PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

PSEB 11th Class Geography Guide भूचाल या भूकंप Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भूचाल (भूकंप) क्या होते हैं ?
उत्तर-
धरती पर अचानक झटकों को भूचाल (भूकंप) कहते हैं।

प्रश्न 2.
हाईपोसैंटर क्या होता है ?
उत्तर-
भूचाल के केंद्र को हाईपोसैंटर कहते हैं।

प्रश्न 3.
अधिकेंद्र या ऐपीसैंटर क्या होता है ?
उत्तर-
धरती के ऊपर जिस स्थान पर भूचाल पैदा होता है, उसे अधिकेंद्र या एपीसैंटर कहते हैं।

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प्रश्न 4.
फोकस और अधिकेंद्र क्या होते हैं ? इनके चित्र भी बनाएँ।
उत्तर-
भूचाल जिस स्थान से आरंभ होता है, उसे फोकस कहते हैं। धरातल के जिस स्थान पर सबसे पहले भूचाल अनुभव होता है, उसे अधिकेंद्र कहते हैं।
(नोट-चित्र के लिए देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के लघूत्तरात्मक प्रश्न)

प्रश्न 5.
भूचाल मापने वाले यंत्र को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
सिस्मोग्राफ।

प्रश्न 6.
भूचाल आने के कारणों को विस्तार से लिखें।
उत्तर-
(उत्तर के लिए देखें-अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के लघूत्तरात्मक प्रश्न-1)

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प्रश्न 7.
प्लेट टैक्टॉनिक का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी का क्रस्ट कई प्लेटों में बँटा हुआ है। ये प्लेटें खिसकती रहती हैं। इन्हें प्लेट टैक्टॉनिक कहते हैं।

प्रश्न 8.
मानवीय कारण भूचाल के लिए कैसे ज़िम्मेदार हैं ?
उत्तर-
खानों को गहरा करने, डैम, सड़कों और रेल पटरियों को बिछाने के लिए ऐटमी धमाके करने से भूचाल आते हैं।

प्रश्न 9.
भूचाल की तीव्रता क्या होती है? भूचाल की तीव्रता कैसे मापी जाती है ?
उत्तर-
भूचाल की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर पैमाने का प्रयोग किया जाता है। भूचाल की तीव्रता उसमें पैदा हुई शक्ति को कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
अग्नि-चक्र क्या है ?
उत्तर-
प्रशांत महासागर के इर्द-गिर्द ज्वालामुखियों की श्रृंखला को अग्नि-चक्र कहते हैं।

प्रश्न 11.
भूचालों के विश्व-विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
(उत्तर के लिए देखें-अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में निबंधात्मक प्रश्न सं.-2)

प्रश्न 12.
भारत में भूचाल क्षेत्रों के बारे में लिखें।
उत्तर-
भारत में प्रायद्वीप पठार स्थित खंड भूचाल रहित होते हैं। अधिकतर भूचाल हिमालय पर्वत, गंगा के मैदान और पश्चिमी तट पर आते हैं।

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प्रश्न 13.
सुनामी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सागर तल पर आए भूचाल (भूकंप) के कारण उत्पन्न हुई विशाल लहरों को सुनामी कहा जाता है।

प्रश्न 14.
क्या भूचालों की भविष्यवाणी की जा सकती है ?
उत्तर-
भूचालों की भविष्यवाणी करना भूचाल वैज्ञानिकों के लिए बहुत मुश्किल काम है या यह कह लीजिए कि लगभग असंभव है। केवल आम भूचालों से ग्रस्त क्षेत्र और धरती की पपड़ी पर प्लेट टैक्टॉनिक का नक्शा और प्लेट सीमा का गहन अध्ययन भूचालों के बारे में अनुमान लगाना आसान कर सकता है।

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Geography Guide for Class 11 PSEB भूचाल या भूकंप Important Questions and Answers

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भूचाल आने के कारणों को विस्तार से लिखें।
उत्तर-
भूचाल के कारण (Causes of Earthquakes)-प्राचीन काल में लोग भूचाल को भगवान का क्रोध मानते थे। धार्मिक विचारों के अनुसार, जब मानवीय पाप बढ़ जाते हैं, तो पापों के भार से धरती काँप उठती है। परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार भूचाल के नीचे लिखे कारण हैं-

1. ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)–ज्वालामुखी विस्फोट से आस-पास के क्षेत्र काँप उठते हैं और हिलने लगते हैं। अधिक विस्फोटक शक्ति के कारण खतरनाक भूचाल आते हैं। 1883 ई० में काराकटोआ विस्फोट से पैदा हुए भूचाल का प्रभाव ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका तक अनुभव किया गया था।

2. दरारें (Faults)-धरती की हलचल के कारण धरातल पर खिंचाव या दबाव के कारण दरारें पड़ जाती हैं। इन्हीं के सहारे भू-भाग ऊपर या नीचे की ओर सरक जाते हैं और जिससे भूचाल पैदा होते हैं। 1923 में कैलीफोर्निया का भयानक भूचाल ‘सेन ऐंडरीयास-दरार’ (San Andreas Faults) के कारण हुआ था। 11 दिसंबर, 1927 में कोयना (महाराष्ट्र) का भूचाल भी इसी कारण आया था।

3. धरती का सिकुड़ना (Contraction of Earth)-धरती अपनी मूल अवस्था में गर्म थी, परंतु अब धीरे धीरे यह ठंडी हो रही है। तापमान कम होने से धरती सिकुड़ती है और चट्टानों में हलचल होती है।

4. गैसों का फैलना (Expansion of Gases)-धरती के भीतरी भाग से गैसें और भाप बाहर आने का यत्न करती हैं। इनके दबाव से भूचाल आते हैं।

5. चट्टानों की लचक शक्ति (Elasticity of Rocks)-जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है, तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है, इससे भू-भाग हिल जाते हैं। .

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भूचाल के अलग-अलग प्रकार बताएँ। भूचाली लहरों का वर्णन करें।
उत्तर-
भूचाल के प्रकार (Types of Earthquakes) –
भूचाल के पैदा होने के कई कारण होते हैं-
गहराई के आधार पर भूचाल के प्रकार (Types of Earthquakes according to Depth)-प्रसिद्ध वैज्ञानिकों गुटनबर्ग (Gutenberg) और रिचर (Ritchter) ने गहराई के आधार पर भूचालों को तीन वर्गों में बाँटा है।

जिन भूचालों की लहरें (Shock) 50 किलोमीटर या इससे कम गहराई पर उत्पन्न होती हैं, उन्हें साधारण भूचाल (Normal Earthquakes) कहते हैं। जब लहरें 70 से 250 किलोमीटर की गहराई से उत्पन्न होती हैं, तो इन्हें मध्यवर्ती भूचाल (Intermediate Earthquakes) कहते हैं। जब लहरों की उत्पत्ति 250 से 700 किलोमीटर की गहराई के बीच होती है तो इन्हें गहरे केंद्रीय भूचाल (Deep Focus earthquakes) कहते हैं।

भूमि-कंपन लहरें (Earthquake Waves) –
भूचाल संबंधी ज्ञान को भूचाल विज्ञान (Semology) कहते हैं। भूचाल की तीव्रता और उत्पत्ति-स्थान की तीव्रता पता करने के लिए भूचाल मापक-यंत्र (Seismograph) की खोज हुई है। इस यंत्र में लगी एक सूई द्वारा ग्राफ पेपर के ऊपर भूचाल के साथ-साथ ऊँची-नीची (लहरों के रूप में) रेखाएँ बनती रहती हैं। जिस स्थान-बिंदु से भूचाल आरंभ होता है, उसे भूचाल उत्पत्ति केंद्र (Seismic Focus) कहते हैं। भू-तल पर जिस स्थान-बिंदु पर भूचाल का अनुभव सबसे पहले होता है, उसे अधिकेंद्र (Epicentre) कहते हैं। यह भूचाल उत्पत्ति केंद्र के ठीक ऊपर से आरंभ होता है। भूचाल लहरें (Earthquake Waves) उत्पत्ति केंद्र में उत्पन्न होकर शैलों में कंपन करती हुई सबसे पहले अधिकेंद्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्र में पहुँचती हैं। परंतु भूचाल का सबसे अधिक प्रभाव अधिकेंद्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्र पर पड़ता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 1

भूचाली लहरों को रेखाओं में लिया जाता है, जोकि अक्सर अंडे के आकार (Elliptical) की होती हैं। इन्हें भूचाल उत्पत्ति रेखाएँ (Homoseismal lines) कहा जाता है। ऐसे स्थानों को, जिन्हें एक जैसी लहरों के पहुँचने के कारण एक जैसी हानि हुई हो, तो मानचित्र पर रेखाओं द्वारा मिला दिया जाता है। इन रेखाओं को सम-भूचाल रेखाएँ (Isoseismal lines) कहते हैं।

भूचाल लहरें-उत्पत्ति केंद्र से उत्पन्न होने वाली भूमि-कंपन लहरें एक जैसी नहीं होती और न ही इनकी गति में समानता होती है। इन तथ्यों को आधार मानकर इन तरंगों को नीचे लिखे तीन भागों में बाँटा गया है-

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1. प्राथमिक लहरें (Primary or Push or ‘P’ waves)—ये लहरें ध्वनि लहरों (Sound waves) के समान आगे-पीछे (to and fro) होती हुई आगे बढ़ती हैं। ये ठोस भागों में तीव्र गति से आगे बढ़ती हैं और अन्य प्रकार की लहरों की अपेक्षा तीव्र चलने वाली लहरें होती हैं। इनकी गति 8 से 14 कि०मी० प्रति सैकिंड होती है। प्राथमिक लहरें तरल और ठोस पदार्थों को एक समान रूप में पार करती हैं।

2. गौण लहरें (Secondary or ‘S’ Waves)-ये लहरें ऊपर-नीचे (Up and down) होती हुई आगे बढ़ती _हैं। इनकी गति 4 से 6 किलोमीटर प्रति सैकिंड होती है। ये द्रव्य पदार्थों को पार करने में असमर्थ होती हैं और ये उसमें ही अलोप हो जाती हैं।

3. धरातलीय लहरें (Surface or ‘L’ waves)-इनकी गति 3 से 5 किलोमीटर प्रति सैकिंड होती है। ये धरती की ऊपरी परतों में ही चलती हैं अर्थात् ये भू-गर्भ की गहराइयों में प्रवेश नहीं करतीं। ये अत्यंत ऊँची और नीची होकर चलती हैं जिससे भू-तल पर अपार धन-माल की हानि होती है।

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प्रश्न 2.
भूचाल किसे कहते हैं ? भूचालों की उत्पत्ति के क्या कारण हैं ? विश्व में भूचाल क्षेत्रों के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
जब धरातल का कोई भाग अचानक काँप उठता है, तो उसे भूचाल कहते हैं। इस हलचल के कारण धरती हिलने लगती है और आगे-पीछे, ऊपर-नीचे सकरती है। इन्हें झटके (Termors) कहते हैं। (An Earthquake is a simple shiver on the skin of our planet.)

भूचाल के कारण (Causes of Earthquakes)—प्राचीन काल में लोग भूचाल को भगवान का क्रोध मानते थे। धार्मिक विचारों के अनुसार जब मानवीय पाप बढ़ जाते हैं, तो पापों के भार से धरती काँप उठती है। परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार भूचाल के लिए उत्तरदायी कारण नीचे लिखे हैं-

1. ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)-ज्वालामुखी विस्फोट से आस-पास के क्षेत्र काँप उठते हैं
और हिलने लगते हैं। अधिक विस्फोटक शक्ति के कारण खतरनाक भूचाल आते हैं। 1883 में काराकाटोआ विस्फोट से पैदा हुए भूचाल का प्रभाव ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका तक अनुभव किया गया।

2. दरारें (Faults)-धरती की हलचल के कारण धरातल पर खिंचाव या दबाव के कारण दरारें पड़ जाती हैं। इनके सहारे भूमि-भाग ऊपर या नीचे की ओर सरकने से भूचाल पैदा होते हैं। 1923 में कैलीफोर्निया का भयानक भूचाल “सेन ऐंडरीयास-दरार’ (San Andreas Faults) के कारण हुआ था। 11 दिसंबर, 1927 में कोयना (महाराष्ट्र) का भूचाल भी इसी कारण आया था।

3. धरती का सिकुड़ना (Contraction of Earth) धरती अपनी मूल अवस्था में गर्म थी, परन्तु अब धीरे धीरे ठंडी हो रही है। तापमान कम होने से धरती सिकुड़ती है और चट्टानों में हलचल होती है।

4. गैसों का फैलना (Expansion of Gases)-धरती के भीतरी भाग से गैसें और भाप बाहर आने का यत्न करती हैं इनके दबाव से भूचाल आते हैं।

5. चट्टानों की लचक-शक्ति (Elasticity of Rocks)-जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है, तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है, इससे भू-भाग हिल जाते हैं।

6. साधारण कारण (General Causes)-हल्के या छोटे भूचाल कई कारणों से पैदा हो जाते हैं-

  • पहाड़ी भागों में भू-स्खलन (Landslide) और हिम-स्खलन (Avalanche) होने से।
  • गुफाओं की छतों के बह जाने से।
  • समुद्री तटों से तूफानी लहरों के टकराने से।
  • धरती के तेज़ घूमने से।
  • अणु-बमों (Atom Bombs) के विस्फोट और परीक्षण से।
  • रेलों, ट्रकों और टैंकों के चलने से।

विश्व के भूचाल-क्षेत्र (Earthquake Zones of the World)-

  1. ज्वालामुखी क्षेत्रों में।
  2. नवीन बलदार पहाड़ों के क्षेत्रों में।
  3. समुद्र तट के क्षेत्र में।

भूचाल कुछ निश्चित पेटियों (Belts) में मिलते हैं-

  • प्रशांत महासागरीय पेटी (Circum Pacific Belt)—यह विशाल भूचाल क्षेत्र प्रशांत महासागर के दोनों तटों (अमेरिकी और एशियाई) के साथ-साथ फैला हुआ है। यहाँ विश्व के 68% भूचाल आते हैं। इसमें कैलीफोर्निया, अलास्का, चिली, जापान, फिलीपाइन प्रमुख क्षेत्र हैं। जापान में तो हर रोज़ लगभग 4 भूचाल आते हैं। हर तीसरे दिन एक बड़ा भूचाल आता है।
  • मध्य-महाद्वीपीय पेटी (Mid-world Belt)—यह पेटी यूरोप और एशिया महाद्वीप के बीच बलदार पर्वतों (अल्पस और हिमालय) के सहारे पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली है। यहाँ संसार के 11% भूचाल आते हैं। भारत के भूचाल-क्षेत्र 1. भारत के उत्तरी भाग में अधिक भूचाल आते हैं। 2. मध्यवर्ती मैदानी-क्षेत्र में कम भूचाल अनुभव होते हैं।
  • दक्षिणी भारत एक स्थिर भाग है। यहाँ भूचाल बहुत कम आते हैं।
  • भारत में आए हुए प्रसिद्ध भूचाल हैंकच्छ (1819), असम (1897), कांगड़ा (1903), बिहार (1934)।

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प्रश्न 3.
मानवीय जीवन पर भूचाल के प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
भूचाल के प्रभाव (Effects of Earthquakes)-भूचाल पृथ्वी की एक भीतरी शक्ति है, जो अचानक (Sudden) परिवर्तन ले आती है। यह जादू के खेल के समान क्षण-भर में अनेक परिवर्तन ले आती है। भूचाल मनुष्य के लिए लाभदायक और हानिकारक दोनों ही है। विनाशकारी प्रभाव के कारण इसे शाप माना गया है, परंतु इसके कई लाभ भी हैं। भूचालों से होने वाली हानियों व लाभों का वर्णन नीचे दिया गया है-

हानियाँ (Disadvantages)-
1. जान व माल का नाश (Loss of Life and Property)-भूचाल से जान व माल की बहुत हानि होती है। 1935 में क्वेटा के भूचाल से 60,000 लोग मारे गए थे। एक अनुमान के अनुसार पिछले 4000 वर्षों में 1/2 करोड़ आदमी भूचाल के कारण मारे जा चुके हैं।

2. नगरों का नष्ट होना (Distruction of Cities) भूचाल से पूरे के पूरे नगर नष्ट हो जाते हैं। पुल टूट जाते हैं, सड़कें टूट जाती हैं, रेल की पटरियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं जिससे आवाजाही रुक जाती है।

3. आग का लगना (Fire Incidents)-भूचाल से अचानक आग लग जाती है। 18 अप्रैल, 1906 ई० में सैन फ्रांसिस्को में आग से शहर का काफी बड़ा भाग जल गया था।

4. दरारों का निर्माण (Formation of Faults)-धरातल फटने से दरारें बनती हैं। असम में 1897 ई० के भूचाल के कारण 11 किलोमीटर चौड़ी और 20 किलोमीटर लंबी दरार बन गई थी।

5. भू-स्खलन (Landslide)-पहाड़ी क्षेत्रों के अलग-अलग शिलाखंड और हिमखंड (Avalanche) टूटकर नीचे गिरते रहते हैं। समुद्र में बर्फ के शैल (Iceberge) तैरने लगते हैं।

6. बाढ़ें (Floods)-नदियों के रास्ते बदलने से बाढ़ें आती हैं। 1950 ई० में असम में भूचाल से ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आई थी।

7. तूफानी लहरें (Tidal waves)-समुद्र में तूफानी लहरें तटों पर नुकसान करती हैं। इन्हें सुनामी (Tsunami) कहते हैं। 1775 ई० में लिस्बन (पुर्तगाल) में भूचाल से 12 मीटर ऊँची लहरों के कारण वह शहर नष्ट हो गया था।

8. तटीय भाग का धंसना (Sinking of the Coast)-भूचाल से तटीय भाग नीचे धंस जाते हैं। जापान में 1923 ई० के संगामी खाड़ी के भूचाल से सागर तल का कुछ भाग 300 मीटर नीचे धंस गया था।

लाभ (Advantages)-

  • भूचाल से निचले पठारों, द्वीपों और झीलों की रचना होती है।
  • भूचाल से कई चश्मों का (Springs) का जन्म होता है।
  • तटीय भागों में गहरी खाइयाँ बन जाती हैं, जहाँ प्राकृतिक बंदरगाह बन जाते हैं।
  • भूचाल द्वारा अनेक खनिज पदार्थ धरातल पर आ जाते हैं।
  • कृषि के लिए नवीन उपजाऊ क्षेत्र बन जाते हैं।
  • भूचाली लहरों द्वारा धरती के भू-गर्भ (Interior) के बारे में जानकारी मिलती है।
  • चट्टानों के टूटने से उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 4.
सुनामी से क्या अभिप्राय है ? इसके प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
सुनामी (Tsunami)—’सुनामी’ जापानी भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है-‘तटीय लहरें’। ‘TSU’ , शब्द का अर्थ है-तट और ‘Nami’ शब्द का अर्थ है-तरंगें। इन्हें ज्वारीय लहरें (Tidal waves) या भूचाली तरंगें (Seismic Waves) भी कहा जाता है।

सुनामी अचानक ऊँची उठने वाली विनाशकारी तरंगें हैं। इससे गहरे पानी में हिलजुल होती है। इसकी ऊँचाई आमतौर पर 10 मीटर तक होती है। सुनामी उस हालत में पैदा होती है, जब सागर के तल में भूचाली क्रिया के कारण हिलजुल होती है और महासागर में सतह के पानी का लंब रूप में विस्थापन होता है। हिंद महासागर में सुनामी तरंगें बहुत कम महसूस की गई हैं। अधिकतर सुनामी प्रशांत महासागर में घटित होती है।

सुनामी की उत्पत्ति (Origin of Tsunami)-भीतरी दृष्टि से पृथ्वी एक क्रियाशील ग्रह है। अधिकतर भूचाल टैक्टॉनिक प्लेटों (Tectonic Plates) की सीमाओं पर पैदा होते हैं। सुनामी अधिकतर सबडक्शन जोन (Subduction Zone) के भूचाल के कारण पैदा होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ दो प्लेटें एक-दूसरे में विलीन (Coverage) हो जाती हैं। भारी पदार्थों से बनी प्लेटें हल्की प्लेटों के नीचे खिसक जाती हैं। समुद्र के गहरे तल का विस्तार होता है। यह क्रिया एक कम गहरे भूचाल को पैदा करती है।

26 दिसंबर, 2004 की सुनामी आपदा (Tsunami Disaster of 26th December, 2004)-प्रातः 7.58 बजे, एक काले रविवार (Black Sunday) 26 दिसंबर, 2004 को, क्रिसमस से एक दिन बाद सुनामी दुर्घटना घटी। यह विशाल, विनाशकारी सुनामी लहर हिंद महासागर के तटीय प्रदेश से टकराई। इस लहर के कारण इंडोनेशिया से लेकर भारत तक के देशों में 3 लाख आदमी विनाश के शिकार हुए थे।

महासागरीय तल पर एक भूचाल पैदा हुआ, जिसका अधिकेंद्र सुमात्रा (इंडोनेशिया) के 257 कि०मी० दक्षिण-पूर्व में था। यह भूचाल रिक्टर पैमाने पर 8.9 शक्ति का था। इन लहरों के ऊँचे उठने पर पानी की एक ऊँची दीवार बन गई थी।

आधुनिक युग के इतिहास में यह एक महान् दुर्घटना के रूप में लिखी जाएगी। सन् 1900 के बाद, यह चौथा बड़ा भूचाल था। इस भूचाल के कारण पैदा हुई सुनामी लहरों से हिरोशिमा बम की तुलना में लाखों गुणा अधिक ऊर्जा का विस्फोट हुआ था। इसलिए इसे भूचाल प्रेरित विनाशकारी लहर भी कहा जाता है। यह भारत और म्यांमार के प्लेटों के

मिलन स्थान पर घटी थी, जहाँ लगभग 1000 किलोमीटर प्लेट-सीमा खिसक गई थी। इसके प्रभाव से सागर तल 10 मीटर ऊपर उठ गया और ऊपरी पानी हज़ारों घन मीटर की मात्रा में विस्थापित हो गया था। इसकी गति लगभग 700 कि०मी० प्रति घंटा थी। इसे अपने उत्पत्ति स्थान से भारतीय तट तक पहुँचने में दो घंटे का समय लगा। इस दुर्घटना ने तटीय प्रदेशों के इतिहास और भूगोल को बदलकर रख दिया है।

सुनामी दुर्घटना के प्रभाव (Effects of Tsunami Disaster)-
हिंद महासागर के तटीय देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, म्याँमार, भारत, श्रीलंका और मालदीव में सनामी दुर्घटना के विनाशकारी प्रभाव पड़े। भारत में तमिलनाडु, पांडेचेरी, आंध्र-प्रदेश, केरल आदि राज्य सबसे अधिक प्रभावित हुए। अंडमान और निकोबार द्वीप में इस लहर का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। इंडोनेशिया में लगभग 1 लाख आदमी, थाईलैंड में 10,000 आदमी, श्रीलंका में 30,000 आदमी तथा भारत में 15,000 आदमी इस विनाश के शिकार हुए।

भारत में सबसे अधिक नुकसान तमिलनाडु के नागापट्नम जिले में हुआ, जहाँ पानी शहर के 1.5 कि०मी० अंदर तक पहुँच गया था। संचार, परिवहन के साधन और बिजली की सप्लाई में भी मुश्किलें पैदा हुईं। अधिकतर श्रद्धालु वेलान कन्नी (Velan Kanni) के तट (Beach) के सागरीय पानी में बह गए। तट की विनाशकारी वापिस लौटती हुई लहरें हज़ारों लोगों को बहाकर ले गईं। मरीना तट (एशिया का सबसे बड़ा तट) पर 3 कि०मी० लंबे क्षेत्र में सैंकड़ों लोग सागर की चपेट में आ गए। यहाँ लाखों रुपयों के चल व अचल संसाधनों की बर्बादी हुई।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 3

कलपक्कम अणु-ऊर्जा केंद्र में पानी प्रवेश करने पर अणु-ऊर्जा के रिएक्टरों को बंद करना पड़ा। मामलापुरम् के विश्व प्रसिद्ध मंदिर को तूफानी लहरों से बहुत नुकसान हुआ। सबसे अधिक मौतें अंडमान-निकोबार द्वीप पर हुईं। ग्रेट निकोबार के दक्षिणी द्वीप पर, जोकि भूचाल के केंद्र से केवल 150 कि०मी० दूर था, सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। निकोबार द्वीप पर भारतीय नौसेना का एक अड्डा नष्ट हो गया। ऐसा लगता है कि इन द्वीपों का अधिकांश क्षेत्र समुद्र ने निगल लिया हो। इस प्रकार सुनामी लहरों ने इन द्वीप समूहों के भूगोल को बदल दिया है और यहाँ फिर से मानचित्रण करना पड़ेगा। इस देश की मुसीबतों के शब्दकोश में एक नया शब्द ‘सुनामी मुसीबत’ जुड़ गया है। अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार इस कारण पृथ्वी अपनी धुरी से हिल गई और इसका परिभ्रमण तेज़ हो गया है, जिस कारण दिन हमेशा के लिए एक सैकंड कम हो गया है। सुनामी लहरें सचमुच ही प्रकृति का कहर होती हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
पानीपत के पहले दो युद्धों के बीच की राजनीतिक घटनाओं की रूप रेखा बताएं।
उत्तर-
पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 ई० तथा दूसरा युद्ध 1556 ई० में हुआ। इन दो युद्धों के मध्य राजनीतिक घटनाएं चार व्यक्तियों के गिर्द घूमती हैं। ये व्यक्ति हैं-बाबर, हुमायूं, शेरशाह एवं उसके उत्तराधिकारी तथा अकबर। इन व्यक्तियों ने अपने-अपने ढंग से राजनीतिक घटनाओं को प्रभावित किया। संक्षेप में इनका वर्णन इस प्रकार है :

I. बाबर के अधीन राजनीतिक घटनाएं-

पानीपत की विजय (1526 ई०) द्वारा बहुत बड़ा प्रदेश बाबर के अधिकार में आ गया। बाबर ने दिल्ली के सिंहासन को काबुल के सिंहासन की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया और हिन्दुस्तान में ही रहने का निर्णय किया।

(i) राणा सांगा के साथ संघर्ष-बाबर के भारत में रहने के निर्णय के कारण उसका मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह से संघर्ष होना अवश्यम्भावी था। राणा सांगा के अधीन मेवाड़ राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया था। जब बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोधी के इलाके से अफ़गानों को निकालना आरम्भ किया, तो उनमें से कुछ ने राणा सांगा से सहायता मांगी। राणा सांगा तो पहले ही उत्तरी भारत पर बाबर के अधिकार को अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए रोड़ा समझता था। बाबर के विरुद्ध राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले महत्त्वपूर्ण अफ़गानों में सुल्तान इब्राहीम लोधी का भाई महमूद लोधी और मेवात का शासक हसन खां थे। मार्च 1527 ई० में राणा सांगा ने आगरा की ओर कूच किया। बाबर की सेना से उसका सामना फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ के स्थान पर हुआ। दस घण्टों के घमासान युद्ध में बाबर को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। इस युद्ध में बाबर ने उन्हीं युद्ध-चालों का प्रयोग किया जो उसने पानीपत के युद्ध में अपनाई थीं। खनुआ ने युद्ध से मेवाड़ की शक्ति और सम्मान को गहरा आघात पहुंचा और बाबर के लिए भारत विजय के द्वार खुल गए।

(ii) बाबर के अन्य सैनिक अभियान और मृत्यु-एक-एक कर बाबर ने अपने विरोधी अफ़गानों को समाप्त करना शुरू कर दिया। खनुआ की लड़ाई के शीघ्र ही बाद उसने हसन खां मेवाती की राजधानी अलवर पर अधिकार कर लिया। बाबर ने महमूद लोधी को बिहार से खदेड़ दिया। महमूद लोधी ने बंगाल के शासक नुरसत शाह की शरण ली। अफ़गानों ने महमूद लोधी के नेतृत्व में मई, 1529 ई० में बाबर के विरुद्ध घाघरा-गंगा संगम के निकट युद्ध किया। उस युद्ध में बाबर को ही विजय मिली। नुसरत शाह ने बाबर को दिल्ली का बादशाह स्वीकार कर लिया। उसने यह भी मान लिया कि वह अफ़गानों को शरण नहीं देगा। इस प्रकार लोधियों का सारा प्रदेश अब बाबर के अधिकार में आ गया। दिसम्बर, 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई और उसका पुत्र हुमायूं राजगद्दी पर बैठ गया।

II. हुमायूं के अधीन राजनीतिक घटनाएं-

(i) राज्य का विभाजन-हुमायूं ने अपने पिता से मिले राज्य को अपने भाइयों में बांट दिया। उसने कामरान को काबुल और पंजाब का प्रदेश और अस्करी तथा हिन्दाल को क्रमशः सम्भल और मेवात के प्रदेश दिए।

(ii) आरम्भिक विजयें तथा विद्रोह-इसके उपरान्त हुमायूं ने कालिंजर के शासक पर आक्रमण किया और उसे नज़राना देने के लिए विवश किया। 1532 ई० में उसने जौनपुर की ओर बढ़ते हुए महमूद लोधी को पराजित किया। तत्पश्चात् उसने 1534 ई० में अपने रिश्तेदार मिर्जा मुहम्मद ज़मां और मुहम्मद सुल्तान के विद्रोह को कुचला।

(iii) मालवा और गुजरात पर अस्थायी अधिकार-हुमायूं ने अब अपना ध्यान गुजरात की ओर लगाया। उसके विरोधी अफ़गानों तथा मिर्जा मुहम्मद जमां को शरण देकर बहादुरशाह भी अब हुमायूं का शत्रु बन गया था। उसने मालवा को 1531 ई० में विजय करके अपनी शक्ति को और अधिक बढ़ा लिया था। उसने अगले दो वर्षों में राजस्थान के कई किलों पर अधिकार जमा लिया। हुमायूं ने शीघ्र बहादुरशाह के विरुद्ध कूच किया। बहादुरशाह को अपना राज्य छोड़ना पड़ा। हुमायूं ने अपने भाई अस्करी को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया। फरवरी 1532 ई० में हुमायूं मालवा लौटा। शीघ्र ही बहादुरशाह ने चम्पानेर और अहमदाबाद सहित गुजरात पर पुनः अधिकार कर लिया।

(iv) हुमायूं का भारत से निष्कासन-गुजरात से वापसी पर हुमायूं ने पूर्व में शेरशाह की ओर ध्यान दिया। अक्तूबर 1532 ई० में हुमायूं ने चुनार के किले को घेर लिया जो शेरखां के पुत्र कुतुब खां के अधिकार में था। यह मज़बूत किला बंगाल की ओर जाने वाले रास्ते पर था। इस पर अधिकार करने में छः माह लग गए । किला हुमायूं के अधिकार में आने के एक महीने बाद ही शेरखां ने बंगाल की राजधानी गौड़ पर अधिकार कर लिया। हुमायूं अब उसके विरुद्ध चल पड़ा। शेरखां ने स्थिति को समझते हुए हुमायूं से लड़ाई न की । हुमायूं ने आसानी से बंगाल पर अधिकार कर लिया किन्तु शेरखां ने बिहार पर आक्रमण करके हुमायूं की वापसी के रास्ते को रोक लिया। बंगाल से वापस लौटते समय शेरखां ने उसे पहले चौसा के स्थान पर तथा फिर कन्नौज के स्थान पर पराजित किया। अन्त में हुमायूं भारत छोड़कर भाग गया।

III. शेरशाह और उसके उत्तराधिकारियों की समकालीन राजनीतिक घटनाएं –

(i) शेरशाह द्वारा राज्य का विस्तार-शेरशाह ने कामरान को पंजाब से निकाल कर सिन्धु नदी तक के इलाके को अपने अधीन कर लिया। 1542 ई० में उसने मालवा को जीता। अगले वर्ष उसने मध्य भारत में स्थित रायसीन की चौहान रियासत को नष्ट कर दिया। 1543 में उसने मारवाड़ के मालदेव को पराजित किया। शेरशाह ने मेवाड़ तथा रणथम्भौर पर भी अधिकार कर लिया। उसने राजस्थान के अन्य इलाकों पर भी विजय प्राप्त की। इस प्रकार सारे राजस्थान पर शेरशाह का प्रभुत्व स्थापित हो गया। 1544 ई० के अन्तिम चरण में उसने कालिन्जर को घेर लिया तथा 22 मई, 1545 को उसने कालिन्जर को जीत लिया। उसी दिन धावा बोलते समय बारूद में आग लगने से उसकी मृत्यु हो गई। जब शेरशाह की मृत्यु हुई तब गुजरात को छोड़ कर लगभग सारा उत्तरी भारत उसके अधीन था।

(ii) शेरशाह के उत्ताधिकारियों की समकालीन राजनीतिक घटनाएं-शेरशाह की मृत्यु के बाद उसके छोटे पुत्र जलालखां ने इस्लामशाह की उपाधि धारण कर लगभग आठ वर्षों अर्थात् 1553 ई० तक शासन किया। उसने पूर्वी बंगाल को अपने राज्य में मिला लिया।

इस्लामशाह की मृत्यु (30 अक्तूबर, 1553) के बाद उसका बारह वर्षीय पुत्र फिरोज़ उत्तराधिकारी बना। किन्तु गद्दी पर बैठने के तीन दिन बाद ही उसके मामा मुबारिज़ खां ने उसका वध कर दिया। मुबारिज़ खां मुहम्मद आदिलशाह के नाम पर सिंहासन पर बैठा। उसे अफ़गान लोग अन्धा कहते थे। उसने पुराने अमीरों के विश्वास को जीतने का असफल प्रयत्न किया। किसी पठान की जगह आदिलशाह ने हेम को अपना वज़ीर बनाया जिससे अफ़गान अमीरों का रोष और भी बढ़ गया और वे स्वतन्त्र होने के बारे में सोचने लगे। शीघ्र ही शेरशाह द्वारा स्थापित राज्य पांच भागों में बंट गया।

(iii) हुमायूं का पुनः शक्ति में आना-हुमायूं ने स्थिति का लाभ उठाया। वह ईरान के शासक से सैनिक सहायता लेकर काबुल तक पहुंच चुका था। उसने 1554 के अन्त में पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया और छः महीनों के भीतर ही उसे हथिया लिया। सिकन्दरशाह सूर की सरहिन्द के निकट जून 1555 में पराजय हुई। हुमायूं ने दिल्ली पर और बाद में आगरा पर अधिकार कर लिया। किन्तु सात मास के पश्चात् हुमायूं की मृत्यु हो गई।

IV. अकबर के अधीन राजनीतिक घटनाएं हुमायूं की मृत्यु के समय अकबर की आयु 13 वर्ष थी। उसके संरक्षक बैरम खां ने उसका कलानौर में राजतिलक किया। उसके बाद वह दिल्ली की ओर चल दिया।

हुमायूं की मृत्यु के शीघ्र ही बाद हेमू ने आदिलशाह की ओर से आगरा पर अधिकार कर लिया और दिल्ली की तरफ चल पड़ा। मुग़ल सेनापति तारदी बेग पराजित हुआ। वह पंजाब की ओर भाग गया। बैरम खां ने तारदी बेग की पराजय के कारण उसका वध करवा दिया। उसके बाद अकबर ने पानीपत के युद्ध में नवम्बर 1556 ई० में हेमू को पराजित किया।

इस तरह पानीपत के प्रथम युद्ध की भान्ति पानीपत के दूसरे युद्ध ने भी मुग़लों के ही भाग्य को चमकाया। बाबर की विजय अस्थायी रही, परन्तु अकबर ने मुग़ल साम्राज्य की नींव को सुदृढ़ किया और एक विशाल राज्य की स्थापना की।

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प्रश्न 2.
अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों के अधीन दक्कन में मुग़ल साम्राज्य के विस्तार से सम्बन्धित मुख्य घटनाएं क्या थी ?
उत्तर-
दक्कन का प्रदेश नर्मदा के पार स्थित था। अकबर से पूर्व किसी भी मुसलमान शासक ने दक्कन के किसी प्रदेश को अपने राज्य का भाग नहीं बनाया। अकबर पहला बादशाह था जिसके राज्य के तीन प्रान्त दक्षिण से सम्बन्धित थे। अकबर के बाद उसके उत्तराधिकारियों ने दक्कन में पूरी रुचि दिखाई। औरंगजेब ने तो अपना आधा शासनकाल दक्कन में ही व्यतीत कर दिया और उसकी मृत्यु भी वहीं हुई। संक्षेप में अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों की दक्कन में विस्तारवादी-नीति का वर्णन इस प्रकार है :

I. अकबर के अधीन दक्कन नीति 1591 ई० में अकबर ने अपने प्रतिनिधियों अर्थात वकीलों को दक्षिणी राज्यों (खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा) भेजा ताकि उनके शासक उसके प्रभुत्व को स्वीकार कर लें। इनमें सबसे कम शक्तिशाली तथा उत्तरी भारत के सबसे निकट खानदेश का शासक राजा अली खां था। उसने तुरन्त अकबर के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया और आजीवन स्वामिभक्त रहा। परन्तु उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी मीरा बहादुरशाह ने मुग़लों की अधीनता को त्यागने का निश्चय किया। अकबर ने तुरन्त खानदेश की राजधानी बुरहानपुर को अपने अधिकार में ले लिया। उसने राज्य के महत्त्वपूर्ण किले आसीरगढ़ पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार खानदेश 1601 ई० में मुग़ल साम्राज्य का एक प्रान्त बन गया। अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा के सुल्तानों ने अकबर के वकीलों का परामर्श मानने से इन्कार कर दिया। परिणामस्वरूप कई सैनिक अभियान अहमदनगर के विरुद्ध भेजे गए। आखिर 1599 ई० में दौलताबाद पर अधिकार कर लिया गया। अहमदनगर सल्तनत की राजधानी अहमदनगर पर भी 1600 ई० में मुग़लों का अधिकार हो गया। अकबर ने अहमदनगर राज्य को समाप्त नहीं किया बल्कि उसने वहां के प्रदेशों का एक अलग प्रान्त बना दिया। अकबर की मृत्यु से पूर्व दक्कन अर्थात् विंध्य पर्वत और कृष्णा नदी के बीच के प्रदेश में तीन अधीनस्थ रियासतें बन चुकी थीं-खानदेश, बरार और अहमदनगर। इस तरह मुग़ल अपने साम्राज्य को नर्मदा के उस पार तक ले जाने में सफल हुए।

II. जहांगीर की दक्कन नीति-

जहांगीर ने दक्कन में प्रथम अभियान 1608 ई० में भेजा था। किन्तु उसे 1617 ई० में सफलता प्राप्त हुई जब शाहज़ादा खुर्रम ने अहमदनगर के सुल्तान को सन्धि करने के लिए बाध्य किया। सन्धि की शर्त यह थी कि सुल्तान विजित प्रदेश मुग़लों को सौंप दे। चार वर्षों के पश्चात् खुर्रम ने न केवल अहमदनगर के सुल्तान को अपितु बीजापुर और गोलकुण्डा के सुल्तानों को भी खिराज देने के लिए विवश कर दिया। उन्होंने क्रमशः बारह, अठारह और बीस लाख रुपए वार्षिक खिराज देना स्वीकार कर लिया। यह दक्कन में जहांगीर की सफलता का उत्कर्ष था। परन्तु 1627 ई० में उसकी मृत्यु के समय दक्कन में मुग़ल स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।

III. शाहजहां की दक्कन नीति –

(i) गोलकुण्डा के साथ शाहजहां की सन्धि-1636 ई० में शाहजहां ने गोलकुण्डा के सुल्तान को अपनी प्रभुसत्ता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया। सुल्तान को यह शर्त भी माननी पड़ी कि गोलकुण्डा के सिक्कों पर तथा खुतबे में शाहजहां के नाम के अतिरिक्त पहले चारों खलीफों के नाम भी हों। यह शर्त शाहजहां ने इसलिए रखी थी क्योंकि गोलकुण्डा का सुल्तान शिया होने के नाते केवल मुहम्मद साहिब के दामाद हज़रत अली को खलीफा मानता था। उसने 16 वर्षों के बकाया 128 लाख रुपया देना तो स्वीकार कर ही लिया, साथ में आठ लाख रुपए वार्षिक खिराज देना भी स्वीकार कर लिया। इसके बदले में मुग़ल सम्राट को गोलकुण्डा के सुल्तान की बीजापुर और मराठों से रक्षा करनी थी

(ii) बीजापुर के साथ शाहजहां की सन्धि-इसी समय मुग़ल सेना ने बीजापुर पर आक्रमण किया। बीजापुर का सुल्तान समझौते के लिए राजी हो गया। उसने मुग़ल सम्राट् की प्रभुसत्ता को स्वीकार कर लिया। उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि वह गोलकुण्डा पर आक्रमण नहीं करेगा। उसने शाहजहां को 20 लाख रुपया देना और उसकी मध्यस्थता को भी स्वीकार कर लिया। बदले में मुग़ल सम्राट ने बीजापुर के जीते हुए कुछ प्रदेश उसे लौटा दिए। साथ में उसे अहमदनगर राज्य के कुछ नये प्रदेश भी दिए गए। इसके बाद बीस वर्षों तक मुग़ल बादशाह को बीजापुर तथा गोलकुण्डा के विरुद्ध अभियान नहीं भेजना पड़ा।

(iii) गोलकुण्डा तथा बीजापुर पर आक्रमण-1636 ई० को सन्धियों के पश्चात् गोलकुण्डा और बीजापुर के सुल्तानों ने अपनी-अपनी शक्ति और प्रदेश में वृद्धि कर ली। उन्होंने विजयनगर राज्य के प्रदेशों को हड़प कर अपने राज्य का विस्तार किया। शाहजहां ने दक्कन के तत्कालीन गवर्नर औरंगजेब को आज्ञा दी कि वह गोलकुण्डा और बीजापुर से बकाया खिराज वसूल करे। अत: औरंगज़ेब ने फरवरी 1656 ई० में गोलकुण्डा के किले को घेर लिया। औरंगजेब के डर से गोलकुण्डा का सुल्तान शाहजहां को पहले ही अपने एलची भेज चुका था। जब औरंगजेब की जीत होने वाली थी उसी समय उसे बादशाह की आज्ञा मिली कि वह गोलकुण्डा का घेरा उठा ले और वापस आ जाए। बादशाह ने गोलकुण्डा से स्वयं खिराज वसूल किया।

1656 ई० के बाद शाहजहां ने औरंगजेब को बीजापुर को विजय करने की आज्ञा दी। औरंगज़ेब ने तुरन्त ही बीदर और कल्याणी पर अधिकार कर लिया और बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। 1657 ई० में बीजापुर के सुल्तान ने डेढ़ करोड़ रुपए देना और मांगे सभी प्रदेशों को वापस करना स्वीकार कर लिया। परन्तु तभी औरंगजेब को युद्ध बन्द कर देने और पीछे हटने का आदेश मिला। औरंगज़ेब निराश होकर 1658 ई० के आरम्भ में औरंगाबाद लौट आया। .

IV. औरंगजेब की दक्कन नीति-

औरंगज़ेब एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट् था और वह सारे भारत पर मुग़ल पताका फहराना चाहता था। इसके अतिरिक्त उसे दक्षिण में शिया रियासतों का अस्तित्व भी पसन्द नहीं था। दक्षिण के मराठे भी काफ़ी शक्तिशाली होते जा रहे थे। वह उनकी शक्ति को कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने बीजापुर राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1686 ई० में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को भी अपने अधीन कर लिया। परन्तु इन दो राज्यों की विजय उसकी निर्णायक सफलता नहीं थी बल्कि उसकी कठिनाइयों का आरम्भ थी। अब उसे शक्तिशाली मराठों से सीधी टक्कर लेनी पड़ी। इससे पूर्व उसने वीर मराठा सरदार शिवाजी को दबाने के अनेक प्रयत्न किए थे, परन्तु उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी। अब मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शंभू जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगज़ेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता भी एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। इसके विपरीत औरंगजेब का बहुत-सा धन और समय दक्षिण के अभियानों में व्यर्थ नष्ट हो गया। यहां तक कि 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगजेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
बाबर ने भारत का सर्वप्रथम अभियान कब किया?
उत्तर-
बाबर ने भारत का सर्वप्रथम अभियान 1519 ई० में किया।

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प्रश्न 2.
बाबर के भारत आक्रमण के समय दिल्ली का शासक कौन था ?
उत्तर-
इब्राहीम लोधी।

प्रश्न 3.
पानीपत की पहली लड़ाई किस-किस के बीच हुई?
उत्तर-
पानीपत की पहली लड़ाई बाबर एवं इब्राहीम लोधी के बीच हुई।

प्रश्न 4.
बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का गवर्नर कौन था?
उत्तर-
बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोधी था।

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प्रश्न 5.
हुमायूं की माता का क्या नाम था ?
उत्तर-
हुमायूं की माता का नाम महम बेगम था।

प्रश्न 6.
हुमायूं सिंहासन पर कब बैठा?
उत्तर-
हुमायूं 30 दिसम्बर, 1530 ई० में सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न 7.
किस रानी ने हमायूं से बहादुरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी थी?
उत्तर-
रानी कर्णवती ने हमायूं से बहादुरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी थी।

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प्रश्न 8.
शेर खां ने शिक्षा कहां प्राप्त की?
उत्तर-
शेर खां ने जौनपुर में शिक्षा प्राप्त की।

प्रश्न 9.
शेर खां ने कौन-कौन से ग्रन्थों का अध्ययन किया था?
उत्तर-
शेर खां ने गुलस्तां, बोस्ता, सिकन्दरनामा आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया था।

प्रश्न 10.
फरीद को शेर खां की उपाधि किसने दी?
उत्तर-
फरीद को शेर खां की उपाधि बहार खां लोहानी ने दी।

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प्रश्न 11.
शेर खां के सम्राट् बनने की भविष्यवाणी किस मुग़ल सम्राट् ने की थी?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट् बाबर ने शेर खां के सम्राट बनने की भविष्यवाणी की थी।

प्रश्न 12.
अकबर के सिंहासनारोहण के समय दिल्ली का शासक कौन था?
उत्तर-
अकबर के सिंहासनारोहण के समय दिल्ली का शासक हेमू था।

प्रश्न 13.
बैरम खां का वध किसने किया?
उत्तर-
बैरम खां का वध मुबारक खां ने किया।

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प्रश्न 14.
अकबर ने किस निर्णायक युद्ध द्वारा दिल्ली पर अधिकार किया था ?
उत्तर-
अकबर ने पानीपत की दूसरी लड़ाई द्वारा दिल्ली पर अधिकार किया था।

प्रश्न 15.
किस राजपूत राजा ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी?
उत्तर-
राजपूत राजा राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।

प्रश्न 16.
शाहजहां का सिंहासनारोहण कब हुआ ?
उत्तर-
शाहजहां का सिंहासनारोहण 1627 ई० में हुआ।

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प्रश्न 17.
शाहजहां ने किस बुंदेल नेता को संधि करने पर विवश किया ?
उत्तर-
शाहजहां ने जोझार सिंह ओरछा बुंदेल नेता को संधि करने पर विवश किया।

प्रश्न 18.
शाहजहां की सबसे प्रिय पत्नी कौन-सी थी?
उत्तर-
शाहजहां की सबसे प्रिय पत्नी मुमताज महल थी।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(i) बाबर के पिता का नाम
(ii) बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण ………………… लोधी ने दिया।
(iii) हुमायूं की मृत्यु ………………… ई० में हुई।
(iv) शेरशाह सूरी का जन्म …………. ई० में हुआ।
(v) ………………… सूर साम्राज्य का संस्थापक था।
(vi) सूर साम्राज्य का अंतिम शासक …………… था।
(vii) ‘अकबरनामा’ का लेखक ……………. था।
(viii) ……………. अकबर का संरक्षक था।
(ix) जहाँगीर का वास्तविक नाम ………………… था।
(x) गुरु …………… की शहीदी के लिए जहाँगीर उत्तरदायी था।
(xi) शाहजहाँ के बचपन का नाम ……………… था।
(xii) औरंगजेब की मृत्यु ……………… ई० में अहमदनगर में हुई।
उत्तर-
(i) उमरशेख मिर्जा
(ii) दौलत खां
(iii) 1556
(iv) 1472
(v) शेरशाह सूरी
(vi) सिकंदर सूर
(vii) अबुल फज़ल
(viii) बैरम खां
(ix) मुहम्मद सलीम
(x) अर्जन देव जी
(xi) खुर्रम
(xii) 1707.

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3. सही/गलत कथन

(i) बाबर के आक्रमण के समय उत्तरी भारत का मेवाड़ सबसे शक्तिशाली हिन्दू राज्य था। — (√)
(ii) इब्राहीम लोधी मेरठ का शासक था। — (×)
(iii) भारत में बाबर की अंतिम लड़ाई पानीपत की लड़ाई थी। — (×)
(iv) शेर खां का पिता हसन खां जमाल खां के पास नौकरी करता था। — (√)
(v) शेर खां ने हुमायूं को सूरजगढ़ के युद्ध में पराजित किया। — ()
(vi) शेरशाह का मकबरा सहसराम नामक स्थान पर स्थित है। — (√)
(vii) अकबर का सिंहासनारोहण अमरकोट में हुआ। — (×)
(viii) नूरजहाँ ने राजकुमार खुसरो का वध करवाया। — (×)
(xi) जहाँगीर के शासनकाल में सर टॉमस रो भारत आया। — (√)
(x) औरंगजेब के शासनकाल में गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी दी। — (×)

4. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
बाबर का पिता शासक था-
(A) कन्वाहा का
(B) फरगाना का
(C) काबुल का
(D) सिंध का
उत्तर-
(B) फरगाना का

प्रश्न (ii)
बाबर के आक्रमण के समय मेवाड़ का शासक था
(A) इब्राहीम लोधी
(B) दौलत खां लोधी
(C) राणा संग्राम सिंह
(D) आधम खां लोधी।
उत्तर-
(C) राणा संग्राम सिंह

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प्रश्न (iii)
चन्देरी का युद्ध हुआ
(A) 1528 ई० में
(B) 1526 ई० में
(C) 1556 ई० में
(D) 1530 ई० में ।
उत्तर-
(A) 1528 ई० में

प्रश्न (iv)
‘तुजके बाबरी’ का लेखक है
(A) अकबर
(B) बाबर
(C) जहांगीर
(D) अबुल फज़ल ।
उत्तर-
(B) बाबर

प्रश्न (v)
हुमायूं तथा शेर खां के बीच चौसा का युद्ध हुआ
(A) 1526 ई० में
(B) 1530 ई० में
(C) 1556 ई० में।
(D) 1539 ई० में ।
उत्तर-
(D) 1539 ई० में ।

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प्रश्न (vi)
शेर खां ने हुमायूं को हराया
(A) घाघरा के युद्ध में
(B) चंदेरी के युद्ध में
(C) चौसा के युद्ध में
(D) कालिंजर के युद्ध में ।
उत्तर-
(C) चौसा के युद्ध में

प्रश्न (vii)
शेरशाह की मृत्यु हुई
(A) घाघरा के युद्ध में
(B) चंदेरी के युद्ध में
(C) चौसा के युद्ध में
(D) कालिंजर के युद्ध में ।
उत्तर-
(D) कालिंजर के युद्ध में ।

प्रश्न (viii)
राजकुमार खुसरो का वध करवाया
(A) खुर्रम ने
(B) जहांगीर ने
(C) नूरजहां ने
(D) मुहम्मद सलीम ने ।
उत्तर-
(A) खुर्रम ने

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प्रश्न (ix)
औरंगजेब अपनी निम्न नीति द्वारा मुग़ल साम्राज्य को पतन की ओर ले गया
(A) हिंदू नीति
(B) राजपूत नीति
(C) दक्षिण नीति
(D) उपरोक्त सभी ।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी ।

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मुग़ल साम्राज्य के इतिहास के लिए चार प्रकार के स्त्रोतों के नाम बताएं।
उत्तर-
ऐतिहासिक स्त्रोत (अकबरनामा आदि), भवन, विदेशी यात्रियों के विवरण तथा मुग़लकालीन सिक्के मुग़ल इतिहास की जानकारी कराते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में मुगल शासक अपने आपको किसका उत्तराधिकारी समझते थे और उसकी राजधानी कौनसी थी ?
उत्तर-
भारत के मुग़ल शासक अपने आपको तैमूर का उत्तराधिकारी मानते थे। उसकी राजधानी समरकन्द थी।

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प्रश्न 3.
बाबर के पिता का क्या नाम था और वह किस रियासत का शासक था ?
उत्तर-
बाबर के पिता का नाम उमरशेख मिर्जा था। वह फरगाना का शासक था।

प्रश्न 4.
उज़बेक कौन थे तथा उनके नेता का नाम बताएं।
उत्तर-
उज़बेक एक.प्रकार की जाति थी जो तैमूर के उत्तराधिकारियों से लड़ते रहते थे। उनका नेता शैबानी खां था।

प्रश्न 5.
शैबानी खां को ईरान के किस राजवंश के कौन-से शासक ने कब हराया ?
उत्तर-
शैबानी खां को ईरान के सफवी राजवंश के संस्थापक शाह इस्माइल ने 1510 में हराया।

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प्रश्न 6.
बाबर ने काबुल किस वर्ष जीता और समरकन्द पर उसने तीसरी बार किस वर्ष में अधिकार किया ?
उत्तर-
बाबर ने काबुल 1504 में जीता और समरकन्द पर उसने तीसरी बार 1511 में अधिकार किया।

प्रश्न 7.
बाबर को कौन-से वर्ष में बारूद के प्रयोग की सम्भवानाओं का पता चला और उसने अपने तोपखाने के लिए किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
बाबर को 1514 में बारूद के प्रयोग की सम्भावनाओं का पता चला और उसने तोपखाने के लिए अली नामक एक अनुभवी उस्ताद को नियुक्त किया।

प्रश्न 8.
16वीं सदी के आरम्भ में उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्यों के नाम बताएं।
उत्तर-
16वीं सदी के आरम्भ में उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्य-दिल्ली, लाहौर, मेवाड़ तथा बंगाल थे।

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प्रश्न 9.
इब्राहीम लोधी के विरोधी दो लोधी सरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
इब्राहीम लोधी के विरोधी दो लोधी सरदारों में से एक दौलत खां लोधी और दूसरा आलम खां लोधी था।

प्रश्न 10.
इब्राहीम लोधी के साथ बाबर का युद्ध कहां और कब हुआ ?
उत्तर-
इब्राहीम लोधी के साथ बाबर का युद्ध पानीपत में 1526 ई० में हुआ।

प्रश्न 11.
इब्राहीम लोधी के विरुद्ध बाबर की विजय के दो मुख्य कारण बताएं।
उत्तर-
बाबर की विजय का मुख्य कारण उत्तम युद्धनीति तथा सामरिक चालों के साथ तोपखाने का प्रयोग था।

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प्रश्न 12.
बाबर के समय राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य कौन-सा था और उसके शासक का नाम क्या था.?
उत्तर-
बाबर के समय राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य मेवाड़ था। उसके शासक का नाम राणा संग्राम सिंह था।

प्रश्न 13.
राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले दो अफ़गान सरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले दो अफ़गान सरदार महमूद लोधी और हसन खां थे।

प्रश्न 14.
बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध कहां और कौन-से वर्ष में हुआ ?
उत्तर-
बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध 1527 ई० में फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ के स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 15.
बाबर ने महमूद लोधी से युद्ध कहां और कौन-से वर्ष में किया ?
उत्तर-
बाबर ने महमूद लोधी से मई 1529 ई० में घाघरा-गंगा संगम के निकट युद्ध किया।

प्रश्न 16.
बाबर ने पंजाब पर किस वर्ष में अधिकार किया और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
बाबर ने पंजाब पर 1524 ई० में अधिकार किया। उसकी मृत्यु 1530 ई० में हुई।

प्रश्न 17.
बाबर के चार बेटों के नाम बताएं।
उत्तर-
बाबर के चार बेटे हुमायूं, कामरान, अस्करी तथा हिन्दाल थे।

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प्रश्न 18.
हुमायूं ने कौन-से चार प्रदेश अपने भाइयों को सौंप दिए ?
उत्तर-
हुमायूं ने अपने भाइयों को-पंजाब, काबुल, सम्भल और मेवात के प्रदेश दिए।

प्रश्न 19.
हुमायूं के कौन-से दो रिश्तेदारों ने उसके विरुद्ध विद्रोह किया ?
उत्तर-
हुमायूं के दो रिश्तेदारों मिर्जा मुहम्मद जमां और मिर्ज़ा मुहम्मद सुल्तान ने उसके विरुद्ध विद्रोह किया।

प्रश्न 20.
हुमायूं ने गुजरात किस सुल्तान से जीता था और वहां का सूबेदार किसको नियुक्त किया ?
उत्तर-
हुमायूं ने गुजरात सुल्तान बहादुरशाह से जीता। उसने अपने भाई अस्करी को वहां का सूबेदार नियुक्त किया।

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प्रश्न 21.
गुजरात के दो प्रधान नगरों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुजरात के दो प्रधान नगर-चम्पानेर और अहमदाबाद थे।

प्रश्न 22.
पूर्व तथा पश्चिम में हुमायूं के दो प्रमुख प्रतिद्वन्द्वियों ने नाम बताएं।
उत्तर-
पूर्व में शेरखां और पश्चिम में बहादुरशाह हुमायूं के प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी थे।

प्रश्न 23.
शेरखां किस कबीले से था और उसने आरम्भ में किस प्रदेश में अपनी शक्ति को संगठित किया ?
उत्तर-
शेरखां पठान कबीले से था। उसने दक्षिण बिहार में अपनी शक्ति को संगठित किया।

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प्रश्न 24.
शेरशाह ने किन वर्षों में बंगाल के शासक को दो बार हराया ?
उत्तर-
उसने बंगाल के शासक को पहले 1534 ई० में और फिर 1536 ई० में पराजित किया।

प्रश्न 25.
हुमायूं ने बंगाल के रास्ते में किस किले पर घेरा डाला और यह किसके अधिकार में था ?
उत्तर-
हुमायूं ने बंगाल के रास्ते चुनार के किले पर घेरा डाला। यह किला शेरखां के पुत्र कुतुब खां के अधिकार में था।

प्रश्न 26.
हुमायूं तथा शेरखां के बीच दो निर्णायक युद्ध किन स्थानों पर तथा कब हुए ?
उत्तर-
हुमायूं तथा शेरखां के बीच पहला युद्ध चौसा के स्थान पर जून 1539 ई० में और दूसरा युद्ध कन्नौज में मई 1540 ई० में हुआ।

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प्रश्न 27.
शेरखां ने शेरशाह की उपाधि कब धारण की और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
चौसा के युद्ध के बाद शेरखां ने शेरशाह की उपाधि धारण की। उसकी मृत्यु 22 मई, 1545 ई० को हुई।

प्रश्न 28.
हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह ने कौन-सी चार विजयें प्राप्त की ?
उत्तर-
हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह ने पंजाब, मालवा, रायसिन तथा रणथम्भौर के प्रदेशों पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 29.
शेरशाह ने आवागमन की सुविधा के लिए कौन-से दो कार्य किए ?
उत्तर-
शेरशाह ने आवागमन की सुविधा के लिए सड़कें बनवाईं और उनके साथ-साथ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सरायें बनवाईं।

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प्रश्न 30.
शेरशाह के लगान प्रबन्ध से किन्हें लाभ हुआ ?
उत्तर-
शेरशाह के लगान प्रबन्ध से राज्य तथा कृषकों को लाभ हुआ।

प्रश्न 31.
शेरशाह के बाद राज करने वाले चार सूर सुल्तानों के नाम बताएं।
उत्तर-
शेरशाह के बाद इस्लाम शाह, फिरोज, मुहम्मद आदिलशाह तथा सिकन्दर शाह सूर सुल्तान बने।

प्रश्न 32.
शेरशाह द्वारा स्थापित राज्य किन पांच भागों में बंट गया तथा इनके शासक कौन थे ?
उत्तर-
ये पांच भाग थे-पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार, बंगाल, मालवा, दिल्ली तथा आगरा और पंजाब। इनके शासक क्रमशः आदिलशाह सूर, मुहम्मद शाह, बाज़बहादुर, इब्राहीम शाह सूर तथा सिकन्दरशाह सूर थे।

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प्रश्न 33.
शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं को किस देश के कौन-से शासक से सहायता मिली ?
उत्तर-
शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं को ईरान के शाह ताहमस्प की सहायता मिली।

प्रश्न 34.
हुमायूं ने फिर से पंजाब कब जीता और उसकी मुत्यु कब हुई ?
उत्तर-
हुमायूं ने 1555 ई० में फिर से पंजाब जीता। उसकी 1556 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 35.
अकबर का राज्याभिषेक कहां हुआ तथा उस समय उसकी आयु क्या थी ?
उत्तर-
अकबर का राज्याभिषेक कलानौर में हुआ। उस समय उसकी आयु 13 वर्ष थी।

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प्रश्न 36.
अकबर के अभिभावक का नाम बताएं तथा कौन-से वर्षों में उसका प्रभाव रहा ?
उत्तर-
अकबर के अभिभावक का नाम बैरम खां था। उसका प्रभाव 1556 ई० से 1560 ई० तक रहा।

प्रश्न 37.
पानीपत का दूसरा युद्ध किस वर्ष में हुआ तथा इसमें अफ़गान सेनाओं का सेनापति कौन था ?
उत्तर-
पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 ई० में हुआ। इस युद्ध में अफ़गान सेनाओं का नेतृत्व हेमू ने किया।

प्रश्न 38.
अकबर ने अपने राज्यकाल के आरम्भिक वर्षों में किन दो शक्तिशाली अमीरों से और कब छुटकारा प्राप्त किया ?
उत्तर-
अकबर ने आरम्भिक वर्षों में बैरम खां तथा आधम खां नामक अमीरों से क्रमशः 1560 ई० तथा 1562 ई० में छुटकारा प्राप्त किया।

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प्रश्न 39.
अकबर के सौतेले भाई का क्या नाम था और वह किस प्रदेश का शासक था ?
उत्तर-
अकबर के सौतेले भाई का नाम मिर्जा हकीम था। वह काबुल का शासक था।

प्रश्न 40.
1560 ई० से 1570 ई० के बीच अकबर ने किन चार राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाया ?
उत्तर-
इस अवधि के दौरान अकबर ने मालवा, मारवाड़, मेड़ता तथा गढ़-कटंगा आदि प्रदेशों को अपने साम्राज्य में मिलाया।

प्रश्न 41.
अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाली चार राजपूत रियासतों के नाम बताएं।
उत्तर-
अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाली चार राजपूत रियासतें थीं : जयपुर, कालिन्जर, बीकानेर तथा रणथम्भौर।

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प्रश्न 42.
अकबर ने गुजरात, बंगाल तथा उड़ीसा की विजयें कब प्राप्त की ?
उत्तर-
अकबर ने गुजरात को 1572-73, बंगाल को 1574-76 तथा उड़ीसा को 1591 ई० में विजय किया।

प्रश्न 43.
अकबर ने काबुल, कश्मीर, सिन्ध तथा बिलोचिस्तान की विजयें कौन-से वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
अकबर ने काबुल को 1581 ई०, कश्मीर को 1585 ई०, सिन्ध को 1591 ई० तथा बलुचिस्तान को 1595 ई० में विजय किया।

प्रश्न 44.
अकबर ने दक्षिण की कौन-सी चार सल्तनतों की ओर अपने वकील भेजे ?
उत्तर-
अकबर ने खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा में अपने वकील भेजे।

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प्रश्न 45.
सबसे पहले अकबर की अधीनता मानने वाला दक्षिण के किस राज्य का शासक था तथा उसका नाम क्या था ?
उत्तर-
सबसे पहले दक्षिण के खानदेश राज्य के शासक ने अकबर की अधीनता स्वीकार की। उसका नाम राजा अली खां था।

प्रश्न 46.
खानदेश की राजधानी कौन-सी थी और इसके किस महत्त्वपूर्ण किले पर अकबर ने अधिकार किया ?
उत्तर-
खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी। अकबर ने इसके असीरगढ़ नामक किले पर अधिकार किया।

प्रश्न 47.
अकबर ने किन वर्षों में बरार, दौलताबाद, अहमदनगर तथा खानदेश को जीत लिया ?
उत्तर-
अकबर ने बरार को 1596 ई०, दौलताबाद को 1599 ई०, अहमदनगर को 1600 ई० तथा खानदेश को 1601 ई० में जीता।

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प्रश्न 48.
दक्कन में अकबर ने कौन-से दो प्रान्त बनाए ?
उत्तर-
अकबर ने वहां खानदेश तथा बरार नाम के दो प्रान्त बनाए।

प्रश्न 49.
जहांगीर का आरम्भिक नाम क्या था तथा वह कब गद्दी पर बैठा ?
उत्तर-
जहांगीर का आरम्भिक नाम सलीम था। वह 1605 ई० में गद्दी पर बैठा।

प्रश्न 50.
जहांगीर ने नूरजहां से कब विवाह किया तथा उसका आरम्भिक नाम क्या था ?
उत्तर-
जहांगीर ने नूरजहां से 1611 ई० में विवाह किया। उसका आरम्भिक नाम मेहरुन्निसा था।

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प्रश्न 51.
नूरजहां के पिता और भाई के नाम बताएं ।
उत्तर-
नूरजहां के पिता का नाम ग्यासबेग तथा भाई का नाम आसफ खां था।

प्रश्न 52.
मेवाड़ के किस शासक ने और कब जहांगीर की अधीनता स्वीकार की ?
उत्तर-
मेवाड़ के राणा अमरसिंह ने 1615 ई० में जहांगीर की अधीनता स्वीकार की।

प्रश्न 53.
जहांगीर ने कांगड़ा का किला कब जीता और वहां कौन-सा अधिकारी नियुक्त किया ?
उत्तर-
जहांगीर ने कांगड़ा का किला 1620 ई० में जीता। उसने वहां अपना फौजदार नियुक्त किया।

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प्रश्न 54.
जहांगीर के समय कन्धार मुग़लों से कब छिन गया तथा इस पर किसने अधिकार किया ?
उत्तर-
जहांगीर के समय कन्धार 1622 ई० में छिन गया। इस पर ईरान के शाह अब्बास ने अधिकार किया।

प्रश्न 55.
जहांगीर के समय दक्कन की किन सल्तनतों ने मुग़ल साम्राज्य को खिराज देना स्वीकार कर लिया ?
उत्तर-
जहांगीर के समय अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा की सल्तनतों ने मुग़ल साम्राज्य को खिराज देना स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 56.
अहमदनगर कौन-से बादशाह के समय और कब मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया ?
उत्तर-
अहमदनगर को शाहजहां के समय 1633 ई० में मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

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प्रश्न 57.
गोलकुण्डा का सुल्तान इस्लाम के किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित था तथा वह किसको पहला खलीफा मानता था ?
उत्तर-
गोलकुण्डा का सुल्तान इस्लाम के शिया सम्प्रदाय से सम्बन्धित था। वह मुहम्मद साहिब के दामाद हज़रत अली को पहला खलीफा मानता था।

प्रश्न 58.
शाहजहां ने कन्धार पर फिर से अधिकार कब किया गया तथा उस समय कन्धार का गवर्नर कौन था ?
उत्तर-
शाहजहां ने 1638 ई० में कन्धार पर फिर से अधिकार कर लिया गया। उस समय कन्धार का गवर्नर अली मर्दान खां था।

प्रश्न 59.
कन्धार मुगलों से हमेशा के लिए कब छिन गया और इस पर किस देश का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
कन्धार मुग़लों से 1649 ई० में छिन गया। इस पर ईरान का अधिकार स्थापित हो गया।

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प्रश्न 60.
शाहजहां ने मध्य एशिया की विजय के लिए कौन-से शहजादों को और किन वर्षों में भेजा ?
उत्तर-
शाहजहां ने मध्य एशिया की विजय के लिए मुराद को 1644 ई० और औरंगज़ेब को 1647 ई० में भेजा।

प्रश्न 61.
शाहजहां के चार पुत्रों के नाम बताएं।
उत्तर-
शाहजहां के चार पुत्रों के नाम दारा, शुजा, मुराद और औरंगजेब थे।

प्रश्न 62.
उत्तराधिकार के युद्ध कब हुए और औरंगजेब ने दारा को किन दो लड़ाइयों में हराया ?
उत्तर-
उत्तराधिकार के युद्ध अप्रैल तथा मई, 1658 ई० में हुए। औरंगजेब ने दारा को धरमत तथा सामूगढ़ की लड़ाइयों में हराया।

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प्रश्न 63.
शाहजहां का राज्य किस वर्ष जाता रहा और वह कब तक जीवित रहा ?
उत्तर-
शाहजहां का राज्य जून, 1658 ई० में जाता रहा। वह 1666 ई० तक जीवित रहा।

प्रश्न 64.
यूसुफजई पठानों ने किस वर्ष में तथा किन इलाकों में मुगलों के विरुद्ध सिर उठाया ?
उत्तर-
यूसुफजई पठानों ने 1667 ई० में पेशावर, अटक और हज़ारा नामक इलाकों में मुग़लों के विरुद्ध सिर उठाया।

प्रश्न 65.
अफरीदियों ने किस वर्ष मुगलों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तथा इन्हें किस कवि का समर्थन प्राप्त था ?
उत्तर-
अफरीदियों ने 1672 ई० में मुग़लों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। इन्हें कवि खुशाल खां का समर्थन प्राप्त था।

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प्रश्न 66.
मारवाड़ की राजधानी कौन-सी थी और इसका राजा कौन था एवं उसकी मृत्यु किस वर्ष हुई ?
उत्तर-
मारवाड़ की राजधानी जोधपुर थी। इसका राजा जसवन्त सिंह था जिसकी मृत्यु 1678 ई० में हुई।

प्रश्न 67.
शहजादा अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कब किया तथा उसे कौन-सी दो राजपूत रियासतों का समर्थन मिला ?
उत्तर-
शहजादा अकबर ने 1681 ई० में मेवाड़ और मारवाड़ के समर्थन से औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया।

प्रश्न 68.
औरंगजेब दक्कन में किस वर्ष से किस वर्ष तक रहा ?
उत्तर-
औरंगज़ेब दक्कन में 1682 ई० से 1707 ई० तक रहा।

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प्रश्न 69.
औरंगजेब ने बीजापुर कब जीता और उस समय उसका सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
औरंगजेब ने 1686 ई० में बीजापुर को जीता। उस समय इसका सुल्तान सिकन्दर आदिलशाह था।

प्रश्न 70.
औरंगजेब ने गोलकुण्डा कब जीता और उस समय उसका सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
औरंगज़ेब ने 1687 ई० में गोलकुण्डा को जीता। उस समय इसका सुल्तान अबुल हसन था।

प्रश्न 71.
मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारणों की जड़ क्या थी ?
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारणों की जड़ औरंगजेब की दक्षिण नीति थी।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर तथा लोधी अफ़गानों के बीच संघर्ष के बारे में बताएं।
उत्तर-
बाबर और लोधी अफ़गानों के बीच पांच वर्ष तक संघर्ष चला। सर्वप्रथम बाबर ने सिकन्दर लोधी को 1525 ई० में पंजाब में पराजित किया। तत्पश्चात् उसने इब्राहीम लोधी के साथ पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में 1526 ई० में टक्कर ली। इब्राहीम लोधी अपने कई हजार सैनिकों के साथ मारा गया। युद्ध में बाबर ने श्रेष्ठ युद्ध नीति का प्रदर्शन किया। इसके अतिरिक्त उसके तोपखाने ने भी शत्रुओं का साहस तोड़ दिया। बाबर ने शीघ्र ही दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया। उसने लोधी अफ़गानों को अपने प्रदेश से निकालना आरम्भ किया। अतः उन्होंने राणा संग्राम सिंह से सहायता मांगी। कनवाहा की लड़ाई (1527 ई०) में उन्होंने राणा सांगा का साथ दिया। इस युद्ध में बाबर की ही विजय हुई। 1529 ई० में अफगानों ने घाघरागंगा-संगम के निकट बाबर से युद्ध किया। इस बार भी बाबर विजयी रहा। इस तरह बाबर अफ़गानों की शक्ति कुचलने में सफल रहा।

प्रश्न 2.
बाबर तथा राणा सांगा के बीच युद्ध के बारे में बताएं।
उत्तर-
बाबर तथा राणा सांगा के बीच 1527 ई० में युद्ध हुआ। पानीपत की विजय के पश्चात् बाबर ने भारत में रहने का निश्चय किया। यह बात मेवाड़ के शासक राणा सांगा की महत्त्वाकांक्षाओं के मार्ग में बाधा थी। मेवाड़ राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य था। इसी बीच बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोधी के इलाकों से अफ़गानों को निकालना आरम्भ कर दिया। तंग आकर कुछ अफ़गान सरदारों ने राणा सांगा से सहायता मांगी। वह तुरन्त उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो गया। मार्च 1527 ई० में राणा सांगा ने आगरा की ओर कूच किया। बाबर अपनी सेना को लेकर फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ आ पहुंचा। दोनों पक्षों में दस घण्टे तक युद्ध हुआ। बाबर को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। राणा सांगा की प्रतिष्ठा को बड़ा आघात पहुंचा और एक वर्ष के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गई। भारत में बाबर के लिए विजय द्वार खुल गए।

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प्रश्न 3.
हुमायूं तथा बहादुरशाह के बीच संघर्ष के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुजरात के शासक बहादुरशाह के साथ हुमायूं के सम्बन्ध आरम्भ से ही शत्रुतापूर्ण थे। बहादुरशाह उन अफ़गानों को आश्रय दे रहा था जिन पर मुग़ल साम्राज्य के प्रति विद्रोह का आरोप था। वह दिल्ली पर अधिकार करने का भी आकांक्षी था। हुमायूं पहले तो शान्त रहा, परन्तु जब बहादुरशाह सभी युद्धों से निपट चुका, तब हुमायूं ने उस पर आक्रमण किया। उसने बहादुरशाह की सेना को मन्दसौर के स्थान पर घेरा। बहादुरशाह अपने पांच साथियों सहित शिविर बन्द करके भाग निकला। हुमायूं ने उसका मांडू तथा चम्पानेर तक पीछा किया। बहादुरशाह खम्बात की ओर भागने को विवश हो गया। हुमायूं वापिस लौट आया और उसने चम्पानेर पर अधिकार कर लिया। यहां हुमायूं ने फिर भूल की। वह विजित प्रदेशों का प्रबन्ध किए बिना ही आगरा लौट आया। परिणामस्वरूप उसके जाते ही शत्रुओं ने अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया।

प्रश्न 4.
हुमायूं तथा शेरशाह सूरी के बीच संघर्ष के बारे में बताएं। .
उत्तर-
शेर खां भारत के पूर्वी प्रदेशों में अपनी शक्ति बढ़ा रहा था। 1531 ई० में हुमायूं शेर खां के विरुद्ध बढ़ा। परन्तु उसने पहले मार्ग में स्थित चुनार के किले को जीतना उचित समझा। इस अवसर का लाभ उठाकर शेर खां ने अपनी शक्ति दृढ़ कर ली। उधर उसके सैनिकों ने हुमायूं को मार्ग में तेहरिया गढ़ी के स्थान पर रोक दिया और उसे बंगाल की राजधानी गौड़ की ओर न बढ़ने दिया। इसी बीच शेर खां ने गौड़ का कोष और अफ़गान परिवार रोहतासगढ़ भेज दिए। इसके बाद ही हुमायूं गौड़ को जीत सका। यहां वह रंगरलियों में डूब गया। हुमायूं जब वापिस चला तो चौसा के स्थान पर दोनों पक्षों में पुनः युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूं बुरी तरह पराजित हुआ। शेर खां हुमायूं का पीछा करता हुआ कन्नौज तक बढ़ आया। हुमायूं के लिए यह संकट की घड़ी थी। उसने 1000 सैनिक इकट्ठे किए और एक बार फिर कन्नौज की ओर बढ़ा। दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। चौसा की भान्ति यहां भी हुमायूं पराजित हुआ।

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प्रश्न 5.
शेरशाह किन कार्यों के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
शेरशाह सूरी ने 1540 ई० से 1545 ई० तक शासन किया। उसने मुग़ल राज्य (1540), मालवा (1542), मारवाड़ (1543) तथा रोहतासगढ़ तक के प्रदेश को विजय किया। इन महत्त्वपूर्ण विजयों के अतिरिक्त शेरशाह कई अन्य कार्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। उसने अनेक सड़कें बनवाईं और सड़कों के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सराएं बनवाईं। उसके द्वारा बनवाई गई सबसे लम्बी सड़क शाही सड़क (जी० टी० रोड) थी जो बंगाल से सिन्ध नदी तक जाती थी। सड़कों के कारण सेनाओं, व्यापारियों तथा जनसाधारण को लाभ पहुंचा। शेरशाह सूरी ने अपने राज्य में शान्ति स्थापित की तथा एक उत्तम प्रकार की लगान व्यवस्था आरम्भ की। इस लगान व्यवस्था से राज्य तथा कृषकों को बड़ा लाभ पहुंचा। सच तो यह है कि शेरशाह एक सफल विजेता तथा उच्चकोटि का प्रबन्धक था।

प्रश्न 6.
पानीपत की पहली लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ई० में हुई। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप भारत में सुल्तानों के राज्य का अन्त हुआ और मुगल वंश की स्थापना हुई। इस लड़ाई के कई कारण थे। मध्य-एशिया के युद्धों में बाबर को असफलता का मुंह देखना पड़ा था। फरगाना का राज्य भी उससे छिन गया था। भारत में दिल्ली सल्तनत बहुत कमजोर हो चुकी थी। इसी समय दौलत खां लोधी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया। इस प्रकार परिस्थितियां बाबर के लिए अनुकूल थीं। उसने इनका लाभ उठाया और अपनी सेनाओं सहित भारत आ पहुंचा। पानीपत के निकट आकर उसने बड़े अच्छे ढंग से मोर्चाबन्दी की और युद्ध की तैयारी करने लगा। 21 अप्रैल, 1526 ई० की प्रातः बाबर और इब्राहीम लोधी की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। इब्राहीम लोधी बाबर जैसा योग्य सेनापति नहीं था। अतः वह युद्ध में हार गया और मारा गया। युद्ध में विजय पाने के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 7.
बैरम खां के अधीन मुगल साम्राज्य का स्थिरीकरण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-
बैरम खां अकबर का संरक्षक था। उसी ने 1556 ई० में अकबर को कलानौर में हुमायूं का उत्तराधिकारी घोषित किया। इसीलिए शासन के आरम्भिक चार वर्षों में (1556 ई० से 1560 ई० तक) बैरम खां का मुग़ल दरबार में अत्यधिक प्रभाव रहा। हुमायूं की मृत्यु के शीघ्र बाद ही हेमू ने मुगल सेनापति तारदी बेग को पराजित कर दिया था। बैरम खां ने तारदी बेग की पराजय के कारण उसका वध करवा दिया। इसके बाद उसने अकबर को दिल्ली जाने का परामर्श दिया। 1556 ई० में पानीपत के मैदान में हेमू और मुग़ल सेनाओं में जम कर लड़ाई हुई। हेमू पराजित हुआ। इसी बीच उसके स्वामी आदिल शाह को बंगाल के खिज्र खां ने मार डाला। बैरम खां के प्रयत्नों के कारण सिकन्दर सूर ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा बिहार में जागीर स्वीकार कर ली। बैरम खां ने ग्वालियर को भी जीता। इस प्रकार 1560 ई० तक बैरम खां ने काबुल से जौनपुर और पंजाब की पहाड़ियों से लेकर अजमेर तक फैले अकबर के राज्य को स्थिरता प्रदान की।

प्रश्न 8.
आपके विचार में भारत के मुसलमान शासकों में शेरशाह सूरी का क्या स्थान है ?
उत्तर-
शेरशाह सूरी को भारत के मुसलमान शासकों में एक बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। एक साधारण जागीरदार के पुत्र की स्थिति से उठकर वह भारत का सम्राट बना। इस प्रकार उसने अपनी योग्यता, बल और उच्च कोटि के नेतृत्व का परिचय दिया। उसने केवल पांच वर्ष ही राज्य किया। इस थोड़े से समय में ही उसने शान्ति, सुरक्षा और सुव्यवस्था स्थापित करके देश को सुदृढ़ बनाया। वह प्रजा का हितैषी था। उसने अनुभव किया कि हिन्दू जनता का सहयोग प्राप्त किए बिना कोई भी राज्य स्थायी नहीं रह सकता। इसलिए उसने धार्मिक कट्टरता से मुक्त होकर हिन्दुओं के प्रति उदारता और सहनशीलता की नीति अपनाई। इस प्रकार शेरशाह ने अपने शासन सम्बन्धी सुधारों और धार्मिक उदारता की नीति से सम्राट अकबर के महान कार्य के लिए उचित वातावरण तैयार किया। यदि उसे राष्ट्र-निर्माता भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी।

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प्रश्न 9.
“शेरशाह सूरी अकबर का अग्रणी था” सिद्ध करो।
उत्तर-
निम्नलिखित चार बातों से यह स्पष्ट हो जाएगा कि शेरशाह सूरी अकबर का अग्रणी था :-
1. उच्च राजकीय आदर्श-शेरशाह सूरी कभी भी अपना समय नष्ट नहीं करता था। जनता की भलाई के लिए वह कठोर परिश्रम करता था। अकबर शेरशाह द्वारा दिखाई गई इसी राह पर चला।

2. प्रशासनिक विभाजन-शेरशाह ने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए राज्य को ‘सरकारों’ तथा ‘परगनों’ में बांटा हुआ था। अकबर ने भी शेरशाह के समय की प्रशासकीय इकाइयों तथा नागरिक संस्थाओं को उनके नाम बदलकर अपनाया।

3. प्रजा-हितार्थ कार्य-शेरशाह ने अपने राज्य में सड़कें बनवाईं और सड़कों के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगवाए। यात्रियों की सुविधा के लिए उसने सराएं बनवाईं। अकबर ने भी राज्य में सड़कों का जाल बिछाया। उसने अनेक सरायें बनवाईं, अस्पताल खुलवाए और कुएं खुदवाए।

4. धार्मिक सहनशीलता-शेरशाह पहला मुस्लिम शासक था जिसने हिन्दुओं के प्रति उदारता दिखाई। अकबर ने भी इसी उदारता की नीति को अपनाया।

प्रश्न 10.
“अकबर एक राष्ट्रीय शासक था।” क्यों ?
उत्तर-
अकबर पहला मुस्लिम सम्राट् था जिसने किसी धर्म या सम्प्रदाय को उन्नत करने की बजाए राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा दिया। उसने समस्त उत्तरी भारत को विजय करके एक सूत्र में बांधा। उसने समस्त राज्य में समान कानून तथा शासनप्रणाली लागू की। पहली बार हिन्दू-जनता को मुसलमानों के समान धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। जज़िया समाप्त कर दिया गया। मुग़ल सम्राट अकबर ने न केवल राजपूत राजकुमारियों से विवाह ही किया बल्कि उन्हें पूरी तरह हिन्दू परम्पराओं के अनुसार पूजा-पाठ करने की अनुमति भी दे रखी थी। दीन-ए-इलाही अकबर की धार्मिक सहनशीलता की चरम सीमा थी। उसने यह धर्म हिन्दू तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए आरम्भ किया था। इन सभी कार्यों द्वारा अकबर देश में राष्ट्रीय राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

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प्रश्न 11.
अकबर की धार्मिक नीति के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
अकबर आरम्भ में परम्परावादी मुसलमान था परन्तु धीरे-धीरे उसके धार्मिक विचारों में उदारता आने लगी। उसने तीर्थ-कर और जजिया कर हटा दिये। उसने फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना बनवाया जहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लोग धार्मिक विषय पर चर्चा करते थे। इन सभी विचारों के सम्मिश्रण से अकबर ने एक नवीन धर्म का प्रारम्भ किया जिसे दीन ए-इलाही का नाम दिया जाता है। अकबर ने इस धर्म में अच्छे-अच्छे सिद्धान्तों का संग्रह किया। इसके अतिरिक्त अकबर ने राजपूत राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। सभी हिन्दू रानियों को हिन्दू परम्पराओं के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतन्त्रता प्राप्त थी। अकबर ने नौकरियों के द्वार सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खोल रखे थे। इस प्रकार मुस्लिम युग में पहली बार किसी मुसलमान शासक के अधीन धार्मिक सहनशीलता का वातावरण अस्तित्व में आया।

प्रश्न 12.
दीन-ए-इलाही से आप क्या समझते हैं ? उसके मुख्य सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
दीन-ए-इलाही अकबर की धार्मिक भावनाओं के विकास की चरम सीमा थी। उसने इबादतखाने में हुए वादविवादों से यह निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्म मूल रूप से एक हैं। इस बात से प्रेरणा लेकर उसने 1582 ई० में दीन-ए-इलाही धर्म प्रचलित किया। उसने इसमें सभी धर्मों के मौलिक सिद्धान्तों का समावेश किया। देवी-देवताओं तथा पीर-पैगम्बरों का इस नए धर्म में कोई स्थान न था। इसके अनुसार ईश्वर एक है और अकबर उसका सबसे बड़ा पुजारी है। इस धर्म के अनुयायियों के लिए मांस खाने की मनाही थी। इसके मानने वाले “अल्लाह-हु-अकबर” कहकर एक-दूसरे का स्वागत करते थे। वे . सम्राट के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए भी तैयार रहते थे। परन्तु दीन-ए-इलाही अधिक लोकप्रिय न हो सका। अकबर ने इसके प्रचार के लिए भी कोई विशेष पग न उठाया। परिणामस्वरूप अकबर की मृत्यु के साथ ही इस धर्म का अन्त हो गया।

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प्रश्न 13.
अकबर की राजपूतों के प्रति नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
अकबर की राजपूत नीति उसकी राजनीतिक बुद्धिमता का प्रमाण थी। वह जानता था कि राजपूतों के सहयोग के बिना वह राष्ट्रीय शासक नहीं बन सकता। अतः उसने राजपूतों के प्रति मित्रता और सहनशीलता की नीति अपनाई। उसने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किए, राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया और उनको धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। उसने अम्बर (जयपुर) के राजा बिहारीमल, बीकानेर तथा जैसलमेर के राजपूत राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। भगवान् दास, मानसिंह, उदय सिंह आदि राजपूत अकबर के समय के उच्च सैनिक अधिकारी थे। उसने न तो राजपूतों के पवित्र मन्दिरों को तोड़ा और न ही अपने किसी युद्ध को जिहाद (धर्मयुद्ध) का नाम दिया। अकबर की राजपूत नीति का यह परिणाम हुआ कि राजपूत अकबर के मित्र बन गए। इस हिन्दू-मुस्लिम सहयोग के कारण ही अकबर आगे चलकर राष्ट्र-निर्माण के उद्देश्य में सफल हो सका।

प्रश्न 14.
एक शासक के रूप में जहांगीर के प्रमुख कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
जहांगीर अपने पिता अकबर की मृत्यु के बाद 1605 ई० में मुग़ल सम्राट् बना। उसने मेवाड़ के साथ चले आ रहे लगभग 40 वर्षों के संघर्ष को समाप्त किया। उसने बंगाल में शान्ति स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त की। 1622 ई० में उसका स्वास्थ्य गिर जाने के कारण राजनीति की बागडोर उसकी पत्नी नूरजहां के हाथ आ गई जिसके साथ उसने 1611 ई० में विवाह किया था। जहांगीर को अपने दूसरे पुत्र खुर्रम (शाहजहां) के विद्रोह के कारण कन्धार का किला भी खोना पड़ा। तत्पश्चात् उसे अपने एक सरदार महावत खां के विद्रोह में उलझना पड़ा जहां से उसे नूरजहां ने बचाया। उसने अकबर द्वारा स्थापित मनसबदारी प्रणाली में कुछ परिवर्तन किए। उदाहरण के लिए उसने सवार के औसत वेतन को घटा दिया और इस प्रणाली में दुअस्पाह-सिह-अस्पाह व्यवस्था का समावेश किया। इस नई व्यवस्था के अनुसार इस पदवी के मनसबदार को उसके सवार की पदवी के आधार पर निश्चित सैनिकों से दुगुने सैनिक रखने पड़ते थे। इसके लिए उसे वेतन भी दुगुना ही दिया जाता था। 1627 ई० में जहांगीर की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 15.
नूरजहां पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
नूरजहां का असली नाम मेहरून्निसा था। वह एक ईरानी सरदार ग्यासबेग की पुत्री थी। ग्यासबेग काम की तलाश में भारत आ रहा था। काफिले के सरदार मलिक मसऊद की सहायता से ग्यासबेग को अकबर के दरबार में छोटी-सी नौकरी मिल गई। 1595 ई० में मेहरून्निसा का विवाह एक ईरानी नवयुवक अली कुली खां से हो गया। अली कुली खां को सलीम से शेर अफ़गान की उपाधि भी प्राप्त हुई। सलीम जब राजा (जहांगीर) बना तो उसने शेर अफ़गान को बर्दवान का सूबेदार बना दिया। परन्तु 1607 ई० में शेर अफ़गान का वध कर दिया गया। इसके चार वर्ष बाद जहांगीर ने नूरजहां से स्वयं विवाह कर लिया। नूरजहां एक कुशल स्त्री थी। उसने शासन में काफ़ी अधिकार प्राप्त कर लिए। धीरे-धीरे शासन के सभी कार्य वह स्वयं करने लगी। प्रसिद्ध इतिहासकार एलफिंस्टन के मतानुसार, “नूरजहां बड़ी तीव्र बुद्धि की स्त्री थी जिसने फर्नीचर, आभूषणों तथा नवीन वेशभूषा का आविष्कार किया।”

प्रश्न 16.
शासक के रूप में शाहजहां के कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
शाहजहां अपने पिता जहांगीर की मृत्यु के बाद 1628 ई० में मुग़ल सम्राट् बना। अगले ही वर्ष उसने कन्धार पर फिर से मुगलों का अधिकार स्थापित किया, परन्तु लगभग 20 वर्ष बाद ईरानियों ने इस प्रदेश को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। कन्धार के बाद शाहजहां ने मध्य एशिया में बल्ख और बदख्शां को विजय करने का प्रयत्न किया, परन्तु कन्धार की भान्ति ये प्रदेश भी मुग़ल राज्य का स्थायी अंग न बन सके। शाहजहां ने कला तथा प्रशासन के क्षेत्र में कुछ महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की। उसके द्वारा बनवाए गए आगरा तथा दिल्ली के भवन कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। उसने मनसबदारी प्रथा में एक परिवर्तन किया। अब प्रत्येक सरकार को अपनी सवार पदवी के आधार पर निश्चित संख्या के एक-तिहाई सवारों को रखना पड़ता था। कुछ परिस्थितियों में यह संख्या एक-चौथाई अथवा पांचवां भाग भी होती थी। शाहजहां ने अपनी सेना को भी सुदृढ़ बनाया। 1666 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 17.
औरंगजेब की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और वह सुन्नी सम्प्रदाय के अतिरिक्त किसी भी धर्म को फलता-फूलता नहीं देख सकता था। अतः उसने सभी गैर-मुस्लिम सम्प्रदायों के विरुद्ध असहनशीलता की नीति अपनाई। उसने हिन्दुओं के अनेक मन्दिर नष्ट-भ्रष्ट कर दिए और उन पर लगे करों में वृद्धि कर दी। उसने हिन्दुओं से ‘जज़िया’ नामक धार्मिक कर भी फिर से लेना आरम्भ कर दिया। 1671 ई० में एक आदेश द्वारा उसने प्रशासन में नियुक्त सभी हिन्दुओं को उनके पदों से हटा दिया। उसने उनके उत्सवों पर भी रोक लगा दी और इस बात की मनाही कर दी कि कोई भी हिन्दू पालकी में बैठकर नहीं जा सकता। इतना ही नहीं, उसने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए बल और प्रलोभन दोनों का प्रयोग किया। उसके इन कार्यों से सभी हिन्दू जातियां मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध हो गईं और स्थान-स्थान पर विद्रोह होने लगे। फलस्वरूप सारा प्रशासनिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया।

प्रश्न 18.
औरंगजेब की राजपूत नीति क्या थी और इसके क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
राजपूतों के प्रति औरंगजेब की नीति अकबर की नीति के बिल्कुल विपरीत थी। अकबर ने उन्हें सीने से लगाया, परन्तु औरंगजेब ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा। उसने अपने दो राजपूत सेनानायकों राजा जसवन्त सिंह तथा राजा जयसिंह के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। राजा जयसिंह को उसने विष दिलवा दिया और जसवन्त सिंह को अटक के पार भेज कर मौत के मुंह में धकेल दिया। 10 दिसम्बर, 1678 ई० को जसवन्त सिंह की जमरूद में मृत्यु हो गई और मुग़लों ने बड़ी सरलता से जोधपुर पर अधिकार कर लिया। वहां फौजदार, किलादार, कोतवाल तथा अमीन के पदों पर मुसलमानों को नियुक्त कर दिया गया। औरंगज़ेब राजा जसवन्त सिंह के पुत्र अजीत सिंह को अपने अधिकार में रखना चाहता था। इसलिए औरंगज़ेब और मारवाड़ में एक लम्बा युद्ध चला, जिसमें मेवाड़ का राजा भी सम्मिलित हो गया। औरंगज़ेब का अपना पुत्र अकबर भी राजपूतों से मिल गया। औरंगज़ेब की राजपूत नीति के कारण राजपूत मुग़ल साम्राज्य के कट्टर विरोधी हो गए थे। उनकी यह शत्रुता मुग़ल साम्राज्य के विनाश का कारण बनी।

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प्रश्न 19.
औरंगजेब की दक्षिण नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब को दक्षिण की शिया रिसायतों का अस्तित्व पसन्द नहीं था। वह मराठों की शक्ति को भी कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने गोलकुण्डा राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1687 ई० में वह इस राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को अपने अधीन कर लिया। दक्षिण में मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शम्भा जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगज़ेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगज़ेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

प्रश्न 20.
औरंगज़ेब भारत का राज्य लेने में किस तरह सफल हुआ ?
उत्तर-
1657 ई० में अपने पिता की बीमारी का समाचार सुन कर औरंगजेब ने बड़ी चालाकी से काम लिया। वह उस समय दक्षिण का सूबेदार था। उसने अपने भाई मुराद को, जो उस समय गुजरात का सूबेदार था, आधे राज्य का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। दोनों की संयुक्त सेनाएं आगरा की ओर बढ़ीं। मार्ग में उन्होंने राजा जसवन्त सिंह को हराया और फिर सामूगढ़ के मैदान में अपने बड़े भाई दारा को पराजित किया। तत्पश्चात् औरंगज़ेब ने अपने भाई मुराद को शराब पिला कर बन्दी बना लिया और ग्वालियर के किले में कैद कर लिया। बाद में उसे फांसी दे दी गई। उसने अपने पिता शाहजहां को भी कैद कर लिया। कुछ समय पश्चात् उसने दारा और उसके पुत्र सुलेमान शिकोह को मरवा दिया। इसी बीच उसके भाई शुजा का अराकान में वध हो चुका था। इस प्रकार अपने सभी शत्रुओं से मुक्त हो कर औरंगज़ेब भारत की राजगद्दी प्राप्त करने में सफल रहा।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर के प्रारम्भिक जीवन, उसकी विजयों और चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्रारम्भिक जीवन-बाबर का जन्म 1483 ई० को फरगाना की राजधानी अन्दीजन में हुआ। उसका पिता उमर शेख मिर्जा फरगाना का शासक था। जब बाबर 11 वर्ष का था तो उसके पिता का देहान्त हो गया। आरम्भ में बाबर ने तैमूर की राजधानी समरकन्द को जीतने का प्रयत्न किया, परन्तु वह इसमें असफल रहा। इस चक्कर में उसकी पैतृक सम्पत्ति फरगाना भी उनसे छिन गई। इतना होने पर भी बाबर ने साहस नहीं छोड़ा। 1504 ई० में उसने काबुल और गज़नी पर अधिकार कर लिया और अपने राज्य की स्थापना की।

बाबर की भारत-विजय-काबुल और गज़नी में राज्य स्थापित करने के पश्चात् बाबर ने भारत को विजय करने की योजना बनाई। आरम्भ में उसने कई भारतीय प्रदेशों पर आक्रमण किए, परन्तु उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण लड़ाई दिल्ली के शासक इब्राहीम लोधी के विरुद्ध थी। यह लड़ाई 1526 ई० में पानीपत के मैदान में हुई। बाबर के तोपखाने के सामने इब्राहिम लोधी की सेना न टिक सकी। इस युद्ध में इब्राहीम लोधी मारा गया और बाबर विजयी हुआ। पानीपत की विजय के पश्चात् बाबर ने दिल्ली और आगरा पर भी अधिकार कर लिया।

दिल्ली विजय के पश्चात् बाबर को राजपूत शासक राणा सांगा से टक्कर लेनी पड़ी। 1527 ई० में आगरा के समीप कनवाहा नामक गांव में बाबर और राणा सांगा के बीच भयंकर युद्ध हुआ। राणा सांगा अन्त में मैदान छोड़कर भाग निकला और बाबर को विजय प्राप्त हुई। 1529 ई० में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़गानों को परास्त किया। इस प्रकार भारत पर बाबर का अधिकार हो गया।

बाबर का चरित्र-बाबर एक सफल शासक तथा अनुभवी सैनिक था। वह विद्वान् और कला-प्रेमी था। इसके अतिरिक्त वह बड़ा साहसी और धैर्यवान था। कठिनाइयों में वह कभी नहीं घबराया। एक व्यक्ति के रूप में भी उसका चरित्र बड़ा प्रभावशाली था। वह एक अच्छा पिता, दयालु स्वामी तथा उदार मित्र था। वह हंसमुख और मिलनसार था। वह सदा अपने से बड़ों का आदर तथा छोटों से प्रेम करता था। इन गुणों के बावजूद बाबर में शराब तथा विषय-भोग जैसे अवगुण भी थे। परन्तु यह अवगुण उसके कर्त्तव्यपालन के मार्ग में कभी बाधा नहीं बन पाये। सच तो यह है कि भारतीय इतिहास में बाबर को एक बहुत उच्च स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 2.
बाबर के पश्चात् हुमायूं के सामने कौन-कौन सी कठिनाइयां थीं ?
उत्तर-
1530 ई० में बाबर की मृत्यु के पश्चात् हुमायूं राजसिंहासन पर बैठा। परन्तु गद्दी पर बैठते ही उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का वर्णन इस प्रकार है :

1. अस्थिर और अव्यवस्थित राज्य-हुमायूं को उत्तराधिकार में एक ऐसा राज्य मिला जो न तो सुदृढ़ था और न ही सुव्यवस्थित। बाबर ने न तो बंगाल को अपने अधीन किया था और न ही गुजरात को। राजपूत बाबर से पराजित अवश्य हुए थे, परन्तु उनकी शक्ति को पूर्णतः कुचला नहीं गया था। इस प्रकार हुमायूं चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था।

2. विभाजित राज्य-राजगद्दी पर बैठते ही हुमायूं ने राज्य को अपने तीन भाइयों में बांट दिया। उसके तीनों भाई बड़े ही अयोग्य थे। उन्होंने हुमायूं की सहायता करने की बजाय उसके मार्ग में बाधाएं डालनी आरम्भ कर दी।

3. अफ़गानों का विरोध-पानीपत तथा घाघरा की लड़ाई में परास्त होकर भी अफ़गान शक्ति नष्ट नहीं हुई थी। बड़ेबड़े अफ़गान सरदार दिल्ली के सिंहासन को वापस लेना चाहते थे। प्रसिद्ध अफगान सरदार शेर खां तो हुमायूं के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गया था।

4. खाली राजकोष-हुमायूँ के पिता बाबर ने अपनी उदारता के कारण अपना काफ़ी सारा धन व्यर्थ में व्यय कर दिया। फलस्वरूप हुमायूँ को एक ऐसा राजकोष मिला जो लगभग खाली हो चुका था। धन के अभाव में हुमायूँ के लिए शासन चलाना सरल नहीं था।

5. विश्वासपात्र सैनिकों का अभाव हुमायूं की सेना में किसी एक जाति के लोग नहीं थे। उसमें चुगताई, तुर्क, उजबेग, मुग़ल, अफ़गान और ईरानी सभी लोग शामिल थे। परिणामस्वरूप सेना में एकता का बड़ा अभाव था। सैनिक संगठन की कमी के कारण हुमायूं की कठिनाइयां और भी बढ़ गईं।

6. व्यक्तिगत दोष-हुमायूँ बड़ा ही विलासी व्यक्ति था। वह हर समय अफीम खाकर मस्त रहता था। शेर खां और बहादुरशाह जब उसके लिए खतरा बने हुए थे तो उसने अपना कीमती समय रंगरलियों में खो दिया। परिणामस्वरूप उसके शत्रुओं को शक्ति बढ़ाने को अवसर मिल गया।
इस प्रकार हुमांयू जीवन-भर इन कठिनाइयों से घिरा रहा। उसने अपनी भूलों से अपनी कठिनाइयों को और अधिक बढा दिया।

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प्रश्न 3.
शासक के रूप में हुमायूं की असफलता के क्या कारण थे ?
अथवा
हुमायूँ की भूलों का वर्णन करो।
उत्तर-
हुमायूं अपनी निम्नलिखित भूलों के कारण शासक के रूप में असफल रहा :

1. हुमायूं द्वारा राज्य का मूर्खतापूर्ण विभाजन-गद्दी पर बैठते ही हुमायूं के कदम लड़खडा गये। उसने अपने भाइयों में राज्य का विभाजन राज्य के हितों को ध्यान में रखकर न किया, बल्कि अपने भाइयों की इच्छाओं को ध्यान में रखकर किया। उसने कामरान को काबुल तथा कन्धार, अस्करी को सम्भल और हिन्दाल को अलवर का शासक बना दिया। शीघ्र ही उसे अपनी भूल के परिणाम भुगतने पड़े। कामरान कुछ ही दिनों में अपने असली रूप में प्रकट हुआ। वह हुमायूं को राज्याभिषेक पर बधाई देने की आड़ में पंजाब की ओर बढ़ आया और वहां अपना अधिकार जमा लिया। इससे हुमायूं का आधा राज्य जाता रहा और उसकी सैनिक शक्ति काफ़ी दुर्बल हो गई। उसके अन्य भाइयों ने भी उसके लिए अनेक कठिनाइयां उत्पन्न की।

2. समय तथा धन की बर्बादी-हुमायूँ समय तथा धन के महत्त्व को नहीं समझता था। उसने अपने आरम्भिक वर्षों में दिल्ली तथा आगरा में धन को पानी की तरह बहाया। उसने राज्याधिकारियों को बहुमूल्य पुरस्कार दिए। “उसने अपना काफ़ी समय और धन दिल्ली में एक विशाल दुर्ग बनाने की योजना में नष्ट किया।” यह सब काम उसने उस समय किया जब गुजरात का बहादुरशाह उसके शत्रुओं को पनाह दे रहा था और अपनी शक्ति बढ़ाने में लगा हुआ था। समय और धन की यह बर्बादी हुमायूं की दूसरी बड़ी भूल थी।

3. गुजरात अभियान की भूलें-गुजरात अभियान में हुमायूं ने अनेक भूलें कीं। उसने रानी कर्णवती की पेशकश को ठुकरा कर राजपूतों की मित्रता से हाथ धो लिया। उसका समय पर बहादुरशाह पर आक्रमण न करना भी उसकी भूल थी। जब बहादुरशाह कर्णवती के विरुद्ध उलझा हुआ था तो हुमायूं रंगरलियों में डूब गया। फिर जब हुमायूं ने बहादुरशाह का पीछा किया तो उसका वध किए बिना ही वापस लौट आया। यह उसकी बड़ी भूल थी, क्योंकि कुछ समय के पश्चात् बहादुरशाह दियु से लौटकर हुमायूं के लिए समस्या बन गया। उसे गुजरात का शासन अस्करी को नहीं सौंपना चाहिए था। अस्करी न तो इतना योग्य था और न ही हुमायूँ का स्वामिभक्त । अतः उसके अधीन गुजरात की शासन-व्यवस्था बिगड़ गई और यह प्रान्त मुग़लों के हाथों से निकल गया।

4. शेर खां के विरुद्ध संघर्ष में उसकी भूल- शेर खां के विरुद्ध अभियान में भी हुमायूँ ने अनेक भूलें कीं। उसने चुनार पर घेरा डालकर गौड़ खो दिया। फिर गौड़ की रंगीनियों में डूबकर आगरा जाने वाला मार्ग छिनवा बैठा। गौड़ की वापसी पर भी उसने सुरक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं किया। चौसा के मैदान में काफ़ी समय पड़ा रहना हुमायूं की भारी भूल थी। उसे शीघ्रातिशीघ्र आगरा पहुंचना चाहिए था। चौसा के मैदान में उसने पहरेदारी का काम एक विश्वासघाती को सौंप रखा था। शेर खां ने सोये हुए मुग़ल सैनिकों पर पौ फटने से पहले ही आक्रमण किया था। हुमायूं को इसकी कोई खबर तक न हुई। उसे तो स्वयं नदी में कूद कर अपनी जान बचानी पड़ी। हुमायूं की इन भूलों ने उसे भारत छोड़कर भागने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 4.
“शेरशाह सूरी योग्यता तथा कूटनीति में अकबर का. अग्रगामी था।” कोई पांच तर्क देकर व्याख्या कीजिए।
अथवा
शेरशाह सूरी को अकबर का अग्रगामी कहना कहां तक उचित है ?
उत्तर-
शेरशाह तथा अकबर में वही सम्बन्ध था जो मार्गदर्शक तथा मार्ग पर चलने वालों में होता है। शेरशाह ने मार्ग तैयार किया। अकबर उस मार्ग पर चला भी और उसने वह मार्ग संवारा भी। निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जायेगा कि शेरशाह अकबर का अग्रगामी था :

1. उच्च राजकीय आदर्श-शेरशाह सूरी ने उच्च राजकीय आदर्श स्थापित किए। वह कभी भोग-विलास में अपना समय नष्ट नहीं करता था। जनता की भलाई के लिए वह कड़ा परिश्रम करता था। अकबर शेरशाह द्वारा दिखाई गई इसी राह पर चला।

2. प्रशासनिक विभाजन-शेरशाह ने शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्य को ‘सरकारों’ तथा ‘परगनों’ में बाँटा हुआ था। अकबर ने भी शेरशाह के समय की प्रशासकीय इकाइयों तथा नागरिक संस्थाओं को अपनाया। अन्तर केवल दोनों के समय के अधिकारियों और प्रशासनिक इकाइयों के नामों में था।

3. भूमि-कर-प्रबन्ध-शेरशाह ने भूमि की पैमाइश करवाई, उपज को तीन श्रेणियों में बाँटा, एक-चौथाई भूमि-कर नियत किया तथा किसानों की सुविधा के लिए अनेक अन्य पग उठाये। अकबर ने भी शेरशाह की भूमि-प्रणाली को अपनाया, उसने भूमि को बाँसों के गजों से नपवाया और भूमि को चार भागों में बांटा। उसने किसानों को भी सुविधाएं प्रदान की।

4. धार्मिक सहनशीलता-धार्मिक सहनशीलता में भी शेरशाह सूरी ने अकबर का पथ-प्रदर्शन किया। शेरशाह पहला मुस्लिम शासक था जिसनें हिन्दुओं के प्रति उदारता दिखाई थी। अकबर ने तो क्षेत्र में एक नवीन आदर्श स्थापित किया। उसने हिन्दुओं से ‘जज़िया’ लेना बन्द कर दिया और उन्हें उच्च पदों पर भी नियुक्त किया।

5. सैनिक प्रबन्ध-सैनिक संगठन में भी शेरशाह सूरी अकबर का अग्रगामी था। अकबर ने शेरशाह की भान्ति स्थायी

6. मुद्रा-प्रणाली-शेरशाह ने मुद्रा-प्रणाली में प्रशासकीय सुधार किए। अकबर ने भी उसी द्वारा प्रचलित मुद्रा-प्रणाली को . अपनाया, परन्तु आवश्यकतानुसार उसका थोड़ा-सा रूप बदल दिया।

7. भवन-निर्माण कला-अकबर को भवन बनवाने का बड़ा चाव था, परन्तु इसकी प्रेरणा भी उसने शेरशाह सूरी से ही ली थी। शेरशाह ने सहसराम का मकबरा बनवाकर भवन-निर्माण में योगदान दिया था। अकबर ने भी अनेक सुन्दर भवन बनवाये। फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाज़ा, “जामा मस्जिद’, रानियों के महल तथा अन्य भवन उसने शेरशाह से प्रेरित होकर ही बनवाये थे।

8. प्रजा-हितार्थ कार्य-शेरशाह ने अनेक प्रजा-हितार्थ कार्य किये। उसने कई सड़कें बनवाईं। सड़कों के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगवाये और यात्रियों की सुविधा के लिए सरायों की व्यवस्था की। शेरशाह सूरी का अनुकरण करते हुए अकबर ने भी ये सभी प्रजा-हितार्थ कार्य किए। उसने कुछ सामाजिक सुधार भी किए।

9. सच तो यह है कि शेरशाह सूरी ने लगभग हर क्षेत्र में अकबर का मार्ग-दर्शन किया। डॉ० कानूनगो के शब्दों में, “शेरशाह ने अपने प्रशासकीय तथा आर्थिक सुधारों और सहनशील धार्मिक नीति द्वारा अकबर की महानता की नींव रखी।” (“Sher Shah laid the foundaitons of Akbar’s greatness by his administrative and economic reforms and the policy of religious toleration.”) अतः उसे अकबर का अग्रसर कहना उचित ही है।

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प्रश्न 5.
“अकबर ने सारे उत्तरी भारत को एकता के सूत्र में बांध दिया।” सिद्ध कीजिए।
अथवा
अकबर की
(क) उत्तरी भारत तथा
(ख) दक्षिणी भारत की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अकबर एक महान् विजेता था। वह 1556 ई० में राजगद्दी पर बैठा। अल्प आयु होने के कारण बैरम खां ने उसका संरक्षण किया और उसके लिए अनेक प्रदेश विजय किए। उसने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को पराजित करके दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया। उसने मेवात को भी विजय किया। सिकन्दर सूरी की सेना ने उसके सामने आत्म-समर्पण कर दिया। तत्पश्चात् अकबर ने निम्नलिखित प्रदेश विजय किये :- .

(क) उत्तरी भारत की विजय-
1. मालवा की विजय-1560 ई० में अकबर ने मालवा पर विजय प्राप्त की और मालवा का प्रदेश पीर मुहम्मद को सौंप दिया गया। परन्तु पीर मुहम्मद शासन चलाने में असफल रहा और वहां के शासक बाज बहादुर ने मालवा को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। 1562 ई० में अकबर ने उसके विरुद्ध एक बार फिर विशाल सेना भेजी। इस बार वह मालवा पर पूर्ण विजय प्राप्त करने में सफल रहा।

2. राजपूताना की विजय-1562 ई० में अकबर ने राजपूताना पर आक्रमण कर दिया। आमेर के राजा बिहारीमल ने शीघ्र ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अपनी बेटी का विवाह भी अकबर से कर दिया। इसके साथ कई अन्य राजपूत शासकों ने भी अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली, जैसे-कालिन्जर, मारवाड़, जैसलमेर, बीकानेर आदि।

3. मेवाड़ से संघर्ष-मेवाड़ का शासक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहता था। 1568 ई० में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। परन्तु फिर भी महाराणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। वह अन्त तक मुग़लों से संघर्ष करता रहा।

4. गुजरात पर विजय-1572-73 ई० में अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त कर ली।

5. बिहार-बंगाल की विजय-1574-76 ई० में अकबर ने अफ़गानों को पराजित करके बिहार और बंगाल पर विजय प्राप्त कर ली।

6. अन्य विजयें-अकबर ने धीरे-धीरे कश्मीर, सिन्ध, उड़ीसा, बिलोचिस्तान तथा कन्धार पर भी विजय प्राप्त कर ली।

(ख) दक्षिणी भारत की विजयें उत्तरी भारत में अपनी शक्ति संगठित कर अकबर ने दक्षिणी भारत की ओर ध्यान दिया। दक्षिण में उसने निम्नलिखित विजयें प्राप्त की :

  • बीजापुर तथा गोलकुण्डा की विजय-1591 ई० में अकबर ने बीजापुर तथा गोलकुण्डा पर विजय प्राप्त कर ली।
  • खानदेश की विजय-1601 ई० में खानदेश के सुल्तान अली खां ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • अहमदनगर पर अधिकार-1600 ई० में अकबर की सेनाओं ने अहमदनगर की संरक्षिका चांद बीबी को परास्त कर दिया तथा अहमदनगर पर विजय पा ली।
  • बरार पर अधिकार-अकबर ने दक्षिणी भारत के बरार प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार अकबर ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 6.
“शाहजहां के राज्यकाल को मुगल साम्राज्य का उत्कर्ष काल अथवा स्वर्ण युग कहा जाता है।” आप इस विचार से कहां तक सहमत हैं ?
अथवा
मुगलकालीन इतिहास को शाहजहां की क्या देन थी ? किन्हीं पांच देनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
शाहजहां महान् मुग़ल शासकों में से एक था। उसके राज्य को मुग़ल साम्राज्य का उत्कर्ष काल अथवा स्वर्ण युग कहा जाता है। शाहजहां के काल में देश में चारों ओर शान्ति और समृद्धि थी तथा कला के हर क्षेत्र में अतुलनीय प्रगति हो रही थी। हिन्दू और मुसलमानों में एकता थी तथा व्यपार और वाणिज्य ने काफ़ी उन्नति की। इन सभी बातों के कारण शाहजहां के काल को स्वर्ण युग कहा जाता है। इसका विस्तारपूर्वक वर्णन इस प्रकार है :-

1. पूर्ण शान्ति-शाहजहां के शासन काल मे सब ओर शान्ति का वातावरण था। राजपूत राज्य के शुभचिन्तक थे। उत्तरपश्चिम में कन्धार को छोड़कर शेष सम्पूर्ण मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह सुरक्षित था। दक्षिण की ओर से अब कोई भय न था। इस काल में अहमदनगर भी मुग़ल साम्राज्य में मिल चुका था। पुर्तगालियों की शक्ति का भी पतन हो रहा था परंतु उनका स्थान किसी अन्य शक्तिशाली यूरोपीय जाति ने अभी नहीं लिया था। तात्पर्य यह कि शाहजहां के राज्य में पूर्ण सुख-शान्ति थी और देश आन्तरिक विद्रोहों तथा विदेशी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित था। .

2. अच्छी आर्थिक अवस्था तथा समृद्धि-देश में सुख और शान्ति बने रहने के कारण लोग अपने-अपने व्यवसायों में जुटे हुए थे। इस प्रकार उनकी आर्थिक दशा बहुत सुदृढ़ हो रही थी। राज्य प्रबन्ध अकबर के समय से ही बहुत अच्छा था।

3. भवन-निर्माण कला के क्षेत्र में उन्नति-शाहजहां का शासनकाल भवन-निर्माण कला के क्षेत्र में अनुपम उन्नति के लिए विशेषकर प्रसिद्ध है। उसने आगरा, दिल्ली और कई अन्य स्थानों पर सुन्दर भवनों का निर्माण करवाया। ताजमहल इस काल की एक अनूठी कृति थी। यह प्रसिद्ध मकबरा सम्राट ने अपनी प्यारी मलिका मुमताज महल की याद में बनवाया था और यह अब भी विश्व में दाम्पत्य-प्रेम और अनुराग का एक अद्वितीय स्मारक है। ताज के अतिरिक्त आगरा में स्थित मोती मस्जिद और दिल्ली में जामा मस्जिद तथा दीवाने खास शाहजहां के कुछ अन्य शानदार भवन हैं। सम्राट् ने लगभग एक करोड़ की लागत से प्रसिद्ध तख्ते-ताऊस का निर्माण भी करवाया।

4. अन्य ललित कलाओं का विकास-चित्रकला तथा संगीत कला को शाहजहां के काल में काफ़ी प्रोत्साहन मिला। उसके शासनकाल का सबसे प्रसिद्ध चित्रकार मुहम्मद नादिर समरकन्दी था। उसके दरबार के सर्वप्रसिद्ध संगीतकार थे जगन्नाथ, महापतेर, राम दास. और लाल खां जो तानसेन का जमाता था। शाहजहां के काल में साहित्य भी किसी अन्य कला से पीछे नहीं था। उसके दरबार में काज़बीकी, अब्दुल हमीद लाहौरी, पीर अबुल कासिम ईरानी, मिर्जा जयाबुद्दीन, शेख बहलोल कादरी आदि बड़े-बड़े विद्वान् थे। इन मुसलमान विद्वानों के अतिरिक्त इस काल में बहुत से हिन्दू विद्वान् भी थे, जैसे सुन्दरदास, चिन्तामणि, कवीन्द्राचार्य और जगन्नाथ।

5. सबके लिए एस समान न्याय-शाहजहां बड़ा न्यायप्रिय शासक था। न्याय करते समय वह बड़े-बड़े अधिकारियों को भी दोषी होने पर क्षमा नहीं करता था। उसके काल में दण्ड बड़े कठोर थे। इसलिए अपराध करने का किसी को साहस नहीं होता था।”

6. व्यापार और वाणिज्य में उन्नति-शाहजहां के काल में व्यापार तथा वाणिज्य ने काफ़ी उन्नति की। विदेशों के साथ भारत का व्यापार काफ़ी उन्नति पर था। परिणामस्वरूप बहुत-सा विदेशी धन भारत में आने लगा।

7. प्रजा हितार्थ कार्य-शाहजहां ने प्रजा की भलाई के लिए बहुत से तालाब, नहरें, सड़कें, पुल तथा सराएं आदि बनवाईं। उसने लाहौर के निकट के खेतों की सिंचाई के लिए एक लाख रुपए के व्यय से रावी नदी से एक बड़ी नहर निकलवाई और फिरोजशाह तुग़लक द्वारा बनवाई गई पश्चिमी यमुना नहर की मुरम्मत करवाई। शाहजहां के राजकीय इतिहासकार अब्दुल हमीद के अनुसार शाहजहां ने अकाल पीड़ितों की खुले दिल से सहायता की, मुफ्त लंगर खुलवाये और लोगों के लगान माफ कर दिए। इन सब बातों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि शाहजहां का काल वास्तव में ही मुग़ल इतिहास का स्वर्ण युग था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

प्रश्न 7.
औरंगजेब की राजपूत नीति तथा उसके परिणामों की व्याख्या कीजिए। उसकी यह नीति मुग़ल साम्राज्य के पतन के लिए कहां तक उत्तरदायी थी ?
अथवा
औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति कैसी नीति अपनाई ? उसकी यह नीति मुगल साम्राज्य के लिए किस प्रकार घातक सिद्ध हुई ?
उत्तर-
औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसके हृदय में राजपूतों के लिए कोई प्रेम नहीं था। वह राजपूतों को अपने दरबार मे उच्च पद देने के पक्ष में नहीं था। परन्तु जब तक दो वीर राजपूत-सरदार मिर्जा राजा जयसिंह तथा जसवन्त सिंह राठौर-जीवित रहे, उसने राजूपतों के विरुद्ध कोई कठोर पग न उठाया। उनकी मृत्यु के पश्चात् औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति दमन की नीति अपनाई। औरंगज़ेब की राजपूतों के प्रति ऐसी नीति और उसके परिणामों का वर्णन इस प्रकार है :-

जसवन्त सिंह की मृत्यु-जसवन्त सिंह राठौर मारवाड़ का शासक था। वह शाहजहां के राज्यकाल में मुग़ल दरबार का मनसबदार था। 10 दिसम्बर, 1678 ई० को जमरूद में जसवन्त सिंह का देहान्त हो गया। उसकी मृत्यु के पश्चात औरंगजेब के लिए मारवाड़ पर अधिकार करना सरल हो गया। औरंगज़ेब ने जसवन्त सिंह के सिंहासन पर नागौड़ के राजपूत सरदार इन्द्र सिंह को बिठाया। उसे 36 लाख रुपए दिए गए और वह अपने यहां मुसलमान अधिकारी रखने के लिए राजी हो गया। परन्तु शीघ्र ही औरंगज़ेब के इस कार्य का विरोध होने लगा।

अजीत सिंह तथा दुर्गादास-औरंगज़ेब जसवन्त सिंह के नवाजात शिशु अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। उसने अजीत सिंह को दिल्ली में ही कैद कर लिया। परन्तु दुर्गादास राठौर के प्रयत्नों से जसवन्त सिंह की दोनों रानियां और अजीत सिंह जोधपुर पहुंचने में सफल हुए।

मारवाड़ पर आक्रमण-मारवाड़ की जनता ने अजीत सिंह के पक्ष में विद्रोह कर दिया और इन्द्र सिंह को शासक मानने से इन्कार कर दिया। औरंगज़ेब ने अपने पुत्र अकबर को मेवाड़ पर अक्रमण करने का आदेश दिया। इस युद्ध में राजपूत पराजित हुए और इस प्रकार मारवाड़ फिर मुग़लों के अधिकार में आ गया। विवश होकर राजपूतों ने पर्वतों तथा वनों में आश्रय लिया और यहीं से उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा।

मेवाड़ तथा मारवाड़ का संगठन-मारवाड़ के पतन से मेवाड़ के राणा को बड़ा दुःख हुआ। उसने राठौरों और वीर सिसौदियों के साथ मुग़लों के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया, परन्तु औरंगजेब की विशाल सेना के समक्ष यह संयुक्त मोर्चा विफल साबित हुआ। राजपूतों ने अब मुग़लों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई और काफ़ी सीमा तक सफल भी रहे।

अकबर का राजपूतों से गठजोड़ तथा विद्रोह-राजकुमार अकबर राजपूतों के सहयोग से दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। अतः उसने औरंगज़ेब के प्रति विद्रोह कर दिया। राजपूतों ने अकबर को हर सम्भव सहायता देने का वचन दिया। परन्तु यह मित्रता ज्यादा दिनों तक नहीं चली। औरंगज़ेब राजपूतों और अकबर के मध्य फूट डालने में सफल रहा।

उदयपुर की सन्धि-24 जून, 1681 ई० को औरंगज़ेब और मेवाड़ के राणा जयसिंह के बीच एक सन्धि हुई। इस सन्धि के अनुसार राजपूतों ने मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध कोई भी सहायता न करने का वचन दिया। जयसिंह को मेवाड़ का महाराणा मान लिया गया। उसे पांच हज़ारी मनसबदार भी नियुक्त किया गया।

उदयपुर की सन्धि के बाद भी राजपूतों ने मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। पहले दुर्गादास और फिर अजीत सिंह के नेतृत्व में उनका संघर्ष चलता रहा। 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् अजीत सिंह ने जोधपुर के मुग़ल सूबेदार को मार भगाया और स्वयं मारवाड़ का स्वतन्त्र शासक बना।

राजपूत नीति के परिणाम-

  1. राजभक्त राजपूत मुग़लों के शत्रु बन गए। उनकी शत्रुता मुग़ल साम्राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई।
  2. राजस्थान की शासन व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। वहां की अव्यवस्था से पड़ोसी मुग़ल प्रदेश में अराजकता फैल गई।
  3. राजपूतों की मित्रता से वंचित होने के कारण सम्राट को अन्य अभियानों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
  4. साम्राज्य को जन और धन की अपार हानि उठानी पड़ी।
  5. शाही प्रतिष्ठा को भारी ठेस लगी। राजपूतों के आकस्मिक हमलों ने मुग़ल साम्राज्य की जड़ें खोखली करने का कार्य किया।

सच तो यह है कि औरंगजेब की राजपूत नीति महान् राजनीतिक आदर्शों से प्रेरित न थी। उनका सहयोग प्राप्त करके मुग़ल साम्राज्य को सुदृढ़ करने के स्थान पर उसने राजपूतों को अपना शत्रु बना लिया। राजपूतों की मित्रता के कारण मुग़ल साम्राज्य सशक्त बना था और उनकी शत्रुता के कारण मुग़ल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हुआ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

प्रश्न 8.
शेरशाह सूरी के शासन-प्रबन्ध अथवा प्रशासनिक सुधारों का वर्णन करो।
अथवा
शेरशाह सूरी एक योग्य एवं प्रजाहितकारी शासक था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शेरशाह एक योग्य शासक था। उसने केवल पांच वर्ष राज्य किया। इतने कम समय में उसने इतना अच्छा राज्य प्रबन्ध किया कि इतिहास में उसका नाम अमर हो गया। उसके शासन-प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है :-

1. केन्द्रीय शासन-केन्द्रीय शासन का मुखिया शेरशाह स्वयं था। सारे काम उसकी आज्ञा से होते थे। उसकी सहायता के लिए अनेक मन्त्री भी थे। वह लोगों की भलाई का ध्यान रखता था। वह राज्य का भ्रमण करके लोगों की शिकायतें सुनता था। प्रजा उससे बड़ी प्रसन्न थी।

2. प्रान्तीय शासन-शेरशाह ने अपने राज्य को अनेक प्रान्तों में बांटा हुआ था। प्रान्तों को सरकारों अथवा ज़िलों में विभक्त किया गया था। प्रत्येक सरकार परगनों में बंटी हुई थी। शासन की इन इकाइयों में शेरशाह ने बड़े योग्य अधिकारी नियुक्त किए हुए थे। गांव के प्रबन्ध के लिए पंचायतें थीं।
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना 1

3. भूमि प्रबन्ध-शेरशाह ने सारे राज्य की भूमि की पैमाइश करवाई और उपज के आधार पर इसे तीन भागों में . बांटा-उत्तम, मध्यम तथा निम्न। उपज के आधार पर ही भूमिकर नियत किया गया जो उपज का एक-तिहाई भाग होता था।

4. कृषकों से अच्छा व्यवहार-शेरशाह सदा कृषकों की भलाई का ध्यान रखता था। उन्हें अकाल के दिनों में ऋण दिया जाता था। शेरशाह ने अपने सैनिकों को चेतावनी दी हुई थी कि वे चलते समय किसी कृषक की फसल को हानि न पहुँचाएं।

5. पुलिस-जनता के धन-माल तथा जीवन की रक्षा के लिए शेरशाह सूरी ने पुलिस की उत्तम-व्यवस्था की। अंपराधों के लिए स्थानीय अधिकारी स्वयं ज़िम्मेदार होते थे।

6. गुप्तचर विभाग-शेरशाह ने देश में गुप्तचर विभाग स्थापित किया। गुप्तचर राजा को सभी घटनाओं से सूचित करते रहते थे।

7. न्याय-शेरशाह एक प्रसिद्ध सम्राट् था। न्याय करते समय छोटे-बड़े या अमीर-ग़रीब का भेदभाव नहीं रखा जाता था। उसके दण्ड बड़े कठोर थे। दण्ड देते समय वह अपने सरदारों और निकट सम्बन्धियों को भी नहीं छोड़ता था।

8. सड़कों का निर्माण तथा डाक व्यवस्था-शेरशाह सूरी ने पुरानी सड़कों की मुरम्मत करवाई और नई सड़कों का निर्माण करवाया। उसकी बनवाई हुई सड़कों में से पहली सड़क पेशावर से सुनार गांव तक जाती है। दूसरी आगरा से बुरहानपुर तक जाती थी। तीसरी सड़क आगरा से जोधपुर तक और चौथी सड़क लाहौर से मुल्तान तक चली गई थी। शेरशाह सूरी ने डाक लाने और ले जाने के लिए सड़कों पर डाक चौकियों की स्थापना भी की।

9. प्रजा की भलाई के कार्य-शेरशाह सूरी ने प्रजा की भलाई के लिए अनेक कार्य किए। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए कुएँ खुदवाए और सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये। रात को ठहरने के लिए थोड़-थोड़ी दूरी पर सराएं भी बनवाई गईं।

सच तो यह है कि शेरशाह सूरी एक महान् शासन-प्रबन्धक था। उसके शासन-प्रबन्ध की प्रशंसा करते हुए कीन ने ठीक ही कहा है, “किसी भी सरकार ने, यहां तक कि अंग्रेजी सरकार ने भी, इस पठान, (शेरशाह) जैसी योग्यता नहीं दिखाई।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय

PSEB 11th Class Physical Education Guide शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थान भरो : (Fill in the blanks)

  1. मानवीय शरीर एक ……………….. मशीन है।
  2. मानवीय शरीर के भिन्न-भिन्न अंग मिलकर शरीर की को चलाते हैं।

उत्तर-

  1. उलझी
  2. क्रिया प्रणाली।

प्रश्न 2.
कोशिका क्या है ? (What is cell ?)
उत्तर-
कोशिका (Cell) कोशिका अंगों का जन्म मानवीय कोशिका (सैल) के पैदा होने के साथ हुआ है।
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यह मानवीय जीवन की प्राथमिक इकाई होती है। इन्हें नंगी आँख के साथ नहीं देखा जा सकता। इनका काम अपने :अन्दर भोजन को एकत्रित करके रखना है और भोजन के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा पैदा करना होता है।
सैल के प्रकार (Types of Cell)—सैल दो प्रकार के होते हैं-यूकेरेओटिक तथा प्रकोरीओटिक। यूकेरेओटिक सैल पौधों, जानवरों तथा मनुष्यों में पाया जाता है।
यूकेरेओटिक सैलों के आधारभूत ढांचों में डी०एन०ए० (DNA) रिबोसोम, एंडोप्लास्मिक रैटीक्यूलम, गॉलजी उपकरण, साइटोस्केलेटन, माईटोकॉड्रिया, सैंटीअलाइज़, लाइसोम, प्लाज्मा झिल्ली और साइटोप्लाज्म आदि शामिल होते हैं। ।
सैल की बनावट तथा फंक्शन चार्ट
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PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय 3
Fig. Different types of cells

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प्रश्न 3.
हड्डियाँ क्या हैं ? इनकी किस्मों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें। (What are the bones ? Write in detail about their types.)
उत्तर-
“हड्डियां” (Bones)-मनुष्य के शरीर की रचना अनगिनत कोशिकाओं (Cells) से बनी हुई है। मनुष्य शरीर के अंग भिन्न-भिन्न किस्म की कोशिकाओं से बने हुए हैं जो अलग-अलग तरह के काम में लगे हुए हैं। शरीर के सारे अंग चमड़ी द्वारा ढके हुए हैं। चमड़ी शरीर के अंगों की रक्षा करती है। यदि शरीर में किसी भाग को ज़ोर से दबाकर देखा जाए तो हमें कुछ चीज़ महसूस होगी। ये सख्ती हड्डियों के कारण होती है। हड्डियां कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों के मिलाप से बनती हैं। ये संवेदनशील अंगों की रक्षा करती हैं। हमारे शरीर में 206 हड्डियां होती हैं।

हड्डी की कड़क एवं रचना (Stiffiness and Construction of Bones)-शरीर के लगभग सारे अंगों में हड्डियां होती हैं। ये हड्डियां कई प्रकार की मज़बूत और कठोर कोशिकाओं से बनी होती हैं। हड्डियों में कड़क कुछ विशेष प्रकार के लक्षणों के कारण होती है। इनमें प्रमुख लक्षण कैल्शियम कारबोनेट, मैग्नीशियम फास्फेट और कैल्शियम फास्फेट की बड़ी हड्डियों के साथ-साथ छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं जो इन तत्त्वों से ही बनी होती हैं।

मनुष्य का अस्थि पिंजर (Human Skeleton)-शरीर के अन्दर मिलने वाली बड़ी और छोटी हड्डियां मिलकर एक पिंजर की रचना करती हैं। ये पिंजर की भिन्न-भिन्न हड्डियां जब मिलकर शरीर के लिए काम करती हैं तो इसको हम मानवीय अस्थि पिंजर (Human Skeleton) कहते हैं।
मानवीय अस्थि पिंजर के कार्य (Functions of Human Skeleton)—

  1. मनुष्य अस्थि पिंजर शरीर को एक विशेष प्रकार की शक्ल देता है।
  2. ये शरीर को सीधा रखता है।
  3. पेशी प्रबन्ध और अन्य अंगों को सहारा देता है और उसके साथ मिलकर शरीर के अलग-अलग अंगों को हिलने और चलने-फिरने की शक्ति देता है।
  4. मनुष्य पिंजर में स्थान-स्थान पर उत्तोलक (Levers) बनते हैं।
  5. पिंजर का कुछ भाग जैसे पसलियां (Ribs) और सीना हड्डी (Sternum) की खास क्रिया सहायक होता है।
  6. अनियमित हड्डियां (Irregular Bones)-जैसे रीढ़ की हड्डियां।

हड्डियों का वर्गीकरण (Different Types of Bones)—

  1. लम्बी हड्डियां-ये अपने आकार में लम्बी होती हैं। ये लम्बी सॉफ्ट से मिलकर बनती हैं जिसके दो सिरे होते हैं। ये आमतौर पर सघन होती हैं, परंतु हड्डी के अंत में ये गुद्देदार होती हैं । टांग (फीमर), बाजू (ह्यूमर्स) आदि लम्बी हड्डियों की उदाहरण हैं।
  2. छोटी हड्डियां-ये आमतौर पर लम्बकारी, चपटी और आकार में छोटी हड्डियां होती हैं। ये ज्यादातर स्पंजी हड्डियां हैं जो कि सघन हड्डी की पतली परत के साथ ढकी होती हैं। छोटी हड्डियों में कलाई तथा ऐड़ी की हड्डियां शामिल होती हैं।
  3. चपटी हड्डियां-पतली, स्टीपांड और आमतौर पर समतल होती हैं; जैसे-खोपड़ी तथा कुछ चेहरे की हड्डियां।
  4. अनियमित हड्डियां-हड्डियां जो कि उपरोक्त तीनों श्रेणियों में नहीं आती, वह मुख्य तौर पर खोखली हड्डियां होती हैं। ये आमतौर पर स्पंजी हड्डियां होती हैं जो कि कॉमपैक्ट हड्डी की पतली परत के साथ ढकी होती हैं। रीढ़ की हड्डी तथा कुछ खोपड़ी की हड्डियां इसी की उदाहरण हैं।
  5. तिल रूप की हड्डियां-ये हड्डियां जोड़ों को पकड़ने में सहायक होती हैं। ये बीज के आकार की होती हैं। ये जोड़ों के नज़दीक मांस-पेशियों में पाई जाती हैं।

अस्थि पिंजर की कुल हड्डियों की गिनती
(Total Number of Bones in Human Skelton)

हड्डियां कुल गिनती
खोपड़ी और चेहरे की हड्डियां 22
धड़ की हड्डियां 33
पसलियों की हड्डियां 24
छाती की हड्डी 01
कॉलर की हड्डियां 02
कंधे की हड्डियां 02
बाजुओं की हड्डियां 60
टांगों की हड्डियां 62
कुल हड्डियां 206

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Fig. Different Types of Bones

मानव हड्डियों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :—
खोपड़ी की हड्डियां (Bones of the Skull)-खोपड़ी की हड्डियों में दिमाग घर की हड्डियां (Bones of the craniãUm) और चेहरे की हड्डियां (Bones of the face) शामिल हैं। ये कुल 22 हड्डियां हैं। 8 हड्डियां दिमाग घर और 14 चेहरे की हैं।
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Fig. Bones of the Skull

दिमाग घर की हड्डियां (Bones at the skull)-दिमाग घर की हड्डियां इस प्रकार हैं—

  1. माथे की हड्डी या ललाट हड्डी (Fronta-1 Bone)—ये हड्डी सामने माथे और ऊपरी भाग का निर्माण करती
  2. मोति अस्थि या टोकरी की हड्डियां (Parietal Bones)—ये हड्डियां गिनती में 2 हैं। ये खोपड़ी को दो बराबर भागों में बांटती हैं। इस प्रकार ये दाएं-बाएं और बाएं-दाएं का निर्माण करती हैं।
  3. कनपटी की हड्डियां (Temporal Bones)—ये गिनती में 2 हैं। ये दाएं कनपटी और बाईं कनपटी की बनाक्ट करती हैं।
  4. पंचर हड्डी (Sphenoid Bone)-इस हड्डी द्वारा खोपड़ी के आधार (Base) का निर्माण होता है। इसकी शक्ल चमगादड़ (Bat) या खुले हुए पंख जैसी होती है। कनपटी की हड्डियों और पिछली कपाल अस्थि (Dicipital Bones) में मिलती है।
  5. पिछली कपाल अस्थि (Occipital Bones)-ये हड्डी सिर के पिछले भाग का निर्माण करती है।
  6. छानगी हड्डी (Ethnoid Bone)-ये हड्डी नाक की छत का निर्माण करती है। ये पंचर हड्डी के आगे होती है। ये कनपटी को दो बराबर भागों में बांटती है। यह सामने की तरफ की ललाट हड्डी Frontal Bones से मिलती है।

चेहरे की हड्डियां (Bones of the face) चेहरे की कुल 14 हड्डियां हैं। ये इस प्रकार हैं—

  1. ऊपरी जबड़े की दो हड्डियां (Superior Maxillary Bones)
  2. निचले जबड़े की हड्डी (Inferior Maxillary Bones)
  3. तालू की दो हड्डियां (Palate Bones)
  4. नाक की हड्डियां (Nasal Bones)
  5. गोल की दो हड्डियां (Molar Bones)
  6. सीप आकार की दो हड्डियां (Spongy Bones)
  7. अश्रु की हड्डियां (Lachrymal bones) ये छोटी-छोटी दो हड्डियां हैं जो आंखों के रगेल का अगला भाग बनाती हैं।
  8. नाक के पर्दे वाली हड्डी (Vomer bone) एक ऐसी हड्डी है जो नाक के पर्दे का निर्माण करती है।

धड़ की हड्डियां (Bones of the Trunk)-मानवीय शरीर के गर्दन से लेकर कमर तक के भाग को धड़ (Trunk) कहते हैं। डायाफ्राम (Diaphragm) इस भाग के आधे में होता है जो उसको दो भागों में बांटता है। सामने की ओर सीना हड्डी (Breast Bones Sternum) और पिछले भाग में रीढ़ की हड्डी है। इन दोनों तरह की हड्डियों से पसली की हड्डियां जुड़ी होती हैं। इन सब हड्डियों को हम धड़ की हड्डियां (Bones of the Trunk) कहते हैं।

हम ऐसे भी कह सकते हैं कि धड़ की हड्डियों में रीढ़ की हड्डी पसलियां, कंधे की हड्डी, डायाफ्राम और गुर्दे की हड्डियां हैं। इन सबका बारी-बारी वर्णन निम्नलिखित है—

रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column)-रीढ़ की हड्डी को मानवीय शरीर का आधार कहा जाता है। ये गर्दन से शुरू होकर मल-मूत्र के निकास स्थान तक जाती है। आदमी के शरीर में इसकी लम्बाई 70 सैंटीमीटर और औरतों के शरीर में 60 सैंटीमीटर होती है। इस बीच 33 मोहरे या मनके (Vertebral) हैं। इन 33 मनकों के संग्रह को हम रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column) कहते हैं। रीढ़ की हड्डी का बीच का भाग खोखला होता है। ये मोहरे की नली (Neural Canal) का निर्माण करती है। इस बीच सुषम्ना नाड़ी (Spinal Cord) निकलती है।
रीढ़ की हड्डी के भाग (Parts of Vertebral Column)-रीढ़ की हड्डी को हम निम्नलिखित पांच प्रमुख भागों में बांट सकते हैं—

1. गर्दन के मनके (Cervical Vertebrae)-पहले सात मनकों को हम गर्दनी मनके कहते हैं। ये कंधे के ऊपर होते हैं। सब से पहले मनके को सिर का आधार स्थान (Atlas) कहते हैं। ये सिर को सहारा देता है। दूसरे गर्दन के मनके को (Axis) कहते हैं। पहले दोनों मनकों की बनावट शेष मनकों से अलग है।

2. पीठ के मनके (Dorsal Vertebrae)-ये 12 मनकों का समूह है। इन मनकों के आगे पसलियां होती हैं। ये सब मनके सामने की पसलियों के साथ और पीछे पीठ की रीढ़ की हड्डी से जुड़े होते हैं।

3. कमर के मनके (Lumber vertebrae)-ये पांच मनके होते हैं जो कमर का निर्माण करते हैं। इसकी कुल लम्बाई 18 सैंटीमीटर होती है। ये हिलने वाले मनके होते हैं। सबसे नीचे वाला मनका कीमत की या तिडागी की . हड्डी (Sacrum) ऊपर टिका होता है।
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4. तिलम की या तिड़ागी हड्डी (Sacrum)—इस बीच पांच मनके होते हैं जो मिलकर एक तिकोणी हड्डी का निर्माण करते हैं, जो मुलेह के ऊपरी और पिछले भाग में स्थित हैं। ये कूल्हे के बीच दोनों हड्डियों के बीच एक पंचर की तरह होती है।

5. हड्डियां (Bones)-ये रीढ़ की हड्डी का सबसे निचला भाग है। ये चार मनकों का संग्रह है। छाती की हड्डी (Stornum)-ये लगभग 6-7 इंच लम्बी होती है। इसका ऊपरी भाग चौड़ा और नीचे वाला भाग पतला होता है। इसके ऊपरी भाग या चौड़े भाग में गर्दनी मनके (Cervical vertabrae) दोनों ओर जुड़े होते हैं। ये गर्दनी मनके ऊपर और नीचे (Cortal Cartilages) द्वारा पड़ती है।

पसलियां (Ribs)-छाती की हड्डी के दोनों ओर 12-12 पसलियां होती हैं। इनका अगला भाग Cortal Cartilages द्वारा छाती की हड्डी में जुड़ता है। पहली सात पसलियां छाती की हड़ी से अलग-अलग रूप में जुड़ जाती हैं। आठवीं, नौवीं और दसवीं पसलियां छाती की हड्डी के साथ जुड़ने से पहले ही सातवीं पसली में जुड़ जाती हैं। आखरी दो पसलियां स्वतन्त्र हैं। इनको उड़ती या तैरती VERTEBRAL FLOATING पसलियां (Floating Ribs) भी कहा जाता है। ये सब पसलियां मिलकर एक पिंजर का निर्माण करती हैं। ये पिंजर दिल और फेफड़ों की रक्षा करता है। पसलियों के बीच के स्थान में मांसपेशियां होती हैं। ये मांसपेशियां श्वास लेने से फैलती या सिकुड़ती हैं जिस कारण ये पिंजर ऊपर नीचे उठता बैठता रहता है।
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भुजाओं की हड्डियां (Bones of the upper limbs)-भुजाओं की हड्डियों की गिनती 64 है। भुजाओं की गिनती 2 है। इस तरह प्रत्येक भुजा में 32 हड्डियां हैं। भुजाओं की हड्डियों में कंधे व हाथों की हड्डियां शामिल हैं। आइए इन हड्डियों का अलग-अलग तौर पर वर्णन करें—

(क) कंधे की हड्डियां (Bones of the shoulders)-कन्धे की हड्डियों में दो प्रमुख हड्डियां हैं—
1. हंसली हड्डियां या छाती की हड्डियां (Clavicles or Collar Bones)

(ख) मौर की हड्डी (Scapula)-इनका विस्तार से वर्णन नीचे किया गया है—
1. हंसली हड्डी या मौर की हड्डी (Clavicles or Collar Bones)-हंसली हड्डी की शक्ल अंग्रेजी के अक्षर S की तरह होती है। यह छाती के ऊपरी भाग में अगली तरफ स्थित होती है। यह एक तरफ छाती की हड्डी के सिरे के साथ व दूसरी तरफ कंधे की हड्डी के साथ जुड़ी होती है। दूसरा मुख्य काम कंधे की हड्डी को अपनी जगह पर स्थिर रखना है। छाती की हड्डी से जुड़े हुए हिस्से को छाती का बाहरी तल (External surface) व मौर की हड्डी के साथ जुड़ने वाले हिस्से को अर्सकुट तल (Acrominal surface) कहते हैं।
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Fig. Clavicles or Collar Bones
मौर की हड्डी (Scapula)—यह चौड़ी व तिकोने आकार की होती है। यह पीठ के ऊपरी भाग में होती है। इसके ऊपर वाले बाहरी कोण पर एक चिकना अंडे की तरह का गड्ढा होता है। इसमें डौले की हड्डी ठीक तरह बैठती है।
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बाजू की हड्डी (Bones of upper Arms)-बाजू की हड्डियों का वर्णन नीचे किया गया है—
डौले की हड्डी (Humerus)-डौले की एक लम्बी हड्डी होती है। इसका ऊपरी भाग गोल होता है जो कि कंधे की हड्डी में ठीक बैठता है। इसका निचला भाग बीणी व दोनों हड्डियों से मिल कर कुहनी के जोड़ (Elbow Joint) का निर्माण करती है।
बाज के अगले भाग की हड़ियां (Bones of for Arms)

1. छोटी वीण-हड्डी रेडियस (Radius)-यह बाजू के अगले भाग में अंगठे की तरफ एक बड़ी हड्डी है। इस हड्डी का ऊपरी सिरा गोल होता है। यह दोनों की हड्डी के साथ जुड़ा होता है। इसका नीचे का भाग हाथ के पास हड्डियों से जुड़ा होता है।

2. बड़ी वीण हड्डी (UIna)—यह बाजू के बीच में होता है। यह रेडियस या छोटी वीण हड्डी से कुछ बड़ी होती है। इसके तीन भाग होते हैं—
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(1) ऊपरी
(2) बीच वाला
(3) नीचे वाला
यह डौले की हड्डी के साथ कुहनी के जोड़ के द्वारा मिलती है। इसके
ऊपरी सिरे पर एक हड्डी बाहर को निकली रहती है। जिस के साथ कुहनी पर नोकदार उभार (Obsecranon) वाला है। जिसका निचला सिरा छोटा व गोल होता है, जोकि हाथ के पास हड्डियों से मिलता है।

3. कलाई की हड्डियां (Carpal Bones)—यह छोटी-छोटी 8 हड्डियां हैं जो कि चार-चार की दो लाइनों में स्थित हैं। यह इनके द्वारा जुड़ कर अपने स्थान पर ठीक तरह कायम रहती हैं। यह हड्डी के ऊपरी भाग बड़ी वीण हड्डी व निचली तरफ हथेली हड्डी के साथ जुड़ी होती है।

4. हथेली की हड्डियां (Metacarpal bones)–हथेली की पांच छोटी व पांच बड़ी हड्डियां हैं। ये एक तरफ उंगलियों की हड्डियों से जुड़ी होती हैं।

5. उंगलियों की हड्डियां (Bones of the fingers or Phalanges)-उंगलियों में कुल 14 हड्डियां हैं। प्रत्येक उंगली में तीन-तीन व अंगूठे में दो हड्डियां होती हैं। ये हड्डियां छोटी व मज़बूत होती हैं। हथेली की तरफ प्रत्येक हड्डी हथेली की हड्डियों से जुड़ी होती है। यह अंगुली के भीतर उंगली हड्डी जोड़ का निर्माण करती है।

टांग की हड्डियां (Bones of leg)-टांग की हड्डियों का वर्णन निम्नलिखित किया गया है—
1. हिप की हड्डी (The Hip Bone)-इस हड्डी की शक्ल बेढंगी सी होती है। ये काफ़ी बड़ी होती है। ये ऊपर और नीचे फैली हुई होती है और बीच से पतली होती है। ये हड्डी अगले तरफ दूसरे तरफ की साथी हड्डी से जुड़ती है। ये दोनों हड्डियां हड्डी Loccyx और तिड़ागी हड्डी (Sacrum) से मिलकर, पेडू गर्लड (Pelvic Girdle) का निर्माण करती है। हिप की हड्डी के नीचे लिखे तीन प्रमुख भाग हैं—

  1. पेडू अस्थि (Illum)-ये कूल्हे का ऊपरी चौड़ा भाग है।
  2. आसन अस्थि (Ischenum)—ये कूल्हे का निचला भाग है।
  3. पिऊबिस (Pubis)—ये कूल्हे का निचला भाग है।

ये तीन भाग बच्चों में उप-अस्थि से जुड़े होते हैं परन्तु आयु के बढ़ने के साथ जवानी तक ये हड्डी द्वारा जुड़ जाते हैं। कूल्हे के ये तीन भाग ही हड्डी से मिलकर एक प्याले या टोपी की शक्ल का निर्माण करते हैं। इस प्याले को एसीटैनबुलम (Acetabulum) कहते हैं। इस बीच जांघ की हड्डी (Femur) का गोल सिरा घूमता है। पेडू-अस्थि Pelvis की शक्ल एक बर्तन की तरह होती है जिसको निचली टांगें सहारा देकर रखती हैं। यह बर्तन पेट के कोमल अंगों की रक्षा करता है।
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2. जांघ की हड्डी (The Femur)-हमारे शरीर की जांघ की हड्डी सबसे लम्बी हड्डी है। यह शरीर की सभी … हड्डियों से शक्तिशाली होती है। यह डोलों की हड्डी की तरह होती है। इस का नीचे वाला भाग चौड़ा होता है व यह पिंडी की टिबिया (Tibia) हड्डी के साथ जोड़ का निर्माण करती है। इसके ऊपरी भाग पर गोल आकार की एक टोपी या प्याले जैसे होती है जो कि ऐसीटेबुलम (Acetabulum) में फंस कर चूल्हे के जोड़ का निर्माण करती है।
3. पिंजनी अस्थि या टिबिया (The Tibia)—यह टांग की दोनों हड्डियों से मोटी व बलशाली होती है। यह शरीर में लम्बाई व ताकत में जांच की हड्डी के बाद दूसरे नम्बर पर है। इसका रूप कुछ चपटा होता है। इस के दो सिरे उभरे होते हैं—

  1. ऊपरी भाग (Upper end)—यह मोटा होता है। इसका रूप कुछ चपट होता है।
  2. नीचे वाला भाग (Lower end) यह नीचे पैर के पास हड्डियों के साथ मिलता है। इसकी शाफ्ट (Shaft) तिकोनी होती है।

4. बाहरी पिंजनी अस्थि (The Fibula)—यह आकार में पिंजनी अस्थि (Tibia) से पतली है। यह पिंजनी वाली तरफ स्थित होती है। यह शरीर का सारा भार उठाती है। इस के नीचे लिखे मुख्य भाग हैं—
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1. ऊपरी
2. मध्य वाला
3. नीचे वाला

इसका ऊपरी व नीचे वाला भाग दोनों ही मजबूती के साथ जुड़े होते हैं। इस कारण यह पिंजनी अस्थि टिबिया के आसपास नहीं घूम सकती। यह टिबिया के बिल्कुल समानान्तर होती है। पिंजनी अस्थि (Tibia) व बाहरी पिंजनी अस्थि (Fibula) दोनों मिल कर नीचे के जोड़ का निर्माण करती हैं।

5. घुटने की हड्डी (Knee Cap or Patella)यह तिकोने आकार की हड्डी होती है। यह चौदह मज़बूत तंतुओं द्वारा स्थित रहती है। यह घुटने के जोड़ के ऊपर होती है व जोड़ की रक्षा करती है।
6. पैर की हड्डियां (Bones of the foot)-पैर की हड़ियां मुख्य रूप में नीचे लिखे तीन तरह की होती हैं—
(i) टखने की हड्डियां
(ii) पंजे की हड्डियां
(ii) उंगलियों की हड्डियां

  1. टखने की हड्डियां (Ankle Bones or Tarsal Bones) ये संख्या में सात हैं। ये छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं। ये पैर के पिछले आधे भाग यानि एड़ी रखने व पैर का निर्माण करती हैं। ये हड्डियां कलाई की हड्डी से मोटी व मज़बूत होती हैं। ये शरीर का सारा भार बांट कर उठाती हैं। ये भी कलाई की हड्डियों की तरह दो लाइनों में होती हैं।
  2. पंजे की हड्डियां (In-stepbones, Meta Carpal Bones)—इनकी संख्या भी पांच है। यह आकार में पतली व लम्बी होती हैं। ये अगली तरफ उंगलियों व पिछली तरफ टखने की हड्डियों से जुड़ी होती हैं।
  3. उंगलियों की हड्डियां (The Phalenges of the foot or toes) हाथों की उंगलियों की हड्डियों की तरह पैर की उंगलियों की हड्डियों की संख्या में व बनावट में मिलती-जुलती हैं। अंगूठे में दो व प्रत्येक उंगली में तीनतीन हड्डियां होती हैं। यह हाथ की उंगलियों की हड्डियों के मुकाबले में लम्बाई में छोटी होती हैं।

पैरों को शरीर का सारा भार उठाना पड़ता है। इस कारण पैरों की हड्डियों की तरफ़ से ही भारी, चपटी व मजबूत होती है। पैरों में एक खाली स्थान (ARCH) होता है, जो मनुष्य को चलने में मदद करता है।

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प्रश्न 4.
जोड़ क्या हैं ? इनकी किस्में लिखें। किसी एक जोड़ की पूरी जानकारी दीजिए। (What are joints ? Names their types and explain any one type in detail.)
उत्तर-
परिभाषा (Definition)-प्रत्येक वह जगह जहां की दो या दो से अधिक हड्डियों से सिरे मिलते हैं, उनको जोड़ (Joints) कहते हैं।
जोड़ों की बनावट (Structure of Joints)-लम्बी हड्डियां अपने सिरों, बेडौल हड्डियां अपने तलों के कुछ हिस्सों व चपटी हड़ियां अपने किनारों के साथ जोड़ों का निर्माण करती हैं।
जोड़ मानव पिंजर (Human skeleton) को लचक देते हैं। आम तौर पर जोड़ों के तल हड्डियों के शाफ्टों से मोटे होते हैं।
जोड़ों की किस्में या श्रेणियों में बांट (Kinds, Types, Classification of Joints)—जोड़ों के कार्य और इनकी बनावट के आधार पर हम इनको निम्नलिखित मुख्य श्रेणियों में बांट सकते हैं—

  1. रिसावदार अथवा सिनोवीयल (Synovial) जोड़।
  2. रेशेदार जोड़।
  3. उप-अस्थि जोड़।

जोड़ों की इन श्रेणियों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया गया है—
1. रिसावदार अथवा सिनोवीयल जोड़ (Synovial Joints)-शरीर में इस प्रकार के काफ़ी जोड़ हैं, जैसे कि टांगों और भुजाओं के जोड़। इन जोड़ों के अन्दर बहुत ही मुलायम सिनोवीयल (Synovial) झिल्ली होती है। इस प्रकार के जोड़ों में रक्त की नाड़ियां (Blood Vessels) और लसीका वाहनियों (Lymphatic Vessels) का बहुत प्रसार होता है। यह जोड़ों के ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए आवश्यक हैं। ये जोड़ शेष दो प्रकार के जोड़ों से काफ़ी अलग प्रकार के हैं।
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Fig. Synovial Joint
Fig. Section of Synovial Joint
रिसावदार जोड़ों की किस्में (Classification of Synovial Joints)-गति के आधार पर रिसावदार जोड़ों को हम निम्नलिखित मुख्य भागों में बांट सकते हैं—

1. कब्जेदार जोड़ (Hinged Joints)-इन जोड़ों में विरोधी तल इस प्रकार लगे होते हैं कि गति केवल एक ओर ही हो सकती है। इस प्रकार के जोड़ों की हड्डियां बहुत ही सुदृढ़ उप-अस्थियों के साथ बन्धी हुई हैं, जैसे-टखनों और उंगलियों के जोड़।

2. घूमने वाले जोड़ (Pivot Joints)—इस प्रकार को जोड़ों की गति चक्र में होती है। इस प्रकार के जोड़ में एक हड्डी छल्ला बनाती है और दूसरी इसमें एक धुरी की भांति फंसी हुई होती है। यह छल्ला एक सख़्त हड्डी और उपअस्थि का बना होता है। इसी प्रकार के जोड़ का निर्माण एटलस (Atlas) और एक्सिस (Axis) कशेरुकाओं के साथ होता है।
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Fig. Hinged Joint

3. फिसलनदार जोड़ (Sliding Joints)—इन जोड़ों में गति फिसलनदार होती है। इन जोड़ों की गति इनका निर्माण करने वाले तन्तुओं (Ligaments) के ऊपर निर्भर करती है। इस प्रकार के जोड़ साधारणतया तलों की विरोधता से बनते हैं। इस प्रकार के जोड़ प्राय: कलाई, घुटने और रीढ़ की हड्डी की कशेरुकाओं में मिलते हैं।

4. गेंद और छेद वाले जोड़ (Ball and Socket Joints)-इस प्रकार के जोड़ में हड्डी का एक सिरा गेंद
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Fig. Ball and Socket Joints
की भांति गोल और दूसरा एक प्याले की भांति होता है। गेंद वाला भाग प्याले में फिट होता है। इस प्रकार गेंद वाली हड्डी किसी भी दिशा में घूम सकती है। इस प्रकार के जोड़ कन्धे और कूल्हे में होते हैं।

5. कोनडिलॉयड जोड़ (Condyloid Joint)—ये कब्जेदार जोड़ जैसे ही जोड़ होते हैं। परंतु इनमें गति दोनों तरफ होती है। इस तरह के जोड़ों में लचकता, फैलाव जैसी गतियां या हलचलें पैदा की जाती हैं।

6. सैडल जोड़ (Saddle Joint)—इस प्रकार के जोड़ों में हड्डी उत्तल तथा अवतल प्रकार से जुड़ी होती है। अंगूठे का जोड़ इसका उदाहरण है।

2. रेशेदार जोड़ (Fibrous Joints)-वे जोड़ जिनमें हड्डियों के तल धागे जैसे बारीक रेशों से बन्धे हुए होते. हैं, रेशेदार जोड़ कहलाते हैं। ये जोड़ गतिहीन होते हैं, जैसे कपाल की हड़ियों के जोड़।
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Fig. Fibrous Joints
Fig. Cartilagenous Joints

3. उप-अस्थि जोड़ (Cartilaginous Joints)-इन विरोधी हड्डियों के सिरे उप-अस्थियों के साथ जुड़े होते हैं और इनमें गति किसी विशेष सीमा तक ही होती है। यह उप-अस्थि अन्त में हड्डी का रूप धारण कर लेती है। इस प्रकार की उप-अस्थियों में सीधा रक्त प्रसार नहीं होता। वे अपनी खुराक जोड़ के अन्दर से सिनोवीयल रस से प्राप्त करते हैं। यह स्वस्थ मांस पट्टी काफ़ी सुदृढ़ होती है और इसमें काफ़ी लचक भी होती है परन्तु जब जोड़ों में से सिनोवीयल रस की मात्रा समाप्त हो जाती है तो ये सख्त हो जाते हैं और इसी कारण जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है।

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Physical Education Guide for Class 11 PSEB शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
रीढ़ की हड्डी के मनके होते हैं ?
उत्तर-
रीढ़ की हड्डी के कुल 33 मनके होते हैं।

प्रश्न 2.
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक जगह मिलें तो उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर-
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक जगह मिलें तो उसे जोड़ कहते हैं।

प्रश्न 3.
जोड़ों की किस्में होती हैं :
(a) रिसावदार अथवा सिनोवीयल जोड़
(b) रेशेदार जोड़
(c) उप-अस्थि जोड़।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
रिसावदार की किस्में होती हैं.
(a) चार
(b) तीन
(c) दो
(d) पाँच।
उत्तर-
(a) चार।

प्रश्न 5.
(1) बड़ी वीण हड्डी (UIna)
(2) छोटी वीण हड्डी-हड्डी रेडियस (Radius) ये हड्डियाँ कहाँ पाई जाती हैं ?
उत्तर–
बाजू की हड्डियों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 6.
रिसावदार जोड़ों की कितनी किस्में हैं ?
उत्तर-
रिसावदार जोड़ों की चार किस्में हैं।

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प्रश्न 7.
लम्बी हड्डियां शरीर में कहाँ पाई जाती हैं ?
उत्तर-
लम्बी हड्डियां शरीर में बाजू और टांगों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 8.
मनुष्य में कुल मिला कर कितनी हड्डियां होती हैं ?
उत्तर-
मनुष्य में कुल मिलाकर 206 हड्डियां होती हैं।

प्रश्न 9.
जोड़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक स्थान पर मिलें तो उसे जोड़ कहते हैं।

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प्रश्न 10.
अनाटमी क्या है ?
उत्तर-
अनाटमी वह विज्ञान है जो शरीर की बनावट और सभी अंगों का आपसी सम्बन्ध की जानकारी देते हैं।

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा और खेलों के बीच अनाटमी और फिजिओलोजी के दो लाभ लिखें।
उत्तर-

  1. खिलाड़ियों के प्रदर्शन में वृद्धि होती है।
  2. अच्छी सेहत बनती है।

प्रश्न 2.
कोशिकाएं (Cells) क्या हैं ?
उत्तर-
कोशिकाएं जीवन की प्राथमिक इकाई हैं। इन कोशिकाओं और कोशिका अंगों को नंगी आँख के साथ नहीं देखा जा सकता। इन्हें सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। ये अपने भीतर को एकत्रित करके रखते हैं और भोजन के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इस ऊर्जा का प्रयोग शारीरिक क्रियाएं करने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 3.
लम्बी हड्डियां शरीर में कहां पाई जाती हैं ?
उत्तर-
इस किस्म की हड्डियां टांगों तथा बाजुओं में पाई जाती हैं। यह हमें चलने-फिरने तथा क्रियाएं करने में मदद करती हैं। इन हड़ियों के बिना शारीरिक क्रियाएं करना असम्भव है। इन हड्डियों के दो सिरे तथा एक शाफ्ट होती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अस्थि पिंजर के कोई तीन कार्य लिखो।
उत्तर-

  1. मनुष्य अस्थि पिंजर शरीर को एक खास प्रकार की शक्ल देता है।
  2. यह शरीर को सीधा रखता है।
  3. मनुष्य पिंजर में जगह-जगह पर उतोलक (Livers) बनते हैं।

प्रश्न 2.
हड्डियों की किस्में लिखो।
उत्तर-

  1. लम्बी हड्डियाँ
  2. छोटी हड्डियाँ
  3. चपटी हड्डियाँ
  4. बेढंगी हड्डियाँ
  5. तिल रूपी हड्डियाँ।

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प्रश्न 3.
शारीरिक रचना विज्ञान क्या है ?
उत्तर-
मानवीय शरीर रचना विज्ञान का अध्ययन करने से पता लगता है कि शारीरिक अंगों का जन्म मानवीय कोशिका (सैल) के उत्पन्न होने के साथ हुआ है। कोशिका (सैल) के समूह से ऊतक (टिशु) बनते हैं, और उतकों का समूह एकत्रित होकर अंग और अंगों के सुमेल से प्रबंध बनते हैं।

प्रश्न 4.
ऊतक तथा प्रबन्ध का वर्णन करो।
उन्नर-
1. ऊतक (Tissue)-कोशिका (सैल) के समूह से ऊतक बनते हैं। जब एक ही आकृति और काम करने वाली कोशिकाओं के समूह मिलकर काम करते हैं, तो उन्हें ऊतक कहा जाता है। इन ऊतकों में 60% से 90 तक पानी होता है। मानवीय शरीर में चार तरह के ऊतक पाये जाते हैं, जैसे-संयोजक ऊतक, मांसपेशियां ऊतक एवं नाड़ी ऊतक।

2. प्रबंध (System).-सैल के समूह ऊतक, ऊतक के समूह से अलग-अलग अंग तथा एक जैसे काम करने वाले अलग-अलग अंग मिलकर प्रबंध (System) बनाते हैं। साधारण शब्दों में शरीर के अलग-अलग अंगों के मिश्रण से प्रबंध बनते हैं, जैसे-श्वास प्रबंध, रक्त प्रवाह प्रबंध, मांसपेशियां प्रबंध, नाड़ी प्रबंध, मल त्याग आदि। ये अंग अपनाअपना काम लय और दूसरे अंगों के सहयोग के साथ करते हैं।

प्रश्न 5.
उड़ती या तैरती पसलियां क्या होती हैं ?
उत्तर-
छाती की हड्डी के दोनों ओर 12-12 पसलियां होती हैं। इनका अगला भाग Cortal Cartilages द्वारा छाती ” की हड्डी में जुड़ता है। पहली सात पसलियां छाती की हड्डी से अलग-अलग रूप में जुड़ जाती हैं। आठवीं, नौवीं और दसवीं पसलियां छाती की हड्डी के साथ जुड़ने से पहले ही सातवीं पसली में जुड़ जाती हैं। आखरी दो पसलियां स्वतन्त्र हैं। इनको उड़ती या तैरती पसलियां (Floating Ribs) भी कहा जाता है। ये सब पसलियां मिलकर एक पिंजर का निर्माण करती हैं। ये पिंजर दिल और फेफड़ों की रक्षा करता है। पसलियों के बीच के स्थान में मांसपेशियां होती हैं। ये मांसपेशियां श्वास लेने से फैलती या सिकुड़ती हैं। जिस कारण ये पिंजर ऊपर नीचे उठता बैठता रहता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न | (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक क्रियाओं और खेलों के क्षेत्र में अनाटमी और फिजिओलोजी का योगदान तथा लाभ के बारे में लिखें।
उत्तर-
आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा और खेलों का मानवीय जीवन में बहुत महत्व हैं। ये व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करने में सहायक होते है। खिलाड़ियों की तरफ से रोज़ खेल के मैदान में अलग-अलग प्रकार की क्रियाएं की जाती हैं। इन खेल क्रियाओं के अभ्यास से खिलाड़ियों के खेल प्रदर्शन में सुधार होता रहता है। जिससे खिलाड़ियों के अंगों और प्रबंधों के कार्य करने की समर्था में वृद्धि होती है। इसलिए खेल क्रियाओं में सुधार के लिए विभिन्न अंगों की बनावट और काम को समझना अनिवार्य है। शरीर को नया निरोग, ताकतवर रखने के लिए, शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान (Anatomy and Physiology) के बारे में जानकारी होना बहुत अनिवार्य है।
शारीरिक शिक्षा और खेलों के क्षेत्र में अनाटमी और फिजिओलोजी के लाभ—

  1. ये खिलाड़ी की समार्थ्यता के मूटयांकन में मदद करता है।
  2. ये मानवीय शरीर पर अभ्यासों के प्रभावों के अध्ययन में मदद करता है।
  3. ये ट्रेनिंग सैशन के दौरान शरीर की सही स्थिति बनाने में मदद करता है।
  4. ये चोटों की किस्मों की पहचान करने में मदद करता है।
  5. यह स्पोर्टस पोषण की आधारभूत जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।
  6. ये खेल की चोटों के शीघ्र उपचार करने में मदद करता है।
  7. ये किसी खिलाड़ी की स्पोर्टस कार्यक्षमता को बेहतर बनाने में मदद करता है।
  8. ये खिलाड़ी को शरीरिक शक्ति के अनुसार किसी खेल का चुनाव करने में मदद करता है।
  9. ट्रेनिंग सैशन के दौरान हुई थकावट की रिकवरी में मदद करता है।
  10. ये किसी खिलाड़ी के शारीरिक ढांचे के सकारात्मक या नकारात्मक पहलुओं की जानकारी प्रदान करता है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय

प्रश्न 2.
मानवीय अस्थि पिंजर पर व्यायाम के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
मानवीय अस्थि पिंजर पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Human Skeletal System)-व्यायाम के मानवीय अस्थि पिंजर पर क्या प्रभाव पड़ते हैं ? इस बात को समझने के लिए कम समय और लगातार व्यायाम करते रहना भाव प्रशिक्षण (Training) में अन्तर डालना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी और लगातार व्यायाम करने के लिए मानवीय अस्थि पिंजर (Human Skeleton) के ऊपर कई प्रभाव पड़ जाते हैं। कभी-कभी अनियमित ढंग के साथ व्यायाम करने के साथ शरीर के ऊपर जो प्रभाव पड़ते हैं, थोड़ी देर के लिए (अस्थायी) होते हैं। अगर इस प्रकार के व्यायाम को कुछ दिन न किया जाए तो शरीर पहले की अवस्था पर आ जाता है, परन्तु कुछ महीनों तक लगातार नियमानुसार व्यायाम करते रहने पर शरीर में पूरी तरह परिवर्तन आ जाता है। जिनकी पहचान बहुत आसानी के साथ की जा सकती है।
लागातार व्यायाम करते रहने से मानवीय अस्थि पिंजर के ऊपर जो प्रभाव पड़ते हैं वह इस प्रकार हैं—

1. लम्बाई में वृद्धि (Increase in Height)-कुछ समय लगातार व्यायाम करने के साथ नवयुवकों की हड़ियों की लम्बाई में रुकावट की वृद्धि होती है। जिस कारण उनके शरीर की लम्बाई में बढ़ोत्तरी होती है। परन्तु इसमें याद रखने योग्य बात यह है कि वृद्धि बचपन की अवस्था के अन्त तक होती है।

2. जोड़ के तन्तुओं की ताकत में वृद्धि (Increase in the strength of ligaments of Joints) लगातार नियमानुसार व्यायाम करते रहने के साथ हड्डियों और जोड़ के तन्तुओं में मजबूती आ जाती है। जिस के साथ वह ज्यादा खिंच सहने योग्य हो जाते हैं।

3. शरीर सामर्थ्य में वृद्धि और शरीर के पित्त वाले विकारों की समाप्ति (Increase in physical capacity and elimination of physical defects)-शारीरिक सामर्थ्य में वृद्धि होती है और शरीर के पित्त वाले विकार भी काफ़ी ज्यादा खत्म हो जाते हैं।

4. जोड़ों में तड़क (Flexibility of Joints) लगातार व्यायाम करने के कारण जोड़ों में तड़क उत्पन्न होती

5. आसन सम्बन्धी अवगुणों का दूर होना (Removing Postural defects) लगातार व्यायाम करने के कारण शरीर के आसन सम्बन्धी अवगुण जिस तरह कुबड़ापन या रीढ़ की हड्डी आदि का सिकुड़ना दूर हो जाते हैं।

6. प्रणालियों को दोषों से मुक्त करना (Preventing defects in systems) लगातार व्यायाम करते रहने से आसन सम्बन्धी दोषों को दूर करके शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।

कबड्डी (Kabbadi) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions कबड्डी (Kabbadi) Game Rules.

कबड्डी (Kabbadi) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. पुरुषों के लिए कबड्डी के मैदान की लम्बाई = 13 मीटर
  2.  कबड्डी के मैदान की चौड़ाई = 10 मीटर
  3. महिलाओं के लिए मैदान की लं. और चौ. = 12 मीटर, 8 मीटर
  4. जूनियर लड़के और लड़कियों के लिए मैदान = 11 × 8 मीटर
  5. मैच का समय पुरुषों के लिए = 20-5-20 मिनट
  6. महिलाओं के लिए मैच का समय = 15-5-15 मिनट
  7. विश्राम का समय = 5 मिनट
  8. टीम के कुल खिलाड़ी = 12
  9. बॉक रेखा की मध्य रेखा से = 3.75 मीटर दूरी (पुरुषों के लिए)
  10. बॉक रेखा की मध्य रेखा से = 3 मीटर दूरी (महिलाओं के लिए)
  11. बोनस का अंक = कम से कम 6 खिलाड़ियों के होने पर
  12. मैच के अधिकारी = 1 रेफरी, 2 अम्पायर, 1 स्कोरर, 1 टाइम कीपर 2 लाइन मैन
  13. मध्यान्तर का समय = पांच मिनट

कबड्डी खेल की संक्षेप रूप-रेखा (Brief outline of the Kabaddi Game)

  1. प्रत्येक टीम में 12 खिलाड़ी होंगे परन्तु एक समय सात खिलाड़ी ही मैदान में उतरेंगे तथा 5 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. टॉस जीतने वाली टीम अपनी पसन्द का क्षेत्र चुनती है तथा आक्रमण करने का अवसर प्राप्त करती है।
  3. खेल का समय 20-5-20 मिनटों का होता है तथा स्त्रियों और जूनियरों के लिए 15-5-15 का होता है जिसमें 5 मिनट का समय आराम का होता है।
  4. यदि कोई खिलाड़ी खेल के दौरान मैदान में से बाहर चला जाता है तो वह आऊट माना जाएगा।
  5. यदि किसी खिलाड़ी का कोई अंग सीमा के बाहरी भाग को छू जाए तो वह आऊट माना जाएगा।
  6. यदि किसी कारणवश मैच पूरा नहीं खेला जाता तो मैच दोबारा खेला जाएगा।
  7. खिलाड़ी अपने शरीर पर तेल या कोई और चिकनाहट वाली चीज़ नहीं मल सकता।
  8. खेल के समय कोई खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को कैंची (Scissors grip) नहीं मार सकता।
  9. खिलाड़ी को चोट लगने की दशा में दूसरा खिलाड़ी उसके स्थान पर आ सकता है।
  10. ग्राऊंड से बाहर खड़े होकर खिलाड़ी को पानी दिया जा सकता है, ग्राऊंड के अन्दर आकर देना फाऊल है।
  11. कैप्टन रैफरी के परामर्श से टाइम आऊट ले सकता है, परन्तु टाउम-आऊट का समय दो मिनट से अधिक नहीं होना चाहिए।
  12. एक टीम तीन खिलाड़ी बदल सकती है।
  13. यदि कोई टीम दूसरी टीम से लोना ले जाती है तो उस टीम को दो नम्बर और दिए जाते हैं।
  14. बदले हुए खिलाड़ियों को दोबारा नहीं बदला जा सकता।

कबड्डी (Kabbadi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide कबड्डी (Kabbadi) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कबड्डी के मैदान की लम्बाई तथा चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
लम्बाई = 13 मी., चौड़ाई = 10 मी.

प्रश्न 2.
कबड्डी के मैच में पुरुषों के लिये खेल का कितना समय होता है ?
उत्तर-
20-5-20 मिनट।

प्रश्न 3.
कबड्डी के मैच में आधा समय कितने मिनट का होता है ?
उत्तर-
पांच मिनट का।

कबड्डी (Kabbadi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
कबड्डी के मैच में पुरषों के लिये बॉक लाइन की मध्य लाइन से दूरी कितनी होती है ?
उत्तर-
3.75 मीटर।

प्रश्न 5.
कबड्डी के इतिहास के विषय में लिखें।
उत्तर-
कबड्डी खेल का जन्म हमारे भारत में हुआ था। इसलिए इसको भारत का मूल खेल कहा जाता है। कबड्डी खेल की जड़ें भारतीय ज़मीन में लगीं, बढ़ीं और विकसित हुई हैं। यह खेल भारत के हर शहर में खेला जाता है। अलग-अलग राज्यों में इस खेल को भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। कई राज्यों में इसे हु-तू-हु, कौड़ी, सादुकुड़ा आदि के नाम से जाना जाता है। कबड्डी का खेल भारत के गांवों में अधिक प्रसिद्ध है। क्योंकि इस खेल के नियम बहुत साधारण हैं और इस खेल के लिए किसी विशेष सामान की भी ज़रूरत नहीं होती। सन् 1920 में दक्षिण जिमखाना में कबड्डी की नई किस्म के नये नियम बनाये गये। 1935 में सर्व महाराष्ट्र शारीरिक परिषद् में कबड्डी के नियमों को संशोधित किया गया। सन् 1936 में बर्लिन ओलम्पिक खेलों में इसका प्रदर्शनी मैच करवाया गया। सन् 1982 में इस खेल का प्रदर्शनी मैच एशियन गेमों में, जो नई दिल्ली में हुईं, में करवाया गया। सन् 1951 में राष्ट्रीय कबड्डी का गठन किया गया और 1990 में एशियन खेलों में कबड्डी खेल को अपना स्थान मिला जबकि अब तक ओलम्पिक में यह अपना स्थान प्राप्त नहीं कर सकी है। कबड्डी खेल पाकिस्तान, श्रीलंका, वर्मा, मलेशिया, कोरिया और सिंगापुर में खेला जाता है। हमारे देश में फैडरेशन ऑफ़ इंडिया कबड्डी के नियमों को देखती है और उसके अनुकूल काम करती है।

प्रश्न 6.
कबड्डी के मैच में गैलरी क्या होती है ?
उत्तर-
कबड्डी के मैच में सिटिंग बॉक्स को गैलरी कहते हैं।

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प्रश्न 7.
कबड्डी के मैच में बॉक लाइन क्या होती है ?
उत्तर-
अन्तिम तथा मध्य रेखा के बीच में बाक रेखा लगाई जाती है। रेडर को यह रेखा पार करनी आवश्यक होती है। यदि रेडर विरोधी टीम के खिलाड़ी को नहीं छूता तथा यह रेखा भी पार नहीं करता तो वह आऊट हो जाता है। विरोधी टीम को इसका अंक मिल जाता है। पुरुषों के लिये मध्य रेखा से दूरी 3.75 मी. और महिलाओं के लिये 3 मी. होती है।

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Physical Education Guide for Class 11 PSEB कबड्डी (Kabbadi) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
कबड्डी के खेल के मैदान, खेल अधिकारी तथा खेल के प्रमुख नियमों का वर्णन करें।
उत्तर-
खेल का मैदान (Play Ground) खेल का मैदान समतल तथा नर्म होगा। यह मिट्टी, खाद तथा बुरादे का होना चाहिए। पुरुषों के लिए मैदान का आकार 13 मीटर × 10 मीटर होगा। केन्द्रीय रेखा इसे दो समान भागों में बांटेगी। प्रत्येक भाग 10 मीटर × 161/4 मीटर होगा। स्त्रियों तथा जूनियर्ज़ के लिए मैदान का नाप 11 मीटर × 8 मीटर होगा। मैदान के दोनों ओर एक मीटर चौड़ी पट्टी होगी जिसे लॉबी (Lobby) कहते हैं। प्रत्येक क्षेत्र में केन्द्रीय रेखा से तीन मीटर दूर उसके समानान्तर मैदान की पूरी चौड़ाई के बराबर रेखायें खींची जाएंगी। इन रेखाओं को बॉक रेखाएं (Baulk Lines) कहते हैं। केन्द्रीय रेखा स्पष्ट रूप से अंकित की जानी चाहिएं। केन्द्रीय रेखा तथा अन्य रेखाओं की अधिकतम चौड़ाई 5 सैंटीमीटर या 2 इंच होनी चाहिए।
बोनस रेखा (Bonus Lines)—

  1. यह रेखा से 10 सें० मी० के अन्तर पर होती है और सीनियर के लिए बॉक रेखा से एक मीटर के अन्तर पर होती है।
  2. जब रेडर रेखा को पार के पश्चात् यदि कोई रेडर पकड़ा जाता है तो उसे अंक दिया जाता है।
  3. बोनस रेखा को पार करने के पश्चात् यदि कोई रेडर पकड़ा जाता है तो विरोधी टीम को उसका अंक दिया जाता है।
  4. यदि कोई रेडर बोनस रेखा पार करने के पश्चात् खिलाड़ी को हाथ भी लगाकर आता है तो उसे बोनस के अतिरिक्त एक अंक अधिक मिलता है।

खेल के नियम
(Rules of Game)
1. टॉस जीतने वाली टीम या तो अपनी पसन्द का क्षेत्र ले सकती या पहले आक्रमण करने का अवसर प्राप्त कर सकती है। मध्यान्तर के पश्चात् क्षेत्र या कोर्ट बदल लिए जाते हैं।

2. खेल के दौरान में मैदान से बाहर जाने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाएगा।

3. खिलाड़ी आऊट हो जाता है।

  • यदि किसी खिलाड़ी के शरीर का कोई भी भाग मैदान की सीमा के बाहर के भाग को स्पर्श कर ले।
  • संघर्ष करते समय खिलाड़ी आऊट नहीं होगा यदि उसके शरीर का कोई अंग या तो सीधे मैदान को छुए या उस खिलाड़ी को छुए जो सीमा के अन्दर है (शरीर का कोई न कोई भाग सीमा के बीच होना चाहिए।)

4. संघर्ष आरम्भ होने पर लॉबी का क्षेत्र भी मैदान में सम्मिलित माना जाता है। संघर्ष की समाप्ति पर वे खिलाड़ी जो संघर्ष में सम्मिलित थे, लॉबी से होते हुए अपने-अपने क्षेत्र में प्रवेश कर सकते हैं।
यदि बचाव करने वाली टीम के किसी खिलाड़ी का पैर पीछे वाली लाइन को छू जाता है तो वह आऊट नहीं है जब तक पैर लाइन से बाहर न निकले।

5. आक्रामक खिलाड़ी ‘कबड्डी’ शब्द का लगातार उच्चारण करता रहेगा। यदि वह ऐसा नहीं करता तो अम्पायर , उसे अपने क्षेत्र में वापिस जाने का और विपक्षी खिलाड़ी को आक्रमण करने का आदेश दे सकता है। इस स्थिति में उस खिलाड़ी का पीछा नहीं किया जाएगा।
KABADDI GROUND
कबड्डी (Kabbadi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1

6. आक्रामक खिलाड़ी को ‘कबड्डी’ शब्द बोलते हुए विपक्षी कोर्ट में प्रविष्ट होना चाहिए। यदि वह विपक्षी के कोर्ट में प्रविष्ट होने के पश्चात् ‘कबड्डी’ शब्द का उच्चारण करता है तो अम्पायर उसे वापिस भेज देगा और विपक्षी खिलाड़ी को आक्रमण का अवसर दिया जाएगा। इस स्थिति में आक्रामक खिलाड़ी का पीछा नहीं किया जाएगा।

7. यदि सचेत किए जाने पर कोई भी आक्रामक नियम नं० 6 का उल्लंघन करता है तो निर्णायक उसकी बारी समाप्त कर देगा और विपक्षी को एक अंक देगा, परन्तु उसे आऊट नहीं किया जाएगा।

8. खेल के अन्त तक प्रत्येक पक्ष अपने आक्रामक बारी-बारी से भेजता रहेगा।

9. यदि विपक्षियों द्वारा पकड़ा हुआ कोई आक्रामक उनसे बच कर अपने कोर्ट में सुरक्षित पहुंच जाता है तो उसका पीछा नहीं किया जाएगा।

10. एक बारी में केवल एक ही आक्रामक विपक्षी कोर्ट में जाएगा। यदि एक साथ एक से अधिक आक्रामक विपक्षी कोर्ट में जाते हैं तो निर्णायक या अम्पायर उन्हें वापस जाने का आदेश देगा और उनकी बारी समाप्त कर दी जाएगी। इन आक्रामकों द्वारा छुए गए विपक्षी आऊट नहीं माने जाएंगे। विपक्षी इन आक्रामकों का पीछा नहीं करेंगे।

11. जो भी पक्ष एक समय में एक से अधिक खिलाड़ी विपक्षी कोर्ट में भेजता है उसे चेतावनी दी जाएगी। यदि चेतावनी देने के पश्चात् भी वह ऐसा करता है तो पहले आक्रामक के अतिरिक्त शेष सभी को आऊट किया जाएगा।

12. यदि कोई आक्रामक विपक्षी कोर्ट में सांस तोड़ देता है तो उसे आऊट माना जाएगा।

13. किसी आक्रामक के पकड़े जाने पर विपक्षी खिलाड़ी जान-बूझ कर उसका मुंह बंद करके सांस रोकने या चोट लगने वाले ढंग से पकड़ने, कैंची या अनुचित साधनों का प्रयोग नहीं करेंगे। ऐसा किए जाने पर अम्पायर उस आक्रामक को अपने क्षेत्र में सुरक्षित लौटा हुआ घोषित करेगा।

14. कोई भी आक्रामक या विपक्षी एक दूसरे को सीमा से बाहर धक्का नहीं मारेगा। जो पहले धक्का देगा उसे आऊट घोषित किया जाएगा। यदि धक्का मार कर आक्रामक को सीमा से बाहर निकाला जाता है तो उसे अपने कोर्ट से सुरक्षित लौटा हुआ घोषित किया जाएगा।

15. जब तक आक्रामक विपक्षी कोर्ट में रहेगा तब तक कोई भी विपक्षी खिलाड़ी केन्द्रीय रेखा से पार आक्रामक के अंग को अपने शरीर के किसी भाग से नहीं छुएगा। यदि वह ऐसा करता है उसे आऊट घोषित किया जाएगा।

16. यदि नियम 15 का उल्लंघन करते हुए कोई आऊट हुआ विपक्षी आक्रामक को पकड़ता है या उसे पकड़े जाने में सहायता पहुंचाते हुए या आक्रामक को पकड़े हुए नियम का उल्लंघन करता है तो आक्रामक अपने कोर्ट में सुरक्षित लौटा घोषित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त संघर्ष दल के सभी विपक्षी सदस्य आऊट हो जाएंगे। जब कोई आक्रामक विरोधी टीम की ओर नम्बर ले कर आता है तो उसका नम्बर तब माना जाएगा यदि उसके शरीर के किसी भी अंग ने मध्य रेखा को पूरा पार किया हो।

17. यदि कोई आक्रामक बिना अपनी बारी के जाता है तो अम्पायर उसे वापिस लौटने का आदेश देगा। यदि यह बार-बार ऐसा करता है तो उसके पक्ष को एक बार चेतावनी देने के पश्चात् विपक्षियों को एक अंक दे दिया जाएगा।

18. नये नियमों के अनुसार बाहर से पकड़ कर पानी पीना फाऊल नहीं है।

19. जब एक दल विपक्षी दल के सभी खिलाड़ियों को निष्कासित करने में सफल हो जाए तो उन्हें ‘लोना’ मिलता है। लोने के दो अंक अतिरिक्त होते हैं। इसके पश्चात् खेल पुनः शुरू होगा।

20. आक्रामक को यदि अपने पक्ष के खिलाड़ी द्वारा विपक्षी के प्रति चेतावनी दी जाती है तो उसके विरुद्ध 1 अंक दिया जाएगा।

21. किसी भी आक्रामक या विपक्षी को कमर या हाथ-पांव के अतिरिक्त शरीर के किसी भाग से नहीं पकड़ सकता। उस नियम का उल्लंघन करने वाला आऊट घोषित किया जाएगा।

22. खेल के दौरान यदि एक या दो खिलाड़ी रह जाएं तथा विरोधी दल का कप्तान अपनी टीम को खेल में लाने के लिए उन्हें आऊट घोषित कर दे तो विपक्षियों को इस घोषणा से पहले शेष खिलाड़ियों की संख्या के बराबर अंकों के अतिरिक्त ‘लोना’ के दो अंक और प्राप्त होंगे।

23. विपक्षी के आऊट होने पर आऊट खिलाड़ी उसी क्रम में जीवित किया जाएगा जिसमें वह आऊट हुआ था।

24. यदि किसी चोट के कारण मैच 20 मिनट रुका रहे तो हम मैच re-play करवा सकते हैं।

25. 5 खिलाड़ियों के साथ भी मैच आरम्भ किया जा सकता है परन्तु जब 5 खिलाड़ी आऊट हो जाएं तो हम पूरा लोना अर्थात् 5 + 2 अंक (खिलाड़ियों 1, 5 अंक और 2 अंक लोने के) देते हैं। जब दो खिलाड़ी आ जाएं तो वे टीम में डाले जा सकते हैं।

26. लोना के दो अंक होते हैं।

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प्रश्न 2.
कबड्डी मैच के नियम बताएं।
उत्तर-
मैच के नियम
(Rules of Match)

  1. प्रत्येक पक्ष में खिलाड़ियों की संख्या बारह (12) होगी। एक साथ मैदान में सात खिलाड़ी उतरेंगे।
  2. खेल की अवधि पुरुषों के लिए 20 मिनट तथा स्त्रियों व जूनियरों के लिए 15 मिनट की दो अवधियां होंगी। इन दोनों अवधियों के बीच 5 मिनट का मध्यान्तर होगा।
  3. प्रत्येक आऊट होने वाले विपक्षी के लिए दूसरे पक्ष को एक अंक मिलेगा। लोना’ प्राप्त करने वाले पक्ष को दो अंक मिलेंगे।
  4. खेल की समाप्ति पर सबसे अधिक अंक प्राप्त करने वाले पक्ष को विजयी घोषित किया जाता है।
  5. कबड्डी का खेल बराबर रहने पर प्रत्येक टीम को पांच-पांच रेड क्रमानुसार दिये जाते हैं। सभी सात खिलाड़ी रेड के समय मैदान में रहेंगे। उस समय बॉक रेखा सभी तरह के फैसलों के लिए बोनस रेखा मानी जाएगी। इस खेल में खिलाड़ी को बॉक रेखा पार कर लेने पर एक अंकं मिलेगा। रेडर बोनस रेखा जो बॉक रेखा में परिवर्तित हुई है, उसे पार कर लेता है और किसी विरोधी खिलाड़ी को हाथ भी लगा देता है तो उसे बोनस रेखा पार करने का एक अंक अधिक मिलेगा। इस अवसर पर कोई भी खिलाड़ी आऊट होने पर मैदान से बाहर नहीं जा सकता।

रेड डालने से पहले दोनों टीमें अपने खिलाड़ियों के नम्बर और नाम क्रमानुसार रेड डालने के लिए रैफरी को देंगे और रैफरी के बुलाने पर दोनों टीमों के खिलाड़ी बारी-बारी रेड डालेंगे। उस समय टास नहीं होगा। पहले टास जीतने वाली टीम ही पहले रेड डालेगी। यद्यपि पांच-पांच रेड लाने पर भी मैच बराबर रहता है तो मैच का फैसला ‘अचानक मृत्यु’ (Sudden Death) के आधार पर होगा।

अचानक मृत्यु (Sudden Death)-इस अवसर पर दोनों टीमों का एक-एक रेड डालने का अवसर मिलेगा। जो भी टीम रेड डालते समय अंक बना लेती है उसे विजयी घोषित किया जाता है। इस तरह रेड डालने का सिलसिला उस समय तक चलता रहेगा, जब तक कोई एक टीम विजयी अंक प्राप्त नहीं कर लेती।

लोना (Lona)—जब एक टीम के सारे खिलाड़ी आऊट हो जाएं तो विरोधी टीम को 2 अंक अधिक मिलते हैं। उसे हम लोना कहते हैं।
टूर्नामैंट निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं—
1. नाक आऊट (Knock Out)—इस में जो टीम हार जाती है, वह प्रतियोगिता से बाहर हो जाती है।

2. लीग (League)—इस में यदि कोई टीम हार जाती है, वह टीम बाहर नहीं होगी। उसे अपने ग्रुप के सारे मैच खेलने पड़ते हैं। जो टीम मैच जीतती है उसे दो अंक दिये जाते हैं। मैच बराबर होने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक दिया जाएगा। हारने वाली टीम को शून्य (Zero) अंक मिलेगा।

यदि दोनों टीमों का मैच बराबर रहता है और अतिरिक्त समय भी दिया जाता है या जिस टीम ने खेल आरम्भ होने से पहले अंक लिया होगा वह विजेता घोषित की जाएगी। यदि दोनों टीमों का स्कोर शून्य (Zero) है तो जिस टीम ने टॉस जीता हो वह विजेता घोषित की जाएगी।

3. किसी कारणवश मैच न होने की दशा में मैच पुनः खेला जाएगा। दोबारा किसी और दिन खेले जाने वाले मैच में दूसरे खिलाड़ी बदले भी जा सकते हैं, परन्तु यदि मैच उसी दिन खेला जाए तो उसमें वही खिलाडी खेलेंगे जो पहले खेले

4. यदि किसी खिलाड़ी को चोट लग जाए तो उस पक्ष का कप्तान ‘समय आराम’ (Time Out) पुकारेगा, परन्तु ‘समय आराम’ की अवधि दो मिनट से अधिक नहीं होगी तथा चोट लगने वाला खिलाड़ी बदला जा सकता है। खेल की दूसरी पारी शुरू होने से पहले दो खिलाड़ी बदले जा सकते हैं। एक या दो से कम खिलाड़ियों से खेल शुरू हो सकता है। जो खिलाड़ी खेल शुरू होने के समय उपस्थित नहीं होते, खेल के दौरान किसी भी समय मिल सकते हैं। रैफरी को सूचित करना ज़रूरी है। यदि चोट गम्भीर हो तो उसकी जगह दूसरा खिलाड़ी खेल सकता है। प्रथम खेल के अन्त तक केवल दो खिलाड़ी बदले जा सकते हैं।

5. किसी भी टीम में पांच खिलाड़ियों से कम होने की दशा में खेल शुरू किया जा सकता है, परन्तु—

  • टीम के सभी खिलाड़ी आऊट होने पर अनुपस्थित खिलाड़ी भी आऊट हो जाएंगे और विपक्षी टीम को ‘लोना’ दिया जाएगा।
  • यदि अनुपस्थित खिलाड़ी आ जाएं तो वे रैफरी की आज्ञा से खेल में भाग ले सकते हैं।
  • अनुपस्थित खिलाड़ियों के स्थानापन्न कभी भी लिए जा सकते हैं परन्तु जब वे इस प्रकार लिए जाते हैं तो मैच के अन्त तक किसी भी खिलाड़ी को बदला जा सकता है।
  • मैच पुनः खेले जाने पर किसी भी खिलाड़ी को बदला जा सकता है।

6. प्रलेपन की अनुमति नहीं। खिलाड़ियों के नाखून खूब अच्छी तरह कटे होने चाहिएं। खिलाड़ियों की पीठ तथा सामने की ओर कम-से-कम चार इंच लम्बा नम्बर लगाया जाएगा। खिलाड़ी के कम-से-कम वस्त्र बनियान, जांघिया या लंगोट सहित निक्कर होंगे। शरीर पर तेल आदि चिकने पदार्थ का मलना मना है। खिलाड़ी धातु की कोई वस्तु धारण नहीं करेंगे।

7. खेल के दौरान कप्तान या नेता के अतिरिक्त कोई भी खिलाड़ी आदेश नहीं देगा। कप्तान अपने अर्द्धक में ही आदेश दे सकता है।

8. यदि खिलाड़ी ‘कबड्डी’ शब्द का उच्चारण ठीक प्रकार से नहीं करता तथा रैफरी (Referee) द्वारा एक बार चेतावनी दिए जाने पर वह बार-बार ऐसा करता है तो दूसरी टीम को एक प्वाईंट दे दिया जाएगा, परन्तु वह खिलाड़ी बैठेगा नहीं।

9. यदि कोई खिलाड़ी आक्रमण (Raid) करने जा रहा है और उसकी टीम का कोच या अन्य अधिकारी ऐसा करता है तो रैफरी दूसरी टीम को उसके विरुद्ध एक प्वाईंट (अंक) दे देगा।

कबड्डी (Kabbadi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
कबड्डी खेल में अधिकारी व खेल में त्रुटियों का वर्णन करें।
उत्तर-
अधिकारी व उनके अधिकार
(क)

  1. रैफरी (एक)
  2. निर्णायक या अम्पायर (दो)
  3. रेखा निरीक्षक (दो)
  4. स्कोरर (एक)

(ख) आमतौर पर निर्णायक का निर्णय अन्तिम होगा। विशेष दशाओं में रैफ़री इसे बदल भी सकता है भले ही दोनों अम्पायरों में मतभेद हो।
(ग) निर्णेता (रैफरी) किसी भी खिलाड़ी को त्रुटि करने पर चेतावनी दे सकता है, उसके विरुद्ध अंक दे सकता है या मैच के लिए अयोग्य घोषित कर सकता है। ये त्रुटियां इस प्रकार की हो सकती हैं—

  1. निर्णय के बारे में अधिकारियों को बार-बार कहना,
  2. अधिकारियों को अपमानजनक शब्द कहना,
  3. अधिकारियों के प्रति अभद्र व्यवहार करना या उनके निर्णय को प्रभावित करने के लिए प्रक्रिया,
  4. पक्षी को अपमानजनक बातें कहना।

त्रुटियां
(Fouls)

  1. आक्रामक का मुंह बन्द करके या गला दबा कर उसकी सांस तोड़ने की कोशिश करना।
  2. हिंसात्मक ढंग का प्रयोग।
  3. कैंची मार कर आक्रामक को पकड़ना।
  4. आक्रामक भेजने में पांच सैकिण्ड से अधिक समय लगाना।
  5. मैदान के बारे खिलाड़ी या कोच द्वारा कोचिंग देना। इस नियम के उल्लंघन पर अम्पायर अंक दे सकता है।
  6. ऐसे व्यक्तियों को निर्णायक या रैफ़री नम्बर दे कर बाहर निकाल सकता है। आक्रमण जारी रहने पर सीटी बजाई जाएगी।
  7. जानबूझ कर बालों से या कपड़े से पकड़ना फाऊल है।
  8. जानबूझ कर आक्रामक को धक्का देना फाऊल है।

फाऊल
(Foul)
अधिकारी फ़ाऊल (Foul) खेलने पर खिलाड़ियों को तीन प्रकार के कार्ड दिखा सकता है, जो निम्नलिखित हैं—
हरा कार्ड (Green Card)
यह कार्ड खिलाड़ी को किसी भी नियम का जानबूझ कर उल्लंघन करने पर चेतावनी के आधार पर दिखाया जा सकता है।
पीला कार्ड (Yellow Card)
यह कार्ड खिलाड़ी को दो मिनट के लिए मैदान से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।
लाल कार्ड (Red Card)
यह कार्ड मैच अथवा टूर्नामैंट से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।

PSEB 11th Class History Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न

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Unit 1

(1)

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए।
सिन्धु घाटी की सभ्यता से हमारा अभिप्राय उस प्राचीन सभ्यता से है जो सिन्धु नदी की घाटी में फली-फूली। इस सभ्यता के लोगों ने नगर योजना, तकनीकी विज्ञान, कृषि तथा व्यापार के क्षेत्र में पर्याप्त प्रतिभा का परिचय दिया।
श्री के० एम० पानिक्कर के शब्दों में “सैंधव लोगों ने उच्चकोटि की सभ्यता का विकास कर लिया था।” (“A very high state of civilization had been reached by the people of the Indus.”)
यदि गहनता से सिन्धु घाटी की सभ्यता का अध्ययन किया जाए तो इतिहास की अनेक गुत्थियां सुलझाई जा सकती हैं। सिन्धु घाटी का धर्म आज के हिन्दू धर्म से मेल खाता है। उनकी कला-कृतियां उत्कृष्टता लिए हुए थीं। उनकी लिपि अभी तक पढ़ी नहीं गई। इसे पढ़े जाने पर सिन्धु घाटी का चित्र अधिक स्पष्ट हो जाएगा।

1. केवल मोहनजोदड़ो से प्राप्त मोहरों की संख्या बताएं। इन मोहरों का प्रयोग किस लिए किया जाता था ?
2. भारतीय सभ्यता को हड़प्पा संस्कृति की क्या देन है ?
उत्तर-
1. मोहनजोदड़ो से 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा अथवा उन पर ‘सील’ लगाने के लिए किया जाता था।
2. सिन्धु घाटी की सभ्यता के निम्नलिखित चार तत्त्व आज भी भारतीय जीवन में देखे जा सकते हैं :

  • नगर योजना-सिन्धु घाटी के नगर एक योजना के अनुसार बसाए गए थे। नगर में चौड़ी-चौड़ी सड़कें और गलियां थीं। यह विशेषता आज के नगरों में देखी जा सकती है।
  • निवास स्थान-सिन्धु घाटी के मकानों में आज की भान्ति खिड़कियां और दरवाज़े थे। हर घर में एक आंगन, स्नान गृह तथा छत पर जाने के लिए सीढ़ियां थीं।।
  • आभूषण एवं श्रृंगार-आज की स्त्रियों की भान्ति सिन्धु घाटी की स्त्रियां भी श्रृंगार का चाव रखती थीं। वे सुर्थी तथा पाऊडर का प्रयोग करती थीं और विभिन्न प्रकार के आभूषण पहनती थीं। उन्हें बालियां, कड़े तथा । गले का हार पहनने का बहुत शौक था।
  • धार्मिक समानता-सिन्धु घाटी के लोगों का धर्म आज के हिन्दू धर्म से बहुत हद तक मेल खाता है। वे शिव, मातृ देवी तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा करते थे। आज भी हिन्दू लोगों में उनकी पूजा प्रचलित है।

(2)

मोहरें प्राचीन शिल्पकला को सिन्धु घाटी की विशिष्ट देन समझी जाती है। केवल मोहनजोदड़ो से ही 1200 से अधिक मोहरें प्राप्त हुई हैं। ये कृतियां भले ही छोटी हैं फिर भी इन की कला इतनी श्रेष्ठ है कि इनके चित्रों में शक्ति और ओज झलकता है। इनका प्रयोग सामान के गट्ठरों या भरे बर्तनों की सुरक्षा के लिए किया जाता था। ऐसा भी विश्वास किया जाता है कि मोहरों का प्रयोग एक प्रकार का प्रतिरोधक (taboo) लगाने के लिए होता था। इन मोहरों से ऐसा भी प्रतीत होता है कि सिन्धु घाटी के समाज में विभिन्न पदवियों और उपाधियों की व्यवस्था प्रचलित थी। इन मोहरों पर पशुओं तथा मनुष्यों की आकृतियां बनी हुई हैं। पशुओं से सम्बन्धित आकृतियां बड़ी कलात्मक हैं। परन्तु मोहरों पर बनी मानवीय आकृतियां उतनी कलात्मकता से नहीं बनी हुई हैं। मोहरों के अधिकांश नमूने उनकी किसी धार्मिक महत्ता के सूचक हैं। एक आकृति के दाईं तरफ हाथी और चीता हैं, बाईं ओर गैंडा और भैंसा हैं। उनके नीचे दो बारहसिंगे या बकरियां हैं। इन ‘पशुओं के स्वामी’ को शिव का पशुपति रूप समझा जाता है। मोहरों पर पीपल के वृक्ष के बहुत चित्र मिले हैं।

1. सिन्धु घाटी की सभ्यता के धर्म की विशेषताएं क्या थी ?
2. सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि के बारे में अब तक क्या पता चल सका है ?
उत्तर-1. खुदाई में एक मोहर मिली है जिस पर एक देवता की मूर्ति बनी हुई है। देवता के चारों ओर कुछ पशु दिखाए गए हैं। इनमें से एक बैल भी है। सर जॉन मार्शल का कहना है कि यह पशुपति महादेव की मूर्ति है और लोग इसकी पूजा करते थे। खुदाई में मिली एक अन्य मोहर पर एक नारी की मूर्ति बनी हुई है। इसने विशेष प्रकार के वस्त्र पहने हुए हैं। विद्वानों का मत है कि यह धरती माता (मातृ देवी) की मूर्ति है और हड़प्पा संस्कृति के लोगों में इसकी पूजा प्रचलित थी। लोग पशु-पक्षियों, वृक्षों तथा लिंग की पूजा में भी विश्वास रखते थे। वे जिन पशुओं की पूजा करते थे, उनमें से कूबड़ वाला बैल, सांप तथा बकरा प्रमुख थे। उनका मुख्य पूजनीय वृक्ष पीपल था। खुदाई में कुछ तावीज़ इस बात का प्रमाण हैं कि सिन्धु घाटी के लोग अन्धविश्वासी थे और जादू-टोनों में विश्वास रखते थे।

2. सिन्धु घाटी के लोगों ने एक विशेष प्रकार की लिपि का आविष्कार किया जो चित्रमय थी। यह लिपि खुदाई में मिली मोहरों पर अंकित है। यह लिपि बर्तनों तथा दीवारों पर लिखी हुई भी पाई गई है। इनमें 270 के लगभग वर्ण हैं। इसे बाईं से दाईं ओर लिखा जाता है। यह लिपि आजकल की तथा अन्य ज्ञात लिपियों से काफ़ी भिन्न है, इसलिए इसे पढ़ना बहुत ही कठिन है। भले ही विद्वानों ने इसे पढ़ने के लिए अथक प्रयत्न किए हैं तो भी वे अब तक इसे पूरी तरह पढ़ नहीं पाए हैं। आज भी इसे पढ़ने के प्रयत्न जारी हैं। अतः जैसे ही इस लिपि को पढ़ लिया जाएगा, सिन्धु घाटी की सभ्यता के अनेक नए तत्त्व प्रकाश में आएंगे।

(3)

भारतीय आर्य सम्भवतः मध्य एशिया से भारत में आये थे। आरम्भ में ये सप्त सिन्धु प्रदेश में आकर बसे और लगभग 500 वर्षों तक यहीं टिके रहे। ये मूलतः पशु-पालक थे और विशाल चरागाहों को अधिक महत्त्व देते थे। परन्तु धीरे-धीरे वे कृषि के महत्त्व को समझने लगे। अधिक कृषि उत्पादन की खपत के लिए नगरों का विकास भी होने लगा। फलस्वरूप आर्य लोग एक विशाल क्षेत्र में फैलते गए। इस प्रकार कृषि तथा नगरों के विकास ने आर्यों के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। कुछ अन्य तत्त्वों ने भी उनके प्रसार में सहायता पहुंचाई।

1. भारतीय आर्यों की आदिभूमि के बारे में कौन-से क्षेत्र बताए जाते हैं ?
2. आर्य लोग यमुना नदी की पूर्वी दिशा में कब बढ़े ? उनके इस दिशा में विस्तार के क्या कारण थे ?
उत्तर-
1. भारतीय आर्यों की आदिभूमि के बारे में मुख्य रूप से मध्य एशिया अथवा सप्त सिन्धु प्रदेश, उत्तरी ध्रुव तथा मध्य एशिया के क्षेत्र बताए जाते हैं। मध्य प्रदेश तथा सप्त सिन्धु प्रदेश का सम्बन्ध प्राचीन भारत से है।
2. आर्य लोग लगभग 500 वर्ष तक सप्त सिन्धु प्रदेश में रहने के पश्चात् यमुना नदी के पूर्व की ओर बढ़े। इस दिशा में उनके विस्तार के मुख्य कारण ये थे। इस समय तक आर्यों ने सप्त सिन्धु के अनेक लोगों को दास बना रखा था। इन दासों से वे जंगलों को साफ करने के लिए भेजते थे। जहां कहीं जंगल साफ हो जाते वहां वे खेती करने लगते थे। उस समय आर्य लोहे के प्रयोग से भी परिचित हो गए। लोहे से बने औजार तांबे अथवा कांसे के औज़ारों की अपेक्षा अधिक मज़बूत और तेज थे। इन औज़ारों की सहायता से वनों को बड़ी संख्या में साफ किया जाता था। आर्यों के तीव्र विस्तार का एक अन्य कारण यह था कि सिन्धु घाटी का सभ्यता की सीमाओं के पार कोई शक्तिशाली राज्य अथवा कबीला नहीं था। परिणाम स्वरूप आर्यों को किसी विरोधी का सामना न करना पड़ा और वे बिना किसी बाधा विस्तार करते गए।

(4)

आर्यों के धर्म में यज्ञों को बड़ा महत्त्व प्राप्त था। सबसे छोटा यज्ञ घर में ही किया जाता था। समय-समय पर बड़े-बड़े यज्ञ भी होते थे जिनमें सारा गांव या कबीला भाग लेता था। बड़े यज्ञों के रीति-संस्कार अत्यन्त जटिल थे और इनके लिए काफ़ी समय पहले से तैयारी करनी पड़ती थी। इन यज्ञों में अनेक पुरोहित भाग लेते थे। इनमें अनेक जानवरों की बलि दी जाती थी। यह बलि देवताओं को प्रसन्न करने के उद्देश्य से दी जाती थी। आर्यों का विश्वास था कि यदि इन्द्र देवता प्रसन्न हो जाएं तो वे युद्ध में विजय दिलाते हैं, आयु बढ़ाते हैं और सन्तान तथा धन में वृद्धि करते हैं। बाद में एक और उद्देश्य से भी यज्ञ किए जाने लगे। वह यह था कि प्रत्येक यज्ञ से संसार पुनः एक नया रूप धारण करेगा, क्योंकि संसार की उत्पत्ति यज्ञ द्वारा हुई मानी गई थी।

1. राजसूय यज्ञ का क्या महत्त्व था ?
2. आर्यों के मुख्य देवताओं के बारे में बताएं।
उत्तर-
1. राजसूय यज्ञ राज्य में दैवी शक्ति का संचार करने के लिए किया जाता था। इससे स्पष्ट है कि राजपद को दैवी देन माना जाने लगा था।
2. ऋग्वेद के अध्ययन से पता चलता है आर्य लोग प्रकृति के पुजारी थे। अपनी समृद्धि के लिए वे सूर्य, वर्षा, पृथ्वी आदि की पूजा करते थे। वे अग्नि, आंधी, तूफान आदि की भी स्तुति करते थे ताकि वे उनके प्रकोपों से बचे रहें। कालान्तर में आर्य लोग प्रकृति की विभिन्न शक्तियों को देवता मान कर पूजने लगे। वरुण उनका प्रमुख देवता था। उसे आकाश का देवता माना जाता था। आर्यों के अनुसार वरुण समस्त जगत् का पथ-प्रदर्शन करता है। आर्य सैनिकों के लिए इन्द्र देवता अधिक महत्त्वपूर्ण था। उसे युद्ध तथा ऋतुओं का देवता माना जाता था। युद्ध में विजय के लिए इन्द्र की ही उपासना की जाती थी। इन्द्र के अतिरिक्त वे रुद्र, अग्नि, पृथ्वी, वायु, सोम आदि देवताओं की उपासना भी करते थे।

(5)

जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इस समय तक देश के राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में नए विचार उभर रहे थे। देश में कुछ बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके थे। इनमें शासक नवीन विचारों के पनपने का कोई विरोध नहीं कर रहे थे। इसी प्रकार सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण भी नवीन धार्मिक आन्दोलनों के उदय के अनुकूल था। वैदिक धर्म में अनेक कुरीतियां आ गई थीं। व्यर्थ के रीति-रिवाजों, महंगे यज्ञों और ब्राह्मणों के झूठे प्रचार के कारण यह धर्म अपनी लोकप्रियता खो चुका था। इन सब कुरीतियों का अन्त करने के लिए देश में लगभग 63 नये धार्मिक आन्दोलन चले जिनका नेतृत्व विद्वान् हिन्दू कर रहे थे। परन्तु ये सभी धर्म लोकप्रिय न हो सके। केवल दो धर्मों को छोड़कर शेष सभी समाप्त हो गये। ये दो धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म।

1. महात्मा बुद्ध के जन्म और मृत्यु से सम्बन्धित स्थानों के नाम बताएं।
2. महात्मा बुद्ध अथवा बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वाटिका में हुआ। उनकी मृत्यु कुशीनगर के स्थान पर हुई।
2. महात्मा बुद्ध ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग सिखाया। उन्होंने लोगों को बताया कि संसार दुःखों का घर है। दुःखों का कारण तृष्णा है। निर्वाण प्राप्त करके ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकता है। निर्वाण-प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध ने लोगों को अष्ट मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को अहिंसा, नेक काम तथा सदाचार पर चलने के लिए कहा। सच तो यह है कि बौद्ध धर्म ने व्यर्थ के रीति-रिवाजों यज्ञों तथा कर्मकाण्डों को त्यागने पर बल दिया।

(6)

जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की याद में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाए। ये मंदिर अपने प्रवेश द्वारों तथा सुन्दर मूर्तियों के कारण प्रसिद्ध थे। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर ताजमहल को लजाता है। कहते हैं कि मैसूर में बनी जैन धर्म की सुन्दर मूर्तियां दर्शकों को आश्चर्य में डाल देती हैं। इसी प्रकार आबू पर्वत का जैन-मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खुजराहो के जैन मन्दिर कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। जैन धर्म में इस महान् योगदान की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जैन धर्म के अनुयायियों ने लोक भाषाओं का प्रचार किया। उनका अधिकांश साहित्य संस्कृत की बजाय स्थानीय भाषाओं में लिखा गया। यही कारण है कि कन्नड़ साहित्य आज भी अपने उत्कृष्ट साहित्य के लिए जैन धर्म का आभारी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य में खूब योगदान दिया।

1. सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर कौन-से दो स्थानों पर हैं ?
2. महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
1. सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर राजस्थान में आबू पर्वत पर तथा मैसूर में श्रावणवेलगोला में हैं।
2. महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्व था। इसका वर्णन इस प्रकार है-

  • उन्होंने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा। भेदभाव का स्थान सहकारिता ने ले लिया। ऊंच-नीच की भावना समाप्त होने लगी और समाज प्यार और भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया।
  • महावीर ने लोगों को समाज-सेवा का उपदेश दिया। अतः लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की। इससे न केवल जनता का ही भला हुआ बल्कि दूसरे धर्मों के अनुयायियों को भी समाज सेवा के कार्य करने का प्रोत्साहन मिला।
  • जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म भी काफ़ी सरल बन गया।
  • इसके अतिरिक्त महावीर ने अहिंसा पर बल दिया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपना कर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए। उनका जीवन सरल तथा संयमी बना।

(7)

जय देवानांपिय पिपदरसी ने अपने शासन के आठ वर्ष पूरे किए तो उन्होंने कलिंग (आधुनिक तटवर्ती ओडिशा) पर विजय प्राप्त की। डेढ़ लाख पुरुषों को निष्काषित किया गया। एक लाख मारे गए और इससे भी ज्यादा की मृत्यु हुई। कलिंग पर शासन स्थापित करने के बाद देवानांपिय धम्म के गहन अध्ययन, धम्म के स्नेह और धम्म के उपदेश में डूब गए हैं। यही देवानांपिय के लिए कलिंग की विजय का पश्चात्ताप है। देवानांपिय के लिए यह बहुत वेदनादायी और निदनीय है कि जब कोई किसी राज्य पर विजय प्राप्त करता है तो पराजित राज्य का हनन होता है, वहां लोग मारे जाते हैं, निष्कासित किए जाते हैं।

1. ‘देवानांपिप पियदरसी’ किसे पुकारते थे ? उनका संक्षेप में वर्णन कीजिए।
2. अशोक पर कलिंग युद्ध के पड़े प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
1. ‘देवानांपिय पियदरसी’ सम्राट असोक (अशोक) को पुकारते हैं। उन्होनें कलिंग (आधुनिक तटवर्ती ओडिशा) पर विजय प्राप्त की थी।
2. कलिंग युद्ध के अशोक पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े

  • उन्होंने युद्धों का सदा के लिए त्याग कर दिया।
  • वह धम्म के अध्ययन, धम्म के स्नेह तथा धम्म के उपदेश में डूब गए।
  • वह प्रजा-हितकारी शासक बन गए।

(8)

यह प्रयाग प्रशस्ति का एक अंश है :
धरती पर उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। अनेक गुणों और शुभकार्यों में संपन्न उन्होनें पैर के तलबे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया है। वे परमात्मा पुरुष हैं, साधु (भले) की समृद्धि और असाधु (बुरे) के विनाश के कारण हैं। वे अज्ञेय हैं। उनके कोमल हृदय को भक्ति और विनय से ही वश में किया जा सकता है। वे करुणा से भरे हुए हैं। वे अनेक सहस्त्र गांवों के दाता है। उनके मस्तिष्क की दीक्षा दीन-दुखियों, विरहणियों और पीड़ितों के उद्धार के लिए की गई है। वे मानवता के लिए दिव्यमान उदारता की प्रतिमूर्ति है। वे देवताओं के कुबेर (धन-देव), वरुण (समुद्र-देव), इंद्र (वर्षा के देवता) और यम (मृत्यु-देव) के तुल्य हैं।

1. समुद्रगुप्त कौन था ? उनकी तुलना किन देवताओं से की गई है ?
2. लेखक ने समुद्रगुप्त के किन गुणों अथवा सफलताओं का उल्लेख किया है ? कोई चार बताइए।
उत्तर-
1. समुद्र गुप्त संभवतः सबसे शक्तिशाली गुप्त सम्राट था। उसकी तुलना धन-देव कुबेर, समुद्र-देव वरुण, वर्षा के देवता
इंद्र तथा मृत्यु-देव यम से की गई है।
2. हरिषेण के अनुसार-

  • धरती पर समुद्रगुप्त का कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। उन्होंने अपने पैर के तलबे से अन्य राजाओं के यश को मिटा दिया था।
  • वह परमात्मा पुरुष थे-साधु (भले) की समृद्धि तथा असाधु (बुरे) के विनाश कारण।
  • वह अजेय थे।
  • उनके कोमल मन को भक्ति और विनय से ही वश में किया जा सकता था।

(9)

गुप्त काल में गणित, ज्योतिष तथा चिकित्सा विज्ञान में काफ़ी प्रगति हुई-
आर्यभट्ट गुप्त युग का महान् गणितज्ञ तथा ज्योतिषी था। उसने ‘आर्यभट्टीय’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह अंकगणित, रेखागणित तथा बीजगणित के विषयों पर प्रकाश डालता है। उसने गणित को स्वतन्त्र विषय के रूप में स्वीकार करवाया। संसार को ‘बिन्दु’ का सिद्धान्त भी उसी ने दिया। आर्यभट्ट पहला व्यक्ति था जिसने यह घोषणा की कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। उसने सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण के वास्तविक कारणों पर भी प्रकाश डाला।

गुप्त युग का दूसरा महान् ज्योतिषी अथवा नक्षत्र-वैज्ञानिक वराहमिहिर था। उसने ‘पंच सिद्धान्तिका’, ‘बृहत् संहिता’ तथा ‘योग-यात्रा’ आदि ग्रन्थों की रचना की। ब्रह्मगुप्त एक महान् ज्योतिषी तथा गणितज्ञ था। उसने न्यूटन से भी बहुत पहले गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को स्पष्ट किया। वाग्यभट्ट इस युग का महान् चिकित्सक था। उसका ‘अष्टांग संग्रह’ नामक ग्रन्थ चिकित्सा जगत् के लिए अमूल्य निधि है। इसमें चरक तथा सुश्रुत नामक महान् चिकित्सकों की संहिताओं का सार दिया गया है। इस काल में पाल-काव्य ने ‘हस्त्यायुर्वेद’ की रचना की। इस ग्रन्थ का सम्बन्ध पशु चिकित्सा से है। लोगों को उस समय रसायनशास्त्र तथा धातु विज्ञान का भी ज्ञान था।

1. चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वानों के नाम बताओ।
2. आर्यभट्ट का खगोल विज्ञान में क्या योगदान था ?
उत्तर-
1. चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वान् थे-चरक और सुश्रुत।
2. आर्यभट्ट गुप्त काल का एक महान् वैज्ञानिक एवं खगोलशास्त्री था। उसने अपनी नवीन खोजों द्वारा खगोलशास्त्र को काफ़ी समृद्ध बनाया। ‘आर्य भट्टीय’ उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। उसने यह सिद्ध किया कि सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण, राहू और केतू नामक राक्षसों के कारण नहीं लगते बल्कि जब चन्द्रमा कार्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो चन्द्रग्रहण होता है। आर्यभट्ट ने स्पष्ट रूप में यह लिख दिया था कि सूर्य नहीं घूमता बल्कि पृथ्वी ही अपनी धुरी के चारों ओर घूमती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट ने महान् योगदान दिया।

(10)

गप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत की राजनीतिक एकता छिन्न-भिन्न हो गई थी। देश में अनेक छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्य उभर आये थे। इनमें से एक थानेश्वर का वर्धन राज्य भी था। प्रभाकर वर्धन के समय में यह काफ़ी शक्तिशाली था। उसकी मृत्यु के बाद 606 ई० में हर्षवर्धन राजगद्दी पर बैठा। राजगद्दी पर बैठते समय वह चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था। शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए उसे अनेक युद्ध करने पड़े। वैसे भी हर्ष अपने राज्य की सीमाओं में वृद्धि करना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने अनेक सैनिक अभियान किए। कुछ ही वर्षों में लगभग सारे उत्तरी भारत पर उसका अधिकार हो गया। इस प्रकार उसने देश में राजनीतिक एकता की स्थापना की और देश को अच्छा शासन प्रदान किया।

1. हर्षवर्धन के राज्यकाल में आने वाले चीनी यात्री का नाम बताओ और यह कब से कब तक भारत में रहा ?
2. हर्षवर्धन के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1. हर्षवर्धन के राज्यकाल में आने वाला चीनी यात्री ह्यनसांग था। वह 629 से 645 ई० तक भारत में रहा।
2. हर्षवर्धन एक महान् चरित्र का स्वामी था। उसे अपने परिवार से बड़ा प्रेम था। अपनी बहन राज्यश्री को मुक्त करवाने और उसे ढूंढने के लिए वह जंगलों की खाक छानता फिरा। वह एक सफल विजेता तथा कुशल प्रशासक था। उसने थानेश्वर के छोटे से राज्य को उत्तरी भारत के विशाल राज्य का रूप दिया। वह प्रजाहितैषी और कर्तव्यपरायण शासक था। यूनसांग ने उसके शासन प्रबन्ध की बड़ी प्रशंसा की है। उसके अधीन प्रजा सुखी और समृद्ध थी। हर्ष धर्मपरायण और सहनशील भी था। उसने बौद्ध धर्म को अपनाया और सच्चे मन से इसकी सेवा की। उसने अन्य धर्मों का समान आदर किया। दानशीलता उसका एक अन्य बड़ा गुण था। वह इतना दानी था कि प्रयाग की एक सभा में उसने अपने वस्त्र भी दान में दे दिए थे और अपना तन ढांपने के लिए अपनी बहन से एक वस्त्र लिया था। हर्ष स्वयं एक उच्चकोटि का विद्वान् था और उसने कला और विद्या को संरक्षण प्रदान किया।

Unit 2

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए

(1)

आठवीं और नौवीं शताब्दी में उत्तरी भारत में होने वाला संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष के नाम से प्रसिद्ध है। यह संघर्ष राष्ट्रकूटों, प्रतिहारों तथा पालों के बीच कन्नौज को प्राप्त करने के लिए ही हुआ। कन्नौज उत्तरी भारत का प्रसिद्ध नगर था। यह नगर हर्षवर्धन की राजधानी था। उत्तरी भारत में इस नगर की स्थिति बहुत अच्छी थी। क्योंकि इस नगर पर अधिकार करने वाला शासक गंगा के मैदान पर अधिकार कर सकता था, इसलिए इस पर अधिकार करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी गईं। इस संघर्ष में राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल नामक तीन प्रमुख राजवंश भाग ले रहे थे। इन राजवंशों ने बारी-बारी कन्नौज पर अधिकार किया। राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल तीनों राज्यों के लिए संघर्ष के घातक परिणाम निकले। वे काफी समय तक युद्धों में उलझे रहे। धीरे-धीरे उनकी सैन्य शक्ति कम हो गई और राजनीतिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया। फलस्वरूप सौ वर्षों के अन्दर तीनों राज्यों का पतन हो गया। राष्ट्रकूटों पर उत्तरकालीन चालुक्यों ने अधिकार कर लिया। प्रतिहार राज्य छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया और पाल वंश की शक्ति को चोलों ने समाप्त कर दिया।

1. कन्नौज के लिए संघर्ष करने वाले तीन प्रमुख राजवंशों के नाम बताएं।
2. राजपूतों के शासन काल में भारतीय समाज में क्या कमियां थीं ?
उत्तर-
1. कन्नौज के लिए संघर्ष करने वाले तीन प्रमुख राजवंशों के नाम थे-पालवंश, प्रतिहार वंश तथा राष्ट्रकूट वंश।
2. राजपूतों के शासन काल में भारतीय समाज में ये कमियां थी-

  • राजपूतों में आपसी ईष्या और द्वेष बहुत अधिक था। इसी कारण वे सदा आपस में लड़ते रहे। विदेशी आक्रमणकारियों का सामना करते हुए उन्होंने कभी एकता का प्रदर्शन नहीं किया।
  • राजपूतों को सुरा, सुन्दरी तथा संगीत का बड़ा चाव था। किसी भी युद्ध के पश्चात् राजपूत रास-रंग में डूब जाते थे।
  • राजपूत समय में संकीर्णता का बोल-बाला था। उनमें सती-प्रथा, बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा प्रचलित थी। वे तन्त्रवाद में विश्वास रखते थे जिनके कारण वे अन्ध-विश्वासी हो गये थे।
  • राजपूत समाज एक सामन्ती समाज था। सामन्त लोग अपने-अपने प्रदेश के शासक थे। अत: लोग अपने सामन्त या सरदार के लिए लड़ते थे; देश के लिए नहीं।

(2)

नैतिक दृष्टिकोण से समस्त मुस्लिम जगत का धार्मिक नेता खलीफा माना जाता था। वह बगदाद में निवास करता था। परन्तु सुल्तान खलीफा का नाममात्र का प्रभुत्व स्वीकार करते थे। यद्यपि कुछ सुल्तान खलीफा के नाम से खुतबा पढ़वाते थे और सिक्कों पर भी उसका नाम अंकित करवाते थे, परन्तु यह प्रभुत्व केवल दिखावा मात्र था। वास्तविक सत्ता सुल्तान के हाथ में ही थी। वह केवल अपने पद को सुदृढ़ बनाने के लिए खलीफा से स्वीकृति प्राप्त कर लेते थे। सुल्तान की शक्तियां असीम थीं। उसकी इच्छा ही कानून थी। वह सेना का प्रधान और न्याय का मुखिया होता था। वास्तव में वह पृथ्वी पर भगवान् का प्रतिनिधि समझा जाता था।

1. दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार बताएं।
2. क्या दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र कहना उपयुक्त होगा ?
उत्तर-
1. दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार हैं-समकालीन दरबारी इतिहासकारों के वृत्तान्त, कवियों की रचनाएं, विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त तथा सिक्के।
2. धर्म-तन्त्र से हमारा अभिप्राय पूर्ण रूप से धर्म द्वारा संचालित राज्य से है। दिल्ली सल्तनत के कई सुल्तान खलीफा के नाम पर राज्य करते थे और कुछ ने तो अपने समय के खलीफा से मान्यता-पत्र भी लिया था। परन्तु वास्तव में खलीफा की मान्यता का सुल्तान की शक्ति का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था। सुल्तान से शरीअत (इस्लामी कानून) के अनुसार कार्य करने की अपेक्षा की जाती थी। परन्तु उसकी नीति एवं कार्य प्रायः उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करते थे। कभी-कभी शरीअत के कारण कुछ जटिल समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती थीं। ऐसे समय सुल्तान जानबूझ कर अनदेखी कर देते थे। वास्तव में जब कोई सुल्तान शरीअत की दुहाई देता था तो यह साधारणतः उसकी शासक के रूप में कमजोरी का चिन्ह माना जाता था। इसलिए दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र समझना उचित नहीं होगा।

(3)

बलबन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक कार्य किए। सबसे पहले उसने ‘लौह और रक्त नीति’ द्वारा आन्तरिक विद्रोहों का दमन किया और राज्य में शान्ति स्थापित की। बलबन ने दोआब क्षेत्र के सभी लुटेरों और डाकुओं का वध करवा दिया। उसने मंगोलों से राज्य की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण सैनिक सुधार किये। पुराने सिपाहियों के स्थान पर नये योग्य सिपाहियों को भर्ती किया गया। सीमावर्ती किलों को भी सुदृढ़ बनाया गया। उसने बंगाल के विद्रोही सरदार तुगरिल खां को भी बुरी तरह पराजित किया। बलबन ने राज दरबार में कड़ा अनुशासन स्थापित किया। उसने सभी शक्तिशाली सरदारों से शक्ति छीन ली ताकि वे कोई विद्रोह न कर सकें। उसने अपने राज्य में गुप्तचरों का जाल-सा बिछा दिया। इस प्रकार के कार्यों से उसने दिल्ली सल्तनत को आन्तरिक विद्रोहों और बाहरी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित बनाया। इसी कारण ही बलबन को दास वंश का महान् शासक कहा जाता है।

1. बलबन ने कौन-से चार प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया ?
2. मंगोलों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दिल्ली के सुल्तानों ने क्या पग उठाए ?
उत्तर-
1. बलबन ने बंगाल, दिल्ली, गंगा-यमुना दोआब, अवध एवं कोहर के प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया।
2. मंगोलों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दिल्ली के सुल्तानों ने अनेक पग उठाए। इस सम्बन्ध में बलबन तथा अलाऊद्दीन खिलजी की भूमिका विशेष महत्त्वपूर्ण रही जिसका वर्णन इस प्रकार है-

  • उन्होंने सीमावर्ती प्रदेशों में नए दुर्ग बनवाए और पुराने दुर्गों की मुरम्मत करवाई। इन सभी दुर्गों में योग्य सैनिक अधिकारी नियुक्त किए गए।
  • उन्होंने मंगोलों का सामना करने के लिए अपने सेना का पुनर्गठन किया। वृद्ध तथा अयोग्य सैनिकों के स्थान पर युवा सैनिकों की भर्ती की गई। सैनिकों की संख्या में भी वृद्धि की गई।
  • सुल्तानों ने द्वितीय रक्षा-पंक्ति की भी व्यवस्था की। इसके अनुसार मुल्तान, दीपालपुर आदि प्रान्तों में विशेष सैनिक टुकड़ियां रखी गईं और विश्वासपात्र अधिकारी नियुक्त किए। अत: यदि मंगोल सीमा से आगे बढ़ भी आते तो यहां उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ता।
  • सुल्तानों ने मंगोलों को पराजित करने के पश्चात् कड़े दण्ड दिए। इसका उद्देश्य उन्हें सुल्तान की शक्ति के आतंकित करके आगे बढ़ने से रोकना ही था।

(4)
विजयनगर के सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय (शासनकाल 1509-29) ने शासनकाल के विषय में अमुक्तमल्यद नामक तेलुगु भाषा में एक कृति लिखी। व्यापारियों के विषय में उसने लिखा :

एक राजा को अपने बंदरगाहों की सुधारना चाहिए और वाणिज्य को इस प्रकार प्रोत्साहित करना चाहिए कि घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चंदन मोती तथा अन्य वस्तुओं का खुले तौर पर आयात किया जा सके……..उसे प्रबंध करना चाहिए कि उन विदेशी नाविकों जिन्हें तूफानों, बीमारी या थकान के कारण उनके देश में उतरना पड़ता है, की भली-भांति देखभाल की जा सके…..सुदूर देशों के व्यापारियों, जो हाथियों और अच्छे घोड़ों का आयात करते है, को रोज़ बैठक में बुलाकर, तोहफ़े देकर तथा उचित मुनाफे की स्वीकृति देकर अपने साथ संबद्ध करना चाहिए ऐसा करने पर ये वस्तुएं कभी भी तुम्हारे दुश्मनों तक नहीं पहुंचेगी।

1. विजयनगर का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था ? उसकी कृति का नाम तथा भाषा बताओ।
2. वह व्यापार एवं वाणिज्य की वृद्धि के लिए क्या-क्या पग उठाना चाहता था ? कोई तीन बिंदु लिखिए। इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
1. विजयनगर का सबसे प्रसिद्ध शासक कृष्णदेव राय था। उसकी कृति का नाम ‘अमुक्तमल्यद’ है जो तेलुगु भाषा में है।
2. व्यापार एवं वाणिज्य की वृद्धि के लिए वह

  • बंदरगाहों को सुधारना चाहता था।
  • घोड़ों, हाथियों, रत्नों, चंदन, मोती आदि वस्तुओं के आयात को प्रोत्साहन देना चाहता था।
  • राज्य में आने वाले विदेशी नाविकों की उचित देखभाल करना चाहता था। इन सबका उद्देश्य यह था कि वे वस्तुएं शत्रु के हाथ में पहुंच पाएं।

(5)
सन्त लहर के प्रचारक अवतारवाद में बिल्कुल विश्वास नहीं रखते थे। वे मूर्ति-पूजा के भी विरुद्ध थे। उनका विश्वास था कि ईश्वर एक है और वह मनुष्य के मन में निवास करता है। अतः परमात्मा को पाने के लिए मनुष्य को अपनी अन्तरात्मा की गहराइयों में डूब जाना चाहिए। अन्तरात्मा से परमात्मा को खोज निकालने का नाम ही मुक्ति है। इस अनुभव से मनुष्य की आत्मा पूर्ण रूप से परमात्मा में विलीन हो जाती है। सन्तों के अनुसार सच्चा गुरु परमात्मा तुल्य है। जिस किसी को भी सच्चा गुरु मिल जाता है, उसके लिए परमात्मा को पा लेना कठिन नहीं है। संत जाति-प्रथा के भेदभाव के विरुद्ध थे। कुछ प्रमुख सन्तों के नाम इस प्रकार हैं-कबीर, नामदेव, सधना, रविदास, धन्ना तथा सैन जी। श्री गुरु नानक देव जी भी अपने समय के महान् सन्त हुए हैं।

1. गुरु ग्रन्थ साहिब में जिन भक्तों तथा सन्तों की रचनाएं सम्मिलित की गई हैं, उनमें से किन्हीं चार का नाम बताएं।
2. सन्त कौन थे ?
उत्तर-
1. गुरु ग्रन्थ साहिब में जिन भक्तों तथा सन्तों की रचनाएं सम्मिलित की गई हैं, उनमें से चार के नाम हैं-भक्त कबीर, नामदेव जी, रामानन्द जी तथा घनानन्द जी।
2. सन्त भक्ति-लहर के प्रचारक थे। उन्होंने 14वीं शताब्दी से 17वीं शताब्दी के मध्य भारत के भिन्न-भिन्न भागों में भक्ति लहर का प्रचार किया। लगभग सभी भक्ति प्रचारकों के सिद्धान्त काफ़ी सीमा तक एक समान थे। परन्तु कुछ एक प्रचारकों ने विष्णु अथवा शिव के अवतारों की पूजा को स्वीकार न किया। उन्होंने मूर्ति पूजा का भी खण्डन किया। उन्होंने वेद, कुरान, मुल्ला, पण्डित, तीर्थ स्थान आदि में से किसी को भी महत्त्व न दिया। वे निर्गुण ईश्वर में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि परमात्मा निराकार है। ऐसे सभी प्रचारकों को ही प्रायः सन्त कहा जाता है। वे प्रायः जनसाधारण की भाषा में अपने विचारों का प्रचार करते थे।

(6)
यह रचना कबीर की मानी जाती है :
हे भाई यह बताओ, किस तरह हो सकता है
कि संसार में एक नहीं दो स्वामी हों ?
किसने तुम्हें भनित किया है ?
ईश्वर को अनेक नामों से पुकारा जाता है : जैसे-अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि तथा हज़रत ।
विभिन्नताएं तो केवल शब्दों में हैं जिनका आविष्कार हम स्वयं करते हैं।
कबीर कहते हैं दोनों ही भुलावे में है।
इनमें से कोई एक नाम को प्राप्त नहीं कर सकता
एक बकरे को मारता है और दूसरा गाय को।
वे पूरा जीवन विवादों में ही गंवा देते हैं।

1. कबीर जी के अनुसार संसार में कितने स्वामी (ईश्वर) हैं ? लोग ईश्वर को कौन-कौन से नामों से पुकारते हैं ? ये नाम कहां से लिए गए ?
2. कबीर जी के अनुसार हिंदू तथा मूसलमान दोनों ही ईश्वर को नहीं पा सकते ? क्यों ?
उत्तर-
1. कबीर जी के अनुसार संसार का स्वामी एक ही है। लोग उसे अल्लाह, राम, करीम, केशव, हरि, हज़रत आदि नामों से पुकारते हैं। ये सभी नाम मनुष्य के अपने ही बनाए हुए हैं।
2. कबीर जी के अनुसार हिंदू और मुसलमान दोनों ही ईश्वर को नहीं पा सकते क्योंकि वे विवादों में घिरे हुए है। दोनों ही पापी है। वे निर्दोष पशुओं का वध करते हैं।

(7)
श्री गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। इतिहास में उन्हें महान् स्थान प्राप्त है। उन्होंने अपने जीवन में भटके लोगों को सत्य का मार्ग दिखाया और धर्मान्धता से पीड़ित समाज को राहत दिलाई। जिस समय श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ, उस समय पंजाब का सामाजिक तथा धार्मिक वातावरण अन्धकार में लिप्त था। लोग अनेक देवी-देवताओं की पूजा करते थे। हिन्दू और मुसलमानों में बड़ा भेदभाव था। श्री गुरु नानक देव जी ने इन सभी बुराइयों को दूर करने का प्रयास किया। उन्होंने ‘सत्यनाम’ का उपदेश दिया और लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

1. गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
2. गुरु नानक देव जी के सन्देश के सामाजिक अर्थ क्या थे ?
उत्तर-
1. गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ।
2. गुरु नानक देव जी के सन्देश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेदभाव न था। उन्होंने सभी के लिए मुक्ति का मार्ग खोलकर सभी नर-नारियों के मन में एकता का भाव दृढ़ किया। इस प्रकार वर्ण-व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। उनके अनुयायियों में समानता के विचार को वास्तविक रूप संगत और लंगर की संस्थाओं में मिला। इसलिए यह समझना कठिन नहीं है कि गुरु नानक साहिब ने जात-पात पर आधारित भेदभावों का बड़े स्पष्ट शब्दों में खण्डन क्यों किया। उन्होंने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इस स्थिति में उन्होंने अपने समय के शासकों में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

(8)
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी से महत्त्वपूर्ण प्रतिक्रिया हुई : (1) गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है, जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अतः मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना। अत्याचारी का सामना तब तक करो जब तक कि वह अपने आपको सुधार न ले।” गुरु जी के इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया। (2) गुरु जी की शहीदी ने सिक्खों की धार्मिक भावनाओं को भड़का दिया और उनके मन में मुस्लिम राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न हो गई। (3) इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो गए। निःसन्देह गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

1. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन किन्होंने और कब सम्पूर्ण किया ?
2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी ने सिक्ख पंथ के इतिहास पर क्या प्रभाव डाला ?
उत्तर-
1. आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन गुरु अर्जन देव जी ने 1604 ई० में सम्पूर्ण किया।
2. गुरु अर्जन देव जी की शहीदी सिक्ख पंथ के इतिहास में एक नया मोड़ सिद्ध हुई।

  • गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पहले अपने पुत्र हरगोबिन्द के नाम यह सन्देश छोड़ा, “वह समय बड़ी तेजी से आ रहा है जब भलाई और बुराई की शक्तियों की टक्कर होगी। अत: मेरे पुत्र तैयार हो जा, आप शस्त्र पहन और अपने अनुयायियों को शस्त्र पहना। अत्याचारी का सामना तब तक करो जब तक कि वह अपने आपको सुधार न ले।” गुरु जी की शहीदी ने इन अन्तिम शब्दों ने सिक्खों में सैनिक भावना को जागृत कर दिया।
  • शहीदी ने सिक्खों के मन में मुग़ल राज्य के प्रति घृणा उत्पन्न कर दी।
  • इस शहीदी से सिक्ख धर्म को लोकप्रियता मिली। सिक्ख अब अपने धर्म के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तैयार हो गए।

(9)
गुरु जी ने पांच प्यारों का चुनाव करने के पश्चात् पांच प्यारों को अमृतपान करवाया जिसे ‘खण्डे का पाहुल’ कहा जाता है। गुरु जी ने इन्हें आपस में मिलते समय ‘श्री वाहिगुरु जी का खालसा, श्री वाहिगुरु जी की फतेह’ कहने का आदेश दिया। इसी समय गुरु जी ने बारी-बारी पांचों प्यारों की आंखों तथा केशों पर अमृत के छींटे डाले और उन्हें (प्रत्येक प्यारे को) ‘खालसा’ का नाम दिया। सभी प्यारों के नाम के पीछे ‘सिंह’ शब्द जोड़ दिया गया। फिर गुरु जी ने पांच प्यारों के हाथ से स्वयं अमृत ग्रहण किया। इस प्रकार ‘खालसा’ का जन्म हुआ। गुरु जी का कथन था कि उन्होंने यह सब ईश्वर के आदेश से किया है। खालसा की स्थापना के अवसर पर गुरु जी ने ये शब्द कहे-“खालसा गुरु है और गुरु खालसा है। तुम्हारे और मेरे बीच अब कोई अन्तर नहीं है।”

1. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने कौन-से वर्ष, किस दिन और कहां पर खालसा की साजना की ?
2. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख पंथ में साम्प्रदायिक विभाजन तथा बाहरी खतरे की समस्या को कैसे हल किया ?
उत्तर-
1. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में वैसाखी के दिन आनन्दपुर साहिब में खालसा की साजना की।
2. गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सिक्ख धर्म में विद्यमान् अनेक सम्प्रदायों की तथा बाहरी खतरों की समस्या को भी बड़ी
कुशलता से निपटाया। सर्वप्रथम गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं से अनेक युद्ध किए और उन्हें पराजित किया। उन्होंने अत्याचारी मुग़लों का भी सफल विरोध किया। 1699 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना करके अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए एक और महत्त्वपूर्ण पग उठाया। खालसा की स्थापना के परिणामस्वरूप सिक्खों ने शस्त्रधारी का रूप धारण कर लिया। खालसा की स्थापना से गुरु जी को सिक्ख धर्म में विद्यमान् विभिन्न सम्प्रदायों से निपटने का अवसर भी मिला। गुरु जी ने घोषणा की कि सभी सिक्ख ‘खालसा’ का रूप हैं और उनके साथ जुड़े हुए हैं। इस प्रकार मसन्दों का महत्त्व समाप्त हो गया और सिक्ख धर्म के विभिन्न सम्प्रदाय खालसा में विलीन हो गए।

Unit 3

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए।

(1)
औरंगज़ेब एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट् था और वह सारे भारत पर मुग़ल पताका फहराना चाहता था। इसके अतिरिक्त उसे दक्षिण में शिया रियासतों का अस्तित्व भी पसन्द नहीं था। दक्षिण के मराठे भी काफ़ी शक्तिशाली होते जा रहे थे। वह उनकी शक्ति को कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने बीजापुर राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1686 ई० में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को भी अपने अधीन कर लिया। परन्तु इन दो राज्यों की विजय उसकी निर्णायक सफलता नहीं थी बल्कि उसकी कठिनाइयों का आरम्भ थी। अब उसे शक्तिशाली मराठों से सीधी टक्कर लेनी पड़ी। इससे पूर्व उसने वीर मराठा सरदार शिवाजी को दबाने के अनेक प्रयत्न किए थे, परन्तु उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी। अब मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शंभू जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगजेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता भी एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। इसके विपरीत औरंगजेब का बहुत-सा धन और समय दक्षिण के अभियानों में व्यर्थ नष्ट हो गया। यहां तक कि 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगज़ेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

1. औरंगजेब दक्कन में किस वर्ष से किस वर्ष तक रहा ?
2. औरंगजेब की दक्षिण नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
1. औरंगज़ेब दक्कन में 1682 ई० से 1707 ई० तक रहा।
2. औरंगज़ेब को दक्षिण की शिया रिसायतों का अस्तित्व पसन्द नहीं था। वह मराठों की शक्ति को भी कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने गोलकुण्डा राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1687 ई० में वह इस राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को अपने अधीन कर लिया। दक्षिण में मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शम्भा जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगजेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगजेब की यह सफलता एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगजेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

(2)
आइने में वर्गीकरण मापदंड की निम्नलिखित सूची दी गई है :
अकबर बादशाह ने अपनी गहरी दूरदर्शिता के साथ ज़मीनों का वर्गीकरण किया और हरेक (वर्ग की ज़मीन) के लिए अलग-अलग राजस्व निर्धारित किया। पोलज़ वह जमीन है जिसमें एक के बाद एक हर फसल की सालाना खेती होती है और जिसे कभी खाली नहीं छोड़ा जाता है। परोती वह ज़मीन है जिस पर कुछ दिनों के लिए खेती रोक दी जाती है ताकि वह अपनी खोई ताकत वापस पा सके। छछर वह ज़मीन है जो तीन या चार वर्षों तक खाली रहती है। बंजर वह ज़मीन है जिस पर पांच या उससे ज्यादा वर्षों से खेती नहीं की गई है। पहले दो प्रकार की ज़मीन की तीन किस्में है। अच्छी मध्यम और खराब वे हर किस्म की ज़मीन के उत्पाद को जोड़ देते है और इसका तीसरा हिस्सा मध्यम उत्पाद माना जाता है। जिसका एक तिहाई हिस्साशाही शुल्क माना जाता है।

1. भूमि के वर्गीकरण की यह सूची किस ग्रंथ से ली गई है ? इसका लेखक कौन था ?
2. किन्हीं तीन प्रकार की ज़मीनों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए
उत्तर-
1. भूमि के वर्गीकरण की यह सूची आईन से ली गई है। इसका लेखक अबुल फजल था।
2. (i) पोलज़-यह वह जमीन थी जिसमें एक के बाद एक हर फसल की खेती होती थी। इसे खाली नहीं छोड़ा जाती था।
(ii) परोती-इस ज़मीन को कुछ समय के लिए खाली छोड़ दिया जाता था ताकि वह अपनी खोई हुई उपजाऊ शक्ति फिर से प्राप्त कर ले।
(iii) छछर-इस भूमि को तीन-चार वर्षों तक खाली रखा जाता था।

(3)
जोवान्नी कारेरी के लेख (वर्नियर के लेख पर आधारित) के निम्नलिखित अंश से हमें पता चलता है कि मुग़ल साम्राज्य में कितनी भारी मात्रा में बाहर से धन आ रहा था-
(मुग़ल) साम्राज्य की धन-संपत्ति का अंदाजा लगाने के लिए पाठक इस बात पर गौर करें कि दुनिया भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी आखिकार यहीं पहुंच जाता है। ये सब जानते हैं कि इसका बहुत बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है, और यूरोप में कई राज्यों से होते हुए (इसका) थोड़ा-सा हिस्सा कई तरह की वस्तुओं के लिए तुर्की में जाता है, और थोड़ा-सा हिस्सा रेशम के लिए स्मिरना होते हुए फारस पहुंचता है। अब चूंकि तुर्की लोग कॉफी से अलग नहीं रह सकते, जो कि ओमान और अरबिया से आती है…..(और) न ही फारस, अरबिया और तुर्की (के लोग) भारत की वस्तुओं के बिना रह सकते हैं। (वे) मुद्रा की विशाल मात्रा लाल सागर पर केवल महेल के पास स्थित मोचा भेजते हैं। (इसी तरह वे ये मुद्राएं) फारस की खाड़ी पर स्थित पराग भेजते हैं…..बाद में ये (सारी सपत्ति) जहाजों में इंदोस्तान (हिंदुस्तान) भेज दी जाती है। भारतीय जहाजों के अलावा जो डच, अंग्रेज़ी और पुर्तगाली जहाज़ पर साल इंदोस्तान की वस्तुएं लेकर पेंगू, तानस्सेरी (म्यांमार के हिस्से) स्याम (थाइलैंड), सीलोन (श्रीलंका)….मालद्वीप के टापू, मोज़बीक और अन्य जगहों पर ले जाते हैं। (इन्हीं जहाज़ों को) निश्चित तौर पर बहुत सारा सोना-चांदी इन देशों से लेकर वहां (हिंदूस्तान) पहुंचाना पड़ता है। वो सब कुछ तो डच लोग जापान की खानों से हासिल करते है, देर-सवेर इंदोस्तान (को) चला जाता है, और यहां से यूरोप को जाने वाली सारी वस्तुएं, चाहे वो फ्रांस जाएं या इंग्लैंड या पुर्तगाल, सभी नकद में खरीदी जाती हैं, जो (नकद) वहीं (हिंदुस्तान) रह जाता है।

1. वर्नियर कौन था ?
2. मुग़ल-काल में विश्व भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी अंततः कहां और कैसे पहुंचता था ?
उत्तर-
1. वर्नियर एक विदेशी यात्री था जो फ्रांस में आया था।
2. मुग़लकाल में विश्व भर में विचरने वाला सारा सोना-चांदी अंततः भारत में पहुंचता था। इसका एक बहुत बड़ा भाग अमेरिका में जाता था। इसका एक थोड़ा-सा हिस्सा यूरोप के राज्यों से होते हुए तुर्की तथा एक और हिस्सा स्मिरना के रास्ते फारस पहुंचता था। परंतु तुर्की तथा फारस भारत की वस्तुओं के बिना नहीं रह सकते थे। अतः वहां पहुंचने वाला सोना-चांदी भी इन वस्तुओं के बदले भारत आ जाता था।

(4)
शिवाजी ने उच्चकोटि के शासन-प्रबन्ध द्वारा भी मराठों को एकता के सूत्र में बांधा। केन्द्रीय शासन का मुखिया छत्रपति (शिवाजी) स्वयं था। राज्य की सभी शक्तियां उसके हाथ में थीं। छत्रपति को शासन कार्यों में सलाह देने के लिए आठ मन्त्रियों का एक मन्त्रिमण्डल था। इसे अष्ट-प्रधान कहते थे। प्रत्येक मन्त्री के पास एक अलग विभाग था। शिवाजी ने अपने राज्य को तीन प्रान्तों में बांटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त एक सूबेदार के अधीन था। प्रान्त आगे चलकर परगनों अथवा तर्कों में बंटे हुए थे। शासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी।

शिवाजी की न्याय-प्रणाली बड़ी साधारण थी। परन्तु यह लोगों की आवश्यकता के अनुरूप थी। मुकद्दमों का निर्णय प्रायः हिन्दू धर्म की प्राचीन परम्पराओं के अनुसार ही किया जाता था। राज्य की आय के मुख्य साधन भूमि-कर, चौथ तथा सरदेशमुखी थे। शिवाजी ने एक शक्तिशाली सेना का संगठन किया। उनकी सेना में घुड़सवार तथा पैदल सैनिक शामिल थे। उनके पास एक शक्तिशाली समुद्री बेड़ा, हाथी तथा तोपें भी थीं। सैनिकों को नकद वेतन दिया जाता था। उनकी सेना की सबसे बड़ी विशेषता अनुशासन थी। शिवाजी एक उच्च चरित्र के स्वामी थे। वह एक आदर्श पुरुष, वीर योद्धा, सफल विजेता तथा उच्च कोटि के शासन प्रबन्धक थे। धार्मिक सहनशीलता तथा देश-प्रेम उनके चरित्र के विशेष गुण थे। देश-प्रेम से प्रेरित होकर उन्होंने मराठा जाति को संगठित किया और एक स्वतन्त्र हिन्दू राज्य की स्थापना की।

1. चौथ तथा सरदेशमुखी लगान के कौन-से भाग थे ?
2. शिवाजी के राज्य प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
1. चौथ लगान का चौथा भाग तथा सरदेशमुखी लगान का दसवां भाग होता था।
2. शिवाजी का राज्य प्रबन्ध प्राचीन हिन्दू नियमों पर आधारित था। शासन के मुखिया वह स्वयं थे। उनकी सहायता तथा परामर्श के लिए 8 मन्त्रियों की राजसभा थी, जिसे अष्ट-प्रधान कहते थे। इसका मुखिया ‘पेशवा’ कहलाता था। प्रत्येक मन्त्री के अधीन अलग-अलग विभाग थे। प्रशासन की सुविधा के लिए राज्य को चार प्रान्तों में बांटा गया था। प्रत्येक प्रान्त एक सूबेदार के अधीन था। प्रान्त परगनों में बंटे हुए थे। शासन की सबसे छोटी इकाई गांव थी। इसका प्रबन्ध ‘पाटिल’ करते थे। शिवाजी के राज्य की आय का सबसे बड़ा साधन भूमिकर था। भूमि-कर के अतिरिक्तः चौथ, सरदेशमुखी तथा कुछ अन्य कर भी राज्य की आय के मुख्य साधन थे। न्याय के लिए पंचायातों की व्यवस्था थी। शिवाजी ने एक शक्तिशाली सेना का संगठन भी किया। उन्होंने घुड़सवार सेना भी तैयार की। घुड़सवार सिपाही पहाड़ी प्रदेशों में लड़ने में फुर्तीले होते थे। शिवाजी के पास एक समुद्री बेड़ा भी था।

(5)
1716 ई० में बन्दा बहादुर की शहीदी के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग आ गया। इस युग में मुग़लों ने सिक्खों का अस्तित्व मिटा देने का प्रयत्न किया। परन्तु सिक्ख अपनी वीरता और साहस के बल पर अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहे। 1716 से 1752 तक लाहौर के पांच मुग़ल सूबेदारों ने सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। इनमें से पहले गवर्नर । अब्दुल समद को लाहौर से मुल्तान भेज दिया गया और उसके पुत्र जकरिया खां को लाहौर का सूबेदार बनाया गया। उसे हर प्रकार से सिक्खों को दबाने के आदेश दिए गए। उसने कुछ वर्षों तक तो अपने सैनिक बल द्वारा सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। परन्तु जब उसे भी कोई सफलता मिलती दिखाई न दी तो उसने अमृतसर के निकट सिक्खों को एक बहुत बड़ी जागीर देकर उन्हें शान्त करने का प्रयत्न किया। उसने मुग़ल सम्राट् से स्वीकृति भी ले ली थी कि सिक्ख नेता को नवाब की उपाधि दी जाए। यह उपाधि कपूर सिंह को मिली और वह नवाब कपूर सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। फलस्वरूप कुछ समय तक सिक्ख शान्त रहे और उन्होंने अपने-अपने जत्थों को शक्तिशाली बनाया। इसी बीच कुछ जत्थेदारों ने फिर से मुग़लों का विरोध करना और सरकारी खजानों को लूटना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे मुग़लों और सिक्खों में फिर जोरदार संघर्ष छिड़ गया।

1. 1716 से 1752 तक लाहौर के किन्हीं चार मुगल सूबेदारों के नाम बताएं।
2. सिक्खों की शक्ति को कुचलने में मीर मन्नू की असफलता के कोई चार कारण बताओ ।
उत्तर-
1. 1716 से 1752 तक लाहौर के चार सूबेदार थे-अब्दुल समद खां, जकरिया खां, याहिया खां तथा मीर मन्नू।
2. सिक्खों की शक्ति को कुचलने में मीर मन्नू की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे

  • दल खालसा की स्थापना-मीर मन्नू के अत्याचारों के समय तक सिक्खों ने अपनी शक्ति को दल खालसा के रूप में संगठित कर लिया । इसके सदस्यों ने देश, जाति तथा पन्थ के हितों की रक्षा के लिए प्राणों तक की बलि देने का प्रण कर रखा था।
  • दीवान कौड़ामल की सिक्खों से सहानूभूति-मीर मन्नू के दीवान कौड़ामल को सिक्खों से विशेष सहानुभूति थी। अतः जब कभी भी मीर मन्नू सिक्खों के विरुद्ध कठोर कदम उठाता, कौड़ामल उसकी कठोरता को कम कर देता था।
  • अदीना बेग की दोहरी नीति-जालन्धर-दोआब के फ़ौजदार अदीना बेग ने दोहरी नीति अपनाई हुई थी।
    उसने सिक्खों से गुप्त सन्धि कर रखी थी तथा दिखावे के लिए एक-दो अभियानों के बाद वह ढीला पड़ जाता था।
  • सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध नीति-सिक्खों ने अपने सीमित साधनों को दृष्टि में रखते हुए गुरिल्ला युद्ध की नीति को अपनाया। अवसर पाते ही वे शाही सेनाओं पर टूट पड़ते और लूट-मार करके फिर जंगलों की ओर भाग जाते।

(6)
महाराजा रणजीत सिंह को शक्तिशाली सेना के महत्त्व का पूरा ज्ञान था। वह जानता था कि सेना को शक्तिशाली बनाए बिना राज्य को सुदृढ़ बनाना असम्भव है। इसलिए महाराजा ने अपनी सेना की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेज़ कम्पनी से भागे हुए सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया। सैनिकों को यूरोपियन ढंग से संगठित करने के लिए सेना में यूरोपीय अफसरों को भी नौकरी दी गई। उनकी सहायता से पैदल तथा घुड़सवार सेना और तोपखाने को मजबूत बनाया गया। पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी नामक इकाइयां बनाईं गईं। इसके अतिक्ति महाराजा प्रतिदिन अपनी सेना का स्वयं निरीक्षण करता था। उसने सेना में हुलिया और दाग की प्रथा भी अपनाई ताकि सैनिक अधिकारियों तथा जागीरदारों के अधीन निश्चित संख्या में सैनिक तथा घोड़े प्रशिक्षण पाते रहें। सेना को अच्छे शस्त्र जुटाने के लिए कुछ कारखाने स्थापित किए गए जिनमें तोपें, बन्दूकें तथा अन्य हथियार बनाए जाते थे। महाराजा की इस सुदृढ़ सेना से साम्राज्य भी सुदृढ़ हुआ।

1. यूरोपीय अफसरों की सहायता से महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेना के कौन-से तीन अंगों को सशक्त बनाया ?
2. महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेरे पंजाब’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
1. उसने यूरोपीय अफसरों की सहायता से सेना के पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना नामक अंगों को सशक्त बनाया।
2. महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता व कुशल शासक था। उसने पंजाब को एक दृढ़ शासन प्रदान किया। उसने सिक्खों को एक सूत्र में पिरो दिया। उसके राज्य में प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। महाराजा रणजीत सिंह कट्टर धर्मी नहीं था। उसके दरबार में सिक्ख, मुसलमान आदि सभी धर्मों के लोग थे। सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। वह बड़ा दूरदर्शी था। उसने जीवन भर अंग्रेजों से मित्रता बनाए रखी। इस तरह उसने राज्य को शक्तिशाली अंग्रेजों से सुरक्षित रखा। इन्हीं गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह की गणना इतिहास के महान् शासकों में की जाती है और उसे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से याद किया जाता है।

(7)
पुर्तगालियों, डचों तथा अंग्रेजों को भारत के साथ व्यापार करता देखकर फ्रांसीसियों के मन में भी इस व्यापार से लाभ उठाने की लालसा जागी। अतः उन्होंने भी 1664 ई० में अपनी व्यापारिक कम्पनी स्थापित कर ली। इस कम्पनी ने सूरत और मसौलीपट्टम में अपनी व्यापारिक बस्तियां बसा लीं। उन्होंने भारत के पूर्वी तट पर पांडीचेरी नगर बसाया और उसे अपनी राजधानी बना लिया। उन्होंने बंगाल में चन्द्रनगर की नींव रखी। 1721 ई० में मारीशस तथा माही पर उनका अधिकार हो गया। इस प्रकार फ्रांसीसियों ने पश्चिमी तट, पूर्वी तट तथा बंगाल में अपने पांव अच्छी तरह जमा लिए और वे अंग्रेजों के प्रतिद्वन्द्वी बन गए।

1741 ई० में डुप्ले भारत में फ्रांसीसी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल बनकर आया। वह बड़ा कुशल व्यक्ति था और भारत में फ्रांसीसी राज्य स्थापित करना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए अंग्रेजों तथा फ्रांसीसियों के बीच संघर्ष होना आवश्यक था। अत: 1744 ई० से 1764 ई० तक के बीस वर्षों में भारत में फ्रांसीसियों और अंग्रेज़ों के बीच युद्ध छिड़ गया। यह संघर्ष कर्नाटक के युद्धों के नाम से प्रसिद्ध है। इन युद्धों में अन्तिम विजय अंग्रेजों की हुई। फ्रांसीसियों के पास केवल पांच बस्तियां-पांडिचेरी, चन्द्रनगर, माही, थनाओ तथा मारीशस ही रह गईं। इन बस्तियों में वे अब केवल व्यापार ही कर सकते थे।

1. फ्रांसीसियों की मुख्य दो फैक्टरियां कौन-सी थीं तथा ये कब स्थापित की गईं ?
2. फ्रांसीसी कम्पनी के विरुद्ध अंग्रेजी कम्पनी की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
1. फ्रांसीसियों ने अपनी दो मुख्य फैक्टरियां 1674 में पांडिचेरी में तथा 1690 में चन्द्रनगर में स्थापित की।
2. फ्रांसीसी कम्पनी के विरूद्ध अंग्रेज़ी कम्पनी की सफलता के मुख्य कारण ये थे
(i) अंग्रेजों के पास फ्रांसीसियों से अधिक शक्तिशाली जहाज़ी बेड़ा था।
(ii) इंग्लैण्ड की सरकार अंग्रेजी कम्पनी की धन से सहायता करती थी। परन्तु फ्रांसीसी सरकार फ्रांसीसियों की सहायता नहीं करती थी।
(iii) अंग्रेजी कम्पनी की आर्थिक दशा फ्रांसीसी कम्पनी से काफ़ी अच्छी थी। अंग्रेज़ कर्मचारी बड़े मेहनती थे और
आपस में मिल-जुल कर काम करते थे। राजनीति में भाग लेते हुए भी अंग्रेजों ने व्यापार का पतन न होने दिया। इसके विपरीत फ्रांसीसी एक-दूसरे के साथ द्वेष रखते थे तथा राजनीति में ही अपना समय नष्ट कर देते थे।
(iv) प्लासी की लड़ाई (1756 ई०) के बाद बंगाल का धनी प्रदेश अंग्रेजों के प्रभाव में आ गया था। यहां के अपार धन से अंग्रेज़ अपनी सेना को खूब शक्तिशाली बना सकते थे।

UNIT-4

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िये और अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सावधानीपूर्वक लिखिए।

(1)
1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् सिक्खों का नेतृत्व करने वाला कोई योग्य नेता न रहा। शासन की सारी शक्ति सेना के हाथ में आ गई। अंग्रेजों ने इस अवसर का लाभ उठाया और सिक्ख सेना के प्रमुख अधिकारियों को लालच देकर अपने साथ मिला लिया। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब के आस-पास के इलाकों में अपनी सेनाओं की संख्या बढ़ानी आरम्भ कर दी और सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगे। उन्होंने सिक्खों से युद्ध किये, दोनों युद्धों में सिक्ख सैनिक बड़ी वीरता से लड़े। परन्तु अपने अधिकारियों की गद्दारी के कारण वे पराजित हुए। प्रथम युद्ध के बाद अंग्रेज़ों ने पंजाब का केवल कुछ भाग अंग्रेज़ी राज्य में मिलाया और वहाँ सिक्ख सेना के स्थान पर अंग्रेज सैनिक रख दिये गये। परन्तु 1849 ई० में दूसरे सिक्ख दूसरे युद्ध की समाप्ति पर लॉर्ड डल्हौजी ने पूरे पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

1. ‘लैप्स के सिद्धान्त’ से क्या अभिप्राय था ?
2. भारत में अंग्रेजी राज्य के विस्तार में सहायक सन्धि का क्या योगदान रहा ?
उत्तर-
1. लैप्स के सिद्धान्त से अभिप्राय डल्हौज़ी के उस सिद्धान्त से था जिस के अन्तर्गत सन्तानहीन शासकों के राज्य अंग्रेजी राज्य में मिला लिए जाते थे। वे पुत्र गोद लेकर अंग्रेजों की अनुमति के बिना उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं कर सकते थे।
2. भारत में अंग्रेजी राज्य के विस्तार में सहायक सन्धि का बड़ा सक्रिय योगदान रहा। इस नीति का मुख्य आधार अंग्रेज़ी शक्ति के प्रभाव को भारतीय राज्यों में बढ़ावा देना था। सबल भारतीय शक्तियां निर्बल राज्यों को हड़पने में लगी हुई थीं। इन कमज़ोर राज्यों को संरक्षण की आवश्यकता थी। वे मिटने की बजाए अर्द्ध-स्वतन्त्रता स्वीकार करने के लिए तैयार थे। सहायक सन्धि उनके उद्देश्यों को पूरा कर सकती थी। उनकी बाहरी आक्रमण और भीतरी गड़बड़ से सुरक्षा के लिए अंग्रेजी सरकार वचनबद्ध होती थी। अत: इस नीति को अनेक भारतीय राजाओं ने स्वीकार कर लिया जिनमें हैदराबाद, अवध, मैसूर, अनेक राजपूत राजा तथा मराठा प्रमुख थे। परन्तु इसके अनुसार सन्धि स्वीकार करने वाले राजा को अपने व्यय पर एक अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी। परिणामस्वरूप उनकी विदेश नीति अंग्रेजों के अधीन आ जाती थी। परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेजी राज्य का खूब विस्तार हुआ।

(2)
अंग्रेजी राज्य स्थापित होने से पूर्व भारतीय सूती कपड़ा उद्योग उन्नति की चरम सीमा पर पंहुचा हुआ था। भारत में बने सूती कपड़े की इंग्लैंड में बड़ी मांग थी। इंग्लैंड की स्त्रियां भारत के बेल-बूटेदार वस्त्रों को बहुत पसन्द करती थीं। कम्पनी ने आरम्भिक अवस्था में कपड़े का निर्यात करके खूब पैसा कमाया। परन्तु 1760 तक इंग्लैंड ने ऐसे कानून पास कर दिए जिनके अनुसार रंगे कपड़े पहनने की मनाही कर दी गई। इंग्लैंड की एक महिला को केवल इसलिए 200 पौंड जुर्माना किया गया था क्योंकि उसके पास विदेशी रूमाल पाया गया था। इंग्लैंड का व्यापारी तथा औद्योगिक वर्ग कम्पनी की व्यापारिक नीति की निन्दा करने लगा। विवश होकर कम्पनी को वे विशेषज्ञ इंग्लैंड वापस भेजने पड़े जो भारतीय जुलाहों को अंग्रेजों की मांगों तथा रुचियों से परिचित करवाते थे। इंग्लैंड की सरकार ने भारतीय कपड़े पर आयात कर बढ़ा दिया और कम्पनी की कपड़ा सम्बन्धी आयात नीति पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए। इन सब बातों के परिणामस्वरूप भारत के सूती वस्त्र उद्योग को भारी क्षति पहुंची।

1. भारत में पहली कपड़ा मिल कब, किसने और कहां लगवाई ?
2. भारत में धन की निकासी किन तरीकों से होती थी ?
उत्तर-
1. कपड़े की पहली मिल मुम्बई में कावासजी नानाबाई ने 1853 में स्थापित की।
2. अंग्रेजों की आर्थिक नीति के कारण भारत को बहुत हानि हुई। देश का धन देश के काम आने के स्थान पर विदेशियों के काम आने लगा। 1757 के पश्चात् ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा इसके कर्मचारियों ने भारत से प्राप्त धन को इंग्लैण्ड भेजना आरम्भ कर दिया। कहते हैं कि 1756 ई० से 1765 तक लगभग 60 लाख पौंड की राशि भारत से बाहर गई।
और तो और लगान आदि से प्राप्त राशि भी भारतीय माल खरीदने में व्यय की गई। अतिरिक्त सिविल सर्विस और सेना के उच्च अफसरों के वेतन का पैसा भी देश से बाहर जाता था। औद्योगिक विकास का भी अधिक लाभ विदेशियों को ही हुआ। विदेशी पूंजीपति इस देश पर धन लगाते थे और लाभ की रकम इंग्लैण्ड में ले जाते थे। इस तरह भारत का धन कई प्रकार से विदेशों में जाने लगा।

(3)
धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने मुख्य रूप से दो महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं पर बल दिया : स्त्रियों की भलाई तथा जाति भेद को समाप्त करना। इन कार्यक्रमों का आधार मानवीय समानता की विचारधारा थी। परन्तु समानता की यह विचारधारा केवल धर्म के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं थी। इसका राजनीतिक महत्त्व भी था। अंग्रेजों के राज्य में कानूनी रूप से तो सभी भारतीय समान थे, परन्तु सामाजिक या राजनीतिक रूप से नहीं थे। . भारत में स्त्रियों की संख्या देश की जनसंख्या से लगभग आधी थी। विश्व के अन्य समाजों की भान्ति भारत में भी स्त्री पुरुष के अधीन थी। धर्म और कानून की व्यवस्था भी उसके पक्ष में नहीं थी। पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुप्रथाएं इसी असमानता का परिणाम थीं। धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने स्त्रियों की भलाई पर बल दिया। उनके प्रयासों का परिणाम भी अच्छा निकला। धीरे-धीरे स्त्रियों ने राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों में स्वयं भाग लेना आरम्भ कर दिया। उन्होंने समानता की मांग की। देश के प्रमुख नेताओं ने इसका जोरदार समर्थन किया। परिणामस्वरूप स्त्रीपुरुष की समानता का आदर्श स्वीकार कर लिया गया।

1. ‘रिवाइवलिज़म’ से क्या अभिप्राय है ?
2. भारतीय नारी की दशा सुधारने के लिए आधुनिक सुधारकों द्वारा किए गए कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर-
1. धर्म के नाम पर तथा बीते समय का हवाला देते हुए लोगों में जागृति लाने के प्रयास को रिवाइवलिज़म का नाम दिया जाता है।
2. (i) सती-प्रथा के कारण स्त्री को अपने पति की मृत्यु पर उसके साथ जीवित ही चिता में जल जाना पड़ता था। आधुनिक समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से इस अमानवीय प्रथा का अन्त हो गया।
(ii) विधवाओं को पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से उन्हें दोबारा विवाह करने की आज्ञा मिल गई।
(iii) आधुनिक सुधारकों का विश्वास था कि पर्दे में बन्द रहकर नारी कभी उन्नति नहीं कर सकती, इसलिए उन्होंने स्त्रियों को पर्दा न करने के लिए प्रेरित किया।
(iv) स्त्रियों को ऊंचा उठाने के लिए समाज-सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर विशेष बल दिया।

(4)
प्रथम महायुद्ध के समाप्त होने पर भारतीयों को प्रसन्न करने के लिए माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित की गई। भारतीयों .. ने युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी। उन्हें विश्वास था कि युद्ध में विजयी होने के पश्चात् सरकार उन्हें पर्याप्त अधिकार देगी। परन्तु इस रिपोर्ट से भारतीय निराश हो गए। सरकार भी भयभीत हो गई कि अवश्य कोई नया आन्दोलन आरम्भ होने वाला है। अत: स्थिति पर नियन्त्रण पाने के लिए सरकार ने रौलेट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट के अनुसार वह किसी भी व्यक्ति को बिना वकील, बिना दलील, बिना अपील बन्दी बना सकती थी। इस काले कानून का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी आगे बढ़े। उन्होंने जस्ता को शान्तिमय ढंग से इसका विरोध करने के लिए कहा। इस शान्तिमय विरोध को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया ! स्थान-स्थान पर सभाएं बुलाई गईं और जलूस निकाले गए। कांग्रेस का आन्दोलन जनता का आन्दोलन बन गया। पहली बार भारत की जनता ने संगठित होकर अंग्रेज़ों का विरोध किया। 6 अगस्त, 1919 ई० को सारे भारत में हड़ताल की गई। महात्मा गांधी ने लोगों को शान्तिमय विरोध करने के लिए कहा था। फिर भी कहीं-कहीं अप्रिय घटनाएं हुईं। 13 अप्रैल, 1919 ई० को जलियांवाला बाग की दुःखद घटना से भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ आया। पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को सरकार ने बन्दी बना लिया था। अमृतसर की जनता विरोध प्रकट करने के लिए बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में एकत्रित हुई। नगर में मार्शल-ला लगा हुआ था। जनरल डायर ने लोगों को चेतावनी दिए बिना ही एकत्रित लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया। हजारों निर्दोष स्त्री-पुरुष मारे गए। इससे सारे भारत में रोष की लहर दौड़ गई।

1. जलियांवाला बाग कांड कब और कहां हुआ तथा इसके लिए उत्तरदायी अंग्रेज़ अफसर का नाम बताएं।
2. स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में ‘रौलेट एक्ट’ तथा ‘जलियांवाला बाग’ का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
1. जलियांवाला बाग का कांड 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुआ। इसके लिए जनरल डायर उत्तरदायी था।
2. स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में रौलेट एक्ट तथा जलियांवाला बाग का विशेष महत्त्व है। रौलेट एक्ट के अनुसार किसी भी मुकद्दमे का फैसला बिना ‘ज्यूरी’ के किया जा सकता था तथा किसी भी व्यक्ति को मुकद्दमा चलाये बिना नज़रबन्द रखा जा सकता था। इस एक्ट के कारण भारतीय लोग भड़क उठे। उन्होंने इसका कड़ा विरोध किया और स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। गांधी जी ने इस एक्ट के विरुद्ध अहिंसात्मक हड़ताल की घोषणा कर दी। स्थान-स्थान पर दंगे-फसाद हुए। जलियांवाला बाग में शहर के लोगों ने एक सभा का प्रबन्ध किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन को दबाने के लिए जनरल डायर ने सभा में एकत्रित लोगों पर गोली चला दी जिसके कारण बहुत-से लोग मारे गए अथवा घायल हो गए। इस घटना से भारत के लोग और भी अधिक भड़क उठे। उन्होंने अंग्रेज़ों से स्वतन्त्रता प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। इस घटना से अंग्रेज़ शासकों तथा भारतीय नेताओं के बीच एक अमिट दरार पड़ गई।

(5)
साइमन कमीशन का प्रत्येक स्थान पर भारी विरोध किया गया था। परन्तु कमीशन ने विरोध के बावजूद अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया। अतः अंग्रेजी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गांधी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 को यह दिन’ सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

1. भारतीयों ने ‘साइमन कमीशन’ का विरोध क्यों किया तथा पंजाब के कौन-से नेता इस विरोध में घायल हुए तथा उनका देहान्त कब हुआ ?
2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिए। इसका हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा ।
उत्तर-
1. भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध इसलिए किया क्योंकि कोई भी भारतीय इस कमीशन का सदस्य नहीं था।
लाला लाजपतराय इस विरोध में घायल हुए और 1928 में उनकी मृत्यु हो गई।
2. सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने अपनी डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च,1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग उनके साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद देश में लोगों ने सरकारी कानून को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हज़ारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। इस प्रकार इस आन्दोलन का हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा। अब देश की जनता इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी।

(6)
विद्रोही सिपाहियों की एक अर्जी जो बच गई-
एक सदी पहले अंग्रेज़ हिंदुस्तान आए और धीरे-धीरे फ़ौजी टुकड़ियां बनाने लगे। इसके बाद वे हर राज्य के मालिक बन बैठे। हमारे पुरुखों ने सदा उनकी सेवा की है और हम भी उनकी नौकरी में आए। ईश्वर की कृपा से हमारी सहायता में अंग्रेजो ने जो चाहा वो इलाका जांच लिया। उनके लिए हमारे जैसे हजारों हिंदुस्तानी जवानों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी लेकिन न हमने कभी पैर खींचे और न कोई बहाना बनाया और न ही कभी बग़ावत के रास्ते पर चले।

लेकिन सन् 1857 में अग्रेजों ने ये हुक्म जारी कर दिया कि अब सिपाहियों को इंगलैंड से नए कारतूस और बंदूकें दी जाएंगी। इन कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई है और गेहूं के आटे में हड्डियों का चूरा मिलाया जा रहा है। ये चीजें पैदल-सेना, घुड़सवारों और गोलअंदाज फ़ौज को हर रेजीमेंट में पहुंचा दी गई हैं।

उन्होंने ये कारतूस थर्ड लाइट केवेलरी के सवारों (घुड़सवार सैनिक) को दिए और उन्हें दांतों से खींचने के लिए कहा। सिपाहियों ने इस हुक्म का विरोध किया और कहा कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। इस पर अंग्रेज़ अफ़सरों ने तीन रेजीमेंटों के जवानों को परेड करवा दी। 1400 अंग्रेज़ सिपाही, यूरोपीय सैनिकों की दूसरी बटालियनें और घुड़सवार गोलअंदाज फौज को तैयार कर भारतीय सैनिकों को घेर लिया गया। हर पैदल रैजीमेंट के सामने छरों से भरी छह-छह तोपें तैनात कर दी गईं और 84 नए सिपाहियों को गिरफ्तार करके, बेड़ियां डालकर, जेल में बंद कर दिया गया। छावनी के सवारों को इसलिए जेल में डाला गया ताकि हम डर कर नए कारतूसों को दांतों से खींचने लगें। इसी कारण हम और हमारे सारे सहोदर इकट्ठा होकर अपनी आस्था की रक्षा के लिए अंग्रेज़ों से लड़े…. । हमें दो साल तक युद्ध जारी रखने पर मजबूर किया गया। धर्म व आस्था के सवाल पर हमारे साथ खड़े राजा और मुखिया अभी भी हमारे साथ हैं और उन्होंने भी सारी मुसीबतें झेली हैं। हम दो साल तक इसलिए लड़े ताकि हमारा अकायद (आस्था) और मज़हब दूषित न हों। अगर एक हिंदू या मुसलमान का धर्म ही नष्ट हो गया तो दुनिया में बचेगा क्या ?

1. इन सिपाहियों का संबंध किस विद्रोह से है ?
2. भारतीय जवानों ने अंग्रेजों की सहायता किस प्रकार की ?
3. 1857 में भारतीय सैनिकों में अंग्रेजों के किस आदेश से रोष फैला ?
4. सिपाहियों द्वारा नए कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार करने पर उनके साथ कैसा व्यवहार किया गया ?
उत्तर-
1. इन सिपाहियों क संबंध 1857 के विद्रोह से है।
2. भारतीय जवानों ने अंग्रेजों के लिए अनेक प्रदेश जीते। इसके लिए अनेक कुर्बानियों देनी पड़ीं। परंतु वे कभी पीछे नहीं हटे।
3. 1857 में अंग्रेजों ने ये आदेश जारी किया कि अब सिपाहियों को इंग्लैंड से नए कारतूस और बंदूकें दी जाएंगी।
सिपाहियों का कहना था कि वे कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी मिली हुई है और गेहूं के आटे में हड्डियों का चूरा मिलाकर खिलाया जा रहा है। ये चीजें पैदल-सेना, घुड़सवारों और गोलअंदाज फ़ौज की हर रेजीमेंट में पहुंचा दी गई हैं। इस बात से उनमें रोष फैला।
4. सिपाहियों द्वारा नए कारतूसों का प्रयोग करने से इनकार करने पर उनके साथ कठोर व्यवहार किया गया। उन्हें ब्रिटिश जवानों द्वारा घेर लिया गया। प्रत्येक पैदल रेजीमेंट के सामने छरों से भरी छह-छह तोपें तैनात कर दी गईं। 84 नए सिपाहियों को गिरफ्तार करके, बेड़ियां डाल दी गईं और उन्हें जेल में बंद कर दिया गया।

(7)
5 अप्रैल, 1930 को महात्मा गांधी ने दांडी में कहा था-
जब मैं अपने साथियों के साथ दांडी के इस समुद्रतटीय टोले की तरफ चला था तो मुझे यकीन नहीं था कि हमें यहां तक आने दिया जाएगा। जब मैं साबरमती में था तब भी यह अफवाह थी कि मुझे गिरफ़तार किया जा सकता है। तब मैंने सोचा था कि सरकार मेरे साथियों को तो दांडी तक आने देगी लेकिन मुझे निश्चित ही यह छूट नहीं मिलेगी। यदि कोई यह कहता है कि इससे मेरे हृदय में अपूर्ण आस्था का संकेत मिलता है तो मैं इस आरोप को नकारने वाला नहीं हूं। मैं यहां तक पहुंचा हूं, इसमें शांति और अहिंसा का कम हाथ नहीं है। इस सत्ता को सब महसूस करते हैं। अगर सरकार चाहे तो वह अपने इस आचरण के लिए अपनी पीठ थपथपा सकती है क्योंकि सरकार चाहती वो हम में से प्रत्येक को गिरफ्तार कर सकती थी। जब सरकार यह कहती है कि उसके पास शांति की सेना को गिरफ्तार करने का साहस नहीं था तो हम उसकी प्रशंसा करते है। सरकार को ऐसी सेना की गिरफ्तारी में शर्म महसूस होती है। अगर कोई व्यक्ति ऐसा काम करने में शर्म महसूस करता है जो . उसके पड़ोसियों को भी रास नहीं आ सकता, तो वह एक शिष्ट-सभ्य व्यक्ति है। सरकार को हमें ऐसा करने के लिए बधाई दी जानी चाहिए भले ही उसने विश्व जनमत का ख्याल करके ही यह फैसला क्यों न लिया हो।
कल हम नमक-कर कानून तोडेंगे। सरकार उसको बर्दाश्त करती है कि नहीं यह सवाल अलग है। हो सकता है सरकार हमें ऐसा करने दे लेकिन उसने हमारे जत्थे के बारे मुख्य धैर्य और सहिष्णुता दिखायी है उसके लिए वह अभिनंदन की पात्र है …..।

यदि मुझे और गुजरात व देश भर के सारे मुख्य नेताओं को गिरफ्तार कर लिया जाता है तो क्या होगा ? यह आंदोलन इस विश्वास पर आधारित है कि जब एक पूरा राष्ट्र उठ खड़ा होता है और आगे बढ़ने लगता है तो उसे नेता की ज़रूरत नहीं रह जाती।

1. गांधीजी ने दांडी मार्च की शरूआत क्यों की ?
2. नमक यात्रा उल्लेखनीय क्यों थी ?
3. शांति और अहिंसा को सब महसूस करते हैं ? गांधी जी ने ऐसा क्यों कहा ?
उत्तर-
1. नमक कानून के अनुसार नमक के उत्पादन और विक्रय पर राज्य का एकाधिकार था। प्रत्येक भारतीय घर में नमक का प्रयोग होता था, परन्तु उन्हें घरेलू प्रयोग के लिए भी नमक बनाने से रोका गया था। इस प्रकार उन्हें दुकानों से ऊंचे दाम पर नमक खरीदने के लिए बाध्य किया गया। अत: नमक कानून के विरुद्ध जनता में काफी असंतोष था। गांधी जी भी नमक कानून को सबसे घृणित कानून मानते थे। स्वतन्त्रता संघर्ष का एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा बन गया। गांधी जी इस कानून को तोड़कर जनता में व्याप्त असंतोष को अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध एकजुट करना चाहते थे। इसी नमक कानून को तोड़ने के उद्देश्य से ही गांधी जी ने दांडी मार्च शुरू किया।

2. नमक यात्रा कम-से-कम निम्नलिखित तीन कारणों से उल्लेखनीय थी।-

  • इसके चलते महात्मा गांधी दुनिया की नज़र में आए। इस यात्रा को यूरोप और अमेरिकी प्रेस ने व्यापक रूप से जाना।
  • यह पहली राष्ट्रवादी गतिविधि थी जिसमें औरतों ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया। समाजवादी कार्यकारी
    कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने गांधी को समझाया था कि वे अपने आंदोलन को पुरुषों तक ही सीमित न रखें। कमलादेवी स्वयं उन असंख्य औरतों में से एक थी जिन्होंने नमक या शराब कानूनों का उल्लंघन करते हुए सामूहिक गिरफ्तारी दी थी।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि नमक यात्रा के कारण ही अंग्रेजों को यह अभास हुआ था कि अब उनका
    राज बहुत दिन नहीं टिक सकेगा और उन्हें भारतीयों को भी सत्ता में भागीदार बनाना पड़ेगा।

3. गांधी जी शांति के पुजारी थे और सत्य एवं अहिंसा में बहुत अधिक विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि अहिंसा पर आधारित शांतिपूर्ण आंदोलन को बड़ी-से-बड़ी शक्ति भी नहीं दबा सकती। इसलिए उन्होंने यह कहा कि शांति और अहिंसा (की ताकत) को सभी महसूस करते है।

(8)
महात्मा गांधी जानते थे कि उनकी स्थिति “बीहड़ में एक आवाज़” जैसी है लेकिन फिर भी वे विभाजन की सोच का विरोध करते रहे-
किंतु आज हम कैसे दुखद परिवर्तन देख रहे हैं। मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूं जब हिंदू और मुसलमान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जला जा रहा हूं कि उस दिन को जल्दी-जल्दी साकार करने के लिए क्या करू। लोगों से मेरी गुजारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें….। हिंदू और मुसलमान दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं। उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं, और एक ही जबान बोलते हैं।
प्रार्थना सभा में भाषण, 7 सितंबर, 1946, कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ महात्मा गांधी, खंड 92, पृ० 139.

लेकिन मुझे पूरा विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो मांग उठायी है वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है और मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य करने से कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का। जो तत्त्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बांट देना चाहते हैं वे भारत और इस्लाम, दोनों के शत्रु हैं। भले ही वे मेरी देह के टुकड़े-टुकड़े कर दें, परंतु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते जिसे मैं ग़लत मानता हूँ।

1. महात्मा गांधी पुनः क्या देखना चाहते थे ? व्याख्या कीजिए।
2. पाकिस्तान की मांग किस प्रकार गैर-इस्लामिक थी ? स्पष्ट कीजिए।
3. महात्मा गांधी ने ऐसा क्यों कहा कि उनकी आवाज़ बीहड़ में एक आवाज़ थी ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
1. महात्मा गांधी हिंदुओं तथा मुसलमानों को फिर से एक होता देखना चाहते थे। वे चाहते थे हिंदू तथा मुसलमान आपसी . सलाह के बिना कोई काम न करें। वास्तव में वह विभाजन की स्थिति को रोकना चाहते थे।
2. महात्मा गांधी का कहना था कि-

  • मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो मांग उठायी है वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार को तोड़ने का।
  • जो तत्त्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बांट देना चाहते हैं और वे भारत और इस्लाम दोनों का शत्रु हैं।

3. विभाजन की बढ़ती हुई सोच के कारण देश का वातावरण विषैला हो चुका था ऐसा लगता था पूरा देश दूर-दूर तक एक वीरान जंगल की तरह फैला है जिसमें किसी की आवाज़ सुनाई नहीं दे सकती। इसलिए वह यह महसूस कर रहे थे-उनकी आवाज़ बीहड़ में एक आवाज़ के समान है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 5(i) ज्वालामुखी

PSEB 11th Class Geography Guide ज्वालामुखी Textbook Questions and Answers

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
ज्वालामुखी की परिभाषा दें।
उत्तर-
यह धरातल पर एक गहरा छेद होता है, जिसके द्वारा धरती के नीचे से गर्म गैसें, तरल और ठोस पदार्थ बाहर. . निकलते हैं।

प्रश्न 2.
ज्वालामुखी क्रियाओं के क्या कारण हैं ?
उत्तर-

  1. भू-गर्भ में उच्च-ताप
  2. भीतरी लावे के भंडार।

प्रश्न 3.
ज्वालामुखी कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-

  • सक्रिय ज्वालामुखी
  • शांत ज्वालामुखी
  • मृत ज्वालामुखी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 4.
ज्वालामुखी करेटर क्या होता है ? इसका निर्माण कैसे होता है ?
उत्तर-
ज्वालामुखी के मुँह के ऊपर बने हुए खड्डे को करेटर कहते हैं। यह कटोरे के समान कीप आकार का होता है। लगातार विस्फोट के कारण इसका आकार बड़ा हो जाता है।

प्रश्न 5.
कैलडरा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
विशाल करेटर को कैलडरा कहते हैं।

प्रश्न 6.
बैथोलिथ और लैकोलिथ में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
बैथोलिथ का अर्थ है-लावे का भंडार। ये धनुष के आकार के होते हैं। इसे छत्र भी कहते हैं। जब काफी गहराई पर लावा एक गुंबद आकार में जम जाता है, तो उसे बैथोलिथ कहते हैं। एक-दूसरे के समानांतर जमाव को लैकोलिथ कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 7.
गीज़र और वाष्प द्वार (Fumards) में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर-
फव्वारे के समान उछलकर अपने-आप निकलने वाले गर्म पानी के चश्मे को गीज़र (Geyser) कहते हैं। धरती की पपड़ी के सुराख में से धुआँ, गैस और जल वाष्प के बाहर निकलने को वाष्प द्वार (Fumarols) कहते हैं।

प्रश्न 8.
विस्फोट के समय की सीमा के आधार पर ज्वालामुखियों को कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-

  • हवाईयन विस्फोट
  • सटरोंबोलीयन विस्फोट
  • वोलकेनीयन विस्फोट
  • पेलीनीयन विस्फोट।

प्रश्न 9.
ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकलने वाले पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर-

  • जल वाष्प और गैसें।
  • मैगमा और लावा।
  • ठोस पदार्थ-राख, धूल कण, लैपीली।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 10.
विश्व में ज्वालामुखियों के क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. विश्व के अधिकतर ज्वालामुखी पेटियों (Belts) में मिलते हैं।
  2. अधिकतर ज्वालामुखी कमज़ोर क्षेत्रों में मिलते हैं।
  3. ज्वालामुखी आमतौर पर भूकंप की पेटियों के साथ-साथ मिलते हैं।
  4. अधिकतर ज्वालामुखी समुद्र के निकट या द्वीपों पर मिलते हैं।
  5. ज्वालामुखी मोड़दार पहाड़ी प्रदेशों में या दरारों के निकट मिलते हैं।

विश्व के ज्वालामुखी क्षेत्र (Volcanic Zones of the world) – विश्व में भूकंप कुछ विशेष क्षेत्रों में ही आते हैं। अधिकतर भूकंप उन क्षेत्रों में आते हैं, जहाँ नवीन बलदार पर्वत मिलते हैं। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी क्षेत्रों में भी भूकंप उत्पन्न होते हैं। भूकंप-क्षेत्र अग्रलिखित हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी 1

1. प्रति-प्रशांत महासागर तटीय पेटी (Circum Pacific Belt)–यह पेटी प्रशांत महासागर के चारों तरफ के तटीय भागों में फैली हुई है। यह ज्वालामुखी क्षेत्रों की प्रमुख पेटी है, जिसे प्रशांत महासागर का अग्निचक्र (Pacific Ring of Fire) कहते हैं। इस पेटी में विश्व के लगभग दो-तिहाई भूकंप उत्पन्न होते हैं। जापान, अलास्का (Alaska), कैलीफोर्निया (California), मैक्सिको और चिली (Chile) इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। जापान में वर्ष-भर में लगभग 1500 भूकंप आते हैं।

2. मध्यवर्ती विश्व-पेटी (Mid-World Belt)-यह पेटी यूरोप और एशिया की पश्चिम-पूर्व दिशा में बलदार पर्वतों में स्थित है। इस पेटी के अंतर्गत अल्पस (Alps), कॉकेसस (Caucasus), हिमालय पर्वतमाला और पूर्वी द्वीप समूह आते हैं।

Geography Guide for Class 11 PSEB ज्वालामुखी Important Questions and Answers

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण (Causes of Volcanic Activity) ज्वालामुखी क्रिया एक रहस्यमयी घटना है। ज्वालामुखी का संबंध धरती के भीतरी भाग (Interior) से है। इसकी कार्यशीलता के कई कारण हैं-

1. धरती के भू-गर्भ में बढ़ता तापमान-धरती के भीतरी भाग की ओर जाने पर प्रति 32 मीटर के बाद 1°C तापमान बढ़ जाता है। 90 कि०मी० की गहराई पर तापमान इतना बढ़ जाता है कि चट्टानें ठोस अवस्था में नहीं रह सकतीं। अनेक रेडियो-एक्टिव (Radio-active) खनिजों के कारण भी तापमान अधिक होता है। इतने अधिक तापमान के कारण चट्टानें अति गर्म (Super heated) हो जाती हैं, परन्तु बाहरी भू-तल के दबाव के कारण वे पिघलती नहीं। जैसे ही ऊपरी दबाव कम होता है, चट्टानें पिघलकर द्रव्य रूप (Lava) में बदल जाती हैं और यह लावा बाहर की ओर बढ़ने लगता है।

2. लावे का भंडार-धरती के नीचे लावे का एक भंडार है, जिससे लावे की प्राप्ति होती है।

3. भीतरी वाष्प-धरती के नीचे का पानी भाप बन जाता है और वह वाष्प और गैसों के ज़ोर से चट्टानों को तोडकर बाहर निकलता है। जिस प्रकार सोडा-वाटर की बोतल खोलते ही गैस के साथ-साथ कुछ सोडा-वाटर भी बाहर निकल आता है। समुद्र के निकट यह क्रिया अधिक होती है।

4. कमजोर भू-भागों का होना-कमज़ोर भू-भागों में किसी भीतरी हलचल से चट्टानें आसानी से टूट जाती हैं और विस्फोट होता है। हलचल के कारण दबाव कम होता है और लावा ऊपर उठता है और बाहर निकलता है।

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प्रश्न 2.
ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाले पदार्थ बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी विस्फोट के समय तीन प्रकार के पदार्थ-ठोस, तरल और गैसीय-बाहर निकलते हैं।

1. ठोस पदार्थ (Solid Material) ज्वालामुखी विस्फोट के समय बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाहर निकलते हैं। लावे के ठोस पिंडों को ज्वालामुखी बम (Bomb) कहते हैं। छोटे टुकड़ों को बरेसिया (Breccia) और लैपीली (Lapilli) कहते हैं। इसके अतिरिक्त बारीक राख (Cinder, ash, Pumice, tuff) भी बड़ी मात्रा में निकलती है।

2. तरल पदार्थ (Liquid Material)—ज्वालामुखी से निकलने वाला महत्त्वपूर्ण तरल पदार्थ लावा (Lava) होता है। यह सिलिका की मात्रा के आधार पर दो प्रकार का होता है-

i) तेजाबी लावा (Acid Lava)-इसमें सिलिका (Silica) की मात्रा 75% से अधिक होती है। यह गाढ़ा होता है और अधिक तापमान पर पिघलता है। यह धीरे-धीरे और थोड़ी दूरी तक बहता है। यह पीले रंग का होता है।

ii) बेसिक लावा (Basic Lava) इसमें सिलिका की मात्रा 60% से कम होती है। यह जल्दी ही पिघल जाता है और दूर तक फैल जाता है। हवाई द्वीप (Hawai islands) के ज्वालामुखी से बेसिक लावा निकलता है। यह काले रंग का होता है।

3. गैसीय पदार्थ (Gaseous Material) ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाले गैसीय पदार्थों में जल वाष्प, भाप (Steam), सल्फर, हाइड्रोजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, क्लोरीन आदि गैसें मिलती हैं। जलवाष्प के वायुमंडल के संपर्क में आने पर बहुत ज़ोर से वर्षा होती है। इन गैसों के कारण लपटें निकलती हैं। अलास्का को दस हज़ार ज्वालाओं की घाटी (Valley of Ten thousand smokes) कहते हैं।

प्रश्न 3.
ज्वालामुखी के अलग-अलग प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखी के प्रकार (Types of Volcanoes) विश्व में अनेक प्रकार के ज्वालामुखी मिलते हैं। अलग-अलग पदार्थों के कारण इनके आकार भी भिन्न बन जाते हैं। विस्फोट के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते हैं-

1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes)—ये वे ज्वालामुखी हैं, जिनमें समय-समय पर विस्फोट होता रहता है। विश्व में लगभग 600 सक्रिय ज्वालामुखी हैं। सिसली द्वीप में ऐटना (Etna) ज्वालामुखी 2500 वर्षों से सक्रिय है। खाड़ी बंगाल में अंडमान द्वीप के पूर्व में बैरन द्वीप (Barren Island) ही केवल एक सक्रिय ज्वालामुखी है। इस ज्वालामुखी का व्यास 2 कि०मी० और ऊँचाई 27 मीटर है। इसके मुख से गंधक और गैसें निकलती हैं। हवाई द्वीप का मेना लोआ सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी है।

2. शांत ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes)—ये ऐसे ज्वालामुखी हैं, जो लंबे समय तक शांत रहने के बाद अचानक सक्रिय हो जाते हैं। इटली में वैसुवीयस (Vesuvious) ज्वालामुखी कई वर्षों तक शांत रहने के बाद सन् 1976 में अचानक फूट पड़ा। इसमें पोंपअई (Pompeii), हरक्यूलेनियम (Herculaneum) आदि नगर लावे के नीचे दब गए। इसी प्रकार कराकटोआ ज्वालामुखी सन् 1833 में अचानक फूट पड़ा।

3. मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes)—ये ऐसे ज्वालामुखी हैं, जो पूरी तरह से ठंडे हो चुके हैं। इनका मुख मिट्टी, लावा आदि के जमाव से बंद हो गया है। आमतौर पर इनके मुख पर झीलें होती हैं। म्याँमार का पोपा (Popa) और ईरान का कोह सुल्तान (Koh Sultan) ज्वालामुखी इसी प्रकार के हैं।

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प्रश्न 4.
ज्वालामुखी विस्फोट के प्रकार बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)-ज्वालामुखी विस्फोट दो प्रकार का होता है-
1. केंद्रीय विस्फोट (Central Eruption)—यह विस्फोट किसी केंद्रीय छेद के द्वारा धमाके और गड़गड़ाहट के साथ होता है। शिलाखंडों की बौछार के साथ लावा बाहर निकलता है। जापान का फ्यूज़ीयामा और इटली का वैसुवीयस इसके उदाहरण हैं।

2. दरारी विस्फोट (Fissure Eruption)-जब लावा धरातल पर पड़ी अनेक दरारों से निकलकर चारों तरफ फैल जाता है, तो यह विस्फोट होता है। ये विस्फोट आमतौर पर शांत होते हैं। ये विस्फोट पठारों का निर्माण करते हैं जैसे भारत का लावा प्रदेश और आइसलैंड में लाकी (Laki) प्रदेश।

प्रश्न 5.
ज्वालामुखी के लाभ बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी के लाभ (Advantages of Volcanoes)-ज्वालामुखी विस्फोटों से कई लाभ होते हैं और अनेक हानियाँ भी होती हैं। आज के समय में ज्वालामुखियों को प्रकृति के सुरक्षा वाल्व (Safety valves of nature) कहते हैं।

लाभ (Advantages)-

  1. ज्वालामुखी के कारण धरातल पर नए पर्वतों और नए पठारों का जन्म होता है।
  2. ज्वालामुखी के लावे से बनी मिट्टी बहुत उपजाऊ होती है, जैसे भारत में काली मिट्टी का प्रदेश कपास की खेती के लिए आदर्श है।
  3. ज्वालामुखी विस्फोट से कई खनिज प्राप्त होते हैं, जैसे गंधक, चांदी आदि।
  4. ज्वालामुखी प्रदेशों में गर्म पानी के चश्मों में स्नान करने से त्वचा के कई रोग दूर हो जाते हैं।
  5. ज्वालामुखी के गढों (craters) में झीलें बन जाती हैं, जिनमें से कई नदियाँ निकलती हैं।
  6. लावा के जमाव से बनी चट्टानें भवन-निर्माण के लिए उपयोगी होती हैं।
  7. ज्वालामुखी क्षेत्रों में देखने योग्य दृश्य बन जाते हैं।
  8. ज्वालामुखी से धरती की भीतरी हालत का पता चलता है।
  9. आइसलैंड के गर्म चश्मों के पानी से खाना बनाने और कपड़े धोने का काम लिया जाता है।

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निबंधात्मक प्रश्न । (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
ज्वालामुखियों का वर्गीकरण करें। विस्फोट के समय की सीमा के आधार पर ज्वालामुखियों को। कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर
ज्वालामुखियों का वर्गीकरण (Classification of Volcanoes)-
केंद्रीय प्रकार के विस्फोट के समय निकला लावा, राख आदि शंकु आकार (Conical) ज्वालामुखियों की रचना करते हैं। ये ज्वालामुखी अनेक प्रकार के होते हैं। ज्वालामुखियों का वर्गीकरण (Classification) क्रियाशीलता और विस्फोट के आधार पर किया जाता है, जिनका उल्लेख आगे किया गया है

I. क्रियाशीलता पर आधारित वर्गीकरण (Classification Based on Activity)-
क्रियाशीलता के आधार पर ज्वालामुखी नीचे लिखे तीन प्रकार के होते हैं-

1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes)—इन ज्वालामुखियों में विस्फोट थोड़े-थोड़े समय के बाद होता रहता है अर्थात् समय-समय पर इनमें से लावा, गैसें आदि निकलती रहती हैं। इन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहकर पुकारा जाता है। दक्षिणी अमेरिका के देश एक्वाडोर (Ecuador) का कोटोपैक्सी (Cotopaxi) ज्वालामुखी सर्वोच्च सक्रिय ज्वालामुखी है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई 600 मीटर है। सिसली (Sicily) का ऐटना (Etna) ज्वालामुखी पिछले कई वर्षों से सक्रिय है।

2. शांत ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes) जो ज्वालामुखी अधिक समय तक शांत रहने के बाद अचानक जागृत हो जाते हैं, उन्हें शांत ज्वालामुखी कहते हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखियों के विस्फोट में अक्सर लंबे समय का अंतर रहता है। इटली का वैसुवीयस (Vesuvius) ज्वालामुखी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। 79 ई० में इस ज्वालामुखी के विस्फोट के फलस्वरूप उस समय के दो प्रसिद्ध नगर पोंपञई (Pompei) और हरक्यूलेनियम (Herculaneum) इसकी गर्म राख के नीचे दबकर पूर्ण रूप से नष्ट हो गए थे। उस समय यह ज्वालामुखी पिछले सात सौ वर्षों से शांत था।

3. मृत ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes)—कुछ ऐसे ज्वालामुखी भी हैं, जो पहले कभी एक-दो बार फटे थे, परंतु उसके बाद से वे पूर्ण रूप से शांत हैं। अब उनके विस्फोट की कोई संभावना नहीं है। इन्हें मृत ज्वालामुखी कहते हैं। बर्मा (म्यांमार) का माऊंट पोपा (Mount Popa) इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

II. विस्फोट के आधार पर वर्गीकरण (Classification Based on Nature of Eruptions)-

ज्वालामुखियों का वर्गीकरण विस्फोट के स्वभाव के आधार पर नीचे दिया गया है-

1. हवाईयन प्रकार (Hawaian Type)-इस प्रकार के ज्वालामुखियों में जोरदार विस्फोट कम ही होते हैं। इनमें से पतला लावा शांतमयी ढंग से धीरे-धीरे निकलता है, जोकि एक विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है। लावे के निकलने के समय, कभी-कभी तीव्र गति से प्रवाहित होती हुई हवा लावे को धागों के रूप में उड़ाती है। धागे के समान इन पतली लावा आकृतियों को हवाई की अग्नि देवी पैले (Pele) के नाम पर पैले के बाल (Pele’s Hair) कह कर संबोधित किया जाता है। हवाई द्वीप के प्रमुख ज्वालामुखी मोना लोआ (Mauna Loa) और किलाओ (Kilauea) इसके सबसे उत्तम उदाहरण हैं।

2. सटरोंबोलीयन प्रकार (Strombolian Type)-इस प्रकार के ज्वालामुखियों का नामकरण भू-मध्य सागर में सिसली द्वीप के उत्तर में स्थित लीपेरी द्वीप समूह (Lipari Islands) के सटरोंबोलीयन ज्वालामुखी के नाम पर किया गया है। विस्फोट के बाद इसमें से लेपीली (Lapilli), प्यूमिका (Pumica), एकोरिया (Acoria), बम (Bomb) आदि पदार्थ बाहर निकलते हैं। सटरोंबोली जैसे ज्वालामुखियों में से निरंतर रूप में निकास होता रहता है। इसी कारण सटरोंबोली ज्वालामुखी को रोम सागर का प्रकाश गृह (Light house of Mediterranean) के नाम से संबोधित करते हैं।

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3. वोलकेनीयन प्रकार (Volcanian Type)-
इस प्रकार के ज्वालामुखियों का नाम सटरोंबोलीयन के निकट स्थित वोलकेनो के नाम पर रखा गया है। इसमें से निकलने वाला लावा बहुत गाढ़ा होता है। ज्वालामुखी के ऊपर भाप के घने बादल छा जाते हैं जो कि गोभी के फूल (like Cauliflower) की आकृति धारण कर लेते हैं। पेलीनियन प्रकार (Palenean Type)-पेले पश्चिमी द्वीप समूह (West Indies) का ज्वालामुखी है। इसमें भयंकर प्रकार के विस्फोट होते हैं। विस्फोट के समय बड़ी मात्रा में शिलाखंड, राख और गैसें बाहर निकलती हैं, जिससे आकाश अत्यंत धूलमय हो जाता है। इस तरह के ज्वालामुखियों में इतना भयंकर विस्फोट होता है कि आरंभिक ज्वालामुखी (craters) नष्ट हो जाते हैं और विस्फोट के स्थान पर केलडेरा (Caldera) बन जाते हैं।

5. वैसवीयस प्रकार (Vesuvius Type)-इस प्रकार के ज्वालामुखियों में निकलने वाला लावा अधिक गैस युक्त होता है जिससे विस्फोट होता है। ऊँची उठती हुई गैसों के साथ मिट्टी, राख, विखंडित शिलाओं के टुकड़े आदि भी प्रमुख मात्रा में ऊपर उठते हैं। इंडोनेशिया के क्राकटोआ (Krakatoa) ज्वालामुखी का जो विस्फोट सन् 1883 ई० में हुआ था, उसमें से निकली राख आकाश के ऊपर लगभग 6 महीने तक लटकती अवस्था में पड़ी रही।

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PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 2.
ज्वालामुखी विस्फोट के समय निकलने वाले पदार्थों के नाम लिखें।
उत्तर-
ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)—ज्वालामुखी विस्फोट दो प्रकार का होता है-
1. केंद्रीय विस्फोट (Central Eruption)—यह विस्फोट किसी केंद्रीय छेद के द्वारा धमाके और गड़गड़ाहट से होता है। शिलाखंडों की बौछार के साथ लावा बाहर निकलता है। जापान का फ्यूज़ीयामा और इटली का वैसुवीयस विस्फोट इस प्रकार के उदाहरण हैं।

2. दरारी विस्फोट (Fissure Eruption) जब लावा धरती पर पड़ी अनेक दरारों से निकलकर चारों तरफ फैल जाता है, तो इस विस्फोट को दरारी विस्फोट कहते हैं। ये विस्फोट आमतौर पर शांत होते हैं। ये विस्फोट पठारों का निर्माण करते हैं, जैसे भारत का लावा प्रदेश और आईसलैंड में लाकी (Laki) प्रदेश।

ज्वालामुखी विस्फोट से निकलने वाले पदार्थ (Materials of Volcanic Eruptions)-

ज्वालामुखी विस्फोट के समय भू-गर्भ से जो गर्म चट्टानें और गैसें बाहर निकलती हैं, इनका सांझा नाम मैगमा (Magma) है। ज्यों-ज्यों मैगमा भू-तल की ओर आता है, तो गैसें अलग हो जाती हैं, बाकी भाग को लावा (Lava) कहते हैं। विस्फोट के समय तीन प्रकार के पदार्थ बाहर निकलते हैं-ठोस, तरल और गैसीय।

1. ठोस पदार्थ (Solid Material)-ज्वालामुखी विस्फोट के समय बड़े-बड़े चट्टानी टुकड़े बाहर निकलते हैं। लावे के ठोस पिंडों को ज्वालामुखी बम (Bomb) कहते हैं, जो बंदूक की गोली के समान नीचे गिरते हैं। ये लावे के जम जाने के कारण बनते हैं। छोटे टुकड़ों को बरेसिया (Breceia) और लैपीली (Lapilli) कहते हैं। इसके अतिरिक्त बारीक राख (Cinder, ash, Pumice, tuff) भी बड़ी मात्रा में निकलती है। 27 अगस्त, 1883 को क्राकटोआ (Krakatoa) द्वीप के विस्फोट के समय निकलने वाली राख (Dust) तीन साल तक वायुमंडल में रही और इसने धरती के तीन चक्कर लगाए और वायुमंडल में 25 किलोमीटर की ऊँचाई तक पहुँची।

2. तरल पदार्थ (Liquid Material)-ज्वालामुखी से निकलने वाला महत्त्वपूर्ण तरल पदार्थ लावा (Lava) होता है। यह सिलीका की मात्रा के आधार पर दो प्रकार का होता है-

1. तेजाबी लावा (Acid Lava) इसमें सिलीका (Silica) की मात्रा 75% से अधिक होती है। यह गाढ़ा होता है और अधिक तापमान पर पिघलता है। यह धीरे-धीरे और थोड़ी दूरी तक बहता है। यह पीले रंग का होता है।

2. बेसिक लावा (Basic Lava)—इसमें सिलीका की मात्रा 60% से कम होती है। यह जल्दी ही पिघल जाता है और दूर तक फैल जाता है। हवाई द्वीप (Hawai Island) के ज्वालामुखी से बेसिक लावा निकलता है। यह काले रंग का होता है।

3. गैसीय पदार्थ (Gaseous Material)-दूर से ऐसा लगता है, जैसे ज्वालामुखी से आग की लपटें (ज्वाला) निकलती हों, इसीलिए इसे ज्वालामुखी कहते हैं। ज्वालामुखी से बाहर निकलने वाले गैसीय पदार्थों में जलवाष्प, भाप (Steam), सल्फर, हाइड्रोजन, कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरीन आदि गैसें मिलती हैं। जलवाष्प के वायुमंडल के संपर्क में आने से बहुत ज़ोर से वर्षा होती है। इन गैसों के कारण लपटें निकलती हैं। फटने के समय लपटें उठती हुई दिखाई देती हैं। अलास्का को दस हज़ार ज्वालाओं की घाटी (Valley of Ten thousand smokes) कहते हैं। जावा (Java) में जहरीली गैसों की एक घाटी है, जिसे मौत की घाटी (Valley of Death) कहते हैं। बहुत तेज़ वर्षा के बाद ज्वालामुखी से कीचड़ (Mud) भी निकलता है।

प्रश्न 3.
विश्व में ज्वालामुखियों के क्षेत्रीय विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखियों का विभाजन (Distribution of Volcanoes)-

  1. विश्व के अधिकतर ज्वालामुखी पेटियों (Belts) में मिलते हैं।
  2. अधिकतर ज्वालामुखी कमज़ोर क्षेत्रों में मिलते हैं।
  3. ज्वालामुखी आमतौर पर भूकंप की पेटियों के साथ-साथ मिलते हैं।
  4. अधिकतर ज्वालामुखी समुद्र के निकट या द्वीपों पर मिलते हैं।
  5. ज्वालामुखी मोड़दार पहाड़ी प्रदेशों में या दरारों के निकट मिलते हैं।

विश्व के ज्वालामुखी क्षेत्र (Volcanic Zones of the world) – विश्व में भूकंप कुछ विशेष क्षेत्रों में ही आते हैं। अधिकतर भूकंप उन क्षेत्रों में आते हैं, जहाँ नवीन बलदार पर्वत मिलते हैं। इसके अतिरिक्त ज्वालामुखी क्षेत्रों में भी भूकंप उत्पन्न होते हैं। भूकंप-क्षेत्र अग्रलिखित हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी 1

1. प्रति-प्रशांत महासागर तटीय पेटी (Circum Pacific Belt)–यह पेटी प्रशांत महासागर के चारों तरफ के तटीय भागों में फैली हुई है। यह ज्वालामुखी क्षेत्रों की प्रमुख पेटी है, जिसे प्रशांत महासागर का अग्निचक्र (Pacific Ring of Fire) कहते हैं। इस पेटी में विश्व के लगभग दो-तिहाई भूकंप उत्पन्न होते हैं। जापान, अलास्का (Alaska), कैलीफोर्निया (California), मैक्सिको और चिली (Chile) इसके प्रमुख क्षेत्र हैं। जापान में वर्ष-भर में लगभग 1500 भूकंप आते हैं।

2. मध्यवर्ती विश्व-पेटी (Mid-World Belt)-यह पेटी यूरोप और एशिया की पश्चिम-पूर्व दिशा में बलदार पर्वतों में स्थित है। इस पेटी के अंतर्गत अल्पस (Alps), कॉकेसस (Caucasus), हिमालय पर्वतमाला और पूर्वी द्वीप समूह आते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी

प्रश्न 4.
ज्वालामुखी की परिभाषा दें। इसके कारण बताएँ।
उत्तर-
ज्वालामुखी (Volcanoes)-भू-पटल में वह छेद (Vent), जिसमें से द्रव्य, लावा, गैस, चट्टानीय टुकडे, राख आदि पदार्थ भू-तल पर प्रकट होते हैं, उसे ज्वालामुखी (Volcanoes) कहते हैं।

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ज्वालामुखी (Volcano)–धरातल पर एक गहरा छेद होता है, जिसके द्वारा धरती के नीचे से गर्म गैसें, तरल और ठोस पदार्थ बाहर निकलते हैं। अंग्रेजी भाषा का ‘Volcano’ शब्द रोमन शब्द ‘Vulcan’ से बना है, जिसका अर्थ है’अग्नि देवता’। यही कारण है कि आज भी जापान में फ्यूज़ीयामा ज्वालामुखी की पूजा की जाती है। हिमाचल में भी ज्वालामुखी स्थल को पवित्र मानकर लोग उसकी पूजा करते हैं। ज्वालामुखी के तीन भाग होते हैं-

  1. छेद (Vent)
  2. ज्वालामुखी नली (Volcanic Pipe)
  3. ज्वालामुखी कुंड (Crater)

ज्वालामुखी की रचना (Formation of a Volcano)—पहले भीतरी हलचल के कारण धरती की किसी कमज़ोर परत के एक छेद के द्वारा बाहर निकलने वाले पदार्थ आस-पास जम जाते हैं और एक शंकु (Cone) का निर्माण करते हैं। इसकी ऊँचाई जमाव के कारण निरंतर बढ़ती जाती है। ऐसे भू-आकार को ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain) कहते हैं।

ज्वालामुखी क्रियाओं के कारण (Causes of Volcanic Activities)–ज्वालामुखी क्रिया एक रहस्यमयी घटना है। ज्वालामुखी का संबंध धरती के भीतरी भाग (Interior) से है। इसकी कार्यशीलता के कई कारण हैं

1. धरती के भू-गर्भ में तापमान की अधिकता (Increase in temperature of Inner Earth)-धरती के भीतरी भाग की ओर जाने से प्रति 32 मीटर 1°C तापमान बढ़ जाता है। 90 कि०मी० की गहराई पर तापमान इतना बढ़ जाता है कि चट्टानें ठोस हालत में नहीं रह सकतीं। अनेकों रेडियो-एक्टिव (Radio Active) खनिजों के कारण भी ताप बढ़ जाता है। इतने अधिक ताप के कारण चट्टानें अति गर्म (Super heated) हो जाती हैं, परंतु बाहरी भूमि तल के दबाव के कारण वे पिघलती नहीं। जैसे ही ऊपरी दबाव कम होता है, चट्टानें पिघलकर द्रव्य रूप (Lava) में बदल जाती हैं और यह लावा बाहर की ओर बढ़ने लगता है।

2. भू-पटल के भीतर दबाव की कमी होना (Decrease in Pressure upon the Interior of Earth’s crust)-भू-पटल की ऊपरी परतों के दबाव के कारण भीतरी पदार्थ पूर्ण रूप से द्रव्य नहीं होते क्योंकि यह दबाव इन पदार्थों का द्रव्य-अंक (Melting Point) ऊँचा कर देता है। पर जब कभी दरारों (Faulting) और अपरदन से ऊपरी परतों का दबाव कम हो जाता है, तो भीतरी पदार्थ द्रव्य बनकर बाहर निकलने का यत्न करते हैं जिसके कारण ज्वालामुखी विस्फोट होता है।

3. गैसों का दबाव (Pressure of Gases)-भूमिगत जल प्रवाह की अधिकता के कारण वाष्प अधिक मात्रा में बनती है। यह क्रिया अधिकतर सागरों के निकट होती है। यह वाष्प लावे पर दबाव डालती है, फलस्वरूप लावा बाहर निकलना प्रारंभ हो जाता है। कई बार वाष्प अपना दबाव डालकर भू-पटल के कमज़ोर भागों से धमाका करके बाहर निकल आती है, जिस कारण द्रव्य लावे को भू-तल पर प्रकट होने के लिए मार्ग मिल जाता है।

प्रश्न 5.
ज्वालामुखी के बाहरी स्वरूप का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखी स्वरूप : बहिर्वेधी (Volcanic Forms : Extrusive) –
वे सभी क्रियाएँ, जो भू-गर्भ से निकलने वाले लावे और उसके द्वारा बनी भू-आकृतियों से संबंध रखती हैं, ज्वालामुखी क्रियाएँ (Volcanicity) कहलाती हैं। जब भू-गर्भ के पदार्थ भू-तल पर आकर अलग-अलग स्वरूपों में प्रकट होते हैं, तो इस क्रिया को बाहरी क्रिया कहा जाता है। इस क्रिया के स्वरूप आगे लिखे हैं-

1. ज्वालामुखी या लावा पठार (Volcanic or Lava Plateau)-ज्वालामुखी विस्फोट के समय जब इसमें से निकलने वाले लावे में यदि सिलीका की मात्रा कम हो, तो यह पतला होता है, परिणामस्वरूप वह दूरदूर तक फैल जाता है। इससे इसका आधार विस्तृत और ऊँचाई कम होती है। इसे लावा पठार कहते हैं, जैसे प्रायद्वीप भारत का दक्कन ट्रैप (Decean Trap)।

2. ज्वालामुखी पर्वत (Volcanic Mountain)-जिस छेद से लावा, गैसें आदि भू-तल पर प्रकट होती हैं, तो उस ज्वालामुखी छेद के चारों तरफ अंदर से निकलने वाले गाढ़े (Thick) पदार्थ के एकत्र होने से एक शंकु (Cone) बन जाता है, जो कुछ समय बाद बड़ा होकर पर्वत का रूप धारण कर लेता है। इसे ज्वालामुखी पर्वत कहते हैं। अफ्रीका का किलीमंजारो, जापान का फ्यूज़ीयामा, दक्षिणी अमेरिका का ऐकोंकागुआ (Aconcagua) ऐसे ही पर्वत हैं।

3. फिशर प्रवाह (Fissure Flow)-इसमें लावे का निकास किसी एक मुख से नहीं होता, बल्कि भू-तल की लंबी दरार में से होता है और लावा एक विस्तृत क्षेत्र में फैल जाता है। 1783 में आईसलैंड का लाकी (Laki) विस्फोट और 1986 में न्यूजीलैंड का तारानेरा (Taranera) विस्फोट इसके विशेष उदाहरण हैं। लाकी में लगभग 30 किलोमीटर और तारानेरा में लगभग 15 किलोमीटर लंबी दरार थी।

4. ऊष्ण चश्मे (Hot Springs)–जब भूमिगत जल पृथ्वी की काफी गहराई में पहुँच जाता है, तो वहाँ बहुत अधिक ऊष्णता के होने के कारण वह जल गर्म हो जाता है और चट्टानों की चौड़ी दरारों से होता हुआ भूतल पर आ जाता है। इसे ऊष्ण स्रोत या चश्मा कहते हैं। हिमाचल प्रदेश में मनाली के निकट ऊष्ण चश्मे और पार्वती घाटी में परिगंगा ऊष्ण स्रोत इसके प्रमुख उदाहरण हैं।

5. गीज़र (Geyser)—यह भू-तल पर ऊष्ण जल का एक फव्वारा होता है। इसमें जल रुक-रुक कर उछलता है। गीज़र भू-पटल के भीतरी भाग में स्थित किसी जल-भंडार से संबंधित होता है। भू-गर्भ की अत्यधिक गर्मी के कारण इस जल-भंडार का जल बहुत गर्म हो जाता है और उबलने लग जाता है। फलस्वरूप यह फैलता है। फैलने के लिए खुला स्थान न होने के कारण यह भू-पटल की ओर बढ़ता है और फव्वारे के समान ऊपर आकाश की ओर उछलता है। इसे उछाल चश्मा या गीज़र कहा जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में यैलोस्टोन पार्क में दो सौ से अधिक गीज़र हैं।

6. क्रेटर झील (Crater Lake) ज्वालामुखी के ठंडे हो जाने पर कभी-कभी इसके मुख में जल भर जाता है और इस प्रकार वहाँ एक झील बन जाती है। इसे क्रेटर झील कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के यैलोस्टोन पार्क की क्रेटर झील इसका प्रमुख उदाहरण है। भारत में महाराष्ट्र की लोनार झील (Lonar Lake) भी इसी प्रकार की झील है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(i) ज्वालामुखी 5

7. ज्वालामुखी कुंड या कैलडरा (Caldera)-सक्रिय ज्वालामुखी जब शांत होने लगता है, तो उसके कीप आकार के मार्ग में लावा ठोस हो जाता है, जिसे ज्वालामुखी प्लग (Volcanic Plug) कहते हैं। कुछ समय के बाद जब ज्वालामुखी फिर से सक्रिय होने लगता है, तो उसके कीप आकार के मार्ग के प्लग द्वारा बंद होने के कारण, लावा प्लग सहित ज्वालामुखी के मुख में विस्फोट करके उसे उड़ा देता है। फलस्वरूप नवीन मुख बड़े आकार का बनता है, इसे ज्वालामुखी कुंड कहते हैं। इसका व्यास कई किलोमीटर तक होता है। उदाहरण के तौर पर जापान के कैलडरा को Volcano of Hundred Villages कहते हैं।

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प्रश्न 6.
ज्वालामुखी के भीतरी स्वरूपों का वर्णन करें।
उत्तर-
ज्वालामुखी स्वरूप : अंतर्वेधी (Volcanic Forms : Intrusive)-
भू-गर्भ से भू-तल की ओर आता लावा कभी-कभी मार्ग में ठोस हो जाता है और बाहर नहीं पहुंचता। इससे अंतर्वेधी या पाताली चट्टानों (Intrusive or Plutonic Rocks) का निर्माण होता है। जब लावा मार्ग में ही भू-तल के समानांतर अवस्था में ठोस हो जाता है, तो उसे लावा-चौखट (Sill) और जब लावा लंब और कुछ तिरछी दिशा में ठोस होता है, तो उसे लावा-भित्ती (Dyke) कहते हैं।

ज्वालामुखी की अंतर्वेधी क्रियाओं के कारण नीचे लिखी आकृतियाँ बनती हैं –

1. लैकोलिथ (Lacoliths)-लैकोलिथ शब्द की रचना ‘Laccas’ और ‘Lithas’ के मेल से हुई है। ‘Laccas’ का अर्थ है-भंडार और ‘Lithas’ का अर्थ है-पत्थर। इस प्रकार ‘Laccolith’ का अर्थ है-‘पत्थर के भंडार’। मैगमा से आता हुआ द्रव्य लावा भू-पटल के मध्यवर्ती भागों में अलग-अलग प्रकार की चट्टानों की परतों में प्रवेश कर जाता है और चित्र-लैकोलिथ अपने ऊपर की परतों के दबाव से आधे धनुष के आकार में मोड़ देता है। इसे लैकोलिथ कहा जाता है।

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2. बैथोलिथ (Batholiths)—भू-गर्भ से द्रव्य अवस्था में लावा भू-तल पर आने का यत्न करता है, परन्तु मार्ग न मिलने के कारण भीतरी खाली भागों में भर जाता है और ठोस चट्टानों का रूप धारण कर लेता है। लावा आयतन (Volume) में यदि बड़ा हो, तो इन खोखले स्थानों को द्रवित करके उन्हें बड़े आकार का बना देता है। भू-गर्भ में बने हुए लावे के सबसे चित्र-बैथोलिथ लावा चट्टान बड़े रूप को बैथोलिथ कहा जाता है। यह गुंबद के आकार के होते हैं। इनके किनारे खड़ी ढलान वाले (Steep slope) और नीचे की ओर असीम गहराई तक विस्तृत होते हैं। इनका आधार कभी दिखाई नहीं देता। यह आमतौर पर ग्रेनाइट द्वारा बने होते हैं। भू-पटल के ऊपर की अन्य चट्टानों के अनावरण द्वारा घिसकर समाप्त हो जाने के बाद ये भू-पटल पर दिखाई देते हैं।

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3. राख शंकु (Ash Cone)—ये कम ऊँचे शंकु होते हैं जिनकी रचना धूल और राख से होती है। इनके किनारे अवतल (Concave) ढलान वाले होते हैं। ऐसे शंकु हवाई द्वीप में मिलते हैं। उन्हें Cinder cone भी कहते हैं।

4. शील्ड शंकु (Shield Cones)—इनका निर्माण बेसिक लावा (Basic Lava) से होता है। बेसिक लावा हल्का और पतला होता है। इसमें सिलीका की मात्रा कम होती है। यह लावा दूर तक फैल जाता है। इस प्रकार लंबे और कम ऊँचे शंकु का निर्माण होता है। हवाई द्वीप का मौना लोआ (Mauna Loa) का आधार 112 किलोमीटर चौड़ा है।

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5. गुंबद शंकु (Lava Dome)—इनका निर्माण तेज़ाबी लावे से होता है। यह लावा काफी घना और चिपचिपा होता है। इसमें सिलीका की मात्रा अधिक होती है। यह मुख के निकट ही जल्दी जमकर गुंबद बन जाता है। इस प्रकार तेज़ ढलान वाले ऊँचे शंकु का निर्माण होता है। फ्रांस में पाई-द-डोम (Puy-de-Dome) 1500 मीटर ऊँचा है।

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6. लावा प्लग (Volcanic Plug)-जब शंकु पूरी तरह से नष्ट हो जाता है, तो नली और छेद ठोस लावे से भर जाते हैं। यह नली एक प्लग (Plug) के समान दिखाई देती है; जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में लौसन चोटी ALTH (Lossen Peak).

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7. मिश्रित शंकु (Composite Cone)-ये सबसे ऊँचे और बड़े शंकुओं में गिने जाते हैं। इनका निर्माण लावा, राख और दूसरे पदार्थों की विभिन्न परतों के जमने से होता है। यह जमाव समानांतर परतों में होता है। इटली का सटरोंबोली (Stromboli) इसका प्रमुख उदाहरण है, जिसमें हर घंटे के बाद ज्वाला निकलती है। इसे रोम सागर का प्रकाश-गृह (light house of the Mediterranean) भी कहते हैं। जापान का फ्यूज़ीयामा इसका सुंदर उदाहरण है। ढलानों पर बनने वाले छोटे-छोटे | शंकुओं को परजीवी शंकु (Parasitic Cones) कहते हैं। इन्हें छोटे शंकु (Secondary Cones) भी कहते हैं।

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ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)–ज्वालामुखी विस्फोट दो प्रकार का होता है-
1. केंद्रीय विस्फोट (Central Eruptions)—यह विस्फोट किसी केंद्रीय छेद के द्वारा धमाके और गड़गड़ाहट से होता है। शिलाखंडों की बौछार के साथ लावा बाहर निकलता है। जापान का फ्यूज़ीयामा और इटली का – वैसुवीयस विस्फोट इसके उदाहरण हैं।

2. दरारी विस्फोट (Fissure Eruption)-जब लावा धरातल पर पड़ी अनेक दरारों से निकलकर चारों ओर फैल जाता है तब यह विस्फोट होता है। ये विस्फोट आम तौर पर शांत होते हैं। ये विस्फोट पठारों का निर्माण करते हैं, जैसे भारत का लावा प्रदेश और आईसलैंड में लाकी (Laki) प्रदेश।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
1924 से 1934 तक के स्वतन्त्रता संघर्ष की मुख्य घटनाओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1922 में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। श्री चितरंजन दास ने अधिवेशन में यह योजना रखी कि कांग्रेस को परिषदों के चुनावों में भाग लेना चाहिए और सरकार का विरोध करना चाहिए। लेकिन गांधी जी और उनके साथियों के विरोध के कारण यह योजना रद्द कर दी गई। परिणामस्वरूप श्री चितरंजन दास ने कांग्रेस से त्याग-पत्र दे दिया। उन्होंने परिषदों के चुनावों में भाग लेने के लिए एक पृथक् दल की स्थापना की। उस दल का नाम था-स्वराज्य पार्टी। पं० मोती लाल नेहरू ने भी इस . पार्टी के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

1. स्वराज्य पार्टी की गतिविधियां-1919 ई० के एक्ट के अन्तर्गत 1923 ई० में दूसरे चुनाव हुए। स्वराज्य दल ने भी इसमें भाग लिया। उन्होंने विधानसभा की 145 में से 45 सीटें प्राप्त की। इस प्रकार विधानसभा में उनका स्पष्ट बहुमत स्थापित हो गया। चुनावों के पश्चात् स्वराज्य दल ने परिषदों में प्रवेश किया। उन्होंने दोहरी शासन प्रणाली के अन्तर्गत प्रशासन करना असम्भव बना दिया। 21 फरवरी, 1924 ई० को श्री चितरंजन दास ने यह घोषणा की कि वह जब तक बंगाल में अपना मन्त्रिमण्डल नहीं बनायेंगे तब तक संविधान में परिवर्तन नहीं किया जाएगा। इसी प्रकार दूसरे प्रान्तों में भी स्वराज्य दल ने अपनी मांगें जारी रखीं। अन्त में फरवरी, 1924 ई० में एक कमेटी (मुद्दीमेन कमेटी) स्थापित की गई। इस कमेटी का उद्देश्य दोहरे शासन में आई कमियों को दूर करना था।

स्वराज्य पार्टी ने 1924-25 ई० में केन्द्रीय विधानसभा में वित्तीय बिल अस्वीकार कर दिया। इसमें गवर्नर-जनरल को अपनी विशेष शक्तियों का प्रयोग करना पड़ा। इसके पश्चात् 1925-26 ई० में उन्होंने कुछ राजनीतिक कैदियों की रिहाई की मांग की परन्तु सरकार ने उनकी मांगों की ओर कोई ध्यान न दिया। 1925 ई० के पश्चात् स्वराज्य पार्टी अवनति की ओर जाने लगी। 1926 ई० के चुनावों में स्वराज्यवादियों को अधिक सीटें न मिल सकीं। परिणामस्वरूप स्वराज्य दल का महत्त्व कम होने लगा। अन्ततः स्वराज्य दल और कांग्रेस के अन्य नेता एक बार फिर एक हो गए।

2. साइमन कमीशन-माण्टेग्यू फोर्ड सुधारों (1919) की एक धारा यह भी थी कि 10 वर्ष के पश्चात् यह जांच की जाएगी कि इस अधिनियम के अनुसार शासन ने कितनी प्रगति की है। यह कार्य 1929 में होना था, परन्तु भारतीय जनता तथा नेताओं की बढ़ती हुई बेचैनी को दूर करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने, 1928 में ही एक कमीशन की नियुक्ति कर दी जो अगले वर्ष भारत आया। इस कमशीन को ‘साइमन कमीशन’ कहा जाता है। इस कमीशन में सात सदस्य थे, परन्तु उनमें कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था। इस लिये गान्धी जी तथा कांग्रेस के अन्य नेताओं ने इसका बॉयकाट किया। हर नगर में कमीशन के विरुद्ध जलूस निकाले गये। स्थान-स्थान पर इसे काले झण्डे दिखाए गए और ‘साइमन वापस जाओ’ के नारे लगाए गए। लाहौर में जलूस का नेतृत्व लाला लाजपत राय कर रहे थे। पुलिस ने इस पर खूब लाठियां बरसाईं। उन्हें काफी चोटें आईं जिसके कारण कुछ ही दिनों पश्चात् उनकी मृत्यु हो गई। क्रान्तिकारी नवयुवकों ने मि० सांडर्स को गोली से उड़ाकर उनकी मृत्यु का बदला लिया। इन क्रान्तिकारियों में भगत सिंह, राजगुरु आदि प्रमुख थे।

3. पूर्ण स्वराज्य की मांग-साइमन कमीशन का प्रत्येक स्थान पर भारी विरोध किया गया था। परन्तु कमीशन ने विरोध के बावजूद अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। साइमन कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया। अत: अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेजी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणामस्वरूप भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गांधी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 को यह दिन सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

4. सविनय अवज्ञा आन्दोलन-सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च, 1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र से नमक लाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद सारे देश में लोगों ने सरकारी कानूनों को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हजारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। गांधी इरविन समझौते (1931) के बाद गान्धी जी ने दूसरी गोलमेज़ कांफ्रेंस में भाग लिया। परन्तु वापसी पर उन्हें बन्दी बना लिया गया। इस तरह देश में 1934 तक सविनय अवज्ञा आन्दोलन जारी रहा।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

प्रश्न 2.
1935 से 1947 तक के स्वतन्त्रता संघर्ष की मुख्य घटनाओं की चर्चा करें।
उत्तर-
1935 के एक्ट के पश्चात् देश की राजनीति ने नया मोड़ लिया। 1937 में प्रान्तों में चुनाव हुए। कांग्रेस ने 11 में से 8 प्रान्तों में सरकारें स्थापित की। परन्तु द्वितीय महायुद्ध के आरम्भ ने सारी स्थिति ही बदल डाली।

दूसरे महायुद्ध का प्रभाव-1939 में दूसरा महायुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेजी सरकार ने भारतीय नेताओं से पूछे बिना ही जर्मनी के विरुद्ध भारत के युद्ध में भाग लेने की घोषणा कर दी। इसके विरोध में सभी कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए और गांधी जी ने ‘सत्याग्रह’ आरम्भ कर दिया। उन्होंने जनता से कहा-“न दो भाई, न दो पाई।” गांधी जी के इन शब्दों का अर्थ है कि कोई भी भारतीय इस युद्ध में अंग्रेज़ी साम्राज्य की सहायता नहीं करेगा। कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों के त्यागपत्र देने से मुस्लिम लीग के नेता मिस्टर जिन्नाह बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने 22 दिसम्बर, 1939 का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया। 1940 में उन्होंने पाकिस्तान की मांग की। दूसरे महायुद्ध में अंग्रेजों की दशा शोचनीय होती चली जा रही थी।

जापान बर्मा तक बढ़ आया था। भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा गया। उन्होंने भारतीय नेताओं से बातचीत की और भारत को ‘डोमीनियन स्टेट्स’ देने की सिफारिश की। यह बात कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों को स्वीकार नहीं थी। कांग्रेस देश की स्वतन्त्रता तुरन्त चाहती थी, परन्तु क्रिप्स के सुझाव में अधिराज्य की व्यवस्था (Dominion Status) थी और वह भी युद्ध के बाद दिया जाना था। अतः गान्धी जी ने इस सुझाव की तुलना एक ऐसे चैक से की जिस पर बाद की तिथि पड़ी हुई है और ऐसे बैंक के नाम पर है जो फेल होने वाला है।

भारत छोड़ो आन्दोलन-जापान के आक्रमण का भय दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। वह हिन्द-चीन को जीत चुका था। उसका अगला निशाना भारत ही था। जापानी लोग अंग्रेजों के कारण ही भारत पर आक्रमण करना चाहते थे। अतः महात्मा गान्धी ने अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने का सुझाव दिया और कहा कि हम जापान से अपनी रक्षा स्वयं कर लेंगे। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई (मुम्बई) में कांग्रेस ने ‘अंग्रेज़ो ! भारत छोड़ो’ का प्रस्ताव पास कर दिया। प्रस्ताव की व्याख्या करते हुए गांधी जी ने जनता को ‘करो या मरो’ की बात कही। अगले दिन सरकार ने गांधी जी तथा अन्य नेताओं को बन्दी बना लिया। देश भर में आन्दोलन बड़ी तेज़ी से चला। दुकानदारों, किसानों, मज़दूरों, छात्रों सभी ने जलूस निकाले । सरकारी इमारतों पर तिरंगे झण्ड़े लहरा दिए गए। ‘अंग्रेज़ो, भारत छोड़ो’, ‘गान्धी जी की जय’, ‘टोडी बच्चा हाय हाय’ के नारे से भारत का नगर-नगर गूंज उठा। तोड़-फोड़ भी हुई। आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकार ने पूरा जोर लगाया। लाखों लोगों को जेलों में ढूंस दिया गया। सैंकड़ों को गोली से भून दिया गया। लोगों को मार्ग दिखाने वाला कोई भी नेता बाहर नहीं था। फलस्वरूप आन्दोलन शिथिल पड़ गया।

आज़ाद हिन्द फ़ौज-इसी बीच नेता जी सुभाषचन्द्र बोस अंग्रेज़ी सरकार की नज़रों से बचकर भारत से भाग निकले। वे जर्मनी गये और वहां से जापान पहुंचे। वहां उन्होंने जापान द्वारा कैद किए गए भारतीय कैदियों को संगठित किया और आज़ाद हिन्द फ़ौज की कमान सम्भाली। नेता जी इस सेना के बल पर भारत को स्वतन्त्र कराना चाहते थे। उन्होंने भारत पर आक्रमण किया और इम्फाल का प्रदेश जीत लिया, लेकिन इसी बीच जापान की हार हुई जिससे आज़ाद हिन्द फ़ौज की शक्ति भी कम हो गई। कुछ ही समय बाद नेता जी का एक हवाई दुर्घटना में देहान्त हो गया। ब्रिटिश सरकार ने दस हज़ार आज़ाद हिन्द सैनिकों को रंगून में बन्दी बनाया।

सेना के तीन उच्चाधिकारियों शाह नवाज़ खां, प्रेम कुमार सहगल तथा गुरबख्श सिंह ढिल्लों पर राजद्रोह का आरोप लगा कर लाल किले में मुकद्दमा चलाया गया। पण्डित जवाहर लाल नेहरू, भोला शंकर देसाई तथा तेज बहादुर सप्रू ने इनकी वकालत की। 1857 ई० में बहादुरशाह के बाद राजद्रोह के आरोप में चलाया गया यह भारतीय इतिहास का दूसरा सबसे महत्त्वपूर्ण मुकद्दमा था। सैनिक अदालत ने अभियुक्तों को आजन्म कारावास की सजा सुनाई। निर्णय सुनते ही जनता में रोष फैल गया और सरकार के विरुद्ध भारी प्रदर्शन हुए। उन दिनों बच्चे-बच्चे की जुबान पर ये शब्द थे’लाल किले से आई आवाज़-सहगल, ढिल्लों शाहनवाज़।” भारतीय सेना में भी विद्रोह की भावना फैल गई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार को झुकना पड़ा और तीनों अभियुक्त छोड़ दिए गए।

कैबिनेट मिशन-दूसरे विश्वयुद्ध के कारण इंग्लैण्ड की आर्थिक दशा काफी खराब हो गई। साथ ही इंग्लैण्ड की सत्ता ‘लेबर पार्टी’ के हाथ में आ गई। नये प्रधानमन्त्री एटली की भारत से काफी सहानुभूति थी। उसने सितम्बर, 1945 में एक ऐतिहासिक घोषणा की जिसमें भारत के स्वाधीनता के अधिकार को स्वीकार किया गया। भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए ब्रिटिश मन्त्रिमण्डल के तीन सदस्यों का एक दल भारत आया। इसे ‘कैबिनेट मिशन’ कहा जाता है। इसने भारत को स्वतन्त्रता के लिए योजना पेश की जिसमें यह कहा गया कि भारत एक संघ राज्य रहेगा और सारा देश एक केन्द्र के अधीन तीन खण्डों में बांटा जायेगा। केन्द्र में 14 मन्त्री होंगे जिसमें 6 कांग्रेसी, 5 मुस्लिम लीग के और 3 अन्य होंगे। सभी दलों ने इसे मान लिया। इसी योजना के अनुसार देश भर में संविधान सभा के चुनाव हुए जिसमें 296 सीटों में से मुस्लिम लीग को केवल 73 स्थान प्राप्त हुए। इस चुनाव को देख कर मि० जिन्नाह ने कैबिनेट मिशन योजना अस्वीकार कर दी।

मुस्लिम लीग की सीधी कार्यवाही तथा भारत की स्वतन्त्रता-मुस्लिम लीग ने अपनी पाकिस्तान की मांग दोहराई और सीधी कार्यवाही करने की धमकी दी। 16 अगस्त, 1946 को देश भर में सीधी कार्यवाही दिवस मनाया गया। स्थान-स्थान पर जलूस निकाले गए जिन में यह नारा लगाया गया-मारेंगे, मर जाएंगे पाकिस्तान बनाएंगे। कलकत्ता (कोलकाता) में हज़ारों हिन्दू कत्ल कर दिए गए। हिन्दुओं ने बिहार में मुसलमानों की हत्याएं कीं। यह देश का दुर्भाग्य था कि हिन्दू-मुसलमान इकट्ठे मिलकर न रह सके और सारे देश में साम्प्रदायिक दंगे फैल गए। इन परिस्थितियों में देश के विभाजन का वातावरण तैयार हो गया। ब्रिटिश सरकार ने यह समझ लिया कि कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग में समझौता नहीं हो सकता।

नये वायसराय लॉर्ड माऊंटबेटन ने गांधी जी, नेहरू,पटेल और मौलाना आज़ाद से बातचीत की और उन्हें यह समझाया कि साम्प्रदायिक झगड़ों को रोकने के लिए भारत का विभाजन आवश्यक है। नेताओं ने भी देश के वातावरण को देख कर भारत का बंटवारा मान लिया। आखिर 3 जून, 1947 को लॉर्ड माऊंटबेटन ने पाकिस्तान बनाये जाने की घोषणा कर दी। जुलाई, 1947 को ब्रिटिश संसद् ने भारत स्वतन्त्रता कानून पास कर दिया। इसके अनुसार 14 अगस्त को पाकिस्तान बन गया और 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

नोट : ये प्रश्न अध्याय 21 में ही दे दिए गए हैं।

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1921 में पंजाब में कौन-से राजनीतिक दल ने चनाव जीता तथा इसके दो नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
1921 में पंजाब में सर फज़ल-ए-हुसैन तथा सर छोटू राम के नेतृत्व में यूनियनिस्ट पार्टी ने चुनाव जीता।

प्रश्न 2.
स्वराज्य पार्टी का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
स्वराज्य पार्टी का मुख्य उद्देश्य था-चुनाव में भाग लेना तथा कौंसिलों में रहकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना।

प्रश्न 3.
स्वराज्य पार्टी के दो नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
पण्डित मोती लाल नेहरू और देशबन्धु चितरंजन दास स्वराज्य पार्टी के नेता थे।

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प्रश्न 4.
स्वराज्य पार्टी के प्रभाव अधीन कौन-से दो एक्ट स्थगित हो गए ?
उत्तर-
स्वराज्य पार्टी के प्रभाव अधीन रौलेट एक्ट और प्रेस एक्ट स्थगित हो गए।

प्रश्न 5.
1920 में गुरुद्वारा सुधार के लिए कौन-से दो संगठन अस्तित्व में आए ?
उत्तर-
1920 में गुरुद्वारा सुधार के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी और शिरोमणि अकाली दल अस्तित्व में आए।

प्रश्न 6.
गुरुद्वारा सुधार के लिए दो महत्त्वपूर्ण मोर्चों के नाम तथा वर्ष बताइए।
उत्तर-
इनमें गुरु का बाग (1921) तथा जैतो (1923) के मोर्चे प्रसिद्ध हैं।

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प्रश्न 7.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन में लगभग कितने लोग मारे गए तथा कितने घायल हुए ?
उत्तर-
इस दौरान लगभग 400 लोग मारे गए तथा 2,000 लोग घायल हुए।

प्रश्न 8.
‘गुरुद्वारा एक्ट’ कब पास हुआ तथा इसके द्वारा गुरुद्वारे कौन-सी संस्था के नियन्त्रण में आ गए थे ?
उत्तर-
गुरुद्वारा एक्ट 1925 में पास हुआ तथा इसके द्वारा सब गुरुद्वारे शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी के नियन्त्रण में आ गए।

प्रश्न 9.
1922 में चल रहे कौन-से दो आन्दोलन अहिंसा पर आधारित थे ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन और खिलाफत आन्दोलन अहिंसा पर आधारित थे।

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प्रश्न 10.
‘बब्बर अकाली’ किस प्रकार के संघर्ष में विश्वास रखते थे तथा इनका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
बब्बर अकाली हिंसात्मक संघर्ष में विश्वास रखते थे तथा इनका उद्देश्य स्वराज्य प्राप्त करना था।।

प्रश्न 11.
किन वर्षों में तथा कौन-सा इलाका बब्बर अकालियों की सरगर्मियों का गढ़ रहा ?
उत्तर-
1922 से 1924 तक जालन्धर दोआब इनका गढ़ रहा।

प्रश्न 12.
‘नौजवान भारत सभा’ की नींव कब और कौन-से प्रान्त में रखी गई ?
उत्तर-
नौजवान भारत सभा की नींव 1926 में लाहौर प्रान्त में रखी गई।

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प्रश्न 13.
जिन दो क्रान्तिकारी संगठनों की स्थापना में भगत सिंह ने योगदान दिया था, उनके नाम बताएं।
उत्तर-
हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में भगत सिंह ने योगदान दिया था।

प्रश्न 14.
‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के साथ सम्बन्धित दो क्रान्तिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथ सम्बन्धित थे।

प्रश्न 15.
1929 में केन्द्रीय असैम्बली में बम फेंकने वाले दो क्रान्तिकारी कौन थे तथा इनका क्या मन्तव्य था ?
उत्तर-
1929 में केन्द्रीय असैम्बली में बम फेंकने वाले भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त थे तथा उनका मन्तव्य किसी को मारना नहीं बल्कि अंग्रेज़ सरकार के प्रति भारतीयों का रोष प्रकट करना था।

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प्रश्न 16.
भगत सिंह को किस पुलिस अफसर को मारने के अपराध में तथा कब फांसी दी गई ?
उत्तर-
भगत सिंह को सान्डर्स को मारने के अपराध में 23 मार्च, 1931 को फांसी दी गई।

प्रश्न 17.
भगत सिंह के साथ किन दो अन्य क्रान्तिकारियों को फांसी हुई ?
उत्तर-
सुखदेव और राजगुरु को भगत सिंह के साथ फांसी हुई।

प्रश्न 18.
चन्द्रशेखर आजाद ने कौन-से क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना करने में योगदान दिया तथा वह कब मारा गया ?
उत्तर-
चन्द्रशेखर आजाद ने हिन्दुस्तान सोशलिस्ट-रिपब्लिकन एसोसिएशन के संगठन की स्थापना करने में योगदान दिया और वे 1931 में मारे गए।

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प्रश्न 19.
ऊधम सिंह ने कब, कहां और किस अंग्रेज़ को गोली मारी थी ?
उत्तर-
ऊधम सिंह ने 1940 में लन्दन में माइकल ओडवायर को गोली मारी थी।

प्रश्न 20.
साइमन कमीशन कब तथा किस उद्देश्य से नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
1927 में साइमन कमीशन नियुक्त किया गया था जिस का उद्देश्य था कि यह मांटेग्यू चैम्सफोर्ड विधान की कारवाई की रिपोर्ट दे और भविष्य में किए जाने वाले परिवर्तनों के बारे में सुझाव दे।

प्रश्न 21.
भारतीयों ने ‘साइमन कमीशन’ का विरोध क्यों किया तथा पंजाब के कौन-से नेता इस विरोध में घायल हुए तथा उनका देहान्त कब हुआ ?
उत्तर-
भारतीयों ने साइमन कमीशन का विरोध इसलिए किया क्योंकि कोई भी भारतीय इस कमीशन का सदस्य नहीं था। लाला लाजपतराय इस विरोध में घायल हुए और 1928 में उनकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 22.
1929 में कांग्रेस का अधिवेशन कहां हुआ ? इसका सबसे महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव क्या था तथा इसको किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर-
1929 में कांग्रेस का अधिवेशन लाहौर में हुआ। इसका महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पूर्ण स्वतन्त्रता का प्रस्ताव था जिसे जवाहर लाल ने पेश किया था।

प्रश्न 23.
1929 के कांग्रेस के अधिवेशन में कौन-सा झण्डा लहराया गया तथा कौन-सा दिन स्वतन्त्रता दिवस निश्चित हुआ ?
उत्तर-
1929 के कांग्रेस के अधिवेशन में तिरंगा झण्डा लहराया गया तथा 26 जनवरी, 1930 को स्वतन्त्रता दिवस निश्चित हुआ।

प्रश्न 24.
महात्मा गान्धी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ किस स्थान से, कब तथा किस तरह किया ?
उत्तर-
महात्मा गान्धी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ 6 अप्रैल, 1930 ई० को समुद्र तट पर नमक बना कर किया।

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प्रश्न 25.
खान अब्दुल गफ्फार खां किस नाम से प्रसिद्ध हुए तथा उन्होंने कौन-सी संस्था का संगठन किया ?
उत्तर-
खान अब्दुल गफ्फार खाँ सीमान्त गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्होंने खुदाई खिदमतगारों की संस्था का संगठन किया।

प्रश्न 26.
पहली गोलमेज़ कांफ्रैंस कब, कहां तथा किस लिए बुलाई गई ?
उत्तर-
पहली गोलमेज़ कांफ्रैंस 1930 ई० में लन्दन में बुलाई गई। यह कांफ्रैंस साइमन कमीशन की रिपोर्ट पर विचार करने के लिए बुलाई गई।

प्रश्न 27.
महात्मा गान्धी ने कब और कौन-सी गोलमेज़ कांफ्रेंस में हिस्सा लिया ?
उत्तर-
महात्मा गान्धी ने 1931 में दूसरी गोलमेज़ कांफ्रेंस में हिस्सा लिया।

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प्रश्न 28.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन कब आरम्भ हुआ तथा इसमें कितने सत्याग्रही गिरफ्तार हुए ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में आरम्भ हुआ। इसमें महात्मा गान्धी सहित 90 हज़ार सत्याग्रही गिरफ्तार हुए।

प्रश्न 29.
पंजाब के चार नगरों के नाम बताएं जिनमें सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान नमक का कानून तोड़ा गया ?
उत्तर-
पंजाब में लाहौर, अमृतसर, लायलपुर तथा लुधियाना में सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान नमक कानून तोड़ा गया।

प्रश्न 30.
तीसरी गोलमेज़ कांफ्रैंस कब बुलाई गई तथा इसमें किस अधिनियम का ढांचा तैयार किया गया ?
उत्तर-
नवम्बर, 1932 में तीसरी गोलमेज़ कांफ्रैंस बुलाई गई तथा इसमें 1935 के अधिनियम का ढांचा तैयार किया गया।

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प्रश्न 31.
1935 के एक्ट में केन्द्र में कौन-सी चार संस्थाएं स्थापित करने का फैसला किया गया ?
उत्तर-
1935 के एक्ट में केन्द्र में विधानसभा और परिषद् के अतिरिक्त एक संघीय अथवा फैडरल तथा फैडरल पब्लिक सर्विस कमीशन कोर्ट स्थापित करने का फैसला किया गया।

प्रश्न 32.
1935 के एक्ट के अधीन प्रान्तों में चुनाव कब हुए तथा कितने प्रान्तों में कांग्रेस के मन्त्रिमण्डल बने ?
उत्तर-
1935 के एक्ट के अधीन प्रान्तों के चुनाव 1937 में हुए और सात प्रान्तों में कांग्रेस के मन्त्रिमण्डल बने।

प्रश्न 33.
1937 में किन दो प्रान्तों में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी ?
उत्तर-
सिंध एवं पंजाब में कांग्रेस की सरकार नहीं बनी थी।

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प्रश्न 34.
स्वतन्त्रता से पूर्व भारत की दो साम्प्रदायिक राजनीतिक पार्टियों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत की दो साम्प्रदायिक राजनीतिक पार्टियों के नाम थे : मुस्लिम लीग तथा हिन्दू महासभा।

प्रश्न 35.
पाकिस्तान की मांग कब की गई तथा यह किस सिद्धान्त पर आधारित थी ?
उत्तर-
पाकिस्तान की मांग 1940 में की गई। यह मांग ‘दो राष्ट्रों के सिद्धान्त’ पर आधारित थी।

प्रश्न 36.
‘आल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्स कांफ्रैंस’ की स्थापना कब हुई तथा जवाहर लाल नेहरू इसके अध्यक्ष कब चुने गए ?
उत्तर-
आल इण्डिया स्टेज़ पीपुल्स कांफ्रैंस की स्थापना 1927 में हुई। 1939 में जवाहर लाल नेहरू इसके अध्यक्ष चुने गए।

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प्रश्न 37.
दूसरा विश्व युद्ध कब हुआ और कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र कब दिए ?
उत्तर-
दूसरा विश्व युद्ध सितम्बर, 1939 में शुरू हुआ था। 1940 में कांग्रेस के सभी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए।

प्रश्न 38.
1942 में जापानियों की कौन-सी विजय के पश्चात् अंग्रेज़ सरकार ने किस मन्त्री को भारत भेजा ?
उत्तर-
1942 में जापानियों ने रंगून पर अधिकार कर लिया तो अंग्रेज़ सरकार ने सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा।

प्रश्न 39.
भारत छोड़ो प्रस्ताव कब पास हुआ तथा इस आन्दोलन में कितने लोग मारे गए ? ।
उत्तर-
भारत छोड़ो प्रस्ताव 8 अगस्त, 1942 को बम्बई (मुम्बई) में पास हुआ तथा इस आंदोलन में 10,000 से अधिक लोग मारे गये।

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प्रश्न 40.
पंजाब में कौन-से चार नगरों में ‘भारत-छोड़ो’ आन्दोलन के समय लोगों ने विरोध प्रकट किया ?
उत्तर-
पंजाब में लाहौर, अमृतसर, लुधियाना तथा लायलपुर में लोगों ने विरोध प्रकट किया।

प्रश्न 41.
सुभाषचन्द्र बोस ने कौन-से दो संगठन बनाये थे ?
उत्तर-
सुभाषचन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फ़ौज और फारवर्ड ब्लाक नाम के दो संगठन बनाए थे।

प्रश्न 42.
दूसरे विश्व-युद्ध के समाप्त होने पर ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज’ के किन तीन अफसरों पर मुकदमा चलाया गया तथा इसकी पैरवी किसने की ? ।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने पर आज़ाद हिन्द फ़ौज के जनरल शाहनवाज, जनरल गुरदियाल सिंह ढिल्लों और जनरल प्रेम सहगल पर मुकद्दमा चलाया गया। उनके मुकद्दमे की पैरवी पंडित जवाहर लाल ने की।

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प्रश्न 43.
दूसरे विश्व-युद्ध के बाद कौन-सा राजनीतिक दल ब्रिटेन में सत्ता में आया तथा विश्व के कौन-से दो बड़े देश भारत की स्वतन्त्रता के समर्थक थे ?
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध के बाद लेबर पार्टी सत्ता में आ गई। अमेरिका और रूस भारत की स्वतन्त्रता के समर्थक थे।

प्रश्न 44.
1946 के चुनावों में कौन-से दो मुख्य राजनीतिक दलों ने हिस्सा लिया ?
उत्तर-
1946 के चुनावों में राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग ने हिस्सा लिया।

प्रश्न 45.
ब्रिटिश सरकार ने ‘कैबिनेट मिशन’ को कब भारत भेजा तथा उसको क्या आदेश था ?
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार ने ‘कैबिनेट मिशन’ को 1946 में भारत भेजा। इसको आदेश था कि एक ऐसा विधान तैयार किया जाए जिसमें भारत की एकता को बनाये रखते हुए स्थानीय स्वायत्तता को भी स्थान दिया जाए।

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प्रश्न 46.
‘इंटेरियम कैबिनेट’ कब बनाई गई तथा इसके प्रधानमन्त्री कौन थे ? ।
उत्तर-
इंटेरियम कैबिनेट सितम्बर, 1946 में बनाई गई तथा इसके प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे।।

प्रश्न 47.
1946-47 में भारत में कौन-से चार प्रान्तों में साम्प्रदायिक दंगे-फसाद हुए ?
उत्तर-
1946-47 में भारत में बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र तथा उत्तर प्रदेश (वर्तमान) में साम्प्रदायिक दंगे-फसाद हुए।

प्रश्न 48.
किस गवर्नर-जनरल ने तथा कब देश के विभाजन की रूपरेखा की घोषणा की ?
उत्तर-
3 जून, 1947 को गवर्नर-जनरल माऊंटबेटन ने देश के विभाजन की रूपरेखा की घोषणा की।

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प्रश्न 49.
विभाजन का प्रभाव भारत के किन चार प्रान्तों पर पड़ा ?
उत्तर-
विभाजन का प्रभाव भारत के बंगाल, पंजाब, सिंध तथा उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्तों पर पड़ा।

प्रश्न 50.
बांटे जाने वाले क्षेत्रों (भारत विभाजन सम्बन्धी) को निश्चित करने के लिए कौन-सा ‘कमीशन’ बनाया गया तथा पंजाब में इसकी अध्यक्षता किसने की ?
उत्तर-
बांटे जाने वाले क्षेत्रों को निश्चित करने के लिए सीमा कमीशन बनाया गया तथा इसकी अध्यक्षता रैडक्लिफ ने की।

प्रश्न 51.
कितनी देशी रियासतों ने तथा किसके प्रयत्नों से भारत में मिलने का निर्णय किया ?
उत्तर-
500 से अधिक रियासतों ने भारत में सम्मिलित होने का निर्णय किया। यह निर्णय सरदार वल्लभभाई पटेल के यत्नों से हुआ।

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प्रश्न 52.
भारत में शामिल होने वाली उत्तर तथा दक्षिण की दो प्रमुख देशी रियासतों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत में शामिल होने वाली उत्तर की प्रमुख देशी रियासत जम्मू-कश्मीर तथा दक्षिण की प्रमुख रियासत हैदराबाद थीं।

प्रश्न 53.
स्वतन्त्र भारत तथा पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरलों के नाम बताएं।
उत्तर-
स्वतन्त्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल लॉर्ड माऊंटबेटन थे। पाकिस्तान के पहले गवर्नर-जनरल का नाम मुहम्मद अली जिन्नाह था।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान की क्या कार्यवाही थी? महात्मा गांधी ने इसका बहिष्कार क्यों किया ?
उत्तर-
माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान अशुभ परिस्थितियों में लागू हुआ। इस विधान के अन्तर्गत हुए चुनावों का कांग्रेस ने बहिष्कार किया। परन्तु कुछ भारतीय नेताओं ने स्वराज्य पार्टी की स्थापना की और चुनावों में भाग लिया। उनका विश्वास था कि वे कौंसिलों में रहकर भारतीय हितों की अच्छी प्रकार रक्षा कर सकते हैं। वे अपने उद्देश्य में काफी सीमा तक सफल रहे। उनके प्रयत्नों से 1910 ई का प्रेस एक्ट और 1919 ई० का रौलेट एक्ट रद्द कर दिए गए। सेना में अधिक संख्या में भारतीय अधिकारियों को लेने का निश्चय किया गया। यह भी निर्णय हुआ कि सिविल सर्विस के उच्च पदों पर कम-से-कम आधे अधिकारी भारतीय होने चाहिएं। शिक्षा के क्षेत्र में भी कुछ महत्त्वपूर्ण सुधार हुए।

महात्मा गांधी ने माण्टेग्यू चैम्सफोर्ड विधान का विरोध इसलिए किया क्योंकि इसकी चुनाव व्यवस्था साम्प्रदायिकता पर आधारित थी। दूसरे, भारतीय नेता ‘स्वराज्य’ चाहते थे। परन्तु यह विधान उससे कोसों दूर था।

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प्रश्न 2.
भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों की भूमिका का विवेचन करो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इनका उदय 20वीं शताब्दी के पहले दशक में हुआ था। इनके मुख्य कार्य-क्षेत्र बंगाल, महाराष्ट्र और पंजाब थे। उन्होंने गुप्त रूप से अपना आपसी सम्पर्क स्थापित किया हुआ था। जब ब्रिटिश सरकार ने अनेक राष्ट्रीय नेताओं को कारावास में डाल दिया तो इन क्रान्तिकारियों ने अपनी गतिविधियों को तेज़ कर दिया । क्रान्तिकारियों ने बदनाम पुलिस अधिकारियों, मैजिस्ट्रेटों तथा सरकारी गवाहों की हत्या की। धन और शस्त्र एकत्र करने के लिए उन्होंने विभिन्न स्थानों पर डाके डाले। इसके अतिरिक्त उन्होंने दो वायसरायों मिन्टो और हार्डिंग की हत्या करने का भी प्रयत्न किया। यद्यपि क्रान्तिकारी भारत से ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने में सफल न हुए, तो भी उनकी वीरता और आत्म-बलिदान से अनेक भारतीयों को प्रेरणा मिली। केवल इतना ही नहीं, क्रान्तिकारियों के कारण जनसाधारण में राष्ट्रीय भावना का विकास हुआ। देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में क्रान्तिकारियों ने जो भूमिका निभाई, उसे कभी भी नहीं भुलाया जा सकता।

प्रश्न 3.
साइमन कमीशन की नियुक्ति किस उद्देश्य से की गई थी ? इसके प्रति महात्मा गांधी का क्या दृष्टिकोण था और इसका क्या परिणाम निकला ?
अथवा
साइमन कमीशन के बारे में विस्तार से लिखो।
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार ने 1927 ई० में भारत में साइमन कमीशन भेजने का निश्चय किया। साइमन कमीश्न इस उद्देश्य से नियुक्त किया था कि यह माण्टेग्यू-चैम्सफोर्ड विधान की कारवाई की जांच-पड़ताल के आधार पर रिपोर्ट दे। साथ में भविष्य के लिये किये जाने वाले परिवर्तनों के बारे में भी सुझाव दे। इस कमीशन का कोई भारतीय सदस्य नहीं बनाया गया था। इसलिये भारतीय नेताओं ने इस कमीशन का विरोध किया। देश भर में जुलूस निकाले गये और हड़तालें हुईं। कमीशन को काली झंडियां दिखाई गईं। प्रत्येक स्थान पर ‘साइमन गो बैक’ के नारे लगाये गये। सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर सख्ती की। लाहौर में ऐसे ही प्रदर्शन में लाला लाजपतराय भी पुलिस की लाठियों से घायल हुए और उनका देहान्त हो गया। ऐसे विरोध के बावजूद भी कमीशन ने भारत का भ्रमण किया और इंग्लैण्ड की सरकार को अपनी रिपोर्ट पेश कर दी।

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प्रश्न 4.
पूर्ण स्वराज्य की मांग किन परिस्थितियों में की गई और इसके लिए संघर्ष के ढंग में क्या परिवर्तन आया ?
उत्तर-
1928 ई० में साइमन कमीशन भारत आया था । इस कमीशन में कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था, इसलिए भारत में प्रत्येक स्थान पर इसका भारी विरोध किया गया। परन्तु कमीशन की रिपोर्ट को भारत के किसी भी राजनीतिक दल ने स्वीकार नहीं किया था। अत: अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीयों को सर्वसम्मति से अपना संविधान तैयार करने की चुनौती दी। इस विषय में भारतीयों ने अगस्त, 1928 ई० में नेहरू रिपोर्ट प्रस्तुत की, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया। परिणाम यह हुआ कि भारतीयों की निराशा और अधिक बढ़ गई।

1929 ई० में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन लाहौर में हुआ। यह अधिवेशन भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में विशेष महत्त्व रखता है। पण्डित जवाहर लाल नेहरू इस अधिवेशन के अध्यक्ष चुने गये। गान्धी जी ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पेश किया जो पास कर दिया गया। 31 दिसम्बर की आधी रात को नेहरू जी ने रावी नदी के किनारे स्वतन्त्रता का तिरंगा झण्डा फहराया। यह भी निश्चित हुआ कि हर वर्ष 26 जनवरी को स्वतन्त्रता दिवस मनाया जाये। 26 जनवरी, 1930 ई० को यह दिन सारे भारत में बड़े जोश के साथ मनाया गया और लोगों ने स्वतन्त्रता प्राप्त करने की प्रतिज्ञा की। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने सरकारी कानूनों तथा संस्थाओं का बहिष्कार करने की नीति अपनाई।

प्रश्न 5.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का वर्णन कीजिए। इसका हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन 1930 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का उद्देश्य सरकारी कानूनों को भंग करके सरकार के विरुद्ध रोष प्रकट करना था। आन्दोलन का आरम्भ गान्धी जी ने अपनी डांडी यात्रा से किया। 12 मार्च,1930 ई० को उन्होंने साबरमती आश्रम से अपनी यात्रा आरम्भ की। मार्ग में अनेक लोग उनके साथ मिल गये। 24 दिन की कठिन यात्रा के बाद वे समुद्र तट पर पहुंचे और उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। इसके बाद देश में लोगों ने सरकारी कानून को भंग करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन को दबाने के लिए सरकार ने बड़ी कठोरता से काम लिया। हज़ारों देशभक्तों को जेल में डाल दिया गया। गान्धी जी को भी बन्दी बना लिया गया। यह आन्दोलन फिर भी काफी समय तक चलता रहा। इस प्रकार इस आन्दोलन का हमारे स्वतन्त्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा। अब देश की जनता इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लेने लगी।

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प्रश्न 6.
दूसरे विश्व-युद्ध का भारतीय आन्दोलन पर प्रभाव लिखो।
उत्तर-
दूसरे विश्व युद्ध से पूर्व ‘1935 के एक्ट’ के अनुसार देश में चुनाव हुए थे। कांग्रेस 11 प्रान्तों में से 8 प्रान्तों में अपनी सरकार बनाने मे सफल हुई थी। 1939 में दूसरा महायुद्ध आरम्भ हो गया। अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीय नेताओं से पूछे बिना ही जर्मनी के विरुद्ध भारत के युद्ध में शामिल होने की घोषणा कर दी। इसके विरोध में सभी कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिए और गान्धी जी ने ‘सत्याग्रह’ आरम्भ कर दिया। उन्होंने जनता से कहा कि युद्ध के लिए सरकार को सहयोग न दिया जाये। उन्होंने यह नारा लगाया ‘न दो भाई, न दो पाई’। इस सत्याग्रह में लगभग 25 हज़ार लोग जेलों में गए। इतिहास में इसे ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ कहा जाता है। कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों के त्याग-पत्र देने से मुस्लिम लीग के नेता मिस्टर जिन्नाह बहुत प्रसन्न हुए, क्योंकि उनका विचार था कि कांग्रेसी राज्य में मुसलमानों के साथ न्याय नहीं हुआ है। उन्होंने 22 दिसम्बर,1939 का दिन ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाया। मि० जिन्नाह के इस कार्य से कांग्रेस और मुस्लिम लीग में कटुता आ गई। 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की मांग की। इस प्रकार देश के बंटवारे की स्थिति उत्पन्न हो गई।

प्रश्न 7.
क्रिप्स मिशन भारत क्यों आया ? इसका क्या परिणाम हुआ ?
उत्तर-
दूसरे महायुद्ध में इंग्लैण्ड की स्थिति बड़ी खराब हो गई थी । इसलिए उसे भारतीयों के सहयोग की आवश्यकता थी। परन्तु अंग्रेजों की ग़लत नीतियों के कारण भारतीय उनसे नाराज़ थे और उन्हें किसी प्रकार का कोई सहयोग देने को तैयार नहीं थे। इस समस्या को सुलझाने के लिए ही ब्रिटिश सरकार ने सर स्टेफोर्ड क्रिप्स को 1942 ई० में भारत भेजा। उसने भारतीय नेताओं के सामने अपनी योजना रखी। इसमें कहा गया था कि भारतीय दूसरे महायुद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दें तो उन्हें युद्ध के बाद ‘अधिराज्य’ दिया जायेगा। गान्धी जी ने इस योजना की तुलना एक ऐसे चैक से की जिस पर बाद की तिथि पड़ी हुई हो और जो ऐसे बैंक के नाम हो जो फेल होने वाला हो। इस प्रकार सभी भारतीय नेताओं ने क्रिप्स की योजना को स्वीकार न किया । क्रिप्स महोदय को निराश होकर वापस लौटना पड़ा।

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प्रश्न 8.
भारत छोड़ो आन्दोलन का वर्णन करो।
उत्तर-
भारत छोड़ो आन्दोलन 1942 ई० में चलाया गया। इस आन्दोलन का नेतृत्व गान्धी जी ने किया। कांग्रेस ने 9 अगस्त, 1942 ई० को आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव पास किया और अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए ललकारा। सारा देश ‘भारत छोड़ो’ के नारों से गूंज उठा। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया । प्रस्ताव पास होने के दूसरे ही दिन सारे नेता बन्दी बना लिए गए। परिणामस्वरूप जनता भड़क उठी। लोगों ने सरकारी दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों तथा डाकघरों को लूटना और जलाना आरम्भ कर दिया। सरकार ने अपनी नीति को और भी कठोर कर दिया और असंख्य लोगों को जेलों में डाल दिया गया। सारा देश एक जेलखाने के समान दिखाई देने लगा। इतने बड़े आन्दोलन के कारण ब्रिटिश सरकार की नींव हिल गई।

प्रश्न 9.
आज़ाद हिन्द फ़ौज (सेना) की स्थापना तथा कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना श्री सुभाषचन्द्र ने की थी। उन्होंने इस फ़ौज की स्थापना जापान और जर्मनी की सहायता से की थी। इस फ़ौज का उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। सुभाष चन्द्र बोस ने अपने सैनिकों में राष्ट्रीयता की भावनाएं कूट-कूट कर भर दीं। फलस्वरूप इस सेना ने कई स्थानों पर विजय भी प्राप्त की। जर्मनी और जापान की दूसरे महायुद्ध में पराजय होने के कारण यह सेना बिखर गई। अंग्रेजों ने इस सेना के कुछ बड़े-बड़े अफसरों को पकड़ लिया और उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया। परन्तु बाद में जनता के दबाव के कारण अंग्रेज़ी सरकार ने इन अफसरों को छोड़ दिया।

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प्रश्न 10.
देशी रियासतों में राजनीतक जागृति लाने के बारे में क्या प्रयास किये गये ?
उत्तर-
1935 के अधिनियम में एक व्यवस्था यह भी थी कि भारतीय संघ में देशी रियासतें शामिल की जायें । इसलिए भारतीय रियासतों में भी राजनीतिक जागृति लाने का प्रयास आवश्यक हो गया । इस सम्बन्ध में कांग्रेस नेता विशेष रूप से जवाहर लाल नेहरू ने, काफी प्रयत्न किये। दूसरे असहयोग आन्दोलन और सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रभाव भी देशी रियासतों की जनता पर पड़ा। उनको तो साम्राज्य के सीधे प्रशासित क्षेत्रों में मिलने वाली सुविधायें एवं अधिकार भी प्राप्त नहीं हुए थे। तीसरे 1927 में ‘ऑल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्ज़ कान्स’ की स्थापना हो चुकी थी। चौथे कांग्रेस के 1938 के अधिवेशन में की जाने वाली पूर्ण स्वतन्त्रता की व्याख्या में देशी रियासतों को भी शामिल कर लिया था। 1939 में जवाहर लाल नेहरू ‘ऑल इण्डिया स्टेट्ज़ पीपुल्ज़ कान्फ्रेंस’ के अध्यक्ष चुने गए। यद्यपि 1935 का नियम रियासतों पर लागू नहीं हुआ था, तो भी वहां की जनता जागरूक हुई और उन्होंने स्वतन्त्रता के लिए प्रयास तीव्र कर दिए।

प्रश्न 11.
कामागाटामारू की घटना का वर्णन करें।
उत्तर-
कामागाटामारू एक जहाज़ का नाम था। इस जहाज़ को एक पंजाबी वीर नायक बाबा गुरदित्त सिंह ने किराये पर ले लिया। बाबा गुरदित्त सिंह के साथ कुछ और भारतीय भी इस जहाज़ में बैठकर कनाडा पहुंचे। परन्तु उन्हें न तो वहां उतरने दिया गया और न ही वापसी पर किसी नगर हांगकांग, शंघाई, सिंगापुर आदि में उतरने दिया। कलकत्ता(कोलकाता) पहुंचने पर यात्रियों ने जुलूस निकाला। जुलूस के लोगों पर पुलिस ने गोली चला दी जिससे 18 व्यक्ति शहीद हो गए और 25 घायल हो गए। इस घटना से विद्रोहियों को विश्वास हो गया कि राजनीतिक क्रान्ति ला कर ही देश का उद्धार हो सकता है। इसीलिए उन्होंने गदर नाम की पार्टी बनाई और क्रान्तिकारी आन्दोलन आरम्भ किया।

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प्रश्न 12.
गुरुद्वारों से सम्बन्धित सिक्खों तथा अंग्रेजों में बढ़ते रोष पर नोट लिखो।
उत्तर-
अंग्रेज़ गुरुद्वारों के महन्तों को प्रोत्साहन देते थे। यह बात सिक्खों को प्रिय नहीं थी। महंत सेवादार के रूप में गुरुद्वारों में प्रविष्ट हुए थे। परन्तु अंग्रेजी राज्य में वे यहां के स्थायी अधिकारी बन गए। वे गुरुद्वारों की आय को व्यक्तिगत सम्पत्ति समझने लगे। महन्तों को अंग्रेजों का आशीर्वाद प्राप्त था। इसलिए उन्हें विश्वास था कि उनकी गद्दी सुरक्षित है। अतः वे ऐश्वर्यपूर्ण जीवन व्यतीत करने लगे थे। सिक्ख इस बात को सहन नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 13.
गुरु के बाग के मोर्चे की घटना का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महन्त सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० में दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख भड़क उठे। सिक्खों ने कई और जत्थे भेजे जिन के साथ अंग्रेजों ने बहुत बुरा व्यवहार किया। सारे देश के राजनीतिक दलों ने सरकार की इस कार्यवाही की कड़ी निन्दा की।

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प्रश्न 14.
‘जैतों के मोर्चे की घटना पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-
जुलाई, 1923 में अंग्रेजों ने नाभा के महाराजा रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के इस कार्य की निन्दा की और 21 फरवरी, 1924 को पांच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उनका सामना अंग्रेज़ी सेना से हुआ। इस संघर्ष में अनेक सिक्ख मारे गए तथा घायल हुए। अन्त में सिक्खों ने सरकार को अपनी मांग स्वीकार करने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 15.
स्वराज्य पार्टी के उद्देश्य तथा योगदान के बारे में बताएं ।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के समाप्त होने के पश्चात् पंडित मोती लाल नेहरू और देश-बन्धु चितरंजन दास ने स्वराज्य पार्टी नामक एक नई राजनीतिक पार्टी स्थापित की। इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य था-चुनाव में भाग लेना तथा कौंसिलों में रहकर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करना। इस पार्टी को 1924 के चुनावों में भारी सफलता मिली। इसका इतना प्रभाव हुआ कि केन्द्रीय विधान सभा तथा प्रान्तीय परिषदों के सदस्य कोई ऐसा काम नहीं होने देते थे जो देश के हितों के विपरीत हो। परिणामस्वरूप कई अच्छे काम भी हुए जैसे रौलेट एक्ट और 1910 के प्रेस एक्ट का स्थगित होना। सेना में भी अधिक भारतीय अफसरों को लेने का निर्णय किया गया। सरकार द्वारा नियुक्त ‘ली कमीश्न’ ने सिफारिश की कि सिविल सर्विस के उच्च पदों के लिए कम-से-कम आधे भारतीय अफसरों को नियुक्त किया जाये। कुछ ऐसे कानून भी बनाये गये जिनसे खानों और कारखानों में काम करने वाले मजदूरों को भी काफी लाभ हुआ।

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प्रश्न 16.
गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरुद्वारा सुधार लहर 20वीं शताब्दी में अकालियों ने चलाई। इस समय तक गुरुद्वारों का वातावरण बड़ा दूषित हो चुका था। इनमें रहने वाले महन्त बड़े ठाठ-बाठ से रहते थे। उन्होंने गुरुद्वारों को भोग-विलास, शराब तथा जुएबाजी का अड्डा बना रखा था। अंग्रेज़ इन महंतों को संरक्षण देते थे क्योंकि वे सिक्खों और महन्तों में लड़ाई करवा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे। सिक्खों के विरोध करने पर भी महंतों के चरित्र में कोई सुधार न आया। वे अपनी इच्छा से अपने ही किसी सम्बन्धी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर देते थे। सिक्ख इस बात को सहन न कर सके और उन्होंने गुरुद्वारों का प्रबन्ध अपने हाथों में लेने का निश्चय कर लिया। अन्त में उनके बलिदान रंग लाये और गुरुद्वारों का प्रबन्ध उनके अपने हाथ में आ गया।

प्रश्न 17.
भगत सिंह आदि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां बंगाल तथा महाराष्ट्र के आतंकवादियों से किस प्रकार भिन्न थीं ?
उत्तर-
भगत सिंह आदि क्रान्तिकारियों की गतिविधियां बंगाल तथा महाराष्ट्र के आतंकवादियों से काफी भिन्न थीं। भगत सिंह आदि क्रान्तिकारी धर्म के नाम का अथवा धार्मिक प्रतीकों का प्रयोग नहीं करते थे। वे अंग्रेज़ अफसरों की हत्या करने में भी अधिक विश्वास नहीं रखते थे। भगत सिंह और उसके साथी भारत के लोगों में जागृति उत्पन्न करना अति आवश्यक समझते थे। भविष्य के विषय में इनकी विचारधारा तथा रूपरेखा बिल्कुल स्पष्ट थी। वे ब्रिटिश सरकार को स्पष्ट रूप से बता देना चाहते थे कि भारत के नौजवान किसी प्रकार भी विदेशी साम्राज्य को सहन नहीं करेंगे।

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प्रश्न 18.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम क्या था ?
उत्तर-
लाहौर के अधिवेशन में निर्णय किया गया कि सरकार से अपनी मांगों को मनवाने के लिए सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाया जाए। इस कार्य का दायित्व महात्मा गान्धी को सौंपा गया। महात्मा गान्धी ने इस आन्दोलन को चलाने का एक अत्यन्त कारगर उपाय ढूंढा। उन्होंने निर्णय लिया कि वह अपने साबरमती आश्रम से पैदल चल कर समुद्र तट पर स्थित डांडी नामक गांव में जाएंगे और स्वयं नमक बनायेंगे। उस समय नमक तैयार करना सरकारी कानून के विरुद्ध था। गान्धी जी का अनुसरण करते हुए शीघ्र ही देश के प्रत्येक भाग में लोगों ने नमक तैयार करना आरम्भ कर दिया। इस आन्दोलन का प्रभाव देश के कोने-कोने में अर्थात् मालाबार के मोपनों तक, असम के नागाओं तक और सीमान्त सूबे के पठानों तक भी पहुंच गया। पठानों में खान अब्दुल गफ्फार खां ने ‘खुदाई खिदमतगारों’ का संगठन किया और वह सीमान्त गान्धी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

प्रश्न 19.
किन परिस्थितियों में ब्रिटेन की सरकार ने भारत को स्वतन्त्रता देने का फैसला कर लिया ?
उत्तर-
ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने भारत में संवैधानिक असैम्बली बनाने के लिए चुनाव करवाए और 1946 ई० में कैबिनेट मिशन को भारत भेजा। भारत में जवाहर लाल नेहरू की अध्यक्षता में इन्टेरिम कैबिनेट बनाई गई। मुस्लिम लीग ने इस कैबिनेट में शामिल होना तो स्वीकार कर लिया परन्तु संवैधानिक असैम्बली का बहिष्कार किया। मुस्लिम लीग ने डायरेक्ट एक्शन करने का निर्णय किया । इसके परिणामस्वरुप बंगाल तथा बिहार में दंगे हुए जिन में बहुत से हिन्दू तथा मुसलमान मारे गए। इन दंगों के कारण कांग्रेस के नेताओं ने दो राज्य स्थापित करने की बात मान ली। 3 जून, 1947 ई० को गवर्नर-जनरल माऊंटबेटन ने घोषणा की कि अगस्त में भारत और पाकिस्तान दो स्वतन्त्र देश बना दिए जाएंगे।

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प्रश्न 20.
देश का विभाजन किन परिस्थितियों में हुआ तथा इसका पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
मुस्लिम लीग मुसलमानों के लिए एक अलग राष्ट्र चाहती थी। अतः उस ने सीधी कार्यवाही अथवा ‘डायरेक्ट एक्शन’ करने का निर्णय किया। इस के कारण बंगाल तथा बिहार में दंगे फसाद हुए। इन दंगों में बहुत से हिन्दू तथा मुसलमान मारे गए। अब सभी यह चाहते थे कि देश में इस प्रकार के दंगे न हों। अतः कांग्रेस के नेताओं ने देश को दो भागों में बांटने की बात मान ली। अतः सरकार ने 3 जून,1947 ई० को यह घोषणा कर दी कि अगस्त में भारत तथा पाकिस्तान नामक स्वतन्त्र राज्य बना दिए जाएंगे। इस प्रकार देश का विभाजन कर दिया गया। इस विभाजन का सब से बुरा प्रभाव पंजाब पर पड़ा। पंजाब दो भागों में बंट गया। पंजाब का जो भाग पाकिस्तान में गया, वहां हिन्दुओं की हत्या की जाने लगी। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोग शरणार्थी के रूप में भारत आए। इन सभी लोगों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
1935 ई० के बाद साम्प्रदायिक गतिविधियों में वृद्धि कैसे हुई ?
उत्तर-
1935 ई० के अधिनियम में साम्प्रदायिक विचारधारा को मान्यता दी गई थी। इसके कारण साम्प्रदायिक राजनीति और भी बल पकड़ गई। चुनाव में असफलता से मुस्लिम लीग का आक्रोश बढ़ गया। मुहम्मद अली जिन्नाह के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने यह प्रचार करना आरम्भ कर दिया कि कांग्रेस एक हिन्दू समुदाय है। धीरे-धीरे यह भी कहा जाने लगा कि भारत में वास्तव में दो राष्ट्र हैं, एक हिन्दू और दूसरा मुसलमान और इन दोनों में कोई सांझ नहीं हो सकती। हिन्दुओं की बहुसंख्या होने के कारण साधारण मुसलमानों को भी इस विचार ने आकर्षित किया। इसका एक कारण यह भी था कि हिन्दू महासभा जैसी कुछ राजनीतिक पार्टियां भी स्थापित हो चुकी थीं जोकि भारतीय राष्ट्र के स्थान पर हिन्दू राष्ट्र का नारा लगाती थीं। परिणाम यह निकला कि 1940 ई० में मुस्लिम लीग ने यह प्रस्ताव पास कर दिया कि भारत में एक नहीं दो स्वतन्त्र राज्य स्थापित होन चाहिएं। इस प्रकार मुसलमानों के राज्य के तौर पर पाकिस्तान की मांग अस्तित्व में आई।

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प्रश्न 2.
पंजाब में गुरुद्वारा सुधार के लिए अकालियों द्वारा किए गए संघर्ष पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
अकाली आन्दोलन किन कारणों से आरम्भ हुआ ? इसके किन्हीं तीन बड़े-बड़े मोर्चों का संक्षेप में वर्णन करो।
अथवा
अकाली आन्दोलन से जुड़े किन्हीं पांच मोर्चों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गदर आन्दोलन के बाद पंजाब में अकाली आन्दोलन चला। यह 1921 ई० में आरम्भ हुआ और 1925 ई० तक चलता रहा। इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-

  • गुरुद्वारों का प्रबन्ध महन्तों के हाथ में था। वे गुरुद्वारों की आय को ऐश्वर्य में उड़ा रहे थे। इस कारण सिक्खों में रोष था।
  • महन्तों को अंग्रेज़ों का आश्रय प्राप्त था। इसके अतिरिक्त अंग्रेजों ने गदर सदस्यों पर बड़े अत्याचार ढाए थे। इनमें से 99% सिक्ख थे। इसलिए सिक्ख अंग्रेजी सरकार के भी विरुद्ध थे।
  • 1919 ई० के कानून से भी सिक्ख असन्तुष्ट थे। इसमें जो कुछ उन्हें दिया गया वह उनकी आशा से बहुत कम था।

प्रमुख घटनाएं अथवा मोर्चे

1. ननकाना साहिब की घटना-ननकाना साहिब का महंत नारायण दास बड़ा ही चरित्रहीन व्यक्ति था। उसे गुरुद्वारे से निकालने के लिए 20 फरवरी, 1921 ई० के दिन एक शान्तिमय जत्था ननकाना साहिब पहुंचा। महंत ने जत्थे के साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया। उसके पाले हुए गुण्डों ने जत्थे पर आक्रमण कर दिया। जत्थे के नेता भाई लक्ष्मणदास तथा उसके साथियों को जीवित जला दिया गया।

2. हरिमंदर साहिब के कोष की चाबियों की समस्या-हरिमंदर साहिब के कोष की चाबियां अंग्रेजों के पास थीं। शिरोमणि कमेटी ने उनसे गुरुद्वारे की चाबियां माँगी, परन्तु उन्होंने चाबियां देने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजों के इस कार्य के विरुद्ध सिक्खों ने बहुत-से प्रदर्शन किए। अंग्रेजों ने अनेक सिखों को बन्दी बना लिया। कांग्रेस तथा खिलाफत कमेटी ने भी सिक्खों का समर्थन किया। विवश होकर अंग्रेजों ने कोष की चाबियां शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी को सौंप दीं।

3. ‘गुरु का बाग’ का मोर्चा-गुरुद्वारा ‘गुरु का बाग’ अमृतसर से लगभग 13 मील दूर अजनाला तहसील में स्थित है। यह गुरुद्वारा महंत सुन्दरदास के पास था जो एक चरित्रहीन व्यक्ति था। शिरोमणि कमेटी ने इस गुरुद्वारे को अपने हाथों में लेने के लिए 23 अगस्त, 1921 ई० को दान सिंह के नेतृत्व में एक जत्था भेजा। अंग्रेजों ने इस जत्थे के सदस्यों को बन्दी बना लिया। इस घटना से सिक्ख और भी भड़क उठे। उन्होंने और अधिक संख्या में जत्थे भेजने आरम्भ कर दिए। इन जत्थों के साथ बुरा व्यवहार किया गया। अंत में सिक्खों ने यह मोर्चा शान्तिपूर्ण ढंग से जीत लिया।

4. पंजा साहिब की घटना-‘गुरु का बाग’ गुरुद्वारा आन्दोलन में भाग लेने वाले एक जत्थे को अंग्रेज़ों ने रेलगाड़ी द्वारा अटक जेल में भेजने का निर्णय किया। पंजा साहिब के सिक्खों ने सरकार से प्रार्थना की कि रेलगाड़ी को पंजा साहिब में रोका जाए ताकि वे जत्थे के सदस्यों को भोजन दे सकें। परन्तु सरकार ने जब सिक्खों की इस प्रार्थना को स्वीकार न किया तो भाई कर्म सिंह तथा भाई प्रताप सिंह नामक दो सिक्ख रेलगाड़ी के आगे लेट गए और शहीदी को प्राप्त हुए। यह घटना 30 अक्तूबर, 1922 ई० की है।

5. जैतों का मोर्चा-जुलाई 1923 ई० में अंग्रेजों ने नाभा के महाराज रिपुदमन सिंह को बिना किसी दोष के गद्दी से हटा दिया। शिरोमणि अकाली कमेटी तथा अन्य सभी देश-भक्त सिक्खों ने सरकार के विरुद्ध गुरुद्वारा गंगसर (जैतों) में बड़ा भारी जलसा करने का निर्णय किया। 21 फरवरी, 1924 ई० को पाँच सौ अकालियों का एक जत्था गुरुद्वारा गंगसर के लिए चल पड़ा। नाभा की रियासत में पहुंचने पर उसका सामना अंग्रेजी सेना से हुआ। सिक्ख निहत्थे थे। फलस्वरूप 100 से भी अधिक सिक्ख शहीदी को प्राप्त हुए और 200 के लगभग सिक्ख घायल हुए।

6. सिक्ख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 ई० में पंजाब सरकार ने सिक्ख गुरुद्वारा कानून पास कर दिया। इसके अनुसार गुरुद्वारों का प्रबन्ध और उनकी देखभाल सिक्खों के हाथ में आ गई। धीरे-धीरे बन्दी सिक्खों को मुक्त कर दिया गया।

इस प्रकार अकाली आन्दोलन के अन्तर्गत सिक्खों ने महान् बलिदान दिए। एक ओर तो उन्होंने गुरुद्वारे जैसे पवित्र स्थानों से अंग्रेजों के पिट्ठ महंतों को बाहर निकाला और दूसरी ओर सरकार के विरुद्ध एक ऐसी अग्नि भड़काई जो स्वतन्त्रता प्राप्ति तक जलती रही।

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प्रश्न 2.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है
कारण-

  • 1928 ई० में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असन्तोष फैल गया।
  • सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को स्वीकार न किया।
  • बारदौली के किसान आन्दोलन की सफलता ने गाँधी जी को सरकार के विरुद्ध आन्दोलन चलाने के लिए प्रेरित किया।
  • गाँधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्ते रखीं। परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इन परिस्थितियों में गाँधी जी ने सरकार के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया।

आन्दोलन की प्रगति (1930-1931 ई०)-सविनय अवज्ञा आन्दोलन गाँधी जी की डाँडी यात्रा से आरम्भ हुआ। उन्होंने साबरमती आश्रम से पैदल यात्रा आरम्भ की और वह डाँडी के निकट समुद्र के तट पर पहुँचे। 6 अप्रैल, 1930 को वहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और नमक कानून भंग किया। वहीं से यह आन्दोलन सारे देश में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगों ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए दमन-चक्र आरम्भ कर दिया। गांधी जी सहित अनेक आन्दोलनकारियों को जेलों में बन्द कर दिया गया। परन्तु आन्दोलन की गति में कोई अन्तर न आया। इसी बीच गांधी जी और तत्कालीन वायसराय में एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार गाँधी जी ने दूसरी गोलमेज़ परिषद् में भाग लेना तथा आन्दोलन बन्द करना स्वीकार कर लिया। इस तरह 1931 ई० में सविनय अवज्ञा आन्दोलन कुछ समय के लिए रुक गया।

आन्दोलन की प्रगति ( 1930-33) तथा अन्त-1931 ई० में लन्दन में दूसरी गोलमेज परिषद् बुलाई गई। इसमें कांग्रेस की ओर से गाँधी जी ने भाग लिया, परन्तु इस परिषद् में भी भारतीय प्रशासन के लिए कोई उचित हल न निकल सका। गाँधी जी निराश होकर लौट आये और उन्होंने अपना आन्दोलन फिर से आरम्भ कर दिया। सरकार ने आन्दोलन का दमन करने के लिए आन्दोलनकारियों पर फिर से अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। सरकार के इन अत्याचारों से आन्दोलन की गति कुछ धीमी पड़ गई। अन्त में कांग्रेस ने 1933 ई० में इस आन्दोलन को बन्द कर दिया।

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प्रश्न 3.
भारत छोड़ो आन्दोलन का विवरण दीजिए।
अथवा
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के आरम्भ होने के कारणों तथा महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
आन्दोलन प्रारम्भ होने का कारण-भारत छोड़ो आन्दोलन 9 अगस्त, 1942 ई० को आरम्भ हुआ। इसके आरम्भ होने का कारण यह था कि दूसरे महायुद्ध में जापान ने बर्मा पर अधिकार कर लिया था। इससे यह भय उत्पन्न होने लगा कि जापान अंग्रेजों को हानि पहुँचाने के लिये भारत पर भी आक्रमण करेगा। इस समय कांग्रेस ने गाँधी जी के नेतृत्व में भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पास किया। यह प्रस्ताव इसलिए पास किया गया क्योंकि महात्मा गाँधी तथा अन्य नेताओं का यह विचार था कि यदि अंग्रेज़ भारत छोड़ जायें तो जापान भारत पर आक्रमण नहीं करेगा। प्रस्ताव पास करने के अतिरिक्त कांग्रेस की बैठक में यह निश्चय किया गया कि भारतीय पूर्ण स्वतन्त्रता से कम कोई चीज़ स्वीकार नहीं करेंगे।

आन्दोलन का आरम्भ तथा प्रगति-9 अगस्त, 1942 ई० को यह आन्दोलन आरम्भ हो गया जिसका नेतृत्व गाँधी जी ने किया। उन्होंने अंग्रेजों को भारत छोड़ देने के लिए ललकारा। सारा देश भारत छोड़ो’ के नारों से गूंज उठा। अंग्रेजों ने इस आन्दोलन को दबाने के लिए बड़ी कठोरता से काम लिया। प्रस्ताव पास होने के दूसरे ही दिन सारे नेता बन्दी बना लिये गये। परिणामस्वरूप जनता भी भड़क उठी। लोगों ने सरकारी दफ्तरों, रेलवे स्टेशनों तथा डाकघरों को लूटना और जलाना आरम्भ कर दिया। सरकार ने अपनी नीति को और भी कठोर कर दिया और असंख्य लोगों को जेलों में डाल दिया गया।.सारा देश एक जेलखाने के समान दिखाई देने लगा।

फरवरी 1943 ई० तक ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ बड़ी सफलता से चलता रहा। परन्तु कुछ समय पश्चात् सरकार की दमन नीति के कारण यह आन्दोलन शिथिल पड़ गया और धीरे-धीरे यह बिल्कुल समाप्त हो गया।

आन्दोलन का महत्त्व-‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के कारण ब्रिटिश सरकार यह बात भली-भान्ति जान गई कि जनता में असन्तोष कितना व्यापक है। सरकार समझ गई कि भारतीय जनता अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति चाहती है और वह इसे प्राप्त करके ही रहेगी। सरकार ने निःसन्देह आन्दोलन को कुचल दिया, परन्तु वह स्वतन्त्रता की भावनाओं को न कुचल सकी। परिणामस्वरूप आन्दोलन की समाप्ति के तीन वर्षों बाद ही उन्हें भारत को स्वतन्त्र कर देना पड़ा।

प्रश्न 4.
स्वतन्त्रता आन्दोलन में गाँधी के योगदान की विवेचना कीजिए।
अथवा
महात्मा गाँधी के आरम्भिक जीवन तथा कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
गांधी जी द्वारा चलाए गए तीन प्रमुख जन-आन्दोलनों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक आरम्भिक भारत के इतिहास में महात्मा गाँधी को सबसे ऊँचा स्थान प्राप्त है। भारत को स्वतन्त्र कराने में सबसे अधिक योगदान उन्हीं का रहा। उनके आगमन से ही राष्ट्रीय आन्दोलन को ऐसा मार्ग मिला जो सीधा स्वतन्त्रता की मंज़िल पर ले गया। उन्होंने अहिंसा और सत्याग्रह के द्वारा शक्तिशाली अंग्रेजी साम्राज्य से टक्कर ली और अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। भारत के इस महान् स्वतन्त्रता सेनानी के जीवन तथा कार्यों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है जन्म तथा शिक्षा-महात्मा गाँधी जी का बचपन का नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 ई० को काठियावाड़ में पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ। इनके पिता का नाम कर्मचन्द गांधी था जो पोरबन्दर के दीवान थे। गाँधी जी ने अपनी आरम्भिक शिक्षा भारत में ही प्राप्त की। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए उन्हें इंग्लैण्ड भेजा गया। वहाँ से उन्होंने वकालत पास की और फिर लौट आये।

राजनीतिक जीवन-गाँधी जी के राजनीतिक जीवन का आरम्भ दक्षिणी अफ्रीका से हुआ। उन्होंने इंग्लैण्ड से आने के बाद कुछ समय तक भारत में वकील के रूप में कार्य किया। परन्तु फिर वह दक्षिण अफ्रीका चले गए।

गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में-गाँधी जी जिस समय दक्षिणी अफ्रीका पहुँचे, उस समय वहाँ भारतीयों की दशा बड़ी बुरी थी। वहाँ की गोरी सरकार भारतीयों के साथ बहुत बुरा व्यवहार करती थी। गाँधी जी इस बात को सहन न कर सके। उन्होंने वहाँ की सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह आन्दोलन चलाया और भारतीयों को उनके अधिकार दिलवाये।

गाँधी जी भारत में-1914 ई० गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे। उस समय प्रथम विश्व-युद्ध छिड़ा हुआ था। अंग्रेजी सरकार इस युद्ध में उलझी हुई थी। उसे धन और जन की काफी आवश्यकता थी। अत: गाँधी जी ने भारतीयों से अपील की कि वे अंग्रेज़ों को सहयोग दें। वह अंग्रेजी सरकार की सहायता करके उसका मन जीत लेना चाहते थे। उनका विश्वास था कि अंग्रेजी सरकार युद्ध जीतने के बाद भारत को स्वतन्त्र कर देगी, परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने युद्ध में विजय पाने के बाद भारत को कुछ न दिया। इसके विपरीत उन्होंने भारत में रौलेट एक्ट लागू कर दिया। इस काले कानून के कारण गाँधी जी को बड़ी ठेस पहुंची और उन्होंने अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाने का निश्चय कर लिया।

असहयोग आन्दोलन-1920 ई० में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। जनता ने गाँधी जी का पूरापूरा साथ दिया। सरकार को गाँधी जी के इस आन्दोलन के सामने झुकना पड़ा। परन्तु कुछ हिंसक घटनाएँ हो जाने के कारण गाँधी जी को अपना आन्दोलन वापस लेना पड़ा।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन-1930 ई० में गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन आरम्भ कर दिया। उन्होंने डांडी यात्रा की और नमक के कानून को भंग कर दिया। सरकार घबरा गई। उसने भारतवासियों को नमक बनाने का अधिकार दे दिया। 1935 ई० में सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण एक्ट भी पास किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन-गाँधी जी का सबसे बड़ा उद्देश्य भारत को स्वतन्त्र कराना था। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए उन्होंने 1942 ई० में भारत छोड़ो आन्दोलन चलाया। भारत के लाखों नर-नारी गाँधी जी के साथ हो गये। इतने विशाल जनआन्दोलन से अंग्रेजी सरकार घबरा गई और उसने भारत छोड़ने का निश्चय कर लिया। आखिर 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत स्वतन्त्र हुआ। इस स्वतन्त्रता का वास्तविक श्रेय गाँधी जी को ही जाता है।

अन्य कार्य-गाँधी जी ने भारतवासियों के स्तर को ऊँचा उठाने के लिए अनेक काम किये। भारत से गरीबी दूर करने के लिए उन्होंने लोगों को खादी पहनने का सन्देश दिया। अछूतों के उद्धार के लिए गाँधी जी ने उन्हें ‘हरिजन’ का नाम दिया। देश में साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने के लिए गाँधी जी ने गाँव-गाँव में घूमकर लोगों को भाईचारे का सन्देश दिया।

देहान्त-30 जनवरी, 1948 ई० की संध्या को गाँधी जी को एक युवक ने गोली का निशाना बना दिया। उन्होंने तीन बार ‘हे राम’ कहा और अपने प्राण त्याग दिए। उनकी मृत्यु पर सारे देश में शोक छा गया। भारतवासी गाँधी जी की सेवाओं को नहीं भुला सकते। आज भी उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ के नाम से याद किया जाता है।

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प्रश्न 5.
1935 के भारत सरकार के अधिनियम की क्या मुख्य विशेषताएं थीं ? इसके किन प्रावधानों को नहीं लागू किया गया और क्यों ?
अथवा
1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा किए गए केंद्रीय अथवा प्रांतीय परिवर्तनों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
1935 के भारत सरकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं। केन्द्रीय सरकार में परिवर्तन-

1. केन्द्र में एक संघात्मक सरकार की स्थापना की गई। इस संघ में प्रान्तों का सम्मिलित होना आवश्यक था, जबकि रियासतों का सम्मिलित होना उनकी इच्छा पर निर्भर था।

2. संघीय विधान मण्डल के ‘राज्य परिषद्’ और ‘संघीय सभा’ दो सदन बनाये गये। राज्य परिषद् में प्रान्तों के सदस्यों की संख्या 156 और रियासतों की संख्या 140 निश्चित की गई। संघीय सभा में प्रान्तों के सदस्यों की संख्या 250 और रियासतों की संख्या 125 निश्चित की गई।

3. यह भी निश्चित किया गया कि प्रान्तों के प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने जायें और रियासतों के प्रतिनिधि राजाओं के द्वारा मनोनीत हों।

4. केन्द्र के विषयों को रक्षित (Reserved) और प्रदत्त (Transferred) दो भागों में बाँटकर दोहरा शासन स्थापित किया गया। रक्षित विषय गवर्नर-जनरल के अधीन थे, जबकि प्रदत्त विषय मन्त्रियों को सौंपे गये। मन्त्रियों को विधान मण्डल के सामने उत्तरदायी ठहराया गया।

5. विधान मण्डल को बजट के 20 प्रतिशत भाग पर मत देने का अधिकार दिया गया।

6. गवर्नर-जनरल को कुछ विशेषाधिकार दिये गये।

7. जब तक भारतीय संघात्मक सरकार की स्थापना नहीं हो जाती तब तक केन्द्र का शासन 1919 ई० के एक्ट में किये गये संशोधन के अनुसार चलाया जायेगा।

प्रान्तीय सरकारों में परिवर्तन-

  • बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया। इसके अतिरिक्त उड़ीसा और सिन्ध के दो नये प्रान्त बनाये गये।
  • बंगाल, बिहार, असम, बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) और उत्तर प्रदेश में विधानमण्डल में दो सदनों की व्यवस्था की गई और शेष प्रान्तों में एक ही सदन बनाया गया। उच्च सदन का नाम विधान परिषद् और निम्न सदन का विधान सभा रखा गया।
  • विधान परिषद् के कुछ सदस्य गवर्नर द्वारा मनोनीत किये जाते थे और विधान सभा के सदस्यों का चुनाव जनता द्वारा किया जाता था।
  • प्रान्तों में मत देने का अधिकार स्त्रियों, परिगणित जातियों और मजदूरों को भी दे दिया गया।
  • प्रान्तों से दोहरे शासन को सदा के लिए समाप्त कर दिया और उनके स्थान पर स्वायत्त शासन (Autonomy) की स्थापना की गई। सभी प्रान्तीय विषय एक मन्त्रिमण्डल को सौंप दिये गये। मन्त्रियों का चुनाव बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल में से किया जाता था। प्रधानमन्त्री शासन विभाग का कार्य मन्त्रियों में बाँट देता था। मन्त्रिमण्डल विधानमण्डल के सामने उत्तरदायी था।
  • प्रान्तों के गवर्नरों को विशेष अधिकार दिये गये।
  • प्रान्त में विशेष परिस्थिति उत्पन्न होने पर गवर्नर विधान सभा को भंग करके प्रान्त का शासन अपने हाथ में ले सकता था।
  • गवर्नरों को अध्यादेश तथा गवर्नरी एक्ट जारी करने का भी अधिकार था।

इण्डिया कौंसिल में परिवर्तन-इण्डिया कौंसिल भंग कर दी गई। भारतमन्त्री को कम-से-कम तीन और अधिक-सेअधिक 6 सलाहकारों को नियुक्त करने का अधिकार दिया गया।

अन्य परिवर्तन-

  • उच्च न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए दिल्ली में फैडरल कोर्ट (Federal Court) की स्थापना की गई।
  • शासन के विषयों को केन्द्रीय और प्रान्तीय विषयों में बाँट दिया गया और कुछ विषयों की एक साँझी सूची तैयार की गई। वे प्रावधान जिन्हें लागू नहीं किया गया-1935 के अधिनियम के संघीय पक्ष को कभी लागू नहीं किया गया। परन्तु प्रान्तीय पक्ष को शीघ्र लागू कर दिया गया। प्रान्तों में हुए चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया कि देश की अधिकांश जनता कांग्रेस के साथ है। क्योंकि कांग्रेस ने 1935 के अधिनियम का कड़ा विरोध किया था, इसलिए सरकार इस अधिनियम के संघीय पक्ष को लागू करने का साहस न कर सकी।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 22 स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष

प्रश्न 6.
भारत को दो भागों में क्यों बांटा गया ? इसके लिए उत्तरदायी किन्हीं पांच कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
भारत 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतन्त्र हुआ। स्वतन्त्रता के समय भारत को दो भागों में बांट दिया गया-भारत तथा पाकिस्तान। यह विभाजन निम्नलिखित कारणों से हुआ-

1. ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति-1857 ई० के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने भारत में ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति अपना ली। उन्होंने भारत के विभिन्न वर्गों को एक-दूसरे के प्रति खूब लड़ाया। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों दोनों को एक-दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ कि वे एक-दूसरे से घृणा करने लगे।

2. मुस्लिम लीग के प्रयत्न-1906 ई० में मुसलमानों ने मुस्लिम लीग नामक संस्था की स्थापना भी कर ली। फलस्वरूप हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव बढ़ने लगा। मुस्लिम लीग ने मुस्लिम समाज में साम्प्रदायिकता फैलानी आरम्भ कर दी। 1940 ई० तक हिन्दू-मुस्लिम भेदभाव इतने बढ़ गए कि मुसलमानों ने अपने लाहौर प्रस्ताव में पाकिस्तान की मांग की।

3. कांग्रेस की कमजोर नीति-मुस्लिम लीग की मांगें दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थीं और कांग्रेस इन्हें स्वीकार करती रही। 1916 ई० के लखनऊ समझौते के अनुसार कांग्रेस ने साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली को स्वीकार कर लिया। कांग्रेस की इस . कमज़ोर नीति का लाभ उठाते हुए मुसलमानों ने देश के विभाजन की मांग करनी आरम्भ कर दी।

4. साम्प्रदायिक दंगे-पाकिस्तान की मांग मनवाने के लिए मुस्लिम लीग ने ‘सीधी कार्यवाही’ आरम्भ कर दी और सारे देश में साम्प्रदायिक दंगे होने लगे। इन घटनाओं को केवल भारत विभाजन द्वारा ही रोका जा सकता था।

5. अन्तरिम सरकार की असफलता-1946 में बनी अन्तरिम सरकार में कांग्रेस और मुस्लिम लीग को साथ-साथ कार्य करने का अवसर मिला, परन्तु लीग कांग्रेस के प्रत्येक कार्य में कोई-न-कोई रोड़ा अटका देती थी। परिणामस्वरूप अन्तरिम सरकार असफल रही। इससे यह स्पष्ट हो गया कि हिन्दू और मुसलमान एक होकर शासन नहीं चला सकते।

6. इंग्लैण्ड द्वारा भारत छोड़ने की घोषणा-20 फरवरी, 1947 को इंग्लैण्ड के प्रधानमन्त्री एटली ने जून, 1948 ई० तक भारत को छोड़ देने की घोषणा की। घोषणा में यह भी कहा गया कि अंग्रेज़ केवल उसी दशा में भारत छोड़ेंगे जब मुस्लिम लीग और कांग्रेस में समझौता हो जाएगा, परन्तु मुस्लिम लीग पाकिस्तान प्राप्त किए बिना किसी समझौते पर तैयार न हुई। फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने भारत विभाजन की योजना बनानी आरम्भ कर दी।

7. भारत का विभाजन-भारत विभाजन के उद्देश्य से लॉर्ड माऊंटबेटन को भारत का वायसराय बनाकर भारत भेजा गया। उन्होंने अपनी सूझ-बूझ से एक ही मास में नेहरू और पटेल को विभाजन के लिए तैयार कर लिया। आखिर 1947 में भारत को दो भागों में बांट दिया गया।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 2 ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 2 ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 2 ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ

PSEB 11th Class Agriculture Guide ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
मिर्च की दो उन्नत किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब गुच्छेदार, चिल्ली हाईब्रिड-1.

प्रश्न 2.
अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रतिदिन कितनी सब्जी खानी चाहिए ?
उत्तर-
284 ग्राम।

प्रश्न 3.
टमाटर की दो उन्नत किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब वर्षा बहार-1, पंजाब वर्षा बहार-2.

प्रश्न 4.
फरवरी में भिण्डी की बुआई के लिए कितने बीज की आवश्यकता होती
उत्तर-
15 किलो प्रति एकड़।

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प्रश्न 5.
बैंगन की फसल में मेढ़ों की आपसी दूरी कितनी होती है ?
उत्तर-
60 सैं०मी०।

प्रश्न 6.
करेले की दो किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब-14, पंजाब करेली-1.

प्रश्न 7.
घीया कद्दू की बुआई कब करनी चाहिए ?
उत्तर-
फरवरी-मार्च, जून-जुलाई, नवम्बर-दिसम्बर।

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प्रश्न 8.
खीरे की बुआई के लिए प्रति एकड़ कितने बीज को आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
एक किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 9.
खरबूजे की बुआई के लिए प्रति एकड़ कितने बीज की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
400 ग्राम।

प्रश्न 10.
घीया तोरी की बुआई कब करनी चाहिए ?
उत्तर-
मध्य मई से जुलाई।

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(ख) एक-दो वाक्य में उत्तर दो

प्रश्न 1.
सब्जी से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
सब्जी पौधे का वह नर्म भाग है जिसको कच्चा सलाद के रूप में खाया जाता है; जैसे–तना, पत्ते, फूल, फल आदि।

प्रश्न 2.
टमाटर की एक एकड़ की पनीरी तैयार करने के लिए कितने बीज की कितनी जगह पर बुआई करनी चाहिए ?
उत्तर-
एक एकड़ की पनीरी के लिए 100 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसको 2 मरले की क्यारियों में बोया जाता है।

प्रश्न 3.
मिर्च की फसल के लिए कौन-कौन सी खाद उपयोग करनी चाहिए ?
उत्तर-
10-15 टन गले सड़े गोबर की खाद, 25 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फॉस्फोरस और 12 किलो पोटाश का प्रयोग किया जाता है। यह मात्रा एक एकड़ के लिए है।

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प्रश्न 4.
बैंगन की साल में चार फसलें कैसे ली जा सकती हैं ?
उत्तर-
बैंगन की चार फसलें अक्तूबर-नवम्बर, फरवरी-मार्च और जुलाई में पनीरी लगा कर लगाई जा सकती हैं।

प्रश्न 5.
भिण्डी की बुआई का समय और बीज की मात्रा के बारे में बताओ।
उत्तर-
भिण्डी की बुआई बहार ऋतु में फरवरी-मार्च और बरसात में जून-जुलाई में की जाती है। बीज की मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से 15 किलो (फरवरी), 8-10 किलो (मार्च), 5-6 किलो (जून-जुलाई) की ज़रूरत होती है।

प्रश्न 6.
हमारे देश में प्रति व्यक्ति कम सब्जी मिलने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
(i) हमारे देश में तेजी से बढ़ती जनसंख्या।
(ii) तुड़ाई के बाद लगभग तीसरा भाग सब्जियों का खराब हो जाना।

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प्रश्न 7.
टमाटर की फसल की बुआई और पनीरी कब लगानी चाहिए ?
उत्तर-
टमाटर की पनीरी की बुआई जुलाई के दूसरे पखवाड़े में कर देनी चाहिए और पनीरी को खेतों में अगस्त के दूसरे पखवाड़े में लगाना शुरू कर देनी चाहिए।

प्रश्न 8.
करेले की तुड़ाई बुआई से कितने दिनों के बाद की जाती है ?
उत्तर-
बुआई से लगभग 55-60 दिनों के बाद करेले को तोड़ना चाहिए।

प्रश्न 9.
खरबूजे की 2 उन्नत किस्मों और बुआई का समय बताओ।
उत्तर-
पंजाब हाईब्रिड, हरा मधु तथा पंजाब सुनहरी उन्नत किस्में हैं और इसकी बुआई फरवरी-मार्च में की जाती है।

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प्रश्न 10.
खीरे की अग्रिम और अधिक पैदावार कैसे ली जा सकती है ?
उत्तर-
खीरे की अग्रिम और अधिक पैदावार लेने के लिए इसकी खेती छोटी सुरंगों में की जाती है।

(ग) पाँच-छ: वाक्य में उत्तर दो –

प्रश्न 1.
गर्मी की सब्जियां कौन-कौन सी हैं और किसी एक के बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी दो।
उत्तर-
गर्मियों की सब्जियां हैं-टमाटर, बैंगन, घीया कद्दू, तोरी, करेला, मिर्च, भिण्डी, चप्पन कद्, खीरा, ककड़ी, टिण्डा आदि।
किस्में-पंजाब वर्षा बहार-1, पंजाब वर्षा बहार-2.
बीज की मात्रा-एक एकड़ की पनीरी तैयार करने के लिए 100 ग्राम बीज 2 मरले की क्यारियों में बीजना चाहिए।
पनीरी की बुवाई का समय-पनीरी की बुवाई जुलाई के दूसरे पखवाड़े में करनी चाहिए।
पनीरी लगाने का समय-अगस्त का दूसरा पखवाड़ा। कतारों में फासले-120-150 सैं०मी०। नदीनों की रोकथाम-सटौंप या सैनकोर का छिड़काव करें। पौधों में फासलें-30 सैं० मी०। सिंचाई-पहला पानी पनीरी खेतों में लगाने के तुरंत बाद और फिर 6-7 दिनों के बाद पानी लगाया जाता है।

प्रश्न 2.
भिण्डी की उन्नत किस्मों के नाम, बुआई का समय, प्रति एकड़ बीज की मात्रा और खरपतवार की रोकथाम के बारे में संक्षेप में जानकारी दो।
उत्तर-
भिण्डी की कृषिउन्नत किस्में-पंजाब-7, पंजाब-8, पंजाब पदमनी। बुआई का समय-भिण्डी की बुआई बहार ऋतु में फरवरी-मार्च तथा बरसात में जून-जुलाई में की जाती है।

बीज की मात्रा-बीज की मात्रा प्रति एकड़ के हिसाब से 15 किलो (फरवरी), 8-10 किलो (मार्च), 5-6 किलो (जून-जुलाई) में आवश्यकता है।
नदीनों की रोकथाम-इसके लिए 3-4 गुड़ाइयों की आवश्यकता होती है या सटोप का छिड़काव किया जाता है।

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प्रश्न 3.
सब्जियों का मनुष्य के भोजन में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सब्जियों का मनुष्य के आहार में बहुत महत्त्व है। सब्जियों में कई आहारीय तत्त्व होते हैं। जैसे कार्बोहाइड्रेटस, धातु, प्रोटीन, विटामिन आदि होते हैं। इन तत्वों की मनुष्य के शरीर को बहुत आवश्यकता होती है। हमारे देश में अधिक जनसंख्या शाकाहारी है। इसलिए सब्जियों का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। एक अनुसंधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 284 ग्राम सब्जी खानी चाहिए तथा भोजन में पत्ते वाली सब्जियां (पालक, मेथी, सलाद, साग आदि), फूल (गोभी), फल (टमाटर, बैंगन), अन्य (आलू) तथा जड़ों वाली सब्जियां (गाजर, मूली, शलगम) आदि का शामिल होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
घीया कद्ध की खेती के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
घीया कद्दू की खेती1. उन्नत किस्में-पंजाब बरकत, पंजाब कोमल। 2. बुआई का समय-फरवरी-मार्च, जून-जुलाई, नवम्बर-दिसम्बर। 3. तुड़ाई-बुआई से 60-70 दिनों बाद कद्रू उतरने लगते हैं।

प्रश्न 5.
पेठे की सफल खेती कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
किस्म-पी०ए०जी०-3. बुआई का समय-फरवरी-मार्च, जून-जुलाई। बीज की मात्रा-2 किलो प्रति एकड़।
बुआई का ढंग–3 मीटर चौड़ाई वाली खालें बनाकर 70-90 सैं०मी० तथा खाल के एक तरफ कम-से-कम दो बीज बोने चाहिए।

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Agriculture Guide for Class 11 PSEB ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मिर्च के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
एक एकड़ के लिए 200 ग्राम।

प्रश्न 2.
मिर्च की पनीरी बोने का समय बताओ।
उत्तर-
अन्त अक्तूबर से मध्य नवम्बर।

प्रश्न 3.
मिर्च की पनीरी खेत में लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
फरवरी-मार्च।

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प्रश्न 4.
मिर्च के लिए मेढ़ों में अन्तर बताओ।
उत्तर-
75 सैं०मी०।

प्रश्न 5.
मिर्च के लिए पौधों में फासला बताओ।
उत्तर-
45 सैं०मी०।

प्रश्न 6.
टमाटर की किस्में बताओ ।
उत्तर-
पंजाब वर्षा बहार-1, पंजाब वर्षा बहार-2.

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प्रश्न 7.
टमाटर के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
100 ग्राम प्रति एकड़।

प्रश्न 8.
टमाटर की पनीरी की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
जुलाई का दूसरा पखवाड़ा।

प्रश्न 9.
टमाटर की पनीरी को खेत में लगाने का समय बताओ।
उत्तर-
अगस्त का दूसरा पखवाड़ा।

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प्रश्न 10.
टमाटर के लिए पंक्तियों का फासला बताओ।
उत्तर-
120-150 सैं०मी० ।

प्रश्न 11.
टमाटर के लिए पौधों में फासला बताओ।
उत्तर-
30 सैं०मी०।

प्रश्न 12.
टमाटर में नदीनों की रोकथाम के लिए दवाई बताओ।
उत्तर-
सटोंप, सैनकोर।

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प्रश्न 13.
बैंगन की किस्में बताओ।
उत्तर-
पंजाब नीलम (गोल), बी०एच०-2 (लम्बे), पी०बी०एच०-3 (छोटे)।

प्रश्न 14.
बैंगन के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
एक एकड़ के लिए 300-400 ग्राम।

प्रश्न 15.
बैंगन के लिए पंक्तियों में फासला बताओ।
उत्तर-
60 सैं०मी०।

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प्रश्न 16.
बैंगन के लिए पौधों में फासला बताओ।
उत्तर-
30-40 सैं०मी०।

प्रश्न 17.
भिण्डी की बुआई कैसे की जाती है ?
उत्तर-
सीधी बुआई की जाती है।

प्रश्न 18.
भिण्डी की किस्में बताओ।
उत्तर-
पंजाब-7, पंजाब-8, पंजाब पदमनी।

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प्रश्न 19.
भिण्डी की फरवरी मार्च के लिए फसल कहां बोई जाती है ?
उत्तर-
मेढ़ों पर।

प्रश्न 20.
भिण्डी की जून-जुलाई की फसल किस प्रकार बोई जाती है ?
उत्तर-
समतल भूमि पर।

प्रश्न 21.
भिण्डी की फसल के लिए पंक्तियों में फासला बताओ।
उत्तर-
45 सैं०मी०।

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प्रश्न 22.
भिण्डी की कृषि के लिए पौधों में आपसी फासला बताओ।
उत्तर-
15 सैंमी०।

प्रश्न 23.
भिण्डी की तुड़ाई कब की जाती है ?
उत्तर-
बुवाई से 45-50 दिनों में।

प्रश्न 24.
चप्पन कद् की उन्नत किस्में बताओ।
उत्तर-
पंजाब चप्पन कदू।

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प्रश्न 25.
चप्पन कद्दू की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
मध्य जनवरी से मार्च तथा अक्तूबर-नवम्बर।

प्रश्न 26.
चप्पन कद्दू के बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
2 किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 27.
चप्पन कद्दू के एक स्थान पर कितने बीज बोये जाते हैं ?
उत्तर-
एक स्थान पर दो बीज।

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प्रश्न 28.
चप्पन कद्दू कब तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं ?
उत्तर-
60 दिनों में।

प्रश्न 29.
घीया कदद की किस्में बताओ।
उत्तर-
पंजाब बरकत, पंजाब कोमल।

प्रश्न 30.
घीया कद् की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर–
फरवरी-मार्च, जून-जुलाई, नवम्बर-दिसम्बर।

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प्रश्न 31.
घीया कद्दू कितने दिनों बाद उतरने लगते हैं ?
उत्तर-
बुवाई के 60-70 दिनों में।

प्रश्न 32.
करेले की किस्में बताओ।
उत्तर-
पंजाब-14, पंजाब करेली-1.

प्रश्न 33.
करेले की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
फरवरी-मार्च, जून-जुलाई।।

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प्रश्न 34.
करेले के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
2 किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 35.
करेले के लिए पौधे से पौधे का फासला बताओ।
उत्तर-
45 सैंमी।

प्रश्न 36.
करेले के लिए क्यारियों में बुवाई किस तरह की जाती है ?
उत्तर-
क्यारियों के दोनों ओर।

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प्रश्न 37.
घीया तोरी की किस्में बताओ।
उत्तर-
पूसा चिकनी, पंजाब काली तोरी-9.

प्रश्न 38.
घीया तोरी की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
मध्य फरवरी से मार्च।

प्रश्न 39.
घीया तोरी के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
2 किलो बीज प्रति एकड़।

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प्रश्न 40.
घीया तोरी की तुड़ाई कितने दिनों बाद की जाती है ?
उत्तर-
बुवाई से 70-80 दिनों बाद।

प्रश्न 41.
पेठे की किस्म बताओ।
उत्तर-
पी०ए०जी०-3.

प्रश्न 42.
पेठे की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
फरवरी-मार्च, जून-जुलाई।

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प्रश्न 43.
पेठे के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
2 किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 44.
खीरे की किस्में बताओ।
उत्तर-
पंजाब नवीन।

प्रश्न 45.
खीरे के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
एक किलो प्रति एकड़।

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प्रश्न 46.
ककड़ी की किस्म बताओ।
उत्तर-
पंजाब लोंग मैलन।

प्रश्न 47.
ककड़ी की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
फरवरी-मार्च।

प्रश्न 48.
ककड़ी के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
एक किलो बीज प्रति एकड़।

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प्रश्न 49.
ककड़ी की तुड़ाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
बुवाई से 60-70 दिनों बाद।

प्रश्न 50.
टिण्डा की किस्में बताओ।
उत्तर-
टिण्डा-48.

प्रश्न 51.
टिण्डा की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
फरवरी-मार्च, जून-जुलाई।

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प्रश्न 52.
टिण्डे की बुवाई के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
1.5 किलो बीज प्रति एकड़।

प्रश्न 53.
टिण्डे कितने दिनों बाद तुड़ाई के योग्य हो जाते हैं ?
उत्तर-
60 दिनों बाद।

प्रश्न 54.
खरबूजा फल है या सब्जी ?
उत्तर-
खरबूजा सब्जी है।

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प्रश्न 55.
खरबूजे की बुवाई का समय बताओ।
उत्तर-
फरवरी-मार्च।

प्रश्न 56.
खरबूजे के लिए बीज की मात्रा बताओ।
उत्तर-
400 ग्राम प्रति एकड़।

प्रश्न 57.
खरबूजे की बुवाई के लिए पौधे से पौधे का फासला बताओ।
उत्तर-
60 सैं०मी०।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सब्जियों में तत्वों की जानकारी दो।
उत्तर-
सब्जियों में कार्बोहाइड्रेटस, प्रोटीन, धातु, विटामिन आदि पौष्टिक तत्व होते

प्रश्न 2.
मिर्च के लिए खादों का विवरण दें।
उत्तर-
एक एकड़ के हिसाब से 10-15 टन गली सड़ी गोबर की खाद, 25 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फॉस्फोरस तथा 12 किलो पोटाश डालनी चाहिए।

प्रश्न 3.
मिर्च के लिए सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
पहला पानी पनीरी तथा खेत में लगाने के तुरन्त बाद लगाया जाता है। गर्मियों में पानी 7-10 दिनों के अन्दर लगाया जाता है।

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प्रश्न 4.
टमाटर के लिए सिंचाई के बारे में बताओ।
उत्तर-
पहला पानी पनीरी तथा खेत में लगाने के तुरन्त बाद लगाया जाता है। गर्मियों में पानी 6-7 दिनों के अन्दर लगाया जाता है।

प्रश्न 5.
बैंगन की बुवाई के ढंग के बारे में बताओ।
उत्तर-
बैंगन की बुवाई 10-15 सैं०मी० ऊँची एक मरले की क्यारियों में की जाती है।

प्रश्न 6.
चप्पन कद् की बुवाई का ढंग बताओ।
उत्तर-
1.25 मीटर चौड़ाई वाली खाइयों में पौधों का फासला 45 सैं०मी० रखकर एक स्थान पर 2-2 बीज बोये जाते हैं।

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प्रश्न 7.
खीरे की कृषि के बारे में बताओ। उन्नत किस्में, बुवाई का समय, बीज की मात्रा।
उत्तर-
उन्नत किस्में-पंजाब नवीन। बुवाई का समय-फरवरी-मार्च। बीज की मात्रा-एक किलो प्रति एकड़।

प्रश्न 8.
ककड़ी की कृषि का विवरण दो।
उत्तर-
उन्नत किस्में-पंजाब लोंग मैलन।
बुवाई का समय-फरवरी-मार्च।
बीज की मात्रा-एक किलो बीज प्रति एकड़।
तुड़ाई-बुवाई से 60-70 दिनों बाद।

प्रश्न 9.
टिण्डे की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
उन्नत किस्में-टिण्डा-48.
बुआई का समय-फरवरी-मार्च, जून-जुलाई।
बीज की मात्रा-1.5 किलो बीज प्रति एकड़।
बुआई का ढंग-1.5 मीटर चौड़ी खाइयों के दोनों ओर 45 सैं०मी० फासले पर बीज बोने चाहिए।
तुड़ाई-बुआई से 60 दिनों के बाद तुड़ाई योग्य हो जाते हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 2 ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ

प्रश्न 10.
घीया तोरी की कृषि के बारे में बताओ।
उत्तर-
किस्म-पूसा चिकनी, पंजाब काली तोरी-9.
बुआई का समय-मध्य फरवरी से मार्च, मध्य मई से जुलाई।
बुआई का ढंग-तीन मीटर चौड़ी खाइयों में 75 से 90 सैं०मी० दूरी पर बोया जाता
बीज की मात्रा-2 किलो बीज प्रति एकड़।
तुड़ाई-बुआई से 70-80 दिनों के बाद।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
खरबूजे की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
खरबूजा वैज्ञानिक आधार पर सब्जी है परन्तु हम इसको फल की तरह प्रयोग करते हैं।
किस्में-पंजाब हाइब्रिड, हरा मधु, पंजाब सुनहरी।
बुवाई का समय-फरवरी-मार्च।
बीज की मात्रा-400 ग्राम बीज प्रति एकड़।
बुवाई का ढंग-बुवाई 3-4 मी० चौड़ी खाइयों में की जाती है, पौधे से पौधे का फासला 60 सैं०मी०।
सिंचाई-गर्मियों में प्रत्येक सप्ताह, फल पकने के समय हल्का पानी दें। पानी फल को नहीं लगना चाहिए नहीं तो फल गलने लगता है।

प्रश्न 2.
मिर्च की कृषि का विवरण दें।
उत्तर-
किस्में-पंजाब सुर्ख, पंजाब गुच्छेदार, चिली हाइब्रिड-1.
बीज की मात्रा-एक एकड़ के लिए 200 ग्राम।
पनीरी बोना-एक एकड़ के लिए एक मरला में पनीरी बोई जाती है। अंत अक्तूबर से मध्य नवम्बर तक पनीरी बोई जाती है।
पनीरी लगाना-फरवरी-मार्च में खेतों में लगायें।

फासला-मेढ़ों के बीच 75 सैं०मी० तथा पौधों में 45 सैं०मी० ।
खाद-10-15 टन गली सड़ी गोबर की खाद, 25 किलो नाइट्रोजन, 12 किलो फॉस्फोरस, 12 किलो पोटाश की आवश्यकता है।
सिंचाई-पहला पानी पनीरी को खेत में लगाने के तुरन्त बाद लगाएं। गर्मियों में 7-10 दिनों के अन्तर पर पानी लगाएं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 2 ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ

प्रश्न 3.
बैंगन की कृषि के बारे में बताओ।
उत्तर-

  • किस्में-पंजाब नीलम (गोल), बी०एच०-2 (लम्बा), पी०बी०एच०-3 (छोटे)।
  • बीज की मात्रा-एक एकड़ के लिए 300-400 ग्राम।
  • बुवाई का ढंग-10-15 सैं०मी० ऊंची एक मरले की क्यारियों में बोना चाहिए।
  • बैंगन की फसलें-बैंगन की वर्ष में चार फसलें अक्तूबर, नवम्बर, फरवरी, मार्च तथा जुलाई में पनीरी बो कर ली जा सकती है।
  • फासला-पंक्तियों में 60 सैं०मी० तथा पौधों में 30-45 सैं०मी० ।
  • सिंचाई-पहला पानी पनीरी को खेत में लगाने के तुरन्त बाद तथा फिर 6-7 दिनों के अन्तर पर लगायें।

ख़रीफ़ की सब्ज़ियाँ PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • पौधे का नर्म भाग जैसे कि-फल, पत्ते, जड़ें, तना आदि को सलाद के रूप में कच्चा खाया जाता है, सब्जी कहलाता है।
  • सब्जियों में कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, धातु, विटामिन आदि तत्त्व होते हैं।
  • खाद्य विशेषज्ञों के अनुसार अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिदिन 284 ग्राम सब्जियां खानी चाहिए।
  • पत्तों वाली सब्जियां हैं-पालक, मेथी, सलाद और साग।
  • जड़ों वाली सब्जियां हैं-गाजर, मूली, शलगम।
  • हमारे देश में प्रति व्यक्ति को कम सब्जियां मिलने का कारण है-अधिक जनसंख्या की तेजी से वृद्धि और तुड़ाई के बाद सब्जियों के तीसरे हिस्से का खराब हो जाना।
  • ख़रीफ की सब्जियां हैं-मिर्च, बैंगन, भिण्डी, करेला, चप्पन कद्दू, टमाटर, तोरी, घीया कद, टीण्डा, ककड़ी, खीरा आदि।
  • मिर्च की किस्में हैं-पंजाब सुर्ख, पंजाब गुच्छेदार, चिल्ली हाईब्रिड-1
  • मिर्च के लिए एक मरले की पनीरी के लिए 200 ग्राम बीज की आवश्यकता है।
  • टमाटर की किस्में हैं-पंजाब बरखा बहार-1, पंजाब बरखा बहार-2.
  • टमाटर की एक एकड़ पनीरी के लिए 100 ग्राम बीज 2 मरले की क्यारियों में बोने चाहिए।
  • बैंगन की किस्में हैं -पंजाब नीलम (गोल), बी०एच०-2 (लम्बे), पी०बी०एच०-3 (छोटे)।
  • बैंगन की पनीरी के लिए 300-400 ग्राम बीज प्रति एकड़ की आवश्यकता होती
  • पंजाब-7, पंजाब-8 और पंजाब पदमनी भिण्डी की किस्में हैं।
  • भिण्डी के बीज की मात्रा प्रति एकड़ इस तरह है-15 किलो (फरवरी), 8-10 किलो (मार्च), 5-6 किलो (जून-जुलाई)।
  • कदू जाति की सब्जियां हैं-चप्पन कद्, घीया कद्दू, करेला, घीया तोरी, पेठा, खीरा, ककड़ी, टिण्डा, खरबूजा आदि।
  • चप्पन कद्दू की किस्में हैं-पंजाब चप्पन कदू।
  • घीया कद्दू की किस्में हैं–पंजाब बरकत, पंजाब कोमल।
  • करेले की उन्नत किस्में हैं-पंजाब-14, पंजाब करेली-1.
  • करेले के लिए बीज की मात्रा 2 किलो प्रति एकड़ है।
  • घीया तोरी की किस्में हैं-पूसा चिकनी, पंजाब काली तोरी-9.
  • पेठे की किस्में हैं-पी०ए०जी०-3.
  • चप्पन कद्, करेला, घीया तोरी, पेठा सभी के लिए बीज की मात्रा 2 किलो प्रति एकड़ की आवश्यकता है।
  • खीरे की किस्में हैं-पंजाब नवीन खीरा।
  • बीज की मात्रा खीरे के लिए एक किलो प्रति एकड़ है।
  • ककड़ी की किस्म है-पंजाब लोंग मैलन।
  • ककड़ी के लिए बीज की मात्रा है-एक किलो प्रति एकड़।
  • टिण्डे की किस्म है-टिण्डा-48.
  • टिण्डे के लिए बीज की मात्रा है-1.5 किलो प्रति एकड़।
  • खरबूजा वैज्ञानिक दृष्टि से सब्जी है।
  • खरबूजे की किस्में हैं-पंजाब हाईब्रिड, हरा मधु, पंजाब सुनहरी।
  • खरबूजे के लिए बीज की मात्रा 400 ग्राम की आवश्यकता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
प्रजातन्त्र क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
(What is democracy ? Explain.)
उत्तर-
लोकतन्त्र का अर्थ (Meaning of Democracy)-आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्र को अपनाया गया है। अधिकांश साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही समाप्त करके लोकतन्त्र की स्थापना की गई है। प्रजातन्त्र का अर्थ है वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य की सत्ता प्रजा अर्थात् जनता के हाथ में हो। अरस्तु ने इसे बहुतन्त्र या शुद्ध जनतन्त्र (Polity) कहा है और इसे ही सर्वोत्तम शासन बताया है। यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोज (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिल कर बना है। डिमोज का अर्थ है ‘लोक’ और क्रेटिया का अर्थ है शक्ति या ‘सत्ता’। इसलिए डैमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथों में हो। दूसरे शब्दों में, प्रजातन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।
लोकतन्त्र की मुख्य परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • प्रो० डायसी (Prof. Dicey) का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।” (“Democracy is a form of government in which the governing body is comparatively a large fraction of the entire nation.”)
  • प्रो० सीले (Prof. Seeley) के विचारानुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।” (“Democracy is a government in which everyone has a share.”)
  • ग्रीक लेखक हैरोडोटस (Herodotus) का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें सर्वोच्च सत्ता समस्त जाति को प्राप्त हो।” (“Democracy is that form of government in which the supreme power of the State is in the hands of the community as a whole.”)
  • प्रजातन्त्र की बहुत ही सरल, सुन्दर तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन (Abraham Lincoln) ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।” (“Democracy is a government of the people, by the people and for the people.”)

उपर्युक्त परिभाषाओं के फलस्वरूप हम यह कह सकते हैं कि प्रजातन्त्र एक ऐसी सरकार को कहा जाता है जिसमें जनता को राजसत्ता का अन्तिम स्रोत समझा जाता है और जनता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से या अपने प्रतिनिधियों द्वारा सरकार के कार्यों में भाग लेती हो, परन्तु श्री गुरमुख निहाल सिंह के शब्दों के अनुसार न तो जनता तथा न ही उसमें से अधिक संख्या शासन का संचालन कर सकती है और न ही उनमें शासन करने की योग्यता और निपुणता होती है। जिस बात की जनता से प्रजातन्त्र में मांग की जाती है वह है योग्य प्रतिनिधियों का चुनाव करना, शासन तथा प्रबन्ध की नीतियों सम्बन्धी उचित और अनुचित का निर्णय करना-शासन तथा उसके चलाने के लिए अपने चुने हुए प्रतिनिधियों के कार्यों के सम्बन्ध में सावधान रहना आदि।

प्रजातन्त्र की विशेषताएं (Characteristics of Democracy)-प्रजातन्त्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  • जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
  • जनता का हित-प्रजातन्त्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
  • समानता-समानता प्रजातन्त्र का मूल आधार है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
  • शासन में भाग लेने का अधिकार-प्रजातन्त्र में प्रत्येक नागरिक को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त होता है।
  • स्वतन्त्रता-सभी नागरिकों को स्वतन्त्रता के अधिकार प्राप्त होते हैं। प्रत्येक नागरिक को वोट देने का अधिकार, चुने जाने का अधिकार, सरकार की आलोचना करने का अधिकार, अपने विचार प्रकट करने का अधिकार इत्यादि प्राप्त होते हैं।
  • कानून के समक्ष समानता-प्रजातन्त्र में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं होता। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।
  • सरकार की आलोचना करने का अधिकार-प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  • मौलिक अधिकार-प्रजातन्त्र में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं जिनकी रक्षा न्यायाधीशों द्वारा की जाती है।
  • स्वतन्त्र न्यायपालिका-प्रजातन्त्र में स्वतन्त्र न्यायपालिका का होना आवश्यक है ताकि लोगों के अधिकारों की रक्षा की जा सके और सरकार को तानाशाही बनने से रोका जा सके।
  • राजनीतिक दल-बिना राजनीतिक दलों के प्रजातन्त्र को सफल नहीं बनाया जा सकता। लोकतन्त्र का आधार जनमत होता है और राजनीतिक दल जनमत को संगठित करते हैं। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है वह दल शासन चलाता है और अन्य दल विरोधी दल के रूप में कार्य करते हैं।
  • धर्म-निरपेक्षता-प्रजातन्त्रीय राज्य का धर्म-निरपेक्ष होना आवश्यक है जिसमें किसी विशेष धर्म को विशेष स्थिति प्राप्त नहीं होनी चाहिए तथा सभी धर्मों के लोगों को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए।
  • वयस्क मताधिकार-प्रजातन्त्रीय सरकार में वयस्क मताधिकार लागू किया जाता है। प्रजातन्त्र में मताधिकार प्राप्त करते समय जन्म, जाति, रंग, नसल, लिंग आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र के गुणों और दोषों की व्याख्या करें। (Discuss the merits and demerits of democracy.)
उत्तर-
प्रजातन्त्र के गुण (Merits of Democracy)-
प्रजातन्त्र में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं
1. यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है (It Safeguards the Interest of the Common Man)प्रजातन्त्र की यह सबसे बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है। प्रजातन्त्र में शासक सत्ता को एक अमानत मानते हैं और उसका प्रयोग सार्वजनिक कल्याण के लिए किया जाता है। इसीलिए अब्राहम लिंकन ने कहा था, प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।

2. यह जनमत पर आधारित है (It is based on Public Opinion)—प्रजातन्त्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।

3. यह समानता के सिद्धान्त पर आधारित है (It is based on the Principal of Equality)—प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता था।

4. यह स्वतन्त्रता तथा बन्धुता पर आधारित है (It is based on Liberty and Fraternity)—प्रजातन्त्र सरकार में नागरिकों को जितनी स्वतन्त्रता प्राप्त होती है उतनी अन्य किसी सरकार से प्राप्त नहीं होती। नागरिकों को मौलिक अधिकार दिए जाते हैं ताकि नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकें। चूंकि प्रजातन्त्र में स्वतन्त्रता तथा समानता का वातावरण होता है, इसलिए नागरिकों में बन्धुता की भावना उत्पन्न होती है। एक नागरिक दूसरे को भाई समझता है और वे परस्पर सहयोग से कार्य करते हैं।

5. स्थायी तथा उत्तरदायी शासन (Stable and Responsible Government)—प्रजातन्त्र में शासन जनमत पर आधारित होता है। इसलिए शासन में शीघ्रता से परिवर्तन नहीं आ पाता है। स्थायी शासन के साथ-साथ सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी होती है। सरकार सदा जनमत के अनुसार कार्य करती है। सरकार जनता की नौकर होती है और जिस तरह नौकर का कर्त्तव्य अपने स्वामी की आज्ञा का पालन करना होता है, उसी तरह प्रजातन्त्र में शासकों का कर्तव्य जनता की इच्छाओं की पूर्ति करना होता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

6. दृढ़ तथा कुशल शासन-व्यवस्था (Strong and Efficient Government)—प्रजातन्त्र में शासन दृढ़ तथा कुशल होता है। प्रजातन्त्र में शासकों को जनता का समर्थन प्राप्त होता है, जिस कारण वे अपने निर्णयों को दृढ़ता से लागू करते हैं। शासकों पर जनता का नियन्त्रण होता है और वे अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। इससे शासक अधिक कुशलता से कार्य करते हैं।

7. जनता को राजनीतिक शिक्षा मिलती है (People get Political Education)-प्रजातन्त्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है। प्रजातन्त्र में चुनावों में प्रत्येक राजनीतिक दल अपने उम्मीदवारों के लिए प्रचार करते हैं और अपनी नीतियों की घोषणा करते हैं। देश की समस्याओं को जनता के सामने रखा जाता है और प्रत्येक राजनीतिक दल इन समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने सुझाव जनता के सामने पेश करते हैं। जनता को इस तरह राजनीतिक शिक्षा मिलती है और साधारण नागरिक भी शासन में रुचि लेने लगता है।

8. क्रान्ति का डर नहीं (No fear of Revolution)—प्रजातन्त्र में क्रान्ति की सम्भावना बहुत कम होती है। प्रजातन्त्र में सरकार जनता की इच्छानुसार कार्य करती है। वास्तव में जनता ही शासन नीतियों को निर्धारित करती है। यदि सरकार जनता की इच्छाओं के अनुसार शासन न चलाए तो जनता सरकार को बदल सकती है। इससे क्रान्ति की सम्भावना नहीं रहती है।

9. यह देशभक्ति या राष्ट्रीय एकता की भावना में वृद्धि करता है (It promotes the spirit of patriotism and national unity)-प्रजातन्त्र जनता में देश भक्ति तथा राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करती है। प्रजातन्त्र में जनता यह समझती है कि यह सरकार उनकी अपनी है, इसलिए उन्हें इसको पूरा सहयोग देना चाहिए। जनता राष्ट्र को अपना राष्ट्र समझती है और देश की रक्षा के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान करने को तैयार रहती है।
प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त होती हैं। सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का पूरा अवसर दिया जाता है इससे नागरिकों में बन्धुता की भावना उत्पन्न होती है जिससे राष्ट्रीय एकता का विकास होता है।

10. यह राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करता है (It builds National Character)-जे० एस० मिल के मतानुसार प्रजातन्त्र की मुख्य विशेषता जनता के चरित्र को सुन्दर तथा स्वच्छ बनाना है। प्रजातन्त्र जनता का अपना शासन होता है जिससे मनुष्यों में आत्मनिर्भरता, निर्भीकता तथा स्वावलम्बन के गुणों को बढ़ावा मिलता है। स्वतन्त्रता तथा स्वशासन से न केवल मनुष्य का चरित्र-निर्माण होता है बल्कि इससे राष्ट्रीय चरित्र का भी निर्माण होता है।

11. व्यक्ति के जीवन का पूर्ण विकास (Fullest Development of the Individual)-राज्य का उद्देश्य व्यक्ति के जीवन का विकास करना है और इस उद्देश्य की पूर्ति प्रजातन्त्र में ही हो सकती है। इसका कारण यह है कि शासन प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को अधिक-से-अधिक अधिकार और स्वतन्त्रता प्राप्त होती है जिनका प्रयोग करके वह अपनी इच्छानुसार अपने जीवन का सर्वोत्तम विकास कर सकता है। यह बात अन्य किसी शासन-प्रणाली में सम्भव नहीं

12. उदारवादी सरकार (Liberal Government)—प्रजातन्त्र में सरकार उदारवादी होती है जिस कारण देश की बदलती परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक सुधार सम्भव हो सकते हैं।

13. कला, विज्ञान तथा संस्कृति में अधिक वृद्धि (Better progress in Art, Science and Literature)प्रजातन्त्र में कला, विज्ञान तथा संस्कृति का अच्छा विकास होता है क्योंकि नागरिकों को किसी प्रकार के प्रतिबन्धों के अधीन काम नहीं करना पड़ता।

14. संकटकाल में प्रजातन्त्र सरकार सर्वोत्तम होती है (In time of Emergency, Democratic Government is the Best)-दो महायुद्धों ने यह प्रमाणित कर दिया है कि संकटकाल में प्रजातन्त्र सरकार तानाशाही से अधिक अच्छी है। तानाशाही में शासन की शक्ति एक व्यक्ति के पास होती है और जनता को शासन के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं होती जिसका परिणाम यह होता है कि यदि संकटकाल में शासक की मृत्यु हो जाए तो जनता हतोत्साहित हो जाती है। द्वितीय महायुद्ध में हिटलर और मुसोलिनी के हट जाने से जर्मनी और इटली की ऐसी ही दशा हुई। परन्तु प्रजातन्त्र में यदि एक नेता किसी कारण हट जाता है तो अन्य नेता शासन की बागडोर सम्भाल लेता है। सरकार जनता के सहयोग एवं समर्थन से बड़े-से-बड़े संकट का मुकाबला कर सकती है।

15. सभी शासन प्रणालियों में उत्तम (Best among all fiilms of Governments)-प्रजातन्त्र अन्य शासन प्रणालियों से उत्तम है क्योंकि लोकतन्त्र में सभी व्यक्तियों की ३-छाओं की ओर ध्यान दिया जाता है। इस सम्बन्ध में लावेल (Lowell) ने लिखा है, “एक पूर्ण लोकतन्त्र में कोई भी यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे अपनी बात कहने का अवसर नहीं मिला।”

प्रजातन्त्र के दोष (Demerits of Democracy) –

प्रजातन्त्र में जहां अनेक गुण पाए जाते हैं वहां दूसरी ओर इसमें अनेक दोष भी पाए जाते हैं। प्रजातन्त्र में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

1. यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूों का शासन है (It is the Government of Ignorant, Incapable and Fools)-प्रजातन्त्र को अयोग्यता की पूजा (Cult of Incompetence) बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकतर व्यक्ति अज्ञानी, अयोग्य तथा मूर्ख होते हैं। सर हेनरी मेन (Sir Henry Maine) का कहना है, “प्रजातन्त्र अज्ञानी और बुद्धिहीन व्यक्तियों का शासन है।”

2. यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है (It gives Importance of Quantity rather than to Quality)-प्रजातन्त्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है। यदि किसी विषय को 50 मूर्ख ठीक कहें और 49 बुद्धिमान ग़लत कहें तो मूों की बात मानी जाएगी। समाज में मूल् तथा अज्ञानियों की संख्या अधिक होने के कारण उनके प्रतिनिधियों को ही बहुमत प्राप्त होता है। इस प्रकार प्रजातन्त्र में बहुमत के शासन को मूल् का शासन भी कहा जा सकता है।

3. यह उत्तरदायी शासन नहीं है (It is not a Responsible Government)—प्रजातन्त्र सैद्धान्तिक तौर पर उत्तरदायी शासन है, परन्तु व्यवहार से यह अनुत्तरदायी है। वास्तव में प्रजातन्त्र में नागरिक चुनाव वाले दिन ही सम्प्रभु होते हैं। चुनाव से पहले बड़े-बड़े नेता साधारण नागरिक के पास वोट मांगने आते हैं, परन्तु चुनाव के पश्चात् वे जनता की इच्छाओं की परवाह नहीं करते। जनता अपने प्रतिनिधियों का अगले चुनाव से पहले कुछ नहीं बिगाड़ सकती, जिससे प्रतिनिधि जनता की इच्छाओं के प्रति लापरवाह हो जाते हैं।

4. राजनीतिक दलों के अवगुण (Defects of Political Parties)—प्रजातन्त्र में राजनीतिक दलों के सभी अवगुण आ जाते हैं। राजनीतिक दलों का नागरिकों के चरित्र तथा राष्ट्रीय चरित्र का बुरा प्रभाव पड़ता है। राजनीतिक दल अपने सदस्यों से वफादारी की मांग करते हैं जिससे उनकी स्वतन्त्रता नष्ट हो जाती है। राजनीतिक दल एकता को भी नष्ट करते हैं क्योंकि सारा देश उतने भागों में बंट जाता है जितने राजनीतिक दल होते हैं।

5. यह बहुत खर्चीला है (It is Highly Expensive)—प्रजातन्त्र शासन प्रणाली बहुत खर्चीली है। प्रजातन्त्र में निश्चित अवधि के पश्चात् संसद् के सदस्यों का चुनाव होता है। प्रजातन्त्र में आम चुनावों के प्रबन्ध पर बहुत धन खर्च हो जाता है। मन्त्रियों के वेतन और भत्तों पर जनता का बहुत-सा धन खर्च होता रहता है। मन्त्री देश के धन को बिना सोचे-समझे खर्च करते रहते हैं।

6. यह अमीरों का शासन है (It is a Government of the Rich)—प्रजातन्त्र कहने में तो प्रजा का शासन है परन्तु कस्तव में अमीरों का शासन है। चुनाव लड़ने के लिए धन की आवश्यकता होती है। चुनावों में लाखों रुपये खर्च होते हैं। इसलिए या तो अमीर व्यक्ति ही चुनाव लड़ सकते हैं या उनकी सहायता से ही चुनाव लड़ा जा सकता है। राजनीतिक दल भी चुनाव लड़ने के लिए पूंजीपतियों से पैसा लेते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

7. बहुमत की तानाशाही (Dictatorship of Majority)-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है जिस कारण प्रजातन्त्र में बहुमत की तानाशाही की स्थापना हो जाती है। मन्त्रिमण्डल उसी दल का बनता है जिस दल को विधानमण्डल में बहुमत प्राप्त होता है। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है वह अगले चुनाव तक मनमानी करता है।

8. यह वास्तव में बहुमत का शासन नहीं है (In Reality it is not a Rule of Majority)-आलोचकों का कहना है कि प्रजातन्त्र वास्तव में बहुमत का शासन नहीं है। यह देखा गया है कि अधिकतर व्यक्ति शासन में रुचि नहीं लेते और न ही अपने मत का प्रयोग करते हैं। इसके अतिरिक्त जो दल सरकार बनाता है उसके समर्थन में डाले गए वोट कुल डाले गए वोटों का बहुमत नहीं होता।

9. यह राष्ट्र की सांस्कृतिक तथा वैज्ञानिक उन्नति को रोकता है (It Checks the Cultural and Scientific Development of the Nation)—प्रजातन्त्र में राजनीति पर बहुत ज़ोर दिया जाता है पर साहित्य, कला, विज्ञान आदि की उन्नति की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता। ____10. अस्थायी तथा कमज़ोर शासन (Unstable and Weak Government)-जिन देशों में बहु-दलीय प्रणाली होती है वहां पर सरकारें जल्दी-जल्दी बदलती हैं। बहु-दलीय प्रणाली के अन्तर्गत किसी भी दल को बहुमत प्राप्त न होने के कारण मिली-जुली सरकार बनायी जाती है जो किसी भी समय टूट सकती है। मिली-जुली सरकार अस्थायी होने के कारण कमज़ोर भी होती है।

11. नैतिकता का स्तर गिर जाता है (The Standard of Morality is Lowered Down)-राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए झूठ, बेईमानी तथा रिश्वतखोरी का सहारा लेते हैं। चुनाव जीतने के पश्चात् मन्त्री सभी साधनों से अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करने का प्रयत्न करते हैं। इस तरह प्रजातन्त्र में नैतिकता का महत्त्व बहुत कम हो जाता

12. संकटकाल का मुकाबला करने में कमज़ोर (It is weak in time of Emergency)—किसी भी संकट का सामना करने के लिए एकता और शक्ति की ज़रूरत होती है। संकटकाल के समय निर्णय शीघ्र लेने होते हैं और उन्हें दृढ़तापूर्वक लागू करना आवश्यक होता है। परन्तु प्रजातन्त्र में निर्णय शीघ्र नहीं लिए जाते और न ही दृढ़ता से लागू किए जाते हैं। तानाशाही सरकारें संकटकाल का मुकाबला प्रजातन्त्र की अपेक्षा अधिक अच्छी प्रकार कर सकती हैं।

13. प्रजातन्त्र एक कल्पना है (Democracy is a Myth)—प्रजातन्त्र को कई लेखक व्यावहारिक नहीं मानते और उसे केवल कल्पना कहते हैं। उनका कहना है कि जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार वास्तविक नहीं होता। केवल वयस्कों को ही वोट देने का अधिकार मिलता है और चुनाव के बाद बहुमत दल अपनी मनमानी करता है, मतदाताओं को कोई नहीं पूछता।

14. समातना का सिद्धान्त अप्राकृतिक है (Principle of Equality is Unnatural)—प्रजातन्त्र का मुख्य आधार समानता का सिद्धान्त है। परन्तु आलोचना के अनुसार समानता अप्राकृतिक है। प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान पैदा नहीं किया। जब प्रकृति ने सभी मनुष्यों को समान नहीं बनाया तो, आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समानता कैसे स्थिर रह सकती है।

15. राजनीति एक व्यवसाय बन जाता है (Politics becomes a Profession)-प्रजातन्त्र में राजनीतिज्ञों का बोलबाला रहता है और उनका एक अलग वर्ग बन जाता है। ये लोग जनता को जोशीले भाषणों और झूठे वायदों से अपने पीछे लगा लेते हैं। आम व्यक्ति चालाक और स्वार्थी राजनीतिज्ञों की बातों में आ जाते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-प्रजातन्त्र के लाभ भी हैं और दोष भी। परन्तु दोषों के होते हुए भी इस प्रणाली को आजकल सर्वोत्तम माना जाता है। यही एक शासन प्रणाली है जिस में लोगों को व्यक्तिगत स्वतन्त्रता, राजनीतिक अधिकार, समानता, शासन की आलोचना करने और उसे प्रभावित करने का अवसर तथा अपने जीवन का विकास करने का अवसर सबसे अधिक मिलता है। मेजिनी का कथन है कि प्रजातन्त्र में, “सबसे अधिक बुद्धिमान और श्रेष्ठ व्यक्तियों के नेतृत्व में सर्वसाधारण की प्रगति सर्वसाधारण के द्वारा होती है।”

प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र से क्या अभिप्राय है ? प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की विशेष संस्थाओं की विवेचना करें।
(What do you understand by direct democracy ? Discuss the special institutions of direct democracy.)
उत्तर-
प्रजातन्त्र के दो रूप हैं-

  1. प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र तथा
  2. अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र।

1. प्रत्यक्ष या शुद्ध प्रजातन्त्र (Direct or Pure Democracy)-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रजातन्त्र का शुद्ध या वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है
और उनमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है तथा शासन सम्बन्धी प्रत्येक बात का निर्णय होता है। प्राचीन समय में ऐसे प्रजातन्त्र विशेष रूप से यूनान और रोम में विद्यमान थे, परन्तु आधुनिक युग में बड़े-बड़े राज्य हैं जिनकी जनसंख्या भी बहुत अधिक होती है और भू-भाग भी लम्बा-चौड़ा है। नागरिकों की संख्या भी पहले से अधिक हो गई है। आज प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। रूसो (Rousseau) प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का ही पुजारी था। इसलिए तो उसने कहा कि इंग्लैंड के लोग केवल चुनाव वाले दिन ही स्वतन्त्र होते हैं।

2. अप्रत्यक्ष या प्रतिनिधि प्रजातन्त्र (Indirect or Representative Democracy)-अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रभुत्व शक्ति जनता के पास होती है, परन्तु जनता उसका प्रयोग स्वयं न करके अपने प्रतिनिधियों द्वारा करती है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधि चुन लेती है और वे प्रतिनिधि जनता की इच्छानुसार कानून बनाते तथा शासन करते हैं। इन प्रतिनिधियों का चुनाव एक निश्चित अवधि के लिए होता है। भारत में ये प्रतिनिधि पांच वर्ष के लिए चुने जाते हैं। ब्लंटशली (Bluntschli) के शब्दों में, “प्रतिनिधि प्रजातन्त्र का यह नियम है, कि जनता अपने अधिकारियों द्वारा शासन करती है और प्रतिनिधियों द्वारा कानून का निर्माण करती है तथा प्रशासन पर नियन्त्रण रखती है।”

प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं (Institutions of Direct Democracy)—प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र पूर्ण रूप से लागू करना तो आज के युग में सम्भव नहीं, परन्तु अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के दोषों को कम करने के लिए कुछ देशों में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की कुछ संस्थाएं अपनाई गई हैं। इसके लिए स्विट्ज़रलैंड बड़ा प्रसिद्ध है। स्विट्ज़रलैंड को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का घर (Home of Direct Democracy) कहा जाता है। इन संस्थाओं द्वारा नागरिकों को कानून बनवाने और संसद् के कानूनों को लागू होने से रोकने का अधिकार दिया जाता है। स्विट्ज़रलैण्ड के कुछ कैंटनों (Cantons) में समस्त मतदाता एक स्थान पर एकत्र होकर कानून आदि बनाते हैं तथा सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति करते हैं। परन्तु समस्त देशों में ऐसा सम्भव नहीं। प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की आधुनिक संस्थाएं कुछ देशों में मिलती हैं जैसे प्रस्तावाधिकार (Initiative), जनमत संग्रह (Referendum), प्रत्यावर्तन या वापसी (Recall) तथा लोकमत संग्रह (Plebiscite), इनका सविस्तार वर्णन दिया जाता है-

1. प्रस्तावाधिकार (Initiative)-इसके द्वारा मतदाताओं को अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाने का अधिकार होता है। यदि मतदाताओं की एक निश्चित संख्या किसी कानून को बनवाने की मांग करे तो संसद् अपनी इच्छा से उस मांग को रद्द नहीं कर सकती। यदि संसद् उस प्रार्थना के अनुसार कानून बना दे तो सबसे अच्छी बात है। यदि संसद् उस मांग से सहमत न हो तो वह समस्त जनता की राय लेती है और यदि मतदाता बहुमत से उस मत का समर्थन कर दें तो संसद् को वह कानून बनाना ही पड़ता है। स्विट्ज़रलैंड में एक लाख मतदाता कोई भी कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।

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2. जनमत संग्रह (Referendum)—जनमत संग्रह द्वारा संसद् के बनाए हुए कानून लोगों के सामने रखे जाते हैं। वे कानून तभी पास हुए समझे जाते हैं यदि मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो, नहीं तो वह कानून रद्द हो जाता है। इस प्रकार यदि संसद् कोई ऐसा कानून बना भी दे जिसे जनता अच्छा न समझती हो तो उसे लागू होने से रोक सकती है। स्विट्ज़रलैण्ड में यह नियम है कि कानूनों को लागू करने से पहले जनता की राय ली जाती है। वहां पर जनमतसंग्रह दो प्रकार के होते हैं-(i) अनिवार्य जनमत संग्रह (Compulsory Referendum) तथा (ii) ऐच्छिक जनमत संग्रह (Optional Referendum) । महत्त्वपूर्ण कानून लागू होने से पहले जनमत संग्रह के लिए भेजा जाता है। यदि बहुमत कैन्टनों में तथा कुल मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो तो, उसे लागू कर दिया जाता है अन्यथा वह कानून रद्द हो जाता है। ऐच्छिक जनमत संग्रह में संसद् की इच्छा होती है कि वह साधारण कानून को लागू होने से पहले जनता की राय के लिए भेजे या न भेजे । ऐसा साधारण कानून पर होता है। परन्तु यदि 50,000 मतदाता इस बात की मांग करें कि कानून पर जनमत-संग्रह कराया जाए तो वह कानून भी जनता की राय के लिए अवश्य भेजा जाता है। ऐसे कानून पर जब बहुमत का समर्थन मिल जाए तभी वह लागू होता है। रूस में ऐच्छिक जनमत-संग्रह का सिद्धान्त अपनाया गया है। 23 अप्रैल, 1993 को रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसीन ने अपनी आर्थिक सुधार नीतियों के पक्ष में जनमत-संग्रह करवाया और लोगों ने भारी बहुमत से उनके पक्ष में मतदान किया।

3. वापसी (Recall)-इस नियम द्वारा जनता को अपने प्रतिनिधि अवधि समाप्त होने से पहले भी वापस बुलाने और दूसरा प्रतिनिधि चुन कर भेजने का अधिकार दिया जाता है। इस अधिकार द्वारा मतदाताओं की एक निश्चित संख्या अपने प्रतिनिधि को वापस बुलाने का प्रस्ताव रख सकती है। इससे प्रतिनिधियों पर मतदाताओं का स्थायी प्रभाव बना रहता है और वे कभी भी उनकी इच्छा की अवहेलना नहीं कर सकते। अमेरिका के कुछ राज्यों तथा स्विट्जरलैंड में यह नियम लागू है।

4. लोकमत संग्रह (Plebiscite)-लोकमत संग्रह राजनीतिक प्रश्न पर होता है। कानूनों पर जनता की राय जनमतसंग्रह कहलाती है। पाकिस्तान यह मांग करता है कि कश्मीर में लोकमत-संग्रह कराया जाए कि वहां के लोग भारत में रहना चाहते हैं या पाकिस्तान में ? 1935 में लोकमत-संग्रह के आधार पर ही सार (Saar) को जर्मनी में मिलाया गया। उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्तों (N.W.F.P.) को भी पाकिस्तान में लोकमत संग्रह के आधार पर ही मिलाया गया था। लोकमत-संग्रह का एक अन्य रूप भी है जिसे मतसंख्या (Opinion Poll) कहते हैं। सन् 1967 में गोवा, दमन और दियू में यह जानने के लिए कि वहां के लोग संघीय क्षेत्र ही चाहते हैं या महाराष्ट्र अथवा गुजरात में मिलना चाहते हैं। लोकमत संग्रह करवाया गया और लोगों ने संघीय क्षेत्र में बने रहने की ही इच्छा व्यक्त की।

निष्कर्ष (Conclusion)—प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं देखने में बहुत अच्छी प्रतीत होती हैं। ये संस्थाएं अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के कुछ दोषों को दूर करती हैं। परन्तु सभी देशों में इन संस्थाओं का संचालन ठीक नहीं हो सकता। इनका सफलतापूर्वक प्रयोग तो ऐसे राज्यों में हो सकता है जो छोटे हों और जहां लोग पढ़े-लिखे हों।

प्रश्न 4.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र के बीच अन्तर बताइए।
(Distinguish between Direct and Indirect Democracy.)
उत्तर-
आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। प्रजातन्त्र एक सर्वश्रेष्ठ शासन प्रणाली मानी जाती है। प्रजातन्त्र एक ऐसी सरकार को कहा जाता है जिसमें जनता को राजसत्ता का अन्तिम स्रोत समझा जाता है। प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता के द्वारा सरकार है।
प्रजातन्त्र के दो रूप हो सकते हैंप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र (Direct Democracy)-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता प्रत्यक्ष रूप में शासन में भाग लेती है।
अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र (Indirect Democracy)-अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने हुए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के बीच अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझते जाते हैं।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून के निर्माण में भाग लेती है। इसलिए जनता अपने ही बनाए गए कानूनों का अधिक पालन करती है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून निर्माण में भाग लेने के कारण कानूनों के पालन की मात्रा इतनी अधिक नहीं होती।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र की अपेक्षा जनता को अधिक राजनीति शिक्षण प्राप्त होता है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र जनता की प्रभुसत्ता पर आधारित है। प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में ही जनता अपनी इच्छा को ठीक ढंग से प्रकट कर सकती है। अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता अपने प्रतिनिधियों द्वारा अपनी इच्छा को ठीक ढंग से प्रकट नहीं कर सकती और न ही अपनी सत्ता का ठीक ढंग से प्रयोग कर सकती है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में मतदाताओं का अपने प्रतिनिधियों के साथ समीप का सम्बन्ध बना रहता है, परन्तु अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में चुनाव के पश्चात् प्रायः यह समाप्त हो जाता है।
  • प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व इतना अधिक नहीं होता जितना कि अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का महत्त्व होता है।
  • यद्यपि प्रत्यक्ष लोकतन्त्र अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र की अपेक्षा अधिक लोकतन्त्रीय होता है, परन्तु प्रत्यक्ष लोकतन्त्र जनसंख्या और आकार की दृष्टि से बड़े-बड़े राज्यों में व्यावहारिक नहीं है जबकि अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र एक व्यावहारिक व्यवस्था है।

प्रश्न 5.
उन शर्तों का उल्लेख कीजिए जो प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक हैं। (Describe the conditions which are necessary for the success of Democracy.)
अथवा
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए किन-किन स्थितियों का होना आवश्यक है ? आपके विचार में भारत में वे कहां तक मौजूद हैं ?
(What conditions are necessary for the successful working of Democracy ? In your opinion, how far do they exist in India ?)
उत्तर-
प्रजातन्त्र शासन व्यवस्था सबसे उत्तम मानी जाती है, परन्तु वास्तव में यह ऐसा शासन है जो प्रत्येक देश में सफल नहीं हो सकता। यदि उपयुक्त वातावरण में लागू किया जाए तो इसके लाभ हैं, नहीं तो इसका बुरा परिणाम निकल सकता है। इसकी सफलता के लिए एक विशेष वातावरण चाहिए। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् बहुत-से देशों ने लोकतन्त्र शासन को अपनाया, परन्तु इसमें से कई देशों में यह प्रणाली अधिक देर तक न चल पाई। इसका प्रमुख कारण यह था कि इन देशों में वह वातावरण और परिस्थितियां उपस्थित नहीं थीं जो कि प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक मानी जाती हैं। लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक काम के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता है-

1. जागरूक नागरिकता (Englihtened Citizenship)-जागरूक नागरिकता प्रजातन्त्र की सफलता की पहली शर्त है। निरन्तर देख-रेख ही स्वतन्त्रता की कीमत है। (Eternal vigilance is the price of liberty.) नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिएं। सार्वजनिक मामलों पर हर नागरिक को सक्रिय भाग लेना चाहिए। राजनीतिक समस्याओं और घटनाओं के प्रति सचेत रहना चाहिए। राजनीतिक चुनाव में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए आदि-आदि।

2. प्रजातन्त्र से प्रेम (Love for Democracy)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातन्त्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातन्त्र के प्रेम के प्रजातन्त्र कभी सफल नहीं हो सकता।

3. शिक्षित नागरिक (Educated Citizens)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातन्त्र शासन की आधारशिला है। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षित नागरिक शासन की जटिल समस्याओं को समझ सकते हैं और उनको सुलझाने के लिए सुझाव दे सकते हैं।

4. स्थानीय स्व-शासन (Local Self-Government) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन का होना आवश्यक है। स्थानीय संस्थाओं के द्वारा नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर मिलता है। ब्राइस (Bryce) का कहना है कि लोगों में स्वतन्त्रता की भावना स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं के बिना नहीं आ सकती। स्थानीय शासन को प्रशासनिक शिक्षा की आरम्भिक पाठशाला कहा जाता है। लॉर्ड ब्राइस (Lord Bryce) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन को सर्वोत्तम स्कूल और गारंटी बताता है।

5. मौलिक अधिकारों की सुरक्षा (Protection of Fundamental Rights)-प्रजातन्त्र में लोगों को कई तरह के मौलिक अधिकार दिए जाते हैं जिनके द्वारा वे शासन में भाग ले सकते हैं और अपने जीवन का विकास कर सकते हैं। इन अधिकारों की सुरक्षा संविधान द्वारा की जानी चाहिए ताकि कोई व्यक्ति या शासन उनको कम या समाप्त करके प्रजातन्त्र को हानि न पहुंचा सके।

6. आर्थिक समानता (Economic Equality)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आर्थिक समातना का होना अति आवश्यक है। लॉस्की (Laski) के कथनानुसार, “आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतन्त्रता निरर्थक है।” राजनीतिक प्रजातन्त्र केवल एक हास्य का विषय बन जाता है यदि इससे पहले आर्थिक, प्रजातन्त्र को स्थापित न किया जाए। लोगों को वोट डालने के अधिकार से पहले पेट भर भोजन मिलना चाहिए।

7. सामाजिक समानता (Social Equality)—प्रजातन्त्र की सफलता के लिए सामाजिक समानता की भावना का होना आवश्यक है। समाज में धर्म, जाति, रंग आदि के आधार पर भेद-भाव नहीं होना चाहिए।

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8. प्रेस की स्वतन्त्रता (Freedom of Press)—प्रेस को प्रजातन्त्र का पहरेदार (Watchdog of Democracy) कहा गया है। समाचार-पत्र सरकार की आलोचना करने के साथ-साथ लोगों को राजनीति की भी जानकारी देते हैं और उनको देश में होने वाली सभी घटनाओं से सूचित भी करते हैं। इन समाचार-पत्रों पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं होना चाहिए, नहीं तो लोगों को ठीक जानकारी नहीं मिल सकेगी और सरकार की आलोचना भी न हो सकेगी।

9. आपसी सहयोग की भावना (Spirit of Mutual Co-operation)—वैसे तो सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में लोगों के आपसी सहयोग की आवश्यकता होती है, परन्तु लोकतन्त्र में इस भावना का विशेष महत्त्व है। यदि लोगों में फूट और एक-दूसरे के प्रति असहयोग की भावना होगी, तो प्रजातन्त्र शासन प्रणाली की सफलता असम्भव है।

10. सहनशीलता (Toleration)-लोगों के अन्दर सहनशीलता की भावना का होना भी प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक समझा जाता है। यदि लोगों में सहनशीलता की भावना न होगी तो वे शान्ति से एक-दूसरे की बात न सुनकर आपस में लड़ते-झगड़ते रहेंगे।

11. सुसंगठित राजनीतिक दल (Well-Organised Political Parties)-दलों का संगठन जाति, धर्म, प्रान्त के आधार पर न होकर आर्थिक तथा राजनीतिक आधारों पर होना चाहिए। जो दल आर्थिक तथा राजनीतिक आधारों पर संगठित होते हैं उनका उद्देश्य देश का हित होता है। यदि देश में दो दल हों तो बहुत अच्छा है। इंग्लैंड तथा अमेरिका में प्रजातन्त्र की सफलता का मुख्य कारण इन देशों की दो दलीय प्रणाली है।

12. विवेकी और ईमानदार नेता (Wise and Honest Leaders)-नेताओं को जनता का नेतृत्व करने में विवेक और ईमानदारी से काम लेना चाहिए। यदि नेता स्वार्थी और विवेकहीन होंगे तो नाव मंझधार में फंस जाएगी और प्रजातन्त्र असफल हो जाएगा। “प्रजातन्त्र में नेता ऐसे होने चाहिएं जो दृढ़ निर्णय ले सकें और जो वास्तविक योग्यता, असाधारण कार्य सम्पदा वाले और महान् चरित्रवान् हों।”

13. शान्ति और सुरक्षा (Peace and Order)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए देश में शान्ति और सुरक्षा का वातावरण होना आवश्यक है। जिस देश में अशान्ति की व्यवस्था रहती है वहां पर नागरिक अपने व्यक्तित्व का विकास करने का प्रयत्न नहीं करते। युद्धकाल में न तो चुनाव हो सकते हैं और न ही नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त होती है। इसलिए प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शान्ति की व्यवस्था का होना आवश्यक है।

14. न्यायपालिका की स्वतन्त्रता (Independence of Judiciary)—प्रजातन्त्र को सफल बनाने में न्यायपालिका की स्वतन्त्रता भी आवश्यक है। स्वतन्त्र न्यायपालिका लोगों की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखती है और लोग अपने अधिकारों का स्वतन्त्रता से प्रयोग कर सकते हैं।

15. लिखित संविधान (Written Constitution)-कुछ विद्वानों का विचार है कि प्रजातन्त्र की सफलता के लिए लिखित संविधान का होना भी आवश्यक है। लिखित संविधान में सरकार की शक्तियों का स्पष्ट वर्णन होता है जिसके कारण सरकार जनता पर अत्याचार नहीं कर सकती। जनता को भी सरकार की सीमाओं का पता होता है।

16. स्वतन्त्र चुनाव (Independent Election)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि देश में चुनाव निष्पक्ष रूप से करवाये जाएं।

17. लोगों का उच्च नैतिक चरित्र (High Moral Character of the People)-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए लोगों का चरित्र बड़ा उच्च होना भी आवश्यक है। लोग ईमानदार, निःस्वार्थी, देश-भक्त तथा नागरिकता के गुणों से ओत-प्रोत होने चाहिएं।

18. सेना का अधीनस्थ स्तर (Subordinate Status of Army)-देश की सेना को सरकार के असैनिक अन्य (Civil Power) के अधीन रखा जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो सेना प्रजातन्त्रात्मक संस्थाओं की सबसे बड़ी विरोधी सिद्ध होगी।

19. स्वस्थ जनमत (Sound Public Opinion)-प्रजातन्त्रात्मक सरकार जनमत पर आधारित होती है, जिस कारण प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्वस्थ जनमत होना अति आवश्यक है।

20. अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व (Representation of Minorities) प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व दिया जाए। यदि अल्पसंख्यकों को संसद् में प्रतिनिधित्व नहीं दिया जा सकता तो सदैव असन्तुष्ट रहेंगे। मिल (Mill) का कहना है कि “प्रजातन्त्र के लिए यह आवश्यक है कि अल्पसंख्यकों को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त हो।”

क्या ये शर्ते भारत में विद्यमान हैं ? (Are these Conditions Present in India ?) –

यह प्रश्न बहुत-से लोगों के मन में उत्पन्न होता है कि क्या भारत में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए उचित वातावरण है ? भारतवर्ष में प्रजातन्त्र की स्थापना के इतने वर्षों बाद भी बहुत-से लोगों का विचार है कि भारत प्रजातन्त्र के लिए उपर्युक्त नहीं है। जिन लोगों को इसमें सन्देह है कि भारत में प्रजातन्त्र सफल नहीं हो सकता है, उनका कहना है कि भारत में प्रजातन्त्र की सफलता के लिए उचित वातावरण नहीं है। भारतवर्ष में निम्नलिखित परिस्थितियों का अभाव है-

  1. सचेत नागरिकता का अभाव- भारत के नागरिक शासन में रुचि नहीं लेते और न ही अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते हैं।
  2. अशिक्षित नागरिक-भारत के अधिकतर नागरिक अनपढ़ तथा गंवार हैं। अशिक्षित नागरिक चालाक नेताओं की बातों में आकर अपने मत का प्रयोग करके गलत प्रतिनिधियों को चुन लेते हैं।
  3. उच्च नैतिक स्तर का अभाव-भारत के नागरिकों का नैतिक स्तर ऊंचा नहीं है। आज कोई भी कार्य रिश्वत और सिफारिश के बिना नहीं होता है।
  4. आर्थिक असमानता-देश का धन कुछ ही लोगों के हाथ में एकत्रित है। लाखों बेरोजगार हैं जिन्हें दो समय भर पेट भोजन भी नहीं मिलता। गरीब व्यक्ति अपनी वोट को बेच देते हैं।
  5. सामाजिक असमानता–छुआछूत अभी व्यवहार में पूर्ण रूप से समाप्त नहीं हुई। जात-पात का बहुत बोलबाला है।
  6. बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहुत-से दल विद्यमान हैं। रोज किसी नए दल की स्थापना हो जाती है। कई दल धार्मिक आधार पर संगठित हैं। कई दल हिंसात्मक साधनों में विश्वास करते हैं। बहु-दलीय प्रणाली के कारण केन्द्र में सरकारें बड़ी तेजी से बदलती रहती हैं। भारत में मई, 1996 से अप्रैल, 1999 तक बहु-दलीय प्रणाली के कारण चार प्रधानमन्त्रियों को त्याग-पत्र देना पड़ा।
  7. चुनावों में हिंसा-चुनावों में हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जो लोकतन्त्र के लिए घातक सिद्ध हो सकती है।

इन सब बातों से ऐसा प्रतीत होता है कि भारत में प्रजातन्त्र का भविष्य उज्ज्वल नहीं है। इसलिए कुछ लोगों का विचार है कि भारत में प्रजातन्त्र को समाप्त करके तानाशाही की स्थापना करनी चाहिए।

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इसमें कोई शक नहीं कि भारत में वे सब बातें नहीं है जो प्रजातन्त्र को सफल बनाने में सहायक हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रजातन्त्र को समाप्त कर दिया जाए। भारत सरकार ने आरम्भ से ही ऐसे कार्य करने शुरू कर दिए हैं जिससे उचित वातावरण उत्पन्न हो जाए। शिक्षा के प्रचार की ओर विशेष ध्यान दिया गया। आर्थिक समानता को लाने के लिए पंचवर्षीय योजनाएं अपनाई गई हैं। स्वशासन की स्थापना की गई है। पिछले सोलह आम चुनावों ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारतीय जनता अपने अधिकारों तथा कर्तव्यों को समझती है। भारतीय जनता में अब जाग्रति आ चुकी है। हमारे देश के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए बहुत प्रयत्न किया। श्री लाल बहादुर शास्त्री ने पाकिस्तान के हमले के समय देश का बहुत अच्छा नेतृत्व किया।

भारत में अब तक 16 आम चुनाव हो चुके हैं। भारत में प्रत्येक आम चुनाव ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय जनता लोकतन्त्र में पूरी-पूरी श्रद्धा रखती है। भारत में प्रजातन्त्र के विकास और प्रगति के बारे में कोई शंका निराधार नहीं होगी। पाकिस्तान के साथ हुए 1965 और 1971 के युद्धों ने सिद्ध कर दिया कि भारतीय प्रजातन्त्र बहुत सबल है। भारतीय जनता में राजनीतिक परिपक्वता (Political Maturity) को देखते हुए कई विदेशी विद्वानों ने भी भारतीय प्रजातन्त्र के अच्छे स्वास्थ्य की गवाही दी है।

नि:संदेह भारतीय जनता अपने मताधिकार का प्रयोग करना जानती है और प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक शर्ते हैं। अन्त में, हम नि:संकोच यह कह सकते हैं कि भारत में लोकतन्त्रीय परम्पराओं की नींव दृढ़ होती जा रही है।

प्रश्न 6.
आप किस प्रकार की सरकार को समग्रवादी या अधिनायकवादी सरकार कहेंगे ? उदाहरण दें।
(Which government would you call a totalitarian government ? Give examples.)
अथवा अधिनायकवाद या तानाशाही क्या है ? संक्षेप में व्याख्या करें।
(What is dictatorship ? Explain briefly.)
उत्तर-
यद्यपि आधुनिक युग को प्रजातन्त्र का युग कहा जाता है, परन्तु वास्तविकता यह है कि यह युग अधिनायकतन्त्र का युग बनता जा रहा है। यह सत्य है कि सुन्दर व उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रजातन्त्र का होना अनिवार्य है, परन्तु आज संसार के कई देशों में तानाशाही पाई जाती है। लेटिन अमेरिका, अफ्रीका व एशिया के कई देशों में अधिनायकतन्त्र व्यवस्थाओं का बोलबाला है।

अधिनायकतन्त्र का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and definition of Dictatorship)-तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथ में रहती है।

फोर्ड (Ford) ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष के द्वारा गैर कानूनी शक्तियां प्राप्त करना है।” (“Dictatorship is the assumption of extra legal authority by the Head of state.”Ford).

न्यूमैन (Newman) ने तानाशाही की परिभाषा करते हुए लिखा है कि, “तानाशाही एक व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह का वह शासन है जिन्होंने राज्य में सत्ता पर नियन्त्रण कर लिया है। वह उस सत्ता का उपभोग बिना किसी रोक से करते हैं।”

अल्फ्रेड (Alfred) ने अधिनायकतन्त्र की बड़ी सुन्दर और व्यापक परिभाषा यों दी है : “अधिनायकतन्त्र उस एक व्यक्ति का शासन है जिसने स्तर और स्थिति को पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति सम्भवतः दोनों के मिश्रण द्वारा प्राप्त किया हो। उसके पास निरंकुश प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है अर्थात् यह समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है और उस सत्ता पर सीमा नहीं होनी चाहिए। वह शक्ति का प्रयोग कानून के द्वारा नहीं बल्कि स्वेच्छापूर्ण ढंग से आदेशों द्वारा करता है। अन्ततः उसकी सत्ता किसी निश्चित कार्यकाल तक सीमित नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की सीमा निरंकुश शासन से मेल नहीं खाती है।”

अल्फ्रेड की तानाशाही की परिभाषा के विश्लेषण से निम्नलिखित बातें मालूम होती हैं-

  1. यह एक व्यक्ति का शासन है।
  2. यह शक्ति या स्वीकृति या दोनों के मिश्रण पर आधारित होती है।
  3. किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता।
  4. तानाशाह की शक्तियां असीमित होती हैं।
  5. तानाशाह शासन को कानून की बजाय आदेश के अनुसार चलाता है।
  6. तानाशाही की अवधि निश्चित नहीं होती।

प्रथम महायुद्ध के पश्चात् प्रजातन्त्र शासन के विरुद्ध ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि अनेक देशों में तानाशाही की स्थापना हुई। रूस में साम्यवादी दल की तानाशाही स्थापित हो गई। जर्मनी में हिटलर ने अपनी तानाशाही स्थापित कर ली और इटली में मुसोलिनी ने फासिस्ट पार्टी के आधार पर अपनी तानाशाही को स्थापित कर लिया।

आधुनिक तानाशाही के लक्षण (Features of Modern Dictatorship)-

आधुनिक तानाशाही के निम्नलिखित लक्षण हैं-

1. राज्य की निरंकुशता (Absoluteness of the State)-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं। तानाशाही सरकार की शक्तियां असीमित होती हैं। जिन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता। हिटलर और मुसोलिनी का कहना था, “सब कुछ राज्य के अन्दर है, राज्य के बाहर कुछ भी नहीं तथा राज्य के ऊपर कुछ भी नहीं है।”

राज्य सर्वशक्ति-सम्पन्न होता है। तानाशाही सरकार जो चाहे कर सकती है। जनता को सरकार का विरोध करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।

2. राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है (State is an End and individual is a Means) तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अतः नागरिकों का कर्त्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।

3. राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाना (No distinction is made between State and Society)-आधुनिक तानाशाही में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना जाता। आधुनिक तानाशाही के समर्थकों के अनुसार राज्य को व्यक्ति के प्रत्येक क्षेत्र को नियमित करने तथा उसके प्रत्येक कार्यों में हस्तक्षेप करने का अधिकार
है।

4. राजनीतिक दल का अभाव या एकदलीय (Either Partyless or One Party System)-अधिनायकतन्त्र में या तो कोई भी राजनीतिक दल नहीं होता जैसा कि पाकिस्तान में अयूब खां और याहिया खां के समय में था या फिर एक दल होता है। तानाशाही में एक दल का शासन होता है। जर्मनी में नाजी पार्टी तथा इटली में फासिस्ट पार्टी का शासन था। चीन में साम्यवादी दल का शासन है। अतः तानाशाही राज्यों में विरोधी दल का निर्माण नहीं किया जा सकता।

5. एक नेता का गुण-गान (Glorification of one Leader)-तानाशाही में एक पार्टी का शासन होता है, . पार्टी के नेता को ही देश का नेता माना जाता है। नेता को दूसरे व्यक्तियों से श्रेष्ठ माना जाता है। नेता में पूर्ण विश्वास किया जाता है और उसे राष्ट्रीय एकता का प्रतीक माना जाता है। उसकी सत्ता का कोई विरोध नहीं कर सकता। इस प्रकार तानाशाही में एक पार्टी, एक नेता तथा एक प्रोग्राम होता है।

6. अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का न होना (Absence of Rights and Liberties) तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित कर दिया जाता है। यदि नागरिकों को अधिकार दिए भी जाते हैं तो वे नाममात्र के होते हैं। तानाशाही में नागरिकों को जो अधिकार प्राप्त हैं वे वास्तव में अधिकार नहीं होते क्योंकि उनके अधिकार तानाशाह की दया पर निर्भर करते हैं।

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7. कार्यकाल निश्चित नहीं होता (Term not Fixed)-अधिनायक का कार्यकाल निश्चित नहीं होता। जब तक वह अपनी सैनिक शक्ति को बनाए रखेगा वह अपने पद पर आसीन रह सकता है।

8. हिंसा तथा शक्ति में विश्वास (Faith in Violence and Force)-आधुनिक तानाशाही शक्ति पर आधारित है। तानाशाही शासन शान्ति तथा अहिंसा के स्थान पर युद्ध तथा हिंसात्मक साधनों में विश्वास करते हैं।

9. साम्राज्यवादी नीति (Imperialistic Policy) तानाशाही साम्राज्यवादी नीति में विश्वास करते हैं। तानाशाह शक्ति के बल पर अपने राज का विस्तार करने के पक्ष में है।

10. प्रेस तथा रेडियो पर नियन्त्रण (Control over Press and Radio) तानाशाही में प्रेस तथा रेडियो पर नियन्त्रण होता है। प्रेस तथा रेडियो का प्रयोग सरकार की नीतियों का प्रसार करने के लिए किया जाता है।

11. अन्तर्राष्ट्रीयवाद का विरोध (Opposed to Internationalism) आधुनिक तानाशाह अन्तर्राष्ट्रीयवाद में विश्वास नहीं करते। तानाशाह प्रत्येक समस्या का समाधान शक्ति के आधार पर करना चाहते हैं। 1965 ई० में पाकिस्तान ने कश्मीर को शक्ति द्वारा हड़पना चाहा। 1962 में साम्यवादी चीन ने भारत पर आक्रमण करके भारत के एक विस्तृत भाग पर कब्जा कर लिया।

12. धर्म के विरुद्ध (Hostile to Religion)—सर्वशक्तिमान राज्य धर्म के विरुद्ध होता है। साम्यवादी देशों में धर्म को ‘जनता के लिए अफीम’ माना जाता है।

13. जातीयता (Racialism)-तानाशाही अपनी जाति को अन्य जातियों के मुकाबले में श्रेष्ठ मानते हैं और इसका प्रचार भी करते हैं। जर्मनी के लोग अपने आप को संसार के सब लोगों से श्रेष्ठ मानते थे। मुसोलिनी ने अपनी जाति की श्रेष्ठता का प्रचार किया था।

प्रश्न 7.
अधिनायकवादी सरकार के गुण एवं दोषों की व्याख्या करें। (Describe the merits and demerits of Dictatorship.)
उत्तर-
अधिनायकवाद अथवा तानाशाह के गुण-तानाशाही में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं-
1. दृढ़ तथा स्थिर शासन (Strong and Stable Government) तानाशाही का प्रमुख गुण यह है कि इस शासन व्यवस्था में शासन दृढ़ तथा स्थिर होता है। शासन की सब शक्तियां एक ही व्यक्ति में निहित होती हैं और शक्ति के आधार पर ही तानाशाही सरकार स्थापित की जाती है। तानाशाह अपनी पदवी के लिए किसी पर निर्भर नहीं करता। उसे चुनाव लड़ने नहीं पड़ते और न ही वह किसी के प्रति उत्तरदायी होता है। वह एक बार जो संकल्प कर लेता है उसी पर दृढ़ रहता है। शासन में स्थिरता आती है जिससे शासन की नीति में निरन्तरता बनी रहती है।

2. शासन में कुशलता (Efficiency in Administration)-तानाशाह ऊंचे पदों पर योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करता है और शासन में से घूसखोरी, लाल फीताशाही (Red Tapism) तथा पक्षपात को समाप्त करता है। वह आवश्यकता के अनुसार निर्णय ले सकता है। इस प्रकार तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीति को जल्दी लागू करता है और शासन में कुशलता आती है।

3. संकटकाल के लिए उचित सरकार (Suitable Government in time of Emergency) तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए उचित है। शासन की समस्त शक्तियां तानाशाह में केन्द्रित होती हैं। निर्णय शीघ्र हो सकते हैं और उन निर्णयों को दृढ़ता से लागू किया जा सकता है।

4. नीति में एकरूपता (Consistent Policy) तानाशाही में नीति में एकरूपता रहती है। जब तक एक तानाशाही सत्ता में रहता है तब तक नीति में एकरूपता बनी रहती है। तानाशाह प्रायः अपनी नीतियों में परिवर्तन नहीं करते क्योंकि ऐसा करना उन के हित में नहीं होता।

5. राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण (Building of National Character)-अधिनायकतन्त्र में शिक्षा प्रणाली में सुधार करके नवयुवकों में देशभक्ति, आत्मत्याग तथा बलिदान की भावनाएं भरी जाती हैं। अधिनायकतन्त्र में राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण पर बहुत अधिक जोर दिया जाता है।

6. उचित नियमों पर आधारित (It is based on sound Principles)-तानाशाही इस उचित नियम पर आधारित है कि प्रत्येक शासन चलाने के योग्य नहीं है। योग्य व्यक्ति ही देश का शासन चला सकते हैं। तानाशाही में योग्य व्यक्तियों को ही उचित पदों पर नियुक्त किया जाता है। तानाशाही में तानाशाह सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति होता है, जो जनता का नेतृत्व करता है।

7. प्रशासन खर्चीला नहीं है (Administration is not Costly)-प्रजातन्त्र में चुनावों पर करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं और राज्यों में दर्जनों मन्त्री, गवर्नर, सैंकड़ों संसद् सदस्य होते हैं जबकि तानाशाही में एक व्यक्ति का शासन होता है। तानाशाही में चुनाव नहीं होते जिसमें करोड़ों रुपयों की बचत होती है।

8. राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है (National Prestige is Enhanced)-तानाशाही व्यवस्था में शक्तिशाली सरकार
की स्थापना की जाती है जिससे राष्ट्र की शक्ति बढ़ती है और शक्ति की वृद्धि से राष्ट्र का सम्मान बढ़ता है। हिटलर ने जर्मनी की प्रतिष्ठा को बढ़ाया और मुसोलिनी ने इटली की खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से कायम किया। साम्यवादी क्रान्ति के बाद सोवियत संघ ने अपने राज्य का अत्यधिक विकास किया था क्योंकि वहां साम्यवादी दल की तानाशाही पाई जाती थी।

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9. सामाजिक तथा उत्सर्धक विकास (Social aod Economic Progress).- तानाशाही में देश की सामाजिक तथा आर्थिक उन्नत बहुत होती है । तानाशाही जनता क आर्थिक विकास की ओर विशेष ध्यान देता है और देश को आत्मनिर्भर बनाने का यह करता है। कृषि वियोग, साहिरक कला आदि क्षेत्रों में बहुत उन्नति होती है।

10. राष्ट्रीय एकता (National Solidarity)-तानाशाही में शासक का लोगों पर और लोगों के हर पक्ष पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। लोगों को चुनाव, भाषण आदि सम्वनी अधिकार नहीं मिलते। ये अधिकार लोगों में किसी हद तक फूट आदि के कारण बन जाते हैं। दूसरे तानाशाह युद्ध का वातावरण बनाए रखते हैं। इन सब बातों से देश के लोगों में आपसी एकता और देशभवित की भावना प्रकण्ड हो अन्दा है।

तानाशाही शासन के दोष (Demerits Of Dictattirship)-

तानाशाही में अनेक गुण के होते हुए भी इस शास:: :: गली का अच्छा नहीं समझा जाता। तानाशाह व्यवस्था में निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

  • यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है (It is based on Force and Violence) तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। वास्तव में राज्य का आधार शक्ति न हो कर जनता की इच्छा होनी चाहिए। जो शासनवता की इच्छा पर निर्भर करता है वही स्थिर हो सकता
  • व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता (No Importance is given to the Individual) तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।
  • नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती (No rights and Liberties to the Citizens)तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त नहीं होतीं। अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता ! इस शासन-व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को समाप्त कर दिया जाता है।
  • अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध करता है (It opposes Internationalism)-आज का युग अन्तर्राष्ट्रीयता का युग है। एक देश दूसरे देश के सहयोग पर निर्भर करता है, परन्तु तानाशाही व्यवस्था अन्तर्राष्ट्रीयता में विश्वास नहीं करती। मुसोलिनी तथा हिटलर ने लीग ऑफ नेशन्ज़ (League of Nations) को असफल बनाने के भरसक प्रयत्न किए। इस प्रकार तानाशाही अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति के लिए खतरा है।
  • विस्तार की नीति (Policy of Expansion) तानाशाही साम्राज्यवाद में विश्वास करती है। तानाशाह सदैव राज्य के विस्तार की नीति को अपनाता है। मुसोलिनी कहा करता था—“इटली का विस्तार करो या मिट जाओ।” विस्तार की नीति से युद्धों का उदय होता है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि तानाशाह सदैव युद्ध में लगे रहते हैं।
  • निर्बल उत्तराधिकारी (Weak Successors)—यह आवश्यक नहीं कि तानाशाह का उत्तराधिकारी योग्य और बुद्धिमान् हो। इतिहास से पता चलता है कि बुद्धिमान् तानाशाह के उत्तराधिकारी अयोग्य और निर्बल ही हुए हैं। मुसोलिनी और हिटलर के पश्चात् इटली तथा जर्मनी को कोई योग्य उत्तराधिकारी नहीं मिल सका।
  • क्रान्ति का डर (Fear of Revolution)-तानाशाह शक्ति के ज़ोर पर शासन चलाता है और अपने प्रतिद्वन्द्वियों को कुचल डालता है। तानाशाह के विरोधियों को शासन बदलने के लिए क्रान्ति का सहारा लेना पड़ता है।
  • चरित्र के विकास में बाधा (It hinders the development of Character) तानाशाही में लोगों में आत्मनिर्भरता की भावना का अभाव होता है। उनका धैर्य कम हो जाता है और उनकी सार्वजनिक मामलों में रुचि कम हो जाती है। इससे उनके चरित्र के निर्माण में बाधा उत्पन्न होती है जिससे उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता।
  • यह नागरिकों में उदासीनता उत्पन्न करता है (It creates a feelins of apathy among the Citizens)- तानाशाही में शासन की सत्ता एक काका के पास केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन से दूर रखा जाता है, जिससे जनता में शासन के प्रति उदासीनत उत्पन्न हो जाती है अतः वे राज्य के कार्यों में रुचि लेना बन्द कर देते हैं।

निष्कर्ष (Conclusion)-तानाशाही के गुणों तथा अवगुणों के अध्ययन के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए तथा आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए अच्छी सरकार है। परन्तु स्थायी रूप में यह शासन प्रणाली अच्छी नहीं है। तानाशाही प्रजातन्त्र का विकल्प नहीं हो सकता। प्रजातन्त्रीय सरकार के मुकाबले में तानाशाही सरकार दोषपूर्ण है, क्योंकि इसमें व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को नष्ट किया जाता है। आज का युग तानाशाही का युग नहीं है। इसलिए संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्र को अपनाया गया है।

प्रश्न 8.
लोकतान्त्रिक और अधिनायकतन्त्रीय सरकारों में क्या अन्तर है ? उदाहरण सहित समझाइए।
(What is the distinction between a D mocratic and an authoritarian Governacht? Give example.)
अथवा
यदि तुम से प्रजातन्त्र और तानाशाही में से एक को चनन को कहा जाmissing तो किस चुनोगे ? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क दीजिए।
(If you were to choose between Democracy and Dictatorship which one would you prefer? Give arguments to support your answer.)
उत्तर-
प्रथम महायुद्ध के पश्चात् इटली तथा जर्मनी से प्रनारान्त्रिक सरकारों को समाप्त करके मुसोलिनी तथा हिटलर ने तानाशाही को स्थापित किया। द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् चीन, युगोस्लाविया, बुल्गारिया, रूमानिया, हंगरी, पोलैंड इत्यादि साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही स्थापित की गई। परन्तु अब रूमानिया, पोलैंड, युगोस्लाविया, हंगरी, रूस आदि देशो में बहु-दलीय पद्धति को अपनाया गया है। चीन, क्यूबा, उत्तरी कोरिया आदि देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही ही पाई जाती है।

परन्तु संसार के अधिकांश देशों में प्रजातन्त्रीय सरकारें पाई जाती हैं । इंग्लैण्ड, अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, स्विट्ज़रलैण्ड, जापान तथा भारत इत्यादि महान् देशों में प्रजातन्त्र को ही अपनाया गया है। 1989 में अनेक साम्यवादी देशों में साम्यवादी दल की तानाशाही समाप्त करके बहु-दलीय लोकतन्त्र को अपनाया गया है। यहां तक कि साम्यवाद के आधार स्तम्भ सोवियत संघ का विघटन होने के बाद वहां भी लोकतान्त्रिक व्यवस्था को अपनाया गया है। प्रजातन्त्र तथा तानाशाही शासन एक-दूसरे के विरोधी हैं। दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। प्रजातन्त्र और तानाशाही शासन में तुलनः ऋना बड़ा ही मनोरंजक है। यदि मुझे प्रजातन्त्र और तानाशाही में से एक चुनने को कहा जाए तो मैं प्रजातन्त्र को करूंगा। इन दोनों में अन्तर करने पर हम देखते हैं कि अग्र कारणों से लोकतन्त्र को तानाशाही की अपेक्षा अधिक किया जाता है

प्रजातन्त्र (Democracy) –

  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। प्रजातन्त्र में जनता स्वयं प्रत्यक्ष तौर पर अथवा अपने प्रतिनिधियों के द्वारा शासन में भाग लेती है।
  • जनमत पर आधारित-प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित है।
  • सरकार को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा बदला जा सकता है-जनता जिस सरकार को पसन्द नहीं करती, उसे चुनावों में हटा दिया जाता है। प्रजातन्त्र में निश्चित अवधि के पश्चात् चुनाव करवाए जाते हैं, जिससे नागरिकों को सरकार बदलने का अवसर प्राप्त हो जाता है।
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास-प्रजातन्त्र में व्यक्ति को महत्त्व दिया जाता है। राज्य का उद्देश्य करना न होकर राज्य का विकास करना होता है। राज्य साध्य तथा व्यक्ति साधन होता है।
  • व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर बल-प्रजातन्त्र में नागरिकों के अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं की ओर विशेष ध्यान दिया जाता है।
  • समानता पर आधारित-सभी नागरिकों को शासन में भाग लेने का समान अधिकार प्राप्त होता है और कानून के सामने भी नागरिकों को समान माना जाता है।
  • शान्ति तथा व्यवस्था में विश्वास-प्रजातन्त्र शान्ति तथा व्यवस्था में विश्वास रखता है। प्रजातन्त्र हिंसात्मक साधनों को अनुचित मानता है।
  • साम्राज्यवाद के विरुद्ध-प्रजातन्त्र साम्राज्यवाद के विरुद्ध है। प्रजातन्त्र का विश्वास है कि प्रत्येक राष्ट्र को पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त होनी चाहिए अर्थात् प्रत्येक राष्ट्र का राज्य होना चाहिए।
  • प्रत्येक निर्णय तर्क तथा वाद-विवाद से लिया जाता है-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय पर पहुंचने से पहले वाद-विवाद होता है और फिर निर्णय किया जाता है।
  • सरकार की आलोचना का अधिकार-प्रजातन्त्र में जनता को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त होता है।
  • दलों का होना अनिवार्य-प्रजातन्त्र में कम-से- कम दो दल अवश्य होते हैं। बिना राजनीतिक दलों के प्रजातन्त्र को सफल नहीं बनाया जा सकता।
  • राज्य और सरकार में भेद-प्रजातन्त्र में राज्य और सरकार में भेद किया जाता है। सरकार राज्य का एक अंग होती है। सरकार की शक्तियां सीमित होती हैं। सरकार अपनी शक्तियां जनता से प्राप्त करती है।
  • सरकार का उत्तरदायित्त्व-प्रजातन्त्र में सरकार अपने सब कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होती है और विशेष कर संसदीय शासन प्रणाली में विधानमण्डल के प्रति भी उत्तरदायी होती है।

तानाशाही (Dictatorship) –

  •  एक व्यक्ति अथवा एक पार्टी का शासन तानाशाही के शासन की सत्ता एक व्यक्ति में केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • शक्ति पर आधारित तानाशाही का आधार निरंकुश शक्ति है।
  • सरकार को केवल क्रान्ति द्वारा बदला जा सकता है-तानाशाही में सरकार को केवल विद्रोह अथवा क्रान्ति के द्वारा ही बदला जा सकता है। सरकार को शान्तिपूर्ण ढंग से नहीं बदला जा सकता, क्योंकि इस शासन-व्यवस्था में चुनाव की कोई व्यवस्था नहीं होती।
  • राज्य का विकास-तानाशाही में राज्य को महत्त्व दिया जाता है। प्रजातन्त्र में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों का विकास व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास करना होता है।
  • अधिकार व स्वतन्त्रताएं नाममात्र की तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं नाममात्र की ही प्राप्त होती हैं। तानाशाही में नागरिकों के कर्त्तव्य पर बहुत बल दिया जाता है।
  • समानता के सिद्धान्त को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में कुछ व्यक्तियों को श्रेष्ठ माना जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को शासन में भाग लेने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • युद्ध तथा हिंसा में विश्वास-तानाशाही युद्ध तथा हिंसा में विश्वास रखता है। तानाशाह का विश्वास है कि प्रत्येक समस्या का समाधान शक्ति द्वारा किया जा सकता है।
  • साम्राज्यवाद में विश्वास-तानाशाह विस्तार की नीति में विश्वास रखता है। तानाशाही में यह नारा लगाया जाता है कि “विस्तार करो या मिट जाओ।” तानाशाही अन्तर्राष्ट्रीयता का विरोध करता है।
  • वाद-विवाद का कोई महत्त्व नहीं- तानाशाही में वाद-विवाद से काम नहीं किया जाता। तानाशाह बिना किसी की सलाह लिए भी निर्णय कर लेता है।
  • सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता-तानाशाही में किसी को सरकार की आलोचना करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • कोई दल नहीं अथवा एक दल-तानाशाही में या तो दल होता ही नहीं और यदि होता है तो केवल एक दल। तानाशाह उसी दल का नेता होता है।
  • राज्य और सरकार में कोई भेद नहीं-तानाशाह को ही राज्य तथा सरकार माना जाता है। राज्य की समस्त शक्तियां तानाशाह के पास होती हैं और उस पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं होता।
  • अनुत्तरदायित्व सरकार-तानाशाही में शासक जनता अथवा विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। शासक अपनी मनमानी कर सकता है और शासक पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं होता है।

कौन-सी प्रणाली सबसे अधिक अच्छी है (Which of them is better ?)-दोनों प्रणालियों के गुणों और दोषों को सम्मुख रखते हुए यह कहा जा सकता है कि प्रजातन्त्र अधिक अच्छी प्रणाली है। इस प्रणाली में व्यक्ति को व्यक्ति ही समझा जाता है, पशु नहीं। व्यक्ति के विकास और उत्थान के लिए आवश्यक वातावरण केवल प्रजातन्त्र में ही मिल सकता है। अनेक साम्यवादी देशों में बहु-दलीय लोकतन्त्र की स्थापना हो जाना लोकतन्त्र की श्रेष्ठता को ही साबित करता है।

इसमें शक नहीं कि प्रजातन्त्र के कई दोष भी हैं परन्तु ये दोष प्रजातन्त्र शासन प्रणाली के अपने नहीं हैं बल्कि लोगों में कुछ आवश्यक गुणों के अभाव से उत्पन्न होते हैं। अनुभव इस बात को स्पष्टतया सिद्ध करता है कि जिन देशों में ये आवश्यक गुण और परिस्थितियां जितनी अधिक विद्यमान होती हैं, प्रजातन्त्र उतना ही सफलतापूर्वक काम करता है। इंग्लैण्ड में राजतन्त्रीय ढांचे के होते हुए भी लोकतन्त्रीय प्रणाली बड़े अच्छे ढंग से कार्य कर रही है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र का अर्थ बताओ।
उत्तर-
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिलकर बना है। डिमोस का अर्थ है लोग और क्रेटिया का अर्थ है ‘शक्ति’ या ‘सत्ता’। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथ में हो। दूसरे शब्दों में लोकतन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।

  • प्रो० डायसी का कहना है कि, “प्रजातन्त्र ऐसी शासन प्रणाली है, जिसमें शासक वर्ग समाज का अधिकांश भाग हो।”
  • प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
  • लोकतन्त्र की बहुत सुन्दर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राह्म लिंकन ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

प्रश्न 2.
लोकतन्त्र की चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
लोकतन्त्र की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • जनता की प्रभुसत्ता-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।
  • जनता का हित-प्रजातन्त्र में शासन जनता के हित के लिए चलाया जाता है।
  • समानता-समानता प्रजातन्त्र का मूल आधार है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक मनुष्य को समान समझा जाता है। जन्म, जाति, शिक्षा, धन आदि के आधार पर मनुष्यों में भेद-भाव नहीं किया जाता। सभी मनुष्यों को समान राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होते हैं।

प्रश्न 3.
प्रजातन्त्र के चार गुण लिखें।
उत्तर-
प्रजातन्त्र में निम्नलिखित गुण पाये जाते हैं

  • यह सर्वसाधारण के हितों की रक्षा करता है-प्रजातन्त्र की यह सब से बड़ी विशेषता है कि इसमें राज्य के किसी विशेष वर्ग के हितों की रक्षा न करके समस्त जनता के हितों की रक्षा की जाती है।
  • यह जनमत पर आधारित है-प्रजातन्त्र शासन जनमत पर आधारित है अर्थात् शासन जनता की इच्छानुसार चलाया जाता है। जनता अपने प्रतिनिधियों को निश्चित अवधि के लिए चुनकर भेजती है। यदि प्रतिनिधि जनता की
    इच्छानुसार शासन नहीं चलाते तो उन्हें दोबारा नहीं चुना जाता है। इस शासन प्रणाली में सरकार जनता की इच्छाओं की ओर विशेष ध्यान देती है।
  • यह समानता के सिद्धान्त पर आधारित है-प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को समान माना जाता है। किसी भी व्यक्ति को जाति, धर्म, लिंग के आधार पर कोई विशेष अधिकार नहीं दिए जाते। प्रत्येक वयस्क को बिना भेदभाव के मतदान, चुनाव लड़ने तथा सार्वजनिक पद प्राप्त करने का समान अधिकार प्राप्त होता है। सभी मनुष्यों को कानून के सामने समान माना जाता है।
  • जनता को राजनीतिक शिक्षा मिलती है-प्रजातन्त्र में नागरिकों को अन्य शासन प्रणालियों की अपेक्षा अधिक राजनीतिक शिक्षा मिलती है।

प्रश्न 4.
लोकतन्त्र के चार दोष लिखें।
उत्तर-
जहां एक ओर लोकतन्त्र में इतने गुण पाए जाते हैं वहीं दूसरी ओर इसमें निम्नलिखित अवगुण भी पाए जाते हैं-

  • यह अज्ञानियों, अयोग्य तथा मूल् का शासन है-प्रजातन्त्र को अयोग्यता की पूजा बताया जाता है। इसका कारण यह है कि जनता में अधिकांश व्यक्ति अयोग्य, मूर्ख, अज्ञानी तथा अनपढ़ होते हैं।
  • यह गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व देता है-प्रजातन्त्र में गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है। यदि किसी विषय को 60 मूर्ख ठीक कहें और 59 बुद्धिमान् ग़लत कहें तो मूों की ही बात को माना जाएगा। इस प्रकार लोकतन्त्र में मूल् का शासन होता है।
  • यह उत्तरदायी शासन नहीं है-वास्तव में प्रजातन्त्र अनुत्तरदायी शासन है। इसमें नागरिक केवल चुनाव वाले दिन ही सम्प्रभु होते हैं । परन्तु चुनावों के पश्चात् नेता जानते हैं कि जनता उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकती अतः वे अपनी मनमानी करते हैं।
  • बहुमत की तानाशाही-प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से किया जाता है, जिस कारण प्रजातन्त्र में बहुमत की तानाशाही की स्थापना हो जाती है।

प्रश्न 5.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
प्रत्यक्ष या शुद्ध प्रजातन्त्र-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र ही प्रजातन्त्र का वास्तविक रूप है। जब जनता स्वयं कानून बनाए, राजनीति को निश्चित करे तथा सरकारी कर्मचारियों पर नियन्त्रण रखे, उस व्यवस्था को प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र कहते हैं। समय-समय पर समस्त नागरिकों की सभा एक स्थान पर बुलाई जाती है और उसमें सार्वजनिक मामलों पर विचार होता है तथा शासन-सम्बन्धी प्रत्येक बात का निर्णय होता है। प्राचीन समय में ऐसे प्रजातन्त्र विशेष रूप से यूनान और रोम में विद्यमान थे, परन्तु आधुनिक युग में बड़े-बड़े राज्य हैं जिनकी जनसंख्या भी बहुत अधिक है और भू-भाग भी बड़ा है। नागरिकों की संख्या भी पहले से अधिक हो गई है। अतः प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है। रूसो प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र का ही पुजारी था इसीलिए उसने कहा है कि इंग्लैंड के लोग केवल चुनाव वाले दिन ही स्वतन्त्र होते हैं।

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प्रश्न 6.
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाओं के नाम लिखें और किन्हीं दो का वर्णन करें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की संस्थाएं कुछ देशों में मिलती हैं जैसे प्रस्तावाधिकार, जनमत संग्रह, प्रत्यावर्तन या वापसी, लोकमत संग्रह आदि।

1. प्रस्तावाधिकार-इसके द्वारा मतदाताओं को अपनी इच्छा के अनुसार कानून बनाने का अधिकार होता है। यदि मतदाताओं की एक निश्चित संख्या किसी कानून को बनवाने की मांग करे तो संसद् अपनी इच्छा से उस मांग को रद्द नहीं कर सकती। यदि संसद् उस प्रार्थना के अनुसार कानून बना दे तो सबसे अच्छी बात है। यदि संसद् उस मांग से सहमत न हो तो वह समस्त जनता की राय लेती है और यदि मतदाता बहुमत से उस मत का समर्थन कर दें तो संसद् को वह कानून बनाना ही पड़ता है। स्विट्ज़रलैंड में 1,00,000 मतदाता कोई भी कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।

2. जनमत संग्रह-जनमत संग्रह द्वारा संसद् के बनाए हुए कानून लोगों के सामने रखे जाते हैं। वे कानून तभी पास हुए समझे जाते हैं यदि मतदाताओं का बहुमत उनके पक्ष में हो, नहीं तो वह कानून रद्द हो जाता है। इस प्रकार यदि संसद् कोई ऐसा कानून बना भी दे जिसे जनता अच्छा न समझती हो तो जनता उसे लागू होने से रोक सकती है। स्विट्जरलैंड में यह नियम है कि कानूनों को लागू करने से पहले जनता की राय ली जाती है। रूस में ऐच्छिक जनमतसंग्रह का सिद्धान्त अपनाया गया है।

प्रश्न 7.
आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र क्यों नहीं सम्भव है ?
उत्तर-
आधुनिक युग में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र सम्भव नहीं है। इसका कारण यह है कि आधुनिक राज्य आकार और जनसंख्या दोनों ही दृष्टियों में विशाल है। भारत, चीन, अमेरिका, रूस आदि देशों की जनसंख्या करोड़ों में है। इन देशों में प्रत्यक्ष लोकतन्त्र को अपनाना सम्भव नहीं है। भारत में जनमत-संग्रह करवाना आसान कार्य नहीं है और न ही प्रस्तावाधिकार या उपक्रमण (Initiative) द्वारा जनता की इच्छानुसार कानून बनाए जा सकते हैं। भारत में आम चुनाव करवाने पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं और चुनाव व्यवस्था पर बहुत अधिक समय लगता है। अतः प्रत्यक्ष लोकतन्त्र की संस्थाओं को लागू करना सम्भव नहीं है। आधुनिक युग में लोकतन्त्र का अर्थ लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष शासन ही है।

प्रश्न 8.
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र के बीच अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों के द्वारा चलाया जाता है।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझे जाते हैं।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता स्वयं कानून के निर्माण में भाग लेती है। इसलिए जनता अपने ही बनाए गए कानूनों का अधिक पालन करती है जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में जनता के स्वयं कानून निर्माण में भाग लेने के कारण कानूनों के पालन की मात्रा इतनी अधिक नहीं होती।
  • प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की अपेक्षा जनता को अधिक राजनीतिक शिक्षण मिलता है।

प्रश्न 9.
प्रजातन्त्र की सफलता के लिए किन्हीं चार आवश्यक शर्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
लोकतन्त्र के सफलतापूर्वक काम करने के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना आवश्यक समझा जाता है-

  • जागरूक नागरिक-जागरूक नागरिकता प्रजातन्त्र की सफलता की पहली शर्त है। निरन्तर देख-रेख ही स्वतन्त्रता की कीमत है। नागरिक अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होने चाहिएं।
  • प्रजातन्त्र से प्रेम-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों के दिलों में प्रजातन्त्र के लिए प्रेम होना चाहिए। बिना प्रजातन्त्र से प्रेम के प्रजातन्त्र कभी सफल नहीं हो सकता।
  • शिक्षित नागरिक-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए शिक्षित नागरिकों का होना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक प्रजातन्त्र शासन की आधारशिला हैं। शिक्षा से ही नागरिकों को अपने अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का ज्ञान होता है।
  • स्थानीय स्वशासन-प्रजातन्त्र की सफलता के लिए स्थानीय स्वशासन का होना आवश्यक है। स्थानीय संस्थाओं के द्वारा नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर मिलता है।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 14 सरकारों के रूप-प्रजातन्त्र एवं अधिनायकवादी सरकारें

प्रश्न 10.
अधिनायकवाद या तानाशाही का अर्थ एवं परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है।
फोर्ड ने तानाशाही की परिभाषा देते हुए कहा है, “तानाशाही राज्य के अध्यक्ष द्वारा गैर-कानूनी शक्ति प्राप्त करना है।”
अल्फ्रेड ने अधिनायकतन्त्र की बड़ी सुन्दर और विस्तृत परिभाषा इस प्रकार दी है, “अधिनायकतन्त्र उस व्यक्ति का शासन है जिसने स्तर और स्थिति के पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति सम्भवतः दोनों के मिश्रण से प्राप्त किया हो। उसके पास निरंकुश प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है अर्थात् वह समस्त राजनीतिक सत्ता का स्रोत है और उस सत्ता पर सीमा नहीं होनी चाहिए। वह शक्ति का प्रयोग कानून के द्वारा नहीं स्वेच्छापूर्ण ढंग से आदेशों द्वारा करता है। अन्ततः उसकी सत्ता किसी निश्चित कार्यकाल तक सीमित नहीं होनी चाहिए क्योंकि इस प्रकार की सीमा निरंकुश शासन से मेल नहीं खाती है।”

प्रश्न 11.
आधुनिक तानाशाही की चार विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
आधुनिक तानाशाही की निम्नलिखित चार विशेषताएं हैं-

  • राज्य की निरंकुशता-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं। तानाशाही सरकार की शक्तियां असीमित हैं जिन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
  • राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है-तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।
  • राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाता-आधुनिक तानाशाही में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना जाता। आधुनिक तानाशाही के समर्थकों के अनुसार राज्य को व्यक्ति के प्रत्येक क्षेत्र को नियमित करने तथा उसके प्रत्येक कार्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
  • अधिकारों और स्वतन्त्रताओं का न होना-तानाशाही में नागरिकों को अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित कर दिया जाता है।

प्रश्न 12.
तानाशाही के चार गुण लिखो।।
उत्तर-
तानाशाही में निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं –

  • दृढ़ तथा स्थिर शासन-तानाशाही का प्रथम गुण यह है कि इससे शासन में स्थिरता आती है। वह एक बार जो संकल्प कर लेता है उसी पर दृढ़ रहता है, इससे शासन में स्थिरता और नीतियों में निरन्तरता आती है।
  • शासन में कुशलता-तानाशाह ऊंचे पदों पर योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करता है और शासन में घूसखोरी, लाल फीताशाही तथा पक्षपात को समाप्त करता है। वह आवश्यकता के अनुसार निर्णय लेता है। इस प्रकार तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीतियों को लागू करता है जिससे शासन में कार्यकुशलता आती है।
  • संकटकाल के लिए उचित सरकार-तानाशाही सरकार संकटकाल के लिए उचित है। शासन की समस्त शक्तियां तानाशाह में केन्द्रित होती हैं। निर्णय शीघ्र ही ले लिए जाते हैं और उन निर्णयों को कठोरता एवं दृढ़ता से लागू किया जाता है।
  • नीति में एकरूपता-तानाशाही में नीति में एकरूपता बनी रहती है।

प्रश्न 13.
तानाशाही के कोई चार दोष लिखो।
उत्तर-
तानाशाही में अनेक गुणों के होते हुए भी इस शासन प्रणाली को अच्छा नहीं समझा जाता। इसमें निम्नलिखित दोष पाए जाते हैं-

  • यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है-तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।
  • नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रता प्राप्त नहीं होती-तानाशाही में नागरिकों को अधिकार तथा स्वतन्त्रताएं प्राप्त नहीं होतीं। अधिकारों के बिना व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता। इस शासन व्यवस्था में व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को समाप्त कर दिया गया है।
  • विस्तार की नीति-तानाशाही विस्तार की नीति अर्थात् साम्राज्यवाद में विश्वास करती है।

प्रश्न 14.
लोकतन्त्र तथा तानाशाही में कोई चार अन्तर बताएं।
उत्तर-
लोकतन्त्र तथा तानाशाही में निम्नलिखित मुख्य अन्तर पाए जाते हैं
प्रजातन्त्र

  • जनता का शासन-प्रजातन्त्र जनता का, जनता के द्वारा तथा जनता के लिए शासन है। प्रजातन्त्र में जनता स्वयं प्रत्यक्ष तौर पर अथवा अपने प्रतिनिधियों के द्वारा शासन में भाग लेती है।
  • जनमत पर आधारित-प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित है।
  • सरकार को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा बदला जा सकता है-जनता जिस सरकार को पसन्द नहीं करती, उसे चुनावों में हटा दिया जाता है।
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास-प्रजातन्त्र में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों के व्यक्तित्व का विकास करना होता है।

तानाशाही

  • एक व्यक्ति अथवा एक पार्टी का शासन तानाशाही के शासन की सत्ता एक व्यक्ति में केन्द्रित होती है। साधारण जनता को शासन में भाग लेने का
    अधिकार प्राप्त नहीं होता।
  • शक्ति पर आधारित-तानाशाही का आधार निरंकुश शक्ति है।
  • सरकार को केवल क्रान्ति द्वारा बदला जा सकता है-तानाशाही में सरकार को केवल विद्रोह अथवा क्रान्ति के द्वारा ही बदला जा सकता है।
  • राज्य का विकास-तानाशाही राज्य में राज्य का उद्देश्य व्यक्तियों का विकास करना न होकर राज्य का विकास करना होता है।

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प्रश्न 15.
यदि आपको प्रजातन्त्र व राजतन्त्र में चयन करने के लिए कहा जाए तो आप किस सरकार को पसन्द करेंगे ? अपने मत के समर्थन में चार तर्क प्रस्तुत करें।
उत्तर-
यदि मुझे प्रजातन्त्र और राजतन्त्र में चयन करने के लिए कहा जाए तो मैं प्रजातन्त्र को पसन्द करूंगा। प्रजातन्त्र को पसन्द करने के कई कारण हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं-

  • प्रजातन्त्र जनता का अपना शासन है। शासन जनता के हित में चलाया जाता है जबकि राजतन्त्र में एक व्यक्ति का शासन होता है।
  • प्रजातन्त्र में नागरिकों को मौलिक अधिकार प्राप्त होते हैं, परन्तु राजतन्त्र में ऐसा अनिवार्य नहीं।
  • प्रजातन्त्र में चुनाव होते हैं जिससे लोगों को राजनीतिक शिक्षा मिलती है, परन्तु राजतन्त्र में जनता को राजनीतिक शिक्षा नहीं मिलती।
  • प्रजातन्त्र में लोगों को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता होती है, जबकि राजतन्त्र में ऐसा नहीं होता।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र ग्रीक भाषा के दो शब्दों डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) से मिलकर बना है। डिमोस का अर्थ है लोग और क्रेटिया का अर्थ है ‘शक्ति’ या ‘सत्ता’। इस प्रकार डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथ में हो। दूसरे शब्दों में लोकतन्त्र सरकार का अर्थ है प्रजा का शासन।

प्रश्न 2.
प्रजातन्त्र (लोकतंत्र) की कोई दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. प्रो० सीले के अनुसार, “प्रजातन्त्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति भाग लेता है।”
  2. लोकतन्त्र की बहुत सुन्दर, सरल तथा लोकप्रिय परिभाषा अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन ने इस प्रकार दी है कि, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

प्रश्न 3.
लोकतन्त्र की दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. जनता की प्रभुसत्ता– प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।
  2. जनता का शासन-प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष तौर पर चलाया जाता है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक निर्णय बहुमत से लिया जाता है।

प्रश्न 4.
अधिनायकवाद या तानाशाही का अर्थ लिखें।
उत्तर-
तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है। अधिनायक अपनी शक्तियों का प्रयोग अपनी इच्छानुसार करता है और वह किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं होता। वह तब तक अपने पद पर बना रहता है जब तक शासन की शक्ति उसके हाथों में रहती है।

प्रश्न 5.
आधुनिक तानाशाही की दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  • राज्य की निरंकुशता-आधुनिक तानाशाही में राज्य निरंकुशवादी होते हैं।
  • राज्य साध्य है और व्यक्ति एक साधन है-तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। तानाशाही के समर्थकों का कहना है कि राज्य के हित में ही नागरिक का हित है। अत: नागरिकों का कर्तव्य है कि वे राज्य की आज्ञाओं का पालन करें और राज्य के हित के लिए अपना बलिदान करने के लिए सदा तैयार रहें।

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प्रश्न 6.
तानाशाही के दो गुण लिखो।
उत्तर-

  • दृढ़ तथा स्थिर शासन-तानाशाही का प्रथम गुण यह है कि इससे शासन में स्थिरता आती है। शासन की समस्त शक्तियां एक ही व्यक्ति के हाथों में केन्द्रित होती हैं।
  • शासन में कुशलता-तानाशाह शीघ्र ही निर्णय लेकर शासन की नीतियों को लागू करता है जिससे शासन में कार्यकुशलता आती है।

प्रश्न 7.
तानाशाही के कोई दो दोष लिखो।
उत्तर-

  • यह शक्ति और हिंसा पर आधारित है-तानाशाही शासन शक्ति पर आधारित होता है। इसमें शक्ति और हिंसात्मक साधनों को अधिक महत्त्व दिया जाता है।
  • व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता-तानाशाही में व्यक्ति को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। तानाशाही में राज्य को साध्य तथा व्यक्ति को साधन माना जाता है। शासन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास न होकर राज्य का विकास करना होता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. प्रजातन्त्र का क्या अर्थ है ?
उत्तर-प्रजातन्त्र का अर्थ है वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य की सत्ता प्रजा अर्थात् जनता के हाथ में हो।

प्रश्न 2. प्रजातन्त्र (Democracy) किन दो शब्दों से मिलकर बना है ?
उत्तर-

  1. डिमोस (Demos)
  2. एवं क्रेटिया (Cratia)।

प्रश्न 3. डिमोस (Demos) और क्रेटिया (Cratia) का क्या अर्थ है ?
उत्तर-डिमोस का अर्थ है, लोक और क्रेटिया का अर्थ है शक्ति या सत्ता। इसलिए डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ वह शासन है, जिसमें शक्ति या सत्ता लोगों के हाथों में हो।

प्रश्न 4. प्रजातन्त्र की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-अब्राहिम लिंकन के अनुसार, “प्रजातन्त्र जनता की, जनता के लिए और जनता द्वारा सरकार है।”

प्रश्न 5. प्रजातन्त्र की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में प्रभुसत्ता जनता में निहित होती है और जनता ही शक्ति का स्रोत होती है।

प्रश्न 6. किस देश में प्रजातन्त्र नहीं पाया जाता है?
उत्तर-चीन में प्रजातन्त्र नहीं पाया जाता ।

प्रश्न 7. एक पार्टी का शासन किसकी विशेषता है?
उत्तर-एक पार्टी का शासन तानाशाही की विशेषता है।

प्रश्न 8. तानाशाही शासन का एक लक्षण लिखें।
उत्तर-तानाशाही शासन में राज्य निरंकुश होता है।

प्रश्न 9. तानाशाही का कोई एक रूप लिखें।
उत्तर-सैनिक राज तानाशाही का एक रूप है।

प्रश्न 10. किसी एक तानाशाही शासन का नाम लिखें।
उत्तर-हिटलर एक तानाशाही शासक था।

प्रश्न 11. मुसोलिनी ने किस देश में अपनी तानाशाही स्थापित की ?
उत्तर-मुसोलिनी ने इटली में अपनी तानाशाही स्थापित की।

प्रश्न 12. हिटलर ने किस देश में अपनी तानाशाही स्थापित की?
उत्तर-हिटलर ने जर्मनी में अपनी तानाशाही स्थापित की।

प्रश्न 13. अंग्रेजी भाषा का ‘डैमोक्रेसी’ (Democracy) शब्द किस से लिया गया है?
उत्तर-यूनानी भाषा के शब्द डीमास (Demos) और क्रेटीआ (Cratia) से लिया गया है।

प्रश्न 14. आजकल कौन-सा लोकतन्त्र अधिक प्रचलित है?
उत्तर-आजकल प्रतिनिधि लोकतन्त्र अधिक प्रचलित है।

प्रश्न 15. प्रत्यक्ष लोकतन्त्र (Direct Democracy) शासन किसे कहते हैं?
उत्तर-लोग देश के शासन में प्रत्यक्ष रूप से भाग लेते हैं, उसे प्रत्यक्ष लोकतन्त्र कहते हैं।

प्रश्न 16. प्रजातन्त्र में किस प्रकार का शासन होता है?
उत्तर-प्रजातन्त्र में जनता का शासन होता है।

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प्रश्न 17. भारत में मतदान करने की कम-से-कम आयु कितनी है?
उत्तर-भारत में मतदान करने की कम-से-कम आयु 18 वर्ष है।

प्रश्न 18. प्रजातन्त्र का एक गुण लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में सर्वसाधारण के हितों की रक्षा की जाती है।

प्रश्न 19. प्रजातन्त्र का एक दोष लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र में गुणों के स्थान पर संख्या को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 20. स्विट्ज़रलैण्ड में कितने मतदाता एक कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं?
उत्तर-स्विट्ज़रलैण्ड में एक लाख मतदाता एक कानून बनाने के लिए संसद् को कह सकते हैं।

प्रश्न 21. स्विट्जरलैण्ड में कितने मतदाता इस बात की मांग कर सकते हैं, कि किसी कानून पर जनमत संग्रह कराया जाए।
उत्तर-स्विट्ज़रलैण्ड में 50000 मतदाता इस बात की मांग कर सकते हैं, कि किसी कानून पर जनमत संग्रह कराया जाए।

प्रश्न 22. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में लोग स्वयं शासन में प्रत्यक्ष रूप में भाग लेते हैं, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है।

प्रश्न 23. भारत में प्रजातन्त्र की असफलता का क्या कारण है?
उत्तर-सचेत नागरिकता का अभाव।

प्रश्न 24. अधिनायकतन्त्र का कोई एक गुण लिखें।
उत्तर-अधिनायकतन्त्र में नीति में एकरूपता बनी रहती है।

प्रश्न 25. अधिनायक तन्त्र का कोई एक दोष लिखें।
उत्तर-अधिनायक तन्त्र हिंसा पर आधारित होता है।

प्रश्न 26. प्रजातन्त्र एवं अधिनायकतन्त्र में कोई एक अन्तर लिखें।
उत्तर-प्रजातन्त्र जनता का शासन है, जबकि अधिनायक तन्त्र एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……………. शासन जनमत पर आधारित है।
2. प्रजातन्त्र में सभी नागरिकों को …………… माना जाता है।
3. प्रजातन्त्र स्वतन्त्रता एवं …………… पर आधारित है।
4. आलोचकों द्वारा प्रजातन्त्र को ………….. की पूजा बताया गया है।
5. ………….. को प्रत्यक्ष लोकतन्त्र का घर कहा जाता है।
उत्तर-

  1. प्रजातन्त्र
  2. समान
  3. बन्धुता
  4. अयोग्यता
  5. स्विट्ज़रलैण्ड।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में प्रत्येक व्यक्ति स्वयं को शासक समझता है, जबकि अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र में केवल प्रतिनिधि ही शासक समझे जाते हैं।
2. प्रजातन्त्र की सफलता के लिए नागरिकों की जागरूकता आवश्यक नहीं है।
3. तानाशाही में शासन की सत्ता एक व्यक्ति में निहित होती है।
4. तानाशाह की शक्तियां सीमित होती हैं।
5. तानाशाही की अवधि निश्चित नहीं होती।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
अधिनायकतन्त्र उस एक व्यक्ति का शासन है, जिसने अपने स्तर और स्थिति को पैतृक अधिकार से प्राप्त न करके शक्ति या स्वीकृति, सम्भवतः दोनों के मिश्रण द्वारा प्राप्त किया हो।” किसका कथन है ?
(क) अरस्तु
(ख) प्लेटो
(ग) अल्फ्रेड
(घ) ग्रीन।
उत्तर-
(ग) अल्फ्रेड

प्रश्न 2.
अधिनायकतन्त्र के गुण हैं
(क) स्थिर शासन
(ख) नीति में एकरूपता
(ग) संकटकाल के लिए उचित
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
अधिनायकतन्त्र के दोष हैं
(क) हिंसा पर आधारित
(ख) क्रान्ति का डर
(ग) अधिकारों का अभाव
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
प्रजातन्त्र एवं अधिनायकतन्त्र में अन्तर है
(क) प्रजातन्त्र जनता का शासन है, जबकि अधिनायकतन्त्र एक व्यक्ति या एक पार्टी का शासन है।
(ख) प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित होता है, जबकि अधिनायकतन्त्र जनमत पर आधारित नहीं होता।
(ग) प्रजातन्त्र में लोगों को अधिकार प्राप्त होते हैं, जबकि अधिनायकतन्त्र में नहीं।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

Punjab State Board PSEB 11th Class Political Science Book Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Political Science Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
समाज की परिभाषा दीजिए। इसके आवश्यक तत्त्व कौन-से हैं ? इसके उद्देश्यों की भी व्याख्या करें।
(Define Society. What are its essential elements ? Discuss its aims also.)
उत्तर-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य रह ही नहीं सकता। मनुष्य दूसरे मनुष्यों से मिले बिना नहीं रह सकता। मनुष्य स्वभाव से आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समाज में रहता है।
समाज का अर्थ (Meaning of the Society)—साधारण शब्दों में समाज व्यक्तियों का समूह है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इकट्ठे हुए हैं और परस्पर मिल-जुल कर रहते हैं ताकि अपने साझे उद्देश्य की पूर्ति कर सकें। विभिन्न लेखकों ने समाज शब्द की विभिन्न परिभाषाएं दी हैं, जिनमें मुख्य इस प्रकार हैं :-

  • डॉ० जैक्स Jenks) के अनुसार, “मनुष्यों के मैत्रीपूर्ण या शान्तिमय सम्बन्धों का नाम ही समाज है।” (“The term society means harmonious or at least peaceful relationship.”‘) .
  • मैकाइवर (MacIver) के अनुसार, “मनुष्यों का एक-दूसरे के साथ ऐच्छिक सम्बन्ध ही समाज है।” (“Society includes every willed relationship of man to man.”)
  • प्लेटो (Plato) ने समाज की परिभाषा इस प्रकार दी है, “समाज मनुष्य का बृहद् रूप है।” (“Society is a writ large of man.”)
  • गिडिंग्ज़ (Giddings) ने समाज की परिभाषा करते हुए लिखा है, “समाज व्यक्तियों का एक समूह है जो एकदूसरे के साथ कुछ सामान्य आदर्शों की पूर्ति के लिए सहयोग करते हैं।”
  • जी० डी० एच० कोल (G.D.H. Cole) का कहना है कि, “समाज बिरादरी में संगठित समुदायों व संस्थाओं का संयुक्त संगठन है।” (“Society is the complex of associations and institutions within the community.”)
  • डॉ० लीकॉक (Leacock) का कहना है कि, “समाज केवल राजनीतिक सम्बन्धों को ही नहीं बतलाता जिनसे कि मनुष्य आपस में बन्धे हुए हैं बल्कि यह मनुष्य के सभी प्रकार के सम्बन्धों और अनेक सामूहिक गतिविधियों की जानकारी कराता है।”
  • मैकाइवर (MacIver) ने कहा है कि “समाज सभी सामाजिक सम्बन्धों का ताना-बाना है।” (“Society is the web of social relationship.”)
  • समर और केलर (Summer and Keller) के शब्दों में, “समाज ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो आजीविका उपार्जित करने के लिए और मनुष्य जाति की स्थिरता के लिए एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं।”
    सरल भाषा में मनुष्यों के सभी प्रकार के सम्बन्धों, समुदायों और संस्थाओं को जिनके द्वारा वे अपनी सामान्य आवश्यकताओं और उद्देश्यों की पूर्ति, जीवन रक्षा और उसके विकास का प्रयत्न करते हैं, समाज कहा जाता है।

समाज के आवश्यक तत्त्व (Essential Elements of Society)-

अथवा

समाज की विशेषताएं (Characteristics of Society)-

समाज की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समाज के आवश्यक तत्त्व इस प्रकार हैं :

1. जनसमूह (Collection of People)—समाज के निर्माण के लिए पहला आवश्यक तत्त्व लोगों का समूह है। जिस प्रकार पति और पत्नी के बिना परिवार नहीं बन सकता तथा विद्यार्थियों के बिना स्कूल नहीं बन सकता है, उसी प्रकार लोगों के समूह के बिना समाज का निर्माण नहीं हो सकता।

2. संगठन (Organisation) समाज के निर्माण के लिए व्यक्तियों में किसी किस्म का संगठन होना अनिवार्य है। मेले में इकट्ठे हुए लोगों को समाज नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन लोगों में संगठन नहीं होता।

3. सामान्य उद्देश्य (Common Aims)-समाज के सदस्यों के उद्देश्य सामान्य होते हैं। समाज का निर्माण किसी एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं होता बल्कि मानव-जीवन की सब समस्याओं की पूर्ति के लिए ही समाज प्रयत्न करता है।

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4. शान्ति और सहयोग (Peace and Co-operation)-जन-समूह में शान्ति तथा सहयोग का होना आवश्यक है। समाज अपने उद्देश्यों की पूर्ति शान्तिमय वातावरण में ही कर सकता है। मनुष्यों में परस्पर सहयोग का होना भी आवश्यक है। बिना सहयोग के समाज अपना कार्य नहीं चला सकता।

5. ऐच्छिक सदस्यता (Voluntary Membership)—समाज की सदस्यता अनिवार्य नहीं बल्कि इसके सदस्य अपनी इच्छा द्वारा ही इसके सदस्य बनते हैं।

6. समान अधिकार (Equal Rights)-समाज के सभी सदस्य समान हैं और समाज से जो भी लाभ हो सकते हैं, सभी उनमें समानता के आधार पर भागीदार बन सकते हैं।

7. वफादारी (Loyalty) समाज के सदस्यों में समाज के प्रति वफादारी की भावना होना बहुत आवश्यक है। व्यक्ति को समाज के नियमों का ईमानदारी से पालन करना चाहिए।

समाज के उद्देश्य (Aims of Society)-
समाज के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

  • सामाजिक भावना की पूर्ति (Fulfilment of Social Instinct)—मनुष्य के अन्दर सामाजिक भावना है अर्थात् यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह दूसरों के साथ मिल-जुल कर रहना चाहता है। अकेला व्यक्ति उदास रहता है और ऐसे में वह न तो खुद ही आनन्द ले सकता है न ही दुःखों को सहन कर सकता है। मनुष्य की यह सामाजिक भावना समाज द्वारा ही पूरी की जा सकती है।
  • भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfilment of Physical Wants)—समाज अपने सदस्यों की सभी आवश्यकताएं पूरी करने का प्रयत्न करता है ! अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता। समाज का सहारा लेकर उसे किसी वस्तु का अभाव नहीं रहता। रोटी, पानी, कपड़े आदि के अतिरिक्त जीवन और सम्पत्ति की सुरक्षा की व्यवस्था करना समाज का उद्देश्य है।
  • व्यक्ति का पूर्ण विकास (Full Development of Individual)-समाज अपने सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ उनके जीवन का पूर्ण विकास करने का भी प्रयत्न करता है। समाज का यह कर्त्तव्य है कि वह ऐसा वातावरण उत्पन्न करे जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन का हर पहलू से पूर्ण विकास कर सके।
  • समस्त मानव जाति का कल्याण (Welfare of Mankind)-समाज की कोई संख्या निश्चित नहीं है। एक समाज बढ़ कर समस्त संसार में फैल सकता है, इसीलिए प्रत्येक समाज का यह भी उद्देश्य है कि वह अपने सदस्यों में विश्व-बन्धुत्व तथा विश्व शान्ति की भावना उत्पन्न करे और ऐसे कार्य करे जिनसे समस्त मानव-जीवन का कल्याण हो। व्यक्ति जिएं और जीने दें।

प्रश्न 2.
राज्य और समाज में अन्तर करो। (Distinguish between State and Society.)। (Textual Question) (P.B. Sept., 1988)
उत्तर-
प्राचीनकाल में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया जाता था। प्लेटो तथा अरस्तु ने राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं किया। आदर्शवादी लेखक हीगल, कांट, बोसांके इत्यादि ने भी राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं माना। फासिस्टों ने भी राज्य और समाज को एक माना था, परन्तु वास्तव में इन दोनों में अन्तर है।

समाज और राज्य में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं-

1. समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई-समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई। समाज का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ हुआ। अरस्तु के अनुसार, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य नहीं रह सकता। परन्तु राज्य की स्थापना उस समय हुई जब समाज में राजनीतिक संगठन की स्थापना हुई। राजनीतिक संगठन की स्थापना उस समय हुई जब मनुष्यों में राजनीतिक चेतना की उत्पत्ति हुई।

2. समाज का उद्देश्य राज्य के उद्देश्य से व्यापक है-समाज का उद्देश्य मनुष्य के जीवन के सभी पहलुओं की उन्नति करना है। इसमें मनुष्य का आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक जीवन आ जाता है। परन्तु राज्य का उद्देश्य मनुष्य के राजनीतिक जीवन को उन्नत करना होता है। राज्य मनुष्य के दूसरे पहलुओं की उन्नति के लिए विशेष ध्यान नहीं देता। समाज व्यक्ति के हर प्रकार के सम्बन्धों में हस्तक्षेप कर सकता है, परन्तु राज्य व्यक्ति के सभी कार्यों में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। राज्य व्यक्ति के उन्हीं कार्यों में हस्तक्षेप करता है जिनका दूसरे लोगों के साथ सम्बन्ध हो और जिन्हें राजनीतिक तौर पर नियमित किया गया हो।

3. राज्य के पास निश्चित भू-भाग होता है, समाज के पास नहीं-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समाज के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक नहीं है। समाज का क्षेत्र निश्चित नहीं होता। समाज का क्षेत्र दो-चार कुटुम्बों तक भी हो सकता है, एक राज्य तक भी हो सकता है, दो चार राज्यों तक भी हो सकता है।

4. राज्य संगठित होता है, समाज के लिए संगठन आवश्यक नहीं है-राज्य के निर्माण के लिए संगठन का होना आवश्यक है। इस संगठन को सरकार के नाम से जाना जाता है। सरकार राज्य का आवश्यक तत्त्व है। परन्तु समाज के निर्माण के लिए संगठन आवश्यक नहीं है। समाज संगठित भी हो सकता है और असंगठित भी अर्थात् समाज में संगठित और असंगठित दोनों तरह के समुदाय शामिल होते हैं।

5. राज्य समाज से छोटा है-समाज का क्षेत्र राज्य की अपेक्षा अधिक व्यापक होता है, समाज में सामाजिक भावना में बन्धे सभी सदस्य होते हैं, परन्तु राज्य में केवल वे ही व्यक्ति होते हैं जो राजनीतिक रूप से संगठित होते हैं।

6. राज्य के पास प्रभुसत्ता है, समाज के पास नहीं राज्य के पास सर्वोच्च शक्ति अर्थात् प्रभुसत्ता होती है। प्रभुसत्ता राज्य की आत्मा है। बिना प्रभुसत्ता के राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। राज्य के नियमों को तोड़ने वाले को सज़ा दी जाती है। अतः राज्य अपने नियमों को शक्ति के ज़ोर पर लागू करता है, परन्तु दूसरी ओर समाज के पास प्रभुसत्ता नहीं होती। समाज के नियम तोड़ने वाले को कोई सजा नहीं मिलती। समाज के नियमों का पालन नैतिक शक्ति के आधार पर करवाया जाता है।

7. राज्य व्यक्ति के केवल बाहरी कार्यों को नियमित करता है जबकि समाज आन्तरिक कार्यों को भी राज्य केवल व्यक्तियों के बाहरी कार्यों को नियमित करता है। व्यक्ति क्या करता है, राज्य का इससे सम्बन्ध है। व्यक्ति क्या सोचता है, इससे राज्य का कोई सम्बन्ध नहीं है। परन्तु समाज का सम्बन्ध व्यक्ति के बाहरी और आन्तरिक दोनों प्रकार के कार्यों से है।

8. राज्य की सदस्यता अनिवार्य है, समाज की नहीं- प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी राज्य का नागरिक अवश्य होता है और नागरिक होने के कारण उसे भिन्न-भिन्न प्रकार के अधिकार और सुविधाएं प्राप्त होती हैं। राज्य की सदस्यता के बिना कोई भी व्यक्ति नहीं रह सकता। इसके विपरीत यद्यपि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है तथापि वह समाज के बिना नहीं रह सकता, फिर भी उसके लिए समाज में रहना आवश्यक नहीं। वह समाज को छोड़ कर एकान्त में रह सकता है।

9. समाज मनुष्य की प्राकृतिक रुचियों का परिणाम है जबकि राज्य इसकी आवश्यकताओं का-समाज मनुष्य के लिए स्वाभाविक और प्राकृतिक है। मनुष्य की रुचियां उसको समाज में रहने की प्रेरणा देती हैं। परन्तु राज्य एक मानवीय संस्था है जो मनुष्य की आवश्यकताओं के कारण अस्तित्व में आई। ____ 10. राज्य कानूनों द्वारा तथा समाज रीति-रिवाज़ों द्वारा कार्य करता है-राज्य अपने सभी कार्य कानून की सहायता से करता है जबकि समाज अपने कार्यों को रीति-रिवाज़ों द्वारा करता है। राज्य के नियम और कानून स्पष्ट और सुनिश्चित होते हैं और इनको विधानमण्डल द्वारा बनाया जाता है। समाज के नियम, समाज के रीति-रिवाज, आदतें, प्रथाएं आदि हैं जोकि स्पष्ट और सुनिश्चित होते हैं।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

निष्कर्ष (Conclusion)-राज्य और समाज में आपसी भिन्नता के बावजूद आपसी घनिष्ठता भी है। यह दोनों व्यक्ति के जीवन-निर्वाह और जीवन विकास के लिए अपने-अपने ढंग से परिस्थितियों व साधनों को जुटाते हैं। राज्य का क्षेत्र भले ही समाज के क्षेत्र से सीमित है, परन्तु समाज को बनाए रखने में राज्य का महत्त्वपूर्ण कार्य है। राज्य के बिना, समाज का अस्तित्व कठिन ही नहीं बल्कि असम्भव है।

प्रश्न 3. राज्य और राष्ट्र के अन्तर पर लेख लिखें। (Write a note on the distinction between State and Nation.) (Textual Question)
उत्तर-साधारणत: राज्य और राष्ट्र में कोई अन्तर नहीं माना जाता। राष्ट्र राज्य के बहुत ही समीप है, इसमें भी कोई शक नहीं। राज्यों के संघों को प्रायः राष्ट्रों का संघ ही कहा जाता है जैसे कि राष्ट्र संघ (League of Nations), संयुक्त राष्ट्र संघ (United Nations Organisation) । आधुनिक युग में राष्ट्र राज्य (Nation States) ही प्रायः मिलते हैं जो एक राष्ट्र एक राज्य अलग-अलग हैं और इनमें निश्चित रूप से भेद हैं। वैसे यदि ध्यान से सोचा जाए तो One Nation, One State का सिद्धान्त भी इन दोनों में आपसी अन्तर की ओर संकेत करता है।

राष्ट्र और राज्य में निम्नलिखित भेद पाए जाते हैं-

1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं-राज्य के चार आवश्यक तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। इनके मिलने से ही राज्य का निर्माण होता है। इनमें से यदि एक भी तत्त्व का अभाव हो तो राज्य नहीं बन सकता, परन्तु राष्ट्र के निर्माण के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं है। राष्ट्र तो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाओं द्वारा संगठित समुदाय है। राष्ट्र का निर्माण लोगों में एकता की चेतना से ही होता है। एकता की यह चेतना कई तत्त्वों के आधार पर पैदा होती है जैसे कि समान भाषा, समान धर्म, समान इतिहास, समान रीतिरिवाज़ और परम्पराएं आदि। किसी राष्ट्र में एक तत्त्व प्रबल है तो किसी राष्ट्र में दूसरा।

2. राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं-राष्ट्र उस जनसमुदाय को ही कहा जा सकता है जिसमें एकता या ऐक्य की भावना हो। परन्तु राज्य के लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक नहीं। राज्य के लिए लोगों का राजनीतिक दृष्टि से संगठित होना ही आवश्यक है।

3. राज्य के लिए एक निश्चित भू-भाग आवश्यक है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य एक प्रादेशिक संस्था है, जिसका प्रभाव एक निश्चित भू-भाग तक ही रहता है, परन्तु राष्ट्र के लिए निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक नहीं। राष्ट्र का सम्बन्ध लोगों में उत्पन्न एकता की भावना से है, किसी निश्चित प्रदेश से नहीं।

एक राज्य में कई राष्ट्र और एक राष्ट्र में कई राज्य हो सकते हैं-यह आवश्यक नहीं कि एक राज्य में एक राष्ट्र हो या एक राष्ट्र में एक राज्य की प्रभुसत्ता लागू होती हो। एक राज्य की प्रभुसत्ता दो या इससे भी अधिक राष्ट्रों पर लागू हो सकती है, जैसे कि ऑस्ट्रिया और हंगरी से मिला कर एक बार एक राज्य स्थापित कर लिया गया था, फिर भी उसके दो अलग-अलग राष्ट्र रहे। ऐसे ही दिसम्बर 1971 से पूर्व पाकिस्तान में दो राष्ट्र विद्यमान थे, एक पश्चिमी पाकिस्तान और दूसरा पूर्वी पाकिस्तान (बांग्ला देश)। इसके विपरीत एक राष्ट्र दो राज्यों में फैला हो सकता है जैसे कि जर्मन राष्ट्र तो एक है, परन्तु वह अक्तूबर, 1990 से पूर्व दो अलग-अलग राज्यों पूर्वी जर्मनी तथा पश्चिमी जर्मनी में फैला हुआ था। कोरिया राष्ट्र तो एक है परन्तु वह दो अलग-अलग राज्यों उत्तरी कोरिया व दक्षिणी कोरिया में फैला हुआ है।

5. राज्य के लिए प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है और इसका होना उसके अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। इसके बिना राज्य का निर्माण हो ही नहीं सकता, परन्तु राष्ट्र के पास कोई प्रभुसत्ता नहीं होती। राष्ट्र स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयत्न करता है और स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर प्रभुसत्ता की भी प्राप्ति हो जाती है, परन्तु इसके साथ ही राज्य बन सकता है जो इस प्रभुसत्ता का प्रयोग करता है।

6. राज्य न तो राष्ट्र को उन्नत कर सकता है और न ही उसे समाप्त कर सकता है-राज्य के पास प्रभुसत्ता होने के कारण अपने भू-भाग में स्थित सब व्यक्तियों तथा व्यक्तियों की संस्थाओं पर उसका पूरा नियन्त्रण रहता है, परन्तु राष्ट्र को बनाने वाली एकता की भावना को न तो वह उन्नत कर सकता है और न ही उसे समाप्त कर सकता है। इसका उदाहरण अपने ही देश से दिया जा सकता है। अंग्रेज़ी शासकों के भारतीयों पर और पाकिस्तानी शासकों के बंगला देशियों पर हर प्रकार के सम्भव अत्याचारों के बावजूद भी वे शासक इसके राष्ट्र निर्माण में बाधक न बन सके। लोगों में राष्ट्रीय भावना अपने आप उत्पन्न होती है जिसके कई आधार हो सकते हैं।

अन्ततः इन दोनों में इतनी भिन्नता होते हुए यह कहना अत्युक्ति नहीं होगा कि ज्यों-ज्यों ‘एक राष्ट्र, एक राज्य’ के सिद्धान्त को व्यावहारिक रूप में स्वीकृति मिलती जाएगी और राष्ट्र राज्य स्थापित होते जाएंगे, राष्ट्र और राज्य में भिन्नता की अपेक्षा समीपता अधिक आती जाएगी।

PSEB 11th Class Political Science Solutions Chapter 10 समाज, राज्य एवं राष्ट्र

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ एवं परिभाषा का वर्णन करें।
उत्तर-
साधारण शब्दों में समाज व्यक्तियों का समूह है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इकट्ठे हुए हैं और परस्पर मिल-जुल कर रहते हैं ताकि अपने सांझे उद्देश्य की पूर्ति कर सकें। विभिन्न लेखकों ने समाज की परिभाषाएं विभिन्न प्रकार दी हैं जो इस प्रकार हैं-

  • डॉ० जैक्स के अनुसार, “मनुष्यों के मैत्रीपूर्ण या शान्तिमय सम्बन्धों का नाम ही समाज है।”
  • मैकाइवर के अनुसार, “मनुष्यों का एक-दूसरे के साथ ऐच्छिक सम्बन्ध ही समाज है।”
  • कोल का कहना है कि, “समाज बिरादरी में संगठित समुदायों व संस्थाओं का संयुक्त संगठन है।”

प्रश्न 2.
समाज के चार आवश्यक तत्त्व बताइये।
उत्तर-
समाज के मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • जनसमूह-समाज के निर्माण के लिए पहला आवश्यक तत्त्व जनसमूह है। जिस प्रकार पति, पत्नी के बिना परिवार नहीं बन सकता तथा विद्यार्थियों के बिना स्कूल नहीं बन सकता, उसी प्रकार लोगों के समूह के बिना समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
  • संगठन–समाज के निर्माण के लिए व्यक्तियों में किसी भी प्रकार के संगठन का होना आवश्यक है। मेले में इकट्ठे हुए लोगों के समूह को समाज नहीं कहा जा सकता क्योंकि उनमें संगठन नहीं होता।
  • सामान्य उद्देश्य-समाज के सदस्यों के उद्देश्य सामान्य होते हैं। समाज का निर्माण किसी एक विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं होता बल्कि समाज के द्वारा तो मानव जीवन की सब समस्याओं की पूर्ति के लिए प्रयत्न किया जाता है।
  • शान्ति और सहयोग-जन-समूह में शान्ति और सहयोग का होना आवश्यक है।

प्रश्न 3.
राष्ट्र क्या है ?
उत्तर-
राष्ट्र’ की विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं। बर्गेस के अनुसार, “राष्ट्र वह जनसंख्या है जो जातीय एकता के सूत्र में बंधी हो और भौगोलिक एकता वाले प्रदेशों में बसी हो।” __होज़र के अनुसार, “राष्ट्र का निर्माण जाति या भाषा के आधार पर नहीं बल्कि लोगों के इकट्ठे रहने की भावना के आधार पर होता है।”
गिलक्राइस्ट के अनुसार, “राष्ट्र = राज्य + राष्ट्रीयता” है।

परन्तु ये सभी परिभाषाएं ठीक नहीं हैं और राष्ट्र शब्द की परिभाषा किसी एक दृष्टिकोण के आधार पर नहीं की जा सकती। वास्तव में राष्ट्र ऐसे लोगों के समूह को कहते हैं जो जाति, धर्म, भाषा, संस्कृति, ऐतिहासिक या किसी और बात या बातों की समानता के आधार पर अपने आपको आत्मिक या मानसिक तौर पर एक समझें और इकट्ठे रहने में ही अपने जीवन और अपनी संस्कृति आदि को सुरक्षित महसूस करें।

प्रश्न 4.
राज्य और समाज में चार अन्तर लिखें।
उत्तर-
समाज और राज्य में निम्नलिखित मुख्य अन्तर पाए जाते हैं-

  • समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई-समाज का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ हुआ। अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य रह नहीं सकता परन्तु राज्य की स्थापना उस समय हुई जब मनुष्य में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और उसे राजनीतिक संगठन की आवश्यकता महसूस हुई।
  • समाज का उद्देश्य राज्य के उद्देश्य से व्यापक है-समाज का उद्देश्य मानव जीवन के सभी धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक पहलुओं को उन्नत करना है जबकि राज्य का उद्देश्य मनुष्य के केवल राजनीतिक पहलू को विकसित करना है। इस प्रकार समाज का उद्देश्य, राज्य के उद्देश्य से व्यापक है।
  • राज्य के पास निश्चित भू-भाग होता है समाज के पास नहीं-राज्य के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग का होना आवश्यक है। राज्य की सीमाएं निश्चित होती हैं। परन्तु समाज के निर्माण के लिए निश्चित भू-भाग आवश्यक नहीं है। समाज का क्षेत्र निश्चित नहीं होता।
  • राज्य समाज से छोटा है-समाज का क्षेत्र राज्य की अपेक्षा अधिक व्यापक होता है।

प्रश्न 5.
राज्य और राष्ट्र में चार अन्तर बताओ।
उत्तर-
राज्य और राष्ट्र में निम्नलिखित भेद पाए जाते हैं-

  • राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं-राज्य के चार आवश्यक तत्त्व हैं-जनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। राज्य के निर्माण के लिए ये चारों तत्त्व अनिवार्य हैं परन्तु राष्ट्र के निर्माण के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं है। राष्ट्र तो सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भावनाओं द्वारा संगठित समूह है। राष्ट्र का निर्माण लोगों में एकता की चेतना की भावना से होता है।
  • राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं-राष्ट्र उस जन-समुदाय को ही कहा जा सकता है जिसमें एकता की भावना हो। परन्तु राज्य में लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक नहीं है। राज्य के लिए लोगों का राजनीतिक दृष्टि से संगठित होना ही आवश्यक है।
  • राज्य के लिए एक निश्चित भू-भाग आवश्यक है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य एक प्रादेशिक संस्था है, जिसका प्रभाव एक निश्चित भू-भाग तक रहता है। परन्तु राष्ट्र के लिए निश्चित भू-भाग का होना अनिवार्य नहीं है।
  • राज्य के लिए प्रभुसत्ता का होना अनिवार्य है, राष्ट्र के लिए नहीं-राज्य के पास प्रभुसत्ता होती है और इसका होना राज्य के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है। परन्तु राष्ट्र के पास कोई प्रभुसत्ता नहीं होती।

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प्रश्न 6.
राष्ट्र के निर्माण में सहायक तत्त्वों की व्याख्या करें।
उत्तर-
किसी भी राष्ट्र के निर्माण के लिए लोगों में भावनात्मक एकता होना ज़रूरी है और इस भावनात्मक एकता के विकास के तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  1. जातीय एकता-जिन लोगों के बीच अपनी जाति के प्रति लगाव होता है, उस जाति के लोग स्वाभाविक रूप से ही अपने आप को एक महसूस करते हैं।
  2. भाषा-समान भाषा के द्वारा विभिन्न जातियों व धर्मों में विश्वास रखने वाले लोग आपस में जुड़ते हैं। समान भाषा विभिन्न क्षेत्र में रहने वाले लोगों में भावनात्मक एकता पैदा करती है।
  3. एक धर्म-एक धर्म में विश्वास रखने वाले लोग ही भावनात्मक रूप से एक-दूसरे के साथ जुड़े होते हैं।
  4. समान उद्देश्य-राष्ट्रीय एकता और समान उद्देश्यों में गहरा सम्बन्ध है। जिन लोगों के उद्देश्य समान होते हैं वह आपस में इकट्ठे हो जाते हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य और समाज में दो अन्तर लिखें।
उत्तर-

  • समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई-समाज का जन्म मनुष्य के जन्म के साथ हुआ। अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज के बिना मनुष्य रह नहीं सकता परन्तु राज्य की स्थापना उस समय हुई जब मनुष्य में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और उसे राजनीतिक संगठन की आवश्यकता महसूस हुई।
  • समाज का उद्देश्य राज्य के उद्देश्य से व्यापक है-समाज का उद्देश्य मानव जीवन के सभी धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक पहलुओं को उन्नत करना है जबकि राज्य का उद्देश्य मनुष्य के केवल राजनीतिक पहलू को विकसित करना है। इस प्रकार समाज का उद्देश्य, राज्य के उद्देश्य से व्यापक है।

प्रश्न 2.
राज्य और राष्ट्र में दो अन्तर बताओ।
उत्तर-

  • राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं-राज्य के चार आवश्यक तत्त्व हैंजनसंख्या, निश्चित भू-भाग, सरकार तथा प्रभुसत्ता। राज्य के निर्माण के लिए ये चारों तत्त्व अनिवार्य हैं परन्तु राष्ट्र के निर्माण के लिए कोई तत्त्व अनिवार्य नहीं है। राष्ट्र का निर्माण लोगों में एकता की चेतना की भावना से होता है।
  • राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं-राष्ट्र उस जन-समुदाय को ही कहा जा सकता है जिसमें एकता की भावना हो। परन्तु राज्य में लोगों में एकता की भावना का होना आवश्यक नहीं है। राज्य के लिए लोगों का राजनीतिक दृष्टि से संगठित होना ही आवश्यक है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1. समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर-समाज व्यक्तियों का समूह है जो अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एकत्र हुए हैं और परस्पर मिलजुल कर रहते हैं, ताकि अपने साझे उद्देश्य की पूर्ति कर सकें।”

प्रश्न 2. समाज की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-डॉ० जैक्स के अनुसार, “मनुष्यों के मैत्रीपूर्ण या शान्तिमय सम्बन्धों का नाम ही समाज है।”

प्रश्न 3. समाज का कोई एक आवश्यक तत्त्व लिखें।
उत्तर-समाज के निर्माण के लिए पहला आवश्यक तत्त्व लोगों का समूह है।

प्रश्न 4. समाज का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर-समाज मनुष्यों की सामाजिक भावना की पूर्ति करता है।

प्रश्न 5. राज्य और समाज में कोई एक अन्तर बताएं।
उत्तर-समाज की उत्पत्ति राज्य से पहले हुई।

प्रश्न 6. राष्ट्र की कोई एक परिभाषा दीजिए।
उत्तर-बर्गेस के अनुसार, “राष्ट्र वह जनसंख्या है जो जातीय एकता के सूत्र में बन्धी हो और भौगोलिक एकता वाले प्रदेश में बसी हो।”

प्रश्न 7. राज्य और राष्ट्र में एक अन्तर बताइए।
उत्तर-राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं।

प्रश्न 8. राष्ट्रवाद की भावना को प्रोत्साहित करने वाले किन्हीं चार कारकों के नाम लिखें।
उत्तर-(1) सामान्य मातृभूमि (2) वंश की समानता (3) सामान्य भाषा (4) सामान्य धर्म।

प्रश्न 9. समाज राज्य से पहले है। व्याख्या करें।
उत्तर-राजनीतिक संगठन की स्थापना उस समय हुई, जब मनुष्यों में राजनीतिक चेतना की उत्पत्ति हुई। इसलिए समाज राज्य से पहले है।

प्रश्न 10. राज्य के सप्तांग सिद्धान्त के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-कौटिल्य ने राज्य के सात अंग बताए हैं। राज्य के सात अंगों के कारण ही राज्य की प्रकृति के सम्बन्ध में कौटिल्य ने इस सिद्धान्त को राज्य का सप्तांग सिद्धान्त कहा है।

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प्रश्न 11. कौटिल्य के अनुसार राज्य के सात अंग लिखो।
उत्तर-(1) स्वामी, (2) आमात्य, (3) जनपद, (4) दुर्ग, (5) कोष, (6) दण्ड, (7) मित्र ।

प्रश्न 12. “समाज सामाजिक सम्बन्धों का ताना-बाना है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन मैकाइवर का है।

प्रश्न 13. “किसी समूह के अन्दर संगठित समुदायों और संस्थाओं का योग ही समाज है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन जी० डी० एच० कोल का है।

प्रश्न 14. “समाज मनुष्य का वृहत्त रूप है।” किसका कथन है?
उत्तर-यह कथन प्लेटो का है।

प्रश्न 15. “समाज व्यक्तियों का एक समूह है जो एक-दूसरे के साथ कुछ सामान्य आदर्शों की पूर्ति के लिए सहयोग करते हैं। किसका कथन है?”
उत्तर-यह कथन गिडिंग्ज का है।

प्रश्न 16. समाज का कोई एक उद्देश्य लिखें।
उत्तर-समाज सामाजिक भावना की पूर्ति करता है।

प्रश्न 17. राष्ट्र को अंग्रेज़ी में क्या कहते हैं?
उत्तर-राष्ट्र को अंग्रेजी में नेशन (Nation) कहते हैं।

प्रश्न 18. ‘नेशन’ शब्द किस भाषा से लिया गया है?
उत्तर-‘नेशन’ शब्द लैटिन भाषा से लिया गया है।

प्रश्न 19. ‘नेशन’ शब्द किन दो शब्दों से मिलकर बना है?
उत्तर-नेशन शब्द नेशिया और नेट्स से मिलकर बना है।

प्रश्न 20. ‘नेशियो’ (Natio) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-नेशियो शब्द का अर्थ जन्म या नस्ल है।

प्रश्न 21. ‘नेट्स’ (Natus) शब्द का अर्थ क्या है?
उत्तर-नेट्स शब्द का अर्थ पैदा हुआ है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ………….. के पास निश्चित भू-भाग होता है, समाज के पास नहीं।
2. राज्य संगठित होता है, ……………… के लिए संगठन अवश्यक नहीं है।
3. राष्ट्र शब्द को अंग्रेज़ी में ……….. कहा जाता है।
4. ………….. के अनुसार “राष्ट्र से अभिप्राय एक जाति अथवा वंश वाला संगठन है।”
5. हैयज़ के अनुसार एक राष्ट्रीयता एकता और प्रभु-सम्पन्न स्वतन्त्रता प्राप्त करने से ………….. बन जाता है।
उत्तर-

  1. राज्य
  2. समाज
  3. नेशन (Nation)
  4. लीकॉक
  5. राष्ट्र ।

प्रश्न III. निम्नलिखित में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं, राष्ट्र के अनेक तत्त्व हैं।
2. राष्ट्र के लिए एक निश्चित भू-भाग होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं।
3. राष्ट्र के लिए लोगों में एकता की भावना होना आवश्यक है, राज्य के लिए नहीं।
4. राष्ट्र के लिए प्रभुसत्ता का होना आवश्यक है, जबकि राज्य के लिए नहीं।
5. राज्य न तो राष्ट्र को उन्नत कर सकता है और न ही उसे समाप्त कर सकता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
‘नेशन’ शब्द किस भाषा से लिया गया है ?
(क) लैटिन
(ख) यूनानी
(ग) हिब्रू
(घ) फ़ारसी।
उत्तर-
(क) लैटिन

प्रश्न 2.
‘नेशन’ शब्द किन दो शब्दों से मिलकर बना है ?
(क) डिमोस और क्रेटिया
(ख) नेशियो और नेट्स
(ग) स्टेट और स्टेट्स
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) नेशियो और नेट्स

प्रश्न 3.
‘नेशयो’ (Natio) शब्द का अर्थ है-
(क) जन्म या नस्ल
(ख) भाषा
(ग) क्षेत्र
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) जन्म या नस्ल।

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प्रश्न 4.
नेट्स (Natus) शब्द का अर्थ है-
(क) जन्म या नस्ल
(ख) क्षेत्र
(ग) पैदा हुआ
(घ) भाषा।
उत्तर-
(ग) पैदा हुआ।