PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ परिवर्तन एक ऐसी क्रिया है जिसके द्वारा कोई वस्तु किसी अन्य रूप अथवा वस्तु में परिवर्तित हो जाती है।

→ हम अपने आस-पास कई परिवर्तन देखते हैं और हर परिवर्तन सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से महत्त्वपूर्ण होता है।

→ परिवर्तनों को उनके बीच की समानताएँ और अंतर ढूंढकर एक समान समूहों में समूहीकृत किया जा सकता है।

→ सभी परिवर्तनों को मोटे तौर पर दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है अर्थात प्राकृतिक और कृत्रिम या मानव निर्मित।

→ वे परिवर्तन जो प्रकृति में होते हैं और जिनमें हमारी भागीदारी की आवश्यकता नहीं होती है, प्राकृतिक परिवर्तन कहलाते हैं। ये कभी न खत्म होने वाले बदलाव हैं। प्राकृतिक परिवर्तनों के उदाहरणों में बर्फ का पिघलना, पेड़ से पत्ते गिरना आदि शामिल हैं।

→ मानव के प्रयासों से होने वाले परिवर्तन कृत्रिम या मानव निर्मित परिवर्तन कहलाते हैं। मानव निर्मित परिवर्तनों के उदाहरणों में गेहूँ के आटे से चपाती बनाना, सब्जियाँ पकाना आदि शामिल हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ गति के आधार पर, हम परिवर्तनों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत कर सकते हैं। ये धीमे परिवर्तन और तेज परिवर्तन हैं।

→ धीमे परिवर्तन वे होते हैं जिन्हें होने में अधिक समय लगता है। उदाहरण के लिए, पेड़ का बढ़ना, एक बच्चे का वयस्क होना आदि।

→ तेज परिवर्तन वे होते हैं जिन्हें होने में कम समय लगता है अर्थात जो बहुत तेजी से होते हैं । उदाहरण के लिए, माचिस की तीली जलाना, पटाखे फोड़ना आदि।

→ हमारे आस-पास के सभी परिवर्तनों में से केवल कुछ ही परिवर्तनों को उत्क्रमित किया जा सकता है। इन्हें प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन कहा जाता है। वे परिवर्तन जिन्हें उत्क्रमित नहीं किया जा सकता है, अपरिवर्तनीय परिवर्तन कहलाते हैं।

→ किसी पदार्थ में परिवर्तन को प्रतिवर्ती परिवर्तन तब कहा जाता है जब हम परिस्थितियों को बदलकर पदार्थ को उसके मूल रूप में प्राप्त कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, बर्फ पिघलने पर पानी में बदल जाती है और पानी को ठंडा करके बर्फ में बदला जा सकता है, जो एक प्रतिवर्ती परिवर्तन है।

→ किसी पदार्थ में परिवर्तन को अपरिवर्तनीय परिवर्तन तब कहा जाता है जब हम परिस्थितियों को बदलकर पदार्थ को उसके मूल रूप में प्राप्त नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए, एक बार तवे पर पकाई गई रोटी को दोबारा आटे में नहीं बदला जा सकता है।

→ कुछ परिवर्तन आवधिक अथवा आवर्ती होते हैं जबकि अन्य गैर आवधिक अथवा अनावर्ती होते हैं।

→ जो परिवर्तन एक निश्चित समय अंतराल के बाद दोहराए जाते हैं, उन्हें आवधिक अथवा आवर्ती परिवर्तन कहते हैं। उदाहरण के लिए, दिन और रात का बदलना, घड़ी के लोलक का झूलना, हृदय की धड़कन, ऋतुओं का परिवर्तन।

→ वे परिवर्तन जो नियमित अंतराल के बाद दोहराए नहीं जाते हैं, गैर आवधिक अथवा अनावर्ती परिवर्तन कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, भूकंप आना, बारिश होना, आदि।

→ हमने परिवर्तनों को भौतिक और रासायनिक परिवर्तनों में भी वर्गीकृत किया है।

→ कोई भी अस्थायी परिवर्तन जिसमें कोई नया पदार्थ नहीं बनता है और मूल पदार्थ की रासायनिक संरचना समान रहती है, भौतिक परिवर्तन कहलाता है।

→ भौतिक परिवर्तनों के दौरान, भौतिक गुण जैसे रंग, आकार, आयतन, अवस्था आदि बदल सकते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि भौतिक परिवर्तन एक प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन है।

→ कोई भी स्थायी परिवर्तन जिसमें नए पदार्थ बनते हैं। इनमें बनने वाले नए पदार्थ के भौतिक और रासायनिक गुण मूल पदार्थ से बिल्कुल अलग होते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ भौतिक परिवर्तन प्रकृति में अधिकतर प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय होते हैं जबकि रासायनिक परिवर्तन ज्यादातर अपरिवर्तनीय परिवर्तन होते हैं।

→ प्रसार और संकुचन भौतिक परिवर्तन हैं जो हमारे दैनिक जीवन में बहुत उपयोगी होते हैं।

→ प्रसार में पदार्थ की विमाएँ बढ़ती हैं और संकुचन में पदार्थ की विमाएँ घटती हैं।

→ परिवर्तन-वह क्रिया जिसके द्वारा कोई वस्तु अपने पिछले वाले से भिन्न हो जाती है।

→ प्राकृतिक परिवर्तन-स्वाभाविक रूप से होने वाले और कभी न खत्म होने वाले परिवर्तन प्राकृतिक परिवर्तन कहलाते हैं।

→ मानव निर्मित अथवा कृत्रिम परिवर्तन-मानव के प्रयासों से होने वाले परिवर्तन मानव निर्मित अथवा कृत्रिम परिवर्तन कहलाते हैं।

→ आवधिक अथवा आवर्ति परिवर्तन-जो परिवर्तन एक निश्चित समय अंतराल के बाद दोहराए जाते हैं, उन्हें आवधिक अथवा आवर्ती परिवर्तन कहते हैं। उदाहरण के लिए, दिन और रात का बदलना, घड़ी के लोलक का झूलना, हृदय की धड़कन, ऋतुओं का परिवर्तन।

→ गैर-आवधिक अथवा अनावर्ती परिवर्तन-वे परिवर्तन जो नियमित अंतराल के बाद दोहराए नहीं जाते हैं, गैर-आवधिक अथवा अनावर्ती परिवर्तन कहलाते हैं। उदाहरण के लिए, भूकंप आना, बारिश होना, आदि।

→ प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन-किसी पदार्थ में होने वाले वे परिवर्तन जिनमें बनने वाले नए पदार्थ को अपनी मूल अवस्था में लाया जा सकता है, प्रतिवर्ती अथवा उत्क्रमणीय परिवर्तन कहलाते हैं।

→ अपरिवर्तनीय परिवर्तन-किसी पदार्थ में होने वाले वे परिवर्तन जिनमें बनने वाले नए पदार्थ को अपनी मूल अवस्था में लाया जा सकता है, अपरिवर्तनीय परिवर्तन कहलाते हैं।

→ भौतिक परिवर्तन- भौतिक परिवर्तन एक अस्थायी परिवर्तन है जिसमें कोई नया पदार्थ नहीं बनता है और मूल पदार्थ की रासायनिक संरचना समान रहती है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 6 हमारे चारों ओर के परिवर्तन

→ रासायनिक परिवर्तन-रासायनिक परिवर्तन एक स्थायी परिवर्तन है जिसमें नए पदार्थ बनते हैं जिनके भौतिक और रासायनिक गुण मूल पदार्थ के गुणों से पूरी तरह भिन्न होते हैं।

→ प्रसार-जब कोई पदार्थ गर्म करने पर अपना आकार बढ़ाता है तो उस परिवर्तन को प्रसार कहते हैं।

→ तापीय प्रसार-जो प्रसार तापमान में वृद्धि के कारण होता है तो इसे तापीय या थर्मल प्रसार कहा जाता है।

→ संकुचन-जब कोई पदार्थ ठंडा होने पर अपना आकार कम कर लेता है तो उस परिवर्तन को संकुचन कहते हैं।

→ वाष्पीकरण-जब गर्म करने पर या दबाव कम करने पर, कोई तरल गैसीय रूप में परिवर्तित हो जाता है तो इस प्रक्रिया को वाष्पीकरण के रूप में जाना जाता है।

→ पिघलना या गलन-गर्म करने या दबाव बढ़ाने पर जब कोई ठोस द्रव में बदल जाता है, तो इस प्रक्रिया को पिघलने या गलन के रूप में जाना जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ हमारे आस-पास के पदार्थों को दो वर्गों अर्थात शुद्ध पदार्थ या अशुद्ध पदार्थ में बाँटा जा सकता है। अशुद्ध पदार्थों को मिश्रण भी कहते हैं।

→ एक शुद्ध पदार्थ केवल एक ही प्रकार के परमाणुओं या अणुओं से बना होता है, उदाहरण पानी। इसकी संरचना और गुण निश्चित् होते हैं।

→ मिश्रणों में कुछ वांछित पदार्थ और अवांछित पदार्थ होते हैं। हमें अवांछित पदार्थों को वांछित पदार्थों से अलग करना चाहिए।

→ मिश्रण से विभिन्न पदार्थों को अलग करने की प्रक्रिया को पृथक्करण के रूप में जाना जाता है।

→ अगर मिश्रण में अवांछित पदार्थ हैं तो पृथक्करण अवश्य किया जाना चाहिए क्योंकि मिश्रण में अवांछित पदार्थ हमारे लिए हानिकारक हो सकते हैं।

→ पृथक्करण उन मामलों में भी महत्त्वपूर्ण है जहां हमें एक विशेष घटक या अवयव की शुद्ध अवस्था में आवश्यकता होती है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए हमारे पास कई विधियाँ हैं। ये मिश्रण में मौजूद पदार्थों के गुणों में अंतर पर आधारित होती हैं।

→ पृथक्करण की विभिन्न विधियाँ हैं- हस्तचयन, निष्पावन, चालन, अवसादन, निस्तारण, निस्यंदन, निस्यंदन, वाष्पीकरण आदि।

→ हस्तचयन विधि का उपयोग उस मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्हें हम आँखों से देख सकते हैं और ये आकार में बड़े हों।

→ कंबाइन का उपयोग कटाई और निस्यंदन दोनों प्रक्रियाओं के लिए किया जाता है।

→ निस्यंदन अनाज को भूसे से अलग करना है। यह तीनों में से किसी एक विधि का उपयोग करके किया जा सकता
है अर्थात

  1. मनुष्यों द्वारा
  2. जानवरों की मदद से और
  3. मशीनों का उपयोग करके।

→ एक मिश्रण के भारी और हल्के घटकों को हवा या हवा में उड़ाने की विधि को चालन कहते हैं।

→ ठोस और तरल पदार्थों के मिश्रण को अलग करने के लिए निस्तारण, अवसादन, निस्यंदन, वाष्पीकरण जैसी विधियों का उपयोग किया जाता है।

→ मिश्रण से भारी, अघुलनशील कणों के नीचे बैठने की प्रक्रिया अवसादन कहलाती है। वह पदार्थ जो तल पर जम जाता है तलछट कहलाता है। इस विधि का उपयोग अघुलनशील भारी कणों को तरल से अलग करने के लिए किया जाता है।

→ तलछट को विचलित किए बिना स्पष्ट तरल को स्थानांतरित करने की प्रक्रिया को निस्तारण के रूप में जाना जाता है।

→ एक अघुलनशील ठोस को एक फिल्टर पेपर या मलमल के कपड़े के माध्यम से तरल से अलग करने की प्रक्रिया को निस्यंदन के रूप में जाना जाता है।

→ मिश्रण के अलग-अलग आकार के कणों को छाननी से अलग करने की प्रक्रिया को छाननी कहा जाता है।

→ किसी द्रव को गर्म करके उसके वाष्प में बदलने की प्रक्रिया वाष्पीकरण कहलाती है।

→ कभी-कभी हमें मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए एक से अधिक विधियों की आवश्यकता हो सकती है या नहीं।

→ जब दो या दो से अधिक पदार्थों का मिश्रण एक ही पदार्थ या शुद्ध पदार्थ की तरह दिखाई देता है तो उसे विलयन कहते हैं।

→ किसी विलयन में जो पदार्थ अधिक मात्रा में उपस्थित होता है उसे विलायक कहते हैं तथा कम मात्रा में उपस्थित पदार्थ को विलेय कहते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ संतप्त विलयन वह विलयन है जिसमें किसी विशेष तापमान पर और अधिक विलेय नहीं घल सकता है।

→ असंतृप्त विलयन वह विलयन है जिसमें किसी विशेष तापमान पर और अधिक विलेय घोला जा सकता है।

→ जल में विभिन्न मात्रा में पदार्थ घुल जाते हैं और विलयन को गर्म करने पर अधिकांश पदार्थों की विलेयता बढ़ जाती है।

→ वाष्पीकरण और संघनन एक दूसरे के विपरीत हैं।

→ शुद्ध पदार्थ-यदि कोई पदार्थ केवल एक ही प्रकार के घटकों (परमाणुओं या अणुओं) से बना हो तो वह शुद्ध पदार्थ कहलाता है। इसकी संरचना और गुण निश्चित होने चाहिए।

→ अशुद्ध पदार्थ-अशुद्ध पदार्थ विभिन्न प्रकार के घटकों (परमाणुओं या अणुओं) का मिश्रण होता है।

→ मिश्रण-दो या दो से अधिक तत्वों या यौगिकों से बिना किसी रासायनिक अभिक्रिया के किसी भी अनुपात में मिश्रित पदार्थ को मिश्रण कहा जाता है।

→ विलयन-जब दो या दो से अधिक पदार्थों का मिश्रण एक ही पदार्थ या शुद्ध पदार्थ की तरह दिखाई देता है तो उसे विलयन कहते हैं।

→ विलायक-किसी विलयन में जो पदार्थ अधिक मात्रा में उपस्थित होता है वह विलायक कहलाता है।

→ विलेय-किसी विलयन में जो पदार्थ कम मात्रा में उपस्थित होता है वह विलेय कहलाता है।

→ संतृप्त विलयन-वह विलयन जिसमें किसी विशेष तापमान पर और अधिक विलेय नहीं घुल सकता है, संतृप्त विलयन कहलाता है।

→ असंतृप्त विलयन-वह विलयन जिसमें किसी विशेष ताप पर और अधिक विलेय घोला जा सकता है, असंतृप्त विलयन कहलाता है।

→ आसवन-वह प्रक्रिया जिसमें किसी द्रव को उबालकर वाष्प में परिवर्तित किया जाता है और इस प्रकार बने वाष्पों को ठंडा करके शुद्ध द्रव बनाने के लिए संघनित किया जाता है, आसवन कहलाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 5 पदार्थों का पृथक्करण

→ हस्तचयन-किसी पदार्थ में मिली अशुद्धियों को हाथ से चुन कर अथवा चुग कर पृथक् करने की विधि को हस्तचयन विधि कहते हैं।

→ निस्यंदन अथवा विनोइंग-जब किसी मिश्रण के अवयवों के कणों के भार में अंतर हो तो जिस विधि द्वारा हवा के झोंके के प्रभाव अधीन विभिन्न अवयवों का पृथक्करण किया जाता है उस विधि को निस्यंदन कहा जाता है ।

→ फटकन-दानों को डंठलों से अलग करने की प्रक्रिया को फटकन कहते हैं। इस विधि में, हम बीज को मुक्त करने के लिए डंठल को कठोर सतह पर पटकते हैं।

→ छानन-वह विधि है जिसमें छोटे ठोस कणों को छाननी से गुजार कर बड़े ठोस कणों से अलग किया जाता है उसे छानन कहा जाता है ।

→ अवसादन-इस प्रक्रिया में, तरल मिश्रण को कुछ समय के लिए अविचलित रखा जाता है। ठोस भारी अघुलनशील कण तल पर जमा हो जाते हैं और हल्के कण तरल में तैरते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

→ पदार्थ को किसी भी ऐसी चीज़ के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका द्रव्यमान होता है और जो स्थान घेरती है।

→ हमारे आस-पास मौजूद सभी वस्तुएँ पदार्थ है क्योंकि ये स्थान घेरती है और इनका निश्चित द्रव्यमान होता है।

→ प्यार या उदासी की भावनाएं, रेडियो और टेलीविजन द्वारा प्राप्त संकेत, ऊर्जा के विभिन्न रूप पदार्थ नहीं हैं।

→ कुछ पदार्थ एक प्रकार के अवयवों से बने होते हैं जबकि अन्य एक से अधिक अवयवों से बने होते हैं।

→ परमाणु सबसे छोटा भाग है जो सभी प्रकार के पदार्थों में पाया जाता है।

→ हम भिन्न भिन्न रूपों, आकारों, रंगों और उपयोगों वाले विभिन्न पदार्थों से घिरे हुए हैं।

→ वस्तुओं की विशाल विविधता के कारण इनका वर्गीकरण करना हमारे लिए लाभदायक सिद्ध होता है। हम इन्हें विभिन्न कारकों अर्थात आकार, प्रयुक्त सामग्री, उपयोग आदि के आधारों पर वर्गीकृत कर सकते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

→ एक ही प्रकार के अवयवों से बनी वस्तुओं की संरचना सरल होती है। कई प्रकार के अवयवों से बनी वस्तुओं की संरचना जटिल होती है।

→ गुणों और वांछित उपयोगों के आधार पर अवयवों का चुनाव करके वस्तुओं का निर्माण किया जाता है ।

→ कुछ वस्तुओं के गुण समान होते हैं और कुछ वस्तुओं के गुण असमान होते हैं।

→ कुछ पदार्थ पानी में घुलने पर पूरी तरह से गायब हो जाते हैं। ये घुलनशील अथवा विलेय पदार्थ कहलाते हैं।

→ जो पदार्थ पानी में नहीं घुलते हैं या बहुत देर तक हिलाने पर भी पानी में गायब नहीं होते हैं, अघुलनशील अथवा अविलेय पदार्थ कहलाते हैं।

→ कुछ पदार्थ चमकदार होते हैं। इन्हें चमकीले अथवा द्युतिमय पदार्थ कहा जाता है। वे पदार्थ जिनमें चमक नहीं होती वे चमक-रहित अथवा अद्युतिमय पदार्थ कहलाते हैं।

→ कुछ वस्तुएँ सख्त होती हैं। ये कठोर पदार्थ कहलाती हैं।

→ हम कुछ पदार्थों के आर-पार देख सकते हैं । इन्हें पारदर्शी पदार्थ कहा जाता है।

→ हम कुछ पदार्थों के पार नहीं देख सकते हैं। ये अपारदर्शी पदार्थ कहलाते हैं।

→ हम कुछ पदार्थों में से सीमित सीमा तक ही देख सकते हैं। ये पारभासी पदार्थ कहलाते हैं।

→ वे द्रव जो पूर्ण रूप से आपस में मिल जाते हैं, मिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ वे द्रव जो आपस में मिश्रित नहीं होते अमिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ वे द्रव जो आपस में आंशिक रूप से मिश्रित होते हैं, आंशिक रूप से मिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ पदार्थ के प्रति इकाई आयतन के द्रव्यमान को घनत्व के रूप में जाना जाता है।

→ यदि किसी अघुलनशील अथवा अविलेय पदार्थ का घनत्व पानी से अधिक है तो वह डूब जाएगा।

→ यदि किसी अघुलनशील अथवा अविलेय पदार्थ का घनत्व पानी से कम है तो वह तैरने लगेगा।

→ अमिश्रणीय तरलों को मिलाने पर दो परतें बनती हैं । दोनो तरलों में से, अधिक घनत्व वाला तरल निचली परत बनाएगा और कम घनत्व वाला ऊपरी परत बनाएगा।

→ मिश्रणीय द्रव-वे द्रव जो पूर्ण रूप से मिश्रित हो जाते हैं, मिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ अमिश्रणीय द्रव-वे द्रव जो आपस में मिश्रित नहीं होते हैं, अमिश्रणीय द्रव कहलाते हैं।

→ घुलनशील अथवा विलेय-वह ठोस पदार्थ जो पानी या किसी अन्य तरल में घुलने पर पूरी तरह से गायब हो जाता है, घुलनशील पदार्थ कहलाता है।

→ अघुलनशील अथवा अविलेय-वह ठोस पदार्थ जो पानी या किसी अन्य तरल में घुलने पर गायब नहीं होता है, अघुलनशील पदार्थ कहलाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 4 वस्तुओं के समूह बनाना

→ पारदर्शी-वे पदार्थ जिनके आर पार देखा जा सकता है, पारदर्शी कहलाते हैं।

→ अपारदर्शी-वे पदार्थ जिनके आर पार देखा नहीं जा सकता, अपारदर्शी कहलाते हैं।

→ पारभासी-वे पदार्थ जिनके आर पार आंशिक रूप से देखा जा सकता है लेकिन स्पष्ट रूप से देखा नहीं जा सकता, पारभासी कहलाते हैं।

→ चमक अथवा द्युति- किसी पदार्थ पर जो चमक हम देखते हैं उसे चमक अथवा द्युति कहते हैं।

→ परमाणु-पदार्थ के सबसे छोटे भाग को परमाणु कहते हैं।

→ रुक्ष-वे पदार्थ जिन की सतह को छूने पर हम खुरदरा महसूस करते हैं।

→ मुलायम-वे पदार्थ जिन की सतह को छूने पर हम फिसलन महसूस करते हैं।

→ कठोर- इसका अर्थ है कि पदार्थ को संपीडित नहीं किया जा सकता है ।

→ नर्म- इसका अर्थ है कि पदार्थ को संपीडित किया जा सकता है ।

→ घनत्व-किसी पदार्थ के प्रति इकाई आयतन के द्रव्यमान को घनत्व के रूप में जाना जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

→ वस्त्र महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि ये

  1. हमें धूप, हवा, ठंड, गर्मी, बारिश आदि से बचाते हैं।
  2. हमें विभिन्न मौसम

स्थितियों में सहज महसूस करने और सुंदर दिखने में मदद करते हैं।

→ लोग आमतौर पर साड़ी, कोट-पेंट, सूट, जींस, शर्ट, टी-शर्ट, पगड़ी, कुर्ता-पायजामा, सलवार-कमीज, लुंगी, धोती आदि जैसे विभिन्न प्रकार के वस्त्र पहनते हैं।

→ कपास, रेशम, ऊन और पॉलिएस्टर विभिन्न प्रकार की वस्त्रों की सामग्री हैं, जिन्हें तंतु अथवा रेशे कहा जाता है।

→ चादरें, कंबल, तौलिए, पर्दे, पौछा, फर्श की चटाई, हमारे स्कूल बैग, बेल्ट, मोजे, टाई विभिन्न प्रकार के रेशों से बने होते हैं। इस प्रकार, विभिन्न प्रकार के कपड़े बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के रेशों का उपयोग किया जाता है।
तंतु दो प्रकार के होते हैं-

  1. प्राकृतिक और
  2. मानव निर्मित (संश्लिष्ट)।

→ प्रकृति से प्राप्त तंतु प्राकृतिक तंतु कहलाते हैं।

→ प्राकृतिक तंतु पौधों और जानवरों से प्राप्त किए जा सकते हैं।

→ पौधों से प्राप्त तंतु पादप तंतु कहलाते हैं। इसी प्रकार जंतुओं से प्राप्त रेशे जांतव तंतु कहलाते हैं। कपास, जूट और क्वायर पादप तंतुओं के उदाहरण हैं जबकि ऊन, रेशम आदि जांतव तंतुओं के उदाहरण हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

→ सूत का उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है। इसे कपास के तंतुओं से बनाया जाता है।

→ ओटना, कताई, बुनाई, बंधाई आदि कुछ प्रक्रियाएं हैं जिनका उपयोग सूत से वस्त्र या वस्त्रों की सामग्री बनाने के लिए किया जाता है।

→ मनुष्य द्वारा रासायनिक पदार्थों से बनाए गए तंतुओं को संश्लिष्ट तंतु कहा जाता है। नायलॉन, एक्रेलिक और पॉलिएस्टर संश्लिष्ट तंतुओं के उदाहरण हैं।

→ संश्लिष्ट तंतुओं का उपयोग मोजे, टूथब्रश ब्रिस्टल, कार सीट बेल्ट, कालीन, रस्सी, स्कूल बैग इत्यादि बनाने के लिए किया जाता है।

→ जूट के पौधे के तने से जूट रेशे रेटिंग की प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है।

→ संश्लिष्ट तंतु आसानी से सूख जाते हैं, उनके बीच हवा की जगह कम होती है, मजबूत और शिकन मुक्त होते हैं।

→ संश्लिष्ट तंतु पानी को अवशोषित नहीं करते हैं, इसलिए ये गर्म और आर्द्र मौसम के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं।

→ सूती कपड़े आर्द्र और गर्म मौसम के लिए अच्छे होते हैं। यह पानी को आसानी से सोख लेते हैं।

→ कपास के तंतुओ को कंघी करके बीजों से अलग करने की प्रक्रिया को ओटना कहा जाता है।

→ कतरनी का उपयोग करके भेड़ से ऊन निकालना कतरना कहलाता है।

→ रेशम के कीड़ों का पालन रेशम उत्पादन के लिए किया जाता है ।

→ वस्त्र बनाने के लिए तागे के दो सेटों को आपस में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को बुनाई कहा जाता है। इसके विपरीत, बंधाई में वस्त्र का एक टुकड़ा बनाने के लिए एक ही धागे का उपयोग किया जाता है।

→ बुनाई हाथों से या मशीनों द्वारा की जाती है।

→ धागा-बारीक तंतुओं के समूह से बने रेशों जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार के वस्त्र बनाने के लिए किया जाता है, धागा कहते हैं।

→ तंतु-बहुत पतली लम्बी तथा बेलनाकार संरचनाओं को तंतु अथवा रेशे कहते हैं।

→ जुट-जूट मजबूत और खुरदरा तंतु होता है जो पटसन के पौधों के तने से प्राप्त होता है ।

→ प्राकृतिक तंतु-प्रकृति से प्राप्त तंतु प्राकृतिक तंतु कहलाते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 3 रेशों से वस्त्र तक

→ पादप तंतु-पौधों से प्राप्त तंतु पादप तंतु कहलाते हैं। उदाहरण के लिए- कपास, जूट, क्वायर।

→ जांतव तंतु-जंतुओं से प्राप्त तंतु जांतव तंतु कहलाते हैं। उदाहरण के लिए- ऊन, रेशम।

→ संश्लिष्ट तंतु-मनुष्य द्वारा रसायनों और अन्य सामग्रियों का उपयोग करके तैयार किए गए तंतुओं को संश्लिष्ट तंतु कहा जाता है।

→ ओटाई-कपास को उनके बीजों से स्टील की कंघी द्वारा अलग करना ओटाई कहलाती है।

→ रेशम उत्पादन-रेशम उत्पादन के लिए रेशम के कीड़ों का पालन।

→ रिटिंग-पटसन के पौधे के तने से जूट के तंतुओं को अलग करने की प्रक्रिया को रिटिंग कहा जाता है ।

→ कतरनी-कतरनी का उपयोग करके भेड़ से ऊन निकालना।

→ कताई-तंतुओं अथवा रेशों से धागा बनाने की प्रक्रिया को कताई कहते हैं।

→ बुनाई और बंधाई-वस्त्र बनाने के लिए तागे के दो सेटों को एक साथ व्यवस्थित करने की प्रक्रिया को बुनाई कहा जाता है। इसके विपरीत, बंधाई में वस्त्र बनाने के लिए एक ही धागे का उपयोग किया जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ पोषक तत्व वे पदार्थ हैं जो शरीर के समुचित विकास और वृद्धि के लिए आवश्यक हैं।

→ कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, खनिज और विटामिन हमारे भोजन के मुख्य पोषक तत्व हैं। इनके अलावा हमारे शरीर को पानी और रूक्षांश की जरूरत होती है।

→ कार्बोहाइड्रेट कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से बने होते हैं। ये ऊर्जा के तत्कालीन स्रोत हैं तथा ऊर्जा देने वाले भोजन कहलाते हैं।

→ बाजरा, ज्वार, चावल, गेहूँ, गुड़, आम, केला और आलू कार्बोहाइड्रेट के मुख्य स्रोत हैं।

→ हमारे पास दो प्रकार के कार्बोहाइड्रेट हैं। ये सरल कार्बोहाइड्रेट और जटिल कार्बोहाइड्रेट हैं।

→ ग्लूकोज, फ्रक्टोज, सुक्रोज, लैक्टोज आदि सरल कार्बोहाइड्रेटों के उदाहरण हैं। स्टार्च, सेल्युलोज, ग्लाइकोजन जटिल कार्बोहाइड्रेटों के उदाहरण आदि हैं।

→ स्वाद में मीठे कार्बोहाइड्रेटों को शर्करा कहते हैं।

→ सुक्रोज को टेबल शुगर के रूप में जाना जाता है। फ्रक्टोज को फल शुगर कहा जाता है। लैक्टोज को मिल्क शुगर कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ स्टार्च बेस्वाद और पानी में अघुलनशील है। यह ग्लूकोज की कई इकाइयों से बना होता है।

→ आलू, गेहूँ, चावल, मक्का आदि स्टार्च के मुख्य स्रोत हैं।

→ पाचन के दौरान स्टार्च पहले ग्लूकोज में और अंत में कार्बन डाइऑक्साइड और पानी में परिवर्तित होता है। इसलिए, स्टार्च ऊर्जा का तत्कालिक स्रोत नहीं है।

→ स्टार्च का पता आयोडीन परीक्षण द्वारा लगाया जा सकता है। यह आयोडीन के साथ नीला-काला रंग देता है।

→ प्रोटीन कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन और नाइट्रोजन से बने होते हैं। इन्हें बॉडी बिल्डिंग फूड कहा जाता है। शरीर की कोशिकाओं की वृद्धि और मुरम्मत प्रोटीन का मुख्य कार्य है। ये हमें कई बीमारियों से भी बचाती हैं।

→ पौधे और जंतु दोनों ही प्रोटीन के स्रोत हैं। पौधों से मिलने वाले प्रोटीन को पादप प्रोटीन कहा जाता है और जंतुओं से प्राप्त प्रोटीन को पशु प्रोटीन अथवा जैव प्रोटीन कहा जाता है।

→ सोयाबीन, मटर जैसी फलियाँ और चना, राजमाह और मूंग जैसी दालें पादप प्रोटीन के स्रोत हैं। पालक, मशरूम, ब्रोकली आदि से भी प्रोटीन मिलता है।

→ मांस, मछली, मुर्गी, दूध और दुग्ध उत्पाद प्रोटीन के मुख्य स्रोत हैं।

→ कुछ प्रोटीन हमारे शरीर में होने वाली विभिन्न प्रतिक्रियाओं को तेज करते हैं। इन्हें एंजाइम के रूप में जाना जाता है।

→ एंजाइम वे प्रोटीन होते हैं जो एक जीवित जीव के शरीर के अंदर विभिन्न प्रतिक्रियाओं को तेज करते हैं।

→ कॉपर सल्फेट और कास्टिक सोडा के घोल में प्रोटीन मिलाने पर नीला रंग मिलता है। इस प्रतिक्रिया का उपयोग प्रोटीन का पता लगाने के लिए किया जाता है।

→ वसा से भी हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। ये कार्बोहाइड्रेट की तुलना में अधिक मात्रा में ऊर्जा देती है। इनके द्वारा ऊर्जा छोड़ने की प्रतिक्रिया धीमी होती है।

→ वसा ऊर्जा के सबसे समृद्ध स्रोत के रूप में जाने जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट को ऊर्जा के तत्कालिक स्रोत के रूप में जाना जाता है।

→ सरसों का तेल, नारियल का तेल और सूरजमुखी के तेल जैसे वनस्पति तेल, वसा के महत्त्वपूर्ण वनस्पति अथवा पादप स्रोत हैं। वनस्पति अथवा पादप वसा के अन्य स्रोत काजू, बादाम, मूंगफली और तिल हैं।

→ मांस, अंडे, मछली, दूध और दूध उत्पाद जैसे मक्खन, घी आदि पशु वसा के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

→ वसा से हमें ऊर्जा मिलती है तथा ये शरीर से गर्मी के नुकसान को रोकते हैं।

→ कागज पर तैलीय पैच की उपस्थिति किसी भी खाद्य पदार्थ में वसा की उपस्थिति की पुष्टि करती है।

→ हमारे शरीर को खनिजों की भी आवश्यकता होती है। कैल्शियम, लोहा, आयोडीन और फास्फोरस महत्त्वपूर्ण खनिज हैं। ये हमें ऊर्जा नहीं देते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ हीमोग्लोबिन के निर्माण के लिए आयरन की और हड्डियों के निर्माण के लिए कैल्शियम की आवश्यकता होती है। फास्फोरस हड्डियों और दांतों को मजबूती प्रदान करता है। थायरॉयड ग्रंथि के सामान्य कामकाज के लिए आयोडीन की आवश्यकता होती है।

→ हमारे शरीर के ठीक ढंग से कार्य के लिए हमें विटामिनों की आवश्यकता होती है। हमारे पास A, B, C, D, E और K जैसे विभिन्न विटामिन हैं।

→ अंडे, मांस, दूध, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, गाजर, पपीता आदि विटामिन C के स्रोत हैं। यह स्वस्थ आंखों और त्वचा के लिए आवश्यक है।

→ दूध, हरी सब्जियाँ, मटर, अंडे, अनाज, मशरूम आदि विटामिन B के स्रोत हैं। यह केंद्रीय तंत्रिका तंत्र और पाचन तंत्र के सामान्य विकास और उचित कामकाज के लिए आवश्यक है।

→ खट्टे फल (नींबू, संतरा, आदि), आँवला, टमाटर, ब्रोकली आदि विटामिन सी के स्रोत हैं। यह रोगों से लड़ने के लिए आवश्यक है।

→ डेयरी उत्पाद, मछली के जिगर का तेल, सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आना आदि विटामिन D के स्रोत हैं। यह स्वस्थ हड्डियों और दाँतों के लिए आवश्यक है।

→ बादाम, मूंगफली, सूरजमुखी का तेल, सोयाबीन का तेल, पत्तेदार सब्जियाँ विटामिन E के स्रोत हैं। कोशिकाओं को क्षति से बचाने के लिए और हमारे शरीर की विभिन्न समस्याओं को कम करने में मदद करने के लिए इसकी आवश्यकता होती है।

→ हरी पत्तेदार सब्जियाँ, मछली का मांस, अंडे, अनाज आदि विटामिन K के स्रोत हैं। यह रक्त के जमने के लिए आवश्यक है।

→ पोषक तत्व-वे पदार्थ हैं जो शरीर के समुचित विकास और उचित कामकाज के लिए आवश्यक हैं।

→ संतुलित आहार-जिस आहार में शरीर के समुचित विकास और उचित कामकाज के लिए सभी आवश्यक पोषक तत्वों, रौगे और पानी की पर्याप्त मात्रा होती है, उसे संतुलित आहार कहा जाता है।

→ कमी रोग-लंबे समय तक हमारे आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण जो रोग होता है उसे कमी रोग कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 2 भोजन के तत्व

→ घेघा-आयोडीन की कमी से होने वाला एक रोग है और इसका मुख्य लक्षण गर्दन में मौजूद थायरॉयड ग्रंथि का बढ़ना है।

→ स्कर्वी- यह विटामिन C की कमी से होना वाला रोग है और इसके मुख्य लक्षणों में मसूड़ों से खून आना शामिल है।

→ बेरी-बेरी-यह विटामिन B की कमी से होने वाला रोग है।

→ रिकेट्स- यह विटामिन D की कमी से होने वाला रोग है और इसके मुख्य लक्षणों में हड्डियों का नरम होना और मुड़ना शामिल है।

→ खून की कमी अथवा एनीमिया-यह आयरन की कमी से होने वाली बीमारी है और इसके मुख्य लक्षणों में कमजोरी, थकान और पीली त्वचा शामिल हैं।

→ रूक्षांश- भोजन में मौजूद रेशेदार अपचनीय पदार्थ को रूक्षांश कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 1 भोजन :यह कहाँ से आता है?

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PSEB 6th Class Science Notes Chapter 1 भोजन :यह कहाँ से आता है?

→ सभी जीवित प्राणियों को दैनिक गतिविधियों को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है ।

→ जीवों को अपने शारीरिक विकास, विभिन्न कार्यों के लिए वाँछित ऊर्जा प्राप्त करने, शरीर के क्षतिग्रस्त भागों को बदलने तथा उनमें होने वाली क्षति की पूर्ती करने तथा रोगों से सुरक्षा के लिए भोजन की आवश्यकता होती है।

→ प्रकृति में विभिन्न प्रकार के भोजन जैसे फल, सब्जियाँ, दूध तथा दूध उत्पाद, मिठाई, अंडे, मांस, चपाती और बेकरी उत्पाद मौजूद हैं।

→ खाद्य पदार्थ तैयार करने के लिए जिन अवयवों की आवश्यकता होती है वे खाद्य सामग्री कहलाते हैं। खाद्य सामग्री में एक या दो या कई अवयव होते हैं ।

→ पौधे हमारे और अन्य जानवरों के भोजन के मुख्य स्रोत हैं। कुछ खाद्य पदार्थ जानवरों से भी प्राप्त किए जाते हैं।

→ हरे पौधे सूर्य के प्रकाश, कार्बन डाइऑक्साइड और पानी का उपयोग करके अपना भोजन स्वयं तैयार कर सकते है हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।

→ पौधे का प्रत्येक भाग जिसमें भोजन का भंडारण किया जाता है वह खाने योग्य होता है। जैसे बीज, फूल, तना, जड़, तथा पत्ते।

→ पौधे के वे भाग जो हमारे द्वारा भोजन के रूप में उपयोग किए जाते हैं, खाने योग्य भाग कहलाते हैं।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 1 भोजन :यह कहाँ से आता है?

→ हम गाजर, मूली, शलजम, शकरकंद आदि की जड़ें खाते हैं। हम कुछ पौधों के तनों का भी उपयोग खाने के लिए करते हैं।

→ कुछ तने जैसे अदरक, आलू, प्याज, हल्दी भूमिगत उगते हैं और भोजन का भंडारण करते हैं। अदरक और हल्दी के डंठल का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है। गन्ने के तने का उपयोग रस, चीनी और गुड़ बनाने के लिए किया जाता है।

→ हम सेब, आम, अमरूद, पपीता, संतरा आदि तरह-तरह के फल खाते हैं। इन सभी फलों को कच्चा यानी बिना फल अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं क्योंकि ये विटामिन और खनिजों के महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं।

→ हम विभिन्न पौधों जैसे सरसों, पालक, पत्ता गोभी, धनिया, पुदीना आदि की पत्तियों का उपयोग करते हैं।

→ हम कई पौधों जैसे गेहूँ, चावल, मक्का, चना, मटर, राजमा और हरे चने (मूंग), आदि के बीजों का उपयोग भोजन के रूप में करते हैं।

→ कुछ फसलों जैसे चना, मटर, राजमा और हरे चने (मूंग) के बीजों को दालों के रूप में जाना जाता है जबकि गेहूँ, चावल और मक्का के बीजों को अनाज के रूप में जाना जाता है।

→ पशुओं से हमें दूध, शहद, मांस, अंडे, तेल आदि मिलते हैं।

→ शहद में चीनी, पानी, खनिज, एंजाइम और विटामिन होते हैं। फूलों का रस (मकरंद) शहद का स्रोत है।

→ जानवरों द्वारा लिए गए भोजन के आधार पर, जानवरों की तीन श्रेणियाँ हैं-

  1. शाकाहारी,
  2. मांसाहारी और
  3. सर्वाहारी।

→ वे जानवर जो केवल पौधों और पौधों के उत्पादों को खाते हैं उन्हें शाकाहारी कहा जाता है, उदाहरण-गाय, बकरी, खरगोश, भेड़, हिरण, हाथी, आदि।

→ वे जानवर जो भोजन के लिए अन्य जानवरों को खाते हैं, मांसाहारी कहलाते हैं, उदाहरण शेर, बाघ, छिपकली, सांप, आदि।

→ वे जानवर हैं जो भोजन के लिए पौधे और जानवरों दोनों को खाते हैं, सर्वाहारी कहलाते हैं। जैसे कौआ, भालू, कुत्ता और चूहा, आदमी, आदि।

→ दूध में प्रोटीन, चीनी, वसा और विटामिन होते हैं। यह दुनिया भर में भोजन के रूप में उपयोग किया जाता है । इसे पनीर, मक्खन, दही, क्रीम आदि जैसे डेयरी उत्पादों में परिवर्तित किया जा सकता है।

→ लोग बकरी, भेड़, मुर्गी, मछली और समुद्री जानवरों जैसे झींगे, केकड़े आदि का मांस खाते हैं।

→ मांस का उपयोग भोजन के रूप में भी किया जाता है और इसमें बड़ी मात्रा में प्रोटीन और वसा होता है।

→ लोग मुर्गी और बत्तख और अन्य पक्षियों के अंडे खाते हैं।

→ अंडे के सफेद भाग को एल्बुमिन तथा पीले भाग को जर्दी कहा जाता है।

→ एल्बुमिन प्रोटीन से भरपूर होता है और जर्दी वसा से भरपूर होती है।

→ भोजन-काम करने के लिए ऊर्जा प्रदान करने, शरीर के तापमान को बनाए रखने, रोगों से बचाने वाले पदार्थों को भोजन कहा जाता है।

→ संतुलित आहार-जिस आहार में शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व होते हैं उसे संतुलित आहार कहते है।

→ खाद्य पदार्थ-वे वस्तुएं/पदार्थ जिनका उपयोग खाने के लिए किया जा सकता है, खादय पदार्थ कहलाते हैं।

→ खाद्य सामग्री-खाद्य पदार्थ तैयार करने के लिए आवश्यक सामग्री को खाद्य सामग्री कहा जाता है।

→ दालें-कुछ फसलों जैसे चना, मटर, मूंग के बीजों को दालें कहा जाता है।

→ अनाज-कुछ फसलों जैसे गेहूँ, चावल, मक्का आदि के बीजों को अनाज कहा जाता है ।

→ एल्बुमिन- अंडे के सफेद भाग को एल्बुमिन कहा जाता है।

PSEB 6th Class Science Notes Chapter 1 भोजन :यह कहाँ से आता है?

→ जर्दी-अंडे के पीले भाग को जर्दी कहा जाता है।

→ मकरंद-फूलों में मौजूद शर्करा द्रव को मकरंद कहा जाता हैं।

→ स्वपोषी अथवा उत्पादक- ऐसे सजीव जो प्रकाश संश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वयं बना सकते हैं, स्वपोषी अथवा उत्पादक कहलाते हैं।

→ विषमपोषी अथवा खपतकार- वे जीव जो भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर होते हैं, विषमपोषी अथवा खपतकार कहलाते हैं।

→ विषमपोषण-जो अपने भोजन के दूसरों पर निर्भर करते हैं।

→ विषमपोषी अथवा खपतकार-वे जीव जो भोजन के लिए अन्य जीवों पर निर्भर होते हैं, विषमपोषी अथवा खपतकार कहलाते हैं।

→ शाकाहारी-पौधे खाने वाले जंतुओं को शाकाहारी कहते हैं अथवा जीव जो केवल पौधों और पौधों के उत्पादों को खाते हैं, शाकाहारी कहलाते हैं।

→ मांसाहारी-अन्य जानवरों को खाने वाले जीवों को मांसाहारी कहा जाता है।

→ सर्वाहारी-वे जानवर जो पौधों और जानवरों दोनों को खाते हैं, सर्वाहारी कहलाते हैं।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 16 ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 16 ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ

→ ਹਵਾ, ਮਿੱਟੀ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਸਾਡੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨ ਹਨ ।

→ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸੰਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਉੱਚਿਤ ਵਰਤੋਂ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਵੀ ਨਾ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਦਾ ਵੀ ਨੁਕਸਾਨ ਨਾ ਹੋਵੇ ।

→ ਕੋਲਾ ਅਤੇ ਪੈਟਰੋਲੀਅਮ ਵੀ ਸਾਡੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਰਹਿਤ ਰੱਖਣ ਅਤੇ ਸੰਭਾਲ ਕੇ ਰੱਖਣ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ।

→ ਵਾਤਾਵਰਨ ਨੂੰ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਤਿੰਨ ‘Rs’ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਰਹੀ ਹੈ ।

→ ਇਹ ਤਿੰਨ R ਵਾਰੀ-ਵਾਰੀ ਹਨ-
Reduce (ਘੱਟ ਉਪਯੋਗ, Recycle (ਮੁੜ ਚੱਕਰ), Reuse (ਮੁੜ ਉਪਯੋਗ ਹਨ ।

→ ਮੁੜ ਚੱਕਰ ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਕਿ ਕੱਚ, ਪਾਲਸਟਿਕ, ਧਾਤਾਂ ਦੀਆਂ ਵਸਤਾਂ ਆਦਿ ਦਾ ਮੁੜ ਚੱਕਰ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਫਿਰ ਤੋਂ ਉਪਯੋਗੀ ਵਸਤੂਆਂ ਵਿੱਚ ਬਦਲਣਾ ।

→ ਮੁੜ ਉਪਯੋਗ, ਮੁੜ ਚੱਕਰ ਤੋਂ ਵੀ ਵਧੀਆ ਤਰੀਕਾ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਕਿਸੇ ਚੀਜ਼ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

→ ਮੁੜ ਚੱਕਰ ਵਿੱਚ ਕੁੱਝ ਊਰਜਾ ਖ਼ਰਚ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਗੰਗਾ ਸਫ਼ਾਈ ਯੋਜਨਾ (Ganga action plan) ਕਰੀਬ 1985 ਵਿੱਚ ਇਸ ਲਈ ਆਈ, ਕਿਉਂਕਿ ਗੰਗਾ ਦੇ ਜਲ ਦੀ ਗੁਣਵੱਤਾ ਬਹੁਤ ਘੱਟ ਹੋ ਗਈ ਸੀ ।

→ ਕੋਲੀਫਾਰਮ ਜੀਵਾਣੂ ਦਾ ਇੱਕ ਵਰਗ ਹੈ ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਆਂਦਰਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 16 ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ

→ ਸਾਨੂੰ ਸੂਰਜ ਤੋਂ ਊਰਜਾ ਵੀ ਧਰਤੀ ਤੇ ਮੌਜੂਦ ਜੀਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪ੍ਰਕਰਮਾਂ ਤੋਂ ਅਤੇ ਕਈ ਭੌਤਿਕ ਅਤੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਕਰਮਾਂ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ।

→ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਲੰਬੀ ਅਵਧੀ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਖੁਦਾਈ ਤੋਂ ਵੀ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਧਾਤਾਂ ਦੇ ਨਿਸ਼ਕਰਸ਼ਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਵੱਡੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਧਾਤ ਮੈਲ ਜਾਂ ਸਲੈਗ ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ।

→ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਵਿਅਕਤੀ ਫਲ, ਨੱਟਸ ਅਤੇ ਦਵਾਈਆਂ ਇਕੱਠੀਆਂ ਕਰਨ ਲਈ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਨੂੰ ਜੰਗਲਾਂ ਵਿਚ ਚਰਾਉਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚਾਰਾ ਵੀ ਜੰਗਲਾਂ ਵਿਚੋਂ ਹੀ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਾਨੂੰ ਜੰਗਲਾਂ ਵਿੱਚ ਟਿੰਬਰ, ਲਾਖ ਅਤੇ ਖੇਡਾਂ ਦੇ ਸਮਾਨ ਆਦਿ ਵੀ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਾਣੀ ਧਰਤੀ ਤੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਜੀਵਾਂ ਦੀ ਮੂਲ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ ।

→ ਜਲ ਜੀਵਨ ਸਹਾਰਾ ਦੇਣ ਵਾਲੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਹਿੱਸਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਦੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਭਾਗ ਲੈਂਦਾ ਹੈ । ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਹ ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਦੇ ਤਾਪ ਦਾ ਨਿਯਮਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਮਲਮੂਤਰ ਦੇ ਵਿਸਰਜਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਲ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਜਲਵਾਯੂ ਦੇ ਨਿਯਮਨ ਦਾ ਕਾਰਜ ਕਰਦਾ ਹੈ। ਪਾਣੀ ਦੀਆਂ ਲਹਿਰਾਂ ਨਾਲ ਮਸ਼ੀਨਾਂ ਚਲਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਬਿਜਲੀ ਬਣਦੀ ਹੈ । ਪਾਣੀ ਖੇਤੀ ਅਤੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਲਈ ਵੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

→ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਵਿੱਚ ਮਿੱਟੀ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਸੁਰੱਖਿਅਣ ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਕਿ ‘ਜੈਵ ਮਾਤਰਾ’ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੋ ਸਕੇ !

→ ਇਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਭੂਮੀ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸਰੋਤਾਂ ਦਾ ਵਿਕਾਸ, ਦੂਸਰਾ ਸੰਸਾਧਨ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਜੰਤੂਆਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦ ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਕਰਨਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਅਸੰਤੁਲਨ ਪੈਦਾ ਨਾ ਹੋ ਜਾਵੇ ।

→ ਪੱਥਰਾਟ ਬਾਲਣ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਕੋਲਾ ਅਤੇ ਪੈਟਰੋਲੀਅਮ ਇੱਕ ਦਿਨ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਜਾਣਗੇ। ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਸੀਮਿਤ ਹੈ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਹਿਣ ਨਾਲ ਵਾਤਾਵਰਨ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸੰਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਵਿਵੇਕਪੂਰਣ ਉਪਯੋਗ ਦੀ ਲੋੜ ਹੈ ।

→ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨ (Natural Resources)-ਕੁਦਰਤ ਵਿਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਮਨੁੱਖ ਲਈ ਉਪਯੋਗੀ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਖ਼ਤਮ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨ (Exhaustible Resources)-ਅਜਿਹੇ ਸਾਧਨ ਜੋ ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਰਹੇ ਹਨ ; ਜਿਵੇਂ-ਮਿੱਟੀ, ਖਣਿਜ ਆਦਿ ।

→ ਨਾ-ਖ਼ਤਮ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨ (Inexhaustible Resources)-ਅਜਿਹੇ ਸਾਧਨ ਜੋ ਮਨੁੱਖੀ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਪਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੇਂ ਜਿਵੇਂ : ਸੂਰਜੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼, ਸਮੁੰਦਰ ਆਦਿ ।

→ ਨਵੀਨੀਕਰਨ ਸਰੋਤ (Renewable Resources)-ਅਜਿਹੇ ਸਰੋਤ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੁਦਰਤ ਵਿੱਚ ਚੱਕਰੀਕਰਨ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਨਵੀਨੀਕਰਨ ਸਰੋਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਨ-ਹਵਾ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ।

→ ਅਨਵੀਨੀਕਰਨ ਸਰੋਤ (Non-renewable Resources)-ਅਜਿਹੇ ਸਰੋਤ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚੱਕਰੀਕਰਨ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਜੋ ਇੱਕ ਵਾਰ ਵਰਤੋਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸਮਾਪਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਨਵੀਨੀਕਰਨ ਸਰੋਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਨ-ਲੱਕੜੀ, ਪੈਟਰੋਲੀਅਮ, ਕੁਦਰਤੀ ਗੈਸ ਆਦਿ ।

→ ਭੂਮੀਗਤ ਜਲ (Underground Water)-ਇਹ ਪਾਣੀ ਧਰਤੀ ਦੇ ਹੇਠਾਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ (Pollution)-ਵਾਤਾਵਰਨ ਦੇ ਜੈਵਿਕ, ਭੌਤਿਕ, ਰਸਾਇਣਿਕ ਲੱਛਣਾਂ ਵਿੱਚ ਬੇਲੋੜੇ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ-ਭੂਮੀ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਹਵਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਜਲ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ।

→ ਮੁੜ ਚੱਕਰ (Recycle)-ਪਲਾਸਟਿਕ, ਕਾਗ਼ਜ਼, ਕੱਚ, ਧਾਤਾਂ ਵਰਗੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਦਾ ਨਵੇਂ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਦੇ ਲਈ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਨਾ ਮੁੜ-ਚੱਕਰ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਮੁੜ ਉਪਯੋਗ (Reuse)-ਮੁੜ ਉਪਯੋਗ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਕਿਸੇ ਵਰਤੀ ਗਈ ਵਸਤੂ ਦਾ ਵਾਰ-ਵਾਰ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਨਾ ।

→ ਜਲ ਸੰਹਿਣ (Water Harvesting)-ਵਰਤੇ ਜਾ ਚੁੱਕੇ ਜਾਂ ਵਰਖਾ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਧਰਤੀ ਦੇ ਜਲ ਪੱਧਰ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਭੂ-ਤਲ ਵਿੱਚ ਸੰਗ੍ਰਹਿ ਕਰਨਾ ਜਲ ਸੰਹਿਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 16 ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ

→ ਜੰਗਲ ਕੱਟਣਾ (Deforestation)-ਵੱਡੇ ਪੱਧਰ ਤੇ ਜੰਗਲਾਂ ਨੂੰ ਕੱਟਣਾ ।

→ ਬੰਨ੍ਹ (Dam)-ਨਦੀਆਂ, ਨਾਲਿਆਂ ਆਦਿ ਤੇ ਛੋਟੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਰੁਕਾਵਟਾਂ ਜੋ ਬਿਜਲੀ ਉਤਪਾਦਨ ਜਾਂ ਸਿੰਚਾਈ ਕਾਰਜ ਵਿਚ ਸਹਿਯੋਗ ਦਿੰਦੀ ਹੈ, ਬੰਨ੍ਹ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਵਣੀਕਰਨ (Afforestation)-ਕਿਸੇ ਵੱਡੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਦਰੱਖ਼ਤ ਲਗਾ ਕੇ ਜੰਗਲਾਂ ਨੂੰ ਵਿਕਸਿਤ ਕਰਨਾ ਵਣੀਕਰਨ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਵਾਤਾਵਰਨੀ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ (Environmental Problems)-ਵਾਤਾਵਰਨੀ ਸੰਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਸਮੁੱਚਿਤ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਦੇ ਨਾ ਹੋਣ ਦੇ ਕਾਰਨ ਜੋ ਸਮੱਸਿਆ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਉਸਨੂੰ ਵਾਤਾਵਰਨੀ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੈਵ ਵਿਵਿਧਤਾ (Biodiversity)-ਕੁਦਰਤ ਵਿੱਚ ਅਨੇਕਾਂ ਜੀਵ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਜੰਤੂ ਮਿਲਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਕੁਝ ਆਰਥਿਕ ਮਹੱਤਵ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਸੰਰਚਨਾ ਅਤੇ ਕਾਰਜ ਭਿੰਨ-ਭਿੰਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਹੀ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਹੀ ਜੈਵ-ਵਿਵਿਧਤਾ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਅਨੁਕੂਲਨ ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਸੁਰੱਖਿਅਣ (Conservation)-ਸੁਰੱਖਿਅਣ ਉਹ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਹੈ, ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਕੁਦਰਤੀ ਸੰਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਵਧੇਰੇ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਕੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਨੂੰ ਹਾਨੀ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਤੋਂ ਰੋਕਦੀ ਹੈ ।

→ ਗੰਗਾ ਸਫਾਈ ਯੋਜਨਾ (Ganga Action Plan)-ਸਾਲ 1985 ਵਿਚ ਨਿਯੋਜਿਤ ਬਹੁ ਕਰੋੜ ਕਾਰਜ ਯੋਜਨਾ ਜਿਸ ਨਾਲ ਗੰਗਾ ਨਦੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਮੁਕਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਿਆ ।

→ ਕੋਲੀਫਾਰਮ ਜੀਵਾਣੂ (Coliform Bacteria)-ਇਹ ਮ ਨਿਗੇਟਿਵ ਧੜਨੁਮਾ ਜੀਵਾਣੂਆਂ ਦਾ ਸਮੂਹ ਹੈ ਜੋ ਮਨੁੱਖ ਦੀਆਂ ਆਂਦਰਾਂ ਵਿੱਚ ਪਲ ਕੇ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਫੈਲਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਮਲ-ਮੂਤਰ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦਾ ਸੂਚਕ ਹੈ ।

→ ਜੰਗਲੀ ਜੀਵਨ (wild life)-ਕੁਦਰਤ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਪੇੜ-ਪੌਦੇ, ਜੀਵ-ਜੰਤੂ ਆਦਿ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਨੁੱਖ ਦੁਆਰਾ ਉਗਾਇਆ ਜਾਂ ਪਾਲਿਆ-ਪੋਸਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾਂਦਾ ।

→ ਪਰਿਸਥਿਤਕ ਸੁਰੱਖਿਅਣ (Ecological Conservation)-ਪਰਿਸਥਿਤਕ ਸੰਤੁਲਨ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਕੁਦਰਤ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਸੁਰੱਖਿਅਣ ਨੂੰ ਪਰਿਸਥਿਤਕ ਸੁਰੱਖਿਅਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜਲ ਸੰਸਾਧਨ (Water Resources)-ਨਦੀਆਂ, ਨਹਿਰਾਂ, ਸਮੁੰਦਰ, ਵਰਖਾ ਆਦਿ ਦੇ ਸੰਸਾਧਨ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪਾਣੀ ਕੁਦਰਤੀ ਸਰੋਤਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜਲ ਸੰਸਾਧਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜਲਸੰਭਰ ਪ੍ਰਬੰਧਨ (Water-shed Management)-ਜੈਵ ਪਦਾਰਥ ਉਤਪਾਦਨ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸੁਰੱਖਿਅਣ ਨੂੰ ਜਲਸੰਭਰ ਪ੍ਰਬੰਧਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜਲ ਸੰਹਿਣ (Water Harvesting)-ਵਰਖਾ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਵਿਅਰਥ ਵਹਿ ਕੇ ਚਲੇ ਜਾਣ ਤੋਂ ਬਚਾ ਕੇ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਫਾਇਦੇ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾ ਸਕੇ ਜਲ ਸੰਹਿਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਬਾਗ (National Park)-ਕੁਦਰਤ, ਕੁਦਰਤੀ ਸੰਸਾਧਨ ਜੰਗਲ, ਜੰਗਲੀ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਣ ਦੇਣ ਲਈ ਸਰਕਾਰ ਦੁਆਰਾ ਘੋਸ਼ਿਤ ਉਹ ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤਰ ਜਿੱਥੇ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਕਿਰਿਆ-ਕਲਾਪਾਂ ਤੇ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਤਿਬੰਧ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਬਾਗ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 15 ਸਾਡਾ ਵਾਤਾਵਰਨ

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 15 ਸਾਡਾ ਵਾਤਾਵਰਨ

→ ਮਨੁੱਖ ਵਾਤਾਵਰਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਚੱਕਰਣ ਵਾਤਾਵਰਨ ਵਿਚ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜੈਵ-ਭੂਗੋਲਿਕ ਰਸਾਇਣਿਕ ਚੱਕਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਜੋ ਪਦਾਰਥ ਜੈਵਿਕ ਪ੍ਰਮ ਦੁਆਰਾ ਅਪਘਟਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜੀਵ-ਨਿਮਨੀਕਰਨੀ ਪਦਾਰਥ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਪਦਾਰਥ ਜੋ ਇਸ ਪ੍ਰਕ੍ਰਮ ਨਾਲ ਅਪ੍ਰਭਾਵੀ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਅਜੀਵ-ਨਿਮਨੀਕਰਨੀ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਇਕ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਵਿਚ ਸਾਰੇ ਜੀਵ ਘਟਕ ਅਤੇ ਅਜੀਵ ਘਟਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਭੌਤਿਕ ਕਾਰਕ ਅਜੀਵ ਕਾਰਕ ਹੈ, ਜਿਵੇਂ-ਤਾਪ, ਵਰਖਾ, ਹਵਾ, ਮਿੱਟੀ, ਖਣਿਜ ਆਦਿ ।

→ ਸਾਰੇ ਹਰੇ ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਨੀਲੀ ਹਰੀ ਕਾਈ (Blue Green Algae) ਉਤਪਾਦਕ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਸੰਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਤੋਂ ਆਪਣਾ ਭੋਜਨ ਖੁਦ ਤਿਆਰ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੋ ਜੀਵ ਉਤਪਾਦਕ ਦੁਆਰਾ ਤਿਆਰ ਭੋਜਨ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਖਪਤਕਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਖਪਤਕਾਰ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿਚ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ, ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਅਤੇ ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ ।

→ ਵੀ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜੀਵਿਕ ਪੱਧਰਾਂ ਤੇ ਭਾਗ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵਾਂ ਦੀ ਲੜੀ ਭੋਜਨ ਲੜੀ (Food Chain) ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

→ ਭੋਜਨ ਲੜੀ ਦਾ ਹਰ ਚਰਨ ਇਕ ਪੋਸ਼ੀ ਪੱਧਰ ਬਣਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਵੈ-ਪੋਸ਼ੀ ਸੂਰਜੀ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਵਿਚੋਂ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਊਰਜਾ ਵਿਚ ਬਦਲ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 15 ਸਾਡਾ ਵਾਤਾਵਰਨ

→ ਮੁੱਢਲੇ ਖਪਤਕਾਰ ਖਾਦੇ ਗਏ ਭੋਜਨ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਦਾ ਲਗਭਗ 10% ਹੀ ਜੀਵ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਬਦਲਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਨੇਕ ਰਸਾਇਣ ਮਿੱਟੀ ਵਿਚ ਮਿਲ ਕੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਸੋਮਿਆਂ ਵਿਚ ਚਲੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਹ ਭੋਜਨ ਲੜੀ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੈਵ ਅਵਿਘਟਨਸ਼ੀਲ ਪਦਾਰਥ ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਸੰਚਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਨੂੰ ਜੈਵਿਕ ਵਧਾਓ (Biological magnification) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਓਜ਼ੋਨ ਪਰਤ ਸੂਰਜ ਤੋਂ ਧਰਤੀ ਵੱਲ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪਰਾਬੈਂਗਣੀ ਵਿਕਿਰਨਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਆ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

→ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਦੇ ਉੱਚਤਰ ਸਤਹਿ ਤੇ ਪਰਾਬੈਂਗਣੀ ਵਿਕਿਰਣਾਂ (UV-Rays) ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਆਕਸੀਜਨ ਅਣੂਆਂ ਤੋਂ ਓਜ਼ੋਨ ਬਣਦੀ ਹੈ ।

→ ਕਲੋਰੋਫਲੋਰੋ ਕਾਰਬਨ (CFCs) ਵਰਗੇ ਰਸਾਇਣ ਓਜ਼ੋਨ ਪਰਤ ਦੀ ਹਾਨੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹਨ ।

→ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ (Ecosystem)-ਊਰਜਾ ਅਤੇ ਪਦਾਰਥ ਦਾ ਜੀਵ ਅਤੇ ਅਜੀਵ ਦੇ ਵਿਚ ਆਦਾਨ-ਪ੍ਰਦਾਨ ਦਾ ਕਾਰਾਤਮਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਪਰਿਸਥਿਤਕ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜੀਵੋਮ ਜਾਂ ਬਾਇਓਮ (Biome)-ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਮਿਲਾਉਣ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਵੱਡੀ ਇਕਾਈ ਨੂੰ ਜੀਵੋਮ ਜਾਂ ਬਾਇਓਮ (Biome) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੀਵ-ਮੰਡਲ (Biosphere)-ਦੁਨੀਆ ਭਰ ਦੇ ਸਾਰੇ ਬਾਇਓਮਾਂ ਨੂੰ ਇਕੋ ਨਾਲ ਮਿਲਾ ਕੇ ਇਕ ਵੱਡੀ ਇਕਾਈ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ ਜੀਵ-ਮੰਡਲ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਇਕ ਵਿਸ਼ਾਲ ਸਵੈਪੋਸ਼ੀ ਜੀਵ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਹੈ ।

→ ਜਲ-ਮੰਡਲ (Hydrosphere)-ਧਰਤੀ ਦਾ ਜੋ ਭਾਗ ਪਾਣੀ ਤੋਂ ਬਣਿਆ ਹੈ, ਜਲ-ਮੰਡਲ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਥਲ-ਮੰਡਲ (Lithosphere)-ਧਰਤੀ ਦੇ ਥਲੀ ਸਤਹਿ ਤੇ ਅਤੇ ਸਾਗਰ ਜਲ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦੀ ਮਿੱਟੀ ਅਤੇ ਚੱਟਾਨਾਂ ਮਿਲ ਕੇ ਸਥਲ-ਮੰਡਲ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

→ਵਾਯੂਮੰਡਲ (Atmosphere)-ਧਰਤੀ ਦੀ ਸਤਹਿ ਤੋਂ ਉੱਪਰ ਮੌਜੂਦ ਗੈਸੀ ਘਟਕ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਖਪਤਕਾਰ (Consumer)-ਜੋ ਜੀਵ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਪਭੋਗਤਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਹਾਰੀ ਪੱਧਰ (Trophic Level)-ਭੋਜਨ-ਲੜੀ ਦੇ ਜਿਹੜੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪੱਧਰਾਂ ਤੇ ਭੋਜਨ (ਊਰਜਾ) ਦਾ ਸਥਾਨਾਂਤਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਪੱਧਰਾਂ ਨੂੰ ਆਹਾਰੀ ਪੱਧਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਭੋਜਨ ਲੜੀ (Food Chain)-ਉਤਪਾਦਕ, ਖਪਤਕਾਰ ਅਤੇ ਅਪਘਟਕ ਮਿਲ ਕੇ ਜੋ ਲੜੀ ਬਣਾਉਂਦੇ ਹਨ ਉਸ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਲੜੀ ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਭੋਜਨ-ਜਾਲ (Food Web)-ਭੋਜਨ ਲੜੀਆਂ ਦੇ ਜਾਲ ਨੂੰ ਭੋਜਨ-ਜਾਲ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੀਵ ਰਸਾਇਣ ਚੱਕਰ (Biogeochemical Cycle)-ਰਸਾਇਣ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਅੰਤ ਵਿਚ ਜੀਵ-ਮੰਡਲ ਵਿਚ ਮੁੜ ਤੋਂ ਚੱਕਰ ਪੂਰਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਨੂੰ ਜੀਵ ਰਸਾਇਣ ਚੱਕਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਸੂਖ਼ਮ-ਪੋਸ਼ਕ (Macro Nutrients)-ਜਿਹੜੇ ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤਾਂ ਦੀ ਜੈਵ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਵੱਧ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਸੂਖ਼ਮ ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ , ਜਿਵੇਂ H, N, O, C, P ਆਦਿ ।

→ ਸੂਖ਼ਮ-ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤ (Micro nutrients)-ਜਿਹੜੇ ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤਾਂ ਦੀ ਜੈਵ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਘੱਟ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੂਖ਼ਮ ਪੋਸ਼ਕ ਤੱਤ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ; Mn, Zn ਆਦਿ ।

→ ਮੁੱਢਲਾ ਖਪਤਕਾਰ (Primary Consumer)-ਜੋ ਜੀਵ ਪੌਦਿਆਂ ਨੂੰ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਨੂੰ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਜਾਂ ਮੁੱਢਲੇ ਖਪਤਕਾਰ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਸੈਕੰਡਰੀ ਖਪਤਕਾਰ (Secondary Consumer)-ਜੋ ਜੀਵ ਦੂਸਰੇ ਜੰਤੂਆਂ ਦਾ ਮਾਸ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਜਾਂ ਸੈਕੰਡਰੀ ਖਪਤਕਾਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਫਲੋਰਾ (Flora)-ਕਿਸੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਪੌਦਿਆਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਆਬਾਦੀ ਨੂੰ ਫਲੋਰਾ (Flora) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਫੌਨਾ (Fauna)-ਕਿਸੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਜੰਤੂਆਂ ਦੀ ਕੁੱਲ ਆਬਾਦੀ ਨੂੰ ਫੌਨਾ (Fauna) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਮੁਦਾਇ (Community)-ਕਿਸੇ ਕੁਦਰਤੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਇਕੱਠੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਜੰਤੂਆਂ ਦੀਆਂ ਕੁੱਲ ਜਨਸੰਖਿਆ ਨੂੰ ਸਮੁਦਾਇ ਆਖਦੇ ਹਨ ; ਜਿਵੇਂ-ਤਾਲਾਬ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਜੰਤੂ ਅਤੇ ਪੌਦੇ ।

→ ਜੈਵਿਕ ਵਧਾਓ (Biological Magnification)-ਸਾਡੇ ਸਰੀਰ ਵਿਚ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਰਸਾਇਣਾਂ ਦਾ ਵਧੇਰੇ ਮਾਤਰਾ ਵਿਚ ਸੰਚਿਤ ਹੋ ਜਾਣਾ ਜੈਵਿਕ ਵਧਾਓ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜੈਵ ਵਿਘਟਨਸ਼ੀਲ (Biodegradable)-ਉਹ ਪਦਾਰਥ ਜੋ ਜੈਵਿਕ ਪ੍ਰਮ ਦੁਆਰਾ ਅਪਘਟਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਜੈਵ ਵਿਘਟਨਸ਼ੀਲ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਜੈਵ ਵਿਘਟਨਸ਼ੀਲ (Non-Biodegradable)-ਉਹ ਪਦਾਰਥ ਜੋ ਜੈਵਿਕ ਪ੍ਰਮ ਦੁਆਰਾ ਅਪਘਟਿਤ ਨਹੀਂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਹ ਅਜੈਵ ਵਿਘਟਨਸ਼ੀਲ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 15 ਸਾਡਾ ਵਾਤਾਵਰਨ

→ ਵਾਤਾਵਰਨ (Environment)-ਵਾਤਾਵਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਤੱਤਾਂ ਦਾ ਯੋਗ ਹੈ ਜੋ ਜੀਵਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਤੱਖ ਜਾਂ ਅਪ੍ਰਤੱਖ ਰੂਪ ਨਾਲ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕੀ (Ecology)-ਇਹ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਉਹ ਸ਼ਾਖਾ ਹੈ, ਜਿਸ ਵਿਚ ਜੈਵਿਕ ਅਤੇ ਅਜੈਵਿਕ ਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਜੀਵਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਦੇ ਵਿਚ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਘਟਕ (Components of Ecosystem)-ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਭੌਤਿਕ, ਰਸਾਇਣਿਕ ਅਤੇ ਜੈਵਿਕ ਕਾਰਕਾਂ ਨੂੰ ਪਰਿਸਥਿਤਿਕ ਪ੍ਰਬੰਧ ਦੇ ਘਟਕੇ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੈਵਿਕ ਵਧਾਓ (Biological Magnification)-ਕਿਸੇ ਭੋਜਨ ਲੜੀ ਦੇ ਇਕ ਪੋਸ਼ੀ ਪੱਧਰ ਤੋਂ ਦੂਸਰੇ ਪੋਸ਼ੀ ਪੱਧਰ ਵਿਚ ਜਦੋਂ ਲਗਾਤਾਰ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਸੰਘਣਤਾ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਜੈਵਿਕ ਵਧਾਓ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਉਤਪਾਦਕ (Producer)-ਉਹ ਪੌਦੇ/ਜੀਵ ਜੋ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਰਸਾਇਣਿਕ ਊਰਜਾ ਵਿਚ ਬਦਲ ਕੇ ਆਪਣਾ ਭੋਜਨ ਆਪ ਤਿਆਰ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਤਪਾਦਕ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਪਘਟਕ (Decomposer)-ਜੋ ਜੀਵ ਗੁੰਝਲਦਾਰ ਕਾਰਬਨਿਕ ਯੌਗਿਕਾਂ ਨੂੰ ਐਂਜ਼ਾਈਮਾਂ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਾਲ ( ਸਰਲ ਪਦਾਰਥਾਂ ਵਿਚ ਅਪਘਟਿਤ ਕਰ ਕੇ ਸਰੀਰ ਦੀ ਸਤਹਿ ਵਿਚ ਸੋਖਿਤ ਕਰ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਪਘਟਕ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ (Herbivores)-ਜੋ ਪ੍ਰਾਣੀ ਕੇਵਲ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਨੂੰ ਹੀ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਮਾਸਾਹਾਰੀ (Carnivores)-ਜੋ ਪਾਣੀ ਦੂਸਰੇ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਮਾਸ ਨੂੰ ਖਾਂਦੇ ਹੀ ਜਿਉਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ (Omnivores)-ਜੋ ਪ੍ਰਾਣੀ, ਪੌਦਿਆਂ, ਜੰਤੂਆਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਨੂੰ ਖਾ ਕੇ ਜਿਊਂਦੇ ਰਹਿੰਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਐਂਜ਼ਾਈਮ (Enzyme)-ਜੈਵ-ਰਸਾਇਣਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਉਤਪ੍ਰੇਰਕ ਦਾ ਕਾਰਜ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਪ੍ਰੋਟੀਨਾਂ ਨੂੰ ਐਂਜ਼ਾਈਮ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਓਜ਼ੋਨ ਪਰਤ (Ozone Layer)-ਸਟਰੈਟੋਸਫੀਅਰ (Stratosphere) ਵਿਚ ਮੌਜੂਦ ਓਜ਼ੋਨ ਦੀ ਪਰਤ ਨੂੰ ਓਜ਼ੋਨ ਪਰਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਕਚਰਾ (Garbage)-ਆਮ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਫਾਲਤੂ ਮੰਨੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਘਰੇਲੂ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਅਪਸ਼ਿਸ਼ਟ ਨੂੰ ਕਚਰਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ਊਰਜਾ ਦੇ ਸੋਮੇ

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ਊਰਜਾ ਦੇ ਸੋਮੇ

→ ਕਿਸੇ ਵੀ ਭੌਤਿਕ ਜਾਂ ਰਸਾਇਣਿਕ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਿੱਚ ਕੁੱਲ ਊਰਜਾ ਸੁਰੱਖਿਅਤ (ਸਮਾਨ) ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਊਰਜਾ ਦੇ ਇੱਕ ਰੂਪ ਨੂੰ ਦੂਜੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਦੇ ਕਾਰਜਾਂ ਨੂੰ ਕਰਨ ਲਈ ਊਰਜਾ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਸੋਮਿਆਂ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।

→ ਸਰੀਰਿਕ ਕਾਰਜਾਂ ਲਈ ਪੱਠਿਆਂ ਦੀ ਊਰਜਾ, ਬਿਜਲੀ ਉਪਕਰਨਾਂ ਲਈ ਬਿਜਲੀ ਊਰਜਾ ਅਤੇ ਵਾਹਨਾਂ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਲਈ ਰਸਾਇਣਿਕ ਉਰਜਾ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਊਰਜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਅਸੀਂ ਊਰਜਾ ਦਾ ਉੱਤਮ ਈਂਧਨ ਚੁਣਦੇ ਹਾਂ ।

→ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਲੱਕੜੀ ਜਲਾਉਣ ਨਾਲ, ਪੌਣਾਂ ਅਤੇ ਵਹਿੰਦੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਊਰਜਾ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਕੋਲੇ ਦੇ ਉਪਯੋਗ ਨੇ ਉਦਯੋਗਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਨੂੰ ਸੰਭਵ ਬਣਾਇਆ ਹੈ ।

→ ਊਰਜਾ ਦੀ ਵੱਧ ਰਹੀ ਮੰਗ ਦੀ ਸਪਲਾਈ ਫਾਂਸਿਲ (ਪੱਥਰਾਟ) ਬਾਲਣ ਕੋਲਾ ਅਤੇ ਪੈਟਰੋਲ ਤੋਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਯੰਤ੍ਰਿਕ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਬਿਜਲੀ ਊਰਜਾ ਵਿੱਚ ਰੂਪਾਂਤਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ਊਰਜਾ ਦੇ ਸੋਮੇ

→ ਬਿਜਲੀ ਉਤਪਾਦਨ ਯੰਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੱਡੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਫਾਂਸਿਲ ਈਂਧਨ ਨੂੰ ਜਲਾ ਕੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਗਰਮ ਕਰਕੇ ਭਾਫ਼ ਬਣਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਤੋਂ ਟਰਬਾਈਨਾਂ ਨੂੰ ਘੁੰਮਾ ਕੇ ਬਿਜਲੀ ਉਤਪੰਨ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਤਾਪਨ ਬਿਜਲੀ ਯੰਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਈਂਧਨ ਜਲਾ ਕੇ ਊਸ਼ਮਾ ਊਰਜਾ ਉਤਪੰਨ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਤਾਪ ਬਿਜਲੀ ਯੰਤਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਗਤਿਜ ਊਰਜਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਡਿੱਗਦੇ ਪਾਣੀ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤਿਜ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਬਿਜਲੀ ਊਰਜਾ ਵਿੱਚ ਰੂਪਾਂਤਰਿਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਊਰਜਾ ਦੀ ਮੰਗ ਦੇ ਚੌਥਾਈ ਭਾਗ ਦੀ ਸਪਲਾਈ ਪਣ-ਬਿਜਲੀ ਯੰਤਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਪਣ-ਬਿਜਲੀ ਊਰਜਾ ਇੱਕ ਗੈਰ-ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਊਰਜਾ ਸੋਮਾ ਹੈ ।

→ ਬੰਨ੍ਹਾਂ ਨਾਲ ਕਈ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਜੁੜੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਯੋਗ ਭੂਮੀ ਦਾ ਨਸ਼ਟ ਹੋਣਾ, ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ ਦਾ ਡੁੱਬਣਾ, ਦਰੱਖਤਾਂ-ਪੌਦਿਆਂ ਦਾ ਨਸ਼ਟ ਹੋਣਾ ਆਦਿ ।

→ ਨਰਮਦਾ ਲਈ ਸਰੋਵਰ ਬੰਨ੍ਹ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਈ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਕਾਰਨ ਵਿਰੋਧ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕਰ ਰਹੀ ਹੈ ।

→ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪਸ਼ੂ-ਪਾਲਨ ਦੀ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਸਾਨੂੰ ਬਾਲਣ ਦੇ ਸਥਾਈ ਸੋਮੇ ਦੇ ਬਾਰੇ ਆਸ਼ਵਸਤ ਕਰ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

→ ਗੋਬਰ ਦੀਆਂ ਪਾਥੀਆਂ ਬਾਲਣ ਦਾ ਸੋਮਾ ਹੈ । ਉਸ ਨੂੰ ਜੀਵ ਪਦਾਰਥ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਚਲਾਉਣ ਤੇ ਘੱਟ ਊਸ਼ਮਾ ਅਤੇ ਵੱਧ ਧੂੰਆਂ ਉਤਪੰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਚਾਰਕੋਲ ਬਾਲਣ ਵੱਧ ਊਸ਼ਮਾ ਦੇ ਨਾਲ ਬਿਨਾਂ ਲੌ ਦੇ ਬਲਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਧੂੰਆਂ ਪੈਦਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ ।

→ ਬਾਇਓ ਗੈਸ ਨੂੰ ਆਮਤੌਰ ਤੇ ਗੋਬਰ ਗੈਸ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ। ਇਸ ਵਿੱਚ 75% ਮੀਥੇਨ ਗੈਸ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਜੈਵ ਗੈਸ ਯੰਤਰ ਤੋਂ ਬਚੀ ਹੋਈ ਸੱਲਰੀ ਵਧੀਆ ਕਿਸਮ ਦੀ ਖਾਦ ਹੈ । ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਨਾਈਟਰੋਜਨ ਅਤੇ ਫ਼ਾਸਫੋਰਸ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਪੌਣ ਊਰਜਾ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਸਦੀਆਂ ਤੋਂ ਪੌਣ ਚੱਕੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਯੰਤ੍ਰਿਕ ਕਾਰਜ ਕਰਨ ਲਈ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ।

→ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕਈ ਪੌਣ ਚੱਕੀਆਂ ਲਗਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਉਸ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਪੌਣ ਊਰਜਾ ਫਾਰਮ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੌਣ ਊਰਜਾ ਦੇ ਉਪਯੋਗ ਦੀਆਂ ਕਈ ਖਾਮੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ ਦਾ ਧਰਤੀ ਵੱਲ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਕੁੱਝ ਛੋਟੇ ਭਾਗ ਦਾ ਅੱਧਾ ਭਾਗ ਵਾਯੂ-ਮੰਡਲ ਦੀਆਂ ਬਾਹਰਲੀਆਂ ਪਰਤਾਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਸੋਖਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਾਡਾ ਦੇਸ਼ ਹਰੇਕ ਸਾਲ 5000 ਟਰਿਲੀਅਨ ਕਿਲੋਵਾਟ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ਊਰਜਾ ਦੇ ਸੋਮੇ

→ ਧਰਤੀ ਦੇ ਕਿਸੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ ਦਾ ਔਸਤ ਮਾਪ 4 ਤੋਂ 7 kWh/m2 ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਹੈ ।

→ ਸੋਲਰ ਕੁੱਕਰ, ਸੋਲਰ ਵਾਟਰ ਹੀਟਰ, ਸੋਲਰ ਸੈੱਲ, ਸੋਲਰ ਪੈਨਲ ਆਦਿ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹਨ ।

→ ਸੋਲਰ ਸੈੱਲ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਸਿਲੀਕਾਨ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਮਹਿੰਗਾ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਸੋਲਰ ਸੈੱਲਾਂ ਦਾ ਘਰੇਲੂ ਉਪਯੋਗ ਘੱਟ ਹੈ ।

→ ਜਵਾਰੀ ਉਰਜਾ, ਤਰੰਗ ਉਰਜਾ, ਸਮੁੰਦਰੀ ਤਾਪਨ ਉਰਜਾ ਦਾ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੋਹਨ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕੁੱਝ ਕਠਿਨਾਈਆਂ ਹਨ। ਮਹਾਂਸਾਗਰਾਂ ਦੀ ਉਰਜਾ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੈ ।

→ ਨਿਊਕਲੀਅਰ ਵਿਖੰਡਨ ਤੋਂ ਬਹੁਤ ਅਧਿਕ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਊਰਜਾ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਬਿਜਲੀ ਉਤਪਾਦਕ ਸਮਰੱਥਾ ਦੀ ਸਿਰਫ਼ 3% ਸਪਲਾਈ ਨਿਊਕਲੀਅਰ ਬਿਜਲੀ ਯੰਤਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਨਿਊਕਲੀ ਰਹਿੰਦ-ਖੂੰਹਦ ਦਾ ਭੰਡਾਰਨ ਅਤੇ ਨਿਪਟਾਨ ਕਠਿਨ ਕਾਰਜ ਹੈ ।

→ CNG ਇੱਕ ਸਾਫ ਬਾਲਣ ਹੈ ।

→ ਊਰਜਾ (Energy)-ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਨੂੰ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਗਤਿਜ ਊਰਜਾ (Kinetic Energy)-ਵਸਤੂਆਂ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਗਤੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਨੂੰ ਗਤਿਜ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਗਤੀਸ਼ੀਲ ਹਵਾ, ਗਤੀਸ਼ੀਲ ਪਾਣੀ ।

→ ਸੋਲਰ ਊਰਜਾ (Solar Energy)-ਸੂਰਜ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਸੋਲਰ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੌਣ ਊਰਜਾ (Wind Energy)-ਹਵਾ ਦੇ ਵਿਸ਼ਾਲ ਪੁੰਜ ਦੀ ਗਤੀਸ਼ੀਲਤਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਤ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਪੌਣ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸੂਰਜੀ ਕੁੱਕਰ (Solar Cooker)-ਉਹ ਸੂਰਜੀ ਊਰਜਾ ਨਾਲ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਯੰਤਰ ਜਿਸ ਨੂੰ ਖਾਣਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤੋਂ ਵਿੱਚ ਲਿਆਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੋਲਰ ਸੈੱਲ (Solar Cell)-ਅਜਿਹੀ ਜੁਗਤ ਜਿਹੜੀ ਸੌਰ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਬਿਜਲੀ ਊਰਜਾ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

→ ਸਮੁੰਦਰੀ ਤਾਪ ਊਰਜਾ (Ocean Thermal Energy)-ਮਹਾਂਸਾਗਰ ਦੀ ਸਤਹਿ ਤੋਂ ਪਾਣੀ ਦੀ ਡੂੰਘਾਈ ਵਿੱਚ ਸਥਿਤ ਪਾਣੀ ਤੇ ਤਾਪ ਵਿੱਚ ਹਮੇਸ਼ਾ ਕੁੱਝ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਅੰਤਰ 20°C ਤਕ ਵੀ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਪਲੱਬਧ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਸਮੁੰਦਰੀ ਤਾਪਨ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਲੂਣੀ ਪ੍ਰਵਣਤਾ (Salinity Ingredients)-ਲੂਣ ਸੰਘਣਤਾ ਦੀ ਭਿੰਨਤਾ ਨੂੰ ਲੁਣੀ ਪ੍ਰਵਣਤਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਈਂਧਨ ਜਾਂ ਬਾਲਣ (Fuel)-ਉਹ ਪਦਾਰਥ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜਲਾ ਕੇ ਊਸ਼ਮਾ ਉਤਪੰਨ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਈਂਧਨ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਜੀਵ ਪੁੰਜ (Biomass)-ਜੰਤੂਆਂ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਸਰੀਰ ਵਿੱਚ ਉਪਸਥਿਤ ਪਦਾਰਥ ਨੂੰ ਜੀਵ ਪੁੰਜ ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਬਾਇਓਗੈਸ (Biogass)-ਇਹ CH2,CO2 ਅਤੇ H2S ਗੈਸਾਂ ਦਾ ਮਿਸ਼ਰਨ ਹੈ। ਇਹ ਆਮਤੌਰ ਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਜਾਂ ਜੰਤੂਆਂ ਦੇ ਫਾਲਤੂ ਪਦਾਰਥਾਂ ਗੋਬਰ ਦੀ ਪਾਣੀ ਦੀ ਉਪਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਅਪਘਟਨ ਫਲਸਰੂਪ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਭੰਜਕ ਕਸ਼ੀਦਣ (Distruction Distillation)-ਕਿਸੇ ਪਦਾਰਥ ਦਾ ਹਵਾ ਦੀ ਗੈਰ-ਹਾਜ਼ਰੀ ਵਿੱਚ ਅਤਿ ਅਧਿਕ ਗਰਮ ਕਰਨਾ, ਭੰਜਕ ਕਸ਼ੀਦਣ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਫਾਂਸਿਲ ਬਾਲਣ ਜਾਂ ਪਥਰਾਟ ਬਾਲਣ (Fossil fuel)-ਫਾਂਸਿਲ ਬਾਲਣ ਧਰਤੀ ਦੀ ਸਤਹਿ ਹੇਠ ਦੱਬੇ ਹੋਏ ਜੰਤੂਆਂ ਅਤੇ ਬਨਸਪਤੀ ਦੀ ਬਚੀ ਹੋਈ ਰਹਿੰਦ-ਖੂੰਹਦ ਤੋਂ ਬਣਦੇ ਹਨ । ਕੋਲਾ, ਪੈਟਰੋਲੀਅਮ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਿਕ ਗੈਸ ਫਾਂਸਿਲ ਬਾਲਣ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 14 ਊਰਜਾ ਦੇ ਸੋਮੇ

→ ਵਿਤ ਪੈਟਰੋਲੀਅਮ ਗੈਸ (L.P.G.)-ਵਿਤ ਪੈਟਰੋਲੀਅਮ ਗੈਸ ਇੱਕ ਘਰੇਲੂ ਬਾਲਣ ਹੈ। ਇਹ ਈਥੇਨ, ਬਿਊਟੇਨ ਅਤੇ ਆਈਸੋ-ਬਿਊਟੇਨ ਦਾ ਮਿਸ਼ਰਨ ਹੈ ।

→ ਸੰਸ਼ਲਿਸ਼ਟ ਪੈਟਰੋਲੀਅਮ (Synthetic Petrolium)-ਇਹ ਕੋਲੇ ਦੀ ਉੱਚ ਤਾਪ ਅਤੇ ਦਾਬ ਤੇ ਹਾਈਡਰੋਜਨ ਨਾਲ ਕਿਰਿਆ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਲਣ-ਤਾਪ (Ignition Temperature)-ਜਿਸ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤਾਪਮਾਨ ਤੇ ਕੋਈ ਜਲਣਸ਼ੀਲ ਪਦਾਰਥ ਅੱਗ ਫੜਦਾ ਹੈ, ਜਲਣ ਤਾਪ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਕੈਲੋਰੀਮਾਨ (Calorific Value)-ਇੱਕ ਕਿਲੋ-ਗ੍ਰਾਮ ਭਾਰ ਦੇ ਬਾਲਣ ਦਾ ਪੂਰਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਜਲਾਉਣ ਤੋਂ ਉਤਪੰਨ ਹੋਈ ਉਸ਼ਮਾ ਨੂੰ ਬਾਲਣ ਦਾ ਕੈਲੋਰੀਮਾਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਲਰੀ (Slurry)-ਗੋਬਰ ਅਤੇ ਪਾਣੀ ਦਾ ਘੋਲ ਜਿਹੜਾ ਪਲਾਂਟ ਵਿੱਚ ਅਵਸ਼ੇਸ਼ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਸਲਰੀ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਪ੍ਰੋਪੈਲੇਂਟ (Propellent)-ਰਾਕੇਟ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਣ ਵਾਲਾ ਬਾਲਣ, ਪੈਲੇਂਟ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਕਿਸੇ ਗਾੜ੍ਹੇ ਬਾਲਣ ਅਤੇ ਆਕਸੀਕਾਰਕ ਦਾ ਮਿਸ਼ਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਵਾਰ ਊਰਜਾ (Tidal Energy)-ਉਹ ਊਰਜਾ ਜਿਹੜੀ ਜਵਾਰ-ਭਾਟੇ ਦੁਆਰਾ ਪਾਣੀ ਦੇ ਲੇਵਲ ਦੇ ਉਤਾਰ ਚੜਾਓ ਤੋਂ ਉਤਪੰਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਵਾਰ ਊਰਜਾ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਤਰੰਗ ਊਰਜਾ (Wave Energy)-ਉਹ ਊਰਜਾ ਜਿਹੜੀ ਸਮੁੰਦਰ ਤੱਟ ਦੇ ਨਿਕਟ ਵਿਸ਼ਾਲ ਤਰੰਗਾਂ ਦੀ ਗਤਿਜ ਊਰਜਾ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਤਰੰਗ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਭੂ-ਤਾਪ ਊਰਜਾ (Geothermal Energy)-ਧਰਤੀ ਦੇ ਅੰਦਰੂਨੀ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਕਾਰਨ ਧਰਤੀ ਦੀ ਪੇਪੜੀ | ਦੀਆਂ ਗਹਿਰਾਈਆਂ ਕਾਰਨ ਗਰਮ ਸਥਲ ਅਤੇ ਧਰਤੀ ਹੇਠਾਂ ਪਾਣੀ ਤੋਂ ਬਣੀ ਭਾਫ਼ ਉਰਜਾ ਨੂੰ ਭੂ-ਤਾਪ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਾਭਿਕੀ (ਜਾਂ ਨਿਊਕਲੀ) ਊਰਜਾ (Nuclear Energy)-ਭਾਰੀ ਪਰਮਾਣੂ ਵਾਲੇ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਨਾਭਿਕੀ ਵਿਖੰਡਨ ਅਭਿਕਿਰਿਆ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ਊਰਜਾ ਨੂੰ ਨਾਭਿਕੀ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਾਭਿਕੀ ਵਿਖੰਡਨ (Nuclear Fission)-ਕਿਸੇ ਭਾਰੀ ਨਾਭਿਕ ਵਾਲੇ ਤੱਤ ਦੇ ਨਾਭਿਕ ਤੇ ਨਿਊਟਰਾਂਨਾਂ ਦੀ ਬੌਛਾਰ ਦੁਆਰਾ ਨਾਭਿਕਾਂ ਨੂੰ ਵਿਖੰਡਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਅਭਿਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਨਾਭਿਕੀ ਵਿਖੰਡਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਾਭਿਕੀ ਸੰਯਨ (Nulcear Fusion)-ਹਲਕੇ ਨਾਭਿਕਾਂ ਦੇ ਪਰਸਪਰ ਸੰਯੋਗ ਤੋਂ ਭਾਰੀ ਨਾਭਿਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਨਾਭਿਕੀ ਸੰਯਨ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸ੍ਰੀਨ ਹਾਊਸ ਪ੍ਰਭਾਵ (Green-House Effect)-ਸੂਰਜ ਤੋਂ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪਰਾ-ਬੈਂਗਣੀ ਕਿਰਨਾਂ ਦੁਆਰਾ ਹਵਾ ਵਿੱਚ ਉਪਸਥਿਤ ਕਾਰਬਨ-ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਜਿਹੀਆਂ ਗੈਸਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸੋਖਣ ਕਰਕੇ ਧਰਤੀ ਦੇ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਦਾ ਤਾਪਮਾਨ ਵੱਧਣਾ, ਸ੍ਰੀਨ ਹਾਊਸ ਪ੍ਰਭਾਵ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੇ ਚੁੰਬਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ

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PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੇ ਚੁੰਬਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ

→ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾਵਾਹੀ ਤਾਰ ਚੁੰਬਕ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਚੁੰਬਕ ਅਤੇ ਬਿਜਲੀ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਹੈਂਸ ਕਰਿਸਚਨ ਆਰਸਟੈਡ ਨੇ ਬਿਜਲ ਚੁੰਬਕਤਾ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਾਰਜ ਕੀਤਾ ।

→ ਦਿਸ਼ਾ ਸੂਚਕ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਚੁੰਬਕ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਿਹੜਾ ਹਮੇਸ਼ਾ ਉੱਤਰ-ਦੱਖਣ ਦਿਸ਼ਾ ਵੱਲ ਸੰਕੇਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਪੂਰਵਕ ਲਟਕਾਏ ਗਏ ਚੁੰਬਕ ਦਾ ਜਿਹੜਾ ਸਿਰਾ ਉੱਤਰ ਦਿਸ਼ਾ ਵੱਲ ਸੰਕੇਤ ਕਰੇ ਉਹ ਉੱਤਰੀ ਧਰੁਵ ਅਤੇ ਜਿਹੜਾ ਸਿਰਾ ਦੱਖਣ ਵੱਲ ਸੰਕੇਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਉਹ ਦੱਖਣੀ ਧਰੁਵ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਚੁੰਬਕਾਂ ਦੇ ਸਮਾਨ ਧਰੁਵ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਧੱਕਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਅਸਮਾਨ ਧਰੁਵ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਖਿੱਚਦੇ ਹਨ ।

→ ਚੁੰਬਕ ਦੇ ਚਹੁੰ ਪਾਸੇ ਉਹ ਖੇਤਰ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਉਸ ਦੇ ਬਲ (ਆਕਰਸ਼ਣ ਜਾਂ ਪ੍ਰਤਿਕਰਸ਼ਣ) ਦਾ ਅਨੁਭਵ (ਸੰਸੁਚਨ) ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਉਸਨੂੰ ਚੁੰਬਕ ਦਾ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਰਾਸ਼ੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਪਰਿਮਾਣ ਅਤੇ ਦਿਸ਼ਾ ਦੋਵੇਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਚੁੰਬਕ ਦੇ ਅੰਦਰ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਦੀਆਂ ਰੇਖਾਵਾਂ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਉਸ ਦੇ ਦੱਖਣੀ ਧਰੁਵ ਤੋਂ ਉੱਤਰੀ ਧਰੁਵ ਵੱਲ ਅਤੇ ਚੁੰਬਕ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਉੱਤਰੀ ਧਰੁਵ ਤੋਂ ਦੱਖਣੀ ਧਰੁਵ ਵੱਲ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਰੇਖਾਵਾਂ ਬੰਦ ਕਰ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੇ ਚੁੰਬਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ

→ ਦੋ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਰੇਖਾਵਾਂ ਕਦੀ ਵੀ ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਨੂੰ ਕੱਟਦੀਆਂ ਨਹੀਂ ਹਨ ।

→ ਕਿਸੇ ਧਾਤੂ ਚਾਲਕ ਵਿੱਚੋਂ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਪ੍ਰਵਾਹਿਤ ਕਰਨ ਨਾਲ ਉਸਦੇ ਚਾਰੋਂ ਪਾਸੇ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਉਤਪੰਨ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਕਿਸੇ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਵਾਹੀ ਚਾਲਕ ਕਾਰਨ ਉਤਪੰਨ ਹੋਇਆ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਉਸ ਤੋਂ ਦੂਰੀ ਦੇ ਉਲਟ ਅਨੁਪਾਤੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਕਿਸੇ ਬਿਜਲਈ ਵਾਹਕ ਤਾਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕਿਸੇ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਬਿੰਦੁ ਤੇ ਉਤਪੰਨ ਹੋਇਆ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਉਸ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵਾਹਿਤ ਹੋ ਰਹੀ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੇ ਸਿੱਧੇ ਅਨੁਪਾਤ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

→ ਨੇੜੇ-ਤੇੜੇ ਲਪੇਟੀ ਗਈ ਬਿਜਲਈ ਰੋਧਕ ਤਾਂਬੇ ਦੀ ਤਾਰ ਦੀ ਸਿਲੰਡਰ ਦੀ ਸ਼ਕਲ ਦੀ ਅਨੇਕ ਫੇਰਿਆਂ ਵਾਲੀ ਕੁੰਡਲੀ ਨੂੰ ਸੋਲੀਨਾਇਡ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸੋਲੀਨਾਇਡ ਦੇ ਅੰਦਰ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਰੇਖਾਵਾਂ ਸਮਾਨ-ਅੰਤਰ ਸਰਲ ਰੇਖਾਵਾਂ ਵਾਂਗ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਢਾਂਸ ਦੇ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਔਬ੍ਰੇਰੀ ਐਮਪੀਅਰ ਨੇ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ਕਿ ਚੁੰਬਕ ਨੂੰ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾਵਾਹੀ ਚਾਲਕ ਤੇ ਪਰਿਮਾਣ ਵਿੱਚ ਸਮਾਨ ਪਰੰਤੂ ਉਲਟ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਬਲ ਲਗਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

→ ਚਾਲਕ ਤੇ ਅਰੋਪਿਤ ਬਲ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਅਤੇ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਦੇ ਲੰਬ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਫਲੇਮਿੰਗ ਦਾ ਸੱਜੇ ਹੱਥ ਦਾ ਨਿਯਮ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਬਿਜਲਈ ਮੋਟਰ, ਬਿਜਲੀ ਜੈਨਰੇਟਰ, ਲਾਊਡ ਸਪੀਕਰ, ਮਾਈਕ੍ਰੋਫੋਨ ਅਤੇ ਗੈਲਵੇਨੋਮੀਟਰ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਅਤੇ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਨਾਲ ਹੈ ।

→ ਸਾਡੇ ਦਿਲ ਅਤੇ ਦਿਮਾਗ਼ ਵਿੱਚ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਦਾ ਉਤਪੰਨ ਹੋਣਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ।

→ ਸਰੀਰ ਅੰਦਰ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਸਰੀਰ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਭਾਗਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਤਿਬਿੰਬ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦਾ ਆਧਾਰ ਹੈ ।

→ ਚੁੰਬਕੀ ਅਨੁਨਾਦ ਤਿਬਿੰਬ (ਐੱਮ. ਆਰ. ਆਈ.) ਦੀ ਉਪਯੋਗਿਤਾ ਇਲਾਜ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲਈ ਮੋਟਰ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਜੁਗਤ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਬਿਜਲਈ ਊਰਜਾ ਦਾ ਯੰਤ੍ਰਿਕ ਊਰਜਾ ਵਿੱਚ ਰੂਪਾਂਤਰਨ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲੀ ਮੋਟਰਾਂ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਬਿਜਲਈ ਪੱਖੇ, ਰੇਫਰੀਜਰੇਟਰਾਂ, ਬਿਜਲਈ ਮਿਕਸਰ, ਵਾਸ਼ਿੰਗ ਮਸ਼ੀਨਾਂ, ਕੰਪਿਊਟਰਾਂ, ਐੱਮ. ਪੀ.-3 ਪਲੇਅਰਾਂ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲਈ ਮੋਟਰ ਵਿੱਚ ਬਿਜਲਈ ਰੋਧਕ ਤਾਰ ਦੀ ਇੱਕ ਆਇਤਾਕਾਰ ਕੁੰਡਲੀ ਕਿਸੇ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਦੇ ਦੋ ਧਰੁਵਾਂ ਦੇ ਵਿਚਾਲੇ ਰੱਖੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਉਹ ਜੁਗਤ ਜਿਹੜੀ ਸਰਕਟ ਵਿੱਚ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੇ ਪ੍ਰਵਾਹ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਬਦਲ ਦਿੰਦੀ ਹੈ, ਨੂੰ ਦਿਸ਼ਾ ਪਰਾਵਰਤਕ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਰਮ ਲੋਹੇ ਦਾ ਕੋਰ ਅਤੇ ਕੁੰਡਲੀ ਦੋਨੋਂ ਮਿਲ ਕੇ ਆਰਮੇਚਰ ਬਣਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਨਾਲ ਮੋਟਰ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵੱਧ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਫੈਰਾਡੇ ਨੇ ਖੋਜ ਕੀਤੀ ਸੀ ਕਿ ਕਿਸੇ ਗਤੀਸ਼ੀਲ ਚੁੰਬਕ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਉਤਪੰਨ ਕਰਨ ਲਈ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੇ ਚੁੰਬਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ

→ ਗੈਲਵੈਨੋਮੀਟਰ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਉਪਕਰਨ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਰਕਟ ਵਿੱਚ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੀ ਉਪਸਥਿਤੀ ਅਨੁਭਵ (ਸੰਸੂਚਿਤ) ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਮਾਇਕਲ ਫੈਰਾਡੇ ਨੇ ਬਿਜਲੀ ਚੁੰਬਕੀ ਪੇਰਣ ਅਤੇ ਬਿਜਲਈ ਅਪਘਟਨ ਤੇ ਕੰਮ ਕੀਤਾ ਸੀ ।

→ ਕਿਸੇ ਚਾਲਕ ਦੇ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਕਾਰਨ ਦੂਜੇ ਨੇੜੇ ਪਏ ਚਾਲਕ ਵਿੱਚ ਉਤਪੰਨ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਪੇਮ੍ਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲੀ ਉਤਪੰਨ ਕਰਨ ਦੀ ਜੁਗਤ ਨੂੰ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਜਨਰੇਟਰ (ਏ. ਸੀ. ਜਨਰੇਟਰ) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਦਿਸ਼ਾਈ ਧਾਰਾ ਹਮੇਸ਼ਾ ਇੱਕ ਹੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਵਾਹਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਪਰੰਤ ਪਰਿਵਰਤਿਤ ਧਾਰਾ ਹਰੇਕ 1/100 ਸੈਕਿੰਡ ਬਾਅਦ ਆਪਣੀ ਦਿਸ਼ਾ ਬਦਲ ਲੈਂਦੀ ਹੈ । ਪਰਾਵਰਤਿਤ ਧਾਰਾ ਦੀ ਆਕ੍ਰਿਤੀ 50 ਹਰਟਜ਼ ਹੈ । DC ਧਾਰਾ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿੱਚੋਂ AC ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦਾ ਲਾਭ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਬਿਜਲਈ ਸ਼ਕਤੀ ਨੂੰ ਦੁਰੇਡੇ ਸਥਾਨਾਂ ‘ਤੇ ਬਿਨਾਂ ਉਰਜਾ ਦੇ ਖੈ ਹੋਇਆ ਭੇਜਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਘਰਾਂ ਵਿੱਚ ਬਿਜਲਈ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀ ਸਪਲਾਈ ਮੁੱਖ ਤਾਰ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।

→ ਲਾਲ ਬਿਜਲਈ ਰੋਧਕ ਕਵਰ ਜੁੜੀ ਹੋਈ ਤਾਰ ਧਨਾਤਮਕ ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ । ਕਾਲੇ ਕਵਰ ਵਾਲੀ ਤਾਰ ਉਦਾਸੀਨ (ਰਿਣਾਤਮਕ) ਕਹਾਉਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਧਨਾਤਮਕ ਅਤੇ ਰਿਣਾਤਮਕ ਤਾਰਾਂ ਵਿੱਚ 220 v ਦਾ ਪੁਟੈਂਸ਼ਲ ਅੰਤਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਭੂ-ਸੰਪਰਕ ਤਾਰ ਹੋਰ ਕਵਰ ਨਾਲ ਯੁਕਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲਈ ਫਿਊਜ਼ ਸਾਰੇ ਘਰੇਲੂ ਸਰਕਟਾਂ ਦਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭਾਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਓਵਰਲੋਡਿੰਗ ਤੋਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਹਾਨੀ ਤੋਂ ਬਚਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਦੋਂ ਬਿਜਲੀ ਵਾਹਕ ਤਾਰ ਅਤੇ ਉਦਾਸੀਨ ਤਾਰ ਸਿੱਧੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿੱਚ ਆਉਂਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਓਵਰਲੋਡਿੰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

→ ਫਿਊਜ਼ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਤਾਪਨ ਫਿਊਜ਼ ਨੂੰ ਪਿਘਲਾ ਦਿੰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਤੋਂ ਸਰਕਟ ਟੁੱਟ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲੀ ਚੁੰਬਕ (Electromagnet)-ਨਰਮ ਲੋਹੇ ਦਾ ਟੁਕੜਾ ਜਿਹੜਾ ਰੋਧੀ ਪਾਲਿਸ਼ ਵਾਲੀ ਚਾਲਕ ਤਾਰ ਨਾਲ ਲਪੇਟਿਆ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਲੰਘਾਉਣ ਨਾਲ ਚੁੰਬਕ ਬਣ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ (Magnetic Field)-ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਚੁੰਬਕ ਦੇ ਦੁਆਲੇ ਉਹ ਖੇਤਰ ਹੈ ਜਿੱਥੋਂ ਤੱਕ ਉਹ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਸੋਲੀਨਾਇਡ (Solenoid)-ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਤਾਰ ਨੂੰ ਲਪੇਟ ਕੇ ਕੁੰਡਲੀ ਬਣਾ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਉਸ ਨੂੰ ਸੋਲਾਨਾਇਡ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਲੋਹਾ ਕੋਰ (Iron Core)-ਬਿਜਲਈ ਸੋਲੀਨਾਇਡ ਦੇ ਅੰਦਰ ਰੱਖੀ ਗਈ ਨਰਮ ਲੋਹੇ ਦੀ ਛੜ ਨੂੰ ਲੋਹਾ ਕੋਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਨੌ ਦਾ ਨਿਯਮ (Snow Rule)-ਜਦੋਂ ਚੁੰਬਕੀ ਸੂਈ ਦੇ ਉੱਪਰ ਸਥਿਤ ਤਾਰ ਵਿੱਚ ਦੱਖਣ ਤੋਂ ਉੱਤਰ ਵੱਲ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਗੁਜ਼ਾਰੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਉਸ ਦਾ ਉੱਤਰੀ ਧਰੁਵ ਪੱਛਮ ਵੱਲ ਵਿਖੇਪਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲੀ ਚੁੰਬਕੀ ਪ੍ਰੇਰਣ (Electromagnetic Induction)-ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੁਆਰਾ ਇਸ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧ ਰੱਖਣ ਵਾਲੀ ਕੁੰਡਲੀ ਵਿੱਚ ਧਾਰਾ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਨੂੰ ਚੁੰਬਕੀ ਪ੍ਰਣ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਬਿਜਲਈ ਊਰਜਾ (Electric Energy)-ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੁਆਰਾ ਕਿਸੇ ਕਾਰਜ ਨੂੰ ਕਰਨ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਨੂੰ ਬਿਜਲਈ ਊਰਜਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਬਿਜਲਈ ਸ਼ਕਤੀ (Electric Power)-ਕਿਸੇ ਚਾਲਕ ਵਿੱਚ ਊਰਜਾ ਦੇ ਖਪਤ ਹੋਣ ਦੀ ਦਰ ਨੂੰ ਬਿਜਲਈ ਸ਼ਕਤੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਬਿਜਲ ਜੈਨਰੇਟਰ (Electric Generation)-ਬਿਜਲੀ ਧਾਰਾ ਉਤਪੰਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਉਪਕਰਨ ਨੂੰ ਬਿਜਲ ਜੈਨਰੇਟਰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਪਰਤਵੀ ਧਾਰਾ (Alternating Current)-ਇਹ ਉਹ ਬਿਜਲੀ ਧਾਰਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਲਗਾਤਾਰ ਬਦਲਦੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਅਪਰਤਵੀਂ ਧਾਰਾ (Direct Current)-ਇਹ ਉਹ ਬਿਜਲੀ ਧਾਰਾ ਹੈ ਜਿਸਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਹਮੇਸ਼ਾ ਇੱਕੋ ਹੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।

→ ਸ਼ਾਰਟ ਸਰਕਟ (Short Circuit)-ਕਿਸੀ ਬਿਜਲਈ ਉਪਕਰਨ ਵਿੱਚ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦਾ ਘੱਟ ਪ੍ਰਤਿਰੋਧ ਵਿਚੋਂ ਪ੍ਰਵਾਹਿਤ ਹੋਣਾ ਸ਼ਾਰਟ ਸਰਕਟ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ।

PSEB 10th Class Science Notes Chapter 13 ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੇ ਚੁੰਬਕੀ ਪ੍ਰਭਾਵ

→ ਫਿਊਜ਼ (Fuse)-ਘੱਟ ਪਿਘਲਾਓ ਦਰਜੇ ਵਾਲਾ ਤਾਰ ਫਿਊਜ਼ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨੂੰ ਬਿਜਲਈ ਸਰਕਟ ਵਿੱਚ ਲਗਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲ ਮੀਟਰ (Electric Meter)-ਇਹ ਉਹ ਯੰਤਰ ਹੈ ਜਿਸ ਦੁਆਰਾ ਬਿਜਲਈ ਸਕਟ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਬਿਜਲਈ ਊਰਜਾ ਮਾਪੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ।

→ ਬਿਜਲਈ ਝਟਕਾ ਜਾਂ ਸ਼ਾਕ ( Electric Shock)-ਸਰੀਰ ਦੇ ਕਿਸੇ ਭਾਗ ਦਾ ਬਿਜਲਈ ਸਰਕਟ ਦੇ ਉੱਚ ਪੁਟੈਂਸ਼ਲ ਵਾਲੇ ਕਿਸੇ ਬਿੰਦੂ ਨੂੰ ਛੂਹਣ ਨਾਲ ਲੱਗਣ ਵਾਲੇ ਝੱਟਕੇ ਨੂੰ ਬਿਜਲਈ ਸ਼ਾਕ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਅਤਿਭਾਰ ਜਾਂ ਓਵਰਲੋਡਿੰਗ (Overloading)-ਜੇਕਰ ਕਿਸੇ ਸਰਕਟ ਵਿੱਚ ਸਰਕਟ ਦੀ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਸੀਮਾ ਤੋਂ ਵੱਧ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਪ੍ਰਵਾਹਿਤ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ ਤਾਂ ਤਾਰਾਂ ਬਹੁਤ ਗਰਮ ਹੋ ਕੇ ਅੱਗ ਫੜ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਸ ਨੂੰ ਓਵਰਲੋਡਿੰਗ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸੱਜੇ ਹੱਥ ਦਾ ਅੰਗੂਠਾ ਨਿਯਮ (Right hand Thumb Rule)-ਜੇਕਰ ਅਸੀਂ ਮੰਨ ਲਈਏ ਕਿ ਧਾਰਾਵਾਹੀ ਚਾਲਕ ਸਾਡੇ ਸੱਜੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ ਕਿ ਸਾਡਾ ਅੰਗੂਠਾ ਧਾਰਾ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੈ, ਤਾਂ ਤਾਰ ਦੁਆਲੇ ਉਂਗਲੀਆਂ ਦਾ ਘੁਮਾਓ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇਗਾ ।

→ ਫਲੈਮਿੰਗ ਦਾ ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਦਾ ਨਿਯਮ (Fleming’s Left hand Rule)-ਆਪਣੇ ਖੱਬੇ ਹੱਥ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਉੱਗਲੀ, ਵਿਚਕਾਰਲੀ ਉਂਗਲੀ ਅਤੇ ਅੰਗੂਠੇ ਨੂੰ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫੈਲਾਓ ਕਿ ਜੇਕਰ ਪਹਿਲੀ ਉਂਗਲੀ ਚੁੰਬਕੀ ਖੇਤਰ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇ ਅਤੇ ਵਿਚਕਾਰਲੀ ਉਂਗਲੀ ਬਿਜਲਈ ਧਾਰਾ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਚਾਲਕ ਦੀ ਗਤੀ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਅੰਗੂਠੇ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਹੋਵੇਗੀ ।

→ ਭੂ-ਸੰਪਰਕਿਤ (Earthing)-ਉੱਚ ਸ਼ਕਤੀ ਵਾਲੇ ਬਿਜਲਈ ਉਪਕਰਨਾਂ ਦੇ ਧਾੜਵੀ ਫਰੇਮ ਨੂੰ ਘਰੇਲੂ ਬਿਜਲਈ ਸਰਕਟ ਦੀ ਭੂ-ਤਾਰ ਨਾਲ ਜੋੜਨਾ, ਭੂ-ਸੰਪਰਕਿਤ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।