PSEB 12th Class History Notes Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

→ अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण (Causes of Ahmad Shah Abdali’s Invasions)-अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था-

→ वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था-वह भारत की अपार धनदौलत को लूटना चाहता था- भारत की डावाँडोल राजनीतिक स्थिति भी उसे निमंत्रण दे रही थी-

→ पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली को भारत आक्रमण का निमंत्रण भेजा था।

→ अब्दाली के आक्रमण (Invasions of Abdali)-अब्दाली का पहला आक्रमण 1747-48 ई० में हुआ-इसमें मुईन-उल-मुल्क अथवा मीर मन्नू के हाथों उसे हार का सामना करना पड़ा-

→ 1748-49 ई० में अपने दूसरे आक्रमणों के दौरान अब्दाली ने मुईन-उल-मुल्क को पराजित किया-

→ 1752 ई० में अपने तीसरे आक्रमण के दौरान उसने समस्त पंजाब को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लियाअब्दाली ने 1756 ई० में चौथे आक्रमण के दौरान पंजाब में सिखों के विरुद्ध कड़ी कारवाई की-

→ 1757 ई० में अफ़गानों से लड़ते हुए बाबा दीप सिंह जी शहीद हो गए-अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान अब्दाली ने मराठों को पानीपत की तीसरी लड़ाई में कड़ी पराजय दी-यह लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई-

→ अब्दाली के छठे आक्रमण के दौरान 5 फरवरी, 1762 ई० को बड़ा घल्लूघारा की घटना घटीइसमें 25,000 से 30,000 सिख मारे गए-सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए अब्दाली ने दो और आक्रमण किए परंतु असफल रहा।

→ अब्दाली की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Abdali)-सिखों का निश्चय बड़ा दृढ़ था-

→ सिख गुरिल्ला युद्ध नीति से लड़ते थे-अब्दाली द्वारा पंजाब में नियुक्त किए प्रतिनिधि अयोग्य थे-पंजाब में लोगों ने सिखों को हर प्रकार का सहयोग दिया-सिखों का नेतृत्व करने वाले नेता बड़े योग्य थे-

→ अब्दाली को पंजाब में अधिक रुचि न थी-अफ़गानिस्तान में बार-बार होने वाले विद्रोह भी उसकी असफलता का कारण बने।

→ अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर प्रभाव (Effects of Abdali’s Invasions on the Punjab)-पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया-

→ पानीपत की लड़ाई में हुई पराजय से पंजाब में मराठा शक्ति का अंत हो गया-

→ सिख शक्ति का उदय होना आरंभ हो गया-

→ पंजाब में चारों ओर अराजकता और अशांति फैल गई-

→ पंजाब के लोगों के चरित्र में परिवर्तन आ गया तथा वे अधिक निडर और खर्चीले स्वभाव के हो गए-

→ पंजाब के व्यापार को भारी हानि हुई पंजाबी कला और साहित्य के विकास को गहरा धक्का लगा।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

→ सामाजिक स्थिति (Social Condition)-पंजाब का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों-मुसलमान और हिंदुओं में बँटा हुआ था-

→ मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों उच्च, मध्यम तथा निम्न में बँटा हुआ था-उच्च वर्ग में बड़े-बड़े मनसबदार तथा रईस लोग आते थे-

→ मध्यम श्रेणी में किसान और सरकारी कर्मचारी तथा निम्न वर्ग में नौकर और मज़दूर आदि आते थे-

→ हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था-

→ स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी-

→ उच्च वर्ग का खान पान बहुत ही अच्छा था जबकि निम्न वर्ग के लोग मात्र गुजारा करते थे-

→ हिंदू अधिकतर शाकाहारी थे-

→ उच्च वर्ग के लोग काफ़ी मूल्यवान वस्त्र पहनते थे-

→ स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बड़े शौकीन थे-

→ शिकार, रथदौड़, चौगान, कबूतरबाजी और शतरंज आदि लोगों के मनोरंजन के मुख्य साधन थे-

→ शिक्षा देना सरकार की ज़िम्मेदारी न थी-

→ यह मंदिरों और मस्जिदों द्वारा प्रदान की जाती थी।

→ आर्थिक स्थिति (Economic Condition)-पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती बाड़ी था-

→ कुल जनसंख्या के 80% लोग कृषि से जुड़े थे-

→ पंजाब में फसलों की भरपूर पैदावार होती थीपंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य धंधा उद्योग था-

→ सूती वस्त्र उद्योग पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग था-

→ अन्य उद्योगों में रेशमी वस्त्र उद्योग, चमड़ा उद्योग, बर्तन उद्योग, चीनी उद्योग तथा शस्त्र उद्योग महत्त्वपूर्ण थे-

→ कई लोग पशु पालन का काम करते थे-

→ आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत थाविदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, चीन और यूरोपीय देशों के साथ होता था-

→ लाहौर और मुलतान व्यापारिक पक्ष से सबसे महत्त्वपूर्ण नगर थे-

→ कीमतें कम होने के कारण ग़रीब लोगों का गुजारा भी अच्छा हो जाता था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली

→ दल खालसा के उत्थान के कारण (Causes of the Rise of the Dal Khalsa)-बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद मुग़ल सूबेदारों ने सिखों पर कठोर अत्याचार आरंभ कर दिए थे-

→ सिख शक्ति को संगठित करने के लिए 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने उन्हें बुड्डा दल और तरुणा दल में संगठित कर दिया-

→ पंजाब में फैली अशाँति से लाभ उठाते हुए 1745 ई० में अमृतसर में सौ-सौ सिखों के 25 जत्थों की स्थापना की गई-

→ ये जत्थे दल खालसा की स्थापना का आधार बने।

→ दल खालसा की स्थापना (Establishment of the Dal Khalsa)-दल खालसा की स्थापना 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में हुई-

→ इसकी स्थापना नवाब कपूर सिंह जी ने की-सिखों को 12 मुख्य जत्थों में संगठित कर दिया गया-

→ प्रत्येक जत्थे का अपना अलग नेता और झंडा था-

→ सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया को दल खालसा का प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया।

→ दल खालसा की सैनिक विशेषताएँ (Military Features of the Dal Khalsa)-घुड़सवार सेना दल खालसा की सेना का मुख्य अंग थी-

→ सेना में भर्ती होने के लिए किसी भी सिख को विवश नहीं किया जाता था-

→ प्रत्येक सिख जब चाहे एक जत्थे को छोड़कर दूसरे जत्थे में जा सकता थासैनिक प्रशिक्षण और विधिवत् वेतन की कोई व्यवस्था न थी-

→ दल खालसा के सैनिक गुरिल्ला युद्ध प्रणाली से लड़ते थे-लड़ाई के समय तलवारों, बरछियों, खंडों, तीर कमानों और बंदूकों का प्रयोग किया जाता था।

→ दल खालसा का महत्त्व (Significance of the Dal Khalsa)-दल खालसा ने सिखों की बिखरी हुई शक्ति को एकता के सूत्र में बाँध दिया-इसने सिखों को अनुशासन में रहना सिखाया-

→ दल खालसा के प्रयासों से ही सिख पंजाब में अपनी स्वतंत्र मिसलें स्थापित करने में सफल हुए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 12 अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ और मीर मन्नू-उनके सिखों के साथ संबंध

→ अब्दुस समद खाँ (Abdus Samad Khan)-अब्दुस समद खाँ 1713 ई० में लाहौर का सूबेदार बना-उसने सिखों पर घोर अत्याचार किए-इससे प्रसन्न होकर मुगल बादशाह फर्रुखसियर ने उसे ‘राज्य की तलवार’ की उपाधि से सम्मानित किया-

→ मुग़ल अत्याचारों से बचने के लिए सिखों ने स्वयं को जत्थों में संगठित कर लिया-अब्दुस समद खाँ अपने तमाम प्रयासों के बावजूद सिखों का दमन करने में विफल रहा-1726 ई० में उसे पद से हटा दिया गया।

→ जकरिया खाँ (Zakariya Khan)-जकरिया खाँ 1726 ई० में लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया गया-प्रतिदिन लाहौर के दिल्ली गैट पर सैंकड़ों सिखों को शहीद किया जाने लगा था-

→ 1726 ई० में भाई तारा सिंह वाँ ने अपने 22 साथियों के साथ जकरिया खाँ के सैनिकों के खूब छक्के छुड़ाए-सिख जत्थों ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली अपनाकर जकरिया खाँ की रातों की नींद हराम की-

→ सिखों को प्रसन्न करने के लिए जकरिया खाँ ने उनके नेता सरदार कपूर सिंह को एक लाख रुपए की जागीर तथा नवाब की उपाधि प्रदान की-संबंधों के पुनः बिगड़ जाने पर जकरिया खाँ ने हरिमंदिर साहिब पर अधिकार कर लिया-

→ 1738 ई० में जकरिया खाँ ने हरिमंदिर साहिब के मुख्य ग्रंथी भाई मनी सिंह जी को शहीद कर दिया-जकरिया खाँ के काल में ही हुई भाई बोता सिंह जी, भाई मेहताब सिंह जी, भाई सुखा सिंह जी, बाल हकीकत राय जी तथा भाई तारू सिंह जी की शहीदी ने सिखों में एक नया जोश उत्पन्न कर दिया-परिणामस्वरूप सिखों ने जकरिया खाँ को कभी चैन की साँस न लेने दी-1 जुलाई, 1745 ई० को जकरिया खाँ की मृत्यु हो गई।

→ याहिया खाँ (Yahiya Khan)-याहिया खाँ 1746 ई० में लाहौर का सूबेदार बना-उसने सिखों के विरुद्ध कठोर पग उठाए–याहिया खाँ और दीवान लखपत राय ने मई, 1746 ई० को लगभग 7,000 सिखों को काहनूवान के निकट शहीद कर दिया-

→ इस घटना को छोटा घल्लूघारा के नाम से स्मरण किया जाता है-1747 ई० में याहिया खाँ के छोटे भाई शाहनवाज़ खाँ ने उसे बंदी बना लिया।

→ मीर मन्नू (Mir Mannu)-मीर मन्नू को मुइन-उल-मुल्क के नाम से भी जाना जाता था वह 1748 ई० से 1753 ई० तक पंजाब का सूबेदार रहा-वह अपने पूर्व अधिकारियों से अधिक सिखों का कट्टर शत्रु सिद्ध हुआ-

→ वह 1752 ई० में अब्दाली की ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त हुआ-मीर मन्नू अपनी समस्त कारवाईयों के बावजूद सिखों की शक्ति का अंत करने में विफल रहा-1753 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

→ मीर मन्नू की विफलता के कारण (Causes of Failure of Mir Mannu)-सिखों ने दल खालसा का संगठन कर लिया था-सिखों में पंथ के लिए दृढ़ निश्चय, अपार जोश, निडरता और बलिदान की भावनाएँ थीं-

→ सिख गुरिल्ला युद्ध नीति से लड़ते थे-मीर मन्नू का परामर्शदाता दीवान कौड़ा मल सिखों से सहानुभूति रखता था-मीर मन्नू अपने शासन से संबंधित कई समस्याओं से घिरा रहा था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० को हुआ था-बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम लक्ष्मण देव था-वह बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था-शिकार के दौरान गर्भवती हिरणी की हत्या से प्रभावित होकर उसने संसार त्यागने का निश्चय कर लिया-

→ वह बैरागी बन गया और उसने अपना नाम माधो दास रख लिया-उसने तांत्रिक औघड़ नाथ से तंत्र विद्या की शिक्षा ली और नंदेड में बस गया-नंदेड में ही 1708 ई० में माधोदास की गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट हुई-गुरु जी ने उसे अमृत छकाकर सिख बना दिया और उसका नाम बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

→ बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामे (Military Exploits of Banda Singh Bahadur)-सिख बनने के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर गुरु जी पर हुए मुग़ल अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए पंजाब की ओर चल दिया-

→ गुरु जी के हुक्मनामों के फलस्वरूप हजारों की संख्या में सिख उसके ध्वज तले एकत्रित हो गए-बंदा सिंह बहादुर ने 1709 ई० में सर्वप्रथम सोनीपत पर विजय प्राप्त कीबंदा सिंह बहादुर की दूसरी विजय समाना पर थी-

→ समाना के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने घुड़ाम, मुस्तफाबाद, कपूरी, सढौरा तथा रोपड़ पर विजय प्राप्त की-बंदा सिंह बहादुर की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विजय सरहिंद की थी-बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 ई० को सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ को पराजित किया था-

→ बंदा सिंह बहादुर ने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया-मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर लाहौर के सूबेदार अब्दुस समद खाँ ने बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल में अचानक घेरे में ले लिया-

→ घेरा लंबा होने के कारण बंदा सिंह बहादुर को हथियार डालने पड़े-9 जून, 1716 ई० को उसे बड़ी निर्दयता से दिल्ली में शहीद कर दिया गया।

→ बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Early Success)-मुग़लों के घोर अत्याचारों के कारण सिखों में मुग़लों के प्रति जबरदस्त रोष था गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामों के फलस्वरूप सिखों ने बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग दिया-

→ औरंगजेब के उत्तराधिकारी अयोग्य थे-बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक आक्रमण छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे-बंदा सिंह बहादुर एक निडर और योग्य सेनापति था-सिख बहुत धार्मिक जोश से लड़ते थे।

→ बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Ultimate failure)-मुग़ल साम्राज्य बहुत शक्तिशाली तथा असीमित साधनों से युक्त था-

→ सिखों में संगठन और अनुशासन का अभाव था-बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी के आदेशों का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया था-बंदा सिंह बहादुर ने सिख मत में परिवर्तन लाने का प्रयास किया था-

→ हिंदू शासकों तथा ज़मींदारों ने बंदा सिंह बहादुर का विरोध किया था-गुरदास नंगल में बंदा सिंह बहादुर पर अचानक आक्रमण हुआ था-बाबा बिनोद के साथ हुए मतभेद के कारण बंदा सिंह बहादुर को हथियार डालने पड़े थे।

→ बंदा सिंह बहादुर के चरित्र का मूल्याँकन (Estimate of Banda Singh Bahadur’s Character)-बंदा सिंह बहादुर बहुत ही वीर और साहसी था- उसका आचरण बहुत उज्ज्वल था-बंदा सिंह बहादुर एक महान् योद्धा और उच्चकोटि का सेनापति था-

→ उसने अपने विजित क्षेत्रों की अच्छी प्रशासन व्यवस्था की-बंदा सिंह बहादुर एक महान् संगठनकर्ता था-बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 10 गुरु गोबिंद सिंह जी : खालसा पंथ की स्थापना, उनकी लड़ाइयाँ एवं व्यक्तित्व

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 10 गुरु गोबिंद सिंह जी : खालसा पंथ की स्थापना, उनकी लड़ाइयाँ एवं व्यक्तित्व

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर, 1666 ई० को पटना में हुआ-उनके पिता जी का नाम गुरु तेग बहादुर जी और माता जी का नाम गुजरी था-

→ गुरु जी के नाबालिग काल में उनकी सरपरस्ती उनके मामा श्री कृपाल चंद जी ने की-गुरु तेग़ बहादुर ने शहीदी देने से पूर्व उन्हें अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-

→ 11 नवंबर, 1675 ई० को सिख परंपरा के अनुसार उन्हें गुरुगद्दी पर बैठाया गया-गुरु साहिब को चार साहिबजादों-साहिबजादा अजीत सिंह जी, साहिबजादा जुझार सिंह जी, साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फतह सिंह जी की प्राप्ति हुई थी।

→ पूर्व खालसा काल की लड़ाइयाँ (Battles of Pre-Khalsa Period)-गुरुगद्दी पर बैठने के पश्चात् गुरु साहिब ने सेना का संगठन करना आरंभ कर दिया-उनकी गतिविधियों से पहाड़ी राजा उनके विरुद्ध हो गए-गुरु साहिब और पहाड़ी राजाओं के मध्य प्रथम लड़ाई 22 सितंबर, 1688 ई० को हुई-

→ इसे भंगाणी की लड़ाई कहा जाता है-इस लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने शानदार विजय प्राप्त की-भंगाणी की लड़ाई के पश्चात् गुरु साहिब ने श्री आनंदपुर साहिब में आनंदगढ़, लोहगढ़, फतहगढ़ और केशगढ़ नामक चार दुर्गों का निर्माण करवाया-

→ 20 मार्च, 1690 ई० को हुई नादौन की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी ने मुग़लों को पराजित किया-औरंगज़ेब ने गुरु जी की बढ़ती हुई शक्ति को कुचलने के लिए अनेक सैनिक अभियान भेजे परंतु वह असफल रहा।

→ खालसा पंथ की स्थापना और महत्त्व (Creation and Importance of the Khalsa Panth)-मुग़ल अत्याचारों का अंत करने के लिए और समाज को एक नया स्वरूप प्रदान करने के लिए गुरु साहिब ने खालसा पंथ की स्थापना 30 मार्च, 1699 ई० को बैसाखी वाले दिन श्री आनंदपुर साहिब में केशगढ़ नामक स्थान पर की-

→ गुरु गोबिंद सिंह जी ने भाई दयाराम जी, भाई धर्मदास जी, भाई मोहकम चंद जी, भाई साहिब चंद जी और भाई हिम्मत राय जी को पाँच प्यारे चुनाखालसा की पालना के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए-

→ खालसा पंथ की स्थापना से ऊँच नीच से रहित एक आदर्श समाज का जन्म हुआ इससे सिखों में अद्वितीय वीरता और निडरता की भावनाओं का संचार हुआ-खालसा पंथ की स्थापना से सिखों के इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ।

→ उत्तर-खालसा काल की लड़ाइयाँ (Battles of Post-Khalsa Period) खालसा पंथ की स्थापना से पहाड़ी राजाओं के मन की शांति भंग हो गई थी-

→ 1701 ई० में पहाड़ी राजाओं और गुरु गोबिंद सिंह जी के मध्य श्री आनंदपुर साहिब की पहली लड़ाई हुई यह लड़ाई अनिर्णीत रही1704 ई० में श्री आनंदपुर साहिब की दूसरी लड़ाई हुई-

→ सिखों के निवेदन पर गुरु जी ने श्री आनंदपुर साहिब का दुर्ग छोड़ दिया-1704 ई० में ही हुई चमकौर साहिब की लड़ाई में गुरु जी के दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह जी तथा जुझार सिंह ज़ी लड़ते-लड़ते शहीद हो गए-

→ 1705 ई० में खिदराना की लड़ाई गुरु जी तथा मुग़लों में लड़ी जाने वाली अंतिम निर्णायक लड़ाई थी-इसमें गुरु गोबिंद सिंह जी ने शानदार विजय हासिल की।

→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1708 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी नांदेड आए-यहाँ पर सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ के भेजे गए दो पठानों में से एक पठान ने उन्हें छुरा घोंप दिया-

→ 7 अक्तूबर, 1708 ई० में गुरु जी ज्योति-जोत समा गए-ज्योति-जोत समाने से पूर्व उन्होंने सिखों को आदेश दिया कि अब के बाद वे गुरु ग्रंथ साहिब को अपना गुरु मानें।

→ गुरु गोबिंद सिंह जी का चरित्र और व्यक्तित्व (Character and Personality of Guru Gobind Singh Ji)-गुरु गोबिंद सिंह जी का व्यक्तित्व अत्यंत प्रभावशाली और आकर्षक थावह बड़े आज्ञाकारी पुत्र, विचारवान पिता और आदर्श पति थे-वह एक उच्चकोटि के कवि और साहित्यकार थे-

→ वह अपने समय के महान योद्धा और सेनापति थे-उन्होंने युद्धकाल में भी अपने धार्मिक कर्तव्यों को कभी नहीं भूला था-वह एक महान् समाज सुधारक और उच्चकोटि के संगठनकर्ता थे।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 9 गुरु तेग़ बहादुर जी और उनका बलिदान

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)- गुरु तेग़ बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 ई० को अमृतसर में हुआ–आपके पिता जी का नाम गुरु हरगोबिंद जी तथा माता जी का नाम नानकी थागुरु तेग़ बहादुर जी ने बाबा बुड्डा जी और भाई गुरदास जी से शिक्षा प्राप्त की-

→ गुरु जी का विवाह करतारपुर. वासी लाल चंद की सुपुत्री गुजरी से हुआ-अपने पिता जी के आदेश पर गुरु जी 20 वर्ष तक बकाला में रहे-मक्खन शाह लुबाणा द्वारा उन्हें ढूंह निकालने पर सिखों ने उन्हें अपना गुरु स्वीकार किया-वे 1664 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए।

→ गुरु तेग़ बहादुर जी की यात्राएँ (Travels of Guru Tegh Bahadur Ji)- गुरु पद संभालने के पश्चात् गुरु तेग़ बहादुर जी ने पंजाब तथा बाहर के प्रदेशों के अनेक स्थानों की यात्राएँ की-इन यात्राओं का उद्देश्य सिख धर्म का प्रचार करना तथा सत्य और प्रेम का संदेश देना था-

→ गुरु जी ने सर्वप्रथम 1664 ई० में पंजाब के अमृतसर, वल्ला, घुक्केवाली, खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, तरनतारन, कीरतपुर साहिब और बिलासपुर आदि प्रदेशों की यात्रा की-

→ इसके उपरांत गुरु जी पूर्वी भारत के सैफाबाद, धमधान, दिल्ली, मथुरा, वृंदावन, आगरा, कानपुर, बनारस, गया, पटना, ढाका तथा असम की यात्रा पर गए-1673 ई० में गुरु तेग़ बहादुर ने पंजाब के मालवा और बांगर प्रदेश की दूसरी बार यात्रा की-

→ इन यात्राओं से गुरु साहिब तथा सिख धर्म की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई।

→ गुरु तेग़ बहादुर जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Tegh Bahadur Ji)-गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं-

→ कारण (Causes)-सिखों तथा मुग़लों में शत्रुता बढ़ती जा रही थी-औरंगज़ेब बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था-नक्शबंदियों ने सिखों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए औरंगजेब को खूब भड़कायारामराय गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए कई हथकंडे अपना रहा था-कश्मीरी पंडितों ने गुरु साहिब से अपने धर्म की रक्षा के लिए सहायता माँगी।

→ बलिदान (Martyrdom)-गुरु तेग़ बहादुर जी को अपने तीन साथियों-भाई मतीदास जी, भाई सतीदास जी और भाई दयाला जी के साथ 6 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली दरबार में पेश किया गया-

→ उन्हें इस्लाम स्वीकार करने को कहा गया जिसका उन्होंने स्पष्ट शब्दों में इंकार कर दियागुरु जी के तीनों साथियों को शहीद करने के बाद 11 नवंबर, 1675 ई० को दिल्ली के चाँदनी चौक में गुरु साहिब को शहीद कर दिया गया।

→ महत्त्व (Importance)-समूचे पंजाब में मुग़ल साम्राज्य के प्रति घृणा और प्रतिशोध की लहर दौड़ गई–हिंदू धर्म को लुप्त होने से बचा लिया गया-

→ गुरु गोबिंद सिंह जी को खालसा पंथ की स्थापना की प्रेरणा मिली-सिखों में धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने की एक परंपरा आरंभ हो गई-मुग़ल साम्राज्य का पतन आरंभ हो गया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 8 गुरु हर राय जी और गुरु हर कृष्ण जी

→ गुरु हर राय जी (Guru Har Rai Ji)-गुरु हर राय जी का जन्म 30 जनवरी, 1630 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ-

→ आप गुरु हरगोबिंद जी के पौत्र थे-आपका विवाह अनूप शहर के दया राम जी की सुपुत्री सुलक्खनी जी से हुआ-

→ आप 8 मार्च, 1645 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-आपने सिख धर्म के प्रचार के लिए तीन केंद्र स्थापित किए जिन्हें ‘बख्शीशें’ कहा जाता था-

→ मुग़ल सम्राट शाहजहाँ का पुत्र दारा प्रायः उनके दर्शनों के लिए आता था गुरु जी ने दारा की औरंगजेब के विरुद्ध सहायता की औरंगजेब द्वारा दिल्ली बुलाए जाने पर आपने अपने पुत्र रामराय को दिल्ली भेजा-

→ रामराय द्वारा दिल्ली दरबार में गुरुवाणी का गलत अर्थ बताने पर, उसे गुरुगद्दी से वंचित कर दिया गया-आपने अपने छोटे पुत्र हर कृष्ण जी को अपना उत्तराधिकारी चुना-

→ आप 6 अक्तूबर, 1661 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु हर कृष्ण जी (Guru Har Krishan Ji)-गुरु हर कृष्ण जी का जन्म 7 जुलाई, 1656 ई० को कीरतपुर साहिब में हुआ-

→ आपके पिता जी का नाम गुरु हर राय साहिब तथा माता जी का नाम सुलक्खनी था-

→ आप मात्र 5 वर्ष की आयु में 1661 ई० को गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-आपको बाल गुरु के नाम से स्मरण किया जाता है-

→ आपको औरंगजेब द्वारा दिल्ली बुलाया गया-आप 1664 ई० में दिल्ली गए यहाँ आपने चेचक और हैज़ा से पीड़ित बीमारों की अथक सेवा की आप स्वयं इस भयंकर बीमारी का शिकार हो गए-

→ आप 30 मार्च, 1664 ई० को दिल्ली में ज्योति जोत समा गए- ज्योति जोत समाने से पूर्व आपने “बाबा बकाला” शब्द का उच्चारण किया-

→ जिससे अभिप्राय था कि सिखों का अगला गुरु बाबा बकाला में है।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था-

→ आपके पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी और माता जी का नाम गंगा देवी था-

→ आपके घर पाँच पुत्रों तथा एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया—आप 1606 ई० में गुरुगद्दी पर विराजम्प्रन हुए।

→ गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ कारण (Causes)-मुग़ल बादशाह जहाँगीर इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को विकसित होता नहीं देख सकता था-

→ जहाँगीर ने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था-

→ गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं नई नीति अपनाने का गुरु हरगोबिंद जी को आदेश दिया था।

→ विशेषताएँ (Features)-गुरु हरगोबिंद जी ने सांसारिक तथा धार्मिक सत्तां का प्रतीक मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की-

→ गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना का संगठन किया गया-अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया गया-

→ गुरु जी राजसी ठाठ-बाट से रहने लगे और उन्होंने राजनीतिक प्रतीकों को अपना लिया-अमृतसर शहर की किलेबंदी की गई-

→ लोहगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया गया—गुरु साहिब ने अपने दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन किए।

→ महत्त्व (Importance)-सिख संत सिपाही बन गए—सिखों के परस्पर भाईचारे में वृद्धि हुई-

→ सिख धर्म का प्रचार और प्रसार बढ़ा-सिखों तथा मुग़लों के संबंधों में तनाव और बढ़ गया—नई नीति ने खालसा पंथ की स्थापना का आधार तैयार किया।

→ गुरु हरगोबिंद जी और जहाँगीर (Guru Hargobind Ji and Jahangir)-जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को 1606 ई० में बंदी बना लिया उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में रखा गया-

→ गुरु साहिब के बंदी काल के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है- जब गुरु साहिब को रिहा किया गया तो उनकी जिद्द पर वहाँ बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा-

→ इस कारण गुरु जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा—रिहाई के बाद गुरु साहिब के जहाँगीर के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रहे।

→ गुरु हरगोबिंद जी और शाहजहाँ (Guru Hargobind Ji and Shah Jahan)-1628 ई० में शाहजहाँ के मुग़ल बादशाह बनते ही मुग़ल-सिख संबंध पुनः बिगड़ गए-

→ शाहजहाँ ने अपनी कट्टरतापूर्ण कारवाइयों से सिखों को अपने विरुद्ध कर लिया-1634 ई० में मुग़लों तथा सिखों में प्रथम लड़ाई अमृतसर में हुई—इसमें सिख विजयी रहे-

→ मुग़लों तथा सिखों के मध्य हुई लहरा, करतारपुर और फगवाड़ा की लड़ाइयों में भी सिखों की जीत हुई—इन विजयों से गुरु हरगोबिंद जी की ख्याति दूर दूर तक फैल गई।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नगर बसाया उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहाँ व्यतीत किए-

→ ज्योति जोत समाने से पूर्व उन्होंने हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-गुरु हरगोबिंद जी 3 मार्च, 1645 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

→ आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties): गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ–

→ आपके पिता जी का नाम गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी था-आपका विवाह मऊ गाँव के वासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ-आप 1581 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-

→ आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का आपके बड़े भाई पृथी चंद ने कड़ा विरोध किया-आपको नक्शबंदी संप्रदाय तथा ब्राह्मण वर्ग का भी कड़ा विरोध सहना पड़ा-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी आपसे नाराज़ था।

→ गरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji): गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरुगद्दी काल दौरान सिख पंथ के विकास के लिए बहुपक्षीय कार्य किए-

→ उनके गुरु काल में हरिमंदिर साहिब का निर्माण 1588 ई० में आरंभ करवाया गया-इसका निर्माण कार्य 1601 ई० में पूर्ण हुआ-

→ 1590 ई० में तरनतारन, 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर तथा 1595 ई० में हरगोबिंदपुर नामक नगरों की स्थापना की गई-

→ आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था-यह महान् कार्य 1604 ई० में पूर्ण हुआ-गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया-

→ गुरु साहिब ने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया- उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति कर सिख पंथ के द्वार खुले रखे।

→ गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji): गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ कारण (Causes)-जहाँगीर बड़ा ही कट्टर सुन्नी मुसलमान था–सिख पंथ की हो रही उन्नति उसके लिए असहनीय थी-गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथी चंद ने गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए षड्यंत्र आरंभ कर दिए थे-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी अपने अपमान का गुरु साहिब से बदला लेना चाहता था-

→ नक्शबंदियों ने जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध खूब भड़काया-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तत्कालीन कारण बनी।

→ बलिदान (Martyrdom)- जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाया गया-उन्हें 2 लाख रुपये जुर्माना देने को कहा गया जो गुरु जी ने इंकार कर दिया-30 ‘मई, 1606 ई० को गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया गया।

→ महत्त्व (Importance)- गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिख इतिहास की एक महान् घटना माना जाता है क्योंकि गुरु अर्जन देव जी शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे, इसलिए उन्हें ‘शहीदों का सरताज’ कहा जाता है-

→ इस शहीदी के परिणामस्वरूप सिख धर्म के स्वरूप में परिवर्तन आ गयागुरु हरगोबिंद जी ने मीरी तथा पीरी नामक नई नीति धारण करने का निर्णय किया-सिख एकता के सत्र में बंधने लगे-सिखों तथा मुग़लों में तनावपूर्ण संबंध स्थापित हो गए-

→ मुग़ल अत्याचारों का दौर प्रारंभ हो गया-सिख धर्म पहले से अधिक लोकप्रिय हो गया।