PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 20 एक मिलियन डालर दृश्य

Hindi Guide for Class 11 PSEB एक मिलियन डालर दृश्य Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में पर्वतीय सौन्दर्य का अनूठा वर्णन है, लेख के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
प्रस्तुत लेख में लेखक ने पर्वतीय सौन्दर्य का अनूठा वर्णन किया है। चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा करते हुए लेखक सोलन रुकता है। वहाँ नगर के बीचों बीच शिमला जाने वाली सड़क है। लेखक ने कालका से शिमला जाने वाली रेल यात्रा का उल्लेख करते हुए कहा है कि यह सारा रास्ता दिलकश नज़ारों से भरा है। छोटी पट्टी की रेल की गुफ़ाओं से गुजरकर जाती। छोटे-बड़े पुलों पर से निकलती है। लेखक की गाड़ी भी इस रेल के साथ-साथ चलती है। पर्वतीय दृश्य बड़ें मनोहर हैं। ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं। चीड़ और देवदार के पेड़ दिखाई देने लगते हैं।

तारादेवी के मोड़ से लेखक ज्यों ही आगे बढ़ता है शिमला नगर की बत्तियाँ सामने नज़र आती हैं। ऐसे लगता था कि,आसमान के सारे सितारे धरती पर उतर आए हों। यही लेखक को एक मिलियन डालर दृश्य जान पड़ा।

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प्रश्न 2.
‘एक मिलियन डॉलर दृश्य’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा का वर्णन किया है। इसके साथ ही लेखक ने सोलन नगर के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए वहाँ के जन जीवन की समस्याओं की ओर संकेत किया है। लेखक अपने मित्र के साथ पहाड़ की यात्रा के लिए जा रहा है। दोनों लोग चण्डीगड़ से हिमाचल में किन्नौर की यात्रा के लिए निकले। किन्तु कालका शिमला सड़क पर स्थित धर्मपुर पहुँच कर उनकी गाड़ी खराब हो गई। शाम तक गाड़ी ठीक हुई और वे आगे बढ़ गए। मार्ग में सोलन में चाय पीने के लिए रुके। सोलन में कृषि विश्वविद्यालय और जिला बनने से वहाँ की आबादी बढ़ गई है।

परिवार एक-एक कमरे में रहते हैं जिससे गन्दगी दिखाई देती है। लेखक यहाँ कालका से शिमला जाने वाली छोटी लाइन की रेलगाड़ी का वर्णन करता है जिससे यात्रा करना अत्यन्त सुखद लगता है। गाड़ी बिगड़ जाने के कारण रात उन्हें शिमला में ही बिताने का निर्णय लेना पड़ा। पहाड़ी रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा होने के कारण वे आपस में बातचीत भी नहीं कर रहे थे। तारादेवी पहुँच कर उन्होंने सुख की साँस ली। वहाँ शिमला की बत्तियाँ ऐसे दिखाई देती थीं जैसे आकाशलोक में कोई समारोह हो रहा हो, ऐसा लग रहा था शिमला तारादेवी से झिलमिलाता हुआ मिलन करने जा रहा हो। लेखक को लगा शिमला में हर रोज़ इसी तरह जगमगाहट होती है जैसे दीपावली हो। लेखक को वह दृश्य एक मिलियन डालर दृश्य लगता है जिसे देखने के लिए कोई भी विदेशी पर्यटक मुँह माँगे दाम दे सकता है। लेखक ने कुछ पूर्व भी शिमला की ऐसी ही अनोखी छवि देखी थी।

एक मोड़ आने पर वह दृश्य लुप्त हो गया। लेखक अपने मित्रों सहित शिमला पहुँच गया। कुछ दिनों बाद शिमला से चण्डीगढ़ लौटते हुए ढल्ली गाँव के पास पहुँच कर कालका के जगमगाते रूप को देखकर उसे शिमला की याद हो जाती है। कालका से चण्डीगढ़ की रोशनियाँ भी दिखाई देती हैं जैसे मखमली चादर पर सितारे जड़े गए हों।

प्रश्न 3.
चण्डीगढ़ से शिमला तक की यात्रा का वर्णन प्रस्तुत निबन्ध के आधार पर करें।
उत्तर:
लेखक अपने मित्रों सहित चण्डीगढ़ से किन्नौर की यात्रा के लिए निकला। धर्मपुर पहुंच कर उनकी गाड़ी खराब हो गई जो शाम तक ठीक हुई। वहाँ से चलने के बाद वे सोलन में चाय पीने के लिए रुकते हैं। शिमला जाते समय तारा देवी के मोड़ पर पहुँच कर उन्हें शिमला की रोशनियां दिखाई पड़ती हैं। तारा देवी से दिखाई देने वाला शिमला का दृश्य लेखक को एक मिलियन डालर का दृश्य लगता है। शिमला वे देर रात पहुँचे। माल रोड़ खाली हो चुकी थी। अतः वे सीधे अपने होटल में चले गए।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
लेखक ने एक मिलियन डॉलर दृश्य किसे कहा है ?
उत्तर:
लेखक ने तारा देवी के मोड़ से आगे बढ़कर दूर से शिमला नगर की बिजली की बत्तियों को देखा तो लेखक को लगा नीचे खड्ड से लेकर ऊपर पहाड़ तक हज़ारों बत्तियाँ एक साथ जगमगा उठी हों। अब बत्तियों को देखकर ऐसा लगा कि आसमान के सारे तारे धरती पर उतर आए हों चारों ओर जगमगाहट देखकर ऐसा लग रहा था कि आकाश लोक में कोई विशेष समारोह है। इसी कारण धरती से आकाश तक पर्वत की ढलाने जगमगा उठी हैं। इसी दृश्य को लेखक ने ‘एक मिलियन डॉलर दृश्य’ कहा है।

प्रश्न 2.
कालका से शिमला जाने का रेल यात्रा का अनुभव क्या है?
उत्तर:
कालका से शिमला छोटी लाइन की रेल से यात्रा करना एक अलग तरह का अनुभव है। सारा रास्ता अद्भुत दृश्यों से भरा पड़ा है। रेल कई गुफाओं से गुज़र कर जाती है। घुमावदार लम्बे मोड़ काटती हुई सीटी बजाती है जैसे डिज्नीलैंड का कोई खेल हो। पर्वतीय दृश्य अत्यन्त मनोहर हैं। ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं। चीड़ के वृक्षों की लम्बी कतारें देखने को मिलती हैं।

प्रश्न 3.
तारा देवी के मोड़ से निकलने पर शिमला नगर की बिजली की बत्तियों के सौन्दर्य का वर्णन लेखक ने किस प्रकार किया है ?
उत्तर:
तारा देवी के मोड़ से निकलते ही लेखक ने देखा कि नीचे एक खड्ड से लेकर पर्वत की ढलान के साथसाथ ऊपर तक बने हुए घरों में हज़ारों बत्तियां जगमगा उठी हों। इस दृश्य को देखकर लेखक मन्त्र विमुग्ध सा हो उठा। उसे लगा जैसे आकाश के सारे तारे धरती पर उतर आए हों और रंग-बिरंगे मोतियों की तरह झिलमिला रहे हों।

प्रश्न 4.
शिमला से वापस आते हुए चण्डीगढ़ की बत्तियों के दृश्य का वर्णन करें।
उत्तर:
शिमला से वापस आते हुए कालका से चण्डीगढ़ की रोशनियाँ भी दिखाई पड़ती हैं। रात में चण्डीगढ़ एक काली मखमली चादर पर जड़ित सितारों-सा दिखाई देता है। पूर्व से पश्चिम की ओर और उत्तर से दक्षिण की ओर जाती रोशनियों की बीसियों सीधी कतारें नज़र आती हैं। लगता है देवताओं ने रात्रि को सुखना झील के किनारे एक विशाल जगमगाता चौपड़ बिछाया हो या आज की रात आकाश शिवालिक की गोदी में अपना सिर रखकर धरती पर सो रहा हो।

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PSEB 11th Class Hindi Guide एक मिलियन डालर दृश्य Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शिमला की बत्तियाँ कैसी दिखाई देती हैं ?
उत्तर:
जैसे आकाश लोक में कोई समारोह हो।

प्रश्न 2.
शिमला का दृश्य लेखक को कैसा लगा ?
उत्तर:
लेखक को वह दृश्य एक मिलियन डालर दृश्य लगा।

प्रश्न 3.
लेखक इन्द्र नाथ चावला किसके साथ शिमला गया था ?
उत्तर:
अपने मित्रों के साथ।

प्रश्न 4.
एक मिलियन डालर दृश्य’ में लेखक ने किस स्थान का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा का वर्णन किया है।

प्रश्न 5.
लेखक ने किस नगर के सौंदर्य का वर्णन किया है ?
उत्तर:
सोलन।

प्रश्न 6.
लेखक अपने मित्र के साथ कहाँ जा रहा था ?
उत्तर:
पहाड़ की यात्रा पर।

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प्रश्न 7.
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
यात्रा वर्णन।

प्रश्न 8.
पहाड़ी रास्ता कैसा था ?
उत्तर:
टेढ़ा-मेढ़ा।

प्रश्न 9.
चमकते हुए सितारे कैसे झिलमिला रहे थे ? ।
उत्तर:
मोतियों के समान।

प्रश्न 10.
पहाड़ों की ढलानें किससे ढकी थी ?
उत्तर:
पेडों और हरी घास से।

प्रश्न 11.
लेखक ने सोलन में बढ़ रही ……….. का वर्णन किया है।
उत्तर:
आबादी।

प्रश्न 12.
लेखक ने पाठ में किस रेलमार्ग का उल्लेख किया है ?
उत्तर:
कालका-शिमला रेल मार्ग।

प्रश्न 13.
लेखक ने किस प्रकार के दृश्यों का वर्णन किया है ?
उत्तर:
पर्वतों के मनोहारी रूप का वर्णन किया है।

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प्रश्न 14.
रात में चण्डीगढ़ कैसा दिखाई देता था ?
उत्तर:
काली मखमली चादर पर जड़ित सितारों-सा।

प्रश्न 15.
किस झील के बारे में उल्लेख हुआ है ?
उत्तर:
सुखना झील।

प्रश्न 16.
नीला आकाश किसकी गोदी में सिर रखकर सो रहा था ?
उत्तर:
शिवालिक पर्वत की गोदी में।

प्रश्न 17.
बिजली की बत्तियों ने पर्वत की ढलानों को किससे जोड़ दिया था ?
उत्तर:
आकाश लोक से।

प्रश्न 18.
अंधेरे में कौन-सी चीजें अंधकार को और अधिक बढ़ा देती हैं ?
उत्तर:
चमकदार चीजें।

प्रश्न 19.
रात की देवी ने बालों में क्या गूंथ रखा था ?
उत्तर:
रत्न जड़ित मालाएँ।

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प्रश्न 20.
………….. के मोड़ से निकलने पर लेखक ने शिमला नगर की बत्तियों का सौंदर्य देखा।
उत्तर:
तारा देवी।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में किस माया का वर्णन है ?
(क) चंडीगढ़ से वैष्णो देवी
(ख) चंडीगढ़ से शिमला
(ग) चंडीगढ़ से मनाली
(घ) चंडीगढ़ से जम्मू।
उत्तर:
(ख) चंडीगढ़ से शिमला

प्रश्न 2.
प्रस्तुत निबंध में लेखक ने किसके सौंदर्य का चित्रण किया है ?
(क) पर्वतीय
(ख) समुद्रीय
(ग) जंलीय
(घ) वाष्पीय।
उत्तर:
(क) पर्वतीय

प्रश्न 3.
लेखक को कहां का एक दृश्य एक मिलियन डालर जैसा प्रतीत हुआ ?
(क) शिमला का
(ख) चंडीगढ़ का
(ग) जम्मू का
(घ) सोलन का।
उत्तर:
(क) शिमला का।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

विख्यात = प्रसिद्ध। अवसर = मौका। हरीतिमा = हरियाली। कटाव = मोड़। अद्भुत = अनोखा। चिरस्मरणीय = देर तक याद रहने वाला।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) एक जगह तो पर्वत से पत्थर और चट्टानें गिरने से एक नदी का जल मार्ग ही रुक गया था और एक छोटी-सी झील बन गई थी। फिर पानी के तेज़ प्रवाह से यह प्राकृतिक बाँध स्वयं ही टूट गया और जलाशय खाली हो गया।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रावृत्त ‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में से लिया गया है। इस यात्रावृत्त में लेखक ने अपनी चण्डीगढ़ से शिमला यात्रा के दौरान तारा देवी के मोड़ से शिमला शहर को देखे अद्भुत दृश्य का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक ने किन्नौर की सड़कों का भूकम्प के बाद होने वाली हालत का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि किन्नौर की सड़क पर एक स्थान पर पर्वत से पत्थर और चट्टानें गिरने से एक नदी का जल मार्ग ही रुक गया था इसलिए वहाँ एक छोटी-सी झील बन गई थी। उस झील के कारण जो वहाँ एक बाँध सा बन गया था वह नदी के तेज बहाव के कारण अपने आप ही टूट गया और इस तरह वह झील खाली हो गई। अब वहाँ पानी इकट्ठा नहीं रहा था।

विशेष :

  1. लेखक ने प्राकृतिक दृश्य का सुन्दर वर्णन किया है।
  2. भाषा सरल, सहज एवं रोचक है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।

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(2) सोलन नगर के बीचों बीच शिमला जाने वाली सड़क है। घर, बाजार, कॉलेज, दफ्तर, सिनेमा और होटल सब इसी सड़क के किनारे स्थित हैं। बाजार के बीच में ही बस अड्डा भी है। इसलिए हर समय बाजार में भीड़ रहती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रावृत ‘एक मिलियन डालर दृश्य’ से लिया गया है। इसमें लेखक ने सोलन में बढ़ रही भीड़ के कारण का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक ने चण्डीगढ़ शिमला मार्ग पर स्थित सोलन नगर का चित्र अंकित किया है। लेखक कहता है कि सोलन नगर के बीचों बीच शिमला जाने वाली सड़क है। इसलिए इसी सड़क के किनारे घर, बाजार, कॉलेज, दफ्तर, सिनेमा और होटल आदि बने हुए हैं। बाजार के बीच में ही बस अड्डा भी है इसलिए यहाँ हर समय भीड़ रहती है। सोलन में बढ़ती भीड़ का कारण सोलन में से शिमला तक विशेष जाने वाली सड़क है। लेखक सोलन में बढ़ रही आबादी का वर्णन करता है जिसके कारण वहाँ गन्दगी बढ़ रही है।

विशेष :

  1. इसमें लेखक ने सोलन नगर का दृश्य प्रस्तुत किया है।
  2. भाषा सरल एवं सहज है।।
  3. तत्सम एवं तद्भव शब्दावली है।
  4. वर्णनात्मक शैली है।

(3) पर्वतीय दृश्य बहुत मनोहर है। ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं और धीरे-धीरे ऊँचाई बढ़ने से वनस्पति और ढलानों की हरीतिमा की चादर के रंगों में भी परिवर्तन आता जाता है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रा वृतान्त ‘एक मिलियन डालर दृश्य’ में से लिया गया है। इसमें लेखक ने प्रकृति सौंदर्य का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखक ने कालका-शिमला रेल मार्ग के साथ-साथ जाते हुए प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन किया है। लेखक कहता है कि कालका-शिमला मार्ग पर पहाड़ के दृश्य मन को लुभाने वाले हैं। पहाड़ों की ढलाने पेड़ों और हरी घास से ढकी हैं और ज्यों-ज्यों ऊँचाई बढ़ती जाती है तो ऐसा लगता है कि पेड़-पौधो और ढलानों की हरियाली की चादर ने ढक रखा है और उनके रंगों में भी बदलाव आता जाता है। पहाड़ों के दृश्य वनस्पति के कारण हर समय एक नए रंग में दिखाई देते हैं।

विशेष :

  1. पर्वतों के मनोहारी दृश्यों का वर्णन है जिसमें प्रकृति अपने विभिन्न रंग रूप दिखाती है।
  2. भाषा सरल एवं सहज है।।
  3. तद्भव एवं तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली है।

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(4) ऐसा लगता था कि आज की रात आकाश के सारे सितारे धरती पर उतर आए हों। हमारे इतने समीप। केवल एक खड्ड भर की दूरी थी।अन्धेरे में खड्ड भी तो दिखाई नहीं देती। सारी दूरी मिट जाती थी। वे सब और समीप आ गए थे हमारे। जैसे हम उन्हें हाथों से छू सकते थे। दीप्तमान सहस्रों सितारे रंग-बिरंगे मोतियों की तरह झिलमिला रहे थे।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्र नाथ चावला द्वारा लिखित ‘एक मिलियन डालर का दृश्य’ से लिया गया है। लेखक ने रात के समय पर्वतीय क्षेत्र की सुंदरता का सहज वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक तारा देवी के मोड़ से देखे गए शिमला शहर के बिजली की बत्तियों से जगमगाते दृश्य का वर्णन कर रहे हैं। लेखक कहता है कि शिमला शहर में बत्तियों की रोशनी ऐसे प्रतीत हो रही थी जैसे रात में आकाश के सारे सितारे धरती पर उतर आए हों और वे दूर आकाश में न होकर हमारे बहुत निकट हों। हमारे और सितारों के बीच में एक खड्ड वे दूरी थी और अन्धेरे में वह खड्ड भी दिखाई नहीं देती थी। अत: सारी दूरी मिट गई थी। वे सितारे जैसे हमारे इतने निकट आ गए थे कि हम उन्हें अपने हाथों से छू सकते थे। चमकते हुए हज़ारों सितारे रंग-बिरंगे मोतियों की तरह झिलमिला रहे थे। रात के समय पहाड़ों पर बिजली की बत्तियों का दृश्य बहुत मनोहर था।

विशेष :

  1. लेखक को शिमला शहर में जलती हुई बत्तियाँ आकाश के चमकते हुए सितारों के समान लग रही थीं।
  2. भाषा सरल, सहज एवं रोचक है।
  3. तद्भव और तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली है।

(5) क्या आज आकाशलोक में कोई विशेष समारोह है जो ये सब धरती से आकाश तक पर्वत की ढलाने सहस्रों जगमगाते हीरे-मोतियों, मणियों और मूंगों से जड़ी हैं। अथवा रात्रि देवी के लम्बे काले केशों में यह कोई रत्नजड़ित मालाएँ हैं जिनके हीरे मोती जगमगा कर अन्धकार को और भी गहरा कर देते हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित मिलियन डालर का दृश्य से लिया गया है। लेखक ने शिमला की रात्रिकालीन सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक शिमला शहर में बिजली की बत्तियों को देखकर कल्पना करता हुआ कहता है कि आज आकाश में कोई विशेष समारोह है इसलिए धरती और आकाश के बीच बनी पर्वत की ढलाने हज़ारों जगमगाते होरेमोतियों, मणियों और मूंगों से सजी हुई हैं जिनके हीरे मोती जगमगा कर अन्धेरे को और भी गहरा कर देते हैं। अर्थात् बिजली की बत्तियों ने पर्वत की ढलानों को आकाश लोक तक जोड़ दिया है। उनकी जगमगाहट किसी विशेष समारोह की याद दिलाती थी या फिर ऐसा लग रहा था जैसे रात की देवी ने अपने बालो में रत्न जड़ित मालएं गूंथ रखी हैं जिससे हीरे मोतियों की चमक ने रात के अंधकार को और भी बढ़ा दिया था। अन्धेरे में चमकदार चीजें अन्धकार को ओर बढ़ा देती हैं।

विशेष :

  1. लेखक ने दूर शिमला में जल रही बत्तियों की जगमगाट से धरती और आकाश भुला दिया है।
  2. बत्तियों की जगमगाहट से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे आकाशलोक में समारोह हो रहा है।

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(6) कहीं ऐसा तो नहीं कि आज देवताओं ने रात्रि को सुखना झील के किनारे एक विशाल जगमगाता चौपड़ बिछाया हो या आज की रात नीला आकाश शिवालिक की गोदी में अपना सिर रख धरती पर सो रहा हो।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण प्रो० इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित यात्रा वृतान्त ‘एक मिलियन डॉलर का दृश्य’ से लिया गया है। लेखक ने चंडीगढ़ की प्राकृतिक सुंदरता का सहज वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने कालका से जगमगाते चण्डीगढ़ को देखकर अपनी कल्पना को अभिव्यक्त किया है। लेखक को लगता है कि आज देवताओं ने रात में सुखना झील के किनारे एक बहुत बड़ा जगमगाता चौपड़ बिछाया हो अथवा आज की रात नीला आकाश शिवालिक पर्वत की गोदी में अपना सिर रख धरती पर सो रहा हो।

विशेष :

  1. रात के समय चण्डीगढ़ के जगमगाते रूप का वर्णन किया गया है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तद्भव एवं तत्सम शब्दावली है।
  4. चित्रात्मक शैली है।

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एक मिलियन डालर दृश्य Summary

एक मिलियन डालर दृश्य निबन्ध का सार

‘एक मिलियन डालर दृश्य’ इन्द्रनाथ चावला द्वारा लिखित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने चण्डीगढ़ से शिमला की यात्रा का वर्णन किया है। इसके साथ ही लेखक ने सोलन नगर के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए वहाँ के जन जीवन की समस्याओं की ओर संकेत किया है। लेखक अपने मित्र के साथ पहाड़ की यात्रा के लिए जा रहा है। दोनों लोग चण्डीगड़ से हिमाचल में किन्नौर की यात्रा के लिए निकले। किन्तु कालका शिमला सड़क पर स्थित धर्मपुर पहुँच कर उनकी गाड़ी खराब हो गई। शाम तक गाड़ी ठीक हुई और वे आगे बढ़ गए। मार्ग में सोलन में चाय पीने के लिए रुके। सोलन में कृषि विश्वविद्यालय और जिला बनने से वहाँ की आबादी बढ़ गई है।

परिवार एक-एक कमरे में रहते हैं जिससे गन्दगी दिखाई देती है। लेखक यहाँ कालका से शिमला जाने वाली छोटी लाइन की रेलगाड़ी का वर्णन करता है जिससे यात्रा करना अत्यन्त सुखद लगता है। गाड़ी बिगड़ जाने के कारण रात उन्हें शिमला में ही बिताने का निर्णय लेना पड़ा। पहाड़ी रास्ता टेढ़ा-मेढ़ा होने के कारण वे आपस में बातचीत भी नहीं कर रहे थे। तारादेवी पहुँच कर उन्होंने सुख की साँस ली। वहाँ शिमला की बत्तियाँ ऐसे दिखाई देती थीं जैसे आकाशलोक में कोई समारोह हो रहा हो, ऐसा लग रहा था शिमला तारादेवी से झिलमिलाता हुआ मिलन करने जा रहा हो। लेखक को लगा शिमला में हर रोज़ इसी तरह जगमगाहट होती है जैसे दीपावली हो। लेखक को वह दृश्य एक मिलियन डालर दृश्य लगता है जिसे देखने के लिए कोई भी विदेशी पर्यटक मुँह माँगे दाम दे सकता है। लेखक ने कुछ पूर्व भी शिमला की ऐसी ही अनोखी छवि देखी थी।

एक मोड़ आने पर वह दृश्य लुप्त हो गया। लेखक अपने मित्रों सहित शिमला पहुँच गया। कुछ दिनों बाद शिमला से चण्डीगढ़ लौटते हुए ढल्ली गाँव के पास पहुँच कर कालका के जगमगाते रूप को देखकर उसे शिमला की याद हो जाती है। कालका से चण्डीगढ़ की रोशनियाँ भी दिखाई देती हैं जैसे मखमली चादर पर सितारे जड़े गए हों।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

Hindi Guide for Class 11 PSEB रसायन और हमारा पर्यावरण Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-

प्रश्न 1.
रसायन हमारी आवश्यकता है। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से उदाहरण देते हुए स्पष्ट करें।
उत्तर:
हम रसायनों के युग में रह रहे हैं और आज रसायन हमारी आवश्यकता बन गया है। हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ और हम सब, रासायनिक यौगिकों के बने हैं। हवा, मिट्टी, पानी, खाना, वनस्पति और जीव-जन्तु ये सब अजूबे जीवन की रासायनिक सच्चाई ने पैदा किये हैं। प्रकृति में सैंकड़ों-हज़ारों रासायनिक पदार्थ हैं। रसायन न होते तो धरती पर जीवन भी नहीं होता। पानी तो जीवन का आधार है, यह पानी हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बना एक रासायनिक यौगिक है। मधुर मीठी चीनी कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बनी है। कोयला और तेल, बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ-एंटीबायोटिक्स, एस्प्रीन और पेनेसिलिन, अनाज, सब्ज़ियाँ, फल और मेवे भी तो रसायन हैं। इस प्रकार यह हमारे पर्यावरण में सदा से विद्यमान रहे हैं इसीलिए इनकी महत्ता के विषय में जानकारी होनी आवश्यक है, क्योंकि ये हमारे जीवन की आवश्यकता है।

प्रश्न 2.
‘रसायनों का ज़रूरत से अधिक और गलत प्रयोग हमारे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है।’ पाठ से उदाहरण देकर इस तथ्य को सिद्ध करें।
उत्तर:
रसायनों का प्रयोग उत्पाद में वृद्धि के लिए किया जाता है किन्तु इसका अधिक प्रयोग भूमि प्रदूषण एवं जलाने का कारण तो बनता ही है, स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। फलों और सब्जियों पर किया जाने वाला कीटनाशक दवाइयों का अधिक प्रयोग खाने वालों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अनेक रसायन ऐसे हैं जिनका अधिक एवं गलत प्रयोग गम्भीर एवं भयंकर रोग पैदा करने वाला होता है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

प्रश्न 3.
‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:

‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित है। लेखक ने इस निबन्ध में आधुनिक जीवन में रसायनों के दिन प्रतिदिन बढ़ रहे प्रयोग के प्रति मानव को सतर्क किया है। नि:संदेह रसायनों का प्रयोग आज अनिवार्य है। परन्तु हमें उनके प्रयोग में सावधानी बरतते हुए विनाशकारी और हानिकारक प्रभाव से जीवन को अधिक-से-अधिक सुरक्षित रखना चाहिए। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक के बढ़ते प्रयोग द्वारा पर्यावरण के प्रदूषित होने की बात कही है। लेखक का कहना है कि रसायनों का प्रयोग आज के युग की आवश्यकता बन गया है। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र रसायनों के प्रभाव से ही जुड़ा हुआ हैं। रसायन न हो तो धरती पर जीवन ही सम्भव न हो पाता। चीनी, कोयला, तेल तथा बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाली एंटीबायोटिक्स, एस्प्रीन और पेनेसिलन जैसी औषधियाँ, सब्ज़ियाँ, फल, मेवे इत्यादि सभी रसायन होते हैं। आज रसायन विज्ञान काफ़ी उन्नत अवस्था में हैं। किन्तु चिंता का विषय रसायनों के बढ़ते एवं गलत प्रयोग से है। रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। आज रसायनों के ऐसे प्रयोग विनाशकारी होने के कारण चिंता का कारण हैं। हालांकि रसायन उद्योग में रसायनों के संपर्क में रहने वाले कर्मचारियों के लिए कदम उठाए गए हैं।

खेतों में रसायनों का प्रयोग उत्पाद में वृद्धि में उपयोगी तो है किन्तु इसका अंधा-धुंध प्रयोग हानिकारक भी है। ये रसायन कैंसर जैसी भयंकर बीमारियाँ भी फैलाते हैं। रसायन तो शुरू से ही हमारे पर्यावरण का हिस्सा रहे हैं। हमें कम रसायनों के बारे में जानने की अधिक ज़रूरत है। हमें किसी भी रसायन का हानिकारक रूप ढूँढना होगा, तब तक उसका प्रयोग जारी रहना चाहिए किन्तु उसके गलत प्रयोग पर हाथ पीछे खींचना चाहिए।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
रसायनों के तात्कालिक खतरे कौन-से हैं ?
उत्तर:
खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक मनुष्य के लिए किसी हद तक खतरनाक हैं। नमक का अधिक और लम्बे समय तक रक्तचाप बढ़ने का कारण बन सकता है। समुद्र के पानी में अनेक रसायन मिले होने के कारण सेहत के लिए उसे पीना भी खतरनाक है। रसायनों का सबसे बड़ा खतरा कैंसर जैसे रोग के फैलने का है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

प्रश्न 2.
रसायनों के दीर्घकालिक प्रभाव क्या हैं ? उदाहरण देकर उत्तर दें।
उत्तर:
रसायनों के दीर्घकालिक खतरे अभी हाल ही में उजागर हुए हैं। कुछ रसायन आगामी पीड़ियों को प्रभावित करते हैं। जैसे थैलीडोमाईड तथा ऐस्वेस्टॉस जो कैंसर पैदा करता है। इसी तरह पौलीकलोरीनेटिड बाइफेनिल जो बाद में जीवों, मछलियों और यहां तक कि मनुष्य के लिए भी खतरा उत्पन्न कर देते हैं।

प्रश्न 3.
रसायनों के प्रयोग में नियन्त्रण व निर्णय में सरकार की क्या भूमिका हो सकती है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
रसायनों के गलत एवं अधिक प्रयोग से होने वाली हानियों से सरकार जनता को अवगत करवा सकती है। पर्यावरण को रसायन किसी प्रकार की हानि नहीं पहुँचा सकें इसके लिए उचित कानून बना सकती है। सरकार ने पर्यावरण सुरक्षा सम्बन्धी एक अलग से विभाग भी बनाया है। पर्यावरण को सुरक्षित रखने के अनेक उपाय भी किए हैं। किन्तु हमारा मानना है कि सरकार के साथ-साथ आम लोगों को भी इसमें सहयोग देना चाहिए।

प्रश्न 4.
पर्यावरण को रसायनों से होने वाली हानि से कैसे बचाया जा सकता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
पर्यावरण को रसायनों से होने वाली हानि से बचने के लिए हमें उनका नियन्त्रित प्रयोग करना चाहिए। कुछ रसायन अपने आप में सुरक्षित हैं किन्तु वे उस समय हानि पहुँचाते हैं जब उनका मेल अन्य पदार्थों का होता है। हमें इससे बचना चाहिए। इस तरह हम कैंसर जैसे भयानक रोग एवं पेट की बीमारियों से बच सकते हैं। रसायनों के प्रयोग सम्बन्धी सरकारी कानून और नियमों का पालन करना चाहिए। रसायनों का प्रयोग उनसे जुड़े अनुसंधान या सूचनाओं के आधार पर ही करना चाहिए। रसायनों के प्रयोग से होने वाली हानि एवं लाभ को ध्यान में रखना चाहिए। रसायनों का प्रयोग सुरक्षित ढंग से सुरक्षित मात्रा में करना चाहिए। रासायनिक सुरक्षा को प्रतिदिन का कार्य मान लिया जाना चाहिए। इस तरह हम रासायनों से होने वाली हानि से बच सकते हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

PSEB 11th Class Hindi Guide रसायन और हमारा पर्यावरण Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हमें किसी भी रसायन का कौन-सा रूप ढूँढ़ना होगा ?
उत्तर:
हानिकारक रूप।

प्रश्न 2.
आज रसायनों का प्रयोग चिंता का कारण क्यों बना है ?
उत्तर:
रसायनों के अंधा-धुंध प्रयोग के कारण।

प्रश्न 3.
‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ के माध्यम से लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर:
रसायनों के प्रयोग के प्रति मानव को सतर्क किया है।

प्रश्न 4.
पर्यावरण प्रदूषित क्यों हुआ है ?
उत्तर:
रसायनों के अधिक प्रयोग के कारण।

प्रश्न 5.
जीवन का प्रत्येक क्षेत्र किससे जुड़ा हुआ है ?
उत्तर:
रसायनों से।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

प्रश्न 6.
रसायनों के विनाशकारी प्रभाव से जीवन को ………. रखना होगा।
उत्तर:
सुरक्षित।

प्रश्न 7.
रसायन कौन-सी बीमारियाँ फैलाते हैं ?
उत्तर:
कैंसर जैसी।

प्रश्न 8.
प्रारम्भ से हमारे पर्यावरण का कौन हिस्सा रहे हैं ?
उत्तर:
रसायन।

प्रश्न 9.
आज का युग किसका युग कहा जा सकता है ?
उत्तर:
रसायनों का।

प्रश्न 10.
पानी कैसे बना है ?
उत्तर:
हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के योग से।

प्रश्न 11.
चीनी कैसे बनी है ?
उत्तर:
कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन।

प्रश्न 12.
प्रकृति में …………. रासायनिक पदार्थ हैं।
उत्तर:
सैकड़ों-हज़ारों।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

प्रश्न 13.
रसायनों का प्रयोग किस लिए किया जाता है ?
उत्तर:
उत्पाद की वृद्धि के लिए।

प्रश्न 14.
कुछ रसायन …………… को प्रभावित करते हैं।
उत्तर:
आगामी पीढ़ियों को।

प्रश्न 15.
हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ किसके योग से बनी हैं ?
उत्तर:
रसायनों के योग से।

प्रश्न 16.
कीटनाशक के प्रयोग से पर्यावरण पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर:
पर्यावरण प्रदूषित होता है।

प्रश्न 17.
हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति कौन करता है ?
उत्तर:
रसायन।

प्रश्न 18.
कुशल व्यक्ति की देखरेख में किया गया रासायनिक छिड़काव कैसा रहता है ?
उत्तर:
उत्पादन वृद्धि में सहायक।

प्रश्न 19.
हमें किसके बारे में जानने की अधिक ज़रूरत है ?
उत्तर:
रसायनों के।

प्रश्न 20.
किससे संबंधित आँकड़े विश्वास करने योग्य हैं ?
उत्तर:
कैंसर।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ किस विधा की रचना है ?
(क) कविता
(ख) निबन्ध
(ग) कहानी
(घ) उपन्यास।
उत्तर:
(ख) निबंध

प्रश्न 2.
इस निबन्ध में लेखक ने मानव को किसके प्रयोग के प्रति सतर्क किया है ?
(क) रसायनों के
(ख) विज्ञान के
(ग) जल के
(घ) प्रदूषण के।
उत्तर:
(क) रसायनों के

प्रश्न 3.
रसायन के बिना धरती पर क्या संभव नहीं था ?
(क) वायु
(ख) जल
(ग) जीवन
(घ) मरण।
उत्तर:
(ग) जीवन

प्रश्न 4.
रसायनों का अधिक प्रयोग कैसा है ?
(क) हानिकारक
(ख) लाभदायक
(ग) शिथिल
(घ) शीत।
उत्तर:
(क) हानिकारक।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

कठिन शब्दों के अर्थ :

अपरिहार्य = जिसे त्यागा न जा सके। अभिक्रिया = रासायनिक प्रतिक्रिया। मारकशक्ति = मारने की शक्ति । आनुवंशिक = वंश परम्परा के अनुसार, पुश्तैनी। क्षयकारी = विनाशकारी। अप्रत्याशित = जिसकी आशा न हो। तात्कालिक = उस समय का । प्रतिबन्ध = रोक।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) हम रसायनों के युग में रह रहे हैं। हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ और हम सब, रासायनिक यौगिक के बने हैं। हवा, मिट्टी, पानी, खाना, वनस्पति और जीव-जन्तु ये सब अजूबे जीवन की रासायनिक सच्चाई ने पैदा किए हैं। प्रकृति में सैंकड़ों, हज़ारों रासायनिक पदार्थ हैं । रासायन न होते तो धरती पर जीवन भी नहीं होता।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध ‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ में से लिया गया है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने प्रकृति में आदिकाल से ही रसायनों के विद्यमान होने की बात कहते हुए इनके अत्यधिक एवं गलत प्रयोग के लिए मनुष्य को सतर्क किया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि आज का युग रसायनों का युग है अर्थात् हम लोग इनके बिना जीवन जीने की कल्पना नहीं कर सकते। हमारे पर्यावरण की सारी वस्तुएँ तथा हम सब रसायनों के मेल से ही बने हैं। हवा, मिट्टी, पानी, भोजन, पेड़-पौधे और जीव-जन्तु ये सब रसायनों से ही बने हैं। यह सच है कि हमारी उत्पत्ति भी एक रसायन क्रिया है इससे हम इन्कार नहीं कर सकते हैं। प्रकृति में सैंकड़ों हज़ारों रासायनिक पदार्थ हैं। यदि रसायन न होते तो धरती पर जीवन ही न होता। रसायन प्रकृति का अंग हैं और हमारा जीवन भी इन्हीं के मेल से बना है।

विशेष :

  1. भाषा सरल, स्वाभाविक एवं प्रभावशाली है।
  2. तत्सम तथा उर्दू शब्दावली है।
  3. शैली विचारात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

(2) मनुष्य और रसायन-उद्योग ने रसायन के तात्कालिक उग्र खतरे को पहचानने की दिशा में अच्छा काम किया है और जनता तथा उन कर्मचारियों को, जो काम के दौरान रसायनों के सम्पर्क में रहते हैं, रसायनों के कुप्रभाव से बचने के लिए आवश्यक एतिहायाती कदम उठाए गए हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध ‘रसायन और हमारा पयांवरण’ में से लिया गया है। इसमें लेखक ने रसायनों के खतरों को पहचान कर किए काम की ओर संकेत किया है।

व्याख्या :
लेखक ने रसायन उद्योग द्वारा अपनाए गए बचाव कदमों का उल्लेख करते हुए कहा है कि मनुष्य और रासायनिक उद्योग ने रसायन के उसी समय होने वाले तेज़ खतरे को पहचानने की दिशा में अच्छा काम किया है। जं लोग इस काम में लगे हैं वे इन कामों से होने वाले खतरों के प्रति सतर्क हैं। उसने जनता तथा उन कर्मचारियों को जो काम के समय रसायनों के सम्पर्क में रहते हैं, रसायनों के बुरे प्रभाव से बचाने के लिए आवश्यक सावधानी वाले य बचाव वाले कदम उठाए हैं। रसायनों के प्रयोग से उत्पन्न खतरों की जागरूकता ने लोगों को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया है।

विशेष :

  1. मनुष्य का स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होना ही रसायन के ग़लत प्रयोग को रोक सकता है।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम और उर्दू शब्दावली है।
  4. शैली विचारात्मक है।

(3) खेती में इस्तेमाल होने वाले कीटनाशक मनुष्य के लिए किसी हद तक ज़हरीले हैं, इन्हें पर्यावरण में जानबूझ कर छिड़का जाता है, किन्तु इसके लिए इन्हें भली-भान्ति परखा जाता है और इस्तेमाल की अनुमति दी जाती है। कारण इससे फसल की वृद्धि के रूप में अधिक लाभ प्राप्त होता है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध रसायन और हमारा पर्यावरण से लिया गया है। इसमें लेखक ने कीटनाशक के होने वाले प्रयोग से लाभ और हानि का वर्णन किया है

व्याख्या :
लेखक ने बताया है कि रसायनों के उचित छिड़काव से फसल के उत्पाद में वृद्धि हो सकती है। लेखक कहते हैं कि खेतों में प्रयोग होने वाले कीटनाशक मनुष्य के लिए कुछ सीमा तक विषैले हैं। फसलों पर छिड़का गया कीटनाशक खाने के साथ मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है तथा उसे अस्वस्थ बना देता है। इन्हें पर्यावरण में जान-बूझ कर छिडका जाता है। कीटनाशक के प्रयोग से पर्यावरण दूषित होता है किन्तु यदि इन्हें भली प्रकार से जाँच-परखकर प्रयोग की सलाह दी जाए तो फसल के उत्पाद में वृद्धि हो सकती है। कुशल व्यक्ति की देख-रेख में छिड़का गया कीटनाशक फसलों की पैदावार बढ़ाने में सहायाक है।

विशेष :

  1. कीटनाशक फसलों के उत्पादन को बढ़ाते हैं।
  2. भाषा सरल है।
  3. त्सम और उर्दू शब्दावली है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

(4) रसायन हमारी आवश्यकता हैं। ये हमारे पर्यावरण में हमेशा मौजूद हैं जो सूक्ष्म अथवा लेशमात्र भी अर्थपूर्ण हो सकते हैं। इन लेश रसायनों के बारे में हमें अधिक जानने की ज़रूरत है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा रचित वैज्ञानिक निबन्ध रसायन और पर्यावरण से लिया गया है जिसमें रसायनों के महत्त्व को प्रकट किया गया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि रसायन हमारी आवश्यकता है। ये हमारे पर्यावरण में सदा से विद्यमान हैं। रसायन का प्रयोग आधुनिक जीवन की देन नहीं है। यह आदिकाल से ही प्रकृति में विद्यमान हैं। ये रसायन सूक्ष्म हों चाहे थोड़ी मात्रा में, अर्थपूर्ण हो सकते हैं। इन थोड़ी मात्रा में विद्यमान रसायनों के बारे में जानने की हमें अधिक ज़रूरत है। रसायनों के लाभ-हानि सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक है। क्योंकि आज रसायन प्राकृतिक नहीं हैं यह यौगिक क्रियाओं की देन हैं इसलिए इनका उचित ज्ञान होना आवश्यक है।

विशेष :

  1. रसायन हमारी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
  2. शब्दावली तत्सम एवं उर्दू है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. भाषा संस्कृत एवं उर्दू है।

(5) कैंसर बहुत भयानक रोग है। कहा जाता है कि कैंसर अधिकतर पर्यावरणीय रसायनों के प्रति उद्भासन के कारण होता है। यह तथ्य है या यूं ही उड़ाई गई बात ? कैंसर से सम्बन्धित आंकड़े आज विश्वसनीय हैं। ऐसी रिपोर्ट भी मौजूद है जो संकेत देती है कि कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। किन्तु अन्य रिपोर्ट के अनुसार कैंसर के मामले कम होते जा रहे हैं। पिछले 25 वर्षों से पेट के कैंसर के मामले में कमी आई है किन्तु फेफड़ों का कैंसर बड़ा है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित निबन्ध ‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक कैंसर जैसे भयानक रोग के बारे में बता रहे हैं।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि कैंसर सबसे भयानक रोग है जो अधिकतर पर्यावरणीय रसायनों के प्रति उद्भासन के कारण होता है। कैंसर जैसा भयानक रोग पर्यावरण के प्रदूषित होने के कारण है और यह प्रदूषण खतरनाक रसायनों का कारण है। रसायनों का प्रयोग करने वाले कैंसर का सम्बन्ध उससे मानने से इनकार करते हैं। अब कैंसर के विषय में यह बात तथ्य है या अफवाह इसका कहना मुश्किल है। कैंसर से सम्बन्धित आंकड़े विश्वास करने योग्य हैं। कुछ रिपोर्टों में इसके बढ़ने तथा कुछ में कम होने की बात कही गयी है। पिछले 25 वर्षों में पेट के कैंसर के मामलों में कमी आई है पर फेफड़ों के कैंसर बढ़े हैं अर्थात् रसायनों ने मनुष्य के स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। इसीलिए मनुष्य को एक से एक लाईलाज बीमारियों ने घेर रखा है।

विशेष :

  1. रसायनों ने कैंसर की बीमारी से मनुष्य को ही नहीं हमारे समाज में भौतिकवादिता की बीमारी को भी बढ़ावा दिया है।
  2. भाषा सरल है।
  3. तत्सम और उर्दू शब्दावली है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 19 रसायन और हमारा पर्यावरण

रसायन और हमारा पर्यावरण Summary

रसायन और हमारा पर्यावरण निबन्ध का सार

‘रसायन और हमारा पर्यावरण’ डॉ० एम० एल० रामनाथन द्वारा लिखित है। लेखक ने इस निबन्ध में आधुनिक जीवन में रसायनों के दिन प्रतिदिन बढ़ रहे प्रयोग के प्रति मानव को सतर्क किया है। नि:संदेह रसायनों का प्रयोग आज अनिवार्य है। परन्तु हमें उनके प्रयोग में सावधानी बरतते हुए विनाशकारी और हानिकारक प्रभाव से जीवन को अधिक-से-अधिक सुरक्षित रखना चाहिए। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक के बढ़ते प्रयोग द्वारा पर्यावरण के प्रदूषित होने की बात कही है। लेखक का कहना है कि रसायनों का प्रयोग आज के युग की आवश्यकता बन गया है। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र रसायनों के प्रभाव से ही जुड़ा हुआ हैं। रसायन न हो तो धरती पर जीवन ही सम्भव न हो पाता। चीनी, कोयला, तेल तथा बीमारियों से मुक्ति दिलाने वाली एंटीबायोटिक्स, एस्प्रीन और पेनेसिलन जैसी औषधियाँ, सब्ज़ियाँ, फल, मेवे इत्यादि सभी रसायन होते हैं। आज रसायन विज्ञान काफ़ी उन्नत अवस्था में हैं। किन्तु चिंता का विषय रसायनों के बढ़ते एवं गलत प्रयोग से है। रसायनों का अधिक मात्रा में प्रयोग पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। आज रसायनों के ऐसे प्रयोग विनाशकारी होने के कारण चिंता का कारण हैं। हालांकि रसायन उद्योग में रसायनों के संपर्क में रहने वाले कर्मचारियों के लिए कदम उठाए गए हैं।

खेतों में रसायनों का प्रयोग उत्पाद में वृद्धि में उपयोगी तो है किन्तु इसका अंधा-धुंध प्रयोग हानिकारक भी है। ये रसायन कैंसर जैसी भयंकर बीमारियाँ भी फैलाते हैं। रसायन तो शुरू से ही हमारे पर्यावरण का हिस्सा रहे हैं। हमें कम रसायनों के बारे में जानने की अधिक ज़रूरत है। हमें किसी भी रसायन का हानिकारक रूप ढूँढना होगा, तब तक उसका प्रयोग जारी रहना चाहिए किन्तु उसके गलत प्रयोग पर हाथ पीछे खींचना चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

Hindi Guide for Class 11 PSEB भीड़ में खोया आदमी Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘भीड़ में खोया आदमी’ निबन्ध में लेखक ने आम आदमी की समस्याओं को उठाया है। स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को उठाया है। सबसे पहले लेखक ने रेलयात्रा में बढ़ती भीड़ का उल्लेख किया है। रेलयात्रा आजकल बड़ी कठिन हो गई है। आरक्षण के लिए घंटों कतार में खड़ा रहना पड़ता है और बिना आरक्षण के यात्रा करना अधिक भीड़ के कारण कठिन हो गया है। लोग अपने प्राणों को संकट में डालकर छत पर सफर करने को विवश हैं।

दूसरी समस्या बेरोज़गारी की है। देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण नौकरियाँ कम हैं और नौकरी पाने वाले अधिक शिक्षा पूरी कर वर्षों तक युवों को नौकरी नहीं मिलती ! तीसरी समस्या है आवास की कमी। जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ रही है उतनी तेजी से मकान नहीं बन रहे हैं फिर मकान बनाने के लिए भूमि भी तो चाहिए। जनसंख्या में वृद्धि के कारण हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ भी प्रभावित हो रही हैं। अस्पतालों में रोगियों की भीड़ रही है और डॉक्टरों की संख्या उस अनुपात में बहुत कम है। परिणामस्वरूप लोगों का स्वास्थ्य खराब हो रहा है।

लेखक सुझाव देते हैं कि यदि सीमित परिवार होंगे तो स्वच्छ जलवायु मिलने से लोग स्वस्थ रहेंगे। रेल, बस यात्रा में भीड़ कम होगी, सड़क पर दुर्घटनाएँ कम होंगी। भीड़ में खोया आदमी इतना तो समझ ही जाता है कि यह सब बढ़ती जनसंख्या का परिणाम है। इसलिए लेखक ने प्रस्तुत निबन्ध के माध्यम से आम आदमी की रोटी, कपड़ा, मकान और रोजगार जैसी समस्याओं को उठाया है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

प्रश्न 2.
इस निबन्ध में लेखक ने सभी समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या की वृद्धि बताया है। क्या आप इससे सहमत हैं ? अपने विचारों की पुष्टि के लिए उदाहरण दें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने देश में उत्पन्न सभी समस्याओं का मूल कारण जनसंख्या की वृद्धि को बताया है लेखक के इस विचार से हम शतप्रतिशत सहमत हैं। जनसंख्या में वृद्धि के परिणामस्वरूप रेल और बस यात्रा दुष्कर हो गई है। लोगों को अपने प्राण संकट में डालकर रेल या बस की छत पर सफर करना पड़ता है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण देश में बेरोजगारी अधिक फैल रही है पढ़े-लिखे युवक वर्षों तक कोई नौकरी पाने में सफल नहीं होते। जनसंख्या में वृद्धि के कारण मकान और खाद्यान्न की कमी हो रही है। जितनी तेजी से जनसंख्या बढ़ रही है, उतनी तेजी से मकान नहीं बन रहे।

भले ही विज्ञान की सहायता से खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि हुई है किन्तु बढ़ती जनसंख्या ने इस वृद्धि को भी निमूर्ल सिद्ध कर दिया है। भूख और गरीबी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण और खाद्यान्न की कमी के कारण लोग कुपोषण का शिकार होकर रोगग्रस्त हो रहे हैं। अस्पतालों में रोगियों की भीड़ बढ़ रही है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण दुकानदार जो पहले ग्राहक का स्वागत करते थे उन्हें भगवान् मानते थे अब ग्राहकों को अपना काम करवाने के लिए उनकी चिरौरी करनी पड़ती है। जनसंख्या में वृद्धि के कारण देश के अनुशासन पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। सार्वजनिक स्थानों पर भीड़ अधिक बढ़ गई है। सड़क दुर्घटनाएँ भी बढ़ती जनसंख्या के कारण बढ़ रही हैं। लोगों को अपना काम करवाने के लिए अपने समय, शक्ति और धन को बर्बाद करने पड़ता है। जनसंख्या यदि काबू में रहे तो ये समस्याएँ उत्पन्न ही न हों।।

प्रश्न 3.
निबन्ध के नामकरण की सार्थकता को स्पष्ट करें।
उत्तर:
निबन्ध का शीर्षक ‘भीड़ में खोया आदमी अत्यन्त सटीक और सार्थक बन पड़ा है। देश की जनसंख्या में वृद्धि होने के कारण रेल यात्रा में भीड़, अस्पतालों में भीड़, राशन की दुकान पर भीड़, रोजगार कार्यालय में भीड़, सड़कों पर, दफ्तरों में, बाजारों में भीड़ देखकर आम आदमी भीड़ में खाकर रह जाता है। भले ही वह जानता है कि यह सब बढ़ती जनसंख्या का परिणाम है। अतः कहना न होगा कि ‘भीड़ में खोया आदमी’ नामकरण अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
रेल में यात्रा करते समय लेखक को किन-किन समस्याओं का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
लेखक ने बिना आरक्षण के ही रेल यात्रा की। जब गाड़ी प्लेटफार्म पर आई तो उसमें तिल धरने की भी जगह नहीं थी। लेखक को कुली ने किसी तरह अन्दर धकेला। गाड़ी से उतरने में भी लेखक को असुविधा हुई। बाहर कूद कर आने पर उसने लोगों को रेल की छत पर सफर करते देखा।

प्रश्न 2.
दीनानाथ को नौकरी न मिलने का क्या कारण था ?
उत्तर:
दीनानाथ को पढ़ाई पूरा किये दो वर्ष हो गए थे। किन्तु देश में बढ़ती जनसंख्या के कारण रोजगार मिलना मुश्किल हो रहा था। रोज़गार कार्यालय में भी उसकी योग्यता वाले हज़ारों व्यक्ति उससे पहले अपना नाम दर्ज करवा चुके थे जब उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली तो दीनानाथ को कहाँ से मिलती।

प्रश्न 3.
श्यामलाकांत ने शहर में मकान न मिलने का मुख्य कारण क्या बताया ?
उत्तर:
श्यामलाकांत ने शहर में मकान न मिलने का मुख्य कारण देश की बढ़ती जनसंख्या को बताया। जिस कारण शहर के कई गुणा फैल जाने के बावजूद और नई-नई कालोनियाँ बन जाने पर भी मकान कम पड़ रहे हैं और उन में रहने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 4.
श्यामलाकांत का परिवार अस्वस्थ क्यों रहता था ?
उत्तर:
श्यामलाकांत के परिवार के अस्वस्थ रहने का कारण तंग गलियों में रहना है। वहाँ का वातावरण स्वच्छ नहीं है। बड़ा परिवार होने के कारण सभी के स्वास्थ्य की ओर ठीक ढंग से ध्यान नहीं दिया जाता। उनके खाने-पीने की ओर उचित ध्यान नहीं मिलता है। यही कारण है श्यामलाकांत का परिवार बीमार रहता है।

प्रश्न 5.
लेखक ने अपने निबन्ध में बढ़ती हुई भीड़ का समाधान क्या बताया है ?
उत्तर:
लेखक ने सुझाव दिया है कि यदि सीमित परिवार हो, स्वच्छ जलवायु हो और खाने के लिए भरपूर भोजन सामग्री हो तो बीमारी से बचा जा सकता है। यदि बढ़ती जनसंख्या को न रोका गया तो सड़क दुर्घटनाएँ बढ़ेंगी रेलबस में यात्रा करना कठिन हो जाएगा तथा लोगों को अपना काम करवाने के लिए समय-शक्ति और धन का व्यय करना पड़ेगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

PSEB 11th Class Hindi Guide भीड़ में खोया आदमी Important Questions and Answers

अति लघूतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्टेशन पर लीलाधर शर्मा के मित्र का कौन-सा बेटा उन्हें लेने आया था ?
उत्तर:
बड़ा बेटा।

प्रश्न 2.
लेखक के मित्र का घर कितना बड़ा था ?
उत्तर:
दो कमरों का घर था।

प्रश्न 3.
‘भीड़ में खोया आदमी’ किस प्रकार की विधा है ?
उत्तर:
निबंध।

प्रश्न 4.
‘भीड़ में खोया आदमी’ में किस समस्या को उठाया गया है ?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न समस्याओं को।

प्रश्न 5.
सबसे पहले लेखक ने किस समस्या का उल्लेख किया ?
उत्तर:
रेलयात्रा में बढ़ती भीड़ का।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

प्रश्न 6.
आरक्षण के लिए घंटों ……………. में खड़ा रहना पड़ता है।
उत्तर:
कतार।

प्रश्न 7.
बढ़ती जनसंख्या से उपजी समस्याएँ कौन-सी हैं ?
उत्तर:
बेरोजगारी, भुखमरी आदि।

प्रश्न 8.
तीसरी सबसे बड़ी समस्या कौन-सी है ?
उत्तर:
आवास की समस्या।

प्रश्न 9.
लेखक ने रेल यात्रा कैसे की थी ?
उत्तर:
बिना आरक्षण के।

प्रश्न 10.
क्या मिलने से लोग स्वस्थ रहेंगे ?
उत्तर:
स्वच्छ जलवायु।

प्रश्न 11.
किसी सहायता से खाद्यान्न में वृद्धि हुई है ?
उत्तर:
विज्ञान।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

प्रश्न 12.
…………… दुर्घटनाएँ बढ़ती जनसंख्या का कारण बन रही हैं।
उत्तर:
सड़क।

प्रश्न 13.
लोगों को अपना काम करवाने के लिए क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
अपना समय, शक्ति तथा धन बर्बाद करना पड़ता है।

प्रश्न 14.
दीनानाथ को पढ़ाई पूरी किए कितने वर्ष हो गए थे ?
उत्तर:
दो वर्ष।

प्रश्न 15.
श्यामलाकांत को शहर में मकान क्यों नहीं मिल पाया था ?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या के कारण।

प्रश्न 16.
श्यामलाकांत के घर की गलियों की क्या दशा थी ?
उत्तर:
तंग थी।

प्रश्न 17.
श्यामलाकांत के परिवार का अस्वस्थ रहने का क्या कारण था ?
उत्तर:
तंग गलियों में रहना।

प्रश्न 18.
जब आबादी कम थी तब दुकानदार …………….. का स्वागत करता था।
उत्तर:
ग्राहक का।

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प्रश्न 19.
सड़क दुर्घटनाएँ किस कारण बढी हैं ?
उत्तर:
बढ़ती जनसंख्या के कारण।

प्रश्न 20.
आजकल सार्वजनिक स्थलों पर ………….. बढ़ गई हैं।
उत्तर:
भीड़।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘भीड़ में खोया आदमी’ रचना किस विधा में है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) निबंध

प्रश्न 2.
बढ़ती जनसंख्या से कौन-सी समस्या आती है ?
(क) बेरोज़गारी
(ख) भूखमरी
(ग) आवास की कमी
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी

प्रश्न 3.
लोगों के स्वास्थ्य का मूलाधार क्या है ?
(क) स्वच्छ जलवायु
(ख) जल
(ग) वायु
(घ) स्वच्छ जल।
उत्तर:
(क) स्वच्छ जलवायु।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

दुष्परिणाम = बुरे फल। स्तब्ध = हैरान। चिरौरी = चापलूसी। सुहाती है = अच्छी लगती है। स्वेच्छा = अपनी इच्छा से। संकीर्ण = तंग। चेता = जागा।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) किसी तरह खिड़की से बाहर कूदा तो क्या देखता हूँ, पूरी ट्रेन की छत यात्रियों से भरी पड़ी है। सोचता हूँ, अपने प्राणों को भीषण संकट में डाल कर ट्रेन की छत पर यात्रा करने के लिए लोग क्यों मज़बूर हुए ? इन लोगों को रेल के नियम, व्यवस्था और अनुशासन का ध्यान क्यों नहीं है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भीड में खोया आदमी’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने जनसंख्या वृद्धि के कारण रेल यात्रा में लोगों को रेल की छत पर सफर करने के लिए विवश होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक हरिद्वार जाने वाली ट्रेन में यात्रा कर रहा था। लक्सर स्टेशन पर उसे गाड़ी बदलनी थी। भीड़ भरे डिब्बे से कूद कर बाहर आकर लेखक ने देखा कि ट्रेन की छत भी यात्रियों से भरी हुई है। लेखक सोचने लगा कि ये लोग रेल-यात्रा के लिए अपने प्राण संकट में डालने के लिए क्यों विवश हुए ? यह सब बढ़ती जनसंख्या के कारण हैं जिससे व्यक्ति को रेलगाड़ी के अंदर बैठने की जगह नहीं मिलती। क्या इन लोगों को रेल के नियम, व्यवस्था और व्यवस्था का बिल्कुल ही ध्यान नहीं है? ऐसा नहीं है परन्तु सबको अपनी मंजिल पर पहुँचने की जल्दी है।

विशेष :

  1. रेल यात्रा में बढ़ रही भीड़ को जनसंख्या में वृद्धि होना बताया गया है, जिस कारण लोगों को रेल की छत पर सफर करने पर विवश होना पड़ता है।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

(2) भाई साहब, इतने बड़े परिवार में हर रोज़ कोई न कोई बीमार रहता ही है। डॉक्टर को दिखाने अस्पताल गई थी। मगर अस्पतालों में आजकल रोगी और उनके संबंधी मधु-मक्खी के छत्ते की तरह डॉक्टर को घेरे रहते हैं। वह भी अच्छी तरह किस किस को देखे।

प्रसंग :
यह अवतरण श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखित ‘भीड़ में खोया आदमी’ नामक निबंध से अवतरित है। इसमें लेखक के मित्र की पत्नी बच्चों के अस्वस्थ होने पर और डॉक्टर की दुकान पर लगने वाली भीड़ पर प्रकाश डाल रही है।

व्याख्या :
लेखक के यह पूछने पर कि बच्चों को डॉक्टर को दिखाकर इन का इलाज क्यों नहीं करवाती क्या ? तो लेखक के मित्र की पत्नी ने बताया कि इतने बड़े परिवार में हर रोज़ कोई न कोई बीमार रहता हो है। इतने बड़े परिवार में प्रतिदिन किसी न किसी के बीमार रहने पर अच्छे डॉक्टर को दिखाने के लिए धन कहाँ है। मैं इन्हें डॉक्टर को दिखाने अस्पताल गई थी। पर आजकल अस्पतालों में रोगियों की इतनी भीड़ बढ़ गई है कि रोगी और उन के रिश्तेदार डॉक्टर को मधुमक्खी के छत्ते की तरह घेरे रहते हैं कि डॉक्टर किसी भी रोगी को अच्छी तरह देख ही नहीं पाता। अस्पतालों में भी बढ़ती जनसंख्या ने डॉक्टरों के इलाज को प्रभावित किया है।

विशेष :

  1. जनसंख्या में वृद्धि के कारण अस्पतालों में रोगियों की भीड़ के बढ़ने और डाक्टरों द्वारा रोगियों को ठीक तरह से न देख पाने की बात कही गई है।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

(3) पहले ग्राहक का स्वागत होता था, उसे भी चिरौरी-सी करनी पड़ती है फिर भी समय पर काम नहीं होता। दुकानें पहले से कहीं अधिक खुल गई हैं लेकिन ग्राहकों की बढ़ती हुई भीड़ के लिए वे अब भी कम पड़ रही है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पक्तियाँ श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भीड़ में खोया हुआ आदमी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक के मित्र की पत्नी जनसंख्या में वृद्धि के कारण दुकानदारों की मनोवृत्ति पर प्रकाश डाल रही है।

व्याख्या :
लेखक के मित्र की पत्नी कहती है कि जब आबादी कम थी तो दुकानदार ग्राहक का स्वागत करता था किन्तु अब उसकी मिन्नत-समाजत करनी पड़ती है फिर भी काम समय पर नहीं होता। भले ही अब दुकानें पहले से कहीं अधिक खुल गई हैं लेकिन ग्राहकों की बढ़ती हुई भीड़ के लिए वे अब भी कम पड़ रही हैं। बढ़ती जनसंख्या ने उत्पादक और उत्पादन दोनों पर प्रभाव डाला है।

विशेष :

  1. आबादी बढ़ने के परिणामस्वरूप दुकानों पर भीड़ बढ़ने और दुकानदारों द्वारा नखरे किये जाने की ओर संकेत किया गया है।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

(4) घर बच्चों की भीड़ है। यह भीड़ भले ही हमें अच्छी लगती हो लेकिन जब तक बच्चों के पालन-पोषण की रहन सहन की, शिक्षा-दीक्षा की पूरी सुव्यवस्था न हो, यह भीड़ दुःखदायी बन जाती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री लोलाधर शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखित निबन्ध ‘भीड़ में खोया आदमी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने बच्चे अधिक होने की बात उस समय सोचनी चाहिए जब उनके पालन-पोषण और शिक्षादीक्षा की पूरी व्यवस्था हो जाए।

व्याख्या :
लेखक कहता है घर में बच्चों को भोड़ अर्थात् अधिक बच्चे किसे अच्छे नहीं लगते किन्तु जब तक उन बच्चों के पालन-पोषण की, रहन-सहन को, शिक्षा-दीक्षा आदि को अच्छी व्यवस्था न हो जाए अधिक बच्चों की भीड़ घर में लगाना दुःख का कारण बन जातो है। अधिक बच्चों के कारण गलन-पोषण तथा उनके भविष्य के प्रति मातापिता ध्यान नहीं दे पाते।

विशेष :

  1. अधिक बच्चों का होना माता-पिता और बच्चों दोनों के लिए दुःख का विषय बन जाता है !
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है।
  3. शैली विचारात्मक है।

(5) ऐसा लगता है कि यदि समय रहते हमारा देश अब भी नहीं चेता और श्यामला बाबू की तरह परिवार बढ़ता गया तो वह दिन दूर नहीं जब वह स्वर्ग इस भीड़ में और इससे पैदा होने वाली समस्याओं में पूरी तरह खो जाएगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ भी लोलाधर गमा पर्वतीय जी द्वारा लिखित निबन्ध भीड़ में खोया आदमी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने चेतावनी दी है यदि देश में बढ़ती जनसंख्या पर काबू न पाया गया तो देश नष्ट हो जाएगा?

व्याख्या :
लेखक ने जनसंख्या में वृद्धि को न रोक पाने पर चेतावनी देते हुए कहा है यदि हमारा देश समय रहते सावधान नहीं हुआ तो हमें बढ़ती जनसंख्या के कारण बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा। श्यामला बाबू की तरह परिवार बढ़ता ही रहा अर्थात् देश की जनसंख्या बढ़ती हो रही तो वह दिन दूर नहीं जब स्वर्ग के समान सुन्दर यह हमारा देश जनसंख्या में वृद्धि से उत्पन्न होने वाली समस्याओं में पूरी तरह नष्ट हो जाएगा।

विशेष :

  1. लेखक ने देश को बढ़ रही जनसंख्या को रोकने को चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि इस वृद्धि को न रोका गया तो देश एक दिन नष्ट हो जाएगा।
  2. भाषा सरल एवं सुबोध है। इसीलिए निबंध सरल एवं हृदयस्पर्शी है।
  3. शैली विचारात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 18 भीड़ में खोया आदमी

भीड़ में खोया आदमी Summary

भीड़ में खोया आदमी निबन्ध का सार

भीड़ में खोया आदमी’ लीलाधर शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखित निबंध है। इस निबंध में लेखक ने देश की बढ़ती जनसंख्या से उत्पन्न होने वाली विकट समस्याओं का वर्णन किया है। बढ़ती जनसंख्या से बेरोज़गारी, घटते हुए मकान और खाद्यान्न, अस्पतालों में बढ़ते मरीज, रेलों और बसों की भीड़ आदि सभी समस्याएं होती हैं।

लेखक के एक अभिन्न मित्र हैं-बाबू श्यामलाकान्त। वैसे तो वे परिश्रमी हैं, इमानदार हैं किन्तु निजी ज़िन्दगी के प्रति बड़े लापरवाह हैं। उमर में लेखक से छोटे होने पर भी अपने घर में बच्चों की फ़ौज खड़ी कर ली है। पिछले दिनों लेखक को उनकी लड़की के विवाह में शामिल होने के लिए हरिद्वार जाना था। पन्द्रह दिन पूर्व आरक्षण के लिए रेलवे स्टेशन पर गया। घंटों लाइन में लगने के बाद पता लगा कि किसी भी गाड़ी में स्थान खाली नहीं। विवश होकर लेखक को बिना आरक्षण के ही सफर करना पड़ा। लेखक ने पाया की गाड़ी में बहुत अधिक भीड़ थी और लोग ट्रेन की छत पर बैठ कर सफर कर रहे थे। । स्टेशन पर लेखक के मित्र का बड़ा लड़का उसे लेने आया था। उस लड़के को दो वर्ष हो चुके थे पढ़ाई पूरी किये। किन्तु अभी तक बेकार था। लेखक सोचने लगा कि इस छोटे से शहर का यह हाल है तो बड़े शहरों में बेकारों की कितनी भीड़ रही होगी।

लेखक ने अपने मित्र के घर आकर देखा कि उसका दो कमरों का मकान उसे बहुत छोटा पड़ रहा था लेखक के मित्र ने बताया कि बहुत ढूँढ़ने पर भी उसे यही मकान मिला। जनसंख्या बढ़ने के कारण मकान और खाद्यान्न घट रहे हैं। लेखक के सामने जब उसके मित्र के बच्चे आए तो उसे लगा कि वे सभी अस्वस्थ हैं। मित्र की पत्नी ने बताया कि अस्पतालों में इतनी भीड़ है कि डॉक्टर लोग ठीक से मरीजों को देख नहीं पाते।

मित्र की पत्नी ने यह भी बताया कि दुकानदार आजकल ग्राहक का स्वागत नहीं करते उल्टे ग्राहकों को अपना काम करवाने के लिए उनकी मिन्नत-समाजत या चापलूसी करनी पड़ती है। लेखक को इन सभी समस्याओं का एक ही कारण लगा देश की बढ़ती जनसंख्या। यदि समय रहते इस समस्या पर काबू न पाया गया तो ये समस्याएँ देश को खा जाएँगी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

Hindi Guide for Class 11 PSEB स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
‘सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता क्यों नहीं मिट सकी ?’ पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
लेखिका के अनुसार सामाजिक व्यवस्था में स्त्री और पुरुष के अधिकारों में विषमता इसलिए नहीं मिट सकी क्योंकि अर्थ सदा से ही शक्ति का अन्धानुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार धन का बंटवारा करना अपना कर्तव्य समझा। यह सच है कि बाद में समाज के विकास के लिए प्रत्येक व्यक्ति को, चाहे वह सबल हो या निर्बल, तीव्र बुद्धि हो या मन्द बुद्धि जीवन निर्वाह का साधन देना आवश्यक-सा हो गया। परन्तु उस आवश्यकता में भी शक्ति का दखल रहा। सबल ने दुर्बलों को उसी मात्रा में निर्वाह की सुविधाएँ देना स्वीकार किया, जितनी वे उनके लिए उपयोगी हों। समाज में स्त्री चूंकि निर्बल मानी गई इसलिए सामाजिक व्यवस्था में स्त्री पुरुष में यह विषमता बनी रही।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

प्रश्न 2.
‘आर्थिक दृष्टि से स्त्री की स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हो सका।’ लेखिका के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं ? अपने विचार स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका की यह बात पूर्णतः सत्य है। भले ही स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद स्थिति में कुछ बदलाव आया है परन्तु मूल रूप से स्त्री की स्थिति ज्यों की त्यों बनी हुई है। इसका एक कारण हमारे समाज का पुरुष प्रधान होता है, जिस कारण स्त्री को आर्थिक दृष्टि से पुरुष पर निर्भर रहना पड़ता है। स्त्री की यह परवशता उसके विकास और आत्मविश्वास में बाधक है।

लेखिका के इस विचार से हम पूर्ण रूप से सहमत हैं कि क्यों पुरुष प्रधान समाज में कभी भी स्त्री को आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं होने दिया। पुरुष बाहर जाकर कमाता था और स्त्री घर सम्भालती थी इसलिए स्त्री घर की चार दीवारी में बन्द होकर रह गयी उसे आर्थिक दृष्टि से सदा पुरुष का मुँह ही देखना पड़ा। उसे समाज ने कोई ऐसा अवसर प्रदान नहीं किया जिससे वह आर्थिक दृष्टि से स्वाबलम्बी बन सके।

प्रश्न 3.
नारी जाति की स्थिति में निरन्तर होने वाले सुधारों का ऐतिहासिक क्रम में उल्लेख करते हुए वर्तमान स्थिति में लेखिका द्वारा दिये गए सुझावों से आप कहाँ तक सहमत हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्राचीन वेदकालीन समाज में विवाह को बहुत महत्त्व दिया गया। सन्तान को जन्म देने के कारण स्त्री को बड़ा गौरवमय स्थान प्राप्त हुआ। स्त्री को घर गृहस्थी की मालिक बनाया गया। उसके मातृत्व को विशेष आदर दिया गया। सभ्यता के विकास के साथ-साथ स्त्री की स्थिति में कई परिवर्तन आए। स्त्री की स्थिति ही समाज के विकास के नापने का मापदंड माना जाता है। इस बर्बर समाज में स्त्री पर पुरुष का वैसा ही अधिकार है जैसे वह अपनी अन्य स्थावर सम्पत्ति पर रखने को स्वतंत्र है। इसके विपरीत पूर्ण विकसित समाज में स्त्री पुरुष की सहयोगिनी तथा समाज का आवश्यक अंग मानी जाकर माता तथा पत्नी के महिमामय आसन पर आसीन रहती है। लेखिका द्वारा दिये गए इन सुझावों से हम पूर्णतया सहमत हैं।

प्रश्न 4.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखें। उत्तर-देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया निबन्ध का सार। प्रश्न 5. लेखिका निबन्ध के उद्देश्य को स्पष्ट करने में कहाँ तक सफल रही है ?
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में महादेवी जी का उद्देश्य भारतीय नारी की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर प्रकाश डालना है। लेखिका के अनुसार यह एक कटु सत्य है कि सारी सामाजिक, राजनैतिक और अन्य सुविधाओं की रूप-रेखा शक्ति के अनुसार ही निर्धारित होती रही है। युग आए-युग चले गए, सभ्यता में अनेक परिवर्तन हुए लेकिन आर्थिक दृष्टि से नारी आज भी बहुत कुछ उसी हीन और दुर्बल स्थिति में पड़ी है-जैसी प्राचीनकाल में भी थी। इस पुरुष प्रधान समाज में नारी निर्बल होने के कारण आर्थिक दृष्टि से स्वतन्त्र नहीं हो सकी।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
लेखिका ने समाज की व्यवस्था में साम्य न कर सकने का क्या कारण बताया है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
लेखिका का मत है कि धन सदा ही शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली मनुष्य ने अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन किया। शक्तिशाली मनुष्य ने दुर्बलों को उतनी ही मात्रा में सुख-सुविधाएँ दीं जो उनके लिए ज़रूरी एवं उपयोगी थीं। उसने समाज सुविधाएँ सबके लिए नहीं उपलब्ध कराईं। यही कारण था कि समाज की व्यवस्था में साम्यता न आ सकी।

प्रश्न 2.
वैदिक समाज में स्त्री की उन्नति का क्या कारण था ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में पुरुष ने सन्तान की आवश्यकता के कारण और अनाचार रोकने के लिए विवाह को अधिक महत्त्व दिया। सन्तान की जन्मदात्री होने के कारण स्त्री की गरिमा बढ़ गई। उसे यज्ञ जैसे धर्म कार्यों में पति का साथ देने के कारण सहधर्मिणी माना गया और घर की व्यवस्था करने के लिए गृहिणी का पद दिया गया।

प्रश्न 3.
स्त्री को पिता की सम्पत्ति से वंचित करने में क्या उद्देश्य रहा होगा ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
वैसे तो इस उद्देश्य के बारे में कहना कठिन है किन्तु सम्भव है स्त्री के निकट वैवाहिक जीवन को अनिवार्य रखने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई हो। यह भी हो सकता है पुरुष समाज में इस ओर ध्यान ही न दिया हो। कन्या को पिता की सम्पत्ति में स्थान देने से यह कठिनाई भी आ सकती थी कि पिता की सम्पत्ति पर दूसरे परिवारों को उत्तराधिकार हो जाने पर परिवार की व्यवस्था में अस्थिरता आ सकती हो।

प्रश्न 4.
‘प्राचीन समाज में स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की कभी चिन्ता ही नहीं की गई।’ इसका क्या कारण था ?
उत्तर:
समाज में स्त्री के मातृत्व को विशेष आदर दिया गया किन्तु सामाजिक व्यक्ति के रूप में उसे विशेष अधिकार न दिए गए। समाज के निकट स्त्री पुरुष की संगिनी होने के कारण ही उपयोगी थी। उससे भिन्न उसका अस्तित्व चिन्ता करने के योग्य नहीं रहता था। दूसरे, समाज भी पुरुष प्रधान था जिसने स्त्री के स्वतन्त्र अस्तित्व की बात कभी सोची ही नहीं।

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प्रश्न 5.
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव डालती है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास रोक देती है। न व्यक्ति अपनी इच्छा से कुछ कर पाता है न ही करने के योग्य रहता है। व्यक्ति एक घेरे में कैद होकर रह जाता है जिस से बाहर आने के लिए उसके सारे संघर्ष बेकार सिद्ध हो जाते हैं। उसे अभिमन्यु की तरह हर ओर से घेरा जाता है। परिणाम वही होता जो महाभारत के अभिमन्यु का हुआ था।

प्रश्न 6.
सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष का सम्बन्ध कहाँ तक सापेक्ष है ? पाठ के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
समाज में पूर्ण रूप से स्वतन्त्र कोई भी नहीं है क्योंकि सापेक्षता ही सामाजिक सम्बन्ध का मूल है। व्यक्ति उतना ही दूसरे पर निर्भर करता है जितना वह उससे अपेक्षा रखता है। भारतीय समाज में स्त्री पुरुष सम्बन्ध सापेक्ष नहीं है। दोनों में यह भाव समान नहीं है। दोनों एक-दूसरे पर समान रूप से निर्भर नहीं करते। इसी कारण भारतीय स्त्री की सापेक्षता सीमातीत हो गई है। पुरुष की अपेक्षा स्त्री पुरुष पर अधिक निर्भर है। पुरुष को स्त्री रूपी साधन के नष्ट होने पर कुछ हानि नहीं होती जबकि स्त्री हर बात में पुरुष की सहायता चाहती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

PSEB 11th Class Hindi Guide स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वेदकालीन समाज में नारी को क्या समझा जाता था ?
उत्तर:
केवल संतान पैदा करने वाली और गृहस्थी संभालने वाली।

प्रश्न 2.
भारतीय पुरुष स्त्री को क्या कहता है ?
उत्तर-सहयात्री।

प्रश्न 3.
‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ कहाँ से संकलित है ?
उत्तर:
महादेवी वर्मा की कृति ‘श्रृंखला की कड़ियों’ से।

प्रश्न 4.
शक्ति का अनुगामी कौन रहा है ?
उत्तर:
धन।

प्रश्न 5.
आदिकाल से स्त्री को क्या समझा जा रहा है ?
उत्तर:
सुख का साधन।

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प्रश्न 6.
आर्थिक रूप से स्त्री को किस पर निर्भर रहना पड़ता था ?
उत्तर:
पुरुष पर।

प्रश्न 7.
वेदकालीन समाज में नारी की …………. पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
उत्तर:
आर्थिक स्वतंत्रता।

प्रश्न 8.
वेदकालीन समाज में नारी को पिता की ………. में कोई अधिकार नहीं था।
उत्तर:
सम्पत्ति।

प्रश्न 9.
हमारे समाज में पुरुष को क्या कहा गया है ?
उत्तर:
भर्ता।

प्रश्न 10.
स्त्री सदा किसका मुँह ताकती रहती है ?
उत्तर:
पुरुष का।

प्रश्न 11.
प्राचीन समाज में स्त्री के मातृत्व को …………… दिया गया।
उत्तर:
विशेष आदर।

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प्रश्न 12.
प्रारम्भ से हमारा समाज कैसा रहा है ?
उत्तर:
पुरुष प्रधान।

प्रश्न 13.
किस समाज में विवाह को महत्त्व दिया गया ?
उत्तर:
वेदकालीन समाज में।

प्रश्न 14.
किसकी स्थिति समाज को मापने का मापदण्ड मानी जाती है ?
उत्तर:
स्त्री की।

प्रश्न 15.
पुरुष प्रधान समाज में नारी आर्थिक दृष्टि से स्वतंत्र क्यों नहीं हो सकी ?
उत्तर:
‘निर्बल होने के कारण।

प्रश्न 16.
समाज का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर:
शक्तिशाली व्यक्ति।

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प्रश्न 17.
समाज में पूर्ण रूप से कौन स्वतंत्र है ?
उत्तर:
कोई भी नहीं।

प्रश्न 18.
व्यक्ति का शारीरिक, बौद्धिक तथा मानसिक विकास कौन रोक देता है ?
उत्तर:
आर्थिक पराधीनता।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सामाजिक प्राणी के लिए किसका अधिक महत्त्व है ?
(क) धन का
(ख) मन का
(ग) तन का
(घ) मधुवन का ।
उत्तर:
(क) धन का

प्रश्न 2.
धन सदा किसका अनुगामी रहा है ?
(क) भक्ति का
(ख) शक्ति का
(ग) अनुशक्ति का
(घ) विरक्ति का।
उत्तर:
(ख) शक्ति का

प्रश्न 3.
पुरुष को हमारे समाज में क्या कहा जाता है ?
(क) भर्ता
(ख) कर्ता
(ग) अनुकर्ता
(घ) सतर्कता।
उत्तर:
(क) भर्ता

प्रश्न 4.
प्रारम्भ से भारतीय समाज कैसा है ?
(क) पुरुष प्रधान
(ख) स्त्री प्रधान
(ग) देव प्रधान
(घ) भोग प्रधान।
उत्तर:
(क) पुरुष प्रधान !

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कठिन शब्दों के अर्थ :

अनुगामी = पीछे चलने वाला। अर्थ = धन। सबल = शक्तिवान, शक्तिशाली। मेधावी = लायक, तीव्र बुद्धि। मंदबुद्धि = कम अक्ल, कमज़ोर बुद्धि वाला। सुगमतापूर्वक = आसानी से। प्रतिद्वंद्विता = बराबर वालों की लड़ाई । आदिम युग = प्राचीन युग, आरम्भिक युग। अनुगमन = साथ चलना। तुला = तराजू । परालंबन = दूसरे का सहारा, दूसरे पर निर्भर। भर्ता = स्वामी, भरण-पोषण करने वाला। परमुखापेक्षणी = दूसरे के मुँह की तरफ देखने वाली। विषमता = अन्तर, भेद, असमता। श्लाघ्य = प्रशंसनीय। द्रव्य-उपार्जन = धन कमाना। स्पृहणीय = वांछनीय। यीतुक = दहेज । अनिवार्य = ज़रूरी। विधान = नियम। स्वयंवरा = अपने आप वर की तलाश करना। बलात् = बलपूर्वक, ज़बरदस्ती। संगिनी = साथिन । नितान्त = बिलकुल। बर्बर = दुष्ट, अत्याचारी। परवशता = पराये वश में होना, दूसरे पर निर्भर। स्वावलम्बन = आत्मनिर्भरता। सापेक्षता = परस्पर सम्बन्ध और आदान-प्रदान की स्थिति। सीमातीत = सीमा से परे । क्षमता = सामर्थ्य । सहयात्री = हमसफर, साथ यात्रा करने वाली। उपहास = मज़ाक।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) अर्थ सदा से शक्ति का अन्ध-अनुगामी रहा है। जो अधिक सबल था उसने सुख के साधनों का प्रथम अधिकारी अपने आप को माना और अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही धन का विभाजन करना कर्त्तव्य।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने ऐतिहासिक पृष्ठभूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से स्त्री की परवशता पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता की ऐतिहासिक पृष्ठभमि का उल्लेख करती हुई कहती है कि आदिकाल से ही धन शक्ति का अन्धानुकरण करता रहा है। जो अधिक शक्तिशाली था उसने सुख के साधनों का पहला अधिकारी अपने आपको माना और धन का बँटवारा अपनी इच्छा और सुविधा के अनुसार ही किया।

विशेष :

  1. आदिकाल से ही शक्तिशाली व्यक्ति को सभी अधिकार मिले हुए थे।
  2. शक्तिशाली के समक्ष सभी लोग उसकी बात मानने के लिए बाध्य थे।
  3. भाषा संस्कृत-निष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(2) आदिम युग से सभ्यता के विकास तक स्त्री सुख के साधनों में गिनी जाती रही। उसके लिए परस्पर संघर्ष हुए, प्रतिद्वन्द्वता चली, महाभारत रचे गए और उसे चाहे इच्छा से हो और चाहे अनिच्छा से, उसी पुरुष का अनुगमन करना पड़ता रहा जो विजयी प्रमाणित हो सका।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वांतत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने आदिकाल से ही स्त्री को पुरुष के अधीन बताया है, उसकी अपनी इच्छा नहीं है।

व्याख्या :
स्त्री की परवशता पर प्रकाश डालते हुए लेखिका कहती है कि आदिकाल से सभ्यता के विकास तक स्त्री को सुख का साधन माना गया। स्त्री के लिए ही आपस में संघर्ष हुए, आपसी मुकाबला हुआ, महाभारत जैसे भीषण युद्धों की रचना हुई और स्त्री को चाहे मर्जी से न मर्जी से उसी पुरुष के साथ जाना पड़ा जो विजयी हो सका। लेखिका के कहने का भाव यह है कि स्त्री आदिकाल से ही पुरुष की शक्ति की गुलाम रही है।

विशेष :

  1. पुरुष के समक्ष स्त्री की अपनी कोई इच्छा का अर्थ नहीं था।
  2. जिस स्त्री को लेकर पुरुष आपस में युद्ध करते थे उसकी इच्छा का उनके लिए कोई अर्थ नहीं था।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(3) जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं, परन्तु किसी को सहायता दे सकने की क्षमता न रहना अभिशाप है । सहयात्री वे कहे जाते हैं, जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कहकर अपना उपहास नहीं करा सकता।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा के निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने पुरुष द्वारा स्त्री को हम साथी कहने के साथ बोझ भी समझा है का वर्णन किया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में लेखिका स्त्री की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहती है कि जीवन में विकास के लिए दूसरों से सहायता लेना बुरा नहीं है परन्तु किसी की सहायता न कर सकना या उसकी सामर्थ्य न रखना एक अभिशाप है। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री कहा है। सहयात्री वे कहे जाते हैं जो साथ चलते हैं। कोई अपने बोझ को सहयात्री कह कर अपना मज़ाक नहीं उड़ा सकता। पुरुष ने स्त्री को सहयात्री भी कहा और उसे एक बोझ भी समझा, अपने सुख का साधन भी समझा।

विशेष :

  1. पुरुषों ने स्त्री को अपने जीवन की संगिनी बताया है परन्तु साथ ही उसे बोझ भी माना है।
  2. सहयात्री जीवन में एक-दूसरे के विकास में सहायता करते हैं।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

(4) गृह और सन्तान के लिए द्रव्य-उपार्जन पुरुष का कर्त्तव्य था अतः धन स्वभावतः उसी के अधिकार में रहा। गृहिणी गृहपति की आय के अनुसार व्यय कर गृह का प्रबन्ध और सन्तान पालन आदि का कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें समाज के पुरुष प्रधान होने और स्त्री के आर्थिक रूप से परवश होने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखिका वेदकालीन समाज से चली आ रही परंपरा का उल्लेख करते हुए कहती है कि घर और सन्तान के लिए धन कमाना पुरुष का कर्तव्य था। अतः स्वाभाविक रूप से धन उसी के पास रहा। घरवाली घरवाले की आय के अनुसार खर्च कर घर का प्रबंध और सन्तान पालन आदि कार्य करने की अधिकारिणी मात्र थी।

विशेष :
लेखिका ने स्त्री के आर्थिक दृष्टि से परवश होने का कारण बताया है।
भाषा तत्सम प्रधान तथा शैली विचारात्मक है।

(5) सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही निर्धारित होती रही और सबल की सुविधानुसार ही परिवर्तित और संशोधित होती गयी, इसी से दुर्बल को वही स्वीकार करना पड़ा जो सुगमतापूर्वक मिल गया। यही स्वाभाविक भी था।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। इसमें लेखिका ने शक्तिशाली मनुष्य के अधिकारों का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है’ अपने विचार की व्याख्या करते हुए कहती है कि धन क्योंकि शक्तिशाली के ही अधिकार में रहा, इसलिए सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा शक्ति द्वारा ही बनायी जाती रही और शक्तिशाली की सुविधा के अनुसार ही बदली गयी थी। उसमें कई संशोधन किए गए। यही कारण था कि कमज़ोर को वही स्वीकार करना पड़ा जो उसे आसानी से मिल गया। कमजोर व्यक्ति का ऐसा सोचना या करना स्वाभाविक ही था।

विशेष :

  1. जो व्यक्ति शक्तिशाली है समाज का निर्माण वही करता है।
  2. शक्तिशाली व्यक्ति के समक्ष कमज़ोर व्यक्ति की नहीं चलती। उसे वही स्वीकार करना पड़ता है जो उसे सुगमता से प्राप्त हो जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(6) शताब्दियाँ-की-शताब्दियाँ आती जाती रहीं, परन्तु स्त्री की स्थिति की एक रसता में कोई परिवर्तन न हो सका। किसी भी स्मृतिकार ने उसके जीवन की विषमता पर ध्यान देने का अवकाश नहीं पाया ; किसी भी शास्त्रकार ने पुरुष से भिन्न करके उसकी समस्या को नहीं देखा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ में से लिया गया है। लेखिका ने आदिकाल से चल आ रही स्त्री की स्थिति के लिए सभी को उत्तरदायी बताया है

व्याख्या :
इसमें लेखिका स्त्री की आर्थिक दृष्टि से परवशता पर किसी ने भी ध्यान देने की बात कही है। लेखिका कहती है कि सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया। अर्थात् जैसी स्थिति उसकी पहले थी वही अब है। किसी भी स्मृति ग्रन्थ लेखक को स्त्री के जीवन की इस असमता पर ध्यान देने का समय नहीं मिला। किसी भी शास्त्र लिखने वाले ने पुरुष से अलग करके स्त्री की समस्या को नहीं देखा।

विशेष :

  1. शताब्दियों के बीत जाने पर सब कुछ बदला परन्तु स्त्रियों की स्थिति नहीं बदली। प्राचीनकाल से लेकर अब तक किसी ने भी स्त्रियों की स्थिति बदलने के लिए प्रयास नहीं किए हैं।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

(7) मातृत्व की गरिमा ने गुरु और पत्नीत्व के सौभाग्य से ऐश्वर्यशालिनी होकर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक जीवन में सबसे अधिक क्षुद्र और रंक कैसे रह सकी, यही आश्चर्य है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने स्त्री को पुरुष समाज में महत्त्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका भारतीय स्त्री के गौरवमयी स्थान प्राप्त करने पर भी आर्थिक दृष्टि से परवश रहने की बात करती हुई कहती है कि माता का बड़ा दर्जा प्राप्त होने पर तथा पत्नी होने के कारण ऐश्वर्यशाली स्थान प्राप्त होने पर भी भारतीय नारी अपने व्यावहारिक एवं यथार्थ जीवन में सबसे तुच्छ और निर्धन कैसे रह सकी, यही आश्चर्य की बात है अर्थात् माता का एवं पत्नी का इतना ऊँचा और गौरवमय स्थान प्राप्त होने पर भी आर्थिक दृष्टि से वह आत्मनिर्भर न बन सकी, सदा परवश ही रही।

विशेष :

  1. स्त्री को पुरुष की पत्नी तथा माता होने का गौरव प्राप्त है, फिर भी वह पुरुषों के बनाए समाज में नीच मानी जाती है।
  2. पुरुषों ने कभी भी स्त्री के गौरवमय अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली प्रभावपूर्ण है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 17 स्त्री के अर्थ-स्वातंत्र्य का प्रश्न

(8) धन की उच्छशृंखल बहुलता में जितने दोष हैं वे अस्वीकार नहीं किए जा सकते परन्तु इसके नितान्त अभाव में जो अभिशाप है वह उपेक्षणीय नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्रीमती महादेवी वर्मा द्वारा लिखित निबन्ध ‘स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न’ से लिया गया है। इसमें लेखिका ने धन के गुण-दोष का वर्णन किया है।

व्याख्या :
लेखिका धन के महत्त्व पर प्रकाश डालती हुई कहती है कि धन के अधिक हो जाने पर उसमें अनेक दोष आ जाते हैं। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता। किन्तु धन का अभाव अर्थात् निर्धनता भी तो एक अभिशाप है। इस बात की भी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भाव यह है कि धन का सामाजिक प्राणी के जीवन में विशेष महत्त्व है।

विशेष :

  1. धन की अधिकता या कमी जीवन को नरक बना देती है।
  2. मनुष्य को अधिक धन की प्राप्ति बुरी संगति की ओर अग्रसर कर देती है तथा धन की कमी मनुष्य का जीवन उसके लिए अभिशाप बन जाता है।
  3. भाषा संस्कृतनिष्ठ है। शैली भावपूर्ण है।

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न Summary

स्त्री के अर्थ स्वातंत्र्य का प्रश्न का सार

प्रस्तुत निबन्ध महादेवी वर्मा जी की कृति श्रृंखला की कड़ियाँ’ में संकलित है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखिका ने मनुष्य के सामाजिक विकास की ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि देते हुए आर्थिक दृष्टि से नारी की परवशता पर प्रकाश डाला है।

लेखिका कहती है कि धन सदा शक्ति का अनुगामी रहा है। शक्तिशाली ने ही अपनी इच्छा और सुविधानुसार धन का बँटवारा किया है। सारी राजनीतिक, सामाजिक तथा अन्य व्यवस्थाओं की रूपरेखा इसी शक्ति पर आधारित रही है। आदिकाल से ही स्त्री को सुख का साधन तो समझा गया किन्तु उसे आर्थिक रूप से पुरुष पर ही निर्भर रहना पड़ा है। पुरुष को हमारे समाज में भर्ता कहा गया और स्त्री सदा उसका मुँह ताकती रही है।

वेदकालीन समाज में नारी को केवल सन्तान पैदा करने वाली एवं घर-गृहस्थी सम्भालने वाली के रूप में ही देखा गया। उसकी आर्थिक स्वतन्त्रता पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। बस दहेज में जो कुछ दे दिया गया उसे ही काफ़ी समझा गया। पिता की सम्पत्ति में उसे कोई अधिकार नहीं दिया गया। सैंकड़ों साल बीत जाने पर भी स्त्री की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है।

एक सामाजिक प्राणी के लिए धन कितना महत्त्व रखता है, यह हर कोई जानता है। आर्थिक रूप से परवशता स्त्री के स्वाभाविक विकास और आत्म-विश्वास को प्रभावित करती है। भारतीय पुरुष-स्त्री को सहयात्री तो कहता है सहयोगी नहीं मानता। इसी विषमता को दूर करना होगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 16 युवाओं से

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 16 युवाओं से Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 16 युवाओं से

Hindi Guide for Class 11 PSEB युवाओं से Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्द ने देश के नवयुवकों को कौन-कौन से गुण विकसित करने के लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी ने देश ने नवयुवकों को अपने अन्दर त्याग और सेवा के गुणों को विकसित करने की प्रेरणा दी है। स्वामी जी का कहना है कि इन गुणों को विकसित करने से तुम में शक्ति अपने आप जाग उठती है। दूसरों के लिए रत्ती भर भी सोचने से हृदय में सिंह जैसा बल आ जाता है। स्वामी जी कहते हैं कि नवयुवकों को निःस्वार्थ भाव से सेवा करनी चाहिए। उस सेवा के बदले में न धन की लालसा करनी चाहिए न कीर्ति की। हे वीर युवक ! गरीबों और पद दलितों के प्रति सहानुभूति रखो,ईश्वर में आस्था रखने, दीन-दुःखियों के दर्द को समझो और ईश्वर से उनकी सहायता करने की प्रार्थना करो। उठो और साहसी बनो, तीर्थवान बनो और सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो। इस तरह जो भी बल या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।

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प्रश्न 2.
भारतवर्ष के राष्ट्रीय आदर्श कौन-कौन से हैं ? स्वामी जी ने उन आदर्शों की क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी के अनुसार भारत के राष्ट्रीय आदर्श-त्याग और सेवा है। स्वामी जी का मत है कि इन आदर्शों का पालन करने से सब काम अपने आप ठीक हो जाएँगे। त्याग से इतनी शक्ति आएगी कि तुम उसे संभाल न सकोगे। दूसरों के हित के लिए सोचो इससे तुम्हारे अन्दर काम करने की शक्ति जाग उठेगी। धीरे-धीरे तुम में सिंह जैसा बल आ जाएगा। – स्वामी जी दूसरे राष्ट्रीय आदर्श सेवा के बारे में कहते हैं कि सेवा निःस्वार्थ भाव से की जानी चाहिए। उसमें किसी प्रकार के धन, यश या किसी दूसरी वस्तु की कामना नहीं करनी चाहिए। मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा तो वह भी बुद्ध बन जाएगा और उसके भीतर से ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से बदल सकती है।

प्रश्न 3.
स्वदेश भक्ति का स्वामी जी ने क्या अर्थ स्पष्ट किया है ?
उत्तर:
स्वामी जी ने स्वदेश भक्ति का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है कि स्वदेश भक्ति के सम्बन्ध में उनका एक आदर्श है। बड़े काम करने के लिए तीन-चीजों की आवश्यकता होती है। बुद्धि और विचार शक्ति हमारी थोड़ी सहायता तो कर सकती है, हमें थोड़ी दूर आगे भी बहा सकती है। किन्तु वह वहीं ठहर जाती है किन्तु हमारा हृदय ही महाशक्ति को प्रेरणा देता है। प्रेम असंभव को भी संभव बना देता है। जगत के सब रहस्यों का द्वार प्रेम ही है। अतः स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनने की प्रेरणा दी है साथ ही स्वामी जी ने कहा है कि जब तक तुम्हारा हृदय भूखेगरीबों के लिए नहीं धड़केगा। जब तक इस निर्धनता को नाश करने की बात नहीं सोचेंगे, तब तक तुम देशभक्ति की पहली सीढ़ी पर कदम नहीं रखोगे।

प्रश्न 4.
‘युवाओं से’ निबन्ध का शीर्षक कहाँ तक सार्थक है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के एक व्याख्यान का अंश है। स्वामी जी ने अपने इस व्याख्यान में नवयुवकों को सम्बोधित किया है। अतः प्रस्तुत निबन्ध का शीर्षक अत्यन्त सार्थक है। स्वामी जी ने प्रस्तुत व्याख्यान में राष्ट्रनिर्माण में नवयुवकों की महत्त्वपूर्ण भूमि का उल्लेख किया है। इसके लिए स्वामी जी ने नवयुवकों के मज़बूत एवं निर्भय बनने के लिए कहा है ऐसा वही युवक कर सकते हैं जो सच्चरित्र और अपनी शक्ति में विश्वास रखने वाले हों। जो अपनी शक्ति में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। युवाओं से सम्बोधन इस बात को सिद्ध करता है कि यह निबन्ध नवयुवकों को समर्पित हैं, जिन्हें नवभारत का निर्माण करना है। अतः कहना न होगा कि ‘युवाओं’ से शीर्षक अत्यन्त सार्थक है।

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प्रश्न 5.
स्वामी विवेकानन्द किस प्रकार का संगठन करना अपना ध्येय मानते थे ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानन्द जी नवयुवकों का ऐसा संगठन बनाना अपना ध्येय मानते थे जो नवयुवक प्रत्येक नगर में जाकर दीनहीन और पददलित लोगों को सुख-सुविधा प्रदान कर उन्हें धर्म और नैतिकता की शिक्षा देकर उनकी अनपढता या अज्ञानता को दूर कर सकें।

प्रश्न 6.
‘उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ स्वामी जी के इस उद्बोधन का भाव समझाएँ।
उत्तर:
प्रस्तुत उद्बोधन द्वारा स्वामी जी ने देश के नवयुवकों को हृदयवान बनकर निर्धनता का नाश करने के उपाय सोचने के लिए कहा। उन्होंने नवयुवकों को स्वयं जाकर दूसरों को भी जगाकर अपने जन्म को सफल बनाने के लिए कहा है कि जब तक लक्ष्य पूरा न हो जाए अर्थात् निर्धनता का नाश नहीं हो जाता तब तक तुम्हें रुकना नहीं चाहिए।

प्रश्न 7.
नास्तिक व्यक्ति की स्वामी जी ने क्या व्याख्या की है ?
उत्तर:
स्वामी जी कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है जबकि प्राचीन धर्मों ने कहा है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि व्यक्ति ईश्वर का ही स्वरूप है। अत: व्यक्ति का अपने आप पर विश्वास ईश्वर में विश्वास के बराबर है और जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह ईश्वर में विश्वास कैसे रख सकता है ? वह नास्तिक ही कहलाएगा।

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प्रश्न 8.
स्वामी जी ने नवयुवकों को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत बनने की सलाह क्यों दी है ?
उत्तर:
स्वामी जी नवयुवकों को शक्तिशाली बनने की सलाह देते हैं। धर्म को वे बाद की वस्तु मानते हैं। स्वामी जी का मानना है कि गीता के अध्ययन की अपेक्षा फुटबाल के खेल में दक्षता प्राप्त कर स्वर्ग के अधिक समीप पहुँचा जा सकता है। क्योंकि फुटबाल खेलकर युवकों का शरीर मज़बूत होगा। उनके स्नायु और मांसपेशियाँ अधिक मज़बूत होने पर वे गीता को अच्छी तरह समझ सकेंगे।

प्रश्न 9.
धर्म के सम्बन्ध में स्वामी जी का क्या विचार है ?
उत्तर:
स्वामी जी सब धर्मों को स्वीकार करते हैं और सबकी पूजा करते हैं। वे चाहे हिन्दू हों, चाहे मुसलमान, बौद्ध या ईसाई, उन सबके साथ ईश्वर की उपासना करते हैं, चाहे वे स्वयं ईश्वर की किसी भी रूप में उपासना करते हों। वे मस्जिद में जाएँगे, गिरजा में भी जाएँगे तथा बौद्ध मन्दिर में जाकर बौद्ध शिक्षा को ग्रहण करेंगे। वे उन हिन्दुओं के साथ जंगल में जाकर ध्यान करेंगे जो ज्योतिस्वरूप परमात्मा को प्रत्यक्ष देखने में लगे हुए हैं।

प्रश्न 10.
किस प्रकार की शिक्षा जीवन और चरित्र का निर्माण कर सकती है ?
उत्तर:
स्वामी जी का विचार है कि शिक्षा अब गया है। यह ज्ञान आत्मसात् हुए बिना निष्फल हो जाएगा। हमें उन विचारों को अनुभव करने की ज़रूरत है जो जीवननिर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र-निर्माण में सहायक हों। यदि कोई केवल पाँच ही जांच-परखे विचारों को आत्मसात् कर ले जो चरित्र निर्माण कर सकते हों तो पूरे संग्रहालय को मुँह-जबानी याद करने वाले की अपेक्षा व्यक्ति अधिक शिक्षित कहलाएगा।

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PSEB 11th Class Hindi Guide युवाओं से Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध का लेखक कौन हैं ?
उत्तर:
स्वामी विवेकानंद।

प्रश्न 2.
स्वामी जी ने किससे ऊपर उठने की बात कही है ?
उत्तर:
दलबंदी और ईर्ष्या से।

प्रश्न 3.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
उत्तर:
त्याग और सेवा।

प्रश्न 4.
दूसरों के लिए रत्ती भर सोचने मात्र से अपने अंदर कैसा बल आता है ?
उत्तर:
सिंह जैसा बल।

प्रश्न 5.
राष्ट की सबसे बडी सेवा क्या है ?
उत्तर:
गरीबों, भूखों, दलितों की सेवा करना।

प्रश्न 6.
राष्ट्रभक्ति …………….. नहीं है।
उत्तर:
कोरी भावना।

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प्रश्न 7.
राष्ट्रभक्ति का आधार क्या है ?
उत्तर:
विवेक और प्रेम।

प्रश्न 8.
शिक्षा विचारों को …………… नहीं है।
उत्तर:
ढेर।

प्रश्न 9.
भारत की उन्नति के लिए युवाओं को क्या करना होगा ?
उत्तर:
अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा।

प्रश्न 10.
नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को ………….. बनाती है।
उत्तर:
असफल।

प्रश्न 11.
कमजोर व्यक्ति का जीवन किसके समान है ?
उत्तर:
मृत्यु के समान।

प्रश्न 12.
दूसरों को अपना बनाने के लिए क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।

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प्रश्न 13.
मनुष्य किसका अंश है ?
उत्तर:
परमात्मा का।

प्रश्न 14.
स्वामी जी सब ………… को स्वीकार करते थे।
उत्तर:
धर्मों।

प्रश्न 15.
स्वामी जी धर्म को कैसी वस्तु मानते थे ?
उत्तर:
बाद की वस्तु।

प्रश्न 16.
नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग ……………. भूल जाते हैं।
उत्तर:
सेवा भाव।

प्रश्न 17.
प्राचीन धर्मों में क्या कहा गया है ?
उत्तर:

प्रश्न 18.
जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है।
उत्तर:
जो स्वयं पर ।वश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।

प्रश्न 19.
कौन अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं ?
उत्तर:
देश के युवा।

प्रश्न 20.
कमज़ोरी कभी न हटने वाला …………. है।
उत्तर:
बोझ।

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बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘युवाओं से’ निबंध किनके भाषण का अंश है ?
(क) स्वामी विवेकानंद
(ख) स्वामी दयानंद
(ग) स्वामी परमहंस
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर:
(क) स्वामी विवेकानंद

प्रश्न 2.
प्रस्तुत निबंध में भारतीय नवयुवकों को किसके निर्माण की शिक्षा दी गई है ?
(क) चरित्र
(ख) धर्म
(ग) संस्कृति
(घ) अध्यात्म।
उत्तर:
(क) चरित्र

प्रश्न 3.
कमज़ोर व्यक्ति का जीवन किसके समान होता है ?
(क) धन के
(ख) मृत्यु के
(ग) नरक के
(घ) स्वर्ग के
उत्तर:
(ख) मृत्यु कें

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प्रश्न 4.
भारत के राष्ट्रीय आदर्श कौन-से हैं ?
(क) सेवा
(ख) त्याग
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।

कठिन शब्दों के अर्थ :

समग्र = सारे। पुनरुत्थान = दोबारा उन्नति। निःस्वार्थी = स्वार्थ से रहित। अवलंबन = सहारा। अप्रतिहत = जिसे कोई रोकने वाला न हो। पशुतुल्य = पशु के समान। आत्मसात = अपने में मिलाना। कंठस्थ = मुँह जबानी याद करना। क्रूर = दुष्ट। उन्मत्तता = पागलपन।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) भारतवर्ष का पुनरुत्थान होगा, पर वह शारीरिक शक्ति से नहीं, वरन् वह आत्मा की शक्ति द्वारा। यह उत्थान विनाश की ध्वजा लेकर नहीं वरन् शांति और प्रेम की ध्वजा से होगा।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए उन्हें राष्ट्र निर्माण के लिए क्या कुछ करना चाहिए बताया गया है।

व्याख्या :
प्रस्तुत पंक्तियों में स्वामी विवेकानन्द जी देश के नवयुवकों को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि उन्हें देश की उन्नति के लिए शारीरिक शक्ति की नहीं आत्मिक शक्ति पैदा करनी होगी क्योंकि आत्मिक शक्ति से मनुष्य का चरित्र बनता है। देश की उन्नति विनाश का झंडा लेकर नहीं अपितु शांति और प्रेम का झंडा लेकर होगी। इसलिए हमें प्रेम और शांति का वातावरण बनाना होगा।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत की उन्नति के लिए युवाओं को अपना आत्मिक बल बढ़ाना होगा तथा प्रेम और शान्ति का वातावरण स्थापित करना होगा।
  2. भाषा तत्सम प्रधान है।
  3. शैली विचारात्मक है।

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(2) कैवल वही व्यक्ति सब की सेवा उत्तम रूप से कर सकता है, जो पूर्णत: नि:स्वार्थी है, जिसे न तो धन की लालसा है, न कीर्ति की और न किसी अन्य वस्तु की ही। और मनुष्य जब ऐसा करने में समर्थ हो जाएगा, तो वह भी एक बुद्ध बन जाएगा, और उसके भीतर से एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी, जो संसार की अवस्था को सम्पूर्ण रूप से परिवर्तित कर सकती है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में वे युवकों को निष्काम सेवा का महत्त्व बताते हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी कहते हैं कि केवल वही व्यक्ति दूसरों की अच्छी तरह से सेवा कर सकता है जो पूरी तरह स्वार्थ रहित हो। जिसे न धन की इच्छा हो, न यश की तथा न ही किसी दूसरी वस्तु की। जब मनुष्य ऐसा करने में समर्थ हो जाए तो वह भी एक बुद्ध अर्थात् ज्ञानी बन जाएगा और उसके अन्दर एक ऐसी शक्ति प्रकट होगी जो सारे संसार की हालत को पूरी तरह बदल सकती है।

विशेष :

  1. स्वामी जी के कहने का भाव यह है कि दूसरों की सेवा निःस्वार्थ भाव से ही की जा सकती है। यह भाव व्यक्ति में एक ऐसी शक्ति को जन्म देगा जो सारे संसार को बदल देने की क्षमता रखती है।
  2. भाषा तत्सम प्रधान और शैली विचारात्मक है।

(3) तुम लोग ईश्वर की सन्तान हो, अमर आनन्द के भागी हो स्वयं पवित्र और पूर्ण आत्मा हो। अत: तुम कैसे अपने को जबरदस्ती दुर्बल कहते हो ? उठो साहसी बनो, वीर्यवान होओ। सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो- यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहो, सब तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के व्याख्यान ‘युवाओं से’ के अंश में से लिया गया है। इसमें स्वामी युवाओं को आत्मिक बल को पहचान कर अपना भाग्य निर्माण करने का संदेश दे रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को उनकी भीतरी शक्ति से परिचित करवाते हुए कहते हैं कि तुम ईश्वर की सन्तान हो अर्थात् ईश्वर तुम्हें जन्म देने वाले परम पिता हैं । इस कारण तुम अमर आनन्द को प्राप्त करने वाले हो। तुम पवित्र हो और पूर्ण आत्मा, ईश्वर का रूप हो। इसलिए तुम जबरदस्ती अपने को दुर्बल क्यों कहते हो। उठो और साहसी बनो, शक्तिवान बनो। अपनी सारी ज़िम्मेदारियाँ अपने कंधों पर लो। तुम्हें यह याद रखना होगा कि तुम अपने भाग्य के आप ही निर्माता हो। तुम्हें जो भी शक्ति या सहायता चाहिए वह सब तुम्हारे भीतर ही मौजूद है।

विशेष :

  1. स्वामी जी युवकों को याद दिलाना चाहते हैं कि वे अपने भाग्य के स्वयं निर्माता हैं और जो काम साहस से शक्ति से ही किया जा सकता है वो कहीं बाहर नहीं तुम्हारे अपने अंदर ही मौजूद है।
  2. शब्दावली तत्सम प्रधान है।
  3. भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

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(4) मेरे मित्रो, पहले मनुष्य बनिए, तब आप देखेंगे कि वे सब बाकी चीजें स्वयं आप का अनुसरण करेंगी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। इसमें स्वामी युवा को मनुष्य बनने का संदेश देते हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से कहते हैं कि धन, यश आदि प्राप्त करने के लिए पहले मनुष्य बनना बहुत ज़रूरी है। मानवता के गुण अपना लेने पर बाकी सभी चीजें तुम्हें अपने आप प्राप्त हो जाएँगी। अतः सर्वप्रथम तुम्हें मनुष्य बनना चाहिए।

विशेष :
दूसरों को अपना बनाने के लिए स्वयं अच्छा बनना पड़ता है।
भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

(5) मैं तो सिर्फ उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री राम चन्द्र जी के पुल बनाने के समय थोड़ा बालू देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया है। स्वामी जी युवाओं को देश की उन्नति में सहयोग देने के लिए कह रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द सुधार की अपेक्षा स्वाभाविक उन्नति में विश्वास रखने के अपने उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि मैं तो केवल उस गिलहरी की भाँति होना चाहता हूँ जो श्री रामचंद्र जी के समुद्र पर पुल बनाते समय थोड़ी रेत देकर अपना भाग पूरा कर संतुष्ट हो गयी थी। इसी तरह भारतीय युवकों में शक्ति और विश्वास की भावना जगाने के अपने कर्त्तव्य या उत्तरदायित्व को पूरा करना चाहता हूँ।

विशेष :

  1. युवा देश की उन्नति में थोड़ा-थोड़ा सहयोग दें तो देश उन्नति के शिखर को छू लेगा।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है।
  3. शैली आत्मकथात्मक है।

(6) जो अपने आप में विश्वास नहीं करता, वह नास्तिक है। प्राचीन धर्मों ने कहा है, वह नास्तिक है जो ईश्वर में विश्वास नहीं करता। नया धर्म कहता है, वह नास्तिक है जो अपने आप में विश्वास नहीं करता।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से ली गई हैं। स्वामी जी युवाओं को सम्बोधित करते हुए नास्तिक की परिभाषा दे रहे हैं।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों से अपने पर विश्वास करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि जो अपने में विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है क्योंकि मनुष्य परमात्मा का ही तो अंश है अतः अपने पर विश्वास न करना परमात्मा पर विश्वास न करने के बराबर है। प्राचीन धर्मों में भी यही कहा गया है कि जो ईश्वर में विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है किन्तु नया धर्म कहता है कि जो अपने पर विश्वास नहीं करता वह नास्तिक है।

विशेष :

  1. धर्म से पहले मनुष्य अपने पर विश्वास करे तो वह धर्म का सही ढंग से पालन कर सकता है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रभावशाली है।

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(7) यह एक बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमजोरी ही मृत्यु है। शक्ति परम सुख है, जीवन अजरअमर है। कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और यंत्रणा है, कमज़ोरी ही मृत्यु है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि कमज़ोर व्यक्ति सभी के लिए बोझ है।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी भारतीय युवकों को शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देते हुए कहते हैं कि यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि शक्ति ही जीवन है और कमज़ोरी ही मृत्यु है अर्थात् ज़िंदादिली ही जिंदगी का नाम है मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं। शक्ति में ही परम सुख है। यह जीवन तो सदा रहने वाला है जबकि कमज़ोरी कभी न हटने वाला बोझ और पीड़ा के समान है। इसीलिए कमज़ोरी मृत्यु समान मानी गयी है।

विशेष :

  1. मन से शक्तिशाली मनुष्य का जीवन अमर है, जबकि कमज़ोर मन का मनुष्य स्वयं के लिए भी बोझ है तथा दूसरों के लिए भी बोझ है।
  2. कमज़ोर व्यक्ति का जीवन मृत्यु के समान है।
  3. भाषा प्रभावशाली तथा तत्सम प्रधान है।

(8) अपने भाइयों का नेतृत्व करने का नहीं, वरन् उनकी सेवा करने का प्रयत्न करते हैं। नेता बनने की इस क्रूर उन्मत्तता में बड़े-बड़े जहाजों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण स्वामी विवेकानन्द जी के भाषण ‘युवाओं से’ के अंश से लिया गया है। स्वामी जी युवाओं से कहते हैं कि नेतृत्व करने से अच्छा सेवा करना है।

व्याख्या :
स्वामी विवेकानन्द जी युवकों से कहते हैं कि वे अपने देशवासियों का नेतृत्व नहीं बल्कि उनकी सेवा करने का प्रयत्न करें। नेता बनने के निर्दयी पागलपन ने बड़े-बड़े जहाजों को अर्थात् व्यक्तियों को इस जीवन रूपी समुद्र में डुबो दिया है अर्थात् जो लोग नेता बनने का प्रयत्न करते हैं वे जीवन में असफल रहते हैं। लोगों की सेवा करना ही व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।

विशेष :

  1. नेतृत्व की इच्छा रखने वाले लोग सेवा की भावना को भूल जाते हैं। नेतृत्व की महत्त्वाकांक्षा मनुष्य को असफल बना देती है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण तथा शैली व्याख्यात्मक है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 16 युवाओं से

युवाओं से Summary

युवाओं से निबन्ध का सार

प्रस्तुत निबन्ध स्वामी विवेकानन्द जी के विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए दिए गए एक भाषण का अंश है। स्वामी जी को युवाओं से बहुत आशाएँ हैं इसलिए उन्होंने इस भाषण में भारतीय नवयुवकों को चरित्रनिर्माण की शिक्षा देते हुए उन्हें राष्ट्र के नव-निर्माण के लिए प्रेरित किया है। स्वामी जी का कहना है कि इस समय देश को शारीरिक दृष्टि से मज़बूत निर्भय नवयुवकों की ज़रूरत है जो अपने आप में और अपनी शक्ति में विश्वास रखते हों। स्वामी जी की दृष्टि में जो अपने पर विश्वास नहीं रखता वह नास्तिक है। उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं। भारतीय आदर्श त्याग और सेवा है। इन्हें अपनाकर गरीबों, भूखों और दलितों की सेवा करना राष्ट्र की सब से बड़ी सेवा है।

राष्ट्रभक्ति कोरी भावना नहीं है, उसका आधार विवेक और प्रेम है। इसका विवेकपूर्वक प्रयोग करते हुए बाहरी भेदभाव भुलाकर प्रत्येक मनुष्य से प्रेम करना चाहिए। शिक्षा के विषय में स्वामी जी का मत है कि शिक्षा विभिन्न जानकारियों का ढेर नहीं है जो मनुष्य के दिमाग में भर दिया जाए; अपितु शिक्षा उन विचारों की अनुभूति है जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण और चरित्र निर्माण में सहायक हो। लेखक युवाओं को कहता है कि उन्हें अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरन्तर प्रयासरत रहना चाहिए। स्वामी जी कहते हैं कि दलबंदी और ईर्ष्या से ऊपर उठकर यदि तुम पृथ्वी की तरह सहनशील हो जाओगे तो इस गुण के बल पर संसार तुम्हारे कदमों में लेटेगा।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 15 भारत की सांस्कृतिक एकता

Hindi Guide for Class 11 PSEB भारत की सांस्कृतिक एकता Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
भारत में जाति, भाषा और धर्मगत विभिन्नता होते हुए भी सांस्कृतिक एकता किस प्रकार बनी हुई है ? निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
भारत में हिन्दू, बौद्ध, जैन, सिक्ख, पारसी अनेक जातियों के लोग रहते हैं। भारत में अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं। भारत में अनेक धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं, किन्तु फिर भी हमारे देश की सांस्कृतिक एकता बनी हुई है। इसका एक कारण तो यह है कि सभी धर्मों में त्याग और लय को महत्त्व दिया गया है। एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए हैं। जैसे भगवान् बुद्ध को हिन्दुओं का तेईसवाँ अवतार माना गया है। इसी प्रकार भगवान् ऋषभ देव का श्रीमद्भागवत में परम आदर के साथ उल्लेख हुआ है। जैन धर्म ग्रंथों में भगवान् राम और श्रीकृष्ण को तीर्थंकर तो नहीं कहा गया उनसे एक श्रेणी नीचे का स्थान मिला है। अन्य हिन्दू देवी-देवाताओं को भी उनके देव मंडल में स्थान मिला है।

प्राचीन काल में भारतीय धर्म और साहित्य ने राष्ट्रीय एकता का पाठ पढ़ाया है। सभी काव्य ग्रंथ रामायण और महाभारत को अपना प्रेरणा स्रोत बनाते रहे हैं। संस्कृत-प्राकृत और अपभ्रंश के काव्य ग्रंथ उत्तर दक्षिणा में समान रूप से मान्य है।

भाषा की दृष्टि से भी उत्तर भारत की प्रायः सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उर्दु को छोड़ कर प्रायः सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी हैं। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य ने भी भारत की सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने में विशेष योगदान दिया। वेषभूषा, रहन-सहन, चाल-ढाल से भारतवासी जल्दी पहचाने जाते हैं। विदेशी प्रभाव पढ़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वही हमारी एकता का मूल सूत्र है।

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प्रश्न 2.
‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ निबन्ध का सार लिखें।
उत्तर:
लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।

लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।

लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।

मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दें-

प्रश्न 1.
विरोधी लोग भारत को उपमहाद्वीप क्यों कहते हैं ?
उत्तर:
विरोधी लोग भारत की राष्ट्रीय एकता को खंडित करने के लिए नदियों के प्रवाह को विभाजक रेखा बता कर और भारत की अनेक भाषाओं, जातियों और धर्मों के आधार बनाकर भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहते हैं। उनकी दृष्टि में भौगोलिक आधार ही मूल विभाजन करते हैं, जोकि पूर्ण रूप से गलत है।

प्रश्न 2.
‘समाज में भेद और अभेद दोनों हैं। लेखक के इस कथन का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
लेखक का अभिप्राय है कि हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ कर हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया ताकि देश में आपसी फूट पैदा हो और इस भेद नीति से उनका उल्लु सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई और उसमें हीनता की भावना पैदा की गई।

प्रश्न 3.
पंचशील से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बौद्धों के पंचशील का अभिप्राय है कि हिंसा न करना, चोरी न करना, काम और मिथ्याचार से बचना, झूठ से बचना, नशीली वस्तुओं और आलस्य से बचना आदि। पंचशील मानव जीवन की उच्चता के आधार हैं।

प्रश्न 4.
धर्म और संस्कृति को लेखक ने हृदय के निकट स्वीकार किया है। निबन्ध के आधार पर उत्तर दें।
उत्तर:
राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट हैं। जन-साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है जो उनके अविरोध की परिचायक है। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।

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प्रश्न 5.
भारत की सांस्कृतिक एकता में सिक्ख गुरुओं का क्या योगदान है ?
उत्तर:
सिक्ख गुरुओं ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए कष्ट और अत्याचार भी सहे। भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए सिक्ख गुरुओं विशेषकर गुरु नानक और गुरु गोबिन्द सिंह जी ने, हिन्दी में कविता की है। ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ में कबीर आदि महात्माओं की वाणी आदर के साथ सुरक्षित है, उनका नित्य पाठ होता है।

प्रश्न 6.
मुसलमान और ईसाई धर्म की भारतीय धर्मों से क्या समानता है ?
उत्तर:
‘दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा कि तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो।’ ईसा मसीह का यह कथन महाभारत के ‘आत्मनः प्रतिकूलानि’ का ही पर्याय है। ईसाइयों की क्षमा और दया बौद्ध धर्म से मिलती जुलती है। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं के से हैं।

प्रश्न 7.
हिन्दू-तीर्थाटन में राष्ट्रीय भावना कैसे निहित है ?
उत्तर:
शिव भक्त ठेठ उत्तर की गंगोत्री से गंगा जल ला कर दक्षिणा के रामेश्वरम महादेव का अभिषेक करते हैं। उत्तर में बदरी-केदार, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ और पश्चिम में द्वारिका पुरी के तीर्थाटन में भारत की चारों दिशाओं की पूजा हो जाती है। ये मानव हृदय में आस्था के भावों को भरकर एकता का पाठ पढ़ाते हैं जिससे राष्ट्रीय भावना व्यक्त होती है।

प्रश्न 8.
भाषागत समानता से आप क्या समझते हो ?
उत्तर:
भाषागत समानता से तात्पर्य यह है कि उत्तर भारत की सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। इन सभी के शब्दों में पारिवारिक समानता है। दक्षिण की भाषाएँ भी संस्कृत से प्रभावित हुईं। उन्होंने भी थोड़ी बहुत संस्कृत की शब्दावली ग्रहण की। सभी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक सी है। केवल लिपि का भेद है।

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PSEB 11th Class Hindi Guide भारत की सांस्कृतिक एकता Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक बाबू गुलाबराय ने नदियों को क्या बतलाया है ?
उत्तर:
विभाजक रेखाएँ।

प्रश्न 2.
लेखक बाबू गुलाबराय ने भारत को देश न कहकर क्या कहा है ?
उत्तर:
उपमहाद्वीप।

प्रश्न 3.
लेखक बाबू गुलाबराय के अनुसार राष्ट्रीयता का उपकरण क्या है ?
उत्तर:
देश।

प्रश्न 4.
सभी देशों में किस प्रकार के भेद हैं ?
उत्तर:
जाति, भाषा एवं धर्मगत भेद हैं।

प्रश्न 5.
जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई कैसी है ?
उत्तर:
शून्य की भांति दरिद्र इकाई।

प्रश्न 6.
हमारे समाज में …………….. और …………….. हैं।
उत्तर:
भेद, अभेद।

प्रश्न 7.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन हैं ?
उत्तर:
धर्म और संस्कृति।

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प्रश्न 8.
भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें …………….. है।
उत्तर:
सांस्कृतिक एकता।

प्रश्न 9.
दो मुसलमान कवियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मलिक मुहम्मद जायसी, रहीम।

प्रश्न 10.
उत्तर भारत की सभी भाषाएँ ………. से निकली हैं।
उत्तर:
संस्कृत से।

प्रश्न 11.
भाषाओं में विशेषकर किसका भेद है ?
उत्तर:
लिपि का।

प्रश्न 12.
विदेशी प्रभाव के बावजूद भी हमारी राष्ट्रीय एकता ……………
उत्तर:
अक्षुण्ण।

प्रश्न 13.
विरोधी लोग भारत को देश न कहकर क्या कहते हैं ?
उत्तर:
उपमहाद्ववीय।

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प्रश्न 14.
भारत के विरोधी भारत की एकता को तोड़ने के लिए ……….. अपनाते हैं।
उत्तर:
तरह-तरह के हथकंडे।

प्रश्न 15.
सिक्ख धर्म गुरुओं ने किसकी रक्षा के लिए कष्ट सहे ?
उत्तर:
हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए।

प्रश्न 16.
सभी धर्मों में ……………. का महत्त्व है।
उत्तर:
त्याग और लय।

प्रश्न 17.
सभी भाषाओं की वर्णमाला …………. नहीं है।
उत्तर:
एक।

प्रश्न 18.
रामेश्वरम कहाँ स्थित है ?
उत्तर:
भारत के दक्षिण में।

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प्रश्न 19.
ठेठ शिव भक्त रामेश्वरम महादेव का अभिषेक कैसे करते हैं ?
उत्तर:
गंगोत्री से गंगा जल लाकर।

प्रश्न 20.
भारतवासियों का एक ………….. है।
उत्तर:
जातीय व्यक्तित्व

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
भारत में किन किन धर्मों के लोग रहते हैं ?
(क) हिंदू
(ख) सिख।
(ग) ईसाई
(घ) सभी।
उत्तर:
(घ) सभी

प्रश्न 2.
भारत की सांस्कृतिक एकता किस विधा की रचना है ?
(क) निबंध
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक ।
उत्तर:
(क) निबंध

प्रश्न 3.
पंचशील सिद्धांत किसका है ?
(क) बौद्धों का
(ख) जैनों का
(ग) सिक्खों का
(घ) ईसाइयों का।
उत्तर:
(क) बौद्धों का

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प्रश्न 4.
मनुष्य के हृदय के अधिक निकट कौन है ?
(क) धर्म
(ख) संस्कृति
(ग) दोनों
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) दोनों।

प्रमुख अवतरणों की सप्रसंग व्याख्या

(1) हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती देने के निमित्त उत्तर-दक्षिण, अवर्ण-सवर्ण, हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाईजैन के भेद खड़े करके हमारी संगठित ईकाई को क्षति पहुँचाई गई। भाषा का भी बवंडर उठाया गया ताकि आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति का ह्रास हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इसमें लेखक ने विदेशी शासकों अथवा विरोधियों द्वारा भारत को उपमहाद्वीप कहे जाने में देश की राष्ट्रीय एकता को खण्डित करने की चाल बताया है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि विरोधियों द्वारा भारत को देश न कहकर उपमहाद्वीप कहने से उनका तात्पर्य था कि हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी जाए। इसके लिए उन्होंने उत्तर-दक्षिण, अगड़ी और पिछड़ी जाति, हिन्दू-मुसलमानसिक्ख-ईसाई-जैन धर्मावलंबी लोगों में भेद खड़े करके हमारी संगठित इकाई को हानि पहुँचाई है परन्तु वे अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने भाषा का भी तूफान खड़ा किया गया जिसे आपसी झगड़ों और भेद-भाव में हमारी शक्ति क्षीण हो और विदेशी शासकों का राज्य अटल बना रहे।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों से लेखक का भाव यह है कि भारत के विरोधी भारतीयों की एकता को तोड़ने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे हैं। परन्तु वे भारतीय एकता के समक्ष असफल हो जाते हैं।
  2. भाषा संस्कृत निष्ठ होते हुए भी बोधगम्य है।

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(2) भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समान में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ वश हमारे भेदों को अधिक विस्तार दिया और जिससे हमारे देश में फूट की बेल पनपे और इस भेद नीति से उनका उल्लू सीधा हो। हमारे अभेदों की उपेक्षा की गई या उनको नगण्य समझा गया। इसमें दीनता की मनोवृत्ति पैदा हो गई।

प्रसंग :
यह गद्यांश बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने भारत में स्थित भेदों और उपभेदों को हवा देकर विदेशी शासकों द्वारा अपना उल्लू सीधा करने की बात कही है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि हमारे देश में जाति, धर्म, भाषा आदि के अनेक भेद हैं। इन भेदों के अस्तित्व से इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना भी अपने आप को धोखा देने के बराबर होगा। लेखक मानता है कि हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं किन्तु हमारे पूर्व शासकों, अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के कारण हमारे भेदों को अधिक बढ़ावा दिया जिससे हमारे देश में आपसी फूट पैदा हो और विदेशी शासकों का उल्लू सीधा हो। अंग्रेज़ों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की या उन्हें महत्त्व हीन किया। ऐसा करके अंग्रेज़ शासकों द्वारा भारतीयों में हीन भावना पैदा की गई। भारतीयों के मनोबल को कमज़ोर किया गया।

विशेष :

  1. अंग्रेज़ों द्वारा भारतीय सांस्कृतिक एकता को नष्ट करके अपना उल्लू सीधा करने की बात पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा संस्कृत निष्ठ है। ‘उल्लू सीधा करना’ मुहावरे का प्रयोग करके अंग्रेजों की कूटनीति का वर्णन किया है।
  3. भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

(3) राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट है। यद्यपि राजनीति का सम्बन्ध भौतिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी जन साधारण जितना धर्म से प्रभावित होता है उतना राजनीति से नहीं। हमारे भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उन में एक सांस्कृतिक एकता है, जो उनके अवरोध की परिचायक है।

प्रसंग :
यह अवतरण बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से लिया गया है। लेखक ने राजनीति से अधिक धर्म के प्रभाव पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य के हृदय के अधिक निकट होती है अर्थात् धर्म और संस्कृति मनुष्य की जड़ों से सम्बन्धित होती है। हालांकि राजनीति का सम्बन्ध सांसारिक सुख-सुविधाओं से है फिर भी आम लोग जितने धर्म से अधिक प्रभावित होते हैं राजनीति से उतने नहीं होते। हमारे भारतीय धर्मों में भले ही अनेक भेद हैं किन्तु उनमें सांस्कृतिक एकता भी मौजूद है, जो उनके मेल या सामंजस्य के परिचायक हैं अर्थात् उनके एक होने का प्रमाण है।

विशेष :
भारतीय धर्मों को सांस्कृतिक एकता बनाए रखने वाला बताया है।
भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

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(4) हमारा एक जातीय व्यकितत्व है। वह हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में अभिव्यक्त होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है, वहीं हमारी एकता का मूल सूत्र है।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ बाबू गुलाब राय जी द्वारा लिखित निबन्ध ‘भारत की सांस्कृतिक एकता’ में से ली गई हैं। इनमें लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता बनी रहने के कारण पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या :
लेखक कहता है कि भारतवासियों का एक जातीय व्यक्तित्व है। वह जातीय व्यक्तित्व हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन-मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत और कला में प्रकट होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत हद तक अखंडित बना हुआ है। विदेशी शासन का प्रभाव भी इसे नष्ट नहीं कर सका। वही हमारी राष्ट्रीय एकता का मूल सूत्र है। हमारी एकता किसी से प्रभावित नहीं होती।

विशेष :

  1. लेखक ने भारतीय सांस्कृतिक एकता के अखंडित रहने के कारणों पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा संस्कृतनिष्ठ है
  3. भाषा शैली सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

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कठिन शब्दों के अर्थ :

हितचिन्तक = भला चाहने वाला। अवयवों = शरीर के अंगों। समायोजन = संगठन। उर्वरा = उपजाऊ। शस्यश्यामला = हरा-भरा, धन-धान्य से भरपूर, फल से भरपूर। अबाधित = बिना रुकावट के। अखिल = निरन्तर। अवरोध = मेल सामंजस्य। आराध्य = पूज्य। तीर्थंकर = जैन धर्म के पूज्य 24 श्लाघा पुरुष । आवागमन = बार-बार जन्म लेना आना जाना। मुदिता = प्रज्ञव्रता चित्त की दशा। स्वास्तिक चिह्न = मंगलकारी, गणेश जी की आकृति को दशाने वाला चिह्न । यम = अहिंसा, सत्य चोरी न करना, ब्रह्मचारी, आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना यम कहलाते हैं। अणुव्रत = जैनधर्म में अहिंसा, सत्य, चोरी न करना, ब्रह्मचर्य और आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना को अणुव्रत कहा गया है। तीर्थाटन = तीर्थों की यात्रा करना। जेन्दावेस्ता = पारसियों का धर्म ग्रन्थ एकता। आम्नाय = धर्मशास्त्रीय ग्रंथ। एकध्येयता = लक्ष्य की एकता।

भारत की सांस्कृतिक एकता Summary

भारत की सांस्कृतिक एकता का सार

लेखक कहता है कि देश राष्ट्रीयता का एक आवश्यक उपकरण है। भारत की अनेक नदियों को विभाजक रेखाएँ बतलाकर तथा भाषा और धर्मों एवं रीति-रिवाजों को आधार बनाकर कुछ लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को खंडित करने के लिए भारत को एक देश न कहकर उपमहाद्वीप कहा है। इस तरह उन लोगों ने हमारी राष्ट्रीयता को चुनौती दी है।

लेखक का मानना है कि प्रायः सभी देशों में जाति, भाषा और धर्मगत भेद हैं। जिस देश में भेद नहीं, उसकी इकाई शून्य की भान्ति दरिद्र इकाई है। सम्पन्नता भेदों में ही है। अतः भेदों के अस्तित्व को इन्कार करना मूर्खता होगी और उनकी उपेक्षा करना अपने को धोखा देना होगा। हमारे समाज में भेद और अभेद दोनों ही हैं। हमारे पूर्व शासकों ने अपने स्वार्थ के वश हमारे भेदों का अधिक विस्तार दिया जिससे हमारे देश में फूट पनपे और उनका उल्लू सीधा हो। उन शासकों ने हमारे अभेदों की उपेक्षा की। देश की नदियों को विभाजक रेखा बताने वाले यह भूल गए कि यही नदियाँ तो भारत भूमि को शस्य श्यामला बनाती हैं।

लेखक कहता है कि राजनीति की अपेक्षा धर्म और संस्कृति मनुष्य को हृदय के अधिक निकट हैं। भारतीय धर्मों में भेद होते हुए भी उनमें एक सांस्कृतिक एकता है। भारत में एक धर्म के आराध्य दूसरे धर्म में महापुरुष के रूप में स्वीकार किए गए।

मुसलमान और ईसाई धर्म एशियाई धर्म होने के कारण भारतीय धर्मों से बहुत कुछ समानता रखते हैं। रोमन कैथोलिकों की पूजा-अर्चना, धूप-दीप, व्रत-उपवास आदि हिन्दुओं जैसे ही हैं। ‘मुसलमान’ और ईसाइयों ने यहाँ की संस्कृति को प्रभावित किया तथा यहाँ की संस्कृति से प्रभावित भी हुए। तानसेन और ताज पर हिन्दु मुसलमान समान रूप से गर्व करते हैं। जायसी, रहीम, रसलीन आदि अनेक मुसलमान कवियों ने अपनी वाणी से हिन्दी की रसमयता बढ़ाई है।

जहाँ तक भाषा का प्रश्न है। उत्तर भारत की प्राय: सभी भाषाएँ संस्कृत से निकलती हैं। उर्दू को छोड़कर प्रायः भी भाषाओं की वर्णमाला एक नहीं तो एक-सी है। केवल लिपि का भेद है। भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य का धूमिल इतिहास धुला-मिला सा है। मीरा, भूषण, संत तुकाराम, कबीर, दादू आदि। सारे भारत में समान रूप से आदर पाते हैं। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी हमारी राष्ट्रीय एकता अक्षुण्ण बनी हुई है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

Hindi Guide for Class 11 PSEB बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘हम तुम’ कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में एक बेटी के माँ से प्यार की कथा कही गई है। विवाह हो जाने पर भी बेटी को अपनी माँ की स्नेहमयी मूर्ति की याद आती रहती है। वह यह याद करती है कि किस तरह वह अपनी माँ के आँचल में सुरक्षित रह कर बड़ी हुई है। किस प्रकार उसने हंसी-खुशी अपना बचपन बिताया है। उसकी माँ ने उसे हर मुसीबत से बचाया है। बड़ी होने पर एक अच्छा घर दिया है अर्थात् उसका विवाह किया है। वह आज भी अपनी माँ के प्यार भरे स्पर्श को याद करती है तथा उसकी गोद में सोना चाहती है।

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प्रश्न 2.
कवयित्री ने अपने आपको किसकी प्रतिच्छाया कहा है और क्यों ?
उत्तर:
कवयित्री ने अपने आपको अपनी माँ की प्रतिच्छाया कहा है क्योंकि वह उसी के मूल से जन्मी थी। हर बेटी अपनी माँ का प्रतिरूप होती है। वह कितनी भी बड़ी क्यों न हो जाए। वह माँ का आंचल नहीं छोड़ना चाहती।

प्रश्न 3.
कवयित्री आज भी अपनी माँ की गोद में क्यों सोना चाहती है ?
उत्तर:
कवयित्री आज भी अपनी माता की गोद में सोना चाहती है । क्योंकि जो सुख बेटी को अपनी माँ की गोद में सोकर मिलता है वह संसार में और कहीं नहीं मिलता। माँ की गोद में आकर वह सब कुछ भूल जाती है। इसलिए वह माँ की गोद में सोना चाहती है।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत कविता में भावों की उदात्तता और तीव्रता है-स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में भाव तत्व की प्रधानता होने के कारण पाठकों का कवयित्री की भावना से सीधा तादातम्य स्थापित हो जाता है। कवयित्री ने पूरी कविता में बेटी द्वारा मातृभक्ति की अभिव्यक्ति बड़े अनूठे ढंग से प्रदान की है। एक बेटी सदैव माँ को प्रतिच्छाया होती है। इसलिए वह विवाह के बाद भी अपनी माँ के स्नेह को याद करती है और उसकी गोद में सिर रखकर सोने की इच्छा रखती है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

PSEB 11th Class Hindi Guide बुद्धम शरणम् गच्छामि Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उषा आर० शर्मा’ का जन्म कब हुआ ?
उत्तर:
24 मार्च, 1953 में।

प्रश्न 2.
‘पिघलती साँकलें’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उषा आर० शर्मा।

प्रश्न 3.
‘पिघलती साँकलें’ कविता में कवयित्री ने किसके लिए प्रेरित किया है ?
उत्तर:
रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर नवयुग के निर्माण के लिए।

प्रश्न 4.
मनुष्य को जागृत करने के लिए कवयित्री क्या करना चाहती है ?
उत्तर:
समाज में नई विस्फोटक क्रांति लाना चाहती है।

प्रश्न 5.
नई दुनिया में लोग कैसे रहेंगे ?
उत्तर:
मिलकर।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

प्रश्न 6.
पुरानी परम्पराओं में बँधे मनुष्य के लिए कवयित्री क्या कहती है ?
उत्तर:
परमाणु विस्फोट करने को।

प्रश्न 7.
परमाणु विस्फोट के धमाके से ………… हिल जाए।
उत्तर:
धरती।

प्रश्न 8.
कवयित्री मानव को किससे मुक्त करवाना चाहती है ?
उत्तर:
पुरानी परम्पराओं से।

प्रश्न 9.
जब कोई रोक नहीं होगी तब मानव की ………. बदल जाएगी।
उत्तर:
प्रकृति।

प्रश्न 10.
मनुष्य को कब बदलना चाहिए ?
उत्तर:
युग परिवर्तन के साथ।

प्रश्न 11.
नवयुग के आगमन पर क्या आवश्यक है ?
उत्तर:
परिवर्तन।

प्रश्न 12.
मुंडेरों पर किसके बैठने की बात कही गई हैं ?
उत्तर:
कौए।

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प्रश्न 13.
व्यस्तता की बेड़ियों में बँधा होने के कारण मानव के पास किस चीज़ के लिए समय नहीं हैं ?
उत्तर:
आत्म मंथन।

प्रश्न 14.
‘तुम-हम’ कविता की रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उषा आर० शर्मा।

प्रश्न 15.
मनुष्य की सोच कब बदलेगी ?
उत्तर:
क्रांति आने पर।

प्रश्न 16.
बेटी अपनी माँ की क्या होती है ?
उत्तर:
परछाई।

प्रश्न 17.
बेटी किसे कभी नहीं भूलती ?
उत्तर:
अपनी माँ, उसकी गोद, ममता तथा घर को।

प्रश्न 18.
बेटी का अपना घर कब होता है ?
उत्तर:
विवाह के बाद।

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प्रश्न 19.
आज भी बेटी की क्या इच्छा है ?
उत्तर:
बचपन की भाँति माँ की गोद में छिप जाए।

प्रश्न 20.
पुत्री की माँ क्या सपना देखती है ?
उत्तर:
पुत्री के विवाह का।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवयित्री का जन्म किस परिवार में हुआ था ?
(क) सैनिक
(ख) देशभक्त
(ग) किसान
(घ) वीर।
उत्तर:
(क) सैनिक

प्रश्न 2.
‘पिघलती साँकले’ कविता में कवयित्री किसके निर्माण के लिए प्रेरित करती है ?
(क) आधुनिक युग के
(ख) नवयुग के
(ग) प्राचीन युग के
(घ) धर्मयुग के ।
उत्तर:
(ख) नवयुग के

प्रश्न 3.
इस कविता में कवयित्री किन परंपराओं को तोड़ना चाहती है ?
(क) प्राचीन
(ख) रूढ़िवादी
(ग) प्राचीन और रूढ़िवादी
(घ) कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) प्राचीन और रूढ़िवादी

प्रश्न 4.
नवयुग के आगमन हेतु क्या आवश्यक है ?
(क) परिवर्तन
(ख) अपरिवर्तन
(ग) नियम
(घ) नीति।
उत्तर:
(क) परिवर्तन।

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पिघलती साँकलें सप्रसंग व्याख्या

1.व्यस्तताओं की बेड़ियों
में बंधे
इन्सानों के पास
समय कहाँ है
आत्म-मंथन के लिए
कुण्डली मारे
सुषुप्त शेषनाग की
कौन करे निंद्रा भंग
मुंडेरों पर बैठे
कागों की चहकन
नहीं है पर्याप्त।

कठिन शब्दों के अर्थ :
आत्ममंथन-अंत:करण के अनेक भावों पर विचार करना। सुषुप्त = सोये हुए। चहकन = प्रसन्नता। पर्याप्त = काफ़ी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से लिया गया है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने प्राचीन एवं रूढ़िवादी परम्पराओं के पिघलने की बात कही है क्योंकि
नवयुग के आगमन पर परिवर्तन ज़रूरी है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि आज मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है कि उसके पास, व्यस्तता की बेड़ियों में बंधा होने पर आत्ममंथन के लिए समय ही नहीं है। वह चाहकर भी सोचने-समझने के लिए समय नहीं निकाल पाती। नवयुग के आगमन पर परिवर्तन जरूरी है। परन्तु मनुष्य को कुण्डली मारे शेषनाग की तरह उसकी निद्रा कौन भंग करे, उसके लिए मुंडेरों पर बैठे कौओं का चहचहाना, काँव-काँव करना ही काफ़ी नहीं होगा बल्कि इसके लिए क्रान्ति करनी होगी। कुछ नया करना होगा।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि मनुष्य को युग परिवर्तन के साथ बदलना चाहिए। कौवों की आवाज़ को ‘चहकना’ कह कर कवयित्री ने व्यंग्य किया है।
  2. मनुष्य को जगाने के लिए अर्थात् उन्हें उनके अधिकार और दायित्व याद दिलाने के लिए कौओं की चहकन ही पर्याप्त नहीं है। उसके लिए क्रांति चाहिए।
  3. भाषा सरल एवं सहज है।
  4. तत्सम शब्दों की अधिकता है।

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2. आवश्यकता है
किसी मर्मभेदी
परमाणु विस्फोट की
जिसके हंगामे मात्र से
आलोड़ित हो जाए
सारा ब्रह्मांड।
तब स्वयं ही
पिघल जाएंगी
गुस्ताख सांकलें
नहीं रहेगा कहीं
कोई प्रतिबंध।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मर्मभेदी = किसी नाजुक (कोमल) स्थान को छेदने वाला। विस्फोट = धमाका। हंगामा = शोर। आलोड़ित होना = हिल जाना। ब्रह्मांड = संपूर्ण सृष्टि। गुस्ताख = ढीठ, बेअदब । प्रतिबंध = रोक। सांकले = जंजीरें।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री पुरानी परम्पराओं में बंधे मनुष्य को नवयुग के लिए जागृत करने के लिए एक परमाणु विस्फोट के लिए कहती है

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि प्राचीन परम्पराओं और रूढ़ियों को बदलने के लिए किसी मर्मभेदी परमाणु धमाके की ज़रूरत है। ऐसा धमाका जिसके शोर से सारी सृष्टि हिल जाए। तब अपने आप परम्परा एवं रूढ़ियों की ये ढीठ जंजीरें पिघल जाएँगी। तब कोई, किसी किस्म की रोक नहीं रहेगी अर्थात् मनुष्य की प्रकृति बदल जाएगी। वह भी नवयुग के साथ चलना सीख जाएगा।

विशेष :

  1. कवयित्री मनुष्य को पुरानी परम्पराओं से मुक्त करवाना चाहती है। मनुष्य को जागृत करने के लिए वह समाज में नई विस्फोटक क्रांति लाना चाहती है।
  2. भाषा परिपक्व तथा आलंकारिक है।
  3. तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग है।

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3. इत्मिनान रखो
तब पहचानेगा
इन्सान
इन्सान को
उदय होगा
एक नया सूर्य
और करेंगे
हम पदार्पण
एक नई दुनिया में।

कठिन शब्दों के अर्थ :
इत्मिनान = भरोसा। पदार्पण = कदम रखना।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘पिघलती साँकलें’ में से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री मानव-चेतना जागृत होने पर नए सवेरे के होने का वर्णन करती हैं।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि दुनिया को हिलाकर रख देने वाला धमाका होने पर इस बात का भरोसा रखो कि तब मानव मानव को पहचानेगा, उसमें मानवीय भाव जागृत होंगे। तब एक नया सूर्य उदय होगा और हम एक नई दुनिया में कदम रखेंगे। सभी मनुष्य समान रूप से नई दुनिया में मिलकर रहेंगे।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि क्रांति आने पर मनुष्य की सोच बदलेगी।
  2. नई सोच के साथ मनुष्य आपसी भेदभाव को भुलाकर सबको समान समझने लगेगा।
  3. भाषा परिपक्व तथा आलंकारिक है।
  4. तत्सम शब्दावली के साथ उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।

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तुम-हम सप्रसंग व्याख्या

1. तुम्हारे मूल से उपजी
तुम्हारी प्रतिच्छाया
-मैं
बढ़ी, पली और
कब जवान हो गई
मुझे पता ही न चला।
तुम मेरा छतनारा
दरख्त रहीं-
जिसकी छाँव तले
मैं कलोल करती
कब सयानी हो गई
मुझे पता ही न चला।

कठिन शब्दों के अर्थ :
प्रतिच्छाया = प्रतिरूप, प्रतिबिम्ब, प्रतिभा। छतनारा = जिस वृक्ष की शाखाएँ छत की तरह दूर-दूर तक फैली हों। कलोल = उछल-कूद, शरारतें।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ में से लिया गया है। इसमें कवयित्री ने अपनी मातृ-भक्ति अनूठे ढंग से प्रस्तुत की है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे माँ! मैं तुम्हारे मूल से ही जन्मी हूँ और तुम्हारा ही प्रतिरूप हूँ। तुम्हारी गोद में मैं पली बढ़ी हुई और कब जवान हो गई इसका मुझे पता ही न चला कि मैं तुम्हारी छाया हूँ।

कवयित्री कहती है कि तुम मेरा छतनारा वृक्ष बन कर रही जिसकी छाया तले मैं शरारतें करती फिरती थीं। कब मैं सयानी हो गई इसका मुझे पता ही न चला। तुम्हारी छाया में मैं कब बड़ी हो गई मुझे पता नहीं चला।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि बेटी माँ का रूप होती है। वह उसकी छाया में सुरक्षित रहती है।
  2. माँ बेटी के लिए वह वृक्ष है जिसमें वह पल कर बड़ी होती है।
  3. भाषा अत्यंत सरल तथा सहज है।
  4. तत्सम और फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।

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2. तुम्हारे पंखों ने दी
सदा गरमाहट मुझे
और बचाये रखा
हर मुसीबत से
कब बदल गए
मेरे रोयें पंखों में
मुझे पता ही न चला।

कठिन शब्दों के अर्थ : रोयें = नर्म-नर्म बाल।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा रचित कविता ‘तुम-हम’ में से ली गई हैं। इनमें कवयित्री माँ की तुलना उस पक्षी से करती है जो अपने चूजों को बड़े प्यार से बड़ा करती है।

व्याख्या :
कवयित्री अपनी माँ की तुलना एक पक्षी से करती हुई कहती है कि तुम्हारे पंखों ने मुझे सदा गरमाहट दी और अपने पंखों की ओट देकर तुमने मुझे हर मुसीबत से बचाए रखा। इसी दौरान मेरे शरीर नर्म-नर्म बाल रोयें, कब पंखों में बदल गए। मैं बड़ी हो गई मुझे पता ही न चला।

विशेष :

  1. माँ कोई भी हो वह अपने बच्चों की सदैव रक्षा करती है।
  2. माँ की बाँहों में बच्चे कब बड़े हो जाते हैं, पता भी नहीं चलता।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. तत्सम तथा फ़ारसी शब्दावली का प्रयोग है।

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3. एक दिन
तुमने
मेरा अलग
एक सुन्दर-सा
घौंसला
बना दिया
मैं उसमें
कैसे रम गई
मुझे पता ही न चला।

कठिन शब्दों के अर्थ :
घौंसला = घर। रम गई = लीन हो गई, मस्त हो गई।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम हम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री माँ द्वारा उसके बड़े होने पर विवाह करने का वर्णन करती है।

व्याख्या :
कवयित्री कहती है कि हे माँ! एक दिन तुमने मेरा अलग सुन्दर–सा घर बना दिया। मेरी शादी कर दी। मैं उस नए घर में कैसे रम गई प्रसन्नता में भर कर लीन हो गई मुझे पता ही न चला। बेटी के बड़े होने पर माँ उसकी शादी कर देती है तथा उसे ससुराल को अपना घर मानकर उसमें रमने की शिक्षा देती है।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि प्रत्येक माँ अपनी बेटी के विवाह का सपना देखती है।
  2. माँ यह चाहती है कि उसकी बेटी का भी अपना घर हो जिसमें उसके लिए प्रत्येक खुशियाँ मिलें। बेटी कब ससुराल में घुल मिल जाती है उसे पता भी नहीं चलता।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. उपमा अलंकार है।

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4. पर मन अब भी
उड़-उड़ जाता है
पुराने घौंसले में
और मैं महसूस
करती रहती हूँ
सदैव तुम्हारे
स्नेहिल स्पर्श को।

कठिन शब्दों के अर्थ : स्नेहिल स्पर्श = प्यार भरा स्पर्श।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवयित्री एक विवाहित बेटी का माँ के प्रति प्यार प्रकट करती है।

व्याख्या :
कवयित्री अपने मायके के घर को याद करती हुई कहती है कि विवाह हो जाने पर एक सुन्दर-सा घर मिल जाने पर मेरा मन अब भी पुराने घर, मायके की ओर उड़-उड़ जाता है। मुझे मायके की बहुत याद आती है और मैं सदा, हे माँ तुम्हारे प्यार भरे स्पर्श को महसूस करती हूँ। ससुराल में रहते हुए भी मुझे अपनी माँ की बहुत याद आती है।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि विवाह के बाद भी बेटी अपनी माँ के घर से जुड़ी रहती है।
  2. ससुराल में रम जाने के बाद भी बेटी माँ के प्यार भरे स्पर्श को सदैव याद रखती है।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. तत्सम शब्दावली है।
  5. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार का प्रयोग है।

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5. तुम फैलाए रखो
यूँ ही
अपना आँचल
आसमान की तरह
जिसे मैं
जब चाहे
ओढ़ लूँ
और
थक-मांद कर
आऊँ तुम्हारी आगोश में
तो बालों में
फेरती हुई
अपनी उँगलियाँ
तुम सुला लेना
मुझे अपनी गोद में।

कठिन शब्दों के अर्थ : आगोश = गोद।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्रीमती उषा आर० शर्मा द्वारा लिखित कविता ‘तुम-हम’ से ली गई हैं इन पंक्तियों में कवयित्री अपनी माँ की गोद में सोने की बात करती है।

व्याख्या :
कवयित्री अपनी माँ से प्रार्थना करते हुए कहती है कि हे माँ! तुम अपने आंचल को आसमान की तरह इसी तरह फैलाए रखना कि जिसे मैं जब चाहूं ओढ़ लूं और जब कभी थक-हार कर तुम्हारी गोद में आऊँ तो तुम मेरे बालों में उँगलियां फेरते हुए मुझे अपनी गोद में सुला लेना। बेटी शादी के बाद भी माँ की गोद को छोड़ना नहीं चाहती। वह सदैव अपनी माँ की गोद का स्पर्श पाना चाहती है।

विशेष :

  1. कवयित्री का भाव यह है कि जीवन के हर मोड़ पर सुख-दुख में हर बेटी अपनी माँ को याद करती है तथा उसकी गोद में सिर रखकर सब कुछ भुला देना चाहती है।
  2. माँ का आँचल बेटी के लिए प्यार और सुरक्षा का कवच है।
  3. भाषा अत्यन्त सरल है।
  4. तत्सम और फ़ारसी शब्दावली है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।
  6. ‘थक-मांद’ में समासात्मक शैली का प्रयोग है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 14 पिघलती साँकलें, तुम-हम

पिघलती साँकलें, तुम-हम Summary

जीवन-परिचय

श्रीमती उषा आर० शर्मा स्वतंत्र भारत की उदीयमान हिन्दी कवयित्रियों में से एक हैं। इनका जन्म मुम्बई में 24 मार्च, सन् 1953 में एक सैनिक परिवार में हुआ। पिता का सेना में होने के कारण बार-बार तबादला होता था इसलिए इनकी पढ़ाई विभिन्न प्रांतों में हुई। विद्यार्थी जीवन से ही इन्हें संगीत, नाटक तथा प्रकृति से प्रेम था। इन्होंने प्रभाकर के उपरान्त दर्शन शास्त्र तथा लोक प्रशासन में स्नातकोत्तर स्तर की परीक्षा विशिष्टता के साथ उत्तीर्ण की। इनका भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की प्रतियोगिता में चयन हुआ। इन्होंने अपना कार्य बड़ी कर्मठता से किया। परन्तु संवेदनशील मन के कारण इन्होंने लेखन कार्य आरम्भ किया। इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान जीवन में मानवीय संत्रास, यंत्रणा घातों-प्रतिघातों को एक सशक्त अभिव्यक्ति दी है। इनकी रचनाएँ एक वर्ग आकाश (कविता संग्रह 1999)। पिघलती साँकलें (कविता संग्रह 1999) भोजपत्रों के बीच (एक कविता संग्रह) तथा ‘क्यों न कहूँ’ कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन है। ‘भोज पत्रों के बीच’ भाषा विभाग पंजाब द्वारा पुरस्कृत हुई। इनके लेखन के लिए पंजाब हिन्दी साहित्य द्वारा ‘वीरेन्द्र सारस्वत सम्मान’ आपको सम्मानित किया गया। गुरु नानक देव विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित पंजाब की आधुनिक हिन्दी कविता में इनकी सात कविताएँ प्रकाशित हैं।

पिघलती साँकलें कविता का सार

‘पिघलती साँकलें’ की कवयित्री श्रीमती उषा आर० शर्मा है। प्रस्तुत कविता में कवयित्री मनुष्य को प्राचीन और रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर नवयुग के निर्माण के लिए प्रेरित कर रही है। मनुष्य को पुरानी मान्यताओं से बाहर निकालने के लिए कौओं की आवाज़ ही पर्याप्त नहीं है अपितु एक ऐसे धमाके की आवश्यकता है जिससे मानव मानव पहचान कर एक नई दुनिया का निर्माण करेगा। उस दुनिया में सब मिलकर रहेंगे।

तुम-हम कविता का सार

‘तुम-हम’ कविता की कवयित्री श्रीमती उषा आर० शर्मा हैं। प्रस्तुत कविता में कवयित्री ने एक बेटी के द्वारा मातृ-भक्ति को बहुत ही अनूठे ढंग से अभिव्यक्त किया है। बेटी सदैव अपनी माँ की परछाई होती है। वह अपनी माँ की ममता, गोद और घर को कभी नहीं भूलती। विवाह के बाद बेटी का अपना घर हो जाता है जहाँ पर सभी काम वह बड़े ही अच्छे ढंग से पूरे करती है, परन्तु वह अपनी माँ की गोद को नहीं भूल पाती। आज भी उसकी इच्छा है कि वह बचपन की तरह माँ की गोद में छिप जाए और माँ उसे हर मुसीबत से बचाकर बाँहों में समेट ले। बेटी बड़ी होकर भी माँ की गोद से बाहर निकलना ही नहीं चाहती।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

Hindi Guide for Class 11 PSEB बुद्धम शरणम् गच्छामि Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
‘जो किसी भी पंक्ति में शामिल नहीं है’ में कवि ने किन लोगों की ओर इशारा किया है ? उनके लिए कवि ने क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने वर्गहीन-जो न अमीरों में शामिल हैं न ग़रीबों में-की ओर संकेत किया है। कवि प्रार्थना करता है कि सूर्य की रौशनी उनके कीचड़ भरे आँगन में भी उतरे क्योंकि सूर्य की धूप किसी एक की मलकियत नहीं है। उस पर सबका अधिकार है।

प्रश्न 2.
पक्षियों के लिए कवि क्या कामना करता है ?
उत्तर:
कवि प्रार्थना करता है कि आने वाले वर्ष में कोई भी चिड़िया (पक्षी) प्यास के कारण दम न तोड़े। हर पक्षी को अपना जीवन व्यतीत करने के लिए उचित स्थान और उपयुक्त भोजन प्राप्त हो। लोगों के मन में उनके प्रति हिंसा का भाव न हो।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 3.
सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्दों से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कवि का अभिप्राय यह है कि सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े ये शब्द से लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो और बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद लोगों के हृदय में एक बार फिर गूंज उठे।

प्रश्न 4.
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद एक बार से प्राणों में गूंजे’ का आशय स्पष्ट करें।
उत्तर:
कवि का आशय यह है कि लोगों के हृदय में अहिंसा की भावना फिर से जागृत हो जाए और वे इस भाव को अपने आचरण में शामिल कर लें।

प्रश्न 5.
इस कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में ‘सब का भला’ करने की प्रार्थना की गई है ताकि मनुष्य, पशु-पक्षी और वनस्पतियाँ खुशियों से भर जाएं। लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो। लोग फिर बुद्धम् शरणम् गच्छामि का अनहद नाद करें तथा लोगों के हृदय में इसका वास हो।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

PSEB 11th Class Hindi Guide बुद्धम शरणम् गच्छामि Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभाष रस्तोगी का जन्म कब और कहाँ हआ था ?
उत्तर:
सुभाष रस्तोगी का जन्म 17 अक्तूबर 1950 को अम्बाला छावनी में हुआ था!

प्रश्न 2.
‘बुद्धम शरणम् गच्छामि’ किसकी रचना है ?
उत्तर:
सुभाष रस्तोगी की।

प्रश्न 3.
‘बुद्धम शरणम् गच्छामि’ सुभाष रस्तोगी के किस काव्य संग्रह से ली गई है ?
उत्तर:
समय के सामने।

प्रश्न 4.
कविता में कवि ने क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
जो रस वर्ष घटा है वह अगले वर्ष न हो।

प्रश्न 5.
कवि मानव में किस भावना को जगाना चाहता है ?
उत्तर:
वसुदैव कुटुम्बकम की भावना।

प्रश्न 6.
कवि ने कविता में किस अनहद नाद की बात की है ?
उत्तर:
बुद्धम शरणम् गच्छामि।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 7.
कवि ने पक्षियों के लिए ……….. की है।
उत्तर:
प्रार्थना।

प्रश्न 8.
कवि सभी के लिए ………… माँग रहा है।
उत्तर:
खुशियाँ।

प्रश्न 9.
कवि के अनुसार धूप किस सी …….. न बने।
उत्तर:
जायदाद।

प्रश्न 10.
कवि के अनुसार बीते वर्ष में …………. आई थी।
उत्तर:
बहत आपदाएँ।

प्रश्न 11.
कवि ईश्वर से मनुष्य को क्या देने की बात करता है ?
उत्तर:
सद्बुद्धि।

प्रश्न 12.
मनुष्य में दूसरे मनुष्य के लिए …………. पनपना चाहिए।
उत्तर:
प्यार, विश्वास एवं त्याग की भावना।

प्रश्न 13.
पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी लोग ………….. न हो।
उत्तर:
बेघर।

प्रश्न 14.
कवि मानव जीवन में फिर से क्या देखना चाहता है?
उत्तर:
बीती हुई खुशियों को।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 15.
कवि वनस्पतियों के लिए क्या प्रार्थना करता है ?
उत्तर:
खूब फले-फूलें।

प्रश्न 16.
मनुष्य भटकना छोड़कर …………. प्राप्त करे।
उत्तर:
अपनी मंज़िल।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सुभाष रस्तोगी किस कविता के प्रसिद्ध कवि हैं ?
(क) समकालीन
(ख) भक्ति
(ग) प्राचीन
(घ) आधुनिक।
उत्तर:
(क) समकालीन

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

प्रश्न 2.
‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ कविता के लेखक कौन हैं?
(क) सुभाष रस्तोगी
(ख) दुष्यन्त कुमार
(ग) सुभाष भारती
(घ) उषा आर० शर्मा।
उत्तर:
(क) सुभाष रस्तोगी

प्रश्न 3.
बुद्धम् शरणम् गच्छामि किस विधा की रचना है ?
(क) कविता
(ख) कहानी
(ग) उपन्यास
(घ) नाटक।
उत्तर:
(क) कविता

प्रश्न 4.
कवि मानव में किस भावना को जगाना चाहता है ?
(क) प्रेम
(ख) विरह
(ग) वसुदैव कुटुम्बकम
(घ) देव।
उत्तर:
(ग) वसुदैव कुटुम्बकम ।

बुद्धम् शरणम् गच्छामि सपसंग व्याख्या

1. यही प्रार्थना है
कि इस बरस हुआ जो
वह अगले बरस न हो!
धूप-
किसी एक की मिलकियत न बने
सूरज-
उनके कीच-भरे आँगन में भी उतरे
जो किसी भी पंक्ति में
शामिल नहीं हैं
हर खेत को पानी
हर हाथ को काम मिले
झोपरपट्टी में भी
पीपल की बन्दनवार सजे
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मिलकियत = जागीर, जायदाद, वह चीज़ जिस पर मालकाना हक हो। बन्दनवार = सजावटी दरवाज़े।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री सुभाष रस्तोगी के काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने सब की भलाई की कामना करते हुए लोगों में आपसी प्रेम-प्यार और भाईचारे की भावना जागृत होने की प्रार्थना की है।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि इस वर्ष जैसा हुआ वैसा अगले वर्ष न हो। धूप किसी की जायदाद न बने और सूरज भी उन लोगों के कीचड़ भरे आंगन में खिले जो किसी भी वर्ग में शामिल नहीं है। हर खेत को पानी मिले, हर हाथ को काम मिले न कोई भूखा-प्यासा रहे न कोई बेरोज़गार। झोंपड़पट्टी में भी सजावटी दरवाज़े सजें ; वहाँ भी पीपल की वंदन वार रूपी पवित्रता और शोभा बनी रहे। वहां भी खुशियां छा जाएं यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि सभी के लिए खुशियाँ माँग रहा है।
  2. कवि कहता है कि इस वर्ष सभी भेद-भाव भुलाकर, अमीर-गरीब की दीवार हटाकर ईश्वर सभी को खुशियाँ दें।
  3. भाषा सहज तथा सरल है।
  4. तत्सम, फ़ारसी शब्दों का प्रयोग है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 13 बुद्धम शरणम् गच्छामि

2. कोई चिरैया
प्यास से दम न तोड़े
हर पंथी को छाँव
हर पाँव को ठाँव मिले
घुप्प अँधेरे में
कोई कंदील जले
और सब-कुछ रोशन हो जाये
समय का बायस्कोप
इस बरस तो कम-से-कम
हत्या, आगज़नी और बलात्कार
अकाल
प्रकृति के ताण्डव
और आदमी को
आदमी का निवाला बनने के दृश्य
न दिखाये
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे

कठिन शब्दों के अर्थ :
चिरैया = चिड़िया। ठाँव = ठिकाना। कंदील = दीप, लालटेन। बायस्कोप = परदे पर चलते-फिरते चित्र दिखाने वाला एक यन्त्र। आगजनी = आग लगाना। ताण्डव = विनाश। निवाला = ग्रास।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश सुभाष रस्तोगी के काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से लिया गया है। कवि सभी प्राणियों के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता है कि यह वर्ष पिछले वर्ष की अपेक्षा अच्छा गुजरे।

व्याख्या :
कवि मनुष्यों की ही नहीं सब प्राणियों की भलाई की प्रार्थना करते हुए कहता है कि मेरी यह प्रार्थना है कि कोई भी चिड़िया प्यास के कारण दम न तोड़े। प्रत्येक मुसाफ़िर को छाया मिले और हर पाँव को ठिकाना मिले; उसे अपनी मंजिल की प्राप्ति हो। घुप्प अन्धेरे में कोई शोभा से युक्त दीप जले और जिससे समय का बायस्कोप रोशन हो जाए। इस वर्ष तो कम-से-कम हत्या, आग लगाने और बलात्कार की घटना न घटे और यह बायस्कोप प्रकृति के विनाशकारी रूप तथा आदमी को आदमी का ग्रास बनने के दृश्य न दिखाये। यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि बीते वर्ष में बहुत प्राकृतिक आपदाएं आई हैं जिसमें बहुत नुकसान उठाना पड़ा है। परन्तु इस वर्ष ऐसा कुछ न हो।
  2. कवि ईश्वर से मनुष्य को भी सद्बुद्धि देने की बात करता है जिससे वह बुराइयों, आतंकी सोच से दूर रहे।
  3. भाषा सरल तथा सहज है।
  4. तत्सम, फ़ारसी और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
  5. उपमा, अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

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3. इस बरस तो
आदमी-
विश्वास
प्रार्थना
भलाई
अहिंसा
तप-त्याग
सहिष्णुता
और वसुधैव कुटुम्बकम् जैसे
सदियों पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्द
कम-से-कम
नई सदी में तो
हमारे आचरण में फिर से लौटें
और बुद्धम शरणम् गच्छामि का अनहद नाद
एक बार फिर से
प्राणों में गूंजे
यही प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
सहिष्णुता = सहनशीलता। वसुधैव कुटुम्बकम् = सारा विश्व एक परिवार है। विरासत = उत्तराधिकार में मिलने वाला माल, विरसा, मीरास। अनहद नाद = योगियों को सुनाई देने वाली आन्तरिक ध्वनि-ओइम।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इनमें कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि चारों ओर वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि इस वर्ष तो आदमी में विश्वास, प्रार्थना, भलाई, अहिंसा, तप-त्याग, सहनशीलता और सारा विश्व एक परिवार हो की भावना जागृत हो। जैसे सैंकड़ों वर्ष पुरानी हमारी विरासत से जुड़े शब्द नई सदी में तो कम-से-कम हमारे आचरण में लौट आएं और ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि (मैं बुद्ध की शरण में जाता हूँ।) का अनहद नाद (योगियों को सुनाई देने वाली आन्तरिक ध्वनि जैसे ‘ओ३म्’)। एक बार फिर प्राणों में गूंज उठे। मेरी यही प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ अगले वर्ष न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि मनुष्य में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो।
  2. मनुष्य में दूसरे मनुष्य के लिए प्यार, विश्वास, त्याग की भावना पनपे। जिससे वह अच्छे समाज का निर्माण कर सके।
  3. भाषा सहज और सरल है।
  4. तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  5. उपमा अलंकार है।

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4. नई सदी में तो धरती
कम-से-कम
हमारे कपट-तन्त्र से कलंकित न होवे
धरती के सुजलाम् सुफलाम्
और शस्यश्यामलाम् होने के पुराने दिन
फिर से लौटें

कठिन शब्दों के अर्थ :
सुजलाम् = जल से परिपूर्ण। सुफलाम् = फलों से भरपूर । शस्यश्यामलाम् = फसल से भरपूर।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बद्धम शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इनमें कवि पुराने दिनों को याद करते हुए उनके वर्तमान में फिर से आने की प्रार्थना करता है

व्याख्या :
कवि नई सदी में धरती के पुराने दिन लौट आने की प्रार्थना करते हुए कहता है कि कम-से-कम नई सदी में धरती हमारे छल-कपट से कलंकित, दूषित न हो उसके वही पुराने दिन सुजलाम (जल से परिपूर्ण), सुफलाम् (फलों से भरपूर) और शस्यश्यामलम् (फसल से भरपूर) होने के दिन लौट आवें अर्थात् चारों ओर खुशहाली छा जाए।

विशेष :

  1. कवि बीती हुई खुशियों को मानव जीवन में फिर से देखना चाहता है।
  2. कवि धरती को पाप मुक्त करना चाहता है जिससे फिर से धरती हरी-भरी हो जाए।
  3. भाषा सरल तथा सहज है तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  4. अनुप्रास और उपमा अलंकार है।

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5. यही प्रार्थना है
कि पिछले बरस की तरह
इस बरस
हज़ारों लोग बेघर न हों
और आदमज़ात की
कौड़ियों सरीखी बेजान आँखों के
पेड़ों पर चिपकने के दृश्य
काल-देवता
अगले बरस न दिखाये
अन्न के दाने-दाने को/आदमी न तरसे

कठिन शब्दों के अर्थ :
आदमज़ात = मनुष्य जाति। काल-देवता = समय का देवता!

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी के काव्य-संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता ‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इन पंक्तियों में कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि इस वर्ष सभी लोग अपने घरों में रहे और उन्हें भर पेट भोजन मिलें। . व्याख्या-कवि प्रार्थना करता हुए कहता है कि पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी हज़ारों लोग बेघर न हों और मनुष्यों की कौड़ियों जैसी बेजान आँखों के पेड़ों पर चिपकने के दृश्य न दिखाई दें अर्थात् बेघर होने से उनकी सपनों से भरी आँखें बेजान होकर एक ही दिशा में देखने लगती हैं। हे समय के देवता अगले वर्ष न दिखाना कि अन्न के दानेदाने को आदमी तरस रहे हैं। सभी को भरपेट भोजन मिलें।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि बीते वर्षों की तरह इस वर्ष लोग अपने घरों से बेघर न हो। बेघर होने पर लोगों के घर-सम्बन्धी सपने टूट जाने पर वे एक लाश के समान हो जाते हैं।
  2. इस वर्ष सभी लोगों को खाने के लिए भोजन मिले। भाषा सरल है। तत्सम, फारसी, और अरबी शब्दावली है। रूपक, पुनरुक्ति अलंकार विद्यमान है।

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6. वनस्पतियाँ
खूब फले-फूलें
नई सदी में/सब
खुशियों के हिंडोले में झूलें
सुबह-
मंगलगान-सी जीवन में उतरे
और साँझ-
सबकी सलामती की दुआ माँगती हुई
हर अँधियारे कोने में
उजाले का एक अन्तरीप रचे
और हर थके पाँव को
मंज़िल मिले
यह प्रार्थना है
कि इस बरस जो हुआ
वह अगले बरस न होवे !

कठिन शब्दों के अर्थ :
हिंडोले = झूले। सलामती = सुरक्षा । दुआ = प्रार्थना। अन्तरीप = भूमि का नुकीला भाग जो समुद्र में दूर तक चला गया हो। .

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ सुभाष रस्तोगी द्वारा लिखित काव्य संग्रह ‘समय के सामने’ में संकलित कविता बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ से ली गई हैं। इसमें कवि ईश्वर से प्रार्थना करता है कि मनुष्य, पशु-पक्षी और वनस्पति सभी को खुशियाँ मिलें।

व्याख्या :
कवि प्रार्थना करते हुए कहता है कि नई सदी में सभी वनस्पतियाँ खूब फले-फूलें और सभी खुशियों के झूले में झूलें। सबके लिए सुबह मंगलगान-सी जीवन में उतरे और संध्या सबकी सुरक्षा की प्रार्थना करती हुई आए। प्रत्येक अन्धेरे कोने में उजाले का एक टापू रचा जाए। प्रत्येक थके हुए पाँव को मंजिल मिले। यह प्रार्थना है कि इस वर्ष जो हुआ वह अगले वर्ष में न हो।

विशेष :

  1. कवि का भाव यह है कि इस वर्ष चारों ओर खुशी का वातावरण हो। कहीं भी दुःख का सवेरा नहीं होना चाहिए।
  2. प्रत्येक मुसाफिर अर्थात् मनुष्य भटकना छोड़कर अपनी मंजिल प्राप्त करे। भाषा सरल है। तत्सम, फ़ारसी तथा अरबी शब्दावली का प्रयोग किया गया है। उपमा, अनुप्रास अलंकार विद्यमान है।

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बुद्धम् शरणम् गच्छामि Summary

बुद्धम् शरणम् गच्छामि जीवन-परिचय

सुभाष रस्तोगी समकालीन कविता के एक जाने-माने कवि हैं। इनका जन्म 17 अक्टूबर, सन् 1950 ई० को अम्बाला छावनी में हुआ। इन्होंने हिन्दी में एम० ए० तथा पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की है। इनकी कविता के साथ-साथ साहित्य की अन्य विधाओं जैसे कहानी, उपन्यास, जीवनी तथा साक्षात्कार आदि में भी इनकी अच्छी पकड़ है। इनकी मुख्य रचनाएं तथा अन्य उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं काव्य संग्रह-टूटा हुआ आदमी और जीवन छला गया, अग्नि देश, वक्त की साजिश, कत्ल सूरज का, बयान मौसम का, अपना-अपना सच, तपते हुए दिनों के बीच, कठिन दिनों में, अंधेरे में रोशन होती चीजें।

कहानी संग्रह-ठहरी हुई जिंदगी, एक लड़ाई-चुपचाप। उपन्यास-काँच घर, टूटे सपने। साक्षात्कार-संवाद निरंतर। जीवनी-क्रांतिकारी भगतसिंह, रवीन्द्रनाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, अमर क्रांतिकारी सुखदेव।

उन्हें ‘कत्ल सूरज का’ के लिए 1980-81 में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा, तपते हुए दिनों के बीच 1987-88 में, बयान मौसम का 1991-92 में तथा 1994-95 में क्रांतिकारी भगतसिंह (जीवनी) के लिए प्रथम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्होंने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में कहानियों तथा कविताओं पर एम० फिल० हेतु शोधकार्य सम्पन्न किया। आजकल ये भारत सरकार के एक कार्यालय में सेवारत तथा स्वतंत्र लेखन कार्य में लगे हुए हैं तथा साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

बुद्धम् शरणम् गच्छामि कविता का सार

‘बुद्धम् शरणम् गच्छामि’ कविता सुभाष रस्तोगी द्वारा रचित ‘समय के सामने’ कविता संग्रह में ली गई है। इस कविता में कवि ने प्रार्थना की है कि इस वर्ष मानव के जीवन में जो घटा है वह अगले वर्ष नहीं चाहिए। प्रत्येक को सभी प्रकार की सुविधाएं मिलनी चाहिए जैसे रोज़गार, अनाज, सभी की सलामती, खेतों में हरियाली तथा खुशी मिलें। अगले वर्ष लोगों के जीवन में अज्ञान रूपी अंधकार दूर होकर, ज्ञान-रूपी प्रकाश फैले। कवि ने पक्षियों के लिए भी प्रार्थना की है कि उन्हें भी कहीं न कहीं ठिकाना मिलें। लोगों में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना जागृत हो और बुद्धम् शरणम् गच्छामि अनहद नाद एक बार फिर से लोगों के हृदय में गूंजे।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के

Hindi Guide for Class 11 PSEB ऐ वीरो, भारतवर्ष के Textbook Questions and Answers

 

प्रश्न 1.
कवि ने किन भेड़ियों को मज़ा चखाने की बात कही है ?
उत्तर:
कवि ने उन आक्रमणकारियों को भेड़िया कहा है जिनके आक्रमण से देश की स्वतंत्रता को खतरा पैदा हो गया है। कवि ने उन्हें मुँह तोड़ जवाब देने की बात कही है जिस कारण वे फिर भारत की ओर आँख उठाकर भी नहीं देख पाएं। हमारे देश के कुछ शत्रु देश बार-बार हम पर हमला करते हैं, आँखें दिखाते हैं, गुर्राते हैं। हम भारतवासियों को निर्भयतापूर्वक उनका सामना ही नहीं करना बल्कि उन्हें युद्ध जैसा दुस्साहस करने के लिए मज़ा चखा देना है। उनमें इतना भय उत्पन्न कर देना है कि वे फिर हम पर हमला न कर सकें।

प्रश्न 2.
बन्दा बैरागी और गुरु गोबिन्द सिंह जी की वीरता से क्या प्रेरणा मिलती है ?
उत्तर:
बन्दा बैरागी और गुरु गोबिन्द सिंह जी की वीरता से भारतवासियों को यह प्रेरणा मिलती है कि शत्रु के सामने पहाड़ की तरह डट जाओ और आक्रमणकारियों का विनाश करो। उन्होंने साहसपूर्वक मुगलों का डटकर सामना ही नहीं किया बल्कि उन्हें बार-बार युद्ध में परास्त किया था। उनके हौसले पस्त कर दिए थे। अपने इन महान् सेनानियों की वीरता से आत्मिक बल ही प्राप्त नहीं होता बल्कि अपने उन पूर्वजों पर अभिमान भी होता है।

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प्रश्न 3.
‘हम प्यार बुद्ध से करते हैं, पर नहीं युद्ध से डरते हैं’ का भाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्य पंक्ति का भाव यह है कि भले ही भारतवासी अहिंसा में विश्वास रखते हैं किन्तु यदि युद्ध उन पर थोप दिया जाए और देश की स्वतंत्रता पर कोई खतरा आए तो युद्ध से भी नहीं घबराते। देश की सुरक्षा के लिए हम तन-मन-धन न्योछावर करने को तैयार हैं।

प्रश्न 4.
आजाद, भगत, वल्लभ और सुभाष कौन थे और उन्होंने भारतवर्ष के लिए क्या सपना देखा था ?
उत्तर:
चन्द्रशेखर आज़ाद और सरदार भगत सिंह महान् क्रान्तिकारी हुए हैं तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस स्वतंत्रता सेनानी और महान् नेता हुए हैं। इन सबका भारत को स्वतंत्र देखने का सपना था। इन्होंने अपने बाहुबल और मानसिक शक्ति से अंग्रेजों के छक्के छुड़वा दिए थे।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में देश पर आक्रमण होने पर देश की स्वतंत्रता के लिए कोई खतरा पैदा होने पर हमें एक जुट होकर आक्रमणकारी का डट कर मुकाबला करना चाहिए और शत्रु को नष्ट करके अपनी स्वतंत्रता और देश की सुरक्षा के उपाय करने चाहिए। हमें अपनी ताकत और एकता से दुश्मन को यह दिखा देना है कि वह अपने बुरे इरादों से देश की अखण्डता को तोड़ नहीं सकता।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के

PSEB 11th Class Hindi Guide ऐ वीरो, भारतवर्ष के Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उदयभानु हँस’ का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर:
सन् 1930 ई० में।

प्रश्न 2.
उदयभानु हँस’ को किस राज्य के राज्य कवि का श्रेय प्राप्त है ?
उत्तर:
हरियाणा राज्य के।

प्रश्न 3.
उत्तर प्रदेश सरकार ने कवि उदयभानु ‘हंस’ को कौन-सा पुरस्कार दिया था ?
उत्तर:
उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें ‘संत-सिपाही’ पर निराला पुरस्कार से सम्मान दिया।

प्रश्न 4.
‘हे वीरो, भारत वर्ष के’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
उदयभानु ‘हँस’।

प्रश्न 5.
कवि उदयभानु ने भारतवासियों का किस लिए आह्वान किया है ?
उत्तर:
आक्रमणकारियों को मिलकर मज़ा चखाने के लिए।

प्रश्न 6.
कवि ने भारतवासियों को किसकी तरह बनने को कहा है ?
उत्तर:
बंदा बैरागी की तरह बनने को कहा है।

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प्रश्न 7.
कवि ने भारतवासियों को किसकी संतान कहा है ?
उत्तर:
महात्मा बुद्ध की।

प्रश्न 8.
कवि वीर पुरुष का सपना क्या कहा है ?
उत्तर:
अपने देश को हिंसा मुक्त बनाना।

प्रश्न 9.
कवि शत्रुदल के ………. से युद्ध की देवी का श्रृंगार करना चाहता है।
उत्तर:
गर्म लहू।

प्रश्न 10.
कवि किस सेना के पाँव उखाड़ने की बातें कर रहा है ?
उत्तर:
नीच शत्रु सेना के।

प्रश्न 11.
शत्रु सेना के लिए अडिग दीवार कौन था ?
उत्तर:
बंदा वैरागी।

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प्रश्न 12.
कवि ने किसकी तलवार को धारण करने के लिए कहा है ?
उत्तर:
गुरु गोबिंद सिंह जी की।

प्रश्न 13.
भारतवासियों को बुद्ध से क्या मिला था ?
उत्तर:
अहिंसा का संदेश।

प्रश्न 14.
हमें अपने आपसी भेदभाव भुलाकर क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
दुश्मन का मुकाबला।

प्रश्न 15.
कवि के अनुसार शत्रुओं की कब्र खोदकर ………. चाहिए।
उत्तर:
सबको एक साथ गाड़ देना।

प्रश्न 16.
युद्ध क्षेत्र में ……….. के रक्त से धरती ………… हो गई।
उत्तर:
शत्रुओं, लाल।

प्रश्न 17.
कवि शत्रु के आक्रमण के समाने किस प्रकार खड़े होने की बात करता है ?
उत्तर:
पहाड़ बनकर।

प्रश्न 18.
अंग्रेज़ों ने कूटनीति के कारण क्या बना दिया था ?
उत्तर:
पाकिस्तान।

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प्रश्न 19.
कौन-सी नदी को भारत से अलग कर दिया गया था ?
उत्तर:
सिंध नदी।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उद्यभानु हँस किसके लिए प्रसिद्ध हैं ?
(क) दोहों के
(ग) रुबाइयों के
(ख) चौपाई के
(घ) सवैयों के।
उत्तर:
(ग) रुबाइयों के

प्रश्न 2.
उदयभानु हँस को हरियाणा के कौन से कवि का श्रेय प्राप्त है ?
(क) राज्यकवि
(ख) वीर रस कवि
(ग) दोहा कवि
(घ) प्रथम कवि।
उत्तर:
(क) राज्यकवि

प्रश्न 3.
कवि के अनुसार दुश्मनों के खून से हमें किसका श्रृंगार करना है ?
(क) माता का
(ख) मातृभूमि का
(ग) देश का
(घ) वीर का।
उत्तर:
(ख) मातृभूमि का

प्रश्न 4.
दुश्मनों के सामने किसके समान अडिग रहना चाहिए ?
(क) गुरु गोबिंद सिंह जी के
(ख) गुरु तेग बहादुर जी के
(ग) वीरों के
(घ) सभी के।
उत्तर:
(क) गुरु गोबिंद सिह जी के।

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ऐ वीरो, भारतवर्ष के सप्रसंग व्याख्या

1. ऐ वीरो, भारतवर्ष के,
फिर दिन आए संघर्ष के !
पशु-बल की आज चुनौती को, तुम दृढ़ता से स्वीकार करो,
फलों की गलियाँ छोड़, जरा अब काँटों से भी प्यार करो।
इन दुष्ट भेड़ियों को, हमले का मज़ा चखाना है,
वे जीवन भर जो भूल न पाएँ, ऐसा पाठ पढ़ाना है।
अब सदा के लिए रोज़-रोज़ का झगड़ा ही निपटाना है,
यह अमर तिरंगा अब दुश्मन की छाती पर लहराना है!

कठिन शब्दों के अर्थ :
दृढ़ता से = मज़बूती से। दुष्ट भेड़िए = आक्रमणकारी, शत्रु।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री उदयभानु हंस जी द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने आक्रमणकारियों को मिलकर मज़ा चखाने के लिए भारतवासियों से आह्वान किया है।

व्याख्या :
कवि भारतवर्ष के वीरों को संबोधित करतु हुए कहते हैं कि फिर से संघर्ष करने के दिन आ गए हैं। पहले स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्ष किया था। और अब तुम पशु के समान शत्रु की शक्ति की चुनौती को मजबूती से स्वीकार करो। फूलों की गलियाँ छोड़कर, अपने सुखों का त्याग करके, अब काँटों से प्यार करो, कष्ट झेलने के लिए तैयार हो जाओ। इन दुष्ट भेड़ियों को, आक्रमणकारियों को भारत पर आक्रमण करने का मज़ा चखाना है और ऐसा मज़ा चखाना है कि वे जीवन भर इसे भूल न पाएं। उन्हें ऐसा पाठ पढ़ाना है। अब सदा के लिए रोज़-रोज़ के झगड़े को मिटा देना है तथा यह अमर तिरंगा (हमारा राष्ट्रध्वज) शत्रु की छाती पर लहराना है। वीरता के साथ शत्रुओं का सामना करना है।

विशेष :

  1. कवि ने भारतवासियों को शत्रु का मुकाबला डट कर करने का आह्वान किया है।
  2. भाषा सरल एवं प्रवाहमयी है।
  3. शब्द चयन विषय वस्तु के अनुकूल है।
  4. अनुप्रास तथा पुनरुक्ति अलंकार है।
  5. वीर रस है।
  6. संगीतात्मकता का गुण है।

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2. अब समय नहीं है रुकने का
अब प्रश्न नहीं है झकने का,
अवसर आया है, मातृभूमि का संकट से उद्धार करो,
रिपुदल के गर्म लहू से ही रणचंडी का श्रृंगार करो!
तुम युद्ध-क्षेत्र में नीच शत्रु-सेना के पाँव उखाड़ दो,
दुनिया के इतिहास-ग्रंथ से इनका पन्ना फाड़ दो,
जो दुश्मन घर में घुस आए, तुम उनको पकड़ पछाड़ दो,
फिर कब्र खोद कर, एक साथ ही सबको ज़िन्दा गाड़ दो!

कठिन शब्दों में अर्थ :
रिपुदल = शत्रुदल। पन्ना = पृष्ठ।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री उदयभानु हंस जी द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों को आक्रमणकारियों के विरुद्ध लड़ने के लिए प्रेरित किया है।

व्याख्या :
कवि ने भारत के वीरों का शत्रु के आक्रमण के समय आह्वान करते हुए कहा है कि अब रुकने और झुकने का समय नहीं है। अब तो ऐसा मौका आया है कि मातृभूमि पर आए संकट से उसका तुम्हें उद्धार करना है। शत्रुदल के गर्म लहू से ही युद्ध की देवी का तुम्हें शृंगार करना है। अतः हे भारतीय वीरो ! तुम युद्धभूमि में नीच शत्रुसेना के पाँव उखाड़ दो। दुनिया के इतिहास ग्रंथ से इनका नामोनिशान मिटा दो। यदि शत्रु घर में घुस आया है तुम उसको पकड़ कर पछाड़ दो फिर उन शत्रुओं की कब्र खोद कर एक साथ ही सबको जिन्दा गाड़ दो। हमें देश के सम्मान और रक्षा के लिए तैयार रहना चाहिए। युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं के रक्त से धरती को लाल कर देना है जिससे वे फिर कभी इधर मुड़कर भी नहीं देखे।

विशेष :

  1. वह समय आ गया है जब हमें अपने दुश्मनों को उसके बार-बार उठने को समाप्त करना है जिससे हम भारतमाता के सम्मान की रक्षा कर पाएं।
  2. भाषा सरल एवं प्रवाहमय है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरे का उचित प्रयोग है।
  5. तत्सम प्रधान शब्दावली है।
  6. वीर रस है।
  7. ओज गुण है।
  8. संगीतात्मकता का गुण है। शैली भावपूर्ण है।

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3. तुम पर्वत जैसे तन जाओ,
बंदा बैरागी बन जाओ,
ऐ सिंहो, गुरु गोविंद सिंह की, फिर धारण तलवार करो,
प्राचीन सप्त-सिन्धु प्रदेश पर, फिर अपना अधिकार करो।
अब माँ की बलिवेदी पर, सिर धरने का अवसर आया है,
फिर काली का खाली खप्पर, भरने का अवसर आया है,
कल तक जो कहते थे, वह करने का अवसर आया है,
जीते थे अब तक जहाँ, वहीं मरने का अवसर आया है !
कह दो जग से, हम मुश्किल को, आसान बना कर छोड़ेंगे,
है युद्ध अगर अभिशाप, उसे वरदान बना कर छोड़ेंगे,
हमला करने वालों को, लहू-लुहान बना कर छोड़ेंगे,
हम तो दुश्मन की धरती को, शमशान बना कर छोड़ेंगे।

कठिन शब्दों के अर्थ :
सप्तसिन्धु प्रदेश = भारत-सिंध, रावी, सतलुज, झेलम, गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के कारण ही भारत को सप्तसिंधु वाला देश कहा जाता था।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री उदयभानु हंस जी द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों को बंदा वैरागी जैसे बनने का संकेत दिया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि हे भारतवासियो ! तुम शत्रु के आक्रमण के सामने पहाड़ बन कर खड़े हो जाओ और बन्दा बैरागी बन जाओ। जिस प्रकार बंदा वैरागी दुश्मन की सेनाओं के लिए अडिग दीवार था हमें भी उनके जैसा बनना है। हे भारतवासी सिंहो, तुम फिर से गुरु गोबिन्द सिंह की तलवार धारण करो, जिस तलवार से उन्होंने आतताइयों का विनाश किया था। प्राचीन समय में सप्तसिन्धु कहे जाने वाले देश पर फिर से अपना अधिकार करो।

क्योंकि अंग्रेजों की कूटनीति के कारण सिंध नदी को भारत से अलग कर पाकिस्तान बना दिया गया है। अतः भारत माता के लिए बलिदान देने का अवसर आया है और फिर से काली देवी के खप्पर को अपने लहू से भरने का अवसर आया है। कल तो जो हम कहते थे कि देश की, भारत माँ की रक्षा करेंगे अब इस कथन को पूरा करने का अवसर आया है। जिस देश में हम जी रहे थे उस देश के लिए मरने का अब अवसर आया है अर्थात् आज वह समय आ गया है जब हम यह दिखा सकते हैं कि हम गुरु गोबिन्द सिंह जी की तलवार को धारण करने वाले हैं आज कथनी का नहीं करनी का अवसर आया है इसे हमें खोना नहीं है अपितु कुछ कर दिखाना है।

हे भारतवासियो! आज संसार से कह दो कि हम मुश्किल को आसान बनाकर छोड़ेंगे। युद्ध यदि अभिशाप है तो हम इसे वरदान बनाकर छोड़ेंगे। आक्रमण करने वाले सैनिकों को हम लहूलुहान कर देंगे। हम तो शत्रु की धरती को श्मशान बनाकर छोड़ेंगे। युद्ध को अभिशाप माना जाता है परन्तु अपनी रक्षा और सम्मान के लिए कभी-कभी युद्ध वरदान बन जाते हैं। आक्रमणकारियों को उसका जवाब रणक्षेत्र में देने का समय आ गया और उन्हें समाप्त करके इस धरती को उनके लहू से साफ करना है।

विशेष :

  1. भारतवासियों को बंदा बैरागी के समान बहादुर बनकर दुश्मनों के समक्ष पर्वत की तरह मजबूती से खड़ा रहना है।
  2. भाषा सरल एवं प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
  4. उदाहरण एवं अनुप्रास अलंकार है।
  5. ओज गुण है एवं वीर गुण है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है।
  7. भावपूर्ण शैली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के

4. हम प्यार बुद्ध से करते हैं,
पर नहीं युद्ध से डरते हैं !
है नीति यही, जो मित्र बने, तुम उसे हृदय से प्यार करो,
निर्लज्ज शत्रु जब चढ़ आए, उसका समूल संहार करो।
अब सावधान, फिर शत्रु आक्रमण कभी न दुहराने पाए,
केसर की हँसती फुलवारी पर आग न बरसाने पाए।
भारत की आज़ादी पर, कोई आँच नहीं आने पाए,
सीमाओं पर जो लहू बहा, वह व्यर्थ नहीं जाने पाए।

कठिन शब्दों के अर्थ :
निर्लज्ज =बेशर्म, ढीठ। समूल = जड़ सहित, पूरा। संहार = विनाश।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘श्री उदयभानु हंस’ द्वारा लिखित कविता ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने भारतवासियों को बुद्ध की सन्तान कहा है जो अहिंसा से प्यार करते हैं परन्तु समय आने पर युद्ध के लिए भी तैयार हैं।

व्याख्या :
कवि भारत की नीति की चर्चा करते हुए कहते हैं कि हम भगवान् बुद्ध से प्यार करने वाले हैं अर्थात् हम अहिंसावादी हैं परन्तु यदि युद्ध हम पर थोपा जाए तो हम युद्ध से भी नहीं डरते हैं। हमारी तो यह नीति रही है कि जो हमारा मित्र है उससे हम हृदय से प्यार करते हैं किंतु यदि बेशर्म शत्रु हमारे देश पर चढ़ाई कर दे, आक्रमण कर दे तो हे भारतवासियो! उस शत्रु का पूरी तरह से विनाश कर दे। अब तुम्हें इस बात के लिए भी सावधान हो जाना है कि शत्रु दोबारा आक्रमण करने का साहस न कर सके। हमारी केसर की क्यारी जैसे सुंदर देश पर आग न बरसाने पाये। केसर की क्यारी से कवि का संकेत कश्मीर से है क्योंकि कश्मीर में ही केसर की खेती होती है।

हे भारतवासियो! तुम्हें कुछ ऐसा करना है कि भारत की आजादी पर आँच न आने पाये। सीमाओं पर हमारे सैनिकों ने जो लहू बहाया है वह व्यर्थ न जाने पाए। हमें दुश्मन को अपनी ताकत दिखानी है सभी आपसी भेदभाव भुलाकर एकता के साथ दुश्मन का सामना करना है, उसे उसकी सीमाएं दिखानी हैं।

विशेष :

  1. भारतवासियों को बुद्ध से अहिंसा का संदेश मिला है परन्तु जब कोई बाहरी व्यक्ति देश की अखण्डता को नष्ट करने का प्रयास करता है तो उसे सबक सिखाने के लिए युद्ध के लिए भी तैयार रहना है।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली की अधिकता है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. ओजगुण है एवं वीर रस है।
  6. गेयता का गुण विद्यमान है, शैली प्रभावशाली है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 10 ऐ वीरो, भारतवर्ष के

5. करना है पूर्ण प्रबंध तुम्हें,
भारत, माँ की सौगंध तुम्हें,
हिंसा की ज्वाला में जलती पृथ्वी का हलका भार करो,
आज़ाद, भगत, वल्लभ, सुभाष का चिर सपना साकार करो।

कठिन शब्दों के अर्थ :
आज़ाद = चन्द्रशेखर आज़ाद। वल्लभ = सरदार वल्लभ भाई पटेल।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश ‘श्री उदयभानु हंस’ द्वारा लिखित ‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने उन क्रान्तिकारियों के सपने साकार करने को कहा जिन्होंने देश की आजादी में अपने प्राण दे दिए।

व्याख्या :
कवि कहता है कि हमें भारत माँ की सौगन्ध है। हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सारे प्रबन्ध करने होंगे हमें हिंसा की आग में जलती हुई इस धरती के भार को हलका करना होगा। हमें चन्द्रशेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के चिरकाल से देखे सपने को साकार करना होगा और अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी। हमें प्रत्येक उस वीर का सपना पूरा करना है जिन्होंने इस देश को आजाद करवाने के लिए अपनी जान दे दी।

विशेष :

  1. अपने देश को हिंसा मुक्त बनाकर हर वीर पुरुष का सपना पूरा करना है।
  2. भाषा सरल एवं स्वाभाविक है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. वीर रस है।
  6. ओजगुण है।
  7. शैली प्रभावशाली है।

ऐ वीरो, भारतवर्ष के Summary

ऐ वीरो, भारतवर्ष के जीवन-परिचय

हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवियों में श्री हंस रुबाइयों के सफल प्रयोग के लिए प्रसिद्ध हैं। उदयभानु ‘हंस’ का जन्म सन् 1930 ई० में हुआ था। हिन्दी रुबाइयाँ, धड़कन, सरगम, संत-सिपाही नामक काव्य संग्रह के प्रणेता हंस जी को हरियाणा के राज्य कवि का श्रेय प्राप्त है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इन्हें ‘संत-सिपाही’ पर निराला पुरस्कार से सम्मान दिया है। श्री हंस ने बिहारी की काव्य कला, निबन्ध रत्नाकार, हिन्दी के प्रमुख कलाकार, साहित्य-परिचय प्रभूतिगद्य जैसी रचनाओं द्वारा हिन्दी साहित्य की सेवा की है।

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ऐ वीरो, भारतवर्ष के कविता का सार

‘ऐ वीरो, भारतवर्ष के’ कविता के रचयिता श्री उदयभानु हँस हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने भारतवासियों से आह्वान किया है कि अब समय आ गया है कि हमें अपने देश पर आक्रमण करने वालों को मुँह तोड़ जवाब देना चाहिए। हमें दुश्मन के खून से अपनी मातृभूमि का श्रृंगार करना है। उनके सामने हमें गुरु गोबिन्द सिंह जी और बंदा बैरागी की तरह अडिग बनकर खड़ा होना चाहिए। हम यह जानते हैं कि युद्ध करना अच्छी बात नहीं है परन्तु जब सामने वाला प्यार की बात नहीं समझता तो उसे ताकत की भाषा से ऐसा जवाब देना चाहिए कि वह आगे से आंख उठाकर हमारे देश की ओर नहीं देख सकेगा। हमें अपने उन वीर सपूतों की कुर्बानियाँ तथा उनके सपनों को याद रखना चाहिए जिन्होंने देश को आजाद करवाने में अपनी जान दे दी। हमें दुश्मनों को समाप्त करके उनके सपने पूरे करने हैं।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 9 मानव

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Chapter 9 मानव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Hindi Chapter 9 मानव

Hindi Guide for Class 11 PSEB मानव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मानव कविता में दिनकर जी ने ईश्वर से क्या प्रार्थना की है ?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में दिनकर जी ने ईश्वर से प्रार्थना की है कि मनुष्य में अधर्म और शत्रुता की भावना का अन्त हो जाए और धर्म और दया का दीपक जल उठे। वह इस ब्रह्माण्ड में परमात्मा की सर्वश्रेष्ठ कृति है पर उसमें अनेक प्रकार के अवगुण मिल चुके हैं। वह अपने श्रेष्ठ गुणों को भूल चुका है। वह संहारक भावों की अधिकता के कारण संसार को नाश की ओर धकेल रहा है। वह पाखंड और वासना का गुलाम बन चुका है। उसके हृदय में सद्भाव उत्पन्न हों जिससे यह संसार फिर सुख प्राप्त कर सके।

प्रश्न 2.
कवि के अनुसार आज मानव उन्नति के किस शिखर पर पहुँच चुका है ?
उत्तर:
विज्ञान की सहायता से आज मनुष्य ने धरती और आकाश के बीच जो कुछ है उस पर विजय पा ली है। आज मानव उन्नति यहाँ तक पहुँच चुकी है कि उसने प्रकृति के सब रहस्यों पर भी विजय पा ली है। मानव अपने गुणों के कारण ज्ञान-विज्ञान के आलोक शिखर का स्पर्श कर चुका है। इसी अभिमान के कारण वह वासना का गुलाम बन गया है। मानव, मानव का शत्रु बन कर एक -दूसरे का संहार कर देना चाहता है। मानव की उन्नति प्रेम सौहार्द के आधार पर टिकी हुई नहीं है। इसलिए यह भयावह और हानिकारक दिशा की ओर बढ़ रही है।

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प्रश्न 3.
कवि ने मानव को मानवता का घोर अपमान क्यों कहा है ?
उत्तर:
कवि के अनुसार आज का मानव भाग्य का दास बन कर रह गया है। वह मानवता का अपमान इसलिए बन गया है कि आज के मानव में से आपसी प्रेम-प्यार और भाई-चारे की भावना समाप्त हो चुकी है। आज का मानव अपने वैज्ञानिक विकास के कारण प्रकृति के रहस्यों को तो जान गया है पर मानव मन में छिपे प्रेम और कोमलता के भावों को भुला बैठा है। मानव, मानव का दुश्मन बन चुका है। इसलिए कवि ने आज मानव को मानवता का घोर अपमान कहा है।

प्रश्न 4.
कवि के अनुसार मानव का श्रेय किस में निहित है ?
उत्तर:
कवि के अनुसार मानव का श्रेय मानवीय संवेदना, आपसी प्रेम-प्यार, मैत्री और अहिंसा में है। मानव ही मानव का सहायक बनकर प्राणी मात्र के समुचित विकास में सहयोगी बन सकता है। कलह, क्लेश, घृणा, द्वेष, लड़ाईझगड़े तो केवल मानव के लिए अहितकर ही सिद्ध होंगे। इससे केवल मानव और मानवता का हो, अहित नहीं होता अपितु, विश्व के प्रत्येक जीव का अहित होता है। मानव का श्रेय इसी में है कि वह मिलजुल कर कार्य करें और एकदूसरे के हितकर बनकर मानवतावाद की स्थापना करें।

प्रश्न 5.
‘मानव’ कविता का केन्द्रीय भाव लिखें।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने विश्व में सुख-शांति लाने के लिए मानवीय संवेदना, आपसी प्रेम-प्यार और भाईचारे को बढ़ावा देने की बात कही है। मानव ने चाहे विज्ञान के क्षेत्र में अपार उन्नति कर ली है, प्रकृति के रहस्यों को समझ लिया है, धरती आकाश-पाताल को जान गया है। मानव स्वयं इस संसार का दुश्मन बन बैठा है। वह संहार, वासना, पाखंड, धोखा, भ्रष्टाचार, छल और कपट का पर्यायवाची बन गया है। मानव का वास्तविक विकास तो तभी होगा जब वह प्रेमभाव से सभी मानवों को अपनाएगा। उसे अधर्म और शत्रुता का अन्त करना चाहिए।

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PSEB 11th Class Hindi Guide मानव Important Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘दिनकर’ का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’।

प्रश्न 2.
दिनकर का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
दिनकर का जन्म 30 सितंबर, सन् 1908 ई० में बिहार राज्य के सिमरिया नामक गाँव में हुआ था।

प्रश्न 3.
दिनकर ने किन माता-पिता के घर जन्म लिया था ?
उत्तर:
दिनकर ने कृषक पिता श्री रवि सिंह और माता मनरूप देवी के घर जन्म लिया था।

प्रश्न 4.
दिनकर तब कितने वर्ष के थे जब इनके पिता का देहांत हो गया था ?
उत्तर:
केवल एक वर्ष के।

प्रश्न 5.
दिनकर की पढ़ाई-लिखाई में किस ने सहायता की थी ?
उत्तर:
दिनकर का विवाह किशोरावस्था में हो गया था और उनकी पत्नी ने इन्हें पढ़ने लिखने में सहायता दी थी।

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प्रश्न 6.
दिनकर की प्राथमिक शिक्षा कहाँ हुई थी ?
उत्तर:
गाँव में।

प्रश्न 7.
किस कारण दिनकर को गाँव से तीन-चार मील दूर शिक्षा प्राप्ति के लिए जाना पड़ा था ?
उत्तर:
असहयोग आंदोलन छिड़ जाने के बाद इन्हें बारो नामक गाँव में राष्ट्रीय पाठशाला में शिक्षा प्राप्ति के लिए जाना पड़ा था।

प्रश्न 8.
जिस स्कूल से उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की उस का खर्च किस से चलता था ?
उत्तर:
उस पाठशाला का व्यय भिक्षाटन से चलता था।

प्रश्न 9.
दिनकर ने मैट्रिक की परीक्षा कब और कहाँ से पूरी की थी ?
उत्तर:
दिनकर ने मोकामाघाट के स्कूल में सन् 1928 ई० में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी।

प्रश्न 10.
दिनकर की प्रारंभिक कविताएं किस पत्रिका में किस नाम से छपने लगी थी ?
उत्तर:
रामवृक्ष वेनीपुरी की पत्रिका ‘युवक’ में इनकी कविताएँ ‘अमिताम’ नाम से छपने लगी थी।

प्रश्न 11.
दिनकर ने किस कॉलेज में हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया था ?
उत्तर:
मुज़फ्फरपुर के पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में।

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प्रश्न 12.
दिनकर ने किस विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद पर कार्य किया था ?
उत्तर:
भागलपुर विश्वविद्यालय ।

प्रश्न 13.
साहित्य अकादमी पुरस्कार की प्राप्ति इन्होंने किस रचना पर प्राप्त किया था ?
उत्तर:
संस्कृति के चार अध्याय।

प्रश्न 14.
दिनकर ने मानव को संसार का किस प्रकार का प्राणी बताया है ?
उत्तर:
सर्वश्रेष्ठ प्राणी।

प्रश्न 15.
दिनकर के अनुसार कौन-सा जीव संसार में ज्ञान का खजाना है ?
उत्तर:
मानव।

प्रश्न 16.
कवि ने किन दीपकों के जलने की बात कही है ?
उत्तर:
धर्म और दया रूपी दीपक।

प्रश्न 17.
धरती से युद्ध के भय तथा …………… का अंत होगा ।
उत्तर:
निराशा।

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प्रश्न 18.
कवि ने किसके माध्यम से बुद्धिवादी मानव के कुकृत्यों पर प्रकाश डाला है ?
उत्तर:
युधिष्ठिर।

प्रश्न 19.
सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी कौन है ?
उत्तर:
मानव।

प्रश्न 20.
‘मानव’ कविता के रचनाकार कौन हैं ?
उत्तर:
रामधारी सिंह ‘दिनकर’।

प्रश्न 21.
कवि ने समाज में ……… व्यवस्था का समर्थन किया है ।
उत्तर:
समान।

प्रश्न 22.
सच्चा मानव कौन है ?
उत्तर:
जो अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करता है।

बहुविकल्पी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
रामधारी सिंह दिनकर किस चेतना के कवि थे ?
(क) राष्ट्रीय
(ख) अंतराष्ट्रीय
(ग) भारतीय
(घ) प्रयोगवादी।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय

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प्रश्न 2.
रामधारी सिंह दिनकर को भारत सरकार ने किससे अलंकृत किया ?
(क) पद्मभूषण
(ख) पद्मविभूषण
(ग) पद्म श्री
(घ) पद्मानय।
उत्तर:
(क) पद्मभूषण

प्रश्न 3.
‘मानव’ कविता कवि के किस खंड काव्य से संकलित है ?
(क) रेणुका
(ख) हुंकार
(ग) कुरुक्षेत्र
(घ) उर्वशी।
उत्तर:
(ग) कुरुक्षेत्र

प्रश्न 4.
सच्चा मानव किस पर विजय प्राप्त करता है ? ।
(क) गुणों पर
(ख) दुर्गुणों पर
(ग) सगुणों पर
(घ) निर्गुण पर।
उत्तर:
(ख) दुर्गुणों पर।

मानव सप्रसंग व्याख्या

1. धर्म का दीपक दया का दीप
कब जलेगा, कब जलेगा, विश्व में भगवान् ?
कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त-
हो, सरस होंगे जली-सूखी रसा के प्राण ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
अभिषिक्त = परिपूर्ण। सरस = हरे भरे। रसा = धरती, पृथ्वी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित शीर्षक मानव से लिया गया है। इसमें कवि ने विश्व में सुख शांति लाने के लिए मानवता का संदेश दिया है।

व्याख्या :
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि हे भगवान् ! इस विश्व में कब धर्म और दया के दीपक जल-जलकर प्रकाश करेंगे। संसार में कब धर्म और दया का प्रसार होगा ? और कब अत्यन्त कोमल आशा के प्रकाश से परिपूर्ण होकर निराशा और संघर्ष से जली और सूखी धरती सुखी होगी। कब इस धरती से युद्ध के भय और निराशा का अन्त होगा?

विशेष :

  1. कवि ईश्वर से विश्वशान्ति स्थापित करने की प्रार्थना कर रहा है।
  2. शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग है।
  3. तत्सम शब्दों का प्रयोग है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. ओजगुण है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 9 मानव

2. यह मनुज ब्रह्माण्ड का सब से सुरम्य प्रकाश,
कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश।
यह मनुष्य जिसकी शिखा उद्दाम।
कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम।
यह मनुज जो सृष्टि का श्रृंगार।
ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।

कठिन शब्दों के अर्थ :
मनुज = मनुष्य। ब्रह्माण्ड = सृष्टि। सुरम्य = सुन्दर। शिखा = ज्योति, लौ। उदाम = प्रबल। आलोक = प्रकाश। आगार = भंडार, खज़ाना।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश डॉ० रामधारी सिंह दिनकर जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित काव्यांश से लिया गया है। इसमें कवि ने मानव को सृष्टि की श्रेष्ठ रचना बताया है

व्याख्या :
कवि कहता है कि मनुष्य जो इस सृष्टि का सब से सुन्दर प्रकाश एवं प्राणी है। उससे पृथ्वी और आकाश अपना कोई भी रहस्य नहीं छिपा सकते। यहीं वह मनुष्य जिसके तेज़ का प्रकाश बड़ा प्रबल है, जिसे सारी जड़-चेतन प्रकृति भक्तिपूर्वक प्रणाम करती है। सारे जड़-चेतन मनुष्य की सत्ता को स्वीकार करते हैं। यह मनुष्य सृष्टि का श्रृंगार है। सृष्टि की सुन्दरतम रचना है, इससे सृष्टि की शोभा बढ़ती है। यह मनुष्य ज्ञान, विज्ञान तथा प्रकाश का भंडार है । मनुष्य अपने कर्मों से सृष्टि की शोभा को बढ़ाता है।

विशेष :

  1. कवि कहना चाहता है कि मनुष्य सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। उसे ज्ञान भण्डार की कमी नहीं है फिर भी वह बुरे कर्मों की ओर आकर्षित है।
  2. भाषा सशक्त, प्रभावशाली तथा प्रवाहमय है।
  3. शुद्ध खड़ी बोली का प्रयोग है।
  4. तत्सम शब्दावली है।
  5. अनुप्रास अलंकार है।
  6. ओजगुण है।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 9 मानव

3. वह मनुज, जो ज्ञान का आगार।
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार।
नाम सुन भूलो नहीं, सोचो-विचारो कृत्य।
यह मनुज, संहार सेवी, वासना का भृत्य।
छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इस का ज्ञान।
यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान।

कठिन शब्दों के अर्थ :
आगार = भण्डार। कृत्य = कार्य। संहार सेवी = विध्वंस को प्यार करने वाला, हिंसावादी। भृत्य = नौकर, दास। छद्म = छल-कपट।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के द्वारा रचित खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग से अवतरित किया गया है। कवि ने इस धरती पर विज्ञान के विकास और अनेक प्रकार के लाभों को प्राप्त करने के बाद भी मानव के स्वार्थी-भावों के समाप्त न होने पर दुःख व्यक्त किया है और शोषण की समाप्ति की कामना की है।

व्याख्या :
यह मनुष्य जो ज्ञान का आगार है, खज़ाना है, जो संसार का भूषण है, उसका नाम सुनकर ही भूल में न पड़ जाना। तुम्हें उसके कार्यों पर अच्छी तरह विचार कर लेना चाहिए। यह तो विनाश की उपासना करता है। यह विषय-वासनाओं का दास है। इस की कल्पनाएँ, आशाएं और ज्ञान सब धोखा है, दिखावा मात्र है। यह मनुष्य से मनुष्यता का सब से बड़ा अपमान है। यह मानवता का कलंक है।

विशेष :

  1. कवि ने युधिष्ठिर के माध्यम से बुद्धिवादी मानव के कुकृत्यों पर प्रकाश डाला है।
  2. कवि ने द्वापर युग का मानवीकरण किया है।
  3. ओज गुण की प्रधानता है।
  4. तत्सम और तद्भव शब्दावली का मिला-जुला प्रयोग किया गया है।

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4. व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय,
पर, न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।
श्रेय उसका, बुद्धि पर चैतन्य उर की जीत,
श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत,
एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान,
तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वही विद्वान,
और मानव भी वही।

कठिन शब्दों के अर्थ :
व्योम = आकाश। ज्ञेय = जान लेना, मालूम कर लेना, जिसे जान लिया गया है। श्रेय = महत्ता। चैतन्य = सजग, चेतना से युक्त। उर = हृदय। असीमित = असंख्य। प्रीत = प्रेम। व्यवधान = दूरी।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश रामधारी सिंह दिनकर जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित ‘मानव’ शीर्षक से लिया गया है।

व्याख्या :
कवि सच्चा मानव कौन हो सकता है ? इस प्रश्न का उत्तर देता हुआ कहता है कि यह सच है कि आकाश से लेकर पाताल तक मनुष्य ने अपनी बुद्धि-शक्ति से सब कुछ जान लिया है, परन्तु यह न तो मनुष्य का वास्तविक परिचय है और न इसमें उसकी महत्ता है। मनुष्य की महत्ता इसी में है कि वह अपनी बुद्धि की दासता से मुक्त हो और उसके सजग हृदय का उसकी बुद्धि पर आधिपत्य हो। वह बुद्धिवादी न होकर मनःवादी होकर असंख्य मनुष्यों के प्रति अपने प्रेम का सच्चा प्रदर्शन करे। वही मनुष्य ज्ञानी है, विद्वान् है और सच्चे अर्थों में मानव है जो एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के बीच बनी दूरी को मिटा दे तथा पारस्परिक भेदभाव वैर भाव को नष्टकर उन्हें एकता और भाईचारे के सूत्र में बांध दें।

विशेष :

  1. सच्चा मानव वह है जो अपने दुर्गुणों पर विजय प्राप्त करके भाईचारे तथा सत्संगति का प्रचार करें।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. शैली भावात्मक है।

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5. साम्य की वह रश्मि, स्निग्ध, उदार
कब खिलेगी, कब खिलेगी, विश्व में भगवान् ?
कब सुकोमल ज्योति से अभिषिक्त
हो सरस होंगे जली-सूखी रसा के प्राण ?

कठिन शब्दों के अर्थ :
साम्य = समानता। रश्मि = किरण। स्निग्ध = स्नेहभरा। अभिषिक्त = परिपूर्ण। रसा = धरती।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश श्री रामधारी सिंह दिनकर जी के खंडकाव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग में संकलित ‘मानव’ शीर्षक काव्यांश से लिया गया है। कवि ईश्वर से जानना चाहता है कि इस धरती पर सुख-समृद्धि और शान्ति का युग कब आएगा।

व्याख्या :
कवि ईश्वर से प्रार्थना करता हुआ कहता है कि समानता से धरती पर वास्तव में सुख और समृद्धि की वर्षा कब होगी ? हे भगवान् ! वह समानता की प्रेम भरी और उदार किरण विश्व में कब उतरेगी और कब उसके कोमल प्रकाश से भीगकर जली-सूखी धरती के प्राण हरे होंगे? दुःखों से सताई हुई धरती के निवासी कब वास्तविक और अपार आनंद में मग्न होंगे?

विशेष :

  1. कवि ने समाज में समान व्यवस्था का समर्थन किया है।
  2. भाषा प्रभावशाली है।
  3. तत्सम शब्दावली है।
  4. अनुप्रास अलंकार है।
  5. शैली भावपूर्ण है।

मानव Summary

मानव जीवन-परिचय

राष्ट्रीय चेतना के क्रान्तिकारी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म सन् 1908 ई० में मुंगेर जिले के सिमरिया में हुआ। इनके पिता एक साधारण किसान थे। उन्होंने अपनी प्रतिभा के विकास के लिए निरन्तर संघर्ष किया। अपने परिश्रम तथा अध्यवसाय द्वारा उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया। बाद में उन्होंने भागलपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद को सुशोभित किया। सन् 1952 में उन्हें राज्य-सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया। ___ इनकी काव्य-रचनाओं में ‘रेणुका’, ‘रसवंती’, ‘द्वन्द्वगीत’, ‘हुंकार’, ‘धूपछांव’, ‘सामधेनी’, ‘इतिहास के आंस’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘रश्मि-रथ’, ‘उर्वशी’ आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। ‘उर्वशी’ के लिए इन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया।

PSEB 11th Class Hindi Solutions Chapter 9 मानव

मानव कविता का सार

‘मानव’ शीर्षक कविता ‘दिनकर’ जी के प्रसिद्ध खंड काव्य ‘कुरुक्षेत्र’ के छठे सर्ग से ली गई है। कवि ने मनुष्य को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना कहा है। मनुष्य को धरती, पाताल और आकाश की सब सूचना है। उसने ज्ञान और विज्ञान में अपार सफलता प्राप्त की है। इसीलिए मानव को सृष्टि का श्रृंगार कहा गया है परन्तु मानव का दूसरा पक्ष यह भी है कि वह संहार, वासना, पाखंड और छल-कपट की मूर्ति भी है। उसने धरती और आकाश की दूरी को माप कर दोनों को पास लाकर खड़ा कर दिया है परन्तु एक मनुष्य की दूसरे मनुष्य से दूरी अब भी बनी हुई है। मानव इस दूरी को दूर करने में सफल नहीं हो पाया है। कवि का कहना है कि केवल ज्ञान-विज्ञान के आधार पर ही मानव को ज्ञानी नहीं मानता। मानव तभी ज्ञानी हो सकता है जब वह दूसरे मानव से प्यार करना और भाइचारे से रहना सीख जाएगा। कवि ईश्वर से पूछता है कि मानव अधर्म और शत्रुता की भावना से कब बाहर आएगा और दया-धर्म का दीपक जलाएगा।