PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

Punjab State Board PSEB 8th Class Hindi Book Solutions Hindi Rachana Nibandh Lekhan निबंध लेखन Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 8th Class Hindi रचना निबंध लेखन

1. श्री गुरु नानक देव जी

सिक्खों के पहले गुरु नानक देव जी का जन्म सन् 1469 ई० में लाहौर के निकट स्थित ‘राय भोए की तलवंडी (वर्तमान में पाकिस्तान स्थित ननकाना साहब)’ में हुआ। इनकी माता का नाम तृप्ता देवी जी तथा पिता का नाम मेहता कालू जी था। बचपन से आप आत्मचिंतन में लीन रहा करते थे और आपका अधिकतर समय साधु संतों की सेवा में बीतता था। गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी मूलचन्द की सुपुत्री सुलक्खणी जी के साथ हुआ जिनसे इन्हें दो पुत्र-श्रीचन्द और लखमी दास प्राप्त हुए।

जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तब वह जिला कपूरथला के पास सुल्तानपुर लोधी नामक स्थान में अपनी बहन नानकी के पास आ गए। वहाँ इनके बहनोई ने इन्हें वहाँ के गवर्नर दौलत खाँ के यहाँ मोदीखाने में नौकरी दिलवा दी! यहीं गुरु नानक देव जी के तोलने में तेरह-तेरह की जगह ‘तेरा-तेरा’ रटने की कथा भी विख्यात है। यहीं उनके बेईं में प्रवेश करने और तीन दिन तक अदृश्य रहने की घटना घटी। वास्तव में उन दिनों गुरु जी ‘सच्चखण्ड’ में पहुँच गए थे। यहीं गुरु जी ने ‘न को हिन्दू न को मुसलमान’ की घोषणा की।

सन् 1500 से 1521 तक गुरु जी ने देश-विदेश की चार यात्राएँ की जो गुरु जी की चार उदासियों के नाम से प्रसिद्ध हैं। इन यात्राओं में गुरु जी ने हिन्दुओं और मुसलमानों के तीर्थ स्थानों की यात्रा भी की। इन्होंने ईश्वर के निराकार स्वरूप की उपासना की। जीवन के अन्तिम भाग सन् 1521 से 1539 गुरु जी करतारपुर में रहे। वहाँ उन्होंने अनेक गोष्ठियों का आयोजन किया। इनमें सिद्ध गोष्ठी विशेष उल्लेखनीय है। सन् 1539 ई० में गुरु गद्दी भाई लहना जी, जो बाद में गुरु अंगद देव जी कहलाए, को सौंप कर ईश्वरीय ज्योति में विलीन हो गए।

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2. गुरु तेग़ बहादुर जी

गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए जो बलिदान दिया, उसके कारण उन्हें हिन्द की चादर या धर्म की चादर कहा जाता है। गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल सन् 1621 ई० को अमृतसर में छठे गुरु हरगोबिन्द जी के घर हुआ। अमृतसर में यह पवित्र स्थान ‘गुरु के महल’ के नाम से जाना जाता है। आपका बचपन का नाम त्यागमल था। सन् 1635 ई० में 14 वर्षीय त्यागमल ने सिक्खों और मुग़ल सेना के बीच करतारपुर में हुए युद्ध में तलवार के ऐसे जौहर दिखाए कि प्रसन्न होकर उनका नाम तलवार के धनी अर्थात् तेग़ बहादुर रख दिया। गुरु तेग़ बहादुर जी के पिता सैनिक गतिविधियों का संचालन करने के लिए कीरतपुर आ गए परन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी अपने ननिहाल बाबा बकाला में ही रहे और प्रभुचिंतन में अपना समय बिताने लगे। सन् 1645 में इनके पिता ने अपने पौत्र हरराय को गुरु गद्दी सौंप दी किन्तु गुरु तेग़ बहादुर जी ने कोई आपत्ति नहीं की। बाबा बकाला में आप कोई बीस वर्ष तक रहे। 30 मार्च, सन् 1664 में गुरु हरकिशन जी के ज्योति जोत समाने के बाद उन्हीं के आदेशानुसार गुरु तेग़ बहादुर जी अगस्त 1664 ई० में गुरु गद्दी पर आसीन हुए।

गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म प्रचार के लिए किसी सुरक्षित स्थान के लिए बिलासपुर के राजा से माखोवाल गाँव से कुछ ज़मीन खरीदी। वहाँ अपनी माता के नाम पर ‘चक्क नानकी’ नामक नगर बसाया, जो बाद में आनन्दपुर साहब के नाम से विख्यात हुआ। इसी दौरान औरंगजेब के हिन्दुओं पर आत्याचार बढ़ रहे थे। उन्हीं अत्याचारों से बचने के लिए गुरु जी के पास कुछ कश्मीरी पण्डित आए और गुरु जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की।

गुरु जी ने कहा कि ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ तभी पास बैठे उनके नौ वर्षीय पुत्र गोबिन्द राय बोल पड़े, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान के योग्य महापुरुष और कौन हो सकता है ?’ गुरु जी अपने पुत्र की बात को समझ गए और धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली पहुँच गए। उन्हें बन्दी बना लिया गया और इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। गुरु जी अपने धर्म पर अडिग रहे। 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० को गुरु जी ने चाँदनी चौक में शहीदी प्राप्त की। वहीं आजकल गुरुद्वारा शीशगंज स्थित है।

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3. गुरु गोबिन्द सिंह जी

महान योद्धा, कुशल प्रशासक, प्रबुद्ध धर्म गुरु और योग्य राष्ट्र नायक गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म 22 दिसम्बर, सन् 1666 ई० को पटना (बिहार) में सिक्खों के नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी के घर हुआ। छ: वर्ष की अवस्था तक गुरु जी पटना में ही रहे फिर आप पिता द्वारा बसाए नगर आनन्दपुर साहब में आ गए। आनन्दपुर में ही एक दिन कुछ कश्मीरी पण्डितों ने आकर गुरु तेग़ बहादुर जी से अपनी सुरक्षा की प्रार्थना की। गुरु जी ने कहा, ‘स्थिति किसी महापुरुष का बलिदान चाहती है।’ पास बैठे नौ वर्षीय बालक गोबिन्दराय ने कहा, ‘पिता जी आपसे बढ़कर बलिदान योग्य महापुरुष कौन हो सकता है।’ पुत्र की बात समझ कर गुरु जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में 11 नवम्बर, सन् 1675 ई० में शहीदी प्राप्त की।

नवम् गुरु की शहीदी के बाद नौ वर्ष की अवस्था में गोबिन्द राय जी गुरु गद्दी पर बैठे। गद्दी पर बैठते ही गुरु जी ने अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी जिससे अनेक राजाओं और मुगल सरदारों को ईर्ष्या होने लगी। इसी ईर्ष्या के फलस्वरूप गुरु जी को पांवटा से छ: मील दूर भंगाणी नामक स्थान पर कहलूर के राजा भीम चन्द के साथ युद्ध लड़ना पड़ा। उस युद्ध में गुरु जी को पहली जीत प्राप्त हुई। इसके बाद गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं की ओर से लड़ते हुए नादौन में आलिफ खाँ को पराजित किया। इस युद्ध से पहाड़ी राजाओं को गुरु जी की शक्ति का पता चल गया।

सन् 1699 की वैशाखी को गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना की। उन्होंने आनन्दपुर साहिब में पाँच प्यारों को अमृत छकाया और उनसे स्वयं अमृत छका। इस अवसर पर गुरु जी ने अपना नाम गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह कर लिया और अपने सब शिष्यों को अपने नाम के साथ सिंह लगाने का आदेश दिया। गुरु जी की शक्ति को बढ़ता देख औरंगजेब ने उसे समाप्त करने का निश्चय कर लिया। अप्रैल 1704 को मुगल सेना ने आनन्दपुर साहब को घेर लिया। यह घेरा दिसम्बर 1704 तक जारी रहा। मुग़ल सेना ने उन्हें भरोसा दिलाया कि आनन्दपुर साहब को छोड़ने पर उन्हें कोई हानि नहीं पहुँचाई जाएगी। किन्तु सरसा नदी को पार करते समय मुग़ल सेना ने विश्वासघात करते हुए गुरु जी की सेना पर आक्रमण कर दिया। अफरातफरी में गुरु जी की माता और दोनों छोटे साहिबजादे उनसे बिछुड़ गए। गुरु जी किसी तरह चमकौर की गढ़ी पहुँचे। चमकौर के युद्ध में सिक्खों ने मुग़ल सेना का डटकर मुकाबला किया। इस युद्ध में गुरु जी के दोनों बड़े साहिबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। उधर गुरु जी के दोनों छोटे साहिबजादों जोरावार सिंह और फतेह सिंह को सरहिन्द के नवाब ने जीवित दीवार में चुनवाकर शहीद कर दिया। अपने चारों साहिबजादों की कुर्बानी से गुरु जी विचलित नहीं हुए।

अपने अन्तिम दिनों में गुरु जी नांदेड़ (महाराष्ट्र) में रहने लगे। वहीं एक दिन गुल खाँ नामक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया। गुरु जी का घाव कई दिनों बाद भरा। अभी वे पूरी तरह स्वस्थ नहीं हुए थे कि एक कठोर धनुष पर चिल्ला चढ़ाते हुए उनका घाव खुल गया और 7 अक्तूबर, सन् 1708 को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

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4. महात्मा गाँधी

देश के महान् नेता महात्मा गाँधी का पूरा नाम मोहन दास कर्मचन्द गाँधी था। इनका जन्म 2 अक्तूबर, सन् 1869 को गुजरात के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता पोरबन्दर, राजकोट और बीकानेर राज्यों के दीवान पद पर रहे। इनकी माता पुतलीबाई बड़ी धर्मनिष्ठ स्वभाव वाली स्त्री थी। उन्हीं की शिक्षा का बाल मोहनदास पर यथेष्ठ प्रभाव पड़ा।

सन् 1887 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। सन् 1888 में आप इंग्लैण्ड में बैरिस्ट्री पढ़ने के लिए चले गए। इंग्लैण्ड से वापस आकर आप ने पोरबन्दर में वकालत शुरू कर दी। कुछ समय पश्चात् इन्हें एक मुकद्दमे के सिलसिले में दक्षिणी अफ्रीका जाना पड़ा। वहां आप ने भारतीयों के साथ होने वाले दुर्व्यवहार से आहत होकर आपने एक आन्दोलन चलाया जिसके कारण वहाँ भारतीयों के सम्मान की रक्षा होने लगी। भारत लौटकर गाँधी जी ने देश की राजनीति में भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1914 के प्रथम महा युद्ध में आपने अंग्रेज़ों की इस शर्त पर सहायता की कि युद्ध जीतने की सूरत में अंग्रेज़ भारत को आजाद कर देंगे किन्तु अंग्रेजों ने विश्वासघात करते हुए रोल्ट एक्ट और जलियांवाला बाग के नरसंहार की घटना पुरस्कार रूप में दी।

सन् 1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया जिसमें हिंसा आ जाने पर सन् 1922 में इन्होंने यह आन्दोलन वापस ले लिया। सन् 1930 में गाँधी जी ने नमक आन्दोलन शुरू किया। सन् 1942 में गाँधी जी ने देश को भारत छोड़ो का नारा दिया। इसी दौरान देश की जनता सरदार भगत सिंह और चन्द्रशेखर जैसे क्रान्तिकारियों के बलिदान से जागरूक हो चुकी थी। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज के बढ़ते आक्रमण से डरकर अंग्रेजों ने 15 अगस्त, सन् 1947 को भारत को एक स्वाधीन देश घोषित कर दिया किन्तु जाते-जाते अंग्रेज़ देश का बंटवारा कर गए जिसके परिणामस्वरूप देश में हिन्दू मुस्लिम दंगे भड़क उठे। दंगों को शान्त करने के लिए गाँधी जी ने मरण व्रत रखा। 30 जनवरी, सन् 1948 की शाम 6 बजे नात्थूराम गोडसे नामक युवक ने गाँधी जी की हत्या कर दी। इस तरह देश से एक युग पुरुष उठ गया।

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5. पंजाब केसरी लाला लाजपत राय

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय जी का जन्म 28 जनवरी, सन् 1865 ई० में जिला फिरोज़पुर के एक गाँव ढुडिके में हुआ। सन् 1880 में मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद आपने मुख्तारी की परीक्षा पास की और हिसार में वकालत शुरू कर दी। सन् 1892 में आप लाहौर चले गए। वहाँ उन्होंने कई वर्षों तक बिना वेतन लिए डी० ए० वी० कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। आपने अपने गाँव दुडिके में अपने पिता के नाम पर राधा कृष्ण हाई स्कूल खोला।

लाला जी का राजनीति में प्रवेश संयोग से हुआ। उस समय सर सैय्यद अहमद खां मुसलमानों को भड़काने वाले और राष्ट्र विरोधी लेख लिख रहे थे। लाला जी पहले व्यक्ति थे जिसने इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई। इसी के परिणामस्वरूप सन् 1888 में कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में लाला जी का जोरदार स्वागत हुआ। सन् 1893 के कांग्रेस अधिवेशन में भी लाला जी ने ओजपूर्ण भाषण दिए और कांग्रेस को अपनी कार्रवाई अंग्रेज़ी में न कर हिन्दुस्तानी में करने पर विवश कर दिया। लाला जी सन् 1902, सन् 1908 और सन् 1913 में इंग्लैंड गए और वहाँ के लोगों को अपने भाषणों और लेखों द्वारा भारत की वास्तविक स्थिति से अवगत करवाया। सन् 1914 में प्रथम महायुद्ध छिड़ने पर लाला जी अमेरिका चले गए। वहाँ उन्होंने ‘इंडियन होम लीग’ की स्थापना की और ‘यंग इंडिया’ नामक साप्ताहिक पत्र भी निकाला।

देश में वापस आने पर सन् 1921 में लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन का अध्यक्ष चुना गया। महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन में भाग लेने पर इन्हें जेल भी जाना पड़ा।
30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। सरदार भगत सिंह की नौजवान भारत सभा ने इसका विरोध किया। इस विरोध प्रदर्शन की अगुवाई लाला जी ही कर रहे थे। जुलूस पर लाठीचार्ज किया गया। लाहौर के डी० एस० पी० सांडर्स ने लाला जी पर ताबड़तोड़ लाठियाँ बरसाईं। जिसके परिणामस्वरूप 17 नवम्बर, सन् 1928 की सुबह लाला जी का देहान्त हो गया। बाद में सरदार भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या कर लाला जी की मौत का बदला लिया।

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6. शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह

देश की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वालों में सरदार भगत सिंह का नाम प्रमुख है। सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर, सन् 1907 को जिला लायलपुर (पाकिस्तान) के गाँव बंगा में हुआ। आपका पैतृक गाँव नवांशहर के निकट खटकड़ कलां है। आपकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। फिर आपने लाहौर के डी०ए०वी० स्कूल से मैट्रिक पास की। कॉलेज में दाखिला लेते ही आप क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आ गए, जिसके परिणामस्वरूप आपने पढ़ाई छोड़ दी। देश भक्ति और क्रान्ति के संस्कार भगत सिंह को विरासत में मिले थे। आपके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह इन्कलाबी गतिविधियों में भाग लेते रहे थे।

सरदार भगत सिंह महात्मा गाँधी की अहिंसावादी नीति को पसन्द नहीं करते थे। क्योंकि उनका विचार था अहिंसात्मक आन्दोलन से देश को आजादी नहीं मिल सकती। इसी उद्देश्य से उन्होंने सन् 1926 में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन किया। उनके जोश और उत्साह को देखकर महात्मा गाँधी को भी मानना पड़ा कि जिस वीरता और साहस का ये नौजवान प्रदर्शन कर रहे थे उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। सरदार भगत सिंह और क्रान्तिकारी साथियों का समर्थन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं पं० जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चन्द्र बोस ने भी किया।

9 सितम्बर, सन् 1928 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में क्रान्तिकारी युवकों की एक बैठक हुई, जिसमें हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र सेना का गठन किया गया। सरदार भगत सिंह इसके सचिव और चन्द्रशेखर आजाद को कमाण्डर बनाया गया। 30 अक्तूबर, सन् 1928 को साइमन कमीशन लाहौर पहुँचा। नौजवान भारत सभा ने उसके विरोध में प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शन में जुलूस की अगुवाई कर रहे लाला लाजपत राय घायल हो गए। 17 नवम्बर, सन् 1928 को उनका निधन हो गया। सरदार भगत सिंह ने लाला जी पर लाठियाँ बरसाने वाले डी० एस० पी० सांडर्स की हत्या कर अपने प्रिय नेता की हत्या का बदला ले लिया। गिरफ्तारी से बचने के लिए आप भेस बदलकर रातों रात लाहौर से निकलकर बंगाल चले गए।

ब्रिटिश सरकार की शोषण नीतियों के प्रति विरोध प्रकट करने के लिए सरदार भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल, सन् 1929 को केन्द्रीय विधानसभा में एक धमाके वाला खाली बम फेंका। वे वहाँ से भागे नहीं बल्कि इन्कबाल जिन्दाबाद के नारे लगाते रहे। सरदार भगत सिंह जानते थे कि अंग्रेजी सरकार इस जुर्म में उन्हें फाँसी की सज़ा देगी। वे अपनी कुर्बानी से देश में जागृति लाना चाहते थे।

17 अक्तूबर, सन् 1930 को सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी की सज़ा सुना दी गई। सज़ा सुनाए जाने के अवसर पर सरदार भगत सिंह और उनके साथियों ने ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’ के खूब नारे लगाए। 24 मार्च, सन् 1931 को सरदार भगत सिंह और उनके साथियों को फाँसी दी जानी थी लेकिन अंग्रेज़ी सरकार ने जनता के रोष से डरकर 23 मार्च, सन् 1931 को ही लाहौर जेल में फाँसी दे दी और उनके शव सतलुज किनारे हुसैनीवाला नामक स्थान पर जला दिए।

सरदार भगत सिंह ने शहीदी पाकर भारतीय जनता में एक नया जोश भर दिया। आखिर 15 अगस्त, सन् 1947 को हमारा देश आज़ाद हुआ। भारतवासी सदा उनके ऋणी रहेंगे।

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7. स्वामी विवेकानन्द

कलकत्ता हाईकोर्ट में सफल वकील श्री विश्वनाथ दत्त के घर 12 जनवरी, सन् 1863 को स्वामी विवेकानन्द का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम नरेन्द्र दत्त था। इनकी माता भुवनेश्वरी देवी इन्हें स्नेह से केवल रामायण व महाभारत की कहानियाँ सुनाकर साहसी, बहादुर और निडर बनाने की प्रेरणा देती थी। नरेन्द्र उन्हें अपना प्रथम गुरु मानते थे। उन्हीं से नरेन्द्र ने अंग्रेज़ी और बंगला भाषाएँ सीखीं। परिणामतः नरेन्द्र में प्रारम्भ से ही देश-प्रेम, त्याग, तपस्या व ध्यान के संस्कार फलने फूलने लगे। स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात् इनके पिता इनका विवाह कर देना चाहते थे किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था। नरेन्द्र परमहंस राम कृष्ण के सम्पर्क में आए और उनकी असाधारण आध्यात्मिक व धार्मिक उपलब्धियों से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गए और सन् 1883 में उन्होंने संन्यास ले लिया और नरेन्द्र दत्त से स्वामी विवेकानन्द हो गए। 16 अगस्त, सन् 1886 परमहंस राम कृष्ण का देहान्त हो जाने पर उन्होंने अपने साथी संन्यासियों और भक्तजनों ने मिलकर रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इस संस्थान ने देश और विदेश में अनेक प्रशंसनीय और अभूतपूर्ण कार्य किये हैं।

उन्नीसवीं शताब्दी के अन्त में कलकत्ता में प्लेग का भयंकर रोग फैल गया। स्वामी जी ने अनेक रोगियों को मौत के मुँह से बचाया। उनकी सेवा की और बंगाल से प्लायन करने से रोका। सेवा कार्य में धन की कमी आने पर उन्होंने अपना बैलूर मठ बेचने का निर्णय किया। यह सुनकर बहुत से धनवान लोगों ने उन्हें धन दिया जिससे सेवा कार्य बिना किसी बाधा के चलता रहा।

11 सितम्बर, सन् 1893 को अमरीका के शिकागो शहर में स्वामी जी ने विश्व धर्म सम्मेलन की धर्म संसद् में जो ओजस्वी, ज्ञानपूर्ण और मौलिक भाषण दिया उससे प्रभावित होकर लाखों अमरीकन उनके भक्त और शिष्य बन गए। उनके प्रवचनों से अमरीका में धूम मच गई। स्वामी जी लगभग ढाई वर्षों तक अमरीका में रहे और वहाँ भारतीय संस्कृति, अध्यात्म व वेदान्त का प्रचार-प्रसार करते रहे। भारत लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया।

सारे देश ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया। किन्तु 4 जुलाई, सन् 1902 को इस धर्म वीर, कर्म सूर्य और ज्ञान समुद्र का मात्र 39 वर्ष की अवस्था में निधन हो गया। स्वामी जी का यह सन्देश हमें सदा प्रेरणा देता रहेगा। “जिस समय तुम भयभीत होते हो, उसी समय तुम दुर्बल होते हो। भय ही जगत में सब अनर्थ का मूल है। सबसे पहले हमारे नवयुवक बलवान होने चाहिए, धर्म बाद में आवेगा मेरे तरुण मित्रो निडर और बलवान बनो।”

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8. सतगुरु राम सिंह जी

नामधारी सिक्ख समुदाय के संस्थापक सतगुरु राम सिंह जी का जन्म 3 फरवरी, सन् 1816 ई० में जिला लुधियाना के एक गाँव राइयाँ में बाबा जस्सा सिंह जी के घर हुआ। छः वर्ष की छोटी सी आयु में आपका विवाह कर दिया गया। युवावस्था में आप महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र नौनिहाल सिंह की फौज में भर्ती हो गए। कुछ समय बाद नौकरी छोड़कर श्री भैणी साहब में आकर प्रभु सिमरन और समाज सेवा में लग गए। साथ ही देश को आजाद करवाने के लिए यत्न करने लगे। 12 अप्रैल, सन् 1857 ई० को वैशाखी के पावन दिन आपने पाँच शिष्यों को अमृतपान कराकर नामधारी सिक्ख समुदाय की नींव रखी। गुरु जी ने लोगों में आत्म सम्मान जगाने, भक्ति और वीरता पैदा करने तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का प्रचार शुरू किया। गुरु जी ने देश में कई जगह प्रचार केन्द्र स्थापित किए और प्रत्येक केन्द्र को सूबे की संज्ञा दी। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर हज़ारों लोग नामधारी बन गए। अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध कूकें (हुंकार) मारने के कारण इतिहास में नामधारी सिक्ख कूका नाम से प्रसिद्ध हो गए।

नामधारी ईश्वर को एक मानते हैं। गुरवाणी का पाठ, पाँच ककारों का धारण करना, सफेद रंग के कपड़े पहनना, सफेद रंग की ऊन के 108 मनकों की माला धारण करना इनके मुख्य धार्मिक सिद्धान्त हैं।

सत् गुरु राम सिंह जी ने अनेक सामाजिक बुराइयों का विरोध करते हुए जन साधारण को जागरूक किया। इनमें बाल विवाह, कन्या वध, गौवध, पुरोहितवाद, मूर्ति पूजा, माँस एवं नशीले पदार्थों के सेवन का विरोध प्रमुख थीं। गुरु जी ने दहेज प्रथा का विरोध करते हुए मात्र सवा रुपए में सामूहिक अंतर्जातीय विवाह की प्रथा आरम्भ की।

नामधारी समुदाय ने राष्ट्रीय भावना से ओत-प्रोत राजनीतिक गतिविधियों में भी सक्रिय भाग लिया। सतगुरु राम सिंह जी ने भारत को आजाद कराने के उद्देश्य से असहयोग व स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ किया। इसी आन्दोलन का महात्मा गाँधी ने सन् 1920 में प्रयोग किया। गुरु जी ने अपनी अलग डाक व्यवस्था के प्रबन्ध कर लिए। उन्होंने अंग्रेज़ी अदालतों और स्कूलों का बहिष्कार कर न्याय और शिक्षा के अपने प्रबन्ध किये। अंग्रेज़ों को लगने लगा कि गुरु जी ने एक समानान्तर सरकार बना ली है। नामधारी सिक्खों ने अंग्रेजों द्वारा स्थापित गौवध के लिए बनाये जाने वाले बूचड़खानों का डटकर विरोध किया। उन्होंने ऐसे बूचड़खानों पर हमला करके अंग्रेजों को बता दिया कि भारतीय अपने धर्म में किसी का हस्तक्षेप सहन नहीं कर सकते।

अंग्रेज़ों से विरोध करने के कारण सन् 1871 में रायकोट, अमृतसर और लुधियाना में 9 नामधारी सिक्खों को फाँसी दी और सन् 1872 में मालेरकोटला के खुले मैदान में 65 नामधारियों को खड़े करके तोपों से उड़ाकर शहीद कर दिया। नामधारियों के आन्दोलन को सरकार विरुद्ध घोषित करके गुरु जी को गिरफ्तार करने रंगून (तत्कालीन बर्मा) भेज दिया गया जहाँ सन् 1885 में गुरु जी ने इस नश्वर शरीर को त्यागा।

सत् गुरु राम सिंह जी द्वारा चलाया नामधारी समुदाय आज भी भैणी साहब से सादा, पवित्र और आडम्बर रहित जीवन का प्रचार कर रहा है।

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9. बाबा साहब अम्बेदकर

बाबा साहब अम्बेदकर का जन्म 14 अप्रैल, सन् 1891 को मध्य प्रदेश में इन्दौर के निकट मऊ-छावनी नामक स्थान पर हुआ। आपके पिता श्री राम जी राव ने आपका नाम भीम राव रखा। आपने सोलह वर्ष की अवस्था में मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली। स्कूल में ही एक अध्यापक ने इनके नाम के साथ अम्बेदकर शब्द जोड़ दिया। और तब से यह भीम राव अम्बेदकर के नाम से जाने जाने लगे।

सन् 1912 में अम्बेदकर जी ने बी० ए० की डिग्री प्राप्त कर ली। सन् 1913 में बड़ौदा नरेश से छात्रवृत्ति पाकर आप विदेश चले गए। वहाँ आप सन् 1917 तक रहे और कोलम्बिया विश्वविद्यालय से आपने एम० ए०, पी एच डी० एवं एल० एल० बी० की डिग्रियाँ प्राप्त की। स्वदेश लौटकर बड़ौदा राज्य के सैनिक सचिव नियुक्त हुए लेकिन कुछ समय पश्चात् आपने वह पद छोड़ दिया और मुम्बई के सिडेनहम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया। तत्पश्चात् आजीविका चलाने के लिए आपने वकालत का पेशा भी अपनाया। लोगों में जागृति लाने के लिए आपने ‘बहिष्कृत हितकारिणी’ और ‘बहिष्कृत भारत’ नामक समाचार-पत्र निकाले। सन् 1927 में आप मुम्बई विधान सभा के सदस्य मनोनीत हुए।

इसी बीच महात्मा गाँधी जैसे राष्ट्रीय नेताओं के साथ मिलकर निम्न वर्ग के उत्थान के लिए अनेक कार्य किये, अनेक आन्दोलन चलाये। इनमें 20 मार्च, सन् 1927 में चलाया चोबदार-तालाब सत्याग्रह उल्लेखनीय है।

सन् 1947 में देश की पहली राष्ट्रीय सरकार में आप कानून मन्त्री बने। आपको संविधान सभा का सदस्य बनाया गया। आपके ही प्रयत्नों से धर्म-निरपेक्ष भारतीय संविधान की रचना की गई जिसमें प्रत्येक नागरिक को चाहे वह किसी भी जाति, वर्ण का हो, समान अधिकार दिए गए। आप ही के यत्नों से हिन्दी को राष्ट्रभाषा का स्थान मिला। प्रौढ़ावस्था तक आते-आते बाबा साहब अम्बेदकर जी ने नागपुर में बौद्ध धर्म में दीक्षा ले ली। 6 दिसम्बर, सन् 1956 को यह मसीहा इस दुनिया से उठ गया।

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10. भारत की प्रथम महिला अंतरिक्ष यात्री

कल्पना चावला ने एक स्वर्णिम इतिहास की रचना की है। उसने 1997 ई० में अन्तरिक्ष की सफल यात्रा की थी। इस प्रकार उसने भारत की पहली महिला अन्तरिक्ष यात्री होने का गौरव प्राप्त किया। कल्पना बहुत कुछ कर दिखाना चाहती थी। वह एक बार फिर अन्तरिक्ष का कोना-कोना टटोलना चाहती थी। उसने 16 जनवरी, सन् 2003 को फिर अन्तरिक्ष अभियान में शामिल अमरीकी अन्तरिक्षयान कोलम्बिया में उड़ान भरी। दुर्भाग्य से यह यान वापसी पर दुर्घटना का शिकार होकर नष्ट हो गया। कल्पना चावला हमेशा के लिए अन्तरिक्ष में विलीन हो गई। उसके यान के 6 अन्य यात्री भी सदा की नींद सो गए। इस दुर्घटना से सारा भारत शोकग्रस्त हो उठा। कल्पना स्वयं मिट गई परन्तु उनके साहस, शौर्य और कर्त्तव्य भावना सर्वदा के लिए अन्तरिक्ष की बड़ी गहराई से अंकित हो गए हैं। हरियाणा (करनाल) की यह वीरांगना समस्त भारतीय नारी-समाज का प्रकाश-स्तम्भ बन गई है। भारत एक होनहार बेटी से वंचित हो गया।

बयालीस वर्षीय कल्पना का जन्म करनाल में हुआ। उच्च-मध्यम परिवार में जन्मी कल्पना की प्रारम्भिक शिक्षा करनाल में ही सम्पन्न हुई। उसकी गणना अपने स्कूल के योग्यतम छात्र-छात्राओं में की जाती थी। प्रारम्भ से ही उसके सपने बहुत ऊँचे थे। उसके मन में अन्तरिक्ष में उड़ान भरने की लालसा बाल्यकाल में ही पनपने लगी थी। करनाल में वह अपने बड़े भाई के साथ विमान उड़ाने के प्रशिक्षण केंद्र में जाया करती थी। स्कूली शिक्षा की समाप्ति पर कल्पना ने चण्डीगढ़ में उच्च शिक्षा प्राप्त की और उसने अन्तरिक्ष विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। तदन्नतर कल्पना अमरीका के नासा अन्तरिक्ष अभियान केंद्र में नियुक्त हो गई। यहीं पर उसका अन्तरिक्ष अभियान का क्रम प्रारम्भ हो गया। नासा ने सन् 1997 ई० में कल्पना को अन्तरिक्ष अभियान के लिए चुना और उसने बड़ी सफलता के साथ यह यात्रा परिपूर्ण की थी। उसकी गणना विश्व के श्रेष्ठतम अन्तरिक्ष यात्रियों में होने लगी थी।

कल्पना चावला के हृदय में अनेक कल्पनाएं मचल रही थीं। वह चाहती थी कि अन्तरिक्ष के प्रत्येक रहस्य की खोज की जानी चाहिए। 16 जनवरी, सन् 2003 ई० को जब वह दूसरी बार अन्तरिक्ष यात्रा पर निकली तो अन्तरिक्ष के इन्हीं अज्ञात रहस्यों का अन्वेषण करना था। कैंसर जैसे भीषण रोगों पर नियन्त्रण पाने का विचार भी इस में निहित था। विधि की विडम्बना कहिए, कि कुछ ही मिनटों में मिलने वाली महानतम उपलब्धि हाथ से छूट कर बिखर गई। कल्पना अपने छ: अन्य साथियों के साथ मौत का शिकार हो गई। कोलम्बिया धरती को चूमने से कुछ ही क्षण पहले जलकर राख हो गया। टुकड़े-टुकड़े होकर वह धरती पर इधर-उधर बिखर गया। भारत की कल्पना भी लुप्त हो गई और उसके दिल में मचल रही स्वर्णिम कल्पनाएँ वीरता का महान् सन्देश देकर बिखर गई।

कल्पना चावला ने जिस अटूट साहस, धैर्य, वीरता और कर्त्तव्यनिष्ठा का जो मार्ग प्रशस्त किया है, वह भारत के युवा वर्ग के लिए हमेशा प्रेरणा का स्त्रोत रहेगा। कल्पना चावला के जीवन से भारतीय नारी समाज को एक नई स्फूर्ति प्राप्त हुई है। यह बात पूर्णतया स्पष्ट हो गई है कि भारतीय नारी प्रत्येक क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित कर सकती है। उसके लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है। पृथ्वी हो या अन्तरिक्ष प्रत्येक स्थान उसकी पहुँच से परे नहीं है।

भारत अपनी इस महान् वीरांगना को नहीं भूलना चाहेगा। कल्पना चावला की स्मृति में करनाल में एक विशालतम अस्पताल खोलने की योजना को साकार रूप दिया जा रहा है। विविध पुरस्कार कल्पना के नाम पर आरम्भ हो रहे हैं। अनेक स्कूल-कॉलेज कल्पना की कल्पना को साकार करने के लिए तत्पर हैं । सम्भव है भारत में कल्पना की स्मृति में अन्तरिक्ष अभियान के लिए कोई योजना कार्यान्वित की जाए। यह एक स्वाभाविक एवं निश्चित तथ्य है प्रत्येक राष्ट्र अपने वीरों और वीरांगनाओं के बताए मार्ग पर चल कर ही प्रगति के शिखरों को छू सकता है।

कल्पना चावला भारतीय इतिहास की एक महान् धरोहर बन गई है। वह साहस के प्रतीक के रूप में भारतीयों का मार्ग-दर्शन करती रहेगी। देश की युवा-शक्ति कल्पना के मार्ग पर चलते हुए राष्ट्र की गरिमा को चार चाँद लगाएगी। कल्पना एक स्थान विशेष की धरोहर नहीं, बल्कि समग्र राष्ट्र की प्रकाशमान दीप शिखर है जो प्रेरणा, प्रोत्साहन, कर्त्तव्यानुभूति और अदम्य उत्साह का मार्ग प्रशास्त करती रहेगी। अन्त में हम कहेंगे- “कल्पना और तुम्हारी कल्पनाओं को शत-शत नमस्कार।”

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11. महाराजा रणजीत सिंह

शेरे पंजाब कहे जाने वाले महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, सन् 1780 ई० को गुजरांवाला (पाकिस्तान) में हुआ। आपके पिता का नाम महासिंह था जो सुकरचकिया मिसल के सरदार थे। आपकी माता राजकौर जींद की फुलकिया मिसल के सरदार की बेटी थी। आपका बचपन का नाम बुध सिंह था, किन्तु आपके पिता ने अपनी जम्मू विजय को याद रखने के लिए आपका नाम रणजीत सिंह रख दिया।

महाराजा रणजीत सिंह ने उस समय छोटे-छोटे राज्यों को और मिसलों को एक किया। मुसलमानों और पठानों को हरा कर समय की माँग को देखते हुए रोपड़ (रूपनगर) के स्थान पर अंग्रेजों के साथ समझौता कर एक सुदृढ़ सिक्ख राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह एक महान् योद्धा और कुशल प्रशासक थे। दस वर्ष की आयु में आपने पहली जीत प्राप्त की। विजयी रणजीत सिंह जब लौटे तो उनके पिता की मृत्यु हो चुकी थी, किन्तु उन्होंने अपनी योग्यता और वीरता से अपने अधिकार को स्थिर रखा। महाराजा रणजीत सिंह ने पन्द्रह वर्ष की आयु में महताब कौर से विवाह किया। किन्तु यह विवाह सफल न हो सका। तब उन्होंने सन् 1798 ई० में दूसरा विवाह किया जो सफल रहा।

सत्रह वर्ष की उम्र तक पहुँचते-पहुँचते आपने सारी मिसलो का नेतृत्व अपने हाथ में ले लिया। उन्नीस वर्ष की अवस्था में लाहौर पर अधिकार करके उसे अपनी राजधानी बनाया। धीरे-धीरे आपने जम्मू-कश्मीर, अमृतसर, मुल्तान, पेशावर आदि क्षेत्रों को अपने अधीन कर एक विशाल पंजाब राज्य की स्थापना की।

महाराजा रणजीत सिंह की उदारता और छोटे बच्चों से प्रेम की अनेक घटनाएँ प्रचलित हैं। आप एक कुशल प्रशासक और न्यायप्रिय शासक थे। सभी जातियों के लोग आपकी सेना में थे। महाराजा जहाँ वीरों, विद्वानों का आदर कर उन्हें इनाम देते थे, वहाँ अत्याचारी जागीरदारों को दंड भी देते थे। वे बिना किसी भेदभाव से सभी उत्सवों और पर्यों में भाग लेते थे। यही कारण है कि जब सन् 1839 में आपकी मृत्यु हुई तो सभी धर्मों के लोगों ने आप की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की।

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12. अमर शहीद मेजर भूपेन्द्र सिंह

मेजर भूपेन्द्र सिंह का नाम उन शहीदों में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा जिन्होंने देशहित में अपने प्राण न्योछावर कर दिए। सन् 1965 के पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में मेजर भूपेन्द्र सिंह ने जो अद्भुत शौर्य दिखाया उसके लिए भारतीय सदा उनके ऋणी रहेंगे।

मेजर भूपेन्द्र सिंह लुधियाना जिले के रहने वाले थे। देश सेवा और देश भक्ति की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। उन्होंने पाकिस्तान के साथ स्यालकोट फ्रंट की लड़ाई में अपने उच्च अधिकारी से टैंकों के संचालन की आज्ञा माँगी। आज्ञा पाकर अगले ही दिन मेजर भूपेन्द्र ने तुरन्त शत्रु पर आक्रमण करने का निश्चय किया। मेजर सिंह के टैंकों ने इतनी भयंकर गोलाबारी की कि शत्रु पक्ष के अनेक टैंक ध्वस्त हो गए। मेजर सिंह के नेतृत्व वाले टैंक दल ने शत्रु के 21 टैंक नष्ट कर दिए, इनमें सात तो अकेले मेजर सिंह ने नष्ट किये थे। कुछ टैंकों को मेजर सिंह ने सही हालत में अपने अधिकार में ले लिया। पाकिस्तानी टैंकों की सहायता उनके विमान भी करने लगे। वे हड़बड़ी में बम फेंक रहे थे। दुर्भाग्य से जिस टैंक में मेजर सिंह बैठे थे उस पर पाकिस्तानी विमान द्वारा फेंकी गई एक मिजाइल आ लगी। उनका टैंक जलने लगा।

मेजर सिंह साहस से काम लेते हुए टैंक से बाहर कूद पड़े। अभी वे अपने लिए सुरक्षित स्थान ढूँढ ही रहे थे कि उनके साथियों की जलते हुए टैंकों से बचाओ-बचाओ की आवाजें सुनाई दी। मेजर सिंह ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने तीन साथियों को जलते हुए टैंकों से बाहर निकाला। उनके कपड़ों को आग लग चुकी थी जिससे उनका सारा शरीर झुलस चुका था। अपने साथियों की जान बचाने के बाद वे स्वयं बेहोश होकर गिर पड़े। उन्हें तुरन्त सेना अस्पताल पठानकोट पहुंचाया गया। वहाँ से उन्हें दिल्ली लाया गया। उनकी वीरता और साहस की कहानी सुन कर प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री स्वयं अस्पताल आए। उनके आने पर मेजर सिंह ने कहा-‘काश मेरे हाथ इस योग्य होते कि मैं उन्हें सैल्यूट कर सकता’-इस वीर की यह हालत देख शास्त्री जी की भी आँखें भर आईं। मेजर सिंह कुछ दिन मौत से लड़ते रहे फिर एक दिन भारत माँ का यह शूरवीर हम से सदा के लिए विदा हो गया।

भारत सरकार ने इस वीर सपूत को महावीर चक्र.(मरणोपरान्त) देकर सम्मानित किया। मेजर भूपेन्द्र सिंह की शहादत युवा पीढ़ी को सदा प्रेरित करती रहेगी।

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13. पंजाब के ग्रामीण मेले और त्योहार

देवी-देवताओं, गुरुओं, पीर-पैगम्बरों, ऋषि-मुनियों एवं महात्माओं की पंजाब की धरती अपने कर्मठ किसानों और वीर सपूतों के कारण देश भर के सभी प्रान्तों में शिरोमणि है। पंजाब को मेले और त्योहारों के लिए भी जाना जाता है। साल के शुरू में ही लोहड़ी का त्योहार और माघी का मेला आता है। लोहड़ी पौष मास के अन्तिम दिन मनाया जाता है।

कड़ाके की सर्दी की परवाह न करते हुए युवक-युवतियों की टोलियाँ-दे माई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी या सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-के गीत गाते हुए उन घरों से विशेषकर लोहड़ी माँगते हैं जिनके घरों में पुत्र का विवाह हुआ हो या पुत्र उत्पन्न हुआ हो। लोहड़ी से अगले दिन मुक्तसर में चालीस मुक्तों की याद में माघी का मेला मनाया जाता है। वैसे माघ महीने की संक्रान्ति को सभी पवित्र सरोवरों और नदियों में स्नान कर लोग पुण्य लाभ कमाते माघी के बाद बसंत पंचमी का त्योहार आता है, जो सारे पंजाब में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोग पतंग उड़ाते हैं और घरों में पीले चावल या पीला हलवा बनाते हैं और पीले वस्त्र पहनते हैं। प्रकृति भी उस दिन पीली चुनरी (सरसों के फूल खेतों के रूप में) ओढ़ लेती है। पुरानी पटियाला और कपूरथला रियासतों में यह दिन बड़े हर्षोल्लास से मनाया जाता था। इसी दिन बटाला में वीर हकीकत राय की समाधि पर एक बड़ा भारी मेला लगता है।

बसन्त पंचमी के बाद बैसाखी का त्योहार आता है। इस दिन किसान अपनी गेहूँ की फसल को तैयार देखकर झूम उठता है और गा उठता है-‘जट्टा ओ आई बिसाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। गाँव-गाँव शहर-शहर मेले लगते हैं। इसके बाद सावन महीने में पूर्णिमा को रक्षा बन्धन का त्योहार आता है। यह त्योहार भाईबहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक है। इसी महीने पंजाब का एक ग्रामीण त्योहार भी आता है। इस त्योहार को मायके आई विवाहित लड़कियों का तीज का त्योहार कहा जाता है। मायके आई विवाहित लड़कियाँ सखियों संग झूला झूलती हैं और मन की बातें खुल कर करती हैं।

उपर्युक्त मेलों और त्योहारों के अतिरिक्त पंजाब में कुछ धार्मिक मेले भी होते हैं। इनमें सबसे बड़ा आनन्दपुर साहब में लगने वाला होला-मुहल्ला का मेला है। ग्रामीण मेलों में किला रायपुर का मिनी ओलिम्पिक मेला प्रसिद्ध है। कुछ मेलों में पशुओं की मण्डियाँ भी लगती हैं। पंजाब के ये मेले और त्योहार आपसी भाई-चारे के प्रतीक हैं। हमें इन्हें पूरी श्रद्धा के साथ मनाना चाहिए।

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14. जीवन में त्योहारों का महत्त्व

कहा जाता है कि जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है और मनुष्य शुरू से संघर्ष के बाद, आराम या मनोरंजन चाहता है। इसलिए मनुष्य ने ऐसे अवसरों की तलाश की जिनमें वह अपने सब दुःख-दर्द भूल कर कुछ क्षणों के लिए खुल कर हँस गा सके। हमारे पर्व या त्योहार यही काम करते हैं। त्योहार वाले दिन, चाहे एक दिन के लिए ही सही हम यह भूलने की कोशिश करते हैं कि हम गरीब हैं, दुःखी हैं। आराम जीवन की जरूरत है, परिवर्तन मानव-स्वभाव की माँग है। हमारे पर्व या त्योहार इस ज़रूरत और माँग को पूरा करते हैं।

त्योहार का नाम सुनते ही सभी के मन में उल्लास एवम् स्फूर्ति भर जाती है। त्योहार के दिन हम आनन्द के साथ-साथ जातीय गौरव का भी अनुभव करते हैं। ये त्योहार आपसी भाईचारे के प्रतीक हैं। इनमें सभी धर्मों, सम्प्रदायों के लोग बिना किसी भेदभाव के भाग लेते हैं। जहाँ ये त्योहार आपसी सम्बन्धों को सुदृढ़े करते हैं, वहाँ राष्ट्रीय एकता को भी बढ़ावा देते हमारे देश में मनाए जाने वाले त्योहार धर्म और राजनीति के उच्चतम आदर्शों को प्रस्तुत करते हैं। प्रत्येक पर्व या त्योहार किसी-न-किसी आदर्श चरित्र से जुड़ा है। जैसे बसन्तोत्सव हमें भगवान् शंकर के कामदहन और श्रीकृष्ण के पूतनावध की याद दिलाता है। आषाढ़ में काल की दुर्निवार गति की याद में भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा होती है। श्रावणी पूर्णिमा रक्षाबन्धन के त्योहार द्वारा हिन्दू समाज में भ्रातृत्व का स्मरण दिलाया जाता है। दीवाली के दिन हम लक्ष्मी पूजन के साथ नरकासुर वध की घटना को याद करते हैं। रामनवमी के दिन हमें भगवान् राम के जीवन से त्याग, तपस्या और जन सेवा की शिक्षा मिलती है।

हमारे देश में अनेक त्योहार ऋतुओं या फसलों से भी जुड़े हैं जैसे लोहड़ी, होली, बैशाखी, श्रावणी पूर्णिमा आदि। कुछ त्योहारों पर व्रत रखने की भी परम्परा है जैसे महाशिवरात्रि, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी आदि। स्वास्थ्य की दृष्टि से इन व्रतों की बहुत उपयोगिता है। ये व्रत व्यक्ति की पाचन क्रिया को सही रखते हैं। संक्षेप में कहा जाए तो हमारे पर्व या त्योहार आत्म शुद्धि का साधन हैं । त्योहार हमारे जीवन में खुशियाँ लाते हैं। त्योहारों के अवसर पर हम अपने सब राग, द्वेष, मद, मोह को भस्मीभूत करके, ऊँच-नीच का, जाति-पाति का भेद भुला कर, एक होकर आनन्द मनाते हैं। इन्हीं त्योहारों ने हमारी प्राचीन संस्कृति को और सामाजिक मूल्यों को बचाए रखा है।

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15. लोहड़ी

लोहड़ी का त्योहार विक्रमी संवत् के पौष मास के अन्तिम दिन अर्थात् मकर संक्रान्ति (माघी) से एक दिन पहले मनाया जाता है। इसे हम ऋतु सम्बन्धी त्योहार भी कह सकते हैं। अंग्रेजी कलैण्डर के अनुसार साल का यह पहला त्योहार होता है। इस दिन सर्दी अपने पूर्ण यौवन पर होती है। लोग अपने-अपने घरों में आग जलाकर उसमें मूंगफली, रेवड़ियों, फूलमखानों की आहुति डालते हैं और लोक गीतों को गाते हुए नाचते हुए आग तापते हैं।

लोहड़ी वाले दिन माता-पिता अपनी विवाहिता बेटियों के घर उपर्युक्त चीजें और वस्त्राभूषण भेजते हैं। जिनके घर लड़के की शादी हुई हो या लड़का पैदा हुआ हो, वे लोग अपने नाते-रिश्तेदारों को बुलाकर धूमधाम से लोहड़ी का त्योहार मनाते हैं। लोगों ने अब लड़की के जन्म पर भी लोहड़ी मनाना शुरू कर दिया है। पुराने जमाने में लड़के-लड़कियाँ समूह में घर-घर जाकर लोहड़ी माँगते थे और आग जलाने के लिए उपले और लकड़ियाँ एकत्र करते थे। साथ ही वे ‘दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी’, ‘गीगा जम्यां परात गुड़ वंडिया’ तथा ‘सुन्दर मुन्दरिये हो, तेरा कौन विचारा-दुल्ला भट्ठी वाला’ जैसे लोक गीत भी गाया करते थे। युग और परिस्थितियाँ बदलने के साथ-साथ लोहड़ी माँगने की यह प्रथा लुप्त होती जा रही है। लोग अब अपने घरों में कम होटलों में अधिक लोहड़ी मनाते हैं और आग जलाने के स्थान पर डी०जे० पर फिल्मी गाने गाते हैं लोक गीत तो जैसे लोग भूल ही गए हैं। बस लोहड़ी के अवसर पर पीना-पिलाना और नाचना-गाना ही शेष बचा है।

कुछ लोग लोहड़ी के त्योहार को फसली त्योहार मानते हैं। गन्ने की फसल तैयार हो जाती है और गुड़-शक्कर बनना शुरू हो जाता है। सरसों की फसल भी तैयार हो जाती। मकई की फसल घरों में आ चुकी होती है। शायद इन्हीं कारणों से आज भी गन्ने के रस की खीर, सरसों का साग और मकई की रोटी बनाने का रिवाज है। समय चाहे कितना बदल गया हो, किन्तु लोहड़ी के त्योहार को आपसी भाईचारे और पंजाबी संस्कृति का त्योहार माना जाता है।

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16. होली

हिन्दुओं के त्योहारों में होली का त्योहार एक प्रमुख त्योहार है। रंगों का यह त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। प्राचीन काल में इस दिन को हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद और उसकी बुआ होलिका से जोड़ कर देखा जाता था। होलिका दहन की घटना को याद कर सामूहिक रूप से अग्नि प्रज्वलित की जाती थी और यह कल्पना की जाती थी राक्षसी प्रवृत्ति वाली होलिका जल गई है। आज भी कुछ स्थानों पर होली बसन्त के बाद महीना भर मनाई जाती है। वृन्दावन और बरसाने की होली देखने तो देश-विदेश से कई लोग आते हैं।

होली रंगों का और मेल मिलाप का त्योहार है, किन्तु आज की युवा पीढ़ी ने इसे हुड़दंग बाजी का त्योहार बना दिया है। होली के त्योहार को ही कई लोग गांजा, सुल्फा, भांग या शराब पीना शुभ समझते हैं, किन्तु ऐसा करना कभी भी शुभ नहीं माना जाता। यदि किसी पवित्र त्योहार के दिन हम व्यसनों और कुरीतियों की ओर बढ़ते हैं तो इससे हम त्योहार के वास्तविक महत्त्व से बहुत दूर हट जाते हैं।

होली के अवसर पर पहले लोग अबीर, गुलाल से रंग खेलते थे, किन्तु आज हम सस्ते के चक्कर में सिंथेटिक रंगों से होली खेलते हैं। जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक हैं। इन रंगों के आँखों में पड़ने से आँखों की रोशनी जाने का खतरा बना रहता है। आज आवश्यकता है होली के त्योहार की पवित्रता से युवा पीढी को, बच्चों को परिचित करवाने की। इसके लिए हमारे धार्मिक और सामाजिक नेताओं को आगे आना चाहिए, होली आपसी भाईचारे का, मेल-मिलाप का त्योहार है, हमें यह त्योहार ऊँच-नीच का, छोटे-बड़े का भेद भुला देना सिखाता है। हमें इस दिन लोगों में खुशियाँ बाँटनी चाहिए न कि दुःख या कष्ट पहुँचाना। हमें बड़ों की ही नहीं डॉक्टरों की सलाह पर भी ध्यान देना चाहिए।

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17. वैशाखी

वैशाखी का त्योहार वैशाख मास की संक्रान्ति को मनाया जाता है। पहले पहल यह त्योहार फसली त्योहार माना जाता था जिसे किसान लोग अपनी गेहूँ की फसल तैयार हो जाने पर मनाते थे। इस दिन गाँव-गाँव मेले लगते हैं। कई स्थानों पर यह मेला दो-दो अथवा तीन-तीन दिनों तक चलता है। नौजवान लोग भाँगड़ा डालते हैं। लोग सजधज कर इन मेलों में शामिल होते हैं । इस त्योहार को शीत ऋतु के प्रस्थान और ग्रीष्म ऋतु के आगमन का त्योहार भी माना जाता है। लोग पवित्र नदियों व सरोवरों में जाकर स्नान करते हैं और गुरुद्वारों में मत्था टेक कर निहाल होते हैं।

वैशाखी के दिन रबी की फ़सल पक कर तैयार हो जाती है जिससे किसानों के ही नहीं, मज़दूरों और शिल्पकारों और दुकानदारों के चेहरे पर रौनक आ जाती है। वास्तव में सारा व्यापार रबी की अच्छी फसल पर ही निर्भर करता है। _वैसाखी का यह पर्व हमें सन् 1699 का वह दिन भी याद दिलाता है जिस दिन गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसे की स्थापना की थी। गुरु जी कहा करते थे-जब शान्ति एवं समझौते के सभी तरीके असफल हो जाते हैं तब तलवार उठाने में नहीं झिझकना चाहिए। – वैशाखी का यह पर्व पहले उत्तर भारत में ही विशेषकर गाँवों में मनाया जाता था, किन्तु सन् 1919 में इसी दिन जलियांवाला बाग में हुए नरसंहार को याद करते हुए वैशाखी का यह पर्व सारे भारत में मनाया जाता है और जलियांवाला बाग में शहीदों को याद किया जाता है।

वैशाखी वाले दिन से ही नवीन विक्रमी वर्ष का आरम्भ माना जाता है। कई जगहों पर इसी दिन साहुकार लोग अपने नए बही खाते खोलते हैं और मनौतियाँ मनाते हैं। पंजाब के किसान तो खुशी से झूम कर गा उठते हैं-‘जट्टा ओ आई वैशाखी, मुक्क गई फसलाँ दी राखी’। युवक भाँगड़ा डालते हैं तो युवतियाँ गिद्दा डालती हैं। इसी कारण वैशाखी के त्योहार को पंजाब के ग्रामीण मेलों का सिरताज कहा जाता है।

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18. रक्षाबन्धन

रक्षाबन्धन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी कारण कई लोग इसे श्रावणी पर्व के नाम से भी याद करते हैं। इसी त्योहार के दिन से कार्तिक शुक्ला एकादशी तक चतुर्मास भी मनाया जाता है। पुराने जमाने में ऋषि-मुनि और ब्राह्मण इन चार महीनों में यात्रा नहीं करते थे, अपने आश्रमों में ही रहते थे। राज्य की ओर से उनके रहने खाने-पीने का प्रबन्ध किया जाता था। आजकल इस नियम का पालन केवल जैन साधु एवं साधवियाँ ही कर रहे हैं।

रक्षाबन्धन का त्योहार भाई-बहन के प्यार से कब से सीमित हो गया इसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं मिलता। केवल चित्तौड़ की महारानी करमवती द्वारा मुग़ल सम्राट् हुमायूँ को भेजी राखी की घटना का ही उल्लेख मिलता है। हुमायूँ ने राखी मिलने पर गुजरात के मुसलमान शासक को हरा कर अपनी मुँह बोली बहन के राज्य की रक्षा की थी, किन्तु शुरूशुरू में रक्षाबन्धन केवल ब्राह्मण ही अपने यजमानों के ही बाँधा करते थे। समय के परिवर्तन के साथ राजपूत स्त्रियों ने अपने पतियों की कलाई पर युद्ध में जाते समय रक्षाबन्धन बाँधना शुरू कर दिया।

आजकल यह त्योहार केवल भाई-बहनों का त्योहार बन कर ही रह गया है। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और भाई उसकी सुरक्षा की प्रतिज्ञा करता है। किन्तु आज बहन स्वयं आत्मनिर्भर हो गई है। अपने परिवार का (माता-पिता, भाई-बहन का) भरण पोषण करती है फिर वह अपनी सुरक्षा की गारण्टी क्यों चाहेगी। दूसरे आज यह त्योहार मात्र परम्परा का निर्वाह बन कर रह गया है। आज बहन अबला नहीं सबला नारी हो गई है।

पुराने जमाने में विवाहित स्त्रियाँ अपने मायके चली जाती थीं। वह अपनी सहेलियों संग झूला झुलती, आमोद-प्रमोद में दिन बिताती हैं। शायद इसीलिए बड़े-बुजुर्गों ने श्रावण महीने में सास-बहू के इकट्ठा रहने पर रोक लगा दी थी, किन्तु आज बड़ों के इस आदेश या नियम की कोई पालना नहीं करता। हमें चाहिए कि आज प्रत्येक त्योहार को हम पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाएँ और अपनी जाति के गौरव और अपने देश की संस्कृति का ध्यान रखें। समय और परिस्थिति के अनुसार उसमें उचित सुधार कर लें।

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19. दशहरा (विजयदशमी)

दशहरा (विजयदशमी) का त्योहार देश भर में शारदीय नवरात्रों के बाद दशमी तिथि को मनाया जाता है। प्रसिद्ध एवं सर्वज्ञात रूप से विजयदशमी के त्योहार को भगवान श्रीराम की लंकापति रावण पर विजय के रूप में अथवा धर्म की अधर्म पर और सत्य की असत्य पर विजय के रूप में मनाया जाता है। नवरात्र के नौ दिनों में देश के विभिन्न नगरों और गाँवों में दशहरे का मेला लगता है जिसमें रामलीला का मंचन होता है और श्रीराम के जीवन से जुड़ी अनेक झाँकियाँ निकाली जाती हैं। जिन गाँवों में यह मेला नहीं लगता वहाँ के लोग निकट के नगर में यह मेला देखने जाते हैं । दशमी के दिन रावण, कुम्भकरण और मेघनाथ के बड़े-बड़े पुतले, जो रामलीला मैदान में स्थापित किए होते हैं, जलाए जाते हैं।

विजयदशमी का यह त्योहार बंगाल में दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। प्रान्त भर में माँ दुर्गा की विशाल मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और विजयदशमी के दिन गंगा में या निकट की नदियों में विसर्जित की जाती हैं। प्राचीन काल में क्षत्रिय लोग शक्ति के प्रतीक शस्त्रों की पूजा किया करते थे। महाराष्ट्र में विजयदशमी सीमोल्लंघन के रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव के लोग नए वस्त्र पहन गाँव की सीमा पार कर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘सोना’ लूट कर गाँव लौटते हैं और उस सुवर्ण का आदान-प्रदान करते हैं।

प्राचीन इतिहास के अनुसार इसी दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पर विजय प्राप्त की थी। पाण्डवों ने भी इसी दिन अपना तेरह वर्षों का अज्ञातवास पूरा कर द्रौपदी का वरण किया था।
विजयदशमी धार्मिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का पर्व है। राष्ट्रीय दृष्टि से यह दिन सैन्य संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की पूजा का दिन है। हम स्वयं को आराधना
और तप से उन्नत करें, धर्म की, सत्य की अधर्म और असत्य पर विजय को याद रखें और राष्ट्र की सैन्य शक्ति को सुदृढ़ करें, यही विजयदशमी का संदेश है।

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20. दीपावली

दीपावली का त्योहार कार्तिक महीने की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार को भगवान् श्रीराम, सीताजी और लक्ष्मण जी सहित लंका विजय के बाद अयोध्या लौटे थे। इस अवसर पर अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाकर उनका स्वागत किया था। यह त्योहार प्रायः सम्पूर्ण भारत में मनाया जाता है। लोग अपने घरों और दुकानों को साफ़ कर सजाते हैं। बाज़ारों में चहल-पहल बढ़ जाती है। लोग एक-दूसरे को शुभकामनाएँ और उपहार भेंट करते हैं।

दीपावली का यह त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की योदशी को धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग बर्तन या गहने खरीदना शुभ मानते हैं। इससे अगला दिन नरक चौदस अथवा छोटी दीवाली के नाम से प्रसिद्ध है। कहते हैं कि इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। अमावस्या की रात को दीवाली का मुख्य पर्व होता है। इस रात धन की देवी लक्ष्मी जी और विघ्ननाशक गणेश जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी और गणेश जी की समन्वित पूजा का अर्थ है धन का मंगलमय संचयन और उसका धर्म सम्मत उपयोग। अमावस्या से अगला दिन विश्वकर्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन गोवर्धन पूजा का भी विधान है तथा कार्तिक शुक्ला द्वितीया को भाई-बहन का दूसरा बड़ा त्योहार भाई दूज के रूप में मनाया जाता है। इस तरह पाँच दिनों तक चलने वाला दीवाली का त्योहार समाप्त हो जाता है।

दीवाली के अवसर पर जुआ खेलने की कुप्रथा का भी प्रचलन है। इस कुप्रथा को बन्द होना चाहिए। भले ही जुआ खेलना एक कानूनी अपराध है, किन्तु फिर भी लोग जुआ खेलते हैं। दीवाली के अवसर पर पटाखे चलाने और आतिशवाजी भी हमें बन्द कर देने चाहिए। हर वर्ष करोड़ों रुपए पटाखे चलाकर ही हम नष्ट कर देते हैं। इन रुपयों से लाखों भूखों को रोटी दी जा सकती है। लाखों गरीब बच्चों को पढ़ाया जा सकता है। दीवाली के इस त्योहार को हमें बदली परिस्थितियों के अनुसार मनाना चाहिए। हमें प्रयत्न करना चाहिए कि हम पर्यावरण को पटाखों से प्रदूषित न करें। दीपावली प्रकाश का पर्व है न कि प्रदूषण का। दीपावली निश्चित रूप से ऐसा त्योहार है जिसे पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।

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21. वसन्त ऋतु

वसन्त ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। यह ऋतु अंग्रेज़ी महीने के मार्च-अप्रैल और विक्रमी संवत् के महीनों चैत्र-वैशाख महीनों में आती है, किन्तु लोग वसन्त आगमन का त्योहार वसन्त पंचमी का त्योहार माघ महीने की पंचमी को ही मना लेते हैं। कहा जाता है आया वसन्त तो पाला उड़त अर्थात् इस ऋतु में शीत का अन्त हो जाता है। मानव शरीर में नई चेतना एवं स्फूर्ति का अनुभव होने लगता है। इस ऋतु में शरीर में नए रक्त का संचार होता है। प्रकृति भी नए रूप और यौवन के साथ प्रकट होती है। हर तरफ मादकता छायी रहती है। वृक्षों पर नई कोंपलें फूट निकलती हैं और बागों में तरह-तरह के फूल खिल उठते हैं। खेतों में फूली सरसों देखकर लगता है जैसे प्रकृति ने पीली चुनरी ओढ़ रखी हो। शायद इसीलिए वसन्त को कामदेव का पुत्र माना जाता है। कामदेव के घर पुत्रोत्पत्ति का समाचार पाकर प्रकृति नाच उठती है। हर तरफ हरियाली छा जाती है। शीत मन्द और सुगन्ध भरी वायु बहने लगती है। फूलों पर भौरे मँडराने लगते हैं।

बसन्तागमन की सूचना हमें कोयल की कूहू कुहू से मिल जाती है और प्रकृति की इस मादकता का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ना शुरू हो जाता है। कहा जाता है कि ज्ञान की देवी सरस्वती का जन्म इसी दिन हुआ था। इसी दिन धर्मवीर हकीकत राय ने धर्म के नाम पर अपना बलिदान दिया था। वसन्त पंचमी के दिन बटाला में उनकी समाधि पर बड़ा भारी मेला लगता है। साहित्य जगत् के लोग भी कविवर निराला का जन्म दिन वसन्त पंचमी वाले दिन ही मनाते हैं।

वसन्त पंचमी के दिन अनेक नगरों में मेले लगते हैं। दिन में कुश्तियाँ होती हैं और शास्त्रीय गायन की सभा सजती है। दिन में लोग पतंग उड़ाते हैं। लखनऊ में पतंगबाजी के मुकाबले सारे देश में प्रसिद्ध हैं। इस दिन लोग पीले कपड़े पहनते हैं। घरों में पीले चावल (जर्दा) या पीला हलवा बनाया जाता है। जब तक मेरा रंग दे वसन्ती चोला नी माए’ गीत गाया जाता रहेगा, वसन्त ऋतु हमें सरदार भगत सिंह और वीर हकीकत राय शहीदों की याद दिलाती रहेगी।

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22. मेरे जीवन का उद्देश्य

संसार में मनुष्य के दो ही उद्देश्य होते हैं। पहला आध्यात्मिक और दूसरा भौतिक या सांसारिक। आध्यात्मिक लक्ष्य-ईश्वर प्राप्ति सबका समान होता है किन्तु सांसारिक लक्ष्य मनुष्य अपनी योग्यता और परिस्थितियों के अनुसार चुनता है और उसे पूरा करने का यत्न करता है।

मैंने बचपन से ही यह सोच रखा है कि मैं बड़ा होकर एक प्राध्यापक बनूँगा। प्राध्यापक बन कर जहाँ मैं अपनी ज्ञान की भूख मिटा सकूँगा वहाँ समाज, देश की भी सेवा कर सकूँगा। जितने भी डॉक्टर, इंजीनियर बनते हैं उन्हें बनाने वाले प्राध्यापक ही होते हैं। कहते हैं सारा पानी इसी पुल के नीचे से गुज़रता है। बड़ों ने ठीक कहा है कि किसी भी देश या जाति के भविष्य को अगर कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। किसी भी देश या जाति के चरित्र को यदि कोई बनाने वाला है तो वह अध्यापक है। शायद इसी कारण कबीर जी गुरु (अध्यापक) को ईश्वर से बड़ा मानते हैं। भले ही आज न तो वैसे शिष्य रहे हैं और न ही अध्यापक किन्तु फिर भी अध्यापक की महत्ता कम नहीं हुई।

आज के माता-पिता के पास अपने बच्चों को पढ़ाने, सिखाने या कुछ बनाने का समय ही नहीं है। केवल अध्यापक ही है जो अपने छात्रों के अन्दर छिपी प्रतिभा को पहचानता है और उसे सही रूप देता है। इसलिए मैं भी एक अच्छा और आदर्श अध्यापक बनना चाहता हूँ। इसके लिए मुझे पहले एम० ए० करना पड़ेगा फिर बी० एड० या पी एच०- डी० ।

इसके लिए काफ़ी मेहनत की ज़रूरत है। आजकल प्रतियोगिता का युग है। अत: मुझे सभी परीक्षाएँ अच्छे अंकों से पास करनी होगी। इसके लिए हिम्मत और लग्न चाहिए क्योंकि कहा भी है हिम्मत करे इन्सान तो क्या हो नहीं सकता।

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23. चिड़िया घर की सैर

परीक्षा समाप्त होने के बाद मोहन के व्यस्तता के दिन बीत गए। वह पुस्तकालय जाकर कुछ पुस्तकें लाने की बात सोच ही रहा था कि जयपुर से उसके चाचा जी आ गए। बातचीत में उन्होंने पूछा ‘तुमने चिड़िया घर देखा हैं ?’ मोहन ने उत्तर दिया- “चाचा जी बहुत पहले लखनऊ का चिड़िया घर देखा था; दिल्ली का चिड़िया घर नहीं देख पाया।” । दूसरे दिन चाचा और भतीजा बस में बैठकर चिड़िया घर पहुंच गए। दोनों टिकट लेकर अन्दर गए। आगे बढ़ने पर पक्षियों के बड़े पिंजड़ेनुमा वास स्थान मिले। उनके भीतर भान्ति-भान्ति के पक्षी किल्लोल कर रहे थे। कई पक्षियों को मोहन पहचानता था, जैसेतीतर, मैना, चैती, दुबकी, फुदकी आदि। जिनको वह नहीं पहचानता था, उनके नाम बाहर की नाम पट्टिका में पढ़ लेता था। नाम पट्टिका में पक्षी का जीव-विज्ञानी नाम हिन्दी और अंग्रेजी में लिखा था। नाम के दो हिस्से थे-एक पक्षीकुल का नाम और दूसरा उस कुल की उपजाति का नाम। पक्षी का लोक-प्रचलित नाम भी अन्त में दिया हुआ था। पक्षी की आदतें भी दी हुई थी। कहाँ पाया जाता है, यह जानकारी भी दी हुई थी।

आगे हंस-कुल पक्षियों के लिए खुला बाड़ा बना था। ये पक्षी जल में रहते हैं, इसलिए बाड़े में तालाब भी बना था। उनको आजादी से विचरने देने के लिए यह बाड़ा ऊपर से खुला हुआ था। बीच-बीच में पेड़ लगे थे। पानी में सफ़ेद रंग की बत्तखें तैर रही थीं। हंस भी तैर रहे थे। तैरते हुए हंस बड़े सुन्दर लग रहे थे। उनकी गर्दन के पास गुलाबी रंग होता है। लोच वाली घुमावदार गर्दन बड़ी प्यारी लग रही थी।
पक्षियों के और भी घर बने थे, किन्तु उन्हें छोड़कर बाई और घूम पड़ा, जिधर हिरनों के बाड़े थे। आज मोहन ने हिरन की आंखें बड़े ध्यान में देखीं। कितनी प्यारी आंखें थीं! कितने सुन्दर आकर्षक नेत्र ! मोहन को आज मृगनयनी शब्द का अर्थ ठीक-ठीक समझ में आया। हिरन के बाद नील गायों का बाड़ा था। यह नाम विचित्र है क्योंकि नाम तो गाय का है और पशु हिरन जाति का है।

बगल के बाडे में मोहन को कंगारू दिखाई पड़ा। उसे पहचानने में मोहन को कोई कठिनाई नहीं हुई। कंगारू का चित्र उसने बहुत देखा था। यदि चाचा जी न भी दिखाते, तो भी वह कंगारू को पहचान लेता। तभी कंगारू ने अजीव तरह से उचक कर छलांग लगाई। कंगारू के पेट में विचित्र-सी थैली बनी थी जिसमें उसका बच्चा बैठा हुआ था। वह चकित दृष्टि से इस अनजाने संसार को देख रहा था। कंगारू के भागते ही चाचा जी आगे बढ़े। अगला बाड़ा बनैले सूअर का था। उसके लिए पानी का तालाब काफ़ी गहराई में बना था। वहां वह विचरता हुआ अपने थूथुन से जाने क्या ढूंढ रहा था। बनैला सूअर बहुत फुर्तीला होता है। बनैले सूअर के बाड़े से लगा हुआ वास-स्थान सफ़ेद भालू का था। उसके विचरने के लिए काफ़ी बड़ा भू-भाग छोड़ा गया था। यह भू-भाग इस प्रकार से बना था कि जंगल का भ्रम होता था। भालू को गर्मी लग रही थी, इसी से वह इधर-उधर टहल रहा था, स्थिर बैठ नहीं पा रहा था। यह भालू खेल वाले भालू से अलग किस्म का था। यह बड़ा भी था और उसका रंग भी काला नहीं था।

तभी बड़ी जोर की दहाड़ सुनाई पड़ी। सभी दर्शकों के कान खड़े हो गए। सभी समझ गए कि पास में ही शेर दहाड़ रहा है। लोग पास वाले बाड़े की ओर लपके ? वहां सींखचे दोहरे और ऊंचे थे। अन्दर देखने पर दूर-दूर तक शेर के दर्शन नहीं हुए। तभी एक दहाड़ फिर सुनाई पड़ी। इस बार ध्वनि के स्त्रोत को ढूंढने में कठिनाई नहीं हुई। दोपहर हो चली थी। तीन बजे तक घर लौटने का कार्यक्रम था। अब हम जल्दी-जल्दी अन्य पशुओं को देखने लगे। जानवरों के इस अद्भुत संसार को देखकर बड़ा रोमांच हो रहा था। यह कभी न भूलने वाला प्रसंग था। चाचा जी ने कहा-अब बस। बाहर निकल कर हम घर को ओर रवाना हो गए।

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24. सदाचार

सदाचार का अर्थ है अच्छा आचरण अर्थात् व्यवहार। सदाचार से मनुष्य में अनेक अच्छे गुण आते हैं जैसे वह दूसरों के प्रति विनम्रता, आदर भाव, दया भाव रखता है। सदाचार से ही व्यक्ति में नैतिकता और सत्यनिष्ठा आती है। सदाचार ही मनुष्य को आदर्श नागरिक बनाता है। सदाचारी मनुष्य में साम्प्रदायिक भेद नहीं होता और न ही ईर्ष्या द्वेष होता है। वह मानव मात्र से प्रेम करता है जिससे समाज में व्यवस्था और शान्ति स्थापित होती है।

प्राणियों में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी इसलिए माना जाता है क्योंकि उसके पास बौद्धिक शक्ति होती है। इसी शक्ति के आधार पर व्यक्ति अच्छे बुरे या सत् असत् का निर्णय करता है शास्त्रों में सत् को धर्म तथा सदाचार, सत् को जानता और उस पर आचरण करना परम धर्म माना गया है। गुरुओं ने भी सच्चे आचरण को ही महत्त्व दिया है। सदाचार का मुख्य गुण सत् है। हमारी आस्था है कि सदा सत्य की जीत होती है, झूठ की नहीं। सत्यवादी हरिश्चन्द्र की कथा सुन कर ही बचपन में महात्मा गाँधी इतने प्रभावित हुए कि जीवन भर उन्होंने सत्य का सहारा लिया और देश को स्वतन्त्र कराया।

बच्चा सामान्य रूप से सत्य ही बोलता है। हम स्वार्थवश ही उसे झूठ बोलना सिखाते हैं। हमें बच्चे को झूठ बोलने का अवसर नहीं देना चाहिए क्योंकि सत्यवादी बालक निर्भय हो जाता है और छल कपट या अपराध से दूर भागता है। ऐसा बालक सबका विश्वास पात्र बन जाता है। अहिंसा, नम्रता और नैतिकता सदाचार के अन्य गुण हैं इनमें से नैतिकता सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। बच्चों में नैतिकता लाने के लिए उनकी संगति का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। अच्छी संगति से ही बच्चों का चरित्र निर्माण होता है। वह स्वस्थ एवं नीरोग रहता है। माता-पिता की सेवा करता है, उनका कहा मानता है।

इस तरह सदाचार में सत्यवादिता, नम्रता, प्रेम भावना, नैतिकता आदि गुणों का समावेश है। जिसे अपनाने से मनुष्य अपना जीवन सार्थक करता है, मान-सम्मान पाता है, समाज तथा राष्ट्र का हित करता है।

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25. नैतिक शिक्षा

नैतिक शिक्षा से अभिप्राय उन मूल्यों, गुणों और आस्थाओं की शिक्षा से है, जिन पर मानव की निजी और समाज की सर्वश्रेष्ठ समृद्धि निर्भर करती है। नैतिक शिक्षा व्यक्ति के आन्तरिक सद्गुणों को विकसित एवं संपुष्ट करती है, क्योंकि व्यक्ति समष्टि का ही एक अंश है, इसलिए उसके सद्गुणों के विकास का अर्थ है-“समग्र समाज का सुसभ्य एवं सुसंस्कृत होना।” नैतिक शिक्षा और नैतिकता में कोई अन्तर नहीं है अर्थात् नैतिक शिक्षा को ही नैतिकता माना जाता है। समाज जिसे ठीक मानता है, वह नैतिक है और जिसे ठीक नहीं मानता वह अनैतिक है। कर्त्तव्य की आन्तरिक भावना नैतिकता है, जो उचित एवं अनुचित पर बल देती है। नैतिकता की विभिन्न परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-
महात्मा गाँधी नैतिक कार्य उसे मानते थे, जिसमें सदैव सार्वजनिक कल्याण की भावना निहित हो। स्वेच्छा से शुभ कर्मों का आचरण ही नैतिकता है।

पंडित मदन मोहन मालवीय के कथनानुसार, “नैतिकता मनुष्य की उन्नति का मूल आधार है। नैतिकता विहीन मनुष्य पशु से भी निम्न है। नैतिकता एक व्यापक गुण सर्वपल्ली डॉ० राधाकृष्णन् के अनुसार, “नैतिकता व्यक्ति के आध्यात्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास का आधार है। नैतिकता का प्रभाव व्यक्ति के सभी क्रियाकलापों पर पड़ता है।” पश्चिमी विचारक नैतिकता को एक धार्मिक गुण मानते हैं। इन गुणों में आत्म-संयम, त्याग, दया, परोपकार, सहष्णुिता, सेवा आदि सम्मिलित हैं।। इसी कारण हरबर्ट ने उच्चतर विचारों के सृजन एवं निम्न प्रवृत्तियों के दमन को नैतिकता कहा है।

नैतिक शिक्षा वस्तुतः मानवीय सद्वृत्तियों को उजागर करती है। यदि यह कहा जाए कि नैतिक शिक्षा ही मानवता का मूल है तो असंगत न होगा। नैतिक शिक्षा के अभाव में मानवता पनप ही नहीं सकती। क्योंकि मानव की कुत्सित वृत्तियाँ विश्व के लिए अभिशाप हैं। इन्हें केवल नैतिक शिक्षा से ही नियन्त्रित किया जा सकता है। इसी के माध्यम से उसमें नव-चेतना का संचार हो सकता है। नैतिक शिक्षा ही व्यक्ति को उसके परम आदर्श की प्रेरणा दे सकती है और उसे श्रेष्ठ मनुष्य बनाती है।

नैतिक शिक्षा का सम्बन्ध छात्र-छात्रओं की आन्तरिक वृत्तियों से है। नैतिक शिक्षा उनके चरित्र-निर्माण का एक माध्यम है। चरित्र ही जीवन का मूल आधार है। अंग्रेजी में यह कथन प्रसिद्ध हैं
“If wealth is gone, nothing is gone,
If health is gone, something is gone,
If character is gone, everything is gone.”
(यदि हमने धन खोया तो कुछ नहीं खोया, यदि हमने स्वास्थ्य खोया तो कुछ खोया, परन्तु यदि हमने अपना चरित्र खोया तो अपना सब कुछ खो दिया।)

इसलिए चरित्र की रक्षा करना नैतिक शिक्षा का मूल उद्देश्य है। नैतिकता को आचरण में स्वीकार किए बिना मनुष्य जीवन में वास्तविक सफलता नहीं प्राप्त कर सकता। छात्रछात्राओं के चरित्र को विकसित एवं संवद्धित करने के लिए नैतिक शिक्षा अनिवार्य है। नैतिक शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(i) सर्वांगीण विकास-छात्र-छात्राओं के नैतिक गुणों को प्रफुल्लित करना नैतिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य है, कि वे आगे चलकर देश के आदर्श नागरिक बन सकें। शिष्टाचार, सदाचार, अनुशासन, आत्म संयम, विनम्रता, करुणा, परोपकार, साहस, मानवप्रेम, देशभक्ति, परिश्रम, धैर्यशीलता आदि नैतिक गुण हैं। इनका उत्तरोत्तर विकास नितान्त आवश्यक है। यह कार्य नैतिक शिक्षा के द्वारा ही परिपूर्ण हो सकता है।

(ii) धार्मिक सहिष्णुता-छात्र-छात्राओं में धार्मिक सहिष्णुता को विकसित करना भी नैतिक शिक्षा का उद्देश्य है। छात्र विभिन्न धर्मों के मूल तत्वों से परिचित हों, आज के सन्दर्भ में यह बहुत ही आवश्यक बात है क्योंकि ऐसी स्थिति में ही उन्हें सभी धर्मों के समन्वय सूत्रों की एकता दिखाई देगी। छात्रों के हृदय में धार्मिक सहिष्णुता विकसित होगी। उन्हें धार्मिक संकीर्णता से दूर रखने में नैतिक शिक्षा ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है।

(iii) देश-भक्ति-नैतिक शिक्षा से ही छात्र-छात्राओं में देश-भक्ति के अटूट भाव पल्लवित हो सकते हैं। वैयक्तिक स्वार्थों से ऊपर उठकर उनमें देश के हित को प्राथमिकता प्रदान करने के विचार पनप सकते हैं। नैतिक शिक्षा से छात्र देश के प्रति सदैव जागरूक रहते हैं।

(iv) विश्व बन्धुत्व की भावना-नैतिक शिक्षा से छात्र-छात्राओं में विश्व बन्धुत्व की भावना को जागृत किया जा सकता है। जब छात्रों में यह भाव विकसित होगा कि मानव उस विराट पुरुष की कृति है तो उनके समक्ष “वसुधैव कुटुम्बकम्” का महान् आदर्श साकार हो सकता है। यह तभी हो सकता है, जब उन्हें नैतिक शिक्षा दी गई हो।

महात्मा गाँधी जी कहा करते थे-“स्कूल या कॉलेज पवित्रता का मन्दिर होना चाहिए, जहाँ कुछ भी अपवित्र या निकृष्ट न हो। स्कूल-कॉलेज तो चरित्र निर्माण की शालाएँ हैं।” इस कथन का सारांश यही है कि नैतिक शिक्षा छात्र-छात्राओं के लिए अनिवार्य हैं।

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26. दाँतों की आत्म-कथा
अथवा
दाँत कुछ कहते हैं

हमारा निवास स्थान मुँह है। हमारी टीम के 32 सदस्य हैं। हमारा मुख्य काम भोजन को चबाना है। भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े करना और पीस कर चबाना हमारे परिवार के विभिन्न सदस्यों का काम है। भोजन को चबाने के अलावा ठीक प्रकार से और सही बोलने के लिए भी हमारा होना बहुत ज़रूरी है। हमारा जन्म शरीर के दूसरे अंगों की तरह न होकर बाद में एक-एक, दोदो करके मसूढ़ों पर होता है। हम आपकी सेवा तभी कर सकेंगे यदि आप भी हमारा ठीक से ध्यान रखेंगे। नियमित रूप से हमारी सफ़ाई होनी चाहिए। अगर सफ़ाई न हो तो भोजन के छोटे-छोटे टुकड़े हम में फंसे रह जाते हैं। वे वहाँ पड़े-पड़े सड़ने लगते हैं। इनमें कीटाणु पैदा होकर एक प्रकार का तेज़ाब तैयार कर देते हैं। इस तेजाब के प्रभाव से एनेमल की ऊपरी तह संक्षारित (नष्ट) हो जाती है। एनेमल की तह हटते ही ये कीटाणु हमारी जड़ों तक पहुँच कर हमें खोखला कर देते हैं। अन्त में हम एक-एक करके आपकी सेवा करना छोड़ देते हैं।

सफ़ाई के अलावा हमें अपने व्यायाम की भी ज़रूरत होती है। सख्त पदार्थ खाने से हमारा व्यायाम होता है। मगर बहुत सख्त चीज़ हम से तुड़वाने की कोशिश न करो। हो सकता है ऐसा करने में हमारा कोई साथी जवाब दे जाए। यदि आप अपने आपको तन्दरुस्त रखना चाहते हैं तो पहले हमें स्वस्थ रखें। हमें स्वस्थ रखने के लिए कैल्शियम, फॉस्फोरस, विटामिन सी और डी युक्त भोजन खाना चाहिए। अगर किसी भी कारण से हमारी सेहत कमज़ोर होती दिखाई दे तो तुरन्त ही डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए न कि खुद ही कोई उल्टा-पुल्टा इलाज करने लग जाएँ। क्योंकि नीमहकीम खतरा जान। आप हमारे मालिक हैं और हम आपके सेवक हैं। हम आपके दाँत हैं जिनके महत्त्व के बारे में किसी ने कहा है-दाँत गए तो स्वाद ही गया।

सबको अपने दाँतों का ख्याल रखना चाहिए। बच्चों में दाँतों की देख-रेख के विचार शुरू से ही पैदा करने चाहिएँ। खूबसूरत दाँत सबको अच्छे लगते हैं। बहुत-सी बीमारियां दाँतों की खराबी के कारण पैदा हो जाती हैं। इसलिए हमेशा अपने दाँतों की रक्षा करो।

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27. सह-शिक्षा

सह-शिक्षा का तात्पर्य है, लड़के लड़कियों का एक साथ पढ़ना। भारत में सह-शिक्षा का प्रचलन अंग्रेज़ी शासन के समय उन्नीसवीं सदी में हुआ। कुछ धार्मिक संस्थाएँ सहशिक्षा का विरोध कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं ने अपने अधीन चलने वाले स्कूल और कॉलेज लड़के और लड़कियों के लिए अलग-अलग खोल रखे हैं। किन्तु सह-शिक्षा आज के समय की आवश्यकता बन चुकी है। इसे विकास और प्रगति के साथ जोड़कर देखा जाता है।

सह-शिक्षा भले ही उन्नीसवीं सदी में भारत में आई किन्तु प्राचीन भारत में भी सहशिक्षा का प्रचलन था। गुरुकुलों में ऋषिकन्याएँ भी अन्य कुमारों के साथ पढ़ा करती थीं। क्योंकि उन दिनों गुरुकुल को एक पवित्र स्थान माना जाता था। बाल्मीकि जी के आश्रम में आत्रेयी और कण्व ऋषि के आश्रम में शकुन्तला और उसकी सखियाँ अन्य कुमारों के साथ ही पढ़ती थीं। उस युग में ही नहीं आज भी चरित्र निर्माण के लिए सह-शिक्षा एक ज़रूरी कदम माना जाता था और है।

सह-शिक्षा शिक्षा पर होने वाले खर्च को भी बचाती है। जब हमारे समाज सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया तब लड़कियों के लिए अलग से स्कूल खोलना आर्थिक दृष्टि से सम्भव न था अतः लड़कियों को लड़कों के स्कूल में ही भर्ती किया जाने लगा।

सह-शिक्षा का एक लाभ यह भी है कि लड़के-लड़कियों के एक साथ पढ़ने पर उनके स्वाभाविक गुणों का विकास होता है। उनमें विनय, शिष्टाचार, आचरण की शुद्धता तथा एक-दूसरे से सहानुभूति के भाव जाग्रत होते हैं। दोनों के साथ पढ़ने पर एक स्वस्थ वातावरण पैदा होता है। लड़के-लड़कियाँ एक-दूसरे के स्वभाव को समझने में सक्षम होते सह-शिक्षा के लाभ से आँख मूंदते हुए आज भी बहुत-से लोग इसका विरोध कर रहे हैं । वे अपने पक्ष में बौद्ध विहारों की पुरानी घटना का हवाला देने के साथ-साथ टेलीविज़न पर दिखाए एक कार्यक्रम का भी हवाला देते हैं जिसमें दिखाया गया था कि किस प्रकार सह-शिक्षा वाले स्कूलों में लड़के-लड़कियाँ बिगड़ रहे हैं। कुछ भी हो हर एक चीज़ के यहाँ लाभ होते हैं वहाँ कुछ हानियाँ तो होती ही हैं।

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28. मेरा पंजाब

पंजाब को पाँच पानियों की धरती कहा जाता है किन्तु विभाजन के बाद यह प्रदेश तीन पानियों (नदियों) की धरती ही रह गया है। 1 नवम्बर, सन् 1966 से पंजाब में से हरियाणा और हिमाचल प्रदेश अलग कर दिए गए, जिससे वर्तमान पंजाब और छोटा हो गया है। वर्तमान पंजाब का क्षेत्रफल 50,362 वर्ग किलोमीटर है तथा सन् 2001 को जनसंख्या के आँकड़ों के अनुसार इसकी जनसंख्या 2.42 करोड़ है।

गुरुओं, पीरों-पैगम्बरों, ऋषि मुनियों की पंजाब की इस धरती ने भारत पर होने वाले प्रत्येक आक्रमण का सामना किया। यूनान के सिकन्दर महान् के आक्रमण को तो पंजाबियों ने खदेड़ दिया था किन्तु मुहम्मद गौरी के आक्रमण का आपसी फूट के कारण मुकाबला न कर सके। राष्ट्रीयता की कमी के कारण यहाँ मुसलमानी शासन स्थापित हो गया। किन्तु शूरवीरता, देशभक्ति पंजाबियों की रग-रग में भरी रही। इसका प्रमाण पंजाबियों ने पहले तथा दूसरे विश्व युद्ध में तथा सन् 1948, 1965 और 1971 के पाकिस्तान के हुए युद्धों तथा मई 1999 में हुए कारगिल युद्ध में दिया।

पंजाबी लोग दुनिया के कोने-कोने में फैले हुए हैं वहाँ उन्होंने अपने परिश्रमी स्वरूप की धाक जमा दी है। पंजाब के किसान देश के अन्य भण्डार में सबसे अधिक अनाज देते हैं इसका कारण यहाँ की उपजाऊ भूमि, आधुनिक कृषि तकनीक तथा सिंचाई सुविधाओं का विस्तार है। यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, कपास, गन्ना, मक्की और मूंगफली आदि है। सब्जियों में आलू, मटर की पैदावार के लिए पंजाब जाना जाता है। पंजाब में औद्योगिक क्षेत्र में भी काफ़ी उन्नति की है। लुधियाना हौजरी के सामान के लिए, जालन्धर खेलों के सामान के लिए, अमृतसर सूती व ऊनी कपड़े के उत्पादन के लिए जाने जाते हैं। मण्डी गोबिन्दगढ़ इस्पात उद्योग तथा नंगल और बठिण्डा खाद बनाने के कारखानों के लिए जाने जाते हैं।

शिक्षा के प्रसार के लिए पंजाब देशभर में दूसरे नम्बर पर है। पंजाब में छ: विश्वविद्यालय, सैंकड़ों कॉलेज और हज़ारों स्कूल हैं। पंजाब की इस प्रगति के कारण इस प्रदेश में प्रति व्यक्ति की औसत आय 20 से 30 हज़ार वार्षिक है। गुरुओं, पीरों, महात्माओं और वीरों की यह धरती उन्नति के शिखरों को छू रही है।

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29. चण्डीगढ़

चण्डीगढ़ देश का पहला पूर्णतः आयोजित शहर है। इस शहर की नींव 7 अक्तूबर, सन् 1953 को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ० राजेन्द्र प्रसाद द्वारा रखी गयी थी। इस सुन्दर और आदर्श शहर की योजना फ्रांस के एक इंजीनियर एस० डी० कारबूजियर द्वारा तैयार की गई है। पूरा शहर आयतकार सैक्टरों में बँटा हुआ है। प्रत्येक सैक्टर को स्वावलम्बी बनाने के लिए स्कूल, डाकखाना, डिस्पैंसरी, धार्मिक स्थान, मार्कीट, पार्क आदि की व्यवस्था की गई है। सैक्टर 17 को केवल क्रय-विक्रय, होटलों, कार्यालयों आदि के लिए ही रखा गया है। अधिकांश उद्योग राम दरबार में स्थापित हैं।

पयर्टकों के लिए भी यहाँ अनेक दर्शनीय स्थान हैं, जिनमें रॉक-गार्डन, सुखना लेक, रोज़ गार्डन आदि प्रमुख हैं। जहाँ की चौड़ी-चौड़ी सड़कें और सड़कों के दोनों ओर लगे छायादार वृक्ष इस शहर की शोभा को चार चाँद लगाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ किसी से पीछे नहीं है। पूरा सैक्टर 14 पंजाब विश्वविद्यालय के लिए रखा गया है। सैक्टर 12 में इन्जीनियरिंग कॉलेज, सैक्टर 32 में मैडिकल कॉलेज तथा कोई दर्जन भर लड़के-लड़कियों के कॉलेज हैं।

चिकित्सा के क्षेत्र में भी चण्डीगढ़ पंजाब और हरियाणा की सेवा कर रहा है। सैक्टर 12 में पी० जी० आई०, सैक्टर 16 और सैक्टर 32 में सरकारी अस्पताल हैं। सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक गतिविधियों के लिए सैक्टर 15 में गुरु गोबिन्द सिंह भवन, लाला लाजपतराय भवन विद्यमान है तो सैक्टर 18 में टैगोर थियेटर बना है।

चण्डीगढ़ के विषय में एक विशेष बात यह है कि इसमें कोई 13 नम्बर का सैक्टर नहीं चण्डीगढ़ में सचिवालय, विधानसभा तथा उच्च न्यायालय के भवन आधुनिक वास्तुकला का सुन्दर नमूना है। चण्डीगढ़ को बाबूओं का शहर भी कहा जाता है क्योंकि बहुत-से सरकारी कर्मचारी अवकाश प्राप्त करने के बाद यहीं बस गए हैं। चण्डीगढ़ में अनेक बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अपने कार्यालय खोलकर इस शहर की रौनक को और भी बढ़ा दिया है। केन्द्रीय आँकड़ा संस्थान सन् 2005-06 की जो रिपोर्ट भारतीय संसद् में 5-12-2007 को प्रस्तुत की गई थी उसके अनुसार चण्डीगढ़ देश भर में प्रतिव्यक्ति की वार्षिक औसत आय के हिसाब से सबसे आगे है। 2001 की जनगणना के अनुसार चण्डीगढ़ की जनसंख्या नौ लाख के करीब थी। जो निश्चय रूप से अब बहुत अधिक बढ़ चुकी है। इसे देश भर के सुंदर नगरों में स्थान दिया जाता है।

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30. प्रातः काल की सैर

कहा जाता है कि प्रातः काल उठना, सैर को जाना व्यक्ति के स्वस्थ व निरोग रहने का सबसे बढ़िया और सस्ता साधन है। शीघ्र सोने और शीघ्र उठने से व्यक्ति स्वस्थ, सम्पन्न और बुद्धिमान बनता है। लेकिन आजकल कोई भी छात्र इस नियम का पालन नहीं करता। इस का बड़ा कारण तो यह है कि छात्र देर रात तक टेलीविज़न से चिपके रहते हैं और फिर सुबह सवेरे स्कूल जाने की तैयारी करनी होती है। छात्रों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि उनके लिए जितनी पढ़ाई ज़रूरी है उतना ही अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना भी ज़रूरी है और स्वस्थ रहने के लिए छात्रों को ही नहीं बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रात:काल में सैर अवश्य करनी चाहिए।

प्रात:काल का समय अत्यन्त सुहावना होता है। व्यक्ति को शुद्ध प्रदूषण रहित वायु मिलती है। प्रात:कालीन सैर के अनेक लाभ हैं। यह ईश्वर द्वारा दी गई ऐसी औषधि है जो प्रत्येक अमीर-गरीब को समान रूप से नि:शुल्क मिलती है। प्रात:काल की सैर मनुष्य को नीरोग रखने में सहायक होती है। व्यक्ति का शरीर बलिष्ठ और सुन्दर बनता है। मस्तिष्क को शक्ति और शान्ति मिलती है जिससे व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है, जिसकी विद्यार्थियों को बहुत ज़रूरत है।

हमारे शास्त्रों में लिखा है कि प्रात:काल में, सूर्योदय से पहले, पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े होकर 21 बार गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए। आज के वैज्ञानिक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि पीपल का वृक्ष यों तो 24 घण्टे ऑक्सीजन छोड़ता है किन्तु ब्रह्म मुहूर्त में वह दुगुनी ऑक्सीजन छोड़ता है और गायत्री मन्त्र ऐसा मन्त्र है जिसके उच्चारण से शरीर के प्रत्येक अंग में ऑक्सीजन पहुँचती है। अतः इस तथ्य को प्रातः सैर करते हुए ध्यान में रखना चाहिए।

प्रात:काल की सैर करते समय हमें अपनी चाल न बहुत तेज़ और न बहुत धीमी रखनी चाहिए। दूसरे प्रात:काल की सैर नियमित रूप से की जानी चाहिए तभी उसका लाभ होगा। हमें याद रखना चाहिए कि प्रात:कालीन सैर शारीरिक दृष्टि से ही नहीं मानसिक दृष्टि से भी अत्यन्त गुणकारी है।

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31. स्वतन्त्रता दिवस-15 अगस्त

15 अगस्त भारत के राष्ट्रीय त्योहारों में से एक है। इस दिन भारत को स्वतन्त्रता प्राप्त हुई थी। लगभग डेढ़ सौ वर्षों की अंग्रेजों की गुलामी से भारत मुक्त हुआ था। राष्ट्र के स्वतन्त्रता संग्राम में अनेक युवाओं ने बलिदान दिए थे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का लाल किले पर तिरंगा फहराने का सपना इसी दिन सच हुआ था।

देश में स्वतन्त्रता दिवस सभी भारतवासी बिना किसी प्रकार के भेदभाव के अपने-अपने ढंग से प्रायः हर नगर, गाँव में तो मनाते ही हैं, विदेशों में रहने वाले भारतवासी भी इस दिन को बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर स्वतन्त्रता दिवस का मुख्य कार्यक्रम दिल्ली के लाल किले पर होता है। लाल किले के सामने का मैदान और सड़कें दर्शकों से खचाखच भरी होती हैं। 15 अगस्त की सुबह देश के प्रधानमन्त्री पहले राजघाट पर जाकर महात्मा गाँधी की समाधि पर श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं फिर लाल किले के सामने पहुँच सेना के तीनों अंगों तथा अन्य बलों की परेड का निरीक्षण करते हैं।

उन्हें सलामी दी जाती है और फिर प्रधानमन्त्री लाल किले की प्राचीर पर जाकर तिरंगा फहराते हैं, राष्ट्रगान गाया जाता है और राष्ट्र ध्वज को 31 तोपों से सलामी दी जाती है। ध्वजारोहण के पश्चात् प्रधानमन्त्री राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए एक भाषण देते हैं। अपने इस भाषण में प्रधानमन्त्री देश के कष्टों, कठिनाइयों, विपदाओं की चर्चा कर उनसे राष्ट्र को मुक्त करवाने का संकल्प करते हैं। देश की भावी योजनाओं पर प्रकाश डालते हैं। अपने भाषण के अन्त में प्रधानमन्त्री तीन बार जयहिंद का घोष करते हैं। तीन बार जयहिंद का घोष करने की प्रथा भारत के पहले प्रधानमन्त्री पं० जवाहर लाल नेहरू ने शुरू की थी, जिसका उनके बाद आने वाले सारे प्रधानमन्त्री अनुसरण करते हैं। प्रधानमन्त्री के साथ एकत्रित जनसमूह जयहिंद का नारा लगाते हैं। अन्त में राष्ट्रीय गीत के साथ प्रात:कालीन समारोह समाप्त हो जाता है।

सायंकाल में सरकारी भवनों पर विशेषकर लाल किले में रोशनी की जाती है। प्रधानमन्त्री दिल्ली के प्रमुख नागरिकों, सभी राजनीतिक दलों के नेताओं, विभिन्न धर्मों के आचार्यों और विदेशी राजदूतों एवं कूटनीतिज्ञों को सरकारी भोज पर आमन्त्रित करते हैं।

15 अगस्त राष्ट्र की स्वतन्त्रता के लिए शहीद होने वाले वीरों को याद करने का दिन भी है। इस दिन शहीदों की समाधियों पर माल्यार्पण किया जाता है। 15 अगस्त अन्य कारणों से भी महत्त्वपूर्ण है। इस दिन पाण्डिचेरी के सन्त महर्षि अरविन्द का जन्मदिन है तथा स्वामी विवेकानन्द के गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की पुण्यतिथि है। इस दिन हमें अपने राष्ट्र ध्वज को नमस्कार कर यह संकल्प दोहराना चाहिए कि हम अपने तन, मन, धन से अपनी स्वतन्त्रता की रक्षा करेंगे।

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32. गणतन्त्र दिवस-26 जनवरी

भारत के राष्ट्रीय पर्वो में 26 जनवरी को मनाया जाने वाला गणतन्त्र दिवस विशेष महत्त्व रखता है। हमारा देश 15 अगस्त, सन् 1947 को अनेक बलिदान देने के बाद, अनेक कष्ट सहने के बाद स्वतन्त्र हुआ था। किन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भी हमारे देश में ब्रिटिश संविधान ही लागू था। अतः हमारे नेताओं ने देश को गणतन्त्र बनाने के लिए अपना संविधान बनाने का निर्णय किया। देश का अपना संविधान 26 जनवरी, सन् 1950 के दिन लागू किया गया। संविधान लागू करने की तिथि 26 जनवरी ही क्यों रखी गई इसकी भी एक पृष्ठभूमि है। 26 जनवरी, सन् 1930 को पं० जवाहर लाल नेहरू ने अपनी दृढ़ता एवं ओजस्विता का परिचय देते हुए पूर्ण स्वतन्त्रता के समर्थन में जुलूस निकाले, सभाएं कीं। अतः संविधान लागू करने की तिथि भी 26 जनवरी ही रखी गई।

26 जनवरी को प्रात: 10 बजकर 11 मिनट पर मांगलिक शंख ध्वनि से भारत के गणराज्य बनने की घोषण की गई। डॉ० राजेन्द्र प्रसाद को सर्वसम्मति से देश का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। राष्ट्रपति भवन जाने से पूर्व डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की समाधि पर पुष्पांजलि अर्पित की। उस दिन संसार भर के देशों से भारत को गणराज्य बनने पर शुभकामनाओं के सन्देश प्राप्त हुए।

गणतन्त्र दिवस का मुख्य समारोह देश की राजधानी दिल्ली में मनाया जाता है। सबसे पहले देश के प्रधानमन्त्री इण्डिया गेट पर प्रज्ज्वलित अमर ज्योति जाकर राष्ट्र की ओर से शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। मुख्य समारोह विजय चौक पर मनाया जाता है। यहाँ सड़क के दोनों ओर अपार जन समूह गणतन्त्र के कार्यक्रमों को देखने के लिए एकत्रित होते हैं। शुरू-शुरू में राष्ट्रपति भवन से राष्ट्रपति की सवारी छः घोड़ों की बग्गी पर चला करती थी। किन्तु सुरक्षात्मक कारणों से सन् 1999 से राष्ट्रपति गणतन्त्र दिवस समारोह में बग्घी में नहीं कार में पधारते हैं। परम्परानुसार किसी अन्य राष्ट्र के राष्ट्राध्यक्ष या राष्ट्रपति अतिथि रूप में उनके साथ होते हैं। तीनों सेनाध्यक्ष राष्ट्रपति का स्वागत करते हैं। तत्पश्चात् राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री का अभिवादन स्वीकार कर आसन ग्रहण करते हैं।

इसके बाद शुरू होती है गणतन्त्र दिवस की परेड। सबसे पहले सैनिकों की टुकड़ियाँ होती हैं, उसके बाद घोड़ों, ऊँटों पर सवार सैन्य दस्तों की टुकड़ियाँ होती हैं। सैनिक परेड के पश्चात् युद्ध में प्रयुक्त होने वाले अस्त्र-शस्त्रों का प्रदर्शन होता है। इस प्रदर्शन से दर्शकों में सुरक्षा और आत्मविश्वास की भावना पैदा होती है। सैन्य प्रदर्शन के पश्चात् विविधता में एकता दर्शाने वाली विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक झांकियाँ एवं लोक नृतक मण्डलियाँ इस परेड में शामिल होती हैं।

सायंकाल को सरकारी भवनों पर रोशनी की जाती है तथा रंग-बिरंगी आतिशबाजी छोड़ी जाती है। इस प्रकार सभी तरह के आयोजन भारतीय गणतन्त्र की गरिमा और गौरव के अनुरूप ही होते हैं। जिन्हें देखकर प्रत्येक भारतीय यह प्रार्थना करता है कि अमर रहे गणतन्त्र हमारा।

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33. राष्ट्र भाषा हिन्दी

भारत 15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्र हुआ और 26 जनवरी, 1950 से अपना संविधान लागू हुआ। भारतीय संविधान के सत्रहवें अध्याय की धारा 343 (1) के अनुसार ‘देवनागरी लिपि में हिन्दी’ को भारतीय संघ की राजभाषा और देश की राष्ट्रभाषा घोषित किया गया है। संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई थी सन् 1965 से देश के सभी कार्यालयों, बैंकों, आदि में सारा कामकाज हिन्दी में होगा। किन्तु खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के साठ वर्ष बाद भी सारा काम काज अंग्रेज़ी में ही हो रहा है। देश का प्रत्येक व्यक्ति यह बात जानता है कि अंग्रेजी एक विदेशी भाषा है और हिन्दी हमारी अपनी भाषा है।

महात्मा गाँधी जैसे नेताओं ने भी हिन्दी भाषा को ही अपनाया था हालांकि उनकी अपनी मातृ भाषा गुजराती थी। उन्होंने हिन्दी के प्रचार के लिए ही ‘दक्षिण भारत में हिन्दी प्रचार सभा’ प्रारम्भ की थी। उन्हीं के प्रयास का यह परिणाम है कि आज तमिलनाडु में हिन्दी भाषा पढ़ाई जाती है, लिखी और बोली जाती है। वास्तव में हिन्दी को राष्ट्रभाषा का दर्जा इसलिए दिया गया क्योंकि यह भाषा देश के अधिकांश भाग में लिखी-पढी और बोली जाती है। इसकी लिपि और वर्णमाला वैज्ञानिक और सरल है। आज हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, राजस्थान की राजभाषा हिन्दी घोषित हो चुकी है।

हिन्दी भाषा का विकास उस युग में भी होता रहा जब भारत की राजभाषा हिन्दी नहीं थी। मुग़लकाल में राजभाषा फ़ारसी थी, तब भी सूर, तुलसी, आदि कवियों ने श्रेष्ठ हिन्दी साहित्य की रचना की। उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज़ी शासन के दौरान अंग्रेज़ी राजभाषा रही तब भी भारतेन्दु, मैथिलीशरण गुप्त और प्रसाद जी आदि कवियों ने उच्च कोटि का साहित्य रचा। इसका एक कारण यह भी था कि हिन्दी सर्वांगीण रूप से हमारे धर्म, संस्कृति और सभ्यता और नीति की परिचायक है। भारतेन्दु हरिशचन्द्र जी ने आज से 150 साल पहले ठीक ही कहा था

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल। . बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटत न हिय को शूल लेकिन खेद का विषय है कि स्वतन्त्रता प्राप्ति के पैंसठ वर्ष से भी अधिक हो जाने के बाद भी हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। अपने विभिन्न राजनीतिक स्वार्थों के कारण विभिन्न राजनेता इसके वांछित और स्वाभाविक विकास में रोड़े अटका रहे हैं। अंग्रेज़ों की विभाजन करो और राज करो की नीति पर आज हमारी सरकार भी चल रही है जो देश की विभिन्न जातियों, सम्प्रदायों और, वर्गों के साथ-साथ भाषाओं में जनता को बाँट रही है ऐसा वह अपने वोट बैंक को ध्यान में रख कर कर रही है। यह मानसिकता हानिकारक है और इसे दूर किया जाना चाहिए। हमें अंग्रेजी की दासता से मुक्त होना चाहिए।

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34. राष्ट्रीय एकता

भारत एक अरब से ऊपर. जनसंख्या वाला देश है जिसमें विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों के लोग रहते हैं। उनकी भाषाएं भी अलग-अलग हैं, उनकी वेश-भूषा, रीति रिवाज भी अलग-अलग हैं किन्तु फिर भी सब एक हैं जैसे एक माला में रंग-बिरंगे फूल होते हैं। भारत एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र है। हमारी राष्ट्रभाषा एक है। देश के सभी लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं। – नवम्बर, 2008 में मुम्बई में पाकिस्तानी आतंकवादियों के आक्रमण के समय भारतवासियों ने जिस प्रकार एक जुटता दिखाई उसका उदाहरण मिलना कठिन है। इससे पूर्व भी पाकिस्तानी आक्रमणों के समय अथवा प्राकृतिक आपदाओं के समय ऐसी ही एक जुटता दिखाई थी। इस से यह स्पष्ट होता है कि भारतवासियों में राष्ट्रीयता की भावना कूट-कूट कर भरी है। वे चाहे किसी धर्म को मानते हों, किसी जाति के हों, यही कहते हैं-गर्व से कहो कि हम भारतीय हैं।

पाकिस्तान और उसके भारत में मौजूद कुछ पिठू पाण्डवों की इस उक्ति को भूल जाते हैं कि उन्होंने कहा था पाण्डव पाँच हैं और कौरव 100 किसी बाहरी शत्रु के लिए हम एक सौ पाँच हैं। वास्तव में पाकिस्तान हमारी उन्नति और विकास को देखकर ईर्ष्या से जलभुन रहा है। पिछले साठ वर्षों में भी वहाँ लोकतन्त्रात्मक शासन प्रणाली चालू नहीं हो सकी। इसलिए अपनी कमियों को छिपाने के लिए अपने लोगों का ध्यान बँटाने के लिए कभी कश्मीर का मुद्दा और कभी कोई दूसरा मुद्दा उठाता रहा है।

पड़ोसी देश ही नहीं कुछ भारतीय भी हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने पर तुले हैं। ऐसे लोग अपने स्वार्थ, अपने वोट बैंक और सत्ता हथियाने के चक्र में जो प्रान्तवाद का नारा लगाते हैं। अभी हाल ही में महाराष्ट्र में प्रान्तवाद के नाम पर जो हिंसा और गुण्डागर्दी हुई वह हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने वाला ही कदम है। हमारा ऐसा मानना है कि सरकार ने भी भाषा के नाम पर देश का बंटवारा कर राष्ट्रीयता को ठेस पहुँचाई है। रही-सही कसर वोट बैंक की राजनीति कर रही है। यदि ईमानदारी से इन बातों को दूर करने का प्रयत्न किया जाए तो राष्ट्रीय एकता के बलबूते भारत विकसित देशों में शामिल हो सकता है।

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35. साम्प्रदायिक सद्भाव

साम्प्रदायिक एकता के प्रथम दर्शन हमें सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान देखने को मिले। उस समय हिन्दू-मुसलमानों ने कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेज़ों से टक्कर ली थी। अंग्रेज़ बड़ी चालाक कौम थी। उस की चालाकी से मुहम्मद अली जिन्ना ने सन् 1940 में पाकिस्तान की माँग की और अंग्रेजों ने देश छोड़ने से पहले साम्प्रदायिक आधार पर देश के दो टुकड़े कर दिये। विश्व में पहली बार आबादी का इतना बड़ा आदान-प्रदान हुआ। हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिसमें लाखों मारे गए।

सन् 1950 में देश का संविधान बना और भारत को एक धर्म-निरपेक्ष गणतन्त्र घोषित किया गया। प्रत्येक जाति, धर्म, सम्प्रदाय को पूर्ण स्वतन्त्रता दी गई और सब धर्मों को समान सम्मान दिया गया। आप जानकर शायद हैरान होंगे कि विश्व में सर्वाधिक मुस्लिम जनसंख्या भारत में ही है। बहुत-से देशभक्त मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए। लेकिन पाकिस्तान क्योंकि बना ही धर्म पर आधारित देश था अतः वह आज तक हमारे देश के साम्प्रदायिक सद्भाव को नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान में स्वतन्त्रता के साठ वर्ष बाद भी जनतान्त्रिक प्रणाली लागू नहीं हो सकी और भारत विश्व का सबसे बड़ा जनतान्त्रिक देश बन गया है।

हम यह जानते हैं कि कोई भी धर्म हिंसा, घृणा या विद्वेष नहीं सिखाता। सभी धर्म या सम्प्रदाय मनुष्य की नैतिकता, सहिष्णुता व शान्ति का पाठ पढ़ाते हैं। किन्तु कुछ कट्टरपन्थी धार्मिक नेता अपने स्वार्थ के लिए लोगों में धार्मिक भावनाएँ भड़का कर देश में अशान्ति और अराजकता फैलाने का यत्न करते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा। साम्प्रदायिक सद्भाव बनाए रखने पर ही हम विकासशील देशों की सूची से निकल कर विकसित देशों में शामिल हो सकते हैं।

हमारी सरकार भले ही धर्म-निरपेक्ष होने का दावा करती है किन्तु वोट बैंक की राजनीति को ध्यान में रखकर वह एक ही धर्म की तुष्टिकरण के लिए जो कुछ कर रही है उसके कारण धर्मों और जातियों में दूरी कम होने की बजाए और भी बढ़ रही है। धर्मनिरपेक्षता को यदि सही अर्थों में लागू किया जाए तो कोई कारण नहीं कि धार्मिक एवं साम्प्रदायिक सद्भाव न बन सके। जनता को भी चाहिए कि वह साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने वाले नेताओं से चाहे वे धार्मिक हों या राजनीतिक, बचकर रहे, उनकी बातों में न आएँ।

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36. टेलीविज़न के लाभ-हानियाँ

मानव आदिकाल से ही काम के बाद मनोरंजन के साधनों की खोज में रहा है। प्राचीन काल में नाटक, रासलीला, रामलीला या त्योहार मनुष्य के मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। फिर रेडियो, सिनेमा या ग्रामोफोन द्वारा लोगों के मनोरंजन के साधन बने। आज सबसे प्रभावी मनोरंजन का साधन टेलीविज़न है।

टेलीविज़न का आविष्कार स्काटलैण्ड के इंजीनियर जॉन एलन बेयर्ड ने सन् 1926 ई० में किया था। इस का सर्वप्रथम प्रयोग ब्रिटिश इण्डिया कार्पोरेशन ने किया था। भारत में इसका प्रसारण सन् 1964 से ही सम्भव हो सका और इसे रंगीन बनाने में लगभग बीस वर्ष लग गए। पंजाब में पहला टेलीविज़न केन्द्र अमृतसर में स्थापित हुआ जो बाद में दूरदर्शन केन्द्र जालन्धर में स्थानांतरित कर दिया गया। पहल पहले लोग कार्यक्रम दूरदर्शन पर ही देखा करते थे किन्तु सैटेलाइट नैटबर्क के आगमन से टेलीविज़न की दुनिया में क्रान्तिकारी मोड़ ला दिया। आज देश भर में कोई सवा-सौ चैनल अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिसमें समाचार, खेलकूद, धार्मिक, नाटक, संगीत, सामान्य जानकारी के अलग से चैनल हैं। आज अनेक चैनल क्षेत्रीय भाषाओं में अपने कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं। आज टेलीविज़न नैटवर्क (केबल) दर्शकों का भरपूर मनोरंजन कर रहे हैं। इन चैनलों द्वारा शिक्षा एवं धर्म का प्रचार भी किया जा रहा है। टेलीविज़न के कारण हम घर बैठे अपने मन पसंद सीरियल, गीत, फिल्में आदि देख सकते हैं।

कहते हैं जहाँ फूल होते हैं वहाँ काँटे भी होते हैं। टेलीविज़न के जहाँ अनेक लाभ हैं वहाँ कई हानियाँ भी हैं। सब से बड़ी हानि यह है कि लोगों का आपस में मिलना-जुलना कम हो गया है। लोग मिलने-जुलने की अपेक्षा अपना मनपसन्द सीरियल या फिल्म देखना पसन्द करते हैं। विद्यार्थियों की खेलकूद और अतिरिक्त पढ़ाई में रुचि कम हो गई है। युवावर्ग टेलीविज़न पर अश्लील गाने देखकर बिगड़ रहा है। लगातार कई घण्टे टेलीविज़न से चिपके रहने के कारण बच्चों की आँखों पर नज़र की ऐनकें लग गई हैं।

हमें चाहिए कि टेलीविज़न के लाभ को ध्यान में रखकर ही इसका उपयोग करना चाहिए। हमें वही कार्यक्रम देखने चाहिए जो ज्ञानवर्धक हों। टेलीविज़न एक वरदान है इसे शाप न बनने देना चाहिए।

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37. समाचार-पत्रों के लाभ

आज भले ही टेलीविज़न पर अनेक चैनल केवल समाचार ही प्रसारित कर रहे हैं फिर भी समाचार-पत्रों का महत्त्व कम नहीं हुआ है। आज के युग में समाचार-पत्र हमारे जीवन का एक आवश्यक अंग बन गए हैं। जिस दिन घर में समाचार-पत्र नहीं आता या देर से आता है तो हम उतावले हो उठते हैं। जिज्ञासा मानव स्वभाव की एक प्रवृत्ति रही है और समाचार पत्र हमारी इस जिज्ञासा को शान्त करते हैं। समाचार- पत्र हमें घर बैठे ही देशविदेश में हुई घटनाओं, समाचारों की सूचना दे देते हैं। समाचार-पत्रों के अनेक लाभ हैं जिनमें से कुछ का उल्लेख हम यहाँ पर कर रहे है।

समाचार-पत्र प्रचार का एक बहुत बड़ा साधन है। चुनाव के समय विभिन्न राजनीतिक दल समाचार-पत्रों में विज्ञापन देकर अपनी-अपनी पार्टी के पक्ष को प्रस्तुत करते हैं। विभिन्न व्यापारिक संस्थान भी अपने उत्पाद का विज्ञापन समाचार-पत्र में देकर अपने उत्पाद की बिक्री में वृद्धि करते हैं।

समाचार-पत्रों के माध्यम से ही आजकल हम नौकरी, विवाह, प्रवेश सूचना आदि सूचनाएँ प्राप्त करते हैं। समाचार-पत्रों में वर्गीकृत विज्ञापन का स्तम्भ हमें अनेक प्रकार की सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के मैगजीन अनुभाग हमें धर्म, स्वास्थ्य, समाजशास्त्र, ज्योतिष, वास्तु शास्त्र, आयकर सम्बन्धी सूचनाएँ प्रदान करते हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें रेडियो, टेलीविज़न के कार्यक्रमों की समय सारणी भी प्राप्त हो जाती है। समाचार-पत्रों के माध्यम से ही हमें पुस्तकों, फिल्मों की समीक्षा भी पढ़ने को मिल जाती

समाचार-पत्र पाठकों को भ्रष्टाचार, समाज की कुरीतियों जैसे भ्रूण हत्या आदि से जागरूक करते हैं और समाज में सुधार या नव-निर्माण का कार्य करते हैं। समाचार-पत्रों की कुछ हानियाँ भी हैं। कुछ समाचार-पत्र अपने पत्र की बिक्री बढ़ाने के लिए झूठी तथा सनसनी भरे समाचार छाप कर जनमानस को दूषित करते हैं। ऐसा ही कार्य वे समाचार-पत्र भी करते हैं जो पक्षपात पूर्ण समाचार और टिप्पणियाँ छापते हैं। समाचार-पत्रों में बड़ी शक्ति है। इस का सही प्रयोग होना चाहिए।

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38. दहेज प्रथा एक अभिशाप

कोई भी प्रथा जब शुरू होती है तो अच्छे उद्देश्य से शुरू होती है किन्तु धीरे-धीरे वही प्रथा कुप्रथा बन जाती है। कुछ ऐसा ही हाल दहेज प्रथा का भी है। दहेज प्रथा कितनी प्राचीन है यह तो नहीं कहा जा सकता। किन्तु इतना अवश्य है कि यह प्रथा जब शुरू हुई होगी तब लड़की को अपने पिता की सम्पत्ति में भागीदार नहीं माना जाता था और मातापिता उसके विवाह अवसर पर अपनी सम्पत्ति में से कुछ भाग लड़की को उपहार के रूप में भेंट करते थे। इसी उपहार को कालान्तर में दहेज का नाम दे दिया गया। किन्तु आज जब लड़की अपने पिता की सम्पत्ति में बराबर की हिस्सेदार है, लड़की अब स्वयं कमाने लगी है और पुरुष की आर्थिक दृष्टि से गुलाम नहीं रही है, दहेज देने का तर्क नज़र नहीं आता। किन्तु हम लकीर के फकीर अभी तक इस प्रथा को चलाए जा रहे हैं।

समय के परिवर्तन के साथ-साथ दहेज प्रथा एक कुप्रथा बन गई है और इसे नारी जाति के लिए ही नहीं समाज के लिए भी एक अभिशाप बन कर रह गई है। कुछ अमीर लोगों ने लड़की की शादी पर दिखावे के लिए ज़रूरत से ज्यादा खर्च करना शुरू कर दिया। देखा-देखी मध्यमवर्ग में भी यह रोग फैलता गया। यह समझा जाने लगा कि लड़के के माता-पिता लड़की को नहीं लड़के को या उसके माता-पिता को उपहार दे रहे हैं। देखादेखी लड़कों वालों की भूख बढ़ती गई और खुल कर दहेज की माँग की जाने लगी। मनवांछित दहेज न मिल पाने पर लड़की को ससुराल में तंग किया जाने लगा। दहेज के लालच में लक्ष्मी मानी जाने वाली बहू को जला कर मार दिया जाने लगा। दहेज की बलि पर न जाने आज तक कितनी ही भोली-भाली लड़कियाँ चढ़ चुकी हैं।

भले ही सरकार ने दहेज विरोधी कई कानून बनाए हैं लेकिन इन कानूनों की सरेआम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने जनवरी, 2007 में शादी विवाह में बारातियों की संख्या सम्बन्धी एक आदेश जारी किया था किन्तु इस आदेश की न तो कोई पालना कर रहा है और न ही कोई अधिकारी पालना करवा रहा है। हमारे विचार से दहेज के इस अभिशाप से युवा वर्ग ही समाज को मुक्ति दिलवा सकता है। बिना दहेज के विवाह करके।

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39. कम्प्यूटर का जीवन में महत्त्व

आज के युग को कम्प्यूटर का युग कहा जाता है। यह आधुनिक युग का एक ऐसा आविष्कार है जिसने मनुष्य की अनेक समस्याओं का समाधान कर दिया है। कम्प्यूटर ने मनुष्य का समय और श्रम बचा दिया है। साथ ही दी है पूर्णता और शुद्धता अर्थात् एक्युरेसी। कम्प्यूटर का प्रयोग आज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में लाभकारी सिद्ध हो रहा है। इसी बात को देखते हुए पंजाब सरकार ने स्कूलों में कम्प्यूटर शिक्षा को अनिवार्य बना दिया है। इस आदेश से कम्प्यूटर का प्रवेश आज आम घरों में भी हो गया है।

कम्प्यूटर का सबसे बड़ा लाभ शिक्षा विभाग को हुआ है। कम्प्यूटर की सहायता से परीक्षा परिणाम कुछ ही दिनों में घोषित होने लगे हैं। चुनाव प्रक्रिया में भी इसका प्रयोग चुनाव नतीजों को कुछ ही घंटों में घोषित किया जाने लगा है। बैंकों, रेलवे स्टेशनों, सरकारी और गैर-सरकारी कार्यालयों में कम्प्यूटर के प्रयोग से काम को बड़ा सरल बना दिया है। यहाँ तक कि अब तो कई दुकानदार भी अपने बही खाते रखने या बिल बनाने के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग करने लगे हैं। आज प्रत्येक समाचार पत्र कम्प्यूटर पर ही तैयार होने लगा है। कम्प्यूटर की एक अन्य चमत्कारी सुविधा इंटरनैट के उपयोग की है। इंटरनेट पर हमें विविध विषयों की जानकारी तो प्राप्त होती ही है, साथ ही हमें अपने मित्रों, रिश्तेदारों को ई-मेल द्वारा सन्देश भेजने की सुविधा भी प्राप्त होती है। कम्प्यूटर के साथ एक विशेष उपकरण (कैमरा इत्यादि) लगा कर हम दूर बैठे अपने मित्रों, रिश्तेदारों से सीधे बातचीत भी कर सकते हैं।

प्रकृति का यह नियम है कि जो वस्तु हमारे लिए लाभकारी होती है उसकी कई हानियाँ भी होती हैं। बच्चे कम्प्यूटर वीडियो गेम्स खेलने में व्यस्त रहते हैं और अपना कीमती समय नष्ट करते हैं। युवा वर्ग अश्लील वैवसाइट देख कर, इंटरनैट पर अश्लील चित्र एवं चित्र भेज कर बिगड़ रहे हैं। कम्प्यूटर पर अधिक देर तक बैठने पर नेत्रों की ज्योति पर तो प्रभाव पड़ता ही है शरीर में अनेक रोग भी पैदा होते हैं। अत: हमें चाहिए कि इस मशीनी मस्तिष्क के गुणों को ध्यान में रखकर ही इसका प्रयोग करना चाहिए।

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40. बढ़ते प्रदूषण की समस्या

मानव और प्रकृति के बीच जब संतुलन बिगड़ जाता है तो हमारा वातावरण दूषित हो जाता है। आज हमारे देश में प्रदूषण की समस्या बड़ी गम्भीर बनी हुई है। प्रदूषण के कारण ही हमारे जीवन की सुरक्षा को भी खतरा बना हुआ है। हमारे देश में प्रदूषण चार प्रकार का है-जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण तथा भूमि प्रदूषण। इन्हीं प्रदूषणों के कारण हमें शुद्ध पीने का पानी, शुद्ध वायु, शांत वातावरण और भूमि की उर्वरा शक्ति नहीं मिल पा रही है।

देश में तेजी से हो रहा औद्योगीकरण प्रदूषण फैलाने का बड़ा कारण बन रहा है। कल कारखानों से उठने वाला धुआँ हमारी वायु को तो प्रदूषित करता है। इन कल कारखानों से छोड़ा जा रहा रसायन युक्त जल हमारे जल और भूमि को भी प्रदूषित कर रहा है। औद्योगीकरण के साथ-साथ शहरीकरण ने भी जल और वायु को दूषित कर दिया है। बड़ेबड़े नगरों में सीवरेज और कल कारखानों का दूषित जल पास की नदियों में डाला जाता है, शहरों में चलने वाले वाहनों का धुआँ वायु को दूषित कर रहा है और कूड़े कर्कट के ढेर वातावरण को दूषित कर रहे हैं शहरीकरण के कारण अनेक वृक्षों की कटाई हो रही है। हम यह नहीं समझते कि वृक्ष ही हमें शुद्ध वायु प्रदान करते हैं। पीपल जैसा वृक्ष तो हमें 24 घंटे शुद्ध आक्सीजन प्रदान करता है किन्तु हम धड़ाधड़ वृक्षकाट रहे हैं।

शहरों में ही नहीं गाँवों में भी प्रदूषण फैलाने के अनेक कार्य होते हैं। किसान लोग अधिक पैदावार की होड़ में कीटनाशक दवाओं और कृत्रिम खादों का प्रयोग करके भूमि की उर्वरा शक्ति को घटा रहे हैं। चावल की पराली को खेतों में ही जलाकर वायु प्रदूषण फैला रहे हैं। आज हम जो फल सब्जियाँ खाते हैं वे सब कीटनाशक दवाइयों से ग्रसित होती हैं। ये सब प्रदूषण फैलाने के साथ-साथ जन-साधारण के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती हैं।

यदि इस बढ़ते प्रदूषण को रोकने का कोई उपाय न किया गया तो आने वाला समय हमारे लिए अत्यन्त भयानक और घातक सिद्ध होगा। प्रदूषण रोकने के लिए हमें बड़े-बड़े उद्योगों के स्थान पर कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। वृक्ष लगाने के अभियान को और तेज़ करना होगा। वाहनों में धुआँ रहित पेट्रोल-डीज़ल के प्रयोग को अनिवार्य बनाना होगा। कल कारखानों में वाटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाने अनिवार्य करने होंगे। प्रदूषण का जन्म ही न हो, ऐसा हमारा प्रयास होना चाहिए।

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41. बढ़ती जनसंख्या की समस्या

किसी भी देश की उन्नति और आर्थिक विकास बहुत कुछ उस देश की जनसंख्या पर निर्भर होता है। भारत को जिन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है उनमें तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या की समस्या प्रमुख है। देश के विभाजन के समय सन् 1947 में देश की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो अब 125 करोड़ से भी अधिक हो गई है। आज जनसंख्या की दृष्टि से भारत विश्व में चीन के बाद दूसरे नम्बर पर है। जिस गति से हमारे देश की जनसंख्या बढ़ रही है उसे देखकर लगता है कि यह शीघ्र ही चीन को पीछे छोड़ जाएगा।

देश की बढ़ती जनसंख्या अनेक समस्याओं को जन्म दे रही है। जैसे खाद्य सामग्री की कमी, आवास की कमी, रोजगार के साधनों की कमी आदि। देश की धरती तो उतनी ही है उस पर देश के औद्योगीकरण और बिजली परियोजनाओं के लिए बहुत-सी उपजाऊ भूमि का अधिग्रहण किया जा चुका है। इस तरह खेती योग्य भूमि भी दिनों दिन घटती जा रही है। माना कि नई तकनीक से उपज में काफ़ी वृद्धि हुई है। अनाज के क्षेत्र में देश आत्मनिर्भर हो गया है किन्तु यह स्थिति कब तक रहेगी कहा नहीं जा सकता।

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए सरकार परिवार नियोजन जैसी कई योजनाओं पर काम कर रही है किन्तु इस योजना का लाभ अशिक्षित और गरीब लोग नहीं उठा रहे। कहा जा सकता है कि जनसंख्या वृद्धि के कारण गरीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और रूढिवादिता है। जनसंख्या वृद्धि में एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत में औसत आयु साठ सालों में 21 से बढ़कर 65 तक जा पहुँची है। साथ ही स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से शिशु मृत्यु दर में भी काफी कमी आई है। बालविवाह अभी भी रुके नहीं।

यदि सरकार और जनता ने मिलजुल कर जनसंख्या की वृद्धि पर रोक लगाने का कोई उपाय न किया तो देश को एक दिन खाने के लाले पड़ जाएंगे। हरित क्रान्ति, सफेद क्रान्ति जैसी कोई भी क्रान्ति कारगर सिद्ध न हो सकेगी अतः इस समस्या का समाधान ढूँढ़ना अत्यावश्यक है।

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42. बढ़ती महँगाई की समस्या

आज आम लोगों के सामने सबसे बड़ी समस्या महंगाई की बनी हुई है। बड़ों के मुँह से हम खाद्य पदार्थों के जो भाव सुनते हैं तो हमें या तो झूठ लगता है या सपना। आज महँगाई इतनी बढ़ गई है कि आम आदमी को दो जून की रोटी जुटाना भी कठिन हो रहा है। पंजाबी कवि सूबा सिंह ने ठीक ही कहा है-‘घयो लभदा नहीं धुन्नी नूं लान जोगा, कित्थों खानियाँ रांझे ने चूरियाँ’-सचमुच आज देसी घी दो सौ रुपए किलो से ऊपर बिक रहा है जो कभी तीन-चार रुपए किलो मिला करता था। तेल, घी, दालें तो अमीर आदमी की पहुँच वाली बन कर रह गई हैं। गरीब तो बस यही कहकर संतोष कर लेते हैं कि ‘रूखी सूखी खायकर, ठंडा पानी पी।’

पेट्रोल, डीज़ल और रसोई गैस की बढ़ती कीमतों ने तो जलती पर तेल छिड़कने का काम किया है। पेट्रोल, डीजल की कीमतें बढ़ने से बसों की यात्रा तो महँगी हुई ही है ट्रकों का माल भाड़ा भी बढ़ गया है, जिसके कारण फलों, सब्जियों, दालों इत्यादि खाद्य पदार्थों के दाम भी बढ़ गए हैं। सरकार अपने कर्मचारियों का प्रत्येक वर्ष दो बार महँगाई भत्ता बढ़ाती है, इससे कर्मचारियों को तो राहत मिलती नहीं उलटे चीज़ों की कीमतें अवश्य बढ़ जाती हैं।

महँगाई बढ़ने के साथ ही कालाबाजारी, तस्करी और काला धन, जमाखोरी जैसी समस्या बढ़ने लगती है। वर्ष 2008 के अन्त में विश्वव्यापी जो मंदी का दौर आया उसने महँगाई को और भी बढ़ा दिया। उस पर सोने पर सुहागे का काम किया सरकार की दुलमुल नीतियों ने। सरकार अपने मन्त्रियों के वेतन तो हर साल बढ़ा देती है किन्तु सरकारी कर्मचारी पे कमीशनों का कई वर्षों तक मुँह ताकते रहते हैं। मन्त्री अपनी कुर्सी बचाए रखने के लिए सत्ता में बने रहने के लिए बड़े-बड़े उद्योगों को जो सहूलतें दे रहे हैं उससे महँगाई बढ़ रही है। महँगाई कैसे रुके या कैसे रोकी जाए यह हमारी समझ से तो बाहर है। हाँ यदि सरकार चाहे और दृढ़ संकल्प हो महँगाई पर कुछ हद तक रोक लग सकती है।

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43. नशा बन्दी

भारत में नेशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखे मरते हों वहाँ शराब पीना, गरीबों के रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महँगी होने के कारण नकली शराब का धन्धा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है, यह हर कोई जानता है। कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबन्दी लागू करने का प्रयास किया। किन्तु वे असफल रहीं। ताज़ा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चाँदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबन्दी समाप्त करनी पड़ी।

पंजाब में भी सन् 1964 में टेकचन्द कमेटी ने नशाबन्दी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किन्तु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किन्तु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता। सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबन्दी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

यह देखने में आया है कि देश का युवा वर्ग ही नहीं, किशोर वर्ग नशों की लपेट में आ रहा है। हमारे नेता यह कहते नहीं थकते कि देश में मादक द्रव्यों का प्रसार विदेशी शत्रुओं के कारण हो रहा है किन्तु अपने युवाओं को, बच्चों को समझाया तो जा सकता है। नशीले पदार्थों से इस पीढ़ी को बचाने का भरसक प्रयास किया जाना चाहिए नहीं तो देश कमजोर हो जाएगा और साँप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का कोई लाभ न होगा।

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44. खेलों का जीवन में महत्त्व

खेल-कूद हमारे जीवन की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। ये हमारे मनोरंजन का प्रमुख साधन भी हैं। पुराने ज़माने में जो लोग व्यायाम नहीं कर सकते थे अथवा खेल-कूद में भाग नहीं ले सकते थे वे शतरंज, ताश जैसे खेलों से अपना मनोरंजन कर लिया करते थे। दौड़ना भागना, कूदना इत्यादि भी खेलों का ही एक अंग है। ऐसी खेलों में भाग लेकर हमारे शरीर की मांसपेशियाँ तथा शरीर के दूसरे अंग स्वस्थ हो जाया करते हैं। खेल-कूद में भाग लेकर व्यक्ति की मासिक थकावट दूर हो जाती है।

स्वस्थ जीवन के लिए खेलों में भाग लेना अत्यावश्यक है। इस तरह व्यक्ति का मन भी स्वस्थ होता है। उसकी पाचन शक्ति भी ठीक रहती है, भूख खुलकर लगती है, नींद डटकर आती है, परिणामस्वरूप कोई भी बीमारी ऐसे व्यक्ति के पास आते डरती है। इससे व्यक्ति के चारित्रिक गुणों का भी विकास करता है। खिलाड़ी चाहे किसी भी खेल का हो अनुशासनप्रिय होता है। क्रोध, ईर्ष्या, घृणा आदि हानिकारक भावनाओं का वह शिकार नहीं होता। खेलों में ही उसे देश प्रेम और एकता की शिक्षा मिलती है।

खेलों से अनुशासन और आत्म-नियन्त्रण भी पैदा होता है और अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। बिना अनुशासन के व्यक्ति जीवन में उन्नति और विकास नहीं कर सकता। खेल हमें अनुशासन का प्रशिक्षण देते हैं। किसी भी खेल में रैफ्री या अंपायर नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ी को दण्डित भी करता है। इसलिए हर खिलाड़ी खेल के नियमों का पालन कड़ाई से करता है। खेल के मैदान में सीखा गया यह अनुशासन व्यक्ति को आगे चलकर जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी काम आता है। देखा गया है कि खिलाड़ी सामान्य लोगों से अधिक अनुशासित होते हैं।

खेलों से सहयोग व सहकार की भावना भी उत्पन्न होती है। इसे टीम भावना या खेल भावना भी कहा जाता है। केवल खेल ही ऐसी क्रिया है जिसमें सीखे गए उपयुक्त गुण व्यक्ति के व्यावहारिक जीवन में बहुत काम आते हैं। आने वाले जीवन में व्यक्ति सब प्रकार की स्थितियों, परिस्थितियों और व्यक्तियों के साथ काम करने में सक्षम हो जाता है। टीम भावना से काम करने वाला व्यक्ति दूसरों से अधिक सामाजिक होता है। वह दूसरों में जल्दी घुल-मिल जाता है। उसमें सहन शक्ति और त्याग भावना दूसरों से अधिक मात्रा में पाई जाती है।

इससे स्पष्ट है कि खेल जीवन की वह चेतन शक्ति है जो दिव्य ज्योति से साक्षात्कार करवाती है। अत: उम्र और शारीरिक शक्ति के अनुसार कोई न कोई खेल अवश्य खेलना चाहिए। खेल ही हमारे जीवन में एक नई आशा, महत्त्वाकांक्षा और ऊर्जा का संचार करते हैं। खेलों के द्वारा ही जीवन में नए-नए रंग भरे जा सकते हैं, इन्द्रधनुषी सुन्दर या मनोरम बनाया जा सकता है।

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45. व्यायाम का महत्त्व

महर्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का प्रथम कर्त्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम की नितांत आवश्यकता है। – व्यायाम से हमारा अभिप्रायः वह नहीं है जो आज से कुछ वर्ष पहले समझा जाता था। अर्थात् दण्ड पेलना, बैठक लगाना आदि किन्तु आज के संदर्भ में व्यायाम का अर्थ किसी ऐसे काम करने से है जिससे हमारा शरीर स्वस्थ रहे। पुराने जमाने में स्त्रियाँ दूध दोहती थीं, बिलोती थीं, घर में झाड़ देती थीं, कपड़े धोती थीं और बाहर से कुएँ से खींचकर पीने के लिए पानी.लाया करती थीं। ये सब क्रियाएँ व्यायाम का ही एक भाग हुआ करती थीं। किन्तु आजकल की स्त्रियों के पास इन सब व्यायामों के लिए समय ही नहीं है। जिसका परिणाम यह है कि आज की स्त्री अनेक रोगों का शिकार हो रही है।

पुराने जमाने में पुरुष भी सुबह सवेरे सैर को निकल जाया करते थे। बाहर ही स्नान इत्यादि करते थे। इस तरह उनका व्यायाम हो जाता था। हमारे बड़े बुर्जुगों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित कर दी जिससे हमारा व्यायाम भी होता रहे और हमें पता भी न चले। जैसे सूर्य उदय होने से पहले उठना, बाहर सैर को जाना, दातुन कुल्ला करना आदि व्यायाम के ही अंग थे। समय बदलने के साथ-साथ हम व्यायाम के उस परिणाम को भूलते जा रहे हैं कि व्यायाम करने से व्यक्ति निरोग रहता है। उसके शरीर में चुस्ती-फुर्ती आती है। पाचन शक्ति ठीक रहती है और शरीर सुडौल बना रहता है।

जो लोग व्यायाम नहीं करते, वे आलसी और निकम्मे बन जाते हैं। सदा किसी-नकिसी रोग का शिकार बने रहते हैं। आज का न ही पुरुष न ही स्त्री, घर का छोटा-मोटा काम भी अपने हाथ से नहीं करना चाहता। सारा दिन कुर्सी पर बैठ कर काम करने वाला कर्मचारी यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो वह स्वयं बीमारी को बुलावा देने का ही काम करेगा। भला हो स्वामी रामदेव का जिन्होंने लोगों को योग और प्राणायाम की ओर मोड़कर थोड़ा-बहुत व्यायाम करने की प्रेरणा दी है। उनका कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी शक्ति और शारीरिक आवश्यकता के अनुसार व्यायाम अवश्य करना चाहिए।

एक विद्यार्थी के लिए व्यायाम का अधिक महत्त्व है क्योंकि अपनी इस चढ़ती उम्र में जितना सुन्दर और अच्छा शरीर वह बना सकता है, जितनी भी शक्ति का संचय वह कर सकता है, उसे कर लेना चाहिए। यदि इस उम्र में उसने अपने स्वास्थ्य की ओर ध्यान न दिया तो सारी उम्र वह पछताता ही रहेगा। अतः हमारी विद्यार्थी वर्ग को सलाह है कि वह अपने इस जीवन में खेल-कूद में अवश्य भाग लें, योगासन और प्राणायाम, जो शरीर के लिए श्रेष्ठ व्यायाम है अवश्य करें। प्रातः और सायं भ्रमण के लिए अवश्य घर से बाहर निकलें क्योंकि आने वाला जीवन कोई सरलता लिए हुए नहीं आएगा। तब संघर्ष की मात्रा अधिक बढ़ जाएगी और व्यायाम के लिए समय निकालना कठिन हो जाएगा। अत: जो कुछ करना है इसी विद्यार्थी जीवन में ही कर लेना चाहिए।

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46. समय का सदुपयोग

कहा जाता है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो। जिस किसी ने भी यह बात कही है उसने समय के महत्त्व को ध्यान में रखकर ही कही है। समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। खोया हुआ धन फिर प्राप्त हो सकता है किन्तु खोया हुआ समय फिर लौट कर नहीं आता। इसीलिए कहा गया है समय बीत जाने पर सिवाय पछतावे के कुछ हाथ नहीं आता। विद्यार्थी जीवन में भी समय के महत्त्व को एवं उसके सदुपयोग को जो नहीं समझता और विद्यार्थी जीवन आवारागर्दी और ऐशो आराम से जीवन व्यतीत कर देता है वह जीवन भर पछताता रहता है।

विद्यार्थी जीवन में समय का सदुपयोग करना बहुत जरूरी है। क्योंकि विद्यार्थी जीवन बहुत छोटा होता है। इस जीवन में प्राप्त होने वाले समय का जो विद्यार्थी सही सदुपयोग कर लेते हैं वे ही भविष्य में सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ते हैं। और जो समय को नष्ट करते हैं, वे स्वयं नष्ट हो जाते हैं।

इसलिए हमारे दार्शनिकों, संतों आदि ने अपने काम को तुरन्त मनोयोग से करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि ‘काल करे सो आज कर आज करे सो अब।’ कल किसने देखा है अतः दृष्टि वर्तमान पर रखो और उसका भरपूर प्रयोग करो। कर्मयोगी की यही पहचान है। जीवन दुर्लभ ही नहीं क्षणभंगुर भी है अतः जब तक साँस है तब तक समय का सदुपयोग करके हमें अपना जीवन सुखी बनाना चाहिए।

इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने भी समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे। पृथ्वी राज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मनी के महान् दार्शनिक कांट ने जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर जाते देख अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व और भी ज्यादा बढ़ गया है। आज जीवन में भागम भाग और जटिलता इतनी अधिक बढ़ गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जाएँगे। आज समय का सदुपयोग करते हुए सही समय पर सही काम करना हमारे जीवन की सबसे बड़ी आवश्यकता है।

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47. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला।

यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा। उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेज़ी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया।

गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पेनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पेनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये । रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए । मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकादश पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में जबरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पाँच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

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48. आँखों देखा फुटबाल मैच

विश्वभर में फुटबाल का खेल सर्वाधिक लोकप्रिय है। केवल यही एक ऐसा खेल है जिसे देखने के लिए लाखों की संख्या में दर्शक जुटते हैं। फुटबाल के खिलाड़ी भी विश्व भर में सबसे अधिक सम्मान एवं धन प्राप्त करते हैं। 90 मिनट का यह खेल अत्यन्त रोचक, जिज्ञासा भरा होता है। संयोग से पिछले महीने मुझे पंजाब पुलिस और जे० सी० टी० फगवाड़ा की टीमों के बीच हुए मैच को देखने का अवसर मिला। जे० सी० टी० की टीम पिछले वर्ष संतोष ट्राफी की विजेता टीम रही थी। मैच शुरू होते ही पंजाब पुलिस ने विरोधी टीम पर काफी दबाव बनाये रखा परन्तु जे० सी० टी० की टीम भी कोई कम नहीं थी। उसके खिलाड़ियों को थोड़ा अवसर भी मिलता तो वे पंजाब पुलिस के क्षेत्र में जा पहुँचते।

पंजाब पुलिस ने अपना आक्रमण और भी तेज़ कर दिया। उनके खिलाड़ियों में आपसी तालमेल और पासिंग तो देखते ही बनता था। उनकी हर मूव को देखकर दर्शक वाह! वाह। कर उठते थे। इस मैच को देखने के लिए पंजाब पुलिस के कई वरिष्ट अधिकारी भी मैदान में मौजूद थे। सैंकड़ों की संख्या में सिपाही भी अपने खिलाड़ियों को उत्साहित करने के लिए बक-अप कर रहे थे। पहले मध्यान्तर के 26वें मिनट में पंजाब पुलिस के खिलाड़ियों ने इतना बढ़िया मूव बनाया कि जे० सी० टी० के खिलाड़ी देखते ही रह गये और पंजाब पुलिस ने एक गोल दाग दिया। दर्शक दीर्घा में बैठे लोग खुशी से नाच उठे। इस गोल के बाद जे० सी० टी० के खिलाड़ी रक्षा पर उतर आए। जब भी बाल लेकर आगे बढ़ते पंजाब पुलिस के खिलाड़ी उन से बाल छीन लेते। इसी बीच जे० सी० टी० की टीम ने एक ज़ोरदार आक्रमण किया किन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर की दाद देनी होगी कि उसने गोल को फुर्ती से बचा लिया। उधर पंजाब पुलिस ने अपना दबाव फिर बढ़ाना शुरू किया। मध्यान्तर के समय पंजाब पुलिस की टीम एक शून्य से आगे थी। दूसरे मध्यान्ह के 45 मिनट में खेल में काफ़ी तेजी आई परन्तु पंजाब पुलिस के गोल कीपर ने कई निश्चित गोल बचा कर अपनी टीम को जीत दिलाई। मैच समाप्त होते ही पंजाब पुलिस के कर्मचारियों ने अपनी टीम के खिलाड़ियों को कंधों पर उठा लिया। आज उन्होंने देश की एक प्रसिद्ध टीम को हराया था। कोई दो घण्टे तक मैंने इस मैच का जैसा आनन्द उठाया वह मुझे वर्षों याद रहेगा।

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49. श्रम का महत्त्व
अथवा
परिश्रम सफलता की कुंजी है

श्रम का अर्थ है-मेहनत। श्रम ही मनुष्य-जीवन की गाड़ी को खींचता है। चींटी से लेकर हाथी तक सभी जीव बिना श्रम के जीवित नहीं रह सकते। फिर मनुष्य तो अन्य सभी प्राणियों से श्रेष्ठ हैं। संसार की उन्नति-प्रगति मनुष्य के श्रम पर निर्भर करती है। श्रम करने की आदत बचपन में ही डाली जाए तो अच्छा है।

परिश्रम के अभाव में जीवन की गाड़ी नहीं चल ही सकती। यहां तक कि स्वयं का उठना-बैठना, खाना-पीना भी सम्भव नहीं हो सकता फिर उन्नति और विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आज संसार में जो राष्ट्र सर्वाधिक उन्नत हैं, वे परिश्रम के बल पर ही इस उन्नत दशा को प्राप्त हुए हैं। जिस देश के लोग परिश्रमहीन एवं साहसहीन होंगे, वह प्रगति नहीं कर सकता। परिश्रमी मिट्टी से सोना बना लेते हैं।

परिश्रम का अभिप्राय ऐसे परिश्रम से है जिससे निर्माण हो, रचना हो, जिस परिश्रम से निर्माण नहीं होता, उसका कुछ अर्थ नहीं। जो व्यक्ति आलस्य का जीवन बिताते हैं, वे कभी उन्नति नहीं कर सकते। आलस्य जीवन को अभिशापमय बना देता है। हमारा देश सदियों तक पराधीन रहा। इसका आधारभूत कारण भारतीय जीवन में व्याप्त आलस्य एवं हीन भावना थी। यदि छात्र परिश्रम न करें तो परीक्षा में कैसे सफल हों। मज़दूर भी मेहनत का पसीना बहाकर सड़कों, भवनों, बांधों, मशीनों तथा संसार के लिए उपयोगी वस्तुओं का निर्माण करते हैं। मूर्तिकार, चित्रकार अद्भुत कलाओं का निर्माण करते हैं। कवि और लेखक सब परिश्रम द्वारा ही अपनी रचनाओं से संसार को लाभ पहुँचाते हैं। कालिदास, तुलसीदास, टैगोर, शेक्सपीयर आदि परिश्रम के बल पर ही अमर हो गए हैं। परिश्रम के बल पर ही वे अपनी रचनाओं के रूप में अमर हैं।

कुछ लोग श्रम की अपेक्षा भाग्य को महत्त्व देते हैं। उनका कहना है कि भाग्य में जो है वह अवश्य मिलेगा, अतः दौड़-धूप करना व्यर्थ है। यह तर्क निराधार है। यह ठीक है कि भाग्य का भी हमारे जीवन में महत्त्व है, लेकिन आलसी बनकर बैठे रहना और असफलता के लिए भाग्य को कोसना किसी प्रकार भी उचित नहीं। परिश्रम के बल पर मनुष्य भाग्य की रेखाओं को भी बदल सकता है। आज हमारे देश में अनेक समस्याएँ हैं। उन सबसे समाधान का साधन परिश्रम है। परिश्रम के द्वारा ही बेकारी की, खाद्य की और अर्थ की समस्या का अन्त किया जा सकता है।

परिश्रम व्यक्ति स्वावलम्बी, ईमानदार, सत्यवादी, चरित्रवान् और सेवा भाव से युक्त होता है। परिश्रम करने वाले व्यक्ति का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है। परिश्रम के द्वारा ही मनुष्य अपनी, परिवार की, जाति की तथा राष्ट्र की उन्नति में सहयोग दे सकता है। अतः मनुष्य को परिश्रम करने की प्रवत्ति विद्यार्थी जीवन में ग्रहण करनी चाहिए।

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50. किसी धार्मिक स्थान की यात्रा
अथवा
किसी पर्वतीय यात्रा का वर्णन
अथवा
वैष्णो देवी की यात्रा

इस बार नवरात्रे शुरू होते ही हमने मित्रों सहित माता वैष्णों देवी के दर्शन का निश्चय किया। प्रात: आठ बजे हम चण्डीगढ़ के बस स्टैण्ड पर पहुंचे। वहाँ से हमने पठानकोट के लिए बस ली। वहाँ से हमने जम्मू के लिए बस ली। जम्मू हम सायँ कोई सात बजे पहुँच गए। रात हमने जम्मू की एक धर्मशाला में गुजारी। रात में ही हमने जम्मू के ऐतिहासिक रघुनाथ जी तथा शिव मन्दिर के दर्शन किये। अगले दिन प्रातः काल में ही कटरा जाने वाली बस में सवार हुए। रास्ते भर सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए जय माँ शेराँ वाली के नारे लगा रहे थे। कटरा जम्मू से कोई पचास किलोमीटर दूर है। कटरा पहुँचकर हमने अपना नाम दर्ज करवाया और पर्ची ली। रात हमने कटरा में बिताई। दूसरे दिन सुबह ही हम माता की जय पुकारते हुए माँ के दरबार की ओर पैदल चल दिए। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है। कटरा से माँ के दरबार को जाने के लिए दो रास्ते हैं। एक सीढ़ियों वाला मार्ग है और दूसरा साधारण। हमने साधारण रास्ता ही चुना। सभी भक्त जन माँ की जय पुकारते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे। पाँच किलोमीटर चलकर हम चरण पादुका मंदिर पहुंचे।

चरण पादुका मन्दिर से चलकर हम आद कुमारी मंदिर पहुंचे। यह मन्दिर कटरा और माता के भवन के मध्य में स्थित है। यहाँ श्रद्धालुओं के रहने और भोजन की अच्छी व्यवस्था है। आदकुमारी मन्दिर से हम गर्भवास गुफा की ओर चल पड़े। हमने भी इस गुफा को पार किया और माँ से जन्म मरण से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। आगे का मार्ग बड़ा दुर्गम था। शायद इसी कारण इसे हाथी-मत्था की चढ़ाई कहते हैं। इस चढ़ाई को पार करके हम बाण गंगा और भैरों घाटी को पार कर माता के मन्दिर के निकट पहुँच गए। वहाँ हमने

अपना नाम दर्ज करवाया बारी आने पर हमने माँ वैष्णो देवी के दर्शन किये। मन्दिर की गुफा में तीन पिण्डियां हैं, जो महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से विख्यात हैं। हमने माँ के चरणों में माथा टेका, प्रसाद लिया और पीछे के रास्ते से बाहर आ गए। बाहर आकर हमने कन्या पूजन किया और कन्याओं को दक्षिणा देकर उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया। वापसी पर हम भैरव मन्दिर के दर्शन करते हुए कटरा आ गए। कटरा से जम्मू और पठानकोट होते हुए चण्डीगढ़ वापस आ गए।

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51. मेरा प्रिय खिलाड़ी

मेरा प्रिय खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर है। तेंदुलकर जगत के सर्वाधिक प्रायोजित खिलाड़ी हैं। विश्व भर में उनके अनेक प्रशंसक हैं। उन्हें लिटल मास्टर या मास्टर बलास्टर के नाम से भी जाना जाता है। इनका पूरा नाम सचिन रमेश तेंदुलकर, माता का नाम रजनी तेंदुलकर तथा पिता का नाम रमेश तेंदुलकर है। इनका जन्म 24 अप्रैल, सन् 1973 ई० को राजापुर, मुंबई में हुआ था। इनके माता-पिता नौकरी करते थे, इसलिए ग्यारह वर्ष तक इनका तथा इनके भाई अजीत, नितिन तथा बहन सविता का पालन-पोषण इनकी नानी ने किया था। मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अढ़ाई वर्ष की आयु में ही मुगरी का बल्ला बना कर प्लास्टिक की गेंद से अपनी नानी और बड़े भाई अजीत के साथ खेलते थे। उनकी नानी लक्ष्मी बाई गिजे ने इन्हें इनके तीसरे जन्मदिन पर गेंद-बल्ला उपहार में दिया तो रोज़ क्रिकेट खेलना उनका नियम ही बन गया था। सन् 1995 ई० में इनका विवाह अंजली से हुआ। इनकी पुत्री सारा तथा पुत्र अर्जुन है। सचिन अपनी नानी को अपना क्रिकेट और जीवन गुरु मानते हैं।

पढ़ाई के साथ-साथ इन्होने क्रिकेट खेलना शुरू किया। कोच रमाकांत अचरेकर इन्हें घण्टों अभ्यास कराते थे और स्टम्प्स पर सिक्का रखकर गेंदबाज़ों को कहते थे, जो सचिन को आऊट करेगा, सिक्का उसे मिलेगा तथा आऊट नहीं होने पर सिक्का सचिन का होगा। सचिन के पास ऐसे जमा किए हुए तेरह सिक्के हैं। सचिन ने पहला प्रथम श्रेणी मैच सन् 1988 ई० में चौदह वर्ष की आयु में मुंबई के लिए विनोद काम्बली के साथ मिलकर खेला और दोनों ने मिलकर 664 दौड़ों की अविजित पारी खेली, जिसे देखकर विरोधी टीम ने आगे खेलने से मना कर दिया था।

सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट सन् 1989 ई० में पाकिस्तान के विरुद्ध कराची में खेला था। अब तक वे अपने नाम अनेक रिकार्ड कर चुके हैं। वे ऑफ स्पिन, लेग स्पिन, गुगली गेंदबाजी भी करते हैं। वे भारतीय सैनिकों को अपना आदर्श मान कर संघर्ष करना सीखे हैं। वे बहुत विनम्र, धैर्यवान, संयमी एवं विवेकी हैं। उन्होंने 2 अप्रैल, सन् 2011 ई० में विश्वकप जिताया। इन्हें सन् 1994 में अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, सन् 1999 में पद्मश्री और सन् 2008 में पदम् विभूषण सम्मान दिया गया था। 2013 में भारतीय पोस्टल ने तेंदुलकर का एक टिकट जारी किया। 2014 में उन्हें मुम्बई इंडियन टीम के ‘आइकन’ के रूप में नियुक्त किया। सचिन तेंदुलकर मेरे हमेशा ही आदर्श रहेंगे।

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52. मन के जीते जीत है मन के हारे हार

मानव-शरीर यदि रथ के समान है तो यह मन उसका चालक है। मनुष्य के शरीर की असली शक्ति उसका मन है। मन के अभाव में शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं। मन ही वह प्रेरक शक्ति है जो मनुष्य से बड़े-से-बड़े काम करवा लेती है। यदि मन में दुर्बलता का भाव आ जाए तो शक्तिशाली शरीर और विभिन्न प्रकार के साधन व्यर्थ हो जाते हैं। उदाहरण के लिए एक सैनिक को लिया जा सकता है। यदि उसने अपने मन को जीत लिया है तो वह अपनी शारीरिक शक्ति एवं अनुमान से कहीं अधिक सफलता दिखा सकता है। यदि उसका मन हार गया तो बड़े-बड़े मारक अस्त्र-शस्त्र भी उसके द्वारा अपना प्रभाव नहीं दिखा सकते। मन की शक्ति के बल पर ही मनुष्य ने अनेक आविष्कार किए हैं। मन की शक्ति मनुष्य को अनवरत साधना की प्रेरणा देती है और विजयश्री उनके सामने हाथ जोड़कर खड़ी हो जाती है। जब तक मन में संकल्प एवं प्रेरणा का भाव नहीं जागता तब तक हम किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते। एक ही काम में एक व्यक्ति सफलता प्राप्त कर लेता है और दूसरा असफल हो जाता है। इसका कारण दोनों के मन की शक्ति की भिन्नता है। जब तक हमारा मन शिथिल है तब तक हम कुछ भी नहीं कर सकते। अतः ठीक ही कहा गया है-“मन के हारे-हार है मन के जीते जीत।”

53. सत्संगति

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे दूसरे के साथ किसी-न-किसी रूप में संपर्क स्थापित करना पड़ता है। अच्छे लोगों की संगति जीवन को उत्थान की ओर ले जाती है तो बुरी संगति पतन का द्वार खोल देती है। संगति के प्रभाव से कोई नहीं बच सकता। हम जैसी संगति करते हैं, वैसा ही हमारा आचरण बन जाता है। रहीम ने कहा-
“कदली सीप भुजंग मुख, स्वाति एक गुण तीन।
जैसे संगति बैठिए, तैसोई गुण दीन॥”

सत्संगति का महत्त्व – सत्संगति जीवन के लिए वरदान की तरह है। सत्संगति के द्वारा मनुष्य अनेक प्रकार की अच्छी बातें सीखता है। जिसको अच्छी संगति प्राप्त हो जाए उसका जीवन सफल बन जाता है। अच्छी संगति में रहने पर अच्छे संस्कार पैदा होते हैं। बुरी संगति बुरे विचारों को जन्म देती है। मनुष्य की पहचान उसकी संगति से होती है। अच्छे परिवार में जन्म लेने वाला बालक बुरी संगति में पड़ कर बुरा बन जाता है। इसी प्रकार बुरे परिवार में जन्म लेने वाले बालक को यदि अच्छी संगति प्राप्त हो जाती है तो वह अच्छा एवं सदाचारी बन जाता है-
“बिनु सत्संगु विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई॥”

सत्संगति मनुष्य के जीवन को सफल बनाती है तो कुसंगति जीवन को नष्ट करती है। कहा भी है, “दुर्जन यदि विद्वान् भी हो तो उसका साथ छोड़ देना चाहिए। मणि धारण करने वाला सांप क्या भयंकर नहीं होता।” बुरी आदतें मनुष्य बुरी संगति से सीखता है। बुरी पुस्तकें, अश्लील चल-चित्र आदि भी मनुष्य को विनाश की ओर ले जाते हैं। बुरे लोगों से बचने की प्रेरणा देते हुए सूरदास जी ने कहा है-
“छाडि मन हरि बिमुखन को संग।
चाके संग कुबुद्धि उपजत हैं परत भजन में भंग॥”

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54. मेरा परिवार

परिवार शब्द सुनते ही मन में एक सुखद सा एहसास होता है क्योंकि परिवार किसी के जीवन के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। परिवार के बिना यह जीवन अधूरा सा लगता है। एक परिवार बच्चों के लिए पहला स्कूल बनता है जहां से वे संस्कृति, परंपरा और सबसे ज़रूरी आधारभूत पारिवारिक मूल्यों को सीखते हैं। परिवार ही है, जो समाज में एक बेहतर चरित्र को बनाने में मदद करता है।

परिवार एक छोटा परिवार, छोटा मूल परिवार, बड़ा मूल परिवार या संयुक्त परिवार हो सकता है। एक परिवार में बहुत सारे रिश्ते हो सकते हैं जैसे दादा-दादी, माता-पिता, पतिपत्नी, भाई-बहन, चाचा-चाची, चचेरे भाई-बहन इत्यादि। मेरा परिवार एक छोटा मूल परिवार है जो एक मध्यम वर्ग परिवार से संबंधित है। मेरे परिवार में चार सदस्य हैं। पिता जी, माता जी, मैं तथा मेरी छोटी बहन। हम लोग पंजाब के पटियाला शहर में रहते हैं। हमारा दो मंजिला घर है। जिसमें माता-पिता का तथा मेरा और मेरी बहन का अलग-अलग कक्ष है।

मेरी माता जी बहुत प्यारी है। वह हमारी छोटी-छोटी ज़रूरतों का ध्यान रखती हैं। वह सुबह से रात तक हमारे कामों में लगी रहती हैं। मेरे पिताजी एक व्यापारी है। वह भी हमारे लिए बहुत मेहनत करते हैं। मेरी छोटी बहन पाँचवी में पढ़ती है। वह भी बहुत प्यारी है। वह पढ़ने में होशियार है। मेरा परिवार एक परिपूर्ण, सकारात्मक और खुशहाल परिवार है जो मुझे और मेरी बहन को ढेर सारा प्यार, उत्साह और सुरक्षा देता है। मेरे दादा-दादी जी पटियाला के ही एक गाँव में रहते हैं। वे वहाँ खेती का काम सम्भालते हैं। गर्मियों की छुट्टियों में मैं अपने दादा-दादी जी के पास जाता हूँ, वहाँ मेरे चाचा-चाची तथा चचेरे भाई-बहन भी रहते हैं। हम गाँव के अपने घर में खूब मस्ती करते हैं। मेरे माता-पिता मेरे दादा-दादी का बहुत ध्यान रखते हैं। वे जब भी गाँव जाते हैं तो उनकी ज़रूरत का ढेर सारा समान ले जाते है।
मेरा परिवार प्रेम, स्नेह तथा विश्वास जैसे गुणों से भरपूर एक अटूट धागे से बंधा हुआ है। भगवान करे मेरा परिवार दिन दुगनी रात चौगुनी उन्नति करे।

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55. विद्यार्थी और अनुशासन

विद्यार्थी का जीवन समाज और देश की अमूल्य निधि होता है। विद्यार्थी समाज की रीढ़ हैं क्योंकि वे ही आगे चल कर राज नेता बनते हैं। देश की बागडोर थाम कर राष्ट्र निर्माता बनते हैं। समाज तथा देश की प्रगति इन्हीं पर निर्भर है। अतएव विद्यार्थी का जीवन पूर्णत: अनुशासित होना चाहिए। वे जितने अनुशासित बनेंगे उतना ही अच्छा समाज और देश बनेगा।

विद्यार्थी जीवन को सुंदर बनाने के लिए अनुशासन का विशेष महत्त्व है। अनुशासन को जो लोग बंधन समझते हैं वे मुर्खता करते हैं। जिस प्रकार हमारे शरीर का संचालन मस्तिष्क द्वारा होता है और हमारी सब कर्मेंद्रियाँ अपना-अपना कार्य करती हैं। यदि कर्मेंद्रियां अपना-अपना कार्य करना बंद कर दें तो हमारा जीवन कठिन हो जाएगा। इसी भांति अनुशासित जीवन के अभाव में हमारा जीवन नष्ट-भ्रष्ट होकर गतिहीन और दिशाहीन हो जाएगा।

अनुशासन दो शब्दों से मिलकर बना है-अनु और शासन। अनु का अर्थ है पीछे और शासन का अर्थ है आज्ञा । अतः अनुशासन का अर्थ है-आज्ञा के पीछे-पीछे चलना। समाज और राष्ट्र की व्यवस्था और उन्नति के लिए जो नियम बनाए गए हैं उनका पालन करना ही अनुशासन है। अतः हम जो भी कार्य अनुशासनबद्ध होकर करेंगे तो सफलता निश्चित ही प्राप्त होगी। अनुशासन के अंतर्गत उठना-बैठना, खाना-पीना, बोलना-चालना, सीखनासिखाना, आदर-सत्कार आदि सभी कार्य सम्मिलित हैं। इन सभी कार्यों में अनुशासन का महत्त्व है।

अनुशासन की शिक्षा स्कूल की परिधि में ही संभव नहीं है। घर से लेकर स्कूल, खेल के मैदान, समाज के परकोटों तक में अनुशासन की शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अनुशासनप्रियता विद्यार्थी के जीवन को जगमगा देती है। विद्यार्थियों का कर्तव्य है कि उन्हें पढ़ने के समय पढ़ना और खेलने के समय खेलना चाहिए। एकाग्रचित्त होकर अध्ययन करना, बड़ों का आदर करना, छोटों से स्नेह करना ये सभी गुण अनुशासित छात्र के हैं। जो छात्र माता-पिता तथा गुरु की आज्ञा मानते हैं, वे परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करते हैं तथा उनका जीवन अच्छा बनता है। वे आत्मविश्वासी, स्वावलंबी तथा संयमी बनते हैं और जीवन का लक्ष्य प्राप्त करने में सक्षम हो जाते हैं।

अनुशासन भी दो प्रकार का होता है-(i) आंतरिक, (ii) बाह्य। दूसरे प्रकार का अनुशासन परिवार तथा विद्यालयों में देखने को मिलता है। यह भय पर आधारित होता है। जब तक विद्यार्थी में भय बना रहता है तब तक नियमों का पालन करता है। भय समाप्त होते ही वह उद्दण्ड हो जाता है। भय से प्राप्त अनुशासन से बालक डरपोक हो जाता है।

आंतरिक अनुशासन ही सच्चा अनुशासन है। जो कुछ सत्य है, कल्याणकारक है, उसे स्वेच्छा से मानना ही आंतरिक अनुशासन कहा जाता है। आत्मानुशासित व्यक्ति अपने शरीर, बुद्धि, मन पर पूरा-पूरा नियंत्रण स्थापित कर लेता है। जो अपने पर नियंत्रण कर लेता है वह दुनिया पर नियंत्रण कर लेता है। अनुशासन से जीवन सुखमय तथा सुंदर बनता है। अनुशासनप्रिय व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्य को सुगमता से प्राप्त कर लेते हैं। हमें चाहिए कि अनुशासन में रहकर अपने जीवन को सुखी, संपन्न एवं सुंदर बनाएं।

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56. स्वच्छता अभियान

स्वच्छता अभियान को ‘स्वच्छ भारत अभियान’ या ‘स्वच्छ भारत मिशन’ भी कहा जाता है। यह अभियान भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी के स्वप्न स्वच्छ भारत को पूर्ण करने हेतू शुरू किया गया। यह एक राष्ट्रीय स्तर का अभियान है। इस अभियान को अधिकारिक तौर पर राजघाट, नई दिल्ली में 2 अक्तूबर, 2014 को महात्मा गाँधी जी की 145वीं जयन्ती पर प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किया गया। स्वच्छता अभियान में प्रत्येक भारतवासी से आग्रह किया था कि वे इस अभियान से जुड़े और अपने आसपास के क्षेत्रों की साफ-सफाई करें। इस अभियान को सफल बनाने के लिए उन्होंने देश के 11 महत्त्वपूर्ण एवं प्रभावी लोगों को इसका प्रचार करने के लिए चुना जिनमें कुछ ऐसे फिल्मकार, क्रिकेटर तथा महान लोग हैं जिनको लोग सुनना पसंद करते हैं। इस अभियान के अंतर्गत कई शहरी तथा ग्रामीण योजनाएं बनाई गई जिसमें शहरों तथा गांवों में सार्वजनिक शौचालय बनाने की योजनाएं हैं। सरकारी कार्यालयों तथा सार्वजनिक स्थलों पर पान, गुटखा, धूम्रपान जैसे गंदगी फैलाने वाले उत्पादों पर रोक लगा दी गई। इस अभियान को सफल बनाने के लिए स्वयं मोदी जी ने सड़कों पर साफसफाई की थी जिसे देखकर लोगों में भी साफ-सफाई के प्रति उत्साह पैदा हो गया।

स्वच्छता अभियान के लिए बहुत सारे नारों का भी प्रयोग किया गया है ; जैसे
1. एक कदम स्वच्छा की ओर।
2. स्वच्छता अपनाना है, समाज में खुशियां लाना है।
3. गाँधी जी के सपनों का भारत बनाएंगे, चारों तरफ स्वच्छता फैलाएंगे।
स्वच्छता अभियान को अपनाने से कोई हानि नहीं अपितु लाभ ही लाभ होंगे। इससे हमारे आस-पास की हर जगह साफ-सुथरी होगी। साफ-शुद्ध वातावरण में हम और हमारा परिवार बीमार कम पड़ेगा। देश में हर तरफ खुशहाली आएगी और आर्थिक विकास होगा।

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57. मोबाइल के लाभ और हानियां

एक समय था जब टेलीफ़ोन पर किसी दूसरे से बात करने के लिए देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। किसी दूसरे नगर या देश में रहने वालों से बातचीत टेलीफ़ोन एक्सचेंज के माध्यम से कई-कई घण्टों के इन्तज़ार के बाद संभव हो पाती थी किन्तु अब मोबाइल के माध्यम से कहीं भी कभी भी सेकेंडों में बात की जा सकती है। सेटेलाइट मोबाइल फ़ोन के लिए यह कार्य और भी अधिक आसानी से सम्भव हो जाता है। तुरन्त बात करने और सन्देश पहुँचाने को इससे सुगम उपाय सामान्य लोगों के पास अब तक और कोई नहीं है। विज्ञान के इस अद्भुत करिश्मे की पहुंच इतनी सरल, सस्ती और विश्वसनीय है कि आज यह छोटे-बड़े, अमीर-गरीब, बच्चे-बूढ़े सभी के पास दिखाई देता है।

मोबाइल फ़ोन दुनिया को वैज्ञानिकों की ऐसी अद्भुत देन है जिसने समय की बचत कर दी है, धन को बचाया है और दूरियाँ कम कर दी हैं। व्यक्ति हर अवस्था में अपनों से जुड़ा-सा रहता है। कोई भी पल-पल की जानकारी दे सकता है, ले सकता है और इसी कारण यह हर व्यक्ति के लिए उसकी सम्पत्ति-सा बन गया है, जिसे वह सोते-जागते अपने पास ही रखना चाहता है। कार में, रेलगाड़ी में, पैदल चलते हुए, रसोई में, शौचालय में, बाज़ार में मोबाइल फ़ोन का साथ तो अनिवार्य-सा हो गया है। व्यापारियों और शेयर मार्किट से सम्बन्धित लोगों के लिए तो प्राण वायु ही बन चुका है। दफ़्तरों, संस्थाओं और सभी प्रतिष्ठिानों में इसकी रिंग टोन सुनाई देती रहती है।

मोबाइल फ़ोन की उपयोगिता पर तो प्रश्न ही नहीं किया जा सकता। देश-विदेश में किसी से भी बात करने के अतिरिक्त यह लिखित संदेश, शुभकामना संदेश, निमंत्रण आदि मिनटों में पहुँचा देता है। एसएमएस के द्वारा रंग-बिरंगी तस्वीरों के साथ संदेश पहुँचाए जा सकते हैं। अब तो मोबाइल फ़ोन चलते-फिरते कम्प्यूटर ही बन चुके हैं, जिनके माध्यम से आप अपने टी०वी० के चैनल भी देख-सुन सकते हैं। यह संचार का अच्छा माध्यम तो है ही, साथ ही साथ वीडियो गेम्स का भंडार भी है। यह टॉर्च, घड़ी, संगणक, संस्मारक, रेडियो आदि की विशेषताओं से युक्त है। इससे उच्च कोटि की फोटोग्राफ़ी की जा सकती है। वीडियोग्राफ़ी का काम भी इससे लिया जा सकता है। इससे आवाज़ रिकॉर्ड की जा सकती है और उसे कहीं भी, कभी भी सुनाया जा सकता है। एक तरह से यह छोटा-सा उपकरण अलादीन का चिराग ही तो है।

मोबाइल फ़ोन केवल सुखों का आधार ही नहीं है बल्कि कई तरह की असुविधाओं और मुसीबतों का कारण भी है। बार-बार बजने वाली इसकी घंटी परेशानी का बड़ा कारण बनती है। जब व्यक्ति गहरी नींद में डूबा हो तो इसकी घंटी कर्कश प्रतीत होती है। मन में खीझ-सी उत्पन्न होती है। अनचाही गुमनाम कॉल आने से असुविधा का होना स्वाभाविक ही है। मोबाइल फ़ोन से जहाँ रिश्तों में प्रगाढ़ता बढ़ी है वहाँ. इससे छात्रछात्राओं की दिशा में भटकाव भी आया है। फ़ोन-मित्रों की संख्या बढ़ी है जिससे उनका वह समय जो पढ़ने-लिखने में लगना चाहिए था वह गप्पें लगाने में बीत जाता है। इससे धन भी व्यर्थ खर्च होता है। अधिकांश युवा वाहन चलाते समय भी मोबाइल फ़ोन से चिपके ही रहते हैं और ध्यान बँट जाने के कारण बहुत बार दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। मोबाइल फ़ोन अपराधी तत्वों के लिए सहायक बनकर बड़े-बड़े अपराधों के संचालन में सहायक बना हुआ है। जेल में बंद अपराधी भी चोरी-छिपे इसके माध्यम से अपने साथियों को दिशा-निर्देश देकर अपराध, फिरौती और अपहरण का कारण बनते हैं।

मोबाइल फ़ोन अदृश्य तरंगों से ध्वनि संकेतों का प्रेषण करते हैं जो मानव-समाज के लिए ही नहीं अपितु अन्य जीव-जन्तुओं के लिए भी हानिकारक होती हैं। ये मस्तिष्क को प्रभावित करती हैं। कानों पर बुरा प्रभाव डालती हैं और दृश्य के तारतम्य को बिगाड़ती है। यही कारण है कि चिकित्सकों द्वारा पेसमेकर प्रयोग करने वाले रोगियों को मोबाइल फ़ोन प्रयोग न करने का परामर्श दिया जाता है। वैज्ञानिकों ने प्रमाणित कर दिया है कि भविष्य में नगरों में रहने वाली चिड़ियों की अनेक प्रजातियाँ अदृश्य तरंगों के प्रभाव से वहाँ नहीं रह पाएँगी। वे वहाँ से कहीं दूर चली जाएँगी या मर जाएँगी, जिससे खाद्य श्रृंखला भी प्रभावित होगी। प्रत्येक सुख के साथ दुःख किसी-न-किसी प्रकार से जुड़ा ही रहता है। मोबाइल फ़ोन के द्वारा दिए गए सुखों और सुविधाओं के साथ कष्ट भी जुड़े हुए हैं।

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58. आदर्श विद्यार्थी

महात्मा गाँधी कहा करते थे, “शिक्षा ही जीवन है।” इसके समक्ष सभी धन फीके हैं। विद्या के बिना मनुष्य कंगाल बन जाता है, क्योंकि विद्या का ही प्रकाश जीवन को आलोकित करता है। विद्याध्ययन का समय बाल्यकाल से आरंभ होकर युवावस्था तक रहता है। यों तो मनुष्य जीवन भर कुछ-न-कुछ सीखता रहता है, किंतु नियमित अध्ययन के लिए यही अवस्था उपयुक्त है। मनुष्य की उन्नति के लिए विद्यार्थी जीवन एक महत्त्वपूर्ण अवस्था है। इस काल में वे जो कुछ सीख पाते हैं, वह जीवन-पर्यंत उनकी सहायता करता है। इसके अभाव में मनुष्य का विकास नहीं हो सकता। जिस बालक को यह जीवन बिताने का अवसर प्राप्त नहीं हुआ वह जीवन के वास्तविक सुख से वंचित रह जाता है।।

यह वह अवस्था है जिसमें अच्छे नागरिकों का निर्माण होता है। यह वह जीवन है जिसमें मनुष्य के मस्तिष्क और आत्मा के विकास का सूत्रपात होता है। यह वह अमूल्य समय है जो मानव जीवन में सभ्यता और संस्कृति का बीजारोपण करता है। इस जीवन की समता मानव जीवन का कोई अन्य भाग नहीं कर सकता।

ब्रह्मचर्य विकास का मूल है। यही विद्यार्थी को उसके लक्ष्य पर केंद्रित करता है। शरीर, आत्मा और मन में संयम रखकर विद्यार्थियों को उनके लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में सहायता करता है। शालीनता, निष्ठा, नियमित, कर्तव्य भावना तथा परिश्रम की ओर रुचि पैदा करता है और दुर्व्यसन, पतन तथा आत्म-हनन से रक्षा करता है। सदाचार ही जीवन स्वस्थ शरीर में स्वस्थ आत्मा निवास करती है। अतएव आवश्यक है कि विद्यार्थी अपने अंगों का समुचित विकास करे। खेल-कूद, दौड़, व्यायाम आदि के द्वारा शरीर भी बलिष्ठ होता है और मनोरंजन के द्वारा मानसिक श्रम का बोझ भी उतर जाता है। खेल के नियम में स्वभाव और मानसिक प्रवृत्तियाँ भी सध जाती हैं।

महान् बनने के लिए महत्त्वाकाँक्षा भी आवश्यक है। विद्यार्थी अपने लक्ष्य में तभी सफल हो सकता है जब कि उसके हृदय में महत्त्वाकाँक्षा की भावना हो। ऊपर दृष्टि रखने पर मनुष्य ऊपर ही उठता जाता है। मनोरथ सिद्द करने के लिए जो उद्योग किया जाता है, वही आनंद प्राप्ति का कारण बनता है। यही उद्योग वास्तव में जीवन का चिह्न है।

आज भारत के विद्यार्थी का स्तर गिर चुका है। उसके पास न सदाचार है न आत्मबल। इसका कारण विदेशियों द्वारा प्रचारित अनुपयोगी शिक्षा प्रणाली है। अभी तक भी उसी का अंधाधुंध अनुकरण चल रहा है। जब तक इस सड़ी-गली विदेशी शिक्षा पद्धति को उखाड़ नहीं फेंका जाता, तब तक न तो विद्यार्थी का जीवन ही आदर्श बन सकता है और न ही शिक्षा सर्वांगपूर्ण हो सकती है। इसलिए देश के भाग्य विधाताओं को इस ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

PSEB 7th Class Maths Solutions Chapter 1 Integers Ex 1.1

Punjab State Board PSEB 7th Class Maths Book Solutions Chapter 1 Integers Ex 1.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Maths Chapter 1 Integers Ex 1.1

1. Use the appropriate symbol >, <, = to fill in the blanks
PSEB 7th Class Maths Solutions Chapter 1 Integers Ex 1.1 1
Answer:
(i) -3  -5
(ii) – 2  5-4
(iii) 8-4  – 3
(iv) – 6  5-0
(v) 5  8-3
(vi) 0  – 3.

2. Arrange the following integers in ascending order.

Question (i)
– 2, 12, – 43, 31, 7, – 35, – 10
Answer:
Given positive integers are 12, 31, 7
Ascending order is 7 < 12 < 31
Given negative integers are – 2, – 43, – 35, -10
Ascending order is – 43 < – 35 < – 10 < -2.
Hence, all given integers in ascending order are :
– 43 < – 35 < -10 < – 2 < 7 < 12 < 31.
i.e. – 43, – 35, – 10, – 2, 7, 12, 31.

Question (ii)
– 20, 13, 4, 0, – 5, 5
Answer:
Given positive integers are 13, 4, 5
Ascending order is 4 < 5 < 13
Given negative integers are – 20, – 5
Ascending order is -20 < – 5.
Hence all given integers in ascending order are :
– 20 < – 5 < 0 < 4 < 5 < 13
i.e. – 20, – 5, 0, 4, 5, 13

PSEB 7th Class Maths Solutions Chapter 1 Integers Ex 1.1

3. Arrange the following integers in descending order.

Question (i)
0, – 7, 19, – 23, – 3, 8, 46
Answer:
Given positive integers are 19, 8, 46
Descending order is 46 > 19 > 8
Given negative integers are – 7, – 23, – 3
Descending order is – 3 > – 1 > – 23
Hence, all given integers in descending order are :
46 > 19 > 8 > 0 > – 3 > – 7 > – 23
i.e. 46, 19, 8, 0, – 3, – 7, – 23

Question (ii)
30, – 2, 0, – 6, – 20, 8.
Answer:
Given positive integers are 30, 8
Descending order is 30 > 8
Given negative integers are – 2, – 6, – 20
Descending order is-2 > -6 > -20
Hence all given integers in descending order are :
30 > 8 > 0 > -2 > – 6 > – 20
i.e. 30, 8, 0, – 2, – 6, – 20

4. Evaluate :

Question (i)
30 – | -21 |
Answer:
30 – | -21 | = 30 – 21
[∵ | – 21 | = 21]
= 9

Question (ii)
| -25 | – | -18 |
Answer:
| -25 | – | – 18 | = 25 – 18
[∵ | -25 | = 25 and | – 18 | = 18]
= 7

Question (iii)
6 – | -4 |
Answer:
6 – | -4 | = 6 – 4
[∵ | – 4 | = 4]
= 2

Question (iv)
| – 125 | + | 110 |
Answer:
| – 125 | + | 110 | = 125 + 110
[∵ | -125 | = 125 and | 110 | = 110]
= 235

PSEB 7th Class Maths Solutions Chapter 1 Integers Ex 1.1

5. Fill in the blanks :

Question (i)
0 is greater than every …………… integer.
Answer:
Negative

Question (ii)
Modulus of a negative integer is always ……………
Answer:
Positive

Question (iii)
The smallest positive integer is ……………
Answer:
1

Question (iv)
The largest negative integer is ……………
Answer:
-1

Question (v)
Every negative integer is less than every …………… integer.
Answer:
Positive

PSEB 10th Class English Grammar Determiners

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Grammar Determiners Exercise Questions and Answers, Notes.

PSEB 10th Class English Grammar Determiners

1. Mr. Sharma went to bazaar and bought (1) ………… honey from (2)………. shop. (3) ……….. shopkeeper gave him (4) ……….. honey. When Mr. Sharma was coming back, he saw (5) ………… girls who were playing in (6) ground. (7) ………… of them were looking very pretty. (8)………… girls were wearing beautiful clothes. Mr. Sharma was happy to see (9) ……….. girls in (10) ………… joyful mood.
Answer:
1. some 2. a 3. The 4. the 5. some 6. the 7. Some 8. The 9. the 10. a.

2. In my last summer vacation, I went to (1) ……….. historical place. It was (2) ………… very beautiful place. (3) ………. the members of my family went along with me. (4) ……….. father was very fond of visiting (5) ………… place. We didn’t have (6) ……….. luggage with us. (7) ………… people came to see (8) ………… place. We didn’t face (9) ………… difficulty there because we had visited (10) ………… place (11) ………… a time.
Answer:
1. a 2. a 3. All 4. My 6, that 6. much 7. Many 8. that 9. any 10. that 11. many.

PSEB 10th Class English Grammar Determiners

3. Our class teacher organized (1) ……….. birthday party at her home. Only (2) ………… girls were present in (3) ………… party. I bought (4) ………… umbrella as (5) ………… gift for her as I had only (6) ……….. small amount of money with me. Our class teacher was wearing (7) ……….. saree. She was looking very beautiful in (8) ………… attire. We had never seen her in (9) ………… type of attire earlier. (10) ……….. of the girls wished her (11) ……….. long life. She is (12) ………… favourite teacher.
Answer:
1. her 2. a few 3, the 4. an 5. a 6. a 7. a 8. that 9. that 10. All 11. a 3. 12. our.

4. Chandigarh is (1) ……….. capital of Punjab. It is (2) ………… favourite city. I have visited this city (3) ……….. times. I especially like (4) ………… Rose Garden and (5) ………… Sukhana Lake. (6) ………… people come to (7) ……….. city for relaxation. We always stay at (8) ………… uncle’s place whenever we go to Chandigarh. Life in Chandigarh is very busy and people do not have (9) ………… time to spare. (10) ………… people go there to earn (11) ………… livelihood.
Answer:
1, the 2. my 3. many 4. the 5. the 6. Many 7. this 8. my 9. any 10. Many, 11. their

5. I have (1) ……….. friend who looks as stupid as (2) ……….. owl. I tried to bring (3) ………… to senses (4) ……….. times but she is (5) ………… hard nut to crack. She likes (6) ……….. way she lives. She does not want (7) ….. interference in (8) ……….. lifestyle. Though she is (9) ………… educated girl, (10) ………… temperament is not (11) ………… good. May God give (12) ………… wisdom and strength to fight (13) ……….. odds of life .
Answer:
1. a 2. an 3. her 4. many 5. a 6. the 7. any 8. her 9. an 10. her 11. very 12. her 13. the.

6. (1) ………. poor peasant went off early in (2) ………. morning to plough. He saw no one there. Yet someone had certainly been there. He lost (3) ……. piece of bread. It’was (4) ………… imp who had stolen (5) ………… bread. The imp went to (6)………… devil, (7) ………… master. The peasant spoke angrily to (8) ……….. wife. This pleased the devil even more. The devil praised (9) … imp and forgave (10) ………… The next year, (11) ………… imp advised (12) ………… peasant to sow on (13) ………… hill.
Answer:
1. A 2. the 8. his 4. an 5. his 6. the 7. his 8. his 9. the 10. him 11. the 12. the 13. a the.

7. My grandmother was (1) ………… old lady. (2) ………… parents left me with (3) ……….. She clasped me in (4) ……….. arms. She sang (5) ………… songs for me and told me (6) ………… stories. I liked (7) ……….. way she spoke. I acted upon (8) ………… advice she gave to me. She had (9) …………. old porch in (10) ……….. house. All (11) ……….. villagers approached (12) ………. whenever they had (13) ………… problem. She tried to solve (14) ………… problems.
Answer:
1. an 2. My 3. her 4. her 5. many 6. many 7. the 8. the 9. an 10. her 11. the 12, her 13. any 14. their.

8. Rosie sat on (1) ………… bench in (2) ………… garden. She was dressed in (3) ………… eye-catching attire. (4) ……….., elderly gentleman sat by (5) ………… side. It was (6) ………. pleasant afternoon. (7) ………… birds were chirping in (8) ………… garden. She heard the beautiful song of (9) ……….. nightingale. The scene pleased (10) ………… and harmonized with (11) ………… mood. After (12) ………… time, her place on (13) ……….. bench was taken by someone else. She asked him to leave (14) ……….. place but he did not listen to (15) ………. appeal.
Answer:
1. a 2. the 3. an 4. An 5. her 6. a 7. The 8. the 9. a 10. her 11. her 12. some 13. the 14. the 15. her.

9. Ram opened (1) ………… bag and spread out (2) ……… articles. His eyes had (3) ……….. searching look for customers. He was (4) ………… astrologer. He was as much (5) ………… stranger to (6) ………… stars as were (7) ……… customers. He had (8) ………… good knowledge about (9) ………… sufferings of people. He predicted (10) ………… future and (11) ……….. people believed that what he told them was true. He had read (12) ………… good books and he was (13) ………… expert in (14) ………… profession. He earned (15) ……….. money from (16) ………… profession.
Answer:
1. his 2. the: 3. a 4. an 5. a 6: the 7. his 8. a 9. the 10. the 11. the 12. many 13. an 14. his 15. much 16. his.

PSEB 10th Class English Grammar Determiners

10. India is (1) ………… country. We are proud of (2) ………… rich heritage. There are (3) ………… languages spoken in (4) ………… country. Delhi is (5) ………… capital of India. (6) ………… partition of India took place in 1947. Pandit Jawahar Lal Nehru was (7) ………. first Prime Minister of independent India. (8) ……….. people sacrificed their lives to save (9) ………… honour of (10) ………… country. We can’t forget (11) ………… sacrifice and (12) ………… way they fought (13) ………… battles for (14) ………… sake of (15) ………… country.
Answer:
1. our 2. its 3. many 4. our 5. the 6. The 7. the 8. Many 9. the 10. their 11 their 12. the 13. many 14. the 15. their.

किसी संज्ञा से पूर्व-स्थित ऐसे शब्द को Determiner कहा जाता है जो उस संज्ञा को निर्धारित करता हो; जैसे.
A book, an inkpot, the Ramayana, some boys, any book, a few difficulties, a little rest, आदि।

Determiner एक प्रकार से विशेषण (Adjective) ही होता है। अन्तर केवल इतना है कि Adjective किसी संज्ञा की व्याख्या करता है जबकि Determiner किसी संज्ञा को निर्धारित करता है।

Some तथा Any का प्रयोग

Some तथा Any – ये दोनों शब्द मात्रावाचक भी हैं और संख्यावाचक भी।
Some का प्रयोग निम्नलिखित प्रकार के वाक्यों में किया जाता है :

(a) Affirmative वाक्यों में।
1. There are some children outside.
2. Some people say that money makes the mare go.

(b) Interrogative वाक्यों में (किन्तु जब वक्ता को affirmative उत्तर की इच्छा अथवा आशा हो)।
1. Aren’t there some stamps in the drawer ?
2. Didn’t he give you some money ?

Fill in the blanks with suitable Determiners (some, any).

1. I bought …………. honey.
2. He did not buy …………. honey.
3. Did he buy ……….. honey ?
4. He gave me …………. money.
5. He did not give me …………. money.
6. Did he give you …………. money ?
7. …………. girls were playing in the ground.
8. Have you read …………. new novel ?
9. There is not …………. oil in the bottle.
10. Will you please give me …………. milk ?
11. We must find an excuse; ………… excuse will do.
12. This bucket is useless; it hasn’t …………. handle.
13. I must have this book at …………. rate.
14. The railway station is at ………… distance from the village.
15. I shall be away for ………… time.
Answer:
1. some
2. any
3. any
4. some
5. any
6. any
7. Some
8. any
9. any
10. some
11. any
12. any
13. any
14. some
15. some.

PSEB 10th Class English Grammar Determiners

Few तथा Little का प्रयोग

Few – यह एक संख्यावाचक राब्द है मात्रावाचक
Little – यह एक मात्रावाचक राब्द है
Few, a few, the few का प्रयोग

1. Few – यह एक Negative विशेषण है।
Few = not many =

2. A Few – यह एक Affirmative विशेषण है।
A Few = some at least = धोड़ से

3. The few – यह एक ऐसा विशेषण है जिससे Negative तथा Affirmative दोनों अर्थों का बोध होता है
The few = the whole of any particular number = थोड़े बहुत जो भी हों
PSEB 10th Class English Grammar Determiners 1

Fill in the blanks with suitable Determiners.

(few, a few, the few, little, a little, the little)

1. ….. money is better than nothing.
2. I need ……………… days’ rest.
3. His condition is so serious that there is …………… hope of his recovery.
4. …………… women can keep a secret.
5. ………………. knowledge is a dangerous thing.
6. I want ……………… sugar for tea.
7. He read …………….. books he had.
8. He spent …………….. money he had.
9. Only ……………… boys were present in the meeting.
10. Hurry up! We have only ……………… time left.
11. You should stay here ……………. days longer.
12. ……………. remarks he made, were very meaningful.
13. He was very sorry to find that he had ……………… money left.
14. Bring me …………… water to drink. 15. He is a fool and has …………….. sense…
Answer:
1. A little
2. a few
3. little
4. Few
5. A little
6. a little
7. the few
8. the little
9. a few
10. a little
11. a few
12. The few
13. little
14. a little
15. little

PSEB 10th Class English Grammar Determiners

(3) Much, many, many a, fewer तथा less का प्रयोग:
(1) Much तथा less मात्रावाचक विशेषण हैं।
(2) Many तथा fewer संख्यावाचक विशेषण हैं।
(3) Much का प्रयोग uncountable nouns के साथ किया जाता है।
Many का प्रयोग countable nouns के साथ किया जाता है।

(4) Many a – कई बार “Many’ के साथ ‘a’ का प्रयोग किया जाता है।
अर्थ की दृष्टि से ‘many’ तथा ‘many a’ में कोई अन्तर नहीं है। अन्तर केवल इतना है कि –
Many के साथ बहुवचन संज्ञा और बहुवचन क्रिया का प्रयोग किया जाता है।
Many के साथ एकवचन संज्ञा और एकवचन क्रिया का प्रयोग किया जाता है।
Many a man = many x one man = Many men.
1. Many a boy is absent today.
2. Many boys are absent today.

(5) Fewer को few की comparative degree के रूप में प्रयोग किया जाता है। किन्तु
Less को little की comparative degree के रूप में बहुत कम प्रयोग किया जाता है।
यह एक स्वतन्त्र है comparative वास्तव में इस की कोई positive degree नहीं होती है

Fill in the blanks with suitable Determiners.

(much, many, fewer, less)

1. ………. people came to see the fair.
2. The students made ……………. noise in their vacant period.
3. She knows ……………. languages.
4. There aren’t …………….. schools in this town.
5. Don’t spend …………… time in games.
6. There isn’t …………….. sugar in the cup.
7. You must take ……………. meals a day.
8. This work is lighter, so I can do with ……….. manpower.
9. I don’t need………… money.
10. …………….. butter and … eggs will serve the purpose today.
11. Did he make ………… mistakes in his essay ?
12. You will have to pay …………….. money for this house.
13. Were there ……………. boys in the playground ?
14. I have seen her …………….. a time.
15. I had to face …………….. trouble.
Answer:
1. Many
2. much
3. many
4. many
5. much
6. much
7. fewer
8. less
9. much
10. Less, fewer
11. many
12. much
13. many
14. many
15. much.

The Use of Articles

अंग्रेजी भाषा में a, an तथा the को Articles कहा जाता है।
The को Definite Article कहा जाता है।
A तथा An को Indefinite Articles कहा जाता है।
Articles के प्रयोग सम्बन्धी नियम

(1) An का प्रयोग किसी स्वर (vowel : a, e, i, 0, u) से पूर्व अथवा silent h से पूर्व किया जाता है; जैसे
An apple; an egg; an inkpot; an ox; an umbrella; an honest man; an M.A.; etc.

(2) A का प्रयोग किसी व्यंजन (consonant) से पूर्व किया जाता है। ऐसे स्वर जिनका उच्चारण किसी व्यंजन
की भांति किया जाए, उनसे पूर्व भी a का ही प्रयोग किया जाता है; जैसे
A kite; a cart; a monkey; a unit; a useful thing; a one-eyed man; a European country; etc.

PSEB 10th Class English Grammar Determiners

The का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है: –

1. किसी विशेष व्यक्ति अथवा पदार्थ का वर्णन करने के लिए।
(He is the man who beat me.)

2. नदियों के नामों के साथ।
(The Ganga; the Yamuna.)

3. पर्वत-शृंखलाओं के नामों के साथ।
(The Himalayas; the Vindhyas.)

4. समुद्रों के नामों के साथ।
(The Indian Ocean; the Arabian Sea.)

5. प्रसिद्ध पुस्तकों के नामों के साथ।
(The Gita; the Quran.).

6. प्रकृति की अद्वितीय रचनाओं के साथ।
(The sun; the moon; the earth.)

7. Superlative Degree के साथ।
(The best; the noblest; the youngest.)

8. किसी जाति अथवा वर्ग के नाम के साथ।
(The English; the Indians; the French.)

9. उस विशेषण से पूर्व जिसके साथ लगने वाली संज्ञा understood हो। ‘
(The rich should help the poor.)

10. निम्नलिखित प्रकार के मुहावरों के साथ।
(The higher; the better.)

Fill in the blanks with suitable Articles. (a, an, the)

1. I heard …………. loud noise in …………. next house.
2. Ink is …………. useful article.
3. His brother is ………… university professor.
4. Yesterday I saw ……….. European riding on ………… elephant.
5. He gave me ………… one-rupee note.
6. Have you read ………… Ramayana ?
7. He was struck by …………. arrow.
8. ………… Ganga is ………… sacred river.
9. He drives …………. motor car at ………. uniform speed.
10. He is …………. taller of ………… two boys.
11. ……….. Taj Mahal is ……….. most beautiful building.
12. …………. Bible is ………… sacred book of ………… Christians.
13. …………. ewe is standing in ………… field.
14. He was …………. African by birth, not …………. European.
15. It was ………… unique sight.
Answer:
1. a, the
2. a
3. a
4. a, an
5. a
6. the
7. an
8. The, a
9. the, a
10. the, the
11. The, the
12. The, a, the
13. A, the
14. an, a
15. a.

PSEB 10th Class English Main Course Book Solutions Poem 1 Character of a Happy Man

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Main Course Book Poem 1 Character of a Happy Man Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 English Main Course Book Poem 1 Character of a Happy Man

Question 1.
What does the poet want to say in this poem ?
Answer:
The poet wants to say that we should be honest in our thoughts if we want to be happy. We should be free from jealousy. We should not be a slave of passions. We should be content with whatever little we have.

कवि कहना चाहता है कि हमें अपने विचारों में ईमानदार होना चाहिए यदि हम प्रसन्न रहना चाहते हैं। हमें ईर्ष्या रहित होना चाहिए। हमें वासनाओं का दास नहीं होना चाहिए। हमारे पास जो भी थोड़ा बहुत हो, हमें उससे सन्तुष्ट रहना चाहिए।

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Question 2.
Write a note on the central / main idea of the poem.
Or
Question 3.
Write a summary of the poem in your own words.
Answer:
This poem gives the secret of a truly happy person’s life. Such a person leads an honest life. He is jealous of none. He is content with whatever little he has. He is not a slave of passions. He follows the path of goodness.

यह कविता एक वास्तविक रूप से प्रसन्न व्यक्ति के जीवन का रहस्य बताती है। इस तरह का व्यक्ति ईमानदारी का जीवन गुजारता है। वह किसी से ईर्ष्या नहीं करता है। उसके पास जो भी थोड़ा-बहुत होता है, वह उसी से सन्तुष्ट रहता है। वह वासनाओं का दास नहीं होता है। वह अच्छाई के रास्ते का अनुसरण करता है।

Question 4.
Explain the lines : “Whose armour is his honest thought
And simple truth his utmost skill !”
Answer:
One who wants to be truly happy is honest in his thoughts. He does not need any armour for his defence. His honest thoughts are his best defence. He has not to master any skills. His truthful simplicity is his best skill.

ऐसा व्यक्ति जो वास्तव में ही प्रसन्न रहना चाहता है, अपने विचारों में ईमानदार होता है। उसे अपनी सुरक्षा के लिए किसी कवच की ज़रूरत नहीं होती है। उसके ईमानदारी-भरे विचार ही उसकी सर्वोत्तम सुरक्षा होते हैं। उसे कोई हुनर सीखने की ज़रूरत नहीं होती। उसकी सच्चाई-भरी सादगी ही उसका सर्वोत्तम हुनर होती है।

Question 5.
How does a man become really happy ?
Answer:
A man can become really happy by following the rules of goodness. He knows no jealousy. He is honest in his thoughts. He is not a slave of passions. He is content with whatever little he has.

एक व्यक्ति अच्छाई के नियमों का पालन करने से वास्तव में प्रसन्न बन सकता है। उसे किसी ईर्ष्या का पता नहीं होता। वह अपने विचारों में ईमानदार होता है। वह वासनाओं का दास नहीं होता। उसके पास थोड़ा-बहुत जो होता है, वह उसी से सन्तुष्ट रहता है।

Question 6.
How does ‘a religious book or a friend’ give happiness ?
Answer:
A religious book is like a friend and a friend is like a religious book. Both of them keep us on the right path. They stand by us in our loneliness. They give us happiness of the purest kind.

एक धार्मिक पुस्तक एक मित्र के जैसी होती है और एक मित्र एक धार्मिक पुस्तक के जैसा होता है। वे दोनों हमें अच्छे मार्ग पर बनाए रखते हैं। वे हमारे अकेलेपन में हमारा साथ देते हैं। वे हमें अति पवित्र किस्म की प्रसन्नता प्रदान करते हैं।

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Question 7.
How does a contented man have all without having anything ?
Answer:
A contented man has no hope to rise or fear of fall. He remains content with whatever little he has. He may not be the master of lands, but he is the master of his desires. Thus he becomes the master of all, though he may not have anything.

एक सन्तुष्ट व्यक्ति को ऊपर उठने की कोई आशा नहीं होती और नीचे गिरने का कोई भय नहीं होता। वह उसी से सन्तुष्ट रहता है जो थोड़ा-बहुत उसके पास होता है। वह ज़मीनों का मालिक यद्यपि न हो, किन्तु वह अपनी इच्छाओं का स्वामी होता है। इस तरह वह सभी चीज़ों का स्वामी बन जाता है यद्यपि उसके पास कुछ न हो।

Objective Type Questions

Question 1.
A happy man envies ………….
(i) none
(ii) his friends
(iii) everyone
(iv) the rich.
Answer:
(i) none

Question 2.
A happy man obeys the rules of …….
(i) traffic
(ii) king
(iii) goodness government.
Answer:
(iii) goodness government.

Question 3.
A happy man is afraid of death. (True/False)
Answer:
False

Answer each of the following in one word / phrase / sentence :

Question 1.
Who wrote the poem, ‘Character of a Happy Man’ ?
Answer:
Sir Henry Wotton.

Question 2.
What is the armour of a happy man ?
Answer:
His honest thoughts.

Question 3.
What does a happy person not care about ?
Answer:
Worldly fame or people’s opinions.

Question 4.
What is a truly happy man content with ?
Answer:
With whatever little he has.

Question 5.
How do a religious book and a true friend help us ?.
Answer:
They stand by us in loneliness.

Complete the following :

1. A man is ……………….. if he has not to serve another’s will.
2. A truly happy person is one who does not feel …………………. of others.
3. A happy man has no fear to ……………….. or to fall.
Answer:
1. lucky
2. jealous
3. rise.

Write True or False against each statement :

1. A happy man is afraid of death.
2. A happy man prays for worldly gifts.
3. A happy man is not a slave of his passions.
Answer:
1. False
2. False
3. True.

Choose the correct option for each of the following :

Question 1.
A happy person envies ….
(a) nobody
(b) anybody
(c) everybody
(d) somebody.
Answer:
(a) nobody

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Question  2.
One who wants to be …….. should live a free and honest life.
(a) sad
(b) happy
(c) unhappy
(d) disappointed.
Answer:
(b) happy

Reading Comprehension

(1) How happy is he born or taught
That serventh not another’s will;
Whose armour is his honest thought,
And simple truth his utmost skill !

1. Name the poem and the poet.
2. What is the armour of a happy man ?
3. What is his utmost skill ?
Answers
1. The name of the poem is “Character of a Happy Man’and the poet is Sir Henry Wotton.
2. The armour of a happy man is his honest thoughts.
3. His utmost skill is simple truth.

(2) Whose passions not his masters are;
Whose soul is still prepared for death;
Untied unto the world with care
Of public fame or private breath.

1. Name the poem and the poet.
2. What is a happy man not afraid of ?
3. What is a happy man not slave of ?
4. What does a truly happy person not care about ?
Answers
1. The name of the poem is ‘Character of a Happy Man’and the poet is Sir Henry Wotton.
2. A happy man is not afraid of death.
3. He is not slave of his passions.
4. He doesn’t care about worldly fame or people’s opinions.

(3) Who envies none whom chance doth raise
Nor vice; who never understood
How deepest wounds are given with praise;
Nor rules of state, but rules of good.

1. Who does a happy person envy ?
2. What does a happy person not understand ?
3. What does a truly happy person rule over ?
Answer:
1. A happy person envies nobody.
2. He does not understand how deepest wounds are caused by false praise.
3. A truly happy person does not rule over any state. He rules over others not by virtue of any political power but by the goodness of his heart.

(4) Who God doth late and early pray More of
His grace than gifts to lend;
And entertains the harmless day
With a religious book or friend.

1. What does a happy man pray for ?
2. What do you understand by the term ‘harmless day’ ?
3. How does a happy man spend his day ?
Answers:
1. A happy man prays for God’s grace. He does not pray for any worldly gifts.
2. It means the harmless activities of the day.
3. He spends his day in the study of religious books or in the company of some noble friend.

(5) This man is free from servile bonds
Of hope to rise, or fear to fall;
Lord of himself, though not of lands;
And having nothing, yet hath all.

1. What does the poet mean by ‘This mano?
2. What do ‘servile bonds’ refer to ?
3. Explain the last line of the stanza.
Answers:
1. He means the man who wants to be truly happy.
2. The hope to rise and the fear to fall have been called ‘servile bonds’.
3. A happy man may not be the master of lands, but he is a master of himself. Thus he may have nothing, yet he has all.
Or
1. What is a happy man free from ?
2. What does a truly happy person have nothing to fear?
3. What is a happy man master of ?
Answers
1. A happy man is free from servile bonds.
2. He has no fear to rise or to fall.
3. He is a complete master of himself.

Character of a Happy Man Poem Summary in English

Character of a Happy Man Introduction:
In this poem, the poet lists those virtues which enable a person to lead a happy life. He says that one who wants to be happy, should live a free and honest life. Such a person is not a slave of passions. He does not run after worldly fame and wealth. He is jealous of none. He follows the rules of righteousness. He prays to God regularly. He passes his time in the company of religious books or faithful friends. He is not ambitious at all. He is content with whatever little he has.

Character of a Happy Man Summary in English:

A man is lucky if he has not to serve another’s will. He is happily born and taught if he leads a free life of his own. He has no need of an armour for the protection of his body. His honest thoughts serve as his armour. The only art or craft that he knows is that of simple truth. In other words, he is simple at heart and knows no cunning.

A lucky and happy person is one

  • who is not a slave to his passions,
  • whose soul is always prepared to receive death, and
  • who is not tied to the world by care of public fame or the good opinion of others. In other words, he has no worry to earn public fame or the good opinion of others.

A truly happy person is one who does not feel jealous of others. He does not feel jealous of those who rise in life by chance or through the use of wicked means. He does not know how deep wounds are caused by false praise. In simple words, he never indulges in false praise of others. He rules over others not by virtue of any political power but by the goodness of his heart.

A man who prays to God every hour of the day gets true happiness. He prays to God not for any material gains but for mercy. He spends his day in harmless pleasures. He entertains himself by reading a religious book or spending time in the company of a friend.

A man who has all these qualities is free from all hopes and fears. He has no hope to rise or fear of fall. He has complete self-control. He may not be the master of lands, but he is complete master of himself. He may not be having any material possession, yet he lives as if he has everything. In other words, he leads a completely contented life.

Character of a Happy Man Poem Summary in Hindi

Character of a Happy Man Introduction:
इस कविता में कवि उन गुणों के बारे में लिखता है जो किसी व्यक्ति को खुशी-भरा जीवन बिताने में सहायता देते हैं। वह कहता है कि ऐसा व्यक्ति जो प्रसन्न रहना चाहता है, वह एक स्वतन्त्र तथा ईमानदारी-भरा जीवन व्यतीत करता है। वह वासनाओं का दास नहीं होता है। वह सांसारिक प्रसिद्धि तथा दौलत के पीछे नहीं भागता है। वह किसी से ईर्ष्या महसूस नहीं करता है। वह सदाचार के नियमों का पालन करता. है। वह नियमपूर्वक ईश्वर को प्रार्थना करता है। वह अपना समय धार्मिक पुस्तकों अथवा वफादार मित्रों की संगति में व्यतीत करता है। वह तनिक रूप से भी महत्त्वाकांक्षी नहीं होता है। उसके पास जो थोड़ा-बहुत होता है, वह उसी से सन्तुष्ट रहता है।

Character of a Happy Man Summary in Hindi:

कविता का विस्तृत सार

वह व्यक्ति भाग्यशाली होता है जिसे किसी अन्य व्यक्ति की इच्छा की गुलामी नहीं करनी पड़ती है। वह अपने जन्म तथा शिक्षा की दृष्टि से भाग्यशाली होता है यदि वह अपनी इच्छा का स्वतन्त्र जीवन गुजारता हो। उसे अपने शरीर की रक्षा के लिए किसी कवच की ज़रूरत नहीं होती है। उसके ईमानदारी भरे विचार ही उसके कवच का काम करते हैं। एकमात्र कला अथवा कारीगरी जो उसे आती है वह सीधी-सादी सच्चाई कहने की होती है। अन्य शब्दों में, वह दिल का भोला होता है तथा कोई चुस्ती-चालाकी नहीं जानता है।

एक भाग्यशाली तथा प्रसन्न व्यक्ति वह होता है

  • जो अपनी लालसाओं (अर्थात् सांसारिक इच्छाओं) का दास नहीं होता है,
  • जिसकी आत्मा मृत्यु का स्वागत करने के लिए सदा तैयार रहती है, तथा
  • जो समाज में प्रसिद्धि तथा दूसरों की प्रशंसा प्राप्त करने की चिन्ता के कारण संसार से बन्धा नहीं होता है। अन्य शब्दों में, उसे सामाजिक प्रसिद्धि तथा दूसरों की प्रशंसा प्राप्त करने की कोई चिन्ता नहीं होती है।

सच्चे अर्थों में प्रसन्न व्यक्ति वह होता है जो दूसरों से ईर्ष्या नहीं करता है। वह ऐसे लोगों से ईर्ष्या नहीं करता है जो किसी संयोग के कारण अथवा दुष्टतापूर्ण साधनों के प्रयोग द्वारा उन्नति कर लेते हैं। वह यह नहीं जानता है कि झूठी प्रशंसा के कारण कितने गहरे घाव पैदा हो जाते हैं। साधारण शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि वह दूसरों की झूठी प्रशंसा कभी नहीं करता है। वह दूसरों पर किसी राजनैतिक शक्ति के द्वारा नहीं अपितु अपने दिल की अच्छाई के कारण राज्य करता है।

ऐसा व्यक्ति जो दिन भर प्रत्येक पल ईश्वर से प्रार्थना करता है, वही सच्ची खुशी प्राप्त करता है। वह ईश्वर से कोई भौतिक लाभ प्राप्त करने के लिए नहीं बल्कि उसकी कृपा पाने के लिए प्रार्थना करता है। वह निष्कपट खुशियों में अपना दिन बिताता है। वह कोई धार्मिक पुस्तक पढ़ने में या किसी मित्र की संगति में आनन्द प्राप्त करता है।

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

ऐसा व्यक्ति जिसके पास ये सभी गुण होते हैं वह प्रत्येक आशा तथा भय से मुक्त होता है। उसे न तो ऊपर उठने की कोई आशा होती है और न ही नीचे गिरने का कोई भय होता है। उसे स्वयं पर पूरा नियन्त्रण होता है। यद्यपि वह ज़मीन-जायदादों का मालिक न हो किन्तु वह अपना पूरा मालिक होता है। यद्यपि उसके पास कोई भी भौतिक पदार्थ न हो किन्तु वह ऐसे जीवन गुजारता है जैसे उसके पास सब कुछ हो। अन्य शब्दों में वह एक पूरी तरह से सन्तुष्ट जीवन गुजारता है।

Character of a Happy Man Poem Translation in Hindi

1. Lines 1 – 4
How happy is he born or taught
That serveth not another’s will;
Whose armour is his honest thought,
And simple truth his utmost skill !

Word-meanings :
1. happy-भाग्यशाली; 2. born and taught-जन्म तथा शिक्षा की दृष्टि से; 3. serveth – पालन करना; 4. will-इच्छा, आदेश; 5. armour-कवच; 6. utmost-अधिकतम; 7. skill-चतुराई, कौशल।

अनुवाद-उस व्यक्ति का जन्म प्रसन्नतापूर्ण होता है और उसकी शिक्षा भी खुशी देने वाली होती है जिसे दूसरों की आज्ञा का पालन नहीं करना पड़ता, अर्थात् जो स्वतन्त्रता का जीवन गुजारता है। उसके ईमानदारी भरे विचार उसका कवच होते हैं। उसका एकमात्र कौशल सीधी-सादी सच्चाई होती है।

2. Lines 5 – 8
Whose passions not his masters are,
Whose soul is still prepared for death;
Untied unto the world with care
Of public fame or private breath.

Word-meanings :
1. passions—सांसारिक इच्छाएँ; 2. still-सदा; 3. untied—बन्धन मुक्त; 4. unto—के साथ; 5. private breath-दूसरे के निजी विचार।

अनुवाद-ऐसे व्यक्ति की सांसारिक इच्छाएं उसकी स्वामी नहीं होती। उसकी आत्मा मृत्यु का स्वागत करने के लिए, सदा तैयार रहती है। वह प्रसिद्धि तथा दूसरों की प्रशंसा प्राप्त करने की चिन्ता में संसार से बन्धा नहीं रहता है।

3. Lines 9-12
Who envies none whom chance doth raise
Nor vice; who never understood
How deepest wounds are given with praise;
Nor rules of state, but rules of good.

Word-meanings :
1. envies-घृणा करता है, ईर्ष्या करता है; 2. vice-बुराई; 3. stateराजनैतिक सत्ता।

अनुवाद-ऐसा व्यक्ति उनसे ईर्ष्या नहीं करता जो भाग्य से, या बुरे साधनों से प्रगति करते हैं। वह यह नहीं जानता कि झूठी प्रशंसा के कारण बहुत गहरे घाव पैदा होते हैं। वह दूसरों पर राजनैतिक सत्ता नहीं, अपितु दिल की अच्छाई के कारण राज्य करता है।

4. Lines 13-16
Who God doth late and early pray
More of His grace than gifts to lend;
And entertains the harmless day
With a religious book or friend.

Word-meanings :
1. doth does; 2. late and early-प्रत्येक समय, निरन्तर; 3. graceकृपा; 4. gifts-भौतिक लाभ; 5. entertains-प्रसन्नतापूर्वक बिताता है।

अनुवाद-ऐसा व्यक्ति हर समय ईश्वर की प्रार्थना करता है। वह उससे उसकी कृपा मांगता है, उससे भौतिक उपहार नहीं मांगता है। वह निष्कपट खुशियों में दिन बिताता है। वह कोई धार्मिक पुस्तक पढ़ने में या मित्र की संगति में आनन्द प्राप्त करता है।

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

5. Lines 17-20
This man is free from servile bonds
Of hope to rise, or fear to fall;
Lord of himself, though not of lands;
And having nothing, yet hath all.

Word-meanings : 1. servile bonds-दासता के बन्धन; 2. having nothing, yet hath all-यद्यपि उसके पास कुछ भी न हो, तो भी वह ऐसे प्रसन्न रहता है जैसे उसके पास सब कुछ हो, भाव यह कि वह सन्तुष्ट जीवन व्यतीत करता है।

अनुवाद-ऐसा आदमी दासता के बन्धनों से मुक्त होता है। उसे न ऊपर उठने और न नीचे गिरने का डर होता है। वह अपना स्वयं का स्वामी होता है, यद्यपि ज़मीनों का स्वामी न हो। उसके पास फिर भी सब कुछ होता है यदि उसके पास कुछ भी न हो।

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Literature Book Chapter 1 Bed Number-29 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 English Literature Book Chapter 1 Bed Number-29

Question 1.
How did the author lose his eyesight ?
Answer:
One day the author was going on a busy street. Suddenly he was struck by a fast-moving vehicle. As a result of this accident, the author lost his eyesight.

एक दिन लेखक एक व्यस्त सड़क पर चला जा रहा था। अचानक एक तेज गति से आ रहा वाहन उससे आ टकराया। इस दुर्घटना के परिणामस्वरूप लेखक अपनी दृष्टि खो बैठा।

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Question 2.
What did the author do before he lost his eyesight ?
Answer:
The author was a painter. He used to paint pictures before he lost his eyesight.

लेखक एक चित्रकार था। अपनी दृष्टि खोने से पहले वह चित्र बनाया करता था।

Question 3.
Who did the author meet in the hospital ward ? Why was he there?
Answer:
The author met a person named Naeem in the hospital ward. Like author,Naeem too was blind. Both of them had been admitted there for the operation of their eyes.

लेखक अस्पताल के वार्ड में नईम नामक एक व्यक्ति से मिला। लेखक की भान्ति नईम भी अन्धा था। उन दोनों को वहां आंखों के ऑपरेशन के लिए भर्ती किया गया था।

Question 4.
When did the author regain his confidence and how ?
Answer:
Naeem urged the author to start painting again. He would describe a scene and the author would paint it on a canvas. Naeem would praise the paintings highly. Thus the author regained his confidence.

नईम ने लेखक से दुबारा पेन्टिंग शुरू करने का आग्रह किया। वह किसी दृश्य का वर्णन किया करता और लेखक इसे चित्रपट पर चित्रित किया करता। नईम चित्रों की बहुत प्रशंसा किया करता। इस प्रकार
लेखक को अपना विश्वास दोबारा प्राप्त हो गया।

Question 5.
What happened when the author’s second operation failed ? Who consoled him then ?
Answer:
The author was deeply depressed at the failure of his second operation. He had spent his last rupee on it. It was Naeem who consoled him and offered to help him.

लेखक अपने दूसरे आप्रेशन की असफलता पर गहरा निराश हुआ। उसने इस पर अपना अन्तिम रुपया खर्च कर दिया था। यह नईम था जिसने उसे ढांढस बन्धाया और उसकी सहायता करने की
पेशकश की।

Question 6.
How did the author get the money to get operated the third time ? Who helped him ?
Answer:
It was Naeem who helped the author. He would keep with himself each painting made by the author, and would give him the money. He would say that a rich man liked the paintings and bought them.

यह नईम था जिस ने लेखक की मदद की। वह लेखक के द्वारा बनाई गई प्रत्येक पेन्टिंग को अपने पास रख लेता और उसे पैसे दे दिया करता। वह ऐसा कह दिया करता कि एक धनी आदमी को पेन्टिंगैं
पसन्द आ गई थीं और उसने उन्हें खरीद लिया था।

Question 7.
Where was Naeem when the author regained his eyesight ?
Answer:
Naeem had left the hospital by then. He had spent all his money in paying the author for his paintings. Now he had no money to pay for his third operation. So he had to leave the hospital.

नईम तब तक अस्पताल छोड़ कर जा चुका था। उसने अपने सब पैसे लेखक को उसके चित्रों का भुगतान करने में खर्च कर दिए थे। अब उसके पास अपने तीसरे आपरेशन के लिए कोई पैसे नहीं बचे थे। इसलिए उसे अस्पताल छोड़ कर जाना पड़ा।

Question 8.
Did the author know that Naeem was also blind like him ? Give reasons to support your answer.
Answer:
No, the author did not know that Naeem was also blind like him. Naeem would describe for the author the scenes outside the window. He used to admire the author’s paintings. So the author could never imagine that Naeem was blind like him.

नहीं, लेखक नहीं जानता था कि नईम भी उसकी भान्ति अन्धा था। नईम लेखक के लिए खिड़की से बाहर के दृश्यों का वर्णन किया करता। वह लेखक के चित्रों की प्रशंसा किया करता। इस प्रकार लेखक
कभी यह अनुमान भी न लगा पाया कि नईम उसकी भान्ति अन्धा था।

Question 9.
Why could Naeem not get his treatment done ?
Answer:
Naeem had spent all his money in paying for the author’s paintings. He was left with no money for his own treatment. He had to leave the hospital.

नईम ने अपने सारे पैसे लेखक के चित्रों का भुगतान करने में खर्च कर दिए थे। उसके पास अपने खुद के उपचार के लिए कोई पैसे नहीं बचे थे। उसे अस्पताल छोड़ कर जाना पड़ा।

Question 10.
How did the author feel when he learnt that Naeem had left the hospital because he had no money for the treatment ?
Answer:
The author was deeply shocked. He was unable to move for some time. His eyes were filled with tears.

लेखक को गहरा सदमा महसूस हुआ। वह कुछ समय के लिए हिल भी न सका। उसकी आंखें आंसुओं

Question 11.
How could Naeem describe different seasons in detail ?
Answer:
Naeem himself was an artist. He had painted four paintings of different seasons. He had described the colours of these very paintings to the author.

नईम स्वयम् एक कलाकार था। उसने चार विभिन्न मौसमों की पेन्टिंगें बनाईं थीं। उसने इन्हीं पेन्टिंगों के रंगों का वर्णन लेखक को किया था।

Question 12.
What does the message “The goddess of hope smiled on me ……….. and then it vanished.’ mean ?
Answer:
The author had regained his eyesight after the operation. Now he hoped that he would be able to see Naeem who had helped him so much. But when he read Naeem’s letter, all his hope was dashed.

लेखक को आपरेशन के बाद आंखों की ज्योति फिर से प्राप्त हो गई थी। अब उसे आशा थी कि वह नईम को देख पायेगा जिसने उसकी इतनी मदद की थी। परन्तु जब उसने नईम का पत्र पढ़ा तो उसकी सब आशा खण्डित हो गई।

Objective Type Questions

Question 1.
Naeem was in the hospital when the author regained his eyesight. (True/False)
Answer:
False

Question 2.
Who did the author meet in the hospital ward ?
(i) Naeem
(ii) Bobby Gillian
(iii) Subbiah
(iv) Della.
Answer:
(i) Naeem

Question 3.
The author regained his eyesight after the ………..
(i) first operation
(ii) second operation
(iii) third operation
(iv) fourth operation.
Answer:
(iii) third operation

Question 4.
The author was a ……….. before he lost his eyesight.
Answer:
painter

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Question 5.
The author knew that Naeem was also blind ……….. (True/False)
Answer:
False

Question 6.
Naeem urged the author to restart …………..
(i) dancing
(ii) singing
(iii) studying
(iv) painting.
Answer:
(iv) painting.

Answer each of the following in one word / phrase / sentence :

Question 1.
What did the author use to do before he lost his eyesight ?
Answer:
He used to paint pictures.

Question 2.
What did Naeem ask the author to do?
Answer:
He asked him to start painting again.

Question 3.
Who consoled the author when his second operation failed ?
Answer:
Naeem.

Question 4.
Who bought the paintings made by the author when he was in the hospital ?
Answer:
Naeem.

Question 5.
What would Naeem describe for the author ?
Answer:
He would describe the scenes outside the window for the author.

Question 6.
Why did Naeem have no money for his third operation ?
Answer:
He had spent all his money in buying the author’s paintings.

Question 7.
When did the author get deeply shocked ?
Answer:
When he learnt that Naeem had left the hospital because he had no money left for the treatment.

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Question 8.
What does the story, ‘Bed Number-29 describe ?
Answer:
The supreme sacrifice made by Naeem for the sake of the author.

Question 9.
Did the author know that Naeem was also blind like him ?
Answer:
No, the author did not know that Naeem was also blind like him.

Complete the following :

1. The author was an amateur ……………….
2. The author met a person named ………………. in the hospital ward.
3. Naeem himself was an ……………….
4. The author could never imagine that ……………….
5. Naeem had no money to pay for
6. It was Naeem who ……………….
Answer:
1. painter
2. Naeem
3. artist
4. Naeem was blind like him
5. his third operation
6. helped the author.

Write True or False against each statement :

1. Naeem was a short story writer.
Answer:
False

2. The author first met Naeem in the operation theatre in the hospital.
Answer:
False

3. Naeem urged the author to start singing again.
Answer:
False

4. Naeem used to admire the author’s paintings.
Answer:
True

5. Naeem would sell each painting made by the author to a rich man.
Answer:
False

6. The author was deeply depressed at the failure of his third operation.
Answer:
True

Choose the correct option for each of the following:

Question 1.
Who said, “The goddess of hope smiled on me ………. and then it vanished.” ?
(a) Naeem.
(b) The author.
(c) Naeem’s doctor.
(d) The author’s friend.
Answer:
(b) The author.

Question 2.
Naeem too was ………………… like the author.
(a) deaf
(b) blind
(c) dumb
(d) lame.
Answer:
(b) blind

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Question 3.
The unknown customer of the author’s paintings was :
(a) Naeem himself
(b) the author himself
(c) a rich man of the city
(d) Naeem’s brother.
Answer:
(a) Naeem himself

Question 4.
Naeem had provided the author everything needed for
(a) photography
(b) painting
(c) colouring
(d) none of these three.
Answer:
(b) painting

Bed Number-29 Summary & Translation in English

Bed Number-29 Introduction:
This story describes a supreme sacrifice made by Naeem for the sake of the author. The author is an amateur painter. One day he meets with an accident and loses his eyesight. In the hospital, Naeem is his wardmate. He is also known as Number Twenty-nine, which is the number of his bed. He is a very cheeerful person. He describes beautiful scenes to the author and encourages him to start painting again. In the beginning, the author hesitates but agrees at last. Naeem provides him everything for painting.

He praises author’s paintings and tells him that nobody could believe they are painted by a blind man. The doctors operate on the author for the second time. The author has spent his last rupee on this operation. But unfortunately, this operation is also unsuccessful. Naeem offers the author some money, but the author refuses. Naeem finds a rich customer to buy the author’s paintings. With the sale of his paintings, the author gets sufficient money for his third operation. This operation is successful and the author is able to see again.

He wants to meet Naeem, but Naeem has already left the hospital. The author comes to know that the unknown customer of his paintings was Naeem himself. His paintings are just masses of haphazard lines. Naeem was himself blind, but he spent all his money to buy the author’s paintings. He could not have his third operation as he was left with no money. For the same reason, he had to leave the hospital. Under Naeem’s pillow, the author finds four paintings. These paintings were drawn by Naeem, before he was blind. These showed he was a great artist.

Bed Number-29 Summary & Translation in Hindi

Bed Number-29 Introduction:
यह कहानी नईम द्वारा लेखक के लिए किए गए महान् बलिदान का वर्णन करती है। लेखक एक शौकिया पेन्टर है। एक दिन उसके साथ एक दुर्घटना हो जाती है और वह अपनी दृष्टि खो बैठता है। अस्पताल में नईम उसके वार्ड में ही है। उसे नम्बर उन्तीस भी कहा जाता है जोकि उसके पलंग का नम्बर है। वह एक बहुत खुश-तबीयत व्यक्ति है। वह लेखक को सुन्दर दृश्यों का वर्णन करता है और उसे दोबारा पेन्टिंग शुरू करने के लिए प्रोत्साहित करता है। शुरू में लेखक हिचकिचाता है परन्तु अन्त में मान जाता है। नईम पेन्टिंग के लिए उसे हर चीज़ उपलब्ध करवाता है। वह लेखक की पेन्टिंगों की प्रशंसा करता है और उसे बताता है कि कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि इन्हें एक अंधे आदमी ने बनाया है।

डॉक्टर दूसरी बार लेखक का ऑपरेशन करते हैं। लेखक ने इस आपरेशन पर अपना अन्तिम पैसा भी खर्च कर दिया है। परन्तु दुर्भाग्यवश यह ऑपरेशन भी असफल रहता है। नईम लेखक को कुछ पैसे देने की पेशकश करता है, परन्तु लेखक इन्कार कर देता है। नईम लेखक की पेन्टिंगों को खरीदने के लिए एक धनी ग्राहक ढूंढ लेता है। अपनी पेन्टिंगों की बिक्री से लेखक को अपने तीसरे ऑपरेशन के लिए काफ़ी पैसे मिल जाते हैं। यह ऑपरेशन सफल रहता है और लेखक को फिर से दिखने लगता है। वह नईम से मिलना चाहता है, परन्तु नईम पहले ही अस्पताल छोड़ कर जा चुका है। लेखक को पता चलता है कि उसकी पेन्टिंगों का अज्ञात खरीददार स्वयम् नईम था। उसकी पेन्टिंगें आड़ी-तिरछी रेखाओं का मात्र पुंज हैं।

नईम खुद अन्धा था, परन्तु उसने अपने सारे पैसे लेखक की तस्वीरें खरीदने में खर्च कर दिए। वह अपना तीसरा ऑपरेशन नहीं करवा सका, क्योंकि उसके पास कोई पैसा नहीं बचा था। इसी वजह से उसे अस्पताल छोड़ना पड़ा था। नईम के तकिये के नीचे से लेखक को चार पेन्टिंगें मिलती हैं। ये पेन्टिंगें नईम ने अन्धा होने से पहले बनाईं थीं। इनसे पता चलता था कि वह एक महान् कलाकार था।

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

Bed Number-29 Summary & Translation in Hindi:

(page 5-6)
Brakes shrieked,…………. hope to me.

Word-meanings : 1. shriek—चीखना, (यहां) ब्रेक लगने की तीखी आवाज़; 2. struck-आ कर लगी; 3. leapt-कूदा, होने लगा; 4. recall—-याद आना; 5. predawn glow–प्रभात के पहले वाला प्रकाश; 6. dew-bathed grass-ओस से नहाई हुई घास; 7. masterpiece-सर्वोत्तम कृति; 8. crash–टक्कर; 9. nightmare-बुरा स्वप्न; 10. dreadful-भयानक; 11. depression—-अवसाद; 12. stare– टकटकी लगा कर देखना; 13. limped-लंगड़ा कर चलता था।

अनुवाद- ब्रेक लगने की तीखी आवाज़ आई, कोई चीज़ आकर लगी, कोई चिल्लाया और मेरे चारों ओर अंधेरा घिरता आ रहा था। मेरे पूरे शरीर में पीड़ा होने लगी और एक कोमल आवाज़ ने कहा, “श्रीमान, कृपया हिलिए मत। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है।” मैंने समझने की कोशिश की जो भी हुआ था — मैंने प्रभात के पहले होने वाली रोशनी को याद किया; पेड़ और फूल, ओस से नहाई हुई घास, मानो सभी सूर्योदय का इंतज़ार कर रहे थे – मैंने इन सब को अपने कैनवस में कैद कर लिया था, जो मेरी सर्वोत्तम कृति थी, मेरे जीवन की खुशी थी।

इसलिए मैंने उसका नाम ‘जीवन’ रख दिया — उसके बाद मुझे व्यस्त सड़क का दृश्य याद आया, ट्रैफिक का ऊंचा शोर, कार – और वह टक्कर। मेरे हाथ ने आंखों पर बंधी पट्टियों को छुआ। “नहीं, ईश्वर,” मैं कराह उठा, “नहीं, यह नहीं।” । मेरा जीवन आवाजों, भावनाओं, गंधों, स्वादों और भयानक अवसाद का एक दुःस्वप्न बन कर रह गया था। वह अंधेरे का एक पिंजरा था जिसने मुझे कैदी बना कर रखा हुआ था — अंधेरा और मैं, बस हम दोनों थे। समय अब स्थिर हो गया था, अब मेरे लिए सूर्य उदय होना बन्द हो गया था; फूलों का खिलना, जल-धाराएं और निर्मल आकाश अब सिर्फ यादें बन कर रह गए थे। जीवन मेरे साथ ही मरता जा रहा था, एक घंटे से दूसरे घंटे तक मैं पलंग पर लेटा रहता मानो छत की ओर टकटकी लगा कर देख रहा होऊं।

“कहो, क्या हाल है ?” मेरे वार्ड का साथी, नईम, पूछ रहा था जिसे ‘उन्तीस नंबर’ के नाम से जाना जाता था जो कि उसके बैड का नंबर था। वह एक मधुरभाषी और प्रसन्नचित्त व्यक्ति था जो कहानियां सुना कर मुझे सांत्वना देता रहता था और इस प्रकार मेरे मन को जीवन की भयानक वास्तविकताओं से परे ले जाता था। सिवाए इसके कि वह लंगड़ा कर चलता था और उन्तीस नंबर के बैड पर था, मुझे उसके बारे में मुश्किल से ही कुछ पता था। वह फूलों की क्यारियों में फुदकती हुई चिड़ियों का और प्रातःकाल की चमक का वर्णन इतने आश्चर्यजनक ढंग से करता था कि मैं कल्पना करने लगता था मानो उस दृश्य को स्वयं ही देख रहा होऊं। “बोलते रहो,” मैं उससे आग्रह करता जब उसकी आवाज़ आनी बंद हो जाती। इस प्रकार वह सारा दिन अपनी खिड़कियों के बाहर के दृश्य का वर्णन बहुत विस्तार से करता रहता था। उसका ऐसा करना मुझे आशा देता था।

(Page 6)
“Listen,” he said ……….. happened with myself.”

Word-meanings :
1. hobby-शौक के लिए किया गया काम; 2. lash out-फटकारना; 3. hysterical —मानो दौरा पड़ गया हो; 4. moved—बहुत प्रभावित; 5. brightened—जोश आ गया; 6. haystack-घास का ढेर; 7. ablaze चमकदार रंगों से भरी; 8. bask-धूप सेंकना; 9. gasp-लंबी सांसें लेना; 10. uneasy -बेचैनी-भरी; 11. embarrassed—लज्जित कर दिया; 12. after all-कुछ भी हो; 13. plead-विनती करना; 14. attendants—कर्मचारी; 15. miracle-चमत्कार।

अनुवाद- “सुनो,” उसने एक दिन सवेरे कहा। “तुम चित्र बनाना शुरू कर दो, जो जैसा तुमने कहा था, पहले तुम्हारा शौकिया काम हुआ करता था।” मैंने उसे बहुत फटकारा। मैं चिल्लाया, मानो दौरा पड़ गया हो, कि उसे मेरी कला के बारे में मज़ाक करने का कोई अधिकार नहीं था। वह लंगड़ाता हुआ अपने बैड पर चला गया।

कई दिन बीत गए। फिर एक दिन मैंने उससे पूछा कि क्या वह किसी चीज़ से गहरे रूप से प्रभावित हुआ था। “हां,” उसने धीरे-धीरे कहना शुरू किया, “हां, कई चीज़ों से।” अचानक उसकी आवाज़ में जोश आ गया। “हां, बिल्कुल।” “एक बार अक्तूबर की एक सुनहरी शाम के वक्त मैं एक फार्महाउस के पास से गुजर रहा था और मैंने घास का एक ढेर देखा। वह भूसा नहीं था, वह शुद्ध सोना था। चारों तरफ दुनिया रंगों से भरी हुई थीलाल पत्तियां, सफ़ेद बत्तखें जो सुर्ख लाल पश्चिम दिशा में डूबते हुए सूर्य की आखिरी किरणों में धूप सेंक रही थीं। वहां से हिलने में असमर्थ हुआ, मैं वहां खड़ा हो गया और गहरी-गहरी सांसें लेने लगा। “क्या,” मैं चिल्लाया, “तुमने चित्र नहीं पेंट किया ?” एक बेचैनी-भरी खामोशी छा गई जिसने मुझे ऐसा प्रश्न पूछने की लज्जा से भर दिया। कुछ भी हो, मैंने सोचा, हर आदमी कलाकार नहीं होता। “मेरा मतलब है, मैंने तो उसका चित्र पेंट कर लिया होता,” जल्दी-जल्दी मैंने कहा। “तुम क्यों नहीं पेंट कर लेते ? वह दृश्य मेरे मन में है और मैं जानता हूं कि तुम पेंट कर सकते हो। कृपा करके ‘हां’ कह दो, मान जाओ,” उसने विनती की, और इससे पहले कि मैं जान पाऊं कि मैं क्या कर बैठा था, मैंने कह दिया, “हां।”

मेरे जीवन ने एक नया मोड़ ले लिया। उसने मुझे हर वह चीज़ दे दी थी जिसकी ज़रूरत मुझे पेंटिंग में पड़ सकती थी और जब अस्पताल के कर्मचारी आश्चर्य में भर कर चिल्ला उठे जब वे कमरे में आए, तो नईम ने उन्हें चुप करा दिया। फिर चमत्कार शुरू हुआ और उत्सुक, पर लगभग कांपती हुई, उंगलियों से मैं एक उस दृश्य का चित्र बनाने लगा जो मुझे किसी समय बहुत अच्छा लगा था। मैं अपनी याद्दाश्त के कैनवस पर से, लगातार मेहनत करते हुए कागज़ पर उस दृश्य का रेखाचित्र बनाता रहा; मैं अपने काम में इतना डूबा हुआ था कि अपने अंधेपन के विषय में कुछ भी नहीं सोच पा रहा था। मैंने दृश्य का चित्र समाप्त किया और कांपती हुई आवाज़ में नईम को बुलाया। लंबे-लंबे कदमों से वह मेरे बैड की तरफ आया और कुछ समय के लिए मुझे कुछ भी सुनाई नहीं दिया। मेरा दिल डूब गया। “अवश्य ही मैंने कोई भारी गड़बड़ कर दी होगी,” मैं सोचने लगा। फिर उसकी आवाज़ ने खामोशी को भंग कर दिया। “यह बहुत अद्भुत है। यह अविश्वसनीय है, तुम प्रतिभाशाली हो, तुममें विलक्षण प्रतिभा है, कौन कह सकता है कि तुम अंधे हो।” मेरे मन को आराम मिला और मैं कह उठा, “सचमुच! मैं कभी विश्वास नहीं कर सकता था यदि यह मेरे स्वयं के साथ न हुआ होता।”

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

(Page 7-8)
Every morning, …………. living for something.

Word-meanings : 1. dreamy-स्वप्निल, मानो सपने में हो; 2. magic dreamland sceneryजादुई स्वप्नदेश का दृश्य; 3. create-रचना करना, (यहां) चित्र बनाना; 4. anxiety-चिंता; 5. lump in one’s throat गला रुंध जाना, मानो गले में कुछ अटक गया हो; 6. unwound-(पट्टियां) खोली जा रही थीं; 7. buried—गड़ा लिया; 8. console-सांत्वना देना; 9. shock—सदमा लगना; 10. persuadeमनाना; 11. awful-भद्दा, बेकार; 12. strike a bargain-सौदा कर सकना।

अनुवाद- हर सुबह, नाश्ते के बाद, नईम मेरे बैड पर आता, एक स्वप्निल आवाज़ में एक दृश्य का वर्णन करता जिस पर मैं सवेरे से शाम तक काम करता रहता, मानो कि दिन कभी खत्म नहीं होगा। एक कैनवस खत्म होता और दूसरा शुरू होता। यह सब बहुत अद्भुत था। नईम मुझसे जादुई स्वप्नदेश का सारा दृश्य बनवाता। स्वयं को उसके रंगों की दुनिया में गुम करके, और अपने अंधेपन को भूल कर, मैं कागज़ पर वह सब चित्रित करता जो वह कहता। वह हमेशा मेरी प्रशंसा करता और मुझे अपनी प्रतिभा पर ज्यादा, और ज्यादा विश्वास होता गया। वह स्वयं रंगों का मिश्रण करता, और किसी जगह हल्की शेड और किसी और जगह गहरी रेखा का इस्तेमाल करने का सुझाव देता। यह वही समय था जब डाक्टरों ने एक बार फिर मेरा ऑपरेशन किया।

नईम ने पढ़ कर मुझे सुनाने का या मेरी खिड़की के बाहर के दृश्य का वर्णन करने का काम अपने ऊपर ले लिया क्योंकि मैं बैड से हिलने में असमर्थ था। जैसे-जैसे दिन बीते, मेरी चिंता बढ़ती गई – आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि मैं अपनी स्वयं की आंखों से रंगों की दुनिया को देखना चाहता था, पर ज्यादा इसलिए क्योंकि मैंने इसी ऑपरेशन में अपना अंतिम रुपया भी खर्च कर दिया था, और ऑपरेशन के असफल हो जाने की स्थिति में मैंने अंधेरों और कष्टों के विपत्तिपूर्ण जीवन से डरते रहना था। मैं नर्स के साथ डाक्टरों के कमरे की तरफ जा रहा था जब नईम आया और बोला, “आज का दिन बहुत सुंदर है, मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम इसे जल्दी देख सकोगे।” मैंने जवाब देना चाहा पर मानो गले में कुछ अटक गया। मुझे ऑपरेशन थियेटर से आने वाली गंध आई और मैंने एक दस्ताने वाले हाथ को कोमलता से स्वयं को छूते हुए अनुभव किया। मेरी पट्टियां खोली जा रही थीं। दीवार-घड़ी की टिक-टिक सुनाई दे रही थी और एक आवाज़ ने कहा, “अपनी आँखें खोलो,” और मैंने अपनी आँखें खोलीं। वही समाप्त न होने वाला अंधेरा अभी भी मौजूद था।

नर्स की मदद से मैं वापस अपने कमरे में आ गया। तो मेरे सामने ऐसा जीवन था – अंधेरे से भरा हुआ। मैंने अपना सिर तकिए में गड़ा लिया। नईम मेरी बगल में था और मुझे सांत्वना दे रहा था। “मैं जल्दी ही यहां से चला जाऊंगा, नईम,” मैंने एक दिन उदास हो कर कहा। “मेरे पास अब पैसे नहीं बचे, इस ऑपरेशन में मेरा सब कुछ खर्च हो गया।” उसे सदमा लगा। “ओह, नहीं! मेरे पास कुछ पैसे हैं, तुम उन्हें ले सकते हो,” उसने कोमलतापूर्वक कहा। मैंने दृढ़ता से उत्तर दिया, “धन्यवाद, नईम। मैंने कभी भी किसी से कुछ नहीं मांगा, न ही भविष्य में मांगूंगा, फिर भी (पेशकश के लिए) मैं तुम्हारा धन्यवाद करता हूं।” उसने मुझे मनाने की कोशिश की, पर मैंने सुनने से इन्कार कर दिया। एक दिन दोपहर में नईम दौड़ता हुआ मेरे बैड पर आया और कहने लगा, “सुनो यार, मेरा एक दोस्त है जो कला-प्रेमी है। वह तुम्हारे पेंट किए हुए चित्र खरीदना चाहता है।” “ऐसा कैसे हो सकता है, वह तो बहुत भद्दे होंगे!” मैंने सोचा। “वह अमीर है, हम उससे सौदा कर सकते हैं।” मैंने हामी भर दी और नईम खुशी से कमरे में इधर-उधर नाचने लगा। अगले दिन उसने मुझे कुछ कड़कड़ाते हुए नोट पकड़ाए। मेरी प्रसन्नता की कोई सीमा न रही। आशा फिर से ऊंची उठ गई। एक बार फिर मैं किसी उद्देश्य के लिए जीने लगा था।

(Page 8)
I took to ……… paintings in my hand.

Word-meanings :
1. tale—कहानी; 2. off and on—कभी-कभी; 3. purple-जामुनी; 4. splash —छींटे मारना, छितरा जाना; 5. mind’s eye—मन की आँखें ; 6. regained consciousness होश में आया; 7. flash-चमक, कौंध; 8. wheeled back-पहिएदार कुसी में बिठाकर वापिस ले गए; 9. pale -पीला (बीमारी या घबराहट से); 10. vanished—गायब हो गई।

अनुवाद- मैंने फिर से चित्र पेंट करना शुरू कर दिया। हर सुबह नईम मेरी बगल में बैठ जाता और अपनी स्वप्निल कहानी शुरू कर देता। मैं चित्र बनाता और बनाता ही गया। वह अपरिचित खरीददार कभी-कभी आता और मेरे चित्र खरीद लेता। नईम चारों ऋतुओं के दृश्यों का वर्णन इतने भावनात्मक ढंग से करता, विशेषकर सूर्यास्त के दृश्यों का, कि गुलाबी, जामुनी, सफ़ेद, बैंगनी और सुनहरे रंग के सारे शेड मेरे ‘मन की आंखों’ के सामने छितरा जाते।

मेरे सारे चित्र खरीद लिए गए थे और मैंने स्वयं को तीसरे ऑपरेशन के लिए तैयार पाया। ऑपरेशन के बाद जब मुझे होश आया, मुझसे कहा गया कि मैं न तो हिलूं और न ही किसी से बात करूं। बैड नंबर उन्तीस, नर्स ने बताया, खाली हो चुका था। जब मेरी पट्टी खोली जाने वाली थी तो मैंने नईम को बुला लाने को कहा किन्तु नर्स ने कहा कि वह बीमार था और आने में असमर्थ था। डाक्टर ने पट्टी खोली और जब मैंने अपनी आंखें खोली तो रोशनी की एक चमक मेरी आंखों में घुसती चली गई – मैं देख पा रहा था। वे पहिएदार कुर्सी में बिठाकर मुझे वापिस कमरे में ले गए।

मैं ऊंची आवाज़ में बोला, “नईम, नईम।” “सिस्टर, नईम कहां है ?” मैंने पूछा। नर्स का चेहरा पीला पड़ गया जब उसने मुझे नईम का पत्र पकड़ाया – आशा की देवी मुझ पर मुस्कराई और फिर उसी शीघ्रता से, जितनी शीघ्रता से वह आई थी, वह गायब हो गई। दुःख से पागल होकर मैं अलमारी की तरफ भागा, और वहां मेरे सारे चित्र पड़े हुए थे। वे केवल अव्यविस्थत रूप से खींची गई लकीरों के पुंज थे जिनमें कोई रंग नहीं था। नर्स बोली, “वह बहुत महान् व्यक्ति था। उसने अपने सारे पैसों से यह चित्र खरीदे और अस्पताल छोड़ कर चला गया जब उसके पास चित्र खरीदने के लिए पैसे नहीं रहे। वह अपना तीसरा ऑपरेशन भी नहीं करवा सका।”

PSEB 10th Class English Literature Book Solutions Chapter 1 Bed Number-29

“क्या ?” मैं चिल्ला पड़ा, “ऑपरेशन ? कौन सा ऑपरेशन ? “क्यों ? बेशक उसकी आंखों का ऑपरेशन, वह अंधा था,” वह बोली। कुछ देर के लिए मैं हिलने में असमर्थ हो गया। आंसुओं ने मेरी आंखों को धुंधला कर दिया था। उसके तकिए के नीचे वे चार चित्र पड़े हुए थे जिनमें उसने अंधा होने से पहले चार ऋतुओं की पेटिंग की थी। उसने उन्हीं चित्रों का वर्णन मेरे सामने किया था – और इस प्रकार मेरे ‘कैनवस पर वे चित्र पेंट करने की कोशिश की थी। आंसुओं ने मेरी आंखों को धुंधला कर दिया जब मैंने उसके चित्रों को अपने हाथों में लिया।

PSEB 10th Class English Main Course Book Solutions Chapter 1 The Happy Prince

Punjab State Board PSEB 10th Class English Book Solutions English Main Course Book Chapter 1 The Happy Prince Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 English Main Course Book Chapter 1 The Happy Prince

Short Answer Type Questions

Question 1.
Where did the statue of the Happy Prince stand ?
Answer:
It stood on a high column above the city.

यह नगर के ऊपर की तरफ़ एक बहुत ऊँचे स्तम्भ पर खड़ा था।

Question 2.
How was the statue decorated ?
Answer:
The statue was covered with thin leaves of fine gold. It had two bright sapphires for its eyes. There was a large ruby on its sword-hilt.

बुत बढ़िया सोने की बारीक पत्तियों से पूरा ढका हुआ था। उसकी आँखों में दो चमकदार नीलम लगे थे। उसकी तलवार की मूठ पर एक बड़ा लाल माणिक था।

Question 3.
Where was the Swallow going ?
Answer:
The Swallow was going to Egypt. His friends had already gone there.

अबाबील पक्षी मिस्र जा रहा था। उसके मित्र पहले ही वहां जा चुके थे।

PSEB 10th Class English Main Course Book Solutions Chapter 1 The Happy Prince

Question 4.
Why did the Swallow put up between the feet of the Happy Prince ?
Answer:
It was a fine place between the feet of the Happy Prince. Also, there was plenty of fresh air. That was why the Swallow put up there.

प्रसन्नचित्त राजकुमार के पैरों के मध्य की जगह बहुत बढ़िया थी। साथ में वहां पर्याप्त ताजा हवा भी थी। इसीलिए अबाबील वहां ठहर गया।

Question 5.
Where were the drops coming from ?
Answer:
The drops were coming from the eyes of the statue of the Happy Prince.

बूंदें प्रसन्नचित्त राजकुमार के बुत की आँखों से आ रही थीं।

Question 6.
Why was the Happy Prince crying ?
Answer:
The statue of the Happy Prince had been set up very high. He could see all the sorrows and miseries of the city people. It made him cry.

प्रसन्नचित्त राजकुमार का बुत बहुत ऊँचाई पर स्थापित किया गया था। वह शहर के लोगों के सभी दुःखों और कष्टों को देख सकता था। इससे उसे रोना आ गया।

Question 7.
Describe the seamstress in the words of the Prince.
Answer:
The seamstress had a thin and worn face. She was embroidering flowers on a satin gown. Her hands were coarse and red. They were all pricked by the needle.

दर्जिन का चेहरा दुबला और थका हुआ था। वह साटन के एक गाउन पर फूलों की कढ़ाई कर रही थी। उसके हाथ खुरदरे और लाल थे। वे पूरी तरह से सुई के कारण छिदे हुए थे।

Question 8.
Why was the seamstress’s little boy crying?
Answer:
The little boy was ill. He had fever. He was crying for oranges.

नन्हा लड़का बीमार था। उसे बुखार था। वह संतरों के लिए रो रहा था।

Question 9.
How did the Happy Prince and the Swallow help the seamstress?
Answer:
The Happy Prince asked the Swallow to pluck the ruby out of his sword hilt and take it to the seamstress. The Swallow did the same. Thus they helped the seamstress.

प्रसन्नचित्त राजकुमार ने अबाबील से अपनी तलवार की मूठ से माणिक निकाल कर दर्जिन के पास लेजाने को कहा। अबाबील ने ऐसा ही किया। इस प्रकार उन्होंने दर्जिन की सहायता की।

Question 10.
Why did the Swallow feel warm ?
Answer:
The Swallow had done a good deed. The thought of it made him feel warm.

अबाबील ने एक अच्छा काम किया था। ऐसा सोच कर उसे सुखद गर्मी महसूस हुई।

Question 11.
What troubled the young man in the garret ?
Answer:
The young man in the garret was a poor playwright. He was feeling very cold and there was no fire in the grate. He was feeling hungry also.

अटारी में बैठा युवक एक निर्धन नाटककार था। उसे बहुत ठण्ड लग रही थी और अंगीठी में कोई आग नहीं थी। उसे भूख भी लग रही थी।

Question 12.
How was the young man helped ?
Answer:
The Prince asked the Swallow to pluck out the sapphire from his eye and give it to the young man. The Swallow did as he was told. The young man. became happy on getting the sapphire. He was now able to finish his play.

राजकुमार ने अबाबील को आदेश दिया कि वह उसकी आँख से नीलम निकाल ले और युवक को दे आए। अबाबील ने वैसे ही किया जैसा उसे कहा गया था। नीलम पाकर युवक खुश हो गया। वह अब अपना नाटक समाप्त कर सकता था।

PSEB 10th Class English Main Course Book Solutions Chapter 1 The Happy Prince

Question 13.
Why was the match girl crying ?
Answer:
The match girl’s matches had fallen into the gutter. They were all spoiled. That was why she was crying.

माचिस बेचने वाली लड़की की माचिसें नाली में गिर गई थीं। वे सब खराब हो गईं थीं। इसी कारण वह रो रही थी।

Question 14.
The Swallow said to the Prince, “I will stay with you always.” Why ?
Answer:
The Prince had given away the sapphires from his eyes for the poor playwright and the match girl. He had now become completely blind. The. Swallow felt deep pity for the Prince and decided to stay with him for ever.

राजकुमार ने अपनी आँखों के नीलम ग़रीब नाटककार और माचिस बेचने वाली लड़की के लिए दे दिए थे। वह अब पूरी तरह अन्धा हो गया था। अबाबील को राजकुमार के लिए गहरी दया महसूस हुई और उसने सदा के लिए उसके साथ रहने का निश्चय कर लिया।

Question 15.
How did the poor Swallow manage to live in so much cold ?
Answer:
The Swallow tried to keep himself warm by flapping his wings. He got some crumbs to eat at the baker’s door. Thus he managed to live in so much cold.

अबाबील अपने पंख फड़फड़ा कर स्वयम् को गर्म रखने की कोशिश करता। उसे नानबाई के दरवाजे पर से कुछ रोटी के टुकड़े खाने को मिल जाते। इस प्रकार उसने इतनी सर्दी में जीने का उपाय
कर लिया।

Question 16.
Why was the statue of the Happy Prince pulled down ?
Answer:
The statue of the Happy Prince had lost all its gold, its ruby and sapphires. :
Now it looked dull and grey. Therefore, it was pulled down.

प्रसन्नचित्त राजकुमार का बुत अपना सब सोना, अपना माणिक और अपने नीलम खो बैठा था। अब वह भूरा और भद्दा दिखाई देता था। इसलिए इसे नीचे गिरा दिया गया।

Question 17.
What were the two most precious things in the city ?
Answer:
The two most precious things in the city were — the dead Swallow and the broken lead heart of the Happy Prince.

शहर में दो सबसे कीमती वस्तुएं थीं – मृत अबाबील और प्रसन्नचित्त राजकुमार का टूटा हुआ सीसे का दिल।

Long Answer Type Questions

Question 1.
Why was the prince called the Happy Prince ?
Answer:
The Prince lived in a palace. No sorrow was allowed to enter there. He never had a taste of sorrow. He did not know what tears were. He always remained happy. Thus he lived, and thus he died. So his courtiers called him the Happy Prince.

राजकुमार एक महल में रहता था। वहां किसी दुःख को प्रवेश करने की इजाजत नहीं थी। उसने कभी किसी दुःख का अनुभव नहीं किया था। वह नहीं जानता था कि आँसू क्या होते हैं। वह सदा प्रसन्न रहता था। वह इसी प्रकार जीवित रहा और ऐसे ही मर गया। इसलिए उसके दरबारी उसे प्रसन्नचित्त राजकुमार कहते थे।

Question 2.
“I cannot choose but weep.” Why did the Happy Prince say so ?
Answer:
The statue of the Happy Prince had been set up very high. He could thus see all the ugliness of the city and the misery of the poor people. But he could not move from his place. His feet were fastened to the pedestal. Therefore, he could not choose but weep.

हैपी प्रिन्स का बुत बहुत ऊंचा लगा हुआ था। इस प्रकार वह शहर की सारी कुरूपता और ग़रीब लोगों के कष्टों को देख सकता था। परन्तु वह अपने स्थान से हिल नहीं सकता था। उसके पैर चौकी से जकड़े हुए थे। इसलिए, वह रोने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता था।

Question 3.
Comment on the remark — “The living beings always think that gold can make them happy.’
Answer:
Living beings are greedy by nature. They are never satisfied. The more they have, the more they want. They think that happiness comes with more and more gold and money. But this is not true. Real happiness lies in sympathy and contentment. A sympathetic and contented heart enjoys heavenly joy.

जीवित प्राणी स्वभाव से लालची होते हैं। वे कभी सन्तुष्ट नहीं होते। उनके पास जितना अधिक होता है, वे उतना ही ज्यादा चाहते हैं। वे समझते हैं कि प्रसन्नता अधिकाधिक सोने और पैसे से प्राप्त होती है। किन्तु यह सत्य नहीं है। वास्तविक प्रसन्नता सन्तोष और सहानुभूति में निहित होती है। एक सहानुभूतिपूर्ण और सन्तुष्ट हृदय दैवी प्रसन्नता का आनन्द उठाता है।

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Question 4.
Why did the Mayor dislike the statue so much ?
Answer:
The statue of the Happy Prince had lost all its gold, ruby and sapphires. Now it looked dull and grey. It looked no better than a beggar. That was why the Mayor disliked the statue so much. He gave orders to pull it down and melt it in a furnace.

प्रसन्नचित्त राजकुमार का बुत अपना सब सोना, माणिक और नीलम खो बैठा था। अब यह भूरा और भद्दा दिखाई देता था। यह एक भिखारी से कोई बेहतर नहीं लगता था। इसी कारण से मेयर को बुत से इतनी घृणा थी। उसने इसे नीचे गिराने और भट्ठी में पिघलाने का आदेश दे दिया।

Question 5.
Write a short note on the sufferings of the poor people in the city.
Answer:
The poor people in the city lived a miserable life. There was a poor seamstress. She had nothing to give her son who was sick. There was a student who had no firewood to keep himself warm. There was a match girl who had no shoes or stockings. There were hungry and homeless children. There was ugliness and misery everywhere.

नगर में निर्धन लोग एक दयनीय जीवन व्यतीत कर रहे थे। वहां एक निर्धन दर्जिन थी। उसके पास अपने बीमार पुत्र को देने के लिए कुछ नहीं था। वहां एक विद्यार्थी था जिसके पास अपने को गर्म रखने के लिए कोई ईंधन नहीं था। वहां एक माचिस बेचने वाली लड़की थी जिसके पास कोई जूते अथवा जुराबें नहीं थीं। वहां भूखे और बेघर बच्चे थे। वहां हर जगह गन्दगी और दरिद्रता थी।

Question 6.
What is the message conveyed by the author ?
Answer:
The author brings out the secret of true happiness. True happiness comes from serving the poor and the needy. God also blesses such persons. It is clear from the examples of the Happy Prince and the Swallow. The Happy Prince gives his all for the sake of the poor. The poor Swallow sacrifices his life for the sake of the Happy Prince. God blesses both of them. He gives them place in His Paradise.

लेखक सच्ची प्रसन्नता के रहस्य को व्यक्त करता है। सच्ची प्रसन्नता गरीबों और जरूरतमन्दों की सेवा करने से प्राप्त होती है। ईश्वर भी ऐसे लोगों को अपना आशीर्वाद देता है। यह बात प्रसन्नचित्त राजकुमार और अबाबील के उदाहरणों से स्पष्ट हो जाती है। प्रसन्नचित्त राजकुमार अपना सर्वस्व निर्धनों के लिए दे देता है। बेचारा अबाबील हैपी प्रिन्स के लिए अपना जीवन बलिदान कर देता है। ईश्वर उन दोनों को आशीर्वाद देता है। वह उन्हें अपने स्वर्ग में स्थान प्रदान कर देता है।

Vocabulary and Grammar

Question 1.
Fill in the blanks with words that mean both A and B.
Answer:
(b) bank
(c) sound
(d) draw
(e) swallow
(f) close
(g) grate
(h) court.

Question 2.
Fill in the blanks choosing the correct word from the following sets :
Answer:
(a) You have quite drenched me. The patient is sleeping, please keep quiet.
(b) The poet’s heart was filled with joy. Do not hunt the heart. You can be punished for it.
(c) Winter dryness makes her skin coarse. You need good marks to get into this university course.
(d) There is no fire in the grate. She takes great care of her kids.
(e) Do not wander in the rain. The Pyramids are a great wonder.
(f) They pulled down the statue of the Happy Prince. Penalties are laid down in the statute.
(g) Human nature is the same everywhere. All nations believe in the humane treatment of the prisoners of war.
(h) They held their council meeting on Tuesday. I will bear your counsel in mind.
(i) A bird in hand is better than two in the bush. Batter the mixture into a thick paste.
(j) He wrote an official letter. His officious manner made him many enemies.

Question 3.
Match the following words with their antonyms :
Answer:
1. above — below
2. plenty — scarcity
3. bright — dull
4. sorrow — happiness
5. entrance — exit
6. personal — public
7. coarse — smooth
8. delicious — insipid
9. strange — familiar
10. shabby – neat
11. friendly – hostile
12. arrival – departure
13. disease — health
14. angel — devil
15. accept — reject
16. agree — disagree
17. misery — joy
18. appear — vanish
19. create — destroy.

PSEB 10th Class English Main Course Book Solutions Chapter 1 The Happy Prince

Question 4.
Fill in the blanks using of and off :
Answer:
1. Send me a cup of tea.
2. I washed the dirt off my hands.
3. Get off the bus at the next stop.
4. Send me a copy of this story.
5. Did you get a day off this week ?
6. She died of heart failure.
7. It was nice of you to send me flowers.
8. He fell off the bed and broke his leg.
9. He is a member of the Parliament.
10. She is better off without him.

Question 5.
Rewrite the following sentences in their past perfect and past perfect continuous form :
Answer:
1. (a) The town had made all preparations.
(b) The town had been making all preparations.

2. (a) He had passed by the cathedral tower.
(b) He had been passing by the cathedral tower.

3. (a) You had done a good action.
(b) You had been doing a good action.

4. (a) I had come to bid you goodbye.
(b) I had been coming to bid you goodbye.

5. (a) He had slept at the Prince’s feet.
(b) He had been sleeping at the Prince’s feet.

6. (a) The Swallow had flown over the great city.
(b) The Swallow had been flying over the great city.

7. (a) They had pulled down the statue of the Happy Prince.
(b) They had been pulling down the statue of the Happy Prince.

8. (a) He had picked up crumbs outside the baker’s door.
(b) He had been picking up crumbs outside the baker’s door.

9. (a) They had melted the statue in a furnace.
(b) They had been melting the statue in a furnace.

10. (a) The poor little Swallow had grown colder and colder.
(b) The poor little Swallow had been growing colder and colder.

Question 6.
Punctuate the following paragraph :
Answer:
Jack shouted back at his accuser, “You want to massacre 150,000 people for nothing !” Spitting out his words with fury, Roger, the senior officer, in the room shouted, “I have never seen such a gutsless general like you, Jack !”

Question 7.
Make adjectives and use them in sentences :
Answer:
1. Brilliant – He is a brilliant student.
2. Quick – She was quick to point out all the mistakes I’d made.
3. Nervous – Interviews always make me nervous.
4. Bright – Tomorrow’s weather will be cloudy with bright periods.
5. Eager – I as eager to know my exam result.
6. Careful – Be careful while crossing the road.
7. Critical – The patient’s condition is critical.
8. Simple – This machine is quite simple to use.
9. Sudden – Their departure was very sudden.
10. Loving – She is my loving daughter.

Objective Type Questions

Question 1.
The drops were coming from the …………….. of the Happy Prince.
Answer:
1. eyes

Question 2.
The son of the seamstress was crying because he wanted to go to Egypt. (True, False)
Answer:
False

Question 3.
The poor seamstress was given the …………….. by the swallow.
(i) gold
(ii) sapphire
(iii) ruby
(iv) oranges.
Answer:
(iii) ruby

Question 4.
Who ordered to pull down the statue of the Happy Prince ?
(i) Mayor
(ii) Swallow
(iii) Seamstress
(iv) Playwright.
Answer:
(i) Mayor

Question 5.
The statue of the Happy Prince was decorated with diamonds. (True/False)
Answer:
False

Question 6.
Who was sent to bring the two most precious things from the city ?
(i) Mayor
(ii) God
(iii) Angel
(iv) Match-girl.
Answer:
(iii) Angel

Question 7.
The man in the garret was writing a …
Answer:
play.

Answer each of the following in one word / phrase / sentence :

Question 1.
What type of palace did the Happy Prince live in ?
Answer:
It was a palace where no sorrow was allowed to enter.

Question 2.
Where did the statue of the Happy Prince stand ?
Answer:
It stood on a tall column high above the city.

Question 3.
Where were the friends of the Swallow waiting ?
Answer:
They were waiting for the Swallow in Egypt.

Question 4.
What was the seamstress doing ?
Answer:
She was embroidering flowers on a satin gown.

Question 5.
What did the Swallow take to the seamstress’s house ?
Answer:
She took the ruby from the sword-hilt of the Happy Prince.

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Question 6.
What was used for the eyes of the Happy Prince ?
Answer:
Two bright sapphires were used as the eyes of the Happy Prince.

Question 7.
What was the heart of the Happy Prince made of ?
Answer:
It was made of lead.

Question 8.
Who got a sapphire from the Swallow ?
Answer:
The playwright got a sapphire from the Swallow.

Question 9.
Why did the Swallow feel warm even when it was biting cold outside ?
Answer:
Because he had done a good deed.

Question 10.
Why was the match girl weeping ?
Answer:
She was weeping because her matches had fallen into the gutter.

Question 11.
Who brought God the leaden heart and the dead bird ?
Answer:
One of God’s angels brought them to Him.

Question 12.
What were the two most precious things in the city ?
Answer:
They were the leaden heart of the Happy Prince and the dead bird.

Complete the following :

1. There was no fire in the play wright’s …………..
2. The seamstress was embroidering . ……………… on a satin gown.
3. The Swallow plucked out the …………………. from the Prince’s sword.
4. The Swallow decided to put up between the ……………… of the Happy Prince.
5. The statue of the Happy Prince was gilded all over with …………. of fine gold.
6. The Happy Prince did not know what ………………… were when he lived . in the palace.
7. From above, Happy Prince could see the . ……….. of the city.
8. The Mayor said, “He is little better than a ……………….
Answer:
1. grate
2. flowers
3. ruby
4. feet
5. leaves
6. tears
7. misery
8. beggar.

Write True or False against each statement :

1. God gave a place to the Happy Prince in his city of gold.
2. Swallow’s friends were waiting for him in Egypt.
3. The play wright was a very rich man.
4. The Happy Prince lived a miserable life when he was alive.
5. The statue was set up in a park.
6. The heart of the Happy Prince was made of lead.
7. The Town Councillors praised the statue of Happy Prince. –
Answer:
1. True
2. True
3. False
4. False
5. False
6. True
7. False

Choose the correct option for each of the following :

Question 1.
In his palace, the Happy Prince had lived …………..
(a) a happy life
(b) a miserable life
(c) a student life
(d) a sorrowful life.
Answer:
(a) a happy life

Question 2.
The statue of the Happy Prince stood ……
(a) in the palace
(b) inside a park
(c) on a platform
(d) on a tall column.
Answer:
(d) on a tall column.

Question 3.
The seamstress …………. when the Swallow came to her house.
(a) was talking to her son
(b) was playing with her son
(c) was fanning the boy’s head
(d) was asleep.
Answer:
(d) was asleep.

Question 4.
The statue was gilded all over with : ………….
(a) precious jewels
(b) solid gold
(c) thin leaves of gold
(d) artistic paintings.
Answer:
(c) thin leaves of gold

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Question 5.
The Swallow’s friends had already gone to …………
(a) West Africa
(b) South Africa
(c) Egypt
(d) none of the above.
Answer:
(c) Egypt

Question 6.
The Swallow took shelter ……………….. of the Prince.
(a) between the feet
(b) on the shoulder
(c) on the hand
(d) on the sword.
Answer:
(a) between the feet

The Happy Prince Summary & Translation in English

The Happy Prince Introduction:
The Happy Prince lived a carefree life as long as he was alive. He lived in the palace of happiness. No sorrow was allowed to enter his palace. His courtiers called him the Happy Prince. So he lived and so he died. After his death, a statue of the Happy Prince was set up on a tall column. The statue was made of lead but was covered with gold. The eyes were made of sapphires and the sword-hilt had a ruby on it. The Happy Prince had a very kind heart. When he saw the misery of the poor people, his heart melted with pity. He gave away his ruby, sapphires and all the gold for the poor. He became blind and his body looked ugly. But he was happy at heart because real happiness comes from serving the poor and the needy. Though his heart was made of lead, yet it broke when his beloved Swallow died. God blessed the Happy Prince and was pleased to have him in His city of gold.

The Happy Prince Summary & Translation in English:

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High above the city, on a tall column? stood the statue of the Happy Prince. He was gilded all over with thin leaves of fine gold; for eyes, he had two bright sapphires, and a large red ruby glowed on his sword-hilt?
One night, there flew over the city a little Swallow. His friends had gone away to Egypt six weeks before, but he had stayed behind; then he decided to go to Egypt too.
All day long he flew, and at night time he arrived at the city.
“Where shall I put up ?” he said, “I hope the town has made preparations.”
Then he saw the statue on the tall column.

“I will put up there,” he cried. “It is a fine position with plenty of fresh air.” So he alighted just between the feet of the Happy Prince.
“I have a golden bedroom,” he said softly to himself as he looked round, and he prepared to go to sleep; but just as he was putting his head under his wing a large drop of water fell on him. “What a curious thing !” he cried. “There is not a single cloud in the sky; the stars are quite clear and bright, and yet it is raining.” Then another drop fell.
“What is the use of a statue if it cannot keep the rain off ?” he said. “I must look for a good chimney pot,” and he determined to fly away. But before he had opened his wings, a third drop fell, and he looked up, and saw — Ah ! what did he see ?

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The eyes of the Happy Prince were filled with tears?, and tears were running down his golden cheeks. His face was so beautiful in the moonlight that the little Swallow was filled with pity.
“Who are you ?” he said. “I am the Happy Prince.”

“Why are you weeping then ?” asked the Swallow. “You have quite drenched me.”
“When I was alive and had a human heart,” answered the statue, “I did not know what tears were, for I lived in the palace, where sorrow is not allowed to enter. My courtiers? called me the Happy Prince, and happy indeed I was. So I lived, and so I died. And now that I am dead, they have set me up here so high that I can see the ugliness and all the miseryo of my city, and though my heart is made of lead yet I cannot chooseli but weep.”

“What ! Is he not solid gold ?” said the Swallow to himself. He was too political to make any personal remarks.
“Far away,” continued the statue in a low musical voice, “far away in a little street there is a poor house. One of the windows is open, and through it I can see a woman seated at a table. Her face is thin and worn, and she has coarse, red hands, all pricked by the needle, for she is a seamstress. She is embroidering flowers on a satin gown for the loveliest of the Queen’s maids of honour, to wear at the next Court ball?. In a bed in the corner of the room, her little boy is lying ill. He has fever?, and is asking his mother to give him oranges. His mother has nothing to give him but river water, so he is crying. Swallow, little Swallow, will you not bring her the ruby out of my sword-hilt ? My feet are fastened to this pedestal and I cannot move.”

“I am waited for in Egypt,” said the Swallow. “My friends are flying up and down the Niles, and talking to the lotus flowers. Soon they will go to sleep.”

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The Prince asked the-Swallow to stay with him for one night and be his messenger?. “The boy is so thirsty, and the mother so sad,” he said.
“I don’t think I like boys,” answered the Swallow. “I want to go to Egypt.”
But the Happy Prince looked so sad that the little Swallow was sorry. “It is very cold here,” he said. But he agreed to stay with him for one night and be his messenger.

“Thank you, little Swallow,” said the Prince.
The Swallow picked out the great ruby from the Prince’s sword, and flew away with it in his beak over the roofs of the town.
He passed by the cathedral10 tower, where the white marble angels were sculptured. He passed by the palace and heard the sound of dancing. A beautiful girl came out on the balcony with her lover.

“I hope my dress will be ready in time for the State ball,” she answered. “I have ordered flowers to be embroidered on it, but the seamstresses are so lazy.” He passed over the river, and saw the lanterns hanging on the masts of the ships. At last he came to the poor house and looked in. The boy was tossing feverishly on his bed, and the mother had fallen asleep; she was so tired. In he hopped, and laid the great ruby on the table beside the woman’s thimble. Then he flew gently round the bed, fanning the boy’s forehead with his wings. “How . cool I feel !“ said the boy, “I must be getting better,” and he sank into a delicious slumber.

Then the Swallow flew back to the Happy Prince, and told him what he had done. “It is curious,” he remarked, “but I feel quite warm now, although it is so cold.”

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“That is because you have done a good action,” said the Prince. And the little Swallow began to think and then fell asleep. Thinking always made him sleepy. When the moon rose, he flew back to the Happy Prince. “Have you any commissions for Egypt ?“ he cried. “I am just starting.”

“Swallow, Swallow, little Swallow,”said the Prince, “Will you stay with me one night longer ?“ “I am waited for in Egypt,” answered the Swallow.

“Swallow, Swallow, little Swallow,” said the Prince, “far away across the city I see a young man in a garret?. He is leaning over a desk covered with papers, and in the glass by his side there is a bunch of withered violets. His hair is brown and crisp and his lips are red as pomegranates, and he has large and dreamy eyes. He is trying to finish a play for the Director of the Theatre, but he is too cold to write any more. There is no fire in the grate”, and hunger has made him faint.”

“I will wait with you one night longer,” said the Swallow, who really had a good heart. He asked if he should take another ruby to the young play wrigh to. “Alas ! I have no ruby10 now,” said the Prince. “My eyes are all that I have left. They are made of rarell sapphires, which were brought out of India a thousand years ago.” He ordered the Swallow to pluck out one of them and take it to the playwright. “He will sell it to the jeweller, and buy firewood , and finish his play,” he said.

“Dear Prince,” said the Swallow, “I cannot do that,” and he began to weep.
“Swallow, Swallow, little Swallow,” said the Prince, “do as I command you.”

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So the Swallow plucked out the Prince’s eye, and flew away to the student’s garret. It was easy enough to get in, as there was a hole in the roof. Through this he darted, and came into the room. The young man had his head buried in his hands, so he did not hear the flutter of the bird’s wings, and when he looked up he found the beautiful sapphire lying on the withered violets.

“I am beginning to be appreciated?,” he cried. “This is from some great admirer. Now I can finish my play,” and he looked quite happy.
The next day, the Swallow flew down to the harbour. He sat on the mast of a large vessel and watched the sailors working. “I am going to Egypt,” cried the Swallow, but nobody minded, and when the moon rose he flew back to the Happy Prince.

“I have come to bid you goodbye,” he cried.
“Swallow, Swallow, little Swallow,” said the Prince, “will you not stay with me one night longer ?”
“It is winter,” answered the Swallow, “and the snow will soon be here. In Egypt, the sun is warm on the green palm trees?, and the crocodiles8 lie in the mud and look lazily about them.”

“In the square below,” said the Happy Prince, “there stands a little match girl. She has let her matches fall in the gutterlo, and they are all spoiled. Her father will beat her if she does not bring home some money, and she is crying. She has no shoes or stocking, and her little head is barell. Pluck out my other eye, and give it to her, and her father will not beat her.” “I will stay with you one night longer,” said the Swallow, “but I cannot pluck out your eye. You would be quite blind then.”

“Swallow, Swallow, little Swallow,” said the Prince, “do as I command you.”
So he plucked out the Princess other eye, and darted down with it. He swooped’ past the match girl, and slipped the jewel into the palm of her hand. “What a lovely bit of glass !“ cried the little girl; and she ran home, laughing.
Then the Swallow came back to the Prince. “You are blind now,” he said, “so I will stay with you always”
“No, little Swallow,” said the poor
Prince, “you must go away to Egypt.”
“No, I will stay with you always,” said the Swallow, and he slept at the Prince’s feet.

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All the next day, he sat on the Prince’s shoulder, and told him stories of what he had seen in strange lands.
“Dear little Swallow,” said the Prince, “you tell me of marvellous things, but more marvellous than anything is the suffering of men and of women. There is no Mystery so great as Misery. Fly over my city, little Swallow, and tell me what you see there.”

So the Swallow flew over the great city, and saw the rich making merry in their beautiful houses, while the beggars were sitting at the gates. He flew into dark lanes, and saw the white faces of starving children looking out listlessly at the black streets. Under the archway of a bridge two little boys were lying in each other’s arms to try to keep themselves warm. “How hungry we are !” they said. “You must not lie here,” shouted the watchman, and they wandered out into the rain.

Then he flew back and told the Prince what he had seen.
“I am covered with fine gold,” said the Prince. “You must take it off, leaf by leaf, and give it to the poor; the living always think that gold can make them happy.” Leaf after leaf of the fine gold, the Swallow picked off, till the Happy Prince looked quite dull1 and grey. Leaf after leaf of the fine gold he brought to the poor and the children’s faces grew rosier, and they laughed and played in the street. “We have bread now !” they cried.

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Then the snow came, and after the snow came the frost. The streets looked as if they were made of silver. Everybody went about in furs, and the little boys wore scarlet caps and skated on the ice. The poor little Swallow grew colder and colder, but he would not leave the Prince; he loved him too well. He picked up crumbs outside the baker’s door when the baker was not looking, and tried to keep himself warm by flapping his wings.

But at last he knew that he was going to die. He had just enough strength to fly to the Prince’s shoulder once more. “Goodbye, dear Prince !” he murmured, “will you let me kiss your hand ?”
“I am glad that you are going to Egypt at last, little Swallow,” said the Prince. “You have stayed too long here but you must kiss me on the lips, for I love you.” “It is not to Egypt that I am going,” said the Swallow. “I am going to the House of Death. Death is the brother of Sleep, is he not ?”

And he kissed the Happy Prince on the lips, and fell down dead at his feet.
At the moment, a curious crack sounded inside the statue, as if something had broken. The fact is that the leaden heart had snapped right in two. It certainly was a dreadfully hard frost.

Early the next morning, the Mayor was walking in the sqaure below in company with the Town Councillors . As they passed the column, he looked up at the statue. “Dear me! how shabby the Happy Prince looks !” he said.

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“How shabby, indeed !” cried the Town Councillors, who always agreed with the Mayor and they went up to look at it.
“The ruby has fallen out of his sword, his eyes are gone, and he is golden no longer,” said the Mayor. “In fact, he is little better than a beggar !”
“Little better than a beggar,” said the Town Councillors.

“And here is actually a dead bird at his feet!” continued the Mayor. “We must really issue a proclamation that birds are not to be allowed to die here.” And the Town Clerk made a note of the suggestion.
So they pulled down the statue of the Happy Prince. “As he is no longer beautiful he is no longer useful,” said the Art Professor at the University.

Then they melted the statue in a furnace. “What a strange thing !” said the overseer of the workmen at the foundry. “This broken lead heart will not melt in the furnace. We must throw it away.” So they threw it on a dust-heap1 where the dead Swallow was also lying.

“Bring me the two most precious things in the city,” said God to one of His Angels; and the Angel brought Him the leaden heart and the dead bird.
“You have rightly chosen,” said God,
“for in my garden of Paradise, this little bird shall sing for ever more and in my city of gold the Happy Prince shall praise me.”

The Happy Prince Summary & Translation in Hindi

The Happy Prince Introduction:
प्रसन्नचित्त राजकुमार जब तक जीवित था, उसने एक चिन्ता-मुक्त जीवन व्यतीत किया। वह खुशी के महल में रहता था। किसी भी प्रकार के दुःख को इस महल में घुसने की आज्ञा नहीं थी। उसके दरबारी उसे प्रसन्नचित्त राजकुमार कहा करते थे। वह इसी तरह खुशी में जिया और खुशी में ही मरा। उसकी मृत्यु के पश्चात् प्रसन्नचित्त राजकुमार का एक बुत एक ऊँचे स्तम्भ पर लगा दिया गया। बुत सीसे (सिक्के) का बना था लेकिन यह पूरा सोने से ढका हुआ था।

उसकी आंखें नीलम की बनी थीं और उसकी तलवार के मुठे पर एक माणिक लगा था। प्रसन्नचित्त राजकुमार का हृदय बहुत दयालु था। जब उसने ग़रीब लोगों का दुःख देखा तो उसका दिल दया से पिघल गया। उसने अपना माणिक, नीलम और सारा सोना गरीबों के लिए त्याग दिया। वह अन्धा हो गया और उसका शरीर भद्दा दिखाई देने लगा।

लेकिन उसका मन प्रसन्न था क्योंकि वास्तविक प्रसन्नता ग़रीबों तथा जरूरतमंदों की सहायता करने से मिलती है। यद्यपि उसका दिल सीसे का बना था, यह टूट कर दो टुकड़े हो गया जब उसका प्रिय अबाबील पक्षी मर गया। ईश्वर ने प्रसन्नचित्त राजकुमार को अपना आशीर्वाद दिया तथा उसे प्रसन्नतापूर्वक अपने सोने के नगर अर्थात् स्वर्ग में स्थान प्रदान कर दिया।

The Happy Prince Summary & Translation in Hindi:

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नगर में बहुत ऊँचे स्तम्भ पर प्रसन्नचित्त राजकुमार | का बुत खड़ा था। वह पूरा सोने की बारीक पत्तियों से । ढका था; उसकी आंखों के लिए दो चमकदार नीलम थे, और उसकी तलवार की मूठ पर एक बड़ा लाल माणिक चमक रहा था।
एक रात उस शहर के ऊपर एक छोटा अबाबील | उड़ता हुआ आया। उसके मित्र छ: सप्ताह पूर्व मिस्र चले – गए थे, किन्तु वह पीछे रह गया था; फिर उसने भी मिस्त्र जाने का निश्चय कर लिया।

दिन भर वह उड़ता रहा और रात के समय वह नगर – में आ पहुंचा।
“मैं कहां ठहरूंगा ?” उसने कहा, “मुझे आशा है कि नगर ने (मुझे ठहराने की) तैयारियां कर ली हैं।”
फिर उसने ऊंचे स्तम्भ पर खड़े बुत को देखा।

“मैं वहां ठहरूंगा,” उसने ऊंचे स्वर में कहा। “यह एक अच्छा स्थान है जहां पर्याप्त ताजा हवा आ रही है।” इसलिए वह प्रसन्नचित्त राजकुमार के पैरों के बिल्कुल मध्य में उतर आया।
“मुझे एक सुनहरा सोने का कमरा मिल गया है,” उसने चारों ओर देखते हुए अपने आप से धीमे स्वर में कहा, और वह सोने के लिए तैयार हो गया; परन्तु जैसे ही वह अपना सिर अपने पंख के नीचे रखने लगा, पानी की एक बड़ी बूंद उस पर आ गिरी। “कितनी अजीब बात है!” वह चिल्लाया। “आकाश में एक भी बादल नहीं है; तारे बिल्कुल साफ़ और चमकदार हैं, और फिर भी वर्षा हो रही है।”
तभी एक और बूंद आ गिरी।

“एक बुत का क्या लाभ है यदि वह वर्षा से बचा नहीं सकता ?” उसने कहा। “मुझे किसी अच्छी चिमनी (धुंआकश) की तलाश करनी चाहिए,” और उसने वहां से उड़ जाने का निश्चय कर लिया।
लेकिन इससे पहले कि वह अपने पंख खोलता, एक तीसरी बूंद आ गिरी, और उसने ऊपर को नज़र उठाई और देखा – आह! उसने क्या देखा ?

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प्रसन्नचित्त राजकुमार की आँखें आँसुओं से भरी थीं,और आँसू उसके सुनहरे गालों से नीचे बह रहे थे। उसका चेहरा चांदनी में इतना सुन्दर लग रहा था कि नन्हा अबाबील करुणा से भर गया।
“तुम कौन हो ?” उसने कहा।
“मैं प्रसन्नचित्त राजकुमार हूँ।”
“फिर तुम रो क्यों रहे हो ?”
अबाबील ने पूछा। “तुमने मुझे पूरा भिगो दिया है।”

“जब मैं जीवित था और एक मानव जैसा दिल रखता था,” बुत ने उत्तर दिया, “मैं नहीं जानता था कि | आँसू क्या होते हैं, क्योंकि मैं महल में रहा करता था, जहाँ दुःख का प्रवेश वर्जित है। मेरे दरबारी मुझे प्रसन्नचित्त राजकुमार कहा करते थे और मैं वास्तव में ही प्रसन्न था। इसी तरह मैं प्रसन्नता में जिया और प्रसन्नता में ही मरा। और अब जब कि मैं मर चुका हूँ, उन्होंने मुझे यहां इतनी ऊंचाई पर स्थापित कर दिया है कि मैं अपने शहर की कुरूपता और इसके सारे दुःखों को देख सकता हूँ, और यद्यपि मेरा दिल सीसे का बना है, मैं रोये बिना नहीं रह सकता है।” “क्या ! वह ठोस सोने का नहीं है ?” अबाबील ने अपने मन में कहा। वह इतना विनम्र था कि कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करना चाहता था।

“बहुत दूर,” बुत ने एक हल्की परन्तु सुरीली आवाज़ में कहना जारी रखा, “बहुत दूर एक छोटी-सी गली में एक निर्धन मकान है। उसकी एक खिड़की खुली हुई है और उसमें से मैं देख सकता हूँ कि मेज़ के पास एक स्त्री बैठी हुई है। उसका चेहरा दुबला और थका हुआ है और उसके हाथ खुरदरे और लाल हैं, जोकि सूई से छिदे हुए हैं क्योंकि वह एक दर्जिन है। वह रानी की विशिष्ट सेविकाओं में से सबसे सुन्दर सेविका के लिए साटन के एक गाउन पर फूलों की कढ़ाई कर रही है जिसे उसने अगले दरबारी नृत्य के समय पहनना है। कमरे के एक कोने में चारपाई पर उसका छोटा लड़का बीमार पड़ा है। उसे ज्वर है और वह अपनी मां को संतरे देने के लिए कह रहा है। उसकी माता के पास उसे देने के लिए नदी के जल के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, इसलिए वह रो रहा है। ओ अबाबील, नन्हें अबाबील, क्या तुम मेरी तलवार की मूठ में से माणिक निकाल कर उसे नहीं दे आओगे ? मेरे पैर इस चौकी में जकड़े हुए हैं और मैं हिल नहीं सकता हूँ।”
अबाबील ने कहा, “मेरी मिस्त्र में प्रतीक्षा हो रही है। मेरे मित्र नील नदी के ऊपर उड़ रहे हैं और कमल के फूलों से बातें कर रहे हैं। शीघ्र ही वे सो जाएंगे।”

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राजकुमार ने अबाबील से कहा कि वह उसके साथ एक रात ठहर जाए तथा उसका दूत बने। “लड़का बहुत प्यासा है और माता बहुत उदास है,” उसने कहा।
“मैं नहीं समझता कि मुझे लड़के पसन्द हैं,”
अबाबील ने उत्तर दिया। “मैं मिस्र जाना चाहता हूँ।”
परन्तु प्रसन्नचित्त राजकुमार इतना दुःखी लग रहा था कि छोटे अबाबील को दया महसूस हुई। “यहां बहुत सर्दी है,” उसने कहा। परन्तु वह एक रात के लिए उसके साथ रहने और उसका दूत बनने को तैयार हो गया।

“धन्यवाद, नन्हें अबाबील,” राजकुमार ने कहा।
अबाबील ने राजकुमार की तलवार से कीमती माणिक उखाड़ा और इसे अपनी चोंच में उठाकर नगर की छतों के ऊपर से गुजरता हुआ उड़ गया।
वह गिरजाघर के मीनार के ऊपर से गुज़रा जहां सफेद संगमरमर के देवदूत खुदे हुए थे। वह महल के पास से गुजरा और नाचने की आवाज़ सुनी। एक सुन्दर कन्या छज्जे पर अपने प्रेमी के साथ आई।
“आशा करती हूँ कि मेरी पोशाक दरबारी नृत्य के समय तक तैयार हो जाएगी,” उसने जवाब दिया। “मैंने उस पर फूलों की कढ़ाई करने का आदेश दिया है,

लेकिन दर्जिनें कितनी आलसी होती हैं।” वह नदी के ऊपर से गुजरा और उसने जलपोतों के मस्तूलों से लटकती हुई लालटेने देखीं। आखिर वह उस गरीब घर तक आया और अन्दर को झांका। बुखार की बेचैनी में लड़का बिस्तर पर करवटें बदल रहा था, और | उसकी मां सो चुकी थी; वह बहुत थकी हुई थी। वह (अबाबील) फुदक कर अन्दर गया और उस बड़े | माणिक को उस औरत के अंगुस्ताने के पास मेज के ऊपर n रख दिया। फिर वह लड़के के माथे पर अपने पंखों से हवा करता हुआ उसके बिस्तर के चारों तरफ़ धीरे से – उड़ा। “मैं कितना शीतल अनुभव कर रहा हूँ।”

लड़के ने कहा, “अवश्य ही मेरी तबीयत बेहतर हो रही है,” तथा वह मधुर नींद में डूब गया। तब अबाबील प्रसन्नचित्त राजकुमार के पास वापस d उड़ कर आया और उसे बतलाया उसने क्या किया था। at “विचित्र बात है,” वह बोला, “लेकिन अब मैं काफ़ी गर्म महसूस कर रहा हूँ, यद्यपि ठण्ड बहुत है।”

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“ऐसा इसलिए है क्योंकि तुमने एक अच्छा काम | किया है,” राजकुमार ने कहा। और नन्हें अबाबील ने | सोचना शुरू कर दिया, तथा फिर सो गया। सोचने से उसे प्राय: नींद आ जाती थी। जब चांद निकला तो वह उड़ कर प्रसन्नचित्त राजकुमार | के पास वापस आया। “क्या आपको मिस्र में कोई काम | है ?” उसने ऊँचे स्वर में कहा। “मैं अभी जाने को तैयार हूँ।” | “ओ अबाबील, अबाबील, नन्हें अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक रात और ठहरोगे ? “मिस्र में मेरी प्रतीक्षा हो रही है,” अबाबील ने | उत्तर दिया।

“अरे अबाबील, अबाबील, नन्हें अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “नगर के पार बहुत दूर मुझे एक घर की अटारी में एक युवक दिखाई दे रहा है। वह कागजों से भरी एक मेज पर झुका हुआ है और उसकी बगल में गिलास में मुरझाये हुए बनफशा के फूलों का गुलदस्ता है। उसके बाल भूरे और धुंघराले हैं और उसके होंठ अनार की तरह लाल हैं और उसकी बड़ी-बड़ी तथा स्वप्नमयी
आँखें हैं। वह थियेटर के निर्देशक के लिए एक नाटक समाप्त करने का प्रयास कर रहा है, परन्तु उसे इतनी ठण्ड लग रही है कि वह और लिख नहीं पा रहा है। उसकी अंगीठी में आग नहीं है और भूख ने उसे मूर्छित-सा कर दिया है।”

“मैं तुम्हारे साथ एक रात और रुकूँगा,” अबाबील ने कहा, जो वास्तव में ही एक अच्छा दिल रखता था। उसने पूछा कि क्या वह उस युवा नाटककार के पास एक दूसरा माणिक ले जाए। “अफसोस ! अब मेरे पास कोई माणिक नहीं है,” राजकुमार ने कहा। “अब मेरे पास केवल मेरी आंखें ही बची हैं। वे दुर्लभ नीलम की बनी हैं जिन्हें भारत से एक हज़ार वर्ष पूर्व लाया गया था।” उसने अबाबील को आदेश दिया कि वह उनमें से एक को निकाल ले और इसे नाटककार के पास ले जाए। “वह इसे जौहरी को बेच कर जलाने की लकड़ी खरीद लेगा और अपना नाटक समाप्त कर लेगा,” उसने कहा।
“प्रिय राजकुमार,” अबाबील ने कहा, “मैं ऐसा नहीं कर सकता,” और वह रोने लग गया।
“अरे अबाबील, अबाबील, छोटे अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “जैसा मैं आदेश देता हूं, वैसा ही करो।”

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इसलिए अबाबील ने राजकुमार की आंख निकाल | ली और विद्यार्थी की अटारी की ओर मुड़ गया। अन्दर प्रवेश करना बहुत आसान था क्योंकि छत में एक छेद था। इसमें से अन्दर घुस कर वह बहुत तेजी से कमरे में आ गया। युवक ने अपने सिर को अपने हाथों में लिया हुआ था, इसलिए उसने पक्षी के पंखों की फड़फड़ाहट न सुनी, और जब उसने ऊपर देखा तो उसे बनफ़शा के मुरझाए हुए फूलों पर रखा सुन्दर नीलम दिखाई दिया।
“मेरी सराहना होने लगी है,” वह चिल्ला दिया। “यह किसी बड़े प्रशंसक की तरफ से आया है। अब मैं अपना नाटक पूरा कर सकता हूं,” और वह काफी प्रसन्न दिखने लगा।

अगले दिन अबाबील बन्दरगाह की तरफ उड़ कर गया। वह एक बड़े जहाज़ के मस्तूल पर बैठ गया और नाविकों को काम करते देखता रहा। “मैं मिस्र जा रहा हूं,” अबाबील ने चिल्ला कर कहा, परन्तु किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया और जब चांद निकला तो वह उड़ कर वापस प्रसन्नचित्त राजकुमार के पास आ गया।

“मैं तुम्हें अलविदा कहने आया हूं,” वह चिल्लाया।
राजकुमार ने कहा “अरे अबाबील, अबाबील, छोटे अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “क्या तुम मेरे साथ एक रात और नहीं ठहरोगे ?” “सर्दी की ऋतु है,” अबाबील ने उत्तर दिया, “और शीघ्र ही यहां बर्फ पड़ जाएगी। मिस्त्र में हरे-हरे खजूर के पेड़ों के ऊपर सुखद धूप पड़ रही है, और कीचड़ में लेटे हुए मगरमच्छ सुस्ताते हुए चारों तरफ देखते रहते हैं।”

“नीचे चौराहे में,” प्रसन्नचित्त राजकुमार ने कहा, “एक छोटी-सी, माचिस बेचने वाली लड़की खड़ी है। वह अपनी माचिसें नाली में गिरा बैठी है और वे सब खराब हो गई हैं। यदि वह अपने घर कुछ पैसे ले कर नहीं लौटेगी तो उसका पिता उसे पीटेगा, तथा इसलिए वह रो रही है। उसके पास न जूते हैं और न ही जुराबे और उसका नन्हा-सा सिर नंगा है। तुम मेरी दूसरी आँख निकाल लो और उसे दे दो तथा फिर उसका पिता उसे नहीं पीटेगा।”

“मैं एक और रात आपके पास रुक जाऊंगा.” अबाबील ने कहा, “किन्तु मैं आपकी आँख नहीं निकाल सकता। तब आप बिल्कुल अन्धे हो जाएंगे।”
“अरे अबाबील, अबाबील, छोटे अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “तुम वैसा ही करो जैसा मैं आदेश देता हैं।”
इसलिए उसने राजकुमार की दूसरी आँख उखाड़ ली और इसे लेकर तीव्र गति सहित नीचे को आया। वह झपट कर माचिस वाली लड़की के पास से निकला और उसकी हथेली पर नीलम हल्के से सरका दिया।

“काँच का कितना सुन्दर टुकड़ा है!” नन्ही लड़की चिल्ला उठी; और वह हंसती हुई घर भाग गई।
फिर अबाबील राजकुमार के पास वापस आया। “अब तुम अन्धे हो गये हो,” उसने कहा, “इसलिए मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा।”
“नहीं, नन्हें अबाबील,” बेचारा राजकुमार बोला, “तुम्हें अवश्य ही मिस्त्र चले चाना चाहिए।”
“नहीं, मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँगा,” अबाबील ने कहा, और वह राजकुमार के पैरों में सो गया।

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अगले सारे दिन वह राजकुमार के कंधे पर बैठा रहा और उसने विचित्र देशों में जो कुछ देखा था, उसके बारे में उसे कहानियाँ सुनाईं। “प्रिय नन्हें अबाबील,” राजकुमार ने कहा, “तुम | मुझे अद्भुत बातें सुना रहे हो, परन्तु किसी भी चीज़ से अधिक अद्भुत नर-नारियों की पीड़ा है। कोई भी रहस्य इतना बड़ा नहीं होता जितना कि (दरिद्रता की) पीड़ा का रहस्य। नन्हें अबाबील, मेरे नगर के ऊपर से | उड़ कर जाओ और मुझे बताओ कि तुम्हें वहाँ क्या दिखाई दिया है।” इसलिए छोटा अबाबील विशाल नगर के ऊपर से – उड़ कर गया और उसने अमीर लोगों को अपने सुन्दर । घरों में खुशियाँ मनाते हुए देखा जबकि भिखारी फाटकों पर बैठे थे। वह अंधेरी गलियों में से उड़ कर गया और उसने भूख से मर रहे बच्चों के सफेद चेहरे देखे जो उदासी सहित अंधेरी गलियों की तरफ देख रहे थे। पुल की गोलाईदार छत के नीचे दो छोटे लड़के स्वयं को गर्म रखने का प्रयास करते हुए एक-दूसरे की बांहों में पड़े थे। “हम कितने भूखे हैं!” उन्होंने कहा। “तुम्हें यहाँ बिल्कुल नहीं लेटना है,” चौकीदार चिल्लाया और वे बाहर वर्षा में भटकने लगे।

फिर वह वापस उड़कर राजकुमार के पास गया और उसे वह सब बतलाया जो उसने देखा था। “मैं सोने की बारीक पत्तियों से ढका हुआ हूँ,” राजकुमार ने कहा। “तुम इन्हें एक-एक पत्ती करके उतार लो और ग़रीबों में बाँट दो; जीवित लोग प्रायः यही सोचते हैं कि सोना उन्हें खुश कर सकता है।” एक-एक पत्ती करके अबाबील ने बारीक सोने को उतारा, जब तक कि प्रसन्नचित्त राजकुमार भद्दा और निस्तेज दिखाई न देने लगा। एक-एक पत्ती करके उसने सोना ग़रीबों को लाकर दिया, और बच्चों के चेहरे अधिक गुलाबी हो गये और वे हँसने लगे तथा गली में खेलने लगे। “अब हमारे पास रोटी है!” वे ऊंचे स्वर में चिल्लाये।

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फिर बर्फ पड़ने लगी और बर्फ के बाद कोहरा पड़ा। गलियाँ ऐसे लग रही थीं मानो चाँदी की बनी हों। सभी लोग खाल के बने वस्त्र पहने फिर रहे थे और छोटे लड़के लाल टोपी पहने बर्फ पर स्केटिंग कर रहे थे।
बेचारा नन्हा अबाबील ठण्डा और ठण्डा होता गया, परन्तु उसने राजकुमार को न छोड़ा; क्योंकि वह उसे बहुत चाहता था। वह नानबाई के दरवाजे के बाहर से रोटी के छोटे-छोटे टुकड़े उठा लेता जब नानबाई देख नहीं रहा होता था, तथा वह अपने पंख फड़फड़ा कर स्वयं को गर्म रखने की कोशिश करता।

परन्तु आखिर वह जान गया कि वह मरने वाला है। उसमें केवल इतनी ही ताक़त थी कि वह एक बार फिर उड़ कर राजकुमार के कंधे तक पहुंच सकता। “अलविदा, प्रिय राजकुमार !” वह धीमे स्वर में बोला, “क्या तुम मुझे अपना हाथ चूमने दोगे ?”
“मुझे खुशी है कि तुम आखिर मिस्र जा रहे हो, नन्हें अबाबील,” राजकुमार ने कहा। “तुम यहाँ बहुत ही देर तक रुके रहे हो परन्तु तुम्हें मेरे होंठों पर चूमना होगा क्योंकि मैं तुम्हें प्यार करता हूँ।”

“मैं मिस्र नहीं जा रहा हूँ,” अबाबील ने कहा। “मैं मृत्यु के घर जा रहा हूँ। मृत्यु नींद का भाई है, क्या ऐसा नहीं है ?”
तथा उसने प्रसन्नचित्त राजकुमार को होंठों पर चूमा और मर कर उसके पैरों में जा गिरा। उसी क्षण बुत के अन्दर से टूटने की एक विचित्र आवाज सुनाई दी, जैसे कुछ टूट गया था। वास्तव में यह सीसे का बना दिल था जो टूट कर ठीक दो टुकड़े हो गया था। निश्चित ही भयानक ढंग से सख्त कोहरा पड़ रहा था। अगले दिन प्रातः नगरपति नगर-पार्षदों के साथ निचले चौराहे में से गुजर रहा था। जैसे ही वे स्तम्भ के पास से गुज़रे, उसने ऊपर बुत की तरफ देखा। “हे ईश्वर! प्रसन्नचित्त राजकुमार कितना भद्दा दिखाई दे रहा है!” उसने कहा।

PSEB 10th Class English Main Course Book Solutions Chapter 1 The Happy Prince

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“सचमुच क्झि तना भद्दा!” नगर-पार्षद चिल्लाए, जो सदा नगरपति से सहमत रहते थे और वे इसे देखने के लिए ऊपर चढ़ गए।
“इसकी तलवार से माणिक गिर चुका है, इसकी आँखें नहीं रही हैं और अब यह सोने का भी नहीं रहा है,” मेयर ने कहा। “वास्तव में यह एक भिखारी से भी कोई बेहतर नहीं लग रहा है!”
“सचमुच एक भिखारी से बेहतर नहीं लगता,” नगर-पार्षदों ने कहा।

“और इधर देखो, उसके पैरों में सचमुच एक मरा हुआ पक्षी पड़ा है !” नगरपति ने कहना जारी रखा। “हमें सचमुच एक घोषणा-पत्र जारी करना चाहिए कि पक्षियों को यहां मरने की इजाजत नहीं है।” तथा नगर के लेखाकार ने इस सुझाव को नोट कर लिया।
इसलिए उन्होंने प्रसन्नचित्त राजकुमार के बुत को नीचे गिरा दिया। “क्योंकि अब वह सुन्दर नहीं रहा है, इसका कोई लाभ नहीं है,” विश्वविद्यालय के कलाप्राध्यापक ने कहा।

फिर उन्होंने बुत को भट्ठी में पिघलाया। “कितनी विचित्र बात है!” ढलाईघर में काम करने वालों के निरीक्षक ने कहा। “यह टूटा हुआ सीसे का दिल भट्ठी में नहीं पिघलेगा। हमें इसे फेंक देना चाहिए।” इसलिए उन्होंने इसे एक धूल के ढेर पर फेंक दिया जहाँ मृत अबाबील भी पड़ा हुआ था।

“नगर की दो सबसे कीमती वस्तुएँ मुझे लाकर दो,” ईश्वर ने अपने देवदूतों में से एक को कहा और देवदूत ने उसे सीसे का दिल और मरा हुआ पक्षी लाकर दिया।
“तुमने ठीक चुनाव किया है,” ईश्वर ने कहा, “क्योंकि मेरे स्वर्ग वाले बगीचे में यह नन्हा पक्षी भविष्य में सदा के लिए गाया करेगा और प्रसन्नचित्त राजकुमार मेरे सुनहरे नगर में मेरा गुणगान किया करेगा।”

PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Punjab State Board PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings Important Questions and Answers.

PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Long Answer Type Questions:

Question 1.
Give important characteristics of solid state.
Answer:
Characteristics of solid state:

  1. The solids have definite mass, volume and shape.
  2. The particles in a solid state are closely packed and the empty spaces in them are negligible.
  3. The solids are rigid.
  4. A solid does not undergo a change in shape easily.
  5. The solids can have any number of free surfaces.
  6. There are large attractive forces between the molecules in a solid.
  7. Solids have high densities.
  8. A solid always tends to resist any change in its structure.
  9. The solids don’t show the property of diffusion.

PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Question 2.
Give important characteristics of the liquid state.
Answer:
Characteristics of the liquid state:

  1. A liquid has a definite mass and volume but no definite shape.
  2. A liquid can take the shape of a container.
  3. Liquids have only one free surface.
  4. The vacant spaces between the molecules of liquid are more as compared to solids.
  5. The attractive forces between the molecules in a liquid state are lesser than in the solids.
  6. The liquids have lower densities as compared to solids.
  7. The liquids show the property of diffusion.
  8. On heating a liquid, the molecules of it move apart, hence the liquids can expand on heating.

Question 3.
Give important characteristics of gas.
Answer:
Characteristics of a gas:

  1. A gas has definite mass but it has neither definite shape nor definite volume.
  2. The gases can occupy the whole space available to them.
  3. There are negligible attractive forces between the molecules of a gas.
  4. The gases have no free surface.
  5. There are large vacant spaces between the molecules of a gas.
  6. The gases show the property of diffusion.
  7. Gases have very low densities as compared to the solids and liquids.
  8. The molecules in a gas have high kinetic energies.
  9. There is no effect of gravity on the motion of the molecules of a gas.
  10. The gases exert equal pressure in all the directions on the walls of the container.
  11. The gases are highly compressible.

Question 4.
Give the main postulates of kinetic theory of matter.
Answer:
The main postulates of kinetic theory of matter are:

  1. All matter is made up of a large number of extremely small particles called molecules (sometimes atoms or ions).
  2. The molecules are always in a state of rapid random motion.
  3. The molecules possess kinetic energy.
  4. There are attractive forces between the molecules.
  5. The attractive forces between the molecules of same kind are called cohesive forces and the attractive forces between the molecules of different kinds are called adhesive forces.
  6. The kinetic energy of the molecules increases with the increase in temperature.
  7. As the distance between the molecules increases, the magnitude of attractive forces between the molecules decreases.

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Question 5.
Distinguish between solids, liquids and gases.
Answer:
The main points of differences are:

Property Solid Liquid Gss
1. Packing of Particles Most closely packed Loosely packed Large vacant spaces between the particles
2. Energy Particles have least energy Particles have higher energies than in solids Particles have high energies
3. Shape Definite Take the shape of the container Take the shape of container
4. Volume Definite Definite No definite volume
5. Density High Low Very low
6. Compressibility Not possible easily More than in solids High
7. Number of free surfaces Any number One No
8. Rigidity High Low Not rigid
9. Fluidity Don’t show Show Maximum fluidity
10. Intermolecular spaces Very small Small Large
11. Thermal expansion Very low More than solids Very large
12. Interparticle attractive forces Very large More than in gases Negligible

Question 6.
How will you explain the three states of matter on the basis of Kinetic Model?
Answer:
Solid: In solids the constituent particles are closely packed and there are large attractive forces between them. Therefore, the particles have low kinetic energies and can’t move from one position to another but they have only vibratory motion. Hence solids have definite shapes and definite volumes.
Examples: Wood, rock, copper, iron, cement, stone etc.

Liquid: In liquids the molecules have higher kinetic energies, distances between the molecules are more and attractive forces between the molecules are small. Therefore, the molecules of a liquid can move from one position to another within the liquid. Hence the liquid can take the shape of the container. But the volume of the liquid remains fixed because the molecules can’t leave the liquid.
Examples: Alcohol, milk, benzene, kerosene oil, petrol etc.

Gas: In gases, the molecules have high kinetic energies, there are large vacant spaces between the molecules and there are negligible attractive forces between the molecules. Therefore, in gases, molecules can move randomly and occupy the whole space available to them. Hence, they don’t have definite volumes and shapes.
Examples: Hydrogen, oxygen, nitrogen, sulphur dioxide, carbon dioxide etc.

PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Question 7.
Define the terms given below and answer the questions associated with them.
(a) Sublimation: Which of the following substances sublime?
Ice, mercury, dry ice, iodine.
(b) Solid: Why do not solids diffuse in one another?
(c) Liquid: Why do liquids flow?
(d) Freezing point: What is the freezing point of water?
(e) Gas: Why are gases compressible and show diffusion?
Answer:
(a) Sublimation. It is the process in which a solid directly changes into vapour on heating and on cooling the gas directly changes into solid.
Dry ice and iodine sublime.
(b) Solid. It is that state of matter which has definite mass, volume and shape, e.g. sugar, rubber, table, stone etc.
The solids don’t diffuse because in the solid state the vacant spaces between the molecules are very small and molecules of a solid can’t move from one position to another.
(c) Liquid. A liquid is that state of matter which has definite mass and volume but has no definite shape, e.g. milk, petrol, kerosene oil, water etc. Liquids flow because the attractive forces between the molecules of a liquid are very small and the molecules can freely move within the liquid.
(4) Freezing point. It is the temperature at which a liquid changes into a solid state by giving out heat energy. For example, freezing point of water is 0°C.
(e) Gas. It is defined as that state of matter which has definite mass only but has neither definite shape nor definite volume. For example, carbon dioxide, oxygen, hydrogen, ammonia etc.

Short Answer Type Questions:

Question 1.
What are the necessary conditions for a substance to be a
1. Solid
2. Liquid and
3. Gas?
Answer:
1. Solid: The melting point of a substance is above room temperature at the atmospheric pressure.
2. Liquid: The melting point of the substance is below room temperature and boiling point is above room temperature under atmospheric pressure.
3. Gas: The boiling point of the substance is below room temperature under atmospheric pressure.

Question 2.
What are the two new states of matter in addition to solid, liquid and gases states?
Answer:
These are:
1. Plasma: It is produced in stars at very high temperature.
2. Bose-Einstein condensate: It is formed by cooling a gas of extremely low density to super low temperature.

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Question 3.
Heat, light, shadow, love, radio waves are not considered as matter, why?
Answer:
This is because these are massless and do not occupy space.

Question 4.
Solids have definite shapes and volumes, why?
Answer:
This is because:

  • The vacant spaces between the constituent particles are very small.
  • There are large attraction forces between the constituent particles.

Question 5.
List the factors which affect evaporation.
Answer:
These are:

  1. Exposed surface area
  2. Temperature
  3. Humidity in the air
  4. Wind speed.

Question 6.
Why is sponge solid although it can be compressed?
Answer:
This is because sponge has minute holes in which there is entraped air. When it is pressed, the air is expelled out.

Question 7.
Rubber band can change its shape, is it a solid?
Answer:
Rubber band is a solid because it changes its shape under force and return to its original state when the applied force is removed.

Question 8.
Indicate which of the following don’t constitute matter?
Car, truck, heat, light, sound, TV waves, radio waves, cement, love, hate, cotton cloth, rock.
Answer:
Heat, light, sound, TV waves, radio waves, love, hate.

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Question 9.
What happens when the vacant spaces between the particles of a liquid decreases? How is this possible?
Answer:
The liquid will change into solid. This is carried out by decreasing the temperature or cooling the liquid.

Question 10.
Why do we observe water droplets on the outer surface of a glass containing ice cold water?
Answer:
This is because water vapour present in air, on coming in contact with glass containing ice-cold water lose energy and get converted into liquid state which appear as water droplets.

Question 11.
Why should we wear cotton clothes in summer?
Answer:
This is because in summer, we perspire more and cotton being a good absorber of water, absorbs the sweat and exposes it to the atmosphere for easy evaporation.

Question 12.
Name the change of state during the following changes:
(a) Drying of wet clothes.
(b) Melting of wax when kept in sunshine.
(c) Melting of ice.
(d) Formation of clouds.
(e) Naphthalene balls become smaller when kept in air.
Answer:
(a) Liquid to gaseous state.
(b) Solid to liquid state.
(c) Solid to liquid state.
(d) Liquid to gaseous state.
(e) Solid to gaseous state.

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Question 13.
State your observations in the following cases:
(a) Ammonium chloride is heated in a hard glass test tube.
(b) Carbon dioxide is compressed to 70 times the atmospheric pressure.
Answer:
(a) When ammonium chloride is heated in a hard glass test tube, dense white fumes of ammonium chloride fill the tube and deposit to give a white powder near the mouth of the tube (cooler parts).
(b) When carbon dioxide is compressed to 70 atmospheric pressure, it changes into solid state.

Question 14.
What is the difference between gas and vapour?
Answer:

  • A gas is a substance which exists in the gaseous state even at room temperature. e.g. oxygen, hydrogen, nitrogen etc.
  • A vapour is a substance which can exist in the gaseous state at a temperature lower than that of its boiling point, e.g. water vapour, iodine vapour etc.

Question 15.
Why does a gas fill the container completely?
Answer:
The molecules in a gas are far apart and are in a state of rapid random motion in all possible directions with very high speeds. They move throughout the container in which they are put. Thus, a gas fills the container completely.

Question 16.
How is the liquid state different from the gaseous state?
Answer:
The liquid state is different from the gaseous state in terms of magnitude of attractive forces between the molecules.

Question 17.
Complete the following statements:
(a) The process of liquid changing into solid is called
(b) The process of gas changing into liquid is called
(c) The process of liquid changing into gas is called
(d) The temperature at which a solid changes into a liquid is called
Answer:
(a) Solidification
(b) Condensation or Liquefaction.
(c) Evaporation
(d) Melting point.

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Question 18.
What are the uses of interconversion of matter?
Answer:
The uses of interconversion of matter are:

  1. Water is converted into steam by heating. Steam is used to run turbines and to generate electricity.
  2. Metals are melted by heating and these molten metals can be converted into alloys and cast into machinery parts.
  3. Water can be changed into steam as well as ice. Therefore, in nature, ice (or snow), liquid water and water vapour are available.

Question 19.
Give the important properties on the basis of which the three states of matter can be distinguished.
Answer:
The three states of matter can be distinguished on the basis of shape, volume, compressibility, packing of molecules, number of free surfaces etc.

Question 20.
What is the importance of (a) melting point of solid and (b) boiling point of a liquid?
Answer:
(a) A pure solid has a sharp melting point. The impurities decrease the melting point of a solid. Therefore, melting point is used to check the purity of a solid compound.
(b) A pure liquid has a sharp boiling point. The impurities increase the boiling of liquid. Therefore, boiling point is used to check the purity of a liquid.

Question 21.
Give two differences between boiling and evaporation.
Answer:

Boiling Evaporation
1. It takes place at a fixed temperature called boiling point of the liquid. 1. It takes place at all temperatures.
2. It is a fast process. 2. It is a slow process.

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Question 22.
Name five substances which are solids, five substances which are liquids and five substances which are gaseous at room temperature.
Answer:

  • Solids: Iron, copper, silver, glass and wood.
  • Liquids: Water, milk, mercury, kerosene oil and petrol.
  • Gases: Hydrogen, oxygen, carbon dioxide, nitrogen, helium.

Question 23.
Represent interconversion of states by using a figure.
Answer:
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Question 24.
State what is observed when iodine is heated in a test tube as shown below.
Answer:
PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings 2
When some crystals of iodine are heated slowly in a test tube, the shiny grey iodine changes directly into vapour without melting. The vapour deposit as grey particles called sublimate on the upper cooler parts of the tube.

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Question 25.
Why do gases have neither a definite shape nor a definite volume?
Answer:
In gases
(a) there are large spaces between the molecules of a gas.
(b) the molecules have high kinetic energies and
(c) there are negligible attractive forces between the molecules of a gas.
Hence the molecules in a gas have random motion. Therefore, gases have neither a definite shape nor a definite volume.

Question 26.
Give an experiment to prove that gases are more compressible as compared to liquids.
Answer:
PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings 3

  1. Take a 100 ml syringe and close its nozzle by inserting it in a rubber cork or stopper. Remove the piston from the syringe so that whole of syringe is filled up with air.
  2. Apply a little vaseline to the piston and insert the piston. Compress piston and it moves downwards easily.
  3. Hence air is compressed to a very small volume.
  4. Now fill the syringe with water and repeat the above experiment. The piston moves hardly downwards, indicating that there is a negligible compression in volume.
  5. The above experiment indicates that gases are highly compressible as compared to liquids.

Question 27.
Which phenomenon occurs during the following changes:

  1. Size of naphthalene balls decreases
  2. Wax melts in the sun
  3. Drying of wet clothes
  4. Formation of clouds.

Answer:

  1. Sublimation
  2. Fusion
  3. Evaporation
  4. Condensation.

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Very Short Answer Type Questions:

Question 1.
Why do things around our surroundings look different?
Answer:
This is due to different shapes, sizes and textures.

Question 2.
Define matter.
Answer:
Everything in this universe is made up of material which occupies space, has mass and can be judged by any one or more of the known five physical senses is called matter.

Question 3.
Give five examples of matter.
Answer:
Air, food, stove, water, plants.

Question 4.
What are Panch Tatva?
Answer:
Early Indian philosophers classified matter in the form of five basic elements called Panch Tatva.

Question 5.
Name the Panch Tatva?
Answer:
Air, earth, fire, sky and water.

Question 6.
How many basic elements were there according to ancient greek philosophers?
Answer:
Four.

Question 7.
What are the basic elements according to greek philosophers?
Answer:
Earth, fire, air and water.

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Question 8.
How do modem day scientists classify matter?
Answer:
Based upon their physical properties and chemical nature.

Question 9.
How is matter produced?
Answer:
It is composed of particles.

Question 10.
Why does a large volume of waier get coloured due to a few crystals of potassium permanganate?
Answer:
This is because a single crystal of pota .sium permanganate is made up of millions of tiny particles.

Question 11.
How small are particles of matter?
Answer:
The particles of matter are very very small beyond our imagination.

Question 12.
What is in between particles of matter?
Answer:
There are vacant spaces between particles of matter.

Question 13.
Why do common salt, sugar and dettol dissolve in water?
Answer:
This is because there are large vacant spaces between the particles of matter.

Question 14.
Why does the smell of lighted incence stick spreads out to a large space?
Answer:
This is because particles of a matter are in motion.

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Question 15.
Why does common salt dissolve in water?
Answer:
This is because particles of common salt get into the vacant spaces between particles of water.

Question 16.
How will you check purity of honey?
Answer:
If honey falls into water in a stright line, it is a pure honey.

Question 17.
What is the effect of temperature on the particles?
Answer:
Increase in kinetic energy of particles.

Question 18.
Why are particles of a matter always in motion?
Answer:
This is due to kinetic energy.

Question 19.
Define diffusion.
Answer:
It is the mixing up of particles of two or more substances.

Question 20.
What is the effect of temperature on diffusion?
Answer:
Diffusion becomes faster.

Question 21.
What is the effect of pressure on particles of a matter?
Answer:
Pressure keeps particles of matter together.

Question 22.
What are the different stages of matter based upon physical states?
Answer:
Solid, liquid and gas.

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Question 23.
Give three characteristics of solids.
Answer:
The solids have definite masses, volumes and shapes.

Question 24.
What is the effect of applied force on solids?
Answer:
The solids retain their shapes on applying force but they break when a large force is applied on them but they don’t change their shapes.

Question 25.
Rubber band can change its shape when stretched? Is it a solid?
Answer:
It is solid because it changes its shape under force and returns to its original shape when applied force is removed. It breaks when a very large force is applied to it.

Question 26.
Sugar, common salt etc. take the shape of containers although these are solids?
Answer:
This is because the shapes of their crystals do not change.

Question 27.
Why does a rubber can be compressed?
Answer:
This is due to the presence of air in the holes present in it and on compression air is expelled out.

Question 28.
What is liquid?
Answer:
A liquid has a definite mass and volume but has no definite shape.

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Question 29.
Due to which property aquatic animals survive in water?
Answer:
This is due to the presence of oxygen dissolved in water.

Question 30.
Name the gas which gets dissolved in water and is necessary for plants.
Answer:
Carbon dioxide.

Question 31.
Which form of matter can diffuse in liquids?
Answer:
Solids, liquids and gases.

Question 32.
Liquids show faster diffusion than solids. Why?
Answer:
This is because in liquids there are more vacant spaces and molecules can move freely.

Question 33.
Out of solids, liquids and gases which show maximum compressibility?
Answer:
Gases.

Question 34.
Which compressed gas is used in automobiles?
Answer:
Compressed natural gas (CNG).

Question 35.
Which gas is used as fuel in houses?
Answer:
Liquified Petroleum Gas (LPG).

Question 36.
The smells of perfume and lighted incense stick spread rapidly, why?
Answer:
This is because there are large vacant spaces between the molecules and the molecules are in motion with very high speeds.

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Question 37.
What are the different states of water?
Answer:
These are solid-ice, liquid-water and gas-water vapour.

Question 38.
Give characteristics of solids.
Answer:
The solids are generally hard. They cannot be compressed. They have definite shapes and definite volumes.

Question 39.
Give characteristics of liquids.
Answer:
They have definite volumes but have no definite shapes. They can be compressed slightly. They can flow.

Question 40.
Give characteristics of gases.
Answer:
The gases have neither definite shapes nor volumes. They are highly compressible.

Question 41.
Give four examples each of solids, liquids and gases.
Answer:
Solids: Wood, stove, sugar, common salt.
Liquids: Water, milk, oil, alcohol.
Gases: Oxygen, hydrogen, carbon dioxide.

Question 42.
What is the full form of CNG?
Answer:
Compressed Natural Gas.

Question 43.
Why do solids have definite shapes?
Answer:
This is because vacant spaces between molecules of a solid are very small and there are large attractive forces between them.

Question 44.
Why does a tyre can be inflated with large volume of air?
Answer:
This is because gases can bear high pressure.

Question 45.
Why don’t gases have definite shapes and volumes?
Answer:
This is because there are large vacant spaces between the molecules of a gas and these are in motion.

Question 46.
How many states of water are there?
Answer:
Three.

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Question 47.
The temperature at which a solid melts is called?
Answer:
Melting point.

Question 48.
What is the SI unit of temperature?
Answer:
Kelvin.

Question 49.
0°C = ………. K.
Answer:
0°C = 273.16 K.

Question 50.
How is kelvin temperature changed to centigrade temperature?
Answer:
By substracting 273 from it.

Question 51.
How is centigrade temperature changed in kelvin temperature?
Answer:
By adding 273 to it.

Question 52.
Define fusion.
Answer:
The process of conversion of solid into liquid is called fusion.

Question 53.
What is the boiling point of water?
Answer:
373 K (100°C).

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Question 54.
Define sublimation.
Answer:
It is the process of direct conversion of solid into gaseous state and back without changing into liquid state.

Question 55.
What is dry ice?
Answer:
Solid carbon dioxide.

Question 56.
What is the unit of pressure?
Answer:
Atmosphere (atm).

Question 57.
What is the SI unit of pressure?
Answer:
Pascal (Pa).

Question 58.
What is normal atmospheric pressure?
Answer:
The atmospheric pressure at sea level is called normal atmospheric pressure. It is taken as 1 atmosphere.

Question 59.
How does a liquid change into vapour without boiling?
Answer:
Due to evaporation.

Question 60.
Give one example of evaporation.
Answer:
Drying of wet clothes in sunlight.

Question 61.
Name the process of conversion of liquid into gaseous state without boiling.
Answer:
Evaporation.

Question 62.
Name the factors which increase rate of evaporation?
Answer:
These are increase in surface area, increase in temperature, decrease in humidity.

Question 63.
Why rate of evaporation increases with the increase in temperature.
Answer:
This is because kinetic energy of particles increases.

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Question 64.
Why do clothes dry faster with the increase in speed of wind?
Answer:
This is because water vapour evaporates along with air and amount of water vapour decrease near the surface of clothes.

Question 65.
What is humidity?
Answer:
The amount of moisture present in the air is called humidity.

Question 66.
How is vaporisation related to humidity?
Answer:
With the increase in humidity in air, rate of evaporation decreases.

Question 67.
Why are clothes spread out for drying?
Answer:
This increases surface area and hence rate of evaporation increases.

Question 68.
How is cooling related to evaporation?
Answer:
With the increase in evaporation, cooling increases.

Question 69.
Why should we wear cotton clothes in summer?
Answer:
This is because in summer we perspire more and cotton being a good absorber of water, absorbs the sweat and exposes it to the atmosphere for evaporation which causes cooling.

Question 70.
How are particles present in plasma?
Answer:
In plasma, the particles have high energy and are excited. These particles are present in the form of ionised gas.

Question 71.
Wha is present in florescent tube and neon bulb?
Answer:
Plasma.

Question 72.
Why do sun and stars glow?
Answer:
Due to plasma.

Question 73.
Why is plasma produced in stars?
Answer:
Due to high temperature.

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Question 74.
How is BEC produced?
Answer:
It is formed by cooling a gas of extremely low density to super low temperature.

Question 75.
Who were awarded Noble Prize for Bose-Einstein Condensate state?
Answer:
Eric A. Cornell, Wolfgang Ketreley and Carl E. Wieman.

Question 76.
Which website is used to get information regarding fourth and fifth state of matter?
Answer:
www.chem4kids.com.

Question 77.
The phenomenon occuring during drying of wet clothes is
Answer:
Evaporation.

Question 78.
The intennolecular spaces are …………. in solids.
Answer:
Large or maximum.

Question 79.
A vapour on cooling changes into …………. and on further cooling changes into ………… .
Answer:
liquid, solid.

PSEB 9th Class Science Important Questions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Question 80.
Matter changes from one state to another either by raising the or lowering the …………. .
Answer:
temperature, temperature.

Question 81.
A change in which a solid, on heating, directly changes into …………. state and the …………. on cooling again changes into ………… state is called …………… .
Answer:
gaseous, gas, solid, sublimation.

Question 82.
The intermolecular spaces are in …………… solids and ……………. in gaseous.
Answer:
minimum, maximum.

PSEB 9th Class Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Punjab State Board PSEB 9th Class Science Book Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Science Chapter 1 Matter in Our Surroundings

PSEB 9th Class Science Guide Matter in Our Surroundings Textbook Questions and Answers

Question 1.
Convert the following temperature to the Celsius scale:
(a) 293 K
(b) 470 K.
Answer:
(a) 293 K = 293 – 273 = 20°C
(b) 470 K = 470 – 273 = 197°C

PSEB 9th Class Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Question 2.
Convert the following temperatures to the Kelvin scale:
(a) 25°C
(b) 373°C.
Answer:
(a) 25°C – 25 + 273 = 298 K
(b) 373°C = 373 + 273 = 646 K

Question 3.
Give reason for the following observations:
(a) Naphthalene balls disappear with time without leaving any solid.
(b) We can get the smell of perfume sitting several metres away.
Answer:
(a) This is because naphthalene sublimes i.e. it directly changes into vapour without melting.
(b) This is because the molecules of perfume are moving with very high velocities (i.e. diffusion) in all the directions.

Question 4.
Arrange the following substances in increasing order of forces of attraction between the particles-water, sugar, oxygen.
Answer:
The increasing order of intermolecular forces of attraction is Oxygen < Water < Sugar.

Question 5.
What is the physical state of water at:
(a) 25°C
(b) 0°C
(c) 100°C?
Answer:
(a) At 25° C, water is liquid.
(b) At 0° C, water is solid (Ice).
(c) At 100° C, water is gas (Steam).

PSEB 9th Class Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Question 6.
Give two reasons to justify that:
(a) Water at room temperature is a liquid.
(b) An iron almirah is a solid at room temperature.
Answer:
(a) At room temperature water is liquid because the attractive forces between the molecules of water are small and can move from one point to another.
(b) An iron almirah is solid because the molecules are held together by strong intermolecular attractive forces and the molecules or particles are very close to each other.

Question 7.
Why is ice at 273 K more effective in cooling than water at the same temperature ?
Answer:
Ice at 273 K is more effective in cooling than water at 273 K, this is because in ice, the molecules have lower energy as compared to the particles in the liquid water at the same temperature (273 K) and require latent heat of fusion for melting.

Question 8.
What produces more severe bums: boiling water or steam?
Answer:
Steam produces severe burns as compared to boiling water. This is because in steam the molecules have higher kinetic energy than in boiling water.

Question 9.
Name A, B, C, D, E and F in the following diagram showing state change-
PSEB 9th Class Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings 1
Answer:
A – Fusion
B – Vaporisation
C – Condensation
D – Solidification
E – Sublimation
F – Sublimation

Science Guide for Class 9 PSEB Matter in Our Surroundings InText Questions and Answers

Question 1.
Which of the following are matter?
Chair, air, love, smell, hate, almonds, thought, cold, cold drink, smell of perfume.
Answer:
Chair, air, almonds, cold drink, smell of perfume.

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Question 2.
Give reasons for the following observations:
The smell of hot sizzling food reaches you several metres away, but to get the smell from cold food you have to go close.
Answer:
The smell of hot sizzling food reaches us several metres away, but to get the smell from cold food we have to go close. This is because the rate of diffusion of a gas increases with the increase in temperature. In hot food, the rate of diffusion is large but in cold food, the rate of diffusion is slow.

Question 3.
A diver is able to cut through water in a swimming pool, which property of matter does this observation show?
Answer:
The diver is able to cut through water in a swimming pool because in water the attractive forces between the molecules are small.

Question 4.
What are the characteristics of the particles of matter?
Answer:
The characteristics of the particles of matter are:

  1. The particles of matter have vacant spaces between them.
  2. The particles of matter are always in motion.
  3. There are attractive forces between the particles of matter.

Question 5.
The mass per unit volume of a substance is called density, (density = mass/volume). Arrange the following in order of increasing density – air, exhaust from chimneys, honey, water, chalk, cotton and iron.
Answer:
The increasing order of density is
Exhaust from chimneys < air < cotton < chalk < honey < iron.

Question 6.
(a) Tabulate the differences in the characteristics of states of matter.
(b) Comment upon the following:
rigidity, compressibility, fluidity, filling a gas container, shape, kinetic energy and density.
Answer:
(a) Differences in the characteristics of states of matter:

Characteristics Solid Liquid Gas
1. Vacant spaces Very small Small Very large
2. Attractive forces between particles Very large Small Negligible
3. Compressibility Negligible Low High
4. Rigidity High Low Not rigid
5. Density High Low Very Low
6. Energy Small Large as compared to solid Very high

(b) Rigidity: It is the property by virtue of which a substance can retain its shape when a force is applied to it. Solids possess the property of rigidity.

  1. Compressibility: The property by virtue of which the volume of a substance can be decreased by applying force or pressure on it. Gases have high compressibility because of large vacant spaces between the molecules of a gas.
  2. Fluidity: It is the property by virtue of which the molecules of one substance can flow from one point to another. Liquids and gases possess fluidity.
  3. Filling a gas container: A gas fills the container because there are negligible attractive forces between the molecules of a gas and the molecules of a gas move with very high velocities in all possible directions.
  4. Shape: It is the definite geometrical arrangement of constituent particles of a substance. Solids have definite shapes.
  5. Kinetic energy: It is the energy possessed by a particle due to its motion.
  6. Density: Density of a substance is the mass per unit volume. Its units are g/cc or kg/m3.

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Question 7.
Give reasons:
(a) A gas fills completely the vessel in which if is kept.
(b) A gas exerts pressure on the walls of the container.
(c) A wooden table should be called a solid.
(d) We can easily move our hand in air but to do the same in solid block of wood we need a Karate expert.
Answer:
(a) This is because in a gas the attractive forces between the molecules are negligible and molecules of a gas move with very high speeds in all possible directions.
(b) This is due to the hits or bombardments of the molecules of a gas against the walls of a container.
(c) This is because it has a definite mass, volume and shape.
(d) This is because in air, the attractive forces between the particles are negligible but in a solid block of wood, there are large attractive forces between the constituent particles.

Question 8.
Liquids generally have lower density as compared to solids. But you must have observed that ice floats on water. Find out why.
Answer:
Ice floats over water because ice has lower density than liquid water. This is because in ice for a given mass volume is more as compared to in liquid water.

Question 9.
Convert the following temperature to Celsius scale:
(a) 300 K
(b) 573 K?
Answer:
(a) 300 K = 300 – 273 = 27°C.
(b) 573 K = 573 – 273 = 300°C.

Question 10.
What is the physical state of water at:
(a) 250°C
(b) 100°C?
Answer:
(a) Gas
(b) Gas

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Question 11.
For any substance, why does the temperature remain constant during the change of state?
Answer:
This is because the heat supplied is used to overcome the attractive forces between the particles i.e., there is change in potential energy.

Question 12.
Suggest a method to liquefy atmospheric gases.
Answer:
The atmospheric gases can be liquefied by cooling under pressure.

Question 13.
Why does a desert cooler cool better on a hot dry day?
Answer:
On a hot dry day due to increase in temperature and lesser humidity the evaporation of water will be faster.

Question 14.
How does the water kept in an earthen pot (matka) become cool during summer?
Answer:
This is because the water comes out from the pores of earthen pot (matka) and it evaporates. Due to evaporation it causes cooling.

Question 15.
Why does our palm feel cold when we put some acetone or petrol or perfume on it?
Answer:
This is because the particles of acetone or petrol or perfume gain energy from our palms and surroundings and evaporate causing cooling.

Question 16.
Why are we able to sip hot tea or milk faster from a saucer rather than a cup?
Answer:
Because a saucer provides more surface area than a cup for evaporation of liquid into vapour and it causes a more cooling effect.

PSEB 9th Class Science Solutions Chapter 1 Matter in Our Surroundings

Question 17.
What type of clothes should we wear in summer?
Answer:
White cotton clothes.

PSEB Solutions for Class 12 | PSEB 12th Class Books Solutions Guide in Punjabi English Medium

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PSEB 8th Class Home Science Practical अण्डा पकाना

Punjab State Board PSEB 8th Class Home Science Book Solutions Practical अण्डा पकाना Notes.

PSEB 8th Class Home Science Practical अण्डा पकाना

ऑमलेट

सामग्री-

  1. अण्डे — 4
  2. प्याज — 2 छोटे
  3. टमाटर — \(\frac{1}{2}\)छोटा
  4. हरी मिर्च — 1 – 2
  5. नमक और काली मिर्च — स्वाद के अनुसार
  6. घी — तलने के लिए

विधि—अण्डे का पीला और सफ़ेद भाग अलग-अलग कर लें। सफेद भाग को अच्छी तरह फेंट लें। अब इसमें पीला भाग अच्छी तरह मिला लें और नमक व काली मिर्च भी डाल लें। फ्राइंग पैन (Frying pan) गरम करके थोड़ा-सा घी डालकर अण्डे के आधे घोल को फैला दें। इसके ऊपर बारीक कटा हुआ प्याज, टमाटर और हरी मिर्च फैलाकर सिक जाने पर ऑमलेट को मोड़ दें। इसी प्रकार आधे बचे घोल का भी ऑमलेट बना लें।
कुल मात्रा—दो ऑमलेट

PSEB 8th Class Home Science Practical अण्डा पकाना

फ्राइड अण्डा

सामग्री—

  1. अण्डे — 2
  2. घी — तलने के लिए
  3. नमक तथा काली मिर्च — स्वाद के अनुसार

विधि-फ्राइंग पैन (Frying Pan) गरम करके उसमें थोड़ा-सा घी डाल दें। अण्डे को फ्राइंग पैन में ऐसे तोड़ें ताकि पीला और सफ़ेद भाग मिले नहीं। अब फ्राइंग पैन को ढककर मन्द आँच पर रखें। दो मिनट में अण्डा अपनी ही भाप में पक जाता है। परोसते समय सिकी हुई डबलरोटी पर मक्खन लगाकर ऊपर से फ्राइड अण्डा रख दें और नमक, काली मिर्च छिड़क दें।
कुल मात्रा-दो।

पोचड् अण्डा

सामग्री-

  1. अण्डे — 2
  2. पानी — 2 गिलास के लगभग
  3. नमक, काली मिर्च — स्वाद के अनुसार
  4. सिरका — 2 छोटी चम्मच

विधि—फ्राइंग पैन (Frying Pan) में पानी गरम कर लें। इसमें सिरका और थोड़ासा नमक डालकर उबाल आने दें। अब इसमें अण्डा ऐसे तोड़ें कि सफ़ेद और पीला भाग मिले नहीं। दो-तीन मिनट में पक जाने पर निकालकर काली मिर्च छिड़क कर टोस्ट या तले हुए आलू के टुकड़ों के साथ परोसें।
कुल मात्रा—दो।

PSEB 8th Class Home Science Practical अण्डा पकाना

सक्रैम्बल्ड अण्डा

सामग्री-

  1. अण्डे — 4
  2. दूध — 2 बड़े चम्मच
  3. मक्खन — 2 छोटे चम्मच
  4. नमक, काली मिर्च — स्वाद के अनुसार।

विधि—अण्डों को तोड़कर फेंट लें। इसमें बाकी सब चीजें मिला लें। पतीले में यह घोल डालकर धीमी आँच पर बराबर हिलाते हुए पकाएँ। एक-दो मिनट में पक जाने पर निकाल लें। ध्यान रखें कि वह बहुत ज्यादा सख्त न हो।
कुल मात्रा—दो कटोरी।

ऐग ऑन बडूज नेस्ट

सामग्री—

  1. अण्डे — 2 स्लाइस
  2. डबलरोटी — 5
  3. प्रोसेस्ड पनीर — 25 ग्राम
  4. मक्खन — 10 ग्राम
  5. काली मिर्च (पिसी) — थोड़ी-सी
  6. नमक — स्वादानुसार

विधि—डबल रोटी के स्लाइसों पर मक्खन लगा लें। पनीर को कद्दूकस कर लें तथा उसका आधा भाग डबलरोटी के टुकड़ों पर डाल दें। एक ट्रे में थोड़ा घी लगाकर डबलरोटी को उसमें रख दें। अब अण्डों को तोड़कर उनकी ज़र्दी व सफ़ेदी को अलग-अलग कर लें। (ध्यान रहे कि जर्दी टूटे नहीं) अण्डे की सफेदी को ‘ऐग बीटर’ (Egg Beater) की सहायता से अच्छी तरह फेंट लें ताकि सख्त-सी हो जाए। अब इस सफेदी को डबलरोटी के स्लाइसों पर चारों तरफ़ डाल दें तथा दोनों के बीच में अण्डे की जर्दी को तोड़ दें। ऊपर से कद्दूकस किया हुआ पनीर ओवन में भूरे रंग का होने तक सेंकें। अब इन पर नमक व काली मिर्च बुरक कर परोसें।
कुल मात्रा—दो व्यक्तियों के लिए।

PSEB 8th Class Home Science Practical अण्डा पकाना

पौष्टिक पराँठे

सामग्री—

  1. आटा — \(\frac{1}{2}\)कटोरी
  2. पालक — 100 ग्राम
  3. मूंगफली — 50 ग्राम
  4. हरा धनिया — थोड़ा-सा
  5. बेसन — \(\frac{1}{2}\)कटोरी
  6. हरी मिर्च — 2-3
  7. अदरक — 1 छोटा टुकड़ा
  8. नमक — स्वादानुसार
  9. घी — तलने के लिए

विधि—मूली कद्दूकस कर लें। मूली के नरम पत्तों और पालक के पत्तों को धोकर बारीक काट लें। हरी मिर्च, हरा धनिया और अदरक को भी काट लें। मूंगफली के दानों को मोटा-मोटा सा कूट लें। आटा और बेसन को छननी में छान लें और शेष सारी चीजें मिलाकर आटा गूंथ लें। इसके पराँठे बनाकर दही के साथ परोसें।

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भरवां पराँठा

सामग्री-

  1. गेहूँ का आटा —150 ग्राम
  2. जल — आवश्यकतानुसार
  3. नमक — थोड़ा-सा
  4. आलू — 50 ग्राम
  5. चने की दाल — 30 ग्राम
  6. हरी मिर्च — 1-2 2
  7. घी — 2 छोटी चम्मच
  8. गर्म मसाला — \(\frac{1}{4}\) चाय का चम्मच
  9. पिसी हुई लाल मिर्च — आवश्यकतानुसार
  10. घी या तेल — सेंकने के लिए

विधि—आटे में नमक डालकर गूंथ लें और \(\frac{1}{2}\) घण्टे के लिए रख दें। आलू तथा चने की दाल उबालें और आलू को छीलकर मथ लें। दाल को भी इसी में मिला लें। हरी मिर्च धोकर बारीक काटें और इसे दाल व आलू में मिला दें। एक चम्मच घी गर्म करके दाल व आलू का मिक्सचर तथा मसाले डालकर पाँच मिनट के लिए भून लें। इस प्रकार स्टफिंग तैयार हो जाएगी। आटे को भली प्रकार गूंथ कर उसमें चार गोलियाँ बना लें। हर एक गोली को थोड़ा-सा बेल लें फिर इसमें एक बड़ा चम्मच स्टफिंग भरकर फिर से गोली बना लें। अब इस पराँठे को पूरा बेल लें। पराँठे को तवे पर घी लगाकर सेंक लें।

नोट—स्टफिंग, मौसम के अनुसार सब्जियाँ; जैसे-मूली और फूलगोभी की भी बनाई जा सकती है।
मूंगफली की स्टफिंग भी बनाई जा सकती है।
कुल मात्रा—4 पराँठे।