्घकालीन उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
Y = आय।

प्रश्न 28.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मान कितना होता है ?
उत्तर-
MPC का मान 0 से 1 के बीच में होता है।

प्रश्न 29.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है तो औसत बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
APC + APS = 1
0.65 + APS = 1
ADS = 1 – 0.65 = 0.35 उत्तर

प्रश्न 30.
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) =…………………………..
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति APC = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 6

प्रश्न 31.
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) =……………………..
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति (AFC) = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 7

प्रश्न 32.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = …………………………..
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) =PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 8

प्रश्न 33.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = ………..
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 9

प्रश्न 34.
यदि MPC = , है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC = MPS = 1
\(\frac{1}{2}\) + MPS = 1
MPS = 1- \(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\) उत्तर

प्रश्न 35.
क्या औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक हो सकती है ? यदि हाँ तो ऐसा कब होता है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) ऋणात्मक हो सकती है जब APC>1 ऐसा तब होता है जब उपभोग (C) आय (Y) से अधिक हो।

प्रश्न 36.
यदि MPC = 0.8 है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1
MPS 1- 0.8 = 0.2 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 37.
यदि MPS = 0.8 है तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
MPC + 0.3 = 1
MPS = 1 – 0.3 = 0.7 उत्तर

प्रश्न 38.
यदि खर्चयोग आय (Disposable Income) ₹ 1000 करोड़ हैं। और उपभोग व्यय ₹750 करोड़ हैं तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
APS = \(\frac{250(1000-750)}{1000}=\frac{1}{4}\) = 0.25 Or 25%

प्रश्न 39.
यदि MPS = 1 तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPS + MPC = 1
MPC = 1 – MPS
= 1-1 = 0 (शून्य)

प्रश्न 40.
APC और APS में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
APC + APS = 1

प्रश्न 41.
उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ देश में कुल उपभोग से होता है ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 42.
\(\frac{\Delta \mathbf{C}}{\Delta \mathbf{Y}}\) = MPC
उत्तर-
सही।

प्रश्न 43.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य कितना हो सकता है ?
(a) शून्य (0)
(b) 1
(c) 2
(d) 10,000.
उत्तर-
(b) 1.

प्रश्न 44.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का न्यूनतम मूल्य कितना हो सकता है ?
उत्तर-
(a) शून्य (0)
(b) 1
(c) \(\frac{1}{2}\)
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) शून्य (0)।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector) तथा फ़र्मे (Firms) अथवा उत्पादन क्षेत्र होता है। इसलिए कुल मांग में उपभोग तथा निवेश को शामिल किया जाता है। इसमें सरकारी क्षेत्र तथा शेष विश्व क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 2.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार उस स्थिति को कहा जाता है, जिसमें वह श्रमिक जो वर्तमान प्रचलित मज़दूरी की दर पर कार्य करना चाहते हैं तथा उनको बिना देरी से कार्य प्राप्त हो जाता है। पूर्ण रोज़गार में अनइच्छित बेरोज़गारी का अभाव होता है ।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को उपभोग फलन कहते हैं। इसे निम्न सूत्र द्वारा दिखाया जा सकता है–
C = f cy
अर्थात् Consumption in the function of National Income.
उपभोग प्रवृत्ति एक अनुसूची पत्र होता है जिसमें आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग की स्थिति को दिखाया जाता है। उपभोग प्रवृत्ति को एक सूचीपत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 10
सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 1 में दिखाया है कि जब लोगों की आय सिफर (Zero) होती है तो भी लोग ₹ 50 करोड़ उपभोग पर खर्च करते हैं। यह पैसे लोग उधार लेकर अथवा पुरानी बचत को खर्च करके पूरा करते हैं। आय ₹ 100 करोड़ पर उपभोग व्यय 100 करोड़ है। इसके पश्चात् जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है उपभोग में भी वृद्धि होती है, परन्तु उपभोग में वृद्धि कम दर से होती है। रेखाचित्र में CC उपभोग प्रवृत्ति वक्र है।

प्रश्न 2.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ? इनमें से किस का मूल्य एक से अधिक हो सकता है और कब ?
उत्तर-
किसी भी आय के स्तर पर उपभोग और आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं। इसका माप निम्नलिखित अनुसार किया जाता है
APC = \(\frac{C}{Y}\)
APC प्रत्येक आय स्तर पर औसत उपभोग और आय के सम्बन्ध को दर्शाता है।
आय में वृद्धि होने से उपभोग में जो वृद्धि होती है उन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
MPC = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 11
जैसा कि आय यदि ₹ 100 करोड़ से बह कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और उपभोग ₹ 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है तो आय में वृद्धि 10 करोड़ होने से उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ हुई है तो-
MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) or 50%
इन दोनों का मूल्य एक से अधिक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग वर्तमान आय से अधिक हो।

प्रश्न 3.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति का अर्थ बताइए। क्या औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ?
अथवा
इनमें से किसका मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति-सीमान्त बचत प्रवृत्ति बचत फलन की ढाल होती है। यह आय में वृद्धि के कारण बचत में हो रही वृद्धि को दर्शाती है।
MPS = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}\)
औसत बचत प्रवृत्ति-औसत बचत प्रवृत्ति किसी भी आय के स्तर पर बचत और आय का अनुपात है।
APS = \(\frac{S}{Y}\)
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) दोनों का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग वर्तमान आय से अधिक होता है।

प्रश्न 4.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में क्या सम्बन्ध है ? क्या औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ? यदि हां तो कब ?
उत्तर-
(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)-प्रत्येक आय के स्तर पर औसत उपभोग, प्रवृत्ति उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को दर्शाती है।
(ii) औसत बचत प्रवृत्ति (APS)-औसत बचत प्रवृत्ति प्रत्येक आय के स्तर पर बचत और आय का अनुपात होती है।
APC + APS = 1
औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग, वर्तमान आय से अधिक हो।

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प्रश्न 5.
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग फलन, उपभोग व्यय और आय के सम्बन्ध को व्यक्त करता है। उपभोग व्यय, आय का फलन है [C = f (y)] अर्थात् आय पर निर्भर करता है। आय में वृद्धि होने से उपभोग व्यय में वृद्धि होती है, परन्तु उपभोग में वृद्धि आय में वृद्धि से कम होती है और उपभोग व्यय शून्य नहीं होता। अर्थशास्त्र में उपभोग फलन को केन्ज़ की सबसे बढ़ी धारणा माना जाता है। इस धारणा पर अर्थशास्त्रियों ने बहुत अधिक खोज की है।

प्रश्न 6.
केन्ज़ के मनोवैज्ञानिक उपभोग के नियम की व्याख्या करें।
उत्तर-
केन्ज़ ने अपनी पुस्तक में उपभोग के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक नियम का निर्माण किया, जिसको उपभोग का आधार पूर्वक नियम (Psychological Law or Fundamental Law of Consumption) भी कहा जाता है। इस नियम में केन्ज़ ने तीन धारणाओं को स्पष्ट करने की चेष्टा की है –

  • जब किसी देश में लोगों की आय बढ़ती है तो उपभोग में ज़रूर वृद्धि होती है। परन्तु उपभोग में वृद्धि कम दर पर होती है |
    C <Y.
  • जब लोगों की आय में वृद्धि होती है तो इसका कुछ अंश उपभोग पर व्यय किया जाता है और कुछ अंश बचत के रूप में रखा जाता है|
    Y = C + S.
  • जब लोगों की आय में वृद्धि होती है तो उपभोग व्यय और बचत दोनों में वृद्धि होती है। ये तीनों धारणाएं अन्तर्सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 7.
अधिक उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है जबकि अधिक बचत प्रवृत्ति नहीं है। व्याख्या करें।
उत्तर-
अधिक उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है क्योंकि अधिक उपभोग व्यय करने से लोगों की आय में वृद्धि होती है। इसलिए उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है जोकि देश में आय तथा रोजगार में वृद्धि करती है। बचत एक व्यक्ति के लिए अच्छी होती है परन्तु अधिक बचत प्रवृत्ति अच्छी नहीं होती। यदि देश में बचत अधिक की जाती है तो इससे उपभोग व्यय कम हो जाता है। एक व्यक्ति का व्यय दूसरे व्यक्ति की आय होती है। इसलिए दूसरे लोगों की आय कम हो जाती है। देश में उत्पादन कम होने लगता है और मन्दीकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस लिए अधिक बचत प्रवत्ति गुण नहीं अभिशाप बन जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति अथवा उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ? उपभोग प्रवृत्ति की किस्में बताएँ।
(What is meant by Consumption section of Propensity to Consume ? Explain the types of Propensity to Consume.)
उत्तर-
उपभोग फलन को उपभोग प्रवृत्ति भी कहा जाता है। कुल उपभोग तथा उपभोग प्रवृत्ति में अन्तर होता है। जब एक उपभोगी देश में ₹ 100 करोड़ में से ₹ 60 करोड़ उपभोग पर खर्च किए जाते हैं तो इसको औसत उपभोग कहा जाता है। जैसे कि 50 = 60% औसत उपभोग है। उपभोग फलन राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उपभोग के क्रियात्मक सम्बन्ध को प्रकट करती है। इसलिए इस धारणा को निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
C = f (Y) (उपभोग, आय का फलन है)

साधारणत: उपभोग फलन एक सूची-पत्र होता है जिसमें राष्ट्रीय आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को स्पष्ट किया जाता है। इस सूची-पत्र को उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए उपभोग प्रवृत्ति को एक सूची-पत्र तथा रेखा-चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

उपभोग फलन तालिका
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 12
उपभोग प्रवृत्ति-उपभोग फलन तालिका में स्पष्ट किया है कि जब आय 0 है तो 20 करोड़ | ”
Y=(C+S) रुपए उपभोग पर खर्च है। आय में वृद्धि ₹ 50, 100, 150, 200, 250 करोड़ होती है तो उपभोग में वृद्धि ₹ 20, 60, 100, 140, 180, 220 करोड़ है।

जब E/ Ac b=4C आय 100 करोड़ रुपए हैं तो उपभोग भी ₹ 100 करोड़ है। इसके बाद जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती | है, बचत में भी वृद्धि होती है। इस सूची-पत्र को उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

बचत प्रवृत्ति-जब राष्ट्रीय आय 0 है तो बचत (-) 20 करोड़ है। आय 100 करोड़ पर उपभोग ₹ 100 करोड़ हैं। इसके पश्चात् राष्ट्रीय आय बढ़ने से बचत में वृद्धि होती है। रेखा को बचत प्रवृत्ति कहा जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 13

उपभोग प्रवृत्ति की किस्में (Types of Propensity to Consume)-केन्ज़ ने उपभोग प्रवृत्ति की दो किस्मों को स्पष्ट किया है
(A) औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume)-एक देश के लोग अपनी आय में से कितने पैसे उपभोग पर खर्च करते हैं। इन दोनों तत्त्वों के सम्बन्ध को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ है और उपभोग पर ₹ 60 करोड़ खर्च किए जाते हैं। राष्ट्रीय उपभोग को राष्ट्रीय आय पर बाँट दिया जाए तो औसत उपभोग प्रवृत्ति प्राप्त हो जाती है।
APC = \(\frac{C}{Y}=\frac{60}{100}\) = ਧਾ 0.6 ਧਾ 60%

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

रेखाचित्र 3 में दिखाया है कि जब आय ₹ 100 करोड़ है तो उपभोग खर्च 60 करोड़ है। उपभोग प्रवृत्ति CC रेखा पर A बिन्दु औसत उपभोग प्रवृत्ति 60% प्रकट करता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 14

(B) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume)-जब किसी देश में राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में भी वृद्धि हो जाती है, जब हम इन वृद्धियों के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं तो उसको सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए एक देश में राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और उपभोग ₹ 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ है तथा राष्ट्रीय उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है। इन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) = 0.5 Or 50%
रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है कि जब राष्ट्रीय आय 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है तो उपभोग 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ होने के कारण उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है। इन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) = 0.5 ਧਾ 50%
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 15

प्रश्न 2.
बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ? औसत बचत प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति की धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
आय और बचत के सम्बन्ध को बचत प्रवृत्ति कहते हैं। [S = f(y)] अर्थात् बचत आय का फलन है। आय के बढ़ने से बचत भी बढ़ती है और आय के कम होने से बचत कम हो जाती है। केन्ज़ ने अपने मनोवैज्ञानिक नियम में यह बताया है कि जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में वृद्धि तो होती है परन्तु उपभोग में वृद्धि कम अनुपात में होती है और बचत अधिक अनुपात में बढ़ती है। यदि हम साधारण रूप में देखें तो बचत प्रवृत्ति को समझने के लिए सीधी रेखा अंकित चित्र द्वारा आसानी से दिखा सकते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 16PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 17
सूची पत्र में दिखाया गया है कि जब लोग बेरोजगार होते हैं और उनकी आय शून्य होती है तो भी उपभोग पर व्यय किया जाता है जोकि ₹ 50 करोड़ दिखाया गया है। इसलिए बचत ऋणात्मक (₹ -50 करोड़) दिखाई गई है। जब आय ₹ 100 करोड़ हो जाती है तो उपभोग भी बढ़कर ₹ 100 करोड़ हो जाता है और बचत शून्य हो जाती है। इसके पश्चात् जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है बचत में भी वृद्धि होती है। इसको रेखाचित्र 5 द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। जब आय शून्य है तो उपभोग ₹ 50 करोड़ किया जाता है और बचत ऋणात्मक है। जब आय बढ़कर ₹ 100 करोड़ हो जाती है तो उपभोग भी ₹ 100 करोड़ हो जाता है और बचत शून्य हो जाती है। इसके पश्चात् आय के बढ़ने से बचत बढ़ती है : – SS वक्र को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

बचत फलन दो प्रकार का होता है –
1. औसत बचत प्रवृत्ति (Average Propensity to Save)-बचत और आय के अनुपात को औसत बचत प्रवृत्ति कहा जाता है। जैसा कि यदि आय ₹ 100 करोड़ है और लोग ₹ 20 करोड़ बचत करते हैं तो औसत बचत प्रवृत्ति
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{20}{100}=\frac{1}{5}\) Or 20%

रेखाचित्र 6. में दिखाया है कि आय 100 करोड़ रुपए है और बचत ₹ 20 करोड़ की जाती है तो बिन्दु A पर
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{20}{100} \) or 20%
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 18

2. सीमान्त बचत प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Save)-जब आय में वृद्धि होती है तो बचत में भी वृद्धि होती है। बचत में वृद्धि और आय में वृद्धि के अनुपात को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं। जैसा कि आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और बचत ₹ 20 करोड़ से बढ़कर ₹ 25 करोड़ हो जाती है। आय में वृद्धि 10 करोड़ होने से बचत में वृद्धि ₹5 करोड़ है। इस प्रकार
MPS = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) \( Or 50%

रेखाचित्र 7 में दिखाया है कि आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ है और उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है तो
MPS = [latex]\frac{\Delta S}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) Or 50%
APC + APS = 1
MPC + MPS = 1
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PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 3.
उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत प्रवृत्ति के निर्धारक तत्त्व बताएं।
(Explain the Factors determining Propensity to Consume or Propensity to Save.)
उत्तर-
आय के बिना उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत प्रवृत्ति बहुत से तत्त्वों पर निर्भर करती है। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्व इस प्रकार हैं –

  1. आय का वितरण (Distribution of Income)-आय का वितरण एक देश के लोगों की उपभोग प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। इससे बचत प्रवृत्ति पर भी प्रभाव पड़ता है। हम जानते हैं कि अमीर लोगों की उपभोग प्रवृत्ति कम होती है जबकि ग़रीब लोग अपनी आय का अधिक भाग उपभोग पर व्यय करते हैं और उनकी उपभोग प्रवृत्ति अधिक होती है। यदि आय का समान वितरण कर दिया जाए तो ग़रीब लोग और अमीर लोग उपभोग पर अधिक खर्च करेंगे, इसलिए उपभोग प्रवृत्ति अधिक हो जाएगी और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी।
  2. धन का वितरण (Distribution of Income)-आय की भांति यदि धन का समान वितरण कर दिया जाये तो इससे उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी।
  3. उधार की प्राप्ति (Availability of Credit)-साख की सुविधा प्राप्त होने से उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति को कार पर खर्च करना हो तो एकदम भुगतान करना मुश्किल होता है, परन्तु यदि उधार प्राप्त हो जाता है और कार का भुगतान किश्तों में किया जाना हो तो लोग ज़्यादा कारें खरीदने लग जाते हैं और उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
  4. ब्याज की दर (Rate of Interest)-बाज़ार में प्रचलित ब्याज की दर भी उपभोग प्रवृत्ति पर असर डालती है। यदि ब्याज की दर कम हो तो लोग उधार लेकर वस्तु खरीद लेते हैं और उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होती है और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी। इसके विपरीत ब्याज की दर अधिक है तो उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।
  5. भविष्य की संभावनाएं (Future Expectation)-वर्तमान का उपभोग भविष्य की संभावनाओं पर निर्भर करता है। यदि भविष्य में कीमतें बढ़ने की संभावना हो तो वर्तमान में उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाएगी और लोग वस्तुओं पर अधिक खर्च करेंगे। यदि भविष्य में कीमत कम होने की संभावना हो तो वर्तमान में उपभोग प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  6. सरकार की नीति (Government Policy)-सरकार की नीति भी उपभोग प्रवृत्ति पर प्रभाव डालती है। यदि सरकार प्रत्यक्ष कर अधिक लगाती है तो लोगों की व्यय करने की शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है इससे बचत प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
  7. जीवन स्तर (Standard of Living)-यदि जीवन स्तर में तेजी से वृद्धि होती है तो लोग अपनी आय को बचत में रखने के स्थान पर खर्च करना चाहेंगे क्योंकि लोग अच्छा जीवन व्यतीत करना पसन्द करते हैं और आय का अधिक भाग खर्च करते हैं।

प्रश्न 4.
निवेश से क्या अभिप्राय है ? प्रेरित निवेश तथा स्वतन्त्र निवेश में क्या अन्तर है ? निवेश के मुख्य निर्धारक तत्त्व बताएं।
(What is meant by Investment ? Distinguish between Induced Investment & Autonomous Investment. Explain the main determinents of Investment.)
उत्तर-
निवेश का अर्थ (Meaning of Investment)-निवेश का अर्थ उस खर्च से होता है जिस द्वारा पूँजीगत पदार्थों का निर्माण होता है। जैसे कि कारखानों, मशीनों, औज़ारों में वृद्धि की जाती है। जिससे देश में रोज़गार में वृद्धि होती है। उसको निवेश कहते हैं। यदि पुराने मकान, दुकान, मशीन पर खर्च किया जाता है तो इसे वित्तीय निवेश कहते हैं। परन्तु जब नए मकान, दुकान या मशीन पर खर्च किया जाता है तो इसको वास्तविक निवेश कहते हैं। केन्ज़ के अनुसार निवेश से हमारा अभिप्राय वास्तविक निवेश से होता है। वित्तीय निवेश से नहीं होता।

निवेश की किस्में (Types of Investment)-प्रेरित निवेश तथा स्वचालित निवेश (Induced Investment and Autonomous Investment)
प्रेरित निवेश-यह आय तथा लाभ में होने वाले परिवर्तनों से प्रेरणा प्राप्त करता है। आय अथवा लाभ के बढ़ने की सम्भावना से यह बढ़ता है तथा इनमें कमी होने से यह कम हो जाता है। यह निवेश लाभ या आय सापेक्ष होता है। प्रेरित निवेश प्रायः निजी क्षेत्र (Private Sector) में किया जाता है। रेखाचित्र 8 द्वारा प्रेरित निवेश को स्पष्ट किया जा सकता है। इस रेखाचित्र में OX अक्ष पर आय तथा OY अक्ष पर निवेश प्रकट किया है। निवेश II, रेखा नीचे से ऊपर की ओर उठ रही है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 20

इससे सिद्ध होता है कि आय के बढ़ने पर निवेश बढ़ रहा है। कुरीहारा के अनुसार, आय के बहुत कम स्तर पर निवेश ऋणात्मक (Negative) हो सकता है। II, रेखा के OX से नीचे होने से यही प्रकट होता है। स्वचालित निवेश-यह निवेश आय-प्रेरित नहीं होता। इस प्रकार का निवेश आय में होने वाले परिवर्तन के आधार पर नहीं किया जाता। स्वचालित निवेश से अभिप्राय उस निवेश से है जो नई तकनीकों, नये आविष्कारों को लागू करने के लिए किया जाता है।

यह निवेश मन्दी तथा बेरोज़गारी को दूर करने तथा नये साधनों का रेखाचित्र 8 विकास करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार का निवेश देश की आर्थिक उन्नति तथा सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस प्रकार का निवेश प्रायः सरकार द्वारा किया जाता है। रेखाचित्र द्वारा स्वतन्त्र निवेश की धारणा को स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र 9 में II, स्वचालित निवेश वक्र है। यह OX अक्ष से समानान्तर एक सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) है। इससे सिद्ध होता है कि आय के बढ़ने या कम होने पर निवेश में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। निवेश OI के बराबर होगा। केन्ज़ के अपने रोज़गार सिद्धान्त में मुख्यतः इस प्रकार के निवेश का प्रतिपादन किया है।PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 21

निवेश के निर्धारक तत्त्व
(Determinants of Investment)

निवेश-प्रेरणा को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-
1. पूँजी की सीमान्त कुशलता (Marginal Efficiency of Capital)-यदि ब्याज की दर में कोई भी परिवर्तन न हो तो पूँजी की सीमान्त उत्पादकता जितनी अधिक होगी उतनी ही निवेश की मात्रा अधिक होगी।

2. ब्याज दर (Rate of Interest)-दूसरी ओर, यदि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता में परिवर्तन हो तो ब्याज की दर जितनी कम होगी उतना ही निवेश अधिक मात्रा में होगा।

3. तकनीकी विकास तथा नये आविष्कार (Technological Growth and Innovation)-कीज़र के अनुसार तकनीकी परिवर्तन एक बड़ी सीमा तक निवेश प्रेरणा को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए पिछले कई वर्षों से कृषि तथा उद्योगों में श्रम-बचाऊ (Labour-Saving) या पूँजी-बचाऊ (Capital Saving) मशीनों के बनने से इन क्षेत्रों में काफ़ी निवेश बढ़ा है। इसी प्रकार नये आविष्कारों का जैसे टैरीलीन के कपड़े, स्कूटर, टेलीविज़न, ए० सी०, रैफ्रीजिरेटर आदि ने भी निवेश के स्तर को ऊंचा उठाने में सहायता दी है। संक्षेप में प्रो० मैक्कोलन के अनुसार, “नये आविष्कारों की बढ़ती हुई तेज़ रफ्तार निवेश को बहुत प्रेरणा देती है।”

4. बनाए रखने और चालू रखने वाली लागते (Maintenance and Operation Costs)-निवेश करते समय लाभ की सम्भावना इस बात पर भी निर्भर करती है कि मशीनों आदि पर क्या खर्च आया है और उन्हें चालू हालत में रखने के लिए अनुमानित लागतें क्या हैं। यदि ये तागतें ऊंची हैं तो शुद्ध लाभ कम होगा और इससे निवेश स्तर में कमी होगी और यदि ये लागतें नीची हैं तो शुद्ध लाभ बढ़ने से निवेश स्तर में वृद्धि होगी।

5. सरकारी नीतियाँ (Government Policies)-निजी निवेश का निर्णय लेते हुए सरकार की कर (Tax) नीति का भी ध्यान रखना पड़ता है। कर व्यापारिक लागतों का ही एक भाग होते हैं और यदि ये कर अधिक हों तो लाभ की सम्भावना कम हो जाने से निवेश स्तर भी कम हो जाएगा। परन्तु यदि कर कम होंगे तो निवेश-प्रेरणा को प्रोत्साहन मिलेगा।

6. पूँजीगत वस्तुओं का वर्तमान स्टॉक (The Present Stack of Capital Gooks किसी उद्योग में पूँजी पदार्थों का वर्तमान स्टॉक अतिरिक्त निवेश से अनुमानित लाभ को प्रभावित करता है। यदि किसी उद्योग में उत्पादन सुविधाओं, तैयार माल आदि का पहले से ही कम स्टॉक है तो उद्योग में अतिरिक्त निवेश में क्षेत्र बढ़ जाएगा।

7. व्यावसायिक सम्भावनाएं (Bussiness Expectations)- निवेश इस बात पर भी निर्भर करता है कि भविष्य में कितना लाभ होगा। यदि भविष्य में अधिक लाभ होने की आशा होती है तो अधिक निवेश किया जाता है। इस प्रकार तेज़ी की आशंकाएं निवेश पर अच्छा प्रभाव डालती हैं।

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V. संख्यात्मक प्रश्न
(Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आय तथा उपभोग अनुसूची से औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात करें।

आय (₹ करोड़) 0 100 200 300 400
उपभोग (₹ करोड़) 40 100 150 180 200

उत्तर
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 22

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचीपत्र में औसत बचत प्रवृत्ति (APS) तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का माप करें।

आय (₹ करोड़) 0 100 200 300 400 500
उपभोग (₹ करोड़) 20 100 180 260 340 420

उत्तर-
आय तथा उपभोग के अन्तर से बचत का माप किया जा सकता है तथा फिर औसत वचत प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का माप कर सकते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 23

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 24
उत्तर-

  • वर्ष के प्रारम्भ में APC = \( \frac{\mathrm{C}}{\mathrm{Y}}=\frac{4000}{10000}\) = 0.4.
  • वर्ष के अन्त में APC = \(\frac{C}{Y}=\frac{5000}{15000}\) = 0.33
  • सीमान्त उपभोग प्रवत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{1000}{5000}\) = 0.2 उत्तर

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करो –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 25
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय 400 रु० तथा प्रारम्भिक खर्च 340 रुपए है तो

प्रश्न 5.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें –
आय का स्तर । उपभोग खर्च
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 27
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय तथा उपभोग = 0 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 28
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय = 100 और उपभोग = ₹ 100 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 30

प्रश्न 6.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 31
उत्तर-
I–यदि प्रारम्भिक आय तथा उपभोग खर्च = 0 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 32
उत्तर-
II……यदि प्रारम्भिक आय = 300 तथा उपभोग = ₹ 280 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 34

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 7.
(a) यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.3 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी ?
(b) यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
MPS = 0.3 MPC = ?
(a) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – MPS
= 1 – 0.3
= 0.7 उत्तर
(b) सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.8
= 0.2 उत्तर

प्रश्न 8.
यदि राष्ट्रीय आय ₹ 100 है तो उपभोग ₹ 50 है। राष्ट्रीय आय बढ़कर ₹ 150 हो जाती है तो उपभोग बढ़कर ₹ 75 हो जाता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर
MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}\)
आय में परिवर्तन (AY) = 150 – 100 = ₹ 50
उपभोग में परिवर्तन (AC) = 75 – 50 = ₹ 25
सीमान्त उपभोग में परिवर्तन (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{25}{50}\) = 0.5
सीमान्त बचत प्रवृत्ति = 1 – MPC
= 1 – 0.5 = 0.5 उत्तर

प्रश्न 9.
आय ₹ 100 से बढ़कर ₹ 200 हो जाती है। उपभोग खर्च ₹ 75 से बढ़कर ₹ 140 हो जाता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
आय में परिवर्तन (ΔY) = 200 – 100 = ₹ 100
उपभोग में परिवर्तन (ΔC) = 140 – 75 = ₹ 65
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{65}{100}\) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवत्ति (MPS) = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}\) 1 – MPC
= 1 – 0.65
= ₹ 0.35 उत्तर

प्रश्न 10.
यदि उपभोग खर्च ₹ 1000 है, उपभोग खर्च ₹ 750 है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
आय ₹ 1000 उपभोग खर्च = 750
बचत = आय – उपभोग = 1000 – 750 = ₹ 250
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 35
= 0.25 उत्तर

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.65
= 0.35 उत्तर

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.25
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – MPS
= 1 – 0.25
= 0.75 उत्तर

प्रश्न 13.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है तो औसत बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = 0.75
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) = 1 – APC
= 1 – 0.75
= 0.25 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 14.
यदि APC 0.55 है तो APS कितनी होगी ?
उत्तर
APC + APS = 1
0.55 + APS = 1
APS = 1-0.55
= 0.45 उत्तर

प्रश्न 15.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 2400 करोड़ तथा उपभोग का स्तर ₹ 1600 करोड़ है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 2400 करोड़
उपभोग व्यय = ₹ 1600 करोड़
बचत = 2400 – 1600 = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 36
= \(\frac{1}{3}\) =33.3% उत्तर

प्रश्न 16.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1200 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹800 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर
व्यय योग्य आय = ₹ 1200 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 800 करोड़
बचत = 1200 – 800 = ₹ 400 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 37
= \(\frac{1}{3}\) = 33.3% उत्तर

प्रश्न 17.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 3600 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 2400 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 3600 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 2400 करोड़
बचत = 3600 – 2400 = ₹ 1200 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 38
= \(\frac{1}{3}\) = 33.3% उत्तर

प्रश्न 18.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1200 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 800 करोड़ हो तो औसत उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 1200 करोड
उपभोग का स्तर = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 39
= 69.6% उत्तर

प्रश्न 19.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1800 करोड़ तथा उपभोग का स्तर ₹ 1200 करोड़ हो तो औसत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 1800 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 1200 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 40
= 69.6% उत्तर

प्रश्न 20.
व्यय योग्य आय = ₹ 2400 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 1600 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यय योग व्यय = ₹ 2400 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 1600 करोड़
बचत = 2400 – 1600 = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 41
= 33.3% उत्तर

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय ₹ 200 करोड़ है और सीमान्त उपभोग प्रवृति (MPC) 0.75 हैं। यदि ₹ 450 करोड़ का निवेश किया जाता है तो कुल राष्ट्रीय आय कितनी होगी ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय = ₹ 200 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृति (MPC) = 0.75
निवेश = ₹ 450 करोड़
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}\) = \(\frac{1}{.25} \times 100\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि (ΔY) = निवेश x गुणक
= 450 x 4
= ₹ 1800 करोड़
कुल राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय आय + राष्ट्रीय आय में वृद्धि
= 200 + 1800 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 8 कुल मांग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 8 कुल मांग

PSEB 12th Class Economics कुल मांग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे०बी० से के अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.)

प्रश्न 2.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उपभोग निवेश, सरकारी व्यय तथा शुद्ध निर्यात के जोड़ को कुल माँग कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कुल माँग के अंश बताएं।
उत्तर-
कुल माँग के अंश हैं-

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)
    (AD = C + I + G + X – H)

प्रश्न 4.
कुल माँग के किसी एक अंश को स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई माँग को शामिल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 5.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूँजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूँजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने इत्यादि को शामिल किया जाता है। निवेश को स्थिर पूँजी निर्माण भी कहते हैं।

प्रश्न 6.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। (AS = C + S)

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में पारिवारिक उपभोग माँग किस बात पर निर्भर करती है ?
उत्तर–
पारिवारिक उपभोग माँग का स्तर परिवार की आय पर निर्भर करता है।

प्रश्न 8.
प्रभावी माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस बिन्दु पर कुल माँग वक्र, कुल पूर्ति वक्र को काटता है, उस बिन्दु को प्रभावी माँग का बिन्दु कहते हैं।

प्रश्न 9.
कुल पूर्ति का कोई एक अंश बताएं।
उत्तर-
बचत पूर्ति का एक अंश होता है।

प्रश्न 10.
नियोजित निवेश (Planned or Ex-ante) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजित निवेश का अर्थ उस निवेश से है जो देश के लोग निवेश करने की इच्छा करते हैं।

प्रश्न 11.
वास्तविक निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक निवेश (Actual or Ex-Post) वह निवेश है जोकि लोगों द्वारा एक निश्चित अवधि में किया जाता है।

प्रश्न 12.
क्या वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश बराबर होते हैं ?
उत्तर-
वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश सदैव बराबर होते हैं।

प्रश्न 13.
प्रायोजित और वास्तविक निवेश का अन्तर क्या होता है ?
उत्तर-
इसका अन्तर अप्रायोजित निवेश कहलाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश, बचत से अधिक होती है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है।

प्रश्न 15.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय में कमी हो जाती है।

प्रश्न 16.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर और निवेश माँग के सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहते हैं।

प्रश्न 17.
निवेश की सीमान्त कुशलता (Marginal Efficiency of Investment) को परिभाषित करो। ‘
उत्तर-
एक नया पूँजी पदार्थ लगाने से जो ज़्यादा से ज्यादा आय होने की संभावना है उसको निवेश की सीमान्त कुशलता कहते हैं।

प्रश्न 18.
वास्तविक बचत तथा निवेश सदैव बराबर होते हैं। कैसे ?
उत्तर-
Y = C + S और Y = C + I
∴ C + S = C +I
S = I

प्रश्न 19.
पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा कर लेती है किस अर्थशास्त्री का कथन है ?
(a) एडम स्मिथ
(b) मार्शल
(c) रोबिन्ज़
(d) जे० बी से।
उत्तर-
(d) जे० बी से।

प्रश्न 20.
जो निवेश एक देश के लोग करने की इच्छा रखते हैं उसको ……….. कहा जाता है।
(a) वास्तविक निवेश
(b) नियोजित निवेश
(c) सरकारी निवेश
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) नियोजित निवेश।

प्रश्न 21.
जिस बिन्दु पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति बराबर होते हैं उस बिन्दु को ………. का बिन्दु कहा जाता है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) छुपी बेरोज़गारी
(c) कुल माँग
(d) प्रभावी माँग।
उत्तर-
(d) प्रभावी माँग।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 22.
वह निवेश जो एक देश के लोगों द्वारा निश्चित समय में किया जाता है उसको वास्तविक निवेश कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त कार्य कुशलता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त उत्पादकता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में किसी किस्म की बेरोज़गारी नहीं होती।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 26.
कुल माँग = C + I
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 27.
कुल पूर्ति = C + S
उत्तर-
सही।

प्रश्न 28.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश का अन्तर अनियोजित निवेश होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 29.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे० बी० ‘से’ ने 1803 में बाज़ार का नियम दिया, इसको ‘से’ का बाजार नियम कहा जाता है। इस नियम अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.) उनके अनुसार पूंजीगत अर्थव्यवस्था में कुल पूर्ति हमेशा कुल मांग के समान होती है।

प्रश्न 2.
कुल मांग के अर्थ बताओ।
उत्तर-
कुल मांग का अर्थ है एक वर्ष में एक देश में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया गया कुल व्यय। इसके मुख्य अंश हैं।

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)।

यदि हम इन मदों को जोड़ कर लेते हैं। तो इसको कुल मांग कहा जाता है।
AD = C + I + G + X – M

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 3.
कुल मांग के अंश बताओ। इन में से किसी एक-अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
कुल मांग के अंश हैं:-

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात।

उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई मांग को स्पष्ट किया जाता है, जोकि परिवारों की आय पर निर्भर करती है। आय अधिक होने की स्थिति में उपभोग व्यय अधिक होता है।

प्रश्न 4.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूंजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने, मकान इत्यादि को शामिल किया जाता है। इसको स्थिर पूंजी निर्माण (Fixed Capital Formation) भी कहते हैं। इसमें उत्पादकों के भण्डार में परिवर्तन को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति से क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। इसका अनुमान लगाने के लिए उपभोग तथा बचत का योग किया जाता है। इसको आय का सृजन भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग फलन एक सूची पत्र होता है, जिसमें आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट किया जाता है। इसलिए एक सूची पत्र जोकि अर्थव्यवस्था में आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को प्रकट करता है, उसको उपभोग फलन कहते हैं। इसको उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) भी कहा जाता है।
C = f (Y)

प्रश्न 7.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में जब आय में परिवर्तन होने से उपभोग में परिवर्तन होता है तो इनके अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय 100 करोड़ से बढ़कर 110 करोड़ हो जाती है तथा उपभोग ₹ 60 करोड़ से 65 करोड़ हो जाता है तो आय में परिवर्तन (110-100) = ₹ 10 करोड़ है तथा उपभोग में परिवर्तन (65-60) = ₹ 5 करोड़ है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 1

प्रश्न 8.
औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल उपभोग तथा कुल आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ है तथा उपभोग पर 60 करोड़ व्यय किए जाते हैं तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 2

प्रश्न 9.
बचत फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय के विभिन्न स्तर पर लोग कितने-कितने पैसे बचत करते हैं, उसके सूचीपत्र को बचत फलन अथवा बचत प्रवृत्ति कहा जाता है।
S = f (Y)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 10.
औसत बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति किसी देश में आय के निश्चित स्तर पर कुल बचत तथा कुल आय का अनुपात होती है। यदि ₹ 100 करोड़ आय में से ₹ 20 करोड़ बचत की जाती है तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 3

प्रश्न 11.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश में जब आय में परिवर्तन होता है तो बचत में परिवर्तन हो जाता है। आय में परिवर्तन के कारण बचत में होने वाले परिवर्तन के अनुपात (Ratio) को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है तथा बचत ₹ 20 करोड़ से बढ़कर ₹ 21 करोड़ हो जाती है तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 4

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति कितनी होगी, यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है ?,
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का योग इकाई के समान होता है।
MPC + MPS = 1
यदि MPC = 0.8 है तो MPS का माप निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है –
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1
MPS = 1-0.8
MPS = 0.2 Ans

प्रश्न 13.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है तथा उपभोग व्यय ₹ 700 है तो औसत बचत प्रवृत्ति का माप करो।
उत्तर-
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है, जिसमें से ₹ 750 उपभोग व्यय हैं तो बचत 1000-750 = ₹ 250 होगी। औसत बचत प्रवृत्ति बचत पर राष्ट्रीय आय की अनुपात होती है, इसलिए
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 5

प्रश्न 14.
निवेश की सीमान्त कार्यकुशलता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर के बिना शेष तत्त्वों के प्रभाव के कारण निवेश की एक अन्य इकाई को लगाने से जितनी उच्चतम प्राप्ति की दर होती है, जिसको देखकर निवेश किया जाता है, उस दर को निवेश की सीमान्त कार्य-कुशलता कहा जाता है।

प्रश्न 15.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.65
= 0. 35 उत्तर

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.25
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1- MPS
= 1 – 0.25
= 0.75 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 17.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति एक समय विशेष पर कुल आय और कुल उपभोग के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को व्यक्त करती है जबकि औसत बचत प्रवृत्ति कुल आय और कुल बचत के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को प्रकट करती है। इन दोनों का योग इकाई के बराबर होता है।
APC + APS = 1

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कुल मांग से आपका क्या उद्देश्य है ?
अथवा
कुल मांग के अंश बताओ। किसी एक अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए समूची मांग को कुल मांग कहा जाता है। (Aggregate demand is the total demand for goods and services in the economy.) कीमत स्तर के सम्बन्ध में कुल माँग ऋणात्मक ढलान वाली होती है। कुल माँग वह व्यय है, जोकि एक देश के लोग वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। कुल माँग के अंश हैं। AD = C+I+ X – M

  • उपभोग व्यय-इसमें परिवारों तथा सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
  • निवेश व्यय-इसमें मशीनों, फैक्टरियों इत्यादि स्थाई निवेश तथा वर्ष सूची निवेश (Inventory Investment) को शामिल किया जाता है।
  • सरकारी व्यय-सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
  • शुद्ध निर्यात (X – M)-इसमें निर्यात-आयात का मूल्य जोड़ा जाता है। इस प्रकार एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए कुल व्यय को जोड़कर कुल माँग का माप किया जाता है।

आय स्तर के सम्बन्ध में-कुल मांग वक्र आय के सम्बन्ध में बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा होती है। रेखाचित्र 1 में कुल माँग वक्र बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा है क्योंकि आय तथा माँग में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 6

प्रश्न 2.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश में ब्याज की दर तथा निवेश माँग में सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहा जाता है। निवेश मुख्य तौर पर दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-

ब्याज की दर
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता अथवा लाभ होने की सम्भावना।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 8

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 7

  • ब्याज की दर-ब्याज की दर तथा निवेश माँग का विपरीत सम्बन्ध होता है। जैसे ब्याज की दर घटती है तो निवेश माँग में वृद्धि होती है जैसे कि निवेश माँग सूची तथा रेखाचित्र 2 में दिखाया है।
  • लाभ होने की सम्भावना-MEC दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जोकि निवेश माँग को निर्धारण करता है, जब निवेश में वृद्धि होती है तो लाभ होने की सम्भावना (MEC) घटती जाती है। सन्तुलन उस बिन्दु पर होगा जहां ब्याज की दर तथा लाभ होने की सम्भावना समान हो जाएगी।

प्रश्न 3.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर बताओ।
उत्तर-
नियोजित निवेश-किसी अवधि के आरम्भ में देश की फ़र्मों तथा नियोजन निर्माण अधिकारी द्वारा जितना निवेश करने की इच्छा (Desire) होती है, उसको नियोजित निवेश कहा जाता है। वास्तविक निवेश-वास्तविक निवेश वह निवेश है, जोकि नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश के योग से प्राप्त होता है। इसको वास्तविक निवेश (Realised Investment) कहा जाता है।

नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर-

नियोजित निवेश वास्तविक निवेश
1. नियोजित निवेश किसी अवधि के आरम्भ में निवेश करने की इच्छा होती है। 1. वास्तविक निवेश किसी अवधि के अन्त में वास्तव में किए गए निवेश की मात्रा होती है।
2. उत्पादन के स्तर अनुसार नियोजित निवेश, नियोजित बचतों के समान हो भी सकता है, परन्तु अनिवार्य नहीं कि समान हो। 2. राष्ट्रीय आय के लेखे में वास्तविक निवेश, वास्तविक बचतों के हमेशा समान होता है।
3. जैसे नियोजित निवेश तथा नियोजित बचत समान होते हैं, इस बिन्दु पर आय का स्तर निर्धारण हो जाता है। 3. वास्तविक निवेश का आय स्तर के सन्तुलन से सम्बन्ध नहीं होता।
4. इसमें केवल नियोजित निवेश को शामिल करते है। 4. इसमें नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 4.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ? पूर्ण रोज़गार में किस प्रकार की बेरोज़गारी हो सकती है ?
अथवा
संघर्षात्मक बेरोज़गारी तथा संरचनात्मक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोजगार से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें वह सभी लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं उनको आसानी से काम मिल जाता है। पूर्ण रोज़गार में निम्नलिखित प्रकार की बेरोज़गारी की स्थिति पाई जाती है।

  • ऐच्छिक बेरोज़गारी (Voluntary Unemployment)-यदि कोई मज़दूर वर्तमान मज़दूरी की दर पर रोज़गार उपलब्ध होने पर भी काम करने को तैयार नहीं होता तो इसको ऐच्छिक बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • संघर्षात्मक बेरोज़गारी (Frictional Unemployment)-जब बाज़ार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता और मजदूर अस्थायी तौर पर बेरोज़गार हो जाते हैं तो यह अस्थायी बेरोज़गारी संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहलाती है। जैसे कि कच्चे माल की कमी, मशीनों की टूट-फूट के कारण बेरोज़गारी हो जाती है तो इसको संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structual Unemployment)-जब किसी देश में नई तकनीकों के विकास के कारण पुरानी मशीनें बन्द हो जाती हैं तो नई तकनीकों के अनुसार मज़दूर उपलब्ध नहीं होते। इस प्रकार की बेरोज़गारी को संरचनात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 5.
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (Marginal Effeciency of Capital) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता का अर्थ किसी मशीन को काम पर लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है। निवेश दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-(i) ब्याज की दर (ii) पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MFC)
I = f (r, MEC)
MEC से अभिप्राय निवेश की एक और इकाई लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है।

जब ब्याज की दर कम होती है तो लाभ होने की सम्भावना भी कम हो जाती है। इसके दो कारण होते हैं-

  • वस्तुएँ तथा सेवाएँ बढ़ जाती हैं तो इनकी कीमत कम हो जाती है। इससे लाभ कम हो जाता है।
  • उत्पादन के बढ़ने से लागत में वृद्धि हो जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ? कुल माँग के अंश बताएं। कुल माँग फलन को तालिका तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
(What is Aggregate Demand ? Discuss the components of Aggregate Demand. Explain Aggregate Demand Function with the help of a schedule and diagram.)
उत्तर-
कुल माँग से अभिप्राय एक देश में एक वित्तीय वर्ष में की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल माँग से है। (Aggregate demand means the total demand of goods and services in an economy during a accounting year.) कुल माँग मुद्रा की वह मात्रा है जोकि एक देश के सारे उद्यमी मिलकर मज़दूरों की निश्चित संख्या को काम पर लगाते हैं तो उन मज़दूरों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। इन वस्तुओं तथा सेवाओं को बेचने से देश के सभी उद्यमियों को जो आय प्राप्त होने की सम्भावना होती है, उसको कुल माँग कहा जाता है। कुल माँग दो तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  • कुल उपभोग खर्च
  • कुल निवेश खर्च। कुल माँग के अंश (Components of Aggregate Demand)-कुल माँग के मुख्य अंश इस प्रकार हैं –

(a) उपभोग खर्च
(b) निवेश खर्च।

(a) उपभोग खर्च (Consumption Expenditure)-इसमें (a) निजी उपभोग खर्च (C) और सरकारी उपभोग खर्च (G) को शामिल किया जाता है। आय का जो भाग उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, उसको (b) निवेश किया जाता है। इसलिए बन्द अर्थव्यवस्था में कुल माँग का अर्थ उपभोग + निवेश (C + I) से होता है। यदि खुली अर्थव्यवस्था होती है तो एक देश विदेशों को निर्यात (X) करता है तथा आयात (M) की जाती है इसलिए खुली अर्थव्यवस्था में कुल माँग = उपभोग + निवेश + निर्यात – आयात (C + I + X – M) के बराबर होता है। केन्ज़ ने कुल माँग की व्याख्या बन्द अर्थव्यवस्था में की है। इसलिए कुल माँग में उपभोग तथा निवेश को शामिल किया जाता है।

(b) निवेश खर्च (Investment Expenditure)-उपभोग में निवेश खर्च शामिल कर के कुल माँग का माप किया जाता है। (C + I)

कुल माँग फलन (Aggregate Demand Function)- कुल माँग फलन एक सूची पत्र होता है जिसमें आय या रोज़गार के विभिन्न स्तर पर देश के उद्यमियों को कितनी-कितनी आय प्राप्त होने की सम्भावना है उस सूची-पत्र को कुल माँग फलन कहा जाता है। जब आय शून्य (0) होती है तो भी कुछ रकम उपभोग पर ज़रूर खर्च की जाती है। यह रकम उपभोगी पुरानी बचतों को खर्च करके या उधार रकम लेकर पूरी करते हैं। जब उनको आय होती है तो खर्च आय के समान हो जाता है परन्तु जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है तो माँग में भी वृद्धि होती है जोकि आय की वृद्धि से कम होती है। इसे एक सूची-पत्र तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 9

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 10
तालिका में दिखाया है कि जब आय 0 (शून्य) है तो लोग ₹ 150 करोड़ उपभोग पर खर्च करते हैं। जब आय बढ़ जाती है जैसा कि ₹ 100, 200, 300, 400, 500 करोड़ दिखाई है तो कुल माँग ₹ 50, 100, 150, 200, 250, 300 करोड़ है। ₹ 100 करोड़ की आय 100 करोड़ माँग के बराबर हो जाती है। इसके बाद आय में वृद्धि होती है तो कुल माँग में वृद्धि कम दर पर होती है।

रेखाचित्र 3 में 45° पर Y = (C + S) रेखा दिखाई गई है। AD कुल माँग रेखा है, कुल माँग रेखा (AD), OY (45°) रेखा को E बिन्दु पर काटती है। अर्थात् ₹ 100 करोड़ आय, ₹ 100 करोड़ खर्च के समान है। E बिन्दु को कुल माँग का बिन्दु कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 2.
परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा, केन्ज़ की कुल पूर्ति की धारणा से कैसे भिन्न है ?
(How is classical concept of aggregate supply different from Keynesian concept of aggregate supply ?)
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल पूर्ति से है। (Aggregate supply is the total supply of goods and services in an economy.) कुल पूर्ति को भी कीमत स्तर से सम्बन्धित किया जाता है। इस सम्बन्धी दो दृष्टिकोण हैं-
(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)
(B) केन्ज़ीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)

(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों का विचार था कि पूँजीगत अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है। इस अर्थव्यवस्था में कीमत स्तर की अवस्था चाहे कोई भी हो, देश में कुल उत्पादन स्थिर रहता है। कीमत की वृद्धि अथवा कमी से कुल उत्पादन अथवा कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसलिए कुल पूर्ति रेखा पूर्ण अलोचशील OY रेखा के समानान्तर होती है।

जैसे कि रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है कि कीमत स्तर में परिवर्तन होने से कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता, OQ उत्पादन किया जाता है। इस स्थिति में पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है। परम्परागत ङ्केकुला पूर्ति वक्र AS सीधी रेखा OY के समानान्तर होती है । इसका मुख्य कारण से’ का बाजार नियम है तथा मज़दूरी कीमत लोचशीलता का पाया जाना है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 11

(B) केन्जीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)-केन्ज़ की कुल पूर्ति वक्र कीमत स्तर के संदर्भ में पूर्ण लोचशील होती है अर्थात् उत्पादक स्थिर कीमत स्तर पर वस्तुओं की कोई मात्रा का उत्पादन करने के लिए तैयार होते हैं। जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाती। जैसे कि रेखाचित्र में AS वक्र पहले OX रेखा के समानान्तर है जोकि पूर्ण लोचशील है। इसके दो कारण होते हैं।

  • मज़दूरी कीमत स्थिरता (Wage Price Rigidity)
  • मजदूरों की स्थिर सीमान्त उत्पादकता (Constant Marginal Product of Labour) यह विचार परम्परागत विचार के बिल्कुल विपरीत है। पूर्ण रोजगार से पहले मजदूरी स्थिर रहती है तथा मज़दूरी की सीमान्त उत्पादकता स्थिर रहती है, परन्तु जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसको F बिन्दु द्वारा दिखाया है तो उसके पश्चात् AS वक्र पूर्ण बेलोचशील OY के समान्तर हो जाती है। जैसे कि परम्परागत कुल पूर्ति वक्र है। F बिन्दु के पश्चात् कीमत स्तर में परिवर्तन से उत्पादन OQ स्थिर रहता है। इसको पूर्ण रोज़गार उत्पादन का स्तर कहा जाता है।

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PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 7 बैंकिंग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 7 बैंकिंग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 बैंकिंग

PSEB 12th Class Economics बैंकिंग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंक से क्या अभिप्राय है ? अथवा बैंक को परिभाषित करो।
उत्तर-
बैंक वह संस्था है जो मुद्रा जमा करवाती है तथा मुद्रा उधार देती है। कैरनकरॉस अनुसार, “बैंक एक वित्तीय विचोला है जो कि ऋण तथा उधार का कार्य करता है।”
(“A Bank is a financial intermediary, a dealer in loans and debts.” -Carincross)

प्रश्न 2.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है।

प्रश्न 4.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • जमा राशि प्राप्त करना
  • उधार देना।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है।

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प्रश्न 6.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना
  2. साख नियन्त्रण।

प्रश्न 7.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए दो सुधार बताओ।
उत्तर-

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार-श्री एम० नरसिमहम ने 1992 तथा 1998 में आधुनिकीकरण तथा निजीकरण सम्बन्धी विचार दिए तथा कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार करना चाहिए तथा इनको कार्य में स्वतन्त्रता प्रदान करनी चाहिए।
  • निजी क्षेत्र में नए बैंक-बैंकों को निजी क्षेत्र में कार्य करने की आज्ञा देनी चाहिए। भारत में इस समय 10 बैंक निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 8.
जो संस्था लोगों की मुद्रा जमा करती है और मुद्रा उधार देती है को …………… कहते हैं।
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) आहड़तियां
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 9.
जो संस्था देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढांचे का संचालन करती है को …………. कहते हैं।
(क) सरकार
(ख) वित्त मंत्रालय
(ग) केन्द्रीय बैंक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) केन्द्रीय बैंक।

प्रश्न 10.
देश का केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है और करंसी जारी करता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना ताकि उधार दिया जा सके।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
करंसी को छापने का काम भारत सरकार करती है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 13.
किस बैंक को करंसी जारी करने का अधिकार है ?
अथवा
देश में सरकार का बैंक कौन सा होता है ?
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) सहकारी बैंक
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) केन्द्रीय बैंक।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके। जो राशि बैंकों में जमा करवाती है, उसको चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार वापिस लिया जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि बैंकिंग के दो मुख्य कार्य पैसा जमा करवाना तथा उधार देना है।

प्रश्न 2.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है। यह राशि व्यापारियों को निवेश करने के लिए उधार दी जाती है। जमाकर्ता अपनी राशि बैंक में से चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार जब मर्जी वापिस कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंकों के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमा राशि प्राप्त करना-व्यापारिक बैंक लोगों से जमा राशि प्राप्त करते हैं। लोगों की बचतों को एकत्रित करके इनकी सम्भाल करते हैं तथा कुछ ब्याज भी देते हैं।
  2. उधार देना-व्यापारिक बैंक अपने पास जनता की जमा राशि को व्यापारियों तथा उद्यमियों को निवेश करने के लिए उधार देते हैं।

प्रश्न 4.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है। केन्द्रीय बैंक, बैंकों का बैंक तथा सरकार का बैंक होता है। यह संस्था देश में करेन्सी का संचालन करती है तथा अन्तिम ऋणदाता माना जाता है, जोकि बैंकों तथा सरकार को आवश्यकतानुसार उधार देता है।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • करेन्सी जारी करना-केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में करेन्सी, नोट तथा सिक्के जारी करता है। मुद्रा के मूल्य को स्थिर रखने का भी प्रयत्न करता है।
  • साख नियन्त्रण-व्यापारिक बैंक उधार निर्माण करते हैं। केन्द्रीय बैंक देश में व्यापारिक बैंकों के उधार देने पर नियन्त्रण रखता है।

प्रश्न 6.
ई-बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकों के इन्टरनैट द्वारा संचालन को ई-बैंकिंग कहा जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
अथवा
व्यापारिक बैंकों के लाभ बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंक के चार मुख्य कार्य हैं

  1. राशि जमा करना तथा उधार देना-व्यापारिक बैंकों का प्राथमिक कार्य जनता की बचतों को जमा करना तथा उस राशि को आगे व्यापारियों को उधार देना होता है। जमा राशि का कुछ हिस्सा नकद रखकर शेष राशि बैंक उधार दे देता है।
  2. एजेन्सी कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए प्रतिनिधि तौर पर बहुत-से कार्य करते हैं, जैसे कि चैक अथवा ड्राफ्ट दूसरे बैंकों से एकत्रित करना, ग्राहकों की जायदाद का ट्रस्टी दूसरे स्थानों पर पैसे भेजना, किश्तें जमा करवाना इत्यादि एजेन्सी कार्य किए जाते हैं।
  3. विकासवादी कार्य-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, उधार देना, ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए उधार देना तथा मौद्रिक नीति को लागू करने में सहयोग देता है।
  4. साधारण सेवाओं के कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को लेकर सुविधाएं, ट्रैवल्ज़ चैक, यातायात की सुविधाएं इत्यादि सेवाओं के कार्य भी करते हैं। इस प्रकार व्यापारिक बैंक लाभदायक हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना-व्यापारिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण कार्य देश में करन्सी जारी करना होता है। विश्व के सभी देशों में नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी किए जाते हैं।
  2. सरकार का बैंक केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है। सरकार की प्राप्तियां केन्द्रीय बैंक में जमा करवाई जा सकती हैं। यह बैंक सरकार के सभी भुगतान भी करता है। जब सरकार को मुद्रा का संकट सहन करना पडता है तो अल्पकालीन ऋण की सुविधा केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रदान की जाती है।
  3. बैंकों का बैंक-केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों का बैंक भी होता है। व्यापारिक बैंकों को आवश्यक तौर पर जमा खाते की निश्चित प्रतिशत राशि केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियां प्राप्त करके रखनी पड़ती है। जब किसी समय व्यापारिक बैंक को मुश्किल का सामना करना पड़ता है तो केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को अल्पकालीन उधार की सुविधा प्रदान करता है।
  4. उधार नियन्त्रण-केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार नियन्त्रण करना होता है। देश में उधार मुद्रा के प्रसार तथा संकुचन के लिए केन्द्रीय बैंक द्वारा नीति बनाई जाती है। इससे देश में आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य पूरा किया जाता है।

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प्रश्न 3.
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंकों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में अन्तर-प्रो० शेयरज़ (Seyers) ने केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में मुख्य अन्तर इस प्रकार स्पष्ट किए हैं-

अन्तर का आधार केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक
1. मालकी केन्द्रीय बैंक की मालकी तथा संचालन सरकार के अधीन होती है। व्यापारिक बैंक सरकारी अथवा निजी मालकी वाले हो सकते हैं।
2. उद्देश्य केन्द्रीय बैंक का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
3. संख्या देश में केन्द्रीय बैंक एक होता है। व्यापारिक बैंकों की संख्या अधिक होती है।
4. तालमेल केन्द्रीय बैंक का जनता से सीधा तालमेल नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का सीधा जनता से तालमेल  होता है।
5. करन्सी केन्द्रीय बैंक देश की करन्सी का निर्माता तथा संचालक होता है। व्यापारिक बैंक नकद करन्सी का निर्माण नहीं करते, बल्कि उधार निर्माण करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में हाल ही में किए गए कोई चार बैंकिंग सुधार बताओ।
उत्तर-
श्री एम० नरसिहम ने 1991 तथा 1998 में बैंकिंग सुधार करने के लिए निम्नलिखित सिफ़ारिशें की, जिनको सरकार ने तुरन्त लागू किया है।

  1. निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक-निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक खोलने की सिफारिश की गई। यह बैंक विदेशों में बसे भारतीयों से पूँजी प्राप्त करके आरम्भ करने के लिए कहा गया। इस समय 10 व्यापारिक बैंक निजी क्षेत्र में चल रहे हैं।
  2. आधुनिकीकरण-व्यापारिक बैंकों में कम्प्यूटर द्वारा खातों का संचालन किया जाता है। देश में कुछ बैंक जिनका कम्प्यूटर द्वारा तालमेल है, अपने ग्राहकों को देश में उस बैंक की किसी शाखा में से पैसे निकलवाने अथवा जमा करवाने की सुविधा प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक बैंकों की निगरानी-प्रतिभूतियों के घोटाले के पश्चात् केन्द्रीय बैंक ने व्यापारिक बैंकों की निगरानी के लिए एक अलग विभाग स्थापित किया है, जो व्यापारिक बैंकों के ग़लत लेन-देन पर रोक लगाता
  4. वास्तविक स्वायत्तता-व्यापारिक बैंकों के संचालन के लिए वास्तविक स्वायत्तता के लिए विचार कर रहा है। इससे व्यापारिक बैंक अन्य कार्य सुचारु ढंग से कर सकेंगे।

V. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ? व्या शरिक बैंकों के मुख्य कार्य बताओ।
(What is meant by Commercial Banks ? Discuss the main functions of Commercial Banks.)
उत्तर-
व्यापारिक बैंक का अर्थ (Meaning of Commercial Bank) व्यापारिक बैंक वह बैंक है जोकि लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ जनता से जमा राशि प्राप्त करते हैं तथा उधार देते हैं। व्यापारिक बैंक एक व्यावसायिक संस्था है जोकि उधार मुद्रा का लेन-देन करती है। प्रो० रीड तथा गिल के अनुसार, ‘पारिक बैंक ऐसी वित्तीय संस्था होती है, जोकि मांग जमा स्वीकार करती है तथा व्यापारिक उधार देती है।” (“A Commercial ial Bank is a financial institution that accepts demand deposits and makes Commercial Leas.” . Keed and

व्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य (Main Functions of Commercial Banks) – स्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. जमा राशि प्राप्त करना (Accepting Deposits)- व्यापारिक बैंक ने मोह जना शि प्राप्त करते हैं। यह लोगों की बचतों को एकत्रित करते हैं। इस उद्देश्य के लिए व्यापारिक कलीन प्रकार के खाने बोलते हैं ।

  • चालू जमा खाता (Current Deposit Account) – चाल जाने में जमा राशि को माँग जमा कहा जाता है। इस खाते में से राशि किसी भी समय वैक हार मालवाई जा सकती है परे खाते पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता, बल्कि चालू खाते के प्रबन्ध सम्बन्धी व्यय व्यापारियो साप्त किया जाता है। यह खाते व्यापारिक उद्देश्य के लिए खोले जाते हैं।
  • निश्चितकालीन खाता (Fixed Deposit Account)-इस खाते में निश्चित समय के लिए गशि जमा करवाई जाती है। यह खाता कुछ दिनों का अथवा कुछ वर्षों का हो सकता है। इन खातों में से निश्चित समय के पश्चात् राशि निकलवाई जा सकती है। इस खाते में जमा राशि पर ब्याज की दर साधारण तौर पर अधिक होती है।
  • बचत जमा खाता (Saving Deposit Account)-यह खाते बचतों को एकत्रित करने के लिए खोले जाते हैं। इन खातों में चालू जमा खाते तथा निश्चितकालीन खाते की विशेषताएं होती हैं। इन खातों में से जब मर्जी हो राशि निकलवाई जा सकती है तथा इन खातों पर ब्याज भी दिया जाता है, परन्तु ब्याज की दर निश्चितकालीन खाते से कम होती है।

2. उधार देना (Giving Loans)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा हो जाती है, उसको बेकार नहीं रखते, बल्कि इसका कुछ भाग नकदी के रूप में रखकर शेष राशि उधार दे देते हैं। बैंकों द्वारा अग्रलिखित प्रकार के ऋण दिए जाते हैं-

  • नकद उधार (Cash Credit)-नकद रूप में उधार देने वाले उधार लेने वाले ग्राहक की उधार सीमा निश्चित की जाती है। उधार सीमा निश्चित करते समय उधार लेने वाले के भण्डार, सम्पत्ति इत्यादि गिरवी रखकर उधार दिया जाता है। इसमें से जितनी राशि उधार ली जाती है, उस राशि का ब्याज प्राप्त किया जाता है।
  • माँग उधार (Demand Credit)-माँग उधार वह उधार होता है जो कि माँगना तथा वापिस करना आवश्यक होता है। उधार की सभी राशि, उधार लेने वाले के खाते में जमा की जाती है। इसलिए सभी राशि पर ही ब्याज प्राप्त किया जाता है। यह उधार प्रतिभूतियों के दलालों अथवा उन लोगों द्वारा लिया जाता है, जिनकी दिन प्रतिदिन आवश्यकताओं में परिवर्तन होता रहता है।
  • अल्पकाल ऋण (Short Term Loans) अल्पकालीन ऋण साधारण तौर पर निजी ऋण के रूप में होते हैं। यह ऋण कार्यशील पूँजी के लिए दिए जाते हैं। यह ऋण जमानत रखकर दिए जाते हैं। ऐसे ऋण उधार लेने वाले के खाते में जमा किए जाते हैं तथा सारी राशि पर ब्याज़ लगता है। यह ऋण किश्तों में

अथवा एक बार ही वापिस किया जा सकता है।

अन्य कार्य अथवा सुविधाएं (Other Functions or Facilities)-ऊपर दिए दो प्राथमिक कार्यों (Primary Functions) के बिना व्यापारिक बैंकों द्वारा ग्राहकों को कुछ अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। व्यापारिक बैंकों के यह अन्य कार्य इस प्रकार हैं –

3. ओवर ड्राफ्ट (Over Draft)-बैंकों में चालू खाता रखने वाले ग्राहक बैंक से किए समझौते अनुसार जमा राशि से अधिक राशि निकलवाने की आज्ञा भी लेते हैं। इसको ओवर ड्राफ्ट कहा जाता है, जैसे कि एक व्यापारी के बैंक में ₹ 10 लाख जमा हैं, वह व्यापारी ₹ 15 लाख की राशि निकाल लेता है तो ₹5 लाख को ओवर ड्राफ्ट कहा जाएगा।

4. विनिमय बिलों की कटौती (Discounting Bills of Exchange)-विनिमय बिल एक लिखित होता है, जोकि वस्तुएं प्राप्त करने वाला वस्तुओं के मालिक को लिखकर देता है कि उन वस्तुओं की राशि, कुछ समय पश्चात् दे देगा। उदाहरणस्वरूप X मनुष्य ने Y मनुष्य से वस्तुएं खरीदी परन्तु उसका तुरन्त भुगतान नहीं कर सकता।

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वह मनुष्य Y मनुष्य को विनिमय बिल दे देता है जिसमें वापसी की राशि तथा समय लिखा होता है। यदि Y मनुष्य को पैसे की आवश्यकता पड़ जाती है तो यह मनुष्य बैंक के पास कटौती के लिए विनिमय बिल पेश करता है। बैंक कुछ कमीशन काटकर शेष की राशि Y मनुष्य को दे देता है। जब विनिमय बिल का समय पूरा हो जाता है तो बैंक X मनुष्य से राशि प्राप्त कर लेता है। विनिमय बिलों को हुंडी भी कहा जाता है।

5. बैंक के एजेन्ट के रूप में कार्य (Agency Functions of the Bank)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए कई तरह से एजेन्ट के रूप में कार्य करता है।

  • मुद्रा का हस्तांतरण (Transfer of Funds)-व्यापारिक बैंक मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का कार्य भी करते हैं।
  • विभिन्न मदों का एकत्रीकरण तथा भुगतान (Collection and Payment of various Items) बैंक ग्राहकों के लिए फण्ड एकत्रित करते हैं जोकि चैक, ड्राफ्ट, हुंडी इत्यादि के रूप में होते हैं तथा किश्तों का भुगतान भी किया जाता है।
  • भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद-बेच (Purchase and sale of shares and securities) बैंक भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद बेच का कार्य भी करते हैं तथा इनको सम्भाल कर रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंक विदेशी मुद्रा की खरीद बेच भी करते हैं। इससे ग्राहकों को सुविधा मिलती है।
  • ट्रस्टी तथा प्रबन्धक (Trustee and Executor) ग्राहकों के निवेदन पर बैंक उनकी जायदाद के ट्रस्टी तथा प्रबन्धक का कार्य भी करते हैं।
  • सन्दर्भ पत्र (Letter of Reference)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की सूचना दूसरे व्यापारियों को देते हैं।

6. साधारण उपयोगिता की सेवाएं (General Utility Services)-व्यापारिक बैंक कुछ साधारण उपयोगिताओं की सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

  • लॉकर की सुविधाएं (Locker Facilities)-बैंक द्वारा लॉकर की सुविधा दी जाती है, जिसमें ग्राहक कीमती सामान रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंकों द्वारा विदेशी व्यापार के विकास के लिए विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच भी की जाती है।
  • यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक (Traveller’s cheques and Gift cheques)-बैंकों द्वारा यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • वस्तुओं के यातायात की सहायता (Help in Transport of Goods) वस्तुएं भेजने के लिए व्यापारी, ग्राहकों को माल भेजकर बिलटी बैंक को भेज देते हैं। ग्राहक पैसे देकर बिलटी ले लेते हैं तथा माल प्राप्त करते हैं।
  • नए शेयरों के अनबिकाऊ भाग को खरीदना (Under writing)-नए अनबिकाऊ शेयरों को खरीदने का बैंक विश्वास देते हैं।
  • आय कर की वसूली (Income Tax Receipt)-ग्राहकों से आय कर प्राप्त करके सरकारी खज़ाने में जमा करवाते हैं।

7. उधार निर्माण (Credit Creation)-व्यापारिक बैंक जमा राशि की सहायता से कई गुणा अधिक उधार निर्माण करते हैं। यदि बैंक में ₹ 100 करोड़ की राशि जमा है तथा केन्द्रीय बैंक ने नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) 10% निश्चित की है तो उधार गुणक = \(\frac{1}{\mathrm{CRR}}=\frac{1}{10 / 100}=\frac{1 \times 100}{10}\) = 10 होगा अर्थात् ₹ 100 करोड़ से बैंक 10 गुणा अर्थात् ₹ 1000 करोड़ का उधार निर्माण कर सकते हैं।

8. आर्थिक विकास के कार्य (Role of Banks in Economic Development)-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, निवेश तथा रोजगार में वृद्धि, ग्रामीण विकास तथा मौद्रिक नीति का संचालन करके आर्थिक विकास में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक को परिभाषित करो। केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य बताओ।
(Define a Central Bank. Explain main functions of a Central Bank.)
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक का अर्थ (Meaning of Central Bank)-केन्द्रीय बैंक देश की सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है, जोकि मौद्रिक प्रणाली का संचालन करता है। यह बैंकिंग प्रणाली को नियन्त्रण में रखकर आर्थिक विकास के लिए उपाय करता है। प्रो० डीकाक के शब्दों में, “केन्द्रीय बैंक ऐसा बैंक है, जो कि देश में मौद्रिक तथा बैंकिंग ढाँचे की चोटी कहा जा सकता है।” (“A Central Bank is the Bank which constitutes the apex of the monetary and banking structure.”-Dekock) प्रो० सैम्यूलसन अनुसार प्रत्येक केन्द्रीय बैंक का एक प्रमुख कार्य है। यह अर्थव्यवस्था, मुद्रा की पूर्ति तथा साख मुद्रा पर नियन्त्रण का कार्य करता है। यह अन्तिम ऋणदाता होता है।

केन्द्रीय बैंक के कार्य (Functions of the Central Bank) केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –
1. करन्सी जारी करना (Issuing of Currency) केन्द्रीय बैंक को करन्सी जारी करने का अधिकार होता है, जो नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं। विश्व के सभी देशों में करन्सी छापने का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक के पास होता है। भारत में एक रुपये के नोट वित्त मन्त्रालय द्वारा जारी किए जाते हैं, जबकि शेष सभी नोट तथा सिक्के देश का केन्द्रीय बैंक (रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया) जारी करता है।

2. सरकार का बैंक (Banker to the Government)-साधारण तौर पर केन्द्रीय बैंक, केन्द्र तथा राज्य सरकारों को व्यापारिक बैंकों वाली सुविधाएं प्रदान करता है। केन्द्र तथा राज्य सरकारों की मुद्रा लेने देने का कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर सरकार को अल्पकालीन ऋण की सुविधा भी प्रदान करता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक सभी देशों की सरकारों के बैंकर, एजेन्ट तथा सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं।

3. बैंकों का बैंक (Banker’s Bank) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। सभी व्यापारिक बैंकों को कानूनी तौर पर जमा खाते में राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है। इसका मुख्य कारण है कि केन्द्रीय बैंक को व्यापारिक बैंकों की आर्थिक स्थिति का ज्ञान रहता है। देश में उधार निर्माण तथा केन्द्रीय बैंक नियन्त्रण रख सकता है। संकट समय बैंक, केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती तथा दृढ़ता प्रदान करने में सहायक होता है।

4. अन्तिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का भी बैंक होता है। व्यापारिक बैंक अपनी अधिक जमा राशि केन्द्रीय बैंक के पास जमा करवाते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है तथा इसको अन्तिम ऋणदाता कहा जाता है। सदस्य बैंकों के गिरवी योग्य बिलों की कटौती करके व्यापारिक बैंकों को अस्थाई वित्तीय सहायता दी जाती है।

5. बैंकों का निरीक्षण (Supervision of Banks) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होने के कारण बैंकिंग प्रणाली का संचालन तथा निरीक्षण करता है। नए बैंकों को लाइसैंस देना, बैंकों की ब्रांचों में विस्तार करने की आज्ञा देना, व्यापारिक बैंकों में परिस्थापन (Liquidation) तथा दूसरे बैंक में एक बैंक का मिलन (Merger) इत्यादि कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किए जाते हैं।

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6. देश के विदेशी मुद्रा कोष का रक्षक (Custodian of the Foreign exchange reserves of the country)-केन्द्रीय बैंक का महत्त्वपूर्ण कार्य देश के विदेशी मुद्रा कोष की रक्षा करना होता है। देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में स्थिर रखने के लिए केन्द्रीय बैंक सोने तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार को
अधिक मात्रा में संचय करके रखता है। इससे भुगतान सन्तुलन को अनुकूल बनाने में सहायता मिलती है।

7. समयशोधन गृह का कार्य (Clearing House Functions)-बैंकों द्वारा दूसरे बैंकों के ग्राहकों के चैक प्राप्त होते हैं तथा दूसरे बैंकों के पास इस बैंक के ग्राहकों के चैक होते हैं। यदि बैंक एक-दूसरे से प्रत्येक चैक का लेन-देन करेंगे तो बहुत समय चाहिए। केन्द्रीय बैंक इस समस्या के हल के लिए समयशोधन गृह के रूप में कार्य करता है। केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रत्येक बैंक का खाता होता है। इसमें प्रत्येक बैंक के प्रतिनिधि प्रतिदिन चैक एक-दूसरे के खातों में जमा करवा देते हैं। इसी तरह नकदी की मांग बहुत कम हो जाती है।

8. साख मुद्रा पर नियन्त्रण (Control over Credit)-वर्तमान युग में केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार मुद्रा पर नियन्त्रण होता है। देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तथा विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उधार मुद्रा का विस्तार तथा संकुचन किया जाता है। इससे देश की कीमत स्तर, रोज़गार, मुद्रा-स्फीति, आय का समान विभाजन तथा स्थिरता इत्यादि उद्देश्यों की पूर्ति होती है। इस कारण नकद मुद्रा तथा साख मुद्रा का संचालन केन्द्रीय बैंक का विशेष कार्य होता है।

9. समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन (Collection and Publication of Data) केन्द्रीय बैंक द्वारा आंकड़े एकत्रित करना तथा प्रकाशन का कार्य भी किया जाता है। समय-समय पर केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली, वित्तीय अवस्था, कीमतों की प्रवृत्ति, उधार निर्माण इत्यादि सम्बन्धी समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन करती है। इस द्वारा देश की आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।

10. अन्य कार्य (Other Functions)-इसके बिना केन्द्रीय बैंक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक से तालमेल रखता है तथा अपने प्रतिनिधि भेजकर विदेशी पूंजी का प्रबन्ध करता है। देश में मुद्रा बाज़ार जिसमें अल्पकाल ऋण दिए जाते हैं, इसका संचालन करता है। कृषि विकास तथा औद्योगिक उन्नति के लिए साख सुविधाएं प्रदान करता है। पुरानी करन्सी वापिस लेकर नोट परिवर्तन का कार्य भी केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक के कार्यों को ध्यान में रखकर इसको चोटी की संस्था (Apex organisation) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए गए सुधारों का वर्णन करो। (Explain the receni significant reforms in India Banking System.)
उत्तर-
भारतीय बैंकि प्रणाली में सुधार करने के लिए श्री एम० नरसिहमह ने 17 दिसम्बर, 1991 में अपनी रिपोर्ट पेश की। उस समय के भूतपूर्व वित्त मन्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने आर्थिक नियोजन द्वारा आधुनिकीकरण (Modernisation) तथा निजीकरण (Privatisation) के उद्देश्य को पूरा करने के लिए बैंकिंग प्रणाली में सुधारों पर जोर दिया।

इसके पश्चात् भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जो सुधार किए गए हैं, उनका विवरण इस प्रकार है-
1. सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विकास (Development of Banking in Public Sector)-सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विस्तार किया गया। इस सम्बन्ध में 1969 में 14 बैंकों तथा 1980 में 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इसी समय सार्वजनिक क्षेत्र में 27 बैंक कार्य कर रहे हैं।

2. निजी क्षेत्र में नए बैंक (New Private Sector Banks)-निजी क्षेत्र में बैंक स्थापित करने की आज्ञा दी गई है। इसी समय 10 निजी क्षेत्र में बैंक कार्य कर रहे हैं। इन बैंकों को विदेशों में बसे भारतीयों (N.R.I.) से पूँजी एकत्रित करने की आज्ञा दी गई है। विदेशी भारतीयों से कुल निवेश पूँजी का 40% भाग एकत्रित किया जा सकता है तथा संस्थागत विदेशी संस्थाओं से 20% हिस्सा निवेश में लगवाया जा सकता है।

3. संचालन की स्वतन्त्रता (Freedom of Operation)-शैड्यूल्ड व्यापारिक बैंकों को शाखाएं खोलने की स्वतन्त्रता दी गई है तथा जो शाखाएं ठीक तरह से कार्य नहीं कर रहीं, उनको बन्द करने की आज्ञा भी प्रदान की गई है। बैंकों द्वारा दिए जाने वाले उधार सम्बन्धी भी स्वतन्त्रता दी गई है ताकि बैंकों का संचालन ठीक ढंग से हो सके।

4. क्षेत्रीय बैंक (Local Area Banks)-भारत सरकार ने 1996-97 में क्षेत्रीय बैंकों की स्थापना करने की योजना को स्वीकृति दी। यह बैंक ग्रामीण क्षेत्र के लिए विशेष करके स्थापित किए गए हैं। इन बैंकों में ग्रामीण क्षेत्र में से बचतों को उत्साहित किया जाएगा तथा जमा राशि को ग्रामीण क्षेत्र में ही निवेश किया जाएगा।

5. पूंजी बाज़ार तक पहुँच (Access to Capital Market)-केन्द्रीय सरकार ने बैंकिंग कम्पनी एक्ट में संशोधन करके राष्ट्रीयकृत बैंकों को यह अधिकार दिया है कि पूंजी बाज़ार में जाकर वह पूंजी एकत्रित कर सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए बाज़ार में जनता को भागीदारियां बेची जा सकती हैं, परन्तु इस पूँजी में केन्द्र सरकार का हिस्सा 51% से कम नहीं होना चाहिए।

6. ब्याज दर सम्बन्धी नीति (Policy regarding Interest Rate)-ब्याज दर सम्बन्धी नीति में संशोधन किया गया। प्रथम ब्याज दरों की 20 स्लैबें थीं, जोकि 1994-95 में घटाकर 2 स्लैबें की गई हैं। ब्याज तथा पूँजी उधार देने पर कोई नियन्त्रण नहीं। ₹2 लाख से अधिक उधार पूंजी तथा ब्याज की दर कम रखने के लिए कहा गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक अथवा कम ब्याज की दर रख सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए जोखिम को ध्यान में रखा जाता है।

7. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियों के रूप में व्यापारिक बैंकों को जो राशि रखनी पड़ती है, उसको नकद रिज़र्व अनुपात कहा जाता है। प्रथम नकद रिज़र्व अनुपात 10% होती थी। जनवरी 2009 में नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर 5% किया गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार दे सकते हैं।

8. वैधानिक तरल अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) केन्द्रीय बैंक द्वारा वैधानिक तरल अनुपात निश्चित किया जाता, जोकि व्यापारिक बैंक को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। 1997 से पहले कानूनी तरल अनुपात 38.5% था, जोकि घटाकर 25% किया गया है। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक अधिक उधार मुद्रा दे सकते हैं तथा व्यापरिक बैंकों की आय बढ़ सकती है।

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9. विवेकपूर्ण प्रणाली (Prudential System)-रिज़र्व बैंक ने देश में विवेकपूर्ण प्रणाली द्वारा बैंक प्रणाली में सुधार करने का प्रयत्न किया है। प्रत्येक बैंक को दिए गए उधार का वर्गीकरण स्पष्ट करना होगा, जिसमें प्रत्येक बैंक अपनी किताबों में बुरे ऋण (Bad Debt) का विवरण देगा। 1992-93 तक दिए गए ऋण में से 30% बुरे ऋण माफ़ करने तथा 1993-94 में शेष के 70 प्रतिशत बुरे ऋण माफ़ करने के लिए ₹ 10,000 करोड़ की राशि प्रदान की गई।

10. व्यापारिक बैंकों की निगरानी (Supervision-or Commercial Banks)-भारत में 1992 में प्रतिभूतियों का घोटाला (Securities Scan) हुआ, जिसमें दिसम्बर, 1993 में रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने अलग निगरानी विभाग स्थापित किया है, जोकि व्यापारिक बैंकों पर निगरानी रखता है, ताकि बैंक जमा राशि का दुरुपयोग न कर सकें। सन् 1998 में वित्त मन्त्रालयों ने श्री एम० नरसिम्हा के नेतृत्व अधीन एक कमेटी की स्थापना की ताकि बैंकिंग प्रणाली में अन्य सुधार किया जा सके।
इस कमेटी ने निम्नलिखित सिफ़ारिशें की |

11. मज़बूत बैंकिंग प्रणाली (Strong Banking System)-भारत में बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए बैंकों की विलीनता (Merger) का सुझाव दिया ताकि देश में बैंक अधिक कुशलता से कार्य कर सकें। 200405 में वित्त मन्त्री पी. चिदम्बरम ने भी इस सुझाव से सहमति प्रकट की है। इससे बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

12. स्थानीय बैंक (Local Banks)-नरसिम्हा कमेटी ने यह सुझाव दिया है कि स्थानीय छोटे बैंक स्थापित किए जाएं ताकि स्थानीय कृषि, छोटे पैमाने के उद्योगों तथा व्यापारियों की आवश्यकता को पूरा किया जा सके।

13. बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार (Review of Banking Laws)-बैंकिंग प्रणाली के बढ़ते योगदान को ध्यान में रखकर बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार करने का सुझाव भी दिया गया है। इस सम्बन्धी RBI एक्ट, SBI एक्ट बैंक राष्ट्रीयकरण सम्बन्धी एक्ट में संशोधन करने की आवश्यकता है।

14. वास्तविक स्वायत्तता (Real Autonomy)-सरकार नियन्त्रण से बैंकों को स्वायत्तता प्राप्त नहीं होती। बैंक के संचालक बोर्ड को वास्तविक स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए।

15. ऋण वसूली (Recovery of Debt)-सरकार ने ऋण वसूली सम्बन्धी 6 विशेष वसूली ट्रिब्यूनल स्थापित किए हैं जोकि बैंगलौर, चेन्नई, कलकत्ता (कोलकाता), नई दिल्ली, जयपुर तथा अहमदाबाद में स्थित हैं। बुरे ऋण की माफ़ी के लिए यह ट्रिब्यूनल सिफ़ारिशें देते हैं।

प्रश्न 4.
आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा प्राप्त मुख्य सहूलियतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly main facilities provided by Modern Banking/e-Banking.)
उत्तर-
इन्टरनैट ने समूह विश्व को एक गाँव अथवा शहर का रूप दे दिया है। इसकी सहायता से विश्व की बैंकिंग प्रणाली e-बैंकिंग का रूप धारण कर गई है। विकसित देशों की बैंकिंग प्रणाली का प्रभाव भारत की बैंकिंग प्रणाली पर भी नज़र आ रहा है। भारत की बैंक प्रणाली में इतना सुधार हुआ है कि इसका बहुपक्षीय प्रभाव पड़ा है।

आधुनिक बैंकिंग अथवा e-बैंकिंग द्वारा बहुत-सी सहूलियतें प्रदान की जाती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है –
1. बैंकिंग सेवाओं का कम्प्यूटरीकरण (Computerization of Banking Services)-बैंकिंग प्रणाली का भारत में भी कम्प्यूटरीकरण हो गया है। इससे बैंकों में कार्य करने वाले कर्मचारियों की संख्या में बहुत कमी हो गई है। अब कम गिनती में कर्मचारी कम्प्यूटर की सहायता से सभी काम-काज आसानी से कर लेते हैं। कम्प्यूटरीकरण से सभी खाताधारकों का हिसाब-किताब, ब्याज की गणना शुद्ध और ठीक की जाती है जिसमें गलती की सम्भावना नहीं होती।

2. बैंकिंग आन लाइन (Banking On Line) कम्प्यूटर की सहायता से बैंकिंग आन लाइन की सुविधा प्रदान की जाती है। अब ग्राहक को बैंक में जा कर लेन-देन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती बल्कि प्रत्येक बैंक की एक वैबसाइट होती है जिसको खाताधारक खोल कर अपने खाते की जानकारी घर बैठे ही प्राप्त कर सकता है। घर बैठे ही वह बहुत से भुगतान कर सकता है जैसे कि बिजली का बिल, पानी, सीवरेज, टेलीफोन का बिल, घर पर लिए गए ऋण की किश्त, कार की किश्त अथवा और किसी किस्म का भुगतान कर सकता है। इससे न केवल समय की बचत होती है बल्कि लोगों को भौतिक रूप में किसी दफ्तर अथवा बैंक में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

3. ए.टी.एम. सुविधा (ATM Facility)-ए.टी.एम. (Automatic Teller Machine) की सुविधा ने लोगों के जीवन को और आसान बना दिया है। पहले लोगों को बैंक में निजी रूप में जाकर पैसे का लेन-देन करना पड़ता था। परन्तु ए.टी.एम. की सहायता से किसी भी समय खाताधारक अपने खाते की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकता है। खाताधारक के खाते में शेष कितने पैसे हैं, उनमें से वह कितने पैसे प्राप्त करना चाहता है अथवा खाते में पैसे डालना चाहता है यह सभी कार्य ए.टी.एम. की सहायता से संभव हो गये हैं। यह सुविधा लोगों में प्रिय हो रही है। अब कोई व्यक्ति अपने साथ स्थानीय अथवा दूसरे शहरों में यात्रा के समय नकद पैसे लेकर नहीं चलता बल्कि ज़रूरत के अनुसार किसी भी शहर में पैसे निकलवा सकता है। ए.टी.एम. को डैबिट कार्ड (Debit Card) भी कहते हैं।

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4. आर.टी.जी.एस. सुविधा (RTGS Facility)-आर.टी.जी.एस. (Real Time Gross Settlement) की सुविधा भी e-बैंकिंग द्वारा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति अथवा फर्म को भुगतान करना चाहता है तो ड्राफ्ट, चैक अथवा नकद पैसे भेजने की आवश्यकता नहीं है बल्कि जिस व्यक्ति को भुगतान करना चाहता है जो कि देश में किसी स्थान पर रहता है तो उससे उस व्यक्ति अथवा फर्म का खाता क्रमांक और बैंक का कोड नंबर पूछ कर उसमें आर.टी.जी.एस. द्वारा पैसों का भुगतान कर सकता है। इससे बहुत ही कम समय में उस व्यक्ति अथवा फर्म के खाते में पैसे पहुँच जाते हैं और इसमें खर्च भी बहुत कम आता है।

5. मोबाइल सूचना सुविधा (Mobile Information Facility)-आधुनिक e-बैंकिंग द्वारा खाताधारक को मोबाइल पर उसके खाते के लेन-देन की प्रत्येक सुविधा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में जब भी कोई खाताधारक अपने खाते में पैसे जमा करवाता है अथवा कोई व्यक्ति उसके खाते में पैसे भेजता है अथवा उस खाते में से किसी व्यक्ति को भुगतान किया जाता है, इसकी सूचना खाताधारक को मोबाइल पर सन्देश के रूप में प्राप्त हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति धोखे से खाताधारक के खाते से पैसे निकलवा लेता है तो इसकी सूचना मोबाइल पर प्राप्त होते ही वह व्यक्ति अपने बैंक को सूचित कर सकता है।

6. डैबिट कार्ड द्वारा भुगतान (Payment with Debit Card) अब किसी काम के लिए व्यक्तियों को नकद पैसे ले जाने की ज़रूरत नहीं बल्कि किसी भी वस्तु की खरीद का भुगतान डैबिट कार्ड द्वारा किया जा सकता है। डैबिट कार्ड द्वारा किसी भी वस्तु का भुगतान इलैक्ट्रिक मशीन द्वारा फौरन दुकानदार के खाते में पहुँच जाता है। इस द्वारा बाज़ार में वस्तुओं और सेवाओं की माँग में वृद्धि हुई है।

7. क्रैडिट कार्ड सुविधा (Credit Card Facility)-आधुनिक बैंकों अथवा e-बैंकिंग द्वारा क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी प्रदान की जाती है। बैंक अपने खाताधारकों को उधार सुविधा भी प्रदान करते हैं। इन कार्डों पर ऋण पर वस्तुएं खरीदने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। इनमें साधारण क्रैडिट कार्ड, सिलवर क्रैडिट कार्ड, गोल्ड क्रैडिट कार्ड पर उधार लेने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। उधार की गई खरीददारी का भुगतान बैंक को बिना ब्याज 40 दिन के भीतर करना

अनिवार्य होता है अथवा उसके पश्चात् बैंक उस व्यक्ति पर उच्च ब्याज की दर प्राप्त करता है। क्रैडिट कार्ड पर की गई खरीददारी पर बैंक 2% कमीशन लेता है। क्रैडिट कार्ड के धारक की ऋण इतिहास (Credit History) देख कर ही क्रेडिट कार्ड की सीमा में वृद्धि अथवा कमी की जाती है। विश्व में क्रेडिट कार्ड का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है। इससे व्यापार में बहत वृद्धि होती है।

8. ऋण सुविधाएं (Loan Facilities)-आधुनिक बैंकों द्वारा लोगों को देने वाला ऋण बहुत से कार्यों के लिए दिया जाता है। लोगों को कार, घर अथवा और किसी काम में निवेश करना हो तो बैंक अनेक कार्यों के लिए ऋण देता है। इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है। अब लोग आसानी से ऋण लेकर कार, घर अथवा व्यापार में निवेश कर सकते हैं। विद्यार्थियों के लिए भी बैंकों द्वारा शिक्षा के लिए ऋण दिया जाता है। भविष्य में आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा लोगों को अधिक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। इससे लोगों की व्यापार करने की शक्ति में वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 5.
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया के मुख्य कार्य बताएं। (Discuss the main functions of Reserve Bank of India.)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया भारत का केंद्रीय बैंक है। यह देश में मुद्रा का संचालन करता है तथा व्यापारिक बैकों पर नियंत्रण रखता है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 में हुई थी। रिज़र्व बैंक देश के आर्थिक विकास से संबंधित निर्णय लेता है। इसके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-
1. मौद्रिक नीति का निर्माण (Formulation of Monetary Policy)-आर०बी०आई० देश में मौद्रिक नीति का निर्माण करता है। इस नीति के संचालन तथा बदलाव सम्बन्धी सभी निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा लिए जाते हैं।

2. करंसी का प्रकाशन (Issue of Currency)-रिज़र्व बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करंसी को छाप कर देश में प्रचलित करना होता है। जब करंसी चलने योग्य नहीं रहती तो उसके स्थान पर नई करंसी को छाप कर देश में चलाया जाता है।

3. बैंकों का बैंक (Bankers Bank)-भारत में रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। यह व्यापारिक बैंकों की अधिक जमा रकम को अपने पास जमा करता है और जरूरत पड़ने पर बैंकों को उधार भी देता है। व्यापारिक बैंकों का मुख्य कार्य उधार निर्माण (Credit Creation) द्वारा लाभ प्राप्त करना होता है। इसलिए केंद्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों के उधार निर्माण के लिए नकद राखवीं अनुपात (Cash Reserve Ratio), रैपो रेट (Rapo-Rate) और खुले बाजार की नीति (Open Market Operation) द्वारा उधार पर नियंत्रण रखता है।

4. वित्त प्रणाली की देखभाल (Supervision of Financial System) देश में वित्त प्रणाली की निगरानी करना भी रिज़र्व बैंक का ही कार्य है। इस प्रकार देश में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि का यत्न किया जाता है।

5. सरकार का बैंक (Bank of the Government)-सरकार के वित्तीय निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा ही लिए जाते हैं। सरकार की आय को एकत्रित करना, व्यय करना, उधार देना आदि मुख्य कार्य रिज़र्व बैंक ही करता है।

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6. विदेशी पूंजी का संचालक (Controller of Foreign Exchange)-विदेशी पूँजी का संचालन भी – रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है। विदेशों से जो मुद्रा प्राप्त होती है उसको रिज़र्व बैंक में ही रखा जाता है। विदेशों को विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान भी रिज़र्व बैंक ही करता है।

प्रश्न 6.
रिज़र्व बैंक उधार नियंत्रण कैसे करता है ? (How Does Reserve Bank Control Credit ?)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक देश में उधार नियंत्रण करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतू निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग किया जाता है।
1. रैपो रेट (Rapo-Rate)-रैपो रेट वह ब्याज की दर है जो कि व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त की जाती है। जब रैपों रेट कम किया जाता है तो व्यापारिक बैंक भी उधार देने के लिए ब्याज की दर कम कर देते हैं। इससे उधार का प्रसार होता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार निर्माण कम हो तो रैपो रेट बढ़ा दिया जाता है। इससे व्यापारिक बैंक भी ब्याज की दर बढ़ा देते हैं और निवेशक कम उधार लेना शुरू कर देते हैं। 27 मार्च, 2020 को रेपो रेट 4.4% था। परन्तु करोना बिमारी फैलने के बाद 17 अप्रैल को रैपो रेट और घटा कर 4% की गई ताकि निवेशक अधिक निवेश करें। यह कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति में रैपो रेट 4% ही रखी गई है।

2. रिवर्स रेपो रेट (Reverse Rapo Rate)-जब व्यापारिक बैंक अपना अधिक धन रिज़र्व बैंक के पास रखते हो तो जो ब्याज की दर रिज़र्व बैंक जमा रकम पर देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। व्यापारिक बैंक अधिक उधार बाज़ार में देने के स्थान पर रिज़र्व बैंक को देते हैं क्योंकि वहां धन सुरक्षित होता है। यह भी कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति की घोषणा में रिवर्स रेपो रेट 3.35% रखी गई है।

3. सट्रैचुटरी लिकुअड़ रेशो (Stratutory Liquid Ratio)-व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ भाग तरल रूप सोना, चांदी, नकद और प्रतिभूतियों के रूप में भी रखना होता है, जिसको S.L.R. कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक SLR में वृद्धि कर देता है तो व्यापारिक बैंकों की उधार शक्ति कम हो जाती है।

4. बैंक दर (Bank Rate)-इसको बट्टा दर (Discount Rate) भी कहा जाता है। यदि व्यापारिक बैंकों को दीर्घकाल के लिए धन की आवश्यकता होती है तो अपनी पहले दर्जे की प्रतिभूतियों को रिज़र्व बैंक के पास गिर्वी रखकर उधार ले सकते हैं। जो ब्याज की दर दीर्घकाल उधार पर ली जाती है उस को बैंक दर कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार कम प्रचलन हो तो बैंक दर बढ़ा दी जाती है। यदि बैंक दर कम की जाती है तो इससे उधार निर्माण अधिक होता है।

5. नकद राखवी अनुपात (Cash Reserve Ratio) व्यापारिक बैंकों के पास जो बचत जमा होती है उस का एक निश्चित भाग रिज़र्व बैंक के पास नकदी के रूप में रखना ज़रूरी होता है। जिसको नकद राखवीं अनुपात (C.R.R.) कहते हैं। यदि रिज़र्व बैंक उधार निर्माण अधिक करना चाहता है तो नकद राखवीं अनुपात कम कर दी जाती है इससे बैकों के पास अधिक नकदी पहुंच जाती है और अधिक उधार निर्माण होता है।

6. तरल अनुकूलता सहूलत (Liquid Adjustment Facility)-यह विधि 2000 से प्रचलित की गई है। इस विधि के अनुसार रिज़र्व बैंक 5 करोड़ या 5 करोड़ की दर से 10, 15, 20, 25 करोड़ रुपए उधार दे सकता है। यदि बैंक को अचानक नकदी की ज़रूरत होती है। जोकि 15 दिन की सीमित होती है तो तरल अनुकूलता की विधि का प्रयोग किया जाता है।

7. खुले बाज़ार की नीति (Open Market Operation)-जब देश में उधार को नियंत्रण करना होता है तो रिज़र्व बैंक खुले बाजार की नीति का प्रयोग करता है। इस नीति के अनुसार जब बाज़ार में धन अधिक हो जाता है तो रिज़र्व बैंक अपनी प्रतिभूतियाँ खुले बाजार में बेचना शुरू कर देता है। जिस पर अच्छा ब्याज दिया जाता है। लोग रिज़र्व बैंक की प्रतिभूतियां (Securities) खरीद लेते हैं और बाज़ार में धन कम होता है। यदि उधार अधिक करना हो तो प्रतिभूतियां खरीदनी शुरू कर देता है।

8. सीमान्त ज़रूरतें (Marginal Requirements)-इस नीति के अनुसार रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को आदेश देता है कि निश्चित वस्तुओं को गिर्वी रखकर उधार नहीं दिया जा सकता। जैसा कि गेहूँ, चावल आदि वस्तुओं को गिर्वी रख कर उधार नहीं दिया जा सकता। इस को उधार की सीमान्त शर्ते कहा जाता है।

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9. नैतिक प्रेरणा (Moral Suration)-रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर व्यापारिक बैंकों को निर्देश दिए जाते हैं और प्रेरित किया जाता है कि देश की स्थिति को देखते हुए अधिक उधार दें अथवा न दें। जब देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को कम उधार देने की प्रेरणा देता है। यदि कोई बैंक रिज़र्व बैंक के आदेश को नहीं मानता तो प्रत्यक्ष क्रिया (Direct Action) की जाती है। जैसा कि 2019 में महाराष्ट्र में पंजाब महाराष्ट्र कोप्रेटिव बैंक पर प्रतिबन्ध लगाया गया और 2020 में यैस बैंक (Yes Bank) पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

PSEB 12th Class Economics मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते हैं ?
अथवा
वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था की परिभाषा दीजिए। उत्तर-वस्तु विनिमय प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है।

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 4.
विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के कार्य को स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का प्राथमिक कार्य विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग है। एक किसान गेहूँ बेचकर मुद्रा प्राप्त कर लेता है तथा बाज़ार में मुद्रा से कपड़ा, बूट, चीनी, साबुन इत्यादि वस्तुएं खरीद सकता है। इस प्रकार दो वस्तुओं के सुमेल की समस्या हल हो गई है।

प्रश्न 5.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
मुद्रा के कार्य को ‘पछेते भुगतान के म्यार’ के रूप में स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा के रूप में उधार दिया जाता है तो मुद्रा के रूप में इसकी वापसी हो जाती है। इस उद्देश्य के लिए ब्याज दिया जाता है ताकि उधार देने वाले को कोई हानि न हो।

प्रश्न 7.
भारत में वैधानिक मुद्रा का क्या नाम है ?
उत्तर-
भारत में वैधानिक मुद्रा का नाम रुपया है।

प्रश्न 8.
मुद्रा M, के घटक बताइए।
उत्तर-
M1 = C + D + 0
M1 = करन्सी (C) + मांग जमा (O) + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि (O)

प्रश्न 9.
मुद्रा M2 के घटक बताएँ।
उत्तर-
M2 = M1 + Deposits with Post office Savings (Except NSC)
M2 = C + D + 0 + D P.O.S. = करन्सी + माँग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + डाकघरों में बचत जमा (NSC के बगैर)

प्रश्न 10.
मुद्रा M3 के घटक बताएं।
उत्तर-
M3 = M1 + T.D of Banks
= C + D + O + TDB
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि।

प्रश्न 11.
मुद्रा M4 से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
M4 = D.P.O.S
M4 = C + D + O + TDB. + DPOS
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि + डाकघरों में बचत जमा |

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 12.
भारत में रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा आपूर्ति के कौन-कौन से समग्र तैयार किये जाते हैं ?
उत्तर-
M1, M2 , M3, और M4, तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 13.
मुद्रा आपूर्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
समस्त मुद्रा की मात्रा को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं जिसमें सिक्के, नोट तथा बैंक मुद्रा शामिल होती है।

प्रश्न 14.
उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उच्च शक्ति मुद्रा लोगों के पास नकदी तथा समय अवधि जमा राशि होती है।

प्रश्न 15.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा प्रतिभूतियां तथा हिस्सेदारियां होती हैं, जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 16.
वह समाप्तियाँ जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है , को ……….. कहते हैं।
(क) मुद्रा समाप्तियाँ
(ख) अचल समप्तियाँ
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) निकट मुद्रा।
उत्तर-
(घ) निकट मुद्रा।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से कौन-सा मुद्रा का आकस्मिक कार्य है ?
(क) विनिमय का माध्यम
(ख) मूल्य का भण्डार
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) मूल्य का हस्तांतरण।
उत्तर-
(ग) साख निर्माण का आधार।

प्रश्न 18.
एक अर्थव्यवस्था जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है, को ………….. कहते हैं।
(क) विनिमय प्रणाली
(ख) वस्तुओं के लिए वस्तुओं की प्रणाली
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली।

प्रश्न 19.
उधार मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार मुद्रा वह मुद्रा है जो कि वर्तमान में प्राप्त करके भविष्यकाल में ब्याज समेत अदा करने का वचन होता है।

प्रश्न 20.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा उन वस्तुओं को कहा जाता है जिनको सरलता से मुद्रा के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से मुद्रा के गौण कार्य कौन-कौन से हैं ?
(क) भंडार का साधन
(ख) कर्जे का साधन
(ग) एक स्थान से दूसरे स्थान हस्तांतरण का साधन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 22.
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ सभी मुद्रा की मात्रा से होता है जिसमें सिक्के, नोट और बैंक मुद्रा शामिल होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
M1 = ………
उत्तर-
M1 = C + D + O

प्रश्न 24.
M2 = …..
उत्तर-
M2 = C + D + O + DPOS

प्रश्न 25.
M3 = ……….
उत्तर-
M3 = C + D + O + TDB

प्रश्न 26.
M4 = …….
उत्तर-
M4 = C + D + O+ TDB + DPOS.

प्रश्न 27.
उस वस्तु का नाम बताएं जिसको विनिमय के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(a) मुद्रा
(b) पैट्रोल
(c) धातु
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) मुद्रा।

प्रश्न 28.
आपस में आवश्यकताओं की सन्तुष्टि को ……….. कहते हैं।
(a) वस्तु विनिमय प्रणाली
(b) विनिमय का साधन
(c) मांग का दोहरा संयोग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) मांग का दोहरा संयोग।

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प्रश्न 29.
उच्च बलयुक्त मुंद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोगों के पास नगद मुद्रा तथा बैकों के पास नकद कोष को उच्च बलयुक्त मुद्रा करते हैं।

प्रश्न 30.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश में पुरानी करन्सी के स्थान पर नई करन्सी के लागू करने को विमुद्रीकरण कहते हैं।

प्रश्न 31.
अवमूल्यन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश की करन्सी का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में कम करने को अवमूल्यन कहते हैं।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है। मुद्रा को सरकार की स्वीकृति होती है जिसको कोई मनुष्य स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है। मुद्रा की पूर्ति के सम्बन्ध में दो बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं-

  • मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक धारणा है जिसका सम्बन्ध निश्चित समय से है |
  • मुद्रा की पूर्ति का अर्थ लोगों के पास मुद्रा के भण्डार से होता है।

प्रश्न 3.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है। देश में जो वस्तुएं उत्पादन की जाती हैं, उनके नाप-तोल विभिन्न होते हैं। गेहूँ क्विटलों में, कपड़ा मीटरों में, दूध लीटरों में मापते हैं। परन्तु इन वस्तुओं का मूल्य मुद्रा में मापते हैं तो भिन्न-भिन्न नाप-तोल की समस्या हल हो जाती है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष क्या हैं ?
उत्तर-
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-
1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या-आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से अभिप्राय है कि एक मनुष्य की वस्तु दूसरे मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे तथा दूसरे मनुष्य की वस्तु पहले मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे। परन्तु इस तरह की अवस्था मुश्किल से उत्पन्न होती थी।

2. मूल्य की राभान इकाई का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का माप करना मुश्किल होता था। एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा दी जाए, इस सम्बन्धी कोई निश्चित पैमाना नहीं था। यदि बाज़ार में 1000 वस्तुएं तथा सेवाएं हैं तो प्रत्येक वस्तु का मूल्य 999 वस्तुओं की तुलना में बताना कठिन होता था।

3. भविष्य में किए जाने वाले भुगतान की प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य के भुगतान करने के लिए उचित प्रणाली नहीं थी यदि एक मनुष्य एक गाय तथा एक भैंस उधार दे देता था तो उसकी वापसी उसी रूप में मुश्किल हुआ करती थी, क्योंकि वस्तु गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता था।

4. मूल्य भण्डार प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में कोई ऐसी विधि नहीं थी, जिस द्वारा वस्तुओं का भण्डार किया जा सके। यदि वस्तुओं को गेहूँ, चावल अथवा पशुओं इत्यादि के रूप में भण्डार किया जाता था तो इनका मूल्य बहुत जल्दी कम हो जाता था, क्योंकि वस्तुएं खराब हो जाती थीं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को दूर करने के लिए मुद्रा का प्रयोग कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को निम्नलिखित अनुसार दूर किया जा सकता है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या का हल-मुद्रा के प्रयोग से आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या हल हो जाती है। उत्पादक अपनी वस्तु बाज़ार में बेचकर मुद्रा प्राप्त करते हैं। इस मुद्रा से दूसरी अनिवार्य वस्तुओं की खरीद की जा सकती है।
  2. मूल्य निर्धारण की समस्या का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करने की समस्या का हल मुद्रा द्वारा हो गया है। मुद्रा वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का मापदण्ड है।
  3. धन को संग्रहित करने की समस्या का हल-मुद्रा के रूप में धन का संग्रह आसानी से किया जा सकता है। मुद्रा को बैंकों में जमा करवा दिया जाए तो चोरी का कोई डर नहीं रहता तथा इस राशि पर ब्याज भी प्राप्त होता है।
  4. उधार लेने-देने की समस्या का हल-मुद्रा द्वारा उधार लेना-देना आसान हो गया है। उधार देने के कारण यदि मुद्रा का मूल्य कीमतों के बढ़ने से कुछ कम हो जाता है तो ब्याज द्वारा उस हानि की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
मुद्रा का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है-

  • मुद्रा का मूल्य मुद्रा के रूप में
  • मुद्रा का मूल्य वस्तु के रूप में।

मुद्रा के वर्गीकरण को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. पूर्ण काय मुद्रा (Full bodied money)-पूर्ण काय मुद्रा वह मुद्रा है जिसका अंकित मूल्य तथा उस सिक्के द्वारा लगी हुई धातु का मूल्य समान होता है जैसे कि भारत में स्वतन्त्रता से पहले रुपया 11/12 शुद्ध चांदी का बना हुआ था, उसको पूर्ण काय मुद्रा कहा जाता था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा (Representative full bodied Money)-प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा साधारण तौर पर काग़ज़ की बनी हुई होती है। इस प्रकार की मुद्रा का अपना न तो कोई मूल्य होता है, परन्तु इस मुद्रा को छापते समय उस मूल्य का सोना अथवा चांदी सरकार ख़जाने में रख लेती है।

3. उधार मुद्रा (Credit Money)-उधार मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसका मुद्रा के रूप में मूल्य अधिक होता है जबकि उस वस्तु का मूल्य कम होता है जिस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण किया जाता है। परन्तु उधार मुद्रा अधिक मूल्य कैसे प्राप्त करती है ? ऐसा इस कारण होता है कि जिस वस्तु का उधार मुद्रा निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है वह वस्तु बाज़ार में कुल वस्तु की पूर्ति का कुछ अंश होता है। जैसे कि किसी सिक्के को पिघला दिया जाए तो उसमें लगी धातु का मूल्य सिक्के पर लिखे मूल्य से कम होगा, उधार मुद्रा के मुख्य रूप में इस प्रकार हो सकते हैं-

  • संकेतक सिक्के-सभी सिक्के ₹ 5, ₹ 2 ₹ 1, 50 पैसे इत्यादि संकेतक सिक्के हैं।
  • प्रतिनिधि संकेतक सिक्के-यह साधारण तौर पर कागज़ के नोट होते हैं।
  • केन्द्रीय बैंक के प्रामिसरी नोटों का प्रचलन-यह कागजीय नोट केन्द्रीय बैंकों द्वारा प्रचलित किए जाते हैं, जिस पर लिखा होता है, “मैं धारक को ₹ 100 अदा करने का वचन देता हूँ।”
  • बैंकों की मांग जमा-बैंकों में जमा पैसों को चैक द्वारा निकलवाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक बताएं।
अथवा
मुद्रा के घटकों (Components) की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक इस प्रकार हैं-
1. M1 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंक की मांग जमा
2. M2 (i) जनता के पास नकद करंसी + बैंक की मांग जमा + (iii) डाकखानों के बचत खाते में जमा
3. M3 (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों की मांग जमा + (iii) बैंकों की अवधि जमा (Time Deposit) ।
4. M4 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों के पास मांग जमा + (iii) बैंकों के पास अवधि जमा + (iv) डाकखानों की कुल जमा (राष्ट्रीय बचत सर्टीफिकेटस को छोड़ कर)।

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प्रश्न 5.
मुद्रा के प्राथमिक कार्य बताओ।
उत्तर-
प्रो० किनले के अनुसार मुद्रा के प्राथमिक कार्य इस प्रकार हैं –
1. विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा का मुख्य कार्य वस्तुओं में विनिमय करना होता है जैसा कि एक किसान के पास गेहूँ है उस को वह किसान बाज़ार में बेच कर मुद्रा प्राप्त करता है तथा उस मुद्रा से बाकी ज़रूरतों को पूरा करता है इस प्रकार मुद्रा विनिमय का माध्यम है।

2. मूल्य का माप (Measure of Value)- मुद्रा की सहायता से हम वस्तुओं के मूल्य का माप करते हैं जैसा कि गेहूँ की कीमत ₹ 1120 प्रति क्विटल है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु की कीमत मुद्रा के रूप में माप सकते हैं।

प्रश्न 6.
मुद्रा के गौत्र अथवा द्वितीयक कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा के द्वितीयक कार्य इस प्रकार हैं –
1. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जाता है। मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है तथा इस को स्वीकार किया जाता है । इसलिए मुद्रा का प्रयोग करके मूल्य का भण्डार किया जा सकता

2. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव है। मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान किया जा सकता है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन बहुत कम होता है। जिस की भरपाई ब्याज द्वारा की जा सकती है।

3. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)- मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, ज़मीन एक स्थान पर बेच कर मुद्रा प्राप्त कर सकता है और इस मुद्रा से किसी और स्थान पर खरीद सकता है।

प्रश्न 7.
मुद्रा के आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करो।
उत्तर-
मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं-
1. राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-राष्ट्रीय आय, उत्पादन के साधनों के बीच वितरण की जाती है। उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूंजी और संगठन का मेहनताना लगान, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का माप मुद्रा द्वारा किया जाता है। इस प्रकार मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

2. साख निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा होती है उस द्वारा बैंक कई गुणा अधिक साख निर्माण करते हैं। इस प्रकार स्तख निर्माण का कार्य मुद्रा की सहायता से ही संभव हुआ है।

3. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction)-उपभोगी अपनी सीमित आय से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है। उसको अपनी मुद्रा भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार से व्यय करनी चाहिए कि प्रत्येक वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता एक-दूसरे के बराबर हो। इस प्रकार उपभोगी को अधिक्तम सन्तुष्टि प्राप्त होगी।

4. भुगतान की गारंटी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारंटी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक भविष्य में भुगतान की गारंटी दे देता है।

प्रश्न 8.
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? इसे उच्च शक्ति योग्य मुद्रा क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा आधुनिक युग में मुद्रा की पूर्ति का मुख्य निर्धारक माना जाता है। उच्च शक्ति मुद्रा देश में व्यापारिक बैंकों में मौद्रिक भंडार और जनता के पास नकदी (सिक्के अथवा नोट) का जोड़ होता है उच्च शक्ति मुद्रा आधार है जोकि बैंक जमा के रूप में व्यक्त किया जाता है और मुद्रा की पूर्ति का निर्माण करता है। इसको उच्च शक्ति योग्य मुद्रा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस द्वारा वस्तुओं और सेवाओं में तबादला बहुत जल्दी और आसानी से होता है। इस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण भी किया जाता है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति में वृद्धि से मुद्रा की पूर्ति निर्धारण करती है।

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प्रश्न 9.
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर –

अंतर का आधार मुद्रा निकट मुद्रा
1. मुद्रा के अंश मुद्रा में नोट सिक्के तथा बैंक की माँग जमा को शामिल किया जाता है। निकट मुद्रा में ट्रेजरी बिल विनिमय बिल, बान्ड सरकारी प्रतिभूतियाँ और बैंकों की निश्चित कालीन जमा राशि आदि को शामिल किया जाता है।
2. तरलता मुद्रा में अधिक तरलता होती है। निकट मुद्रा में कम तरलता होती है।
3. कानूनी तथा साधारण स्वीकृति मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति होती है। निकट मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति नहीं होती।
4. आय मुद्रा से आय की प्राप्ति नहीं होती। निकट मुद्रा से आय की प्राप्ति हो ती है।
5. प्रयोग मुद्रा का प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं, से विनिमय के लिए किया जाता है। निकट मुद्रा को पहले मुद्रा में तबदील किया जाता है और बाद में विनिमय किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें बताओ। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए मुद्रा कैसे सहायक हुई है ?
(State the inconveniences of barter exchange. How does money help in removing the drawbacks of barter system ?)
उत्तर-
जब किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रयोग न किया जाए तथा वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाए तो इस प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है। इसको C-C (Commodity-Commodity) अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। वस्तु विनिमय की मुश्किलें (Inconveniences or Difficulties or Drawbacks of Barter Exchange) वस्तु विनिमय की मुश्किलें निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी (Lack of Double Co-incidence of Wants)-खरीददारों तथा बेचने वालों की आवश्यकताओं की साथ-साथ पूर्ति को आवश्यकताओं का दोहरा मेल कहा जाता है। विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी होती है। उदाहरणस्वरूप एक किसान के पास गेहूँ है। इसके बदले में वह कपड़ा प्राप्त करना चाहता है। वह जुलाहे के पास जाकर कपड़े की मांग करता है, परन्तु जुलाहे को गेहूँ की आवश्यकता नहीं, बल्कि उसको जूते अनिवार्य हैं। इसलिए किसान को पहले गेहूँ देकर जूते प्राप्त करने पड़ेंगे तथा फिर वह कपड़े की आवश्यकता को पूरा कर सकता है। इस प्रकार वस्तु विनिमय में दोहरे मेल की कमी के कारण मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

2. मूल्य के माप की काठिनाई (Difficulty in easure of Value)-विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के मूल्य के माप की कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वस्तुओं का मूल्य वस्तुओं के रूप में निश्चित किया जाए तो बहुत अधिक विनिमय मूल्य याद रखने पड़ते हैं। मान लो अर्थव्यवस्था में 1000 वस्तुएँ हैं तो प्रत्येक वस्तु के 999 मूल्य याद रखने आसान नहीं होते, बल्कि बहुत कठिन होते हैं।

3. भविष्य के भुगतानों में मुश्किलें (Difficulty in Future Payments)-भविष्य भुगतानों में मुश्किल का अर्थ है कि ठेके के भुगतानों (Contractual Payments) में कठिनाई। यदि वस्तु के रूप में भुगतान किया जाता है तो उसी रूप में वस्तु की वापसी करनी मुश्किल होती थी। गाय के रूप में उधार दिया जाता है तो उसी तरह की गाय वापिस करनी मुश्किल होती है। वस्तुओं की गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता है।

4. मूल्य-संचय में कठिनाई (Difficulty in Store of Value)-वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एकत्रित करना मुश्किल होता है। वस्तुओं के रूप में धन को अधिक समय के लिए भण्डार नहीं किया जा सकता। यदि पशुओं के रूप में धन संचय किया जाता है तो पशुओं के बीमार पड़ने की स्थिति में धन जल्दी नष्ट हो जाता था। गेहूँ, चावल, इत्यादि के रूप में धन जल्दी नष्ट हो जाता है।

5. धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की कठिनाई (Difficulty in Transport of Wealth) वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना मुश्किल होता है। किसी मनुष्य के पास मकान अथवा ज़मीन है तो इस प्रकार के धन के दूसरे स्थानों पर ले जाने की कठिनाई आती है। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें दूर करने के लिए मुद्रा का योगदान (Role or Importance of money in removing drawbacks of barter system)-आधुनिक युग में मुद्रा का योगदान महत्त्वपूर्ण है। मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान डाला है।

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इससे वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर किया गया है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल-मुद्रा के भाव में आने से आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल हो गया है। मुद्रा की सहायता से वस्तुओं का विनिमय आसानी से किया जाता है।
  2. वस्तुओं के मूल्य का माप-मुद्रा के विकास से वस्तुओं के मूल्य का माप आसान हो गया है। प्रत्येक वस्तु का मूल्य मात्रा के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
  3. मूल्य संचय की कठिनाई का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य संचय करना मुश्किल था। मुद्रा के निर्माण से मूल्य संचय करना आसान हो गया है।
  4. उधार लेने-देने में आसानी-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना आसान हो गया है। मुद्रा के रूप में उधार का भविष्य में भुगतान किया जा सकता है।
  5. व्यापार में आसानी-मुद्रा की सहायता से व्यापार करने में आसानी हो गई है।
  6. अधिकतम सन्तुष्टि-उपभोगी द्वारा मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है।
  7. आर्थिक समस्याओं का हल-मुद्रा से मुद्रा स्फीति, मुद्रा अस्फीति, मन्दीकाल इत्यादि आर्थिक समस्याओं का हल किया जा सकता है। मार्शल के शब्दों में, “मुद्रा धुरा है, जिसके इर्द-गिर्द आर्थिक विज्ञान घूमता है।”
    (“Money is the hub around which economic science clusters.”)

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है? मुद्रा के विकास को स्पष्ट करो। मुद्रा के मुख्य कार्यों की व्याख्या करो। (What is money ? Explain the Evolution of money. Discuss the functions of money.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के प्राथमिक, गौण तथा आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करें।
(What is Money ? Discuss the primary, secondary and contingent functions of money.)
उत्तर-
मुद्रा का अर्थ (Meaning of Money)-मुद्रा की परिभाषा निम्नलिखित भागों में विभाजित करके दी जा सकती है –

  1. मुद्रा की कानूनी परिभाषा (Legal Definition of Money)-मुद्रा कोई भी ऐसी वस्तु होती है, जिसको कानूनी तौर पर विनिमय के रूप में सरकार द्वारा घोषित किया जाता है। ऐसी मुद्रा के पीछे सरकारी आदेश होता है, जिस कारण कोई मनुष्य इस मुद्रा को स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।
  2. मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा (Functional Definition of Money)-मुद्रा कोई भी वस्तु हो सकती है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है तथा यह मूल्य के माप तथा मूल्य के संचय करने का कार्य भी करती है।
  3. मुद्रा की संकुचित परिभाषा (Narrow Definition of Money)-मुद्रा की संकुचित परिभाषा में मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा को शामिल किया जाता है। इस परिभाषा में मुद्रा के कार्य
  • विनिमय का साधन
  • मूल्य का माप
  • मूल्य का संचय करना
  • भविष्य भुगतान का आधार के रूप में लिया जाता है।

4. मुद्रा की विस्तृत परिभाषा (Broad Definition of Money)-मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में करन्सी नोट, सिक्के, बैंकों में मांग जमा, अवधि जमां, डाकखानों में जमा, जिसको कम समय के नोटिस पर प्राप्त किया जा सकता है तथा निकट मुद्रा परिसम्पत्तियों जैसे कि भागीदारियां, ब्रांड, प्रतिभूतियां इत्यादि को शामिल किया जाता है।

मुद्रा का विकास (Evolution of Money) वस्तु विनिमय बाज़ार की मुश्किलों को दूर करने के लिए मनुष्य ने मुद्रा का विकास किया। मुद्रा निम्नलिखित पड़ावों में से गुजर कर वर्तमान रूप में आई है-

  1. वस्तु मुद्रा-आरम्भ में वस्तुएं जैसे कि गेहूँ, दाल, चावल इत्यादि का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया गया।
  2. धातु मुद्रा-पश्चात् में कुछ धातुओं जैसे कि लोहा, तांबा, चांदी, सोना इत्यादि ने मुद्रा का रूप धारण किया।
  3. कागजी मुद्रा-कागज़ी मुद्रा को पहले चीन में तथा फिर शेष विश्व में मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया। आज- कल कागज़ी मुद्रा प्रत्येक देश में प्रचलित है।
  4. बैंक मुद्रा-धीरे-धीरे बैंकों के विस्तार से चैक, ड्राफ्ट तथा इलैक्ट्रॉनिक मुद्रा (A.T.M.) प्रचलित हो गई है।

मुद्रा के मुख्य कार्य (Main Functions of Money)-मुद्रा के कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(A) मुद्रा के प्राथमिक कार्य (Primary Functions of Money)-मुद्रा के दो मुख्य कार्य हैं –

  • विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा वस्तुओं के विनिमय के लिए माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती है। मुद्रा का यह महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  • मूल्य का माप (Measure of Value)-वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है। यह लेखे की इकाई है, जैसे कि गेहूं का मूल्य ₹ 700 क्विटल है।

(B) मुद्रा के द्वितीयक कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के तीन द्वितीयक कार्य हैं3. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जा सकता है। इसका मूल्य स्थिर रहता है तथा इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जा सकता है।

4. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव होता है। इसका भुगतान भविष्य में किया जा सकता है, क्योंकि इसके मूल्य में परिवर्तन नहीं होता तथा यह प्रयोग करने योग्य होती है।

5. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)-मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, जमीन एक स्थान पर बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा दूसरे स्थान पर खरीद सकता है।

(C) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent Functions of Money)-मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं –

6. आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-मुद्रा की सहायता से राष्ट्रीय आय का माप किया जा सकता है। राष्ट्रीय आय उत्पादन के साधनों में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में विभाजित की जाती है। इसलिए मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

7. उधार निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंक, जमा मुद्रा की सहायता से उधार निर्माण करने में सफल होते हैं।

8. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction) उपभोगी अपनी सीमित मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए समसीमान्त तुष्टिगुण का नियम सहायक होता है।

9. पूंजी को तरलता प्रदान करती है (Provides Liquidity to Capital)—मुद्रा में यह गुण है कि इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जाता है। इसलिए मुद्रा, पूंजी को तरलता प्रदान करती है।

10. भुगतान की गारण्टी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारण्टी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक आपके भविष्य के भुगतान की गारण्टी दे देता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 3.
मुद्रा एक अच्छा सेवक तथा बुरा स्वामी है। स्पष्ट करें।
(Money is a good servant but a bad master. Explain.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के गुण तथा अवगुण बताएँ।
(What is Money ? Give Merits and Demerits of Money.)
उत्तर-
प्रो० कराऊथर के अनुसार, “वह वस्तु जिसे लोग वस्तुओं की खरीद बेच और ऋण के रूप में स्वीकार करते हैं उसको मुद्रा कहते हैं।” मुद्रा वह तरल पदार्थ है जो एक देश में बटांदरे के रूप में पाए जाते हैं। मुद्रा के लाभ तथा मुद्रा एक अच्छा स्वामी है (Merits of Money or Money is a Good Servant)मुद्रा एक अच्छा स्वामी है इस का मुद्रा से प्राप्त होने वाले लाभों से ज्ञात होता है।

  1. मुद्रा और आर्थिक विकास (Money & Economic Growth)- मुद्रा एक ऐसा आधार है जिस के ऊपर आर्थिक विकास की इमारत बनती है।
  2. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantage to the Consumers)- मुद्रा उपभोक्ताओं के लिए लाभदायिक होती है। उपभोगी अपनी सीमित आय से मुद्रा द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करते हैं।
  3. उत्पादकों को लाभ (Advantage to the Producers)- मुद्रा की सहायता से उत्पादक तथा बिक्री की क्रियाओं का संचालन होता है, जिस द्वारा उत्पादक अधिकतम लाभ प्राप्त करता है। बढ़े पैमाने पर उत्पादन मुद्रा की सहायता से ही संभव हो सका है।
  4. विनिमय में लाभ (Advantage in Exchange)-मुद्रा की सहायता से वस्तु बटांदरा प्रणाली के दोषों को दूर करके कीमत निर्धाण करना आसान हो गया है। इस द्वारा उत्पादन के साधनों का मेहनताना निर्धाण करना आसान हो गया है।
  5. विभाजन में लाभदायिक (Advantage in Distribution)-मुद्रा द्वारा उत्पादन के साधनों, भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन का मेहनताना निर्धारण करना आसान हो पाया है। इस द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी संभव हो गया है।
  6. पूँजी निर्माण (Capital Formuation)-मुद्रा द्वारा आसानी से बचत की जा सकती है। इस बचत को निवेश करके पूँजी निर्माण किया जा सकता है। मुद्रा द्वारा नये उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं और मानवीय पूँजी का विकास होता है। मुद्रा के अवगुण अथवा मुद्रा
  7. बुरा स्वामी है (Demerits of Money or Money is a Bad Master)-मुद्रा से अच्छी तरह से संचालन न किया जाए तो बहुत-सी बुराइयां पैदा हो जाती हैं। इसलिए मुद्रा को बुरा स्वामी कहा जाता है।

इस के मुख्य दोष इस प्रकार हैं –

  • मुद्रा के मूल्य में अस्थिरता (Instability in Value of Money)-मुद्रा के फैलने से इस के मूल्य में कमी हो जाती है और मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  • आय का असामान्य वितरण (Unequal distribution of Income)-मुद्रा द्वारा आय के असामान्य वितरण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अमीर लोग और अमीर हो जाते हैं और ग़रीब ज्यादा ग़रीब हो जाते हैं।
  • व्यापारिक चक्र (Trade Cycle)-पूँजीवाद देशों में मुद्रा के कारण व्यापारिक चक्रों की समस्या उत्पन्न हो जाती है । तेजीकाल तथा मंदीकाल की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। मंदीकाल में बेरोज़गारी फैल जाती है।
  • ऋण में वृद्धि (Increase in Debt)- मुद्रा के कारण लोगों पर ऋण का भार तेजी से बढ़ रहा है। ऋण की प्राप्ति आसानी से होने के कारण लोग गैर आवश्यक वस्तुओं पर व्यय करते हैं। इस से फ़जूल खर्चों में वृद्धि होती है।
  • बुरा स्वामी (Bad Master)-यदि मुद्रा पर ठीक ढंग से काबू न पाया जाए तो इससे भ्रष्टाचार, मुद्रा स्फीति काला धन और शोषण की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इस से तंग आकर लोग आन्दोलन करते हैं और देश में अराजकता फैल जाती है।

प्रश्न 4.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ? भारत में 8 नवम्बर, 2016 को किए गए विमुद्रीकरण को स्पष्ट करें। इसके लाभ एवं हानियां बताएं।
(What is meant by Demonetisation ? Explain the demonetisation of 8th November, 2016 in India. Explain its advantages and dis-advantages.)
उत्तर-
1. विमुद्रीकरण क्या है ? (What is demonetisation ?)—जब सरकार पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर बन्द कर देती है और नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण (demonetisation) कहते हैं। इसके बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती। सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है ताकि वह पुराने नोटों को नए नोटों में बदल सकें।

2. विमुद्रीकरण क्यों किया जाता है ? (Why demonetisation ?) काला धन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकारें विमुद्रीकरण का फैसला लेती हैं। अवैध गतिविधियों में लोग नोटों को अपने पास नकदी के रूप में ही रखते हैं। इस प्रकार विमुद्रीकरण से सीधे उन पर चोट होती है। कई बार नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबन्दी की जाती है। मोदी सरकार को भी उम्मीद है कि नोटबन्दी के चलते काले धन, नकली नोट और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा। नोटबन्दी के कारण भारत में आम आदमी को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

3. भारत में विमुद्रीकरण (Demonetisation in India)-भारत में 8 नवम्बर, 2016 को रात 8 बजे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबन्दी की घोषणा कर दी। इस घोषणा में ₹ 500 और ₹ 1000 के नोटों को रात 12 बजे के बाद कानूनी मुद्रा (Legal Tender) न होने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियन्त्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था। इससे पहले भारत में दो बार विमुद्रीकरण किया गया था। 1946 में ₹ 1000 और ₹ 10,000 के नोटों को वापस ले लिया गया था और 1954 में भारत सरकार ने ₹ 1000, ₹ 5,000 और ₹ 10,000 के नए नोट शुरू किए। दूसरी बार 1978 में ₹ 1000, ₹ 5000 और ₹ 10,000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया गया ताकि काले धन पर अंकुश लगाया जा सके।

28 अक्तूबर, 2016 को भारत में ₹ 17.77 लाख करोड़ मुद्रा प्रचलित थी, जिसमें से 86% ₹ 500 और ₹ 1000 के नोट थे। देश में जाली नकदी में लगातार वृद्धि हो रही थी जिसको भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया था। इस कारण पुराने नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया। इसके स्थान पर ₹ 500 और ₹ 2000 के नए नोट चालू किए गए। ₹ 500 के नोट का आकार 66 मि० मीटर x 150 मि० मीटर है। नोट के पीछे लाल किले की तस्वीर और स्वच्छ भारत अभियान का लोगो भी है। इन नोटों को महात्मा गांधी न्यू सीरीज़ ऑफ नोट्स का नाम दिया गया है। ₹ 2000 का नोट गुलाबी रंग का है। इसके पीछे की ओर मंगलयान की तस्वीर है। 25 अगस्त, 2017 से ₹ 200 का नोट भी बाजार में आ गया है। नोट के सीरियल नम्बरों का फोंट साइज़ बदला गया है।

4. विमुद्रीकरण में नोट बदलने की विधि (Procedure for Exchange of Notes in demonetisation)भारत में 8 नवम्बर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा के पश्चात् 30 दिसम्बर, 2016 तक बैंकों से नोट बदलने की प्रक्रिया चली। इसके बाद पुराने नोट बदलने का कार्य केवल R.B.I. द्वारा ही किया जाएगा।

नोट बदलने के नियम इस प्रकार ङ्केरखे गए –

  • ATM से एक दिन में ₹ 2500 तक निकाल सकते हैं।
  • एक दिन में ग्राहक बैंक से ₹ 24000 से ज्यादा नहीं निकाल सकता और एक हफ्ते के बाद ही बैंक से ₹ 24000 दोबारा निकाले जा सकते हैं।
  • एक दिन में कोई भी व्यक्ति ₹ 2000 तक के नोट बदल सकता है।
  • कोई भी व्यक्ति अपने निजी बैंक खाते में जितना चाहे पैसा जमा करवा सकता है। ₹ 2,50,000 तक जमा की गई रकम का जवाब नहीं मांगा जाएगा। इससे ज्यादा जमा रकम के बारे में आयकर विभाग जांच करेगा।
  • ई-बैंकिंग लेन-देन पर कोई भी रोक नहीं है और कोई व्यक्ति आर०टी०जी०एस०, एन०ई०एफ०टी०, आई०एम०पी०एल०, पे०टी०एम०, मोबाईल बैंकिंग आदि के ज़रिए जितने चाहे पैसे किसी दूसरे को दे सकता है।

5. विमुद्रीकरण के लाभ (Advantages of Demonetisation) –

1. काले धन पर प्रहार-विमुद्रीकरण की सबसे करारी चोट काले धन पर पड़ी है। अनुमान लगाया जाता है कि भारत में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ काले धन के रूप में छुपा कर रखे गए थे। इन रुपयों का हवाला कारोबार, तस्करी, आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों में धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा था। कश्मीर में जारी हिंसा में भी काला धन मुख्य भूमिका निभा रहा था। देश की राजनीति में भी काले धन का मुद्दा काफ़ी समय से चर्चा में था। इसलिए विमुद्रीकरण से काले धन पर पूर्ण तो नहीं आंशिक रूप में रोक ज़रूर लगेगी।

2. आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर प्रहार-विमुद्रीकरण द्वारा आतंकवाद, नक्सली समूहों, नशे के व्यापारियों और गैर-कानूनी गतिविधियों को करारा आघात पहुंचा है। इसका प्रभाव कश्मीर में खास तौर पर देखने को मिल रहा है। इन आपराधिक गतिविधियों के लिए इकट्ठे किए गए नोट कागज़ के टुकड़े बन गए हैं और इनकी गतिविधियां ठप्प हो गई हैं।

3. काला धन्धा करने वालों पर प्रहार-देश में जो व्यापारी काला धन्धा करते थे और इससे प्राप्त काले धन को नकदी के रूप में अपने पास रखते थे उन पर भी विमुद्रीकरण से करारी चोट की गई है। काले धन्धे में लगे लोग तथा भ्रष्ट लोग, ग़रीब लोगों का सहारा ले रहे हैं ताकि काले धन को सफेद किया जा सके।

4. अर्थ-व्यवस्था में वृद्धि-विमुद्रीकरण से अर्थव्यवस्था में वृद्धि होने की संभावना है। विमुद्रीकरण से सरकारी खाते में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ आएंगे और ₹ 70,000 करोड़ विभिन्न करों से आने की उम्मीद है। इसका प्रभाव अल्पकाल में नहीं बल्कि दीर्घकाल में ज़रूर नज़र आएगा। इस रकम के आने से सरकार आधारभूत ढांचे में निवेश करेगी जिससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी।

5. कर द्वारा आय में वृद्धि-सरकार ने विमुद्रीकरण से पहले और विमुद्रीकरण के दौरान काले धन को छिपाकर रखने वाले लोगों को काला धन घोषित करने को कहा और बिना पैनलटी के कर जमा करने की छूट दी। बाद में पैनलटी के साथ कर जमा करने को कहा। इससे सरकार की कर आय में 14.5% वृद्धि हो चुकी है।

6. रोज़गार में वृद्धि-विमुद्रीकरण के बाद सरकार की मुद्रा योजना को बल मिलेगा। सरकार की योजनाओं को बैंकों से सहयोग नहीं मिल रहा था इसलिए सरकार के पास नकदी का संकट था, परन्तु अब बैंकों में नकदी का प्रवाह बढ़ा है जिस कारण औद्योगिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं और रोज़गार में वृद्धि होगी।

7. ब्याज दर में कमी-विमुद्रीकरण के बाद काले धन के एक बड़े भाग को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में लाया जाएगा। इससे बैंकों के पास जमा राशि में बढ़ोत्तरी होगी जिससे ब्याज दरों में कमी आएगी। इससे लोग व्यापार में निवेश करेंगे और मकानों की बिक्री बढ़ने की सम्भावना है।

8. नकद लेन-देन में कमी-विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था कैशलेस अर्थव्यवस्था (Cashless Economy) की तरफ बढ़ रही है। सरकार नकद लेन-देन पर रोक लगा रही है ताकि काले धन से लेन-देन खत्म हो सके। नकद लेन-देन को सरकार नि:उत्साहित कर रही है।

9. लोक कल्याणकारी योजनाएं-विमुद्रीकरण द्वारा सरकार के पास जैसे-जैसे धन की प्राप्ति होती है लोक कल्याणकारी योजनाओं में निवेश में वृद्धि की जाएगी। 2022 तक सरकार प्रत्येक का अपना घर का लक्ष्य लिए हुए है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

6. विमद्रीकरण की हानियां (Dis-advantages of demonetisation) –

1. विमुद्रीकरण से देश की जी०डी०पी० (GDP) पर सुस्ती आने की सम्भावना है परन्तु यह अल्पकाल के लिए होगा और दीर्घकाल में इसमें वृद्धि ही होगी।

2. विमुद्रीकरण से पर्यटन उद्योग को धक्का लगा है। भारत आने वाले पर्यटकों ने अपना दौरा रद्द कर दिया क्योंकि नकद पैसा निकलवाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता था। विमुद्रीकरण लम्बे समय में लाभदायक ही सिद्ध होगी। नोटबन्दी के बारे में रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट 30 अगस्त, 2017 को प्रकाशित हुई है जिसमें यह कहा गया है कि नोटबन्दी में ₹ 1000 और ₹ 500 के 99% नोट वापिस आ गए हैं। 8 नवम्बर, 2017 को ₹ 1000 और ₹ 500 के ₹ 15.44 लाख करोड़ के नोट चलन में थे। 30 जून, 2017 को ₹ 15.28 करोड़ के नोट वापिस आ गए। सरकार के नोटबंदी पर ₹ 21 हजार करोड़ खर्च हुए और ₹ 16.5 करोड़ के नोट वापिस नहीं आए।

प्रश्न 5.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव स्पष्ट करें।
(What is meant by Supply of Money ? Discuss the effects of the Supply of Money ?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति एक अर्थव्यवस्था में करंसी के समस्त भंडार को कहा जाता है। इसमें निश्चित समय पर प्रचलत मौद्रिक भंडार भी शामिल होते हैं। मुद्रा में नकद मुद्रा, सिक्के और बचत खातों में रकम को शामिल किया जाता है समष्टि अर्थशास्त्र को समझने के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। अर्थशास्त्रियों का विचार है कि मुद्रा की पूर्ति, नीति निर्माण के लिए अति आवश्यक होती है। सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की सफलता के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति, कीमत के स्तर, मुद्रा स्फीति और व्यापारिक चक्र देश के व्यापार पर प्रभाव डालते हैं। मुद्रा पूर्ति को मुद्रा स्टाक (Money stock) भी कहा जाता है।

मुद्रा पूर्ति का माप (Measurement of Supply of Money)-मुद्रा की पूर्ति (Ms) के बहुत से रूप होते हैं। जैसे कि –

  1. M0 = देश में मुद्रा की कुल पूर्ति को Mo कहा जाता है जिसमें हर प्रकार की मुद्रा शामिल होती है।
  2. M1 = (Narrow Money) = (CC + DD + Other Deposits) इसमें देश के करंसी नोटों (C.C.) को शामिल किया जाता है। इस के इलावा इसमें मांग जमा (Demand Deposits (D.D.) को भी शामिल करते हैं। बैंकों में और प्रकार के खातों जैसे कि चालू खाते में जमा (Current Deposits) को भी शामिल किया जाता है।
  3. M2 = (M1 + Saving Deposits of Post-Office Savings) यदि हम M1 = CC + DD + Other Deposits of the banks) के साथ डाकखानों में बचत खाते में जमा राशि को शामिल कर लेते हैं तो इसको M2 कहा जाता है।

M3 = Broad Money = (M1 + Time Deposits of Banks)
विशाल मुद्रा में हम M1 = CC + Cash Currency) + DD + Other deposits of Bank (Current Deposits) के साथ यदि बैकों में समय अवधि जमा को शामिल कर लेते हैं तो इसको M3 का नाम दिया जाता है।
M4 = (Wide Measure) = M3 + Post Office saving deposits)
M3 = में हमने (CC + DD + Other deposits) को शामिल करके इसमें बैंकों में समय अवधि जमा (Time Deposits) को भी शामिल किया था। यदि इसमें डाकखानों में जमा बचत खातों में जमा रकम को जोड़ लिया जाए तो इसको M4 का नाम दिया जाता है।

अर्थव्यवस्था पर मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव (Effects of Supply of Money on the Economy)-मुद्रा की पूर्ति अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती है। जब मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तो इससे ब्याज की दर (Rate of Interest) कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप निवेश में वृद्धि होती है। लोगों की मौद्रिक आय बढ़ने से व्यय में भी वृद्धि होती है। उत्पादन बढ़ने लगता है और रोज़गार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

इसके विपरीत यदि मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है तो इस का अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मुद्रा की कम पूर्ति के कारण व्यापारिक चक्र पैदा होते हैं जैसे कि सुस्ती और मंदीकाल (Depression) की स्थिति पैदा हो जाती है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जाए तो पुनरुत्थान (Recovery) और तेजीकाल (Boom) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार मुद्रा की पूर्ति से देश में आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

PSEB 12th Class Economics राष्ट्रीय आय का माप Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य विधियाँ कौन सी हैं ?
उत्तर-

  • आय विधि
  • उत्पादन विधि
  • व्यय विधि।

प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र से होता है जिसमें प्राकृतिक साधनों को प्रयोग करके उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 3.
गौण क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गौण क्षेत्र का अर्थ निर्माण क्षेत्र से होता है जैसा कि उद्योग, निर्माण कार्य, गैस इत्यादि।

प्रश्न 4.
अर्थव्यवस्था के तृतीय क्षेत्र अथवा सेवा क्षेत्र में क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इस क्षेत्र में सेवाएँ शामिल की जाती हैं जैसा कि यातायात, बीमा, आवास इत्यादि।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 5.
मूल्य वृद्धि विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मूल्य वृद्धि का अर्थ वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि करने से होता है। मूल्य वृद्धि = उत्पाद के मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग।

प्रश्न 6.
गैर साधन आगतों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर साधन आगतें वह नाशवान वस्तुएं तथा सेवाएं होती हैं जिनका प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 7.
मूल्य वृद्धि विधि का वैकल्पिक नाम क्या है ?
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि को उत्पाद विधि भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
दोहरी गणना की समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक ही वस्तु के मूल्य को एक से अधिक बार गणना को दोहरी गणना कहा जाता है।

प्रश्न 9.
उत्पाद वृद्धि से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
राष्ट्रीय आय के माप की उत्पाद विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में देश की घरेलू सीमा के भीतर उत्पादित की गई अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के योग को अन्तिम उत्पाद कहा जाता है। इसके बाज़ारी मूल्य को राष्ट्रीय आय कहते हैं।

प्रश्न 10.
आय वृद्धि में साधन आय को कितने भागों में विभाजित किया जाता है ?
अथवा
साधन आय के मुख्य अंश बताएँ।
उत्तर-

  1. कर्मचारियों का मेहनताना
  2. परिचालन अधिशेष
  3. मिश्रित आय
  4. विदेशों से शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 11.
व्यय वृद्धि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में सकल घरेलू उत्पाद पर किये गए अन्तिम खर्च को बाज़ारी कीमतों पर मूल्य ज्ञात करके योग किया जाए तो इसको व्यय वृद्धि द्वारा सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 12.
निजी अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी अन्तिम उपभोग खर्च एक देश में वर्तमान उपभोग पर वस्तुओं तथा सेवाओं के खर्च का योग होता

प्रश्न 13.
अन्तिम निवेश खर्च से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अन्तिम निवेश में-

  • कुल घरेलू स्थाई पूँजी निर्माण
  • स्टॉक में परिवर्तन
  • शुद्ध निर्यात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 14.
पूंजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होता है जिसका भुगतान बचत या सम्पत्ति में से अदा किया जाता है।

प्रश्न 15.
मध्यवर्ती वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिन का प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में किया जाता है।

प्रश्न 16.
अन्तिम वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह वस्तुएँ जिनका प्रयोग उपभोग के लिए अथवा पूंजी निर्माण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 17.
घिसावट से क्या अभिप्राय है अथवा स्थिर पूँजी का उपभोग क्या होता है ?
उत्तर-
वस्तुओं का उत्पादन करते समय मशीनों, औज़ारों इत्यादि के मूल्य में जो कमी हो जाती है उस को स्थिर पूँजी का उपभोग या घिसावट कहा जाता है।

प्रश्न 18.
बन्द अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बन्द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसका शेष विश्व के देशों से आर्थिक सम्बन्ध नहीं होता।

प्रश्न 19.
खली अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसका आर्थिक सम्बन्ध शेष विश्व के देशों से होता है।

प्रश्न 20.
स्टॉक में परिवर्तन अथवा माल सूची में परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
माल सूची अथवा स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 21.
चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय का अभिप्राय है एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रचलित कीमतों पर मूल्य का माप।

प्रश्न 22.
स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य आधार वर्ष की कीमतों द्वारा मापते हैं तो इसको स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय कहते हैं।

प्रश्न 23.
मौद्रिक राष्ट्रीय आय को वास्तविक राष्ट्रीय आय में परिवर्तित कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
वास्तविक राष्ट्रीय आय = img

प्रश्न 24.
मौद्रिक आय को अपस्फायक (deflate) करने का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
GNP deflator = \(\frac{\text { Money value of GNP }}{\text { Real Value of GNP }} \times 100\)

प्रश्न 25.
राष्ट्रीय आय के माप के लिए खर्च विधि का वर्णन करें।
उत्तर-
एक लेखा वर्ष में बाज़ार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पादन पर किये गए अन्तिम उपभोग खर्च के माप को खर्च विधि कहा जाता है।

प्रश्न 26.
अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह खर्च जो कि अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर खर्च किया जाता है उसको अन्तिम उपभोग खर्च कहते हैं।

प्रश्न 27.
अन्तिम उपभोग खर्च में कौन-कौन सी मदें शामिल की जाती हैं ?
उत्तर-

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च
  • अन्तिम निवेश खर्च
  • शुद्ध विदेशी निवेश।

प्रश्न 28.
निजी अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी परिवारों तथा निजी गैर लाभकारी संस्थाओं द्वारा वर्तमान उपभोग पर वस्तुओं तथा सेवाओं के खर्च के योग को निजी अन्तिम उपभोग खर्च कहते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 29.
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य (-) …..
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग।

प्रश्न 30.
वस्तुओं का उत्पादन करते समय मशीनों और औज़ारों के मूल्य में जो कमी हो जाती है को ………………. कहते हैं।
उत्तर-
स्थिर पूँजी का उपभोग अथवा घिसावट।

प्रश्न 31.
अर्थव्यवस्था में जिस क्षेत्र का सम्बन्ध उद्योग, घरों के निर्माण, गैस आदि से होता है को ……. कहते हैं।
(क) प्राथमिक क्षेत्र
(ख) गौत्र क्षेत्र
(ग) टरशरी क्षेत्र
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) गौत्र क्षेत्र।

प्रश्न 32.
राष्ट्रीय आय का माप करते समय जिन वस्तुओं का मूल्य एक से अधिक बार जुड़ जाता है को ……………. गणना कहते हैं।
(क) बार-बार
(ख) दोहरी
(ग) सौ बार
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) दोहरी।

प्रश्न 33.
वह अर्थव्यवस्था जिसका सम्बन्ध बाकी विश्व के देशों से नहीं होता को ………………. कहा जाता
(क) बन्द अर्थव्यवस्था
(ख) खुली अर्थव्यवस्था
(ग) विश्व अर्थव्यवस्था
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) बन्द अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 34.
वह अर्थव्यवस्था जिसका सम्बन्ध बाकी विश्व के देशों के साथ होता है को … कहते हैं।
उत्तर-
खुली अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 35.
माल सूची अथवा स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक (-) ………….
उत्तर-
प्रारंभिक स्टॉक।

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प्रश्न 36.
अन्तिम उपभोग व्यय = निजी अन्तिम उपभोग व्यय + सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय + अन्तिम निवेश व्यय + ………
उत्तर-
शुद्ध विदेशी निवेश।

प्रश्न 37.
राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र से होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 38.
एक वस्तु के मूल्य को बार-बार राष्ट्रीय आय में जोड़ने से बचने के लिए मध्यवर्ती वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में जोड़ना चाहिए।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 39.
उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग = मूल्य वृद्धि ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 40.
जो वस्तुएँ अन्तिम उपभोग वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रयोग की जाती है उनको मध्यवर्ती वस्तुएँ कहा जाता है।.
उत्तर-
सही।

प्रश्न 41.
घिसावट को स्थिर पूँजी का उपभोग भी कहते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लय उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य विधियां कौन-सी हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य विधियां तीन हैं-

  1. आय विधि-इस विधि में एक वर्ष में उत्पादन के साधनों को सेवाओं के बदले में जो आय प्राप्त होती है, उसके जोड़ द्वारा राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।
  2. उत्पादन विधि-उत्पादन विधि में एक लेखा वर्ष में देश के प्रत्येक उत्पादक द्वारा किए गए योगदान के जोड़ से राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।
  3. खर्च विधि-इस विधि में एक लेखा वर्ष में बाजार कीमत पर किए कुल अन्तिम खर्च का जोड़ किया जाता |

प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र से होता है जिसमें प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके उत्पादन किया जाता है। इसके उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-

  • कृषि तथा पशु पालन
  • जंगल उद्योग तथा शहतीर बनाना
  • मछली उद्योग
  • खनन।

प्रश्न 3.
गौण क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गौण क्षेत्र का अर्थ निर्माण क्षेत्र से होता है। इसके मुख्य उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-

  • उद्योग
  • निर्माण कार्य
  • विद्युत्, गैस तथा जल आपूर्ति।

प्रश्न 4.
अर्थव्यवस्था के तृतीय क्षेत्र अथवा सेवा क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इस क्षेत्र में सेवाएं शामिल की जाती हैं जैसे कि-

  • यातायात, संचार तथा संग्रहण
  • बीमा तथा बैंक सेवाएं
  • व्यापार तथा होटल
  • आवास निर्माण
  • सरकारी प्रशासन तथा सुरक्षा
  • अन्य सेवाएं।

प्रश्न 5.
मूल्य वृद्धि विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को उत्पाद विधि द्वारा मापने के लिए मूल्य वृद्धि विधि अधिक उपयुक्त विधि है। इस विधि में देश में प्रत्येक उत्पादक द्वारा उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटाकर अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार मूल्य को ज्ञात किया जाता है जिससे दोहरी गणना की समस्या स्वयं हल हो जाती है।
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग (Value Added = Value of Output – Intermediate Consumption)

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प्रश्न 6.
दोहरी गणना की समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वस्तु के मूल्य की गणना जब एक से अधिक बार की जाती है तो इसको दोहरी गणना कहा जाता है। जब एक वर्ष में एक देश में उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को घटा दिया जाए तो अन्तिम वस्तुओं का मूल्य प्राप्त हो जाता है। इससे दोहरी गणना की समस्या का हल हो जाता है।

प्रश्न 7.
निजी अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी अन्तिम उपभोग खर्च का अर्थ एक देश में वर्तमान उपभोग पर वस्तुओं तथा सेवाओं के खर्च का योग होता है जो कि निजी परिवारों तथा निजी गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 8.
अन्तिम निवेश खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में जो उत्पादन किया जाता है उसका सारा भाग उपभोग नहीं किया जाता बल्कि इसमें से कुछ भाग आने वाले समय में वस्तुओं के उत्पादन के लिए रख लिया जाता है जिसमें-

  • कुल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण
  • स्टॉक में परिवर्तन
  • शुद्ध निर्यात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 9.
पूँजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूँजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होते हैं जिनका भुगतान बचत या सम्पत्ति में से अदा किया जाता है। इस हस्तान्तरण को प्राप्त करने वाला अपनी बचत तथा सम्पत्ति में इसको शामिल कर लेता है।

प्रश्न 10.
साधन आगतों तथा गैर-साधन आगतों में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
साधन आगतों में उत्पादन के साधनों भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम को शामिल किया जाता है। इनको प्राथमिक आगतें कहते हैं। गैर-साधन आगतों में गैर-टिकाऊ उत्पादक वस्तुओं तथा सेवाओं को शामिल किया जाता है, जो कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती हैं। यह मध्यवर्ती वस्तुएँ होती हैं जिनको अन्तिम वस्तुओं के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
मध्यवर्ती तथा अन्तिम वस्तुओं में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएँ-वह वस्तुएँ होती हैं, जिनका प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में किया जाता है अथवा उनको दोबारा बिक्री के लिए प्रयोग किया जाता है। अन्तिम वस्तुएँ-वह वस्तुएँ हैं जिनका उत्पादन उनके उपभोग के लिए किया जाता है, अथवा इनका प्रयोग पूँजी निर्माण के लिए होता है।

प्रश्न 12.
घिसावट से क्या अभिप्राय है ? या स्थिर पूँजी का उपभोग क्या होता है ?
उत्तर-
स्थिर भण्डार का प्रयोग करते समय इसके मूल्य में जो कमी हो जाती है उसको घिसावट कहा जाता है और वस्तुओं का उत्पादन करते समय मशीनों, औज़ारों इत्यादि के मूल्य में जो कमी हो जाती है, उसको स्थिर पूंजी का उपभोग या घिसावट कहा जाता है।

प्रश्न 13.
खुली तथा बन्द अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बन्द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है, जिसका शेष विश्व के देशों से आर्थिक सम्बन्ध नहीं होता। खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसका आर्थिक सम्बन्ध अन्य देशों से होता है। यह एक व्यावहारिक धारणा है। इस अर्थव्यवस्था में आयात तथा निर्यात किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 14.
स्टॉक में परिवर्तन या माल सची में परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्टॉक में परिवर्तन को माल सूची परिवर्तन भी कहा जाता है। एक फ़र्म द्वारा जिन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, वह सारा माल बिकता नहीं। उसका कुछ भाग बच जाता है। दूसरे वर्ष जब फ़र्म उत्पादन करती है तो पिछले वर्ष जो माल बच गया था उसको प्रारम्भिक स्टॉक कहा जाता है और साल के अन्त में जो माल बच जाता है उसको अन्तिम स्टॉक कहा जाता है।

स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक |

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए किस प्रकार के आँकड़ों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का माप करने की तीन विधियां हैं। इन विधियों में निम्नलिखित प्रकार के आंकड़ों की आवश्यकता होती है।
1. उत्पादन विधि या मूल्य वृद्धि-उत्पादन विधि अथवा मूल्य वृद्धि विधि में साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि के आंकड़ों की आवश्यकता होती है। इनमें-

  • प्राथमिक क्षेत्र
  • गौण क्षेत्र
  • टरशरी क्षेत्र
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय के आँकड़ों की सहायता से राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।

2. आय विधि-आय विधि में उत्पादन के साधनों की वित्त वर्ष में प्राप्त शुद्ध आय का जोड़ किया जाता है। इसमें

  • शुद्ध लगान
  • शुद्ध ब्याज
  • शुद्ध मज़दूरी
  • शुद्ध लाभ तथा
  • विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय के आंकड़ों का जोड़ किया जाता है।

3. व्यय विधि-खर्च विधि में

  • निजी उपभोग खर्च
  • सरकारी उपभोग खर्च
  • सकल घरेलू पूँजी निर्माण
  • शुद्ध निर्यात
  • मूल्य ह्रास या घिसावट
  • शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
  • विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय के आँकड़ों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र तथा गौण क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र तथा गौण क्षेत्र में मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं –

प्राथमिक क्षेत्रमा गौण क्षेत्र
1. प्राथमिक क्षेत्र में प्रकृति अधिक प्रभावशाली तत्त्व होता है। 1. गौण क्षेत्र में मनुष्य अधिक प्रभावशाली तत्त्व होता है।
2. प्राथमिक क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों से सम्बन्धित क्रियाएँ शामिल की जाती हैं। 2. गौण क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्र में उत्पादन वस्तुओं से सम्बन्धित क्रियाएँ शामिल की जाती है।
3. प्राथमिक क्षेत्र में कृषि उत्पादन महत्त्वपूर्ण होता है। 3. गौण क्षेत्र में औद्योगिक उत्पादन महत्त्वपूर्ण होता है।
4. प्राथमिक क्षेत्र में भूमि उत्पादन का मुख्य साधन होता है। 4. गौण क्षेत्र में पूँजी तथा उद्यमी उत्पादन का मुख्य साधन होता है।

प्रश्न 3.
(i) प्राथमिक क्षेत्र (ii) गौण क्षेत्र (iii) तीसरे क्षेत्र के उद्यमों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-

  • प्राथमिक क्षेत्र के उद्यम-इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें भूमि उत्पादन का मुख्य साधन होता है। उद्यमी गेहूँ, चावल, कपास, मक्की आदि वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
  • गौण क्षेत्र के उद्यम-गौण क्षेत्र में उद्योगों द्वारा प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन का प्रयोग करके और वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। जैसे-लकड़ी से मेज़ बनाना, सूत से कपड़ा बुनना आदि। यह वस्तुएं जीने के लिए आवश्यक होती हैं।
  • तीसरे क्षेत्र के उद्यम-तीसरा क्षेत्र सेवाओं का क्षेत्र है। इस क्षेत्र में बैंकिंग, बीमा, सेहत, शिक्षा आदि से सम्बन्धित सेवाएँ शामिल की जाती हैं। इन सेवाओं से मनुष्य का विकास होता है।

प्रश्न 4.
एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन इकाइयों का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
अथवा
संक्षेप में उत्पादन इकाइयों के प्राथमिक, गौण तथा तीसरे क्षेत्र के वर्गीकरण को स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन इकाइयों को तीन भागों प्राथमिक, गौण तथा टरश्यरी क्षेत्र में विभाजित किया जाता है।

  1. प्राथमिक क्षेत्र की उत्पादन इकाइयाँ-इस क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके उत्पादन किया जाता है। उदाहरण के लिए कृषि उत्पादन, मछली उत्पादन, लट्ठा बनाना आदि।
  2. गौण क्षेत्र की उत्पादन इकाइयाँ-इस क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन का प्रयोग करके और वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। जैसा कि कपास से कपड़ा बनाना, लोहे से साइकिल, स्कूटर तथा कार का निर्माण करना।
  3. सेवाओं या तीसरे क्षेत्र की उत्पादन इकाइयाँ-इस क्षेत्र से प्राथमिक तथा गौण क्षेत्र के उद्योगों को तीसरे क्षेत्र द्वारा सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। जैसा कि जहाज़रानी, बीमा, बैंकिंग आदि के उद्यम इस क्षेत्र में शामिल किए जाते

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प्रश्न 5.
उत्पाद के मूल्य से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश में एक वित्तीय वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार कीमत पर मूल्य को उत्पादन का मूल्य कहते हैं । यदि उत्पादन की गई वस्तु की समस्त मात्रा बिक जाती है, तो उत्पाद का मूल्य बिक्री के मूल्य के समान होता है। यदि उत्पादन वस्तु की अधिक मात्रा बिक जाती है और कुछ भाग बिना बिक्री के कारण बच जाता है तो इसको माल सूची के रूप में रख लिया जाता है। माल सूची में परिवर्तन को स्टॉक में परिवर्तन कहा जाता है।

उत्पाद का मूल्य = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन स्टॉक में परिवर्तन का अर्थ है अन्तिम स्टॉक तथा प्रारम्भिक स्टॉक में अन्तर। इसलिए स्टॉक में परिवर्तन का माप करने के लिए हम अन्तिम स्टॉक में से प्रारम्भिक स्टॉक को घटा देते हैं। इस प्रकार उत्पाद के मूल्य का माप किया जाता है।

प्रश्न 6.
मूल्य वृद्धि को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
मूल्य वृद्धि का अर्थ है, उत्पाद का मूल्य (-) मध्यवर्ती उपभोग। उदाहरण के लिए एक किसान 1000 रुपए की गेहूँ का उत्पादन करता है। उसने गेहूँ का उत्पादन करने के लिए 400 रुपए खर्च किए। यह गेहूँ आटा मिल वाला खरीद लेता है तथा इससे आटा बनाकर दुकानदारों को 1500 रुपए में बेच देता है। दुकानदार यह आटा उपभोगियों को 2000 रुपए में बेच देते हैं। मूल्य वृद्धि का माप इस प्रकार किया जाएगा।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 1
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग
=4500 – 29000
= ₹ 1600 उत्तर

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय को मापने की आय विधि का वर्णन करें।
उत्तर –
राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए आय विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इस विधि द्वारा भिन्न-भिन्न उत्पादन के साधनों को प्राप्त होने वाली आय का योग किया जाता है। आय विधि की मुख्य अवस्थाएं इस प्रकार हैं-
प्रथम अवस्था-सबसे पहले उत्पादन की इकाइयों की पहचान की जाती है जिनको प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector), गौण क्षेत्र (Secondary Sector) तथा सेवाएं क्षेत्र (Teritiary Sector) में विभाजित किया जाता है।

दूसरी अवस्था- इस अवस्था में उत्पादन के साधनों की आय का वर्गीकरण किया जाता है जिसमें निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं

  • कर्मचारियों का मेहनताना
  • परिचालन अधिशेष
  • मिश्रित आय
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय।

3. तृतीय अवस्था-

  • उत्पादन के साधनों को किए गए भुगतान को घरेलू साधन आय कहा जाता है।
  • शुद्ध राष्ट्रीय आय = शुद्ध घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
  • सकल राष्ट्रीय आय = शुद्ध राष्ट्रीय आय + मूल्य घिसावट
  • बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इस प्रकार आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।

प्रश्न 8.
आय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित सावधानियों का ध्यान रखने की आवश्यकता है-

  1. गैर-कानूनी काम जैसे कि जुआ, तस्करी इत्यादि से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  2. आकस्मिक आय जैसे कि लॉटरी से प्राप्त आय तथा पूंजीगत लाभ को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  3. हस्तान्तरण आय जैसे कि बुढ़ापा पेन्शन, बेरोज़गारी भत्ता इत्यादि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  4. स्व-उपभोग के लिए रखी गई वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, परन्तु स्व-उपभोग की सेवाओं को इसमें शामिल नहीं किया जाता।
  5. पुरानी वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता परन्तु पुरानी वस्तुओं की बिक्री के कारण प्राप्त हुई दलाली अथवा कमीशन को शामिल किया जाता है।
  6. नए तथा पुराने शेयर, बाँड़ों को बेच कर प्राप्त होने वाली आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  7. मकान मालिकों के मकान का आरोपित किराया राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  8. लाभ अथवा निगम कर लाभांश तथा अविभाजित लाभ तीनों ही लाभ के अंश होते हैं । इसलिए यदि लाभ दिया गया हो तो अन्य अंशों को शामिल नहीं करना चाहिए।
  9. व्यक्तिगत आय कर कर्मचारियों की मेहनत का ही भाग होते हैं इसलिए आय कर देने से पूर्व ही कर्मचारियों के मेहनताने को शामिल किया जाता है।
  10. अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes) जैसे कि बिक्री कर, उत्पादन कर, वस्तु की कीमत में शामिल होते हैं। बाज़ार कीमत और राष्ट्रीय आय का अनुपात लगाते समय इनको अलग से शामिल नहीं किया जाता है।

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प्रश्न 9.
मूल्य वृद्धि विधि की मुख्य अवस्थाओं को स्पष्ट करें।
अथवा
बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि का माप करते समय भिन्न-भिन्न अवस्थाओं की व्याख्या करें।
अथवा
एक उदाहरण की सहायता से मूल्य वृद्धि समझाइए।
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित अवस्थाएं होती हैं
1. प्रथम अवस्था (First Step)- इस विधि में एक देश की घरेलू सीमा में उद्यमों की पहचान की जाती है, जिनको तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

  • प्राथमिक क्षेत्र
  • गौण क्षेत्र
  • तीसरा क्षेत्र।

2. द्वितीय अवस्था (Second Step)-शुद्ध मूल्य वृद्धि का अनुमान लगाने के लिए उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत को घटाया जाता है। इस प्रकार मूल्य वृद्धि = उत्पादन का मूल्य — मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत शुद्ध मूल्य वृद्धि = मूल्य वृद्धि – मूल्य घिसावट

3. तृतीय अवस्था (Third Step)-इसमें घरेलू सीमा के भीतर शुद्ध मूल्य वृद्धि का पता लगाकर अन्य धारणाओं का अनुमान लगाया जाता है। इस विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय का माप इस प्रकार किया जाता हैराष्ट्रीय आय = प्राथमिक क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + सेवा क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि = सकल घरेलू मूल्य वृद्धि, बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होती है।

प्रश्न 10.
उत्पाद विधि में बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद के घटकों की व्याख्या करें।
उत्तर-
बाज़ार कीमत पर राष्ट्रीय उत्पाद का माप करते समय अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का योग किया जाता है, जिसके मुख्य घटक इस प्रकार हैं
बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद = उपभोगी वस्तुएं तथा सेवाएं (C) + कुल घरेलू निजी निवेश (I) + सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुएं तथा सेवाएं (G) + शुद्ध निर्यात (X – M) Gross National Product at Market Prices = C + I + G (X – M)

  • उपभोगी वस्तुएं तथा सेवाएं-इसमें टिकाऊ उपभोगी वस्तुएं, एक प्रयोग वाली उपभोगी वस्तुओं तथा उपभोगी सेवाएं शामिल की जाती हैं।
  • कुल घरेलू निजी निवेश-इसमें स्टॉक में निवेश, आवास निर्माण, सकल घरेलू निजी स्थिर पूंजी निर्माण को शामिल किया जाता है।
  • सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुएं तथा सेवाएं-इसमें सरकारी निवेश तथा वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन को शामिल किया जाता है।
  • शुद्ध निर्यात-इसमें निर्यात में से आयात का मूल्य घटा कर राष्ट्रीय आय का पता किया जाता है। यदि हम इन वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य बाज़ारी कीमतों पर ज्ञात करके जोड़ लेते हैं तो इसको बाज़ार कीमतों पर कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहा जाता है।

प्रश्न 11.
मूल्य वृद्धि विधि में घरेलू साधन आय के मुख्य घटकों की व्याख्या करें।
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि में राष्ट्रीय आय का माप करते समय उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के उपभोग को घटाया जाता है। इससे वस्तु की दो बार गणना की समस्या का हल हो जाता है। मूल्य वृद्धि विधि वह विधि है जो घरेलू सीमा के भीतर प्रत्येक उत्पादक के उद्यम का माप करती है। इस विधि में घरेलू साधन आय के मुख्य घटक इस प्रकार होते हैं-
घरेलू साधन आय = प्राथमिक क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + तीसरे क्षेत्र में मूल्य वृद्धि – मूल्य घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
जब हम भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बाज़ार कीमत पर कुल मूल्य वृद्धि का माप कर लेते हैं तो हमारे पास बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि अथवा सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त होता है।

इसमें से मूल्य घिसावट घटाने से बाज़ार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि अथवा शुद्ध घरेलू उत्पाद प्राप्त हो जाता है। यदि इसमें से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता) घटा दिया जाए तो साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि अथवा घरेलू साधन आय प्राप्त हो जाती है। यदि हम राष्ट्रीय आय ज्ञात करना चाहते हैं तो हम घरेलू साधन आय में विदेशों से शुद्ध साधन आय का योग कर लेते हैं।

प्रश्न 12.
उत्पाद विधि की मुख्य सावधानियां बताएं।
अथवा
मूल्य वृद्धि विधि की मुख्य सावधानियों को स्पष्ट करें।
उत्तर-

  1. इस विधि में पुरानी वस्तुओं की खरीद अथवा बेच से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, परन्तु पुरानी वस्तुओं की बेच से कमीशन अथवा दलाली को शामिल किया जाता है।
  2. स्व-उपभोग के लिए उत्पादित वस्तुओं के आरोपित मूल्य (Imputed Value) को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, परन्तु स्व-उपभोग की सेवाओं को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता।
  3. मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता, परन्तु अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को मूल्य वृद्धि में शामिल किया जाता है।
  4. जिन मकानों में मालिक स्वयं निवास करते हैं उनके आरोपित किराए (Imputed Rent) को मूल्य वृद्धि में शामिल किया जाता है।
  5. सरकारी क्षेत्र में कर्मचारियों के मेहनताने को ही शामिल किया जाता है, जबकि इस क्षेत्र में लाभ, ब्याज, घिसावट के उचित आंकड़े प्राप्त न होने के कारण इनको शामिल नहीं किया जाता।
  6. मूल्य वृद्धि द्वारा घरेलू उत्पाद की गणना की जाती है। यदि हम राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात करना चाहते हैं तो इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 13.
उत्पाद विधि की मुख्य कठिनाइयों का वर्णन करें।
उत्तर-
उत्पाद विधि की मुख्य कठिनाइयां इस प्रकार हैं-

  • राष्ट्रीय आय का माप करते समय केवल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को ही शामिल किया जाता है, परन्तु साधारणतया दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है।
  • कम विकसित देशों में वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter system) प्रचलित होती है। इसलिए राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाना कठिन हो जाता है।
  • वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का माप बाज़ार में प्रचलित कीमतों द्वारा किया जाता है, परन्तु बाज़ार कीमतों में परिवर्तन होता रहता है, इसलिए राष्ट्रीय आय का उचित अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
  • स्व-उपभोग की वस्तुओं का आरोपित मूल्य (Imputed Value) राष्ट्रीय आय के माप में शामिल किया जाता है, परन्तु आरोपित मूल्य का उचित अनुमान लगाना कठिन होता है।
  • राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित उचित आंकड़े प्राप्त नहीं होते क्योंकि लोग अशिक्षित तथा अज्ञानी होते हैं। इसलिए राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
दोहरी गणना की समस्या पर नोट लिखें।
उत्तर-
उत्पाद विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय केवल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य जोड़ा जाता है। मध्यवर्ती मूल्य को शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इससे एक वस्तु का मूल्य एक से अधिक बार राष्ट्रीय आय में शामिल हो जाता है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय का उचित अनुमान नहीं लगाया जा सकता, बल्कि इससे राष्ट्रीय आय अधिक नज़र आती है। इसको दोहरी गणना की समस्या कहते हैं। उदाहरणतया एक किसान 1,000 रुपए की कपास पैदा करता है तथा धागा बनाने वाली फैक्टरी को बेच देता है।

धागा फैक्टरी इससे धागा बनाकर 1,800 रुपए में कपड़ा बनाने वाली फैक्टरी को बेच देती है। कपड़ा फैक्टरी इसका कपड़ा बनाकर 5,000 रुपए में उपभोक्ताओं को बेच देती है। यदि हम तीनों उत्पादकों के मूल्य को जोड़ते हैं तो हमारे पास उत्पादन मूल्य 1,000 + 1,500 + 5,000 = 7,500 रुपए प्राप्त होता है।

परन्तु इसको शुद्ध उत्पाद नहीं कहा जाता। हम देखते हैं कि वास्तविक उत्पादन कपड़े का हुआ है जिसका मूल्य 5,000 रुपए है। इसलिए इसको ही राष्ट्रीय आय में जोड़ना चाहिए। यदि मध्यवर्ती वस्तुओं कपास तथा धागे के मूल्य को शामिल किया जाए तो इससे दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है। इसका हल मूल्य वृद्धि विधि द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 15.
राष्ट्रीय आय के माप के लिए खर्च विधि का वर्णन करें।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय के माप की तृतीय विधि खर्च विधि है। इस विधि को उपभोग तथा निवेश विधि अथवा आय खर्च विधि भी कहा जाता है। इस विधि के अनुसार एक लेखा वर्ष में बाजार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद पर किए गए अन्तिम खर्च का माप किया जाता है। अन्तिम खर्च दो प्रकार का होता है
(i) उपभोग खर्च (Consumption Expenditure)
(ii) निवेश खर्च (Investment Expenditure)

(i) उपभोग खर्च को दो भागों में विभाजित किया जाता है-
(a) निजी अन्तिम उपभोग खर्च
(b) सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च

(ii) निवेश खर्च को तीन भागों में विभाजित किया जाता है
(a) सकल स्थाई पूंजी निर्माण
(b) स्टॉक में परिवर्तन
(c) शुद्ध निर्यात।
इस प्रकार यदि हम अन्तिम उपभोग खर्च का योग कर लेते हैं तो बाज़ार कीमत पर कुल उत्पाद खर्च का मूल्य प्राप्त हो जाता है अर्थात्
+ सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च (G) + घरेलू निवेश खर्च (I)
+ शुद्ध विदेशी निवेश (X – M)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय का माप खर्च विधि द्वारा करते समय क्या सावधानियां प्रयोग करनी चाहिएं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का माप करते समय खर्च विधि में निम्नलिखित सावधानियों का प्रयोग करना चाहिए

  1. सरकार द्वारा किए गए हस्तान्तरण भुगतान तथा खर्च को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  2. पुराने अथवा नए शेयर व बांड पर किया गया खर्च कुल खर्च में शामिल नहीं किया जाता।
  3. कुल खर्च का माप करते समय मध्यवर्ती खर्च को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता केवल अन्तिम खर्च को ही शामिल किया जाता है।
  4. पुरानी वस्तुओं पर किए गए खर्च को कुल खर्च में शामिल नहीं किया जाता।
  5. कुल खर्च में कुल निवेश को शामिल किया जाता है। इसमें घिसावट का खर्च भी शामिल होता है।
  6. निर्यात में देश-वासियों को विदेशों से प्राप्त ब्याज, लगान, लाभ तथा मज़दूरी शामिल किए जाते हैं। इसी प्रकार आयात में विदेशियों द्वारा हमारे देश में से प्राप्त लाभ, ब्याज, इत्यादि को शामिल किया जाता है। इस प्रकार शुद्ध निर्यात का माप निर्यात में से आयात घटा कर किया जाता है।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय आय मापने की विधियों की समानता पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय के माप के लिए आय विधि, उत्पाद विधि तथा खर्च विधि का प्रयोग किया जाता है। इन तीनों विधियों द्वारा राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है तो प्राप्त नतीजे में समानता पाई जाती है क्योंकि तीनों विधियां राष्ट्रीय आय का माप भिन्न-भिन्न स्तरों पर करती हैं जैसे कि आय विधि में राष्ट्रीय आय का माप आय सृजन (Income Generation) के स्तर पर किया जाता है। उत्पाद विधि में राष्ट्रीय आय का माप अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन स्तर (Production of final goods and services) द्वारा किया जाता है।

खर्च विधि में राष्ट्रीय आय का माप उपभोग खर्च तथा निवेश खर्च (Consumption and Expenditure) के स्तर पर किया जाता है। इन विधियों में से किसी भी विधि का प्रयोग किया जाए, परिणाम समान निकलते हैं। इस कारण तीनों विधियों में समानता पाई जाती है अर्थात् सकल राष्ट्रीय आय = सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय खर्च।

प्रश्न 18.
विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश के निवासियों द्वारा विदेशों में उत्पादन के साधन तथा सेवाएं प्रदान की जाती हैं जिसके बदले में उनको आय प्राप्त होती है। इस देश में गैर-निवासी भी साधन सेवाएं प्रदान करते हैं। इससे वह जो आय अर्जित करते हैं वह विदेशों को चली जाती है। इस देश के साधनों द्वारा प्राप्त की गई आय तथा विदेशियों द्वारा इस देश में से प्राप्त की गई आय के अन्तर को विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय कहा जाता है। विदेशों से शद्ध साधन आय धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकती है। जब किसी देश की घरेलू आय ज्ञात हो तथा हम राष्ट्रीय आय ज्ञात करना चाहते हैं तो घरेलू आय में विदेशों से शुद्ध साधन आय को जोड़ा जाता है। घरेलू आय राष्ट्रीय आय से कम भी हो सकती है अथवा अधिक भी हो सकती है।

प्रश्न 19.
आय विधि, उत्पाद विधि तथा खर्च विधि के मुख्य घटक बताएं।
उत्तर-

  • आय विधि (Income Method) के मुख्य घटक बाजार कीमत पर राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।
  • उत्पाद विधि (Value Added Method) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर प्राथमिक क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + बाज़ार कीमत पर गौण क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + बाज़ार कीमत पर तृतीय क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + विदेशों में शुद्ध साधन आय।
  • खर्च विधि (Expenditure Method) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 20.
आय विधि में घरेलू साधन आय के घटकों की व्याख्या करें।
उत्तर-
आय विधि में घरेलू साधन आय के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं
1. कर्मचारियों की मेहनत (Compensation of Employees)-कर्मचारियों की मेहनत से अभिप्राय उत्पादकों द्वारा अपने कर्मचारियों को काम के बदले में किए गए भुगतान से होता है। कर्मचारियों के वेतन तथा मजदूरी के मुख्य अंश इस प्रकार होते हैं

  • नकद मज़दूरी तथा वेतन
  • किस्म के रूप में आय
  • सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का योगदान।

2. परिचालन अधिशेष (Operating Surplus)-इसमें सम्पत्ति से प्राप्त आय तथा उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है। परिचालन अधिशेष की मुख्य मदें इस प्रकार हैं

  • किराया तथा रायल्टी
  • ब्याज
  • लाभ (लाभांश + निगम कर + अविभाजित लाभ)।

3. मिश्रित आय (Mixed Income)-मिश्रित आय से अभिप्राय स्व-रोज़गार पर लगे लोगों की काम तथा सम्पत्ति दोनों से प्राप्त मिश्रित आय से होता है। उदाहरणतया किसान, दुकानदार, प्राइवेट डॉक्टर को प्राप्त होने वाली आय में उनकी मेहनत की मज़दूरी, पूंजी का ब्याज, भूमि अथवा मकान का किराया तथा उद्यमवृत्ति से प्राप्त लाभ इत्यादि शामिल होते हैं। इस कारण इस आय को मिश्रित आय कहा जाता है।

(A) मूल्य वृद्धि या उत्पाद विधि (Value Added Or Product Method)
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न । (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मूल्य वृद्धि विधि या उत्पाद विधि से क्या अभिप्राय है ? इस विधि द्वारा राष्ट्रीय आय को मापने में जुड़ने वाले चरणों की रूप-रेखा स्पष्ट करें। मूल्य वृद्धि विधि की सावधानियां बताएं।
(Give an outline of the steps involved in the estimation of National Product by Value Added Method or Product Method. Explain the precautions in Value Added Method.)
उत्तर-
राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय की गणना के लिए उत्पाद विधि अथवा मूल्य वृद्धि विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि को शुद्ध उत्पाद विधि (Net Output Method) या औद्योगिक मूल्य विधि (Industrial Origin Method) भी कहा जाता है। मूल्य वृद्धि विधि वह विधि है जिसमें राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए एक देश में एक लेखा वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का दोहरी गणना के बिना माप होता है।
(Value Added Method or Product Method is the method of measurement of national income by adding the goods and services produced in the domestic territory of a country in a year without double counting.)

मूल्य वृद्धि विधि से राष्ट्रीय आय के माप की अवस्थाएं (Steps in measurement of National Income in Value Added Method)

1. प्रथम अवस्था (First Step)—इसमें सर्वप्रथम देश की उत्पादक इकाइयों का वर्गीकरण तीन क्षेत्रों में किया जाता है-
(i) प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)-इस क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों के प्रयोग द्वारा उत्पादन किया जाता है। इसके उप-क्षेत्र हैं
(a) कृषि तथा पशुपालन
(b) जंगल उद्योग तथा शहतीर बनाना
(c) मछली उद्योग
(d) खानों का उत्पादन।

(ii) गौण क्षेत्र (Secondary Sector)-इसके उप-क्षेत्र हैं
(a) उद्योग
(b) निर्माण
(c) जल आपूर्ति, विद्युत् गैस इत्यादि।

(iii) तीसरा क्षेत्र (Tertiary Sector)-इसके उप-क्षेत्र हैं—
(a) यातायात, संचार तथा संग्रहण
(b) व्यापार, होटल तथा जलपान गृह
(c) बैंक तथा बीमा
(d) स्थिर सम्पत्ति, मकानों की मालकी तथा व्यापारिक सेवाएं
(e) सार्वजनिक प्रशासन तथा सुरक्षा
(f) अन्य सेवाएं।

2. दूसरी अवस्था (Second Step)-दूसरी अवस्था में हर एक उत्पादन इकाई के मूल्य का माप किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य निकाल दिया जाए तो हमारे पास कुल मूल्य वृद्धि प्राप्त हो जाती है।
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग Value Added = Value of Output – Intermediate Consumption

(A) उत्पाद का मूल्य-वह मूल्य है जोकि एक फ़र्म द्वारा एक साल में वस्तुओं तथा सेवाओं को बाज़ार में प्रचलित कीमत पर गुणा करने से प्राप्त होता है। फ़र्म द्वारा एक वर्ष में जो उत्पादन किया जाता है इसका कुछ भाग बिक जाता है तथा कुछ भाग स्टॉक के रूप में बच जाता है। इसलिए उत्पाद का मूल्य = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन
Value of Output = Sales + Change in Stock
स्टॉक में परिवर्तन प्रारम्भिक स्टॉक में से अन्तिम स्टॉक को घटाने से प्राप्त होता है।
स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक
Change in Stock = Closing Stock – Opening Stock

(B) मध्यवर्ती उपभोग-उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कच्चे माल पर जो खर्च किया जाता है उसको मध्यवर्ती उपभोग कहा जाता है। इसमें उत्पादन के साधनों भूमि, श्रम, पूंजी तथा उद्यमकर्ता की लागत को शामिल नहीं किया जाता। इस प्रकार मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटाया जाता है। इस विधि में राष्ट्रीय आय की दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न नहीं होती।

उदाहरण के लिए एक किसान ₹ 1000 के मूल्य की कपास पैदा करता है। उसने कच्चे माल के रूप में ₹ 300 खर्च किए हैं। किसान को हम फ़र्म A कहते हैं। फर्म A ने यह कपास फ़र्म B को बेच दी जोकि धागे का उत्पादन करती है तथा फ़र्म B ने ₹ 1500 मूल्य का धागा बनाकर फर्म C को बेच दिया। फ़र्म C ने इस धागे से कपड़ा बनाकर उपभोगियों को ₹ 2500 में बेच दिया। मूल्य वृद्धि का माप इस प्रकार किया जाएगा –

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 2
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग
= 5000 – 2800 = ₹ 2200
फ़र्म A द्वारा मूल्य वृद्धि = 1000 – 300 = ₹ 700
फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि = 1500 – 1000 = ₹ 500
फ़र्म C द्वारा मूल्य वृद्धि = 2500 – 1500 = ₹ 1000
कुल मूल्य वृद्धि Gross Value Added = ₹ 2200
इसको बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

3. तीसरी अवस्था (Third Step)-अब राष्ट्रीय आय की धारणाओं का अध्ययन करते हैं। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित मदों को ध्यान में रखना चाहिए

  • मूल्य ह्रास या घिसावट (Depreciation)
  • शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes = Indirect Taxes – Subsidies)
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from Abroad) राष्ट्रीय आय का माप करते समय मूल्य वृद्धि से सम्बन्धित निम्नलिखित धारणाएं होती हैं

1. कुल मूल्य वृद्धि = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद Gross Value Added = Gross Domestic Product at Market Prices
बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि एक देश की घरेलू सीमा में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य होता है।
2. बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – घिसावट
Gross Domestic Product at Market Prices = GDPMP – Depreciation
3. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
Net Domestic Product at Factor Cost = NDPMP – Net Indirect Taxes
4.साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय
Net National Product at Factors Cost = NDPFC + Net Factor Income from Abroad
अथवा
5. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का मुआवज़ा लाभ + लगान + ब्याज + मिश्रित आय
NNPFC = N.I. = Compensation of Employees + Rent + Interest + Profit + Mixed Income.

प्रश्न 2.
मूल्य वृद्धि विधि या उत्पादन विधि की सावधानियां बताएं। (Explain the Precautions of Value Added Method or Product Method.)
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि या उत्पादन विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय कुछ मदों को शामिल किया जाता है तथा कुछ मदों को शामिल नहीं किया जाता।
कौन-सी मदों को शामिल नहीं करना चाहिए (Which Items should be Excluded)-

  • पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय-पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि यह चालू वर्ष में उत्पादन नहीं की गईं।
  • गैर-कानूनी कामों से आय-गैर-कानूनी काम जैसा कि जुआ, समगलिंग, चोरी इत्यादि से आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य-मध्यवर्ती वस्तुओं को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इससे दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • स्व-उपभोग की सेवाएं-स्व-उपभोग की सेवाओं को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता जैसा कि पिता द्वारा पुत्र को पढ़ाना, इत्यादि क्योंकि इनके सेवा फल का अनुमान लगाना कठिन होता है।
  • कम्पनी द्वारा ब्रान्ड की बिक्री-किसी कम्पनी द्वारा ब्रान्डस की बिक्री से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में _शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह वित्तीय लेन-देन है।

कौन-सी मदों को मूल्य वृद्धि में शामिल करना चाहिए
(Which Items should be Included in Value Added)

  • पुरानी वस्तुओं की बिक्री से दलाली-पुरानी वस्तुओं की बिक्री से दलाली को राष्ट्रीय आय में शामिल करना चाहिए क्योंकि यह वर्तमान सेवा का फल है।
  • उत्पादकों द्वारा स्व-उपभोग-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह उत्पादन बाज़ार में बिक्री के लिए नहीं आता इसलिए इस उत्पादन का आरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
  • मकान मालिकों का आरोपित किराया-जिन मकानों में मालिक स्वयं रहते हैं उनका आरोपित किराया, राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  • सरकारी क्षेत्र में कर्मचारियों का मेहनताना-सरकारी क्षेत्र में राष्ट्रीय आय का माप करते समय सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों का मेहनताना शामिल किया जाता है। लगान, ब्याज तथा लाभ को शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इनके आंकड़े प्राप्त नहीं होते।
  • पूंजी का स्व-लेखा उत्पादन-सरकारी, निगमित तथा पारिवारिक क्षेत्र में उत्पन्न की गई अचल पूंजी को भी राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  • अन्तिम वस्तुओं का मूल्य-उत्पाद विधि में राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय केवल अन्तिम वस्तुओं के मूल्य को ही शामिल किया जाता है।

प्रश्न 3.
दोहरी माप की समस्या से क्या अभिप्राय है ? राष्ट्रीय आय का माप करते समय दोहरे माप की समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है ?
उत्तर-
दोहरी माप की समस्या का अर्थ (Meaning of Problem of Double Counting) उत्पादन विधि द्वारा जब राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है तो इसमें केवल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं को ही शामिल किया जाता है। कई बार मध्यवर्ती वस्तुओं की गणना भी हो जाती है जिससे दोहरी गणना की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। दोहरी गणना का अर्थ किसी वस्तु के मूल्य को एक बार से अधिक बार राष्ट्रीय आय में शामिल करने से होता है परन्तु सब वस्तुएं अन्तिम वस्तुएं नज़र आती हैं जबकि उनका प्रयोग मध्यवर्ती वस्तुओं के रूप में होता है। इसको हम एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं मान लीजिए एक किसान गेहूं उत्पन्न करता है तथा एक आटा मिल वाले को 1000 रुपए की बेच देता है।

आटा मिल वाले के लिए गेहूं अन्तिम मध्यवर्ती वस्तु है जिसको वह आटे में बदलकर बेकरी वाले को 1500 रुपए में बेच देता है। आटा मिल के लिए आटा अन्तिम वस्तु है पर बेकरी वाले के लिए यह मध्यवर्ती वस्तु है क्योंकि बेकरी वाला इससे बिस्कुट बनाकर अन्तिम उपभोक्ताओं को 2000 रुपए में बेच देता है। यदि हम प्रत्येक आदान-प्रदान को राष्ट्रीय आय में शामिल कर लेते हैं तो उससे वस्तु का उत्पादन मूल्य बहुत अधिक हो जाता है जबकि मूल्य वृद्धि इस बात को प्रकट करती है कि वस्तु के मूल्य में कितनी वृद्धि हुई है, उसको राष्ट्रीय आय में शामिल करना चाहिए।

यदि हम कुल उत्पाद का मूल्य राष्ट्रीय आय में शामिल करते हैं तो इसमें एक वस्तु का मूल्य कई बार जुड़ जाता है। इसलिए दोहरी गणना से बचने के लिए अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को राष्ट्रीय में जोड़ना चाहिए जैसे कि बेकरी वाले ने अन्तिम उपभोक्ताओं को 2000 रुपए के बिस्कुट बेचे हैं जिसको राष्ट्रीय आय में शामिल करना चाहिए। लेकिन इस विधि में ग़लती होने की सम्भावना होती है तथा किसी मध्यवर्ती वस्तु का मूल्य इसमें जुड़ जाए तो दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

दोहरी गणना की समस्या का हल (Solution of the Problem of Double Counting) – राष्ट्रीय आय का माप करते समय यदि हम मूल्य वृद्धि (Value Added) की विधि को अपनाते हैं, तो दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न नहीं होती। इसको निम्नलिखित सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है|
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 3
उत्पादन का मूल्य = ₹4500
मध्यवर्ती वस्तु का मूल्य = ₹ 2500
मूल्य वृद्धि = ₹ 2000
इस प्रकार यदि हम उत्पादन का मूल्य शामिल करते हैं तो ₹ 4500 का उत्पादन किया गया है। परन्तु इसमें से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य 2500 भी शामिल है। यदि हम उत्पाद मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटा देते हैं तो इससे अन्तिम वस्तु का मूल्य प्राप्त हो जाता है जिसको मूल्य वृद्धि कहा जाता है। मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय दोहरी गणना की समस्या का हल हो जाता है।

याद रखें मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना (Measurement of National Income with Value Added Method)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 4

  1. प्राथमिक क्षेत्र में बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि
  2. गौण क्षेत्र में बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि
  3. तीसरे क्षेत्र में बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि
  4. मूल्य ह्रास या मूल्य घिसावट
  5. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – सहायता)
  6. विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय।

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर फ़र्म A तथा फ़र्म B द्वारा की गई मूल्य वृद्धियों का आंकलन करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 5
हल (Solution):
फ़र्म A तथा फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 6
फ़र्म A द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – खरीद
= 110 + (-15) – 80
= ₹ 15 लाख उत्तर

फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – खरीद
= 90 + (-10) – 50
= ₹ 30 लाख उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर फ़र्म x तथा फ़र्म Y द्वारा की गई मूल्य वृद्धियों को ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 7
हल (Solution) :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 8
फ़र्म X द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री + भण्डार में परिवर्तन – खरीद
= 300 + 20 – 70
= ₹ 250 लाख उत्तर
फ़र्म Y द्वारा मूल्य वृद्धि = 500 + 10 – 450 = ₹ 60 लाख उत्तर

प्रश्न 3.
निम्न आंकड़ों द्वारा फ़र्म A तथा फ़र्म B की मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 9
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 10
हल (Solution) :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 11
फ़र्म A द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 450 लाख
फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 170 लाख उत्तर

प्रश्न 4.
निम्न आंकड़ों के आधार पर C उद्योग की मूल्य वृद्धि ज्ञात करें-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 12
हल (Solution) :
उद्योग A, B, C तथा D द्वारा कुल बिक्री = ₹ 130 लाख

  • उद्योग, A द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री – खरीद = ₹ 20 – 0 = 20 लाख
  • उद्योग B द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 40 लाख
  • उद्योग D द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 30 लाख
  • उद्योग A, B तथा D द्वारा मूल्य वृद्धि = 20 + 40 + 30 = ₹ 90 लाख
  • उद्योग C द्वारा मूल्य वृद्धि = 130 – 90 = ₹ 40 लाख उत्तर

(A, B, C, D द्वारा मूल्य वृद्धि – ABD द्वारा मूल्य-वृद्धि)

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 13
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 14
हल (Solution) :
साधनं लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक – मध्यवर्ती उपभोग — बिक्री कर + सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 1000 + 80 – 40 – 640 – 30 + 10 – 100 = ₹ 280 लाख उत्तर

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा फर्म A की बाज़ार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 15
हल (Solution) :
बाजार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – घिसावट – मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद
= 700 + 40 – 80 – 400 = ₹ 260 हज़ार उत्तर

प्रश्न 7.
फ़र्म A ने ₹500 गैर-साधन आगतों (Inputs) पर खर्च किए और ₹ 900 के मूल्य की वस्तुओं का उत्पादन किया। इसने ₹ 600 के मूल्य की वस्तुएं फ़र्म B तथा ₹ 300 के मूल्य की वस्तुएं उपभोक्ताओं को बेचीं। फ़र्म A की सकल मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
हल (Solution):
फ़र्म A द्वारा सकल मूल्य वृद्धि = उत्पादन वस्तुओं का मूल्य – ग़ैर-साधन आगतों पर खर्च  = 900 (600 + 300) – 500 = ₹400 उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 16
हल (Solution):
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक) – मूल्य घिसावट – उत्पादन कर – मध्यवर्ती उपभोग ।
= 200 + 10 – 15 – 12 – 20 – 48 = ₹ 115 लाख उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(क) उत्पादन का मूल्य
(ख) साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 17
हल-
(क) उत्पादन का मूल्य – बिक्री + स्टॉक में वृद्धि
= 27,560 + 1,690
= ₹ 29,250 करोड़ उत्तर

(ख) साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में वृद्धि – मध्यवर्ती उपभोग – अप्रत्यक्ष कर – स्थाई पूंजी का उपभोग + आर्थिक सहायता = 27,560 + 1,690 – 3,575 – 2,000 – 1,345 + 1,550
= ₹ 23,880 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए।
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
(ग) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 18
हल (Solution) :
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = बिक्री + साल के अन्त में स्टॉक – साल के आरम्भ में स्टॉक – मध्यवर्ती उपभोग
= 70,000 + 25,000 – 5,000 – 10,000 = ₹ 80,000 लाख उत्तर
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट लागत = 80,000 – 1,000 = ₹ 79,000 लाख उत्तर
(ग) राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता = 79,000 – 300 + 100 = ₹ 78,800 लाख उत्तर

(B) आय विधि (Income Method)
IV. दीर्घ उरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के माप की आय विधि की व्याख्या करें।
(Explain the Income Method for measurement of National Income.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का अर्थ एक वर्ष में एक देश के साधारण निवासियों द्वारा उत्पादित आय के साधनों के रूप में कार्य करने से जो आय मज़दूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होती है, उसके योग को राष्ट्रीय आय कहा (The sum of incomes accuring to the factors of Production supplied by the norma! Residents of a country during a year is called National Income.) एक वर्ष में उत्पादन के साधनों श्रम, पूंजी, भूमि तथा उद्यम को कार्य करने के बदले में मजदूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रूप में जो आप प्राप्त हाती है, उसके योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। आय विधि को साधन भुगतान विधि (Factor Paynient Method) अथवा वर्गीकृत कार्यों के अनुसार विधि (Distributed Share Method) भी कहा जाता।

उत्पादन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप आय का सृजन होता है। उत्पादन के समय जो आय उत्पादन के साधनों को प्राप्त होती है उसको उद्यमियों की साधन लागत तथा उत्पादन के साधनों की आय कहा जाता है। आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित अवस्थाओं में से निकलना पड़ता है-
1. प्रथम अवस्था (First Stage)-इस विधि में सबसे पहले देश की घरेलू सीमा के भीतर आने वाली इकाइयों का पता किया जाता है जिनको प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector), गौण क्षेत्र (Secondary Sector) तथा तृतीय क्षेत्र (Teritiary Sector) में विभाजित किया जाता है।

2. द्वितीय अवस्था (Second Stage)-इसके पश्चात् उत्पादन इकाइयों को दिए जाने वाले भुगतान का अनुमान लगाया जाता है जैसे कि-
(a) कर्मचारियों की मेहनत-मज़दूरी तथा वेतन + किस्म के रूप में आय + सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का योगदान + रिटायर हुए कर्मचारियों की पेन्शन।
(b) परिचालन अधिशेष-इसमें सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है जिसमें निम्नलिखित आय शामिल होती है

  • किराया अथवा लगान तथा रायल्टी
  • ब्याज
  • लाभ (लाभांश + निगम कर + उद्यमियों की बचत या अविभाजित लाभ)

(c) मिश्रित आय-इसमें स्व-रोज़गार पर लगे लोगों के कार्य तथा सम्पत्ति से प्राप्त आय शामिल होती है। यदि हम ऊपर दी गई आय का योग कर लेते हैं तो इसको शुद्ध घरेलू आय कहा जाता है।

(d) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय-एक देश के लोगों द्वारा विदेशों में प्रदान की गई साधन सेवाओं के बदले में प्राप्त होने वाली आय तथा एक देश की घरेलू सीमा के भीतर गैर-निवासियों द्वारा सेवाओं के बदले में दी जाने वाली आय के अन्तर को शुद्ध विदेशी साधन आय कहा जाता है। यदि हम शुद्ध घरेलू आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को जोड़ लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय (National Income) कहते हैं।

3. तृतीय अवस्था (Third Stage)-इस अवस्था में साधन आय का अनुमान लगाया जाता है। विभिन्न धारणाओं को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • शुद्ध घरेलू आय (NDPFC) कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय
  • शुद्ध राष्ट्रीय आय अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट अथवा शुद्ध घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय = शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट
  • सकल राष्ट्रीय आय या साधन लागतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट
  • बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय-कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर अथवा = सकल राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

प्रश्न 2.
आय विधि में ध्यान रखने योग्य सावधानियों का वर्णन करें। (Explain the Precautions regarding Income Method.)
अथवा
राष्ट्रीय आय का माप करते समय आय विधि में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है तथा कौन-सी मदों को शामिल नहीं किया जाता ?
(Which items should be included in National Income and which items should not be included in National Income while calculating National Income in Income Method ?)
उत्तर-
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय कुछ मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है जबकि कुछ अन्य मदों को शामिल नहीं किया जाता। निम्नलिखित मदों से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा (Items to be included in National Income)
राष्ट्रीय आय का माप करते समय आय विधि में उन स्रोतों से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है जोकि उत्पादक होती हैं तथा जिन क्रियाओं को करने की सरकार आज्ञा देती है अर्थात् कानूनी (Legal) तथा उत्पादक (Productive) क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह आय का सृजन करती है।

  1. गायक, डान्सर तथा अभिनेताओं की आय राष्ट्रीय आय में शामिल की जाती है।
  2. सरकार द्वारा निःशुल्क इलाज पर खर्च, सड़कों, नहरों तथा रोशनी पर खर्च राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता
  3. सरकारी कर्मचारियों को दिया जाने वाला मेडिकल भत्ता राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  4. भविष्य निधि में श्रमिकों का योगदान राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  5. मूल्य घिसावट को कुल उत्पादन में शामिल किया जाता है परन्तु शुद्ध उत्पादन में शामिल नहीं किया जाता।
  6. निगम कर, लाभांश तथा अविभाजित लाभ, यह लाभ के भाग होते हैं इसलिए इनको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, परन्तु यदि लाभ दिया गया हो तो यह तीनों भाग उसमें शामिल होते हैं। इसलिए इनको अलग से शामिल नहीं किया जाता।
  7. मज़दूरी, किस्म के रूप में मजदूरी तथा सामाजिक सुरक्षा, भविष्य निधि इत्यादि कर्मचारियों के मेहनताने के भाग होते हैं। यदि कर्मचारियों का मेहनताना शामिल किया जाता है तो इनको अलग से शामिल नहीं किया जाता।
  8. जिन मकानों में मकान मालिक स्वयं रहते हैं उनका आरोपित किराया राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  9. पुरानी वस्तुओं की बिक्री पर दी जाने वाली दलाली को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

अग्रलिखित मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता (Items not to be Included in National Income)-

  • हस्तान्तरण भुगतान जैसे कि बुढ़ापा पेन्शन, बेरोज़गारी भत्ता इत्यादि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • गैर-कानूनी कामों जैसे कि जुआ, समगलिंग, चोरी इत्यादि से प्राप्त आय को इसमें शामिल नहीं किया जाता।
  • स्व-उपभोग सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता जबकि स्व-उपभोग वस्तुओं को इसमें शामिल किया जाता है।
  • पुरानी वस्तुओं जैसे कि पुराना मकान, पुरानी पुस्तकों इत्यादि की बिक्री से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जाता।
  • शेयर, बांड इत्यादि को बेचने से प्राप्त होने वाली आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • आकस्मिक लाभ अथवा पूंजीगत लाभ को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अप्रत्यक्ष कर साधन लागत पर, राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं होते परन्तु बाज़ार कीमत पर यह शामिल किए जाते हैं।
  • मृत्यु कर, सम्पत्ति कर, उपहार कर इत्यादि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय शामिल होने वाली मदों तथा न शामिल होने वाली मदों को ध्यान में रखना चाहिए।

याद रखें आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना (Measurement of National Income with Income Method)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 19

  1. कर्मचारियों का मेहनताना (नकद मज़दूरी + किस्म के रूप में आय + सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का योगदान + रिटायर हुए कर्मचारियों की पेन्शन)
  2. परिचालन अधिशेष (किराया अथवा लगान तथा रायल्टी + ब्याज + लाभ (लाभांश + निगम कर + उद्यमियों की बचत या अविभाजित लाभ)
  3. मिश्रित आय
  4. विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
  5. मूल्य घिसावट अथवा स्थिर पूंजी का उपयोग
  6. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(i) घरेलू आय
(ii) राष्ट्रीय आय की गणना करेंमदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 20
हल (Solution) :
(i) घरेलू आय = मज़दूरी + किराया + ब्याज + लाभांश + मिश्रित आय + अविभाजित आय + निगम कर + सामाजिक सुरक्षा में योगदान = 50,000 + 10,000 + 1000 + 5000 + 1500 + 500 + 400 + 600 = ₹ 69,000 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = 69,000 + 3000 = ₹72,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 22
हल (Solution):
(i) घरेलू आय = लगान + ब्याज + लाभांश + स्व-नियोजकों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का मेहनताना = 80 + 100 + 210 + 250 + 500 = ₹ 1140 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय = 1140 + (-20) = ₹ 1120 करोड़ उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों से राष्ट्रीय आय ज्ञात करेंमदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 23
हल (Solution):
(i) घरेलू आय = स्व-नियोजितों की मिश्रित आय + परिचालन अधिशेष + मज़दूरी तथा वेतन + मालिकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान
= 200 + 900 + 500 + 50 = ₹ 1650 करोड़
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय = 1650 + (-10) = ₹ 1640 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 4.
संमत 1982-83 में भारत देश के लिए निम्नलिखित आंकड़े दिए गए हैं :मदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 24
हल (Solution):
(i) घरेलू साधन आय = कर्मचारियों का मुआवज़ा + किराया + ब्याज + लाभ + मिश्रित आय = 49651 + 10209 + 4794 + 6926 + 50416 = ₹ 1,21,996 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + निवल विदेशी साधन आय = 1,21,996 + (-7) = ₹ 1,21,989 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा किसी फ़र्म की
(i) उत्पाद विधि
(ii) आय विधि से राष्ट्रीय आय में योगदान ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 25
हल (Solution) :
(i) उत्पाद विधि राष्ट्रीय आय = बिक्री + स्टॉक में वृद्धि – मध्यवर्ती उपभोग – मूल्य ह्रास – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 16000 + 4000 -5000 – 500 – 500 = ₹ 14000 करोड़ उत्तर
(ii) आय विधि राष्ट्रीय आय = मजदूरी तथा वेतन + ब्याज + किराया + लाभ = 10,000 + 400 + 600 + 3000 = ₹ 14000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा
(a) उत्पाद विधि
(a) आय विधि से बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 26
हल (Solution) :
उत्पादन विधि बाजार कीमत पर सकल घरेलू आय = (प्राथमिक क्षेत्र का उत्पादन + द्वितीयक क्षेत्र का उत्पादन + तृतीय क्षेत्र का उत्पादन) – (प्राथमिक क्षेत्र का मध्यवर्ती उपभोग + द्वितीयक क्षेत्र का मध्यवर्ती उपभोग + तृतीयक क्षेत्र का मध्यवर्ती उपभोग)
= (1000 + 900 + 700) – (500 + 400 + 300) = ₹ 1400 करोड़

आय विधि बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = कर्मचारियों का वेतन + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + स्थाई पूंजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 400 + 650 + 300 + 40 + 10 = ₹ 1400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आंकड़ों से परिचालन अधिशेष ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 27
हल (Solution) :
परिचालन अधिशेष = (i) – (ii) – (iii) – (iv) – (v) + (vi) – (vii) = 1000 – 200 – 200 – 30 – 20 + 50 -100 = ₹ 500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों से परिचालन अधिशेष ज्ञात करें। मदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 28
हल (Solution):
परिचालन अधिशेष = (i) – (ii) – (iii)– (iv) – (v)
= 1200 – 60 – 40 – 450 – 50 = ₹ 600 Crores उत्तर

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) घरेलू साधन आय
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 29
उत्तर-
(क) घरेलू साधन आय = (i) + (ii) + (iii) + (iv) + (v)
= 50,000 + 12,000 + 15,000 + 18,000 + 40,000
= ₹ 1,35,000 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + (vi) = 1,35,000 + 15,000 = ₹ 1,50,000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 30
उत्तर-
घरेलू साधन आय = (i) + (ii) + (iii) + (iv) + (1)
= 75,000 + 18.000 + 22.500 + 27,000 + 60,000
= ₹ 2,02,500
करोड़ उत्तर राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + (vi)
= 2,02,500 + 22,500 = ₹ 2,25,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 31उत्तर-
(क) घरेलू साधन आय-कर्मचारियों का मेहनताना + ब्याज + लाभ तथा लाभांश + किराया + मिश्रित आय
(i) ब्याज
= 50,000 + 12,000 + 15,000 + 18,000 + 40,000
= ₹ 1,35,000 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय-घरेलू साधन आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 1,35,000 + 15,000
= ₹ 1,50,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 12.
निम्न आंकड़ों से कुल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर (GDPMP) और शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद साधन लागतों पर (NNPFC) ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 32
उत्तर-
बाज़ार कीमत पर कुल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + स्थाई पूँजी का उपभोग + लगान + लाभ + ब्याज + रायल्टी + मज़दूरी और वेतन + सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का अंशदान।= 38 + 35 + 10 + 27 + 23 + 20 + 150 + 25
= ₹ 328 करोड़ उत्तर
साधन लागतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमतों पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर — स्थाई पूँजी का उपभोग + विदेशों से प्राप्त साधन आय
= 328 – 38 – 35 + (-5)
= ₹ 250 करोड़ उत्तर

(C) खर्च विधि (Expenditure Method)
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के माप की खर्च विधि की व्याख्या करें। (Explain the Expenditure Method for the measurement of National Income.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को मापने की तीसरी विधि खर्च विधि है जिसको उपभोग तथा निवेश विधि (Consumption and Investment Method) भी कहा जाता है। इस विधि को स्पष्ट करते हुए कुजनेटस ने कहा है, “राष्ट्रीय आय, एक वर्ष में एक देश की उत्पादक प्रणाली में जो वस्तुएं तथा सेवाएं अन्तिम उपभोक्ताओं द्वारा उपभोग की जाती हैं अथवा देश के पूंजीगत पदार्थों में शुद्ध वृद्धि करती हैं, उनका योग है।”

खर्च विधि की मुख्य अवस्थाएं-खर्च विधि में मुख्य अवस्थाएं इस प्रकार होती हैं –
1. प्रथम अवस्था-सबसे पहले उन इकाइयों की पहचान की जाती है जो अन्तिम उपभोग खर्च करते हैं तथा जिनको खर्च विधि में शामिल किया जाता है।
A. पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector)
B. उत्पादक क्षेत्र (Production Sector)
C. सरकारी क्षेत्र (Government Sector)
D. शेष विश्व क्षेत्र (Rest of the World Sector)

2. दूसरी अवस्था-इस अवस्था में अन्तिम खर्च का वर्गीकरण किया जाता है। अन्तिम खर्च के वर्गीकरण को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 33

अन्तिम खर्च के मुख्य अंश इस प्रकार हैं –
1. अन्तिम उपभोग खर्च

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च

2. सकल घरेलू पूंजी निर्माण
(i) सकल स्थाई पूंजी निर्माण
(a) व्यावसायिक स्थाई निवेश
(b) सरकारी स्थाई निवेश
(c) परिवारों द्वारा मकानों के निर्माण पर निवेश
(ii) स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक)

3. शुद्ध निर्यात (निर्यात – आयात)
तीसरी अवस्था

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च- इसमें व्यक्तियों, परिवारों तथा गैर-लाभकारी निजी संस्थाओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर किए गए व्यय को शामिल किया जाता है।
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च-इसमें सरकार के खर्च को शामिल करते हैं।
  • सकल घरेलू पूंजी निर्माण-इसमें निवेश व्यय शामिल करते हैं जोकि स्थाई निवेश तथा माल सूची निवेश पर किया जाने वाला व्यय शामिल करते हैं।
  • शुद्ध निर्यात-इसमें निर्यात वस्तुओं तथा सेवाओं में से आयात वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य घटाने से शुद्ध निर्यात ज्ञात होता है।
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय-कुछ अर्थ-शास्त्री शुद्ध निर्यात के स्थान पर शुद्ध विदेशी निवेश की धारणा का प्रयोग करते हैं। इसमें आयात तथा निर्यात के अन्तर के अतिरिक्त विदेशों से शुद्ध साधन आय को शामिल किया जाता है।

यदि हम खर्च विधि द्वारा विभिन्न धारणाओं का माप करना चाहते हैं तो इसके लिए निम्न विधि प्रयोग की जाती है-

  1. बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = निजी अन्तिम उपाभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल स्थिर पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात।
  2. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय
  3. बाज़ार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद-मूल्य घिसावट
  4. शुद्ध राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर |

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 2.
खर्च विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय सावधानियां बताएं। (Mention the Precautions while measuring National Income with Expenditure Method.)
उत्तर-
खर्च विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित सावधानियों का प्रयोग करने की आवश्यकता होती है

  1. पुरानी वस्तुओं पर किए जाने वाले खर्च को अन्तिम खर्च में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह खर्च वर्तमान वर्ष में उत्पादित वस्तुओं पर नहीं किया जाता बल्कि पहले से ही उत्पादित वस्तुओं पर किया जाता है।
  2. कुल खर्च का माप करते समय केवल अन्तिम खर्च को ही शामिल किया जाता है।
  3. अन्तिम खर्च में मध्यवर्ती खर्च को शामिल नहीं किया जाता।
  4. पुराने तथा नए शेयर तथा बांड पर किया गया खर्च कुल खर्च में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह खर्च वस्तुओं तथा सेवाओं पर खर्च नहीं होता।
  5. सरकार द्वारा दिए गए हस्तान्तरण भुगतान पर खर्च को अन्तिम खर्च में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि जिन व्यक्तियों द्वारा हस्तान्तरण भुगतान प्राप्त किया जाता है उनके द्वारा इसके बदले में कोई उत्पादक सेवा प्रदान नहीं की जाती।
  6. स्व-उपभोग पर किए गए खर्च को अन्तिम उपभोग में शामिल किया जाता है क्योंकि यह खर्च वर्तमान उत्पादन में से होता है।
  7. इस विधि द्वारा बाजार कीमतों पर कुल राष्ट्रीय उत्पादन मूल्य का पता चलता है। यदि हम साधन लागतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय का पता करना चाहते हैं तो इसमें से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर तथा स्थाई पूंजी का उपभोग घटा देना चाहिए।
  8. कुल खर्च विधि में सकल घरेलू पूंजी निर्माण की धारणा में सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण तथा स्टॉक में परिवर्तन का योग होता है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उत्पाद तथा राष्ट्रीय खर्च में समानता को स्पष्ट करें। (Establish the Equality of National Income, National Product and National Expenditure.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को मापने की तीन विधियां हैं-आय विधि, उत्पाद विधि तथा खर्च विधि। इन तीनों विधियों द्वारा राष्ट्रीय आय का योग एक-दूसरे के समान होता है क्योंकि जब उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन के साधनों को कार्य पर लगाया जाता है तो श्रम, भूमि, पूंजी तथा उद्यमी मिलकर उत्पादन करते हैं। इन उत्पादन के साधनों को कार्य करने के बदले में मेहनताना दिया जाता है अर्थात् कर्मचारियों को कार्य करने के लिए मज़दूरी तथा वेतन, भूमि का लगान, पूंजी का ब्याज तथा उद्यमी को लाभ प्राप्त होता है। यदि हम उत्पादन के साधनों को प्राप्त होने वाली आय का योग कर लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। इसमें स्व-रोज़गार पर लगे मनुष्यों की मिश्रित आय भी शामिल होती है। इसलिए आय विधि के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का माप इस प्रकार किया जाता है |

बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर उत्पादन के साधन देश में जो उत्पादन करते हैं, उसके योग को बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। उत्पादन के साधन अर्थ व्यवस्था के तीन क्षेत्रों में कार्य करते हैं—प्राथमिक क्षेत्र जिसमें कृषि, जंगल, खानों इत्यादि से प्राप्त उत्पादन को शामिल किया जाता है। गौण क्षेत्र में उद्योग, निर्माण, विद्युत्, गैस, जल आपूर्ति इत्यादि के उत्पादन को शामिल करते हैं। तीसरे क्षेत्र में सेवाओं को शामिल किया जाता है जैसे कि यातायात, संचार, व्यापार, होटल, बैंक, बीमा इत्यादि। यदि हम इन तीन क्षेत्रों में अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन का योग कर लेते हैं जिसको मूल्य वृद्धि विधि (Value Added Method) द्वारा मापा जाता है। इससे हम सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात कर सकते हैं।

उत्पादन विधि (Production Method) के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का माप इस प्रकार किया जाता है-
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = प्राथमिक क्षेत्र का उत्पादन + गौण क्षेत्र का उत्पादन + तीसरे अथवा सेवा क्षेत्र का उत्पादन + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर उत्पादन के साधन कार्य करने के पश्चात् जो आय प्राप्त करते हैं उनको निजी उपभोग अथवा निवेश पर खर्च किया जाता है। देश की घरेलू सीमा के भीतर निजी अन्तिम उपभोग खर्च, सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च, कुल स्थिर पूंजी निर्माण, स्टॉक में परिवर्तन तथा शुद्ध निर्यात को शामिल किया जाता है जिससे हमारे पास सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त होता है। खर्च विधि (Expenditure Method) द्वारा सकल घरेलू उत्पाद का माप इस प्रकार किया जाता है

बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + कुल स्थिर पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + शुद्ध निर्यात । इस प्रकार यदि हम राष्ट्रीय आय को मापने के लिए भिन्न-भिन्न विधियों को देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि परिभाषा के आधार पर इनमें समानता पाई जाती है।
अर्थात् राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय उत्पाद = राष्ट्रीय खर्च
इसमें चिह्न = समानता को प्रकट करता है।
इससे स्पष्ट होता है कि यह तीनों धारणाएं एक-दूसरे के समान होती हैं। इनमें समानता को एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 34

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय की तीन विधियों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the three methods for the measurement of National Income.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय के माप की तीन विधियां हैं
1. मूल्य वृद्धि विधि अथवा उत्पाद विधि (Value Added Method or Production Method)
2. आय विधि (Income Method)
3. खर्च विधि (Expenditure Method)

1. मूल्य वृद्धि विधि अथवा उत्पाद विधि- इसमें प्राथमिक क्षेत्र, गौण क्षेत्र तथा तीसरे क्षेत्र में निम्नलिखित मदों का योग किया जाता है

  • उपभोगी वस्तुएं
  • निवेश वस्तुएं
  • सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुएं

शुद्ध निर्यात। इस क्षेत्र में अन्तिम उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का योग किया जाता है परन्तु दोहरी गणना की समस्या के हल के लिए मूल्य वृद्धि विधि (Value Added Method) का प्रयोग किया जाता है अर्थात् उत्पादित मूल्य में से मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य तथा मूल्य घिसावट को घटाकर शुद्ध मूल्य वृद्धि प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार शुद्ध मूल्य वृद्धि के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना इस प्रकार की जाती है राष्ट्रीय आय = प्राथमिक क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + तीसरे क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + विदेशों से शुद्ध साधन आय।

1. आय विधि (Income Method)-आय विधि में प्राथमिक क्षेत्र, गौण क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र में साधन आय का योग होता है जिसके मुख्य अंग इस प्रकार हैं-

  • कर्मचारियों का मेहनताना
  • ग़ैर-मज़दूरी आय
  • परिचालन अधिशेष
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय।

2. खर्च विधि (Expenditure Method) खर्च विधि में पारिवारिक क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र तथा शेष विश्व क्षेत्र के अन्तिम खर्च का योग किया जाता है। अन्तिम खर्च का वर्गीकरण इस प्रकार होता है(i) अन्तिम उपभोग खर्च
(a) निजी अन्तिम उपभोग खर्च
(b) सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च ।

(ii) अन्तिम निवेश खर्च
(a) सकल स्थाई पूंजी निर्माण
(b) स्टॉक में परिवर्तन
(c) शुद्ध निर्यात।
इस प्रकार खर्च विधि में राष्ट्रीय आय का माप निम्नलिखित विधि के अनुसार किया जाता है –

राष्ट्रीय आय = निजी अन्तिम उपभोग खर्च (C) + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च (G) + अन्तिम निवेश खर्च (I) + शुद्ध निर्यात (X – M)
इस प्रकार राष्ट्रीय आय के माप की तीन विधियों द्वारा इसका माप किया जा सकता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 35

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय के माप में कौन-सी मदों को शामिल किया जाना चाहिए और कौन-सी मदों को शामिल नहीं करना चाहिए ?
(Which Items should be included in National Income and which items should not be included ?)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का माप करते समय बहुत-सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए यह जानकारी जरूरी है कि किन मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए अथवा किन मदों को शामिल नहीं करना चाहिए।
निम्नलिखित मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है (The following items are included in National Income) –

  1. स्वयं उपभोग की वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि उन्हें बाज़ार में बेचा नहीं जाता।
  2. सेवानिवृत्ति पेन्शन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह पहले की गई सेवा का फल है।
  3. स्वयं के व्यवसाय में लगे व्यक्तियों की आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह मिश्रित आय होती है।
  4. मालिकों द्वारा भविष्य निधि कोष में अंशदान को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  5. सरकार द्वारा निःशुल्क प्रदान की गई सेवाओं पर व्यय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह सरकार द्वारा किये गए खर्च का अंश होता है।
  6. सरकार द्वारा सुरक्षा पर किया गया खर्च राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। क्योंकि यह अन्तिम प्रदान की सेवाओं का अंश होता है।
  7. दलाली का कमीशन जोकि पुरानी वस्तुओं की बिक्री पर प्राप्त होता है उसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह वर्तमान आय होती है।
  8. कलाकार जैसे कि गायक, अभिनेता आदि की आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह आर्थिक सेवाएं होती हैं।
  9. लाभांश को राष्ट्रीय आय में शामिल करते हैं क्योंकि यह निवेश से प्राप्त आय होती है।
  10. विदेशों से लाभ-विदेशों से इस देश के बैंकों द्वारा प्राप्त किया लाभ राष्ट्रीय आय का भाग होता है क्योंकि यह विदेशों से प्राप्त साधन आय है।
  11. विदेशों से किराया जो एक देश के नागरिक प्राप्त करते हैं। यह राष्ट्रीय आय का भाग होता है।
  12. विदेशी दूतावासों से भारतीय कर्मचारियों को प्राप्त मज़दूरी राष्ट्रीय आय में शामिल की जाती है।
  13. स्टॉक में परिवर्तन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  14. मालिकों का खुद मालकी के मकानों पर किराया राष्ट्रीय आय का अंश होता है।
  15. भारतीय विशेषज्ञों द्वारा विदेशों से कमाई आमदन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

निम्नलिखित मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता (The Following Items are not included in National Income)

  • पुरानी वस्तुओं की बिक्री से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इनका मूल्य पहले ही राष्ट्रीय आय में शामिल होता है।
  • गैर-कानूनी क्रियाएं जैसे कि जुआ, समगलिंग आदि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • काला धन वह धन होता है जिस पर कर (Tax) नहीं दिया जाता। इसको भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • वित्तीय सौदे जैसा कि शेयर, बान्ड्स, डिबैनचर आदि की क्रय-विक्रय को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अनार्थिक क्रियाएं-जैसा कि बच्चे को दिया गया जेब खर्च घरेलू कार्य आदि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • गृहणियों द्वारा किये गए घरेलू कार्य को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अप्रत्यक्ष कर से प्राप्त आय को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • छात्रवृत्ति द्वारा प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इसके बदले में कोई सेवा प्रदान नहीं की जाती।
  • पूंजीगत लाभ तथा अचानक लाभ को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। जैसा कि शेयर की कीमत में वृद्धि से आय अथवा लाटरी से प्राप्त आय।
  • वृद्धावस्था पेन्शन जोकि हस्तान्तरण भुगतान होता है इसको भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करते।
  • विदेशों से प्राप्त उपहार तथा सहायता भी हस्तान्तरण भुगतान है इसलिए इनको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • बेरोज़गारी भत्ता भी हस्तान्तरण भुगतान है इसलिए इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • मध्यवर्ती उपभोग जोकि अन्तिम वस्तुओं के उत्पाद के लिए प्रयोग किया जाता है इसको भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अन्वेषण के काम पर प्रयोग होने वाली वस्तुओं को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह मध्यवर्ती वस्तुएं होती हैं।
  • प्राकृतिक आपदाएं जैसा कि बाढ़, भूकम्प, सुनामी आदि समय किया गया खर्च राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 36
1. अन्तिम उपभोग खर्च

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च

2. सकल घरेलू पूंजी निर्माण =

  • सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण
  • स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक)

3. शुद्ध निर्यात = (निर्यात – आयात)
4. मूल्य घिसावट अथवा मूल्य ह्रास
5. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = (अप्रत्यक्ष कर – सहायता)
6. विदेशों से शुद्ध साधन आय

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा GNP, GDP, NNP, NDP, बाज़ार कीमत (Market Price) तथा साधन लागत (Factor Cost) पर ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 37
उत्तर-
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = निजी उपभोग खर्च + सकल निवेश + सरकार द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय ।
= 700 + 180 + 200 + 20 + (-10) = ₹ 1090 करोड़ उत्तर

(ii) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट = 1090 – 30 = ₹ 1060 करोड़ उत्तर

(iii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से शुद्ध साधन आय = 1090 – (-10) = ₹ 1100 करोड़ उत्तर

(iv) बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – घिसावट = 1100 – 30 = ₹ 1070 करोड़ उत्तर

(v) साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1090 – 10 = ₹ 1080 करोड़ उत्तर

(vi) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट = 1080 – 30 = ₹ 1050 करोड़ उत्तर

(vii) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1100 – 10 = ₹ 1090 करोड़ उत्तर

(viii) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPFC) = साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद – घिसावट = 1090 – 30 = ₹ 1060 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से व्यय विधि द्वारा
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP)
(ii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 38
उत्तर-
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = निजी उपभोग खर्च + निजी निवेश खर्च + सरकार द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय।
= 700 + (20 + 60 + 40 + 60) + 200 + (40 – 20) + (-10)
= ₹ 1090 करोड़ उत्तर

(ii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 1090 – (-10) = ₹ 1100 करोड़ उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित द्वारा सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 39
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद = निजी उपभोग खर्च + सरकारी उपभोग खर्च + सकल घरेलू स्थिर निवेश + माल सूची में वृद्धि + वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात
= 45000 + 5000 + 5000 + 1000 + 6000 – 7000
= ₹ 55000 उत्तर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(i) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP)
(ii) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 40
उत्तर-
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल घरेलू पंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + निजी अन्तिम उपभोग खर्च + विदेशों से शुद्ध साधन आय
24 + 24 + (-4) + 161 + (-1) = ₹ 204 करोड़।
(ii) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 204 – 23 – 22 = ₹ 159 करोड़

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(a) उत्पाद विधि
(a) आय विधि द्वारा बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 42
उत्तर-
(a) उत्पाद विधि (Production Method)
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = (प्राथमिक + गौण + तीसरे क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य) – (प्राथमिक + गौण + तीसरे क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग)
= (300 + 200 + 100) – (100 + 50 + 50) = ₹400 करोड़ उत्तर

(b) आय विधि (Income Method)
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = कर्मचारियों की मज़दूरी + मिश्रित आय + परिचालन अधिशेष + स्थिर पूंजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर ।
= 150 + 50 + 100 + 40 + 60 = ₹400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात करें
(a) मूल्य वृद्धि विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
(b) खर्च विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 43
उत्तर-
(a) मूल्य वृद्धि विधि (Value Added Method)
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = प्राथमिक क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + तीसरा क्षेत्र में मूल्य वृद्धि – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता + विदेशों से शुद्ध साधन आय – स्थिर पूंजी का उपभोग
= (1000 – 500) + (900 – 400) + (500 – 200) -110 + 20 – 30 – 90
= 500 + 500 + 300 – 110 + 20 – 30 – 90 = ₹ 1090 करोड़।

(b) खर्च विधि (Expenditure Method) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (GDPFC)= निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल घरेलू पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – स्थिर पूंजी का उपभोग – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
= 1000 + 200 + 350 + (- 60) – 90 – 110 + 20 = ₹ 1310 करोड़।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(a) आय विधि द्वारा बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
(b) खर्च विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 44
उत्तर-
(a) आय विधि बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = ब्याज, लगान तथा लाभ + रायल्टी + स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का मुआवज़ा + अप्रत्यक्ष कर — सहायता + स्थिर पूंजी का उपभोग
= 900 + 20 + 60 + 370 + 120 – 20 + 60 = ₹ 1510 करोड़ उत्तर

(b) खर्च विधि साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – अप्रत्यक्ष कर + सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 100 + 800 + 620 + (-10) – 120 + 20 – 60 + (-10) = ₹ 1340 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(a) आय विधि
(b) व्यय विधि द्वारा सकल राष्ट्रीय आय ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 45
उत्तर-
(a) आय विधि (Income Method)
सकल राष्ट्रीय आय = विदेशों से साधन आय + कर्मचारियों का मेहनताना – विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + ब्याज + लगान + लाभ
= 10 + 150 – 15 + 15 + 40 + 40 + 100 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

(b) व्यय विधि (Expenditure Method)
सकल राष्ट्रीय आय = विदेशों से प्राप्त साधन आय + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + अन्तिम निजी उपभोग खर्च – विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + निर्यात – आयात – अप्रत्यक्ष कर + सहायता + सरकारी अन्तिम उपभोग
‘खर्च = 10 + 50 + 220 – 15 + 15 + 20 – 25 – 30 + 10 + 85 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(a) आय विधि
(b) खर्च विधि से ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 46
उत्तर-
आय विधि (Income Method) –
बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का मेहनताना + विदेशों से शुद्ध साधन आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + स्थिर पूंजी का उपभोग + लाभ + लगान + ब्याज
SET-I = 400 + 500 + (-20) + 100 + 120 + 350 + 100 + 150 = ₹ 1700 करोड़
SET-II = 300 + 400 + (-10) + 60 + 100 + 250 + 80 + 70 = ₹ 1250 करोड़
SET-III = 500 + 600 + (-15) + 150 + 115 + 450 + 200 + 250 = ₹ 2250 करोड़

खर्च विधि (Expenditure Method)-
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = निजी उपभोग खर्च + विदेशों से शुद्ध साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च
SET-I = 900 – 20 + 120 + 280 – 30 + 450 = ₹ 1700 करोड़
SET-II = 700 + 10 + 100 + 120 – 10 + 350 = ₹ 1270 करोड़
SET-III = 1100 – 15 + 115 + 375 – 25 + 700 = ₹ 2250 करोड़

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(i) आय विधि
(ii) व्यय विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 47PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 48

उत्तर-
(a) आय विधि (Income Method)-
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय= कर्मचारियों का मेहनताना + विदेशों से शुद्ध साधन आय + लाभ + लगान + ब्याज + स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय
SET-I = 1200 + (-20) + 800 + 400 + 620 + 700 = ₹ 3700 करोड़
SET-II = 600 + (-10) + 400 + 200 + 310 + 350 = ₹ 1850 करोड़
SET-III = 500 + (-10) + 220 + 90 + 100 + 400 = ₹ 1300 करोड

(b) व्यय विधि (Expenditure Method)-
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय= निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध साधन आय
SET-I = 2000 + 1100 + 770 + (-30) – 120 + (-20) = ₹ 3700 करोड़
SET-II = 1000 + 550 + 385 + (-15) – 60 + (-10) = ₹ 1850 करोड़
SET-III = 900 + 400 + 200 + (-25) -165 + (-10) = ₹ 1300 करोड़

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर सकल राष्ट्रीय आय की गणना
(a) आय विधि
(b) व्यय विधि द्वारा करें

उत्तर-
आय विधि (Income Method)-
सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा आय = विदेशों से साधन आय + कर्मचारियों का मुआवज़ा + विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + ब्याज + लगान + लाभ
= 10 + 150 – 15 + 15 + 40 + 40 + 100 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

खर्च विधि (Expenditure Method)
सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा आय = विदेशों से साधन आय + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + निजी अन्तिम उपभोग खर्च – विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + निर्यात – आयात – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च
= 10 + 50 + 220 – 15 + 15 + 20 – 25 – 30 + 10 + 85 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आंकड़े x फ़र्म के सम्बन्ध में दिये गए हैं। इस फ़र्म द्वारा साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 50
उत्तर –
साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक) + सहायता – मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद
= 500 + (20 – 30) + 40 – 300 = ₹ 230 हजार उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से बाजार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 51
उत्तर –
बाज़ार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद – घिसावट
SET-I = 700 + 40 – 400 – 80 = ₹ 260 हज़ार
SET-II = 300 + (-10) – 150 -20 = ₹ 120 हज़ार उत्तर

प्रश्न 14.
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 52
उत्तर
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में वृद्धि (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक) – मध्यवर्ती उपभोग – बिक्री कर + सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 500 + (40-20)- 320 – 15 +5 -50 = ₹ 140 लाख उत्तर

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आंकड़ों से बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 53
उत्तर
बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = प्राथमिक क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य – प्राथमिक क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग + गौण क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य – गौण क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग + तीसरे क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य – तीसरे क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग
= 2000 – 1000 + 1800 – 800 + 1400 – 600 = ₹ 2800 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
निम्नलिखित आंकड़ों से साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 54
उत्तर-
साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – कच्चे माल की खरीद + आर्थिक सहायता
= 180 + 15 – 100 + 10 = ₹ 105 लाख उत्तर

प्रश्न 17.
निम्नलिखित आंकड़ों से आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 55
उत्तर
राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 1900 + 720 + (-20) = ₹ 2600 करोड़ उत्तर

प्रश्न 18.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए :
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 56
उत्तर-
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + कुल पूंजी निर्माण + निर्यात – आयात + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 75,000 + 15,550 + 4,500 + 6,000 – 9,000 – 650
= ₹ 91,400 करोड़ उत्तर

(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय
= बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय – घिसावट
= 91,400 – 600 = ₹ 90,800 करोड़ उत्तर

प्रश्न 19.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 58
उत्तर-
(क) बाज़ार. कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + कुल पूंजी निर्माण + निर्यात – आयात + विदेशों से प्राप्त शुद्ध राष्ट्रीय आय
= 85000 + 10550 + 2500 + 4000 – 8000 – 750 = ₹ 93,300 करोड़ उत्तर
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट = 93300 – 500 = ₹ 92,800 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 20.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए :
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 59
उत्तर
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + कुल पूंजी निर्माण + निर्यात – आयात + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन
= 65000 + 20550 + 6500 + 2000 – 7000 – 550 = 86500 ₹ करोड़ उत्तर

(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय – घिसावट
= 86500 – 400 = ₹ 86100 करोड़ उत्तर

प्रश्न 21.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) राष्ट्रीय आय
(ख) बाजार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 60
उत्तर-
(क) राष्ट्रीय आय = परिचालन अधिशेष + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + मिश्रित आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 10,000 + 15350 + 7366 + (-) 110 = ₹ 32606 करोड़ उत्तर

(ख) बाजार कीमत पर कुल घरेलू उत्पाद
= परिचालन अधिशेष + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + मिश्रित + मिश्रित आय + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक अनुदान + स्थायी पूंजी का उपभोग
= 10,000 + 15350 + 7366 + 5598-2655 + 4135
= ₹39794 करोड़ उत्तर

प्रश्न 22.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए :
(क) राष्ट्रीय आय
(ख) बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद मदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 61
उत्तर-
राष्ट्रीय आय व्यय = 1 + 2 + 4 + 5 + 7 + 8-3-6 = 18557 + 20510 + 9860 + 13720 + 2560 – 2000 -110 – 15000 = ₹ 48097 करोड़ उत्तर
(ख) बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद = 1 + 2 + 4 + 8 + 5 -6 = 18557 + 20510 + 4860 + 2560 + 13720 – 15000
= ₹ 50207 करोड़ उत्तर

प्रश्न 23.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय .
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 62
उत्तर-
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय = (i) + (ii) + (iii) + (iv) – (v) + (vi)
= 1,00,000 + 12,500 + 2,500 + 6,000 – 9,000 + 750 = ₹ 1,12,750 उत्तर
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय = बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन
= 1,12,750 – 400 = ₹ 1,12,350 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 24.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क)बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद।
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 63
उत्तर-
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = (i) + (ii) + (iii) + (iv) -(v) + (vi)
1,50,000 + 18,750 + 3,750 + 9,000 – 12,000 + 1,125 = ₹ 1,70,625

(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – (vii)
= 1,70,625 – 600 = ₹ 1,70,025 उत्तर

प्रश्न 25.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद।
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 64
उत्तर-
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = (i) + (ii) + (iii) + (iv) – (v) + (vi)
= 2,00,000 + 25,000 + 5,000 + 12,000 – 18,000 + 1,500
= ₹ 2,25,500 उत्तर

(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध रीष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – मूल्य ह्रास
= 2,25,500 – 800 = ₹ 2,24,700 उत्तर

प्रश्न 26.
निम्नलिखित की गणना करें।
(क) घरेलू साधन आय
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 65
उत्तर-
(क) घरेलू साधन आय = कर्मचारियों का मेहनताना + ब्याज + लाभ तथा लाभांश + किराया + मिश्रित आय
= 5000 + 500 + 600 + 800 + 3000 = ₹ 9900 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 9900 + 1000 = ₹ 10,900 करोड़ उत्तर

प्रश्न 27.
निम्नलिखित की गणना करें।
(क) घरेलू साधन आय
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 66
उत्तर-
SET-B
(क) घरेलू साधन आय = i + ii + iii + iv + v
= 10,000 + 1000 + 1200 + 1600 + 6000
= ₹ 19,800 करोड़ उत्तर

(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + vi
= 19,800 + 2000
= ₹ 21,800 करोड़ उत्तर

SET-C
(क) घरेलू साधन आय =i+ii + iii + iv + v
= 15000 + 1500 + 1800 + 2400 + 9000
= ₹ 29,700 करोड़ उत्तर

(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + vi
= 29,700 + 3000 = ₹ 32,700 करोड़ उत्तर

प्रश्न 28.
निम्नलिखित की गणना करें ।
(क) बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 67
उत्तर-
SET-B
(i) बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद = बिक्री + (साल के अन्त में स्टॉक-साल के शुरू में स्टॉक) – मध्यवर्ती
उपभोग = 140000 + 40000 (50,000 – 10,000) – 20,000
= ₹ 1,60,000 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद (-) घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (प्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता)
= 1,60,000 – 2000 – 400 (600 – 200)
= ₹ 1,57,600 करोड़ उत्तर

प्रश्न 29.
निम्नलिखित की गणना करें।
(क) बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 68
उत्तर-
(क) बाजार कीमत पर कुल राष्ट्रीय आय = बिक्री + (साल के अन्त में स्टॉक – साल के शुरू में स्टॉक) – मध्यवर्ती उपभोग
= 70,000 + 20000 (25,000 – 5000) – 10,000
= ₹ 80,000 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय आय – घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता) = 80,000 – 1000 – 200 (300 -100) = ₹ 78,800 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 30.
नीचे दिये गए आंकड़ों के आधार पर बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) तथा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) ज्ञात करें :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 69
उत्तर-
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + कुल स्थाई पूँजी निर्माण + स्टॉक में शुद्ध वृद्धि + वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात + विदेशों से शुद्ध साधन आय – स्थाई पूँजी का उपभोग।
= 510 + 70 + 130 + 30 + 48 – 56 + (-3) – 40 = ₹ 689 करोड़ उत्तर
साधन लागतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
= 689 – 90 + 18
= ₹ 617 करोड़ उत्तर

प्रश्न 31.
निम्नलिखित आंकड़ों से मुख्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 70
उत्तर-
मुल्य वृद्धि = उत्पादन का मुल्य – मध्यवर्ती उपभोग
= 10000 – 2555 = ₹ 7445 करोड़ उत्तर