PSEB 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

→ सभी जीवधारियों को भोजन की आवश्यकता होती है जिसमें हमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन तथा खनिज लवण प्राप्त होते हैं।

→ पौधे और जंतु दोनों हमारे भोजन के मुख्य स्रोत हैं।

→ हमने हरित क्रांति से फसल उत्पादन में वृद्धि की है और श्वेत क्रांति से दूध का उत्पादन बढ़ाया है।

→ अनाजों से कार्बोहाइड्रेट, दालों से प्रोटीन, तेल वाले बीजों से वसा, फलों से खनिज लवण और अन्य पौष्टिक तत्व प्राप्त होते हैं।

→ खरीफ फसलें जून से अक्तूबर तक और रबी फसलें नवंबर से अप्रैल तक होती हैं।

→ भारत में 1960 से 2004 तक कृषि भूमि में 25% वृद्धि हुई है।

→ संकरण अंतराकिस्मीय, अंतरास्पीशीज अथवा अंतरावंशीय हो सकता है।

→ कृषि-प्रणाली तथा फसल-उत्पादन मौसम, मिट्टी की गुणवत्ता तथा पानी की उपलब्धता पर निर्भर करती है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

→ पौधों के लिए पापक आवश्यक हैं। ऑक्सीजन, कार्बन, हाइड्रोजन के अतिरिक्त मिट्टी से 13 पोषक प्राप्त होते हैं जिन्हें वृहत् पोषक और सूक्ष्म पोषक में बांटा जाता है।

→ खाद को जंतु के अपशिष्ट तथा पौधे के कचरे के अपघटन से तैयार किया जाता है।

→ कंपोस्ट, वर्मी कंपोस्ट तथा हरी खाद मिट्टी को उपजाऊ बनाते हैं।

→ उर्वरकों के प्रयोग से जल प्रदूषण होता है और इनके सतत प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता कम होती है तथा सूक्ष्म जीवों का जीवन चक्र अवरुद्ध होता है।

→ मिश्रित फसल में दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ उगाते हैं।

→ अंतरा फसलीकरण में दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में निर्दिष्ट पैटर्न पर उगाया जाता है।

→ किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों के उगाने को फसल चक्र कहते हैं।

→ कीट-पीड़क पौधों पर तीन प्रकार से आक्रमण करते हैं।

→ पौधों में रोग बैक्टीरिया, कवक तथा वायरस जैसे रोग कारकों से होता है।

→ खरपतवार, कीट तथा रोगों पर नियंत्रण अनेक विधियों से होता है।

→ जैविक और अजैविक कारक कृषि उत्पाद के भंडारण को हानि पहुंचाते हैं।

→ भंडारण के स्थान पर उपयुक्त नमी और ताप का अभाव गुणवत्ता को खराब कर देते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

→ भंडारण से पहले निरोधक तथा नियंत्रण विधियों का उपयोग करना चाहिए।

→ पशुधन के प्रबंधन को पशु पालन कहते हैं।

→ दूध देने वाली मादा दुधारू पशु तथा बोझा ढोना वाले पशु को ड्राफ्ट पशु कहते हैं।

→ पशु आहार के अंतर्गत मोटा चारा तथा सांद्र आते हैं। पशु को संतुलित आहार की आवश्यकता होती है जिसमें उचित मात्रा में सभी तत्व होने चाहिएं।

→ कुक्कुट पालन में उन्नत मुर्गी की नस्लें विकसित की जाती हैं।

→ अंडों के लिए अंडे देने वाली (लेअर) तथा मांस के लिए ब्रोला को पाला जाता है।

→ मुर्गी पालन से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए अच्छी प्रबंधन प्रणाली बहुत आवश्यक है।

→ मछली प्रोटीन का अच्छा और सस्ता स्रोत है।

→ मछली उत्पादन में पंखयुक्त वास्तविक मछली तथा प्रॉन और मौलस्क आते हैं।

→ ताजे पानी के स्रोत, खारा पानी, समुद्री पानी और ताजा का मिश्रण स्थान तथा लैगून भी मछली के महत्त्वपूर्ण भंडार हैं।

→ मधुमक्खी पालन एक कृषि योग्य उद्योग बन गया है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

→ शहद के अतिरिक्त मधुमक्खी के छत्ते से मोम प्राप्त होती है।

→ मधु की गुणवत्ता मधुमक्खी को उपलब्ध फूलों पर निर्भर करती है।

→ स्थूलपोषक तत्व (Macro nutrients)-ऐसे पोषक तत्व जिनकी पौधों को अधिक मात्रा में आवश्यकता होती है।

→ सूक्ष्म पोषक तत्व (Micro nutrients)-ऐसे पोषक तत्व जिनकी पौधों को कम मात्रा में आवश्यकता होती है।

→ गोबर खाद (Farm yard manure)-पशुओं के गोबर व मूत्र, उनके नीचे के बिछावन तथा उनके खाने से बचे व्यर्थ चारे आदि से बनी खाद को गोबर खाद कहते हैं।

→ कंपोस्ट खाद (Compost manure)-पशुओं का उनके अवशेष पदार्थों, कूड़ा कर्कट, पशुओं के गोबर, मनुष्य के मल-मूत्र आदि पदार्थों के जीवाणुओं तथा कवकों की क्रिया द्वारा खाद में बदलने को कंपोस्टिंग कहते हैं। इस प्रकार बनी खाद को कंपोस्ट खाद कहते हैं।

→ हरी खाद (Green manure)-फसलों को उगाकर उन्हें फूल आने से पहले ही हरी अवस्था में खेत में जोतकर सड़ा देने को हरी खाद कहते हैं।

→ फसल संरक्षण (Crop Protection)-रोगकारक जीवों तथा फसल को हानि पहुंचाने वाले कारकों से फसल को बचाने की क्रिया को फसल संरक्षण कहते हैं।

→ पीड़क (Pests)-ऐसे जीव जो मनुष्य के स्वास्थ्य, पर्यावरण तथा उसके उपयोग की वस्तुओं को हानि पहुंचाए, उन्हें पीड़क कहते हैं।

→ पीड़कनाशी (Pesticides)-पीड़कों को नष्ट करने के लिए जिन जहरीले पदार्थों का उपयोग किया जाता है, उन्हें पीड़कनाशी कहते हैं। डी० डी० टी०, बी० एच० सी० आदि मुख्य पीड़कनाशी हैं।

→ खरपतवार (Weeds)-फसलों के साथ-साथ जो अवांछनीय पौधे उग आते हैं, उन्हें खरपतवार कहते हैं।

→ खरपतवारनाशी (Weedicides)-खरपतवारों को नष्ट करने के लिए जिन रसायनों का छिड़काव किया जाता है, उन्हें खरपतवारनाशी कहते हैं।

→ ह्यूमस (Humus)-मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ जो पौधों तथा जंतुओं के अपघटन से बनते हैं, उन्हें ह्यूमस कहते हैं।

→ मिश्रित फसली (Mixed Cropping)-एक ही खेत में एक ही मौसम में दो या दो से अधिक फसलों को उगाने को मिश्रित फसली कहते हैं।

→ फसल चक्र (Crop Rotation)-एक ही खेत में प्रतिवर्ष फसल तथा फलीदार पौधों को एक के बाद एक करके अदल-बदल कर बोने की विधि को फसल चक्र कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

→ संकरण (Hybridization)-संकरण वह विधि है जिसके द्वारा दो अलग-अलग वांछनीय गुणों वाली एक ही फसल के पौधों का आपस में परागण कराया जाता है और एक नई फसल उत्पन्न होती है।

→ पशु-पालन (Animal husbandry)-पशुओं के भोजन का प्रबंध, देखभाल, प्रजनन तथा आर्थिक दृष्टि से महत्त्व पशु-पालन कहलाता है।

→ रुक्षांश (Roughage)-जानवरों को दिए जाने वाले रेशे युक्त दानेदार तथा कम पोषण वाले भोजन को रुक्षांश कहते हैं।

→ सांद्र पदार्थ (Concentrate)-पशुओं को आवश्यक तत्व प्रदान करने वाले पदार्थों को सांद्र पदार्थ कहते हैं। बिनोला, चना, खल, दालें, दलिया आदि मुख्य सांद्र पदार्थ हैं।

→ पोल्ट्री (Poultry)-पक्षियों को मांस तथा अंडों के लिए पालने को पोल्ट्री कहते हैं।

→ संकरण (Hybridisation)-दो विभिन्न गुणों वाली नस्लों की सहायता से नई किस्म की नस्ल तैयार करना संकरण कहलाता है। इसमें दोनों नस्लों के वांछनीय गुण होते हैं।

→ मत्स्यकी (Pisciculture)-मांस की वृद्धि के लिए मछलियों को पालना मत्स्यकी कहलाता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक संपदा

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक संपदा

→ पृथ्वी ही एक ऐसा ग्रह है जिस पर जीवन विद्यमान है।

→ जीवन के लिए परिवेश, ताप, पानी और भोजन की आवश्यकता होती है।

→ जीवों के लिए सूर्य से ऊर्जा और पृथ्वी पर उपलब्ध संपदा आवश्यक है।

→ पृथ्वी की संपदाएं स्थल, जल और वायु हैं।

→ पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग स्थल मंडल है और 75% भाग पानी है।

→ सजीव जीव मंडल के जैविक घटक हैं तथा हवा, जल और मिट्टी अजैविक घटक हैं।

→ हमारा जीवन वायु के घटकों का परिणाम है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक संपदा

→ चंद्रमा की सतह पर वायु मंडल नहीं है और उसका तापमान – 190°C से 110°C के बीच होता है।

→ गर्म होने पर वायु में संवहन धाराएं उत्पन्न होती हैं।

→ जल की अपेक्षा स्थल जल्दी गर्म होता है इसलिए स्थल के ऊपर वायु भी तेजी से गर्म होती है।

→ दिन के समय हवा की दिशा समुद्र से स्थल की ओर तथा रात के समय स्थल से समुद्र की ओर होती है।

→ हवा को पृथ्वी की घूर्णन गति तथा पर्वत श्रृंखलाएं भी प्रभावित करती हैं।

→ वर्षा का प्रकार पैटर्न पवन के पैटर्न पर निर्भर करता है।

→ भारत में वर्षा दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पूर्वी मानसून के कारण आती है।

→ हवा के गुण सभी जीवों को प्रभावित करते हैं।

→ ईंधनों के जलने से दूषित गैसें उत्पन्न होती हैं जो वर्षा के पानी में मिलकर अम्लीय वर्षा करती हैं।

→ निलंबित कण अनजले कार्बन कण या पदार्थ हो सकते हैं जिसे हाइड्रो कार्बन कहते हैं।

→ दूषित वायु में सांस लेने से कैंसर, हृदय रोग या एलर्जी जैसी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है।

→ पृथ्वी की सतह पर पाया जाने वाला अधिकतर पानी समुद्रों और महासागरों में है।

→ शुद्ध पानी बर्फ के रूप में दोनों ध्रुवों और बर्फ से ढके पहाड़ों पर पाया जाता है। भूमिगत जल, नदियोंझीलों-तालाबों का पानी भी अलवणीय होता है।

→ सभी जीवित प्राणियों के जीवन के लिए मीठे पानी की आवश्यकता होती है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक संपदा

→ जीवन की विविधता को मिट्टी प्रभावित करती है। मिट्टी में पाए जाने वाले खनिज जीवों को विभिन्न प्रकार से सहायता प्रदान करते हैं।

→ सूर्य, जल, हवा तथा जीव-जंतु मिट्टी की रचना में सहायक हैं।

→ मिट्टी के प्रकार का निर्णय उसमें पाए जाने वाले कणों के औसत आकार द्वारा निर्धारित किया जाता है।

→ मिट्टी के गुण ह्यूमस की मात्रा तथा उसमें सूक्ष्म जीवों के आधार पर जाँचे जाते हैं।

→ विशेष पत्थरों से बनी मिट्टी उसमें विद्यमान खनिज पोषक तत्वों को प्रकट करते हैं।

→ आधुनिक पीड़कनाशकों और उर्वरकों ने मिट्टी की संरचना बिगाड़ी है।

→ नाइट्रोजन वायुमंडल का लगभग 78% भाग है। यह प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, DNA, RNA और विटामिन के लिए आवश्यक है।

→ कार्बन का विभिन्न भौतिक और जैविक क्रियाओं के द्वारा चक्रण होता है।

→ ग्रीन हाऊस प्रभाव के कारण वायुमंडल और सारे विश्व का औसत तापमान बढ़ जाएगा।

→ ऑक्सीजन वायुमंडल में लगभग 21% है। इसका प्रयोग श्वसन, दहन और नाइट्रोजन के ऑक्साइड के रूप में होता है।

→ वायुमंडल के ऊपरी भाग में ऑक्सीजन के तीन अणु (O3) पाए जाते हैं जिसे ओज़ोन कहते हैं।

→ यह सूर्य के हानिकारक विकिरणों को सोखता है और पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करता है।

→ अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन परत में छिद्र पाया गया है जिससे पृथ्वी को बहुत क्षति होने की आशंका है।

→ क्षय प्राकृतिक संसाधन (Exhaustible Resources)-ऐसे संसाधन जो मनुष्यों की क्रियाओं द्वारा समाप्त हो रहे हैं। जैसे-वन, मिट्टी, खनिज तथा वन्य जीवन ।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक संपदा

→ अक्षय प्राकृतिक संसाधन (Inexhaustible Resources)-ऐसे संसाधन जो मनुष्यों की क्रियाओं द्वारा समाप्त नहीं हो सकते। जैसे—सूर्य का प्रकाश, समुद्र आदि।

→ नवीकरणीय स्रोत (Renewable Resources)-ऐसे स्रोत जिनका प्रकृति में चक्रीकरण हो सकता है, उन्हें नवीकरणीय स्रोत कहते हैं। उदाहरण-लकड़ी तथा जल।

→ अनवीकरणीय स्रोत (Non-renewable Resources)-ऐसे स्रोत जिनका चक्रीकरण नहीं हो सकता जो एक बार प्रयोग करने के बाद समाप्त हो जाते हैं, उन्हें अनवीकरणीय स्रोत कहते हैं। उदाहरण-लकड़ी, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस आदि।

→ भूमिगत जल (Underground Water)-यह जल भूमि के नीचे होता है।

→ भूपृष्ठ (Crust)-पृथ्वी की सबसे बाहरी परत को पृष्ठ कहते हैं।

→ खनिज संसाधन (Mineral Resources)-ये भूमि में स्थित खनिज तथा धातुओं के भंडार हैं।

→ वायुमंडल (Atmosphere)-धरती को चारों ओर से घेरे हुए वायु का आवरण वायुमंडल कहलाता है।

→ प्रदूषण (Pollution)-धूलकण, धुआं तथा हानिकारक गैसों का अनैच्छिक रूप से वायु मिलना प्रदूषण कहलाता है।

→ अम्लीय वृष्टि (Acid Rain)-प्रदूषित वायु जिसमें अम्लीय ऑक्साइडों से उत्पादित अम्ल उपस्थित हों, अम्लीय वृष्टि कहते हैं।

→ धुआं (Smoke) यह ईंधन के अपूर्ण दहन से प्राप्त हुए कार्बन, राख तथा तेल के कणों का बना होता है।

→ कोहरा (Fog) यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसमें बहुत छोटे जल कण वायु में निलंबित अवस्था में उपस्थित होते हैं।

→ ऐरोसॉल (Aerosols)-वायु में उपस्थित द्रव्यों के बारीक कणों को ऐरोसॉल कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 14 प्राकृतिक संपदा

→ कणकीय पदार्थ (Particulates)-वायु में उपस्थित निलंबित ठोस अथवा द्रव पदार्थ की असतत संहति को कणकीय पदार्थ कहते हैं।

→ फ्लाई ऐश (Fly Ash)-जीवाश्मी ईंधन के दहन के कारण उत्पन्न गैसों के साथ राख के निकलने वाले छोटे-छोटे कणों को फ्लाई ऐश कहते हैं।

→ ग्रीन हाऊस प्रभाव (Green House Effect)-पृथ्वी से परावर्तित अवरक्त विकिरणें कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा सोख ली जाती हैं, जिसके फलस्वरूप वायुमंडल गर्म हो जाता है और उसका ताप बढ़ जाता है। इस प्रक्रिया को ग्रीन हाऊस प्रभाव कहते हैं।

→ मृदा (Soil)-पृथ्वी की ऊपरी सतह को मृदा कहते हैं जो चट्टानों के सूक्ष्म कणों, ह्यूमस, हवा और जल से मिल कर बनती है।

→ मृदा अपरदन (Soil Erosion)-मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत के अपने स्थान से हट जाने को मृदा अपरदन कहते हैं।

→ मृदा प्रदूषण (Soil Pollution)-रासायनिक उर्वरकों तथा बेकार पदार्थों के मिट्टी में मिल जाने को मृदा प्रदूषण कहते हैं।

→ हाइड्रो कार्बन (Hydro Carbon)-कार्बन तथा हाइड्रोजन से बने कार्बनिक यौगिकों को हाइड्रो कार्बनिक कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

→ भूकंप तथा तटवर्ती भाग को प्रभावित करने वाले चक्रवात आसपास के लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।

→ ‘स्वास्थ्य’ वह अवस्था है जिसके अंतर्गत शारीरिक, मानसिक और सामाजिक कार्य समुचित क्षमता से उचित प्रकार किया जा सके।

→ हमारा सामाजिक पर्यावरण हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।

→ स्वास्थ्य के लिए भोजन, अच्छी आर्थिक परिस्थितियां तथा कार्य आवश्यक हैं।

→ सामुदायिक समस्याएं हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।

→ जब कोई रोग होता है तब शरीर के एक या अनेक अंगों एवं तंत्रों में क्रिया या संरचना में खराबी दिखाई देने लगती है।

→ जो रोग लंबी अवधि तक रहते हैं उन्हें दीर्घकालिक रोग कहते हैं।

→ जो रोग कम अवधि तक रहते हैं उन्हें तीव्र रोग कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

→ दीर्घकालिक रोग तीव्र रोग की अपेक्षा स्वास्थ्य पर लंबे समय तक विपरीत प्रभाव बनाए रखता है।

→ जिन रोगों के तात्कालिक कारण सूक्ष्मजीव होते हैं उन्हें संक्रामक रोग कहते हैं।

→ कैंसर रोग आनुवांशिक असामान्यता के कारण होते हैं; अधिक वज़न और व्यायाम न करने से उच्च रक्तचाप होता है-पर ये संक्रामक रोग नहीं हैं।

→ हेलीको बैक्टर पायलौरी नामक बैक्टीरिया पेप्टिक व्रण का कारण होता है।

→ खांसी-जुकाम, इंफ्लुएंजा, डेंगु बुखार, AIDS आदि रोग वायरस से होते हैं। टायफॉयड, हैज़ा, क्षय रोग, एंथ्रेक्स आदि बैक्टीरिया से होते हैं। अनेक त्वचा रोग विभिन्न प्रकार की फंजाई से होते हैं। प्रोटोज़ोआ से मलेरिया तथा कालाजार होते हैं तथा फीलपांव नामक रोग कृमि की विभिन्न स्पीशीज़ से होता है।

→ वाइरस, बैक्टीरिया तथा फंजाई का गुणन अत्यंत तेज़ी से होता है।

→ कोई औषधि किसी एक जैव क्रिया को रोकती है तो इस वर्ग के अन्य सदस्यों को भी प्रभावित करती है पर वही औषधि अन्य वर्ग से संबंधित रोगाणुओं पर प्रभाव नहीं डालती।

→ वायु से फैलने वाले रोग हैं-खांसी-जुकाम, निमोनिया तथा क्षय रोग।

→ संक्रमित जल से रोग फैलते हैं।

→ सिफलिस, AIDS आदि रोग लैंगिक संपर्क से स्थानांतरित होते हैं।

→ कुछ रोग मच्छर जैसे अन्य जंतुओं द्वारा संचारित होते हैं।

→ सूक्ष्म जीव की विभिन्न स्पीशीज शरीर के विभिन्न भागों में विकसित होती हैं। हवा से नाक में प्रवेश करने पर वे फेफड़ों में जाते हैं या मुँह के द्वारा प्रवेश करने से आहार नाल में जाते हैं।

→ HIV लैंगिक अंगों से शरीर में प्रवेश करता है पर लसीका ग्रंथियों में फैलता है। जापानी मस्तिष्क ज्वर का वायरस मच्छर के काटने से शरीर में पहुंचता है पर मस्तिष्क को संक्रमित करता है।

→ HIV-AIDS के कारण शरीर छोटे संक्रमणों का मुकाबला नहीं कर पाता, जो रोगी की मृत्यु का कारण बनते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

→ रोगों के निवारण की दो विधियां हैं-सामान्य और विशिष्ट।

→ संक्रामक रोगों से बचने के लिए स्वच्छता आवश्यक है।

→ हमारे शरीर में स्थित प्रतिरक्षा तंत्र रोगाणुओं से लड़ता है। विशिष्ट कोशिकाएं रोगाणुओं को मार देती हैं।

→ संक्रामक रोगों से बचने के लिए उचित मात्रा में पौष्टिक भोजन आवश्यक है।

→ विश्व भर से चेचक का उन्मूलन किया जा चुका है। चेचक के एक बार हो जाने के बाद पुनः इससे ग्रसित होने की संभावना नहीं रहती। यह प्रतिरक्षाकरण के नियम का आधार है।

→ टेटनस, डिप्थीरिया, कूकर खांसी, चेचक, पोलियो आदि से बचने के टीके अब उपलब्ध हैं।

→ हिपेटाइटिस ‘A’ का टीका अब देश में उपलब्ध है। पांच वर्ष की आयु तक के अधिकांश बच्चों में पानी से ही इसके वायरस के प्रभाव में आ चुका होता है।

→ स्वास्थ्य (Health)-स्वास्थ्य वह अवस्था है जिसके अंतर्गत शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक कार्य समुचित क्षमता से उचित प्रकार किया जा सके।

→ तीव्र रोग (Acute Disease)-जिस रोग की अवधि कम होती है उसे तीव्र रोग कहते हैं।

→ दीर्घकालिक रोग (Chronic Disease) -जो रोग लंबी अवधि तक अथवा जीवनपर्यंत रहते हैं उन्हें दीर्घकालिक रोग कहते हैं।

→ संक्रामक/संचरणीय रोग (Communicable diseases)-ये रोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति, सूक्ष्म जीवों, जीवाणुओं, विषाणुओं तथा प्रोटोज़ोआ द्वारा फैलते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 13 हम बीमार क्यों होते हैं

→ असंक्रामक/असंचरणीय रोग (Non-Communicable diseases)-ये उपार्जित रोग हैं तथा ये एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक नहीं फैलते।

→ प्रतिरक्षी (Antibodies)-जो पदार्थ शरीर में रोगों से लड़ते हैं और हमारी रोगों से रक्षा करते हैं, उन्हें प्रतिरक्षी कहते हैं।

→ हीनता-जन्य रोग (Deficiency diseases)-पर्याप्त तथा संतुलित आहार न मिलने के कारण होने वाले रोग को हीनता-जन्य रोग कहते हैं।

→ कुपोषण (Malnutrition) हीनता-जन्य रोगों से उत्पन्न स्थिति को कुपोषण कहते हैं जो कम आहार तथा असंतुलित आहार के कारण होता है।

→ एलर्जी (Allergy)-इस रोग में किसी एक व्यक्ति में किसी विशेष पदार्थ के प्रति संवेदनशीलता उत्पन्न हो जाती है।

→ आनुवंशिक रोग (Hereditary diseases)-ये रोग माता-पिता से संतान में स्थानांतरित होते हैं।

→ टीकाकरण (Vaccination)-रोगों की रोकथाम के लिए टीका लगवाना टीकाकरण है। यह रोकथाम का एक अच्छा उपाय है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

→ ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है जो हमारे कानों में सुनने का अनुभव (संवेदन) पैदा करता है।

→ ध्वनि उत्पन्न करने के लिए ऊर्जा के किसी एक रूप का उपयोग किया जाता है।

→ वस्तुओं में कंपन के कारण ध्वनि उत्पन्न होती है।

→ कंपन का अर्थ है किसी वस्तु का तीव्रता से बार-बार इधर-उधर गति करना।

→ मानव आवाज़ में ध्वनि, कण्ठ तंतुओं में कंपन होने के कारण पैदा होती है।

→ पदार्थ जिसमें से ध्वनि संचार करती है, माध्यम कहलाता है।

→ तरंग एक हल-चल है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

→ ध्वनि संचरण के लिए किसी माध्यम की आवश्यकता होती है तथा वायु सबसे अधिक सामान्य प्रयोग किया जाने वाला माध्यम है।

→ जनि निर्वात में संचार नहीं कर सकती है।

→ ध्वनि किसी पदार्थ माध्यम में अनुदैर्ध्य तरंगों (लांगी च्यूडीनल तरंगें) के रूप में संचार करती है।

→ ध्वनि भाध्यम में संपीड़न तथा विरलन के रूप में संचरण करती है।

→ संपीड़न एक उच्च दाब तथा कणों की अधिकतम घनत्व वाला क्षेत्र होता है।

→ अनुप्रस्थ तरंगों (हाँसवर्स तरंगों) में माध्यम के कण मूल स्थिति पर तरंग संचार की दिशा के लंबवत् गति करते हैं।

→ दो क्रमवार विरलन के मध्य वाली दूरी को तरंग लंबाई कहते हैं।

→ एकाँक समय में अपने पास से गुजरने वाली विरलनों की गति तरंग की आवृत्ति होती है।
अथवा
एकाँक समय में पूरे होने वाले दोलन की कुल संख्या को आवृति कहते हैं।

→ दो क्रमवार संपीड़नों अथवा विरलनों को किसी निश्चित बिंदु से गुज़रने में लगे समय को आवर्तकाल कहते
अथवा
तरंग द्वारा माध्यम का घनत्व या दाब के एक पूरे दोलन के लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं।

→ ध्वनि का वेग (v), आवृति (v) तथा तरंग दैर्ध्य (λ) में सम्बन्ध υ = v × 2 है।

→ ध्वनि की चाल मुख्य रूप से संचारित होने वाले माध्यम की प्रकृति तथा तापमान पर निर्भर करती है।

→ ध्वनि का परावर्तन नियम अनुसार ध्वनि के आपतित होने की दिशा तथा परावर्तित होने की दिशा परावर्तन सतह के आपतन बिंदु पर अभिलंब के साथ समान कोण बनाते हैं तथा यह तीनों एक ही धरातल में होते हैं।

→ स्पष्ट गूंज (प्रतिध्वनि) सुनने के लिए मूल ध्वनि तथा परावर्तित ध्वनि के मध्य कम से कम 0.1 सेकंड का समय अंतराल होना जरूरी है।

→ किसी एकाँक क्षेत्रफल में एक सेकंड में गुजरने वाली ध्वनि ऊर्जा को ध्वनि की तीउता कहते हैं।

→ मानव पराश्रव्य सीमा 20Hz से 20KHz है।

→ पराश्रव्य ध्वनि का चिकित्सा तथा औद्योगिक क्षेत्रों में बहुत उपयोग है।

→ सोनार तकनीक का उपयोग समुद्र की गहराई का पता लगाना तथा पनडुब्बियों तथा डूबे हुए जहाजों का पता लगाने के लिए किया जाता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

→ ध्वनि (Sound)-यह एक प्रकार की ऊर्जा है जो सुनने की संवेदना उत्पन्न करती है।

→ आयाम (Amplitude)-किसी कण का माध्यम स्थिति के दोनों ओर कंपन के अधिकतम विस्थापन को दोलन का आयाम कहते हैं।

→ आवृत्ति (Frequency)-किसी कम्पित वस्तु द्वारा एक सेकंड में पूरे किए गए कंपनों की संख्या को उसकी आवृत्ति कहते हैं।

→ आवर्तकाल (Time Period) किसी एक पूरे कंपन में लगे समय को आवर्तकाल कहते हैं। इसे ‘T’ से व्यक्त कर सेकंड में मापते हैं।

→ तरंग दैर्ध्य (Wave length)-कण के द्वारा जितने समय में एक कंपन पूरा किया जाता है उतने ही समय में तरंग द्वारा चली गई दूरी को तरंग दैर्ध्य कहते हैं। इसे ” द्वारा दर्शाया जाता है।

→ तरंग का वेग (Wave Velocity)-किसी माध्यम में आवर्ती तरंग की आवृत्ति और तरंग दैर्ध्य के गुणनफल का परिणाम उसके वेग के बराबर होता है। v = vλ.

→ लोलक (Pendulum)-एक धागे से बंधा हुआ ठोस पिंड जो किसी दृढ़ आधार पर लटक कर स्वतंत्रतापूर्वक दोलन कर सके उसे लोलक कहते हैं।

→ सेकंड लोलक (Second’s Pendulum) जो लोलक एक पूरे दोलन में 2 सेकंड लगाता है, उसे सेकंड लोलक कहते हैं। .

→ दोलन या कंपन (Oscillation or Vibration)-माध्य स्थिति के इधर-उधर गति करके एक चक्र को पूरा करने को एक दोलन या एक कंपन कहते हैं।

→ आवर्ती गति (Periodic Motion)-जो गति एक निश्चित समय के बाद बार-बार दोहराई जाती है, उसे आवर्ती गति कहते हैं।

→ संपीडन (Compression)-किसी अनुदैर्ध्य तरंग के आगे बढ़ने से जिन स्थानों पर माध्यम के कण एक दूसरे के बहुत निकट आ जाते हैं उसे संपीडन कहते हैं।

→ विरलन (Rarefaction)-अनुदैर्ध्य तरंगों में जिन स्थानों पर कण दूर-दूर चले जाते हैं, उन्हें विरलन कहते हैं।

→ श्रृंग (Crest)-किसी अनुप्रस्थ तरंग गति में उठा हुआ भाग श्रृंग कहलाता है।

→ गर्त (Trough)-किसी अनुप्रस्थ तरंग गति में नीचे दबा हुआ भाग गर्त कहलाता है।

→ प्रतिध्वनि (Echo)-परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 12 ध्वनि

→ ध्वनि का परावर्तन (Reflection of Sound)-किसी तल से टकरा कर ध्वनि का पुनः माध्यम में लौटने की प्रक्रिया को ध्वनि का परावर्तन कहते हैं।

→ अनुप्रस्थ तरंगें (Transverse waves)-जब माध्यम के कण तरंग के चलने की दिशा के लंबवत् कंपन करते हैं तब ऐसी तरंग को अनुप्रस्थ तरंग कहते हैं।

→ अनुदैर्ध्य तरंगें (Longitudinal waves)-जब माध्यय के कण लरंग की चलने की दिशा में गति करते हैं तो उसे अनुदैर्ध्य तरंग कहते हैं।

→ पराश्रव्य तरंगें (Ultrasonic waves)-दर यो आवृत्तियां 20,000 हज़ से अधिक होती है उन्हें पराश्रव्य तरंगें कहते हैं।

→ सोनार (SONAR-Sound Navigation and Ranging)-जो उपकरण ध्वनि तरंगों को उत्पन्न कर परावर्तित ध्वनि तरंगों का लघु समयांतर नापता है, उसे सोनार कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

→ सभी सजीवों को भोजन की आवश्यकता होती है।

→ जीवित रहने के लिए सजीवों को अनेक मूलभूत गतिविधियाँ करनी पड़ती हैं जिसके लिए उसे ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है। यह ऊर्जा उसे भोजन से प्राप्त होती है।

→ मशीनों को भी कार्य करने के लिए पेट्रोल, डीज़ल जैसे ईंधनों से ऊर्जा प्राप्त होती है।

→ दैनिक जीवन में हम किसी भी लाभदायक शारीरिक या मानसिक परिश्रम को कार्य समझते हैं।

→ विज्ञान के दृष्टिकोण से कार्य करने के लिए दो दशाओं का होना आवश्यक है :

  1. वस्तु पर कोई बल लगना चाहिए तथा
  2. वस्तु विस्थापित होनी चाहिए।

→ किसी वस्तु पर लगने वाले बल द्वारा किया गया कार्य बल के परिमाण तथा बल की दिशा में चली गई दूरी के गुणनफल के बराबर होता है।

→ जब बल, विस्थापन की दिशा के विपरीत दिशा में लगता है तो किया गया कार्य ऋणात्मक होता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

→ जब बल, विस्थापन की दिशा में होता है तो किया गया कार्य धनात्मक होता है।

→ हमारे लिए सूर्य सबसे बड़ा प्राकृतिक ऊर्जा स्रोत है। इसके अतिरिक्त हम परमाणुओं के नाभिकों से, पृथ्वी के आंतरिक भागों से तथा ज्वार-भाटा से भी ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।

→ यदि किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता हो तो कहा जाता है कि वस्तु में ऊर्जा है।

→ जो वस्तु कार्य करती है उसमें ऊर्जा की हानि होती है और जिस वस्तु पर कार्य किया जाता है उसमें ऊर्जा की वृद्धि होती है।

→ ऊर्जा अनेक रूपों में विद्यमान है जैसे गतिज ऊर्जा, स्थितिज ऊर्जा, उष्मीय ऊर्जा, रासायनिक ऊर्जा, विद्युत् ऊर्जा तथा प्रकाश ऊर्जा ।

→ किसी भी वस्तु की स्थितिज तथा गतिज ऊर्जा के योग को वस्तु की यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं।

→ किसी वस्तु में उसकी गति के कारण निहित ऊर्जा को गतिज ऊर्जा कहते हैं।

→ किसी वस्तु की गतिज ऊर्जा उसकी चाल के साथ बढ़ती है।

→ वस्तु को ऊँचाई पर उठाने से उसकी ऊर्जा गुरुत्वीय बल के विरुद्ध कार्य करने से गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा होती है।

→ हम ऊर्जा का एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरण कर सकते हैं।

→ ऊर्जा संरक्षण नियम के अनुसार, ऊर्जा केवल एक रूप से दूसरे रूप में रूपांतरित हो सकती है, न तो इसकी उत्पत्ति की जा सकती है और न ही विनाश । रूपांतरण से पहले तथा रूपांतरण के बाद कुल ऊर्जा सदैव अचर होती है।

→ कार्य करने की दर या ऊर्जा रूपांतरण की दर को शक्ति कहते हैं।

→ शक्ति का मात्रक वाट है।

→ 1 किलोवाट = 1000 वाट

→ 1 वाट उस अभिकर्ता (एजेंट) की शक्ति है जो 1 सेकेण्ड में 1 जूल कार्य करता है।

→ ऊर्जा का मात्रक जूल है परंतु यह बहुत छोटा मात्रक है। इसका बड़ा मात्रक किलोवाट घंटा (kwh) है।
1 kWh = 3.6 × 106 J

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा

→ उद्योगों तथा व्यावसायिक संस्थानों में व्यय होने वाली ऊर्जा किलोवाट घंटा में व्यक्त होती है जिसे यूनिट कहते हैं।

→ ऊर्जा (Energy)-कार्य करने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।

→ गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy)-वस्तुओं में उनकी गति के कारण कार्य करने की क्षमता को गतिज ऊर्जा कहते हैं, जैसे गतिशील वायु, गतिशील जल आदि।

→ स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy)-किसी वस्तु की स्थिति या विकृति के कारण कार्य करने की क्षमता स्थितिज ऊर्जा कहलाती है, जैसे खींचा हुआ तीर कमान, पहाड़ों पर जमी हुई बर्फ आदि।

→ ऊर्जा संरक्षण नियम (Conservation Law of Energy)-ऊर्जा को बनाया या नष्ट नहीं किया जा सकता है, उसे केवल एक रूप से दूसरे रूप में बदला जा सकता है।

→ जूल (Joule)-यदि एक न्यूटन (N) बल एक किलोग्राम भारी किसी वस्तु को एक मीटर की दूरी तक विस्थापित कर दे तो एक जूल कार्य होता है।

→ शक्ति (Power)-जिस दर पर ऊर्जा उपलब्ध की जाए या खर्च की जाए, उसे शक्ति (Power) कहते हैं। शक्ति का मात्रक वा (W) है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 11 कार्य तथा ऊर्जा 1

→ वाट (Watt)-यदि कोई स्रोत एक सैकंड में एक जूल ऊर्जा उपलब्ध कराए या खर्च करे तो उस स्रोत की शक्ति एक वाट होती है।

→ कार्य (Work)-जब बल लगाने से कोई वस्तु अपने स्थान से विस्थापित हो जाती है तो इसको बल द्वारा किया गया कार्य कहा जाता है।
कार्य = बल × विस्थापन

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

→ प्रत्येक वस्तु इस ब्रह्मांड में दूसरी वस्तु को अपनी ओर एक बल से आकर्षित करती है जिसे गुरुत्वाकर्षण बल कहते हैं।

→ चंद्रमा का पृथ्वी के इर्द-गिर्द चक्कर लगाना तथा ऊपर की दिशा में फेंकी गई वस्तु का नीचे पृथ्वी की ओर गिरना गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही होता है।

→ गुरुत्वाकर्षण एक कमज़ोर बल है जब तक इसमें बहुत अधिक द्रव्यमान की वस्तुएं न हों।

→ पृथ्वी के कारण लगने वाला आकर्षण बल गुरुत्व कहलाता है।

→ गुरुत्वाकर्षण का नियम यह बताता है कि दो वस्तुओं के मध्य लगने वाला आकर्षण बल उन वस्तुओं के द्रव्यमानों के गुणनफल का सीधा अनुपाती है तथा उन वस्तुओं के केंद्रों के मध्य की दूरी के वर्ग के विलोम अनुपाती है। यह बल सदैव उन वस्तुओं के केंद्रों को मिलाने वाली रेखा की अनुदिश लगता है।

→ गुरुत्वाकर्षण का नियम सार्वत्रिक है जिसका अर्थ है कि यह सभी छोटी-बड़ी वस्तुओं पर लागू होता है।

→ पृथ्वी तथा उसके तल पर रखी वस्तुओं के मध्य लगने वाले बल के परिमाण का सूत्र F = \(\frac{\mathrm{GM} m}{d^{2}}\) जहां G = 6.673 × 10-11 N – m2 /kg2 है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

→ पृथ्वी का द्रव्यमान = 6 × 1024 kg
चंद्रमा का द्रव्यमान = 7.4 × 1022 kg
पृथ्वी का अर्धव्यास = 6-4 × 106 m

→ किसी वस्तु में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उत्पन्न हुए त्वरण को गुरुत्व त्वरण कहते हैं। इसे g द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

→ पृथ्वी की सतह पर g का मान ध्रुवों पर भूमध्य रेखा की तुलना में अधिक होता है।

→ गुरुत्वाकर्षण बल पृथ्वी की सतह से ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ कम होता है।

→ जोहांस कैप्लर ने ग्रहों की गति को निर्देशित करने के लिए निम्नलिखित तीन नियम बनाएं-

  1. प्रत्येक ग्रह का ग्रह-पथ अंडाकार होता है जिसके केंद्र पर सूर्य स्थित होता है।
  2. सूर्य तथा ग्रहों को मिलाने वाली रेखा समान समय अंतराल में समान क्षेत्रफल तय करती है।
  3. सूर्य से किसी ग्रह की मध्यमान (औसत) दूरी (r) का घन (cube) उस ग्रह के ग्रह-पथ परिक्रमा चाल T के वर्ग के सीधा अनुपाती

होता है। अर्थात् \(\frac{r^{3}}{\mathrm{~T}^{2}}\) = स्थिरांक

→ वस्तु में उपस्थित पदार्थ की मात्रा उस वस्तु का द्रव्यमान कहलाता है। द्रव्यमान, वस्तु के जड़त्व का माप होता है। वस्तु का द्रव्यमान सभी स्थानों पर स्थिर होता है।

→ किसी वस्तु का भार वह बल है जिससे पृथ्वी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करती है। वस्तु का भार उसके द्रव्यमान (m) तथा गुरुत्वीयत्वरण (g) पर निर्भर करता है।
अर्थात् भार = द्रव्यमान (m) × गुरुत्वीयत्वरण (g)

→ किसी वस्तु की सतह के लंबवत् में क्रिया कर रहे बल को प्रणोद (Thrust) कहते हैं।

→ एकांक क्षेत्रफल पर लग रहे प्रणोद को दबाव कहते हैं।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 1
दबाव की S.I. इकाई Nm-2 (न्यूटन / मीटर2) या पास्कल (Pa) है।

→ किसी सीमित द्रव्यमान वाले द्रव पर लग रहा दबाव बिना किसी परिवर्तन सभी दिशाओं में स्थानांतरित होता है।

→ सभी वस्तुएं द्रव में डुबोए जाने पर ऊपर की दिशा में एक बल अनुभव करती हैं जिसे उत्प्लावन बल (upthrust) कहते हैं। उत्क्षेप का मान द्रव के घनत्व पर निर्भर करता है।

→ यदि द्रव में डुबोई गई वस्तु का भार, उत्प्लावन से अधिक हो तो वस्तु द्रव में डूब जाती है।

→ वे पदार्थ जिनका घनत्व द्रव के घनत्व से कम है, तैरते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

→ वे सभी पदार्थ जिनका घनत्व द्रव के घनत्व से अधिक है द्रव में डूब जाते हैं।

→ आर्किमीडीज़ के सिद्धान्त के अनुसार, “जब किसी वस्तु को पूरी तरह या आंशिक रूप से किसी द्रव में डुबोया जाता है तो उसके द्वारा ऊपर की दिशा में अनुभव किया गया बल वस्तु द्वारा विस्थापित किए गए द्रव के भार के बराबर होता है।”

→ किसी पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व, उस पदार्थ के घनत्व तथा द्रव के घनत्व का अनुपात होता है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण 2
आपेक्षिक घनत्व का कोई मात्रक (इकाई) नहीं होता है।

→ गुरुत्वाकर्षण बल (Force of Gravitation)- गुरुत्वाकर्षण वह बल है जिसके द्वारा दो वस्तुएं एक-दूसरे को अपनी ओर आकर्षित करती हैं, पर वे वस्तुएं आपस में जुड़ी हुई नहीं होती।

→ गुरुत्वाकर्षण का सार्वत्रिक नियम (The Universal Law of Gravitation)-इस ब्रह्मांड में प्रत्येक दो वस्तुओं के बीच का आकर्षण बल दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है। यह बल दोनों वस्तुओं के द्रव्यमान केंद्रों को मिलाने वाली रेखा की दिशा में कार्य करता है।

→ गुरुत्वीय त्वरण (Acceleration due to Gravity)-पृथ्वी की ओर गिरने वाली वस्तुओं में गुरुत्व बल के कारण एक निश्चित त्वरण उत्पन्न होता है जिसे गुरुत्वीय त्वरण कहते हैं।

→ गुरुत्व बल (Force of Gravity)- यह वह बल है, जिसके द्वारा पृथ्वी सभी वस्तुओं को अपने केंद्र की ओर खींचती है।

→ भार (Weight)- जिस बल के द्वारा पृथ्वी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है, उसे भार कहते हैं।

→ द्रव्यमान (Mass)-किसी वस्तु में उपस्थिति पदार्थ की मात्रा को उसका द्रव्यमान कहते हैं।

→ जड़त्वीय द्रव्यमान (Inertial Mass)-यह द्रव्यमान वस्तु की विराम अवस्था अथवा गतिशील अवस्था को बदलने के प्रयास से उत्पन्न प्रतिरोध को मापने का कार्य करता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 10 गुरुत्वाकर्षण

→ उत्प्लावन बल-किसी वस्तु की सतह के लंबवत् क्रिया कर रहे बल को उत्प्लावन बल कहते हैं।

→ दबाव-एकांक क्षेत्रफल पर लग रहे उत्क्षेप को दबाव कहते हैं।

→ सार्वत्रिक स्थिरांक (Universal Gravitational Constant)-यह वह बल है, जो परस्पर इकाई दूरी पर रखी दो इकाई द्रव्यमान वाली वस्तुओं के बीच लगता है।

→ भारहीनता- यह वस्तु की वह अवस्था है जब इसका त्वरण गुरुत्वीय त्वरण के समान होता है।

→ अभिकेन्द्र बल-जब कोई वस्तु वृत्तीय पथ पर गति करती है तो उसमें त्वरण उत्पन्न करने वाला बल तथा जो वस्तु को वृत्तीय पथ में रखता है यह केंद्र की ओर लगने वाला बल अभिकेंद्र बल कहलाता है।

→ वृत्त पर स्पर्श रेखा- कोई सरल रेखा जो वृत्त से केवल एक ही बिंदु पर मिलती है, वृत्त पर स्पर्श रेखा कहलाती है।

→ घनत्व-किसी पदार्थ का घनत्व उसके इकाई आयतन का द्रव्यमान होता है।

→ आपेक्षिक घनत्व-किसी पदार्थ का आपेक्षिक घनत्व उस पदार्थ के घनत्व तथा पानी के घनत्व का अनुपात होता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ गैलीलियो और आइजक न्यूटन ने वस्तुओं की गति के बारे में वैज्ञानिक आधार प्रस्तुत किए थे।

→ बल लगाकर स्थिर अवस्था में पड़ी किसी वस्तु को गति प्रदान की जा सकती है और गतिमान वस्तु को विराम अवस्था में लाया जा सकता है और उसी दिशा में भी परिवर्तन किया जा सकता है।

→ खींचने, धकेलने या ठोकर की क्रिया पर बल की अवधारणा आधारित है।

→ बल के प्रयोग से वस्तु का आकार या आकृति बदली जा सकती है।

→ बल दो प्रकार का होता है-

  1. संतुलित बल तथा
  2. असंतुलित बल।

→ किसी वस्तु पर लगे संतुलित बल वस्तु में गति उत्पन्न नहीं कर सकते।

→ जब किसी वस्तु पर असंतुलित बल लगा होता है तो उस वस्तु में अवश्य ही गति उत्पन्न हो जाती है।

→ घर्षण बल धकेलने की विपरीत दिशा में कार्य करता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ घर्षण के प्रभाव को कम करने के लिए चिकने समतल का प्रयोग तथा सतह पर लुब्रीकेंट का लेप किया जाता है।

→ S.I पद्धति में बल का मात्रक न्यूटन है।

→ बल के प्रभाव से वस्तुओं में होने वाली गति के लिए न्यूटन ने तीन मौलिक नियम प्रस्तुत किए जो सभी प्रकार की गति पर लागू होते हैं।

→ पहले नियम के अनुसार-प्रत्येक वस्तु अपनी स्थिर अवस्था या सरल रेखा में एक समान गति की अवस्था में बनी रहती है जब तक कि उस पर कोई बाहरी बल कार्यरत न हो।

→ दूसरे नियम के अनुसार-किसी वस्तु के संवेग में परिवर्तन की दर उस पर लगने वाले असंतुलित बल की दिशा में बल के समानुपाती होता है।

→ तीसरे नियम के अनुसार-जब एक वस्तु दूसरी वस्तु पर बल लगाती है तब दूसरी वस्तु द्वारा भी पहली वस्तु पर तात्क्षणिक बल लगाया जाता है। ये दोनों बल परिमाण में हमेशा बराबर लेकिन दिशा में विपरीत होते हैं।

→ गति के पहले नियम को जड़त्व का नियम भी कहते हैं।

→ किसी वस्तु के विरामावस्था में रहने या समान वेग से गतिशील रहने की प्रवृत्ति को जड़त्व कहते हैं।

→ प्रत्येक वस्तु अपनी गति की अवस्था में परिवर्तन का विरोध करती है।

→ रेलगाड़ी का जड़त्व ठेलागाड़ी से अधिक है इसलिए वह धक्का लगाने पर नहीं हिलती। भारी वस्तुओं में जड़त्व अधिक होता है।

→ किसी वस्तु का जड़त्व उसके द्रव्यमान से मापा जाता है।

→ किसी वस्तु का संवेग p उसके द्रव्यमान m वेग v के गुणनफल के समान होता है।
p = m × v

→ संवेग में परिमाण और दिशा दोनों होते हैं। इसकी दिशा वही होती है, जो वेग की होती है।

→ संवेग की SI मात्रक kg-ms होती है।

→ बल ही संवेग को परिवर्तित करता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ गति के दूसरे नियम का गणितीय रूप F = ma है, जहाँ F वस्तु पर लग रहा बल, m वस्तु का द्रव्यमान तथा । वस्त में उत्पन्न हआ त्वरण है।

→ किसी एकल बल का अस्तित्व नहीं होता बल्कि ये सदा युगल के रूप में होते हैं जिन्हें क्रिया तथा प्रतिक्रिया बल कहा जाता है।

→ जब दो या दो से अधिक पिंड आपस में टकराते हैं तो सभी पिंडों का कुल संवेग सुरक्षित रहता है अर्थात् टक्कर से पहले तथा टक्कर के बाद पिंडों का कुल संवेग बराबर रहता है। इस नियम को संवेग संरक्षण नियम कहते हैं।

→ संरक्षण के सभी नियमों जैसे संवेग, ऊर्जा, द्रव्यमान, कोणीय संवेग, आवेश आदि के संरक्षण को मौलिक नियम माना गया है।

→ बल-बल वह बाह्य कारण है जो किसी वस्तु की विराम अथवा एक समान गति की अवस्था को बदल देता है या बदल देने की प्रवृत्ति रखता है।

→ एक न्यूटन बल-वह बल जो एक कि० ग्रा० द्रव्यमान की वस्तु पर लगाने से उसमें एक मी०/सै० का त्वरण उत्पन्न कर दे, उसे एक न्यूटन बल कहते हैं।

→ संतुलित बल- यदि किसी पिंड पर अनेक बल लगाए जाने पर भी उसकी अवस्था में कोई परिवर्तन नहीं होता, तो इन बलों को संतुलित बल कहते हैं।

→ असंतुलित बल- यदि किसी पिंड पर लगाए जाने वाले सभी बलों का परिणाम शून्य न हो तो इन बलों को असंतुलित बल कहते हैं।

→ घर्षण बल-किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु की सतह पर सरकने से उत्पन्न बल घर्षण बल कहलाता है, जो गति का विरोध करता है।

→ जड़त्व-वस्तुओं की वह प्रकृति जिसके द्वारा वे बिना बाहरी बल लगाए अपनी विराम या गति की अवस्था को नहीं बदल सकती, जड़त्व कहलाती है।

→ विराम का जड़त्व-कोई वस्तु विराम में हो तो वह विराम में ही रहेगी जब तक कि कोई बाहरी बल लगा कर उसकी विराम अवस्था को बदल नहीं दिया जाता।

→ गति का जड़त्व-यदि कोई वस्तु एक समान चाल से सीधी रेखा में गमन कर रही हो तो वह तब तक ऐसा ही करती रहेगी जब तक कोई बाहरी बल उस वस्तु की इस अवस्था को बदल न दे।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 9 बल तथा गति के नियम

→ संवेग-किसी वस्तु के द्रव्यमान तथा वेग जिससे वह गति कर रही है के गुणनफल को उस वस्तु का संवेग कहते हैं।

→ संवेग संरक्षण का नियम-यदि कणों के किसी निकाय पर कोई बाहरी बल कार्य नहीं कर रहा तो उस संकाय का कुल संवेग संरक्षित रहेगा।

→ न्यूटन की गति का पहला नियम- यदि कोई वस्तु विराम अवस्था में है तो वह विराम अवस्था में ही रहेगी और यदि वह एक समान चाल में सीधी रेखा में चल रही है तो वैसे ही चलती रहेगी जब तक कि उस पर कोई बाहरी बल लगा कर उसकी अवस्था में परिवर्तन न कर दिया जाए।

→ न्यूटन की गति का दूसरा नियम-किसी वस्तु में संवेग के परिवर्तन की दर उस वस्तु पर लगाए गए बल के समानुपाती होती है तथा आरोपित बल की दिशा में ही संवेग परिवर्तन होता है।

→ न्यूटन की गति का तीसरा नियम-प्रत्येक क्रिया के बराबर परंतु विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति

→ कोई वस्तु उस समय गति में कहलाती है जब वह समय के साथ अपनी स्थिति में परिवर्तन करती है।

→ किसी समय एक व्यक्ति के लिए कोई वस्तु गति अवस्था में प्रतीत हो सकती है, परंतु किसी दूसरे व्यक्ति के लिए वही वस्तु विराम अवस्था में प्रतीत हो सकती है।

→ कुछ वस्तुओं की गति नियंत्रित होती है जबकि कुछ अन्य वस्तुओं की गति अनियंत्रित तथा अनियमित होती है।

→ किसी वस्तु की स्थिति का वर्णन करने के लिए हमें एक निर्देश बिंदु निर्धारित करने की आवश्यकता होती है, जिसे मूल बिंदु (Origin) कहते हैं।

→ जब कोई वस्तु सरल रेखीय पथ पर चल रही होती है तो उस वस्तु की गति सरल रेखीय गति कहलाती है।

→ वे राशिएँ जिन्हें केवल उनके संख्यात्मक मान द्वारा निश्चित रूप में वर्णन किया जा सकता है, भौतिक राशि कहा जाता है। इस संख्यात्मक मान को उस राशि की मात्रा कहा जाता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति

→ वस्तु की आरंभिक तथा अंतिम स्थिति के बीच छोटी-से-छोटी मापी गई दूरी को वस्तु का विस्थापन कहते हैं।

→ जब गतिशील वस्तु की अंतिम स्थिति मूल स्थिति पर आ जाती है तो विस्थापन की मात्रा शून्य (0) हो जाती है।

→ विस्थापन की मात्रा शून्य हो सकती है परंतु उस वस्तु द्वारा तय की गई दूरी शून्य नहीं होगी।

→ ओडोमीटर एक ऐसा यंत्र है जो स्वैचालित वाहनों द्वारा तय की गई दूरी को मापा गया प्रदर्शित करता है।

→ यदि वस्तु समान समय अंतराल में समान दूरी तय करे तो उस वस्तु की गति एक समान गति कहलाती है। समय अंतराल छोटे से छोटा होना चाहिए।

→ यदि गतिशील वस्तु समान समय अंतरालों में असमान दूरी तय करती है तो उस वस्तु की गति असमान
गति कहलाती है।

→ वस्तु की गति की दर को उस वस्तु की चाल (Speed) कहा जाता है। चाल का मात्रक मीटर/सैकंड (m/s-1) या ms) होता है।

→ किसी वस्तु की औसत (मध्यमान) चाल (Average Speed) उस वस्तु द्वारा तय की गई कुल दूरी के कुल लगे समय से भाग करके प्राप्त किया जाता है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति 1

→ एक निश्चित दिशा में किसी वस्तु की गति की दर को उस वस्तु का वेग कहा जाता है अर्थात् किसी निश्चित दिशा में चाल को वेग कहा जाता है।

→ यदि किसी वस्तु का वेग एक समान दर के साथ परिवर्तित होता है तो उसका औसत (मध्यमान) वेग, प्रारंभिक वेग तथा अंतिम वेग का अंक गणित मध्यमान (mean) द्वारा प्राप्त किया जाता है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति 2

→ समय अंतराल को डिजिटल कलाई घड़ी या विराम घड़ी (Stop Watch) द्वारा मापा जाता है।

→ वायु में ध्वनि की चाल = 340 m/s
वायु में प्रकाश की चाल = 3 × 108 m/s

→ किसी वस्तु का इकाई समय में वेग के परिवर्तन के माप को प्रवेग कहते हैं।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति 3
प्रवेग का S.I. मात्रक m/s2 है।

→ यदि किसी वस्तु का वेग समय के साथ परिवर्तित होता है तो उसकी गति को प्रवेगित कहा जाता है।

→ स्वतंत्र रूप से गिर रही वस्तु एक समान प्रवेग की उदाहरण है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति

→ यदि कोई वस्तु सरल रेखा में गति करते हुए किसी वस्तु का वेग बराबर समय अंतरालों के बराबर मात्रा से बढ़ता या कम होता है तो उस अवस्था में वस्तु का प्रवेग एक समान प्रवेग होगा।

→ समान वेग से चलती हुई वस्तु का एक निश्चित समय अंतराल में उसके वेग, प्रवेश तथा उस द्वारा तय की गई दूरी के संबंध को गति के समीकरण द्वारा जाना जाता है।

→ एक समय प्रवेग से चल रही वस्तु की गति का वर्णन निम्नलिखित समीकरणों द्वारा किया जाता है :
V = u + at
S = ut + 1/2 at2
2aS = v2 – u2 जहाँ u वस्तु का प्रारंभिक वेग तथा t समय के पश्चात् v अंतिम वेग है तथा ‘S’ इस समय अंतराल में तय की गई दूरी है।

→ ग्राफ द्वारा वस्तु की एक समान तथा असमान गति को प्रदर्शित किया जा सकता है।

→ जब कोई वस्तु एक समान चाल से वृत्तीय पथ पर चलती है तो इस वस्तु की गति को एक समान वृत्तीय गति कहा जाता है।

→ गति (Motion)-यदि एक वस्तु किसी निर्देश तंत्र में अपनी स्थिति बदलती है, तब उसे गति कहा जाता है।

→ एक समान गति-जब कोई वस्तु के समान अंतराल में समान दूरियां तय करती है तो उसे एक समान गति कहते हैं। समय के अंतराल कितने भी छोटे हो सकते हैं।

→ असमान गति-जब कोई वस्तु समान समय के अंतर में असमान दूरियां तय करती है तो उसे असमान गति कहते हैं।

→ दूरी-किसी वस्तु द्वारा तय की गई दूरी निर्देश तंत्र में उसके द्वारा तय किए गए वास्तविक पथ की लंबाई है। यह एक अदिश राशि है और मानक इकाई में यह मीटर (m) में मापी जाती है। यह ऋणात्मक नहीं हो सकती।

→ विस्थापन-किसी वस्तु द्वारा निर्देश तंत्र में किसी विशेष दिशा में तय की गई दूरी विस्थापन कहलाती है। यह एक सदिश राशि है। मानक राशियों में इसे मीटर (m) में मापा जाता है।

→ चाल-निर्देश तंत्र में दूरी तय करने की समय-दर को चाल कहते हैं। इसकी इकाई मीटर प्रति सेकेंड (ms-1) है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति 4

→ समरूप चाल-किसी वस्तु को समरूप चाल से गति में कहा जाता है यदि वह समय के समान अंतरालों में एक समान दूरी तय करे।

→ औसत चाल-किसी वस्तु द्वारा एकांक समय में तय की गई दूरी औसत दूरी को औसत चाल कहते हैं।

→ वेग-किसी निर्देश तंत्र के सापेक्ष कण के विस्थापन की समय दर को वेग कहते हैं। यह किसी वस्तु द्वारा किसी विशेष दिशा में प्रति इकाई समय में तय की गई दूरी है। इसे मीटर प्रति सेकंड (ms-1) में मापा जाता है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति 5

→ समरूप अथवा समान वेग-कोई वस्तु तब समरूप वेग से गतिशील कही जाती है जब वह विशेष दिशा में समय के समान अंतरालों में समान दूरी तय करती है। जब कोई वस्तु एक समान वेग से गति करती है, तो इसका वेग किसी भी समय समान होता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति

→ असमान वेग-वेग को तब असमान कहा जाता है जब

  1. यह दिशा परिवर्तित करे या
  2. चाल बदले या
  3. दिशा और चाल दोनों ही बदले।

→ त्वरण-किसी वस्तु के वेग के परिवर्तन की दर को त्वरण कहते हैं। यह एक सदिश राशि है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति 6
त्वरण की इकाई S.I. इकाई ms-2 है।

→ सदिश-वे भौतिक राशियां जिनमें परिमाण के साथ दिशा भी हो तथा त्रिभुज योग नियम का पालन करती हैं, सदिश राशियां कहलाती हैं। जैसे-विस्थापन, वेग, त्वरण, बल, संवेग इत्यादि।

→ अदिश या स्केलर-वह भौतिक राशि जिसमें केवल परिमाण हो परंतु दिशा ज्ञान न हो उसे अदिश राशि कहते हैं।

→ एक समान त्वरण-यह वस्तु एक समान त्वरण में तब कही जाती है जब समय के अंतरालों में इसके वेग में समान परिवर्तन हो।

→ असमान त्वरण-एक वस्तु असमान त्वरण में तब कही जाती है यदि असमान समय अंतरालों में उसके वेग में समान परिवर्तन हो या समान अंतरालों में असमान वेग परिवर्तन हो।

→ वृत्तीय गति-एक वृत्तीय पथ के साथ-साथ किसी पिंड की गति को वृत्तीय गति कहते हैं।

→ एक समान वृत्तीय गति या एक समान वर्तुल गति-यदि कोई वस्तु अचर चाल से किसी वृत्तीय पथ पर चलती है, तो इसे एक समान वर्तुल गति में कहा जाता है।

→ कोणीय वेग-यह कोणीय विस्थापन की दर है।
PSEB 9th Class Science Notes Chapter 8 गति 7
कोणीय वेग का मात्रक रेडियन प्रति सैकिंड (rad s-1) हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

→ पृथ्वी पर लगभग 10 मिलियन सजीवों की जातियां पायी जाती हैं। परंतु इनके 1/3 भाग की ही अभी तक पहचान हो चुकी है।

→ सभी सजीव संरचना, आकार तथा जीने के ढंग अनुसार एक-दूसरे से भिन्न होते हैं।

→ सजीवों की विभिन्नता या विविधता का अध्ययन करने के लिए उनके समूह बनाना, उनके विकास के संबंधों को स्थापित करना तथा प्रत्येक सजीव को जैविक नाम देना आसान होता है।

→ ‘वर्गीकी’ (Taxonomy) जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवों के वर्गीकरण तथा उनके विकास संबंधों का अध्ययन किया जाता है।

→ वर्गीकरण में जीवधारियों को उनके संबंधों के आधार पर विभिन्न समूहों में विभाजित किया जाता है।

→ लिनियस को वर्गीकी का जनक कहा जाता है। उसने नामकरण की द्विनाम पद्धति विकसित की तथा जीवों को दो जगतों में विभाजित किया।

→ लिनियस द्विविपद पद्यति के अनुसार सभी जीवों को वैज्ञानिक नाम दिए जाते हैं। प्रत्येक जंतु तथा पौधे को दो नाम दिए गए हैं। एक प्रजाती (Genus) का नाम तथा दूसरा जाति (Species) का नाम। प्रजाती नाम वंश का नाम होता है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

→ जगत् फाइलम, क्लास, आर्डर, फैमिली, वंश तथा जाति वर्गीकरण की विभिन्न श्रेणियां हैं।

→ पादप जगत् को क्रिप्टोगैमिया (Cryptogams) या फैनिरोगैमिया (Phanerogams) में विभाजित किया गया है। क्रिप्टोगैमिया में फाइलम थैलोफाइटा, ब्रायोफाइटा तथा टैरिडोफाइटा रखे गए।

→ पुष्पी पादप फाइलम स्पर्मेटोफाइटा (Phylum Spermatophyta) में शामिल किए गए।

→ जंतु जगत् (Animalia) में बहुकोशिकीय मेटाजोन शामिल हैं। इनमें श्रम विभाजन होता है। इनमें कुछ परजीवी भी होते हैं।

→ अरीढ़धारी (Invertibrates) जंतुओं को फाइलम प्रोटोजोआ, पोरीफेरा, सीलेंट्रेटा, प्लैटीहैलमिन्थीज, नीमेटोडा आर्थोपोडा, एनीलीडा, मोलस्का, एकाइनोडर्मेटा तथा हेमीकार्डेटा संघों में बांटा गया है।

→ प्रोटोजोआ का आकार निश्चित अथवा अनिश्चित होता है। ये स्वतंत्र जल में पाए जाते हैं तथा ये एक | कोशिकीय सूक्ष्मदर्शीय जंतु हैं।

→ पोरीफेरा बहुकोशिकीय जंतु हैं तथा इनकी देहभित्ति दो स्तरों की बनी होती है।

→ कार्डेट मत्स्य, उभयचर, सरीसृप, पक्षी तथा स्तनधारी में विभाजित किए गए हैं।

→ थैलोफाइटा में शैवाल तथा कवक शामिल हैं। शैवालों में क्लोरोफिल होता है तथा ये आत्मपोषी होते हैं। शैवाल एक कोशिकीय तथा बहुकोशिकीय होते हैं। इनकी कोशिका भित्ति सेल्यूलोज की बनी हुई होती है।

→ कवकों में पर्णहरित नहीं होता तथा ये अपना भोजन स्वयं नहीं बना सकते। ये परजीवी, मृतोपजीवी अथवा विषमपोषी होते हैं। इनकी कोशिका भित्ति काइटन अथवा कवक सेल्यूलोज अथवा दोनों की बनी हुई होती है।

→ लाइकेन कवक तथा शैवाल के परस्पर सहयोग से बनने वाले सहजीवी पौधे हैं। ये पौधों जैसे प्रतीत होती हैं।

→ एम्ब्रियोफाइटा में ब्रोयाफाइटा तथा ट्रेकियोफाइटा शामिल हैं। ट्रेकियोफाइटा को तीन वर्गों-फिलीसिनी, जिम्नोस्पर्मी तथा एंजियोस्पर्मी में बांटा गया है।

→ वर्गीकरण पद्धति (Systematics)-सजीवों की किस्मों, सजीवों की विभिन्नता तथा उनमें परस्पर विकास संबंधों के अध्ययन को वर्गीकरण पद्धति कहते हैं।

→ वर्गीकी (Taxonomy)-यह जीव विज्ञान की वह शाखा है जिसमें जीवों का वर्गीकरण किया जाता है।

→ स्पीशीज (Species)-निकट संबंध व संरचना वाले जीवों का समूह जो परस्पर लैंगिक जनन करके जनन में सक्षम संतानों को जन्म दे, उसे स्पीशीज कहते हैं।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 7 जीवों में विविधता

→ निषेचन (Fertilization)-नर तथा मादा युग्मकों के संलयन की क्रिया को निषेचन कहते हैं।

→ वर्गीकरण (Classification)-संबंधों के आधार पर जीवों को समूहों में विकसित करने की पद्धति को वर्गीकरण कहते हैं।

→ दविनाम नामकरण (Binomial Nomenclature)-जंतुओं तथा पौधों को दो शब्दों जीन्स तथा स्पीशीज में नाम देने की पद्धति को दविनाम नामकरण कहते हैं।

→ द्विबीज पत्री (Dicotyledonous)-दो बीज पत्रों वाले आवृत बीजों को द्विबीज पत्री कहते हैं।

→ बीजांड (Ovule)-वह संरचना जिसमें पौधों में मादा गैमिटोफाइट होता है, उसे बीजांड कहते हैं।

→ गेमिटोफाइट (Gametophyte)-पौधों की अगुणित युग्मक उत्पन्न करने वाली अवस्था गेमिटोफाइट कहलाती है।

→ एक वर्षी (Annuals)-ऐसे पौधे जिनका जीवन चक्र एक-ही मौसम में पूरा हो, उन्हें एक वर्षी पौधे कहते हैं।

→ माइसीलियस (Mycelium)-कवक तंतुओं का जाल जो कवक का बीज भाग होता है, उसे माइसीलियस कहते हैं।

→ हाइफी (Hyphae)-कवक के वे तंतु जो एक या एक-से-अधिक कोशिकाओं के बने होते हैं, उन्हें हाइफी कहते हैं।

→ मृतोपजीवी (Saprophytes)-ऐसा जीव जो गली-सड़ी वस्तुओं से अपना भोजन प्राप्त करता है, उसे मृतोपजीवी कहते हैं।

→ नोटोकार्ड (Notochord)-यह एक ऐसी ठोस, बेलनाकार, छड़नुमा संरचना है जो वेक्युलेटिड कोशिकाओं की बनी हुई होती है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

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PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ एक समान कार्य करने वाली कोशिकाओं के समूह को ऊतक (Tissue) कहा जाता है। ऊतक में एक ही प्रकार की कोशिकाएं भी हो सकती हैं एवं भिन्न-भिन्न प्रकार की कोशिकाएं भी हो सकती हैं। ये ऊतक मिश्रित कोशिकाओं के भी हो सकते हैं।

→ ऊतकों के अध्ययन को हिस्टोलोजी (Histology) कहते हैं।

→ विभिन्न प्रकार के ऊतक मिलकर अंग (Organ) बनाते हैं जिसका एक विशेष कार्य होता है।

→ विभिन्न अंग मिलकर अंग-प्रणाली (Organ System) बनाते हैं।

→ उच्च पौधों और जंतुओं में विभिन्न प्रकार के ऊतक पाए जाते हैं जो विशेष तथा विभिन्न कार्य संपन्न करते हैं।

→ पादप ऊतकों को दो समूहों में बांटा जा सकता है-

  1. विभाज्योतकी ऊतक (Meristematic tissue),
  2. स्थायी ऊतक (Permanent tissue)।

→ विभाज्योतकी ऊतक पौधों के वर्धी प्रदेशों में पाए जाते हैं। इनमें लगातार विभाजन होता रहता है। इनकी कोशिकाओं में विभाजन की क्षमता होती है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ विभाज्योतकी ऊतक की कोशिकाएं समान होती हैं। ये गोलाकार, अंडाकार, बहुभुजी तथा आयताकार आकृति की होती हैं।

→ विभाज्योतकी ऊतक में लगातार कई कोशिकाओं का निर्माण होता रहता है।

→ कोशिका विभाजन के तल के आधार पर विभाज्योतकी ऊतक दो प्रकार के होते हैं-

  1. प्राथमिक विभाज्योतकी (Primary meristem)
  2. द्वितीयक विभाज्योतकी (Secondary meristem)।

→ स्थिति के आधार पर विभाज्योतकी ऊतक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

  1. शीर्षस्थ विभाज्योतकी ऊतक (Apical meristem)
  2. अंतर्वेशी विभाज्योतकी ऊतक (Intercalary meristem)
  3. पार्श्व विभाज्योतकी ऊतक (Lateral meristem)।

→ स्थायी ऊतकों में विभाजन नहीं होता तथा यह उन कोशिकाओं के बने होते हैं जिनमें विभाजित होने की क्षमता नष्ट हो जाती है।

→ स्थायी ऊतक दो प्रकार के होते हैं-

  1. साधारण ऊतक (Simple tissue),
  2. जटिल ऊतक (Complex tissue)।

→ साधारण ऊतक एक ही प्रकार की कोशिकाओं से बनते हैं। इनकी संरचना तथा कार्य समान होते हैं। कोशिका भित्ति की संरचना के आधार पर इन्हें निम्नलिखित तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. मृदुतक (Parenchyma)
  2. स्थूलकोण (Collenchyma)
  3. दृढ़ोत्तक (Sclerenchyma)।

→ जटिल ऊतक विभिन्न आकार तथा माप की कोशिकाओं से मिलकर बनते हैं। ये जाइलम तथा फ्लोएम हैं।

→ जंतु ऊतक को दो समूहों में बांटा गया है-

  1. एककोशिकीय (Unicellular) तथा
  2. बहुकोशिकीय (Multicellular)।

→ बहुकोशिकीय ऊतकों में समान कोशिकाएं समान कार्य करती हैं। ऊतक मिलकर अंग बनाते हैं और विभिन्न अंग मिलकर अंग तंत्र (Organ system) बनाते हैं।

→ जंतुओं में चार प्रकार के प्राथमिक ऊतक पाए जाते हैं-

  1. एपीथिलियमी (Epithelial)
  2. संयोजी (Connective),
  3. पेशीय (Muscular),
  4. तंत्रिका ऊतक (Nervous tissue)।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ एपीथीलियमी ऊतक मुख्यतया सुरक्षा प्रदान करता है।

→ पेशी ऊतक संकुचनशील होता है। यह हिल-जुल तथा गति में सहायता करता है।

→ संयोजी ऊतक विभिन्न संरचनाओं को परस्पर जोड़ता है।

→ तंत्रिका ऊतक तंत्रिका संदेशवाहक का कार्य करता है।

→ ऊतक (Tissue)-यह समान उत्पत्ति, संरचना तथा कार्य करने वाली कोशिकाओं का एक समूह होता है।

→ विभाज्योतक ऊतक (Meristematic tissue)-ये पौधों के वर्धी प्रदेशों में पाए जाते हैं। ये कोशिकाओं का ऐसा समूह है जो लगातार विभाजन की दशा में रहता है तथा नई कोशिकाएं उत्पन्न करता है।

→ प्राथमिक विभाज्योतकी (Primary meristem)-इस प्रकार के ऊतकों की कोशिकाएं सदा विभाजित होती रहती हैं। ये ऊतक जड़ों, तनों के शीर्ष, द्विबीजपत्री तनों के संवहन बंडलों में पाए जाते हैं।

→ जाइलम (Xylem)-यह संवहन ऊतक है तथा यह जल का संवहन पौधे के शीर्ष भाग तक करता है।

→ फ्लोएम (Phloem)-यह भी जाइलम की तरह संवहन ऊतक है। यह पत्तियों में निर्मित खाद्य पदार्थों को पौधे के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है।

→ ट्रेकीड्स (Tracheids)-यह जाइलम ऊतक का एक अंश है जो जल का संवहन करता है। ट्रेकीड्स एककोशीय, लंबे लिगनिन से ढकी हुई नुकीले सिरे वाली कोशिकाएँ हैं।

→ वाहिकाएं (Vessels)-ये मृत संकरी नली के समान रचनाएं होती हैं।

→ चालनी नलिकाएं (Sieve tubes)-ये नलिका सदृश, केंद्रविहीन, महीन भित्ति वाली जीवित कोशिकाएं हैं।

→ सखी कोशिकाएं (Companion cells)-ये महीन भित्ति वाली कोशिकाएं चालनी नलिकाओं से जुड़ी होती हैं। इनमें सभी अवस्थाओं में केंद्रक पाया जाता है।

→ फ्लोएम मृदुतक (Phloem Parenchyma)-ये फ्लोएम में पाई जाने वाली महीन भित्ति वाली बेलनाकार कोशिकाएं हैं।

→ टेंडन (Tendon)-यह ऐसा संयोजी ऊतक है जिसमें लोच नहीं होती। यह पेशी को अस्थि से जोडता है।

→ सारकोलैमा (Sarcolemma)-यह पेशीय कोशिकाओं का बाह्य आवरण है।

→ सारकोप्लाज्म (Sarcoplasm)-यह पेशीय कोशिकाओं का कोशिका द्रव्य है।

→ सारकोमीयर (Sarcomere)-यह पेशीय ऊतक की संकुचन इकाई है।

→ क्लोरेनकाइमा (Chlorenchyma) ये महीन भित्ति वाली कोशिकाएं हैं जिनमें हरित लवण होता है जो प्रकाश-संश्लेषण का कार्य करता है।

→ एक्टिन (Actin)-यह पेशीय कोशिकाओं में पाई जाने वाली प्रोटीन है।

PSEB 9th Class Science Notes Chapter 6 ऊतक

→ अस्थि मज्जा (Bone marrow)-यह लंबी अस्थियों की मज्जा गुहा में पाया जाने वाला ऊतक है जहां पर कणिकाओं का निर्माण होता है।

→ उपास्थि (Cartilage)-यह एक लचीला कंकाल ऊतक है।

→ न्यूरीलैमा (Neurilemma)-यह तंत्रिका ऊतक की एक कोमल झिल्ली है।

→ लिगामेंट (Ligament)-यह संयोजी ऊतक का एक बंध है जो दो अस्थियों को आपस में जोड़ता है।

→ श्वान कोशिकाएं (Schawann cells)-ये तंत्रिका ऊतक की कोशिकाएं हैं जो तंत्रिका तंतु में न्यूरीलैमा आच्छद के नीचे पायी जाती हैं।

→ निसल्लस कण (Nissl’s Granules)-यह दविध्रुवीय और बहुध्रुवीय न्यूरॉन की कोशिका काय में केंद्रक के चारों ओर पाए जाने वाले गोलकाय हैं।

→ श्वान कोशिकाएं (Schavann cells)-यह तंत्रिका ऊतक की कोशिकाएं हैं जो तन्त्रिका तंतु में न्यूरीलैमा आच्छद के नीचे पायी जाती हैं।

→ गहरी ‘ए’ पट्टिकाएं (Dark ‘A’ bands)-यह गहरे रंग की अनुप्रस्थ पट्टियां हैं जो पेशीय ऊतक में पाई जाती हैं।

→ हल्की ‘आई’ पट्टिकाएं (Light I’ bands)-यह एक्टिन तंतुओं से बनने वाली हल्के रंग की अनुप्रस्थ पटियां हैं।