PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
एकात्मक सरकार का अर्थ और विशेषताओं की व्याख्या करें। (Discuss the meaning and features of Unitary Government.)
उत्तर–
आधुनिक राज्य क्षेत्र व जनसंख्या में इतने विशाल हैं कि प्रत्येक राज्य को प्रान्तों अथवा इकाइयों में बांटा गया है। इन प्रान्तों अथवा इकाइयों को प्रान्तीय शासन चलाने के लिए कुछ अधिकार तथा शक्तियां प्राप्त होती हैं। इन प्रान्तीय सरकारों का केन्द्रीय सरकारों से क्या सम्बन्ध है, इस आधार पर सरकारों का वर्गीकरण एकात्मक तथा संघात्मक रूपों में किया जाता है। एकात्मक सरकार में शासन की समस्त शक्तियां अन्तिम रूप में केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं जबकि संघात्मक सरकार में शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं।

एकात्मक सरकार की परिभाषाएं (Definitions of Unitary Government)-एकात्मक शासन वह शासन है जिसमें शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं। सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय सरकार प्रान्तों की स्थापना करती है तथा उन्हें थोड़े-बहुत अधिकार प्रदान करती है। केन्द्रीय सरकार जब चाहे इन प्रान्तों की सीमाएं घटा-बढ़ा भी सकती है। एकात्मक शासन की भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • डायसी (Dicey) के अनुसार, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च शक्ति का स्वाभाविक प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।” (“Unitary government is the habitual exercise of supreme legislative authority by one central power.”)
  • डॉ० फाइनर (Finer) के अनुसार, “एकात्मक शासन वह होता है जहां एक केन्द्रीय सरकार में सम्पूर्ण शासन शक्ति निहित होती है और जिसकी इच्छा व जिसके प्रतिनिधि कानूनी दृष्टि में सर्वशक्तिमान होते हैं।”
  • प्रोफेसर स्ट्रांग (Strong) के अनुसार, “एकात्मक राज्य वह है जो एक केन्द्रीय शासन के अधीन संगठित हो।” (“A unitary state is one organised under a single central government.”)
    • प्रो० गार्नर (Garner) के अनुसार, “जब संविधान द्वारा सरकार की सब शक्तियां अकेले केन्द्रीय अंग तथा अन्य अंगों को दी जाएं, जिससे स्थानीय सरकारें अपनी शक्तियां और स्वतन्त्रता तथा अपना अस्तित्व तक प्राप्त करती हों, वहां एकात्मक सरकार होती है।”
      इंग्लैण्ड, फ्रांस, जापान, श्रीलंका, चीन, इटली तथा जर्मनी में एकात्मक शासन प्रणाली पाई जाती है।
  • PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

एकात्मक सरकार के लक्षण (Features of Unitary Government)-
एकात्मक शासन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • शक्तियों का केन्द्रीयकरण (Centralization of Powers)—एकात्मक शासन में शासन की शक्तियां केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं। शासन की सुविधा के लिए राज्यों को प्रान्तों में बांटा गया होता है और उन्हें कुछ अधिकार तथा शक्तियां दी जाती हैं। केन्द्र जब चाहे प्रान्तों के अधिकारों तथा शक्तियों को छीन सकता है और उनकी शक्तियां जब चाहे घटा-बढ़ा सकता है। इन प्रान्तों अथवा इकाइयों का अस्तित्व केन्द्र के ऊपर निर्भर करता है।
  • प्रभुसत्ता (Sovereignty)-एकात्मक शासन में प्रभुसत्ता केन्द्र में निहित होती है
  • इकहरी नागरिकता (Single Citizenship)-एकात्मक शासन में एक ही नागरिकता होती है। इंग्लैण्ड में नागरिकों को एक ही नागरिकता प्राप्त है।
  • इकहरा शासन (Single Administration)-एकात्मक शासन में इकहरी शासन व्यवस्था होती है। इसमें एक ही विधानपालिका, एक ही कार्यपालिका तथा एक ही सर्वोच्च न्यायपालिका होती है।
  • लिखित अथवा अलिखित संविधान (Written or Unwritten Constitution)-एकात्मक शासन में संविधान लिखित हो सकता है और अलिखित भी। इंग्लैण्ड का संविधान अलिखित है जबकि जापान का संविधान लिखित है।
  • कठोर अथवा लचीला संविधान (Rigid or Flexible Constitution) एकात्मक शासन का संविधान कठोर अथवा लचीला हो सकता है। इंग्लैण्ड का संविधान लचीला है जबकि जापान का संविधान कठोर है।
  • प्रान्तों का अस्तित्व केन्द्र पर निर्भर करता है (Existence of the Provinces depends upon Centre)प्रान्तीय सरकारों का अस्तित्व और उनकी शक्तियां केन्द्रीय सरकार की इच्छा पर निर्भर होती हैं। प्रान्तों के अस्तित्व तया शक्तियों में परिवर्तन करने के लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार के गुणों और दोषों की व्याख्या करें। (Discuss the merits and demerits of Unitary Government.)
उत्तर-
एकात्मक शासन के गुण (Merits of Unitary Government)-एकात्मक शासन के निम्नलिखित गुण हैं-

  • शक्तिशाली शासन (Strong Administration)-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है। सभी शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं। प्रान्तीय सरकारें केन्द्रीय सरकार के आदेशानुसार कार्य करती हैं। कानूनों को बनाने तथा लागू करने की ज़िम्मेदारी केन्द्र पर होती है। इस तरह शासन शक्तिशाली होता है जिस कारण देश की विदेश नीति भी प्रभावशाली होती है।
  • सादा शासन (Simple Administration)-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन अति सरल होता है। शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं जिसके कारण केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों में मतभेद उत्पन्न नहीं होते। सादा शासन होने के कारण एक अनपढ़ व्यक्ति को भी अपने देश के शासन के संगठन का ज्ञान होता है।
  • लचीला प्रशासन (Flexible Government)-संविधान अधिक कठोर न होने के कारण समयानुसार आसानी से बदला जा सकता है। संकटकाल के लिए यह शासन-प्रणाली बहुत उपयुक्त है। केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए किसी भी समय प्रान्तों की शक्तियों को कम किया जा सकता है।
  • कम खर्चीला शासन (Less Expensive)—एकात्मक शासन प्रणाली संघात्मक सरकार की अपेक्षा कम खर्चीली होती है। इसमें एक ही विधानपालिका तथा एक ही कार्यपालिका होती है जिससे खर्च कम होता है। प्रान्तों में विधानमण्डल तथा कार्यपालिका न होने के कारण धन की बचत होती है।
  • शासन की एकरूपता (Uniformity in Administration)-कानून बनाने के लिए एक ही विधानपालिका होती है तथा कानूनों को लागू करने के लिए एक ही कार्यपालिका होती है। इससे सारे राज्य में शासन की एकरूपता बनी रहती है। एक नागरिक देश के किसी भी भाग में क्यों न चला जाए उसे एक ही तरह के कानूनों का पालन करना होता है।
  • राष्ट्रीय एकता (National Unity)—एकात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रीय एकता की भावनाओं में वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि सभी नागरिकों को एक से कानून का पालन करना पड़ता है और उन्हें एक ही नागरिकता प्राप्त होती है। नागरिकों में प्रान्तीयता की भावनाएं उत्पन्न नहीं होती जिससे राष्ट्रीय एकता बनी रहती है।
  • कार्यकुशल शासन (Efficient Administration)-एकात्मक शासन प्रणाली में शासन में कुशलता आ जाती है क्योंकि इस शासन व्यवस्था में केन्द्र तथा प्रान्तों में मतभेद तथा गतिरोध उत्पन्न नहीं होते। एकात्मक सरकार में शासन में कुशलता होती है क्योंकि समस्त निर्णय केन्द्र द्वारा लिए जाते हैं। केन्द्र शीघ्र निर्णय लेकर उन्हें शीघ्रता से लागू करता है। इससे शासन में कुशलता का आना स्वाभाविक है।
  • संकटकाल के लिए उपयुक्त (Suitable in time of Emergency) शासन की समस्त शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं, जिसके कारण सरकार शक्तिशाली होती है। संकट के समय केन्द्र शीघ्र निर्णय लेकर संकट का सामना दृढ़ता से कर सकता है।
  • इकहरी नागरिकता (Single Citizenship) एकात्मक शासन में इकहरी नागरिकता होती है और प्रत्येक व्यक्ति समस्त देश का नागरिक होता है, किसी प्रान्त का नहीं। इससे उनकी वफ़ादारी अविभाजित रहती है और वह देश के प्रति वफ़ादार रहता है।
  • छोटे-छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त (Suitable for Small States)-एकात्मक शासन प्रणाली छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त है। कम क्षेत्र वाले प्रदेश को छोटे-छोटे प्रान्तों में बांटना ठीक नहीं होता क्योंकि प्रत्येक छोटे क्षेत्र में अलग सरकार स्थापित करने से ख़र्च भी बहुत बढ़ जाते हैं।
  • वैदेशिक सम्बन्धों में दृढ़ता (Strong and Firm in Foreign Relations)-एकात्मक सरकार दूसरे राज्यों से अपने सम्बन्ध स्थापित करने और उनके संचालन में दृढ़ता से काम ले सकती है। अन्य राज्यों से सन्धि करते समय केन्द्रीय सरकार को प्रान्तीय सरकारों से सलाह करने की आवश्यकता नहीं होती।
  • उत्तरदायित्व निश्चित किया जा सकता है (Responsibility can be fixed)-सारे देश का शासन केन्द्रीय शासन के अधीन होता है जिसके कारण उत्तरदायित्व निश्चित करना आसान है।

एकात्मक शासन के दोष (Demerits of Unitary Government)-

बहुत-से राज्य एकात्मक शासन प्रणाली को अपनाए हुए हैं। एकात्मक शासन प्रणाली के बहुत-से अवगुण भी हैं जो निम्नलिखित हैं-

  • केन्द्र निरंकुश बन जाता है (Centre becomes Despotic)-एकात्मक शासन में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता है जिसके कारण केन्द्र के निरंकुश बन जाने का सदा भय बना रहता है।
  • स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती (Local needs are not fulfilled)—प्रत्येक प्रान्त की अपनी समस्याएं होती हैं जिनके लिए विशेष प्रकार के कानूनों की आवश्यकता होती है। केन्द्रीय सरकार को न तो स्थानीय आवश्यकताओं का पूरा ज्ञान होता है और न ही कानून प्रान्तों के लिए बनाए जाते हैं। वह तो एक ही कानून सब प्रान्तों के लिए बनाती है।
  • बड़े राज्यों के लिए अनुपयुक्त (Unsuitable for big States)-एकात्मक सरकार उन राज्यों के लिए जिनका क्षेत्रफल तथा जनसंख्या बहुत अधिक होती है, उपयुक्त नहीं है क्योंकि केन्द्रीय सरकार दूर-दूर फैले हुए भागों में शासन की व्यवस्था अच्छी प्रकार से लागू नहीं कर सकती।
  • केन्द्रीय सरकार का कार्य बढ़ जाता है (Central Government becomes over-burdened)—एकात्मक सरकार में सारे देश का शासन केन्द्र के द्वारा चलाया जाता है। जिससे केन्द्रीय सरकार का कार्य बढ़ जाता है। केन्द्रीय सरकार को ही देश की समस्याओं तथा विदेशी मामलों को सुलझाना पड़ता है। शासन के सभी निर्णय केन्द्र के द्वारा लिए जाते हैं जिससे केन्द्र का कार्यभार बहुत बढ़ जाता है। इसका परिणाम यह होता है कि केन्द्र प्रत्येक कार्य को कुशलता से नहीं कर पाता और कई समस्याओं को सुलझाने के लिए केन्द्र को समय ही नहीं मिल पाता है।
  • नौकरशाही का प्रभाव (Influence of Bureaucracy)-एकात्मक शासन में स्थानीय शासन नहीं होने के कारण सरकारी कर्मचारियों की शक्ति तथा प्रभाव बहुत बढ़ जाता है। प्रान्तों का शासन जनता के प्रतिनिधियों के द्वारा नहीं चलाया जाता बल्कि प्रान्तों के शासन के लिए सरकारी कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं जो जनता की समस्याओं के प्रति उदासीन होते हैं। सरकारी कर्मचारी अपनी मनमानी करते हैं, क्योंकि उन पर स्थानीय नियन्त्रण नहीं होता।
  • शासन में दक्षता नहीं आती (Administration does not become efficient)—एकात्मक शासन में राष्ट्रीयता तथा प्रान्तीय मामलों का प्रबन्ध केन्द्र को ही करना पड़ता है। इससे उसके काम इतने बढ़ जाते हैं कि वह कोई भी काम ठीक प्रकार से नहीं कर सकती, यहां तक कि राष्ट्रीय महत्त्व के कार्य भी ठीक समय पर और अच्छी तरह नहीं हो पाते।
  • लोगों को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती (People do not get Political Education)—प्रान्तों में सारा प्रबन्ध केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों द्वारा होता है और वहां की जनता को शासन के साथ सम्मिलित नहीं किया जाता है। प्रान्तीय विधानमण्डलों के अभाव में समय-समय पर चुनाव आदि भी नहीं होते, इसलिए जनता को राजनीति में भाग लेने का अवसर कम मिलता है।
  • नागरिकों की सार्वजनिक कार्यों में अरुचि (No interest of Citizens towards Local Affairs)एकात्मक शासन में स्थानीय समस्याओं से सम्बन्धित सभी निर्णय केन्द्रीय सरकार के द्वारा किए जाते हैं। स्थानीय समस्याओं पर विचार करने तथा उन्हें सुलझाने के लिए वहां के लोगों को स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती। इससे जनता में स्थानीय समस्याओं में कोई रुचि नहीं रहती और उनका उत्साह भी कम हो जाता है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि जनता स्वयं शासन में रुचि ले और अपनी समस्याओं को सुलझाने का प्रयत्न करें।

निष्कर्ष (Conclusion) एकात्मक शासन के गुण भी हैं और दोष भी। किसी देश में यह प्रणाली ठीक सिद्ध होती है और किसी देश में उचित नहीं समझी जाती।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

प्रश्न 3.
संघवाद से क्या अभिप्राय है ?
(What is the meaning of federalism ?)
उत्तर-
संघात्मक शासन उसे कहते हैं जहां संविधान के द्वारा शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं और दोनों अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। इसका अर्थ यह है कि केन्द्रीय सरकार प्रान्तों को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और न ही प्रान्त केन्द्रीय सरकार को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप कर सकते हैं। संघात्मक शासन में दोहरी सरकार होती है। प्रभुसत्ता न तो केन्द्रीय सरकार में निहित होती है और न ही प्रान्तीय सरकारों में और न ही प्रभुसत्ता केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती है। प्रभुसत्ता वास्तव में राज्य के पास होती है।

संघवाद को अंग्रेज़ी भाषा में ‘फेडरलिज्म’ (Federalism) कहते हैं। फेडरलिज्म शब्द लेटिन भाषा के शब्द फोईडस (Foedus) से बना है जिसका अर्थ है सन्धि अथवा समझौता। संघात्मक सरकार इस प्रकार समझौते का परिणाम होती है। जिस तरह किसी समझौते के लिए एक से अधिक पक्षों का होना आवश्यक होता है उसी तरह संघात्मक राज्य की स्थापना करने के लिए दो या दो से अधिक राज्यों के बीच समझौते की आवश्यकता होती है। उदाहरणस्वरूप प्रारम्भ में अमेरिका के 13 राज्यों ने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की स्थापना की। आज अमेरिका के 50 राज्य हैं। भारत, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैण्ड, दक्षिणी अफ्रीका तथा कनाडा में संघात्मक सरकारें पाई जाती हैं।

संघात्मक सरकार की परिभाषाएं (Definitions of Federal Government)-

संघात्मक सरकार की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं की गई हैं-

  • माण्टेस्कयू (Montesquieu) के अनुसार, “संघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है जिसके द्वारा बहुत से एकजैसे राज्य एक बड़े राज्य के सदस्य बनने को सहमत हो जाते हैं।” (“Federal Government is a convention by which several similar states agree to become members of a large one.”)
  • हैमिल्टन (Hamilton) के अनुसार, “संघात्मक शासन राज्यों का एक समुदाय है जो एक नए राज्य का निर्माण करता है।” (“Federation is an association of states that form a new one.”)
  • डॉ० फाईनर (Dr. Finer) के शब्दों में, “संघात्मक राज्य वह है जिसमें अधिकार और शक्ति का कुछ भाग स्थानीय क्षेत्रों में निहित हो व दूसरा भाग एक केन्द्रीय संस्था के पास हो जिसको स्थानीय क्षेत्रों के समुदाय ने अपनी इच्छा से बनाया हो।”
  • अमेरिकन सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, “संघात्मक राज्य तोड़े न जा सकने वाले राज्यों का बना, तोड़ा जा सकने वाला संघ है।” (“Destructible union composed of indestructible states.”)
  • गार्नर (Garmer) की परिभाषा स्पष्ट तथा अन्य परिभाषाओं से श्रेष्ठ है। उसके अनुसार, “संघात्मक एक ऐसी प्रणाली है जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक सामान्य प्रभुसत्ता के अधीन होती हैं। ये सरकारें अपने निश्चित क्षेत्र में जिसको संविधान अथवा संसद् का कोई अधिनियम निश्चित करता है, सर्वोच्च होती हैं। संघ सरकार जैसा कि प्रायः यह कह दिया जाता है कि अकेली सरकार केन्द्रीय ही नहीं होती वरन् यह केन्द्र तथा स्थानीय सरकारों को मिला कर बनती है। स्थानीय सरकार संघ का उतना ही भाग है जितना कि केन्द्रीय सरकार, यद्यपि वह न तो केन्द्र द्वारा बनाई जाती है और न ही उसके अधीन होती है।”

प्रश्न 4.
संघात्मक शासन व्यवस्था में जो तीन सामान्य सिद्धान्त अपनाये जाते हैं, उनका वर्णन कीजिए।
(Describe the three general principles that are followed in federalism.)
अथवा
संघात्मक सरकार के आवश्यक तत्त्वों की व्याख्या करें।
(Discuss the essential features of a federal government.)
उत्तर-
संघात्मक सरकार के निम्नलिखित आवश्यक तत्त्व तथा विशेषताएं होती हैं-

1. लिखित संविधान (Written Constitution)-संघात्मक सरकार का संविधान सदैव लिखित होना चाहिए ताकि केन्द्र तथा प्रान्तों के मध्य शक्तियों का विभाजन निश्चित तथा स्पष्ट किया जा सके। यदि संविधान अलिखित होगा तो दोनों सरकारों में झगड़े तथा गतिरोध उत्पन्न होते हैं क्योंकि दोनों सरकारों की शक्तियां निश्चित तथा स्पष्ट नहीं होती। अतः समझौते के अनुच्छेद लिखित होने चाहिएं अर्थात् संविधान लिखित होना चाहिए।

2. संविधान की सर्वोच्च (Supremacy of the Constitution)—संघात्मक सरकार में संविधान की सर्वोच्चता होना अति आवश्यक है। संविधान की सर्वोच्चता का अर्थ है कि समझौते की शर्ते जिसके द्वारा संघ राज्य की स्थापना की गई है, केन्द्र तथा प्रान्तीय सरकारों के ऊपर लागू होती हैं। न तो केन्द्र और न ही प्रान्त संविधान का उल्लंघन कर सकता है क्योंकि ऐसा करना समझौते का उल्लंघन करना है जिसके द्वारा संघात्मक राज्य की स्थापना की गई है। कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समुदाय या संस्था संविधान से ऊपर नहीं है। संविधान का उल्लंघन करने का अधिकार किसी को प्राप्त नहीं होता। जब कभी केन्द्र तथा प्रान्तों में गतिरोध उत्पन्न हो जाए तो दोनों को संविधान की धाराओं के अनुसार कार्य करना होता है। केन्द्र तथा प्रान्त अपने अधिकार तथा शक्तियां संविधान से प्राप्त करते हैं, इसलिए संविधान का सर्वोच्च होना आवश्यक है। अमेरिका, भारत, स्विट्ज़रलैण्ड आदि संघात्मक राज्यों में संविधान सर्वोच्च है।

3. कठोर संविधान (Rigid Constitution) संविधान की सर्वोच्चता तभी कायम रह सकती है यदि संविधान कठोर हो। संविधान में संशोधन केन्द्रीय संसद् अथवा प्रान्तीय विधानमण्डल द्वारा साधारण कानून निर्माण की विधि से नहीं होना चाहिए। संविधान में संशोधन करने का अधिकार यदि केन्द्रीय सरकार को प्राप्त होगा तो केन्द्रीय सरकार अपनी इच्छानुसार संविधान में संशोधन करके प्रान्तों के अधिकारों तथा शक्तियों को छीनने की चेष्ठा करेगी और शीघ्र ही एकात्मक शासन की स्थापना हो जाएगी। संविधान में संशोधन केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों, दोनों की स्वीकृति से होना चाहिए। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, स्विट्ज़रलैण्ड इत्यादि संघात्मक राज्यों के संविधान कठोर हैं। अमेरिका का संविधान विश्व के शेष सब संविधानों से कठोर है।

4. शक्तियों का विभाजन (Distribution of Powers)—संघात्मक सरकार का अनिवार्य तत्त्व यह है कि शासन प्रणाली में राज्य की सभी शक्तियां केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों में बंटी होती है। शक्तियों का बंटवारा प्रायः इस तरीके से किया जाता है कि जो विषय सारे देश से सम्बन्धित होते हैं ते केन्द्रीय सरकार को सौंप दिए जाते हैं और जो विषय स्थानीय महत्त्व के होते हैं उन्हें प्रान्तीय सरकारों को सौंप दिया जाता हे।

इस प्रकार सुरक्षा, विदेशी सम्बन्ध, विदेशी व्यापार, साता भात के साधन, मुद्रा आदि महत्त्वपूर्ण विषय केन्द्रीय सरकार के पास रहते हैं और स्थानीय महत्त्व के विषय जैसे कि शिक्षा, जेल, पुलिस, कृषि, स्वास्थ्य, सफ़ाई आदि प्रान्तों के पास रहते हैं। शक्तियों के विभाजन के लिए तीन तरीके अपनाए जाते हैं-

  • प्रथम, केन्द्रीय सरकार की शक्तियां निश्चित कर दी जाती हैं और शेष अधिकार (Residuary Powers) प्रान्तों तथा इकाइयों को दे दिए जाते हैं। इस प्रणाली को अमेरिका में अपनाया गया है।
  • द्वितीय, प्रान्तीय सरकारों अथवा इकाइयों की शक्तियां निश्चित कर दी जाती हैं और शेष अधिकार केन्द्र को दे दिए जाते हैं। इस प्रणाली को कनाडा में अपनाया गया है।
  • तृतीय, केन्द्र तथा प्रान्तों दोनों की शक्तियां निश्चित कर दी जाती हैं और शेष शक्तियों का भी वर्णन कर दिया जाता है जिन्हें समवर्ती विषय (Concurrent Subjects) कहा जाता है। समवर्ती विषयों पर केन्द्र तथा प्रान्त दोनों ही कानून बना सकते हैं और यदि किसी विषय पर केन्द्र तथा प्रान्तों के कानूनों में झगड़ा उत्पन्न हो जाए तो केन्द्र का कानून लागू होता है। भारत में इसी प्रणाली को अपनाया गया है।

5. न्यायपालिका की श्रेष्ठता (Supremacy of the Judiciary)-संघात्मक सरकार में एक स्वतन्त्र, निष्पक्ष तथा सर्वोच्च न्यायपालिका का होना आवश्यक है। संघात्मक सरकार में न्यायपालिका को तीन मुख्य कार्य करने पड़ते

  • केन्द्र तथा प्रान्तों के झगड़ों को निपटाना-संघात्मक सरकार में केन्द्र तथा प्रान्तों में शक्तियों का बंटवारा होता है। इस विभाजन के कारण कई बार केन्द्र तथा प्रान्तों में अथवा दो प्रान्तों में पारस्परिक झगड़े उत्पन्न हो जाते हैं। इन झगड़ों को निपटाने के लिए निष्पक्ष न्यायपालिका का होना अति आवश्यक है ताकि ऐसे झगड़ों पर निष्पक्ष निर्णय दिया जा सके।
  • संविधान की व्याख्या करना-संघात्मक सरकार का संविधान लिखित होता है जिस कारण कई बार संविधान की धाराओं की व्याख्या करने की आवश्यकता पड़ जाती है। संविधान की व्याख्या करने का यह अधिकार न्यायपालिका को प्राप्त होता है और न्यायपालिका का निर्णय अन्तिम होता है।
  • संविधान की रक्षा-संघात्मक सरकार में संविधान सर्वोच्च होता है। इसकी सर्वोच्चता को कायम रखने की ज़िम्मेदारी न्यायपालिका पर होती है। न्यायपालिका यह देखती है कि केन्द्रीय सरकार अथवा प्रान्तीय सरकार संविधान का उल्लंघन तो नहीं करती। यदि केन्द्र सरकार अथवा प्रान्तीय सरकारें कोई ऐसा कानून बनाती हैं जो संविधान का उल्लंघन करता हो तो न्यायपालिका इस कानून को अवैध घोषित कर सकती है। भारत तथा अमेरिका में सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति प्राप्त है।

6. द्वि-सदनीय विधानमण्डल (Bicameral Legislature)—संघात्मक शासन प्रणाली में द्वि-सदनीय विधानमण्डल का होना आवश्यक है। एक सदन समस्त राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है जबकि दूसरा सदन प्रान्तों अथवा इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है। निम्न सदन (Lower House) का कार्य सारे राष्ट्र के हितों की रक्षा करना होता है जबकि ऊपरी सदन (Upper House) का मुख्य कार्य प्रान्तों के हितों की रक्षा करना होता है। भारत में संसद् के दो सदन हैं : लोकसभा तथा राज्यसभा। अमेरिका में भी कांग्रेस के दो सदन हैं : प्रतिनिधि सदन तथा सीनेट।

7. दोहरी नागरिकता (Double Citizenship)-संघात्मक प्रणाली की एक विशेषता यह भी होती है कि इसमें नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है। नागरिकों को एक तो सारे राष्ट्र की नागरिकता प्राप्त होती है और एक उस राज्य की नागरिकता प्राप्त होती है जिसमें वे रहे होते हैं। उदाहरण के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में रहने वाले व्यक्ति (विदेशियों को छोड़कर) को संयुक्त राज्य अमेरिका की नागरिकता के अतिरिक्त उस राज्य की नागरिकता भी प्राप्त होती है जिसमें उसका निवास स्थान होता है।

प्रश्न 5.
संघात्मक सरकार के गुणों और दोषों की व्याख्या करें।
(Discuss the merits and demerits of Federal Government.)
उत्तर-
संघात्मक सरकार में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं
संघात्मक सरकार के गुण (Merits of Federal Government)-

1. विभिन्नता में एकता (Unity in Diversity)-इस शासन व्यवस्था का मुख्य गुण यह है कि इसमें विभिन्नता में एकता की प्राप्ति की जाती है। जिन देशों में धार्मिक, भाषायी तथा जातीय विभिन्नता पाई जाती है, उन देशों में संघात्मक सरकार द्वारा राष्ट्रीय एकता को कायम रखा जा सकता है। संघात्मक सरकार में इकाइयां अपनी स्वायत्तता भी बनाए रखती हैं क्योंकि संघ की इकाइयां अपने कार्यों में स्वतन्त्र होती हैं।

2. यह निर्बल राज्यों की शक्तिशाली राज्यों से सुरक्षा करता है (It safeguards the Weak States from Stronger Ones)—संघात्मक सरकार में छोटे-छोटे राज्य मिल कर शक्तिशाली संगठन बनाकर अपनी रक्षा कर सकते हैं। बिना संघात्मक सरकार के यह सम्भव है कि छोटे-छोटे राज्य राज्यों के हाथों में स्वतन्त्रता भी खो बैठें। आज यदि अमेरिका शक्तिशाली है तो सिर्फ संघ शासन के कारण। जो सम्मान आज अमेरिका के राज्यों को प्राप्त है वह कभी उन्हें न मिलता यदि इन राज्यों ने मिलकर संघ की स्थापना न की होती। इसके अतिरिक्त आज राज्य की सुरक्षा के लिए बहुत अधिक धन ख़र्च होता है जिसे कोई भी छोटा राज्य सहन नहीं कर सकता। अतः संसदीय शासन द्वारा ही छोटे-छोटे राज्य अपनी सुरक्षा कर सकते हैं।

3. शासन में कार्यकुशलता (Efficiency in Administration) शासन की शक्तियों का केन्द्र तथा प्रान्तों में विभाजन होता है जिस कारण केन्द्र पर कार्य का बोझ नहीं बढ़ता। कार्य के विभाजन के कारण दोनों सरकारें अपना कार्य कुशलता से करती हैं। किसी के पास कार्य अधिक नहीं होता। कार्यभार अधिक न होने के कारण प्रत्येक समस्या को सुलझाने के शीघ्र निर्णय ले लिया जाता है। केन्द्रीय सरकार को छोटी-छोटी बातों की चिन्ता नहीं होती जिससे केन्द्र अपना कीमती समय बड़ी-बड़ी समस्याओं में लगा सकता है। अतः शक्तियों के इस विभाजन से कार्य कुशलता में वृद्धि होती है। एकात्मक शासन में केन्द्रीय सरकार के पास कार्य-भार अधिक होने के कारण प्रत्येक निर्णय में देरी होती है। इंग्लैण्ड में संसद् के पास काम अधिक और समय कम होता है।

4. आर्थिक विकास के लिए लाभदायक (Useful for Economic Progress)—संघात्मक सरकार से अधिक आर्थिक उन्नति होती है। छोटे-छोटे राज्यों के आर्थिक साधन इतने नहीं होते कि वे उन्नति कर सकें। संघात्मक राज्य के साधन बहुत बढ़ जाते हैं जिससे समस्त देश की उन्नति होती है।

5. यह केन्द्रीय सरकार को निरंकुश बनने से रोकती है (It checks the despotism of Central Government)-संघात्मक सरकार में शक्तियों के विभाजन के कारण केन्द्र की शक्तियां सीमित होती हैं। सीमित शक्तियों के कारण केन्द्र निरंकुश नहीं बन सकता। इस तरह संघ राज्य में नागरिकों की स्वतन्त्रता सुरक्षित रहती है।

6. यह बड़े राज्यों के लिए उपयुक्त है (It is suitable for big States)-संघात्मक सरकार उन राज्यों के लिए जिनका क्षेत्रफल विशाल होता है तथा जिनकी जनसंख्या बहुत अधिक होती है, उपयुक्त है। बड़े राज्यों का शासन केन्द्र ठीक तरह से नहीं चला सकता। बड़े राज्यों को प्रान्तों में बांट कर स्थानीय शासन उन्हें सौंप दिया जाना चाहिए ताकि केन्द्र का भार हल्का हो जाए।

7. यह नागरिकों की प्रतिष्ठा बढ़ाती है (It enhances the Prestige of the Citizens)-संघ की नागरिकता से नागरिकों की प्रतिष्ठा बढ़ती है। पंजाब या असम अथवा हरियाणा जैसे छोटे राज्य का नागरिक होने की अपेक्षा भारत का नागरिक होना अधिक गौरव की बात है।

8. राजनीतिक शिक्षा (Political Education)—संघात्मक सरकार में लोगों को एकात्मक शासन की अपेक्षा राजनीतिक शिक्षा अधिक मिलती है। केन्द्र के अतिरिक्त प्रान्तों में विधानमण्डल होने के कारण बार-बार चुनाव होते हैं जिससे लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

9. स्थानीय मामलों में रुचि (Interest in Local Affairs)-संघात्मक सरकार में स्थानीय प्रशासन लोगों के अपने हाथों में होता है जिसके कारण लोग स्थानीय मामलों में रुचि लेते हैं। लोगों में शासन के प्रति उदासीनता समाप्त हो जाती है क्योंकि शासन उनका अपना होता है।

10. यह विश्व राज्य के लिए एक आदर्श है (It is model for the World State)-संघात्मक सरकार विश्व राज्य की स्थापना की ओर एक कदम है। जब छोटे राज्य संघ बना कर सफलता से कार्य कर सकते हैं तो संसार के सभी देश विश्व राज्य की स्थापना करके भी सफलता से कार्य कर सकते हैं।

11. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा (International Prestige)-संघीय शासन व्यवस्था के अधीन सदस्य राज्यों की अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में मान-प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। आज संसार में अमेरिका को अधिक शक्तिशाली राष्ट्र माना जाता है, क्योंकि अमेरिका 50 राज्यों का सम्मिलित राज्य है।

12. बचत (Economy)-संघ प्रणाली का एक अन्य गुण बचत है क्योंकि इसके अनेक प्रकार के राज्य अपनी प्रभुसत्ता का त्याग करके एक बड़ा राज्य बना लेते हैं जिसके फलस्वरूप उन राज्यों की सुरक्षा के लिए सेना, पुलिस आदि पर इतना खर्च नहीं होता जितना कि उनके अलग-अलग रहने पर होता है।

संघात्मक सरकार की हानियां (Disadvantages of Federal Government)-

संघात्मक सरकार के गुणों के साथ-साथ कुछ दोष भी हैं। इसके मुख्य अवगुण वही हैं जो कि एकात्मक शासन प्रणाली के गुण हैं

1. दुर्बल शासन (Weak Government)-संघात्मक सरकार शक्तियों के विभाजन के कारण दुर्बल सरकार होती है। केन्द्रीय सरकार न तो प्रत्येक विषय पर कानून बना सकती है और न ही प्रान्तों में हस्तक्षेप कर सकती है। केन्द्र के बनाए हुए कानूनों को सर्वोच्च न्यायपालिका अवैध घोषित कर सकती है। प्रो० डायसी के मतानुसार, “संघीय संविधान एकात्मक संविधान की अपेक्षा कमज़ोर होता है।”

2. राष्ट्रीय एकता को ख़तरा (Danger to National Unity)—इस शासन प्रणाली में प्रान्तों को काफ़ी स्वतन्त्रता प्राप्त होती है जिससे नागरिकों में प्रान्तीयता की भावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं। नागरिक प्रान्तीय भावनाओं में फंस कर राष्ट्र के हित को भूल जाते हैं। प्रत्येक सम्प्रदाय अपना अलग प्रान्त चाहता है और उसकी प्राप्ति के लिए वह आन्दोलन भी करता है। प्रत्येक प्रान्त अपने बारे में सोचता है न कि देश के लिए। कई बार प्रान्त यह सोचने लगता है कि केन्द्रीय सरकार उनके साथ अन्याय कर रही है। वे केन्द्र से सहयोग करना छोड़ देते हैं।

3. संघ के टूटने का भय (Fear of disintegration of Federation)—संघ शासन प्रणाली में यह भय सदा बना रहता है कि कहीं एक इकाई या कुछ इकाइयां मिलकर संघ से अलग होने का प्रयास न करें। प्रान्तों की अपनी सरकार होती है और वह अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। यदि किसी विषय पर केन्द्र तथा प्रान्त का आपस में मतभेद हो जाए तो वह संघ से अलग होने का प्रयत्न करेगा। उदाहरणस्वरूप सोवियत संघ में संघात्मक सरकार पाई जाती थी। दिसम्बर, 1991 में सोवियत संघ के 15 राज्य अलग होकर स्वतन्त्र राज्य बन गए और इस प्रकार सोवियत संघ नाम का देश ही समाप्त हो गया।

4. विदेश नीति में कमज़ोर (Weak in Foreign Policy)-अधिकांश राज्यों की सरकारें विदेशी के साथ किए गए समझौतों की शर्तों को पूरा करने में अनेक प्रकार की अड़चनें डाल कर संघात्मक सरकार के मार्ग में कठिनाई उत्पन्न कर देती हैं। इसके अतिरिक्त केन्द्रीय सरकार विदेश नीति को दृढ़ता से नहीं अपना सकती क्योंकि उसे पूर्ण विश्वास नहीं होता कि राज्यों की सरकारें उसकी नीति का समर्थन करेंगी अथवा नहीं।

5. केन्द्र और राज्यों में झगड़े (Conflicts between Central and State Government)—संघात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र और राज्यों में अधिकार क्षेत्र सम्बन्धी झगड़े प्रायः उत्पन्न हो जाते हैं। संघात्मक शासन में प्रायः राज्य की सीमाओं पर झगड़े चलते रहते हैं। भारत इस तथ्य की पुष्टि करता है।

6. खर्चीला शासन (Expensive Government)—संघात्मक शासन एक खर्चीला शासन है क्योंकि इसमें दो प्रकार की सरकारें होती हैं। केन्द्रीय सरकार द्वारा अलग खर्च होता है और प्रान्तीय सरकारों द्वारा अलग। दोहरे शासन के कारण खर्चा भी लगभग दोहरा होता है। जनता को अधिक कर देने पड़ते हैं जिससे तंग आकर साधारण जनता विद्रोह करने के लिए भी तैयार हो जाती है। बार-बार चुनावों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं।

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7. संविधान समय के अनुसार नहीं बदलता (Constitution does not change with Time)—संघात्मक सरकार में संविधान कठोर होता है, जिसके कारण संविधान में आसानी से संशोधन नहीं किया जा सकता। इसका परिणाम यह निकलता है कि कुछ देर बाद देश का संविधान समय से बहुत पीछे रह जाता है और वह समाज की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पाता। कई बार कठोर संविधान क्रान्ति का कारण बन जाता है।

8. शासन की एकरूपता का न होना (No Uniformity of Administration)—संघात्मक प्रणाली का यह अवगुण है कि समस्त देश में एक-सी शासन व्यवस्था नहीं मिलती। प्रत्येक प्रान्त एक ही विषय पर अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाता तथा कर लगाता है। इसका परिणाम यह होता है कि विभिन्न प्रान्तों में विभिन्न प्रकार के कानून होते हैं और कर भी अलग-अलग लगते हैं। इससे लोगों में प्रान्तीयता की भावना भी आ जाती है।

9. बुरे प्रशासन के लिए किसी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता (No body can be held responsible for bad Administration)-संघात्मक शासन में अकेले केन्द्र को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं। प्रशासनिक असफलता के लिए एक सरकार दूसरी को दोषी ठहराने का प्रयत्न करती है।

10. दोहरी नागरिकता हानिकारक है (Double Citizenship is Harmful)-संघात्मक प्रणाली में नागरिक को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है, परन्तु दोहरी नागरिकता हानिकारक है। नागरिकों को दो सरकारों के प्रति वफादार रहना पड़ता है, जिस के कारण नागरिक दोनों के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा सकता।

11. न्यायपालिका का अनावश्यक महत्त्व (Undue Importance of Judiciary)—संघ सरकार में संविधान की व्याख्या के लिए न्यायपालिका की आवश्यकता होती है। कई बार यह देखा गया है कि न्यायपालिका कानूनों की व्याख्या कानून की भावना के अनुसार नहीं बल्कि अपनी दृष्टिकोण के अनुसार करती है। जिस न्यायपालिका के न्यायाधीश खुले रूप में ही कहें कि “हम संविधान के अधीन हैं पर संविधान क्या है यह हम बतलाएंगे” तो वहां संविधान न्यायपालिका के हाथ में खिलौना बन जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)—यह ठीक है कि संघ सरकार की त्रुटियां हैं। पर आधुनिक युग में अधिक-से-अधिक देशों में इसी शासन को स्थापित किया जा रहा है क्योंकि इसमें न केवल लोगों को अपने स्थानीय मामलों में आवश्यक शिक्षा मिलती है अपितु कई देशों ने इस व्यवस्था द्वारा अनुकरणीय उन्नति की है। अमेरिका तथा रूस इस बात के साक्षी हैं। लॉस्की (Laski) ने ठीक ही कहा, “क्योंकि आज का समाज संघीय है, इसलिए शक्ति की बांट भी होनी चाहिए।” (Because society is federal authority must also be federal.)

प्रश्न 6.
संघात्मक और एकात्मक सरकारों में अन्तर करें।
(Distinguish between Federal and the Unitary form of Government.)
उत्तर-
केन्द्र तथा राज्यों के आपसी सम्बन्धों और शासन की शक्तियों की अवस्थिति (Location) के आधार पर शासन एकात्मक होता है। एकात्मक या संघात्मक शासन प्रणाली में समस्त शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं और इकाइयों पर इसका पूर्ण नियन्त्रण होता है, परन्तु संघात्मक प्रणाली में केन्द्र और इकाइयों में शक्तियां बंटी होती हैं और दोनों ही अपने क्षेत्र में स्वायत्तता से कार्य करती हैं।

एकात्मक और संघात्मक सरकारों में भिन्नता (Distinction between Unitary and Federal forms of Government) उपर्युक्त चर्चा के आधार पर दोनों सरकारों में अन्तर को विस्तारपूर्वक नीचे दर्शाया गया है : –

1. सरकारों की संख्या (Number of Governments)-एकात्मक प्रणाली के अधीन एक राज्य में एक ही सरकार होती है। नेपाल, श्रीलंका, इंग्लैण्ड और फ्रांस ऐसी प्रणाली के उदाहरण हैं। संघात्मक प्रणाली में केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त इकाइयों की अपनी अलग-अलग सरकार होती है।

2. शासन का संगठन (Government Set-up) -एकात्मक सरकार में शासन का संगठन इकहरा होता है। सारे राज्य में एक ही सरकार होने के नाते देश-भर में एक समान कानून होते हैं, एक जैसी कार्यपालिका और न्यायपालिका की व्यवस्था होती है। इंग्लैंड के नागरिक चाहे वे अपने देश के किसी भी भाग में रहते हों सब एक प्रकार के कानून के अधीन होते हैं। संघात्मक सरकार में शासन का संगठन दोहरा होता है। हर नागरिक का सम्बन्ध दो व्यवस्थापिकाओं, दो कार्यपालिकाओं और न्यायपालिकाओं से होता है। उदाहरणस्वरूप, पंजाब में रहने वाला व्यक्ति रेलगाड़ी, डाक व तार विषयों के लिए केन्द्रीय सरकार से सम्बन्धित है और पुलिस, मोटर, बस, सिनेमाघर, शिक्षा आदि विषयों के लिए पंजाब सरकार के सम्बद्ध है।

3. आपसी सम्बन्ध (Mutual Relations)-एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत भी एक से अधिक सरकारें होती हैं जैसे भारत में सन् 1935 से पहले थीं। परन्तु ऐसी स्थिति में प्रान्तीय सरकारों का स्तर अधीनता (Subordination) का होता है। ये सरकारें अपने हर कार्य में केन्द्रीय सरकार के अधीन होती हैं। प्रान्तीय सरकारों के पास किसी प्रकार की स्वायत्तता (Autonomy) नहीं होती। संघात्मक प्रणाली के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार और प्रान्तीय सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं और एक सरकार दूसरी सरकार की शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। अमेरिका, कैनेडा और वर्तमान भारत में ऐसी ही व्यवस्था है।

4. शक्तियों का स्त्रोत (Sources of Powers) एकात्मक प्रणाली में प्रान्तीय सरकारों की शक्तियों का स्रोत केन्द्रीय सरकार होती है अर्थात् प्रान्तीय सरकारें उन्हीं शक्तियों का प्रयोग करती हैं जो केन्द्र सरकार उन्हें प्रदत्त (Delegate) करती है। केन्द्रीय सरकार कभी भी इन शक्तियों को परिवर्तित कर सकती हैं। संघात्मक प्रणाली में केन्द्रीय सरकार और प्रान्तीय सरकारें अपनी-अपनी शक्तियां राज्य के संविधान से प्राप्त करती हैं। इस प्रणाली के अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार के पास अधिकार नहीं होता कि प्रान्तों की शक्तियों में कोई भी परिवर्तन कर सके। ऐसा परिवर्तन केवल संविधान में संशोधन द्वारा ही सम्भव है।

5. संविधान की प्रकृति (Nature of Constitution)-वैसे तो आजकल लिखित संविधान की प्रणाली लगभग हर देश में अपनाई जाती है। हां, एकात्मक प्रणाली के लिए लिखित और कठोर संविधान आवश्यक नहीं है। इंग्लैण्ड का संविधान न लिखित ही है और न ही कठोर। परन्तु संघात्मक प्रणाली के लिए संविधान का लिखित और कठोर होना अनिवार्य है।

6. नागरिकता (Citizenship)—एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत नागरिकों को इकहरी नागरिकता (Single Citizenship) प्राप्त होती है, जैसा कि इंग्लैंड, फ्रांस आदि राज्यों में है। संघात्मक प्रणाली के अधीन दोहरी नागरिकता (Double Citizenship) प्राप्त हो सकती है, जैसा कि अमेरिका में।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एकात्मक सरकार का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
एकात्मक शासन वह शासन है जिसमें शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं। सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय सरकार प्रान्तों की स्थापना करती है तथा उन्हें थोड़े-बहुत अधिकार प्रदान करती है। केन्द्रीय सरकार जब चाहे इन प्रान्तों की सीमाएं भी घटा-बढ़ा सकती है। एकात्मक शासन की भिन्न-भिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं जो निम्नलिखित हैं-

  1. डायसी के अनुसार, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।”
  2. डॉ० फाइनर के मतानुसार, “एकात्मक शासन वह होता है जहां एक केन्द्रीय सरकार में सम्पूर्ण शासन निहित होता है और जिसकी इच्छा व जिसके प्रतिनिधि कानूनी दृष्टि में सर्वशक्तिमान् होते हैं।”
  3. प्रोफेसर स्ट्रांग के अनुसार, “एकात्मक राज्य वह राज्य है जो केन्द्रीय शासन के अधीन हो।”

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
एकात्मक शासन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • शक्तियों का केन्द्रीयकरण-एकात्मक शासन में शासन की शक्तियां केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं। शासन की सुविधा के लिए राज्यों को प्रान्तों में बांटा गया होता है और उन्हें कुछ अधिकार तथा शक्तियां दी जाती हैं। केन्द्र जब चाहे प्रान्तों के अधिकारों तथा शक्तियों को छीन सकता है।
  • प्रभुसत्ता-एकात्मक शासन में प्रभुसत्ता केन्द्र में निहित होती है ।
  • इकहरी नागरिकता-एकात्मक शासन में एक ही नागरिकता होती है। इंग्लैंड में नागरिकों को एक ही नागरिकता प्राप्त है।
  • इकहरा शासन-एकात्मक शासन में इकहरी शासन व्यवस्था होती है।

प्रश्न 3.
एकात्मक सरकार के चार गुण बताइए।
उत्तर-
एकात्मक शासन के निम्नलिखित गुण हैं-

  • शक्तिशाली शासन-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है । सभी शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं। प्रान्तीय सरकारें केन्द्रीय सरकार के आदेशानुसार कार्य करती हैं । कानूनों को बनाने तथा लागू करने की ज़िम्मेदारी केन्द्र पर ही होती है । इस तरह शासन शक्तिशाली होता है जिस कारण देश की विदेश नीति भी प्रभावशाली होती है ।
  • सादा शासन-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन अति सरल होता है । शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं जिसके कारण केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों में मतभेद उत्पन्न नहीं होते। सादा शासन होने के कारण एक अनपढ़ व्यक्ति को भी अपने देश के शासन के संगठन का ज्ञान होता है ।
  • लचीला प्रशासन-संविधान अधिक कठोर न होने के कारण समयानुसार आसानी से बदला जा सकता है । संकटकाल के लिए यह शासन प्रणाली बहुत उपयुक्त है। केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने के लिए किसी भी समय प्रान्तों की शक्तियों को कम किया जा सकता है।
  • कम खर्चीला शासन-एकात्मक शासन प्रणाली संघात्मक सरकार की अपेक्षा कम खर्चीली होती है।

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प्रश्न 4.
एकात्मक सरकार के चार दोषों का वर्णन करें।
उत्तर-
एकात्मक सरकार में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

  • केन्द्र निरंकुश बन जाता है-एकात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता है जिसके कारण केन्द्र के निरंकुश बन जाने का भय होता है ।
  • स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती–प्रत्येक प्रान्त की अपनी अलग समस्याएं होती हैं जिसके लिए उन्हें विशेष कानूनों की आवश्यकता होती है। केन्द्रीय सरकार को न तो स्थानीय आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान होता है और न ही कानून प्रान्तों के लिए बनाए जाते हैं। केन्द्रीय सरकार एक ही कानून को सब प्रान्तों पर लागू कर देती है।
  • बड़े राज्यों के लिए अनुपयुक्त-एकात्मक शासन प्रणाली उन राज्यों के लिए उपयुक्त नहीं है जिनका क्षेत्रफल या जनसंख्या बहुत अधिक है क्योंकि केन्द्रीय सरकार दूर-दूर तक फैले हुए भागों में शासन व्यवस्था अच्छी प्रकार से लागू नहीं कर सकती।
  • कार्यभार में वृद्धि-एकात्मक सरकार में सारे देश का शासन केन्द्र द्वारा चलाया जाता है, जिससे केन्द्रीय सरकार का कार्य बढ़ जाता है।

प्रश्न 5.
संघात्मक सरकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संघात्मक शासन उसे कहते हैं जहां संविधान के द्वारा शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं और दोनों अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। इसका अर्थ यह है कि केन्द्रीय सरकार को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और न ही प्रान्त केन्द्रीय सरकार को दिए गए कार्यों में हस्तक्षेप कर सकते हैं । संघात्मक शासन में दोहरी सरकार होती है। प्रभुसत्ता न तो केन्द्रीय सरकार में निहित होती है और न ही प्रान्तीय सरकारों में और न ही प्रभुसत्ता केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती है। प्रभुसत्ता वास्तव में राज्यों के पास होती है।।

संघवाद को अंग्रेज़ी भाषा में ‘फेडरलिज्म’ (Federalism) कहते हैं। फेडरलिज्म शब्द लेटिन भाषा के शब्द फोईडस (Foedus) से बना है जिसका अर्थ है सन्धि अथवा समझौता। संघात्मक सरकार इस प्रकार समझौते का परिणाम होती है। जिस तरह किसी समझौते के लिए एक से अधिक पक्षों का होना आवश्यक होता है उसी तरह संघात्मक राज्य की स्थापना करने के लिए दो या दो से अधिक राज्यों के बीच समझौते की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 6.
संघात्मक सरकार की कोई तीन परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
संघात्मक सरकार की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • माण्टेस्क्यू के अनुसार, “संघात्मक सरकार एक ऐसा समझौता है जिसके द्वारा बहुत-से एक जैसे राज्य एक बड़े राज्य के सदस्य बनने को सहमत हो जाते हैं।”
  • डॉ० फाइनर के शब्दों में, “संघात्मक राज्य वह है जिसमें अधिकार व शक्तियों का कुछ भाग स्थानीय क्षेत्रों में निहित हो व दूसरा भाग एक केन्द्रीय संस्था के पास हो जिसको स्थानीय क्षेत्रों के समुदायों ने अपनी इच्छा से बनाया हो।”
  • गार्नर की परिभाषा स्पष्ट तथा अन्य परिभाषाओं से श्रेष्ठ हैं। उनके अनुसार, “संघात्मक एक ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक सामान्य प्रभुसत्ता के अधीन होती हैं। ये सरकारें अपने निश्चित क्षेत्र में जिसको संविधान अथवा संसद् का कोई अधिनियम निश्चित करता है, सर्वोच्च होती है। संघ सरकार जैसा कि प्रायः कह दिया जाता है कि अकेली केन्द्रीय सरकार ही नहीं होती वरन् यह केन्द्र तथा स्थानीय सरकारों को मिला कर बनती है। स्थानीय सरकार संघ का उतना ही भाग है जितना कि केन्द्रीय सरकार का यद्यपि वह न तो केन्द्र द्वारा बनाई जाती है न ही उसके अधीन होती है।

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प्रश्न 7.
संघात्मक शासन की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
संघात्मक शासन प्रणाली में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं-

  • लिखित संविधान-संघात्मक सरकार का संविधान सदैव लिखित होना चाहिए ताकि केन्द्र तथा प्रान्तों के मध्य शक्तियों का विभाजन स्पष्ट एवं निश्चित किया जा सके। यदि शक्तियों का विभाजन स्पष्ट नहीं होगा तो दोनों सरकारों के मध्य गतिरोध की सम्भावना रहेगी।
  • संविधान की सर्वोच्चता-संघात्मक शासन प्रणाली में संविधान का सर्वोच्च होना आवश्यक है क्योंकि कभीकभी केन्द्र और राज्यों में शक्तियों के विभाजन को लेकर आपस में विवाद हो जाता है तब उस विवाद को संविधान की धाराओं के अनुसार सुलझाया जाता है।
  • कठोर संविधान-संघात्मक शासन प्रणाली में संविधान का कठोर होना भी आवश्यक है ताकि केन्द्रीय सरकार उसमें आसानी से संशोधन करके राज्य सरकारों की शक्तियों को घटा-बढ़ा न सके। संविधान में संशोधन केन्द्र और राज्य सरकारों की अनुमति से होना चाहिए।
  • शक्तियों का विभाजन-संघात्मक सरकार का अनिवार्य तत्त्व यह है, कि शासन प्रणाली में राज्य की सभी शक्तियां केन्द्रीय सरकार तथा प्रान्तीय सरकारों में बंटी होती हैं।

प्रश्न 8.
संघात्मक शासन प्रणाली के चार गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-
संघात्मक सरकार में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-

  • विभिन्नता में एकता-इस शासन व्यवस्था का मुख्य गुण यह है कि इसमें विभिन्नता में एकता पाई जाती है। इस शासन प्रणाली में विभिन्न धर्मों, जातियों, भाषाओं, सम्प्रदायों आदि के राज्यों को मिला कर एक मज़बूत केन्द्रीय सरकार की स्थापना की जाती है।
  • शासन में कार्य-कुशलता-शासन की शक्तियों का केन्द्र तथा राज्यों में विभाजन होता है जिस कारण केन्द्र पर कार्य का अधिक बोझ नहीं होता। कार्य में विभाजन के कारण कार्य भार कम हो जाता है तथा निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं। शक्तियों के विभाजन से कार्य में कुशलता आती है।
  • आर्थिक विकास के लिए लाभदायक-संघात्मक शासन प्रणाली में उन्नति में वृद्धि होती है। छोटे-छोटे राज्यों के पास इतने अधिक आर्थिक साधन नहीं होते कि वे अपनी उन्नति कर सकें। संघात्मक राज्य के साधन बहुत बढ़ जाते हैं जिससे समस्त देश की उन्नति होती है।
  • राजनीतिक शिक्षा-संघात्मक सरकार में लोगों को एकात्मक शासन की अपेक्षा राजनीतिक शिक्षा अधिक मिलती है।

प्रश्न 9.
संघात्मक शासन प्रणाली के कोई चार दोष लिखें।
उत्तर-
संघात्मक शासन प्रणाली में निम्नलिखित मुख्य दोष पाए जाते हैं-

  • दुर्बल शासन-संघात्मक सरकार शक्तियों के विभाजन के कारण दुर्बल सरकार होती है। केन्द्रीय सरकार न तो प्रत्येक विषय पर कानून बना सकती है और न ही प्रान्तों के कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार रखती है।
  • राष्ट्रीय एकता को खतरा-नागरिक प्रान्तीय भावनाओं में फंस कर राष्ट्रीय हितों को भूल जाते हैं। प्रत्येक प्रान्त राष्ट्रीय हित में न सोचकर अपने हित में सोचता है। इससे राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा पैदा होता है।
  • संघ के टूटने का भय-संघीय शासन प्रणाली में सदा यह भय बना रहता है कि कोई इकाई या कुछ इकाइयां मिलकर संघ से अलग होने का प्रयत्न न करें। प्रान्तों की अपनी सरकार होती है और वह अपने कार्यों में स्वतन्त्र होती है। यदि किसी विषय पर केन्द्र तथा प्रान्त में मतभेद हो जाएं तो वह संघ से अलग होने का प्रयत्न करेगा।
  • केन्द्र और राज्यों में झगड़े-संघात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र और राज्यों में अधिकार क्षेत्र सम्बन्धी झगड़े प्रायः उत्पन्न हो जाते हैं।प्रश्न 10. एकात्मक सरकार और संघात्मक सरकार में कोई चार अन्तर बताएं।
    उत्तर-एकात्मक सरकार और संघात्मक सरकार में निम्नलिखित तीन मुख्य अन्तर पाए जाते हैं-
  • सरकारों की संख्या-एकात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र और राज्य में एक ही सरकार होती है जबकि संघात्मक शासन प्रणाली में एक केन्द्रीय सरकार के अतिरिक्त राज्यों की सरकारें भी होती हैं।
  • शासन का संगठन-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन इकहरा होता है। परन्तु संघात्मक सरकार में दोहरी शासन व्यवस्था होती है।
  • आपसी सम्बन्ध- एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत भी एक से अधिक सरकारें हो सकती हैं, परन्तु ऐसी स्थिति में वे पूर्णतया सरकार के अधीन होती हैं। प्रान्तीय सरकारों के पास किसी भी तरह की स्वायत्तता नहीं होती। संघात्मक शासन में केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं और एक सरकार दूसरी सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
  • नागरिकता-एकात्मक प्रणाली के अन्तर्गत नागरिकों को इकहरी नागरिकता प्राप्त होती है, जबकि संघात्मक प्रणाली के अधीन दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एकात्मक सरकार का अर्थ लिखें।
उत्तर-
एकात्मक शासन वह शासन है जिसमें शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास केन्द्रित होती हैं। सुविधा की दृष्टि से केन्द्रीय सरकार प्रान्तों की स्थापना करती है तथा उन्हें थोड़े-बहुत अधिकार प्रदान करती है। केन्द्रीय सरकार जब चाहे इन प्रान्तों की सीमाएं भी घटा-बढ़ा सकती है।

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार के दो गुण बताइए।
उत्तर-

  1. शक्तिशाली शासन-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है । सभी शक्तियां केन्द्र के पास होती हैं।
  2. सादा शासन-एकात्मक सरकार में शासन का संगठन अति सरल होता है। शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं जिसके कारण केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारों में मतभेद उत्पन्न नहीं होते।

प्रश्न 3.
एकात्मक सरकार के दो दोषों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. केन्द्र निरंकुश बन जाता है-एकात्मक शासन प्रणाली में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता है जिसके कारण केन्द्र के निरंकुश बन जाने का भय होता है।
  2. स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती–प्रत्येक प्रान्त की अपनी अलग समस्याएं होती हैं जिसके लिए उन्हें विशेष कानूनों की आवश्यकता होती है। केन्द्रीय सरकार को न तो स्थानीय आवश्यकताओं का पूर्ण ज्ञान होता है और न ही कानून प्रान्तों के लिए बनाए जाते हैं। केन्द्रीय सरकार एक ही कानून को सब प्रान्तों पर लागू कर देती है।

प्रश्न 4.
संघात्मक सरकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-
संघात्मक शासन उसे कहते हैं जहां संविधान के द्वारा शक्तियां केन्द्र तथा प्रान्तों में बंटी होती हैं और दोनों अपने कार्यों में स्वतन्त्र होते हैं। इसका अर्थ यह है कि केन्द्रीय सरकार को दी गई शक्तियों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती और न ही प्रान्त केन्द्रीय सरकार को दिए गए कार्यों में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

प्रश्न 5.
संघात्मक शासन प्रणाली के दो गुणों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. विभिन्नता में एकता-इस शासन व्यवस्था का मुख्य गुण यह है कि इसमें विभिन्नता में एकता पाई जाती है।
  2. शासन में कार्य-कुशलता-शासन की शक्तियों का केन्द्र तथा राज्यों में विभाजन होता है जिस कारण केन्द्र पर कार्य का अधिक बोझ नहीं होता। कार्य में विभाजन के कारण कार्य भार कम हो जाता है तथा निर्णय शीघ्र लिए जाते हैं। शक्तियों के विभाजन से कार्य में कुशलता आती है।

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प्रश्न 6.
संघात्मक शासन प्रणाली के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर-

  1. दुर्बल शासन-संघात्मक सरकार शक्तियों के विभाजन के कारण दुर्बल सरकार होती है।
  2. राष्ट्रीय एकता को खतरा-इस शासन प्रणाली में प्रान्तों को काफ़ी स्वतन्त्रता प्राप्त होती है जिससे नागरिकों में प्रान्तीयता की भावनाएं उत्पन्न हो जाती हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. एकात्मक सरकार किसे कहते हैं ?
उत्तर-एकात्मक सरकार में शासन की समस्त शक्तियां केन्द्रीय सरकार के पास होती हैं।

प्रश्न 2. एकात्मक सरकार की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-प्रो० स्ट्रांग के अनुसार, “एकात्मक राज्य वह है, जो एक केन्द्रीय शासन के अधीन संगठित हो।”

प्रश्न 3. एकात्मक सरकार का कोई एक लक्षण लिखें।
उत्तर-एकात्मक सरकार में शासन की शक्तियां केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं।

प्रश्न 4. एकात्मक सरकार का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-एकात्मक सरकार में शासन शक्तिशाली होता है।

प्रश्न 5. एकात्मक सरकार का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-एकात्मक सरकार में केन्द्र के निरंकुश बनने का डर बना रहता है।

प्रश्न 6. इंग्लैण्ड में किस प्रकार का शासन है?
उत्तर-इंग्लैण्ड में एकात्मक शासन है।

प्रश्न 7. अमेरिका में कैसा शासन पाया जाता है?
उत्तर-अमेरिका में संघात्मक शासन पाया जाता है।

प्रश्न 8. भारत में किस प्रकार का शासन पाया जाता है ?
उत्तर- भारत में संघात्मक शासन पाया जाता है।

प्रश्न 9. संघात्मक सरकार की कोई एक परिभाषा लिखिए।
उत्तर-हेमिल्टन के अनुसार, “कुछ राज्यों के संयोजन से बने हुए नए राज्य को संघ कहते हैं।”

प्रश्न 10. संघात्मक सरकार की कोई एक विशेषता बताओ।
उत्तर-संघीय शासन प्रणाली में संविधान लिखित होता है।

प्रश्न 11. संघात्मक सरकार का कोई एक गुण बताओ।
उत्तर-संघीय सरकार निर्बल राज्यों की शक्तिशाली राज्यों से रक्षा करती है।

प्रश्न 12. संघात्मक सरकार का कोई एक दोष बताओ।
उत्तर-इसमें सरकार दुर्बल होती है।

प्रश्न 13. संघात्मक और एकात्मक सरकार में कोई एक भेद बताओ।
उत्तर-संघात्मक सरकार का संविधान लिखित होता है, परन्तु एकात्मक सरकार का संविधान अलिखित भी हो सकता है।

प्रश्न 14. एकात्मक शासन में सभी शक्तियां कहां पर केन्द्रित होती हैं ?
उत्तर-एकात्मक शासन में शक्तियां एक केन्द्रीय सरकार में केन्द्रित होती हैं।

प्रश्न 15. संघात्मक शासन में संविधान लिखित होता है, या अलिखित?
उत्तर-संघात्मक शासन में संविधान लिखित होता है।

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प्रश्न 16. फैडरलिज्म शब्द किस भाषा से निकला है?
उत्तर-फैडरलिज्म शब्द लातीनी भाषा से निकला है।

प्रश्न 17. फोइडस (Foedus) का क्या अर्थ है?
उत्तर-फोइडस का अर्थ सन्धि अथवा समझौता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. एकात्मक सरकार में केन्द्र सुविधा के अनुसार ………. की स्थापना करती है।
2. ……….. सरकार जब चाहे प्रान्तों की सीमाएं घटा-बढ़ा सकती है।
3. एकात्मक सरकार ………… के समय उपयुक्त होती है।
4. आलोचकों के अनुसार केन्द्रीय सरकार में …….. आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती।
5. एकात्मक सरकार में केन्द्रीय सरकार का ………. बढ़ जाता है।
उत्तर-

  1. प्रान्तों
  2. केन्द्रीय
  3. संकटकाल
  4. स्थानीय
  5. कार्य।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें।

1. संघवाद को अंग्रेज़ी में फेडरलिज्म (Federalism) कहते हैं।
2. फेडरलिज्म शब्द लैटिन भाषा के शब्द फोईडस (Foedus) से बना है, जिसका अर्थ है, सन्धि अथवा समझौता।
3. संघात्मक सरकार झगड़े का परिणाम होती है।
4. संघात्मक सरकार में लिखित संविधान की आवश्यकता नहीं होती।
5. संघात्मक सरकार में संविधान का सर्वोच्च होना आवश्यक है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किस देश में एकात्मक शासन व्यवस्था पाई जाती है ?
(क) भारत
(ख) संयुक्त राज्य अमेरिका
(ग) स्विट्ज़रलैंड
(घ) जापान।
उत्तर-
(घ) जापान।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 16 सरकारों के रूप-एकात्मक एवं संघात्मक शासन प्रणाली

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से किस देश में संघात्मक शासन प्रणाली पाई जाती है ?
(क) इंग्लैंड
(ख) जापान
(ग) साम्यवादी चीन
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर-
(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 3.
यह किसने कहा है, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक शासन है।”
(क) डॉ० फाइनर
(ख) लॉर्ड ब्राइस
(ग) डायसी
(घ) गैटेल।
उत्तर-
(ग) डायसी।

प्रश्न 4.
यह किसने कहा है, “संघात्मक शासन राज्यों का एक समुदाय है, जोकि नए राज्य का निर्माण करता
(क) माण्टेस्कयू
(ख) डॉ० फाइनर
(ग) जैलीनेक
(घ) हैमिल्टन।
उत्तर-
(घ) हैमिल्टन।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

SST Guide for Class 9 PSEB पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
पंजाब के रेखाचित्र में अंकित करें :
उत्तर-

  1. होशियारपुर शिवालिक तथा रोपड़ शिवालिक शृंखालायें
  2. सतलुज का बेट क्षेत्र।

प्रश्न 2.
अर्ध पर्वतीय, मैदानी तथा दक्षिण-पश्चिम रेतीले टीलों वाले क्षेत्रों में पड़ते जिलों की सारणियां बनाकर कक्षा में लगाएं।
नोट-विद्यार्थी यह प्रश्न अध्याय में दिए गए मानचित्र की सहायता से स्वयं करें।

(ख) निम्नलिखित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर दें :

प्रश्न 1.
प्राचीन जलोढ़ निर्मित क्षेत्र को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
बांगर।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 2.
खाडर (खादर) या बेट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खाडर अथवा बेट नई जलोढ़ मिट्टी के मैदान हैं। यह मिट्टी नदियों के किनारों पर निचले क्षेत्रों में पाई जाती है।

प्रश्न 3.
पंजाब के मैदानों को किन भागों में वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर-
पंजाब के मैदानों को पांच भागों में बांटा जाता है-

  1. चो वाले मैदान,
  2. बाढ़ के मैदान,
  3. नैली,
  4. जलोढ़ के मैदान,
  5. जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित रेतीले टीले।

प्रश्न 4.
पंजाब में रेत के टीले किस दिशा में थे/हैं।
उत्तर-
रेतीले टिब्बे पंजाब के दक्षिण पश्चिम में राजस्थान की सीमा के साथ-साथ पाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
चंगर किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आनंदपुर साहिब के नज़दीक कंडी क्षेत्र को चंगर कहा जाता है।

प्रश्न 6.
सही और गलत कथन बताएं-
(i) हिमालय की बाहरी श्रेणी का नाम शिवालिक है। ( )
(ii) कंडी क्षेत्र रूपनगर व पटियाला ज़िलों के दक्षिण में है। ( )
(iii) होशियारपुर शिवालिक, सतलुज व व्यास नदियों के बीच है। ( )
(iv) पंजाब के दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में घग्गर के जलोढ़ मैदान, नैली में मिलते हैं। ( )
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3.  सही,
  4. सही।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप उत्तर दें:

प्रश्न 1.
कंडी क्षेत्र की विशेषताएं लिखें तथा बतायें ये क्षेत्र कौन-से जिलों में पड़ते हैं ?
उत्तर-
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों के पश्चिम तथा रूपनगर (रोपड़) जिले की नूरपुर बेदी तहसील के पूर्व में स्थित मैदानी प्रदेश को स्थानीय भाषा में कंडी क्षेत्र कहा जाता है। इस क्षेत्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. यह क्षेत्र पंजाब के 5 लाख हेक्टेयर भू-भाग में फैला हुआ है जो पंजाब के कुल क्षेत्रफल का 10% हिस्सा है।
  2. इस क्षेत्र की मृदा मुसामदार (Porons) है।
  3. इसमें बहुत से चोअ मिलते हैं।
  4. यहां जल-स्तर काफ़ी गहरा है।

ज़िले-इस क्षेत्र में होशियारपुर, रूपनगर (रोपड़) आदि जिले शामिल हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 2.
चोअ क्या होते हैं ? उदाहरण देकर बतायें।
उत्तर-
चोअ एक प्रकार के बरसाती नाले हैं। ये नाले वर्षा के मौसम में भरकर बहने लगते हैं। शुष्क ऋतु में इनमें पानी सूख जाता है। ऐसे नालों को मौसमी चोअ कहते हैं। रूपनगर (रोपड़) के शिवालिक प्रदेश में बहुत अधिक मौसमी नाले पाए जाते हैं। यहाँ पर इन्हें राओ और घाड़ (Rao & Ghar) भी कहा जाता है।

प्रश्न 3.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों की उत्पत्ति के विषय पर नोट लिखें।
उत्तर-
पंजाब का 70% भू-भाग जलोढ़ी मैदानों से घिरा हुआ है। यह मैदान भारत के गंगा और सिंध के मैदान का भाग है। इनकी उत्पत्ति हिमालय क्षेत्र से नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी के जमाव से हुई है। इन नदियों में सिंध और उसकी सहायक नदियों सतलुज, रावी, व्यास का महत्त्वपूर्ण योगदान है। समुद्र तल से इन मैदानों की ऊंचाई 200 मीटर से 300 मीटर तक है।

प्रश्न 4.
गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक पर नोट लिखें।
उत्तर-
गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक की पहाड़ी श्रेणी का विस्तार गुरदासपुर और पठानकोट जिलों के बीच है। पठानकोट जिले का धार कलां ब्लॉक पूरी तरह शिवालिक पहाड़ों के बीच स्थित है। इन पहाड़ों की औसत ऊंचाई 1000 मीटर के लगभग है।
इस क्षेत्र की पहाड़ी ढलाने, पानी के तेज बहाव के कारण किनारों से कट गई हैं जिससे ये काफी तीखी हो गई
इस क्षेत्र में बहने वाली मौसमी नदियाँ (Seasonal River) चक्की खड्ड और उसकी सहायक नदियां व्यास नदी में गिरती हैं।

PSEB 9th Class Social Science Guide पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
पंजाब का अधिकतर भू-भाग कैसा है ?
(क) पहाड़ी
(ख) मैदानी
(ग) पठारी
(घ) मरुस्थलीय।
उत्तर-
(ख) मैदानी.

प्रश्न 2.
पंजाब के शिवालिक पहाड़ों की उत्पत्ति किन दो भू-भागों के टकराने का परिणाम थी ?
(क) गोंडवाना लैंड तथा भाबर मैदान
(ख) अंगारा लैंड तथा शिवालिक मैदान
(ग) गोंडवाना लैंड तथा यूरेशिया प्लेट
(घ) अंगारालैंड तथा यूरेशिया प्लेट।।
उत्तर-
(ग) गोंडवाना लैंड तथा यूरेशिया प्लेट

प्रश्न 3.
बारी दोआब का एक अन्य नाम कौन-सा है ?
(क) मालवा
(ख) चज
(ग) नैली
(घ) माझा।
उत्तर-
(घ) माझा।

प्रश्न 4.
पंजाब के तराई प्रदेश का चोओं से घिरा प्रदेश क्या कहलाता है ?
(क) कंडी
(ख) बारी दोआब
(ग) बेट
(घ) बेला।
उत्तर-
(क) कंडी

प्रश्न 5.
घग्गर के जलोढ़ मैदानों का एक नाम है-
(क) चो
(ख) नैली
(ग) टैथीज़
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) नैली

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. पंजाब के ……………. में रेत के टीले मिलते हैं।
  2. कंडी क्षेत्र पंजाब के कुल क्षेत्रफल का ……….. प्रतिशत भाग है।
  3. सिरसा नदी के निकट कंडी क्षेत्र को …………. कहा जाता है।
  4. पंजाब का 70% भू-भाग ………….. मैदान है।
  5. पंजाब के मैदान ………. तथा ………… के मैदानों का भाग है।

उत्तर-

  1. दक्षिण-पश्चिम,
  2. 10,
  3. घाड़,
  4. जलोढ़ी,
  5. गंगा, सिंध।

उचित मिलान :

1. बारी दोआब – (i) होशियारपुर शिवालिक
2. बाढ़ के मैदान – (ii) रोपड़ शिवालिक
3. सतलुज-घग्गर – (iii) बेट
4. ब्यास-सतलुज – (iv) माझा।
उत्तर-

  1. माझा।
  2. बेट
  3. रोपड़ शिवालिक
  4. होशियारपुर शिवालिक।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवालिक की पहाड़ियां पंजाब के किस ओर स्थित हैं ?
उत्तर-
पूर्व और उत्तर-पूर्व में।

प्रश्न 2.
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियां किस राज्य की सीमाओं को छूती हैं ?
उत्तर-
हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 3.
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों की औसत ऊंचाई कितनी है ?
उत्तर-
600 मीटर से 1500 मीटर तक।

प्रश्न 4.
पठानकोट जिले का कौन-सा ब्लॉक पूरी तरह गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक पहाड़ियों के बीच स्थित है ?
उत्तर-
धार कलां।

प्रश्न 5.
होशियारपुर शिवालिक का सबसे ऊँचा ब्लॉक/विकास खण्ड कौन-सा है ?
उत्तर-
तलवाड़ा (741 मीटर)

प्रश्न 6.
होशियारपुर शिवालिक के दो प्रमुख चोओं के नाम बताओ।
उत्तर-
कोट मैंरा, ढल्ले की खड्ड।

प्रश्न 7.
किस नदी के कारण रोपड़ शिवालिक श्रेणी की निरंतरता टूट जाती है ?
उत्तर-
सतलुज की सहायक नदी सरसा के कारण।

प्रश्न 8.
कंडी क्षेत्र का निर्माण कौन-सी भू-रचनाओं के आपस में मिलने से हुआ है ?
उत्तर-
जलोढ़ पंख।

प्रश्न 9.
पंजाब के जलोढ़ मैदान कौन-कौन सी भौगोलिक इकाइयों में बंटे हुए हैं ?
उत्तर-
बारी दोआब, बिस्त दोआब, सिज दोआब।

प्रश्न 10.
पंजाब में नदियों के रास्ता बदलने से बने ढाए (Dhaiya) कहां देखे जा सकते हैं ? (कोई एक स्थान)
उत्तर-
फिल्लौर।

प्रश्न 11.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों में नदियों से दूर ऊंचे क्षेत्रों को क्या नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
बांगर।

प्रश्न 12.
पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों की लगभग लंबाई कितनी है ?
उत्तर-
280 कि०मी०।

प्रश्न 13.
होशियारपुर शिवालिक अपने दक्षिणी भाग में क्या कहलाता है ?
उत्तर-
कटार की धार।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 14.
होशियारपुर शिवालिक की लंबाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
होशियारपुर शिवालिक की लंबाई 130 किलोमीटर और चौड़ाई 5 से 8 किलोमीटर तक है।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब के धरातल में भिन्नता पाई जाती है। उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
पंजाब के धरातलीय नक्शे पर सरसरी दृष्टि डालने पर यह एक मैदानी क्षेत्र दिखाई देता है परंतु भौगोलिक दृष्टि और भू-वैज्ञानिक रचना के अनुसार इसमें काफी भिन्नता पाई जाती है।
पंजाब के मैदान संसार के सबसे ऊपजाऊ मैदानों में से एक हैं। पंजाब के पूर्व और उत्तर-पूर्व में शिवालिक की पहाडियां हैं। पंजाब के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में रेत के टीले भी मिलते हैं। राज्य में जगह-जगह चोअ दिखाई देते हैं।

प्रश्न 2.
पंजाब में शिवालिक की पहाड़ियों का विस्तार बताएं। इसके तीन भाग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
शिवालिक की पहाड़ियां बाह्य हिमालय का भाग हैं। यह पर्वत पंजाब के पूर्व में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथ-साथ 280 किलोमीटर की लंबाई में फैले हुए हैं।
शिवालिक की पहाड़ियों के तीन भाग हैं-

  1. गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक-ये पहाड़ियां रावी और ब्यास नदियों तक फैली हैं।
  2. होशियारपुर शिवालिक-ये पहाड़ियां ब्यास और सतलुज नदियों तक हैं।
  3. रोपड़ शिवालिक-इसका विस्तार सतलुज और घग्गर नदी तक है।

प्रश्न 3.
पंजाब के कंडी क्षेत्र का निर्माण कहां और कैसे हुआ है ?
उत्तर-
कंडी क्षेत्र का निर्माण शिवालिक की तराई में बने गिरीपद मैदानों (Foothill planes) में हुआ है। इनके निर्माण में जलोढ़ पंखों का हाथ है। ये भू-रचनाएं गिरीपद मैदानों में आपस में मिलती हैं और कंडी क्षेत्र बनाती हैं। इस प्रदेश में भूमिगत जल का स्तर काफी नीचे है।

प्रश्न 4.
होशियारपुर शिवालिक को दक्षिण में ‘कटार की धार’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
होशियारपुर शिवालिक की ढलाने नालीदार अपरदन के कारण बहुत अधिक फटी-कटी हैं। इसके अतिरिक्त यहां बहने वाले चोओं ने भी इन पहाड़ियों को कई स्थानों पर बुरी तरह काट दिया है। कटी-फटी पहाड़ियों के सिरे तीखे होने के कारण इन पहाड़ियों को ‘कटार की धार’ कहते हैं।

प्रश्न 5.
रोपड़ शिवालिक की कोई चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. शिवालिक की यह श्रेणी सतलुज और घग्गर नदियों के बीच स्थित है। इसका विस्तार रूपनगर (रोपड़) जिले में हिमाचल प्रदेश की सीमा के उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है।
  2. यह पहाड़ उत्तर में नंगल से शुरू होकर चंडीगढ़ के नजदीक घग्गर नदी तक चले जाते हैं।
  3. इस श्रेणी की लंबाई 90 किलोमीटर तक है। इस श्रेणी की निरंतरता (Continuity) सतलुज की सहायक नदी सरसा के कारण टूट जाती है।
  4. दूसरी शिवालिक श्रेणियों की तरह यह श्रेणी भी मौसमी चोओं से भरी हुई है। इन्हें राओ (Rao) तथा घाड़ (Ghar) भी कहा जाता है।

प्रश्न 6.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों का दोआबो के अनुसार वर्गीकरण करते हुए एक सूची बनाएं।
उत्तर-
पंजाब के जलोढ़ मैदान

बारी दोआब (ब्यास-रावी) बिस्त दोआब (ब्यास-सतलुज) सिज-दोआब (सतलुज-जमना)
रावी-सक्की किरन पश्चिमी दोआब कोटकपूरा पठार
सकी किरन-उदियारा मंजकी दोआब नैली
उदियारा-कसूर ढक दोआब पभाध
बेट/खाडर बाढ़ के मैदान
पट्टी-ब्यास रेतीले टिब्बे

प्रश्न 7.
शिवालिक पहाड़ों (पहाड़ियों) की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर-
शिवालिक पहाड़ियों की उत्पत्ति भी हिमालय की तरह टैथीज़ सागर से हुई। इनका निर्माण सागर में जमा कीचड़, चिकनी मिट्टी, ककड़-पत्थर आदि के ऊँचा उठने से हुआ। एक विचार के अनुसार मायोसीन (Miocene) काल में हिमालय के निर्माण के समय हिमालय के सामने एक छिछला सागर अस्तित्व में गया। लाखों वर्षों तक इसमें गाद जमा होती रही। कुछ समय बाद यूरेशिया प्लेट के गोंडवाना लैड से टकराने पर जमा पदार्थों ने ऊपर उठकर पहाड़ों का रूप ले लिया। यही पहाड़ शिवालिक पहाड़ कहलाते हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 8.
पंजाब के मैदानों का सबसे बड़ा क्षेत्र कौन-सा है ? इसमें शामिल ज़िलों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब के मैदानों का सबसे बड़ा क्षेत्र मालबा है। इसमें फिरोजपुर, फरीदकोट का उत्तरी भाग, मोगा, लुधियाना, बरनाला, संगरूर, पटियाला, पश्चिमी रूपनगर, साहिबजादा अजीत सिंह नगर (मोहाली), फतेहगढ़ साहिब आदि ज़िले शामिल हैं।

प्रश्न 9.
पंजाब के किन्हीं दो दोआबों के नाम लिखो तथा उनमें शामिल ज़िलों के बारे में बताओ।
उत्तर-
बारी दोआब तथा बिस्त दोआब पंजाब के दो प्रमुख दोआब हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है

  1. बारी दोआब-पंजाब में रावी और सतलुज नदियों के बीच का क्षेत्र बारी दोआब कहलाता है। इसे ‘माझा क्षेत्र’ भी कहा जाता है। इसमें पठानकोट, गुरदासपुर, अमृतसर और तरनतारन के ज़िले आते हैं।
  2. बिस्त दोआब-बिस्त दोआब ब्यास और सतलुज नदियों के बीच का क्षेत्र है। इसमें जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर और शहीद भगत सिंह नगर (नवांशहर) के जिले आते हैं।

प्रश्न 10.
पंजाब के जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित रेतीले टीलों पर नोट लिखो।
उत्तर-
सतलुज नदी के दक्षिणी भाग में पानी का बहाव घग्गर नदी की ओर है। इस क्षेत्र में बाढ़ के दिनों में पानी के बह जाने से रेत के टीले बन गए हैं। बाढ़ों से बचाव के लिए कई स्थानों पर नाले तथा नालियां बनाई गई हैं। अब इन टीलों को कृषि योग्य बना लिया गया है।

प्रश्न 11.
पंजाब के दक्षिण पश्चिमी भाग में स्थित रेतीले टीलों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पंजाब के दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान के साथ लगती सीमा पर जगह-जगह रेतीले टीले दिखाई देते हैं। इस प्रकार के टीले प्रायः भठिंडा, मानसा, फाजिल्का, फरीदकोट, संगरूर, मुक्तसर तथा पटियाला ज़िलों के दक्षिणी भागों में मिलते हैं। फिरोजपुर जिले के मध्यवर्ती भागों में भी कुछ टीले पाए जाते हैं। इन टीलों की ढलान टेढ़ी मेढ़ी है।
इस क्षेत्र की जलवायु अर्ध शुष्क है। अब पंजाब में रेत के टीलों को समतल करके खेती की जाने लगी है। पंजाब के मेहनती किसानों ने सिंचाई की सहायता से कृषि को उन्नत किया है। परिणामस्वरूप इस क्षेत्र की प्राकृतिक भौगोलिक विशेषता लगभग लुप्त हो गई है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब को धरातल के अनुसार हम कौन-कौन से भागों में बांट सकते हैं ? शिवालिक की पहाड़ियों का विस्तृत वर्णन करो।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं कि पंजाब अपने विशाल उपजाऊ मैदानों के लिए संसार भर में प्रसिद्ध है। परंतु यह केवल मैदानी क्षेत्र नहीं है। इसके धरातल में काफी भिन्नता पाई जाती है। इसके पूर्व और उत्तर-पूर्व में शिवालिक की पहाड़ियां हैं। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में रेत के टीले भी हैं। पंजाब के धरातल को हम नीचे लिखे क्षेत्रों में बांट सकते हैं

  1. शिवालिक की पहाड़ियां
  2. विशाल जलोढ़ी मैदान
  3. जलोढ़ मैदानों के मध्य (दक्षिण-पश्चिम के) रेतीले टीले।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब धरातलभू-आकृतियां 1

शिवालिक की पहाड़ियां बाह्य हिमालय का भाग हैं। ये पर्वत पंजाब के पूर्व में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथसाथ 280 किलोमीटर की लंबाई में फैले हुए हैं।
इस पर्वत श्रेणी की औसत चौड़ाई 5 से 12 किलोमीटर तक है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 600 से 1500 मीटर तक है।
शिवालिक की पहाड़ियों के भाग-शिवालिक की पहाड़ियों को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक रावी और ब्यास नदियों तक,
  2. होशियारपुर शिवालिक ब्यास और सतलुज नदियों तक
  3. रोपड़ शिवालिक सतलुज और घग्गर तक।

इन भागों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-

1. गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक इस पहाड़ी श्रेणी का विस्तार गुरदासपुर और पठानकोट जिलों के बीच है। पठानकोट जिले का धार कलां ब्लॉक पूरी तरह शिवालिक पहाड़ों के बीच स्थित है। इन पहाड़ों की औसत ऊंचाई 1000 मीटर के लगभग है।
इस क्षेत्र की पहाड़ी ढलाने, पानी के तेज बहाव के कारण किनारों से कट जाती हैं जिससे गहरी खाइयां/खड्डे (Gullies) बन जाती हैं। इस क्षेत्र में बहने वाली मौसमी नदियाँ (Seasonal River) चक्की खड्डु और उसकी सहायक नदियां ब्यास नदी में गिरती हैं।

2. होशियारपुर शिवालिक होशियारपुर शिवालिक का क्षेत्र ब्यास और सतलुज के मध्य होशियारपुर, शहीद भगत सिंह (नवांशहर) और रूपनगर जिले के नूरपूर बेदी ब्लॉक के बीच फैला हुआ है। इसकी लंबाई 130 किलोमीटर और चौड़ाई 5 से 8 किलोमीटर तक है। उत्तर में ये पहाड़ियाँ अधिक चौड़ी हैं परंतु दक्षिण में नीची तथा तंग हो जाती हैं। इसका सबसे ऊँचा ब्लॉक तलवाड़ा है और जिसकी ऊँचाई 741 मीटर तक है। शिवालिक की ये ढलाने नालीदार अपरदन (Gully Erosion) का बुरी तरह शिकार हैं और बहुत ज्यादा कटी फटी हैं। प्रत्येक किलोमीटर बाद प्रायः एक चोअ (Choe) आ जाता है। इन चोओं के अपरदन (Headward Erosion) के कारण ये पहाड़ कई स्थानों पर कटे हुए हैं। होशियारपुर के दक्षिण में इन्हें कटार की धार भी कहा जाता है। इसका बीच वाला भाग गढ़शंकर के पूर्व में स्थित है। कोट, मैरां, डले की खड़ यहां के प्रमुख चोअ हैं।

3. रोपड़ शिवालिक-शिवालिक की यह श्रेणी सतलुज और घग्गर नदियों के बीच स्थित है। यह रूपनगर (रोपड़) जिले में हिमाचल प्रदेश की सीमा के साथ उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व ओर फैली हुई है। ये पहाड़ उत्तर में नंगल से शुरू होकर चंडीगढ़ के नजदीक घग्गर नदी तक चले जाते हैं। इनकी लंबाई 90 किलोमीटर तक है। इस श्रेणी की निरंतरता (Continuity) सतलुज की सहायक नदी सरसा के कारण टूट जाती है। अन्य शिवालिक श्रेणियों की तरह यह श्रेणी भी मौसमी नालों से भरी हुई है। यहां पर इन नालों को राओ और घार (Rao & Ghare) भी कहा जाता है।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2b पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 2.
पंजाब के मैदान की उत्पत्ति कैसे हुई ? इनकी भौगोलिक दृष्टि से बांट करो।
उत्तर-
पंजाब के मैदान गंगा और सिंध के मैदान का भाग हैं। ये मैदान सिंध और उसकी सहायक नदियों रावी, ब्यास, सतलुज और उसकी सहायक नदियों द्वारा हिमालय से बहाकर लाई गई मिट्टी के जमाव से है। इन मैदानों की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 200 मी० से 300 मी० तक है। इनकी ढलान पूर्व से पश्चिम की ओर है।
भौगोलिक बांट-भौगोलिक दृष्टि से पंजाब के मैदानों को 5 भागों में बांटा जा सकता है-

  1. चो (नालों) वाले क्षेत्रों के मैदान
  2. बाढ़ के मैदान
  3. नैली
  4. जलोढ़ के मैदान
  5. जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित रेतीले (बालू के) टीले

(i) चोअ (नालों) वाले क्षेत्रों के मैदान-ये मैदान शिवालिक पहाड़ियों की तराई में स्थित हैं। यह प्रदेश चोओं से घिरा है। वर्षा के मौसम में इन चोओं में प्रायः बाढ़ आ जाती है। इससे जान-माल की बहुत हानि होती है। इन मैदानों की मिट्टी में कंकड़ पाए जाते हैं। इसके नीचे पानी का स्तर काफी नीचा होता है।

(ii) बाढ़ के मैदान-इन मैदानों में रावी, ब्यास तथा सतलुज़ के बाढ़ वाले मैदान शामिल हैं। इन मैदानों को बेट भी कहा जाता है। पंजाब में फिल्लौर बेट, आनंदपुर बेट तथा नकोदर बेट इसके मुख्य उदाहरण हैं।

(iii) नैली-पंजाब के दक्षिण-पूर्व में घग्गर नदी ने जलोढ़ के मैदानों का निर्माण किया है। इन मैदानों को स्थानीय भाषा में नैली कहते हैं। इन नैलियों में वर्षा ऋतु में बाढ़ें आ जाती हैं। घुड़ाम, समाना तथा सरदूलगढ़ इन मैदानों के मुख्य उदाहरण हैं।
(iv) जलोढ़ के मैदान-बारी तथा बिस्त दोआब के प्रदेश जलोढ़ी मिट्टी से बने हैं। इन मैदानों में खाडर तथा बांगर दोनों प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं।

(v) जलोढ़ मैदानों के बीच स्थित बालू टीले-सतलुज नदी के दक्षिणी भाग में पानी का बहाव घग्गर नदी की
ओर है। बाढ़ के दिनों में यहां पानी के बहने से रेत के टीले बन जाते हैं। बाढ़ों से बचाव के लिए कई स्थानों पर नाले तथा नालियाँ बनाई गई हैं। अब इन टीलों को कृषि योग्य बना लिया गया है।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां

Punjab State Board PSEB 9th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां

SST Guide for Class 9 PSEB भारत : धरातल/भू-आकृतियां Textbook Questions and Answers

(क) नक्शा कार्य (Map Work) :

प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र में अंकित करें :
उत्तर-

  • कराकोरम, पीर पंजाल, शिवालिक, सतपुड़ा, पटकोई वम्म, खासी और गारो की पहाड़ियां।
  • कंचनजुंगा, गोडविन, ऑस्टिन, धौलगिरी, गुरु शिखर व अनाईमुटी पहाड़ियां।
  • कोई पांच दर्रे और तीन पठारी क्षेत्र।
    नोट-विद्यार्थी यह प्रश्न अध्याय में दिए गए मानचित्रों की सहायता से स्वयं करें।

(ख) निम्नलिखित वस्तुनिष्ठ प्रश्नों के उत्तर दें:

प्रश्न 1.
भारत को भू-आकृति आधार पर वर्गीकृत करते हुए दो भागों के नाम लिखें।
उत्तर-
भारत को भू-आकृति के आधार पर पांच भागों में बांटा जा सकता है-

  1. हिमालय पर्वत
  2. उत्तरी विशाल मैदान व मरुस्थल
  3. प्रायद्वीपीय पठार
  4. तटीय मैदान
  5. भारतीय द्वीप समूह।

प्रश्न 2.
अगर आप गुरु शिखर पर हैं, तो कौन-सी पर्वत श्रृंखला में हैं ?
उत्तर-
माऊंट आबू (अरावली पहाड़ी)।।

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प्रश्न 3.
भारतीय उत्तरी मैदान की लंबाई व चौड़ाई कितनी है ?
उत्तर-
भारत के उत्तरी मैदान की लंबाई लगभग 2400 किलोमीटर तथा चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर है।

प्रश्न 4.
भारतीय द्वीपों को कैसे वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर-
भारतीय द्वीपों को मुख्य रूप से दो भागों में बाँटा जाता है-

  1. अंडेमान निकोबार द्वीप समूह तथा
  2. लक्षद्वीप समूह।

प्रश्न 5.
निम्न में से कौन-सा नाम मैदान का नहीं है ?
(i) भाबर
(ii) बांगर
(iii) केयाल
(iv) कल्लर।
उत्तर-
(iii) केयाल।

प्रश्न 6.
इनमें से कौन-सी झील नहीं है ?
(i) सैडल
(ii) सांबर
(iii) चिल्का
(iv) वैबानंद।
उत्तर-
(i) सैडल।

प्रश्न 7.
इनमें से कौन-सा नाम अलग पहचान का हैं ?
(i) शारदा
(ii) कावेरी
(ii) गोमती
(iv) यमुना।
उत्तर-
(i) कावेरी।

प्रश्न 8.
कौन-सी पर्वतीय श्रृंखला हिमालियाई नहीं है ?
(i) रक्शपोशी
(ii) डफ़ला
(iii) जास्कर
(iv) नीलगिरी।
उत्तर-
(iv) नीलगिरी।

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(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप उत्तर दें:

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत की उत्पत्ति पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
जहां आज हिमालय हैं, वहां कभी टैथीज (Tythes) नाम का एक गहरा सागर लहराता था। यह दो विशाल भू-खंडों से घिरा एक लंबा और उथला सागर था। इसके उत्तर में अंगारा लैंड और दक्षिण में गोंडवानालैंड नाम के दो भू-खंड थे। लाखों वर्षों तक इन दो भू-खंडों का अपरदन होता रहा। अपरदित पदार्थ अर्थात् कंकड़, पत्थर, मिट्टी, गाद आदि टैथीज सागर में जमा होते रहे। ये दो विशाल भू-खंड धीरे-धीरे एक-दूसरे की ओर खिसकते रहे। सागर में जमी मिट्टी आदि की परतों में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में उभर कर पानी की सतह से ऊपर आ गये। कालांतर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम आज हिमालय के नाम से पुकारते हैं।

प्रश्न 2.
खाडर मैदानों के विषय में बताएं कि ये बेट से अलग कैसे हैं ?
उत्तर-
खाडर एक प्रकार की नई जलोढ़ मिट्टी वाला मैदान है। इस मिट्टी को नदियां अपने साथ लाकर निचले प्रदेशों में बिछाती हैं। यह मिट्टी बहुत ही उपजाऊ होती है। पंजाब में इस प्रकार की मिट्टी वाले प्रदेशों को ‘बेट’ भी कहा जाता है। इस प्रकार बेट खाडर मिट्टी वाले मैदानों का स्थानीय नाम है।

प्रश्न 3.
मध्य हिमालय पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
मध्य हिमालय को लघु हिमालय भी कहा जाता है। इसकी औसत ऊंचाई 5050 मीटर तक है। इन श्रेणियों की पहाड़ियां 60 से 80 किलोमीटर की चौड़ाई में मिलती हैं।

  1. श्रेणियाँ-जम्मू कश्मीर में पीर पंजाल व नागा टिब्बा, हिमाचल में धौलाधार, नेपाल में महाभारत, उत्तराखंड में मसूरी और भूटान में थिम्पू इस पर्वतीय भाग की मुख्य पर्वत श्रेणियां हैं।
  2. घाटियाँ-इस भाग में कश्मीर घाटी के कुछ भाग, कांगड़ा घाटी, कुल्लू घाटी, भागीरथी घाटी व मंदाकिनी घाटी जैसी लाभकारी व स्वास्थ्यवर्द्धक घाटियां मिलती है।
  3. स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान-इस क्षेत्र में शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, चकराता आदि प्रमुख स्वास्थ्यवर्द्धक व रमणीय केंद्र हैं।

प्रश्न 4.
पश्चिम और पूर्वी घाटों में क्या अंतर है ?
उत्तर-

  1. पश्चिम घाट उत्तर से दक्षिण तक अरब सागर के समांतर फैले हैं। इसके विपरीत पूर्वी घाट का विस्तार खाड़ी बंगाल के साथ-साथ है।
  2. पश्चिम घाट के पर्वत एक लंबी श्रृंखला बनाते हैं। परंतु पूर्वी घाट नदियों द्वारा कट जाने के कारण अलग-अलग पहाड़ियों के रूप में दिखाई देते हैं।
  3. पश्चिम घाट के पर्वत पूर्वी घाट की अपेक्षा अधिक ऊंचे तथा स्पष्ट हैं।
  4. पूर्वी घाट की सबसे ऊंची चोटी महेंद्रगिरि है। इसके विपरीत पश्चिम घाट की सबसे ऊंची चोटी अनाईमुदी है।
  5. पश्चिम घाट में थाल घाट, भोर घाट, पाल घाट, शेनकोटा आदि दरें हैं। परंतु पूर्वी घाट में कोई भी महत्त्वपूर्ण दर्रा नहीं है।

प्रश्न 5.
भारतीय द्वीप समूहों का वर्गीकरण कीजिए तथा द्वीपों के नाम लिखो।
उत्तर-
भारतीय द्वीपों की कुल संख्या 267 है। इन्हें निम्नलिखित दो भागों में बांटा जाता है

  1.  बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडेमान-निकोबार द्वीप समूह-ये द्वीप उत्तर-पूर्वी पर्वत श्रेणी अराकान योमा (म्यांमार में) का भी विस्तार हैं। इनकी संख्या 204 है। सैडल (Saddle Peak) अंडेमान की सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई 737 मीटर है। निकोबार में 19 द्वीप शामिल हैं। जिनमें से ग्रेटर निकोबार सबसे बड़ा द्वीप है।
  2. अरब सागर में स्थित लक्षद्वीप समूह-इन द्वीपों की कुल संख्या 34 है। इसके उत्तर में अमिनदिवी (Amindivi) तथा दक्षिण में मिनीकोय (Minicoy) द्वीप स्थित हैं। इन द्वीपों का मध्यवर्ती भाग लक्कादिव (Laccadive) कहलाता है।

प्रश्न 6.
भाबर और तराई में अंतर बताएं।
उत्तर-
भाबर वे मैदानी प्रदेश होते हैं जहां नदियां पहाड़ों से निकल कर मैदानी प्रदेश में प्रवेश करती हैं और अपने साथ लाए रेत, कंकड़, बजरी, पत्थर आदि का यहां निक्षेप (जमा) करती हैं। भाबर क्षेत्र में नदियां भूमि तल पर बहने की बजाए भूमि के नीचे बहती हैं।
जब भाबर मैदानों की भूमिगत नदियां पुनः भूमि पर उभरती हैं, तो ये दलदली क्षेत्रों का निर्माण करती हैं। शिवालिक पहाड़ियों के समानांतर फैली ऐसी आर्द्र दलदली भूमि की पट्टी को तराई प्रदेश कहते हैं। यहां घने वन भी पाये जाते हैं तथा जंगली जीव-जंतु भी अधिक संख्या में मिलते हैं।

(घ) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दें:

प्रश्न 1.
प्रायद्वीपीय पठार और उनकी पर्वतीय श्रृंखलाओं के विषय में विस्तार में लिखें।
उत्तर-
प्रायद्वीपीय पठार भारत के मध्य से लेकर सुदूर दक्षिण तक फैला हुआ है। यह पठार क्रिस्टलीय आग्नेय तथा
रूपांतरित चट्टानों से बना है। त्रिभुज के आकार के इस प्राचीन भू-भाग का शीर्ष बिन्दु कन्याकुमारी है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता यहां की वन-संपदा है। इन पठारों को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है। इन भागों तथा उनमें स्थित पर्वत श्रेणियों का वर्णन इस प्रकार है

1. मध्य भारत का पठार-यह पठारी प्रदेश मारवाड़ प्रदेश के पूर्व में फैला है। इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 250500 मी० तक है। इसकी दरार घाटी में चंबल तथा उसकी सहायक नदियां बहती हैं। यह पठार अपनी गहरी घाटियों के लिए प्रसिद्ध है। इस पठार के पूर्व में यमुना के निकट बुंदेलखंड का प्रदेश स्थित है।

2. मालवा पठार-पश्चिम में अरावली पर्वत, उत्तर में बुंदेलखंड तथा बघेलखंड, पूर्व में छोटा नागपुर, राजमहल की पहाड़ियां तथा शिलांग के पठार तक और दक्षिण की ओर सतपुड़ा की पहाड़ियों तक घिरा हुआ पठार मालवा का पठार कहलाता है। इसका शीर्ष शिलांग के पठार पर है। इस पठार की उत्तरी सीमा अवतल चापाकार की तरह है। इस पठार में बनास, चंबल, केन तथा बेतवा नामक नदियां बहती हैं। इसकी औसत ऊंचाई 900 मी० है। पारसनाथ तथा नैत्रहप्पाट इसकी मुख्य चोटियां हैं। इसकी तीन पर्वत श्रेणियां हैं-अरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।
अरावली पर्वत श्रेणी सबसे पुरानी पर्वत श्रेणी है। इसकी लंबाई लगभग 800 किलोमीटर तक है। इसकी सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर (1722 मी०) है। इसमें गोरनघाट नामक एक दर्रा भी स्थित है। सतपुड़ा की पहाड़ियां 900 किलोमीटर की लंबाई में फैली हैं। इस पर्वत श्रेणी की सबसे ऊंची चोटी (धूपगढ़ 1350 मी०) है। अमरकंटक दूसरी ऊंची चोटी है।

3. दक्कन (दक्षिण) का पठार-इसकी औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर तक है। इसके धरातल को मौसमी नदियों ने कांट-छांट कर सात स्पष्ट भागों में बांटा हुआ है-

  1. महाराष्ट्र का टेबल लैंड,
  2. दंडकारण्य-छत्तीसगढ़ क्षेत्र,
  3. तेलंगाना का पठार,
  4. कर्नाटक का पठार,
  5. पश्चिमी घाट,
  6. पूर्वी घाट,
  7. दक्षिणी पहाड़ी समूह।

पश्चिमी घाट की औसत ऊंचाई 1200 मीटर और पूर्वी घाट की 500 मीटर है। दक्षिण भारत की सभी महत्त्वपूर्ण नदियां पश्चिमी घाट से निकलती हैं। उत्तर से दक्षिण तक पश्चिमी घाट में चार प्रसिद्ध दर्रे हैं-थालघाट, भोरघाट, पालघाट तथा शेनकोटा। पूर्वी घाट पश्चिमी घाट की अपेक्षा अधिक चौड़े कटे-फटे तथा टूटी पहाड़ियों वाला है। पूर्वी घाट की सबसे ऊंची चोटी महेंद्रगिरी (1500 मी०) है।

पश्चिमी और पूर्वी घाट जहां जाकर मिलते हैं, उन्हें नीलगिरि पर्वत कहते हैं। इन पर्वतों की सबसे ऊंची चोटी दोदाबेटा है अथवा डोडाबेटा जो 2637 मीटर ऊंची है।
सच तो यह है कि प्रायद्वीपीय पठार खनिज पदार्थों का भंडार है और इसका भारत की आर्थिकता में बड़ा महत्त्व है। यहां चाय, रबड़, गन्ना, कॉफ़ी आदि की कृषि भी की जाती है।

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प्रश्न 2.
गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदानों की बनावट व उनके क्षेत्रीय वर्गीकरण पर नोट लिखें।
उत्तर-
(क) गंगा के मैदान-गंगा-ब्रह्मपुत्र के मैदान के मुख्य भौगोलिक पक्षों का वर्णन इस प्रकार है

  1. स्थिति-यह मैदान उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल राज्यों में स्थित है। यह पश्चिम में यमुना, पूर्व में बंगलादेश की अंतर्राष्ट्रीय सीमा, उत्तर में शिवालिक तथा दक्षिण में प्रायद्वीपीय पठार के उत्तरी विस्तार के मध्य फैला हुआ है।
  2. नदियाँ-इस मैदान में गंगा, यमुना, घागरा, गण्ड्क, कोसी, सोन, बेतवा तथा चंबल नदियां बहती हैं।
  3. भू-आकारीय नाम-गंगा के तराई वाले उत्तरी क्षेत्रों में बनी दलदली पेटियों को ‘कौर (caur) कहा जाता है। इसकी दक्षिणी सीमा में बड़े-बड़े खड्ड (Ravines) मिलते हैं जिन्हें ‘जाला’ व ‘ताल’ (Jala & Tal) अथवा बंजर भूमि कहते हैं। इसके अतिरिक्त समस्त मैदान में पुरानी जमीं बांगर और नई बिछी खादर की जलोढ़ पट्टियों को ‘खोल’ (Khols) कहा जाता है। गंगा और यमुना दोआब में पवनों के निक्षेप द्वारा निर्मित बालू के टीलों को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद तथा बिजनौर जिलों में ‘भूर’ (Bhur) के नाम से जाना जाता है।
  4. ढलान तथा क्षेत्रफल-गंगा के मैदान की ढलान पूर्व की ओर है।
    महाराष्ट्र टेबल लैंड बेसाल्ट के लावे से बना है। कर्नाटक के पठार में बाबा बूदन की पहाड़ियों में स्थित मूल्नगिरी (1913 मी०) सबसे ऊँची चोटी है।
  5. विभाजन-ऊँचाई के आधार पर गंगा के मैदानों को निम्नलिखित तीन उप-भागों में विभाजित किया जा सकता है
    • ऊपरी मैदान-इन मैदानों को गंगा-यमुना दोआब भी कहते हैं। इनके पश्चिम में यमुना नदी है तथा 100 मीटर की ऊंचाई तक मध्यम ढाल वाले क्षेत्र इसकी पूर्वी सीमा बनाते हैं। रुहेलखंड तथा अवध का मैदान भी इन्हीं मैदानों में सम्मिलित हैं।
    • मध्यवर्ती मैदान-इस मैदान को बिहार के मैदान या मिथिला (Mithila) मैदान भी कहते हैं, जिसकी ऊंचाई लगभग 50 से 100 मीटर के बीच है। यह घागरा नदी से लेकर कोसी नदी तक फैला है। इस मैदान की लंबाई 600 कि०मी० तथा चौड़ाई 330 कि०मी० है।
    • निचले मैदान-गंगा के ये मैदानी भाग समुद्र तल से लगभग 50 मीटर ऊंचे हैं। इसकी लंबाई 580 कि०मी० तथा चौड़ाई 200 कि०मी० है। ये राजमहल तथा गारो पर्वत श्रेणियों के मध्य एक समतल डेल्टाई क्षेत्र बनाते हैं। इसके उत्तर में तराई पट्टी के द्वार (Duar) मिलते हैं तथा दक्षिण में विश्व का सबसे बड़ा सुंदरवन डेल्टा स्थित है।

(ख) ब्रह्मपुत्र के मैदान-इस मैदान को आसाम (असम) का मैदान भी कहा जाता है। समुद्र तल से इसकी ऊंचाई 250 मी० से लेकर 550 मी० तक है।

प्रश्न 3.
भारत के तटीय मैदानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तटवर्ती मैदान अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी के साथ-साथ फैले हुए हैं। इन्हें दो भागों में बांटा जाता है-पश्चिमी तट के मैदान तथा पूर्वी तट के मैदान। इनका वर्णन इस प्रकार है
पश्चिमी मैदान-

  1. इसके पश्चिम में अरब सागर और पूर्व में पश्चिमी घाट की पहाड़ियां हैं।
  2. इन मैदानों की लंबाई 1500 कि०मी० और चौड़ाई 65 कि०मी० है। इन मैदानों में डेल्टाई निक्षेप का अभाव है।
  3. पश्चिमी मैदानों को धरातलीय विस्तार के आधार पर चार भागों में बांटते हैं-गुजरात का तटीय मैदान, कोंकण का तटीय मैदान, मालाबार तट का मैदान, केरल का मैदान। गुजरात का मैदान कच्छ से महाराष्ट्र होते हुए खंबात की खाड़ी तक चला जाता है। इसका निर्माण साबरमती, माही, लूनी तथा तापी नदियों द्वारा लाकर बिछाई गई मिट्टी से हुआ है। कोंकण का मैदान दमन से गोवा तक 500 मीटर की लंबाई में फैला है। मुंबई इस तट की प्रमुख बंदरगाह है। कोंकण तट को कारावली तथा केनारा भी कहा जाता है। मालावार का तटवर्ती मैदान मंगलूर से कन्याकुमारी तक फैला है। झीलों अथवा लैगूनों वाले इस मैदान की लंबाई 845 कि०मी० है। बैबानंद द्रत मैदान की सबसे बड़ी झील है।।
  4. इन मैदानों में नर्मदा तथा ताप्ती नदियां बहती है। ये डेल्टा बनाने की बजाए ज्वारनदमुख बनाती हैं।
  5. पश्चिमी मैदान में ग्रीष्म काल में वर्षा होती है। यह वर्षा दक्षिण-पश्चिम पवनों के कारण होती है। ।

पूर्वी तट के मैदान-

  1. पूर्वी तट के मैदानों के पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में पूर्वी घाट की पहाड़ियां हैं।
  2. इन मैदानों की लंबाई 2000 कि०मी० है और इनकी औसत चौड़ाई 150 कि०मी० है। ये अपेक्षाकृत अधिक चौड़े हैं तथा इनमें जलोढ़ मिट्टी का निक्षेप है।
  3. पूर्वी तटीय मैदान के दो भाग हैं-उत्तरी तटीय मैदान तथा दक्षिण तटीय मैदान। उत्तरी मैदान को उत्तरी सरकार या गोलकुंडा या काकीनाडा भी कहते हैं। दक्षिण तटीय मैदान को कोरोमंडल तट कहा जाता हैं।
  4. इस मैदान की प्रमुख नदियां महानदी, कावेरी, गोदावरी तथा कृष्णा है।
  5. इस मैदान में पुलिकट तथा चिल्का नामक झीलें पाई जाती हैं। उड़ीसा की चिल्का झील भारत में खारे पानी की सबसे बड़ी झील है।

प्रश्न 4.
निम्न पर नोट लिखें
(i) राजस्थान के मैदान और मरुस्थल
(ii) मालवा का पठार
(iii) उच्चतम हिमालय।
उत्तर-
(i) राजस्थान के मैदान और मरुस्थल-यह मरुस्थल पंजाब तथा हरियाणा के दक्षिणी भागों से लेकर गुजरात के रण ऑफ़ कच्छ तक फैला हुआ है। यह समतल तथा शुष्क मरुस्थल थार मरुस्थल के नाम से जाना जाता है। अरावली पर्वत श्रेणी इसकी पूर्वी सीमा बनाती है। इसके पश्चिम में अन्तर्राष्ट्रीय सीमा लगती है। यह लगभग 650 कि०मी० लंबा तथा 250 कि० मी० चौड़ा है। अति प्राचीन काल में यह क्षेत्र समुद्र के नीचे दबा हुआ था। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि यह मरुस्थल किसी समय उपजाऊ रहा होगा। परंतु वर्षा की मात्रा बहुत कम होने के कारण आज यह क्षेत्र रेत के बड़े-बड़े टीलों में बदल गया है। थार मरुस्थल के पूर्वी भाग को ‘राजस्थान बांगर’ भी कहा जाता है।

(ii) मालवा का पठार-पश्चिम में अरावली पर्वत, उत्तर में बुंदेलखंड तथा बघेलखंड पूर्व में छोटा नागपुर, राजमहल की पहाड़ियां तथा शिलांग के पठार तक और दक्षिण की ओर सतपुड़ा की पहाड़ियों तक घिरा हुआ पठार मालवा का पठार कहलाता है। इसका शीर्ष शिलांग के पठार पर है। इस पठार की उत्तरी सीमा अवतल चापाकार की तरह है। इस पठार में बनास, चंबल, केन तथा बेतवा नामक नदियां बहती हैं। इसकी औसत ऊंचाई 900 मी० है। पारसनाथ तथा नैत्रहप्पाट इसकी मुख्य चोटियां हैं। इसको तीन पर्वत श्रेणियां हैं-अरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।

(iii) उच्चतम हिमालय-इसे महान् हिमालय भी कहते हैं। हिमालय का यह विशाल भाग पश्चिम में सिंधु नदी की घाटी से लेकर उत्तर-पूर्व में ब्रह्मपुत्र की दिहांग घाटी तक फैला हुआ है। इसकी मुख्य धरातलीय विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है

  1. यह देश की सबसे लंबी तथा ऊंची पर्वत श्रेणी है। इसमें ग्रेनाइट तथा नीस जैसी परिवर्तित रवेदार चट्टानें मिलती हैं।
  2. इसकी चोटियां बहुत ऊंची हैं। संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माऊंट एवरेस्ट (8848 मीटर) इसी पर्वत श्रृंखला में स्थित है। यहां की चोटियां सदा बर्फ से ढकी रहती हैं।
  3. इसमें अनेक दर्रे हैं जो पर्वतीय मार्ग जुटाते हैं।
  4. इसमें काठमांड तथा कश्मीर जैसी महत्त्वपूर्ण घाटियां स्थित हैं।

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वत और दक्षिण पठार के लाभों की तुलना करें।
उत्तर-
हिमालय पर्वत तथा ढक्कन का पठार भारत के दो महत्त्वपूर्ण भू-भाग हैं। ये दोनों ही भू-भाग अपने-अपने ढंग से भारत देश को समृद्ध बनाते हैं। इनके लाभों की तुलना इस प्रकार की जा सकती है
हिमालय के लाभ-

  1. वर्षा-हिंद महासागर से उठने वाली मानसून पवनें हिमालय पर्वत से टकरा कर खूब वर्षा करती हैं। इस प्रकार यह उत्तरी मैदान में वर्षा का दान देता है। इस मैदान में पर्याप्त वर्षा होती है।
  2. उपयोगी नदियां-उत्तरी भारत में बहने वाली सभी मुख्य नदियां गंगा, यमुना, सतलुज, ब्रह्मपुत्र आदि हिमालय पर्वत से ही निकलती हैं। ये नदियां सारा साल बहती रहती हैं। शुष्क ऋतु में हिमालय की बर्फ इन नदियों को जल देती है।
  3. फल तथा चाय-हिमालय की ढलाने चाय की खेती के लिए बड़ी उपयोगी हैं। इनके अतिरिक्त पर्वतीय ढलानों पर फल भी उगाए जाते हैं।
  4. उपयोगी लकड़ी-हिमालय पर्वत पर घने वन पाये जाते हैं। ये वन हमारा धन हैं। इनसे प्राप्त लकड़ी पर भारत के अनेक उद्योग निर्भर हैं। यह लकड़ी भवन निर्माण कार्यों में भी काम आती है।
  5. अच्छे चरागाह-हिमालय पर हरी-भरी चरागाहें मिलती हैं। इनमें पशु चराये जाते हैं।
  6. खनिज पदार्थ-इन पर्वतों में अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ पाए जाते हैं।
  7. पर्यटन-हिमालय में अनेक सुंदर और रमणीक घाटियां हैं। कश्मीर घाटी ऐसी ही एक प्रसिद्ध घाटी है। इसे पृथ्वी का स्वर्ग कहा जाता है। अन्य प्रमुख घाटियां हिमाचल प्रदेश में कुल्लू तथा कांगड़ा और उत्तरांचल में कुमायूँ की घाटियाँ हैं। सारे संसार से पर्यटक इन घाटियों की मनोहर छटा को निहारने के लिए यहां आते हैं।

दक्कन (दक्षिणी) पठार के लाभ

  1. दक्षिण का पठार खनिजों से संपन्न है। देश के 98% खनिज भंडार दक्षिणी पठार में ही मिलते हैं यहां कोयला, लोहा, तांबा, मैंगनीज़, अभ्रक, सोना आदि बहुमूल्य खनिज पाये जाते हैं।
  2. यहां की मिट्टी, कपास, चाय, रबड़, गन्ना, कॉफी, मसालों, तंबाकू आदि के उत्पादन के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  3. यहां नदियां जलप्रपात बनाती हैं जो जलविद्युत् के उत्पादन के लिये उपयोगी है।
  4. इस भाग में साल, सागवान, चंदन आदि के वन पाये जाते हैं।
  5. यहां उटकमंड, पंचमढ़ी, महाबालेश्वर आदि पर्यटन स्थानों का विकास हुआ है।

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PSEB 9th Class Social Science Guide भारत : धरातल/भू-आकृतियां Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
माऊंट एवरेस्ट की ऊंचाई है-
(क) 9848 मी०
(ख) 7048 मी०
(ग) 8848 मी०
(घ) 6848 मी०।
उत्तर-
(ग) 8848 मी०

प्रश्न 2.
पूर्वी घाट का सबसे ऊँचा शिखर कौन-सा है ?
(क) डोडाबेटा
(ख) महेन्द्रगिरी
(ग) पुष्पागिरी
(घ) कोलाईमाला।
उत्तर-
(ख) महेन्द्रगिरी

प्रश्न 3.
हिमालय का अधिकतर भाग फैला है-
(क) भारत में
(ख) नेपाल में
(ग) तिब्बत में
(घ) भूटान में।
उत्तर-
(ग) तिब्बत में

प्रश्न 4.
हिमालय पर्वतों की उत्पत्ति हुई है-
(क) टैथीज़ सागर से
(ख) अंध-महासागर से
(ग) हिंद महासागर से
(घ) खाड़ी बंगाल से।
उत्तर-
(क) टैथीज़ सागर से

प्रश्न 5.
रावी और ब्यास के मध्य भाग को कहा जाता है-
(क) बिस्त दोआब
(ख) प्रायद्वीपीय पठार
(ग) चज दोआब
(घ) मालाबार दोआब।
उत्तर-
(क) बिस्त दोआब

प्रश्न 6.
कोंकण तट का विस्तार है-
(क) दमन से गोआ तक
(ख) मुम्बई से गोआ तक
(ग) दमन से बंगलौर तक
(घ) मुम्बई से दमन तक।
उत्तर-
(क) दमन से गोआ तक

प्रश्न 7.
पश्चिमी घाट की प्रमुख चोटी है-
(क) गुरु शिखर
(ख) कालस्थाए
(ग) कोंकण शिखर
(घ) माऊंट
उत्तर-
(ख) कालस्थाए

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प्रश्न 8.
सतलुज, ब्रह्मपुत्र तथा गंगा जल प्रवाह प्रणालियों से बना मैदान कहलाता ह-
(क) दक्षिणी विशाल मैदान
(ख) पूर्वी विशाल मैदान
(ग) उत्तरी विशाल मैदान
(घ) तिब्बत का मैदान।
उत्तर-
(ग) उत्तरी विशाल मैदान

रिक्त स्थानों की पूर्ति :

1. ट्रांस हिमालय की औसत ऊंचाई …………. मीटर है।
2. दफा बम्म तथा ……………. हिमालय की पूर्वी शाखाओं की प्रमुख चोटियां हैं।
3. ………….. विश्व की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है।
4. त्रिभुजाकार भारतीय प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिंदु ………….. है।
5. थाल घाट, भोर घाट तथा …………. पश्चिमी घाट के दर्रे हैं।
6. चिल्का झील भारत की सबसे बड़ी …………… पानी की झील है।
7. ………… नदी भारतीय विशाल पठार के दो भागों के बीच सीमा बनाती है।
8. ……….. हिमालय भारत की सबसे लंबी और ऊंची पर्वत श्रृंखला है।
9. मालाबार तट का विस्तार गोआ से ………….. तक है।
10. छत्तीसगढ़ का मैदान ……………… द्वारा बना है।
उत्तर-

  1. 6000
  2. सारामती
  3. माऊंट एवरेस्ट
  4. कन्याकुमारी
  5. पाल घाट
  6. खारे
  7. नर्मदा
  8. बृहत्
  9. मंगलौर
  10. महानदी।

सत्य-असत्य कथन :

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं-
1. ट्रांस हिमालय को तिब्बत हिमालय भी कहा जाता है।
2. हिमालय के अधिकतर स्वास्थ्यवर्धक स्थान बृहत् हिमालय में स्थित हैं।
3. उत्तरी विशाल मैदान की रचना में कावेरी तथा कृष्णा नदियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
4. पश्चिम घाट में थाल घाट, भोर घाट तथा पाल घाट नामक तीन दर्रे स्थित हैं।
5. पश्चिमी घाट को सहाद्रि भी कहा जाता है। |
उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)

उचित मिलान :

1. उत्कल – सहयाद्रि
2. सागर मथ्था – अरब सागर
3. पश्चिमी घाट – तटवर्ती मैदान
4. लक्षद्वीप – माऊंट ऐवरेस्ट।
उत्तर-

  1. तटवर्ती मैदान
  2. माऊंट ऐवरेस्ट।
  3. घाट–सहयाद्रि
  4. लक्षद्वीप

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अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत श्रेणी की आकृति कैसी है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत श्रेणी की आकृति एक चाप (Curve) जैसी है।

प्रश्न 2.
हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों का जन्म कैसे हुआ ?
उत्तर-
हिमालय पर्वतीय क्षेत्र की उत्पत्ति टेथिस सागर में जमा गाद में बल पड़ने से हुई।

प्रश्न 3.
ट्रांस हिमालय की प्रमुख चोटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
ट्रांस हिमालय की मुख्य चोटियां हैं—विश्व की दूसरी ऊंची चोटी माऊंट के (गाडविन ऑस्टिन), गशेरबम-I तथा गशेरबम-II

प्रश्न 4.
बृहत् हिमालय में 8000 मीटर से अधिक ऊंची चोटियां कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-
बृहत् हिमालय की 8000 मीटर से अधिक ऊंची चोटियां हैं-माऊंट एवरेस्ट (8848 मीटर), कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरी, अन्नपूर्णा आदि।

प्रश्न 5.
भारत की युवा एवं प्राचीन पर्वत मालाओं के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत भारत के युवा पर्वत हैं और वहां के प्राचीन पर्वत अरावली, विंध्याचल, सतपुड़ा आदि हैं।

प्रश्न 6.
देश में रिफ्ट या दरार घाटियां कहां मिलती हैं ?
उत्तर-
भारत में दरार घाटियां प्रायद्वीपीय पठार में पाई जाती हैं।

प्रश्न 7.
डेल्टा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी के निचले भागों में बने स्थल-रूप को डेल्टा कहते हैं।

प्रश्न 8.
भारत के मुख्य डेल्टाई क्षेत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत के प्रमुख डेल्टाई क्षेत्र हैं-गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा क्षेत्र, गोदावरी नदी डेल्टा क्षेत्र, कावेरी नदी डेल्टा क्षेत्र, कृष्णा नदी डेल्टा क्षेत्र तथा महानदी का डेल्टा क्षेत्र।

प्रश्न 9.
हिमालय पर्वत के दरों के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय पर्वत में पाये जाने वाले मुख्य दरे हैं-बुरज़िल, जोझीला, लानक ला, चांग ला, खुरनक ला, बाटा खैपचा ला, शिपकी ला, नाथु ला, तत्कला कोट इत्यादि।

प्रश्न 10.
लघु हिमालय की मुख्य पर्वतीय श्रेणियों के नाम बताइए।
उत्तर-
लघु हिमालय की पर्वत श्रेणियां हैं-

  1. कश्मीर में पीर पंजाल तथा नागा टिब्बा,
  2. हिमाचल में धौलाधार तथा कुमाऊं,
  3. नेपाल में महाभारत,
  4. उत्तराखंड में मसूरी,
  5. भूटान में थिम्पू।

प्रश्न 11.
लघु हिमालय में स्थित स्वास्थ्यवर्धक घाटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
लघु हिमालय के मुख्य स्वास्थ्यवर्धक स्थान शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीतालं, दार्जिलिंग तथा चकराता हैं।

प्रश्न 12.
देश की प्रमुख ‘दून’ घाटियों के नाम बताइए।
उत्तर-
देश की मुख्य दून घाटियां हैं-देहरादून, पतली दून, कोथरीदून, ऊधमपुर, कोटली आदि।

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प्रश्न 13.
हिमालय क्षेत्र की पूर्वी किनारे वाली प्रशाखाओं (Eastern off shoots) के नाम बताइए।
उत्तर-
हिमालय की प्रमुख पूर्वी श्रेणियां पटकोई बम्म, गारो, खासी, जयंतिया तथा त्रिपुरा की पहाड़ियां हैं।

प्रश्न 14.
उत्तर-पश्चिमी मैदान में कौन-कौन से अंतर-दोआब (Inter fluxes) मिलते हैं ?
उत्तर-

  1. बारी दोआब तथा माझा का मैदान,
  2. बिस्त दोआब,
  3. मालवा का मैदान,
  4. हरियाणा का मैदान।

प्रश्न 15.
ब्रह्मपुत्र के मैदानों की औसत ऊंचाई कितनी है ?
उत्तर-
250-550 मी०।

प्रश्न 16.
(i) अरावली पर्वत श्रेणी का विस्तार कहां से कहां तक है तथा
(ii) इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम क्या है ?
उत्तर-

  1. अरावली पर्वत श्रेणी दिल्ली से गुजरात तक फैली हुई है।
  2. इसकी सबसे ऊंची चोटी का नाम गुरु शिखर है।

प्रश्न 17.
थारमरुस्थल (भारत) की तीन खारे पानी की झीलों के नाम बताओ।
उत्तर-
सांभर, चिदवाना तथा सारमोल।

प्रश्न 18.
पूर्वी घाट की दक्षिणी पहाड़ियों के नाम बताइए।
उत्तर-
जवद्दी (Jawaddi), गिन्गी, शिवराई, कौलईमाला, पंचमलाई, गोंडुमलाई इत्यादि पूर्वी घाट की दक्षिणी पहाड़ियां हैं।

प्रश्न 19.
दक्षिणी पठार के पहाड़ी भागों पर कौन-कौन से रमणीय स्थान ( हिल स्टेशन ) हैं ?
उत्तर-
दोदाबेटा, ऊटाकमुंड, पलनी तथा कोडाईकनाल।

प्रश्न 20.
अरब सागर में मिलने वाले द्वीपों के नाम बताओ।
उत्तर-
अरब सागर में स्थित उत्तरी द्वीपों को अमीनोदिवी (Aminolivi), मध्यवर्ती द्वीपों को लक्काद्वीप तथा दक्षिणी भाग को मिनीकोय कहा जाता है।

प्रश्न 21.
देश का दक्षिणी सीमा बिंदु कहां स्थित है ?
उत्तर-
देश का दक्षिणी सीमा बिंदु ग्रेट निकोबार के इंदिरा प्वाइंट (Indira Point) पर स्थित है।

प्रश्न 22.
तटीय मैदानों से समस्त भारत को मिलने वाले तीन प्रमुख लाभों को बताओ।
उत्तर-

  1. गहरे प्राकृतिक पोताश्रय
  2. लैगून तथा
  3. उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी की प्राप्ति।

प्रश्न 23.
ट्रांस हिमालय को ‘तिब्बत हिमालय’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि ट्रांस हिमालय का अधिकतर भाग तिब्बत में है।

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प्रश्न 24.
दून किसे कहते हैं ?
उत्तर-
‘दून’ बाह्य हिमालय में स्थित वे झीलें हैं जो मिट्टी से भर गई हैं।

प्रश्न 25.
विश्व की दूसरी सबसे ऊंची पर्वत चोटी कौन-सी है ?
उत्तर-
K2

प्रश्न 26.
भारत के प्रायद्वीपीय पठार का शीर्ष बिंदु कौन-सा है ?
उत्तर-
कन्याकुमारी।

प्रश्न 27.
भारत के किस राज्य में पश्चिमी घाट नीलगिरी के नाम से विख्यात है ?
उत्तर-
तमिलनाडु।

प्रश्न 28.
कौन-सी नदी भारतीय विशाल पठार के दो भागों के बीच सीमा बनाती है ?
उत्तर-
नर्मदा।

प्रश्न 29.
भारत के प्रमुख द्वीप समूह कौन-कौन से हैं और ये कहां स्थित हैं ?
उत्तर-

  1. भारत के प्रमुख द्वीप समूह अंडमान तथा निकोबार और लक्षद्वीप हैं।
  2. ये क्रमश: बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में स्थित हैं।

प्रश्न 30.
हिमालय की कौन-सी श्रेणी शिवालिक कहलाती है ?
उत्तर-
बाह्य हिमालय।

प्रश्न 31.
भारत के उत्तरी विशाल मैदान की रचना में किस-किस जल प्रवाह प्रणाली का योगदान रहा है ?
उत्तर-
भारत के उत्तरी विशाल मैदान की रचना में सतलुज, ब्रह्मपुत्र तथा गंगा जल प्रवाह प्रणालियों का योगदान है।

प्रश्न 32.
गोआ से मंगलौर तक का समुद्री तट क्या कहलाता है ?
उत्तर-
मालाबार तट।

प्रश्न 33.
कोंकण तट कहां से कहां तक फैला है ?
उत्तर-
कोंकण तट दमन से गोआ तक फैला है।

प्रश्न 34.
भारत का कौन-सा भू-भाग खनिजों का विशाल भंडार है ?
उत्तर–
प्रायद्वीपीय पठार।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमालय पर्वत के क्रमवार उत्थान (uplifts) के बारे में कोई दो प्रमाण दीजिए।
उत्तर-
हिमालय का जन्म आज से लगभग 400 लाख वर्ष पहले टैथीज (Tythes) सागर से हुआ है। एक लंबे समय तक तिब्बत पठार तथा दक्षिण पठार की नदियां टैथीज सागर में तलछट लाकर जमा करती रहीं। फिर दोनों पठार एक-दूसरे की ओर खिसकने लगे। इससे तलछट में मोड़ पड़ने लगे और यह ऊंचा उठने लगा। इसी उठाव से हिमालय पर्वत का निर्माण हुआ है। यह क्रमिक उठाव आज भी जारी है।

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प्रश्न 2.
हिमालय पर्वत माला एवं दक्षिण के पठार के बीच क्या समानताएं पायी जाती हैं ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत तथा दक्षिण के पठार में निम्नलिखित समानताएं पायी जाती हैं-

  1. इन दोनों भू-भागों का निर्माण एक-दूसरे की उपस्थिति के कारण हुआ।
  2. हिमालय पर्वतों की भांति दक्षिणी पठार में भी अनेक खनिज पदार्थ पाये जाते हैं।
  3. इन दोनों भौतिक भागों में वन पाये जाते हैं जो देश में लकड़ी की मांग को पूरा करते हैं।

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प्रश्न 3. क्या हिमालय पर्वत अभी भी युवा अवस्था में है ?
उत्तर-इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिमालय पर्वत अभी भी युवा अवस्था में है। इनकी उत्पत्ति नदियों द्वारा टैथीज सागर में बिछाई गई तलछट से हुई है। बाद में इसके दोनों ओर स्थित भूखंडों के एक-दूसरे की ओर खिसकने से तलछट में मोड़ पड़ गया जिससे हिमालय पर्वतों की ऊंचाई बढ़ गई। आज भी ये पर्वत ऊंचे उठ रहे हैं। इसके अतिरिक्त इन पर्वतों का निर्माण देश के अन्य पर्वतों की तुलना में काफ़ी बाद में हुआ। अतः हम कह सकते हैं कि हिमालय पर्वत अभी भी अपनी युवा अवस्था में है।

प्रश्न 4.
उत्तरी विशाल मैदानी भाग में किस-किस जलोढ़ी मैदान का निर्माण हुआ है ?
उत्तर-
उत्तरी विशाल मैदान में निम्नलिखित जलोढ़ मैदानों का निर्माण हुआ है-

  1. खाडर के मैदान,
  2. बांगर के मैदान,
  3. भाबर के मैदान,
  4. तराई के मैदान,
  5. रेह व कल्लर मिट्टी के बंजर मैदान,
  6. भूर।

प्रश्न 5.
स्थिति के आधार पर भारत के द्वीपों को कितने भागों में बांटा जा सकता है ? उदाहरणों सहित व्याख्या करें।
उत्तर-
स्थिति के अनुसार भारत के द्वीपों को दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है-तट से दूर स्थित द्वीप तथा तट के निकट स्थित द्वीप।

  1. तट से दूर स्थित द्वीप-इन द्वीपों की कुल संख्या 230 के लगभग है। ये समूहों में पाये जाते हैं। दक्षिणी-पूर्वी
    अरब सागर में स्थित ऐसे द्वीपों का निर्माण प्रवाल भित्तियों के जमाव से हुआ है। इन्हें लक्षद्वीप कहते हैं। अन्य द्वीप क्रमशः अमीनदिवी, लक्काद्वीप तथा मिनीकोय के नाम से प्रसिद्ध हैं। बंगाल की खाड़ी में तट से दूर स्थित द्वीपों के नाम हैं-अंडमान द्वीप समूह, निकोबार, नारकोडम तथा बैरन आदि।
  2. तट के निकट स्थित द्वीप-इन द्वीपों में गंगा के डेल्टे के निकट स्थित सागर, शोरट, ह्वीलर, न्युमूर आदि द्वीप शामिल हैं। इस प्रकार के अन्य द्वीप हैं-भासरा, दीव, बन, ऐलिफैंटा इत्यादि।

प्रश्न 6.
तटवर्ती मैदानों की देश को क्या महत्त्वपूर्ण देन है ?
उत्तर-
तटीय मैदानों की देश को निम्नलिखित देन है-

  1. तटीय मैदान बढ़िया किस्म के चावल, खजूर, नारियल, मसालों, अदरक, लौंग, इलायची आदि की कृषि के लिए विख्यात हैं।
  2. ये मैदान अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अग्रणी हैं।
  3. इन मैदानों से समस्त देश में बढ़िया प्रकार की समुद्री मछलियां भेजी जाती हैं।
  4. तटीय मैदानों में स्थित गोआ, तमिलनाडु तथा मुंबई के समुद्री बीच पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
  5. देश में प्रयोग होने वाला नमक पश्चिमी तटीय मैदानों में तैयार किया जाता है।

प्रश्न 7.
तट के मैदान न केवल संकरे हैं, बल्कि डेल्टाई निक्षेपण से भी विहीन हैं, व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
भारत के पश्चिमी तट के मैदान संकरे हैं और यहां डेल्टाई निक्षेप का भी अभाव है। इसके कारण निम्नलिखित हैं

  1. पश्चिमी तट पर सागर दूर तक अंदर चला गया है। इसके अतिरिक्त पश्चिमी घाट की पहाड़ियां कटी-फटी नहीं हैं। परिणामस्वरूप पश्चिमी तट के मैदानों के विस्तार में बाधा आ गई है। इसी कारण ये मैदान संकरे हैं।
  2. जो नदियां पश्चिमी घाट से होकर अरब सागर में गिरती हैं, उनका बहाव तेज़ है, परंतु बहाव क्षेत्र कम है। परिणामस्वरूप ये नदियां (नर्मदा, ताप्ती) डेल्टे नहीं बनातीं, अपितु ज्वारनदमुख बनाती हैं।

प्रश्न 8.
प्रायद्वीपीय पठार का देश के लिए क्या महत्त्व रहा है ? कोई तीन बिंदु लिखिए।
उत्तर-

  1. प्रायद्वीपीय पठार प्राचीन गोंडवाना लैंड का भाग है जो खनिज पदार्थों में धनी है। अतः यह देश के लिए खनिज पदार्थों का बहुत बड़ा स्रोत रहा है।
  2. प्रायद्वीपीय पठार के दोनों ओर घाटों पर बने जल-प्रपात तटीय मैदानों को सिंचाई के लिए जल तथा औद्योगिक विकास के लिए बिजली देते हैं।
  3. यहां के वन देश के अन्य भागों में लकड़ी की मांग को पूरा करते हैं।

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प्रश्न 9.
निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें-
(i) बांगर और खादर/खाडर
(ii) नाले (चो), नदी और बंजर भूमि।
उत्तर-

  1. बांगर और खादर/खाडर-उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिमी बंगाल में बहने वाली नदियों में प्रत्येक वर्ष बाढ़ आ जाती है और वे अपने आस-पास के क्षेत्रों में मिट्टी की नई परतें बिछा देती हैं। बाढ़ से प्रभावित इस तरह के मैदानों को खादर के मैदान भी कहा जाता है।
    बांगर वह ऊंची भूमि होती है जो बाढ़ के पानी से प्रभावित नहीं होती और जिसमें चूने के कंकड़-पत्थर अधिक मात्रा में मिलते हैं। इसे रेह तथा कल्लर भूमि भी कहते हैं।
  2. नाले (चो), नदी और बंजर भूमि-चो वे छोटी-छोटी नदियां होती हैं जो वर्षा ऋतु में अकस्मात् सक्रिय हो उठती हैं। ये भूमि में गहरे गड्ढे बनाकर उसे कृषि के अयोग्य बना देते हैं।
    बहते हुए जल को नदी कहते हैं। इसका स्रोत किसी पर्वतीय स्थान (हिमानी) पर होता है। यह अंततः किसी सागर या भूमिगत स्थान पर जा मिलती है। बंजर भूमि से अभिप्राय ऐसी भूमि से है जिसकी उपजाऊ क्षमता न के बराबर होती है। ऐसी भूमि खेती के अयोग्य होती है। भारत में उत्तरी प्रायद्वीपीय पठार तथा पश्चिमी शिवालिक पहाड़ियों के आस-पास बंजर भूमि का विस्तार है।

प्रश्न 10.
हिमालय पर्वत की चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. ये पर्वत भारत के उत्तर में स्थित हैं। ये एक चाप की तरह कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैले हुए हैं। संसार का कोई भी पर्वत इनसे अधिक ऊंचा नहीं है। इनकी लंबाई 2400 किलोमीटर और चौड़ाई 240 से 320 किलोमीटर तक है।
  2. हिमालय पर्वत की तीन समानांतर शृंखलाएं हैं। उत्तरी श्रृंखला सबसे ऊंची है तथा दक्षिणी श्रृंखला सबसे कम ऊंची है। इन श्रृंखलाओं के बीच बड़ी उपजाऊ घाटियां हैं।
  3. इन पर्वतों की मुख्य चोटियां ऐवरेस्ट, नागा पर्वत, गाडविन ऑस्टिन (K2), नीलगिरि, कंचनजंगा आदि हैं। ऐवरेस्ट संसार की सबसे ऊंची पर्वत चोटी है। इसकी ऊंचाई 8848 मीटर है।
  4. हिमालय की पूर्वी शाखाएं.भारत तथा म्यनमार की सीमा बनाती हैं। हिमालय की पश्चिमी शाखाएं पाकिस्तान में हैं। इनके नाम सुलेमान तथा किरथर पर्वत हैं। इन शाखाओं में खैबर तथा बोलान के प्रे स्थित हैं।

प्रश्न 11.
भारत के विशाल उत्तरी मैदान का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारत की अर्थव्यवस्था में इनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
भारत का विशाल उत्तरी मैदान हिमालय पर्वत के साथ-साथ पश्चिम से पूर्व तक फैला हुआ है। इसका विस्तार राजस्थान से असम तक है। इसके कुछ पश्चिमी रेतीले भाग को छोड़कर शेष सारा मैदान बहुत ही उपजाऊ है। इनका निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी से हुआ है। इसलिए इसे जलोढ़ मैदान भी कहते हैं। इसे चार भागों में बांटा जा सकता है–

  1. पंजाब-हरियाणा का मैदान,
  2. थार मरुस्थलीय मैदान,
  3. गंगा का मैदान,
  4.  ब्रह्मपुत्र का मैदान। भारत की आर्थिक समृद्धि का आधार यही विशाल मैदान है। यहां नाना प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं। इसके पूर्वी भागों में खनिज पदार्थों के विशाल भंडार विद्यमान हैं।

प्रश्न 12.
भारत के पश्चिमी तथा पूर्वी तटीय मैदानों की तुलना करो।
उत्तर-

पश्चिमी तटीय मैदान पूर्वी तटीय मैदान
1. ये मैदान पश्चिमी घाट तथा अरब सागर के बीच स्थित हैं। 1. ये मैदान पूर्वी घाट तथा खाड़ी बंगाल के बीच स्थित हैं।
2. ये मैदान बहुत ही असमतल एवं संकुचित हैं। 2. ये मैदान अपेक्षाकृत समतल एवं चौड़े हैं
3. इस मैदान में कई ज्वारनदमुख और लैगून हैं। 3. इस मैदान में कई नदी डेल्टा हैं।

प्रश्न 13.
किन्हीं चार बातों के आधार पर प्रायद्वीपीय पठार तथा उत्तर के विशाल मैदानों की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर-

  1. उत्तर के विशाल मैदानों का निर्माण जलोढ़ मिट्टी से हुआ है जबकि प्रायद्वीपीय पठार का निर्माण प्राचीन ठोस चट्टानों से हुआ है।
  2. उत्तर के विशाल मैदानों की समुद्र तल से ऊंचाई प्रायद्वीपीय पठार की अपेक्षा बहुत कम है।
  3. विशाल मैदानों की नदियां हिमालय पर्वत से निकलने के कारण सारा वर्ष बहती हैं। इसके विपरीत पठारी भाग की नदियां केवल बरसात के मौसम में ही बहती हैं।
  4. विशाल मैदानों की भूमि उपजाऊ होने के कारण यहां गेहूं, जौ, चना, चावल आदि की कृषि होती है। दूसरी ओर पठारी भाग में कपास, बाजरा तथा मूंगफली की कृषि की जाती है।

प्रश्न 14.
ट्रांस हिमालय से क्या भाव है ?
उत्तर-
हिमालय पर्वत की ये विशाल श्रेणियां भारत के उत्तर-पश्चिम में स्थित पामीर की गांठ (Pamir’s Knot) से उत्तर-पूर्वी दिशा के समानांतर फैली हुई हैं। इसका अधिकतर भाग तिब्बत में है। इसलिए इन्हें ‘तिब्बत हिमालय’ भी कहा जाता है। इनकी कुल लंबाई 1000 किलोमीटर और चौड़ाई (दोनों किनारों पर) 40 किलोमीटर है परंतु इसका केंद्रीय भाग 222 किलोमीटर के लगभग हो जाता है। इनकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। इसकी मुख्य पर्वतीय श्रेणियां जास्कर, कराकोरम, लद्दाख और कैलाश हैं। यह पर्वतीय क्षेत्र बहुत ऊंची एवं मोड़दार चोटियों तथा विशाल हिमानियों (Glaciers) के लिए प्रसिद्ध है। माऊंट K2 इस क्षेत्र की सबसे ऊंची एवम् संसार की दूसरी सबसे ऊंची चोटी है।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2a भारत धरातलभू-आकृतियां (2)

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 15.
बाह्य हिमालय पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
बाह्य हिमालय को शिवालिक श्रेणी, उप-हिमालय और दक्षिणी हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। ये पर्वत श्रेणियां लघु हिमालय के दक्षिण भाग के समानांतर पूर्व से पश्चिम की तरफ फैली हुई हैं। इनकी औसत लंबाई 2400 किलोमीटर मीटर तथा चौड़ाई 50 से 15 किलोमीटर तक है। इस क्षेत्र का निर्माण टरशरी युग में हुआ था। इस क्षेत्र में लंबी व गहरी तलछटी चट्टानें मिलती हैं जिनकी रचना चिकनी मिट्टी, रेत, पत्थर, स्लेट आदि के निक्षेपों द्वारा हुई है जो हिमालय से अपरदन द्वारा इन क्षेत्रों में जमा किया जाता रहा है। इस भाग की प्रसिद्ध घाटियां देहरादून, पतलीदून, कोथरीदून, छोखंभा, ऊधमपुर तथा कोटली हैं।

प्रश्न 16.
हिमालय की पूर्वी तथा पश्चिमी शाखाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
(क) पूर्वी शाखाएं-इन शाखाओं को पूर्वांचल (Purvanchal) भी कहते हैं। अरुणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र नदी की दिहांग गॉर्ज से लेकर ये श्रृंखलाएं भारत और म्यनमार (बर्मा) की सीमा बनाती हुई दो भागों में बँट जाती हैं

  1. गंगा-ब्रह्मपुत्र द्वारा निर्मित शाखाएं बंगलादेश के मैदानों तक पहुंचती हैं जिसमें दफा बम्म, पटकोई बम्म, गारो, खासी, जयंतिया व त्रिपुरा की पहाड़ियाँ आती हैं।
  2. ये शाखाएं पटकोई बम्म से शुरू होकर नागा पर्वत, बरेल, लुशाई से होती हुई इरावदी के डेल्टे तक पहुंचती हैं। . हिमालय की इन पूर्वी शाखाओं में दफा बम्म और सारामती प्रमुख ऊंची चोटियां हैं।

(ख) पश्चिमी शाखाएं-उत्तर-पश्चिम में पामीर की गांठ से हिमालय श्रेणियों की आगे दो उप-शाखाएं बन जाती हैं। एक शाखा पाकिस्तान के मध्य में से सॉल्ट रेंज, सुलेमान व किरथर होती हुई दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में अरब सागर तक पहुंचती है। दूसरी शाखा अफ़गानिस्तान से होकर हिंदुकुश तथा कॉकेशस पर्वत की श्रृंखला से जा मिलती है।
भारत-प्रमुख पर्वत चोटियां
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प्रश्न 17.
विशाल उत्तरी मैदानों की चार धरातलीय विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
विशाल उत्तरी मैदानों की चार प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. समतल मैदान-संपूर्ण उत्तरी भारतीय मैदान समतल और सपाट है।
  2. नदियों का जाल-इस संपूर्ण मैदानी क्षेत्र में दरियाओं व नदनालों (Choes) का जाल सा बिछा हुआ है। इनके कारण यहां दोआब क्षेत्रों का निर्माण हुआ है। पंजाब राज्य का नाम भी पांच नदियों के बहने के कारण तथा एकसार मिट्टी जमा होने के कारण पंज-आब पड़ा है।
  3. भू-आकार-इन मैदानों में जलोढ़ पंखे, जलोढ़ीय शंकु, विसर्पाकार नदियां, प्राकृतिक सीढ़ी बंध, बाढ़ के मैदान जैसे भू-आकार देखने को मिलते हैं।
  4. मैदानी तलछट-इन मैदानों के तलछट में चिकनी मिट्टी (clay), बालू, दोमट और सिल्ट ज्यादा मोटाई में मिलती है। चिकनी मिट्टी अर्थात् पांडु मिट्टी नदियों के मुहानों के समीप अधिक मिलती है और ऊपरी भागों में बालू की मात्रा में वृद्धि होती जाती है।

प्रश्न 18.
विशाल उत्तरी मैदानों में पाये जाने वाले चार जलोढ़क मैदानों का वर्णन करो।
उत्तर-
विशाल उत्तरी मैदानों में पाये जाने वाले चार जलोढक मैदानों का वर्णन इस प्रकार है-

  1. खादर के मैदान-उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिमी बंगाल की नदियों में हर साल बाढ़ों के आने के कारण मृदा की नई तहें बिछ जाती हैं। इन नदियों के आस-पास बाढ़ वाले क्षेत्रों को खादर के मैदान कहा जाता है।
  2. बांगर के मैदान-ये वे ऊंचे मैदानी क्षेत्र हैं जहाँ पर बाढ़ का पानी नहीं पहुंच पाता। यहाँ की पुरानी तलछटों में चूने के कंकड़ अधिक मात्रा में मिलते हैं।
  3. भाबर के मैदान-उत्तर भारत में जब दरिया शिवालिक के पहाड़ी प्रदेशों को छोड़कर, समतल प्रदेश में प्रवेश करते हैं तो यह अपने साथ लाई बालू, कंकड़, बजरी, पत्थर आदि के जमाव द्वारा जिन मैदानों का निर्माण करते हैं, उसे भाबर के मैदान कहा जाता है। ऐसे मैदानी क्षेत्रों में छोटी-छोटी नदियों का पानी अक्सर धरती के नीचे बहता है।
  4. तराई के मैदान-जब भाबर क्षेत्रों में अलोप हुई नदियों का पानी पुनः धरातल से निकल आता है तब पानी के इकट्ठे हो जाने के कारण दलदली क्षेत्र (Marshy Lands) बन जाते हैं। इसमें गर्मी व नमी के कारण सघन वन हो जाते हैं और जंगली जीव-जंतुओं की भरमार हो जाती है।

प्रश्न 19.
पंजाब-हरियाणा मैदान की चार विशेषताएं लिखो। .
उत्तर-

  1. यह मैदान सतलुज, रावी, ब्यास व घग्घर नदियों द्वारा लाई गई मिट्टियों के जमाव से बना है। 1947 में भारत व पाकिस्तान के बीच अंतर्राष्ट्रीय सीमा के बन जाने के कारण इसका अधिकतर भाग पाकिस्तान में चला गया है।
  2. उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व तक इनकी लंबाई 640 किलोमीटर तथा औसत चौड़ाई 300 किलोमीटर है।
  3. इस मैदान की औसत ऊंचाई 300 मीटर तक है।
  4. इस उपजाऊ मैदान का क्षेत्रफल 1.75 लाख वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 20.
ब्रह्मपुत्र के मैदान पर एक भौगोलिक टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
ब्रह्मपुत्र के मैदान को असम का मैदान भी कहा जाता है। यह असम की पश्चिमी सीमा से लेकर असम के सुदूर उत्तर-पूर्व में सादिआ (Sadiya) तक फैला हुआ है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊँचाई 250-550 मी० है। इसका निर्माण ब्रह्मपुत्र तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा बिछाई गई मिट्टी से हुआ है। इस तंग मैदान में लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़ों के कारण नवीन तलछटों का निक्षेप होता रहता है। इस मैदान का ढलान उत्तर-पूर्वी तथा पश्चिम की ओर है।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न।

प्रश्न 1.
भारत को धरातलीय आधार पर विभिन्न भागों में बांटो तथा किसी एक भाग का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर-
धरातल के आधार पर भारत को हम पांच भौतिक विभागों में बांट सकते हैं-

  1. हिमालय पर्वतीय क्षेत्र
  2. उत्तर के मैदान व मरुस्थल
  3. प्रायद्वीपीय पर्वत
  4. तट के मैदान
  5.  भारतीय द्वीप समूह।

इनमें से हिमालय पर्वतीय क्षेत्र का वर्णन इस प्रकार है
हिमालय पर्वत-हिमालय पर्वत भारत की उत्तरी सीमा पर एक चाप के रूप में फैले हैं। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लंबाई 2400 कि० मी० तथा कश्मीर हिमालय में इसकी चौड़ाई 400 से 500 कि० मी० तक है।
ऊंचाई के आधार पर हिमालय पर्वतों को निम्नलिखित पांच उपभागों में बांटा जा सकता

  1. ट्रांस हिमालय-इस विशाल पर्वत-श्रेणी का अधिकांश भाग तिब्बत में होने के कारण इसे तिब्बती हिमालय भी कहा जाता है। इसकी कुल लंबाई 1000 कि० मी० तथा चौड़ाई (किनारों पर) 40 कि० मी० है। इन पर्वतों की औसत ऊंचाई 6000 मी० है। भारत की सबसे ऊँची चोटी माऊंट K2 गॉडविन ऑस्टिन तथा गशेरबम I तथा II इन पर्वतों की सबसे ऊंची चोटियां हैं।
  2. महान् (उच्चतम) हिमालय- यह भारत की सबसे लंबी तथा ऊंची पर्वत-श्रेणी है। इसकी लंबाई 2400 कि० मी० तथा औसत ऊँचाई 5100 मी० है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। संसार की सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट (8848 मी०) इसी पर्वत श्रेणी में स्थित है।
  3. लघु-हिमालय-इसे मध्य हिमालय भी कहा जाता है। इसकी औसत ऊंचाई 5050 मी० से लेकर 5050 मी० तक है। इस पर्वत श्रेणी की ऊंची चोटियां शीत ऋतु में बर्फ से ढक जाती हैं। यहां शिमला, श्रीनगर, मसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग, चकराता आदि स्वास्थ्यवर्धक स्थान पाये जाते हैं।
  4. बाह्य हिमालय-इस पर्वत श्रेणी को शिवालिक श्रेणी, उप-हिमालय तथा दक्षिणी हिमालय के नाम से भी पुकारा जाता है। इन पर्वतों के दक्षिण में कई झीलें पायी जाती थीं। बाद में इनमें मिट्टी भर गई और इन्हें दून (Doon) (पूर्व में इन्हें द्वार (Duar) कहा जाता है) कहा जाने लगा। इनमें देहरादून, पतलीदून, कोथरीदून, ऊधमपुर, कोटली आदि शामिल हैं।
  5. पहाड़ी शाखाएं-हिमालय पर्वतों की दो शाखाएं हैं–पूर्वी शाखाएं तथा पश्चिमी शाखाएं। पूर्वी शाखाएं-इन शाखाओं को पूर्वांचल भी कहा जाता है। इन शाखाओं में ढफा बुम, पटकाई बुम, गारो, खासी, जैंतिया तथा त्रिपुरा की पहाड़ियां सम्मिलित हैं।
    पश्चिमी शाखाएं-उत्तर-पश्चिम में पामीर की गांठ से हिमालय की दो उपशाखाएं बन जाती हैं। एक शाखा पाकिस्तान की साल्ट रेंज, सुलेमान तथा किरथर होते हुए दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर तक पहुंचती है। दूसरी शाखा अफ़गानिस्तान में स्थित हिंदुकुश तथा कॉकेशस पर्वत श्रेणी से जा मिलती है।

प्रश्न 2.
हिमालय की उत्पत्ति एवं बनावट पर लेख लिखो और बताइए कि क्या हिमालय अभी भी बढ़ रहे हैं ?
उत्तर-
हिमालय की उत्पत्ति तथा बनावट का वर्णन इस प्रकार है-
उत्पत्ति-जहां आज हिमालय है, वहां कभी टैथीज (Tythes) नाम का सागर लहराता था। यह दो विशाल भू-खंडों से घिरा एक लंबा और उथला सागर था। इसके उत्तर में अंगारा लैंड और दक्षिण में गोंडवानालैंड नाम के दो भू-खंड थे। लाखों वर्षों तक इन दो भू-खंडों का अपरदन होता रहा। अपरदित पदार्थ अर्थात् कंकड़, पत्थर, मिट्टी, गाद आदि टैथीज सागर में जमा होते रहे। ये दो विशाल भू-खंड धीरे-धीरे एक-दूसरे की ओर खिसकते रहे। सागर में जमी मिट्टी आदि की परतों में मोड़ (वलय) पड़ने लगे। ये वलय द्वीपों की एक श्रृंखला के रूप में उभर कर पानी की सतह से ऊपर आ गये। कालान्तर में विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम आज हिमालय के नाम से पुकारते हैं।

बनावट-हिमालय पर्वतीय क्षेत्र एक उत्तल चाप (Convex Curve) जैसा दिखाई देता है जिसका मध्यवर्ती भाग नेपाल की सीमा तक झुका हुआ है। इसके उत्तर-पश्चिमी किनारे सफ़ेद कोह, सुलेमान तथा किरथर की पहाड़ियों द्वारा अरब सागर में पहुंच जाते हैं। इसी प्रकार के उत्तर-पूर्वी किनारे टैनेसरीम पर्वत श्रेणियों के माध्यम से बंगाल की खाड़ी तक पहुंच जाते हैं।

हिमालय पर्वतों की दक्षिणी ढाल भारत की ओर है। यह ढाल बहुत ही तीखी है। परंतु इसकी उत्तरी ढाल साधारण है। यह चीन की ओर है। दक्षिणी ढाल के अधिक तीखा होने के कारण इस पर जल-प्रपात तथा तंग नदी-घाटियां पाई जाती हैं।

ऊंचाई की दृष्टि से हिमालय की पर्वत श्रेणियों को पांच उपभागों में बांटा जा सकता है-

  1. ट्रांस हिमालय,
  2. महान् हिमालय,
  3. लघु हिमालय,
  4. बाह्य हिमालय तथा
  5. पहाड़ी शाखाएं।

हिमालय पर्वत की मुख्य विशेषता यह है कि ये आज भी ऊंचे उठ रहे हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 3.
देश के विशाल उत्तरी मैदानों के आकार, जन्म एवं क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत के विशाल उत्तरी मैदानों के आकार, जन्म तथा क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन इस प्रकार है
आकार-रावी नदी से लेकर गंगा नदी के डैल्टे तक इस मैदान की कुल लंबाई लगभग 2400 कि० मी० तथा चौड़ाई 150 से 200 कि० मी० तक है। समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 180 मी० के लगभग है। अनुमान है कि इसकी गहराई 5 कि० मी० से लेकर 32 कि० मी० तक है। इसका कुल क्षेत्रफल 7.5 लाख वर्ग कि० मी० है।
जन्म-भारत का उत्तरी मैदान उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में विशाल प्रायद्वीपीय पठार से निकलने वाली नदियों द्वारा बहाकर लाई हुई मिट्टी से बना है। लाखों, करोड़ों वर्ष पहले भू-वैज्ञानिक काल में उत्तरी मैदान के स्थान पर टैथीज नामक एक सागर लहराता था। इस सागर से विशाल वलित पर्वत श्रेणियों का निर्माण हुआ, जिन्हें हम हिमालय के नाम से पुकारते हैं। हिमालय की ऊंचाई बढ़ने के साथ-साथ उस पर नदियां तथा अनाच्छादन के दूसरे कारक सक्रिय हो गए। इन कारकों ने पर्वत प्रदेश का अपरदन किया और यह भारी मात्रा में गाद ला-ला कर टैथीज सागर में जमा करने लगे। सागर सिकुड़ने लगा। नदियां जो मिट्टी इसमें जमा करती रहीं, वह बारीक पंक जैसी थी। इस मिट्टी को जलोढ़क कहते हैं। अत: टैथीज सागर के स्थान पर जलोढ़ मैदान अर्थात् उत्तरी मैदान का निर्माण हुआ।
क्षेत्रीय विभाजन-विशाल उत्तरी मैदान को निम्नलिखित चार क्षेत्रों में बांटा जा सकता है-

  1. पंजाब हरियाणा का मैदान-इस मैदान का निर्माण सतलुज, रावी, ब्यास तथा घग्घर नदियों द्वारा लाई गई मिट्टियों से हुआ है। इसमें बारी दोआब, बिस्त दोआब, मालवा का मैदान तथा हरियाणा का मैदान शामिल है।
  2. थार मरुस्थल का मैदान-पंजाब तथा हरियाणा के दक्षिणी भागों से लेकर गुजरात में स्थित कच्छ की रण तक के इस मैदान को थार मरुस्थल का मैदान कहते हैं।
  3. गंगा का मैदान-गंगा का मैदान उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में स्थित है।
  4. ब्रह्मपुत्र का मैदान-इसे असम का मैदान भी कहा जाता है। यह असम की पश्चिमी सीमा से लेकर असम के अति उत्तरी भाग सादिया (Sadiya) तक लगभग 720 किलोमीटर की लंबाई में फैला हुआ है। समुद्र तल से इतनी औसत ऊंचाई 250-550 मी० है।

प्रश्न 4.
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार के भौतिक लक्षणों की तुलना कीजिए तथा अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार की तुलना भूगोल की दृष्टि से बड़ी रोचक है।

  1. बनावट-हिमालय तलछटी शैलों से बना है और यह संसार का सबसे युवा पर्वत है। इसकी ऊंचाई भी सबसे अधिक है। इसकी औसत ऊंचाई 5000 मीटर है।
    इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार का जन्म आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व प्रिकैम्बरीअन महाकाल में हुआ था। ये आग्नेय शैलों से निर्मित हुआ है।
  2. विस्तार-हिमालय जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ है। इसके पूर्व में पूर्वी श्रेणियां और पश्चिम में पश्चिमी श्रेणियां हैं। पूर्वी श्रेणियों में खासी, गारो, जयंतिया तथा पश्चिमी श्रेणियों में हिंदुकुश तथा किरथर श्रेणियां पाई जाती हैं। हिमालय के पांच भाग हैं-ट्रांस हिमालय, महान् हिमालय, लघु हिमालय, बाह्य हिमालय तथा पहाड़ी शाखाएं।
  3. इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार के दो भाग हैं-मालवा का पठार तथा दक्कन का पठार । ये अरावली पर्वत से लेकर शिलांग के पठार तक तथा दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। इसमें पाई जाने वाली प्रमुख पर्वत श्रेणियां हैंअरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।
    इसके अतिरिक्त यहां पूर्वी घाट की पहाड़ियां, पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा नीलगिरि पर्वत आदि पाये जाते हैं।
  4. नदियां-हिमालय से निकलने वाली नदियां बर्फीले पर्वतों से निकलने के कारण सारा साल बहती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की नदियां बरसाती नदियां हैं। शुष्क ऋतु में इनमें पानी का अभाव हो जाता है।
  5. आर्थिक महत्त्व-प्रायद्वीपीय पठार में अनेक प्रकार के खनिज पाये जाते हैं।

प्रश्न 5.
पश्चिमी तथा पूर्वी हिमालय की उप-शाखाओं की चित्र सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हिमालय तथा प्रायद्वीपीय पठार की तुलना भूगोल की दृष्टि से बड़ी रोचक है।

  1. बनावट-हिमालय तलछटी शैलों से बना है और यह संसार का सबसे युवा पर्वत है। इसकी ऊंचाई भी सबसे अधिक है। इसकी औसत ऊंचाई 5000 मीटर है।
    इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार का जन्म आज से 50 करोड़ वर्ष पूर्व प्रिकैम्बरीअन महाकाल में हुआ था। ये आग्नेय शैलों से निर्मित हुआ है।
  2. विस्तार-हिमालय जम्मू-कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक फैला हुआ है। इसके पूर्व में पूर्वी श्रेणियां और पश्चिम में पश्चिमी श्रेणियां हैं। पूर्वी श्रेणियों में खासी, गारो, जयंतिया तथा पश्चिमी श्रेणियों में हिंदुकुश तथा किरथर श्रेणियां पाई जाती हैं। हिमालय के पांच भाग हैं-ट्रांस हिमालय, महान् हिमालय, लघु हिमालय, बाह्य हिमालय तथा पहाड़ी शाखाएं।
  3. इसके विपरीत प्रायद्वीपीय पठार के दो भाग हैं-मालवा का पठार तथा दक्कन का पठार । ये अरावली पर्वत से लेकर शिलांग के पठार तक तथा दक्षिण में कन्याकुमारी तक फैला हुआ है। इसमें पाई जाने वाली प्रमुख पर्वत श्रेणियां हैंअरावली पर्वत श्रेणी, विंध्याचल पर्वत श्रेणी तथा सतपुड़ा पर्वत श्रेणी।
    इसके अतिरिक्त यहां पूर्वी घाट की पहाड़ियां, पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा नीलगिरि पर्वत आदि पाये जाते हैं।
  4. नदियां-हिमालय से निकलने वाली नदियां बर्फीले पर्वतों से निकलने के कारण सारा साल बहती हैं। प्रायद्वीपीय पठार की नदियां बरसाती नदियां हैं। शुष्क ऋतु में इनमें पानी का अभाव हो जाता है।
  5. आर्थिक महत्त्व-प्रायद्वीपीय पठार में अनेक प्रकार के खनिज पाये जाते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर नोट लिखो-
1. विन्ध्याचल,
2. सतपुड़ा,
3. अरावली पर्वत,
4. नीलगिरि की पहाडियां।
उत्तर-

  1. विंध्याचल-विंध्याचल पर्वत श्रेणियों का पश्चिमी भाग लावे से बना है। इसका पूर्वी भाग कैमूर तथा भानरेर की श्रेणियां कहलाता है। इसकी दक्षिणी ढलानों के पास नर्मदा नदी बहती है।
  2. सतपुड़ा-सतपुड़ा की पहाड़ियां नर्मदा नदी के दक्षिण किनारे के साथ-साथ पूर्व में महादेव तथा मैकाल की पहाड़ियों के सहारे बिहार में स्थित छोटा नागपुर की पहाड़ियों तक जा पहुंचती हैं। इसकी मुख्य चोटियां हैं-धूपगढ़ तथा अमरकंटक। इस पर्वत श्रेणी की औसत ऊंचाई 1120 मी० है।
  3. अरावली पर्वत-अरावली पर्वत श्रेणी दिल्ली से गुजरात तक 800 कि० मी० की लंबाई में फैला हुआ है। इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम है और यहां अब पहाड़ियों के बचे-खुचे टुकड़े ही रह गये हैं। इसकी सबसे ऊंची चोटी माऊंट आबू (1722 मी०) है।
  4. नीलगिरि की पहाड़ियां-पश्चिमी घाट की पहाड़ियां तथा पूर्वी घाट की पहाड़ियां दक्षिण में जहां जाकर आपस में मिलती हैं, उन्हें दक्षिणी पहाड़ियां या नीलगिरि की पहाड़ियां कहते हैं। इन्हें नीले पर्वत भी कहते हैं।

प्रश्न 7.
“क्या भारत के भिन्न-भिन्न भौतिक भाग एक-दूसरे से अलग स्वतंत्र इकाइयां हैं या ये एक-दूसरे के पूरक हैं ?” इस कथन की उदाहरणों सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं कि भारत की भिन्न-भिन्न भौतिक इकाइयां एक-दूसरे की पूरक हैं। वे देखने में अलग अवश्य लगते हैं, परंतु उनका अस्तित्व अलग नहीं है। यदि हम उनके जन्म और उनके मिलने वाले प्राकृतिक भंडारों का अध्ययन करें तो स्पष्ट हो जायेगा कि वे पूरी तरह एक-दूसरे पर निर्भर हैं।
(क) जन्म-

  1. हिमालय पर्वत का जन्म ही प्रायद्वीपीय पठार के अस्तित्व में आने के पश्चात् हुआ है।
  2. उत्तरी मैदानों का जन्म उन निक्षेपों से हुआ है, जिनके लिए प्रायद्वीपीय पठार तथा हिमालय पर्वत की नदियां उत्तरदायी हैं।
  3. प्रायद्वीपीय पठार की पहाड़ियां, दरार घाटियां तथा अपभ्रंश हिमालय के दबाव के कारण ही अस्तित्व में आए हैं।
  4. तटीय मैदानों का जन्म प्रायद्वीपीय घाटों की मिट्टी से हुआ है।

(ख) प्राकृतिक भंडार-

  1. हिमालय पर्वत बर्फ का घर है। इसकी नदियां जल प्रपात बनाती हैं और इनसे जो बिजली बनाई जाती है, उसका उपयोग पूरा देश करता है।
  2. भारत के विशाल मैदान उपजाऊ मिट्टी के कारण पूरे देश के लिए अन्न का भंडार है। इसमें बहने वाली गंगा नदी सारे भारत को प्रिय है।
  3. प्रायद्वीपीय पठार में खनिजों का खज़ाना दबा पड़ा है। इसमें लोहा, कोयला, तांबा, अभ्रक, मैंगनीज़ आदि कई प्रकार के खनिज दबे पड़े हैं, जो देश के विकास के लिए अनिवार्य हैं।
  4. तटीय मैदान देश को चावल, मसाले, अदरक, लौंग, इलायची जैसे व्यापारिक पदार्थ प्रदान करते हैं।
    सच तो यह है कि देश की भिन्न-भिन्न इकाइयां एक दूसरे की पूरक हैं और ये देश के आर्थिक विकास में अपना विशेष योगदान देती हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions Geography Chapter 2a भारत : धरातल/भू-आकृतियां

प्रश्न 8.
पश्चिमी तटीय मैदानों का उसके उपभागों सहित विस्तृत विवरण दीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी तटीय मैदान कच्छ के रण से लेकर कन्याकुमारी तक फैले हुए हैं। ये विस्तृत संकरे मैदान हैं। इनकी चौड़ाई 65 कि.मी. के लगभग है। इनका ढलान दक्षिण तथा दक्षिण-पश्चिम की ओर है। इन मैदानों को धरातलीय विशेषताओं के आधार पर चार प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है-

  1. गुजरात का तटवर्ती मैदान,
  2. कोंकण का तटवर्ती मैदान,
  3. मालाबार का तटवर्ती मैदान,
  4. केरल का मैदान।

1. गुजरात का तटवर्ती मैदान-इस तटवर्ती मैदानी भाग में साबरमती, माही, लुनी, बनास, नर्मदा, ताप्ती आदि नदियों के तलछट के जमाव से कच्छ तथा काठियावाड़ के प्रायद्वीपीय मैदान और सौराष्ट्र के लंबवत् मैदानों का निर्माण हुआ है। कच्छ का क्षेत्र अभी भी दलदली तथा समुद्र तल से नीचा है। काठियावाड़ के प्रायद्वीपीय भाग में लावा युक्त गिर पर्वतीय श्रेणियां भी मिलती हैं। यहाँ की गिरनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ चोटी की ऊंचाई सबसे अधिक है। गुजरात का यह तटवर्ती मैदान 400 किलोमीटर लंबा तथा 200 किलोमीटर चौड़ा है। इसकी औसत ऊंचाई 300 मीटर है।

2. कोंकण का तटवर्ती मैदान-दमन से लेकर गोआ तक का मैदान कोंकण तट कहलाता है। इसके अधिकतर तटवर्ती भागों में धंसने की क्रिया होती रहती है। इसीलिए इस 500 किलोमीटर लंबे मैदान की पट्टी की चौड़ाई 50 से 80 किलोमीटर तक रह जाती है। इस मैदानी भाग में तीव्र समुद्री लहरों द्वारा बनी संकरी खाड़ियां, आंतरिक कटाव (Coves) और समुद्री बालू में बीच (Beach) आदि भू-आकृतियां मिलती हैं। थाना की संकरी खाड़ी में प्रसिद्ध मुंबई द्वीप स्थित है।

3. मालाबार का तटवर्ती मैदान-यह गोआ से लेकर मंगलौर तक लगभग 225 किलोमीटर लंबा तथा 24 किलोमीटर चौड़ा मैदान है। इसे कर्नाटक का तटवर्ती मैदान भी कहते हैं। यह उत्तर की ओर संकरा परंतु दक्षिण की ओर चौड़ा है। कई स्थानों पर इसका विस्तार कन्याकुमारी तक भी माना जाता है। इस मैदान में मार्मागोआ, मान्ढवी तथा शेरावती नदियों के समुद्री जल में डूबे हुए मुहाने (Estuaries) मिलते हैं।

4. केरल के मैदान-मंगलौर से लेकर कन्याकुमारी तक 500 किलोमीटर लंबे, 10 किलोमीटर चौड़े तथा 300 मीटर ऊंचे भू-भाग केरल के मैदान कहलाते हैं। इनमें बहुत-सी झीलें (Lagoons) तथा काईल अथवा क्याल (Kayals) पाये जाते हैं। क्याल झीलों का स्थानीय नाम है। यहाँ पर बैंबानद (Vembanad) और अष्टमुदई (Astamudi) की झीलों वाले क्षेत्रों में नौकाओं का व्यापारिक स्तर पर प्रयोग होता है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Geography Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

SST Guide for Class 8 PSEB प्राकृतिक संसाधन Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 20-25 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
भूमि को मुख्यतः किस-किस धरातली वर्गों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
भूमि को मुख्यत: तीन धरातली वर्गों में बांटा जा सकता है-पर्वत, पठार तथा मैदान।

प्रश्न 2.
मैदानों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
मैदान कृषि योग्य तथा घनी आबादी वाले क्षेत्र होते हैं। ये मनुष्य की अनेक ज़रूरतों को पूरा करते हैं। कृषि तथा वनस्पति के अनुरूप मैदानी भूमि को बहुत ही बहुमूल्य माना जाता है।

प्रश्न 3.
वे कौन-से तत्त्व हैं जो मिट्टी की रचना में अपनी भूमिका अदा करते हैं ?
उत्तर-
प्रमुख चट्टानें, जलवायु, पौधे तथा जीव-जन्तु।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 4.
भारत में कितने प्रकार की मिट्टी (मृदा) पाई जाती है ? किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
भारत में निम्नलिखित 6 प्रकार की मिट्टी पाई जाती है-

  1. जलौढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. लाल मृदा
  4. लेटराइट मृदा
  5. वनीय तथा पर्वतीय मृदा
  6. मरुस्थलीय मृदा।

प्रश्न 5.
काली मिट्टी में कौन-कौन सी उपजें उगाई जा सकती हैं ?
उत्तर-
काली मिट्टी कपास, गेहूँ, ज्वार, अलसी, तम्बाकू, सूरजमुखी आदि फ़सलें उगायी जा सकती हैं। यदि सिंचाई का प्रबन्ध हो तो इसमें चावल तथा गन्ने की खेती भी की जा सकती है।

प्रश्न 6. जल के मुख्य स्रोतों के नाम लिखो।
उत्तर-जल के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं-

  1. वर्षा
  2. नदियां और नाले
  3. नहरें
  4. तालाब
  5. भूमिगत जल।

प्रश्न 7. प्राकृतिक वनस्पति से मानव को क्या-क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर-

  1. प्राकृतिक वनस्पति से मानव को लकड़ी मिलती है जिसका प्रयोग ईंधन के रूप में तथा बड़े-बड़े उद्योगों में होता है।
  2. इससे हमें फल, दवाइयां तथा अन्य कई प्रकार के उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8. भारत में वनों की कौन-सी किस्में पाई जाती हैं ?
उत्तर-भारत में वनों की निम्नलिखित किस्में पाई जाती हैं-

  1. सदाबहार वन
  2. पतझड़ी वन
  3. मरुस्थलीय वन
  4. पर्वतीय वन
  5. डैल्टाई वन।

प्रश्न 9.
पक्षी क्या हैं और ये कहाँ से आते हैं ?
उत्तर-
जो पक्षी सर्दी के मौसम में अत्यधिक ठण्डे प्रदेशों से भारत आते हैं उन्हें प्रवासी पक्षी कहते हैं। ये मुख्यत: साइबेरिया तथा चीन से आते हैं।

II. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 70-75 शब्दों में लिखो :

प्रश्न 1.
भारत में भूमि का प्रयोग किस तरह किया जा रहा है ?
उत्तर-
भारत में भूमि का प्रयोग भिन्न-भिन्न कार्यों के लिए होता है-

  1. वन-भारत के क्षेत्रफल का 23% भाग वनों के अन्तर्गत आता है जो वैज्ञानिक दृष्टि से कम है। वैज्ञानिक दृष्टि से देश का 33% क्षेत्र वनों के अधीन होना चाहिए।
  2. कृषि योग्य भूमि-भारत का 46% क्षेत्रफल कृषि योग्य भूमि है। इसमें विभिन्न प्रकार की फ़सलें उगाई जाती है
  3. कृषि अयोग्य भूमि-देश की 14% भूमि गांवों, शहरों, सड़कों, रेलवे लाइनों, नदियों तथा झीलों के अधीन है। इसमें बंजर भूमि भी शामिल है।
  4. कृषि के बिना छोड़ी हुई भूमि-भारत की बहुत-सी भूमि कृषि के बिना छोड़ी हुई है। इस पर कृषि तो की जाती है। परन्तु इसे 1 से 5 वर्ष तक खाली छोड़ दिया जाता है, ताकि यह अपनी उपजाऊ शक्ति फिर से प्राप्त कर ले।
  5. अन्य-
    • भारत की 5% भूमि कृषि योग्य, परन्तु व्यर्थ छोड़ी गई भूमि है। इस पर कृषि तो की जा सकती है, परन्तु कुछ कारणों से इस पर कृषि नहीं की जाती।
    • भारत की 4% भूमि चरागाहें हैं जिस पर पशु चराये जाते हैं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन 1

प्रश्न 2.
मिट्टी के प्रकार बता कर जलोढ़ मिट्टी के महत्त्व के बारे में लिखो।
उत्तर-
मिट्टी के प्रकार-मिट्टी (मृदा) मुख्य रूप से 6 प्रकार की होती है

  1. जलौढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. लाल मृदा
  4. लेटराइट मृदा
  5. वनीय तथा पर्वतीय मृदा
  6. मरुस्थलीय मृदा।

जलौढ़ मिट्टी का महत्त्व-जलौढ़ मिट्टी बारीक कणों से बनी होती है। ये कण मिट्टी को उपजाऊ बना देते हैं। इसलिए जलौढ़ मिट्टी द्वारा बने मैदान कृषि के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। भारत के सिंधु-गंगा-ब्रह्मपुत्र मैदान इसी प्रकार के मैदान हैं।

प्रश्न 3.
मिट्टी संसाधन की सम्भाल किस प्रकार की जा सकती है ?
उत्तर-
मिट्टी की सम्भाल नीचे दिए गए तरीकों से की जा सकती हैमिट्टी के संसाधन के महत्त्व को देखते हुए हमें-

  • मिट्टी के अपरदन को रोकना चाहिए।
  • नदियों पर बांध बनाकर बाढ़ों के पानी को रोकना चाहिए।
  • अधिक पानी का निकास करके सीलन (सेम). की समस्या से छुटकारा पाना चाहिए।
  • बाढ़ों को रोकने से मिट्टी अपरदन भी रोका जा सकता है और नदियों के आस-पास पड़ी अतिरिक्त भूमि को कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
  • कृषि के गलत तरीकों से भी मिट्टी कमजोर होती है। इसलिए आवश्यक है कि कृषि के ढंग अच्छे हों।
    यदि हम मिट्टी का प्रयोग अच्छे ढंग तथा समझदारी से करेंगे तो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति अधिक समय तक बनी रहेगी।

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प्रश्न 4.
जल संसाधन में नदियों और नहरों के महत्त्व के बारे में लिखें।
उत्तर-
मानव सभ्यता के विकास में नदियों तथा नहरों की आरम्भ से ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मनुष्य ने आरम्भ में अपने आवास नदियों के आस-पास ही बनाये थे, ताकि उसे जल प्राप्त होता रहे। कई स्थानों पर मनुष्य ने नदियों पर बांध बना कर अपने लाभ के लिए नहरें निकाली हैं। इन नहरों के जल का प्रयोग सिंचाई तथा मानव के अन्य उपयोगों के लिए किया जाता है। सिंचाई संसाधनों के विस्तार से कृषि में एक नई क्रान्ति आ गई है।

प्रश्न 5.
जल की सम्भाल कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
जल एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। अतः इसकी सम्भाल अति आवश्यक है। इसकी सम्भाल निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है

  • जल का ज़रूरत से अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • सिंचाई की नई विधियों का प्रयोग किया जाए। उदाहरण के लिए फव्वारों द्वारा सिंचाई।
  • वर्षा के जल को भूमिगत कुओं द्वारा भूमि के अन्दर ले जाया जाये ताकि भूमिगत जल का स्तर ऊँचा हो।
  • प्रयोग किये गये जल को पुनः प्रयोग करने योग्य बनाया जाए।
  • सीवरेज के जल को साफ़ करके सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है। वास्तव में जल का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए और इसे व्यर्थ बह जाने से रोकना चाहिए।

प्रश्न 6.
पतझड़ वनों पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
पतझड़ वन वे वन हैं जिन वृक्षों के पत्ते एक विशेष मौसम में झड़ जाते हैं। बसंत के मौसम में इन पर फिर से पत्ते आ जाते हैं। इस प्रकार के वन भारत में अधिक मिलते हैं। लकड़ी प्राप्त करने के लिए ये वन बहुत अधिक महत्त्व रखते हैं। इन वनों में मुख्यतः साल, टीक, बांस, शीशम (टाहली) तथा खैर के वृक्ष पाये जाते हैं।

प्रश्न 7.
जंगली जीवों के बचाव और सम्भाल के लिए भारत सरकार ने कौन-कौन से कदम उठाये हैं ?
उत्तर-
भारत सरकार की ओर से जंगली जीवों के बचाव और सम्भाल के लिए बहुत से कदम उठाये गए हैं-

  • 1952 में “जंगली जीवों के लिए भारतीय बोर्ड” की स्थापना की गई।
  • जंगली जीवों के बचाव के लिए ‘प्रोजेक्ट टाइगर 1973’ तथा ‘प्रोजेक्ट ऐलीफैंट 1992’ आदि प्रोग्राम चलाये जा रहे हैं।
  • इस उद्देश्य से 1972 तथा 2002 में विभिन्न एक्ट पास किए गए।
  • बहुत-से राष्ट्रीय पार्क तथा जंगली जीव सैंक्चुरियां बनाई गई हैं। इनमें जंगली जीव अपनी प्राकृतिक अवस्था में सुरक्षित रह सकते हैं। इस समय भारत में 89 राष्ट्रीय पार्क तथा 490 जंगली जीव सैंक्चुरियां हैं।
  • जंगली जीवों के शिकार पर रोक लगाई गई है।

प्रश्न 8.
मिट्टी से जुड़ी समस्याओं का वर्णन करो।
उत्तर-
मिट्टी मनुष्य के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। मनुष्य की भोजन सम्बन्धी अधिकतर आवश्यकताएं मिट्टी से ही पूरी होती हैं। इसके लिए उपजाऊ मिट्टी की ज़रूरत होती है। परन्तु निम्नलिखित समस्याओं के कारण मिट्टी सदैव उपजाऊ नहीं रह पाती-

  1. मिट्टी का अपरदन
  2. लगातार खेती
  3. मिट्टी में रेत कण
  4. मिट्टी में सेम (अधिक पानी) की समस्या
  5. मिट्टी में तेजाब या लवणता
  6. मिट्टी का समर्थता से अधिक प्रयोग।

III. नीचे लिखे प्रश्नों का उत्तर लगभग 250 शब्दों में दो :

प्रश्न 1.
प्राकृतिक संसाधन कौन-से हैं ? मिट्टी और प्राकृतिक वनस्पति की किस्में और महत्त्व लिखो।
उत्तर-
प्रकृति द्वारा प्रदान किए गये उपहारों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। इन संसाधनों में भूमि,जल, मृदा, प्राकृतिक वनस्पति, जंगली जीव, खनिज पदार्थ आदि शामिल हैं।

1. मिट्टी-मिट्टी की मुख्य किस्में निम्नलिखित हैं-

  • जलौढ़ मिट्टी
  • काली मिट्टी
  • लाल मिट्टी
  • लेटराइट मिट्टी
  • वनीय तथा पर्वतीय मिट्टी
  • मरुस्थलीय मिट्टी।

महत्त्व-मिट्टी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। ये फ़सलें उगाने के लिए अनिवार्य है। उपजाऊ मिट्टी विशेष रूप से उन्नत कृषि का आधार है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए तो मिट्टी का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। यहां भिन्न-भिन्न प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं जिनमें भिन्न-भिन्न प्रकार की फ़सलें उगाई जाती हैं।

2. प्राकृतिक वनस्पति-भारत में मिलने वाली प्राकृतिक वनस्पति की मुख्य किस्में निम्नलिखित हैं(1) सदाबहार वन (2) पतझड़ी वन (3) मरुस्थलीय वन (4) पर्वतीय वन (5) डैल्टाई वन।
महत्त्व-मिट्टी की तरह वनस्पति भी एक महत्त्वपूर्ण संसाधन है। यह मनुष्य की अनेक ज़रूरतों को पूरा करती है-

  • वनस्पति से हमें ईंधन, भवन बनाने तथा फर्नीचर बनाने के लिए लकड़ी मिलती है। वनों की नर्म लकड़ी से कागज़ तथा माचिसें बनाई जाती हैं। वनों पर अन्य भी कई उद्योग निर्भर हैं।
  • वनों से लाख, गोंद, गंदा बिरोज़ा, रबड़ आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  • वनों की घास पर पशु चरते हैं।
  • वन अनेक पशु-पक्षियों को आश्रय देते हैं।
  • वनों से अनेक जड़ी-बूटियां मिलती हैं जिनसे दवाइयां बनाई जाती हैं।
  • वन अनेक प्रकार के फल प्रदान करते हैं।
  • वन मिट्टी के अपरदन को रोकते हैं तथा वनों के विस्तार को नियन्त्रित करते हैं।
  • वन बाढ़ों को नियन्त्रित करते हैं।
  • ये वर्षा लाने तथा प्राकृतिक सन्तुलन बनाये रखने में सहायता करते हैं। . सच तो यह है कि वनों से अनेक लोगों को रोजगार मिलता है।

प्रश्न 2.
जल और जंगली जीवों की सम्भाल कैसे की जा सकती है ‘? अपने विचार प्रकट करो।
उत्तर-
जल की सम्भाल-जल एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संसाधन है। अतः इसकी सम्भाल अति आवश्यक है। इसकी सम्भाल निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है

  • जल का ज़रूरत से अधिक प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • सिंचाई की नई विधियों का प्रयोग किया जाए। उदाहरण के लिए फव्वारों द्वारा सिंचाई।
  • वर्षा के जल को भूमिगत कुओं द्वारा भूमि के अन्दर ले जाया जाये ताकि भूमिगत जल का स्तर ऊँचा हो।
  • प्रयोग किये गये जल को पुनः प्रयोग करने योग्य बनाया जाए।
  • सीवरेज के जल को साफ़ करके सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है। वास्तव में जल का प्रयोग सोच-समझ कर करना चाहिए और इसे व्यर्थ बह जाने से रोकना चाहिए।

जंगली जीवों की सम्भाल-जंगली जीव हमारी धरती की शोभा हैं। परन्तु मानव द्वारा शिकार किये जाने के कारण इनकी कई किस्में समाप्त हो चुकी हैं और कई अन्य समाप्त होने के कगार पर हैं। इसलिए जंगली जीवों की सम्भाल करना अति आवश्यक है। इसके लिए अग्रलिखित पग उठाए जाने चाहिए-

  • हमें सरकार द्वारा जंगली जीवों की रक्षा के लिए बनाए गये कानूनों का पूरी तरह पालन करना चाहिए।
  • हमें राष्ट्रीय पार्कों तथा जंगली-जीव सैंक्चुरियों के रख-रखाव में सरकार को सहयोग देना चाहिए।
  • हमें अपनी ओर से जंगली जीवों तथा पक्षियों का शिकार नहीं करना चाहिए।
  • वन जंगली जीवों तथा पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं। इसलिए हमारा कर्तव्य है कि हम वनों को न काटें, ताकि जीवों के घर नष्ट न हों।

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PSEB 8th Class Social Science Guide प्राकृतिक संसाधन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. भारत का लगभग ………….. प्रतिशत भाग पर्वतीय है।
2. ………… मिट्टी को रेगुर भी कहा जाता है।
3. डैल्टाई वनों में ……………के वृक्ष अधिक संख्या में मिलते हैं।
उत्तर-

  1. 30
  2. काली
  3. सुन्दरी।

(ख) सही कथनों पर (✓) तथा गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं :

1. पतझड़ी वनों को मानसूनी वन भी कहा जाता है।
2. दक्षिण भारत में नहरें लोगों के लिए बहुत बड़ा जल साधन हैं।
3. संसार में जल का सबसे अधिक प्रयोग कृषि के लिए होता है।
उत्तर-

(ग) सही उत्तर चुनिए:

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किस स्रोत के जल का प्रयोग मनुष्य नहीं कर सकता ?
(i) समुद्र
(ii) नहरें
(iii) तालाब
(iv) भूमिगत जल।
उत्तर-
(i) समुद्र

प्रश्न 2.
जल के संरक्षण का कौन-सा उपाय नहीं है ?
(i) भूमिगत कुएं
(ii) बांध बनाना
(iii) पुनः प्रयोग
(iv) नदियों में बहा देना।
उत्तर-
(iv) नदियों में बहा देना,

प्रश्न 3.
किस प्रकार की जलवायु में अधिक घने वन मिलते हैं ?
(i) कम वर्षा तथा कम तापमान
(ii) अधिक वर्षा और उच्च तापमान
(iii) अधिक वर्षा तथा कम तापमान
(iv) कम वर्षा तथा उच्च तापमान।
उत्तर-
(iii) अधिक वर्षा तथा उच्च तापमान।

(घ) सही जोड़े बनाइए :

1. मरुस्थलीय मिट्टी – पूर्वी तथा पश्चिमी घाट
2. काली मिट्टी – राजस्थान
3. जलोढ़ मिट्टी – महाराष्ट्र
4. वनी एवं पर्वतीय मिट्टी – भारत का उत्तरी मैदान।
उत्तर-1. राजस्थान,
2. महाराष्ट्र,
3. भारत का उत्तरी मैदान,
4. पूर्वी तथा पश्चिमी घाट।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
धरती पर भूमि और पानी की बांट लिखें।
उत्तर-
धरती का केवल 29% भाग भूमि है। शेष 71% भाग पानी है।

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प्रश्न 2.
भारत में बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाने की आवश्यकता है। क्यों?
उत्तर-
भारत जैसे घनी जनसंख्या वाले देश का 33% क्षेत्र वनों के अधीन होना चाहिए। परन्तु भारत का केवल 22.2 प्रतिशत क्षेत्र ही वनों के अधीन है। इसलिए भारत में बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाये जाने की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
कृषि योग्य परन्तु व्यर्थ छोड़ी गई भूमि क्या होती है?
उत्तर-
कृषि योग्य परन्तु व्यर्थ छोड़ी गई भूमि ऐसी भूमि होती है जिस पर कृषि तो की जा सकती है, परन्तु कुछ कारणों से इस पर कृषि नहीं की जाती। इन कारणों में जल की कमी, मिट्टी अपरदन, अधिक लवणता, पानी का अधिक समय तक खड़ा रहना आदि बातें शामिल हैं।

प्रश्न 4.
वनीय एवं पर्वतीय मिट्टी कहां मिलती है? इसकी कोई दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
वनीय एवं पर्वतीय मिट्टी वनों तथा पर्वतीय ढलानों पर मिलती है। विशेषताएं-(1) इस मिट्टी में जैविक तत्त्व अधिक होते हैं।
(2) इसमें पोटाश, फ़ास्फोरस तथा चूने की कमी होती है। इसलिए इसमें कृषि करने के लिए उर्वरकों की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 5.
जलोढ़ मिट्टी क्या होती है?
उत्तर-
जलोढ़ मिट्टी वह मिट्टी है जो बारीक गाद के निक्षेपण से बनती है। यह गाद नदियां अपने साथ बहा कर लाती हैं। समुद्र तट के निकट समुद्री लहरें भी इस प्रकार की मिट्टी का जमाव करती हैं। जलोढ़ मिट्टी बहुत ही उपजाऊ होती है।

प्रश्न 6.
काली मिट्टी को कपास की मिट्टी क्यों कहा जाता है ? इसका एक अन्य नाम बताओ।
उत्तर-
काली मिट्टी कपास की फ़सल के लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। इसलिए इसे कपास की मिट्टी कहते हैं। इस मिट्टी का एक अन्य नाम रेगुर मिट्टी है।

प्रश्न 7.
भारत में मरुस्थलीय मिट्टी कहां-कहां पाई जाती है? .
उत्तर-
भारत में मरुस्थलीय मिट्टी राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागों में पाई जाती है। गुजरात के कुछ भागों में भी इस प्रकार की मिट्टी मिलती है।

प्रश्न 8.
पृथ्वी को ‘जल ग्रह’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
पृथ्वी का अधिकतर भाग जल है जो लगभग 71% है। जल की अधिकता के कारण ही पृथ्वी को ‘जल • ग्रह’ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
पृथ्वी पर सबसे अधिक जल किस रूप में मिलता है? यह कुल जल का कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
पृथ्वी पर सबसे अधिक जल समुद्रों, सागरों तथा नमकीन जल की झीलों के रूप में मिलता है। यह कुल जल का 97.20% है।

प्रश्न 10.
संसार में सबसे अधिक जल का प्रयोग किस कार्य के लिए होता है? यह कुल जल का कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
संसार में सबसे अधिक जल का प्रयोग कृषि कार्यों के लिए किया जाता है। यह कुल जल का लगभग 93.37% है।

प्रश्न 11.
तालाब प्रायः किन क्षेत्रों में पाये जाते हैं ?
उत्तर-
तालाब प्रायः उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां सारा साल बहने वाली नदियों तथा नहरों की कमी होती है। इन क्षेत्रों में भूमिगत जल भी बहुत गहरा है। भारत में तालाब मुख्यतः दक्षिणी भारत में पाये जाते हैं।

प्रश्न 12.
मरुस्थलीय वनस्पति की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
मरुस्थलीय वनस्पति कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। यह वनस्पति विरली होती है। इसमें खजूर, कैक्टस तथा कांटेदार झाड़ियां ही मिलती हैं। भारत में इस प्रकार की वनस्पति राजस्थान, गुजरात तथा हरियाणा के कुछ भागों में पाई जाती है।

प्रश्न 13.
पर्वतीय वनस्पति के किन्हीं चार वृक्षों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. फर
  2. देवदार
  3. ओक तथा
  4. अखरोट।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जलौढ़ (जलौद) मिट्टी पर एक नोट लिखो। इसे कौन-कौन से दो भागों में बांटा जाता है?
उत्तर-
जलौढ़ मिट्टी देश के लगभग 45% भाग में पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टी का हमारी कृषि में बहुत अधिक योगदान है। यह मिट्टी नदियों तथा नहरों के पानी द्वारा बिछाई जाती है। समुद्र तट के साथ-साथ समुद्री लहरें भी इस प्रकार की मिट्टी का जमाव करती हैं। बाढ़ आने पर पानी में घुले मिट्टी के बारीक कण धरातल पर आ जाते हैं। ये कण मिट्टी को बहुत अधिक उपजाऊ बना देते हैं। भारत के उपजाऊ उत्तरी मैदानों में प्रमुख रूप से जलौढ़ मिट्टी ही पाई जाती है। __ जलौढ़ मिट्टी के भाग-जलौढ़ मिट्टी को दो भागों में बांटा जाता है-खादर तथा बांगर । खादर मिट्टी के नये जमाव को कहा जाता है, जबकि बांगर मिट्टी का पुराना जमाव होता है।

प्रश्न 2.
काली मिट्टी की मुख्य विशेषताएं बताओ। भारत में यह मिट्टी कहां-कहां पाई जाती है?
उत्तर-
काली मिट्टी कृषि के लिए बहुत ही उपयोगी होती है। इसे रेगुर मिट्टी भी कहा जाता है। क्योंकि यह मिट्टी कपास की उपज के लिए अति उत्तम मानी जाती है, इसलिए इसे कपास की मिट्टी भी कहते हैं।
विशेषताएं-

  • काली मिट्टी आग्नेय चट्टानों से बनी है।
  • यह मिट्टी अपने अन्दर नमी को लम्बे समय तक बनाये रखती है।
  • यह बहुत ही उपजाऊ होती है। इसमें कपास, गेहूं, ज्वार, अलसी, तम्बाकू, सूरजमुखी आदि फ़सलें उगाई जाती हैं। सिंचाई क. सबन्ध होने पर इसमें चावल तथा गन्ने जैसी फसलें भी उगाई जा सकती हैं।

प्रदेश-काली मिट्टी भारत के लगभग 16.6% भाग पर पाई जाती है। यह मुख्य रूप से महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, गुजरात तथा तमिलनाडु राज्यों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 3.
मरुस्थलीय मिट्टी पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
मरुस्थलीय मिट्टी में रेत के कणों की अधिकता होती है। इसलिए यह अधिक उपजाऊ नहीं होती। इस मिट्टी में जल को समा कर रखने की शक्ति भी बहुत कम होती है, क्योंकि जल जल्दी से नीचे चला जाता है। अतः इस प्रकार की मिट्टी में अधिक जल वाली फ़सलें नहीं उगाई जा सकती। इसमें प्राय: जौ, बाजरा, मक्की तथा दालों की खेती की जाती है। जिन प्रदेशों में नहरी सिंचाई की सुविधा प्राप्त है, वहां कृषि उन्नत हो रही है। भारत में कुल भूमि के लगभग 4.3% भाग पर मरुस्थलीय मिट्टी पाई जाती है। यह मुख्यत: राजस्थान, पंजाब तथा हरियाणा के कुछ भागों में मिलती है। गुजरात के कुछ भागों में भी मरुस्थलीय मिट्टी का विस्तार है।

प्रश्न 4.
लाल मिट्टी की विशेषताओं तथा भारत में इसके वितरण के बारे में लिखो।
उत्तर-

  • लाल मिट्टी को इसके लाल रंग के कारण इस नाम से पुकारा जाता है। वैसे इसकी रचना तथा रंग इसकी मूल चट्टान पर निर्भर करता है।
  • इस मिट्टी में चूने, मैग्नीशियम, फास्फेट, नाइट्रोजन तथा जैविक तत्त्वों की कमी होती है।
  • फ़सलें उगाने के लिए यह मिट्टी अधिक उपयोगी नहीं होती। परन्तु अच्छी सिंचाई सुविधाएं मिलने पर इसमें गेहूं, कपास, दालें, आलू, फल आदि फ़सलें उगाई जा सकती हैं।

वितरण-भारत की कुल भूमि के 10.6% भाग पर लाल मिट्टी पाई जाती है। इस प्रकार की मिट्टी मुख्य रूप से तमिलनाडु, दक्षिण-पूर्वी महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिमी बंगाल, राजस्थान आदि राज्यों में मिलती है।

प्रश्न 5.
लेटराइट मिट्टी की विशेषताएं बताओ। यह भारत में कहां पाई जाती है?
उत्तर-
लेटराइट मिट्टी 90-100% तक लौह अंश, एल्यूमीनियम, टाइटेनियम और मैंगनीज़ आक्साइड से बनी होती है। ऐसी मिट्टी प्रायः उच्च तापमान तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में पाई जाती है। अधिक वर्षा के कारण इसके उपजाऊ तत्त्व घुलकर पृथ्वी की भीतरी परतों में चले जाते हैं और ऑक्साइड पृथ्वी के ऊपर रह जाते हैं। उपजाऊ तत्त्वों की कमी हो जाने के कारण यह मिट्टी कृषि योग्य नहीं रहती। परन्तु सिंचाई सुविधाओं तथा रासायनिक खादों के उपयोग से इसमें चाय, रबड़, कॉफी तथा नारियल जैसी फ़सलें पैदा की जा सकती हैं।

भारत में वितरण-लेटराइट मिट्टी देश की कुल मिट्टी क्षेत्रफल के 7.5% भाग में पाई जाती है। यह मुख्यतः पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट, राजमहल की पहाड़ियों, विंध्याचल, सतपुड़ा और मालवा के पठार में मिलती है। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र, उड़ीसा, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, केरल, झारखण्ड तथा असम राज्य के कुछ भागों में भी इस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 2 प्राकृतिक संसाधन

प्रश्न 6.
जंगली जीवों से क्या भाव है? भारत के जंगली जीवों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
जंगलों में रहने वाले जीवों को जंगली जीव कहा जाता है। इनमें बड़े-बड़े जानवरों से लेकर छोटे-छोटे कीड़े-मकोड़े शामिल हैं। जंगलों में भिन्न-भिन्न प्रकार के पक्षी भी पाये जाते हैं। संसार के बड़े-बड़े जंगलों तथा घास के मैदानों में तरह-तरह के जंगली जीव मिलते हैं। भारत में भी 80,000 से अधिक प्रकार के जंगली जीव मिलते हैं। इनमें हाथी, शेर, चीता, बाघ, गैंडा, भालू, यॉक, हिरण, गीदड़, नील गाय, बन्दर, लंगूर आदि शामिल हैं। इनके अतिरिक्त हमारे देश में नेवले, कछुए तथा कई प्रकार के सांप भी पाये जाते हैं। यहां अनेक प्रकार के पक्षी तथा मछलियां भी मिलती हैं। सर्दियों में कई प्रकार के पक्षी संसार के ठण्डे प्रदेशों से हमारे देश में आते हैं।

प्रश्न 7.
प्राकृतिक संसाधनों का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है ? इसके मुख्य क्षेत्र हमारे देश में कहां-कहां
उत्तर-
प्रकृति द्वारा प्रदान किये गए संसाधनों को प्राकृतिक संसाधन कहा जाता है। इन संसाधनों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। ये संसाधन किसी देश की खुशहाली तथा शक्ति का प्रतीक माने जाते हैं। इसलिए इन्हें किसी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी’ कहा जाता है। __भारत में प्राकृतिक संसाधनों के क्षेत्र-

  1. भारत का 30% भाग पर्वतीय है। इन पर्वतों को संसाधनों का भण्डार कहते हैं। ये जल तथा वन संसाधनों में धनी हैं।
  2. देश का 27% भाग पठारी है। इस क्षेत्र से हमें कई प्रकार के खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। इनमें कृषि भी होती है।
  3. देश का शेष 43% भाग मैदानी है। उपजाऊ मिट्टी के कारण यहां की कृषि बहुत ही उन्नत है। इसलिए ये मैदान देश के ‘अन्न-भण्डार’ भी कहलाते हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य के लिए ताजे जल (fresh water) के मुख्य स्रोत कौन-कौन से हैं ? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पृथ्वी पर बहुत अधिक खारा तथा ताजा जल पाया जाता है। मनुष्य इसमें से कुछ सीमित तथा ताज़े जल के स्रोतों का ही प्रयोग करता है। इन स्रोतों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  1. वर्षा-वर्षा पृथ्वी पर जल-पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। परन्तु वर्षा के जल की प्राप्ति में काफ़ी भिन्नताएं पाई जाती हैं। कहीं वर्षा बहुत अधिक होती है तो कहीं बहुत ही कम। भारत में औसत रूप से 118 सें०मी० वार्षिक वर्षा होती है। वर्षा का यह सारा जल मनुष्य के प्रयोग में नहीं आता। इसका बहुत-सा भाग रिस-रिस कर धरातल में चला जाता है जिससे भूमिगत जल में वृद्धि होती है।
  2. नदियां एवं नहरें-मनुष्य के विकास में नदियों तथा नहरों की आरम्भ से ही महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। मनुष्य ने आरम्भ में अपने आवास नदियों के आसपास ही बनाये थे, ताकि उसे जल प्राप्त होता रहे। कई स्थानों पर मनुष्य ने नदियों पर बांध बना कर अपने लाभ के लिए नहरें निकाली हैं। इन नहरों के जल का प्रयोग सिंचाई तथा मानव के अन्य उपयोगों के लिए किया जाता है। सिंचाई संसाधनों के विस्तार से कृषि में एक नई क्रान्ति आ गई है।
  3. तालाब-तालाब अधिकतर उन क्षेत्रों में पाये जाते हैं जहां सारा साल बहने वाली नदियों या नहरों की कमी होती है। इन भागों में भूमिगत जल भी बहुत गहरा होता है जिसका प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसलिए लोग वर्षा के जल को तालाबों में इकट्ठा कर लेते हैं और आवश्यकता के समय इसका प्रयोग करते हैं। दक्षिण भारत में तालाब लोगों के लिए बहुत बड़ा जल संसाधन हैं।
  4. भूमिगत जल-भूमिगत जल मानव के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इसे कुओं और ट्यूबवेलों द्वारा धरती से बाहर निकाला जाता है। यह जल मुख्य रूप से पीने या सिंचाई के काम आता है। भूमिगत जल की मात्रा चट्टानों की बनावट तथा उस प्रदेश में होने वाली वर्षा की मात्रा पर निर्भर करती है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति से क्या अभिप्राय है? यह किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ? भारत की किन्हीं चार किस्मों की प्राकृतिक वनस्पति का वर्णन करो।
उत्तर-
प्राकृतिक रूप से उगने वाले पेड़-पौधों को प्राकृतिक वनस्पति कहते हैं। प्राकृतिक वनस्पति जलवायु, मिट्टी तथा जैविक तत्त्वों पर निर्भर करती है। इनमें से जलवायु सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। संसार के भिन्न-भिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार की वनस्पति मिलती है। वनस्पति की किस्मों को जलवायु, मिट्टी के प्रकार, समुद्र तल से ऊंचाई आदि तत्त्व प्रभावित करते हैं।
भारत की वनस्पति की किस्में- भारत की वनस्पति की चार मुख्य किस्मों का वर्णन इस प्रकार है

1. सदाबहार वन-सदाबहार वन सारा साल हरे-भरे रहते हैं। इनके पत्ते किसी भी मौसम में पूरी तरह से नहीं झड़ते। सदाबहार वनस्पति अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। यह अधिकतर दक्षिण भारत के पश्चिमी तट, बंगाल, असम के उत्तर-पूर्व में और हिमालय की निचली ढलानों पर पायी जाती है। कर्नाटक के कुछ भागों में भी इस प्रकार के वन पाये जाते हैं, जहां लौटती हुई मानसून पवनें वर्षा करती हैं। हिमालय की ढलानों पर टीक तथा रोज़वुड और कर्नाटक में अलबनी, नीम तथा इमली आदि के वृक्ष मिलते हैं।

2. मरुस्थलीय वन-मरुस्थलीय वनस्पति कम वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलती है। वर्षा कम होने के कारण यह वनस्पति बहुत ही विरली होती है। इस प्रकार की वनस्पति राजस्थान, गुजरात और हरियाणा के कुछ भागों में पाई जाती है। इन वनों में खजूर, कैक्टस और कांटेदार झाड़ियां ही मिलती हैं। बढ़िया लकड़ी प्राप्त करने की दृष्टि से इस प्रकार की वनस्पति अधिक महत्त्व नहीं रखती।

3. पर्वतीय वनस्पति-पर्वतीय वनस्पति पर्वतों की ढलानों पर मिलती है। असम से लेकर कश्मीर तक हिमालय पर्वत की ढलानों में अनेक प्रकार के वृक्ष पाये जाते हैं। इन वनों की लकड़ी बहुत ही उपयोगी होती है। यहां मिलने वाले मुख्य वृक्ष फर, चील, देवदार, ओक, अखरोट, मैपल तथा पापूलर आदि हैं। इन वृक्षों की लकड़ी महंगी और बढ़िया प्रकार की होती है। इसका प्रयोग भवन बनाने, रेल के डिब्बे, माचिस तथा बढ़िया प्रकार का फर्नीचर बनाने में होता है। पर्वतीय वनस्पति की पेटी में कई प्रकार के फल जैसे सेब, बादाम, अखरोट और आलूबुखारा आदि भी मिलते हैं।

4. डैल्टाई वन-डैल्टाई वन समुद्री तटों के समीप मिलते हैं। नदियां समुद्रों में प्रवेश करने से पहले डैल्टा बनाती हैं। इन डैल्टों में उगने वाली वनस्पति को ही डैल्टाई वनों का नाम दिया जाता है। गंगा-ब्रह्मपुत्र या दक्षिण भारत की कुछ नदियों के डैल्टाई भागों में इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। यहां सुन्दरी, नीमा और पाम आदि के वृक्ष मिलते हैं। सुन्दरी वृक्ष की लकड़ी, मनुष्य के प्रयोग के लिए बहुत अधिक महत्त्व रखती है। इस प्रकार की वनस्पति में ‘सुन्दरी’ के वृक्षों की अधिकता के कारण ही गंगा-ब्रह्मपुत्र डैल्टा को ‘सुन्दर वन डैल्टा’ कहा जाता है।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

Punjab State Board PSEB 12th Class Religion Book Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Religion Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
हड़प्पा काल के लोगों के धार्मिक जीवन के बारे में संक्षिप्त परंतु भावपूर्ण चर्चा कीजिए।
(Discuss in brief but meaningful the religious life of the people of Harappa Age.)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन के बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the religious life of Indus Valley People ? Explain.)
अथवा
हड़प्पा काल में धार्मिक विश्वासों और रीति-रिवाजों का संक्षेप में वर्णन करो।
(Explain in brief the religious faiths and customs of Harappa Age ?)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन और विश्वासों के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the life and religious faiths of the people of Indus Valley Civilization ?)
अथवा
सिंधु घाटी की सभ्यता के समय लोगों के धार्मिक विश्वास क्या थे ? चर्चा करो। देवी माता और स्वास्तिक पर संक्षेप में नोट लिखो ।
(What were the religious beliefs of the people in Indus Valley Civilization ? Discuss. Write brief notes on Mother Goddess and Swastik.)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में जानकारी दें। सप्तऋषि’ तथा ‘पीपल’ पर संक्षेप नोट लिखो।
(Write about the religious beliefs of the people of Indus Valley Civilization. Write brief notes on ‘Saptrishi’ and ‘Peeple’.)
अथवा
सिंध घाटी के लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में संक्षेप में जानकारी दीजिए।
(Give brief information about religious beliefs of the Indus Valley Civilization.)
सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में संक्षेप में जानकारी दीजिए।
(Give brief information about religious beliefs of the Indus Valley Civilization.)
अथवा
सिंधु घाटी की सभ्यता के समय लोगों के धार्मिक विश्वास क्या थे ? चर्चा करो। .
(What were the religious beliefs of the people of Indus Valley Civilization ? Discuss.)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के समय लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में विस्तार सहित लिखें।
(Describe the religious beliefs of the people of Indus Valley Civilization.)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का धार्मिक जीवन कैसा था ? (What was the religious life of the people of Indus Valley Civilization ?)
उत्तर-
सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों, चित्रों और मूर्तियों आदि से सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। इस जानकारी के आधार पर निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाही के लोगों का धार्मिक जीवन काफी उन्नत था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बहुत से धार्मिक विश्वास आज के हिंदू धर्म में प्रचलित हैं।—

1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. शिव की पूजा (Worship of Lord Shiva )-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गये हैं और सिर पर एक मन को मोह लेने वाला पोश पहना हुआ है। इस योगी के इर्द-गिर्द शेर, हाथी, गैंडे, साँड और हिरण आदि के चित्र अंकित हैं। क्योंकि शिव को त्रिमुखी, पशुपति और योगेश्वर आदि के नामों से जाना जाता है इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।

3. पशुओं की पूजा (Worship of Animals)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाली मोहरों और तावीज़ों आदि से हमें इस बात का संकेत मिलता है कि वे कई तरह के पशुओं की पूजा करते थे । इन पशुओं में मुख्य बैल, हाथी, गैंडा, शेर और मगरमच्छ आदि थे । इनके अतिरिक्त सिंधु घाटी के लोग कुछ पौराणिक प्रकार के पशुओं की भी पूजा करते थे। उदाहरण के लिए हड़प्पा से हमें एक ऐसी मूर्ति मिली है जिस का कुछ भाग हाथी का है और कुछ बैल का है। इन पशुओं को देवी माँ अथवा शिव का वाहन समझा जाता था ।

4. वृक्षों की पूजा (Worship of Trees)-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। सिंधु घाटी की खुदाई से हमें जो मोहरें प्राप्त हुई हैं उनमें से अत्यधिक मोहरों पर पीपल के पेड़ के चित्र अंकित हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे ।

5. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

6. सप्तऋषियों की पूजा (Worship of Sapat-Rishis)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों में से एक पर सात मनुष्य एक वृक्ष के सामने खड़े दिखाये गये हैं। इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शायद सिंधु घाटी के लोग सप्तऋषियों की पूजा करते थे। सप्तऋषियों के नाम पुराणों, हिंदुओं के अन्य धार्मिक ग्रंथों तथा बौद्ध ग्रंथों में मिलते हैं। इन सप्तऋषियों के नाम कश्यप, अतरी, विशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदागनी एवं भारदवाज हैं। उनकी स्वर्ग का प्रतीक समझ कर उपासना की जाती थी।

7. लिंग और योनि की पूजा (Worship of Linga and Yoni)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें बहुत अधिक मात्रा में नुकीले और छल्लों के आकार के पत्थर मिले हैं । इन्हें देखकर यह बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि सिंधु घाटी के लोग लिंग और योनि की पूजा करते थे। इनकी पूजा वे संसार की सृजन शक्ति के लिए करते थे।

8. जल की पूजा (Worship of water)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिले बहुत सारे स्नानागारों से इस बात का अनुमान लगाया गया है कि उस समय के लोगों का जल पूजा में गहरा विश्वास था। उनका विशाल स्तानागार हमें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ है। जल को वे शुद्धता और सफ़ाई का प्रतीक मानते थे ।

9. साँपों की पूजा (Worship of Snakes)-सिंधु घाटी के लोग साँपों की भी पूजा करते थे । ऐसा अनुमान उस समय की प्राप्त कुछ मोहरों पर अंकित साँपों और फनीअर साँपों के चित्रों से लगाया जाता है। एक मोहर पर एक देवता के सिर पर फन फैलाये नाग को दर्शाया गया है। एक और मोहर पर एक मनुष्य को साँप को दूध पिलाते हुए दिखाया गया है।

10. जादू-टोनों में विश्वास (Faith in Magic and Charms)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाले बहुत से तावीज़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी के लोग जादू-टोनों और भूत-प्रेत में विश्वास रखते थे ।

11. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

12. कुछ अन्य धार्मिक विश्वास (Some other Religious Beliefs)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें अनेक अग्निकुण्ड प्राप्त हुए हैं जिस से यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग अग्नि की, घुग्घी की और सूर्य आदि की पूजा भी करते थे। सिंधु घाटी के लोगों का आत्मा एवं परमात्मा में भी दृढ़ विश्वास था।

प्रश्न 2.
(क) देवी माता और स्वस्तिक के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(ख) हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कारों के बारे में जानकारी दो ।
[(a) What do you know about Mother Goddess and Swastik ?
(b) Discuss the death ceremonies of people of Harappa Age.]
उत्तर –
(क)

  1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।
  2. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

(ख) 1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 3.
(क) हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कार क्या थे ?
(ख) पीपल और स्वस्तिक पर नोट लिखें ।
[(a) What were the death ceremonies among the people of Harappa Age ?
(b) Write a note on peepal and Swastik.]
उत्तर-(क)

1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

(ख)

  1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।
  2. वृक्षों की पूजा (Worship of Trees)-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। सिंधु घाटी की खुदाई से हमें जो मोहरें प्राप्त हुई हैं उनमें से अत्यधिक मोहरों पर पीपल के पेड़ के चित्र अंकित हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे ।
  3. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

प्रश्न 4.
हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ने में मृतक को जलाया या दफनाया जाता था ? बतलाएँ।
(Was the dead buried or burnt in Harappa and Mohenjodaro ? Explain.)
उत्तर-
मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 5.
प्राचीन आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में आप क्या जानते हैं ? आर्य लोगों के मृतक संस्कारों के संबंध में जानकारी दो।
(What do you know about the religious beliefs of the Early Aryans ? Also state the method of disposal of the dead Aryans.)
अथवा
आर्य लोगों के धार्मिक संस्कारों के बारे में जानकारी दें।
(Describe the religious ceremonies of Aryan people.)
अथवा
आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन के बारे में बताएँ।
(Explain the religious life of Early Aryans.)
अथवा
पूर्व आर्यों के धार्मिक जीवन का वर्णन करें।
(Describe the religious life of pre-Aryans.)
उत्तर-
आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन कैसा था इसके संबंध में हमें ऋग्वेद से विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है । निस्संदेह वे बड़ा सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। उनके धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:—

1. प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों के पुजारी (Worshippers of Nature and Natural Phenomena)- आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन बिल्कुल सादा था। वे प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करते थे। वे उन सारी वस्तुओं जो सुंदर विचित्र और भयानक दिखाई देती थीं, को प्राकृतिक शक्तियाँ स्वीकार करते थे। उन्होंने इन प्राकृतिक शक्तियों को अलग-अलग देवी-देवताओं का नाम रखकर उनकी पूजा आरंभ कर दी थी। वे चमकते हुए सूर्य की पूजा करते थे क्योंकि वह पृथ्वी को सजीव रखता था। वे वायु की पूजा करते थे जो संसार भर के मनुष्यों को जीवन देती थी। वे प्रभात की पूजा करते थे जो मनुष्यों को उनकी मीठी नींद से जगाकर उनको उनके कार्यों पर भेजता था। वे नीले आकाश की पूजा करते थे जिसने सारे संसार को घेरा हुआ था।

2. वैदिक देवते (VedicGods) आरंभिक आर्यों के देवताओं की कुल संख्या 33 थी। इन को तीन भागों में बाँटा गया था । ये देवता आकाश, पृथ्वी और आकाश तथा पृथ्वी के मध्य रहते थे । प्रमुख देवी-देवताओं का संक्षेप वर्णन अग्रलिखित है :—

  • वरुण (Varuna)-वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था । वह सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी, और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। वह पापी लोगों को सज़ा देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी लोग उससे क्षमा की याचना करते थे।
  • इंद्र (Indra) -इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे । वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था ।
  • अग्नि (Agni)-अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसका संबंध विवाह और दाह संस्कारों के साथ था। उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।
  • सूर्य (Sun)-सूर्य भी आरंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था । वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। वह हर रोज़ सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था ।
  • रुद्र (Rudra)-रुद्र को आँधी या तूफ़ान का देवता समझा जाता था। वह बहुत ही प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसको प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते थे।
  • सोम (Soma)-सोम देवता की आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बहुत महत्ता थी। सोम रस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पीकर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था और यह देवताओं को भेंट किया जाता था।
  • देवियाँ (Goddesses)-आरंभिक आर्य देवताओं के अतिरिक्त कुछ देवियों की भी पूजा करते थे । परंत देवताओं के मुकाबले इनका महत्त्व कम था । उनके द्वारा पूजी जाने वाली प्रमुख देवियाँ प्रभात की देवी उषा, रात की देवी रात्री, धरती की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी, नदी देवी सरस्वती थीं।

3. एक ईश्वर में विश्वास ( Faith in one God) यद्यपि आरंभिक आर्य अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे परंतु फिर भी उनका ईश्वर की एकता में दृढ़-विश्वास था। वे सारे देवताओं को महान् समझते थे और किसी को भी छोटा या बड़ा नहीं समझते थे । ऋषि अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग देवी-देवताओं को प्रधान बना देते थे । ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है, सब एक ही हैं, केवल ऋषियों ने ही उनका विभिन्न रूपों में वर्णन किया है।” एक और मंत्र में लिखा है, “वह जिसने हमें जीवन बख्शा है, वह जिसने सृष्टि की रचना की है, अनेक देवताओं के नाम के साथ प्रसिद्ध होते हुए भी वह एक है।” स्पष्ट है कि आर्य एक ईश्वर के सिद्धांत को अच्छी तरह जानते
थे।

4. मंदिरों और मूर्ति पूजा का अभाव (Absence of Temples and Idol Worship)-आरंभिक आर्यों ने अपने देवी-देवताओं की याद में न किसी मंदिर का निर्माण किया था और न ही उनकी मूर्तियाँ बनाई गई थीं। मंदिर के निर्माण संबंधी या मूर्तियों के निर्माण संबंधी ऋग्वेद में कहीं भी कोई वर्णन नहीं मिलता। आर्य लोग अपने घरों में खुले वातावरण में चौकड़ी लगा कर बैठ जाते थे और एक मन हो कर अपने देवी-देवताओं की याद में मंत्रों का उच्चारण करते थे और स्तुति करते थे ।

5. यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

6. पितरों की पूजा (Worship of Forefathers)-आरंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं की पूजा के अतिरिक्त अपने पितरों की भी पूजा करते थे । पितर आर्यों के आरंभिक बुर्जुग थे। वे स्वर्गों में निवास करते थे । ऋग्वेद में बहुत से मंत्र पितरों की प्रशंसा में लिखे गये हैं । उनकी पूजा भी अन्य देवी-देवताओं की तरह की जाती थी। पितरों की पूजा इस आशा के साथ की जाती थी कि वे अपने वंश की रक्षा करेंगे, उनका मार्गदर्शन करेंगे, उनके कष्ट दूर करेंगे, उनको धन और शक्ति प्रदान करेंगे तथा अपने बच्चों की दीर्घायु और संतान का वर देंगे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

7. मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास (Belief in Life after Death)-आरंभिक आर्य मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे । आवागमन और पुनर्जन्म का सिद्धांत अभी प्रचलित नहीं हुआ था। वैदिक काल के लोगों का विश्वास था कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। वे आत्मा को अमर समझते थे। स्वर्ग का जीवन खुशियों से भरपूर होता था । यह देवताओं का निवास स्थान था। वे लोग स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते थे जो रणभूमि में अपना बलिदान देते थे अथवा भारी तपस्या करते थे अथवा यज्ञ के समय खुले दिल से दान देते थे। ऋग्वेद में नरक का वर्णन कहीं नहीं किया गया है ।

8. मृतक का अंतिम संस्कार (Disposal of Dead)-आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह संस्कार किया जाता था । मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी और अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। यदि मृतक ब्राह्मण होता तो उसके दायें हाथ में एक लाठी पकड़ाई जाती थी, यदि वह क्षत्रिय होता तो उसके हाथ में धनुष और यदि वह वैश्य होता तो उसके हाथ में हल चलाने वाली लकड़ी पकड़ाई जाती थी । उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी और वह मंत्र पढ़ा जाता था, “बजुर्गों के मार्ग पर जाओ।” लाश के पूर्ण भस्म हो जाने को बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर जमीन में गाढ़ दिया जाता था।

9. रित और धर्मन (Rita and Dharman)-ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है । रित से भाव उस व्यवस्था से है जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। धरती सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है । सागर में ज्वारभाटे आते हैं। इस तरह रित एक सच्चाई है, इस का विपरीत अनऋत (झूठ) है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं । यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होता है। वास्तव में धर्मन जीवन और रस्मों रीतों का नियम है। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

प्रश्न 6.
वरुण तथा अग्नि देवताओं पर एक नोट लिखें । वैदिक बलि की रीति के बारे जानकारी
(Write a brief note on Varuna and Agni. Write about the ritual of Vedic sacrifice.)
उत्तर-(क)

1. वरुण (Varuna)- वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वज्ञापक और सर्व-व्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

2. अग्नि (Agni)- अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाहसंस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभे और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

(ख) यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

प्रश्न 7.
वैदिक देवताओं से क्या भाव है ? इनसे किस प्रकार के वरदान की आशा की जाती थी ?
(What is meant by Vedic gods ? What is expected from them ?)
अथवा
वैदिक देवता कौन थे ? कुछ देवी-देवताओं के नाम लिखो।ये देवता ऐतिहासिक व्यक्ति थे या पौराणिक, स्पष्ट करो।
(Who were Vedic gods ? Write down the names of some gods and goddesses. Whether these gods were historical persons or mythological ? State clearly.)
अथवा
वैदिक देवी-देवताओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करो ।
(What do you know about the Vedic gods and goddesses ? Explain.)
अथवा
वैदिक काल में ईश्वर के बारे में बताएँ ।
(Explain about monotheism in Vedic Period.)
अथवा
वैदिक देवी-देवताओं पर एक विस्तृत नोट लिखें ।
(Write a detailed note on Vedic gods and goddesses.)
अथवा
किन्हीं दो वैदिक देवताओं पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write brief note on any two Vedic gods.)
उत्तर-
आरंभिक आर्य बहुत सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। वे प्रकृति और.उसकी शक्तियों को देवता मान कर उनकी पूजा करते थे। उनके देवताओं की कुल संख्या 33 थी। देवियों की संख्या कम थी और देवताओं के मुकाबले उनका महत्त्व भी कम था। आरंभिक आर्य यद्यपि अपने देवी-देवताओं की पूजा करते थे परंतु वे उनको एक परमेश्वर का रूप समझते थे। वे अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए और उनसे ज़रूरी वरदान प्राप्त करने के लिए स्तुतियाँ और यज्ञ करते थे और बलियाँ भी देते थे। उस समय मूर्ति पूजा या मंदिर बनवाने की प्रथा प्रचलित नहीं थी।

1. वैदिक देवता (Vedic Gods)—वैदिक देवताओं की नींव कहाँ से रखी गई, उनका स्वभाव क्या था, मनुष्यों के साथ उनके क्या संबंध थे और उनकी संख्या कितनी थी ? इन सारे प्रश्नों के उत्तर हमें ऋग्वेद से प्राप्त होते हैं। ऋग्वेद के मंत्रों (ऋचों) में यह कहा गया है कि देवता संसार की सृजना के बाद पैदा हुए, उनको आम तौर पर आकाश और पृथ्वी की संतान माना जाता था। वे बड़े शक्तिशाली और महान् थे। वे लंबा जीवन व्यतीत करते थे। उन्होंने तपस्या के साथ अथवा सोमरस पी कर अविनाशता प्राप्त कर ली थी। वे अलग-अलग रूप धारण कर सकते थे। ज्यादातर वे मनुष्ययी रूप धारण करते थे। वे अपने दैवीय वाहनों पर चढ़ कर आते थे और घास के आसन पर बैठते थे। वे दुनिया की घटनाओं में अपना हिस्सा डालते थे। वे अपने श्रद्धालुओं की प्रार्थनायें भी सुनते थे और अपने वरदान देते थे। उनकी कुल संख्या 33 थी और उनको तीन भागों में बाँटा गया था। यह बंटन उनके निवास स्थान के आधार पर था जहाँ वे रहते थे। प्रत्येक श्रेणी में 11 देवते शामिल थे। वरुण, सूर्य, विष्णु और उषा आदि आकाश के देवता थे। इंद्र, वायु, रुद्र और मरुत आदि पृथ्वी और आकाश के इर्द-गिर्द रहने वाले देवता थे। अग्नि, पृथ्वी, बृहस्पति, सागर और नदियाँ आदि पृथ्वी के देवता थे। देवियों के मुकाबले देवताओं की संख्या अधिक थी तथा उनको बहुत अधिक महत्त्व प्राप्त था। प्रमुख देवी-देवताओं का संक्षेप वर्णन निम्नलिखित अनुसार है:

वरुण (Varuna)- वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वज्ञापक और सर्व-व्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

इंद्र (Indra)- इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसका तेज इतना था कि सैंकड़ों सूर्यों का प्रकाश भी उसके आगे मद्धम पड़ जाता था। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए याचना करते थे। वह इतना बहादुर था कि उसने राक्षसों पर भी विजय प्राप्त की थी। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था। वह अंधकार को दूर कर सकता था। वह कई रूप धारण कर सकता था। वह इतना शक्तिशाली था कि सब देवता उस से डरते थे।

अग्नि (Agni)- अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाहसंस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभे और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

सूर्य (Sun) सूर्य भी आरंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था। वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। उसको आदिति और दिऊस का पुत्र समझा जाता था। वह हर-रोज़ सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

रुद्र (Rudra)-रुद्र को आँधी या तूफान का देवता समझा जाता था। वह बड़ा प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसे खुश रखने का प्रयत्न करते थे। उसकी शक्ल राक्षसों जैसी थी और वह पहाड़ों में निवास करता था। उसका पेट काला और पीठ लाल थी।

सोम (Soma)-सोम देवता की आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बड़ी महत्ता थी। ऋग्वेद का सारा नवम् मंडल सोम देवता की प्रशंसा में रचा गया है। सोमरस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पी कर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था। यह देवताओं को भेंट किया जाता था। सोमरस एक बूटी से प्राप्त किया जाता था जो कि पहाड़ों में मिलती थी।

उषा (Usha)-आरंभिक आर्य देवताओं के अतिरिक्त कुछ देवियों की पूजा भी करते थे। परंतु देवताओं के मुकाबले इनका महत्त्व कम था। उनके द्वारा पूजी जाने वाली देवियाँ जैसे रात की देवी रात्री, धरती की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी, नदी देवी सरस्वती में से उषा को प्रमुख स्थान प्राप्त था। इस को प्रभात की देवी समझा जाता था। इस का रूप बहुत सुंदर और मन को मोह लेने वाला था। इसको सूर्य की पत्नी समझा जाता था।

2. वैदिक देवते ऐतिहासिक व्यक्ति थे अथवा पौराणिक (Vedic Gods were historical persons or mythological)-आरंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं को ऐतिहासिक व्यक्ति समझते थे। इसका कारण यह था कि वे मनुष्यों के समान थे। वे अपने दैवीय वाहनों पर चढ़ कर आते थे और घास के सिंहासन पर बैठते थे। वे अपने श्रद्धालुओं की प्रार्थनायें सुनते थे और उनको वरदान देते थे। वे अपने पुजारियों पर कृपा करते थे। इन देवी-देवताओं को आदिती देवी और दिऊस के पुत्र-पुत्रियाँ समझा जाता था। आरंभ में इन सब को नाशवान् जीव समझा जाता था। अविनाशता उनको बाद में दी गई थी।

प्रश्न 8.
(क) वैदिक काल में बलि की रीति पर प्रकाश डालें।
(ख) वरुण तथा अग्नि देवताओं पर संक्षेप नोट लिखें।
[(a) Throw light on the Vedic ritual sacrifice.
(b) Write brief notes on Varuna and Agni gods.]
उत्तर-
(क) बलि की रीति (Sacrifice Ritual)—यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

(ख) वरुण तथा अग्नि देवता (Varuna and Agni gods)—

1. वरुण (Varuna)- वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वज्ञापक और सर्व-व्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

2. अग्नि (Agni)- अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाहसंस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभे और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

प्रश्न 9.
सिंधु घाटी के लोगों तथा आर्य लोगों के धार्मिक जीवन में क्या अंतर था ? स्पष्ट करें।
(Explain the differences of religious life of Indus Valley and Aryan peoples.)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों और आर्य लोगों का धार्मिक जीवन किस तरह का था? जानकारी दीजिए।
(Describe the religious life of the people of Indus Valley and Aryans. Explain.)
उत्तर-
सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों, चित्रों और मूर्तियों आदि से सिंधु घाटी के लोगों के धार्मिक जीवन के संबंध में बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है। इस जानकारी के आधार पर निस्संदेह यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाही के लोगों का धार्मिक जीवन काफी उन्नत था। इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके बहुत से धार्मिक विश्वास आज के हिंदू धर्म में प्रचलित हैं।—

1. देवी माँ की पूजा (Worship of Mother Goddess)-सिंधु घाटी के लोग सब से अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था ।।

2. शिव की पूजा (Worship of Lord Shiva )-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गये हैं और सिर पर एक मन को मोह लेने वाला पोश पहना हुआ है। इस योगी के इर्द-गिर्द शेर, हाथी, गैंडे, साँड और हिरण आदि के चित्र अंकित हैं। क्योंकि शिव को त्रिमुखी, पशुपति और योगेश्वर आदि के नामों से जाना जाता है इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।

3. पशुओं की पूजा (Worship of Animals)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाली मोहरों और तावीज़ों आदि से हमें इस बात का संकेत मिलता है कि वे कई तरह के पशुओं की पूजा करते थे । इन पशुओं में मुख्य बैल, हाथी, गैंडा, शेर और मगरमच्छ आदि थे । इनके अतिरिक्त सिंधु घाटी के लोग कुछ पौराणिक प्रकार के पशुओं की भी पूजा करते थे। उदाहरण के लिए हड़प्पा से हमें एक ऐसी मूर्ति मिली है जिस का कुछ भाग हाथी का है और कुछ बैल का है। इन पशुओं को देवी माँ अथवा शिव का वाहन समझा जाता था ।

4. वृक्षों की पूजा (Worship of Trees)-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। सिंधु घाटी की खुदाई से हमें जो मोहरें प्राप्त हुई हैं उनमें से अत्यधिक मोहरों पर पीपल के पेड़ के चित्र अंकित हैं जिससे यह अनुमान लगाया जाता है कि वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे ।

5. स्वस्तिक की पूजा (Worship of Swastik)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं । इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी लोकप्रिय है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

6. सप्तऋषियों की पूजा (Worship of Sapat-Rishis)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों में से एक पर सात मनुष्य एक वृक्ष के सामने खड़े दिखाये गये हैं। इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शायद सिंधु घाटी के लोग सप्तऋषियों की पूजा करते थे। सप्तऋषियों के नाम पुराणों, हिंदुओं के अन्य धार्मिक ग्रंथों तथा बौद्ध ग्रंथों में मिलते हैं। इन सप्तऋषियों के नाम कश्यप, अतरी, विशिष्ठ, विश्वामित्र, गौतम, जमदागनी एवं भारदवाज हैं। उनकी स्वर्ग का प्रतीक समझ कर उपासना की जाती थी।

7. लिंग और योनि की पूजा (Worship of Linga and Yoni)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें बहुत अधिक मात्रा में नुकीले और छल्लों के आकार के पत्थर मिले हैं । इन्हें देखकर यह बात निश्चित तौर पर कही जा सकती है कि सिंधु घाटी के लोग लिंग और योनि की पूजा करते थे। इनकी पूजा वे संसार की सृजन शक्ति के लिए करते थे।

8. जल की पूजा (Worship of water)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिले बहुत सारे स्नानागारों से इस बात का अनुमान लगाया गया है कि उस समय के लोगों का जल पूजा में गहरा विश्वास था। उनका विशाल स्तानागार हमें मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुआ है। जल को वे शुद्धता और सफ़ाई का प्रतीक मानते थे ।

9. साँपों की पूजा (Worship of Snakes)-सिंधु घाटी के लोग साँपों की भी पूजा करते थे । ऐसा अनुमान उस समय की प्राप्त कुछ मोहरों पर अंकित साँपों और फनीअर साँपों के चित्रों से लगाया जाता है। एक मोहर पर एक देवता के सिर पर फन फैलाये नाग को दर्शाया गया है। एक और मोहर पर एक मनुष्य को साँप को दूध पिलाते हुए दिखाया गया है।

10. जादू-टोनों में विश्वास (Faith in Magic and Charms)-सिंधु घाटी की खुदाई से मिलने वाले बहुत से तावीज़ों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि सिंधु घाटी के लोग जादू-टोनों और भूत-प्रेत में विश्वास रखते थे ।

11. मृतक संस्कार (The Death Ceremonies)-सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था । उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी।
उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था । इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

12.कुछ अन्य धार्मिक विश्वास (Some other Religious Beliefs)-सिंधु घाटी की खुदाई से हमें अनेक अग्निकुण्ड प्राप्त हुए हैं जिस से यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग अग्नि की, घुग्घी की और सूर्य आदि की पूजा भी करते थे। सिंधु घाटी के लोगों का आत्मा एवं परमात्मा में भी दृढ़ विश्वास था।

आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन कैसा था इसके संबंध में हमें ऋग्वेद से विस्तारपूर्वक जानकारी प्राप्त होती है । निस्संदेह वे बड़ा सादा और पवित्र जीवन व्यतीत करते थे। उनके धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:—

1. प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों के पुजारी (Worshippers of Nature and Natural Phenomena)- आरंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन बिल्कुल सादा था। वे प्रकृति और प्राकृतिक शक्तियों की पूजा करते थे। वे उन सारी वस्तुओं जो सुंदर विचित्र और भयानक दिखाई देती थीं, को प्राकृतिक शक्तियाँ स्वीकार करते थे। उन्होंने इन प्राकृतिक शक्तियों को अलग-अलग देवी-देवताओं का नाम रखकर उनकी पूजा आरंभ कर दी थी। वे चमकते हुए सूर्य की पूजा करते थे क्योंकि वह पृथ्वी को सजीव रखता था। वे वायु की पूजा करते थे जो संसार भर के मनुष्यों को जीवन देती थी। वे प्रभात की पूजा करते थे जो मनुष्यों को उनकी मीठी नींद से जगाकर उनको उनके कार्यों पर भेजता था। वे नीले आकाश की पूजा करते थे जिसने सारे संसार को घेरा हुआ था।

2. वैदिक देवते (VedicGods) आरंभिक आर्यों के देवताओं की कुल संख्या 33 थी। इन को तीन भागों में बाँटा गया था । ये देवता आकाश, पृथ्वी और आकाश तथा पृथ्वी के मध्य रहते थे । प्रमुख देवी-देवताओं का संक्षेप वर्णन अग्रलिखित है :—

  • वरुण (Varuna)-वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था । वह सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी, और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। वह पापी लोगों को सज़ा देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी लोग उससे क्षमा की याचना करते थे।
  • इंद्र (Indra) -इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे । वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था ।
  • अग्नि (Agni)-अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसका संबंध विवाह और दाह संस्कारों के साथ था। उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।
  • सूर्य (Sun)-सूर्य भी आरंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था । वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। वह हर रोज़ सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था ।
  • रुद्र (Rudra)-रुद्र को आँधी या तूफ़ान का देवता समझा जाता था। वह बहुत ही प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसको प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते थे।
  • सोम (Soma)-सोम देवता की आरंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बहुत महत्ता थी। सोम रस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पीकर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था और यह देवताओं को भेंट किया जाता था।
  • देवियाँ (Goddesses)-आरंभिक आर्य देवताओं के अतिरिक्त कुछ देवियों की भी पूजा करते थे । परंत देवताओं के मुकाबले इनका महत्त्व कम था । उनके द्वारा पूजी जाने वाली प्रमुख देवियाँ प्रभात की देवी उषा, रात की देवी रात्री, धरती की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी, नदी देवी सरस्वती थीं।

3. एक ईश्वर में विश्वास ( Faith in one God) यद्यपि आरंभिक आर्य अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे परंतु फिर भी उनका ईश्वर की एकता में दृढ़-विश्वास था। वे सारे देवताओं को महान् समझते थे और किसी को भी छोटा या बड़ा नहीं समझते थे । ऋषि अलग-अलग अवसरों पर अलग-अलग देवी-देवताओं को प्रधान बना देते थे । ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है, सब एक ही हैं, केवल ऋषियों ने ही उनका विभिन्न रूपों में वर्णन किया है।” एक और मंत्र में लिखा है, “वह जिसने हमें जीवन बख्शा है, वह जिसने सृष्टि की रचना की है, अनेक देवताओं .के नाम के साथ प्रसिद्ध होते हुए भी वह एक है।” स्पष्ट है कि आर्य एक ईश्वर के सिद्धांत को अच्छी तरह जानते
थे।

4. मंदिरों और मूर्ति पूजा का अभाव (Absence of Temples and Idol Worship)-आरंभिक आर्यों ने अपने देवी-देवताओं की याद में न किसी मंदिर का निर्माण किया था और न ही उनकी मूर्तियाँ बनाई गई थीं। मंदिर के निर्माण संबंधी या मूर्तियों के निर्माण संबंधी ऋग्वेद में कहीं भी कोई वर्णन नहीं मिलता। आर्य लोग अपने घरों में खुले वातावरण में चौकड़ी लगा कर बैठ जाते थे और एक मन हो कर अपने देवी-देवताओं की याद में मंत्रों का उच्चारण करते थे और स्तुति करते थे ।

5. यज्ञ और बलियाँ (Yajnas and Sacrifices)-आरंभिक आर्य लोग अपने देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कई तरह के यज्ञ करते थे । इन यज्ञों को बड़े ध्यान से किया जाता था, क्योंकि उनको यह डर होता था कि थोड़ीसी गलती से उनके देवता नाराज़ न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए वेदी बनाई जाती थी। फिर इसमें पवित्र अग्नि जलाई जाती थी इसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों के दौरान कई जानवरों की जैसे भेड़ों, बकरियों और घोड़ों आदि की बलि दी जाती थी। उस समय मनुष्य की बलि देने की प्रथा बिल्कुल नहीं थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे । सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े-बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले ही शुरू हो जाती थी। ऐसे यज्ञ राजाओं और समाज के और अमीर वर्ग द्वारा करवाये जाते थे। इन यज्ञों में बहुत ज्यादा मात्रा में पुरोहित शामिल होते थे। इनको दक्षिणा के तौर पर सोना, पशु या अनाज दिया जाता था। इन यज्ञों और बलियों का प्रमुख उद्देश्य देवताओं को खुश करना था। इनके बदले वे समझते थे कि उनको युद्ध में सफलता प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान में वृद्धि होगी और लम्बा जीवन मिलेगा। आरंभिक आर्य यह समझते थे कि हर यज्ञ से संसार की नये सिरे से उत्पत्ति होती है और यदि यह यज्ञ न करवाए जायें तो संसार में फिर से अंधकार छा जाएगा । इन यज्ञों के करवाने से गणित, भौतिक ज्ञान और जानवरों की शारीरिक बनावट के ज्ञान में वृद्धि हुई ।

6. पितरों की पूजा (Worship of Forefathers)-आरंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं की पूजा के अतिरिक्त अपने पितरों की भी पूजा करते थे । पितर आर्यों के आरंभिक बुर्जुग थे। वे स्वर्गों में निवास करते थे । ऋग्वेद में बहुत से मंत्र पितरों की प्रशंसा में लिखे गये हैं । उनकी पूजा भी अन्य देवी-देवताओं की तरह की जाती थी। पितरों की पूजा इस आशा के साथ की जाती थी कि वे अपने वंश की रक्षा करेंगे, उनका मार्गदर्शन करेंगे, उनके कष्ट दूर करेंगे, उनको धन और शक्ति प्रदान करेंगे तथा अपने बच्चों की दीर्घायु और संतान का वर देंगे।

7. मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास (Belief in Life after Death)-आरंभिक आर्य मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास रखते थे । आवागमन और पुनर्जन्म का सिद्धांत अभी प्रचलित नहीं हुआ था। वैदिक काल के लोगों का विश्वास था कि मृत्यु के समय आत्मा शरीर से अलग हो जाती है। वे आत्मा को अमर समझते थे। स्वर्ग का जीवन खुशियों से भरपूर होता था । यह देवताओं का निवास स्थान था। वे लोग स्वर्ग के अधिकारी समझे जाते थे जो रणभूमि में अपना बलिदान देते थे अथवा भारी तपस्या करते थे अथवा यज्ञ के समय खुले दिल से दान देते थे। ऋग्वेद में नरक का वर्णन कहीं नहीं किया गया है ।

8. मृतक का अंतिम संस्कार (Disposal of Dead)-आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह संस्कार किया जाता था । मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी और अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। यदि मृतक ब्राह्मण होता तो उसके दायें हाथ में एक लाठी पकड़ाई जाती थी, यदि वह क्षत्रिय होता तो उसके हाथ में धनुष और यदि वह वैश्य होता तो उसके हाथ में हल चलाने वाली लकड़ी पकड़ाई जाती थी । उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी और वह मंत्र पढ़ा जाता था, “बजुर्गों के मार्ग पर जाओ।” लाश के पूर्ण भस्म हो जाने को बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर जमीन में गाढ़ दिया जाता था।

9. रित और धर्मन (Rita and Dharman)-ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है । रित से भाव उस व्यवस्था से है जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। धरती सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है । सागर में ज्वारभाटे आते हैं। इस तरह रित एक सच्चाई है, इस का विपरीत अनऋत (झूठ) है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं । यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होता है। वास्तव में धर्मन जीवन और रस्मों रीतों का नियम है। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोगों की कोई दो विशेषताएँ बताएँ। (Write any two features of religious life of the Indus Valley People.)
उत्तर-

  1. देवी माँ की पूजा-सिंधु घाटी के लोग सबसे अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था।
  2. शिव की पूजा-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफ़ी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गए हैं। इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता की धार्मिक विशेषताएँ क्या थी ? (What were the characteristics of the religion of the Indus Valley Civilization ?)
उत्तर-
सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मूर्तियों और तावीज़ों को देखकर हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक देवी माँ की पूजा करते थे। वह शिव की पूजा भी करते थे। इसके अतिरिक्त वह लिंग, योनि, सूर्य, पीपल, बैल, शेर, हाथी आदि की भी पूजा करते थे। वह मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे। वह भूत-प्रेतों में भी विश्वास रखते थे तथा उनसे बचने के लिए जादू-टोनों का प्रयोग करते थे।

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार किस प्रकार करते थे ? (How the people of Indus Valley Civilization disposed off their dead ?)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने मृतकों का संस्कार करने के लिए कौन-से दो तरीके अपनाते थे ?
(Which two methods were adopted by the people of Indus Valley to dispose off their dead ?)
अथवा
हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कारों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the death ceremonies of Harappa age people.)
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफ़ना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था तथा जब पिंजर शेष रह जाता था तब उसे एक ताबूत में डाल कर दफना दिया जाता था। उस समय मर्यों का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी। उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था।

प्रश्न 4.
प्रारंभिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the religious beliefs of early Aryans.)
अथवा
वैदिक आर्यों के धार्मिक विचारों एवं रीति-रिवाजों के बारे में बताएँ। (Discuss the religious ideas and rituals of Vedic Aryans.)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? (What were the main features of the religious life of the Rigvedic Aryans ?)
उत्तर-
ऋग्वैदिक काल में आर्यों का धर्म बिल्कुल सादा था। आर्य प्राकृतिक शक्तियों को देवता मानकर उनकी उपासना करते थे। उनके सबसे बड़े देवता का नाम वरुण था। वह आकाश का देवता था। इंद्र को द्वितीय स्थान प्राप्त था। वह वर्षा और युद्ध का देवता था। अग्नि देवता भी बहुत महत्त्वपूर्ण था। क्योंकि उसका विवाह तथा दाहसंस्कार के साथ संबंध था। इसके अतिरिक्त आर्य ऊषा, रात्रि, पृथ्वी तथा आरण्यी आदि की भी पूजा करते थे। परंतु देवताओं की अपेक्षा उनका महत्त्व कम था।

प्रश्न 5.
वरुण के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Varuna ?)
अथवा
आर्यों के वरुण देवते बारे जानकारी दें। (Describe the Lord Varuna of the Aryans.)
उत्तर-
वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वशक्तिशाली और सर्वव्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

प्रश्न 6.
आरंभिक आर्यों के देवता इंद्र के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe god Indra of early Aryans.)
अथवा
इंद्र देवता के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about god Indra ?)
उत्तर-
इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसका तेज इतना था कि सैंकड़ों सूर्यों का प्रकाश भी उसके आगे मद्धम पड़ जाता था। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए याचना करते थे। वह इतना बहादुर था कि उसने राक्षसों पर भी विजय प्राप्त की थी। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था। वह अंधकार को दूर कर सकता था। वह कई रूप धारण कर सकता था। वह इतना शक्तिशाली था कि सब देवता उससे डरते थे।

प्रश्न 7.
आर्यों के देवता अग्नि का वर्णन अपने शब्दों में करें। (Explain in your words the Aryan god ‘Agni’.)
उत्तर-
अग्नि आरंभिक आर्यों का प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाह-संस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जीभें और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था।

प्रश्न 8.
आर्यों की सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था में यज्ञों का क्या महत्त्व था ? (What was the importance of Yajnas in the social and religious life of the Aryans ?)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों की उपासना विधि के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the mode of worship of the Rigvedic Aryans ?)
उत्तर-
ऋग्वैदिक आर्यों की उपासना विधि बहुत सरल थी। वे खुले वायुमंडल में एकाग्रचित होकर मंत्रों का उच्चारण करते थे। वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के यज्ञ करते थे। ये यज्ञ बहुत ध्यानपूर्वक किए जाते थे क्योंकि उन्हें यह भय होता था कि कहीं थोड़ी-सी भूल से उनके देवता रुष्ट न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए अग्नि प्रज्वलित की जाती थी। फिर उसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों में कई पशुओं की बलि भी दी जाती थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे। इन यज्ञों तथा बलियों का मुख्य उद्देश्य देवताओं को प्रसन्न करना था।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 9.
आरंभिक आर्य अपने मृतकों का अंतिम संस्कार किस प्रकार करते थे? (How did the early Aryan dispose off their dead ?)
उत्तर-
आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह-संस्कार किया जाता था। मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी अथवा अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी। लाश के पूर्ण भस्म हो जाने के बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर जमीन में गाढ़ दिया जाता था।

प्रश्न 10.
रित एवं धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है। रित से भाव उस व्यवस्था से जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं। यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होते थे। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

प्रश्न 11.
सिंधु घाटी के लोगों की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ। (Write any five features of religious life of the Indus Valley People.)
अथवा
सिंधु घाटी के लोगों के द्वारा किस-किस वस्तु की पूजा होती है ? (What was worshipped by the Indus Valley People ?)
उत्तर-

  1. देवी माँ की पूजा-सिंधु घाटी के लोग सबसे अधिक देवी माँ की पूजा करते थे। इस का अनुमान सिंधु घाटी की खुदाई से मिली देवी माँ की अनेक मूर्तियों, मोहरों और तावीज़ों पर बने उनके चित्रों से लगाया जाता है। कई मूर्तियों पर धुएँ के चिन्ह हैं जिनसे यह परिणाम निकलता है कि लोग देवी माँ की धूप-बाती और तेल से पूजा करते थे। देवी माँ को शक्ति का प्रतीक माना जाता था।
  2. शिव की पूजा-सिंधु घाटी के लोगों में एक देवता की पूजा काफ़ी प्रचलित थी। उस समय की मिली कुछ मोहरों पर एक देव के चित्र अंकित हैं। इस देव को योगी की स्थिति में समाधि लगाये हुए देखा गया है। इस के तीन मुँह दर्शाये गए हैं। इसलिए इतिहासकारों का विचार है कि यह योगी कोई और नहीं बल्कि शिव ही थे।
  3. वृक्षों की पूजा-सिंधु घाटी के लोग वृक्षों की भी पूजा करते थे। इन वृक्षों को वे देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे। वे वृक्षों को जीवन और ज्ञान देने वाला दाता समझते थे। वे पीपल के पेड़ को अत्यधिक पवित्र समझते थे। इसके अतिरिक्त वे नीम, खजूर, बबूल और शीशम आदि वृक्षों की भी पूजा करते थे।
  4. स्वस्तिक की पूजा-सिंधु घाटी की खुदाई से मिली अनेक मोहरों पर स्वस्तिक के चिन्ह मिले हैं। इनको अच्छे शगुन वाला समझा जाता था। यह पुजारियों और व्यापारियों में आज भी हरमन प्यारा है। व्यापारी कोई भी लेन-देन करते समय सबसे पहले स्वस्तिक चिन्ह को बनाते हैं।
  5. सप्तऋषियों की पूजा–सिंधु घाटी की खुदाई से मिली मोहरों में से एक पर सात मनुष्य एक वृक्ष के सामने खड़े दिखाये गये हैं। इससे इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि शायद सिंधु घाटी के लोग सप्तऋषियों की पूजा करते थे।

प्रश्न 12.
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार किस प्रकार करते थे ?
(How the people of Indus Valley Civilization disposed off their dead ?)
अथवा
सिंधु घाटी सभ्यता के लोग अपने मृतकों का संस्कार करने के लिए कौन-से दो तरीके अपनाते थे ?
(Which two methods were adopted by the people of Indus Valley to dispose off their dead ?)
अथवा
हड़प्पा काल के लोगों के मृतक संस्कारों के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe the death ceremonies of Harappa age people.)
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग आम तौर पर अपने मुर्दो को दफना देते थे। कब्र में मुर्दे का सिर उत्तर की ओर तथा पैर दक्षिण की ओर किये जाते थे। कभी-कभी मुर्दे को खुले स्थान पर पशु-पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता था। उस समय मुर्दो का संस्कार करने की प्रथा भी प्रचलित थी। उसकी अस्थियों को बड़े बर्तन में डाल कर दफना दिया जाता था। मृतक का अंतिम संस्कार चाहे किसी भी ढंग से किया जाता था पर उसके साथ अथवा उसके पिंजर अथवा अस्थियों के साथ कुछ बर्तनों में खाने-पीने और कुछ आवश्यक वस्तुओं को भी दबाया जाता था। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास रखते थे।

प्रश्न 13.
प्रारंभिक आर्यों के धार्मिक विश्वासों के बारे में जानकारी दीजिए। (Describe the religious beliefs of early Aryans.)
अथवा
वैदिक आर्यों के धार्मिक विचारों एवं रीति-रिवाजों के बारे में बताएँ। (Discuss the religious ideas and rituals of Vedic Aryans.)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों के धार्मिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ? (What were the main features of the religious life of the Rigvedic Aryans ?)
अथवा आरंभिक आर्य लोगों के धार्मिक विश्वासों के बारे में लिखें।
(Discuss the religious beliefs of the early Aryan people.)
उत्तर-
ऋग्वैदिक काल में आर्यों का धर्म बिल्कुल सादा था। आर्य प्राकृतिक शक्तियों को देवता मानकर उनकी उपासना करते थे। वे कई देवी-देवताओं की पूजा करते थे। उनके सबसे बड़े देवता का नाम वरुण था। वह आकाश का देवता था। वह संसार के सभी रहस्यों को जानता था। आर्य उससे अपनी भूल के लिए क्षमा माँगते थे। इंद्र को द्वितीय स्थान प्राप्त था। वह वर्षा और युद्ध का देवता था। आर्य इस देवता की समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे। अग्नि देवता भी बहुत महत्त्वपूर्ण था। वह देवताओं और मनुष्यों के बीच संपर्क का साधन था। विवाह अग्नि की उपस्थिति में होते थे और मृतकों का अग्नि के द्वारा दाह-संस्कार किया जाता था। इसके अतिरिक्त आर्य लोग सूर्य, रुद्र, यम, वायु और त्वस्त्र देवताओं की भी पूजा करते थे। वे कई देवियों जैसे कि-प्रातः की देवी ऊषा, रात की देवी रात्रि, भूमि की देवी पृथ्वी, वन देवी आरण्यी आदि की भी पूजा करते थे। परंतु देवियों की संख्या कम थी और देवताओं की अपेक्षा उनका महत्त्व भी कम था। आर्य अपने देवी-देवताओं को एक ही ईश्वर के भिन्न-भिन्न रूप समझते थे। आर्य आवागमन, मुक्ति तथा कर्म सिद्धांतों में भी विश्वास रखते थे। ये सिद्धांत इस काल में अधिक विकसित नहीं हुए थे।

प्रश्न 14.
प्रारंभिक आर्यों के प्रमुख देवताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the main gods of the Early Aryans.)
उत्तर-

  1. वरुण-वरुण प्रारंभिक आर्यों का सबसे बड़ा देवता था। वह सिंहासन पर बैठता था। उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। वह पापी लोगों को सज़ा देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी लोग उससे क्षमा की याचना करते थे।
  2. इंद्र-इंद्र प्रारंभिक आर्थों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था।
  3. अग्नि-अग्नि प्रारंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसका संबंध विवाह और दाह संस्कार के साथ था। उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।
  4. सूर्य-सूर्य भी प्रारंभिक आर्यों का एक महत्त्वपूर्ण देवता था। वह संसार में से अंधेरे को दूर भगाता था। वह हर रोज़ सात घोड़ों वाले रथ पर सवार होकर आकाश का चक्र काटता था।
  5. रुद्र-रुद्र को आँधी या तूफ़ान का देवता समझा जाता था। वह बहुत ही प्रचंड और विनाशकारी था। लोग उससे बहुत डरते थे और उसको प्रसन्न रखने का प्रयत्न करते थे।
  6. सोम-सोम देवता की प्रारंभिक आर्यों के धार्मिक जीवन में बहत महत्ता थी। सोम रस को एक ऐसा अमृत समझा जाता था जिसको पीकर देवता अमर हो जाते थे। इस का हवन में प्रयोग किया जाता था और यह देवताओं को भेंट किया जाता।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

प्रश्न 15.
वरुण और इंद्र के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Varuna and Indra ?)
अथवा
वरुण के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Varuna ?)
अथवा
आर्यों के वरुण देवते बारे जानकारी दें।
(Describe the Lord Varuna of the Aryans.)
अथवा
आरंभिक आर्यों के देवता इंद्र के बारे में जानकारी दीजिए।
(Describe god Indra of early Aryans.)
अथवा
इंद्र देवता के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about God Indra ?)
उत्तर-

1. वरुण-वरुण आरंभिक आर्यों का सब से बड़ा देवता था। वह ऊँचे सिंहासन पर बैठता था उसको सत्य और धर्म का स्वामी माना जाता था। उसको आकाश, पृथ्वी और सूर्य का निर्माता कहा जाता था। उसके आदेशानुसार चाँद चमकता था और तारे टिमटिमाते थे। वह सर्वशक्तिशाली और सर्वव्यापक था। वह संसार में घटने वाली हर घटना को जानता था। उसकी सैंकड़ों आँखें थीं। कोई भी पापी उसकी पैनी नज़र से बच नहीं सकता था। वह पापियों को दंड देता था। वह जीवन दान दे सकता था और मृत्यु को रद्द कर सकता था। इसलिए पापी क्षमा के लिए उससे प्रार्थना करते थे।

2. इंद्र-इंद्र आरंभिक आर्यों का दूसरा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली देवता था। ऋग्वेद में सबसे अधिक (250) मंत्र इस देवता की प्रशंसा में दिये गये हैं। उसका तेज इतना था कि सैंकड़ों सूर्यों का प्रकाश भी उसके आगे मद्धम पड़ जाता था। उसको वर्षा और युद्ध का देवता समझा जाता था। आर्य उसकी समय पर वर्षा के लिए और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए याचना करते थे। वह इतना बहादुर था कि उसने राक्षसों पर भी विजय प्राप्त की थी। वह दुश्मनों के दुर्गों को पलक झपकते ही नष्ट कर सकता था। वह अंधकार को दूर कर सकता था। वह कई रूप धारण कर सकता था। वह इतना शक्तिशाली था कि सब देवता उससे डरते थे।

प्रश्न 16.
आर्यों के देवता अग्नि का वर्णन अपने शब्दों में करें। (Explain in your words the Aryan god ‘Agni’.)
उत्तर-
अग्नि आरंभिक आर्यों का एक और प्रमुख देवता था। उसको दो कारणों से अति महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। पहला, उसको सब घरों का स्वामी समझा जाता था। उसका संबंध विवाह और दाह-संस्कारों के साथ था। दूसरा, उसके बिना कोई भी यज्ञ पूर्ण नहीं हो सकता था। वह अपने भक्तों द्वारा दी गई आहुति को देवताओं तक पहुँचाता था। अग्नि देवता की सात जी) और 1000 आँखें समझी जाती थीं। यदि वह कभी गुस्से में आ जाता तो पल भर में सबको नष्ट कर सकता था। सूखे काष्ठ, घी और मक्खन को इसका मनपसंद भोजन समझा जाता था। ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिये गये हैं।

प्रश्न 17.
आर्यों की सामाजिक, धार्मिक व्यवस्था में यज्ञों का क्या महत्त्व था ? (What was the importance of Yajnas in the social and religious life of the Aryans ?)
अथवा
ऋग्वैदिक आर्यों की उपासना विधि के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the mode of worship of the Rigvedic Aryans ?)
उत्तर-
ऋवैदिक आर्यों की उपासना विधि बहुत सरल थी। वे खुले वायुमंडल में एकाग्रचित होकर मंत्रों का उच्चारण करते थे। वे अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के यज्ञ करते थे। ये यज्ञ बहुत ध्यानपूर्वक किए जाते थे क्योंकि उन्हें यह भय होता था कि कहीं थोड़ी-सी भूल से उनके देवता रुष्ट न हो जाएँ। सबसे पहले यज्ञ के लिए अग्नि प्रज्वलित की जाती थी। फिर उसमें घी, दूध, चावल और सोमरस डाला जाता था। इन यज्ञों में कई पशुओं की बलि भी दी जाती थी। ये यज्ञ कई प्रकार के होते थे। सबसे छोटा यज्ञ पारिवारिक स्तर पर होता था। बड़े यज्ञों की तैयारी बहुत पहले से आरंभ कर दी जाती थी। धनवान् लोग इन यज्ञों में भारी दान देते थे। इन यज्ञों तथा बलियों का मुख्य उद्देश्य देवताओं को प्रसन्न करना था। आर्य ये समझते थे कि इनके बदले में उन्हें लड़ाई में विजय प्राप्त होगी, धन प्राप्त होगा, संतान वृद्धि होगी तथा सुखमय दीर्घ जीवन मिलेगा। वे यह समझते थे कि प्रत्येक यज्ञ से संसार की फिर से उत्पत्ति होती है और यदि ये यज्ञ न कराए जाएँ तो संसार में अंधकार फैल जाएगा। इन यज्ञों के कारण गणित, खगोल विद्या तथा जानवरों की शारीरिक संरचना के ज्ञान के संबंध में वृद्धि हुई।

प्रश्न 18.
आरंभिक आर्य अपने मृतकों का अंतिम संस्कार किस प्रकार करते थे? (How did the early Aryan dispose off their dead ?)
उत्तर-
आरंभिक आर्यों के काल में मृतकों का दाह-संस्कार किया जाता था। मृतक को चिता तक ले जाने के लिए उसकी पत्नी और अन्य संबंधी साथ जाते थे। उसके बाद मृतक को चिता पर रख दिया जाता था। यदि मृतक ब्राह्मण होता तो उसके दायें हाथ में एक लाठी पकड़ाई जाती थी, यदि वह क्षत्रिय होता तो उसके हाथ में धनुष और यदि वह वैश्य होता तो उसके हाथ में हल चलाने वाली लकड़ी पकड़ाई जाती थी। उसकी पत्नी तब तक चिता के पास बैठी रहती थी जब तक उसको यह नहीं कहा जाता था ‘अरी महिला उठो और जीवित लोगों में आओ।’ इसके बाद हवन कुंड से लाई गई अग्नि के साथ चिता को आग लगाई जाती थी और यह मंत्र पढ़ा जाता था, “बजुर्गों के मार्ग पर जाओ”। लाश के पूर्ण भस्म हो जाने के बाद अस्थियों को इकट्ठा कर लिया जाता था और उनको एक क्लश में रखकर ज़मीन में गाढ़ दिया जाता था।

प्रश्न 19.
रित एवं धर्मन से आपका क्या अभिप्राय है ? (What do you mean by Rita and Dharman ?)
उत्तर-
ऋग्वेद और दूसरे वैदिक ग्रंथों में रित और धर्मन शब्दों का बहुत वर्णन मिलता है। रित से भाव उस व्यवस्था से जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है। रित के नियमानुसार ही सुबह पौ फटती है, सूर्य, चाँद और तारे चमकीले नज़र आते हैं। धरती सूर्य के इर्द-गिर्द चक्र लगाती है। सागर में.ज्वारभाटे आते हैं। इस तरह रित एक सच्चाई है। इसका विपरीत अनऋत (झूठ) है। ‘धर्मन’ शब्द से भाव कानून है। धर्मन देवताओं द्वारा बनाये जाते हैं। यह भौतिक संसार, मनुष्यों और बलियों पर लागू होता है। वास्तव में धर्मन जीवन और रस्मों रीतों का नियम है। अच्छे मनुष्य अपना जीवन धर्मन अनुसार व्यतीत करते थे।

PSEB 12th Class Religion Solutions Chapter 1 सिंधु घाटी के लोगों और प्रारंभिक आर्यों का धार्मिक जीवन

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी की सभ्यता कितनी पुरानी है ?
अथवा
सिंधु घाटी की सभ्यता कितनी पुरानी मानी जाती है ?
उत्तर-
5000 वर्ष।

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी सभ्यता की खोज कब हुई थी ?
उत्तर-
1921 ई०।

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग किस देवी की सबसे अधिक पूजा करते थे ?
उत्तर-
मातृदेवी की।

प्रश्न 4.
मातृदेवी को किसका प्रतीक समझा जाता था ?
अथवा
सिंधु घाटी के लोग मातृ देवी को किस चीज़ का प्रतीक मानते थे ?
उत्तर-
मातृदेवी को शक्ति का प्रतीक समझा जाता था।

प्रश्न 5.
सिंधु घाटी के लोग किस देवता की सर्वाधिक उपासना करते थे ?
उत्तर-
शिव देवता की।

प्रश्न 6.
सिंधु घाटी के लोग कौन-से देवी एवं देवता की ज्यादा पूजा करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग मातृदेवी एवं शिव जी की ज्यादा पूजा करते थे।

प्रश्न 7.
सिंधु घाटी सभ्यता की शिव जी की योगी के रूप में मिली मूर्ति के कितने मुख हैं ?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 8.
सिंधु घाटी के लोगों द्वारा पूजा किए जाने वाले जानवरों के नाम बताएँ।
अथवा
सिंधु घाटी के लोग किन जानवरों की अधिक पूजा करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोगों द्वारा पूजा किए जाने वाले जानवरों के नाम शेर, हाथी, बैल एवं गैंडा थे।

प्रश्न 9.
सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक किस जानवर की उपासना करते थे ?
उत्तर-
बैल की।

प्रश्न 10.
सिंधु घाटी के लोग वक्षों की उपासना क्यों करते थे ?
उत्तर-
क्योंकि वे उन्हें देवी-देवताओं का निवास स्थान समझते थे।

प्रश्न 11.
सिंधु घाटी के लोग किस वृक्ष को सर्वाधिक पवित्र समझते थे ?
उत्तर-
पीपल के वृक्ष को।

प्रश्न 12.
सिंधु घाटी के लोग कौन-से दो मुख्य वक्षों की पूजा करते थे ?
अथवा
सिंधु घाटी के लोग कौन-से दो वृक्षों की पूजा करते थे ?
उत्तर-
पीपल एवं नीम।

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प्रश्न 13.
सिंधु घाटी के लोग किस पक्षी को पवित्र मान कर पूजते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग घुग्घी को पवित्र मान कर पूजते थे।

प्रश्न 14.
सिंधु घाटी के लोग किस चिन्ह को बहुत पवित्र मानते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग स्वास्तिक चिन्ह को बहुत पवित्र मानते थे।

प्रश्न 15.
सिंधु घाटी के लोग कितने ऋषियों की उपासना करते थे ?
उत्तर-
सप्तऋषि की।

प्रश्न 16.
सप्तऋषियों में से किन्हीं दो ऋषियों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. विशिष्ठ
  2. विश्वामित्र।

प्रश्न 17.
सिंधु घाटी के लोग जल की उपासना क्यों करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग जल को सफाई एवं शुद्धता का प्रतीक समझते थे।

प्रश्न 18.
विशाल स्नानागार हमें कहाँ से प्राप्त हुआ है ?
उत्तर-
मोहनजोदड़ो से।

प्रश्न 19.
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार कैसे करते थे ?
उत्तर-
सिंधु घाटी के लोग अपने मृतकों का संस्कार उन्हें दफना कर करते थे।

प्रश्न 20.
हडप्पा से हमें कितनी कबें मिली हैं?
उत्तर-
57.

प्रश्न 21.
सिंधु घाटी के किस केंद्र से हमें सती प्रथा के प्रचलन के संकेत मिले हैं ?
उत्तर-
लोथल।

प्रश्न 22.
किस बात से यह अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के उपरांत जीवन में विश्वास रखते थे ?
उत्तर-
वे मुर्दो के साथ खाने-पीने की वस्तुओं को भी दफनाते थे।

प्रश्न 23.
प्रारंभिक आर्य किस की उपासना करते थे ?
उत्तर-
प्रकृति तथा उसकी शक्तियों की।

प्रश्न 24.
वैदिक देवताओं से क्या भाव है ?
उत्तर-
वैदिक देवताओं से भाव उन देवताओं से था जो संसार की रचना के पश्चात् अस्तित्व में आए।

प्रश्न 25.
प्रारंभिक आर्यों द्वारा पूजे जाने वाले देवताओं की कुल संख्या बताओ।
उत्तर-
33.

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प्रश्न 26.
वैदिक देवताओं को कितनी श्रेणियों में बाँटा गया है?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 27.
वैदिक देवता कौन थे ?
अथवा
प्रारंभिक आर्यों के मुख्य देवता कौन-कौन है, उन पाँचों के नाम बताएँ ।
अथवा
प्रारंभिक आर्यों के मुख्य देवता कौन थे ?
उत्तर-
वैदिक देवता वरुण, इंद्र, अग्नि, सूर्य एवं रुद्र थे।

प्रश्न 28.
प्रारंभिक आर्यों के दो प्रमुख देवता कौन थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्यों के दो प्रमुख देवता वरुण एवं इंद्र थे।

प्रश्न 29.
वरुण कौन था ?
उत्तर-
वरुण प्रारंभिक आर्यों का सबसे प्रमुख देवता था।

प्रश्न 30.
लोगों का वर्षा का देवता कौन है ?
उत्तर-
आर्य लोगों का वर्षा का देवता इंद्र है।

प्रश्न 31.
प्रारंभिक आर्यों के वर्षा देवता और अग्नि देवता कौन थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्यों का वर्षा देवता इंद्र और अग्नि देवता को अग्नि देवता कहते थे।

प्रश्न 32.
वरुण देवता का कोई एक कार्य बताएँ।
उत्तर-
वह पापियों को सज़ा देता था।

प्रश्न 33.
इंद्र कौन था ?
उत्तर-
इंद्र वैदिक आर्यों का युद्ध एवं वर्षा का देवता था।

प्रश्न 34.
ऋग्वेद में इंद्र की प्रशंसा में कितने मंत्र दिए गए थे ?
उत्तर-
250.

प्रश्न 35.
अग्नि देवता से क्या भाव है ?
उत्तर-
अग्नि देवता का संबंध विवाह तथा दाह संस्कारों से था।

प्रश्न 36.
आर्य लोग किस देवता को घरों का स्वामी मानते थे ?
उत्तर-
आर्य लोग अग्नि देवता को घरों का स्वामी मानते थे।

प्रश्न 37.
ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में कितने मंत्र दिए गए हैं ?
उत्तर-
200.

प्रश्न 38.
प्रारंभिक आर्य सूर्य को किसका पुत्र मानते थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्य सूर्य को आदिती तथा दियोस का पुत्र मानते थे।

प्रश्न 39.
रुद्र कौन था ?
उत्तर-
वह प्रारंभिक आर्यों का तूफ़ान का देवता था।

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प्रश्न 40.
प्रारंभिक आर्यों की दो प्रमुख देवियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
ऊषा तथा पृथ्वी।

प्रश्न 41.
प्रारंभिक आर्य लोग ऊषा को किसकी देवी मानते थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्य लोग ऊषा को सुबह की देवी मानते थे।

प्रश्न 42.
वैदिक देवताओं से किस प्रकार के वरदान की आशा की जाती थी ?
उत्तर-
सफलता, धन की प्राप्ति, संतान में बढ़ौत्तरी तथा लंबे जीवन के वरदान की।

प्रश्न 43.
प्रारंभिक आर्य काल में क्या मानव बलि प्रचलित थी ?
उत्तर-
नहीं।

प्रश्न 44.
प्रारंभिक आर्य लोग देवताओं को प्रसन्न करने के लिए क्या करते थे ?
उत्तर-
यज्ञ।

प्रश्न 45.
प्रारंभिक आर्य काल में यज्ञों के समय जिन जानवरों की बलि दी जाती थी, उनमें से किन्हीं दो के नाम बताएँ।
उत्तर-

  1. घोड़े
  2. बकरियाँ ।

प्रश्न 46.
यज्ञों के समय मंत्र उच्चारण करने वाले पुरोहित क्या कहलाते थे ?
उत्तर-
उदगात्री।

प्रश्न 47.
यज्ञों के समय आहूति देने वाले पुरोहित क्या कहलाते थे?
उत्तर-
होतरी।

प्रश्न 48.
प्रारंभिक आर्य अपने मृतकों का संस्कार कैसे करते थे ?
उत्तर-
प्रारंभिक आर्य अपने मृतकों का दाह-संस्कार करते थे।

प्रश्न 49.
रित से क्या भाव है ?
उत्तर-
रित से भाव उस व्यवस्था से है जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता है।

प्रश्न 50.
धर्मन से क्या भाव है ?
उत्तर-
धर्मन से भाव उन कानूनों से है जो देवताओं द्वारा बनाए जाते थे।

नोट-रिक्त स्थानों की पूर्ति करें—

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक ……… की पूजा करते थे।
उत्तर-
देवी माँ

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के लोग ………….. नामक देवता की पूजा करते थे।
उत्तर-
शिव

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग ………….. वृक्ष की सर्वाधिक पूजा करते थे।
उत्तर-
पीपल

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी के लोग सप्त ऋषि को …………… का प्रतीक मानते थे।
उत्तर-
स्वर्ग

प्रश्न 5.
सिंधु घाटी के लोग जल को ………… का प्रतीक मानते थे।
उत्तर-
शुद्धता

प्रश्न 6.
सिंधु घाटी के लोग मृत्यु के पश्चात् जीवन में विश्वास ………… थे।
उत्तर-
रखते

प्रश्न 7.
प्रारंभिक आर्यों के देवताओं की कुल गिनती ………… थी।
उत्तर-
33

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प्रश्न 8.
प्रारंभिक आर्यों का सबसे बड़ा देवता ……….. था।
उत्तर-
वरुण

प्रश्न 9.
ऋग्वेद में इंद्र देवता की प्रशंसा में ………. मंत्र दिए गए हैं।
उत्तर-
250

प्रश्न 10.
……….. देवता का संबंध विवाह और दाह संस्कार के साथ था।
उत्तर-
अग्नि

प्रश्न 11.
रुद्र को ………….. का देवता समझा जाता था।
उत्तर-
आँधी

प्रश्न 12.
प्रारंभिक आर्य नदी देवी को ………… कहते थे।
उत्तर-
सरस्वती

प्रश्न 13.
उस व्यवस्था को जिसके अनुसार संसार का प्रबंध चलता था ………… कहा जाता था।
उत्तर-
रित

प्रश्न 14.
धर्मन शब्द से भाव ………….. है।
उत्तर-
कानून

प्रश्न 15.
प्रारंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए ………. करते थे।
उत्तर-
यज्ञ

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा ग़लत चुनें—

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोग देवी माँ को कोई विशेष महत्त्व नहीं देते थे।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के लोग शिव देवता की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग मगरमच्छ की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
सिंधु घाटी के लोग पीपल वृक्ष को पवित्र नहीं समझते थे।
उत्तर-
ग़लत

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प्रश्न 5.
सिंधु घाटी के लोग सप्त ऋषियों की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
सिंधु घाटी के लोगों का यज्ञ पूजा में गहरा विश्वास था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
सिंधु घाटी के लोगों का जादू-टोनों और भूत-प्रेतों में बिल्कुल विश्वास नहीं था।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 8.
सिंधु घाटी के लोग सामान्यतः अपने मुर्दो को दफना देते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
आरंभिक आर्यों के देवताओं की कुल संख्या 33 करोड़ थी।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 10.
प्रारंभिक आर्यों के सबसे बड़े देवता का नाम इंद्र था।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 11.
ऋग्वेद में अग्नि देवता की प्रशंसा में 200 मंत्र दिए गए हैं।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
प्रारंभिक आर्य सुबह की देवी ऊषा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
प्रारंभिक आर्यों का ईश्वर की एकता में पूर्ण विश्वास था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
प्रारंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं की याद में मंदिरों का निर्माण करते थे।
उत्तर-
ग़लत

प्रश्न 15.
प्रारंभिक आर्य अपने देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के यज्ञ करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
प्रारंभिक आर्य अपने पितरों की पूजा करते थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 17.
वैदिक साहित्य में स्वस्विक किसी देवते का नाम है।
उत्तर-
ग़लत

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर चुनें—

प्रश्न 1.
सिंधु घाटी के लोग सर्वाधिक किसकी पूजा करते थे ?
(i) शिव की
(ii) देवी माँ की
(iii) वृक्षों की
(iv) साँपों की।
उत्तर-
(i) शिव की

प्रश्न 2.
सिंधु घाटी के लोग किस देवता की पूजा करते थे ?
(i) वरुण की
(ii) इंद्र की
(iii) शिव की
(iv) अग्नि की।
उत्तर-
(iii) शिव की

प्रश्न 3.
सिंधु घाटी के लोग निम्नलिखित में से किस पशु की पूजा नहीं करते थे ?
(i) हाथी
(ii) शेर
(iii) बैल
(iv) घोड़ा।
उत्तर-
(iv) घोड़ा।

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प्रश्न 4.
सिंधु घाटी के लोग निम्नलिखित में से किस वृक्ष को सर्वाधिक पवित्र मानते थे ?
(i) पीपल
(ii) आम
(iii) नीम
(iv) खजूर।
उत्तर-
(i) पीपल

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन सप्तऋषियों में शामिल नहीं थे ?
(i) विश्वामित्र
(ii) विशिष्ठ
(iii) जमदागनी
(iv) इंद्र।
उत्तर-
(iv) इंद्र।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य ग़लत है
(i) सिंधु घाटी के लोग स्वास्तिक की पूजा करते थे।
(ii) सिंधु घाटी के लोग लिंग तथा योनि की पूजा करते थे।
(iii) सिंधु घाटी के लोग जादू-टोनों में विश्वास रखते थे।
(iv) सिंधु घाटी के लोग पितरों की पूजा करते थे।
उत्तर-
(iv) सिंधु घाटी के लोग पितरों की पूजा करते थे।

प्रश्न 7.
सिंधु घाटी के लोग निम्नलिखित में से किसकी पूजा करते थे ?
(i) घुग्गी
(ii) बाज
(iii) कबूतर
(iv) तोता।
उत्तर-
(i) घुग्गी

प्रश्न 8.
प्रारंभिक आर्य कुल कितने देवताओं की पूजा करते थे ?
(i) 11
(ii) 22
(iii) 33
(iv) 44
उत्तर-
(iii) 33

प्रश्न 9.
प्रारंभिक आर्यों का सबसे प्रारंभिक देवता कौन था ?
(i) इंद्र
(ii) वरुण
(iii) अग्नि
(iv) रुद्र।
उत्तर-
(ii) वरुण

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किस देवता की प्रशंसा में ऋग्वेद में सर्वाधिक मंत्र दिए गए हैं ?
(i) वरुण
(ii) इंद्र
(iii) अग्नि
(iv) रुद्र।
उत्तर-
(i) वरुण

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सा देवता वर्षा और युद्ध का देवता माना जाता था ?
(i) सोम
(ii) रुद्र
(iii) सूर्य
(iv) इंद्र।
उत्तर-
(iv) इंद्र।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से कौन-सा देवता विवाह और दाह-संस्कार के साथ संबंधित था ?
(i) अग्नि
(ii) सोम
(iii) वरुण
(iv) विष्णु।
उत्तर-
(i) अग्नि

प्रश्न 13.
प्रारंभिक आर्यों का निम्नलिखित में से कौन-सा देवता आकाश का देवता नहीं था ?
(i) वरुण
(ii) सूर्य
(iii) इंद्र
(iv) मित्र।
उत्तर-
(iii) इंद्र

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प्रश्न 14.
निम्नलिखित में से किस देवी को सुबह की देवी कहा जाता था ?
(i) उमा
(ii) ऊषा
(iii) रात्रि
(iv) सरस्वती।
उत्तर-
(ii) ऊषा

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 3 खनिज एवं ऊर्जा संसाधन

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 3 खनिज एवं ऊर्जा संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Geography Chapter 3 खनिज एवं ऊर्जा संसाधन

SST Guide for Class 8 PSEB खनिज एवं ऊर्जा संसाधन Textbook Questions and Answers

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 20-25 शब्दों में लिखो :

प्रश्न 1.
खनिज पदार्थों की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
खनिज पदार्थ वे प्राकृतिक पदार्थ हैं जो एक या अधिक तत्त्वों से बने हों। ये पृथ्वी के भीतरी भाग में पाये जाते हैं। इनकी एक विशेष रासायनिक बनावट होती है। ये अपने भौतिक तथा रासायनिक गुणों से पहचाने जाते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में कच्चा लोहा कहाँ-कहाँ से प्राप्त होता है ?
उत्तर-
भारत में कच्चा लोहा, कर्नाटक, बिहार, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, गोआ, सीमांध्र, छत्तीसगढ़, झारखंड तथा । तमिलनाडु राज्यों में पाया जाता है। झारखंड में सिंहभूम, उड़ीसा में मयूरभंज, छत्तीसगढ़ में दुर्ग और बस्तर तथा कर्नाटक के मैसूर, बैलाड़ी एवं मारवाड़ क्षेत्र बढ़िया किस्म के कच्चे लोहे के लिए प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 3.
तांबे का प्रयोग कहाँ-कहाँ किया जाता है ?
अथवा
तांबे के क्या उपयोग हैं ?
उत्तर-
तांबे का प्रयोग बर्तन, सिक्के, बिजली की तारें तथा बिजली के उपकरण बनाने में किया जाता है। नर्म तथा बढ़िया धातु होने के कारण तांबे की बारीक शीट्स भी बनाई जा सकती है।

प्रश्न 4.
भारत की सोने की प्रसिद्ध खानों के नाम लिखो।
उत्तर-
भारत में सोने की प्रसिद्ध खाने कोलार, हट्टी और रामगिरी हैं। .

प्रश्न 5.
परमाणु पदार्थों का प्रयोग हमें किस प्रकार करना चाहिए ?
उत्तर-
परमाणु पदार्थों का प्रयोग हमें बहुत सावधानी से करना चाहिए। इन्हें देश की उन्नति के लिए प्रयोग में लाया जाना चाहिए न कि विनाश या प्रदूषण के लिए।

प्रश्न 6.
शक्ति (ऊर्जा) के नवीन अथवा गैर परम्परागत संसाधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
शक्ति के नवीन संसाधन पन-विद्युत्, सौर ऊर्जा, वायु शक्ति, भू-तापी ऊर्जा तथा ज्वारीय ऊर्जा हैं।

प्रश्न 7.
कोयले की चार किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
(1) एंथेसाइट . (2) बिटुमिनियस (3) लिगनाइट (4) पीट।

प्रश्न 8.
बहु-उद्देशीय प्रोजेक्ट क्या होते हैं ?
उत्तर-
पन-विद्युत् (जल-विद्युत्) बनाने के लिए बनाये गए डैम या प्रोजेक्ट बहुउद्देश्यीय प्रोजेक्ट कहलाते हैं। ये एक से अधिक उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं।

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II. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 70-75 शब्दों में लिखो :

प्रश्न 1.
कच्चा लोहा प्रायः किन देशों में पाया जाता है ? इनकी किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
देश-कच्चा लोहा रूस और उसके पड़ोसी देशों, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में बड़ी मात्रा में पाया जाता है। संसार का 55% कच्चा लोहा भारत पैदा करता है। किस्में-कच्चा लोहा प्रायः चार प्रकार का होता है(1) मैगनेटाइट (2) हैमेटाइट (3) लिमोनाइट (4) साइडराइट।

प्रश्न 2.
बॉक्साइट के महत्त्व पर नोट लिखो।
उत्तर-
बॉक्साइट एक महत्त्वपूर्ण कच्ची धातु है जिसे एल्यूमीनियम से बनाया जाता है। यह चिकनी मिट्टी जैसी धातु है जिसका रंग सफ़ेद तथा हल्का गुलाबी होता है। इसका प्रयोग बहुत-से उद्योगों में किया जाता है। बर्तन, बिजली की तारें, मोटर कारें, रेल-गाड़ियां, समुद्री जहाज़ तथा हवाई जहाज़ आदि सभी उद्योगों में बॉक्साइट अथवा एल्यूमीनियम का प्रयोग होता है। प्रयोग में इसने तांबे तथा टीन जैसी धातुओं को काफ़ी पीछे छोड़ दिया है।

प्रश्न 3.
प्राकृतिक गैस का हमारे जीवन में क्या महत्त्व है और इसके मुख्य क्षेत्र हमारे देश में कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
प्राकृतिक गैस पेट्रोलियम पदार्थों से प्राप्त होती है। जब कोई तेल का कुआं खोदा जाता है तो सबसे ऊपर प्राकृतिक गैस ही मिलती है।
महत्त्व-प्राकृतिक गैस का प्रयोग घरों, वाहनों तथा कई उद्योगों में होता है। मुख्य क्षेत्र-संसार के सभी तेल उत्पादक देशों में प्राकृतिक गैस भी मिलती है। भारत के भी कई क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस मिलती है। इन क्षेत्रों में कृष्णा-गोदावरी बेसिन, उड़ीसा के समीप बंगाल की खाड़ी तथा राजस्थान के बाड़मेर क्षेत्र शामिल हैं। इसके अतिरिक्त गुजरात के खंभात और कच्छ क्षेत्र तथा त्रिपुरा में भी प्राकृतिक गैस मिलने की सम्भावना है। देश की लगभग 75% प्राकृतिक गैस बॉम्बे हाई से पैदा होती है।

प्रश्न 4.
जल-विद्युत् तैयार करने के लिए आवश्यक तत्त्वों के बारे में लिखें।
उत्तर-
जल-विद्युत् तैयार करने के लिए निम्नलिखित तत्त्व आवश्यक हैं(1) जल पूरा वर्ष बहता हो। (2) विद्युत् तैयार करने के लिए आवश्यकता अनुसार जल उपलब्ध हो। (3) जल के मार्ग में ज़रूरी ढलान या बांध बनाने के लिए उचित ऊंचाई हो। (4) बांध के पीछे बड़े जल भण्डार अथवा बड़ी झील के लिए पर्याप्त स्थान हो। (5) बांध बनाने, विद्युत् घरों का निर्माण करने तथा बिजली की लाइनें खींचने के लिए आवश्यक पूंजी उपलब्ध हो। (6) आसपास के क्षेत्र में बिजली की मांग हो।

III. नीचे लिखे प्रश्न का उत्तर लगभग 250 शब्दों में दो :

प्रश्न-
शक्ति (ऊर्जा) संसाधन कौन-कौन से हैं? किसी देश के विकास में इनका क्या योगदान है ? किन्हीं दो शक्ति संसाधनों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
उत्तर-
मानव को भिन्न-भिन्न कार्य करने के लिए शक्ति अथवा ऊर्जा प्रदान करने वाले संसाधनों को शक्ति संसाधन कहा जाता है। इनमें कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि शामिल हैं। मानव इन संसाधनों का प्रयोग घर में चूल्हे से लेकर बड़े-बड़े उद्योग चलाने के लिए करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शक्ति संसाधन किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार हैं। ये यातायात के संसाधनों के विकास के लिए भी आवश्यक हैं।
दो महत्त्वपूर्ण शक्ति संसाधन-कोयला तथा पेट्रोलियम दो अति महत्त्वपूर्ण शक्ति संसाधन हैं। इनका वर्णन इस प्रकार है-

1. कोयला-कोयला काले या भूरे रंग का एक जैविक पदार्थ है। यह एक ज्वलनशील पदार्थ है। इसे ताप और प्रकाश दोनों कार्यों के लिए उपयोग में लाया जाता है। इससे कई उद्योग तथा रेलगाड़ियां चलाई जाती हैं। कोयले का प्रयोग तापघरों में बिजली बनाने के लिए भी किया जाता है। – किस्में-कोयले की चार मुख्य किस्में हैं-एंथेसाइट, बिटुमिनियस, लिगनाइट तथा पीट। इनमें से एंथेसाइट सबसे बढ़िया तथा पीट सबसे घटिया कोयला होता है।

कोयले का वितरण-कोयला संसार के बहुत-से देशों में पाया जाता है। यू० एस० ए० संसार का सबसे अधिक कोयला पैदा करता है। इसके बाद चीन, रूस, पोलैण्ड तथा यू० के० का स्थान है। कोयले के उत्पादन में भारत का छठा स्थान है। यह संसार का लगभग 4% कोयला उत्पन्न करता है। यहां कोयला बहुत-से राज्यों में मिलता है। झारखण्ड राज्य का कोयले के भण्डारों तथा उत्पादन दोनों में पहला स्थान है। यह देश का लगभग 23% कोयला पैदा करता है। कोयला उत्पन्न करने वाले भारत के अन्य राज्य छत्तीसगढ़, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, सीमांध्र, पश्चिमी बंगाल, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, असम, बिहार आदि हैं। मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड आदि राज्य भी काफ़ी कोयला पैदा करते हैं।

2. पेट्रोलियम-पेट्रोलियम को खनिज तेल तथा चट्टानी तेल भी कहा जाता है। यह पृथ्वी की परतदार चट्टानों में मिलता है। आज के मशीनी युग में इसके महत्त्व को देखते हुए इसे ‘तरल सोने’ का नाम दिया गया है। इसका प्रयोग मशीनों तथा यातायात के साधनों में किया जाता है। स्कूटर से लेकर वायुयान तक यातायात के सभी साधन पेट्रोलियम पर निर्भर करते हैं।

ऐसा माना जाता है कि पेट्रोलियम एक जैविक पदार्थ है जो पौधों तथा मृत जीवों के गलने-सड़ने से बनता है। पृथ्वी से जो खनिज तेल प्राप्त होता है, उसे कच्चा तेल (Crude Oil) कहते हैं। प्रयोग करने से पहले इसे तेल शोधक उद्योगों में साफ़ किया जाता है।
वितरण-खनिज तेल संसार के बहुत-से देशों में मिलता है। यू० एस० ए०, रूस और उसके पड़ोसी देश तथा चीन इसके सबसे बड़े उत्पादक हैं। ईरान, इराक, सऊदी अरब, बहरीन, कुवैत आदि मध्य-पूर्वी देश भी तेल में बहुत अधिक धनी हैं। ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका तथा दक्षिण अमेरिका महाद्वीपों के कई देशों में भी तेल निकाला जाता है।

तेल के उत्पादन में भारत की स्थिति अच्छी नहीं है। यहां प्रति वर्ष तेल का उत्पादन लगभग 33.4 मिलियन टन है। देश में तेल उत्पन्न करने वाले मुख्य राज्य असम, अरुणाचल प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान आदि हैं।

PSEB 8th Class Social Science Guide खनिज एवं ऊर्जा संसाधन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :

1. ………… संसार का सबसे अधिक कोयला पैदा करता है।
2. भारत में ………….. राज्य कोयले के भंडार तथा उत्पादन में पहले स्थान पर है।
3. तेल का कुआं खोदने पर सबसे ऊपर ………….. मिलती है।
उत्तर-

  1. यू०एस०ए०,
  2. झारखंड,
  3. प्राकृतिक गैस।

(ख) सही कथनों पर (✓) तथा गलत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं :

1. जल शक्ति पुनः उत्पादित न हो सकने वाला संसाधन है।
2. ज्वारभाटा भविष्य में प्रयोग होने वाला एक शक्ति साधन है।
3. दक्षिण अफ्रीका संसार में सबसे अधिक सोना पैदा करता है।
उत्तर-

  1. ✗,
  2. ✓,
  3. ✓.

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 3 खनिज एवं ऊर्जा संसाधन

(ग) सही उत्तर चुनिए:

प्रश्न 1.
भारत में कौन-सा राज्य सबसे अधिक सोना पैदा करता है ?
(i) आंध्र प्रदेश
(ii) केरल
(iii) झारखंड
(iv) कर्नाटक।
उत्तर-
कर्नाटक

प्रश्न 2.
पैट्रोलियम या कच्चा तेल किस प्रकार की चट्टानों में से निकलता है ?
(i) परतदार.
(ii) आग्नेय
(iii) कायांतरित
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
परतदार,

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा परमाणु खनिज नहीं है ?
(i) चूना पत्थर
(ii) यूरेनियम
(iii) थोरियम
(iv) बेरेलियम।
उत्तर-
चूना पत्थर ।.

(घ) सही जोड़े बनाइए:

1. बंबई हाई – एंथेसाइट
2. सबसे बढ़िया कोयला – प्राकृतिक गैस
3. सबसे घटिया कोयला – पैट्रोलियम
4. तरल सोना – पीट
उत्तर-

  1. प्राकृतिक गैस,
  2. एंथेसाइट,
  3. पीट,
  4. पैट्रोलियम।

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खनिज पदार्थों को कौन-कौन सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है? प्रत्येक के दो-दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
खनिज पदार्थों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बांटा जाता है(1) धातु खनिज-कच्चा लोहा, टंगस्टन आदि (2) अधातु खनिज-हीरा, जिप्सम आदि (3) परमाणु खनिज-यूरेनियम, थोरियम आदि।

प्रश्न 2.
लौह धातु खनिजों तथा बिना लौह धातु खनिजों में अन्तर “पष्ट कीजिए।
उत्तर-
जिन खनिजों में लोहे का अंश पाया जाता है उन्हें लौह धातु खनिज तथा जिन खनिजों में लोहे का अंश नहीं पाया जाता उन्हें बिना लौह धातु खनिज कहा जाता है। कच्चा लोहा, मैंगनीज़, करोमाइट, टंगस्टन धातु खनिज पदार्थ हैं, जबकि सिक्का, बॉक्साइट, टीन, मैग्नीशियम आदि बिना लौह धातु खनिज पदार्थ हैं।

प्रश्न 3.
मैंगनीज़ के क्या उपयोग हैं?
उत्तर-

  • मैंगनीज़ लोहा और स्टील बनाने के काम आता है। इसका सबसे अधिक प्रयोग लोहे का मिश्रण बनाने में होता है।
  • मैंगनीज़ ब्लीचिंग पाऊडर, कीटनाशक दवाइयां, पेंट, बैटरियां आदि बनाने में भी काम आता है।

प्रश्न 4.
मैंगनीज़ के उत्पादन में भारत का संसार में कौन-सा स्थान है? भारत में यह कहां-कहां निकाला जाता है?
उत्तर-
मैंगनीज़ के उत्पादन में भारत का संसार में दूसरा स्थान है। भारत में मैंगनीज़ मुख्य रूप से कर्नाटक, उड़ीसा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल तथा गोवा में निकाला जाता है।

प्रश्न 5.
कांसा (Bronze) क्या होता है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर-
कांसा एक मज़बूत तथा कठोर पदार्थ है। इसे टीन के साथ मिलाकर बनाया जाता है। कांसे का प्रयोग औज़ार तथा हथियार बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 6.
संसार में तांबा कहां-कहां पाया जाता है ? भारत में तांबे के मुख्य क्षेत्र बताओ। (V. Imp.)
उत्तर-
संसार में तांबा मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, चिली, जांबिया, कनाडा तथा जायरे में पाया जाता है। भारत में तांबे के मुख्य क्षेत्र सिंहभूम (झारखण्ड), बालाघाट (मध्य प्रदेश) और झंझनु तथा अलवर (राजस्थान) हैं।

प्रश्न 7.
भारत में बॉक्साइट के दो प्रमुख राज्य कौन-से हैं ? इन राज्यों के दो-दो तांबा उत्पादक क्षेत्र भी बताइए।
उत्तर-
भारत के दो प्रमुख बॉक्साइट उत्पादक राज्य उड़ीसा तथा गुजरात हैं। उड़ीसा में कालाहांडी तथा कोरापुट और गुजरात में जामनगर तथा जूनागढ़ तांबा उत्पन्न करने वाले मुख्य क्षेत्र हैं।

प्रश्न 8.
सोने के क्या उपयोग हैं?
उत्तर-
सोना एक बहुमूल्य धातु है। इसके निम्नलिखित उपयोग हैं(1) इससे ज़ेवर तथा विभिन्न प्रकार की सजावटी वस्तुएं बनाई जाती हैं। (2) इसका प्रयोग सोने की परत चढ़ाने, दांतों की सजावट तथा कुछ दवाइयां बनाने में भी होता है।

प्रश्न 9.
कौन-सा देश संसार का सबसे अधिक सोना पैदा करता है? यह कुल सोने का कितना भाग पैदा करता है?
उत्तर-
संसार का सबसे अधिक सोना दक्षिण अफ्रीका पैदा करता है। यह संसार के कुल सोने का लगभग 70 प्रतिशत भाग पैदा करता है।

प्रश्न 10.
अबरक (अभ्रक) क्या होता है ? इसका प्रयोग बिजली का सामान बनाने में क्यों किया जाता है?
उत्तर-
अभ्रक एक काला, भूरा या सफ़ेद रंग का पारदर्शी पदार्थ होता है। यह एक अधातु खनिज पदार्थ है। यह विद्युत् का कुचालक होता है। इसलिए इसका प्रयोग बिजली का सामान बनाने में किया जाता है।

प्रश्न 11.
शक्ति के पुराने संसाधनों तथा नये साधनों में अन्तर बताइए।
उत्तर-
शक्ति के पुराने संसाधनों में कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि शामिल हैं। ये समाप्त होने वाले संसाधन हैं। दूसरी ओर सूर्य ऊर्जा, वायु शक्ति, समुद्री लहरें, ज्वार भाटा, भूमिगत ताप ऊर्जा, गोबर शक्ति के नये संसाधन – हैं। ये संसाधन सस्ते, दोबारा पैदा होने वाले तथा प्रदूषण रहित हैं।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 3 खनिज एवं ऊर्जा संसाधन

प्रश्न 12.
प्राकृतिक संसाधनों की सम्भाल कैसे की जानी चाहिए?
उत्तर-
प्राकृतिक संसाधनों का प्रयोग आवश्यकता के अनुसार तथा उचित ढंग से करना चाहिए। किसी भी संसाधन का व्यर्थ प्रयोग नहीं करना चाहिए। इन संसाधनों का प्रयोग करते समय आने वाली पीढ़ियों का भी ध्यान रखना चाहिए।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
संसार तथा भारत में अबरक की पैदावार के बारे में लिखें।
उत्तर-
संसार में अबरक पैदा करने वाले मुख्य देश यू० एस० ए०, रूस, भारत, फ्रांस, अर्जेन्टाइना तथा दक्षिणी …… कोरिया हैं। पैदावार के अनुसार भारत इनमें सब से आगे रहा है। परन्तु इस समय हमारे देश में अबरक की पैदावार कम हो रही है। पैदावार कम होने के दो मुख्य कारण हैं-विदेशों में इसकी मांग कम होना तथा इसके स्थान पर प्लास्टिक जैसे पदार्थों का बढ़ता हुआ उपयोग।

भारत में अबरक की कुल पैदावार का 90% भाग चार राज्यों सीमांध्र, तेलंगाना, राजस्थान तथा झारखंड से प्राप्त होता है। बिहार, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश आदि राज्य भी अबरक पैदा करते हैं। देश के मुख्य अबरक उत्पादक जिले नालौर, विशाखापट्टनम, कृष्णा, जयपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, गया तथा हजारीबाग हैं।

प्रश्न 2.
परमाणु ऊर्जा क्या होती है? भारत में परमाणु खनिज पैदा करने वाले प्रदेशों के नाम बताएं।
उत्तर-
परमाणु खनिज पदार्थों से पैदा की जाने वाली ऊर्जा (शक्ति) को परमाणु ऊर्जा कहते हैं। इन खनिज पदार्थों में यूरेनियम, थोरियम (थयोरियम), लीथियम आदि शामिल हैं। भारत में ये खनिज पैदा करने वाले मुख्य प्रदेश निम्नलिखित हैं

  • यूरेनियम-सिंहभूम, हजारीबाग (झारखण्ड), गया (बिहार), सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) तथा उदयपुर (राजस्थान)।
  • थयोरियम-केरल, झारखण्ड, बिहार, राजस्थान और तमिलनाडु राज्य।
  • लीथियम-झारखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ तथा केरल राज्य।

प्रश्न 3.
पन विद्युत् के अतिरिक्त शक्ति के नये (गैर-परम्परागत) साधन कौन-कौन से हैं ? उनकी संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
पन विद्युत् के अतिरिक्त ऊर्जा के अन्य नये साधन सौर ऊर्जा, वायु शक्ति, भू-तापी ऊर्जा, ज्वारभाटा आदि

  • सौर ऊर्जा से भी विद्युत् पैदा करने के प्रयोग चल रहे हैं।
  • बहती हुई वायु को हम पवन कहते हैं। इस वायु शक्ति से भी विद्युत् पैदा करने के प्रयास चल रहे हैं।
  • भू-तापी शक्ति (Geo-thermal Energy) कई प्रकार से उपयोग में लाई जा सकती है। इसे प्रायः घरों को गर्म रखने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। रूस, जापान तथा न्यूज़ीलैण्ड जैसे देशों में तो भू-तापी ऊर्जा से विद्युत् भी तैयार की जा रही है।
  • ज्वारभाटा (Tides) भी शक्ति का एक साधन है जिसे भविष्य में शक्ति संसाधन के रूप में प्रयोग किया जायेगा।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न-
पन विद्युत् क्या होती है? यह कैसे पैदा की जाती है ? संसार तथा भारत में पन विद्युत् के उत्पादन के बारे में लिखें।
उत्तर-
पानी (जल) द्वारा पैदा की जाने वाली विद्युत् को पन विद्युत् कहते हैं। नदियों पर बांध बनाकर जल को सुरंगों के मार्ग से भेजकर टर्बाइनें घुमायी जाती हैं। टर्बाइनों के घूमने पर घर्षण के साथ विद्युत् पैदा होती है।

पन विद्युत् का उत्पादन-संसार के बहुत-से देशों में काफ़ी मात्रा में पानी उपलब्ध है। अत: ये देश बड़ी मात्रा में पन विद्युत् का उत्पादन करते हैं। इन देशों में यू० एस० ए०, रूस, जापान, जर्मनी, कनाडा, इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, पोलैंड, ब्राज़ील तथा भारत शामिल हैं। संसार की 31% पन विद्युत् केवलं यू० एस० ए० उत्पन्न करता है।

भारत में पन विद्युत् का उत्पादन-भले ही भारत में जल संसाधनों की कमी नहीं है, तो भी भारत संसार की कुल पन-विद्युत् का केवल 1% भाग ही पैदा करता है। भारत के जल संसाधन नदियों तथा नहरों के रूप में विद्यमान हैं। इन्हें मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है

  1. उत्तरी भारत अथवा हिमालय पर्वत से निकली नदियां ।
  2. दक्षिण भारत की नदियां।

भारत के उत्तर दिशा की ओर से आने वाली गंगा, ब्रह्मपुत्र और उनकी सहायक नदियां हिमालय की बर्फ पिघलने के कारण सारा साल बहती रहती हैं। इनमें पन विद्युत् पैदा करने की बहुत अधिक क्षमता है। उत्तरी भारत में मिलने वाले इन जल साधनों की क्षमता भारत के कुल सम्भावित जल विद्युत् संसाधन का 18% से भी अधिक है। दूसरी ओर दक्षिण भारत की नदियां वर्षा पर निर्भर करती हैं। इन सभी नदियों की पन विद्युत् तैयार करने की सम्भावित क्षमता कम है।

वितरण-गोआ को छोड़कर भारत के सभी राज्य पन विद्युत् पैदा करते हैं। आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब, तमिलनाडु, उड़ीसा तथा केरल राज्यों के पास पनविद्युत् तैयार करने की सम्भावित क्षमता बहुत अधिक है। उत्तराखंड तथा हिमाचल प्रदेश जैसे पर्वतीय राज्य पन विद्युत् के सम्भावित संसाधनों में बहुत अधिक धनी हैं। इसलिए इन साधनों को विकसित करने की आवश्यकता है।

  • कर्नाटक में नागा-अर्जुन सागर बांध
  • उत्तर प्रदेश में गंगा इलेक्ट्रिक ग्रिड सिस्टम
  • महाराष्ट्र में टाटा हाइड्रो इलेक्ट्रिक ग्रिडं
  • उड़ीसा में हीराकुड बांध
  • हिमाचल प्रदेश के मंडी में स्थित पंडोह प्रोजेक्ट तथा भाखड़ा बांध पन-विद्युत् पैदा करने वाले महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 समानता

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 7 समानता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 7 समानता

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
समानता का क्या अर्थ है ? स्वतन्त्रता एवं समानता के बीच सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
(What is the meaning of equality ? Discuss the relationship between liberty and equality.)
उत्तर-
समानता का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व है। स्वतन्त्रता की प्राप्ति की तरह मनुष्य में समानता की प्राप्ति की इच्छा सदा रही है। समानता की प्राप्ति के लिए मनुष्य को बहुत संघर्ष करना पड़ा है। प्राचीन काल में दास-प्रथा प्रचलित थी जिसके कारण असमानता स्वाभाविक थी। ‘अमेरिका की स्वाधीनता घोषणा’ (American Declaration of Independence) में कहा गया, “सब मनुष्य स्वतन्त्र तथा समान बनाए गए हैं।” फ्रांस की क्रान्ति के पश्चात् ‘अधिकारों के घोषणा-पत्र’ में कहा गया “मनुष्य स्वतन्त्र पैदा हुए हैं और वे अपने अधिकारों के विषय में भी स्वतन्त्र और समान रहते हैं।” (“Men are born free and always continue free and equal in respect of their right.”) 19वीं शताब्दी के अन्त में तथा 20वीं शताब्दी के आरम्भ में प्रायः सभी राज्यों में समानता का अधिकार लिखा गया है।

समानता का अर्थ (Meaning of Equality)-
साधारण शब्दों में समानता का यह अर्थ लिया जाता है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और सभी को समान वेतन मिलना चाहिए। इस मत के समर्थकों का कहना है कि प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान बनाया है और यह प्रकृति की इच्छा है कि वे समान रहें। इस विचार का समर्थन अमेरिका की स्वतन्त्रता की घोषणा तथा फ्रांस के अधिकारों के घोषणा-पत्र में किया गया है। परन्तु यह विचार ठीक नहीं है। प्रकृति ने सब मनुष्यों को समान नहीं बनाया। कोई व्यक्ति शारीरिक दृष्टि से शक्तिशाली है तो कोई कमज़ोर, कोई सुन्दर है तो कोई कुरूप, कोई बुद्धिमान् है तो कोई मूर्ख तथा सभी व्यक्तियों के समान विचार नहीं होते।

प्रकृति ने मनुष्य में असमनाताएं उत्पन्न की हैं, परन्तु सभी मनुष्यों में मौलिक समानताएं होती हैं। समानता का अर्थ है, मनुष्यों की मौलिक समानताएं समाज की असमानताओं से नष्ट होनी चाहिएं। समाज में पाई जाने वाली असमानताओं को दूर करके सभी को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएं। किसी भी मनुष्य के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेद नहीं होना चाहिए।

समाज के अन्दर सभी व्यक्तियों को उन्नति के लिए समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएं। प्रत्येक व्यक्ति को समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं ताकि वह अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास कर सके। समानता का सही अर्थ यह है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर अपना विकास कर सके और इसके लिए विशेषाधिकार की समाप्ति होनी चाहिए अर्थात् सभी को उन्नति के समान अवसर मिलने चाहिएं।

बार्कर (Barker) के अनुसार, “समानता के सिद्धान्त का यह अभिप्राय: है कि अधिकारों के रूप में जो सुविधाएं मुझे प्राप्त हैं, वे उसी रूप में अन्य व्यक्तियों को प्राप्त होंगी और जो अधिकार अन्य को प्रदान किए गए हैं वे मुझे भी दिए जाएंगे।”

प्रो० लॉस्की ने समानता की परिभाषा बिल्कुल ठीक की है। उन्होंने लिखा है, “समानता का यह अर्थ नहीं कि प्रत्येक के साथ एक-जैसा व्यवहार किया जाए अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए। यदि एक ईंटें ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ अथवा वैज्ञानिक के समान कर दिया गया, तो इससे समाज में समानता का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा, इसीलिए समानता का यह अर्थ है कि विशेषाधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों।” समानता की उपर्युक्त विवेचना के आधार पर हम कह सकते हैं कि समानता की अग्रलिखित विशेषताएं हैं-

  1. विशेष अधिकारों का अभाव-समानता की प्रथम विशेषता यह है कि समाज में किसी वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होते।
  2. उन्नति के समान अधिकार-समानता की द्वितीय विशेषता यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर अपनी उन्नति कर सके। किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग तथा धन के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाता।
  3. प्राकृतिक असमानताओं का नाश-समानता की तृतीय विशेषता यह है कि समाज में प्राकृतिक असमानताओं को नष्ट किया जाता है। यदि समाज में प्राकृतिक असमानताएं रहेंगी तो समानता के अधिकार का कोई लाभ नहीं है।
  4. सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति-समानता की यह भी विशेषता है कि समाज के सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए।
  5. कानून के समक्ष समानता–समानता की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह है कि सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान हैं और कोई व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है।

स्वतन्त्रता और समानता में सम्बन्ध (Relationship between Liberty and Equality)-

समानता और स्वतन्त्रता लोकतन्त्र के मूल तत्त्व हैं। व्यक्ति के विकास के लिए स्वतन्त्रता तथा समानता का विशेष महत्त्व है। बिना स्वतन्त्रता और समानता के मनुष्य अपना विकास नहीं कर सकता। परन्तु स्वतन्त्रता और समानता के सम्बन्धों पर विद्वान् एकमत नहीं हैं। कुछ विचारकों का विचार है कि स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं जबकि कुछ विचारकों के अनुसार स्वतन्त्रता तथा समानता में गहरा सम्बन्ध है और स्वतन्त्रता की प्राप्ति के बिना समानता स्थापित नहीं की जा सकती अर्थात् एक के बिना दूसरे का कोई महत्त्व नहीं है।

स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं (Liberty and Equality are opposed to each other)-

कुछ विचारकों के अनुसार, स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं और एक ही समय पर दोनों की प्राप्ति नहीं की जा सकती है। टाक्विल तथा लॉर्ड एक्टन इस विचारधारा के मुख्य समर्थक हैं। इन विद्वानों के मतानुसार जहां स्वतन्त्रता है वहां समानता नहीं हो सकती और जहां समानता है वहां स्वतन्त्रता नहीं हो सकती। इन विचारकों ने निम्नलिखित आधारों पर स्वतन्त्रता तथा समानता को विरोधी माना है-

  • सभी मनुष्य समान नहीं हैं (All men are not Equal)-इन विचारकों के अनुसार असमानता प्रकृति की देन है। कुछ व्यक्ति जन्म से ही शक्तिशाली होते हैं तथा कुछ कमज़ोर। कुछ व्यक्ति जन्म से ही बुद्धिमान् होते हैं तथा कुछ मूर्ख। अतः मनुष्य में असमानताएं प्रकृति की देन हैं और इन असमानताओं के होते हुए सभी व्यक्तियों को समान समझना अन्यायपूर्ण तथा अनैतिक है।
  • आर्थिक स्वतन्त्रता और समानता परस्पर विरोधी हैं (Economic Liberty and Equality are opposed to each other)-व्यक्तिवादी सिद्धान्त के आधार पर भी स्वतन्त्रता तथा समानता को परस्पर विरोधी माना जाता है। व्यक्तिवादी सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को आर्थिक क्षेत्र में पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए तथा आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्र प्रतियोगिता होनी चाहिए। यदि स्वतन्त्र प्रतियोगिता को अपनाया जाए तो कुछ व्यक्ति अमीर हो जाएंगे, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ेगी और यदि आर्थिक समानता की स्थापना की जाए तो व्यक्ति का स्वतन्त्र व्यापार का अधिकार समाप्त हो जाता है। आर्थिक समानता तथा स्वतन्त्रता परस्पर विरोधी हैं और एक समय पर दोनों की स्थापना नहीं की जा सकती।
  • समान स्वतन्त्रता का सिद्धान्त अनैतिक है ( The theory of equal Liberty is immoral)-सभी व्यक्तियों की मूल योग्यताएं समान नहीं होती। इसलिए सबको समान अधिकार अथवा स्वतन्त्रता प्रदान करना अनैतिक अन्याय है।
  • प्रगति में बाधक (Checks the Progress)-यदि स्वतन्त्रता के सिद्धान्त को समानता के आधार पर लागू किया जाए तो इससे व्यक्तित्व तथा समाज को समान रूप दे दिए जाते हैं जिससे योग्य तथा अयोग्य व्यक्ति में अन्तर करना कठिन हो जाता है। इससे योग्य व्यक्ति को अपनी योग्यता दिखाने का अवसर नहीं मिलता।

स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी नहीं हैं (Liberty and Equality are not opposed to each other)-

अधिकांश विचारकों के अनुसार स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के सहयोगी हैं। आजकल इस बात को मानने के लिए कोई तैयार नहीं होता कि स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं। वास्तव में ये दोनों एकदूसरे के पूरक हैं। समानता के अभाव में स्वतन्त्रता व्यर्थ है। आर० एच० टानी (R.H. Towny) का कथन है, “समानता स्वतन्त्रता की विरोधी न होकर इसके लिए आवश्यक है।” जो विचारक स्वतन्त्रता तथा समानता को विरोधी मानते हैं, उन्होंने स्वतन्त्रता तथा समानता का गलत अर्थ लिया है। उन्होंने स्वतन्त्रता का अर्थ पूर्ण स्वतन्त्रता तथा प्रतिबन्धों का अभाव लिया है। परन्तु समाज में व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं दी जा सकती। सामाजिक हितों की रक्षा के लिए यह आवश्यक है कि मनुष्य की स्वतन्त्रता पर उचित तथा न्यायपूर्ण प्रतिबन्ध लगाए जाएं।

इसी प्रकार इन विचारकों ने समानता का अर्थ यह लिया है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए तथा सभी का सम्मान मिलना चाहिए। परन्तु समानता का यह अर्थ गलत है। समानता का अर्थ है-सभी व्यक्तियों को उन्नति के लिए समान अवसर तथा सुविधाएं प्रदान की जाएं। किसी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग तथा धन के आधार पर भेद नहीं किया जाना चाहिए। सभी व्यक्तियों को रोज़ी कमाने के समान अवसर मिलने चाहिएं।

  • दोनों का विकास एक साथ हुआ है (Both have grown simultaneously)-स्वतन्त्रता और समानता का सम्बन्ध जन्म से है। जब निरंकुशता और असमानता के विरुद्ध मानव ने आवाज़ उठाई और क्रान्तियां हुईं, तो स्वतन्त्रता और समानता के सिद्धान्तों का जन्म हुआ। इस प्रकार इन दोनों में रक्त सम्बन्ध है।
  • दोनों प्रजातन्त्र के आधारभूत सिद्धान्त हैं ( Both are Basic Principles of Democracy)-स्वतन्त्रता तथा समानता का विकास प्रजातन्त्र के साथ हुआ है। प्रजातन्त्र के दोनों मूल सिद्धान्त हैं। दोनों के बिना प्रजातन्त्र की स्थापना नहीं की जा सकती।
  • दोनों के रूप समान हैं (Both are having same form)-स्वतन्त्रता और समानता के प्रकार एक ही हैं और उनके अर्थों में भी कोई विशेष अन्तर नहीं है। प्राकृतिक स्वतन्त्रता तथा प्राकृतिक समानता का अर्थ प्रकृति द्वारा प्रदान की गई स्वतन्त्रता अथवा समानता है। नागरिक स्वतन्त्रता का अर्थ समान नागरिक अधिकारों की प्राप्ति है। इसी प्रकार दोनों के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि रूप हैं।
  • दोनों के उद्देश्य एक ही हैं (Aims are the same)-दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है-व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएं प्रदान करना ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके। एक के बिना दूसरे का उद्देश्य पूरा नहीं होता । आशीर्वादम (Ashirvatham) ने दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध बताया है। उन्होंने लिखा है, “फ्रांस के क्रान्तिकारियों ने जब स्वतन्त्रता, समानता तथा भाईचारे को अपने युद्ध का नारा बनाया तो वे न पागल थे और न ही मूर्ख।” इस प्रकार स्पष्ट है कि समानता तथा स्वतन्त्रता में गहरा सम्बन्ध है।
  • आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है (Political Liberty is meaningless in the absence of economic equality)-स्वतन्त्रता तथा समानता में गहरा सम्बन्ध ही नहीं है, बल्कि आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई मूल्य नहीं है। राजनीतिक स्वतन्त्रता की स्थापना के लिए पहले आर्थिक समानता की स्थापना करना आवश्यक है। जिस समाज में आर्थिक असमानता है वहां ग़रीब व्यक्ति की राजनीतिक स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती।

जिस देश में नागरिकों को आर्थिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती वहां नागरिक अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता का प्रयोग नहीं कर पाते। एक नागिरक जो अपने मालिक की दया पर हो, शीघ्र ही उसके दबाव में आकर अपने मत का अधिकार उसके कहने के अनुसार प्रयोग करेगा। यदि एक नागरिक को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो अर्थात् उसे नौकरी की चिन्ता न हो और उसे यह पता हो कि यदि वह अपने वोट के अधिकार का प्रयोग अपनी इच्छा से करेगा तो उसे नौकरी से नहीं निकाला जाएगा तो वह अपने अधिकार का स्वतन्त्रता से प्रयोग कर पाएगा। एक मज़दूर, जो दैनिक मज़दूरी पर कार्य करता हो, वोट डालने नहीं जाएगा क्योंकि उसके लिए वोट के अधिकार से अधिक मजदूरी का महत्त्व है। ग़रीब व्यक्ति अपनी वोट बेच डालता है। ग़रीब व्यक्ति न ही चुनाव लड़ सकते हैं क्योंकि चुनाव लड़ने के लिए योग्यता से अधिक धन की आवश्यकता होती है। इस प्रकार ग़रीब व्यक्ति के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं है। हॉब्सन (Hobson) ने लिखा है कि, “एक भूख से मरते हुए व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता का क्या लाभ है। वह स्वतन्त्रता को न तो खा सकता है और न ही पी सकता है।”
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए आर्थिक समानता को होना आवश्यक है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 समानता

प्रश्न 2.
समानता कितने प्रकार की होती है ? (What are the kinds of equality ?)
उत्तर-
मनुष्य को अपने जीवन का विकास करने के लिए जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समानता की आवश्यकता होती है। समानता के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं

  1. प्राकृतिक समानता (Natural Equality)
  2. नागरिक समानता (Civil Equality)
  3. सामाजिक समानता (Social Equality)
  4. राजनीतिक समानता (Political Equality)
  5. आर्थिक समानता (Economic Equality)।

1. प्राकृतिक समानता (Natural Equality)-प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है, इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए। परन्तु यह विचार ठीक नहीं है। प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान नहीं बनाया है। व्यक्तियों में शक्ति, रंग, बुद्धि तथा स्वभाव में भिन्नता पाई जाती है। परन्तु आधुनिक लेखक प्राकृतिक समानता का यह अर्थ नहीं लेते। प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ मौलिक समानताएं हैं जिनके कारण सभी व्यक्तियों को समान माना जाना चाहिए। एक व्यक्ति के विकास के लिए दूसरे व्यक्ति को केवल साधन नहीं बनाया जा सकता। समाज में प्राकृतिक समानता तो होनी चाहिए पर अप्राकृतिक समानताएं जो मनुष्य ने बनाई हैं, वे समाप्त होनी चाहिएं।

2. नागरिक समानता (Civil Equality)-नागरिक समानता को कानूनी समानता का नाम भी दिया जाता है। नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों अर्थात् कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हैं। धर्म, जाति, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ कानून भेदभाव नहीं करता। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होता है। यदि किसी देश में कानून किसी एक वर्ग के लिए बनाए जाते हैं तो उस देश में नागरिक समानता नहीं रहती। इंग्लैण्ड, भारत तथा अमेरिका में कानून के सामने सभी व्यक्तियों को बराबर माना जाता है।

3. सामाजिक समानता (Social Equality)-सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समाज में समान समझा जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति समाज का बराबर अंग है और सभी को समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। किसी व्यक्ति से धर्म, जाति, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेदभाव न हो। भारत में जाति-पाति के आधार पर भेद किया जाता था। अब भारत सरकार ने कानून द्वारा समानता स्थापित की जबकि दक्षिण अफ्रीका में काले तथा गोरे लोगों में सितम्बर 1992 तक भेदभाव किया जाता रहा है। इसीलिए हम कह सकते हैं कि सितम्बर 1992 तक दक्षिणी अफ्रीका में नागरिकों को सामाजिक समानता प्राप्त नहीं थी। सामाजिक समानता की स्थापना केवल कानून द्वारा ही नहीं की जा सकती, बल्कि इसके लिए लोगों के सामाजिक, धार्मिक तथा जाति के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन लाना आवश्यक है।

4. राजनीतिक समानता (Political Equality)-राजनीतिक समानता का अर्थ है कि नागरिकों को राजनीतिक अधिकार समान मिलने चाहिएं। वोट का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार तथा सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार, सभी नागरिकों को धर्म जाति, रंग, लिंग तथा धन के आधार पर भेद किए बिना समान रूप से प्राप्त होने चाहिएं। वोट के अधिकार तथा चुने जाने के लिए सरकार कुछ योग्यताएं निश्चित कर सकती है, पर ये योग्यताएं धर्म, जाति, रंग, लिंग पर आधारित नहीं होनी चाहिएं।

5. आर्थिक समानता (Economic Equality) आर्थिक समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी व्यक्तियों को समान वेतन दिया जाए तथा सभी के पास सम्पत्ति हो। आर्थिक समानता का सही अर्थ यह है कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए अर्थात् व्यक्ति की रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकताएं पूर्ण होनी चाहिएं। प्रत्येक राज्य का परम कर्त्तव्य है कि वह अपने नागरिकों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे। उनके जीवन स्तर को ऊंचा करने के अनेक कार्य करे। साम्यवादी देशों में नागरिकों की आर्थिक दशा को सुधारने के लिए अनेक कार्य किए गए हैं और आर्थिक समानता की स्थापना के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में लाखों व्यक्ति बेरोज़गार हैं और कई लोगों को तो दो समय भोजन भी नहीं मिलता। भारत में आर्थिक समानता नहीं है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में समानता का अर्थ यह लिया जाता है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और सभी को समान वेतन मिलना चाहिए। परन्तु समानता का यह अर्थ सही नहीं है। आज के युग में समानता का सही अर्थ यह है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। सभी नागरिकों को उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, वंश आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए और समाज में उत्पन्न असमानताओं की समाप्ति हो। प्रो० लॉस्की ने समानता की परिभाषा बिल्कुल ठीक की है। उन्होंने लिखा है कि, “समानता का अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए अथवा प्रत्येक व्यक्ति को समान वेतन दिया जाए। यदि एक ईंट ढोने वाले का वेतन प्रसिद्ध गणितज्ञ या वैज्ञानिक के समान कर दिया जाए, तो इससे समाज में समानता का उद्देश्य ही समाप्त हो जाएगा। इसलिए समानता का अर्थ यह है कि विशेषाधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों।”

प्रश्न 2.
समानता की विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
समानता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • विशेष अधिकारों का अभाव-समानता की प्रथम विशेषता यह है कि समाज में किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते।
  • उन्नति के समान अवसर-समानता की द्वितीय विशेषता यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य कर सके। किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
  • प्राकृतिक असमानताओं का नाश-समानता की तृतीय विशेषता यह है कि समाज में प्राकृतिक असमानताओं का नाश किया जाता है। यदि समाज में प्राकृतिक असमानताएं रहेंगी तो समानता के अधिकार का कोई लाभ नहीं है।
  • सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति-समानता की यह भी विशेषता है कि समाज के सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
समानता के नकारात्मक तथा सकारात्मक पक्ष की व्याख्या करें।
उत्तर-
समानता के दो पक्ष हैं-

  • नकारात्मक पक्ष-समानता के इस पक्ष का अर्थ विशेष अधिकारों की अनुपस्थिति है। अन्य शब्दों में, इसका अर्थ यह है कि किसी व्यक्ति को किसी भी आधार पर कोई विशेष अधिकार उपलब्ध नहीं होना चाहिए। जन्म, जाति अथवा धर्म इत्यादि के आधार पर किसी वर्ग के लिए विशेष अधिकारों का न होना ही समानता के नकारात्मक तथ्य का सारांश है।
  • सकारात्मक पक्ष-सकारात्मक पक्ष से अभिप्राय यह है कि सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के अपने जीवन का विकास करने के लिए समान अवसर उपलब्ध होने चाहिएं। यह ठीक है कि सभी व्यक्तियों के लिए प्रत्येक प्रकार के समान अवसर प्रदान करना राज्य के लिए असम्भव है, परन्तु उचित तथा समानता के आधार पर ऐसे अवसर प्रदान करना राज्य के लिए कोई कठिन नहीं है तथा इस प्रकार के अवसर प्रदान करने को ही समानता का सकारात्मक पक्ष कहा जाता है।

प्रश्न 4.
समानता के विभिन्न रूपों का नाम लिखें तथा किन्हीं चार रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
समानता के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं-
(1) प्राकृतिक समानता (2) नागरिक समानता (3) सामाजिक समानता (4) राजनीतिक समानता (5) आर्थिक समानता।

  1. नागरिक समानता-नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हैं अर्थात् कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, रंग, लिंग, वंश आदि के आधार पर कानून के समक्ष भेदभाव नहीं किया जाता। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होता है।
  2. सामाजिक समानता-सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति समाज का समान अंग है अतः सभी को बराबर सुविधाएं मिलनी चाहिएं। सामाजिक समानता की स्थापना केवल कानून द्वारा नहीं की जा सकती बल्कि इसके लिए लोगों के विचारों में परिवर्तन लाना भी आवश्यक है।
  3. राजनीतिक समानता-राजनीतिक समानता का अर्थ है कि नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार मिलने चाहिएं। वोट देने का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार इत्यादि राजनीतिक अधिकार सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मिलने चाहिएं।
  4. आर्थिक समानता–समाज में से आर्थिक असमानता समाप्त होनी चाहिए तथा सभी व्यक्तियों की मौलिक आवश्यकताएं पूरी होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
आर्थिक समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आर्थिक समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी व्यक्तियों को समान वेतन दिया जाए तथा सभी के पास समान सम्पत्ति हो। आर्थिक समानता का सही अर्थ यह है कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए अर्थात् व्यक्ति की रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकताओं पूर्ण होनी चाहिए। प्रत्येक राज्य का प्रथम कर्त्तव्य है कि वह अपने नागरिकों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे। उनके जीवन-स्तर को ऊंचा करने के अनेक कार्य करे। साम्यवादी देशों में नागरिकों की आर्थिक दशा सुधारने के लिए अनेक कार्य किए गए हैं और आर्थिक समानता की स्थापना के प्रयास किए जा रहे हैं। भारत में करोड़ों व्यक्ति बेरोज़गार हैं और कई व्यक्तियों को तो दो समय भरपेट भोजन भी नहीं मिलता। भारत में आर्थिक समानता नहीं है।

प्रश्न 6.
आर्थिक असमानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
आर्थिक असमानता उस अवस्था को कहा जाता है जब समाज का एक भाग रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत ज़रूरतों से वंचित रहते हुए अत्यन्त निम्न परिस्थितियों में जीवनयापन करता है और दूसरा भाग समस्त सुखसुविधाओं से परिपूर्ण जीवन व्यतीत करता है। आर्थिक असमानता के अन्तर्गत निर्धन और धनी के बीच अंतर बढ़ जाता है। निर्धन व्यक्ति प्रत्येक दृष्टि से पिछड़ कर रह जाते हैं। भारत में व्यापक पैमाने पर आर्थिक असमानता पाई जाती है। आज भी कुल आबादी का एक तिहाई भाग ग़रीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहा है। इनके लिए उच्च शिक्षा, राजनीतिक भागीदारी आदि एक स्वप्न की तरह है। निर्धन व्यक्तियों का जीवन स्तर अत्यन्त निम्न हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 समानता

प्रश्न 7.
भारत में आर्थिक असमानता के कोई चार कारण लिखें।
उत्तर-

  • ग़रीबी-भारत में आर्थिक असमानता का एक बड़ा कारण भारत में पाई जाने वाली ग़रीबी है। ग़रीब व्यक्ति को पेट भर भोजन न मिल सकने के कारण उसका शारीरिक एवं मानसिक विकास नहीं हो पाता।
  • अनपढ़ता-भारत में आर्थिक असमानता का एक और बड़ा कारण भारत में पाई जाने वाली अनपढ़ता है। अनपढ़ व्यक्ति को अच्छा रोज़गार नहीं मिल पाता, जिसके कारण वह न तो अपना पेट भर पाता है और न ही अपने परिवार का। इसी कारण समाज में उसकी स्थिति निम्न स्तर की बनी रहती है।
  • असन्तुलित विकास-भारत में होने वाला असन्तुलित विकास भी आर्थिक असमानता के लिए जिम्मेदार है। जिन स्रोतों का अधिक विकास हुआ है, वहां के लोगों का आर्थिक स्तर अच्छा है, जबकि जहां विकास नहीं हुआ है, वहां के लोगों का सामाजिक तथा आर्थिक जीवन निम्न स्तर का है।
  • भारत में बेरोज़गारी पाई जाती है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक स्वतन्त्रता और आर्थिक समानता में सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
गरीब व्यक्ति के लिए राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई अर्थ नहीं है क्योंकि जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है वास्तव में उन्हीं को राजनीतिक स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। आर्थिक समानता और राजनीतिक स्वतन्त्रता में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है जोकि निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है-

  • वोट के अधिकार का ग़रीब व्यक्ति के लिए कोई मूल्य नहीं-राजनीतिक अधिकारों में से वोट का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण है। परन्तु एक ग़रीब व्यक्ति के लिए जिसे दो वक्त खाने के लिए रोटी नहीं मिलती उसके लिए रोटी का मूल्य, वोट के अधिकार से अधिक है।
  • निर्धन व्यक्ति द्वारा मत के अधिकार का लालच में दुरुपयोग-ग़रीब व्यक्ति थोड़े से पैसों के लालच में आकर अपने मताधिकार को पूंजीपतियों के हाथों में बेच डालता है। कई बार व्यक्ति पैसे के अलावा शराब या किसी अन्य चीज़ के लालच में मताधिकार का दुरुपयोग कर बैठता है।
  • ग़रीब व्यक्ति के लिए चुनाव लड़ना असम्भव-आजकल चुनाव लड़ने के लिए हज़ारों तो क्या लाखों रुपयों की आवश्यकता होती है। ग़रीब व्यक्ति जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं कर सकता, चुनाव लड़ना तो दूर की बात रही, चुनाव लड़ने की बात सोच भी नहीं सकता।
  • आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता सुरक्षित नहीं रह सकती। अतः आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक दिखावा मात्र है।

प्रश्न 9.
समानता के महत्त्व पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
समानता का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व है। स्वतन्त्रता की प्राप्ति की तरह मनुष्य में समानता की प्राप्ति की इच्छा सदा रही है। स्वतन्त्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है। समानता तथा स्वतन्त्रता प्रजातन्त्र के दो महत्त्वपूर्ण स्तम्भ हैं। समानता का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि नागरिकों के बीच जाति, धर्म, भाषा, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। सामाजिक न्याय और सामाजिक स्वतन्त्रता के लिए समानता का होना आवश्यक है। वास्तव में समानता न्याय की पोषक है। कानून की दृष्टि में सभी को समान समझा जाता है। भारत के संविधान में मौलिक अधिकारों के अध्याय में समानता का अधिकार लिखा गया है।

प्रश्न 10.
‘स्वतन्त्रता व समानता एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, पूरक हैं।’ व्याख्या करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता तथा समानता में गहरा सम्बन्ध है। अधिकांश आधुनिक विचारकों के अनुसार स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के सहयोगी हैं। समानता के अभाव में स्वतन्त्रता व्यर्थ है। आर० एच० टाउनी (Towney) ने ठीक ही कहा है कि, “समानता स्वतन्त्रता की विरोधी न होकर इसके लिए आवश्यक है।” आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्य मनुष्य की स्वतन्त्रता के लिए आर्थिक तथा सामाजिक समानता स्थापित करने के प्रयास करते हैं। आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है। जिस देश में नागरिकों को आर्थिक समानता प्राप्त नहीं होती वहां नागरिक अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता का प्रयोग नहीं कर पाते। भारत में राजनीतिक स्वतन्त्रता तो है पर आर्थिक समानता नहीं है। ग़रीब, बेकार एवं भूखे व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता का कोई महत्त्व नहीं है। एक ग़रीब व्यक्ति अपनी वोट बेच डालता है और वह चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता। अतः स्वतन्त्रता के लिए समानता का होना अनिवार्य है।

प्रश्न 11.
नागरिक समानता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नागरिक समानता को कानूनी समानता का नाम भी दिया जाता है। नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों अर्थात कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हैं। धर्म, जाति, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर किसी व्यक्ति के साथ कानून भेदभाव नहीं करता है। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होता है। यदि किसी देश में कानून किसी एक वर्ग विशेष के लिए बनाये जाते हैं तो उस देश में नागरिक समानता नहीं रहती है। सितम्बर 1992 से पहले दक्षिण अफ्रीका में नागरिक समानता नहीं थी। वहां कानून गोरे लोगों के हितों की रक्षा के लिए ही बनाए जाते थे, परन्तु सितम्बर 1992 से वहां नागरिक समानता से सम्बन्धित कानून पारित किया गया है। अब वहां पर नागरिक समानता स्थापित है। भारत, इंग्लैण्ड और अमेरिका में कानून के सामने सभी व्यक्ति एक समान हैं। इन देशों में कानून का शासन है और प्रत्येक व्यक्ति कानून के समक्ष समान है। कानून का उल्लंघन करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को एक समान सज़ा मिलती है।

प्रश्न 12.
राजनीतिक समानता को सुनिश्चित बनाने के लिए आवश्यक शर्ते लिखो।
उत्तर-

  • मत देने का अधिकार–राजनीतिक समानता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को जाति, धर्म, रंग, वंश, लिंग, धन, स्थान आदि के आधार पर उत्पन्न भेदभाव के बिना समान रूप से मतदान का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
  • चुनाव लड़ने का अधिकार-राजनीतिक समानता के लिए यह आवश्यक है कि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के समान रूप से चुनाव लड़ने और चुने जाने का अधिकार प्राप्त होना चाहिए।
  • सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार-लोकतन्त्रीय राज्यों में राजनीतिक सत्ता में भागीदार बनाने के लिए नागरिकों को सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार दिया जाता है। कोई भी सार्वजनिक पद किसी विशेष वर्ग के लोगों के लिए सुरक्षित नहीं होता। 4. लोगों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार होना चाहिए।

प्रश्न 13.
‘संरक्षात्मक विभेद’ से आपका क्या अभिप्राय है ? इससे सम्बन्धित कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में बहुत-से व्यक्ति ऐसे होते हैं जो सामाजिक आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हुए होते हैं। इन वर्गों को कानून द्वारा विशेष रियायतें प्रदान की जाती हैं ताकि ये अन्य वर्गों के समान अपना विकास कर सकें। इस प्रकार पिछड़े वर्गों के लोगों के पक्ष में विशेष सुविधाओं और रियायतों की व्यवस्था को ‘सुरक्षित भेदभाव’ कहा जाता है क्योंकि ऐसा पक्षपात विशेष वर्गों के लोगों के हितों की सुरक्षा के लिए किया जाता है। चाहे विशेष रियायतें और सुविधाएं समानता के कानूनी अधिकार की धारणा अनुसार नहीं होतीं, परन्तु आधुनिक कल्याणकारी राज्य के लिये पिछड़े वर्गों के लोग न तो योग्य विकास कर सकते हैं और न ही उन्नत व के लोगों की सामाजिक समानता करने का साहस कर सकते हैं। पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था करना बहुत आवश्यक हो गया है।

प्रश्न 14.
समानता के कानूनी पक्ष (Legal Dimension) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में समानता के कानूनी पक्ष पर बहुत बल दिया जाता है। समानता के कानूनी पक्ष का अर्थ यह है कि राज्य में रहने वाले सभी व्यक्ति कानून के सामने समान है और किसी व्यक्ति को कानून के उपबन्धों में छूट नहीं दी जा सकती है। समानता के कानूनी पक्ष में निम्नलिखित बातें शामिल हैं-

1. कानून के समक्ष समानता-कानून के समक्ष समानता का अर्थ है कि कानून की दृष्टि में सभी नागरिक समान हैं। कानून तथा न्यायालय किसी भी व्यक्ति के साथ जाति, धर्म, वंश, रंग, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
2. कानून के समान संरक्षण-कानून के समान संरक्षण का अभिप्राय यह है कि समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाएगा।
3. समान अधिकार और कर्त्तव्य-हॉबहाउस के अनुसार कानूनी समानता में यह भी शामिल है कि सभी व्यक्तियों को समान रूप से अधिकार और कर्त्तव्य प्राप्त होने चाहिएं।

प्रश्न 15.
राजनीतिक समानता और आर्थिक समानता में सम्बन्ध बताएं।
उत्तर-
राजनीतिक समानता को सही अर्थों में स्थापित करने के लिए आर्थिक समानता अनिवार्य है। उदारवादी राजनीतिक समानता पर अधिक बल देते हैं जबकि मार्क्सवादी आर्थिक समानता को अधिक महत्त्व देते हैं। परन्तु वास्तव में दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। राजनीतिक समानता की स्थापना के लिए यह आवश्यक है कि समाज में अमीरों और गरीबों में बहुत अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए और सभी व्यक्तियों की मौलिक आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति होनी चाहिए। भूखे नंगे व्यक्ति के लिए राजनीतिक समानता का कोई अर्थ नहीं है। निर्धन व्यक्ति न तो मत का प्रयोग करने जाता है और न ही चुनाव लड़ने की सोच सकता है। ग़रीब व्यक्ति अपना मत बेच देता है और उच्च पदों से व्यवहारिक रूप से वंचित रहता है क्योंकि उसके पास शिक्षा करने के लिए धन नहीं होता। अतः आर्थिक समानता राजनीतिक समानता की स्थापना में सहायक होती है। राजनीतिक समानता भी आर्थिक समानता की स्थापना में सहायक होती है। इसलिए दोनों एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में समानता का अर्थ यह लिया जाता है कि सभी व्यक्ति समान हैं, सभी के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और सभी को समान वेतन मिलना चाहिए। परन्तु समानता का यह अर्थ सही नहीं है। आज के युग में समानता का सही अर्थ यह है कि कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं। सभी नागरिकों को उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। किसी भी नागरिक के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, वंश आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाए और समाज में उत्पन्न असमानताओं की समाप्ति हो।

प्रश्न 2.
समानता की दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
1. विशेष अधिकारों का अभाव-समानता की प्रथम विशेषता यह है कि समाज में किसी वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं होते।
2. उन्नति के समान अवसर-समानता की द्वितीय विशेषता यह है कि समाज में सभी व्यक्तियों को उन्नति के समान अवसर प्रदान किए जाते हैं ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार कार्य कर सके। किसी व्यक्ति के साथ धर्म, जाति, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
समानता के दो रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
1. नागरिक समानता-नागरिक समानता का अर्थ है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हैं अर्थात् कानून के समक्ष सभी व्यक्ति समान हैं।
2. सामाजिक समानता–सामाजिक समानता का अर्थ है कि समाज में प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा जाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति समाज का समान अंग है अतः सभी को बराबर सुविधाएं मिलनी चाहिएं।

प्रश्न 4.
आर्थिक समानता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आर्थिक समानता का यह अर्थ नहीं है कि सभी व्यक्तियों को समान वेतन दिया जाए तथा सभी के पास समान सम्पत्ति हो। आर्थिक समानता का सही अर्थ यह है कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए अर्थात् व्यक्ति की रोटी, कपड़ा तथा मकान की आवश्यकताओं पूर्ण होनी चाहिएं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 समानता

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तरप्रश्न 1. समानता का अर्थ क्या है ?
उत्तर-प्रत्येक व्यक्ति को समान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं ताकि वह अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास कर सके।

प्रश्न 2. समानता की परिभाषा लिखें।
उत्तर-लॉस्की के अनुसार, “समानता का अर्थ है विशेषाधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान तथा उचित अवसर प्राप्त हों।”

प्रश्न 3. समानता की एक विशेषता बताइए।
उत्तर-समानता की विशेषता यह है कि समानता में किसी वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होते।

प्रश्न 4. समानता के विभिन्न रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. प्राकृतिक समानता
  2. नागरिक समानता
  3. सामाजिक समानता
  4. राजनीतिक समानता
  5. आर्थिक समानता।

प्रश्न 5. प्राकृतिक समानता का क्या अर्थ है ? ।
उत्तर-प्राकृतिक समानता का अर्थ है कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है, इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए।

प्रश्न 6. नागरिक समानता किसे कहते हैं ?
उत्तर-सभी व्यक्तियों को समान अधिकार प्राप्त हों अर्थात् कानून के सामने सभी व्यक्ति समान हैं।

प्रश्न 7. सामाजिक समानता से क्या तात्पर्य है ? स्पष्ट करें।
उत्तर-समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा जाना व उससे किसी भी प्रकार का धार्मिक, जातिगत, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेदभाव न किया जाना।

प्रश्न 8. राजनीतिक समानता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-राजनीतिक समानता से अभिप्राय है कि नागरिकों को बिना किसी भेद-भाव के मत देने, चुने जाने, प्रार्थनापत्र देने और सरकारी पद ग्रहण करने का अधिकार हो।

प्रश्न 9. आर्थिक समानता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए।

प्रश्न 10. स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी हैं, वर्णन करें।
उत्तर-आर्थिक क्षेत्र में स्वतन्त्र प्रतियोगिता होने के कारण अमीर और अमीर हो जाएंगे, जिससे आर्थिक असमानता बढ़ेगी।

प्रश्न 11. स्वतन्त्रता तथा समानता परस्पर विरोधी नहीं, स्पष्ट करें।
उत्तर-दोनों का एक ही उद्देश्य है और वह है व्यक्ति के विकास के लिए सुविधाएं प्रदान करना ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सके।

प्रश्न 12. समानता का क्या महत्त्व है?
उत्तर-समानता का महत्त्व इस बात में निहित है कि किसी भी मनुष्य के साथ जाति, धर्म, रंग, लिंग, धन आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 13. किन्हीं दो विद्वानों का नाम लिखें जो स्वतन्त्रता और समानता को परस्पर विरोधी मानते हैं।
उत्तर-लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) और डी० टॉकविल (De-Tocqueville) ।

प्रश्न 14. नागरिक समानता और राजनीतिक समानता में क्या अन्तर है?
उत्तर-नागरिक समानता से अभिप्राय है कि सभी नागरिक कानून के समक्ष समान हैं जबकि राजनीतिक समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को समान रूप से राजनीतिक अधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 15. समानता के दोनों रूपों का नाम लिखिए।
उत्तर-

  1. नकारात्मक समानता
  2. सकारात्मक समानता।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……………… समानता का सही अर्थ यह है, कि समाज में आर्थिक असमानता कम-से-कम होनी चाहिए और प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन मिलना चाहिए।
2. लॉस्की के अनुसार, आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता एक …….है।
3. स्वतन्त्रता और समानता परस्पर …………. है।
4. वोट का अधिकार ………. समानता से सम्बन्धित है।
5. काम का अधिकार ……….. समानता से सम्बन्धित है।
उत्तर-

  1. आर्थिक
  2. धोखा मात्र
  3. सहयोगी
  4. राजनीतिक
  5. आर्थिक ।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. समानता का अर्थ है, समाज में प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति के असमान अवसर प्रदान किये जाएं। प्रत्येक व्यक्ति को असमान सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिए, ताकि प्रत्येक अपनी योग्यता के अनुसार अपना विकास कर सके।
2. समानता की एक विशेषता यह है, कि किसी वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त हो।
3. प्राकृतिक समानता का अर्थ है, कि प्रकृति ने सभी व्यक्तियों को समान बनाया है। इसलिए सभी व्यक्तियों के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।
4. नागरिक समानता को कानूनी समानता का नाम भी दिया जाता है।
5. समानता और स्वतन्त्रता लोकतन्त्र के मूल तत्त्व नहीं हैं। व्यक्ति के विकास के लिए स्वतन्त्रता तथा समानता का कोई महत्त्व नहीं है। बिना स्वतन्त्रता और समानता के मनुष्य अपना विकास कर सकता है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत ।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
“समानता के नियम का यह अर्थ है कि जो सविधाएं मझे अधिकारों के रूप में प्राप्त हुई हैं, वही सुविधाएं उसी प्रकार से दूसरों को भी दी गई हों। जो अधिकार दूसरों को दिये गए हैं, वह मुझे भी मिलेंगे।” यह कथन किसका है ?
(क) लॉस्की
(ख) बार्कर
(ग) ग्रीन
(घ) बैंथम।
उत्तर-
(घ) लॉस्की ।

प्रश्न 2.
“राजनीति शास्त्र के सम्पूर्ण क्षेत्र में समानता की धारणा से कठिन कोई अन्य धारणा नहीं है।” यह कथन किसका है ?
(क) मिल
(ख) लासवैल
(ग) गार्नर
(घ) लॉस्की ।
उत्तर-
(घ) लॉस्की ।

प्रश्न 3.
यह किसने कहा- “समानता की पर्याप्त मात्रा स्वतन्त्रता की विरोधी न होकर उसके लिए अनिवार्य
(क) रूसो
(ख) लॉस्की
(ग) ग्रीन
(घ) आर० एच० टोनी।
उत्तर-
(घ) आर० एच० टोनी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 7 समानता

प्रश्न 4.
“आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता मिथ्या है।” यह कहा है-
(क) लॉस्की ने
(ख) ग्रीन ने
(ग) एक्टन ने
(घ) लिंकन ने।
उत्तर-
(ग) एक्टन ने

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 6 स्वतन्त्रता

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता क्या है ? स्वतन्त्रता के विभिन्न प्रकार कौन-कौन से हैं ? विवेचना कीजिए। (What is Liberty ? What are the different kinds of liberty ? Discuss.) (Textual Question)
अथवा
स्वतन्त्रता क्या होती है। इसके अलग-अलग प्रकारों का वर्णन करें। (What is Liberty ? Discuss its different kinds.)
उत्तर-
स्वतन्त्रता व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है। माण्टेस्क्यू (Montesquieu) के मतानुसार स्वतन्त्रता को छोड़कर किसी अन्य शब्द ने व्यक्ति के मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव नहीं डाला है। प्रत्येक मनुष्य में स्वतन्त्रता प्राप्ति की इच्छा होती है। फ्रांसीसी क्रान्ति ने स्वतन्त्रता की भावना को बहुत बल दिया। भारत, दक्षिण अमेरिका तथा अफ्रीका के कई देशों ने 20वीं शताब्दी में स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए जो बलिदान किए उससे स्पष्ट है कि पराधीन राष्ट्र का स्तर गुलामों जैसा होता है। प्रत्येक राष्ट्र स्वतन्त्रता की प्राप्ति उसी प्रकार चाहता है कि जिस प्रकार एक व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता को बनाए रखना चाहता है।

स्वतन्त्रता का अर्थ (Meaning of Liberty)-‘स्वतन्त्रता’ को अंग्रेज़ी भाषा में ‘लिबर्टी’ (Liberty) कहते हैं। लिबर्टी शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से निकलता है जिसका अर्थ यह है पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा किसी प्रकार के बन्धनों का न होना। इस प्रकार स्वन्त्रता का अर्थ लिया जाता है कि व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए और उस पर कोई बन्धन अथवा प्रतिबन्ध नहीं होने चाहिएं। परन्तु स्वतन्त्रता का यह अर्थ गलत है क्योंकि बिना बन्धनों के मनुष्य का जीवन आज के सभ्य संसार में सम्भव नहीं है। स्वतन्त्रता का अर्थ दो भिन्नभिन्न रूपों में लिया जाता है

  1. स्वतन्त्रता का नकारात्मक स्वरूप (Negative Aspect of Liberty)
  2. स्वतन्त्रता का सकारात्मक स्वरूप (Positive Aspect of Liberty)

1. स्वतन्त्रता का नकारात्मक स्वरूप (Negative Aspect of Liberty)-नकारात्मक स्वतन्त्रता से अभिप्राय है कि व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता हो अर्थात् व्यक्ति को अपनी मनमानी करने का अधिकार हो। उसे प्रत्येक कार्य करने की स्वतन्त्रता हो और उसके कार्यों पर कोई भी प्रतिबन्ध न हो। ‘सभी प्रतिबन्धों का अभाव’ (Absence of all Restraints) नकारात्मक स्वतन्त्रता का अर्थ है। जॉन स्टुअर्ट मिल (J.S. Mill) ने स्वतन्त्रता का अर्थ ‘सभी प्रतिबन्धों का अभाव’ लिया था। मिल के अनुसार, व्यक्ति के कार्यों पर किसी प्रकार का बन्धन नहीं होना चाहिए चाहे वह बन्धन अच्छा क्यों न हो। उदाहरणस्वरूप मिल के अनुसार व्यक्ति को शराब पीने की स्वतन्त्रता है, यदि वह पब्लिक ड्यूटी पर नहीं। व्यक्ति को जुआ खेलने की स्वतन्त्रता है।

परन्तु स्वतन्त्रता का यह अर्थ गलत है। सभ्य समाज में मनुष्य को प्रत्येक कार्य करने की स्वतन्त्रता नहीं दी जा सकती। बार्कर (Barker) ने ठीक ही कहा है कि, “जिस प्रकार बदसूरती का न होना खूबसूरती नहीं है, उसी प्रकार बन्धनों का न होना स्वतन्त्रता नहीं है।” यदि व्यक्ति को सभी प्रकार के कार्य करने की स्वतन्त्रता दे दी जाए तो समाज में अराजकता उत्पन्न हो जाएगी। पूर्ण स्वतन्त्रता देने का अर्थ है कि इस स्वतन्त्रता का प्रयोग केवल शक्तिशाली व्यक्ति ही कर सकेंगे। समाज में फिर एक ही कानून होगा ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ जिससे निर्बल व्यक्तियों का जीवन भी सुरक्षित नहीं रहेगा। लॉस्की (Laski) ने कहा है, “समाज में रह कर व्यक्ति जो चाहे नहीं कर सकता। स्वतन्त्रता कभी लाइसैंस नहीं बन सकती। किसी को भी चोरी करने या मारने की छूट नहीं दी जा सकती।” अतः स्वतन्त्रता का अर्थ प्रतिबन्धों का अभाव नहीं है।

2. स्वतन्त्रता का सकारात्मक स्वरूप (Positive aspect of Liberty)-सकारात्मक स्वतन्त्रता का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व का विकास करने के लिए कुछ अधिकार तथा अवसर प्राप्त हों। स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ है कि, “प्रत्येक व्यक्ति को उन कार्यों को करने का अधिकार हो जिससे दूसरे व्यक्तियों को हानि न पहुंचे।” लॉस्की (Laski) के शब्दों में, “स्वतन्त्रता ने एक ऐसा वातावरण बनाए रखना है जिसमें व्यक्ति को विकास के सबसे अच्छे अवसर मिल सकें।” गांधी जी के अनुसार, “नागरिक स्वतन्त्रता नियन्त्रण का अभाव नहीं बल्कि आत्मविकास के लिए अवसर हैं।” सकारात्मक स्वतन्त्रता का यह भी अर्थ लिया जाता है कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबन्ध नहीं होने चाहिएं परन्तु साथ में उसे उन अवसरों की भी याद होनी चाहिए जिससे उसे अपना विकास करने में सहायता मिलती हो। फ्रांसीसी क्रान्ति के नेताओं ने मानव अधिकारों की घोषणा में ठीक ही कहा था कि, “यह किसी भी कार्य को करने की शक्ति है। जिससे दूसरों को कोई हानि न पहुंचे।” (“It is the power to do anything that does not injure another.”)

स्वतन्त्रता की परिभाषाएं (Definitions of Liberty)-इस प्रकार स्वतन्त्रता का वास्तविक स्वरूप सकारात्मक है। निम्नलिखित परिभाषाएं स्वतन्त्रता के अर्थ को स्पष्ट कर देती हैं-

  • सीले (Seeley) के अनुसार, “स्वतन्त्रता अति-शासन का उलटा रूप है।” (“Liberty is the opposite of over-government.”) सीले की इस परिभाषा का अर्थ है कि स्वतन्त्रता की प्राप्ति तानाशाही राज्य में नहीं हो सकती।
  • गैटेल (Gettell) के अनुसार, “स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस सकारात्मक शक्ति से है जिससे उन बातों को करके आनन्द प्राप्त होता है जो कि करने योग्य हैं।” (“Liberty is the positive power of doing and enjoying those things which are worthy of enjoyment and work.”’)
  • जी० डी० एच० कोल (G.D.H. Cole) के अनुसार, “बिना किसी बाधा के व्यक्ति को अपना व्यक्तित्व प्रकट करने का नाम स्वतन्त्रता है।”
  • हरबर्ट स्पैन्सर (Herbert Spencer) के अनुसार, “प्रत्येक व्यक्ति वह कुछ करने को स्वतन्त्र है, जिसकी वह इच्छा करता है, परन्तु उससे किसी दूसरे व्यक्ति की वैसी ही स्वतन्त्रता नष्ट न होती हो।” (“Every man is free to do that which he wills, provided he infrings not the equal freedom of any other man.”)
  • टी० एच० ग्रीन (T.H. Green) के अनुसार, “स्वतन्त्रता करने योग्य कार्य को करने और उपयोग करने की साकारात्मक शक्ति है।”
  • प्रो० लॉस्की (Laski) ने स्वतन्त्रता की परिभाषा करते हए लिखा है, “स्वतन्त्रता से मेरा अभिप्राय वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की प्रसन्नता की गारण्टी के लिए जिन सामाजिक परिस्थितियों की आवश्यकता है, उन पर पाबन्दियों का न होना है।” दूसरे स्थान पर लॉस्की ने स्वतन्त्रता की परिभाषा करते हुए लिखा है, “स्वतन्त्रता का अर्थ उस वातावरण की उत्साहपूर्ण रक्षा करने से है जिससे मनुष्य को अपने श्रेष्ठतम रूप की प्राप्ति का अवसर प्राप्त हो।”

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता

साधारण शब्दों में, स्वतन्त्रता का अर्थ नियन्त्रण का अभाव नहीं है बल्कि व्यक्तित्व के विकास की अवस्थाओं की प्राप्ति है। स्वतन्त्रता की विभिन्न परिभाषाओं का अभाव स्वतन्त्रता नहीं है :

  1. सभी तरह की पाबन्दियों का अभाव स्वतन्त्रता नहीं है।
  2. निरंकुश, अनैतिक, अन्यायपूर्ण पाबन्दियों का अभाव ही स्वतन्त्रता है।
  3. न्यायपूर्ण नैतिक तथा उच्च पाबन्दियों का होना स्वतन्त्रता है।
  4. स्वतन्त्रता व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक अवस्था है।
  5. स्वतन्त्रता सभी व्यक्तियों को समान रूप से प्राप्त होती है।
  6. व्यक्ति को वे सब कार्य करने की स्वतन्त्रता है जो करने योग्य हैं।
  7. व्यक्ति को वे कार्य करने का अधिकार है जिनसे दूसरों को हानि न पहुंचे।

स्वतन्त्रता के विभिन्न रूप (Kinds of Liberty)-

राजनीति शास्त्र में स्वतन्त्रता का प्रयोग कई रूपों में किया गया है। स्वतन्त्रता के विभिन्न रूप निम्नलिखित हैं :-

1. प्राकृतिक स्वतन्त्रता (Natural Liberty)—जिस प्रकार कई लेखकों के मतानुसार मनुष्य को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त हैं उसी प्रकार कई लेखकों ने प्राकृतिक स्वतन्त्रता का विचार प्रस्तुत किया है। प्राकृतिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय है कि मनुष्य को राज्य की उत्पत्ति से प्राकृतिक अवस्था (State of Nature) में पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी। सामाजिक समझौते के सिद्धान्त के लेखकों के अनुसार मनुष्य को प्रकृति ने स्वतन्त्र पैदा किया है। रूसो ने प्राकृतिक स्वतन्त्रता पर जोर दिया है। उसके अनुसार, “मनुष्य स्वतन्त्र उत्पन्न होता है, परन्तु प्रत्येक स्थान पर वह बन्धनों (जंजीरों) में बन्धा हुआ है।”

परन्तु प्राकृतिक स्वतन्त्रता का विचार आज मान्य नहीं है। स्वतन्त्रता की प्राप्ति समाज में ही हो सकती है, समाज के बाहर नहीं। जब उस समय कोई समाज नहीं था तो स्वतन्त्रता का प्रश्न ही उत्पन्न नहीं होता था। स्वतन्त्रता का अर्थ प्रतिबन्धों का अ नहीं है।

2. नागरिक त्रता (Civil Liberty).-नागरिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से है जो संगठित समाज का सदस्य होन के नाते प्राप्त होती है। प्रो० आशीर्वादम के अनुसार नागरिक स्वतन्त्रता को सीधे शब्दों में ‘समाज में प्राप्त स्वतन्त्रता’ कह सकते हैं। समाज अपने नागरिकों क विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियां उत्पन्न करता है जिसके बिना नागरिक अपना विकास नहीं कर सकता। इन परिस्थितियों तथा सुविधाओं को ही नागरिक स्वतन्त्रता कहा जाता है। नागरिक स्वतन्त्रता राज्य के अन्दर रहने वाले सभी व्यक्तियों को प्राप्त होती है। नागरिक स्वतन्त्रता में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता जीवन की स्वतन्त्रता, सम्पत्ति रखने की स्वतन्त्रता, भाषण देने की स्वतन्त्रता, घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता, इत्यादि सम्मिलित हैं।

प्रत्येक देश में नागरिक स्वतन्त्रता एक-जैसी नहीं होती। क्यूबा तथा चीन आदि साम्यवादी देशों में नागरिकों को ऐसी नागरिक स्वतन्त्रता प्राप्त है जो भारत, अमेरिका, इंग्लैण्ड आदि देशों में नहीं है। तानाशाही देशों में लोकतन्त्रीय देशों के समान नागरिक स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती।

3. राजनीतिक स्वतन्त्रता (Political Liberty) राजनीतिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से होता है जिसके द्वारा नागरिक देश के शासन में भाग ले सकता है। लॉस्की (Laski) के अनुसार, “राजनीतिक स्वतन्त्रता का अर्थ राज्यों के कार्यों में क्रियाशील होना है।” ( The power to be active in the affairs of the State.”) राजनीतिक स्वतन्त्रता निम्नलिखित अधिकारों से सम्बन्ध रखती है

  • नागरिकों को कानून बनाने वाली सभाओं के प्रतिनिधि चुनने का अधिकार प्राप्त होता है अर्थात् नागरिकों को वोट डालने का अधिकार दिया जाता है।
  • चुने जाने का अधिकार।
  • प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार।
  • सार्वजनिक पद प्राप्ति का अधिकार।
  • सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार।
  • राजनीतिक दल बनाने का अधिकार। नागरिकों को उपर्युक्त राजनीतिक अधिकार लोकतन्त्रीय राज्यों में ही प्राप्त होते हैं।

4. आर्थिक स्वतन्त्रता (Economic Liberty)-नागरिक तथा राजनीतिक स्वतन्त्रता का लाभ नगरिक को तभी होता है, यदि उसे आर्थिक स्वतन्त्रता भी प्राप्त हो। आर्थिक स्वतन्त्रता का अर्थ ‘स्वतन्त्र प्रतियोगिता’ नहीं है। आर्थिक स्वतन्त्रता का अर्थ है कि नागरिक को बेरोज़गारी तथा भूख से मुक्ति प्राप्त हो। प्रत्येक नागरिक को काम करने के समान अवसर प्राप्त होने चाहिएं। आर्थिक स्वतन्त्रता में काम करने के निश्चित घण्टे, न्यूनतम वेतन, काम करने का अधिकार, बेकारी की दशा में निर्वाह भत्ते के अधिकार शामिल होते हैं। आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई मूल्य नहीं होता। एक भूखे और बेकार व्यक्ति के लिए मतदान का अधिकार कोई महत्त्व नहीं रखता।

5. नैतिक स्वतन्त्रता (Moral Liberty)-नैतिक स्वतन्त्रता का अर्थ है कि व्यक्ति को अपना नतिक विकास करने की सभी सुविधाएं प्राप्त हों। व्यक्ति को सत्य-असत्य, नैतिक-अनैतिक, धर्म-अपाय, उचित-अनाना में निर्णय करने की स्वतन्त्रता प्राप्त हो। नैतिक स्वतन्त्रता से व्यक्ति अपनी आत्मा का विकास कर सकता है। ग्री:: कमांके आदि लेखकों ने व्यक्ति की नैतिक स्वतन्त्रता पर बहुत जोर दिया है। देश की उन्नति. विकास और मृद्धि :- नैतिक म्वतन्त्रताएं अति आवश्यक हैं।

6. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता (Personal Liberty)-व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अर्थ है कि व्यक्ति को उन कार्यों को करने की स्वतन्त्रता हो जो उस तक ही सीमित हों तथा उसके कायों से किसी दुसरे व्यक्ति को हानि न पहुंचे। प्रो० लॉस्की ने व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को निजी स्वतन्त्रता का नाम दिया है। निजी स्वतन्त्रता का अथ है उन कार्यों को करने की स्वतन्त्रता जिनके परिणाम केवल उसी व्यक्ति को प्रभावित करें। मिल ने मनुष्य के कार्यों का दो भागों में बांटा थाव्यक्तिगत कार्य तथा दूसरे से सम्बन्धित। मिल के अनुसार, मनुष्य को व्यक्तिगत कार्यों में एक स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए-व्यक्तिगत कार्य वे कार्य हैं जिनका सम्बन्ध व्यक्ति तक ही सीमित रहता है !

7. राष्ट्रीय स्वतन्त्रता (National Liberty)-जिस प्रकार नागरिकों के विकास के लिा. वतन्त्रता आवश्यक है उसी प्रकार राष्ट्र की उन्नति के लिए राष्ट्रीय स्वतन्त्रता आवश्यक है। राष्ट्रीय स्वतन्त्रत का अह कि राज्य किसी देश के नियन्त्रण में न हो अर्थात् राज्य बाहरी रूप से स्वतन्त्र हा और प्रभुसत्ता राज्य के पास हो। गलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “प्रभुत्व-सम्पन्न राज्य का होना ही राष्ट्रीय स्वतन्त्रता र इसलिए मा स्वतन्त्रता तथा प्रभुसत्ता के एक ही अर्थ हैं।” राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए नागरिक प्रत्यक बलिदान करने के लिए तयार रहते हैं : भारत को 1947 ई० में अंग्रेजों से स्वतन्त्रता प्राप्त हुई।

प्रश्न 2. स्वतन्त्रता के रक्षा कवच बताएं। (Explain the safeguards of Liberty.)
उत्तर–स्वतन्त्रता का व्यक्ति के लिए बहुत महत्त्व है। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह अमीर हो, चाह नगंब ; कुछ कार्यों को करने के लिए स्वतन्त्रता चाहता है। स्वतन्त्रता व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक है। आधुनिक राज्यों में व्यक्ति की स्वतन्त्रता के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं। स्वतन्त्रता की सुरक्षा निम्नलिखित विभिन्न उपायों द्वारा की जा सकती है-

1. प्रजातन्त्र की स्थापना (Establishment of Democracy)-स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए प्रजातन्त्र की स्थापना आवश्यक है। स्वतन्त्रता और प्रजातन्त्र सहचारी हैं। प्रजातन्त्र में शक्ति का स्रोत जनता होती है और शासन का आधार जनमत होता है। जनता के हितों के विरुद्ध सरकार कानून पास करने की हिम्मत नहीं करती और न ही सरकार व्यक्तियों की स्वतन्त्रता को छीनने की कोशिश करती है। यदि सरकार स्वतन्त्रता को छीनने का प्रयत्न करती है तो चुनाव में ऐसी सरकार को हटा दिया जाता है।

2. मौलिक अधिकारों की घोषणा (Declaration of Fundamental Rights)-स्वतन्त्रता की सुरक्षा का सबसे अच्छा उपाय यह है कि व्यक्तियों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रता की घोषणा संविधान के मौलिक अधिकारों में कर देनी चाहिए। यदि अधिकारों को संविधान में लिख दिया जाए तो सरकार इन अधिकारों का उल्लंघन आसानी से नहीं कर सकेगी और न ही इन अधिकारों को छीनने का प्रयत्न करेगी। यदि सरकार इन अधिकारों में हस्तक्षेप करती है तो नागरिक न्यायालय में जाकर इन अधिकारों की रक्षा की मांग कर सकते हैं। आज संसार के अधिकांश देशों के संविधानों में मौलिक अधिकारों का वर्णन मिलता

3. शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers)-स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए शक्तियों का पृथक्करण आवश्यक है। शक्तियों के केन्द्रीयकरण से निरंकुशता को बढ़ावा मिलता है जिससे भ्रष्टाचार बढ़ता है।

4. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता (Independence of Judiciary)-स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना आवश्यक है। न्यायपालिका ही निष्पक्ष तथा निडरता से न्याय कर सकती है। स्वतन्त्र न्यायपालिका आवश्यक है क्योंकि न्यायपालिका ही मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है। न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा विधानपालिका के अधीन नहीं होनी चाहिए। न्यायाधीश का वेतन अच्छा होना चाहिए और योग्य व्यक्तियों को न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए।

5. सरल व शीघ्र न्याय-व्यवस्था (Simple and Speedy Justice)-न्यायपालिका की स्वतन्त्रता के साथ ही न्याय का सरल व शीघ्र किया जाना स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है। न्याय-व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए जिससे न्याय शीघ्र मिल सके। न्याय की देरी का अर्थ है-अन्याय। गांधी जी के अनुसार अच्छी न्याय व्यवस्था की मूल विशेषता होती है कि न्याय सस्ता और शीघ्र होता है।

6. समान अधिकार (Equal Rights)-स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए यह भी आवश्यक है कि नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त हों। किसी एक वर्ग को विशेष अधिकार प्राप्त नहीं होने चाहिएं।

7. आर्थिक सुरक्षा (Economic Security)-स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए आर्थिक सुरक्षा होनी चाहिए। जिस देश में अमीर तथा ग़रीब में अधिक भेद होता है वहां ग़रीब व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता का प्रयोग नहीं कर पाते। एक भूखे व्यक्ति के लिए वोट के अधिकार का कोई महत्त्व नहीं है, वह अपने वोट का अधिकार बेच देता है। व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा तभी कर सकता है जब उसे आर्थिक सुरक्षा प्राप्त हो।

8. कानून का शासन (Rule of Law)-स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए कानून का शासन आवश्यक है। ‘कानून के शासन’ का अर्थ है कि कानून के सामने सभी समान हैं । इंग्लैण्ड, भारत तथा अमेरिका में कानून का शासन है। इंग्लैण्ड में नागरिकों की स्वतन्त्रता की रक्षा कानून के शासन के द्वारा की गई है।

9. शक्तियों का विकेन्द्रीयकरण (Decentralisation of Powers)-स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए सत्ता का विकेन्द्रीयकरण होना चाहिए न कि केन्द्रीयकरण। इसलिए सभी विद्वान, विचारक और राजनेता शक्तियों के विकेन्द्रीयकरण पर बल देकर राजनीतिक सत्ता को राष्ट्रीय, प्रान्तीय तथा स्थानीय इकाइयों में बांटने का समर्थन करते हैं। लॉस्की (Laski) ने ठीक ही कहा है कि, “राज्य में शक्तियों का जितना अधिक वितरण होगा, उसकी प्रकृति उतनी अधिक विकेन्द्रित होगी और व्यक्तियों में अपनी स्वतन्त्रता के लिए उतना ही अधिक उत्साह होगा।” ब्राइस (Bryce) का विचार है कि लोगों में स्वतन्त्रता की भावना पैदा करने के लिए राज्य में स्वशासन की संस्थाओं (Local Self-Government Institution) को स्थापित करना आवश्यक है।

10. स्वतन्त्र प्रैस (Free Press)-किसी भी राज्य में नागरिकों की स्वतन्त्रताएं केवल तभी सुरक्षित रह सकती हैं जब वहां प्रेस स्वतन्त्र हो और व्यक्ति अपने विचारों की स्वतन्त्रतापूर्वक अभिव्यक्ति कर सकता हो। विचारों की अभिव्यक्ति का सबसे प्रभावशाली ढंग प्रकाशन है। अतः स्वतन्त्र और ईमानदार प्रैस का होना अति आवश्यक है। यदि प्रेस स्वतन्त्र नहीं होगा तो लोगों को सरकार की कार्यवाहियों का सही ज्ञान नहीं होगा।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता

11. संविधान (Constitution)-सरकार की शक्तियों को संविधान में लिख कर सरकार पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है। इसलिए आधुनिक राज्यों के संविधान लिखित होते हैं ताकि सरकार की शक्तियों का स्पष्ट वर्णन किया जा सके। सरकार को अपना कार्य संविधान के अनुसार करना चाहिए।

12. राजनीतिक शिक्षा (Political Education)-स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए जनता के पास राजनीतिक शिक्षा का होना आवश्यक है। राजनीतिक शिक्षा से ही मनुष्य को अपने अधिकारों तथा स्वतन्त्रता का ज्ञान होता है और इससे मनुष्य शासन में अधिक-से-अधिक रुचि लेता है। बिना राजनीतिक शिक्षा के स्वतन्त्रता की रक्षा करना असम्भव है।

13. पक्षपात रहित शासन (Impartial Administration)-स्वतन्त्रता की रक्षा तभी हो सकती है जब राज्य की नीति पक्षपातपूर्ण न हो। इसका अभिप्रायः यह है कि राज्य को कुछ लोगों की भलाई के लिए ही कार्य नहीं करना चाहिए और न ही भेदभाव की नीति का अनुसरण करना चाहिए।

14. सतत् जागरूकता (Eternal Vigilance)-प्रो० लॉस्की (Laski) ने ठीक ही कहा है, “सतत् जागरूकता स्वतन्त्रता का मूल है।” स्वतन्त्रता की सुरक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय जनता को स्वतन्त्रता के प्रति जागरूक रहना है। नागरिकों में सरकार के इन कार्यों के विरुद्ध आन्दोलन करने की हिम्मत तथा हौंसला होना चाहिए जो उनकी स्वतन्त्रता को नष्ट करते हों। सरकार को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि यदि उसने नागरिकों की स्वतन्त्रता को कुचला तो नागरिक उसके विरुद्ध पहाड़ की तरह खड़े हो जाएंगे। लॉस्की (Laski) के शब्दों में, “नागरिकों की महान् भावना न कि कानूनी शब्दावली स्वतन्त्रता की वास्तविक संरक्षरक है।”

15. सुदृढ़ व संगठित दलीय प्रणाली Strong and well-knit Party System)-स्वतन्त्रता के संरक्षण के लिए सुदृढ़ व सुसंगठित राजनीतिक दलों की व्यवस्था का होना अनिवार्य है। क्योंकि यदि बहुमत प्राप्त सरकार नीति-निर्माण के कार्यों में लोगों के हितों व स्वतन्त्रताओं को मान्यता नहीं देती है, तो विपक्षी दल न केवल इनका विरोध करते हैं, बल्कि ऐसी सरकार को अपदस्थ या हटाने के लिए लोगों में जनमत (Public Opinion) भी तैयार करते हैं, ताकि चुनावों में ऐसे राजनीतिक दन को सत्ता से दूर रखा जा सके।

16. सहिता की भावना एवं सरकार व लोगों में सहयोग (Spirit of tolerance and Co-operation between the Govt. and People)–स्वतन्त्रता के संरण के लिए लोगों में सहनशीलता व सहिष्णुता की भावना का होना अति आवश्यक है। मा सरकार व लोगों में परस्पर सहयोग के द्वारा ही हो सकता है। लोकतन्त्रीय व्यवस्था में शासन बहुसंख्यकों के हाग चलाया जाता है और अल्पसंख्यकों को बहुसंख्यकों की भावना में विश्वास रखते हुए सरकार के साथ पूर्ण सहयोग करना चाहिए। परस्पर मझौते व सहयोगों के द्वारा परस्पर विवादों का निपटारा करना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता का अर्थ एवं परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
स्वतन्त्रता शब्द को अंग्रेजी भाषा में लिबर्टी (Liberty) कहते हैं। लिबर्टी शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से निकला है जिसका अर्थ है पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा किसी प्रकार के बन्धनों का न होना। इस प्रकार स्वतन्त्रता का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए और उस पर कोई बन्धन नहीं होना चाहिए। परन्तु स्वतन्त्रता का यह अर्थ ग़लत है। स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ यह है कि व्यक्ति पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबन्ध नहीं होने चाहिएं परन्तु उसे उन अवसरों की भी प्राप्ति होनी चाहिए जो उसके विकास में सहायक हैं। स्वतन्त्रता की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं

  1. सीले के अनुसार, “स्वतन्त्रता अति शासन का उलटा रूप है।”
  2. गैटेल के अनुसार, “स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस सकारात्मक शक्ति से है जिससे उन बातों को करके आनन्द प्राप्त होता है जो करने योग्य हैं।”
  3. प्रो० लॉस्की ने स्वतन्त्रता की परिभाषा करते हुए लिखा है, “स्वतन्त्रता से मेरा अभिप्रायः वर्तमान सभ्यता में मनुष्य की प्रसन्नता की गारण्टी के लिए जिन सामाजिक परिस्थितियों की आवश्यकता है उन पर पाबन्दियों का न होना

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता के नकारात्मक तथा सकारात्मक रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्वतन्त्रता का अर्थ दो भिन्न-भिन्न रूपों में लिया जाता है। ये रूप निम्नलिखित हैं-

  • नकारात्मक स्वतन्त्रता-नकारात्मक स्वतन्त्रता से अभिप्राय है कि व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता हो अर्थात् व्यक्ति पर किसी प्रकार के प्रतिबन्ध न हों। उसे अपनी मनमानी करने का अधिकार प्राप्त हो और प्रत्येक कार्य को करने की स्वतन्त्रता प्राप्त हो। ‘सभी प्रकार के प्रतिबन्धों का अभाव’ ही नकारात्मक स्वतन्त्रता है।
  • सकारात्मक स्वतन्त्रता-सकारात्मक स्वतन्त्रता का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति को अपने व्यक्तित्व के विकास के लिए कुछ अधिकार तथा अवसर प्राप्त हों। स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ है कि, “प्रत्येक व्यक्ति को उन कार्यों को करने का अधिकार हो जिससे दूसरे व्यक्तियों को हानि न पहुंचे।” सकारात्मक स्वतन्त्रता का यह भी अर्थ लिया जाता है कि व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर अनुचित तथा अन्यायपूर्ण प्रतिबन्ध नहीं होने चाहिएं परन्तु साथ में उसे उन अवसरों की भी प्राप्ति होनी चाहिए जो उसके विकास में सहायक हैं।

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के चार रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के चार मुख्य रूप निम्नलिखित हैं-

  1. प्राकृतिक स्वतन्त्रता-प्राकृतिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय है कि मनुष्य को राज्य की उत्पत्ति से पूर्व प्राकृतिक अवस्था में पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त थी। ‘सामाजिक समझौते के सिद्धान्त’ के लेखकों के अनुसार भी प्रकृति ने मनुष्य को स्वतन्त्र पैदा किया है।
  2. नागरिक स्वतन्त्रता-नागरिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से है जो व्यक्ति को संगठित समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त होती है। समाज अपने सदस्यों के विकास के लिए वे आवश्यक परिस्थितियां उत्पन्न करता है जिनके बिना व्यक्ति अपना विकास नहीं कर सकता, इन परिस्थितियों तथा सुविधाओं को ही नागरिक स्वतन्त्रता कहा जाता है।
  3. राजनीतिक स्वतन्त्रता-राजनीतिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से होता है जिसके अन्तर्गत नागरिक को देश के शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है। राजनीतिक स्वतन्त्रता में नागरिक को मतदान का, चुने जाने का, प्रार्थना-पत्र देने का, सरकारी पद प्राप्त करने का इत्यादि राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
  4. नैतिक स्वतन्त्रता का अर्थ है, कि व्यक्ति को अपना नैतिक विकास करने की सभी सुविधाएं प्राप्त हों।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता की रक्षा के चार उपाय लिखें।
उत्तर-
स्वतन्त्रता का व्यक्ति के लिए बहुत महत्त्व है। आधुनिक राज्यों में व्यक्ति की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाते हैं-

  • लोकतन्त्र की स्थापना-स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए लोकतन्त्र की स्थापना आवश्यक है। स्वतन्त्रता और लोकतन्त्र सहचारी हैं। लोकतन्त्र में शासन की शक्ति जनता के पास होती है। अत: यदि सरकार जनता की स्वतन्त्रता को ख़त्म करने या छीनने का प्रयत्न करती है तो जनता चुनाव द्वारा सरकार को हटा देती है।
  • मौलिक अधिकारों की घोषणा-स्वतन्त्रता की सुरक्षा का सबसे अच्छा उपाय यह है कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों तथा कर्तव्यों की घोषणा संविधान में कर दी जाए और संविधान लिखित तथा कठोर होना चाहिए जिससे इन्हें बदला न जा सके।
  • न्यायपालिका की स्वतन्त्रता-स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना आवश्यक है। स्वतन्त्र न्यायपालिका ही निडरता तथा निष्पक्षता से न्याय कर सकती है। न्यायपालिका ही मौलिक अधिकारों की रक्षा करती है।
  • शक्तियों का पृथक्करण होना चाहिए।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता

प्रश्न 5.
“सतत् जागरूकता ही स्वतन्त्रता की कीमत है।” टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
प्रो० लॉस्की ने ठीक ही कहा है कि ‘सतत् जागरूकता ही स्वतन्त्रता की कीमत है।’ स्वतन्त्रता की सुरक्षा का सबसे महत्त्वपूर्ण उपाय स्वतन्त्रता के प्रति जागरूक रहना है। नागरिकों में सरकार के उन कार्यों के विरुद्ध आन्दोलन करने की हिम्मत व हौंसला होना चाहिए जो उनकी स्वतन्त्रता को नष्ट करते हैं। सरकार को इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि यदि उसने नागरिकों की स्वतन्त्रता को कुचला तो नागरिक उसके विरुद्ध पहाड़ की तरह खड़े हो जाएंगे। लॉस्की के शब्दों में नागरिक की महान् भावना न कि कानूनी शब्दावली स्वतन्त्रता का वास्तविक संरक्षक है।

प्रश्न 6.
सकारात्मक स्वतन्त्रता की विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
सकारात्मक स्वतन्त्रता नकारात्मक स्वतन्त्रता से कहीं विस्तृत तथा व्यापक है। सकारात्मक स्वतन्त्रता की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. स्वतन्त्रता का अर्थ बन्धनों का न होना नहीं है-स्वतन्त्रता का अर्थ प्रतिबन्धों का अभाव नहीं है। सकारात्मक स्वतन्त्रता के समर्थक उचित प्रतिबन्धों को स्वीकार करते हैं परन्तु वे अनुचित प्रतिबन्धों के विरुद्ध हैं। सामाजिक हित के लिए व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं। अतः स्वतन्त्रता असीमित नहीं होती है।
  2. स्वतन्त्रता और कानून परस्पर विरोधी नहीं-स्वतन्त्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं है। कानून स्वतन्त्रता को नष्ट नहीं करते बल्कि स्वतन्त्रता की रक्षा करते हैं।
  3. स्वतन्त्रता का अर्थ बाधाओं को दूर करना है-व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में जो बाधाएं आती हैं उनको दूर करना राज्य का कार्य है। स्वतन्त्रता का अर्थ उन सामाजिक परिस्थितियों का विद्यमान् होना है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हों।
  4. स्वतन्त्रता अधिकारों के साथ जुड़ी हुई है।

प्रश्न 7.
राजनीतिक स्वतन्त्रता से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक स्वतन्त्रता-राजनीतिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से होता है जिसके द्वारा नागरिक देश के शासन में भाग ले सकता है। राजनीतिक स्वतन्त्रता निम्नलिखित अधिकारों से सम्बन्ध रखती है

  • नागरिकों को कानून बनाने वाली सभाओं के प्रतिनिधि चुनने का अधिकार प्राप्त होता है अर्थात् नागरिकों को वोट डालने का अधिकार दिया जाता है।
  • चुने जाने का अधिकार ।
  • प्रार्थना-पत्र देने का अधिकार ।
  • सार्वजनिक पद प्राप्ति का अधिकार।
  • सरकार की नीतियों की आलोचना करने का अधिकार ।
  • राजनीतिक दल बनाने का अधिकार। नागरिकों को उपर्युक्त राजनीतिक अधिकार लोकतन्त्रीय राज्यों में प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8.
आर्थिक स्वतन्त्रता से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आर्थिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय यह है कि व्यक्ति प्रत्येक प्रकार की आर्थिक चिन्ताओं से मुक्त हो और वह आर्थिक दृष्टि से किसी के अधीन न हो। प्रो० लॉस्की के अनुसार, “आर्थिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय मनुष्य को अपनी जीविका कमाने के लिए उचित सुरक्षा और सुविधाओं का प्राप्त होना है।” इसका अभिप्राय यह है कि सरकार को ऐसा सम्पन्न वातावरण उत्पन्न करना चाहिए जिसमें व्यक्ति को अपनी जीविका कमाने और उचित ढंग से अपना जीवननिर्वाह करने के लिए प्रत्येक प्रकार की आर्थिक सुविधाएं प्राप्त हों। इस उद्देश्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेद-भाव के कार्य करने का अधिकार, उचित वेतन प्राप्त करने का अधिकार, विश्राम का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार और शोषण के विरुद्ध अधिकार इत्यादि प्राप्त होने चाहिएं।

प्रश्न 9.
आर्थिक और राजनीतिक स्वतन्त्रता के परस्पर सम्बन्धों की व्याख्या करें।
उत्तर-
राजनीतिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से होता है जिसके द्वारा नागरिक देश के शासन में भाग ले सकते हैं। राजनीतिक स्वतन्त्रता की प्राप्ति से नागरिक शासन में भाग लेकर अपनी नागरिक स्वतन्त्रता की भी रक्षा करता है। परन्तु राजनीतिक स्वतन्त्रता का लाभ व्यक्ति को तभी प्राप्त होता है, यदि उसे आर्थिक स्वतन्त्रता भी प्राप्त हो। राजनीतिक स्वतन्त्रता का कोई अर्थ नहीं है, यदि वह आर्थिक स्वतन्त्रता के ढांचे पर आधारित न हो। आर्थिक स्वतन्त्रता का अर्थ है कि नागरिक को बेरोज़गारी तथा भूख से मुक्ति हो। जो व्यक्ति काम करना चाहता है, उसे काम मिलना चाहिए। लेनिन ने कहा था, “नागरिक स्वतन्त्रता आर्थिक स्वतन्त्रता के बिना निरर्थक है।”

आर्थिक स्वतन्त्रता के अभाव में नागरिक अपने मत के अधिकार का उचित प्रयोग नहीं करता। निर्धन व्यक्ति अपनी वोट को बेच डालता है जिससे शासन की बागडोर पूंजीपतियों के हाथों में चली जाती है। पूंजीपति शासन का प्रयोग मज़दूरों के शोषण के लिए किया जाता है। व्यक्ति को नौकरी ही प्राप्त नहीं होनी चाहिए, बल्कि नौकरी की सुरक्षा भी प्राप्त होनी चाहिए। जिस मज़दूर को नौकरी से निकाले जाने का भय बना रहे वह अपनी स्वतन्त्रता का आनन्द नहीं ले सकता और न ही स्वतन्त्रता से अपनी राजनीतिक स्वतन्त्रता का उपभोग कर सकता है। जिस समाज में अमीरों तथा ग़रीबों में भेद बहुत बड़ा होता है वहां स्वतन्त्रता का होना सम्भव नहीं है। अत: ठीक ही कहा जाता है कि राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए आर्थिक स्वतन्त्रता का होना आवश्यक है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता का अर्थ लिखें।
उत्तर-
स्वतन्त्रता शब्द को अंग्रेज़ी भाषा में लिबर्टी (Liberty) कहते हैं। लिबर्टी शब्द लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से निकला है जिसका अर्थ है पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा किसी प्रकार के बन्धनों का न होना। इस प्रकार स्वतन्त्रता का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए और उस पर कोई बन्धन नहीं होना चाहिए। परन्तु स्वतन्त्रता का यह अर्थ ग़लत है। स्वतन्त्रता का वास्तविक अर्थ यह है कि व्यक्ति पर अन्यायपूर्ण तथा अनुचित प्रतिबन्ध नहीं होने चाहिएं परन्तु उसे उन अवसरों की भी प्राप्ति होनी चाहिए जो उसके विकास में सहायक हैं।

प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता को परिभाषित करो।
उत्तर-

  • सीले के अनुसार, “स्वतन्त्रता अति शासन का उलटा रूप है।”
  • गैटेल के अनुसार, “स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस सकारात्मक शक्ति से है जिससे उन बातों को करके आनन्द प्राप्त होता है जो करने योग्य हैं।”

प्रश्न 3.
स्वतन्त्रता के दो रूपों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • नागरिक स्वतन्त्रता-नागरिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से है जो व्यक्ति को संगठित समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त होती है।।
  • राजनीतिक स्वतन्त्रता-राजनीतिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से होता है जिसके अन्तर्गत नागरिक को देश के शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता की रक्षा के दो उपाय लिखें।
उत्तर-

  1. लोकतन्त्र की स्थापना-स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए लोकतन्त्र की स्थापना आवश्यक है।
  2. मौलिक अधिकारों की घोषणा–स्वतन्त्रता की सुरक्षा का सबसे अच्छा उपाय यह है कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों तथा कर्त्तव्यों की घोषणा संविधान में कर दी जाए और संविधान लिखित तथा कठोर होना चाहिए जिससे इन्हें बदला न जा सके।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. स्वतन्त्रता (Liberty) शब्द की उत्पत्ति किस भाषा और शब्द से हुई है ?
उत्तर–स्वतन्त्रता (Liberty) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के शब्द ‘लिबर’ (Liber) से हुई है।

प्रश्न 2. स्वतन्त्रता के नकारात्मक स्वरूप का क्या अर्थ है ?
उत्तर-पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा किसी प्रकार के बंधनों का न होना।

प्रश्न 3. स्वतन्त्रता के सकारात्मक स्वरूप का क्या अर्थ है ?
उत्तर-प्रत्येक व्यक्ति को उन कार्यों को करने का अधिकार है जिससे दूसरे व्यक्तियों को हानि न पहुंचे।

प्रश्न 4. स्वतन्त्रता की एक परिभाषा लिखो।
उत्तर-बर्नस के शब्दों में, “स्वतन्त्रता का अर्थ अपने व्यक्तित्व तथा योग्यताओं का पूर्ण विकास करना है।”

प्रश्न 5. स्वतन्त्रता के नकारात्मक पहलू के समर्थकों के नाम लिखें।
उत्तर-लॉक, एडम स्मिथ, हरबर्ट स्पैंसर, जे० एस० मिल आदि।

प्रश्न 6. स्वतन्त्रता के सकारात्मक पहलू के समर्थकों के नाम लिखें।
उत्तर-कांट, फिक्टे, ग्रीन, लॉस्की आदि।

प्रश्न 7. स्वतन्त्रता कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-(1) प्राकृतिक स्वतन्त्रता, (2) नागरिक स्वतन्त्रता, (3) राजनीतिक स्वतन्त्रता, (4) आर्थिक स्वतन्त्रता, (5) नैतिक स्वतन्त्रता, (6) व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, (7) राष्ट्रीय स्वतन्त्रता।

प्रश्न 8. प्राकृतिक स्वतन्त्रता किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्राकृतिक स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से है जो मनुष्य को राज्य की उत्पत्ति से पूर्व प्राकृतिक अवस्था में प्राप्त थी।

प्रश्न 9. नागरिक स्वतन्त्रता किसे कहते हैं ?
उत्तर- नागरिक स्वतन्त्रता का अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से है जो संगठित समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त होती है।

प्रश्न 10. राजनीतिक स्वतन्त्रता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-राजनीतिक स्वतन्त्रता का तात्पर्य उस स्वतन्त्रता से होता है जिसके द्वारा नागरिक देश के शासन में भाग ले सकता है।

प्रश्न 11. आर्थिक स्वतन्त्रता का अर्थ बताओ।
उत्तर-लोगों को अपनी जीविका कमाने की स्वतन्त्रता हो तथा इसके लिए उन्हें उचित साधन तथा सुविधाएं प्राप्त हों।

प्रश्न 12. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता किसे कहते हैं ?
उत्तर–जिसके द्वारा व्यक्ति को उन कार्यों को करने की स्वतन्त्रता हो जो उस तक ही सीमित हों तथा उसके कार्यों से किसी दूसरे व्यक्ति को हानि न पहँचे।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता

प्रश्न 13. राष्ट्रीय स्वतन्त्रता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-राज्य किसी देश के नियन्त्रण में न हो अर्थात् राज्य बाहरी रूप से स्वतन्त्र हो और प्रभुसत्ता उसके पास हो।

प्रश्न 14. स्वतन्त्रता की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-निरंकुश, अनैतिक, अन्यायपूर्ण प्रतिबन्धों का अभाव ही स्वतन्त्रता है।

प्रश्न 15. स्वतन्त्रता की रक्षा का एक उपाए बताएं।
उत्तर-स्वतन्त्रता की सुरक्षा के लिए प्रजातन्त्र की स्थापना आवश्यक है क्योंकि प्रजातन्त्र में शक्ति का स्रोत जनता होती है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……………….. स्वतन्त्रता का अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से है, जो संगठित समाज का सदस्य होने के नाते प्राप्त होती है।
2. …………… स्वतन्त्रता से अभिप्राय उस स्वतन्त्रता से है, जिसके द्वारा नागरिक देश के शासन में भाग ले सकता है।
3. स्वतन्त्रता और ………….. परस्पर विरोधी न होकर सहयोगी हैं।
4. …………….. के अनुसार, ‘सतत् जागरूकता ही स्वतन्त्रता का मूल्य है।’
5. ‘स्वतन्त्रता पर निबंध’ पुस्तक ………….. ने लिखी।
उत्तर-

  1. नागरिक
  2. राजनीतिक
  3. समानता
  4. लॉस्की
  5. जे० एस० मिल।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. टी० एच० ग्रीन के अनुसार, “स्वतन्त्रता अतिशासन का उल्टा रूप है।”
2. स्वतन्त्रता और राज्य के कानून परस्पर विरोधी नहीं हैं। कानून स्वतन्त्रता को नष्ट नहीं करते बल्कि स्वतन्त्रता की रक्षा करते हैं।
3. नैतिक स्वतन्त्रता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को देश के शासन में भाग लेने का अधिकार है।
4. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अर्थ है कि राज्य किसी देश के नियंत्रण में न हो अर्थात् राज्य बाहरी रूप से स्वतन्त्र हो और प्रभुसत्ता राज्य के पास हो।
5. जहां कानून नहीं होता, वहां स्वतन्त्रता नहीं होती है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. ग़लत
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
नकारात्मक स्वतन्त्रता का अर्थ है
(क) पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा प्रतिबन्धों का अभाव होना।
(ख) सीमित स्वतन्त्रता।
(ग) स्वतन्त्रता प्रतिबन्धों के साथ।
(घ) स्वतन्त्रता पर थोड़े प्रतिबन्धों का होना।
उत्तर-
(क) पूर्ण स्वतन्त्रता अथवा प्रतिबन्धों का अभाव होना।

प्रश्न 2.
यह किसने कहा, “स्वतन्त्रता का अर्थ उस वातावरण की उत्साहपूर्ण रक्षा करने से है जिससे मनुष्य कोअपने श्रेष्ठतम रूप की प्राप्ति का अवसर प्राप्त हो ?”
(क) लॉस्की
(ख) सीले
(ग) कोल
(घ) बर्नस।
उत्तर-
(क) लॉस्की

प्रश्न 3.
जो स्वतन्त्रता राज्य बनने से पहले विद्यमान थी, उसे-
(क) नागरिक स्वतन्त्रता कहते हैं
(ख) प्राकृतिक स्वतन्त्रता कहते हैं
(ग) आर्थिक स्वतन्त्रता कहते हैं
(घ) राजनीतिक स्वतन्त्रता कहते हैं।
उत्तर-
(ख) प्राकृतिक स्वतन्त्रता कहते हैं

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 6 स्वतन्त्रता

प्रश्न 4.
यह किसने कहा है, “मनुष्य स्वतन्त्र उत्पन्न होता है, परन्तु प्रत्येक स्थान पर वह बन्धन में बंधा हुआ है” ?
(क) रूसो
(ख) सीले
(ग) ग्रीन
(घ) बर्गेस।
उत्तर-
(क) रूसो

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 5 कानून Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 5 कानून

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कानून क्या है ? आप इसे कैसे परिभाषित करेंगे ?
(What is Law ? How would you define it ?)
उत्तर-
राज्य का मुख्य उद्देश्य शान्ति की स्थापना करना तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करना होता है। राज्य अपने इस उद्देश्य की पूर्ति कानून द्वारा करता है। राज्य की इच्छा कानून द्वारा प्रकट होती है तथा कानून द्वारा ही लागू की जाती है। कानून द्वारा ही व्यक्ति तथा राज्य के पारस्परिक सम्बन्ध, व्यक्ति तथा अन्य समुदायों के सम्बन्ध तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्ध निश्चित किए जाते हैं।

कानून की परिभाषा (Definition of Law)-कानून शब्द को अंग्रेज़ी में लॉ (Law) कहते हैं। लॉ (Law) शब्द टयूटॉनिक भाषा के शब्द लेग (Lag) से निकला है, जिसका अर्थ है-‘निश्चित’ या स्थिर। इस प्रकार कानून का अर्थ है-निश्चित नियम।

कानून शब्द का प्रयोग भिन्न-भिन्न रूपों में किया जाता है। जो कानून समाज में रहते हुए व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करते हैं, उन्हें सामाजिक कानून अथवा मानवीय कानून कहा जाता है। मानवीय कानूनों में से कुछ कानून ऐसे होते हैं जो मनुष्य के आन्तरिक व्यवहार को नियन्त्रित करते हैं-ऐसे कानून नैतिकता पर आधारित होते हैं और इन कानूनों को नैतिक कानून कहा जाता है। नैतिक कानूनों का उल्लंघन करने पर सज़ा नहीं मिलती। दूसरे वे कानून हैं जो मनुष्य के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करते हैं और इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है और जो इन कानूनों का उल्लंघन करता है राज्य उसे दण्ड देता है। ऐसे कानूनों को राजनीतिक कानून कहा जाता है। राजनीति शास्त्र में हमारा सम्बन्ध केवल उन कानूनों से है जिन्हें राज्य बनाता है तथा राज्य ही लागू करता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

विभिन्न लेखकों ने ‘कानून’ की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं जिनमें से मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • ऑस्टिन (Austin) के शब्दों में, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।” (“Law is a command of superior to an inferior.”) फिर ऑस्टिन ने आगे लिखा है, “कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है।” (“Law is a command of a sovereign.”’)
  • वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) के अनुसार, “कानून स्थापित विचारधारा तथा अभ्यास का वह भाग है जिन्हें सामान्य रूप के नियमों में स्वीकृति मिली होती है तथा जिन्हें सरकार की शक्ति का समर्थन प्राप्त होता है।”
  • विलोबी (Willoughby) के अनुसार, “कानून आचरण के वे नियम हैं जिनकी सहायता से न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार में कार्य करते हैं। वैसे तो समाज में आचरण के बहुत-से नियम होते हैं, परन्तु कानून में यह विशेषता होती है कि उसे राज्य की सम्पूर्ण शक्ति प्राप्त होती है।”
  • हालैंड (Holland) के शब्दों में, “कानून मनुष्य के बाहरी जीवन से सम्बन्धित सामान्य नियम हैं जो राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा लागू किए जाते हैं।”
  • पाउण्ड (Pound) के अनुसार, “न्याय-प्रशासन में सार्वजनिक और नियमित न्यायालयों द्वारा मान्यता प्राप्त और लागू किए गए सिद्धान्तों को कानून कहते हैं।”
  • टी० एच० ग्रीन (T.H. Green) के शब्दों में, “कानून अधिकारों और ज़िम्मेदारियों (कर्त्तव्यों) की वह व्यवस्था है जिसे राज्य लागू करता है।”

कानून की ऊपरलिखित परिभाषाओं से कानून के निम्नलिखित तत्त्वों का पता चलता है-

  1. कानून समाज में रहने वाले व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करता है।
  2. कानून व्यक्तियों के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करता है।
  3. कानून का निर्माण राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा किया जाता है और उसी द्वारा लागू किया जाता है।
  4. कानून निश्चित तथा सर्वव्यापक होता है। कानून सभी व्यक्तियों पर समान रूप से लागू होते हैं।
  5. कानून का उल्लंघन करने वाले को दण्ड दिया जाता है। कानून न्यायालयों द्वारा लागू किए जाते हैं।

प्रश्न 2.
कानून कितने प्रकार के होते हैं ?
(What are the different kinds of Law ?)
अथवा
कानून के विभिन्न रूपों का वर्णन कीजिए।
(Discuss the various kinds of Law.)
उत्तर-
राज्य की इच्छा कानून द्वारा प्रकट होती है और कानून द्वारा ही लागू की जाती है। कानून व्यक्ति तथा राज्य के आपसी सम्बन्ध, व्यक्ति तथा अन्य समुदायों के सम्बन्ध तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करता है। कानून राज्य में शान्ति की स्थापना करता है और कानून ही अपराधियों को दण्ड देता है। उन नियमों को कानून कहते हैं जो व्यक्ति के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करते हैं और जिन्हें राज्य की मान्यता प्राप्त होती है।

कानून के प्रकार (Different kinds of law)-कई विचारकों ने कानून का वर्गीकरण इस प्रकार किया है। प्रो० गैटेल (Gattell) के अनुसार, कानून तीन प्रकार का होता है-(1) व्यक्तिगत कानून (Private Law), (2) सार्वजनिक कानून (Public Law), (3) अन्तर्राष्ट्रीय कानून (International Law)।

प्रो० हालैंड के अनुसार, कानून दो प्रकार का होता है-व्यक्तिगत कानून (Private Law), (2) सार्वजनिक कानून (Public Law)।

सार्वजनिक कानून के हालैंड ने तीन उपभेद किए हैं-

  1. संवैधानिक कानून
  2. प्रशासकीय कानून
  3. दण्ड कानून । व्यक्तिगत कानून के हालैंड ने आगे उपभेद किए हैं-(1) सम्पत्ति तथा समझौता कानून (2) नियम कानून (3) व्यक्तिगत सम्बन्ध कानून (4) व्यावहारिक कानून।

प्रो० मैकाइवर (Maclver) का वर्गीकरण निम्नलिखित तालिका से स्पष्ट हो जाता है-

Class 11 Political Science Solutions Chapter 5 कानून 1

कुछ विचारक कानून के स्रोत के आधार पर भी कानून का वर्गीकरण करते हैं-वैधानिक कानून (Statutory Law), कॉमन लॉ (Common Law), न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानून (Judge-made Law) तथा अध्यादेश (Ordinance)।
ऊपरलिखित कानून के वर्गीकरण के आधार पर हम कानून के विभिन्न प्रकारों का संक्षेप में वर्णन करते हैं

  • अन्तर्राष्ट्रीय कानून (International Law)-अन्तर्राष्ट्रीय कानून वह नियम है जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है और उनके झगड़ों को निपटाता है। अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सम्बन्ध केवल राज्यों से होता है, व्यक्तियों से नहीं।
  • राष्ट्रीय कानून (National Law)-राष्ट्रीय कानून वह नियम है जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं। इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है और जो व्यक्ति अथवा समुदाय इन कानूनों का उल्लंघन करते हैं उन्हें दण्ड दिया जाता है। देश के न्यायालय इन्हीं कानूनों द्वारा न्याय करते हैं।

राष्ट्रीय कानून को दो भागों में बांटा जा सकता है-संवैधानिक कानून तथा साधारण कानून।

1. संवैधानिक कानून (Constitutional Law)-संवैधानिक कानून वह कानून है जो सरकार के संगठन, कार्यों तथा शक्तियों को निश्चित करता है। यह देश का सर्वोच्च कानून होता है। संवैधानिक कानून लिखित तथा अलिखित दोनों प्रकार के होते हैं। भारत, अमेरिका, जापान तथा स्विट्जरलैंड के संवैधानिक कानून लिखित हैं, परन्तु इंग्लैण्ड का संवैधानिक कानून अलिखित है।

2. साधारण कानून (Ordinary Law)—साधारण कानून राष्ट्रीय कानून का वह भाग है जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को निश्चित करता है। साधारण कानून सरकार द्वारा बनाए जाते हैं और सरकार द्वारा ही लागू किए जाते हैं। साधारण कानूनों को दो भागों में बांटा जाता है(क) सार्वजनिक कानून तथा (ख) व्यक्तिगत कानून।

3. सार्वजनिक कानून (Public Law)—सार्वजनिक कानून राज्य तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करता है। सार्वजनिक कानून दो प्रकार का होता है-

(i) प्रशासकीय कानून तथा (ii) आम कानून।

(i) प्रशासकीय कानून (Administrative Law)—प्रशासकीय कानून सार्वजनिक कानून का वह भाग है जो राज्य तथा सरकारी कर्मचारियों के सम्बन्ध नियमित करता है। प्रशासकीय कानून सरकारी कर्मचारियों के कार्यों, शक्तियों तथा स्तर को निश्चित करता है। प्रशासकीय कानून सभी देशों में नहीं मिलते। प्रशासकीय कानून का सबसे अच्छा उदाहरण फ्रांस है। (ii) आम कानून (General Law)-आम कानून सार्वजनिक कानून का वह भाग है जो सभी व्यक्तियों पर बिना सरकारी तथा गैर-सरकारी का भेद किए लागू होता है, उनके व्यवहारों को नियमित करता है।

4. व्यक्तिगत कानून (Private Law)-व्यक्तिगत कानून साधारण कानून का वह भाग है जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है। व्यक्तिगत कानून में उत्तराधिकार, विवाह तथा सम्पत्ति के आदान-प्रदान के कानून शामिल है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

5. वैधानिक कानून (Statutory Law)-वैधानिक कानून वे कानून हैं जो राज्य के विधानमण्डल द्वारा बनाए जाते हैं। प्रत्येक लोकतन्त्रीय राज्य में विधानमण्डल होता है। आजकल लोकतन्त्रीय राज्य में अधिकांश कानून विधानमण्डल द्वारा बनाए जाते हैं।

6. कॉमन लॉ (Common Law)-कॉमन लॉ का निर्माण विधानमण्डल द्वारा नहीं किया जाता। कॉमन लॉ देश में रीति-रिवाज़ों पर आधारित होते हैं जिन्हें न्यायालय मान्यता प्रदान कर चुके होते हैं। इंग्लैण्ड में कॉमन लॉ का बहुत बड़ा महत्त्व है।

7. न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानून (Judge-made Laws)-न्यायाधीश कानून की व्याख्या करते समय नए कानूनों को जन्म देते हैं। कई बार न्यायाधीश मुकद्दमों का निर्णय न्याय-भावना के आधार पर करते हैं। उनके निर्णय आने वाले वैसे मुकद्दमों के लिए कानून माने जाते हैं।

8. अध्यादेश (Ordinance)-अध्यादेश वे कानून हैं जो किसी विशेष परिस्थिति पर काबू पाने के लिए जारी किए जाते हैं। अध्यादेश कार्यपालिका द्वारा उस समय जारी किए जाते हैं जब विधानमण्डल का अधिवेशन नहीं हो रहा होता। जब विधानमण्डल का अधिवेशन होता है तब इन अध्यादेशों को विधानमण्डल से स्वीकृति लेनी पड़ती है। जिन अध्यादेशों को विधानमण्डल की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है वे कानून बन जाते हैं और जिनको स्वीकृति प्राप्त नहीं होती वे रद्द हो जाते हैं। जब अध्यादेश जारी किया जाता है तब उसे साधारण कानून की तरह ही मान्यता प्राप्त होती है और जो व्यक्ति अध्यादेश का उल्लंघन करता है उसे दण्ड दिया जाता है।

9. दीवानी कानून (Civil Laws)-वैधानिक कानून (Statutory Law) दीवानी और फ़ौजदारी कानूनों में बंटे होते हैं। दीवानी कानून धन, सम्पत्ति और उत्तराधिकार आदि मामलों से सम्बन्धित होते हैं।

10. फ़ौजदारी कानून (Criminal Laws)—फ़ौजदारी कानून लड़ाई-झगड़े, हत्या, डकैती आदि मामलों से सम्बन्धित होते हैं।

प्रश्न 3.
कानून के स्रोतों की व्याख्या करें।
(Discuss the sources of Law.).
उत्तर-
ऑस्टिन के अनुसार, कानून का स्रोत प्रभुसत्ताधारी है क्योंकि कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है। पर प्रत्येक कानून प्रभु का आदेश नहीं होता। कई ऐसे कानून होते हैं जिनका निर्माण प्रभु न करके केवल लागू करता है। आजकल अधिकतर कानूनों का निर्माण विधानमण्डल के द्वारा किया जाता है। परन्तु वास्तविकता यह है कि कानून के अनेक स्रोत हैं। कानून के निम्नलिखित स्रोत हैं

1. रीति-रिवाज (Customs)-रीति-रिवाज कानून का सबसे पुराना स्रोत है। प्राचीनकाल में रीति-रिवाज द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। रीति-रिवाजों को ही कबीले का कानून माना जाता था। जब राज्य की स्थापना हुई तो रीति-रिवाजों को ही कानून का रूप दे दिया गया। यह ठीक है कि रीति-रिवाज स्वयं कानून नहीं हैं पर राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं। कोई भी राज्य रीति-रिवाजों के विरुद्ध कानून बनाने का प्रयत्न नहीं करता और यदि कोई राज्य रीति-रिवाजों के विरुद्ध कानून बनाता है तो जनता उन कानूनों के विरुद्ध आन्दोलन करती है। महाराजा रणजीत सिंह जो निरंकुश राजा था, अपने कानूनों को रीति-रिवाजों के अनुसार ही बनाता था। भारत में हिन्दू लॉ (Hindu Law) तथा मुस्लिम लॉ (Muslim Law) जनता के रीति-रिवाजों पर आधारित हैं।

2. धर्म (Religion)-धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्राचीनकाल में सामाजिक जीवन पर धर्म का बहुत प्रभाव होता था। रीति-रिवाज पर धर्म का बहुत प्रभाव होता था। जिन रीति-रिवाजों को धर्म की मान्यता प्राप्त होती थी उन रीति-रिवाजों का अधिक पालन होता था। राज्य में राजा द्वारा निर्मित कानून दैवी अधिकारों पर आधारित होते थे और उनका उल्लंघन करना पाप समझा जाता था। वास्तव में प्राचीन काल में रीति-रिवाजों तथा धार्मिक नियमों में भेद करना अति कठिन था। कई देशों में तो पुरोहित ही राजा (Priest King) होते थे। भारत में फिरोज़ तुग़लक ने वही टैक्स लगाए जिनकी कुरान में आज्ञा थी। औरंगजेब ने भी अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों के अनुसार बनाए। आजकल भी मुस्लिम देशों के अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। हिन्दुओं के विवाह तथा उत्तराधिकार से सम्बन्धित कानून उनकी धार्मिक पुस्तक ‘मनुस्मृति’ पर आधारित हैं। इस प्रकार धर्म भी कानून का एक महान् स्रोत है और आज भी इसका प्रभाव है।

3. न्यायालयों के निर्णय (Judicial Decisions) न्यायालयों के निर्णय कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। झगड़ों का निर्णय न्यायालयों द्वारा किया जाता है। न्यायालय निर्णय करते समय नए कानून को जन्म देते हैं। कई बार न्यायाधीश के सामने ऐसे मुकद्दमे आते हैं जिनके बारे में बनाए हुए कानून स्पष्ट नहीं होते। न्यायाधीश इस कानून की व्याख्या कर के निर्णय देते हैं। न्यायाधीशों के निर्णय आने वाले वैसे ही मुकद्दमों के लिए कानून का काम करते हैं। अतः न्यायाधीश अपने निर्णयों द्वारा नए कानूनों को जन्म देते हैं। कानून की व्याख्या करते समय भी न्यायाधीश कानूनों का निर्माण करते हैं।

4. न्यायाधीशों की न्याय भावना (Equity)-न्यायाधीशों की न्याय-भावना भी कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। कई बार न्यायाधीश के सामने ऐसे मुकद्दमे आते हैं जहां प्रचलित कानून या तो स्पष्ट नहीं होता या कानून बिल्कुल ही नहीं होता। ऐसी परिस्थितियों में न्यायाधीश का कर्त्तव्य होता है कि वह न्याय भावना, न्याय बुद्धि, सद्भावना तथा ईमानदारी से नए कानून बनाकर मुकद्दमे का निर्णय करे। इन निर्णयों द्वारा बने कानूनों को न्यायाधीशों द्वारा निर्मित कानून (Judgemade Laws) कहा जाता है। गिलक्राइस्ट (Gilchrist) का कहना है कि, “न्याय भावना नए कानून को बनाने या पुराने कानून को बदलने का अनौपचारिक तरीका है जो व्यवहार की शुद्ध निष्पक्षता या समानता पर निर्भर है।”

5. वैज्ञानिक टिप्पणियां (Scientific Commentaries)—वैज्ञानिक टिप्पणियां कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं। कानून के प्रसिद्ध ज्ञाता कानून पर टिप्पणियां करके कानून के दोषों को स्पष्ट करते हैं और कानून में सुधार करने के लिए सुझाव भी देते हैं। न्यायाधीश झगड़ों का निर्णय करते समय कानून की व्याख्या के लिए प्रसिद्ध कानून-ज्ञाता की टिप्पणियों से सहायता लेते हैं और इन्हें मान्यता प्रदान करते हैं जिससे वे टिप्पणियां कानून बन जाती हैं। इंग्लैण्ड में डायसी, कोक तथा ब्लेकस्टोन प्रसिद्ध कानून-ज्ञाता हुए जिन्होंने ब्रिटिश कानून पर टिप्पणियां लिखी हैं जो बहुत लाभदायक सिद्ध हुई हैं। भारत में विज्ञानेश्वर, अपारर्क तथा मिताक्षर प्रसिद्ध कानून-ज्ञाता हुए हैं।

6. विधानमण्डल (Legislature) आधुनिक युग में विधानमण्डल कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। प्राचीन काल में शक्तियों का केन्द्रीयकरण होता था जिसके कारण राजा ही कानूनों का निर्माण करता था। लोकतन्त्रात्मक राज्यों में कानूनों का निर्माण विधानमण्डल द्वारा किया जाता है। प्रत्येक लोकतन्त्रात्मक राज्य में विधानमण्डल होता है जिसके पास कानून–निर्माण की शक्ति होती है। विधानमण्डल के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं। विधानमण्डल के बनाए हुए कानूनों द्वारा ही न्यायालय न्याय करते हैं तथा वकील इन्हीं कानूनों को मान्यता देते हैं। विधानमण्डल जनता की इच्छानुसार कानून का निर्माण करता है। कई देशों में जैसे कि स्विट्ज़रलैण्ड में जनता प्रत्यक्ष रूप से कानून निर्माण में भाग लेती है। परन्तु विधानमण्डल को हम प्रजातन्त्र राज्यों में ही देख सकते हैं। तानाशाही राज्यों तथा राजतन्त्र में कानूननिर्माण की शक्ति एक ही व्यक्ति के हाथ में होती है। आधुनिक युग में न्यायाधीशों के निर्णय, रीति-रिवाज, न्यायबुद्धि तथा वैज्ञानिक टिप्पणियों की महानता कानून के स्रोत के रूप में कम हो गई है। गैटेल (Getell) के शब्दों में, “वर्तमान राज्यों में व्यवस्थापन द्वारा घोषित राज्य की इच्छा कानून का प्रमुख स्रोत है और वह अन्य स्रोतों का भी स्थान लेता जा रहा है।”

7. कार्यपालिका (Executive)—आजकल कानून निर्माण का कार्य तो आमतौर पर विधानमण्डल करती है, परन्तु कई परिस्थितियों में ऐसा कार्य कार्यपालिका को भी करना पड़ता है। यदि विधानमण्डल स्थगित या भंग हुआ है तो भारतीय संविधान के अनुसार आवश्यकतानुसार राष्ट्रपति केन्द्रीय सरकार में और राज्यपाल अपनी राज्य सरकार में अध्यादेश जारी कर सकते हैं। ये अध्यादेश स्थायी तो नहीं होते परन्तु जब लागू रहते हैं तो उन्हें पूर्ण कानून की सत्ता प्राप्त होती है।

8. जनमत (Public Opinion)-कई विचारकों का मत है कि जनमत को भी कानून का स्रोत माना जाना चाहिए। आजकल के प्रजातन्त्रात्मक युग में लोगों की राय की कानून-निर्माण में प्रेरक के तौर पर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आधुनिक युग में लोग ही राज्य की प्रभुसत्ता के स्रोत माने जाते हैं और यह तो स्वतः सिद्ध है कि जो कानून जनमत के अनुकूल होंगे उनका पालन आसानी से करवाया जा सकता है। स्विट्ज़रलैंड जैसे देश में जहां प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र किसीन-किसी रूप में काम करता है यह स्रोत और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

निष्कर्ष (Conclusion)-इस प्रकार कानून का निर्माण किसी एक स्रोत द्वारा नहीं हुआ बल्कि कानून के अनेक स्रोत हैं। प्रत्येक स्रोत का किसी-न-किसी समय पर विशेष महत्त्व रहा है। प्राचीन काल में रीति-रिवाज तथा धर्म कानून के महत्त्वपूर्ण स्रोत थे। आज कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत विधानमण्डल है। पर विधानमण्डल अधिकतर कानून रीति-रिवाजों के अनुसार ही बनाता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कानून का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
कानून शब्द को अंग्रेज़ी में लॉ (Law) कहते हैं। लॉ (Law) शब्द ट्यूटानिक भाषा में शब्द लैग (Lag) से निकला है जिसका अर्थ है निश्चित। इस प्रकार कानून शब्द का अर्थ हुआ निश्चित नियम। कानून की कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं :-

  • ऑस्टिन के शब्दों में, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।” फिर ऑस्टिन ने आगे लिखा है “कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है।”
  • वुडरो विल्सन के अनुसार, “कानून स्थापित विचारधारा तथा अभ्यास का वह भाग है जिन्हें सामान्य रूप के नियमों में स्वीकृति मिली होती है तथा जिन्हें सरकार की शक्ति का समर्थन प्राप्त होता है।”
  • हालैंड के शब्दों में, “कानून मनुष्य के बाहरी जीवन से सम्बन्धित नियम हैं जो राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा लागू किए जाते हैं।”

प्रश्न 2.
कानून के किन्हीं चार स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर-
कानून के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं :-

  1. रीति-रिवाज-रीति-रिवाज कानून का सबसे पुराना स्रोत हैं। प्राचीनकाल में रीति-रिवाजों द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। जब राज्य की स्थापना हुई तो रीति-रिवाजों को ही कानून का रूप दे दिया गया। राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं।
  2. धर्म-धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जिन रीति-रिवाजों को धर्म की मान्यता प्राप्त होती है उनका पालन अधिक होता है। मुस्लिम देशों के अधिकतर कानून उनकी धार्मिक पुस्तक ‘कुरान’ पर आधारित हैं।
  3. न्यायालयों के निर्णय-कई बार न्यायाधीश के सामने ऐसे मुकद्दमे आते हैं जिनके विषय में स्पष्ट कानून नहीं होते। तब न्यायाधीश कानून की व्याख्या करके निर्णय देते हैं। न्यायाधीशों के निर्णय आने वाले वैसे ही मुकद्दमों के लिए कानून का काम करते हैं।
  4. वैज्ञानिक टिप्पणियां कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

प्रश्न 3.
कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत क्या है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में विधानमण्डल कानून का सबसे महत्त्वपूर्ण स्रोत है। लोकतन्त्रात्मक राज्यों में कानून का निर्माण विधानमण्डल द्वारा किया जाता है। प्रत्येक लोकतन्त्रात्मक राज्य में विधानमण्डल होता है जिसके पास कानूननिर्माण की शक्ति होती है। विधानमण्डल के सदस्य जनता के प्रतिनिधि होते हैं। विधानमण्डल के बनाए कानूनों द्वारा अदालतें न्याय करती हैं तथा वकील इन्हीं कानूनों को मान्यता देते हैं। विधानमण्डल जनता की इच्छानुसार कानून का निर्माण करता है। कई देशों में जैसे कि स्विट्ज़रलैंड में जनता प्रत्यक्ष से कानून निर्माण में भाग लेती है।

प्रश्न 4.
जनमत किस तरह कानून का स्रोत है ?
उत्तर-
कई विचारकों का मत है कि जनमत को भी कानून का स्रोत माना जाना चाहिए। आजकल के प्रजातन्त्रात्मक युग में लोगों की राय की कानून-निर्माण में प्रेरक के तौर पर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। आधुनिक युग में लोग ही राज्य की प्रभुसत्ता के स्रोत माने जाते हैं यह तो स्वतः सिद्ध है कि कानून जनमत के अनुकूल होंगे उनका पालन आसानी से करवाया जा सकता है। स्विट्ज़रलैंड जैसे देश में जहां प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र किसी-न-किसी रूप में काम करता है यह स्रोत और भी महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

प्रश्न 5.
कानून के स्रोत के रूप में रीति-रिवाजों का वर्णन करें।
उत्तर-
रीति-रिवाज कानून का सबसे पुराना स्रोत है। प्राचीनकाल में रीति-रिवाजों द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। रीति-रिवाजों को ही कबीले का कानून माना जाता था। जब राज्य की स्थापना हुई तो रीतिरिवाजों को ही कानून का रूप दिया गया। यह ठीक है कि रीति-रिवाज स्वयं कानून नहीं हैं पर राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं। कोई भी राज्य नीति-रिवाजों के विरुद्ध कानून बनाता है तो जनता उन कानूनों के विरुद्ध आन्दोलन करती है। महाराजा रणजीत सिंह जो निरंकुश बादशाह था, अपने कानूनों को रीति-रिवाजों के अनुसार ही बनाता था। भारत में हिन्दू लॉ (Hindu Law) तथा मुस्लिम लॉ (Muslim Law) जनता के रीतिरिवाजों पर आधारित हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

प्रश्न 6.
धर्म किस प्रकार कानून के स्रोत के रूप में कार्य करता है ?
उत्तर-
धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। भारत में फिरोज तुग़लक ने वही टैक्स लगाए जिनकी कुरान में आज्ञा थी। औरंगज़ेब ने भी अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों के अनुसार बनाए। आज भी मुस्लिम देशों के अधिक कानून कुरान के सिद्धान्तों पर आधारित हैं। हिन्दुओं के विवाह तथा उत्तराधिकार से सम्बन्धित कानून उनकी धार्मिक पुस्तक ‘मनुस्मृति’ पर आधारित हैं। इस प्रकार धर्म भी कानून का एक महान् स्रोत है और आज भी इसका प्रभाव है।

प्रश्न 7.
कानून कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
मुख्य तौर पर कानून चार प्रकार के होते हैं-

(1) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(2) राष्ट्रीय कानून
(3) संवैधानिक कानून
(4) व्यक्तिगत कानून।

  1. अन्तर्राष्ट्रीय कानून-अन्तर्राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करते हैं और उनके झगड़ों को निपटाते हैं।
  2. राष्ट्रीय कानून-राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं। इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है।
  3. संवैधानिक कानून-संवैधानिक कानून वे कानून हैं जो सरकार की शक्तियों, कार्यों तथा संगठन को निश्चत करता है।
  4. व्यक्तिगत कानून-व्यक्तिगत कानून साधारण कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है।

प्रश्न 8.
कानून के तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. कानून समाज में रहने वाले व्यक्तियों पर पारस्परिक सम्बन्धों को निश्चित करता है।
  2. कानून व्यक्तियों के बाहरी कार्यों को नियन्त्रित करता है।
  3. कानून का निर्माण राजनीतिक प्रभुसत्ताधारी द्वारा किया जाता है और उसी द्वारा लागू किया जाता है।
  4. कानून निश्चित तथा सर्वव्यापक होता है।
  5. कानून का उल्लंघन करने वाले को दंड दिया जाता है।

प्रश्न 9.
कानून तथा स्वतन्त्रता में क्या सम्बन्ध है ?
अथवा ‘कानून स्वतन्त्रता का विरोधी नहीं है।’ व्याख्या करो।
उत्तर-
व्यक्तिवादियों के मतानुसार राज्य जितने अधिक कानून बनाता है, व्यक्ति की स्वतन्त्रता उतनी कम होती है। अतः उनका कहना है, व्यक्ति की स्वतन्त्रता तभी सुरक्षित रह सकती है जब राज्य अपनी सत्ता का प्रयोग कमसे-कम करे।

परन्तु आधुनिक लेखकों के मतानुसार स्वतन्त्रता तथा कानून परस्पर विरोधी न होकर परस्पर सहायक तथा सहयोगी हैं। राज्य ही ऐसी संस्था है जो कानूनों द्वारा ऐसा वातावरण उत्पन्न करती है जिसमें व्यक्ति अपनी स्वतन्त्रता का आनन्द उठा सकता है। राज्य कानून बना कर एक नागरिक को दूसरे नागरिक के कार्यों में हस्तक्षेप करने से रोकता है। राज्य कानूनों द्वारा सभी व्यक्तियों को समान सुविधाएं प्रस्तुत करता है ताकि मनुष्य अपना विकास कर सके। स्वतन्त्रता और कानून एक-दूसरे के विरोधी न होकर एक-दूसरे के पूरक हैं। लॉक ने ठीक ही कहा है कि “जहां कानून नहीं वहां पर स्वतन्त्रता भी नहीं।”

प्रश्न 10.
एक अच्छे कानून की चार विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. कानून की भाषा सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए।
  2. कानून सार्वजनिक कल्याण के लिए होना चाहिए।
  3. कानून में स्थायीपन होना चाहिए।
  4. कानून देश तथा समाज की आवश्यकतानुसार होने चाहिएं।

प्रश्न 11.
कानून के प्रमुख उद्देश्य बताइए।
उत्तर-
विभिन्न विद्वानों ने कानून के भिन्न-भिन्न उद्देश्य बताए हैं। ऑर० पाण्डेय ने कानून के चार मुख्य उद्देश्य बताएं हैं-

  1. राज्य में शान्ति स्थापित करना
  2. समानता स्थापित करना
  3. व्यक्तित्व की रक्षा तथा उसका विकास करना तथा
  4. मनुष्य की आवश्यकताओं को पूरा करना।

प्रश्न 12.
कानून तथा नैतिकता में सम्बन्ध बताओ।
उत्तर-
कानून तथा नैतिकता में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। दोनों का उद्देश्य नैतिक जीवन के उच्चतम आदर्शों की स्थापना करना है। राज्य का उद्देश्य आदर्श नागरिक बनाना है और कोई भी आदर्श नागरिक बिना नैतिक आदर्शों के नहीं बन सकता। व्यक्ति यदि नैतिक है तो राज्य भी नैतिक होगा। राज्य के कानून प्रायः नैतिकता पर ही आधारित होते हैं और जो कानून नैतिकता के विरुद्ध होता है वह सफल नहीं होता और ऐसे कानून को लागू करना बड़ा कठिन होता है। राज्य के कानून नैतिकता को बढ़ावा देते हैं।

प्रश्न 13.
अध्यादेश (Ordinance) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अध्यादेश वह कानून हैं जो किसी विशेष परिस्थिति पर काबू पाने के लिए जारी किए जाते हैं। अध्यादेश कार्यपालिका द्वारा उस समय जारी किए जाते हैं जब विधानमण्डल का अधिवेशन नहीं हो रहा होता। जब विधानमण्डल का अधिवेशन होता है तब इन अध्यादेशों के लिए विधानमण्डल से स्वीकृति लेनी पड़ती है। जिन अध्यादेशों को विधानमण्डल की स्वीकृति प्राप्त हो जाती है वे कानून बन जाते हैं और जिनको स्वीकृति प्राप्त नहीं होती वे रद्द हो जाते हैं। जब अध्यादेश जारी किया जाता है तब उसे साधारण कानून की तरह ही मान्यता प्राप्त होती है और जो व्यक्ति अध्यादेश का उल्लंघन करता है उसे दण्ड दिया जाता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

प्रश्न 14.
हम कानून का पालन क्यों करते हैं ? अपने विचार दीजिए।
उत्तर-
कानून का पालन किसी भी सभ्य समाज के लिए अत्यावश्यक है। कानून के पालन के लिए निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं

  • कानून से समाज में शान्ति व सुरक्षा बनाई रखी जा सकती है–प्रायः प्रत्येक समाज में समाज विरोधी तत्त्व पाए जाते हैं। ये समाज में शान्ति व व्यवस्था को भंग करके नागरिकों की सुरक्षा के लिए ख़तरा उत्पन्न करते हैं। अतः इन समाज विरोधी तत्त्वों से निपटने तथा समाज में शान्ति व व्यवस्था बनाए रखने के लिए कानून का पालन करना अनिवार्य है।
  • कानून जन-कल्याण को बढ़ावा देते हैं लोगों के लिए कानून का पालन करना तब तक सम्भव नहीं होता जब तक कि उनमें कानून के प्रति सम्मान की भावना न हो और ऐसा तभी हो सकता है जब लोगों का विश्वास हो कि कानून सद्जीवन तथा जन कल्याण के विकास में सहायक होगा। लोगों में यदि यह विश्वास हो कि कानून के पालन से न केवल उनका अपना व्यक्तिगत विकास होगा सारे समाज का भी कल्याण होगा, तो वे कानून का पालन करेंगे।
  • नियमों के अनुरूप चलने की आदत-प्रायः लोगों का यह विश्वास है कि सामाजिक जीवन का समुचित ढंग से निर्वहन तभी किया जा सकता है यदि कानूनों का पालन किया जाए। इसे नियमों के अनुरूप चलने की आदत कहा जाता है। इसी कारण लोग कानूनों का पालन करते हैं।
  • कानून समाज में अनुशासन एवं संयम पैदा करते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कानून का अर्थ लिखें।
उत्तर-
कानून शब्द को अंग्रेज़ी में लॉ (Law) कहते हैं। लॉ (Law) शब्द ट्यूटानिक भाषा में शब्द लैग (Lag) से निकला है जिसका अर्थ है निश्चित। इस प्रकार कानून शब्द का अर्थ हुआ निश्चित नियम।

प्रश्न 2.
कानून को परिभाषित करें।
उत्तर-

  • ऑस्टिन के शब्दों में, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।” फिर ऑस्टिन ने आगे लिखा है, “कानून प्रभुसत्ताधारी का आदेश है।”
  • वुडरो विल्सन के अनुसार, “कानून स्थापित विचारधारा तथा अभ्यास का वह भाग है जिन्हें सामान्य रूप के नियमों में स्वीकृति मिली होती है तथा जिन्हें सरकार की शक्ति का समर्थन प्राप्त होता है।”

प्रश्न 3.
कानून के किन्हीं दो स्रोतों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. रीति-रिवाज-रीति-रिवाज कानून के सबसे पुराना स्रोत हैं। प्राचीनकाल में रीति-रिवाजों द्वारा ही सामाजिक व्यवहार को नियमित किया जाता था। राज्य के अधिकतर कानून रीति-रिवाजों पर ही आधारित होते हैं।
  2. धर्म-धर्म कानून का महत्त्वपूर्ण स्रोत है। जिन रीति-रिवाजों को धर्म की मान्यता प्राप्त होती है उनका पालन अधिक होता है।

प्रश्न 4.
कानून के किन्हीं दो प्रकारों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. अन्तर्राष्ट्रीय कानून- अन्तर्राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करते हैं और उनके झगड़ों को निपटाते हैं।
  2. राष्ट्रीय कानून-राष्ट्रीय कानून वे नियम हैं जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं। इन कानूनों को राज्य की मान्यता प्राप्त होती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. कानून शब्द को अंग्रेजी में क्या कहते हैं ?
उत्तर-कानून शब्द को अंग्रेजी में लॉ (Law) कहते हैं।

प्रश्न 2. लॉ (Law) शब्द किस भाषा से निकला है ?
उत्तर-लॉ (Law) शब्द टयूटॉनिक भाषा के शब्द लेग (Lag) से निकला है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

प्रश्न 3. कानून की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-ऑस्टिन के अनुसार, “कानून उच्चतर का निम्नतर को आदेश है।”

प्रश्न 4. कानून के कोई दो प्रकार लिखें।
उत्तर-

  1. राष्ट्रीय कानून
  2. अन्तर्राष्ट्रीय कानून।

प्रश्न 5. प्रशासकीय कानून किसे कहते हैं ?
उत्तर-प्रशासकीय कानून सार्वजनिक कानून का वह भाग है, जो राज्य तथा सरकारी कर्मचारियों के सम्बन्ध नियमित करता है।

प्रश्न 6. अन्तर्राष्ट्रीय कानून किसे कहते हैं?
उत्तर-अन्तर्राष्ट्रीय कानून वह नियम है, जो राज्यों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है, और उनके झगड़ों को निपटाता है।

प्रश्न 7. कानून के कोई दो स्रोत लिखें।
उत्तर-

  1. रीति-रिवाज
  2. धर्म।

प्रश्न 8. राष्ट्रीय कानून किसे कहते हैं ?
उत्तर-राष्ट्रीय कानून वह नियम है जो राज्य की सीमा के अन्दर व्यक्तियों तथा समुदायों पर लागू होते हैं।

प्रश्न 9. संवैधानिक कानून किसे कहते हैं?
उत्तर-संवैधानिक कानून वह कानून है जो सरकार के संगठन, कार्यों तथा शक्तियों को निश्चित करता है।

प्रश्न 10. साधारण कानून किसे कहते हैं?
उत्तर-साधारण कानून राष्ट्रीय कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को निश्चित करता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. …………… अधिकारों और कर्तव्यों की व्यवस्था है, जिसे राज्य लागू करता है।
2. कानून व्यक्ति के …………… कार्यों को नियन्त्रित करता है।
3. कानून …………. तथा सर्वव्यापक होता है।
4. कानून का उल्लंघन करने वाले को ……….. दी जाती है।
5. कानून ………… द्वारा लागू किये जाते हैं।
उत्तर-

  1. कानून
  2. बाहरी
  3. निश्चित
  4. सज़ा
  5. न्यायालयों ।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. प्रो० गैटल के अनुसार कानून पांच प्रकार के होते हैं।
2. प्रो० हालैण्ड के अनुसार कानून दो प्रकार के होते हैं।
3. साधारण कानून राष्ट्रीय कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को निश्चित करता है।
4. सार्वजनिक कानून राज्य तथा व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित नहीं करता।
5. सामान्य कानून (General Law) सार्वजनिक कानून का वह भाग है, जो व्यक्तियों के आपसी सम्बन्धों को नियमित करता है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्रो० मैकाइवर के अनुसार कानून का एक रूप/प्रकार है-
(क) सार्वजनिक कानून
(ख) राष्ट्रीय कानून
(ग) अन्तर्राष्ट्रीय कानून
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
कानून का स्रोत है-
(क) रीति-रिवाज
(ख) धर्म
(ग) विधानमण्डल
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
कौन-सा कानून लड़ाई-झगड़े, हत्या तथा डकैती इत्यादि से सम्बन्धित होता है ?
(क) दीवानी कानून
(ख) फौजदारी कानून
(ग) व्यक्तिगत कानून
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) फौजदारी कानून।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 5 कानून

प्रश्न 4.
यह कथन किसका है कि “न्याय भावना नए कानून को बनाने या पुराने कानून को बदलने का औपचारिक तरीका है, जो व्यवहार की शुद्ध निष्पक्षता या समानता पर निर्भर है।”
(क) लॉस्की
(ख) विलोबी
(ग) गिलक्राइस्ट
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) गिलक्राइस्ट।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
अधिकारों के अर्थ की विवेचना कीजिए।
(Discuss the meaning of Rights.)
अथवा
अधिकारों की परिभाषा कीजिए। अधिकारों की विशेषताओं का वर्णन करो।
(Define Rights. Discuss the characteristics of Rights.)
उत्तर-
अधिकार सामाजिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं जिनके बिना न तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और न ही समाज के लिए उपयोगी कार्य कर सकता है। आधुनिक युग में अधिकारों का महत्त्व और अधिक हो गया है, क्योंकि आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। इसलिए प्रत्येक राज्य अपने नागरिकों को कुछ ऐसे अधिकार देता है जिनका दिया जाना उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए उपयुक्त वातावरण पैदा करने के लिए आवश्यक होता है। लॉस्की (Laski) का कथन है कि “एक राज्य अपने नागरिकों को जिस प्रकार के अधिकार प्रदान करता है, उन्हीं के आधार पर राज्य को अच्छा या बुरा कहा जा सकता है।”

अधिकारों का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Rights)—मनुष्य को अपना विकास करने के लिए कुछ सुविधाओं की आवश्यकता होती है। मनुष्य को जो सुविधाएं समाज से मिली होती हैं, उन्हीं सुविधाओं को हम अधिकार कहते हैं। साधारण शब्दों, में अधिकार से अभिप्राय उन सुविधाओं और अवसरों से होता है जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक होते हैं और उन्हें समाज में मान्यता दी जाती है। अन्य शब्दों में, अधिकार वे सुविधाएं हैं जिनके कारण हमें किसी कार्य को करने या न करने की शक्ति मिलती है।

विभिन्न लेखकों ने अधिकार की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं। कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • वाइल्ड (Wild) के अनुसार, “विशेष कार्य करने में स्वतन्त्रता की उचित मांग ही अधिकार है।” (“Right is a reasonable claim to freedom in the exercise of certain activities.”)
  • ग्रीन (Green) के अनुसार, “अधिकार व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक बाहरी अवस्थाएं हैं।” (“Rights are those powers which are necessary to the fulfilment of man’s vocation as moral being.”)
  • बोसांके (Bosanquet) के अनुसार, “अधिकार वह मांग है जिसे समाज मान्यता देता है और राज्य लागू करता है।” (“A right is a claim recognised by society enforced by the State.”)
  • हालैंड (Holland) के अनुसार, “अधिकार एक व्यक्ति की वह शक्ति है, जिससे वह दूसरे के कार्यों पर प्रभाव डाल सकता है और जो उसकी अपनी ताकत पर नहीं बल्कि समाज की राय या शक्ति पर निर्भर है।” (“Right is one man’s capacity of influencing the acts of another by means not of his strength but of the opinion or the force of society.”)
  • लॉस्की (Laski) के शब्दों में, “अधिकार सामाजिक जीवन की वे अवस्थाएं हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति अपने जीवन का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।” (“Rights are those conditions of social life without which no
    man can seek, in general, to be himself at the best.”)
  • डॉ० बेनी प्रसाद (Dr, Beni Parsad) के अनुसार, “अधिकार वे सामाजिक अवस्थाएं हैं जो व्यक्ति की उन्नति के लिए आवश्यक हैं। अधिकार सामाजिक जीवन का आवश्यक पक्ष हैं।” (“Rights are those social conditions of life which are essential for the development of the individual. Rights are the essential aspects of social life.”’)

अधिकारों की विशेषताएं (Characteristics of Rights)-उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अधिकार एक वातावरण है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के विकास के लिए स्वतन्त्रतापूर्वक तथा बिना किसी बाधा के कोई कार्य कर सके। अधिकार के निम्नलिखित लक्षण हैं :-

  • अधिकार समाज में ही सम्भव हो सकते हैं (Rights can be possible only in the Society)-अधिकार केवल समाज में ही मिलते हैं। समाज के बाहर अधिकारों का न कोई अस्तित्व है और न कोई आवश्यकता।
  • अधिकार व्यक्ति का दावा है (Rights are claim of the Individual) अधिकार व्यक्ति का किसी कार्य को करने की स्वतन्त्रता का एक दावा है जो वह समाज से करता है। दूसरे शब्दों में, सुविधाओं की मांग को अधिकार कहते हैं। इस मांग को शक्ति नहीं कहा जा सकता।
  • अधिकार समाज द्वारा मान्य होता है (Rights are recognised by the Society)-अधिकार व्यक्ति की मांग है जिसे समाज मान ले या स्वीकार कर ले। व्यक्ति की किसी सुविधा की मांग करने मात्र से वह मांग अधिकार नहीं बन जाती। व्यक्ति की मांग अधिकार का रूप उस समय धारण करती है जब समाज उसे मान्यता दे दे।
  • अधिकार तर्कसंगत तथा नैतिक होता है (Rights are Reasonable and Moral) समाज व्यक्ति की उसी मांग को स्वीकार करता है जो मांग तर्कसंगत, उचित तथा नैतिक हो। जो मांग अनुचित और समाज के लिए हानिकारक हो, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
  • अधिकार असीमित नहीं होते हैं (Rights are not Absolute)-अधिकार कभी असीमित नहीं होते बल्कि वे सीमित शक्तियां होती हैं जो व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक होती हैं। इसलिए ग्रीन ने अधिकारों की परिभाषा देते हुए इन्हें सामान्य कल्याण में योगदान देने के लिए मान्य शक्ति कहा है।
  • अधिकार लोक हित में प्रयोग किया जा सकता है (Rights can be used for Social Good)-अधिकार का प्रयोग सामाजिक हित के लिए किया जा सकता है, समाज के अहित के लिए नहीं। अधिकार समाज में ही मिलते हैं और समाज द्वारा ही दिए जाते हैं, इसलिए यह स्वाभाविक है कि इनका प्रयोग समाज के कल्याण के लिए किया जाए।
  • अधिकार सर्वव्यापी होते हैं (Rights are Universal)-अधिकार समाज में सब व्यक्तियों को समान रूप से मिलते हैं। अधिकार व्यक्ति का दावा है, परन्तु यह दावा किसी एक व्यक्ति विशेष का नहीं होता बल्कि प्रत्येक व्यक्ति का होता है जिसके आधार पर वह बाकी सबके विरुद्ध स्वतन्त्रता की मांग करता है। इस प्रकार जो अधिकार एक व्यक्ति को प्राप्त है, वही अधिकार समाज के दूसरे सदस्यों को भी प्राप्त होता है।
  • अधिकार के साथ कर्त्तव्य होते हैं (Rights are always accompanied by Duties)-अधिकार की यह भी विशेषता है कि यह अकेला नहीं चलता। इसके साथ कर्त्तव्य भी रहते हैं। अधिकार और कर्त्तव्य हमेशा साथ-साथ चलते हैं। क्योंकि अधिकार सब व्यक्तियों को समान रूप से मिलते हैं, इसलिए अधिकार की प्राप्ति के साथ व्यक्ति को यह कर्त्तव्य भी प्राप्त हो जाता है कि दूसरे के अधिकार में हस्तक्षेप न करे। कर्त्तव्य के बिना अधिकार नहीं दिए जा सकते।
  • अधिकार राज्य द्वारा लागू और सुरक्षित होता है (Right is enforced and protected by the State)अधिकार की यह भी एक विशेषता है कि राज्य ही अधिकार को लागू करता है और उसकी रक्षा करता है। राज्य कानून द्वारा अधिकारों को निश्चित करता है और उनके उल्लंघन के लिए दण्ड की व्यवस्था करता है। यह आवश्यक नहीं कि अधिकार राज्य द्वारा बनाए भी जाएं। जिस सुविधा को समाज में आवश्यक समझा जाता है, राज्य उसको संरक्षण देकर उसको निश्चित और सुरक्षित बना देता है।
  • अधिकार स्थायी नहीं होते (Rights are not Static) अधिकार की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि अधिकार स्थायी नहीं होते बल्कि अधिकार सामाजिक, नैतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

प्रश्न 2.
आधुनिक लोकतन्त्रीय राज्य में नागरिक को कौन-से सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार मिलते
(What civil and political rights are enjoyed by the citizen of a modern state ?)
अथवा
एक लोकतन्त्रीय राज्य के नागरिक के मुख्य अधिकारों का वर्णन कीजिए। (Briefly discuss the important rights enjoyed by a democratic state.)
उत्तर-
मनुष्य अपने व्यक्तित्व का विकास बिना अधिकारों के नहीं कर सकता। उसे अपने नैतिक, मानसिक तथा आर्थिक विकास के लिए अधिकारों की आवश्यकता होती हैं। प्रजातन्त्रीय देशों में अधिकारों का और भी महत्त्व है। भारत, अमेरिका, जापान, रूस, चीन, आदि देशों में नागरिकों के इन अधिकारों का वर्णन संविधान में किया गया है। उल्लेखनीय है कि भारत, अमेरिका, जापान आदि प्रजातन्त्रात्मक राज्यों में राजनीतिक अधिकारों पर जोर दिया जाता है। सभ्य राज्यों में प्राय: नागरिकों को तीन प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं-

(क) नागरिक या सामाजिक अधिकार
(ख) राजनीतिक अधिकार
(ग) आर्थिक अधिकार।
नोट-इन अधिकारों की व्याख्या अगले प्रश्नों में की गई।

प्रश्न 3.
नागरिक अधिकार क्या हैं ? वर्णन कीजिए । (What are Civil Rights ? Describe)
उत्तर-
नागरिक या सामाजिक अधिकार वे अधिकार हैं जो मनुष्य के जीवन को सभ्य बनाने के लिए आवश्यक हैं। इनके बिना मनुष्य अपने दायित्व का विकास तथा सामाजिक प्रगति नहीं कर सकता। ये अधिकार राज्य के सभी लोगों को समान रूप से प्राप्त होते हैं।
आधुनिक लोकतान्त्रिक राज्य में नागरिकों को निम्नलिखित नागरिक अधिकार मिले होते हैं-

1. जीवन का अधिकार (Right to Life)-जीवन का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है। इसके बिना अन्य अधिकार व्यर्थ हैं। जिस मनुष्य का जीवन सुरक्षित नहीं है, वह किसी प्रकार की उन्नति नहीं कर सकता। अरस्तु ने ठीक ही कहा है कि राज्य जीवन की रक्षा के लिए बना और अच्छे जीवन के लिए चल रहा है। नागरिकों के जीवन की रक्षा करना राज्य का परम कर्तव्य है। अत: सभी राज्यों में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रक्षा करने का अधिकार है।

2. शिक्षा का अधिकार (Right to Education)—शिक्षा के बिना मनुष्य अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। अनपढ़ व्यक्ति को गंवार तथा पशु समान माना जाता है। शिक्षा के बिना मनुष्य को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान नहीं होता। आधुनिक राज्य व्यक्ति के इस अधिकार को मान्यता दे चुके हैं। भारत के नागरिकों को शिक्षा का अधिकार संविधान के द्वारा दिया गया है। किसी नागरिक को जाति-पाति, धर्म, सम्प्रदाय, ऊंच-नीच, रंग आदि के आधार पर स्कूल तथा कॉलेज में दाखिल होने से नहीं रोका जा सकता है। इंग्लैण्ड, सोवियत संघ, फ्रांस आदि देशों में भी नागरिकों को शिक्षा का अधिकार दिया गया है।

3. सम्पत्ति का अधिकार (Right to Propeterty)—सम्पत्ति का अधिकार मनुष्य के विकास के लिए आवश्यक है। इस अधिकार से अभिप्राय है कि मनुष्य सम्पत्ति खरीद सकता है, बेच सकता है और अपनी सम्पत्ति जिसे चाहे दे सकता है। उसे पैतृक सम्पत्ति रखने का भी अधिकार है। सम्पत्ति सभ्यता की निशानी है। सम्पत्ति का मनुष्य के जीवन से बहुत सम्बन्ध है, इसलिए आधुनिक राज्यों ने अपने नागरिकों को सम्पत्ति का अधिकार दे रखा है। भारत के नागरिकों को सम्पत्ति का अधिकार संविधान से प्राप्त था परन्तु अब यह कानूनी अधिकार है।

4. भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Speech and Expression)-मनुष्य विचारों को प्रकट करने का अधिकार रखता है। मनुष्य अपने विचारों को भाषण के द्वारा अथवा समाचार-पत्रों में लेख लिखकर प्रकट करता है। विचार व्यक्त करने का अधिकार महत्त्वपूर्ण अधिकार है। बिना अधिकार के मनुष्य अपना विकास नहीं कर पाता। जिस मनुष्य को विचार प्रकट करने का अधिकार नहीं होता है, वह सोचना बन्द कर देता है जिससे उसके मन का विकास रुक जाता है। हमें यह अधिकार संविधान से प्राप्त है।

5. शान्तिपूर्वक इकट्ठे होने तथा संस्थाएं बनाने का अधिकार (Right to Assemble Peacefully and to form Associations)-आधुनिक लोकतन्त्रीय राज्य में नागरिकों को शान्तिपूर्वक इकट्ठे होने तथा संस्थाएं बनाने का अधिकार होता है। मनुष्य भाषण देने के अधिकार का तभी प्रयोग कर सकते हैं जब उन्हें इकट्ठे होने की स्वतन्त्रता प्राप्त है। परन्तु वे शान्तिपूर्वक ही इकट्ठे हो सकते हैं। हथियार लेकर इकट्ठे होने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। मनुष्य को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए संस्थाएं बनाने का भी अधिकार होता है, परन्तु चोरी तथा हत्या करने के लिए किसी संस्था का निर्माण नहीं किया जा सकता। यदि सरकार सोचे कि किसी संस्था से देश की शान्ति तथा सुरक्षा को खतरा है तो वह उस संस्था को समाप्त भी कर सकती है। भारत के नागरिकों को यह अधिकार संविधान से प्राप्त है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

6. परिवार का अधिकार (Right to Family)-मनुष्य को परिवार बनाने का अधिकार है। मनुष्य अपनी इच्छा से शादी कर सकता है और सन्तान उत्पन्न कर सकता है। परिवार का प्रबन्ध करने में मनुष्य को पूर्ण स्वतन्त्रता नहीं है। राज्य परिवार से सम्बन्धित नियमों का निर्माण कर सकता है। भारत सरकार ने शादी करने की आयु निश्चित की है। कोर्ट में शादी करने के लिए पुरुष की आयु 21 वर्ष तथा स्त्री की आयु 18 वर्ष होनी चाहिए। इसी तरह कानून के अन्तर्गत पुरुष को दो पत्नियां रखने का अधिकार नहीं है। संसार के प्राय: सभी राज्यों में मनुष्य को परिवार बनाने का अधिकार प्राप्त है।

7. धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)-धर्म का जीवन पर गहरा प्रभाव होता है अत: व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। धर्म की स्वतन्त्रता का अर्थ है कि मनुष्य स्वतन्त्रतापूर्वक जिस धर्म में चाहे विश्वास रखे, जिस देवता की चाहे पूजा करे और जिस तरह चाहे पूजा करे। सरकार को नागरिकों के धर्म में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। भारत के नागरिकों को यह अधिकार संविधान से प्राप्त है। आज संसार के अधिकांश देशों में नागरिकों को धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार प्राप्त है।

8. समानता का अधिकार (Right to Equality)—सभी नागरिकों को समान अधिकार प्राप्त होने चाहिएं। धर्म, भाषा, जाति-पाति, सम्प्रदाय, रंग-भेद के आधार पर नागरिकों से मतभेद नहीं किया जाना चाहिए। भारत, इंग्लैण्ड, अमेरिका आदि देशों में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए हैं। कानून के सामने सब बराबर हैं। अमीर-ग़रीब, शक्तिशाली तथा कमज़ोर सब कानून के सामने बराबर हैं। किसी को विशेष अधिकार नहीं दिए गए हैं। कानून तोड़ने वाले को कानून के अनुसार सजा दी जाती है। सभी को समान अवसर देना ही समानता का दूसरा नाम है।

9. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Personal Liberty)-नागरिकों को व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का भी अधिकार दिया जाता है जो कि बड़ा आवश्यक है। आज व्यक्ति को पशुओं की तरह बेचा और खरीदा नहीं जा सकता। इस अधिकार के बिना मनुष्य का अपना शारीरिक तथा मानसिक विकास नहीं हो सकता। उसे बिना अपराध तथा न्यायालय की आज्ञा के बिना बन्दी नहीं बनाया जा सकता और न ही किसी प्रकार का दण्ड दिया जा सकता है।

10. देश के अन्दर घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Movement in the Country)-नागरिकों को देश के अन्दर घूमने-फिरने का अधिकार होता है। नागरिक देश के जिस हिस्से में चाहें बस सकते हैं। वह सैर करने के लिए भी जा सकते हैं। मनुष्य को घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता देना आवश्यक है, इसके बिना मनुष्य अपने आपको कैदी महसूस करता है। भारत का संविधान नागरिकों को घूमने-फिरने की स्वतन्त्रता का अधिकार देता है। परन्तु कोई नागरिक इस अधिकार का गलत प्रयोग करता है तो सरकार उसकी स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध लगा सकती है।

11. समझौते का अधिकार ( Right to Contract)—प्रत्येक नागरिक को दूसरे मनुष्यों से तथा समुदायों से समझौता करने का अधिकार होता है परन्तु नागरिक को कानून की सीमा के अन्दर रह कर ही समझौते करने की स्वतन्त्रता होती है।

12. संस्कृति की स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Culture)-नागरिकों को अपनी संस्कृति में विश्वास रखने की स्वतन्त्रता होती है। नागरिक अपनी भाषा तथा रीति-रिवाजों के विकास के लिए कदम उठाने की स्वतन्त्रता रखते हैं। लोकतन्त्रीय राज्यों में अल्पसंख्यकों को भी संस्कृति का विकास करने का अधिकार होता है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में संस्कृति का अधिकार दिया गया है।

13. व्यापार तथा व्यवसाय की स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Freedom of Trade and Occupation)-प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छा के अनुसार व्यापार तथा व्यवसाय करने की स्वतन्त्रता होती है। अपनी आजीविका कमाने के लिए व्यक्ति कोई भी उचित काम कर सकता है।

प्रश्न 4.
राजनीतिक अधिकार क्या हैं ? वर्णन कीजिए ।
(What are Political Rights ? Describe.)
उत्तर-
राजनीतिक अधिकार बहुत महत्त्वपूर्ण अधिकार हैं क्योंकि इन्हीं अधिकारों के द्वारा नागरिक शासन में भाग ले सकता है। प्रजातन्त्रीय राज्यों में नागरिकों को निम्नलिखित राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं-

1. मत देने का अधिकार (Right to Vote)-प्रजातन्त्र में जनता का शासन होता है, परन्तु जनता स्वयं शासन नहीं चलाती, बल्कि जनता शासन चलाने के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव करती है। प्रतिनिधियों का चुनाव मतदाताओं के द्वारा किया जाता है। प्रतिनिधियों के चुनने के अधिकार को मत का अधिकार कहा जाता है। सभी नागरिकों को मत देने का अधिकार नहीं दिया जाता। मत देने के लिए नागरिकों की आयु निश्चित होती है। भारत, इंग्लैण्ड, अमेरिका तथा रूस में मत देने की आयु 18 वर्ष है।

2. चुनाव लड़ने का अधिकार (Right to Contest Election)—प्रजातन्त्र में नागरिक को मत देने का अधिकार ही प्राप्त नहीं होता, बल्कि चुनाव लड़ने का अधिकार भी प्राप्त होता है। नागरिक नगरपालिका, विधानसभा, संसद् तथा दूसरी निर्वाचित संस्थाओं का चुनाव लड़ सकता है। चुनाव लड़ने के लिए आयु निश्चित होती है। भारतवर्ष में लोकसभा का चुनाव लड़ने के लिए 25 वर्ष तथा राज्यसभा के लिए 30 वर्ष आयु निश्चित है। एक नागरिक जिसकी आयु 25 वर्ष या अधिक है, किसी भी धर्म, जाति, वंश, लिंग से सम्बन्धित क्यों न हो लोक सभा का चुनाव लड़ सकता है। अमीर, ग़रीब, अनपढ़, पढ़े-लिखे, निर्बल तथा शक्तिशाली सभी को चुनाव लड़ने का समान अधिकार प्राप्त है।

3. सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार (Right to hold Public Office)-प्रजातन्त्र में नागरिकों को सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त होता है। साधारणत: सरकारी नौकरी नागरिकों को ही दी जाती है, परन्तु कई बार विशेष हालत में विदेशी को भी सरकारी नौकरी दी जाती है। नियुक्ति के समय धर्म, जाति-पाति, रंग, वंश, लिंग आदि को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। नियुक्ति योग्यता के आधार पर ही की जाती है। भारतवर्ष में कोई भी नागरिक चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो, ऊंची से ऊंची नौकरी प्राप्त करने का अधिकार रखता है। डॉ० जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, डॉ० अबुल कलाम भारत के राष्ट्रपति रह चुके हैं। सुप्रीम कोर्ट के भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश एम० हिदायतुल्लाह तथा ए० एम० अहमदी भी मुसलमान थे। परन्तु पाकिस्तान में गैर मुस्लिम प्रधान नहीं बन सकता ।

4. आवेदन-पत्र देने का अधिकार (Right to Petition)—प्रजातन्त्र में सरकार को जनता का सेवक माना जाता है। सरकार का कार्य जनता के दु:खों को दूर करना होता है। नागरिकों के अपने दुःखों को दूर करने के लिए सरकार को आवेदन-पत्र भेजने का अधिकार प्राप्त है। यदि कोई सरकारी अफसर जनता पर अत्याचार करता है तो वे मिल कर सरकार को प्रार्थना-पत्र दे सकते हैं।

5. सरकार की आलोचना करने का अधिकार (Right to Criticise Government)-प्रजातन्त्र में नागरिकों को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है। नागरिक सरकार की नीतियों की आलोचना कर सकता है, परन्तु आलोचना रचनात्मक होनी चाहिए। नागरिकों को चाहिए कि वे अपने सुझाव सरकार को दें जिससे जनता का भला हो।

6. राजनीतिक दल बनाने का अधिकार (Right to form Political Parties)—प्रजातन्त्र में नागरिकों को राजनीतिक दल बनाने का अधिकार प्राप्त होता है। नागरिक राजनीतिक दल बना कर ही चुनाव लड़ सकते हैं। व्यक्तिगत तौर पर चुनाव लड़ना अति कठिन होता है। आज राजनीतिक दलों का इतना महत्त्व है कि प्रजातन्त्र को राजनीतिक दलो के बिना चलाया ही नहीं जा सकता। अत: नागरिकों को राजनीतिक दल बनाने का अधिकार होता है। परन्तु कई देशों में राजनीतिक दलों पर पाबन्दियां लगाई जाती हैं। चीन में कम्युनिस्ट पार्टी के अतिरिक्त किसी अन्य पार्टी की स्थापना नहीं की जा सकती।

7. विदेश में सुरक्षा का अधिकार (Rights to Protection in Foreign Land)-जब कोई नागरिक विदेश जाता है तो उसकी रक्षा का दायित्व राज्य का होता है और वह संकट के समय राज्य से सुरक्षा की मांग कर सकता है। इस कार्य के लिए राज्यों के परस्पर राजदूतीय सम्बन्ध बनाए जाते हैं।

प्रश्न 5.
आर्थिक अधिकार क्या हैं ? वर्णन कीजिए ।
(What are Economic Rights ? Describe.)
उत्तर-
प्रजातन्त्रीय राज्यों में नागरिकों को आर्थिक विकास के लिए आर्थिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं। समाजवादी देशों में आर्थिक अधिकारों पर विशेष बल दिया जाता है। नागरिकों को प्राय: निम्नलिखित अधिकार प्राप्त होते हैं-

1. काम का अधिकार (Right to Work)-कई राज्यों में नागरिकों को काम करने का अधिकार प्राप्त होता है। इस अधिकार का अर्थ है कि नागरिक काम करने की मांग कर सकते हैं। राज्य का कर्तव्य है कि वह सभी नागरिकों को काम दे ताकि नागरिक अपनी आजीविका कमा सकें। यदि राज्य नागरिकों को काम नहीं दे सकता तो उन्हें मासिक निर्वाह भत्ता देता है ताकि नागरिक भूखा न मरे। चीन में नागरिकों को काम प्राप्त करने का अधिकार प्राप्त है। भारत के नागरिकों को यह अधिकार प्राप्त नहीं है। भारत सरकार नागरिकों को काम दिलवाने में सहायता करती है।

2. उचित मज़दूरी का अधिकार (Right to Adequate Wages)-किसी नागरिक को काम देना ही काफ़ी नहीं है। उसे अपने काम की उचित मज़दूरी भी मिलनी चाहिए। उचित मज़दूरी का अर्थ है कि मजदूरी उसके काम के अनुसार मिलनी चाहिए। चीन में उचित मज़दूरी का अधिकार संविधान में लिखा हुआ है। पूंजीवदी देशों में न्यूनतम वेतन कानून (Minimum Wages Act) बनाए गए हैं जिससे मजदूरों के कम-से-कम वेतन को निश्चित किया गया है। बिना मज़दूरी काम लेना कानून के विरुद्ध है।

3. अवकाश पाने का अधिकार (Right to Leisure)-मज़दूरों को काम करने के पश्चात् अवकाश भी मिलना चाहिए। अवकाश से मनुष्य को खोई हुई शक्ति वापस मिलती है। अवकाश में ही मनुष्य और समस्याओं की ओर ध्यान देता है। पर अवकाश बिना वेतन नहीं होना चाहिए। रूस में अवकाश पाने का अधिकार संविधान में लिखा गया है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

4. काम के निश्चित घण्टों का अधिकार (Right to fixed Working Hours) आधुनिक राज्यों में काम करने के घण्टे निश्चित कर दिए गए हैं ताकि मजदूरों का शोषण न किया जा सके। काम करने के घण्टे निश्चित करने से पूर्व अमीर व्यक्ति मज़दूरों से 14-14 या 16-16 घण्टे काम लिया करते थे। परन्तु अब काम करने के लिए निश्चित समय से अधिक समय काम लेने की दशा में अधिक मज़दूरी दी जाती है। प्राय: सभी देशों में 8 घण्टे प्रतिदिन काम करने का समय निश्चित है।

5. आर्थिक सुरक्षा का अधिकार (Right to Economic Security)-अनेक राज्यों में विशेषकर समाजवादी राज्यों में नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा के अधिकार भी प्राप्त हैं। इस अधिकार के अन्तर्गत यदि कोई व्यक्ति काम करते समय अंगहीन हो जाता है या किसी कारणवश काम करने के अयोग्य हो जाता है तो सरकार उसको आर्थिक सहायता देती है। पैंशन की व्यवस्था भी की जाती है। बीमारी की दशा में नि:शुल्क दवाई भी दी जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion)-हमने नागरिकों के महत्त्वपूर्ण अधिकारों का उल्लेख किया है, परन्तु ये सभी अधिकार प्रत्येक राज्य में नागरिकों को प्राप्त नहीं हैं। विभिन्न राज्यों में नागरिकों को दिए गए अधिकारों की संख्या तथा प्रकृति भिन्न-भिन्न है। उदाहरणस्वरूप चीन में काम का अधिकार है और इंग्लैंड में बेकारी की दशा में निर्वाह-भत्ता मिलता है, परन्तु भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है। चीन में भी मतदान का अधिकार है, परन्तु शासन की आलोचना करने या राजनीतिक दल बनाने का अधिकार नहीं है। इतना होते हुए भी यह कहना ठीक ही होगा कि भले ही सब राज्य अपनीअपनी परिस्थितियों के कारण एक समान अधिकार नहीं दे सकते फिर भी एक अच्छे कल्याणकारी राज्य की कसौटी वहां के नागरिकों को प्राप्त अधिकार ही माना जा सकता है।

प्रश्न 6.
विभिन्न प्रकार के कर्तव्यों की विवेचना कीजिए।
(Discuss the type of duties.)
अथवा
कर्तव्यों से आप क्या समझते हैं ? आधुनिक राज्य में नागरिक के विभिन्न कर्तव्यों की व्याख्या करें
(What do you understand by Duties ? Describe the various duties of Citizen in a Modern State.)
उत्तर-
सामाजिक जीवन कर्त्तव्य पालन के बिना ठीक नहीं चल सकता। समाज में रहते हुए मनुष्य अपने हित के लिए बहुत से कार्य करता है, परन्तु कुछ कार्य उसे दूसरों के हितों के लिए भी करने पड़ते हैं, चाहे उन्हें करने की इच्छा हो या न हो। जो कार्य व्यक्ति को आवश्यक रूप से करने पड़ते हैं, उनको कर्त्तव्य कहा जाता है। इस प्रकार कर्तव्य व्यक्ति द्वारा अपने या दूसरों के लिए किया गया वह कार्य है जो उसे अवश्य करना पड़ता है। अधिकार और कर्तव्य का अटूट सम्बन्ध है। कर्त्तव्यों के बिना अधिकार नहीं दिए जा सकते और कर्तव्यों का बहुत ही महत्त्व होता है। बहुत से संविधानों में तो अधिकारों के साथ ही कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है। यदि नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं है तो लोकतन्त्र सफल नहीं हो सकता।

कर्तव्य का अर्थ (Meaning of Duty)-कर्त्तव्य’ शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Duty’ का पर्यायवाची है। ड्यूटी शब्द डैट (Debt) शब्द से बना है जिसका अर्थ है ऋण या कर्जा । शाब्दिक अर्थ में कर्त्तव्य एक प्रकार का हमारा समाज के प्रति ऋण है जो हमें अधिकारों के बदले चुकाना पड़ता है। समाज व्यक्ति को अनेक सुविधाएं प्रदान करता है, जिस कारण व्यक्ति समाज का ऋणी है। इस ऋण को चुकाने के लिए समाज के प्रति व्यक्ति के कुछ कर्त्तव्य हैं। इस प्रकार समाज की हमारे ऊपर मांग ही हमारे कर्त्तव्य हैं। स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन के शब्दों में, “कर्त्तव्य आज्ञा का अन्धाधुन्ध पालन नहीं है बल्कि वह अपनी बन्दिशों और उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने की तीव्र इच्छा है।” (“Duty is not dumb obedience, it is an active desire to fulfil obligations and responsibilities.”)

कर्त्तव्य दो प्रकार के होते हैं-

  1. नैतिक (Moral)
  2. कानूनी (Lagal)।

1. नैतिक कर्त्तव्य (Moral Duties) नैतिक कर्त्तव्य सदाचार पर आधारित होते हैं जिनका पालन नैतिकता के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए बच्चों का नैतिक कर्त्तव्य है कि अपने माता-पिता की सेवा करें। नैतिक कर्त्तव्य का पालन न करने वाले को सज़ा नहीं दी जा सकती।

2. कानूनी कर्त्तव्य (Lagal Duties)-कानूनी कर्त्तव्य वे कर्त्तव्य होते हैं जिन्हें राज्य कानून के द्वारा अपने नागरिकों को दे देता है। उदाहरण के लिए आयकर देना कानूनी कर्त्तव्य है। कानूनी कर्तव्य का पालन न करने पर राज्य दण्ड देता
है।

नागरिक के कर्तव्य (Duties of a Citizen) – व्यक्ति को जीवन में बहुत-से कर्त्तव्यों का पालन करना पड़ता है। एक लेखक का कहना है कि सच्ची नागरिकता अपने कर्तव्यों का उचित पालन करने में है। समाज में विभिन्न समुदायों तथा संस्थाओं के प्रति नागरिक के भिन्न-भिन्न कर्तव्य होते हैं। जैसे-कर्त्तव्य अपने परिवार के प्रति हैं, अपने पड़ोसियों के प्रति, अपने गांव या शहर के प्रति, अपने राज्य के प्रति, अपने देश के प्रति, मानव जाति के प्रति और यहां तक कि अपने प्रति भी हैं। नागरिकों के मुख्य कर्तव्य निम्नलिखित हैं-

नागरिक के नैतिक कर्त्तव्य (Moral Duties of a Citizen) नागरिक के ऐसे अनेक कर्तव्य हैं जिनका पालन करना अथवा न करना नागरिक की इच्छा पर निर्भर करता है। इन कर्तव्यों का पालन न करने वाले को कानून दण्ड नहीं दे सकता, फिर भी इन कर्त्तव्यों का विशेष महत्त्व है। नागरिक के मुख्य नैतिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं-

1. नागरिक के अपने प्रति कर्त्तव्य (Duties towards Oneself)-नागरिक के अपने प्रति कर्त्तव्य इस प्रकार हैं-

  • रोग से दूर रहना-प्रत्येक नागरिक को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य व्यक्ति की सबसे बड़ी सम्पत्ति होती है।
  • शिक्षा प्राप्त करना- शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य अपने मन का विकास कर सकता है। अतः प्रत्येक नागरिक को दिल लगाकर शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
  • परिश्रम करना-नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह कड़ा परिश्रम करे ताकि देश के उत्पादन में वृद्धि हो।
  • आर्थिक विकास-नागरिक को आर्थिक विकास करना चाहिए। जो व्यक्ति अपना आर्थिक विकास नहीं करता वह अपने साथ और अपने परिवार के साथ अन्याय करता है।
  • चरित्र- नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने चरित्र को ठीक रखे। नैतिक विकास के लिए नागरिकों को सदाचारी बनना चाहिए।
  • सत्य-नागरिक को सदैव सत्य बोलना चाहिए। (vii) ईमानदारी-नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपना कार्य ईमानदारी से करे।
  • प्रगतिशील विचार-नागरिक को अपने विचार विशाल, विस्तृत तथा प्रगतिशील बनाने चाहिएं। उसे समय की आवश्यकतानुसार अपने विचार बदलने चाहिएं। संकुचित विचारों वाला नागरिक समाज का कोई कल्याण नहीं कर सकता।

2. सेवा (Service)-नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की सेवा करे। दीन-दुःखियों, ग़रीबों, असहायों तथा अनाथों की सहायता तथा सेवा करना उसका कर्त्तव्य है।

3. दया-भाव (Kindness)-नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह दूसरों के प्रति दया की भावना रखे। दूसरों के दुःखों को देखकर व्यक्ति के दिल में दया उत्पन्न होनी चाहिए तथा उनकी सहायता करनी चाहिए।

4. अहिंसा (Non-Violence) नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है कि वह दूसरों के प्रति अहिंसा की भावना रखे। किसी की हत्या करना या मारना नैतिकता के विरुद्ध है।

5. आत्म-संयम (Self-Control)–नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह संयम से रहे। उसको अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए। गुरु गोबिन्द सिंह जी का आदेश उल्लेखनीय है कि ‘मन जीते जग जीत’।

6. प्रेम और सहानुभूति (Love and Sympathy)-दूसरों के प्रति प्रेम और सहानुभूति की भावना रखना नागरिक का कर्तव्य है। दूसरों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, मीठी बोली बोलना चाहिए तथा दूसरों के संकट में काम आना चाहिए।

7. आज्ञा पालन तथा अनुशासन (Obedience and Discipline)-राज्य के प्रति तो अपने कर्त्तव्यों का पालन प्रत्येक नागरिक को करना ही पड़ता है, परन्तु परिवार के बड़े सदस्यों और रिश्तेदारों, अध्यापकों तथा उच्च अधिकारियों की आज्ञाओं का पालन करना भी नागरिकों का कर्तव्य है। नागरिक जहां भी जाए उसे स्थान या संस्था में सम्बन्धित नियमों का पालन ईमानदारी से करना चाहिए।

8. निःस्वार्थ भावना (Selfless Spirit)-नागरिक को नि:स्वार्थ होना चाहिए। उसे प्रत्येक कार्य अपने लाभ के लिए ही नहीं करना चाहिए बल्कि उसे दूसरों की भलाई के लिए भी काय करने चाहिएं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

9. धर्मानुसार आचरण (Religious Performance)-नागरिक का कर्तव्य है कि वह धर्मानुसार चले और कोई ऐसा काम न करे जो उसके धर्म के विरुद्ध हो। धर्म में अन्ध-विश्वास नहीं होना चाहिए।

10. परिवार के प्रति कर्त्तव्य (Duties Hards Family)-नागरिक के परिवार के प्रति निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं

  • आज्ञा पालन करना- प्रत्येक नागरिक को अपने माता-पिता तथा वटी की आज्ञा का पालन करना चाहिए। अन्य सदस्यों से भी आदरपूर्वक व्यवहार करना चाहिए तथा अनुशासन में रहना प्रत्येक नागरिक के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • आवश्यकताओं की पूर्ति करना-नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपने परिवार के लिए अच्छे तथा साफ़सुथरे घर का निर्माण करे और परिवार के सदस्यों का पालन-पोषण करने के लिए धन कमाए।
  • परिवार के नाम को रोशन करना-प्रत्येक नागरिक को ऐसा काम करना चाहिए जिससे परिवार का नाम रोशन हो और कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे परिवार की बदनामी हो।

11. नागरिक के पड़ोसियों के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards one’s neighbours)-पड़ोसी ही व्यक्ति का सामाजिक समाज होता है। इसलिए नागरिक के अपने पड़ोपियों के प्रति निम्नलिखित कर्तव्य हैं

  • प्रेम तथा सहयोग की भावना-प्रत्येक नागरिक में अपने पड़ोसियों के प्रति प्रेम, सहयोग, सहानुभूति तथा मित्रता की भावना होनी चाहिए। किसी ने ठीक कहा है कि, “हम साया मां-बाप जाया!”
  • दुःख-सुख में शामिल होना-प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने पड़ोसियों के दुःख-सुख का साथी बने। अपने सुख की परवाह किए बिना अपने पड़ोसी की दुःख में सहायता करनी चाहिए।
  • झगड़ा न करना-यदि पड़ोसी अच्छा न हो तो भी उससे लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए। बच्चों की लड़ाई में बड़ों को सम्मिलित नहीं हो जाना चाहिए।
  • पड़ोस के वातावरण को साफ़ रखना-पड़ोस अथवा अपने आस-पास सफ़ाई रखना नागरिक का कर्तव्य

12. गांव, नगर तथा प्रान्त के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards Village, City and Province) नागरिक के गांव, नगर तथा प्रान्त के प्रति कर्त्तव्य इस प्रकार हैं-

  • साफ़-सुथरा और सुन्दर बनाना-प्रत्येक नागरिक को गांव अथवा शहर को साफ़-सुथरा रखने के लिए तथा सुन्दर बनाने के लिए सहयोग देना चाहिए।
  • सामाजिक बुराइयों को दूर करना-प्रत्येक नागरिक को सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए और स्वयं भी इनका पालन करना चाहिए।
  • उन्नति करना-प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह गांव, नगर तथा प्रान्त की उन्नति के लिए कार्य करे।
  • सहयोग देना–प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह गांव, नगर तथा प्रान्त में शान्ति बनाए रखने के लिए दूसरों के साथ सहयोग करे, सरकारी कर्मचारियों की सहायता करे तथा गांव, नगर और प्रान्त के नियमों का पालन करे।

13. राज्य के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards State)-नागरिक के राज्य के प्रति कुछ नैतिक कर्त्तव्य हैं। राज्य के अन्दर रह कर ही मनुष्य अपना विकास कर सकता है। मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह राज्य की उन्नति के लिए कार्य करे। नागरिक को अपने हित को राज्य के हित के सामने कोई महत्त्व नहीं देना चाहिए।

14. विश्व के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards World)-नागरिक का विश्व के प्रति भी कुछ कर्त्तव्य है। मनुष्य का कर्तव्य है कि वह समस्त मानव की भलाई तथा उन्नति के लिए कार्य करे। विश्व में शान्ति की स्थापना की बहुत आवश्यकता है। मनुष्य को विश्व में शान्ति बनाए रखने के लिए प्रयत्न करने चाहिएं।

कानूनी कर्तव्य (Legal Duties) –
नागरिक के नैतिक कर्तव्यों के अतिरिक्त कानूनी कर्त्तव्य भी हैं। कानूनी कर्तव्य का पालन न करने पर दण्ड मिलता है। आधुनिक नागरिक के कानूनी कर्त्तव्य मुख्यतः निम्नलिखित हैं-

1. देशभक्ति (Patriotism)–नागरिक का प्रथम कानूनी कर्त्तव्य अपने देश के प्रति वफ़ादारी का है। जो नागरिक अपने देश से गद्दारी करते हैं उन्हें देश-द्रोही कहा जाता है और राज्य ऐसे नागरिकों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा देता है। चीन आदि साम्यवादी देशों में नागरिकों के इन कर्त्तव्यों को संविधान में लिखा गया है। नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह देश की सुरक्षा के लिए अपना बलिदान करे।

2. कानूनों का पालन (Obedience to Laws)-नागरिकों का कानूनी कर्त्तव्य है कि वे कानूनों का पालन करें। जो नागरिक कानूनों का पालन नहीं करता उसे दण्ड दिया जाता है। राज्य में शान्ति की स्थापना के लिए सरकार कई प्रकार के कानूनों का निर्माण करती है। यदि नागरिक इन कानूनों का पालन नहीं करते तो समाज में शान्ति की व्यवस्था बनी नहीं रहती। जिन देशों के संविधान लिखित हैं वहां पर संविधान को सर्वोच्च कानून माना जाता है और नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे संविधान के अनुसार कार्य करें।

3. करों को ईमानदारी से चुकाना (Payment of Taxes Honestly)-नागरिक का कर्तव्य है कि ईमानदारी से करों का भुगतान करे। यदि नागरिक करों को धोखे से बचा लेता है तो इससे सरकार के समक्ष अधिक कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं जिससे सरकार जनता की भलाई के लिए आवश्यक कार्य नहीं कर पाती। भारत के नागरिक कर ईमानदारी से नहीं देते।

4. सरकार के साथ सहयोग (Co-operative with the Government)-नागरिकों का कर्तव्य है कि वे सरकार को शान्ति की स्थापना बनाए रखने के लिए सहयोग दें। सरकार चोरों तथा डाकुओं को पकड़ कर सज़ा देती है। पर नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे अपराधियों को कानून के हवाले करें। जो नागरिक अपराधियों को सहारा देता है, कानून की नज़र में वह भी अपराधी है और उसे भी दण्ड दिया जाता है। नागरिकों का कर्तव्य है कि वे सरकार से उन कर्मचारियों की शिकायत करें जो रिश्वत लेते हैं और अपने कार्य को ठीक ढंग से नहीं करते। जब बीमारी फैल जाए अथवा अकाल पड़ जाए तब नागरिकों को सरकार की सहायता करनी चाहिए।

5. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा (Protection of Public Property)-नागरिकों का यह कर्त्तव्य है कि वे सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करें। जो नागरिक सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट करता है उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जाती है। भारत के नागरिक सार्वजनिक सम्पत्ति की ठीक तरह से रक्षा नहीं करते।

6. मताधिकार का उचित प्रयोग (Right use of Vote)-प्रजातन्त्र में प्रत्येक नागरिक को मत देने का अधिकार होता है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिक अपने मत देने के अधिकार का उचित प्रयोग करे। उन्हें अपने वोट को बेचने का अधिकार नहीं है। यदि कोई नागरिक पैसे लेकर वोट का प्रयोग करता है और वह पकड़ा जाता है तो कानून उसे सज़ा देता है। नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपना वोट उसी उम्मीदवार को दे जो बहुत समझदार, निःस्वार्थ, ईमानदार तथा शासन चलाने के लिए कुशल हो।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

प्रश्न 7.
अधिकार और कर्तव्य किस प्रकार सम्बन्धित हैं ? विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
(How rights and duties are inter-related ? Explain fully.)
अथवा
अधिकारों और कर्तव्यों की परिभाषा दें। उनके परस्पर सम्बन्धों की व्याख्या करो।
(Define Rights and Duties. Discuss the relations between them.)
उत्तर-

अधिकार सामाजिक जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएं हैं जिनके बिना न तो व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और न ही समाज के लिए उपयोगी कार्य कर सकता है। आधुनिक युग में अधिकारों का महत्त्व और अधिक हो गया है, क्योंकि आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। इसलिए प्रत्येक राज्य अपने नागरिकों को कुछ ऐसे अधिकार देता है जिनका दिया जाना उनके व्यक्तित्व के विकास के लिए उपयुक्त वातावरण पैदा करने के लिए आवश्यक होता है। लॉस्की (Laski) का कथन है कि “एक राज्य अपने नागरिकों को जिस प्रकार के अधिकार प्रदान करता है, उन्हीं के आधार पर राज्य को अच्छा या बुरा कहा जा सकता है।”

अधिकारों का अर्थ एवं परिभाषाएं (Meaning and Definitions of Rights)—मनुष्य को अपना विकास करने के लिए कुछ सुविधाओं की आवश्यकता होती है। मनुष्य को जो सुविधाएं समाज से मिली होती हैं, उन्हीं सुविधाओं को हम अधिकार कहते हैं। साधारण शब्दों, में अधिकार से अभिप्राय उन सुविधाओं और अवसरों से होता है जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक होते हैं और उन्हें समाज में मान्यता दी जाती है। अन्य शब्दों में, अधिकार वे सुविधाएं हैं जिनके कारण हमें किसी कार्य को करने या न करने की शक्ति मिलती है।

विभिन्न लेखकों ने अधिकार की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं। कुछ परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • वाइल्ड (Wild) के अनुसार, “विशेष कार्य करने में स्वतन्त्रता की उचित मांग ही अधिकार है।” (“Right is a reasonable claim to freedom in the exercise of certain activities.”)
  • ग्रीन (Green) के अनुसार, “अधिकार व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक बाहरी अवस्थाएं हैं।” (“Rights are those powers which are necessary to the fulfilment of man’s vocation as moral being.”)
  • बोसांके (Bosanquet) के अनुसार, “अधिकार वह मांग है जिसे समाज मान्यता देता है और राज्य लागू करता है।” (“A right is a claim recognised by society enforced by the State.”)
  • हालैंड (Holland) के अनुसार, “अधिकार एक व्यक्ति की वह शक्ति है, जिससे वह दूसरे के कार्यों पर प्रभाव डाल सकता है और जो उसकी अपनी ताकत पर नहीं बल्कि समाज की राय या शक्ति पर निर्भर है।” (“Right is one man’s capacity of influencing the acts of another by means not of his strength but of the opinion or the force of society.”)
  • लॉस्की (Laski) के शब्दों में, “अधिकार सामाजिक जीवन की वे अवस्थाएं हैं जिनके बिना कोई व्यक्ति अपने जीवन का पूर्ण विकास नहीं कर सकता।” (“Rights are those conditions of social life without which no
    man can seek, in general, to be himself at the best.”)
  • डॉ० बेनी प्रसाद (Dr, Beni Parsad) के अनुसार, “अधिकार वे सामाजिक अवस्थाएं हैं जो व्यक्ति की उन्नति के लिए आवश्यक हैं। अधिकार सामाजिक जीवन का आवश्यक पक्ष हैं।” (“Rights are those social conditions of life which are essential for the development of the individual. Rights are the essential aspects of social life.”’)

अधिकारों की विशेषताएं (Characteristics of Rights)-उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि अधिकार एक वातावरण है जिसमें व्यक्ति अपने जीवन के विकास के लिए स्वतन्त्रतापूर्वक तथा बिना किसी बाधा के कोई कार्य कर सके। अधिकार के निम्नलिखित लक्षण हैं :-

  • अधिकार समाज में ही सम्भव हो सकते हैं (Rights can be possible only in the Society)-अधिकार केवल समाज में ही मिलते हैं। समाज के बाहर अधिकारों का न कोई अस्तित्व है और न कोई आवश्यकता।
  • अधिकार व्यक्ति का दावा है (Rights are claim of the Individual) अधिकार व्यक्ति का किसी कार्य को करने की स्वतन्त्रता का एक दावा है जो वह समाज से करता है। दूसरे शब्दों में, सुविधाओं की मांग को अधिकार कहते हैं। इस मांग को शक्ति नहीं कहा जा सकता।
  • अधिकार समाज द्वारा मान्य होता है (Rights are recognised by the Society)-अधिकार व्यक्ति की मांग है जिसे समाज मान ले या स्वीकार कर ले। व्यक्ति की किसी सुविधा की मांग करने मात्र से वह मांग अधिकार नहीं बन जाती। व्यक्ति की मांग अधिकार का रूप उस समय धारण करती है जब समाज उसे मान्यता दे दे।
  • अधिकार तर्कसंगत तथा नैतिक होता है (Rights are Reasonable and Moral) समाज व्यक्ति की उसी मांग को स्वीकार करता है जो मांग तर्कसंगत, उचित तथा नैतिक हो। जो मांग अनुचित और समाज के लिए हानिकारक हो, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।
  • अधिकार असीमित नहीं होते हैं (Rights are not Absolute)-अधिकार कभी असीमित नहीं होते बल्कि वे सीमित शक्तियां होती हैं जो व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक होती हैं। इसलिए ग्रीन ने अधिकारों की परिभाषा देते हुए इन्हें सामान्य कल्याण में योगदान देने के लिए मान्य शक्ति कहा है।
  • अधिकार लोक हित में प्रयोग किया जा सकता है (Rights can be used for Social Good)-अधिकार का प्रयोग सामाजिक हित के लिए किया जा सकता है, समाज के अहित के लिए नहीं। अधिकार समाज में ही मिलते हैं और समाज द्वारा ही दिए जाते हैं, इसलिए यह स्वाभाविक है कि इनका प्रयोग समाज के कल्याण के लिए किया जाए।
  • अधिकार सर्वव्यापी होते हैं (Rights are Universal)-अधिकार समाज में सब व्यक्तियों को समान रूप से मिलते हैं। अधिकार व्यक्ति का दावा है, परन्तु यह दावा किसी एक व्यक्ति विशेष का नहीं होता बल्कि प्रत्येक व्यक्ति का होता है जिसके आधार पर वह बाकी सबके विरुद्ध स्वतन्त्रता की मांग करता है। इस प्रकार जो अधिकार एक व्यक्ति को प्राप्त है, वही अधिकार समाज के दूसरे सदस्यों को भी प्राप्त होता है।
  • अधिकार के साथ कर्त्तव्य होते हैं (Rights are always accompanied by Duties)-अधिकार की यह भी विशेषता है कि यह अकेला नहीं चलता। इसके साथ कर्त्तव्य भी रहते हैं। अधिकार और कर्त्तव्य हमेशा साथ-साथ चलते हैं। क्योंकि अधिकार सब व्यक्तियों को समान रूप से मिलते हैं, इसलिए अधिकार की प्राप्ति के साथ व्यक्ति को यह कर्त्तव्य भी प्राप्त हो जाता है कि दूसरे के अधिकार में हस्तक्षेप न करे। कर्त्तव्य के बिना अधिकार नहीं दिए जा सकते।
  • अधिकार राज्य द्वारा लागू और सुरक्षित होता है (Right is enforced and protected by the State)अधिकार की यह भी एक विशेषता है कि राज्य ही अधिकार को लागू करता है और उसकी रक्षा करता है। राज्य कानून द्वारा अधिकारों को निश्चित करता है और उनके उल्लंघन के लिए दण्ड की व्यवस्था करता है। यह आवश्यक नहीं कि अधिकार राज्य द्वारा बनाए भी जाएं। जिस सुविधा को समाज में आवश्यक समझा जाता है, राज्य उसको संरक्षण देकर उसको निश्चित और सुरक्षित बना देता है।
  • अधिकार स्थायी नहीं होते (Rights are not Static) अधिकार की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि अधिकार स्थायी नहीं होते बल्कि अधिकार सामाजिक, नैतिक, राजनीतिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होते रहते हैं।

 

सामाजिक जीवन कर्त्तव्य पालन के बिना ठीक नहीं चल सकता। समाज में रहते हुए मनुष्य अपने हित के लिए बहुत से कार्य करता है, परन्तु कुछ कार्य उसे दूसरों के हितों के लिए भी करने पड़ते हैं, चाहे उन्हें करने की इच्छा हो या न हो। जो कार्य व्यक्ति को आवश्यक रूप से करने पड़ते हैं, उनको कर्त्तव्य कहा जाता है। इस प्रकार कर्तव्य व्यक्ति द्वारा अपने या दूसरों के लिए किया गया वह कार्य है जो उसे अवश्य करना पड़ता है। अधिकार और कर्तव्य का अटूट सम्बन्ध है। कर्त्तव्यों के बिना अधिकार नहीं दिए जा सकते और कर्तव्यों का बहुत ही महत्त्व होता है। बहुत से संविधानों में तो अधिकारों के साथ ही कर्तव्यों का भी उल्लेख किया गया है। यदि नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति सचेत नहीं है तो लोकतन्त्र सफल नहीं हो सकता।

कर्तव्य का अर्थ (Meaning of Duty)-कर्त्तव्य’ शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Duty’ का पर्यायवाची है। ड्यूटी शब्द डैट (Debt) शब्द से बना है जिसका अर्थ है ऋण या कर्जा । शाब्दिक अर्थ में कर्त्तव्य एक प्रकार का हमारा समाज के प्रति ऋण है जो हमें अधिकारों के बदले चुकाना पड़ता है। समाज व्यक्ति को अनेक सुविधाएं प्रदान करता है, जिस कारण व्यक्ति समाज का ऋणी है। इस ऋण को चुकाने के लिए समाज के प्रति व्यक्ति के कुछ कर्त्तव्य हैं। इस प्रकार समाज की हमारे ऊपर मांग ही हमारे कर्त्तव्य हैं। स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन के शब्दों में, “कर्त्तव्य आज्ञा का अन्धाधुन्ध पालन नहीं है बल्कि वह अपनी बन्दिशों और उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने की तीव्र इच्छा है।” (“Duty is not dumb obedience, it is an active desire to fulfil obligations and responsibilities.”)

कर्त्तव्य दो प्रकार के होते हैं-

  1. नैतिक (Moral)
  2. कानूनी (Lagal)।

1. नैतिक कर्त्तव्य (Moral Duties) नैतिक कर्त्तव्य सदाचार पर आधारित होते हैं जिनका पालन नैतिकता के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिए बच्चों का नैतिक कर्त्तव्य है कि अपने माता-पिता की सेवा करें। नैतिक कर्त्तव्य का पालन न करने वाले को सज़ा नहीं दी जा सकती।

2. कानूनी कर्त्तव्य (Lagal Duties)-कानूनी कर्त्तव्य वे कर्त्तव्य होते हैं जिन्हें राज्य कानून के द्वारा अपने नागरिकों को दे देता है। उदाहरण के लिए आयकर देना कानूनी कर्त्तव्य है। कानूनी कर्तव्य का पालन न करने पर राज्य दण्ड देता
है।

नागरिक के कर्तव्य (Duties of a Citizen) – व्यक्ति को जीवन में बहुत-से कर्त्तव्यों का पालन करना पड़ता है। एक लेखक का कहना है कि सच्ची नागरिकता अपने कर्तव्यों का उचित पालन करने में है। समाज में विभिन्न समुदायों तथा संस्थाओं के प्रति नागरिक के भिन्न-भिन्न कर्तव्य होते हैं। जैसे-कर्त्तव्य अपने परिवार के प्रति हैं, अपने पड़ोसियों के प्रति, अपने गांव या शहर के प्रति, अपने राज्य के प्रति, अपने देश के प्रति, मानव जाति के प्रति और यहां तक कि अपने प्रति भी हैं। नागरिकों के मुख्य कर्तव्य निम्नलिखित हैं-

नागरिक के नैतिक कर्त्तव्य (Moral Duties of a Citizen) नागरिक के ऐसे अनेक कर्तव्य हैं जिनका पालन करना अथवा न करना नागरिक की इच्छा पर निर्भर करता है। इन कर्तव्यों का पालन न करने वाले को कानून दण्ड नहीं दे सकता, फिर भी इन कर्त्तव्यों का विशेष महत्त्व है। नागरिक के मुख्य नैतिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं-

1. नागरिक के अपने प्रति कर्त्तव्य (Duties towards Oneself)-नागरिक के अपने प्रति कर्त्तव्य इस प्रकार हैं-

  • रोग से दूर रहना-प्रत्येक नागरिक को सबसे पहले अपने स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखना चाहिए। अच्छा स्वास्थ्य व्यक्ति की सबसे बड़ी सम्पत्ति होती है।
  • शिक्षा प्राप्त करना- शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य अपने मन का विकास कर सकता है। अतः प्रत्येक नागरिक को दिल लगाकर शिक्षा प्राप्त करनी चाहिए।
  • परिश्रम करना-नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह कड़ा परिश्रम करे ताकि देश के उत्पादन में वृद्धि हो।
  • आर्थिक विकास-नागरिक को आर्थिक विकास करना चाहिए। जो व्यक्ति अपना आर्थिक विकास नहीं करता वह अपने साथ और अपने परिवार के साथ अन्याय करता है।
  • चरित्र- नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने चरित्र को ठीक रखे। नैतिक विकास के लिए नागरिकों को सदाचारी बनना चाहिए।
  • सत्य-नागरिक को सदैव सत्य बोलना चाहिए। (vii) ईमानदारी-नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपना कार्य ईमानदारी से करे।
  • प्रगतिशील विचार-नागरिक को अपने विचार विशाल, विस्तृत तथा प्रगतिशील बनाने चाहिएं। उसे समय की आवश्यकतानुसार अपने विचार बदलने चाहिएं। संकुचित विचारों वाला नागरिक समाज का कोई कल्याण नहीं कर सकता।

2. सेवा (Service)-नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की सेवा करे। दीन-दुःखियों, ग़रीबों, असहायों तथा अनाथों की सहायता तथा सेवा करना उसका कर्त्तव्य है।

3. दया-भाव (Kindness)-नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह दूसरों के प्रति दया की भावना रखे। दूसरों के दुःखों को देखकर व्यक्ति के दिल में दया उत्पन्न होनी चाहिए तथा उनकी सहायता करनी चाहिए।

4. अहिंसा (Non-Violence) नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है कि वह दूसरों के प्रति अहिंसा की भावना रखे। किसी की हत्या करना या मारना नैतिकता के विरुद्ध है।

5. आत्म-संयम (Self-Control)–नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह संयम से रहे। उसको अपने मन और इन्द्रियों को वश में रखना चाहिए। गुरु गोबिन्द सिंह जी का आदेश उल्लेखनीय है कि ‘मन जीते जग जीत’।

6. प्रेम और सहानुभूति (Love and Sympathy)-दूसरों के प्रति प्रेम और सहानुभूति की भावना रखना नागरिक का कर्तव्य है। दूसरों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, मीठी बोली बोलना चाहिए तथा दूसरों के संकट में काम आना चाहिए।

7. आज्ञा पालन तथा अनुशासन (Obedience and Discipline)-राज्य के प्रति तो अपने कर्त्तव्यों का पालन प्रत्येक नागरिक को करना ही पड़ता है, परन्तु परिवार के बड़े सदस्यों और रिश्तेदारों, अध्यापकों तथा उच्च अधिकारियों की आज्ञाओं का पालन करना भी नागरिकों का कर्तव्य है। नागरिक जहां भी जाए उसे स्थान या संस्था में सम्बन्धित नियमों का पालन ईमानदारी से करना चाहिए।

8. निःस्वार्थ भावना (Selfless Spirit)-नागरिक को नि:स्वार्थ होना चाहिए। उसे प्रत्येक कार्य अपने लाभ के लिए ही नहीं करना चाहिए बल्कि उसे दूसरों की भलाई के लिए भी काय करने चाहिएं।

9. धर्मानुसार आचरण (Religious Performance)-नागरिक का कर्तव्य है कि वह धर्मानुसार चले और कोई ऐसा काम न करे जो उसके धर्म के विरुद्ध हो। धर्म में अन्ध-विश्वास नहीं होना चाहिए।

10. परिवार के प्रति कर्त्तव्य (Duties Hards Family)-नागरिक के परिवार के प्रति निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं

  • आज्ञा पालन करना- प्रत्येक नागरिक को अपने माता-पिता तथा वटी की आज्ञा का पालन करना चाहिए। अन्य सदस्यों से भी आदरपूर्वक व्यवहार करना चाहिए तथा अनुशासन में रहना प्रत्येक नागरिक के लिए महत्त्वपूर्ण है।
  • आवश्यकताओं की पूर्ति करना-नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह अपने परिवार के लिए अच्छे तथा साफ़सुथरे घर का निर्माण करे और परिवार के सदस्यों का पालन-पोषण करने के लिए धन कमाए।
  • परिवार के नाम को रोशन करना-प्रत्येक नागरिक को ऐसा काम करना चाहिए जिससे परिवार का नाम रोशन हो और कोई ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे परिवार की बदनामी हो।

11. नागरिक के पड़ोसियों के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards one’s neighbours)-पड़ोसी ही व्यक्ति का सामाजिक समाज होता है। इसलिए नागरिक के अपने पड़ोपियों के प्रति निम्नलिखित कर्तव्य हैं

  • प्रेम तथा सहयोग की भावना-प्रत्येक नागरिक में अपने पड़ोसियों के प्रति प्रेम, सहयोग, सहानुभूति तथा मित्रता की भावना होनी चाहिए। किसी ने ठीक कहा है कि, “हम साया मां-बाप जाया!”
  • दुःख-सुख में शामिल होना-प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपने पड़ोसियों के दुःख-सुख का साथी बने। अपने सुख की परवाह किए बिना अपने पड़ोसी की दुःख में सहायता करनी चाहिए।
  • झगड़ा न करना-यदि पड़ोसी अच्छा न हो तो भी उससे लड़ना-झगड़ना नहीं चाहिए। बच्चों की लड़ाई में बड़ों को सम्मिलित नहीं हो जाना चाहिए।
  • पड़ोस के वातावरण को साफ़ रखना-पड़ोस अथवा अपने आस-पास सफ़ाई रखना नागरिक का कर्तव्य

12. गांव, नगर तथा प्रान्त के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards Village, City and Province) नागरिक के गांव, नगर तथा प्रान्त के प्रति कर्त्तव्य इस प्रकार हैं-

  • साफ़-सुथरा और सुन्दर बनाना-प्रत्येक नागरिक को गांव अथवा शहर को साफ़-सुथरा रखने के लिए तथा सुन्दर बनाने के लिए सहयोग देना चाहिए।
  • सामाजिक बुराइयों को दूर करना-प्रत्येक नागरिक को सामाजिक बुराइयों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए और स्वयं भी इनका पालन करना चाहिए।
  • उन्नति करना-प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह गांव, नगर तथा प्रान्त की उन्नति के लिए कार्य करे।
  • सहयोग देना–प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह गांव, नगर तथा प्रान्त में शान्ति बनाए रखने के लिए दूसरों के साथ सहयोग करे, सरकारी कर्मचारियों की सहायता करे तथा गांव, नगर और प्रान्त के नियमों का पालन करे।

13. राज्य के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards State)-नागरिक के राज्य के प्रति कुछ नैतिक कर्त्तव्य हैं। राज्य के अन्दर रह कर ही मनुष्य अपना विकास कर सकता है। मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह राज्य की उन्नति के लिए कार्य करे। नागरिक को अपने हित को राज्य के हित के सामने कोई महत्त्व नहीं देना चाहिए।

14. विश्व के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards World)-नागरिक का विश्व के प्रति भी कुछ कर्त्तव्य है। मनुष्य का कर्तव्य है कि वह समस्त मानव की भलाई तथा उन्नति के लिए कार्य करे। विश्व में शान्ति की स्थापना की बहुत आवश्यकता है। मनुष्य को विश्व में शान्ति बनाए रखने के लिए प्रयत्न करने चाहिएं।

कानूनी कर्तव्य (Legal Duties) –
नागरिक के नैतिक कर्तव्यों के अतिरिक्त कानूनी कर्त्तव्य भी हैं। कानूनी कर्तव्य का पालन न करने पर दण्ड मिलता है। आधुनिक नागरिक के कानूनी कर्त्तव्य मुख्यतः निम्नलिखित हैं-

1. देशभक्ति (Patriotism)–नागरिक का प्रथम कानूनी कर्त्तव्य अपने देश के प्रति वफ़ादारी का है। जो नागरिक अपने देश से गद्दारी करते हैं उन्हें देश-द्रोही कहा जाता है और राज्य ऐसे नागरिकों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा देता है। चीन आदि साम्यवादी देशों में नागरिकों के इन कर्त्तव्यों को संविधान में लिखा गया है। नागरिक का यह कर्त्तव्य है कि वह देश की सुरक्षा के लिए अपना बलिदान करे।

2. कानूनों का पालन (Obedience to Laws)-नागरिकों का कानूनी कर्त्तव्य है कि वे कानूनों का पालन करें। जो नागरिक कानूनों का पालन नहीं करता उसे दण्ड दिया जाता है। राज्य में शान्ति की स्थापना के लिए सरकार कई प्रकार के कानूनों का निर्माण करती है। यदि नागरिक इन कानूनों का पालन नहीं करते तो समाज में शान्ति की व्यवस्था बनी नहीं रहती। जिन देशों के संविधान लिखित हैं वहां पर संविधान को सर्वोच्च कानून माना जाता है और नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे संविधान के अनुसार कार्य करें।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

3. करों को ईमानदारी से चुकाना (Payment of Taxes Honestly)-नागरिक का कर्तव्य है कि ईमानदारी से करों का भुगतान करे। यदि नागरिक करों को धोखे से बचा लेता है तो इससे सरकार के समक्ष अधिक कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं जिससे सरकार जनता की भलाई के लिए आवश्यक कार्य नहीं कर पाती। भारत के नागरिक कर ईमानदारी से नहीं देते।

4. सरकार के साथ सहयोग (Co-operative with the Government)-नागरिकों का कर्तव्य है कि वे सरकार को शान्ति की स्थापना बनाए रखने के लिए सहयोग दें। सरकार चोरों तथा डाकुओं को पकड़ कर सज़ा देती है। पर नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे अपराधियों को कानून के हवाले करें। जो नागरिक अपराधियों को सहारा देता है, कानून की नज़र में वह भी अपराधी है और उसे भी दण्ड दिया जाता है। नागरिकों का कर्तव्य है कि वे सरकार से उन कर्मचारियों की शिकायत करें जो रिश्वत लेते हैं और अपने कार्य को ठीक ढंग से नहीं करते। जब बीमारी फैल जाए अथवा अकाल पड़ जाए तब नागरिकों को सरकार की सहायता करनी चाहिए।

5. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा (Protection of Public Property)-नागरिकों का यह कर्त्तव्य है कि वे सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करें। जो नागरिक सार्वजनिक सम्पत्ति को नष्ट करता है उसे कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जाती है। भारत के नागरिक सार्वजनिक सम्पत्ति की ठीक तरह से रक्षा नहीं करते।

6. मताधिकार का उचित प्रयोग (Right use of Vote)-प्रजातन्त्र में प्रत्येक नागरिक को मत देने का अधिकार होता है। प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिक अपने मत देने के अधिकार का उचित प्रयोग करे। उन्हें अपने वोट को बेचने का अधिकार नहीं है। यदि कोई नागरिक पैसे लेकर वोट का प्रयोग करता है और वह पकड़ा जाता है तो कानून उसे सज़ा देता है। नागरिक का कर्तव्य है कि वह अपना वोट उसी उम्मीदवार को दे जो बहुत समझदार, निःस्वार्थ, ईमानदार तथा शासन चलाने के लिए कुशल हो।

अधिकारों और कर्तव्यों में सम्बन्ध-
अधिकार और कर्तव्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है। यह कहा जाता है कि अधिकार और कर्त्तव्य एक ही वस्तु के दो पहल हैं और इन्हें एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। अधिकार में कर्त्तव्य निहित है अर्थात् अधिकार के साथ कर्त्तव्य स्वयंमेव मिल जाते हैं और इसीलिए कहा जाता है कि अधिकार और कर्त्तव्य साथ-साथ चलते हैं। अधिकार अन्त में कर्तव्य बन जाते हैं। इसका अर्थ यह है कि अधिकार पाने वाले को यह नहीं समझना चाहिए कि उसे केवल अधिकार ही मिला है। अन्त में उसे पता चलता है कि अधिकार का प्रयोग करने में भी कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है। इन सभी कथनों से सिद्ध होता है कि दोनों का एक-दूसरे के बिना काम नहीं चल सकता। कर्त्तव्य के बिना अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं है। कर्त्तव्य पालन से ही व्यक्ति अधिकारों का अधिकारी बनता है। वाइल्ड (Wilde) के शब्दों में, “केवल कर्त्तव्यों के संसार में ही अधिकारों का महत्त्व होता है।” (“It is only in a world of duties that rights have significance.”) जिस प्रकार बीज डालने, पानी देने और देखभाल करने के पश्चात् ही फल की प्राप्ति होती है उसी प्रकार अधिकार फल के समान हैं और उनकी प्राप्ति कर्त्तव्य रूपी परिश्रम के पश्चात् ही हो सकती है। ___ अधिकारों और कर्तव्यों में निम्नलिखित सम्बन्ध पाए जाते हैं-

1. एक का अधिकार दूसरे का कर्तव्य है (One’s right implies other’s duty) एक व्यक्ति का जो अधिकार है वही दूसरों का कर्तव्य बन जाता है कि वे उनके अधिकार को मानें तथा उसमें किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न न करें। इस प्रकार एक के अधिकार से दूसरों का कर्त्तव्य बंधा हुआ है। लॉस्की (Laski) के शब्दों में, “मेरा अधिकार तुम्हारा कर्तव्य” (“My right implies your duty.”) उदाहरण के लिए एक व्यक्ति को घूमने-फिरने का अधिकार मिला हुआ है तो दूसरों का यह कर्त्तव्य है कि वे उसके घूमने-फिरने में बाधा उत्पन्न न करें। यदि दूसरे उनमें बाधा डालते हैं तो वह व्यक्ति अपने घूमने-फिरने के अधिकार का प्रयोग नहीं कर सकता। एक व्यक्ति का जीवन और सम्पत्ति का अधिकार उसी समय तक चल सकता है जब तक कि दूसरे व्यक्ति उसके जीवन और सम्पत्ति में हस्तक्षेप न करें। जब एक व्यक्ति दूसरे को अधिकार प्रयोग करने नहीं देता तो दूसरा व्यक्ति भी उसको कोई अधिकार प्रयोग नहीं करने देगा। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति दूसरों के अधिकार में हस्तक्षेप करने लगेगा और समाज में एक प्रकार की अराजकता फैल जाएगी। बैनिटो जॉरेज़ (Banito Jaurez) का कहना है, कि “दूसरों के अधिकारों का आदर करने का ही नाम शान्ति है।”

2. एक का अधिकार उसका कर्त्तव्य भी है (One’s right implies one’s duty also)—एक व्यक्ति के अधिकार में उसका यह कर्त्तव्य निहित है कि वह दूसरों के उसी प्रकार के अधिकारों को मानते हुए उनमें बाधा न डाले। लॉस्की (Laski) के शब्दानुसार, “मेरे अधिकार में यह निहित है कि मैं तुम्हारे समान अधिकार को स्वीकार करूं।” (“My right implies my duty to admit a smiliar right of yours.”) समाज में सभी व्यक्ति समान होते हैं तथा सबको समान अधिकार मिलते हैं। अधिकार कुछ व्यक्तियों की सम्पत्ति नहीं होते। जो अधिकार मेरे पास हैं, वही अधिकार दूसरे के पास भी हैं। घूमने-फिरने का अधिकार मुझे मिला हुआ है, परन्तु यह अधिकार दूसरे सभी नागरिकों के पास भी है। मेरा यह कर्त्तव्य हो जाता है कि मैं दूसरों का अपने अधिकारों का प्रयोग करने में पूरा सहयोग दूं। ऐसा करने से ही मैं अपने अधिकार का पूरा प्रयोग कर सकता हूं। एक व्यक्ति को यदि भाषण की स्वतन्त्रता का अधिकार है तो उसे दूसरों के भाषण में रुकावट डालने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। यदि वह दूसरों के भाषण में बाधा डालेगा तो दूसरे व्यक्ति भी उसके भाषण में बाधा डालेंगे। दूसरे के कर्त्तव्य से व्यक्ति को अधिकार मिलते हैं और दूसरों के अधिकार व्यक्ति के कर्त्तव्य के समान हैं। इस प्रकार के अधिकार में उसका अपना कर्त्तव्य छिपा है।

3. अधिकारों का उचित प्रयोग (Proper use of Rights)-अधिकार का सदुपयोग करना भी व्यक्ति का कर्तव्य है। अधिकार के दुरुपयोग से दूसरों को हानि पहुंचती है और ऐसा करने की स्वीकृति समाज द्वारा नहीं दी जा सकती। एक व्यक्ति को यदि बोलने और भाषण देने की स्वतन्त्रता दी गई है तो वह इस अधिकार के द्वारा दूसरों का अपमान करने, दूसरों को गाली निकालने, अफवाह फैलाने तथा लोगों को भड़काने आदि में प्रयोग नहीं कर सकता। ऐसा करने पर उसका अधिकार छीन लिया जाएगा। उसका कर्त्तव्य है कि वह अधिकार का प्रयोग ठीक तरह से और अच्छे कार्यों में करे। प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अधिकार का प्रयोग रचनात्मक ढंग से करे, नष्ट-भ्रष्ट करने के ढंग से नहीं।

4. प्रत्येक अधिकार से उसी प्रकार का कर्तव्य जुड़ा होता है (Every right is connected with a similar type of Duty)-प्रायः सभी अधिकारों के साथ उसी प्रकार के कर्त्तव्य जुड़े होते हैं। मुझे शादी करने का अधिकार है पर इसके साथ ही मेरा कर्त्तव्य जुड़ा है। मेरा कर्तव्य है कि मैं अपने बच्चों तथा पत्नी का पालन-पोषण करूं। मुझे संघ बनाने का अधिकार है, पर मेरा कर्त्तव्य है कि संघ का उद्देश्य देश के विरुद्ध नहीं होना चाहिए। मुझे भाषण का अधिकार है पर मेरा कर्त्तव्य है कि मैं न्यायालय का अपमान न करूं। अतः प्रत्येक अधिकार के साथ कर्त्तव्य जुड़ा हुआ होता है।

5. सामाजिक कल्याण (Social Welfare)—व्यक्ति समाज का एक अंग है। वह अपनी आवश्यकताओं और विकास के लिए समाज पर आश्रित है। अधिकार व्यक्ति को समाज में ही मिल सकते हैं। समाज से बाहर अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं होता। इसलिए समाज के प्रति भी व्यक्ति के बहुत-से कर्त्तव्य हैं। समाज की उन्नति में सहोयग देना उसका कर्त्तव्य है। लॉस्की (Laski) के कथनानुसार, “मुझे अपने अधिकारों का प्रयोग सामाजिक हित को बढ़ोत्तरी देने के लिए करना चाहिए।” व्यक्ति के अधिकार में उसका यह कर्त्तव्य निहित है कि वह उस अधिकार को समाजकल्याण में प्रयोग करे। भाषण देने की स्वतन्त्रता व्यक्ति को मिली हुई है और उसके साथ ही कर्त्तव्य भी बंधा है कि इस अधिकार द्वारा समाज का भी कुछ कल्याण किया जाए।

6. अधिकारों तथा कर्तव्यों का एक लक्ष्य (Same Object of Rights and Duties)-अधिकारों तथा कर्तव्यों का एक लक्ष्य होता है-व्यक्ति के जीवन को सुखी बनाना। समाज व्यक्ति को अधिकार इसलिए देता है ताकि वह उन्नति कर सके तथा अपने जीवन का विकास कर सके। कर्त्तव्य उसको लक्ष्य पर पहुंचने में सहायता करते हैं। कर्तव्यों के पालन से ही अधिकार सुरक्षित रह सकते हैं।

7. कर्तव्यों के बिना अधिकारों का अस्तित्व असम्भव (Without Duties No Rights)-कर्त्तव्यों के बिना अधिकारों की कल्पना नहीं की जा सकती। जहां मनुष्य को केवल अधिकार ही मिले हों, वहां वास्तव में अधिकार न होकर शक्तियां प्राप्त होती हैं। इसी तरह केवल कर्त्तव्यों के होने का अर्थ है-तानाशाही शासन।

8. राज्य के प्रति कर्त्तव्य (Duties towards the State)—व्यक्ति के अधिकार से उसे राज्य के प्रति कई प्रकार के कर्त्तव्य मिल जाते हैं। राज्य द्वारा ही हमें अधिकार मिलते हैं और राज्य ही उन अधिकारों की रक्षा करता है। राज्य ही ऐसा वातावरण उत्पन्न करता है जिससे नागरिक अपने अधिकारों का लाभ उठा सके। राज्य के बिना अधिकारों का कोई अस्तित्व नहीं, इसलिए व्यक्ति का यह कर्त्तव्य हो जाता है कि वह राज्य की आज्ञाओं का अर्थात् कानूनों का ठीक प्रकार से पालन करे, संकट में राज्य के लिए तन, मन, धन सब कुछ बलिदान करने के लिए तैयार रहे तथा ईमानदारी के साथ टैक्स दे। राज्य के प्रति व्यक्ति को वफ़ादार रहना चाहिए। राज्य व्यक्ति के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करता है और व्यक्ति का भी कर्त्तव्य है कि वह राज्य की रक्षा करे।

निष्कर्ष (Conclusion)-अन्त में, हम कह सकते हैं कि अधिकार और कर्त्तव्य साथ-साथ चलते हैं और एक का दूसरे के बिना कोई अस्तित्व नहीं है। जहां अधिकारों का नाम आता हो वहां कर्त्तव्य अपने-आप चलते आते हैं। अधिकार और कर्त्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस सम्बन्ध में डॉ० बेनी प्रसाद ने लिखा है, “यदि प्रत्येक पुरुष अधिकारों का ही ध्यान रखे और दूसरों की ओर अपने कर्त्तव्य का पालन न करे तो शीघ्र ही किसी के लिए भी अधिकार नहीं रहेंगे।” लॉस्की (Laski) ने भी लिखा है “हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कुछ अधिकारों की आवश्यकता होती है। इसलिए अधिकार और कर्त्तव्य एक ही वस्तु के दो अंश हैं।” श्रीनिवास शास्त्री ने ठीक ही कहा है कि, “कर्त्तव्य और अधिकार दोनों एक ही वस्तु हैं अन्तर केवल उनको देखने में ही है। वह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। कर्तव्यों के क्षेत्र में ही अधिकारों का सही महत्त्व सामने आता है।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
अधिकार क्यों आवश्यक है ? कोई चार कारण बताएं।
उत्तर-
अधिकारों का मनुष्य के जीवन में अत्यधिक महत्त्व है। मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए तथा समाज की प्रगति के लिए अधिकारों का होना अनिवार्य है। नागरिक जीवन में अधिकारों के महत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास-जिस प्रकार एक पौधे के विकास के लिए धूप, पानी, मिट्टी, हवा की ज़रूरत होती है, उसी तरह व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए अधिकारों की अत्यधिक आवश्यकता है। अधिकार समाज के द्वारा दी गई वे सुविधाएं हैं जिनके आधार पर व्यक्ति अपना विकास कर सकता है। सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक क्षेत्रों में व्यक्ति अधिकारों की प्राप्ति से ही विकास कर सकता है।
  • अधिकार समाज के विकास के साधन-व्यक्ति समाज का अभिन्न अंग है। यदि अधिकारों की प्राप्ति से व्यक्तित्व का विकास हो सकता है तो सामाजिक विकास भी स्वयमेव हो जाता है। इस तरह अधिकार समाज के विकास के साधन हैं।
  • अधिकारों की व्यवस्था समाज की आधारशिला-अधिकारों की व्यवस्था के बिना समाज का जीवित रहना सम्भव नहीं है क्योंकि इसके बिना समाज में लड़ाई-झगड़े, अशान्ति और अव्यवस्था फैली रहेगी और मनुष्यों के आपसी व्यवहार की सीमाएं निश्चित नहीं हो सकती हैं। वस्तुतः अधिकार ही मनुष्य द्वारा परस्पर व्यवहार से सुव्यवस्थित समाज की आधारशिला का निर्माण करते हैं।
  • अधिकारों से व्यक्ति ज़िम्मेदार बनता है।

प्रश्न 2.
अधिकारों का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
मनुष्यों को अपना विकास करने के लिए कुछ सुविधाओं की आवश्यकता होती है। मनुष्य को जो सुविधाएं समाज में मिली होती हैं, उन्हीं सुविधाओं को अधिकार कहते हैं। साधारण शब्दों में अधिकार से अभिप्राय उन सुविधाओं और अवसरों से है जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं और उन्हें समाज में मान्यता प्राप्त है। अन्य शब्दों में, अधिकार वे सुविधाएं हैं जिनके कारण हमें किसी कार्य को करने या न करने की शक्ति मिलती है। विभिन्न लेखकों ने अधिकार की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं। कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  1. ग्रीन के अनुसार, “अधिकार व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक बाहरी अवस्थाएं हैं।”
  2. बोसांके के अनुसार, “अधिकार वह मांग है जिसे समाज मान्यता देता है और राज्य लागू करता है।”
  3. लॉस्की के शब्दों में, “अधिकार सामाजिक जीवन की वे अवस्थाएं हैं जिनके बिना कोई भी व्यक्ति अपने जीवन का विकास नहीं कर सकता।”

प्रश्न 3.
अधिकार की चार मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
अधिकारों की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  1. अधिकार समाज में ही सम्भव हो सकते हैं-अधिकार केवल समाज में ही प्राप्त होते हैं। समाज से बाहर अधिकारों का न कोई अस्तित्व है और न कोई आवश्यकता।
  2. अधिकार व्यक्ति का दावा है-अधिकार व्यक्ति का किसी कार्य को करने का दावा हा जो वह समाज से करता है। दूसरे शब्दों में, सुविधाओं की मांग को अधिकार कहते हैं। इस मांग को शक्ति नहीं कहा जा सकता।
  3. अधिकार समाज द्वारा मान्य होते हैं-अधिकार व्यक्ति की मांग है जिसे समाज मान ले या स्वीकार कर ले। व्यक्ति द्वारा किसी सुविधा की मांग करने पर वह अधिकार नहीं बन जाती । व्यक्ति की मांग अधिकार का रूप उस समय धारण करती है जब समाज उसे मान्यता दे दे।
  4. अधिकार सीमित होते हैं।

प्रश्न 4.
नागरिक या सामाजिक अधिकार किसे कहते हैं ? किन्हीं चार नागरिक अधिकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
नागरिक या सामाजिक अधिकार वे अधिकार हैं जो मनुष्य के जीवन को सभ्य बनाने के लिए आवश्यक हैं। इनके बिना मनुष्य अपने दायित्व का विकास तथा प्रगति नहीं कर सकता। ये अधिकार राज्य के सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त होते हैं। आधुनिक लोकतान्त्रिक राज्य में नागरिकों को निम्नलिखित नागरिक अधिकार प्राप्त होते हैं-

  1. जीवन का अधिकार-जीवन का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार है। इसके बिना अन्य अधिकार व्यर्थ हैं। जिस मनुष्य का जीवन सुरक्षित नहीं है, वह उन्नति नहीं कर सकता नागरिकों के जीवन की रक्षा करना राज्य का परम कर्त्तव्य है।
  2. शिक्षा का अधिकार-शिक्षा के बिना मनुष्य अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। अनपढ़ व्यक्ति को गंवार तथा पशु समान समझा जाता है। शिक्षा के बिना मनुष्य को अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का ज्ञान नहीं होता। आधुनिक राज्य में सभी नागरिकों को शिक्षा का अधिकार प्राप्त है।
  3. सम्पत्ति का अधिकार-सम्पत्ति का अधिकार मनुष्य के जीवन के लिए बहुत आवश्यक है। सम्पत्ति सभ्यता की निशानी है। सम्पत्ति का मनुष्य के जीवन के साथ गहरा सम्बन्ध है अत: आधुनिक राज्यों में नागरिकों को सम्पत्ति का अधिकार प्राप्त है।
  4. नागरिक को परिवार बनाने का अधिकार होता है।

प्रश्न 5.
किन्हीं चार राजनीतिक अधिकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
राजनीतिक अधिकार बहुत महत्त्वपूर्ण अधिकार हैं क्योंकि इन्हीं अधिकारों के द्वारा नागरिक शासन में भाग ले सकता है। आधुनिक लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिकों को निम्नलिखित राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं-

  1. मत देने का अधिकार-लोकतन्त्र में जनता का शासन होता है, परन्तु शासन जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है। प्रतिनिधियों को चुनने के अधिकार को मत का अधिकार कहा जाता है। मत देने के लिए आयु निश्चित होती है। भारत, इंग्लैंड, रूस तथा अमेरिका में मतदान की आयु 18 वर्ष है।
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार–लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिकों को चुनाव लड़ने का अधिकार भी प्राप्त होता है। चुनाव लड़ने के लिए एक निश्चित आयु होती है। अमीर, ग़रीब, शिक्षित, अनपढ़, कमज़ोर, शक्तिशाली सभी को समान रूप से चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त है।
  3. सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार-लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिकों को उच्च सरकारी पद प्राप्त करने का अधिकार है। उच्च सरकारी पदों पर नियुक्तियां योग्यता के आधार पर की जाती हैं। किसी भी नागरिक के साथ धर्म, जाति, वंश, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता।
  4. व्यक्ति सरकार की आलोचना कर सकते हैं।

प्रश्न 6.
किन्हीं चार आर्थिक अधिकारों का वर्णन करो।
उत्तर-
लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिकों को आर्थिक विकास के लिए आर्थिक अधिकार भी प्राप्त होते हैं। समाजवादी देशों में आर्थिक अधिकारों पर विशेष बल दिया जाता है। नागरिकों को निम्नलिखित मुख्य आर्थिक अधिकार प्राप्त होते हैं-

  1. काम का अधिकार-कई राज्यों में नागरिकों को काम का अधिकार प्राप्त होता है। राज्य का कर्तव्य है कि वह नागरिकों को काम दे ताकि वे अपनी आजीविका कमा सकें। चीन में नागरिकों को काम का अधिकार प्राप्त है।
  2. उचित मजदूरी का अधिकार-किसी नागरिक को काम देना ही पर्याप्त नहीं है, उसे उसके काम की उचित मज़दूरी भी मिलनी चाहिए। उचित मज़दूरी का अर्थ है कि मज़दूरी उसके काम के अनुसार मिलनी चाहिए। बिना मज़दूरी काम लेना कानून के विरुद्ध है।
  3. अवकाश पाने का अधिकार- मज़दूरों को काम करने के पश्चात् अवकाश भी मिलना चाहिए। अवकाश से मनुष्य को खोई हुई शक्ति वापिस मिलती है। अवकाश में मनुष्य समस्याओं की ओर ध्यान देता है पर अवकाश वेतन सहित होना चाहिए।
  4. व्यक्ति को आर्थिक सुरक्षा का अधिकार मिलना चाहिए।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

प्रश्न 7.
किन्हीं दो परिस्थितियों का वर्णन करें जिनमें अधिकारों को सीमित किया जा सकता है।
उत्तर–
प्रायः सभी लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिकों को अधिकार दिए जाते हैं, परन्तु कुछ परिस्थितियों में नागरिकों के अधिकारों को सीमित किया जा सकता है और आवश्यकता पड़ने पर अधिकारों को स्थगित भी किया जा सकता है। निम्नलिखित परिस्थितियों में अधिकारों को सीमित या स्थगित किया जा सकता है-

  • नागरिकों के अधिकारों को सीमित किया जा सकता है यदि जनसंख्या का एक भाग सरकार के विरुद्ध ग़लत प्रचार करता है और सरकार के काम में बाधा डालता है। सरकार किसी व्यक्ति को यह प्रचार करने नहीं दे सकती कि सेना को युद्ध के समय लड़ना नहीं चाहिए या सेना को सरकार के विरुद्ध विद्रोह कर देना चाहिए।
  • यदि नागरिक देश की एकता और अखण्डता को हानि पहुंचाने का प्रयास करे तो सरकार उसके अधिकारों को सीमित कर सकती है। सरकार का परम कर्त्तव्य देश की एकता और अखण्डता को बनाए रखना है। इसके लिए सरकार कोई भी कदम उठा सकती है।

प्रश्न 8.
नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए क्या प्रबन्ध किए जाने आवश्यक हैं ?
उत्तर-
नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित प्रबन्ध किए जाने आवश्यक हैं-

  • स्वतन्त्र न्यायपालिका-नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि राज्य में स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था की जानी चाहिए। स्वतन्त्र न्यायपालिका ही अधिकारों की ठीक ढंग से रक्षा कर सकती है।
  • अधिकारों का संविधान में अंकित होना-अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि अधिकारों का वर्णन संविधान में किया जाए ताकि आने वाली सरकारें इनको ध्यान में रखें।
  • लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली-अधिकारों की सुरक्षा लोकतन्त्रीय प्रणाली में ही सम्भव है। लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में सरकार अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। इसीलिए कहा जाता है कि अधिकार लोकतन्त्रीय प्रबन्ध में ही सुरक्षित रह सकते हैं।
  • देश में प्रेस की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

प्रश्न 9.
अधिकार दावों से किस तरह भिन्न हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक राज्य द्वारा अपने लोगों को कुछ अधिकार दिए जाते हैं। अधिकार ऐसी सामाजिक अवस्थाओं का नाम है जिन के बिना कोई व्यक्ति पूर्ण रूप में विकास नहीं कर सकता है। अधिकार वास्तव में व्यक्ति की मांगें होती हैं। जो मांगें नैतिक एवं सामाजिक पक्ष से उचित हों, जिनको समाज स्वीकार करता हो एवं जिनको राज्य द्वारा लागू किया जाता हो उन मांगों को अधिकारों का नाम दिया जाता है। इसका स्पष्ट अर्थ यह हुआ कि व्यक्ति की प्रत्येक मांग अधिकार नहीं हो सकती है। केवल उस मांग को ही अधिकार का दर्जा दिया जाता है जो मांग राज्य द्वारा स्वीकार एवं लागू की जाती है। अधिकार राज्य द्वारा सुरक्षित होते हैं। अधिकारों को लागू करने सम्बन्धी संविधान में आवश्यक व्यवस्थाएं की जाती हैं। साधारणतया संविधान में नागरिकों के अधिकार अंकित किए जाते हैं। संविधान में अंकित अधिकारों को राज्य की कानूनी मान्यता प्राप्त होती है। राज्य उन अधिकारों को लागू करता है एवं उन अधिकारों की अवहेलना करने वालों के विरुद्ध आवश्यक कानूनी कार्यवाही भी करता है। संक्षेप में, अधिकारों एवं मांगों में मुख्य अन्तर यह है कि अधिकार समाज एवं राज्य द्वारा प्रमाणित होते हैं एवं राज्य द्वारा उनको लागू किया जाता है, जबकि व्यक्तियों की मांगों को राज्य की कानूनी स्वीकृति प्राप्त नहीं होती है।

प्रश्न 10.
कर्त्तव्य का अर्थ लिखें और कर्तव्यों के प्रकार का वर्णन करें।
उत्तर-
कर्त्तव्य का अर्थ-कर्त्तव्य शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Duty’ का पर्यायवाची है। ड्यूटी शब्द डैब्ट (Debt) से बना है जिसका अर्थ है ऋण या कर्जा । शाब्दिक अर्थ में कर्त्तव्य एक प्रकार का हमारा समाज के प्रति ऋण है जो हमें अधिकारों के बदले में चुकाना पड़ता है। समाज व्यक्ति को अनेक सुविधाएं प्रदान करता है, जिस कारण व्यक्ति समाज का ऋणी है। इस ऋण को चुकाने के लिए व्यक्ति के समाज के प्रति कुछ कर्त्तव्य हैं। इस प्रकार समाज की हमारे ऊपर मांग ही हमारे कर्तव्य हैं। स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ० जाकिर हुसैन के शब्दों में, “कर्त्तव्य आज्ञा का अन्धाधुन्ध पालन नहीं है बल्कि वह अपनी बन्दिशों और कर्तव्यों को पूर्ण करने की तीव्र इच्छा है।” कर्त्तव्य दो प्रकार के होते हैं-

  • नैतिक कर्तव्य-नैतिक कर्त्तव्य सदाचार पर आधारित होते हैं जिनका पालन नैतिकता के आधार पर किया जाता है। नैतिक कर्तव्यों का पालन न करने वाले को सज़ा नहीं दी जा सकती।
  • कानूनी कर्तव्य-कानूनी कर्त्तव्य वे कर्त्तव्य होते हैं जिन्हें राज्य कानून के द्वारा अपने नागरिकों को दे देता है। कानूनी कर्तव्यों का पालन न करने पर राज्य दण्ड देता है।

प्रश्न 11.
नैतिक कर्तव्यों व कानूनी कर्तव्यों में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
नैतिक कर्तव्यों व कानूनी कर्त्तव्यों में मुख्य अन्तर यह है कि नैतिक कर्तव्यों के पीछे राज्य की शक्ति नहीं होती जबकि कानूनी कर्तव्यों के पीछे राज्य की शक्ति होती है। नैतिक कर्तव्यों का पालन करना या न करना व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है। नैतिक कर्त्तव्य का पालन न करने पर राज्य द्वारा दण्ड नहीं दिया जा सकता। कानूनी कर्तव्यों का पालन करना नागरिकों के लिए अनिवार्य है। कानूनी कर्तव्यों का पालन न करने पर राज्य द्वारा दण्ड दिया जा सकता है।

प्रश्न 12.
मौलिक अधिकारों की व्याख्या कीजिए। भारतीय नागरिकों को कौन-कौन से मौलिक अधिकार प्राप्त हैं?
उत्तर-
जिन कानूनी अधिकारों का उल्लेख संविधान में होता है, उन्हें मौलिक अधिकारों का नाम दिया जाता है। ये वे अधिकार होते हैं जो व्यक्ति के विकास के लिए अनिवार्य समझे जाते हैं। भारत, अमेरिका, रूस तथा स्विट्ज़रलैंड आदि देशों में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त हैं।

भारत के संविधान के तीसरे भाग में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। 44वें संशोधन से पूर्व नागरिकों को सात मौलिक अधिकार प्राप्त थे, परन्तु अब 6 रह गए हैं। (1) समानता का अधिकार (2) स्वतन्त्रता का अधिकार (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (4) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (5) संस्कृति और शिक्षा सम्बन्धी अधिकार तथा (6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार।

प्रश्न 13.
एक नागरिक के अपने देश के प्रति चार कर्त्तव्य बताओ।
उत्तर-
नागरिक के अपने देश के प्रति कुछ कर्त्तव्य होते हैं-

  • नागरिक का प्रथम कर्त्तव्य अपने देश के प्रति वफ़ादारी है।
  • नागरिक का दूसरा कर्तव्य कानूनों का पालन करना है।
  • नागरिक का कर्तव्य है कि वह ईमानदारी से करों का भुगतान करे।
  • नागरिक का कर्त्तव्य है कि वह सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करे।

प्रश्न 14.
अधिकारों और कर्तव्यों के परस्पर सम्बन्धों की संक्षिप्त व्याख्या करो। (P.B. Sept. 1989)
उत्तर-
अधिकार तथा कर्त्तव्य का आपस में बहुत गहरा सम्बन्ध है तथा इनको एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। इन दोनों में उतना ही घनिष्ठ सम्बन्ध है जितना कि शरीर तथा आत्मा में। जहां अधिकार हैं वहां कर्तव्यों का होना आवश्यक है। दोनों का चोली-दामन का साथ है। मनुष्य अपने अधिकार का आनन्द तभी उठा सकता है जब दूसरे मनुष्य उसे अधिकार का प्रयोग करने दें, अर्थात् अपने कर्तव्य का पालन करें। उदारण के लिए प्रत्येक मनुष्य को जीवन का अधिकार है, परन्तु मनुष्य इस अधिकार का मज़ा तभी उठा सकता है जब दूसरे मनुष्य उसके जीवन में हस्तक्षेप न करें। परन्तु दूसरे मनुष्यों को भी जीवन का अधिकार प्राप्त है, इसलिए उस मनुष्य का कर्तव्य भी है वह दूसरों के जीवन में हस्तक्षेप न करे अर्थात्, “जियो और जीने दो” का सिद्धान्त अपनाया जाता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि ‘अधिकारों में कर्त्तव्य निहित हैं।’

प्रश्न 15.
नागरिक के किन्हीं चार नैतिक कर्तव्यों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य माता-पिता की आज्ञा का पालन करना है।
  2. नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है कि वह दूसरों के प्रति दया व प्रेम की भावना रखे।
  3. नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य शिक्षा प्राप्त करना है।
  4. नागरिक का नैतिक कर्त्तव्य है कि वह अपना कार्य ईमानदारी से करे।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

प्रश्न 16.
नागरिक के चार कानूनी कर्त्तव्य लिखें।
उत्तर-

  1. नागरिक का कानूनी कर्त्तव्य है कानूनों का पालन करना।
  2. नागरिक का कानूनी कर्तव्य है करों का भुगतान करना।
  3. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना नागरिक का कानूनी कर्तव्य है।
  4. नागरिक का कर्त्तव्य अपने देश के प्रति वफ़ादारी का है।

प्रश्न 17.
नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए क्या प्रबन्ध किए जाने आवश्यक हैं ?
उत्तर-
नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए निम्नलिखित प्रबन्ध किए जाने आवश्यक हैं-

  1. स्वतन्त्र न्यायपालिका-नागरिकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए यह आवश्यक है कि राज्य में स्वतन्त्र न्यायपालिका की व्यवस्था की जानी चाहिए। स्वतन्त्र न्यायपालिका ही अधिकारों की ठीक ढंग से रक्षा कर सकती है।
  2. अधिकारों का संविधान में अंकित होना-अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि अधिकारों का वर्णन संविधान में किया जाए ताकि आने वाली सरकारें इनको ध्यान में रखें।
  3. लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली-अधिकारों की सुरक्षा लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में ही सम्भव है। लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली में सरकार अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती हैं। इसीलिए कहा जाता है कि अधिकार लोकतन्त्रीय प्रबन्ध में ही सुरक्षित रह सकते हैं।
  4. जागरूक नागरिक-सचेत या जागरूक नागरिक अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहते हैं। इसलिए जागरूक नागरिकों को अधिकारों की सुरक्षा की महत्त्वपूर्ण शर्त माना गया है।।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
अधिकारों का अर्थ दीजिए।
उत्तर-
मनुष्य को जो सुविधाएं समाज में मिली होती हैं, उन्हीं सुविधाओं को अधिकार कहते हैं। साधारण शब्दों में अधिकार से अभिप्राय उन सुविधाओं और अवसरों से है जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं और उन्हें समाज में मान्यता प्राप्त है।

प्रश्न 2.
अधिकार की कोई दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. ग्रीन के अनुसार, “अधिकार व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए आवश्यक बाहरी अवस्थाएं हैं।”
  2. बोसांके के अनुसार, “अधिकार वह मांग है जिसे समाज मान्यता देता है और राज्य लाग करता है।”

प्रश्न 3.
अधिकार की दो मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. अधिकार समाज में ही सम्भव हो सकते हैं-अधिकार केवल समाज में ही प्राप्त होते हैं। समाज से बाहर अधिकारों का न कोई अस्तित्व है और न कोई आवश्यकता।
  2. अधिकार व्यक्ति का दावा है-अधिकार व्यक्ति का किसी कार्य को करने का दावा है जो वह समाज से करता है। दूसरे शब्दों में, सुविधाओं की मांग को अधिकार कहते हैं। इस मांग को शक्ति नहीं कहा जा सकता।

प्रश्न 4.
किन्हीं दो राजनीतिक अधिकारों की व्याख्या करो।
उत्तर-

  1. मत देने का अधिकार-प्रतिनिधियों को चुनने के अधिकार को मत का अधिकार कहा जाता है। मत देने के लिए आयु निश्चित होती है।
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार-लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिकों को चुनाव लड़ने का अधिकार भी प्राप्त होता

प्रश्न 5.
कर्त्तव्य का अर्थ लिखें।
उत्तर-
कर्त्तव्य शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द ‘Duty’ का पर्यायवाची है। ड्यूटी शब्द डैब्ट (Debt) से बना है जिसका अर्थ है ऋण या कर्जा। इस ऋण को चुकाने के लिए व्यक्ति के समाज के प्रति कुछ कर्तव्य हैं। इस प्रकार समाज की हमारे ऊपर मांग ही हमारे कर्त्तव्य हैं।

प्रश्न 6.
कर्त्तव्य की कोई दो प्रकार लिखें।
उत्तर-

  1. नैतिक कर्त्तव्य-नैतिक कर्तव्य सदाचार पर आधारित होते हैं जिनका पालन नैतिकता के आधार पर किया जाता है। नैतिक कर्तव्यों का पालन न करने वाले को सज़ा नहीं दी जा सकती।
  2. कानूनी कर्त्तव्य-कानूनी कर्त्तव्य वे कर्तव्य होते हैं जिन्हें राज्य कानून के द्वारा अपने नागरिकों को दे देता है। कानूनी कर्तव्यों का पालन न करने पर राज्य दण्ड देता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. अधिकार किसे कहते हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर-मनुष्य को अपना विकास करने के लिए कुछ सुविधाओं की आवश्यकता होती है, उन्हीं सुविधाओं को हम अधिकार कहते हैं।

प्रश्न 2. अधिकार की एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-बोसांके के अनुसार, “अधिकार वह मांग है जिसे समाज मान्यता देता है और राज्य लागू करता है।”

प्रश्न 3. अधिकार के कोई एक महत्त्वपूर्ण तथ्य का वर्णन करें।
उत्तर-अधिकार समाज द्वारा प्रदान और राज्य द्वारा लागू किया जाना ज़रूरी है।

प्रश्न 4. अधिकारों की एक विशेषता बताएं।
उत्तर- अधिकार व्यक्ति का किसी कार्य को करने की स्वतन्त्रता का दावा है जो वह समाज से प्राप्त करता है या सुविधाओं की मांग को अधिकार कहते हैं।

प्रश्न 5. कर्तव्य (Duty) शब्द की उत्पत्ति किस भाषा के शब्द से हुई है ?
उत्तर-कर्त्तव्य (Duty) शब्द की उत्पत्ति अंग्रेजी भाषा के डैट (Debt) शब्द से हुई है।

प्रश्न 6. अधिकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-

  1. प्राकृतिक अधिकार,
  2. नैतिक अधिकार,
  3. कानूनी अधिकार ।

प्रश्न 7. किन्हीं दो मुख्य सामाजिक अधिकारों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. जीवन का अधिकार
  2. परिवार का अधिकार।

प्रश्न 8. किन्हीं दो आर्थिक अधिकारों के नाम बताओ।
उत्तर-

  1. काम का अधिकार
  2. सम्पत्ति का अधिकार।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 अधिकार तथा कर्त्तव्य

प्रश्न 9. नागरिक के दो महत्त्वपूर्ण राजनीतिक अधिकार लिखें।
अथवा
नागरिक का कोई एक ‘राजनीतिक अधिकार’ लिखिए।
उत्तर-

  1. मत देने का अधिकार
  2. चुनाव लड़ने का अधिकार।

प्रश्न 10. मौलिक अधिकार का अर्थ बताओ।
उत्तर-जिन कानूनी अधिकारों का उल्लेख संविधान में होता है, उन्हें मौलिक अधिकारों का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 11. कर्त्तव्य का अर्थ लिखें।
अथवा कर्तव्य क्या होता है?
उत्तर-शाब्दिक अर्थों में कर्त्तव्य एक प्रकार का हमारा समाज के प्रति ऋण है जो हमें अधिकारों के बदले चुकाना पड़ता है।

प्रश्न 12. कर्तव्यों को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-दो भागों में-

  1. नैतिक कर्त्तव्य
  2. कानूनी कर्त्तव्य।

प्रश्न 13. नैतिक कर्तव्य का क्या अर्थ है ?
उत्तर-नैतिक कर्त्तव्य सदाचार पर आधारित होते हैं जिनका पालन नैतिकता के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 14. नागरिक के किन्हीं दो नैतिक कर्तव्यों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. माता-पिता की आज्ञा का पालन करना।
  2. अपने गांव, नगर और प्रांत के विकास में सहयोग देना।

प्रश्न 15. कानूनी कर्त्तव्य किसे कहते हैं?
उत्तर-कानूनी कर्त्तव्य वे कर्तव्य होते हैं जिन्हें राज्य कानून के द्वारा अपने नागरिकों को देता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. वोट का अधिकार …………….. अधिकार है।
2. काम का अधिकार ……………. अधिकार है।
3. सरकार की आलोचना का अधिकार …………… अधिकार है।
4. जीवन का अधिकार …………… अधिकार है।
उत्तर-

  1. राजनीतिक
  2. आर्थिक
  3. राजनीतिक
  4. सामाजिक ।

प्रश्न III. निम्नलिखित कथनों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. अधिकार समाज में सम्भव नहीं होते।
2. कर्त्तव्य व्यक्ति का दावा है।
3. अधिकार सीमित होते हैं।
4. अधिकार के साथ कर्त्तव्य जुड़े होते हैं।
5. कर्त्तव्य अर्थात् Duty अंग्रेजी भाषा के शब्द Right से बना है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्राकृतिक अधिकार से अभिप्राय है
(क) उन अधिकारों से है जो व्यक्ति की नैतिक भावनाओं पर आधारित होते हैं।
(ख) उन अधिकारों से है जो व्यक्ति को प्रकृति ने दिये हैं।
(ग) उन अधिकारों से है जो व्यक्ति के विकास के लिए आवश्यक हैं।
(घ) उन अधिकारों से है जो राज्य की ओर से प्राप्त होते हैं।
उत्तर-
(ख) उन अधिकारों से है जो व्यक्ति को प्रकृति ने दिये हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक अधिकार का समर्थन
(क) अरस्तु ने किया
(ख) कार्ल मार्क्स ने किया
(ग) लॉक ने किया
(घ) ग्रीन ने किया।
उत्तर-
(ग) लॉक ने किया।

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प्रश्न 3.
यह किसने कहा-“केवल कर्त्तव्यों के संसार में ही अधिकारों का महत्त्व होता है”
(क) वाइल्ड
(ख) ग्रीन
(ग) बोसांके
(घ) गार्नर।
उत्तर-
(क) वाइल्ड।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-सा वाक्य ग़लत सूचना देता है ?
(क) प्रत्येक अधिकार से उसी प्रकार का कर्तव्य जुड़ा होता है।
(ख) अधिकार असीमित होते हैं।
(ग) एक का अधिकार दूसरे का कर्तव्य है।
(घ) देशभक्ति व्यक्ति का नैतिक कर्त्तव्य है।
उत्तर-
(ख) अधिकार असीमित होते हैं।