PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

PSEB 12th Class Economics भुगतान सन्तुलन Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन एक वर्ष में एक देश का बाकी विश्व के देशों से आर्थिक लेन-देन के लेखांकन का विवरण होता है।

प्रश्न 2.
भुगतान सन्तुलन लेखे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक वित्त वर्ष में एक देश द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन के सार को भुगतान सन्तुलन लेखा कहा जाता है।

प्रश्न 3.
भुगतान शेष खाता सदैव सन्तुलित होता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-
भुगतान शेष खाता तकनीकी दृष्टि से सदैव सन्तुलित होता है और इसको दोहरी लेखा पद्धति (Double Entry System) में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें भुगतान तथा प्राप्तियां बराबर होती हैं।

प्रश्न 4.
आर्थिक नीतियों का महत्त्वपूर्ण लक्ष्य क्या है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन प्राप्त करना।

प्रश्न 5.
व्यापार शेष से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में वस्तुओं के निर्यात और आयात का विवरण होता है।

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प्रश्न 6.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
व्यापार शेष, भुगतान शेष का अंश है।

प्रश्न 7.
दृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
दृश्य मदों में वस्तुओं के लेन-देन का विवरण होता है।

प्रश्न 8.
व्यापार शेष में किस प्रकार की मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में दृश्य मदों के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 9.
भुगतान शेष में अदृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष में अदृश्य मदों में सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष में किस प्रकार की मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
भुगतान शेष में दृश्य तथा अदृश्य मदों को शामिल किया जाता है।
अथवा
भुगतान शेष में वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 11.
भुगतान सन्तुलन के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन के चालू खाते में दृश्य मदों, अदृश्य मदों और एक पक्षीय अन्तरण को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 12.
भुगतान सन्तुलन के पूँजी खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
एक देश के निवासियों तथा सरकार की परिसम्पत्तियों और देनदारियों के लेन-देन को पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 13.
भुगतान शेष में चालू खाते तथा पूँजी खाते के बिना और कौन-कौन सी मदों को शामिल किया जाता है ?
उत्तर-
चालू खाते और पूँजी खाते के बिना भुगतान शेष में सरकारी रिज़र्व सौदे और भूल चूक को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 14.
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन क्या है ?
उत्तर-
जब किसी देश की देनदारियां उसकी लेनदारियों से कम होती हैं, तो इसको प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन कहते हैं।

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प्रश्न 15.
व्यापार शेष में ₹ 5000 करोड़ का घाटा है और आयात का मूल्य ₹ 9000 करोड़ है। निर्यात का मूल्य कितना है ?
उत्तर-
निर्यात का मूल्य = ₹ 4000 करोड़ क्योंकि व्यापार शेष निर्यात के मूल्य तथा आयात के मूल्य का अन्तर होता है।

प्रश्न 16.
व्यापार शेष में ₹ 300 करोड़ का घाटा है, निर्यात का मूल्य ₹ 500 करोड़ है। आयात का मूल्य कितना है ?
उत्तर-
आयात का मूल्य ₹ 800 करोड़ होगा क्योंकि व्यापार शेष निर्यात के मूल्य तथा आयात के मूल्य का अन्तर होता है।

प्रश्न 17.
कौन-सी मदें व्यापार शेष का निर्धारण करती है ?
उत्तर-
निर्यात तथा आयात, व्यापार शेष का निर्धारण करते हैं।

प्रश्न 18.
व्यापार शेष में अतिरेक (Surplus) कब होता है ?
उत्तर-
व्यापार शेष अतिरेक (Surplus) तब होता है जब निर्यात, आयात से अधिक हों।

प्रश्न 19.
चालू खाते की चार मदें बताएँ।
उत्तर-
चालू खाते की मदें-

  1. वस्तुओं तथा सेवाओं का निर्यात
  2. वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात
  3. निजी अन्तरण (उपहार) (Private Transfers)
  4. सरकारी अन्तरण (विदेशों से सहायता) (Official Transfers)।

प्रश्न 20.
पूँजी खाते की चार मदें बताएँ।
उत्तर-
पूँजी खाते की मदें-

  • निजी लेन-देन
  • सरकारी लेन-देन
  • अप्रत्यक्ष निवेश
  • पत्राधार निवेश।

प्रश्न 21.
दृश्य मदों में ……………. के लेन-देन का विवरण होता है।
उत्तर-
वस्तुओं।

प्रश्न 22.
अदृश्य मदों में …………. के लेन-देन का विवरण होता है।
उत्तर-
सेवाओं।

प्रश्न 23.
भुगतान सन्तुलन में …………. मदों के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है।
(क) दृश्य मदों
(ख) अदृश्य मदों
(ग) दृश्य और अदृश्य मदों
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) दृश्य और अदृश्य मदों।

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प्रश्न 24.
व्यापार संतुलन में दृश्य के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 25.
व्यापार सन्तुलन और भुगतान सन्तुलन में कोई अन्तर नहीं होता।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान सन्तुलन से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
भुगतान सन्तुलन लेखे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन एक वर्ष में एक देश का बाकी विश्व के देशों से आर्थिक लेन-देन के लेखांकन का विवरण होता है। एक वित्त वर्ष में एक देश द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय लेन-देन के सार को भुगतान शेष लेखा कहा जाता है। यह समष्टि अर्थशास्त्र का महत्त्वपूर्ण अंश है।

प्रश्न 2.
व्यापार शेष से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यापार शेष में वस्तुओं के निर्यात तथा आयात के लेन-देन का विवरण होता है। एक देश द्वारा एक वर्ष में निर्यात वस्तुओं तथा आयात वस्तुओं के अन्तर को व्यापार सन्तुलन कहा जाता है। इसको दृश्य मदें (Visible goods) भी कहा जाता है। व्यापार शेष में सेवाओं (अदृश्य मदों) के लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता।

प्रश्न 3.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर बताएं।
उत्तर-
व्यापार शेष एक वित्त वर्ष में दृश्य मदों (वस्तुओं) के लेन-देन का विवरण होता है जबकि भुगतान सन्तुलन एक वित्त वर्ष में दृश्य मदों (वस्तुओं) के आयात और निर्यात के साथ-साथ अदृश्य मदों (सेवाओं) के आयात-निर्यात को भी शामिल किया जाता है। जहाज़रानी, बीमा बैंकिंग ब्याज, भुगतान, लाभांश, सैलानियों के खर्च को दृश्य मदों में शामिल किया जाता है।

प्रश्न 4.
भुगतान सन्तुलन की दृश्य तथा अदृश्य मदें क्या हैं ?
उत्तर-
दृश्य मदें (Visible Items)-दृश्य मदों में वस्तुओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। अदृश्य मदें (Invisible Items)—इसमें विदेशों की दी गईं सेवाएं तथा विदेशों से प्राप्त की गई सेवाओं को शामिल किया जाता है। इनको अदृश्य मदें इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनका निर्माण धातु से नहीं होता जैसे कि –

  • समुद्री जहाजों की सेवाओं का आयात तथा निर्यात
  • बैंकिंग सेवाओं का आयात तथा निर्यात।

प्रश्न 5.
भुगतान शेष के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष के चालू खाते का अर्थ है कि अल्पकाल में वस्तुओं के वास्तविक लेन-देन का लेखा-जोखा। इसमें दृश्य तथा अदृश्य दोनों प्रकार की वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 6.
भुगतान शेष के पूंजी खाते से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष के पूंजी खाते का अर्थ है कि अल्पकाल तथा दीर्घकाल में पूंजी के अन्तर प्रवाह तथा बाहरी प्रवाह का लेखा-जोखा। इसमें व्यक्तियों तथा सरकार द्वारा विदेशों से प्राप्त ऋण उधार देना। अनुदान तथा स्वर्ण के आदान-प्रदान को शामिल किया जाता है। यह अल्पकालीन तथा दीर्घकालीन का लेखा-जोखा होता है।

प्रश्न 7.
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन का अर्थ बताएं।
उत्तर-
प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन-भुगतान सन्तुलन को प्रतिकूल कहा जाता है जब देश की प्राप्तियां कम होती हैं और देनदारी अधिक होती है इस स्थिति में भुगतान सन्तुलन को बराबर करने के लिए स्वर्ण में भुगतान करना पड़ता है अथवा अल्पकालीन ऋण लेकर सन्तुलन स्थापित करना पड़ता है। इस स्थिति में देश की प्राप्तियां कम होती हैं और भुगतान अधिक होता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है ? भुगतान शेष की दृश्य तथा अदृश्य मदों को उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
भुगतान शेष एक वित्त वर्ष में एक देश और शेष विश्व के देशों के साथ लेन-देन का विवरण होता है। इसमें दृश्य (Visible) तथा अदृश्य (Invisible) मदें शामिल होती हैं।
(i) दृश्य मदें (Visible Items)-दृश्य मदों में वस्तुओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है। जब निर्यात वस्तुओं तथा आयात वस्तुओं का चालू लेखा पेश किया जाता है तो इसको व्यापार सन्तुलन कहा जाता है। जैसा कि गेहूँ, कपड़े, लोहे आदि का आयात तथा निर्यात।

(ii) अदृश्य मदें (Invisible Items)-जब एक देश बाकी विश्व के देशों को सेवाएं प्रदान करता है और बाकी विश्व के देशों से सेवाएं प्राप्त की जाती हैं तो इनको अदृश्य मदें कहा जाता है। इसमें सेवाओं के निर्यात और आयात को शामिल किया जाता है। अदृश्य मदों में निम्नलिखित मदों को शामिल किया जाता है –

  1. जहाज़रानी, वस्तु सेवाओं की आयात और निर्यात
  2. बैंकिंग सेवाओं की आयात और निर्यात
  3. बीमा सेवाओं की आयात और निर्यात
  4. ब्याज का भुगतान तथा प्राप्ति
  5. लाभांश के रूप में भुगतान तथा प्राप्ति। ङ्केप्रश्न

2. भुगतान शेष के लेन-देन के वगीकरणण की पाँच श्रेणियों की व्याख्या करें। उत्तर- भुगतान शेष के लेन-देन के वर्गीकरण को मुख्य पाँच श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है-

  1. श्रेणी I. वस्तुओं तथा सेवाओं का लेखा-इस श्रेणी में वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात तथा आयात को शामिल किया जाता है।
  2. श्रेणी II. एक पक्षीय अन्तरण लेखा-इस खाते में एक देश द्वारा बाकी विश्व को दिए गए उपहार तथा अनुदान और प्राप्त किए अनुदान और उपहार का विवरण होता है।
  3. श्रेणी III. दीर्घकालीन पूँजी लेखा-देश के निवासियों तथा सरकार विदेशी परिसम्पत्तियों की वृद्धि या कमी का विवरण होता है। इसी प्रकार विदेशी निवासियों तथा सरकार के पास इस देश की दीर्घकालिक परिसम्पत्तियों ” की वृद्धि तथा कमी का विवरण होता है।
  4. श्रेणी IV अल्पकालीन निजी पूँजी लेखा-देश के निवासियों के पास निजी विदेशी परिसम्पत्तियों में वृद्धि या कमी का विवरण होता है। इसी प्रकार विदेशी निवासियों के पास इस देश की परिसम्पत्तियों में वृद्धि या कमी का विवरण भी इस खाते में शामिल किया जाता है।
  5. श्रेणी V अल्पकालीन सरकारी पूँजी लेखा-इस देश की सरकार तथा किसी मौद्रिक अधिकारियों द्वारा विदेशी अल्पकालिक परिसम्पत्तियों की मालकी में वृद्धि या कमी के साथ-साथ विदेशी सरकार तथा उनकी एजेन्सियों द्वारा अल्पकालिक परिसम्पत्तियों की वृद्धि तथा कमी का विवरण होता है।

प्रश्न 3.
(a) चालू लेखे
(b) पूँजी लेखे के अंशों (Components) की व्याख्या करें। उत्तर-भुगतान शेष के दो खाते होते हैं-
A. चालू खाता (Current Account) चालू खाते के मुख्य अंश निम्नलिखित हैं –

  • दृश्य मदें-वस्तुओं तथा सेवाओं का आयात और निर्यात।
  • अदृश्य मदें-सेवाओं का आयात और निर्यात।
  • एक पक्षीय अन्तरण-एक देश द्वारा विदेशों को दिए गए तथा प्राप्त किए उपहार तथा अनुदान।

B. पूँजी खाता (Capital Account)-पूँजी खाते के मुख्य अंश निम्नलिखित हैं –

  • सरकारी सौदे-एक देश द्वारा विदेशों को ऋण देना तथा प्राप्त करना जिस द्वारा परिसम्पत्तियों तथा देनदारियों की स्थिति प्रभावित होती है।
  • निजी सौदे-इस देश के व्यक्तियों द्वारा विदेश में निवेश करना तथा विदेशी व्यक्तियों द्वारा इस देश में निवेश करना शामिल करते हैं।
  • प्रत्यक्ष निवेश-विदेशों में निजी व्यक्तियों द्वारा किया गया निवेश तथा उस निवेश पर नियन्त्रण रखना।
  • पोर्ट फोलियो निवेश-विदेशों में शेयर, बान्ड आदि की खरीद परन्तु इस निवेश पर नियन्त्रण न होना। विदेशी पूँजीपतियों द्वारा इस देश में किया गया पोर्ट फोलियो निवेश भी पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 4.
भुगतान शेष के चालू खाते से क्या अभिप्राय है ? इस खाते की मुख्य मदों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
भुगतान शेष का चालू खाता वह खाता है जिसमें वस्तुओं, सेवाओं तथा एक पक्षीय अन्तरण का लेखा-जोखा रखा जाता है। मुख्य मदें (Main Components)-

  1. दृश्य मदें (Visible Items) चालू खाते में दृश्य मदों अर्थात् वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। जब किसी देश की वस्तुओं के आयात तथा निर्यात का विवरण दिया जाता है तो इसको व्यापार शेष कहा जाता है।
  2. अदृश्य मदें (Invisible Items)-इसमें सेवाओं (Services) के आयात तथा निर्यात को शामिल किया जाता है। इनमें यातायात, संचार, बीमा, बैंकिंग आदि सेवाएं शामिल की जाती हैं।
  3. निवेश आय (Investment Income)-एक देश द्वारा विदेशों में किए गए निवेश से प्राप्त ब्याज तथा लाभ और इनके भुगतान के विवरण को चालू खाते में शामिल किया जाता है।
  4. उपहार तथा ग्रांट (Gifts and Grants) चालू खाते में एक पक्षीय भुगतान जैसा कि उपहार और ग्रांट जो विदेशों से प्राप्त किया गया तथा एक पक्षीय भुगतान जो विदेशों को दिया गया, इसको शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
भुगतान शेष के पूँजी खाते से क्या अभिप्राय है ? इस खाते की मुख्य मदों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
पूँजी खाते से अभिप्राय उस खाते से है जिसमें एक देश की सरकार तथा निवासियों का शेष विश्व की सरकार तथा निवासियों से सम्बन्ध होता है। इसमें परिसम्पत्तियों तथा देनदारियों में परिवर्तन होता है। पूँजी खाते की मुख्य मदें इस प्रकार हैं-

  • सरकारी सौदे-जब एक देश की सरकार दूसरे देशों की सरकार से ऋण प्राप्त करती है जिस द्वारा परिसम्पत्तियों में परिवर्तन होता है तो इनको सरकारी सौदे कहा जाता है।
  • निजी सौदे-यह गैर-सरकारी सौदे होते हैं जब एक देश के निवासी विदेशों में तथा विदेशी इसमें निवेश करते हैं तो इनको निजी सौदे कहा जाता है। इनको भी पूँजी खाते में शामिल किया जाता है।
  • प्रत्यक्ष विदेशी निवेश-जब इस देश के निवासियों द्वारा विदेशों में तथा विदेशी निवासियों द्वारा इस देश में निवेश करके उस पर नियन्त्रण रखा जाता है तो इसको प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कहा जाता है।
  • पोर्ट फोलियो निवेश (Port folio Investment)-एक देश के निवासी विदेशों में शेयर्स, बान्ड तथा प्रतिभूतियों की खरीद करते हैं और विदेशियों द्वारा इसमें शेयर्स, बान्ड आदि की खरीद की जाती है तो इसको पोर्ट फोलियो निवेश कहा जाता है। इस निवेश पर निवेशकर्ता का नियन्त्रण नहीं होता।

प्रश्न 6.
भुगतान शेष हमेशा सन्तुलन में होता है। स्पष्ट करें।
अथवा
भुगतान शेष के लेखे को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक देश की प्राप्तियां तथा भुगतान को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा रिकार्ड किया जाता है। दोहरी अंकन प्रणाली में प्राप्तियां तथा देनदारियां हमेशा बराबर होती हैं। इसलिए यह कहा जाता है कि भुगतान शेष सदैव सन्तुलित रहता है परन्तु व्यावहारिक तौर पर यह असन्तुलित हो सकता है। इसको एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 1
लेखे की दृष्टि से भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में होता है। जैसा कि प्राप्तियां 300 + 300 + 100 + 300 = ₹ 1000. करोड़ भुगतान 600 + 100 + 80 + 220 == ₹ 1000 करोड़ के बराबर है।

प्रश्न 7.
भुगतान शेष की स्वप्रेरित मदों तथा समायोजक मदों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भुगतान शेष को अर्थशास्त्री दो भागों में बांटते हैं-

  • स्वप्रेरित मदें (Autoxomous Items)-स्वप्रेरित मदों का अर्थ उन मदों से होता है जिनका मुख्य उद्देश्य , अधिकतम लाभ कमाना होता है। इनका सम्बन्ध भुगतान शेष में समानता स्थापित करना नहीं होता। इन मदों को रेखा से ऊपर की मदों का नाम भी दिया जाता है।
  • समायोजक मदें (Accomodating Items)-समायोजक मदें वे मदें होती हैं जिनका उद्देश्य लाभ अधिकतम – करना होता है। इनका सम्बन्ध लाभ के धनात्मक तथा ऋणात्मक होने से होता है। समायोजक मदों द्वारा भुगतान शेष में समानता स्थापित की जाती है। इन मदों को रेखा से नीचे की मदें भी कहा जाता है।

प्रश्न 8.
भुगतान शेष में असन्तुलन से क्या अभिप्राय है ? इसकी किस्मों का वर्णन करें।।
उत्तर-
भुगतान शेष में असन्तुलन दो प्रकार का हो सकता है-घाटे का भुगतान सन्तुलन, बचत का भुगतान सन्तुलन।
1. घाटे का भुगतान सन्तुलन (Deficit Balance of Payments)-जब किसी देश की प्राप्तियां (Receipts) कम होती हैं और देनदारियां (Payments) अधिक होती हैं तो इस स्थिति को घाटे का भुगतान सन्तुलन कहा जाता है। इस स्थिति को प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन (Unfavourable Balance of Payment) की स्थिति भी कहा जाता है। जब देश के निर्यात कम होते हैं और आयात अधिक होते हैं तो देश को सन्तुलन स्थापित करने के लिए ऋण लेना पड़ता है अथवा सोने के रूप में भुगतान करना पड़ता है।

2. बचत का भुगतान शेष (Surplus Balance of Payments)-जब किसी देश की प्राप्तियां (Credits or Receipts) अधिक होती हैं और देनदारियां (Debits or Payments) कम होती हैं तो इस स्थिति को अनुकूल भुगतान शेष (Favourable Balance of Payments) कहा जाता है। जब देश का निर्यात अधिक होता है और आयात कम होता है तो देश को विदेशों से सोना प्राप्त होता है अथवा देश द्वारा विदेशों को अल्पकालिक ऋण दिए जाते हैं।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 9.
भुगतान शेष में असन्तुलन के कारण बताओ।
उत्तर-
भुगतान शेष में असन्तुलन के मुख्य कारण इस प्रकार हैं-
A. आर्थिक कारण (Economic Causes)

  • बड़े पैमाने पर विकासवादी खर्च कारण, आयात में बहुत वृद्धि होती है और असन्तुलन पैदा हो जाता है।
  • किसी देश में व्यापार चक्रों के कारण सुस्ती और मन्दीकाल की अवस्था के कारण भुगतान सन्तुलन में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • देश में मुद्रा स्फीति के कारण विदेशों से आयात में वृद्धि होती है और असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
    देश में विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं के स्थान पर प्रतिस्थापनों का विकास हो जाता है तो इससे शेष. घाटे में कमी हो
  • जाती है।
  • देश में उत्पादन लागत में कमी कारण भुगतान शेष में परिवर्तन उत्पन्न होता है।

B. राजनीतिक कारण (Political Causes)-जब देश में राजनीतिक स्थिरता नहीं होती तो पूँजी का निकास विदेशों में अधिक होता है और पूँजी का आयात कम हो जाता है तो भुगतान शेष में असन्तुलन पैदा हो जाता है।

C. सामाजिक कारण (Social Causes)-देश में लोगों के स्वाद, फैशन तथा प्राथमिकता में परिवर्तन के कारण भी असन्तुलन पैदा हो सकता है।

प्रश्न 10.
भुगतान शेष के असन्तुलन को दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर-
भुगतान शेष के असन्तुलन को निम्नलिखित विधियों से ठीक किया जा सकता है-

  • निर्यात प्रोत्साहन (Export Promotion)-देश के निर्यात में वृद्धि करने के लिए उद्यमियों तथा निर्यातकर्ता को सहायता प्रदान करनी चाहिए। इस प्रकार भुगतान असन्तुलन ठीक किया जा सकता है!
  • आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)–विदेशों से आयात करने वाला वस्तुओं के स्थान पर देश में ही उन वस्तुओं का उत्पादन करके भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक किया जा सकता है। इस प्रकार देश की आवश्यकताएं देश में ही पूर्ण हो जाती हैं। आयात पर रोक लगानी चाहिए।
  • अवमूल्यन (Devaluation)-देश की करन्सी का मूल्य विदेशी मुद्रा की तुलना में घटाने को अवमूल्यन कहा जाता है। यह लोचशील विनिमय प्रणाली में सम्भव होता है। इससे निर्यात में वृद्धि होती है।
  • मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control over Inflation) देश में मुद्रा स्फीति की दर को नियन्त्रण में करके देश की वस्तुओं की माँग विदेशों में बढ़ाई जा सकती है। इससे भुगतान असन्तुलन की स्थिति ठीक हो जाती है।

प्रश्न 11.
भुगतान सन्तुलन तथा राष्ट्रीय आय लेखे में सम्बन्ध स्पष्ट करें। .
उत्तर-
भुगतान सन्तुलन के खाते में भुगतान और प्राप्तियों को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इसी प्रकार राष्ट्रीय आय के लेखे भी दोहरी अंकन प्रणाली के अनुसार ही बनाए जाते हैं। राष्ट्रीय आय में अन्तिम उपभोग को इस प्रकार स्पष्ट किया जाता है-
Y = C+ I + G + X
इसमें Y = राष्ट्रीय आय, C = वस्तुओं तथा सेवाओं का उपभोग, I = निवेश खर्च, X = निर्यात खर्च राष्ट्रीय आय का माप खुली अर्थव्यवस्था में इस प्रकार किया जाता है-
Y = C + S + T + M
इसमें Y = राष्ट्रीय आय, C = उपभोग खर्च, S = बचत, T = करों का भुगतान, M = आयात खर्च।
∴ C+ I + G + X = C+ S + T + M
I+ G+ X = S + T + M
Injections = Leakages
देश में निवेश, सरकारी खर्च तथा निर्यात द्वारा राष्ट्रीय आय में वृद्धि होती है तथा बचत, कर और आयात द्वारा आय का विकास होता है। इस प्रकार भुगतान सन्तुलन हमेशा सन्तुलन में रहता है।

प्रश्न 12.
भारत में भुगतान सन्तुलन के ढांचे को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में भुगतान सन्तुलन लेखे में सरकार की प्राप्तियां तथा भुगतान का विवरण होता है। भुगतान सन्तुलन ढांचे में तीन सैक्शन होते हैं-
(i) चालू खाता
(ii) पूँजी खाता
(iii) रिज़र्व प्रयोग अथवा समष्टि भुगतान सन्तुलन।
भारत के भुगतान सन्तुलन ढांचे को 2011-12 के आंकड़ों के आधार पर स्पष्ट किया जा सकता है –
India’s Balance of Payments : Summary (2011-12)
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 2

Source : Economic Survey 2012-13. इस सूची पत्र से स्पष्ट होता है कि (i) चालू लेखा सन्तुलन (-) 78155 मिलियन डालर था। व्यापार सन्तुलन (-) 189759 मिलियन डालर और अदृश्य मदों से प्राप्ति 111604 मिलियन डालर थी। (ii) पूँजी लेखे में 67755 मिलियन डालर की आय प्राप्त हुई। इस प्रकार (ii) विदेशी मुद्रा के रिज़र्व भण्डार में प्रयोग के लिए 12831 मिलियन डालर की कमी हुई।

प्रश्न 13.
व्यापार शेष तथा भुगतान शेष में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
व्यापार शेष एक देश में वस्तुओं के आयात मूल्य तथा निर्यात मूल्य का अन्तर होता है। भुगतान शेष एक विशाल धारणा है। इसमें व्यापार शेष के साथ-साथ चालू खाते तथा पूँजी खाते के लेन-देन को भी शामिल किया जाता है। इनमें मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं –

व्यापार शेष (Balance of Trade) भुगतान शेष (Balance of Payments)
(1) इसमें वस्तुओं के निर्यात तथा आयात का विवरण होता है। (1) इसमें वस्तुओं तथा सेवाओं के निर्यात तथा आयात का विवरण होता है।
(2) इसमें पूँजीगत लेन-देन को शामिल नहीं किया जाता जैसे कि परिसम्पत्तियों की खरीद बेच। (2) इसमें पूँजीगत लेन-देन को शामिल किया जाता है।
(3) यह एक सीमित धारणा है जोकि भुगतान शेष का एक भाग है। (3) यह एक विशाल धारणा है। व्यापार शेष इस धारणा का एक भाग होता है।
(4) व्यापार शेष प्रतिकूल, अनुकूल या सन्तुलन में हो सकता है। (4) भुगतान शेष सदैव बराबर होता है क्योंकि प्राप्तियां तथा भुगतान बराबर होते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भुगतान शेष लेखे से क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य अंशों को स्पष्ट करें।
(What is meant by Balance of Payment Account ? Describe components of Balance of Payment Account.)
अथवा
भुगतान शेष की दृश्य मदों तथा अदृश्य मदों से क्या अभिप्राय है ? उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो।
(What is meant by Visible and Invisible Items in Balance of Payment Account ? Explain with examples.)
उत्तर-
भुगतान शेष लेखांकन का अर्थ (Meaning of Balance of Payments Account)-भुगतान शेष लेखांकन का अर्थ एक देश का शेष विश्व के साथ आर्थिक लेन-देन के विवरण का लेखा-जोखा होता है। (The B.O.P. account is a summary of international transactions of a country in a financial year.)
भुगतान सन्तुलन को दोहरी अंकन प्रणाली द्वारा स्पष्ट किया जाता है। इसलिए भुगतान शेष लेखांकन का ढांचा इस प्रकार का होता है जिसमें भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में रहता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन 3
भुगतान शेष के मुख्य अंश अथवा तत्त्व (Components) of B.O.P.)
अथवा
भुगतान शेष की दृश्य तथा अदृश्य मदें (Visible and Invisible Items of Balance of Payments)-
भुगतान शेष की मुख्य मदों को ऊपर दिए ढांचे अथवा संरचना में दिखाया गया है। इनको निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. वस्तुओं का निर्यात तथा आयात (दृश्य मदें)[Export and Import of Goods (Visible Items)] वस्तुओं के निर्यात तथा आयात को दृश्य मदें कहा जाता है। ऊपर दिए सूची पत्र 7.1 के अनुसार, वस्तुओं का निर्यात ₹ 300 करोड़ और वस्तुओं का आयात ₹ 600 करोड़ है। इस किस्म के व्यापार को दृश्य मदें कहा जाता है। इन मदों का विवरण कस्टम अधिकारियों द्वारा रखा जाता है।

2. सेवाओं का निर्यात तथा आयात (अदृश्य मदें) [Export and Import of Services (Invisible Items)]-हर एक देश विदेशों की सेवाएं प्रदान करता है और विदेशों से सेवाएं आयात की जाती हैं। सेवाओं के आदान-प्रदान को अदृश्य मदें कहा जाता है। सेवाओं में मुख्य रूप से निम्नलिखित मदों से आय को शामिल किया जाता है।

  • जहाज़रानी, बैंकिंग तथा बीमा (Shipping, Banking and Insurance) हर एक देश विदेशों को जहाज़रानी, बैंकिंग तथा बीमा की सेवाएं प्रदान करता है और बाकी विश्व के देशों से यह सेवाएं प्राप्त की जाती हैं। इनको अदृश्य मदें कहा जाता है।
  • टूरिज्म से आय (Income from Tourism)-टूरिज्म से आय को भी अदृश्य निर्यात कहा जाता है।
  • ब्याज तथा लाभांश (Interest and Dividends)-अदृश्य मदों में एक देश के निवासियों द्वारा निवेश करने से प्राप्त ब्याज तथा लाभांश को भी सेवाओं के निर्यात में शामिल किया जाता है। इस प्रकार सेवाओं के निर्यात तथा आयात द्वारा अदृश्य मदों से शुद्ध प्राप्त आय को भुगतान सन्तुलन में शामिल किया जाता है। इनको अदृश्य मदें (Invisible Items) कहा जाता है।

3. एक पक्षीय अन्तरण (Unilateral Transfers)-एक पक्षीय अन्तरण का अर्थ है एक देश द्वारा विश्व के शेष देशों को उपहार (Gifts), सहायता (Donations) आदि भेजना तथा बाकी विश्व के देशों से उपहार सहायता विदेशी धन प्राप्त करता है। जब विदेशों से उपहार या सहायता प्राप्त की जाती है तो इसके बदले में वर्तमान अथवा भविष्य में कोई भुगतान नहीं करना पड़ता। ये प्राप्तियां तथा भुगतान देश की सरकार तथा निजी नागरिकों द्वारा लिए या दिए जाते हैं।

4. पूँजीगत प्राप्तियां तथा भुगतान (Capital Receipts and Payments)-पूँजीगत प्राप्तियों में निवेश आय जैसा कि लगान, व्याज, लाभ और मज़दूरी के रूप में विश्व के शेष देशों से प्राप्त की जाती है। इसको पूँजीगत प्राप्ति में शामिल किया जाता है। इस प्रकार पूँजीगत भुगतान में लगान, ब्याज, लाभ और मजदूरी के रूप में बाकी विश्व के देशों को किए गए भुगतान को पूंजीगत भुगतान में शामिल किया जाता है। इनको भुगतान सन्तुलन लेखे में प्राप्तियां तथा भुगतान के रूप में लिखा जाता है। इनमें ऋण, निवेश, परिसम्पत्तियों की बिक्री, सोना चांदी तथा विदेशी मुद्रा के भण्डार को शामिल किया जाता है। भारत में भुगतान शेष के लेन-देन के वर्गीकरण को भागों में बांटा जाता है-

  • वस्तुओं तथा सेवा का खाता (Goods and Services Account)
  • एक पक्षीय अन्रण खाता (Unilateral Transfers Account)
  • दीर्घकालिक पूँजी खाता (Long Term Capital Account)
  • अल्पकालिक निजी पूँजी खाता (Short Term Private Capital Account)
  • अल्पकालिक सरकारी पूँजी खाता (Short Term Official Capital Account)

प्रश्न 2.
भुगतान शेष से क्या अभिप्राय है ? भुगतान शेष के प्रतिकूल होने के कारण बताएं। भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक करने के उपाय बताएं।
(What is meant by B.O.P. ? Discuss the Causes of adverse B.O.P. Suggest measures to correct dis-equilibrium in B.O.P.)
उत्तर-
भुगतान शेष एक देश का बाकी विश्व के देशों से निश्चित समय में अन्य देशों से आदान-प्रदान का विवरण होता है। हर एक देश विदेशों को वस्तुएं तथा सेवाएं भेजता है जिससे उस देश को आय प्राप्त होती है। वस्तुएं तथा सेवाएं मंगवाने से उस देश को भुगतान करना पड़ता है। भुगतान शेष वस्तुएं, सेवाएं तथा हर प्रकार के पूँजी आदान-प्रदान को शामिल करता है। सी० पी० किंडलबरजर के अनुसार, “एक देश का भुगतान शेष उस देश के निवासियों और विदेशी निवासियों के अन्तर्गत आर्थिक लेन-देन का विधिपूर्वक लेखा जोखा होता है।’ (The balance of payment of country is a systematic record of all economic transactions between its residents and residents of foreign countries.” C.P. Kindle-berger
भुगतान शेष = शुद्ध व्यापार शेष + शुद्ध सेवाओं में सन्तुलन + शुद्ध एक पक्षीय भुगतान + शुद्ध पूँजीगत लेखा सन्तुलन। व्यापार शेष (B.O.T.), भुगतान सन्तुलन का एक भाग होता है।

असन्तुलित भुगतान शेष के कारण (Causes of Disequilibrium in Balance of Payments)-
भुगतान शेष सदैव सन्तुलन में होता है परन्तु जब भुगतान शेष घाटे वाला (Deficit) अथवा बचत वाला (Surplus) होता है तो इसको पूँजी लेखे की सहायता से सन्तुलन में किया जाता है। जब हम भुगतान शेष में असन्तुलन की बात करते हैं तो इसका सम्बन्ध चालू खाते (Current Account) से होता है। भुगतान सन्तुलन के असन्तुलित होने के मुख्य कारण निम्नलिखित होते हैं-

1. आर्थिक तत्त्व (Economic Factors) –

  • अधिक विकासवादी खर्च (Huge Development Expenditure)-जब देश की सरकार देश के आर्थिक विकास पर बहुत अधिक खर्च करती है तो इस स्थिति में विदेशों से मशीनें और औज़ार आयात किए जाते हैं। इस कारण भुगतान शेष में घाटे का असन्तुलन पैदा हो जाता है।
  • व्यापारिक चक्र (Trade Cycles)-सुस्ती तथा मन्दी के कारण देश में सरकार को अधिक खर्च करना । पड़ता है। इसके फलस्वरूप घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। तेज़ीकाल के समय सरकार अधिक निर्यात करके विदेशी मुद्रा कमाती है। इससे बचत वाला असन्तुलन उत्पन्न होता है।
  • मुद्रा स्फीति (Inflation)-देश में मुद्रा स्फीति के कारण वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। देश के निर्यात कम हो जाते हैं और आयात बढ़ जाते हैं। इसलिए घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।
  • आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)-आयात प्रतिस्थापन का अर्थ है विदेशों से आयात की जाने वाली वस्तुओं का देश में ही उत्पादन करना। इस उद्देश्य के लिए विदेशों से नई मशीनें आयात की जाती हैं और भुगतान शेष घाटे वाला हो जाता है।
  • उत्पादन लागत में परिवर्तन (Change in Cost of Production)—जब तकनीक का विकास होता है तो इससे उत्पादन लागत में परिवर्तन हो जाता है। लागत कम होने से निर्यात में वृद्धि होती है और भुगतान शेष में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

2. राजनीतिक तत्त्व (Political Factors)-

  • राजनीतिक अस्थिरता (Political Instability)-जब किसी देश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति होती है तो इससे पूँजी का विकास होता है और पूंजी का प्रवेश कम होने से घाटे के असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  • आयात कर में कमी (Reduction in Import duty)-जब देश की सरकार, आयात कर में कमी करती है तो इस कारण आयात में वृद्धि होती है और घाटे वाला असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

3. सामाजिक तत्त्व (Social Factors) –

  • स्वाद तथा फैशन में परिवर्तन (Changes in Tastes and Fashion)-जब किसी देश के लोगों के स्वाद, फैशन तथा प्राथमिकताओं में परिवर्तन होता है तो इसके परिणामस्वरूप आयात और निर्यात में परिवर्तन हो जाता है। इससे भी असन्तुलन उत्पन्न होता है।
  • जनसंख्या में वृद्धि (Population Growth)-जब एक देश में जनसंख्या में वृद्धि तेजी से होती है जो इससे वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग में वृद्धि हो जाती है। परिणामस्वरूप भुगतान शेष में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है।

भुगतान शेष के असन्तुलन को ठीक करने के उपाय (Measures to Correct dis-equilibrium in B.O.P.) –
भुगतान शेष को निम्नलिखित विधियों से ठीक किया जा सकता है –

  1. निर्यात प्रोत्साहन (Export Promotion)-जब किसी देश में भुगतान शेष घाटे वाला होता है तो उस स्थिति में निर्यात में वृद्धि हो सके। इस प्रकार घाटे वाला असन्तुलन ठीक हो सकता है।
  2. आयात प्रतिस्थापन (Import Substitution)-सरकार को आयात की जाने वाली वस्तुओं के स्थान पर देश में ही उन वस्तुओं का उत्पादन करना चाहिए। इससे आयात मूल्य में कमी हो जाएंगी और भुगतान शेष का असन्तुलन ठीक हो जाएगा।
  3. विदेशी मुद्रा पर नियन्त्रण (Exchange Control)-सरकार को विदेशी मुद्रा पर नियन्त्रण रखना चाहिए। निर्यात करने वाले उद्यमियों की विदेशी मुद्रा में आय को केन्द्रीय बैंक में जमा करवाना चाहिए और अधिक · महत्त्वपूर्ण आयात पर ही विदेशी मुद्रा को खर्च करना चाहिए। इससे भी भुगतान शेष में सुधार हो सकता है।
  4. मुद्रा का अवमूल्यन (Devaluation of Currency)-एक देश को घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन करना चाहिए। अवमूल्यन का अर्थ है किसी देश की मुद्रा का मूल्य दूसरे देशों की मुद्रा की तुलना में कम करना होता है। इससे विदेशी लोग इस देश की वस्तुओं तथा सेवाओं की अधिक खरीददारी करते हैं। इससे भुगतान असन्तुलन ठीक हो जाता है। परन्तु यह स्थिर विनिमय दर प्रणाली में ही सम्भव होता है।

5. मुद्रा की मूल्य कमी (Depreciation of Currency)-देश की मुद्रा की ख़रीद शक्ति को कम करने की प्रक्रिया को मुद्रा की मूल्य कमी कहा जाता है। यह परिवर्तनशील विनिमय दर प्रणाली में सम्भव होता है। यहां पर विनिमय दर माँग तथा पूर्ति द्वारा निर्धारित होती है। इससे निर्यात को प्रोत्साहन प्राप्त होता है और आयात कम हो जाता है।

6. मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण (Control Over Inflation)-जब किसी देश के कीमत स्तर में वृद्धि होती है तो उस देश की वस्तुओं की माँग विदेशों में कम हो जाती है, इसलिए स्फीति के स्तर को कम करके निर्यात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे भुगतान असन्तुलन ठीक हो जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

v. संख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
व्यापार का घाटा ₹ 5000 करोड़ है। आयात का मूल्य ₹ 9000 करोड़ है तो निर्यात का मूल्य ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार का घाटा = ₹5000 करोड़, आयात
= ₹ 9000 करोड़ व्यापार का घाटा = निर्यात – आयात
= (-) 5000 = निर्यात –9000
= (-) 5000 + 9000 = निर्यात
निर्यात = ₹4000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
व्यापार शेष का घाटा ₹ 300 करोड़ है। निर्यात का मूल्य ₹ 500 करोड़ है। आयात का मूल्य ज्ञात करो।
उत्तर-
व्यापार शेष का घाटा = ₹ 300 करोड़, निर्यात = ₹ 500 करोड़
व्यापार शेष का घाटा = निर्यात – आयात
(-) 300 = 500 – आयात
आयात = 500 + 300
= ₹ 800 करोड़ उत्तर

प्रश्न 3.
एक देश का निर्यात ₹ 10,000 करोड़ है। आयात ₹ 12,000 करोड़ है। व्यापार शेष ज्ञात करो।
उत्तर –
व्यापार शेष = निर्यात – आयात
= 10,000 – 12,000
= (-) ₹ 2000 करोड़
व्यापार शेष का घाटा = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 4.
एक देश का आयात मूल्य ₹ 70050 करोड़ है। निर्यात मूल्य ₹ 85025 करोड़ है। व्यापार सन्तुलन ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार शेष = निर्यात का मूल्य – आयात का मूल्य
= 85025 – 70050 = ₹ 14975 करोड़ उत्तर

प्रश्न 5.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹600 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹ 500 करोड़ है तो आयत की कीमत पता कीजिए।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
-600 = 500 – आयात – 600 – 500 = – आयात
-1100 = – आयात
आयात की कीमत = ₹ 1100 करोड़ उत्तर

प्रश्न 6.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹ 900 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹600 करोड़ है तो आयात की कीमत पता कीजिए।
उत्तर –
व्यापार बाकी = निर्यात की कीमत – आयात की कीमत
– 900 = 600 – आयात की कीमत
– 900 – 600 = – आयात की कीमत
– 1500 = – आयात की कीमत
आयात की कीमत = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 7.
यदि व्यापार बाकी (-) ₹ 1000 करोड़ है और निर्यात की कीमत ₹ 600 करोड़ है तो आयात की कीमत पता कीजिए।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात की कीमत – आयात की कीमत
(-) 1000 = 600 – आयात की कीमत
– 1000 – 600 = – आयात की कीमत
– 1600 = – आयात की कीमत
आयात की कीमत = ₹ 1600 करोड़ उत्तर

प्रश्न 8.
यदि व्यापार बाकी ₹ 800 करोड़ का घाटा दर्शाता है। निर्यात की कीमत ₹ 900 करोड़ है तो आयात की कीमत ज्ञात करें।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
– 800 = 900 – आयात
– 800 – 900 = – आयात
– 1700 = – आयात
आयात = ₹ 1700 करोड़ उत्तर

प्रश्न 9.
यदि व्यापार बाकी ₹ 1600 करोड़ का घाटा दर्शाता है। निर्यात की कीमत ₹ 1800 करोड़ है तो आयात की कीमत पता करें।
उत्तर-
व्यापार बाकी = निर्यात – आयात
– 1600 = 1800 – आयात
– 1600 – 1800 = – आयात
– 3400 = – आयात
आयात = ₹ 3400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
व्यापार शेष ₹ 1200 करोड़ का घाटा दर्शाता है। यदि निर्यात की कीमत ₹ 1100 करोड़ है तो आयात की कीमत पता करें।
उत्तर-
व्यापार शेष = निर्यात – आयात
– 1200 = 1100 – आयात
– 1200 – 1100 = – आयात
– 2300 = – आयात
आयात = ₹ 2300 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 11.
जब निर्यातों का मूल्य आयातों के मूल्य से ……….. होता है तो व्यापार शेष पक्ष का होगा।
उत्तर-
अधिक।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 15 भुगतान सन्तुलन

प्रश्न 12.
जब निर्यातों का मूल्य आयातों के मूल्य से ………… होता है तो व्यापार शेष प्रतिकूल होगा।
उत्तर-
कम।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 22 निर्धनता की समस्या

PSEB 12th Class Economics निर्धनता की समस्या Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
निर्धनता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निर्धनता से अभिप्राय जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, सेहत इत्यादि को पूरा करने की अयोग्यता होती है।

प्रश्न 2.
भारत में सापेक्ष निर्धनता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सापेक्ष निर्धनता से अभिप्राय है तुलनात्मक निर्धनता।

प्रश्न 3.
निरपेक्ष निर्धनता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निरपेक्ष निर्धनता से अभिप्राय उपभोग के विशेष बिन्दु को कम स्थिति में व्यय किया जाए, जिसको निर्धनता रेखा कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या

प्रश्न 4.
भारत के किस राज्य में सबसे अधिक तथा किस राज्य में सबसे कम निर्धनता है ?
उत्तर-
भारत में सबसे अधिक निर्धनता बिहार में पाई जाती है। बिहार में 55 प्रतिशत लोग निर्धनता रेखा से नीचे जीवन बिता रहे हैं। पंजाब में सबसे कम निर्धनता है। 12 प्रतिशत लोग निर्धनता रेखा से नीचे जीवन व्यतीत कर रहे हैं।

प्रश्न 5.
जीवन स्वास्थ्य तथा कार्यकुशलता के लिए न्यूनतम उपभोग आवश्यकताओं की प्राप्ति की अयोग्यता को निर्धनता कहते हैं।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 6.
भिखारी अथवा अनियमित मज़दूर जिनके पास कभी-कभी धन आ जाता है को ……… निर्धन कहते हैं।
उत्तर-
चिरकालिक निर्धन (Chronic Poor)।

प्रश्न 7.
वह व्यक्ति जिन के पास अधिकांश समय धन होता है परन्तु कभी-कभी अल्पकाल के लिए रोज़गार नहीं मिलता उनको ………… निर्धन कहते हैं।
उत्तर-
अल्पकालिक निर्धन (Transient Poor)।

प्रश्न 8.
वह व्यक्ति जो कभी भी निर्धन नहीं होते उनको ………….. निर्धन कहते हैं।
उत्तर-
और-निर्धन (Non-Poor)।

प्रश्न 9.
वह सीमा बिन्दू जो किसी देश में लोगों को निर्धन तथा अनिर्धन में विभाजित करता है को ……………. कहते हैं।
उत्तर-
निर्धनता रेखा (Poverty Line)।

प्रश्न 10.
निर्धनता रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या के रूप में मापा जाता है को ………… अनुपात कहते हैं।
उत्तर-
व्यक्ति गणना अनुपात (Head Count Ratio)।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या

प्रश्न 11.
भारत में निर्धनता का सबसे महत्त्वपूर्ण कारण बढ़ती हुई जनसंख्या है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 12.
गरीबी रेखा की सीमा आय रूप में की जाए अथवा उपभोग रूप में की जाए ?
उत्तर-
उपभोग रूप में।

प्रश्न 13.
भारत में गरीबी रेखा की सीमा किस माप दण्ड में निर्धारण होती है ?
उत्तर-
आय द्वारा।

प्रश्न 14.
व्यक्तिगत गणना अनुपात से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत गणना अनुपात द्वारा गरीबों को गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या के रूप में माप करना होता है।

प्रश्न 15.
सन् 2012 में गरीबी रेखा को पुनः प्रभावित करने का आदेश किस संस्था ने दिया ?
उत्तर-
सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इण्डिया।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सापेक्ष तथा निरपेक्ष निर्धनता से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
सापेक्ष निर्धनता-जब विभिन्न देशों, क्षेत्रों अथवा वर्गों में तुलना की जाती है तथा तुलनात्मक आय कम होती है तो इसको सापेक्ष निर्धनता कहा जाता है, जैसे कि अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 58036 डालर है तथा भारत में प्रति व्यक्ति आय 6490 डालर है। इस प्रकार अमीर देशों की तुलना में भारत निर्धन देश है। निरपेक्ष निर्धनता-भारत में निरपेक्ष निर्धनता को निर्धन रेखा द्वारा मापते हैं। भारत के गाँवों में 1054 रु० प्रति माह तथा शहरों में 1984 रु० प्रति माह उपभोग व्यय करने वाले व्यक्तियों को निर्धन कहा जाता है, क्योंकि वह निर्धनता रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करते हैं।

प्रश्न 2.
निर्धनता रेखा से क्या अभिप्राय है? क्या निर्धनता रेखा का आय अथवा उपभोग के रूप में निर्धारण करना चाहिए ?
उत्तर–
प्रति व्यक्ति व्यय से सम्बन्धित यह ऐसा बिन्दु है, जोकि किसी क्षेत्र के व्यक्तियों को निर्धन होने अथवा निर्धन न होने में विभाजित करता है। भारत में निर्धन होने के लिए ग्रामीण क्षेत्र में 816 रु० का व्यय तथा शहरी क्षेत्र के लिए 1000 रु० के व्यय को निर्धनता का बिन्दु मानकर निर्धनता रेखा को निश्चित किया गया है। निर्धनता रेखा को निर्धारण करने के लिए आय से उपभोग (consumption) को सूचक मानना चाहिए, क्योंकि आय द्वारा खरीद शक्ति का ज्ञान प्राप्त होता है जबकि उपभोग द्वारा यह पता लगता है कि मनुष्य कौन-सी वस्तुओं का प्रयोग करता है तथा कितनी मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इस कारण उपभोग द्वारा निर्धनता रेखा को निर्धारित करना चाहिए। योजना आयोग ने निर्धनता रेखा की नई सीमा 67 रुपये प्रतिदिन करने की सिफ़ारिश की है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या

प्रश्न 3.
भारत में निर्धनता के कोई दो कारण बताएं।
उत्तर-
भारत में निर्धनता के कारण (Causes of Poverty in India)—निर्धनता के कारण ही भारत की अर्थव्यवस्था कम विकसित है। भारत में निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. विकास की कम दर-भारत की योजनाओं में आर्थिक विकास का लक्ष्य 5% वार्षिक रखा गया। परन्तु वास्तव में विकास दर 2.4% प्राप्त की गई। इस कारण निर्धनता की स्थिति पाई जाती है।
  2. राष्ट्रीय उत्पाद का कम स्तर- भारत में राष्ट्रीय उत्पाद का स्तर यू०एन०ओ० की शर्तों अनुसार नीचा है। कम प्रति व्यक्ति आय भी निर्धनता का सूचक है। भारत की GDP 2020-21 में, 1.34 लाख करोड़ तथा P.C.I ₹ 1,38,000 थी।

प्रश्न 4.
भारत में निर्धनता को दूर करने हेतु कोई दो सुझाव दें।
उत्तर-
निर्धनता को दूर करने के लिए सुझाव (Suggestion to Remove Poverty)
1. विकास की दर में वृद्धि-भारत में विकास की दर में वृद्धि करनी चाहिए। यदि देश में कृषि, उद्योग, वाणिज्य, यातायात की वृद्धि की जाए तो रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करके निर्धनता को दूर किया जा सकता है।

2. जनसंख्या पर रोक-भारत में तीव्रता से बढ़ रही जनसंख्या पर रोक लगाने के लिए जन्म दर में कमी करने की आवश्यकता है। इससे निर्धनता को दूर किया जा सकता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में निर्धनता रेखा का कैसे निर्धारण किया जाता है ?
उत्तर-
भारत में निर्धनता रेखा को निश्चित करने के लिए निम्नलिखित विधि को अपनाया जाता है –

  1. उपभोग पर व्यय में सिर्फ निजी उपभोग व्यय को शामिल किया जाता है। सरकार द्वारा वस्तुओं पर किए व्यय को शामिल नहीं किया जाता।
  2. निजी उपभोग व्यय में सिर्फ खाद्य पदार्थों पर व्यय को ही शामिल नहीं किया जाता, बल्कि गैर-खाद्य पदार्थों पर व्यय को भी शामिल किया जाता है।
  3. खुराक पर व्यय की मदों से प्रति व्यक्ति भोजन में प्राप्त कैलोरियों द्वारा माप किया जाता है। अमीर तथा निर्धन वर्गों द्वारा उपभोग की कैलोरियों का विस्तार (Range) तथा स्तर (Level) मापा जाता है।
  4. विभिन्न वर्ग के लोगों द्वारा किए गए उपभोग से प्राप्त कैलोरियों के आधार पर आवृत्ति वितरण तैयार की जाती है। इस प्रकार निर्धन लोग कम कैलोरी तथा अमीर लोग अधिक कैलोरी भोजन का उपभोग करते हैं।
  5. आवृत्ति के आधार पर संख्या की जाती है। इससे ग्रामीण क्षेत्र के लिए विभिन्न तथा शहरी क्षेत्र के लिए विभिन्न निर्धनता रेखा निश्चित की जाती है। इस निर्धनता रेखा के बिन्दु से नीचे रहने वाले व्यक्तियों की संख्या की जाती है।

प्रश्न 2.
भारत में ग्रामीण तथा शहरी निर्धनता की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारत में निर्धनता रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करने वाले व्यक्तियों की कुल संख्या में निरन्तर कमी हो रही है। इसको सूची पत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है। विश्व बैंक ने 18 अप्रैल 2013 को रिपोर्ट में कहा है कि भारत में एक तिहाई जनसंख्या गरीब है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या 1
Source: NITI Aayog (NSSO)

  1. भारत में 1970-71 में 25 करोड़ गरीब थे, जिनकी संख्या 2019-20 में 22 करोड़ थी।
  2. शहरी क्षेत्र में 1970-71 में निर्धनों की संख्या 42% थी जो कि 2019-20 में 14% हो गई है।
  3. ग्रामीण क्षेत्र में 1970-71 में निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या 54% थी, जोकि 2019-20 में घटकर 20% रह गई है।
  4. भारत में निर्धनों की कुल संख्या 1970-71 में 51 प्रतिशत थी। 2019-20 में यह संख्या घटकर 17% रह गई है। 2022 तक गरीबों की संख्या 18% रहने का अनुमान है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या

प्रश्न 3.
भारत में निर्धनता के मुख्य कारण बताओ।
उत्तर-
भारत में निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-

  1. कम विकास दर-भारत में वार्षिक विकास दर 4 प्रतिशत हो रही है, परन्तु जनसंख्या में वृद्धि 2 प्रतिशत वार्षिक होने के कारण प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 2.4 प्रतिशत हुई। इसी कारण निर्धनता पाई जाती है।
  2. जनसंख्या में वृद्धि- भारत में जनसंख्या में वृद्धि इतनी तीव्रता से हुई है, जिस कारण निर्धनों की संख्या में बहुत वृद्धि हुई है।
  3. बेरोज़गारी- भारत में बेरोज़गारी तथा अल्पबेरोज़गारी ने निर्धनता में वृद्धि की है। देश में 2 करोड़ से – अधिक बेरोज़गार हैं।
  4. संस्थागत ढांचे की कमी- भारत में बिजली, पानी, सड़कें, यातायात तथा संचार, शिक्षा, सेहत इत्यादि बुरी स्थिति में हैं। इसलिए उत्पादन में वृद्धि कम दर पर हुई है तथा निर्धनता पाई जाती है।

प्रश्न 4.
निर्धनता दूर करने के लिए सरकार द्वारा उठाए कोई दो पगों की व्याख्या करो।
अथवा
स्वर्ण जयंती ग्राम स्वयं रोज़गार योजना तथा स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना पर नोट लिखो।
उत्तर-
1. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वयं रोजगार योजना निर्धनता दूर करने के लिए यह योजना अप्रैल 1999 में लागू की गई। यह योजना केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा 75:25 के अनुपात में व्यय के आधार पर बनाई जाती है। इस योजना द्वारा स्वयं रोज़गार के लिए ऋण की सुविधाओं का प्रबन्ध किया गया है। इस योजना पर जनवरी, 2019-20 तक 48000 करोड़ रु० व्यय किए गए।

2. स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना- यह योजना शहरी स्वयं रोज़गार तथा शहरी मज़दूरी रोज़गार प्रोग्राम को एकत्रित करके 1997 में आरम्भ की गई। यह योजना भी केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा 75:25 अनुपात अनुसार व्यय के आधार पर बनाई गई है। इस योजना पर जनवरी, 2019-20 में 5270 करोड़ रु० व्यय किए गए। इस राशि से 28 हज़ार शहरी गरीब परिवारों को रोजगार प्रदान किया गया।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निर्धनता से क्या अभिप्राय है? भारत में निर्धनता के कारण बताओ। निर्धनता दूर करने के लिए सुझाव दीजिए।
(What is meant by Poverty ? Discuss the causes of Poverty in India ? Suggest measures to remove Poverty.)
उत्तर-
निर्धनता का अर्थ (Meaning of Poverty)-निर्धनता से अभिप्राय जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, सेहत इत्यादि को पूरा करने की अयोग्यता होती है। निर्धनता को दो रूपों में प्रकट किया जाता है –
(A) सापेक्ष निर्धनता (Relative Poverty)-यू० एन० ओ० की रिपोर्ट अनुसार सापेक्ष निर्धनता का अर्थ तुलनात्मक निर्धनता से होता है, जब विभिन्न देशों, क्षेत्रों अथवा वर्गों की तुलना की जाती है तथा तुलनात्मक आय कम होती है अथवा इसको सापेक्ष निर्धनता कहा जाता है। जैसे कि भारत की प्रति व्यक्ति आय 6490डालर, अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 58030 डालर की तुलना में बहुत कम है। इसलिए भारत गरीब देश है। भारत में निर्धन व्यक्तियों की संख्या बिहार में 55% तथा पंजाब में 12% है। यह क्षेत्रीय निर्धनता है। इसी तरह कम आय 20% लोगों के पास राष्ट्रीय आय 7 प्रतिशत तथा अधिक आय वाले 20% लोगों के पास राष्ट्रीय आय 46 प्रतिशत है। यह वर्ग निर्धनता है।

(B) निरपेक्ष निर्धनता (Absolute Poverty)-भारत में निरपेक्ष निर्धनता को निर्धनता रेखा द्वारा मापते हैं। निर्धनता रेखा से अभिप्राय न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रति माह औसत व्यय की रेखा होती है। भारत में 2004-05 की कीमतों के अनुसार ग्रामों में 816 रु० तथा शहरों में 1000 रु० प्रति माह व्यय करने वाले व्यक्तियों को निर्धनता रेखा से नीचे का जीवन व्यतीत करने वाले निर्धन व्यक्ति कहा जाता है।

भारत में निर्धनता का विस्तार (Extent of Poverty in India)-भारत में 2019-20 में 22 करोड़ व्यक्ति निर्धन थे अर्थात् इनमें से 20% लोग ग्रामों तथा 14% लोग शहरों में निर्धन थे। जनसंख्या में से 35% लोग निर्धनता रेखा से नीचे थे। बाहरवीं योजना अनुसार 2022 तक 18% प्रतिशत लोग निर्धनता रेखा से नीचे रह जाएंगे। भारत के विभिन्न राज्यों में से बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उड़ीसा में निर्धनों की संख्या अधिक है जबकि हिमाचल प्रदेश/हरियाणा तथा पंजाब में निर्धनों की संख्या कम है। बिहार में सबसे अधिक 55% लोग निर्धन हैं, जबकि पंजाब में सबसे कम 12% लोग निर्धन हैं।

भारत में निर्धनता के कारण (Causes of Poverty in India)-निर्धनता के कारण ही भारत की अर्थव्यवस्था कम विकसित है। भारत में निर्धनता के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
1. विकास की कम दर- भारत की योजनाओं में आर्थिक विकास का लक्ष्य 10% वार्षिक रखा गया। परन्तु वास्तव में विकास दर 5.7% प्राप्त की गई। इस कारण निर्धनता की स्थिति पाई जाती है।

2. राष्ट्रीय उत्पाद का कम स्तर- भारत में राष्ट्रीय उत्पाद का स्तर यू० एन० ओ० की शर्तों अनुसार नीचा है। प्रचलित कीमतों पर 2019-20 में शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद 134 लाख करोड़ रु० तथा प्रति व्यक्ति आय 1,38,000 रु० थी। कम प्रति व्यक्ति आय भी निर्धनता का सूचक है।

3. अधिक जनसंख्या- भारत में निर्धनता का मुख्य तथा बड़ा कारण जनसंख्या का अधिक होना है। जनसंख्या की वृद्धि का कारण देश में जन्म दर से मृत्यु दर में बहुत अधिक कमी होना है। 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी जोकि 2011 में 121 करोड़ हो गई है।

4. बढ़ती कीमतें-देश में उत्पादन की वृद्धि की कम दर तथा जनसंख्या की वृद्धि की अधिक दर के कारण कीमतों में वृद्धि तीव्रता से हो रही है। इससे निर्धन लोग अपनी आवश्यकताएं पूरी करने में असमर्थ हैं। 2019-20 में कीमतों में वृद्धि 5.2% रही।

5. पूंजी की कमी-भारत में प्राकृतिक साधन तो अधिक मात्रा में पाए जाते हैं परन्तु पूंजी की कमी के कारण साधनों का उचित प्रयोग नहीं हो रहा। इस कारण उत्पादकता कम है तथा निर्धनता पाई जाती है।

निर्धनता को दूर करने के लिए सुझाव (Suggestion to Remove Poverty)-

  1. विकास की दर में वृद्धि-भारत में विकास की दर में वृद्धि करनी चाहिए । यदि देश में कृषि, उद्योग, वाणिज्य, यातायात की वृद्धि की जाए तो रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान करके निर्धनता को दूर किया जा सकता है।
  2. जनसंख्या पर रोक-भारत में तीव्रता से बढ़ रही जनसंख्या पर रोक लगाने के लिए जन्म दर में कमी करने की आवश्यकता है। इससे निर्धनता को दूर किया जा सकता है।
  3. आय की असमानता में कमी-भारत में अमीर लोगों पर अधिक कर लगाकर प्राप्त हुई आय को निर्धनों की भलाई पर व्यय करना चाहिए। इससे आर्थिक असमानता आएगी तथा निर्धनता को दूर किया जा सकेगा।
  4. निर्धनों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति- सरकार को निर्धन लोगों की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पग उठाने चाहिए । इस उद्देश्य के लिए निर्धनों के लिए अधिक रोज़गार तथा परिवार नियोजन पर ज़ोर देना चाहिए।
  5. तकनीक में परिवर्तन- भारत में श्रम संघनी तकनीक द्वारा बेरोज़गारी को दूर किया जाए, कीमतों में स्थिरता द्वारा पिछड़े क्षेत्रों का विकास करके लोगों के लिए स्वयं रोज़गार के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 2.
भारत में सरकार द्वारा निर्धनता को दूर करने के लिए किए गए उपायों का वर्णन करो। (Discuss the measures undertaken by Indian Government to remove poverty.)
अथवा
भारत में निर्धनता घटाओ प्रोग्रामों पर प्रकाश डालें। (Explain the main programmes to remove poverty in India.)
अथवा
भारत में रोजगार की वृद्धि के लिए बनाई योजनाओं को स्पष्ट करो। (Explain the programmes increase employment in India.)
उत्तर-
भारत में पंचवर्षीय योजनाओं में निर्धनता घटाने के लिए निम्नलिखित प्रोग्राम रखे हैं –
1. प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY)-यह योजना दिसम्बर, 2000 में आरम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य सभी ग्रामों को जिनमें 1000 से अधिक लोग रहते हैं तथा पहाड़ी क्षेत्रों में 500 से अधिक जनसंख्या है, उनको 2009 तक सड़कों द्वारा शहरों से जोड़ा जाएगा। 2019-20 तक इस योजना पर 20,000 करोड़ रु० व्यय करके 2.42 लाख किलोमीटर लम्बी सड़क पूरी की गई है।

2. इन्दिरा आवास योजना (I.A.Y.)-इस योजना में अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा निर्धनता रेखा से नीचे रहने वाले लोगों को मुफ्त आवास का प्रबन्ध करना है। यह योजना केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा 75:25 की दर से लागत के आधार पर बनाई गई है। इस योजना अधीन मैदानी क्षेत्रों में 25,000 रु० तथा पहाड़ी क्षेत्रों में 27,500 रु० की सहायता दी जाती है। 2019-20 में इस योजना पर 15000 करोड़ रु० व्यय करके 35 लाख घरों का निर्माण किया जा चुका है।

3. स्वर्ण जयंती ग्राम स्वः रोज़गार योजना (SGSY)-गांवों में निर्धनता दूर करने के लिए ग्रामीण विकास के उद्देश्य के लिए यह योजना अप्रैल, 1999 में आरम्भ की गई। इस योजना में निर्धनता रेखा से ऊपर रहने वाले निर्धन लोगों को स्वयं रोज़गार के लिए ऋण दिया जाता है। यह योजना केन्द्र तथा राज्य सरकार द्वारा 75:25 की दर पर ऋण सुविधाएं प्रदान करती है जोकि बैंकों द्वारा दिया जाता है। इस योजना अधीन सरकार ने 2018-19 तक 10 हजार करोड़ रु० के ऋण प्रदान किए तथा 135.75 लाख लोगों को स्वयं रोज़गार प्रदान किया।

4. सम्पूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना (S.G.RY.)-यह योजना 25 सितम्बर, 2001 को आरम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में नकद तथा अनाज के रूप में मजदूरी देकर रोज़गार प्रदान करना है। इस उद्देश्य के लिए केन्द्र सरकार अनाज का 75% हिस्सा तथा नकद मज़दूरी का 100% हिस्सा लगाती है। इस योजना में वर्ष 2019-20 में 0.90 लाख टन अनाज तथा 21,000 करोड़ रु० नकद व्यय किए गए।

5. राष्ट्रीय कार्य के बदले अनाज योजना (N.P.P.W.P.)-यह योजना नवम्बर, 2004 में आरम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य देश के 150 सबसे पिछड़े जिलों में जहां सूखा, बाढ़, सेम की स्थिति है, उनमें कार्य के बदले अनाज प्रदान करके लोगों की जीविका बनाए रखना है तथा नकद मज़दूरी भी दी जाती है। 2004-05 में इस योजना पर 2020 करोड़ रु० तथा 20 लाख टन अनाज देकर 7.85 करोड़ मानवीय दिन (8 घंटे) काम दिया गया। जनवरी, 2020 तक वर्ष पर 5000 करोड़ रु० तथा 42 लाख टन अनाज दिया जा चुका है।

6. सूखा, रेगिस्तान बेकार भूमि विकास प्रोग्राम-यह योजना 1973-74 में आरम्भ की गई। 2017-18 में इस योजना पर 1820 करोड़ रु० व्यय किए गए ताकि बेकार भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सके।

7. स्वर्ण जयंती शहरी रोज़गार योजना (S.J.S.R.Y.)-शहरी क्षेत्र में रोजगार के लिए चल रही शहरी स्वयं रोज़गार प्रोग्राम तथा शहरी मज़दूरी रोज़गार प्रोग्राम इत्यादि को मिलाकर स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार योजना केन्द्र तथा राज्य सरकारों के 75:25 अनुपात के सहयोग से चलाई गई। 2019-20 में 1900 करोड़ रु० व्यय किए गए जिस द्वारा 5 लाख शहरी गरीब लोगों को रोजगार प्रदान किया गया।

8. वाल्मीकि-अम्बेदकर आवास योजना (V.A.M.B.A.Y.)-यह योजना दिसम्बर, 2001 में आरम्भ की गई। इस योजना का उद्देश्य गंदी बस्तियों तथा शहरी निर्धन बस्तियों में शौचालय (Toilets) बनाना था। इस उद्देश्य के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा 50:50 की दर पर व्यय किया जाता है। इस योजना को निर्मल भारत अभियान का नाम दिया गया है। 2017-18 में इस योजना पर 1311 करोड़ रु० व्यय करने का लक्ष्य है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 22 निर्धनता की समस्या

9. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारण्टी स्कीम (MGNREGS)-यह योजना आर्थिक तौर पर पिछड़े जिलों में आरम्भ की गई। इस योजना पर 2017-18 में 40 हज़ार करोड़ रुपए व्यय किये गए। जिस द्वारा 4.78 करोड़ परिवारों को इस स्कीम के अधीन रोज़गार प्रदान किए गये। इस स्कीम के अन्तर्गत प्रतिदिन मज़दूरी ₹ 132 निर्धारण की गई है।

10. आम आदमी बीमा योजना (AABY)—यह योजना 18 से 59 वर्ष के मज़दूरों पर लागू होगी जिसमें साधारण मृत पर 30,000 रु० दिये जाएंगे दुर्घटना की स्थिति में ₹ 75000 दिये जाएंगे। यदि अपाहज हो जाए तो ₹ 37500 दिये जाएंगे। इसके लिए ₹ 100 की किश्त देनी होती है। 30 अप्रैल, 2016 तक इस योजना के अन्तर्गत 5 करोड़ मजदूरों का बीमा हो चुका है।

11. कौशल विकास योजना (Skill Development Yojna)-गांवों में बच्चों के कौशल विकास के लिए 2019-20 में ₹ 4900 करोड़ खर्च किये जाएंगे।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

PSEB 12th Class Economics 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक सुधारों से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
नई आर्थिक नीति का अर्थ बताओ।
उत्तर-
भारत में 1991 से किए गए आर्थिक सुधारों को नई आर्थिक नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
उदारीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उदारीकरण का अर्थ है उद्योगों तथा व्यापार को परका की अनावश्यक पाबन्दियों से मुक्त करके अधिक प्रतियोगी बनाना।

प्रश्न 3.
निजीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों का संचालन तथा मालकी निजी क्षेत्र को परिवर्तित करने की क्रिया को निजीकरण कहा जाता है।

प्रश्न 4.
विश्वीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विश्वीकरण का अर्थ है अर्थव्यवस्था का बाकी देशों से बिना रुकावट सम्बन्धी उत्पादन, व्यापार तथा वित्त सम्बन्धी आदान-प्रदान स्थापित करना।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

प्रश्न 5.
नई आर्थिक नीति के पक्ष में कोई एक तर्क दें।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति द्वारा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करके विकसित देशों के समान आर्थिक विकास किया जा सकता है।

प्रश्न 6.
नई आर्थिक नीति के विपक्ष में कोई एक तर्क दीजिए।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति से विदेशी पूंजी तथा तकनीक पर निर्भरता बढ़ जाएगी। इससे उन्नत देशों को अधिक लाभ होगा।

प्रश्न 7.
आर्थिक सुधारों की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
भारत में राजकोषीय घाटा निरन्तर बढ़ रहा है।

प्रश्न 8.
राजकोषीय घाटे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय घाटा कुल व्यय तथा कुल आय मनफी ऋण का अन्तर होता है।

प्रश्न 9.
विश्व व्यापार संगठन (W.T.0.) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में विश्वीकरण के विकास के लिए बनाई गई संस्था को विश्व व्यापार संगठन कहा जाता है।

प्रश्न 10.
भारत में आर्थिक सुधारों अथवा नई आर्थिक नीति की आवश्यकता क्यों थी ?
उत्तर-

  • भारत में राजकोषीय घाटा अधिक हो गया था।
  • भुगतान सन्तुलन प्रतिकूल हो गया था।
  • विदेशी मुद्रा कोष कम हो गया था।

प्रश्न 11.
भारत में आर्थिक सुधारों की आवश्यकता थी क्योंकि
(a) भारत में राजकोषीय घाटा अधिक हो गया था।
(b) भुगतान सन्तुलन लगातार प्रतिकूल हो गया था।
(c) विदेशी मुद्रा कोष में बहुत कमी आ गई थी।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 12.
नई आर्थिक नीति में उद्योग और व्यापार के लिए लाइसेंस के स्थान पर ……………. की नीति अपनाई है।
उत्तर-
उदारीकरण।

प्रश्न 13.
नई आर्थिक नीति में कोटा प्रणाली के स्थान पर . ………….. की नीति अपनाई गई।
उत्तर-
निजीकरण।

प्रश्न 14.
नई आर्थिक नीति में परमिट प्रणाली के स्थान पर ………….. नीति अपनाई गई।
उत्तर-
वैश्वीकरण।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

प्रश्न 15.
नई आर्थिक नीति अथवा आर्थिक सुधारों में किस नीति को अपनाया गया ?
(a) उदारीकरण
(b) निजीकरण
(c) वैश्वीकरण
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 16.
पहली पीढ़ी (First Generation) के सुधारों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वह सुधार जो प्रशासनिक मशीनरी द्वारा साधारण रूप में चलाए जाते हैं और इन सम्बन्धी विधानक कारवाई की ज़रूरत नहीं होती।

प्रश्न 17.
दूसरी पीढ़ी (Second Generation) के सुधारों से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
वह सुधार जिनके लिए विधानक (कानूनी) कारवाई की आवश्यकता होती है उनको दूसरी पीढ़ी के सुधार कहा जाता है।

प्रश्न 18.
आर्थिक सुधारों का ऋणात्मक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
आर्थिक सुधारों से विदेशी निवेश और तकनीक पर निर्भरता बढ़ जाती है। .

प्रश्न 19.
भारत में आर्थिक सुधारों का पहला चरण कब प्रारम्भ हुआ ?
(a) 1951
(b) 1971
(c) 1991
(d) 2011.
उत्तर-
(c) 1991.

प्रश्न 20.
भारत में आर्थिक सुधारों का दूसरा चरण कब प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर-
1999 में।

प्रश्न 21.
विश्व व्यापार संगठन (WTO) गैट (GATT) का उत्तराधिकारी है।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नई आर्थिक नीति (1991) क्यों आवश्यक हुई ?
उत्तर-
भारत में 1991 में आर्थिक सुधार की आवश्यकता इन कारणों से पड़ी-

  1. भारत में भुगतान सन्तुलन प्रतिकूल था, जिस कारण विदेशी ऋण का भार बढ़ गया था।
  2. भारत में आर्थिक संकट था। राजकोषीय घाटा बहुत बढ़ गया था।
  3. इराक की जंग के कारण तेल की कीमतें तथा साधारण कीमत स्तर निरन्तर बढ़ गया था।
  4. भारत में सार्वजनिक क्षेत्र असफल हो गया था। बहुत से सार्वजनिक उद्योगों में हानि हो रही थी।

प्रश्न 2.
निजीकरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति की एक विशेषता यह है कि निजीकरण का विस्तार किया गया है। सरकार द्वारा चलाए जाने वाले उद्योगों को निजी क्षेत्र में परिवर्तित किया जा रहा है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित उपाय किए गए –
(1) सार्वजनिक क्षेत्र में 17 उद्योगों की जगह पर 4 उद्योग

  • सुरक्षा औज़ार
  • एटोमिक शक्ति
  • खाने
  • रेलवे सुरक्षित किए गए हैं। शेष सभी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए खुले हैं।

(2) सार्वजनिक क्षेत्र की वर्तमान इकाइयों के शेयर निजी क्षेत्र में बेचे जाएंगे।
(3) अब वित्तीय संस्थाओं तथा उद्योगों में निजी निवेश किया जा सकेगा। इससे निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी 45% से बढ़कर 55% हो जाएगी।

प्रश्न 3.
विनिवेश से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों की बिक्री को विनिवेश कहा जाता है। आरम्भ में सरकार ने बीमार इकाइयां, जिन उद्योगों में हानि होती थी, उनको बेचने का निर्णय लिया। परन्तु धीरे-धीरे उद्योगों की कार्यकुशलता में वृद्धि करने के लिए बहुत-से अन्य उद्योगों का विनिवेश करना आरम्भ किया। इस प्रकार की प्रक्रिया आजकल चल रही है।

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प्रश्न 4.
वैश्वीकरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
नई आर्थिक नीति की एक विशेषता अर्थव्यवस्था का वैश्वीकरण है। वैश्वीकरण का अर्थ है एक अर्थव्यवस्था का शेष विश्व के देशों से उत्पादन, व्यापार तथा वित्तीय सम्बन्ध स्थापित करना तथा विदेशी व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध हटाना। भारत में खुलेपन की नीति के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं-

  1. विदेशी निवेशक अब भारतीय कम्पनियों में 51% से 100% तक निवेश कर सकते हैं।
  2. व्यापार पर लगे प्रतिबन्ध 5 वर्षों में हटा दिए गए।
  3. विदेशी निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए, विदेशी निवेश प्रोत्साहन बोर्ड की स्थापना की गई है।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-W.T.O.) क्या है?
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) की स्थापना 1 जून, 1995 में की गई। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि करने तथा वैश्वीकरण की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए स्थापित किया गया है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य व्यापार पर लगाए जाने वाले करों में कमी तथा अन्य रुकावटों को दूर करके अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में मुकाबले की स्थिति उत्पन्न करना है जिससे विश्वभर के लोगों को लाभ प्राप्त हो सके। यह संस्था गैट (GATT) की उत्तराधिकारी है। विश्व व्यापार संगठन ने बौद्धिक सम्पत्ति अधिकार से सम्बन्धित व्यापार तथा निवेश को शामिल करके अपने कार्य क्षेत्र को विशाल किया है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुख्य आर्थिक सुधारों से क्या अभिप्राय है?
अथवा
नई आर्थिक नीति के अंश बताओ।
उत्तर-
भारत में जुलाई, 1991 से लागू किए विभिन्न नीति सम्बन्धों, उपायों तथा नीतियों से है, जिनका उद्देश्य अर्थव्यवस्था में उत्पादकता तथा कुशलता में वृद्धि करके प्रतियोगी वातावरण तैयार करना है। इस नीति के अंश निम्नलिखित हैं –

  • देश में उद्योगों तथा व्यापार के लिए प्रचलित लाइसेंस नीति की जगह उदारीकरण की नीति को लागू करना।
  • उद्योगों में कोटा प्रणाली की जगह पर निजीकरण की नीति को लागू करना।
  • विदेशी नीति में परमिट की जगह पर वैश्वीकरण की नीति को लागू करना।

प्रश्न 2.
भारत में नई आर्थिक नीति उदारीकरण वाली है। इस सम्बन्ध में उठाए गए पग बताओ।
उत्तर-
भारत में नई आर्थिक नीति में अर्थव्यवस्था को सरकार के सीधे तथा भौतिक कन्ट्रोल से मुक्त किया गया है। इसको उदारीकरण (Liberalisation) वाली नीति कहा जाता है। इस सम्बन्धी निम्नलिखित पग उठाए गए हैं –

  1. ‘नई औद्योगिक नीति’ में उदारवादी नीति को अपनाया गया है, जिसकी घोषणा जुलाई, 1991 में की गई। सिगरेट, सुरक्षा, औज़ार, खतरनाक रसायन, दवाइयां, औद्योगिक ऊर्जा तथा शराब, इन 6 उद्योगों को छोड़कर शेष किसी उद्योग के लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं।
  2. अब एम० आर० टी० पी० (एकाधिकार तथा व्यापार रोक कानून) की धारणा को समाप्त किया गया है। अब किसी फ़र्म को निवेश सम्बन्धी निर्णय लेते समय सरकार की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं।
  3. लघु पैमाने के उद्योगों की निवेश सीमा एक करोड़ रु० की गई।
  4. मशीनों के आयात की स्वतन्त्रता दी गई।
  5. उच्च तकनीक वाले कम्प्यूटर तथा उपकरण के आयात की छूट दी गई।

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प्रश्न 3.
नई आर्थिक नीति के उद्देश्य लिखो।
उत्तर-

  • आर्थिक विकास की दर में तीव्रता से वृद्धि।
  • औद्योगिक क्षेत्र में प्रतियोगिता को प्रोत्साहित करना।
  • निजी क्षेत्र द्वारा प्रतियोगिता से सार्वजनिक क्षेत्र की कार्यकुशलता में वृद्धि।
  • राजकोषीय घाटे में कमी तथा मुद्रा स्फीति पर नियन्त्रण।
  • आर्थिक समानता में कमी।

IV. दीर्य उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत की नई आर्थिक नीति की विशेषताएं बताओ। (Explain the features of New Economic Policy of India.)
उत्तर-
नई आर्थिक नीति की मुख्य विशेषताएं अनलिखित हैं-
1. उदारीकरण (Liberalisation)-नई आर्थिक नीति की प्रथम विशेषता उदारीकरण की नीति का अपनाना है। उदारीकरण से अभिप्राय उद्योगों तथा व्यापार को सरकार की अनावश्यक पाबंदियों से मुक्त करवाना है, जिस व्यापार उदारीकरण से कोरिया, सिंगापुर इत्यादि अल्पविकसित देशों ने आर्थिक विकास किया है, उसी तरह भारत भी आर्थिक विकास कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए 6 उद्योगों को छोड़कर शेष उद्योगों के लिए लाइसेंस लेने की नीति समाप्त की गई। नई नीति में पंजीकरण (Registration) योजनाएं समाप्त की गई हैं।

2. निजीकरण (Privatisation)-जो उद्योग प्रथम सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित थे, उनको निजी क्षेत्र के लिए छीनने की नीति को निजीकरण की नीति कहा जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र की असफलता को देखते हुए सरकार ने निजीकरण को आंशिक अथवा पूर्ण रूप में अपनाया है, इस नीति को (U Turn) का नाम दिया गया है अर्थात् सार्वजनिक उद्योगों का निजीकरण करना।

3. वैश्वीकरण (Globalisation)-एक देश का दूसरे देशों से मुक्त व्यापार, पूंजी आदान-प्रदान तथा मनुष्यों की गतिशीलता को वैश्वीकरण कहा जाता है। इसका उद्देश्य विदेशी पूंजी का प्रयोग करके विश्व अर्थव्यवस्था को शक्तिशाली बनाना है। विदेशी व्यापार को उत्साहित करके विदेशी निवेश में वृद्धि करना तथा मानवीय पूंजी का एक देश से दूसरे देशों में प्रयोग करना, वैश्वीकरण मनुष्य का मुख्य उद्देश्य है।

4. राजकोषीय सुधार (Fiscal Reforms)-राजकोषीय सुधार भी नई आर्थिक नीति की विशेषता है। इस नीति में सरकार अपनी आय में वृद्धि करके व्यय में कमी करने का यत्न करेगी ताकि देश में उत्पादन तथा आर्थिक विकास पर बुरा प्रभाव न पड़े। इस उद्देश्य के लिए कर प्रणाली में सुधार किए गए हैं। आयातनिर्यात कर घटाए गए हैं। उत्पादन कर में कमी की गई है।

5. मौद्रिक सुधार (Monetary Reforms)-भारत में नई आर्थिक नीति अनुसार मौद्रिक नीति में परिवर्तन किया गया है। इसका मुख्य उद्देश्य कीमत स्तर को स्थिर रखना है। सरकार ने इस उद्देश्य के लिए नरसिंगम कमेटी ने मौद्रिक सुधारों के लिए सिफ़ारिशें कीं, जिनको लागू किया गया है। इस उद्देश्य के लिए नकद रिज़र्व अनुपात (C.R.R.) को घटाकर 5% किया गया है। ब्याज की दर, मांग तथा पूर्ति अनुसार निश्चित की जाएगी। बैंकों को कार्य करने की स्वतन्त्रता दी गई है।

6. सार्वजनिक क्षेत्र नीति (Public Sector Policy)-सार्वजनिक क्षेत्र को भारत की स्वतन्त्रता के समय आर्थिक विकास का महत्त्वपूर्ण साधन माना गया था। परन्तु सार्वजनिक क्षेत्र में असफलता के कारण अब सरकार ने 6 उद्योगों को इस क्षेत्र के लिए रिज़र्व रखा है, बाकी के उद्योग निजी क्षेत्र को बेच दिए जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के बहुत से उद्योगों का विनिवेश कर दिया जाएगा। इस क्षेत्र के शेयर वित्तीय संस्थाओं, साधारण लोगों तथा श्रमिकों को बेचे जाएंगे।

प्रश्न 2.
भारत की नई आर्थिक नीति के पक्ष में तर्क दो। (Give arguments in favour of New Economic Policy of India.)
उत्तर-
नई आर्थिक नीति में जो सुधार किए गए हैं, उसके पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं –
1. आर्थिक विकास की दर में वृद्धि-भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् 1951 से 1991 तक आर्थिक विकास की दर में वृद्धि 3.6% वार्षिक थी, जबकि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि 1.4% थी। 1991: 2009 तक विकास दर 7.2% वार्षिक हो गई। इससे स्पष्ट है कि आर्थिक सुधारों के कारण आर्थिक विकास में वृद्धि हुई है। 2017-18 में विकास दर 7.4% प्राप्त की गई।

2. औद्योगिक क्षेत्र की प्रतियोगिता में वृद्धि-औद्योगिक क्षेत्र की प्रतियोगिता में वृद्धि के लिए भी आर्थिक सुधार आवश्यक हैं। भारत के उद्योगों में उत्पादन लागत अधिक होने के कारण इनको सुरक्षा प्रदान की गई। इससे उद्योगों में मुकाबला करने की शक्ति बहुत घट गई। परिणामस्वरूप भारत का विदेशी व्यापार 1951 में विश्व व्यापार का 2% हिस्सा था, यह 1991 में घटकर 0.5 प्रतिशत रह गया। 2017-18 में भारत में विदेशी व्यापार 1.6% हो गया है। इसलिए आर्थिक सुधारों की आवश्यकता थी।

3. गरीबी तथा असमानता में कमी-भारत में गरीबी, असमानता तथा बेरोज़गारी की समस्या को योजनाओं द्वारा दूर नहीं किया जा सका। नई नीति द्वारा मानवीय साधनों का विकास करके रोज़गार तथा उत्पादन में वृद्धि करके लोगों की गरीबी को दूर करना भी इसका उद्देश्य है।

4. राजकोषीय घाटे तथा मुद्रास्फीति में कमी-भारत में राजकोषीय घाटा 1990-91 में 8.5% हो गया था। इससे देश में मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो गई। सरकार को आन्तरिक तथा बाहरी ऋण लेना पड़ा। नई नीति द्वारा राजकोषीय घाटे पर काबू पाकर मुद्रा स्फीति में कमी सम्भव होगी।

5. सार्वजनिक उद्यमों की कार्यकुशलता में वृद्धि-सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में कार्यकुशलता तथा उत्पादकता में बहुत कमी है। नई आर्थिक नीति से सार्वजनिक क्षेत्र के दोष दूर करके इनकी कार्यकुशलता में वृद्धि की जाएगी। इसके परिणामस्वरूप सार्वजनिक उद्यमों की प्रतियोगिता शक्ति बढ़ जाएगी।

प्रश्न 3.
भारत की नई आर्थिक नीति के विपक्ष में तर्क दीजिए। (Give arguments Against New Economic Policy of India.)
उत्तर-
नई आर्थिक नीति के विपक्ष में निम्नलिखित तर्क देकर इसकी आलोचना की गई है –

  1. कृषि को कम महत्त्व-भारत में नई आर्थिक नीति में उद्योगों के विकास की ओर अधिक ध्यान दिया गया है। कृषि उत्पादन क्षेत्र के विकास की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया। भारत में कृषि के विकास के बिना आर्थिक विकास प्राप्त नहीं किया जा सकता।
  2. विश्व बैंक तथा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का दबाव-भारत में खुले बाज़ार की नीति को अपनाने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएं जैसे कि अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (I.M.F.) तथा विश्व बैंक (World Bank) ने उदारीकरण की नीति अपनाने के लिए दबाव पाया, जिस कारण यह नीति अपनाई गई। भारत को इन संस्थाओं से ऋण प्राप्त होता है। इसलिए नई आर्थिक नीति अपनाई गई।
  3. विदेशी ऋण तथा तकनीक पर अधिक निर्भरता-नई आर्थिक नीति की आलोचना में कहा जाता है कि विदेशी ऋण पर भारत की निर्भरता बढ़ गई है। विदेशी तकनीक का आयात अनिवार्य हो गया है, क्योंकि भारत में उद्योगों की प्रतियोगिता शक्ति को आधुनिक तकनीकों के बगैर बढ़ाया नहीं जा सकता। विदेशी ऋण तथा तकनीकों पर निर्भरता देश के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।
  4. निजीकरण को अधिक महत्त्व-निजीकरण की नीति को नई आर्थिक नीति में आवश्यकता से अधिक महत्त्व दिया गया है। सार्वजनिक क्षेत्र में रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान किए जाते थे। निजीकरण द्वारा एकाधिकारी शक्तियों का विकास होगा, जिस द्वारा लोगों का शोषण किया जाएगा। बेरोज़गारी, काला धन, भ्रष्टाचार, श्रमिक शोषण, धन असमानता इत्यादि की बुराइयां उत्पन्न हो जाएंगी।
  5. अनिवार्य वस्तुओं की कमी-नई आर्थिक नीति द्वारा आरामदायक तथा विलास वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि होगी। स्कूटर, कारें, टेलीविज़न इत्यादि वस्तुओं की पैदावार बढ़ जाएगी, परन्तु अनिवार्य उपभोक्ता वस्तुएं तथा सामाजिक भलाई के लिए पैदावार में कमी आएगी। इससे गरीब लोगों के कष्ट में वृद्धि होगी।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 21 1991 से आर्थिक सुधार अथवा नई आर्थिक नीति

प्रश्न 4.
भारत की नई आर्थिक नीति (1991) की विशेषताएं बताओ। (Explain the main features of New Economic Policy of India.)
उत्तर-
भारत में 1991 में नई आर्थिक नीति अनुसार उदारीकरण की नीति अपनाई गई। इस उद्देश्य के लिए भारत सरकार ने 24 जुलाई, 1991 को नई औद्योगिक नीति की घोषणा की। इस नीति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. लाइसेंस की समाप्ति-उद्योगों को राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में प्रतियोगी बनाने के लिए 6 उद्योगों को छोड़कर बाकी उद्योगों को स्थापित करने के लिए लाइसेंस समाप्त किया गया।
भारत में-

      • शराब
      • सिगरेट
      • सुरक्षा उपकरण

(4) ख़तरनाक रसायन तथा (5) दवाइयों को छोड़कर शेष उद्योगों को लाइसेंस देने की आवश्यकता नहीं।

2. पंजीकरण की समाप्ति-नई औद्योगिक नीति के अनुसार नए उद्योग स्थापित करने अथवा उद्योगों में उत्पादन के विस्तार के लिए सरकारी आज्ञा की कोई आवश्यकता नहीं। सरकार को केवल सूचना ही देनी पड़ेगी।

3. सार्वजनिक क्षेत्र का संकुचन-सार्वजनिक क्षेत्र के लिए कुल 8 उद्योग सुरक्षित रखे गए हैं, जैसे कि परमाणु ऊर्जा, रेलवे, खानें, सैनिक साजो सामान इत्यादि, शेष सभी क्षेत्र में धीरे-धीरे निजी क्षेत्र को उत्पादन के अधिकार दिए जाएंगे। सार्वजनिक क्षेत्र के शेयर साधारण जनता तथा श्रमिकों में बेचकर इन उद्योगों की कार्यकुशलता में वृद्धि की जाएगी।

4. विदेशी पूंजी-नई नीति में विदेशी पूंजी निवेश सीमा 40% से बढ़ाकर 51% कर दी गई है। इस सम्बन्ध में विदेशी मुद्रा नियमन कानून (FERA) में आवश्यक संशोधन किया जाएगा। विदेशी पूंजी सम्बन्धी देश का केन्द्रीय बैंक, रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया, पूरी नज़र रखेगा।

5. बोर्डों का गठन-विदेशी पूंजी के सम्बन्ध में चुने हुए क्षेत्रों में निवेश करने के लिए विशेष अधिकार प्राप्त बोर्डों की स्थापना की गई है। यह बोर्ड बहुराष्ट्रीय कम्पनियों से बातचीत करके पूंजी लगाने के लिए अनिवार्य पग उठाएगा।

6. लघु उद्योगों को सुरक्षा-नई नीति में लघु उद्योगों की निवेश सीमा एक करोड़ रु० की गई है। इन उद्योगों द्वारा कुछ वस्तुओं के उत्पादन को सुरक्षित रखा जाएगा; जिनका उत्पादन बड़े उद्योग नहीं कर सकेंगे।

7. एकाधिकारी कानून से छूट- एकाधिकारी कानून के अधीन आने वाली कम्पनियों को भारी छूट दी गई है। अब निवेश की सीमा समाप्त की गई है। उद्यमी बिना परमिट नए उद्योग स्थापित कर सकेंगे। इस नीति में लाइसेंस की समाप्ति तथा एकाधिकारी कम्पनियों पर रोक हटा ली गई है। इसका मुख्य उद्देश्य विदेशी पूंजी को उत्साहित करके देश के उद्योगों का विकास करना है।

प्रश्न 5.
विश्व व्यापार संगठन (W.T.O.) पर नोट लिखो। भारतीय अर्थव्यवस्था पर विश्व व्यापार संगठन का प्रभाव स्पष्ट करो।
(Write a note on World Trade Organization (W.T.O.). Explain the effects of World Trade Organization on Indian Economy.)
उत्तर-
विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation-W.T.O.) की स्थापना 1 जून, 1995 को हुई। यह अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है, जोकि गैट (GATT) की बैठकों के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आया है। इस संगठन का मुख्य उद्देश्य वस्तुओं तथा सेवाओं के आयात-निर्यात में आने वाली रुकावटों को दूर करके, विदेशी निवेश के अवसरों में वृद्धि करना, व्यापार सम्बन्धी बुद्धिजीवी संपदा अधिकार (TRIPS) तथा व्यापार सम्बन्धित निवेश उपायों (TRIMS) का विस्तार करना है। इस संगठन के मुख्य उद्देश्य हैं-

  • वस्तुओं को मुक्त प्रवाह की आज्ञा देने के लिए रुकावटें दूर करना।
  • पूंजी के मुक्त प्रवाह के लिए प्रेरक वातावरण तैयार करके निवेश में वृद्धि करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रतियोगिता की स्थिति उत्पन्न करके उपभोक्ताओं को कम लागत पर वस्तुएं उपलब्ध करवाना।
  • विश्व के विभिन्न देशों को विश्व व्यापार में बुद्धिजीवी सम्पदा तथा व्यापार सम्बन्धित निवेश के लिए अधिक अवसर प्रदान करना।

विश्व व्यापार संगठन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव-
(Effects of World Trade Organisation on Indian Economy)
A. अनुकूल प्रभाव (Favourable Effects)

  1. निर्यात प्रोत्साहन-विश्व व्यापार संगठन भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए निर्यात के अधिक अवसर प्रदान करेगा। इससे भारत का विदेशी व्यापार, अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में अधिक योगदान डाल सकेगा।
  2. विकसित देशों की कोटा प्रणाली की समाप्ति-विश्व व्यापार संगठन द्वारा विकसित देशों द्वारा अपनाई जाने वाली कोटा प्रणाली को समाप्त किया जाएगा। इससे भारत के कपड़े के निर्यात में वृद्धि होगी।
  3. कृषि को विकसित देशों द्वारा कम सहायता-विश्व व्यापार संगठन की शर्ते लागू होने से विकसित देश कृषि क्षेत्र को कम सहायता प्रदान कर सकेंगे। इससे भारत में से कृषि पदार्थों के निर्यात में वृद्धि होगी।

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B. प्रतिकूल प्रभाव (Unfavourable Effects) –

  1. श्रम बाज़ार प्रति पक्षपात-विश्व व्यापार संगठन द्वारा पूंजी बाज़ार की ओर अधिक ध्यान दिया जा रहा है, जबकि श्रम बाज़ार से पक्षपात की नीति अपनाई जा रही है। संगठन अनुसार पूंजी का निवेश एक देश द्वारा दूसरे देशों में बिना रुकावट किया जा सकता है। परन्तु श्रम बाज़ार में ऐसी स्वतन्त्रता नहीं होगी। इससे भारत जैसे कम विकसित देशों को हानि होगी।
  2. लघु पैमाने के उद्योगों पर बुरा प्रभाव-विश्व व्यापार संगठन बड़े पैमाने के उद्योगों तथा लघु पैमाने के उद्योगों में भिन्नता नहीं करता। इस कारण लघु पैमाने के उद्योगों को न सिर्फ देश में बड़े पैमाने के उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं से प्रतियोगिता करनी पड़ेगी, बल्कि विदेशी उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं का मुकाबला भी करना पड़ेगा। इससे अगरबत्ती, आइसक्रीम, मिनरल वाटर इत्यादि उद्योग नष्ट हो जाएंगे।
  3. विकसित देशों के दोहरे मापदण्ड-अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया इत्यादि विकसित देशों द्वारा दोहरे मापदण्ड अपनाए जाते हैं। एक ओर अमेरिका अपने किसानों को बहुत अधिक सब्सिडी देता है। भारत से निर्यात कपड़ों पर बहुत अधिक कर लगाया जाता है। भारत से निर्यात दुशालें, रसायन, सिले-सिलाए कपड़े इत्यादि पर पाबंदी लगाई जाती है, क्योंकि ये वस्तुएं बच्चों द्वारा उत्पादित की जा सकती हैं। इसी तरह जापान से निर्यात किए जाने वाले लोहा तथा इस्पात पर पाबन्दी लगाई हुई है। इस प्रकार के दोहरे मापदण्डों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

Punjab State Board PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ Important Questions and Answers.

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਵੱਡੇ ਉੱਚਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Long Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਸੰਤੁਲਿਤ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਲਿਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ? ਇਸਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਚਰਨਾਂ ਦਾ ਵਰਣਨ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੰਤੁਲਿਤ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਲਿਖਣ ਦੇ ਤਰੀਕੇ ਬਾਰੇ ਜਾਣਨ ਲਈ ਇਕ ਉਦਾਹਰਣ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ ।
ਜ਼ਿੰਕ + ਸਲਫਿਊਰਿਕ ਐਸਿਡ → ਜ਼ਿੰਕ ਸਲਫੇਟ + ਹਾਈਡਰੋਜਨ ।
ਇਸ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਨਾਲ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।
Zn + H2SO4 → ZnSO4 + H2

ਤੀਰ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨ ਦੇ ਦੋਵੇਂ ਪਾਸੇ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।

ਤੱਤ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ (LHS) ਉਤਪਾਦਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ (RHS)
Zn 1 1
H 2 2
S 1 1
O 4 4

ਸਮੀਕਰਣ ਵਿੱਚ ਤੀਰ ਦੇ ਨਿਸ਼ਾਨ ਦੇ ਦੋਨੋਂ ਪਾਸੇ ਹਰ ਤੱਤ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਰਾਬਰ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਇੱਕ ਸੰਤੁਲਿਤ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਹੈ ।
ਹੁਣ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਾਂ-
Fe + H2O → Fe3O4 + H2

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਚਰਨ 1.
ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਹਰ ਸੂਤਰ ਦੇ ਚਾਰੋਂ ਪਾਸੇ ਇਕ ਬਾਕਸ ਬਣਾ ਲਉ । ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਬਾਕਸ ਅੰਦਰ ਕੁਝ ਵੀ ਬਦਲਾਅ ਨਹੀਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 1

ਚਰਨ 2.
ਅਸੰਤੁਲਿਤ ਸਮੀਕਰਣ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ ਦੀ ਸੂਚੀ ਬਣਾਉ ।

ਤੱਤ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ (LHS) ਉਤਪਾਦਾਂ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ (RHS)
Fe 1 3
H 2 2
0 1 4

ਚਰਨ 3.
ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪਰਮਾਣੂ ਵਾਲੇ ਯੌਗਿਕ ਨੂੰ ਪਹਿਲਾਂ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰੋ ਬੇਸ਼ੱਕ ਉਹ ਅਭਿਕਾਰਕ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਉਤਪਾਦ ॥ ਉਸ ਯੋਗਿਕ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪਰਮਾਣੂ ਵਾਲੇ ਤੱਤ ਨੂੰ ਚੁਣ ਲਉ । ਇਸ ਆਧਾਰ ਤੇ ਅਸੀਂ Fe੦, ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਆਕਸੀਜਨ ਤੱਤ ਨੂੰ ਚੁਣ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ । ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਆਕਸੀਜਨ ਦੇ ਚਾਰ ਪਰਮਾਣੂ ਹਨ ਅਤੇ ਖੱਬੇ ਪਾਸੇ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਆਕਸੀਜਨ ਪਰਮਾਣੂ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਲਈ-

ਆਕਸੀਜਨ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦ ਵਿੱਚ
(i) ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ 1 (H2O ਵਿੱਚ) 4 (Fe3O4 ਵਿੱਚ)
(ii) ਸੰਤੁਲਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1 × 4 4

ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨੂੰ ਬਰਾਬਰ ਕਰਨ ਲਈ ਅਸੀਂ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਤੱਤਾਂ ਅਤੇ ਯੌਗਿਕਾਂ ਦੇ ਸੂਤਰਾਂ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਬਦਲ ਸਕਦੇ , ਜਿਵੇਂ ਆਕਸੀਜਨ ਪਰਮਾਣੂ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਅਸੀਂ 4 ਗੁਣਾਂਕ ਲਗਾ ਕੇ 4H2O ਲਿਖ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਪਰ H2O4 ਜਾਂ (H2O)2 ਜਾਂ (H2O)4 ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦੇ ! ਅੰਸ਼ਿਕ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸੰਤੁਲਿਤ ਸਮੀਕਰਣ ਹੁਣ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੱਗੇਗਾ ।
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ਚਰਨ 4.
Fe ਅਤੇ ਸ ਪਰਮਾਣੂ ਅਜੇ ਵੀ ਅਸੰਤੁਲਿਤ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਇਕ ਤੱਤ ਨੂੰ ਚੁਣ ਕੇ ਅੱਗੇ ਵਧਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਪਰਮਾਣੁ ਨੂੰ ਬਰਾਬਰ ਕਰਨ ਲਈ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਅਣੁ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਨੂੰ ‘4’ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ ।

ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦਾਂ ਵਿੱਚ
(i) ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ 8 (4H2O) ਵਿੱਚ 2 (H2 ਵਿੱਚ)
(ii) ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਲਈ 8 2 × 4

ਹੁਣ ਸਮੀਕਰਣ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੱਗੇਗਾ
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ਚਰਨ 5.
ਉੱਪਰ ਦਿੱਤੇ ਸਮੀਕਰਣ ਦੀ ਜਾਂਚ ਕਰੋ ਅਤੇ ਤੀਸਰਾ ਤੱਤ ਚੁਣ ਲਉ ਜੋ ਅਜੇ ਤਕ ਅਸੰਤੁਲਿਤ ਹੈ । ਤੁਸੀਂ ਦੇਖੋਗੇ ਕਿ ਸਿਰਫ਼ ਲੋਹਾ ਹੀ ਇੱਕ ਤੱਤ ਹੈ ਜੋ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨਾ ਬਾਕੀ ਹੈ ।

ਲੋਹਾ ਪਰਮਾਣੂ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦਾਂ ਵਿੱਚ
(i) ਸ਼ੁਰੂ ਵਿੱਚ 1 (Fe ਵਿੱਚ) 3 (Fe3O4 ਵਿੱਚ)
(ii) ਸੰਤੁਲਨ ਲਈ 1 × 3 3

Fe ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸੱਜੇ ਪਾਸੇ ਅਸੀਂ Fe ਦੇ 3 ਪਰਮਾਣੂ ਲੈਂਦੇ ਹਾਂ ।
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ਚਰਨ 6.
ਅੰਤ ਵਿੱਚ, ਇਸ ਸੰਤੁਲਿਤ ਸਮੀਕਰਣ ਦੀ ਜਾਂਚ ਦੇ ਲਈ ਸਮੀਕਰਣ ਦੇ ਦੋਵੇਂ ਪਾਸੇ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਰਨ ਤੇ
3Fe +4H2O → Fe3O4 + 4H2
(ਸੰਤੁਲਿਤ ਸਮੀਕਰਣ)
ਸਮੀਕਰਣ ਵਿੱਚ ਦੋਵੇਂ ਪਾਸੇ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਬਰਾਬਰ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਸਮੀਕਰਣ ਹੁਣ ਸੰਤੁਲਿਤ ਹੈ । ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਇਸ ਵਿਧੀ ਨੂੰ ਹਿਟ ਐਂਡ ਟਾਇਲ ਵਿਧੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਕਿਉਂਕਿ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟੀ ਪੂਰਨ ਅੰਕ ਸੰਖਿਆ ਦੇ ਗੁਣਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਕੇ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।

ਚਰਨ 7.
ਭੌਤਿਕ ਅਵਸਥਾ ਦੇ ਸੰਕੇਤ ਲਿਖਣਾ – ਉੱਪਰ ਲਿਖੇ ਸੰਤੁਲਿਤ ਸਮੀਕਰਣ ਵਿੱਚ ਭੌਤਿਕ ਅਵਸਥਾ ਦੀ ਕੋਈ ਜਾਣਕਾਰੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਜਾਣਕਾਰੀ ਵਾਲਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਅਤੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਭੌਤਿਕ ਅਵਸਥਾ ਨੂੰ ਵੀ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਅਭਿਕਾਰਕ ਅਤੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਠੋਸ, ਗੈਸ ਅਤੇ ਤਰਲ ਤੇ ਜਲੀ ਅਵਸਥਾ ਨੂੰ ਵਾਰੀ-ਵਾਰੀ (s), (g), (1) ਅਤੇ (aq) ਨਾਲ ਦਰਸਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ | ਅਭਿਕਾਰਕ ਜਾਂ ਉਤਪਾਦ ਜਦੋਂ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਘੋਲ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਤਾਂ (aq) ਲਿਖਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਸੰਤੁਲਿਤ ਸਮੀਕਰਣ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਹੋਵੇਗਾ-
3Fe(s) + 4H2O(g) → Fe3O4(s) + 4H2(g)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਸਹਿਤ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੌਰਾਨ ਕਿਸੇ ਇਕ ਤੱਤ ਦਾ ਪਰਮਾਣੂ ਦੂਸਰੇ ਤੱਤ ਦੇ ਪਰਮਾਣੂ ਵਿੱਚ ਨਹੀਂ ਬਦਲਦਾ ਹੈ । ਨਾ ਹੀ ਕੋਈ ਪਰਮਾਣੂ ਮਿਸ਼ਰਣ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਨਾ ਹੀ ਬਾਹਰ ਤੋਂ ਮਿਸ਼ਰਣ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦਾ ਹੈ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ, ਇਸੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੇ ਆਪਸੀ ਬੰਧਨ ਦੇ ਟੁੱਟਣ ਅਤੇ ਜੁੜਨ ਨਾਲ ਨਵੇਂ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

1. ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ – ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਅਭਿਕਾਰਕ ਮਿਲ ਕੇ ਏਕਲ ਉਤਪਾਦ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਸ ਨੂੰ ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਜਿਵੇਂ-ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਆਕਸਾਈਡ ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ ਬੁਝੇ ਹੋਏ ਚੂਨੇ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਕੇ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਗਰਮੀ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
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ਇਸ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਆਕਸਾਈਡ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਮਿਲ ਕੇ ਏਕਲ ਉਤਪਾਦ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ ਬਣਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

2. ਅਪਘਟਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ – ਉਹ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਯੌਗਿਕ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਸਰਲ ਪਦਾਰਥਾਂ ਵਿੱਚ ਟੁੱਟਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਅਪਘਟਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਅਪਘਟਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੇ ਉਦਾਹਰਨ-
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3. ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ – ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਤੱਤ ਦੂਸਰੇ ਤੱਤ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਯੌਗਿਕ ਵਿੱਚੋਂ ਵਿਸਥਾਪਤ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਹ ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
ਉਦਾਹਰਨ-
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4. ਦੂਹਰੀ-ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ – ਦੂਹਰੀ-ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਰਮਾਣੂ ਜਾਂ ਪਰਮਾਣੂਆਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਦਾ ਆਪਸ ਵਿੱਚ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
ਉਦਾਹਰਨ-
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PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਲਘੂਕਰਨ ਦੀ ਉਦਾਹਰਨ ਸਹਿਤ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਲਘੂਕਰਨ – ਕਿਸੇ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਪਦਾਰਥ ਦਾ ਆਕਸੀਜਨ ਉਦੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਉਸ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਦਾ ਵਾਧਾ ਜਾਂ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਦੀ ਹਾਨੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਉਲਟ ਜਦੋਂ ਪਦਾਰਥ ਦਾ ਲਘੂਕਰਨ, ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਦੀ ਹਾਨੀ ਜਾਂ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਦਾ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਉਦਾਹਰਨ – ਕਾਪਰ ਚੂਰਣ ਵੀ ਸਤਹਿ ‘ਤੇ ਕਾਪਰ (II) ਆਕਸਾਈਡ ਦੀ ਕਾਲੀ ਪਰਤ ਚੜ੍ਹ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਕਾਲਾ ਪਦਾਰਥ ਕਿਉਂ ਬਣਿਆ ? ਇਹ ਕਾਪਰ ਆਕਸਾਈਡ, ਕਾਪਰ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਦੇ ਯੋਗ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਹੈ ।
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ਜੇ ਇਸ ਗਰਮ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਉੱਪਰ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ ਪ੍ਰਵਾਹਿਤ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਉਸਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਹੋਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਜਦੋਂ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਪਦਾਰਥ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਦੀ ਹਾਨੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਉਸਦਾ ਲਘੂਕਰਨ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਕਾਪਰ (II) ਆਕਸਾਈਡ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਦੀ ਹਾਨੀ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਇਸਦਾ ਲਘੂਕਰਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਜਨ ਦਾ ਵਾਧਾ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਇਸ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਹੋਇਆ ਹੈ ਅਰਥਾਤ ਕਿਸੇ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਇਕ ਅਭਿਕਾਰਕ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਪ੍ਰਤੀਕਾਰਕ ਦਾ ਲਘੂਕਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਆਕਸੀਕਰਨ ਲਘੂਕਰਨ ਜਾਂ ਰੇਡਾਕਸ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
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ਰੇਡਾਕਸ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੇ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਉਦਾਹਰਨ ਹਨ-
(i) ZnO+C → Zn + CO
ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਕਾਰਬਨ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਹੋ ਕੇ CO ਅਤੇ ZnO ਦਾ ਲਘੂਕਰਨ ਹੋ ਕੇ Zn ਬਣਦਾ ਹੈ ।
(ii) MnO2 + 4HCl → MnCl2 + Cl2 + 2H2O
ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ HCl ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਹੋ ਕੇ Cl2 ਅਤੇ MnO2 ਦਾ ਲਘੂਕਰਨ ਹੋ ਕੇ MnCl2 ਬਣਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਤੇਜ਼ਾਬ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ? ਤੇਜ਼ਾਬਾਂ ਦੇ ਚਾਰ ਗੁਣਾਂ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਕੇ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਤੇਜ਼ਾਬ- ਅਜਿਹੇ ਯੌਗਿਕ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਜਾਂ ਇੱਕ ਤੋਂ ਵੱਧ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਪਰਮਾਣੂ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਘੁਲ ਕੇ ਚਾਰਜਿਤ ਹਾਈਡਰੋਨੀਅਮ ਆਇਨ (H3O+) ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਤੇਜ਼ਾਬ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ। ਤੇਜ਼ਾਬਾਂ ਦਾ ਸੁਆਦ ਖੱਟਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਤੇਜ਼ਾਬਾਂ ਦੇ ਗੁਣ-
(1) ਧਾਤੂਆਂ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ – ਤੇਜ਼ਾਬ ਕਿਰਿਆਸ਼ੀਲ ਧਾਤਾਂ ਜਿਵੇਂ-ਜ਼ਿੰਕ, ਮੈਗਨੀਸ਼ੀਅਮ, ਲੋਹਾ, ਮੈਗਨੀਜ਼ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।
Zn(s) + ਤਣ H2SO4(aq) → ZnSO4(aq) + H2(g) ↑
Mg(s) + ਤਣ 2HCl (aq) → MgCl2(aq) + H2(g) ↑

(2) ਧਾਤੂ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਅਤੇ ਧਾਤੂ ਬਾਈਕਾਰਬੋਨੇਟ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ-ਤੇਜ਼ਾਬ ਧਾਤੂ ਕਾਰਬੋਨੇਟਾਂ ਅਤੇ ਧਾਤੂ ਬਾਈਕਾਰਬੋਨੇਟਾਂ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ CO2 ਗੈਸ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
Na2CO3 + H2SO4 → Na2SO4+ H2O + CO2
NaHCO3 + HCl → NaCl + H2O + CO2

(3) ਖਾਰਾਂ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ – ਤੇਜ਼ਾਬ ਖਾਰਾਂ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ ਉਦਾਸੀਨੀਕਰਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਗਟ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਲੂਣ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਤਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
HCl + NaOH → NaCl + H2O
HCl + KOH → KCl + H2O

(4) ਧਾਤੂ ਸਲਫਾਈਡ ਅਤੇ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਸਲਫਾਈਡ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ – ਤੇਜ਼ਾਬ, ਵੱਖ-ਵੱਖ ਧਾਤੂ ਸਲਫਾਈਡਾਂ ਅਤੇ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਸਲਫਾਈਡ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ H2S ਗੈਸ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
FeS + H2SO4 → FeSO4 + H2S(g)
KHS + 2HCl → 2KCl + 2H2S(g)
(ਪੋਟਾਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਸਲਫਾਈਡ)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਕਿਸਮ ਦੀ ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦਰਸਾਈ ਗਈ ਹੈ । ਇਸ ਕਿਰਿਆ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਉਦਾਹਰਨ ਸਹਿਤ ਲਿਖੋ ।
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ਉੱਤਰ-
ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਧਾਤਾਂ ਦੀ ਲੂਣਾਂ ਦੇ ਘੋਲਾਂ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਦਰਸਾਈ ਗਈ ਹੈ ਇਹ ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਿਰਿਆ ਹੈ ।
ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ-ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਤੱਤ ਦੂਸਰੇ ਤੱਤ ਨੂੰ ਉਸ ਦੇ ਯੌਗਿਕ ਵਿੱਚੋਂ ਵਿਸਥਾਪਤ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਇਹ ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਉਦਾਹਰਨ-
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ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣਾਂ ਨੂੰ ਲਿਖਦੇ ਸਮੇਂ ਕਿਹੜੀਆਂ-ਕਿਹੜੀਆਂ ਗੱਲਾਂ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿੱਚ ਰੱਖਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-

  1. ਰਸਾਇਣਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਕਰਨਾ ।
  2. ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਅਤੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਸਾਰੇ ਤੱਤਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਤੀਕਾਂ ਨਾਲ ਦਰਸਾਉਣਾ ।
  3. ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਅਤੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਹਰ ਤੱਤ ਦੇ ਕੁੱਲ ਪਰਿਣਾਮਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਦਾ ਦੋਵੇਂ ਪਾਸੇ ਬਰਾਬਰ ਹੋਣਾ ।
  4. ਭੌਤਿਕ ਅਵਸਥਾ, ਤਾਪ ਅਤੇ ਹਾਲਤਾਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਉਦਾਹਰਨ ਸਹਿਤ ਸਮਝਾਉ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ – ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਅਭਿਕਾਰਕ ਮਿਲ ਕੇ ਏਕਲ ਉਤਪਾਦ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਸ ਨੂੰ ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਉਦਾਹਰਨ-
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 13

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਬੁਝੇ ਹੋਏ ਚੂਨੇ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ ਅਤੇ ਉਸਦਾ ਇਕ ਉਪਯੋਗ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਬੁਝੇ ਹੋਏ ਚੂਨੇ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ – Ca(OH)2
ਬੁਝੇ ਹੋਏ ਚੂਨੇ ਦੇ ਘੋਲ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੰਧਾਂ ਤੇ ਸਫ਼ੇਦੀ ਕਰਨ ਲਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਫ਼ੇਦੀ ਕਰਨ ਦੇ ਦੋ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਬਾਅਦ ਚਮਕ ਕਿਉਂ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰੋਆਕਸਾਈਡ ਹਵਾ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਕਾਰਬਨ-ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਦੇ ਨਾਲ ਧੀਮੀ ਗਤੀ ਨਾਲ ਅਭਿਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ ਕੰਧਾਂ ਤੇ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਦੀ ਇਕ ਪਤਲੀ ਪਰਤ ਬਣਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਸਫ਼ੈਦੀ ਕਰਨ ਦੇ ਦੋ-ਤਿੰਨ ਦਿਨਾਂ ਬਾਅਦ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਨਾਲ ਕੰਧਾਂ ਤੇ ਚਮਕ ਆ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸੰਗਮਰਮਰ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਬਣਨ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੰਗਮਰਮਰ ਨੂੰ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਵੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਇਸਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ ਹੈ- CaCO3
ਇਸਦੇ ਬਣਨ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ-
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 14

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਤਾਪ-ਨਿਕਾਸੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਦੋ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਦਿਉ ।
ਉੱਤਰ-
ਤਾਪ-ਨਿਕਾਸੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ (Exothermic Reaction) – ਜਿਹੜੀਆਂ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਤਾਪ ਵੀ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਾਪ-ਨਿਕਾਸੀ ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
A + B → C +D+ ਤਾਪ ਊਰਜਾ
ਇਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਊਰਜਾ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਊਰਜਾ ਤੋਂ ਵੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਦੀ ਊਰਜਾ > ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੀ ਊਰਜਾ
ਤਾਪ ਨਿਕਾਸੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਕੁਝ ਹੋਰ ਉਦਾਹਰਨ ਹਨ-
(i) ਕੁਦਰਤੀ ਗੈਸ ਦਾ ਦਹਿਣ-
CH4(g) + 2O2(g) → CO2(g) + 2H2O(g) + ਊਰਜਾ

(ii) ਸਾਗ-ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਦਾ ਵਿਘਟਨ ਹੋ ਕੇ ਕੰਪੋਸਟ ਬਣਾਉਣਾ ਵੀ ਤਾਪ ਨਿਕਾਸੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਤਾਪ-ਸੋਖੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੀ ਉਦਾਹਰਨ ਸਹਿਤ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਦਿਉ ।
ਉੱਤਰ-
ਤਾਪ-ਸੋਖੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ (Endothermic Reaction) – ਜਿਹੜੀਆਂ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਤਾਪ ਦਾ ਸੋਖਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਾਪ-ਸੋਖੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
A+B + ਤਾਪ → C+D
ਇਸ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਅਭਿਕਾਰਕਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਊਰਜਾ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਊਰਜਾ ਤੋਂ ਘੱਟ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
ਪ੍ਰਤੀਕਾਰਕਾਂ ਦੀ ਊਰਜਾ < ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੀ ਊਰਜਾ
ਉਦਾਹਰਨ-
(1) ਕੋਕ ਦੀ ਭਾਪ ਨਾਲ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ
C(s) + H2O(g) + ਤਾਪ → CO(g) + H2(g)

(2) N2 ਅਤੇ O2 ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ
N2(g) + O2(g) + ਤਾਪ → 2NO(g)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਅਪਘਟਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਸੰਯੋਜਨ ਕਿਰਿਆ ਤੋਂ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੱਖ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲ ਕੇ ਇਕ ਨਵਾਂ ਪਦਾਰਥ ਬਣਾਉਂਦੇ ਹਨ ਜਦੋਂ ਕਿ ਅਪਘਟਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਇਸ ਤੋਂ ਉਲਟ ਹੈ । ਅਪਘਟਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਏਕਲ ਪਦਾਰਥ ਅਪਘਟਿਤ ਹੋ ਕੇ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪਦਾਰਥ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਉਦਾਹਰਨ ਦਿਉ ।
ਉੱਤਰ-
ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ-ਜਦੋਂ ਕੋਈ ਤੱਤ ਦੂਸਰੇ ਤੱਤਾਂ ਨੂੰ ਉਸਦੇ ਯੌਗਿਕਾਂ ਨਾਲ ਵਿਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਇਹ ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 15
ਉਪਰੋਕਤ ਉਦਾਹਰਨ ਵਿੱਚ Zn ਕਾਪਰ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕਿਰਿਆਸ਼ੀਲ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਇਹ ਕਾਪਰ ਸਲਫੇਟ ਵਿਚੋਂ ਕਾਪਰ ਦਾ ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਰਕੇ ਖ਼ੁਦ ਸਲਫੇਟ ਦੇ ਨਾਲ ਜ਼ਿੰਕ ਸਲਫੇਟ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਦੂਹਰੀ ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਉਦਾਹਰਨ ਦਿਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੂਹਰੀ ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ – ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਤੀਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਆਇਨਾਂ ਦਾ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦੂਹਰੀ ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਉਦਾਹਰਨ-
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 16
ਉਪਰੋਕਤ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ Cl ਅਤੇ \(\mathrm{SO}_{4}^{2-}\) ਆਇਨਾਂ ਦਾ ਆਦਾਨ ਪ੍ਰਦਾਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਇਸ ਲਈ ਦੂਹਰੀਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦੀ ਉਦਾਹਰਨ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 17
ਉਪਰੋਕਤ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰੋ ਅਤੇ ਉਤਪਾਦ ਦਾ ਰੰਗ ਵੀ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਪਰੋਕਤ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਹੈ-
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 18
ਇਹ ਉਤਪਾਦ PbO ਪੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਜੰਗ ਲੱਗਣਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜੰਗ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ ਲਿਖੋ । ਇਸ ਨਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਹਾਨੀ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਲੋਹੇ ਦੀਆਂ ਬਣੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਚਮਕੀਲੀਆਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ, ਪਰ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੇ ਲਾਲਿਮਾ ਯੁਕਤ ਭੂਰੇ ਰੰਗ ਦੀ ਪਰਤ ਚੜ੍ਹ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਲੋਹੇ ਨੂੰ ਜੰਗ ਲੱਗਣਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਜੰਗ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੁਤਰ ਹੈ ।
Fe2O3. x H2O
ਜੰਗ ਹਾਈਡਰੇਟ ਆਇਰਨ (III) ਆਕਸਾਈਡ ਹੈ ।
ਇਹ ਭੁਰਭੁਰਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ ਧਾਤੁ ਦੀ ਸਤਹਿ ਤੋਂ ਵੱਖ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਲੋਹੇ ਤੋਂ ਬਣੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਖ਼ਰਾਬ ਹੁੰਦੀਆਂ ਰਹਿੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਜ਼ਿੰਕ ਦੀ ਛੜ ਕਾਪਰ ਸਲਫੇਟ ਦੇ ਘੋਲ ਵਿੱਚ ਰੱਖੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ? ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਨ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਜ਼ਿੰਕ ਕਾਪਰ ਤੋਂ ਵੱਧ ਕਿਰਿਆਸ਼ੀਲ ਹੈ । ਇਹ ਕਾਪਰ ਸਲਫੇਟ ਘੋਲ ਵਿਚੋਂ ਕਾਪਰ ਨੂੰ ਵਿਸਥਾਪਤ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਜ਼ਿੰਕ ਸਲਫੇਟ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਕਾਪਰ ਸਲਫੇਟ ਦਾ ਨੀਲਾ ਘੋਲ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਸਫ਼ੇਦ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 19

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਚੂਨਾ ਬੁੱਝਣਾ (ਸ਼ਮਨ) ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ? ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਸੁੰ-ਸੂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਕਿਉਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ? ਸੰਬੰਧਿਤ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਮਨ – ਜਦੋਂ ਚਨੇ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਮਿਲਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਇਹ ਬੜੇ ਚਨੇ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਨੂੰ ਚੂਨਾ ਬੁੱਝਣਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਇਕ ਤਾਪ ਨਿਕਾਸੀ ਕਿਰਿਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਤਾਪ ਉਰਜਾ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਸੂੰ-ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 20

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਹੇਠਾਂ ਲਿਖੀਆਂ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣਾਂ ਨੂੰ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰੋ ।

1. H2 + N2 → NH3
2. BaCl2 + Al2(SO4)3 → AlCl3 + BaSO4
3. H2S + O2 → SO2 + H2O
4. KBr + BaI2 → KI + BaBr2
5. Al + CuCl2 → AlCl3 + Cu

6. AgNO3 + Cu → Cu(NO3)2 + Ag
7. Al(OH)3 → Al2O3 + H2O
8. NH3 + CuO → Cu + N2 + H2O
9. KClO3 → KCl + O2
10. KNO3 → KNO2 + O2
11. BaCl2 + K2SO4 → 2BaSO4 + KCl.
ਉੱਤਰ-
1. 3H2 + N2 → 2NH3

2. 3BaCl2 + Al2(SO4)3 ) → 2AlCl3 + 3BaSO4

3. 2H2S + 3O2 → 2SO2 + 2H2O

4. 2KBr + BaI2 → 2KI + BaBr2

5. 2Al + 3CuCl2 → 2AlCl3 + 3Cu

6. 2AgNO3 + Cu → Cu(NO3)2 + 2Ag

7. 2Al(OH)3 → Al2O3 + 3H2O

8. 2NH3 + 3CuO → Cu + N2 + 3H2O

9. 2KClO3 → 2KCl + 3O2

10. 2KNO3 → 2KNO3 + O2

11. BaCl2 + K2SO4 → BaSO4 + 2KCl.

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਲਘੂਕਰਣ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ ।
1. SO2 + 2H2S → 2H2O + 3S
2. 2Al + 3HCl → 2ACl3 + 3H2
3. 2H2S + SO2 → 3S + 2H2O
4. Zn + 2AgNO3 → Zn(NO3)2 + 2Ag
5. H2 + CuO → Cu + H2O.
ਉੱਤਰ-
1. SO2 ਵਿੱਚ S ਦਾ ਲਘੂਕਰਣ ਅਤੇ H2S ਵਿੱਚ S ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਹੋਇਆ ।
2. ਐਲੂਮੀਨੀਅਮ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਕਲੋਰੀਨ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਹੋਇਆ ।
3. ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਸਲਫਰ ਦਾ ਲਘੂਕਰਣ ਹੋਇਆ ।
4. ਜ਼ਿੰਕ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਸਿਲਵਰ ਦਾ ਲਘੂਕਰਣ ਹੋਇਆ ।
5. ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਤਾਂਬੇ ਦਾ ਲਘੂਕਰਣ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਲਈ ਸੰਕੇਤਾਂ ਅਤੇ ਸੂਤਰਾਂ ਨਾਲ ਸੰਤੁਲਿਤ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣਾਂ ਲਿਖੋ ।
(i) ਜ਼ਿੰਕ + ਸਿਲਵਰ ਨਾਈਟਰੇਟ → ਜ਼ਿੰਕ ਨਾਈਟਰੇਟ + ਸਿਲਵਰ
(ii) ਕਾਪਰ ਆਕਸਾਈਡ + ਹਾਈਡਰੋਜਨ → ਕਾਪਰ + ਪਾਣੀ
(iii) ਬੇਰੀਅਮ ਕੋਲਰਾਈਡ + ਐਲੂਮੀਨੀਅਮ ਸਲਫੇਟ → ਬੇਰੀਅਮ ਸਲਫੇਟ + ਐਲੂਮੀਨੀਅਮ ਕਲੋਰਾਈਡ ।
ਉੱਤਰ-
(i) Zn (s) + 2AgNO3 (aq) → Zn (NO3)2 (aq) +2Ag(s)
(ii) CuO(s) + H2(g) → Cu(s) + H2O(l)
(iii) 3BaCl2 (ag) + Al2(SO4)3(aq) → 3BaSO4(aq) + 2AlCl3(aq).

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਸਮੀਕਰਣਾਂ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਲਿਖੋ :
(i) ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ + ਕਾਰਬਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ → ………… + ………….
(ii) ਸੋਡੀਅਮ + ਪਾਣੀ → ………… +………….
(iii) ਹਾਈਡਰੋਜਨ + ਕਲੋਰੀਨ → ……….. + ………….
ਉੱਤਰ-
(i) ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ + ਕਾਰਬਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ → ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ + ਪਾਣੀ
(ii) ਸੋਡੀਅਮ + ਪਾਣੀ → ਸੋਡੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ + ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ
(iii) ਹਾਈਡਰੋਜਨ + ਕਲੋਰੀਨ → ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਕਲੋਰਾਈਡ ਗੈਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਸੂਤਰਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਕਥਨਾਂ ਨੂੰ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖ ਕੇ ਸੰਤੁਲਿਤ ਕਰੋ :
(i) ਪੋਟਾਸ਼ੀਅਮ ਤੱਤ, ਪਾਣੀ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ ਪੋਟਾਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ ਅਤੇ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ।
(ii) ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਸਲਫਾਈਡ ਗੈਸ ਹਵਾ/ਆਕਸੀਜਨ ਵਿੱਚ ਬਲਦੇ ਪਾਣੀ ਅਤੇ ਸਲਫਰ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਗੈਸ ਬਣਾਉਂਦੀ ਹੈ ?
(iii) ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ ਨਾਈਟਰੋਜਨ ਨਾਲ ਜੁੜ ਕੇ ਅਮੋਨੀਆ ਬਣਾਉਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
(i) 2K + 2H2O → 2KOH + H2
(ii) 2H2S + 3O2 → 2H2O + 2SO2
(iii) 3H2 + N2 → 2NH3.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਹੇਠਾਂ ਦਿੱਤੇ ਫਲਾਸਕ ਵਿੱਚ ਵਾਪਰ ਰਹੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਲਿਖੋ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਗੈਸ ਦਾ ਨਾਂ ਅਤੇ ਇੱਕ ਗੁਣ ਲਿਖੋ ।
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 21
ਉੱਤਰ-
ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ-
Zn + H2SO4 → ZnSO4 + H2
ਜਿਸਤ + ਹਲਕਾ ਸਲਫਿਊਰਿਕ ਐਸਿਡ → ਜਿਸਤ ਸਲਫੇਟ + ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ
ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੀ ਗੈਸ ਦਾ ਨਾਂ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਹੈ ।
ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ ਦਾ ਗੁਣ – ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਇੱਕ ਜਲਣਸ਼ੀਲ ਗੈਸ ਹੈ ਜੋ ਨੀਲੀ-ਪੀਲੀ ਲੌ ਨਾਲ ਧਮਾਕੇ ਨਾਲ ਬਲਦੀ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਸਾਹਮਣੇ ਦਿੱਤੇ ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਪਰਖ-ਨਲੀ ਵਿੱਚ ਕਿਰਿਆ ਦੌਰਾਨ ਕਿਹੜੀ ਗੈਸ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੀ ਹੈ ? ਇਹ ਗੈਸ ਚੂਨੇ ਦੇ ਪਾਣੀ/ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ ਨਾਲ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆ ਕਰਦੀ/ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਂਦੀ ਹੈ ?
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 22
ਉੱਤਰ-
(1) ਸੋਡੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਅਤੇ ਪਤਲਾ ਹਾਈਡਰੋਕਲੋਰਿਕ ਅਮਲ ਦੀ ਕਿਰਿਆ ਦੌਰਾਨ ਕਾਰਬਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਗੈਸ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

(2) ਕਾਰਬਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਗੈਸ ਚਨੇ ਦੇ ਪਾਣੀ (ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਹਾਈਡਰਾਕਸਾਈਡ) ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਕਰਕੇ ਸਫ਼ੈਦ ਰੰਗ ਦਾ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਬਣਾਉਂਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਤੋਂ ਚੂਨੇ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਰੰਗ ਦੁੱਧੀਆ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 23

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
ਸਾਹਮਣੇ ਦਿੱਤੇ ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਰਸਾਏ ਪਰਖ ਨਲੀ ਵਿੱਚ ਹੋ ਰਹੇ ਘੋਲਾਂ/ਰਸਾਇਣਾਂ ਦੀ ਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਸਮੀਕਰਣ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ਘੋਲ ਦੇ ਰੰਗ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ? ਮੇਖਾਂ/ਕਿੱਲਾਂ ਦੇ ਰੰਗ ਵਿੱਚ ਕੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ?
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 24
ਉੱਤਰ-
ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦੀ ਸਮੀਕਰਣ :
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 25
ਜਦੋਂ ਲੋਹੇ ਦੀਆਂ ਕਿੱਲਾਂ ਨੂੰ ਕਾਪਰ ਸਲਫੇਟ ਦੇ ਘੋਲ ਵਿੱਚ ਡੁਬੋਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਨੀਲੇ ਰੰਗ ਦਾ ਘੋਲ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਫਿੱਕਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਕਿੱਲਾਂ ਦਾ ਰੰਗ ਭੂਰਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Very Short Answer Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਬੁਝੇ ਹੋਏ ਚੂਨੇ ਦੀ ਇਕ ਵਰਤੋ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੀਵਾਰਾਂ ਤੇ ਸਫ਼ੈਦੀ ਕਰਨ ਲਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਸੰਗਮਰਮਰ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
CaCO3.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਕੁਦਰਤੀ ਗੈਸ ਦਾ ਦਹਿਣ ਕਰਨ ‘ ਤੇ ਕੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
CO2, H2O ਅਤੇ ਉਰਜਾ ।

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਫੋਰਸ ਸਲਫੇਟ ਦਾ ਸੂਤਰ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
FeSO4, 7H2O.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਚਿਪਸ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ਚਿਪਸ ਦੀ ਥੈਲੀ ਵਿੱਚ ਕੀ ਭਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ਤਾਂਕਿ ਉਸ ਵਿੱਚ ਆਕਸੀਕਰਨ ਨਾ ਹੋ ਸਕੇ ?
ਉੱਤਰ-
ਨਾਈਟਰੋਜਨ ਗੈਸ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਆਕਸੀਕਰਨ-ਲਘੂਕਰਣ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦਾ ਦੂਸਰਾ ਨਾਂ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਰੇਡਾਕਸ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਕਿਸੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ ਪਦਾਰਥ ਦਾ ਆਕਸੀਕਰਨ ਕਦੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ O2 ਦੀ ਹਾਨੀ ਅਤੇ H2 ਦਾ ਵਾਧਾ ਹੋਵੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਤਾਪ ਦੇਣ ਤੇ ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਕਾਰਬੋਨੇਟ ਕਿਸ ਵਿੱਚ ਟੁੱਟ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੈਲਸ਼ੀਅਮ ਆਕਸਾਈਡ ਅਤੇ ਕਾਰਬਨ-ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਬੁਝੇ ਹੋਏ ਚੂਨੇ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
CaO.

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਕੁਦਰਤੀ ਗੈਸ ਦਾ ਦਹਿਣ ਹੋਣ ‘ਤੇ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
CH4(g) + 2O2(g) → CO2(g) + 2H2O(g) + ਉਰਜਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਕੋਇਲੇ ਦੇ ਦਹਿਣ ਅਤੇ H2 ਅਤੇ O2 ਤੋਂ ਪਾਣੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਿਸ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਦਰਸਾਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 26
ਉਪਰੋਕਤ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਵਿੱਚ A ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਲੋਰੋਫਿਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਕਰਣ ਕਿਰਿਆ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਉੱਤਰ-
ਲਘੂਕਰਣ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਕਿਰਿਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ O2 ਦੀ ਹਾਨੀ ਅਤੇ H2 ਨ ਦਾ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਆਕਸੀਕਰਣ ਕਿਰਿਆ ਕੀ ਹੈ ?
ਆਕਸੀਕਰਣ ਉਹ ਕਿਰਿਆ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ H2 ਦੀ ਹਾਨੀ ਅਤੇ O2 ਦਾ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਮੈਗਨੀਸ਼ੀਅਮ ਰਿੱਬਨ ਨੂੰ ਹਵਾ ਵਿੱਚ ਜਲਾਉਣ ਨਾਲ ਕਿਹੜਾ ਪਦਾਰਥ ਬਣਦਾ ਹੈ ? (ਮਾਂਡਲ ਪੇਪਰ)
ਉੱਤਰ-
ਚਿੱਟਾ ਪਾਊਡਰ ਮੈਗਨੀਸ਼ੀਅਮ ਆਕਸਾਈਡ (MgO) ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਮੀਕਰਣ ਵਿੱਚ ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਵਾਂ ਭਰੋ । (ਮਾਡਲ ਪੇਪਰ)
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 27
ਉੱਤਰ-
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 28

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਜ਼ਿੰਕ ਦੀ ਪਤਲੇ ਸਲਫਿਊਰਿਕ ਐਸਿਡ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਹੋਣ ਤੇ ਕਿਹੜੀ ਗੈਸ ਬਣਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਗੈਸ (H2).

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 18.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਵਿੱਚ ਖਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :
BaCl2 + Na2SO4 → ………………. +…………..
ਉੱਤਰ-
BaCl2 + Na2SO4 → BaSO4 + 2NaCl.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 19.
ਕਾਰਬਨ-ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਗੈਸ ਚੂਨੇ ਦੇ ਪਾਣੀ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਾਉਣ ਨਾਲ ਚੂਨੇ ਦੇ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਕੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਚੂਨੇ ਦਾ ਪਾਣੀ ਦੁਧੀਆ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 20.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰੋ :
Fe(s) + CuSO4(aq) → ……… + ……………….
ਉੱਤਰ-
Fe + CuSO4 → FeSO4(aq) + Cu(s).

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 21.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਸਮੀਕਰਣ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰੋ :
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 29
ਉੱਤਰ-
PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ 30

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 22.
Zn(s) + CusO4(aq) → ZnSO4(aq) + Cu(s)
ਉਪਰੋਕਤ ਸਮੀਕਰਣ ਵਿੱਚ ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਦਰਸਾਈ ਗਈ ਹੈ ?
(ਉ) ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ।
(ਅ) ਵਿਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ
(ੲ) ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ
(ਸ) ਦੋਹਰਾ ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ੲ) ਵਿਸਥਾਪਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ- 23.
Na2SO4(aq) + BaCl2(aq) → BaSO4(s) + NaCl(aq)
ਉਪਰੋਕਤ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸਮੀਕਰਣ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦਾ ਉਦਾਹਰਣ ਹੈ ?
(ਉ) ਸੰਯੋਜਨ ਕਿਰਿਆ ।
(ਅ) ਅਪਘਟਨ ਕਿਰਿਆ
(ੲ) ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਿਰਿਆ
(ਸ) ਦੂਹਰਾ ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਿਰਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਦੂਹਰਾ ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਿਰਿਆ ।

ਵਸਤੁਨਿਸ਼ਠ ਪ੍ਰਸ਼ਨ (Objective Type Questions)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
BaCl2(aq) + Na2SO4(aq) → Basq1(s) + 2NaClaq) ਹੈ ।
(a) ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਿਰਿਆ
(b) ਦੁਹਰੀ ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਿਰਿਆ
(c) ਸੰਯੋਜਨ ਕਿਰਿਆ
(d) ਅਪਘਟਨ ਕਿਰਿਆ ।
ਉੱਤਰ-
(b) ਦੁਹਰੀ ਵਿਸਥਾਪਨ ਕਿਰਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਉਹ ਕਿਰਿਆ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਤਾਪ ਦਾ ਵੀ ਉਤਸਰਜਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ-
(a) ਬਹੁਲੀਕਰਨ ਕਿਰਿਆ
(b) ਤਾਪਸੋਖੀ ਕਿਰਿਆ
(c) ਤਾਪ-ਨਿਕਾਸੀ ਕਿਰਿਆ
(d) ਉਪਰੋਕਤ ਸਾਰੇ ।
ਉੱਤਰ-
(c) ਤਾਪ-ਨਿਕਾਸੀ ਕਿਰਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਜਲ ਦੇ ਬਿਜਲਈ ਅਪਘਟਨ ਨਾਲ ਉਤਪੰਨ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਅਤੇ ਆਕਸੀਜਨ ਦਾ ਮੋਲ ਅਨੁਪਾਤ ਹੈ-
(a) 2 : 1
(b) 1 : 1
(c) 2 : 2
(d) 4 : 1.
ਉੱਤਰ-
(a) 2 : 1.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਜੰਗ ਦਾ ਰਸਾਇਣਿਕ ਸੂਤਰ ਹੈ-
(a) Fe2O3
(b) FeCO3
(c) Fe2O3.xH2O
(d) FeCO3. xH2O.
ਉੱਤਰ-
(c) Fe2O3.xH2O

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਅਪਘਟਨ ਕਿਰਿਆ ਦੀ ਉਦਾਹਰਨ ਹੈ-
(a) CH4 + 2O2 → CO2 +2H2O
(b) Pb(NO3)2 → 2PbO + 4NO2 + O2
(c) NH3 + HCl → NH4Cl
(d) Pb + CuCl2 → PbCl2 + Cu.
ਉੱਤਰ-
(b) Pb(NO3)2 → 2PbO + 4NO2 + O2

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਲੋਹਾ ਹੇਠ ਲਿਖੀ ਕਿਹੜੀ ਧਾਤ ਨੂੰ ਉਸਦੇ ਘੋਲ ਤੋਂ ਵਿਸਥਾਪਿਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ ?
(a) Al
(b) Zn
(c) Cu
(d) Au.
ਉੱਤਰ-
(c) Cu.

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਹੜੀ ਅਧਾਤ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਧਾਤਾਂ ਦੀ ਕਿਰਿਆਸ਼ੀਲਤਾ ਲੜੀ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ?
(a) ਆਕਸੀਜਨ
(b) ਕਲੋਰੀਨ
(c) ਬੋਮੀਨ
(d) ਹਾਈਡਰੋਜਨ ।
ਉੱਤਰ-
(d) ਹਾਈਡਰੋਜਨ ।

ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰਨਾ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ-ਹੇਠ ਲਿਖੀਆਂ ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ :

(i) ਅਪਘਟਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ……………….. ਦੀ ਵਿਪਰੀਤ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਸੰਯੋਜਨ ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ

(ii) ਤੇਜ਼ਾਬ ਅਤੇ ਖਾਰ ਦੀ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਮਾਤਰਾ ਅਤੇ ਆਇਤਨ ਮਿਲਾਉਣ ਤੇ …………………… ਅਤੇ ………………. ਬਣਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਲੂਣ, ਪਾਣੀ

PSEB 10th Class Science Important Questions Chapter 1 ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਅਤੇ ਸਮੀਕਰਣਾਂ

(iii) ਆਕਸੀਜਨ ਦਾ ਸਮਾਵੇਸ਼ ……………………. ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਆਕਸੀਕਰਨ

(iv) ਉਹ ਪ੍ਰਤਿਕਿਰਿਆਂ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਉਸ਼ਮਾ ਦਾ ਉਤਸਰਜਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, …………………… ਪ੍ਰਤੀਕਿਰਿਆ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਤਾਪ-ਨਿਕਾਸੀ

(v) ਆਕਸੀਕਰਨ ਅਤੇ ਲਘੂਕਰਨ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਦੀ ……………………… ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੂਰਕ ।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

PSEB 12th Class Economics भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
घरेलू उद्योगों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
घरेलू उद्योग वह उद्योग होता है जो कि एक परिवार के सदस्यों द्वारा कम पूंजी से लगाया जाता है।

प्रश्न 2.
लघु उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर-
लघु उद्योग वे उद्योग हैं जिनमें एक करोड़ रुपए तक की पूंजी निवेश की गई हो।

प्रश्न 3.
औद्योगीकरण की कोई एक समस्या का वर्णन करें।
उत्तर-
बड़े घरानों का विकास-भारत में औद्योगिक क्षेत्र में कुछ घराने तीव्रता से विकसित हो रहे हैं।

प्रश्न 4.
नई औद्योगिक नीति में उदारवादी नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत की नई औद्योगिक नीति 1991 में सरकार ने उदारवादी नीति (Liberal Policy) अपनाई है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 5.
औद्योगिक विकास के लिए कोई एक सुझाव दें।
उत्तर-
औद्योगिक विकास के लिए सरकार को आधारभूत सुविधाओं में वृद्धि करनी चाहिए।

प्रश्न 6.
भारत में घरेलू तथा छोटे उद्योगों के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
इन उद्योगों द्वारा रोज़गार के अधिक अवसर प्रदान किए जाते हैं।

प्रश्न 7.
छोटे पैमाने के उद्योगों की कठिनाइयां बताएं।
उत्तर-
घरेलू तथा छोटे उद्योगों में उत्पादन लागत अधिक आती है इसलिए बड़े उद्योगों से मुकाबला करना कठिन होता है।

प्रश्न 8.
भारत की 1991 की औद्योगिक नीति की कोई दो मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  • सार्वजनिक क्षेत्र में केवल चार उद्योग सुरक्षित रखे गए हैं।
  • लाइसेंस प्राप्त करने की नीति का त्याग किया गया है।

प्रश्न 9.
किसी देश में उद्योगों की स्थापना में क्रान्तिकारी परिवर्तन को …………….. कहते हैं।
उत्तर-
औद्योगिक विकास।

प्रश्न 10.
परम्परागत वस्तुओं की पैदावार परम्परागत विधि से करने को ………………. उद्योग कहते हैं।
(a) छोटे उद्योग
(b) घरेलू उद्योग
(c) बड़े पैमाने के उद्योग
(d) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) घरेलू उद्योग।

प्रश्न 11.
भारत में नई औद्योगिक नीति 1991 को ………………. नीति कहा जाता है।
उत्तर-
उदारवादी नीति।

प्रश्न 12.
बारहवीं योजना में औद्योगिक विकास का वार्षिक टीचा …………… प्रतिशत रखा गया है।
(a) 8%
(b) 9%
(c) 12%
(d) 14%.
उत्तर-
(b) 9%.

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प्रश्न 13. विभिन्न सिद्धान्त एवं क्रियाएं जो देश के औद्योगीकरण के लिए बनाए जाते हैं उनको ………… कहा जाता है।
(a) आर्थिक विकास
(b) औद्योगिक विकास
(c) औद्योगिक लाइसेंसिंग
(d) उपरोक्त में से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(b) औद्योगिक विकास।

प्रश्न 14.
भारत में नई औद्योगिक नीति सन् …………………… में बनाई गई।
(a) 1956
(b) 1980
(c) 1991
(d) 2012.
उत्तर-
(c) 1991.

प्रश्न 15.
सन् 1991 में 6 उद्योगों को छोड़कर बाकी सभी उद्योगों के लिए लाइसेंस समाप्त कर दिया गया |
उत्तर-
सही।

प्रश्न 16.
नई औद्योगिक नीति अनुसार विदेशी पूंजी निवेश की सीमा बढ़ा कर 51 प्रतिशत कर दी गई है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 17.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए पूंजी की कोई कमी नहीं है।
उत्तर-
ग़लत।

प्रश्न 18.
नई औद्योगिक नीति में निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 19.
भारत में औद्योगिक विकास की कोई एक समस्या बताएँ।
उत्तर-
भारत में आधारभूत उद्योगों का कम विकास हुआ है।

प्रश्न 20.
घरेलू तथा अल्प उद्योगों के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
घरेलू तथा अल्प पैमाने के उद्योग श्रम के गहन होने के कारण इन द्वारा रोज़गार प्रदान किया जाता है।

प्रश्न 21.
भारत में नई औद्योगिक नीति कब बनाई गई ?
(a) 1971
(b) 1981
(c) 1991
(d) 2001.
उत्तर-
(c) 1991.

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II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में उद्योगों के महत्त्व सम्बन्धी कोई दो बिन्दु बताएँ।
उत्तर-
भारत में औद्योगीकरण का विशेष महत्त्व है। उद्योगों के विकास द्वारा राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि कर भारतीय अर्थ-व्यवस्था की विकास दर को बढ़ाया जा सकता है। उद्योगों का महत्त्व इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. रोज़गार में वृद्धि-औद्योगिक विकास द्वारा रोज़गार में वृद्धि की जा सकती है। भारत में भिन्न-भिन्न योजनाओं में रोज़गार की वृद्धि के लिए रखे गए लक्ष्य प्राप्त नहीं हुए इस कारण बेरोज़गारी में बहुत वृद्धि हुई है। 2019-20 में उद्योग द्वारा 125 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान किया गया है। 2022 तक 200 मिलियन लोगों को रोजगार देने का अनुमान है।
  2. आर्थिक विकास- भारत के आर्थिक विकास की दर तीव्र करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण |

प्रश्न 2.
भारत की 12वीं योजना में भारत के औद्योगिक ढांचे का वर्णन करें।
उत्तर-
बारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 12th Plan)-बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 12% से 14% रखा गया है। इस योजना में 200 मिलियन लोगों को रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रश्न 3.
भारत की नई औद्योगिक नीति (1991) के गुण बताएं।
उत्तर-
नई औद्योगिक नीति के गुण (Merits)-

  • नई नीति से उद्योगों की कुशलता में वृद्धि होगी।
  • देश में विदेशी तकनीकों के प्रयोग के कारण उत्पादन में वृद्धि होगी।
  • यह नीति उदारवादी नीति है जिसमें निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है।
  • भारतीय उद्योगों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करने के समर्थ बनाने का यत्न किया गया है।
  • घरेलू तथा छोटे उद्योगों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है तथा मज़दूरों के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाए गए हैं।

प्रश्न 4.
भारतीय उद्योगों की कोई दो समस्याएं बताएं।
उत्तर-
1. कम प्राप्तियां (Less Achievements) भारत की भिन्न-भिन्न योजनाओं में विकास दर के लक्ष्य हमेशा अधिक रखे गए हैं। प्रत्येक योजना में 8% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया परन्तु वास्तव में 5.6% विकास दर प्राप्त की गई है। इसलिए निर्धारित लक्ष्यों तथा प्राप्तियों में बहुत अन्तर पाया जाता है।

2. बीमार उद्योग (Industrial Sickness)-भारत के रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों से जो सूचना प्राप्त की है उसके अनुसार 31 मार्च, 2020 तक 2,40,000 बीमार औद्योगिक इकाइयां थीं। 2020 में छोटे पैमाने के उद्योगों की बीमार इकाइयों की संख्या 1,00,000 थी। इस प्रकार बीमार इकाइयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण औद्योगिक विकास नहीं हो रहा है।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगिक विकास के लिए कोई दो सुझाव दें।
उत्तर-

  1. आधुनिकीकरण (Modernisation)-भारत में उद्योगों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। इस लक्ष्य के लिए नई मशीनों तथा औज़ारों का निर्माण करना चाहिए ताकि उद्योगों में उत्पादन लागत कम हो सके।
  2. मूलभूत सुविधाएं (Basic Facilities)- उद्योगों के विकास के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे कि कच्चा माल, साख सहूलियतें, करों में राहत तथा लघु उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शक्ति, कोयला, यातायात के साधन, सड़कें, रेलों का विकास करने की आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
भारत ने लाइसेंसिंग नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति (Industrial Lincensing Policy)-स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने सन् 1951 में एक एक्ट ‘औद्योगिक विकास एवं नियमन’ पास किया जिसके अनुसार प्रत्येक उद्योग को सरकार से अनुमति लेकर ही औद्योगिक उत्पादन करने का हक होता था। बिना सरकार की अनुमति और बिना लाइसेंस कोई भी व्यक्ति उद्योग स्थापित नहीं कर सकता था। उद्योग कहां स्थापित किया जाए, कौन-सी वस्तु का उत्पादन किया जाए और उस वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए, इन बातों के लिए लाइसेंस लेना ज़रूरी था। सरकार की इस नीति को औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति कहा जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में औद्योगीकरण के महत्त्व को स्पष्ट करें।
उत्तर-
भारत में औद्योगीकरण का विशेष महत्त्व है। उद्योगों के विकास द्वारा राष्ट्रीय आय, उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि कर भारतीय अर्थ-व्यवस्था की विकास दर को बढ़ाया जा सकता है। उद्योगों का महत्त्व इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है-
1. रोज़गार में वृद्धि-औद्योगिक विकास द्वारा रोजगार में वृद्धि की जा सकती है। भारत में भिन्न-भिन्न योजनाओं में रोज़गार की वृद्धि के लिए रखे गए लक्ष्य प्राप्त नहीं हुए इस कारण बेरोजगारी में बहुत वृद्धि हुई है। 2019-20 में उद्योग द्वारा 160 मिलियन लोगों को रोजगार प्रदान किया गया है। 2022 तक 200 मिलियन लोगों को रोज़गार देने का अनुमान है।

2. आर्थिक विकास-भारत के आर्थिक विकास की दर तीव्र करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण |

3. साधनों का उचित प्रयोग-भारत में प्राकृतिक साधन लोहा, कोयला, मैंगनीज़ तथा मानवीय साधन बहुत अधिक मात्रा में पाये जाते हैं। इसका उचित प्रयोग करने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण है।

4. विदेशी व्यापार-भारत द्वारा विदेशों को निर्यात कम मात्रा में किया जाता है तथा आयात अधिक होने के कारण भुगतान सन्तुलन भारत के प्रतिकूल रहता है। औद्योगीकरण द्वारा विदेशी व्यापार में वृद्धि करके भुगतान सन्तुलन को अनुकूल किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
भारत की योजनाओं में औद्योगिक विकास दर पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत एक विकासशील देश है। इससे 1991 की औद्योगिक नीति से पूर्व सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया था परन्तु अब निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है जिस कारण भारत में भिन्नभिन्न योजनाओं में विकास दर इस प्रकार रही है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग 1
इससे ज्ञात होता है कि भारत में उद्योगों की विकास दर 10% से कम रही है। देश के आर्थिक विकास में वृद्धि करने के लिए विकास दर में और वृद्धि करने की आवश्यकता है। वर्ष 2012-17 में औद्योगिक विकास दर का लक्ष्य 9% रखा गया है। 2020-21 में 9.4% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 3.
भारत में औद्योगिक विकास की मन्द गति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
भारत में औद्योगिक विकास की मन्द गति के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

  1. आधारभूत उद्योगों का कम विकास-प्रत्येक देश का आर्थिक विकास आधारभूत उद्योगों के विकास पर निर्भर करता है। यद्यपि भारत में मशीनें, लोहा तथा इस्पात, सीमेंट इत्यादि बनाने के उद्योग स्थापित किए गए हैं परन्तु देश की आवश्यकताओं को देखते हुए इनका कम विकास हुआ है।
  2. पूंजी की कमी-उद्योगों के विकास के लिए पूंजी की आवश्यकता होती है। भारत में अधिक लोग निर्धन हैं इसलिए लोगों की बचत कम है। बचत द्वारा ही पूंजी निर्माण किया जाता है। पूंजी की कमी के कारण उद्योगों की गति मन्द है।
  3. शक्ति की कमी-उद्योगों के विकास के लिए शक्ति साधनों की आवश्यकता होती है। भारत में शक्ति के तीन साधन विद्युत्, कोयला तथा तेल हैं। भारत में कोयला काफ़ी मात्रा में मिलता है परन्तु यह घटिया किस्म का होने के कारण आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं करता। कोयले की खाने बिहार तथा बंगाल में केन्द्रित हैं इसलिए अन्य क्षेत्रों को कोयला भेजने की लागत बढ़ जाती है। इस कारण उद्योगों के विकास की गति मन्द है।
  4. क्षेत्र असमानता-भारत में अधिकतर उद्योग कुछ क्षेत्रों जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु में केन्द्रित हो गए हैं। कुछ राज्य जैसे कि पंजाब, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, राजस्थान उद्योगों के पक्ष से पिछड़े हुए राज्य हैं। क्षेत्रीय असमानता होने के कारण भी उद्योगों के विकास की गति मन्द है।

प्रश्न 4.
भारत में औद्योगिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए चार सुझाव दें।
उत्तर-
भारत में उद्योग पिछड़ी हुई स्थिति में हैं। उद्योगों के पिछड़ेपन को दूर करने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए जा सकते हैं-

  • निजी क्षेत्र का विकास- भारत में सार्वजनिक क्षेत्र असफल हो गया है। इसलिए निजी क्षेत्र को उत्साहित करने की आवश्यकता है। सरकार को निजी क्षेत्र के विकास के लिए अधिक सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। इससे निजी पूंजीपति अधिक उद्योग स्थापित करेंगे ताकि उद्योगों का विकास हो सके।
  • साधनों का उचित प्रयोग-भारत में प्राकृतिक साधन काफ़ी मात्रा में पाए जाते हैं। देश के प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग करके उद्योगों का विकास किया जा सकता है।
  • आधुनिकीकरण तथा तकनीकी विकास-भारत में उत्पादन करने की विधियां पुरातन होने के कारण उद्योग पिछड़े हुए हैं। उद्योगों के विकास के लिए आवश्यक है कि आधुनिक युग में प्रयोग होने वाली मशीनों का प्रयोग किया जाए। तकनीकी तौर पर विकसित मशीनों के प्रयोग से न केवल उत्पादन लागत कम हो जाती है बल्कि उद्योग प्रतियोगिता करने में समर्थ हो जाते हैं।
  • अवरोध दूर करना-औद्योगिक विकास के लिए आधारभूत ढांचे के मुख्य अवरोधों को दूर करना चाहिए अर्थात् देश में शक्ति, यातायात के साधन, संचार तथा कच्चे माल इत्यादि अवरोधों को दूर किया जाए तो इससे औद्योगिक पिछड़ापन दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
ग्यारहवीं योजना में औद्योगिक विकास पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
भारत में बारहवीं पंचवर्षीय योजना 2012-17 तक बनाई गई। इस योजना में उद्योगों के विकास तथा खनिज पदार्थों पर 196000 करोड़ रुपए खर्च करने के लिए रखे गए थे। ग्यारहवीं योजना में चार क्षेत्रों को छोड़कर अन्य क्षेत्रों में लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। विदेशी पूंजी 75% से 100% तक लगाई जा सकती है। पिछड़े क्षेत्रों में उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया था। इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है। इस प्रकार भारतीय उद्योगों को प्रतियोगिता के योग्य बनाया जा रहा है। बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास दर 12% का लक्ष्य रखा गया है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत की अर्थ-व्यवस्था में उद्योगों के महत्त्व पर टिप्पणी लिखें। (Write a detailed note on the Importance of Industrialization in India.)
उत्तर-
भारत जैसे विकासशील देश के लिए औद्योगीकरण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसके महत्त्व को निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट किया जा सकता है-

  1. रोज़गार में वृद्धि-भारत में जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ रही है। बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए रोजगार – के नए अवसर उत्पन्न करने के लिए औद्योगीकरण महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कृषि से जनसंख्या का बोझ घटाने के लिए उद्योगों का विकास महत्त्वपूर्ण है।
  2. राष्ट्रीय आय में वृद्धि-अगर हम विश्व के उन्नत देशों को देखते हैं तो आय में अधिक योगदान उद्योगों द्वारा दिया जाता है। भारत में 1950-51 में उद्योगों द्वारा 16% योगदान दिया गया था जो कि अब 2019-20 में बढ़ कर 25% हो गया है। आज भी उद्योगों से कृषि का योगदान महत्त्वपूर्ण है।
  3. पूंजी निर्माण में वृद्धि-पूंजी निर्माण के अतिरिक्त कोई भी देश आर्थिक उन्नति नहीं कर सकता। प्रो० लुईस का विचार था कि कोई देश इतना निर्धन नहीं होता कि राष्ट्रीय आय का 12% भाग पूंजी निर्माण न कर सके। परन्तु उद्योगों के विकास के अतिरिक्त बचत में वृद्धि नहीं हो सकती इसलिए पूंजी निर्माण में वृद्धि करने के लिए औद्योगिक विकास आवश्यक है।
  4. कृषि का विकास-कृषि का विकास औद्योगिक विकास के बिना सम्भव नहीं। उद्योगों में ऐसी मशीनें विकसित की जा सकती हैं जिनसे उत्पादन बढ़ाया जा सके। जब कृषि का उत्पादन बढ़ जाता है तो इससे उद्योगों का विकास होता है। इस प्रकार कृषि का विकास तथा औद्योगिक विकास एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  5. विदेशी व्यापार का विकास-उद्योगों के विकास द्वारा विदेशी व्यापार में वृद्धि होती है। उद्योगों में जो वस्तुएं उत्पन्न की जाती हैं इनका निर्यात करके विदेशी पूंजी अर्जित की जा सकती है जो कि देश के आर्थिक विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होती है।
  6. सन्तुलित आर्थिक विकास- भारत में आर्थिक विकास तीव्र करने के लिए सन्तुलित आर्थिक विकास करने की आवश्यकता है। जब एक देश में कृषि तथा उद्योग एक साथ विकसित होते हैं तो इस को सन्तुलित विकास कहा जाता है। इसलिए भारत में सन्तुलित विकास करके आर्थिक विकास तीव्र गति से प्राप्त किया जा सकता है।
  7. आत्म-निर्भरता- भारत में विदेशों से बहुत-सी वस्तुएं तथा मशीनें आयात की जाती हैं। इसलिए स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत का भुगतान सन्तुलन भारत के प्रतिकूल रहा है। औद्योगिक विकास द्वारा वस्तुओं की अधिक आवश्यकता को पूर्ण किया जा सकता है।
  8. सुरक्षा के लिए लाभदायक-देश की सुरक्षा के लिए औद्योगिक विकास लाभदायक होता है। देश में सुरक्षा सम्बन्धी उपकरणों का विकास करके विदेशों पर निर्भरता कम की जा सकती है।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के पश्चात् योजनाओं के दौरान भारत में औद्योगिक विकास के ढांचे का वर्णन करें। (Explain the Industrial development of India after Independence during plan period.)
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व भारत के औद्योगिक विकास की तरफ ध्यान नहीं दिया गया था क्योंकि इंग्लैण्ड के उद्योगों में जो माल तैयार होता था वह भारत की मण्डियों में बेचा जाता था। भारत में से कच्चा माल इंग्लैण्ड को निर्यात किया जाता था। इसलिए स्वतन्त्रता से पूर्व भारत में औद्योगिक विकास नहीं हुआ, परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक विकास की तरफ ध्यान देना आरम्भ किया गया है। इसलिए भारतीय योजनाओं के दौरान उद्योगों को जिस प्रकार महत्त्व दिया गया है उसका विवरण इस प्रकार से है-
1. प्रथम योजना में उद्योग (Industries in First Plan)-प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में कृषि के विकास की तरफ अधिक ध्यान दिया गया, परन्तु औद्योगिक विकास के लिए विशेष कार्य नहीं किया गया, परन्तु इस योजना में कुछ महत्त्वपूर्ण उद्योग जैसे कि सीमेंट, फैक्टरियां, टेलीफोन, इण्डस्ट्री, चितरंजन लोकोमोटिव वर्कस इत्यादि आरम्भ किए गए। इस योजना में उद्योगों के उत्पादन में 39% वृद्धि हुई है।

2. द्वितीय योजना में उद्योग (Industries in Second Plan)-द्वितीय योजना (1956-61) में उद्योगों के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। यह योजना प्रो० पी० सी० महलानोबिस ने तैयार की थी। 1956 में औद्योगिक नीति की घोषणा की गई। इस योजना काल में सार्वजनिक क्षेत्र में आधारभूत उद्योग स्थापित करने को अधिक महत्त्व दिया गया। लोहा तथा इस्पात के उत्पादन के लिए दुर्गापुर, भिलाई तथा राऊरकेला के स्थान पर उद्योग स्थापित किए गए। नंगल में उर्वरक उद्योग स्थापित किया गया। इस योजना में औद्योगिक उत्पादन की विकास दर 6.6% वार्षिक रही।

3. तृतीय योजना में उद्योग (Industries in Third Plan)-भारत की तृतीय योजना (1961-66) में भारी उद्योग के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। इसका मुख्य लक्ष्य औद्योगिक क्षेत्र में रोज़गार में वृद्धि करना रखा गया ताकि राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो सके। इस योजना में जो उद्योग द्वितीय योजना में स्थापित किए गए थे उनकी योग्यता में वृद्धि की गई। भारत में मशीनों के पुर्जे, स्वास्थ्य से सम्बन्धित उपकरण तथा वैज्ञानिक औजार बनाने के कारखाने लगाए गए। इस योजना में औद्योगिक उत्पादन में 25% वृद्धि की गई।

4. चतुर्थ योजना में उद्योग (Industries in Fourth Plan)-चतुर्थ योजना (1969-74) से तीव्र गति से आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए औद्योगिक विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। भारत में पेट्रोल तथा रासायनिक पदार्थों के विकास के लिए निवेश में वृद्धि की गई। इस योजना काल में औद्योगिक उत्पादन को वार्षिक दर 5% रही।

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5. पांचवीं योजना में उद्योग (Industries in Fifth Plan)-पांचवीं योजना (1974-78) में औद्योगिक विकास में. ६, वार्षिक विकास दर प्राप्त करने के लिए बनाई गई थी। इस योजना में उद्योगों के विकास के लिए सा जनिक क्षेत्र में 39,426 करोड़ रुपए का निवेश किया गया। योजना काल में इस्पात, उर्वरक, खनिज तेल, निर्यात, कपड़ा, चीनी इत्यादि उद्योगों के विकास की तरफ विशेष ध्यान दिया गया परन्तु औद्योगिक उत्पादन में विकास दर 5.3% रही।

6. छठी योजना में उद्योग (Industries in Sixth Plan)-छठी योजना (1980-85) में नए उद्योग स्थापित करने का लक्ष्य रखा गया। विशेषतया टेलीफोन तथा इलेक्ट्रोनिक्स उद्योगों की तरफ अधिक ध्यान. दिया गया। इस योजना में औसत वार्षिक विकास दर 5.5% वार्षिक रही।

7. सातवीं योजना में उद्योग (Industries in Seventh Plan)-सातवीं योजना (1985-90) में देश में औद्योगीकरण की नीति जारी रही। इस योजना में बड़े उद्योगों तथा खनिजों के उत्पादन की तरफ विशेष ध्यान दिया गया। उत्पादन में वृद्धि करने के लिए तकनीक को विकसित करने का कार्य आरम्भ किया गया। देश की आवश्यकताओं को ध्यान में रख कर उद्योगों को विकसित करने की योजना बनाई गई। विकास सम्भावना वाली सन्राइज इण्डस्ट्री (Sun Rise Industry) की स्थापना की गई। इस योजना काल में औद्योगिक विकास दर 8.5% वार्षिक रही।

8. आठवीं योजना में उद्योग (Industries in 8th Plan).- आठवीं योजना (1992-97) में उद्योगों पर कृषि से अधिक खर्च करने का कार्यक्रम बनाया गया। इस योजना में सार्वजनिक क्षेत्रों के उद्योगों के विकास के लिए 44.33 करोड़ रुपए खर्च किए गा ! इस निवेश का मुख्य लक्ष्य निजी उद्योगों की उत्पादन शक्ति में वृद्धि करना रखा गया।

9. नौवीं योजना में उद्योग (Industries in 9th Plan)-नौवीं योजना (1997-2002) में उदारीकरण की नीति को अपनाया गया है। नई औद्योगिक नीति के अनुसार उद्योगों में उत्पादन शक्ति को बढ़ाकर शेष विश्व की जस्तुओं से मुकाबला करने के योग्य बनाना है। इसके लिए सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता दी है। पूंजी बाज़ार को विशाल बनाया गया है। इस योजना में औद्योगिक विकास दर 5.5% रही।

10. दसवीं योजना में उद्योग (Industries in 10th Plan)-दसवीं पंचवर्षीय योजना 2002-07 में उदारीकरण व निजीकरण की नीति को अपनाया गया है। इस योजना काल में 8.2% वार्षिक विकास दर प्राप्त की गई है।

11. ग्यारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 11th Plan)-ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-12) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 15% प्रति वर्ष रखा गया है। ग्यारहवीं योजना में औद्योगिक विकास पर 153600 करोड़ रुपए व्यय किया गया।

12. बारहवीं योजना में उद्योग (Industries in 12th Plan)-बारहवीं योजना (2012-17) में औद्योगिक विकास का लक्ष्य 9% रखा गया है। इस योजना काल में 292098 करोड़ रुपए व्यय किये जाएंगे।

प्रश्न 3.
भारत में घरेलू तथा लघु पैमाने के उद्योगों के महत्त्व की व्याख्या करें। (Explain the importance of cottage and small scale industries in India.)
उत्तर-
माईक्रो, लघु तथा मध्यम उद्योगों की परिभाषा (Definition of Micro, Small and Medium Industries)-भारत में माईक्रो, लघु तथा मध्यम उद्योगों के विकास एक्ट के अनुसार इन उद्योगों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है-वित्त मन्त्री निर्मला सीतारमण ने 2 फरवरी 2020 को बजट में इन उद्योगों की परिभाषा बदल दी है-

निर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector)-

उद्यम श्रेणी प्लांट तथा मशीनरी पर निवेश
माईक्रो उद्यम ₹ 1 करोड़ से अधिक निवेश नहीं होना चाहिए।
लघु उद्यम ₹10 करोड़ से अधिक परन्तु ₹ 50 करोड़ का उत्पादन नहीं होना चाहिए।
मध्यम उद्यम ₹ 10 करोड़ से अधिक परन्तु ₹ 50 करोड़ से अधिक निवेश नहीं होना चाहिए।

भारत में घरेलु तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का महत्त्व बहुत अधिक है। यह उद्योग भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 8% योगदान डालते हैं। इस उद्योगों द्वारा उत्पादन का 40% भाग निर्यात किया जाता है। भारत में इन उद्योगों की संख्या 26 मिलियन है जिसमें 60 मिलियन मज़दूरों को रोजगार दिया जाता है।

इन उद्योगों के महत्त्व को निम्नलिखित से ज्ञात किया जा सकता है –
1. रोज़गार (Employment)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग श्रम गहन होने के कारण रोज़गार में वृद्धि करते हैं। भारत में जनसंख्या बहुत अधिक है। इसलिए बेरोज़गारी की समस्या पाई जाती है। बेरोज़गारी को दूर करने के लिए घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योग अधिक योगदान दे सकते हैं। लघु तथा मध्यम वर्ग के उद्योगों द्वारा 7.2 लाख लोगों को रोजगार प्रदान किया जाता है।

2. पूंजी की कम आवश्यकता (Need for Less Capital)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों में पूंजी की कम आवश्यकता होती है। इसलिए भारत जैसे निर्धन देश में यह उद्योग विशेष महत्त्व रखते हैं।

3. विदेशी सहायता की आवश्यकता नहीं (No need of Foreign Help)-घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों को स्थापित करने के लिए विदेशी मशीनों तथा आधुनिक तकनीकों की आवश्यकता नहीं होती। घरेलू तकनीक द्वारा ही उत्पादन में वृद्धि की जा सकती है।

4. कृषि पर जनसंख्या का कम बोझ (Less Pressure of Population on Agriculture)-भारत में कृषि पर 70% लोग निर्भर करते हैं। कृषि पर से जनसंख्या का बोझ हटाने के लिए घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास आवश्यक है।

5. आय का समान विभाजन (Equal Distribution of Income)-भारत में आय का असमान विभाजन पाया जाता है। अमीर तथा निर्धन लोगों की आय में अन्तर बहुत अधिक है। आय के समान विभाजन के लिए भी घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों का विकास आवश्यक है।

6. उद्योगों का विकेन्द्रीकरण (Decentralisation of Industries)-बड़े पैमाने के उद्योग एक स्थान पर केन्द्रित हो जाते हैं। उद्योगों में विकेन्द्रीकरण के लिए घरेलू तथा छोटे उद्योगों का विकास आवश्यक है।

7. बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए सहायक (Helpful to Large Scale Industries)-छोटे पैमाने के उद्योगों में ऐसी वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है जो कि बड़े पैमाने के उद्योगों के लिए सहायक हो सके जैसे कि साइकिल बनाने के उद्योगों के लिए छोटे पैमाने के उद्योगों द्वारा हैण्डल, स्टैण्ड, तारें इत्यादि नियमित किए जा सकते हैं।

8. कम औद्योगिक लड़ाई-झगड़े (Less Industrial Disputes)-बड़े पैमाने के उद्योगों से औद्योगिक लड़ाई-झगड़े आरम्भ हो जाते हैं परन्तु छोटे पैमाने पर उत्पादन करने से औद्योगिक झगड़ों की सम्भावना कम हो जाती है।

9. किसानों की आय में वृद्धि (Supplement to Farmer’s Income)-घरेलू उद्योग विशेषतया किसानों द्वारा आरम्भ किए जा सकते हैं। इससे किसानों की आय में वृद्धि हो सकती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 4.
भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक नीति की आलोचना सहित व्याख्या करें। (Critically examines the Industrial Policy of India after Independence.)
अथवा
भारत में 1991 की औद्योगिक नीति की व्याख्या करें। (Explain the Industrial Policy of 1991 in India.)
अथवा
भारत की नई औद्योगिक नीति को स्पष्ट करें। (Explain the New Industrial Policy of India.)
उत्तर-
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात् औद्योगिक नीति का निर्माण किया गया। औद्योगिक नीति समय-समय पर परिवर्तित की गई है, जिसका विवरण इस प्रकार है-
1. औद्योगिक नीति 1948 (Industrial Policy of 1948)-भारत में स्वतन्त्रता के पश्चात् अर्थव्यवस्था (Mixed Economy) को अपनाया गया। इसमें औद्योगिक विकास के लिए सार्वजनिक क्षेत्र तथा निजी क्षेत्र के कार्य क्षेत्र निर्धारित किए गए। उद्योगों को चार क्षेत्रों में विभाजित करके स्पष्ट किया गया।

  • सार्वजनिक क्षेत्र
  • सरकारी तथा निजी क्षेत्र
  • नियमित निजी क्षेत्र
  • निजी तथा सहकारी क्षेत्र में बनाई गई।

2. इस नीति में-

  • सार्वजनिक क्षेत्र में 17 उद्योगों का वर्णन किया गया।
  • सरकारी तथा निजी क्षेत्र में साझे तौर पर चलाने के लिए 12 उद्योग रखे गए।
  • निजी क्षेत्र में शेष उद्योगों को शामिल किया गया। घरेलू तथा छोटे पैमाने के उद्योगों की तरफ विशेष ध्यान दिया गया है।

इस औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया गया तथा एकाधिकारी शक्तियों को नियन्त्रण में रखा गया।

3. औद्योगिक नीति 1997 (Industrial Policy of 1977)-1977 में जनता सरकार का राज्य स्थापित हुआ। इसलिए उन्होंने 1956 की औद्योगिक नीति में कुछ परिवर्तन किए परन्तु 1980 में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने भी औद्योगिक नीति में परिवर्तन किए। नई औद्योगिक नीति 1991 (New Industrial Policy of 1991)–भारत सरकार ने 24 जुलाई, 1991 को नई औद्योगिक नीति की घोषणा की।

इस नीति की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं –

  1. सरकारी क्षेत्र का संकुचन (Contraction of Public Sector)-नई नीति के अनुसार सरकारी क्षेत्र में सैन्य उपकरण, परमाणु, ऊर्जा, खनन तथा रेल यातायात के चार उद्योग रहेंगे जबकि शेष उद्योग निजी क्षेत्र के लिए आरक्षित किए गए।
  2. लाइसेंस की समाप्ति (Delicensing)-नई औद्योगिक नीति में 18 उद्योग रखे गए जिनके लिए लाइसेंस लेने की आवश्यकता है जैसे कि कोयला, पेट्रोलियम, शराब, चीनी, मोटर, कारें, दवाइयां इत्यादि। इनके अतिरिक्त अन्य उद्योगों में लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है।
  3. विदेशी पूंजी (Foreign Capital)-नई नीति के अनुसार विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 40% से बढ़ा कर 51% की गई है।
  4. बोर्डों का संगठन (Organisation of Boards)-नई नीति के अनुसार विदेशी पूंजी को उत्साहित करने के लिए विशेष बोर्डों का गठन किया जाएगा।
  5. तकनीकी माहिर (Technical Experts)-नई नीति में तकनीकी माहिरों की सहायता लेकर औद्योगिक विकास किया जाएगा।
  6. सरकारी निर्णय (Government Decision)-सरकार ने भारतीय औद्योगिक अर्थव्यवस्था को अफसरशाही नियन्त्रण के चंगुल से बाहर निकालने का फैसला किया विशेषतया सुरक्षा के क्षेत्र तथा अन्य आवश्यक क्षेत्र सार्वजनिक क्षेत्र में आरक्षित रखे जाएंगे जबकि अन्य क्षेत्रों में निजी पूंजीपतियों को निवेश करने की छूट दी जाएगी। भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में लगातार हो रही हानि को ध्यान में रख कर नई औद्योगिक नीति उदारवादी नीति बनाई गई है। बारहवीं योजना में विकास दर 89% प्राप्त करने का लक्ष्य है।

नई नीति का मूल्यांकन (Evaluation of New Industrial Policy)गुण (Merits)-

  1. नई नीति से उद्योगों की कुशलता में वृद्धि होगी।
  2. देश में विदेशी तकनीकों के प्रयोग के कारण उत्पादन में वृद्धि होगी।
  3. यह नीति उदारवादी नीति है जिसमें निजी क्षेत्र को प्राथमिकता दी गई है।
  4. भारतीय उद्योगों को विदेशी उद्योगों से प्रतियोगिता करने के समर्थ बनाने का यत्न किया गया है।
  5. घरेलू तथा छोटे उद्योगों को अधिक महत्त्व प्रदान किया गया है तथा मजदूरों के कल्याण के लिए कार्यक्रम बनाए गए हैं।

त्रुटियां (Shortcomings)-

  • इससे सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्व कम हो गया है।
  • सरकारी कर्मचारियों की निरन्तर छंटनी हो रही है।
  • आर्थिक शक्ति कुछ हाथों में केन्द्रित हो जायेगी तथा एकाधिकारी शक्तियों का निर्माण होगा।
  • विदेशी पूंजी से आर्थिक गुलामी की स्थिति उत्पन्न होगी।
  • इस नीति से सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति नहीं की जा सकती तथा पिछड़े क्षेत्रों का विकास नहीं होगा।

प्रश्न 5.
भारत में औद्योगीकरण की मुख्य समस्याओं का वर्णन करें। उद्योगों के विकास के लिए सुझाव दें।
(Explain the main problems of Industrialization in India. Suggest measures for the Industrial development.)
उत्तर –
भारत में औद्योगिक विकास सन्तोषजनक नहीं हुआ। आज भी कृषि क्षेत्र का योगदान राष्ट्रीय आय में अधिक है। औद्योगिक विकास न होने के मुख्य कारण इस क्षेत्र की कुछ समस्याएं हैं जो कि इस प्रकार हैं-

कम प्राप्तियां (Less Achievements)-
भारत की भिन्न-भिन्न योजनाओं में विकास दर के लक्ष्य हमेशा अधिक रखे गए हैं। प्रत्येक योजना में 8% विकास दर प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया परन्तु वास्तव में 5.6% विकास दर प्राप्त की गई है। इसलिए निर्धारित लक्ष्यों तथा प्राप्तियों में बहुत अन्तर पाया जाता है।

  1. बीमार उद्योग (Industrial Sickness)-भारत के रिज़र्व बैंक ने व्यापारिक बैंकों से जो सूचना प्राप्त की है उसके अनुसार 31 मार्च, 2019 तक 2,40,000 बीमार औद्योगिक इकाइयां थीं। 2019 में छोटे पैमाने के उद्योगों की बीमार इकाइयों की संख्या 1,13,178 थी। इस प्रकार बीमार इकाइयों की संख्या में वृद्धि होने के कारण औद्योगिक विकास नहीं हो रहा है।
  2. बड़े घरानों का विकास (Growth of Big Houses)-भारत में टाटा, बिरला, डाल्मिया, श्री राम, मफतलाल जैसे बड़े घरानों के पास सम्पत्ति निरन्तर बढ़ रही है। इस प्रकार देश की आर्थिक शक्ति थोड़े से हाथों में केन्द्रित हो रही है।
  3. विलास वस्तुओं का उत्पादन (Production of Luxury things)-भारत में औद्योगिक वस्तुओं के उत्पादन में अमीर लोगों द्वारा उपभोग की जाने वाली वस्तुओं का अधिक उत्पादन किया जाता है जबकि साधारण लोगों द्वारा प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं में उत्पादन की तरफ ध्यान नहीं दिया गया।
  4. क्षेत्रीय असन्तुलन (Regional Imbalance)-भारत में उद्योग थोड़े से राज्यों में केन्द्रित हो गए हैं जैसे कि महाराष्ट्र, गुजरात, तमिलनाडु राज्य औद्योगिक पक्ष से विकसित हैं जबकि बिहार, उड़ीसा, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश औद्योगिक पक्ष से पिछड़े हुए राज्य हैं।
  5. कम सुविधाएं (Less Facilities)-भारत के उद्योगों को बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है जैसे कि विदेशी प्रतियोगिता, विद्युत्, प्राकृतिक साधनों की कमी, प्रशिक्षण के माहिरों की कमी जिसके कारण औद्योगिक क्षेत्रों की उत्पादकता बहुत कम है। परिणामस्वरूप उद्योगों द्वारा लक्ष्यों की प्राप्ति नहीं की जा सकती।

औद्योगिक (Suggestion for Industrial Growth) –

  • आधुनिकीकरण (Modernisation)-भारत में उद्योगों के आधुनिकीकरण की आवश्यकता है। इस लक्ष्य के लिए नई मशीनों तथा औज़ारों का निर्माण करना चाहिए ताकि उद्योगों में उत्पादन लागत कम हो सके।
  • मूलभूत सुविधाएं (Basic Facilities) उद्योगों के विकास के लिए मूलभूत सुविधाएं जैसे कि कच्चा माल, साख सहूलियतें, करों में राहत तथा लघु उद्योगों को सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त शक्ति, कोयला, यातायात के साधन, सड़कें, रेलों का विकास करने की आवश्यकता है।
  • सरकारी सहायता (Government Assistance) सरकार को औद्योगिक विकास के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करना चाहिए। बीमार इकाइयों के सम्बन्ध में उचित नीति अपनानी चाहिए। उत्पादन करने की विधियों में परिवर्तन करके मांग में वृद्धि करनी चाहिए।
  • वस्तुओं का मानकीकरण (Standardisation of Products)-भारत में वस्तुओं के मानकीकरण की आवश्यकता है ताकि विश्व स्तर पर वस्तुओं को प्रतियोगिता करने के योग्य बनाया जा सके। इसके लिए सरकार को नई मण्डियों की खोज करनी चाहिए। वस्तुओं का प्रचार करके मांग में वृद्धि करने की आवश्यकता है।
  • औद्योगिक केन्द्र (Industrial Centres)-देश में कच्चे माल, विद्युत्, जल, मज़दूरों इत्यादि साधनों को ध्यान में रख कर औद्योगिक केन्द्र स्थापित करने चाहिए, विशेषतया कृषि उद्योगों को गांवों में स्थापित करने की आवश्यकता है। इस प्रकार सरकार को भिन्न-भिन्न प्रकार की सूचना प्रदान करके उद्योगों के विकास की तरफ ध्यान देना चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 20 भारत में औद्योगिक विकास नीति तथा लाइसेसिंग

प्रश्न 6.
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति से क्या अभिप्राय है ? भारत में लाइसेंस नीति के उद्देश्य तथा कार्य कुशलता का मूल्यांकन करें।
(What is meant by Industrial Licensing Policy? Discuss the objectives of this Policy. Evaluate the working of this Policy.)
उत्तर-
औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति (Industrial Lincensing Policy) स्वतन्त्रता के बाद भारत सरकार ने सन् 1951 में एक एक्ट ‘औद्योगिक विकास एवं नियमन’ पास किया जिसके अनुसार प्रत्येक उद्योग को सरकार से अनुमति लेकर ही औद्योगिक उत्पादन करने का हक होता था। बिना सरकार की अनुमति और बिना लाइसेंस कोई भी व्यक्ति उद्योग स्थापित नहीं कर सकता था।

औद्योगिक कहां स्थापित किया जाए, कौन-सी वस्तु का उत्पादन किया जाए- और उस वस्तु का कितनी मात्रा में उत्पादन किया जाए, इन बातों के लिए लाइसेंस लेना ज़रूरी था। सरकार की इस नीति को औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति कहा जाता है। औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के उद्देश्य (Objectives of Industrial Lincensing Policy)-औद्योगिक लाइसेंसिंग नीति के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं-

  1. निवेश तथा उत्पादन पर नियन्त्रण-औद्योगिक नीति का उद्देश्य भारत में निवेश तथा उत्पादन पर नियन्त्रण रखना था। इस प्रकार विभिन्न योजनाओं में औद्योगिक विकास के लक्ष्यों की पूर्ति सम्भव है।
  2. लघु उद्योगों का विकास-बड़े पैमाने के उद्योगों के विकास से लघु उद्योगों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लाइसेंसिंग नीति द्वारा सरकार उन उद्योगों को अनुमति नहीं देती थी जिनके विकास से लघु उद्योगों पर बुरा प्रभाव पड़े।
  3. क्षेत्रीय सन्तुलन-भारत में सभी उद्योग एक स्थान पर केन्द्रित न हो जाए और देश के हर क्षेत्र का विकास हो इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए भी लाइसेंसिंग नीति अनिवार्य भी है।
  4. तकनीकी सुधार-औद्योगिक नीति का उद्देश्य तकनीकी सुधारों को बढ़ावा देना भी है।
  5. विकेन्द्रीयकरण-उद्योगों के विकेन्द्रीयकरण के लिए भी लाइसेंसिंग नीति ज़रूरी थी। इस नीति का एक उद्देश्य उद्योगों का सन्तुलित विकास करना भी है। इसलिए नई औद्योगिक इकाइयां लाभ के लिए, वर्तमान में चल रही औद्योगिक ईकाइयों का पंजीकरण अनिवार्य है। नए उत्पादन बनाने के लिए और उत्पादन का विस्तार करने के लिए भी लाइसेंस लेना अनिवार्य है। यदि उद्यमी औद्योगिक इकाई के स्थान में परिवर्तन करता है तो इस के लिए भी सरकार की अनुमति अनिवार्य है।

लाइसेंसिंग नीति का मूल्यांकन (Evaluation of the Licensing Policy)-भारत में औद्योगिक नीति इस प्रकार रही है-
1. अनिवार्य लाइसेंसिंग-भारत में 1951 की नीति के अनुसार उन उद्योगों के लिए लाइसेंस लेना आवश्यक था जिनकी स्थाई पूंजी 10 लाख रुपए थी। इस सीमा में समय-समय पर परिवर्तन किया गया है। यह सीमा 1970 में एक करोड़, 1990 में 25 करोड़ कर दी गई। 1991 की नई औद्योगिक नीति में सुरक्षा से सम्बन्धित 14 उद्योगों को छोड़कर किसी उद्योग को लाइसेंस लेने की आवश्यकता नहीं है। 1999 में से 6 उद्योग हैं जिनके लिए लाइसेंस लेना अनिवार्य है। यह उद्योग है, तम्बाकू उत्पादन, सुरक्षा उपकरण, औद्योगिक विस्फोटक, दवाइयां, खतरनाक रसायन और एरोस्पेस । सरकार की इस नई औद्योगिक नीति को उदारवादी नीति कहा जाता है।

2. एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (M.R.T.P. Act)–भारत सरकार ने एकाधिकार पर नियन्त्रण पाने के लिए एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम बनाया था जिसको 1969 में लागू किया गया। बड़े औद्योगिक गृहों पर नियन्त्रण पाने के लिए इस नियम को लागू किया गया ताकि बड़े घरानों पर प्रतिबन्ध लगाया जा सके। इस नियम को 2002 में समाप्त कर दिया गया है।

3. लघु उद्योगों को संरक्षण-लघु उद्योगों के लिए सरकार ने कई वस्तुओं के उत्पादन को सुरक्षित कर दिया है जिनका उत्पादन बड़े पैमाने के उद्योगों में नहीं किया जा सकता। 2016-17 में लघु उद्योगों के लिए 598 वस्तुएं सुरक्षित की गई हैं।

4. सार्वजनिक क्षेत्र के लिए संरक्षण-सार्वजनिक क्षेत्र को भारत में पहले अधिक महत्त्व दिया जाता था। अब सार्वजनिक क्षेत्र के स्थान पर निजी क्षेत्र को अधिक महत्त्व दिया जाता है। स्वतन्त्रता के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र के लिए 17 उद्योग सुरक्षित रखे गए थे। इन उद्योगों की संख्या 1991 में कम करके 8 की गई तथा 2004-05 में केवल 3 उद्योग ही सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित है। 31 मार्च, 2016 तक कुल 62 औद्योगिक इकाइयां काम कर रही थीं, जिनमें 5,28,951 करोड़ रुपए का निवेश किया गया था।

सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्योगों के अध्ययन के लिए एक बोर्ड की स्थापना की गई। इस बोर्ड द्वारा अक्तूबर 2015 को 62 उद्योगों के पुनर्गठन की सिफ़ारिश की। बोर्ड ने 43 उद्योगों के पुनर्निर्माण (Revival) की मन्जूरी दी और 2 उद्योगों को बन्द करवा दिया। पुनर्निर्माण उद्योगों को 25104 करोड रुपए की सहायता दी। फलस्वरूप 13 उद्योगों द्वारा अधिक उत्पादन करके लाभ प्राप्त किया। भारत में लाइसेंसिंग नीति 1951 में लागू की गई इस नीति में सुधार के लिए समय-समय पर समितियों की स्थापना की गई। 1967 में हजारी समिति तथा 1969 में दत्त समिति में लाइसेंसिंग नीति में सुधार करने के लिए सुझाव दिये। इसके बाद औद्योगिक लाइसेंसिंग में 1991 तक बहुत तबदीली की गई। इन परिवर्तनों का मुख्य उद्देश्य लाइसेंसिंग नीति को सरल बनाना था।

इस प्रकार लाइसेंसिंग नीति में आए परिवर्तन के कारण अब यह नीति उदारवादी नीति में तबदील हो चुकी है। इस कारण देश में उद्योगों के विकास को बढ़ावा मिला है। नई सरकार ने ‘Make in India’ की नीति अपनाई है जिसमें नई क्रियाएं, नया आर्थिक ढांचा, नई मानसिक सोच तथा नए क्षेत्रों के विकास पर बल दिया गया है। वर्ष 2022 तक औद्योगिक क्षेत्र में 25% वृद्धि का लक्ष्य रखा गया है। अब सरकार सार्वजनिक उद्यमों में विनिवेश की नीति अपना रही है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

PSEB 12th Class Economics अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था।

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 4.
अभावी मांग में वृद्धि के लिए राजकोषीय नीति के कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए कोई एक राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
करों में कमी-अभावी मांग की वृद्धि के लिए, करों में कमी करनी चाहिए। इससे मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल में कमी होगी।

प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

प्रश्न 6.
मौद्रिक नीति के कोई एक उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना।

प्रश्न 7.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।

प्रश्न 8.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति का कोई एक उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति का कोई एक उपकरण बताओ।
उत्तर-
बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है।

प्रश्न 9.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 10.
उधार की सीमान्त शर्ते (Marginal Requirements of Laws) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
उधार की सीमान्त शर्तों का अर्थ है उधार लेने के लिए गिरवी रखी जाने वाली वस्तु का प्रचलित कीमत तथा दिए जाने वाले ऋण की मात्रा का अन्तर होता है।

प्रश्न 11.
सस्ती मुद्रा नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सस्ती मुद्रा नीति वह स्थिति होती है, जिसमें लोगों को कम ब्याज की दर पर आसानी से मुद्रा प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 12.
महंगी मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
महंगी मौद्रिक नीति वह स्थिति होती है, जिसमें ब्याज की दर अधिक होती है तथा आसानी से ऋण प्राप्त नहीं किया जा सकता। इस नीति का उद्देश्य लोगों के व्यय को घटाना होता है ताकि मुद्रा स्फीति की समस्या का हल किया जा सके।

प्रश्न 13.
प्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष कर वह कर होते हैं जोकि जिन मनुष्यों पर लगाए जाते हैं, उन मनुष्यों को ही कर का भार सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
अप्रत्यक्ष कर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष कर वह कर है जो लगाया एक मनुष्य पर जाता है, परन्तु उसका भार किसी अन्य मनुष्य को सहन करना पड़ता है।

प्रश्न 15.
वह कर जो जिन व्यक्तियों पर लगाए जाते हैं उनको ही कर का भार सहन करना पड़ता है को …………….. कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) प्रत्यक्ष कर।

प्रश्न 16.
वह कर जो लगाए एक व्यक्ति पर जाते हैं परन्तु कर का भार और व्यक्तियों को सहन करना पड़ता है को ………………… कहते हैं।
(क) प्रत्यक्ष कर
(ख) अप्रत्यक्ष कर
(ग) प्रगतिशील कर
(घ) प्रतिगामी कर।
उत्तर-
(ख) अप्रत्यक्ष कर।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 17.
व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं
(क) खुशहाली,
(ख) सुस्ति,
(ग) मन्दी,
(घ)……. हैं।
उत्तर-
पूर्ण चेतना।

प्रश्न 18.
वह दर जो केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय प्राप्त करता है को कहते हैं।
उत्तर-
बैंक दर।

प्रश्न 19.
घाटे की वित्त व्यवस्था से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब सरकार उदार मुद्रा लेकर अथवा नए नोट छुपा कर सार्वजनिक व्यय करती है तो इस को घाटे की वित्त व्यवस्था कहते हैं।

प्रश्न 20.
किसी व्यापारिक बैंक की जमा राशि का वह न्यूनतम भाग जो केन्द्रीय बैंक के पास जमा रखना पड़ता है को ……………….. कहते हैं।
उत्तर-
न्यूनतम नकद निधि अनुपात।

प्रश्न 21.
वह नीति जिस द्वारा देश की सरकार और केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में आर्थिक स्थिरता लाने के लिए मुद्रा और ब्याज दर को नियंत्रित करते हैं को …………. कहते हैं।
उत्तर-
मौद्रिक नीति।

प्रश्न 22.
निश्चित उद्देश्यों को प्राप्ति करने के लिए आमदन, व्यय और ऋण संबंधी नीति को ……………. कहते हैं।
(क) मौद्रिक नीति
(ख) राजकोषीय नीति
(ग) वित्त नीति
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) राजकोषीय नीति।

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प्रश्न 23.
मंदीकाल और तेज़ीकाल की स्थिति को व्यापारिक चक्र कहा जाता है।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 24.
देश का केंद्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय जो ब्याज की दर प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं।
उत्तर-
सही।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति से अभिप्राय सरकार की आय तथा व्यय नीति से होता है। यह नीति अधिक मांग तथा अभावी मांग की समस्याओं का हल करने के लिए अपनाई जाती है। इसलिए सरकार के निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आमदन (कर) तथा व्यय नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है।

प्रश्न 2.
राजकोषीय नीति के मुख्य औज़ार (Instruments) कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
सरकार की आय के मुख्य औज़ार-
(A) सरकार की आय के मुख्य औज़ार हैं-

  • कर
  • सार्वजनिक ऋण
  • घाटे की वित्त व्यवस्था

(B) सरकार के व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं-

  • सार्वजनिक निर्माण जैसे कि सड़कें, नहरें इत्यादि
  • सार्वजनिक कल्याण (शिक्षा)
  • देश की सुरक्षा तथा अनुशासन
  • आर्थिक सहायता।

प्रश्न 3.
अधिक मांग में कमी के लिए राजकोषीय नीति का प्रयोग कैसे किया जाता है ? कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल को घटाने के लिए कोई दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर अधिक लगाने चाहिए इससे देश के नागरिकों की आय तथा खरीद शक्ति कम हो जाती है तथा अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल की समस्या का हल होता है।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सेहत, शिक्षा तथा आर्थिक सहायता के रूप में दी जाने वाली सहायता तथा कम व्यय करना चाहिए। इससे स्फीतिक अन्तर कम हो जाता है।

प्रश्न 4.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति है, जिसका सम्बन्ध मौद्रिक अधिकारियों द्वारा –
(a) मुद्रा की पूर्ति
(b) ब्याज की दर
(c) मुद्रा की उपलब्धता को प्रभावित करना है अर्थात् मुद्रा नीति से अभिप्राय वह उपाय है जो अर्थव्यवस्था में नकद मुद्रा तथा उधार मुद्रा को नियन्त्रण करते हैं।

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प्रश्न 5.
मौद्रिक नीति के कोई दो उपायों को स्पष्ट करो।
उत्तर-

  • बैंक दर-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर किसी देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देता है। बैंक दर के बढ़ने से ब्याज की दर बढ़ जाती है तथा उधार निर्माण कम हो जाता है।
  • खुले बाजार की नीति-खुले बाज़ार की नीति का अर्थ है बाज़ार में केन्द्रीय बैंक द्वारा प्रतिभूतियों को खरीदना तथा बेचना। जब साख निर्माण करना होता है तो केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदता है।

प्रश्न 6.
अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
स्फीतिक अन्तराल में कमी के लिए मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  1. बैंक दर में वृद्धि-बैंक दर में वृद्धि की जाती है ताकि ब्याज की दर बाज़ार में बढ़ जाए तथा लोग कम उधार लें।
  2. खुले बाज़ार की नीति-खुले बाज़ार में सरकार प्रतिभूतियाँ बेचती है। इसे लोग बैंकों में से पैसे लेकर केन्द्रीय बैंक की प्रतिभूतियाँ खरीद लेते हैं तथा स्फीतिक अन्तर तथा अधिक मांग कम हो जाती है।

प्रश्न 7.
अभावी मांग तथा मौद्रिक नीति के कोई दो उपाय बताओ।
अथवा
अस्फीतिक अन्तर समय मौद्रिक नीति के कोई दो उपकरण बताओ।
उत्तर-

  • बैंक दर में कमी-अभावी मांग समय बैंक दर में कमी की जाती है। ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार मुद्रा की मांग में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार की नीति-केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ खरीदता है। इससे अर्थव्यवस्था की कार्य शक्ति में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नकद रिज़र्व अनुपात से अभिप्राय उस राशि से होता है जोकि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का निश्चित प्रतिशत हिस्सा केन्द्रीय बैंक के पास नकदी के रूप में रखना पड़ता है। नकद रिज़र्व अनुपात देश के केन्द्रीय बैंक द्वारा निश्चित किया जाता है।

III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
व्यापारिक चक्रों से क्या अभिप्राय है ? व्यापारिक चक्रों की मुख्य अवस्थाएं बताओ। ..
अथवा
चक्रीय परिवर्तनों की अवस्थाओं को स्पष्ट करो।
उत्तर-
व्यापारिक चक्र एक अर्थव्यवस्था में अच्छे समय तथा बुरे समय की स्थिति में होता है। अभावी मांग तथा अधिक मांग के परिणामस्वरूप किसी देश में आमदन, उत्पादन तथा रोज़गार में जो उतार-चढ़ाव आते हैं, उनको चक्रीय परिवर्तन अथवा व्यापारिक चक्र कहते हैं। व्यापारिक चक्रों की चार अवस्थाएं होती हैं।

  1. प्रथम अवस्था (खुशहाली)-इस स्थिति में आमदन, रोज़गार, व्यय, बचत, निवेश, लाभ में वृद्धि होती है।
  2. द्वितीय अवस्था (सुस्ती)-कुछ उद्योगों में आय रोज़गार उत्पादन घटता है, जिसका प्रभाव अन्य क्षेत्रों में पड़ता है।
  3. तीसरी अवस्था (मन्दी)-इस स्थिति में आमदन तथा रोज़गार बहुत कम हो जाते हैं तथा बुरी स्थिति होती है।
  4. चौथी अवस्था (पुनः चेतना)-इस स्थिति में रोज़गार बढ़ने लगता है तथा आर्थिक गति में वृद्धि होने लगती है।

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प्रश्न 2.
सरकारी क्षेत्र से अर्थव्यवस्था ( अधिक मांग की समस्या) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
सरकारी क्षेत्र का महत्त्व प्रो० केन्ज़ ने स्पष्ट किया था। जब सरकार व्यय करती है तो इससे अभावी मांग को दूर किया जा सकता है तथा कर लगाकर सरकार अधिक मांग की समस्या का हल करती है। सरकार के योगदान के कारण अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं –

  1. कर (Taxes)-सरकार लोगों पर कर लगाती है। प्रत्यक्ष कर लगाने से लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाती है तथा अप्रत्यक्ष करों से लोगों की खरीद शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस प्रकार करों में वृद्धि तथा कमी करके सरकार अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या का हल करती है।
  2. सार्वजनिक व्यय (Public Expenditure)-सरकार द्वारा जो आय प्राप्त की जाती है, इसको लोगों की भलाई पर व्यय किया जाता है। सरकार द्वारा लोक निर्माण कार्यों, सड़कों, नहरों, पुलों इत्यादि पर व्यय किया जाता है तथा सरकार हस्तांतरण भुगतान, बुढ़ापा पैन्शन इत्यादि देती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति पर वृद्धि होती है।
  3. सार्वजनिक ऋण (Public Debt)-जब देश में अधिक मांग की स्थिति होती है तो सरकार लोगों से ऋण लेती है। इससे लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है।
  4. घाटे की वित्त व्यवस्था (Deficit Financing) अभावी मांग के समय सरकार घाटे की वित्त व्यवस्था का प्रयोग करती है। इससे लोगों की मौद्रिक आय में वृद्धि होती है तथा मांग बढ़ जाती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 3.
उधार नियन्त्रण के विभिन्न ढंगों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
बैंक दर नीति तथा खुले बाज़ार की नीति उधार की उपलब्धता को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिसमें-

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत (ब्याज की दर) तथा
  • मुद्रा की उपलब्धता उधार (नियन्त्रण) द्वारा आवश्यक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है।

मौद्रिक नीति के मुख्य औज़ार निम्नलिखित अनुसार हैं –

  1. बैंक दर (Bank Rate)-बैंक दर वह दर होती है, जिस पर देश का केन्द्रीय बैंक, व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त करता है।
  2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)-इस नीति में देश का केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों की खरीद-बेच करता है। जब प्रतिभूतियां बेची जाती हैं तो लोगों के पास पैसा केन्द्रीय बैंक के पास चला जाता है तथा लोगों की खरीद शक्ति कम हो जाती है। व्यापारिक बैंकों की उधार देने की शक्ति भी कम हो जाती है।
  3. नकद रिज़र्व अनुपात (Cash Reserve Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को अपने पास जमा राशि का कुछ भाग केन्द्रीय बैंक के पास नकद रखना पड़ता है, जिसको नकद रिज़र्व अनुपात कहते हैं। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जाता है तथा नकद रिज़र्व अनुपात घटाकर उधार बढ़ाया जाता है।
  4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-केन्द्रीय बैंक के आदेश अनुसार व्यापारिक बैंकों को जमा राशि का कुछ भाग अपने पास नकद रखना पड़ता है, जिसको तरलता अनुपात कहा जाता है। इसमें वृद्धि करके उधार निर्माण को घटाया जाता है।
  5. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirement) केन्द्रीय बैंक द्वारा दिए जाने वाले उधार की कटौती निर्धारण की जाती है। ₹ 100 की वस्तु गहने रखकर बैंक ₹ 80 का उधार दे सकते हैं तो 100 – 80 = ₹ 20 अथवा 20% सीमान्त आवश्यकता होगी। इसमें परिवर्तन करके उधार को प्रभावित किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति में सार्वजनिक व्यय तथा आय द्वारा (i) अधिक मांग (ii) अभावी मांग को कैसे नियन्त्रित किया जाता है ?
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ सरकार की आय तथा व्यय की नीति से होता है। प्रो० डाल्टन के अनुसार, “सरकार के निश्चित उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, व्यय तथा उधार सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहते हैं।” इस नीति से अधिक मांग तथा अभावी मांग की स्थिति का हल किया जाता है।
1. अधिक मांग दौरान राजकोषीय नीति-

  • कर नीति-करों में वृद्धि करनी चाहिए ताकि लोगों की मांग में कमी हो सके।
  • व्यय नीति-सरकार को सार्वजनिक कार्यों, भलाई कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान पर कम व्यय करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-ऐसे समय घाटे की वित्त व्यवस्था को घटाकर मुद्रा की पूर्ति में कमी करनी चाहिए।
  • ऋण नीति-सरकार को लोगों से उधार लेना चाहिए जिससे मांग में कमी हो जाएगी।

2. अभावी मांग दौरान राजकोषीय नीति –

  • करों में कमी-अभावी मांग (Deficient Demand) समय सरकार को कर घटा देने चाहिए इससे लोगों की मांग में वृद्धि हो जाती है।
  • व्यय में वृद्धि-अभावी मांग समय सरकार को व्यय अधिक करना चाहिए।
  • घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाकर मुद्रा की पूर्ति में वृद्धि करनी चाहिए।
  • सार्वजनिक ऋण की वापसी-सरकार को ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि हो जाएगी।

प्रश्न 5.
अधिक मांग से क्या अभिप्राय है ? अधिक मांग को ठीक करने के लिए दो राजकोषीय उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जोकि पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल पूर्ति से कुल मांग की वृद्धि के कारण उत्पन्न होती है। इस स्थिति में कुल मांग का स्तर पूर्ण रोज़गार के लिए कुल पूर्ति से अधिक हो जाता है। इस स्थिति को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति के दो उपाय निम्नलिखित अनुसार हैं-

  1. करों में वृद्धि-ऐसे समय जब अधिक मांग की स्थिति होती है, सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए। नए कर लगाने चाहिए तथा पुराने करों की दर में वृद्धि करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप देश के लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाएगी तथा मांग में कमी होने से अधिक मांग की समस्या का हल हो जाएगा।
  2. सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को अधिक मांग की समस्या का हल करने के लिए सार्वजनिक व्यय में कमी करनी चाहिए। इसके परिणामस्वरूप लोगों की आय कम हो जाएगी। लोगों की मांग में कमी होगी।

प्रश्न 6.
अधिक मांग तथा अभावी मांग का हल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
अधिक मांग (Excess Demand)-यह ऐसी स्थिति है जोकि पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से अधिक मांग को प्रकट करती है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-
1. राजकोषीय नीति-

  • सरकार को करों में वृद्धि करनी चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय को सार्वजनिक कार्यों तथा हस्तान्तरण भुगतान के रूप में घटा देना चाहिए
  • सार्वजनिक ऋण अधिक लेना चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर में वृद्धि करके ब्याज की दर बढ़ानी चाहिए ताकि उधार निर्माण कम हों।
  • खुले बाज़ार में प्रतिभूतियाँ बेचनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए।
  • उधार की सीमान्त शतों में वृद्धि करनी चाहिए।

अभावी मांग (Deficient Demand)-यह स्थिति ऐसी होती हैं, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इसका हल इस प्रकार करना चाहिए –
1. राजकोषीय नीति- इसका प्रयोग अधिक मांग के विपरीत करना चाहिए-

  • कर घटाने चाहिए
  • सार्वजनिक व्यय बढ़ाना चाहिए
  • ऋण की वापसी करनी चाहिए।

2. मौद्रिक नीति-

  • बैंक दर घटानी चाहिए
  • खुले बाजार में प्रतिभूतियां खरीदनी चाहिए
  • नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए
  • उधार की शर्ते नरम करनी चाहिए।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

प्रश्न 7.
कोई चार उपाय बताओ जिनके द्वारा अभावी मांग की स्थिति को ठीक किया जा सकता है ?
अथवा
अस्फीतिक अन्तर का हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अभावी मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग कम होती है। इस स्थिति को अस्फीतिक अन्तर कहा जाता है। इसका हल करने के लिए चार उपाय इस प्रकार हैं-

  1. करों में कमी-प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष करों में कमी करनी चाहिए । इससे लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होगी।
  2. सार्वजनिक व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर अधिक व्यय करना चाहिए। सरकार को निवेश में वृद्धि करके रोजगार बढ़ाना चाहिए ।
  3. बैंक दर में कमी-सरकार को बैंक दर घटानी चाहिए। इससे ब्याज़ की दर घट जाती है तथा लोग अधिक उधार लेते हैं। इससे मांग में वृद्धि होती है।
  4. नकद रिज़र्व अनुपात में कमी-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात घटा देना चाहिए। इसके परिणामस्वरूप व्यापारिक बैंक, अधिक उधार देने में सफल होते हैं तथा मांग में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
कोई चार उपाय बताओ, जिसके द्वारा अधिक मांग की समस्या का हल किया जा सकता है ?
अथवा
स्फीतिक अन्तर को हल करने के लिए कोई चार उपाय बताओ।
उत्तर-
अधिक मांग वह स्थिति होती है, जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल पूर्ति से कुल मांग अधिक होती है। इस स्थिति को स्फीतिक अन्तर की स्थिति कहा जाता है। इस स्थिति का हल इस प्रकार किया जा सकता है-

  • करों में वृद्धि-सरकार को प्रत्यक्ष कर तथा अप्रत्यक्ष कर बढ़ाने चाहिए।
  • सार्वजनिक व्यय में कमी-सरकार को सार्वजनिक कार्यों सड़कों, नहरों, बिजली इत्यादि पर व्यय कम करना चाहिए।
  • बैंक दर में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंक को उधार देते समय जो ब्याज प्राप्त करता है उसको बैंक दर कहते हैं। इसमें वृद्धि करनी चाहिए।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि-केन्द्रीय बैंक को नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि करनी चाहिए। इससे व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं तथा मांग में कमी हो जाती है।

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न । (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
राजकोषीय नीति से क्या अभिप्राय है ? राजकोषीय नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग के समय राजकोषीय नीति को स्पष्ट करो।
(What is Fiscal Policy ? Discuss the instruments of Fiscal Policy. Explain Fiscal Policy during deficient and Excess Demand.)
अथवा
राजकोषीय नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तर तथा स्फीतिक अन्तर का हल कैसे किया जाता है ?
(How is the problem of Deflationary Gap and the Inflationary Gap be solved with Fiscal Policy ?)
उत्तर-
राजकोषीय नीति का अर्थ (Meaning of Fiscal Policy)-एक देश में निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए सरकार की आय, व्यय तथा ऋण सम्बन्धी नीति को राजकोषीय नीति कहा जाता है। इसलिए राजकोषीय नीति सरकार की आय तथा व्यय की नीति होती है, जिस द्वारा अभावी मांग अथवा अधिक मांग की समस्याओं का हल किया जाता है।

राजकोषीय नीति के औज़ार (Instruments of Fiscal Policy)-राजकोषीय नीति के औज़ारों का वर्गीकरण इस प्रकार है-
(A) सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार (Instrument related to Government Expenditure)सरकारी व्यय से सम्बन्धित औज़ार हैं

  • सार्वजनिक निर्माण के कार्य जैसे कि सड़कें, नहरें, पुल इत्यादि का निर्माण करवाना।
  • लोक सेवाएं जैसे कि शिक्षा, सेहत, बुढ़ापे में सहायता इत्यादि पर व्यय।
  • उत्पादकों को उत्पादन बढ़ाने के लिए सबसिडी देना।
  • देश की आन्तरिक तथा बाहरी सुरक्षा पर व्यय करना।

(B) सरकारी आय से सम्बन्धित औज़ार (Instruments related to Public Revenue)-इस सम्बन्ध में मुख्य औज़ार निम्नलिखित हैं

  • कर-प्रत्येक देश की सरकार की आय का मुख्य स्रोत कर होते हैं। सरकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष कर लगाती है।
  • उधार-सरकार अपने व्यय को पूरा करने के लिए लोगों से उधार भी लेती है।
  • बजट नीति-सरकार द्वारा व्यय को पूरा करने के लिए घाटे की वित्त व्यवस्था अपनाई जाती है।

अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग तथा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए राजकोषीय नीति इस प्रकार की अपनानी चाहिए –

  1. करों में कमी-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल को ठीक करने के लिए करों में कमी की जाए तो मांग में वृद्धि होगी तथा अस्फीतिक अन्तराल समाप्त हो जाएगा।
  2. सरकारी व्यय में वृद्धि-सरकार को सार्वजनिक कार्यों पर व्यय बढ़ा देना चाहिए। इससे लोगों की आय में वृद्धि होगी तथा मांग बढ़ जाएगी।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था-सरकार को घाटे की वित्त व्यवस्था अपनानी चाहिए। इससे कुल मांग में वृद्धि होगी।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को नया ऋण नहीं लेना चाहिए, बल्कि पुराने ऋण वापस करने चाहिए। इससे मांग में वृद्धि की जा सकती है।

अधिक मांग अथवा स्फीतिक अन्तराल समय राजकोषीय नीति (Fiscal Policy during Excess Demand & Inflationary Gap)-अधिक मांग तथा मुद्रा स्फीति समय सरकार को निम्नलिखित अनुसार राजकोषीय नीति अपनानी चाहिए-

  1. करों में वृद्धि-सरकार को लोगों पर कर अधिक लगाने चाहिए। इससे लोगों की मांग में कमी हो जाएगी।
  2. सरकारी व्यय में कमी-सरकार को मुद्रा स्फीति समय अपना व्यय घटा देना चाहिए।
  3. घाटे की वित्त व्यवस्था में कमी-सरकार को ऐसी स्थिति में घाटे की वित्त व्यवस्था को अपनाना नहीं चाहिए।
  4. सार्वजनिक ऋण-सरकार को लोगों से अधिक ऋण लेना चाहिए ताकि अधिक मांग में कमी आए तथा स्फीतिक अन्तर समाप्त हो सके।

प्रश्न 2.
मौद्रिक नीति से क्या अभिप्राय है ? मौद्रिक नीति के औज़ार बताओ। अभावी मांग तथा अधिक मांग की समस्या को हल करने के लिए मौद्रिक नीति के योगदान को स्पष्ट करो।
(What is Monetary Policy ? Explain the instruments of Monetary Policy. How can Monetary Policy be used during Excess Demand & Deficient Demand ?)
अथवा
मौद्रिक नीति द्वारा अस्फीतिक अन्तराल तथा स्फीति अन्तराल का हल कैसे किया जा सकता है ?
(How can the problem of Deflationary Gap & Inflationary Gap be solved with Monetary Policy ?)
उत्तर-
मौद्रिक नीति का अर्थ (Meaning of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति वह नीति होती है, जिस द्वारा एक देश की सरकार केन्द्रीय बैंक द्वारा

  • मुद्रा की पूर्ति
  • मुद्रा की लागत अथवा ब्याज की दर तथा
  • मुद्रा की उपलब्धि द्वारा स्थिरता प्राप्त करने का प्रयत्न करती है।

मौद्रिक नीति के औज़ार (Instruments of Monetary Policy)-मौद्रिक नीति के औज़ारों का वर्गीकरण अग्रलिखित अनुसार किया जा सकता है
(A) मात्रात्मक औजार (Quantitative Instruments) मौद्रिक नीति के मात्रात्मक औज़ार वे औज़ार हैं, जिन के द्वारा उधार मुद्रा को नियन्त्रित किया जाता है। इस उद्देश्य के लिए केन्द्रीय बैंक निम्नलिखित ढंगों का प्रयोग करता है-
1. बैंक दर (Bank Rate)- बैंक दर वह दर होती है, जोकि केन्द्रीय बैंक द्वारा व्यापारिक बैंकों को उधार देते समय ब्याज की दर प्राप्त की जाती है। बैंक दर बढ़ने से देश में ब्याज दर बढ़ जाती है। इसलिए उधार मुद्रा की मांग कम हो जाती है। जब केन्द्रीय बैंक द्वारा बैंक दर घटा दी जाती है तो बाज़ार में ब्याज की दर कम हो जाएगी तथा उधार मुद्रा विस्तार हो जाता है।

2. खुले बाजार की नीति (Open Market Operations)- उधार मिया के लिए केन्द्रीय बैंक खुले बाज़ार में प्रतिभूतियों (Securities) की खरीद बेच करता है। जब केन्द्रीय प्रतिभूतियाँ बेचता है तो लोग केन्द्र की प्रतिभूतियां खरीद लेते हैं तथा व्यापारिक बैंकों को उधार देन को शक्ति का ही जागो है। अब केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियाँ खरीदने लगता है तो बाज़ार में पैसे चले जाते हैं, इससे ज्यादा का अधिक उधार देने लगते

3. न्यूनतम नकद रिज़र्व अनुपात (Minimum Cash Reserve Ratio)- नाना नकद रिजाव अनुपात वह दर होती है, जो कि व्यापारिक बैंकों को अपनी जमा राशि का कुछ ‘हे ? बैंक के पास नत्र के रूप में रखना आवश्यक होता है। यदि रिज़र्व अनुपात 10% से बढ़ाकर मा. काया जाता है तो व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं। पहले वह ₹ 100 में से ₹ 90 परन्तु अन् मारो

4. तरलता अनुपात (Liquidity Ratio)-प्रत्येक व्यापारिक बैंक को अपनी जमा छ प्रतिशत हिस्सा अपने पास नकदी अथवा प्रतिभूतियों के रूप में रखना अनिवार्य होता है। इसको तरलता अनुपात कहा जाता है। जब केन्द्रीय बैंक तरलता अनुपात में वृद्धि कर देता है तो उधार मुद्रा का कम निर्माण होता है।

(B) गुणात्मक औज़ार (Quantitative Instruments)-यह औज़ार विशेष प्रकार के उधार को नियंत्रित करते हैं
1. सीमान्त आवश्यकता (Marginal Requirements)-जब उधार लेते समय किसी वस्तु को गिरवी रखा
जाता है, उसको गिरवी रखकर कितना उधार दिया जाता है। इसके अन्तर को सीमान्त आवश्यकता कहा जाता है, जैसे कि ₹ 100 की वस्तु गिरवी रखकर ₹ 80 का उधार प्राप्त हुआ तो उधार की सीमान्त आवश्यकता 20% है। इसमें वृद्धि करके उधार घटाया जा सकता है।

2. उधार का राशन (Rationing of Credit) केन्द्रीय बैंक स्टेट के लिए उधार दी जाने वाली राशि का कोटा निर्धारण कर देता है, इसको उधार का राशन कहा जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 13 अभावी तथा अधिक मांग को ठीक करने के लिए उपाय

3. नैतिक दबाव (Moral Pressure) केन्द्रीय बैंक व्यापारिक बैंकों पर दबाव डालकर अधिक अथवा कम देने के लिए निवेदन करता है जोकि व्यापारिक बैंकों के लिए आदेश होता है।

अस्फीतिक अन्तर अथवा अभावी मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Deficient Demand or Deflationary Gap)-अभावी मांग अथवा अस्फीतिक अन्तराल समय निम्नलिखित अनुसार मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर घटा दी जाती है। इससे ब्याज की दर कम हो जाती है तथा उधार निर्माण में वृद्धि होती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों की खरीद करता है। लोगों की खरीद शक्ति में वृद्धि होती है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात को घटा दिया जाता है, इससे व्यापारिक बैंक अधिक उधार देने लगते हैं।
  • तरलता अनुपात को घटाया जाता है, व्यापारिक बैंक की उधार देने की शक्ति बढ़ जाती है।
  • उधार की सीमान्त शर्ते नर्म की जाती हैं।
  • उधार अधिक देने के लिए नैतिक प्रभाव का प्रयोग किया जाता है।

इस नीति को सस्ती मौद्रिक नीति (Cheap Monetary Policy) कहा जाता है। स्फीतिक अन्तराल अथवा अधिक मांग के लिए मौद्रिक नीति (Monetary Policy for Excess Demand or Inflationary Gap)-मुद्रा स्फीति अथवा अधिक मांग के समय निम्नलिखित मौद्रिक नीति अपनाई जाती है-

  • बैंक दर बढ़ा दी जाती है। इससे ब्याज की दर बढ़ जाती है।
  • खुले बाज़ार में केन्द्रीय बैंक प्रतिभूतियों को बेचने लगता है।
  • नकद रिज़र्व अनुपात में वृद्धि की जाती है। व्यापारिक बैंक कम उधार दे सकते हैं।
  • तरलता अनुपात में वृद्धि की जाती है। बैंक कम उधार देने लगते हैं।
  • सीमान्त शर्ते सख्त की जाती हैं।
  • उधार का राशन किया जाता है। इस नीति को महंगी मौद्रिक नीति (Dear Monetary Policy) कहा जाता है।

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Miscellaneous Exercise

Punjab State Board PSEB 11th Class Maths Book Solutions Chapter 16 Probability Ex 16.3 Miscellaneous Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 16 Probability Miscellaneous Exercise

Question 1.
A box contains 10 red marbles, 20 blue marbles and 30 green marbles. 5 marbles are drawn from the box, what is the probability that
(i) all will be blue?
(ii) atleast one will be green?
Answer.
The box contains 10 (red) + 20 (blue) + 30 (green)
= 60 marbles of which 5 marbles are drawn.
∴ Total number of outcomes, n(S) = \({ }^{60} C_{5}\)

(i) 5 blue marbles can be drawn from 20 blue marbles in \({ }^{20} C_{5}\) ways.
i.e., n(E1) = \({ }^{20} C_{5}\)
∴ P (all marbles blue) = \(\frac{n\left(E_{1}\right)}{n(S)}=\frac{{ }^{20} C_{5}}{{ }^{60} C_{5}}\)

= \(\frac{20 \times 19 \times 18 \times 17 \times 16}{60 \times 59 \times 58 \times 57 \times 56}=\frac{34}{11977}\)

(ii) 5 green marbles can be drawn from 30 green marbles in \({ }^{30} C_{5}\) ways i. e.,
n(E2) = \({ }^{20} C_{5}\)

∴ P (all marbles blue) = \(\frac{n\left(E_{2}\right)}{n(S)}=\frac{{ }^{30} C_{5}}{{ }^{60} C_{5}}\)

P(ar.least one will be green) = 1 – P (5 balls other than green)

= 1 – \(\frac{{ }^{30} C_{5}}{{ }^{60} C_{5}}\)

= 1 – \(\frac{30 \times 29 \times 28 \times 27 \times 26}{60 \times 59 \times 58 \times 57 \times 56}\)

= 1 – \(\frac{117}{4484}\) = \(\frac{4367}{4484}\)

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Ex Miscellaneous Exercise

Question 2.
4 cards are drawn from a well-shuffled deck of 52 cards. What is the probability of obtaining 3 diamonds and one spade?
Answer.
Number of ways of drawing 4 cards from 52 cards = \({ }^{52} C_{4}\)
In a deck of 52 cards, there are 13 diamonds and 13 spades.
Number of ways of drawing 3 diamonds and one spade = \({ }^{13} C_{3} \times{ }^{13} C_{1}\)

Thus, the probability of obtaining 3 diamonds and one spade = \(\frac{{ }^{13} C_{3} \times{ }^{13} C_{1}}{{ }^{52} C_{4}}\)

Question 3.
A die has two faces each with number ‘1’, three faces each with number ‘2’ and one face with number ‘3’. If die is rolled once, determine
(i) P(2)
(ii) P(1 or 3)
(iii) P(not 3).
Answer.
Total number of faces = 6
(i) Number faces with number ‘2’ = 3
∴ P(2) = \(\frac{3}{6}=\frac{1}{2}\)

(ii) P (1 or 3) = P (not 2)
= 1 – P(2)
= 1 – \(\frac{1}{2}\) = \(\frac{1}{2}\)

(iii) Number of faces with number ‘3’ = 1
∴ P(3) = \(\frac{1}{6}\)
Thus, P(not3) = 1 – P(3)
= 1 – \(\frac{1}{6}\) = \(\frac{5}{6}\).

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Ex Miscellaneous Exercise

Question 4.
In a certain lottery, 10,000 tickets are sold and ten equal prizes are awarded. What is the probability of not getting prize if you buy
(a) one ticket
(b) two tickets
(c) 10 tickets?
Answer.
Total number of tickets sold = 10,000
Number of prizes awarded = 10
(i) If we buy one ticket, then
∴ P(getting a prize) = \(\frac{10}{10000}=\frac{1}{1000}\)
∴ P(not getting a prize) = 1 – \(\frac{1}{1000}\)
= \(\frac{999}{1000}\)

(ii) If we buy two tickets, then
Number of tickets, not awarded = 10,000 – 10 = 9990
P(not getting a prize) = \(\frac{{ }^{9990} C_{2}}{{ }^{10000} C_{2}}\)

(iii) If we buy 10 tickets, then
P(not getting a prize) = \(\frac{{ }^{9990} C_{10}}{{ }^{10000} C_{10}}\)

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Ex Miscellaneous Exercise

Question 5.
Out of 100 students, two sections of 40 and 60 are formed If you and your friend are among the 100 students, what is the probability that
(a) you both enter the same section?
(b) you both enter the different sections?
Answer.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Miscellaneous Exercise 1

(a) Let there be two sections A and B of 40 and 60 students, respectively.
∴ 38 students are to selected out of 98, since two particular students are already in section A.
∴ Number of ways of selecting 38 students out of 98 = \({ }^{98} C_{38}\) ways
Number of exhaustive cases of selecting 40 students out of 100 = \({ }^{100} C_{40}\) ways
∴ P(both studensts enter section A) = \(\frac{{ }^{98} C_{38}}{{ }^{100} C_{40}}=\frac{98 !}{38 ! 60 !} \div \frac{100 !}{40 ! 60 !}\)

= \(\frac{98 !}{38 ! 60 !} \times \frac{40 ! 60 !}{100 !}=\frac{40 \times 39}{100 \times 99}=\frac{26}{165}\)

If both students enter the section B. Then, the number of ways of selecting
58 students out of 98 = \({ }^{98} C_{58}\) ways.
Total number of ways of selecting 60 students out of 100 = \({ }^{100} C_{60}\) ways.
∴ Probability that two students enter section
B = \(\frac{{ }^{98} C_{58}}{{ }^{100} C_{60}}=\frac{98 !}{58 ! 40 !} \div \frac{100 !}{60 ! 40 !}\)

= \(\frac{98 !}{58 ! 40 !} \times \frac{60 ! 40 !}{100 !}=\frac{60 \times 59}{100 \times 99}=\frac{59}{165}\)

[∵ \({ }^{n} C_{r}=\frac{n !}{r !(n-r) !}\)]

∴ P (that two particular students enter either section A or B) = \(\frac{26}{165}+\frac{59}{165}=\frac{85}{165}=\frac{17}{33}\)

(b) The probability that they enter different sections
= 1 – P (that two particular students enter either section A or B)

= \(\frac{1}{1}-\frac{17}{33}=\frac{16}{33}\)

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Ex Miscellaneous Exercise

Question 6.
Three letters are dictated to three persons and an envelope is addressed to each of them, the letters are inserted into the envelopes at random so that each envelope contains exactly one letter. Find the probability that at least one letter is in its proper envelope
Answer..
Let L1, L2, L3 be three letters and E1, E2 and E3 be their corresponding envelopes respectively.
1 letter in correct envelope and 2 in wrong envelope may be put as

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Miscellaneous Exercise 2

Two lettes or consequently all the letters are in correct envelope may be put in one way.
i.e., (E1L1, E2L2, E3L3)
∴ Number of cases = 3! = 6
Number of favourable cases = 4
Thus, the required probability is \(\frac{4}{6}=\frac{2}{3}\).

Question 7.
A andB are two events such that P(A) = 0.54, P(B) = 0.69 and P (A ∩ B) = 0.35.
Find (i) P (A uP)
(ii) P (A nB)
(iii) P(A nffj
(iv) P (B ∩ A)
Answer.
(i) P(A ∪ B) = P(A) + P(B) – P(A nB)
= 0.54 + 0.69 – 0.35
= 1.23 – 0.35 = 0.88

(ii) A’ ∩ B’ = (A ∪ B)’ By Demorgan’s law.
P(A’ ∩ B’) = P(A ∪ B)’ = 1 – P(A ∪ B)
= 1 – 0.88 = 0.12

(iii) A ∩ B’ = A – A ∩ B
P(A ∩ B’) = P(A) – P(A ∩ B )
= 0.54 – 0.35 = 0.19

(iv) P(B ∩ A’) = P(B) – P (A ∩ B)
= 0.69 – 0.35 = 0.34.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Ex Miscellaneous Exercise

Question 8.
From the employees of a company, 5 persons are selected to represent them in the managing committee of the company. Particulars of five persons are as follows:

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Miscellaneous Exercise 3

A person is selected at random from this group to act as a spokesperson. What is the probability that the spokesperson will he either male or over 35 years?
Answer.
Let E be the event in which the spokesperson will be a male and F be the event in which the spokesperson will be over 35 years of age.
Accordingly, P(E) = \(\frac{3}{5}\) and P(F) = \(\frac{2}{5}\)
Since there is only one male who is over 35 years of age, P(E ∩ F) = \(\frac{1}{5}\)
We know that P(E ∪ F) = P(E) + P(F) – P(E ∩ F)
∴ P(E ∪ F) = \(\frac{3}{5}+\frac{2}{5}-\frac{1}{5}=\frac{4}{5}\)
Thus, the probability that the spokesperson will either be a male or over 4 35 years of age is \(\frac{4}{5}\).

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Ex Miscellaneous Exercise

Question 9.
If 4-digit numbers greater than 5,000 are randomly formed from the digits 0, 1, 3, 5 and 7, what is the probability of forming a number divisible by 5 when,
(i) the digits are repeated?
(ii) the repetition of digits is not allowed?
Answer.
(i) When the digits are repeated Since four-digit numbers greater than 5000 are formed, the leftmost digit is either 7 or 5.
The remaining 3 places can be filled by any of the digits 0, 1, 3, 5 or 7 as repetition of digits is allowed.
∴ Total number of 4-digit numbers greater than 5000 = 2 × 5 × 5 × 5 – 1.
= 250 – 1 = 249.

[In this case, 5000 can not be counted; so 1 is subtracted]
A number is divisible by 5 if the digit at its units place is either O orS.
∴ Total number of 4-digit numbers greater than 5000 that are divisible by 5 = 2 × 5 × 5 × 2 – 1 = 100 – 1 = 99.
Thus, the probability of forming a number divisible by 5 when the digits are repeated is = \(\frac{99}{249}=\frac{33}{83}\).

(ii) When repetition of digits is not allowed
The thousands place can be filled with either of the two digits 5 or 7.
The remaining 3 places can be filled with any of the remaining 4 digits.
∴ Total numbers of 4-digit numbers greater than 5000 = 2 × 4 × 3 × 2 = 48
When the digit at the thousands place is 5, the units place can be filled only with 0 and the tens and hundreds places can be filled with any two of the remaining 3 digits.

∴ Here, number of 4-digit numbers starting with 5 and divisible by 5 = 3 × 2 = 6
When the digit at the thousands place is 7, the units place can be filled in two ways (0 or 5) and the tens and hundreds places can be filled with any two of the remaining 3 digits.
∴ Here, number of 4-digit numbers starting with 7 and divisible by 5 = 1 × 2 × 3 × 2 = 12.
∴ Total number of 4-digit numbers greater than 5000 that are divisible by 5 = 6 + 12 = 18.
Thus, the probability of forming a number divisible by 5 when the repetition of digits is not allowed is \(\frac{18}{48}=\frac{3}{8}\).

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 16 Probability Ex Miscellaneous Exercise

Question 10.
The number lock of a suitcase has 4 wheels, each labelled with ten digits i.e., from 0 to 9. The lock opens with a sequence of four digits with no repeats. What is the probability of a person getting the right sequence to open the suitcase?
Answer. When the digits are not repeated, then first place may have one of 10 digits, the second 9, third 8 and fourth 7.
Number of 4-digit numbers, n(S) = 10 × 9 × 8 × 7 = 5040
Now, lock may be opened only in 1 way.
∴ n(E) = 1
∴ Probability of opening the lock = \(\frac{n(E)}{n(S)}=\frac{1}{5040}\).

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ

PSEB 12th Class Economics अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
अभावी मांग (Deficient Demand) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अभावी मांग (Deficient Demand) ऐसी स्थिति है, जोकि एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए, कुल मांग, कुल पूर्ति से कम होती है।

प्रश्न 2.
अस्फीति अन्तर (Deflationary Gap) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
अभावी मांग की स्थिति कब उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन तथा पूर्ण रोज़गार की स्थिति के अन्तर को अस्फीति अन्तर कहा जाता है। इस को अभावी मांग भी कहते हैं।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में अभावी मांग से क्या अभिप्राय है ? इसका रोज़गार तथा उत्पादन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
अभावी मांग वह स्थिति है, जिसमें कुल मांग, पूर्ण रोजगार की स्थिति से कम होती है। इससे निवेश पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए रोज़गार कम हो जाता है। जब रोज़गार कम होगा तो देश में उत्पादन कम हो जाता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ

प्रश्न 4.
अधिक मांग से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
एक अर्थव्यवस्था में अधिक मांग (Excess Demand) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब कुल मांग, पूर्ण रोज़गार के स्तर से अधिक होती है तो इस स्थिति को अधिक मांग की स्थिति कहा जाता है।

प्रश्न 5.
स्फीतिक अन्तर (Inflationary Gap) का अर्थ बताओ।
उत्तर-
स्फीतिक अन्तर वह स्थिति है, जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल मांग, कुल पूर्ति से अधिक होती है (AD > AS)। इस स्थिति को स्फीतिक अन्तर कहा जाता है, जोकि मुद्रा स्फीति (Inflation) को जन्म देती है।

प्रश्न 6.
स्फीतिक अन्तर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
स्फीतिक अन्तर वह स्थिति है, जिसमें पूर्ण रोज़गार प्राप्त करने के लिए अनिवार्य कुल मांग से कुल मांग (AD) अधिक होती है। इससे स्फीतिक अन्तर उत्पन्न होता है।

प्रश्न 7.
स्फीतिक अन्तर का उत्पादन और कीमतों पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
इसके परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि नहीं होती बल्कि कीमतों में वृद्धि होती है।

प्रश्न 8.
‘से’ के बाज़ार नियम का सार दें।
उत्तर-
जे०बी०से० के अनुसार, “वस्तुओं की पूर्ति अपनी माँग स्वयं पैदा कर लेती हैं” प्रत्येक देश में पूर्ण रोज़गार एक साधारण स्थिति होती है।

प्रश्न 9.
अधिक मांग में ……
(क) AD = AS
(ख) AD > AS
(ग) AD < AS (घ) इनमें से कोई नहीं। उत्तर- (ख) AD > AS.

प्रश्न 10.
अभावी मांग में .
(क) AD = AS
(ख) AD > AS
(ग) AD < AS
(घ) उपरोकत सभी।
उत्तर-
(ग) AD < AS.

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ

प्रश्न 11.
‘पूर्ति अपनी मांग स्वयं पैदा कर लेती है’ नियम किसने दिया।
(क) एडम स्मिथ
(ख) रोबिन्ज
(ग) मार्शल
(घ) प्रो० जे० बी० ‘से’।
उत्तर-
(घ) प्रो० जे० बी० से।

प्रश्न 12.
पूर्ण रोज़गार की स्थिति में जब कुल मांग कुल पूर्ति से अधिक होती है तो इस स्थिति को कहते हैं ?
उत्तर-
अधिक मांग अथवा स्फीति अन्तर।

प्रश्न 13.
स्फीति अन्तर में उत्पादन, रोज़गार और कीमत ……… हो जाते हैं।
(क) कम
(ख) अधिक
(ग) सामान्य
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) कम।

प्रश्न 14.
जब स्फीति अन्तराल की स्थिति होती है तो उसको …………… कहते हैं ।
(क) पूर्ण रोजगार
(ख) अपूर्ण रोजगार
(ग) छुपी बेरोज़गारी
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख) अपूर्ण रोजगार।

प्रश्न 15.
कम मांग की स्थिति में अर्थव्यवस्था में कम उत्पादन, कम आय और कम रोज़गार की स्थिति होती है। इस स्थिति को ………………. कहते हैं।
(क) स्फीतिक
(ख) तेजी
(ग) अस्फीतिक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) अस्फीतिक।

प्रश्न 16.
कुल मांग से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल मांग = उपभोग व्यय + निजी निवेश + सरकारी व्यय + शुद्ध निर्यात।

प्रश्न 17.
कुल पूर्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल पूर्ति = उपभोग + बचत।

प्रश्न 18.
जब पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल मांग कुल पूर्ति से अधिक होती है तो इस को स्फिति अन्तर कहा जाता है ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 19.
अधिक माँग की स्थिति को अस्फीति अन्तर भी कहा जाता है।
उत्तर-
ग़लत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अभावी मांग (Deficient Demand) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अभावी मांग (Deficient Demand) ऐसी स्थिति है, जोकि एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के लिए, कुल मांग, कुल पूर्ति से कम होती है अर्थात् यदि कुल मांग पूर्ण रोज़गार के स्तर से कम होती है तो ऐसी स्थिति को अभावी मांग कहा जाता है।

प्रश्न 2.
अस्फीति अन्तर (Deflationary Gap) से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
अभावी मांग की स्थिति कब उत्पन्न होती है ?
उत्तर-
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन AS = AD द्वारा E बिन्दु पर स्थापित होता है, जोकि पूर्ण रोज़गार F की स्थिति से पहले की स्थिति है। इस स्थिति में FG, अस्फीति अन्तर कहा जाता है। जिसके परिणामस्वरूप आय तथा रोज़गार कम हो जाता है। अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन E की स्थिति को अभावी मांग की स्थिति कहा जाता है।
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III. लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अधिक मांग (Excess Demand) को रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो।
अथवा
स्फीति अन्तर से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र की सहायता से स्फीति अन्तर की धारणा को स्पष्ट करो।
उत्तर-
स्फीति अन्तर (Inflationary Gap) वह स्थिति होती है, जोकि एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार स्थापित करने के लिए अनिवार्य कुल मांग से अधिक मांग (Excess Demand) को प्रकट करती है।
रेखाचित्र 2 में कुल मांग तथा कुल पूर्ति द्वारा सन्तुलन F बिन्दु पर स्थापित होता है। इससे ON रोज़गार का स्तर है, जिसको पूर्ण रोज़गार की स्थिति कहा जाता है। यदि कुल मांग AD से बढ़कर AD1 हो जाती है तो कुल मांग में वृद्धि FG हो जाती है, इसको स्फीति अन्तर कहा जाता है।
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प्रश्न 2.
विस्फीति अन्तर (Deflationary Gap) से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र की सहायता से विस्फीति अन्तर को स्पष्ट करो।
उत्तर-
जब उत्पादन के निश्चित स्तर पर कुल मांग पूर्ण रोज़गार के स्तर से कम होती है तो इस स्थिति को अभावी मांग कहा जाता है, जिस कारण अस्फीति अन्तर जन्म लेता है। इसके परिणामस्वरूप देश में उत्पादन तथा रोज़गार कम हो जाता है तथा अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। रेखाचित्र 3 में पूर्ण रोज़गार का स्तर F बिन्दु है, जहां उत्पादन अथवा रोजगार ON है। इस स्थिति में कुल मांग का है, जोकि AD1 पर G बिन्दु पर दिखाई गई है। इस स्थिति में FG को विस्फीति अन्तर कहा जाता
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प्रश्न 3.
अभावी मांग से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र की सहायता से अभावी मांग की स्थिति को स्पष्ट करो।
उत्तर-
अभावी मांग की स्थिति उस स्थिति में होती है, जब पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल मांग की कमी पाई जाती है। इस स्थिति को अभावी मांग (Deficit Demand) की स्थिति कहा जाता है। रेखाचित्र 4 में AS = AD द्वारा F बिन्दु पर सन्तुलन स्थापित होता है। इसको पूर्ण रोजगार की स्थिति कहा जाता है। पूर्ण रोजगार की स्थिति में उत्पादन ON है अथवा FN है। परन्तु कुल मांग GN है। इसलिए FN – GN = FG को अभावी मांग कहा जाता है। इसको विस्फीति अन्तर भी कहते हैं।
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प्रश्न 4.
कम मांग के प्रभावों की व्याख्या करें।
उत्तर-
कम शंग (Eyeficient Remand) से अभिप्राय ऐसी अवस्था से होता है जिसमें पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल पूर्ति से कम होती है। इस स्थिति को अस्फीति अन्तर भी (Deflationary Gap) भी कहते हैं। कम मांग के प्रशाद –

  • देश में कीमतें तेजी से घटने लगती हैं।
  • आय तथा धन का अभाव हो जाता है।
  • कर अधिक होने के कारण लोगों की व्यय योग्य आय कम हो जाती है।
  • देश में साधनों का अल्प उपयोग होने लगता है।
  • देश में उत्पादकों के लाभ कम होने लगते हैं।
  • उत्पादन में कमी होने लगती है।
  • देश में बेरोज़गारी फैल जाती है।

प्रश्न 5.
अधिक मांग के प्रभात्रों की व्याख्या करें।
उत्तर-
अधिक मांग (Excess Demand) से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसमें पूर्ण रोजगार के स्तर पर कुल मांग कुल पूर्ति से अधिक होती है इस स्थिति को स्फीति अन्तर (Inflationary Gap) कहा जाता है।

अधिक मांग के प्रभाव-

  • देश में कीमतें तेजी से बढ़ने लगती हैं।
  • आय तथा धन का असमान वितरण हो जाता है।
  • उधार देने वाले लोगों को हानि होती है।
  • नौकरी पेशा लोगों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं।
  • लोगों का विश्वास सरकार में कम हो जाता है।
  • देश में अनैतिकता की स्थिति फैल जाती है।

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IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अधिक मांग तथा अभावी मांग से क्या अभिप्राय है ? रेखाचित्र द्वारा (a) अधिक मांग (b) अभावी मांग को स्पष्ट करो।।
[What is excess and deficient demand? Explain with the help of diagrams the situation of
(a) Excess demand
(b) Deficient Demand.]
अथवा
रेखाचित्र की सहायता से एक अर्थव्यवस्था में (a) अपूर्ण रोजगार सन्तुलन तथा (b) अधिक मांग सन्तुलन को स्पष्ट करो।
[Explain with the help of Diagrams the situation of (a) Under Employment Equilibrium and (b) Excess Demand in an Economy.]
अथवा
अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन की स्थिति को स्पष्ट करो। रेखाचित्र द्वारा स्पष्ट करो कि अधिक निवेश से पूर्ण रोज़गार सन्तुलन स्थापित किया जा सकता है।
(Explain the concept of Under Employment Equilibrium with the help of a diagram. Show on the same diagram the additional investment expenditure required to reach Full Employment Equilibrium.)
अथवा
स्फीति अन्तर तथा विस्फीति अन्तर को रेखाचित्रों की सहायता से स्पष्ट करो। (Explain Inflation Gap and Deflationary Gap with the help of diagrams.)
उत्तर-
1. अधिक मांग का अर्थ (Meaning of Excess Demand)-अधिक मांग वह स्थिति होती है, जब एक अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार के स्तर से कुल मांग अधिक होती है। (Excess demand is a situation in which the aggregate demand is for a level of output is more their the full employment.) पूर्ण रोज़गार से सम्बन्धित कुल पूर्ति से जब कुल मांग अधिक होती है तो इसको अधिक मांग कहा जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ 5
अधिक मांग (Excess Demand)-रेखाचित्र 5 में कुल पूर्ति (AS) तथा कुल मांग (AD) एक-दूसरे को F बिन्दु पर काटते हैं। इसको पूर्ण रोज़गार का बिन्दु कहा जाता है। यदि कुल मांग AD, हो जाती है तो नया सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। इस स्थिति में EF को अधिक मांग कहा जाता है।

स्फीति अन्तर (Inflationary Gap)-स्फीति अन्तराल, अधिक मांग का माप होता है। रेखाचित्र में EF को स्फीति अन्तर कहते हैं। पूर्ण रोज़गार स्थापित करने के लिए जितनी कुल मांग की आवश्यकता होती है तथा उस मांग से कुल मांग अधिक हो जाती है तो उस भाग को स्फीति अन्तर कहा जाता है।

इस स्थिति में

  • उत्पादन का स्तर समान रहता है।
  • कुल मांग अधिक होने के कारण वस्तुओं तथा सेवाओं की कीमत बढ़ने लगती है।
  • इससे मुद्रा स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

2. अभावी मांग का अर्थ (Meaning of Deficient Demand)-अभावी मांग वह स्थिति है जोकि पूर्ण रोज़गार की स्थिति में कुल मांग, कुल पूर्ति से कम होती है-
अथवा
कुल मांग, पूर्ण रोज़गार के उत्पादन स्तर से कम होती (Deficient Demand is a situation to which the aggregate demand is for a level of output, Less than the full employment level.) रेखाचित्र 6 में OX पर आय तथा रोजगार तथा OY पर कुल मांग तथा कुल पूर्ति को दिखाया गया है। पूर्ण रोज़गार की स्थिति F बिन्दु पर दिखाई गई है, जहां AS = AD है तथा OQ उत्पादन किया जाता है। यदि वास्तव में मांग AD, है तो सन्तुलन E बिन्दु पर स्थापित होता है। पूर्ण रोज़गार के स्तर पर कुल मांग QG है, जोकि पूर्ण रोजगार की मांग QF से कम है। इसलिए QF – QG = FG को अभावी मांग कहा जाता है।

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इसके परिणामस्वरूप

  • साधनों का कम प्रयोग किया जाता है।
  • उत्पादकों के स्टॉक में वृद्धि हो जाती है।
  • स्टॉक बढ़ने से नियोजित उत्पादन कम हो जाता है।
  • नियोजित उत्पादन घटने से आय तथा रोज़गार कम हो जाता है।

विस्फीतिक अन्तराल (Deflationary Gap)- किसी देश में पूर्ण रोजगार स्थापित करने के लिए जितनी कुल मांग की आवश्यकता होती है, यदि कुल मांग उस मांग से कम है तो इनके अन्तर को विस्फीतिक अन्तराल कहा जाता है। रेखाचित्र में अभावी मांग के माप को विस्फीतिक अन्तराल कहा जाता है, जिसको EG अभावी मांग = विस्फीतिक अन्तराल द्वारा दिखाया गया है।

अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन (Under Employment Equilibrium)-जब कुल मांग (AD) तथा कुल पूर्ति (AS) समान है तो सन्तुलन F बिन्दु पर स्थापित होता है, इसको पूर्ण रोजगार का बिन्दु कहा जाता है। यदि कुल मांग कम है, जिसको AD1, द्वारा दिखाया है, यह अभावी मांग को प्रकट करता है। इसके परिणामस्वरूप सन्तुलन F बिन्दु से E बिन्दु पर परिवर्तित हो जाएगा। इसी तरह अभावी मांग पूर्ण रोजगार की स्थिति से अपूर्ण रोजगार की स्थिति की ओर ले जाएगा। जब सन्तुलन E बिन्दु पर रेखाचित्र 6 स्थापित होता है तो AS = AD1, है। OU मजदूरों को रोजगार प्राप्त होता है, इसको अपूर्ण रोज़गार सन्तुलन कहा जाता है।
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 12 अधिक तथा अभावी माँग की समस्याएँ 6

अधिक मांग तथा अभावी मांग में अन्तर (Difference between Excess Demand and Deficient Demand) –

  1. कुल मांग-अभावी मांग की स्थिति में कुल मांग पूर्ण रोज़गार की स्थिति के लिए कुल मांग से कम होती है, जबकि अधिक मांग की स्थिति में कुल मांग पूर्ण रोजगार की स्थिति से अधिक होती है।
  2. स्फीतिक तथा विस्फीतिक अन्तराल अधिक मांग के कारण स्फीतिक अन्तराल तथा अभावी मांग के कारण विस्फीतिक अन्तराल उत्पन्न होता है।
  3. कीमतों में परिवर्तन-अधिक मांग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि होती है, परन्तु अभावी मांग में कीमतों में कमी होती है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

Punjab State Board PSEB 12th Class Economics Book Solutions Chapter 11 निवेश गुणक Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Economics Chapter 11 निवेश गुणक

PSEB 12th Class Economics निवेश गुणक Textbook Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में 10 करोड़ रु० की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 1

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ।
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 2
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 3

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है गुणक का आकार इस प्रक
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 4. गुणक (K) = ——- .
उत्तर-
गुणक K = \(\frac{\Delta \mathrm{y}}{\Delta \mathrm{I}}\)|

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 5. यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{\frac{1}{1}}{2}=\frac{1 \times 2}{1}\) = 2

प्रश्न 6.
गुणक दोधारी तलवार है जो राष्ट्रीय आय में तेज़ी से वृद्धि करती है अथवा कमी करती है ।
उत्तर-
सही।

प्रश्न 7.
यदि MPC = 1 है तो गुणक का आकार ———– होगा।
उत्तर-
(a) शुन्य (0)
(b) 1
(c) अनंत
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) अनंत।

प्रश्न 8.
यदि राष्ट्रीय आय में वृद्धि 4 करोड़ रुपये और निवेश में वृद्धि 2 करोड़ रुपये है तो गुणक ज्ञात करें।
उत्तर-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 4

प्रश्न 9.
यदि MPS = \(\frac{1}{4}\) है गुणक का आकार ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)

प्रश्न 10.
जितनी सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होगी गुणक का प्रभाव उतना ही कम होता है।
उत्तर-
गलत।

II. अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
निवेश में वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको गुणक कहते हैं। जैसे कि निवेश में ₹ 10 करोड़ की वृद्धि करने से राष्ट्रीय आय में ₹ 30 करोड़ की वृद्धि हो जाती है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 5

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 2.
निवेश गुणक का सूत्र बताएँ। ‘
उत्तर-
निवेश गुणक का सूत्र निम्नलिखित अनुसार है –
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 6
उदाहरण के लिए निवेश 2 करोड़ करने से राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 4 करोड़ हो जाती है तो गुणक इस प्रकार होगा
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 7

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध बताएँ।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध इस प्रकार प्रकट किया जा सकता है-
K = \(\frac{1}{1-M P C}\)
यदि MPC = \(\frac{1}{2}\) है तो गुणक का आकार इस प्रकार होगा
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)

III. लघु उत्तरीय प्रश्न | (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुणक की धारणा को स्पष्ट करो। यह सीमान्त बचत प्रवृत्ति से कैसे सम्बन्धित है ?
अथवा
गुणक से क्या अभिप्राय है ? गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ है, निवेश में वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि की अनुपात (The rate of change in Income due to change in investment)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPC}}\)
इसमें K =गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन, MPC = सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति, MPS = सीमान्त बचत प्रवृत्ति
Example : यदि ΔI = 100 करोड़, MPC = \(\frac{3}{4}\) , MPS = 1- \(\frac{3}{4}\) = \(\frac{1}{4}\)= तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि को स्पष्ट करो।

K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
अथवा
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}=4\)
यदि हमें MPC अथवा MPS का पता हो तो गुणक का आकार माप सकते हैं
∴ K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा K. ΔI = ΔY = 4 x 10 = 40 करोड़ रुपए।

(i) स्पष्ट है कि MPC का पता हो तो K का आकार माप सकते हैं। जितनी MPC अधिक होगी, गुणक का आकार उतना बड़ा होगा। K तथा MPC का सीधा सम्बन्ध होता है।
(ii) MPS जितनी अधिक होगी गुणक का आकार उतना कम होगा अर्थात् K तथा MPS का विपरीत सम्बन्ध होता है।

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 2.
एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करो कि निवेश वृद्धि आय स्तर में वृद्धि को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
किसी अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि महत्त्वपूर्ण होती है, जिससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि कई गुणा अधिक हो जाती है। इसका कारण गुणक की धारणा का लागू होना होता है। गुणक की धारणा अधिक हो तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि अधिक होगी। परन्तु गुणक की धारणा स्वयं सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करती है। यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) अधिक होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होगा। मान लो एक देश में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति MPC = \(\frac{1}{2}\) = 0.5 है तथा निवेश में वृद्धि 100 करोड़ रुपये की जाती है। निवेश की वृद्धि राष्ट्रीय आय में कितनी वृद्धि करेगी, इसको निम्नलिखित अनुसार स्पष्ट करते हैं-
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=K \times \Delta I=\Delta Y\)
अथवा
ΔY= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \times \Delta \mathrm{I}\) (∵ K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \))
ΔY = \(\frac{1}{1-0.5} \times 100=\frac{1}{\frac{1}{2}} \times 100\)
100 x 2 = ₹ 200 करोड़ उत्तर
निवेश की वृद्धि से राष्ट्रीय आय में वृद्धि गुणक के आकार अनुसार हो जाती है।

प्रश्न 3.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश व्यय में ₹ 1000 करोड़ की वृद्धि की जाती है। यदि MPC = 0.75 है तो आय तथा बचत में वृद्धि का पता करो।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
ΔY = K. ΔI
= 4 x 1000 = 4000 करोड़

MPS = 1 – MPC
= 1 – 0.75 = 0.25
बचत में वृद्धि = AY x MPS
= 4000 x 0.25 = ₹ 1000 करोड़ उत्तर

IV. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
निवेश गुणक की परिभाषा दीजिए। इसका सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति से क्या सम्बन्ध है ? निवेश गुणक की कार्यकुशलता को स्पष्ट करो।।
(What is Multiplier ? How is it related to MPC ? Explain the working of Investment multiplier.)
उत्तर-
निवेश गुणक का अर्थ (Meaning of Multiplier)-इस धारणा का अर्थशास्त्र में केन्ज़ ने प्रयोग किया। निवेश गुणक की धारणा निवेश में परिवर्तन होने से आय में होने वाले परिवर्तन के सम्बन्ध को प्रकट करती है। जब निवेश में वृद्धि की जाती है तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि जितने गुणा हो जाती है, उसको निवेश गुणक कहा जाता है। (The rate of change in Income due to change in investment is called Multiplier) इसका अनुमान इस प्रकार लगाया जाता है-
Κ. ΔΙ = ΔΥ
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
इसमें K = गुणक, ΔY = आय में परिवर्तन, ΔI = निवेश में परिवर्तन। उदाहरणस्वरूप सरकार द्वारा 50 करोड़ रु० निवेश किया जाता है। इससे राष्ट्रीय आय में वृद्धि 100 करोड़ रु० हो जाती है तो
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{100}{50}\) = 2

गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति का सम्बन्ध (Relationship between K and M.P.C.)-गुणक का मूल्य सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति द्वारा निर्धारण होता है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति जितनी कम होगी, गुणक का आकार उतना कम होगा। इनके सम्बन्ध को एक समीकरण द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
अथवा
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{Y}-\Delta \mathrm{C}}\)
[∵ Y = C+S
ΔY = ΔC + ΔS
ΔS = ΔI
∴ ΔY = ΔC+ΔI
ΔY – ΔC = ΔI]

दाईं ओर की समीकरण को ΔY से विभाजित करने से
K = \(\frac{\Delta Y / \Delta Y}{\Delta Y / \Delta Y-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-\Delta C / \Delta Y}=\frac{1}{1-M P C}\)
अथवा
K= \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
∵ (MPS = 1 – MPC)

उदाहरणस्वरूप-

  • यदि MPC शून्य है- यदि MPC शून्य है तो MPS = 1 होगी तथा गुणक का आकार इकाई के समान होगा अथवा आय में वृद्धि निवेश से एक गुणा होगी।
  • यदि MPC एक है- यदि MPC एक के समान है तो आय में वृद्धि बहुत अधिक गुणा होगी। परन्तु MPC न तो शून्य होती है तथा न ही एक के समान होती है। यह 0 से अधिक तथा 1 से कम होती है।
  • यदि MPC शून्य से अधिक तथा एक से कम है-MPC जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होता है।

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MPC = \(\frac{1}{2} \) = तो K = 2, MPC =\(\frac{9}{10} \) तो K = 10.
गुणक की कार्यकुशलता (Working of Multiplier)-गुणक की कार्यकुशलता को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हैंयदि
Y = ₹ 100 करोड़, Y1 = ₹ 200 करोड़, I = ₹ 10 करोड़,
I1 = ₹ 30 करोड़ तो गुणक का पता करो।
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}=\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
ΔY = (Y1 – Y) = 200 – 100 = 100
ΔI = (I1 – I) = 30 -10 = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

जितनी अधिक होगी, गुणक का आकार उतना अधिक होगा। MPC जब अधिक होगी तो MPS कम होती है। इसलिए MPS तथा गुणक का विपरीत सम्बन्ध होता है। जब सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) कम होती है तो गुणक का प्रभाव अधिक होता है। रेखाचित्र 1 अनुसार मौलिक सन्तुलन E बिन्दु पर है तथा राष्ट्रीय आय OY है। निवेश में वृद्धि ΔI होने से राष्ट्रीय अन्य OY से बढ़कर OY1 हो जाती है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय में वृद्धि YY1 है इसे गुणक की Forward Working कहते हैं। यदि निवेश ΔI कम हो जाता है तो राष्ट्रीय आय YY2 कम हो जाती है इसे गुणक की Backward working कहते हैं।
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V. संरख्यात्मक प्रश्न (Numericals)

प्रश्न 1.
यदि गुणक का मूल्य 3 है और एक अर्थव्यवस्था में ₹ 100 करोड़ का निवेश किया जाए तो राष्ट्रीय आय में वृद्धि कितनी होगी ?
उत्तर-
गुणक के सूत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
3 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 3 × 100 = ΔY
∴ ΔY = ₹ 300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 2.
गुणक तथा सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक का मूल्य, सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। इनका आपस में सीधा सम्बन्ध होता है।
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
यदि
MPC = \(\frac{1}{2}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2\)
MPC = \(\frac{4}{5}\) तो K = \(\frac{1}{1-\frac{4}{5}}=\frac{1}{\frac{1}{5}}=\frac{1 \times 5}{1} \) = 5

स्पष्ट है कि MPC जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना ही बड़ा होता है। MPC जितनी कम होती है, गुणक का मूल्य उतना कम होता है।

प्रश्न 3.
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति के सम्बन्ध को स्पष्ट करो।
उत्तर-
गुणक तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति का सम्बन्ध विपरीत होता है-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
यदि
MPS = \(\frac{1}{3}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{3}}=\frac{1 \times 3}{1}\) = 3
यदि MPS = \(\frac{1}{10}\) तो K = \(\frac{1}{\frac{1}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 10
स्पष्ट है कि सीमान्त बचत प्रवृत्ति जितनी कम होती है गुणक का आकार उतना अधिक होता है तथा सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) जितनी अधिक होती है, गुणक का आकार उतना कम होता है। इनका परस्पर में विपरीत सम्बन्ध होता है।

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प्रश्न 4.
यदि सीमान्त बचत प्रवृत्ति 0.25 है तो गुणक का आकार (मूल्य ) क्या होगा ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\)
= \(\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4 उत्तर

प्रश्न 5.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10 करोड़ होती है तथा परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 50 करोड़ हो जाती है। गुणक का मूल्य क्या होगा ?
उत्तर-
PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक 10

प्रश्न 6.
यदि MPC = 0.8 है, निवेश में परिवर्तन ₹ 1000 है तो आय में परिवर्तन का पता करो।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{1 \times 10}{2}=5\)
आय में परिवर्तन Κ X ΔΙ
= 5 x 1000
= ₹ 5000 उत्तर

प्रश्न 7.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 10,000 है, परिणामस्वरूप आय में वृद्धि ₹ 40,000 है तो सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{40,000}{10,000} \) = 4
अथवा
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}\) अथवा MPS = \(\frac{1}{K}=\frac{1}{4}\)
सीमान्त बचत प्रवृत्ति (MPS) = \(\frac{1}{4}\) or 0.25 उत्तर

प्रश्न 8.
यदि MPC = 0.75 है तो गुणक का मूल्य बताओ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
= \(1 \times \frac{100}{25}\) = 4

प्रश्न 9.
यदि एक अर्थव्यवस्था में MPC = 0.75 है, निवेश व्यय में वृद्धि ₹ 500 करोड़ होती है। कुल आय में वृद्धि बताओ तथा उपभोग व्यय ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75} \frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}\) = 4
आय में वृद्धि = ΔI x K
= 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़
उपभोग व्यय = 2000 x 0.75 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 10.
निवेश में ₹ 20 करोड़ की वृद्धि के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आय में वृद्धि ₹ 100 करोड़ हो जाती है। MPC ज्ञात करो।
उत्तर
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}=\frac{100}{20}\) = 5
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}\)
5 (1 – MPC) = 1
5 – 5 MPC = 1
5 – 1 = 5 MPC
4 = 5MPC
MPC = \(\frac{4}{5}\) = 0.8 उत्तर

प्रश्न 11.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.8 है। ₹ 500 करोड़ की निवेश में वृद्धि की जाती है। उपभोग व्यय तथा आय में कुल वृद्धि की गणना करें।
उत्तर-
K= \(\frac{1\cdot}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=\frac{1}{\frac{2}{10}}=\frac{10}{12}=5\)
K = \(\frac{\Delta y}{\Delta \mathrm{I}}\)
∴ 5 = \(\frac{\Delta y}{500}\)
ΔΙx K
आय में वृद्धि (Δy) = 500 x 5 = ₹ 2500 करोड़
उपभोग में वृद्धि (ΔC) = Δy x MPC
= 2500 x 0.8
= 2500 x \(\frac{8}{10}\) = ₹ 2000 करोड उत्तर

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प्रश्न 12.
एक अर्थव्यवस्था में वास्तविक आय ₹ 500 करोड़ है, जबकि पूर्ण रोज़गार पर राष्ट्रीय आय ₹ 800 करोड़ है। यदि MPC = 0.75 है तो कितना निवेश बढ़ाया जाए कि पूर्ण रोज़गार की स्थिति प्राप्त हो जाए ?
उत्तर-
वास्तविक आय = ₹ 500 करोड़
पूर्ण रोज़गार पर आय = ₹ 800 करोड़
आय में अनिवार्य वृद्धि = 800 – 500 = ₹ 300 करोड़
M.P.C. = 0.75
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) =4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) अथवा ΔI = \(\frac{\Delta Y}{K}=\frac{300}{4}\) = ₹ 75 करोड़ उत्तर।

प्रश्न 13.
यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। निवेश खर्च में वृद्धि 500 करोड़ रुपये की जाती है। आमदन और उपभोग में वृद्धि का माप करो ।
उत्तर-
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.75. ΔI = ₹ 500 करोड़
गुणक
= \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25}\)
= 4
(i) आमदन में वृद्धि
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\), K × ΔI = ΔY
ΔΥ = 4 × 500 = ₹ 2000 करोड़

(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = MPC ×ΔY = 0.75 × 2000 = ₹ 1500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 14.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश खर्च की वृद्धि ₹ 700 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.9 है। आमदन और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर –
ΔI = ₹ 700 करोड़, MPC = 0.9
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.9}=\frac{1}{.1}\) = 10
(i) आमदन में वृद्धि = KΔI = 10 x 700 = ₹ 7000 करोड़
(ii) उपभोग खर्च में वृद्धि = ΔY x MPC = 7000 x 0.9 = ₹ 6300 करोड़ उत्तर

प्रश्न 15.
यदि एक अर्थव्यवस्था में निवेश की वृद्धि ₹ 600 करोड़ है। सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है। आमदन में वृद्धि और उपभोग खर्च में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
ΔI = 600, MPC = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{\frac{1}{4}}{\frac{4}{10}}=\frac{10}{4} \) = 2.5
(i) आमदन में वृद्धि (ΔY) = K x ΔI = 2.5 x 600 = ₹ 1500 करोड़
(ii) उपभोग में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC = 1500 x 0.6 = ₹ 900 करोड़ उत्तर

प्रश्न 16.
यदि MPC = 0 है तो गुणक पता करें।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0}=\frac{1}{1}\) = 1 उत्तर

प्रश्न 17.
यदि MPS = 0 है तो गुणक का आकार बताओ।
उत्तर-
MPC = 1 – MPS = 1 – 0 = 1
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-1}=\frac{1}{0}\) = ∞(Infinity)
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0}\) = ∞ (Infinity)

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प्रश्न 18.
यदि गुणक 5 है तो सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति और सीमान्त बचत प्रवृत्ति ज्ञात करें।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPS}}\) = 5 = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}\)
∴ MPS = \(\frac{1}{5}\) = 0.2
और MPC = 1 – MPS = 1 – 0.2 = 0.8 उत्तर

प्रश्न 19.
यदि MPS = 0.2 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 100 करोड़ करनी हो तो निवेश में वृद्धि कितनी करनी चाहिए ?
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.2}=\frac{\frac{1}{2}}{\frac{10}{10}}=\frac{10}{2}\) = 5
और
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = K x ΔI = ΔY = 5 x ΔI = 100
ΔI = \(\frac{100}{5}\) = ₹ 20 करोड़ उत्तर

प्रश्न 20.
यदि MPC = 0.75 है और राष्ट्रीय आमदन में वृद्धि ₹ 2000 करोड़ करनी हो तो कितना निवेश करने की ज़रूरत है ?
उत्तर-
K=\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{\Delta\mathrm{Y}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{\frac{1}{25}}{\frac{25}{100}}=\frac{100}{25} \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) या KΔI = ΔY
= 4 x ΔI = 2000 = ΔI = \(\frac{2000}{4}\) = ₹ 500 करोड़ उत्तर

प्रश्न 21.
एक अर्थव्यवस्था में ₹ 200 करोड़ का अतिरिक्त निवेश होने पर यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = \(\frac{1}{2}\) हो तो कितनी अतिरिक्त आय का सृजन होगा ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{1}{2}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \)
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
2 = \(\frac{\Delta Y}{200}\) = 400 = BY
ΔY = ₹400 करोड़ उत्तर

प्रश्न 22.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है। यदि निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाए तो आय में कितनी वृद्धि होगी ?
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=\frac{1}{\frac{25}{100}}=\frac{1 \times 100}{25}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4
= \(\frac{\Delta Y}{500}\) = 4 x 500 = ΔY
ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 23.
एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.95 है। निवेश में ₹ 100 करोड़ की वृद्धि होने पर आय में वृद्धि ज्ञात कीजिए।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.95}=\frac{1}{0.05}=\frac{1}{\frac{5}{100}}=\frac{1 \times 100}{5}\) = 20
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 20 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{100}\) = 20 x 100 ΔY
∴ ΔY = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 24.
यदि एक अर्थव्यवस्था में सीमान्त उपभोग प्रवत्ति \( \frac{3}{4}\) में है और निवेश में ₹ 500 करोड़ की वृद्धि की जाती है तो आय में वृद्धि ज्ञात करो।
उत्तर –
दिया है MPC = \( \frac{3}{4}\)
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-\frac{3}{4}}=\frac{1}{\frac{1}{4}}=\frac{1 \times 4}{1}\) = 4
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\) = 4 = \(\frac{\Delta Y}{500}\)
ΔY = 500 x 4 = ₹ 2000 करोड़ उत्तर

प्रश्न 25.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.4 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.4}=\frac{1}{\frac{0.4}{10}}=\frac{1 \times 10}{1}\) = 2.5 उत्तर

प्रश्न 26.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.5 है ।
उत्तर-
K = \(\frac{1}{\text { MPS }}=\frac{1}{0.5}=\frac{1}{\frac{0.5}{10}}=\frac{1}{\frac{1}{2}}=\frac{1 \times 2}{1}=2 \) उत्तर

प्रश्न 27.
गुणक ज्ञात करें जब MPS = 0.8 है ।
उत्तर –
K = \(\frac{1}{\mathrm{MPS}}=\frac{1}{0.8}=\frac{1}{\frac{8}{10}}=\frac{1 \times 10}{8}\) = 1.25

प्रश्न 28.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश ₹ 300 करोड़ की वृद्धि होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो आय तथा उपभोग में वृद्धि कर ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (Δ I) = ₹ 300 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC = 0.6)
गुणक = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणाक के सूत्र अनुसार-
K = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{I}}\)
= 2.5 = \(\frac{\Delta Y}{300}\)
= 750 = (ΔY)
आय में वृद्धि (ΔY) = ₹ 750 करोड़ उत्तर
उपभोग व्यय में वृद्धि (Δ C)ΔY x MPC = 750 x 0.6 = ₹ 450 करोड़ उत्तर

PSEB 12th Class Economics Solutions Chapter 11 निवेश गुणक

प्रश्न 29.
एक अर्थव्यवस्था में निवेश में वृद्धि ₹ 900 करोड़ की होती है यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.6 है तो राष्ट्रीय आय तथा उपभोग व्यय में वृद्धि ज्ञात करें।
उत्तर-
निवेश में वृद्धि (ΔI) = ₹ 900 करोड़
सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (MPC) = 0.6
K = \(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}}=\frac{1}{1-0.6}=\frac{1}{0.4}=\frac{10}{4}\) = 2.5

गुणक के सुत्र अनुसार
K = \(\frac{\Delta Y}{\Delta I}\)
2.5 = \(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{900}\)
= 2.5 x 900 = AY
2250 = ΔY
आय में वृद्धि ΔY = ₹ 250 करोड़
उपभोग व्यय में वृद्धि (ΔC) = ΔY x MPC
= 2250 x 0.6
= ₹ 1350 करोड़ उत्तर

PSEB 10th Class Science Solutions Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ

Punjab State Board PSEB 10th Class Science Book Solutions Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Science Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ

PSEB 10th Class Science Guide ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ Textbook Questions and Answers

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ, ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਨੂੰ ਵਿਵਸਥਿਤ ਕਰਕੇ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਦੂਰੀਆਂ ਉੱਤੇ ਰੱਖੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਫੋਕਸਿਤ ਕਰ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਅਜਿਹਾ ਹੋ ਸਕਣ ਦਾ ਕਾਰਨ ਹੈ :
(a) ਜਰਾ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟਤਾ
(b) ਅਨੁਕੂਲਣ ਸਮਰੱਥਾ
(c) ਨਿਕਟ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟਤਾ
(d) ਦੂਰ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟਤਾ ।
ਉੱਤਰ-
(b) ਅਨੁਕੂਲਣ ਸਮਰੱਥਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਜਿਸ ਭਾਗ ਉੱਤੇ ਕਿਸੇ ਵਸਤੂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਬਣਾਉਂਦੀ ਹੈ, ਉਹ ਹੈ :-
(a) ਕਾਰਨੀਆ
(b) ਆਇਰਿਸ
(c) ਪੁਤਲੀ
(d) ਰੈਟਿਨਾ ।
ਉੱਤਰ-
(d) ਰੈਟਿਨਾ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਸਾਧਾਰਨ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੇ ਵਿਅਕਤੀ ਲਈ ਸਪਸ਼ਟ ਦਰਸ਼ਨ ਦੀ ਅਲਪਤਮ ਦੂਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਲਗਭਗ :-
(a) 25 m
(b) 2.5 cm
(c) 25 cm
(d) 2.5 m.
ਉੱਤਰ-
(c) 25 ਸਮ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ :-
(a) ਪੁਤਲੀ ਦੁਆਰਾ
(b) ਰੈਟਿਨਾ ਦੁਆਰਾ
(c) ਸਿਲੀਅਰੀ ਪੇਸ਼ੀ ਦੁਆਰਾ
(d) ਆਇਰਿਸ ਦੁਆਰਾ ।
ਉੱਤਰ-
(c) ਸਿਲੀਅਰੀ ਪੇਸ਼ੀ ਦੁਆਰਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਕਿਸੇ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਦੂਰ ਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਨੂੰ ਸੋਧਣ ਲਈ -5.5 ਡਾਈਆਟਰ ਸਮਰੱਥਾ ਦੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ । ਆਪਣੀ ਨਿਕਟ ਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੇ ਸੋਧਣ ਲਈ +1.5 ਡਾਈਆਪਟਰ ਸਮਰੱਥਾ ਵਾਲੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਨੂੰ ਸੋਧਣ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਕੀ ਹੋਵੇਗੀ :-
(i) ਦੂਰ ਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਲਈ
(i) ਨਿਕਟ ਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਲਈ
ਹੱਲ :
(i) ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਦੂਰ ਪਈਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਵੇਖਣ ਲਈ ਦੂਰ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਨੂੰ ਸੰਬੋਧਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ (P) = -5.5D
PSEB 10th Class Science Solutions Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ 1
ਜਾਂ f = \(\frac{1}{P}\)
∴ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ (f) = \(\frac{1}{-5.5}\) m
= \(\frac{-100}{5.5}\) cm
= \(\frac{-200}{11}\) cm

(ii) ਦਿੱਤਾ ਹੈ, ਨਿਕਟ ਪਈਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਵੇਖਣ ਲਈ ਨਿਕਟ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਸੰਸ਼ੋਧਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ (P) = + 1.5 D
PSEB 10th Class Science Solutions Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ 2
ਜਾਂ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ f = \(\frac{1}{P}\)
= \(\frac{1}{+1.5}\) m
= \(\frac{10}{15}\) m
= \(\frac{1000}{15}\) m
= \(\frac{200}{3}\) cm

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਕਿਸੇ ਨਿਕਟ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਵਾਲੇ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਦੂਰ-ਬਿੰਦੂ ਅੱਖ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ 80 cm ਦੂਰੀ ਉੱਤੇ ਹੈ । ਇਸ ਦੋਸ਼ ਨੂੰ ਸੋਧਣ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਅਤੇ ਸਮਰੱਥਾ ਕੀ ਹੋਵੇਗੀ ?
ਹੱਲ :
ਕਿਉਂਕਿ ਨਿਕਟ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਨਾਲ ਪੀੜਤ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਦੂਰ ਬਿੰਦੂ 80 cm ਦੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਉਸ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਅਜਿਹੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ਜੋ ਅਨੰਤ (ਬਹੁਤ ਦੂਰ) ਪਈ ਹੋਈ ਵਸਤੂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਅੱਖ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ 80 cm ਦੀ ਦੂਰੀ ਤੇ ਬਣਾ ਸਕੇ ।
∴ ਵਸਤੂ ਦੀ ਦੁਰੀ (u) = – ∝
ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਦੀ ਨੇਤਰ ਲੈਂਨਜ਼ ਤੋਂ ਦੂਰੀ (0) = – 80 cm
ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ (f) = ?
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= -1.25 D
ਕਿਉਂਕਿ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਰਿਣਾਤਮਕ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਅਵਤਲ (ਅਪਸਾਰੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ = – 1.25D ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਚਿੱਤਰ ਬਣਾ ਕੇ ਦਰਸਾਓ ਕਿ ਦੂਰ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਸੰਸ਼ੋਧਿਤ (ਠੀਕ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇੱਕ ਦੁਰ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਵਾਲੀ ਅੱਖ ਦਾ ਨਿਕਟ ਬਿੰਦੂ 1m ਹੈ । ਇਸ ਦੋਸ਼ ਨੂੰ ਠੀਕ ਕਰਨ ਲਈ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਕੀ ਹੋਵੇਗੀ ? ਇਹ ਮੰਨ ਲਓ ਕਿ ਆਮ ਅੱਖ ਦਾ ਨਿਕਟ ਬਿੰਦੂ 25 cm ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੂਰ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਵਿਅਕਤੀ ਦਾ ਨਿਕਟ ਬਿੰਦੂ ਸਾਧਾਰਨ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਵਾਲੀ ਅੱਖ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿੱਚ ਥੋੜਾ ਦੂਰ ਖਿਸਕ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸਦੇ ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਵਿਅਕਤੀ ਨੇੜੇ ਪਈਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੋਸ਼ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ (ਅਭਿਸਾਰੀ ਲੈੱਨਜ਼) ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਹੇਠਾਂ ਚਿੱਤਰ ਵਿੱਚ ਦਰਸਾਇਆ ਗਿਆ ਹੈ ।
PSEB 10th Class Science Solutions Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ 5
ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਅਨੁਸਾਰ, ਸਾਧਾਰਨ ਅੱਖ ਦਾ ਨਿਕਟ ਬਿੰਦੂ 25 cm ਹੈ ਜੋ ਨੇਤਰ ਦੋਸ਼ ਕਾਰਨ ਖਿਸਕ ਕੇ 1 m (= 100 cm) ਦੂਰ ਪਹੁੰਚ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਇੱਕ ਅਜਿਹੇ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ਜੋ 25 cm ਦੇ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਵਸਤੂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ 1 m ਅਰਥਾਤ 100 cm ’ਤੇ ਬਣਾਏ ।
ਇਸ ਲਈ u = – 25 cm
υ = -100 cm
PSEB 10th Class Science Solutions Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ 6
= +3 ਡਾਈਆਪਟਰ (D)
ਇਸ ਲਈ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ +3D ਸਮਰੱਥਾ ਵਾਲੇ ਉੱਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਲੋੜ ਹੋਵੇਗੀ । ਯ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਾਧਾਰਨ ਅੱਖ 25 cm ਤੋਂ ਨੇੜੇ ਰੱਖੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਵੇਖ ਸਕਦੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਦੋਂ ਵਸਤੁ ਸਾਧਾਰਨ ਅੱਖ ਤੋਂ 25 cm ਦੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਰੱਖੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਅੱਖ ਆਪਣੀ ਸੰਪੂਰਨ ਅਨੁਕੂਲਣ ਸਮਰੱਥਾ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਕੇ ਵਸਤੂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਰੈਟੀਨਾ ‘ਤੇ ਬਣਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਵਸਤੂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਉਸੇ ਵਸਤੂ ਨੂੰ 25 cm ਤੋਂ ਘੱਟ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੁਆਰਾ ਉਸ ਵਸਤੂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਰੈਟੀਨਾ ‘ਤੇ ਬਣਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਵਸਤੂ ਸਪੱਸ਼ਟ ਵਿਖਾਈ ਨਹੀਂ ਦਿੰਦੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਅੱਖ ਤੋਂ ਕਿਸੇ ਵਸਤੂ ਦੀ ਦੂਰੀ ਵਧਾ ਦਿੰਦੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਅੱਖ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ-ਦੂਰੀ ਨੂੰ ਕੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਾਧਾਰਨ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਵਸਤੂ ਦੀ ਅੱਖ ਤੋਂ ਦੂਰੀ ਵਧਾਉਣ ਨਾਲ ਵੀ ਨੇਤਰ ਦੁਆਰਾ ਬਣੇ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਦੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਕੋਈ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਹੀਂ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਵਸਤੂ ਦੀ ਹਰੇਕ ਸਥਿਤੀ ਲਈ ਅਨੁਕੂਲਣ ਸਮਰੱਥਾ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਕੇ ਵਸਤੂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਰੈਟੀਨਾ ‘ਤੇ ਹੀ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਤਾਰੇ ਕਿਉਂ ਟਿਮਟਿਮਾਉਂਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-

ਤਾਰਿਆਂ ਦਾ ਟਿਮਟਿਮਾਉਣਾ – ਤਾਰਿਆਂ ਦਾ ਟਿਮਟਿਮਾਉਣਾ ਵਿਖਾਈ ਦੇਣਾ ਤਾਰਿਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਵਾਯੂਮੰਡਲੀ ਅਪਵਰਤਨ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਵਾਯੂਮੰਡਲ
ਆਭਾਸੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਪਿੱਛੋਂ ਪ੍ਰਿਥਵੀ ਦੀ ਸਤਹਿ ਉੱਤੇ ਪਹੁੰਚਣ ਤੱਕ ਤਾਰੇ ਦਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵਾਯੂਮੰਡਲੀ ਮਾਧਿਅਮ ਦੇ ਲਗਾਤਾਰ ਵੱਧ ਰਹੇ ਅਪਵਰਤਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਅਪਵਰਤਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਜਿਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਨੂੰ ਅਭਿਲੰਬ ਵੱਲ ਮੋੜ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਖਿਤਿਜ ਵੱਲ ਦੇਖਣ ਨਾਲ ਤਾਰੇ ਦੀ ਆਭਾਸੀ ਸਥਿਤੀ ਉਸ
ਵਧਦਾ ਹੋਇਆ ਅਪਵਰਤਨ ਦੀ ਵਾਸਤਵਿਕ ਸਥਿਤੀ ਤੋਂ ਕੁੱਝ ਉੱਚਾਈ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਦੀਆਂ ਭੌਤਿਕ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਸਥਾਈ ਨਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਹ ਆਭਾਸੀ ਸਥਿਤੀ ਥੋੜ੍ਹਾ ਬਦਲਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਤਾਰਿਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਕੋਈ ਤਾਰਾ ਕਦੀ ਚਮਕੀਲਾ ਅਤੇ ਕਦੀ ਧੁੰਦਲਾ ਜਾਪਦਾ ਹੈ । ਜੋ ਟਿਮਟਿਮਾਉਣ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ਕਿ ਗ੍ਰਹਿ ਕਿਉਂ ਨਹੀਂ ਟਿਮਟਿਮਾਉਂਦੇ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਿ, ਤਾਰਿਆਂ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਨੇੜੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵਿਸਤਰਿਤ ਸਰੋਤ ਮੰਨਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਰ੍ਹਿਆਂ ਨੂੰ ਬਿੰਦੂ ਆਕਾਰ ਦੇ ਕਈ ਸਰੋਤਾਂ ਦਾ ਸਮੂਹ ਮੰਨ ਲਈਏ ਤਾਂ ਹਰੇਕ ਬਿੰਦੂ ਸਰੋਤ ਦਾ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸਾਡੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਕੁੱਲ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਔਸਤ ਮਾਨ ਜ਼ੀਰੋ ਹੋਵੇਗਾ ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਆਭਾਸੀ ਸਥਿਤੀ ਰਹੇਗੀ ਅਤੇ ਟਿਮਟਿਮਾਉਣ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਜਾਏਗਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਸੂਰਜ ਚੜ੍ਹਨ ਸਮੇਂ ਸੂਰਜ ਲਾਲ ਕਿਉਂ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
PSEB 10th Class Science Solutions Chapter 11 ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ 8
ਸੂਰਜ ਚੜ੍ਹਨ ਸਮੇਂ ਸੂਰਜ ਲਾਲ ਵਿਖਾਈ ਦੇਣਾ-ਸੂਰਜ ਚੜ੍ਹਨ (ਸੂਰਜ ਡੁੱਬਣ) ਸਮੇਂ ਸੂਰਜ ਤੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਨੂੰ ਸਾਡੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚਣ
ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਦੀ ਹਵਾ ਦੀਆਂ ਮੋਟੀਆਂ ਪਰਤਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਹੋ ਕੇ ਲੰਘਣਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇੱਥੇ ਧੂੜ-ਕਣਾਂ ਅਤੇ ਜਲ-ਕਣਾਂ ਦੀ ਉਪਸਥਿਤੀ ਕਾਰਨ ਘੱਟ ਤਰੰਗ ਲੰਬਾਈ ਵਾਲੇ ਰੰਗ (ਜਿਵੇਂ ਨੀਲਾ, ਬੈਂਗਣੀ ਆਦਿ) ਦਾ ਖੰਡਰਾਓ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸਿਰਫ ਅਧਿਕ ਤਰੰਗ ਲੰਬਾਈ ਵਾਲੀਆਂ ਲਾਲ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਤਰੰਗਾਂ ਸਿੱਧੀਆਂ ਸਾਡੀਆਂ ਅੱਖਾਂ ਤੱਕ ਪੁੱਜਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੂਰਜ ਚੜ੍ਹਨ (ਜਾਂ ਸੂਰਜ ਡੁੱਬਣ ਸਮੇਂ ਸੂਰਜ ਲਾਲ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਕਿਸੇ ਪੁਲਾੜ ਯਾਤਰੀ ਨੂੰ ਆਕਾਸ਼ ਨੀਲੇ ਦੀ ਥਾਂ ਕਾਲਾ ਕਿਉਂ ਪ੍ਰਤੀਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ? (ਮਾਡਲ ਪੇਪਰ, 2020)
ਉੱਤਰ-
ਬਹੁਤ ਉੱਚਾਈ ਤੇ ਉੱਡਦੇ ਸਮੇਂ ਪੁਲਾੜ ਯਾਤਰੀ ਦੇ ਲਈ ਕੋਈ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਹਵਾ ਦੇ ਅਣੂਆਂ ਜਾਂ ਹੋਰ ਬਹੁਤ ਸੂਖ਼ਮ ਕਣਾਂ ਦੀ ਅਣਹੋਂਦ ਕਾਰਨ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਦਾ ਭਿੰਡਰਾਓ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਪੁਲਾੜ ਯਾਤਰੀ ਨੂੰ ਆਕਾਸ਼ ਕਾਲਾ ਵਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ।

Science Guide for Class 10 PSEB ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਅਤੇ ਰੰਗ-ਬਰੰਗਾ ਸੰਸਾਰ InText Questions and Answers

ਅਧਿਆਇ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਅੱਖ ਦੀ ਅਨੁਕੂਲਣ ਸਮਰੱਥਾ ਤੋਂ ਕੀ ਭਾਵ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੱਖ ਦੀ ਅਨੁਕੂਲਣ ਸਮਰੱਥਾ-ਨੇਤਰ ਲੈਨਜ਼ ਰੇਸ਼ੇਦਾਰ ਜੈਲੀ ਵਰਗੇ ਪਦਾਰਥ ਦਾ ਬਣਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੀ ਵਕਰਤਾ ਵਿੱਚ ਕੁੱਝ ਸੀਮਾ ਤਕ ਸਿਲੀਆਮਈ ਪੇਸ਼ੀਆਂ (Ciliary muscles) ਦੁਆਰਾ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਵਕਤਾ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋਣ ਨਾਲ ਇਸ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਵੀ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਜਦੋਂ ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਢਿੱਲੀਆਂ ਹੋ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਤਾਂ ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਪਤਲਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੁਰੀ ਵੱਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਦੂਰ ਰੱਖੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਵੇਖਣ ਦੇ ਸਮਰੱਥ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਾਂ । ਜਦੋਂ ਤੁਸੀਂ ਨੇੜੇ ਪਈਆਂ ਵਸਤੁਆਂ ਨੂੰ ਵੇਖਦੇ ਹੋ ਤਾਂ ਸਿਲੀਆਮਈ ਪੇਸ਼ੀਆਂ ਸੁੰਗੜ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਨਾਲ ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਵਕਤਾ ਵੱਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਮੋਟਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਘੱਟ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਤੁਸੀਂ ਨੇੜੇ ਪਈਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵੇਖ ਸਕਦੇ ਹੋ । ਨੇਤਰ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੀ ਉਹ ਸਮਰੱਥਾ ਜਿਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉਹ ਆਪਣੀ ਫੋਕਸ ਦੂਰੀ ਨੂੰ ਸਮਾਯੋਜਿਤ ਕਰ ਲੈਂਦਾ ਹੈ ਅਨੁਕੂਲਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਨਿਕਟ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਦਾ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ 1.2m ਤੋਂ ਵੱਧ ਦੂਰੀ ਉੱਤੇ ਰੱਖੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਨਹੀਂ ਦੇਖ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਦੋਸ਼ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨ ਲਈ ਸਹੀ ਸੋਧਿਆ ਹੋਇਆ ਲੈਂਨਜ਼ ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ? (ਮਾਂਡਲ ਪੇਪਰ)
ਉੱਤਰ-
ਨਿਕਟ-ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਯੁਕਤ ਅੱਖ 1.2 m ਤੋਂ ਵੱਧ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਰੱਖੀ ਹੋਈ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਦੇਖ ਸਕਦੀ ਕਿਉਂਕਿ ਵਸਤੁਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਰੈਟੀਨਾ ਤੇ ਨਾ ਬਣ ਕੇ ਰੈਟੀਨਾ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਬਣਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੋਸ਼ ਨੂੰ ਸਹੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵਾਲੇ ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ (ਅਭਿਸਾਰੀ ਲੈਂਨਜ਼) ਦੇ ਉਪਯੋਗ ਦੁਆਰਾ ਸੋਧਿਆ ਜਾਂ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਦੀ ਸਾਧਾਰਨ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੇ ਲਈ ਦੂਰ ਬਿੰਦੂ ਅਤੇ ਨਿਕਟ ਬਿੰਦੂ ਅੱਖ ਤੋਂ ਕਿੰਨੀ ਦੂਰੀ ਉੱਤੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਨੁੱਖੀ ਅੱਖ ਦੀ ਸਾਧਾਰਨ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੇ ਲਈ ਨਿਕਟ ਬਿੰਦੂ ਦੀ ਅੱਖ ਤੋਂ ਦੂਰੀ 25 cm ਅਤੇ ਦੂਰ ਬਿੰਦੂ ਦੀ ਅੱਖ ਤੋਂ ਦੂਰੀ ਅਨੰਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਅਰਥਾਤ ਨੀਰੋਗ ਅੱਖ 25 cm ਅਤੇ ਅਨੰਤ ਵਿਚਾਲੇ ਕਿਸੇ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਵੀ ਸਥਿਤ ਵਸਤੂ ਨੂੰ ਸਾਫ਼ਸਾਫ਼ ਵੇਖ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਆਖਰੀ ਕਤਾਰ ਵਿੱਚ ਬੈਠੇ ਕਿਸੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨੂੰ ਬਲੈਕ ਬੋਰਡ ਪੜ੍ਹਨ ਵਿੱਚ ਕਠਿਨਾਈ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਕਿਸ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਰੋਗ ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ ਕਿਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਠੀਕ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਨਿਕਟ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦੋਸ਼ ਤੋਂ ਪੀੜਤ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਸਹੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵਾਲੇ ਅਵਤਲ ਲੈੱਨਜ਼ ਦੁਆਰਾ ਠੀਕ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।