PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 9 Punjab’s Contribution towards Struggle for Freedom

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Punjab’s Contribution towards Struggle for Freedom PSEB 10th Class SST Notes

Centres of the Revolt of 1857 in the Punjab:

  • Lahore, Ferozepur, Peshawar, and Ambala were the main centres of the revolt of 1857 in Punjab.
  • Sardar Ahmed Khan Kharal took an active part in this revolt.

Namdhari or Kuka Movement:

  • The founder of the Namdhari movement was Baba Balak Singh.
  • But the movement became very powerful under Baba Ram Singh.
  • The Kukas attacked the cow-slaughterers and killed them.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 9 Punjab’s Contribution towards Struggle for Freedom

Arya Samaj:

  • Swami Dayanand Saraswati was the founder of the Arya Samaj.
  • It was founded by him in 1875 A. D. at Bombay.
  • The Arya Samaj played an important role in the social and religious fields.
  • It also played a remarkable role in the freedom movement.

Ghadar Movement:

  • The Ghadar Movement was a revolutionary movement.
  • The main aim of this movement was to overthrow British rule in India.
  • The Ghadar Party was established in 1913 A.D. in San Francisco.
  • Baba Sohan Singh Bhakna was its president.
  • Under the command of Ras Bihari Bose and Kartar Singh Sarabha, the Ghadar revolutionaries wanted to throw the English out of India through aA armed revolution.

Naujawan Sabha:

  • Sardar Bhagat Singh founded the Naujawan Sabha in 1925-26.
  • Its aim was to arouse the spirit of sacrifice, patriotism, and revolution among the youth.

Akali Movement and Gurudwara Reform Movement:

  • During British rule, the management of the Sikh Gurudwaras was in the hands of the corrupt Mahants.
  • The Sikhs wanted to free their religious places from the Mahants.
  • So they started the Gurudwara Reform Movement.

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Babbar Akali Movement:

  • Many Sikh leaders wanted to turn the Gurudwara Reform Movement violent.
  • The policy of the Babbar Akalis was to kill the enemies of their religion and frighten them.
  • Havaldar Kishan Singh was the founder of this movement.

Khilafat Movement:

  • The Khilafat Movement was started against the English because of their policy toward Turkey.
  • The names of two brothers who started it in India were Mohammad Ali and Shaukat Ali.

Rowlatt Act:

  • The Rowlatt Act was passed to crush the national movement. People called it Black Act.
  • According to this Act, any person could be arrested and imprisoned without any trial.

Jallianwala Bagh Tragedy:

  • The Jallianwala Bagh Tragedy occurred on April 13, 1919.
  • On that day, the people of Amritsar were holding a meeting in Jallianwala Bagh.
  • General Dyer ordered firing on this peaceful meeting without any warning.
  • Hundreds of innocent people were killed and injured.

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Resolution of Complete Independence:

  • Resolution of Complete Independence was passed in the Lahore Session of the Congress which was held in December 1929.
  • It was presided over by Pandit Jawahar Lal Nehru.

स्वतन्त्रता संघर्ष में पंजाब का योगदान PSEB 10th Class SST Notes

→ पंजाब में 1857 के विद्रोह के केन्द्र-1857 के स्वतन्त्रता संग्राम के समय पंजाब की लाहौर, फिरोजपुर, पेशावर, अम्बाला, मियांवाली आदि छावनियों में विद्रोह हुआ। सरदार अहमद खां खरल का इस विद्रोह में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।

→ नामधारी या कूका लहर-नामधारी या कूका लहर एक ऐसी लहर थी जिसने बाबा बालक सिंह के बाद बाबा राम सिंह के नेतृत्व में महान् कार्य किया। उन्होंने बूचड़खानों पर आक्रमण करके कई गौ हत्यारों (कसाइयों) को मार डाला।

→ आर्य समाज-आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती थे। इसकी स्थापना उन्होंने 1875 ई० में की। आर्य समाज ने जहां सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्र में अपना योगदान दिया, वहीं इसने स्वतन्त्रता लहर में भी बहुमूल्य भूमिका निभाई।

→ ग़दर आन्दोलन-ग़दर पार्टी की स्थापना 1913 ई० में सान फ्रांसिस्को (अमेरिका) में हुई। इसका प्रधान बाबा सोहन सिंह भकना को बनाया गया। इस संस्था ने रास बिहारी बोस तथा करतार सिंह सराभा के नेतृत्व में सशस्त्र क्रांति द्वारा अंग्रेजों को भारत से बाहर निकालने का प्रयास किया।

→ नौजवान सभा-नौजवान सभा की स्थापना 1925-26 ई० में सरदार भगत सिंह ने की। नौजवान सभा का मुख्य उद्देश्य था-बलिदान, देश-भक्ति तथा क्रांतिकारी विचारों का प्रचार करना।

→ अकाली लहर अथवा गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन-अंग्रेजों के समय पंजाब के गुरुद्वारों का प्रबंध भ्रष्ट महंतों के हाथ में था। सिक्ख इन महंतों से अपने धार्मिक स्थानों को मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए उन्होंने गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन का आरम्भ किया।

→ बब्बर अकाली लहर-कई सिक्ख नेता गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन को हिंसात्मक ढंग से चलाना चाहते थे। उनके नेता किशन सिंह ने चक्रवर्ती जत्था स्थापित कर के होशियारपुर तथा जालंधर में अंग्रेजी पिटुओं के दमन के विरुद्ध प्रचार किया।

→ खिलाफ़त लहर-प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात् अंग्रेजों ने तुर्की के सुल्तान के साथ अच्छा व्यवहार न किया। विरोध में भारतीय मुसलमानों ने अपने प्रिय नेता के लिए खिलाफ़त आन्दोलन चलाया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भी उनका साथ दिया।

→ रौलेट बिल-भारतीयों में बढ़ती हुई राष्ट्रीयता की भावना को रोकने के लिए अंग्रेजों ने 1919 ई० में रौलेट बिल पास किया। इसके अन्तर्गत सरकार केवल संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी।

→ जलियांवाला बाग का हत्याकांड-जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल, 1919 ई० को हुआ। इस दिन लगभग 25,000 व्यक्ति शांतिपूर्ण ढंग से एक सभा के रूप में जलियांवाला बाग में एकत्रित हुए।

→ जनरल डायर ने बिना चेतावनी दिए लोगों पर गोली चलाने का आदेश दे दिया। परिणामस्वरूप लगभग 1000 लोग मारे गये और 3000 से भी अधिक लोग घायल हुए।

→ पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव-दिसम्बर, 1929 ई० के लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस ने पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्ति की शपथ ली। इस अधिवेशन की अध्यक्षता पं. जवाहरलाल नेहरू ने की।

→ सविनय अवज्ञा आन्दोलन-यह आन्दोलन 1930 ई० में गांधी जी ने डाँडी मार्च के साथ आरम्भ किया। यह आन्दोलन 1934 में समाप्त हुआ। सरकार ने भारतीय जनता पर बड़े अत्याचार किए।

→ भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन तथा द्वितीय विश्व-युद्ध-सितम्बर, 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया। ब्रिटिश सरकार ने भारत को भी युद्ध में धकेल दिया। विरोध में कांग्रेस मन्त्रिमण्डलों ने त्याग-पत्र दे दिये।

→ क्रिप्स मिशन का आगमन-दूसरे महायुद्ध (1939-45) में अंग्रेजों की दशा शोचनीय होती जा रही थी। जापान बर्मा (आधुनिक म्यनमार) तक बढ़ आया था। भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए 1942 ई० में सर स्टैफर्ड क्रिप्स को भारत भेजा गया।

→ उन्होंने भारतीय नेताओं से बातचीत की और भारत को ‘डोमीनियन स्टेट्स’ देने का प्रस्ताव रखा। परन्तु कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग दोनों ने यह प्रस्ताव स्वीकार न किया।

→ भारत छोड़ो आन्दोलन-जापान के आक्रमण का भय दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। अतः महात्मा गांधी ने अंग्रेजों को भारत छोड़ने का सुझाव दिया और कहा कि हम जापान से अपनी रक्षा स्वयं कर लेंगे।

→ 9 अगस्त, 1942 ई० को उन्होंने ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ आरम्भ कर दिया। आन्दोलन बड़े वेग से चला। गांधी जी तथा दूसरे नेताओं को जेल में डाल दिया गया।

→ आजाद हिन्द सेना-आज़ाद हिन्द सेना का पुनर्गठन नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्व में हुआ। इस सेना ने भारत पर आक्रमण किया और इम्फाल के प्रदेश पर अधिकार कर लिया।

→ परन्तु द्वितीय महायुद्ध में जापान की पराजय से आजाद हिन्द सेना की शक्ति कम हो गयी। कुछ समय पश्चात् एक वायुयान दुर्घटना में नेताजी का देहान्त हो गया।

→ एटली की घोषणा, 1945 ई०-1945 ई० में इंग्लैण्ड में सत्ता ‘लेबर पार्टी’ के हाथ आ गयी। नए प्रधानमन्त्री एटली ने सितम्बर, 1945 में भारत के स्वाधीनता के अधिकार को स्वीकार कर लिया।

→ भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए ‘कैबिनेट मिशन’ को भारत में भेजा गया। इस मिशन ने सिफ़ारिश की कि भारत में संघीय सरकार की व्यवस्था की जाए, संविधान तैयार करने के लिए एक संविधान सभा बनाई जाए तथा संविधान बनने तक देश में अन्तरिम सरकार की स्थापना की जाए।

→ साम्प्रदायिक झगड़े-1946 ई० में संविधान सभा के लिए चुनाव हुए। कांग्रेस को भारी बहुमत प्राप्त हुआ। ईर्ष्या के कारण मुस्लिम लीग ने अन्तरिम सरकार में शामिल होने से इन्कार कर दिया।

→ उसने फिर पाकिस्तान की मांग की और ‘सीधी कार्यवाही करने का निश्चय किया। फलस्वरूप स्थान-स्थान पर साम्प्रदायिक झगड़े आरम्भ हो गए।

→ फरवरी की घोषणा-20 फरवरी, 1947 ई० को प्रधानमन्त्री एटली ने एक महत्त्वपूर्ण घोषणा की। इस घोषणा में यह कहा गया कि “अंग्रेजी सरकार जून, 1948 तक भारत छोड़ जाएगी।” इस उद्देश्य से वायसराय के पद पर लॉर्ड माऊण्टबेटन की नियुक्ति की गयी।

→ देश का विभाजन-लॉर्ड माऊण्टबेटन के प्रयत्नों से जुलाई, 1947 ई० में भारत स्वतन्त्रता कानून पास कर दिया गया। इसके अनुसार 15 अगस्त, 1947 ई० को देश को भारत तथा पाकिस्तान नामक दो स्वतन्त्र राज्यों में बाँट दिया गया। इस प्रकार भारत अंग्रेजों की दासता से मुक्त हो गया।

ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਦੇਣ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ 1857 ਈ: ਦੀ ਬਗ਼ਾਵਤ ਦੇ ਕੇਂਦਰ-1857 ਦੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਸੰਗਰਾਮ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੀਆਂ ਲਾਹੌਰ, ਫ਼ਿਰੋਜ਼ਪੁਰ, ਪਿਸ਼ਾਵਰ, ਅੰਬਾਲਾ, ਮੀਆਂਵਾਲੀ ਆਦਿ ਛਾਉਣੀਆਂ ਵਿਚ ਬਗ਼ਾਵਤ ਹੋਈ । ਸਰਦਾਰ ਅਹਿਮਦ ਖ਼ਾ ਖਰਲ ਦਾ ਇਸ ਬਗ਼ਾਵਤ ਵਿਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਯੋਗਦਾਨ ਰਿਹਾ ।

→ ਨਾਮਧਾਰੀ ਜਾਂ ਕੂਕਾ ਲਹਿਰ-ਨਾਮਧਾਰੀ ਜਾਂ ਕੂਕਾ ਲਹਿਰ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਲਹਿਰ ਸੀ ਜਿਸ ਨੇ ਬਾਬਾ ਬਾਲਕ ਸਿੰਘ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਾਬਾ ਰਾਮ ਸਿੰਘ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿਚ ਮਹਾਨ ਕੰਮ ਕੀਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬੁੱਚੜਖਾਨਿਆਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰਕੇ ਕਈ ਗਊ ਕਾਤਲਾਂ (ਕਸਾਈਆਂ) ਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ-ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੋਢੀ ਸੁਆਮੀ ਦਇਆਨੰਦ ਸਰਸਵਤੀ ਸਨ । ਇਸ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ 1875 ਈ: ਵਿਚ ਕੀਤੀ । ਆਰੀਆ ਸਮਾਜ ਨੇ ਜਿੱਥੇ ਸਮਾਜਿਕ ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਆਪਣਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ, ਉੱਥੇ ਇਸ ਨੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਲਹਿਰ ਵਿਚ ਵੱਡਮੁੱਲੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ।

→ ਗਦਰ ਅੰਦੋਲਨ-ਗਦਰ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1913 ਈ: ਵਿਚ ਸਾਫ਼ਰਾਂਸਿਸਕੋ ਅਮਰੀਕਾ) ਵਿਚ ਹੋਈ । ਇਸ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਬਾਬਾ ਸੋਹਣ ਸਿੰਘ ਭਕਨਾ ਨੂੰ ਬਣਾਇਆ ਗਿਆ | ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੇ ਰਾਸ ਬਿਹਾਰੀ ਬੋਸ ਅਤੇ ਕਰਤਾਰ ਸਿੰਘ ਸਰਾਭਾ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਵਿਚ ਹਥਿਆਰਬੰਦ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੁਆਰਾ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਕੱਢਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ।

→ ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ-ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1925-26 ਈ: ਵਿਚ ਸਰਦਾਰ ਭਗਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕੀਤੀ । ਨੌਜਵਾਨ ਸਭਾ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਸੀ-ਕੁਰਬਾਨੀ, ਦੇਸ਼-ਭਗਤੀ ਅਤੇ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਨਾ ।

→ ਅਕਾਲੀ ਲਹਿਰ ਅਤੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸੁਧਾਰ ਅੰਦੋਲਨ-ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਗੁਰਦੁਆਰਿਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਭਿਸ਼ਟ ਮਹੰਤਾਂ ਦੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਸੀ ।ਸਿੱਖ ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਹੰਤਾਂ ਤੋਂ ਆਪਣੇ ਧਾਰਮਿਕ ਸਥਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮੁਕਤ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸੁਧਾਰ ਅੰਦੋਲਨ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ।

→ ਬੱਬਰ ਅਕਾਲੀ ਲਹਿਰ-ਕਈ ਸਿੱਖ ਨੇਤਾ ਗੁਰਦੁਆਰਾ ਸੁਧਾਰ ਅੰਦੋਲਨ ਨੂੰ ਹਿੰਸਾਤਮਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨੇਤਾ ਕਿਸ਼ਨ ਸਿੰਘ ਨੇ ਚੱਕਰਵਰਤੀ ਜੱਥਾ ਕਾਇਮ ਕਰਕੇ ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਅਤੇ ਜਲੰਧਰ ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਪਿੱਠੂਆਂ ਦੇ ਦਮਨ ਵਿਰੁੱਧ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕੀਤਾ ।

→ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ਤ ਲਹਿਰ-ਪਹਿਲੇ ਵਿਸ਼ਵ-ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਤੁਰਕੀ ਦੇ ਸੁਲਤਾਨ ਨਾਲ ਚੰਗਾ ਸਲੂਕ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ।ਵਿਰੋਧ ਵਿਚ ਭਾਰਤੀ ਮੁਸਲਮਾਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪਿਆਰੇ ਨੇਤਾ ਲਈ ਖ਼ਿਲਾਫ਼ਤ ਅੰਦੋਲਨ ਚਲਾਇਆ । ਭਾਰਤੀ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ ਵੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਾਥ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਰੌਲਟ ਐਕਟ-ਭਾਰਤੀਆਂ ਵਿਚ ਵੱਧਦੀ ਹੋਈ ਰਾਸ਼ਟਰੀਅਤਾ ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਲਈ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ 1919 ਈ: ਵਿਚ ਰੌਲਟ ਐਕਟ ਪਾਸ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਰਕਾਰ ਸਿਰਫ ਸ਼ੱਕ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਗ੍ਰਿਫ਼ਤਾਰ ਕਰ ਸਕਦੀ ਸੀ ।

→ ਜਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਬਾਗ਼ ਦਾ ਹੱਤਿਆਕਾਂਡ-ਜਲ੍ਹਿਆਂਵਾਲਾ ਬਾਗ਼ ਦਾ ਹੱਤਿਆਕਾਂਡ 13 ਅਪਰੈਲ, 1919 ਈ: ਨੂੰ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਦਿਨ ਲਗਪਗ 25,000 ਵਿਅਕਤੀ ਸ਼ਾਂਤੀਪੂਰਨ ਢੰਗ ਨਾਲ ਇਕ ਸਭਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਜਲਿਆਂਵਾਲਾ ਬਾਗ਼ ਵਿਚ ਇਕੱਠੇ ਹੋਏ ।

→ ਜਨਰਲ ਡਾਇਰ ਨੇ ਬਿਨਾਂ ਚੇਤਾਵਨੀ ਦਿੱਤੇ ਨਿਹੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਉੱਤੇ ਗੋਲੀ ਚਲਾਉਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਲਗਪਗ 1000 ਲੋਕ ਮਾਰੇ ਗਏ ਅਤੇ 3000 ਤੋਂ ਵੀ ਵੱਧ ਜ਼ਖਮੀ ਹੋ ਗਏ ।

→ ਪੂਰਨ ਸਵਰਾਜ ਦਾ ਮਤਾ-ਦਸੰਬਰ, 1929 ਈ: ਦੇ ਲਾਹੌਰ ਇਜਲਾਸ ਵਿਚ ਕਾਂਗਰਸ ਨੇ ਪੂਰਨ ਆਜ਼ਾਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੀ ਸਹੁੰ ਖਾਧੀ । ਇਸ ਇਜਲਾਸ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਗੀ ਪੰ: ਜਵਾਹਰ ਲਾਲ ਨਹਿਰੂ ਨੇ ਕੀਤੀ ।

→ ਸਿਵਲ ਨਾ ਫੁਰਮਾਨੀ ਅੰਦੋਲਨ-ਇਹ ਅੰਦੋਲਨ 1930 ਈ: ਵਿਚ ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਨੇ ਡਾਂਡੀ ਮਾਰਚ ਦੇ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਅੰਦੋਲਨ 1934 ਵਿਚ ਖ਼ਤਮ ਹੋਇਆ । ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਜਨਤਾ ਉੱਤੇ ਬਹੁਤ ਅੱਤਿਆਚਾਰ ਕੀਤੇ ।

→ ਭਾਰਤੀ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਅੰਦੋਲਨ ਅਤੇ ਦੂਜਾ ਵਿਸ਼ਵ-ਯੁੱਧ-ਸਤੰਬਰ, 1939 ਵਿਚ ਦੂਜਾ ਵਿਸ਼ਵ-ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਬ੍ਰਿਟਿਸ਼ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਵੀ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਧੱਕ ਦਿੱਤਾ । ਵਿਰੋਧ ਵਿਚ ਕਾਂਗਰਸ ਮੰਤਰੀ ਮੰਡਲਾਂ ਨੇ ਅਸਤੀਫ਼ੇ ਦੇ ਦਿੱਤੇ।

→ ਕ੍ਰਿਪਸ ਮਿਸ਼ਨ ਦਾ ਆਗਮਨ-ਦੂਜੇ ਮਹਾਂਯੁੱਧ (1939-45) ਵਿਚ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਹਾਲਤ ਖ਼ਰਾਬ ਹੁੰਦੀ ਜਾ ਰਹੀ ਸੀ । ਜਾਪਾਨ ਬਰਮਾ (ਆਧੁਨਿਕ ਮਯਾਂਮਾਰ) ਤਕ ਵੱਧ ਆਇਆ ਸੀ। ਭਾਰਤੀਆਂ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ 1942 ਈ: ਵਿਚ ਸਰ ਸਟੈਫਰਡ ਕ੍ਰਿਪਸ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ।

→ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਨੇਤਾਵਾਂ ਨਾਲ ਗੱਲਬਾਤ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ‘ਡੋਮੀਨੀਅਨ ਸਟੇਟਸ’ ਦੇਣ ਦਾ ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਰੱਖਿਆ । ਪਰ ਕਾਂਗਰਸ ਅਤੇ ਮੁਸਲਿਮ ਲੀਗ ਦੋਨਾਂ ਨੇ ਇਹ ਪ੍ਰਸਤਾਵ ਸਵੀਕਾਰ ਨਾ ਕੀਤਾ।

→ ਭਾਰਤ ਛੱਡੋ ਅੰਦੋਲਨ-ਜਾਪਾਨ ਦੇ ਹਮਲੇ ਦਾ ਡਰ ਦਿਨ ਪ੍ਰਤੀ ਦਿਨ ਵਧਦਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਛੱਡਣ ਦਾ ਸੁਝਾਓ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਅਸੀਂ ਜਾਪਾਨ ਤੋਂ ਆਪਣੀ ਰੱਖਿਆ ਆਪ ਕਰ ਲਵਾਂਗੇ 19 ਅਗਸਤ, 1942 ਈ: ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ‘ਭਾਰਤ ਛੱਡੋ ਅੰਦੋਲਨ’ ਆਰੰਭ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਅੰਦੋਲਨ ਬਹੁਤ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਚੱਲਿਆ । ਗਾਂਧੀ ਜੀ ਅਤੇ ਹੋਰਨਾਂ ਨੇਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਜੇਲ ਵਿਚ ਸੁੱਟ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

→ ਆਜ਼ਾਦ ਹਿੰਦ ਫ਼ੌਜ-ਇਸੇ ਵਿਚਕਾਰ ਨੇਤਾ ਜੀ ਸੁਭਾਸ਼ ਚੰਦਰ ਬੋਸ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਹੇਠ ਆਜ਼ਾਦ ਹਿੰਦ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਪੁਨਰ ਗਠਨ ਹੋਇਆ | ਇਸ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਭਾਰਤ ‘ਤੇ ਹਮਲਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਇੰਫਾਲ ਦੇ ਦੇਸ਼ ਉੱਤੇ ਅਧਿਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ | ਪਰ ਦੂਜੇ ਮਹਾਂਯੁੱਧ ਵਿਚ ਜਾਪਾਨ ਦੀ ਹਾਰ ਨਾਲ ਆਜ਼ਾਦ ਹਿੰਦ ਫ਼ੌਜ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਘੱਟ ਹੋ ਗਈ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਇਕ ਹਵਾਈ ਦੁਰਘਟਨਾ ਵਿਚ ਨੇਤਾ ਜੀ ਦਾ ਦਿਹਾਂਤ ਹੋ ਗਿਆ ।

→ ਐਟਲੀ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ, 1945 ਈ: -ਇਸੇ ਦੌਰਾਨ ਇੰਗਲੈਂਡ ਵਿਚ ਸੱਤਾ ‘ਲੇਬਰ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਹੱਥ ਆ ਗਈ । ਨਵੇਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਐਟਲੀ ਨੇ ਸਤੰਬਰ, 1945 ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਦੇ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਅਧਿਕਾਰ ਨੂੰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ | ਭਾਰਤੀਆਂ ਨੂੰ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਕਰਨ ਲਈ ‘ਕੈਬਨਿਟ ਮਿਸ਼ਨ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਭੇਜਿਆ ਗਿਆ ।

→ ਇਸ ਮਿਸ਼ਨ ਨੇ ਸਿਫਾਰਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਕਿ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਸੰਘੀ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਕੀਤੀ ਜਾਏ, ਸੰਵਿਧਾਨ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਇਕ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਬਣਾਈ ਜਾਏ ਅਤੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਬਣਨ ਤਕ ਦੇਸ਼ ਵਿਚ ਅੰਤਰਿਮ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ ਜਾਏ ।

→ ਸੰਪਰਦਾਇਕ ਝਗੜੇ-1946 ਈ: ਵਿਚ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਭਾ ਦੇ ਲਈ ਚੋਣਾਂ ਹੋਈਆਂ | ਕਾਂਗਰਸ ਨੂੰ ਭਾਰੀ ਬਹੁਮਤ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਇਆ | ਈਰਖਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮੁਸਲਿਮ ਲੀਗ ਨੇ ਅੰਤਰਿਮ ਸਰਕਾਰ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਸਨੇ ਫਿਰ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ‘ਸਿੱਧੀ ਕਾਰਵਾਈ ਕਰਨ ਦਾ ਫ਼ੈਸਲਾ ਕੀਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਥਾਂ-ਥਾਂ ‘ਤੇ ਸੰਪਰਦਾਇਕ ਝਗੜੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਏ ।

→ ਫ਼ਰਵਰੀ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ-20 ਫ਼ਰਵਰੀ, 1947 ਈ: ਨੂੰ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਐਟਲੀ ਨੇ ਇਕ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਘੋਸ਼ਣਾ ਵਿਚ ਇਹ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਕਿ “ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਰਕਾਰ ਜੂਨ, 1948 ਤਕ ਭਾਰਤ ਛੱਡ ਜਾਏਗੀ ।” ਇਸ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਵਾਇਸਰਾਇ ਦੇ ਅਹੁਦੇ ਉੱਤੇ ਲਾਰਡ ਮਾਊਂਟਬੈਟਨ ਦੀ ਨਿਯੁਕਤੀ ਕੀਤੀ ਗਈ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਵੰਡ-ਲਾਰਡ ਮਾਊਂਟਬੈਟਨ ਦੇ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਜੁਲਾਈ, 1947 ਈ: ਵਿਚ ਭਾਰਤ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਸ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸਦੇ ਅਨੁਸਾਰ 15 ਅਗਸਤ, 1947 ਈ: ਨੂੰ ਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਅਤੇ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਨਾਂ ਦੇ ਦੋ ਸੁਤੰਤਰ ਰਾਜਾਂ ਵਿਚ ਵੰਡ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਭਾਰਤ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੀ ਗੁਲਾਮੀ ਤੋਂ ਆਜ਼ਾਦ ਹੋਇਆ ।

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 8 The Anglo-Sikh Wars and Annexation of Punjab

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The Anglo-Sikh Wars and Annexation of Punjab PSEB 10th Class SST Notes

→ Successors of Maharaja Ranjit Singh: Kharak Singh, Naunihal Singh, Sher Singh, and Dalip Singh were the successors of Ranjit Singh. They were weak and incapable rulers.

→ Anglo-Sikh Wars: Taking advantage of the weakness of the Sikh State (Lahore Darbar), the English defeated the Sikhs in two wars. -As a result, Punjab was annexed by the British to their Empire.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 8 The Anglo-Sikh Wars and Annexation of Punjab

→ First Anglo-Sikh War: This war was fought in 1845-46 A.D. The Sikhs lost it. The British occupied the Doaba-Bist-Jalandhar. They sold the state of Jammu and Kashmir to Raja Gulab Singh.

→ Second Anglo-Sikh War: The Second Anglo-Sikh War was fought in 1848-49 A.D. The Sikhs lost the war and Punjab was annexed to the British Indian Empire on March 25, 1849, by Lord Dalhousie.

→ Maharaja Dalip Singh: Maharaja Dalip Singh was the last Sikh ruler of the Lahore Kingdom. After the Second Anglo-Sikh War, he was dethroned.

→ Maharani Jindan: Maharani Jindan was the guardian of Maharaja Dalip Singh. According to the Treaty of Bhirowal, she was deprived of all her political rights. She was ousted from Punjab and later deported to Benaras. It was a great insult to the Lahore kingdom.

→ Lai Singh and Teja Singh: Lai Singh was the Prime Minister of the Lahore kingdom. Teja Singh was the commander of the Sikh forces. Because of their treachery, the Sikh forces lost the two Anglo-Sikh wars.

अंग्रेजों और सिक्खों के युद्ध और पंजाब पर अंग्रेजों का आधिपत्य PSEB 10th Class SST Notes

→ महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी-महाराजा रणजीत सिंह के उत्तराधिकारी खड़क सिंह, नौनिहाल सिंह, रानी जिंदां कौर, शेर सिंह आदि थे। ये सभी शासक निर्बल एवं अयोग्य सिद्ध हुए।

→ ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध-अंग्रेजों ने सिक्ख (लाहौर) राज्य की कमजोरी का लाभ उठाते हुए सिक्खों से तो युद्ध किए और अंततः पंजाब को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।

→ प्रथम ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध-यह युद्ध 1845-46 ई० में हुआ। इसमें सिक्खों की हार हुई और अंग्रेजों ने उनसे जालन्धर दोआब का क्षेत्र छीन लिया।

→ अंग्रेजों ने कश्मीर का प्रदेश अपने एक मित्र गुलाब सिंह को 10 लाख पौंड के बदले दे दिया।

→ दूसरा ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध-दूसरा ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध 1848-1849 ई० में हुआ। इस युद्ध में भी सिक्ख पराजित हुए और पंजाब को अंग्रेज़ी राज्य (1849 ई०) में मिला लिया गया।

→ महाराजा दलीप सिंह-महाराजा दलीप सिंह लाहौर राज्य का अंतिम सिक्ख शासक था। दूसरे ऐंग्लो-सिक्ख युद्ध के पश्चात् उसे राजगद्दी से उतार दिया गया।

→ महारानी जिंदां-महारानी जिंदां महाराजा दलीप सिंह की संरक्षिका थी। भैरोंवाल की सन्धि (16 दिसम्बर, 1846) के अनुसार उससे सभी राजनीतिक अधिकार छीन लिए गए। इसके पश्चात् अंग्रेजों ने महारानी से बहुत बुरा व्यवहार किया।

→ लाल सिंह तथा तेज सिंह-लाल सिंह महारानी जिंदां का प्रधानमंत्री था। तेज सिंह सिक्ख सेना का प्रधान सेनापति था। इन दोनों के विश्वासघात के कारण ही सिक्खों को अंग्रेजों के विरुद्ध पराजय का मुंह देखना पड़ा।

ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਯੁੱਧ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਉੱਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦਾ ਕਬਜ਼ਾ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ-ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੇ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਖੜਕ ਸਿੰਘ, ਨੌਨਿਹਾਲ ਸਿੰਘ, ਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ, ਸ਼ੇਰ ਸਿੰਘ ਆਦਿ ਸਨ । ਇਹ ਸਾਰੇ ਹਾਕਮ ਕਮਜ਼ੋਰ ਅਤੇ ਅਯੋਗ ਸਾਬਤ ਹੋਏ ।

→ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ-ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਸਿੱਖ (ਲਾਹੌਰ) ਰਾਜ ਦੀ ਕਮਜ਼ੋਰੀ ਦਾ ਲਾਭ ਉਠਾਉਂਦੇ ਹੋਏ ਸਿੱਖਾਂ ਨਾਲ ਦੋ ਯੁੱਧ ਕੀਤੇ ਅਤੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿਚ ਮਿਲਾ ਲਿਆ ।

→ ਪਹਿਲਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ-ਇਹ ਯੁੱਧ 1845-46 ਈ: ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਵਿਚ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਹਾਰ ਹੋਈ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲੋਂ ਜਲੰਧਰ ਦੁਆਬ ਦਾ ਖੇਤਰ ਖੋਹ ਲਿਆ ।

→ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਕਸ਼ਮੀਰ ਦਾ ਦੇਸ਼ ਆਪਣੇ ਇਕ ਦੋਸਤ ਗੁਲਾਬ ਸਿੰਘ ਨੂੰ 10 ਲੱਖ ਪੌਂਡ ਦੇ ਬਦਲੇ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਦੂਜਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ-ਦੂਜਾ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ 1848-49 ਈ: ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਵੀ ਸਿੱਖ ਹਾਰ ਗਏ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ੀ ਰਾਜ (1849 ਈ:) ਵਿਚ ਮਿਲਾ ਲਿਆ ਗਿਆ ।

→ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ-ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਲਾਹੌਰ ਰਾਜ ਦਾ ਆਖ਼ਰੀ ਸਿੱਖ ਹਾਕਮ ਸੀ । ਦੂਜੇ ਐਂਗਲੋ-ਸਿੱਖ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਸ ਨੂੰ ਰਾਜਗੱਦੀ ਤੋਂ ਉਤਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

→ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ-ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਮਹਾਰਾਜਾ ਦਲੀਪ ਸਿੰਘ ਦੀ ਸਰਪ੍ਰਸਤ ਸੀ । ਭੈਰੋਵਾਲ ਦੀ ਸੰਧੀ (16 ਦਸੰਬਰ, 1846) ਅਨੁਸਾਰ ਉਸ ਤੋਂ ਸਾਰੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਅਧਿਕਾਰ ਖੋਹ ਲਏ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਮਹਾਰਾਣੀ ਨਾਲ ਬਹੁਤ ਬੁਰਾ ਸਲੂਕ ਕੀਤਾ ।

→ ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਤੇਜ ਸਿੰਘ-ਲਾਲ ਸਿੰਘ ਮਹਾਰਾਣੀ ਜਿੰਦਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ ਸੀ । ਤੇਜ ਸਿੰਘ ਸਿੱਖ ਫ਼ੌਜ ਦਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਸੈਨਾਪਤੀ ਸੀ ।

→ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੋਹਾਂ ਦੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸਘਾਤ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹਾਰ ਦਾ ਮੂੰਹ ਦੇਖਣਾ ਪਿਆ ।

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 7 Ranjit Singh: Early Life, Achievements and Anglo-Sikh Relations

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Ranjit Singh: Early Life, Achievements and Anglo-Sikh Relations PSEB 10th Class SST Notes

→ Birth and Parentage: Ranjit Singh was born at Gujranwala in 1780 A.D. His father, Mahan Singh was the chief of the Sukarchakiya. Misl. The name of Ranjit Singh’s mother was Raj Kaur.

→ Childhood: He had fallen a victim to smallpox in his childhood. Thus, due to it, he lost his left eye. He was just 10 years old when he along with his father, began to take part in the battles. He had all the qualities of a brave warrior from his very childhood.

→ Marriage: Ranjit Singh was married to Mehtab Kaur, the daughter of Sada Kaur and granddaughter of Jai Singh of Kanheya Misl. When Ranjit Singh took over the reins of the Sukarchakiya Misl, these matrimonial relations helped him a lot in increasing his power.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 7 Ranjit Singh: Early Life, Achievements and Anglo-Sikh Relations

→ Occupation of Lahore by Ranjit Singh: In 1792 A.D. Ranjit Singh took over the reins of the Sukarchakiya Misl. In 1799 A.D., when he was 19 years old, Shah Zaman, the ruler of Kabul, granted Lahore to Ranjit Singh. He immediately invaded Lahore and easily occupied it by defeating the Bhangi chiefs.

→ Early Conquests: In 1802, he conquered Amritsar. Next, he started his march towards Sirhind between the Sutlej and Jamuna. But the English did not let him do so.

→ Treaty of Amritsar: In 1809 A.D. Ranjit Singh signed the Treaty of Amritsar with the English. After this treaty, he began to extend his empire to a large extent in the North-West.

→ Important Conquests: Maharaja Ranjit Singh captured Lahore in 1799 A.D., Amritsar in 1802, Multan (1818), Kashmir (1819), and Peshawar (1834). Thus, he succeeded in establishing a vast empire.

→ Death: Maharaja Ranjit Singh died in June 1839.

रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध PSEB 10th Class SST Notes

→ जन्म तथा माता-पिता-रणजीत सिंह का जन्म 1780 ई० में गुजरांवाला में हुआ था। उसके पिता का नाम महा सिंह था जो शुकरचकिया मिसल का सरदार था। उसकी माता का नाम राजकौर था।

→ बचपन-बचपन में चेचक के कारण रणजीत सिंह की एक आँख खराब हो गई थी।

→ वह 10 वर्ष की आयु में ही अपने पिता के साथ युद्ध में जाया करता था। इसलिए बहुत छोटी आयु में वह युद्ध-विद्या में कुशल हो गया था।

→ विवाह-अपनी मृत्यु से पूर्व महा सिंह ने पंजाब में अपनी शक्ति काफ़ी बढ़ा ली थी। उसने रणजीत सिंह का विवाह जय सिंह कन्हैया की पोती और रानी सदा कौर की पुत्री महताब कौर के साथ किया।

→ जब उसने शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली तो यह विवाह सम्बन्ध उसकी शक्ति के उत्थान में काफ़ी सहायक सिद्ध हुआ।

→ लाहौर का गवर्नर बनना-रणजीत सिंह ने 1792 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली।

→ 19 वर्ष की आयु में उसको अफ़गानिस्तान के शासक शाहजमां ने लाहौर का गवर्नर बना दिया और उसे राजा की उपाधि दी। इस तरह रणजीत सिंह की शक्ति काफ़ी बढ़ गई।

→ आरम्भिक विजय-1802 ई० में उसने अमृतसर पर अधिकार कर लिया। अगले चार-पाँच वर्षों में उसने छ: मिसलों को अपने अधिकार में ले लिया। फिर उसने सतलुज और यमुना नदी के मध्य सरहिन्द की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया, परन्तु अंग्रेज़ों ने उसे उस ओर न बढ़ने दिया।

→ अमृतसर की सन्धि-1809 ई० में उसने अंग्रेज़ों से सन्धि (अमृतसर की सन्धि) कर ली। सन्धि के पश्चात् रणजीत सिंह ने सतलुज के पश्चिम में स्थित प्रदेशों में अपने राज्य का विस्तार करना आरम्भ कर दिया।

→ महत्त्वपूर्ण विजयें-महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान (1818), कश्मीर (1819) और पेशावर (1834) पर अधिकार कर लिया। इस तरह रणजीत सिंह एक विशाल राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ : ਮੁੱਢਲਾ ਜੀਵਨ, ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਅਤੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ-ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਜਨਮ 13 ਨਵੰਬਰ, 1780 ਈ: ਨੂੰ ਗੁਜਰਾਂਵਾਲਾ ਵਿਚ ਹੋਇਆ ਸੀ ਉਸ ਦੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਸੀ, ਜੋ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦਾ ਸਰਦਾਰ ਸੀ । ਉਸ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਰਾਜ ਕੌਰ ਸੀ ।

→ ਬਚਪਨ-ਬਚਪਨ ਵਿਚ ਚੇਚਕ ਦੇ ਕਾਰਨ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਇਕ ਅੱਖ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।ਉਹ 10 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਹੀ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਨਾਲ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਜਾਇਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਬਹੁਤ ਛੋਟੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਹੀ ਉਹ ਯੁੱਧ-ਵਿੱਦਿਆ ਵਿਚ ਨਿਪੁੰਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ ।

→ ਵਿਆਹ-ਆਪਣੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਨੇ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਆਪਣੀ ਤਾਕਤ ਕਾਫ਼ੀ ਵਧਾ ਲਈ ਸੀ। ਉਸ ਨੇ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਵਿਆਹ ਜੈ ਸਿੰਘ ਕਨ੍ਹਈਆ ਦੀ ਪੋਤੀ ਅਤੇ ਰਾਣੀ ਸਦਾ ਕੌਰ ਦੀ ਪੁੱਤਰੀ ਮਹਿਤਾਬ ਕੌਰ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ।

→ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਜਦੋਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਸੰਭਾਲੀ ਤਾਂ ਇਹ ਵਿਆਹ ਸੰਬੰਧ ਉਸ ਦੀ ਤਾਕਤ ਵਧਾਉਣ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

→ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਬਣਨਾ-ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ 1792 ਈ: ਵਿਚ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਦੀ ਵਾਗਡੋਰ ਸੰਭਾਲੀ ।

→ 19 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿਚ ਉਸ ਨੂੰ ਅਫ਼ਗਾਨਿਸਤਾਨ ਦੇ ਹਾਕਮ ਸ਼ਾਹਜਮਾਂ ਨੇ ਲਾਹੌਰ ਦਾ ਗਵਰਨਰ ਬਣਾ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਰਾਜਾ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦੀ ਤਾਕਤ ਕਾਫ਼ੀ ਵਧ ਗਈ ।

→ ਮੁੱਢਲੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ-1802 ਈ: ਵਿਚ ਉਸ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਫਿਰ ਉਸ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਅਤੇ ਜਮਨਾ ਨਦੀ ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਸਰਹਿੰਦ ਵਲ ਵਧਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ, ਪਰ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਉੱਧਰ ਨਾ ਵਧਣ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ-1809 ਈ: ਵਿਚ ਉਸ ਨੇ ਅੰਗਰੇਜ਼ਾਂ ਨਾਲ ਸੰਧੀ (ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਦੀ ਸੰਧੀ) ਕਰ ਲਈ । ਸੰਧੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪੱਛਮ ਵਿਚ ਸਥਿਤ ਇਲਾਕੇ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਰਾਜ ਦਾ ਵਿਸਤਾਰ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤਾਂ-ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਮੁਲਤਾਨ (1818 ਈ:), ਕਸ਼ਮੀਰ (1819 ਈ:) ਅਤੇ ਪੇਸ਼ਾਵਰ (1834 ਈ:) ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਰਾਜ ਕਾਇਮ ਕਰਨ ਵਿਚ ਸਫਲ ਹੋਇਆ ।

→ ਦੇਹਾਂਤ-ਜੂਨ, 1839 ਈ: ਵਿਚ ਮਹਾਰਾਜਾ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਦੇਹਾਂਤ ਹੋ ਗਿਆ ।

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 6 Banda Bahadur and the Sikh Misals

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Banda Bahadur and the Sikh Misals PSEB 10th Class SST Notes

Meeting of Banda Bahadur with Guru Gobind Singh Ji in 1708:

  • A bairagi named Madho Dass came in contact with Guru Gobind Singh Ji at Nander in Maharashtra.
  • He was so much impressed by the personality of Guru Sahib that he immediately became his follower.
  • Guru Sahib sent him to Punjab to lead the Sikhs in their struggle against the Mughals.
  • He became popular as Banda Bahadur in Punjab.

Banda Bahadur in the Punjab:

  • Banda Bahadur reached Punjab on the instructions of Guru Gobind Singh Ji.
  • He organized the Sikhs in Punjab and started his military expeditions.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 6 Banda Bahadur and the Sikh Misals

Success of Banda Bahadur:

  • Banda Bahadur punished the executioners of Guru Teg Bahadur Ji and two Sahibzadas of Guru Gobind Singh Ji.
  • He also killed the Faujdar of Sirhind, Wazir Khan.
  • He defeated the hill chief Raja Bhim Chand who had strongly opposed Guru Gobind Singh Ji.

Important Victories:
The important victories of Banda Bahadur were of Sadhora, Sirhind, Jalalabad, and Lohgarh.

Battle of Gurdas Nangal:

  • In 1715, the Mughal army besieged Banda Bahadur and Sikh soldiers in the mansion (Haveli) of Bhai Duni Chand at Gurdas Nangal.
  • The siege continued for eight months during which the food supplies of the Sikhs were exhausted.
  • Under such circumstances, Banda Bahadur and his Sikh soldiers were arrested by the Mughals.

The Martyrdom of Banda Bahadur:

  • Banda Bahadur and his Sikh soldiers were first taken to Lahore.
  • From Lahore, they were taken to Delhi in 1716.
  • In June 1716, Banda Bahadur and the Sikhs were mercilessly executed at Delhi.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 6 Banda Bahadur and the Sikh Misals

Misls:

  • A long dark period in Sikh history followed the martyrdom of Banda Bahadur.
  • But after some years, the Sikhs again became active in their struggle against the Mughal governors of Punjab.
  • Some of the important Sikh chiefs were able to establish their small kingdoms called the Misls.
  • There were 12 such Sikh Misls. The chief of a Misl was called Misldar.

Rise of Maharaja Ranjit Singh:

  • Maharaja Ranjit Singh belonged to Shukarchakia Misl.
  • The Sukarchakia Misl was founded by Sardar Charat Singh, the grandfather of Maharaja Ranjit Singh.
  • On the death of his father Mahan Singh in 1792, Maharaja Ranjit Singh ascended the throne.
  • He was able to establish a vast empire in Punjab within a few years.

बन्दा बहादुर तथा सिक्ख मिसलें PSEB 10th Class SST Notes

→ बंदा सिंह बहादुर गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में-1708 ई० में माधोदास नामक एक रागी नंदेड नामक स्थान पर गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में आया।

→ गुरु जी के आकर्षक व्यक्तित्व ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह शीघ्र ही उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उसे सिक्खों का नेतृत्व करने के लिए पंजाब की ओर भेज दिया।

→ बंदा सिंह बहादुर पंजाब में-गुरु जी का आदेश पाकर बंदा सिंह बहादुर पंजाब पहुंचा। पंजाब में वह बंदा सिंह बहादुर के नाम से विख्यात हुआ।

→ वहां उसने सिक्खों को संगठित किया और अपना सैनिक अभियान आरम्भ कर दिया।

→ बंदा सिंह बहादुर की सफलताएं-बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिन्द सिंह जी के साहिबजादों को शहीद करने वाले जल्लादों को दण्डित किया।

→ उन्होंने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां का भी वध कर दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने गुरु गोबिन्द सिंह जी के विरोधी पहाड़ी राजा भीमचन्द को भी परास्त किया।

→ महत्त्वपूर्ण विजयें-बंदा सिंह बहादुर की महत्त्वपूर्ण विजयें थीं-सढौरा, सरहिन्द, जलालाबाद तथा लोहगढ़ की विजय।

→ गुरदास नंगल का युद्ध-1715 ई० में मुग़ल सेना ने गुरदास नंगल के स्थान पर सिक्खों को भाई दुनी चन्द की हवेली में घेर लिया। आठ मास के लम्बे युद्ध के कारण सिक्खों की खाद्य सामग्री समाप्त हो गई।

→ विवश होकर उन्हें पराजय स्वीकार करनी पड़ी। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके सभी साथी बन्दी बना लिए गए।

→ बंदा सिंह बहादुर की शहीदी-बंदा सिंह बहादुर तथा उसके बन्दी साथियों को लाहौर लाया गया। यहां से 1716 ई० को उन्हें दिल्ली ले जाया गया। जून, 1716 ई० में बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथियों का निर्ममता से वध कर दिया गया।

→ मिसलें-बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् सिक्खों को एक लम्बे अन्धकार युग से गुज़रना पड़ा, परन्तु इसी संकट काल में उनके 12 जत्थों का उत्थान हुआ। इन जत्थों में समानता होने के कारण इन्हें मिसलों का नाम दिया गया।

→ रणजीत सिंह का उत्थान-रणजीत सिंह का सम्बन्ध शुकरचकिया मिसल से था। इस मिसल की स्थापना उसके दादा चढ़त सिंह ने की थी।

→ 1792 ई० में अपने पिता महा सिंह की मृत्यु के पश्चात् रणजीत सिंह गद्दी पर बैठा। उसने थोड़े समय में ही पंजाब में एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली।

ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਸਿੱਖ ਮਿਸਲਾਂ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿਚ-1708 ਈ: ਵਿਚ ਮਾਧੋਦਾਸ ਨਾਂ ਦਾ ਇਕ ਵੈਰਾਗੀ ਨੰਦੇੜ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿਚ ਆਇਆ ।

→ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੀ ਆਕਰਸ਼ਕ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਇੰਨਾ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕੀਤਾ ਕਿ ਉਹ ਜਲਦੀ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚੇਲਾ ਬਣ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕਰਨ ਲਈ ਪੰਜਾਬ ਵਲ ਭੇਜ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ-ਗੁਰੂ ਜੀ ਦਾ ਆਦੇਸ਼ ਲੈ ਕੇ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਪੰਜਾਬ ਪਹੁੰਚਿਆ । ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਉਹ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ਉੱਥੇ ਉਸ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਸੈਨਿਕ ਮੁਹਿੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

→ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ-ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਸਾਹਿਬਜ਼ਾਦਿਆਂ ਨੂੰ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਜੱਲਾਦਾਂ ਨੂੰ ਸਜ਼ਾ ਦਿੱਤੀ ।

→ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਰਹਿੰਦ ਦੇ ਫ਼ੌਜਦਾਰ ਵਜ਼ੀਰ ਖਾਂ ਦਾ ਵੀ ਕਤਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਵਿਰੋਧੀ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਨੂੰ ਵੀ ਹਰਾਇਆ ।

→ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤਾਂ-ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀਆਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਜਿੱਤਾਂ ਸਨਸਢੋਰਾ, ਸਰਹਿੰਦ, ਜਲਾਲਾਬਾਦ ਅਤੇ ਲੋਹਗੜ੍ਹ ਦੀਆਂ ਜਿੱਤਾਂ ।

→ ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦਾ ਯੁੱਧ-1715 ਈ: ਵਿਚ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜ ਨੇ ਗੁਰਦਾਸ ਨੰਗਲ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਭਾਈ ਦੁਨੀ ਚੰਦ ਦੀ ਹਵੇਲੀ ਵਿਚ ਘੇਰ ਲਿਆ ।

→ ਅੱਠ ਮਹੀਨਿਆਂ ਦੇ ਲੰਮੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਖ਼ੁਰਾਕ ਸਮੱਗਰੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ । ਬੇਵੱਸ ਹੋ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਰ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰਨੀ ਪਈ । ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਰੇ ਸਾਥੀ ਕੈਦ ਕਰ ਲਏ ਗਏ ।

→ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ-ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਕੈਦੀ ਸਾਥੀਆਂ ਨੂੰ ਲਾਹੌਰ ਲਿਆਂਦਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੋਂ 1716 ਈ: ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਲੀ ਲਿਆਂਦਾ ਗਿਆ । 1716 ਈ: ਵਿਚ ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸਾਥੀਆਂ ਨੂੰ ਬੜੀ ਬੇਰਹਿਮੀ ਨਾਲ ਸ਼ਹੀਦ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

→ ਮਿਸਲਾਂ-ਬੰਦਾ ਸਿੰਘ ਬਹਾਦਰ ਦੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਲੰਮੇ ਹਨੇਰ ਯੁਗ ਵਿਚੋਂ ਲੰਘਣਾ ਪਿਆ । ਪਰੰਤੂ ਇਸੇ ਸੰਕਟ ਕਾਲ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ 12 ਜੱਥਿਆਂ ਦਾ ਉੱਥਾਨ ਹੋਇਆ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਜੱਥਿਆਂ ਵਿਚ ਬਰਾਬਰੀ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਿਸਲਾਂ ਦਾ ਨਾਂ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

→ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਉੱਥਾਨ-ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਸ਼ੁਕਰਚੱਕੀਆ ਮਿਸਲ ਨਾਲ ਸੀ । ਇਸ ਮਿਸਲ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 6 ਤੇ 4 ਉਸ ਦੇ ਦਾਦਾ ਚੜ੍ਹਤ ਸਿੰਘ ਨੇ ਕੀਤੀ ਸੀ ।

→ 1792 ਈ: ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਪਿਤਾ ਮਹਾਂ ਸਿੰਘ ਦੀ ਮੌਤ ਦੇ ਬਾਅਦ ਰਣਜੀਤ ਸਿੰਘ ਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਬੈਠਿਆ । ਉਸ ਨੇ ਥੋੜ੍ਹੇ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਾਮਰਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰ ਲਈ ।

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 5 Guru Gobind Singh Ji’s Life, Creation of Khalsa and his Personality

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Guru Gobind Singh Ji’s Life, Creation of Khalsa and his Personality PSEB 10th Class SST Notes

→ Birth and Parentage: Guru Gobind Singh Ji was born on December 22, 1666, at Patna. The name of his father was Guru Teg Bahadur Ji. The name of his mother was Mata Gujri Ji.

→ Childhood and Education: Gobind Dass was the name of Guru Gobind Singh Ji in his childhood. Guru Sahib spent the first five years of his childhood in Patna. Guru Sahib learned Persian from Bhai Mati Dass and Qazi Pir Mohammad. Guru Sahib learned Sanskrit from Pandit Harjas and horse riding and training in arms (military training) from Rajput Bajar Singh.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 5 Guru Gobind Singh Ji’s Life, Creation of Khalsa and his Personality

→ Military Organisation: Guru Gobind Singh Ji decided to raise an army of the Sikhs. Hence Guru Sahib ordained that the Sikhs should donate arms and horses to Guru Gaddi.

→ Creation of the Khalsa: Guru Gobind Singh Ji created the Khalsa in 1699. Guru Sahib achieved three aims by creating the Khalsa viz. freedom from the oppression of the Mughals, a setback to the caste system, and the abolition of the Masand system.

→ Five Ks: The five Ks of the Khalsa are Kesh (unshorn hair), Kangha (comb), Karra (iron bangle), Kirpan (sword) and Kachchera (a pair of shorts).

→ Significance of the creation of Khalsa: A new Sikh community of Sant Sipahis came into existence with the creation of the Khalsa. Gradually, the Sikhs emerged as a political power in Punjab.

→ Literary Achievements of Guru Sahib: Guru Gobind Singh Ji composed Akal Ustat, Krishan Avtar, Sahastra Nam Mala, Chandi di Var, and Zafarnama.

→ Battle of Bhangani (1690): The battle of Bhangani was fought in 1690. It was fought between the Mughals and the Hill Chiefs. Guru Gobind Singh Ji participated in the battle in support of the Hill Chiefs. Guru Sahib defeated the Mughals badly.

→ Battle of Nadaun: The battle of Nadaun was fought between the Mughal forces and hill forces in 1690 A.D. Guru Gobind Singh Ji helped Hill Chiefs. He defeated the Mughal army.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 5 Guru Gobind Singh Ji’s Life, Creation of Khalsa and his Personality

→ First Battle of Anandpur Sahib (1701): The first battle of Anandpur Sahib was fought between Hill Chief Bhim Chand and Guru Gobind Singh Ji. Guru Sahib gave a crushing defeat to the Hill Chief.

→ Second Battle of Anandpur Sahib (1704): In the second battle of Anandpur Sahib, the Confederacy of the Hill Chiefs of Bilaspur, Kangra, and Guler fought against Guru Gobind Singh Ji. Guru Sahib came out victorious in the battle.

→ Final Union with the Divine Power: In 1708 Guru Gobind Singh Ji visited South India. Guru Sahib stayed at Nanded in Maharashtra. On October 3, 1708, Guru Sahib made the final union with Divine Power because of an injury received by him.

गुरु गोबिन्द सिंह जी का जीवन, खालसा की संरचना, युद्ध तथा उनका व्यक्तित्व PSEB 10th Class SST Notes

→ जन्म तथा माता-पिता-गुरु गोबिन्द साहिब का जन्म 22 दिसम्बर, 1666 ई० को पटना में हुआ। उनके पिता गुरु तेग़ बहादुर जी थे। उनकी माता जी का नाम गुजरी जी था।

→ बचपन तथा शिक्षा-गुरु गोबिन्द सिंह जी के बचपन का नाम गोबिन्द राय था। उनके जीवन के आरम्भिक पांच वर्ष पटना में बीते। उन्होंने फ़ारसी की शिक्षा काज़ी पीर मुहम्मद से तथा गुरुमुखी की शिक्षा भाई सतिदास से प्राप्त की।

→ उन्होंने संस्कृत का ज्ञान पण्डित हरजस से तथा घुड़सवारी और अस्त्र-शस्त्र चलाने की शिक्षा (सैनिक शिक्षा) बजर सिंह नामक राजपूत से प्राप्त की।

→ सैनिक संगठन-गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों को सैनिक शक्ति बनाना चाहते थे। अतः उन्होंने भेंट में हथियार तथा घोड़े प्राप्त करने को अधिक महत्त्व दिया।

→ खालसा की स्थापना–’खालसा की स्थापना’ गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में की। खालसा की स्थापना के तीन प्रमुख उद्देश्य थे-मुग़लों के बढ़ते हुए अत्याचारों से मुक्ति, जाति प्रथा के दोषों को समाप्त करना तथा दोषपूर्ण मसन्द प्रथा का अन्त करना ।

→ पांच ककार-खालसा के पांच ककार थे-केश, कंघा, कड़ा, किरपाण तथा कछहरा।

→ खालसा की स्थापना का महत्त्व-खालसा की स्थापना से सिक्खों में एक नए वर्ग सन्त सिपाहियों का जन्म हुआ जिसके परिणामस्वरूप सिक्ख आगे चलकर राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे।

→ साहित्यिक रचनाएं-गुरु साहिब ने पाऊंटा में, ‘अकाल उस्तत’, ‘शस्त्र नाम माला’ तथा ‘चण्डी दी वार’ की रचना की।

→ भंगानी का युद्ध-भंगानी का युद्ध 1688 ई० में हुआ । इस युद्ध में बिलासपुर का राजा भीमचन्द तथा कांगड़ा का राजा कृपाल चन्द गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े और पराजित हुए।

→ नादौन का युद्ध-नादौन का युद्ध 1690 ई० में हुआ। यह युद्ध मुग़लों और पहाड़ी राजाओं के बीच हुआ। गुरु गोबिन्द सिंह जी इस युद्ध में पहाड़ी राजाओं के पक्ष में लड़े थे। उन्होंने मुग़ल सेनाओं को परास्त किया।

→ आनन्दपुर का प्रथम युद्ध, 1701 ई०-आनन्दपुर का प्रथम युद्ध बिलासपुर के पहाड़ी राजा भीमचन्द तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के बीच हुआ। इस युद्ध में गुरु जी ने पहाड़ी राजा को बुरी तरह परास्त किया।

→ आनन्दपुर का दूसरा युद्ध, 1704 ई०-आनन्दपुर के दूसरे युद्ध में बिलासपुर, कांगड़ा तथा गुलेर के पहाड़ी राजा गुरु साहिब के विरुद्ध लड़े । इस युद्ध में गुरु गोबिन्द सिंह जी की विजय हुई।

→ ज्योति-जोत समाना-गुरु जी 1708 ई० में मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह के साथ दक्षिण की ओर गए। कुछ समय के लिए वह नांदेड़ नामक स्थान पर ठहरे। वहीं पर 7 अक्तूबर, 1708 ई० को छुरा लगने से ‘गुरु साहिब’ ज्योतिजोत समा गए।

ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦਾ ਜੀਵਨ, ਖ਼ਾਲਸੇ ਦੀ ਸਿਰਜਣਾ ਅਤੇ ਸ਼ਖ਼ਸੀਅਤ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਜਨਮ ਅਤੇ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ-ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦਾ ਜਨਮ 22 ਦਸੰਬਰ, 1666 ਈ: ਨੂੰ ਪਟਨਾ ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਾਤਾ ‘ਚ ਜੀ ਦਾ ਨਾਂ ਗੁਜਰੀ ਜੀ ਸੀ ।

→ ਬਚਪਨ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆ-ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੇ ਬਚਪਨ ਦਾ ਨਾਂ ਗੋਬਿੰਦ ਦਾਸ ਜਾਂ ਗੋਬਿੰਦ ਰਾਏ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਮੁੱਢਲੇ ਪੰਜ ਸਾਲ ਪਟਨਾ ਵਿਚ ਬੀਤੇ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਫ਼ਾਰਸੀ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਕਾਜ਼ੀ ਪੀਰ ਮੁਹੰਮਦ ਤੋਂ ਅਤੇ ਗੁਰਮੁਖੀ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਭਾਈ ਸਾਹਿਬ ਚੰਦ ਅਤੇ ਭਾਈ ਸਤੀਦਾਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ।

→ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤ ਦਾ ਗਿਆਨ ਪੰਡਿਤ ਹਰਜਸ ਤੋਂ ਅਤੇ ਘੋੜਸਵਾਰੀ ਅਤੇ ਹਥਿਆਰ ਚਲਾਉਣ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ (ਸੈਨਿਕ ਸਿੱਖਿਆ) ਬੱਜਰ ਸਿੰਘ ਨਾਂ ਦੇ ਰਾਜਪੂਤ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ।

→ ਸੈਨਿਕ ਸੰਗਠਨ-ਗੁਰੁ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਸੈਨਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਬਣਾਉਣਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭੇਟ ਵਿਚ ਹਥਿਆਰ ਅਤੇ ਘੋੜੇ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਨੂੰ ਵਧੇਰੇ ਮਹੱਤਵ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਖ਼ਾਲਸਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ-ਖ਼ਾਲਸਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਨੇ 1699 ਈ: ਵਿਚ ਕੀਤੀ । ਖ਼ਾਲਸਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦੇ ਤਿੰਨ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਸਨ-ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਹੋਏ ਜ਼ੁਲਮਾਂ ਤੋਂ ਛੁਟਕਾਰਾ, ਜਾਤੀ-ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਨੁਕਸਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਨੁਕਸਦਾਰ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦਾ ਅੰਤ ਕਰਨਾ ।

→ ਪੰਜ ਕਕਾਰ-ਹਰੇਕ ਖ਼ਾਲਸਾ ਨੂੰ ਪੰਜ ‘ਕਕਾਰ’ ਧਾਰਨ ਕਰਨੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-ਕੇਸ, ਕੰਘਾ, ਕੜਾ, ਕਿਰਪਾਨ ਅਤੇ ਕਛਹਿਰਾ ।

→ ਖ਼ਾਲਸਾ’ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦਾ ਮਹੱਤਵ- ‘ਖਾਲਸਾ’ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਨਾਲ ਸਿੱਖਾਂ ਵਿਚ ਇਕ ਨਵੇਂ ਵਰਗ-ਸੰਤ ਸਿਪਾਹੀਆਂ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਸਿੱਖ ਅੱਗੇ ਚੱਲ ਕੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਤਾਕਤ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉੱਭਰੇ ।

→ ਸਾਹਿਤਕ ਰਚਨਾਵਾਂ-ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਪਾਉਂਟਾ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ‘ਅਕਾਲ ਉਸਤਤ’, ‘ਸ਼ਸਤਰ ਨਾਮ ਮਾਲਾ’ ਅਤੇ ‘ਚੰਡੀ ਦੀ ਵਾਰ’ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ।

→ ਭੰਗਾਣੀ ਦਾ ਯੁੱਧ-ਭੰਗਾਣੀ ਦਾ ਯੁੱਧ 1688 ਈ: ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਬਿਲਾਸਪੁਰ ਦਾ ਰਾਜਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਕਾਂਗੜੇ ਦਾ ਰਾਜਾ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਚੰਦ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜੇ ਅਤੇ ਹਾਰ ਗਏ ।

→ ਨਾਦੌਣ ਦਾ ਯੁੱਧ-ਨਾਦੌਣ ਦਾ ਯੁੱਧ 1690 ਈ: ਵਿਚ ਹੋਇਆ । ਇਹ ਯੁੱਧ ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਇਆ । ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਇਸ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਿਆਂ ਦੇ ਪੱਖ ਵਿਚ ਲੜੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮੁਗ਼ਲ ਫ਼ੌਜਾਂ ਨੂੰ ਹਰਾਇਆ ।

→ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ, 1701 ਈ:-ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਯੁੱਧ ਬਿਲਾਸਪੁਰ ਦੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜਾ ਭੀਮ ਚੰਦ ਅਤੇ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਵਿਚਕਾਰ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਜੀ ਨੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਨੂੰ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਰਾਇਆ ।

→ ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਦੂਜਾ ਯੁੱਧ, 1704 ਈ:-ਆਨੰਦਪੁਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਦੂਜੇ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਬਿਲਾਸਪੁਰ, ਕਾਂਗੜਾ ਅਤੇ ਗੁਲੇਰ ਦੇ ਪਹਾੜੀ ਰਾਜੇ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਲੜੇ । ਇਸ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਗੋਬਿੰਦ ਸਿੰਘ ਜੀ ਦੀ ਜਿੱਤ ਹੋਈ ।

→ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣਾ-ਗੁਰੁ ਜੀ 1708 ਈ: ਵਿਚ ਮੁਗ਼ਲ ਬਾਦਸ਼ਾਹ ਬਹਾਦਰ ਸ਼ਾਹ ਜ਼ਫ਼ਰ ਨਾਲ ਦੱਖਣ ਵਲ ਗਏ । ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਨੰਦੇੜ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ‘ਤੇ ਉਹ ਠਹਿਰੇ । ਉੱਥੇ 7 ਅਕਤੂਬਰ, 1708 ਈ: ਨੂੰ ਛੁਰਾ ਲੱਗਣ ਨਾਲ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ ।

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 2b Punjab: Physical Features or Physiography

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Punjab: Physical Features or Physiography PSEB 9th Class SST Notes

→ After looking at the physical map of Punjab, it seems Punjab is a plain but there are many differences in its physiographic features.

→ The plains of Punjab are one of the most fertile plains in the world.

→ The plains of Punjab can be divided into five parts – the plains of Cho region, the flood plains, Naili, Alluvial plains, and Sand Dunes.

→ The meaning of Doab is the region between two rivers.

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 2b Punjab: Physical Features or Physiography

→ Shiwalik hills touch the Himalayan region of Punjab.

→ For studying the Shiwalik range, it is divided into many parts such as Gurdaspur-Pathankot, Hoshiarpur, Ropar, etc.

→ The meaning of Kandi is that region of Terai which is surrounded by Chaos.

→ Another name for Bari Doab is Majha.

→ Mano, Bet, Changar, Ghad, Bela, etc. are the names of lower areas near the rivers.

→ Nail is the local name for alluvial plains made by the Ghagar river.

→ The peasants of Punjab have completely changed the natural form of the southern-western region.

→ Now people do agriculture on this land with different means of irrigation.

→ Two types of soil, Khadar, and Bhangar are available in the alluvial plains.

→ Khadar is the new alluvial soil that is quite fertile.

→ Bhangar is the old soil where stones and pebbles are scattered everywhere.

→ The regions of Bari and Bist Doab are made up of alluvial soil. Here both Khadar and Bhangar soil are available.

→ The Flood plains are the areas made by the soil brought up by the floods in the rivers which get scattered on the banks of the river.

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 2b Punjab: Physical Features or Physiography

→ Shivalik are the hills of the outer Himalayas. These are situated in the East and North-East directions of Punjab.

→ Punjab Government has notified Dera Bassi, Chandigarh-Ropar-Balachaur-Hoshiarpur-Mukerian, and the whole of the Kandi region.

पंजाब : धरातल/भू-आकृतियां PSEB 9th Class SST Notes

→ पंजाब का भौतिक मानचित्र देखने में पंजाब मुख्य एक मैदानी प्रदेश दिखाई देता है। परंतु यहाँ अन्य भी कई भू-आकार देखने को मिलते हैं।

→ पंजाब के मैदान संसार के सबसे उपजाऊ मैदानों में से एक हैं।

→ भौतिक दृष्टि से पंजाब के मैदानों को पांच भागों में बांटा जा सकता है : चोअ वाले मैदान, बाढ़ के मैदान, नैली, जलोढ़ मैदान तथा बालू (रेत) के टिब्बे।

→ दोआब का अर्थ है दो नदियों के बीच का प्रदेश।

→ पंजाब के पूर्वी तथा उत्तर-पूर्वी भाग में शिवालिक की पहाड़ियां स्थित हैं।

→ शिवालिक श्रेणी के अध्ययन के लिए इसे गुरदासपुर-पठानकोट शिवालिक, होशियारपुर शिवालिक तथा रोपड़ शिवालिक आदि भागों में बांटा गया है।

→ पंजाब का कंडी क्षेत्र विच्छेदित लहरदार मैदानों से बना है। इसमें काफी चोअ हैं।

→ पंजाब सरकार ने डेरा बस्सी, चंडीगढ़, रोपड़-बलाचौर, होशियारपुर तथा मुकेरियाँ के पूरे क्षेत्र को कंडी क्षेत्र घोषित किया हुआ है।

→ बारी दोआब का एक और नाम माझा भी है।

→ मंड, बेट, चंगर, घाड़, बेला आदि नदियों के समीप पड़ने वाले निचले क्षेत्रों के नाम हैं।

→ नैली, घग्गर नदी द्वारा बनाए गए जलोढ़ मैदानों का स्थानीय नाम है।

→ पंजाब के किसानों ने सुदूर दक्षिण-पश्चिम के टीलों को लगभग समाप्त कर दिया है। अब इस भाग में सिंचाई द्वारा सफल खेती की जाने लगी है।

→ जलोढ़ मैदानों में खादर तथा बांगर दो प्रकार की मिट्टियां मिलती हैं।

→ खादर नई जलोढ़ मिट्टी होती है जो बहुत ही उपजाऊ होती है। बांगर पुरानी जलोढ़ होने के कारण कंकड़-पत्थरों से भरी होती है।

→ बारी तथा बिस्त दोआब के प्रदेश जलोढ़ी मिट्टी से बने हैं। इन मैदानों में खादर तथा बांगर दोनों प्रकार की मिट्टियां पाई जाती हैं।

→ मैदान बाढ़ के मैदान नदियों के किनारे पर निचले भागों में मिलते हैं। इनका निर्माण बाढ़ के पानी द्वारा मिट्टी के जमाव से होता है।

ਪੰਜਾਬ: ਧਰਾਤਲ ਭੂ-ਆਕ੍ਰਿਤੀਆਂ PSEB 9th Class SST Notes

→ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਭੌਤਿਕ ਨਕਸ਼ਾ ਦੇਖਣ ‘ਤੇ ਪੰਜਾਬ ਮੁੱਖ ਇੱਕ ਮੈਦਾਨੀ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਪਰੰਤੂ ਇੱਥੇ ਹੋਰ ਵੀ । ਕਈ ਭੂ-ਆਕਾਰ ਦੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਉਪਜਾਉ ਮੈਦਾਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇਕ ਹਨ ।

→ ਭੌਤਿਕ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਮੈਦਾਨਾਂ ਨੂੰ ਪੰਜ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ-ਚੋ ਵਾਲੇ ਮੈਦਾਨ, ਹੜ੍ਹ ਦੇ ਮੈਦਾਨ, ਨੈਲੀ, ਜਲੌਢ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਅਤੇ ਬਾਲੁ (ਰੇਤ) ਟਿੱਬੇ ।

→ ਦੋਆਬ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਦੋ ਨਦੀਆਂ ਦੇ ਵਿਚਲਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪੂਰਬੀ ਅਤੇ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬੀ ਭਾਗ ਵਿੱਚ ਸ਼ਿਵਾਲਿਕ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਸਥਿਤ ਹਨ ।

→ ਸ਼ਿਵਾਲਿਕ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਲਈ ਇਸ ਨੂੰ ਗੁਰਦਾਸਪੁਰ-ਪਠਾਨਕੋਟ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ, ਰੋਪੜ ਆਦਿ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਕੰਢੀ ਖੇਤਰ ਵਿਛੇਤ ਲਹਰਦਾਰ ਮੈਦਾਨਾਂ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਕਾਫ਼ੀ ਚੋ ਹਨ ।

→ ਬਾਰੀ ਦੁਆਬ ਦਾ ਇਕ ਹੋਰ ਨਾਂ ਮਾਝਾ ਵੀ ਹੈ ।

→ ਮੰਡ, ਬੇਟ, ਚੰਗਰ, ਘਾੜ, ਬੇਲਾ ਆਦਿ ਨਦੀਆਂ ਦੇ ਨੇੜੇ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਹੇਠਲੇ ਖੇਤਰਾਂ ਦੇ ਹੀ ਨਾਂ ਹਨ । ਨੈਲੀ, ਘੱਗਰ ਨਦੀ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਗਏ ਜਲੋਢੀ ਮੈਦਾਨਾਂ ਦਾ ਸਥਾਨਕ ਨਾਂ ਹੈ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਨੇ ਦੂਰ-ਦੂਰ ਦੇ ਦੱਖਣੀ-ਪੱਛਮੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਟਿੱਲਿਆਂ ਨੂੰ ਲਗਭਗ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਹੈ । ਹੁਣ ਇਸ ਭਾਗ ਵਿੱਚ ਸਿੰਚਾਈ ਦੁਆਰਾ ਸਫਲ ਖੇਤੀ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਲੱਗੀ ਹੈ ।

→ ਜਲੋਢ ਦੇ ਮੈਦਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਖ਼ਾਦਰ ਅਤੇ ਬਾਂਗਰ ਦੋ ਕਿਸਮ ਦੀਆਂ ਮਿੱਟੀਆਂ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ।

→ ਖ਼ਾਦਰ ਨਵੀ ਜਲੋਢ ਮਿੱਟੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਬਹੁਤ ਹੀ ਉਪਜਾਊ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਬਾਂਗਰ ਪੁਰਾਣੀ ਜਲੋਢ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ । ਰੋੜੇ-ਪੱਥਰਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਭਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਬਾਰੀ ਅਤੇ ਬਿਸਤ ਦੋਆਬ ਦੇ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਜਲੋਢੀ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਬਣੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮੈਦਾਨਾਂ ਵਿੱਚ ਖਾਡਰ ਅਤੇ ਬਾਂਗਰ ਦੋਵੇਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀਆਂ ਮਿੱਟੀਆਂ ਮਿਲਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਹੜ੍ਹ ਦੇ ਮੈਦਾਨ ਨਦੀਆਂ ਦੇ ਕਿਨਾਰੇ ਤੇ ਹੇਠਾਂ ਦੇ ਭਾਗਾਂ ਵਿਚ ਮਿਲਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੜ੍ਹ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੁਆਰਾ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਜਮਾਓ ਨਾਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਸ਼ਿਵਾਲਿਕ, ਬਾਹਰੀ ਹਿਮਾਲਿਆ ਦੀਆਂ ਪਹਾੜੀਆਂ ਹਨ । ਇਹ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪੂਰਬ ਅਤੇ ਉੱਤਰ-ਪੂਰਬ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਹਨ । ਪੰਜਾਬ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਡੇਰਾ ਬੱਸੀ, ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ, ਰੋਪੜ-ਬਲਾਚੌਰ, ਹੁਸ਼ਿਆਰਪੁਰ ਅਤੇ ਮੁਕੇਰੀਆ ਦੇ ਪੂਰੇ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਕੰਢੀ ਖੇਤਰ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕੀਤਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਨੈਲੀ, ਘੱਗਰ ਨਦੀ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਗਏ ਜਲੋਢ ਮੈਦਾਨਾਂ ਦਾ ਸਥਾਨਕ ਨਾਂ ਹੈ ।

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 4 Contribution of Sikh Gurus from Sri Guru Angad Dev Ji to Sri Guru Teg Bahadur Ji

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Contribution of Sikh Gurus from Sri Guru Angad Dev Ji to Sri Guru Teg Bahadur Ji PSEB 10th Class SST Notes

Guru Angad Dev Ji:

  • The second Sikh Guru, Guru Angad Dev Ji collected the teachings of Guru Nanak Dev Ji and wrote them in Gurumukhi script.
  • This contribution of Guru Angad Dev Ji proved to be the first step towards the writing of ‘Adi Granth Sahib’ by Guru Arjan Dev Ji.
  • Guru Angad Dev Ji also wrote ‘Vani’ in the name of Guru Nanak Dev Ji.
  • The institutions of Sangat and Pangat were well maintained during the period of Guru Angad Dev Ji.

Guru Amar Das Ji:

  • Guru Amar Das was the third Sikh Guru who remained on Guru Gaddi for twenty-two years.
  • Guru Sahib shifted his headquarters from Khadoor Sahib to Goindwal.
  • At Goindwal, Guru Sahib constructed a large well (Baoli) where his followers (Sikhs) took a bath on religious festivals.
  • Guru Amar Das Ji introduced a simple marriage ceremony which is called ‘Anand Karaj’.
  • The number of his Sikh followers increased rapidly during his period.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 4 Contribution of Sikh Gurus from Sri Guru Angad Dev Ji to Sri Guru Teg Bahadur Ji

Guru Ram Das Ji:

  • The fourth Guru, Guru Ram Das Ji started the. work of preaching his faith from Ramdaspur (present Amritsar).
  • The foundation of Amritsar was laid during the last years of Guru Amar Das Ji.
  • Guru Ram Das Ji got dug a large pond called Amritsar or Amrit Sarovar.
  • The Guru Sahib needed a large sum of money to construct the Sarovars (ponds) at Amritsar and Santokhsar.
  • For this purpose, Guru Sahib started Masand System.
  • Guru Sahib also made Guru Gaddi hereditary.

Guru Arjan Dev Ji:

  • Guru Arjan Dev Ji was the fifth Sikh Guru.
  • Guru Sahib completed the construction of Harmandir Sahib at Amritsar.
  • Guru Sahib also founded the cities of Tarn Taran and Kartarpur.
  • The fifth Guru Sahib also wrote the first Divine book of the Sikhs (Birs dictated to Bhai Gurdas), ‘Adi Granth Sahib Ji’, and placed it in Sri Harmandir Sahib. Baba Buddha Ji was appointed as the Head Granthi at Sri Harmandir Sahib.
  • Guru Arjan Dev Ji consolidated the Sikh religion by sacrificing his life for the protection of the Sikh religion.

Guru Hargobind Ji:

  • Guru Hargobind Ji was the sixth Guru of the Sikhs.
  • Guru Sahib adopted the ‘New Policy’.
  • According to this policy, Guru Sahib became the religious as well as the political leader of the Sikhs.
  • Guru Sahib constructed Akal Takht, which stands before Sri Harmandir Sahib.
  • Guru Sahib also gave to the Sikhs training in the use of arms.

Guru Har Rai Ji and Guru Harkrishan Ji:

  • Guru Har Rai Ji and Guru Harkrishan Ji ascended the Guru Gaddi successively after Guru Hargobind Ji.
  • Their period is called the period of peace in the history of the Sikh religion.

Sri Guru Tegh Bahadur Ji:

  • The ninth Guru, Sri Guru Tegh Bahadur Ji was a peace-loving person like Guru Nanak Dev Ji.
  • He was ready for self-sacrifice like Guru Arjan Dev Ji and courageous and fearless like his father Guru Hargobind Ji.
  • Guru Tegh Bahadur Ji preached his religion fearlessly.
  • By sacrificing his life, Guru Sahib brought a new revolution in the history of the Sikh religion.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 4 Contribution of Sikh Gurus from Sri Guru Angad Dev Ji to Sri Guru Teg Bahadur Ji

Masand System:

  • Masand is a Persian word.
  • The meaning of the word is a higher place or raised status.
  • During the period of Guru Ram Dass Ji, the masands were called Ramdas.
  • Guru Arjan Dev Ji gave the system an organized form.
  • As a result, Guru Sahib started receiving regular donations from his Sikh followers for his religious activities.

Compilation of the Adi Granth Sahib:

  • The Adi Granth Sahib was compiled and written by Guru Arjan Dev Ji.
  • Guru Arjan Dev Ji dictated the contents of Adi Granth Sahib and his devoted follower Bhai Gurdas noted it down.
  • The Adi Granth Sahib was completed in 1604 A.D.

Wearing two swords of Miri and Piri:

  • Guru Hargobind Sahib put on two swords which he called one of Miri and the other of Piri.
  • His sword of Miri symbolized his leadership of the Sikh followers in worldly affairs.
  • The Piri sword represented his leadership of the Sikhs in spiritual affairs.

गुरु अंगद देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर जी तक सिक्ख गुरुओं का योगदान PSEB 10th Class SST Notes

→ गुरु अंगद देव जी-दूसरे सिक्ख गुरु अंगद देव जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी एकत्रित की और इसे गुरुमुखी लिपि में लिखा। उनका यह कार्य गुरु अर्जन साहिब द्वारा संकलित ‘ग्रन्थ साहिब’ की तैयारी का पहला चरण सिद्ध हुआ।

→ गुरु अंगद देव जी ने स्वयं भी गुरु नानक देव जी के नाम से वाणी की रचना की। इस प्रकार उन्होंने गुरु पद की एकता को दृढ़ किया। संगत और पंगत की संस्थाएं गुरु अंगद साहिब के अधीन भी जारी रहीं।

→ गुरु अमरदास जी-गुरु अमरदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु थे। वह 22 वर्ष तक गुरुगद्दी पर रहे। वह खडूर साहिब से गोइन्दवाल चले गए। वहां उन्होंने एक बावली बनवाई जिसमें उनके सिक्ख (शिष्य) धार्मिक अवसरों पर स्नान करते थे।

→ गुरु अमरदास जी ने विवाह की एक साधारण विधि प्रचलित की और इसे आनन्द-कारज का नाम दिया। उनके समय में सिक्खों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।

→ गुरु रामदास जी-चौथे गुरु रामदास जी ने रामदासपुर (आधुनिक अमृतसर) में रह कर प्रचार कार्य आरम्भ किया। इसकी नींव गुरु अमरदास जी के जीवन-काल के अन्तिम वर्षों में रखी गई थी।

→ श्री रामदास जी ने रामदासपुर में एक बहुत बड़ा सरोवर बनवाया जो अमृतसर अर्थात् अमृत के सरोवर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। उन्हें अमृतसर तथा सन्तोखसर नामक तालाबों की खुदाई के लिए काफ़ी धन की आवश्यकता थी।

→ इसलिए उन्होंने मसन्द प्रथा का श्रीगणेश किया। उन्होंने गुरुगद्दी को पैतृक रूप भी प्रदान किया।

→ गुरु अर्जन देव जी-गुरु अर्जन देव जी सिक्खों के पांचवें गुरु थे। आपने अमृतसर में हरमंदर साहिब का निर्माण कार्य पूरा करवाया। आपने तरनतारन और करतारपुर नगरों की नींव रखी। आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब की बीड़ तैयार की और उसे हरमंदर साहिब में स्थापित किया।

→ बाबा बुड्डा जी को वहां का प्रथम ग्रन्थी नियुक्त किया गया। गुरु साहिब ने धर्म की रक्षा के लिए अपनी शहीदी देकर सिक्ख धर्म को सुदृढ़ बनाया।

→ गुरु हरगोबिन्द जी-गुरु हरगोबिन्द जी सिक्खों के छठे गुरु थे। उन्होंने गुरुगद्दी पर बैठते ही ‘नवीन नीति’ अपनाई। इसके अनुसार वह सिक्खों के धार्मिक नेता होने के साथ-साथ राजनीतिक नेता भी बन गये।

→ उन्होंने हरमंदर साहिब के सामने एक नया भवन बनवाया। यह भवन अकाल तख्त के नाम से प्रसिद्ध है। गुरु हरगोबिन्द जी ने सिक्खों को शस्त्रों का प्रयोग करना भी सिखलाया।

→ श्री गुरु हरराय जी तथा श्री हरकृष्ण जी-गुरु हरगोबिन्द जी के पश्चात् श्री गुरु हरराय जी तथा श्री गुरु हरकृष्ण जी ने सिक्खों का धार्मिक नेतृत्व किया। उनका समय सिक्ख इतिहास में शान्तिकाल कहलाता है।

→ श्री गुरु तेग बहादुर जी-नौवें गुरु तेग़ बहादुर जी गुरु नानक देव जी की भान्ति शान्त स्वभाव, गुरु अर्जन देव जी की भान्ति आत्म-त्यागी तथा पिता गुरु हरगोबिन्द जी की भान्ति साहसी तथा निर्भीक थे।

→ उन्होंने बड़ी निर्भीकता से सिक्ख धर्म का नेतृत्व किया। उन्होंने अपनी शहीदी द्वारा सिक्ख धर्म में एक नवीन क्रान्ति पैदा कर दी।

→ मसन्द प्रथा-‘मसन्द’ फ़ारसी भाषा के शब्द मसनद से लिया गया है। इसका अर्थ है-‘उच्च स्थान’। गुरु रामदास जी द्वारा स्थापित इस संस्था को गुरु अर्जन देव जी ने संगठित रूप दिया। परिणामस्वरूप उन्हें सिक्खों से निश्चित धन-राशि प्राप्त होने लगी।

→ आदि ग्रन्थ का संकलन-आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य गुरु अर्जन देव जी ने किया।

→ गुरु अर्जन देव जी लिखवाते जाते थे और उनके प्रिय शिष्य भाई गुरदास जी लिखते जाते थे। आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन कार्य 1604 ई० में सम्पूर्ण हुआ।

→ मीरी तथा पीरी-गुरु हरगोबिन्द साहिब ने ‘मीरी’ और ‘पीरी’ नामक दो तलवारें धारण कीं।

→ उनके द्वारा धारण की गई ‘मीरी’ तलवार सांसारिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी। ‘पीरी’ तलवार आध्यात्मिक विषयों में नेतृत्व का प्रतीक थी।

ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਤੋਂ ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਤਕ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂਆਂ ਦਾ ਯੋਗਦਾਨ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ-ਦੂਜੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਬਾਣੀ ਇਕੱਠੀ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਗੁਰਮੁਖੀ ਲਿਪੀ ਵਿਚ ਲਿਖਿਆ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਹ ਕੰਮ ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਸਾਹਿਬ ਦੁਆਰਾ ਸੰਕਲਿਤ ‘ਗੰਥ ਸਾਹਿਬ’ ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਕਦਮ ਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

→ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਆਪ ਵੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੇ ਨਾਂ ਤੇ ਬਾਣੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ ਪਦ ਦੀ ਏਕਤਾ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕੀਤਾ । ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ ਦੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਗੁਰੂ ਅੰਗਦ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਅਧੀਨ ਵੀ ਜਾਰੀ ਰਹੀਆਂ ।

→ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ-ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਤੀਜੇ ਸਿੱਖ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਉਹ 22 ਸਾਲ ਤਕ ਗੁਰੂ-ਗੱਦੀ ਉੱਤੇ ਰਹੇ । ਉਹ ਖਡੂਰ ਸਾਹਿਬ ਤੋਂ ਗੋਇੰਦਵਾਲ ਸਾਹਿਬ ਚਲੇ ਗਏ । ਉੱਥੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਕ ਬਾਉਲੀ ਬਣਵਾਈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਸਿੱਖ ਚੇਲੇ ਧਾਰਮਿਕ ਮੌਕਿਆਂ ‘ਤੇ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

→ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਵਿਆਹ ਦਾ ਇਕ ਸਾਧਾਰਨ ਢੰਗ ਪ੍ਰਚਲਿਤ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਆਨੰਦ ਕਾਰਜ ਦਾ ਨਾਂ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਕਾਫ਼ੀ ਵਧ ਗਈ ।

→ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ-ਚੌਥੇ ਗੁਰੂ, ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰ ਆਧੁਨਿਕ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ) ਵਿਚ ਰਹਿ ਕੇ ਪ੍ਰਚਾਰ ਦਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਇਸ ਦੀ ਨੀਂਹ ਗੁਰੂ ਅਮਰਦਾਸ ਜੀ ਦੇ ਜੀਵਨ ਕਾਲ ਦੇ ਆਖ਼ਰੀ ਸਾਲਾਂ ਵਿਚ ਰੱਖੀ ਗਈ ਸੀ । ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਨੇ ਰਾਮਦਾਸਪੁਰਾ ਵਿਚ ਇਕ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਸਰੋਵਰ ਬਣਵਾਇਆ ਜੋ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਭਾਵ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਸਰੋਵਰ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਇਆ ।

→ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਅਤੇ ਸੰਤੋਖਸਰ ਨਾਂ ਦੇ ਤਲਾਬਾਂ ਦੀ ਖੁਦਾਈ ਲਈ ਕਾਫ਼ੀ ਧਨ ਦੀ ਲੋੜ ਸੀ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ-ਗੱਦੀ ਨੂੰ ਜੱਦੀ ਰੂਪ, ਵੀ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤਾ ।

→ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ-ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਪੰਜਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਆਪ ਨੇ ਅੰਮ੍ਰਿਤਸਰ ਵਿਚ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੰਮ ਪੂਰਾ ਕਰਵਾਇਆ । ਆਪ ਨੇ ਤਰਨਤਾਰਨ ਅਤੇ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ । ਆਪ ਨੇ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੁ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਬੀੜ ਤਿਆਰ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਸ੍ਰੀ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਵਿਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤਾ ।

→ ਬਾਬਾ ਬੁੱਢਾ ਜੀ ਨੂੰ ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਪਹਿਲਾ ਗ੍ਰੰਥੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਧਰਮ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਲਈ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੇ ਕੇ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਬਣਾਇਆ ।

→ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ-ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਛੇਵੇਂ ਗੁਰੂ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਗੁਰੂ-ਗੱਦੀ ਉੱਪਰ ਬੈਠਦੇ ਹੀ ਨਵੀਂ ਨੀਤੀ ਅਪਣਾਈ । ਇਸ ਅਨੁਸਾਰ ਉਹ ਸਿੱਖਾਂ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੇਤਾ ਹੋਣ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਨੇਤਾ ਵੀ ਬਣ ਗਏ ।

→ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਹਰਿਮੰਦਰ ਸਾਹਿਬ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਇਕ ਨਵਾਂ ਭਵਨ ਬਣਵਾਇਆ । ਇਹ ਭਵਨ ਅਕਾਲ ਤਖ਼ਤ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੈ । ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਨੂੰ ਹਥਿਆਰਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਵੀ ਸਿਖਾਈ ।

→ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਰਾਇ ਜੀ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ-ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਰਾਇ ਜੀ ਅਤੇ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਹਰਿਕ੍ਰਿਸ਼ਨ ਜੀ ਨੇ ਸਿੱਖਾਂ ਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਅਗਵਾਈ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਮਾਂ ਸਿੱਖ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦਾ ਸਮਾਂ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸ੍ਰੀ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ-ਨੌਵੇਂ ਗੁਰੂ ਤੇਗ ਬਹਾਦਰ ਜੀ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼ਾਂਤ ਸੁਭਾਅ, ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਤਮ-ਤਿਆਗੀ ਅਤੇ ਪਿਤਾ ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਜੀ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੌਸਲੇ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਨਿਡਰ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਬੜੀ ਨਿਡਰਤਾ ਨਾਲ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਕੀਤੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸ਼ਹੀਦੀ ਦੁਆਰਾ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਵਿਚ ਇਕ ਨਵੀਂ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

→ ਮਸੰਦ ਪ੍ਰਥਾ-“ਮਸੰਦ ਫ਼ਾਰਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਦੇ ਸ਼ਬਦ ਮਸਨਦ ਤੋਂ ਲਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ “ਉੱਚਾ ਸਥਾਨ । ਗੁਰੂ ਰਾਮਦਾਸ ਜੀ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਪਿਤ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਨੂੰ ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਸੰਗਠਿਤ ਰੂਪ ਦਿੱਤਾ । ਸਿੱਟੇ ਵਜੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਿੱਖਾਂ ਤੋਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਧਨ ਰਾਸ਼ੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਲੱਗੀ ।

→ ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਦਾ ਸੰਕਲਨ-ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਕੰਮ ਗੁਰੁ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਕੀਤਾ । ਗੁਰੂ ਅਰਜਨ ਦੇਵ ਜੀ ਲਿਖਵਾਉਂਦੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਆਰੇ ਚੇਲੇ ਭਾਈ ਗੁਰਦਾਸ ਜੀ ਲਿਖਦੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ | ਆਦਿ ਗ੍ਰੰਥ ਦਾ ਸੰਕਲਨ ਕੰਮ 1604 ਈ: ਵਿਚ ਪੂਰਾ ਹੋਇਆ ।

→ ਮੀਰੀ ਅਤੇ ਪੀਰੀ-ਗੁਰੂ ਹਰਿਗੋਬਿੰਦ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ‘ਮੀਰੀ ਅਤੇ ‘ਪੀਰੀ ਨਾਂ ਦੀਆਂ ਦੋ ਤਲਵਾਰਾਂ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀਆਂ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਧਾਰਨ ਕੀਤੀ ਗਈ ‘ਮੀਰੀ’ ਤਲਵਾਰ ਸੰਸਾਰਿਕ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿਚ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ । ਪੀਰੀ ਤਲਵਾਰ ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿਚ ਅਗਵਾਈ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਸੀ ।

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 1b Punjab: Size and Location

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Punjab: Size and Location PSEB 9th Class SST Notes

→ Punjab is considered the creator of Indian history and civilisation.

→ It was the birthplace of Harappa and Indus valley civilisation which was one of the most famous ancient civilisations of the world.

→ With the Indian partition in 1947, Punjab was also divided. Indian Punjab was called eastern Punjab.

→ Due to the partition, most of its fertile land went over to Pakistan. Only 34% of its total land remained in India.

→ In the formation of Punjab’s civilisation, Aryans, Greeks, Kushanas, Mughals, and Afghans played a very important role.

→ The ancient names of Punjab were Saptsindu, Panjnad, Lahore Suba, Pentapotamia, Tak Pradesh, etc.

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 1b Punjab: Size and Location

→ Present Punjab is only 20% of undivided Punjab.

→ From 1948 to 1956, many of Punjab’s areas were included in the PEPSU area.

→ There are 5 administrative divisions, 22 districts, 91 Tehsils, and 150 blocks in Punjab.

→ Pathankot is the smallest district of Punjab.

→ The ancient names of Ravi, Beas, and Satluj were Purushvi, Vipasha, and Satudari respectively.

→ Kapurthala, Patiala, Sangrur, Nabha, and Malerkotla were principality cities of Punjab.

→ Ludhiana district touches the boundaries of seven districts of Punjab.

पंजाब : आकार व स्थिति PSEB 9th Class SST Notes

→ पंजाब को भारतीय इतिहास तथा सभ्यता का निर्माता कहा जाता है। यह हड़प्पा अथवा सिंधु घाटी की सभ्यता का निवास स्थान रहा है जो संसार की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक थी।

→ 1947 के भारत विभाजन के साथ ही पंजाब का विभाजन भी हो गया। भारतीय पंजाब पूर्वी पंजाब कहलाया।

→ विभाजन के कारण पंजाब का अधिकतर उपजाऊ भाग पाकिस्तान में चला गया। इसका केवल 34% भाग ही भारत में रहा।

→ आज का पंजाब (पूर्वी पंजाब) अविभाजित पंजाब का मात्र 20 प्रतिशत है।

→ पंजाब की सभ्यता के निर्माण में आर्यों, यूनानियों, कुषाणों, मुग़लों तथा अफ़गानों आदि की सभ्यताओं का योगदान रहा है।

→ पंजाब के पुराने नाम हैं-सप्तसिंधु, पंचनद, पैंटापोटामिया और टक्क प्रदेश।

→ 1948 से 1956 तक पंजाब के बहुत से इलाके पैप्सू प्रांत में शामिल थे।

→ पंजाब में 5 प्रशासनिक मंडल, 22 ज़िले, 86 तहसीलें और 145 ब्लाक हैं।

→ पंजाब का सबसे छोटा ज़िला पठानकोट है।

→ रावी, ब्यास तथा सतलुज के पुराने नाम क्रमशः पुरूषिणी, विपासा तथा सुतुदरी थे।

→ कपूरथला, पटियाला, संगरूर, नाभा, मालेरकोटला आदि पंजाब के रियासती शहर हैं। ये कभी देश की रियासतें थीं।

→ लुधियाना जिला को पंजाब के अन्य सात जिलों की सीमाएं छती हैं।

ਪੰਜਾਬ: ਅਕਾਰ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀ PSEB 9th Class SST Notes

→ ਪੰਜਾਬ ਨੂੰ ਭਾਰਤੀ ਇਤਿਹਾਸ ਅਤੇ ਸੱਭਿਅਤਾ ਦਾ ਨਿਰਮਾਤਾ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਹੜੱਪਾ ਅਤੇ ਸਿੰਧੂ ਘਾਟੀ ਦੀ ਸੱਭਿਅਤਾ ਦਾ ਨਿਵਾਸ ਸਥਾਨ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜੋ ਸੰਸਾਰ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਸੱਭਿਅਤਾ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਸੀ ।

→ 1947 ਦੀ ਭਾਰਤ ਵੰਡ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਵੀ ਵੰਡ ਹੋ ਗਈ । ਭਾਰਤੀ ਪੰਜਾਬ ਪੂਰਬੀ ਪੰਜਾਬ ਕਹਿਲਾਇਆ ।

→ ਵੰਡ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਉਪਜਾਊ ਭਾਗ ਪਾਕਿਸਤਾਨ ਵਿਚ ਚਲਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਦਾ ਕੇਵਲ 34% ਭਾਗ ਹੀ ਭਾਰਤ ਵਿਚ ਰਿਹਾ ।

→ ਅੱਜ ਦਾ ਪੰਜਾਬ (ਪੂਰਵੀ ਪੰਜਾਬ ਅਣਵੰਡੇ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਿਰਫ਼ 20 ਪ੍ਰਤੀਸ਼ਤ ਹੈ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੀ ਸੱਭਿਅਤਾ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਵਿਚ ਆਰੀਆਂ, ਯੂਨਾਨੀਆਂ, ਕੁਸ਼ਾਨਾਂ, ਮੁਗ਼ਲਾਂ ਅਤੇ ਅਫ਼ਗਾਨਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਸੱਭਿਅਤਾਵਾਂ ਦਾ ਯੋਗਦਾਨ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਨਾਮ ਹਨ-ਸਪਤ ਸਿੰਧੂ, ਪੰਚਨਦ, ਪੈਂਟਾਪੋਟਾਮੀਆ ਅਤੇ ਟਕ ਦੇਸ਼ ।

→ 1948 ਤੋਂ 1956 ਤਕ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਇਲਾਕੇ ਪੈਪਸੂ ਪ੍ਰਾਂਤ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਸਨ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਵਿਚ 5 ਪ੍ਰਸ਼ਾਸਨਿਕ ਮੰਡਲ, 22 ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ, 86 ਤਹਿਸੀਲਾਂ ਅਤੇ 145 ਬਲਾਕ ਹਨ ।

→ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਛੋਟਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਪਠਾਨਕੋਟ ਹੈ ।

→ ਰਾਵੀ, ਬਿਆਸ ਅਤੇ ਸਤਲੁਜ ਦੇ ਪੁਰਾਣੇ ਨਾਮ ਕੁਮਵਾਰ : ਪੁਰੂਸ਼ਿਵੀ, ਵਿਪਾਸਾ ਅਤੇ ਸੁਤੂਦਰੀ ਸਨ ।

→ ਕਪੂਰਥਲਾ, ਪਟਿਆਲਾ, ਸੰਗਰੂਰ, ਨਾਭਾ ਅਤੇ ਮਲੇਰਕੋਟਲਾ ਆਦਿ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਰਿਆਸਤੀ ਸ਼ਹਿਰ ਹਨ । ਇਹ ਕਦੀ ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਰਿਆਸਤਾਂ ਸਨ ।

→ ਲੁਧਿਆਣਾ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਨੂੰ ਪੰਜਾਬ ਦੇ ਹੋਰ ਸੱਤ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਹੱਦ ਲੱਗਦੀ ਹੈ ।

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 3 Guru Nanak Dev Ji and his Teachings

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Guru Nanak Dev Ji and his Teachings PSEB 10th Class SST Notes

→ Guru Nanak Ji gave the people of Punjab an ideal which was ultimate to mould his followers into a powerful community.” – Dr. Hari Ram Gupta

→ Birth: Guru Nanak Dev Ji was the founder of the Sikh religion. He was born at Talwandi on April 15, 1469. At present, his place of birth is called Nankana Sahib (Pakistan).

→ Parentage. The name of the mother of Guru Nanak Dev Ji was Mata Tripta. His father’s name was Mehta Kalu Ram. He was a Patwari (a revenue officer).

→ The Ceremony of Sacred Thread (Janeu): Guru Nanak Dev Ji was strongly opposed to useless ceremonies and empty rituals. He, therefore, refused to wear the thread of cotton, considered as a sacred thread.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 3 Guru Nanak Dev Ji and his Teachings

→ The Pious Deal (Sachcha Sauda): The father of Guru Nanak Dev Ji gave him twenty rupees for starting some business. Guru’Nanak Dev Ji spent this money to serve food to the saints, beggars, and the needy and thus made a Pious Deal (Sachcha Sauda).

→ Enlightenment: Guru Nanak Dev Ji attained enlightenment during his bath at a rivulet called ‘Bein’. One morning, he took a dip in the river and reappeared after three days as an enlightened being.

→ Udasis (Travels): The Udasis refer to those travels that Guru Nanak Dev Ji undertook as a selfless pious wanderer without any care for his social bindings. The aim of his Udasis or travels was to end the prevalent superstitions and guide humanity on the path of true faith. Guru Nanak Dev Ji went on three Udasis in different directions.

→ Stay at Kartarpur (now in Pakistan): Guru Nanak Dev Ji founded the city of Kartarpur in 1521. He composed ‘Var Malhar’, ‘Var Manjh’, ‘Var Assa’, ‘Japji Sahib’, ‘Patti’, ‘Barah Mahan’ etc. at Kartarpur. He also established the traditions of ‘Sangat’ and ‘Pangat’ there.

→ Teachings about God: The teachings of Guru Nanak Dev Ji were that God is Formless, Self-Created, Omnipresent, Omnipotent, Compassionate, and Great. He can be easily achieved with the blessings of a True Guru and Self¬Surrender. Guru Nanak Dev Ji spent the latter part of his life preaching the path of true religion at Kartarpur.

→ Guru Sahib Merged with the Supreme God: On September 22, 1539, he merged with Ultimate Supreme God. Before he breathed his last, he had appointed Bhai Lehna as his successor. Bhai Lehna became the second Guru under the name Guru Angad Dev Ji.

PSEB 10th Class SST Notes History Chapter 3 Guru Nanak Dev Ji and his Teachings

→ Sangat and Pangat: The congregation of the followers of the Guru is called Sangat. They sit together to learn the real meaning of the Guru and sing in praise of God. According to the Pangat system, all the followers of the Guru sit together on the floor to partake food from a common kitchen (langar).

गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं PSEB 10th Class SST Notes

→ जन्म-गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के प्रवर्तक थे। भाई मेहरबान तथा भाई मनी सिंह की पुरातन साखी के अनुसार उनका जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ। आजकल इस स्थान को ननकाना साहिब कहते हैं।

→ माता-पिता-गुरु नानक देव जी की माता का नाम तृप्ता जी तथा पिता का नाम मेहता कालू राम जी था। मेहता कालू राम जी एक पटवारी थे।

→ जनेऊ की रस्म-गुरु नानक देव जी व्यर्थ के आडम्बरों के विरोधी थे। इसलिए उन्होंने सूत के धागे से बना जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया।

→ सच्चा सौदा-गुरु नानक देव जी को उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रुपये दिए थे।

→ गुरु नानक देव जी ने इन रुपयों से भूखे साधु-सन्तों को भोजन कराकर ‘सच्चा सौदा’ किया।

→ ज्ञान-प्राप्ति-गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति बेईं नदी में स्नान करते समय हुई। उन्होंने नदी में गोता लगाया और तीन दिन बाद प्रकट हुए।

→ उदासियां-गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में कीं।

→ इन उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।

→ करतारपुर में निवास-1522 ई० में गुरु नानक साहिब परिवार सहित करतारपुर में बस गए।

→ यहां रह कर उन्होंने ‘वार मल्हार’, ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘बारह माहा’ आदि वाणियों की रचना की। उन्होंने संगत तथा पंगत (लंगर) की प्रथाओं का विकास भी किया।

→ गुरु साहिब का ज्योति-जोत समाना-गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।

→ 22 सितम्बर, 1539 ई० को वह ज्योति-जोत समा गए। इससे पूर्व उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

→ ईश्वर सम्बन्धी विचार-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयंभू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।

→ उसे आत्म-त्याग तथा सच्चे गुरु की सहायता से प्राप्त किया जा सकता है।

→ संगत तथा पंगत-‘संगत’ से अभिप्राय गुरु के शिष्यों के उस समूह से है जो एक साथ बैठ कर गुरु जी के उपदेशों पर विचार करते थे।

→ ‘पंगत’ के अनुसार शिष्य इकडे मिल कर एक पंगत में बैठकर भोजन खाते थे।

ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ PSEB 10th Class SST Notes

→ ਜਨਮ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਸਿੱਖ ਧਰਮ ਦੇ ਮੋਢੀ ਸਨ । ਭਾਈ ਮਿਹਰਬਾਨ ਅਤੇ ਭਾਈ ਮਨੀ ਸਿੰਘ ਦੀ ਪੁਰਾਤਨ ਸਾਖੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪਰੈਲ, 1469 ਈ: ਨੂੰ ਤਲਵੰਡੀ ਨਾਂ ਦੇ ਸਥਾਨ ਵਿਖੇ ਹੋਇਆ । ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਇਸ ਸਥਾਨ ਨੂੰ ਨਨਕਾਣਾ ਸਾਹਿਬ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਮਾਤਾ-ਪਿਤਾ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀ ਮਾਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਤ੍ਰਿਪਤਾ ਜੀ ਅਤੇ ਪਿਤਾ ਦਾ ਨਾਂ ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਰਾਮ ਜੀ ਸੀ । ਮਹਿਤਾ ਕਾਲੂ ਰਾਮ ਜੀ ਇਕ ਪਟਵਾਰੀ ਸਨ ।

→ ਜਨੇਊ ਦੀ ਰਸਮ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਫ਼ਜ਼ੂਲ ਦੇ ਅਡੰਬਰਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸੂਤ ਦੇ ਧਾਗੇ ਨਾਲ ਬਣਿਆ ਜਨੇਊ ਪਹਿਨਣ ਤੋਂ ਇਨਕਾਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਵਪਾਰ ਕਰਨ ਲਈ 20 ਰੁਪਏ ਦਿੱਤੇ ਸਨ । ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਰੁਪਇਆਂ ਨਾਲ ਭੁੱਖੇ ਸਾਧੂ-ਸੰਤਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਕਰਾ ਕੇ ‘ਸੱਚਾ ਸੌਦਾ ਕੀਤਾ ।

→ ਗਿਆਨ-ਪ੍ਰਾਪਤੀ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਨੂੰ ਸੱਚੇ ਗਿਆਨ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਵੇਈਂ ਨਦੀ ਵਿਚ ਇਸ਼ਨਾਨ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਹੋਈ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਨਦੀ ਵਿਚ ਗੋਤਾ ਲਗਾਇਆ ਅਤੇ ਤਿੰਨ ਦਿਨ ਬਾਅਦ ਪ੍ਰਗਟ ਹੋਏ ।

→ ਉਦਾਸੀਆਂ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਦੀਆਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਤੋਂ ਭਾਵ ਉਨ੍ਹਾਂ ਯਾਤਰਾਵਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਜੋ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਕ ਉਦਾਸੀ ਦੇ ਭੇਸ ਵਿਚ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਉਦਾਸੀਆਂ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਅੰਧ-ਵਿਸ਼ਵਾਸਾਂ ਨੂੰ ਦੂਰ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਧਰਮ ਦਾ ਸਹੀ ਰਾਹ ਦਿਖਾਉਣਾ ਸੀ ।

→ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਚ ਨਿਵਾਸ-1522 ਈ: ਵਿਚ ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਸਾਹਿਬ ਪਰਿਵਾਰ ਸਹਿਤ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਵਿਚ ਵਸ ਗਏ। ਇੱਥੇ ਰਹਿ ਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ‘ਵਾਰ ਮਲਾਰ’, ‘ਵਾਰ ਮਾਝ’, ‘ਵਾਰ ਆਸਾ’, ‘ਜਪੁਜੀ’, ‘ਦੱਖਣੀ ਓਅੰਕਾਰ’, ‘ਪੱਟੀ’, ‘ਬਾਰਾਮਾਹਾ’ ਆਦਿ ਬਾਣੀਆਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਨੇ ਇੱਥੇ ਹੀ ‘ਸੰਗਤ’ ਅਤੇ ‘ਪੰਗਤ’ ਦੀ ਨੀਂਹ ਰੱਖੀ ।

→ ਗੁਰੂ ਸਾਹਿਬ ਦਾ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾਉਣਾ-ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਆਖ਼ਰੀ ਸਾਲ ਕਰਤਾਰਪੁਰ ਪਾਕਿਸਤਾਨ) ਵਿਚ ਧਰਮ ਪ੍ਰਚਾਰ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਬਤੀਤ ਹੋਏ । 22 ਸਤੰਬਰ, 1539 ਈ: ਨੂੰ ਉਹ ਜੋਤੀ-ਜੋਤ ਸਮਾ ਗਏ । ਇਸ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਈ ਲਹਿਣਾ ਜੀ ਨੂੰ ਆਪਣਾ ਉੱਤਰਾਧਿਕਾਰੀ ਨਿਯੁਕਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

→ ਪਰਮਾਤਮਾ ਬਾਰੇ ਵਿਚਾਰ-ਗੁਰੂ ਨਾਨਕ ਦੇਵ ਜੀ ਅਨੁਸਾਰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਇਕ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਨਿਰਾਕਾਰ, ਸੈਭੰ, ਸਰਵਵਿਆਪੀ, ਸਰਵ-ਸ਼ਕਤੀਮਾਨ, ਦਿਆਲੂ ਅਤੇ ਮਹਾਨ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਆਤਮ-ਤਿਆਗ ਅਤੇ ਸੱਚੇ ਗੁਰੂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੰਗਤ ਅਤੇ ਪੰਗਤ-‘ਸੰਗਤ’ ਤੋਂ ਭਾਵ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਚੇਲਿਆਂ ਦੇ ਉਸ ਸਮੂਹ ਤੋਂ ਹੈ ਜੋ ਇਕੱਠੇ ਬੈਠ ਕੇ ਗੁਰੂ ਜੀ ਦੇ ਉਪਦੇਸ਼ਾਂ ਉੱਪਰ ਵਿਚਾਰ ਕਰਦੇ ਸਨ । ‘ਪੰਗਤ’ ਅਨੁਸਾਰ ਚੇਲੇ ਇਕੱਠੇ ਮਿਲ ਕੇ ਇਕ ਹੀ ਪੰਗਤੀ ਵਿਚ ਬੈਠ ਕੇ ਲੰਗਰ ਛਕਦੇ ਸਨ ।

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 1a India: Size and Location

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India: Size and Location PSEB 9th Class SST Notes

→ India is a vast country. Geographically, India is the seventh-largest country in the world.

→ From the point of view of the population, after China, India is the second-largest country.

→ The extension of Himalaya mountain and sea from three sides gives India the status of Sub-continent.

→ India has 2.4% of the total land of the world.

→ India’s north-south extension is 3214 km. and the east-west extension is 2933 km. 82°30′ East is considered the standard meridian of India. Its time is 5 hours 30 minutes ahead of Greenwich’s meantime.

PSEB 9th Class SST Notes Geography Chapter 1a India: Size and Location

→ When the meridian of any country is taken as its standard meridian, its time is known as the standard time.

→ A subcontinent is a vast independent geographical unit.

→ This landmass is distinctly separated from the main continent.

→ Indian boundary touches the boundary of seven countries.

→ India has a land boundary of about 15,200 km and a total coastline of about 7516 km.

→ The meaning of SAARC is South Asian Association for Regional Co-operation.

→ India keeps the most important position among other SAARC nations.

→ India has 28 states and 8 union territories.

→ Delhi is National Capital Region (NCR). Its capital New Delhi is the capital of the country.

→ Chandigarh (Punjab, Haryana) and Hyderabad (Andhra Pradesh, Telangana) are the two cities that are the capitals of more than one state.

→ India’s eminent position in the Indian Ocean creates a quite favourable environment for international trade.

भारत : आकार व स्थिति PSEB 9th Class SST Notes

→ भारत गणतंत्र एक विशाल देश है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह संसार का सातवां बड़ा देश है।

→ संसार के कुल क्षेत्रफल का 2.4% भाग भारत भूमि का निर्माण करता है।

→ जनसंख्या की दृष्टि से भारत चीन के बाद संसार का दूसरा बड़ा देश है।

→ हिमालय पर्वत का विस्तार तथा तीन ओर से समुद्र भारत को ‘उपमहाद्वीप’ का दर्जा प्रदान करते हैं।

→ भारत एक सुस्पष्ट भौगोलिक इकाई है जिसमें एक विशिष्ट संस्कृति का विकास हुआ है।

→ भारत का उत्तर-दक्षिण विस्तार 3214 कि०मी० और पूर्व-पश्चिम विस्तार 2933 कि०मी० है।

→ 82° 30° पू० देशांतर के समय को भारत का मानक समय माना गया है। यह ग्रीनविच (इंग्लैंड) के समय से साढ़े पांच घंटे आगे है।

→ जब किसी देश में किसी देशांतर के स्थानीय समय को पूरे देश का समय मान लिया जाता है, तो उसे मानक समय कहते हैं।

→ किसी महाद्वीप का वह भाग जो पर्वतों एवं नदियों जैसे प्राकृतिक लक्षणों द्वारा शेष महाद्वीप से अलग दिखाई देता है, उप-महाद्वीप कहलाता है। भारत भी एक उपमहाद्वीप है।

→ भारत की सीमाएं 7 देशों की सीमाओं को छूती हैं।

→ देश का धरातलीय विस्तार 15200 कि०मी० और तट रेखा 7516-कि०मी० है।

→ SAARC (सार्क) का अर्थ है South Asian Association for Regional Co-operation । भारत को सार्क देशों में सबसे महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

→ भारत में 28 राज्य तथा 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं।

→ चंडीगढ़ (हरियाणा तथा पंजाब) और हैदराबाद (आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना) दो ऐसे शहर हैं जो एक से अधिक राज्यों की राजधानियां हैं।

→ दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र है। इसका नई दिल्ली क्षेत्र पूरे देश की राजधानी है।

→ हिन्दमहासागर के शीर्ष पर स्थित होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की दृष्टि से भारत की स्थिति अनुकूल है।

ਭਾਰਤ: ਆਕਾਰ ਅਤੇ ਸਥਿਤੀ PSEB 9th Class SST Notes

→ ‘ਭਾਰਤ ਗਣਤੰਤਰ’ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਦੇਸ਼ ਹੈ । ਖੇਤਰਫਲ ਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਇਹ ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਸੱਤਵਾਂ ਵੱਡਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ ।

→ ਸੰਸਾਰ ਦੇ ਕੁੱਲ ਖੇਤਰਫਲ ਦਾ 2.4% ਭਾਗ ਭਾਰਤ ਦੀ ਭੂਮੀ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਨਸੰਖਿਆ ਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਚੀਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸੰਸਾਰ ਦਾ ਦੂਸਰਾ ਵੱਡਾ ਦੇਸ਼ ਹੈ ।

→ ਹਿਮਾਲਿਆ ਪਰਬਤ ਦਾ ਵਿਸਥਾਰ ਅਤੇ ਤਿੰਨੋਂ ਪਾਸਿਆਂ ਤੋਂ ਸਮੁੰਦਰ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ‘ਉਪ-ਮਹਾਦੀਪ’ ਦਾ ਦਰਜਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਭਾਰਤ ਇਕ ਸਪੱਸ਼ਟ ਭੂਗੋਲਿਕ ਇਕਾਈ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਇਕ ਵਿਸ਼ਿਸ਼ਟ ਸਭਿਆਚਾਰ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ਹੈ ।

→ ਭਾਰਤ ਦਾ ਉੱਤਰ-ਦੱਖਣੀ ਵਿਸਥਾਰ 3214 ਕਿ.ਮੀ. ਅਤੇ ਪੂਰਬ-ਪੱਛਮੀ ਵਿਸਥਾਰ 2933 ਕਿ.ਮੀ. ਹੈ ।

→ 82° 30° ਪੂਰਬ ਦੇਸ਼ਾਂਤਰ ਦੇ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦਾ ਮਾਨਕ ਸਮਾਂ ਮੰਨਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਇਹ ਸ਼੍ਰੀਨਵਿਚ (ਇੰਗਲੈਂਡ) ਦੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸਾਢੇ ਪੰਜ ਘੰਟੇ ਅੱਗੇ ਹੈ ।

→ ਜਦੋਂ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਕਿਸੇ ਦੇਸ਼ਾਂਤਰ ਦੇ ਸਥਾਨਕ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਸਮਾਂ ਮੰਨ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਮਾਨਕ ਸਮਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਕਿਸੇ ਮਹਾਂਦੀਪ ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜਿਹੜਾ ਪਰਬਤਾਂ ਅਤੇ ਨਦੀਆਂ ਵਰਗੇ ਕੁਦਰਤੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਨਾਲ ਬਾਕੀ ਮਹਾਂ ਦੀਪਾਂ ਤੋਂ ਅਲੱਗ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹੈ, ਉਪ-ਮਹਾਂਦੀਪ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਵੀ ਇੱਕ ਉਪ-ਮਹਾਂਦੀਪ ਹੈ ।

→ ਵਿਸ਼ਵ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ 7 ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ ਨੂੰ ਛੂੰਹਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਦੇਸ਼ ਦਾ ਧਰਾਤਲੀ ਵਿਸਥਾਰ 15200 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਅਤੇ ਤੱਟ ਰੇਖਾ 7516 ਕਿਲੋਮੀਟਰ ਹੈ ।

→ SAARC (ਸਾਰਕ) ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ South Asian Association For Regional Co-operation ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਸਾਰਕ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਥਾਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੈ ।

→ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ 28 ਰਾਜ ਅਤੇ 8 ਕੇਂਦਰ ਸ਼ਾਸਿਤ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਹਨ ।

→ ਚੰਡੀਗੜ੍ਹ (ਹਰਿਆਣਾ ਅਤੇ ਪੰਜਾਬ ਅਤੇ ਹੈਦਰਾਬਾਦ (ਆਂਧਰਾ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਤੇਲੰਗਾਨਾ ਦੋ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸ਼ਹਿਰ ਹਨ ਜਿਹੜੇ ਇੱਕ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਰਾਜਾਂ ਦੀਆਂ ਰਾਜਧਾਨੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਦਿੱਲੀ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਖੇਤਰ ਹੈ । ਇਸਦਾ ਨਵੀਂ ਦਿੱਲੀ ਖੇਤਰ ਪੂਰੇ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਹੈ ।

→ ਹਿੰਦ-ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਦੇ ਸਿਖਰ ‘ਤੇ ਸਥਿਤ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕੌਮਾਂਤਰੀ ਵਪਾਰ ਦੀ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਤੋਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਬਹੁਤ ਹੀ ਅਨੁਕੂਲ ਹੈ ।