PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1

Punjab State Board PSEB 10th Class Maths Book Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1 Textbook Exercise Questions and Answers

PSEB Solutions for Class 10 Maths Chapter 10 वृत्त Ex 10.1

प्रश्न 1.
एक वृत्त की कितनी स्पर्श रेखाएं हो सकती
हल :
क्योंकि वृत्त के किसी बिंदु पर एक व केवल एक ही स्पर्श रेखा हो सकती है।
परंतु वृत्त एक अनंत बिंदुओं का समूह होता है।
इसलिए हम वृत्त पर अनंत स्पर्श रेखाएं खींच सकते हैं।

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए :
(i) किसी वृत्त की स्पर्श रेखा उसे ……………. बिंदु पर प्रतिच्छेद करती है।
(ii) वृत्त को दो बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करने वाली रेखा को ………….. कहते हैं।
(iii) एक वृत्त की ……………… .समांतर स्पर्श रेखाएँ हो सकती हैं।
(iv) वृत्त तथा उसकी स्पर्श रेखा के उभयनिष्ठ बिंदु को …………….. कहते हैं।
हल:
(i) किसी वृत्त की स्पर्श रेखा उसे एक बिंदु पर प्रतिच्छेद करती है।
(ii) वृत्त को दो बिंदुओं पर प्रतिच्छेद करने वाली रेखा को छेदक रेखा कहते हैं।
(iii) एक वृत्त की दो समांतर स्पर्श रेखाएं हो सकती हैं।
(iv) वृत्त तथा उसकी स्पर्श रेखा के उभयनिष्ठ बिंदु को स्पर्श बिंदु कहते हैं।

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1

प्रश्न 3.
5 सेमी त्रिज्या वाले एक वृत्त के बिंदु P पर स्पर्श रेखा PQ केंद्र 0 से जाने वाली एक रेखा से बिंदु Q पर इस प्रकार मिलती है कि OQ = 12 cm, PQ की लंबाई है:
(A) 12 cm
(B) 13 cm
(C) 8.5 cm
(D) √119 cm
हल :
दी गई सूचना के अनुसार हम आकृति खींचते हैं जिससे कि

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1 1

OP = 5 cm और OQ = 12 cm
∵ PQ एक स्पर्श रेखा है और OP त्रिज्या है।
∴ ∠OPQ = 90°
अब, समकोण ∆ OPQ में, पाइथागोरस प्रमेय से
OQ2 = OP2 + QP2
या (12)2 = (5)2 + QP2
या QP2 = (12)2 – (5)2
QP2 = 144 – 25 = 119
या QP = √119 cm
अतः, विकल्प (D) सही है।

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प्रश्न 4.
एक वृत्त खींचिए और दो एक दी गई रेखा के समांतर दो ऐसी रेखाएँ खींचिए कि उनमें से एक स्पर्श रेखा हो तथा दूसरी छेदक रेखा हो।
हल :
दी गई सूचना के अनुसार हम एक वृत्त खींचते हैं जिसका केंद्र 0 और दी गई रेखा हो।

PSEB 10th Class Maths Solutions Chapter 10 वृत्त Ex 10.1 2

अब, m और n दो ऐसी रेखाएँ हैं जो रेखा l के इस तरह समांतर हैं कि m स्पर्श रेखा भी है और l के समांतर भी है और n वृत्त की एक छेदक रेखा भी है और l के समांतर भी।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 15 हमारा पर्यावरण

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 15 हमारा पर्यावरण

याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)

→ मानव पर्यावरण को प्रभावित करते हैं।

→ विभिन्न पदार्थों का चक्रण पर्यावरण में अलग-अलग जैव-भौगोलिक रासायनिक चक्रों से होता है।

→ जो पदार्थ जैविक प्रक्रम द्वारा अपघटित हो जाते हैं, उन्हें जैव निम्नीकरणीय कहते हैं। वे पदार्थ जो इस प्रक्रम से अप्रभावी रहते हैं, अजैव निम्नीकरणीय कहलाते हैं।

→ एक परितंत्र में सभी जीव जैव घटक तथा अजैव घटक होते हैं।

→ भौतिक कारक अजैव कारक हैं, जैसे-ताप, वर्षा, वायु, मृदा, खनिज आदि।

→ सभी हरे पौधे तथा नीले-हरित शैवाल उत्पादक कहलाते हैं क्योंकि ये प्रकाश संश्लेषण से अपना भोजन स्वयं तैयार कर सकते हैं।

→ जो जीव उत्पादक द्वारा तैयार भोजन पर निर्भर करते हैं उन्हें उपभोक्ता कहते हैं।

→ उपभोक्ता मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं-शाकाहारी, मांसाहारी तथा सर्वाहारी।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 15 हमारा पर्यावरण

→ विभिन्न जैविक स्तरों पर भाग लेने वाले जीवों की श्रृंखला आहार श्रृंखला का निर्माण करती है।

→ आहार श्रृंखला का प्रत्येक चरण एक पोषी स्तर बनाता है।

→ स्वपोषी सौर प्रकाश में निहित ऊर्जा को ग्रहण करके रासायनिक ऊर्जा में बदल देते हैं।

→ प्राथमिक उपभोक्ता खाए गए भोजन की मात्रा का लगभग 10% ही जैव मात्रा में बदलते हैं।

→ सीधी आहार श्रृंखला की अपेक्षा जीवों के महत्त्व आहार संबंध शाखान्वित होते हैं तथा शाखान्वित श्रृंखला का एक जाल बनाते हैं जिसे आहार जाल कहते हैं।

→ अनेक रसायन मिट्टी में मिलकर जल स्रोतों में चले जाते हैं और वे आहार श्रृंखला में प्रवेश कर जाते हैं।

→ अजैव निम्नीकृत पदार्थ हमारे शरीर में संचित हो जाते हैं जिसे जैव आवर्धन (Bio-magnification) कहते हैं।

→ ओज़ोन परत सूर्य से पृथ्वी की ओर आने वाली पराबैंगनी विकिरण से सुरक्षा प्रदान करती है।

→ वायुमंडल के उच्चतर स्तर पर पराबैंगनी (UV) विकिरण के प्रभाव से ऑक्सीजन अणुओं से ओज़ोन बनती है।

→ क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFCs) जैसे रसायन ओजोन परत के ह्रास के कारण हैं।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ऊर्जा के स्रोत

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ऊर्जा के स्रोत

याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)

→ किसी भौतिक या रासायनिक प्रक्रिया में कुल ऊर्जा सदा संरक्षित रहती है।

→ ऊर्जा के एक रूप को दूसरे में परिवर्तित किया जा सकता है।

→ हम अपने दैनिक जीवन में कार्य करने के लिए ऊर्जा के विभिन्न स्रोतों का उपयोग करते हैं।

→ शारीरिक कार्यों के लिए पेशीय ऊर्जा, बिजली के उपकरणों के लिए विद्युत् ऊर्जा और वाहनों को चलाने के लिए रासायनिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

→ ऊर्जा प्राप्ति के लिए हम सदा उत्तम ईंधन का चयन करते हैं।

→ प्राचीन काल में लकड़ी जलाने, पवनों और बहते जल की ऊर्जा का उपयोग किया जाता था।

→ कोयले के उपयोग ने औद्योगिक क्रांति को संभव बनाया था।

→ ऊर्जा की बढ़ती मांग की पूर्ति जीवाश्मी ईंधन-कोयला और पेट्रोल से होती है।

→ जीवाश्मी ईंधन को जलाने से अनेक प्रकार का प्रदूषण होता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ऊर्जा के स्रोत

→ यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में रूपांतरित किया जा सकता है।

→ विद्युत् संयंत्रों में विशाल मात्रा में जीवाश्मी ईंधन को जला कर जल को तप्त करके भाप बनाई जाती है जो टरबाइनों को घुमा कर विद्युत् उत्पन्न करती है।

→ तापीय विद्युत् संयंत्रों में ईंधन जलाकर ऊष्मीय ऊर्जा उत्पन्न की जाती है इसलिए उन्हें तापीय विद्युत् संयंत्र कहते हैं।

→ बहते जल में गतिज ऊर्जा होती है तथा गिरते जल की स्थितिज ऊर्जा को विद्युत् में रूपांतरित किया जाता |

→ हमारे देश की ऊर्जा की मांग के चौथाई भाग की पूर्ति जल विद्युत् संयंत्रों द्वारा होती है।

→ जल विद्युत् ऊर्जा एक नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत है।

→ बांधों के साथ अनेक समस्याएं जुड़ी हुई हैं, जैसे कृषि योग्य भूमि नष्ट होना, मानव आवासों का डूबना, पेड़-पौधों का नष्ट होना।

→ नर्मदा नदी सरोवर बांध का निर्माण अनेक समस्याओं के कारण विरोध झेल रहा है।

→ भारत में पशुपालन की विशाल संख्या हमें ईंधन के स्थायी स्रोत के बारे में आश्वस्त कर सकती है।

→ उपलें ईंधन की स्रोत हैं। उन्हें जैव मात्रा कहते हैं। इन्हें जलाने से कम ऊष्मा और अधिक धुआं उत्पन्न होता है।

→ चारकोल अधिक ऊष्मा उत्पन्न कर बिना ज्वाला के जलता है और इससे कम धुआं निकलता है।

→ बायोगैस को प्रायः गोबर गैस कहते हैं। इसमें 75% मीथेन गैस होती है।

→ जैव गैस संयंत्र से बची स्लरी उत्तम कोटि की खाद है जिसमें प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस होती है।

→ पवन ऊर्जा का उपयोग शताब्दियों से पवन चक्कियों द्वारा यांत्रिक कार्यों को करने में होता है।

→ किसी विशाल क्षेत्र में अनेक पवन चक्कियां लगाई जाती हैं। इस क्षेत्र को पवन ऊर्जा फ़ार्म कहते हैं।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ऊर्जा के स्रोत

→ पवन ऊर्जा के उपयोग की अनेक सीमाएं हैं।

→ सौर ऊर्जा के पृथ्वी की ओर बढ़ने वाले बहुत छोटे भाग का आधा हिस्सा वायुमंडल की बाह्य परतों में अवशोषित हो जाता है।

→ हमारा देश प्रतिवर्ष 5000 ट्रिलियन किलोवाट सौर ऊर्जा प्राप्त करता है।

→ पृथ्वी के किसी क्षेत्र में प्रतिदिन प्राप्त होने वाली सौर ऊर्जा का औसत परिमाप 4 से 7 kwh/m2 के बीच होता है।

→ सौर कुक्कर, सौर जल ऊष्मक, सौर सैल, सौर पैनल आदि सब सूर्य की ऊर्जा पर निर्भर हैं।

→ सौर सैल बनाने के लिए सिलिकॉन का उपयोग किया जाता है।

→ महंगे होने के कारण सौर सेलों का घरेलू उपयोग अभी तक सीमित है।

→ ज्वारीय ऊर्जा, तरंग ऊर्जा, सागरीय तापीय ऊर्जा का पूर्ण व्यापारिक दोहन में कुछ कठिनाइयां हैं। महासागरों की ऊर्जा की क्षमता अति विशाल है।

→ नाभिकीय विखंडन से अपार ऊर्जा प्राप्त की जाती है।

→ हमारे देश में कुल विद्युत् उत्पादन क्षमता की केवल 3% आपूर्ति नाभिकीय विद्युत् संयंत्रों से होती है।

→ तारापुर, राणा प्रताप सागर, कलपक्कम, नरौरा, कारापर तथा कैगा में हमारे देश के नाभिकीय विद्युत् संयंत्र प्रतिष्ठित हैं।

→ नाभिकीय अपशिष्टों का भंडारण तथा निपटारा कठिन काम है।

→ CNG ‘एक स्वच्छ’ ईंधन है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)

→ विद्युत् धारावाही तार चुंबक की भांति व्यवहार करती है। चुंबक और विद्युत् एक-दूसरे से संबंधित हैं।

→ हैंस क्रिश्चियन ऑर्टेड ने विद्युत् चुंबकत्व को समझाने में महत्त्वपूर्ण कार्य किया।

→ दिक्सूचक एक छोटा छड़ चुंबक है जो स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर सदा उत्तर और दक्षिण दिशाओं की ओर संकेत करता है।

→ स्वतंत्रतापूर्वक लटकाये गए चुंबक का जो सिरा उत्तर दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को उत्तरोमुखी ध्रुव या उत्तर ध्रुव कहते हैं तथा दक्षिण दिशा की ओर संकेत करने वाले सिरे को दक्षिणोमुखी ध्रुव या दक्षिणी ध्रुव कहते हैं।

→ चुंबकों के सजातीय ध्रुव परस्पर प्रतिकर्षण और विजातीय ध्रुव परस्पर आकर्षण करते हैं।

→ चुंबक के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें उसके बल का अनुभव किया जा सकता है उसे चुंबक का चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं।

→ चुंबकीय क्षेत्र एक ऐसी राशि है जिसमें परिमाण और दिशा दोनों होते हैं।

→ चंबक के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं की दिशा उसके दक्षिण ध्रुव से उत्तर ध्रुव की ओर तथा चुंबक के बाहर उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव की ओर होती है। इसलिए चुंबकीय क्षेत्र रेखाएं एक बंद वक्र होती हैं।

→ दो चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ कभी भी एक-दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं करतीं।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

→ किसी धातु चालक में विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर उसके चारों ओर एक चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है।

→ किसी विद्युत् धारावाही चालक के कारण उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र उससे दूरी के व्युत्क्रम पर निर्भर करता है।

→ किसी विद्युत् धारावाही तार के कारण किसी दिए गए बिंदु पर उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र प्रवाहित विद्युत् धारा पर अनुलोमतः निर्भर करता है।

→ पास-पास लिपटे विद्युत् रोधी ताँबे की तार को बेलन की आकृति की अनेक वलयों वाली कुंडली को परिनालिका कहते हैं।

→ परिनालिका के भीतर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ समांतर सरल रेखाओं की भाँति होती हैं। किसी परिनालिका के भीतर सभी बिंदुओं पर चुंबकीय क्षेत्र समान होता है।

→ फ्रांसीसी वैज्ञानिक ओद्रेयैरी एंपियर ने स्पष्ट किया कि चुंबक को भी विद्युत् धारावाही चालक पर परिमाण में समान परंतु दिशा में विपरीत बल आरोपित करना चाहिए।

→ चालक पर आरोपित बल की दिशा विद्युत् धारा की दिशा और चुंबकीय क्षेत्र की दिशा पर लंबवत् होती है। इसे फ्लेमिंग का वामहस्त नियम कहते हैं।

→ विद्युत्मोटर, विद्युत् जनित्र, ध्वनि विस्तारक यंत्र, माइक्रोफोन तथा विद्युत् मापक यंत्र का संबंध विद्युत् धारावाही तथा चुंबकीय क्षेत्र से है।

→ हमारे हृदय और मस्तिष्क में चुंबकीय क्षेत्र का उत्पन्न होना महत्त्वपूर्ण है।

→ शरीर के भीतर चुंबकीय क्षेत्र शरीर के विभिन्न भागों का प्रतिबिंब प्राप्ति का आधार है।

→ चुंबकीय अनुनाद प्रतिबिंबन (MRI) चिकित्सा निदान में महत्त्वपूर्ण है।

→ विद्युत् मोटर एक ऐसी घूर्णन युक्ति है जिसमें विद्युत् ऊर्जा का यांत्रिक ऊर्जा में रूपांतरण होता है।

→ विद्युत् मोटरों का उपयोग विद्युत् पंखों, रेफ्रिजरेटरों, विद्युत् मिश्रकों, वाशिंग मशीनों, कंप्यूटरों, MP33 प्लेयरों आदि में किया जाता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

→ विद्युत् मोटर में विद्युत् रोधी तार की एक आयताकार कुंडली किसी चुंबकीय क्षेत्र के दो ध्रुवों के बीच रखी जाती है।

→ वह युक्ति जो परिपथ में विद्युत् धारा के प्रवाह को उत्क्रमित कर देती है, उसे दिक्परिवर्तक कहते हैं।

→ नर्म लोह-क्रोड और कुंडली दोनों मिल कर आर्मेचर बनाते हैं। इससे मोटर की शक्ति में वृद्धि हो जाती है।

→ फैराडे ने खोज की थी कि किसी गतिशील चुंबक का उपयोग किस प्रकार विद्युत् धारा उत्पन्न करने के लिए किया जा सकता है।

→ गैल्वेनोमीटर एक ऐसा उपकरण है जो किसी परिपथ में विद्युत् धारा की उपस्थिति संसूचित करता है।

→ माइकेल फैराडे ने विद्युत् चुंबकीय प्रेरण तथा विद्युत् अपघटन पर कार्य किया था।

→ वह प्रक्रम जिसके द्वारा किसी चालक के परिवर्तित चुंबकीय क्षेत्र के कारण किसी अन्य चालक में विद्युत् धारा प्रेरित होती है, उसे विद्युत् चुंबकीय प्रेरण कहते हैं।

→ जब कुंडली की गति की दिशा चुंबकीय क्षेत्र की दिशा के लंबवत् होती है तब कुंडली में उत्पन्न प्रेरित विद्युत्धारा अधिकतम होती है।

→ विद्युत् जनित्र में यांत्रिक ऊर्जा का उपयोग चुंबकीय क्षेत्र में रखे किसी चालक को घूर्णी गति प्रदान करने में किया जाता है जिसके फलस्वरूप विद्युत् धारा उत्पन्न होती है।

→ विद्युत् उत्पन्न करने की युक्ति को विद्युत् धारा जनित्र (AC जनित्र) कहते हैं।

→ दिष्टधारा सदा एक ही दिशा में प्रवाहित होती है लेकिन प्रत्यावर्ती धारा एक निश्चित काल-अंतराल के बाद अपनी दिशा उत्क्रमित करती है।

→ हमारे देश में उत्पन्न प्रत्यावर्ती धारा प्रत्येक 1/100 सेकंड के पश्चात् अपनी दिशा उत्क्रमित करती है। प्रत्यावर्ती धारा (AC) की आवृति 50 हर्ट्ज है।

→ dc की तुलना में AC का लाभ यह है कि विद्युत् शक्ति को सुदूर स्थानों पर बिना अधिक ऊर्जा क्षय के प्रेषित किया जा सकता है। हम अपने घरों में विद्युत् शक्ति की आपूर्ति मुख्य तारों से प्राप्त करते हैं।

→ लाल विद्युत्रोधी आवरण से युक्त तार विद्युमय (धनात्मक) कहलाती है तथा काले आवरण वाली तार उदासीन (ऋणात्मक) कहलाती है।

→ हमारे देश में धनात्मक और ऋणात्मक तारों के बीच 220V का विभवांतर होता है।

→ भू-संपर्क तार हरे आवरण से युक्त होता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 विद्युत धारा के चुंबकीय प्रभाव

→ विद्युत् फ्यूज़ सभी घरेलू परिपथों का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता है। यह अतिभारण के कारण होने वाली हानि से बचाता है।

→ जब विद्युन्मय तार और उदासीन तार सीधे संपर्क में आते हैं तो अतिभारण होता है।

→ फ्यूज़ों में होने वाला ताप फ्यूज़ को पिघला देता है जिससे विद्युत् परिपथ टूट जाता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत

याद ररवने योग्य बातें (Points to Remember)

→ आवेश के प्रवाह की रचना इलेक्ट्रॉन करते हैं।

→ विद्युत् आवेश किसी चालक में से प्रवाहित हो सकता है।

→ विद्युत् आवेश का S.I. मात्रक कूलॉम (C) है।

→ एक कूलॉम लगभग 6 x 108 इलेक्ट्रॉन में समाहित आवेश के बराबर होता है।

→ विद्युत् आवेश के प्रवाह की दर को विद्युत् धारा कहते हैं।
∴ विद्युत् धारा, I = Q जहाँ Q = आवेश तथा t = समय

→ विद्युत्धारा को एम्पीयर (A) में व्यक्त किया जाता है।

→ विद्युत्धारा के लिए सतत् तथा बंद पथ को विद्युत् परिपथ कहते हैं।

→ परिपथ टूट जाने से विद्युत्धारा का प्रवाह समाप्त हो जाता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत

→ परिपथ में विद्युत्धारा को ऐममीटर से मापा जाता है।

→ परिपथ में ऐममीटर को श्रेणी क्रम में व्यवस्थित करते हैं।

→ किसी विद्युत् परिपथ में विद्युत्धारा का प्रवाह बनाए रखने के लिए सेल अपनी रासायनिक ऊर्जा व्यय करता है।

→ एक इलेक्ट्रॉन पर 1.6 x 1019C आवेश की मात्रा उपस्थित होती है।

→ दो बिंदुओं के बीच विभवांतर (V) = PSEB 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत 1

→ विभवांतर का S.I. मात्रक वोल्ट (V) है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत 2

→ विभवांतर को वोल्टमीटर से मापा जाता है। वोल्टमीटर को समानांतर क्रम में परिपथ के किन्हीं दो बिंदुओं के मध्य में व्यवस्थित किया जाता है।

→ किसी प्रतिरोधक में से प्रवाहित होने वाली विद्युत्धारा उसके प्रतिरोध के व्युत्क्रमानुपाती होती है।

→किसी धात्विक चालक में से प्रवाहित होने वाली विद्युत्धारा उसके सिरों के मध्य विभवांतर के अनुक्रमानुपाती होती है, परंतु चालक (तार) का ताप तथा दाब समान रहना चाहिए।
V ∝I
अर्थात् \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{I}}\) =R
PSEB 10th Class Science Notes Chapter 12 विद्युत 3

→ किसी धातु के एक समान चालक का प्रतिरोध (R) उसकी लंबाई (l) के अनुक्रमानुपाती तथा उसकी अनुप्रस्थ काट के क्षेत्रफल (A) के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
R∝ \(\frac{l}{\mathrm{~A}}\)
अर्थात्
R= \(\rho \times \frac{l}{\mathrm{~A}}\)

→ मिश्रधातुओं की प्रतिरोधकता उनके अवयवी धातुओं की प्रतिरोधकता से अधिक होती है।

→ विद्युत् तापन के लिए मिश्रधातुओं का उपयोग किया जाता है।

→ विद्युत् संचरण के लिए ऐल्यूमीनियम तथा तांबे (कॉपर) की तारों का उपयोग किया जाता है।

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→ प्रतिरोधकों को प्रायः दो प्रकार से संयोजित किया जाता है –

  • श्रेणीक्रम संयोजन
  • समानांतर क्रम (पार्श्वक्रम) संयोजन।

→ अनेक प्रतिरोधकों (चालकों) के श्रेणीक्रम में संयोजित करने पर तुल्य प्रतिरोध RS = R1 + R2 + R3 +…….

→ अनेक प्रतिरोधकों को पार्श्वक्रम में संयोजित करने पर तुल्य प्रतिरोध
\(\frac{1}{\mathrm{R}_{p}}=\frac{1}{\mathrm{R}_{1}}+\frac{1}{\mathrm{R}_{2}}+\frac{1}{\mathrm{R}_{3}}+\ldots \ldots\)

→ घरेलू व्यवहार में श्रेणीक्रम संयोजन उचित नहीं है।

→ जूल के तापन नियमानुसार, उत्पन्न हुई ताप ऊर्जा H = I2Rt

→ विद्युत् फ्यूज़ विद्युत् परिपथों तथा साधित्रों की सुरक्षा करता है।

→ कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं।

→ विद्युत् शक्ति P = V x I
P = I2R
P = \(\frac{\mathrm{V}^{2}}{\mathrm{R}}\)

→ विद्युत् शक्ति का S.I. मात्रक वाट है।
1 वाट (W) = 1 वोल्ट (V) x 1 ऐम्पीयर (A)

→ जब 1 वाट शक्ति का उपयोग 1 घंटा तक होता है तो खर्च हुई विद्युत् ऊर्जा एक वाट घंटा होती है।

→विद्युत् ऊर्जा का मात्रक वाट-घंटा (Wh) है। इसका बड़ा व्यापारिक मात्रक किलोवाट-घंटा (Kwh) है।
1 Kwh = 3.6 x 106 J (जूल)

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार

याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)

→ हम अपनी आँखों की सहायता से प्रकाश का उपयोग करके अपने चारों ओर की वस्तुओं को देखने के लिए समर्थ बनाते हैं।

→ मानव नेत्र अति मूल्यवान और सुग्राही ज्ञानेंद्रिय है। मानव नेत्र एक कैमरे की तरह है। इसका लैंस-निकाय एक प्रकाश-सुग्राही पर्दे पर प्रतिबिंब बनाता है। इस पर्दे को रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं।

→ कॉर्निया नेत्र गोलक के अग्र पृष्ठ पर उभार बनाती हैं। क्रिस्टलीय लैंस विभिन्न दूरियों को रेटिना पर फोकस करता है।

→ परितारिका पुतली के साइज को नियंत्रित करती है।

→ रेटिना पर प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं होती हैं जो विद्युत् सिग्नल उत्पन्न कर उन्हें मस्तिष्क तक पहुँचाती है।

→ दृष्टि तंत्रिका के किसी भी भाग के क्षतिग्रस्त होने पर चाक्षुष विकृति उत्पन्न होती है।

→ अभिनेत्र लैंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी बदल जाती है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार

→ अभिनेत्र लैंस की क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है, समंजन कहलाती है।

→ किसी वस्तु को सुस्पष्ट देखने के लिए नेत्रों से वस्तु को कम-से-कम 25 cm दूर रखना चाहिए।

→ किसी वयस्क के लिए निकट बिंदु की आँख से दूरी लगभग 25 cm होती है।

→ मोतियाबिंद ग्रस्त होने पर शल्यचिकित्सा के बाद दृष्टि का लौटना संभव होता है।

→ मानव के एक नेत्र का क्षैतिज दृष्टि क्षेत्र लगभग 150° है जबकि दो नेत्रों द्वारा यह लगभग 180° हो जाता है।

→ दृष्टि के तीन सामान्य दोष होते हैं-

  • निकट दृष्टि (Myopia),
  • दीर्घ दृष्टि (Hypermetropia)
    और
  • जरा-दूर दृष्टिता (Presbyopia)।

→ निकट दृष्टि दोष को उपयुक्त क्षमता के अवतल लैंस से संशोधित किया जा सकता है।

→ दीर्घ-दृष्टि दोष को उपयुक्त क्षमता के उत्तल लैंस से संशोधित किया जा सकता है।

→ जरा-दूर दृष्टिता दोष के लिए द्विफोकसी लैंसों (Bi-focal lens) की आवश्यकता होती है।

→ आजकल संस्पर्श लैंस (Contact lens) द्वारा दृष्टि दोषों का संशोधन संभव है।

→ कांच की त्रिभुज प्रिज्म प्रकाश की किरणों को अपवर्तित कर देती है।

→ श्वेत प्रकाश के अवयवी वर्गों में विभाजन को विक्षेपण कहते हैं।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार

→ न्यूटन ने सर्वप्रथम सूर्य का स्पेक्ट्रम प्राप्त करने के लिए कांच की प्रिज्म का उपयोग किया था।

→ कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश के सदृश स्पेक्ट्रम बनाता है, प्राय: श्वेत प्रकाश कहलाता है।

→ वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण तारे टिमटिमाते प्रतीत होते हैं।

→ वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण सूर्य हमें वास्तविक सूर्योदय लगभग 2 मिनट पूर्व दिखाई देने लगता है तथा वास्तविक सूर्यास्त के लगभग 2 मिनट पश्चात् तक दिखाई देता रहता है।

→ प्रकाश का प्रकीर्णन ही आकाश का नीले रंग, समुद्र का रंग, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य का लाल रंग होने का कारण है।

→ टिंडल प्रभाव कणों से विसरित प्रकाश का परावर्तित होकर हमारे पास पहुँचाता है।

→ लाल रंग कोहरे या धुएं से सबसे कम प्रकीर्ण होता है इसलिए दूर से देखने पर भी वह लाल ही दिखाई देता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

याद ररवने योग्य बातें (Points to Remember)

→ प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है।

→ प्रकाश हमें वस्तुएँ देखने में सहायता करता है, परंतु प्रकाश स्वयं दिखाई नहीं देता है।

→ प्रकाश, विद्युत्-चुंबकीय तरंगों (Electromagnetic waves) का एक रूप है। वायु या निर्वात में प्रकाश का वेग 3 x 108 मीटर/सैकिंड है।

→ सूर्य, प्रकाश का एक महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक स्रोत है।

→ मोमबत्ती, बिजली की लैंप मानव-निर्मित प्रकाश के स्रोत हैं।

→ परावर्तन के नियमों अनुसार दर्पण के समान चमकदार पॉलिश की हुई सतह से प्रकाश परावर्तन होता है।

→ स्रोत से आ रही प्रकाश किरणें जब किसी वस्तु पर पड़ती हैं तो उससे परावर्तित हो रहा प्रकाश हमारी आँखों पर पड़ता है जिससे रेटिना पर वस्तु का प्रतिबिंब बन जाता है।

→ उसी माध्यम में प्रकाश के मार्ग में हुए परिवर्तन की क्रिया को प्रकाश परावर्तन कहते हैं।

→ एक चिकनी और चमकदार अत्याधिक पॉलिश की गई सतह जो अपने ऊपर पड़ रहे प्रकाश के अधिकांश भाग को परावर्तित कर देती है, दर्पण कहते हैं।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

→ परावर्तन के दो नियम हैं –

  • आपतित किरण, परावर्तित किरण और आपतन बिंदु पर बना अभिलंब सभी एक तल में होते हैं।
  • आपतन कोण (∠i) और परावर्तन कोण ( ∠r) सदा एक-दूसरे के बराबर होते हैं।

→ आपतित किरण और अभिलंब के मध्य बन रहे कोण को आपतन कोण (∠i) कहते हैं।

→ परावर्तित किरण तथा अभिलंब के मध्य बन रहे कोण को परावर्तन कोण (∠r) कहलाता है।

→ यदि कोई प्रकाश किरण अभिलंब रूप में दर्पण पर गिरती है तो परावर्तन के पश्चात् अभिलंब की दिशा में ही वापिस आ जाती है। इस अवस्था में ∠i = 0° तथा ∠r = 0° होता है।

→ समतल दर्पण में बन रहा प्रतिबिंब सीधा, आभासी तथा पार्श्व परिवर्तित होता है। प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के समान होता है तथा यह दर्पण के पीछे उतनी ही दूरी पर बनता है जितनी दूरी पर वस्तु दर्पण के सामने पड़ी होती है।

→ गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते हैं –

  1. अवतल दर्पण
  2. उत्तल दर्पण।

→ अवतल दर्पण की फोकस दूरी तथा वक्रता-अर्धव्यास ऋणात्मक होते हैं।

→ उत्तल दर्पण की फोकस दूरी तथा वक्रता-अर्धव्यास धनात्मक मानी जाती है।

→ उत्तल दर्पण का फोकस दर्पण के पीछे बनता है।

→ एस० आई० पद्धति में फोकस दूरी का मात्रक मीटर है।

→ गोलीय दर्पण (अवतल दर्पण तथा उत्तल दर्पण) में फोकस दूरी, वक्रता अर्धव्यास का आधा होती है। अर्थात्f= \(\frac{1}{2}\) xR

→ आपतित प्रकाश की दिशा में मापी जाने वाली सभी दूरियों को धनात्मक और इसके विपरीत दिशा में मापी गई दूरियों को ऋणात्मक लिया जाता है।

→ वस्तविक प्रतिबिंब अवतल दर्पण के सामने बनते हैं, इसलिए दूरी v को ऋणात्मक माना जाता है। आभासी प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनते हैं, इसलिए v को धनात्मक लिया जाता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

→ वस्तुओं को दर्पण के सामने रखा जाता है, इसलिए u प्रायः ऋणात्मक होता है।

→ अवतल दर्पण में वास्तविक और आभासी दोनों प्रकार का प्रतिबिंब बनता है।

→ वस्तु की स्थिति कोई भी हो, उत्तल दर्पण सदा आभासी प्रतिबिंब बनाता है। यह प्रतिबिंब वस्तु से छोटे आकार का बनता है।

→ दर्पण फार्मूला \(\frac{1}{f}=\frac{1}{u}+\frac{1}{v} \) उत्तल, अवतल और समतल सभी प्रकार के दर्पणों पर लागू होता है।

→ समतल दर्पण के लिए R (वक्रता अर्धव्यास) अनंत होता है।

→ f, R, u, v, h1 और h2 -सभी दूरियों को मीटर में मापा जाता है।

→ आवर्धन m एक अनुपात है जिसका कोई मात्रक नहीं होता।

→ प्रकाश की चाल विभिन्न माध्यमों में भिन्न-भिन्न होती है।

→ पानी, वायु की अपेक्षा सघन है और काँच, पानी की अपेक्षा अधिक सघन है।

→ प्रकाशीय विरल माध्यम में प्रकाश तीव्र गति से चलता है।

→ सघन माध्यम में प्रकाश धीमी गति से चलता है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

→ निर्वात सबसे अधिक विरल माध्यम है।

→ जब प्रकाश की किरण विरल माधयम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो यह आपतन बिंदु पर बने अभिलंब की ओर मुड़ जाती है।

→ जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अभिलंब से दूर मुड़ जाती है।

→ प्रकाश किरण जब एक प्रकाशीय माध्यम से दूसरे प्रकाशीय माध्यम में प्रवेश करती है तो यह अपने पथ से विचलित हो जाती है। इस प्रक्रिया को प्रकाश अपवर्तन कहते हैं।

→ आपतित किरण तथा अभिलंब के बीच बना कोण आपतन कोण कहलाता है।

→ अपवर्तित किरण तथा अभिलंब के बीच बना हुआ कोण अपवर्तन कोण कहलाता है।

→ आपतित किरण, अपवर्तित किरण तथा अभिलंब एक ही तल में होते हैं। यह अपवर्तन का पहला नियम

→ आपतन कोण के Sine (Sin i) और अपवर्तन कोण के Sine (Sin r) का अनुपात स्थिराँक होता है। अपवर्तन के इस नियम को स्नेल का नियम भी कहते हैं।

→ निर्वात में प्रकाश के वेग और किसी अन्य माध्यम में प्रकाश के वेग का अनुपात माध्यम का निरपेक्ष अपवर्तनाँक कहलाता है।
PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन 1

→ काँच का अपवर्तनाँक 1.5, पानी का अपवर्तनाँक 1.33 तथा निर्वात का अपवर्तनांक 1 होता है।

→ लेंस एक पारदर्शी अपवर्तन करने वाले माध्यम का टुकड़ा होता है जिसके दो पृष्ठ होते हैं। यदि दोनों पृष्ठ गोलाकार हों तो लेंस गोलाकार होता है।

→ लेंस दो प्रकार का होता है-

  • उत्तल लेंस
  • अवतल लेंस।

→ उत्तल लेंस में समांतर प्रकाश किरणे अपवर्तन के बाद किरणें एक बिंदु पर इकट्ठी हो जाती हैं। इसलिए उत्तल लेंस अभिसारी लेंस कहलाता है।

→ अवतल लेंस में समांतर प्रकाश किरणें अपवर्तन के बाद फैल जाती हैं। इसलिए अवतल लेंस को अपसारी लेंस भी कहते हैं।

→ उत्तल लेंस की फोकस दूरी को धनात्मक तथा अवतल लेंस की फोकस दूरी को ऋणात्मक माना जाता है।

→ S.I. प्रणाली में फोकस दूरी की इकाई (मात्रक) मीटर है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 10 प्रकाश-परावर्तन तथा अपवर्तन

→ मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश किरणें अपवर्तन के बाद मुख्य फोकस में से गुज़रती हैं।

→ मुख्य फोकस में से गुज़र रही प्रकाश किरणे अपवर्तन के बाद मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती हैं।

→ लेंस के प्रकाशिक केंद्र में से गुज़र रही प्रकाश किरणे अपवर्तन के बाद बिना मुड़े सीधी चली जाती है।

→ अवतल लेंस में वस्तु की कोई भी स्थिति हो, प्रतिबिंब सदैव आभासी तथा सीधा बनता है।

→ जब वस्तु अनंत पर हो तो उत्तल लेंस में प्रतिबिंब फोकस पर बनता है। यह प्रतिबिंब वास्तविक, उल्टा तथा आकार में छोटा होता है।

→ जब वस्तु उत्तल लेंस के 2F पर पड़ी हो, तो प्रतिबिंब वास्तविक, सीधा और आकार में समान होता है।

→ जब वस्तु F तथा 2F के मध्य हो, तो प्रतिबिंब वास्तविक, उल्टा तथा आकार में बड़ा बनता है।

→ जब वस्तु उत्तल लेंस के मुख्य फोकस पर हो, तो अपवर्तन के बाद प्रतिबिंब अनंत पर वास्तविक, उल्टा तथा आकार में बड़ा बनता है।

→ जब वस्तु उत्तल लेंस के F मुख्य फोकस तथा प्रकाशिक केंद्र के बीच पड़ी हो, तो प्रतिबिंब आभासी, सीधा तथा आकार में बड़ा बनता है। यह प्रतिबिंब लेंस के उसी तरफ बनता है जिस ओर वस्तु पड़ी हो।

→ वस्तु, प्रतिबिंब तथा मुख्य फोकस की दूरी लेंस के प्रकाशिक केंद्र से मापी जाती हैं।

→ आपतित किरण की दिशा में मापी गई दूरियां धनात्मक और उसके विपरीत दिशा में मापी गई दूरियां ऋणात्मक मानी जाती हैं।

→ गोलीय लेंस का रेखीय आवर्धन, लेंस द्वारा बनाये गए प्रतिबिंब के आकार तथा वस्तु के आकार का अनुपात होता है।

→ लेंस का आवर्धन सूत्र m = \(\frac{h_{2}}{h_{1}}=\frac{-v}{u}\)

→ लेंस की बंकन (bending) योग्यता लेंस की क्षमता कहलाती है। यह लेंस की मीटरों में फोकस दूरी का व्युत्क्रम होती है।

→ उत्तल लेंस की क्षमता धनात्मक तथा अवतल लेंस की क्षमता ऋणात्मक मानी जाती है।

→ लेंस क्षमता की इकाई डाइऑप्टर (D) है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास

याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)

→ जनन प्रक्रमों द्वारा नए जीव उत्पन्न होते हैं जो जन्म देने वाले के समान होते हुए भी उससे कुछ अलग होते हैं।

→ शिशु में मानव के सभी आधारभूत लक्षण होते हैं।

→ माता और पिता दोनों समान मात्रा में आनुवंशिक पदार्थ संतान में स्थानांतरित करते हैं। इसलिए प्रत्येक संतान में हर लक्षण के दो विकल्प हो सकते हैं।

→ मेंडल पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने प्रत्येक पीढ़ी के एक-एक पौधे द्वारा प्रदर्शित लक्षणों का रिकार्ड रखा और गणना की।

→ मेंडल ने मटर के पौधे के अनेक विकल्पी लक्षणों का अध्ययन किया।

→ DNA का वह भाग जिसमें किसी प्रोटीन संश्लेषण के लिए सूचना होती है, उस प्रोटीन का जीन कहलाता

→ पौधे में उपस्थित हॉर्मोन की मात्रा पर उसकी लंबाई निर्भर करती है।

→ जीन लक्षणों (Traits) को नियंत्रित करते हैं।

→ प्रत्येक कोशिका में प्रत्येक गुण सूत्र की दो प्रतिकृति होती है जिनमें से एक उन्हें नर तथा दूसरी मादा जनक से प्राप्त होती है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास

→ प्रत्येक जनक कोशिका से गुणसूत्र के प्रत्येक जोड़े का केवल एक गुण सूत्र ही एक जनन कोशिका में जाता है।

→ मानव नर और मादा में 23 जोड़े गुणसूत्र होते हैं।

→ पुरुषों में एक-एक जोड़ी XY तथा स्त्रियों में XX गुणसूत्र होते हैं। .

→ लैंगिक प्रजनन करने वाले जीवों में युग्मक अथवा जनन कोशिकाएँ विशिष्ट जनन ऊतकों में बनती हैं।

→ चार्ल्स डार्विन ने ‘प्राकृतिक वरण द्वारा जैव विकास’ सिद्धांत की कल्पना की थी।

→ हम डार्विन को केवल जैव विकासवाद के कारण जानते हैं।

→ एक ब्रिटिश वैज्ञानिक जे० बी० एस० हाल्डेन ने 1929 में सुझाव दिया कि जीवों की सर्वप्रथम उत्पत्ति उन सरल अकार्बनिक अणुओं से ही हुई होगी जो पृथ्वी की उत्पत्ति के समय बने थे।

→ कोशिका सभी जीवों की आधारभूत इकाई है। जीवाणु कोशिका में केंद्रक नहीं होता जबकि अधिकतर दूसरे जीवों की कोशिकाओं में केंद्रक पाया जाता है।

→ बहुकोशिक जीवों में प्रकाश संश्लेषण का होना या न होना वर्गीकरण का महत्त्वपूर्ण स्तर है।

→ समान जनक से वंशानुगत हुए जीवों में समान लक्षण होते हैं।

→ पक्षियों, सरीसृप, जलस्थल चर और स्तनधारियों के पैरों की संरचना एक समान है चाहे वे भिन्न-भिन्न कार्य करते हैं।

→ चमगादड़ और पक्षी के पंख चाहे उड़ने का काम करते हैं पर दोनों की संरचना एक समान नहीं होती।

→ चट्टानों में जीव के परिरक्षित अवशेष जीवाश्म कहलाते हैं। अधिक गहराई पर मिलने वाले अवशेष उन अवशेषों से अधिक पुराने होते हैं जो कम गहराई पर मिलते हैं।

→ ‘फॉसिल डेटिंग’ से जीवाश्म का समय निर्धारण किया जाता है।

→ प्लैनेरिया नामक चपटे कृमि में अति सरल आँख होती है जो प्रकाश को पहचान सकता है।

→ कोई परिवर्तन जो एक गुण के लिए उपयोगी है वह कालांतर में किसी अन्य कार्य के लिए उपयोगी हो सकता है।

→ प्राणियों के पँख ऊष्मा रोधन के लिए विकसित हुए थे पर बाद में वे उड़ने में प्रयुक्त होने लगे थे।

→ पक्षी बहुत निकटता से सरीसृप से संबंधित हैं।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 9 आनुवंशिकता एवं जैव विकास

→ मनुष्य ने दो हज़ार वर्ष पहले जंगली गोभी को खाद्य पौधे के रूप में उगाना आरंभ किया था। उसके चयन से इससे विभिन्न सब्ज़ियाँ विकसित कीं।

→ कोशिका विभाजन के समय DNA में होने वाले परिवर्तन से उस प्रोटीन में अंतर आएगा जो नए DNA से बनेगी।

→ आण्विक जाति वृत्त दूरस्थ संबंधी जीवों के DNA में विभिन्नताओं की जानकारी देता है।

→ विविधताओं की उत्पत्ति और प्राकृतिक चयन से स्वरूप देना ही विकास है।

→ मानव विकास के अध्ययन के लिए उन्हीं साधनों का उपयोग करते हैं जिनका जैव-विकास के लिए किया था।

→ उत्खनन, समय-निर्धारण, जीवाश्मी अध्ययन और DNA अनुक्रम का निर्धारण मानव विकास के अध्ययन के मुख्य साधन हैं।

→ आधुनिक मानव स्पीशीज़ ‘होमोसेपिएस’ के प्राचीनतम सदस्यों को अफ्रीका में खोजा गया है।

→ मानव की उत्पत्ति अन्य स्पीशीज़ की तरह जैव-विकास की एक घटना मात्र थी।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं

याद रखने योग्य बातें (Points to Remember)

→ कोशिका के केंद्रक में पाए जाने वाले गुण सूत्रों के DNA के अणुओं में आनुवंशिक गुणों का संदेश होता है।

→ कोई भी जैव रासायनिक प्रक्रिया पूर्ण रूप से विश्वसनीय नहीं होती इसलिए DNA प्रतिकृति की प्रक्रिया में कुछ विभिन्नता आ जाती है।

→ विभिन्नताओं के उग्र होने की अवस्था में DNA की नई प्रतिकृति अपने कोशिकीय संगठन के साथ समायोजित न हो पाने के कारण संतति कोशिका की मृत्यु का कारण बनती है।

→ जनन में होने वाली विभिन्नताएँ जैव-विकास का आधार हैं।

→ कालाजार के रोगाणु लेसमानियां में द्विखंडन एक निर्धारित तल से होता है।

→ मलेरिया परजीवी, प्लाज्मोडियम जैसे एक कोशिक जीव एक साथ अनेक संतति कोशिकाओं में विभाजित हो जाते हैं जिसे बहुखंडन कहते हैं।

→ यीस्ट कोशिका से छोटे मुकुल ऊभर कर कोशिका से अलग हो जाते हैं और स्वतंत्र रूप से वृद्धि करते हैं।

→ बहुकोशिक जीवों में जनन अपेक्षाकृत जटिल विधि से होती है।

→ हाइड्रा, प्लेनेरिया आदि सरल जीव टुकड़ों में कट कर पूर्ण जीव का निर्माण करते हैं जिसे पुनरुद्भवन कहते हैं। यह विशेष कोशिकाओं द्वारा पूरा होता है।

→ ऊतक संवर्धन तकनीक में पौधे के ऊतक अथवा कोशिकाओं को पौधे के शीर्ष के वर्तमान भाग से पृथक् कर नए पौधे उगाए जाते हैं।

→ लैंगिक जनन के लिए नर और मादा दोनों लिंगों की आवश्यकता होती है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 8 जीव जनन कैसे करते हैं

→ दो या अधिक एकल जीवों की विभिन्नताओं के संयोजन से विभिन्नताओं के नए संयोजन उत्पन्न होते हैं, क्योंकि इस प्रक्रम में दो विभिन्न जीव भाग लेते हैं।

→ गतिशील जनन-कोशिका के नर युग्मक तथा जिस जनन कोशिका में भोजन का भंडार संचित होता है, उसे मादा युग्मक कहते हैं।

→ जब पुष्प में पुंकेसर या स्त्रीकेसर में से कोई एक जननांग उपस्थित होता है तो पुष्प एकलिंगी कहलाते हैं, जैसे पपीता, तरबूज। जब पुष्प में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों उपस्थित होते हैं तो उसे उभयलिंगी कहते हैं, जैसे-गुड़हल, सरसों।

→ जनन कोशिकाओं में युग्मक अथवा निषेचन से युग्मनज बनता है।

→ परागकणों का स्थानांतरण वायु, जल या प्राणियों के द्वारा संपन्न होता है।

→ निषेचन के पश्चात्, युग्मनज में अनेक विभाजन होते हैं तथा बीजांड में भ्रूण विकसित होते हैं।

→ युवावस्था आरंभ होते ही युवकों-युवतियों में अनेक शारीरिक परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन मंद गति से होते हैं और सभी में एक ही दर और समान तेज़ी से नहीं होते।

→ किशोरावस्था की अवधि को यौवनारंभ (प्यूबरटी) कहते हैं।

→ जनन कोशिका उत्पादित करने वाले अंग एवं जनन कोशिकाओं को निषेचन के स्थान तक पहुँचाने वाले अंग संयुक्त रूप से नर जनन अंग बनाते हैं।

→ शुक्राणु का निर्माण वृषण में होता है।

→ शुक्राणु उत्पादन के नियंत्रण के अतिरिक्त टेस्टोस्टेरॉन लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का नियंत्रण करता है।

→ मादा जनन कोशिकाओं का निर्माण अंडाशय में होता है। वे कुछ हॉर्मोन भी उत्पन्न करती हैं।

→ निषेचन के पश्चात् निषेचित अंड अथवा युग्मनज गर्भाशय में स्थापित हो जाता है। निषेचन न होने की अवस्था में ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म होता है जिसकी अवधि 2 से 8 दिन की होती है।

→ गोनेरिया, सिफ़लिस, वाइरस संक्रमण, HIV AIDS आदि यौन संबंधी रोग हैं।

→ लैंगिक क्रिया द्वारा गर्भ धारण की संभावना सदा ही बनी रहती है।

→ गर्भरोधी तरीकों को अपनाने से गर्भधारण करने से बचा जा सकता है।

→ गर्भ धारण न करने के यांत्रिक, हॉर्मोनल, शल्यचिकित्सा आदि अनेक तरीके हैं।

→ भ्रूण लिंग निर्धारण एक कानूनी अपराध है।

→ हमारे देश में मादा भ्रूण हत्या के कारण शिशु लिंग अनुपात तेज़ी से घटता जा रहा है।

→ हमारे देश में तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या चिंता का विषय है।

 

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

याद ररवने योग्य बातें (Points to Remember)

→ सजीवों को उन तंत्रों का उपयोग करना चाहिए जो नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य करते हैं।

→ हमें विभिन्न सूचनाओं का ज्ञान तंत्रिका कोशिकाओं की विशिष्टीकृत सिरे द्वारा होता है।

→ हमारी ज्ञानेंद्रियाँ हैं-आँख, नाक, कान, त्वचा और जिह्वा।

→ ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त होने वाली सूचनाओं का पता एक तंत्रिका कोशिका के द्रुमाकृतिक सिरे से लगता है।

→ तंत्रिका ऊतक तंत्रिका कोशिकाओं या न्यूरान का संगठित जाल है।

→ प्रतिवर्ती क्रियाएँ वे स्थितियाँ हैं जहाँ हम अपने पर्यावरण में होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं।

→ तंत्रिकाएँ विभिन्न संकेतों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचाने का कार्य करती हैं।

→ पूरे शरीर की तंत्रिकाएं मेरुरज्जु में मस्तिष्क को जाने वाले रास्ते में एक बंडल में मिलती हैं। प्रतिवर्ती चाप इसी मेरुरज्जु में बनते हैं।

→ अधिकांश जंतुओं में सोचने के लिए आवश्यक जटिल-न्यूरॉन जाल या तो अल्प है या अनुपस्थित है।

→ मेरुरज्जु तंत्रिकाओं से बनी होती है जो सोचने के लिए सूचनाएँ प्रदान करती है।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 7 नियंत्रण एवं समन्वय

→ मस्तिष्क तथा मेरुरज्जु केंद्रीय तंत्रिका तंत्र बनाते हैं।

→ मस्तिष्क पेशियों तक संदेश भेजता है।

→ मस्तिष्क का मुख्य सोचने वाला भाग अग्रमस्तिष्क है। यह देखने, सुनने, सूंघने आदि के लिए विशिष्टीकृत है।

→ अनैच्छिक क्रियाओं में से अनेक मध्य और पश्चमस्तिष्क से नियंत्रित होती है।

→ रीढ़ की हड्डी मेरुरज्जु की रक्षा करती है।

→ पादप संरचना को एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक संचारित करने के लिए वैद्युत्-रसायन साधन का उपयोग भी करते हैं।

→ अनुवर्तन गतियाँ उद्दीपन की ओर या इससे विपरीत दिशा में हो सकती हैं।

→ यदि उद्दीपित कोशिकाएँ किसी रासायनिक यौगिक को निर्मोचित करना आरंभ कर दें तो वह यौगिक आसपास की सभी कोशिकाओं में विसरित हो जाएगा।

→ हार्मोन ऑक्सिन कोशिकाओं की लंबाई में वृद्धि में सहायक है।

→ पादप हार्मोन जिब्बेरेलिन भी तने की वृद्धि में सहायक होते हैं।

→ आयोडीन की कमी से गॉयटर हो जाता है।

→ पीयूष ग्रंथि से स्रावित होने वाले हॉर्मोन में एक वृद्धि हॉर्मोन है। यह शरीर की वृद्धि और विकास को नियंत्रित करता है।

→ नर में टेस्टोस्टेरोन तथा मादा में एस्ट्रोजन का स्रावण होता है।

→ इंसुलिन एक हॉर्मोन है जिसका उत्पादन अग्न्याशय द्वारा होता है। यह रुधिर में शर्करा स्तर को नियंत्रित करता है।