PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

PSEB 12th Class Economics उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग फलन का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को ही उपभोग फलन कहते हैं।

प्रश्न 2.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कुल उपभोग में परिवर्तन और कुल आय में परिवर्तन के अनुपात को व्यक्त करती है।
अर्थात्
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प्रश्न 3.
औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-समग्र उपभोग व्यय को समग्र आय से विभाजित करने पर जो भागफल आता है, उसको औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
अर्थात्
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प्रश्न 4.
बचत फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बचत फलन बचत और आय के सम्बन्ध को व्यक्त करता है।

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प्रश्न 5.
औसत बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समग्र बचत को समग्र आय से विभाजित करने पर जो भजनफल आता है उसे औसत बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
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प्रश्न 6.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय में परिवर्तन से बचत में परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं।
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प्रश्न 7.
बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक अनुसूची जिसमें बचत और आय के सम्बन्ध को प्रकट किया जाता है, उस अनुसूची को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

प्रश्न 8.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का माप कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का माप करने के लिए उपभोग में परिवर्तन को आय में परिवर्तन से बांट दिया जाता है।
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प्रश्न 9.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति आय के स्तर पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर-
जितनी सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति अधिक होगी आय में उतनी अधिक वृद्धि होगी।

प्रश्न 10.
क्या औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक हो सकती है ? यदि हाँ तो कब ऐसा होता है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) ऋणात्मक हो सकती है जब APC > 1. ऐसा तब होता है जब उपभोग (C) आय (Y) से अधिक हो।

प्रश्न 11. सीमान्त बचत प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-सी
मान्त बचत प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का योग इकाई के बराबर होता है। अर्थात् (MPS + MPC = 1)|

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प्रश्न 12.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य क्या होगा यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति शून्य (Zero) होती है।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई (1) के बराबर होगा।

प्रश्न 13.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य क्या हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य इकाई (1) के बराबर हो सकता है।

प्रश्न 14.
औसत बचत प्रवृत्ति और औसत उपभोग प्रवृत्ति में से किस का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है और कब ?
उत्तर-
APC का मूल्य इकाई से अधिक हो सकता है जब उपभोग, आय से अधिक होता है (C > Y).

प्रश्न 15.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य कितना हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य इकाई (1) के बराबर हो सकता है।

प्रश्न 16.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मूल्य इकाई (1) से अधिक क्यों नहीं होता ?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि उपभोग में परिवर्तन, आय में परिवर्तन से अधिक नहीं हो सकता।

प्रश्न 17.
यदि MPC = 0.8 है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1 MPS
= 1 – 0.8 = 0.2 उत्तर

प्रश्न 18.
यदि MPS = 0.75 है तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
MPC + 0.75 = 1
MPC = 1 – 0.75 = 0.25 उत्तर

प्रश्न 19.
यदि खर्चयोग आय (Disposable Income) 1000 करोड़ रुपए है और उपभोग व्यय 750 करोड़ रुपए है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{250(1000-750)}{1000}=\frac{1}{4}\)  = 0.25 or 25%.

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प्रश्न 20.
यदि MPS = 1 तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
1 – MPS = 1-1 = 0(Zero)

प्रश्न 21.
नियोजन बचत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजन बचत (Planned or Ex-ante) का अर्थ जितनी बचत करने की लोग इच्छा रखते हैं।

प्रश्न 22.
वास्तविक बचत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक बचत (Actual or Ex-Post) का अर्थ जितनी बचत लोगों द्वारा की जाती है।

प्रश्न 23.
क्या वास्तविक बचत और नियोजन बचत बराबर हो सकती है ?
उत्तर-
बराबर हो भी सकती है परन्तु ज़रूरी नहीं बराबर ही हो।

प्रश्न 24.
APC और APS में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
APC + APS = 1

प्रश्न 25.
उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक सूचीपत्र जिसमें उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को प्रकट किया जाता है उस सूचीपत्र को उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

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प्रश्न 26.
अल्पकालीन उपभोग प्रवृत्ति का सूत्र लिखिए।
उत्तर-
C = a + by
C = अल्पकालीन उपभोग
a = स्वतन्त्र उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
Y = आय।

प्रश्न 27. ‘
दीर्घकालीन उपभोग प्रवृत्ति का सूत्र लिखिए।
उत्तर-
C = by
समें C = दीर्घकालीन उपभोग
b = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति
Y = आय।

प्रश्न 28.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का मान कितना होता है ?
उत्तर-
MPC का मान 0 से 1 के बीच में होता है।

प्रश्न 29.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है तो औसत बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
APC + APS = 1
0.65 + APS = 1
ADS = 1 – 0.65 = 0.35 उत्तर

प्रश्न 30.
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) =…………………………..
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति APC = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 6

प्रश्न 31.
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) =……………………..
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति (AFC) = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 7

प्रश्न 32.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = …………………………..
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) =PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 8

प्रश्न 33.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = ………..
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 9

प्रश्न 34.
यदि MPC = , है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC = MPS = 1
\(\frac{1}{2}\) + MPS = 1
MPS = 1- \(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\) उत्तर

प्रश्न 35.
क्या औसत बचत प्रवृत्ति ऋणात्मक हो सकती है ? यदि हाँ तो ऐसा कब होता है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) ऋणात्मक हो सकती है जब APC>1 ऐसा तब होता है जब उपभोग (C) आय (Y) से अधिक हो।

प्रश्न 36.
यदि MPC = 0.8 है तो MPS कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1
MPS 1- 0.8 = 0.2 उत्तर

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प्रश्न 37.
यदि MPS = 0.8 है तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPC + MPS = 1
MPC + 0.3 = 1
MPS = 1 – 0.3 = 0.7 उत्तर

प्रश्न 38.
यदि खर्चयोग आय (Disposable Income) ₹ 1000 करोड़ हैं। और उपभोग व्यय ₹750 करोड़ हैं तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
APS = \(\frac{250(1000-750)}{1000}=\frac{1}{4}\) = 0.25 Or 25%

प्रश्न 39.
यदि MPS = 1 तो MPC कितनी होगी ?
उत्तर-
MPS + MPC = 1
MPC = 1 – MPS
= 1-1 = 0 (शून्य)

प्रश्न 40.
APC और APS में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
APC + APS = 1

प्रश्न 41.
उपभोग प्रवृत्ति का अर्थ देश में कुल उपभोग से होता है ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 42.
\(\frac{\Delta \mathbf{C}}{\Delta \mathbf{Y}}\) = MPC
उत्तर-
सही।

प्रश्न 43.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का अधिकतम मूल्य कितना हो सकता है ?
(a) शून्य (0)
(b) 1
(c) 2
(d) 10,000.
उत्तर-
(b) 1.

प्रश्न 44.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति का न्यूनतम मूल्य कितना हो सकता है ?
उत्तर-
(a) शून्य (0)
(b) 1
(c) \(\frac{1}{2}\)
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) शून्य (0)।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector) तथा फ़र्मे (Firms) अथवा उत्पादन क्षेत्र होता है। इसलिए कुल मांग में उपभोग तथा निवेश को शामिल किया जाता है। इसमें सरकारी क्षेत्र तथा शेष विश्व क्षेत्र को शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 2.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोज़गार उस स्थिति को कहा जाता है, जिसमें वह श्रमिक जो वर्तमान प्रचलित मज़दूरी की दर पर कार्य करना चाहते हैं तथा उनको बिना देरी से कार्य प्राप्त हो जाता है। पूर्ण रोज़गार में अनइच्छित बेरोज़गारी का अभाव होता है ।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को उपभोग फलन कहते हैं। इसे निम्न सूत्र द्वारा दिखाया जा सकता है–
C = f cy
अर्थात् Consumption in the function of National Income.
उपभोग प्रवृत्ति एक अनुसूची पत्र होता है जिसमें आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग की स्थिति को दिखाया जाता है। उपभोग प्रवृत्ति को एक सूचीपत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
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सूचीपत्र तथा रेखाचित्र 1 में दिखाया है कि जब लोगों की आय सिफर (Zero) होती है तो भी लोग ₹ 50 करोड़ उपभोग पर खर्च करते हैं। यह पैसे लोग उधार लेकर अथवा पुरानी बचत को खर्च करके पूरा करते हैं। आय ₹ 100 करोड़ पर उपभोग व्यय 100 करोड़ है। इसके पश्चात् जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है उपभोग में भी वृद्धि होती है, परन्तु उपभोग में वृद्धि कम दर से होती है। रेखाचित्र में CC उपभोग प्रवृत्ति वक्र है।

प्रश्न 2.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ? इनमें से किस का मूल्य एक से अधिक हो सकता है और कब ?
उत्तर-
किसी भी आय के स्तर पर उपभोग और आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं। इसका माप निम्नलिखित अनुसार किया जाता है
APC = \(\frac{C}{Y}\)
APC प्रत्येक आय स्तर पर औसत उपभोग और आय के सम्बन्ध को दर्शाता है।
आय में वृद्धि होने से उपभोग में जो वृद्धि होती है उन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
MPC = PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 11
जैसा कि आय यदि ₹ 100 करोड़ से बह कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और उपभोग ₹ 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है तो आय में वृद्धि 10 करोड़ होने से उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ हुई है तो-
MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) or 50%
इन दोनों का मूल्य एक से अधिक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग वर्तमान आय से अधिक हो।

प्रश्न 3.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति का अर्थ बताइए। क्या औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ?
अथवा
इनमें से किसका मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ?
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति-सीमान्त बचत प्रवृत्ति बचत फलन की ढाल होती है। यह आय में वृद्धि के कारण बचत में हो रही वृद्धि को दर्शाती है।
MPS = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}\)
औसत बचत प्रवृत्ति-औसत बचत प्रवृत्ति किसी भी आय के स्तर पर बचत और आय का अनुपात है।
APS = \(\frac{S}{Y}\)
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) दोनों का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग वर्तमान आय से अधिक होता है।

प्रश्न 4.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में क्या सम्बन्ध है ? क्या औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है ? यदि हां तो कब ?
उत्तर-
(i) औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC)-प्रत्येक आय के स्तर पर औसत उपभोग, प्रवृत्ति उपभोग तथा आय के सम्बन्ध को दर्शाती है।
(ii) औसत बचत प्रवृत्ति (APS)-औसत बचत प्रवृत्ति प्रत्येक आय के स्तर पर बचत और आय का अनुपात होती है।
APC + APS = 1
औसत बचत प्रवृत्ति का मूल्य ऋणात्मक हो सकता है जब वर्तमान उपभोग, वर्तमान आय से अधिक हो।

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प्रश्न 5.
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग फलन, उपभोग व्यय और आय के सम्बन्ध को व्यक्त करता है। उपभोग व्यय, आय का फलन है [C = f (y)] अर्थात् आय पर निर्भर करता है। आय में वृद्धि होने से उपभोग व्यय में वृद्धि होती है, परन्तु उपभोग में वृद्धि आय में वृद्धि से कम होती है और उपभोग व्यय शून्य नहीं होता। अर्थशास्त्र में उपभोग फलन को केन्ज़ की सबसे बढ़ी धारणा माना जाता है। इस धारणा पर अर्थशास्त्रियों ने बहुत अधिक खोज की है।

प्रश्न 6.
केन्ज़ के मनोवैज्ञानिक उपभोग के नियम की व्याख्या करें।
उत्तर-
केन्ज़ ने अपनी पुस्तक में उपभोग के सम्बन्ध में मनोवैज्ञानिक नियम का निर्माण किया, जिसको उपभोग का आधार पूर्वक नियम (Psychological Law or Fundamental Law of Consumption) भी कहा जाता है। इस नियम में केन्ज़ ने तीन धारणाओं को स्पष्ट करने की चेष्टा की है –

  • जब किसी देश में लोगों की आय बढ़ती है तो उपभोग में ज़रूर वृद्धि होती है। परन्तु उपभोग में वृद्धि कम दर पर होती है |
    C <Y.
  • जब लोगों की आय में वृद्धि होती है तो इसका कुछ अंश उपभोग पर व्यय किया जाता है और कुछ अंश बचत के रूप में रखा जाता है|
    Y = C + S.
  • जब लोगों की आय में वृद्धि होती है तो उपभोग व्यय और बचत दोनों में वृद्धि होती है। ये तीनों धारणाएं अन्तर्सम्बन्धित हैं।

प्रश्न 7.
अधिक उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है जबकि अधिक बचत प्रवृत्ति नहीं है। व्याख्या करें।
उत्तर-
अधिक उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है क्योंकि अधिक उपभोग व्यय करने से लोगों की आय में वृद्धि होती है। इसलिए उपभोग प्रवृत्ति एक गुण है जोकि देश में आय तथा रोजगार में वृद्धि करती है। बचत एक व्यक्ति के लिए अच्छी होती है परन्तु अधिक बचत प्रवृत्ति अच्छी नहीं होती। यदि देश में बचत अधिक की जाती है तो इससे उपभोग व्यय कम हो जाता है। एक व्यक्ति का व्यय दूसरे व्यक्ति की आय होती है। इसलिए दूसरे लोगों की आय कम हो जाती है। देश में उत्पादन कम होने लगता है और मन्दीकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस लिए अधिक बचत प्रवत्ति गुण नहीं अभिशाप बन जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उपभोग प्रवृत्ति अथवा उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ? उपभोग प्रवृत्ति की किस्में बताएँ।
(What is meant by Consumption section of Propensity to Consume ? Explain the types of Propensity to Consume.)
उत्तर-
उपभोग फलन को उपभोग प्रवृत्ति भी कहा जाता है। कुल उपभोग तथा उपभोग प्रवृत्ति में अन्तर होता है। जब एक उपभोगी देश में ₹ 100 करोड़ में से ₹ 60 करोड़ उपभोग पर खर्च किए जाते हैं तो इसको औसत उपभोग कहा जाता है। जैसे कि 50 = 60% औसत उपभोग है। उपभोग फलन राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उपभोग के क्रियात्मक सम्बन्ध को प्रकट करती है। इसलिए इस धारणा को निम्नलिखित समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
C = f (Y) (उपभोग, आय का फलन है)

साधारणत: उपभोग फलन एक सूची-पत्र होता है जिसमें राष्ट्रीय आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को स्पष्ट किया जाता है। इस सूची-पत्र को उपभोग फलन या उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए उपभोग प्रवृत्ति को एक सूची-पत्र तथा रेखा-चित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

उपभोग फलन तालिका
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उपभोग प्रवृत्ति-उपभोग फलन तालिका में स्पष्ट किया है कि जब आय 0 है तो 20 करोड़ | ”
Y=(C+S) रुपए उपभोग पर खर्च है। आय में वृद्धि ₹ 50, 100, 150, 200, 250 करोड़ होती है तो उपभोग में वृद्धि ₹ 20, 60, 100, 140, 180, 220 करोड़ है।

जब E/ Ac b=4C आय 100 करोड़ रुपए हैं तो उपभोग भी ₹ 100 करोड़ है। इसके बाद जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती | है, बचत में भी वृद्धि होती है। इस सूची-पत्र को उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

बचत प्रवृत्ति-जब राष्ट्रीय आय 0 है तो बचत (-) 20 करोड़ है। आय 100 करोड़ पर उपभोग ₹ 100 करोड़ हैं। इसके पश्चात् राष्ट्रीय आय बढ़ने से बचत में वृद्धि होती है। रेखा को बचत प्रवृत्ति कहा जाता है।
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उपभोग प्रवृत्ति की किस्में (Types of Propensity to Consume)-केन्ज़ ने उपभोग प्रवृत्ति की दो किस्मों को स्पष्ट किया है
(A) औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume)-एक देश के लोग अपनी आय में से कितने पैसे उपभोग पर खर्च करते हैं। इन दोनों तत्त्वों के सम्बन्ध को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए यदि राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ है और उपभोग पर ₹ 60 करोड़ खर्च किए जाते हैं। राष्ट्रीय उपभोग को राष्ट्रीय आय पर बाँट दिया जाए तो औसत उपभोग प्रवृत्ति प्राप्त हो जाती है।
APC = \(\frac{C}{Y}=\frac{60}{100}\) = ਧਾ 0.6 ਧਾ 60%

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रेखाचित्र 3 में दिखाया है कि जब आय ₹ 100 करोड़ है तो उपभोग खर्च 60 करोड़ है। उपभोग प्रवृत्ति CC रेखा पर A बिन्दु औसत उपभोग प्रवृत्ति 60% प्रकट करता है।
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(B) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume)-जब किसी देश में राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में भी वृद्धि हो जाती है, जब हम इन वृद्धियों के सम्बन्ध को स्पष्ट करते हैं तो उसको सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरण के लिए एक देश में राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और उपभोग ₹ 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ है तथा राष्ट्रीय उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है। इन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) = 0.5 Or 50%
रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है कि जब राष्ट्रीय आय 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है तो उपभोग 60 करोड़ से बढ़कर ₹ 65 करोड़ हो जाता है। राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ होने के कारण उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है। इन वृद्धियों के सम्बन्ध को सीमांत उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।

MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) = 0.5 ਧਾ 50%
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प्रश्न 2.
बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ? औसत बचत प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति की धारणा को स्पष्ट करें।
उत्तर-
आय और बचत के सम्बन्ध को बचत प्रवृत्ति कहते हैं। [S = f(y)] अर्थात् बचत आय का फलन है। आय के बढ़ने से बचत भी बढ़ती है और आय के कम होने से बचत कम हो जाती है। केन्ज़ ने अपने मनोवैज्ञानिक नियम में यह बताया है कि जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग में वृद्धि तो होती है परन्तु उपभोग में वृद्धि कम अनुपात में होती है और बचत अधिक अनुपात में बढ़ती है। यदि हम साधारण रूप में देखें तो बचत प्रवृत्ति को समझने के लिए सीधी रेखा अंकित चित्र द्वारा आसानी से दिखा सकते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 16PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 17
सूची पत्र में दिखाया गया है कि जब लोग बेरोजगार होते हैं और उनकी आय शून्य होती है तो भी उपभोग पर व्यय किया जाता है जोकि ₹ 50 करोड़ दिखाया गया है। इसलिए बचत ऋणात्मक (₹ -50 करोड़) दिखाई गई है। जब आय ₹ 100 करोड़ हो जाती है तो उपभोग भी बढ़कर ₹ 100 करोड़ हो जाता है और बचत शून्य हो जाती है। इसके पश्चात् जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है बचत में भी वृद्धि होती है। इसको रेखाचित्र 5 द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है। जब आय शून्य है तो उपभोग ₹ 50 करोड़ किया जाता है और बचत ऋणात्मक है। जब आय बढ़कर ₹ 100 करोड़ हो जाती है तो उपभोग भी ₹ 100 करोड़ हो जाता है और बचत शून्य हो जाती है। इसके पश्चात् आय के बढ़ने से बचत बढ़ती है : – SS वक्र को बचत प्रवृत्ति कहते हैं।

बचत फलन दो प्रकार का होता है –
1. औसत बचत प्रवृत्ति (Average Propensity to Save)-बचत और आय के अनुपात को औसत बचत प्रवृत्ति कहा जाता है। जैसा कि यदि आय ₹ 100 करोड़ है और लोग ₹ 20 करोड़ बचत करते हैं तो औसत बचत प्रवृत्ति
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{20}{100}=\frac{1}{5}\) Or 20%

रेखाचित्र 6. में दिखाया है कि आय 100 करोड़ रुपए है और बचत ₹ 20 करोड़ की जाती है तो बिन्दु A पर
APS = \(\frac{S}{Y}=\frac{20}{100} \) or 20%
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2. सीमान्त बचत प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Save)-जब आय में वृद्धि होती है तो बचत में भी वृद्धि होती है। बचत में वृद्धि और आय में वृद्धि के अनुपात को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहते हैं। जैसा कि आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है और बचत ₹ 20 करोड़ से बढ़कर ₹ 25 करोड़ हो जाती है। आय में वृद्धि 10 करोड़ होने से बचत में वृद्धि ₹5 करोड़ है। इस प्रकार
MPS = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) \( Or 50%

रेखाचित्र 7 में दिखाया है कि आय में वृद्धि ₹ 10 करोड़ है और उपभोग में वृद्धि ₹ 5 करोड़ है तो
MPS = [latex]\frac{\Delta S}{\Delta Y}=\frac{5}{10}=\frac{1}{2}\) Or 50%
APC + APS = 1
MPC + MPS = 1
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प्रश्न 3.
उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत प्रवृत्ति के निर्धारक तत्त्व बताएं।
(Explain the Factors determining Propensity to Consume or Propensity to Save.)
उत्तर-
आय के बिना उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत प्रवृत्ति बहुत से तत्त्वों पर निर्भर करती है। इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण तत्त्व इस प्रकार हैं –

  1. आय का वितरण (Distribution of Income)-आय का वितरण एक देश के लोगों की उपभोग प्रवृत्ति को प्रभावित करता है। इससे बचत प्रवृत्ति पर भी प्रभाव पड़ता है। हम जानते हैं कि अमीर लोगों की उपभोग प्रवृत्ति कम होती है जबकि ग़रीब लोग अपनी आय का अधिक भाग उपभोग पर व्यय करते हैं और उनकी उपभोग प्रवृत्ति अधिक होती है। यदि आय का समान वितरण कर दिया जाए तो ग़रीब लोग और अमीर लोग उपभोग पर अधिक खर्च करेंगे, इसलिए उपभोग प्रवृत्ति अधिक हो जाएगी और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी।
  2. धन का वितरण (Distribution of Income)-आय की भांति यदि धन का समान वितरण कर दिया जाये तो इससे उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी।
  3. उधार की प्राप्ति (Availability of Credit)-साख की सुविधा प्राप्त होने से उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है। यदि किसी व्यक्ति को कार पर खर्च करना हो तो एकदम भुगतान करना मुश्किल होता है, परन्तु यदि उधार प्राप्त हो जाता है और कार का भुगतान किश्तों में किया जाना हो तो लोग ज़्यादा कारें खरीदने लग जाते हैं और उपभोग प्रवृत्ति पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
  4. ब्याज की दर (Rate of Interest)-बाज़ार में प्रचलित ब्याज की दर भी उपभोग प्रवृत्ति पर असर डालती है। यदि ब्याज की दर कम हो तो लोग उधार लेकर वस्तु खरीद लेते हैं और उपभोग प्रवृत्ति में वृद्धि होती है और बचत प्रवृत्ति कम हो जाएगी। इसके विपरीत ब्याज की दर अधिक है तो उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है।
  5. भविष्य की संभावनाएं (Future Expectation)-वर्तमान का उपभोग भविष्य की संभावनाओं पर निर्भर करता है। यदि भविष्य में कीमतें बढ़ने की संभावना हो तो वर्तमान में उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाएगी और लोग वस्तुओं पर अधिक खर्च करेंगे। यदि भविष्य में कीमत कम होने की संभावना हो तो वर्तमान में उपभोग प्रवृत्ति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  6. सरकार की नीति (Government Policy)-सरकार की नीति भी उपभोग प्रवृत्ति पर प्रभाव डालती है। यदि सरकार प्रत्यक्ष कर अधिक लगाती है तो लोगों की व्यय करने की शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है और उपभोग प्रवृत्ति कम हो जाती है इससे बचत प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
  7. जीवन स्तर (Standard of Living)-यदि जीवन स्तर में तेजी से वृद्धि होती है तो लोग अपनी आय को बचत में रखने के स्थान पर खर्च करना चाहेंगे क्योंकि लोग अच्छा जीवन व्यतीत करना पसन्द करते हैं और आय का अधिक भाग खर्च करते हैं।

प्रश्न 4.
निवेश से क्या अभिप्राय है ? प्रेरित निवेश तथा स्वतन्त्र निवेश में क्या अन्तर है ? निवेश के मुख्य निर्धारक तत्त्व बताएं।
(What is meant by Investment ? Distinguish between Induced Investment & Autonomous Investment. Explain the main determinents of Investment.)
उत्तर-
निवेश का अर्थ (Meaning of Investment)-निवेश का अर्थ उस खर्च से होता है जिस द्वारा पूँजीगत पदार्थों का निर्माण होता है। जैसे कि कारखानों, मशीनों, औज़ारों में वृद्धि की जाती है। जिससे देश में रोज़गार में वृद्धि होती है। उसको निवेश कहते हैं। यदि पुराने मकान, दुकान, मशीन पर खर्च किया जाता है तो इसे वित्तीय निवेश कहते हैं। परन्तु जब नए मकान, दुकान या मशीन पर खर्च किया जाता है तो इसको वास्तविक निवेश कहते हैं। केन्ज़ के अनुसार निवेश से हमारा अभिप्राय वास्तविक निवेश से होता है। वित्तीय निवेश से नहीं होता।

निवेश की किस्में (Types of Investment)-प्रेरित निवेश तथा स्वचालित निवेश (Induced Investment and Autonomous Investment)
प्रेरित निवेश-यह आय तथा लाभ में होने वाले परिवर्तनों से प्रेरणा प्राप्त करता है। आय अथवा लाभ के बढ़ने की सम्भावना से यह बढ़ता है तथा इनमें कमी होने से यह कम हो जाता है। यह निवेश लाभ या आय सापेक्ष होता है। प्रेरित निवेश प्रायः निजी क्षेत्र (Private Sector) में किया जाता है। रेखाचित्र 8 द्वारा प्रेरित निवेश को स्पष्ट किया जा सकता है। इस रेखाचित्र में OX अक्ष पर आय तथा OY अक्ष पर निवेश प्रकट किया है। निवेश II, रेखा नीचे से ऊपर की ओर उठ रही है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 20

इससे सिद्ध होता है कि आय के बढ़ने पर निवेश बढ़ रहा है। कुरीहारा के अनुसार, आय के बहुत कम स्तर पर निवेश ऋणात्मक (Negative) हो सकता है। II, रेखा के OX से नीचे होने से यही प्रकट होता है। स्वचालित निवेश-यह निवेश आय-प्रेरित नहीं होता। इस प्रकार का निवेश आय में होने वाले परिवर्तन के आधार पर नहीं किया जाता। स्वचालित निवेश से अभिप्राय उस निवेश से है जो नई तकनीकों, नये आविष्कारों को लागू करने के लिए किया जाता है।

यह निवेश मन्दी तथा बेरोज़गारी को दूर करने तथा नये साधनों का रेखाचित्र 8 विकास करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार का निवेश देश की आर्थिक उन्नति तथा सुरक्षा के लिए किया जाता है। इस प्रकार का निवेश प्रायः सरकार द्वारा किया जाता है। रेखाचित्र द्वारा स्वतन्त्र निवेश की धारणा को स्पष्ट किया जा सकता है। रेखाचित्र 9 में II, स्वचालित निवेश वक्र है। यह OX अक्ष से समानान्तर एक सीधी रेखा (Horizontal Straight Line) है। इससे सिद्ध होता है कि आय के बढ़ने या कम होने पर निवेश में कोई परिवर्तन नहीं आयेगा। निवेश OI के बराबर होगा। केन्ज़ के अपने रोज़गार सिद्धान्त में मुख्यतः इस प्रकार के निवेश का प्रतिपादन किया है।PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 21

निवेश के निर्धारक तत्त्व
(Determinants of Investment)

निवेश-प्रेरणा को निम्नलिखित तत्त्व प्रभावित करते हैं-
1. पूँजी की सीमान्त कुशलता (Marginal Efficiency of Capital)-यदि ब्याज की दर में कोई भी परिवर्तन न हो तो पूँजी की सीमान्त उत्पादकता जितनी अधिक होगी उतनी ही निवेश की मात्रा अधिक होगी।

2. ब्याज दर (Rate of Interest)-दूसरी ओर, यदि पूँजी की सीमान्त उत्पादकता में परिवर्तन हो तो ब्याज की दर जितनी कम होगी उतना ही निवेश अधिक मात्रा में होगा।

3. तकनीकी विकास तथा नये आविष्कार (Technological Growth and Innovation)-कीज़र के अनुसार तकनीकी परिवर्तन एक बड़ी सीमा तक निवेश प्रेरणा को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए पिछले कई वर्षों से कृषि तथा उद्योगों में श्रम-बचाऊ (Labour-Saving) या पूँजी-बचाऊ (Capital Saving) मशीनों के बनने से इन क्षेत्रों में काफ़ी निवेश बढ़ा है। इसी प्रकार नये आविष्कारों का जैसे टैरीलीन के कपड़े, स्कूटर, टेलीविज़न, ए० सी०, रैफ्रीजिरेटर आदि ने भी निवेश के स्तर को ऊंचा उठाने में सहायता दी है। संक्षेप में प्रो० मैक्कोलन के अनुसार, “नये आविष्कारों की बढ़ती हुई तेज़ रफ्तार निवेश को बहुत प्रेरणा देती है।”

4. बनाए रखने और चालू रखने वाली लागते (Maintenance and Operation Costs)-निवेश करते समय लाभ की सम्भावना इस बात पर भी निर्भर करती है कि मशीनों आदि पर क्या खर्च आया है और उन्हें चालू हालत में रखने के लिए अनुमानित लागतें क्या हैं। यदि ये तागतें ऊंची हैं तो शुद्ध लाभ कम होगा और इससे निवेश स्तर में कमी होगी और यदि ये लागतें नीची हैं तो शुद्ध लाभ बढ़ने से निवेश स्तर में वृद्धि होगी।

5. सरकारी नीतियाँ (Government Policies)-निजी निवेश का निर्णय लेते हुए सरकार की कर (Tax) नीति का भी ध्यान रखना पड़ता है। कर व्यापारिक लागतों का ही एक भाग होते हैं और यदि ये कर अधिक हों तो लाभ की सम्भावना कम हो जाने से निवेश स्तर भी कम हो जाएगा। परन्तु यदि कर कम होंगे तो निवेश-प्रेरणा को प्रोत्साहन मिलेगा।

6. पूँजीगत वस्तुओं का वर्तमान स्टॉक (The Present Stack of Capital Gooks किसी उद्योग में पूँजी पदार्थों का वर्तमान स्टॉक अतिरिक्त निवेश से अनुमानित लाभ को प्रभावित करता है। यदि किसी उद्योग में उत्पादन सुविधाओं, तैयार माल आदि का पहले से ही कम स्टॉक है तो उद्योग में अतिरिक्त निवेश में क्षेत्र बढ़ जाएगा।

7. व्यावसायिक सम्भावनाएं (Bussiness Expectations)- निवेश इस बात पर भी निर्भर करता है कि भविष्य में कितना लाभ होगा। यदि भविष्य में अधिक लाभ होने की आशा होती है तो अधिक निवेश किया जाता है। इस प्रकार तेज़ी की आशंकाएं निवेश पर अच्छा प्रभाव डालती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

V. संख्यात्मक प्रश्न
(Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आय तथा उपभोग अनुसूची से औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) ज्ञात करें।

आय (₹ करोड़) 0 100 200 300 400
उपभोग (₹ करोड़) 40 100 150 180 200

उत्तर
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 22

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सूचीपत्र में औसत बचत प्रवृत्ति (APS) तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का माप करें।

आय (₹ करोड़) 0 100 200 300 400 500
उपभोग (₹ करोड़) 20 100 180 260 340 420

उत्तर-
आय तथा उपभोग के अन्तर से बचत का माप किया जा सकता है तथा फिर औसत वचत प्रवृत्ति तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का माप कर सकते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 23

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 24
उत्तर-

  • वर्ष के प्रारम्भ में APC = \( \frac{\mathrm{C}}{\mathrm{Y}}=\frac{4000}{10000}\) = 0.4.
  • वर्ष के अन्त में APC = \(\frac{C}{Y}=\frac{5000}{15000}\) = 0.33
  • सीमान्त उपभोग प्रवत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{1000}{5000}\) = 0.2 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 4.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करो –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 25
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय 400 रु० तथा प्रारम्भिक खर्च 340 रुपए है तो

प्रश्न 5.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें –
आय का स्तर । उपभोग खर्च
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 27
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय तथा उपभोग = 0 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 28
उत्तर-
यदि प्रारम्भिक आय = 100 और उपभोग = ₹ 100 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 30

प्रश्न 6.
निम्नलिखित सारणी को पूरा करें –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 31
उत्तर-
I–यदि प्रारम्भिक आय तथा उपभोग खर्च = 0 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 32
उत्तर-
II……यदि प्रारम्भिक आय = 300 तथा उपभोग = ₹ 280 है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 34

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 7.
(a) यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.3 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी ?
(b) यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
MPS = 0.3 MPC = ?
(a) सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – MPS
= 1 – 0.3
= 0.7 उत्तर
(b) सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.8
= 0.2 उत्तर

प्रश्न 8.
यदि राष्ट्रीय आय ₹ 100 है तो उपभोग ₹ 50 है। राष्ट्रीय आय बढ़कर ₹ 150 हो जाती है तो उपभोग बढ़कर ₹ 75 हो जाता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर
MPC = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}\)
आय में परिवर्तन (AY) = 150 – 100 = ₹ 50
उपभोग में परिवर्तन (AC) = 75 – 50 = ₹ 25
सीमान्त उपभोग में परिवर्तन (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{25}{50}\) = 0.5
सीमान्त बचत प्रवृत्ति = 1 – MPC
= 1 – 0.5 = 0.5 उत्तर

प्रश्न 9.
आय ₹ 100 से बढ़कर ₹ 200 हो जाती है। उपभोग खर्च ₹ 75 से बढ़कर ₹ 140 हो जाता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति तथा बचत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
आय में परिवर्तन (ΔY) = 200 – 100 = ₹ 100
उपभोग में परिवर्तन (ΔC) = 140 – 75 = ₹ 65
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{\Delta C}{\Delta Y}=\frac{65}{100}\) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवत्ति (MPS) = \(\frac{\Delta S}{\Delta Y}\) 1 – MPC
= 1 – 0.65
= ₹ 0.35 उत्तर

प्रश्न 10.
यदि उपभोग खर्च ₹ 1000 है, उपभोग खर्च ₹ 750 है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
आय ₹ 1000 उपभोग खर्च = 750
बचत = आय – उपभोग = 1000 – 750 = ₹ 250
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 35
= 0.25 उत्तर

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.65
= 0.35 उत्तर

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.25
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1 – MPS
= 1 – 0.25
= 0.75 उत्तर

प्रश्न 13.
यदि औसत उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है तो औसत बचत प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC) = 0.75
औसत बचत प्रवृत्ति (APS) = 1 – APC
= 1 – 0.75
= 0.25 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति

प्रश्न 14.
यदि APC 0.55 है तो APS कितनी होगी ?
उत्तर
APC + APS = 1
0.55 + APS = 1
APS = 1-0.55
= 0.45 उत्तर

प्रश्न 15.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 2400 करोड़ तथा उपभोग का स्तर ₹ 1600 करोड़ है तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 2400 करोड़
उपभोग व्यय = ₹ 1600 करोड़
बचत = 2400 – 1600 = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 36
= \(\frac{1}{3}\) =33.3% उत्तर

प्रश्न 16.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1200 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹800 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर
व्यय योग्य आय = ₹ 1200 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 800 करोड़
बचत = 1200 – 800 = ₹ 400 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 37
= \(\frac{1}{3}\) = 33.3% उत्तर

प्रश्न 17.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 3600 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 2400 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 3600 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 2400 करोड़
बचत = 3600 – 2400 = ₹ 1200 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 38
= \(\frac{1}{3}\) = 33.3% उत्तर

प्रश्न 18.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1200 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 800 करोड़ हो तो औसत उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी ?
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 1200 करोड
उपभोग का स्तर = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 39
= 69.6% उत्तर

प्रश्न 19.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1800 करोड़ तथा उपभोग का स्तर ₹ 1200 करोड़ हो तो औसत उपभोग प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यय योग्य आय = ₹ 1800 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 1200 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 40
= 69.6% उत्तर

प्रश्न 20.
व्यय योग्य आय = ₹ 2400 करोड़ और उपभोग का स्तर ₹ 1600 करोड़ हो तो औसत बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यय योग व्यय = ₹ 2400 करोड़
उपभोग का स्तर = ₹ 1600 करोड़
बचत = 2400 – 1600 = ₹ 800 करोड़
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 9 उपभोग प्रवृत्ति और बचत प्रवृत्ति 41
= 33.3% उत्तर

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय ₹ 200 करोड़ है और सीमान्त उपभोग प्रवृति (MPC) 0.75 हैं। यदि ₹ 450 करोड़ का निवेश किया जाता है तो कुल राष्ट्रीय आय कितनी होगी ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय = ₹ 200 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृति (MPC) = 0.75
निवेश = ₹ 450 करोड़
गुणक (K) = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}\) = \(\frac{1}{.25} \times 100\) = 4
राष्ट्रीय आय में वृद्धि (ΔY) = निवेश x गुणक
= 450 x 4
= ₹ 1800 करोड़
कुल राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय आय + राष्ट्रीय आय में वृद्धि
= 200 + 1800 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 8 कुल मांग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 8 कुल मांग

PSEB 12th Class Economics कुल मांग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे०बी० से के अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी माँग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.)

प्रश्न 2.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उपभोग निवेश, सरकारी व्यय तथा शुद्ध निर्यात के जोड़ को कुल माँग कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कुल माँग के अंश बताएं।
उत्तर-
कुल माँग के अंश हैं-

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)
    (AD = C + I + G + X – H)

प्रश्न 4.
कुल माँग के किसी एक अंश को स्पष्ट करें।
उत्तर-
उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई माँग को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 5.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूँजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूँजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने इत्यादि को शामिल किया जाता है। निवेश को स्थिर पूँजी निर्माण भी कहते हैं।

प्रश्न 6.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति का क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। (AS = C + S)

प्रश्न 7.
एक अर्थव्यवस्था में पारिवारिक उपभोग माँग किस बात पर निर्भर करती है ?
उत्तर–
पारिवारिक उपभोग माँग का स्तर परिवार की आय पर निर्भर करता है।

प्रश्न 8.
प्रभावी माँग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस बिन्दु पर कुल माँग वक्र, कुल पूर्ति वक्र को काटता है, उस बिन्दु को प्रभावी माँग का बिन्दु कहते हैं।

प्रश्न 9.
कुल पूर्ति का कोई एक अंश बताएं।
उत्तर-
बचत पूर्ति का एक अंश होता है।

प्रश्न 10.
नियोजित निवेश (Planned or Ex-ante) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नियोजित निवेश का अर्थ उस निवेश से है जो देश के लोग निवेश करने की इच्छा करते हैं।

प्रश्न 11.
वास्तविक निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वास्तविक निवेश (Actual or Ex-Post) वह निवेश है जोकि लोगों द्वारा एक निश्चित अवधि में किया जाता है।

प्रश्न 12.
क्या वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश बराबर होते हैं ?
उत्तर-
वास्तविक बचत और वास्तविक निवेश सदैव बराबर होते हैं।

प्रश्न 13.
प्रायोजित और वास्तविक निवेश का अन्तर क्या होता है ?
उत्तर-
इसका अन्तर अप्रायोजित निवेश कहलाता है।

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प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश, बचत से अधिक होती है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का स्तर बढ़ता है।

प्रश्न 15.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक है तो राष्ट्रीय आय पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय में कमी हो जाती है।

प्रश्न 16.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर और निवेश माँग के सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहते हैं।

प्रश्न 17.
निवेश की सीमान्त कुशलता (Marginal Efficiency of Investment) को परिभाषित करो। ‘
उत्तर-
एक नया पूँजी पदार्थ लगाने से जो ज़्यादा से ज्यादा आय होने की संभावना है उसको निवेश की सीमान्त कुशलता कहते हैं।

प्रश्न 18.
वास्तविक बचत तथा निवेश सदैव बराबर होते हैं। कैसे ?
उत्तर-
Y = C + S और Y = C + I
∴ C + S = C +I
S = I

प्रश्न 19.
पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा कर लेती है किस अर्थशास्त्री का कथन है ?
(a) एडम स्मिथ
(b) मार्शल
(c) रोबिन्ज़
(d) जे० बी से।
उत्तर-
(d) जे० बी से।

प्रश्न 20.
जो निवेश एक देश के लोग करने की इच्छा रखते हैं उसको ……….. कहा जाता है।
(a) वास्तविक निवेश
(b) नियोजित निवेश
(c) सरकारी निवेश
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) नियोजित निवेश।

प्रश्न 21.
जिस बिन्दु पर कुल माँग तथा कुल पूर्ति बराबर होते हैं उस बिन्दु को ………. का बिन्दु कहा जाता है।
(a) पूर्ण रोज़गार
(b) छुपी बेरोज़गारी
(c) कुल माँग
(d) प्रभावी माँग।
उत्तर-
(d) प्रभावी माँग।

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प्रश्न 22.
वह निवेश जो एक देश के लोगों द्वारा निश्चित समय में किया जाता है उसको वास्तविक निवेश कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त कार्य कुशलता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
नया निवेश करने से जो अधिक से अधिक आय होने की सम्भावना होती है उसको निवेश की सीमान्त उत्पादकता कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में किसी किस्म की बेरोज़गारी नहीं होती।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 26.
कुल माँग = C + I
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 27.
कुल पूर्ति = C + S
उत्तर-
सही।

प्रश्न 28.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश का अन्तर अनियोजित निवेश होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 29.
यदि वास्तविक बचत, वास्तविक निवेश से अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
‘से’ के बाज़ार नियम की परिभाषा दो।
उत्तर-
जे० बी० ‘से’ ने 1803 में बाज़ार का नियम दिया, इसको ‘से’ का बाजार नियम कहा जाता है। इस नियम अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न कर लेती है।” (Supply creates its own demand.) उनके अनुसार पूंजीगत अर्थव्यवस्था में कुल पूर्ति हमेशा कुल मांग के समान होती है।

प्रश्न 2.
कुल मांग के अर्थ बताओ।
उत्तर-
कुल मांग का अर्थ है एक वर्ष में एक देश में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किया गया कुल व्यय। इसके मुख्य अंश हैं।

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात (निर्यात-आयात)।

यदि हम इन मदों को जोड़ कर लेते हैं। तो इसको कुल मांग कहा जाता है।
AD = C + I + G + X – M

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 3.
कुल मांग के अंश बताओ। इन में से किसी एक-अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
कुल मांग के अंश हैं:-

  • उपभोग व्यय
  • निवेश
  • सरकारी व्यय
  • शुद्ध निर्यात।

उपभोग व्यय-इसमें परिवारों के उपभोग के लिए की गई मांग को स्पष्ट किया जाता है, जोकि परिवारों की आय पर निर्भर करती है। आय अधिक होने की स्थिति में उपभोग व्यय अधिक होता है।

प्रश्न 4.
निवेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में पूंजीगत पदार्थ जैसे कि मशीनें, कारखाने, मकान इत्यादि को शामिल किया जाता है। इसको स्थिर पूंजी निर्माण (Fixed Capital Formation) भी कहते हैं। इसमें उत्पादकों के भण्डार में परिवर्तन को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र में कुल पूर्ति से क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की मूल्य वृद्धि का योग होता है। इसका अनुमान लगाने के लिए उपभोग तथा बचत का योग किया जाता है। इसको आय का सृजन भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
उपभोग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोग फलन एक सूची पत्र होता है, जिसमें आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट किया जाता है। इसलिए एक सूची पत्र जोकि अर्थव्यवस्था में आय के विभिन्न स्तर पर उपभोग के विभिन्न स्तरों को प्रकट करता है, उसको उपभोग फलन कहते हैं। इसको उपभोग प्रवृत्ति (Propensity to Consume) भी कहा जाता है।
C = f (Y)

प्रश्न 7.
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति को परिभाषित करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में जब आय में परिवर्तन होने से उपभोग में परिवर्तन होता है तो इनके अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय 100 करोड़ से बढ़कर 110 करोड़ हो जाती है तथा उपभोग ₹ 60 करोड़ से 65 करोड़ हो जाता है तो आय में परिवर्तन (110-100) = ₹ 10 करोड़ है तथा उपभोग में परिवर्तन (65-60) = ₹ 5 करोड़ है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 1

प्रश्न 8.
औसत उपभोग प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल उपभोग तथा कुल आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप राष्ट्रीय आय ₹ 100 करोड़ है तथा उपभोग पर 60 करोड़ व्यय किए जाते हैं तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 2

प्रश्न 9.
बचत फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय के विभिन्न स्तर पर लोग कितने-कितने पैसे बचत करते हैं, उसके सूचीपत्र को बचत फलन अथवा बचत प्रवृत्ति कहा जाता है।
S = f (Y)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 10.
औसत बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औसत बचत प्रवृत्ति किसी देश में आय के निश्चित स्तर पर कुल बचत तथा कुल आय का अनुपात होती है। यदि ₹ 100 करोड़ आय में से ₹ 20 करोड़ बचत की जाती है तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 3

प्रश्न 11.
सीमान्त बचत प्रवृत्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश में जब आय में परिवर्तन होता है तो बचत में परिवर्तन हो जाता है। आय में परिवर्तन के कारण बचत में होने वाले परिवर्तन के अनुपात (Ratio) को सीमान्त बचत प्रवृत्ति कहा जाता है। यदि आय ₹ 100 करोड़ से बढ़कर ₹ 110 करोड़ हो जाती है तथा बचत ₹ 20 करोड़ से बढ़कर ₹ 21 करोड़ हो जाती है तो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 4

प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति कितनी होगी, यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है ?,
उत्तर-
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) का योग इकाई के समान होता है।
MPC + MPS = 1
यदि MPC = 0.8 है तो MPS का माप निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है –
MPC + MPS = 1
0.8 + MPS = 1
MPS = 1-0.8
MPS = 0.2 Ans

प्रश्न 13.
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है तथा उपभोग व्यय ₹ 700 है तो औसत बचत प्रवृत्ति का माप करो।
उत्तर-
यदि व्यय योग्य आय ₹ 1000 है, जिसमें से ₹ 750 उपभोग व्यय हैं तो बचत 1000-750 = ₹ 250 होगी। औसत बचत प्रवृत्ति बचत पर राष्ट्रीय आय की अनुपात होती है, इसलिए
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग 5

प्रश्न 14.
निवेश की सीमान्त कार्यकुशलता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ब्याज की दर के बिना शेष तत्त्वों के प्रभाव के कारण निवेश की एक अन्य इकाई को लगाने से जितनी उच्चतम प्राप्ति की दर होती है, जिसको देखकर निवेश किया जाता है, उस दर को निवेश की सीमान्त कार्य-कुशलता कहा जाता है।

प्रश्न 15.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.65 है। सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.65
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 1 – MPC
= 1 – 0.65
= 0. 35 उत्तर

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कितनी होगी।
उत्तर-
दिया है : सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = 0.25
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 1- MPS
= 1 – 0.25
= 0.75 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 17.
औसत उपभोग प्रवृत्ति और औसत बचत प्रवृत्ति में सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
औसत उपभोग प्रवृत्ति एक समय विशेष पर कुल आय और कुल उपभोग के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को व्यक्त करती है जबकि औसत बचत प्रवृत्ति कुल आय और कुल बचत के बीच अनुपातिक सम्बन्ध को प्रकट करती है। इन दोनों का योग इकाई के बराबर होता है।
APC + APS = 1

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कुल मांग से आपका क्या उद्देश्य है ?
अथवा
कुल मांग के अंश बताओ। किसी एक अंश की व्याख्या करो।
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं के लिए समूची मांग को कुल मांग कहा जाता है। (Aggregate demand is the total demand for goods and services in the economy.) कीमत स्तर के सम्बन्ध में कुल माँग ऋणात्मक ढलान वाली होती है। कुल माँग वह व्यय है, जोकि एक देश के लोग वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। कुल माँग के अंश हैं। AD = C+I+ X – M

  • उपभोग व्यय-इसमें परिवारों तथा सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
  • निवेश व्यय-इसमें मशीनों, फैक्टरियों इत्यादि स्थाई निवेश तथा वर्ष सूची निवेश (Inventory Investment) को शामिल किया जाता है।
  • सरकारी व्यय-सरकार के उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है।
  • शुद्ध निर्यात (X – M)-इसमें निर्यात-आयात का मूल्य जोड़ा जाता है। इस प्रकार एक अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं पर किए गए कुल व्यय को जोड़कर कुल माँग का माप किया जाता है।

आय स्तर के सम्बन्ध में-कुल मांग वक्र आय के सम्बन्ध में बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा होती है। रेखाचित्र 1 में कुल माँग वक्र बाएँ से दाएँ ऊपर को जाती रेखा है क्योंकि आय तथा माँग में प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है।
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प्रश्न 2.
निवेश माँग फलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश में ब्याज की दर तथा निवेश माँग में सम्बन्ध को निवेश माँग फलन कहा जाता है। निवेश मुख्य तौर पर दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-

ब्याज की दर
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता अथवा लाभ होने की सम्भावना।

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  • ब्याज की दर-ब्याज की दर तथा निवेश माँग का विपरीत सम्बन्ध होता है। जैसे ब्याज की दर घटती है तो निवेश माँग में वृद्धि होती है जैसे कि निवेश माँग सूची तथा रेखाचित्र 2 में दिखाया है।
  • लाभ होने की सम्भावना-MEC दूसरा महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, जोकि निवेश माँग को निर्धारण करता है, जब निवेश में वृद्धि होती है तो लाभ होने की सम्भावना (MEC) घटती जाती है। सन्तुलन उस बिन्दु पर होगा जहां ब्याज की दर तथा लाभ होने की सम्भावना समान हो जाएगी।

प्रश्न 3.
नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर बताओ।
उत्तर-
नियोजित निवेश-किसी अवधि के आरम्भ में देश की फ़र्मों तथा नियोजन निर्माण अधिकारी द्वारा जितना निवेश करने की इच्छा (Desire) होती है, उसको नियोजित निवेश कहा जाता है। वास्तविक निवेश-वास्तविक निवेश वह निवेश है, जोकि नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश के योग से प्राप्त होता है। इसको वास्तविक निवेश (Realised Investment) कहा जाता है।

नियोजित निवेश तथा वास्तविक निवेश में अन्तर-

नियोजित निवेश वास्तविक निवेश
1. नियोजित निवेश किसी अवधि के आरम्भ में निवेश करने की इच्छा होती है। 1. वास्तविक निवेश किसी अवधि के अन्त में वास्तव में किए गए निवेश की मात्रा होती है।
2. उत्पादन के स्तर अनुसार नियोजित निवेश, नियोजित बचतों के समान हो भी सकता है, परन्तु अनिवार्य नहीं कि समान हो। 2. राष्ट्रीय आय के लेखे में वास्तविक निवेश, वास्तविक बचतों के हमेशा समान होता है।
3. जैसे नियोजित निवेश तथा नियोजित बचत समान होते हैं, इस बिन्दु पर आय का स्तर निर्धारण हो जाता है। 3. वास्तविक निवेश का आय स्तर के सन्तुलन से सम्बन्ध नहीं होता।
4. इसमें केवल नियोजित निवेश को शामिल करते है। 4. इसमें नियोजित निवेश तथा अनियोजित निवेश को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 4.
पूर्ण रोज़गार से क्या अभिप्राय है ? पूर्ण रोज़गार में किस प्रकार की बेरोज़गारी हो सकती है ?
अथवा
संघर्षात्मक बेरोज़गारी तथा संरचनात्मक बेरोज़गारी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूर्ण रोजगार से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें वह सभी लोग जो वर्तमान मज़दूरी की दर पर काम करना चाहते हैं उनको आसानी से काम मिल जाता है। पूर्ण रोज़गार में निम्नलिखित प्रकार की बेरोज़गारी की स्थिति पाई जाती है।

  • ऐच्छिक बेरोज़गारी (Voluntary Unemployment)-यदि कोई मज़दूर वर्तमान मज़दूरी की दर पर रोज़गार उपलब्ध होने पर भी काम करने को तैयार नहीं होता तो इसको ऐच्छिक बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • संघर्षात्मक बेरोज़गारी (Frictional Unemployment)-जब बाज़ार का पूर्ण ज्ञान नहीं होता और मजदूर अस्थायी तौर पर बेरोज़गार हो जाते हैं तो यह अस्थायी बेरोज़गारी संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहलाती है। जैसे कि कच्चे माल की कमी, मशीनों की टूट-फूट के कारण बेरोज़गारी हो जाती है तो इसको संघर्षात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।
  • संरचनात्मक बेरोज़गारी (Structual Unemployment)-जब किसी देश में नई तकनीकों के विकास के कारण पुरानी मशीनें बन्द हो जाती हैं तो नई तकनीकों के अनुसार मज़दूर उपलब्ध नहीं होते। इस प्रकार की बेरोज़गारी को संरचनात्मक बेरोज़गारी कहा जाता है।

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प्रश्न 5.
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (Marginal Effeciency of Capital) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूँजी की सीमान्त उत्पादकता का अर्थ किसी मशीन को काम पर लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है। निवेश दो तत्त्वों पर निर्भर करता है-(i) ब्याज की दर (ii) पूँजी की सीमान्त उत्पादकता (MFC)
I = f (r, MEC)
MEC से अभिप्राय निवेश की एक और इकाई लगाने से उससे प्राप्त होने वाली लाभ की सम्भावना से होता है।

जब ब्याज की दर कम होती है तो लाभ होने की सम्भावना भी कम हो जाती है। इसके दो कारण होते हैं-

  • वस्तुएँ तथा सेवाएँ बढ़ जाती हैं तो इनकी कीमत कम हो जाती है। इससे लाभ कम हो जाता है।
  • उत्पादन के बढ़ने से लागत में वृद्धि हो जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कुल माँग से क्या अभिप्राय है ? कुल माँग के अंश बताएं। कुल माँग फलन को तालिका तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करें।
(What is Aggregate Demand ? Discuss the components of Aggregate Demand. Explain Aggregate Demand Function with the help of a schedule and diagram.)
उत्तर-
कुल माँग से अभिप्राय एक देश में एक वित्तीय वर्ष में की गई वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल माँग से है। (Aggregate demand means the total demand of goods and services in an economy during a accounting year.) कुल माँग मुद्रा की वह मात्रा है जोकि एक देश के सारे उद्यमी मिलकर मज़दूरों की निश्चित संख्या को काम पर लगाते हैं तो उन मज़दूरों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। इन वस्तुओं तथा सेवाओं को बेचने से देश के सभी उद्यमियों को जो आय प्राप्त होने की सम्भावना होती है, उसको कुल माँग कहा जाता है। कुल माँग दो तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  • कुल उपभोग खर्च
  • कुल निवेश खर्च। कुल माँग के अंश (Components of Aggregate Demand)-कुल माँग के मुख्य अंश इस प्रकार हैं –

(a) उपभोग खर्च
(b) निवेश खर्च।

(a) उपभोग खर्च (Consumption Expenditure)-इसमें (a) निजी उपभोग खर्च (C) और सरकारी उपभोग खर्च (G) को शामिल किया जाता है। आय का जो भाग उपभोग पर खर्च नहीं किया जाता, उसको (b) निवेश किया जाता है। इसलिए बन्द अर्थव्यवस्था में कुल माँग का अर्थ उपभोग + निवेश (C + I) से होता है। यदि खुली अर्थव्यवस्था होती है तो एक देश विदेशों को निर्यात (X) करता है तथा आयात (M) की जाती है इसलिए खुली अर्थव्यवस्था में कुल माँग = उपभोग + निवेश + निर्यात – आयात (C + I + X – M) के बराबर होता है। केन्ज़ ने कुल माँग की व्याख्या बन्द अर्थव्यवस्था में की है। इसलिए कुल माँग में उपभोग तथा निवेश को शामिल किया जाता है।

(b) निवेश खर्च (Investment Expenditure)-उपभोग में निवेश खर्च शामिल कर के कुल माँग का माप किया जाता है। (C + I)

कुल माँग फलन (Aggregate Demand Function)- कुल माँग फलन एक सूची पत्र होता है जिसमें आय या रोज़गार के विभिन्न स्तर पर देश के उद्यमियों को कितनी-कितनी आय प्राप्त होने की सम्भावना है उस सूची-पत्र को कुल माँग फलन कहा जाता है। जब आय शून्य (0) होती है तो भी कुछ रकम उपभोग पर ज़रूर खर्च की जाती है। यह रकम उपभोगी पुरानी बचतों को खर्च करके या उधार रकम लेकर पूरी करते हैं। जब उनको आय होती है तो खर्च आय के समान हो जाता है परन्तु जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है तो माँग में भी वृद्धि होती है जोकि आय की वृद्धि से कम होती है। इसे एक सूची-पत्र तथा रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

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तालिका में दिखाया है कि जब आय 0 (शून्य) है तो लोग ₹ 150 करोड़ उपभोग पर खर्च करते हैं। जब आय बढ़ जाती है जैसा कि ₹ 100, 200, 300, 400, 500 करोड़ दिखाई है तो कुल माँग ₹ 50, 100, 150, 200, 250, 300 करोड़ है। ₹ 100 करोड़ की आय 100 करोड़ माँग के बराबर हो जाती है। इसके बाद आय में वृद्धि होती है तो कुल माँग में वृद्धि कम दर पर होती है।

रेखाचित्र 3 में 45° पर Y = (C + S) रेखा दिखाई गई है। AD कुल माँग रेखा है, कुल माँग रेखा (AD), OY (45°) रेखा को E बिन्दु पर काटती है। अर्थात् ₹ 100 करोड़ आय, ₹ 100 करोड़ खर्च के समान है। E बिन्दु को कुल माँग का बिन्दु कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 8 कुल मांग

प्रश्न 2.
परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा, केन्ज़ की कुल पूर्ति की धारणा से कैसे भिन्न है ?
(How is classical concept of aggregate supply different from Keynesian concept of aggregate supply ?)
उत्तर-
कुल पूर्ति से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में वस्तुओं तथा सेवाओं की कुल पूर्ति से है। (Aggregate supply is the total supply of goods and services in an economy.) कुल पूर्ति को भी कीमत स्तर से सम्बन्धित किया जाता है। इस सम्बन्धी दो दृष्टिकोण हैं-
(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)
(B) केन्ज़ीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)

(A) परम्परागत कुल पूर्ति की धारणा (Classical concept of Aggregate Supply)-परम्परागत अर्थशास्त्रियों का विचार था कि पूँजीगत अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है। इस अर्थव्यवस्था में कीमत स्तर की अवस्था चाहे कोई भी हो, देश में कुल उत्पादन स्थिर रहता है। कीमत की वृद्धि अथवा कमी से कुल उत्पादन अथवा कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता। इसलिए कुल पूर्ति रेखा पूर्ण अलोचशील OY रेखा के समानान्तर होती है।

जैसे कि रेखाचित्र में दिखाया गया है। रेखाचित्र 4 में दिखाया गया है कि कीमत स्तर में परिवर्तन होने से कुल पूर्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता, OQ उत्पादन किया जाता है। इस स्थिति में पूर्ण रोजगार की स्थिति पाई जाती है। परम्परागत ङ्केकुला पूर्ति वक्र AS सीधी रेखा OY के समानान्तर होती है । इसका मुख्य कारण से’ का बाजार नियम है तथा मज़दूरी कीमत लोचशीलता का पाया जाना है।
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(B) केन्जीयन कुल पूर्ति की धारणा (Keynesian concept of Aggregate Supply)-केन्ज़ की कुल पूर्ति वक्र कीमत स्तर के संदर्भ में पूर्ण लोचशील होती है अर्थात् उत्पादक स्थिर कीमत स्तर पर वस्तुओं की कोई मात्रा का उत्पादन करने के लिए तैयार होते हैं। जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति उत्पन्न नहीं हो जाती। जैसे कि रेखाचित्र में AS वक्र पहले OX रेखा के समानान्तर है जोकि पूर्ण लोचशील है। इसके दो कारण होते हैं।

  • मज़दूरी कीमत स्थिरता (Wage Price Rigidity)
  • मजदूरों की स्थिर सीमान्त उत्पादकता (Constant Marginal Product of Labour) यह विचार परम्परागत विचार के बिल्कुल विपरीत है। पूर्ण रोजगार से पहले मजदूरी स्थिर रहती है तथा मज़दूरी की सीमान्त उत्पादकता स्थिर रहती है, परन्तु जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिसको F बिन्दु द्वारा दिखाया है तो उसके पश्चात् AS वक्र पूर्ण बेलोचशील OY के समान्तर हो जाती है। जैसे कि परम्परागत कुल पूर्ति वक्र है। F बिन्दु के पश्चात् कीमत स्तर में परिवर्तन से उत्पादन OQ स्थिर रहता है। इसको पूर्ण रोज़गार उत्पादन का स्तर कहा जाता है।

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PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 7 बैंकिंग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 7 बैंकिंग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 बैंकिंग

PSEB 12th Class Economics बैंकिंग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंक से क्या अभिप्राय है ? अथवा बैंक को परिभाषित करो।
उत्तर-
बैंक वह संस्था है जो मुद्रा जमा करवाती है तथा मुद्रा उधार देती है। कैरनकरॉस अनुसार, “बैंक एक वित्तीय विचोला है जो कि ऋण तथा उधार का कार्य करता है।”
(“A Bank is a financial intermediary, a dealer in loans and debts.” -Carincross)

प्रश्न 2.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है।

प्रश्न 4.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • जमा राशि प्राप्त करना
  • उधार देना।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 7 बैंकिंग

प्रश्न 6.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना
  2. साख नियन्त्रण।

प्रश्न 7.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए दो सुधार बताओ।
उत्तर-

  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार-श्री एम० नरसिमहम ने 1992 तथा 1998 में आधुनिकीकरण तथा निजीकरण सम्बन्धी विचार दिए तथा कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विस्तार करना चाहिए तथा इनको कार्य में स्वतन्त्रता प्रदान करनी चाहिए।
  • निजी क्षेत्र में नए बैंक-बैंकों को निजी क्षेत्र में कार्य करने की आज्ञा देनी चाहिए। भारत में इस समय 10 बैंक निजी क्षेत्र में कार्य कर रहे हैं।

प्रश्न 8.
जो संस्था लोगों की मुद्रा जमा करती है और मुद्रा उधार देती है को …………… कहते हैं।
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) आहड़तियां
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) व्यापारिक बैंक।

प्रश्न 9.
जो संस्था देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढांचे का संचालन करती है को …………. कहते हैं।
(क) सरकार
(ख) वित्त मंत्रालय
(ग) केन्द्रीय बैंक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) केन्द्रीय बैंक।

प्रश्न 10.
देश का केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है और करंसी जारी करता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 11.
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना ताकि उधार दिया जा सके।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
करंसी को छापने का काम भारत सरकार करती है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 13.
किस बैंक को करंसी जारी करने का अधिकार है ?
अथवा
देश में सरकार का बैंक कौन सा होता है ?
(क) केन्द्रीय बैंक
(ख) व्यापारिक बैंक
(ग) सहकारी बैंक
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) केन्द्रीय बैंक।

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकिंग से अभिप्राय जमा स्वीकार करना होता है ताकि उधार दिया जा सके अथवा निवेश किया जा सके। जो राशि बैंकों में जमा करवाती है, उसको चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार वापिस लिया जा सकता है। इससे स्पष्ट है कि बैंकिंग के दो मुख्य कार्य पैसा जमा करवाना तथा उधार देना है।

प्रश्न 2.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापारिक बैंक वह संस्था है जोकि उधार देने के उद्देश्य से जनता की बचतों को एकत्रित करती है। यह राशि व्यापारियों को निवेश करने के लिए उधार दी जाती है। जमाकर्ता अपनी राशि बैंक में से चैक, ड्राफ्ट अथवा आदेश अनुसार जब मर्जी वापिस कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
व्यापारिक बैंकों के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंकों के दो महत्त्वपूर्ण कार्य निम्नलिखित हैं

  1. जमा राशि प्राप्त करना-व्यापारिक बैंक लोगों से जमा राशि प्राप्त करते हैं। लोगों की बचतों को एकत्रित करके इनकी सम्भाल करते हैं तथा कुछ ब्याज भी देते हैं।
  2. उधार देना-व्यापारिक बैंक अपने पास जनता की जमा राशि को व्यापारियों तथा उद्यमियों को निवेश करने के लिए उधार देते हैं।

प्रश्न 4.
केन्द्रीय बैंक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में चोटी की संस्था होती है, जोकि देश के मौद्रिक तथा वित्तीय ढाँचे का संचालन करती है। केन्द्रीय बैंक, बैंकों का बैंक तथा सरकार का बैंक होता है। यह संस्था देश में करेन्सी का संचालन करती है तथा अन्तिम ऋणदाता माना जाता है, जोकि बैंकों तथा सरकार को आवश्यकतानुसार उधार देता है।

प्रश्न 5.
केन्द्रीय बैंक के कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • करेन्सी जारी करना-केन्द्रीय बैंक प्रत्येक देश में करेन्सी, नोट तथा सिक्के जारी करता है। मुद्रा के मूल्य को स्थिर रखने का भी प्रयत्न करता है।
  • साख नियन्त्रण-व्यापारिक बैंक उधार निर्माण करते हैं। केन्द्रीय बैंक देश में व्यापारिक बैंकों के उधार देने पर नियन्त्रण रखता है।

प्रश्न 6.
ई-बैंकिंग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बैंकों के इन्टरनैट द्वारा संचालन को ई-बैंकिंग कहा जाता है।

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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
अथवा
व्यापारिक बैंकों के लाभ बताओ।
उत्तर-
व्यापारिक बैंक के चार मुख्य कार्य हैं

  1. राशि जमा करना तथा उधार देना-व्यापारिक बैंकों का प्राथमिक कार्य जनता की बचतों को जमा करना तथा उस राशि को आगे व्यापारियों को उधार देना होता है। जमा राशि का कुछ हिस्सा नकद रखकर शेष राशि बैंक उधार दे देता है।
  2. एजेन्सी कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए प्रतिनिधि तौर पर बहुत-से कार्य करते हैं, जैसे कि चैक अथवा ड्राफ्ट दूसरे बैंकों से एकत्रित करना, ग्राहकों की जायदाद का ट्रस्टी दूसरे स्थानों पर पैसे भेजना, किश्तें जमा करवाना इत्यादि एजेन्सी कार्य किए जाते हैं।
  3. विकासवादी कार्य-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, उधार देना, ग्रामीण क्षेत्र के विकास के लिए उधार देना तथा मौद्रिक नीति को लागू करने में सहयोग देता है।
  4. साधारण सेवाओं के कार्य-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों को लेकर सुविधाएं, ट्रैवल्ज़ चैक, यातायात की सुविधाएं इत्यादि सेवाओं के कार्य भी करते हैं। इस प्रकार व्यापारिक बैंक लाभदायक हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. करन्सी जारी करना-व्यापारिक बैंकों का महत्त्वपूर्ण कार्य देश में करन्सी जारी करना होता है। विश्व के सभी देशों में नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंकों द्वारा जारी किए जाते हैं।
  2. सरकार का बैंक केन्द्रीय बैंक सरकार का बैंक होता है। सरकार की प्राप्तियां केन्द्रीय बैंक में जमा करवाई जा सकती हैं। यह बैंक सरकार के सभी भुगतान भी करता है। जब सरकार को मुद्रा का संकट सहन करना पडता है तो अल्पकालीन ऋण की सुविधा केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रदान की जाती है।
  3. बैंकों का बैंक-केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों का बैंक भी होता है। व्यापारिक बैंकों को आवश्यक तौर पर जमा खाते की निश्चित प्रतिशत राशि केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियां प्राप्त करके रखनी पड़ती है। जब किसी समय व्यापारिक बैंक को मुश्किल का सामना करना पड़ता है तो केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों को अल्पकालीन उधार की सुविधा प्रदान करता है।
  4. उधार नियन्त्रण-केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार नियन्त्रण करना होता है। देश में उधार मुद्रा के प्रसार तथा संकुचन के लिए केन्द्रीय बैंक द्वारा नीति बनाई जाती है। इससे देश में आर्थिक स्थिरता का उद्देश्य पूरा किया जाता है।

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प्रश्न 3.
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंकों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में अन्तर-प्रो० शेयरज़ (Seyers) ने केन्द्रीय बैंक तथा व्यापारिक बैंक में मुख्य अन्तर इस प्रकार स्पष्ट किए हैं-

अन्तर का आधार केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक
1. मालकी केन्द्रीय बैंक की मालकी तथा संचालन सरकार के अधीन होती है। व्यापारिक बैंक सरकारी अथवा निजी मालकी वाले हो सकते हैं।
2. उद्देश्य केन्द्रीय बैंक का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है।
3. संख्या देश में केन्द्रीय बैंक एक होता है। व्यापारिक बैंकों की संख्या अधिक होती है।
4. तालमेल केन्द्रीय बैंक का जनता से सीधा तालमेल नहीं होता। व्यापारिक बैंकों का सीधा जनता से तालमेल  होता है।
5. करन्सी केन्द्रीय बैंक देश की करन्सी का निर्माता तथा संचालक होता है। व्यापारिक बैंक नकद करन्सी का निर्माण नहीं करते, बल्कि उधार निर्माण करते हैं।

प्रश्न 4.
भारत में हाल ही में किए गए कोई चार बैंकिंग सुधार बताओ।
उत्तर-
श्री एम० नरसिहम ने 1991 तथा 1998 में बैंकिंग सुधार करने के लिए निम्नलिखित सिफ़ारिशें की, जिनको सरकार ने तुरन्त लागू किया है।

  1. निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक-निजी क्षेत्र में व्यापारिक बैंक खोलने की सिफारिश की गई। यह बैंक विदेशों में बसे भारतीयों से पूँजी प्राप्त करके आरम्भ करने के लिए कहा गया। इस समय 10 व्यापारिक बैंक निजी क्षेत्र में चल रहे हैं।
  2. आधुनिकीकरण-व्यापारिक बैंकों में कम्प्यूटर द्वारा खातों का संचालन किया जाता है। देश में कुछ बैंक जिनका कम्प्यूटर द्वारा तालमेल है, अपने ग्राहकों को देश में उस बैंक की किसी शाखा में से पैसे निकलवाने अथवा जमा करवाने की सुविधा प्रदान करते हैं।
  3. व्यापारिक बैंकों की निगरानी-प्रतिभूतियों के घोटाले के पश्चात् केन्द्रीय बैंक ने व्यापारिक बैंकों की निगरानी के लिए एक अलग विभाग स्थापित किया है, जो व्यापारिक बैंकों के ग़लत लेन-देन पर रोक लगाता
  4. वास्तविक स्वायत्तता-व्यापारिक बैंकों के संचालन के लिए वास्तविक स्वायत्तता के लिए विचार कर रहा है। इससे व्यापारिक बैंक अन्य कार्य सुचारु ढंग से कर सकेंगे।

V. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक बैंकों से क्या अभिप्राय है ? व्या शरिक बैंकों के मुख्य कार्य बताओ।
(What is meant by Commercial Banks ? Discuss the main functions of Commercial Banks.)
उत्तर-
व्यापारिक बैंक का अर्थ (Meaning of Commercial Bank) व्यापारिक बैंक वह बैंक है जोकि लाभ कमाने के उद्देश्य के साथ जनता से जमा राशि प्राप्त करते हैं तथा उधार देते हैं। व्यापारिक बैंक एक व्यावसायिक संस्था है जोकि उधार मुद्रा का लेन-देन करती है। प्रो० रीड तथा गिल के अनुसार, ‘पारिक बैंक ऐसी वित्तीय संस्था होती है, जोकि मांग जमा स्वीकार करती है तथा व्यापारिक उधार देती है।” (“A Commercial ial Bank is a financial institution that accepts demand deposits and makes Commercial Leas.” . Keed and

व्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य (Main Functions of Commercial Banks) – स्यापारिक बैंकों के मुख्य कार्य निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. जमा राशि प्राप्त करना (Accepting Deposits)- व्यापारिक बैंक ने मोह जना शि प्राप्त करते हैं। यह लोगों की बचतों को एकत्रित करते हैं। इस उद्देश्य के लिए व्यापारिक कलीन प्रकार के खाने बोलते हैं ।

  • चालू जमा खाता (Current Deposit Account) – चाल जाने में जमा राशि को माँग जमा कहा जाता है। इस खाते में से राशि किसी भी समय वैक हार मालवाई जा सकती है परे खाते पर कोई ब्याज नहीं दिया जाता, बल्कि चालू खाते के प्रबन्ध सम्बन्धी व्यय व्यापारियो साप्त किया जाता है। यह खाते व्यापारिक उद्देश्य के लिए खोले जाते हैं।
  • निश्चितकालीन खाता (Fixed Deposit Account)-इस खाते में निश्चित समय के लिए गशि जमा करवाई जाती है। यह खाता कुछ दिनों का अथवा कुछ वर्षों का हो सकता है। इन खातों में से निश्चित समय के पश्चात् राशि निकलवाई जा सकती है। इस खाते में जमा राशि पर ब्याज की दर साधारण तौर पर अधिक होती है।
  • बचत जमा खाता (Saving Deposit Account)-यह खाते बचतों को एकत्रित करने के लिए खोले जाते हैं। इन खातों में चालू जमा खाते तथा निश्चितकालीन खाते की विशेषताएं होती हैं। इन खातों में से जब मर्जी हो राशि निकलवाई जा सकती है तथा इन खातों पर ब्याज भी दिया जाता है, परन्तु ब्याज की दर निश्चितकालीन खाते से कम होती है।

2. उधार देना (Giving Loans)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा हो जाती है, उसको बेकार नहीं रखते, बल्कि इसका कुछ भाग नकदी के रूप में रखकर शेष राशि उधार दे देते हैं। बैंकों द्वारा अग्रलिखित प्रकार के ऋण दिए जाते हैं-

  • नकद उधार (Cash Credit)-नकद रूप में उधार देने वाले उधार लेने वाले ग्राहक की उधार सीमा निश्चित की जाती है। उधार सीमा निश्चित करते समय उधार लेने वाले के भण्डार, सम्पत्ति इत्यादि गिरवी रखकर उधार दिया जाता है। इसमें से जितनी राशि उधार ली जाती है, उस राशि का ब्याज प्राप्त किया जाता है।
  • माँग उधार (Demand Credit)-माँग उधार वह उधार होता है जो कि माँगना तथा वापिस करना आवश्यक होता है। उधार की सभी राशि, उधार लेने वाले के खाते में जमा की जाती है। इसलिए सभी राशि पर ही ब्याज प्राप्त किया जाता है। यह उधार प्रतिभूतियों के दलालों अथवा उन लोगों द्वारा लिया जाता है, जिनकी दिन प्रतिदिन आवश्यकताओं में परिवर्तन होता रहता है।
  • अल्पकाल ऋण (Short Term Loans) अल्पकालीन ऋण साधारण तौर पर निजी ऋण के रूप में होते हैं। यह ऋण कार्यशील पूँजी के लिए दिए जाते हैं। यह ऋण जमानत रखकर दिए जाते हैं। ऐसे ऋण उधार लेने वाले के खाते में जमा किए जाते हैं तथा सारी राशि पर ब्याज़ लगता है। यह ऋण किश्तों में

अथवा एक बार ही वापिस किया जा सकता है।

अन्य कार्य अथवा सुविधाएं (Other Functions or Facilities)-ऊपर दिए दो प्राथमिक कार्यों (Primary Functions) के बिना व्यापारिक बैंकों द्वारा ग्राहकों को कुछ अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती हैं। व्यापारिक बैंकों के यह अन्य कार्य इस प्रकार हैं –

3. ओवर ड्राफ्ट (Over Draft)-बैंकों में चालू खाता रखने वाले ग्राहक बैंक से किए समझौते अनुसार जमा राशि से अधिक राशि निकलवाने की आज्ञा भी लेते हैं। इसको ओवर ड्राफ्ट कहा जाता है, जैसे कि एक व्यापारी के बैंक में ₹ 10 लाख जमा हैं, वह व्यापारी ₹ 15 लाख की राशि निकाल लेता है तो ₹5 लाख को ओवर ड्राफ्ट कहा जाएगा।

4. विनिमय बिलों की कटौती (Discounting Bills of Exchange)-विनिमय बिल एक लिखित होता है, जोकि वस्तुएं प्राप्त करने वाला वस्तुओं के मालिक को लिखकर देता है कि उन वस्तुओं की राशि, कुछ समय पश्चात् दे देगा। उदाहरणस्वरूप X मनुष्य ने Y मनुष्य से वस्तुएं खरीदी परन्तु उसका तुरन्त भुगतान नहीं कर सकता।

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वह मनुष्य Y मनुष्य को विनिमय बिल दे देता है जिसमें वापसी की राशि तथा समय लिखा होता है। यदि Y मनुष्य को पैसे की आवश्यकता पड़ जाती है तो यह मनुष्य बैंक के पास कटौती के लिए विनिमय बिल पेश करता है। बैंक कुछ कमीशन काटकर शेष की राशि Y मनुष्य को दे देता है। जब विनिमय बिल का समय पूरा हो जाता है तो बैंक X मनुष्य से राशि प्राप्त कर लेता है। विनिमय बिलों को हुंडी भी कहा जाता है।

5. बैंक के एजेन्ट के रूप में कार्य (Agency Functions of the Bank)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए कई तरह से एजेन्ट के रूप में कार्य करता है।

  • मुद्रा का हस्तांतरण (Transfer of Funds)-व्यापारिक बैंक मुद्रा को एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने का कार्य भी करते हैं।
  • विभिन्न मदों का एकत्रीकरण तथा भुगतान (Collection and Payment of various Items) बैंक ग्राहकों के लिए फण्ड एकत्रित करते हैं जोकि चैक, ड्राफ्ट, हुंडी इत्यादि के रूप में होते हैं तथा किश्तों का भुगतान भी किया जाता है।
  • भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद-बेच (Purchase and sale of shares and securities) बैंक भागीदारियों तथा प्रतिभूतियों की खरीद बेच का कार्य भी करते हैं तथा इनको सम्भाल कर रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंक विदेशी मुद्रा की खरीद बेच भी करते हैं। इससे ग्राहकों को सुविधा मिलती है।
  • ट्रस्टी तथा प्रबन्धक (Trustee and Executor) ग्राहकों के निवेदन पर बैंक उनकी जायदाद के ट्रस्टी तथा प्रबन्धक का कार्य भी करते हैं।
  • सन्दर्भ पत्र (Letter of Reference)-व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों की आर्थिक स्थिति की सूचना दूसरे व्यापारियों को देते हैं।

6. साधारण उपयोगिता की सेवाएं (General Utility Services)-व्यापारिक बैंक कुछ साधारण उपयोगिताओं की सेवाएं भी प्रदान करते हैं।

  • लॉकर की सुविधाएं (Locker Facilities)-बैंक द्वारा लॉकर की सुविधा दी जाती है, जिसमें ग्राहक कीमती सामान रखते हैं।
  • विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच (Purchase and Sale of Foreign Exchange)-बैंकों द्वारा विदेशी व्यापार के विकास के लिए विदेशी मुद्रा की खरीद-बेच भी की जाती है।
  • यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक (Traveller’s cheques and Gift cheques)-बैंकों द्वारा यात्री चैक तथा गिफ्ट चैक की सुविधा प्रदान की जाती है।
  • वस्तुओं के यातायात की सहायता (Help in Transport of Goods) वस्तुएं भेजने के लिए व्यापारी, ग्राहकों को माल भेजकर बिलटी बैंक को भेज देते हैं। ग्राहक पैसे देकर बिलटी ले लेते हैं तथा माल प्राप्त करते हैं।
  • नए शेयरों के अनबिकाऊ भाग को खरीदना (Under writing)-नए अनबिकाऊ शेयरों को खरीदने का बैंक विश्वास देते हैं।
  • आय कर की वसूली (Income Tax Receipt)-ग्राहकों से आय कर प्राप्त करके सरकारी खज़ाने में जमा करवाते हैं।

7. उधार निर्माण (Credit Creation)-व्यापारिक बैंक जमा राशि की सहायता से कई गुणा अधिक उधार निर्माण करते हैं। यदि बैंक में ₹ 100 करोड़ की राशि जमा है तथा केन्द्रीय बैंक ने नकद रिज़र्व अनुपात (CRR) 10% निश्चित की है तो उधार गुणक = \(\frac{1}{\mathrm{CRR}}=\frac{1}{10 / 100}=\frac{1 \times 100}{10}\) = 10 होगा अर्थात् ₹ 100 करोड़ से बैंक 10 गुणा अर्थात् ₹ 1000 करोड़ का उधार निर्माण कर सकते हैं।

8. आर्थिक विकास के कार्य (Role of Banks in Economic Development)-व्यापारिक बैंक पूंजी निर्माण, निवेश तथा रोजगार में वृद्धि, ग्रामीण विकास तथा मौद्रिक नीति का संचालन करके आर्थिक विकास में सहायता करते हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय बैंक को परिभाषित करो। केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य बताओ।
(Define a Central Bank. Explain main functions of a Central Bank.)
उत्तर-
केन्द्रीय बैंक का अर्थ (Meaning of Central Bank)-केन्द्रीय बैंक देश की सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है, जोकि मौद्रिक प्रणाली का संचालन करता है। यह बैंकिंग प्रणाली को नियन्त्रण में रखकर आर्थिक विकास के लिए उपाय करता है। प्रो० डीकाक के शब्दों में, “केन्द्रीय बैंक ऐसा बैंक है, जो कि देश में मौद्रिक तथा बैंकिंग ढाँचे की चोटी कहा जा सकता है।” (“A Central Bank is the Bank which constitutes the apex of the monetary and banking structure.”-Dekock) प्रो० सैम्यूलसन अनुसार प्रत्येक केन्द्रीय बैंक का एक प्रमुख कार्य है। यह अर्थव्यवस्था, मुद्रा की पूर्ति तथा साख मुद्रा पर नियन्त्रण का कार्य करता है। यह अन्तिम ऋणदाता होता है।

केन्द्रीय बैंक के कार्य (Functions of the Central Bank) केन्द्रीय बैंक के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –
1. करन्सी जारी करना (Issuing of Currency) केन्द्रीय बैंक को करन्सी जारी करने का अधिकार होता है, जो नोट तथा सिक्के केन्द्रीय बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं। विश्व के सभी देशों में करन्सी छापने का एकाधिकार केन्द्रीय बैंक के पास होता है। भारत में एक रुपये के नोट वित्त मन्त्रालय द्वारा जारी किए जाते हैं, जबकि शेष सभी नोट तथा सिक्के देश का केन्द्रीय बैंक (रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया) जारी करता है।

2. सरकार का बैंक (Banker to the Government)-साधारण तौर पर केन्द्रीय बैंक, केन्द्र तथा राज्य सरकारों को व्यापारिक बैंकों वाली सुविधाएं प्रदान करता है। केन्द्र तथा राज्य सरकारों की मुद्रा लेने देने का कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। आवश्यकता पड़ने पर सरकार को अल्पकालीन ऋण की सुविधा भी प्रदान करता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक सभी देशों की सरकारों के बैंकर, एजेन्ट तथा सलाहकार के रूप में कार्य करते हैं।

3. बैंकों का बैंक (Banker’s Bank) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। सभी व्यापारिक बैंकों को कानूनी तौर पर जमा खाते में राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास रखना पड़ता है। इसका मुख्य कारण है कि केन्द्रीय बैंक को व्यापारिक बैंकों की आर्थिक स्थिति का ज्ञान रहता है। देश में उधार निर्माण तथा केन्द्रीय बैंक नियन्त्रण रख सकता है। संकट समय बैंक, केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूती तथा दृढ़ता प्रदान करने में सहायक होता है।

4. अन्तिम ऋणदाता (Lender of the Last Resort) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का भी बैंक होता है। व्यापारिक बैंक अपनी अधिक जमा राशि केन्द्रीय बैंक के पास जमा करवाते हैं तथा आवश्यकता पड़ने पर केन्द्रीय बैंक से उधार प्राप्त करते हैं। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली को मज़बूती प्रदान करता है तथा इसको अन्तिम ऋणदाता कहा जाता है। सदस्य बैंकों के गिरवी योग्य बिलों की कटौती करके व्यापारिक बैंकों को अस्थाई वित्तीय सहायता दी जाती है।

5. बैंकों का निरीक्षण (Supervision of Banks) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होने के कारण बैंकिंग प्रणाली का संचालन तथा निरीक्षण करता है। नए बैंकों को लाइसैंस देना, बैंकों की ब्रांचों में विस्तार करने की आज्ञा देना, व्यापारिक बैंकों में परिस्थापन (Liquidation) तथा दूसरे बैंक में एक बैंक का मिलन (Merger) इत्यादि कार्य केन्द्रीय बैंक द्वारा किए जाते हैं।

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6. देश के विदेशी मुद्रा कोष का रक्षक (Custodian of the Foreign exchange reserves of the country)-केन्द्रीय बैंक का महत्त्वपूर्ण कार्य देश के विदेशी मुद्रा कोष की रक्षा करना होता है। देश की मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में स्थिर रखने के लिए केन्द्रीय बैंक सोने तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार को
अधिक मात्रा में संचय करके रखता है। इससे भुगतान सन्तुलन को अनुकूल बनाने में सहायता मिलती है।

7. समयशोधन गृह का कार्य (Clearing House Functions)-बैंकों द्वारा दूसरे बैंकों के ग्राहकों के चैक प्राप्त होते हैं तथा दूसरे बैंकों के पास इस बैंक के ग्राहकों के चैक होते हैं। यदि बैंक एक-दूसरे से प्रत्येक चैक का लेन-देन करेंगे तो बहुत समय चाहिए। केन्द्रीय बैंक इस समस्या के हल के लिए समयशोधन गृह के रूप में कार्य करता है। केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रत्येक बैंक का खाता होता है। इसमें प्रत्येक बैंक के प्रतिनिधि प्रतिदिन चैक एक-दूसरे के खातों में जमा करवा देते हैं। इसी तरह नकदी की मांग बहुत कम हो जाती है।

8. साख मुद्रा पर नियन्त्रण (Control over Credit)-वर्तमान युग में केन्द्रीय बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य उधार मुद्रा पर नियन्त्रण होता है। देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर तथा विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उधार मुद्रा का विस्तार तथा संकुचन किया जाता है। इससे देश की कीमत स्तर, रोज़गार, मुद्रा-स्फीति, आय का समान विभाजन तथा स्थिरता इत्यादि उद्देश्यों की पूर्ति होती है। इस कारण नकद मुद्रा तथा साख मुद्रा का संचालन केन्द्रीय बैंक का विशेष कार्य होता है।

9. समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन (Collection and Publication of Data) केन्द्रीय बैंक द्वारा आंकड़े एकत्रित करना तथा प्रकाशन का कार्य भी किया जाता है। समय-समय पर केन्द्रीय बैंक देश की बैंकिंग प्रणाली, वित्तीय अवस्था, कीमतों की प्रवृत्ति, उधार निर्माण इत्यादि सम्बन्धी समंकों का संग्रहण तथा प्रकाशन करती है। इस द्वारा देश की आर्थिक स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।

10. अन्य कार्य (Other Functions)-इसके बिना केन्द्रीय बैंक अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक से तालमेल रखता है तथा अपने प्रतिनिधि भेजकर विदेशी पूंजी का प्रबन्ध करता है। देश में मुद्रा बाज़ार जिसमें अल्पकाल ऋण दिए जाते हैं, इसका संचालन करता है। कृषि विकास तथा औद्योगिक उन्नति के लिए साख सुविधाएं प्रदान करता है। पुरानी करन्सी वापिस लेकर नोट परिवर्तन का कार्य भी केन्द्रीय बैंक द्वारा किया जाता है। इस प्रकार केन्द्रीय बैंक के कार्यों को ध्यान में रखकर इसको चोटी की संस्था (Apex organisation) कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भारतीय बैंकिंग प्रणाली में हाल ही में किए गए सुधारों का वर्णन करो। (Explain the receni significant reforms in India Banking System.)
उत्तर-
भारतीय बैंकि प्रणाली में सुधार करने के लिए श्री एम० नरसिहमह ने 17 दिसम्बर, 1991 में अपनी रिपोर्ट पेश की। उस समय के भूतपूर्व वित्त मन्त्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने आर्थिक नियोजन द्वारा आधुनिकीकरण (Modernisation) तथा निजीकरण (Privatisation) के उद्देश्य को पूरा करने के लिए बैंकिंग प्रणाली में सुधारों पर जोर दिया।

इसके पश्चात् भारतीय बैंकिंग प्रणाली में जो सुधार किए गए हैं, उनका विवरण इस प्रकार है-
1. सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विकास (Development of Banking in Public Sector)-सार्वजनिक क्षेत्र में बैंकों का विस्तार किया गया। इस सम्बन्ध में 1969 में 14 बैंकों तथा 1980 में 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। इसी समय सार्वजनिक क्षेत्र में 27 बैंक कार्य कर रहे हैं।

2. निजी क्षेत्र में नए बैंक (New Private Sector Banks)-निजी क्षेत्र में बैंक स्थापित करने की आज्ञा दी गई है। इसी समय 10 निजी क्षेत्र में बैंक कार्य कर रहे हैं। इन बैंकों को विदेशों में बसे भारतीयों (N.R.I.) से पूँजी एकत्रित करने की आज्ञा दी गई है। विदेशी भारतीयों से कुल निवेश पूँजी का 40% भाग एकत्रित किया जा सकता है तथा संस्थागत विदेशी संस्थाओं से 20% हिस्सा निवेश में लगवाया जा सकता है।

3. संचालन की स्वतन्त्रता (Freedom of Operation)-शैड्यूल्ड व्यापारिक बैंकों को शाखाएं खोलने की स्वतन्त्रता दी गई है तथा जो शाखाएं ठीक तरह से कार्य नहीं कर रहीं, उनको बन्द करने की आज्ञा भी प्रदान की गई है। बैंकों द्वारा दिए जाने वाले उधार सम्बन्धी भी स्वतन्त्रता दी गई है ताकि बैंकों का संचालन ठीक ढंग से हो सके।

4. क्षेत्रीय बैंक (Local Area Banks)-भारत सरकार ने 1996-97 में क्षेत्रीय बैंकों की स्थापना करने की योजना को स्वीकृति दी। यह बैंक ग्रामीण क्षेत्र के लिए विशेष करके स्थापित किए गए हैं। इन बैंकों में ग्रामीण क्षेत्र में से बचतों को उत्साहित किया जाएगा तथा जमा राशि को ग्रामीण क्षेत्र में ही निवेश किया जाएगा।

5. पूंजी बाज़ार तक पहुँच (Access to Capital Market)-केन्द्रीय सरकार ने बैंकिंग कम्पनी एक्ट में संशोधन करके राष्ट्रीयकृत बैंकों को यह अधिकार दिया है कि पूंजी बाज़ार में जाकर वह पूंजी एकत्रित कर सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए बाज़ार में जनता को भागीदारियां बेची जा सकती हैं, परन्तु इस पूँजी में केन्द्र सरकार का हिस्सा 51% से कम नहीं होना चाहिए।

6. ब्याज दर सम्बन्धी नीति (Policy regarding Interest Rate)-ब्याज दर सम्बन्धी नीति में संशोधन किया गया। प्रथम ब्याज दरों की 20 स्लैबें थीं, जोकि 1994-95 में घटाकर 2 स्लैबें की गई हैं। ब्याज तथा पूँजी उधार देने पर कोई नियन्त्रण नहीं। ₹2 लाख से अधिक उधार पूंजी तथा ब्याज की दर कम रखने के लिए कहा गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक अथवा कम ब्याज की दर रख सकते हैं। इस उद्देश्य के लिए जोखिम को ध्यान में रखा जाता है।

7. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) केन्द्रीय बैंक के पास प्रतिभूतियों के रूप में व्यापारिक बैंकों को जो राशि रखनी पड़ती है, उसको नकद रिज़र्व अनुपात कहा जाता है। प्रथम नकद रिज़र्व अनुपात 10% होती थी। जनवरी 2009 में नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर 5% किया गया है। इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार दे सकते हैं।

8. वैधानिक तरल अनुपात (Statutory Liquidity Ratio) केन्द्रीय बैंक द्वारा वैधानिक तरल अनुपात निश्चित किया जाता, जोकि व्यापारिक बैंक को अपने पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। 1997 से पहले कानूनी तरल अनुपात 38.5% था, जोकि घटाकर 25% किया गया है। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक अधिक उधार मुद्रा दे सकते हैं तथा व्यापरिक बैंकों की आय बढ़ सकती है।

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9. विवेकपूर्ण प्रणाली (Prudential System)-रिज़र्व बैंक ने देश में विवेकपूर्ण प्रणाली द्वारा बैंक प्रणाली में सुधार करने का प्रयत्न किया है। प्रत्येक बैंक को दिए गए उधार का वर्गीकरण स्पष्ट करना होगा, जिसमें प्रत्येक बैंक अपनी किताबों में बुरे ऋण (Bad Debt) का विवरण देगा। 1992-93 तक दिए गए ऋण में से 30% बुरे ऋण माफ़ करने तथा 1993-94 में शेष के 70 प्रतिशत बुरे ऋण माफ़ करने के लिए ₹ 10,000 करोड़ की राशि प्रदान की गई।

10. व्यापारिक बैंकों की निगरानी (Supervision-or Commercial Banks)-भारत में 1992 में प्रतिभूतियों का घोटाला (Securities Scan) हुआ, जिसमें दिसम्बर, 1993 में रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया ने अलग निगरानी विभाग स्थापित किया है, जोकि व्यापारिक बैंकों पर निगरानी रखता है, ताकि बैंक जमा राशि का दुरुपयोग न कर सकें। सन् 1998 में वित्त मन्त्रालयों ने श्री एम० नरसिम्हा के नेतृत्व अधीन एक कमेटी की स्थापना की ताकि बैंकिंग प्रणाली में अन्य सुधार किया जा सके।
इस कमेटी ने निम्नलिखित सिफ़ारिशें की |

11. मज़बूत बैंकिंग प्रणाली (Strong Banking System)-भारत में बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए बैंकों की विलीनता (Merger) का सुझाव दिया ताकि देश में बैंक अधिक कुशलता से कार्य कर सकें। 200405 में वित्त मन्त्री पी. चिदम्बरम ने भी इस सुझाव से सहमति प्रकट की है। इससे बड़े पैमाने के लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।

12. स्थानीय बैंक (Local Banks)-नरसिम्हा कमेटी ने यह सुझाव दिया है कि स्थानीय छोटे बैंक स्थापित किए जाएं ताकि स्थानीय कृषि, छोटे पैमाने के उद्योगों तथा व्यापारियों की आवश्यकता को पूरा किया जा सके।

13. बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार (Review of Banking Laws)-बैंकिंग प्रणाली के बढ़ते योगदान को ध्यान में रखकर बैंक नियमों सम्बन्धी पुनर्विचार करने का सुझाव भी दिया गया है। इस सम्बन्धी RBI एक्ट, SBI एक्ट बैंक राष्ट्रीयकरण सम्बन्धी एक्ट में संशोधन करने की आवश्यकता है।

14. वास्तविक स्वायत्तता (Real Autonomy)-सरकार नियन्त्रण से बैंकों को स्वायत्तता प्राप्त नहीं होती। बैंक के संचालक बोर्ड को वास्तविक स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए।

15. ऋण वसूली (Recovery of Debt)-सरकार ने ऋण वसूली सम्बन्धी 6 विशेष वसूली ट्रिब्यूनल स्थापित किए हैं जोकि बैंगलौर, चेन्नई, कलकत्ता (कोलकाता), नई दिल्ली, जयपुर तथा अहमदाबाद में स्थित हैं। बुरे ऋण की माफ़ी के लिए यह ट्रिब्यूनल सिफ़ारिशें देते हैं।

प्रश्न 4.
आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा प्राप्त मुख्य सहूलियतों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly main facilities provided by Modern Banking/e-Banking.)
उत्तर-
इन्टरनैट ने समूह विश्व को एक गाँव अथवा शहर का रूप दे दिया है। इसकी सहायता से विश्व की बैंकिंग प्रणाली e-बैंकिंग का रूप धारण कर गई है। विकसित देशों की बैंकिंग प्रणाली का प्रभाव भारत की बैंकिंग प्रणाली पर भी नज़र आ रहा है। भारत की बैंक प्रणाली में इतना सुधार हुआ है कि इसका बहुपक्षीय प्रभाव पड़ा है।

आधुनिक बैंकिंग अथवा e-बैंकिंग द्वारा बहुत-सी सहूलियतें प्रदान की जाती हैं जिनका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है –
1. बैंकिंग सेवाओं का कम्प्यूटरीकरण (Computerization of Banking Services)-बैंकिंग प्रणाली का भारत में भी कम्प्यूटरीकरण हो गया है। इससे बैंकों में कार्य करने वाले कर्मचारियों की संख्या में बहुत कमी हो गई है। अब कम गिनती में कर्मचारी कम्प्यूटर की सहायता से सभी काम-काज आसानी से कर लेते हैं। कम्प्यूटरीकरण से सभी खाताधारकों का हिसाब-किताब, ब्याज की गणना शुद्ध और ठीक की जाती है जिसमें गलती की सम्भावना नहीं होती।

2. बैंकिंग आन लाइन (Banking On Line) कम्प्यूटर की सहायता से बैंकिंग आन लाइन की सुविधा प्रदान की जाती है। अब ग्राहक को बैंक में जा कर लेन-देन करने की ज़रूरत नहीं पड़ती बल्कि प्रत्येक बैंक की एक वैबसाइट होती है जिसको खाताधारक खोल कर अपने खाते की जानकारी घर बैठे ही प्राप्त कर सकता है। घर बैठे ही वह बहुत से भुगतान कर सकता है जैसे कि बिजली का बिल, पानी, सीवरेज, टेलीफोन का बिल, घर पर लिए गए ऋण की किश्त, कार की किश्त अथवा और किसी किस्म का भुगतान कर सकता है। इससे न केवल समय की बचत होती है बल्कि लोगों को भौतिक रूप में किसी दफ्तर अथवा बैंक में जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

3. ए.टी.एम. सुविधा (ATM Facility)-ए.टी.एम. (Automatic Teller Machine) की सुविधा ने लोगों के जीवन को और आसान बना दिया है। पहले लोगों को बैंक में निजी रूप में जाकर पैसे का लेन-देन करना पड़ता था। परन्तु ए.टी.एम. की सहायता से किसी भी समय खाताधारक अपने खाते की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकता है। खाताधारक के खाते में शेष कितने पैसे हैं, उनमें से वह कितने पैसे प्राप्त करना चाहता है अथवा खाते में पैसे डालना चाहता है यह सभी कार्य ए.टी.एम. की सहायता से संभव हो गये हैं। यह सुविधा लोगों में प्रिय हो रही है। अब कोई व्यक्ति अपने साथ स्थानीय अथवा दूसरे शहरों में यात्रा के समय नकद पैसे लेकर नहीं चलता बल्कि ज़रूरत के अनुसार किसी भी शहर में पैसे निकलवा सकता है। ए.टी.एम. को डैबिट कार्ड (Debit Card) भी कहते हैं।

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4. आर.टी.जी.एस. सुविधा (RTGS Facility)-आर.टी.जी.एस. (Real Time Gross Settlement) की सुविधा भी e-बैंकिंग द्वारा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति अथवा फर्म को भुगतान करना चाहता है तो ड्राफ्ट, चैक अथवा नकद पैसे भेजने की आवश्यकता नहीं है बल्कि जिस व्यक्ति को भुगतान करना चाहता है जो कि देश में किसी स्थान पर रहता है तो उससे उस व्यक्ति अथवा फर्म का खाता क्रमांक और बैंक का कोड नंबर पूछ कर उसमें आर.टी.जी.एस. द्वारा पैसों का भुगतान कर सकता है। इससे बहुत ही कम समय में उस व्यक्ति अथवा फर्म के खाते में पैसे पहुँच जाते हैं और इसमें खर्च भी बहुत कम आता है।

5. मोबाइल सूचना सुविधा (Mobile Information Facility)-आधुनिक e-बैंकिंग द्वारा खाताधारक को मोबाइल पर उसके खाते के लेन-देन की प्रत्येक सुविधा प्रदान की जाती है। इस सुविधा में जब भी कोई खाताधारक अपने खाते में पैसे जमा करवाता है अथवा कोई व्यक्ति उसके खाते में पैसे भेजता है अथवा उस खाते में से किसी व्यक्ति को भुगतान किया जाता है, इसकी सूचना खाताधारक को मोबाइल पर सन्देश के रूप में प्राप्त हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति धोखे से खाताधारक के खाते से पैसे निकलवा लेता है तो इसकी सूचना मोबाइल पर प्राप्त होते ही वह व्यक्ति अपने बैंक को सूचित कर सकता है।

6. डैबिट कार्ड द्वारा भुगतान (Payment with Debit Card) अब किसी काम के लिए व्यक्तियों को नकद पैसे ले जाने की ज़रूरत नहीं बल्कि किसी भी वस्तु की खरीद का भुगतान डैबिट कार्ड द्वारा किया जा सकता है। डैबिट कार्ड द्वारा किसी भी वस्तु का भुगतान इलैक्ट्रिक मशीन द्वारा फौरन दुकानदार के खाते में पहुँच जाता है। इस द्वारा बाज़ार में वस्तुओं और सेवाओं की माँग में वृद्धि हुई है।

7. क्रैडिट कार्ड सुविधा (Credit Card Facility)-आधुनिक बैंकों अथवा e-बैंकिंग द्वारा क्रेडिट कार्ड की सुविधा भी प्रदान की जाती है। बैंक अपने खाताधारकों को उधार सुविधा भी प्रदान करते हैं। इन कार्डों पर ऋण पर वस्तुएं खरीदने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। इनमें साधारण क्रैडिट कार्ड, सिलवर क्रैडिट कार्ड, गोल्ड क्रैडिट कार्ड पर उधार लेने की भिन्न-भिन्न शक्ति होती है। उधार की गई खरीददारी का भुगतान बैंक को बिना ब्याज 40 दिन के भीतर करना

अनिवार्य होता है अथवा उसके पश्चात् बैंक उस व्यक्ति पर उच्च ब्याज की दर प्राप्त करता है। क्रैडिट कार्ड पर की गई खरीददारी पर बैंक 2% कमीशन लेता है। क्रैडिट कार्ड के धारक की ऋण इतिहास (Credit History) देख कर ही क्रेडिट कार्ड की सीमा में वृद्धि अथवा कमी की जाती है। विश्व में क्रेडिट कार्ड का प्रयोग बहुत अधिक किया जाता है। इससे व्यापार में बहत वृद्धि होती है।

8. ऋण सुविधाएं (Loan Facilities)-आधुनिक बैंकों द्वारा लोगों को देने वाला ऋण बहुत से कार्यों के लिए दिया जाता है। लोगों को कार, घर अथवा और किसी काम में निवेश करना हो तो बैंक अनेक कार्यों के लिए ऋण देता है। इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है। अब लोग आसानी से ऋण लेकर कार, घर अथवा व्यापार में निवेश कर सकते हैं। विद्यार्थियों के लिए भी बैंकों द्वारा शिक्षा के लिए ऋण दिया जाता है। भविष्य में आधुनिक बैंकिंग/e-बैंकिंग द्वारा लोगों को अधिक सुविधाएं प्रदान की जा रही हैं। इससे लोगों की व्यापार करने की शक्ति में वृद्धि हो रही है।

प्रश्न 5.
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया के मुख्य कार्य बताएं। (Discuss the main functions of Reserve Bank of India.)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया भारत का केंद्रीय बैंक है। यह देश में मुद्रा का संचालन करता है तथा व्यापारिक बैकों पर नियंत्रण रखता है। इसकी स्थापना 1 अप्रैल 1935 में हुई थी। रिज़र्व बैंक देश के आर्थिक विकास से संबंधित निर्णय लेता है। इसके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-
1. मौद्रिक नीति का निर्माण (Formulation of Monetary Policy)-आर०बी०आई० देश में मौद्रिक नीति का निर्माण करता है। इस नीति के संचालन तथा बदलाव सम्बन्धी सभी निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा लिए जाते हैं।

2. करंसी का प्रकाशन (Issue of Currency)-रिज़र्व बैंक का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करंसी को छाप कर देश में प्रचलित करना होता है। जब करंसी चलने योग्य नहीं रहती तो उसके स्थान पर नई करंसी को छाप कर देश में चलाया जाता है।

3. बैंकों का बैंक (Bankers Bank)-भारत में रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों का बैंक होता है। यह व्यापारिक बैंकों की अधिक जमा रकम को अपने पास जमा करता है और जरूरत पड़ने पर बैंकों को उधार भी देता है। व्यापारिक बैंकों का मुख्य कार्य उधार निर्माण (Credit Creation) द्वारा लाभ प्राप्त करना होता है। इसलिए केंद्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों के उधार निर्माण के लिए नकद राखवीं अनुपात (Cash Reserve Ratio), रैपो रेट (Rapo-Rate) और खुले बाजार की नीति (Open Market Operation) द्वारा उधार पर नियंत्रण रखता है।

4. वित्त प्रणाली की देखभाल (Supervision of Financial System) देश में वित्त प्रणाली की निगरानी करना भी रिज़र्व बैंक का ही कार्य है। इस प्रकार देश में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में वृद्धि का यत्न किया जाता है।

5. सरकार का बैंक (Bank of the Government)-सरकार के वित्तीय निर्णय केंद्रीय बैंक द्वारा ही लिए जाते हैं। सरकार की आय को एकत्रित करना, व्यय करना, उधार देना आदि मुख्य कार्य रिज़र्व बैंक ही करता है।

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6. विदेशी पूंजी का संचालक (Controller of Foreign Exchange)-विदेशी पूँजी का संचालन भी – रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाता है। विदेशों से जो मुद्रा प्राप्त होती है उसको रिज़र्व बैंक में ही रखा जाता है। विदेशों को विदेशी मुद्रा के रूप में भुगतान भी रिज़र्व बैंक ही करता है।

प्रश्न 6.
रिज़र्व बैंक उधार नियंत्रण कैसे करता है ? (How Does Reserve Bank Control Credit ?)
उत्तर-
रिज़र्व बैंक देश में उधार नियंत्रण करता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतू निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग किया जाता है।
1. रैपो रेट (Rapo-Rate)-रैपो रेट वह ब्याज की दर है जो कि व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त की जाती है। जब रैपों रेट कम किया जाता है तो व्यापारिक बैंक भी उधार देने के लिए ब्याज की दर कम कर देते हैं। इससे उधार का प्रसार होता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार निर्माण कम हो तो रैपो रेट बढ़ा दिया जाता है। इससे व्यापारिक बैंक भी ब्याज की दर बढ़ा देते हैं और निवेशक कम उधार लेना शुरू कर देते हैं। 27 मार्च, 2020 को रेपो रेट 4.4% था। परन्तु करोना बिमारी फैलने के बाद 17 अप्रैल को रैपो रेट और घटा कर 4% की गई ताकि निवेशक अधिक निवेश करें। यह कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति में रैपो रेट 4% ही रखी गई है।

2. रिवर्स रेपो रेट (Reverse Rapo Rate)-जब व्यापारिक बैंक अपना अधिक धन रिज़र्व बैंक के पास रखते हो तो जो ब्याज की दर रिज़र्व बैंक जमा रकम पर देता है उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। व्यापारिक बैंक अधिक उधार बाज़ार में देने के स्थान पर रिज़र्व बैंक को देते हैं क्योंकि वहां धन सुरक्षित होता है। यह भी कम अवधि के लिए होता है। 6 फरवरी, 2021 को मौद्रिक नीति की घोषणा में रिवर्स रेपो रेट 3.35% रखी गई है।

3. सट्रैचुटरी लिकुअड़ रेशो (Stratutory Liquid Ratio)-व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ भाग तरल रूप सोना, चांदी, नकद और प्रतिभूतियों के रूप में भी रखना होता है, जिसको S.L.R. कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक SLR में वृद्धि कर देता है तो व्यापारिक बैंकों की उधार शक्ति कम हो जाती है।

4. बैंक दर (Bank Rate)-इसको बट्टा दर (Discount Rate) भी कहा जाता है। यदि व्यापारिक बैंकों को दीर्घकाल के लिए धन की आवश्यकता होती है तो अपनी पहले दर्जे की प्रतिभूतियों को रिज़र्व बैंक के पास गिर्वी रखकर उधार ले सकते हैं। जो ब्याज की दर दीर्घकाल उधार पर ली जाती है उस को बैंक दर कहा जाता है। यदि रिज़र्व बैंक यह चाहता है कि उधार कम प्रचलन हो तो बैंक दर बढ़ा दी जाती है। यदि बैंक दर कम की जाती है तो इससे उधार निर्माण अधिक होता है।

5. नकद राखवी अनुपात (Cash Reserve Ratio) व्यापारिक बैंकों के पास जो बचत जमा होती है उस का एक निश्चित भाग रिज़र्व बैंक के पास नकदी के रूप में रखना ज़रूरी होता है। जिसको नकद राखवीं अनुपात (C.R.R.) कहते हैं। यदि रिज़र्व बैंक उधार निर्माण अधिक करना चाहता है तो नकद राखवीं अनुपात कम कर दी जाती है इससे बैकों के पास अधिक नकदी पहुंच जाती है और अधिक उधार निर्माण होता है।

6. तरल अनुकूलता सहूलत (Liquid Adjustment Facility)-यह विधि 2000 से प्रचलित की गई है। इस विधि के अनुसार रिज़र्व बैंक 5 करोड़ या 5 करोड़ की दर से 10, 15, 20, 25 करोड़ रुपए उधार दे सकता है। यदि बैंक को अचानक नकदी की ज़रूरत होती है। जोकि 15 दिन की सीमित होती है तो तरल अनुकूलता की विधि का प्रयोग किया जाता है।

7. खुले बाज़ार की नीति (Open Market Operation)-जब देश में उधार को नियंत्रण करना होता है तो रिज़र्व बैंक खुले बाजार की नीति का प्रयोग करता है। इस नीति के अनुसार जब बाज़ार में धन अधिक हो जाता है तो रिज़र्व बैंक अपनी प्रतिभूतियाँ खुले बाजार में बेचना शुरू कर देता है। जिस पर अच्छा ब्याज दिया जाता है। लोग रिज़र्व बैंक की प्रतिभूतियां (Securities) खरीद लेते हैं और बाज़ार में धन कम होता है। यदि उधार अधिक करना हो तो प्रतिभूतियां खरीदनी शुरू कर देता है।

8. सीमान्त ज़रूरतें (Marginal Requirements)-इस नीति के अनुसार रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को आदेश देता है कि निश्चित वस्तुओं को गिर्वी रखकर उधार नहीं दिया जा सकता। जैसा कि गेहूँ, चावल आदि वस्तुओं को गिर्वी रख कर उधार नहीं दिया जा सकता। इस को उधार की सीमान्त शर्ते कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 7 बैंकिंग

9. नैतिक प्रेरणा (Moral Suration)-रिज़र्व बैंक द्वारा समय-समय पर व्यापारिक बैंकों को निर्देश दिए जाते हैं और प्रेरित किया जाता है कि देश की स्थिति को देखते हुए अधिक उधार दें अथवा न दें। जब देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो रिज़र्व बैंक व्यापारिक बैंकों को कम उधार देने की प्रेरणा देता है। यदि कोई बैंक रिज़र्व बैंक के आदेश को नहीं मानता तो प्रत्यक्ष क्रिया (Direct Action) की जाती है। जैसा कि 2019 में महाराष्ट्र में पंजाब महाराष्ट्र कोप्रेटिव बैंक पर प्रतिबन्ध लगाया गया और 2020 में यैस बैंक (Yes Bank) पर प्रतिबन्ध लगाया गया था।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

PSEB 12th Class Economics मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली किसे कहते हैं ?
अथवा
वस्तु विनिमय अर्थव्यवस्था की परिभाषा दीजिए। उत्तर-वस्तु विनिमय प्रणाली वह प्रणाली है जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है।

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 4.
विनिमय के माध्यम के रूप में मुद्रा के कार्य को स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का प्राथमिक कार्य विनिमय के माध्यम के रूप में प्रयोग है। एक किसान गेहूँ बेचकर मुद्रा प्राप्त कर लेता है तथा बाज़ार में मुद्रा से कपड़ा, बूट, चीनी, साबुन इत्यादि वस्तुएं खरीद सकता है। इस प्रकार दो वस्तुओं के सुमेल की समस्या हल हो गई है।

प्रश्न 5.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
मुद्रा के कार्य को ‘पछेते भुगतान के म्यार’ के रूप में स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा के रूप में उधार दिया जाता है तो मुद्रा के रूप में इसकी वापसी हो जाती है। इस उद्देश्य के लिए ब्याज दिया जाता है ताकि उधार देने वाले को कोई हानि न हो।

प्रश्न 7.
भारत में वैधानिक मुद्रा का क्या नाम है ?
उत्तर-
भारत में वैधानिक मुद्रा का नाम रुपया है।

प्रश्न 8.
मुद्रा M, के घटक बताइए।
उत्तर-
M1 = C + D + 0
M1 = करन्सी (C) + मांग जमा (O) + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि (O)

प्रश्न 9.
मुद्रा M2 के घटक बताएँ।
उत्तर-
M2 = M1 + Deposits with Post office Savings (Except NSC)
M2 = C + D + 0 + D P.O.S. = करन्सी + माँग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + डाकघरों में बचत जमा (NSC के बगैर)

प्रश्न 10.
मुद्रा M3 के घटक बताएं।
उत्तर-
M3 = M1 + T.D of Banks
= C + D + O + TDB
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि।

प्रश्न 11.
मुद्रा M4 से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
M4 = D.P.O.S
M4 = C + D + O + TDB. + DPOS
= करन्सी + मांग जमा + रिज़र्व बैंक के पास जमा राशि + बैंकों के पास जमा समय अवधी राशि + डाकघरों में बचत जमा |

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प्रश्न 12.
भारत में रिज़र्व बैंक द्वारा मुद्रा आपूर्ति के कौन-कौन से समग्र तैयार किये जाते हैं ?
उत्तर-
M1, M2 , M3, और M4, तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 13.
मुद्रा आपूर्ति का अर्थ बताएं।
उत्तर-
समस्त मुद्रा की मात्रा को मुद्रा की आपूर्ति कहते हैं जिसमें सिक्के, नोट तथा बैंक मुद्रा शामिल होती है।

प्रश्न 14.
उच्च शक्ति मुद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उच्च शक्ति मुद्रा लोगों के पास नकदी तथा समय अवधि जमा राशि होती है।

प्रश्न 15.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा प्रतिभूतियां तथा हिस्सेदारियां होती हैं, जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 16.
वह समाप्तियाँ जिन को सुविधा से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है , को ……….. कहते हैं।
(क) मुद्रा समाप्तियाँ
(ख) अचल समप्तियाँ
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) निकट मुद्रा।
उत्तर-
(घ) निकट मुद्रा।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से कौन-सा मुद्रा का आकस्मिक कार्य है ?
(क) विनिमय का माध्यम
(ख) मूल्य का भण्डार
(ग) साख निर्माण का आधार
(घ) मूल्य का हस्तांतरण।
उत्तर-
(ग) साख निर्माण का आधार।

प्रश्न 18.
एक अर्थव्यवस्था जिसमें वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाता है, को ………….. कहते हैं।
(क) विनिमय प्रणाली
(ख) वस्तुओं के लिए वस्तुओं की प्रणाली
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) वस्तु विनिमय प्रणाली।

प्रश्न 19.
उधार मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार मुद्रा वह मुद्रा है जो कि वर्तमान में प्राप्त करके भविष्यकाल में ब्याज समेत अदा करने का वचन होता है।

प्रश्न 20.
निकट मुद्रा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निकट मुद्रा उन वस्तुओं को कहा जाता है जिनको सरलता से मुद्रा के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।

प्रश्न 21.
निम्नलिखित में से मुद्रा के गौण कार्य कौन-कौन से हैं ?
(क) भंडार का साधन
(ख) कर्जे का साधन
(ग) एक स्थान से दूसरे स्थान हस्तांतरण का साधन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 22.
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ सभी मुद्रा की मात्रा से होता है जिसमें सिक्के, नोट और बैंक मुद्रा शामिल होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 23.
M1 = ………
उत्तर-
M1 = C + D + O

प्रश्न 24.
M2 = …..
उत्तर-
M2 = C + D + O + DPOS

प्रश्न 25.
M3 = ……….
उत्तर-
M3 = C + D + O + TDB

प्रश्न 26.
M4 = …….
उत्तर-
M4 = C + D + O+ TDB + DPOS.

प्रश्न 27.
उस वस्तु का नाम बताएं जिसको विनिमय के रूप में स्वीकार किया जाता है।
(a) मुद्रा
(b) पैट्रोल
(c) धातु
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) मुद्रा।

प्रश्न 28.
आपस में आवश्यकताओं की सन्तुष्टि को ……….. कहते हैं।
(a) वस्तु विनिमय प्रणाली
(b) विनिमय का साधन
(c) मांग का दोहरा संयोग
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) मांग का दोहरा संयोग।

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प्रश्न 29.
उच्च बलयुक्त मुंद्रा (High Powered Money) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लोगों के पास नगद मुद्रा तथा बैकों के पास नकद कोष को उच्च बलयुक्त मुद्रा करते हैं।

प्रश्न 30.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश में पुरानी करन्सी के स्थान पर नई करन्सी के लागू करने को विमुद्रीकरण कहते हैं।

प्रश्न 31.
अवमूल्यन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
देश की करन्सी का मूल्य विदेशी मुद्राओं की तुलना में कम करने को अवमूल्यन कहते हैं।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है अथवा मुद्रा को कैसे परिभाषित किया जा सकता है?
उत्तर-
मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है। इसके साथ ही यह वस्तुओं के मूल्य तथा मूल्य के भण्डार का कार्य भी करती है। मुद्रा को सरकार की स्वीकृति होती है जिसको कोई मनुष्य स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति का अर्थ मुद्रा के कुल भण्डार से होता है, जोकि किसी देश के लोगों के पास निश्चित होती है। मुद्रा की पूर्ति के सम्बन्ध में दो बातें महत्त्वपूर्ण होती हैं-

  • मुद्रा की पूर्ति एक स्टॉक धारणा है जिसका सम्बन्ध निश्चित समय से है |
  • मुद्रा की पूर्ति का अर्थ लोगों के पास मुद्रा के भण्डार से होता है।

प्रश्न 3.
मुद्रा, “मूल्य के माप” का कार्य करती है। स्पष्ट करो।
उत्तर-
मुद्रा का एक महत्त्वपूर्ण कार्य वस्तुओं के मूल्य का माप करना होता है। मुद्रा द्वारा सभी वस्तुओं के मूल्य का माप किया जा सकता है। देश में जो वस्तुएं उत्पादन की जाती हैं, उनके नाप-तोल विभिन्न होते हैं। गेहूँ क्विटलों में, कपड़ा मीटरों में, दूध लीटरों में मापते हैं। परन्तु इन वस्तुओं का मूल्य मुद्रा में मापते हैं तो भिन्न-भिन्न नाप-तोल की समस्या हल हो जाती है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष क्या हैं ?
उत्तर-
वस्तु विनिमय प्रणाली के मुख्य दोष निम्नलिखित हैं-
1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या-आवश्यकताओं के दोहरे संयोग से अभिप्राय है कि एक मनुष्य की वस्तु दूसरे मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे तथा दूसरे मनुष्य की वस्तु पहले मनुष्य की आवश्यकता को पूरा करे। परन्तु इस तरह की अवस्था मुश्किल से उत्पन्न होती थी।

2. मूल्य की राभान इकाई का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का माप करना मुश्किल होता था। एक वस्तु के बदले में दूसरी वस्तु की कितनी मात्रा दी जाए, इस सम्बन्धी कोई निश्चित पैमाना नहीं था। यदि बाज़ार में 1000 वस्तुएं तथा सेवाएं हैं तो प्रत्येक वस्तु का मूल्य 999 वस्तुओं की तुलना में बताना कठिन होता था।

3. भविष्य में किए जाने वाले भुगतान की प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में भविष्य के भुगतान करने के लिए उचित प्रणाली नहीं थी यदि एक मनुष्य एक गाय तथा एक भैंस उधार दे देता था तो उसकी वापसी उसी रूप में मुश्किल हुआ करती थी, क्योंकि वस्तु गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता था।

4. मूल्य भण्डार प्रणाली का अभाव-वस्तु विनिमय प्रणाली में कोई ऐसी विधि नहीं थी, जिस द्वारा वस्तुओं का भण्डार किया जा सके। यदि वस्तुओं को गेहूँ, चावल अथवा पशुओं इत्यादि के रूप में भण्डार किया जाता था तो इनका मूल्य बहुत जल्दी कम हो जाता था, क्योंकि वस्तुएं खराब हो जाती थीं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 2.
वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को दूर करने के लिए मुद्रा का प्रयोग कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
मुद्रा के प्रयोग से वस्तु विनिमय प्रणाली के दोषों को निम्नलिखित अनुसार दूर किया जा सकता है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या का हल-मुद्रा के प्रयोग से आवश्यकताओं के दोहरे संयोग की समस्या हल हो जाती है। उत्पादक अपनी वस्तु बाज़ार में बेचकर मुद्रा प्राप्त करते हैं। इस मुद्रा से दूसरी अनिवार्य वस्तुओं की खरीद की जा सकती है।
  2. मूल्य निर्धारण की समस्या का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में वस्तुओं का मूल्य निर्धारण करने की समस्या का हल मुद्रा द्वारा हो गया है। मुद्रा वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का मापदण्ड है।
  3. धन को संग्रहित करने की समस्या का हल-मुद्रा के रूप में धन का संग्रह आसानी से किया जा सकता है। मुद्रा को बैंकों में जमा करवा दिया जाए तो चोरी का कोई डर नहीं रहता तथा इस राशि पर ब्याज भी प्राप्त होता है।
  4. उधार लेने-देने की समस्या का हल-मुद्रा द्वारा उधार लेना-देना आसान हो गया है। उधार देने के कारण यदि मुद्रा का मूल्य कीमतों के बढ़ने से कुछ कम हो जाता है तो ब्याज द्वारा उस हानि की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 3.
मुद्रा का वर्गीकरण कैसे किया जा सकता है ?
उत्तर-
मुद्रा का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया जा सकता है-

  • मुद्रा का मूल्य मुद्रा के रूप में
  • मुद्रा का मूल्य वस्तु के रूप में।

मुद्रा के वर्गीकरण को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

1. पूर्ण काय मुद्रा (Full bodied money)-पूर्ण काय मुद्रा वह मुद्रा है जिसका अंकित मूल्य तथा उस सिक्के द्वारा लगी हुई धातु का मूल्य समान होता है जैसे कि भारत में स्वतन्त्रता से पहले रुपया 11/12 शुद्ध चांदी का बना हुआ था, उसको पूर्ण काय मुद्रा कहा जाता था।

2. प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा (Representative full bodied Money)-प्रतिनिधि पूर्ण काय मुद्रा साधारण तौर पर काग़ज़ की बनी हुई होती है। इस प्रकार की मुद्रा का अपना न तो कोई मूल्य होता है, परन्तु इस मुद्रा को छापते समय उस मूल्य का सोना अथवा चांदी सरकार ख़जाने में रख लेती है।

3. उधार मुद्रा (Credit Money)-उधार मुद्रा वह मुद्रा होती है जिसका मुद्रा के रूप में मूल्य अधिक होता है जबकि उस वस्तु का मूल्य कम होता है जिस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण किया जाता है। परन्तु उधार मुद्रा अधिक मूल्य कैसे प्राप्त करती है ? ऐसा इस कारण होता है कि जिस वस्तु का उधार मुद्रा निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है वह वस्तु बाज़ार में कुल वस्तु की पूर्ति का कुछ अंश होता है। जैसे कि किसी सिक्के को पिघला दिया जाए तो उसमें लगी धातु का मूल्य सिक्के पर लिखे मूल्य से कम होगा, उधार मुद्रा के मुख्य रूप में इस प्रकार हो सकते हैं-

  • संकेतक सिक्के-सभी सिक्के ₹ 5, ₹ 2 ₹ 1, 50 पैसे इत्यादि संकेतक सिक्के हैं।
  • प्रतिनिधि संकेतक सिक्के-यह साधारण तौर पर कागज़ के नोट होते हैं।
  • केन्द्रीय बैंक के प्रामिसरी नोटों का प्रचलन-यह कागजीय नोट केन्द्रीय बैंकों द्वारा प्रचलित किए जाते हैं, जिस पर लिखा होता है, “मैं धारक को ₹ 100 अदा करने का वचन देता हूँ।”
  • बैंकों की मांग जमा-बैंकों में जमा पैसों को चैक द्वारा निकलवाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक बताएं।
अथवा
मुद्रा के घटकों (Components) की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति के मुख्य घटक इस प्रकार हैं-
1. M1 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंक की मांग जमा
2. M2 (i) जनता के पास नकद करंसी + बैंक की मांग जमा + (iii) डाकखानों के बचत खाते में जमा
3. M3 (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों की मांग जमा + (iii) बैंकों की अवधि जमा (Time Deposit) ।
4. M4 = (i) जनता के पास नकद करंसी + (ii) बैंकों के पास मांग जमा + (iii) बैंकों के पास अवधि जमा + (iv) डाकखानों की कुल जमा (राष्ट्रीय बचत सर्टीफिकेटस को छोड़ कर)।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 5.
मुद्रा के प्राथमिक कार्य बताओ।
उत्तर-
प्रो० किनले के अनुसार मुद्रा के प्राथमिक कार्य इस प्रकार हैं –
1. विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा का मुख्य कार्य वस्तुओं में विनिमय करना होता है जैसा कि एक किसान के पास गेहूँ है उस को वह किसान बाज़ार में बेच कर मुद्रा प्राप्त करता है तथा उस मुद्रा से बाकी ज़रूरतों को पूरा करता है इस प्रकार मुद्रा विनिमय का माध्यम है।

2. मूल्य का माप (Measure of Value)- मुद्रा की सहायता से हम वस्तुओं के मूल्य का माप करते हैं जैसा कि गेहूँ की कीमत ₹ 1120 प्रति क्विटल है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु की कीमत मुद्रा के रूप में माप सकते हैं।

प्रश्न 6.
मुद्रा के गौत्र अथवा द्वितीयक कार्यों की व्याख्या करें।
उत्तर-
मुद्रा के द्वितीयक कार्य इस प्रकार हैं –
1. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जाता है। मुद्रा का मूल्य स्थिर रहता है तथा इस को स्वीकार किया जाता है । इसलिए मुद्रा का प्रयोग करके मूल्य का भण्डार किया जा सकता

2. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव है। मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान किया जा सकता है क्योंकि मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन बहुत कम होता है। जिस की भरपाई ब्याज द्वारा की जा सकती है।

3. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)- मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, ज़मीन एक स्थान पर बेच कर मुद्रा प्राप्त कर सकता है और इस मुद्रा से किसी और स्थान पर खरीद सकता है।

प्रश्न 7.
मुद्रा के आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करो।
उत्तर-
मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं-
1. राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-राष्ट्रीय आय, उत्पादन के साधनों के बीच वितरण की जाती है। उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूंजी और संगठन का मेहनताना लगान, मज़दूरी, ब्याज और लाभ का माप मुद्रा द्वारा किया जाता है। इस प्रकार मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

2. साख निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंकों में जो राशि जमा होती है उस द्वारा बैंक कई गुणा अधिक साख निर्माण करते हैं। इस प्रकार स्तख निर्माण का कार्य मुद्रा की सहायता से ही संभव हुआ है।

3. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction)-उपभोगी अपनी सीमित आय से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त करना चाहता है। उसको अपनी मुद्रा भिन्न-भिन्न वस्तुओं पर इस प्रकार से व्यय करनी चाहिए कि प्रत्येक वस्तु से प्राप्त होने वाली सीमान्त उपयोगिता एक-दूसरे के बराबर हो। इस प्रकार उपभोगी को अधिक्तम सन्तुष्टि प्राप्त होगी।

4. भुगतान की गारंटी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारंटी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक भविष्य में भुगतान की गारंटी दे देता है।

प्रश्न 8.
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? इसे उच्च शक्ति योग्य मुद्रा क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
उच्च शक्ति योग्य मुद्रा आधुनिक युग में मुद्रा की पूर्ति का मुख्य निर्धारक माना जाता है। उच्च शक्ति मुद्रा देश में व्यापारिक बैंकों में मौद्रिक भंडार और जनता के पास नकदी (सिक्के अथवा नोट) का जोड़ होता है उच्च शक्ति मुद्रा आधार है जोकि बैंक जमा के रूप में व्यक्त किया जाता है और मुद्रा की पूर्ति का निर्माण करता है। इसको उच्च शक्ति योग्य मुद्रा इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस द्वारा वस्तुओं और सेवाओं में तबादला बहुत जल्दी और आसानी से होता है। इस द्वारा उधार मुद्रा का निर्माण भी किया जाता है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति में वृद्धि से मुद्रा की पूर्ति निर्धारण करती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

प्रश्न 9.
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
मुद्रा और निकट मुद्रा में अन्तर –

अंतर का आधार मुद्रा निकट मुद्रा
1. मुद्रा के अंश मुद्रा में नोट सिक्के तथा बैंक की माँग जमा को शामिल किया जाता है। निकट मुद्रा में ट्रेजरी बिल विनिमय बिल, बान्ड सरकारी प्रतिभूतियाँ और बैंकों की निश्चित कालीन जमा राशि आदि को शामिल किया जाता है।
2. तरलता मुद्रा में अधिक तरलता होती है। निकट मुद्रा में कम तरलता होती है।
3. कानूनी तथा साधारण स्वीकृति मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति होती है। निकट मुद्रा को कानूनी तथा साधारण स्वीकृति नहीं होती।
4. आय मुद्रा से आय की प्राप्ति नहीं होती। निकट मुद्रा से आय की प्राप्ति हो ती है।
5. प्रयोग मुद्रा का प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं, से विनिमय के लिए किया जाता है। निकट मुद्रा को पहले मुद्रा में तबदील किया जाता है और बाद में विनिमय किया जाता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें बताओ। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए मुद्रा कैसे सहायक हुई है ?
(State the inconveniences of barter exchange. How does money help in removing the drawbacks of barter system ?)
उत्तर-
जब किसी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का प्रयोग न किया जाए तथा वस्तुओं का विनिमय वस्तुओं से किया जाए तो इस प्रणाली को वस्तु विनिमय प्रणाली कहा जाता है। इसको C-C (Commodity-Commodity) अर्थव्यवस्था भी कहा जाता है। वस्तु विनिमय की मुश्किलें (Inconveniences or Difficulties or Drawbacks of Barter Exchange) वस्तु विनिमय की मुश्किलें निम्नलिखित अनुसार हैं –
1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी (Lack of Double Co-incidence of Wants)-खरीददारों तथा बेचने वालों की आवश्यकताओं की साथ-साथ पूर्ति को आवश्यकताओं का दोहरा मेल कहा जाता है। विनिमय प्रणाली में आवश्यकताओं के दोहरे मेल की कमी होती है। उदाहरणस्वरूप एक किसान के पास गेहूँ है। इसके बदले में वह कपड़ा प्राप्त करना चाहता है। वह जुलाहे के पास जाकर कपड़े की मांग करता है, परन्तु जुलाहे को गेहूँ की आवश्यकता नहीं, बल्कि उसको जूते अनिवार्य हैं। इसलिए किसान को पहले गेहूँ देकर जूते प्राप्त करने पड़ेंगे तथा फिर वह कपड़े की आवश्यकता को पूरा कर सकता है। इस प्रकार वस्तु विनिमय में दोहरे मेल की कमी के कारण मुश्किल का सामना करना पड़ता है।

2. मूल्य के माप की काठिनाई (Difficulty in easure of Value)-विनिमय प्रणाली में वस्तुओं के मूल्य के माप की कठिनाई का सामना करना पड़ता है। वस्तुओं का मूल्य वस्तुओं के रूप में निश्चित किया जाए तो बहुत अधिक विनिमय मूल्य याद रखने पड़ते हैं। मान लो अर्थव्यवस्था में 1000 वस्तुएँ हैं तो प्रत्येक वस्तु के 999 मूल्य याद रखने आसान नहीं होते, बल्कि बहुत कठिन होते हैं।

3. भविष्य के भुगतानों में मुश्किलें (Difficulty in Future Payments)-भविष्य भुगतानों में मुश्किल का अर्थ है कि ठेके के भुगतानों (Contractual Payments) में कठिनाई। यदि वस्तु के रूप में भुगतान किया जाता है तो उसी रूप में वस्तु की वापसी करनी मुश्किल होती थी। गाय के रूप में उधार दिया जाता है तो उसी तरह की गाय वापिस करनी मुश्किल होती है। वस्तुओं की गुणवत्ता (Quality) में अन्तर पड़ जाता है।

4. मूल्य-संचय में कठिनाई (Difficulty in Store of Value)-वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एकत्रित करना मुश्किल होता है। वस्तुओं के रूप में धन को अधिक समय के लिए भण्डार नहीं किया जा सकता। यदि पशुओं के रूप में धन संचय किया जाता है तो पशुओं के बीमार पड़ने की स्थिति में धन जल्दी नष्ट हो जाता था। गेहूँ, चावल, इत्यादि के रूप में धन जल्दी नष्ट हो जाता है।

5. धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने की कठिनाई (Difficulty in Transport of Wealth) वस्तु विनिमय प्रणाली में धन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाना मुश्किल होता है। किसी मनुष्य के पास मकान अथवा ज़मीन है तो इस प्रकार के धन के दूसरे स्थानों पर ले जाने की कठिनाई आती है। वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलें दूर करने के लिए मुद्रा का योगदान (Role or Importance of money in removing drawbacks of barter system)-आधुनिक युग में मुद्रा का योगदान महत्त्वपूर्ण है। मुद्रा ने वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान डाला है।

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इससे वस्तु विनिमय प्रणाली की मुश्किलों को दूर किया गया है –

  1. आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल-मुद्रा के भाव में आने से आवश्यकताओं के दोहरे मेल की समस्या का हल हो गया है। मुद्रा की सहायता से वस्तुओं का विनिमय आसानी से किया जाता है।
  2. वस्तुओं के मूल्य का माप-मुद्रा के विकास से वस्तुओं के मूल्य का माप आसान हो गया है। प्रत्येक वस्तु का मूल्य मात्रा के रूप में निर्धारित किया जा सकता है।
  3. मूल्य संचय की कठिनाई का हल-वस्तु विनिमय प्रणाली में मूल्य संचय करना मुश्किल था। मुद्रा के निर्माण से मूल्य संचय करना आसान हो गया है।
  4. उधार लेने-देने में आसानी-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना आसान हो गया है। मुद्रा के रूप में उधार का भविष्य में भुगतान किया जा सकता है।
  5. व्यापार में आसानी-मुद्रा की सहायता से व्यापार करने में आसानी हो गई है।
  6. अधिकतम सन्तुष्टि-उपभोगी द्वारा मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त की जा सकती है।
  7. आर्थिक समस्याओं का हल-मुद्रा से मुद्रा स्फीति, मुद्रा अस्फीति, मन्दीकाल इत्यादि आर्थिक समस्याओं का हल किया जा सकता है। मार्शल के शब्दों में, “मुद्रा धुरा है, जिसके इर्द-गिर्द आर्थिक विज्ञान घूमता है।”
    (“Money is the hub around which economic science clusters.”)

प्रश्न 2.
मुद्रा से क्या अभिप्राय है? मुद्रा के विकास को स्पष्ट करो। मुद्रा के मुख्य कार्यों की व्याख्या करो। (What is money ? Explain the Evolution of money. Discuss the functions of money.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के प्राथमिक, गौण तथा आकस्मिक कार्यों की व्याख्या करें।
(What is Money ? Discuss the primary, secondary and contingent functions of money.)
उत्तर-
मुद्रा का अर्थ (Meaning of Money)-मुद्रा की परिभाषा निम्नलिखित भागों में विभाजित करके दी जा सकती है –

  1. मुद्रा की कानूनी परिभाषा (Legal Definition of Money)-मुद्रा कोई भी ऐसी वस्तु होती है, जिसको कानूनी तौर पर विनिमय के रूप में सरकार द्वारा घोषित किया जाता है। ऐसी मुद्रा के पीछे सरकारी आदेश होता है, जिस कारण कोई मनुष्य इस मुद्रा को स्वीकार करने से इन्कार नहीं कर सकता।
  2. मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा (Functional Definition of Money)-मुद्रा कोई भी वस्तु हो सकती है जिसको साधारण तौर पर विनिमय के माध्यम के रूप में स्वीकार किया जाता है तथा यह मूल्य के माप तथा मूल्य के संचय करने का कार्य भी करती है।
  3. मुद्रा की संकुचित परिभाषा (Narrow Definition of Money)-मुद्रा की संकुचित परिभाषा में मुद्रा की क्रियात्मक परिभाषा को शामिल किया जाता है। इस परिभाषा में मुद्रा के कार्य
  • विनिमय का साधन
  • मूल्य का माप
  • मूल्य का संचय करना
  • भविष्य भुगतान का आधार के रूप में लिया जाता है।

4. मुद्रा की विस्तृत परिभाषा (Broad Definition of Money)-मुद्रा की विस्तृत परिभाषा में करन्सी नोट, सिक्के, बैंकों में मांग जमा, अवधि जमां, डाकखानों में जमा, जिसको कम समय के नोटिस पर प्राप्त किया जा सकता है तथा निकट मुद्रा परिसम्पत्तियों जैसे कि भागीदारियां, ब्रांड, प्रतिभूतियां इत्यादि को शामिल किया जाता है।

मुद्रा का विकास (Evolution of Money) वस्तु विनिमय बाज़ार की मुश्किलों को दूर करने के लिए मनुष्य ने मुद्रा का विकास किया। मुद्रा निम्नलिखित पड़ावों में से गुजर कर वर्तमान रूप में आई है-

  1. वस्तु मुद्रा-आरम्भ में वस्तुएं जैसे कि गेहूँ, दाल, चावल इत्यादि का प्रयोग मुद्रा के रूप में किया गया।
  2. धातु मुद्रा-पश्चात् में कुछ धातुओं जैसे कि लोहा, तांबा, चांदी, सोना इत्यादि ने मुद्रा का रूप धारण किया।
  3. कागजी मुद्रा-कागज़ी मुद्रा को पहले चीन में तथा फिर शेष विश्व में मुद्रा के रूप में प्रयोग किया गया। आज- कल कागज़ी मुद्रा प्रत्येक देश में प्रचलित है।
  4. बैंक मुद्रा-धीरे-धीरे बैंकों के विस्तार से चैक, ड्राफ्ट तथा इलैक्ट्रॉनिक मुद्रा (A.T.M.) प्रचलित हो गई है।

मुद्रा के मुख्य कार्य (Main Functions of Money)-मुद्रा के कार्यों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(A) मुद्रा के प्राथमिक कार्य (Primary Functions of Money)-मुद्रा के दो मुख्य कार्य हैं –

  • विनिमय का माध्यम (Medium of Exchange)-मुद्रा वस्तुओं के विनिमय के लिए माध्यम के रूप में प्रयोग की जाती है। मुद्रा का यह महत्त्वपूर्ण कार्य है।
  • मूल्य का माप (Measure of Value)-वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य मुद्रा के रूप में मापा जा सकता है। यह लेखे की इकाई है, जैसे कि गेहूं का मूल्य ₹ 700 क्विटल है।

(B) मुद्रा के द्वितीयक कार्य (Secondary Functions of Money) – मुद्रा के तीन द्वितीयक कार्य हैं3. मूल्य का भण्डार (Store of Value)-मुद्रा के रूप में मूल्य संचय किया जा सकता है। इसका मूल्य स्थिर रहता है तथा इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जा सकता है।

4. स्थगित भुगतानों का मान (Standard of Deferred Payments)-मुद्रा की सहायता से उधार लेना तथा देना सम्भव होता है। इसका भुगतान भविष्य में किया जा सकता है, क्योंकि इसके मूल्य में परिवर्तन नहीं होता तथा यह प्रयोग करने योग्य होती है।

5. मूल्य का हस्तांतरण (Transfer of Value)-मुद्रा से धन का हस्तांतरण एक स्थान से दूसरे स्थान तक आसानी से किया जा सकता है। मनुष्य अपनी जायदाद, मकान, दुकान, जमीन एक स्थान पर बेचकर मुद्रा प्राप्त कर सकता है तथा दूसरे स्थान पर खरीद सकता है।

(C) मुद्रा के आकस्मिक कार्य (Contingent Functions of Money)-मुद्रा के आकस्मिक कार्य इस प्रकार हैं –

6. आय के वितरण का आधार (Basis of Distribution of National Income)-मुद्रा की सहायता से राष्ट्रीय आय का माप किया जा सकता है। राष्ट्रीय आय उत्पादन के साधनों में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में विभाजित की जाती है। इसलिए मुद्रा राष्ट्रीय आय के वितरण का आधार है।

7. उधार निर्माण का आधार (Basis of Credit Creation)-व्यापारिक बैंक, जमा मुद्रा की सहायता से उधार निर्माण करने में सफल होते हैं।

8. अधिकतम सन्तुष्टि का आधार (Basis of Maximum Satisfaction) उपभोगी अपनी सीमित मुद्रा की सहायता से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए समसीमान्त तुष्टिगुण का नियम सहायक होता है।

9. पूंजी को तरलता प्रदान करती है (Provides Liquidity to Capital)—मुद्रा में यह गुण है कि इसको साधारण तौर पर स्वीकार किया जाता है। इसलिए मुद्रा, पूंजी को तरलता प्रदान करती है।

10. भुगतान की गारण्टी (Guarantee of Solvency)-मुद्रा द्वारा भविष्य में भुगतान की गारण्टी दी जा सकती है। बैंक में मुद्रा जमा करवा दी जाए तो बैंक आपके भविष्य के भुगतान की गारण्टी दे देता है।

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प्रश्न 3.
मुद्रा एक अच्छा सेवक तथा बुरा स्वामी है। स्पष्ट करें।
(Money is a good servant but a bad master. Explain.)
अथवा
मुद्रा से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा के गुण तथा अवगुण बताएँ।
(What is Money ? Give Merits and Demerits of Money.)
उत्तर-
प्रो० कराऊथर के अनुसार, “वह वस्तु जिसे लोग वस्तुओं की खरीद बेच और ऋण के रूप में स्वीकार करते हैं उसको मुद्रा कहते हैं।” मुद्रा वह तरल पदार्थ है जो एक देश में बटांदरे के रूप में पाए जाते हैं। मुद्रा के लाभ तथा मुद्रा एक अच्छा स्वामी है (Merits of Money or Money is a Good Servant)मुद्रा एक अच्छा स्वामी है इस का मुद्रा से प्राप्त होने वाले लाभों से ज्ञात होता है।

  1. मुद्रा और आर्थिक विकास (Money & Economic Growth)- मुद्रा एक ऐसा आधार है जिस के ऊपर आर्थिक विकास की इमारत बनती है।
  2. उपभोक्ताओं को लाभ (Advantage to the Consumers)- मुद्रा उपभोक्ताओं के लिए लाभदायिक होती है। उपभोगी अपनी सीमित आय से मुद्रा द्वारा अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करते हैं।
  3. उत्पादकों को लाभ (Advantage to the Producers)- मुद्रा की सहायता से उत्पादक तथा बिक्री की क्रियाओं का संचालन होता है, जिस द्वारा उत्पादक अधिकतम लाभ प्राप्त करता है। बढ़े पैमाने पर उत्पादन मुद्रा की सहायता से ही संभव हो सका है।
  4. विनिमय में लाभ (Advantage in Exchange)-मुद्रा की सहायता से वस्तु बटांदरा प्रणाली के दोषों को दूर करके कीमत निर्धाण करना आसान हो गया है। इस द्वारा उत्पादन के साधनों का मेहनताना निर्धाण करना आसान हो गया है।
  5. विभाजन में लाभदायिक (Advantage in Distribution)-मुद्रा द्वारा उत्पादन के साधनों, भूमि, श्रम, पूँजी तथा संगठन का मेहनताना निर्धारण करना आसान हो पाया है। इस द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार भी संभव हो गया है।
  6. पूँजी निर्माण (Capital Formuation)-मुद्रा द्वारा आसानी से बचत की जा सकती है। इस बचत को निवेश करके पूँजी निर्माण किया जा सकता है। मुद्रा द्वारा नये उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं और मानवीय पूँजी का विकास होता है। मुद्रा के अवगुण अथवा मुद्रा
  7. बुरा स्वामी है (Demerits of Money or Money is a Bad Master)-मुद्रा से अच्छी तरह से संचालन न किया जाए तो बहुत-सी बुराइयां पैदा हो जाती हैं। इसलिए मुद्रा को बुरा स्वामी कहा जाता है।

इस के मुख्य दोष इस प्रकार हैं –

  • मुद्रा के मूल्य में अस्थिरता (Instability in Value of Money)-मुद्रा के फैलने से इस के मूल्य में कमी हो जाती है और मुद्रा की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  • आय का असामान्य वितरण (Unequal distribution of Income)-मुद्रा द्वारा आय के असामान्य वितरण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। अमीर लोग और अमीर हो जाते हैं और ग़रीब ज्यादा ग़रीब हो जाते हैं।
  • व्यापारिक चक्र (Trade Cycle)-पूँजीवाद देशों में मुद्रा के कारण व्यापारिक चक्रों की समस्या उत्पन्न हो जाती है । तेजीकाल तथा मंदीकाल की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। मंदीकाल में बेरोज़गारी फैल जाती है।
  • ऋण में वृद्धि (Increase in Debt)- मुद्रा के कारण लोगों पर ऋण का भार तेजी से बढ़ रहा है। ऋण की प्राप्ति आसानी से होने के कारण लोग गैर आवश्यक वस्तुओं पर व्यय करते हैं। इस से फ़जूल खर्चों में वृद्धि होती है।
  • बुरा स्वामी (Bad Master)-यदि मुद्रा पर ठीक ढंग से काबू न पाया जाए तो इससे भ्रष्टाचार, मुद्रा स्फीति काला धन और शोषण की समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इस से तंग आकर लोग आन्दोलन करते हैं और देश में अराजकता फैल जाती है।

प्रश्न 4.
विमुद्रीकरण से क्या अभिप्राय है ? भारत में 8 नवम्बर, 2016 को किए गए विमुद्रीकरण को स्पष्ट करें। इसके लाभ एवं हानियां बताएं।
(What is meant by Demonetisation ? Explain the demonetisation of 8th November, 2016 in India. Explain its advantages and dis-advantages.)
उत्तर-
1. विमुद्रीकरण क्या है ? (What is demonetisation ?)—जब सरकार पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर बन्द कर देती है और नई मुद्रा लाने की घोषणा करती है तो इसे विमुद्रीकरण (demonetisation) कहते हैं। इसके बाद पुरानी मुद्रा अथवा नोटों की कोई कीमत नहीं रह जाती। सरकार द्वारा पुराने नोटों को बैंकों से बदलने के लिए लोगों को समय दिया जाता है ताकि वह पुराने नोटों को नए नोटों में बदल सकें।

2. विमुद्रीकरण क्यों किया जाता है ? (Why demonetisation ?) काला धन, भ्रष्टाचार, नकली नोट और आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सरकारें विमुद्रीकरण का फैसला लेती हैं। अवैध गतिविधियों में लोग नोटों को अपने पास नकदी के रूप में ही रखते हैं। इस प्रकार विमुद्रीकरण से सीधे उन पर चोट होती है। कई बार नकद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए भी नोटबन्दी की जाती है। मोदी सरकार को भी उम्मीद है कि नोटबन्दी के चलते काले धन, नकली नोट और आतंकवाद पर अंकुश लगेगा। नोटबन्दी के कारण भारत में आम आदमी को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा।

3. भारत में विमुद्रीकरण (Demonetisation in India)-भारत में 8 नवम्बर, 2016 को रात 8 बजे प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नोटबन्दी की घोषणा कर दी। इस घोषणा में ₹ 500 और ₹ 1000 के नोटों को रात 12 बजे के बाद कानूनी मुद्रा (Legal Tender) न होने का ऐलान किया गया। इसका उद्देश्य केवल काले धन पर नियन्त्रण ही नहीं बल्कि जाली नोटों से छुटकारा पाना भी था। इससे पहले भारत में दो बार विमुद्रीकरण किया गया था। 1946 में ₹ 1000 और ₹ 10,000 के नोटों को वापस ले लिया गया था और 1954 में भारत सरकार ने ₹ 1000, ₹ 5,000 और ₹ 10,000 के नए नोट शुरू किए। दूसरी बार 1978 में ₹ 1000, ₹ 5000 और ₹ 10,000 के नोटों का विमुद्रीकरण किया गया ताकि काले धन पर अंकुश लगाया जा सके।

28 अक्तूबर, 2016 को भारत में ₹ 17.77 लाख करोड़ मुद्रा प्रचलित थी, जिसमें से 86% ₹ 500 और ₹ 1000 के नोट थे। देश में जाली नकदी में लगातार वृद्धि हो रही थी जिसको भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में इस्तेमाल किया गया था। इस कारण पुराने नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया। इसके स्थान पर ₹ 500 और ₹ 2000 के नए नोट चालू किए गए। ₹ 500 के नोट का आकार 66 मि० मीटर x 150 मि० मीटर है। नोट के पीछे लाल किले की तस्वीर और स्वच्छ भारत अभियान का लोगो भी है। इन नोटों को महात्मा गांधी न्यू सीरीज़ ऑफ नोट्स का नाम दिया गया है। ₹ 2000 का नोट गुलाबी रंग का है। इसके पीछे की ओर मंगलयान की तस्वीर है। 25 अगस्त, 2017 से ₹ 200 का नोट भी बाजार में आ गया है। नोट के सीरियल नम्बरों का फोंट साइज़ बदला गया है।

4. विमुद्रीकरण में नोट बदलने की विधि (Procedure for Exchange of Notes in demonetisation)भारत में 8 नवम्बर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा के पश्चात् 30 दिसम्बर, 2016 तक बैंकों से नोट बदलने की प्रक्रिया चली। इसके बाद पुराने नोट बदलने का कार्य केवल R.B.I. द्वारा ही किया जाएगा।

नोट बदलने के नियम इस प्रकार ङ्केरखे गए –

  • ATM से एक दिन में ₹ 2500 तक निकाल सकते हैं।
  • एक दिन में ग्राहक बैंक से ₹ 24000 से ज्यादा नहीं निकाल सकता और एक हफ्ते के बाद ही बैंक से ₹ 24000 दोबारा निकाले जा सकते हैं।
  • एक दिन में कोई भी व्यक्ति ₹ 2000 तक के नोट बदल सकता है।
  • कोई भी व्यक्ति अपने निजी बैंक खाते में जितना चाहे पैसा जमा करवा सकता है। ₹ 2,50,000 तक जमा की गई रकम का जवाब नहीं मांगा जाएगा। इससे ज्यादा जमा रकम के बारे में आयकर विभाग जांच करेगा।
  • ई-बैंकिंग लेन-देन पर कोई भी रोक नहीं है और कोई व्यक्ति आर०टी०जी०एस०, एन०ई०एफ०टी०, आई०एम०पी०एल०, पे०टी०एम०, मोबाईल बैंकिंग आदि के ज़रिए जितने चाहे पैसे किसी दूसरे को दे सकता है।

5. विमुद्रीकरण के लाभ (Advantages of Demonetisation) –

1. काले धन पर प्रहार-विमुद्रीकरण की सबसे करारी चोट काले धन पर पड़ी है। अनुमान लगाया जाता है कि भारत में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ काले धन के रूप में छुपा कर रखे गए थे। इन रुपयों का हवाला कारोबार, तस्करी, आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों में धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा था। कश्मीर में जारी हिंसा में भी काला धन मुख्य भूमिका निभा रहा था। देश की राजनीति में भी काले धन का मुद्दा काफ़ी समय से चर्चा में था। इसलिए विमुद्रीकरण से काले धन पर पूर्ण तो नहीं आंशिक रूप में रोक ज़रूर लगेगी।

2. आतंकवाद और आपराधिक गतिविधियों पर प्रहार-विमुद्रीकरण द्वारा आतंकवाद, नक्सली समूहों, नशे के व्यापारियों और गैर-कानूनी गतिविधियों को करारा आघात पहुंचा है। इसका प्रभाव कश्मीर में खास तौर पर देखने को मिल रहा है। इन आपराधिक गतिविधियों के लिए इकट्ठे किए गए नोट कागज़ के टुकड़े बन गए हैं और इनकी गतिविधियां ठप्प हो गई हैं।

3. काला धन्धा करने वालों पर प्रहार-देश में जो व्यापारी काला धन्धा करते थे और इससे प्राप्त काले धन को नकदी के रूप में अपने पास रखते थे उन पर भी विमुद्रीकरण से करारी चोट की गई है। काले धन्धे में लगे लोग तथा भ्रष्ट लोग, ग़रीब लोगों का सहारा ले रहे हैं ताकि काले धन को सफेद किया जा सके।

4. अर्थ-व्यवस्था में वृद्धि-विमुद्रीकरण से अर्थव्यवस्था में वृद्धि होने की संभावना है। विमुद्रीकरण से सरकारी खाते में लगभग ₹ 3 लाख करोड़ आएंगे और ₹ 70,000 करोड़ विभिन्न करों से आने की उम्मीद है। इसका प्रभाव अल्पकाल में नहीं बल्कि दीर्घकाल में ज़रूर नज़र आएगा। इस रकम के आने से सरकार आधारभूत ढांचे में निवेश करेगी जिससे देश के आर्थिक विकास में वृद्धि होगी।

5. कर द्वारा आय में वृद्धि-सरकार ने विमुद्रीकरण से पहले और विमुद्रीकरण के दौरान काले धन को छिपाकर रखने वाले लोगों को काला धन घोषित करने को कहा और बिना पैनलटी के कर जमा करने की छूट दी। बाद में पैनलटी के साथ कर जमा करने को कहा। इससे सरकार की कर आय में 14.5% वृद्धि हो चुकी है।

6. रोज़गार में वृद्धि-विमुद्रीकरण के बाद सरकार की मुद्रा योजना को बल मिलेगा। सरकार की योजनाओं को बैंकों से सहयोग नहीं मिल रहा था इसलिए सरकार के पास नकदी का संकट था, परन्तु अब बैंकों में नकदी का प्रवाह बढ़ा है जिस कारण औद्योगिक गतिविधियाँ बढ़ रही हैं और रोज़गार में वृद्धि होगी।

7. ब्याज दर में कमी-विमुद्रीकरण के बाद काले धन के एक बड़े भाग को अर्थव्यवस्था की मुख्य धारा में लाया जाएगा। इससे बैंकों के पास जमा राशि में बढ़ोत्तरी होगी जिससे ब्याज दरों में कमी आएगी। इससे लोग व्यापार में निवेश करेंगे और मकानों की बिक्री बढ़ने की सम्भावना है।

8. नकद लेन-देन में कमी-विमुद्रीकरण के बाद अर्थव्यवस्था कैशलेस अर्थव्यवस्था (Cashless Economy) की तरफ बढ़ रही है। सरकार नकद लेन-देन पर रोक लगा रही है ताकि काले धन से लेन-देन खत्म हो सके। नकद लेन-देन को सरकार नि:उत्साहित कर रही है।

9. लोक कल्याणकारी योजनाएं-विमुद्रीकरण द्वारा सरकार के पास जैसे-जैसे धन की प्राप्ति होती है लोक कल्याणकारी योजनाओं में निवेश में वृद्धि की जाएगी। 2022 तक सरकार प्रत्येक का अपना घर का लक्ष्य लिए हुए है।

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6. विमद्रीकरण की हानियां (Dis-advantages of demonetisation) –

1. विमुद्रीकरण से देश की जी०डी०पी० (GDP) पर सुस्ती आने की सम्भावना है परन्तु यह अल्पकाल के लिए होगा और दीर्घकाल में इसमें वृद्धि ही होगी।

2. विमुद्रीकरण से पर्यटन उद्योग को धक्का लगा है। भारत आने वाले पर्यटकों ने अपना दौरा रद्द कर दिया क्योंकि नकद पैसा निकलवाने में मुश्किल का सामना करना पड़ता था। विमुद्रीकरण लम्बे समय में लाभदायक ही सिद्ध होगी। नोटबन्दी के बारे में रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट 30 अगस्त, 2017 को प्रकाशित हुई है जिसमें यह कहा गया है कि नोटबन्दी में ₹ 1000 और ₹ 500 के 99% नोट वापिस आ गए हैं। 8 नवम्बर, 2017 को ₹ 1000 और ₹ 500 के ₹ 15.44 लाख करोड़ के नोट चलन में थे। 30 जून, 2017 को ₹ 15.28 करोड़ के नोट वापिस आ गए। सरकार के नोटबंदी पर ₹ 21 हजार करोड़ खर्च हुए और ₹ 16.5 करोड़ के नोट वापिस नहीं आए।

प्रश्न 5.
मुद्रा की पूर्ति से क्या अभिप्राय है ? मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव स्पष्ट करें।
(What is meant by Supply of Money ? Discuss the effects of the Supply of Money ?
उत्तर-
मुद्रा की पूर्ति एक अर्थव्यवस्था में करंसी के समस्त भंडार को कहा जाता है। इसमें निश्चित समय पर प्रचलत मौद्रिक भंडार भी शामिल होते हैं। मुद्रा में नकद मुद्रा, सिक्के और बचत खातों में रकम को शामिल किया जाता है समष्टि अर्थशास्त्र को समझने के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। अर्थशास्त्रियों का विचार है कि मुद्रा की पूर्ति, नीति निर्माण के लिए अति आवश्यक होती है। सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की सफलता के लिए मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति का ज्ञान आवश्यक होता है। देश में मुद्रा की पूर्ति, कीमत के स्तर, मुद्रा स्फीति और व्यापारिक चक्र देश के व्यापार पर प्रभाव डालते हैं। मुद्रा पूर्ति को मुद्रा स्टाक (Money stock) भी कहा जाता है।

मुद्रा पूर्ति का माप (Measurement of Supply of Money)-मुद्रा की पूर्ति (Ms) के बहुत से रूप होते हैं। जैसे कि –

  1. M0 = देश में मुद्रा की कुल पूर्ति को Mo कहा जाता है जिसमें हर प्रकार की मुद्रा शामिल होती है।
  2. M1 = (Narrow Money) = (CC + DD + Other Deposits) इसमें देश के करंसी नोटों (C.C.) को शामिल किया जाता है। इस के इलावा इसमें मांग जमा (Demand Deposits (D.D.) को भी शामिल करते हैं। बैंकों में और प्रकार के खातों जैसे कि चालू खाते में जमा (Current Deposits) को भी शामिल किया जाता है।
  3. M2 = (M1 + Saving Deposits of Post-Office Savings) यदि हम M1 = CC + DD + Other Deposits of the banks) के साथ डाकखानों में बचत खाते में जमा राशि को शामिल कर लेते हैं तो इसको M2 कहा जाता है।

M3 = Broad Money = (M1 + Time Deposits of Banks)
विशाल मुद्रा में हम M1 = CC + Cash Currency) + DD + Other deposits of Bank (Current Deposits) के साथ यदि बैकों में समय अवधि जमा को शामिल कर लेते हैं तो इसको M3 का नाम दिया जाता है।
M4 = (Wide Measure) = M3 + Post Office saving deposits)
M3 = में हमने (CC + DD + Other deposits) को शामिल करके इसमें बैंकों में समय अवधि जमा (Time Deposits) को भी शामिल किया था। यदि इसमें डाकखानों में जमा बचत खातों में जमा रकम को जोड़ लिया जाए तो इसको M4 का नाम दिया जाता है।

अर्थव्यवस्था पर मुद्रा की पूर्ति के प्रभाव (Effects of Supply of Money on the Economy)-मुद्रा की पूर्ति अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालती है। जब मुद्रा की पूर्ति बढ़ जाती है तो इससे ब्याज की दर (Rate of Interest) कम हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप निवेश में वृद्धि होती है। लोगों की मौद्रिक आय बढ़ने से व्यय में भी वृद्धि होती है। उत्पादन बढ़ने लगता है और रोज़गार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 6 मुद्रा, मुद्रा की पूर्ति तथा कार्य

इसके विपरीत यदि मुद्रा की पूर्ति कम हो जाती है तो इस का अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है। मुद्रा की कम पूर्ति के कारण व्यापारिक चक्र पैदा होते हैं जैसे कि सुस्ती और मंदीकाल (Depression) की स्थिति पैदा हो जाती है। मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि की जाए तो पुनरुत्थान (Recovery) और तेजीकाल (Boom) की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इस प्रकार मुद्रा की पूर्ति से देश में आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

PSEB 12th Class Economics राष्ट्रीय आय का माप Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य विधियाँ कौन सी हैं ?
उत्तर-

  • आय विधि
  • उत्पादन विधि
  • व्यय विधि।

प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र से होता है जिसमें प्राकृतिक साधनों को प्रयोग करके उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 3.
गौण क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गौण क्षेत्र का अर्थ निर्माण क्षेत्र से होता है जैसा कि उद्योग, निर्माण कार्य, गैस इत्यादि।

प्रश्न 4.
अर्थव्यवस्था के तृतीय क्षेत्र अथवा सेवा क्षेत्र में क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इस क्षेत्र में सेवाएँ शामिल की जाती हैं जैसा कि यातायात, बीमा, आवास इत्यादि।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 5.
मूल्य वृद्धि विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मूल्य वृद्धि का अर्थ वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि करने से होता है। मूल्य वृद्धि = उत्पाद के मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग।

प्रश्न 6.
गैर साधन आगतों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गैर साधन आगतें वह नाशवान वस्तुएं तथा सेवाएं होती हैं जिनका प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है।

प्रश्न 7.
मूल्य वृद्धि विधि का वैकल्पिक नाम क्या है ?
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि को उत्पाद विधि भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
दोहरी गणना की समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक ही वस्तु के मूल्य को एक से अधिक बार गणना को दोहरी गणना कहा जाता है।

प्रश्न 9.
उत्पाद वृद्धि से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
राष्ट्रीय आय के माप की उत्पाद विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में देश की घरेलू सीमा के भीतर उत्पादित की गई अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के योग को अन्तिम उत्पाद कहा जाता है। इसके बाज़ारी मूल्य को राष्ट्रीय आय कहते हैं।

प्रश्न 10.
आय वृद्धि में साधन आय को कितने भागों में विभाजित किया जाता है ?
अथवा
साधन आय के मुख्य अंश बताएँ।
उत्तर-

  1. कर्मचारियों का मेहनताना
  2. परिचालन अधिशेष
  3. मिश्रित आय
  4. विदेशों से शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 11.
व्यय वृद्धि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में सकल घरेलू उत्पाद पर किये गए अन्तिम खर्च को बाज़ारी कीमतों पर मूल्य ज्ञात करके योग किया जाए तो इसको व्यय वृद्धि द्वारा सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 12.
निजी अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी अन्तिम उपभोग खर्च एक देश में वर्तमान उपभोग पर वस्तुओं तथा सेवाओं के खर्च का योग होता

प्रश्न 13.
अन्तिम निवेश खर्च से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अन्तिम निवेश में-

  • कुल घरेलू स्थाई पूँजी निर्माण
  • स्टॉक में परिवर्तन
  • शुद्ध निर्यात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 14.
पूंजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होता है जिसका भुगतान बचत या सम्पत्ति में से अदा किया जाता है।

प्रश्न 15.
मध्यवर्ती वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिन का प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में किया जाता है।

प्रश्न 16.
अन्तिम वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह वस्तुएँ जिनका प्रयोग उपभोग के लिए अथवा पूंजी निर्माण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 17.
घिसावट से क्या अभिप्राय है अथवा स्थिर पूँजी का उपभोग क्या होता है ?
उत्तर-
वस्तुओं का उत्पादन करते समय मशीनों, औज़ारों इत्यादि के मूल्य में जो कमी हो जाती है उस को स्थिर पूँजी का उपभोग या घिसावट कहा जाता है।

प्रश्न 18.
बन्द अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बन्द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसका शेष विश्व के देशों से आर्थिक सम्बन्ध नहीं होता।

प्रश्न 19.
खली अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसका आर्थिक सम्बन्ध शेष विश्व के देशों से होता है।

प्रश्न 20.
स्टॉक में परिवर्तन अथवा माल सूची में परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
माल सूची अथवा स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 21.
चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय का अभिप्राय है एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रचलित कीमतों पर मूल्य का माप।

प्रश्न 22.
स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य आधार वर्ष की कीमतों द्वारा मापते हैं तो इसको स्थिर कीमत पर राष्ट्रीय आय कहते हैं।

प्रश्न 23.
मौद्रिक राष्ट्रीय आय को वास्तविक राष्ट्रीय आय में परिवर्तित कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
वास्तविक राष्ट्रीय आय = img

प्रश्न 24.
मौद्रिक आय को अपस्फायक (deflate) करने का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
GNP deflator = \(\frac{\text { Money value of GNP }}{\text { Real Value of GNP }} \times 100\)

प्रश्न 25.
राष्ट्रीय आय के माप के लिए खर्च विधि का वर्णन करें।
उत्तर-
एक लेखा वर्ष में बाज़ार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पादन पर किये गए अन्तिम उपभोग खर्च के माप को खर्च विधि कहा जाता है।

प्रश्न 26.
अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह खर्च जो कि अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर खर्च किया जाता है उसको अन्तिम उपभोग खर्च कहते हैं।

प्रश्न 27.
अन्तिम उपभोग खर्च में कौन-कौन सी मदें शामिल की जाती हैं ?
उत्तर-

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च
  • अन्तिम निवेश खर्च
  • शुद्ध विदेशी निवेश।

प्रश्न 28.
निजी अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी परिवारों तथा निजी गैर लाभकारी संस्थाओं द्वारा वर्तमान उपभोग पर वस्तुओं तथा सेवाओं के खर्च के योग को निजी अन्तिम उपभोग खर्च कहते हैं।

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प्रश्न 29.
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य (-) …..
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग।

प्रश्न 30.
वस्तुओं का उत्पादन करते समय मशीनों और औज़ारों के मूल्य में जो कमी हो जाती है को ………………. कहते हैं।
उत्तर-
स्थिर पूँजी का उपभोग अथवा घिसावट।

प्रश्न 31.
अर्थव्यवस्था में जिस क्षेत्र का सम्बन्ध उद्योग, घरों के निर्माण, गैस आदि से होता है को ……. कहते हैं।
(क) प्राथमिक क्षेत्र
(ख) गौत्र क्षेत्र
(ग) टरशरी क्षेत्र
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) गौत्र क्षेत्र।

प्रश्न 32.
राष्ट्रीय आय का माप करते समय जिन वस्तुओं का मूल्य एक से अधिक बार जुड़ जाता है को ……………. गणना कहते हैं।
(क) बार-बार
(ख) दोहरी
(ग) सौ बार
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) दोहरी।

प्रश्न 33.
वह अर्थव्यवस्था जिसका सम्बन्ध बाकी विश्व के देशों से नहीं होता को ………………. कहा जाता
(क) बन्द अर्थव्यवस्था
(ख) खुली अर्थव्यवस्था
(ग) विश्व अर्थव्यवस्था
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(क) बन्द अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 34.
वह अर्थव्यवस्था जिसका सम्बन्ध बाकी विश्व के देशों के साथ होता है को … कहते हैं।
उत्तर-
खुली अर्थव्यवस्था।

प्रश्न 35.
माल सूची अथवा स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक (-) ………….
उत्तर-
प्रारंभिक स्टॉक।

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प्रश्न 36.
अन्तिम उपभोग व्यय = निजी अन्तिम उपभोग व्यय + सरकारी अन्तिम उपभोग व्यय + अन्तिम निवेश व्यय + ………
उत्तर-
शुद्ध विदेशी निवेश।

प्रश्न 37.
राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र से होता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 38.
एक वस्तु के मूल्य को बार-बार राष्ट्रीय आय में जोड़ने से बचने के लिए मध्यवर्ती वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में जोड़ना चाहिए।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 39.
उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग = मूल्य वृद्धि ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 40.
जो वस्तुएँ अन्तिम उपभोग वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रयोग की जाती है उनको मध्यवर्ती वस्तुएँ कहा जाता है।.
उत्तर-
सही।

प्रश्न 41.
घिसावट को स्थिर पूँजी का उपभोग भी कहते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लय उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य विधियां कौन-सी हैं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को मापने की मुख्य विधियां तीन हैं-

  1. आय विधि-इस विधि में एक वर्ष में उत्पादन के साधनों को सेवाओं के बदले में जो आय प्राप्त होती है, उसके जोड़ द्वारा राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।
  2. उत्पादन विधि-उत्पादन विधि में एक लेखा वर्ष में देश के प्रत्येक उत्पादक द्वारा किए गए योगदान के जोड़ से राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।
  3. खर्च विधि-इस विधि में एक लेखा वर्ष में बाजार कीमत पर किए कुल अन्तिम खर्च का जोड़ किया जाता |

प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र का सम्बन्ध कृषि क्षेत्र से होता है जिसमें प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके उत्पादन किया जाता है। इसके उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-

  • कृषि तथा पशु पालन
  • जंगल उद्योग तथा शहतीर बनाना
  • मछली उद्योग
  • खनन।

प्रश्न 3.
गौण क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
गौण क्षेत्र का अर्थ निर्माण क्षेत्र से होता है। इसके मुख्य उप-क्षेत्र इस प्रकार हैं-

  • उद्योग
  • निर्माण कार्य
  • विद्युत्, गैस तथा जल आपूर्ति।

प्रश्न 4.
अर्थव्यवस्था के तृतीय क्षेत्र अथवा सेवा क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
इस क्षेत्र में सेवाएं शामिल की जाती हैं जैसे कि-

  • यातायात, संचार तथा संग्रहण
  • बीमा तथा बैंक सेवाएं
  • व्यापार तथा होटल
  • आवास निर्माण
  • सरकारी प्रशासन तथा सुरक्षा
  • अन्य सेवाएं।

प्रश्न 5.
मूल्य वृद्धि विधि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को उत्पाद विधि द्वारा मापने के लिए मूल्य वृद्धि विधि अधिक उपयुक्त विधि है। इस विधि में देश में प्रत्येक उत्पादक द्वारा उत्पादित वस्तुओं के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटाकर अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार मूल्य को ज्ञात किया जाता है जिससे दोहरी गणना की समस्या स्वयं हल हो जाती है।
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग (Value Added = Value of Output – Intermediate Consumption)

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प्रश्न 6.
दोहरी गणना की समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वस्तु के मूल्य की गणना जब एक से अधिक बार की जाती है तो इसको दोहरी गणना कहा जाता है। जब एक वर्ष में एक देश में उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को घटा दिया जाए तो अन्तिम वस्तुओं का मूल्य प्राप्त हो जाता है। इससे दोहरी गणना की समस्या का हल हो जाता है।

प्रश्न 7.
निजी अन्तिम उपभोग खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी अन्तिम उपभोग खर्च का अर्थ एक देश में वर्तमान उपभोग पर वस्तुओं तथा सेवाओं के खर्च का योग होता है जो कि निजी परिवारों तथा निजी गैर-लाभकारी संस्थाओं द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 8.
अन्तिम निवेश खर्च से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में जो उत्पादन किया जाता है उसका सारा भाग उपभोग नहीं किया जाता बल्कि इसमें से कुछ भाग आने वाले समय में वस्तुओं के उत्पादन के लिए रख लिया जाता है जिसमें-

  • कुल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण
  • स्टॉक में परिवर्तन
  • शुद्ध निर्यात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 9.
पूँजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूँजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होते हैं जिनका भुगतान बचत या सम्पत्ति में से अदा किया जाता है। इस हस्तान्तरण को प्राप्त करने वाला अपनी बचत तथा सम्पत्ति में इसको शामिल कर लेता है।

प्रश्न 10.
साधन आगतों तथा गैर-साधन आगतों में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
साधन आगतों में उत्पादन के साधनों भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम को शामिल किया जाता है। इनको प्राथमिक आगतें कहते हैं। गैर-साधन आगतों में गैर-टिकाऊ उत्पादक वस्तुओं तथा सेवाओं को शामिल किया जाता है, जो कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती हैं। यह मध्यवर्ती वस्तुएँ होती हैं जिनको अन्तिम वस्तुओं के उत्पादन में प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 11.
मध्यवर्ती तथा अन्तिम वस्तुओं में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएँ-वह वस्तुएँ होती हैं, जिनका प्रयोग वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन में किया जाता है अथवा उनको दोबारा बिक्री के लिए प्रयोग किया जाता है। अन्तिम वस्तुएँ-वह वस्तुएँ हैं जिनका उत्पादन उनके उपभोग के लिए किया जाता है, अथवा इनका प्रयोग पूँजी निर्माण के लिए होता है।

प्रश्न 12.
घिसावट से क्या अभिप्राय है ? या स्थिर पूँजी का उपभोग क्या होता है ?
उत्तर-
स्थिर भण्डार का प्रयोग करते समय इसके मूल्य में जो कमी हो जाती है उसको घिसावट कहा जाता है और वस्तुओं का उत्पादन करते समय मशीनों, औज़ारों इत्यादि के मूल्य में जो कमी हो जाती है, उसको स्थिर पूंजी का उपभोग या घिसावट कहा जाता है।

प्रश्न 13.
खुली तथा बन्द अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बन्द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है, जिसका शेष विश्व के देशों से आर्थिक सम्बन्ध नहीं होता। खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसका आर्थिक सम्बन्ध अन्य देशों से होता है। यह एक व्यावहारिक धारणा है। इस अर्थव्यवस्था में आयात तथा निर्यात किया जाता है।

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प्रश्न 14.
स्टॉक में परिवर्तन या माल सची में परिवर्तन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्टॉक में परिवर्तन को माल सूची परिवर्तन भी कहा जाता है। एक फ़र्म द्वारा जिन वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, वह सारा माल बिकता नहीं। उसका कुछ भाग बच जाता है। दूसरे वर्ष जब फ़र्म उत्पादन करती है तो पिछले वर्ष जो माल बच गया था उसको प्रारम्भिक स्टॉक कहा जाता है और साल के अन्त में जो माल बच जाता है उसको अन्तिम स्टॉक कहा जाता है।

स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक |

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए किस प्रकार के आँकड़ों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का माप करने की तीन विधियां हैं। इन विधियों में निम्नलिखित प्रकार के आंकड़ों की आवश्यकता होती है।
1. उत्पादन विधि या मूल्य वृद्धि-उत्पादन विधि अथवा मूल्य वृद्धि विधि में साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि के आंकड़ों की आवश्यकता होती है। इनमें-

  • प्राथमिक क्षेत्र
  • गौण क्षेत्र
  • टरशरी क्षेत्र
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय के आँकड़ों की सहायता से राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।

2. आय विधि-आय विधि में उत्पादन के साधनों की वित्त वर्ष में प्राप्त शुद्ध आय का जोड़ किया जाता है। इसमें

  • शुद्ध लगान
  • शुद्ध ब्याज
  • शुद्ध मज़दूरी
  • शुद्ध लाभ तथा
  • विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय के आंकड़ों का जोड़ किया जाता है।

3. व्यय विधि-खर्च विधि में

  • निजी उपभोग खर्च
  • सरकारी उपभोग खर्च
  • सकल घरेलू पूँजी निर्माण
  • शुद्ध निर्यात
  • मूल्य ह्रास या घिसावट
  • शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
  • विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय के आँकड़ों की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2.
प्राथमिक क्षेत्र तथा गौण क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
प्राथमिक क्षेत्र तथा गौण क्षेत्र में मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं –

प्राथमिक क्षेत्रमा गौण क्षेत्र
1. प्राथमिक क्षेत्र में प्रकृति अधिक प्रभावशाली तत्त्व होता है। 1. गौण क्षेत्र में मनुष्य अधिक प्रभावशाली तत्त्व होता है।
2. प्राथमिक क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों से सम्बन्धित क्रियाएँ शामिल की जाती हैं। 2. गौण क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्र में उत्पादन वस्तुओं से सम्बन्धित क्रियाएँ शामिल की जाती है।
3. प्राथमिक क्षेत्र में कृषि उत्पादन महत्त्वपूर्ण होता है। 3. गौण क्षेत्र में औद्योगिक उत्पादन महत्त्वपूर्ण होता है।
4. प्राथमिक क्षेत्र में भूमि उत्पादन का मुख्य साधन होता है। 4. गौण क्षेत्र में पूँजी तथा उद्यमी उत्पादन का मुख्य साधन होता है।

प्रश्न 3.
(i) प्राथमिक क्षेत्र (ii) गौण क्षेत्र (iii) तीसरे क्षेत्र के उद्यमों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-

  • प्राथमिक क्षेत्र के उद्यम-इस क्षेत्र में प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग किया जाता है। इसमें भूमि उत्पादन का मुख्य साधन होता है। उद्यमी गेहूँ, चावल, कपास, मक्की आदि वस्तुओं का उत्पादन करते हैं।
  • गौण क्षेत्र के उद्यम-गौण क्षेत्र में उद्योगों द्वारा प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन का प्रयोग करके और वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है। जैसे-लकड़ी से मेज़ बनाना, सूत से कपड़ा बुनना आदि। यह वस्तुएं जीने के लिए आवश्यक होती हैं।
  • तीसरे क्षेत्र के उद्यम-तीसरा क्षेत्र सेवाओं का क्षेत्र है। इस क्षेत्र में बैंकिंग, बीमा, सेहत, शिक्षा आदि से सम्बन्धित सेवाएँ शामिल की जाती हैं। इन सेवाओं से मनुष्य का विकास होता है।

प्रश्न 4.
एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन इकाइयों का वर्गीकरण किस आधार पर किया जाता है ? उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
अथवा
संक्षेप में उत्पादन इकाइयों के प्राथमिक, गौण तथा तीसरे क्षेत्र के वर्गीकरण को स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था में उत्पादन इकाइयों को तीन भागों प्राथमिक, गौण तथा टरश्यरी क्षेत्र में विभाजित किया जाता है।

  1. प्राथमिक क्षेत्र की उत्पादन इकाइयाँ-इस क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों का प्रयोग करके उत्पादन किया जाता है। उदाहरण के लिए कृषि उत्पादन, मछली उत्पादन, लट्ठा बनाना आदि।
  2. गौण क्षेत्र की उत्पादन इकाइयाँ-इस क्षेत्र में प्राथमिक क्षेत्र के उत्पादन का प्रयोग करके और वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। जैसा कि कपास से कपड़ा बनाना, लोहे से साइकिल, स्कूटर तथा कार का निर्माण करना।
  3. सेवाओं या तीसरे क्षेत्र की उत्पादन इकाइयाँ-इस क्षेत्र से प्राथमिक तथा गौण क्षेत्र के उद्योगों को तीसरे क्षेत्र द्वारा सेवाएँ प्रदान की जाती हैं। जैसा कि जहाज़रानी, बीमा, बैंकिंग आदि के उद्यम इस क्षेत्र में शामिल किए जाते

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 5.
उत्पाद के मूल्य से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश में एक वित्तीय वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार कीमत पर मूल्य को उत्पादन का मूल्य कहते हैं । यदि उत्पादन की गई वस्तु की समस्त मात्रा बिक जाती है, तो उत्पाद का मूल्य बिक्री के मूल्य के समान होता है। यदि उत्पादन वस्तु की अधिक मात्रा बिक जाती है और कुछ भाग बिना बिक्री के कारण बच जाता है तो इसको माल सूची के रूप में रख लिया जाता है। माल सूची में परिवर्तन को स्टॉक में परिवर्तन कहा जाता है।

उत्पाद का मूल्य = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन स्टॉक में परिवर्तन का अर्थ है अन्तिम स्टॉक तथा प्रारम्भिक स्टॉक में अन्तर। इसलिए स्टॉक में परिवर्तन का माप करने के लिए हम अन्तिम स्टॉक में से प्रारम्भिक स्टॉक को घटा देते हैं। इस प्रकार उत्पाद के मूल्य का माप किया जाता है।

प्रश्न 6.
मूल्य वृद्धि को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
मूल्य वृद्धि का अर्थ है, उत्पाद का मूल्य (-) मध्यवर्ती उपभोग। उदाहरण के लिए एक किसान 1000 रुपए की गेहूँ का उत्पादन करता है। उसने गेहूँ का उत्पादन करने के लिए 400 रुपए खर्च किए। यह गेहूँ आटा मिल वाला खरीद लेता है तथा इससे आटा बनाकर दुकानदारों को 1500 रुपए में बेच देता है। दुकानदार यह आटा उपभोगियों को 2000 रुपए में बेच देते हैं। मूल्य वृद्धि का माप इस प्रकार किया जाएगा।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 1
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग
=4500 – 29000
= ₹ 1600 उत्तर

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय को मापने की आय विधि का वर्णन करें।
उत्तर –
राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए आय विधि एक महत्त्वपूर्ण विधि है। इस विधि द्वारा भिन्न-भिन्न उत्पादन के साधनों को प्राप्त होने वाली आय का योग किया जाता है। आय विधि की मुख्य अवस्थाएं इस प्रकार हैं-
प्रथम अवस्था-सबसे पहले उत्पादन की इकाइयों की पहचान की जाती है जिनको प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector), गौण क्षेत्र (Secondary Sector) तथा सेवाएं क्षेत्र (Teritiary Sector) में विभाजित किया जाता है।

दूसरी अवस्था- इस अवस्था में उत्पादन के साधनों की आय का वर्गीकरण किया जाता है जिसमें निम्नलिखित मुख्य भाग होते हैं

  • कर्मचारियों का मेहनताना
  • परिचालन अधिशेष
  • मिश्रित आय
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय।

3. तृतीय अवस्था-

  • उत्पादन के साधनों को किए गए भुगतान को घरेलू साधन आय कहा जाता है।
  • शुद्ध राष्ट्रीय आय = शुद्ध घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
  • सकल राष्ट्रीय आय = शुद्ध राष्ट्रीय आय + मूल्य घिसावट
  • बाजार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इस प्रकार आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है।

प्रश्न 8.
आय विधि से राष्ट्रीय आय की गणना करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित सावधानियों का ध्यान रखने की आवश्यकता है-

  1. गैर-कानूनी काम जैसे कि जुआ, तस्करी इत्यादि से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  2. आकस्मिक आय जैसे कि लॉटरी से प्राप्त आय तथा पूंजीगत लाभ को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  3. हस्तान्तरण आय जैसे कि बुढ़ापा पेन्शन, बेरोज़गारी भत्ता इत्यादि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  4. स्व-उपभोग के लिए रखी गई वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, परन्तु स्व-उपभोग की सेवाओं को इसमें शामिल नहीं किया जाता।
  5. पुरानी वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता परन्तु पुरानी वस्तुओं की बिक्री के कारण प्राप्त हुई दलाली अथवा कमीशन को शामिल किया जाता है।
  6. नए तथा पुराने शेयर, बाँड़ों को बेच कर प्राप्त होने वाली आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  7. मकान मालिकों के मकान का आरोपित किराया राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  8. लाभ अथवा निगम कर लाभांश तथा अविभाजित लाभ तीनों ही लाभ के अंश होते हैं । इसलिए यदि लाभ दिया गया हो तो अन्य अंशों को शामिल नहीं करना चाहिए।
  9. व्यक्तिगत आय कर कर्मचारियों की मेहनत का ही भाग होते हैं इसलिए आय कर देने से पूर्व ही कर्मचारियों के मेहनताने को शामिल किया जाता है।
  10. अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes) जैसे कि बिक्री कर, उत्पादन कर, वस्तु की कीमत में शामिल होते हैं। बाज़ार कीमत और राष्ट्रीय आय का अनुपात लगाते समय इनको अलग से शामिल नहीं किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 9.
मूल्य वृद्धि विधि की मुख्य अवस्थाओं को स्पष्ट करें।
अथवा
बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि का माप करते समय भिन्न-भिन्न अवस्थाओं की व्याख्या करें।
अथवा
एक उदाहरण की सहायता से मूल्य वृद्धि समझाइए।
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित अवस्थाएं होती हैं
1. प्रथम अवस्था (First Step)- इस विधि में एक देश की घरेलू सीमा में उद्यमों की पहचान की जाती है, जिनको तीन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है।

  • प्राथमिक क्षेत्र
  • गौण क्षेत्र
  • तीसरा क्षेत्र।

2. द्वितीय अवस्था (Second Step)-शुद्ध मूल्य वृद्धि का अनुमान लगाने के लिए उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत को घटाया जाता है। इस प्रकार मूल्य वृद्धि = उत्पादन का मूल्य — मध्यवर्ती वस्तुओं की लागत शुद्ध मूल्य वृद्धि = मूल्य वृद्धि – मूल्य घिसावट

3. तृतीय अवस्था (Third Step)-इसमें घरेलू सीमा के भीतर शुद्ध मूल्य वृद्धि का पता लगाकर अन्य धारणाओं का अनुमान लगाया जाता है। इस विधि के अनुसार राष्ट्रीय आय का माप इस प्रकार किया जाता हैराष्ट्रीय आय = प्राथमिक क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + सेवा क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि = सकल घरेलू मूल्य वृद्धि, बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद के बराबर होती है।

प्रश्न 10.
उत्पाद विधि में बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद के घटकों की व्याख्या करें।
उत्तर-
बाज़ार कीमत पर राष्ट्रीय उत्पाद का माप करते समय अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का योग किया जाता है, जिसके मुख्य घटक इस प्रकार हैं
बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद = उपभोगी वस्तुएं तथा सेवाएं (C) + कुल घरेलू निजी निवेश (I) + सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुएं तथा सेवाएं (G) + शुद्ध निर्यात (X – M) Gross National Product at Market Prices = C + I + G (X – M)

  • उपभोगी वस्तुएं तथा सेवाएं-इसमें टिकाऊ उपभोगी वस्तुएं, एक प्रयोग वाली उपभोगी वस्तुओं तथा उपभोगी सेवाएं शामिल की जाती हैं।
  • कुल घरेलू निजी निवेश-इसमें स्टॉक में निवेश, आवास निर्माण, सकल घरेलू निजी स्थिर पूंजी निर्माण को शामिल किया जाता है।
  • सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुएं तथा सेवाएं-इसमें सरकारी निवेश तथा वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन को शामिल किया जाता है।
  • शुद्ध निर्यात-इसमें निर्यात में से आयात का मूल्य घटा कर राष्ट्रीय आय का पता किया जाता है। यदि हम इन वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य बाज़ारी कीमतों पर ज्ञात करके जोड़ लेते हैं तो इसको बाज़ार कीमतों पर कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहा जाता है।

प्रश्न 11.
मूल्य वृद्धि विधि में घरेलू साधन आय के मुख्य घटकों की व्याख्या करें।
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि में राष्ट्रीय आय का माप करते समय उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं के उपभोग को घटाया जाता है। इससे वस्तु की दो बार गणना की समस्या का हल हो जाता है। मूल्य वृद्धि विधि वह विधि है जो घरेलू सीमा के भीतर प्रत्येक उत्पादक के उद्यम का माप करती है। इस विधि में घरेलू साधन आय के मुख्य घटक इस प्रकार होते हैं-
घरेलू साधन आय = प्राथमिक क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + तीसरे क्षेत्र में मूल्य वृद्धि – मूल्य घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
जब हम भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बाज़ार कीमत पर कुल मूल्य वृद्धि का माप कर लेते हैं तो हमारे पास बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि अथवा सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त होता है।

इसमें से मूल्य घिसावट घटाने से बाज़ार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि अथवा शुद्ध घरेलू उत्पाद प्राप्त हो जाता है। यदि इसमें से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता) घटा दिया जाए तो साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि अथवा घरेलू साधन आय प्राप्त हो जाती है। यदि हम राष्ट्रीय आय ज्ञात करना चाहते हैं तो हम घरेलू साधन आय में विदेशों से शुद्ध साधन आय का योग कर लेते हैं।

प्रश्न 12.
उत्पाद विधि की मुख्य सावधानियां बताएं।
अथवा
मूल्य वृद्धि विधि की मुख्य सावधानियों को स्पष्ट करें।
उत्तर-

  1. इस विधि में पुरानी वस्तुओं की खरीद अथवा बेच से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, परन्तु पुरानी वस्तुओं की बेच से कमीशन अथवा दलाली को शामिल किया जाता है।
  2. स्व-उपभोग के लिए उत्पादित वस्तुओं के आरोपित मूल्य (Imputed Value) को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, परन्तु स्व-उपभोग की सेवाओं को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता।
  3. मध्यवर्ती वस्तुओं के मूल्य को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता, परन्तु अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को मूल्य वृद्धि में शामिल किया जाता है।
  4. जिन मकानों में मालिक स्वयं निवास करते हैं उनके आरोपित किराए (Imputed Rent) को मूल्य वृद्धि में शामिल किया जाता है।
  5. सरकारी क्षेत्र में कर्मचारियों के मेहनताने को ही शामिल किया जाता है, जबकि इस क्षेत्र में लाभ, ब्याज, घिसावट के उचित आंकड़े प्राप्त न होने के कारण इनको शामिल नहीं किया जाता।
  6. मूल्य वृद्धि द्वारा घरेलू उत्पाद की गणना की जाती है। यदि हम राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात करना चाहते हैं तो इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 13.
उत्पाद विधि की मुख्य कठिनाइयों का वर्णन करें।
उत्तर-
उत्पाद विधि की मुख्य कठिनाइयां इस प्रकार हैं-

  • राष्ट्रीय आय का माप करते समय केवल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को ही शामिल किया जाता है, परन्तु साधारणतया दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है।
  • कम विकसित देशों में वस्तु विनिमय प्रणाली (Barter system) प्रचलित होती है। इसलिए राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाना कठिन हो जाता है।
  • वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य का माप बाज़ार में प्रचलित कीमतों द्वारा किया जाता है, परन्तु बाज़ार कीमतों में परिवर्तन होता रहता है, इसलिए राष्ट्रीय आय का उचित अनुमान नहीं लगाया जा सकता।
  • स्व-उपभोग की वस्तुओं का आरोपित मूल्य (Imputed Value) राष्ट्रीय आय के माप में शामिल किया जाता है, परन्तु आरोपित मूल्य का उचित अनुमान लगाना कठिन होता है।
  • राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित उचित आंकड़े प्राप्त नहीं होते क्योंकि लोग अशिक्षित तथा अज्ञानी होते हैं। इसलिए राष्ट्रीय आय की गणना करते समय कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
दोहरी गणना की समस्या पर नोट लिखें।
उत्तर-
उत्पाद विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय केवल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य जोड़ा जाता है। मध्यवर्ती मूल्य को शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इससे एक वस्तु का मूल्य एक से अधिक बार राष्ट्रीय आय में शामिल हो जाता है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय का उचित अनुमान नहीं लगाया जा सकता, बल्कि इससे राष्ट्रीय आय अधिक नज़र आती है। इसको दोहरी गणना की समस्या कहते हैं। उदाहरणतया एक किसान 1,000 रुपए की कपास पैदा करता है तथा धागा बनाने वाली फैक्टरी को बेच देता है।

धागा फैक्टरी इससे धागा बनाकर 1,800 रुपए में कपड़ा बनाने वाली फैक्टरी को बेच देती है। कपड़ा फैक्टरी इसका कपड़ा बनाकर 5,000 रुपए में उपभोक्ताओं को बेच देती है। यदि हम तीनों उत्पादकों के मूल्य को जोड़ते हैं तो हमारे पास उत्पादन मूल्य 1,000 + 1,500 + 5,000 = 7,500 रुपए प्राप्त होता है।

परन्तु इसको शुद्ध उत्पाद नहीं कहा जाता। हम देखते हैं कि वास्तविक उत्पादन कपड़े का हुआ है जिसका मूल्य 5,000 रुपए है। इसलिए इसको ही राष्ट्रीय आय में जोड़ना चाहिए। यदि मध्यवर्ती वस्तुओं कपास तथा धागे के मूल्य को शामिल किया जाए तो इससे दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है। इसका हल मूल्य वृद्धि विधि द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 15.
राष्ट्रीय आय के माप के लिए खर्च विधि का वर्णन करें।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय के माप की तृतीय विधि खर्च विधि है। इस विधि को उपभोग तथा निवेश विधि अथवा आय खर्च विधि भी कहा जाता है। इस विधि के अनुसार एक लेखा वर्ष में बाजार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद पर किए गए अन्तिम खर्च का माप किया जाता है। अन्तिम खर्च दो प्रकार का होता है
(i) उपभोग खर्च (Consumption Expenditure)
(ii) निवेश खर्च (Investment Expenditure)

(i) उपभोग खर्च को दो भागों में विभाजित किया जाता है-
(a) निजी अन्तिम उपभोग खर्च
(b) सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च

(ii) निवेश खर्च को तीन भागों में विभाजित किया जाता है
(a) सकल स्थाई पूंजी निर्माण
(b) स्टॉक में परिवर्तन
(c) शुद्ध निर्यात।
इस प्रकार यदि हम अन्तिम उपभोग खर्च का योग कर लेते हैं तो बाज़ार कीमत पर कुल उत्पाद खर्च का मूल्य प्राप्त हो जाता है अर्थात्
+ सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च (G) + घरेलू निवेश खर्च (I)
+ शुद्ध विदेशी निवेश (X – M)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय का माप खर्च विधि द्वारा करते समय क्या सावधानियां प्रयोग करनी चाहिएं ?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का माप करते समय खर्च विधि में निम्नलिखित सावधानियों का प्रयोग करना चाहिए

  1. सरकार द्वारा किए गए हस्तान्तरण भुगतान तथा खर्च को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  2. पुराने अथवा नए शेयर व बांड पर किया गया खर्च कुल खर्च में शामिल नहीं किया जाता।
  3. कुल खर्च का माप करते समय मध्यवर्ती खर्च को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता केवल अन्तिम खर्च को ही शामिल किया जाता है।
  4. पुरानी वस्तुओं पर किए गए खर्च को कुल खर्च में शामिल नहीं किया जाता।
  5. कुल खर्च में कुल निवेश को शामिल किया जाता है। इसमें घिसावट का खर्च भी शामिल होता है।
  6. निर्यात में देश-वासियों को विदेशों से प्राप्त ब्याज, लगान, लाभ तथा मज़दूरी शामिल किए जाते हैं। इसी प्रकार आयात में विदेशियों द्वारा हमारे देश में से प्राप्त लाभ, ब्याज, इत्यादि को शामिल किया जाता है। इस प्रकार शुद्ध निर्यात का माप निर्यात में से आयात घटा कर किया जाता है।

प्रश्न 17.
राष्ट्रीय आय मापने की विधियों की समानता पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय के माप के लिए आय विधि, उत्पाद विधि तथा खर्च विधि का प्रयोग किया जाता है। इन तीनों विधियों द्वारा राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है तो प्राप्त नतीजे में समानता पाई जाती है क्योंकि तीनों विधियां राष्ट्रीय आय का माप भिन्न-भिन्न स्तरों पर करती हैं जैसे कि आय विधि में राष्ट्रीय आय का माप आय सृजन (Income Generation) के स्तर पर किया जाता है। उत्पाद विधि में राष्ट्रीय आय का माप अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन स्तर (Production of final goods and services) द्वारा किया जाता है।

खर्च विधि में राष्ट्रीय आय का माप उपभोग खर्च तथा निवेश खर्च (Consumption and Expenditure) के स्तर पर किया जाता है। इन विधियों में से किसी भी विधि का प्रयोग किया जाए, परिणाम समान निकलते हैं। इस कारण तीनों विधियों में समानता पाई जाती है अर्थात् सकल राष्ट्रीय आय = सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय खर्च।

प्रश्न 18.
विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी देश के निवासियों द्वारा विदेशों में उत्पादन के साधन तथा सेवाएं प्रदान की जाती हैं जिसके बदले में उनको आय प्राप्त होती है। इस देश में गैर-निवासी भी साधन सेवाएं प्रदान करते हैं। इससे वह जो आय अर्जित करते हैं वह विदेशों को चली जाती है। इस देश के साधनों द्वारा प्राप्त की गई आय तथा विदेशियों द्वारा इस देश में से प्राप्त की गई आय के अन्तर को विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय कहा जाता है। विदेशों से शद्ध साधन आय धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकती है। जब किसी देश की घरेलू आय ज्ञात हो तथा हम राष्ट्रीय आय ज्ञात करना चाहते हैं तो घरेलू आय में विदेशों से शुद्ध साधन आय को जोड़ा जाता है। घरेलू आय राष्ट्रीय आय से कम भी हो सकती है अथवा अधिक भी हो सकती है।

प्रश्न 19.
आय विधि, उत्पाद विधि तथा खर्च विधि के मुख्य घटक बताएं।
उत्तर-

  • आय विधि (Income Method) के मुख्य घटक बाजार कीमत पर राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।
  • उत्पाद विधि (Value Added Method) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर प्राथमिक क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + बाज़ार कीमत पर गौण क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + बाज़ार कीमत पर तृतीय क्षेत्र में सकल मूल्य वृद्धि + विदेशों में शुद्ध साधन आय।
  • खर्च विधि (Expenditure Method) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 20.
आय विधि में घरेलू साधन आय के घटकों की व्याख्या करें।
उत्तर-
आय विधि में घरेलू साधन आय के मुख्य घटक निम्नलिखित हैं
1. कर्मचारियों की मेहनत (Compensation of Employees)-कर्मचारियों की मेहनत से अभिप्राय उत्पादकों द्वारा अपने कर्मचारियों को काम के बदले में किए गए भुगतान से होता है। कर्मचारियों के वेतन तथा मजदूरी के मुख्य अंश इस प्रकार होते हैं

  • नकद मज़दूरी तथा वेतन
  • किस्म के रूप में आय
  • सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का योगदान।

2. परिचालन अधिशेष (Operating Surplus)-इसमें सम्पत्ति से प्राप्त आय तथा उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है। परिचालन अधिशेष की मुख्य मदें इस प्रकार हैं

  • किराया तथा रायल्टी
  • ब्याज
  • लाभ (लाभांश + निगम कर + अविभाजित लाभ)।

3. मिश्रित आय (Mixed Income)-मिश्रित आय से अभिप्राय स्व-रोज़गार पर लगे लोगों की काम तथा सम्पत्ति दोनों से प्राप्त मिश्रित आय से होता है। उदाहरणतया किसान, दुकानदार, प्राइवेट डॉक्टर को प्राप्त होने वाली आय में उनकी मेहनत की मज़दूरी, पूंजी का ब्याज, भूमि अथवा मकान का किराया तथा उद्यमवृत्ति से प्राप्त लाभ इत्यादि शामिल होते हैं। इस कारण इस आय को मिश्रित आय कहा जाता है।

(A) मूल्य वृद्धि या उत्पाद विधि (Value Added Or Product Method)
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न । (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मूल्य वृद्धि विधि या उत्पाद विधि से क्या अभिप्राय है ? इस विधि द्वारा राष्ट्रीय आय को मापने में जुड़ने वाले चरणों की रूप-रेखा स्पष्ट करें। मूल्य वृद्धि विधि की सावधानियां बताएं।
(Give an outline of the steps involved in the estimation of National Product by Value Added Method or Product Method. Explain the precautions in Value Added Method.)
उत्तर-
राष्ट्रीय उत्पाद या राष्ट्रीय आय की गणना के लिए उत्पाद विधि अथवा मूल्य वृद्धि विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि को शुद्ध उत्पाद विधि (Net Output Method) या औद्योगिक मूल्य विधि (Industrial Origin Method) भी कहा जाता है। मूल्य वृद्धि विधि वह विधि है जिसमें राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए एक देश में एक लेखा वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का दोहरी गणना के बिना माप होता है।
(Value Added Method or Product Method is the method of measurement of national income by adding the goods and services produced in the domestic territory of a country in a year without double counting.)

मूल्य वृद्धि विधि से राष्ट्रीय आय के माप की अवस्थाएं (Steps in measurement of National Income in Value Added Method)

1. प्रथम अवस्था (First Step)—इसमें सर्वप्रथम देश की उत्पादक इकाइयों का वर्गीकरण तीन क्षेत्रों में किया जाता है-
(i) प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector)-इस क्षेत्र में प्राकृतिक साधनों के प्रयोग द्वारा उत्पादन किया जाता है। इसके उप-क्षेत्र हैं
(a) कृषि तथा पशुपालन
(b) जंगल उद्योग तथा शहतीर बनाना
(c) मछली उद्योग
(d) खानों का उत्पादन।

(ii) गौण क्षेत्र (Secondary Sector)-इसके उप-क्षेत्र हैं
(a) उद्योग
(b) निर्माण
(c) जल आपूर्ति, विद्युत् गैस इत्यादि।

(iii) तीसरा क्षेत्र (Tertiary Sector)-इसके उप-क्षेत्र हैं—
(a) यातायात, संचार तथा संग्रहण
(b) व्यापार, होटल तथा जलपान गृह
(c) बैंक तथा बीमा
(d) स्थिर सम्पत्ति, मकानों की मालकी तथा व्यापारिक सेवाएं
(e) सार्वजनिक प्रशासन तथा सुरक्षा
(f) अन्य सेवाएं।

2. दूसरी अवस्था (Second Step)-दूसरी अवस्था में हर एक उत्पादन इकाई के मूल्य का माप किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए उत्पाद के मूल्य में से मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य निकाल दिया जाए तो हमारे पास कुल मूल्य वृद्धि प्राप्त हो जाती है।
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग Value Added = Value of Output – Intermediate Consumption

(A) उत्पाद का मूल्य-वह मूल्य है जोकि एक फ़र्म द्वारा एक साल में वस्तुओं तथा सेवाओं को बाज़ार में प्रचलित कीमत पर गुणा करने से प्राप्त होता है। फ़र्म द्वारा एक वर्ष में जो उत्पादन किया जाता है इसका कुछ भाग बिक जाता है तथा कुछ भाग स्टॉक के रूप में बच जाता है। इसलिए उत्पाद का मूल्य = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन
Value of Output = Sales + Change in Stock
स्टॉक में परिवर्तन प्रारम्भिक स्टॉक में से अन्तिम स्टॉक को घटाने से प्राप्त होता है।
स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक
Change in Stock = Closing Stock – Opening Stock

(B) मध्यवर्ती उपभोग-उत्पादन प्रक्रिया के दौरान कच्चे माल पर जो खर्च किया जाता है उसको मध्यवर्ती उपभोग कहा जाता है। इसमें उत्पादन के साधनों भूमि, श्रम, पूंजी तथा उद्यमकर्ता की लागत को शामिल नहीं किया जाता। इस प्रकार मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करने के लिए उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटाया जाता है। इस विधि में राष्ट्रीय आय की दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न नहीं होती।

उदाहरण के लिए एक किसान ₹ 1000 के मूल्य की कपास पैदा करता है। उसने कच्चे माल के रूप में ₹ 300 खर्च किए हैं। किसान को हम फ़र्म A कहते हैं। फर्म A ने यह कपास फ़र्म B को बेच दी जोकि धागे का उत्पादन करती है तथा फ़र्म B ने ₹ 1500 मूल्य का धागा बनाकर फर्म C को बेच दिया। फ़र्म C ने इस धागे से कपड़ा बनाकर उपभोगियों को ₹ 2500 में बेच दिया। मूल्य वृद्धि का माप इस प्रकार किया जाएगा –

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 2
मूल्य वृद्धि = उत्पाद का मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग
= 5000 – 2800 = ₹ 2200
फ़र्म A द्वारा मूल्य वृद्धि = 1000 – 300 = ₹ 700
फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि = 1500 – 1000 = ₹ 500
फ़र्म C द्वारा मूल्य वृद्धि = 2500 – 1500 = ₹ 1000
कुल मूल्य वृद्धि Gross Value Added = ₹ 2200
इसको बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

3. तीसरी अवस्था (Third Step)-अब राष्ट्रीय आय की धारणाओं का अध्ययन करते हैं। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित मदों को ध्यान में रखना चाहिए

  • मूल्य ह्रास या घिसावट (Depreciation)
  • शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes = Indirect Taxes – Subsidies)
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from Abroad) राष्ट्रीय आय का माप करते समय मूल्य वृद्धि से सम्बन्धित निम्नलिखित धारणाएं होती हैं

1. कुल मूल्य वृद्धि = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद Gross Value Added = Gross Domestic Product at Market Prices
बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि एक देश की घरेलू सीमा में एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य होता है।
2. बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – घिसावट
Gross Domestic Product at Market Prices = GDPMP – Depreciation
3. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
Net Domestic Product at Factor Cost = NDPMP – Net Indirect Taxes
4.साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय
Net National Product at Factors Cost = NDPFC + Net Factor Income from Abroad
अथवा
5. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का मुआवज़ा लाभ + लगान + ब्याज + मिश्रित आय
NNPFC = N.I. = Compensation of Employees + Rent + Interest + Profit + Mixed Income.

प्रश्न 2.
मूल्य वृद्धि विधि या उत्पादन विधि की सावधानियां बताएं। (Explain the Precautions of Value Added Method or Product Method.)
उत्तर-
मूल्य वृद्धि विधि या उत्पादन विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय कुछ मदों को शामिल किया जाता है तथा कुछ मदों को शामिल नहीं किया जाता।
कौन-सी मदों को शामिल नहीं करना चाहिए (Which Items should be Excluded)-

  • पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय-पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि यह चालू वर्ष में उत्पादन नहीं की गईं।
  • गैर-कानूनी कामों से आय-गैर-कानूनी काम जैसा कि जुआ, समगलिंग, चोरी इत्यादि से आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य-मध्यवर्ती वस्तुओं को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इससे दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • स्व-उपभोग की सेवाएं-स्व-उपभोग की सेवाओं को मूल्य वृद्धि में शामिल नहीं किया जाता जैसा कि पिता द्वारा पुत्र को पढ़ाना, इत्यादि क्योंकि इनके सेवा फल का अनुमान लगाना कठिन होता है।
  • कम्पनी द्वारा ब्रान्ड की बिक्री-किसी कम्पनी द्वारा ब्रान्डस की बिक्री से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में _शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह वित्तीय लेन-देन है।

कौन-सी मदों को मूल्य वृद्धि में शामिल करना चाहिए
(Which Items should be Included in Value Added)

  • पुरानी वस्तुओं की बिक्री से दलाली-पुरानी वस्तुओं की बिक्री से दलाली को राष्ट्रीय आय में शामिल करना चाहिए क्योंकि यह वर्तमान सेवा का फल है।
  • उत्पादकों द्वारा स्व-उपभोग-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह उत्पादन बाज़ार में बिक्री के लिए नहीं आता इसलिए इस उत्पादन का आरोपित मूल्य शामिल किया जाता है।
  • मकान मालिकों का आरोपित किराया-जिन मकानों में मालिक स्वयं रहते हैं उनका आरोपित किराया, राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  • सरकारी क्षेत्र में कर्मचारियों का मेहनताना-सरकारी क्षेत्र में राष्ट्रीय आय का माप करते समय सरकारी क्षेत्र के कर्मचारियों का मेहनताना शामिल किया जाता है। लगान, ब्याज तथा लाभ को शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इनके आंकड़े प्राप्त नहीं होते।
  • पूंजी का स्व-लेखा उत्पादन-सरकारी, निगमित तथा पारिवारिक क्षेत्र में उत्पन्न की गई अचल पूंजी को भी राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  • अन्तिम वस्तुओं का मूल्य-उत्पाद विधि में राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय केवल अन्तिम वस्तुओं के मूल्य को ही शामिल किया जाता है।

प्रश्न 3.
दोहरी माप की समस्या से क्या अभिप्राय है ? राष्ट्रीय आय का माप करते समय दोहरे माप की समस्या को कैसे दूर किया जा सकता है ?
उत्तर-
दोहरी माप की समस्या का अर्थ (Meaning of Problem of Double Counting) उत्पादन विधि द्वारा जब राष्ट्रीय आय का माप किया जाता है तो इसमें केवल अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं को ही शामिल किया जाता है। कई बार मध्यवर्ती वस्तुओं की गणना भी हो जाती है जिससे दोहरी गणना की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है। दोहरी गणना का अर्थ किसी वस्तु के मूल्य को एक बार से अधिक बार राष्ट्रीय आय में शामिल करने से होता है परन्तु सब वस्तुएं अन्तिम वस्तुएं नज़र आती हैं जबकि उनका प्रयोग मध्यवर्ती वस्तुओं के रूप में होता है। इसको हम एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैं मान लीजिए एक किसान गेहूं उत्पन्न करता है तथा एक आटा मिल वाले को 1000 रुपए की बेच देता है।

आटा मिल वाले के लिए गेहूं अन्तिम मध्यवर्ती वस्तु है जिसको वह आटे में बदलकर बेकरी वाले को 1500 रुपए में बेच देता है। आटा मिल के लिए आटा अन्तिम वस्तु है पर बेकरी वाले के लिए यह मध्यवर्ती वस्तु है क्योंकि बेकरी वाला इससे बिस्कुट बनाकर अन्तिम उपभोक्ताओं को 2000 रुपए में बेच देता है। यदि हम प्रत्येक आदान-प्रदान को राष्ट्रीय आय में शामिल कर लेते हैं तो उससे वस्तु का उत्पादन मूल्य बहुत अधिक हो जाता है जबकि मूल्य वृद्धि इस बात को प्रकट करती है कि वस्तु के मूल्य में कितनी वृद्धि हुई है, उसको राष्ट्रीय आय में शामिल करना चाहिए।

यदि हम कुल उत्पाद का मूल्य राष्ट्रीय आय में शामिल करते हैं तो इसमें एक वस्तु का मूल्य कई बार जुड़ जाता है। इसलिए दोहरी गणना से बचने के लिए अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मूल्य को राष्ट्रीय में जोड़ना चाहिए जैसे कि बेकरी वाले ने अन्तिम उपभोक्ताओं को 2000 रुपए के बिस्कुट बेचे हैं जिसको राष्ट्रीय आय में शामिल करना चाहिए। लेकिन इस विधि में ग़लती होने की सम्भावना होती है तथा किसी मध्यवर्ती वस्तु का मूल्य इसमें जुड़ जाए तो दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

दोहरी गणना की समस्या का हल (Solution of the Problem of Double Counting) – राष्ट्रीय आय का माप करते समय यदि हम मूल्य वृद्धि (Value Added) की विधि को अपनाते हैं, तो दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न नहीं होती। इसको निम्नलिखित सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है|
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 3
उत्पादन का मूल्य = ₹4500
मध्यवर्ती वस्तु का मूल्य = ₹ 2500
मूल्य वृद्धि = ₹ 2000
इस प्रकार यदि हम उत्पादन का मूल्य शामिल करते हैं तो ₹ 4500 का उत्पादन किया गया है। परन्तु इसमें से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य 2500 भी शामिल है। यदि हम उत्पाद मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटा देते हैं तो इससे अन्तिम वस्तु का मूल्य प्राप्त हो जाता है जिसको मूल्य वृद्धि कहा जाता है। मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय दोहरी गणना की समस्या का हल हो जाता है।

याद रखें मूल्य वृद्धि विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना (Measurement of National Income with Value Added Method)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 4

  1. प्राथमिक क्षेत्र में बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि
  2. गौण क्षेत्र में बाजार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि
  3. तीसरे क्षेत्र में बाज़ार कीमत पर सकल मूल्य वृद्धि
  4. मूल्य ह्रास या मूल्य घिसावट
  5. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – सहायता)
  6. विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय।

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर फ़र्म A तथा फ़र्म B द्वारा की गई मूल्य वृद्धियों का आंकलन करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 5
हल (Solution):
फ़र्म A तथा फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 6
फ़र्म A द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – खरीद
= 110 + (-15) – 80
= ₹ 15 लाख उत्तर

फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – खरीद
= 90 + (-10) – 50
= ₹ 30 लाख उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर फ़र्म x तथा फ़र्म Y द्वारा की गई मूल्य वृद्धियों को ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 7
हल (Solution) :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 8
फ़र्म X द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री + भण्डार में परिवर्तन – खरीद
= 300 + 20 – 70
= ₹ 250 लाख उत्तर
फ़र्म Y द्वारा मूल्य वृद्धि = 500 + 10 – 450 = ₹ 60 लाख उत्तर

प्रश्न 3.
निम्न आंकड़ों द्वारा फ़र्म A तथा फ़र्म B की मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 9
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 10
हल (Solution) :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 11
फ़र्म A द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 450 लाख
फ़र्म B द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 170 लाख उत्तर

प्रश्न 4.
निम्न आंकड़ों के आधार पर C उद्योग की मूल्य वृद्धि ज्ञात करें-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 12
हल (Solution) :
उद्योग A, B, C तथा D द्वारा कुल बिक्री = ₹ 130 लाख

  • उद्योग, A द्वारा मूल्य वृद्धि = बिक्री – खरीद = ₹ 20 – 0 = 20 लाख
  • उद्योग B द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 40 लाख
  • उद्योग D द्वारा मूल्य वृद्धि = ₹ 30 लाख
  • उद्योग A, B तथा D द्वारा मूल्य वृद्धि = 20 + 40 + 30 = ₹ 90 लाख
  • उद्योग C द्वारा मूल्य वृद्धि = 130 – 90 = ₹ 40 लाख उत्तर

(A, B, C, D द्वारा मूल्य वृद्धि – ABD द्वारा मूल्य-वृद्धि)

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 13
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 14
हल (Solution) :
साधनं लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक – मध्यवर्ती उपभोग — बिक्री कर + सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 1000 + 80 – 40 – 640 – 30 + 10 – 100 = ₹ 280 लाख उत्तर

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा फर्म A की बाज़ार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 15
हल (Solution) :
बाजार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – घिसावट – मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद
= 700 + 40 – 80 – 400 = ₹ 260 हज़ार उत्तर

प्रश्न 7.
फ़र्म A ने ₹500 गैर-साधन आगतों (Inputs) पर खर्च किए और ₹ 900 के मूल्य की वस्तुओं का उत्पादन किया। इसने ₹ 600 के मूल्य की वस्तुएं फ़र्म B तथा ₹ 300 के मूल्य की वस्तुएं उपभोक्ताओं को बेचीं। फ़र्म A की सकल मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
हल (Solution):
फ़र्म A द्वारा सकल मूल्य वृद्धि = उत्पादन वस्तुओं का मूल्य – ग़ैर-साधन आगतों पर खर्च  = 900 (600 + 300) – 500 = ₹400 उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 16
हल (Solution):
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक) – मूल्य घिसावट – उत्पादन कर – मध्यवर्ती उपभोग ।
= 200 + 10 – 15 – 12 – 20 – 48 = ₹ 115 लाख उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(क) उत्पादन का मूल्य
(ख) साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 17
हल-
(क) उत्पादन का मूल्य – बिक्री + स्टॉक में वृद्धि
= 27,560 + 1,690
= ₹ 29,250 करोड़ उत्तर

(ख) साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में वृद्धि – मध्यवर्ती उपभोग – अप्रत्यक्ष कर – स्थाई पूंजी का उपभोग + आर्थिक सहायता = 27,560 + 1,690 – 3,575 – 2,000 – 1,345 + 1,550
= ₹ 23,880 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए।
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
(ग) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 18
हल (Solution) :
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = बिक्री + साल के अन्त में स्टॉक – साल के आरम्भ में स्टॉक – मध्यवर्ती उपभोग
= 70,000 + 25,000 – 5,000 – 10,000 = ₹ 80,000 लाख उत्तर
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट लागत = 80,000 – 1,000 = ₹ 79,000 लाख उत्तर
(ग) राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता = 79,000 – 300 + 100 = ₹ 78,800 लाख उत्तर

(B) आय विधि (Income Method)
IV. दीर्घ उरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के माप की आय विधि की व्याख्या करें।
(Explain the Income Method for measurement of National Income.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का अर्थ एक वर्ष में एक देश के साधारण निवासियों द्वारा उत्पादित आय के साधनों के रूप में कार्य करने से जो आय मज़दूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होती है, उसके योग को राष्ट्रीय आय कहा (The sum of incomes accuring to the factors of Production supplied by the norma! Residents of a country during a year is called National Income.) एक वर्ष में उत्पादन के साधनों श्रम, पूंजी, भूमि तथा उद्यम को कार्य करने के बदले में मजदूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ के रूप में जो आप प्राप्त हाती है, उसके योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। आय विधि को साधन भुगतान विधि (Factor Paynient Method) अथवा वर्गीकृत कार्यों के अनुसार विधि (Distributed Share Method) भी कहा जाता।

उत्पादन प्रक्रिया के परिणामस्वरूप आय का सृजन होता है। उत्पादन के समय जो आय उत्पादन के साधनों को प्राप्त होती है उसको उद्यमियों की साधन लागत तथा उत्पादन के साधनों की आय कहा जाता है। आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित अवस्थाओं में से निकलना पड़ता है-
1. प्रथम अवस्था (First Stage)-इस विधि में सबसे पहले देश की घरेलू सीमा के भीतर आने वाली इकाइयों का पता किया जाता है जिनको प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector), गौण क्षेत्र (Secondary Sector) तथा तृतीय क्षेत्र (Teritiary Sector) में विभाजित किया जाता है।

2. द्वितीय अवस्था (Second Stage)-इसके पश्चात् उत्पादन इकाइयों को दिए जाने वाले भुगतान का अनुमान लगाया जाता है जैसे कि-
(a) कर्मचारियों की मेहनत-मज़दूरी तथा वेतन + किस्म के रूप में आय + सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का योगदान + रिटायर हुए कर्मचारियों की पेन्शन।
(b) परिचालन अधिशेष-इसमें सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है जिसमें निम्नलिखित आय शामिल होती है

  • किराया अथवा लगान तथा रायल्टी
  • ब्याज
  • लाभ (लाभांश + निगम कर + उद्यमियों की बचत या अविभाजित लाभ)

(c) मिश्रित आय-इसमें स्व-रोज़गार पर लगे लोगों के कार्य तथा सम्पत्ति से प्राप्त आय शामिल होती है। यदि हम ऊपर दी गई आय का योग कर लेते हैं तो इसको शुद्ध घरेलू आय कहा जाता है।

(d) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय-एक देश के लोगों द्वारा विदेशों में प्रदान की गई साधन सेवाओं के बदले में प्राप्त होने वाली आय तथा एक देश की घरेलू सीमा के भीतर गैर-निवासियों द्वारा सेवाओं के बदले में दी जाने वाली आय के अन्तर को शुद्ध विदेशी साधन आय कहा जाता है। यदि हम शुद्ध घरेलू आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को जोड़ लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय (National Income) कहते हैं।

3. तृतीय अवस्था (Third Stage)-इस अवस्था में साधन आय का अनुमान लगाया जाता है। विभिन्न धारणाओं को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  • शुद्ध घरेलू आय (NDPFC) कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय
  • शुद्ध राष्ट्रीय आय अथवा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट अथवा शुद्ध घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय = शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट
  • सकल राष्ट्रीय आय या साधन लागतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट
  • बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय-कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर अथवा = सकल राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर

प्रश्न 2.
आय विधि में ध्यान रखने योग्य सावधानियों का वर्णन करें। (Explain the Precautions regarding Income Method.)
अथवा
राष्ट्रीय आय का माप करते समय आय विधि में कौन-सी मदों को शामिल किया जाता है तथा कौन-सी मदों को शामिल नहीं किया जाता ?
(Which items should be included in National Income and which items should not be included in National Income while calculating National Income in Income Method ?)
उत्तर-
आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय कुछ मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है जबकि कुछ अन्य मदों को शामिल नहीं किया जाता। निम्नलिखित मदों से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाएगा (Items to be included in National Income)
राष्ट्रीय आय का माप करते समय आय विधि में उन स्रोतों से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है जोकि उत्पादक होती हैं तथा जिन क्रियाओं को करने की सरकार आज्ञा देती है अर्थात् कानूनी (Legal) तथा उत्पादक (Productive) क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह आय का सृजन करती है।

  1. गायक, डान्सर तथा अभिनेताओं की आय राष्ट्रीय आय में शामिल की जाती है।
  2. सरकार द्वारा निःशुल्क इलाज पर खर्च, सड़कों, नहरों तथा रोशनी पर खर्च राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता
  3. सरकारी कर्मचारियों को दिया जाने वाला मेडिकल भत्ता राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  4. भविष्य निधि में श्रमिकों का योगदान राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  5. मूल्य घिसावट को कुल उत्पादन में शामिल किया जाता है परन्तु शुद्ध उत्पादन में शामिल नहीं किया जाता।
  6. निगम कर, लाभांश तथा अविभाजित लाभ, यह लाभ के भाग होते हैं इसलिए इनको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, परन्तु यदि लाभ दिया गया हो तो यह तीनों भाग उसमें शामिल होते हैं। इसलिए इनको अलग से शामिल नहीं किया जाता।
  7. मज़दूरी, किस्म के रूप में मजदूरी तथा सामाजिक सुरक्षा, भविष्य निधि इत्यादि कर्मचारियों के मेहनताने के भाग होते हैं। यदि कर्मचारियों का मेहनताना शामिल किया जाता है तो इनको अलग से शामिल नहीं किया जाता।
  8. जिन मकानों में मकान मालिक स्वयं रहते हैं उनका आरोपित किराया राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  9. पुरानी वस्तुओं की बिक्री पर दी जाने वाली दलाली को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

अग्रलिखित मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता (Items not to be Included in National Income)-

  • हस्तान्तरण भुगतान जैसे कि बुढ़ापा पेन्शन, बेरोज़गारी भत्ता इत्यादि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • गैर-कानूनी कामों जैसे कि जुआ, समगलिंग, चोरी इत्यादि से प्राप्त आय को इसमें शामिल नहीं किया जाता।
  • स्व-उपभोग सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता जबकि स्व-उपभोग वस्तुओं को इसमें शामिल किया जाता है।
  • पुरानी वस्तुओं जैसे कि पुराना मकान, पुरानी पुस्तकों इत्यादि की बिक्री से प्राप्त आय को शामिल नहीं किया जाता।
  • शेयर, बांड इत्यादि को बेचने से प्राप्त होने वाली आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • आकस्मिक लाभ अथवा पूंजीगत लाभ को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अप्रत्यक्ष कर साधन लागत पर, राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं होते परन्तु बाज़ार कीमत पर यह शामिल किए जाते हैं।
  • मृत्यु कर, सम्पत्ति कर, उपहार कर इत्यादि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय शामिल होने वाली मदों तथा न शामिल होने वाली मदों को ध्यान में रखना चाहिए।

याद रखें आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना (Measurement of National Income with Income Method)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 19

  1. कर्मचारियों का मेहनताना (नकद मज़दूरी + किस्म के रूप में आय + सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में मालिकों का योगदान + रिटायर हुए कर्मचारियों की पेन्शन)
  2. परिचालन अधिशेष (किराया अथवा लगान तथा रायल्टी + ब्याज + लाभ (लाभांश + निगम कर + उद्यमियों की बचत या अविभाजित लाभ)
  3. मिश्रित आय
  4. विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
  5. मूल्य घिसावट अथवा स्थिर पूंजी का उपयोग
  6. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(i) घरेलू आय
(ii) राष्ट्रीय आय की गणना करेंमदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 20
हल (Solution) :
(i) घरेलू आय = मज़दूरी + किराया + ब्याज + लाभांश + मिश्रित आय + अविभाजित आय + निगम कर + सामाजिक सुरक्षा में योगदान = 50,000 + 10,000 + 1000 + 5000 + 1500 + 500 + 400 + 600 = ₹ 69,000 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = 69,000 + 3000 = ₹72,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 22
हल (Solution):
(i) घरेलू आय = लगान + ब्याज + लाभांश + स्व-नियोजकों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का मेहनताना = 80 + 100 + 210 + 250 + 500 = ₹ 1140 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय = 1140 + (-20) = ₹ 1120 करोड़ उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों से राष्ट्रीय आय ज्ञात करेंमदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 23
हल (Solution):
(i) घरेलू आय = स्व-नियोजितों की मिश्रित आय + परिचालन अधिशेष + मज़दूरी तथा वेतन + मालिकों का सामाजिक सुरक्षा में अंशदान
= 200 + 900 + 500 + 50 = ₹ 1650 करोड़
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय = 1650 + (-10) = ₹ 1640 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 4.
संमत 1982-83 में भारत देश के लिए निम्नलिखित आंकड़े दिए गए हैं :मदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 24
हल (Solution):
(i) घरेलू साधन आय = कर्मचारियों का मुआवज़ा + किराया + ब्याज + लाभ + मिश्रित आय = 49651 + 10209 + 4794 + 6926 + 50416 = ₹ 1,21,996 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + निवल विदेशी साधन आय = 1,21,996 + (-7) = ₹ 1,21,989 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा किसी फ़र्म की
(i) उत्पाद विधि
(ii) आय विधि से राष्ट्रीय आय में योगदान ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 25
हल (Solution) :
(i) उत्पाद विधि राष्ट्रीय आय = बिक्री + स्टॉक में वृद्धि – मध्यवर्ती उपभोग – मूल्य ह्रास – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 16000 + 4000 -5000 – 500 – 500 = ₹ 14000 करोड़ उत्तर
(ii) आय विधि राष्ट्रीय आय = मजदूरी तथा वेतन + ब्याज + किराया + लाभ = 10,000 + 400 + 600 + 3000 = ₹ 14000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा
(a) उत्पाद विधि
(a) आय विधि से बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 26
हल (Solution) :
उत्पादन विधि बाजार कीमत पर सकल घरेलू आय = (प्राथमिक क्षेत्र का उत्पादन + द्वितीयक क्षेत्र का उत्पादन + तृतीय क्षेत्र का उत्पादन) – (प्राथमिक क्षेत्र का मध्यवर्ती उपभोग + द्वितीयक क्षेत्र का मध्यवर्ती उपभोग + तृतीयक क्षेत्र का मध्यवर्ती उपभोग)
= (1000 + 900 + 700) – (500 + 400 + 300) = ₹ 1400 करोड़

आय विधि बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = कर्मचारियों का वेतन + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + स्थाई पूंजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
= 400 + 650 + 300 + 40 + 10 = ₹ 1400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आंकड़ों से परिचालन अधिशेष ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 27
हल (Solution) :
परिचालन अधिशेष = (i) – (ii) – (iii) – (iv) – (v) + (vi) – (vii) = 1000 – 200 – 200 – 30 – 20 + 50 -100 = ₹ 500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों से परिचालन अधिशेष ज्ञात करें। मदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 28
हल (Solution):
परिचालन अधिशेष = (i) – (ii) – (iii)– (iv) – (v)
= 1200 – 60 – 40 – 450 – 50 = ₹ 600 Crores उत्तर

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) घरेलू साधन आय
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 29
उत्तर-
(क) घरेलू साधन आय = (i) + (ii) + (iii) + (iv) + (v)
= 50,000 + 12,000 + 15,000 + 18,000 + 40,000
= ₹ 1,35,000 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + (vi) = 1,35,000 + 15,000 = ₹ 1,50,000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 30
उत्तर-
घरेलू साधन आय = (i) + (ii) + (iii) + (iv) + (1)
= 75,000 + 18.000 + 22.500 + 27,000 + 60,000
= ₹ 2,02,500
करोड़ उत्तर राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + (vi)
= 2,02,500 + 22,500 = ₹ 2,25,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 31उत्तर-
(क) घरेलू साधन आय-कर्मचारियों का मेहनताना + ब्याज + लाभ तथा लाभांश + किराया + मिश्रित आय
(i) ब्याज
= 50,000 + 12,000 + 15,000 + 18,000 + 40,000
= ₹ 1,35,000 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय-घरेलू साधन आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 1,35,000 + 15,000
= ₹ 1,50,000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 12.
निम्न आंकड़ों से कुल घरेलू उत्पाद बाज़ार कीमत पर (GDPMP) और शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद साधन लागतों पर (NNPFC) ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 32
उत्तर-
बाज़ार कीमत पर कुल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + स्थाई पूँजी का उपभोग + लगान + लाभ + ब्याज + रायल्टी + मज़दूरी और वेतन + सामाजिक सुरक्षा में मालिकों का अंशदान।= 38 + 35 + 10 + 27 + 23 + 20 + 150 + 25
= ₹ 328 करोड़ उत्तर
साधन लागतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमतों पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर — स्थाई पूँजी का उपभोग + विदेशों से प्राप्त साधन आय
= 328 – 38 – 35 + (-5)
= ₹ 250 करोड़ उत्तर

(C) खर्च विधि (Expenditure Method)
IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय के माप की खर्च विधि की व्याख्या करें। (Explain the Expenditure Method for the measurement of National Income.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को मापने की तीसरी विधि खर्च विधि है जिसको उपभोग तथा निवेश विधि (Consumption and Investment Method) भी कहा जाता है। इस विधि को स्पष्ट करते हुए कुजनेटस ने कहा है, “राष्ट्रीय आय, एक वर्ष में एक देश की उत्पादक प्रणाली में जो वस्तुएं तथा सेवाएं अन्तिम उपभोक्ताओं द्वारा उपभोग की जाती हैं अथवा देश के पूंजीगत पदार्थों में शुद्ध वृद्धि करती हैं, उनका योग है।”

खर्च विधि की मुख्य अवस्थाएं-खर्च विधि में मुख्य अवस्थाएं इस प्रकार होती हैं –
1. प्रथम अवस्था-सबसे पहले उन इकाइयों की पहचान की जाती है जो अन्तिम उपभोग खर्च करते हैं तथा जिनको खर्च विधि में शामिल किया जाता है।
A. पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector)
B. उत्पादक क्षेत्र (Production Sector)
C. सरकारी क्षेत्र (Government Sector)
D. शेष विश्व क्षेत्र (Rest of the World Sector)

2. दूसरी अवस्था-इस अवस्था में अन्तिम खर्च का वर्गीकरण किया जाता है। अन्तिम खर्च के वर्गीकरण को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 33

अन्तिम खर्च के मुख्य अंश इस प्रकार हैं –
1. अन्तिम उपभोग खर्च

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च

2. सकल घरेलू पूंजी निर्माण
(i) सकल स्थाई पूंजी निर्माण
(a) व्यावसायिक स्थाई निवेश
(b) सरकारी स्थाई निवेश
(c) परिवारों द्वारा मकानों के निर्माण पर निवेश
(ii) स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक)

3. शुद्ध निर्यात (निर्यात – आयात)
तीसरी अवस्था

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च- इसमें व्यक्तियों, परिवारों तथा गैर-लाभकारी निजी संस्थाओं द्वारा वस्तुओं और सेवाओं पर किए गए व्यय को शामिल किया जाता है।
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च-इसमें सरकार के खर्च को शामिल करते हैं।
  • सकल घरेलू पूंजी निर्माण-इसमें निवेश व्यय शामिल करते हैं जोकि स्थाई निवेश तथा माल सूची निवेश पर किया जाने वाला व्यय शामिल करते हैं।
  • शुद्ध निर्यात-इसमें निर्यात वस्तुओं तथा सेवाओं में से आयात वस्तुओं तथा सेवाओं का मूल्य घटाने से शुद्ध निर्यात ज्ञात होता है।
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय-कुछ अर्थ-शास्त्री शुद्ध निर्यात के स्थान पर शुद्ध विदेशी निवेश की धारणा का प्रयोग करते हैं। इसमें आयात तथा निर्यात के अन्तर के अतिरिक्त विदेशों से शुद्ध साधन आय को शामिल किया जाता है।

यदि हम खर्च विधि द्वारा विभिन्न धारणाओं का माप करना चाहते हैं तो इसके लिए निम्न विधि प्रयोग की जाती है-

  1. बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = निजी अन्तिम उपाभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल स्थिर पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात।
  2. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय
  3. बाज़ार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद-मूल्य घिसावट
  4. शुद्ध राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर |

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 2.
खर्च विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय सावधानियां बताएं। (Mention the Precautions while measuring National Income with Expenditure Method.)
उत्तर-
खर्च विधि द्वारा राष्ट्रीय आय का माप करते समय निम्नलिखित सावधानियों का प्रयोग करने की आवश्यकता होती है

  1. पुरानी वस्तुओं पर किए जाने वाले खर्च को अन्तिम खर्च में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह खर्च वर्तमान वर्ष में उत्पादित वस्तुओं पर नहीं किया जाता बल्कि पहले से ही उत्पादित वस्तुओं पर किया जाता है।
  2. कुल खर्च का माप करते समय केवल अन्तिम खर्च को ही शामिल किया जाता है।
  3. अन्तिम खर्च में मध्यवर्ती खर्च को शामिल नहीं किया जाता।
  4. पुराने तथा नए शेयर तथा बांड पर किया गया खर्च कुल खर्च में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह खर्च वस्तुओं तथा सेवाओं पर खर्च नहीं होता।
  5. सरकार द्वारा दिए गए हस्तान्तरण भुगतान पर खर्च को अन्तिम खर्च में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि जिन व्यक्तियों द्वारा हस्तान्तरण भुगतान प्राप्त किया जाता है उनके द्वारा इसके बदले में कोई उत्पादक सेवा प्रदान नहीं की जाती।
  6. स्व-उपभोग पर किए गए खर्च को अन्तिम उपभोग में शामिल किया जाता है क्योंकि यह खर्च वर्तमान उत्पादन में से होता है।
  7. इस विधि द्वारा बाजार कीमतों पर कुल राष्ट्रीय उत्पादन मूल्य का पता चलता है। यदि हम साधन लागतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय का पता करना चाहते हैं तो इसमें से शुद्ध अप्रत्यक्ष कर तथा स्थाई पूंजी का उपभोग घटा देना चाहिए।
  8. कुल खर्च विधि में सकल घरेलू पूंजी निर्माण की धारणा में सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण तथा स्टॉक में परिवर्तन का योग होता है।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उत्पाद तथा राष्ट्रीय खर्च में समानता को स्पष्ट करें। (Establish the Equality of National Income, National Product and National Expenditure.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय को मापने की तीन विधियां हैं-आय विधि, उत्पाद विधि तथा खर्च विधि। इन तीनों विधियों द्वारा राष्ट्रीय आय का योग एक-दूसरे के समान होता है क्योंकि जब उत्पादन प्रक्रिया में उत्पादन के साधनों को कार्य पर लगाया जाता है तो श्रम, भूमि, पूंजी तथा उद्यमी मिलकर उत्पादन करते हैं। इन उत्पादन के साधनों को कार्य करने के बदले में मेहनताना दिया जाता है अर्थात् कर्मचारियों को कार्य करने के लिए मज़दूरी तथा वेतन, भूमि का लगान, पूंजी का ब्याज तथा उद्यमी को लाभ प्राप्त होता है। यदि हम उत्पादन के साधनों को प्राप्त होने वाली आय का योग कर लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। इसमें स्व-रोज़गार पर लगे मनुष्यों की मिश्रित आय भी शामिल होती है। इसलिए आय विधि के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का माप इस प्रकार किया जाता है |

बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + मिश्रित आय + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर उत्पादन के साधन देश में जो उत्पादन करते हैं, उसके योग को बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है। उत्पादन के साधन अर्थ व्यवस्था के तीन क्षेत्रों में कार्य करते हैं—प्राथमिक क्षेत्र जिसमें कृषि, जंगल, खानों इत्यादि से प्राप्त उत्पादन को शामिल किया जाता है। गौण क्षेत्र में उद्योग, निर्माण, विद्युत्, गैस, जल आपूर्ति इत्यादि के उत्पादन को शामिल करते हैं। तीसरे क्षेत्र में सेवाओं को शामिल किया जाता है जैसे कि यातायात, संचार, व्यापार, होटल, बैंक, बीमा इत्यादि। यदि हम इन तीन क्षेत्रों में अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन का योग कर लेते हैं जिसको मूल्य वृद्धि विधि (Value Added Method) द्वारा मापा जाता है। इससे हम सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात कर सकते हैं।

उत्पादन विधि (Production Method) के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद का माप इस प्रकार किया जाता है-
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = प्राथमिक क्षेत्र का उत्पादन + गौण क्षेत्र का उत्पादन + तीसरे अथवा सेवा क्षेत्र का उत्पादन + मूल्य घिसावट + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर उत्पादन के साधन कार्य करने के पश्चात् जो आय प्राप्त करते हैं उनको निजी उपभोग अथवा निवेश पर खर्च किया जाता है। देश की घरेलू सीमा के भीतर निजी अन्तिम उपभोग खर्च, सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च, कुल स्थिर पूंजी निर्माण, स्टॉक में परिवर्तन तथा शुद्ध निर्यात को शामिल किया जाता है जिससे हमारे पास सकल घरेलू उत्पाद प्राप्त होता है। खर्च विधि (Expenditure Method) द्वारा सकल घरेलू उत्पाद का माप इस प्रकार किया जाता है

बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + कुल स्थिर पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन + शुद्ध निर्यात । इस प्रकार यदि हम राष्ट्रीय आय को मापने के लिए भिन्न-भिन्न विधियों को देखते हैं तो स्पष्ट होता है कि परिभाषा के आधार पर इनमें समानता पाई जाती है।
अर्थात् राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय उत्पाद = राष्ट्रीय खर्च
इसमें चिह्न = समानता को प्रकट करता है।
इससे स्पष्ट होता है कि यह तीनों धारणाएं एक-दूसरे के समान होती हैं। इनमें समानता को एक रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 34

प्रश्न 4.
राष्ट्रीय आय की तीन विधियों का संक्षेप में वर्णन करें। (Describe briefly the three methods for the measurement of National Income.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय के माप की तीन विधियां हैं
1. मूल्य वृद्धि विधि अथवा उत्पाद विधि (Value Added Method or Production Method)
2. आय विधि (Income Method)
3. खर्च विधि (Expenditure Method)

1. मूल्य वृद्धि विधि अथवा उत्पाद विधि- इसमें प्राथमिक क्षेत्र, गौण क्षेत्र तथा तीसरे क्षेत्र में निम्नलिखित मदों का योग किया जाता है

  • उपभोगी वस्तुएं
  • निवेश वस्तुएं
  • सरकार द्वारा उत्पादित वस्तुएं

शुद्ध निर्यात। इस क्षेत्र में अन्तिम उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं का योग किया जाता है परन्तु दोहरी गणना की समस्या के हल के लिए मूल्य वृद्धि विधि (Value Added Method) का प्रयोग किया जाता है अर्थात् उत्पादित मूल्य में से मध्यवर्ती उपभोग का मूल्य तथा मूल्य घिसावट को घटाकर शुद्ध मूल्य वृद्धि प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार शुद्ध मूल्य वृद्धि के अनुसार राष्ट्रीय आय की गणना इस प्रकार की जाती है राष्ट्रीय आय = प्राथमिक क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + तीसरे क्षेत्र में शुद्ध मूल्य वृद्धि + विदेशों से शुद्ध साधन आय।

1. आय विधि (Income Method)-आय विधि में प्राथमिक क्षेत्र, गौण क्षेत्र तथा सेवा क्षेत्र में साधन आय का योग होता है जिसके मुख्य अंग इस प्रकार हैं-

  • कर्मचारियों का मेहनताना
  • ग़ैर-मज़दूरी आय
  • परिचालन अधिशेष
  • विदेशों से शुद्ध साधन आय।

2. खर्च विधि (Expenditure Method) खर्च विधि में पारिवारिक क्षेत्र, सरकारी क्षेत्र तथा शेष विश्व क्षेत्र के अन्तिम खर्च का योग किया जाता है। अन्तिम खर्च का वर्गीकरण इस प्रकार होता है(i) अन्तिम उपभोग खर्च
(a) निजी अन्तिम उपभोग खर्च
(b) सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च ।

(ii) अन्तिम निवेश खर्च
(a) सकल स्थाई पूंजी निर्माण
(b) स्टॉक में परिवर्तन
(c) शुद्ध निर्यात।
इस प्रकार खर्च विधि में राष्ट्रीय आय का माप निम्नलिखित विधि के अनुसार किया जाता है –

राष्ट्रीय आय = निजी अन्तिम उपभोग खर्च (C) + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च (G) + अन्तिम निवेश खर्च (I) + शुद्ध निर्यात (X – M)
इस प्रकार राष्ट्रीय आय के माप की तीन विधियों द्वारा इसका माप किया जा सकता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 35

प्रश्न 5.
राष्ट्रीय आय के माप में कौन-सी मदों को शामिल किया जाना चाहिए और कौन-सी मदों को शामिल नहीं करना चाहिए ?
(Which Items should be included in National Income and which items should not be included ?)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय का माप करते समय बहुत-सी समस्याएं उत्पन्न होती हैं। इसलिए यह जानकारी जरूरी है कि किन मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए अथवा किन मदों को शामिल नहीं करना चाहिए।
निम्नलिखित मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है (The following items are included in National Income) –

  1. स्वयं उपभोग की वस्तुओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि उन्हें बाज़ार में बेचा नहीं जाता।
  2. सेवानिवृत्ति पेन्शन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह पहले की गई सेवा का फल है।
  3. स्वयं के व्यवसाय में लगे व्यक्तियों की आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह मिश्रित आय होती है।
  4. मालिकों द्वारा भविष्य निधि कोष में अंशदान को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  5. सरकार द्वारा निःशुल्क प्रदान की गई सेवाओं पर व्यय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह सरकार द्वारा किये गए खर्च का अंश होता है।
  6. सरकार द्वारा सुरक्षा पर किया गया खर्च राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। क्योंकि यह अन्तिम प्रदान की सेवाओं का अंश होता है।
  7. दलाली का कमीशन जोकि पुरानी वस्तुओं की बिक्री पर प्राप्त होता है उसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह वर्तमान आय होती है।
  8. कलाकार जैसे कि गायक, अभिनेता आदि की आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है क्योंकि यह आर्थिक सेवाएं होती हैं।
  9. लाभांश को राष्ट्रीय आय में शामिल करते हैं क्योंकि यह निवेश से प्राप्त आय होती है।
  10. विदेशों से लाभ-विदेशों से इस देश के बैंकों द्वारा प्राप्त किया लाभ राष्ट्रीय आय का भाग होता है क्योंकि यह विदेशों से प्राप्त साधन आय है।
  11. विदेशों से किराया जो एक देश के नागरिक प्राप्त करते हैं। यह राष्ट्रीय आय का भाग होता है।
  12. विदेशी दूतावासों से भारतीय कर्मचारियों को प्राप्त मज़दूरी राष्ट्रीय आय में शामिल की जाती है।
  13. स्टॉक में परिवर्तन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
  14. मालिकों का खुद मालकी के मकानों पर किराया राष्ट्रीय आय का अंश होता है।
  15. भारतीय विशेषज्ञों द्वारा विदेशों से कमाई आमदन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

निम्नलिखित मदों को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता (The Following Items are not included in National Income)

  • पुरानी वस्तुओं की बिक्री से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इनका मूल्य पहले ही राष्ट्रीय आय में शामिल होता है।
  • गैर-कानूनी क्रियाएं जैसे कि जुआ, समगलिंग आदि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • काला धन वह धन होता है जिस पर कर (Tax) नहीं दिया जाता। इसको भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • वित्तीय सौदे जैसा कि शेयर, बान्ड्स, डिबैनचर आदि की क्रय-विक्रय को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अनार्थिक क्रियाएं-जैसा कि बच्चे को दिया गया जेब खर्च घरेलू कार्य आदि को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • गृहणियों द्वारा किये गए घरेलू कार्य को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अप्रत्यक्ष कर से प्राप्त आय को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • छात्रवृत्ति द्वारा प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि इसके बदले में कोई सेवा प्रदान नहीं की जाती।
  • पूंजीगत लाभ तथा अचानक लाभ को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। जैसा कि शेयर की कीमत में वृद्धि से आय अथवा लाटरी से प्राप्त आय।
  • वृद्धावस्था पेन्शन जोकि हस्तान्तरण भुगतान होता है इसको भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं करते।
  • विदेशों से प्राप्त उपहार तथा सहायता भी हस्तान्तरण भुगतान है इसलिए इनको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • बेरोज़गारी भत्ता भी हस्तान्तरण भुगतान है इसलिए इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • मध्यवर्ती उपभोग जोकि अन्तिम वस्तुओं के उत्पाद के लिए प्रयोग किया जाता है इसको भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।
  • अन्वेषण के काम पर प्रयोग होने वाली वस्तुओं को भी राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता क्योंकि यह मध्यवर्ती वस्तुएं होती हैं।
  • प्राकृतिक आपदाएं जैसा कि बाढ़, भूकम्प, सुनामी आदि समय किया गया खर्च राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 36
1. अन्तिम उपभोग खर्च

  • निजी अन्तिम उपभोग खर्च
  • सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च

2. सकल घरेलू पूंजी निर्माण =

  • सकल घरेलू स्थाई पूंजी निर्माण
  • स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक)

3. शुद्ध निर्यात = (निर्यात – आयात)
4. मूल्य घिसावट अथवा मूल्य ह्रास
5. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = (अप्रत्यक्ष कर – सहायता)
6. विदेशों से शुद्ध साधन आय

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

V. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा GNP, GDP, NNP, NDP, बाज़ार कीमत (Market Price) तथा साधन लागत (Factor Cost) पर ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 37
उत्तर-
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = निजी उपभोग खर्च + सकल निवेश + सरकार द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय ।
= 700 + 180 + 200 + 20 + (-10) = ₹ 1090 करोड़ उत्तर

(ii) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट = 1090 – 30 = ₹ 1060 करोड़ उत्तर

(iii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से शुद्ध साधन आय = 1090 – (-10) = ₹ 1100 करोड़ उत्तर

(iv) बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद – घिसावट = 1100 – 30 = ₹ 1070 करोड़ उत्तर

(v) साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1090 – 10 = ₹ 1080 करोड़ उत्तर

(vi) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट = 1080 – 30 = ₹ 1050 करोड़ उत्तर

(vii) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 1100 – 10 = ₹ 1090 करोड़ उत्तर

(viii) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPFC) = साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद – घिसावट = 1090 – 30 = ₹ 1060 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से व्यय विधि द्वारा
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP)
(ii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 38
उत्तर-
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = निजी उपभोग खर्च + निजी निवेश खर्च + सरकार द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं की खरीद + शुद्ध निर्यात + विदेशों से शुद्ध साधन आय।
= 700 + (20 + 60 + 40 + 60) + 200 + (40 – 20) + (-10)
= ₹ 1090 करोड़ उत्तर

(ii) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 1090 – (-10) = ₹ 1100 करोड़ उत्तर

प्रश्न 3.
निम्नलिखित द्वारा सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 39
उत्तर:
सकल घरेलू उत्पाद = निजी उपभोग खर्च + सरकारी उपभोग खर्च + सकल घरेलू स्थिर निवेश + माल सूची में वृद्धि + वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात
= 45000 + 5000 + 5000 + 1000 + 6000 – 7000
= ₹ 55000 उत्तर

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(i) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP)
(ii) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 40
उत्तर-
(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल घरेलू पंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + निजी अन्तिम उपभोग खर्च + विदेशों से शुद्ध साधन आय
24 + 24 + (-4) + 161 + (-1) = ₹ 204 करोड़।
(ii) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 204 – 23 – 22 = ₹ 159 करोड़

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(a) उत्पाद विधि
(a) आय विधि द्वारा बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 42
उत्तर-
(a) उत्पाद विधि (Production Method)
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = (प्राथमिक + गौण + तीसरे क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य) – (प्राथमिक + गौण + तीसरे क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग)
= (300 + 200 + 100) – (100 + 50 + 50) = ₹400 करोड़ उत्तर

(b) आय विधि (Income Method)
बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = कर्मचारियों की मज़दूरी + मिश्रित आय + परिचालन अधिशेष + स्थिर पूंजी का उपभोग + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर ।
= 150 + 50 + 100 + 40 + 60 = ₹400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात करें
(a) मूल्य वृद्धि विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
(b) खर्च विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 43
उत्तर-
(a) मूल्य वृद्धि विधि (Value Added Method)
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = प्राथमिक क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + गौण क्षेत्र में मूल्य वृद्धि + तीसरा क्षेत्र में मूल्य वृद्धि – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता + विदेशों से शुद्ध साधन आय – स्थिर पूंजी का उपभोग
= (1000 – 500) + (900 – 400) + (500 – 200) -110 + 20 – 30 – 90
= 500 + 500 + 300 – 110 + 20 – 30 – 90 = ₹ 1090 करोड़।

(b) खर्च विधि (Expenditure Method) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (GDPFC)= निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल घरेलू पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – स्थिर पूंजी का उपभोग – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
= 1000 + 200 + 350 + (- 60) – 90 – 110 + 20 = ₹ 1310 करोड़।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(a) आय विधि द्वारा बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
(b) खर्च विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 44
उत्तर-
(a) आय विधि बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = ब्याज, लगान तथा लाभ + रायल्टी + स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का मुआवज़ा + अप्रत्यक्ष कर — सहायता + स्थिर पूंजी का उपभोग
= 900 + 20 + 60 + 370 + 120 – 20 + 60 = ₹ 1510 करोड़ उत्तर

(b) खर्च विधि साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सकल पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – अप्रत्यक्ष कर + सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 100 + 800 + 620 + (-10) – 120 + 20 – 60 + (-10) = ₹ 1340 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(a) आय विधि
(b) व्यय विधि द्वारा सकल राष्ट्रीय आय ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 45
उत्तर-
(a) आय विधि (Income Method)
सकल राष्ट्रीय आय = विदेशों से साधन आय + कर्मचारियों का मेहनताना – विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + ब्याज + लगान + लाभ
= 10 + 150 – 15 + 15 + 40 + 40 + 100 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

(b) व्यय विधि (Expenditure Method)
सकल राष्ट्रीय आय = विदेशों से प्राप्त साधन आय + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + अन्तिम निजी उपभोग खर्च – विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + निर्यात – आयात – अप्रत्यक्ष कर + सहायता + सरकारी अन्तिम उपभोग
‘खर्च = 10 + 50 + 220 – 15 + 15 + 20 – 25 – 30 + 10 + 85 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(a) आय विधि
(b) खर्च विधि से ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 46
उत्तर-
आय विधि (Income Method) –
बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय + कर्मचारियों का मेहनताना + विदेशों से शुद्ध साधन आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + स्थिर पूंजी का उपभोग + लाभ + लगान + ब्याज
SET-I = 400 + 500 + (-20) + 100 + 120 + 350 + 100 + 150 = ₹ 1700 करोड़
SET-II = 300 + 400 + (-10) + 60 + 100 + 250 + 80 + 70 = ₹ 1250 करोड़
SET-III = 500 + 600 + (-15) + 150 + 115 + 450 + 200 + 250 = ₹ 2250 करोड़

खर्च विधि (Expenditure Method)-
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = निजी उपभोग खर्च + विदेशों से शुद्ध साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च
SET-I = 900 – 20 + 120 + 280 – 30 + 450 = ₹ 1700 करोड़
SET-II = 700 + 10 + 100 + 120 – 10 + 350 = ₹ 1270 करोड़
SET-III = 1100 – 15 + 115 + 375 – 25 + 700 = ₹ 2250 करोड़

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से
(i) आय विधि
(ii) व्यय विधि द्वारा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 47PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 48

उत्तर-
(a) आय विधि (Income Method)-
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय= कर्मचारियों का मेहनताना + विदेशों से शुद्ध साधन आय + लाभ + लगान + ब्याज + स्वयं नियोजितों की मिश्रित आय
SET-I = 1200 + (-20) + 800 + 400 + 620 + 700 = ₹ 3700 करोड़
SET-II = 600 + (-10) + 400 + 200 + 310 + 350 = ₹ 1850 करोड़
SET-III = 500 + (-10) + 220 + 90 + 100 + 400 = ₹ 1300 करोड

(b) व्यय विधि (Expenditure Method)-
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय= निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + शुद्ध निर्यात – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + विदेशों से शुद्ध साधन आय
SET-I = 2000 + 1100 + 770 + (-30) – 120 + (-20) = ₹ 3700 करोड़
SET-II = 1000 + 550 + 385 + (-15) – 60 + (-10) = ₹ 1850 करोड़
SET-III = 900 + 400 + 200 + (-25) -165 + (-10) = ₹ 1300 करोड़

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों के आधार पर सकल राष्ट्रीय आय की गणना
(a) आय विधि
(b) व्यय विधि द्वारा करें

उत्तर-
आय विधि (Income Method)-
सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा आय = विदेशों से साधन आय + कर्मचारियों का मुआवज़ा + विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + ब्याज + लगान + लाभ
= 10 + 150 – 15 + 15 + 40 + 40 + 100 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

खर्च विधि (Expenditure Method)
सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा आय = विदेशों से साधन आय + शुद्ध घरेलू पूंजी निर्माण + निजी अन्तिम उपभोग खर्च – विदेशों को साधन आय + स्थिर पूंजी का उपभोग + निर्यात – आयात – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च
= 10 + 50 + 220 – 15 + 15 + 20 – 25 – 30 + 10 + 85 = ₹ 340 करोड़ उत्तर

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आंकड़े x फ़र्म के सम्बन्ध में दिये गए हैं। इस फ़र्म द्वारा साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 50
उत्तर –
साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक) + सहायता – मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद
= 500 + (20 – 30) + 40 – 300 = ₹ 230 हजार उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से बाजार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 51
उत्तर –
बाज़ार कीमत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – मध्यवर्ती वस्तुओं की खरीद – घिसावट
SET-I = 700 + 40 – 400 – 80 = ₹ 260 हज़ार
SET-II = 300 + (-10) – 150 -20 = ₹ 120 हज़ार उत्तर

प्रश्न 14.
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 52
उत्तर
साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में वृद्धि (अन्तिम स्टॉक – प्रारम्भिक स्टॉक) – मध्यवर्ती उपभोग – बिक्री कर + सहायता – स्थिर पूंजी का उपभोग
= 500 + (40-20)- 320 – 15 +5 -50 = ₹ 140 लाख उत्तर

प्रश्न 15.
निम्नलिखित आंकड़ों से बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 53
उत्तर
बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद = प्राथमिक क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य – प्राथमिक क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग + गौण क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य – गौण क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग + तीसरे क्षेत्र में उत्पाद का मूल्य – तीसरे क्षेत्र में मध्यवर्ती उपभोग
= 2000 – 1000 + 1800 – 800 + 1400 – 600 = ₹ 2800 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
निम्नलिखित आंकड़ों से साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 54
उत्तर-
साधन लागत पर सकल मूल्य वृद्धि = बिक्री + स्टॉक में परिवर्तन – कच्चे माल की खरीद + आर्थिक सहायता
= 180 + 15 – 100 + 10 = ₹ 105 लाख उत्तर

प्रश्न 17.
निम्नलिखित आंकड़ों से आय विधि द्वारा राष्ट्रीय आय ज्ञात करें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 55
उत्तर
राष्ट्रीय आय = कर्मचारियों का मेहनताना + परिचालन अधिशेष + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 1900 + 720 + (-20) = ₹ 2600 करोड़ उत्तर

प्रश्न 18.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए :
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 56
उत्तर-
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + कुल पूंजी निर्माण + निर्यात – आयात + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 75,000 + 15,550 + 4,500 + 6,000 – 9,000 – 650
= ₹ 91,400 करोड़ उत्तर

(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय
= बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय – घिसावट
= 91,400 – 600 = ₹ 90,800 करोड़ उत्तर

प्रश्न 19.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 58
उत्तर-
(क) बाज़ार. कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + कुल पूंजी निर्माण + निर्यात – आयात + विदेशों से प्राप्त शुद्ध राष्ट्रीय आय
= 85000 + 10550 + 2500 + 4000 – 8000 – 750 = ₹ 93,300 करोड़ उत्तर
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – घिसावट = 93300 – 500 = ₹ 92,800 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 20.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए :
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 59
उत्तर
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय = निजी उपभोग व्यय + सरकारी उपभोग व्यय + कुल पूंजी निर्माण + निर्यात – आयात + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन
= 65000 + 20550 + 6500 + 2000 – 7000 – 550 = 86500 ₹ करोड़ उत्तर

(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय – घिसावट
= 86500 – 400 = ₹ 86100 करोड़ उत्तर

प्रश्न 21.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) राष्ट्रीय आय
(ख) बाजार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 60
उत्तर-
(क) राष्ट्रीय आय = परिचालन अधिशेष + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + मिश्रित आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
= 10,000 + 15350 + 7366 + (-) 110 = ₹ 32606 करोड़ उत्तर

(ख) बाजार कीमत पर कुल घरेलू उत्पाद
= परिचालन अधिशेष + कर्मचारियों का पारिश्रमिक + मिश्रित + मिश्रित आय + अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक अनुदान + स्थायी पूंजी का उपभोग
= 10,000 + 15350 + 7366 + 5598-2655 + 4135
= ₹39794 करोड़ उत्तर

प्रश्न 22.
निम्नलिखित आंकड़ों की सहायता से ज्ञात कीजिए :
(क) राष्ट्रीय आय
(ख) बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद मदें
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 61
उत्तर-
राष्ट्रीय आय व्यय = 1 + 2 + 4 + 5 + 7 + 8-3-6 = 18557 + 20510 + 9860 + 13720 + 2560 – 2000 -110 – 15000 = ₹ 48097 करोड़ उत्तर
(ख) बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद = 1 + 2 + 4 + 8 + 5 -6 = 18557 + 20510 + 4860 + 2560 + 13720 – 15000
= ₹ 50207 करोड़ उत्तर

प्रश्न 23.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय .
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 62
उत्तर-
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय आय = (i) + (ii) + (iii) + (iv) – (v) + (vi)
= 1,00,000 + 12,500 + 2,500 + 6,000 – 9,000 + 750 = ₹ 1,12,750 उत्तर
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय = बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन
= 1,12,750 – 400 = ₹ 1,12,350 उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 24.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क)बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद।
(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 63
उत्तर-
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = (i) + (ii) + (iii) + (iv) -(v) + (vi)
1,50,000 + 18,750 + 3,750 + 9,000 – 12,000 + 1,125 = ₹ 1,70,625

(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – (vii)
= 1,70,625 – 600 = ₹ 1,70,025 उत्तर

प्रश्न 25.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करें
(क) बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद।
(ख) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 64
उत्तर-
(क) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = (i) + (ii) + (iii) + (iv) – (v) + (vi)
= 2,00,000 + 25,000 + 5,000 + 12,000 – 18,000 + 1,500
= ₹ 2,25,500 उत्तर

(ख) बाज़ार कीमत पर शुद्ध रीष्ट्रीय उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद – मूल्य ह्रास
= 2,25,500 – 800 = ₹ 2,24,700 उत्तर

प्रश्न 26.
निम्नलिखित की गणना करें।
(क) घरेलू साधन आय
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 65
उत्तर-
(क) घरेलू साधन आय = कर्मचारियों का मेहनताना + ब्याज + लाभ तथा लाभांश + किराया + मिश्रित आय
= 5000 + 500 + 600 + 800 + 3000 = ₹ 9900 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से शुद्ध साधन आय
= 9900 + 1000 = ₹ 10,900 करोड़ उत्तर

प्रश्न 27.
निम्नलिखित की गणना करें।
(क) घरेलू साधन आय
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 66
उत्तर-
SET-B
(क) घरेलू साधन आय = i + ii + iii + iv + v
= 10,000 + 1000 + 1200 + 1600 + 6000
= ₹ 19,800 करोड़ उत्तर

(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + vi
= 19,800 + 2000
= ₹ 21,800 करोड़ उत्तर

SET-C
(क) घरेलू साधन आय =i+ii + iii + iv + v
= 15000 + 1500 + 1800 + 2400 + 9000
= ₹ 29,700 करोड़ उत्तर

(ख) राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + vi
= 29,700 + 3000 = ₹ 32,700 करोड़ उत्तर

प्रश्न 28.
निम्नलिखित की गणना करें ।
(क) बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 67
उत्तर-
SET-B
(i) बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद = बिक्री + (साल के अन्त में स्टॉक-साल के शुरू में स्टॉक) – मध्यवर्ती
उपभोग = 140000 + 40000 (50,000 – 10,000) – 20,000
= ₹ 1,60,000 करोड़ उत्तर
(ii) राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद (-) घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (प्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता)
= 1,60,000 – 2000 – 400 (600 – 200)
= ₹ 1,57,600 करोड़ उत्तर

प्रश्न 29.
निम्नलिखित की गणना करें।
(क) बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद
(ख) राष्ट्रीय आय
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 68
उत्तर-
(क) बाजार कीमत पर कुल राष्ट्रीय आय = बिक्री + (साल के अन्त में स्टॉक – साल के शुरू में स्टॉक) – मध्यवर्ती उपभोग
= 70,000 + 20000 (25,000 – 5000) – 10,000
= ₹ 80,000 करोड़ उत्तर
(ख) राष्ट्रीय आय = बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय आय – घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर – आर्थिक सहायता) = 80,000 – 1000 – 200 (300 -100) = ₹ 78,800 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप

प्रश्न 30.
नीचे दिये गए आंकड़ों के आधार पर बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) तथा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) ज्ञात करें :
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 69
उत्तर-
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद = निजी अन्तिम उपभोग खर्च + सरकारी अन्तिम उपभोग खर्च + कुल स्थाई पूँजी निर्माण + स्टॉक में शुद्ध वृद्धि + वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात – वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात + विदेशों से शुद्ध साधन आय – स्थाई पूँजी का उपभोग।
= 510 + 70 + 130 + 30 + 48 – 56 + (-3) – 40 = ₹ 689 करोड़ उत्तर
साधन लागतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर कुल राष्ट्रीय उत्पाद – अप्रत्यक्ष कर + आर्थिक सहायता
= 689 – 90 + 18
= ₹ 617 करोड़ उत्तर

प्रश्न 31.
निम्नलिखित आंकड़ों से मुख्य वृद्धि ज्ञात करें।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 5 राष्ट्रीय आय का माप 70
उत्तर-
मुल्य वृद्धि = उत्पादन का मुल्य – मध्यवर्ती उपभोग
= 10000 – 2555 = ₹ 7445 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

PSEB 12th Class Economics राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
साधन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
साधन आय से अभिप्राय उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में आय, लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
हस्तान्तरण आय (Transfare Payments) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हस्तान्तरण भुगतान वह भुगतान है जो बिना किसी सेवा प्रदान किए ही दिए जाते हैं। जैसे कि बुढ़ापा पैन्शन, बेरोज़गारी भत्ता, इत्यादि।

प्रश्न 3.
घरेलू साधन आय को परिभाषित करो।
उत्तर-
घरेलू साधन आय एक देश के घरेलू क्षेत्र में उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में जो आय प्राप्त होती है, उसको घरेलू साधन आय कहा जाता है।

प्रश्न 4.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNPAP) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार कीमत के मूल्य को बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को भी शामिल किया जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 5.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPL) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादन वस्तुओं तथा सेवाओं के बाज़ार कीमत पर मूल्य के योग को बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है, यदि इसमें से मशीनों की मूल्य घिसावट घटा दी जाए तो इसको बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) कहते हैं।

प्रश्न 6.
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
उत्तर-
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अर्थ उत्पादन के साधनों को सेवाएं प्रदान करने के बदले में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होने वाली आय का योग होता है। इसमें मशीनों की घिसावट का मूल्य भी शामिल होता है।

प्रश्न 7.
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (NNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
अथवा
राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन के साधनों द्वारा एक वर्ष में जो लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में आय प्राप्त की जाती है, उसके योग में से यदि मशीनों की घिसावट (Depreciation) को घटा दिया जाए तो इसको साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 8.
घरेलू साधन आय में क्या शामिल किया जाए जिससे राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है ?
उत्तर-
घरेलू साधन उत्पादन देश के निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा के अन्दर प्राप्त की गई आय होती है। यदि हम इस आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल कर लेते हैं तो राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक कब होती है ?
उत्तर-
घरेलू साधन आय में उत्पादन के साधनों द्वारा लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ को शामिल किया जाता है। यदि हम घरेलू साधन आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय जोड़ लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। घरेलु साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होगी, यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है।

प्रश्न 10.
सकल घरेलू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद के समान कब होता है ?
उत्तर-
देश की घरेलू सीमा में निवासियों द्वारा एक वर्ष में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल किया जाए तो सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त होता है। सकल घरेलू उत्पाद, सकल राष्ट्रीय उत्पाद के समान होता है, जब विदेशों से प्राप्त साधन आय शून्य होती है।

प्रश्न 11.
घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक कब होती है ?
उत्तर-
जब विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है तो घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होती है।

प्रश्न 12.
हरे सकल घरेलू उत्पाद (Green GNP) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सकल राष्ट्रीय उत्पाद में वृद्धि से निर्धनता तथा प्रदूषण नहीं फैलता तथा जब सकल राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि प्राकृतिक वातावरण के दुरुपयोग तथा विकास के लाभों का समान वितरण करता है तो इसको अर्थशास्त्री हरे सकल घरेलू उत्पादन (Green GNP) का नाम देते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 13.
कौन सी मदें हैं जो सकल राष्ट्रीय उत्पाद (G.N.P.) में से बाहर निकाली जाती हैं ?
उत्तर-
निम्नलिखित मदें सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं की जाती :

  • घर की गृहिणी द्वारा घर का काम करना
  • पिता का अपने पुत्र को पढ़ाना
  • गैर-कानूनी क्रियाएं (समगलिंग, जुआ इत्यादि)।

प्रश्न 14.
गैर-बाज़ार क्रियाओं का अर्थ स्पष्ट करो।
उत्तर-
गैर-बाज़ार क्रियाओं में उन सेवाओं को शामिल किया जाता है, जो बाज़ार में बिकने के लिए नहीं आती।

प्रश्न 15.
आराम (Leisure) को सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP) में शामिल नहीं किया जाता है। कारण बताओ।
उत्तर-
आराम को सकल राष्ट्रीय उत्पाद में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि(i) आराम (Leisure) द्वारा आय की सृजना नहीं होती। (ii) ऐसी क्रिया के मूल्य का माप नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 16.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) लॉटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना।
(ii) नई कार की खरीद।
उत्तर-
(i) लाटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।
(ii) नई कार की खरीद-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 17.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) स्वयं-उपभोग के लिए रखा उत्पादन।
(ii) बुढ़ापा पैन्शन।
उत्तर-
(i) स्वयं उपभोग के लिए रखा उत्पादन- इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।
(ii) बुढ़ापा पैन्शन-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।

प्रश्न 18.
क्या निम्नलिखित आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ?
(i) विदेशी बैंक द्वारा भारत में से प्राप्त आय।
(ii) शेयरों की बिक्री से आय।
उत्तर
(i) विदेशी बैंक द्वारा भारत में से प्राप्त आय-इस बैंक द्वारा प्राप्त आय को भारत की राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है, क्योंकि यह ब्रांच भारत में स्थित है।
(ii) शेयरों की बिक्री से आय-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि शेयरों की बिक्री से वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन नहीं होता।

प्रश्न 19.
राष्ट्रीय आय तथा घरेलू आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
घरेलू आय देश के साधारण निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा के अन्दर प्राप्त की साधन आय लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ का योग है। यदि हम इस आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन जोड़ लेते हैं तो राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है। राष्ट्रीय आय = घरेलू आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय|

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प्रश्न 20.
चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय तथा स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
जब राष्ट्रीय आय का माप प्रचलित कीमतों पर किया जाता है तो इसको चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय कहा जाता है। जब राष्ट्रीय आय का माप स्थिर कीमतों पर किया जाता है तो इसको वास्तविक आय कहा जाता है।

प्रश्न 21.
सकल राष्ट्रीय उत्पादन के बढ़े मूल्य को घटाने से क्या उद्देश्य है ?
उत्तर-
चालू कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन को वास्तविक कीमतों (आधार वर्ष की कीमतों) के मापने को सकल राष्ट्रीय उत्पादन के बढ़े मूल्य को घटाना (GNP deflator) कहा जाता है।
GNP deflator = \(\frac{\text { Nominal GNP }}{\text { Real GNP }} \times 100\)

प्रश्न 22.
परिभाषित करो
(a) मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद
(b) वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद।
उत्तर-
(a) मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Nominal G.N.P.)-यदि सकल राष्ट्रीय उत्पाद का माप चालू बाज़ार की कीमत पर किया जाता है तो इसको मौद्रिक सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।
(b) वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद (Real GNP)-सकल राष्ट्रीय उत्पाद को स्थिर कीमतों पर मापा जाता है तो इसको वास्तविक सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 23.
घिसावट (Depreciation) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूंजी के उपभोग से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य अंश बताओ।
उत्तर-
घिसावट को स्थिर पूंजी का उपभोग भी कहा जाता है, जब स्थिर भण्डारों का प्रयोग किया जाता है तो इनके मूल्य की कमी को घिसावट कहा जाता है। घिसावट में-

  • साधारण टूट-फूट पर घिसाई
  • नई तकनीकों के आविष्कार से पुरानी मशीनों का प्रयोग न होना
  • मशीनों का खराब होना शामिल होता है।

प्रश्न 24.
अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में क्या अन्तर होता है ? उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Goods)- यह वह वस्तुएं होती हैं, जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए अथवा पुनः बिक्री के लिए किया जाता है।
अन्तिम वस्तुएं (Final Goods)-वह वस्तुएं होती हैं जो अन्तिम उपभोग अथवा निवेश के लिए प्रयोग की जाती हैं, जैसे कि होटल वाले के लिए आटा मध्यवर्ती वस्तु है तथा परिवारों के लिए आटा अन्तिम वस्तु है।

प्रश्न 25.
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश के साधारण निवासियों द्वारा एक वर्ष में एक देश में जो साधन आय का योग होता है, उसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। राष्ट्रीय आय में यदि हम शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण शामिल कर लेते हैं तो इसको शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय कहा जाता है।

प्रश्न 26.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद तथा राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रीय व्यय योग्य आय एक देश के साधारण निवासियों को एक वर्ष में सभी साधनों द्वारा प्राप्त आय होती है, जिसको वह उपभोग अथवा बचत कर सकते हैं। बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में शेष विश्व से अन्य चालू हस्तान्तरण योगकर राष्ट्रीय व्यय योग्य आय प्राप्त होती है।
National Disposable Income = NNP Mp + Other Current Transfers from the rest of the World
अथवा
Gross National Disposable Income = GNP Mp + Other Current Transfers from the rest of the World.

प्रश्न 27.
निजी आय (Private Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी क्षेत्र को सभी साधनों द्वारा जो कुल आय प्राप्त होती है, जिसमें चालू हस्तान्तरण आय को भी शामिल किया जाए तो इसके योग को निजी आय कहा जाता है।
प्राइवेट आय =
(i) शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त निजी क्षेत्र की आय + (ii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय + (iii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + (iv) सरकार से प्राप्त चालू हस्तान्तरण +(v) शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण।

प्रश्न 28.
चालू हस्तान्तरण तथा पूंजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  • चालू हस्तान्तरण (Current Transfers)-चालू हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होती है, जो अदा करने वाले द्वारा चालू आय में से उपभोग व्यय के लिए लोगों को दी जाती है।
  • पूंजी हस्तान्तरण (Capital Transfers)-पूंजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण है जो अदा करने वाले द्वारा धन अथवा बचत में से प्राप्त करने वाले के धन अथवा बचत के लिए दी जाती है।

प्रश्न 29.
व्यक्तिगत आय (Personal Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत आय वह आय है, जोकि व्यक्तियों द्वारा साधन आय के रूप में अथवा चालू हस्तान्तरण के रूप में सभी साधनों से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 30.
निजी आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत आय = निजी आय (-) निगम कर-निगम बचत अथवा निगमों के अनवितरण लाभ। इससे ज्ञात होता है कि निजी आय विशाल धारणा है, जबकि व्यक्तिगत आय इसका भाग है। निजी आय में से निगम कर तथा निगम बचत घटाकर व्यक्तिगत आय प्राप्त की जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 31.
वह नागरिक जो एक देश में रहते हैं और उनके हित उस देश से जुड़े होते हैं, को ……… कहते हैं।
(क) विदेशी नागरिक
(ख) प्रवासी नागरिक
(ग) साधारण नागरिक
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) साधारण नागरिक।

प्रश्न 32.
अप्रत्यक्ष कर और आर्थिक सहायता के अन्तर को …….. कहते हैं।
(क) सकल अप्रत्यक्ष कर
(ख) प्रत्यक्ष कर
(ग) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 33.
उपभोग के लिए अन्तिम वस्तुओं के उपभोग को ………. कहते हैं।
(क) निवेश व्यय
(ख) उपभोग व्यय
(ग) राष्ट्रीय आय
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) उपभोग व्यय।

प्रश्न 34.
अप्रत्यक्ष कर तथा आर्थिक सहायता के अन्तर को …………. कहते हैं।
उत्तर-
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 35.
व्यक्तियों को सभी स्रोतों से असल में प्राप्त आय और हस्तातरण भुगतान के योग को ……….. कहते हैं।
उत्तर-
निजी आय।

प्रश्न 36.
वह भुगतान जो किसी बगैर किसी सेवा के प्रदान किए जाते हैं, को ….. कहते हैं।
उत्तर-
हस्तांतरण भुगतान।

प्रश्न 37.
बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) में है। …….. किया जाए तो बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त होता है।
(क) घिसावट
(ख) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(ग) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 38.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) ………… = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP).
उत्तर-
घिसावट।

प्रश्न 39.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMD)………….. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC)
उत्तर-
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 40.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPM) (-) ………….. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) अथवा राष्ट्रीय आय (Material Income)
उत्तर-
शुद्ध अप्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 41.
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPR) (-) ……….. = राष्ट्रीय आय (National Income)
उत्तर-
घिसावट।

प्रश्न 42.
निजी आय (-) निगमकर (-) निगमों को आबंटित लाभ ……….
उत्तर-
व्यक्तिगत आय।

प्रश्न 43.
वह वस्तुएँ जिनका प्रयोग और वस्तुओं के उत्पादन अथवा पुनः बिक्री के लिए किया जाता है को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएँ।

प्रश्न 44.
वह वस्तुएँ जिनका प्रयोग अन्तिम उपभोग अथवा निवेश के लिए किया जाता है, को …….. कहते हैं।
उत्तर-
अन्तिम वस्तुएँ।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
साधन आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
साधन आय से अभिप्राय उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में आय, लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होती है। उत्पादन प्रक्रिया में सेवाएं प्रदान करने के बदले में प्राप्त होने वाली आय को साधन आय कहा जाता है।

प्रश्न 2.
हस्तान्तरण आय (Transfer Payments) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हस्तान्तरण भुगतान वह भुगतान है जो बिना किसी सेवा प्रदान किए ही दिए जाते हैं। यह एक-तरफा भुगतान होते हैं, जैसे कि बुढ़ापा पैन्शन, बेरोज़गारी भत्ता, इत्यादि।

प्रश्न 3.
घरेलू साधन आय को परिभाषित करो।
उत्तर-
घरेलू साधन आय एक देश के घरेलू क्षेत्र में उत्पादन के साधनों को काम करने के बदले में जो आय प्राप्त होती है, उसको घरेलू साधन आय कहा जाता है।

प्रश्न 4.
बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNPL) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार कीमत के मूल्य को बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है। इसमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को भी शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPM) को परिभाषित करो।
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में उत्पादन वस्तुओं तथा सेवाओं के बाजार मूल्य के योग को बाजार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है, यदि इसमें से मशीनों की मूल्य घिसावट घटा दी जाए तो इसको बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) कहते हैं।
NNPMP = GNPMP – Depreciation

प्रश्न 6.
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
उत्तर-
साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद का अर्थ उत्पादन के साधनों को सेवाएं प्रदान करने के बदले में लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होने वाली आय का योग होता है। इसमें मशीनों की घिसावट का मूल्य भी शामिल होता है।

प्रश्न 7.
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन (NNP at Factor Cost) को परिभाषित करो।
अथवा
राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन के साधनों द्वारा एक वर्ष में जो लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में आय प्राप्त की जाती है, उसके योग में से यदि मशीनों की घिसावट (Depreciation) को घटा दिया जाए तो इसको साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद कहा जाता है।

प्रश्न 8.
घरेलू साधन आय में क्या शामिल किया जाए जिससे राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाए ?
उत्तर-
घरेलू साधन उत्पादन देश के निवासियों द्वारा देश की घरेलू सीमा के अन्दर प्राप्त की गई आय होती है। यदि हम इस आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को शामिल कर लेते हैं तो राष्ट्रीय आय प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 9.
घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक कब होती है ?
उत्तर-
घरेलू साधन आय में उत्पादन के साधनों द्वारा लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ को शामिल किया जाता है। यदि हम घरेलू साधन आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय जोड़ लेते हैं तो इसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। घरेलू साधन आय, राष्ट्रीय आय से अधिक होगी, यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय ऋणात्मक होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 10.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) लॉटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना।
(ii) नई कार की खरीद।
उत्तर-
(i) लाटरी द्वारा ईनाम प्राप्त करना-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।।
(ii) नई कार की खरीद-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11.
क्या निम्नलिखित क्रियाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है ? कारण बताओ।
(i) स्वयं-उपभोग के लिए रखा उत्पादन
(ii) बुढ़ापा पैन्शन।
उत्तर-
(i) स्वयं उपभोग के लिए रखा उत्पादन
(ii) बुढ़ापा पैन्शन-इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता, क्योंकि इससे मूल्य में कोई वृद्धि नहीं होती।

प्रश्न 12.
घिसावट (Depreciation) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
स्थिर पूंजी के उपभोग से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य अंश बताओ।
उत्तर-
घिसावट को स्थिर पूंजी का उपभोग भी कहा जाता है, जब स्थिर भण्डारों का प्रयोग किया जाता है तो इनके मूल्य की कमी को घिसावट कहा जाता है। घिसावट में-

  • साधारण टूट-फूट पर घिसाई
  • नई तकनीकों के आविष्कार से पुरानी मशीनों का प्रयोग न होना
  • मशीनों का खराब होना शामिल होता है।

प्रश्न 13.
अंतिम वस्तुओं तथा मध्यवर्ती वस्तुओं में क्या अन्तर होता है ? उदाहरण सहित स्पष्ट करो।
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Goods)-यह वह वस्तुएं होती हैं, जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं के उत्पादन के लिए अथवा पुनः बिक्री के लिए किया जाता है। अन्तिम वस्तुएं (Final Goods)-वह वस्तुएं होती हैं जो अन्तिम उपभोग अथवा निवेश के लिए प्रयोग की जाती हैं, जैसे कि होटल वाले के लिए आटा मध्यवर्ती वस्तु है तथा परिवारों के लिए आटा अन्तिम वस्तु है।

प्रश्न 14.
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश के साधारण निवासियों द्वारा एक वर्ष में एक देश में जो साधन आय का योग होता है, उसको राष्ट्रीय आय कहा जाता है। राष्ट्रीय आय में यदि हम शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण शामिल कर लेते हैं तो इसको शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय कहा जाता है।

प्रश्न 15.
निजी आय (Private Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निजी क्षेत्र को सभी साधनों द्वारा जो कुल आय प्राप्त होती है, जिसमें चालू हस्तान्तरण आय को भी शामिल किया जाए तो इसके योग को निजी आय कहा जाता है।
प्राइवेट आय = (i) शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त निजी क्षेत्र की आय + (ii) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय + (iii) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + (iv) सरकार से प्राप्त चालू हस्तान्तरण + (v) शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण।

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प्रश्न 16.
चालू हस्तान्तरण तथा पूंजी हस्तान्तरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  • चालू हस्तान्तरण (Current Transfers)-चालू हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण होती है, जो अदा करने वाले द्वारा चालू आय में से उपभोग व्यय के लिए लोगों को दी जाती है।
  • पूंजी हस्तान्तरण (Capital Transfers)-पूंजी हस्तान्तरण वह हस्तान्तरण है जो अदा करने वाले द्वारा धन अथवा बचत में से प्राप्त करने वाले के धन अथवा बचत के लिए दी जाती है।

प्रश्न 17.
व्यक्तिगत आय (Personal Income) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत आय वह आय है, जोकि व्यक्तियों द्वारा साधन आय के रूप में अथवा चालू हस्तान्तरण के रूप में सभी साधनों से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 18.
निजी आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत आय = निजी आय (-) निगम कर-निगम बचत अथवा निगमों के अनवितरण लाभ। इससे ज्ञात होता है कि निजी आय विशाल धारणा है, जबकि व्यक्तिगत आय इसका भाग है। निजी आय में से निगम कर तथा निगम बचत घटाकर व्यक्तिगत आय प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 19.
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय वह आय है जोकि एक देश के व्यक्ति तथा परिवार उपभोग पर व्यय कर सकते हैं अथवा बचत कर सकते हैं। निजी व्यय योग्य आय तथा निजी आय में अन्तर इस प्रकार है व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय-व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कर-सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की फीस तथा जुर्माने।

प्रश्न 20.
बाज़ार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश में देश के साधारण निवासियों द्वारा जो अन्तिम वस्तुएं तथा सेवाएं प्रदान की जाती हैं उसके बाज़ार मूल्य को बाज़ार कीमतों पर कुल घरेलू उत्पाद (GDP at market Price) कहा जाता है।

III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
साधन आय के अंश बताओ।
उत्तर-
साधन आय के अंश इस प्रकार हैं-

  1. कर्मचारियों का मेहनताना-उद्यमियों द्वारा कर्मचारियों को नकद मज़दूरी तथा वेतन अथवा बोनस में मेहनताना दिया जाता है तथा इन कर्मचारियों के सामाजिक सुरक्षा योजना में पाए गए योगदान को कर्मचारियों का मेहनताना कहते हैं। इसको साधन आय में शामिल किया जाता है।
  2. प्रचालन बेशी-इसमें जायदाद से आय तथा उद्यमवृत्ति से आय को शामिल किया जाता है। इसमें लगान,ब्याज तथा लाभ को शामिल किया जाता है। (लाभ = लाभांश + निगम कर + अवितरित लाभ)
  3. मिश्रित आय–निजी इकाइयों द्वारा प्राप्त लाभ तथा स्वयं नियोजता की आय को मिश्रित आय कहते हैं। इनके जोड़ से साधन आय प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 2.
घरेलू साधन आय के अंश बताओ। राष्ट्रीय आय प्राप्त करने के लिए इसमें क्या शामिल किया जाता है तथा क्यों ?
उत्तर-
एक वर्ष में एक देश की घरेलू सीमा में साधनों की आय के योग को घरेलू साधन आय कहा जाता है। घरेलू साधन आय =
(1) कर्मचारियों का मेहनताना + (2) प्रचालन बेशी + (3) मिश्रित आय।
राष्ट्रीय आय प्राप्त करने के लिए घरेलू साधन आय प्राप्त करने के लिए विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय को घरेलू साधन आय में जोड़ा जाता है| राष्ट्रीय आय = घरेलू साधन आय + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = विदेशी शहरों द्वारा एक देश में से प्राप्त की साधन आय–इस देश के साधारण शहरियों द्वारा विदेशों से प्राप्त की गई साधन आय।

प्रश्न 3.
बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद तथा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तर बताओ।
उत्तर-
साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
(-) घिसावट
(-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(+) विदेशों से शुद्ध साधन आय।

अन्तर का आधार बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDP Market Price) साधन लागत परशुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP Factor Cost)
1. घिसावट इसमें स्थित पूंजी की घिसावट शामिल होती है। इसमें घिसावट शामिल नहीं होती।
2. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (अप्रत्यक्ष कर-सबसिडी) शामिल होती है। इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं होते।
3. विदेशों से शुद्ध साधन आय इसमें विदेशों से शुद्ध साधन आय शामिल नहीं होती। इसमें देश के साधारण निवासियों तथा विदेशियों द्वारा घरेलू क्षेत्र की पैदावार को जोड़ते हैं। इसमें देश के साधारण निवासियों द्वारा घरेलू क्षेत्र अथवा विदेशी क्षेत्र में उत्पादकता को जोड़ते हैं।

प्रश्न 4.
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद तथा बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद में अन्तर बताओ।
उत्तर-
साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)
(-) घिसावट (+) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
(+) विदेशों से शुद्ध साधन आय

अन्तर का आधार बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC)
1. घिसावट इसमें घिसावट शामिल नहीं होती। इसमें घिसावट शामिल होती है।
2. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर शामिल होते | इसमें शुद्ध अप्रत्यक्ष कर शामिल नहीं
होते।
3. विदेशों से शुद्ध साधन आय इसमें विदेशों से शुद्ध साधन आय शामिल होती है। इसमें विदेशों से शुद्ध साधन आय शामिल नहीं होती।

प्रश्न 5.
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य तथा बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NDI) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध साधन आय (NNPMP) + शेष विश्व से चालू हस्तान्तरण
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 1
कुल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GNPL) + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (Gross National Disposable Income)

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 6.
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय तथा राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
निजी व्यय योग्य आय तथा राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर-

व्यक्तिगत व्यय योग्य आय राष्टीय व्यय योग्य आय
1. यह देश के व्यक्तियों तथा परिवारों की व्यय योग्य आय होती है। 1. यह देश की व्यय योग्य आय होती है।
2. व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत उपभोग + व्यक्तिगत बचतें। 2. राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (उपहार, उपभोगी सामान, फ़ौजी सामान तथा नकद मुद्रा)

प्रश्न 7.
राष्ट्रीय आय तथा निजी आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय तथा निजी आय में अन्तर इस प्रकार है-

अन्तर का आधार राष्ट्रीय आय निजी आय
(1) क्षेत्र इसमें सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है। इसमें केवल निजी क्षेत्र से प्राप्त आय को शामिल किया जाता है।
(2) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज राष्ट्रीय आय में राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को शामिल नहीं किया जाता। निजी आय में राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज को शामिल किया जाता है।
(3) हस्तान्तरण आय राष्ट्रीय आय में किसी किस्म की हस्तान्तरण आय को शामिल नहीं किया जाता। इसमें केवल साधन आय को जोड़ते हैं। निजी आय में सरकार से प्राप्त चालू हस्तान्तरण तथा शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण को जोड़ते हैं। इसमें साधन आय भी जोड़ी जाती है।

प्रश्न 8.
राष्ट्रीय आय तथा व्यक्तिगत आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-

अन्तर का आधार राष्ट्रीय आय (National Income) व्यक्तिगत आय (Personal Income)
(1) हस्तान्तरण आय राष्ट्रीय आय में केवल साधन आय को शामिल किया जाता है, हस्तान्तरण आय को शामिल नहीं किया जाता। व्यक्तिगत आय में साधन आय तथा हस्तान्तरण आय दोनों को ही शामिल किया जाता है।
(2) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज इसको राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाता। इसको व्यक्तिगत आय में शामिल किया जाता है।
(3) निगम कर तथा बचतें निगम कर तथा बचतों को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। निगम कर तथा बचतों को व्यक्तिगत आय में शामिल नहीं किया जाता।
(4) सरकारी क्षेत्र की आय सरकारी क्षेत्र में काम करके उद्योगों से प्राप्त आय को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाता है। सरकारी क्षेत्र की आय को व्यक्तिगत आय में शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 9.
व्यक्तिगत आय तथा व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यक्तिगत आय-व्यक्तियों तथा परिवारों को साधन आय तथा हस्तान्तरण आय के योग को व्यक्तिगत आय कहा जाता है। यह व्यय योग्य आय से विशाल धारणा है। व्यय योग्य आय-जो आय व्यक्तियों तथा परिवारों के पास प्रत्यक्ष निजी कर जैसे कि आय कर तथा हाऊस कर देने के पश्चात् तथा सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की फीस तथा जुर्माने देने के उपरान्त लोगों के पास रह जाती है, उसको व्यय योग्य आय कहा जाता है। व्यय योग्य आय का उपभोग किया जा सकता है अथवा बचत की जा सकती है। व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय-प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की फीस तथा जुर्माने।

प्रश्न 10.
वह तीन धारणाएं बताओ जो सकल तथा शुद्ध बाज़ार कीमत तथा साधन लागत, घरेलू तथा राष्ट्रीय धारणाओं में अन्तर स्पष्ट करती है ।
उत्तर-

  1. घिसावट (Depreciation)सकल तथा शुद्ध आय में अन्तर को घिसावट द्वारा स्पष्ट किया जाता है। सकल आय अथवा उत्पाद = शुद्ध आय अथवा उत्पाद + घिसावट
  2. शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes) बाज़ार कीमत तथा साधन लागत पर राष्ट्रीय आय की धारणाओं को शुद्ध अप्रत्यक्ष करों द्वारा सम्बन्धित किया जाता है। शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = अप्रत्यक्ष कर-सबसिडी साधन लागत पर आय = बाज़ार कीमत पर आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर
  3. विदेशों से शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from Abroad)-जब हम घरेलू तथा राष्ट्रीय आय की धारणाओं में अन्तर करते हैं तो विदेशों से शुद्ध साधन आय द्वारा इनमें सम्बन्ध स्थापित होता है। घरेलू आय = राष्ट्रीय आय–विदेशों से शुद्ध साधन आय।

प्रश्न 11.
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय तथा राष्ट्रीय आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
राष्ट्रीय प्रयोज्य आय (National Disposable Income) से अभिप्राय उस शुद्ध आय से है जोकि उस देश को खर्च करने के लिए उपलब्ध होती है। राष्ट्रीय प्रयोज्य आय को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है| राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण राष्ट्रीय आय से अभिप्राय साधन लागत पर शुद्ध घरेलू आय और विदेशों से शुद्ध साधन आय का योग होता है। इस प्रकार राष्ट्रीय प्रयोज्य आय तथा राष्ट्रीय आय में अन्तर इस प्रकार होता है राष्ट्रीय आय = राष्ट्रीय प्रयोज्य आय-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर-शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण

प्रश्न 12.
सकल प्रयोज्य आय तथा शुद्ध प्रयोज्य आय में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
सकल प्रयोज्य आय वह आय है जोकि देश के निवासियों को सभी स्रोतों से उपभोग तथा बचत के लिए प्राप्त होती है। सकल प्रयोज्य आय में अर्थव्यवस्था की घिसावट लागत शामिल होती है। अर्थव्यवस्था की घिसावट लागत को हम पुनः स्थानापन्न लागत भी कहते हैं। इस प्रकार किसी देश में सकल प्रयोज्य आय उस देश की राष्ट्रीय आय, शुद्ध अप्रत्यक्ष कर तथा बाकी विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण का जोड़ होता है। यदि इसमें से पुनःस्थापन लागत या घिसावट लागत कम कर दी जाए तो इसको शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय कहा जाता है। शुद्ध प्रयोज्य आय = सकल राष्ट्रीय आय-चालू पुनः स्थापन लागत अथवा घिसावट लागत

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन की विभिन्न धारणाएं कौन-कौन सी हैं ? इनके सम्बन्ध को स्पष्ट करो। (What are the different concepts of National Product or Income ? Show their relationship.)
उत्तर-
राष्ट्रीय आय अथवा उत्पादन की मुख्य धारणाएं निम्नलिखित हैं-

  1. बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
  2. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP)
  3. बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)
  4. बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP)
  5. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद अथवा घरेलू साधन आय (NDPFC)
  6. साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद अथवा सकल घरेलू आय (GDPFC)
  7. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा सकल राष्ट्रीय आय (GNPFC)
  8. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन अथवा राष्ट्रीय आय (NNPFC or National Income)
  9. सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (Gross Disposable National Income)
  10. शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (Net Disposable National Income) इन धारणाओं के बिना राष्ट्रीय आय से सम्बन्धित कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण धारणाएं इस प्रकार हैं
  11. निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय
  12. निजी आय (Private Income)
  13. व्यक्तिगत आय (Personal Income)
  14. व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) इन धारणाओं के परस्पर सम्बन्ध को एक तालिका द्वारा निम्नलिखित रेखाचित्र 1 अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 3

राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय की धारणाओं का सम्बन्ध इस प्रकार है-

  1. बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) –  तथा सेवाओं का बाज़ार कीमत पर मूल्य।
  2. बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)
  3. बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) घिसावट (Depreciation)
  4. बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) = बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP)- विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)
  5. साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद अथवा शुद्ध घरेलू आय (NDPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP)-शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (N.I.T.)
  6. साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद अथवा सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद अथवा शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPFC) + घिसावट (Depreciation)
  7. साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा सकल राष्ट्रीय आय (GNPFC) = साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद अथवा सकल घरेलू आय (GDPFC) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)
  8. साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद अथवा शुद्ध राष्ट्रीय आय (NNPFC or National Income) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) – घिसावट (Depreciation)
  9. सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GDNI) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) + शेष विश्व से चालू हस्तान्तरण।
  10. शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NDNI) = सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GDNI) (-) घिसावट (Depreciation)

अथवा व्यक्तियों तथा परिवारों की व्यय योग्य आय का योग इन धारणाओं के बिना कुछ अन्य धारणाएं इस प्रकार हैं, जिनका सम्बन्ध 5वीं धारणा साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPRO) से आरम्भ करते हैं।

  1. निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद-सरकारी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय। 1. गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें 2. विभागीय उद्यमों को सम्पत्ति तथा उद्यम श्रमिक से आय)
  2.  निजी आय (Private Income) = निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय (+) विदेशों से शुद्ध साधन आय (+) सरकारी क्षेत्र से हस्तान्तरण आय (+) शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण (+) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज।
  3. व्यक्तिगत आय (Personal Income) = निजी क्षेत्र-निगम कर-निगम बचतें निगमों के अवितरित लाभ
  4. व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = व्यक्तिगत आय-व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कर सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां (फीस तथा जुर्माने)

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित धारणाओं में अन्तर बताओ
(i) GDPMP and GNPMP
(ii) GDPMP and NNPMP
(iii) GDP at FC and NNP at MP
(iv) GNP at FC and NNP at FC
(v) GDP and NNP
(vi) GNP at FC and GNP at MP
(vii) GNP at MP and NDP at FC
(viii) GDP at MP and NNP at FC.
उत्तर-
राष्ट्रीय आय की धारणाओं का सम्बन्ध-रेखाचित्र 2 अनुसार-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 4
बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)-एक वर्ष में एक देश में देश के साधारण निवासियों द्वारा जो अन्तिम वस्तुएं तथा सेवाएं उत्पादन की जाती हैं, उसके बाज़ार मूल्य को बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं। यदि अकेला GDP दिया हो तो इससे अभिप्राय कीमत पर होता है।

बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद में यदि विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (Net Factor Income from abroad (NFYA) को सम्मिलित किया जाए तो बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद प्राप्त हो जाता है। यदि अकेला GNP दिया हो तो यह बाज़ार कीमत पर होता है।

(i) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पादन (GNPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) (+) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

(ii) बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) (-) घिसावट (Depreciation)

(iii) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पादन (GDPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) + घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes)

(iv) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPFC) = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP at FC) + घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

(v) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) (-) घिसावट (Depreciation)

(vi) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) = शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP) (+) घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

(vii) साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes)

(viii) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NFPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) (-) घिसावट (Depreciation) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes)

(ix) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाजार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) (-) घिसावट (Depreciation) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA)

प्रश्न 3.
भारत की अर्थव्यवस्था के 1982-83 के आंकड़े चालू कीमतों अनुसार दिए गए हैं। इनसे
(i) NNPFC
(ii) NNPMP
(iii) GNPMP
(iv) GDPMP
(v) GNPFC
(vi) NDPMP
(vii) GDPFC ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 5
उत्तर-
बेकरमैन के चित्र रेखाचित्र 2 के अनुसार
(i) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPFC) + विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) = 1,33,151 + (-) 681 = ₹ 1,32,470 करोड़

(ii) बाजार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (NIT) = 1,32,470 + 19,183 = ₹ 1,51,653 करोड़

(iii) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPMP) + faturala (Depreciation) = 1,51,653 + 11,242 = ₹ 1,62,895 करोड

(iv) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) – विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) = 1,62,895 – (-681) = ₹ 1,63,576 करोड़

(v) साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (N.I.T.) = 1,62,895 – 19,183 = ₹ 1,43,712 करोड़

(vi) बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) घिसावट (Depreciation) = 1,63,576 – 11,242 = ₹ 1,52,334 करोड़

(vii) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPR) = बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (N.I.T.) = 1,63,576 – 19,183 = ₹ 1,44,393 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा ज्ञात करो।
(a) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP)
(b) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 6
उत्तर-
बैकरमैन का चित्र बनाओ –
(a) बाज़ार कीमत पर सकल घरेलू उत्पाद (GDPMP) = बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) +घिसावट (Depreciation) = 74905 + 4486 = ₹ 79391 करोड़ उत्तर
(b) साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDPMP) (-) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (NIT) (+) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (NFYA) = 74905 – 8344 + (-232) = ₹ 66329 करोड़ उत्तर।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

V. सरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
निम्नलिखित आंकड़ों से शुद्ध घरेलू उत्पाद (NDP) ज्ञात करो
₹ करोड़
(1) बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = 97503
(2) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय = (-) 201
(3) शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 10,576
(4) स्थिर पूंजी का उपभोग = 5,699
उत्तर-
बेकरमैन का चित्र –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 7
नोट : इस चित्र में D = Depreciation (घिसावट अथवा मूल्य घसाई)
NIT = Net Indirect Taxes (शुद्ध अप्रत्यक्ष कर)
NFYA = Net Factor Income from abroad (विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय)
बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) (-) विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय (-) स्थिर पूंजी का उपभोग अथवा घिसावट
= 97503 (-) (-) 201 (-) 5699
= 97503 + 201 – 5699 = ₹ 92005 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 2.
एक काल्पनिक अर्थव्यवस्था का बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद ₹ 1,20,000 करोड़ है। यदि देश का पूंजी भण्डार ₹ 3,00,000 करोड़ है तथा इसकी वार्षिक घिसावट 20% है। अप्रत्यक्ष कर ₹ 30,000 करोड़ तथा सबसिडी ₹ 15,000 करोड़ है। राष्ट्रीय आय कितनी होगी?
उत्तर-
राष्ट्रीय आय (NNPFC) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNPMP) – मशीनों की घिसावट – शुद्ध अप्रत्यक्ष कर ₹ करोड़ बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद = 1,20,000
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 8

प्रश्न 3.
निम्नलिखित आंकड़ों से निजी आय ज्ञात करो।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 9
उत्तर-
निजी आय (Private Income) = साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (-) गैर विभागीय सरकारी उद्यमों की बचतें (-) सरकारी प्रबन्धकीय उद्यमों को जायदाद तथा उद्यमवृत्ति से आय ” (+) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों से चालू हस्तान्तरण (+) शेष विश्व से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (+) राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज निजी आय = 473 – 1 – 9 + 18 + 4 + 28 = ₹ 513 करोड़
नोट-विदेशों से शुद्ध साधन आय, साधन लागत तथा शुद्ध राष्ट्रीय उत्पादन में शामिल होती है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित आंकड़ों से निजी आय ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 10
उत्तर-
निजी आय = निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पाद से प्राप्त आय (+) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों से शुद्ध चालू हस्तान्तरण (+) विदेशों से शुद्ध साधन आय + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण निजी आय (Private Income) = 500 + 40 + (-20) + 60 + 50 = ₹ 630 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 11
उत्तर-
निजी आय (Private Income)-राष्ट्रीय आय (-) विभागीय उद्यमों की सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से आय (-) गैर-विभागीय उद्यमों की बचतें + सरकारी क्षेत्र से हस्तान्तरण आय + शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज
(i) निजी आय = 5000 – 70 – 60 + 55 + 25 + 20 = ₹ 4970 करोड़ उत्तर
(ii) व्यक्तिगत आय = निजी आय-निगम कर-निगम बचतें = 4970 – 100 – 200 = ₹ 4670 करोड़ उत्तर
(iii) व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय (-) व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = 4670 – 20 – 10 = ₹ 4640 करोड उत्तर

प्रश्न 6.
निम्नलिखित आंकड़ों से व्यक्तिगत आय ज्ञात करोPSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 12
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 13
उत्तर-
व्यक्तिगत आय (Personal Income)-निजी क्षेत्र को घरेलू उत्पादन से प्राप्त साधन आय + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + सरकारी क्षेत्र से प्राप्त हस्तान्तरण + शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण – निगम कर – निगमों के अवितरित लाभ व्यक्तिगत आय = 270 + 5 + 10 + 8 – 10 – 2
= ₹ 281 करोड़ उत्तर ।

प्रश्न 7.
व्यक्तिगत आय (Personal Income) ज्ञात करो यदि
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 14
उत्तर-
व्यक्तिगत आय (Personal Income) =निजी आय (-) निगम कर – निगमों के अवितरित लाभ व्यक्तिगत आय = 300 – 20 – 50 = ₹ 230 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 8.
निम्नलिखित आंकड़ों से व्यक्तिगत व्यय योग्य आय ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 15
उत्तर-
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = निजी आय (-) निगम कर (-) निगमों की बचतें (-) प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = 200 – 20 – 30 – 10 – 5 = ₹ 135 करोड़ उत्तर

प्रश्न 9.
निम्नलिखित आंकड़ों से व्यक्तिगत व्यय योग्य आय ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 16
उत्तर-
व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = निजी आय (-) निगम कर (-) निगमों के अवितरित लाभ (-) प्रत्यक्ष कर (-) सरकारी प्रबन्धकीय विभागों की प्राप्तियां व्यक्तिगत व्यय योग्य आय = 500 – 20 – 15 -5 – 2 = ₹ 458 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निम्नलिखित आंकड़ों से ज्ञात करो :
(a) व्यक्तिगत आय (Personal Income)
(b) व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 17
उत्तर:
(a) व्यक्तिगत आय (Personal Income) = निजी आय (-) निगम कर (-) निगम बचतें व्यक्तिगत आय = 45000 – 1000 – 2000 = ₹ 42000 करोड़
(b) व्यक्तिगत व्यय योग्य आय (Personal Disposable Income) = व्यक्तिगत आय-प्रत्यक्ष कर = 42000 – 300 = ₹ 41700 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित आंकड़ों से सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय तथा शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय ज्ञात करें-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 18
उत्तर-

  • सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = राष्ट्रीय आय + शेष विश्व से निवल (शुद्ध) चालू हस्तान्तरण + स्थायी (अचल) पूंजी का उपभोग + निवल शुद्ध अप्रत्यक्ष कर = 2000 + 200 + 100 + 250 = ₹ 2550 करोड़ उत्तर
  • शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय = सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय – स्थायी (अचल) पूंजी का उपभोग = 2550 – 100 = ₹ 2450 करोड़ उत्तर

प्रश्न 12.
निम्नलिखित आंकड़ों से शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 19
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) = बाज़ार कीमत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण-घिसावट
= 100 (+) 50 (-) 20 = ₹ 130 करोड़ उत्तर

प्रश्न 13.
निम्नलिखित आंकड़ों द्वारा शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 20
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NIINDI) = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर के शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण – स्थिर पूंजी का उपभोग (अथवा घिसावट) NNDI = 800 + 70 + 50 – 60 = ₹ 860 करोड़ उत्तर

प्रश्न 14.
निम्नलिखित आंकड़ों से सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GNDI) ज्ञात करो
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 21
उत्तर-
सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GNDI) = राष्ट्रीय आय (NNPFC) + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + स्थिर पूंजी का उपभोग + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण सकल राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (GNDI) = 2000 + 250 + 100 + 200 = ₹ 2550 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं

प्रश्न 15.
राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय में अन्तर बताओ।
उत्तर-
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय (NNDI) = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण उदाहरण
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 22
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण
= 1864292 + 202036 + 57821 = ₹ 21,241,49 करोड़ उत्तर
अथवा
शुद्ध राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण = 2066328 + 57821
= ₹ 21,24,149 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उत्पाद की धारणाओं के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उत्पाद के सम्बन्ध को बेकरमैन के अग्रलिखित चार्ट की सहायता से स्पष्ट किया जा सकता है:-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 23

इसमें

  •  D = घिसावट (Depreciation)
  • NIT = शुद्ध अप्रत्यक्ष कर (Net Indirect Taxes = Indirect Taxes – Subsidies)
  • NFYA = विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय
    ↓ जब ऐरो नीचे को जाता है तो घटाओ
    ↑ जब ऐरो ऊपर को जाता है तो जोड़ो
  • शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण (Other Current Transfer from the rest of the World) = (उपहार, उपभोगी वस्तुएं, जंगी सामान, नकदी)

नोट-इस चार्ट की सहायता से राष्ट्रीय आय तथा राष्ट्रीय उत्पादन की धारणाओं का आसानी से माप किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
निजी आय तथा व्यक्तिगत आय की धारणाओं के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
निजी आय (Private Income) तथा व्यक्तिगत आय (Personal Income) की धारणाओं के सम्बन्ध को अग्रलिखित चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 4 राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं 24
नोट-इस चार्ट की सहायता से निजी आय तथा व्यक्तिगत आय का माप आसानी से किया जा सकता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

PSEB 12th Class Economics आय का चक्रीय प्रवाह Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आय के चक्रीय प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उत्पादन, आय और व्यय के प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 2.
एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों के नाम बताओ जिनमें आय का चक्रीय प्रवाह होता है।
उत्तर-

  • उत्पादन क्षेत्र
  • पारिवारिक क्षेत्र
  • वित्तीय क्षेत्र
  • सरकारी क्षेत्र
  • शेष विश्व क्षेत्र।

प्रश्न 3.
बंद अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बंद अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है जिसमें आयात और निर्यात नहीं किया जाता।

प्रश्न 4.
खुली अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खुली अर्थव्यवस्था, वह अर्थव्यवस्था होती है जिसमें देश द्वारा बाकी विश्व से आयात और निर्यात किया जाता है।

प्रश्न 5.
मौद्रिक प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था में लेन-देन मुद्रा के रूप में किया जाता है तो इसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 6.
वास्तविक प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब अर्थव्यवस्था में लेन-देन वस्तुओं तथा सेवाओं के रूप में किया जाता है तो उसको वास्तविक प्रवाह कहते हैं।

प्रश्न 7.
आय के चक्रीय प्रवाह का मुख्य सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह का मुख्य सिद्धान्त यह है कि विभिन्न क्षेत्रों के भुगतान तथा प्राप्तियां एक-दूसरे के समान होती हैं।

प्रश्न 8.
आय के चक्रीय प्रवाह का कोई एक महत्त्व बताएं।
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह से राष्ट्रीय आय में उपभोग, बचत और निवेश का ज्ञान प्राप्त होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

प्रश्न 9.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जिस अर्थव्यवस्था में पारिवारिक क्षेत्र और उत्पादन क्षेत्र होते हैं, उसको दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 10.
तीन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पारिवारिक क्षेत्र और उत्पादन क्षेत्र, वित्तीय क्षेत्र में बचत करते हैं तथा उधार लेते हैं, तो इस अर्थव्यवस्था को तीन क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था कहा जाता है।

प्रश्न 11.
चार क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. पारिवारिक क्षेत्र
  2. उत्पादक क्षेत्र
  3. वित्तीय क्षेत्र
  4. सरकारी क्षेत्र।

प्रश्न 12.
वापसी अथवा रिसाव (Leakage) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
परिवार और फ़मैं अपनी आय का जो भाग बचत के रूप में रख लेते हैं, उसको वापसी अथवा रिसाव कहा जाता है।

प्रश्न 13.
समावेश (Injection) की परिभाषा दें।
उत्तर-
परिवार और फ़र्मों द्वारा बचत का जो भाग निवेश किया जाता है उसको समावेश कहा जाता है।

प्रश्न 14.
आय के चक्रीय प्रवाह की तीन अवस्थाओं (Phases) के नाम बताओ।
उत्तर-

  • उत्पादन,
  • आय,
  • व्यय।

प्रश्न 15.
उत्पादन, आय और व्यय को आय का चक्रीय प्रवाह कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
एक अर्थव्यवस्था के पाँच क्षेत्रों के नाम ………….
(1) उत्पादन क्षेत्र
(2) पारिवारिक क्षेत्र
(3) वित्तीय क्षेत्र
(4) सरकारी क्षेत्र
(5) बाकी विश्व क्षेत्र है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
जिस अर्थव्यवस्था में पारिवारिक क्षेत्र और उत्पादन क्षेत्र होते हैं उसको दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 18.
परिवार तथा फ़र्मों की आय का जो भाग बचत के रूप में रख लिया जाता है, उसको ……….. कहते हैं।
(a) पूँजी
(b) रिसाव
(c) भविष्य निधि
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) रिसाव।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

प्रश्न 19.
एक देश में लेन-देन मुद्रा के रूप में किया जाता है, उसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 20.
एक देश में लेन-देन वस्तुओं और सेवाओं के रूप में किया जाता है और उसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 21.
वस्तओं तथा सेवाओं के प्रवाह को ………… …. कहते हैं :
(a) मौद्रिक प्रवाह
(b) आर्थिक प्रवाह
(c) वास्तविक प्रवाह
(d) उपरोक्त में से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(c) वास्तविक प्रवाह।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आय के चक्रीय प्रवाह से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में मुद्रा आय के चक्रीय रूप में प्रवाह से होता है। एक क्षेत्र का व्यय दूसरे क्षेत्र की आय होती है। दूसरा क्षेत्र आय को अपनी आवश्यकताओं पर व्यय करता है तो शेष क्षेत्रों को आय प्राप्त होती है।

प्रश्न 2.
एक अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्र बताओ, जिनमें आय का चक्रीय प्रवाह होता है।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है

  1. उत्पादन क्षेत्र (Production Sector)-यह क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करता है।
  2. पारिवारिक क्षेत्र (Household Sector)-यह क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग करता है।
  3. वित्तीय क्षेत्र (Financial Sector)- यह क्षेत्र बचत जमा करता है तथा उधार देता है।
  4. सरकारी क्षेत्र (Government Sector)-यह क्षेत्र कर लगाता है तथा व्यय करता है।
  5. शेष विश्व क्षेत्र (Rest of the World Sector)-यह क्षेत्र आयात तथा निर्यात करता है।

प्रश्न 3.
बन्द अर्थव्यवस्था तथा खुली अर्थव्यवस्था में अन्तर बताओ।
उत्तर–
बन्द अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है, जिसमें आयात तथा निर्यात नहीं किया जाता। खुली अर्थव्यवस्था वह अर्थव्यवस्था है, जिसमें विदेशों से वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात किया जाता है तथा विदेशों को वस्तुएं तथा सेवाएं निर्यात की जाती हैं।

प्रश्न 4.
मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह में अन्तर बताओ।
उत्तर-
जब उत्पादन के साधन कार्य करते हैं तथा उनको लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ के रूप में आय प्राप्त होती है, जिसको वह साधन अपनी आवश्यकताओं पर व्यय करते हैं तो इससे उत्पादन क्षेत्र को आय प्राप्त होती है, इसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं। वास्तविक प्रवाह (RealFlow) से अभिप्राय पारिवारिक क्षेत्र द्वारा प्रदान की सेवाओं का प्रवाह उत्पादन क्षेत्र की ओर जाता है तथा उत्पादन क्षेत्र को वस्तुओं का प्रवाह पारिवारिक क्षेत्र की ओर जाता है तो इसको वास्तविक प्रवाह कहते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

प्रश्न 5.
भण्डार (Stock) तथा प्रवाह (Flow) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भण्डार वह मात्रा होती है जो निश्चित समय के बिन्दु (Point of Time) पर मापी जाती है। जैसे कि मनुष्य के पास धन अथवा पूंजी का भण्डार। प्रवाह वह मात्रा होती है, जो समय अवधि (Period of Time) में मापी जाती है, जैसे कि परिवार की आय तथा व्यय इत्यादि।

प्रश्न 6.
वास्तविक प्रवाह से क्या अभिप्राय है ? दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में चित्र की सहायता से वास्तविक प्रवाह की व्याख्या करें।
उत्तर-
वास्तविक प्रवाह से अभिप्राय पारिवारिक क्षेत्र द्वारा प्रदान की गई सेवाओं (भूमि श्रम, पूंजी, उद्यम) के बदले में जब उत्पादन क्षेत्र द्वारा वस्तुओं का प्रवाह पारिवारिक क्षेत्र की ओर जाता है तो इसको वास्तविक प्रवाह कहते हैं। इसको रेखाचित्र 1 द्वारा भी स्पष्ट किया जा सकता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 1

प्रश्न 7.
मौद्रिक प्रवाह से आपका क्या अभिप्राय है ? दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में चित्र की सहायता से मौद्रिक प्रवाह की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मौद्रिक प्रवाह वह प्रवाह है जिसमें आय तथा व्यय मुद्रा के रूप में किया जाता है। उत्पादन क्षेत्र में फर्मे पारिवारिक क्षेत्र को काम करने के बदले में साधन भुगतान (लगाना, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ) करते हैं। पारिवारिक क्षेत्र इस आय को वस्तुओं तथा सेवाओं के उपभोग पर खर्च कर देते हैं। इसको मौद्रिक प्रवाह कहते हैं। जो कि दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में किया जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 2

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उत्पादन, आय तथा व्यय के चक्रीय प्रवाह से आपका क्या उद्देश्य है ?
अथवा
आय के चक्रीय प्रवाह से आपका क्या अभिप्राय है ? विभिन्न क्षेत्रों में चक्रीय प्रवाह के लिए किस प्रकार के आंकड़े अनिवार्य हैं ?
अथवा
आय के चक्रीय प्रवाह का क्या अर्थ है ? इससे सम्बन्धित तीन अवस्थाओं (Phases) के नाम बताओ।
उत्तर-
मुद्रा आय के विभिन्न क्षेत्रों में चक्रीय प्रवाह को आय का चक्रीय प्रवाह कहा जाता है। उत्पादन, आय अथवा व्यय के चक्रीय प्रवाह को आय प्रवाह कहा जाता है, जब किसी अर्थव्यवस्था में उत्पादन किया जाता है तो उत्पादन के साधन मिलकर यह उत्पादन करते हैं। इसलिए साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज के लाभ के रूप में आय प्राप्त होती है। उत्पादन के साधन इस आय को आवश्यकताओं की पूर्ति पर व्यय करते हैं। इससे उत्पादन की वस्तुओं तथा सेवाओं की खपत हो जाती है। मानवीय आवश्यकताओं का कभी अन्त नहीं होता, इसलिए उत्पादन के साधन फिर कार्य करने लग जाते हैं। इस प्रकार उत्पादन, आय तथा व्यय चक्रीय प्रवाह में चलते रहते हैं।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 3

प्रश्न 2.
दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को स्पष्ट करो।
उत्तर-
एक अर्थव्यवस्था में दो क्षेत्र, परिवार क्षेत्र तथा फ़में दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय का प्रवाह (उत्पादन क्षेत्र हैं) परिवार क्षेत्र से उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूंजी तथा संगठन कार्य करने के लिए फर्मों में जाते हैं। इससे वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन होता है। फ़र्मों द्वारा उत्पादन के साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज के रूप में भुगतान किया जाता है तथा फ़र्मों को लाभ होता है। उत्पादन के साधन अपनी आय
पारिवारिक क्षेत्र वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। इससे फ़र्मों को आय होती है तथा उनकी उत्पादन वस्तुएं बिक जाती हैं। इसको एक रेखाचित्र 4 द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।

पारिवारिक क्षेत्र से उत्पादन के साधन भूमि, श्रम, पूँजी, उद्यमी की सेवाएं उत्पादन क्षेत्र को दी जाती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 4

  • उत्पादन क्षेत्र साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज का भुगतान करता है तथा फ़र्म को लाभ प्राप्त होता है।
  • पारिवारिक क्षेत्र इस आय को वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करता है।
  • उत्पादन क्षेत्र में से वस्तुएं तथा सेवाएं पारिवारिक क्षेत्र में आ जाती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आय के चक्रीय प्रवाह से क्या अभिप्राय है ? एक अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को स्पष्ट करो। (What is Circular Flow of Income? Explain the Circular Flow of Income in an Economy.)
अथवा
बन्द अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को स्पष्ट करो। (Explain Circular Flow of Income in Closed Economy.)
उत्तर-
आय के चक्रीय प्रवाह का अर्थ (Meaning of Circular Flow of Income)-आय के चक्रीय प्रवाह को समझने के लिए अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों की जानकारी अनिवार्य होती है। आय की ओर से अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. उत्पादन क्षेत्र-इस क्षेत्र में वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन होता है।
  2. पारिवारिक क्षेत्र-इस क्षेत्र में वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग किया जाता है।
  3. वित्तीय क्षेत्र-इस क्षेत्र में बचत जमा करवाई जाती है तथा उधार दिया जाता है।
  4. सरकारी क्षेत्र-यह क्षेत्र कर लगाता है तथा सहायता प्रदान करता है।
  5. शेष विश्व क्षेत्र-यह क्षेत्र आयात तथा निर्यात से सम्बन्धित होता है।

आय के चक्रीय प्रवाह से अभिप्राय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में आय के चक्र में बहाव की प्रक्रिया को कहा जाता है। (Circular flow of income means the flow of money income in different sectors of an economy.)

आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow Of Income) जब आय तथा उत्पादन के विभिन्न क्षेत्रों में अन्तर-निर्भरता को रेखाचित्र द्वारा दिखाया जाता है तो यह आय का चक्रीय प्रवाह है, इसको दो तरह की अर्थव्यवस्था में स्पष्ट किया जा सकता है
(A) बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy)
(B) खुली अर्थव्यवस्था (Open Economy)।

A. बन्द अर्थव्यवस्था (Closed Economy)-वह अर्थव्यवस्था जिसमें आयात-निर्यात नहीं किया जाता, उसको बन्द अर्थव्यवस्था कहा जाता है।ऐसी अर्थव्यवस्था में आय के चक्रीय प्रवाह को निम्नलिखित भागों में विभाजित कर स्पष्ट किया जा सकता है-
1. दो क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था में आय का चक्रीय प्रवाह (Circular Flow of Income in two sectors of an Economy)-पहले हम एक ऐसी अर्थव्यवस्था लेते हैं जिसमें दो क्षेत्र

  • उत्पादन क्षेत्र तिम वस्तुए तथा सेवा
  • पारिवारिक क्षेत्र हैं। इस अर्थव्यवस्था में पूरी आय उत्पादन क्षेत्र व्यय की जाती है। बचत नहीं की जाती, कर नहीं पारिवारिक क्षेत्र
    (फ़र्में) लगते, आयात-निर्यात नहीं किया जाता। इस अर्थव्यवस्था में दो प्रवाह हैं

(a) वास्तविक प्रवाह (Real Flow)-साधन सेवाएं, भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यम पारिवारिक क्षेत्र से फ़र्मों में कार्य करते हैं तथा अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग करते हैं। इसको वास्तविक प्रवाह कहा जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह 5

(b) मुद्रा प्रवाह (Money Flow)-फ़र्मे साधनों को लगान, मज़दूरी, ब्याज तथा लाभ में भुगतान करती हैं तथा परिवार अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय करते हैं। इसको मुद्रा प्रवाह कहा जाता है। रेखाचित्र अनुसार,

  • फ़र्मों द्वारा वस्तुओं तथा सेवाओं का कुल उत्पादन = पारिवारिक क्षेत्र द्वारा कुल वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग।
  • फ़र्मों द्वारा साधन भुगतान = पारिवारिक क्षेत्र में साधन आय।
  • पारिवारिक क्षेत्र का उपभोग व्यय = पारिवारिक क्षेत्र की आय।
  • फ़र्मे तथा परिवारों का उत्पादन तथा उपभोग का वास्तविक प्रवाह = फ़र्मों तथा परिवारों की आय तथा व्यय का मौद्रिक प्रवाह।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 3 आय का चक्रीय प्रवाह

वित्तीय बाज़ार में आय का चक्रीय प्रवाह-परिवार तथा फ़र्मे अपनी मौद्रिक आय व्यय नहीं करतीं। इसमें से कुछ भाग की बचत की जाती है। यह बचत बैंकों (वित्तीय बाज़ार) में जमा करवाई जाती है। बैंक इस राशि को फ़र्मों तथा परिवारों को उधार दे देते हैं तथा मुद्रा के चक्रीय प्रवाह में कोई फर्क नहीं पड़ता।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

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PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 2 समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं

PSEB 12th Class Economics समष्टि अर्थशास्त्र में मूल धारणाएं Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तु से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उन सभी चीज़ों को वस्तु कहते हैं जो मानव की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती हैं तथा जिन्हें मानव प्राप्त करना चाहता है।

प्रश्न 2.
सेवाओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सेवाएं अभौतिक वस्तु हैं जिन्हें छुआ, देखा या हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 3.
भौतिक वस्तु कौन-सी वस्तु को कहते हैं ?
उत्तर-
भौतिक वस्तु वह वस्तु है जिसे छुआ जा सकता है, देखा जा सकता है तथा जिसका हस्तान्तरण किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
अभौतिक वस्तुओं का दूसरा नाम बताइये।
उत्तर-
अभौतिक वस्तुओं का दूसरा नाम सेवाएं है जैसे डॉक्टर की सेवा, अध्यापक की सेवा आदि।

प्रश्न 5.
आर्थिक वस्तुएं क्या हैं ?
उत्तर-
आर्थिक वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो सीमित होती हैं, जिनमें उपयोगिता होती है तथा हस्तान्तरणीयता होती है।

प्रश्न 6.
अनार्थिक वस्तुओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
अनार्थिक वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनकी पूर्ति मांग से बहुत अधिक होने के कारण दुर्लभ नहीं होती और निःशुल्क उपलब्ध होती हैं जैसे सूर्य का प्रकाश, हवा आदि।

प्रश्न 7.
आगत (Input) क्या है ?
उत्तर-
उत्पादन-प्रक्रिया की दृष्टि से एक उत्पादकीय फर्म द्वारा जो भी वस्तुएं एवं सेवाएँ खरीदी जाती हैं, उन्हें आगत कहते हैं।

प्रश्न 8.
आर्थिक तथा अनार्थिक वस्तुओं में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
आर्थिक वस्तु के लिए कीमत देनी पड़ती है जबकि अनार्थिक वस्तु के लिए कीमत नहीं देनी पड़ती।

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प्रश्न 9.
उपभोक्ता वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उपभोक्ता वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोक्ता की आवश्यकता को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करती हैं।

प्रश्न 10.
पूंजीगत वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीगत वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो अन्य वस्तुओं का उत्पादन करने में सहायक होती हैं।

प्रश्न 11.
गैर टिकाऊ या एक प्रयोग उपभोग वस्तुएं कौन सी हैं ?
उत्तर-
गैर-टिकाऊ या एक प्रयोग उपभोग वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो एक बार उपभोग करने के बाद समाप्त हो जाती हैं।

प्रश्न 12.
एक प्रयोग उपभोग वस्तुओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
चाय, ब्रैड, मक्खन, बिस्कुट आदि ।

प्रश्न 13.
अर्द्ध टिकाऊ उपभोग वस्तुओं की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
अर्द्ध टिकाऊ उपभोग वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उपभोग प्रायः एक वर्ष की अवधि तक किया जा सकता है जैसे कमीज़, फर्नीचर, परदे, क्राकरी आदि।

प्रश्न 14.
टिकाऊ उपभोग वस्तुओं के तथ्य को उदाहरण देकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
टिकाऊ उपभोग वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उपभोग बार-बार किया जा सकता है जैसे टी०वी०, फ्रिज, वाशिंग मशीन आदि।

प्रश्न 15.
एक प्रयोग पूंजीगत वस्तुएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
एक प्रयोग पूंजीगत वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो उत्पादन की क्रिया में केवल एक बार ही प्रयोग में लाई जा सकती हैं जैसे ईंधन, कच्चा माल आदि।

प्रश्न 16.
टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएं कौन-सी वस्तुएँ हैं ?
उत्तर-
टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उत्पादन क्रिया में दीर्घकाल के लिए अनेक बार प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
उपभोग वस्तुओं तथा उत्पादक वस्तुओं में भेद का क्या आधार है ?
उत्तर-
इनमें अन्तर का आधार इनके उपभोग का उद्देश्य है।

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प्रश्न 18.
मध्यवर्ती उपभोग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग से अभिप्राय है उत्पादन के लिए गैर टिकाऊ वस्तुओं तथा सेवाओं का प्रयोग।

प्रश्न 19.
फर्मों का मध्यवर्ती उपभोग क्या है ?
उत्तर-
उद्यमों के मध्यवर्ती उपभोग से अभिप्राय है गैर टिकाऊ वस्तुओं और सेवाओं, विज्ञापन, अनुसन्धान तथा विकास आदि पर किया गया व्यय।

प्रश्न 20.
गैर वित्तीय निगमित उद्यमों के मध्यवर्ती उपभोग के उदाहरण दें।
उत्तर-
कच्चा माल और ईंधन।

प्रश्न 21.
टिकाऊ उत्पादक वस्तुओं की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका उत्पादन क्रिया में दीर्घकाल के लिए अनेक बार प्रयोग किया जाता है जैसे मशीन।

प्रश्न 22.
मध्यवर्ती वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है या जो पुनः बिक्री के लिए खरीदे जाते हैं।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भौतिक तथा अभौतिक पदार्थ किसे कहते हैं ? Distinguish between material and non-material goods.)
उत्तर-
भौतिक तथा अभौतिक पदार्थों में अग्रलिखित अंतर हैं –

भौतिक वस्तुएँ अभौतिक वस्तुएँ
1. इनका भौतिक स्वरूप होता है अर्थात् इन्हें देखा जा सकता है, छुआ जा सकता है। 1. इनका भौतिक स्वरूप नहीं होता।
2. इनके उत्पादन और उपभोग में समय अन्तर होता है। 2. इनका उत्पादन और उपभोग साथ-साथ होता है।
3. इनका संग्रह किया जा सकता है। 3. इनका संग्रह नहीं किया जा सकता ।
4. इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तान्तरित किया जा सकता
है।
4. इन्हें हस्तान्तरति नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 2.
आर्थिक तथा अनार्थिक वस्तुएँ किसे कहते हैं ? (Distinguish between economic and non economic goods.) उत्तर-
आर्थिक तथा अनार्थिक वस्तुओं में निम्न अन्तर पाया जाता है-

आर्थिक वस्तुएँ अनार्थिक वस्तुएँ
1. इनकी पूर्ति सीमित होती है। 1. इनकी पूर्ति सीमित नहीं होती।
2. इनके लिए कीमत देनी पड़ती है। 2. ये निःशुल्क प्राप्त होती हैं।
3. इनका उत्पादन सीमित साधनों द्वारा किया जाता हैं जैसे हवा और धूप। 3. ये वस्तुएँ प्रकृति द्वारा उपहार स्वरूप प्राप्त होती है।

प्रश्न 3.
एक प्रयोग उपभोग वस्तुओं तथा टिकाऊ उपभोग वस्तुओं पर एक टिप्पणी लिखिए। (Write a note on single use consumer goods and consumer durables.)
उत्तर-
कई वस्तुएं एक ही बार प्रयोग में लाई जा सकती हैं जैसे फल, ईंधन, दूध, आटा, बिजली आदि। इन वस्तुओं का तुष्टिगुण एक बार के प्रयोग से समाप्त हो जाता है। ऐसी वस्तुओं को एकल प्रयोग वस्तुएँ अथवा गैर-टिकाऊ वस्तुएँ कहते हैं। सेवायें भी इसी श्रेणी में आती हैं। इन वस्तुओं की मांग निरन्तर रूप से की जाती रहती है। कई वस्तुएँ ऐसी होती हैं जिन्हें निरन्तर रूप से कई वर्षों तक प्रयोग में लाया जा सकता है जैसे टेलीविज़न, फ्रिज, कार आदि। ऐसी वस्तुएँ टिकाऊ कहलाती हैं।

प्रश्न 4.
मध्यवर्ती वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by intermediate goods ?)
उत्तर-
मध्यवर्ती वस्तुएं प्रायः गैर टिकाऊ होती हैं। सभी गैर-साधन आगत (non factor inputs) मध्यवर्ती वस्तुएँ होते हैं। गैर साधन आगतों में साधन आगतों (factor inputs) को छोड़कर उत्पादन में काम आने वाले अन्य साधन शामिल हैं। साधन आगत टिकाऊ होते हैं। वर्ष के दौरान खरीदा गया माल भण्डार यदि वर्ष के दौरान प्रयोग में आ जाता है तो यह मध्यवर्ती वस्तु कहलाता है। मध्यवर्ती वस्तुएँ उत्पादन प्रक्रिया में पुनः प्रयोग में आती हैं और इनका सम्बन्ध उपभोग और निवेश के लिए नहीं होता। ये वस्तुएँ उत्पादन परिसीमा के अन्दर होती हैं। मध्यवर्ती वस्तुएँ राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं होतीं, केवल अन्तिम वस्तुओं का मूल्य आंका जाता है।

III. लयु उत्तरीय प्रश्न (Very Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अन्तिम वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? इसके दो उदाहरण दें। (What do you mean by final goods ? Give two examples of final goods.)
उत्तर-
अन्तिम वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका या तो अन्तिम उपभोग के लिए या पूंजी निर्माण के लिए प्रयोग किया जाता है। इनकी पुनः बिक्री नहीं होती। अन्तिम वस्तुएँ उत्पादन परिसीमा से बाहर निकलकर अन्तिम प्रयोग के लिए होती हैं। उदाहरण के लिए सोफा सेट, कपड़ा बनाने की मशीनें, स्कूटर, पंखे आदि अन्तिम वस्तुओं के उदाहरण हैं। अन्तिम वस्तुएँ दो प्रकार की हो सकती हैं-

  1. उपभोक्ता वस्तुएँ (वे अन्तिम वस्तुएँ जो उपभोक्ताओं की आवश्यकताओं को प्रत्यक्षरूप से सन्तुष्ट करती हैं जैसे टेलीविज़न (टिकाऊ वस्तु), कमीज, फर्नीचर (अर्द्ध टिकाऊ वस्तु) और गैर टिकाऊ वस्तुएँ (फल, सब्जी, दूध आदि) तथा
  2. पूंजीगत वस्तुएँ वे अन्तिम वस्तुएँ जो आगे उत्पादन करने के लिए प्रयोग की जाती हैं, पूंजीगत वस्तुएँ कहलाती हैं जैसे कार, ट्रक, इमारतें, वायुयान, मशीनें, सड़कें, पुल आदि।

प्रश्न 2.
उत्पादन के मूल्य तथा मूल्य वृद्धि में अन्तर बताइये। (Explain the difference between value of output and value added.)
उत्तर-
उत्पादक फर्मे एक लेखा वर्ष के दौरान वस्तुओं के उत्पादन के लिए कच्चा-माल (मध्यवर्ती वस्तुएँ) और साधन आगतों (factor inputs) का प्रयोग करती हैं। विभिन्न फर्मे एवं उत्पादन इकाइयां भिन्न-भिन्न वस्तुओं का उत्पादन करती हैं। इस उत्पादन का मौद्रिक मूल्य, उत्पादन मूल्य (value of output) कहलाता है। उत्पादन मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य भी शामिल होता है। इसलिए यह राष्ट्रीय आय की गणना का आधार नहीं हो सकता क्योंकि यहाँ दोहरी गणना की समस्या उत्पन्न होती है।

एक लेखा वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य, जिसमें चालू कार्य में शुद्ध वृद्धि और स्व लेखा (own account) पर उत्पादित वस्तुएँ भी शामिल हैं, उत्पादन मूल्य कहलाता है। उत्पादन मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य भी शामिल है जिन्हें उत्पादित फर्म ने अन्य फर्मों से प्राप्त किया। यदि उत्पादन मूल्य में से मध्यवर्ती वस्तुओं का मूल्य घटा दिया जाये तो उसे मूल्य वृद्धि कहते हैं। उत्पादन मूल्य = फर्म द्वारा बिक्री + माल भण्डार में वृद्धि मूल्य वृद्धि = उत्पादन मूल्य – मध्यवर्ती उपभोग प्रवाह में योगदान डाला जाता है। राष्ट्रीय आय सम्बन्धी आंकड़े-राष्ट्रीय आय लेखा विधि में अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन, बांट तथा कुल उपभोग सम्बन्धी आंकड़ों की जानकारी दी गई होती है।

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प्रश्न 3.
बाजार से खरीदे गये रेफ्रिजरेटर के कौन-कौन से उपयोग हो सकते हैं ? (Explain the different uses of Refrigerator.)
उत्तर-
एक उपभोक्ता प्रत्यक्ष रूप से अपनी आवश्यकता सन्तुष्ट करने के लिए फ्रिज खरीदता है तो यह प्रयोग घरेलू प्रयोग होगा। अतः यह उपभोक्ता वस्तु होगी और क्योंकि इसका प्रयोग बार-बार किया जायेगा, अत: यह टिकाऊ वस्तु होगी। सरकार द्वारा सैनिक उद्देश्य के लिए प्रयोग किया जाने वाला फ्रिज मध्यवर्ती वस्तु (Intermediate good) है। एक होटल द्वारा ठण्डा कोला बेचे जाने के लिए खरीदा फ्रिज पूंजीगत वस्तु है। वे अन्तिम वस्तुएँ जो आगे उत्पादन करने के लिए प्रयोग की जाती हैं, पूंजीगत वस्तुएँ कहलाती हैं। एक दवाई विक्रेता यदि फ्रिज दुकान के लिए खरीदता है तो वह पूंजीगत टिकाऊ वस्तु है।

प्रश्न 4.
मध्यवर्ती उपभोग की मांग को स्पष्ट कीजिये। (Explain the demand for intermediate consumption.)
उत्तर-
मध्यवर्ती उपभोग की मांग अर्थव्यवस्था के विभिन्न उत्पादक क्षेत्रों द्वारा की जाती है। सभी उद्यमी दो प्रकार के आगतों (Inputs) का प्रयोग करके वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन करते हैं। अर्थात् साधन आगत या प्राथमिक आगत (Factor inputs or primary inputs) तथा गैर साधन आगत या द्वितीयक आगत (Non-factor inputs or secondary inputs)। मध्यवर्ती उपभोग से अभिप्राय है सभी उत्पादक क्षेत्रों तथा सरकार द्वारा उत्पादन के लिए गैरसाधन आगतों का प्रयोग करना।

1.उद्यमियों का मध्यवर्ती उपभोग = उत्पादन में प्रयोग की जाने वाली गैर टिकाऊ वस्तुएँ व सेवायें (Non durable goods and services) + पूंजीगत स्टॉक की मरम्मत तथा रख-रखाव (Repair and maintenance of capital goods) + अनुसंधान तथा विकास पर व्यय (expenditure on research and development) + व्यावसायिक यात्राओं आदि पर व्यय (expenditure on business tours) + अन्य व्यय (परिवारों के मकान, दुकान, गोदाम, कारखानों की इमारतों के रख-रखाव पर व्यय)।

2. सामान्य सरकार का मध्यवर्ती उपभोग (Intermediate Consumption of General Government) = गैर टिकाऊ वस्तुएँ (Non durable goods) + टिकाऊ वस्तुएँ (Durable goods) + मरम्मत एवं रख-रखाव पर खर्च (expenditure on Repair and Maintenance) + विदेशों से उपहार तथा हस्तान्तरण (Gifts and Transfers from foreign governments)- विदेशों से प्राप्त जो वस्तुएँ बिना किसी परिवर्तन के उपभोक्ता परिवारों में वितरित कर दी जाती हैं उन्हें मध्यवर्ती वस्तु नहीं माना जाता। सरकार द्वारा खरीदी गई टिकाऊ तथा गैर टिकाऊ तथा विदेशी सरकारों से प्राप्त वस्तुओं का शुद्ध मूल्य निकालने के लिए उनके क्रय मूल्य से सरकार द्वारा पुरानी वस्तुओं की बिक्री से प्राप्त रकम को घटा दिया जाता है।

प्रश्न 5.
स्व-उपभोग के लिए उत्पादित वस्तुओं के स्वरूप की व्याख्या कीजिए। (Explain the nature of goods produced for self-consumption.)
उत्तर-
प्रत्येक देश में अनेक उदाहरण ऐसे मिलते हैं जहां उत्पादक उत्पादन का एक भाग अपने परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए रखते हैं और परिवार की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद जो भी अधिशेष उत्पादन बचता है उसे बाज़ार में बिक्री के लिए भेज दिया जाता है। यह बात केवल वस्तुओं पर ही लागू नहीं होती बल्कि सेवाओं पर भी लागू होती है। पारिवारिक स्नेह या उत्तरदायित्व के कारण जब कोई व्यक्ति अपनी सेवाएं प्रदान करता है तो वे सेवाएं स्व-उपभोग सेवाएं कहलाती हैं।

उदाहरण के लिए गृहिणी परिवार में अनेक बहुमूल्य सेवाएं प्रदान करती है। परिवार के लिए भोजन बनाना, परिवार के सदस्यों के लिए कपड़े सीना, अस्वस्थ होने पर नर्स का कार्य करना, घर में बच्चों को शिक्षा देना, कढ़ाई-बुनाई आदि। यदि ये सेवाएं हम पारिश्रमिक द्वारा प्राप्त करना चाहें तो सम्भवतः प्राप्त न हों क्योंकि हम मुद्रा द्वारा भोजन तो प्राप्त कर सकते हैं परन्तु उस भोजन में जो भाव होता है उसे कहाँ से लाया जाए ? जब तक अध्यापक अपने बच्चे को घर पर पढ़ाता है, नर्स अपने बच्चे की देखभाल करती हैं, एक कलाकार अपने घर के लिए चित्र बनाता है, एक डॉक्टर अपनी पत्नी का इलाज करता है आदि ये सभी स्व-उपभोग सेवाओं के उदाहरण हैं।

एक किसान अपने उपभोग के लिए कुल उत्पादन में से गेहूँ का एक भाग रख लेता है, एक जुलाहा अपने उत्पादन में से घर के लिए कपड़ा बचा लेता है, एक मोची अपने उत्पादन में से जूते अपने लिए रख लेता है, ये सभी स्व-उपभोग के उदाहरण हैं। हम कह सकते हैं कि स्व-उपभोग के लिए उपयोग में लाई गई वस्तुओं तथा सेवाओं का मौद्रिक मूल्यांकन नहीं होता जबकि ये वस्तुएँ और सेवाएं मौद्रिक मूल्य रखती हैं।

प्रश्न 6.
स्टॉक तथा प्रवाह में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
स्टॉक तथा प्रवाह में अन्तरस्टॉकया ।

स्टॉक प्रवाह
1. स्टॉक का माप समय के बिन्दु पर किया जाता 1. प्रवाह का माप समय की अवधि में किया जाता
है।
2. स्टॉक का समय काल नहीं होता। 2. स्टॉक का समय काल होता है जैसे प्रति घण्टा, प्रति महीना आदि।
3. प्रवाह एक परिवर्तनशील धारणा है। 3. स्टॉक एक स्थिर धारणा है।
4. प्रवाह देश में स्टॉक को प्रभावित करता है। 4. स्टॉक देश में प्रवाह को निर्धारित करता है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
वस्तुओं से क्या अभिप्राय है ? विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का वर्णन कीजिए। (What is meant by goods ? Mention the different types of goods.)
उत्तर-
मानवीय आवश्यकताओं की सन्तुष्टि के लिए विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन किया जाता है। वस्तुएं भौतिक होती हैं तथा सेवाएं अभौतिक होती हैं। पदार्थ वे वस्तुएं हैं जिन्हें मनुष्य प्राप्त करना चाहता है। वे सब वस्तुएँ जो मानव की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करती हैं, पदार्थ कहलाती हैं। (Goods are desirable things. All things that satisfy human wants are called goods-Marshall). राष्ट्रीय आय लेखांकन में मनुष्य द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं को कई वर्गों में बांट दिया जाता है।
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1. उपभोक्ता वस्तुएं (Consumer Goods)-उपभोक्ता वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करती हैं। उपभोक्ता वस्तुएं अन्तिम उपभोग के लिए प्रयोग की जाती हैं। उदाहरण के लिए कमीज़, चाय, पैप्सी, कोला, पैन आदि।

(A) एक प्रयोग वाली उपभोग वस्तुएं (Single Use Consumer Goods)-एक प्रयोग वाली उपभोग वस्तुएं वे जिनका उपभोग केवल एक बार ही किया जाता है अर्थात् जो एक बार उपयोग करने के साथ ही समाप्त हो जाती हैं। जैसे रोटी, चाय, कॉफी, आदि।

(B) टिकाऊ उपभोग वस्तुएं (Durable Consumer Goods)-टिकाऊ वस्तुएँ वे वस्तुए हैं जिनका काफी लम्बे समय तक उपयोग किया जा सकता है। जैसे-रेडियो, कार, स्कूटर, वाशिंग मशीन, टेलीविज़न आदि टिकाऊ उपभोग वस्तुएं हैं।

2. पूंजीगत पदार्थ या उत्पादक वस्तुएं (Capital or Producer’s Goods)-पूंजीगत पदार्थ वे पदार्थ हैं जो वस्तुओं का उत्पादन करने में सहायक होते हैं। ये वस्तुएं प्रत्यक्ष रूप से उपभोक्ता की आवश्यकताओं को सन्तुष्ट नहीं करतीं। पूंजीगत वस्तुओं के उत्पादन के फलस्वरूप पूंजी का निर्माण होता है। पूंजीगत वस्तुओं को भी दो भागों में बांटा जा सकता है।

(A) एक प्रयोग पूंजीगत वस्तुएं (Single use Capital Goods)-एक प्रयोग पूंजीगत उत्पादक वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उत्पादन की एक ही क्रिया में समाप्त हो जाती हैं। जैसे-कच्चा माल।

(B) टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएँ (Durable Capital Goods)-टिकाऊ पूंजीगत वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका उत्पादन क्रिया में दीर्घकाल के लिए अनेक बार प्रयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए मशीनें, यन्त्र, फैक्ट्री, ट्रैक्टर आदि।

प्रश्न 2.
आर्थिक वस्तुओं तथा अनार्थिक वस्तुओं में अन्तर बताइये। (Distinguish between economic goods and non-economic goods.)
उत्तर-
उत्पादन प्रक्रिया के अन्तर्गत अनेक पदार्थों का उत्पादन किया जाता है। इसमें भौतिक तथा अभौतिक पदार्थों को शामिल किया जाता है। भौतिक पदार्थों को वस्तुएं कहते हैं जबकि अभौतिक पदार्थों को सेवायें कहा जाता है। वस्तुओं के उत्पादन तथा उपभोग में समय अन्तर होता है, जबकि सेवाओं के उत्पादन और उपभोग में समय अन्तर नहीं होता।

आर्थिक पदार्थ (Economic Goods)-ये वे पदार्थ हैं जो मानव द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कीमत देकर प्राप्त किए जाते हैं। ऐसी वस्तुओं को प्राप्त करने के लिए हमें आर्थिक कार्य करने पड़ते हैं जिससे आर्थिक साधनों को प्राप्त किया जा सके। इन्हें प्राप्त करने के लिए या तो मुद्रा अथवा अन्य वस्तुओं का त्याग करना पड़ता है।

अनार्थिक पदार्थ (Non-Economic Goods)-अनार्थिक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जो प्रकृति द्वारा निःशुल्क प्राप्त हो जाती हैं। इनके लिए साधनों का त्याग नहीं किया जाता। ये लागतहीन वस्तुएं होती हैं। जैसे-हवा, धूप, रोशनी, रेत आदि। आर्थिक और अनार्थिक वस्तुओं के बीच कोई विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती। उदाहरण के लिए गांवों में पानी एक अनार्थिक वस्तु हैं, क्योंकि यह नि:शुल्क प्राप्त होता है परन्तु शहरों में पानी एक आर्थिक वस्तु है, क्योंकि इसके लिए मूल्य चुकाना पड़ता है।

इन दोनों प्रकार के पदार्थों में आधारभूत अन्तर पदार्थ की दुर्लभता (Scarcity) है। यहां दुर्लभता का प्रयोग तुलनात्मक (relative) अर्थों में किया जाता है। इनका सम्बन्ध वस्तुओं की निरपेक्ष (absolute) मात्रा से नहीं है। दुर्लभता का पता करने के लिए हमें मांग या पूर्ति की तुलना करनी पड़ती है। उस वस्तु को दुर्लभ कहते हैं जिसकी मांग, पूर्ति से अधिक हो। जिस वस्तु की मांग पूर्ति से बहुत कम हो वह वस्तु दुर्लभ नहीं होती, जैसे-गन्दे अण्डे, सड़े हुए टमाटर आदि। इसी कारण ये पदार्थ नि:शुल्क प्राप्त होते हैं। कोई वस्तु अथवा सेवा आर्थिक पदार्थ है या नहीं, इसका निर्णय उसके मूल्य पर निर्भर करता है। नि:शुल्क प्राप्त पदार्थ का वर्गीकरण न तो निश्चित है और न ही स्थायी। संसार में विकास के साथ-साथ नि:शुल्क पदार्थों का क्षेत्र कम हो रहा है तथा आर्थिक पदार्थों का क्षेत्र बढ़ रहा है।

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प्रश्न 3.
वस्तुओं एवं सेवाओं के अन्तिम उपभोग का वर्गीकरण कीजिए। (Classify the final consumption of goods and services.) उत्तर-
अन्तिम उपभोग के अनुसार वस्तुओं एवं सेवाओं को निम्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है
1. उपभोक्ता वस्तुएं (Consumer goods)-उपभोक्ता वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जो उपभोक्ता की आवश्यकताओं को प्रत्यक्ष रूप से सन्तुष्ट करती हैं। उपभोक्ता गृहस्थ एवं सामान्य सरकार दोनों ही उपभोक्ता वस्तुओं की मांग करते हैं। उपभोक्ता वस्तु टिकाऊ तथा गैर टिकाऊ हो सकती है। उपभोक्ता गृहस्थों द्वारा उपयोग में लाई जाने वाली उपभोक्ता वस्तुओं में कार, रेफ्रिजरेटर, स्कूटर, टी.वी., वी.सी. आर. वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर आदि को शामिल किया जाता है। अर्द्ध टिकाऊ वस्तुओं (semi durables) में फर्नीचर, पर्दे आदि को शामिल किया जाता है जो सामान्यतः एक वर्ष तक चलते हैं। टिकाऊ वस्तुओं का उपयोग सामान्य सरकार द्वारा भी किया जाता है और ये सामान्य सरकार के अन्तिम उपभोग व्यय में शामिल होती हैं। इसी प्रकार गृहस्थों तथा सामान्य सरकार द्वारा उपभोग की गई गैर-टिकाऊ वस्तुओं में खाद्य पदार्थ,पेय-पदार्थ, दवाइयां, पेट्रोल, पेन्सिल, कागज़, स्याही, साबुन, तेल आदि शामिल होते हैं। ये वस्तुएं भी उनके अन्तिम उपभोग व्यय का हिस्सा होती हैं।

2. मध्यवर्ती वस्तुएं (Intermediate Goods)-मध्यवर्ती वस्तुएं वे वस्तुएं हैं जिनका प्रयोग अन्य वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन के लिए किया जाता है या जिनकी पुनः बिक्री की जाती है। सामान्यतः सरकार द्वारा वाहनों, हवाई जहाज़ों, सैनिक सामान के गोदामों, रेफ्रिजरेटर्स आदि का उपभोग मध्यवर्ती वस्तुओं के उपभोग के उदाहरण हैं। इसी प्रकार गैर टिकाऊ वस्तुएं एवं सेवायें जैसे कि स्टेशनरी, कपड़ा, पेट्रोल, तेल आदि जिनका उपयोग निगमित उद्यमों एवं सरकार द्वारा उत्पादन के दौरान किया जाता है, मध्यवर्ती वस्तुएं कहलाती हैं। परन्तु यदि इन्हीं वस्तुओं व सेवाओं का उपभोग यदि गृहस्थों द्वारा किया जाता है तो इन्हें उपभोक्ता वस्तुएँ कहेंगे।

3. पूंजीगत वस्तुएँ (Capital Goods)-भावी उत्पादन के लिए जिन वस्तुओं का उपयोग किया जाता है उन्हें पूंजीगत वस्तुएं कहते हैं। फैक्ट्री की इमारत, मशीनें, प्लांट, उपस्कर, सड़क, बांध, नहरें, हवाई जहाज़, ट्रक आदि टिकाऊ पूंजीगत वस्तुओं के उदाहरण हैं। पूंजीगत वस्तुओं में कच्चे माल के स्टॉक, अर्ध निर्मित वस्तुओं के स्टॉक तथा अन्तिम वस्तुओं के स्टॉक भी शामिल किए जाते हैं। पूंजीगत वस्तुओं का उपभोग अर्थव्यवस्था के केवल उत्पादक क्षेत्र के द्वारा ही किया जाता है। एक वस्तु जो एक श्रेणी के उपभोक्ता के लिए उपभोक्ता वस्तु हैं, दूसरी श्रेणी के लिए मध्यवर्ती वस्तु और तीसरी श्रेणी के उपभोक्ता के लिए पूंजीगत वस्तु कहलाती है। सरकार द्वारा उपभोग की गई सभी मध्यवर्ती वस्तुएँ उसके अन्तिम उपभोग का अंग है।

प्रश्न 4.
पूंजी निर्माण से क्या अभिप्राय है ? सकल घरेलू पूंजी निर्माण तथा सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण में अन्तर बताइये। (Explain the meaning of capital formation. Distinguish between Gross Domestic capital formation and Gross Domestic fixed capital formation.)
उत्तर-
एक वित्तीय वर्ष में उपभोग की तुलना में उत्पादन के आधिक्य (surplus) को जिसे भविष्य में उत्पादन में प्रयोग किया जाता है, पंजी निर्माण कहते हैं। एक वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण तथा स्टॉक में परिवर्तन के योग को सकल घरेलू पूंजी निर्माण कहते हैं। सकल घरेलू पूंजी निर्माण = सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण + स्टॉक में परिवर्तन। सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण एक वित्तीय वर्ष में नई परिसम्पत्तियों तथा पुरानी भौतिक परिसम्पत्तियों के शुद्ध क्रय का जोड़ है।

सकल घरेलू स्थिर पूंजी निर्माण = नई परिसम्पत्तियां + पुरानी भौतिक परिसम्पत्तियों का शुद्ध क्रय। नई परिसम्पत्तियों को दो प्रकार से प्राप्त किया जा सकता है-

  • बाज़ार में उत्पादन इकाइयों से क्रय करके तथा
  • स्वयं के उपभोग के लिए उत्पादन द्वारा। उदाहरण के लिए सरकार पैराशूट बनाने के लिए धागा या कपड़ा निजी उद्यमों से बाज़ार में खरीद सकती है या स्वयं के उपयोग हेतु इसका उत्पादन कर सकती है। नई परिसम्पत्तियों को विदेशों से भी आयात किया जा सकता है। निजी एवं सार्वजनिक उद्यम दोनों ही आयातित परिसम्पत्तियों को प्राप्त कर सकते हैं।

ये परिसम्पत्तियां निम्न हैं

  1. सड़कें एवं पुल
  2. इमारतें,
  3. विनिर्माण क्रिया (Construction Activity)
  4. परिवहन उपस्कर (Transport Equipment) तथा
  5. मशीनें, प्लांट एवं अन्य उपस्कर (Machinery, Plants and other Equipments)।

पुरानी सम्पत्तियों का क्रय-विक्रय (Purchase and sale of old assets)-पुरानी परिसम्पत्तियों के क्रयविक्रय को भी स्थिर घरेलू पूंजी निर्माण में शामिल किया जाता है। तकनीकी परिवर्तनों के साथ अपने उद्यम को समन्वित करने के उद्देश्य से अपनी पुरानी और अप्रचालित भौतिक परिसम्पत्तियों को बेचकर नई परिसम्पत्तियां प्राप्त करते हैं।

स्टॉक में परिवर्तन (Change in Stock or Inventories)-स्टॉक के भौतिक मूल्य में निम्न रूपों में परिवर्तन हो सकते हैं –
(क) उत्पादक गृहस्थों तथा उद्यमों के पास कच्चे माल, अर्द्ध-निर्मित माल तथा निर्मित माल के स्टॉक में परिवर्तन।
(ख) सरकार के स्वामित्व में सामरिक महत्त्व (Strategic importance) के तथा खाद्यान्नों के स्टॉक में परिवर्तन।
(ग) उद्यमों द्वारा बूचड़खानों (Slaughter houses) में काम आने वाले पशुओं के स्टॉक में परिवर्तन। स्टॉक में परिवर्तन = अन्तिम स्टॉक (Closing Stock)-आरम्भिक स्टॉक (Opening Stock)।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

PSEB 12th Class Economics समष्टि अर्थशास्त्र Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभता की स्थिति में चुनाव से होता है।

प्रश्न 2.
चुनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
चुनाव की समस्या दुर्लभता के कारण उत्पन्न होती है।

प्रश्न 3.
दुर्लभता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दुर्लभता वह स्थिति है जिसमें मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं होते।

प्रश्न 4.
पदार्थों की माँग जब पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है ?
अथवा
सभी आर्थिक समस्याओं की जननी क्या है ?
उत्तर-
दुर्लभता।

प्रश्न 5.
व्यष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र एक गृहस्थी, एक फ़र्म तथा एक उद्योग से सम्बन्धित आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है।

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प्रश्न 6.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 7.
आर्थिक समस्या से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सीमित साधनों के वैकल्पिक प्रयोगों में से चुनाव करने की समस्या को आर्थिक समस्या कहते हैं।

प्रश्न 8.
एक गृहस्थी की आर्थिक समस्याओं के अध्ययन को कौन-सा अर्थशास्त्र कहा जाता है ?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 9.
सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था के स्तर पर चुनाव अथवा साधन के बंटवारे की समस्याओं का अध्ययन किस अर्थशास्त्र में किया जाता है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थ शास्त्र।

प्रश्न 10.
अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध दुर्लभता के कारण, चयन की समस्या से होता है, जिस द्वारा व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।

प्रश्न 11.
दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ चलते हैं। कैसे ?
उत्तर-
साधनों की दुर्लभता के वैकल्पिक प्रयोगों के कारण प्रत्येक व्यक्ति तथा समाज को चयन करना पड़ता है, जिस द्वारा अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त की जा सके, इसलिए दुर्लभता तथा चयन साथ-साथ चलते हैं।

प्रश्न 12.
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है।

प्रश्न 13.
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है ?
उत्तर-
दोनों है।

प्रश्न 14.
आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक कौन हैं ?
उत्तर-
आधुनिक अर्थशास्त्र के जनक प्रो० एडम स्मिथ हैं।

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प्रश्न 15.
व्यष्टि अर्थशास्त्र का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर-
कीमत सिद्धान्त।

प्रश्न 16.
समष्टि अर्थशास्त्र को और क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
रोज़गार सिद्धान्त।

प्रश्न 17.
पूंजीवाद से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पूंजीवाद वह आर्थिक प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधन निजी लोगों के हाथ में होते हैं और उत्पादन लाभ प्राप्ति के लिए किया जाता है।

प्रश्न 18.
समाजवाद अर्थव्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समाजवाद में उत्पादन के साधन सरकार के हाथ में होते हैं और उत्पादन सामाजिक भलाई के उद्देश्य से किया जाता है।

प्रश्न 19.
समष्टि आर्थिक चरों की उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
सकल उत्पादन, कुल निवेश, समग्र रोज़गार आदि समष्टि अर्थशास्त्र के चर हैं।

प्रश्न 20.
व्यष्टि अर्थशास्त्र और समष्टि अर्थशास्त्र में भेद स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र, व्यक्तिगत इकाइयों का अध्ययन करता है और समष्टि अर्थशास्त्र सामूहिक इकाइयों का अध्ययन करता है।

प्रश्न 21.
सूती कपड़ा उद्योग का अध्ययन, समष्टि आर्थिक अध्ययन है या व्यष्टि आर्थिक अध्ययन है ?
उत्तर-
सूती कपड़ा उद्योग का अध्ययन व्यष्टि आर्थिक अध्ययन है।

प्रश्न 22.
समष्टि अर्थशास्त्र का चिन्तन कहां केन्द्रित रहता है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र का चिन्तन, आय तथा रोज़गार निर्धारण पर केन्द्रित रहता है।

प्रश्न 23.
समष्टि स्तरीय आर्थिक चिन्तन में अर्थशास्त्रियों की रुचि वास्तव में कब जागृत हुई है ?
उत्तर-
समष्टि स्तरीय आर्थिक चिन्तन में अर्थशास्त्रियों की रुचि वास्तव में केन्जीय क्रान्ति (Keynesian Revolution) के बाद ही जागृत हुई है।

प्रश्न 24.
आर्थिक सिद्धान्त का कौन-सा भाग राष्ट्रीय आय तथा रोजगार की समस्याओं से सम्बन्धित है ?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 25.
जे० एम० केन्ज़ की महत्त्वपूर्ण पुस्तक का क्या नाम है ? वह कौन-से वर्ष में प्रकाशित हुई ?
उत्तर-
“जनरल थ्यौरी ऑफ एंपलायमैंट इंटरैस्ट एंड मनी’ जोकि 1936 में प्रकाशित हुई।

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प्रश्न 26.
विश्व में पहली महामंदी (Great Depression) कब आई थी ?
उत्तर-
पहली महामंदी 1929-30 में आई थी।

प्रश्न 27.
मानवीय आवश्यकताएँ ………… हैं।
(a) सीमित
(b) असीमित
(c) दुर्लभ
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) असीमित।

प्रश्न 28.
अर्थशास्त्र शब्द किस भाषा से लिया गया है ?
(a) फ्रेंच
(b) लैटिन
(c) ग्रीक
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) ग्रीक।

प्रश्न 29.
अर्थशास्त्र के पितामह कौन है ?
(a) मार्शल
(b) रोबिन्ज़
(c) एडम स्मिथ
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) एडम स्मिथ।

प्रश्न 30.
अर्थशास्त्र प्रबन्ध का विज्ञान है ?
(a) सीमित साधन
(b) असीमित आवश्यकताओं
(c) विकल्प प्रयोगों
(d) ऊपर दिये हुए सभी का।
उत्तर-
(d) ऊपर दिये हुए सभी का।

प्रश्न 31. अर्थशास्त्र का विषय ………………
(a) विज्ञान
(b) कला
(c) विज्ञान और कला
(d) न विज्ञान और न कला।
उत्तर-
(c) विज्ञान और कला।

प्रश्न 32.
व्यष्टि अर्थशास्त्र को …………. भी कहा जाता है।
(a) कीमत सिद्धान्त
(b) रोज़गार सिद्धान्त
(c) आय सिद्धान्त
(d) कृषि सिद्धान्त।
उत्तर-
(a) कीमत सिद्धान्त।

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प्रश्न 33.
समष्टि अर्थशास्त्र को ………. भी कहा जाता है।
(a) कीमत सिद्धान्त
(b) आर्थिक विकास सिद्धान्त
(c) आय तथा रोजगार सिद्धान्त
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) आय तथा रोजगार सिद्धान्त।

प्रश्न 34.
एक व्यक्ति की आर्थिक समस्याओं का अध्ययन करने को …………. कहा जाता है ।
(a) पारिवारिक अर्थशास्त्र
(b) समष्टि अर्थशास्त्र
(c) व्यष्टि अर्थशास्त्र
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) व्यष्टि अर्थशास्त्र।

प्रश्न 35.
सामूहिक अर्थव्यवस्था से सम्बन्धित समस्याओं के अध्ययन को …….. अर्थशास्त्र कहा जाता है।
(a) व्यष्टि
(b) समष्टि
(c) अन्तर्राष्ट्रीय
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) समष्टि।

प्रश्न 36.
दुर्लभता से अभिप्राय उस अवस्था से होता है जब साधनों की पूर्ति माँग से कम होती है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 37.
समष्टि अर्थशास्त्र में एक व्यक्ति की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 38.
अर्थशास्त्र की वह शाखा जिसका सम्बन्ध राष्ट्रीय आय तथा रोजगार से होता है उसको समष्टि अर्थशास्त्र कहते हैं ?
उत्तर-
सही।

प्रश्न 39.
अर्थशास्त्र केवल शुद्ध विज्ञान है ?
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 40.
व्यष्टि अर्थशास्त्र तथा समष्टि अर्थशास्त्र का नाम रैगनर फरिस्च ने दिया।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 41.
जिस क्रिया में मौद्रिक प्रवाह तथा वास्तविक प्रवाह दोनों होते हैं उसको आर्थिक क्रिया कहते
उत्तर-
सही।

प्रश्न 42.
दुर्लभता और चुनाव साथ-साथ चलते हैं; कैसे ?
उत्तर-
साधनों की दुर्लभता के वैकल्पिक प्रयोगों के कारण दुर्लभता और चुनाव साथ-साथ चलते हैं।

प्रश्न 43.
ग़रीबी तथा दुर्लभता में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
ग़रीबी का अर्थ है बहुत कम वस्तुओं का होना, दुर्लभता का अर्थ है वस्तुओं की मात्रा की तुलना में वस्तुओं की आवश्यकताओं का अधिक होना।

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प्रश्न 44.
वह क्रिया जिसका सम्बन्ध दुर्लभ साधनों का प्रयोग करके मनुष्य की इच्छाओं की सन्तुष्टि करना होता है को ……. कहते हैं।
(a) आर्थिक क्रिया
(b) अनार्थिक क्रिया
(c) सोचने की क्रिया
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(a) आर्थिक क्रिया।

प्रश्न 45.
वह क्रिया जिसका सम्बन्ध बस्तुओं की खरीद-बेच से होता है को ………. कहते हैं।
(a) उपभोग
(b) विनिमय
(c) उत्पादन
(d) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) विनिमय।

प्रश्न 46.
वह अर्थव्यवस्था जिस ऊपर सरकार का लगभग पूर्ण नियन्त्रण होता है को ………अर्थव्यवस्था कहते हैं।
उत्तर-
समाजवादी।

प्रश्न 47.
निम्नलिखित में से कौन-सा आर्थिक प्रणाली का रूप नहीं है ?
(a) लोकतन्त्र
(b) पूंजीवाद
(c) समाजवाद
(d) मिश्रित अर्थव्यवस्था।
उत्तर-
(a) लोकतन्त्र।

प्रश्न 48.
दुर्लभता से संबंधित अर्थशास्त्र की परिभाषा किसने दी ?
उत्तर-
राबिन्ज़ ने।

II. अति लय उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र का सम्बन्ध किससे है?
उत्तर-
साधारण लोगों में यह धारणा पाई जाती है कि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध रुपये-पैसे (Money) कमाने तथा उसका प्रबन्ध करने से होता है। परन्तु यह धारणा ग़लत है। अर्थशास्त्र का सम्बन्ध दुर्लभता की स्थिति में चुनाव से होता | (Economics is about making choice due to scarcity.)

प्रश्न 2.
व्यष्टि अथवा व्यक्तिगत अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र का सम्बन्ध आर्थिक समस्या की लघु इकाइयों से होता है, जब हम आर्थिक समस्या को छोटेछोटे भागों में विभाजित कर एक-एक भाग का अध्ययन करते हैं तो इस विधि को व्यष्टि आर्थिक विश्लेषण कहा जाता है।

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र में अर्थव्यवस्था तथा उसके समूहों अथवा औसतों का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय, रोज़गार, साधारण कीमत स्तर, कुल उपभोग, कुल बचत इत्यादि सामूहिक समस्याओं का हल किया जाता है।

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प्रश्न 4.
व्यष्टि तथा समष्टि अर्थशास्त्र में अन्तर बताओ।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर एक-एक भाग का अध्ययन किया जाता है। समष्टि अर्थशास्त्र में आर्थिक समस्याओं के समुच्चयों तथा औसतों का विशेष तौर पर अध्ययन किया जाता है। अर्थशास्त्र के अध्ययन की दो विधियां हैं।

प्रश्न 5.
अर्थशास्त्र की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है, जिसका सम्बन्ध कमी के कारण चयन की समस्या से होता है ताकि व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।

प्रश्न 6.
आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है ? आर्थिक क्रियाओं का वर्णन करें।
उत्तर-
जिस क्रिया का सम्बन्ध मानवीय आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दुर्लभ साधनों के उपयोग से होता है उसको आर्थिक क्रिया कहते हैं। इस क्रिया में मुद्रा प्रवाह तथा सेवाओं का प्रवाह होता है। अर्थशास्त्र की मुख्य आर्थिक क्रियाएं हैं-

  • उत्पादन (Production)
  • उपभोग (Consumption)
  • निवेश (Investment)
  • विनिमय (Exchange)
  • वितरण (Distribution)
  • वित्त (Finance).

प्रश्न 7.
दुर्लभता और चुनाव अर्थशास्त्र के सार हैं। स्पष्ट करें।
अथवा
चुनाव की समस्या क्यों उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
दुर्लभता के कारण चुनाव होता है। चुनाव से अभिप्राय है निर्णय लेने की प्रक्रिया जिसका सम्बन्ध सीमित साधनों का इस प्रकार से प्रयोग होता है जिससे उपभोगी को अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त हो, उत्पादक को अधिकतम लाभ तथा राष्ट्र का अधिकतम विकास हो। इसलिए दुर्लभता और चुनाव को अलग नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 8.
आर्थिक संगठन या प्रणालियों की किस्मों का वर्णन करो।
उत्तर-
आर्थिक संगठन या प्रणालियां तीन प्रकार की हैं –

  1. पूंजीवाद-इस प्रणाली में लोगों को उपभोग, उत्पादन, विनिमय करने की स्वतन्त्रता होती है। आर्थिक क्रियाओं का संचालन कीमत यंत्र द्वारा होता है।
  2. समाजवाद-इस प्रणाली में उपभोग उत्पादन, विनिमय का संचालन सरकार द्वारा किया जाता है। कीमत सरकार द्वारा निर्धारित की जाती है।
  3. मिश्रित अर्थव्यवस्था-इस प्रणाली में कुछ आर्थिक क्रियाएं निजी लोगों द्वारा तथा कुछ आर्थिक क्रियाएं सरकार द्वारा संचालन की जाती हैं। इसमें निजी क्षेत्र तथा सरकारी क्षेत्र मिलकर काम करते हैं। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था पाई जाती है।

प्रश्न 9.
अर्थशास्त्र की प्रकृति स्पष्ट करें।
अथवा
क्या अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है ?
उत्तर-
अर्थशास्त्र की प्रकृति से अभिप्राय है कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला है। अर्थशास्त्र वास्तविक तथा आदर्शात्मक विज्ञान है और कला भी है। अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है क्योंकि इसमें विज्ञान के नियम हैं। अर्थशास्त्र आदर्शात्मक विज्ञान है क्योंकि इसमें हम देखते हैं कि क्या होना चाहिए। अर्थशास्त्र कला है जो इस प्रकार के उपाय और साधन ढूंढता है जिनसे इच्छित लक्ष्य प्राप्त किये जा सकें। अर्थशास्त्र विज्ञान तथा कला दोनों ही है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में कोई चार अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर को नीचे दिए सची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
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प्रश्न 2.
व्यष्टि अर्थशास्त्र के महत्त्व को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व

  1. अर्थव्यवस्था की कार्यशीलता-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का सबसे महत्त्वपूर्ण प्रयोग यह समझाना है कि अर्थव्यवस्था कार्य करती है।
  2. आर्थिक नीतियों का निर्माण व्यक्तिगत अर्थशास्त्र आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी सहायक होता है। साधनों के उचित विभाजन के लिए पूंजीवादी अर्थव्यवस्था महत्त्वपूर्ण योगदान डालती है।
  3. आर्थिक निर्णय-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र द्वारा आर्थिक निर्णय लिए जाते हैं; जैसे कि एक वस्तु की कीमत का निर्धारण, फ़र्म की लागत तथा लाभ का ज्ञान प्राप्त होता है।
  4. आर्थिक कल्याण-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण का आधार है। इससे उपभोग तथा उत्पादन की स्थिति का ज्ञान प्राप्त होता है।
  5. भविष्यवाणी-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र द्वारा भविष्यवाणियां की जाती हैं, जैसे कि एक वस्तु की मांग बढ़ जाती है तो उस वस्तु की कीमत बढ़ जाएगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

प्रश्न 3.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताओ।
उत्तर-

  • अर्थव्यवस्था का अध्ययन-समष्टि अर्थशास्त्र से समूची अर्थव्यवस्था का ज्ञान होता है।
  • आर्थिक विकास-समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा एक देश के आर्थिक विकास के निर्धारक तत्त्वों का ज्ञान प्राप्त होता है।
  • कीमत स्तर का अध्ययन-एक देश में कीमत स्थिरता प्राप्त करना प्रत्येक सरकार का एक उद्देश्य होता है। इसलिए मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति को कैसे कन्ट्रोल में रखा जाए, इसकी जानकारी समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा होती है।
  • आर्थिक नीतियों का निर्माण-समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है, जोकि देश में निर्धनता, बेरोज़गारी, आय का विभाजन इत्यादि समस्याओं के समाधान के लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं।
  • भुगतान सन्तुलन-समष्टि अर्थशास्त्र उन तत्त्वों को स्पष्ट करता है, जोकि भुगतान सन्तुलन स्थापित करने में लाभदायक योगदान डालते हैं। इससे समूची अर्थव्यवस्था को सन्तुलन में रखने के लिए सहायता मिलती है।

प्रश्न 4.
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र का वर्णन करें।
अथवा
समष्टि अर्थशास्त्र की मुख्य शाखाओं के नाम बताइए।
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र को निम्नलिखित भागों में बांट कर अध्ययन किया जाता है-
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  1. राष्ट्रीय आय का सिद्धान्त (Theory of National Income)-समष्टि अर्थशास्त्र में राष्ट्रीय आय, इसके माप तथा धारणाओं का अध्ययन किया जाता है।
  2. रोज़गार का सिद्धान्त (Theory of Employment)-समष्टि अर्थशास्त्र में रोज़गार निर्धारण तथा बेरोज़गारी की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है।
  3. मुद्रा का सिद्धान्त (Theory of Money)-मुद्रा का अर्थ, मुद्रा के प्रभाव तथा कार्यों का अध्ययन किया जाता है। इसमें मुद्रा बाज़ार तथा पूँजी बाज़ार के बारे में जानकारी प्राप्त की जाती है।
  4. आर्थिक विकास का सिद्धान्त (Theory of Economic Development)- आर्थिक विकास का अर्थ किसी देश की प्रति व्यक्ति आय में होने वाली वृद्धि से होता है। यह भी समष्टि अर्थशास्त्र का एक भाग माना जाता है।
  5. कीमत स्तर का सिद्धान्त (Theory of Price Level)-एक देश में कीमत स्तर बढ़ने के क्या कारण होते हैं तथा मुद्रा स्फीति को कैसे रोका जा सकता है, यह भी समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में शामिल है।
  6. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सिद्धान्त (Theory of International Trade)-विभिन्न देशों में होने वाले व्यापार का भी अध्ययन समष्टि अर्थशास्त्र के क्षेत्र में आता है।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अर्थशास्त्र क्या है ? इसका क्षेत्र स्पष्ट करो। (What is Economics ? Discuss its Scope.)
उत्तर-
अर्थशास्त्र क्या है? (What is Economics ?)-अर्थशास्त्र दूसरे समाज शास्त्रों से एक नया विज्ञान है। एडम स्मिथ (Adam Smith) को अर्थशास्त्र का पिता माना जाता है; जिन्होंने 1776 में अपनी पुस्तक (Wealth of Nations) लिखी। इसमें उन्होंने कहा ‘अर्थशास्त्र धन का विज्ञान है।’ परन्तु इस परिभाषा से अर्थशास्त्र बदनाम हो गया। प्रो० मार्शल (Marshall) ने कहा कि अर्थशास्त्र मनुष्यों का विज्ञान है, जिसमें मानवीय भलाई को अधिकतम करने का अध्ययन किया जाता है। प्रो० रोबिन्ज़ (Robbins) ने अर्थशास्त्र की वैज्ञानिक परिभाषा दी। उनके अनुसार, “अर्थशास्त्र वह विज्ञान है, जो मानवीय व्यवहार का अध्ययन करता है, जिसका सम्बन्ध अधिक आवश्यकताओं तथा वैकल्पिक प्रयोगों वाले सीमित साधनों से होता है। प्रो० सेम्यूलसन (Samulson) के अनुसार अर्थशास्त्र व्यक्तिगत सन्तुष्टि तथा सामाजिक कल्याण से सम्बन्धित है। अर्थशास्त्र के सम्बन्ध में हम यह कह सकते हैं, “अर्थशास्त्र मानवीय व्यवहार का विज्ञान है,

जिसका सम्बन्ध कमी के कारण चयन की समस्या से होता है ताकि व्यक्तिगत तथा सामाजिक कल्याण को अधिकतम किया जा सके।” (“Economics is a science of human behaviour which studies problems of choice arising out of scarcity, so the individuals and society can maximise their social welfare.”) अर्थशास्त्र का क्षेत्र (Scope of Economics)-अर्थशास्त्र के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित कर स्पष्ट किया जा सकता है1. अर्थशास्त्र की विषय सामग्री (Subject Matter of Economics)-अर्थशास्त्र की विषय सामग्री अर्थव्यवस्था की प्रकृति तथा व्यवहार की व्याख्या से सम्बन्धित है। देश में बेरोज़गारी, कीमत वृद्धि, निर्धनता, असमानता इत्यादि बहुत-सी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। इन समस्याओं को हल करने के लिए दो तरह की विधियों का प्रयोग किया जाता है। व्यक्तिगत आर्थिक विश्लेषण तथा सामूहिक आर्थिक विश्लेषण की सहायता से कीमत नीति, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति तथा आर्थिक नियोजन आदि का अध्ययन किया जाता है। इसी तरह अर्थशास्त्र का मुख्य विषय आर्थिक समस्याओं की जांच पड़ताल करके इन समस्याओं के हल के लिए सुझाव देना है।

2. अर्थशास्त्र की प्रकृति (Nature of Economics)-अर्थशास्त्र की प्रकृति में हम देखते हैं कि अर्थशास्त्र विज्ञान है अथवा कला।
(i) अर्थशास्त्र विज्ञान है (Economics is a Science)-अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, जबकि फिजिक्स, कैमिस्ट्री आदि प्राकृतिक विज्ञान हैं। अर्थशास्त्र का क्रमवार अध्ययन किया जाता है, इसके वैज्ञानिक नियम हैं तथा ये नियम सर्वव्यापी हैं। इस कारण अर्थशास्त्र विज्ञान है। विज्ञान दो प्रकार के होते
(a) वास्तविक विज्ञान (Positive Science)-वास्तविक विज्ञान का सम्बन्ध क्या है? (What is Positive Science) से होता है। मानवीय आवश्यकताएँ असीमित हैं। आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए साधन सीमित हैं। यह वास्तविक सच्चाई है कि साधनों के वैकल्पिक प्रयोग किए जा सकते हैं, जिस कारण चयन की समस्या उत्पन्न होती है। इसलिए अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है।
(b) आदर्शमय विज्ञान (Normative Science)-आदर्शमय विज्ञान वह विज्ञान होता है, जिसका सम्बन्ध “क्या होना चाहिए” (What ought to be) से होता है। अर्थशास्त्र आदर्शमय विज्ञान भी है, क्योंकि इसमें हम देखते हैं कि कीमत में स्थिरता होनी चाहिए। निर्धन लोगों पर कम कर लगाए जाएं। इसलिए अर्थशास्त्र आदर्शमय विज्ञान भी है।

(ii) अर्थशास्त्र कला है (Economics is an Art)-किसी विशेष उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए सिद्धान्तिक ज्ञान के व्यावहारिक प्रयोग को कला कहा जाता है। भारत में कीमतें निरन्तर तीव्रता से बढ़ रही हैं। इन कीमतों की वृद्धि को रोकने के लिए सरकार आर्थिक नीति तथा राजकोषीय नीति का प्रयोग करके कीमतों को नियन्त्रण में रखने का प्रयत्न करती है। इससे स्पष्ट है कि अर्थशास्त्र विज्ञान भी है और कला भी है।

प्रश्न 2.
व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर स्पष्ट करो। (Explain the difference between Micro and Macro Economics.)
उत्तर-
व्यक्तिगत अर्थशास्त्र (Micro Economics)-व्यक्तिगत अर्थशास्त्र का सम्बन्ध व्यटि गत आर्थिक समस्याओं से होता है। जैसे कि एक मनुष्य, एक फ़र्म, एक उद्योग अथवा एक बाज़ार की समस्याएँ। सामूहिक अर्थशास्त्र (Macro Economics)-सामूहिक अर्थशास्त्र का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था की आर्थिक समस्याओं से होता है। जैसे कि बेरोज़गारी, राष्ट्रीय आय, राष्ट्रीय उपभोग तथा साधारण कीमत स्तर का अध्ययन सामूहिक अर्थशास्त्र द्वारा किया जाता है। प्रो० शेपीरो के शब्दों में, “सामूहिक अर्थशास्त्र समूची अर्थव्यवस्था की कार्यशीलता से सम्बन्धित होता है।” (Macro Economics deals with the functioning of the economy as a Whole.-Shapiro)

व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर – (Difference between Micro & Macro Economics)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र 3

व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में अन्तर्निर्भरता (Inter-dependence of Micro and Macro Economics)-
चाहे व्यक्तिगत अर्थशास्त्र में व्यक्तिगत स्तर पर कमी तथा चयन की समस्याओं का अध्ययन किया जाता है तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में समूची अर्थव्यवस्था के स्तर पर इन समस्याओं सम्बन्धी अध्ययन करते हैं, परन्तु यह दोनों एकदूसरे पर अन्तर्निर्भर हैं।
1. व्यक्तिगत अर्थशास्त्र सामूहिक अर्थशास्त्र पर निर्भर है (Micro depends on Macro Economics) यदि हम व्यक्तिगत अर्थशास्त्र की किसी आर्थिक समस्या का हल करना चाहते हैं तो सामहिक अर्थशास्त्र के बगैर यह संभव नहीं होता। जैसे कि एक फ़र्म द्वारा वस्तु की कीमत निर्धारण करते समय ध्यान में रखना पड़ेगा कि बाकी की वस्तुओं की कीमतों में कितना परिवर्तन हुआ है। यदि बाकी वस्तुओं की कीमतें दो गुणा बढ़ गई हैं तो फ़र्म अपनी वस्तु की कीमत दो गुणा कर देगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

2. सामूहिक अर्थशास्त्र व्यक्तिगत अर्थशास्त्र पर निर्भर है (Macro depends on Micro Economics) यदि हम राष्ट्रीय आय का माप करना चाहते हैं तो यह सामूहिक अर्थशास्त्र की समस्या है। इस उद्देश्य के लिए देश में रहने वाले प्रत्येक नागरिक की आय का पता किया जाएगा। जब एक मनुष्य की आय का अध्ययन करते हैं तो यह व्यक्तिगत अर्थशास्त्र की समस्या बन जाती है। इस प्रकार यह दोनों विधियाँ एक-दूसरे पर निर्भर हैं। प्रो० सैम्यूलसन ने ठीक कहा है, “व्यक्तिगत तथा सामूहिक अर्थशास्त्र में कोई अंतर नहीं। दोनों ही महत्त्वपूर्ण हैं। आप पूरी तरह शिक्षित नहीं होंगे यदि आपको एक का ज्ञान है तथा दूसरी विधि सम्बन्धी अज्ञानी हों।”

प्रश्न 3.
अर्थशास्त्र के महत्त्व और आर्थिक प्रणाली की किस्मों का वर्णन कीजिये। (Describe the Importance of Economics and types of economic system)
उत्तर-
अर्थशास्त्र का महत्त्व बहुत अधिक हो गया है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. अर्थशास्त्र का अध्ययन-अर्थशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जिसका सम्बन्ध एक अर्थवयवस्था में दुर्लभ संसाधनों का इस प्रकार बंटवारा करना है कि समाज को अधिकतम सामाजिक कल्याण पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है।

2. आर्थिक नीतियों का निर्माण-अर्थशास्त्र का महत्त्व आर्थिक नीतियों के निर्माण में भी देखा जा सकता है। देश में क्या उत्पादन किया जाए? कैसे उत्पादन किया जाए ? किसके लिये उत्पादन किया जाए ? वस्तुओं की कितनी कीमत होनी चाहिये। जोकि अर्थशास्त्र की सहायता से निर्माण को जाती हैं।

3. आर्थिक कल्याण में सहायक-अर्थशास्त्र का मुख्य उद्देश्य एक अर्थव्यवस्था में आर्थिक कल्याण में वृद्धि करने में सहायक होते हैं।

4. आर्थिक प्रबन्ध में सहायक-अर्थशास्त्र विभिन्न फ़र्मों के लिये आर्थिक प्रबन्ध में सहायक होता है। वस्तु की लागत, बिक्री, कीमत आदि प्रबन्धक निर्णय लेने के लिए अर्थशास्त्र सहायक होता है।

5. भविष्यवाणियों में सहायक-अर्थशास्त्र का ज्ञान भविष्यवाणी करने के लिये भी सहायक होता है। देश का उत्पादन देश में ही प्रयोग किया जाए अथवा इसको विदेशों में बेचा जाए। विदेशों में बेचने से लाभ होगा अथवा हानि होगी। अर्थशास्त्र आर्थिक कल्याण के आदर्श की प्राप्ति के लिये भी महत्त्वपूर्ण होता है। अर्थशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसका महत्त्व प्रत्येक क्षेत्र में नज़र आता है और यह प्रत्येक के लिये अनिवार्य है।

आर्थिक प्रणाली की किस्में (Types of Economic Systems)-आर्थिक प्रणाली की मुख्य तीन किस्में हैं –
1. पूंजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalistic Economy)-अर्थव्यवस्था वह प्रणाली है जिसमें उत्पादन के साधन-भूमि, श्रम, पूँजी, संगठन-निजी लोगों के अधिकार में होते हैं और उत्पादन लाभ प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। इस अर्थव्यवस्था में सभी मुख्य आर्थिक निर्णय लोगों द्वारा लिए जाते हैं और जो बिना सरकारी हस्तक्षेप के बाज़ारी दशाओं द्वारा निर्धारित और नियन्त्रित किये जाते हैं। बाज़ारी दशाओं से हमारा अभिप्राय पदार्थों, सेवाओं की मांग व पूर्ति की दशाओं, उनकी कीमतों व उत्पादन लागतों, लाभ व हानि आदि से है। ये बाज़ारी दशाएं कीमत प्रणाली को जन्म देती हैं जिनके संकेत पर पूँजीवादी अर्थव्यवस्था संचालित होती है।

2. समाजवादी अर्थवयवस्था (Socialistic Economy)-समाजवाद से अभिप्राय है उत्पादन के साधनों पर सरकार का स्वामित्व, सरकार द्वारा नियोजन तथा आय का पुनर्वितरण । अर्थात् समाजवाद वह आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साथन समाज के अधिकार में होते हैं और जिसमें धन का उत्पादन, थोड़े से व्यक्तियों के निजी लाभ के लिए नहीं बल्कि सामाजिक भलाई के विचार से किया जाता है। बाजार में कीमतें सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं।

3. मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy)-मिश्रित अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था होती है जिसमें कुछ आर्थिक निर्णय पूंजीवादी अर्थव्यवस्था की भांति लोगों द्वारा निजी लाभ के लिये जाते हैं और कुछ आर्थिक निर्णय समाजवादी अर्थव्यवस्था की भांति राज्य द्वारा लिए जाते हैं। इसमें पूँजीवादी तथा समाजवादी आर्थिक प्रणाली, दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्था के लक्षण पाए जाते हैं। इस प्रकार इस अर्थव्यवस्था को पूँजीवाद और समाजवाद के बीच सुनहरी रास्ता (Mixed Mean) कहा जाता है।

प्रश्न 4.
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व बताएँ। (Explain the Importance of Macro Economics.)
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्व (Importance of Macro Economics)-समष्टि अर्थशास्त्र का अध्ययन मुख्य रूप से निम्नलिखित क्षेत्रों में किया जाता है –
1. अर्थव्यवस्था का अध्ययन (Study of Economy)-समष्टि अर्थशास्त्र से समूची अर्थव्यवस्था की कार्यप्रणाली का ज्ञान प्राप्त होता है।

2. राष्ट्रीय आय का अध्ययन (Study of National Income)-राष्ट्रीय आय से ही विभिन्न देशों की आर्थिक स्थितियों की तुलना की जा सकती है। इसलिए समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा राष्ट्रीय आय का अध्ययन करके विश्व में एक देश की आर्थिक प्रगति का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है।

3. आर्थिक नीतियों का निर्माण (Formulation of Economic Policies)-समष्टि अर्थशास्त्र की सहायता से आर्थिक नीतियों का निर्माण किया जाता है जोकि देश में निर्धनता, बेरोज़गारी, आय का विभाजन इत्यादि समस्याओं का हल करने के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।

4. कीमत स्तर का अध्ययन (Study of Price Level)-एक देश में कीमत स्थिरता प्राप्त करना प्रत्येक सरकार का एक उद्देश्य होता है, इसलिए मुद्रा स्फीति तथा अस्फीति को कैसे कन्ट्रोल में रखा जाए, इसकी जानकारी समष्टि अर्थशास्त्र द्वारा प्राप्त होती है।

5. भुगतान सन्तुलन (Balance of Payment)-समष्टि अर्थशास्त्र उन तत्त्वों को स्पष्ट करता है जोकि भुगतान सन्तुलन स्थापित करने में लाभदायक योगदान डालते हैं।

6. व्यापार चक्रों का अध्ययन (Study of Trade Cycles).-व्यापार चक्र अर्थव्यवस्था बुरा प्रभाव डालते हैं। इनका अध्ययन भी समष्टि अर्थशास्त्र में ही सम्भव है।

7. आर्थिक विकास (Economic Development)-आर्थिक विकास प्राप्त करना प्रत्येक देश का मुख्य लक्ष्य बन गया है। इस महत्त्व के लिए आर्थिक नीतियों का निर्माण करके आर्थिक विकास तेज़ी से प्राप्त किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ बताएँ। (Explain the Limitations of Macro Economics.)
उत्तर-
समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ (Limitations of Macro Economics)-समष्टि अर्थशास्त्र की सीमाएँ निम्नलिखित हैं-
1. समष्टि विरोधाभास (Macro Paradoxes)-समष्टि अर्थशास्त्र का सबसे बड़ा दोष यह है कि व्यक्तिगत निष्कर्ष जब समूहों में लागू किए जाते हैं तो वह गलत सिद्ध होते हैं। इसे ही समष्टि विरोधाभास कहते हैं। कीमतों में वृद्धि अमीर लोगों के लिए इतनी कष्टमय नहीं होती जितनी के गरीब लोगों के लिए होती है।

2. समष्टि अर्थशास्त्र की अवास्तविक मान्यताएँ (Unrealistic Assumptions of Macro Economics) समष्टि अर्थशास्त्र की पाँच मुख्य मान्यताएँ हैं-

  • अल्पकाल
  • बंद अर्थव्यवस्था
  • पूर्ण प्रतियोगिता
  • अल्परोज़गार सन्तुलन
  • मुद्रा संचय का कार्य भी करती है।

यह मान्यताएँ अर्थव्यवस्था के सभी समूहों पर लागू नहीं होती क्योंकि अर्थव्यवस्था में सभी समूह एक समान होते और उनमें विभिन्नता भी पाई जाती है।

3. गलत नीतियाँ (Wrong Policies)- समष्टि अर्थव्यवस्था के अध्ययन से कई बार हम इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि अर्थव्यवस्था में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । इसलिए आर्थिक नीति में किसी परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। इस प्रकार बहुत-सी नीतियाँ गलत बनाई जा सकती हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 1 समष्टि अर्थशास्त्र

4. माप में कठिनाई (Difficulty in Measurement)-समष्टि अर्थशास्त्र की एक सीमा यह भी है कि इसके चरों जैसा कि कुल उपभोग, कुल निवेश, कुल आय आदि का माप करना आसान नहीं होता।

5. व्यक्तिगत इकाइयों पर निर्भर (Dependence on Individual Units)-समष्टि अर्थशास्त्र के बहुत-से नतीजे व्यक्तिगत इकाइयों पर आधारित होते हैं, परन्तु वह ठीक नहीं। जो नतीजे व्यक्तियों पर लागू होते हैं, ज़रूरी नहीं कि वह समूहों पर भी ठीक लागू हों। इसको संरचना का भुलेखा (Fallacy of Composition) भी कहा जाता है।

PSEB 12th Class History Map Questions

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Map Questions Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB 12th Class History Map Questions

ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Guru Gobind Singh Ji:)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਪੂਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਅਤੇ ਉੱਤਰ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of battles of the Pre-Khalsa and Post-Khalsa period of Guru Gobind Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਿਕ | ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four important places of Guru Gobind Singh Ji’s battles.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the battles as shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four important places where the battles of Guru Gobind Singh Ji were fought.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ-
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of Guru Gobind Singh Ji’s battles.
(b) Explain in about 20-25 words each the places given in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of the battles of Guru Gobind Singh Ji.
(b) Explain these places in about 20-25 words on each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict four places of the battles of Sri Guru Gobind Singh Ji.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the places of the battles shown in the map.)
ਉੱਤਰ-
ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗੁਰਗੱਦੀ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਲੜਨਾ ਪਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਪੁਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਵਿੱਚ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਸੰਖੇਪ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

I. ਪੂਰਵ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Pre-Khalsa Period)

1. ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 1688 ਈ. (Battle of Bhangani 1688 A.D.) – ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜੀ ਤਿਆਰੀਆਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਕਹਿਲੂਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀਨਗਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਫ਼ਤਿਹ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਇੱਕ ਗਠਜੋੜ ਤਿਆਰ ਕਰ ਲਿਆ । 22 ਸਤੰਬਰ, 1688 ਈ. ਵਾਲੇ ਦਿਨ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਭੰਗਾਣੀ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਢੋਰਾ ਦੇ ਪੀਰ ਬੁੱਧੂ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਸਮੇਤ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਜੋਸ਼ ਅੱਗੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਨਾ ਟਿਕ ਸਕੇ । ਉਹ ਮੈਦਾਨ ਛੱਡ ਕੇ ਭੱਜਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

2. ਨਾਦੌਣ ਦੀ ਲੜਾਈ 1690 ਈ. (Battle of Nadaun 1690 A.D.) – ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਾਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨਾਲ ਮਿੱਤਰਤਾ ਕਰ ਲਈ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗਲਾਂ ਨੂੰ ਸਾਲਾਨਾ ਖਿਰਾਜ ਕਰ ਭੇਜਣਾ ਬੰਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਆਲਿਫ਼ ਖ਼ਾਂ ਦੇ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਫ਼ੌਜ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਭੇਜੀ ਗਈ । ਉਸ ਨੇ 20 ਮਾਰਚ, 1690 ਈ. ਨੂੰ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਦੀ ਸੈਨਾ ‘ਤੇ ਨਾਦੌਨ ਵਿਖੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਭੀਮ ਚੰਦ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਸਾਂਝੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ | ਆਲਿਫ਼ ਖ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸਣਾ ਪਿਆ |
PSEB 12th Class History Map Questions 1
II. ਉੱਤਰ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਕਾਲ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ (Battles of Post-Khalsa Period)

3. ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 1701 ਈ. (First Battle of Sri Anandpur Sahib 1701 A.D.) – 1699 ਈ. ਵਿੱਚ ਖ਼ਾਲਸਾ ਪੰਥ ਦੀ ਸਿਰਜਨਾ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਸਿੱਖ ਪੰਥ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਲੱਗੇ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਇਸ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਕਹਿਰ ਦੇ ਰਾਜਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਖ਼ਾਲੀ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਥੀ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ 1701 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲੇ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪਰ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲਣ ਕਾਰਨ ਰਾਜਿਆਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨਾਲ ਸੰਧੀ ਕਰ ਲਈ ।

4. ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Second Battle of Sri Anandpur Sahib 1704 A.D.) – ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਤੋਂ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦੇ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ 1704 ਈ. ਵਿੱਚ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ‘ਤੇ ਦੁਸਰੀ ਵਾਰ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਅੰਦਰੋਂ ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ । ਘੇਰਾ ਲੰਬਾ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਕਿਲ੍ਹੇ ਦੇ ਅੰਦਰ ਰਸਦ ਥੁੜਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਕੁਝ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚੋਂ ਭੱਜ ਨਿਕਲਣ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਇਨਕਾਰ ਕਰਨ ‘ਤੇ 40 ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਕੇ ਚਲੇ ਗਏ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸਫਲਤਾ ਨਾ ਮਿਲਦੀ ਵੇਖ ਕੇ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਇੱਕ ਚਾਲ ਚੱਲੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਝੂਠੀਆਂ ਕਸਮਾਂ ਖਾ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੂੰ ਇਹ ਕਿਹਾ ਕਿ ਜੇਕਰ ਉਹ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡ ਦੇਣ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਕੁਝ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ । ਇਸ ਲਈ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਕਿਲ੍ਹਾ ਛੱਡਣ ਦਾ ਫੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ।

5. ਸ਼ਾਹੀ ਟਿੱਬੀ ਦੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Battle of Shahi Tibbi 1704 A.D.) – ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਖ਼ਾਲੀ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ‘ਤੇ ਟੁੱਟ ਪਈਆਂ । ਸਿੱਟੇ ਵੱਜੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਭਗਦੜ ਮਚ ਗਈ । ਸ਼ਾਹੀ ਟਿੱਬੀ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਈ ਉਧੈ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ 50 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਸ਼ਾਹੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦਾ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਅੰਤ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਪਾ ਗਏ ।

6. ਚਮਕੌਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਲੜਾਈ 1704 ਈ. (Battle of Chamkaur Sahib 1704 A.D.) – ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਆਪਣੇ 40 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ 21 ਦਸੰਬਰ, 1704 ਈ. ਨੂੰ ਚਮਕੌਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਗੜ੍ਹੀ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚੇ । ਇੱਥੇ 22 ਦਸੰਬਰ, 1704 ਈ. ਨੂੰ ਮੁਗ਼ਲ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾ ਲਿਆ । ਇੱਥੇ ਬੜੀ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਵੱਡੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਅਜੀਤ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਜੁਝਾਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਉਹ ਜੌਹਰ ਵਿਖਾਏ ਕਿ ਮੁਗ਼ਲ ਹੈਰਾਨ ਰਹਿ ਗਏ । ਉਹ ਅੰਤ ਲੜਦੇ-ਲੜਦੇ ਸ਼ਹੀਦ ਹੋ ਗਏ । ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਇੱਥੋਂ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਸਫਲ ਹੋ ਗਏ ।

7. ਖਿਦਰਾਣਾ ਦੀ ਲੜਾਈ 1705 ਈ. (Battle of Khidrana 1705 A.D.) – 29 ਦਸੰਬਰ, 1705 ਈ. ਨੂੰ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੇ ਖਿਦਰਾਣਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਅਦੁੱਤੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਸਬੂਤ ਦਿੱਤੇ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ 40 ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਜੋ ਸ੍ਰੀ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਦੂਜੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਗਏ ਹਨ, ਨੇ ਸ਼ਹੀਦੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀਆਂ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕੁਰਬਾਨੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਦੀ ਬੇਨਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮੁਕਤੀ ਦਾ ਵਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਖਿਦਰਾਣਾ ਦਾ ਨਾਂ ਸ੍ਰੀ ਮੁਕਤਸਰ ਸਾਹਿਬ ਪੈ ਗਿਆ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਅਤੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਲੜੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਆਖਰੀ ਲੜਾਈ ਸੀ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਮਹਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ (Important Battles of Banda Singh Bahadur)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੇ ਸੈਨਿਕ ਕਾਰਨਾਮਿਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of military exploits of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places of battles shown in the map.
ਜਾਂ
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਉੱਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, fill places of four important battles of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of the battles ‘ of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places shown in the map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places of military exploits of Banda Singh Bahadur.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict the four battle places of Banda Singh Bahadur.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on the places of the battle shown in the map.
ਉੱਤਰ-
ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ 1709 ਈ. ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਤੋਂ ਅਸ਼ੀਰਵਾਦ ਲੈ ਕੇ ਨੰਦੇੜ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਲਈ ਰਵਾਨਾ ਹੋਇਆ । ਉਸ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਸਬਕ ਸਿਖਾਇਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਿਨੇ ਤਾਰੇ ਨਜ਼ਰ ਆ ਗਏ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦਾ ਵੇਰਵਾ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ :-

1. ਸੋਨੀਪਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ (Attack on Sonepat) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਨਵੰਬਰ, 1709 ਈ. ਵਿੱਚ 500 ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਸੋਨੀਪਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ | ਸੋਨੀਪਤ ਦਾ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਬਿਨਾਂ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤੇ ਦਿੱਲੀ ਵੱਲ ਭੱਜ ਗਿਆ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

2. ਸਮਾਣਾ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Samana) – ਸਮਾਣਾ ਵਿਖੇ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਨੂੰ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਜੱਲਾਦ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਮਾਣਾ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਅਨੇਕਾਂ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦਾ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤ ਸੀ ।

3. ਕਪੂਰੀ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Kapuri) – ਕਪੂਰੀ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਕਦਮਉੱਦੀਨ ਹਿੰਦੂਆਂ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਮਾੜਾ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਕਪੂਰੀ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਕਦਮਉੱਦੀਨ ਨੂੰ ਮੌਤ ਦੇ ਘਾਟ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਪੂਰੀ ’ਤੇ ਜਿੱਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

4. ਸਢੋਰਾ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Sadhaura) – ਸਢੌਰਾ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਉਸਮਾਨ ਖ਼ਾ ਬੜਾ ਜ਼ਾਲਮ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਪੀਰ ਬੁੱਧੂ ਸ਼ਾਹ ਨੂੰ ਇਸ ਲਈ ਤਸੀਹੇ ਦੇ ਕੇ ਕਤਲ ਕਰਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੇ ਭੰਗਾਣੀ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਸਢੋਰਾ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੂੰ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਇਸ ਸਥਾਨ ਦਾ ਨਾਂ ਕਤਲਗੜੀ ਪੈ ਗਿਆ ।

5. ਸਰਹਿੰਦ ਦੀ ਜਿੱਤ (Conquest of Sirhind) – ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਦੋ ਛੋਟੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਜ਼ੋਰਾਵਰ ਸਿੰਘ ਤੇ ਫ਼ਤਿਹ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਕੰਧ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿੰਦਾ ਚਿਣਵਾ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਇਸ ਅਪਮਾਨ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣ ਲਈ 12 ਮਈ, 1710 ਈ. ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਚੱਪੜਚਿੜੀ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਹਮਲੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਦੇ ਵਾਧੂ ਆਹੂ ਲਾਹੇ । ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਯਮਲੋਕ ਪਹੁੰਚਾ ਕੇ ਉਸ ਦੀ ਲਾਸ਼ ਨੂੰ ਦਰੱਖ਼ਤ ਨਾਲ ਲਟਕਾ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਜਿੱਤ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਬਹੁਤ ਵੱਧ ਗਏ ।

6. ਰਾਹੋਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Rahon) – ਜਲੰਧਰ ਦੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਸ਼ਮਸ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਜ਼ਿਹਾਦ ਦਾ ਐਲਾਨ ਕਰ ਦਿੱਤਾ | ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਤੋਂ ਸਹਾਇਤਾ ਮੰਗੀ | ਅਕਤੂਬਰ, 1710 ਈ.
PSEB 12th Class History Map Questions 2
ਵਿੱਚ ਰਾਹੋਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਸ਼ਮਸ ਖ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਜੇਤੂ ਰਹੇ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖਾਂ ਨੇ ਸਾਰੇ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

7. ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦਾ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ’ਤੇ ਹਮਲਾ Attack of Mughals on Lohgarh) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਦੇਖਦੇ ਹੋਏ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਹਾਦਰ ਸ਼ਾਹ ਨੇ ਮੁਨੀਮ ਖ਼ਾਂ ਅਧੀਨ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਕੁਚਲਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਵਿਖੇ ਅਚਾਨਕ ਘੇਰ ਲਿਆ । ਕੁਝ ਦਿਨਾਂ ਤਕ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਨਾਲ ਡਟ ਕੇ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨ ਮਗਰੋਂ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਕਿਲ੍ਹੇ ਵਿੱਚੋਂ ਬਚ ਨਿਕਲਣ ਵਿੱਚ ਕਾਮਯਾਬ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮੁਗ਼ਲ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ।

8. ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gurdas Nangal) – ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ 1715 ਈ. ਵਿੱਚ ਬਹਿਰਾਮਪੁਰ, ਬਟਾਲਾ ਤੇ ਕਲਾਨੌਰ ਦੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ‘ਤੇ ਦੁਬਾਰਾ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ‘ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਨਵੇਂ ਬਣੇ ਸੂਬੇਦਾਰ ਅਬਦੁਸ ਸਮਦ ਖ਼ਾਂ ਨੇ ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਅਚਾਨਕ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੁਨੀ ਚੰਦ ਦੀ ਹਵੇਲੀ ਵਿੱਚ ਘਿਰ ਗਿਆ । ਇਹ ਘੇਰਾ 8 ਮਹੀਨਿਆਂ ਤਕ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ । ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਮੰਨਣੀ ਪਈ । 9 ਜੂਨ, 1716 ਈ. ਨੂੰ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਵਿਖੇ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸਾਮਰਾਜ (Kingdom of Maharaja Ranjit Singh)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਚਾਰ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੀ ਹਰੇਕ ਲੜਾਈ ਸੰਬੰਧੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four important places of battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words on each battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੁਆਰਾ ਲੜੀਆਂ ਗਈਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਕੋਈ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਟਿੱਪਣੀ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show four places where Maharaja Ranjit Singh fought battles.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show four places of the battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਲੜਾਈਆਂ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
PSEB 12th Class History Map Questions 3
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict the four places of battles of Maharaja Ranjit Singh.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words eacg on the places of the battles shown in the map.
ਉੱਤਰ-
ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇੱਕ ਮਹਾਨ ਜੇਤੁ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਸ਼ਾਸਨ ਕਾਲ (1797-1839) ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਇਸ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ । ਉਸ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਜਿੱਤਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ-

1. ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1799 ਈ. (Conquest of Lahore 1799 A.D.) – ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲੀ ਜਿੱਤ ਲਾਹੌਰ ਦੀ ਸੀ । ਇੱਥੇ ਤਿੰਨ ਭੰਗੀ ਸਰਦਾਰਾਂ-ਸਾਹਿਬ ਸਿੰਘ, ਮੋਹਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਚੇਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅੱਤਿਆਚਾਰਾਂ ਕਾਰਨ ਇੱਥੋਂ ਦੀ ਪਰਜਾ ਬੜੀ ਦੁਖੀ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸੱਦਾ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸ ਨੇ 7 ਜੁਲਾਈ, 1799 ਈ. ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

2. ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1805 ਈ. (Conquest of Amritsar 1805 A.D.) – ਧਾਰਮਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੱਕਾ ਸਮਝਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਪਾਰਿਕ ਕੇਂਦਰ ਵੀ ਸੀ । ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਹਾਰਾਜਾ । ਬਣਨ ਲਈ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਲਈ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸੀ । 1805 ਈ. ਨੂੰ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਕੇ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਦੀ ਵਿਧਵਾ ਮਾਈ ਸੁੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

3. ਕਸੂਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1807 ਈ. (Conquest of Kasur 1807 A.D.) – ਕਸੂਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਕੁਤਬ-ਉਦ-ਦੀਨ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਧੀਨਤਾ ਨੂੰ ਮੰਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਸੀ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ 1807 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕਸੂਰ ’ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਕੁਤਬ-ਉਦ-ਦੀਨ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਸੂਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

4. ਕਾਂਗੜਾ ਦੀ ਜਿੱਤ 1809 ਈ. (Conquest of Kangra 1809 A.D.) – 1809 ਈ. ਵਿੱਚ ਕਾਂਗੜਾ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਸੰਸਾਰ ਚੰਦ ਕਟੋਚ ਨੇ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਤੋਂ ਗੋਰਖਿਆਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਹਾਇਤਾ ਮੰਗੀ । ਇਸ ਦੇ ਬਦਲੇ ਉਸ ਨੇ ਕਾਂਗੜਾ ਦਾ ਕਿਲ੍ਹਾ ਦੇਣ ਦਾ ਵਚਨ ਦਿੱਤਾ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਗੋਰਖਿਆਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਦਿੱਤਾ | ਪਰ ਹੁਣ ਸੰਸਾਰ ਚੰਦ ਨੇ ਕਿਲਾ ਦੇਣ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਟਾਲ-ਮਟੋਲ ਕੀਤੀ । ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਦੇ ਪੁੱਤਰ ਅਨੁਰੋਧ ਨੂੰ ਕੈਦ ਕਰ ਲਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਉਸ ਨੇ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ ਕਿਲ੍ਹਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਹਵਾਲੇ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

5. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ 1818 ਈ. (Conguest of Multan 1818 A.D.) – ਮੁਲਤਾਨ ਸ਼ਹਿਰ ਵਪਾਰਿਕ ਅਤੇ ਭੁਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । ਇਸ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 7 ਵਾਰ ਹਮਲੇ ਕੀਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦਾ ਸ਼ਾਸਕ ਮੁਜੱਫਰ ਖ਼ਾਂ ਹਰ ਵਾਰੀ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਨਜ਼ਰਾਨਾ ਦੇ ਕੇ ਟਾਲ ਦਿੰਦਾ ਰਿਹਾ । 1818 ਈ. ਵਿੱਚ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੇ ਅਧੀਨ ਭੇਜੀ । ਘਮਸਾਨ ਦੇ ਯੁੱਧ ਮਗਰੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

6. ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1819 ਈ. (Conquest of Kashmir 1819 A.D.) – ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੀ ਘਾਟੀ ਆਪਣੀ ਸੁੰਦਰਤਾ ਅਤੇ ਵਪਾਰ ਕਾਰਨ ਬੜੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੀ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਜਿੱਤ ਤੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਬੜਾ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਨੇ 1819 ਈ. ਵਿੱਚ ਮਿਸਰ ਦੀਵਾਨ ਚੰਦ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਫ਼ੌਜ ਕਸ਼ਮੀਰ ਨੂੰ ਜਿੱਤਣ ਲਈ ਭੇਜੀ । ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਜ਼ਬਰ ਖਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ‘ਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ।

7. ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦੀ ਜਿੱਤ 1834 ਈ. (Conquest of Peshawar 1834 A.D.) – ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਦਾ ਇਲਾਕਾ ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਬੜਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸੀ । 1823 ਈ. ਵਿੱਚ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਵਜ਼ੀਰ ਮੁਹੰਮਦ ਆਜ਼ਿਮ ਸ਼ਾਂ ਨੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨੌਸ਼ਹਿਰਾ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਇੱਕ ਘਮਸਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਹਰਾ ਕੇ ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਪਿਸ਼ਾਵਰ ਨੂੰ 1834 ਈ. ਵਿੱਚ ਲਾਹੌਰ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ (First Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆਤਮਕ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the four places of the First Anglo-Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the above.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) Show any four places of First Anglo Sikh War on the given map of Punjab.
(b) Write in about 20-25 words each about the spots shown on map.
ਜਾਂ
(ੳ) ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕੋਈ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show four places of First Anglo Sikh War.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers depict four places of First Anglo Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words each on the places of the battles shown in the map.
PSEB 12th Class History Map Questions 4
ਉੱਤਰ-
1845-46 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਯੁੱਧ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਿਆ ਗਿਆ-

1. ਮੁਦਕੀ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Mudki) – ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ ਤੋਂ 20 ਮੀਲ ਦੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਮੁਦਕੀ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 18 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਭਾਵੇਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਅਹਿਸਾਸ ਹੋ ਗਿਆ ਕਿ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕਰਨਾ ਕੋਈ ਸੌਖਾ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

2. ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ferozeshah) – 21 ਦਸੰਬਰ, 1845 ਈ. ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਸ਼ਾਹ ਵਿਖੇ ਦੁਸਰੀ ਲੜਾਈ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊਗ ਗਫ਼, ਜਾਂਨ ਲਿਟਲਰ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਤਜਰਬੇਕਾਰ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ । ਪਰ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਮੁੜ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

3. ਬੱਦੋਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Baddowal) – ਸਿੱਖਾਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਤੀਜੀ ਲੜਾਈ ਲੁਧਿਆਣਾ ਤੋਂ 18 ਮੀਲ ਦੂਰ ਬੱਦੋਵਾਲ ਵਿਖੇ 21 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸਰਦਾਰ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਮਜੀਠੀਆ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਛੱਡਣ ਲਈ ਮਜਬੂਰ ਹੋਣਾ ਪਿਆ ।

4. ਅਲੀਵਾਲ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Aliwal) – ਹੈਰੀ ਸਮਿਥ ਬੱਦੋਵਾਲ ਵਿਖੇ ਹੋਈ ਆਪਣੀ ਹਾਰ ਦਾ ਬਦਲਾ ਲੈਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਸੀ । ਉਸ ਨੇ 28 ਜਨਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਅਲੀਵਾਲ ਵਿਖੇ ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਅਧੀਨ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਹ ਲੜਾਈ ਬੜੀ ਭਿਆਨਕ ਸੀ । ਰਣਜੋਧ ਸਿੰਘ ਦੀ ਗੱਦਾਰੀ ਕਾਰਨ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਜੇਤੂ ਰਹੇ ।

5. ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Sobraon) – ਸਭਰਾਉਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਪਹਿਲੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਅੰਤਿਮ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 10 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1846 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜਾ ਸਿੰਘ ਵਰਗੇ ਗੱਦਾਰ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹਿਊ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਲਾਰਡ ਹਾਰਡਿੰਗ ਵਰਗੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੈਨਾਪਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਸਿੱਖ ਸੈਨਾਪਤੀ ਜੋ ਅੰਦਰ ਖਾਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਰਲੇ ਹੋਏ ਸਨ, ਮੌਕਾ ਵੇਖ ਕੇ ਲੜਾਈ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਵਿੱਚੋਂ ਨੱਸ ਗਏ । ਅਜਿਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਸਰਦਾਰ ਸ਼ਾਮ ਸਿੰਘ ਅਟਾਰੀਵਾਲਾ ਨੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਆਪਣੀ ਬਹਾਦਰੀ ਦੇ ਉਹ ਜੌਹਰ ਦਿਖਾਏ ਕਿ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਨਾਨੀ ਚੇਤੇ ਆ ਗਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਤ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਵੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

PSEB 12th Class History Map Questions

ਦੂਸਰਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ (Second Anglo-Sikh War)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
(ਓ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਉੱਤੇ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਹੋਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of the Punjab, show the places of Second Anglo-Sikh War.
(b) Write an explanatory note on each in about 20-25 words on these battles.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦੂਜੇ ਅੰਗਰੇਜ਼-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਵਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
(a) Show four places of Second Anglo Sikh War on the given outline map of Punjab.
(b) Write in about 20-25 words on each about the spots shown in map.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਦਿਖਾਓ ।
(ਅ) ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਿਖਾਏ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਲਗਭਗ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab, show the four places of Second Anglo Sikh War.
(b) Explain these places in about 20-25 words each.
ਜਾਂ
(ਉ) ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮਾਨਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਨਦੀਆਂ ਦਰਸਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੇ ਚਾਰ ਸਥਾਨ ਭਰੋ ।
(ਅ) ਭਰੇ ਗਏ ਹਰੇਕ ਸਥਾਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ 20-25 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਰੋ ।
(a) On the given outline map of Punjab showing the rivers fill the places of battles of the Second Anglo Sikh War.
(b) Write an explanatory note in about 20-25 words on each the places of the battles shown in the map.
PSEB 12th Class History Map Questions 5
ਉੱਤਰ-
1848-49 ਈ. ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚਾਲੇ ਦੂਸਰਾ ਯੁੱਧ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਯੁੱਧ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਮੁੱਖ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਲੜਿਆ ਗਿਆ ਸੀ-

1. ਰਾਮਨਗਰ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Ramnagar) – ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ 22 ਨਵੰਬਰ, 1848 ਈ. ਨੂੰ ਰਾਮਨਗਰ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਹੋਈ | ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਭਾਰੀ ਜਾਨੀ ਅਤੇ ਮਾਲੀ ਨੁਕਸਾਨ ਹੋਇਆ ।

2. ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Chillianwala) – ਚਿਲਿਆਂਵਾਲਾ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਲੜਾਈਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 13 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਕਮਾਂਡ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਦੇ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੂੰ ਕਰਾਰੀ ਹਾਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ 132 ਸੈਨਿਕ ਅਫ਼ਸਰ ਵੀ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਦੀ ਥਾਂ ਸਰ ਚਾਰਲਸ ਨੇਪੀਅਰ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਵਿੱਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦਾ ਸਰਵਉੱਚ ਕਮਾਂਡਰ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

3. ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Multan) – ਮੁਲਤਾਨ ਵਿੱਚ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਵਿਦਰੋਹੀਆਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਵਿਸ਼ ਅਧੀਨ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਾ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ ਦੇ ਕਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਘੇਰਾ ਪਾਇਆ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵੀ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਨਾਲ ਆ ਰਲਿਆ ਸੀ । ਜਨਰਲ ਵਿਸ਼ ਨੇ ਚਲਾਕੀ ਨਾਲ ਜਾਅਲੀ ਚਿੱਠੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਦੀਵਾਨ ਮੁਲਰਾਜ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਵਿਚਾਲੇ ਫੁੱਟ ਪੁਆ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਕਾਰਨ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਦਾ ਸਾਥ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ । ਇਕੱਲਾ ਦੀਵਾਨ ਮੂਲਰਾਜ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਮੁਕਾਬਲਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕਿਆ ਅਤੇ ਅੰਤ ਮਜਬੂਰ ਹੋ ਕੇ 22 ਜਨਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅੱਗੇ ਹਥਿਆਰ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ । ਮੁਲਤਾਨ ਦੀ ਇਸ ਜਿੱਤ ਨਾਲ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਹੌਸਲੇ ਮੁੜ ਵੱਧ ਗਏ ।

4. ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ (Battle of Gujarat) – ਗੁਜਰਾਤ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੂਸਰੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਦੀ ਆਖਰੀ ਅਤੇ ਨਿਰਣਾਇਕ ਲੜਾਈ ਸੀ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖ ਸੈਨਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ, ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਹਾਰਾਜ ਸਿੰਘ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਲਾਰਡ ਹਿਊਗ ਗਫ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ 21 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਲੜੀ ਗਈ ਸੀ । ਇਹ ਲੜਾਈ ‘ਤੋਪਾਂ ਦੀ ਲੜਾਈ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਵੀ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦਾ ਗੋਲਾ-ਬਾਰੂਦ ਛੇਤੀ ਹੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸੈਨਿਕਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ‘ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ 3,000 ਤੋਂ 5,000 ਸਿੱਖ ਸੈਨਿਕ ਮਾਰੇ ਗਏ ਸਨ । 10 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਚਤਰ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਨੇ ਆਪਣੇ ਹਥਿਆਰ ਜਨਰਲ ਗਿਲਬਰਟ ਅੱਗੇ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤੇ ।

29 ਮਾਰਚ, 1849 ਈ. ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਅਣਥੱਕ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਉਸਾਰੇ ਸਾਮਰਾਜ ਦਾ ਦੁਖਮਈ ਅੰਤ ਹੋਇਆ ।