PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 2 Political and Social Conditions of the Punjab before Guru Nanak Dev Ji

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Political and Social Conditions of the Punjab before Guru Nanak Dev Ji PSEB 10th Class SST Notes

→ Political Condition: Guru Nanak Dev Ji was born in 1469 A.D. The political condition of Punjab was not good at the time of his birth. The rulers of Punjab were weak and divided and fought among themselves. Punjab was passing through a phase of chaos and external aggressions.

→ Social Condition: The social condition of Punjab during the period was miserable. The Hindu society was divided into castes and sub-castes. The condition of women was pitiable. The rulers were fanatics. The people were of low moral character. They were ignorant and superstitious.

→ Lodhi Rulers: Punjab was under the rule of the Lodhis. The rulers of this dynasty were Behlol Lodhi (1450-1489), Sikander Lodhi (1489-1517), and Ibrahim Lodhi (1517-1526).

→ Punjab under Ibrahim Lodhi: Punjab was the centre of intrigues during the reign of Ibrahim Lodhi. The Subedar (Governor) of Punjab, Daulat Khan Lodhi invited Babur, the ruler of Kabul, to invade India.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 2 Political and Social Conditions of the Punjab before Guru Nanak Dev Ji

→ Daulat Khan Lodhi and Babur: During the fifth invasion of Babur on India, Daulat Khan Lodhi, the Subedar of Punjab, fought against Babur. Daulat Khan Lodhi was defeated.

→ The victory of Babur over Punjab: The First Battle of Panipat was fought in 1526. In this battle, Ibrahim Lodhi was defeated and Babur occupied Delhi and Punjab.

→ Muslim Society: The Muslim society was divided into three classes namely, the Upper Class, Middle Class, and the Lower Class. The leading military commanders, Iqtadars, Ulemas, and Sayyids were included in the Upper Class. In the Middle class, the traders, farmers, soldiers, and low-ranking government officers were included. The Lower Class comprised artisans, slaves, and household servants.

→ Hindu Society: At the beginning of the sixteenth century, the Hindu society was divided into four main castes, which were the Brahmins, Kshatriyas, Vaishyas, and Shudras. The goldsmiths, ironsmiths, weavers, carpenters, tailors, potters, etc. were counted among the lower castes. The Jats formed an important sub-caste.

गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था PSEB 10th Class SST Notes

→ राजनीतिक अवस्था-गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में हुआ। उनके जीवनकाल से पहले पंजाब की राजनीतिक अवस्था बहुत अच्छी नहीं थी।

→ यहां के शासक कमज़ोर तथा परस्पर फूट के शिकार थे। पंजाब पर विदेशी आक्रमण हो रहे थे।

→ सामाजिक अवस्था-इस काल में पंजाब की सामाजिक अवस्था प्रशंसा योग्य नहीं थी। हिन्दू समाज कई जातियों व उप-जातियों में बंटा हुआ था।

→ महिलाओं की दशा बहुत दयनीय थी। लोग सदाचार को भूल चुके थे तथा व्यर्थ के भ्रमों में फंसे हुए थे।

→ लोधी शासक-पंजाब लोधी वंश के अधीन था। इस राजवंश के महत्त्वपूर्ण शासक बहलोल लोधी, सिकन्दर लोधी तथा इब्राहिम लोधी थे।

→ इब्राहिम लोधी के अधीन पंजाब-इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब षड्यन्त्रों का अखाड़ा बना हुआ था।

→ यहां का गवर्नर दौलत खाँ लोधी काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित कर रहा था।

→ दौलत खाँ लोधी तथा बाबर-बाबर द्वारा भारत पर पांचवें आक्रमण के समय पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ लोधी ने उसका सामना किया। इस लड़ाई में दौलत खाँ लोधी पराजित हुआ।

→ बाबर की पंजाब विजय-1526 ई० में पानीपत की पहली लड़ाई हुई। इस लड़ाई में इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और पंजाब पर बाबर का अधिकार हो गया।

→ मुस्लिम समाज-मुस्लिम समाज तीन वर्गों-उच्च वर्ग, मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग में बंटा हुआ था।

उच्च वर्ग में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा तथा सैय्यद; मध्य वर्ग में व्यापारी, कृषक, सैनिक तथा छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे।

→ निम्न वर्ग में शिल्पकार, निजी सेवक तथा दासदासियां शामिल थीं।

→ हिन्दू समाज-16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब का हिन्दू समाज चार मुख्य जातियों में बंटा हुआ था-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।

→ सुनार, बुनकर, लुहार, कुम्हार, दर्जी, बढ़ई आदि उस समय की कुछ अन्य जातियां तथा उप-जातियां थीं।

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਅਵਸਥਾ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਵਸਥਾ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 1469 ਈ: ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ-ਕਾਲ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਦੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਵਸਥਾ ਬਹੁਤ ਚੰਗੀ ਨਹੀਂ ਸੀ ।

→ ਇੱਥੋਂ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਕਮਜ਼ੋਰ ਅਤੇ ਆਪਸੀ ਫੁੱਟ ਦੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਸਨ ! ਪੰਜਾਬ ਉੱਪਰ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਹਮਲੇ ਹੋ ਰਹੇ ਸਨ ।

→ ਸਮਾਜਿਕ ਅਵਸਥਾ-ਇਸ ਕਾਲ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਵਸਥਾ ਪ੍ਰਸੰਸਾਯੋਗ ਨਹੀਂ ਸੀ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਾਤੀਆਂ ਅਤੇ ਉਪ-ਜਾਤੀਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

→ ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਦਸ਼ਾ ਬਹੁਤ ਤਰਸਯੋਗ ਸੀ । ਲੋਕ ਸਦਾਚਾਰ ਨੂੰ ਭੁੱਲ ਚੁੱਕੇ ਸਨ ਅਤੇ ਵਿਅਰਥ ਦੇ ਭਰਮਾਂ ਵਿਚ ਫਸੇ ਹੋਏ ਸਨ ।

→ ਲੋਧੀ ਸ਼ਾਸਕ-ਪੰਜਾਬ ਲੋਧੀ ਵੰਸ਼ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ । ਇਸ ਰਾਜਵੰਸ਼ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸ਼ਾਸਕ ਬਹਿਲੋਲ ਖਾਂ ਲੋਧੀ, ਸਿਕੰਦਰ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਸਨ ।

→ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੇ ਅਧੀਨ ਪੰਜਾਬ-ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਸਾਜ਼ਿਸ਼ਾਂ ਦਾ ਅਖਾੜਾ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

→ ਇੱਥੋਂ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਕਾਬੁਲ ਦੇ ਸ਼ਾਸਕ ਬਾਬਰ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਸੱਦ ਰਿਹਾ ਸੀ ।

→ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਅਤੇ ਬਾਬਰ-ਬਾਬਰ ਵਲੋਂ ਭਾਰਤ ਉੱਪਰ ਪੰਜਵੇਂ ਹਮਲੇ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਸੂਬੇਦਾਰ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਨੇ ਉਸ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਦੌਲਤ ਖਾਂ ਲੋਧੀ ਹਾਰ ਗਿਆ ।

→ ਬਾਬਰ ਦੀ ਪੰਜਾਬ ਜਿੱਤ-1526 ਈ: ਵਿਚ ਪਾਣੀਪਤ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਲੜਾਈ ਹੋਈ । ਇਸ ਲੜਾਈ ਵਿਚ ਇਬਰਾਹੀਮ ਲੋਧੀ ਹਾਰ ਗਿਆ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਬਾਬਰ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਹੋ ਗਿਆ ।

→ ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ-ਮੁਸਲਿਮ ਸਮਾਜ ਤਿੰਨ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ-ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ, ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਅਤੇ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ ।

→ ਉੱਚ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸਰਦਾਰ, ਇਕਤਾਦਾਰ, ਉਲਮਾ ਅਤੇ ਸੱਯਦ, ਮੱਧ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚ ਵਪਾਰੀ, ਕਿਸਾਨ, ਸੈਨਿਕ ਅਤੇ ਛੋਟੇ ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਮਚਾਰੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਅਤੇ ਨੀਵੀਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚ ਸ਼ਿਲਪਕਾਰ, ਨਿੱਜੀ ਸੇਵਕ ਅਤੇ ਦਾਸ-ਦਾਸੀਆਂ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ।

→ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ-16ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਹਿੰਦੂ ਸਮਾਜ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਜਾਤੀਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀਬਾਹਮਣ, ਖੱਤਰੀ, ਵੈਸ਼ ਅਤੇ ਸ਼ੂਦਰ ( ਸੁਨਿਆਰੇ, ਬੁਣਕਰ, ਲੁਹਾਰ, ਘੁਮਿਆਰ, ਦਰਜ਼ੀ ਅਤੇ ਤਰਖ਼ਾਣ ਆਦਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਹੋਰ ਜਾਤਾਂ ਅਤੇ ਉਪ-ਜਾਤਾਂ ਸਨ ।

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 1 Physical Features of the Punjab and their influence on its History

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Physical Features of the Punjab and their influence on its History PSEB 10th Class SST Notes

→ Punjab (meaning): The word Punjab is derived from two Persian words, Pan (Five) and Aab (water or river) meaning five glasses of water or rivers. Thus Punjab is the region of five glasses of water.

→ The ancient names of Punjab: Punjab was known by different names during different periods of history. The ancient names of Punjab were: Saptsindhu, Panjnad, Lahore Suba, the North-Western Frontier Province, etc.

→ The Geographical Divisions: From the geographical point of view, Punjab can be divided into three divisions:

  • The Himalayas and its North-West ranges
  • The foothills or Terai region
  • The Plains.

→ The Malwa Region: The Malwa region is surrounded by the rivers Satluj and Ghagghar. In ancient times, the ‘Malava’ tribe lived here. The region is named Malwa after the name of that tribe.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 1 Physical Features of the Punjab and their influence on its History

→ The effects of the Himalayas on the history of Punjab: Punjab was the “Gateway of India” due to the existence of a number of passes in the North-West ranges of the Himalayas. During the medieval period, all the invaders came through these passes to invade India.

→ The Plains of Punjab: The plains of Punjab are very fertile. The prosperity of Punjab encouraged foreign invaders to attack India.

→ The influence of the rivers of Punjab on its history: The rivers of Punjab were a hurdle in the path of the invaders. They also played the role of providing natural boundaries. The Mughal rulers had adopted river boundaries as the administrative divisions like Parganas, Sarkars, and Subas.

→ Terai Region: The Terai region is covered with dense forests. The Sikhs took shelter in these forests during their hard times (the Dark Period of their history). They organized themselves and increased their military strength and effectively faced the oppressive rulers.

→ The different Castes and Tribes of Punjab: The people of different castes and tribes lived in Punjab. The prominent tribes, sects, and castes in Punjab were the Jats, Sikhs, Rajputs, Khatris, Aroras, Gujjars, Arians, etc.

पंजाब की भौगोलिक विशेषताएं तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव PSEB 10th Class SST Notes

→ पंजाब (अर्थ)-पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ तथा ‘आब’ के मेल से बना है। पंज का अर्थ है-पांच तथा आब का अर्थ है- पानी, जो नदी का प्रतीक है। अतः पंजाब से अभिप्राय है-पांच नदियों का प्रदेश।

→ पंजाब के बदलते नाम-पंजाब को भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता रहा है। ये नाम हैं-सप्तसिन्धु, पंचनद, लाहौर सूबा, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त आदि।

→ भौतिक भाग-भौगोलिक दृष्टि से पंजाब को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  • हिमालय तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी पहाड़ियां
  • उप-पहाड़ी क्षेत्र (पहाड़ की तलहटी के क्षेत्र)
  • मैदानी क्षेत्र।

→ मालवा प्रदेश-मालवा प्रदेश सतलुज और घग्घर नदियों के बीच में स्थित है।

→ प्राचीन काल में इस प्रदेश में ‘मालव’ नाम का एक कबीला निवास करता था। इसी कबीले के नाम से इस प्रदेश का नाम ‘मालवा’ रखा गया।

→ हिमालय का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव-हिमालय की पश्चिमी शाखाओं में स्थित दरों के कारण पंजाब भारत का द्वार बना।

→ मध्यकाल तक भारत पर आक्रमण करने वाले लगभग सभी आक्रमणकारी इन्हीं दरों द्वारा भारत आये।

→ पंजाब के मैदानी भाग-पंजाब का मैदानी भाग बहुत समृद्ध था। इस समृद्धि ने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत पर आक्रमण करने के लिए प्रेरित किया।

→ पंजाब की नदियों का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव-पंजाब की नदियों ने आक्रमणकारियों के लिए बाधा का काम किया।

→ इन्होंने पंजाब की प्राकृतिक सीमाओं का काम भी किया। मुग़ल शासकों ने अपनी सरकारों, परगनों तथा सूबों की सीमाओं का काम इन्हीं नदियों से ही लिया।

→ तराई प्रदेश-पंजाब का तराई प्रदेश घने जंगलों से घिरा हुआ है।

→ संकट के समय में इन्हीं वनों ने सिक्खों को आश्रय दिया। यहाँ रहकर उन्होंने अपनी सैनिक शक्ति बढ़ाई और अत्याचारियों से टक्कर ली।

→ पंजाब में रहने वाली विभिन्न जातियाँ-पंजाब में विभिन्न जातियों के लोग निवास करते हैं। इनमें से जाट, सिक्ख, राजपूत, पठान, खत्री, अरोड़े, गुज्जर, अराइन आदि प्रमुख हैं।

ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਭੂਗੋਲਿਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਸ ਦੇ ਇਸ ਭਾਵ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਪੰਜਾਬ (ਅਰਥ)-ਪੰਜਾਬ ਫ਼ਾਰਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਦੋ ਸ਼ਬਦਾਂ ‘ਪੰਜ’ ਅਤੇ ‘ਆਬ’ ਦੇ ਮੇਲ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਹੈ । ਪੰਜ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ-ਪੰਜ ਅਤੇ ਆਬ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਪਾਣੀ, ਜੋ ਨਦੀ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ-ਪੰਜ ਨਦੀਆਂ ਦਾ ਦੇਸ਼ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਬਦਲਦੇ ਨਾਂ-ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਿਆਂ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਨਾਵਾਂ ਨਾਲ ਪੁਕਾਰਿਆ ਜਾਂਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

→ ਇਹ ਨਾਂ ਹਨ-ਸਪਤ ਸਿੰਧੂ, ਪੰਚ-ਨਦ, ਲਾਹੌਰ ਸੂਬਾ, ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਸੀਮਾ ਪ੍ਰਾਂਤ ਆਦਿ ।

→ ਭੌਤਿਕ ਭਾਗ-ਭੂਗੋਲਿਕ ਪੱਖੋਂ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-

  • ਹਿਮਾਲਾ ਅਤੇ ਉਸ ਦੀਆਂ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਪਹਾੜੀਆਂ
  • ਉਪ-ਪਹਾੜੀ ਖੇਤਰ ਪਹਾੜ ਦੀ ਤਲੀ ਦੇ ਖੇਤਰ)
  • ਮੈਦਾਨੀ ਖੇਤਰ ।

→ ਮਾਲਵਾ ਦੇਸ਼-ਮਾਲਵਾ ਦੇਸ਼ ਸਤਲੁਜ ਅਤੇ ਘੱਗਰ ਨਦੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਸਥਿਤ ਹੈ । ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਕਾਲ ਵਿਚ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ‘ਮਾਲਵ’ ਨਾਂ ਦਾ ਇਕ ਕਬੀਲਾ ਨਿਵਾਸ ਕਰਦਾ ਸੀ ।

→ ਇਸੇ ਕਬੀਲੇ ਦੇ ਨਾਂ ਤੋਂ ਇਸ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਨਾਂ ਮਾਲਵਾ ਰੱਖਿਆ ਗਿਆ ।

→ ਹਿਮਾਲਾ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-ਹਿਮਾਲਾ ਦੀਆਂ ਪੱਛਮੀ ਸ਼ਾਖਾਵਾਂ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਦੱਰਿਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ, ਪੰਜਾਬ ਭਾਰਤ ਦਾ ਦਰਵਾਜ਼ਾ ਬਣਿਆ । ਮੱਧ ਕਾਲ ਤਕ ਭਾਰਤ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲਗਪਗ ਸਾਰੇ ਹਮਲਾਵਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੱਰਿਆਂ ਰਾਹੀਂ ਭਾਰਤ ਆਏ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੈਦਾਨੀ ਭਾਗ-ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮੈਦਾਨੀ ਭਾਗ ਬਹੁਤ ਖੁਸ਼ਹਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਖ਼ੁਸ਼ਹਾਲੀ ਨੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਹਮਲਾਵਰਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਨ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕੀਤਾ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਦਾ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ‘ਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਨੇ ਹਮਲਾਵਰਾਂ ਦੇ ਲਈ ਰੁਕਾਵਟ ਦਾ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ।

→ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਕੁਦਰਤੀ ਹੱਦਾਂ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਕੀਤਾ । ਮੁਗ਼ਲ ਸ਼ਾਸਕਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀਆਂ ਸਰਕਾਰਾਂ, ਪਰਗਨਿਆਂ ਅਤੇ ਸੂਬਿਆਂ ਦੀਆਂ ਹੱਦਾਂ ਦਾ ਕੰਮ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨਦੀਆਂ ਤੋਂ ਹੀ ਲਿਆ ।

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 3 Agricultural Development in India

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Agricultural Development in India PSEB 10th Class SST Notes

→ Agriculture: It is the art or science of production of crops and livestock on a farm.

→ Importance of Agriculture in India:

  • Agriculture is the backbone of the Indian economy.
  • It contributes much to national income, it is the Source of food supply to the masses.
  • Its importance is also in employment, industry, source of livelihood, foreign trade, transport, government income, and capital formation.

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 3 Agricultural Development in India

→ Main problems of Indian Agriculture:
The main problems of Indian agriculture are:

  • Human problems constitute pressure of population on land and social atmosphere.
  • Institutional problems, such as small size of holdings, and land tenure system.
  • Technical problems such as inadequate irrigation facilities, old agricultural implements, traditional techniques of production, lack of improved seeds, lack of manure, defective agriculture marketing system, diseases of crops and attacks of pests, lack of credit facilities, and weak cattle.

भारत में कृषि विकास PSEB 10th Class SST Notes

→ कृषि-एक खेत में फसलों व पशुओं के उत्पादन सम्बन्धी कला या विज्ञान को कृषि कहते हैं।

→ कृषि का महत्त्व-राष्ट्रीय आय में योगदान, खाद्य पूर्ति का साधन, रोज़गार का माध्यम, उद्योग का आधार, जीवन का साधन, कृषि व विदेशी व्यापार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार, यातायात के लिए आधार, सरकारी आय तथा पूंजी निर्माण आदि में कृषि महत्त्वपूर्ण है।

→ कृषि की समस्याएं-मानवीय समस्याएं जैसे भूमि पर जनसंख्या का दबाव, सामाजिक वातावरण, संस्थागत समस्याएं जैसे जोतों का छोटा आकार, काश्तकारी व्यवस्था।

→ तकनीकी समस्याएं जैसे सिंचाई की कम सुविधाएं, पुराने कृषि उपकरण, पुरानी उत्पादन तकनीकें, अच्छे बीजों का अभाव, खाद की समस्या, त्रुटिपूर्ण कृषि बाज़ार व्यवस्था, फसलों की बीमारियां व कीड़े-मकौड़े, साख सुविधाओं का अभाव तथा कमज़ोर पशु आदि कृषि की समस्याएं हैं।

→ हरित क्रांति-हरित क्रांति से अभिप्राय कृषि उत्पादन विशेष रूप से गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि में अधिक उपज वाले बीजों के प्रयोग की नई तकनीक अपनाने से सम्भव हुई है।

→ हरित क्रांति की सफलता के मुख्य तत्त्व-अधिक उपज वाले बीज, रसायन खादें, सिंचाई, आधुनिक कृषि यंत्रीकरण, साख-सुविधाएं, कृषि की नई तकनीक, पौध संरक्षण, कीमत सहयोग, ग्रामीण विद्युतीकरण, भू-संरक्षण, बाज़ार सुविधाएं आदि हरित क्रांति की सफलता के मुख्य तत्त्व हैं।

→ भूमि सुधार-भूमि सुधार से अभिप्राय मनुष्य तथा भूमि में पाए जाने वाले संबंध के योजनात्मक तथा संस्थागत पुनर्गठन से है।

→ कृषि नीति-कृषि नीति से अभिप्राय संस्थागत सुधारों को अपनाने से है जिससे कृषि का सर्वांगीण विकास हो सके।

ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦਾ ਵਿਕਾਸ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ-ਇਕ ਖੇਤ ਵਿਚ ਫ਼ਸਲਾਂ ਅਤੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਸੰਬੰਧੀ ਕਲਾ ਜਾਂ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਆਮਦਨ ਵਿਚ ਯੋਗਦਾਨ, ਖਾਧ ਪੂਰਤੀ ਦਾ ਸਾਧਨ, ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਦਾ ਸਾਧਨ, ਉਦਯੋਗ ਦਾ ਆਧਾਰ, ਜੀਵਨ ਦਾ ਸਾਧਨ, ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਵਪਾਰ, ਅੰਤਰ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਵਪਾਰ, ਆਵਾਜਾਈ ਲਈ ਆਧਾਰ, ਸਰਕਾਰੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀ ਨਿਰਮਾਣ ਆਦਿ ਵਿਚ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ।

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ-ਮਨੁੱਖੀ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਭੂਮੀ ‘ਤੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਦਬਾਅ, ਸਮਾਜਿਕ ਵਾਤਾਵਰਨ, ਸੰਸਥਾਗਤ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ, ਜਿਵੇਂ ਜੋਤਾਂ ਦਾ ਛੋਟਾ ਆਕਾਰ, ਕਾਸ਼ਤਕਾਰੀ ਵਿਵਸਥਾ ।

→ ਤਕਨੀਕੀ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਜਿਵੇਂ ਸਿੰਜਾਈ ਦੀਆਂ ਘੱਟ ਸਹੁਲਤਾਂ, ਪੁਰਾਣੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਔਜ਼ਾਰ, ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਉਤਪਾਦਨ ਤਕਨੀਕਾਂ, ਚੰਗੇ ਬੀਜਾਂ ਦੀ ਘਾਟ, ਖ਼ਾਦ ਦੀ ਸਮੱਸਿਆ, ਦੋਸ਼ਪੂਰਨ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਬਾਜ਼ਾਰ ਵਿਵਸਥਾ, ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਕੀੜੇ-ਮਕੌੜੇ, ਸਾਖ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦੀ ਘਾਟ ਅਤੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਪਸ਼ੂ ਆਦਿ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਹਨ ।

→ ਹਰੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ-ਹਰੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਤੋਂ ਭਾਵ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਉਤਪਾਦਨ ਖ਼ਾਸ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਕਣਕ ਅਤੇ ਚੌਲ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਉਸ ਭਾਰੀ ਵਾਧੇ ਤੋਂ ਹੈ, ਜੋ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਵਿਚ ਵਧੇਰੇ ਉਪਜ ਵਾਲੇ ਬੀਜਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਅਪਣਾਉਣ ਨਾਲ ਸੰਭਵ ਹੋਈ ਹੈ ।

→ ਹਰੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਸਫਲਤਾ ਦੇ ਮੁੱਖ ਤੱਤ-ਵਧੇਰੇ ਉਪਜ ਵਾਲੇ ਬੀਜ; ਜਿਵੇਂ- ਰਸਾਇਣਿਕ ਖਾਦਾਂ, ਸਿੰਜਾਈ, ਆਧੁਨਿਕ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਔਜ਼ਾਰ, ਸਾਖ ਸਹੁਲਤਾਂ, ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀ ਨਵੀਂ ਤਕਨੀਕ, ਪੌਦੇ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ, ਕੀਮਤ ਸਹਿਯੋਗ, ਗਾਮੀਣ ਬਿਜਲੀਕਰਨ, ਭੂਮੀ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ, ਬਾਜ਼ਾਰ ਸਹੁਲਤਾਂ ਆਦਿ ਹਰੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਸਫਲਤਾ ਦੇ ਮੁੱਖ ਤੱਤ ਹਨ ।

→ ਭੂਮੀ ਸੁਧਾਰ-ਭੂਮੀ ਸੁਧਾਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਮਨੁੱਖ ਅਤੇ ਭੂਮੀ ਵਿਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸੰਬੰਧ ਦੇ ਯੋਜਨਾਤਮਕ ਅਤੇ ਸੰਸਥਾਗਤ ਪੁਨਰਗਠਨ ਤੋਂ ਹੈ ।

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੀਤੀ-ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੀਤੀ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸੰਸਥਾਗਤ ਸੁਧਾਰਾਂ ਦੇ ਅਪਣਾਉਣ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦਾ ਸਰਵਪੱਖੀ ਵਿਕਾਸ ਹੋ ਸਕੇ ।

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 2 Infrastructure of the Indian Economy

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Infrastructure of the Indian Economy PSEB 10th Class SST Notes

→ Infrastructure: Infrastructure is that part of the capital stock of the economy which is necessary from the viewpoint of providing various kinds of services.

→ Economic Infrastructure: It refers to that capital stock that offers various types of productive services directly to the producers.

→ Means of Transport: Railways, Road transport, Water transport, and Air transport are the main means of transport.

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 2 Infrastructure of the Indian Economy

→ Means of Communication: Post, telegraph, telephone, radio, television, fax, cinema, newspaper and magazines, etc. are the important means of communication in India.

→ Sources of Electric Power: Thermal power, Hydal power, and Nuclear power are the sources of power in India.

→ Sources of Irrigation: Rainfall, wells, tube-wells, ponds, canals are the main sources of irrigation in India.

→ Reserve Bank of India: This is the Apex of the Central Bank of India which was established in 1935.

→ Commercial Banks: Commercial Banks are those banks that generally give short-term loans.

→ Non-Banking Institutions: These are those institutions that raise money from the public and other sources and offer loans of that money. U.T.I and L.I.C. are two examples of these institutions in India.

→ Consumer: When we use any commodity we become consumers.

→ Consumer Exploitation: When a consumer is harassed by the business community due to a lack of information about products, it is known as consumer exploitation.

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 2 Infrastructure of the Indian Economy

→ Consumer Protection: It means the protection of the buyers of consumer goods from the exploitation of the unfair trade practices of the producers.

→ Activities of Consumer Exploitation: Adulteration, sub-standard packed goods, use of non-standard weights or misleading and fabricated advertisements, and unfair Monopolistic and Restricted Trade Practices are such activities that exploit the consumers to a large extent.

→ Consumer Protection Act, 1986: This Act is one of the most important legal measures in protecting the rights of consumers.

→ Public Distribution System: The supply of essential commodities to the people through government agencies is known as the Public Distribution System.

भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारिक संरचना PSEB 10th Class SST Notes

→ आधारिक संरचना-इससे अभिप्राय उन सुविधाओं, क्रियाओं और सेवाओं से है जो अन्य क्षेत्रों के संचालन तथा विकास में सहायक होती हैं।

→ आर्थिक आधारिक संरचना-इससे अभिप्राय उस पूंजी स्टॉक से है जो उत्पादन प्रणाली को प्रत्यक्ष सेवाएं प्रदान करता है।

→ यातायात के साधन-रेलवे, रोड यातायात, जल यातायात तथा वायु यातायात ही भारत में प्रमुख यातायात के साधन हैं।

→ आर्थिक आधारिक संरचना की सेवाओं के साधन-यातायात एवं संचार, बिजली, सिंचाई, बैंकिंग और अन्य वित्तीय संस्थाएं इसकी सेवाओं के साधन हैं।

→ विद्युत् शक्ति के साधन-ताप शक्ति, बिजली व आण्विक शक्ति इसके प्रमुख साधन हैं।

→ साहूकार-साहूकार रुपया उधार देने तथा जमा करने का कार्य करता है जिसके लिए अधिक ब्याज लेता है।

→ भारतीय रिज़र्व बैंक-यह भारत का केन्द्रीय बैंक है जिसकी स्थापना 1935 में हुई है।

→ व्यापारिक बैंक-सामान्यतया ये बैंक अल्पकालीन ऋण देते हैं।

→ उपभोक्ता शोषण-जब उत्पादक उपभोक्ताओं को उत्पादन के गुणों की झूठी सूचनाएं देते हैं, मिलावट करते हैं, कम वज़न या गलत मापों का प्रयोग करते हैं तो इसे उपभोक्ता शोषण कहते हैं।

→ उपभोक्ता संरक्षण-उत्पादकों के गैर-व्यापार व्यवहारों के शोषण से उपभोक्ता वस्तुओं के खरीददारों का संरक्षण ही उपभोक्ता संरक्षण है।

→ उपभोक्ता सुनवाई की अदालतें-इसके लिए तीन अदालतें हैं-ज़िला अदालत, राज्य अदालत और राष्ट्रीय अदालत।

→ सार्वजनिक वितरण प्रणाली-यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा सरकार देश की जनता विशेषकर निर्धन वर्ग को उचित मूल्य की दुकानों द्वारा जीवन की आवश्यक वस्तुओं जैसे-अनाज, चीनी, मिट्टी का तेल इत्यादि का रियायती कीमतों पर निश्चित मात्रा में वितरण करती है।

→ बफर स्टॉक-सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं का किया गया भण्डार ही बफर स्टॉक कहलाता है।

ਭਾਰਤੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਆਧਾਰਿਕ ਸੰਰਚਨਾ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਆਧਾਰਿਕ ਸੰਰਚਨਾ-ਇਸ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਹੂਲਤਾਂ, ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸੇਵਾਵਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਹੜੀਆਂ ਹੋਰਨਾਂ ਖੇਤਰਾਂ ਦੇ ਸੰਚਾਲਨ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਸਹਾਇਕ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਆਰਥਿਕ ਆਧਾਰਿਕ ਸੰਰਚਨਾ-ਇਸ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਸ ਪੁੱਜੀ ਸਟਾਕ ਤੋਂ ਹੈ। ਜੋ ਉਤਪਾਦਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਤੱਖ ਸੇਵਾਵਾਂ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

→ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨ-ਰੇਲਵੇ, ਸੜਕ ਆਵਾਜਾਈ, ਜਲ ਆਵਾਜਾਈ ਅਤੇ ਹਵਾਈ ਆਵਾਜਾਈ ਹੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਮੁੱਖ ਆਵਾਜਾਈ ਦੇ ਸਾਧਨ ਹਨ ।

→ ਆਰਥਿਕ ਆਧਾਰਿਕ ਸੰਰਚਨਾ ਦੀਆਂ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਸਾਧਨ-ਆਵਾਜਾਈ ਅਤੇ ਸੰਚਾਰ, ਬਿਜਲੀ, ਸਿੰਜਾਈ, ਬੈਂਕਿੰਗ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਿੱਤੀ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਇਸ ਦੀਆਂ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਸਾਧਨ ਹਨ ।

→ ਬਿਜਲੀ ਸ਼ਕਤੀ ਦੇ ਸਾਧਨ-ਤਾਪ ਸ਼ਕਤੀ, ਬਿਜਲੀ ਅਤੇ ਪਰਮਾਣੂ ਸ਼ਕਤੀ ਇਸਦੇ ਮੁੱਖ ਸਾਧਨ ਹਨ ।

→ ਸ਼ਾਹੂਕਾਰ-ਸ਼ਾਹੂਕਾਰ ਰੁਪਇਆ ਉਧਾਰ ਦੇਣ ਅਤੇ ਜਮਾਂ ਕਰਨ ਦਾ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਲਈ ਉਹ ਵਧੇਰੇ ਵਿਆਜ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਭਾਰਤੀ ਰਿਜ਼ਰਵ ਬੈਂਕ-ਇਹ ਭਾਰਤ ਦਾ ਕੇਂਦਰੀ ਬੈਂਕ ਹੈ ਜਿਸਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1935 ਵਿਚ ਹੋਈ ਹੈ ।

→ ਵਪਾਰਕ ਬੈਂਕ-ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਇਹ ਬੈਂਕ ਥੋੜੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਕਰਜ਼ੇ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਉਪਭੋਗਤਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ-ਜਦੋਂ ਉਤਪਾਦਕ ਉਪਭੋਗੀਆਂ ਨੂੰ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਦੀਆਂ ਝੂਠੀਆਂ ਸੂਚਨਾਵਾਂ ਦਿੰਦੇ ਹਨ, ਮਿਲਾਵਟ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਘੱਟ ਵਜ਼ਨ ਜਾਂ ਗ਼ਲਤ ਮਾਪਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਇਸਨੂੰ ਉਪਭੋਗਤਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉਪਭੋਗੀ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ (ਸੰਰੱਖਣ)-ਉਤਪਾਦਕਾਂ ਦੇ ਗੈਰ-ਵਪਾਰਕ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦੇ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਤੋਂ ਉਪਭੋਗੀ ਵਸਤਾਂ ਦੇ ਖਰੀਦਦਾਰਾਂ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਹੀ ਉਪਭੋਗੀ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਸੰਰੱਖਣ ਹੈ ।

→ ਉਪਭੋਗੀ ਦੀ ਸੁਣਵਾਈ ਦੀਆਂ ਅਦਾਲਤਾਂ-ਇਸਦੇ ਲਈ ਤਿੰਨ ਅਦਾਲਤਾਂ ਹਨ-ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਅਦਾਲਤ, ਰਾਜ ਅਦਾਲਤ ਅਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਅਦਾਲਤ ।

→ ਸਰਵਜਨਕ ਵੰਡ ਪ੍ਰਣਾਲੀ-ਇਹ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਦੁਆਰਾ ਸਰਕਾਰ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਜਨਤਾ ਖ਼ਾਸ ਕਰ ਗ਼ਰੀਬ ਵਰਗ ਨੂੰ ਉੱਚਿਤ ਮੁੱਲ ਦੀਆਂ ਦੁਕਾਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਜੀਵਨ ਦੀਆਂ ਲੋੜੀਂਦੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਜਿਵੇਂ-ਅਨਾਜ, ਖੰਡ, ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਤੇਲ ਆਦਿ ਦੀ ਰਿਆਇਤੀ ਕੀਮਤਾਂ ‘ਤੇ ਨਿਸਚਿਤ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਵੰਡ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

→ ਬਫਰ ਸਟਾਕ-ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਵਸਤਾਂ ਦਾ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਭੰਡਾਰ ਹੀ ਬਫਰ ਸਟਾਕ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 1 Basic Concepts

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Basic Concepts PSEB 10th Class SST Notes

→ Basic Concepts: Basic concepts are those words that have special meaning in Economics.

→ National Income: National Income is the earned income by the normal residents of a country during one year.

→ Per Capita Income: It is the average income earned by the people of a country in a definite period of time.

→ Consumption: Consumption is the expenditure made on consumption during one year in an economy.

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 1 Basic Concepts

→ Saving: The difference between income and consumption is called saving.

→ Investment: When production is more than consumption during an accounting year, that is called investment.

→ Capital Formation: An addition to capital stock is called capital formation.

→ Disguised Unemployment: Disguised unemployment is that situation when more people are doing the same work which a few people can do.

→ Full Employment: Full employment is a situation in which all the people who are willing to work at existing wage rates get work without any difficulty.

→ Structural Unemployment: It rises due to the structural changes in the economy, like the exports, etc.

→ Technical Unemployment: It arises due to the changes in the techniques of production.

→ Inflation: Inflation means a constant rise in prices.

→ Money Supply: It means currency and deposits of banks available to the people of the country.

→ Government Budget: Government Budget is the detailed account of its estimated revenue and expenditure.

→ Deficit Financing: It is the method by which government meets the budgetary deficits by taking loans from the Central Bank.

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 1 Basic Concepts

→ Public Finance: Public Finance means the financial sources of the government, i.e. revenue and expenditure.

→ Public Debt: Public debt means all types of loans taken by the Government.

→ Poverty Line: The poverty line is the method of measuring the poverty of any country.

→ Growth Rate: Growth rate implies that in comparison to a particular year with any other year how much percentage change took place in any economic element.

→ Foreign Aid: It means capital investment, loans, and grants in any country by foreign governments, individual banks, and international institutions.

→ Balance of Payments: Balance of Payments is the account of receipts and payments of the govt, of one country from other countries during a period of one year.

→ Monetary Policy: It is related to affecting the level and structure of aggregate demand by controlling the rate of interest and the availability of credit.

→ Fiscal Policy: The policy related to the government’s income and expenditure is called fiscal policy.

आधारभूत धारणाएं PSEB 10th Class SST Notes

→ राष्ट्रीय आय-राष्ट्रीय आय एक देश के सामान्य निवासियों की एक वर्ष में उत्पादक सेवाओं के बदले अर्जित साधन आय है।

→ प्रति व्यक्ति आय-प्रति व्यक्ति आय देश के लोगों द्वारा निश्चित समय में अर्जित औसत आय होती है।

→ उपभोग-एक अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उपभोग पर किया गया व्यय उपभोग कहलाता है।

→ बचत-आय में से उपभोग घटाने पर जो शेष रहता है उसे बचत कहते हैं।

→ निवेश-पूंजी स्टॉक में वृद्धि ही निवेश कहलाता है।

→ पूंजी निर्माण-आय का वह भाग जिससे अधिक उत्पादन सम्भव होता है पूंजी निर्माण कहलाता है।

→ छुपी हुई बेरोज़गारी-आवश्यकता से अधिक श्रमिक जब किसी कार्य में लगे होते हैं तो इस आधिक्य को छुपी हुई बेरोज़गारी कहते हैं।

→ पूर्ण रोज़गार–पूर्ण रोजगार से अभिप्राय ऐसी अवस्था से है जिसमें वे सारे लोग जो मज़दूरी की वर्तमान दर पर काम करने के लिए तैयार हैं, बिना किसी कठिनाई के काम प्राप्त कर लेते हैं।

→ मुद्रा-स्फीति-सामान्य कीमत स्तर में लगातार तथा अत्यन्त वृद्धि को ही मुद्रा-स्फीति कहते हैं।

→ मुद्रा पूर्ति-सामान्यतः देश के लोगों के पास नकदी व बैंक जमाओं को ही मुद्रा पूर्ति कहते हैं।

→ सरकारी बजट-सरकार की अनुमानित आय और व्यय का वार्षिक विवरण ही सरकारी बजट होता है।

→ घाटे की वित्त व्यवस्था-जब सरकार बजट में घाटा दर्शाने के लिए जानबूझ कर सार्वजनिक आय और व्यय में अंतर दर्शाती है और इस घाटे को उन विधियों द्वारा पूरी करती है जिससे मुद्रा पूर्ति में वृद्धि हो तो उसे घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं।

→ सार्वजनिक वित्त-सार्वजनिक वित्त से अभिप्राय सरकार के वित्तीय साधनों अर्थात् आय और व्यय से है।

→ प्रत्यक्ष कर-प्रत्यक्ष कर वह होता है जिसका भुगतान उस व्यक्ति द्वारा किया जाता है जिस पर इसे लगाया जाता है। जैसे आय कर।

→ अप्रत्यक्ष कर-अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है जिसका भुगतान किसी और व्यक्ति द्वारा होता है तथा इसे लगाया किसी और व्यक्ति पर होता है। जैसे बिक्री कर।

→ सार्वजनिक ऋण-सार्वजनिक ऋण सरकार द्वारा व्यापारिक बैंकों, व्यापारिक संस्थाओं तथा व्यक्तियों से लिया गया ऋण होता है।

→ निर्धनता रेखा-निर्धनता रेखा से आशय उस राशि से है जो एक व्यक्ति के लिए प्रतिमाह न्यूनतम उपभोग करने के लिए आवश्यक है।

→ वृद्धि दर-वृद्धि दर वह प्रतिशत दर है जिससे यह पता चलता है कि एक वर्ष की तुलना में दूसरे वर्ष में राष्ट्रीय आय या प्रति व्यक्ति आय में कितने प्रतिशत परिवर्तन हुआ है।

→ विदेशी सहायता-विदेशी सहायता से अभिप्राय विदेशी पूंजी, विदेशी ऋण तथा विदेशी अनुदान से है।

→ भुगतान संतुलन-भुगतान संतुलन किसी देश के दूसरे देशों के साथ एक निश्चित अवधि में किए जाने वाले सभी प्रकार के आर्थिक सौदों का व्यवस्थित लेखा होता है।

→ मौद्रिक नीति-मौद्रिक नीति वह नीति होती है जिसके द्वारा किसी देश की सरकार अथवा केन्द्रीय बैंक निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए मुद्रा पूर्ति, मुद्रा की लागत या ब्याज की दर तथा मुद्रा की उपलब्धता को नियन्त्रित करती है।

→ राजकोषीय नीति-सरकार की आय और व्यय सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं।

ਮੁੱਢਲੀਆਂ ਧਾਰਨਾਵਾਂ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਆਮਦਨ-ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਆਮਦਨ ਇਕ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਆਮ ਨਿਵਾਸੀਆਂ ਦੀ ਇਕ ਸਾਲ ਵਿਚ ਉਤਪਾਦਕ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦੇ ਬਦਲੇ ਅਰਜਿਤ ਸਾਧਨ ਆਮਦਨ ਹੈ।

→ ਪ੍ਰਤੀ ਵਿਅਕਤੀ ਆਮਦਨ-ਪ੍ਰਤੀ ਵਿਅਕਤੀ ਆਮਦਨ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦੁਆਰਾ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਅਰਜਿਤ ਔਸਤ ਆਮਦਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਉਪਭੋਗ-ਇਕ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਇਕ ਸਾਲ ਵਿਚ ਉਪਭੋਗ ‘ਤੇ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਖ਼ਰਚ ਉਪਭੋਗ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਬੱਚਤ-ਆਮਦਨ ਵਿਚੋਂ ਉਪਭੋਗ ਘਟਾਉਣ ‘ਤੇ ਜੋ ਬਾਕੀ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਬੱਚਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਿਵੇਸ਼-ਪੂੰਜੀ ਸਟਾਕ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੀ ਨਿਵੇਸ਼ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ।

→ ਪੁੰਜੀ ਨਿਰਮਾਣ-ਆਮਦਨ ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜਿਸ ਨਾਲ ਵਧੇਰੇ ਉਤਪਾਦਨ ਸੰਭਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਪੂੰਜੀ ਨਿਰਮਾਣ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਛਿਪੀ ਹੋਈ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ-ਲੋੜ ਤੋਂ ਵੱਧ ਮਜ਼ਦੂਰ ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਲੱਗੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਇਸ ਵਾਧੁ ਨੂੰ ਛਿਪੀ ਹੋਈ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੂਰਨ ਰੁਜ਼ਗਾਰ-ਪੂਰਨ ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਤੋਂ ਭਾਵ ਅਜਿਹੀ ਅਵਸਥਾ ਤੋਂ ਹੈ। ਜਿਸ ਵਿਚ ਉਹ ਸਾਰੇ ਲੋਕ ਜੋ ਮਜ਼ਦੂਰੀ ਦੀ ਮੌਜੂਦਾ ਦਰ ‘ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਤਿਆਰ ਹਨ, ਬਿਨਾਂ ਕਿਸੇ ਕਠਿਨਾਈ ਦੇ ਕੰਮ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਮੁਦਰਾ ਸਫ਼ੀਤੀ-ਸਾਧਾਰਨ ਕੀਮਤ ਪੱਧਰ ਵਿਚ ਲਗਾਤਾਰ ਅਤੇ ਅਤਿਅੰਤ ਵਾਧੇ ਨੂੰ ਹੀ ਮੁਦਰਾਸਫ਼ੀਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਮੁਦਰਾ ਪੂਰਤੀ-ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਕੋਲ ਨਕਦੀ ਅਤੇ ਬੈਂਕ ਜਮਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਮੁਦਰਾ ਪੂਰਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਰਕਾਰੀ ਬਜਟ-ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਅਨੁਮਾਨਤ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਦਾ ਸਾਲਾਨਾ ਵੇਰਵਾ ਹੀ ਸਰਕਾਰੀ ਬਜਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਘਾਟੇ ਦੀ ਵਿੱਤ ਵਿਵਸਥਾ-ਜਦੋਂ ਸਰਕਾਰ ਬਜਟ ਵਿਚ ਘਾਟਾ ਦਰਸਾਉਣ ਲਈ ਜਾਣ-ਬੁੱਝ ਕੇ ਸਰਵਜਨਕ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਵਿਚ ਅੰਤਰ ਦਰਸਾਉਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਘਾਟੇ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਧੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਪੂਰਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਮੁਦਰਾ ਪੁਰਤੀ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਘਾਟੇ ਦੀ ਵਿੱਤ ਵਿਵਸਥਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਰਵਜਨਕ ਵਿੱਤ-ਸਰਵਜਨਕ ਵਿੱਤ ਤੋਂ ਭਾਵ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਵਿੱਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਅਰਥਾਤ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਤੋਂ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਤੱਖ ਕਰ-ਪ੍ਰਤੱਖ ਕਰ ਉਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦਾ ਭੁਗਤਾਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ‘ਤੇ ਇਸਨੂੰ ਲਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ , ਜਿਵੇਂ ਆਮਦਨ ਕਰ ।

→ ਅਪ੍ਰਤੱਖ ਕਰ-ਅਪ੍ਰਤੱਖ ਕਰ ਉਹ ਕਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਭੁਗਤਾਨ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੁਆਰਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ . ਇਸਨੂੰ ਲਗਾਇਆ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਵਿਅਕਤੀ ‘ਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ : ਜਿਵੇਂ ਵਿਕਰੀ ਕਰ ।

→ ਸਰਵਜਨਕ ਕਰਜ਼-ਸਰਵਜਨਕ ਕਰਜ਼ ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਵਪਾਰਕ ਬੈਂਕਾਂ, ਵਪਾਰਕ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਅਤੇ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ‘ ਤੋਂ ਲਿਆ ਗਿਆ ਕਰਜ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਗਰੀਬੀ ਰੇਖਾ-ਗਰੀਬੀ ਰੇਖਾ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਸ ਰਾਸ਼ੀ ਤੋਂ ਹੈ ਜੋ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਹਰ ਮਹੀਨੇ ਘੱਟੋ-ਘੱਟ ਉਪਭੋਗ ਕਰਨ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

→ ਵਾਧਾ ਦਰ-ਵਾਧਾ ਦਰ ਉਹ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਦਰ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਇਹ ਪਤਾ ਚਲਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਸਾਲ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿਚ ਦੂਜੇ ਸਾਲ ਵਿਚ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਆਮਦਨ ਜਾਂ ਪ੍ਰਤੀ ਵਿਅਕਤੀ ਆਮਦਨ ਵਿਚ ਕਿੰਨੇ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਹਾਇਤਾ-ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਸਹਾਇਤਾ ਤੋਂ ਭਾਵ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਪੂੰਜੀ, ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਕਰਜ਼ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਅਨੁਦਾਨ ਤੋਂ ਹੈ ।

→ ਭੁਗਤਾਨ ਸੰਤੁਲਨ-ਭੁਗਤਾਨ ਸੰਤੁਲਨ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਦੂਜੇ ਦੇਸ਼ਾਂ ਨਾਲ ਨਿਸਚਿਤ ਅਵਧੀ ਵਿਚ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਸਭ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਸੌਦਿਆਂ ਦਾ ਵਿਵਸਥਿਤ ਲੇਖਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਮੁਦਰਿਕ ਨੀਤੀ-ਮੁਦਰਿਕ ਨੀਤੀ ਉਹ ਨੀਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਦੁਆਰਾ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਜਾਂ ਕੇਂਦਰੀ ਬੈਂਕ ਨਿਸਚਿਤ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਲਈ ਮੁਦਰਾ ਪੁਰਤੀ, ਮੁਦਰਾ ਦੀ ਲਾਗਤ ਜਾਂ ਵਿਆਜ ਦੀ ਦਰ ਅਤੇ ਮੁਦਰਾ ਦੀ ਉਪਲੱਬਧਤਾ ਨੂੰ ਨਿਯੰਤਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

→ ਰਾਜਕੋਸ਼ੀ ਨੀਤੀ-ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਆਮਦਨ ਅਤੇ ਖ਼ਰਚ ਸੰਬੰਧੀ ਨੀਤੀ ਨੂੰ ਰਾਜਕੋਸ਼ੀ ਨੀਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 3 The Climate

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The Climate PSEB 10th Class SST Notes

→ The climate of India – Tropical Monsoon type.

→ Highest Temperature – Barmer (Rajasthan) 50°C.

→ Lowest Temperature – Kargil (Ladakh) – 45°C.

→ Rainiest Place – Mawsynram – 1140 cms annual rainfall.

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 3 The Climate

→ Indian Ocean – Storehouse of moisture for monsoons.

→ The Himalayas – A climatic divide.

→ Jet Stream – A fast-flowing wind at a high altitude.

→ Monsoon – Derived from the Arabic word ‘Mausim’.

→ Seasons in India – Cold, Hot, Rainy, and Retreating Monsoons.

→ Western Disturbances:

  • Cyclones from the Mediterranean Sea.
  • Give rainfall in N.W. India in winter.

→ Mango Showers – Ike-monsoon winds.

→ Kal Baisakhi – Local thunderstorms in Bengal and Assam.

→ South-West Monsoons:

  • 1st June Date of onset in Kerala.
  • Arabian Sea Branch and Bay of Bengal Branch.

→ Rain Shadow Areas – Deccan Plateau, N.W. Kashmir, Shillong Plateau.

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 3 The Climate

→ North-East Monsoons:

  • Retreating Monsoons (October-November).
  • Give rainfall on the East coast.

→ Monsoons:

  • Uncertain, irregular, variable in place and time.
  • A unifying bond.

जलवायु PSEB 10th Class SST Notes

→ भारत में जलवायु की दशाएं- भारत में जलवायु की विविध दशाएं पाई जाती हैं।

→ ग्रीष्म ऋतु में पश्चिमी मरुस्थल में इतनी गर्मी पड़ती है कि तापमान 550 से० तक पहुंच जाता है।

→ इसके विपरीत शीत ऋतु में लेह के आसपास इतनी अधिक ठण्ड पड़ती है कि तापमान हिमांक से भी 45° सें० नीचे चला जाता है। ऐसा ही अन्तर वर्षण में भी देखने को मिलता है।

→ जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक-हमारी जलवायु को मुख्य रूप से चार कारक प्रभावित करते हैं- स्थिति, उच्चावच, पृष्ठीय पवनें तथा उपरितन वायु धाराएं।

→ देश के उत्तर में ऊंचीऊंची अटूट पर्वत मालाएं हैं तथा दक्षिण में हिन्द महासागर फैला है।

→ इस संगठित भौतिक विन्यास ने देश की जलवायु को मोटे तौर पर समान बना दिया है।

→ पृष्ठीय पवनें तथा जेट वायु धाराएं-पृष्ठीय पवनें भू-पृष्ठ पर चलती हैं। परन्तु जेट वायु धाराएं ऊपरी वायुमण्डल में बहुत तेज़ गति से चलने वाली पवनें होती हैं। ये बहुत ही संकरी पट्टी में चलती हैं। भारत की जलवायु पर इन जलधाराओं का गहरा प्रभाव पड़ता है।

→ मानसून का अर्थ-‘मानसून’ शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के ‘मौसिम’ शब्द से हुई है।

→ इसका शाब्दिक अर्थ है-ऋतु। इस प्रकार मानसून से अभिप्राय एक ऐसी ऋतु से है जिसमें पवनों की दिशा पूरी तरह उलट जाती है।

→ मानसून प्रणाली-मानसून की रचना उत्तरी गोलार्द्ध में प्रशान्त महासागर तथा हिन्द महासागर के दक्षिणी भाग पर वायुदाब की विपरीत स्थिति के कारण होती है।

→ वायुदाब की यह स्थिति बदलती भी रहती है। इसके कारण विभिन्न ऋतुओं में विषुवत् वृत्त के आर-पार पवनों की स्थिति बदल जाती है।

→ इस प्रक्रिया को दक्षिणी दोलन कहते हैं। इसके अतिरिक्त जेट वायुधाराएं भी मानसून के रचनातन्त्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

→ भारत की ऋतुएं-भारत के वार्षिक ऋतु चक्र में चार प्रमुख ऋतुएं होती हैं-शीत ऋतु, ग्रीष्म ऋतु, आगे बढ़ते मानसून की ऋतु तथा पीछे हटते मानसून की ऋतु।

→ शीत ऋतु-लगभग सारे देश में दिसम्बर से फरवरी तक शीत ऋतु होती है। इस ऋतु में देश के ऊपर उत्तर-पूर्वी व्यापारिक पवनें चलती हैं।

→ इस ऋतु में दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर तापमान घटता जाता है। कुछ ऊंचे स्थानों पर पाला पड़ता है। शीत ऋतु में चलने वाली उत्तरी पूर्वी पवनों द्वारा केवल तमिलनाडु राज्य को लाभ पहुंचता है। ये पवनें खाड़ी बंगाल से गुजरने के बाद वहां पर्याप्त वर्षा करती हैं।

→ ग्रीष्म ऋतु-यह ऋतु मार्च से मई तक रहती है। मार्च मास में सबसे अधिक तापमान (लगभग 38° सें०) दक्कन के पठार पर होता है।

→ धीरे-धीरे ऊष्मा की यह पेटी उत्तर की ओर खिसकने लगती है और उत्तरी भाग में तापमान बढ़ता जाता है। मई के अन्त तक एक लम्बा संकरा निम्न वायु दाब क्षेत्र विकसित हो जाता है, जिसे ‘मानसून का निम्न वायुदाब गर्त’ कहते हैं।

→ देश के उत्तर-पश्चिमी भाग में चलने वाली गर्म-शुष्क पवनें (लू), केरल तथा कर्नाटक के तटीय भागों में होने वाली ‘आम्रवृष्टि’ और बंगाल तथा असम की ‘काल बैसाखी’ ग्रीष्म ऋतु की अन्य मुख्य विशेषताएं हैं।

→ आगे बढ़ते मानसून की ऋतु-यह ऋतु जून से सितम्बर तक रहती है।

→ देश में दक्षिण-पश्चिमी मानसून चलती है जो दो शाखाओं में भारत में प्रवेश करती है-अरब सागर की शाखा तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा। ये पवनें देश में पर्याप्त वर्षा करती हैं।

→ उत्तर-पूर्वी भारत में भारी वर्षा होती है, जबकि देश के कुछ उत्तरी-पश्चिमी भाग शुष्क रह जाते हैं। जुलाई तथा अगस्त के महीनों में देश की 75 से 90 प्रतिशत तक वार्षिक वर्षा हो जाती है।

→ गारो तथा खासी की पहाड़ियों की दक्षिणी श्रेणी के शीर्ष पर स्थित मसीनरम में संसार भर में सबसे अधिक वर्षा होती है।

→ दूसरा स्थान यहां से कुछ ही दूरी पर स्थित चेरापूंजी को प्राप्त है।

→ दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट की पवनाभिमुख ढालों पर अरब सागर की मानसून शाखा द्वारा भारी वर्षा होती है।

→ पीछे हटते मानसून की ऋतु-अक्तूबर तथा नवम्बर के महीनों में मानसून पीछे हटने लगता है।

→ क्षीण हो जाने के कारण इसका प्रभाव कम हो जाता है। पृष्ठीय पवनों की दिशा भी उलटने लगती है।

→ आकाश साफ़ हो जाता है और तापमान फिर से बढ़ने लगता है। उच्च तापमान तथा भूमि की आर्द्रता के कारण मौसम कष्टदायक हो जाता है।

→ इसे क्वार की उमस’ कहते हैं। इस ऋतु में दक्षिणी प्रायद्वीप के तटों पर उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात भारी वर्षा करते हैं। इस प्रकार ये बहुत ही विनाशकारी सिद्ध होते हैं।

→ वर्षण का वितरण-भारत में सबसे अधिक वर्षा पश्चिमी तटों तथा उत्तरी पूर्वी भागों में होती (300 सें. मी० से भी अधिक) है।

→ परन्तु पश्चिमी राजस्थान तथा इसके निकटवर्ती पंजाब, हरियाणा तथा गुजरात के क्षेत्रों में 50 सें० मी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है।

→ देश के उच्च भागों (हिमालय क्षेत्र) में हिमपात होता है। वर्षण की यह मात्रा प्रति वर्ष घटती बढ़ती रहती है।

→ मानसून की स्वेच्छाचारिता के कारण कहीं तो भयंकर बाढ़ें आ जाती हैं और कहीं सूखा पड़ जाता है।

ਜਲਵਾਯੂ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਜਲਵਾਯੂ ਦੀਆਂ ਹਾਲਤਾਂ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਪੌਣ-ਪਾਣੀ ਜਾਂ ਜਲਵਾਯੂ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਾਲਤਾਂ ਪਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ | ਗਰਮ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਪੱਛਮੀ ਮਾਰੂਥਲ ਵਿਚ ਇੰਨੀ ਗਰਮੀ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਤਾਪਮਾਨ 550 ਸੈਂਟੀਗੇਡ ਤਕ ਪਹੁੰਚ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਇਸ ਦੇ ਉਲਟ ਸਰਦ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਲੇਹ ਦੇ ਨੇੜੇ ਤੇੜੇ ਇੰਨੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਠੰਢ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਤਾਪਮਾਨ ਹਿਮਾਂਕ ਜਮਾਓ ਬਿੰਦੂ ਤੋਂ ਵੀ 45 ਸੈਂਟੀਗੇਡ ਥੱਲੇ ਚਲਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ | ਅਜਿਹਾ ਹੀ ਅੰਤਰ ਵਰਖਾ ਵਿਚ ਵੀ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਲਵਾਯੂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਕ-ਸਾਡੀ ਜਲਵਾਯੂ ਨੂੰ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਨਾਲ ਚਾਰ ਕਾਰਕ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ-ਸਥਿਤੀ, ਧਰਾਤਲ, ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਪੌਣਾਂ ਅਤੇ ਉਪ ਜੈਟ ਵਾਯੁ ਧਾਰਾਵਾਂ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਤਰ ਵਿਚ ਉੱਚੀਆਂ-ਉੱਚੀਆਂ ਅਟੁੱਟ ਪਰਬਤ ਮਾਲਾਵਾਂ ਹਨ ਅਤੇ ਦੱਖਣ ਵਿਚ ਹਿੰਦ ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਫੈਲਿਆ ਹੈ ।

→ ਇਸ ਸੰਗਠਿਤ ਭੌਤਿਕ ਬਣਤਰ ਨੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਪੌਣ-ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਮੋਟੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇੱਕੋ ਜਿਹਾ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਪੌਣਾਂ ਅਤੇ ਜੈਟ ਵਾਯੂ ਧਾਰਾਵਾਂ-ਪਿੱਛੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪੌਣਾਂ ਧਰਤੀ ਦੇ ਤਲ ‘ਤੇ ਚਲਦੀਆਂ ਹਨ |

→ ਪਰੰਤੁ ਜੈਟ ਵਾਯੁ ਧਾਰਾਵਾਂ ਉੱਪਰਲੇ ਵਾਯੂ ਮੰਡਲ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ ਗਤੀ ਨਾਲ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪੌਣਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਇਹ ਬਹੁਤ ਹੀ ਤੰਗ ਪੱਟੀ ਵਿਚ ਚਲਦੀਆਂ ਹਨ | ਭਾਰਤ ਦੇ ਪੌਣ-ਪਾਣੀ ਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਾਯੂ ਧਾਰਾਵਾਂ ਦਾ ਡੂੰਘਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਮਾਨਸੂਨ ਦਾ ਅਰਥ-‘ਮਾਨਸੂਨ ਸ਼ਬਦ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਅਰਬੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ‘ਮੌਸਮ ਸ਼ਬਦ ਤੋਂ ਹੋਈ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਸ਼ਬਦੀ ਅਰਥ ਹੈ-ਰੁੱਤ ।

→ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਾਨਸੂਨ ਤੋਂ ਭਾਵ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਰੁੱਤ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਪੌਣਾਂ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਲਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਮਾਨਸੂਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ-ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰਚਨਾ ਉੱਤਰੀ ਅੱਧ-ਗੋਲੇ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸ਼ਾਂਤ ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਅਤੇ ਹਿੰਦ ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਦੇ ਦੱਖਣੀ ਭਾਗ ਤੇ ਵਾਯੂ ਦਾਬ ਦੀ ਵਿਪਰੀਤ ਸਥਿਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਵਾਯੂ ਦਾਬ ਦੀ ਇਹ ਸਥਿਤੀ ਬਦਲਦੀ ਵੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਵੱਖਵੱਖ ਰੁੱਤਾਂ ਵਿਚ ਕਰਕ ਰੇਖਾ ਚੱਕਰ ਦੇ ਆਰ-ਪਾਰ ਪੌਣਾਂ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਦਲ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਦੱਖਣੀ ਦੋਲਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਜੈਟ ਵਾਯੂ ਧਾਰਾਵਾਂ ਵੀ ਮਾਨਸੂਨ ਦੇ ਰਚਨਾ ਤੰਤਰ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਰੁੱਤਾਂ-ਭਾਰਤ ਦੇ ਵਾਰਸ਼ਿਕ ਰੁੱਤ ਚੱਕਰ ਵਿਚ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਰੁੱਤਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ-ਸਰਦ ਰੁੱਤ, ਗਰਮ ਰੁੱਤ, ਅੱਗੇ ਵਧਦੇ ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰੁੱਤ ਅਤੇ ਪਿੱਛੇ ਹਟਦੇ ਮਾਨਸੁਨ ਦੀ ਰੁੱਤ ।

→ ਸਰਦ ਰੁੱਤ-ਲਗਪਗ ਸਾਰੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਦਸੰਬਰ ਤੋਂ ਫਰਵਰੀ ਤਕ ਸਰਦ ਰੁੱਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਪਰ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਵਪਾਰਕ ਪੌਣਾਂ ਚਲਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਇਸ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਦੱਖਣ ਤੋਂ ਉੱਤਰ ਵਲ ਜਾਣ ’ਤੇ ਤਾਪਮਾਨ ਘਟਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੁੱਝ ਉੱਚੇ ਥਾਂਵਾਂ ’ਤੇ ਪਾਲਾ ਵੀ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਰਦ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਚਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਪੌਣਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਿਰਫ ਤਾਮਿਲਨਾਡੂ ਰਾਜ ਨੂੰ ਲਾਭ ਪੁੱਜਦਾ ਹੈ ।

→ ਇਹ ਪੌਣਾਂ ਖਾੜੀ ਬੰਗਾਲ ਤੋਂ ਲੰਘਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉੱਥੇ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਗਰਮ ਰੁੱਤ-ਇਹ ਰੁੱਤ ਮਾਰਚ ਤੋਂ ਮਈ ਤਕ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਮਾਰਚ ਮਹੀਨੇ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤਾਪਮਾਨ ਲਗਪਗ 38° ਸੈਂਟੀਗੇਡ ਦੱਖਣ ਦੇ ਪਠਾਰ ‘ਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਗਰਮੀ ਦੀ ਇਹ ਪੇਟੀ ਉੱਤਰ ਨੂੰ ਖਿਸਕਣ ਲਗਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉੱਤਰੀ ਭਾਗ ਵਿਚ ਤਾਪਮਾਨ ਵਧਦਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਮਾਨਸੂਨ ਦਾ ‘ਨਿਮਨ ਵਾਯੂਬ ਖੇਤਰ’ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਤਰ-ਪੱਛਮੀ ਭਾਗ ਵਿਚ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਗਰਮ ਖ਼ਸ਼ਕ ਪੌਣਾਂ (ਲੁ ਕੇਰਲ ਅਤੇ ਕਰਨਾਟਕ ਦੇ ਤਟੀ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ‘ਮੈਂਗੋ ਸ਼ਾਵਰ ਅਤੇ ਬੰਗਾਲ ਤੇ ਅਸਾਮ ਦੀ ‘ਕਾਲ ਵੈਸਾਖੀ ਗਰਮ ਰੁੱਤ ਦੀਆਂ ਹੋਰ ਮੁੱਖ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਹਨ ।

→ ਅੱਗੇ ਵਧਦੇ ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰੁੱਤ-ਇਹ ਰੁੱਤ ਜੂਨ ਤੋਂ ਸਤੰਬਰ ਤਕ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਦੱਖਣ-ਪੱਛਮੀ ਮਾਨਸੁਨ ਚਲਦੀ ਹੈ ਜੋ ਦੋ ਸ਼ਾਖ਼ਾਵਾਂ ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ-ਅਰਬ ਸਾਗਰ ਦੀ ਸ਼ਾਖਾ ਅਤੇ ਬੰਗਾਲ ਦੀ ਖਾੜੀ ਦੀ ਸ਼ਾਖਾ ।

→ ਇਹ ਪੌਣਾਂ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਵਰਖਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ । ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਦਕਿ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕੁਝ ਉੱਤਰ ਪੱਛਮੀ ਭਾਗ ਖ਼ੁਸ਼ਕ ਰਹਿ ਜਾਂਦੇ ਹਨ। ਜੁਲਾਈ ਅਤੇ ਅਗਸਤ ਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਦੇਸ਼ ਦੀ 75 ਤੋਂ 90 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਤਕ ਵਰਖਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਗਾਰੋ ਅਤੇ ਖਾਸੀ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਦੀ ਦੱਖਣੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਸਿਖਰ ‘ਤੇ ਸਥਿਤ ਮਸੀਨਰਮ ਵਿਚ ਸੰਸਾਰ ਭਰ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਦੂਜਾ ਸਥਾਨ ਕੁਝ ਹੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਸਥਿਤ ਚਿਰਾਪੂੰਜੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ । ਦੱਖਣੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਪੱਛਮੀ ਘਾਟ ਦੀ ਪਵਨਾਭਿਮੁਖ ਢਾਲਾਂ ‘ਤੇ ਅਰਬ ਸਾਗਰ ਦੀ ਮਾਨਸੂਨ ਸ਼ਾਖਾ ਦੁਆਰਾ ਭਾਰੀ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਪਿੱਛੇ ਹਟਦੇ ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਰੁੱਤ-ਅਕਤੂਬਰ ਅਤੇ ਨਵੰਬਰ ਦੇ ਮਹੀਨਿਆਂ ਵਿਚ ਮਾਨਸੂਨ ਪਿੱਛੇ ਹਟਣ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਕਮਜ਼ੋਰ ਹੋ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਘੱਟ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪੌਣਾਂ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਉਲਟਣ ਲਗਦੀ ਹੈ । ਆਕਾਸ਼ ਸਾਫ਼ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਤਾਪਮਾਨ ਫਿਰ ਤੋਂ ਵਧਣ ਲਗਦਾ ਹੈ । ਉੱਚ ਤਾਪਮਾਨ ਅਤੇ ਭੂਮੀ ਦੀ ਸਿਲ੍ਹ ਕਾਰਨ ਮੌਸਮ ਕਸ਼ਟਦਾਇਕ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਇਸ ਨੂੰ ‘ਕਵਾਰ ਦੀ ਉਮਸ਼’ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਦੱਖਣੀ ਪ੍ਰਾਇਦੀਪ ਦੇ ਤਟਾਂ ‘ਤੇ ਊਸ਼ਣ ਕਟੀਬੰਧੀ ਚੱਕਰਵਾਤ ਬਹੁਤ ਵਰਖਾ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਬਹੁਤ ਵਿਨਾਸ਼ਕਾਰੀ ਸਿੱਧ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਰਖਾ ਦੀ ਵੰਡ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਰਖਾ ਪੱਛਮੀ ਤਟਾਂ ਅਤੇ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ (300 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਤੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ) ਹੈ |

→ ਪਰ ਪੱਛਮੀ ਰਾਜਸਥਾਨ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨੇੜੇ ਪੰਜਾਬ, ਹਰਿਆਣਾ ਤੇ ਗੁਜਰਾਤ ਦੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ 50 ਸੈਂਟੀਮੀਟਰ ਤੋਂ ਵੀ ਘੱਟ ਵਰਖਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਉੱਚੇ ਭਾਗਾਂ (ਹਿਮਾਲਾ ਖੇਤਰ) ਵਿਚ ਬਰਫ਼ ਪੈਂਦੀ ਹੈ ।ਵਰਖਾ ਦੀ ਇਹ ਮਾਤਰਾ ਹਰ ਸਾਲ ਘਟਦੀ ਵਧਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਮਾਨਸੂਨ ਦੀ ਅਸਥਿਰਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕਿਤੇ ਤਾਂ ਭਿਆਨਕ ਹੜ੍ਹ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕਿਤੇ ਸੋਕਾ ਪੈ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 2 Land

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Land PSEB 10th Class SST Notes

→ Physiographic Divisions:

  • The Himalayas.
  • Northern plains.
  • The peninsular plateau.

→ Mt. Everest (Sagarmatha) – The highest peak in the world (Sagarmatha) 8848 metres.

→ Kanchenjunga – The highest peak of the Himalayas in India (8598 metres).

→ Anai Mudi:

  • The highest peak in peninsular India.
  • 2698 metres high.

→ The Himalayas – Three parallel ranges-the greater Himalayas, the lesser Himalayas, and Shiwaliks.

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 2 Land

→ Pamir Knot – The roof of the world.

→ Galciers of the Himalays – Baltro and Siachen.

→ K2 Godwin Austin – The second highest peak of the world.

→ Passes in the Himalayas – Zoji la, Shipki la, Nathu la, Bomdila.

→ Purvanchal – Patkoi, Naga, Lushai Hills.

→ Sunderbans – Ganga Brahmaputra Delta.

→ Rift valleys – Narmada and Tapi.

→ Guru Shikhar – Highest peak in Aravallies (1722 metres).

→ Central Highlands – Aravavllies, Vindhyas, and Satpuras.

→ Sahyadri – Western Ghats.

→ Deccan trap – N.W. plateau made up of lava.

→ Passes in Western Ghats – Thai ghat, Bhor ghat, Pal ghat.

→ Coastal plain (West) – Konkan, Kanara, Malabar coast.

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 2 Land

→ Coastal plain (East) – Coromandel, Utkal coast.

→ Coral islands – Lakshadweep islands.

→ Lagoons (Lakes) – Chilka and Pulicat.

धरातल PSEB 10th Class SST Notes

→ भारत का धरातल-भारत का धरातल एक समान नहीं है।

→ इसके उत्तर में हिमालय पर्वत तथा उसकी नदियों द्वारा बने विस्तृत मैदान हैं।

→ देश का दक्षिणी भाग एक पठारीय प्लेट है जो प्राचीन चट्टानों से बना है।

→ भारत के भौतिक भाग-धरातल के अनुसार भारत को पाँच भागों में बांटा जा सकता है-

  • हिमालय पर्वतीय क्षेत्र
  • उत्तरी विशाल मैदान
  • प्रायद्वीपीय पठार का क्षेत्र
  • तटीय मैदान
  • भारतीय द्वीप।

→ हिमालय पर्वतीय क्षेत्र- बर्फ से ढका रहने वाला यह पर्वतीय क्षेत्र एक विशाल दीवार की तरह पूर्व में अरुणाचल प्रदेश से लेकर पश्चिम में कश्मीर तक फैला हुआ है। ये संसार के सबसे ऊंचे पर्वत हैं। इनकी लम्बाई 2400 किलोमीटर तथा चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर तक है।

→ उत्तरी विशाल मैदान-ये मैदान हिमालय पर्वत और दक्षिणी पठार के बीच फैले हुए हैं।

→ ये मैदान नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से बने हैं और ये अत्यंत ही उपजाऊ हैं।

→ प्रायद्वीपीय पठार- यह पठारी भाग भारत का सबसे प्राचीन भाग है जो पहाड़ियों से घिरा है। यह आग्नेय चट्टानों से बना है।

→ तटीय मैदान-ये मैदान पूर्वी और पश्चिमी घाट के साथ-साथ फैले हुए हैं। पूर्वी तट के मैदान पश्चिमी तट के मैदानों से चौड़े हैं।

→ भारतीय द्वीप-बंगाल की खाड़ी तथा अरब सागर में अनेक भारतीय द्वीप हैं। ये समूहों के रूप में मिलते हैं।

→ इनमें से लक्षद्वीप समूह तथा अण्डमान-निकोबार द्वीप समूह प्रमुख हैं।

→ जल प्रवाह अथवा नदियां-जल प्रवाह का अर्थ है-नदियां। भारत की नदियों को दो भागों में बांटा जा सकता है-उत्तरी भारत की नदियां और दक्षिण भारत की नदियां।

→ उत्तरी भारत की नदियां सारा साल बहती हैं, परन्तु दक्षिणी भारत की नदियां केवल वर्षा ऋतु में ही बहती हैं।

ਧਰਾਤਲ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਭਾਰਤ ਦਾ ਧਰਾਤਲ-ਭਾਰਤ ਦਾ ਧਰਾਤਲ ਇਕ ਸਮਾਨ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

→ ਇਸਦੇ ਉੱਤਰ ਵਿਚ ਹਿਮਾਲਿਆ ਪਰਬਤ ਅਤੇ ਉਸਦੀ ਨਦੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਬਣੇ ਵਿਸਤਰਿਤ ਮੈਦਾਨ ਹਨ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਦੱਖਣੀ ਭਾਗ ਇਕ ਪਠਾਰੀ ਪਲੇਟ ਹੈ ਜੋ ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਚਟਾਨਾਂ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਭਾਰਤ ਦੇ ਭੌਤਿਕ ਭਾਗ-ਧਰਾਤਲ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਪੰਜ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ : ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-

  • ਹਿਮਾਲਿਆ ਪਰਬਤੀ ਖੇਤਰ
  • ਉੱਤਰੀ ਵਿਸ਼ਾਲ ਮੈਦਾਨ
  • ਪ੍ਰਾਇਦੀਪੀ ਪਠਾਰ ਦਾ ਖੇਤਰ
  • ਤਟੀ ਮੈਦਾਨ
  • ਭਾਰਤੀ ਦੀਪ ।

→ ਹਿਮਾਲਾ ਪਰਬਤੀ ਖੇਤਰ-ਬਰਫ਼ ਨਾਲ ਢੱਕਿਆ ਰਹਿਣ ਵਾਲਾ ਇਹ ਪਰਬਤੀ ਖੇਤਰ ਇਕ ਵੱਡੀ ਦੀਵਾਰ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੂਰਬ ਵਿਚ ਅਰੁਣਾਚਲ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੱਛਮ ਵਿਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤਕ ਫੈਲਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਹਿਮਾਲਿਆ ਪਰਬਤ-ਇਹ ਪਰਬਤ ਭਾਰਤ ਦੇ ਉੱਤਰ ਵਿਚ ਕਸ਼ਮੀਰ ਤੋਂ ਅਰੁਣਾਚਲ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਤਕ ਫੈਲੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਇਹ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਚੇ ਪਰਬਤ ਹਨ ।

→ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਲੰਬਾਈ 2400 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਅਤੇ ਚੌੜਾਈ 240 ਤੋਂ 320 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਤਕ ਹੈ ।

→ ਉੱਤਰੀ ਵਿਸ਼ਾਲ ਮੈਦਾਨ-ਇਹ ਮੈਦਾਨ ਹਿਮਾਲਿਆ ਪਰਬਤ ਅਤੇ ਦੱਖਣੀ ਪਠਾਰ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਫੈਲੇ ਹੋਏ ਹਨ ।

→ ਇਹ ਮੈਦਾਨ ਨਦੀਆਂ ਵਲੋਂ ਲਿਆਂਦੀ ਗਈ ਮਿੱਟੀ ਨਾਲ ਬਣੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹ ਬਹੁਤ ਹੀ ਉਪਜਾਊ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਾਇਦੀਪੀ ਪਠਾਰ-ਇਹ ਪਠਾਰੀ ਭਾਗ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਪੁਰਾਣਾ ਭਾਗ ਹੈ, ਜਿਹੜਾ ਪਹਾੜੀਆਂ ਨਾਲ ਘਿਰਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਇਹ ਗੌਡਵਾਨਾ ਲੈਂਡ ਵਾਲੀਆਂ ਸਖ਼ਤ ਤੇ ਰਵੇਦਾਰ ਚੱਟਾਨਾਂ ਨਾਲ ਬਣਿਆ ਹੈ ।

→ ਤਟ ਦੇ ਮੈਦਾਨ-ਇਹ ਮੈਦਾਨ ਪੂਰਬੀ ਅਤੇ ਪੱਛਮੀ ਘਾਟ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਫੈਲੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਪੂਰਬੀ ਤਟ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਪੱਛਮੀ ਤਟ ਦੇ ਮੈਦਾਨਾਂ ਨਾਲੋਂ ਚੌੜੇ ਸਨ ।

→ ਭਾਰਤੀ ਦੀਪ-ਬੰਗਾਲ ਦੀ ਖਾੜੀ ਅਤੇ ਅਰਬ ਸਾਗਰ ਵਿਚ ਅਨੇਕਾਂ ਭਾਰਤੀ ਦੀਪ ਸਨ । ਇਹ ਸਮੂਹਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।

→ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਲਕਸ਼ਦੀਪ ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਅੰਡੇਮਾਨ ਨਿਕੋਬਾਰ ਦੀਪ ਸਮੂਹ ਮੁੱਖ ਹਨ ।

→ ਜਲ ਪ੍ਰਵਾਹ ਜਾਂ ਨਦੀਆਂ-ਜਲ ਪ੍ਰਵਾਹ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ-ਨਦੀਆਂ । ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਨੂੰ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-ਉੱਤਰੀ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਅਤੇ ਦੱਖਣੀ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ।

→ ਉੱਤਰੀ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਸਾਰਾ ਸਾਲ ਵਗਦੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਦੱਖਣੀ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਨਦੀਆਂ ਸਿਰਫ਼ ਵਰਖਾ ਰੁੱਤ ਵਿਚ ਹੀ ਵਗਦੀਆਂ ਹਨ ।

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 7 Population

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Population PSEB 10th Class SST Notes

→ Manpower – A human resource.

→ Total Population of India:

  • 126 crores
  • The second-largest populated country in the world.

→ The average density of the population (2011) – 382 persons per sq. km.

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 7 Population

→ The State with the highest density of population – Bihar (1102 persons per km2)

→ The State with the lowest density of the population – Arunachal Pradesh (17 persons per km2)

→ The union territory with the highest density of population. – Delhi. (11297 persons per sq. km.)

→ The state has the largest population – U.P. (199581477 persons).

→ Rate of growth of population during 2001-2010 – 17.7%.

→ The State with the highest rate of growth of population – Meghalaya (27.8%).

→ The State with the lowest rate of growth of population – Kerala (4.9%).

→ Percentage of the urban population in India – 31.2%.

→ Total urban population – 37.7 crores.

→ The state with the highest % of urban population – Goa (49.77%)

→ Number of million towns (2011) – 53

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 7 Population

→ The total population in million towns – 1500 lakh persons.

→ Average sex ratio in India (2011) – 940 females per 1000 males.

→ Highest sex ratio in India – Kerala (1084 females per 1000 males)

जनसंख्या PSEB 10th Class SST Notes

→ मानव संसाधन-मनुष्य अपने पारितन्त्र का मात्र एक अंग ही नहीं रह गया, अब वह अपने लाभ के लिए पर्यावरण में परिवर्तन भी कर सकता है।

→ अब उसकी शक्ति उसकी गुणवत्ता में समझी जाती है। राष्ट्र को ऊंचा उठाने के लिए हमें अपने मानवीय संसाधनों को विकसित, शिक्षित एवं प्रशिक्षित करना अनिवार्य है। तभी प्राकृतिक संसाधनों का विकास सम्भव हो सकेगा।

→ 2011 की जनगणना-2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 121 करोड़ है। यह संसार की कुल जनसंख्या का 17.2% भाग है।

→ देश की अधिकतर जनसंख्या मैदानी भागों में निवास करती है। देश में जनसंख्या का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।

→ ग्रामीण तथा शहरी विभाजन-2011 की जनगणना के अनुसार भारत में शहरी जनसंख्या 29 प्रतिशत है। शेष 71% लोग गांवों में रहते हैं।

→ व्यावसायिक संरचना-हमारी जनसंख्या का 2/3 भाग आज भी कृषि पर आश्रित है।

→ भारत की अर्जक जनसंख्या का केवल 10% भाग ही उद्योगों में लगा हुआ है। शेष एक चौथाई भाग तृतीयक अर्थात् सेवाओं में लगा हुआ है।

→ स्त्री-पुरुष अनुपात-स्त्री-पुरुष के सांख्यिकी अनुपात को स्त्री-पुरुष अनुपात कहते हैं। इसे प्रति हज़ार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है।

→ आयु संरचना-जनसंख्या को सामान्यतः तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • 15 वर्ष से कम आयु-वर्ग
  • 15 से 65 वर्ष का आयु वर्ग
  • 65 वर्ष से अधिक का आयु वर्ग।

→ इस विभाजन को जनसंख्या का पिरामिड कहा जाता है।

→ अर्जक तथा आश्रित जनसंख्या-भारत में जनसंख्या का 41.6% भाग आश्रित है।

→ शेष 58.4% अर्जक जनसंख्या को आश्रित जनसंख्या का निर्वाह करना पड़ता है।

→ बढ़ती जनसंख्या-जनसंख्या की वृद्धि दर जन्म-दर तथा मृत्यु-दर के अन्तर पर निर्भर करती है।

→ भारत की मृत्यु दर तो काफ़ी नीचे आ गई है परन्तु जन्म-दर बहुत धीमे से घटी है।

→ मृत्यु-दर के घटने का मुख्य कारण स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार रहा है।

→ साक्षरता-स्वतन्त्रता के समय हमारे देश में केवल 14% लोग ही साक्षर थे।

→ 2011 में यह प्रतिशत बढ़कर 74.01% हो गया।

ਜਨਸੰਖਿਆ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਮਨੁੱਖੀ ਸਾਧਨ-ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਇਕ ਮਾਤਰ ਅੰਗ ਹੀ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਗਿਆ, ਹੁਣ ਉਹ ਆਪਣੇ ਲਾਭ ਦੇ ਲਈ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਤਬਦੀਲੀ ਵੀ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਹੁਣ ਉਸ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਉਸ ਦੀ ਗੁਣਵੱਤਾ ਵਿਚ ਸਮਝੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਰਾਸ਼ਟਰ ਨੂੰ ਉੱਚਾ ਉਠਾਉਣ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਆਪਣੇ ਮਨੁੱਖੀ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ, ਸਿੱਖਿਅਤ ਅਤੇ ਸਿਖਲਾਈ ਦੇਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਤਾਂ ਹੀ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਸੰਭਵ ਹੋ ਸਕੇਗਾ ।

→ 2011 ਦੀ ਜਨਗਣਨਾ-2011 ਦੀ ਜਨਗਣਨਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਦੀ ਜਨਸੰਖਿਆ 121 ਕਰੋੜ ਸੀ । ਇਹ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਕੁੱਲ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਲਗਪਗ 17.2% ਭਾਗ ਹੈ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਮੈਦਾਨੀ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਵਸਦੀ ਹੈ । ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਘਣਤਾ 312 ਵਿਅਕਤੀ ਪ੍ਰਤੀ ਵਰਗ ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਸੀ ।

→ ਪੇਂਡੂ ਤੇ ਸ਼ਹਿਰੀ ਵੰਡ-2011 ਦੀ ਜਨਗਣਨਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸ਼ਹਿਰੀ ਜਨਸੰਖਿਆ 29 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਹੈ ।

→ ਬਹੁਤੇ ਲੋਕ ਇਕ ਲੱਖ ਜਾਂ ਉਸ ਤੋਂ ਵੱਧ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਾਲੇ ਨਗਰਾਂ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਸਨ | ਅਜਿਹੇ ਨਗਰ 302 ਹਨ ।

→ ਪੇਸ਼ਾਵਰ ਬਣਤਰ-ਸਾਡੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ 23 ਭਾਗ ਅੱਜ ਵੀ ਖੇਤੀ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਦੀ ਕਮਾਉ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਕੇਵਲ 10% ਭਾਗ ਹੀ ਉਦਯੋਗਾਂ ਵਿਚ ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਬਾਕੀ ਇਕ-ਚੌਥਾਈ ਭਾਗ ਤੀਸਰੇ ਕਿੱਤਿਆਂ ਜਾਂ ਸੇਵਾਵਾਂ ਵਿਚ ਲੱਗਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਔਰਤ-ਮਰਦ ਅਨੁਪਾਤ-ਔਰਤ-ਮਰਦ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਅਨੁਪਾਤ ਨੂੰ ਔਰਤ-ਮਰਦ ਅਨੁਪਾਤ ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਇਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਤੀ ਹਜ਼ਾਰ ਮਰਦਾਂ ਪਿੱਛੇ ਔਰਤਾਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਉਮਰ-ਬਣਤਰ-ਜਨਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਬਰਾਬਰ ਤਿੰਨ ਵਰਗਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ-

  • 15 ਸਾਲ ਤੋਂ ਘੱਟ ਉਮਰ-ਵਰਗ
  • 15 ਤੋਂ 65 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਰਗ ਅਤੇ
  • 65 ਸਾਲ ਤੋਂ ਵੱਧ ਦਾ ਉਮਰ-ਵਰਗ।

→ ਇਸ ਵੰਡ ਨੂੰ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਉਮਰ-ਢਾਂਚਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਕਮਾਉ ਅਤੇ ਨਿਰਭਰ ਜਨਸੰਖਿਆ-ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ 41.6% ਭਾਗ ਨਿਰਭਰ ਹੈ ਅਤੇ 58.4% ਕਮਾਉ ਜਨਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਨਿਰਭਰ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਨਿਰਬਾਹ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਧਦੀ ਆਬਾਦੀ-ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਵਾਧਾ-ਦਰ, ਜਨਮ-ਦਰ ਅਤੇ ਮੌਤ-ਦਰ ਦੇ ਅੰਤਰ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਦੀ ਮੌਤ-ਦਰ ਤਾਂ ਕਾਫ਼ੀ ਹੇਠਾਂ ਆ ਗਈ ਹੈ ।

→ ਪਰੰਤੂ ਜਨਮ-ਦਰ ਬਹੁਤ ਹੌਲੀ ਦਰ ਨਾਲ ਘਟੀ ਹੈ । ਮੌਤ-ਦਰ ਦੇ ਘਟਣ ਦਾ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਸਿਹਤ ਸੇਵਾਵਾਂ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

→ ਸਾਖ਼ਰਤਾ-ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਕੇਵਲ 14% ਲੋਕ ਹੀ ਪੜੇ-ਲਿਖੇ ਸਨ ।

→ 2011 ਵਿਚ ਇਹ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਵੱਧ ਕੇ 74.01% ਹੋ ਗਿਆ ।

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 4 Industrial Development in India

This PSEB 10th Class Social Science Notes Economics Chapter 4 Industrial Development in India will help you in revision during exams.

Industrial Development in India PSEB 10th Class SST Notes

→ Industrial Development: Enhancement of the efficiency of existing industries, increase in production capacity, and establishment of new industries is known as industrial development.

→ Need for Rapid Industrialisation: Rapid industrialization is needed for a balanced economy, increase in employment, increase in national income, lowering the pressure of population on land, for national defence, self-dependence, and for the production of socially useful goods.

→ Present Industrial Structure in India: India’s present industrial structure includes Public Sector, Private Sector, and Joint Sector, Non-Factory Manufacturing units such as Cottage and Small industries, and Factory Manufacturing Units such as FERA companies and MRTP companies.

PSEB 10th Class SST Notes Economics Chapter 4 Industrial Development in India

→ Public Sector: Public Sector undertakings are those which are owned by the government in the welfare of the society.

→ Private Sector: Private Sector undertakings are owned by private persons for-profit motive.

→ Joint Sector: Joint Sector undertakings are jointly owned by the government and private sector.

→ Cottage Industries: These industries are completely or partially run by the members of a family either as a whole-time business or as a part-time business.

→ Small Scale Industries: Small Scale industries are those which have an investment of ₹ 3 crores in fixed capital.

→ Large Scale Industries: Large scale industries are those industries where the amount of fixed capital investment is big.

भारत में कृषि विकास PSEB 10th Class SST Notes

→ तीव्र औद्योगिकीकरण के कारण-संतुलित अर्थव्यवस्था की स्थापना, रोज़गार में वृद्धि, राष्ट्रीय आय में वृद्धि, भूमि पर जनसंख्या का कम दबाव, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आत्म स्फूर्ति तथा सामाजिक लाभदायक वस्तुओं के उत्पादन हेतु तीव्र औद्योगिकीकरण की आवश्यकता है।

→ वर्तमान औद्योगिक ढांचा-वर्तमान औद्योगिक ढांचे में सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र व संयुक्त क्षेत्र आते हैं। इसके अतिरिक्त गैर-औद्योगिक विनिर्माण इकाइयां तथा औद्योगिक विनिर्माण इकाइयां शामिल होती हैं।

→ सार्वजनिक क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र.वह क्षेत्र है जिस पर सरकार का स्वामित्व होता है तथा सार्वजनिक कल्याण जिसका उद्देश्य होता है।

→ निजी क्षेत्र-निजी क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जिस पर निजी लोगों का स्वामित्व होता है तथा जिसका प्रमुख उद्देश्य लाभ कमाना होता है।

→ संयुक्त क्षेत्र-संयुक्त क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जिस पर सरकार तथा निजी लोगों का स्वामित्व होता है।

→ गैर-औद्योगिक विनिर्माण इकाइयां-इसमें कुटीर तथा लघु उद्योग शामिल होते हैं।

→ औद्योगिक विनिर्माण इकाइयां-इसमें FERA कम्पनीज़ तथा MRTP कम्पनीज़ आती हैं।

→ FERA कम्पनीज़-ये कम्पनियां बड़े पैमाने पर उत्पादन करती हैं तथा विदेशी विनिमय का अधिक मात्रा में प्रयोग करती हैं।

→ MRTP कम्पनीज़-ये कम्पनियां एकाधिकार व्यापार प्रतिबंधात्मक व्यवहार नियम (MRTP Act) के अन्तर्गत कार्य करती हैं तथा इनका उत्पादन बड़े पैमाने पर होता है।

→ कुटीर उद्योग-कुटीर उद्योग वह उद्योग होता है जो एक परिवार के सदस्यों द्वारा एक ही छत के नीचे एक पूर्णकालीन या अंशकालीन व्यवसाय के रूप में चलाया जाता है।

→ लघु उद्योग-लघु उद्योग वे उद्योग होते हैं जिनमें 3 करोड़ तक बंधी पूंजी का निवेश हुआ हो।

→ लाइसेंस-लाइसेंस एक लिखित अनुमति है जो सरकार द्वारा किसी उद्यम को किसी विशेष वस्तु का उत्पादन करने के लिये दिया जाता है।

ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਉਦਯੋਗਿਕ ਵਿਕਾਸ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਤੇਜ਼, ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਦੇ ਕਾਰਨ-ਸੰਤੁਲਿਤ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ, ਰੁਜ਼ਗਾਰ ਵਿਚ ਵਾਧਾ, ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਆਮਦਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ, ਭੂਮੀ ਉੱਤੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਘੱਟ ਦਬਾਅ, ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਲਈ, ਆਤਮ-ਸਫੁਰਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਲਾਭਦਾਇਕ ਵਸਤਾਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਲਈ ਤੇਜ਼ ਉਦਯੋਗੀਕਰਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ।

→ ਮੌਜੂਦਾ ਉਦਯੋਗਿਕ ਢਾਂਚਾ-ਮੌਜੂਦਾ ਉਦਯੋਗਿਕ ਢਾਂਚੇ ਵਿਚ ਸਰਵਜਨਕ ਖੇਤਰ, ਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ ਅਤੇ ਸਾਂਝੇ ਖੇਤਰ ਆਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਗ਼ੈਰ-ਉਦਯੋਗਿਕ ਵਿਨਿਰਮਾਣ ਇਕਾਈਆਂ ਅਤੇ ਉਦਯੋਗਿਕ ਵਿਨਿਰਮਾਣ ਇਕਾਈਆਂ ਸ਼ਾਮਲ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਸਰਵਜਨਕ ਖੇਤਰ-ਸਰਵਜਨਕ ਖੇਤਰ ਉਹ ਖੇਤਰ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਸਰਕਾਰੇ ਮਾਲਿਕ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਜਿਸਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਲਾਭ ਕਮਾਉਣਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ-ਨਿੱਜੀ ਖੇਤਰ ਉਹ ਖੇਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੇ ਮਾਲਕ ਨਿੱਜੀ ਲੋਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਜਿਸਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਲਾਭ ਕਮਾਉਣਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੰਯੁਕਤ (ਸਾਂਝਾ) ਖੇਤਰ-ਸੰਯੁਕਤ (ਸਾਂਝਾ) ਖੇਤਰ ਉਹ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਮਾਲਿਕ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਨਿੱਜੀ ਲੋਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਗੈਰ-ਉਦਯੋਗਿਕ ਵਿਨਿਰਮਾਣ ਇਕਾਈਆਂ-ਇਸ ਵਿਚ ਕੁਟੀਰ ਅਤੇ ਲਘੂ ਉਦਯੋਗ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉਦਯੋਗਿਕ ਵਿਨਿਰਮਾਣ ਇਕਾਈਆਂ-ਇਸ ਵਿਚ FERA ਕੰਪਨੀਜ਼ ਅਤੇ MRTP ਕੰਪਨੀਜ਼ ਆਉਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ FERA ਕੰਪਨੀਜ਼-ਇਹ ਕੰਪਨੀਆਂ ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਵਟਾਂਦਰੇ ਦੀ ਵਧੇਰੇ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ MRTP ਕੰਪਨੀਜ਼-ਇਹ ਕੰਪਨੀਆਂ ਏਕਾਧਿਕਾਰ ਵਪਾਰ ਪ੍ਰਬੰਧਾਤਮਕ ਵਿਵਹਾਰ ਨਿਯਮ (MRTP Act) ਦੇ ਤਹਿਤ ਕੰਮ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਕੁਟੀਰ ਉਦਯੋਗ-ਕੁਟੀਰ ਉਦਯੋਗ ਉਹ ਉਦਯੋਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਇਕ ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਇਕ ਹੀ ਛੱਤ ਥੱਲੇ ਇਕ ਪੂਰਨਕਾਲੀਨ ਜਾਂ ਅੰਸ਼ਕਾਲੀਨ ਵਿਵਸਾਇ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਚਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਲਘੂ ਉਦਯੋਗ-ਲਘੂ ਉਦਯੋਗ ਉਹ ਉਦਯੋਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ 3 ਕਰੋੜ ਤਕ ਬੱਧੀ ਪੂੰਜੀ ਦਾ ਨਿਵੇਸ਼ ਹੋਇਆ ਹੋਵੇ ।

→ ਲਾਈਸੈਂਸ-ਲਾਈਸੈਂਸ ਇਕ ਲਿਖਤੀ ਮੰਨਜ਼ੂਰੀ ਹੈ, ਜੋ ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਕਿਸੇ ਉੱਦਮ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਸਤੂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰਨ ਲਈ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 5 Land Utilization and Agriculture

This PSEB 10th Class Social Science Notes Geography Chapter 5 Land Utilization and Agriculture will help you in revision during exams.

Land Utilization and Agriculture PSEB 10th Class SST Notes

→ Land under Agriculture – 46.6% of geographical area or 1530 lakh hectares.

→ Per capita cultivated land – 0.16 hectares.

→ Fallow land – 7.1% or 230 lakh hectares.

→ Distribution – Net sown area to geographical area varies from 3.4% in Arunachal Pradesh to 84.2% in Punjab.

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 5 Land Utilization and Agriculture

→ Landholdings – One-third is small, less than one hectare in size.

→ Types of farming – Subsistence, shifting, plantation, intensive, sedentary, and commercial farming.

→ Contribution of Agriculture – 26% Gross Domestic Product (Down from 52% in the 1950s).

→ Major Crops – Cereals (rice, wheat, millets, maize), pulses (arhar, urad, moong, masur, peas, and gram), oilseeds (groundnut, sesamum, rapeseed, linseed, castor, fibre crops (cotton and jute), Beverage crops (coffee and tea) and cash crops (sugarcane, rubber, tobacco, spices and fruits, animal husbandry and fisheries.

→ Technology – Use of wooden plough, bullock cart, Persian wheel, and now water pump and tractors.

→ Irrigation Revolution – From flooding of the field to the canal, sprinkler, and drip irrigation.

→ Green Revolution – Increase in crop yield with the help of fertilizers, high yield varieties of seeds.

PSEB 10th Class SST Notes Geography Chapter 5 Land Utilization and Agriculture

→ White Revolution – Increase in milk yield especially buffalo milk in India.

→ Institutional Reforms – Abolition of zamindari and jagirdari, ceilings on land holdings, consolidation of land holdings, credit reforms.

भूमि उपयोग एवं कृषि विकास PSEB 10th Class SST Notes

→ भूमि उपयोग-भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि० मी० है।

→ उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.2 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है।

→ यहां भूमि का उपयोग मुख्यतः चार रूपों में होता है- (1) कृषि, (2) चरागाह, (3) वन, (4) उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।

→ कृषि–भारत के लगभग 51 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। इसमें शुद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि दोनों सम्मिलित हैं।

→ शद्ध बोया गया क्षेत्र तथा परती भूमि-शुद्ध बोया गया क्षेत्र वह कृषि क्षेत्र है जिस पर एक समय में फसलें उग रही होती हैं।

→ परती भूमि वह भूमि है जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जातीं।

→ इससे एक फसल लेने के बाद इसे एक-दो वर्षों के लिए खाली छोड़ दिया जाता है, ताकि यह फिर से उर्वरा शक्ति प्राप्त कर ले।

→ बंजर भूमि-जिस भूमि का उपयोग नहीं हो रहा है, उसे बंजर भूमि कहा जाता है। इसमें चट्टानी प्रदेश, ऊंचे पर्वत, रेतीले मरुस्थल आदि शामिल हैं।

→ इसे मृदा अपरदन, मरुस्थलीकरण आदि को रोक कर उपयोगी बनाया जा सकता है।

→ वन क्षेत्र-आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक तिहाई क्षेत्रफल पर वन का होना अनिवार्य है परन्तु खेद की बात है कि भारत में केवल 22.7 प्रतिशत क्षेत्र पर वन हैं। इसलिए वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है।

→ कृषि का महत्त्व-कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मूल आधार रहा है। हमारी जनसंख्या के 2/3 भाग की जीविका का आधार कृषि ही है।

→ पशुपालन, मत्स्य ग्रहण तथा वानिकी भी कृषि के ही अन्तर्गत आते हैं।

→ कृषि विकास-स्वतन्त्रता के बाद भारतीय कृषि का बड़ी तेजी से विकास हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन तिगुना हो गया है।

→ संसार के कुल क्षेत्रफल का लगभग 10-11 प्रतिशत भाग कृषि योग्य है, परन्तु सौभाग्य से भारत का 51 प्रतिशत क्षेत्रफल कृषि अधीन है।

→ कृषि से सम्बन्धित समस्याएं-भारतीय कृषि पर जनसंख्या का भारी दबाव है।

→ अधिकतर जोतें छोटी हैं। वनों और चरागाहों के कम होते जाने के कारण मृदा की प्राकृतिक उर्वरता बनाए रखने के स्रोत भी सूखते जा रहे हैं।

→ कृषि एक प्रगतिशील उद्योग-कृषि को इसकी निर्वाह अवस्था से हटाकर एक आत्म-निर्भर प्रगतिशील उद्योग बनाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाये हैं।

→ ज़मींदारी प्रथा कानून बना कर समाप्त कर दी गई है। चकबन्दी के द्वारा दूर-दूर बिखरे खेतों को बड़ी जोतों में बदल दिया गया है।

→ सहकारिता आन्दोलन को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कृषि के विकास को प्रोत्साहित करने के लिए प्रत्येक जिले में मार्गदर्शक बैंक खोले गए हैं।

→ राष्ट्रीय बीज निगम, भूमि उपयोग एवं कृषि विकास केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, कृषि विश्वविद्यालयों, कृषि प्रदर्शन फार्मों, डेरी विकास बोर्ड तथा ऐसी अन्य संस्थाओं का गठन भी किया गया है।

→ प्रमुख फसलें-भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां गेहूं, चावल, कपास, पटसन, गन्ना, चाय, कहवा, ज्वारबाजरा आदि कई प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं।

→ बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए अनाज-भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या को अनाज उपलब्ध कराने के लिए प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि करके अनाजों का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।

→ खाद्यान्न फसलें-भारत की प्रमुख खाद्यान्न फसलें गेहूं, चावल और मक्का हैं।

→ गेहूं मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होती है।

→ चावल उत्पन्न करने वाले मुख्य राज्य पश्चिमी बंगाल, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा आदि हैं।

→ मक्का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में होता है।

→ रेशेदार फसलें-भारत की प्रमुख रेशेदार फसलें कपास और पटसन हैं। कपास से सूती वस्त्र बनते हैं।

→ यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में होती है। पटसन का मुख्य उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।

→ चाय तथा कहवा-चाय तथा कहवा मुख्य पेय पदार्थ हैं।

→ चाय की कृषि असम, मेघालय, पश्चिमी बंगाल आदि राज्यों के पहाड़ी क्षेत्रों में की जाती है।

→ कहवा कर्नाटक, तमिलनाडु आदि राज्यों में उगाया जाता है।

→ पशुधन-पशुओं की संख्या में भारत संसार में सबसे आगे है।

→ परन्तु यहां अच्छी नस्ल के पशुओं का अभाव है।

→ अतः केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने पशु धन के विकास के लिए अनेक कदम उठाए हैं।

ਭੂਮੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਅਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਭੂਮੀ ਉਪਯੋਗ-ਭੂਮੀ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਾਧਨ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਦਾ ਕੁੱਲ ਖੇਤਰਫਲ 32.8 ਕਰੋੜ ਹੈਕਟੇਅਰ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਾਪਤ ਅੰਕੜਿਆਂ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਕੁੱਲ ਭੂਮੀ ਦੇ 92.7 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਭਾਗ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਭੂਮੀ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਚਾਰ ਰੂਪਾਂ ਵਿਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ- ਖੇਤੀ, ਚਰਾਗਾਹ, ਵਣ, ਉਦਯੋਗ, ਆਵਾਜਾਈ, ਵਪਾਰ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖੀ ਆਵਾਸ ।

→ ਖੇਤੀ-ਖੇਤਰ-ਭਾਰਤ ਦੇ ਲਗਪਗ 51 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਭਾਗ ‘ਤੇ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਸ਼ੁੱਧ ਬੀਜਿਆ ਗਿਆ ਖੇਤਰ ਅਤੇ ਪਰਤੀ ਭੂਮੀ ਦੋਵੇਂ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ ।

→ ਸ਼ੁੱਧ ਬੀਜਿਆ ਗਿਆ ਖੇਤਰ ਅਤੇ ਪਤੀ ਭੂਮੀ-ਸੁੱਧ ਬੀਜਿਆ ਗਿਆ ਖੇਤਰ ਉਹ ਖੇਤੀ-ਖੇਤਰ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਇਕ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਕਈ ਫ਼ਸਲਾਂ ਉੱਗ ਰਹੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਪਤੀ ਭੂਮੀ ਉਹ ਮੀ ਹੈ ਜਿਸ ‘ਤੇ ਹਰ ਸਾਲ ਫ਼ਸਲਾਂ ਨਹੀਂ ਉਗਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਕ ਫ਼ਸਲ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਇਕ-ਦੋ ਸਾਲਾਂ ਲਈ ਖ਼ਾਲੀ ਛੱਡ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਇਹ ਮੁੜ ਉਪਜਾਊ ਸ਼ਕਤੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲਵੇ ।

→ ਬੰਜਰ ਭੂਮੀ-ਜਿਸ ਭੂਮੀ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਨਹੀਂ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਬੰਜਰ ਭੂਮੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਚੱਟਾਨੀ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਉੱਚੇ ਪਰਬਤ, ਰੇਤਲੇ ਮਾਰੂਥਲ ਆਦਿ ਸ਼ਾਮਲ ਹਨ । ਇਸ ਨੂੰ ਮਿੱਟੀ ਦੀ ਖੋਰ ਅਤੇ ਮਾਰੂਥਲੀਕਰਨ ਆਦਿ ਨੂੰ ਰੋਕ ਕੇ ਉਪਯੋਗੀ ਬਣਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਣ ਖੇਤਰ-ਆਤਮ-ਨਿਰਭਰ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਅਤੇ ਉੱਚਿਤ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਸੰਤੁਲਨ ਦੇ ਲਈ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਇਕ-ਤਿਹਾਈ (\(\frac{1}{3}\)) ਖੇਤਰਫਲ ਤੇ ਵਣਾਂ ਦਾ ਹੋਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਪਰੰਤੂ ਦੁੱਖ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਕੇਵਲ 22.0 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਖੇਤਰ ਤੇ ਵਣ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਵਣ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦਾ ਮਹੱਤਵ-ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਭਾਰਤ ਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਮੂਲ ਆਧਾਰ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਸਾਡੀ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੇ (\(\frac{2}{3}\)) ਭਾਗ ਦੀ ਰੋਜ਼ੀ ਦਾ ਆਧਾਰ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਹੀ ਹੈ । ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ, ਮੱਛੀ ਪਾਲਣ ਅਤੇ ਵਾਣਿਕੀ ਵੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਖੇਤੀ ਵਿਕਾਸ-ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਭਾਰਤੀ ਖੇਤੀ ਦਾ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ਹੈ । ਅਨਾਜਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਤਿੰਨ ਗੁਣਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ।

→ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਕੁੱਲ ਖੇਤਰਫਲ ਦਾ ਲਗਪਗ 10-11 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਭਾਗ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੋਗ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਚੰਗੇ ਭਾਗਾਂ ਭਾਰਤ ਦਾ 51 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਖੇਤਰਫਲ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਅਧੀਨ ਹੈ ।

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ-ਭਾਰਤੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਤੇ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦਾ ਭਾਰੀ ਦਬਾਓ ਹੈ । ਅਧਿਕਤਰ ਜੋਤਾਂ ਛੋਟੀਆਂ ਹਨ। ਵਣਾਂ ਅਤੇ ਚਰਾਗਾਹਾਂ ਦੇ ਘੱਟ ਹੁੰਦੇ ਜਾਣ ਕਾਰਨ ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਕੁਦਰਤੀ ਉਪਜਾਊਪਣ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਦੇ ਸੋਮੇ ਵੀ ਮੁੱਕਦੇ ਜਾ ਰਹੇ ਹਨ ।

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਇਕ ਪ੍ਰਗਤੀਸ਼ੀਲ ਉਦਯੋਗ-ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਨੂੰ ਇਸ ਦੀ ਨਿਰਬਾਹ ਅਵਸਥਾ ਤੋਂ ਹਟਾ ਕੇ ਇਕ ਆਤਮਨਿਰਭਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰਗਤੀਸ਼ੀਲ ਉਦਯੋਗ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕਈ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਗਏ ਹਨ ।

→ ਜ਼ਿਮੀਂਦਾਰੀ-ਪ੍ਰਥਾ ਕਾਨੂੰਨ ਬਣਾ ਕੇ ਸਮਾਪਤ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਚੱਕਬੰਦੀ ਦੁਆਰਾ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਖਿੱਲਰੇ ਖੇਤਾਂ ਨੂੰ ਵੱਡੀਆਂ ਜੋਤਾਂ ਵਿਚ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ । ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਅੰਦੋਲਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋਤਸਾਹਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

→ ਖੇਤੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰੋਤਸਾਹਨ ਦੇਣ ਲਈ ਹਰੇਕ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਵਿਚ ਲੀਡ ਬੈਂਕ ਖੋਲ੍ਹੇ ਗਏ ਹਨ ।

→ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਬੀਜ ਨਿਗਮ, ਕੇਂਦਰੀ ਭੰਡਾਰ ਨਿਗਮ, ਭਾਰਤੀ ਖਾਧ ਨਿਗਮ, ਭਾਰਤੀ ਖੇਤੀ ਅਨੁਸੰਧਾਨ ਪਰਿਸ਼ਦ, ਖੇਤੀ ਬਾੜੀ ਵਿਸ਼ਵ-ਵਿਦਿਆਲਾ, ਖੇਤੀ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨੀ ਫਾਰਮਾਂ, ਡੇਅਰੀ ਵਿਕਾਸ ਬੋਰਡ ਅਤੇ ਅਜਿਹੀਆਂ ਦੁਜੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਗਠਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਫ਼ਸਲਾਂਭਾਰਤ ਇਕ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਪ੍ਰਧਾਨ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਕਣਕ, ਚਾਵਲ, ਕਪਾਹ, ਪਟਸਨ, ਗੰਨਾ, ਚਾਹ, ਕਾਹਵਾ, ਜਵਾਰ, ਬਾਜਰਾ ਆਦਿ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀਆਂ ਫ਼ਸਲਾਂ ਉਗਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਵੱਧਦੀ ਹੋਈ ਜਨਸੰਖਿਆ ਲਈ ਅਨਾਜ-ਭਾਰਤ ਦੀ ਵਧਦੀ ਹੋਈ ਜਨਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਅਨਾਜ ਮੁਹੱਈਆ ਕਰਾਉਣ ਲਈ ਪ੍ਰਤੀ ਹੈਕਟੇਅਰ ਉਪਜ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਕੇ ਅਨਾਜਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਵਧਾਇਆ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

→ ਅਨਾਜ ਵਾਲੀਆਂ ਫ਼ਸਲਾਂ ਖਾਧ-ਅੰਨ ਫ਼ਸਲਾਂ-ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਅਨਾਜੀ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕਣਕ, ਚੌਲ ਅਤੇ ਮੱਕਾ ਹਨ । ਕਣਕ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ, ਹਰਿਆਣਾ, ਮੱਧ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਉੱਤਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਰਾਜਸਥਾਨ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਚੌਲ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਰਾਜ ਪੱਛਮੀ ਬੰਗਾਲ, ਬਿਹਾਰ, ਝਾਰਖੰਡ, ਉੜੀਸਾ ਆਦਿ ਹਨ । ਮੱਕਾ ਉੱਤਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਮੱਧ ਪ੍ਰਦੇਸ਼, ਛਤੀਸਗੜ੍ਹ ਅਤੇ ਰਾਜਸਥਾਨ ਵਿਚ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਰੇਸ਼ੇਦਾਰ ਫ਼ਸਲਾਂ-ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਮੁੱਖ ਰੇਸ਼ੇਦਾਰ ਫ਼ਸਲਾਂ ਕਪਾਹ ਅਤੇ ਪਟਸਨ ਹਨ । ਕਪਾਹ ਤੋਂ ਤੀ ਕੱਪੜੇ ਬਣਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮਹਾਂਰਾਸ਼ਟਰ ਅਤੇ ਗੁਜਰਾਤ ਵਿਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਪਟਸਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਤਪਾਦਕ ਰਾਜ ਪੱਛਮੀ ਬੰਗਾਲ ਹੈ ।

→ ਚਾਹ ਅਤੇ ਕਾਹਵਾ-ਚਾਹ ਅਤੇ ਕਾਹਵਾ ਮੁੱਖ ਪੀਣ ਵਾਲੇ ਪਦਾਰਥ ਹਨ । ਚਾਹ ਦੀ ਖੇਤੀ ਅਸਮ, ਮੇਘਾਲਿਆ, ਪੱਛਮੀ ਬੰਗਾਲ ਆਦਿ ਰਾਜਾਂ ਦੇ ਪਹਾੜੀ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਕਾਹਵਾ ਕਰਨਾਟਕ, ਤਾਮਿਲਨਾਡੂ ਆਦਿ ਵਿਚ ਉਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪਸ਼ੂ-ਧਨ-ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਸੰਸਾਰ ਵਿਚ ਸਭ ਤੋਂ ਅੱਗੇ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਇੱਥੇ ਚੰਗੀ ਨਸਲ ਦੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੀ ਥੁੜ੍ਹ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਕੇਂਦਰ ਅਤੇ ਰਾਜ ਸਰਕਾਰਾਂ ਨੇ ਪਸ਼ੂ-ਧਨ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਕਈ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਹਨ ।