PSEB 4th Class Maths Solutions Chapter 9 Data Handling Ex 9.1

Punjab State Board PSEB 4th Class Maths Book Solutions Chapter 9 Data Handling Ex 9.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 4 Maths Chapter 9 Data Handling Ex 9.1

Question 1.
Ice cream eaten by first to fifth class students of a particular school are shown in pictograph as under. Answer the following questions :
PSEB 4th Class Maths Solutions Chapter 9 Data Handling Ex 9.1 4

  1. How many ice creams are represented by PSEB 4th Class Maths Solutions Chapter 9 Data Handling Ex 9.1 5 ice cream stick ?
  2. How many ice creams did 4th class students eat ?
  3. How many ice creams did 5th class students eat ?
  4. Which class ate 15 ice creams ?
  5. Which class ate maximum number of ice creams ?
  6. Which class at least number of ice creams ?

Solution:

  1. 5,
  2. 20,
  3. 50,
  4. First class
  5. Fifth class
  6. First class.

PSEB 4th Class Maths Solutions Chapter 9 Data Handling Ex 9.1

Question 2.
Prepare pictograph vertically which represent enrollment from first to fifth class of your school.
PSEB 4th Class Maths Solutions Chapter 9 Data Handling Ex 9.1 6
Solution:
Try yourself.

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल Questions and Answers, Notes.

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

प्रश्न 1.
रीतिकाल के नामकरण के औचित्य पर युक्ति-युक्त विचार कीजिए।
उत्तर:
रीतिकालीन साहित्य आदिकालीन और भक्तिकालीन साहित्यिक भावभूमि से नितान्त भिन्न साहित्य है। भक्तिकाल में आध्यात्मिकता और प्रभु-प्रेम प्रमुख था और आदिकालीन साहित्य में युद्ध-प्रेम जबकि रीतिकालीन साहित्य पूर्णत: लौकिक एवं भौतिक दृष्टिकोण से रचा गया है। यह साहित्य राजाओं के आश्रय में रचित साहित्य है। इस युग के राज दरबारों में विलासिता का वातावरण प्रधान था, इसीलिए राजाओं की प्रसन्नता के लिए रचा जाने वाला साहित्य शृंगार एवं विलास से पूर्णतः आवेष्ठित है तथापि भक्ति, नीति, धर्म एवं सामान्य रूपों आदि में काव्य की एक क्षीण धारा भी श्रृंगार के साथ-साथ बहती रहती है। इसलिए विद्वान् इस काल के नामकरण पर भिन्न-भिन्न मत रखते हैं।

सामान्यतः संवत् 1700 से 1900 तक के काल को हिन्दी साहित्य में रीतिकाल के नाम से जाना जाता है, परन्तु . साहित्य के इतिहास के काल विभाजन के नामकरण को आधार प्रदान करते हुए अम्बा प्रसाद ‘सुमन’ का कथन है कि “साहित्य के इतिहास का काल विभाजन कृति, कर्ता, पद्धति और विषय की दृष्टि से किया जा सकता है। कभी-कभी नामकरण के किसी दृढ़ आधार के उपलब्ध न होने पर उस काल के किसी अत्यन्त प्रभावशाली साहित्यकार के नाम पर ही उस काल का नामकरण किया जाता है।” इस आधार पर आचार्य शुक्ल के हिन्दी साहित्य के इतिहास से पहले “मिश्रबंधु विनोद” में आदि, मध्य और अन्त तीन वर्गीकरण किए पर आचार्य शुक्ल ने इस वर्गीकरण के साथ-साथ प्रवृत्ति की प्रमुखता के आधार पर विशिष्ट नाम जोड़ दिए। इस आधार पर हम देखते हैं कि आचार्य शुक्ल ने मध्यकाल में जहां भक्ति की प्रधानता देखी उसे भक्तिकाल और मध्यकाल का नाम दिया गया और जहां रीति, श्रृंगार आदि की प्रधानता देखी उसे उत्तर मध्यकाल और रीतिकाल का नाम दिया। अतः कहा जा सकता है कि आचार्य शुक्ल का उत्तर मध्यकाल या रीतिकाल नाम पद्धति विशेष के आधार पर ही हुआ है।

आचार्य शक्ल के अतिरिक्त भी कुछ विद्वानों ने इस काल को भिन्न-भिन्न संज्ञाएं प्रदान की हैं। वे रीतिकाल को अलंकरण काल, कला काल, श्रृंगार काल आदि नामों से अभिव्यक्ति करते हैं अतः विवादास्पदता से बचने के लिए इन नामों की परीक्षा करना उचित प्रतीत होता है।

(i) मिश्र बन्धुओं ने इस काल को अलंकृत काल के नाम से पुकारा है। दूसरी तरफ वे स्वयं रीतिकालीन कवियों के ग्रन्थों को रीतिग्रन्थ और उनके विवेचन को रीति कथन कहते हैं। अपने ग्रन्थ मिश्रबन्धु विनोद में उन्होंने रीति की व्याख्या करते हुए लिखा है, “इस प्रणाली के साथ रीति ग्रन्थों का भी प्रचार बढ़ा और आचार्यता की वृद्धि हुई। आचार्य लोग तो स्वयं कविता करने की रीति सिखलाते थे।” मिश्र बन्धुओं के इस दृष्टिकोण को देखकर आश्चर्य होता है कि रीति की इतनी स्पष्ट व्याख्या करने के उपरान्त भी उन्होंने कैसे इस काल को अलंकृत काल कहा है। अलंकृत काल अतिव्याप्ती या दोष से दूषित है क्योंकि अलंकार प्रधान कविता हर युग में रची जाती रही है।

(ii) डॉ० रामकुमार वर्मा ने अपने ग्रन्थ ‘हिन्दी साहित्य का ऐतिहासिक अनुशीलन’ में इस काल को कला काल के नाम से पुकारा है। किन्तु यह नाम भी उचित प्रतीत नहीं होता। क्योंकि साहित्य के भावपक्ष और कलापक्ष दोनों एकदूसरे पर टिके हुए हैं, उनका सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है। मात्र भाव ही कविता नहीं होता और न ही केवल अकेली कला के सहारे ही कविता रची जा सकती है जबकि रीतिकाल में भाव उत्कर्ष और कला का सौन्दर्य दोनों ही प्राप्त होते हैं। इसलिए डॉ० रामकुमार वर्मा द्वारा प्रस्तावित ‘कला काल’ नाम अव्याप्ति दोष के कारण समीचीन प्रतीत नहीं होता।

(iii) आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इस काल में श्रृंगार रस की प्रमुखता को देखकर इसे श्रृंगार काल के नाम से पुकारा है। यह नाम भी अव्याप्ति दोष से ग्रस्त है क्योंकि सम्पूर्ण रीतिकालीन साहित्य का अनुशीलन करने के पश्चात् कहा जा सकता है कि वहां श्रृंगार की प्रधानता स्वतन्त्र नहीं बल्कि रीति आश्रित है और न ही केवल श्रृंगार ही तत्कालीन समय का विवेचन विषय रहा है। धर्म, भक्ति, नीति भी इस युग की कविता में वर्णित हुए हैं। दूसरे, विद्वानों ने इस काल के कवियों को रीतिबद्ध, रीति सिद्ध और रीति मुक्त, इन तीन वर्गों में विभाजित किया है। इस वर्गीकरण के आधार पर भी इसे रीतिकाल ही कहा जा सकता है।

आचार्य शुक्ल शृंगार की प्रधानता को स्वीकार करते हुए कहते हैं, “वास्तव में श्रृंगार और वीर इन दो रसों की कविता इस काल में हुई। प्रधानता श्रृंगार रस की ही रही। इससे इसे कोई शृंगार काल कहे तो कह सकता है।” शुक्ल जी के इस कथन से स्पष्ट होता है कि वे शृंगार की प्रमुखता को मानते हुए भी रीति के सुदृढ़ आधार को त्यागना नहीं चाहते क्योंकि इस काल की श्रृंगारवेष्टित कविता रीति आश्रित ही थी।

निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि कला काल, शृंगारकाल और अलंकृत काल आदि नाम इस युग की कविता की आन्तरिक प्रवृत्ति अर्थात् कथ्य को पूर्णतः स्पष्ट करने में सहायक नहीं हो सकते। इसलिए आचार्य शुक्ल द्वारा दिया गया नाम रीतिकाल ही उपयुक्त बैठता है। इस विषय में डॉ० भागीरथ मिश्र कहते हैं, “कला काल कहने से कवियों की रसिकता की उपेक्षा होती है, शृंगार काल कहने से वीर रस और राज प्रशंसा की। रीतिकाल कहने से प्रायः कोई भी महत्त्वपूर्ण वस्तुगत विशेषता उपेक्षित नहीं होती और प्रमुख प्रवृत्ति सामने आ जाती है। यह युग रीति पद्धति का युग था।” अतः इसे रीतिकाल का नाम दिया जा सकता है।

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

प्रश्न 2.
रीतिकालीन परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
किसी भी काल की साहित्यिक गतिविधियों को जानने के लिए उस काल की सामान्य परिस्थितियों को जानना बहुत ज़रूरी होता है। रीतिकाल का समय संवत् 1700 से संवत् 1900 तक माना जाता है। इस काल की परिस्थितियों का परिचय इस प्रकार है-
(क) राजनीतिक परिस्थितियाँ-राजनीतिक दृष्टि से यह काल मुग़लों के चरमोत्कर्ष तथा उत्तरोत्तर ह्रास और पतन का युग है। इस काल में मुग़ल सम्राट अकबर से लेकर औरंगज़ेब का शासनकाल रहा। औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद विलासिता खुलकर सामने आई। उसके उत्तराधिकारी अयोग्य, असमर्थ और निकम्मे निकले। वे नाच-गानों में ही मस्त रहा करते थे। स्त्री को मनोरंजन की वस्तु माना जाने लगा। रीतिकाल में इसी प्रभाव के कारण अधिकतर शृंगारपरक रचनाएँ लिखी गईं।

सन् 1738 ई० में नादिरशाह और सन् 1761 ई० में अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने मुग़ल साम्राज्य की नींव हिला कर रख दी। अनेक प्रदेशों के शासक स्वतन्त्र हो गए। सन् 1803 ई० तक अंग्रेज़ शासन समूचे उत्तर भारत में स्थापित हो चुका था। सन् 1857 की जन क्रान्ति की विफलता के बाद मुगल शासन पूरी तरह समाप्त हो गया।

(ख) सामाजिक परिस्थितियाँ- सामाजिक दृष्टि से भी यह काल अध: पतन का युग ही रहा। राजाओं के साथ प्रजा भी विलासिता के रंग में रंगने लगी। सम्पूर्ण समाज में नारी के सौन्दर्य का सौदा होने लगा। नारी को केवल मनोरंजन की वस्तु माना जाने लगा। किसी भी सुन्दर कन्या का अपहरण किया जाने लगा। डरकर बाल विवाह की कुप्रथा चल पड़ी।

जनसाधारण की शिक्षा, चिकित्सा आदि का कोई प्रबन्ध नहीं था। रिश्वत देना और लेना आम बात थी। राजे-राजवाड़े ग़रीब किसानों का शोषण कर स्वयं ऐश कर रहे थे, अतिवृष्टि, अनावृष्टि और युद्धों से फ़सलों को होने वाली हानि ने किसानों की हालत और बिगाड़ दी थी। ऐसी अव्यवस्थित सामाजिक व्यवस्था में सुरुचिपूर्ण और गम्भीर साहित्य की रचना सम्भव ही नहीं थी।

(ग) धार्मिक परिस्थितियाँ- धार्मिक दृष्टि से यह युग सभ्यता और संस्कृति के पतन का युग था। इस युग में नैतिक बन्धन इतने ढीले हो गए थे कि धर्म किसी को याद नहीं रहा। धर्म के नाम पर बाह्याडम्बरों और भोग-विलास के साधन जुटाए जाने लगे। इस्लाम धर्मानुयायी भी रूढ़िवादिता का शिकार हुए। वे रोजा और नमाज़ को ही धर्म समझने लगे। जनसाधारण अन्धविश्वासों में जकड़े थे जिसका लाभ पण्डित और मुल्ला उठा रहे थे। धर्म स्थान भ्रष्टाचार के अड्डों में बदलते जा रहे थे। मन्दिरों में भी पायल की झंकार और तबले की थाप की ध्वनियाँ आने लगी थीं।

(घ) आर्थिक परिस्थितियाँ-आर्थिक दृष्टि से इस युग में आम लोगों की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। जाति-पाति के बन्धन और भी कठोर हो गए थे। वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित होने लगी थी। लोग उत्पादक और उपभोक्ता दो वर्गों में बंट गए थे अथवा समाज अमीर और ग़रीब वर्गों में बट गया था। इस युग में कवियों, संगीतकारों एवं चित्रकारों का तीसरा वर्ग भी पैदा होता जा रहा था जो अपने आश्रयदाताओं को प्रसन्न करने के लिए अपनी रचनाओं में कामशास्त्र और शृंगारिकता का सहारा लेकर धन कमा रहा था।

(ङ) साहित्यिक परिस्थितियाँ-साहित्य और कला की दृष्टि से यह युग पर्याप्त समृद्ध कहा जा सकता है। इस युग के कवि अपने आश्रयदाताओं से प्राप्त धन के बलबूते पर समृद्ध वर्ग में गिने जाने लगे थे। इसी प्रोत्साहन के फलस्वरूप इस युग के कवियों ने गुण और परिमाण दोनों दृष्टियों से हिन्दी-साहित्य का विकास किया। इस युग के कवियों ने एक साथ कवि और आचार्य बनने का प्रयत्न किया। इन कवियों को सौन्दर्य उपकरणों की जानकारी कराने के लिए पर्याप्त ग्रन्थ लिखे। कवियों ने युगानुरूप श्रृंगारपरक रचनाएँ ही रची।

(च) कलात्मक परिस्थितियाँ- रीतिकाल के कला क्षेत्र में प्रदर्शन की प्रवृत्ति की प्रधानता रही। इसमें मौलिकता की कमी है पर सामन्ती युग की वासनात्मकता काफ़ी अधिक है। ‘स्वामिनः सुखाय’ साहित्य में नायिकाओं के परम्परागत बाज़ारू चित्र बनते रहे। चित्रकारों ने राग-रागनियों पर आधारित प्रतीक चित्र बनाये लेकिन कहीं भी इन्होंने अपने मन की अभिव्यक्ति स्वतन्त्र रूप से नहीं की। इन्होंने तो देवी-देवताओं को भी साधारण नायक-नायिका की भान्ति अंकित किया। संगीतकारों और मूर्तिकारों ने आश्रयदाताओं की इच्छा के अनुसार ही कार्य किया, जिसमें चमत्कारप्रियता को बल दिया गया।

कुल मिला कर हिन्दी-साहित्य का रीतिकाल भोग विलास का काल था जिसमें नैतिक मूल्यों का ह्रास हुआ। अन्धविश्वासों और बाह्याडम्बरों का बोलबाला हुआ। राजा और प्रजा की श्रृंगारिकता के प्रति आसक्ति बढ़ी।

प्रश्न 3.
रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियों/विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रीतिकालीन काव्य दरबारी संस्कृति में पलने वाला साहित्य था। इस काल के कवियों ने ‘स्वान्तः सुखाय’ काव्य की रचना नहीं की अपितु धन-मान प्राप्त करने के लिए ‘स्वामिनः सुखाय’ काव्य रचा। इस युग की कविता में रसिकता और शृंगारिकता की भावना प्रमुख थी। रीतिकालीन कवि की चेतना सुरा, सुराही और सुन्दरी के इर्द-गिर्द ही चक्कर काटती रही। नारी के सुन्दर शरीर की चमक तो इन्होंने सर्वत्र ढूँढी पर नारी की अन्तरात्मा में छिपी पीड़ा को समझने का प्रयास नहीं किया। प्रेम की पवित्र भावना को भी इन्होंने रसिकता में बदल दिया। रीतिकालीन काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ निम्नलिखित हैं-

(i) श्रृंगारिकता- रीतिकालीन साहित्य में शृंगारिकता की प्रवृत्ति सब से अधिक है। रीतिकाल के वैभव-विलास युक्त उन्मादक वातावरण ने इन्हें श्रृंगारिकता काव्य लिखने के लिए प्रेरित ही नहीं किया बल्कि बढ़ावा भी दिया। रीतिकालीन काव्य में श्रृंगार की दोनों अवस्थाओं-संयोग और वियोग श्रृंगार का सुन्दर चित्रण किया गया है। संयोग श्रृंगार के कुछ चित्र अश्लीलता की सीमा को छू गए हैं। विभिन्न त्योहारों और पर्यों के माध्यम से प्रेमी-प्रेमिका का मिलन कराने में इनका मन खूब रमा है। नायिका का नुख-शिख वर्णन करने में तथा वियोग वर्णन करने में केवल परम्परा का निर्वाह किया गया है। केवल घनानन्द जैसे रीतिमुक्त कवियों ने शृंगार वर्णन को वासना मुक्त रखा है। उनका श्रृंगार वर्णन काफ़ी स्वस्थ, आकर्षक और मनोरम है।

(ii) अलंकारिकता- रीतिकालीन कवियों की रुचि प्रदर्शन और चमत्कार में अधिक थी। तत्कालीन परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी बन गई थीं कि इन्हें अपने काव्य को कृत्रिम भड़कीले रंग में रंगना ही पड़ा। अनेक रीतिबद्ध कवियों ने स्वतन्त्र अलंकार सम्बन्धी ग्रन्थ लिखे। कहीं-कहीं रीति कवियों ने अलंकारों का इतना अधिक और व्यर्थ प्रयोग किया है कि वे काव्य-सौन्दर्य को बढ़ाने के बजाए सौन्दर्य के घातक बन गए हैं। अति अलंकार प्रियता ने केशव को कठिन कविता का प्रेत बना दिया।

(iii) लक्षण-ग्रन्थों का निर्माण-सभी रीतिबद्ध कवियों ने संस्कृत काव्य शास्त्र पर आधारित लक्षण-ग्रन्थों का निर्माण किया। ऐसा उन्होंने राज दरबार में उचित सम्मान प्राप्त करने के लिए किया, जबकि काव्य-शास्त्र सम्बन्धी इनका ज्ञान पूर्ण नहीं था। यह लक्षण ग्रन्थ भारतीय काव्य-शास्त्र का कोई महत्त्वपूर्ण विकास न कर सके।

(iv) भक्ति और नीति-रीतिकालीन काव्य में पर्याप्त मात्रा में भक्ति और नीति सम्बन्धी सूक्तियाँ प्राप्त हो जाती हैं। पर न तो इस काल के कवि भक्त थे और न ही राजनीति विशारद। राधा-कृष्ण के नाम से भक्ति करने का इनका प्रयास तो एक मात्र आश्रयदाता को रिझाना और श्रृंगारिक चित्र खींचना ही था। डॉ० नगेन्द्र के अनुसार, “यह भक्ति भी उनकी शृंगारिकता का अंग थी।” रहीम और वृन्द कवियों ने अवश्य ही नीति परक काव्य की रचना की है।

(v) वीर काव्य- रीतिकाल की राजनीतिक परिस्थितियाँ कुछ ऐसी बन गई थीं कि हिन्दू जनता में मुसलमान शासकों की अत्याचारी नीतियों के प्रति विद्रोह की भावना उमड़ने लगी थी। औरंगजेब की कट्टर नीतियों ने पंजाब में गुरु गोबिन्द सिंह जी, दक्षिण में शिवाजी, राजस्थान में महाराज राज सिंह और दुर्गादास, मध्य प्रदेश में छत्रसाल आदि को मुस्लिम साम्राज्य से टक्कर लेने के लिए तलवार उठाने पर विवश कर दिया। भूषण, सूदन, पद्माकर आदि वीर रस के कवियों ने ओज भरी वाणी में काव्य निर्माण किया। इसमें राष्ट्रीयता का स्वर प्रधान है।

(vi) नारी चित्रण-इस युग में नारी केवल विलास की वस्तु बन कर रह गई थी। दरबारी कवियों ने नारी के केवल विलासिनी प्रेमिका के चित्र ही प्रस्तुत किए। प्रतियोगिता की भावना के कारण इस युग के कवि ने नारी के अश्लील, विलासात्मक, भड़कीले चित्र प्रस्तुत करने का प्रयास किया। नारी जीवन की अनेकरूपता को वे नहीं जान पाए।

(vii) ब्रज भाषा की प्रधानता-रीतिकाल की प्रमुख साहित्यिक भाषा ब्रज है। इस काल में भक्तिकाल से भी अधिक ब्रज भाषा का विकास हुआ। मुसलमान कवियों ने भी इसी भाषा का प्रयोग किया। भूषण, देव आदि कवियों ने अपनी इच्छा से इस भाषा के शब्दों को तोड़ा मरोड़ा है। किन्तु रसखान, घनानन्द आदि की भाषा परिनिष्ठित है। बिहारी की भाषा टकसाली कही जाती है।

वस्तुतः रीतिकाव्य कवित्व की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इसका ऐतिहासिक और साहित्यिक महत्त्व सर्वमान्य है।

प्रश्न 4.
रीतिसिद्ध और रीतिमुक्त काव्य में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. रीतिसिद्ध काव्य काव्यशास्त्रीय है जबकि रीतिमुक्त काव्य में काव्यशास्त्रीय दृष्टिकोण नहीं मिलता। रीतिमुक्त काव्य सभी प्रकार के बन्धनों से मुक्त है। इसी कारण इसे रीतिमुक्त काव्य कहा गया है।
  2. रीतिसिद्ध काव्य दरबारी कविता है जबकि रीतिमुक्त काव्य अधिकांशतः दरबार से बाहर मुक्त वातावरण में रचा गया।
  3. रीतिसिद्ध काव्य की रचना मुख्यतः राज्याश्रय में हुई जबकि रीतिमुक्त काव्य हृदय के स्वच्छंद भाव के आधार पर रचा गया।
  4. रीतिसिद्ध काव्य का उद्देश्य ‘परान्तः सुखाय’ अर्थात् दूसरे को खुश करना है जबकि रीतिमुक्त काव्य की रचना ‘स्वांतः सुखाय’ अर्थात् अपने मन की प्रसन्नता के लिए हुई।
  5. रीतिसिद्ध काव्य का भाव पक्ष गौण है और अभिव्यक्ति पक्ष प्रधान है जबकि रीतिमुक्त काव्य आंतरिक अनुभूतियों का काव्य है। इसमें भावा वेग का प्रवाह बहता मिलता है।
  6. रीतिसिद्ध काव्य चमत्कारपूर्ण है जबकि रीतिमुक्त काव्य चमत्कार से रहित और हृदय के सच्चे भावों पर आधारित है।
  7. रीतिसिद्ध काव्य में श्रृंगार का वर्णन बढ़ा-चढ़ा कर अर्थात् अतिशयोक्तिपूर्ण है परन्तु रीतिमुक्त काव्य में प्रेम का सहज और भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
  8. रीतिसिद्ध का श्रृंगार अधिकतर भोग मूलक है और यह अपने आश्रयदाताओं की भोग लिप्सा को जगाने वाला है जबकि
  9. रीतिमुक्त काव्य में व्यथामूलक (त्यागमूलक) श्रृंगार का चित्रण किया गया है। रीतिमुक्त काव्य में वर्णित संयोग में भी पीड़ा की अनुभूति बनी रहती है।
  10. शायद इसका कारण यह रहा हो कि अधिकांश रीतिमुक्त कवि जीवन में प्रेम से पीड़ित रहे हैं। उनका वर्णन प्रत्यक्ष अनुभूति का विषय है। यही कारण है कि रीतिमुक्त कवियों की अभिव्यक्ति अधिक मर्मस्पर्शी बन पड़ी है।
  11. रीतिसिद्ध कवियों की भाषा आडम्बरपूर्ण है जबकि रीतिमुक्त कवियों की भाषा प्रवाहपूर्ण तथा स्वाभाविक होने के कारण सहज है।
  12. रीतिसिद्ध कवि, कवि के अपेक्षा कलाकार अधिक है, जबकि रीतिमुक्त भावुक कवि है।

प्रश्न 5.
रीतिबद्ध और रीतिमुक्त काव्य में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर:
रीतिकालीन साहित्य में रीतिबद्ध कवियों में प्रमुख केशवदास, मतिराम, देंव और चिंतामणि तथा रीतिमुक्त कवियों में प्रमुख घनानंद, बोधा, आलम और ठाकुर हैं। रीतिबद्ध काव्य शास्त्रों पर आधारित है। इसमें कवियों ने संस्कृत के काव्य-शास्त्र के आधार पर काव्यांगों के लक्षण देते हुए उनके उदाहरण दिए हैं। इसके विपरीत रीति मुक्त काव्य में काव्य शास्त्रीय दृष्टिकोण नहीं मिलता। रीतिबद्ध कवियों का प्रेम चित्रण साहित्य शास्त्र द्वारा चर्चित रूढ़ियों, परम्पराओं तथा कवि समयों के अनुसार है, जबकि रीतिमुक्त कवियों की प्रेम सम्बन्धी विचारधारा अत्यन्त व्यापक और उदार है। इन्हें बंधी-बंधाई परिपाटी पर प्रेम चित्रण करना पसन्द नहीं है।

रीतिबद्ध कवियों का काव्य मुख्य रूप से तत्कालीन शासक वर्ग, रईसों तथा रसिक जनों के लिए अधिक रचा गया था। इसके विपरीत रीति मुक्त काव्य का मूल मन्त्र हृदय के स्वच्छंद भावों को मुक्त रूप से व्यक्त करना था। रीतिबद्ध काव्य में आचार्यत्व और कवित्व का अद्भुत सम्मिश्रण प्राप्त होता है, जिसके अन्तर्गत इन्होंने विशुद्ध लक्षण ग्रंथ लिखे तथा उदाहरण भी दिए परन्तु इसमें भी कलापक्ष की प्रधानता के दर्शन होते हैं। रीतिमुक्त काव्य में आन्तरिक अनुभूतियों का मार्मिक चित्रण प्राप्त होता है, जिनमें भावों का आवेग प्रवाहित होता रहता है। रीतिबद्ध काव्य में चमत्कार की प्रधानता है परन्तु रीति मुक्त काव्य चमत्कार से मुक्त होकर हृदय के सत्यभावों को अभिव्यक्त करता है।

रीतिबद्ध काव्य में श्रृंगार वर्णन आश्रयदाता की मनोभावनाओं को उद्दीप्त करता है। रीतिमुक्त काव्य का श्रृंगार वर्णन भी व्यथामूलक है। रीतिबद्ध कवि मुख्य रूप से ‘परांतः सुखाएं’ काव्य रचना करते रहे जबकि रीतिमुक्त कवियों ने अपनी तथा तत्कालीन जनजीवन की सांस्कृतिक, पारिवारिक, सामाजिक, प्राकृतिक जीवन की झांकियां भी अपने काव्य में प्रस्तुत की हैं।

रीतिबद्ध कवियों की भाषा अलंकारपूर्ण, आडम्बरी तथा बोझिल है। रीतिमुक्त कवियों ने सहज, स्वाभाविक तथा भावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है। इस दृष्टि से रीतिबद्ध कवि कलाकार अधिक सिद्ध होते हैं, कवि नहीं, जबकि रीति मुक्त कवि एक भावुक कवि है।

प्रमुख कवियों का जीवन एवं साहित्य परिचय

1. केशवदास (सन् 1555-1617 ई०)

प्रश्न 1.
केशवदास का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
केशव की गणना हिन्दी साहित्य के महान् कवियों में की जाती है। इन्हें रीतिकाल का प्रवर्तक और प्रथम आचार्य भी माना जाता है। इनके विषय में एक उक्ति प्रसिद्ध है-कविता करता तीन हैं-तुलसी, केशव, सूर। जीवन परिचय-केशवदास का जन्म विद्वान् सम्वत् 1612 (सन् 1555 ई०) के आसपास बेतवा नदी के तट पर स्थित ओरछा नगर में हुआ मानते हैं। इनके पिता पं० काशीराम मिश्र संस्कृत के प्रकाण्ड पंडित थे। उनका राजा मधुकर शाह बड़ा सम्मान करते थे। केशव दास को संस्कृत का ज्ञान अपने पूर्वजों से परम्परागत रूप में प्राप्त हुआ. था। ओरछा नरेश महाराज इन्द्रजीत सिंह इन्हें अपना गुरु मानते थे। गुरु धारण करते समय उन्होंने केशव को इक्कीस गाँव भेंट में दिए थे। केशव ने उनकी प्रशस्ति में लिखा है-
भूतल को इन्द्र इन्द्रजीत जीवै जुग-जुग,
‘जाके राज केसौदास राज सो करते हैं।

केशव का सारा जीवन राज्याश्रय में ही व्यतीत हुआ। राज दरबार में रहने के कारण यह बड़े हाज़र जवाब थे और शृंगारिक प्रकृति के थे। उनकी कविताओं में रसिकता और चमत्कार देखने को मिलता है। उनके जीवन की एक घटना बड़ी प्रसिद्ध है। केशव जब बूढ़े हो गए तो एक दिन कुएँ पर पानी भरती हुई लड़कियों ने उन्हें ‘बाबा जी’ कह दिया जब कि केशव उनकी ओर बड़ी रसिकता से देख रहे थे, तब उनके मुँह से निम्न पंक्तियाँ प्रस्फुटित हुईं-
केशव केसनि अस करि, बैरिहू जस न कराहिं,
चन्द्र वदनि मृगलोचनि, बाबा कहि-कहि जाहिं।

केशव साहित्य और संगीत, धर्म-शास्त्र और राजनीति, ज्योतिष और वैधिक सभी विषयों के गम्भीर अध्येता थे। केशवदास की रचना में उनके तीन रूप आचार्य, महाकवि और इतिहासकार दिखाई पड़ते हैं।
केशव की मृत्यु सम्वत् 1674 (सन् 1617 ई०) में हुई मानी जाती है। रचनाएँ-केशव द्वारा रचित उपलब्ध कृतियों में से निम्नलिखित कृतियाँ उल्लेखनीय हैं-

  1. रसिक प्रिया
  2. राम चन्द्रिका
  3. कवि प्रिया
  4. रतन बावनी
  5. वीर सिंह देवचरित
  6. विज्ञान गीता
  7. जहाँगीर जस चन्द्रिका।

इनके अतिरिक्त उनके, ‘नख-शिख’ और छन्द माला दो अन्य ग्रन्थ भी प्रसिद्ध हैं।

केशव की उपरोक्त कृतियों का अवलोकन करने से यह ज्ञात होता है कि केशव अपनी रचनाओं में वीरगाथा काल, भक्तिकाल और रीतिकाल के काव्यगत आदर्शों का समाहार करना चाहते थे। इन ग्रन्थों में से केशव की ख्याति का आधार प्रथम तीन ग्रन्थ हैं जिनमें ‘रसिक प्रिया’ और ‘कवि प्रिया’ काव्य शास्त्रीय ग्रन्थ हैं तथा ‘राम चन्द्रिका’ रामचरित से सम्बद्ध महाकाव्य है। शेष ग्रन्थ साधारण कोटि के हैं।

प्रश्न 2.
केशवदास के काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
केशवदास के काव्य की विशेषताओं को जानने के लिए केवल एक ही ग्रन्थ ‘रामचन्द्रिका’ काफ़ी है। प्रस्तुत रचना के कथानक का आधार प्रमुखत: वाल्मीकि रामायण है परन्तु प्रासंगिक कथाओं के विकास और रंचना शैली में संस्कृत के ‘प्रसन्न राघव’ और ‘हनुमन्नाटक’ का प्रभाव भी इस रचना पर देखा जा सकता है। राम चन्द्रिका’ के आधार पर केशव के काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. असफल प्रबन्ध काव्य-‘रामचन्द्रिका’ को प्रबन्ध काव्य का रूप देने में कवि को सफलता नहीं मिल सकी क्योंकि प्रस्तुत प्रबन्ध काव्य में न तो कथा का सुसंगत विकास हो पाया है और न ही भावपूर्ण स्थलों का चित्रण सही ढंग से हुआ है। वस्तु विन्यास की दृष्टि से यह ग्रन्थ कई मुक्तकों का संग्रह प्रतीत होता है जिन्हें जोड़कर प्रबन्धात्मक रूप देने की विफल चेष्टा की गई है।

केशव ने कुछ स्थलों पर अनावश्यक विस्तार से काम लिया है तथा भावपूर्ण स्थलों का चयन और चित्रण भी ठीक ढंग से नहीं किया गया है। उनके वर्णन उनकी दरबारी मनोवृत्ति का प्रदर्शन मात्र बन कर रह गए हैं।

2. चरित्र वर्णन-केशव पर यह दोष लगाया जाता है कि उन्होंने श्रीराम का चरित्र सही ढंग से नहीं प्रस्तुत किया है। वास्तव में लोगों के दिलों में तुलसी के ‘मानस’ में वर्णित श्रीराम का चरित्र बसा हुआ था। केशव तो राम की चन्द्रिका (ऐश्वर्य) के विषय को लेकर चले थे। इसलिए उन्होंने कुछ चुने हुए प्रसंगों का वर्णन किया है।

3. वस्तु वर्णन-रामचन्द्रिका में रागोत्प्रेरक वस्तु वर्णन उच्च कोटि का हुआ है, जो रामशयनागार वर्णन, राम के तिलकोत्सव का वर्णन तथा दिग्विजय के लिए जाती हुई श्रीराम की सेना का वर्णन देखा जा सकता है।

4. प्रकृति चित्रण-केशव के प्रकृति चित्रण नीरस और असंगत हैं। प्रकृति चित्रण में नाम परिगणन शैली को अपनाया गया है और साथ ही प्रकृति को उद्दीपन रूप में चित्रित किया गया है।

5. श्रृंगार वर्णन-‘रामचन्द्रिका’ शृंगार प्रधान ग्रन्थ है किन्तु श्रृंगार के प्रति केशव की दृष्टि भौतिकतावादी थी। उनके श्रृंगार वर्णन में रस-मर्मज्ञता तथा सरसता देखने को मिलती है। केशव के काव्य में संयोग एवं वियोग के अनेक मर्यादित, शिष्ट एवं संगत चित्र देखने को मिलते हैं।

2. देव (सन् 1673-1767 ई०)

प्रश्न 1.
देव का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी प्रमुख रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रीतिकाल के प्रतिनिधि कवियों में देव का स्थान अन्यतम है। वे एक साथ कवि और आचार्य दोनों ही थे। ऐसा लगता है कि केशव और बिहारी दोनों मिलकर देव में एकाकार हो उठे हैं।

जीवन परिचय-देव का जन्म सन् 1673 को इटावा नगर में हुआ। इनका पूरा नाम देवदत्त द्विवेदी था। इनकी शिक्षा-दीक्षा के सम्बन्ध में कोई सामग्री उपलब्ध नहीं है। अन्तः साक्ष्य के अनुसार सोलह वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने ‘भावविलास’ जैसे सुन्दर ग्रन्थ की रचना की थी। देव जीवन भर आजीविका के अभाव में दर-दर भटकते रहे। स्वाभिमानी प्रकृति के होने के कारण ये अपने आश्रयदाता बदलते रहे। इनके आश्रयदाताओं में औरंगज़ेब के पुत्र आज़म शाह, दादरीपति राजा सीता राम के भतीजे भवानी दत्त वैश्य, फफूंद के राजा कुशल सिंह, राजा भोगीलाल, राजा मर्दन सिंह तथा महमदी राज्य के अधिपति अकबर अली खां थे। इनमें से केवल राजा भोगीलाल से ही इन्हें उचित आदरसम्मान मिला।

देव किसी समय इटावा छोड़कर मैनपुरी जिले के कुसमरा नामक गाँव में जा बसे थे। यहाँ उन्होंने अपना मकान भी बनवाया। देव के वंशज अभी तक इटावा और कुसमरा दोनों ही स्थानों में पाए जाते हैं। इनकी मृत्यु सन् 1767 ई० में हुई।

देव में काव्य की लोकोत्तर प्रतिभा ही नहीं थी, अध्ययन और अनुभव भी उनका बड़ा व्यापक था। साहित्य और काव्य शास्त्र में उनकी गहरी पैठ थी। वे संस्कृत और प्राकृत भाषाओं के पण्डित थे। वेदान्त और अन्य दर्शनों का भी उन्हें ज्ञान था। वे ज्योतिष और आयुर्वेद भी जानते थे। आकृति से वे अत्यन्त रूपवान थे। राजसी वेश-भूषा उन्हें प्रिय थी और रसिकता उनके व्यक्तित्व में कूट-कूट कर भरी हुई थी।
रचनाएँ-वर्तमान समय में देवकृत 18 ग्रन्थ ही प्राप्त हैं जिनमें से प्रमुख के नाम निम्नलिखित हैं-

  1. भाव विलास
  2. अष्टयाम
  3. भवानी विलास
  4. रस विलास
  5. प्रेम चन्द्रिका
  6. राग रत्नाकर
  7. सुखसागर
  8. प्रेम तरंग
  9. जाति विलास।

इन ग्रन्थों में भाव विलास’ श्रृंगार रस का प्रतिपादक है। ‘भवानी विलास’ में नायिका भेद का विवेचन है तथा ‘जाति विलास’ नारी के शत-शत भेदों का वर्णन है।

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

प्रश्न 2.
देव के काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
देव की रचनाओं से विदित होता है कि उनकी काव्य साधना, श्रृंगार आचार्यत्व और भक्ति और दर्शन की त्रिधाराओं में प्रवाहित हुई है। शृंगारिकता और आचार्यत्व तो रीतिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ हैं ही। देव का काव्य इनके अतिरिक्त वैराग्य भावना को भी लेकर चला है। उनकी काव्यगत विशेषताएँ अग्रलिखित हैं-
1. श्रृंगार वर्णन-शृंगार के संयोग और वियोग दोनों ही पक्षों का पूर्ण और व्यापक विवेचन देव की कविताओं में देखा जा सकता है। देव का श्रृंगार वर्णन अश्लील, वीभत्स और कुरुचिपूर्ण नहीं है क्योंकि इसका आधार दाम्पत्य प्रेम है। गृहस्थी की चार दीवारी के भीतर इस श्रृंगार की रसधारा प्रवाहित हुई है। देव की दृष्टि में स्वकीया का प्रेम ही सच्चा प्रेम है। परकीया प्रेम हेय है। नव दम्पत्ति की रस चेष्टाओं के माध्यम से कवि ने लौकिक प्रेम के बड़े सुन्दर चित्र अंकित किए हैं। कवि ने यहाँ स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि मन के साथ शरीर का ऐसा सहज सम्बन्ध है कि दोनों की चेतना एक साथ उत्पन्न हो जाती है। देव ने श्रृंगार के अन्तर्गत नायक-नायिका के विविध हाव-भावों और चेष्टाओं के सवाक् चित्र खींचे हैं।

2. वियोग वर्णन-देव ने विरह की गम्भीर अवस्था का चित्रण बड़ी सफलता से किया है। विशेषकर खण्डिता और पूर्व राग के प्रसंगों में विरह की यह अभिव्यक्ति अलंकार के चमत्कार पर नहीं, भावना की गम्भीरता और स्वाभाविकता पर आधारित है।

3. भक्ति भावना-शृंगारी कवि होते हुए भी देव का हृदय भक्ति रस से शून्य नहीं था। उनमें भक्तिकालीन कवियों जैसी सरसता पाई जाती है। उनके काव्य में भगवान् श्री कृष्ण के प्रति भक्ति भावना अधिक मिलती है। देव ने भी सूर इत्यादि कृष्ण भक्त कवियों के समान भगवान् श्री कृष्ण की लीलाओं से प्रभावित होकर उनका यशोगान किया है। देव की यह भक्ति भावना बड़ी उदार और सहज स्वाभाविक है।

4. तत्व दर्शन-भक्त हृदय के साथ-साथ देव में सन्त कवियों का मस्तिष्क भी था। देव ने भी अद्वैतवाद के सिद्धान्तानुसार आत्मा और ब्रह्म की एकता मानते हुए माया जनित द्वैत का वर्णन किया है। माया के कारण ही उस ज्ञान की विस्मृति हो जाती है जो आत्मा की चिरन्तनता का ज्ञान होता है। वास्तव में आत्मा अजर, अमर है और सभी में उसकी सत्ता है।

अद्वैत के इस सिद्धान्त के अतिरिक्त देव के काव्य में ज्ञान मार्ग के अन्य तत्वों का भी समावेश मिलता है। वे ब्रह्म की अनन्तता और व्यापकता को स्वीकार करते हैं तथा उनके मतानुसार एक अणु मात्र में सारा विश्व व्याप्त है। इस प्रकार हम देखते हैं कि तत्व दर्शन देव के काव्य में भक्तिकालीन उच्च कोटि के कवियों के समान ही है।

3. बिहारी (सन् 1595-1663 ई०)

प्रश्न 1.
बिहारी के संक्षिप्त जीवन परिचय और रचनाओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन परिचय-रीतिकाल के सब से अधिक जन प्रिय कवि बिहारी लाल का जन्म सन् 1595 ई० को ग्वालियर में हुआ। बिहारी जब आठ वर्ष के थे तो अपने पिता के साथ ओरछा आ गए। वहीं इन्होंने महाकवि केशव के संरक्षण में काव्य ग्रन्थों का अध्ययन आरम्भ किया। पिता के वृन्दावन चले जाने पर इन्हें भी वहीं जाना पड़ा। वृन्दावन में बिहारी ने नरहरिदास से संस्कृत तथा प्राकृत सीखी। इन्हीं दिनों सन् 1618 के आस-पास शाहजहाँ वृन्दावन आए। बिहारी की प्रतिभा से प्रभावित होकर उन्होंने बिहारी को आगरा आने का निमन्त्रण दिया। आगरा में बिहारी की भेंट प्रसिद्ध कवि रहीम से हुई। आगरा में शाहजहाँ ने अपने पुत्र का जन्मोत्सव मनाया। इस अवसर पर अनेक राजा-महाराजा उपस्थित थे। बिहारी ने इस अवसर पर बड़ी सुन्दर मनमोहक कविताएँ सुनाईं जिनसे प्रसन्न और प्रभावित होकर वहाँ उपस्थित अनेक राजाओं ने इनकी वार्षिक वृत्ति बाँध दी।

एक बार बिहारी वृत्ति लेने के लिए जयपुर गए। उस समय जयपुर नरेश सवाई राजा जयसिंह अपनी षोडषी नव विवाहिता पत्नी के प्रेम जाल में उलझकर राजपाठ के सभी कार्य भुला बैठे थे। बिहारी ने उन्हें अपना कर्त्तव्य और दायित्व याद दिलाने के लिए एक मालिन के हाथों फूल की टोकरी में निम्नलिखित दोहा राजा तक पहुँचाया-
नहीं पराग नहीं मधुर मधु नहीं विकास इहि काल।
अली कलि सों ही बन्ध्यो, आगे कौन हवाल॥

राजा पर उस दोहे ने जादू-सा असर किया। वे तुरन्त अपने रंग महल से बाहर आ गए और पुनः राज कार्यों में लग गए। इस घटना ने बिहारी के सम्मान में वृद्धि की। राजा जय सिंह ने बिहारी को अपना राज कवि बना दिया। यहीं बिहारी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सतसई’ की रचना की। सतसई की पूर्ति के कुछ समय बाद बिहारी की पत्नी की मृत्यु हो गई। बिहारी इस आघात को सहन न कर सके और संसार से विरक्त हो गए। बिहारी तब वृन्दावन आ गए और अपना शेष जीवन भगवत् भजन में व्यतीत करते हुए सन् 1663 ई० के लगभग परमधाम को प्राप्त किया।

रचनाएँ-बिहारी ने जीवन में केवल एक ही ग्रन्थ की रचना की जो बिहारी सतसई के नाम से प्रसिद्ध है। इस ग्रन्थ में 713 दोहे हैं। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी बिहारी सतसई की प्रशंसा करते हुए लिखते हैं
“श्रृंगार रस के ग्रन्थों में जितनी ख्याति और जितना सम्मान बिहारी सतसई का हुआ है उतना और किसी का नहीं। इसका एक-एक दोहा हिन्दी साहित्य में रत्न माना जाता है।”

प्रश्न 2.
बिहारी के काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बिहारी सतसई में समास पद्धति का प्रयोग किया गया है। दोहे जैसे छोटे छन्द में सुन्दर विचारों और कल्पनाओं का समावेश भली प्रकार हो पाया है। छोटे-छोटे दोहों में गहन भावों को व्यक्त करना ही बिहारी की विशेषता है। बिहारी के काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. शृंगार वर्णन-बिहारी के काव्य का मुख्य विषय शृंगार वर्णन है। बिहारी ने शृंगार की दोनों अवस्थाओंसंयोग और वियोग का वर्णन किया है। किन्तु उनका मन संयोग शृंगार के वर्णन में अधिक रमा है। संयोग पक्ष की सभी स्थितियों पर उनका पूरा ध्यान रहा है। बिहारी ने नायक के स्थान पर नायिका के आकर्षण का वर्णन अधिक किया है। बिहारी ने नायिका के नख-शिख का वर्णन भी खूब किया है। बिहारी का वियोग वर्णन कहीं-कहीं हास्यस्पद हों गया है।

2. भक्ति भावना-बिहारी ने कुछ भक्तिपरक दोहे भी लिखे हैं-बिहारी सतसई का पहला ही दोहा—’मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोईं।’ इसका प्रमाण है, परन्तु बिहारी को भक्त कवि नहीं माना जा सकता। हो सकता है कि बिहारी ने ऐसे दोहे या जीवन की संध्या में शृंगारिकता से उकता कर लिखे हों या फिर ‘भरी बिहारी सतसई, भरी अनेक स्वाद’ की दृष्टि से लिखे हों। बिहारी के भक्तिपरक दोहों में श्रीराम, श्रीकृष्ण और नरसिंह अवतार की वन्दना की गई है। बिहारी के इन दोहों में भी चमत्कार प्रदर्शन देखने को मिलता है।

3. नीति सम्बन्धी दोहे-बिहारी के कुछ दोहे नीतिपरक भी हैं। बिहारी ने इन दोहों को अपनी कला के संयोग से अत्यन्त सरस और मार्मिक बना दिया है। बिहारी के कुछ दोहों को तो सूक्तियों में स्थान दिया जा सकता है।

4. विविध विषयों का समाहार-बिहारी सतसई में अध्यात्मक, पुराण, ज्योतिष गणित आदि अनेक विषयों का समाहार हुआ है जिससे यह सिद्ध होता है कि बिहारी को इन विषयों की यथेष्ट जानकारी थी।

5. छन्द अलंकार-बिहारी ने केवल दोहा जैसे छोटे छन्द में अपनी रचना की है और गागर में सागर भर दिया है। प्रत्येक दोहे में शब्द गहने में कुशलतापूर्वक जड़े हुए नगीनों की तरह प्रतीत होते हैं।
अलंकार बिहारी के काव्य में साध्य नहीं साधन रूप में व्यक्त हुए हैं। अलंकारों ने उनके काव्य के रूप को अधिक निखार दिया है। बिहारी ने अर्थालंकारों-यथा उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, यमक का अधिक सहारा लिया है।

6. भाषा-बिहारी की भाषा कोमल, सरस तथा सँवरी हुई ब्रज भाषा है जिसमें माधुर्य गुण पर्याप्त मात्रा में मिलता है, जिसके कारण नाद सौन्दर्य काफ़ी प्रभावी हो गया है।

4. घनानन्द (सन् 1673-1760)

प्रश्न 1.
घनानन्द का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का भी उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
घनानन्द हिन्दी साहित्य में प्रेम की पीर के कवि के रूप में जाने जाते हैं। रीतिकालीन कवियों में घनानन्द ऐसे कवि हुए हैं जिन्हें सच्चा प्रेमी हृदय प्राप्त हुआ था।

जीवन परिचय-अन्य मध्यकालीन कवियों की तरह घनानन्द की जीवनी के विषय में अनेक विवाद हैं। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के मतानुसार घनानन्द का जन्म सन् 1673 ई० में हुआ था। बाबू जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ इनकी जन्मभूमि बुलन्द शहर मानते हैं। ये कायस्थ वंश में उत्पन्न हुए थे। इनका बचपन कैसे बीता, शिक्षा-दीक्षा कैसे हुई इस सम्बन्ध में सूचनाएँ उपलब्ध नहीं हैं।

एक जनश्रुति के अनुसार घनानन्द मुग़ल वंश के विलासी बादशाह मुहम्मदशाह रंगीला के मीर मुंशी थे। वे बहुत सुन्दर थे और गाते भी बहुत अच्छा थे। राजदरबार की एक नर्तकी सुजान से इन्हें प्रेम हो गया। एक दिन राजदरबार में गाते हुए घनानन्द से एक गुस्ताखी हो गई। गाते समय इनका मुँह सुजान की तरफ था और पीठ बादशाह की तरफ। बादशाह ने इसे अपना अपमान समझा और इन्हें दरबार और शहर छोड़ देने की आज्ञा दी। दरबार छोड़ते समय सुजान को भी अपने साथ चलने को कहा, किन्तु सुजान को तो पता ही नहीं था कि घनानन्द उससे प्रेम करते हैं, इसलिए उसने साथ चलने से इन्कार कर दिया। इस पर घनानन्द विरक्त होकर वृन्दावन चले गये और श्री राधा-कृष्ण की भक्ति में लीन हो गए, पर सुजान को भूल नहीं पाये। अपनी कविता में राधा और श्रीकृष्ण के लिए सुजान शब्द का ही प्रयोग करते रहे।

सन् 1760 में अहमदशाह अब्दाली के मथुरा के आक्रमण के समय अब्दाली के सैनिकों ने इनकी हत्या कर दी।
रचनाएँ-घनानन्द के जीवन की तरह ही इनकी रचनाओं के सम्बन्ध में पूरी जानकारी अभी तक प्राप्त नहीं हो सकी है। नागरी प्रचारिणी सभा की सन् 2000 तक की खोज के अनुसार इनके 17 ग्रन्थ हैं जिनमें से प्रमुख के नाम इस प्रकार हैं-

  1. सुजान हित
  2. वियोग वेलि
  3. इश्कलता
  4. ब्रज विलास
  5. सुजान सागर
  6. विरह लीला तथा
  7. घनानन्द कवित्त

कृष्ण भक्ति सम्बन्धी एक विशाल ग्रन्थ छत्रपुर के राजपुस्तकालय में उपलब्ध है।

इनमें ‘सुजानहित’ ही कवि की अमर कृति है। यह एक उपालम्भ काव्य है जिनमें सुजान के रूप का वर्णन तथा प्रेम सम्बन्धी छन्द हैं।

प्रश्न 2.
घनानन्द के काव्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिन्दी में प्रेमी की ओर से प्रेमिका की निष्ठुरता पर बहुत कम काव्य रचना हुई है, जबकि उर्दू कविता ऐसे विषयों से भरी पड़ी है। इस तरह घनानन्द का काव्य इस अभावं की पूर्ति करता है। घनानन्द के काव्य में मुख्यतः ‘प्रेम की पीर’ का चित्रण है, जिसे हम संयोग और वियोग दोनों रूपों में पाते हैं। घनानन्द के काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. प्रेमभाव का चित्रण-घनानन्द के काव्य का मुख्य विषय प्रेमभाव का चित्रण है। उनके प्रेम की मूल प्रेरक सुजान है। उसके रूप सौंदर्य, लज्जा आदि का सरल वर्णन उन्होंने किया है। सुजान की बेवफाई से वे तड़पे भी हैं। उनका यह लौकिक प्रेम बाद में अलौकिक प्रेम में बदल गया। घनानन्द के प्रेम की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i) एकनिष्ठ प्रेम-घनानन्द का प्रेम एकनिष्ठ है। वह तो सुजान से प्रेम करते थे, किन्तु सुजान को पता ही नहीं था कि कोई उससे इतना प्रेम करता है। घनानन्द ने उसे पत्र लिखा लेकिन उसने बिना पढ़े ही फाड़ कर फेंक दिया। मानों घनानन्द के दिल के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। पर घनानन्द ने प्रेमिका की इस निष्ठुरता पर भी उससे प्रेम करना नहीं छोड़ा। आचार्य शुक्ल जी ने ठीक ही लिखा है कि-‘प्रेम की पीर को लेकर ही इनकी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ।’

(ii) निष्काम-निस्वार्थ प्रेम-घनानन्द को इस बात की परवाह नहीं थी कि जिसे वह प्रेम करता है वह भी बदले में उससे प्रेम करे। सच्चे प्रेम में आदान-प्रदान की यह वाणिक-वृत्ति नहीं होती। घनानन्द तो निष्काम और निस्वार्थ प्रेम का अभिलाषी है।

(ii) आसक्ति प्रधान प्रेम-घनानन्द का प्रेम आसक्ति प्रधान है। इससे उसे प्रिय से मिलने पर हर्ष और वियोग में दुःख होता है। सुजान अवश्य ही अति सुन्दर रही होगी जो घनानन्द का दिल उस पर आया। भले उसने विश्वासघात किया, उसका दिल तोड़ा, किन्तु घनानन्द के मुख से उफ तक न निकली।

2. भक्ति भावना-सुजान के प्रति लौकिक प्रेम बाद में श्रीकृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम में बदल गया। किन्तु भक्ति में भी वे सुजान को न भूल पाये। सुजान अब श्रीकृष्ण का वाचक बन गया था। श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर घनानन्द ने अनेक पदों की रचना की है।

5. भूषण (सन् 1613-1715)

प्रश्न 1.
कविवर भूषण का संक्षिप्त जीवन परिचय देते हुए उनकी रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रीतिकालीन राज्याश्रय प्राप्त कवियों में भूषण ही ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने अपने आश्रयदाताओं की वासनापूर्ति के लिए काव्य की स्चना नहीं की बल्कि अपने आश्रयदाताओं की वीरता का ही बखान किया है। उनकी कविता में राष्ट्रीयता के गुण विद्यमान हैं। कुछ आलोचक उन पर साम्प्रदायिकता का दोष लगाते हैं जो हमारी दृष्टि में भूषण के साथ अन्याय करना ही है।

जीवन-परिचय-भूषण का जन्म सन् 1613 में जिला कानपुर के तिकवापुर गाँव में हुआ। वे कश्यप गोत्री कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। भूषण यह उनका वास्तविक नाम नहीं है। यह उनकी एक पदवी है जिसे भूषण के अनुसार उन्हें चित्रकूटपति सोलंकी राजा हृदय राम ने प्रदान की थी। भूषण के तीन भाई बताये जाते हैं-चिन्तामणि, मतिराम और जटाशंकर। इनमें प्रथम दो रीतिकाल के प्रसिद्ध कवि और आचार्य हुए।

भूषण ने भी रीतिकालीन कवियों की तरह राज्याश्रय ग्रहण किया। इनकी रचनाओं से ज्ञात होता है कि इनका सम्पर्क लगभग चौदह राजाओं के साथ रहा, किन्तु अन्त में अपनी विचारधारा के समर्थक छत्रपति शिवाजी महाराज के यहाँ पहुँचे। पन्ना के महाराज छत्रसाल भी इनका बहुत सम्मान करते थे। भूषण ने छत्रपति शिवाजी महाराज और छत्रसाल की वीरता का गान किया है। उन्होंने शिवाजी के रूप में एक महान् राष्ट्र संरक्षक व्यक्तित्व के दर्शन किए और उनके भीतर श्रीराम और श्रीकृष्ण की अद्वितीय शक्ति को देखा। डॉ० रवेलचन्द आनन्द उनके व्यक्तित्व के बारे में लिखते हैं-‘वीर कवि भूषण स्वाभिमानी व्यक्ति थे। उनके व्यक्तित्व और काव्य में स्वाभिमान, ओज, दर्प और निर्भीकता आदि गुण सर्वाधिक मुखरित हैं। उनके मन में देश के प्रति प्रेम था, प्राचीन परम्पराओं एवं भारतीय संस्कृति के प्रति दृढ़ आस्था थी। कवि का काव्य प्रशस्ति मूलक अवश्य है, पर खुशामदी कवियों जैसा नहीं। वे अपने काव्य के प्रति सजग एवं ईमानदार थे।’ रचनाएँ-भूषण के नाम से निम्नलिखित छः रचनाओं का उल्लेख किया जाता है-

  1. शिवराज भूषण
  2. शिवाबावनी
  3. छत्रसालदशक
  4. भूषण उल्लास
  5. दूषण उल्लास
  6. भूषण हजारा।।

डॉ० राजमल बोहरा इनमें शिवराज भूषण को ही प्रमाणिक मानते हैं।

प्रश्न 2.
भूषण के काव्य की प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भूषण हिन्दी के सच्चे वीर रस के कवि हैं। उनका सारा काव्य वीर रसात्मक है। केवल कुछ फुटकर छन्द ही शृंगार के हैं, जिन्हें अपवाद मानना चाहिए। उनके काव्य की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. चरितनायक की वीरता का वर्णन-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखते हैं-‘भूषण ने जिन नायकों को अपने वीर काव्यों का विषय बनाया है वे अन्याय दमन में तत्पर, हिन्दू धर्म के रक्षक, दो इतिहास प्रसिद्ध वीर थे। भूषण की कविता शिवाजी के चरित्र को सुशोभित करती है और शिवाजी हमारी राष्ट्रीयता को गौरव प्रदान करते हैं।’ भूषण ने अपने चरितनायकों की वीरता का वर्णन राष्ट्र रक्षक के रूप में किया है। उन्होंने अपने चरितनायकों में श्रीराम और श्रीकृष्ण की शक्ति को देखा था। भूषण शिवाजी को कलियुग का अवतार मानते हैं। भूषण ने अपने चरितनायकों की वीरता, साहस, यश, शौर्य, तेज आदि का ओजपूर्ण वर्णन किया है।

2. सजीव युद्ध वर्णन-भूषण के काव्य में युद्धों का सजीव वर्णन देखने को मिलता है। भूषण की वर्णन शैली इतनी प्रवाहपूर्ण और प्रभावशाली है कि युद्ध का एक चित्र-सा सामने खिंच जाता है।

3. ऐतिहासिकता की रक्षा- भूषण के काव्य में एक विशेषता यह भी देखने को मिलती है कि उन्होंने ऐतिहासिक तथ्यों को ईमानदारी से ग्रहण किया है। उन्होंने शत्रु पक्ष की वीरता और पराक्रम का यथास्थान वर्णन किया है। शिवाजी यदि सिंह है तो औरंगज़ेब भी हाथी है। मुग़ल सेना यदि नाग है तो शिवाजी खगराज गरुड़ हैं।

4. वीर रस के सहयोगी रसों का परिपाक-भूषण के काव्य में वीर रस के सहयोगी रसों-रौद्र, वीभत्स, भयानक आदि का वर्णन भी सुन्दर हुआ है। इनमें भयानक रस का वर्णन विस्तार से किया गया है।

5. राष्ट्रीयता-स्वदेश प्रेम भूषण की नस-नस में भरा है। जब औरंगज़ेब ने मन्दिरों को तोड़कर मस्जिदें बनानी शुरू की तो भूषण का खून खौल उठा और उन्होंने औरंगजेब का विरोध करने वाले शिवाजी का साथ दिया। शिवाजी के रूप में भूषण को एक लोकनायक मिल गया था। भूषण पर साम्प्रदायिकता का दोष लगाने वालों ने शायद भूषण की कविता का वह अंश नहीं पढ़ा है, जिसमें उन्होंने बाबर, हुमायूँ और अकबर की प्रशंसा की हैं।

कुछ आलोचक तो छत्रपति शिवाजी को भी साम्प्रदायिक कहते हैं, किन्तु वे यह भूल जाते हैं कि शिवाजी ने हिन्दुओं की रक्षा करने का बीड़ा उठाया था न कि मुसलमानों का विरोध करने का। भूषण ने भी बहुभाषी होने पर भी भारत को हिन्दी के माध्यम से एक सूत्रता में बाँधने का प्रयत्न किया।

वस्तुनिष्ठ/अति लघु प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रीतिकाल का समय कब से कब तक माना जाता है?
उत्तर:
रीतिकाल का समय सन् 1643 ई० (संवत् 1700) से सन् 1843 ई० (संवत् 1900) तक माना जाता है।

प्रश्न 2.
रीतिकाल से पूर्व कौन-सी प्रवृत्तियों ने सिर उठाना शुरू कर दिया था?
उत्तर:
रीतिकाल से पूर्व निरंकुश राजतन्त्रीय प्रवृत्तियों ने सिर उठाना शुरू कर दिया था।

प्रश्न 3.
रीतिकाल में किस-किस मुग़ल बादशाह ने शासन किया?
उत्तर:
रीतिकाल में जहाँगीर, शाहजहाँ, औरंगज़ेब, शाह आलम और मुहम्मद शाह रंगीला आदि राजाओं ने भारत पर शासन किया।

प्रश्न 4.
मुग़ल साम्राज्य की नींव हिलाने में किस-किस का योगदान रहा?
उत्तर:
सन् 1738 ई० में नादिर शाह और सन् 1761 ई० में अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों ने मुग़ल साम्राज्य की नींव हिलाकर रख दी।

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

प्रश्न 5.
सन् 1857 की जनक्रान्ति के विफल होने का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
सन् 1857 की जनक्रान्ति के विफल होने के फलस्वरूप मुग़ल शासन पूरी तरह समाप्त हो गया और भारत सन् 1903 ई० तक पूरी तरह अंग्रेज़ी शासन के अधीन हो गया।

प्रश्न 6.
औरंगजेब के उत्तराधिकारी कैसे थे?
उत्तर:
औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी अयोग्य, विलासी निकले, फलस्वरूप अनेक राज्य स्वतन्त्र हो गए।

प्रश्न 7.
सामाजिक दृष्टि से रीतिकाल को क्या कहा जाता है?
उत्तर:
सामाजिक दृष्टि से रीतिकाल विलास प्रधान युग कहा जा सकता है। मुग़ल बादशाहों का अनुकरण करते हुए सामन्त वर्ग और अमीर वर्ग भी विलासिता में डूबता जा रहा था।

प्रश्न 8.
रीतिकाल की विलासिता का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
रीतिकाल में विलासिता के प्रदर्शन की प्रवृत्ति के कारण पौरुष का ह्रास हुआ और मनोबल की कमी के कारण समाज का बौद्धिक स्तर भी गिरा।

प्रश्न 9.
रीतिकालीन समाज में नारी की स्थिति कैसी थी ?
उत्तर:
रीतिकाल में नारी को केवल मनोरंजन और विलास की सामग्री समझा गया।

प्रश्न 10.
रीतिकाल में किस कुप्रथा का प्रचलन हुआ और क्यों?
उत्तर:
रीतिकाल में बाल-विवाह की प्रथा का प्रचलन शुरू हुआ क्योंकि इस काल में किसी भी सुन्दर कन्या का अपहरण किया जाना मामूली बात थी।

प्रश्न 11.
रीतिकालीन समाज में जनसाधारण की दशा कैसी थी?
उत्तर:
रीतिकाल में जनसाधारण की शिक्षा, चिकित्सा आदि का कोई प्रबन्ध नहीं था। जनसाधारण में अन्धविश्वास और रूढ़ियाँ घर कर गई थीं।

प्रश्न 12.
रीतिकालीन समाज में मजदूर, किसान और कलाविदों की हालत कैसी थी?
उत्तर:
रीतिकाल में मजदूर वर्ग अत्याचारों से पीड़ित था तो किसान वर्ग जीविका निर्वाह के साधनों से रहित था। कलाविदों को शासक वर्ग उपेक्षा की दृष्टि से देखता था।

प्रश्न 13.
रीतिकालीन काव्य में तत्कालीन समाज का चित्रण क्यों नहीं मिलता?
उत्तर:
रीतिकालीन कवि अपने आश्रयदाताओं की विलासिता को भड़काने वाली कविता ही लिखा करते थे। इसी कारण जन-जीवन की पीड़ाओं का उनके काव्य में चित्रण नहीं मिलता।

प्रश्न 14.
रीतिकालीन धार्मिक परिस्थितियाँ कैसी थीं?
उत्तर:
धार्मिक दृष्टि से रीतिकाल सभ्यता और संस्कृति के पतन का युग था। धर्म के नाम पर भोग-विलास के साधन जुटाए जाने लगे थे।

प्रश्न 15.
रीतिकालीन आर्थिक परिस्थितियों में सबसे बड़ा बदलाव क्या आया?
उत्तर:
रीतिकाल में वर्ण व्यवस्था व्यवसाय पर आधारित होने लगी थी। लोग उत्पादक और उपभोक्ता दो वर्गों में बँट गए थे।

प्रश्न 16.
रीतिकाल में प्रचलित विभिन्न काव्यधाराओं के नाम बताएं।
उत्तर:
रीतिकाल में तीन प्रकार की काव्य धाराएँ प्रचलित थीं(1) रीतिबद्ध काव्य (2) रीतिसिद्ध काव्य (3) रीतिमुक्त काव्य।

प्रश्न 17.
किन्हीं चार रीतिबद्ध कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
केशव, देव, मतिराम, चिन्तामणि।

प्रश्न 18.
किन्हीं दो रीतिसिद्ध कवियों और उनकी रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
बिहारी (बिहारी सतसई), वृन्द (पवन पच्चीसी)।।

प्रश्न 19.
किन्हीं चार रीतिमुक्त कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर;
घनानंद, बोधा, आलम, ठाकुर।

प्रश्न 20.
किन्हीं दो रीनिबद्ध काव्यों के नाम उनके रचनाकारों सहित लिखें।
उत्तर:
रसिकप्रिया (केशव), भवानी विलास (देव)।

प्रश्न 21.
रीतिकाल के प्रवर्तक आचार्य कवि किसे माना जाता है?
उत्तर:
केशवदास को।

प्रश्न 22.
किन्हीं दो रीतिमुक्त काव्य कृतियों के नाम उनके रचनाकारों के नाम सहित लिखें।
उत्तर:
सुजान सागर (घनानन्द), विरह बारीश (बोधा)।

प्रश्न 23.
रीतिकाल में वीर काव्य लिखने वाले किन्हीं दो कवियों के नाम लिखें।
उत्तर:
भूषण और पद्माकर।

प्रश्न 24.
रीतिकाल में नीतिपरक काव्य लिखने वाले किन्हीं दो कवियों के नाम लिखें।
उत्तर:
रहीम और वृंद।

प्रश्न 25.
मिश्रबन्धओं ने रीतिकाल को किस नाम से पुकारा है?
उत्तर:
अलंकृत काल।

प्रश्न 26.
रीतिकाल को ‘कलाकाल’ की संज्ञा किस विद्वान् ने दी?
उत्तर:
डॉ० राम कुमार वर्मा ने।

प्रश्न 27.
रीतिबद्ध काव्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रीतिबद्ध काव्य वह है जिसमें काव्यशास्त्र के आधार पर काव्यांगों के लक्षण तथा उदाहरण दिए जाते हैं।

प्रश्न 28.
रीतिमुक्त कवि किसे कहते हैं?
उत्तर:
जिन्होंने कोई लक्षण ग्रन्थ अथवा रीतिबद्ध रचना नहीं लिखी हो।

प्रश्न 29.
रीतिकालीन काव्य की कोई चार विशेषताएँ लिखें।
उत्तर:
शृंगारिकता, आलंकारिकता, भक्ति और नीति, लक्षण ग्रन्थों का निर्माण।

प्रश्न 30.
केशव की प्रमुख रचनाओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
रामचन्द्रिका, रसिकप्रिया, कविप्रिया, रतन बावनी।

प्रश्न 31.
बिहारी का कोई एक नीतिपरक दोहा लिखें।
उत्तर:
बड़े न हूजै गुनन बिन, विरद बड़ाई पाय। कहत धतूरे सौ कनक, गहनो गढ़यो न जाय।

प्रश्न 32.
रीतिकाल के किस कवि को ‘कठिन काव्य का प्रेत’ कहा जाता है?
उत्तर:
केशवदास को।

प्रश्न 33.
रीतिकाल में राष्ट्रीय आदर्श लेकर चलने वाले कवि और उसकी दो रचनाओं के नाम लिखें।
उत्तर:
भूषण-शिवाबावनी, छत्रसालंदशक, शिवराज भूषण, भूषण उल्लास।

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

प्रश्न 34.
रीतिकाल को श्रृंगार काल नाम किसने दिया?
उत्तर:
डॉ० विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने।

प्रश्न 35.
डॉ० नगेंद्र ने रीतिकाल का प्रवर्तक कवि किसे माना है?
उत्तर:
केशवदास को।

प्रश्न 36.
‘हिन्द की चादर’ किसे कहा जाता है?
उत्तर:
गुरु तेग बहादुर जी को हिन्द की चादर कहा जाता है।

प्रश्न 37.
“देह शिवा वर मोहि इहै, शुभ कर्मन ते कबहुँ न टरौं।” ये पंक्तियाँ किस रीतिकालीन कवि की
उत्तर:
गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा रचित हैं।

प्रश्न 38.
हिन्दी साहित्य में काल विभाजन की दृष्टि से रीतिकाल दूसरा काल है अथवा तीसरा काल है।
उत्तर:
तीसरा काल है।

प्रश्न 39.
आचार्य राम चद्र शुक्ल ने रीतिकाल का आरंभ किस कवि से माना है?
उत्तर:
चिंतामणि त्रिपाठी से।

प्रश्न 40.
ईस्वी सन् में कितने वर्ष जोड़ने पर विक्रमी संवत् बनता है?
उत्तर:
57 वर्ष।

प्रश्न 41.
रीतिकाल को श्रृंगारकाल नाम किसने दिया? .
उत्तर:
आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने।

प्रश्न 42.
रीतिकाल को ‘रीतिकाल’ नाम किस ने दिया था?
उत्तर:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल।

प्रश्न 43.
रीतिकाल के किसी एक मुग़ल शासक का नाम बताएं।
उत्तर;
शाहजहां।

प्रश्न 44.
रीतिकालीन किसी एक विश्व प्रसिद्ध संगीतज्ञ का नाम लिखें।
उत्तर:
तानसेन।

प्रश्न 45.
“बिहारी सतसई’ किस कवि की रचना है?
उत्तर:
बिहारी।

प्रश्न 46.
अकबर के बाद कौन राजा बना?
उत्तर:
जहाँगीर।

प्रश्न 47:
“बिहारी सतसई’ किस कवि की रचना है?
उत्तर:
बिहारी लाल।

प्रश्न 48.
‘भाव विलास’ किस की रचना है?
उत्तर:
महाकवि देव।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1.
रीतिकालीन किसी एक मुग़ल शासक का नाम लिखें।
उत्तर:
शाहजहाँ।

प्रश्न 2.
रीतिकालीन कवि बिहारी की एक मात्र रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
बिहारी सतसई।

प्रश्न 3.
रीतिकाल को ‘रीतिकाल’ नाम किसने दिया?
उत्तर:
आचार्य रामचंद्र शुक्ल।

प्रश्न 4.
एक रीतिसिद्ध कवि का नाम लिखें।
उत्तर:
बिहारी।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रीतिकाल का प्रवर्तक कवि किसे माना जाता है?
(क) केशव
(ख) बिहारी
(ग) भूषण
(घ) सेनापति।
उत्तर:
(क) केशव

प्रश्न 2.
रीतिकाल को प्रवृत्ति के आधार पर किन भागों में बांटा जा सकता है?
(क) रीतिबद्ध
(ख) रीतिसिद्ध
(ग) रीतिमुक्त
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 3.
मिश्र बंधुओं ने रीतिकाल को किस नाम से अभिहित किया है?
(क) अलंकृत काल
(ख) श्रृंगार काल
(ग) रीतिकाल
(घ) कला काल।
उत्तर:
(क) अलंकृत काल

प्रश्न 4.
रीतिकाल को कला काल की संज्ञा किसने दी?
(क) रामचन्द्र शुक्ल
(ख) रामकुमार वर्मा
(ग) मिश्रबन्धु
(घ) बिहारी।
उत्तर:
(ख) रामकुमार वर्मा

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

प्रश्न 5.
रीतिकाल का कवि होते हुए भी किस कवि को भक्तिकाल का माना जाता है?
(क) बिहारी
(ख) भूषण
(ग) चन्द्र
(घ) केशव।
उत्तर:
(क) बिहारी

प्रश्न 6.
रीतिकाल में नीतिपरक काव्य लिखने वाले प्रतिनिधि कवि कौन हैं?
(क) रहीम
(ख) वृन्द
(ग) रहीम और वृन्द
(घ) केशव।
उत्तर:
(ग) रहीम और वृन्द।

प्रमुख कवि

केशव

प्रश्न 1.
केशव का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
केशव का जन्म सन् 1555 के आसपास बुंदेलखंड के ओरछा नगर में हुआ।

प्रश्न 2.
केशव कौन-से राजा के दरबारी कवि थे?
उत्तर:
केशव ओरछा नरेश इन्द्रजीत सिंह के दरबारी कवि, मन्त्री और गुरु थे।

प्रश्न 3.
केशव की किन्हीं दो प्रसिद्ध रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
रामचन्द्रिका और रसिक प्रिया।

प्रश्न 4.
केशव की रचना रसिक प्रिया का कथ्य क्या है?
उत्तर:
रसिक प्रिया में श्रृंगार को रसराज मानकर अन्य रसों को उसी में अन्तर्भूत करने का प्रयास किया गया है।

प्रश्न 5.
कवि प्रिया कैसा ग्रन्थ है?
उत्तर:
कवि प्रिया में काव्य दोषों और अलंकारों का विवेचन किया गया है।

प्रश्न 6.
रामचन्द्रिका की रामकथा कौन-से संस्कृत ग्रन्थों से प्रभावित है?
उत्तर:
रामचन्द्रिका पर स्पष्ट रूप से संस्कृत ग्रन्थ ‘प्रसन्नराघव’ तथा ‘हनुमन्न नाटक’ का प्रभाव दिखाई पड़ता है।

प्रश्न 7.
रामचन्द्रिका की सबसे बड़ी विशेषता कौन-सी है?
उत्तर:
रामचन्द्रिका की सबसे बड़ी विशेषता उसकी संवाद योजना है।

देव

प्रश्न 1.
महाकवि देव का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
महाकवि देव का जन्म सन् 1673 ई० में उत्तर प्रदेश के इटावा नगर में हुआ।

प्रश्न 2.
महाकवि देव के आश्रयदाताओं में से किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:
राजा भोगी लाल तथा राजा मर्दन सिंह।

प्रश्न 3.
देव की किन्हीं दो प्रसिद्ध रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
भाव विलास तथा भवानी विलास।

प्रश्न 4.
देव ने अपने आश्रयदाताओं में सबसे अधिक प्रशंसा किसकी की है?
उत्तर:
देव ने अपने आश्रयदाताओं में सबसे अधिक राजा भोगीलाल की प्रशंसा की है।

प्रश्न 5.
देव के काव्य में सर्वाधिक किस रस का विवेचन हुआ है ?
उत्तर:
देव के काव्य में सर्वाधिक श्रृंगार रस का विवेचन हुआ है। किन्तु इस श्रृंगार वर्णन में कहीं भी हल्कापन नहीं है।

प्रश्न 6.
देव ने श्रृंगार रस का पूर्ण परिपाक किस प्रेम में माना है ?
उत्तर:
देव ने दाम्पत्य प्रेम में ही श्रृंगार का पूर्ण परिपाक माना है। उनकी दृष्टि में स्वकीया प्रेम ही सच्चा प्रेम है।

बिहारी

प्रश्न 1.
बिहारी का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
बिहारी का जन्म सन् 1595 को ग्वालियर में हुआ था।

प्रश्न 2.
बिहारी की एकमात्र रचना का नाम लिखकर बताइए कि उसमें कितने दोहे हैं ?
उत्तर:
बिहारी की एकमात्र रचना बिहारी सतसई है जिसमें 713 दोहे हैं।

प्रश्न 3.
बिहारी की मृत्यु कब और कहाँ हुई?
उत्तर:
बिहारी की मृत्यु 1663 ई० में वृंदावन में हुई।

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प्रश्न 4.
बिहारी सतसई में किन-किन विषयों में दोहे देखने को मिलते हैं?
उत्तर:
बिहारी सतसई में शृंगार के अतिरिक्त अध्यात्मक, पुराण, ज्योतिष, गणित आदि अनेक विषयों का समाहार हुआ हैं।

घनानन्द

प्रश्न 1.
घनानन्द का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
घनानन्द का जन्म सन् 1673 ई० में बुलन्द शहर में हुआ माना जाता है।

प्रश्न 2.
घनानन्द किस बादशाह के दरबार में नौकरी करते थे?
उत्तर:
घनानन्द मुग़ल वंश के विलासी बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला के मीर मुंशी थे।

प्रश्न 3.
घनानन्द को बादशाह ने दरबार से किस कारण निकाल दिया?
उत्तर:
एक दिन दरबार में गाना गाते समय घनानन्द की पीठ बादशाह की तरफ हो गई जिसे बादशाह ने बेअदबी समझकर इन्हें शहर से निकाल दिया।

प्रश्न 4.
घनानन्द की किन्हीं दो रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. सुजान हित
  2. सुजान सागर।

प्रश्न 5.
घनानन्द को प्रेम की पीर का कवि क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
घनानन्द ने रीतिकालीन कवियों की लीक से हटकर प्रेम की पीर से बिंधे हृदय के अश्रु मोतियों को अपने काव्य के सूत्र में पिरोया है। इसलिए इन्हें प्रेम की पीर का कवि कहा जाता है।

प्रश्न 6.
घनानन्द को रीतिकालीन कौन-सी काव्यधारा का कवि माना जाता है?
उत्तर:
घनानन्द रीतिकाल की रीतिमुक्त काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि हैं।

प्रश्न 7.
घनानन्द के काव्य की कोई-सी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
(1) एकनिष्ठ प्रेम तथा (2) निष्काम-नि:स्वार्थ प्रेम।

प्रश्न 8.
घनानन्द का लौकिक प्रेम किस रूप में परिवर्तित हआ?
उत्तर:
घनानन्द का सुजान के प्रति अलौकिक प्रेम बाद में श्रीकृष्ण के प्रति अलौकिक प्रेम में बदल गया। सुजान शब्द तब श्रीकृष्ण का वाचक बन गया था।

प्रश्न 9.
घनानन्द की भक्ति कैसी थी?
उत्तर:
घनानन्द की भक्ति वैष्णों की भक्ति है। कृष्ण भक्त कवियों की तरह इनकी भक्ति भी लीला प्रधान और श्रृंगार व्यंजक है।

प्रश्न 10.
घनानन्द की भक्ति पर किस-किस का प्रभाव देखने को मिलता है?
उत्तर;
घनानन्द की भक्ति पर भारतीय दर्शन और सूफी दर्शन का प्रभाव देखने को मिलता है।

प्रश्न 11.
घनानन्द की भक्ति सम्बन्धी रचनाओं की प्रमुख विशेषता क्या है ?
उत्तर:
घनानन्द की भक्ति सम्बन्धी रचनाओं में भगवत् कृपा का महत्त्व और वृंदावन की महिमा का विशेष रूप से गान किया गया है।

भूषण

प्रश्न 1.
कविवर भूषण का जन्म कब और कहाँ हुआ?
उत्तर:
डॉ० नगेन्द्र के अनुसार भूषण का जन्म सन् 1613 में कानपुर के निकट तिकवापुर नामक स्थान पर हुआ।

प्रश्न 2.
भूषण कवि को ‘भूषण’ की उपाधि किसने दी?
उत्तर:
चित्रकूट के राजा रूद्रशाह सोलंकी ने कवि को ‘भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया।

प्रश्न 3.
भूषण के आश्रयदाताओं में किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:
छत्रपति शिवा जी महाराज तथा छत्रसाल।

प्रश्न 4.
भूषण की प्रसिद्ध रचनाओं में से किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. शिवराज भूषण
  2. छत्रसाल दशक।

प्रश्न 5.
भूषण ने अपने काव्य में शिवाजी को किस रूप में चित्रित किया है?
उत्तर:
भूषण ने अपने काव्य में शिवाजी को भारतीय संस्कृति के रक्षक एवं उद्धारक के रूप में चित्रित किया है।

प्रश्न 6.
भूषण के काव्य की किन्हीं दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सजीव युद्ध वर्णन
  2. चरितनायक की वीरता का वर्णन।

प्रश्न 7.
भूषण के काव्य में वीररस का पूर्ण परिपाक कौन-से प्रसंगों में मिलता है?
उत्तर:

  1. युद्ध-वर्णन के प्रसंगों तथा
  2. चरित नामक अजेय शक्ति का परिचय देते समय।

प्रश्न 8.
शिवा बावनी किसकी रचना है?
उत्तर:
भूषण।

प्रश्न 9.
भूषण की किसी एक रचना का नाम लिखिए।
उत्तर:
शिवराज भूषण।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि प्रिया के लेखक कौन हैं?
(क) केशव
(ख) बिहारी
(ग) सेनापति
(घ) चन्द।
उत्तर:
(क) केशव

प्रश्न 2.
केशव ने किस रचना का लेखन एक रात में कर दिया था?
(क) कविप्रिया
(ख) रामचन्द्रिका
(ग) रामायण
(घ) रामकथा।
उत्तर:
(ख) रामचन्द्रिका

प्रश्न 3.
‘भाव विलास’ किसकी रचना है?
(क) केशव
(ख) बिहारी
(ग) देव
(घ) घनानन्द।
उत्तर:
(ग) देव

प्रश्न 4.
‘बिहारी सतसई’ में कितने दोहे हैं?
(क) 713
(ख) 715
(ग) 717
(घ) 718.
उत्तर:
(क) 713

PSEB 12th Class हिन्दी साहित्य का इतिहास रीतिकाल

प्रश्न 5.
घनानंद रीतिकाल की किस धारा के कवि थे?
(क) रीतिबद्ध
(ख) रीतिसिद्ध
(ग) रीतिमुक्त
(घ) रीतिकाल।
उत्तर:
(ग) रीतिमुक्त

प्रश्न 6.
‘शिवाबावनी’ किसकी रचना है?
(क) बिहारी
(ख) भूषण
(ग) केशव
(घ) रहीम।
उत्तर:
(ख) भूषण।

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Punjab State Board PSEB 10th Class Maths Book Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Maths Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Question 1.
In fig. (i) and (ü), DE U BC. Find EC in (i) and AD in (ii).

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 1

Solution:
(i) In ∆ABC, DE || BC ……………(given)
∴ \(\frac{\mathrm{AD}}{\mathrm{BD}}=\frac{\mathrm{AE}}{\mathrm{EC}}\)
[By using Basic Proportionality Theorem]
\(\frac{1.5}{3}=\frac{1}{\mathrm{EC}}\)
EC = \(\frac{3}{1.5}\)
EC = \(\frac{3 \times 10}{15}\) = 2
∴ EC = 2 cm.

(ii) In ∆ABC,
DE || BC ……………(given)
∴ \(\frac{\mathrm{AD}}{\mathrm{BD}}=\frac{\mathrm{AE}}{\mathrm{EC}}\)
[By using Basic Proportionality Theorem]
\(\frac{\mathrm{AD}}{7.2}=\frac{1.8}{5.4}\)
AD = \(\frac{1.8 \times 7.2}{5.4}\)
= \(\frac{1.8}{10} \times \frac{72}{10} \times \frac{10}{54}=\frac{24}{10}\)
AD = 2.4
∴ AD = 2.4 cm.

PSEB Solutions PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Question 2.
E and F are points on the sides PQ and PR respectively of a APQR. For each of the following cases, state whether EF || QR :
(i) PE = 3.9 cm, EQ = 3 cm, PF = 3.6 cm and FR = 2.4 cm
(ii) PE =4 cm, QE = 4.5 cm, PF =8 cm and RF = 9cm.
(iii) PQ = 1.28 cm, PR = 2.56 cm, PE = 0.18 cm and PF = 0.36 cm.
Solution:
In ∆PQR, E and F are two points on side PQ and PR respectively.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 2

(i) PE = 3.9 cm, EQ = 3 cm
PF = 3.6 cm, FR = 2.4 cm
\(\frac{\mathrm{PE}}{\mathrm{EQ}}=\frac{3.9}{3}=\frac{39}{30}=\frac{13}{10}=1.3\)

\(\frac{P F}{F R}=\frac{3.6}{2.4}=\frac{36}{24}=\frac{3}{2}=1.5\) \(\frac{\mathrm{PE}}{\mathrm{EQ}} \neq \frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{FR}}\)

∴ EF is not parallel to QR.

(ii) PE = 4 cm, QE = 4.5 cm,
PF = 8 cm, RF = 9 cm.
\(\frac{\mathrm{PE}}{\mathrm{QE}}=\frac{4}{4.5}=\frac{40}{45}=\frac{8}{9}\) ………….(1)
\(\frac{P F}{R F}=\frac{8}{9}\) ……………..(2)
From (1) and (2),
\(\frac{\mathrm{PE}}{\mathrm{QE}}=\frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{RF}}\)
∴ By converse of Basic Proportionality theorem EF || QR.

(iii) PQ = 1.28 cm, PR = 2.56 cm
PE = 0.18 cm, PF = 0.36 cm.
EQ = PQ – PE = 1.28 – 0.18 = 1.10 cm
ER = PR – PF = 2.56 – 0.36 = 2.20 cm
Here \(\frac{\mathrm{PE}}{\mathrm{EQ}}=\frac{0.18}{1.10}=\frac{18}{110}=\frac{9}{55}\) …………..(1)

and \(\frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{FR}}=\frac{0.36}{2.20}=\frac{36}{220}=\frac{9}{55}\) …………….(2)

From (1) and (2), \(\frac{\mathrm{PE}}{\mathrm{EQ}}=\frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{FR}}\)
∴ By converse of Basic Proportionality Theorem EF || QR.

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Question 3.
In fig., LM || CB; and LN || CD. Prove that \(\frac{\mathbf{A M}}{\mathbf{A B}}=\frac{\mathbf{A N}}{\mathbf{A D}}\).

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 3

Solution:
In ∆ABC,
LM || BC (given)
∴ \(\frac{\mathrm{AM}}{\mathrm{MB}}=\frac{\mathrm{AL}}{\mathrm{LC}}\) ………..(1)
(By Basic Proportionality Theorem)
Again, in ∆ACD
LN || CD (given)
∴ \(\frac{A N}{N D}=\frac{A L}{L C}\) …………..(2)
(By Basic Proportionality Theorem)
From (1) and (2),
\(\frac{\mathrm{AM}}{\mathrm{MB}}=\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{ND}}\)

or \(\frac{\mathrm{MB}}{\mathrm{AM}}=\frac{\mathrm{ND}}{\mathrm{AN}}\)

or \(\frac{\mathrm{MB}}{\mathrm{AM}}+1=\frac{\mathrm{ND}}{\mathrm{AN}}+1\)
or \(\frac{\mathrm{MB}+\mathrm{AM}}{\mathrm{AM}}=\frac{\mathrm{ND}+\mathrm{AN}}{\mathrm{AN}}\)

or \(\frac{\mathrm{AB}}{\mathrm{AM}}=\frac{\mathrm{AD}}{\mathrm{AN}}\)

or \(\frac{\mathrm{AM}}{\mathrm{AB}}=\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{AD}}\)
Hence, \(\frac{\mathrm{AM}}{\mathrm{AB}}=\frac{\mathrm{AN}}{\mathrm{AD}}\) is the required result.

PSEB Solutions PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Question 4.
In Fig. 6.19, DE || AC and DF || AE. Prove that \(\frac{\mathrm{BF}}{\mathrm{FE}}=\frac{\mathrm{BE}}{\mathrm{EC}}\).

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 4

Solution:
In ∆ABC, DE || AC(given)

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 4

∴ \(\frac{B D}{D A}=\frac{B E}{E C}\) …………….(1)
[By Basic Proportionality Theorem]
In ∆ABE, DF || AE
\(\frac{\mathrm{BD}}{\mathrm{DA}}=\frac{\mathrm{BF}}{\mathrm{FE}}\) …………….(2)
[By Basic Proportionality Theorem]
From (1) and (2),
\(\frac{\mathrm{BE}}{\mathrm{EC}}=\frac{\mathrm{BF}}{\mathrm{FE}}\)
Hence proved.

PSEB Solutions PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Question 5.
In fig. DE || OQ and DF || OR. Show that EF || QR.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 5

Solution:
Given:
In ∆PQR, DE || OQ DF || OR.
To prove: EF || QR.
Proof: In ∆PQO, ED || QO (given)

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 6

∴ \(\frac{P D}{D O}=\frac{P E}{E Q}\)

[By Basic Proportionality Theorem]
Again in ∆POR,
DF || OR (given)
∴ \(\frac{P D}{D O}=\frac{P F}{F R}\) ………….(2)
[By Basic Proportionality Theorem]
From (1) and (2),
\(\frac{\mathrm{PE}}{\mathrm{EQ}}=\frac{\mathrm{PF}}{\mathrm{FR}}\)
In ∆PQR, by using converse of Basic proportionaIity Theorem.
EF || QR,
Hence proved.

PSEB Solutions PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Question 6.
In flg., A, B and C points on OP, OQ and OR respectively such that AB || PQ and AC || PR. Show thatBC || QR.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 7

Solution:
Given : ∆PQR, A, B and C are points on OP, OQ and OR respectively such that AB || PQ, AC || PR.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 8

To prove: BC || QR.
Proof: In ∆OPQ, AB || PQ (given)
∴ \(\frac{\mathrm{OA}}{\mathrm{AP}}=\frac{\mathrm{OB}}{\mathrm{BQ}}\) …………….(1)
[BY using Basic Proportionality Theorem]
Again in ∆OPR.
AC || PR (given)
∴ \(\frac{\mathrm{OA}}{\mathrm{AP}}=\frac{\mathrm{OC}}{\mathrm{CR}}\) ……………….(2)
[BY using Basic Proportionality Theorem]
From (1) and (2),
\(\frac{\mathrm{OB}}{\mathrm{BQ}}=\frac{\mathrm{OC}}{\mathrm{CR}}\)
∴ By converse of Basic Proportionality Theorem.
In ∆OQR, BC || QR. Hence proved.

PSEB Solutions PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Question 7.
Using Basic Proportionality theorem, prove that a line drawn through the mid-point of one side of a triangle parallel to another side bisects the third side. (Recall that you have proved ¡t in class IX).
Solution:
Given: In ∆ABC, D is mid point of AB, i.e. AD = DB.
A line parallel to BC intersects AC at E as shown in figure. i.e., DE || BC.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 9

To prove: E is mid point of AC.
Proof: D is mid point of AB.
i.e.. AD = DB (given)
Or \(\frac{\mathrm{AD}}{\mathrm{BD}}\) = 1 ……………..(1)
Again in ∆ABC DE || BC (given)
∴ \(\frac{\mathrm{AD}}{\mathrm{DB}}=\frac{\mathrm{AE}}{\mathrm{EC}}\)
[By Basic Proportionality Theorem]
∴ 1 = \(\frac{\mathrm{AE}}{\mathrm{EC}}\) [From (1)]
∴ AE = EC
∴ E is mid point of AC. Hence proved.

PSEB Solutions PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2

Question 8.
Using converse of Basic Proportionality theorem prove that the line joining the mid-points of any two sides of a triangle is parallel to the third side. (Recall that you have done ¡tin Class IX).
Solution:
Given ∆ABC, D and E are mid points of AB and AC respectively such that AD = BD and AE = EC, D and Eare joined

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 10

To Prove, DE || BC
Proof. D is mid point of AB (Given)
i.e., AD = BD
Or \(\frac{\mathrm{AD}}{\mathrm{BD}}\) = 1 ………………(1)
E is mid point of AC (Given)
∴ AE = EC
Or \(\frac{\mathrm{AE}}{\mathrm{EC}}\) = 1 ………………(2)
From (1) and (2),
By using converse of basic proportionality Theorem
DE || BC Hence Proved.

Question 9.
ABCD is a trapeiiumin with AB || DC and its diagonals Intersect each other at the point O. Show that \(\frac{A O}{B O}=\frac{C O}{D O}\).
Solution:
Given. ABCD is trapezium AB || DC, diagonals AC and BD intersect each other at O.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 11

To Prove. \(\frac{\mathrm{AO}}{\mathrm{BO}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{DO}}\)
Construction. Through O draw FO || DC || AB
Proof. In ∆DAB, FO || AB (construction)
∴ \(\frac{\mathrm{DF}}{\mathrm{FA}}=\frac{\mathrm{DO}}{\mathrm{BO}}\) ……………..(1)
[By using Basic Proportionality Theorem]
Again in ∆DCA,
FO || DC (construction)
\(\frac{\mathrm{DF}}{\mathrm{FA}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{AO}}\)
[By using Basic Proportionality Theorem]
From (1) and (2),
\(\frac{\mathrm{DO}}{\mathrm{BO}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{AO}} \quad \frac{\mathrm{AO}}{\mathrm{BO}} \quad \frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{DO}}\)
Hence Proved.

Question 10.
The diagonals of a quadrilateral ABCD Intersect each other at the point O such that \(\frac{\mathrm{AO}}{\mathrm{BO}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{DO}}\).Show that ABCD is a
trapezium.
Solution:
Given: Quadrilateral ABCD, Diagonal AC and BD intersects each other at O
such that = \(\frac{\mathrm{AO}}{\mathrm{BO}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{DO}}\)

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 6 Triangles Ex 6.2 12

To Prove. Quadrilateral ABCD is trapezium.
Construction. Through ‘O’ draw line EO || AB which meets AD at E.
Proof. In ∆DAB,
EO || AB [Const.]
∴ \(\frac{\mathrm{DE}}{\mathrm{EA}}=\frac{\mathrm{DO}}{\mathrm{OB}}\) ………………(1)
[By using Basic Proportionality Theoremj
But = \(\frac{\mathrm{AO}}{\mathrm{BO}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{DO}}\) (Given)

or \(\frac{\mathrm{AO}}{\mathrm{CO}}=\frac{\mathrm{BO}}{\mathrm{DO}}\)

or \(\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{AO}}=\frac{\mathrm{DO}}{\mathrm{BO}}\)

⇒ \(\frac{\mathrm{DO}}{\mathrm{OB}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{AO}}\) …………….(2)
From (1) and (2),
\(\frac{\mathrm{DE}}{\mathrm{EA}}=\frac{\mathrm{CO}}{\mathrm{AO}}\)
∴ By using converse of basic
proportionlity Theorem,
EO || DC also EO || AB [Const]
⇒ AB || DC
∴ Quadrilateral ABCD is a trapezium with AB || CD.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2

Punjab State Board PSEB 10th Class Maths Book Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Maths Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2

Question 1.
Find the area of sector of a circle with radius 6 cm, if angle of the sector is 60°.
Solution:
Radius of sector of circle (R) = 6 cm

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 1

Central angle (θ) = 60°
Area of sector = \(\frac{\pi \mathrm{R}^{2} \theta}{360}\)

= \(\frac{22}{7} \times \frac{6 \times 6 \times 60}{360}\)

= \(\frac{132}{7}\) cm2
∴ Area of sector = 18.86 cm2.

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Question 2.
Find the area of a quadrant of a circle whose circumference is 22 cm.
Solution:
Circumference of circle = 22 cm
2πR = 22
R = \(\frac{22 \times 7}{2 \times 22}=\frac{7}{2}\) cm
R = \([latex]\frac{7}{2}\)[/latex] cm
Central angle [quadrant] (θ) = 90°
∴ Area of a quadrant = \(\frac{\pi \mathrm{R}^{2} \theta}{360}=\frac{\frac{22}{7} \times \frac{7}{2} \times \frac{7}{2} \times 90}{360}\)

= \(\frac{77}{8}\)

Area of quadrant = 9.625 cm2.

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Question 3.
The length of the minute hand of a clock is 14 cm. Find the area swept by the minute hand in 5 minutes.
Solution:
Length of minute hand of clock = Radius of circle (R) = 14 cm

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 3

We know that
60’ = 360°
1’ = \(\frac{360^{\circ}}{60}\) = 6°
5′ = 60 × 5 = 30°
Angle of sector (θ) = 30°
∴ Area swept by minute hand in 5 minutes = \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360}\)

= \(\frac{22}{7} \times 14 \times 14 \times \frac{30}{360}\)

= \(\frac{1}{12}\) × 22 × 28 = \(\frac{154}{3}\) cm2.

Hence, area swept by minute hand in 5 minutes is 5133 cm2.

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Question 4.
A chord of a circle of radius 10 cm subtends a right angle at the centre. Find the area of the corresponding:
(i) minor segment
(ii) major sector.
Solution:
Radius of circle (R) = 10 cm
Central angle (θ) = 90°

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 2

(i) Area of minor sector = \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360}\)

= 3.14 × 10 × 10 × \(\frac{90}{360}\)

Area of minor sector = \(\frac{314}{4}\) = 78.5 cm2
Area of minor segment = Area of minor sector – Area of MOB
= 78.5 – \(\frac{1}{2}\) Base × Altitude
= 78.5 – \(\frac{1}{2}\) × 10 × 10
= 78.5 – 50 = 28.5
∴ Area of minor segment = 28.5 cm2

(ii) Area of major sector = \(\frac{(360-\theta)}{360}\)
= \(\frac{(360-90)}{360}\) × 3.14 × 10 × 10
= \(\frac{270}{360}\) × 3.14 × 100
= \(\frac{3 \times 314}{4}=\frac{3 \times 157}{2}\)
∴ Area of major sector 235.5 cm2.

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Question 5.
In a circle of radius 21 cm, an arc subtends an angle of 60° at the centre. Find:
(j) the length of the arc
(ii) area of the sector formed by the arc
(iii) area of the segment formed by the corresponding chord
Solution:
(i) Radius of circle (R) 21 cm

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 4

Central angle(θ) = 60°
Length of arc = \(\frac{\theta}{360}\) × 2πR
= \(\frac{60}{360} \times 2 \times \frac{22}{7} \times 21\) = 22 cm
Hence, length of arc = 22 cm.

(ii) Area of sector formed by arc = \(\)
= \(\frac{22}{7} \times \frac{21 \times 21 \times 60}{360}\)
Area of sector = 231 cm2
∴ Since ∆OAB is equilateral triangle, θ = 60°.

(iii) Area of segment = Area of sector – Area of ∆AOB
= \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360}-\frac{\sqrt{3}}{4}(\text { side })^{2}\)
= 231 – \(\frac{1.73}{4}\) × 21 × 21
= 231 – 0.4325 × 441
= 231 – 190.7325
Area of segment = 40.26 cm2.

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Question 6.
A chord of a circle of radius 15 cm subtends an angle of 60° at the centre. Find the areas of the corresponding minor and major segments of the circle. (Use π = 3.14 and √3 = 1.73)
Solution:
Radius of circle = (R) = 15 cm
Central angle (θ) = 60°

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 5

In ∆OAB, central angle θ = 60°
OA = OB = 15 cm
∴ ∠A = ∠B
Now, ∠A + ∠B + ∠O = 180°
2∠A ÷ 600 = 180°
∠A = 60°
∴ ∠A = ∠B = 60
∴ ∠OAB is equilateral.
[ Area of minor segment] = [Area of minor sector] – [Area of equilateral triangle]

= \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360}-\frac{\sqrt{3}}{4}(\text { side })^{2}\)

= 3.14 × \(\frac{15 \times 15 \times 60}{360}-\frac{1.73}{4} \times(15)^{2}\)

= 15 × 15 \(\left[\frac{3.14 \times 60}{360}-\frac{1.73}{4}\right]\)

= \(\frac{225}{100}\left[\frac{314}{6}-\frac{173}{4}\right]\)

= \(\frac{225}{100}\) [52.33 – 43.25]

= \(\frac{225}{100}\) × 9.08

= \(\frac{2043}{100}\) = 20.43 cm2

Area of minor segment = 20.43 cm2.
Area of major segment = Area of circle – Area of major segment.
= πR2 – 20.43
= 3.14 × 15 × 15 – 20.43
= 706.5 – 20.43
= 686.07 cm2
Area of major segment = 686.07 cm2.

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Question 7.
A chord of a circle of radius 12 cm subtends an angle of 120° at the centre. Find the area of the corresponding segment of the circle. (Use it π = 3.14 and √3 = 1.73).
Solution:
Radius of circle (R) = 12 cm
Central angle (θ) = 120°

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 6

In ∆OAM, from O draw, angle bisector of ∠AOB as well as perpendicular bisector OM of AB.
∴ AM = MB = \(\frac{1}{2}\) AB
In ∆OMA,
∠AOM + ∠OMA + ∠OAM = 180°
LOAM = 30°
Similarly, ∠OAM = 30° = ∠OBM

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 7

AB = 2AM
= 2 \(\left(\frac{\mathrm{AM}}{\mathrm{OA}}\right)\) OA
= 2 (sin 60°) 12
AB = 2 × \(\frac{\sqrt{3}}{2}\) × 12 = 12√3 cm
OM = OA \(\left(\frac{O M}{O A}\right)\) = 12 (cos 60°)
= 12 × \(\frac{1}{2}\) = 6 cm
Area of the segment = Area of sector – Area of ∆OAB.
Area of segment = \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360^{\circ}}-\frac{1}{2} A B \times O M\)

= \(\frac{3.14 \times 12 \times 12 \times 120}{360}\) – \(\frac{1}{2}\) × 12√3 × 6

= \(\frac{314}{100} \times \frac{144 \times 120}{360}\) – 36√3
= 150.72 – 36 × 1.73
= (150.72 – 62.28) cm2
= 88.44 cm2
∴ Area of the segment = 88.44 cm2.

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Question 8.
A horse is tied to a peg at one corner of a square shaped grass field of side 15 m by means of a 5 m long rope (see fig.). Find:
(i) the area of that part of the field in which the horse can graze.
(ii) the increase in the grazing area if the rope were 10 m long instead of 5 m (Use π = 3.14).

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 8

Solution:
Side of square = 15 m
(i) Length of Peg = Radius of rope (R) = 5 m
Centrral angle (θ) = 90° [Each angle of square]

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 9

Area of sector = \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360}\)

= \(\frac{3.14 \times 5 \times 5 \times 90}{360}\)

Area of sector = \(\frac{3.14 \times 25}{4}=\frac{78.5}{4}\) m2.
= 19.625 m2

PSEB Solutions PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2

(ii) When radius of sector increased to 10 m
Radius of sector OCD (R1) = 10 m
Central angle (θ) = 90°
∴ Area of sector OCD = \(\frac{\pi R_{1}^{2} \theta}{360^{\circ}}\)

= \(\frac{3.14 \times 10 \times 10 \times 90}{360^{\circ}}\)

= \(\frac{314}{100} \times \frac{100 \times 90}{360^{\circ}}\)

= \(\frac{314}{4}\) = 78.5 m

∴ Increase in grazing area = Area of sector OCD – Area of sector OAB
= 78.5 – 19.625 = 58.875 m2
Increase of grazing area = 58.875 m2

Question 9.
A brooch is made with silver wire in the form of a circle with diameter 35 mm. The wire is also used in making 5 diameters which divide the circle into 10 equal sectors as shown In fig. Find:
(i) the total length of the silver wire required.
(ii) the area of each sector of the brooch.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 10

Solution:
Diameter of circle (D) = 35 mm
Radius of circle (R) = \(\frac{35}{2}\) mm
Number of diameter = 5
Number of equal sector = 10

(i) Wire used = Length of 5 diameters + circumference of circle (brooch) = 5(35) + 2πR
= 175 + 2 × \(\frac{22}{7}\) × \(\frac{35}{2}\)
= 175 + 110 = 285 mm

(ii) Sector angle of brooch = \(\frac{360^{\circ}}{\text { Number of sector }}\)
= \(\frac{360^{\circ}}{10}\) = 36°
Area of each brooch (Area of sector) = \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360^{\circ}}\)

= \(\frac{22}{7} \times \frac{35}{2} \times \frac{35}{2} \times \frac{36}{360}\)

= \(\frac{11 \times 35}{4}=\frac{385}{4}\) mm2 = 96.25 mm2

∴ Area of each brooch = 96.25 m2.

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Question 10.
An umbrella has 8 ribs which are equally spaced (see fig). Assuming umbrella to be a flat circle of radius 45 cm, find the area between the two consecutive ribs of the umbrella.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 11

Solution:
Radius of circle = 45 cm
Number of ribs = 8
Central angle (sector angle) = \(\frac{360^{\circ}}{8}\) = 45°
Area of sector = \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360^{\circ}}\)

= \(\frac{45}{360^{\circ}} \times \frac{22}{7} \times 45 \times 45\)

= \(\frac{1}{8} \times \frac{22}{7} \times 45 \times 45\)

= \(\frac{22275}{28}\) cm2

Area of sector = 795.53 cm2
∴ Area between two consecutive ribs of the umbrella = 795.53 cm2.

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Question 11.
A car has two wipers which do not overlap. Each wiper has a blade of length 25 cm sweeping through an angle of 115°. Find the total area cleaned at each sweep of the blades.
Solution:
Length of blade (R) = 25 cm
Sector angle (θ) = 115°
Wiper moves in form of sector.

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Area of sector = Area çovered by one blade
= \(\frac{\pi \mathrm{R}^{2} \theta}{360^{\circ}}\)

= \(\frac{22}{7} \times \frac{115}{360} \times 25 \times 25=\frac{316250}{504}\)

= 627.48 cm2
Area covered by two blades of wiper = 2 Area of sector
= 2 × 627.48 = 1254.96 cm2.

Question 12.
To warn ships for underwater rocks, a lighthouse spreads a red coloured light over a sector of angle 800 to a distance of 16.5 km. Find the area of the sea over which the ships are warned. (Use x = 3.14)
Solution:
Sector angle (θ) = 80°
Radius of sector (R) = 16.5 km

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 13

Area of sea over which the ships are warned
Area of sector = \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360^{\circ}}\)

= \(\frac{3.14 \times 16.5 \times 16.5 \times 80}{360}\)
= 189.97 km2
Area of sea over which the ships are warned = 189.97 km2.

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Question 13.
A round table cover has six equal designs as shown in fig. 1f the radius of the cover is 28 cm, find the cost of making the designs at the rate of 0.35 per cm2. (Use √3 = 1.7)
Solution:
Number of equal designs = 6
Radius of designs (R) = 28 cm
Each design is in the shape of sector central angle (θ) = 6 = 60°

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 14

Since central angle is 60° and OA = OB
∴ ∆OAB is equilateral triangle having side 28 cm.

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 12 Areas Related to Circles Ex 12.2 15

Area of one shaded designed portion = area of segment = Area of the sector OAB – area of ∆OAB
= \(\frac{\pi R^{2} \theta}{360^{\circ}}-\frac{\sqrt{3}}{4}(\text { side })^{2}\)

= \(\frac{22}{7} \times \frac{28 \times 28}{360^{\circ}} \times 60^{\circ}-\frac{1.7}{4} \times 28 \times 28\)
= 410.66 – 333.2 = 77.46.

Area of one shaded designed portion = 77.46
Area of six designed portions = 6 [Area of one designed]
= 6 [77.46] = 464.76 cm2
Cost of making 1 cm2 = ₹ 0.35
Cost of making of 464.76 cm2 = 464.76 × 0.35 = ₹ 162.68.

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Question 14.
Tick the correct answer in the following:
Area of a sector of angle p° of a circle with radius R is
(A) \(\frac{p}{180}\) × 2πR
(B) \(\frac{p}{180}\) × πR2
(C) \(\frac{p}{360}\) × 2πR
(D) \(\frac{p}{720}\) × 2πR2
Solution:
Angle of sector (θ) = p°
Radius of circle = R
Area of sector = \(\frac{\pi \mathrm{R}^{2} \theta}{360}\)

= \(\frac{\pi \mathrm{R}^{2} \times p^{\circ}}{360}\)

= \(\frac{p^{\circ}}{720}\) × 2πR2
∴ Correct option is (D).

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

PSEB 9th Class Home Science Guide कढ़ाई के टांके प्रयोगी Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कढ़ाई के दो टांकों के नाम लिखो।
उत्तर-
डण्डी टांका, जंजीरी टांका, लेज़ी डेज़ी टांका, साटन टांका, कम्बल टांका।

प्रश्न 2.
दसूती टांके के लिए किस प्रकार का कपड़ा सही रहता है?
उत्तर-
इस टांके का प्रयोग दसूती वस्त्र पर होता है । जाली वाले वस्त्रों पर इस टांके से कढ़ाई की जाती है।

प्रश्न 3.
नमूने का हाशिया आमतौर पर किस टांके के द्वारा बनाया जाता है और नमूने को किस टांके के द्वारा भरा जाता है?
उत्तर-
नमूने का हाशिया साधारणतः डंडी टांके से बनाया जाता है। कई बार नमूने में भरने का कार्य भी इसी टांके से किया जाता है। नमूनों को साटन स्टिच से भी भरा जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

प्रश्न 4.
कढ़ाई के लिए कौन-कौन सी किस्म के धागे प्रयोग किये जाते हैं?
उत्तर-
कढ़ाई के लिए निम्नलिखित धागे प्रयोग किये जाते हैं
सूती धागे, रेशमी, ऊनी, ज़री के धागे।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 5.
स्टिच के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न।

प्रश्न 6.
कम्बल टांके के बारे में नोट लिखें।
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 7.
कढ़ाई के लिए प्रयोग किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के धागों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में।

प्रश्न 8.
कढ़ाई के नमूने को कपड़ों पर कैसे ट्रेस किया जा सकता है?
उत्तर-
देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में।

Home Science Guide for Class 9 PSEB कढ़ाई के टांके प्रयोगी Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

ठीक/ग़लत बताएं

  1. लेज़ी डेज़ी टांका, जंजीरी टांके की किस्म है।
  2. साटन स्टिच एक भरवां टांका है।
  3. जालीदार कपड़े पर दसूती टांका प्रयोग किया जाता है।
  4. दसूती टांके में छोटे-छोटे फंदे बनते हैं।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. गलत।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

रिक्त स्थान भरो

  1. डंडी टांके का प्रयोग ……………. बनाने के लिए किया जाता है।
  2. नमूने को ……………. स्टिच से भी भरा जाता है।
  3. ज़री के धागे को …………… भी कहा जाता है।
  4. कंबल टांके को ………….. स्टिच भी कहा जाता है।

उत्तर-

  1. हाशिया,
  2. साटन,
  3. सलमा,
  4. लूप।

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊनी धागे का प्रयोग …….. टांकों के लिए होता है।
(A) दसूती
(B) डंडी
(C) चेन
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक

प्रश्न 2.
नमूने का हाशिया प्रायः ………. टांके से बनाया जाता है।
(A) दसूती
(B) डंडी
(C) कंबल
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) डंडी

प्रश्न 3.
……… टांके में छोटे-छोटे फंदे बनते हैं।
(A) जंजीरी
(B) कंबल
(C) डंडी
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(A) जंजीरी

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कढ़ाई के विभिन्न टांकों के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
डंडी टांका (Stem Stich) कढ़ाई के नमूने में फूल पत्तियों की डंडियां बनाने के । लिए इस टांके का प्रयोग किया जाता है। यह टांके बाएं से दाएं तिरछे होते हैं तथा एक-दूसरे से मिले हुए लगते हैं। जहां एक टांका समाप्त होता है वहीं से दूसरा शुरू होता है।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (1)
भराई का टांका अथवा साटन स्टिच-इस टांके को गोल कढ़ाई भी कहा जाता है। इस द्वारा छोटे-छोटे गोल फूल तथा पत्तियां बनती हैं। आजकल एप्लीक कार्य भी इसी टांके से तैयार किया जाता है। कट वर्क, नैट वर्क भी इसी टांके द्वारा बनाये जाते हैं। छोटेछोटे पंछी आदि भी इसी टांके से बहुत सुन्दर लगते हैं । इसको फैंसी टांका भी कहा जाता है। इसमें अधिक छोटी फुल पत्तियों (जो गोल होती हैं) का प्रयोग होता है। यह टांका भी दाईं तरफ से बाईं ओर लगाया जाता है। रेखा से ऊपर जहां से नमूना शुरू करना है, सूई वहीं लगनी चाहिए। यह टांका देखने में दोनों तरफ एक सा लगता है।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (2)
जंजीरी टांका-इस टांके को प्रत्येक जगह प्रयोग कर लिया जाता है। इसको डंडियां, पत्तियां, फूलों तथा पक्षियों आदि सभी में प्रयोग किया जाता है। ऐसे टांके दाईं तरफ से बाईं ओर तथा दाईं तरफ से बाईं ओर लगाये जाते हैं । वस्त्र पर सूई एक बिन्दु से निकालकर सूई पर यह धागा लपेटते हुए दोबारा उसी जगह पर सूई लगाकर आगे की ओर लपेटते हुए यह टांका लगाया जाता है। इस प्रकार क्रम से एक गोलाई में दूसरी गोलाई बनाते हुए आगे की ओर टांका लगाते जाना चाहिए।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (3)
लेज़ी डेज़ी टांका-इस टांके का प्रयोग छोटे-छोटे फूल तथा बारीक पत्ती की हल्की कढ़ाई के लिए किया जाता है। ये टांके एक-दूसरे के साथ लगातार गुंथे नहीं रहते बल्कि अलग-अलग रहते हैं। फूल के बीच से धागा निकालकर सूई उसी जगह पहुंचाते हैं। इस प्रकार पत्ती सी बन जाती है। पत्ती को अपनी जगह पर स्थिर करने के लिए दूसरी तरफ गांठ लगा देते हैं।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (4)
दसती टांका-यहा टांका उसी वस्त्र पर ही बन सकता है जिसकी बुनाई खुली हो ताकि कढ़ाई करते समय धागे आसानी से गिने जा सकें। यदि तंग बुनाई वाले वस्त्र पर यह कढ़ाई करनी हो तो वस्त्र पर पहले नमूना छाप लो तथा फिर नमूने के ऊपर ही बिना वस्त्र के धागे गिने कढ़ाई करनी चाहिए। यह टांका दो बार बनाया जाता हैं। पहली बार एक एकहरा टांका बनाया जाता है, ताकि टेढ़े (/) टांकों की एक लाइन बन जाये तथा दूसरी बार में इस लाइन के टांकों पर दूसरी लाइन बनाई जाती है। इस तरह दसूती टांका (✕) बन जाता है। सूई को दाएं हाथ के कोने से टांके के निचले सिरे पर निकालते हैं। उसी टांके के ऊपरी बाएं कोने में डालते हैं तथा दूसरे टांके के निचले दाएं कोने से निकालते हैं। इस तरह करते जाओ ताकि पूरी लाइन टेढ़े टांकों की बन जाये। अब सूई आखिरी टांके के बाईं ओर निचले कोने से निकली हुई होनी चाहिए। अब सूई को उसी टांके के दाएं ऊपरी कोने से डालें तथा अगले टांके से निचले बाएं कोने से निकालो ताकि (✕) पूरा बन जाए।
PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी (5)
कंबल टांका-इस टांके का प्रयोग कंबलों के सिरों पर किया जाता है। रूमालों, मेज़ पोश, तुरपाई, कवर, आदि के किनारों पर भी इसको सजावट के लिए प्रयोग किया जाता है। इस टांके को लूप-स्टिच भी कहा जाता है। इसको बनाने के लिए सूई को वस्त्र से निकालकर सूई वाले धागे से दाईं ओर सूई से नीचे करो तथा सूई को खींचकर वस्त्र से बाहर निकालो। फिर 1/8″-1/9″ स्थान छोड़कर टांका लगाओ तथा इस तरह आखिर तक करते जाओ।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

प्रश्न 2.
कढ़ाई के लिए धागों की किस्मों के बारे में तुम क्या जानते हो ?
उत्तर-
कढ़ाई के लिए सूती, रेशमी, ऊनी तथा जरी के धागे प्रयोग किये जाते हैं।

  1. सूती धागे-इन धागों का प्रयोग हर किस्म की कढ़ाई के लिए होता है तथा यह हर जगह से मिल भी जाते हैं। यह तारकशी छ: तारों वाले हो सकते हैं तथा कटे हुए अथवा गुच्छों में मिलते हैं।
  2. रेशमी धागे-यह सूती धागों से कम मज़बूत होते हैं। परन्तु यह भी हर तरह की कढ़ाई के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यह सिलवटों वाले बड़े धागे गुच्छों तथा रीलों में मिलते हैं। बिना सिलवटें पड़े धागे भी मिलते हैं। इन्हें पट का धागा भी कहा जाता है। पुरानी फुल्कारियों में असली रेशमी पट का ही प्रयोग होता था। अब आर्ट सिल्क (रेयॉन) की रीलें भी मिलती हैं। इस धागे का प्रयोग फुल्कारी तथा सिन्धी कढ़ाई के लिए किया जाता है।
  3. ऊनी धागे-इसका प्रयोग दसूती, डंडी टांके, चेन स्टिच, भरवी चोप आदि टांकों के लिए होता है। इन्हें मोटे वस्त्र जैसे केसमैंट, ऊनी मैटी आदि पर प्रयोग किया जाता है। यह धागे ऊन वाली दुकानों से गोलियों अथवा लच्छों में मिल सकते हैं।
  4. जरी के धागे-यह तिल्ले के धागे सीधे अथवा सिलवटों वाले होते हैं। इनको सलमा भी कहा जाता है। पहले इन धागों पर असली सोने तथा चांदी की झाल फिरी होती थी, परन्तु आजकल एल्यूमीनियम तथा नायलॉन के पॉलिश किये धागे मिलते हैं। कुछ समय पश्चात् यह पॉलिश उतर जाती है। इस धागे का प्रयोग साटन, शनील, सिल्क बनावटी रेशों से बने कपड़ों पर किया जाता है। इनको मुनियारी की दुकान से खरीदा जा सकता है।

प्रश्न 3.
कढ़ाई के नमूने को वस्त्र पर कैसे छापा जा सकता है?
उत्तर-

  1. कार्बन पेपर से छपाई-कार्बन पेपर को कढ़ाई वाले वस्त्र पर रखा जाता है। कार्बन पेपर ऊपर नमूना रख कर नमूने पर पैंसिल फेरी जाती है। इस तरह नमूना वस्त्र पर छप जाती है।
  2. मशीन से छपाई-मशीन को तेल देकर वस्त्र पर नमूने वाला कागज़ रख कर, नमूने पर खाली (बिना धागे) मशीन चलाएं। इस तरह वस्त्र पर नमूने के निशान आ जाएंगे।
  3. ट्रेसिंग पेपर में छेद करके छपाई-ट्रेसिंग पेपर पर नमूना उतार लिया जाता है और छपाई वाले स्थान पर बिना धागे के मशीन चलाई जाती है। जिससे पेपर में छेद हो जाते हैं। अब इस पेपर को वस्त्र पर रखकर छेद वाले स्थान पर तेल या नील के घोल से भीगा हुआ छोटा-सा कपड़ा फेरा जाता है। इससे नमूना वस्त्र पर छप जाता है। इस ढंग का प्रयोग तब किया जाता है जब एक ही नमूने को बार-बार छापना हो।

प्रश्न 4.
नमूने को कपड़े पर कैसे देस किया जाता है?
उत्तर-
कढ़ाई करने के लिए निम्नलिखित तरीकों से छापा जाता हैकार्बन पेपर से छपाई, मशीन से, ट्रेसिंग पेपर में छिद्र करके छपाई।

प्रश्न 5.
कढ़ाई के लिए धागों की दो किस्मों के बारे में लिखें।
उत्तर-

  1. सूती धागे-इन धागों का प्रयोग हर किस्म की कढ़ाई के लिए होता है तथा यह हर जगह से मिल भी जाते हैं। यह तारकशी छः तारों वाले हो सकते हैं तथा कटे हुए अथवा गुच्छों में मिलते हैं।
  2. रेशमी धागे-यह सूती धागों से कम मज़बूत होते हैं। परन्तु यह भी हर तरह की कढ़ाई के लिए प्रयोग किये जाते हैं। यह सिलवटों वाले बड़े धागे गुच्छों तथा रीलों में मिलते हैं। बिना सिलवटें पड़े धागे भी मिलते हैं। इन्हें पट का धागा भी कहा जाता है। पुरानी फुल्कारियों में असली रेशमी पट का ही प्रयोग होता था। अब आर्ट सिल्क (रेयॉन) की रीलें भी मिलती हैं। इस धागे का प्रयोग फुल्कारी तथा सिन्धी कढ़ाई के लिए किया जाता है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 14 कढ़ाई के टांके प्रयोगी

कढ़ाई के टांके प्रयोगी PSEB 9th Class Home Science Notes

  • कढ़ाई से पोशाकों अथवा घर में प्रयोग होने वाले अन्य वस्त्रों की सुन्दरता बढ़ाई जा सकती है।
  • कढ़ाई के विभिन्न टांके हैं डंडी टांका, जंजीरी टांका, लेज़ी डेज़ी टांका, साटन स्टिच, कंबल टांका, दसूती टांका।
  • डंडी टांका बखीए के उलटी तरफ जैसा होता है तथा बखीए के विपरीत इसकी कढ़ाई बाईं तरफ से दाईं तरफ की जाती है।
  • डण्डी टांके का प्रयोग हाशिया बनाने के लिए किया जाता है।
  • जंजीरी टांके में छोटे-छोटे फंदे होते हैं जो आपस में जुड़-जुड़ कर जंजीर बनाते
  • लेज़ी डेज़ी टांका, जंजीरी टांके की ही एक किस्म है।
  • साटन स्टिच भरवां टांका है, इससे कढ़ाई के नमूनों में फूल, पत्ती अथवा दूसरे नमूने भरे जाते हैं।
  • दसूती टांके का प्रयोग जाली वाले वस्त्रों पर किया जाता है।
  • कढ़ाई के लिए सूती, रेशमी, ऊनी, ज़री के धागों का प्रयोग किया जाता है।
  • कढ़ाई के नमूने की वस्त्र पर कार्बन पेपर से, मशीन से तथा ट्रेसिंग पेपर में छिद्र करके छपाई की जाती है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

SST Guide for Class 8 PSEB 1857 ई० का विद्रोह Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे गए प्रश्नों के उत्तर लिखो :

प्रश्न 1.
1857 ई० के विद्रोह के कौन-से दो राजनीतिक कारण थे ?
उत्तर-

  • लार्ड डल्हौज़ी ने पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी नाना साहिब की पेन्शन बंद कर दी।
  • डल्हौज़ी ने अवध के नवाव वाजिद अली शाह को गद्दी से हटा कर अवध को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया। इससे अवध में विद्रोह की भावना भड़क उठी।

प्रश्न 2.
बहादुरशाह ज़फ़र को क्या सज़ा दी गई थी ?
उत्तर-
बहादुरशाह ज़फ़र को बंदी बना कर रंगून भेज दिया गया। उसके पुत्रों को गोली मार दी गई।

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के तत्कालीन कारण क्या थे ?
उत्तर-
भारतीय सैनिक अंग्रेजी सरकार से प्रसन्न नहीं थे। वे अंग्रेजों से बदला लेना चाहते थे। 1857 ई० में अंग्रेजी सरकार ने राइफलों में नये किस्म के कारतूस का प्रयोग आरम्भ किया। इन कारतूसों पर गाय तथा सूअर की चर्बी लगी हुई थी और प्रयोग करने से पहले इन्हें मुंह से छीलना पड़ता था। ऐसा करने से हिन्दू तथा मुस्लिम सैनिकों की भावनाओं को चोट पहुंचती थी। इसलिए वे भड़क उठे। सबसे पहले मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने 29 मार्च, 1857 ई० को इन कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। क्रोध में आकर उसने एक अंग्रेज़ अधिकारी की हत्या भी कर दी। यही घटना 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण बनी।

प्रश्न 4.
1857 ई० के विद्रोह को और कौन-से दो नामों से जाना जाता है ?
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह को ‘भारत की स्वतन्त्रता का संग्राम’ तथा ‘सैनिक विद्रोह’ के नाम से भी जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों ने इसे कुछ असन्तुष्ट शासकों तथा जागीरदारों का विद्रोह कहा है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

प्रश्न 5.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो आर्थिक कारणों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) भारतीय उद्योगों तथा व्यापार का विनाश। (2) ज़मींदारों की बुरी दशा।

प्रश्न 6.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो सामाजिक कारणों के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) भारत के सामाजिक रीति-रिवाजों में अंग्रेजों का हस्तक्षेप। (2) भारतीयों से अपमानजनक व्यवहार।

प्रश्न 7.
1857 ई० के विद्रोह की कोई चार घटनाओं के नाम लिखें।
उत्तर-
(1) मंगल पांडे की शहीदी, (2) मेरठ की घटना, (3) दिल्ली की घटना, (4) लखनऊ की घटना।

प्रश्न 8.
1857 ई० के विद्रोह के तत्कालीन कारणों के बारे में संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
भारतीय सैनिक अंग्रेज़ी सरकार से प्रसन्न नहीं थे। वे अंग्रेजों से बदला लेना चाहते थे। 1857 ई० में अंग्रेज़ी सरकार ने राइफलों में नये किस्म के कारतूस का प्रयोग आरम्भ किया। इन कारतूसों पर गाय तथा सूअर की चर्बी लगी हुई थी और चलाने से पहले इन्हें मुंह से छीलना पड़ता था। ऐसा करने से हिन्दू तथा मुस्लिम सैनिकों की भावनाओं को चोट पहुंचती थी। इसलिए वे भड़क उठे। सबसे पहले मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने 29 मार्च, 1857 ई० को इन कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। क्रोध में आकर उसने एक अंग्रेज़ अधिकारी की हत्या भी कर दी। इसी घटना से 1857 का विद्रोह आरम्भ हो गया।

प्रश्न 9.
1857 ई० के विद्रोह के समय दिल्ली की घटना के बारे संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
मेरठ की घटना के बाद 11 मई, 1857 को विद्रोही (क्रान्तिकारी) सैनिक दिल्ली पहुंचे। अंग्रेज़ सैनिक __ अधिकारियों ने उन्हें रोकने का प्रयास किया, परन्तु उन्होंने उन अधिकारियों को मार डाला और दिल्ली में प्रवेश किया। दिल्ली में अंग्रेजी सेना के अनेक भारतीय सिपाही क्रान्तिकारियों से मिल गए। उन्होंने मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ज़फ़र को भारत का सम्राट घोषित किया और स्वतन्त्र भारत की घोषणा कर दी। इस घटना के चार-पांच दिन बाद ही दिल्ली पर पूरी तरह क्रान्तिकारियों का अधिकार हो गया। परन्तु 14 सितम्बर को जनरल निकलसन ने दिल्ली पर फिर से अधिकार कर लिया। बहादुर शाह ज़फ़र को बन्दी बना कर रंगून भेज दिया गया। उसके दो पुत्रों को गोली मार दी गई।

प्रश्न 10.
1857 ई० के विद्रोह के सामाजिक कारणों के बारे में संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
1857 ई० के सामाजिक कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. सामाजिक तथा धार्मिक रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप-अंग्रेज़ गवर्नर-जनरलों विलियम बैंटिंक तथा लॉर्ड डलहौज़ी ने भारतीय समाज में सुधार किए। उन्होंने सती प्रथा तथा कन्या वध को गैर-कानूनी घोषित कर दिया। विधवा विवाह की अनुमति दे दी गई। जाति-पाति तथा छुआछूत की मनाही कर दी गई। परन्तु इन सुधारों का भारतीयों पर विपरीत प्रभाव पड़ा। अतः वे अंग्रेजी साम्राज्य का अन्त करने की योजना बनाने लगे।

2. ईसाई धर्म का प्रचार-भारत में ईसाई पादरी लोगों को लालच देकर ईसाई बना रहे थे। इसके अतिरिक्त वे भारतीय धर्मों की निन्दा भी करते थे। इसलिए भारत के लोग अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।

3. भारतीयों से बुरा व्यवहार-अंग्रेज़ भारतीयों के साथ बुरा व्यवहार करते थे। उनके साथ होटलों, सिनेमाघरों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भेदभाव किया जाता था। इसलिए भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध रोष था।

प्रश्न 11.
प्रादेशिक फोकस-अवध के बारे में नोट लिखें।
उत्तर-
अवध एक समृद्ध राज्य था। वहां का नवाब वाजिद अली शाह सदा अंग्रेज़ों का वफ़ादार रहा था। परन्तु अंग्रेज़ों ने उसके राज्य में हस्तक्षेप करना आरम्भ कर दिया। उसे अपने राज्य में अंग्रेजी सेना रखने के लिए विवश किया गया। कुछ समय पश्चात् वहां की सारी देशी सेना को हटा कर अंग्रेज़ी सेना रख दी गई। इस सेना के खर्चे का सारा बोझ नवाब पर ही था। सेना से हटाए गए अवध के सभी सैनिक बेकार हो गए। 1856 ई० में अंग्रेज़ों ने नवाब पर कुशासन का आरोप लगाकर उसके राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि 1857 के विद्रोह में अवध के सैनिकों, किसानों तथा ताल्लुकेदारों ने बड़ी संख्या में भाग लिया।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. कारतूसों पर गाय तथा ……….. के माँस की चर्बी लगी होती थी।
2. लार्ड ………… की लैप्स की नीति के अनुसार बहुत-से भारतीय राज्य अंग्रेज़ी साम्राज्य में शामिल कर लिए गए।
3. सबसे पहले यह विद्रोह …………. नामक स्थान पर शुरू हुआ।
4. नाना साहेब का प्रसिद्ध जरनैल ………….. था।
5. भारतीयों सैनिकों ने मुग़ल बादशाह ………… को अपना बादशाह (सम्राट) घोषित कर दिया।
उत्तर-

  1. सूअर
  2. डल्हौज़ी
  3. बैरकपुर
  4. तांत्या टोपे
  5. बहादुर शाह जफ़र।

III. प्रत्येक वाक्य के आगे ‘सही’ (✓) या ‘गलत’ (✗) का चिन्ह लगाओ :

1. अग्रेज़ी काल में भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता था। (✗)
2. भारतीय लोगों के साथ अच्छा व्यवहार किया जाता था। (✗)
3. अंग्रेज़ों ने बहुत-से सामाजिक सुधार किए। (✓)
4. भारतीय उद्योग एवं व्यापार धीरे-धीरे नष्ट होना शुरू हो गये। (✓)
5. अंग्रेजों ने ‘फूट डालो व राज करो’ की नीति अपनाई। (✓)

PSEB 8th Class Social Science Guide 1857 ई० का विद्रोह Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
बहादुरशाह ज़फ़र को बंदी बना कर रखा गया-
(i) अफगानिस्तान
(ii) पाकिस्तान
(iii) रंगून
(iv) भूटान।
उत्तर-
रंगून

प्रश्न 2.
भारत का पहला सशस्त्र विद्रोह हुआ
(i) 1834 ई०
(ii) 1857 ई०
(iii) 1757 ई०
(iv) 1889 ई०।
उत्तर-
1857 ई०

प्रश्न 3.
1857 ई० में विद्रोही (क्रांतिकारी) सैनिकों ने भारत का सम्राट् घोषित किया
(i) तांत्या टोपे .
(ii) रानी लक्ष्मीबाई
(iii) नाना साहिब
(iv) बहादुर शाह ज़फ़र।
उत्तर-
बहादुर शाह जफ़र

प्रश्न 4.
1857 ई० के विद्रोह का आरम्भ हुआ
(i) दिल्ली
(ii) लखनऊ
(iii) मेरठ
(iv) झांसी।
उत्तर-
मेरठ

प्रश्न 5.
लैप्स की नीति चलाई-
(i) लार्ड डलहौज़ी
(ii) निकलसन
(iii) लार्ड मैकाले
(iv) लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज़।
उत्तर-
लार्ड डलहौज़ी

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प्रश्न 6.
नाना साहिब की पेंशन किसने बंद की ?
(i) लार्ड डल्हौज़ी
(ii) लार्ड कार्नवालिस
(iii) लार्ड विलियम बैंटिंक
(iv) लार्ड वैलजेली।
उत्तर-
लार्ड डल्हौजी

प्रश्न 7.
चर्बी वाले कारतूसों को चलाने से इन्कार करने वाला सैनिक कौन था ?
(i) बहादुर शाह जफ़र
(ii) तोत्या टोपे
(iii) नाना साहिब
(iv) मंगल पांडे।
उत्तर-
मंगल पांडे

प्रश्न 8.
1857 ई० में पंजाब में अंग्रजों के खिलाफ़ किस स्थान पर सैनिक विद्रोह हुआ ?
(i) फिरोजपुर
(ii) पेशावर
(iii) जालंधर
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
उपरोक्त सभी।

(ख) सही जोड़े बनाइए :

1. नवाब वाजिद अली शाह – दिल्ली
2. नाना साहिब – अवध
3. बहादुर शाह ज़फ़र – कानपुर
4. सरदार अहमद – खान खरल
उत्तर-

  1. अवध
  2. कानपुर
  3. दिल्ली
  4. पंजाब।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 ई० का विद्रोह सबसे पूर्व कहां शुरू हुआ तथा इसका पहला शहीद कौन था ?
उत्तर-
यह विद्रोह सबसे पहले बैरकपुर छावनी में शुरू हुआ था। इस विद्रोह का पहला शहीद मंगल पांडे था।

प्रश्न 2.
1857 ई० के विद्रोह के कोई दो धार्मिक कारण लिखें।
उत्तर-
(1) अंग्रेज़ भारत में लोगों को विभिन्न प्रकार के लालच देकर ईसाई बना रहे थे। (2) अंग्रेज़ों ने ईसाइयत के प्रसार के लिये धार्मिक अयोग्यता एक्ट (1856) पास किया।

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के प्रमुख नेताओं के नाम लिखें।
उत्तर-
इस विद्रोह के मुख्य नेताओं के नाम थे-मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर, नाना साहिब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई तथा कुंवर सिंह।

प्रश्न 4.
1857 ई० के विद्रोह के कौन-से मुख्य चार केन्द्र थे ?
उत्तर-
मेरठ, दिल्ली, कानपुर तथा लखनऊ।

प्रश्न 5.
झांसी की रानी ने 1857 ई० के विद्रोह में क्यों भाग लिया था ?
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह में झांसी की रानी द्वारा भाग लेने का कारण यह था कि अंग्रेजों ने उसके द्वारा गोद लिए गए पुत्र को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया था।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 ई० का विद्रोह सर्वप्रथम कहां और क्यों शुरू हुआ ?
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह का आरम्भ बंगाल की बैरकपुर छावनी से हुआ। वहां मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया और एक अंग्रेज़ अधिकारी मेजर हसन को गोली मार दी। इस अपराध के कारण उसे फांसी दे दी गई। इस घटना का समाचार सुनकर सारे भारत में विद्रोह की भावना भड़क उठी।

प्रश्न 2.
अवध के सैनिक अंग्रेज़ों के विरुद्ध क्यों हुए थे ?
उत्तर-
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सबसे अच्छी सेना बंगाल की सेना थी। इस सेना में अधिकतर सैनिक अवध के रहने वाले थे। लॉर्ड डलहौज़ी ने अवध को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया। यह बात अवध के सैनिकों को अच्छी न लगी
और वे अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये। अंग्रेजों ने अवध के नवाब की सेना को भी भंग कर दिया जिसके कारण हज़ारों सैनिक बेकार हो गये। उन्होंने कम्पनी से बदला लेने का निश्चय कर लिया।

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के सैनिक परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह के सैनिक परिणाम निम्नलिखित थे

  • कम्पनी की सेना की समाप्ति-विद्रोह से पहले दो प्रकार के सैनिक होते थे-कम्पनी द्वारा नियुक्त किये गए तथा ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किये गए सैनिक। विद्रोह के पश्चात् दोनों सेनाओं का एकीकरण कर दिया गया।
  • यूरोपियन सैनिकों की वृद्धि-सेना में यूरोपियन सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई। भारतीय सैनिकों की संख्या कम कर दी गई। परन्तु पंजाब के सिक्खों तथा नेपाल के गोरखों को अधिक संख्या में भर्ती किया जाने लगा।
  • भारतीय सेना का पुनर्गठन-तोपखाने यूरोपियन सैनिकों के अधीन कर दिए गए। भारतीय सेना को निम्न कोटि के शस्त्र दिए जाने लगे।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 ई० के विद्रोह की मुख्य घटनाओं का वर्णन करें।
अथवा
1857 ई० के विद्रोह की मुख्य घटनाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1857 ई० में भारतीयों ने पहली बार अंग्रेज़ों का विरोध किया। क्रान्ति की योजना तैयार हो चुकी थी। कमल के फूलों तथा रोटियों के संकेतों द्वारा सैनिकों और ग्रामीण जनता तक क्रान्ति का सन्देश पहुंचाया गया। क्रान्ति के लिए 31 मई, 1857 ई० का दिन निश्चित किया गया, परन्तु चर्बी वाले कारतूसों की घटना के कारण क्रान्ति समय से पहले ही आरम्भ हो गई। इस क्रान्ति की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. बैरकपुर-विद्रोह का आरम्भ बंगाल की बैरकपुर छावनी से हुआ। इसका नेतृत्व मंगल पांडे नामक एक सैनिक ने किया। 29 मार्च, 1857 ई० को मंगल पांडे ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया और उसने अपने साथियों को भी ऐसा करने के लिए उत्साहित किया। उसने क्रोध में आकर एक अंग्रेज़ अधिकारी मेजर हसन को गोली मार दी। मंगल पांडे को फांसी का दण्ड दिया गया। इस घटना से बैरकपुर छावनी के सभी सैनिक भड़क उठे।

2. मेरठ-10 मई, 1857 ई० को मेरठ में भी विद्रोह की आग भड़क उठी। वहां की जनता तथा सैनिकों ने अंग्रेजों के विरुद्ध खुला विद्रोह कर दिया। सारा नगर ‘मारो फिरंगी को’ के नारों से गूंज उठा। सैनिकों ने जेल के दरवाज़े तोड़ दिए और अपने बन्दी सैनिकों को मुक्त करवाया। यहां से वे दिल्ली की ओर चल पड़े।

3. दिल्ली-दिल्ली में अंग्रेजी अफसरों ने क्रान्तिकारियों को रोकने का प्रयत्न किया, परन्तु वे असफल रहे। विद्रोही सैनिकों ने बहादुरशाह ज़फर को अपना सम्राट घोषित कर दिया। उन्होंने चार-पांच दिन में दिल्ली पर अधिकार कर लिया परन्तु 14 सितम्बर, 1857 ई० को दिल्ली के क्रान्तिकारियों में फूट पड़ गई। इसका लाभ उठा कर अंग्रेज सेनापति निकलसन ने दिल्ली पर फिर से अपना अधिकार कर लिया। नागरिकों पर अनेक अत्याचार किए गए। बहादुरशाह को बन्दी बना कर रंगून भेज दिया गया। उसके दो पुत्रों को गोली मार दी गई।

4. कानपुर-कानपुर में नाना साहिब ने अपने प्रसिद्ध सेनापति तात्या टोपे की सहायता से वहां अपना अधिकार कर लिया। परन्तु 17 जुलाई, 1857 को कर्नल हैवलॉक ने नाना साहिब को पराजित करके कानपुर पर फिर से अधिकार कर लिया। तात्या टोपे ने वहां पुनः अपना अधिकार स्थापित करने का प्रयत्न किया, परन्तु वह सफल न हो सका।
इसी बीच नाना साहिब ने भाग कर नेपाल में शरण ली। तात्या टोपे भाग कर झांसी की रानी के पास चला गया।

5. लखनऊ-लखनऊ अवध की राजधानी थी। अंग्रेज सेनापति हैवलॉक ने एक विशाल सेना की सहायता से लखनऊ पर आक्रमण किया। 31 मार्च, 1858 ई० को यहां पर उनका अधिकार हो गया। कुछ समय पश्चात् अवध के ताल्लुकेदारों ने भी शस्त्र डाल दिए। इस प्रकार अवध में क्रान्ति की ज्वाला बुझ गई।

6. झांसी-झांसी में रानी लक्ष्मीबाई ने क्रान्ति का नेतृत्व किया। उसके आगे अंग्रेजों की एक न चली। जनवरी, 1858 ई० में सर ह्यूरोज़ ने झांसी को जीतना चाहा, परन्तु वह पराजित हुआ। अप्रैल, 1858 ई० में झांसी पर फिर आक्रमण किया गया। इस बार रानी के कुछ साथी अंग्रेजों से जा मिले; परन्तु रानी ने अन्तिम सांस तक अंग्रेज़ों की सेना का सामना किया। अन्त में वह वीरगति को प्राप्त हुई और झांसी के दुर्ग पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। कुछ समय पश्चात् तांत्या टोपे पकड़ा गया। 1859 ई० में उसे फांसी दे दी गई।

7. पंजाब-भले ही पंजाब की रियासतों के कुछ शासकों ने विद्रोह में अंग्रेज़ों का साथ दिया था, फिर भी कई स्थानों पर अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह भी हुए। फिरोज़पुर, पेशावर, जालन्धर आदि स्थानों पर भारतीय सैनिकों ने विद्रोह किए। अंग्रेजों ने इन विद्रोहों को दबा दिया और बहुत से सैनिकों को मार डाला।

आधुनिक हरियाणा राज्य में रेवाड़ी, भिवानी, बल्लभगढ़, हांसी आदि स्थानों के नेताओं ने भी 1857 ई० के विद्रोह में अंग्रेज़ों से टक्कर ली। परन्तु अंग्रेजों ने उनका दमन कर दिया।

प्रश्न 2.
1857 ई० के विद्रोह के राजनीतिक, आर्थिक तथा सैनिक कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-
1857 ई० में भारतीयों ने पहली बार अंग्रेजों का विरोध किया। वे उन्हें अपने देश से बाहर निकालना चाहते थे। इस संघर्ष को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का नाम दिया जाता है। इस संग्राम के राजनीतिक, आर्थिक तथा सैनिक कारण निम्नलिखित थे

I. राजनीतिक कारण

1. डलहौज़ी की लैप्स नीति-लॉर्ड डलहौज़ी भारत में ब्रिटिश राज्य का अधिक-से-अधिक विस्तार करना चाहता था। इसके लिए उसने लैप्स की नीति अपनाई। इसके अनुसार कोई भी पुत्रहीन राजा पुत्र को गोद लेकर उसे अपना उत्तराधिकारी नहीं बना सकता था। इस नीति के द्वारा उसने सतारा, नागपुर, सम्भलपुर, उदयपुर आदि राज्य ब्रिटिश राज्य में मिला लिए। इधर अंग्रेजों ने झांसी की विधवा रानी को पुत्र गोद लेने की अनुमति न दी जिसके कारण वह अंग्रेजों की कट्टर शत्रु बन गई।

2. नाना साहब के साथ अन्याय-नाना साहिब मराठों के अन्तिम पेशवा बाजीराव द्वितीय का गोद लिया हुआ पुत्र था। बाजीराव की मृत्यु के बाद अंग्रेजों ने उसकी वार्षिक पेन्शन नाना साहब को देने से इन्कार कर दिया जिससे वह अंग्रेजों के विरुद्ध हो गया।

3. बहादुरशाह का अपमान-1856 ई० में अंग्रेजों ने मुग़ल बादशाह बहादुर शाह को यह चेतावनी दी कि उसकी मृत्यु के बाद लाल किले पर अधिकार कर लिया जायेगा। बहादुर शाह ने इसे अपना अपमान समझा और भारत में अंग्रेज़ी राज्य को समाप्त करने का प्रण ले लिया। इस निर्णय से बादशाह की बेग़म ज़ीनत महल को इतना क्रोध आया कि वह ब्रिटिश शासन को उलटने की योजनाएं बनाने लगी। देश की मुस्लिम प्रजा भी अकबर और औरंगज़ेब के परिवार का ऐसा निरादर होता देखकर अंग्रेजों के विरुद्ध भड़क उठी।

4. अवध का अन्यायपूर्ण विलय-अवध का नवाब वाजिद अली शाह अंग्रेज़ों का वफ़ादार था। परंतु अंग्रेजों ने नवाब पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध को ब्रिटिश राज्य में मिला लिया। इसलिए नवाब अंग्रेजों से बदला लेने की सोचने लगा।

II. आर्थिक कारण

1. भारतीय उद्योग तथा व्यापार की समाप्ति-अंग्रेज़ भारत में व्यापार करने के लिए आये थे। वे भारत से कपास, पटसन आदि कच्चा माल सस्ते दामों पर खरीद कर इंग्लैंड ले जाते थे और वहाँ के कारखानों का तैयार माल भारत लाकर महंगे दामों पर बेचते थे। इस प्रकार भारत का धन लगातार इंग्लैंड जाने लगा। उन्होंने भारत के उद्योगों पर भी कई पाबन्दियां लगा दी। इस प्रकार भारत के उद्योग तथा व्यापार नष्ट होने लगे। इससे भारतीयों में अंग्रेजों के विरुद्ध.रोष फैल गया।

2. नौकरियों में असमानता-अंग्रेज़ी शासन में पढ़े-लिखे भारतीयों को उच्च पद नहीं दिए जाते थे। दूसरे, भारतीय कर्मचारियों को अंग्रेज कर्मचारियों से कम वेतन दिया जाता था। इस असमानता के कारण भारतीय विद्रोह पर उतारू हो गये।

3. ज़मींदारों की दुर्दशा-ज़मींदारों तथा जागीरदारों को कुछ भूमियां बादशाह द्वारा इनाम में दी गई थीं। ये भूमियां कर मुक्त थीं। परन्तु लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने इन भूमियों पर कर लगा दिया। लगान की दर भी बढ़ा दी गई। इसके अतिरिक्त सरकारी कर्मचारी लगान इकट्ठा करते समय ज़मींदारों का कई प्रकार से शोषण करते थे। इसलिए ज़मींदारों ने विद्रोह में बढ़-चढ़ कर भाग लिया।

III. सैनिक कारण

1. कम वेतन-भारतीय सैनिकों के वेतन बहुत कम थे। योग्य होने पर भी उन्हें उच्च पद नहीं दिया जाता था। उनके लिए पदोन्नति के अवसर भी बहुत कम थे।
2. बुरा व्यवहार-अंग्रेज़ी शासन में भारतीय सैनिकों को यूरोपीय सैनिकों से हीन समझा जाता था। अत: अंग्रेज़ अफसर भारतीय सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार करते थे।
3. 1856 ई० का सैनिक कानून-1856 ई० में लॉर्ड केनिंग ने एक सैनिक कानून पास किया जिसके अनुसार । सैनिकों को समुद्र पार भेजा जा सकता था। परन्तु भारतीय सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। सैनिकों के लिए यह आवश्यक कर दिया गया कि जहां भी उन्हें भेजा जाए, उन्हें जाना होगा, परिणामस्वरूप भारतीय सैनिकों में असन्तोष फैल गया।
4. अवध का विलय-बंगाल की अंग्रेज़ी सेना में अधिकतर सिपाही भारतीय थे। वे अवध को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाए जाने के कारण अंग्रेज़ों से असन्तुष्ट थे।
5. चर्बी वाले कारतूस-1856 ई० में भारतीय सैनिकों को गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूस प्रयोग करने के लिए दिए गए। इनके कारण भारतीय सैनिकों में रोष बढ़ गया।
भारतीय सैनिकों में फैले इसी असन्तोष ने ही 1857 ई० में विद्रोह का रूप धारण कर लिया।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 15 1857 ई० का विद्रोह

प्रश्न 3.
1857 ई० के विद्रोह के परिणामों का वर्णन करो।
उत्तर-
1857 ई० के विद्रोह के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

1. राजनीतिक परिणाम-

  • भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त हो गया, अब भारत का शासन सीधे इंग्लैंड की सरकार के अधीन आ गया।
  • भारत के गवर्नर-जनरल को वायसराय की नई उपाधि दी गई।
  • भारत में मुग़ल सत्ता का अन्त हो गया।
  • भारतीय राजाओं को पुत्र गोद लेने की अनुमति दे दी गई।
  • अंग्रेजों ने भारत के देशी राज्यों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने की नीति का त्याग कर दिया।

2. सामाजिक परिणाम-

  • 1 नवम्बर, 1858 ई० को इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा की। इसमें यह कहा गया कि भारत में धार्मिक सहनशीलता की नीति अपनाई जाएगी, भारतीयों को सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जायेंगी तथा उन्हें उच्च पद भी दिए जाएंगे।
  • अंग्रेज़ों ने ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपना ली। इस नीति के अनुसार अंग्रेजों ने हिन्दुओं तथा मुसलमानों को आपस में लड़ाना आरम्भ कर दिया, ताकि भारत में अंग्रेज़ी राज्य को कोई आंच न पहुंचे।

3. सैनिक परिणाम-

  • विद्रोह के पश्चात् भारतीय सैनिकों की संख्या कम करके यूरोपीय सैनिकों की संख्या बढ़ा दी गई ताकि विद्रोह के खतरे को टाला जा सके।
  • तोपखाने में केवल यूरोपीय सैनिकों को ही नियुक्त किया जाने लगा।
  • जाति तथा धर्म के आधार पर सैनिकों की अलग-अलग टुकड़ियां बनाई गईं ताकि वे एक होकर अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध विद्रोह न कर सकें।
  • ऊंचे पदों तथा महत्त्वपूर्ण स्थानों पर यूरोपीय सैनिकों को नियुक्त किया गया। भारतीय सेना को कम महत्त्वपूर्ण कार्य सौंपे गए।
  • कुछ इस प्रकार की व्यवस्था की गई जिससे कि भारतीय सैनिक तथा अधिकारी प्रत्येक स्तर पर यूरोपीय सेना की निगरानी में रहें।
  • यूरोपीय सेना का खर्च भारतीय जनता पर डाल दिया गया।

4. आर्थिक परिणाम-इंग्लैंड की सरकार ने भारतीयों पर कई प्रकार के व्यापारिक प्रतिबन्ध लगा दिए। परिणामस्वरूप भारतीय व्यापार को बहुत अधिक क्षति पहुंची।

प्रश्न 4.
1857 ई० की क्रान्ति में भारतीय क्यों हारे ?
उत्तर-
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की असफलता के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

  • समय से पहले क्रान्ति का आरम्भ होना-बहरामपुर, बैरकपुर तथा मेरठ की घटनाओं के कारण क्रान्ति समय से पहले ही आरम्भ हो गई। इससे क्रान्तिकारियों की एकता भंग हो गई और अंग्रेजों को सम्भलने का अवसर मिल गया।
  • एक उद्देश्य न होना-संग्राम में भाग लेने वाले नेता किसी एक उद्देश्य को लेकर नहीं लड़ रहे थे। कोई धर्म की रक्षा के लिए, कोई अपने राज्य की रक्षा के लिए तथा कोई देश की आजादी के लिए लड़ रहा था। इसलिए क्रान्ति का असफल होना स्वाभाविक ही था।
  • संगठन का अभाव-क्रान्तिकारियों में ऐसा कोई योग्य नेता नहीं था जो सबको एकता के सूत्र में बांध सकता। अतः संगठन के अभाव में भारतीय हार गये।
  • अप्रशिक्षित सैनिक-क्रान्तिकारियों के पास प्रशिक्षित सैनिकों की कमी थी तथा पर्याप्त युद्ध सामग्री नहीं थी। उनमें अधिकतर वे लोग थे जो सेना में से निकाले गए थे। इन सैनिकों में अनुभव की कमी थी। इसलिए क्रान्ति असफल हो गई।
  • सीमित प्रदेश में फैलना–यह संग्राम केवल उत्तरी भारत तक सीमित रहा। दक्षिणी भारत के लोगों ने इसमें भाग नहीं लिया। यदि सारा भारत एक साथ अंग्रेजों के विरुद्ध उठ खड़ा होता, तो प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम असफल न होता।
  • यातायात के साधनों पर अंग्रेजों का नियन्त्रण-रेल, डाक-तार और यातायात के साधनों पर अंग्रेजों का नियन्त्रण था। वे सैनिकों और युद्ध सामग्री को सरलतापूर्वक एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेज सकते थे।
  • क्रान्तिकारियों पर अत्याचार–अंग्रेजों ने क्रान्तिकारियों पर बड़े अत्याचार किए। नगरों को लूटकर जला दिया गया। अनेक लोगों को फांसी का दण्ड दिया गया। इन अत्याचारों से जनता भयभीत हो गई और डर के मारे कई लोगों ने संग्राम में भाग नहीं लिया।
  • आर्थिक कठिनाइयां-क्रान्तिकारियों के पास धन की कमी थी। इसलिए वे अच्छे अस्त्र-शस्त्र नहीं खरीद सकते थे। परिणामस्वरूप क्रान्तिकारी अपने उद्देश्य में असफल रहे।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

PSEB 10th Class Physical Education Guide व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मांसपेशियां क्या है?
(Define Muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियों में मांस सूत्र सैलों का सुमेल है। मांसपेशियां हड्डियों के साथ जुड़ी होती हैं। मांसपेशियों के सिकुड़ने से हड्डियों में खिंचाव उत्पन्न होता है तथा भिन्न-भिन्न अंग कार्य करते हैं।

प्रश्न 2.
मांसपेशियों की किस्मों के नाम लिखें।
(Name the types of Muscles.)
उत्तर-

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)
  3. हृदय की मांसपेशियां (Cardiac Muscles)

प्रश्न 3.
मल निकास प्रणाली क्या है?
(What is Excretory System ?)
उत्तर-
मल निकास प्रणाली ‘मल त्याग प्रणाली’ उस प्रबन्ध को कहते हैं जिसके द्व रीर से व्यर्थ एवं हानिकारक पदार्थों का निकास होता है।

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प्रश्न 4.
मल त्याग प्रणाली के मुख्य अंगों के नाम लिखें।
(Name the organs of excretory system.)
उत्तर-

  1. फेफड़े
  2. गुर्दे
  3. त्वचा
  4. आन्तें।

प्रश्न 5.
मांसपेशियों के कोई दो कार्य लिखें।
(Write two functions of Muscles.)
उत्तर-

  1. मांसपेशियां शरीर को रूप प्रदान करती हैं।
  2. इनकी सहायता से व्यक्ति चलना, फिरना, उछलना, कूदना और सांस लेता है।

प्रश्न 6.
ऐच्छिक मांसपेशियां क्या हैं ?
(What are voluntary Muscles ?)
उत्तर-
ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार चलती हैं।

प्रश्न 7.
अनैच्छिक मासपेशियां क्या हैं ?
(What are involuntary Muscles ?)
उत्तर-
यह मांसपेशियां व्यक्ति के वश में नहीं होतीं। वे व्यक्ति की बिना इच्छा के कार्य करती हैं।

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प्रश्न 8.
हृदय की मांसपेशियां क्या होती हैं ?
(What is are Cardiac Muscles?)
उत्तर-
यह मांसपेशियां अनैच्छिक मांसपेशियों जैसी होती हैं। परन्तु लगातार काम करने पर भी इनमें थकावट नहीं आती।

प्रश्न 9.
शरीर में कितने गुर्दे होते हैं?
(How many Kidneys are there in our body ?)
उत्तर-
दो।

प्रश्न 10.
व्यक्ति के शरीर में फेफड़ों की गिनती बताएं।
(How many Lungs a person possesses ?)
उत्तर-
दो।

प्रश्न 11.
रक्त का कार्य लिखें।
(Write the functions of the blood.)
उत्तर-
रक्त शरीर को ऑक्सीजन देता है और व्यर्थ पदार्थों को शरीर से निकालने का मल त्याग प्रणाली द्वारा कार्य करता है।

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प्रश्न 12.
नाक द्वारा सांस लेने के क्या लाभ हैं ?
(What are the uses of nose breathing?)
उत्तर-
नाक द्वारा सांस लेने में वायु शुद्ध और गर्म होकर शरीर में जाती है।

प्रश्न 13.
सांस लेते समय हम कौन-सी गैस अन्दर ले जाते हैं ?
(Which Gas do we take while breathing.)
उत्तर-
ऑक्सीजन गैस।

प्रश्न 14.
शारीरिक थकावट से क्या भाव है?
(What do you mean by Physical Fatigue?)
उत्तर-
इसमें शरीर थक जाता है और कार्य करने का मन नहीं करता।

प्रश्न 15.
श्वास क्रिया द्वारा कौन-सी गैस बाहर निकालते हैं ?
(Which Gas do we take out while breathing ?)
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड।

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प्रश्न 16.
मानसिक थकावट क्या है?
(What is Mental Fatigue?)
उत्तर-
जब कार्य करते-करते शरीर के साथ मन भी थक जाता है तो उसे मानसिक थकावट कहते हैं।

प्रश्न 17.
प्राणायाम के क्या लाभ हैं ?
(What are the uses of Pranayam?)
उत्तर-
शरीर स्वस्थ तथा मन संतुष्ट रहता है। शरीर को ऑक्सीजन की मात्रा पर्याप्त मिलती रहती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
श्वास क्रिया किसे कहते हैं ?
(What is Respiration ?)
उत्तर-
श्वास क्रिया दो क्रियाओं का मेल है। एक है सांस अन्दर ले जाने की क्रिया जिसे उच्छ्वास क्रिया (Inspiration) कहते हैं। दूसरी है सांस बाहर निकालने की क्रिया जिसे प्रश्वास क्रिया (Expiration) कहते हैं। श्वास क्रिया का मानवीय जीवन के लिए विशेष महत्त्व है। सामान्य व्यक्ति 20 से 22 सांस लेता है।

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प्रश्न 2.
रक्त किसे कहते हैं ?
(What is Blood ?)
उत्तर-
रक्त एक प्रकार का तरल पदार्थ है। यह शरीर में शिराओं (Veins) तथा. धमनियों में दिन-रात चलता रहता है। यह गाढ़े रंग का नमकीन पदार्थ है। यह व्यक्ति में उसके शरीर के 1/12 या 1/13 भाग के बराबर होता है।

प्रश्न 3.
रक्त के विभिन्न भागों के बारे में तुम क्या जानते हो ?
(What do you know about the Composition of Blood ?)
उत्तर-
रक्त में निम्नलिखित पदार्थ होते हैं-

  1. प्लाज्मा (Plasma)
  2. लाल रक्त कण (Red Corpuscles)
  3. श्वेत रक्त कण (White Corpuscles)
  4. प्लेटलेट्स।

प्लाज्मा पीले रंग का नमकीन पदार्थ है। इसमें लाल तथा श्वेत रक्त कण तैरते रहते हैं। लाल रक्त कण गोल तथा दोनों ओर से चिपके होते हैं। इनकी आयु 115 दिन होती है। श्वेत रक्त कण शरीर की रोगों के आक्रमणों से रक्षा करते हैं। ये रंगहीन और बेडोल आकार के होते हैं। प्लेटलेट्स का आकार लाल कणों से \(\frac{1}{2}\), या \(\frac{1}{3}\) होता है। ये रक्त को बहने से रोकते हैं।

प्रश्न 4.
रक्त दबाव क्या होता है ?
(What is Blood Pressure ?)
उत्तर-
शिराओं, धमनियों तथा कोशिकाओं की सहायता से रक्त शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में भ्रमण करता है। शिराओं में अशुद्ध तथा धमनियों में शुद्ध रक्त चक्कर लगाता है। इस परिभ्रमण में रक्त नलियों की दीवारों से टकराता रहता है जिससे दबाव बढ़ता है। जब यह दबाव कम होता है तो रक्त आगे को बढ़ता है। इस बढ़ने या कम होने की क्रिया को रक्त दबाव (Blood Pressure) कहते हैं। इसको सफैगनो मैनो मीटर से मापा जाता है।
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प्रश्न 5.
मांसपेशियों के कार्य बताओ।
(Describe the functions of Muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियां हड्डियों से जुड़ी होती हैं। उनके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-

  1. ये शरीर को रूप प्रदान करती हैं।
  2. ये शरीर को गति करने में सहायता करती हैं।
  3. इनकी सहायता से व्यक्ति चलता, उछलता, कूदता तथा सांस आदि लेता है।
  4. मांसपेशियां छाती के पट्ठों को फैलने में सहायता देती हैं।
  5. इनके द्वारा शरीर विकास करता है।
  6. मांसपेशियां हडियों को मजबूत रखती हैं।
  7. जोड़ों का विकास करने में मांसपेशियां सहायता करती हैं।

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प्रश्न 6.
मांसपेशियां कितनी प्रकार की होती हैं ?
(Mention the types of muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियां दो प्रकार की होती हैं

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)-ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार चलती हैं। उन्हें जैसी सूचना मिलती है वैसे ही काम करती हैं। ये शरीर को गति प्रदान करती हैं। ये शरीर को सम्भाल कर रखती हैं तथा इनमें गर्मी पैदा करती हैं। ये टांगों तथा भुजाओं में पाई जाती हैं।
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)-ये मांसपेशियां व्यक्ति के वश में नहीं होतीं। ये व्यक्ति की इच्छा के बिना कार्य करती रहती हैं। ये व्यक्ति के सोते हुए भी काम करती हैं। ये दिल, जिगर तथा आंतड़ियों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 7.
त्वचा के बारे में संक्षेप जानकारी दो।
(Describe briefly about Skin.)
उत्तर-
त्वचा एक प्रकार का पर्दा है जो आन्तरिक मांसपेशियों तथा अंगों को ढक कर रखती है। यह दो प्रकार की होती है-बाह्य या ऊपरी (Epidermis) तथा निचली या आन्तरिक (Endodermis)। ऊपरी त्वचा में छोटे-छोटे मुसाम होते हैं जिनमें से होकर पसीना शरीर से बाहर निकलता है। आन्तरिक या निचली त्वचा में चर्बी होती है जो शरीर में गर्मी पैदा करने में सहायता करती है।

प्रश्न 8.
गुर्दो के कार्य बताओ।
(Describe the functions of the kidneys.)
उत्तर-
गुर्दे पेट के पीछे की ओर होते हैं। ये संख्या में दो होते हैं। इनका आकार सेम के बीज जैसा होता है। इनके द्वारा यूरिया, यूरिक एसिड, खनिज लवण पेशाब के रूप में शरीर से बाहर आते हैं। ये रक्त में पानी की मात्रा को समान रखते हैं जिसके फलस्वरूप शरीर में एसिड तथा क्षार की मात्रा में समानता रहती है।

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प्रश्न 9.
फेफड़ों की शक्ति क्या है ? इस विषय में लिखो।
(What is Vital Capacity ? Write briefly.)
उत्तर-
फेफड़ों की शक्ति (Capacity of Lungs or Vital Capacity) वह क्रिया जिनके द्वारा गहरी सांस लेने से वायु की मात्रा अन्दर ले जाई जाती है और फिर ज़ोर से बाहर निकाली जाती है, उसे फेफड़ों की शक्ति (Vital Capacity) कहते हैं। (2014 A)
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साधारणतः हम लगभग 300 सी० सी० वायु अन्दर ले जाते हैं और लगभग 1500 सी०सी० वायु बाहर निकालते हैं। यदि हम ज़ोर से सांस बाहर निकालें तो 1500 सी० सी० और वायु निकाल सकते हैं। इतना करने पर भी हमारे फेफड़े वायु से शून्य नहीं हो जाते। तब भी लगभग 500 सी० सी० वायु इनमें रह जाती है। फेफड़ों की इस शक्ति अथवा सामर्थ्य को मापने के लिए स्पाइरोमीटर यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10.
थकावट क्या है ?
(What is Fatigue ?)
उत्तर-
मांसपेशियों में कार्य करने की शक्ति को कम होने को थकावट कहते हैं। जब हमारे शरीर की मांसपेशियां लगातार कार्य करती रहती हैं तो उनमें लैकटिक एसिड जमा हो जाता है जिस से शरीर में थकावट हो जाती है। अधिक खेलने, भागने अथवा अधिक ताकत से कार्य करने से थकावट हो जाती है। थकावट को आराम, नींद, मालिश और मनोरंजन क्रिया द्वारा दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
थकावट कितने प्रकार की होती है ?
(Mention the type of Fatigue.)
उत्तर-थकावट दो प्रकार की होती है–

  1. शारीरिक
  2. मानसिक।

प्रश्न 12.
रक्त प्रणाली के मुख्य अंगों के नाम लिखो।
(Write the main organs of circulatory system.)
उत्तर-
हृदय, शिराएं, धमनियां और कोशिकाएं।

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प्रश्न 13.
मल निकास प्रणाली के प्रमुख अंगों को सामने रखते हुए व्यायाम के प्रभावों के बारे में बताएं।
(Discuss the main organs of Excretory System. Give the effects of exercises on Excretory System.)
उत्तर-
मल निकास प्रणाली (Excretory System)—उस प्रबन्ध को मल निकास प्रणाली कहते हैं जिसके द्वारा शरीर में से व्यर्थ एवं हानिकारक पदार्थों का निकास होता है। यदि ये व्यर्थ मल निकास प्रणाली और हानिकारक पदार्थ शरीर में ही जमा रहें तो शरीर अनेक प्रकार के रोगों का शिकार हो सकता है। इन बाहर आने वाले पदार्थों में यूरिया, कार्बन डाइऑक्साइड, पसीना तथा पानी प्रमुख हैं। इन पदार्थों का निकास फेफड़ों, गुर्दो, त्वचा (Skin) तथा आन्तों के द्वारा होता है।
व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise)—व्यायाम मल निकास प्रणाली को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है

  1. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल होती है जिसके कारण रक्त की गति तेज़ हो जाती है। शरीर में गैसों की अदला-बदली (Exchange of gases) के कारण पौष्टिक पदार्थ हज्म हो जाते हैं तथा व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है। इससे शरीर का तापमान स्थिर रहता है।
  2. व्यायाम के कारण शरीर की विभिन्न मांसपेशियों को काम करना पड़ता है। इससे शरीर में टूट-फूट होती रहती है जिससे त्वचा में से गन्दगी का निकास होता रहता है। इस प्रकार शरीर चर्म रोगों से मुक्त रहता है।
  3. व्यायाम करने से शरीर में से अनावश्यक पदार्थों के रूप में विषैली वस्तुओं का शरीर से बाहर निकास होता रहता है। इस प्रकार विषैले कीटाणु शरीर में एकत्रित नहीं होते तथा शरीर में इन विषैले कीटाणुओं के विरुद्ध संघर्ष करने की शक्ति बढ़ती है।।
  4. व्यायाम करने से गुर्दे व्यर्थ पदार्थों को छान कर पेशाब के रूप में बाहर निकालते हैं। इस प्रकार ये एक छाननी का कार्य करते हैं।

प्रश्न 14.
नबज क्या है? (What is Pulse ?)
उत्तर-
रक्त की गति के कारण शिराओं और धमनियों की दीवारें फैलती और सिकुड़ती हैं। इस क्रिया को नब्ज कहते हैं। जो साधारण मनुष्य में 76 से 80 बार होता है। नबज को एक हाथ द्वारा दूसरी बाजू पर अंगुलियों का दबाव डाल कर देखा जा सकता है। खिलाड़ी की नब्ज़ एक मिनट में 60 से कम भी हो सकती है।
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प्रश्न 15.
मानसिक थकावट के मुख्य कारण क्या हैं ?
(What are the main causes of mental fatigue ?)
उत्तर-

  1. भोजन में पोषटिक पदार्थों की कमी
  2. अच्छी तरह से नींद न आना
  3. व्यक्ति की समर्था से ज्यादा काम का बोझ
  4. रोग
  5. एकाग्रता की कमी।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
रक्त के भिन्न-भिन्न अंगों का वर्णन करो। रक्त के मुख्य कार्य क्या हैं ?
(What is composition of blood ? Discuss its functions.)
उत्तर-
रक्त और उसके अंग (Blood and its Parts) रक्त या खून एक प्रकार का तरल पदार्थ है जिसका निर्माण उन खाद्य पदार्थों से होता है जिन्हें हम अपने शरीर में पहुंचाते हैं। रक्त हमारे शरीर में एक महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। मनुष्य के शरीर में रक्त उसके शरीर के भार का बारहवां (\(\frac{1}{12}\) )भाग होता है। प्रायः एक नवयुवक के शरीर में रक्त की मात्रा 2 से 3 लिटर (Litre) तक होती है। कई दिशाओं में यह मात्रा कम या अधिक भी हो सकती है।

यदि हम त्वचा (Skin) के किसी भाग को काटें तो उसमें से एक तरल (Liquid) पदार्थ निकलता है। इस तरल पदार्थ का नाम ही ‘रक्त’ है। देखने में तो यह लाल रंग का प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। यदि हम इस तरल पदार्थ अर्थात् रक्त को सूक्ष्मदर्शी (Microscope) से देखें तो हमें पता चलेगा कि रक्त में असंख्य छोटे-छोटे कण होते हैं। इन कणों का रंग सफ़ेद या लाल होता है। इन्हें लाल रक्त कण (Red Corpuscles) तथा श्वेत रक्त कण (White Corpuscles) कहते हैं। ये एक प्रकार के हल्के पीले द्रव्य (Yellow Liquid) में तैरते हैं जिसे रक्तवारि अथवा प्लाज़मा (Plasma) कहते हैं।
रक्त में मुख्यतः निम्नलिखित पदार्थ होते हैं जिन्हें नीचे दी गई तालिका द्वारा इस प्रकार प्रकट किया जाता है-
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1. रक्तवारि या प्लाज्मा (Plasma) —यह रक्त का हल्के-पीले रंग का पारदर्शक (Transparent) पदार्थ होता है। इसमें लाल और सफ़ेद कण तैरते रहते हैं। इसमें 90% पानी और 10% ठोस पदार्थ घुले रहते हैं। ये ठोस पदार्थ प्रोटीन, खनिज लवण और वसा (Fat) होते हैं। प्लाज्मा (Plasma) रक्त के दबाव (Pressure) को ठीक रखता है तथा लाल और सफ़ेद रक्त कणों को जाने में सहायता करता है। इसकी प्रोटीन रक्त के बहने को रोकने में सहायता देती है।

2. लाल रक्त कण (Red Corpuscles) —मनुष्य के लाल रक्त कण गोल तथा दोनों ओर से चिपके होते हैं। मनुष्य के एक घन मिलीमीटर रक्त में इनकी संख्या लगभग 5,000,000 होती है। ये इतने छोटे होते हैं कि यदि किनारे से किनारा मिला कर रखे जाएं तो 2.5 वर्ग सैंटीमीटर स्थान में ये लगभग 1 करोड़ आ जाएंगे। इनकी बाहरी परत एक लचीले खोल के रूप में होती है, जिसके अन्दर पीले रंग का लोहे का एक रंग (Pigment) होता है जिसे हिमोग्लोबिन (Heamoglobin) कहते हैं जो कि लोहे तथा प्रोटीन वस्तुओं से मिलकर बनती है। हिमोग्लोबिन ऑक्सीजन को चूस लेता है। इससे इसका रंग चमकदार हो जाता है और यह ऑक्सी हिमोग्लोबिन (Oxy Heamoglobin) में बदल जाता है। इसी पदार्थ के कारण रक्त फेफड़ों से ऑक्सीजन को चूस कर शरीर के भीतरी भाग तक पहुंचता है। लड़कियों में लाल रक्त कण लड़कों की अपेक्षा कम होते हैं। अधिक व्यायाम करने से तथा ऊंचाई पर लाल रक्त कणों की संख्या बढ़ जाती है।
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चित्र-लाल और सफ़ेद रक्त कण

3. सफ़ेद रक्त कण (White Corpuslces)—शरीर की तुलना एक राज्य से की जा सकती है। जिस प्रकार राज्य की रक्षा के लिए सेना का प्रबन्ध होता है, उसी प्रकार शरीर रूपी राज्य के लिए सफ़ेद रक्त कण रूपी सेना का प्रबन्ध है। सफ़ेद रक्त कणों की संख्या लाल रक्त कणों की अपेक्षा कम होती है। शरीर में लगभग 600 लाल रक्त कणों के पीछे केवल 1 (एक) सफ़ेद रक्त कण होता है। एक घन मिलीमीटर में सफ़ेद रक्त कणों की संख्या लगभग 8,000 से 10,000 होती है। ये रंगहीन और बेडौल (Irregular) आकार के होते हैं। इनकी सहायता से शरीर रोगों का सामना करता है। इनका कार्य रोग के कीटाणुओं (germs) को घेर कर उन्हें समाप्त करना है। शरीर में चोट आदि लगने पर ये घावों को भरने में सहायक होते हैं।

4. प्लेटलेट्स (Platelets) —मनुष्य के रक्त में लाल तथा सफ़ेद रक्त कणों के अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार के रक्त कण भी पाए जाते हैं जिन्हें रक्त प्लेटलेट्स (Platelets) कहते हैं। ये लाल और सफ़ेद रक्त कणों से बिल्कुल भिन्न हैं। ये लाल कणों का \(\frac{1}{2}\), या \(\frac{1}{3}\) होते हैं। रक्त के एक घन मिली मीटर में इनकी संख्या लगभग 3 लाख होती है। ये सफ़ेद और बेडौल (Irregular) आकार के होते हैं। इनका प्रमुख कार्य रक्त को बहने से रोकना है।
रक्त के कार्य (Functions of Blood) रक्त के निम्नलिखित कार्य होते हैं-

  1. रक्त हमारे भोजन के पचे हुए भाग को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने का कार्य करता है।
  2. रक्त ही शरीर में विषैले व्यर्थ पदार्थ के निकास में सहायता देता है। यह इन पदार्थों
    को अपने अन्दर घोल कर गुर्दे में ले जाता है जहां से वे मूत्र (Urine) के रूप में बाहर निकल जाते हैं।
  3. रक्त में उपस्थित लाल रक्त कण (Red Corpuscles) फेफड़ों में ऑक्सीजन चूस कर शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में ले जाते हैं।
  4. लाल रक्त कण ही ऑक्सीजन क्रिया के बाद बनी कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) को फेफड़ों में लाकर बाहर निकालने का कार्य करते हैं।
  5. सफ़ेद रक्त कण (White Corpuscles) शरीर की कीटाणुओं से रक्षा करते हैं।
  6. रक्त प्लेटलेट्स चोट लगने पर रक्त को शरीर से बाहर बह जाने से रोकने का काम करते हैं।
  7. रक्त हार्मोन्स (Harmones) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य करता है।
  8. रक्त के द्वारा शरीर के विभिन्न अंग परस्पर मिले रहते हैं और सूख कर नष्ट होने से बच जाते हैं।
  9. रक्त के द्वारा ही शरीर के विभिन्न अंगों का तापक्रम स्थिर रहता है।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि रक्त जीवन देने वाला है। यदि किसी अंग में रक्त का प्रवाह न हो तो वह अंग पीला पड़ जाता है और कमजोर हो जाता है। अधिक समय तक इस क्रम के रहने से अंग मर भी सकता है।

प्रश्न 2.
श्वास प्रणाली के अंगों का नाम लिखो। श्वास प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव लिखो।
(Mention the main organs of Respiration. Describe the effects of exercises on Respiration System.)
उत्तर-
श्वास लेने तथा छोड़ने की क्रिया को श्वास-क्रिया (Respiration) कहते हैं। इस क्रिया द्वारा मनुष्य वायु के साथ ऑक्सीजन फेफड़ों में ले जाता है और वायु के साथ शरीर में उत्पन्न हुई कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकाल देता है। श्वास क्रिया में अनेक अंग जैसे नाक, श्वास नली, फेफड़े आदि काम करते हैं। श्वास प्रणाली के विभिन्न अंग निम्नलिखित हैं

  1. नाक (Nose)
  2. ग्रसनिका या पूर्वकण्ठ (Pharynx)
  3. स्वर यन्त्र अथवा कण्ठ (Larynx)
  4. श्वास नली या टेंटुआ (Wind-Pipe or Trachea)
  5. वायु नलियां (Bronchial Tubes)
  6. फेफड़े (Lungs)

हमारे शरीर में वायु नाक व मुँह दोनों में ही प्रवेश करती है, परन्तु हमें नाक से ही वायु अन्दर ले जानी चाहिए क्योंकि वायु में धूल-कण विद्यमान होते हैं। नासिकाओं में बालों द्वारा इन्हें रोककर शुद्ध वायु ग्रसनिका में पहुंचाई जाती है। वहां से टेंटुंओं के रास्ते से होते हुए फेफड़ों में जाती है। जब हम सांस लेते हैं तो छाती में स्थित खोह फैल जाती है। इससे फेफड़े भी ज्यादा वायु खींचकर फैल जाते हैं और छाती के फैले हुए भाग को घेर लेते हैं। जब छाती पोल सिकुड़ता है तो वायु का कोशिकाओं के अन्दर दबाव पड़ता है। इससे वायु कुछ वायु कोशों से होकर बाहर निकाल दी जाती है।

जब डायाफ्राम की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं तो यह चपटी हो जाती हैं जिसमें छाती खोह बढ़ जाता है और फेफड़े फैल जाते हैं जिससे ज्यादा वायु आ जाती है। इसके पश्चात् डायाफ्राम दोबारा अपनी पहली स्थिति में आ जाता है जिससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है और वह सिकुड़ते हैं तथा अन्दर की वायु बाहर निकल जाती है। जब अन्दर की वायु का दबाव वायु के मुकाबले में कम हो जाता है जिससे बाहर की वायु उसका स्थान ग्रहण कर लेती है। इस प्रक्रिया का नाम दुहार क्रिया है। इसके पश्चात् डायाफ्राम एवं पसलियां सिकुड़ कर अपनी पहली स्थिति में आ जाती हैं तथा फेफड़े सिकुड़ जाते हैं जिससे हवा बाहर निकल जाती है। इस प्रक्रिया को प्रश्वास कहा जाता है। इसके पश्चात् फिर से वही क्रम शुरू हो जाता है, परन्तु इस क्रिया के दोबारा आरम्भ होने को आराम कहा जाता है।
इस पूर्ण क्रिया को (जिसमें अन्तः श्वसन, आराम तथा प्रश्वास क्रिया होती है) पूर्ण श्वास क्रिया कहा जाता है।

श्वास प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Respiratory System)
व्यायाम श्वास प्रणाली पर विशेष प्रभाव डालता है जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

  1. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल पैदा होती है जिससे शरीर से विषैले पदार्थ, पसीना, मल त्याग तथा पेशाब के रास्ते शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इससे शरीर रोगों से मुक्त रहता है।
  2. व्यायाम करने से फेफड़ों में वायु भरने की शक्ति में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप फेफड़ों में अधिक लचक आती है तथा ये कई रोगों से बचे रहते हैं।
  3. व्यायाम करने में शरीर से रक्त अधिक मात्रा में साफ़ होता है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के भिन्न-भिन्न सैलों में श्वास-क्रिया के द्वारा रक्त अधिक मात्रा में पहुंचता है।
  4. व्यायाम करने से शरीर से व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है जिससे शरीर में काम करने की शक्ति अधिक पैदा होती है।
  5. व्यायाम करने से शरीर के सभी सैलों को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है। इसके फलस्वरूप शरीर स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनता है।
  6. इसके द्वारा जोर का कार्य करने से व्यक्ति की जीवन धारा. बढ़ जाती है। (7) इसके द्वारा विकास अधिक-से-अधिक किया जा सकता है।’
  7. इसके द्वारा गैसों की अदला-बदली तीव्रता और ठीक तरह से होती है। (9) इसके द्वारा शरीर की मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती है।
  8. व्यायाम करने से कार्बन डाइऑक्साइड के बाहर निकलने और ऑक्सीजन के अन्दर प्रवेश करने की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

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प्रश्न 3.
रक्त प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव लिखो।
(Write down the effects of Exercises on Circulatory System.)
उत्तर-
रक्त प्रणाली एक प्रकार का तरल पदार्थ (Liquid) है। इसका निर्माण उन खाद्य एवं पेय पदार्थों से होता है जिन्हें हम अपने शरीर में पहुंचाते हैं। मानव शरीर में रक्त उसके शरीर के कुल भार का \(\frac{1}{12}\), या \(\frac{1}{13}\) में भाग होता है। रक्त में असंख्य छोटे-छोटे लाल एवं श्वेत कण होते हैं जो कि प्लाज्मा नामक हल्के पीले रंग के द्रव्य में तैरते रहते हैं। रक्त हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में दिन-रात भ्रमण करता रहता है। रक्त की इस गति को रक्त परिवहन (Blood Circulation) कहते हैं। रक्त परिवहन में शरीर के जो अंग भाग लेते हैं, उनके समूह को रक्त प्रणाली (Circulatory System) कहते हैं।

रक्त प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Circulatory System.) रक्त प्रणाली पर व्यायाम के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं—

  1. व्यायाम करते समय हृदय मांसपेशियों को आवश्यकतानुसार अधिक रक्त देता है. जिसके फलस्वरूप छोटी रक्त नलियों तथा तन्तुओं के तनों में अधिक वृद्धि होती है।
  2. व्यायाम करने वालों के शरीर में शुद्ध एवं अशुद्ध रक्त की अदला-बदली शीघ्र होती रहती है। इसके फलस्वरूप शरीर में पौष्टिक पदार्थ तथा ऑक्सीजन की मात्रा अधिक मिलती है और शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड आदि व्यर्थ और हानिकारक पदार्थों का पसीने तथा पेशाब के रूप में निकास हो जाता है। इससे शरीर हृष्ट-पुष्ट व नीरोग रहता है।
  3. व्यायाम करने वाले व्यक्ति का रक्त दबाव अधिक नहीं होता। उसकी मांसपेशियां सिकुड़ती और फैलती हैं। फलस्वरूप रक्त शीघ्र साफ हो जाता है।
  4. व्यायाम करते समय शरीर का प्रत्येक अंग काम करता है। इस कारण उन्हें ऑक्सीजन की अधिक आवश्यकता पड़ती है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के खून की गति साधारण व्यक्ति से दुगुनी होती है।
  5. व्यायाम करने से मांसपेशियां मज़बूत होती हैं। इसके फलस्वरूप आराम की स्थिति में हृदय की धड़कन मन्द चलती है, परन्तु रक्त की गति तेज़ होती है।
  6. व्यायाम करने वाले मनुष्य को ऑक्सीजन की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। इस प्रकार ऑक्सीजन की खपत में वृद्धि होती है तथा रक्त में इसकी मात्रा बढ़ती है। इस बढ़ी हुई ऑक्सीजन के कारण लैक्टिक एसिड में वृद्धि नहीं होती। इसलिए खिलाड़ी तथा एथलीट बिना थकावट महसूस किए काफ़ी समय तक खेल में भाग ले सकते हैं।
  7. व्यायाम करते समय रक्त नलियों के मुंह खुलते और बन्द होते रहते हैं जिससे व्यायाम करते समय ऑक्सीजन अधिक मात्रा में अन्दर जाती रहती है। भारी व्यायाम तथा दौड़ते समय ऑक्सीजन 3500 घन मिली लिटर तक अन्दर चली जाती है जबकि साधारण व्यायाम करने वाले में ऑक्सीजन की मात्रा केवल 5000 से 8000 घन मिली लिटर तक होती है।
  8. व्यायाम करने वाले व्यक्ति की शिराओं (Veins) तथा धमनियों (Arteries) को अधिक काम करना पड़ता है। फलस्वरूप इनकी दीवारें मज़बूत हो जाती हैं। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के दिल की रक्त स्ट्रोक (Stroke Volume) साधारण व्यक्ति से अधिक होती है।

प्रश्न 4.
मांसपेशियां क्या हैं ? ये कितने प्रकार की हैं ? इन पर व्यायाम के प्रभावों के बारे में बताएं।
(What are Muscles ? Give its types. Write down the effects of exercises on muscular system.)
उत्तर-
मांसपेशियां (Muscles)-मानव शरीर का सर्वोत्तम गुण इसकी गति अथवा चलना-फिरना है। मनुष्य के घूमने-फिरने से हड्डियां धुरी की भूमिका निभाती हैं। हड्डियों के साथ मांसपेशियां जुड़ी होती हैं। ये विभिन्न आकार की होती हैं। इन मांसपेशियों में मांस सूत्र सैलों का सुमेल है। प्रत्येक मांसपेशी हड्डी के साथ जुड़ी होती है।
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मांसपेशियों के सिकुड़ने से हडियों में भी खिंचाव उत्पन्न होता है तथा भिन्न-भिन्न अंग कार्य करते हैं। मांसपेशियों में 75% पानी, 18% प्रोटीन तथा शेष (वसा) चर्बी तथा नमक आदि होते हैं। रक्त तथा सुषम्ना नाड़ियां इन मांसपेशियों को सूचना पहुंचाने का काम करती
मांसपेशियों के प्रकार (Types of Muscles)—मांसपेशियां निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं—

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)

1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles) ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार कार्य करती हैं। ये हड्डियों के पिंजर के ऊपर लगी होती हैं। ये टांगों तथा भुजाओं में मिलती हैं। ये प्राप्त सूचना के अनुसार कार्य करती हैं। ये शरीर को गति प्रदान करती हैं, शारीरिक ढांचे को सम्भाल कर रखती हैं तथा शरीर में गर्मी उत्पन्न करती हैं।
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चित्र-ऐच्छिक मांसपेशियां
2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles) (2005 B)-अनैच्छिक मांसपेशियां वे मांसपेशियां हैं जो व्यक्ति के वश में नहीं होती और उसकी इच्छा के बिना ही काम करती रहती हैं। ये हृदय, जिगर तथा आन्तों आदि में पाई जाती हैं। ये व्यक्ति के सोते हुए भी कार्य करती रहती हैं। ये रक्त परिवहन तथा पाचन क्रिया में सहायता पहुंचाती हैं। इनके लक्षण सिकुड़ना, फैलाव तथा लचक आदि हैं।
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चित्र-अनैच्छिक मांसपेशियां

मांसपेशियों पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Muscles)— याम के मांसपेशियों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं—

  1. व्यायाम करने वाले व्यक्तियों की मांसपेशियां अधिक काम करती हैं। इस प्रकार उन्हें ऑक्सीजन द्वारा पौष्टिक खुराक अधिक मात्रा में प्राप्त होती है। इससे ये अधिक पुष्ट और मज़बूत बन जाती है।
  2. प्रतिदिन व्यायाम करने से मांसपेशियों का आपसी ताल-मेल बढ़ता है। इनमें व्यायाम के कारण अधिक शक्ति आती है। फलस्वरूप व्यक्ति लम्बी अवधि तक काम करके भी थकावट महसूस नहीं करता है।
  3. व्यायाम करने से मांसपेशियों को अधिक काम करना पड़ता है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के अन्दर ऑक्सीजन की खपत भी बढ़ जाती है। इस प्रकार मांसपेशियों में तेजी से रक्त पहुंचता रहता है।
  4. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल होती रहती है। इसमें कई व्यर्थ पदार्थों का शरीर से निकास हो जाता है तथा शरीर का तापमान प्रायः समान ही रहता है।
  5. व्यायाम करने से मांसपेशियों को ग्लाइकोजन, फॉस्कोराटीन तथा पोटाशियम आदि रासायनिक पदार्थ प्राप्त होते रहते हैं। रासायनिक पदार्थ रक्त की गति में वृद्धि करते हैं।
  6. व्यायाम करने से शरीर की मांसपेशियों में लचक तथा स्फूर्ति आती है। इससे हमारा शरीर नीरोग तथा मजबूत,रहता है।
  7. व्यायाम करने से छाती की हड्डियों के पट्ठों के फैलने की शक्ति बढ़ जाती है।
  8. इसके द्वारा पट्ठों को प्रयोग के योग्य रखा जा सकता है।
  9. इसके द्वारा हमारी हड्डियां कठोर हो जाती हैं और अधिक समय तक काम कर सकती हैं।
  10. विश्राम अवस्था में व्यक्ति का रक्त चक्र पूरा होने के लिए 21 सैकिंड लगते हैं। परन्तु व्यायाम करने से यह 8.15 या 10 सैकिंड में पूरा हो जाता है।

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प्रश्न 5.
मलत्याग प्रणाली के मुख्य अंगों पर व्यायाम के प्रभाव लिखें।
(Discuss the main organs of Excretory System. Write the effects of Exercise on Excretory System.)
उत्तर-
मलत्याग प्रणाली उसको कहते हैं जिसके द्वारा शरीर में व्यर्थ और हानिकारक पदार्थों का निकास होता है। यदि यह व्यर्थ पदार्थ शरीर में ही रहें तो कई प्रकार के रोग लग सकते हैं। बाहर आने वाले पदार्थ यूरिया, कार्बन डाइऑक्साइड, पसीना और पानी हैं, जो फेफड़ों, गुर्दो, त्वचा और आंतड़ियों द्वारा बाहर निकलते हैं।

  1. व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercises)-व्यायाम द्वारा रक्त की गति तेज़ हो जाती है, शरीर में गैसों के परिवर्तन के कारण पौष्टिक पदार्थ दब जाते हैं और व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है तथा शरीर का तापमान स्थिर रहता है।
  2. व्यायाम द्वारा मांसपेशियों को कार्य करना पड़ता है जिससे त्वचा द्वारा गंदगी का निकास होता रहता है जिससे शरीर त्वचा के रोगों से मुक्त रहता है।
  3. व्यायाम द्वारा व्यर्थ पदार्थ और ज़हरीली वस्तुएं शरीर से बाहर निकल जाती हैं और ज़हरीले कीटाणु शरीर में इकट्ठे नहीं हो सकते।
  4. व्यायाम द्वारा गुर्दे व्यर्थ पदार्थों को पेशाब द्वारा बाहर निकाल देते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर नोट लिखो
(क) त्वचा के कार्य
(ख) गुर्दे
(ग) दिल
(घ) शिराएं तथा धमनियां। (अभ्यास का प्रश्न 6)
[Write a note on the following
(a) Functions of Skin
(b) Kidneys
(c) Heart
(d) Arteries and Veins.]
उत्तर-
(क) त्वचा के कार्य (Functions of Skin) त्वचा (चमड़ी) एक प्रकार का आवरण (पर्दा) है जो शरीर के आन्तरिक अंगों तथा मांसपेशियों को ढांप कर रखती है। त्वचा दो प्रकार की होती है-ऊपरी या बाह्य (Epidermic) तथा निचली या आन्तरिक (Dermis)। ऊपरी त्वचा सख्त तथा नर्म होती है। इसमें छोटे-छोटे मुसाम होते हैं, जिनसे पसीना शरीर में से बाहर निकलता रहता है। निचली या आन्तरिक त्वचा बन्धक तन्तुओं (Connective tissues) की बनी होती है। इसमें वसा (चर्बी) होती है जो गर्मी पैदा करने में सहायता प्रदान करती है। इसमें दो प्रकार की पसीना तथा चिकनाहट की ग्रन्थियां होती हैं जो शरीर के तापमान को एक समान रखने में सहायता देती हैं।
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चित्र-त्वचा

(ख) गुर्दे (Kidneys) (P.S.E.B. 2009 C, 2014 A, 2017 B)—गुर्दे संख्या में दो होते हैं। ये पेट के पीछे की ओर स्थित होते हैं। इनका आकार सेम के बीज जैसा होता है। ये पेशाब का शरीर से निकास करने में सहायता देते हैं। ये शरीर में रक्त व पानी की मात्रा एक समान रखते हैं। गुर्दे के द्वारा शरीर में से यूरिया, यूरिक एसिड, खनिज लवण पेशाब के रूप में निकलते रहते हैं।
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चित्र-गुर्दे

(ग) दिल (Heart)—यह शरीर का सबसे कोमल तथा रक्त परिवहन का प्रमुख अंग है। यह छाती के बाईं ओर स्थित है। इसका आकार बन्द मुट्ठी जैसा होता है। यह लम्बाई की ओर से दो भागों में बंटा होता है। प्रत्येक भाग आगे दो भागों में बंटा होता हैऊपरी भाग तथा निचला भाग। ऊपर के भाग को ऊपरी खाना (Auricle) तथा निचले भाग को निचला खाना (Ventricle) कहते हैं। शरीर में से शुद्ध वायु विभिन्न अंगों तथा
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चित्र-दिल
शिराओं के माध्यम से दिल के दाएं ऊपरी खाने (Auricle) तक पहुंचती है तथा ऊपर से त्रिकपर्दीय (Triscupid Valve) के द्वारा निचले खाने (Ventricle) में पहुंचती है। यहां से यह ऊपर वापस नहीं जा सकती। दायें निचले खाने से रक्त फेफड़ों वाली धमनी (Pulmonary Artery) से फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए जाता है तथा वापसी में ऑक्सीजन से मिश्रित शुद्ध रक्त दिल के बायें ऊपरी खाने में पहुंच जाता है। यह निचले खाने में द्विकपर्दीय (Bicuspid) द्वार के द्वारा पहुंचता है। निचले खाने से यह महाधमनी (Aorta) के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचता है। इस प्रकार रक्त परिवहन का यह चक्र निरन्तर कार्य करता रहता है।

(घ) शिराएं एवं धमनियां (Veins & Arteries)—जो नलियां रक्त को फेफड़ों तथा शरीर के अन्य भागों से फेफड़ों की ओर ले जाती हैं उन्हें शिराएं (Veins) कहते हैं। इनकी दीवारों की बनावट तो धमनियों जैसी होती है, परन्तु इनमें लचीली तथा मांसदार पेशियों की तह बहुत बारीक होती है। पलमोनरी शिरा को छोड़कर शेष सभी शिराएं अशुद्ध रक्त को ही हृदय में लाती हैं।
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चित्र-धमनियां, शिराएं, कोशिकाएं
धमनियां (Arteries) शुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाती है। ये लचकदार तथा मोटी दीवार की बनी होती हैं। इसमें स्वच्छ रक्त को ले जाने वाली धमनी को पलमोनरी धमनी (Pulmonary Artery) कहते हैं। धमनियों में सबसे प्रमुख धमनी को मूल धमनी या महाधमनी (Aorta) कहते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 8 न्याय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 8 न्याय

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य की परिभाषा दीजिए और इसके तत्त्वों की व्याख्या करें। (Define State. Discuss its elements.)
अथवा
राज्य के मूलभूत तत्त्वों की विवेचना कीजिए। (Discuss the essential elements of a State.)
उत्तर-
राज्य एक प्राकृतिक और सर्वव्यापी, मानवीय संस्था है। व्यक्ति के सामाजिक जीवन को सुखी और सुरक्षित रखने के लिए जो संस्था अस्तित्व में आई, उसे राज्य कहते हैं। मनुष्य के जीवन के विकास के लिए राज्य एक आवश्यक संस्था है। यदि राज्य न हो, तो समाज में अराजकता फैल जाएगी।

राज्य शब्द की उत्पत्ति (Etymology of the word)-स्टेट (State) शब्द लातीनी भाषा के ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द से लिया गया है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीन काल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। परन्तु धीरे-धीरे इसका अर्थ बदलता गया। मैक्यावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

राज्य शब्द का गलत प्रयोग (Wrong use of the word ‘State’) अधिकांश तौर पर सामान्य भाषा में ‘राज्य’ शब्द का गलत प्रयोग किया जाता है। जैसे भारत में इसकी इकाइयों जैसे-पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश एवं अमेरिका में अटलांटा, बोस्टन, न्यूयार्क एवं वाशिंगटन जैसी इकाइयों को राज्य कह दिया जाता है, जबकि ये वास्तविक तौर पर राज्य नहीं हैं।

राज्य की परिभाषाएं (Definitions of State)–विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई राज्य की परिभाषाएं निम्नलिखित

1. अरस्तु (Aristotle) के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर तथा समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।” (“The state is a Union of families and villages having for its end a perfect and self-sufficing life by which we mean a happy and honourable life.”) परन्तु यह परिभाषा बहुत पुरानी है और आधुनिक राज्य पर लागू नहीं होती।

2. ब्लंटशली (Bluntschli) का कहना है कि “एक निश्चित भू-भाग में राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोगों का समूह राज्य कहलाता है।” (“The state is a politically organised people of a definite territory.”)

3. अमेरिका के राष्ट्रपति वुडरो विल्सन (Woodrow Willson) के अनुसार, “एक निश्चित क्षेत्र में कानून की स्थापना के लिए संगठित लोगों का समूह ही राज्य है।” (“The state is a people organised for law within a definite territory.”) परन्तु यह परिभाषा भी ठीक नहीं समझी जाती क्योंकि इसमें राज्य की प्रभुसत्ता का कहीं भी उल्लेख नहीं है।

4. गार्नर (Garner) द्वारा दी गई राज्य की परिभाषा आजकल सर्वोत्तम मानी जाती है। उसके अनुसार, “राजनीति शास्त्र और सार्वजनिक कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो, बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह से लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।” (“The state, as a concept of political science and public law, is a community of persons, more or less numerous permanently occupying a definite portion of territory, independent or nearly so, of external control and possessing an organised government to which the great body of inhabitants render habitual obedience.”)

5. गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।”
डॉ० गार्नर की परिभाषा सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि इस परिभाषा में राज्य के चारों आवश्यक तत्त्वों का समावेश है-जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। जिस देश या राष्ट्र के पास चारों तत्त्व होंगे, उसी को राज्य के नाम से पुकारा जा सकता है। राजनीति शास्त्र के अनुसार राज्य में इन चार तत्त्वों का होना आवश्यक है।

राज्य के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements or Attributes of State)-

राज्य के अस्तित्व के लिए चार तत्त्वों का होना आवश्यक है जो कि जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता है। इनमें से किसी एक के भी अभाव में राज्य का निर्माण नहीं हो सकता। जनसंख्या (Population) और भू-भाग (Territory) को राज्य के भौतिक तत्त्व (Physical Element), सरकार (Government) को राज्य का राजनीतिक तत्त्व (Political Element) और प्रभुसत्ता (Sovereignty) को राज्य का आत्मिक तत्त्व (Spiritual Element) माना जाता है। इन तत्त्वों की व्याख्या नीचे की गई है :-

1. जनसंख्या (Population)-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। राज्य पशु-पक्षियों का समूह नहीं है। वह मनुष्यों की राजनीतिक संस्था है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर बल्कि कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस प्रकार बिना पति-पत्नी के परिवार, मिट्टी के बिना घड़ा और सूत के बिना कपड़ा नहीं बन सकता, उसी प्रकार बिना मनुष्यों के समूह के राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य में कितनी जनसंख्या होनी चाहिए, इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं है। परन्तु राज्य के लिए पर्याप्त जनसंख्या होनी चाहिए। दस-बीस मनुष्य राज्य नहीं बना सकते।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

राज्य की जनसंख्या कितनी हो, इस सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं। प्लेटो (Plato) के मतानुसार, एक आदर्श राज्य की जनसंख्या 5040 होनी चाहिए। अरस्तु (Aristotle) के मतानुसार, जनसंख्या इतनी कम नहीं होनी चाहिए कि राज्य आत्मनिर्भर न बन सके और न इतनी अधिक होनी चाहिए कि भली प्रकार शासित न हो सके। रूसो (Rousseau) प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का समर्थक था, इसलिए उसने छोटे राज्यों का समर्थन किया। उसने एक आदर्श राज्य की जनसंख्या 10,000 निश्चित की थी।

प्राचीन काल में नगर राज्यों की जनसंख्या बहुत कम हुआ करती थी, परन्तु आज के युग में बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके हैं।
आधुनिक राज्यों की जनसंख्या करोड़ों में है। चीन राज्य की जनसंख्या लगभग 135 करोड़ से अधिक है जबकि भारत की जनसंख्या 130 करोड़ से अधिक है। परन्तु दूसरी ओर कई ऐसे राज्य भी हैं जिनकी जनसंख्या बहुत कम है। उदाहरणस्वरूप, सान मेरीनो की जनसंख्या 25 हज़ार के लगभग तथा मोनाको की जनसंख्या 32 हज़ार के लगभग है जबकि नारु की जनसंख्या 9500 है। आधुनिक काल में कुछ राज्यों में बड़ी जनसंख्या एक बहुत भारी समस्या बन चुकी है और इन देशों में जनसंख्या को कम करने पर जोर दिया जाता है। उदाहरण के लिए भारत की अधिक जनसंख्या एक भारी समस्या है।

राज्यों की जनसंख्या निश्चित करना अति कठिन है, परन्तु हम अरस्तु के मत से सहमत हैं कि राज्य की जनसंख्या न इतनी कम होनी चाहिए कि राज्य आत्मनिर्भर न बन सके और न ही इतनी अधिक होनी चाहिए कि राज्य के लिए समस्या बन जाए। राज्य की जनसंख्या इतनी होनी चाहिए कि वहां की जनता सुखी तथा समृद्धिशाली जीवन व्यतीत कर सके। गार्नर के मतानुसार, “राज्य की जनसंख्या इतनी अवश्य होनी चाहिए कि वह राज्य सुदृढ़ रह सके। परन्तु उससे अधिक नहीं होनी चाहिए जिसके लिए भू-खण्ड तथा राज्य साधन पर्याप्त न हों।” प्रो० आर० एच० सोल्टाऊ (Prof. R.H. Soltau) के अनुसार, “राज्य की जनसंख्या तीन तत्त्वों पर आधारित होनी चाहिए-साधनों की प्राप्ति, इच्छित जीवन-स्तर और सुरक्षा उत्पादन की आवश्यकताएं।”

2. निश्चित भू-भाग (Definite Territory)-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भूमि है। बिना निश्चित भूमि के राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता। खानाबदोश कबीले (Nomadic Tribes) राज्य का निर्माण नहीं कर सकते क्योंकि वे एक स्थान पर नहीं रहते बल्कि एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। यही कारण है कि 1948 से पहले यहूदी लोग संसार-भर में घूमते रहते थे और उनका कोई राज्य नहीं था। यहूदी लोग (Jews) 1948 में ही स्थायी तौर पर अपना इज़राइल (Israel) नामक राज्य स्थापित कर सके। भू-भाग का निश्चित होना राज्यों की सीमाओं के निर्धारण के लिए भी आवश्यक है वरन् सीमा-सम्बन्धी झगड़े सदा ही अन्तर्राष्ट्रीय संघर्ष का कारण बने रहेंगे।

भूमि में पहाड़, नदी, नाले, तालाब आदि भी शामिल होते हैं। भूमि के ऊपर का वायुमण्डल भी राज्य की भूमि का भाग माना जाता है। भूमि के साथ लगा हुआ समुद्र का 3 मील से 12 मील तक का भाग भी राज्य की भूमि में शामिल किया जाता है।

राज्य की भूमि का क्षेत्रफल कितना होना चाहिए, इसके बारे में कुछ निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। प्राचीन काल में राज्य का क्षेत्रफल बहुत छोटा होता था, परन्तु आधुनिक राज्यों का क्षेत्रफल बहुत बड़ा है। पर कई राज्यों का क्षेत्रफल आज भी बहुत छोटा है। रूस का क्षेत्रफल 17,075,000 वर्ग किलोमीटर है जबकि भारत का क्षेत्रफल 3,287,263 वर्ग किलोमीटर है। पर सेन मेरीनो का क्षेत्रफल 61 वर्ग किलोमीटर है जबकि मोनाको का क्षेत्रफल 1.95 वर्ग किलोमीटर ही है। मालद्वीप राज्य का क्षेत्रफल 298 वर्ग किलोमीटर है। आज राज्य के बड़े क्षेत्र पर जोर दिया जाता है क्योंकि बड़े क्षेत्र में अधिक खनिज पदार्थ और दूसरे प्राकृतिक साधन होते हैं, जिससे देश को शक्तिशाली बनाया जा सकता है। अमेरिका, रूस, चीन अपने बड़े क्षेत्रों के कारण शक्तिशाली हैं। दूसरी ओर इंग्लैण्ड, स्विट्ज़रलैंड, बैल्जियम इत्यादि देशों का क्षेत्रफल तो कम है परन्तु इन देशों ने भी बहुत उन्नति की है। अतः यह कहना कि देश की उन्नति के लिए बहुत बड़ा क्षेत्र होना चाहिए, ठीक नहीं है। राज्य के क्षेत्र के सम्बन्ध में अरस्तु का मत ठीक प्रतीत होता है। उसने कहा है कि राज्य का क्षेत्र इतना विस्तृत होना चाहिए कि वह आत्मनिर्भर हो सके और इतना अधिक विस्तृत नहीं होना चाहिए कि उस पर ठीक प्रकार से शासन न किया जा सके। अतः राज्य का क्षेत्रफल इतना होना चाहिए कि लोग अपने जीवन को समृद्ध बना सकें और देश की सुरक्षा भी ठीक हो सके।

3. सरकार (Government)-सरकार राज्य का तीसरा अनिवार्य तत्त्व है। जनता का समूह निश्चित भू-भाग पर बस कर तब तक राज्य की स्थापना नहीं कर सकता जब तक उनमें राजनीतिक संगठन न हो। बिना सरकार के जनता का समूह राज्य की स्थापना नहीं कर सकता। सरकार देश में शान्ति की स्थापना करती है, कानूनों का निर्माण करती है तथा कानूनों को लागू करती है और कानून तोड़ने वाले को दण्ड देती है। सरकार लोगों के परस्पर सम्बन्धों को नियमित करती है। सरकार राज्य की एजेन्सी है जिसके द्वारा राज्य के समस्त कार्य किए जाते हैं। बिना सरकार के अराजकता उत्पन्न हो जाएगी तथा समाज में अशान्ति पैदा हो जाएगी। अत: राज्य की स्थापना के लिए सरकार का होना आवश्यक है।

संसार के सब राज्यों में सरकारें पाई जाती हैं, परन्तु सरकार के विभिन्न रूप हैं। कई देशों में प्रजातन्त्र सरकारें हैं, कई देशों में तानाशाही तथा कई देशों में राजतन्त्र है। उदाहरण के लिए भारत, नेपाल, इंग्लैण्ड, फ्रांस, अमेरिका, जर्मनी में प्रजातन्त्रात्मक सरकारें हैं जबकि क्यूबा, उत्तरी कोरिया, चीन आदि में कम्युनिस्ट पार्टी की तानाशाही है। कुछ देशों में संसदीय सरकार है और कुछ देशों में अध्यक्षात्मक सरकार है। इसी तरह कुछ देशों में संघात्मक सरकार है और कुछ में एकात्मक सरकार है। सरकार का कोई भी रूप क्यों न हो, उसे इतना शक्तिशाली अवश्य होना चाहिए कि वह देश में शान्ति की स्थापना कर सके और देश को बाहरी आक्रमणों से बचा सके।

4. प्रभुसत्ता (Sovereignty)—प्रभुसत्ता राज्य का चौथा आवश्यक तत्त्व है। प्रभुसत्ता राज्य का प्राण है। इसके बिना राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती। प्रभुसत्ता का अर्थ सर्वोच्च शक्ति होती है। इस सर्वोच्च शक्ति के विरुद्ध कोई आवाज़ नहीं उठा सकता। सब मनुष्यों को सर्वोच्च शक्ति के आगे सिर झुकाना पड़ता है। प्रभुसत्ता दो प्रकार की होती है-आन्तरिक प्रभुसत्ता (Internal Sovereignty) तथा बाहरी प्रभुसत्ता (External Sovereignty)।

आन्तरिक प्रभुसत्ता (Internal Sovereignty)-आन्तरिक प्रभुसत्ता का अर्थ है कि राज्य का अपने देश के अन्दर रहने वाले व्यक्तियों, समुदायों तथा संस्थाओं पर पूर्ण अधिकार होता है। प्रत्येक व्यक्ति तथा प्रत्येक समुदाय को राज्य की आज्ञा का पालन करना पड़ता है। जो व्यक्ति राज्य के कानून को तोड़ता है, उसे सज़ा दी जाती है। राज्य को पूर्ण अधिकार है कि वह किसी भी संस्था को जब चाहे समाप्त कर सकता है।

बाहरी प्रभुसत्ता (External Sovereignty)-बाहरी प्रभुसत्ता का अर्थ है कि राज्य के बाहर कोई ऐसी संस्था अथवा व्यक्ति नहीं है जो राज्य को किसी कार्य को करने के लिए आदेश दे सके। राज्य पूर्ण रूप से स्वतन्त्र है। यदि किसी देश पर किसी दूसरे देश का नियन्त्रण हो तो वह देश राज्य नहीं कहला सकता। उदाहरण के लिए सन् 1947 से पूर्व भारत पर इंग्लैण्ड का शासन था, अतः उस समय भारत एक राज्य नहीं था। 15 अगस्त, 1947 को अंग्रेज़ भारत छोड़कर चले गए और इसके साथ ही भारत राज्य बन गया।

क्या कोई तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है ? (Is any Element the Most Important One ?)-

राज्य की स्थापना के लिए चार तत्त्व-जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार, प्रभुसत्ता-अनिवार्य हैं। यह कहना कि इन तत्त्वों में से कौन-सा तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है, अति कठिन है। जनसंख्या के बिना राज्य की कल्पना नहीं हो सकती। लोगों के स्थायी रूप से रहने के लिए एक निश्चित भू-भाग की भी आवश्यकता होती है। सरकार के बिना राज्य का अस्तित्व नहीं हो सकता और प्रभुसत्ता के बिना राज्य के तीनों तत्त्व अर्थहीन हो जाते हैं। प्रभुसत्ता एक ऐसा तत्त्व है जो राज्यों को अन्य समुदाओं और संस्थाओं से श्रेष्ठ बनाता है। इसलिए कुछ लोगों का विचार है कि चारों तत्त्वों में से प्रभुसत्ता अधिक महत्त्वपूर्ण है। प्रभुसत्ता राज्य की आत्मा और प्राण है। परन्तु वास्तव में चारों तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि यदि इन चारों तत्त्वों में से कोई एक तत्त्व न हो तो राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। कोई भी तीन तत्त्व मिल कर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते। राज्यों के चारों तत्त्वों के समान महत्त्व पर बल देते हुए गैटेल (Gettell) ने कहा है कि, “राज्य न ही जनसंख्या है, न ही भूमि, न ही सरकार बल्कि इन सबके साथ-साथ राज्य के पास वह इकाई होनी आवश्यक है जो इसे एक विशिष्ट व स्वतन्त्र राजनीतिक सत्ता बनाती है।”

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य की परिभाषा करें।
उत्तर-
विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई राज्य की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

1. अरस्तु के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर और समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।”

2. गार्नर के द्वारा दी गई राज्य की परिभाषा आजकल सर्वोत्तम मानी जाती है। उसके अनुसार, “राजनीति शास्त्र और कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो। बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह या लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।”

3. गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग, एक निश्चित प्रदेश में सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।”
डॉ० गार्नर की परिभाषा सर्वोत्तम मानी जाती है क्योंकि इस परिभाषा में राज्य के चारों आवश्यक तत्त्वों का समावेश है-जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। जिस देश या राष्ट्र के पास ये चारों तत्त्व होंगे उसी को राज्य के नाम से पुकारा जा सकता है। राजनीति शास्त्र के अनुसार राज्य में इन चारों तत्त्वों का होना आवश्यक है।

प्रश्न 2.
राज्य के चार अनिवार्य तत्त्वों के नाम लिखें। किन्हीं दो का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य के चार अनिवार्य तत्त्वों के नाम इस प्रकार हैं-

  1. जनसंख्या
  2. निश्चित भू-भाग
  3. सरकार
  4. प्रभुसत्ता।

1. जनसंख्या-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर, कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य के लिए कितनी जनसंख्या होनी चाहिए इसके विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है, परन्तु राज्य की स्थापना के लिए पर्याप्त जनसंख्या का होना आवश्यक है। दस-बीस मनुष्य मिलकर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते।

2. निश्चित भू-भाग-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भू-भाग है। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता। भू-भाग निश्चित होना इसलिए भी आवश्यक है कि सीमा-सम्बन्धी विवाद न उत्पन्न हो। राज्य की भूमि का क्षेत्रफल कितना होना चाहिए इस विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता। परन्तु राज्य का क्षेत्रफल इतना अवश्य होना चाहिए कि लोग अपने जीवन को समृद्ध बना सकें और राज्य की सुरक्षा भी ठीक ढंग से हो सके।

प्रश्न 3.
क्या पंजाब एक राज्य है ?
उत्तर-
पंजाब भारत सरकार की 29 इकाइयों में से एक इकाई है। वैसे तो इसे राज्य कहा जाता है परन्तु वास्तव में यह राज्य नहीं है। इसके राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  1. पंजाब की जनसंख्या को इसकी अपनी जनसंख्या नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां रहने वाले व्यक्ति सम्पूर्ण भारत के नागरिक हैं।
  2. पंजाब की प्रादेशिक सीमा तो निश्चित है परन्तु केन्द्रीय सरकार कभी भी इसमें परिवर्तन कर सकती है।
  3. पंजाब की अपनी सरकार तो है परन्तु वह सम्पूर्ण नहीं है। राज्य की कई महत्त्वपूर्ण शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास हैं।
  4. पंजाब के पास न तो आन्तरिक प्रभुसत्ता है और न ही बाहरी प्रभुसत्ता है। इसे दूसरे राज्यों में राजदूत भेजने, उनके साथ युद्ध या सन्धियां करने, अपना संविधान बनाने आदि के अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

प्रश्न 4.
क्या राष्ट्रमण्डल एक राज्य है ?
उत्तर-
राष्ट्रमण्डल में ब्रिटेन के अतिरिक्त वे राष्ट्र सम्मिलित हैं जो कभी अंग्रेजों के अधीन थे और जिन्होंने अब स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है। राष्ट्रमण्डल राज्य नहीं है, क्योंकि उसकी न तो कोई जनसंख्या है, न भू-भाग और न ही कोई सरकार। इस मण्डल के सदस्य प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य होते हैं। इसलिए राष्ट्रमण्डल के पास प्रभुसत्ता के होने का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता। राष्ट्रमण्डल का सदस्य जब चाहे राष्ट्रमण्डल को छोड़ सकता है। अत: इसे राज्य नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 5.
क्या संयुक्त राष्ट्र संघ एक राज्य है ? यदि नहीं तो कारण बताओ।
उत्तर-
संयुक्त राष्ट्र संघ राज्य नहीं है। संयुक्त राष्ट्र संघ राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं

  1. एक राज्य के सदस्य अप्रभुव्यक्ति (Non-sovereign Individuals) होते हैं परन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य तो प्रभुसत्ता सम्पन्न राज्य होते हैं।
  2. एक राज्य की सदस्यता अनिवार्य होती है, परन्तु इस संघ की नहीं।
  3. इस संघ के फैसलों को कानून का स्तर नहीं दिया जा सकता। यदि कोई सदस्य राज्य किसी फैसले को अपने हित के प्रतिकूल समझे तो वह उस आदेश की उपेक्षा कर सकता है और व्यावहारिक रूप में ऐसे कई उदाहरण हैं।
  4. इस संघ की न तो अपनी प्रजा है, न ही नागरिक और न ही कोई भू-क्षेत्र। जिस भू-भाग पर इस संघ के भवन और दफ्तर आदि स्थित हैं, वह भी इसका अपना नहीं बल्कि अमेरिका की सम्पत्ति है।
  5. इस संघ को महासभा, सुरक्षा परिषद् और दूसरे अंगों के बराबर कहना सरासर ग़लत और अमान्य है।

प्रश्न 6.
राज्य शब्द जिसे अंग्रेजी में ‘State’ कहते हैं, की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है और वह शब्द किस भाषा का है ?
उत्तर-
State शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Status’ से हुई है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीनकाल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए राज्य शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। मैक्यिावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

प्रश्न 7.
राज्य का सबसे आवश्यक तत्त्व कौन-सा है ? वर्णन करें।
उत्तर-
राज्य की स्थापना के लिए चार तत्त्व-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार, प्रभुसत्ता आवश्यक हैं। यह कहना कि चारों तत्त्वों में से कौन-सा तत्त्व अधिक महत्त्वपूर्ण है, कठिन है। जनसंख्या के बिना राज्य की कल्पना तक नहीं हो सकती है। निश्चित भू-भाग के बिना भी राज्य नहीं बन सकता। सरकार के बिना समाज में शान्ति एवं व्यवस्था की स्थापना नहीं की जा सकती। अतः सरकार ही राज्य की इच्छा की अभिव्यक्ति करती है। राज्य का चौथा तत्त्व प्रभुसत्ता बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि राज्य के अन्य तीन तत्त्व तो दूसरे समुदायों में भी मिल जाते हैं लेकिन प्रभुसत्ता केवल राज्य के पास ही होती है और इसे राज्य तथा अन्य समुदायों के बीच बांटा जा सकता है। प्रभुसत्ता ही एक ऐसा तत्त्व है जो राज्य को अन्य समुदायों से अलग रखता है या उसे सर्वश्रेष्ठ बनाता है। इसी कारण कुछ लेखक प्रभुसत्ता को अन्य तत्वों से अधिक महत्त्वपूर्ण मानते हैं। परन्तु वास्तव में चारों तत्त्व महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यदि इन चारों तत्त्वों में से कोई एक तत्त्व न हो तो राज्य की स्थापना असम्भव है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य शब्द जिसे अंग्रेज़ी में ‘State’ कहते हैं, की उत्पत्ति किस शब्द से हुई है ?
उत्तर-
State शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘Status’ से हुई है। ‘स्टेट्स’ (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है। प्राचीनकाल में समाज तथा राज्य में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था, इसलिए राज्य शब्द का प्रयोग सामाजिक स्तर के लिए किया जाता था। मैक्यावली ने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया।

प्रश्न 2.
राज्य की परिभाषा करें।
उत्तर-

  • अरस्तु के अनुसार, “राज्य ग्रामों तथा परिवारों का वह समूह है जिसका उद्देश्य एक आत्मनिर्भर और समृद्ध जीवन की प्राप्ति है।”
  • गार्नर के अनुसार, “राजनीति शास्त्र और कानून की धारणा में राज्य थोड़ी या अधिक संख्या वाले लोगों का वह समुदाय है जो स्थायी रूप से किसी निश्चित भू-भाग पर बसा हुआ हो। बाहरी नियन्त्रण से पूरी तरह या लगभग स्वतन्त्र हो तथा जिसकी एक संगठित सरकार हो, जिसके आदेश का पालन अधिकतर जनता स्वाभाविक रूप से करती हो।”

प्रश्न 3.
राज्य के किन्हीं दो का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-

  1. जनसंख्या-जनसंख्या राज्य का पहला अनिवार्य तत्त्व है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना तो दूर, कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य के लिए कितनी जनसंख्या होनी चाहिए इसके विषय में कोई निश्चित नियम नहीं है, परन्तु राज्य की स्थापना के लिए पर्याप्त जनसंख्या का होना आवश्यक है। दस-बीस मनुष्य मिलकर राज्य की स्थापना नहीं कर सकते।
  2. निश्चित भू-भाग-राज्य के लिए दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भू-भाग है। जब तक मनुष्यों का समूह किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता, तब तक राज्य नहीं बन सकता।

प्रश्न 4.
क्या पंजाब एक राज्य है ?
उत्तर-
पंजाब भारत सरकार की 29 इकाइयों में से एक इकाई है। वैसे तो इसे राज्य कहा जाता है परन्तु वास्तव में यह राज्य नहीं है। इसके राज्य न होने के निम्नलिखित कारण हैं-

  • पंजाब की जनसंख्या को इसकी अपनी जनसंख्या नहीं कहा जा सकता क्योंकि यहां रहने वाले व्यक्ति सम्पूर्ण भारत के नागरिक हैं।
  • पंजाब की प्रादेशिक सीमा तो निश्चित है परन्तु केन्द्रीय सरकार कभी भी इसमें परिवर्तन कर सकती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. राज्य को अंग्रेजी भाषा में क्या कहा जाता है ?
उत्तर-राज्य को अंग्रेज़ी भाषा में स्टेट (State) कहा जाता है।

प्रश्न 2. स्टेट (State) शब्द किस भाषा से बना है ?
उत्तर-स्टेट (State) शब्द लातीनी भाषा के स्टेट्स (Status) शब्द से बना है।

प्रश्न 3. स्टेट्स (Status) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-स्टेट्स (Status) शब्द का अर्थ किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर होता है।

प्रश्न 4. राज्य की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-बटलशली के अनुसार, “एक निश्चित भू-भाग में राजनीतिक दृष्टि से संगठित लोगों का समूह राज्य कहलाता है।”

प्रश्न 5. राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा किसने दी है ?
उत्तर-राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा गार्नर ने दी है।

प्रश्न 6. “मनुष्य स्वभाव और आवश्यकताओं के कारण सामाजिक प्राणी है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन अरस्तु का है।

प्रश्न 7. “जो समाज में नहीं रहता, वह या तो पशु है या फिर देवता” किसका कथन है ?
उत्तर-यह कथन अरस्तु का है।

प्रश्न 8. प्लेटो ने राज्य की अधिक-से-अधिक जनसंख्या कितनी निश्चित की है?
उत्तर-प्लेटो ने आदर्श राज्य की जनसंख्या 5,040 बताई है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

प्रश्न 9. राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, या ऐच्छिक?
उत्तर-राज्य की सदस्यता अनिवार्य है।

प्रश्न 10. किस विद्वान् ने राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा दी है?
उत्तर-गार्नर ने राज्य की सर्वोत्तम परिभाषा दी है।

प्रश्न 11. रूसो के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-रूसो के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या 10000 होनी चाहिए।

प्रश्न 12. किस विद्वान् की राज्य की परिभाषा में चार अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन मिलता है?
उत्तर-गार्नर की राज्य की परिभाषा में चार अनिवार्य तत्त्वों का वर्णन मिलता है।

प्रश्न 13. किस राज्य की जनसंख्या सबसे अधिक है?
उत्तर-साम्यवादी चीन की जनसंख्या सबसे अधिक है।

प्रश्न 14. क्या पंजाब राज्य है?
उत्तर-पंजाब राज्य नहीं है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राज्य के ………….. आवश्यक तत्त्व माने जाते हैं।
2. राज्य के चार आवश्यक तत्त्व जनसंख्या, भू-भाग, सरकार तथा ………. है।
3. प्लेटो के अनुसार एक आदर्श राज्य की जनसंख्या …………. होनी चाहिए।
4. रूसो के अनुसार एक आदर्श राज्य की जनसंख्या …………… होनी चाहिए।
5. ………….. के अनुसार राज्य की जनसंख्या तीन तत्त्वों पर आधारित होनी चाहिए–साधनों की प्राप्ति, इच्छित जीवन स्तर और ………… उत्पादन की आवश्यकताएं।
उत्तर-

  1. चार
  2. प्रभुसत्ता
  3. 5040
  4. 10000
  5. प्रो० आर० एच० सोल्टाऊ, सुरक्षा।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राज्य का दूसरा अनिवार्य तत्त्व निश्चित भूमि है।
2. निश्चित भूमि के बिना राज्य की स्थापना हो सकती है।
3. राज्य की स्थापना के लिए सरकार का होना आवश्यक है।
4. प्रभुसत्ता राज्य का प्राण है।
5. प्रभुसत्ता चार प्रकार की होती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राज्य के लिए आवश्यक है ?
(क) संसदीय सरकार
(ख) राजतन्त्र
(ग) गणतन्त्रीय सरकार
(घ) कोई भी सरकार।
उत्तर-
(घ) कोई भी सरकार।

प्रश्न 2.
प्रभुसत्ता किसका आवश्यक गुण है ?
(क) राष्ट्र
(ख) राज्य
(ग) समाज
(घ) सरकार।
उत्तर-
(ख) राज्य।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य नहीं है ?
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ
(ख) जापान
(ग) दक्षिण कोरिया
(घ) नेपाल।
उत्तर-
(क) संयुक्त राष्ट्र संघ।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 8 न्याय

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य नहीं है ?
(क) भारत
(ख) नेपाल
(ग) मध्य प्रदेश
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर-
(ग) मध्य प्रदेश।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

SST Guide for Class 8 PSEB सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित खाली स्थान भरो :

1. भारत एक ……… राज्य है।
2. भारत में मानव अधिकार कमीशन ……….. की रक्षा करता है।
3. बुढ़ापा, दुर्घटना तथा बेकारी के समय मिलने वाली सुविधा को ………… कहा जाता है।
4. गांवों को लिंक सड़कों के साथ …………. योजना के अन्तर्गत जोड़ा जा रहा है।
5. स्कूलों में दोपहर का खाना ………. योजना के अन्तर्गत दिया जा रहा है।
उत्तर-

  1. कल्याणकारी
  2. मानव अधिकारों
  3. सामाजिक सुरक्षा
  4. प्रधानमन्त्री ग्रामीण सड़क
  5. मिड डे मील।

II. निम्नलिखित वाक्यों पर ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ :

1. जन उपयोगी सेवाओं से लोगों का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है। – (✓)
2. अच्छी शिक्षा तथा सेहत की सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की बुनियादी ज़िम्मेदारी नहीं है। – (✗)
3. आज भारत में सामाजिक व आर्थिक असमानताएं समाप्त हो चुकी हैं। – (✗)
4. भारत में ‘कार्य का अधिकार’ मौलिक अधिकार है। – (✗)
5. पंजाब के सरकारी स्कूलों में धार्मिक शिक्षा अनिवार्य नहीं है। – (✓)

III. विकल्प वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
मिड-डे-मील स्कीम के अंतर्गत किस श्रेणी तक मुफ्त खाना दिया जाता है ?
(क) पांचवीं
(ख) आठवीं
(ग) दसवीं
(घ) पहली से आठवीं तक।
उत्तर-
पहली से आठवीं तक।

प्रश्न 2.
आज तक भारत में कितनी पंचवर्षीय योजनाएं लागू हो चुकी हैं ?
(क) 5
(ख) 12
(ग) 13
(घ) 14
उत्तर-
12

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
जन-उपयोगी सेवाएं किसको कहते हैं ?
उत्तर-
सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर आदि की सुविधाएं दी गई हैं। इन्हें जन-उपयोगी सेवाएं कहते हैं। इनका उद्देश्य लोगों के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समानता से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
सामाजिक समानता का अर्थ है-सामाजिक स्तर पर लोगों का बराबर होना। दूसरे शब्दों में समाज में किसी प्रकार की ऊंच-नीच न हो। रंग, जाति, नसल, जन्म, धनी, निर्धन आदि के आधार पर कोई भेदभाव न हो।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा क्या है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा का अर्थ है, बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में नागरिकों की सहायता करना। शारीरिक रूप से अपाहिज बच्चों को आवश्यक सहायता देना भी सामाजिक सुरक्षा में शामिल है। सामाजिक सुरक्षा सामाजिक विकास के लिए बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 4.
कोई दो मानवीय अधिकार लिखो।
उत्तर-
(1) जीवन का अधिकार, (2) स्वतन्त्रता का अधिकार, (3) समानता का अधिकार, (4) मानवीय गौरव का अधिकार।
नोट-विद्यार्थी कोई दो लिखें।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
सरकार की सामाजिक क्रियाओं के प्रभाव लिखें।
उत्तर-
सरकार की सामाजिक क्रियाओं से लोगों का सामाजिक, आर्थिक, नैतिक तथा सांस्कृतिक विकास अवश्य हुआ है। सरकार ने भी इसमें सक्रिय भूमिका निभाई है। फिर भी देश में सच्चे अर्थों में सामाजिक समानता नहीं आ सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है।

प्रश्न 2.
सरकार के सामाजिक और नैतिक सुधारों पर नोट लिखें।
उत्तर-
सरकार द्वारा सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए स्त्रियों की दशा सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया। इनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गये। उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे मुसीबत के समय अपने बच्चों का पालन-पोषण स्वयं कर सकें। इससे उन्हें अपने अन्य पारिवारिक उत्तरदायित्व निभाने तथा अपने परिवार की आर्थिक दशा सुधारने में भी सहायता मिली।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए। सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे । बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष ज़रूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है।

PSEB 8th Class Social Science Guide सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  2. उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ? .
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

सरकार द्वारा नशीले पदार्थों के प्रयोग, छुआछूत, बाल-विवाह, दहेज प्रथा तथा भ्रष्टाचार को रोकने के लिए कठोर नियम बनाए गए। व्यावहारिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक मूल्यों का विकास करने के लिए भी विशेष पग उठाए गए।
सरकार द्वारा ये सभी कार्य लोगों की भलाई अर्थात् जनकल्याण के लिए किये गए।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा की ज़रूरत क्यों है ?
उत्तर-
सामाजिक सुरक्षा से अभिप्राय के विकास के रूप में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है। भारत एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य का यह कर्त्तव्य होता है कि वह अपने नागरिकों को बेकारी, दुर्घटना, बुढ़ापे अथवा किसी अन्य संकट के समय आवश्यक सहायता प्रदान करे। बच्चों के विकास के लिए बाल भवन खोले जाएं। यहाँ बच्चों के लिए मनोरंजन की व्यवस्था हो। उन्हें कलात्मक रुचियां बढ़ाने की शिक्षा भी दी जाए। विशेष जरूरतों वाले अर्थात् शारीरिक रूप से अपंग बच्चों के लिए विशेष शिक्षा संस्थाएं खोली जाएं। ऐसे कार्यों द्वारा ही सामाजिक सुरक्षा को विश्वसनीय बनाया जा सकता है।

प्रश्न 4.
भारत में मानवीय अधिकारों की रक्षा हेतु सरकार के यत्न लिखें।
उत्तर-
मानव अधिकारों को कार्य रूप देना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण सामाजिक क्रिया है। इसके लिए 28 सितंबर 1993 को राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग स्थापित किया गया। दिसम्बर 1993 में इस आयोग को कानूनी रूप प्रदान किया गया। इस आयोग को मानवीय अधिकारों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

सही जोड़े बनाइए:

1. पंचवर्षीय योजनाएं – बूढ़ों, बेसहारों की सहायता
2. सामाजिक सुरक्षा – रेलों, सड़कों आदि की सुविधा
3. मानवीय अधिकार – देश का सर्वपक्षीय विकास
4. जन उपयोगी सेवाएं – जीवन का अधिक
उत्तर-

  1. देश का सर्वपक्षीय विकास
  2. बूढ़ों,बेसहारों की सहायता
  3. जीवन का अधिकार
  4. रेलों, सड़कों आदि की सुविधा।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए गए कोई दो कार्य बताओ।
उत्तर-

  • उनके लिए व्यावसायिक तथा शैक्षिक संस्थान खोले गए।
  • उन्हें भिन्न-भिन्न प्रकार की व्यावसायिक शिक्षा दी गई ताकि वे स्वयं आजीविका कमा सकें।

प्रश्न 2.
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग कब और किस प्रकार अस्तित्व में आया ?
उत्तर-
राष्ट्रीय मानवीय अधिकार आयोग की स्थापना 28 सितम्बर, 1993 को की गई है। यह आयोग मानवीय अधिकार सुरक्षा अध्यादेश द्वारा स्थापित किया गया। इस अध्यादेश को संसद् द्वारा दिसम्बर, 1993 में कानून का रूप दिया गया।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार की जरूरत क्यों महसूस की गई ? इस उद्देश्य से क्या कदम उठाए गए ?
उत्तर-
भारत शताब्दियों तक परतन्त्र रहा था। इसके कारण भारत सामाजिक तथा आर्थिक रूप से बुरी तरह टूट चुका था। इसलिए देश की सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति में सुधार लाने की ज़रूरत महसूस की गई। इस उद्देश्य से निम्नलिखित पग उठाए गए.

  • मौलिक अधिकारों में समानता के अधिकार को शामिल किया गया।
  • देश की आर्थिक तथा सामाजिक स्थिति को मज़बूत बनाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं शुरू की गईं।
  • विदेश नीति में गुट-निरपेक्षता का सिद्धान्त अपनाया गया।
  • भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का उद्देश्य निर्धारित किया गया।

प्रश्न 2.
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
सामाजिक क्षेत्र में जन-उपयोगी सेवाओं का विशेष महत्त्व है। सामाजिक जीवन का विकास करने के लिए सरकार द्वारा लोगों को रेलों, सड़कों, टेलीफोन, टेलीविज़न, कम्प्यूटर इत्यादि की सुविधाएं प्रदान की गईं। इन जन उपयोगी सेवाओं का उद्देश्य लोगों के दैनिक जीवन के सामाजिक स्तर को ऊंचा उठाना था। भारत को विकसित देशों की तुलना में लाना भी सरकार का मुख्य उद्देश्य था। इसलिए सरकार ने योजनाओं का निर्माण किया। तकनीकी कृषि, चिकित्सा, शिक्षा तथा कला सम्बन्धी शैक्षिक संस्थाओं की व्यवस्था की गई। इसके अतिरिक्त गांवों तथा कस्बों में पीने के पानी तथा बिजली का प्रबन्ध किया गया। गांवों तथा सड़कों का निर्माण भी किया गया ताकि उन्हें शहरों से जोड़ा जा सके।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 30 सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव

प्रश्न 3.
मौलिक अधिकारों का लोगों पर क्या प्रभाव है ? .
उत्तर-
सरकार ने समाज में स्वतन्त्रता तथा समानता को बढ़ावा देने के लिए विशेष पग उठाए हैं। इस उद्देश्य से भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकारों की व्यवस्था की गई है। इन्हें लागू करने के लिए विशेष कानून भी बनाए गए हैं। इन अधिकारों से लोगों का सर्वपक्षीय विकास अवश्य हुआ है, परन्तु समाज में सच्चे अर्थों में समानता नहीं लाई जा सकी। आज भी कई सामाजिक वर्गों की स्थिति दयनीय है। उनके लिए आज भी सार्वजनिक कुओं तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करना निषेध है। उन्हें मन्दिरों में प्रवेश नहीं करने दिया जाता। इस प्रकार आज भी स्वतन्त्रता तथा समानता के अधिकारों का लाभ जरूरतमन्द लोगों को नहीं मिल पाता। इसके लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।

सामाजिक क्षेत्र में सरकार के प्रयत्न तथा इनका प्रभाव PSEB 8th Class Social Science Notes

  • भारत एक कल्याणकारी राज्य – भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, ताकि देश को सामाजिक तथा आर्थिक रूप से मज़बूत बनाया जा सके।
  • सामाजिक असमानता को दूर करना – इस उद्देश्य से संविधान में स्वतन्त्रता तथा समानता के मौलिक अधिकार शामिल किए गए हैं। छुआछूत को अवैध घोषित कर दिया गया है।
  • जन-उपयोगी सेवाएं – लोगों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिए यातायात तथा संचार सेवाओं का विस्तार किया गया है। इसके साथ-साथ कृषि, चिकित्सा, कला आदि से सम्बन्धित शिक्षा संस्थाओं का विस्तार किया गया है।
  • सामाजिक सुरक्षा – लोगों को बुढ़ापे, दुर्घटना, बेकारी आदि की स्थिति में सामाजिक सुरक्षा प्रदान की गई है।
  • मानव अधिकार – मुख्य मानव अधिकार हैं-जीवन का अधिकार, स्वतन्त्रता का अधिकार, समानता का अधिकार तथा मानवीय गौरव का अधिकार। इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की स्थापना की गई है।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 6 रूसी क्रांति

SST Guide for Class 9 PSEB रूसी क्रांति Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
रूस की क्रांति के दौरान बोलश्विकों का नेतृत्व किसने किया ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) फ्रेडरिक एंजल्स
(ग) लैनिन
(घ) ट्रोस्टकी।
उत्तर-
(ग) लैनिन

प्रश्न 2.
रूस की क्रांति द्वारा समाज के पुनर्गठन के लिए कौन-सा विचार सबसे महत्त्वपूर्ण है ?
(क) समाजवाद
(ख) राष्ट्रवाद
(ग) उदारवाद
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) समाजवाद

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 3.
मैनश्विक समूह का नेता कौन था ?
(क) ट्रोस्टकी
(ख) कार्ल मार्क्स
(ग) ज़ार निकोल्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) ट्रोस्टकी

प्रश्न 4.
किस देश ने अपने आप को पहले विश्व युद्ध से बाहर निकला लिया.और जर्मनी से संधि कर ली ?
(क) अमेरिका
(ख) रूस
(ग) फ्रांस
(घ) इंग्लैंड।
उत्तर-
(ख) रूस

(ख) रिक्त स्थान भरो:

  1. ………… ने रूसी क्रांति के समय रूस के बोलश्विक संगठन का नेतृत्व किया।
  2. ………… का अर्थ है-परिषद् अथवा स्थानीय सरकार।
  3. रूस में चुनी गई सलाहकार संसद् को …………… कहा जाता था।
  4. ज़ोर का शाब्दिक अर्थ है ……………

उत्तर-

  1. लैनिन
  2. सोवियत
  3. ड्यूमा
  4. सर्वोच्च

(ग) अंतर बताओ :

प्रश्न 1.
1. बोलश्विक और मैनश्विक
2. उदारवादी और रूढ़िवादी
उत्तर-

1. बोलश्विक और मैनश्विक-बोलश्विक और मैनश्विक रूस के दो राजनीतिक दल थे। ये दल औद्योगिक मजदूरों के प्रतिनिधि थे। इन दोनों के बीच मुख्य अंतर यह था कि मैनश्विक संसदीय प्रणाली के पक्ष में थे, जबकि बोलश्विक संसदीय प्रणाली में विश्वास नहीं रखते थे। वे ऐसी पार्टी चाहते थे जो अनुशासन में बंधकर क्रांति के लिए कार्य करे।

2. उदारवादी और रूढ़िवादी-उदारवादी-उदारवादी यूरोपीय समाज के वे लोग थे जो समाज को बदलना चाहते थे। वे एक ऐसे राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे जो धार्मिक दृष्टि से सहनशील हो। वे वंशानुगत शासकों की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों का हनन न करे। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। इतना होने पर भी वे लोकतंत्रवादी नहीं थे। उनका सार्वभौमिक वयस्क मताधिका में कोई विश्वास नहीं था। वे महिलाओं को मताधिकार देने के भी विरुद्ध थे।
रूढ़िवादी-रैडिकल तथा उदारवादी दोनों के विरुद्ध थे। परंतु फ्रांसीसी क्रांति के बाद वे भी परिवर्तन की ज़रूरत को स्वीकार करने लगे थे। इससे पूर्व अठारहवीं शताब्दी तक वे प्राय परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। फिर भी वे चाहते थे कि अतीत को पूरी तरह भुलाया जाए और परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी हो।

(घ) सही मिलान करें:

1. लैनिन – मैनश्विक
2. ट्रोस्टकी – समाचार पत्र
3. मार्च की रूस की क्रांति – रूसी पार्लियामैंट
4. ड्यूमा – बोलश्विक
5. प्रावदा – 1917
उत्तर-

  1. बोलश्विक
  2. मैनश्विक
  3. 1917 ई०
  4. रूसी पार्लियामैंट
  5. समाचार पत्र।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
20वीं शताब्दी में समाज के पुनर्गठन के लिए कौन-सा विचार महत्त्वपूर्ण माना गया ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी में समाज के पुनर्गठन के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण विचार ‘समाजवाद’ को माना गया।

प्रश्न 2.
‘ड्यूमा’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद् थी।

प्रश्न 3.
मार्च 1917 ई० की क्रांति के समय रूस का शासक कौन था ?
उत्तर:-
ज़ार निकोल्स।

प्रश्न 4.
1905 ई० में रूस की क्रांति का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
1905 ई० में रूस की क्रांति का मुख्य कारण था-ज़ार को याचिका देने के लिए जाते हुए मज़दूरों पर गोली चलाया जाना।

प्रश्न 5.
1905 ई० में रूस की पराजय किस देश द्वारा हुई ?
उत्तर-
जापान से।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अक्तूबर 1917 ई० की रूसी क्रांति के तत्कालीन परिणामों का वर्णन करो।
उत्तर-
रूस में 1917 की क्रांति के पश्चात् जिस अर्थव्यवस्था का निर्माण आरंभ हुआ उसकी विशेषताएं निम्नलिखित थीं

  1. मज़दूरों को शिक्षा संबंधी सुविधाएं दी गईं।
  2. जागीरदारों से जागीरें छीन ली गईं और सारी भूमि किसानों की समितियों को सौंप दी गई।
  3. व्यापार तथा उपज के साधनों पर सरकारी नियंत्रण हो गया।
  4. काम का अधिकार संवैधानिक अधिकार बन गया और रोजगार दिलाना राज्य का कर्त्तव्य बन गया।
  5. शासन की सारी शक्ति श्रमिकों और किसानों की समितियों (सोवियत) के हाथों में आ गई।
  6. अर्थव्यवस्था के विकास के लिए आर्थिक नियोजन का मार्ग अपनाया गया।

प्रश्न 2.
मैनश्विक और बोलश्विक पर नोट लिखो।
उत्तर-

  1. मैनश्विक-मैनश्विक ‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मज़दूर पार्टी’ का अल्पमत वाला भाग था। यह दल ऐसी पार्टी के पक्ष में था जैसी फ्रांस तथा जर्मनी में थी। इन देशों की पार्टियों की तरह मैनश्विक भी देश में निर्वाचित संसद् की स्थापना करना चाहते थे।
  2. बोलश्विक-1898 ई० में रूस में ‘रूसी सामाजिक लोकतांत्रिक मजदूर पार्टी’ का गठन हुआ था। परंतु संगठन तथा नीतियों के प्रश्न पर यह पार्टी दो भागों में बंट गई। इनमें से बहुमत वाला भाग ‘बोलश्विक’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस दल का मत था कि संसद् तथा लोकतंत्र के अभाव में कोई भी दल संसदीय सिद्धान्तों द्वारा परिवर्तन नहीं ला सकता है। यह दल अनुशासन में बंधकर क्रांति के लिए काम करने के पक्ष में था। इस दल का नेता लेनिन था।

प्रश्न 3.
रूस में अस्थायी सरकार की असफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
रूस में अस्थायी सरकार की असफलता के निम्नलिखित कारण थे

  1. युद्ध से अलग न करना-रूस की अस्थायी सरकार देश को युद्ध से अलग न कर सकी, जिसके कारण रूस की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी।
  2. लोगों में अशांति-रूस में मज़दूर तथा किसान बड़ा कठोर जीवन व्यतीत कर रहे थे। दो समय की रोटी जुटाना भी उनके लिए एक बहुत कठिन कार्य था। अतः उनमें दिन-प्रतिदिन अशांति बढ़ती जा रही थी।
  3. खाद्य-सामग्री का अभाव-रूस में खाद्य-सामग्री का बड़ा अभाव हो गया था। देश में भुखमरी की-सी दशा उत्पन्न हो गई थी। लोगों को रोटी खरीदने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता था।
  4. देशव्यापी हड़तालें-रूस में मजदूरों की दशा बहुत खराब थी। उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी बहुत कम मज़दूरी मिलती थी। वे अपनी दशा सुधारना चाहते थे। अतः उन्होंने हड़ताल करना आरंभ कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में हड़तालों का ज्वार-सा आ गया।

प्रश्न 4.
लैनिन का अप्रैल प्रस्ताव क्या था ?
उत्तर-
लेनिन बोलश्विकों के नेता थे जो निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे थे। अप्रैल 1917 में वह रूस लौट आये। उनके नेतृत्व में बोलश्विक 1914 से ही प्रथम विश्वयुद्ध का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि अब सोवियतों को सत्ता अपने हाथों में ले लेनी चाहिए। ऐसे में लेनिन ने सरकार के सामने तीन मांगें रखीं-

  1. युद्ध समाप्त किया जाए।
  2. सारी ज़मीन किसानों को सौंप दी जाए।
  3. बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए। इन तीनों मांगों को लेनिन की ‘अप्रैल थीसिस’ के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 5.
अक्तूबर की क्रांति के बाद रूस में कृषि के क्षेत्र में क्या परिवर्तन आए ?
नोट : इसके लिए लघु उत्तरों वाले प्रश्न का प्रश्न क्रमांक 1 पढ़ें। केवल कृषि संबंधी बिंदु ही पढ़ें।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1905 ई० की क्रांति से पूर्व रूस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक अवस्था का वर्णन करें।
उत्तर-
19वीं शताब्दी में लगभग समस्त यूरोप में महत्त्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिवर्तन हुए थे। कई देश गणराज्य थे, तो कई संवैधानिक राजतंत्र । सामंती व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी और सामंतों का स्थान नए मध्य वर्गों ने ले लिया था। परंतु रूस अभी भी ‘पुरानी दुनिया’ में जी रहा था। यह बात रूस की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक दशा से स्पष्ट हो जायेगी

  1. रूसी किसानों की दशा अत्यंत शोचनीय थी। वहां कृषि दास-प्रथा अवश्य समाप्त हो चुकी थी, फिर भी किसानों की दशा में कोई सुधार नहीं आया था। उनकी जोतें बहुत ही छोटी थीं और उन्हें विकसित करने के लिए उनके पास पूंजी भी नहीं थी। इन छोटी-छोटी जोतों को पाने के लिए भी उन्हें अनेक दशकों तक मुक्ति कर के रूप में भारी धन राशि चुकानी पड़ी।
  2. किसानों की भांति मज़दूरों की दशा भी खराब थी। देश में अधिकतर कारखाने विदेशी पूंजीपतियों के थे। उन्हें मजदूरों की दशा सुधारने की कोई चिंता नहीं थी। उनका एकमात्र उद्देश्य अधिक-से-अधिक मुनाफ़ा कमाना था। रूसी पूंजीपतियों ने भी मज़दूरों का आर्थिक शोषण किया। इसका कारण यह था कि उनके पास पर्याप्त पूंजी नहीं थी। वे मजदूरों को कम वेतन देकर पैसा बचाना चाहते थे और इस प्रकार विदेशी पूंजीपतियों का मुकाबला करना चाहते थे। मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार भी प्राप्त नहीं थे। उनके पास इतने साधन भी नहीं थे कि वे कोई मामूली सुधार लागू करवा सकें।

राजनीतिक दशा-

  1. रूस का जार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। वह निरंकुशतंत्र की रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था। उसके समर्थक केवल कुलीन वर्ग तथा अन्य उच्च वर्गों से संबंध रखते थे। जनसंख्या का शेष सारा भाग उसका विरोधी था। राज्य के सभी अधिकार उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में थे। उनकी नियुक्ति भी किसी योग्यता के आधार पर नहीं की जाती थी।
  2. रूसी साम्राज्य में ज़ार द्वारा विजित कई गैर-रूसी राष्ट्र भी सम्मिलित थे। ज़ार ने इन लोगों पर रूसी भाषा लादी और उनकी संस्कृतियों का महत्त्व कम करने का पूरा प्रयास किया। इस प्रकार रूस में टकराव की स्थिति बनी हुई थी।
  3. राज परिवार में नैतिक पतन चरम सीमा पर था। निकोलस द्वितीय पूरी तरह अपनी पत्नी के दबाव में था जो स्वयं एक ढोंगी साधु रास्पुतिन के कहने पर चलती थी। ऐसे भ्रष्टाचारी शासन से जनता. बहुत दु:खी थी।
    इस प्रकार रूस में क्रांति के लिए स्थिति परिपक्व थी।

प्रश्न 2.
औद्योगीकरण के रूस के आम लोगों पर क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
औद्योगिक क्रांति रूस में सबसे बाद में आई। वहां खनिज पदार्थों की तो कोई कमी नहीं थी, परंतु पूंजी तथा स्वतंत्र श्रमिकों के अभाव के कारण वहां काफ़ी समय तक औद्योगिक विकास संभव न हो सका। 1867 ई० रूस ने कृषि दासों को स्वतंत्र कर दिया। उसे विदेशों से पूंजी भी मिल गई। फलस्वरूप रूस ने अपने औद्योगिक विकास की ओर ध्यान दिया। वहां उद्योगों का विकास आरंभ हो गया, परंतु इनका पूर्ण विकास 1917 ई० की क्रांति के पश्चात् ही संभव हो सका।
प्रभाव-औद्योगिक क्रांति का रूस के आम लोगों के जीवन के हर पहलू पर गहरा प्रभाव पड़ा। औद्योगिक क्रांति के प्रभाव निम्नलिखित थे

  1. भूमिहीन मजदूरों की संख्या में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति ने छोटे-छोटे कृषकों को अपनी भूमि बेचकर कारखानों में काम करने पर बाध्य कर दिया। अत: भूमिहीन मजदूरों की संख्या में वृद्धि होने लगी।
  2. छोटे कारीगरों का मज़दूर बनना-औद्योगिक क्रांति के कारण अब मशीनों द्वारा मज़बूत व पक्का माल बड़ी शीघ्रता से बनाया जाने लगा। इस प्रकार हाथ से बने अथवा काते हुए कपड़े की मांग कम होती चली गई। अतः छोटे कारीगरों ने अपना काम छोड़ कर कारखाने में मजदूरों के रूप में काम करना आरंभ कर दिया।
  3. स्त्रियों तथा छोटे बच्चों का शोषण-कारखानों में स्त्रियों तथा कम आयु वाले बच्चों से भी काम लिया जाने लगा। उनसे बेगार भी ली जाने लगी। इसका उनके स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पड़ा।
  4. मजदूरों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव-मजदूरों के स्वास्थ्य पर खुले वातावरण के अभाव के कारण बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। अब वे स्वच्छ वायु की अपेक्षा कारखानों की दूषित वायु में काम करते थे।
  5. बेरोजगारी में वृद्धि-औद्योगिक क्रांति का सबसे बुरा प्रभाव यह हुआ कि इसने घरेलू दस्तकारियों का अंत कर दिया। एक अकेली मशीन अब कई आदमियों का काम करने लगी। परिणामस्वरूप हाथ से काम करने वाले कारीगर बेकार हो गए। .
  6. नवीन वर्गों का जन्म-औद्योगिक क्रांति से मज़दूर तथा पूंजीपति नामक दो नवीन वर्गों का जन्म हुआ। पूंजीपतियों ने मजदूरों के बहुत कम वेतन पर काम लेना शुरू कर दिया। परिणामस्वरुप निर्धन लोग और निर्धन हो गए तथा देश की समस्त पूंजी कुछ एक पूंजीपतियों की तिजोरियों में भरी जाने लगी। इस विषय में किसी ने कहा है, “औद्योगिक क्रांति ने धनिकों को और भी अधिक धनी तथा निर्धनों को और भी निर्धन कर दिया।”

प्रश्न 3.
समाजवाद पर एक विस्तारपूर्वक नोट लिखो। .
उत्तर-
समाजवाद की दिशा में कार्ल मार्क्स (1818-1882) और फ्रेडरिक एंगेल्स (1820-1895) ने कई नए तर्क पेश किए। मार्क्स का विचार था कि औद्योगिक समाज ‘पूंजीवादी’ समाज है। कारखानों में लगी पूंजी पर पूंजीपतियों का अधिकार है और पूंजीपतियों का मुनाफ़ा मज़दूरों की मेहनत से पैदा होता है। मार्क्स का मानना था कि जब तक निजी पूंजीपति इसी प्रकार मुनाफ़े का संचय करते रहेंगे तब तक मजदूरों की दशा में सुधार नहीं हो सकता। अपनी स्थिति में सुधार लाने के लिए मज़दूरों को पूंजीवाद तथा निजी संपत्ति पर आधारित शासन को उखाड़ फेंकना होगा। मार्क्स का कहना था पूंजीवादी शोषण से मुक्ति पाने के लिए मज़दूरों को एक बिल्कुल अलग तरह का समाज बनाना होगा जिसमें सारी संपत्ति पर पूरे समाज का नियंत्रण और स्वामित्व हो। उन्होंने भविष्य के इस समाज को साम्यवादी (कम्युनिस्ट) समाज का नाम दिया। मार्क्स को विश्वास था कि पूंजीपतियों के साथ होने वाले संघर्ष में अंतिम जीत मजदूरों की ही होगी।
समाजवाद की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. समाजवाद में समाज वर्ग विहीन होता है। इसमें अमीर-ग़रीब में कम-से-कम अंतर होता है। इसी कारण समाजवाद निजी संपत्ति का विरोधी है।
  2. इसमें मजदूरों का शोषण नहीं होता। समाजवाद के अनुसार सभी को काम पाने का अधिकार है।
  3. उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर पूरे समाज का अधिकार होता है, क्योंकि इसका उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना नहीं, बल्कि समाज का कल्याण होता है।

प्रश्न 4.
किन कारणों से सामान्य जनता ने बोलश्विकका समर्थन किया ? .
उत्तर-
उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक से रूस में समाजवादी विचारों का प्रसार आरंभ हो गया था और कई एक समाजवादी संगठनों की स्थापना की जा चुकी थी। 1898 ई० में विभिन्न समाजवादी दल मिलकर एक हो गए और उन्होंने “रूसी समाजवादी लोकतांत्रिक मज़दूर दल” का गठन किया। इस पार्टी में वामपक्ष का नेता ब्लादीमीर ईलिच उल्यानोव था जिसे लोग लेनिन के नाम से जानते थे। 1903 ई० में इस गुट का दल में बहुमत हो गया और इनको बोलश्विक कहा जाने लगा। जो लोग अल्पमत में थे और उन्हें मैनश्विक के नाम से पुकारा गया।
बोलश्विक पक्के राष्ट्रवादी थे। वे रूस के लोगों की दशा में सुधार करना चाहते थे। वे रूस को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रुप में देखना चाहते थे। अपने इस स्वप्न को साकार करने के लिए उन्होंने जो उद्देश्य अपने सामने रखे। वे जनता के दिल को छू गए। इसलिए सामान्य जनता भी बोलश्विकों के साथ हो गई।

  1. समाजवाद की स्थापना-बोलशिवक लोगों का अंतिम उद्देश्य रूस में समाजवादी व्यवस्था स्थापित करना था। इसके अतिरिक्त उनके कुछ तत्कालीन उद्देश्य भी थे।
  2. जार के कुलीनतंत्र का अंत करना-बोलश्विक यह भली-भांति जानते थे कि ज़ार के शासन के अंतर्गत रूस के लोगों की दशा को कभी नहीं सुधारा जा सकता। अत: वे जार के शासन का अंत करके रूस में गणतंत्र की स्थापना करना चाहते थे।
  3. गैर-रूसी जातियों के दमन की समाप्ति-बोलश्विक रूसी साम्राज्य के गैर-रूसी जातियों के दमन को समाप्त करके उन्हें आत्म-निर्णय का अधिकार देना चाहते थे।
  4. किसानों के दमन का अंत-वे भू-स्वामित्व की असमानता का उन्मूलन और सामंतों द्वारा किसानों के दमन का अंत करना चाहते थे।

प्रश्न 5.
अक्तूबर की क्रांति के बाद बोलश्विक सरकार की ओर से क्या परिवर्तन किए गए ? विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर-
अक्तूबर क्रांति के पश्चात् बोलश्विकों द्वारा रूस में मुख्यतः निम्नलिखित परिवर्तन किए गए

  1. नवंबर 1917 में अधिकांश उद्योगों तथा बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। फलस्वरूप इनका स्वामित्व एवं प्रबंधन सरकार के हाथों में आ गया।
  2. भूमि को सामाजिक संपत्ति घोषित कर दिया गया। किसानों को अनुमति दे दी गई कि वे सरदारों तथा जागीरदारों की भूमि पर कब्जा कर लें।
  3. शहरों में बड़े मकानों में मकान मालिकों के लिए पर्याप्त हिस्सा छोड़ कर शेष मकान के छोटे-छोटे हिस्से कर दिए गये ताकि बेघर लोगों को रहने की जगह दी जा सके।
  4. निरंकुशतंत्र द्वारा दी गई पुरानी उपाधियों के प्रयोग पर रोक लगा दी गई। सेना तथा सैनिक अधिकारियों के लिए नई वर्दी निश्चित कर दी गई।
  5. बोलश्विक पार्टी का नाम बदल कर रशियन कम्युनिस्ट पार्टी (बोलश्विक) रख दिया गया।
  6. व्यापार संघों पर नई पार्टी का नियंत्रण स्थापित कर दिया गया।
  7. गुप्तचर पुलिस ‘चेका’ (Cheka) को ओगपु (OGPU) तथा नकविड (NKVD) के नाम दिए गए। इन्हें बोलश्विकों की आलोचना करने वाले लोगों को दंडित करने का अधिकार दिया गया।
  8. मार्च, 1918 में अपनी ही पार्टी के विरोध के बावजूद बोलश्विकों ने ब्रेस्ट लिटोवस्क (Brest Litovsk) के स्थान पर जर्मनी से शांति संधि कर ली।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

PSEB 9th Class Social Science Guide रूसी क्रांति Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
यूरोप के अतिवादी (radicals) किस के विरोधी थे ?
(क) निजी संपत्ति के
(ख) निजी संपत्ति के केंद्रीयकरण के
(ग) महिलाओं को मताधिकार देने के
(घ) बहुमत जनसंख्या की सरकार के।
उत्तर-
(ख) निजी संपत्ति के केंद्रीयकरण के

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में यूरोप के रूढ़िवादियों (Conservative) के विचारों में क्या परिवर्तन आया ?
(क) क्रांतियां लाई जाएं
(ख) संपत्ति का बंटवारा समान हो
(ग) महिलाओं को संपत्ति का अधिकार न दिया जाए
(घ) समाज-व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन लाया जाए।
उत्तर-
(घ) समाज-व्यवस्था में धीरे-धीरे परिवर्तन लाया जाए।

प्रश्न 3.
औद्योगिकीकरण से कौन-सी समस्या उत्पन्न हुई ?
(क) आवास
(ख) बेरोज़गारी
(ग) सफ़ाई
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
मेज़िनी राष्ट्रवादी था
(क) इटली का
(ख) फ्रांस का
(ग) रूस का
(घ) जर्मनी का।
उत्तर-
(क) इटली का

प्रश्न 5.
समाजवादी सभी बुराइयों की जड़ किसे मानते थे ?
(क) धन के समान वितरण को
(ख) उत्पादन के साधनों पर समाज के अधिकार को
(ग) निजी संपत्ति
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) निजी संपत्ति

प्रश्न 6.
राबर्ट ओवन कौन था
(क) रूसी दार्शनिक
(ख) फ्रांसीसी क्रांतिकारी
(ग) अंग्रेज़ समाजवादी
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) अंग्रेज़ समाजवादी

प्रश्न 7.
फ्रांसीसी समाजवादी कौन-सा था ?
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) फ्रेड्रिक एंगल्ज़
(ग) राबर्ट ओवन
(घ) लुई ब्लांक
उत्तर-
(घ) लुई ब्लांक

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 8.
कार्ल मार्क्स तथा फ्रेड्रिक एंगल्ज़ कौन थे ?
(क) समाजवादी
(ख) पूंजीवादी
(ग) सामंतवादी
(घ) वाणिज्यवादी।
उत्तर-
(क) समाजवादी

प्रश्न 9.
समाजवाद का मानना है
(क) सारी संपत्ति पर पूंजीपतियों का अधिकार होना चाहिए
(ख) सारी संपत्ति पर समाज (राज्य) का नियंत्रण होना चाहिए
(ग) सारा मुनाफ़ा उद्योगपतियों को मिलना चाहिए
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) सारी संपत्ति पर समाज (राज्य) का नियंत्रण होना चाहिए

प्रश्न 10.
द्वितीय इंटरनेशनल का संबंध था
(क) साम्राज्यवाद से
(ख) पूंजीवाद से ।
(ग) समाजवाद से
(घ) सामंतवाद से।
उत्तर-
(ग) समाजवाद से

प्रश्न 11.
ब्रिटेन में मज़दूर दल की स्थापना हुई
(क) 1900
(ख) 1905
(ग) 1914
(घ) 1919.
उत्तर-
(ख) 1905

प्रश्न 12.
रूसी साम्राज्य का प्रमुख धर्म था
(क) रूसी आर्थोडॉक्स चर्च
(ख) कैथोलिक
(ग) प्रोटेस्टैंट
(घ) इस्लाम।
उत्तर-
(क) रूसी आर्थोडॉक्स चर्च

प्रश्न 13.
क्रांति से पूर्व रूस की अधिकांश जनता का व्यवसाय था
(क) व्यापार
(ख) खनन
(ग) कारखानों में काम करना
(घ) कृषि।
उत्तर-
(घ) कृषि।

प्रश्न 14.
क्रांति से पूर्व रूस के सूती वस्त्र उद्योग में हड़ताल हुई
(क) 1914 ई०
(ख) 1896-97 ई०
(ग) 1916 ई०
(घ) 1904 ई०
उत्तर-
(ख) 1896-97 ई०

प्रश्न 15.
1914 से रूस में निम्नलिखित दल अवैध था
(क) रूसी समाजवादी वर्क्स पार्टी
(ख) बोलश्विक दल
(ग) मैनश्विक दल
(घ) उपरोक्त सभी
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी

प्रश्न 16.
रूसी साम्राज्य में मुस्लिम धर्म सुधारक क्या कहलाते थे ?
(क) ड्यूमा
(ख) उलेमा
(ग) जांदीदिस्ट
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) जांदीदिस्ट

प्रश्न 17.
निम्नलिखित भिक्षु रूस की ज़ारीना (जार की पत्नी) का सलाहकार था जिसने राजतंत्र को बदनाम किया
(क) रास्पुतिन
(ख) व्लादिमीर पुतिन
(ग) केस्की
(घ) लेनिन।
उत्तर-
(क) रास्पुतिन

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प्रश्न 18.
पूंजीपति के लिए मज़दूर ही मुनाफ़ा कमाता है, यह विचार दिया था
(क) कार्ल मार्क्स ने
(ख) लेनिन ने
(ग) केरेंस्की ने
(घ) प्रिंस ल्योव ने।
उत्तर-
(क) कार्ल मार्क्स ने

प्रश्न 19.
निम्नलिखित में से किसकी विचारधारा रूसी क्रांति लाने में सहायक सिद्ध हुई?
(क) मुसोलिनी
(ख) हिटलर
(ग) स्टालिन
(घ) कार्ल मार्क्स।
उत्तर-
(घ) कार्ल मार्क्स।

प्रश्न 20.
1917 की रूसी क्रांति का आरंभ कहां से हुआ?
(क) ब्लाडीवास्टक
(ख) लेनिनग्राड
(ग) पीट्रोग्राड
(घ) पेरिस।
उत्तर-
(ग) पीट्रोग्राड

प्रश्न 21.
1917 की रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण था
(क) ज़ार का निरंकुश शासन
(ख) जनता की दुर्दशा
(ग) 1905 की रूसी क्रांति
(घ) प्रथम महायुद्ध में रूस की पराजय।
उत्तर-
(घ) प्रथम महायुद्ध में रूस की पराजय।

प्रश्न 22.
1917 की रूसी क्रांति को जिस अन्य नाम से पुकारा जाता है
(क) फ्रांसीसी क्रांति
(ख) मार्क्स क्रांति
(ग) ज़ार क्रांति
(घ) बोलश्विक क्रांति।
उत्तर-
(घ) बोलश्विक क्रांति।

प्रश्न 23.
रूस में लेनिन ने किस प्रकार के शासन की घोषणा की?
(क) मध्यवर्गीय प्रजातंत्र
(ख) एकतंत्र
(ग) मज़दूरों, सिपाहियों तथा किसानों के प्रतिनिधियों की सरकार
(घ) संसदात्मक गणतंत्र।
उत्तर-
(ग) मज़दूरों, सिपाहियों तथा किसानों के प्रतिनिधियों की सरकार

प्रश्न 24.
इनमें से रूस के जार निकोलस ने किस प्रकार की सरकार को अपनाया ?
(क) निरंकुश
(ख) समाजवादी
(ग) साम्यवादी
(घ) लोकतंत्र।
उत्तर-
(क) निरंकुश

प्रश्न 25.
मैनश्विकों का नेता था
(क) एलेक्जेंडर केरेस्की
(ख) ट्रोटस्की
(ग) लेनिन
(घ) निकोलस द्वितीय।
उत्तर-
(क) एलेक्जेंडर केरेस्की

प्रश्न 26.
रूस की अस्थायी सरकार का तख्ता कब पलटा गया ?
(क) अगस्त, 1917
(ख) सितंबर, 1917
(ग) नवंबर, 1917
(घ) दिसंबर, 1917
उत्तर-
(ग) नवंबर, 1917

प्रश्न 27.
नवंबर 1917 की क्रांति का नेतृत्व किया था
(क) निकोलस द्वितीय
(ख) लेनिन
(ग) एलेक्जेंडर केरेंस्की
(घ) ट्रोटस्की।
उत्तर-
(ख) लेनिन

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प्रश्न 28.
रूसी क्रांति का कौन-सा परिणाम नहीं था ?
(क) निरंकुश शासन का अंत
(ख) श्रमिक सरकार
(ग) पूंजीपतियों का अंत
(घ) मैनश्विकों के प्रभाव में वृद्धि ।
उत्तर-
(घ) मैनश्विकों के प्रभाव में वृद्धि ।

रिक्त स्थान भरो:

  1. समाजवादी ……………. को सभी बुराइयों की जड़ मानते थे।
  2. …………….. फ्रांसीसी समाजवादी था।
  3. 1917 ई० में रूसी क्रांति का आरंभ …………………. से हुआ।
  4. 1917 ई० की रूसी क्रांति को …………………. क्रांति के नाम से पुकारा गया।
  5. …………………..मैनश्विकों का नेता था।
  6. रूसी क्रांति ……………… के शासनकाल में हुई।

उत्तर-

  1. निजी संपत्ति
  2. लुई ब्लांक
  3. पीट्रोग्राड
  4. बोलश्विक
  5. एलैक्जेंडर केरेंस्की
  6. ज़ार निकोलस द्वितीय।।

III. सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. मेज़िनी – (i) निरंकुश
2. राबर्ट ओवन – (ii) बोलश्विक क्रांति
3. जार निकोलस – (iii) इटली
4. रूसी क्रांति – (iv) फ्रांसीसी समाजवादी
5. लुई ब्लांक – (v) अंग्रेज़ समाजवादी
उत्तर-

  1. मेजिनी-इटली
  2. राबर्ट ओवन-अंग्रेज़ समाजवादी
  3. जार निकोलस-निरंकुश
  4. रूसी क्रांति| बोलश्विक क्रांति
  5. लुई ब्लांक-फ्रांसीसी समाजवादी।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
रूस में बोलश्विक अथवा विश्व की प्रथम समाजवादी क्रांति कब हुई ?
उत्तर-
1917 में।

प्रश्न 2.
रूसी क्रांति किस ज़ार के शासनकाल में हुई ?
उत्तर-
ज़ार निकोलस द्वितीय के।

प्रश्न 3.
रूसी क्रांति से पूर्व कौन-से दो प्रसिद्ध दल थे?
उत्तर-
मैनश्विक तथा बोलश्विक।

प्रश्न 4.
रूस में अस्थाई सरकार किसके नेतृत्व में बनी थी?
उत्तर-
केरेंस्की

प्रश्न 5.
रूसी क्रांति का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
ज़ार का निरंकुश शासन।

प्रश्न 6.
रूसी क्रांति की पहली उपलब्धि क्या थी?
उत्तर-
निरंकुश शासन की समाप्ति तथा चर्च की शक्ति का विनाश।

प्रश्न 7.
1917 से पूर्व रूस में किस सन् में क्रांति हुई थी?
उत्तर-
1905 में।

प्रश्न 8.
रूस में वर्कमैन्स सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी कब स्थापित हुई ?
उत्तर-
1895 में।

प्रश्न 9.
रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण क्या था?
उत्तर-
प्रथम महायुद्ध।

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प्रश्न 10.
प्रथम महायुद्ध में रूस जर्मनी से किस वर्ष में पराजित हुआ?
उत्तर-
1915 में।

प्रश्न 11.
रूसी क्रांति का झंडा सर्वप्रथम कहां बुलंद किया गया?
उत्तर-
पैत्रोग्राद।

प्रश्न 12.
रूस में जार को सिंहासन त्यागने के लिए किसने बाध्य किया?
उत्तर-
ड्यूमा ने।

प्रश्न 13.
रूस में जार के शासन त्यागने के पश्चात् जो अंतरिम सरकार बनी थी, उसमें किस वर्ग का प्रभुत्व था?
उत्तर-
मध्यवर्ग का।

प्रश्न 14.
बोलश्विकों का नेतृत्व कौन कर रहा था?
उत्तर-
लेनिन।

प्रश्न 15.
रूस में क्रांति के परिणामस्वरूप समाज के किस वर्ग का प्रभुत्व स्थापित हुआ?
उत्तर-
कृषक एवं श्रमिक वर्ग।

प्रश्न 16.
रूस की क्रांति को विश्व इतिहास की प्रमुख घटना क्यों माना जाता है?
उत्तर-
समाजवाद की स्थापना के कारण।

प्रश्न 17.
रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप रूस का क्या नाम रखा गया?
उत्तर-
सोवियत समाजवादी रूसी संघ।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
रूसी मज़दूरों के लिए 1904 ई० का साल बहुत बुरा रहा। उचित उदाहरण देकर इस कथन की पुष्टि कीजिए।
उत्तर-
रूसी मज़दूरों के लिए 1904 ई० का साल बहुत बुरा रहा। इस संबंध में निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं-1. ज़रूरी चीज़ों के मूल्य इतनी तेज़ी से बढ़े कि वास्तविक वेतन में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ गई। 2. उसी समय मजदूर संगठनों की सदस्यता में भी तेजी से वृद्धि हुई। 1904 में ही गठित की गई असेंबली ऑफ़ रशियन वर्कर्स (रूसी श्रमिक सभा) के चार सदस्यों को प्युतिलोव आयरन वर्क्स में उनकी नौकरी से हटा दिया गया तो मज़दूरों ने आंदोलन छेड़ने की घोषणा कर दी। 3. अगले कुछ दिनों के भीतर सेंट पीटर्सबर्ग के 110,000 से अधिक मजूदर काम के घंटे घटाकर आठ घंटे किए जाने, वेतन में वृद्धि और कार्यस्थितियों में सुधार की मांग करते हुए हड़ताल पर चले गए।

प्रश्न 2.
“रूसी जनता की समस्त समस्याओं का हल रूसी क्रांति में ही निहित था।” सिद्ध कीजिए।
अथवा
रूसी क्रांति के किन्हीं चार कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
क्रांति से पूर्व रूसी जनता का जीवन बड़ा कष्टमय था।

  1. रूस का जार निकोलस द्वितीय निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी राजा था। रूस की जनता उससे तंग आ चुकी थी।
  2. समाज में जन-साधारण की दशा बड़ी ही खराब थी। किसानों तथा मजदूरों में रोष फैला हुआ था। अब लोग इस दुःखी जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे।
  3. राजपरिवार में नैतिक पतन व्याप्त था। राज्य का शासन एक ढोंगी साधु रास्पुतिन चला रहा था। परिणामस्वरूप पूरे शासनतंत्र में भ्रष्टाचार फैला हुआ था।
  4. प्रथम विश्व युद्ध में रूस को भारी सैनिक क्षति उठानी पड़ रही थी। अत: सैनिकों में भारी असंतोष बढ़ रहा था। इन समस्त समस्याओं का एक ही हल था-‘क्रांति’।

प्रश्न 3.
रूस को फरवरी 1917 की क्रांति की ओर ले जाने वाली किन्हीं तीन घटनाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. 22 फरवरी को दाएं तट पर स्थित एक फ़ैक्टरी में तालाबंदी घोषित कर दी गई। अगले दिन इस फ़ैक्टरी के मज़दूरों के समर्थन में पचास फैक्टरियों के मज़दूरों ने भी हड़ताल कर दी। बहुत-से कारखानों में हड़ताल का नेतृत्व औरतें कर रही थीं।
  2. मज़दूरों ने सरकारी इमारतों को घेर लिया तो सरकार ने कयूं लगा दिया। शाम तक प्रदर्शनकारी तितर-बितर हो गए। परंतु 24 और 25 तारीख को वे फिर इकट्ठे होने लगे। सरकार ने उन पर नज़र रखने के लिए घुड़सवार सैनिकों और पुलिस को तैनात कर दिया।
  3. रविवार, 25 फरवरी को सरकार ने ड्यूमा को भंग कर दिया। 26 फरवरी को बहुत बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारी बाएं तट के इलाके में इकट्ठे हो गए। 27 फरवरी को उन्होंने पुलिस मुख्यालयों पर आक्रमण करके उन्हें ध्वस्त कर दिया। रोटी, वेतन, काम के घंटों में कमी और लोकतांत्रिक अधिकारों के पक्ष में नारे लगाते असंख्य लोग सड़कों पर जमा हो गए।
    सिपाही भी उनके साथ मिल गए। उन्होंने मिलकर पेत्रोग्राद ‘सोवियत’ (परिषद) का गठन किया।
  4. अगले दिन एक प्रतिनिधिमंडल ज़ार से मिलने गया। सैनिक कमांडरों ने ज़ार को राजगद्दी छोड़ देने की सलाह दी। उसने कमांडरों की बात मान ली और 2 मार्च को उसने गद्दी छोड़ दी। सोवियत और ड्यूमा के नेताओं ने देश का शासन चलाने के लिए एक अंतरिम सरकार बना ली। इसे 1917 की फरवरी क्रांति का नाम दिया जाता है।
    (कोई तीन लिखें।)

प्रश्न 4.
अक्तूबर 1917 की रूसी क्रांति में लेनिन के योगदान का किन्हीं तीन बिंदुओं के आधार पर वर्णन कीजिए।
अथवा
1917 की रूसी क्रांति लेनिन के नाम से क्यों जुड़ी हुई है ? .
उत्तर-
लेनिन बोलश्विक दल का नेता था और क्रांति काल के दौरान वह निर्वासित जीवन बिता रहा था। अक्तूबर, 1917 की रूसी क्रांति में उसके योगदान का वर्णन इस प्रकार है-

  1. अप्रैल, 1917 में लेनिन रूस लौट आए। उन्होंने बयान दिया कि युद्ध समाप्त किया जाए, सारी ज़मीन किसानों को सौंप दी जाए और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया जाए।
  2. इसी बीच अंतरिम सरकार और बोलश्विकों के बीच टकराव बढ़ता गया। सितंबर में बोलश्विकों ने सरकार के विरुद्ध विद्रोह के बारे में चर्चा शुरू कर दी। सेना और फैक्टरी सोवियतों में मौजूद बोलश्विकों को इकट्ठा किया गया। सत्ता पर अधिकार के लिए लियॉन ट्रोटस्की के नेतृत्व में सोवियत की ओर से एक सैनिक क्रांतिकारी समिति का गठन किया गया।
  3. 24 अक्तूबर को विद्रोह शुरू हो गया। प्रधानमंत्री केरेस्की ने इसे दबाने का प्रयास किया, परंतु वह असफल रहा।
  4. शाम ढलते-ढलते पूरा शहर क्रांतिकारी समिति के नियंत्रण में आ गया और मंत्रियों ने आत्मसमर्पण कर दिया। पेत्रोग्राद में अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस की बैठक हुई जिसमें बहुमत ने बोलश्विकों की कार्रवाई का समर्थन किया।

प्रश्न 5.
रूसी क्रांति की तत्कालीन उपलब्धियां क्या थी?
अथवा
1917 की रूसी क्रांति के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1917 ई० की रूसी क्रांति विश्व-इतिहास की एक अति महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इसने न केवल रूस में निरंकुश शासन को समाप्त किया अपितु पूरे विश्व की सामाजिक तथा आर्थिक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया। इस क्रांति के परिणामस्वरूप रूस में ज़ार का स्थान ‘सोवियत समाजवादी गणतंत्र का संघ’ नामक नई राजसत्ता ने ले लिया। इस नवीन संघ का उद्देश्य प्राचीन समाजवादी आदर्शों को प्राप्त करना था। इसका अर्थ था-प्रत्येक व्यक्ति से उसकी क्षमता के अनुसार काम लिया जाए और काम के अनुसार उसे पारिश्रमिक (मज़दूरी) दी जाए।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति

प्रश्न 6.
समाजवाद की तीन विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
समाजवाद की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. समाजवाद में समाज वर्ग विहीन होता है। इसमें अमीर-ग़रीब में कम-से-कम अंतर होता है। इसी कारण समाजवाद निजी संपत्ति का विरोधी है।
  2. इसमें मज़दूरों का शोषण नहीं होता। समाजवाद के अनुसार सभी को काम पाने का अधिकार है।
  3. उत्पादन तथा वितरण के साधनों पर पूरे समाज का अधिकार होता है, क्योंकि इसका उद्देश्य मुनाफ़ा कमाना नहीं, बल्कि समाज का कल्याण होता है।

प्रश्न 7.
1914 में रूसी साम्राज्य के विस्तार की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1914 में रूस और उसके परे साम्राज्य पर ज़ार निकोलस II का शासन था। मास्को के आसपास के भूक्षेत्र के अतिरिक्त आज का फ़िनलैंड, लातविया, लिथुआनिया, एस्तोनिया तथा पोलैंड, यूक्रेन तथा बेलारूस के कुछ भाग रूसी साम्राज्य का अंग थे। यह साम्राज्य प्रशांत महासागर तक फैला हुआ था। आज के मध्य एशियाई राज्यों के साथ-साथ जॉर्जिया, आर्मेनिया तथा अज़रबैजान भी इसी साम्राज्य में शामिल थे। रूस में ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च से उत्पन्न शाखा रूसी ऑर्थोडॉक्स क्रिश्चियैनिटी को मानने वाले लोग बहुमत में थे। परंतु इस साम्राज्य के अंतर्गत रहने वालों में कैथोलिक, प्रोटेस्टेंट, मुस्लिम और बौद्ध भी शामिल थे।

प्रश्न 8.
1905 की रूसी क्रांति के बाद ज़ार ने अपना निरंकुश शासन स्थापित करने के लिए क्या-क्या पग उठाए ? कोई तीन लिखिए।
उत्तर-
1905 की क्रांति के दौरान ज़ार ने एक निर्वाचित परामर्शदाता संसद् अर्थात् ड्यूमा के गठन पर अपनी सहमति दे दी। परंतु क्रांति के तुरंत बाद उसने बहुत से निरंकुश पग उठाए-

  1. क्रांति के समय कुछ दिन तक फैक्ट्री मज़दूरों की बहुत सी ट्रेड यूनियनें और फ़ैक्ट्री कमेटियां अस्तित्व में रही थीं। परंतु 1905 के बाद ऐसी अधिकतर कमेटियां और यूनियनें अनधिकृत रुप से काम करने लगीं क्योंकि उन्हें गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था। राजनीतिक गतिविधियों पर भारी पाबंदियां लगा दी गईं।
  2. ज़ार ने पहली ड्यूमा को मात्र 75 दिन के भीतर और फिर से निर्वाचित दूसरी ड्यूमा को 3 महीने के भीतर बर्खास्त कर दिया।
  3. ज़ार अपनी सत्ता पर किसी तरह का अंकुश नहीं चाहता था। इसलिए उसने मतदान कानूनों में हेर-फेर करके तीसरी ड्यूमा में रूढिवादी राजनेताओं को भर डाला। उदारवादियों और क्रांतिकारियों को पूरी तरह बाहर रखा गया।

प्रश्न 9.
प्रथम विश्व युद्ध क्या था ? रूसियों की इस युद्ध के प्रति क्या प्रतिक्रियां थी?
उत्तर-
1914 में यूरोप के दो गठबंधनों (धड़ों) के बीच युद्ध छिड़ गया। एक धड़े में ऑस्ट्रिया और तुर्की (केंद्रीय शक्तियां) थे तथा दूसरे धड़े में फ्रांस, ब्रिटेन व रूस थे। बाद में इटली और रूमानिया भी इस धड़े में शामिल हो गए। इन सभी देशों के पास संसार भर में विशाल साम्राज्य थे, इसलिए यूरोप के साथ-साथ यह युद्ध यूरोप के बाहर भी फैल गया था। इसी युद्ध को पहला विश्वयुद्ध कहा जाता है।
आरंभ में इस युद्ध को रूसियों का काफ़ी समर्थन मिला। जनता ने पूरी तरह ज़ार का साथ दिया। परंतु जैसे-जैसे युद्ध लंबा खिंचता गया, ज़ार ने ड्यूमा की मुख्य पार्टियों से सलाह लेना छोड़ दिया। इसलिए उसके प्रति जनसमर्थन कम होने लगा। जर्मन-विरोधी भावनाएं भी दिन-प्रतिदिन बलवती होने लगी। इसी कारण ही लोगों ने सेंट पीटर्सबर्ग का नाम बदल कर पेत्रोग्राद रख दिया क्योंकि सेंट पीटर्सबर्ग जर्मन नाम था। ज़ारीना अर्थात् ज़ार की पत्नी अलेक्सांद्रा के जर्मन मूल के होने और रास्पुतिन जैसे उसके घटिया सलाहकारों ने राजशाही को और अधिक अलोकप्रिय बना दिया।

प्रश्न 10.
1918 के पश्चात् लेनिन ने ऐसे कौन-से कदम उठाये जो रूस में अधिनायकवाद सहज दिखाई देते थे? कलाकारों और लेखकों ने बोलश्विक दल का समर्थन क्यों किया?
उत्तर-

  1. जनवरी 1918 में असेंबली ने बोलश्विकों के प्रस्तावों को रद्द कर दिया। अतः लेनिन ने असेंबली भंग कर दी।
  2. मार्च 1918 में अन्य राजनीतिक सहयोगियों की असहमति के बावजूद बोलश्विकों ने ब्रेस्ट लिटोव्सक में जर्मनी से संधि कर ली।
  3. आने वाले वर्षों में बोलश्विक पार्टी अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस के लिए होने वाले चुनावों में हिस्सा लेने वाली एकमात्र पार्टी रह गई। अखिल रूसी सोवियत कांग्रेस को अब देश की संसद् का दर्जा दे दिया गया था। इस प्रकार रूस एक-दलीय राजनीतिक व्यवस्था वाला देश बन गया।
  4. ट्रेड यूनियनों पर पार्टी का नियंत्रण रहता था।
  5. गुप्तचर पुलिस बोलश्विकों की आलोचना करने वाले को दंडित करती थी। फिर भी बहुत से युवा लेखकों और कलाकारों ने बोलश्विक दल का समर्थन किया क्योंकि यह दल समाजवाद और परिवर्तन के प्रति समर्पित था।

प्रश्न 11.
रूस के लोगों की वे तीन मांगें बताओ जिन्होंने ज़ार का पतन किया।
उत्तर-
रूस के लोगों की निम्नलिखित तीन मांगों ने जार का पतन किया-

  1. देश में शांति की स्थापना की जाए और प्रत्येक कृषक को अपनी भूमि दी जाए।
  2. उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण हो।
  3. गैर-रूसी जातियों को समान दर्जा मिले और सोवियत को पूरी शक्ति दी जाए।

प्रश्न 12.
प्रथम विश्वयुद्ध ने रूस की फरवरी क्रांति (1917) के लिए स्थितियां कैसे उत्पन्न की ? तीन कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. प्रथम विश्वयुद्ध में 1917 तक रूस के 70 लाख लोग मारे जा चुके थे।
  2. युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। रूस के अपने उद्योग तो वैसे भी बहुत कम थे। अब बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बंद हो गई, क्योंकि बाल्टिक सागर में जिस मार्ग से विदेशी औद्योगिक सामान आते थे उस पर जर्मनी का अधिकार हो चुका था।
  3. पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि शत्रु सेना वहां टिक न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश से रूस में 30 लाख से भी अधिक लोग शरणार्थी हो गए। इन दशाओं ने सरकार और ज़ार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। अब वे लड़ना नहीं चाहते थे।
    इस प्रकार क्रांति का वातावरण तैयार हुआ।

प्रश्न 13.
विश्व पर रूसी क्रांति के प्रभाव की चर्चा कीजिए।
अथवा
रूसी क्रांति के अंतर्राष्ट्रीय परिणामों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
रूसी क्रांति के अंतर्राष्ट्रीय परिणामों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. रूसी क्रांति के परिणामस्वरूप विश्व में समाजवाद एक व्यापक विचारधारा बन कर उभरा। रूस के बाद अनेक देशों में साम्यवादी सरकारें स्थापित हुईं।
  2. जनता की दशा सुधारने के लिए राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन के विचार को बल मिला।
  3. विश्व में श्रम का गौरव बढ़ा। अब बाइबल का यह विचार फिर से जीवित हो उठा कि “जो काम नहीं करता, वह खाएगा भी नहीं।”
  4. रूसी क्रांति ने साम्राज्यवाद के विनाश की प्रक्रिया को तेज़ किया। पूरे विश्व में साम्राज्यवाद के विनाश के लिए एक अभियान चल पड़ा।

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प्रश्न 14.
1917 की क्रांति के बाद रूस विश्व-युद्ध से क्यों अलग हो गया?
उत्तर-
1917 ई० के बाद रूस निम्नलिखित कारणों से युद्ध से अलग हो गया-

  1. रूसी क्रांतिकारी आरंभ से ही लड़ाई का विरोध करते आ रहे थे। अतः क्रांति के बाद रूस युद्ध से हट गया।
  2. लेनिन के नेतृत्व में रूसियों ने युद्ध को क्रांतिकारी युद्ध में बदलने का निश्चय कर लिया था।
  3. रूसी साम्राज्य को युद्ध में कई बार मुंह की खानी पड़ी थी जिससे इसकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची थी।
  4. युद्ध में 6 लाख से भी अधिक रूसी सैनिक मारे जा चुके थे।
  5. रूस के लोग किसी दूसरे के भू-भाग पर अधिकार नहीं करना चाहते थे।
  6. रूस के लोग पहले अपनी आंतरिक समस्याओं का समाधान करना चाहते थे।

प्रश्न 15.
रूस द्वारा प्रथम विश्व युद्ध से हटने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर-
1917 ई० में रूस प्रथम विश्व युद्ध से हट गया। रूसी क्रांति के अगले ही दिन बोलश्विक सरकार ने शांतिसंबंधी अज्ञाप्ति (Decree on Peace) जारी की। मार्च, 1918 में रूस ने जर्मनी के साथ शांति संधि पर हस्ताक्षर किये। जर्मनी की सरकार को लगा कि रूसी सरकार युद्ध को जारी रखने की स्थिति में नहीं है। इसलिए जर्मनी ने रूस पर कठोर शर्ते लाद दीं। परंतु रूस ने उन्हें स्वीकार कर लिया। त्रिदेशीय संधि में शामिल शक्तियां रूसी क्रांति और रूस के युद्ध से अलग होने के निर्णय के विरुद्ध थीं। वे रूसी क्रांति के विरोधी तत्त्वों को पुनः उभारने का प्रयत्न करने लगीं। फलस्वरूप रूस में गृह-युद्ध छिड़ गया जो तीन वर्षों तक चलता रहा। परंतु अंत में विदेशी शक्तियों तथा क्रांतिकारी सरकार के विरुद्ध हथियार उठाने वाले रूसियों की पराजय हुई और गृह-युद्ध समाप्त हो गया।

प्रश्न 16.
समाजवादियों के अनुसार ‘कोऑपरेटिव’ क्या थे ? कोऑपरेटिव निर्माण के विषय में रॉबर्ट ओवन तथा लूइस ब्लॉक के क्या विचार थे ?
उत्तर-
समाजवादियों के अनुसार कोऑपरेटिव सामूहिक उद्यम थे। ये ऐसे लोगों के समूह थे जो मिल कर चीजें बनाते थे और मुनाफ़े को प्रत्येक सदस्य द्वारा किए गए काम के हिसाब से आपस में बांट लेते थे। कुछ समाजवादियों की कोऑपरेटिव के निर्माण में विशेष रुचि थी। इंग्लैंड के जाने-माने उद्योगपति रॉबर्ट ओवेन (1771-1858) ने इंडियाना (अमेरिका) में नया समन्वय (New Harmony) के नाम से एक नयी प्रकार के समुदाय की रचना का प्रयास किया। कुछ समाजवादी मानते थे कि केवल व्यक्तिगत प्रयासों से बहुत बड़े सामूहिक खेत नहीं बनाए जा सकते। वे चाहते थे कि सरकार अपनी ओर से सामूहिक खेती को बढ़ावा दे। उदाहरण के लिए, फ्रांस में लुईस ब्लांक (18131882) चाहते थे कि सरकार पूंजीवादी उद्यमों की जगह सामूहिक उद्यमों को प्रोत्साहित करे।

प्रश्न 17.
स्तालिन कौन था ? उसने खेतों के सामूहीकरण का फैसला क्यों लिया ?
उत्तर-
स्तालिन रूस की कम्युनिस्ट पार्टी का नेता था। उसने लेनिन के बाद पार्टी की कमान संभाली थी। 1927-1928 के आसपास रूस के शहरों में अनाज का भारी संकट पैदा हो गया था। सरकार ने अनाज की कीमत निश्चित कर दी थी। कोई भी उससे अधिक कीमत पर अनाज नहीं बेच सकता था। परंतु किसान उस कीमत पर सरकार को अनाज बेचने के लिए तैयार नहीं थे। स्थिति से निपटने के लिए स्तालिन ने कड़े पग उठाए। उसे लगता था कि धनी किसान और व्यापारी कीमत बढ़ने की आशा में अनाज नहीं बेच रहे हैं। स्थिति से निपटने के लिए सट्टेबाजी पर अंकुश लगाना और व्यापारियों के पास जमा अनाज को जब्त करना ज़रूरी था। अतः 1928 में पार्टी के सदस्यों ने अनाज उत्पादक इलाकों का दौरा किया। उन्होंने किसानों से ज़बरदस्ती अनाज खरीदा और ‘कुलकों’ (संपन्न किसानों) के ठिकानों परं छापे मारे। जब इसके बाद भी अनाज की कमी बनी रही तो स्तालिन ने खेतों के सामूहिकीकरण का फैसला लिया। इसके लिए यह तर्क दिया गया कि अनाज की कमी इसलिए है, क्योंकि खेत बहुत छोटे हैं।

प्रश्न 18.
क्रांति से पूर्व रूस में औद्योगिक मजदूरों की शोचनीय दशा के कोई दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. विदेशी पूंजीपति मज़दूरों का खूब शोषण करते थे। यहां तक कि रूसी पूंजीपति भी उन्हें बहुत कम वेतन देते थे।
  2. मजदूरों को कोई राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। उनके पास मामूली सुधार लागू करवाने के लिए भी साधन नहीं थे।

प्रश्न 19.
रूसी क्रांति के समय रूस का शासक कौन था? उसके शासनतंत्र के कोई दो दोष बताओ।
अथवा
रूसी क्रांति के किन्हीं दो राजनीतिक कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
रूसी क्रांति के समय रूस का शासक ज़ार निकोलस द्वितीय था। उसके शासनतंत्र में निम्नलिखित दोष थे जो रूसी क्रांति का कारण बने।

  1. वह राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था तथा निरंकुश तंत्र की रक्षा करना अपना परम कर्त्तव्य समझता था।
  2. नौकरशाही के सदस्य किसी योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि विशेषाधिकार प्राप्त वर्षों से चुने जाते थे।

प्रश्न 20.
रूस में जार निकोलस द्वितीय क्यों अलोकप्रिय था? दो कारण दीजिए।
उत्तर-
रूस में ज़ार निकोलस द्वितीय के अलोकप्रिय होने के निम्नलिखित कारण थे-

  1. ज़ार निकोलस एक निरंकुश शासक था।
  2. ज़ार के शासनकाल में किसानों, मज़दूरों और सैनिकों की दशा बहुत खराब थी।

प्रश्न 21.
लेनिन कौन था? उसने रूस में क्रांति लाने में क्या योगदान दिया?
उत्तर-
लेनिन बोलश्विक दल का नेता था। मार्क्स और एंगल्ज़ के पश्चात् उसे समाजवादी आंदोलन का सबसे बड़ा नेता माना जाता है। उसने बोलश्विक पार्टी द्वारा रूस में क्रांति लाने के लिये अपना सारा जीवन लगा दिया।

प्रश्न 22.
“1905 की रूसी क्रांति 1917 की क्रांति का पूर्वाभ्यास थी।” इस कथन के पक्ष में कोई दो तर्क दीजिए।
उत्तर-

  1. 1905 ई० की क्रांति ने रूसी जनता में जागृति उत्पन्न की और उसे क्रांति के लिए तैयार किया।
  2. इस क्रांति के कारण रूसी सैनिक तथा गैर-रूसी जातियों के लोग क्रांतिकारियों के घनिष्ठ संपर्क में आ गए।

प्रश्न 23.
लेनिन ने एक सफल क्रांति लाने के लिये कौन-सी दो मूलभूत शर्ते बताईं ? क्या ये शर्ते रूस में विद्यमान थीं?
उत्तर-
लेनिन द्वारा बताई गई दो शर्त थीं

  1. जनता पूरी तरह समझे कि क्रांति आवश्यक है और वह उसके लिए बलिदान देने को तैयार हो।
  2. वर्तमान सरकार संकट से ग्रस्त हो ताकि उसे बलपूर्वक हटाया जा सके। रूस में यह स्थिति निश्चित रूप से आ चुकी थी।

प्रश्न 24.
ज़ार का पतन किस क्रांति के नाम से जाना जाता है और क्यों? रूस की जनता की चार मुख्य मांगें क्या थीं?
उत्तर-
ज़ार के पतन को फरवरी क्रांति के नाम से जाना जाता है, क्योंकि पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार यह क्रांति 27 फरवरी, 1917 को हुई थी।
रूस की जनता की चार मांगें थीं-शांति, जोतने वालों को ज़मीन, उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर-रूसी राष्ट्रों को बराबरी का दर्जा।

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प्रश्न 25.
बोलश्विक पार्टी का मुख्य नेता कौन था? इस दल की दो नीतियां कौन-कौन सी थीं?
अथवा
1917 की रूसी क्रांति में लेनिन के दो उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
बोलश्विक पार्टी का नेता लेनिन था। लेनिन के नेतृत्व में बोलश्विक पार्टी की नीतियां (उद्देश्य) थीं-

  1. सारी सत्ता सोवियतों को सौंपी जाए।
  2. सारी भूमि किसानों को दे दी जाए।

प्रश्न 26.
रूसी क्रांति कब हुई? सोवियतों की अखिल रूसी कांग्रेस कब हुई? इसने सबसे पहला काम कौन-सा किया?
उत्तर-
रूसी क्रांति 7 नवंबर, 1917 को हुई। इसी दिन सोवियतों की एक अखिल रूसी कांग्रेस हुई। इसने सबसे पहला काम यह किया कि संपूर्ण राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली।

प्रश्न 27.
समाजवाद की दो विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-

  1. समाजवाद के अनुसार समाज के हित प्रमुख हैं। समाज से अलग निजी हित रखने वाला व्यक्ति समाज का सबसे बड़ा शत्रु है।
  2. राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएं।

प्रश्न 28.
साम्यवाद की दो मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. साम्यवाद समाजवाद का उग्र रूप है।
  2. इसका उद्देश्य उत्पादन तथा वितरण के सभी साधनों पर श्रमिकों का कठोर नियंत्रण स्थापित करना है।

प्रश्न 29.
रूसी क्रांति के दो अंतर्राष्ट्रीय परिणामों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-

  1. रूस में किसानों तथा मजदूरों की सरकार स्थापित होने से विश्व के सभी देशों में किसानों और मजदूरों के सम्मान में वृद्धि हुई।
  2. क्रांति के पश्चात् रूस में साम्यवादी सरकार की स्थापना की गई। इसका परिणाम यह हआ कि संसार के अन्य देशों में भी साम्यवादी सरकारें स्थापित होने लगीं।

प्रश्न 30.
रूसी क्रांति का साम्राज्यवाद पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
रूसी क्रांतिकारी साम्राज्यवाद के विरोधी थे। अत: रूसी क्रांति ने साम्राज्यवाद के विनाश की प्रक्रिया को तेज़ किया। रूस के समाजवादियों ने साम्राज्यवाद के विनाश के लिए पूरे विश्व में अभियान चलाया।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1917 से पहले रूस की कामकाजी आबादी यूरोप के बाकी देशों के मुकाबले किन-किन स्तरों पर भिन्न थी ?
अथवा
1917 से पहले रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से किस प्रकार भिन्न थी ?
उत्तर-
1917 से पहले रूस की श्रमिक जनसंख्या यूरोप के अन्य देशों की श्रमिक जनसंख्या से निम्नलिखित बातों में भिन्न थी

  1. रूस की अधिकांश जनता कृषि करती थी। वहां के लगभग 85 प्रतिशत लोग कृषि द्वारा ही अपनी रोज़ी कमाते थे। यह यूरोप के अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक था। उदाहरण के लिए फ्रांस और जर्मनी में यह अनुपात क्रमश: 40 प्रतिशत तथा 50 प्रतिशत ही था।
  2. यूरोप के कई अन्य देशों में औद्योगिक क्रांति आई थी। वहां कारखाने स्थानीय लोगों के हाथों में थे। वहां श्रमिकों का बहुत अधिक शोषण नहीं होता था। परंतु रूस में अधिकांश कारखाने विदेशी पूंजी से स्थापित हुए। विदेशी पूंजीपति रूसी श्रमिकों का खूब शोषण करते थे। जो कारखाने रूसी पूंजीपतियों के हाथों में थे, वहां भी श्रमिकों की दशा दयनीय थी। ये पूंजीपति विदेशी पूंजीपतियों से स्पर्धा करने के लिए श्रमिकों का खून चूसते थे।
  3. रूस में महिला श्रमिकों को पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा बहुत ही कम वेतन दिया जाता था। बच्चों से भी 10 से 15 घंटों तक काम लिया जाता था। यूरोप के अन्य देशों में श्रम-कानूनों के कारण स्थिति में सुधार आ चुका था।
  4. रूसी किसानों की जोतें यूरोप के अन्य देशों के किसानों की तुलना में छोटी थीं।
  5. रूसी किसान ज़मींदारों तथा जागीरदारों का कोई सम्मान नहीं करते थे। वे उनके अत्याचारी स्वभाव के कारण उनसे घृणा करते थे। यहाँ तक कि वे प्रायः लगान देने से इंकार कर देते थे और ज़मींदारों की हत्या कर देते थे। इसके विपरीत फ्रांस में किसान अपने सामंतों के प्रति वफ़ादार थे। फ्रांसीसी क्रांति के समय वे अपने सामंतों के लिए लड़े थे।
  6. रूस का कृषक वर्ग एक अन्य दृष्टि से यूरोप के कृषक वर्ग से भिन्न था। वे एक संमय-अवधि के लिए अपनी जोतों को इकट्ठा कर लेते थे। उनकी कम्यून (मीर) उनके परिवारों की ज़रूरतों के अनुसार इसका बंटवारा करती थी।

प्रश्न 2.
1917 में ज़ार का शासन क्यों खत्म हो गया ?
अथवा
रूस में फरवरी 1917 की क्रांति के लिए उत्तरदायी परिस्थितियां।
उत्तर-
रूस से ज़ार शाही को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियां उत्तरदायी थीं-

  1. रूस का ज़ार निकोलस द्वितीय राजा के दैवी अधिकारों में विश्वास रखता था। निरंकुश तंत्र की रक्षा करना वह अपना परम कर्त्तव्य समझता था। उसके समर्थक केवल कुलीन वर्ग तथा अन्य उच्च वर्गों से संबंध रखने वाले लोग ही थे। जनसंख्या का शेष सारा भाग उसका विरोधी था। राज्य के सभी अधिकार उच्च वर्ग के लोगों के हाथों में थे। उनकी नियुक्ति भी किसी योग्यता के आधार पर नहीं की जाती थी।
  2. रूसी साम्राज्य में ज़ार द्वारा विजित कई गैर-रूसी राष्ट्र भी सम्मिलित थे। ज़ार ने इन लोगों पर रूसी भाषा लादी और उनकी संस्कृतियों का महत्त्व कम करने का पूरा प्रयास किया। इस प्रकार देश में टकराव की स्थिति बनी हुई थी।
  3. राजपरिवार में नैतिक पतन चरम सीमा पर था। निकोलस द्वितीय पूरी तरह अपनी पत्नी के दबाव में था जो स्वयं एक ढोंगी साधु रास्पुतिन के कहने पर चलती थी। ऐसे भ्रष्टाचारी शासन से जनता बहुत दु:खी थी।
  4. ज़ार ने अपनी साम्राज्यवादी इच्छाओं की पूर्ति के लिए देश को प्रथम विश्व-युद्ध में झोंक दिया। परंतु वह राज्य के आंतरिक खोखलेपन के कारण मोर्चे पर लड रहे सैनिकों की ओर पूरा ध्यान न दे सका। परिणामस्वरूप रूसी सेना बुरी तरह पराजित हुई और फरवरी, 1917 तक उसके 6 लाख सैनिक मारे गये। इससे लोगों के साथ-साथ सेना में असंतोष फैल गया। अतः क्रांति द्वारा जार को शासन छोड़ने के लिए विवश कर दिया गया। इसे फरवरी क्रांति का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 3.
दो सूचियां बनाइए-एक सूची में फरवरी क्रांति की मुख्य घटनाओं और प्रभावों को लिखिए और दूसरी सूची में अक्तूबर क्रांति की प्रमुख घटनाओं और प्रभावों को दर्ज कीजिए।
अथवा
1917 की रूसी क्रांति की महत्त्वपूर्ण घटनाओं एवं प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ज़ार की गलत नीतियों, राजनीतिक भ्रष्टाचार तथा साधारण जनता एवं सैनिकों की दुर्दशा के कारण रूस में क्रांति का वातावरण तैयार हो चुका था। एक छोटी-सी घटना ने इस क्रांति का श्रीगणेश किया और यह दो चरणों में पूर्ण हुई। ये दो चरण थे–फरवरी क्रांति तथा अक्तूबर क्रांति। संक्षेप में क्रांति के पूरे घटनाक्रम का वर्णन निम्नलिखित है-

1. फरवरी क्रांति-इस क्रांति का आरंभ रोटी खरीदने का प्रयास कर रही औरतों के प्रदर्शन से हुआ। फिर मजदूरों की एक आम हड़ताल हुई जिसमें सैनिक और अन्य लोग भी सम्मिलित हो गए। 12 मार्च, 1917 को राजधानी सेंट पीटर्सबर्ग क्रांतिकारियों के हाथों में आ गई। क्रांतिकारियों ने शीघ्र ही मास्को पर भी अधिकार कर लिया। ज़ार शासन छोड़ कर भाग गया और 15 मार्च को पहली अस्थायी सरकार केरेंस्की के नेतृत्व में बनी। ज़ार के पतन की इस घटना को फरवरी क्रांति कहा जाता है, क्योंकि पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार यह क्रांति 27 फरवरी, 1917 को घटित हुई थी। परंतु ज़ार का पतन क्रांति का आरंभ मात्र था।
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2. अक्तूबर क्रांति-जनता की चार मांगें सबसे महत्त्वपूर्ण थीं–शांति, भूमि का स्वामित्व जोतने वालों को, कारखानों पर मजदूरों का नियंत्रण तथा गैर रूसी जातियों को समानता का दर्जा । रूस की अस्थाई सरकार इनमें से किसी भी मांग को पूरा न कर सकी अतः उसने जनता का समर्थन खो दिया। लेनिन जो फरवरी की क्रांति के समय स्विट्ज़रलैंड में निर्वासन का जीवन बिता रहा था, अप्रैल में रूस लौट आया। उसके नेतृत्व में बोलश्विक पार्टी ने युद्ध समाप्त करने, किसानों को ज़मीन देने तथा “सारे अधिकार सोवियतों को देने” की स्पष्ट नीतियां सामने रखीं। गैर-रूसी जातियों के प्रश्न पर भी केवल लेनिन की बोल्शेविक पार्टी के पास एक स्पष्ट नीति थी।

लेनिन ने कभी रूसी साम्राज्य को “राष्ट्रों का कारागार” कहा था और यह घोषणा की थी कि सभी गैर-रूसी जनगणों को समान अधिकार दिये बिना कभी भी वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना नहीं हो सकती। उन्होंने रूसी साम्राज्य के जनगणों सहित सभी जनगणों के आत्मनिर्णय के अधिकार की घोषणा की।

केरेंस्की सरकार की अलोकप्रियता के कारण 7 नवंबर, 1917 को उसका पतन हो गया। इस दिन उसके मुख्यालय विंटर पैलेस पर नाविकों के एक दल ने अधिकार कर लिया। 1905 की क्रांति में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला लियोन त्रात्सकी भी मई, 1917 में रूस लौट आया था। पेत्रोग्राद सोवियत के प्रमुख के रूप में नवंबर के विद्रोह का वह एक प्रमुख नेता था। उसी दिन सोवियतों की अखिल-रूसी कांग्रेस की बैठक हुई और उसने राजनीतिक सत्ता अपने हाथों में ले ली। 7 नवंबर को होने वाली इस घटना को अक्तूबर क्रांति’ कहा जाता है, क्योंकि उस दिन पुराने रूसी कैलेंडर के अनुसार 25 अक्तूबर का दिन था।

इस क्रांति के पश्चात् देश में लेनिन के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हुआ जिसने समाजवाद की दिशा में अनेक महत्त्वपूर्ण पग उठाये। इस प्रकार 1917 की रूसी क्रांति विश्व की प्रथम सफल समाजवादी क्रांति थी।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित के बारे में संक्षेप में लिखिए :

  • कुलक (Kulaks)
  • ड्यूम-
  • 1900 से 1930 के बीच महिला कामगार
  • उदारवादी
  • स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम।

उत्तर-
कुलक-कुलक सोवियत रूस के धनी किसान थे। कृषि के सामूहीकरण कार्यक्रम के अंतर्गत स्तालिन ने इनका अंत कर दिया था।
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ड्यूमा-ड्यूमा रूस की राष्ट्रीय सभा अथवा संसद् थी। रूस के ज़ार निकोलस द्वितीय ने इसे मात्र एक सलाहकार समिति में बदल दिया था। इसमें केवल अनुदारवादी राजनीतिज्ञों को ही स्थान दिया गया। उदारवादियों तथा क्रांतिकारियों को इससे दूर रखा गया।

1900 से 1930 के बीच महिला कामगार-रूस के कारखानों में महिला कामगारों (श्रमिकों) की संख्या भी पर्याप्त थी। 1914 में यह कुल श्रमिकों का 31 प्रतिशत थी। परंतु उन्हें पुरुष श्रमिकों की अपेक्षा कम मजदूरी दी जाती थी। यह पुरुष श्रमिक की मजदूरी का आधा अथवा तीन चौथाई भाग होती थी। महिला श्रमिक अपने साथी पुरुष श्रमिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहती थीं।

उदारवादी-उदारवादी यूरोपीय समाज के वे लोग थे जो समाज को बदलना चाहते थे। वे एक ऐसे राष्ट्र की स्थापना करना चाहते थे जो धार्मिक दृष्टि से सहनशील हो। वे वंशानुगत शासकों की निरंकुश शक्तियों के विरुद्ध थे। वे चाहते थे कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों का हनन न करे। वे निर्वाचित संसदीय सरकार तथा स्वतंत्र न्यायपालिका के पक्ष में थे। इतना होने पर भी वे लोकतंत्रवादी नहीं थे। उनका सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार में कोई विश्वास नहीं था। वे महिलाओं को मताधिकार देने के भी विरुद्ध थे।

स्तालिन का सामूहिकीकरण कार्यक्रम-1929 में स्तालिन की साम्यवादी पार्टी ने सभी किसानों को सामूहिक खेतों (कोलखोज) में काम करने का आदेश जारी कर दिया। अधिकांश ज़मीन और साजो-सामान को सामूहिक खेतों में बदल दिया गया। सभी किसान सामूहिक खेतों पर मिल-जुल कर काम करते थे। कोलखोज के लाभ को सभी किसानों के बीच बांट दिया जाता था। इस निर्णय से क्रुद्ध किसानों ने सरकार का विरोध किया। विरोध जताने के लिए वे अपने जानवरों को मारने लगे। परिणामस्वरूप 1929 से 1931 के बीच जानवरों की संख्या में एक-तिहाई कमी आ गई। सरकार की ओर से सामूहिकीकरण का विरोध करने वालों को कड़ा दंड दिया जाता था। बहुत-से लोगों को निर्वासन अथवा देश-निकाला दे दिया गया। सामूहिकीकरण का विरोध करने वाले किसानों का कहना था कि वे न तो धनी हैं और न ही समाजवाद के विरोधी हैं। वे बस विभिन्न कारणों से सामूहिक खेतों पर काम नहीं करना चाहते।
सामूहिकीकरण के बावजूद उत्पादन में कोई विशेष वृद्धि नहीं हुई। इसके विपरीत 1930-1933 की खराब फसल के बाद सोवियत इतिहास का सबसे बड़ा अकाल पड़ा। इसमें 40 लाख से अधिक लोग मारे गए।

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प्रश्न 5.
क्रांति से पूर्व रूस में समाज परिवर्तन के समर्थकों के कौन-कौन से तीन समूह (वर्ग) थे? उनके विचारों में क्या भिन्नता थी?
अथवा
रूस के उदारवादियों, रैडिकलों तथा रूढ़िवादियों के विचारों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
क्रांति से पूर्व रूस में समाज परिवर्तन के समर्थकों के तीन समूह अथवा वर्ग थे-उदारवादी रैडिकल तथा रूढ़िवादी।

उदारवादी-रूस के उदारवादी ऐसा राष्ट्र चाहते थे जिसमें सभी धर्मों को बराबर का दर्जा मिले तथा सभी का समान रूप से उदार हो। उस समय के यूरोप में प्रायः किसी एक धर्म को ही अधिक महत्त्व दिया जाता था। उदारवादी वंशआधारित शासकों की अनियंत्रित सत्ता के भी विरोधी थे। वे व्यक्ति मात्र के अधिकारों की रक्षा के समर्थक थे। उनका मानना था कि सरकार को किसी के अधिकारों का हनन करने या उन्हें छीनने का अधिकार नहीं दिया जाना चाहिए। यह समूह प्रतिनिधित्व पर आधारित एक ऐसी निर्वाचित सरकार चाहता था। जो शासकों और अफ़सरों के प्रभाव से मुक्त हो। शासन-कार्य न्यायपालिका द्वारा स्थापित किए गए कानूनों के अनुसार चलाया जाना चाहिए। इतना होने पर भी यह समूह लोकतंत्रवादी नहीं था। वे लोग सार्वभौलिक वयस्क मताधिकार अर्थात् सभी नागरिकों को वोट का अधिकार देने के पक्ष में नहीं थे।

रैडिक्ल-इस वर्ग के लोग ऐसी सरकार के पक्ष में थे जो देश की जनसंख्या के बहुमत के समर्थन पर आधारित हो। इनमें से बहुत-से महिला मताधिकार आंदोलन के भी समर्थक थे। उदारवादियों के विपरीत ये लोग बड़े ज़मींदारों और धनी उद्योगपतियों के विशेषाधिकारों के विरुद्ध थे। परंतु वे निजी संपत्ति के विरोधी नहीं थे वे केवल कुछ लोगों के हाथों में संपत्ति का संकेंद्रण का विरोध करते थे।।

रूढ़िवादी-रैडिकल तथा उदारवादी दोनों के विरुद्ध थे। परंतु फ्रांसीसी क्रांति के बाद वे भी परिवर्तन की ज़रूरत को स्वीकार करने लगे थे। इससे पूर्व अठारहवीं शताब्दी तक वे प्राय परिवर्तन के विचारों का विरोध करते थे। फिर भी वे चाहते थे कि अतीत को पूरी तरह भुलाया जाए और परिवर्तन की प्रक्रिया धीमी हो।

प्रश्न 6.
रूसी क्रांति के कारणों का विवेचन कीजिए। रूस द्वारा प्रथम विश्व-युद्ध में भाग लेने का रूसी क्रांति की सफलता में क्या योगदान है?
उत्तर-
रूसी क्रांति 20वीं शताब्दी के इतिहास की महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। यह क्रांति मुख्य रूप से यूरोपीय देशों में तेज़ी से बढ़ती हुई समाजवादी विचारधारा का परिणाम थी। इसलिए इसका महत्त्व राजनीतिक दृष्टि से कम, परंतु आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से अधिक था। इस क्रांति से रूस में एक ऐसे समाज की स्थापना हुई, जो जर्मनी के प्रसिद्ध दार्शनिक कार्ल मार्क्स के विचारों के अनुरूप था। रूस की इस महान् क्रांति के कारणों का वर्णन निम्न प्रकार है-

1. ज़ार की निरंकुशता-रूस का ज़ार निकोलस द्वितीय निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी था। उसे असीम अधिकार तथा शक्तियां प्राप्त थीं जिन पर कोई नियंत्रण नहीं था। वह इनका प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता था। उच्च वर्ग के लोगों को विशेषाधिकार प्राप्त थे, परंतु जन-साधारण की दशा बड़ी शोचनीय थी। उन्हें न तो कोई अधिकार प्राप्त था और न ही शासन में उनका हाथ था। अत: वे ज़ार के निरंकुश शासन का अंत कर देना चाहते थे।

2. रूस में मार्क्सवाद का प्रसार-रूस में औद्योगिक क्रांति आरंभ होने के कारण मजदूरों की दशा बड़ी खराब हो गई। उद्योगपति उनका जी भरकर शोषण कर रहे थे। मज़दूरों को न तो अच्छे वेतन मिलते थे और न ही रहने के लिए अच्छे मकान। इन परिस्थितियों में मज़दूरों का झुकाव मार्क्सवाद की ओर बढ़ने लगा। वे समझने लगे थे कि मार्क्सवादी सिद्धान्तों को अपनाकर ही देश में क्रांति लाई जा सकती है और उनके जीवन-स्तर को उन्नत किया जा सकता है। इस उद्देश्य से उन्होंने ‘सोशलिस्ट डैमोक्रेटिक पार्टी’ नामक एक संगठन स्थापित किया। 1903 ई० में यह संगठन दो भागों में बंट गया-बोल्शेविक तथा मैनश्विक। इनमें बोलश्विक क्रांतिकारी विचारों के थे। वे शीघ्र-से-शीघ्र देश में मजदूरों की तानाशाही स्थापित करना चाहते थे। इसके विपरीत मेनश्विक नर्म विचारों के थे। वे अन्य दलों के सहयोग से ज़ार की तानाशाही समाप्त करने के पक्ष में थे। उनका उद्देश्य देश में शांतिमय साधनों द्वारा धीरे-धीरे क्रांति लाना था। इस प्रकार रूस में क्रांति का पूरा वातावरण तैयार हो चुका था।

3. जन-साधारण की शोचनीय दशा-समाज में जनसाधारण की दशा बड़ी ही खराब थी। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक रूस के समाज में दो वर्ग थे-उच्च वर्ग तथा दास कृषक। उच्च वर्ग के अधिकांश लोग भूमि के स्वामी थे। राज्य के सभी उच्च पदों पर वे ही आसीन थे। इसके विपरीत दास-कृषक (Serfs) लकड़ी काटने वाले तथा पानी भरने वाले ही बनकर रह गए थे। अत: वे अब इस दुःखी जीवन से छुटकारा पाना चाहते थे।

4. दार्शनिकों तथा लेखकों का योगदान–’ज़ार’ के अनेक प्रतिबंध लगाने पर भी पाश्चात्य जगत् के उदार विचारों ने रूस में साहित्य के माध्यम से प्रवेश किया। टॉलस्टाय, तुर्गनोव तथा दास्तोवस्की के उपन्यासों ने नवयुवकों के विचारों में क्रांति पैदा कर दी थी। देश में मार्क्स, बाकूनेन तथा क्रोपटकिन की विचारधाराएं भी प्रचलित थीं। इन विचारों से प्रभावित होकर लोगों ने ऐसे अधिकारों तथा सुविधाओं की मांग की जो कि पाश्चात्य देशों के लोगों को प्राप्त थीं। ज़ार ने जब उनकी मांगें ठुकराने का प्रयत्न किया तो उन्होंने क्रांति का मार्ग अपनाया।

5. रूस-जापान युद्ध-1904-1905 ई० में रूस तथा जापान के बीच एक युद्ध हुआ। इस युद्ध में रूस की हार हुई। जापान जैसे छोटे-से देश के हाथों परास्त होने के कारण रूसी जनता ज़ार के शासन की विरोधी बन गई। उन्हें विश्वास हो गया कि इस पराजय का एकमात्र कारण ज़ार की सरकार है जो युद्ध का ठीक प्रकार से संचालन करने में असफल रही है।

6. 1905 ई० की क्रांति-‘ज़ार’ के निरंकुश तथा अत्याचारी शासन के विरुद्ध 1905 ई० में रूस में एक क्रांति हुई। ‘ज़ार’ इस क्रांति का दमन करने में असफल रहा। विवश होकर उसने जनता को सुधारों का वचन दिया। राष्ट्रीय सभा अथवा ड्यूमा (Duma) बुलाने की घोषणा कर दी गई। परंतु निरंकुश शासन तथा संसदीय सरकार के मेल का यह नया प्रयोग असफल रहा। क्रांतिकारियों की आपसी फूट और मतभेदों का लाभ उठाकर ज़ार ने प्रतिक्रियावादी नीति का सहारा लिया। उसने ड्यूमा को परामर्श समिति मात्र बना दिया। ज़ार के इस कार्य से जनता में और भी अधिक असंतोष फैल गया।

7. प्रथम विश्व युद्ध-1914 ई० में प्रथम विश्व युद्ध आरंभ हो गया। यह युद्ध रूसी क्रांति का तात्कालिक कारण बना। इस युद्ध में रूस बुरी तरह पराजित हो रहा था और इस युद्ध का देश पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा। लड़ाई के कारण कीमतें बढ़ गईं। इस पर पूंजीपतियों ने मनमानी करके स्थिति को और भी अधिक गंभीर बना दिया। इन परिस्थितियों को देखकर ड्यूमा ने उत्तरदायी शासन की मांग की। परंतु ज़ार ने उसे अस्वीकार कर दिया और उसके सदस्यों को जेलों में बंद कर दिया। दूसरी ओर रूसी सेनाओं की लगातार पराजय हो रही थी। अतः लोगों को यह विश्वास हो गया कि सरकार युद्ध का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर रही है। इन सब बातों का परिणाम यह हुआ कि देश में मजदूरों ने हड़तालें करनी आरंभ कर दी, किसानों ने लूट-मार मचा दी और स्थान-स्थान पर दंगे होने लगे।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 6 रूसी क्रांति 3

प्रश्न 7.
रूस में अक्तूबर क्रांति (दूसरी क्रांति) के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन करो। इसका रूस पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अक्तूबर क्रांति के कारणों तथा घटनाओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  1. अस्थायी सरकार की विफलता-रूस की अस्थायी सरकार देश को युद्ध से अलग न कर सकी, जिसके कारण रूस की आर्थिक व्यवस्था छिन्न-भिन्न हो गई थी।
  2. लोगों में अशांति-रूस में मज़दूर तथा किसान बड़ा कठोर जीवन व्यतीत कर रहे थे। दो समय की रोटी जुटाना भी उनके लिए एक बहुत कठिन कार्य था। अतः उनमें दिन-प्रतिदिन अशांति बढ़ती जा रही थी।
  3. खाद्य-सामग्री का अभाव-रूस में खाद्य-सामग्री का बड़ा अभाव हो गया था। देश में भुखमरी की-सी दशा उत्पन्न हो गई थी। लोगों को रोटी खरीदने के लिए लंबी-लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता था।
  4. देशव्यापी हड़तालें-रूस में मजदूरों की दशा बहुत खराब थी। उन्हें कठोर परिश्रम करने पर भी बहुत कम मज़दूरी मिलती थी। वे अपनी दशा सुधारना चाहते थे। अतः उन्होंने हड़ताल करना आरंभ कर दिया। इसके परिणामस्वरूप देश में हड़तालों का ज्वार-सा आ गया।

घटनाएं-सर्वप्रथम मार्च, 1917 ई० में रूस के प्रसिद्ध नगर पैट्रोग्राड (Petrograd) से क्रांति का आरंभ हुआ। यहां श्रमिकों ने काम करना बंद कर दिया और साधारण जनता ने रोटी के लिए विद्रोह कर दिया। सरकार ने सेना की सहायता से विद्रोह को कुचलना चाहा। परंतु सैनिक लोग मज़दूरों के साथ मिल गए और उन्होंने मज़दूरों पर गोली चलाने से इंकार कर दिया। मज़दूरों तथा सैनिकों की एक संयुक्त सभा बनाई गई, जिसे सोवियत (Soviet) का नाम दिया गया। विवश होकर ज़ार निकोलस द्वितीय ने 25 मार्च, 1917 को राजगद्दी छोड़ दी। देश का शासन चलाने के लिए मिल्यूकोफ की सहायता से एक मध्यम वर्गीय अंतरिम सरकार बनाई गई। नई सरकार ने सैनिक सुधार किए। धर्म, विचार तथा प्रेस को स्वतंत्र कर दिया गया और संविधान सभा बुलाने का निर्णय लिया गया। परंतु जनता रोटी, मकान और शांति की मांग कर रही थी। परिणाम यह हुआ कि यह मंत्रिमंडल भी न चल सका और इसके स्थान पर नर्म विचारों के दल मैनश्विकों (Mansheviks) ने सत्ता संभाल ली, जिसका नेता केरेस्की (Kerensky) था।

नवंबर, 1917 में मैनश्विकों को भी सत्ता छोड़नी पड़ी। अब लेनिन के नेतृत्व में गर्म विचारों वाले दल बोलश्विक ने सत्ता संभाली। लेनिन ने रूस में एक ऐसे समाज की नींव रखी जिसमें सारी शक्ति श्रमिकों के हाथों में थी। इस प्रकार रूसी क्रांति का उद्देश्य पूरा हुआ।

रूस पर प्रभाव-

  1. मज़दूरों को शिक्षा संबंधी सुविधाएं दी गईं। उनके लिए सैनिक शिक्षा भी अनिवार्य कर दी गई।
  2. जागीरदारों से जागीरें छीन ली गईं।
  3. व्यापार तथा उपज के साधनों पर सरकारी नियंत्रण हो गया।
  4. देश के सभी कारखाने श्रमिकों की देख-रेख में चलने लगे।
  5. शासन की सारी शक्ति श्रमिकों और किसानों की सभाओं (सोवियत) के हाथों में आ गई।

प्रश्न 8.
प्रथम विश्वयुद्ध से जनता जार (रूस) को क्यों हटाना चाहती थी ? कोई चार कारण लिखिए।
उत्तर-
प्रथम विश्वयुद्ध रूसियों के लिए कई मुसीबतें लेकर आया। इसलिए जनता ज़ार को प्रथम विश्वयुद्ध से हटाना चाहती थी। इस बात की पुष्टि के लिए निम्नलिखित उदाहरण दिए जा सकते हैं-

  1. प्रथम विश्वयुद्ध में ‘पूर्वी मोर्चे’ (रूसी मोर्चे) पर चल रही लड़ाई ‘पश्चिमी मोर्चे’ की लड़ाई से भिन्न थी। पश्चिम में सैनिक जो फ्रांस की सीमा पर बनी खाइयों से ही लड़ाई लड़ रहे थे वहीं पूर्वी मोर्चे पर सेना ने काफ़ी दूरी तय कर ली थी। इस मोर्चे पर बहुत से सैनिक मौत के मुँह में जा चुके थे। सेना की पराजय ने रूसियों का मनोबल तोड़ दिया था।
  2. 1914 से 1916 के बीच जर्मनी और ऑस्ट्रिया में रूसी सेनाओं को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। 1917 तक लगभग 70 लाख लोग मारे जा चुके थे।
  3. पीछे हटती रूसी सेनाओं ने रास्ते में पड़ने वाली फ़सलों और इमारतों को भी नष्ट कर डाला ताकि शत्रु की सेना वहां टिक ही न सके। फ़सलों और इमारतों के विनाश के कारण रूस में 30 लाख से अधिक लोग शरणार्थी हो गए। इस स्थिति ने सरकार और जार, दोनों को अलोकप्रिय बना दिया। सिपाही भी युद्ध से तंग आ चुके थे। अब वे लड़ना नहीं चाहते थे।
  4. युद्ध से उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ा। रूस के अपने उद्योग तो पहले ही बहुत कम थे, अब बाहर से मिलने वाली आपूर्ति भी बंद हो गई। क्योंकि बाल्टिक सागर में जिस मार्ग से विदेशी सामान आता था उस पर जर्मनी का नियंत्रण हो चुका था।
  5. यूरोप के बाकी देशों की अपेक्षा रूस के औद्योगिक उपकरण भी अधिक तेज़ी से बेकार होने लगे। 1916 तक रेलवे लाइनें टूटने लगीं।
  6. हृष्ट-पुष्ट पुरुषों को युद्ध में झोंक दिया गया था। अतः देश भर में मजदूरों की कमी पड़ने लगी, और ज़रूरी सामान बनाने वाली छोटी-छोटी वर्कशॉप्स बंद होने लगीं। अधिकतर अनाज सैनिकों का पेट भरने के लिए मोर्चे पर भेजा जाने लगा। अतः शहरों में रहने वालों के लिए रोटी और आटे का अभाव पैदा हो गया। 1916 की सर्दियों में रोटी की दुकानों पर बार-बार दंगे होने लगे।

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प्रश्न 9.
1870 से 1914 तक यूरोप में समाजवादी विचारों के प्रसार का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1870 के दशक के आरंभ तक समाजवादी विचार पूरे यूरोप में फैल चुके थे।

  1. अपने प्रयासों में तालमेल लाने के लिए समाजवादियों ने द्वितीय इंटरनैशनल नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था भी बना ली थी।
  2. इंग्लैंड और जर्मनी के मजदूरों ने अपने जीवन तथा कार्यस्थितियों में सुधार लाने के लिए संगठन बनाना शुरु कर दिया था। इन संगठनों ने संकट के समय अपने सदस्यों को सहायता पहुंचाने के लिए कोष स्थापित किए और काम के घंटों में कमी तथा मताधिकार के लिए आवाज़ उठानी शुरू कर दी। जर्मनी में सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी (एसपीडी) के साथ इन संगठनों के काफ़ी गहरे संबंध थे। वे संसदीय चुनावों में पार्टी की सहायता भी करते थे।
  3. 1905 तक ब्रिटेन के समाजवादियों तथा ट्रेड यूनियन आंदोलनकारियों ने लेबर पार्टी के नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी।
  4. फ्रांस में भी सोशलिस्ट पार्टी के नाम से ऐसी ही एक पार्टी का गठन किया गया। परंतु 1914 तक यूरोप में समाजवादी कहीं भी अपनी सरकार बनाने में सफल नहीं हो पाए। यद्यपि संसदीय चुनावों में उनके प्रतिनिधि बड़ी संख्या में जीतते रहे और उन्होंने कानून बनवाने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी, तो भी सरकारों में रूढ़िवादियों, उदारवादियों और रैडिकलों का ही दबदबा बना रहा।