PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक व प्रणाली शब्द का अलग-अलग अर्थ स्पष्ट करते हुए राजनीतिक प्रणाली की कोई र विशेषताएं बताएं।
(Describe the word Political and System separately and also write any three features of Political System.)
अथवा राजनैतिक प्रणाली की परिभाषा लिखो। इसकी मुख्य विशेषताओं का विस्तार सहित वर्णन करो। (Define Political System. Write main characteristics of Political System.)
उत्तर-
आलमण्ड (Almond) तथा पॉवेल (Powell) के अनुसार, तुलनात्मक राजनीति से सम्बन्धित प्रकाशित पुस्तकों में राजनीतिक व्यवस्था (Political System) शब्दावली का अधिक-से-अधिक प्रयोग किया जा रहा है। पुरानी पाठ्य-पुस्तकें आमतौर पर राजनीतिक व्यवस्था के लिए ‘सरकार’, ‘राष्ट्र’ या ‘राज्य’ जैसे शब्दों का प्रयोग करती थीं। यह नवीन शब्दावली उस नए दृष्टिकोण का प्रतिबिम्ब है जो राजनीतिक व्यवस्था को एक नए ढंग से देखते हैं। आलमण्ड तथा पॉवेल आदि लेखकों का विचार है कि प्राचीन युग में प्रयोग होने वाले ये शब्द वैधानिक और संस्थात्मक अर्थों (Legal and Institutional Meanings) द्वारा सीमित है। आलमण्ड तथा पॉवेल का कहना है कि यदि वास्तव में राजनीति विज्ञान को प्रभावशाली बनाना है तो हमें विश्लेषण के अधिक व्यापक ढांचे की आवश्यकता है और वह ढांचा व्यवस्था विश्लेषण (System Analysis) का है। आलमण्ड तथा पॉवेल ने लिखा है, “राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा अधिक लोकप्रिय होती जा रही है क्योंकि यह किसी भी समाज के राजनीतिक क्रियाओं के सम्पूर्ण क्षेत्र की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है।”

राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ (Meaning of the Political System)-राजनीतिक व्यवस्था शब्द के दो भाग हैं-राजनीति तथा व्यवस्था। इन दोनों के अर्थ को समझने के बाद ही राजनीतिक व्यवस्था अथवा प्रणाली का अर्थ समझा जा सकता है। – 1. राजनीतिक (Political)-राजनीतिक शब्द सत्ता अथवा शक्ति का सूचक है। किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उस समय कहा ज सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जात है । अरस्तु ने राजनीतिक समुदाय को अत्यधिक प्रभुत्व-समन्न तथा अन्तर्भावी र गठन’ (The most sovereign and inclusive association) परिभाषित किया है।” अरस्तु के मतानुसार, “राजनीतिक समुदाय के पास सर्वोच्च शक्ति होती है जो इसको अन्य समुदायों अथवा संघों से अलग करती है। अरस्तु के बाद अनेक विद्वानों ने इस बात को स्वीकार किया है कि राजनीतिक सम्बन्धों में सत्ता, शासन और शक्ति किसी-न-किसी प्रकार । निहित है।

आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) ने राजनीतिक समुदाय की इस शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति (Legitimate Physical Coercive Powers) का नाम दिया है।
मैक्स वैबर (Max Webber) के अनुसार, “किसी भी समुदाय को उस समय राजनीतक माना जा सकतज उसके आदेशों को एक निश्चित भू-क्षेत्र में लगातार शक्ति के प्रयोग अथवा शक्ति-प्रयोग की धमकी द्वारा मनवाया । सकता हो।”

डेविड ईस्टन (David Easton) ने राजनीतिक जीवन को इस प्रकार परिभाषित किया है- “यह अन्तक्रियाओं का समूह अथवा प्रणाली है जो इस तथ्य से अलंकृत है कि यह एक समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारण से कम या अधिक सम्बन्धित है।” (“A set or system of interactions defined by the fact that they are more or less directly related to the authoritative allocation of values for a society.”) लॉसवैल तथा कॉप्लान (Lasswell and Kaplan) ने ‘घोर-हानि’ (Severe Deprivation) की बात की है। राबर्ट ए० डाहल (Robert A. Dahl) ने ‘शक्ति , शासन तथा सत्ता’ (Power, Rule and Authority) का वर्णन किया है।

विभिन्न विद्वानों के विचारों के आधार पर हम कह सकते हैं कि राजनीति का सम्बन्ध ‘शक्ति’, ‘शासन’ तथा ‘सत्ता’ से होता है और जिस समुदाय के पास ये गुण होते हैं उसे राजनीतिक समुदाय कहा जाता है।

2. व्यवस्था या प्रणाली (System)—व्यवस्था (System) शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं (Interaction) के समूह ) का संकेत करने के लिए किया जाता है।

ऑक्सफोर्ड शब्दकोष (Concise Oxford Dictionary) के अनुसार, “प्रणाली एक पूर्ण समाप्ति है, सम्बद्ध वस्तुओं अथवा अंशों का समूह है, भौतिक या अभौतिक वस्तुओं का संगठित समूह है।” (A system is a complex whole, a set of connected things or parts, organised body of material or immaterial things.”)

वान बर्टलैंफी (Von Bertalanffy) के अनुसार, “प्रणाली (System) पारस्परिक अन्तक्रिया (Interaction) में बन्धे हुए तत्त्वों का समूह है।” (“System is a set of elements standing in interaction.”)

ए० हाल एवं आर० फैगन (A. Hall and R. Fagen) के अनुसार, “प्रणाली” पात्रों (Objects), पात्रों में पारस्परिक सम्बन्धों तथा पात्रों के लक्षणों के पारस्परिक सम्बन्धों का समूह है।” (“System is a set of objects together with relations between the objects and between their attitudes.”)

कालिन चैरे (Colin Cheray) के अनुसार, “प्रणाली” कई अंशों से मिलकर बनी एक समष्टि (Whole) कई लक्षणों का समूह है।” (“System is a whole which is compounded of many parts-an ensemble of attitudes.”)

आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “एक व्यवस्था से अभिप्राय भागों (Parts) की परस्पर निर्भरता और उसके तथा उसके वातावरण के बीच किसी प्रकार की सीमा से है।” (A system implies interdependence of parts of boundary of some kind between it and its environment.”)

विभिन्न विद्वानों की परिभाषाओं की विवेचना से स्पष्ट है कि व्यवस्था (System) एक पूर्ण इकाई होती है, जिसके कई भाग होते हैं और ये भाग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं और एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। उदाहरणस्वरूप मानव शरीर एक व्यवस्था है। मानव शरीर के अनेक अंग हैं और ये सभी अंग अथवा भाग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं तथा एक-दूसरे को और सम्पूर्ण मानव शरीर को भी प्रभावित करते हैं। ___ एक व्यवस्था के अन्दर कुछ आधारभूत विशेषताएं होती हैं जैसे कि एकता, नियमितता, सम्पूर्णता, संगठन, सम्बद्धता (Coherence), संयुक्तता (Connection) तथा अंशों अथवा भागों का अन्योन्याश्रय (Interdependence of parts)।

इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था उन अन्योन्याश्रित सम्बन्धों के समूह को कहा जा सकता है जिसके संचालन में सत्ता या शक्ति का भी हाथ है।

व्यवस्था में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं-

  • व्यवस्था भिन्न-भिन्न अंगों या हिस्सों के जोड़ों से बनती है।
  • व्यवस्था के भिन्न-भिन्न अंगों में परस्पर निर्भरता होती है।
  • व्यवस्था के अंगों में एक-दूसरे को प्रभावित करने की समर्थता होती है।
  • व्यवस्था की अपनी सीमाएं होती हैं।
  • व्यवस्था में उप-व्यवस्थाएं (Sub-System) भी पाई जाती हैं।
  • प्रत्येक व्यवस्था में सम्पूर्णता का गुण होता है।
  • प्रत्येक व्यवस्था में एक इकाई के रूप में कार्य करने की योग्यता होती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Describe the main characteristics of Political System.)
अथवा
आलमण्ड के अनुसार राजनीतिक प्रणाली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the characteristics of Political System according to Almond.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं की व्याख्या करें। (Explain main characteristics of Political System.)
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की विभिन्न परिभाषाओं से राजनीतिक व्यवस्था की विशेषताओं का पता चलता है। आलमण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं अग्रलिखित हैं-

1. मानवीय सम्बन्ध (Human Relations)–जिस प्रकार राज्य के लिए जनसंख्या का होना अनिवार्य है, उसी प्रकार राजनीतिक व्यवस्था के लिए मनुष्यों के परस्पर स्थायी सम्बन्धों का होना आवश्यक है। बिना मानवीय सम्बन्धों के राजनीतिक व्यवस्था नहीं हो सकती। परन्तु सभी प्रकार के मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग नहीं माना जा सकता। केवल उन्हीं मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग माना जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता को किसी-न-किसी तरह प्रभावित करते हों।

2. औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग (Use of Legitimate Force)-राजनीतिक व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण गुण शारीरिक दण्ड देने की शक्ति के प्रयोग करने के अधिकार के अस्तित्व को स्वीकार किया जाना है। इस गुण के आधार पर ही राजनीतिक व्यवस्था को अन्य व्यवस्थाओं से अलग किया जाता है। जिस प्रकार प्रभुसत्ता राज्य का अनिवार्य तत्त्व है और प्रभुसत्ता के बिना राज्य की कल्पना नहीं की जा सकती, उसी तरह औचित्यपूर्ण शारीरिक दबाव शक्ति (Legitimate Physical Coercive Power) के बिना राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व सम्भव नहीं है। प्रत्येक समाज में शान्ति और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए तथा अपराधियों को दण्ड देने के लिए शक्ति का प्रयोग किया जाता है, परन्तु शक्ति का प्रयोग औचित्यपूर्ण होना चाहिए। औचित्यपूर्ण शक्ति के द्वारा ही राजनीतिक व्यवस्था के सभी कार्य चलते हैं।

3. व्यापकता (Comprehensiveness)-आलमण्ड के विचारानुसार, व्यापकता का अर्थ है कि राजनीतिक व्यवस्था में निवेश तथा निर्गत (Inputs and Outputs) की वे सभी प्रक्रियाएं सम्मिलित हैं जो शक्ति के प्रयोग या शक्ति प्रयोग की धमकी को किसी भी रूप में प्रभावित करती हैं। अन्य शब्दों में आलमण्ड के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था में केवल संवैधानिक अथवा कानूनी ढांचों जैसे कि-विधानमण्डल, न्यायपालिका, नौकरशाही आदि को ही सम्मिलित नहीं किया जाता बल्कि इसमें अनौपचारिक (Informal) संस्थाओं जैसे कि राजनीतिक दल, दबाव समूह, निर्वाचक मण्डल आदि के साथ-साथ सभी प्रकार के राजनीतिक ढांचों के राजनीतिक पहलुओं को भी शामिल किया जाता है।

4. उप-व्यवस्थाओं का अस्तित्व (Existence of Sub-System)-राजनीतिक व्यवस्था में कई उप-व्यवस्थाएं भी पाई जाती हैं, जिनके सामूहिक रूप को राजनीतिक व्यवस्था कहा जाता है। इन उप-व्यवस्थाओं में परस्पर निर्भरता होती है तथा वे एक-दूसरे की कार्यविधि को प्रभावित करती हैं। जैसे-विधानपालिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, राजनीतिक दल, प्रशासनिक विभाग तथा दबाव समूह इत्यादि राजनीतिक व्यवस्था की उप-व्यवस्थाएं हैं। इन उप-व्यवस्थाओं की कार्यशीलता से राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता प्रभावित होती है।

5. अन्तक्रिया (Interaction)-राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों अथवा इकाइयों में अन्तक्रिया हमेशा चलती रहती है। राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों में व्यक्तिगत अथवा विभिन्न समूहों के रूप में सम्पर्क बना रहता है तथा वे एक-दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इकाइयों में अन्तक्रिया न केवल निरन्तर होती है बल्कि बहुपक्षीय होती है।

6. अन्तर्निर्भरता (Interdependence) अन्तर्निर्भरता राजनीतिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण गुण है। आलमण्ड (Almond) के मतानुसार राजनीतिक व्यवस्था में अनेक उप-व्यवस्थाओं (Sub-systems) के राजनीतिक पहलू भी सम्मिलित हैं। उसके विचारानुसार राजनीतिक व्यवस्था की जब एक उप-व्यवस्था में परिवर्तन आता है तो इसका प्रभाव अन्य व्यवस्थाओं पर भी पड़ता है। उदाहरणस्वरूप आधुनिक युग में संचार के साधनों का बहुत विकास हुआ है। संचार के साधनों के विकास के साथ चुनाव विधि, चुनाव व्यवहार, राजनीतिक दलों की विशेषताओं, विधानमण्डल तथा कार्यपालिका की रचना तथा कार्यों पर काफ़ी प्रभाव पड़ा है। इसी प्रकार श्रमिक वर्ग को मताधिकार देने में राजनीतिक दलों, दबाव समूहों, सरकारों के वैधानिक तथा कार्यपालिका अंगों पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।

7. सीमाओं की विद्यमानता (Existence of Boundaries)-सीमाओं की विद्यमानता राजनीतिक व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण गुण है। सीमाओं की विद्यमानता का अर्थ है कि प्रत्येक व्यवस्था किसी एक स्थान से शुरू होती है और किसी दूसरे स्थान पर समाप्त होती है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की कुछ सीमाएं होती हैं जो उसको अन्य व्यवस्थाओं से अलग करती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं राज्य की तरह क्षेत्रीय सीमाएं नहीं होतीं। ये मानवीय सम्बन्धों तथा क्रियाओं की सीमाएं होती हैं। सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं की सीमाएं सदैव एक-जैसी अथवा निश्चित नहीं होतीं। प्राचीन तथा परम्परागत समाज में राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं इतनी स्पष्ट नहीं होती जितनी कि आधुनिक समाज में। जैसे-जैसे किसी व्यवस्था का आधुनिकीकरण तथा विकास होता है वैसे ही कार्यों के विशेषीकरण के कारण ये सीमाएं स्पष्ट होती जाती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाओं में समयानुसार परिवर्तन आते रहते हैं। कई बार राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं किसी घटना के कारण बढ़ भी सकती हैं और कम भी हो सकती हैं।

8. खुली व्यवस्था (Open System)-राजनीतिक व्यवस्था एक खुली व्यवस्था होती है, “जिस कारण समय, वातावरण और परिस्थितियों के अनुसार उसमें परिवर्तन होता रहता है। यदि राजनीतिक व्यवस्था बन्द व्यवस्था हो तो उस पर परिस्थितियों का प्रभाव ही न पड़े और ऐसी व्यवस्था में राजनीतिक व्यवस्था टूट सकती है।”

9. अनुकूलता (Adaptability)-राजनीतिक व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता अनुकूलता है। राजनीतिक व्यवस्था समय और परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको परिवर्तित करने की विशेषता रखती है। उदाहरणस्वरूप भारत की राजनीतिक व्यवस्था का स्वरूप शान्ति के समय कुछ और होता है और संकटकाल में उसका स्वरूप बदल जाता है और संकटकाल समाप्त होने के बाद फिर परिवर्तित हो जाता है। वही राजनीतिक व्यवस्था स्थायी रह पाती है जो समय और परिस्थितियों के अनुसार बदल जाती है।

10. वातावरण (Environment) किसी भी व्यवस्था पर उसके वातावरण का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक तथा आवश्यक है। वातावरण से तात्पर्य है वे परिस्थितियां जो उसे चारों ओर से घेरे हुए हों। समाज के वातावरण या परिस्थितियों का राजनीतिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है और उसे हम सामान्य रूप से राजनीतिक प्रणाली का वातावरण भी कह सकते हैं । व्यक्ति अपने समाज की आर्थिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक प्रवृत्तियों से बचे रहते हैं और इस प्रकार उनका राजनीतिक प्रणाली पर प्रभाव पड़ता है। समाज में स्थित सभी समुदाय या संस्थाएं कभी-न-कभी, किसी-न-किसी रूप में राजनीतिक प्रणाली के वातावरण में रहती हैं और कभी-कभी यह उसका अंग भी बन जाती हैं। जैसे कि कोई मजदूर संघ वैसे तो राजनीतिक प्रणाली का वातावरण है, परन्तु जब वे सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करते हैं या सरकार पर कोई कानून बनाने के लिए जोर देते हैं तो वे राजनीतिक प्रणाली का अंग भी बन जाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली के निकास कार्य लिखें। (Describe the output functions of Political System.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली के निवेश और निकास कार्यों का वर्णन करो।
(Write input and output functions of Political System.)
अथवा
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ बताते हुए इसके निवेश कार्यों की व्याख्या करें।
(Describe the meaning of ‘Political System’ and also explain its ‘Input Functions’.)
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें।
राजनीतिक प्रणाली के कार्य-आलमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के दो प्रकार के कार्यों का वर्णन किया हैनिवेश कार्य (Input Functions) तथा निर्गत कार्य (Output Functions)।

(क) निवेश कार्य (Input Functions)-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं। जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि।
आलमण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं – (1) राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती, (2) हित स्पष्टीकरण, (3) हित समूहीकरण, (4) राजनीतिक संचारण।

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती (Political Socialisation and Recruitment) आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में भी धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं।

आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियां (Political Cultures) स्थिर रखी जाती हैं अथवा उनको परिवर्तित किया जाता है। इस प्रकार के सम्पादन के माध्यम से पृथक्-पृथक् व्यक्तियों को राजनीतिक संस्कृति में प्रशिक्षित किया जाता है तथा राजनीतिक उद्देश्य की ओर उनके उन्मुखीकरण (Orientations) निर्धारित किए जाते हैं। राजनीति संस्कृति के ढांचे में परिवर्तन भी राजनीतिक समाजीकरण के माध्यम से आते हैं। अतः राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया का उपयोग, परिवर्तन लाने अथवा यथास्थिति बनाए रखने, दोनों ही के लिए हो सकता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है। कभी बन्द नहीं होती। राजनीतिक दल, हितसमूह व दबाव-समूह आदि राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा अधिक-से-अधिक लोगों को अपनी मान्यताओं के प्रति जागरूक कर, लोगों को इनकी ओर आकर्षित करते हैं। लोकतन्त्रात्मक व्यवस्थाओं में राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्व और भी अधिक होता है क्योंकि राजनीतिक दलों का सफल होना अथवा न होना इसी पर निर्भर करता है।

राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। पुरानी भूमिकाएं बदलती रहती हैं और उनका स्थान नई भूमिकाएं लेती रहती हैं। पदाधिकारी बदल दिए जाते हैं, मर जाते हैं और उनका स्थान स्वाभाविक रूप से नए व्यक्ति ले लेते हैं। आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, “राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।” (“We use the term political recruitment to refer to the function by means of which the rolls of political system are filled.”) राजनीतिक भर्ती सामान्य आधार पर भी हो सकती है और विशिष्ट आधार पर भी। पदाधिकारियों का चुनाव जब योग्यता के आधार पर किया जाता है तो उसे सामान्य आधार पर ही हुई भर्ती कहा जाता है। जब कोई भर्ती किसी विशेष वर्ग या कबीले या दल से की जाती है तो विशिष्ट आधार पर हुई भर्ती कही जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण (Interest Articulation) अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली की कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के अनुसार, पृथक्-पृथक् व्यक्तियों तथा समूहों द्वारा राजनीतिक निर्णयकर्ताओं से मांग करने की प्रक्रिया को हम हित स्पष्टीकरण कहते हैं।” (“The process by which individuals and groups make demands upon the political decision makers we call interest articulation.”) राजनीतिक व्यवस्था में जिन अधिकारियों के पास नीति निर्माण व निर्णय लेने का अधिकार होता है, उनके सामने विभिन्न व्यक्ति तथा समूह अपनी मांगें पेश करते हैं अर्थात् अपने हित का स्पष्टीकरण करते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में हित स्पष्टीकरण एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया होती है क्योंकि समाज के अन्तर्गत जब तक समूह या संघ अपने हित को स्पष्ट नहीं कर पाते, तब तक उनके हित की पूर्ति के लिए कानून या नीति निर्माण करना सम्भव नहीं। यदि समूह या संघ को अपने हित का स्पष्टीकरण करने का अवसर नहीं दिया जाता तो उसका परिणाम हिंसात्मक कार्यविधियां होता है। हित स्पष्टीकरण के कई साधन हैं। लिखित आवेदन-पत्रों, सुझावों, वक्तव्यों और कई बार प्रदर्शनियों द्वारा यह कार्य होता है। मजदूर संघ या छात्र संघ आदि हड़ताल भी करते हैं और कई बार हिंसात्मक तरीके भी अपनाते हैं। हित स्पष्टीकरण के समुचित एवं स्वस्थ साधन वर्तमान विशेषतः प्रजातान्त्रिक व्यवस्थाओं की विशेषता होती है।

3. हित समूहीकरण (Interest Aggregration)-विभिन्न संघों के हितों की पूर्ति के लिए अलग-अलग कानून या नीति का निर्माण नहीं किया जा सकता। विभिन्न संघों या समूहों के हितों को इकट्ठा करके उनकी पूर्ति के लिए एक सामान्य नीति निर्धारित की जाती है। विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के शब्दों में, “मांगों को सामान्य नीति स्थानापन्न (विकल्प) में परिवर्तित करने के प्रकार्य को हित समूहीकरण कहा जाता है।” (“The function of converting demands into general policy alternatives is called interest aggregation.”) यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देश नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा। यह प्रकार्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं बल्कि सभी कार्यों में पाया जाता है। मानव अपने विभिन्न हितों को इकट्ठा करके एक बात कहता है। हित-समूह अपने विभिन्न उपसमूहों या मांगों का समूहीकरण करके अपनी मांग रखते हैं। राजनीतिक दल विभिन्न समुदायों या संघों की मांगों को ध्यान में रखकर अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। इस प्रकार हित समूहीकरण राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर होता रहता है।

4. राजनीतिक संचार (Political Communication) राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है। संचार के साधन निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता। आधुनिक प्रगतिशील समाज में संचार-व्यवस्था को जहां तक हो सका है, तटस्थ बनाने की कोशिश की गई है और इसकी स्वतन्त्रता एवं स्वायत्तता को स्वीकार कर लिया गया है।

लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में संचार-व्यवस्था बहुमुखी, शक्तिशाली, समाज एवं शासक वर्ग में तटस्थ, लोचशील और प्रसारात्मक होती है। आलमण्ड एवं पॉवेल (Almond and Powell) के शब्दों में, “विभिन्न राजनीतिक व्यवस्थाओं का परीक्षण करने के लिए, राजनीतिक संचार के निष्पादन (Performance) का विश्लेषण एवं तुलना अत्यन्त रुचिपूर्ण एवं उपयोगी माध्यम है।” (“The analysis and comparison of the performance of political communication is one of the most interesting and useful means of examining different political systems.”) तुलनात्मक अध्ययनों में राजनीतिक संचार पर चार दृष्टियों से विचार किया जाता है-सूचनाओं में समरसता (Homogeneity), गतिशीलता (Mobility), मात्रा (Volume) तथा दिशा (Direction)

(ख) निर्गत कार्य (Output Functions)–राजनीतिक व्यवस्था के निर्गत कार्य शासकीय क्रिया-कलापों में काफ़ी समानता रखते हैं। यद्यपि आलमण्ड ने स्वयं स्वीकार किया है कि निर्गत कार्य परम्परागत सक्ति पृथक्करण सिद्धान्त में वर्णित सरकारी अंगों के कार्यों से काफ़ी मिलते-जुलते हैं। फिर भी उसने इनको सरकारी कार्य-कलापों के स्थान पर निर्गत कार्य ही कहना अधिक उपयुक्त समझा है। डेविस व लीविस (Davis and Lewis) के शब्दों में, “इसका उद्देश्य संस्थाओं के विवरण पर अधिक बल देने के विचार को परिवर्तित करता है क्योंकि विभिन्न देशों में एक ही प्रकार की संस्थाओं के अलग-अलग प्रकार्य हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त इसके पीछे इन संस्थाओं द्वारा सम्पादित किए जाने वाले कार्य-कलापों की व्याख्या करने के लिए प्रकार्यात्मक अवधारणाओं का एक सैट प्रस्तुत करने की भावना भी उपस्थित है।”

जिस प्रकार सरकार के मुख्य कार्य तीन हैं-कानून-निर्माण, कानूनों को लागू करना और विवादों को निपटाना है, उसी प्रकार निर्गत कार्य तीन हैं
(1) नियम बनाना। (2) नियम लागू करना। (3) नियम निर्णयन कार्य।

1. नियम बनाना (Rule Making)-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिएं। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाने का कार्य मुख्यतः व्यवस्थापिकाओं तथा उप-व्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है। आलमण्ड के विचारानुसार, ‘विधायन’ (Legislation) शब्द के स्थान पर ‘नियम निर्माण’ शब्द का प्रयोग उचित है क्योंकि ‘विधायन’ शब्द से कुछ विशेष संरचना तथा निश्चित प्रक्रिया का बोध होता है जबकि अनेक राजनीतिक व्यवस्थाओं में नियम निर्माण कार्य एक उलझी हुई (Diffuse) प्रक्रिया है जिसे सुलझाना तथा उसका विवरण देना कठिन होता है।

विधायन का काम औपचारिक तौर पर स्थापित संरचनाएं ही किया करती हैं जिन्हें संसद् अथवा कांग्रेस अथवा विधानपालिका कहा जाता है और जो सुनिश्चित एवं औपचारिक प्रक्रियाओं द्वारा ही काम करती हैं। परन्तु कुछ ऐसी राजनीतिक व्यवस्थाएं भी होती हैं जिनमें ऐसी औपचारिक संरचनाएं अथवा ऐसी औपचारिक प्रक्रियाएं होती ही नहीं। इस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में नियम निर्धारण का कार्य एक अलग ढंग से किया जाता है। आधुनिक लोकतान्त्रिक राजनीतिक व्यवस्थाओं में नियम निर्धारण का कार्य प्रायः कई जगहों पर कई पात्रों द्वारा किया जाता है। एल० ए० हठ ने नियमों के ऐसे प्रकारों का वर्णन किया है-प्राथमिक तथा अनुपूरक। प्रारम्भिक समाज में कुछ ऐसे प्राथमिक नियम थे जो व्यक्तियों के यौन सम्बन्धों, बल प्रयोग, आज्ञा पालन आदि के कामों को नियमित करते थे। ये नियम अटल थे और इनको बदला नहीं जा सकता था।

ऐसे नियमों को लागू करने के लिए तथा उनके उल्लंघन किए जाने पर दण्ड के नियम बनाए गए जिन्हें अनुपूरक नियम कहते हैं। यदि इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो संविधान भी अनुपूरक नियमों का समूह है, प्राथमिक नियमों का नहीं। आलमण्ड एवं पॉवेल के मतानुसार, संविधानवाद की यह मान्यता है, “नियमों का निर्माण निश्चित प्रकार की सीमाओं के अन्तर्गत विशिष्ट संस्थाओं द्वारा निश्चित विधियों से होना चाहिए।” (“Rule must be made in certain ways and by specific institutions and within certain kinds of limitations.”)

2. नियम लागू करना (Rule Application)-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन नियमों को लागू करना भी है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का लक्ष्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की उम्मीद नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेदारी पूर्णतः सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है। यहां तक कि न्यायालयों के निर्णय भी कर्मचारी वर्ग द्वारा लागू किए जाते हैं। कभी-कभी नियम निर्माण करने वाली संरचनाओं द्वारा भी यह कार्य किया जाता है, परन्तु विकसित राजनीतिक व्यवस्थाओं के नियम प्रयुक्त संरचनाएं नियम निर्माण करने वाली संरचनाओं से पृथक् होती हैं।

3. नियम निर्णयन कार्य (Rule Adjudication)—समाज में जब कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक हैं-जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है उसे दण्ड अवश्य मिलना चाहिए। इसलिए नियमों में ही उसकी अवहेलना करने पर दण्ड देने का प्रावधान रहता है, परन्तु यह निर्णय करना पड़ता है कि नियमों को वास्तव में ही भंग किया गया है अथवा नहीं और अगर नियम भंग हुआ है तो किस सीमा तक तथा उसे कितना दण्ड दिया जाना चाहिए ? इसके अतिरिक्त कई बार नियमों के अर्थ पर विवाद उत्पन्न हो जाता है। ऐसी स्थिति में नियमों के अर्थ को भी स्पष्ट करना पड़ता है। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्यों में यह कार्य न्यायालयों द्वारा किए जाते हैं, परन्तु सर्वसत्तावादी (Totalitarian) प्रणालियों में गुप्त पुलिस केवल लोगों पर निगरानी रखने एवं उन पर दोषारोपण करने का ही काम नहीं करती बल्कि वह तो उन पर चलाया गया मुकद्दमा भी सुनती हैं और उन्हें सज़ा सुना कर स्वयं सजा को लागू भी करती है। व्यवस्था (System) को बनाए रखने के लिए नियम निर्णयन का कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण है। अतः एक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों का निष्पक्षता को कायम रखा जा सके और नागरिकों का विश्वास बना रहे।

निष्कर्ष (Conclusion) उपर्युक्त कार्य प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था को अवश्य करने पड़ते हैं। इन कार्यों के अतिरिक्त प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था को विशेष परिस्थितियों में अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विशेष कार्य करने पड़ते हैं। सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं के कार्य समान नहीं होते क्योंकि देश की राजनीतिक व्यवस्था को अपने देश की परिस्थितियों और वातावरण के अनुसार नीतियों का निर्माण करना पड़ता है और उनके अनुसार कार्य करने पड़ते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 4.
निवेश-निकास प्रक्रिया के रूप में डेविड ईस्टन के राजनीतिक प्रणाली के मॉडल (रूप) की व्याख्या कीजिए।
(Explain David Easton’s model of Political system as input and output Process.)
अथवा
डेविड ईस्टन के विचारानुसार राजनीतिक प्रणाली के कार्यों की व्याख्या करो।
(Discuss the functions of Political System according to David Easton.)
अथवा
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनीतिक प्रणाली के कार्यों का वर्णन कीजिए। (Discuss the functions of Political System with reference to the views of David Easton.)
उत्तर-
डेविड ईस्टन ने 1953 में ‘राजनीतिक प्रणाली’ (Political System) नामक पुस्तक प्रकाशित करवाई थी। उस पुस्तक में डेविड ईस्टन ने राजनीतिक प्रणाली की धारणा की विवेचना की थी। डेविड ईस्टन ने राजनीतिक प्रणाली को निवेशों (Inputs) को निकासों (Outputs) में बदलने की प्रक्रिया बताया है।

निवेश क्या हैं? (What are Inputs ?)-डेविड ईस्टन ने एक विशेष रूप में विचार अभिव्यक्त किया है। उसके मतानुसार, “निवेश उस कच्चे माल के समान है जो राजनीतिक प्रणाली नामक मशीन में पाये जाते हैं।” जिस तरह किसी मशीन में कच्चे माल के बिना कोई तैयार माल अथवा वस्तु प्राप्त नहीं हो सकती है, उसी तरह निवेश रूपी कच्चा माल राजनीतिक प्रणाली रूपी मशीन में डालने के बिना राजनीतिक प्रणाली कोई सत्ताधारी निर्णय नहीं ले सकती है। ऐसे सत्ताधारी निर्णयों को डेविड ईस्टन ने निकास (Outputs) का नाम दिया है। निवेशों के दो रूप (Two Types of Inputs)-डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेश दो प्रकार के होते हैं

(क) मांगों के रूप में निवेश (Inputs in the form of demands)-जब लोग राजनीतिक प्रणाली से कुछ मांगों की पूर्ति की मांग करते हैं तो मांगों के रूप में निवेश होते हैं। डेविड ईस्टन ने मांगों के रूप में निवेशों को चार प्रकार का माना है

1. वस्तुओं तथा सेवाओं के विभाजन के लिये मांगें (Demands for the allocation of goods and services)-व्यक्ति सरकार से उचित वेतन, कार्य करने के लिये निश्चित समय, शिक्षा प्राप्त करने की सुविधाएं, यातायात के साधन, स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं इत्यादि की मांग करते हैं। इनको डेविड ईस्टन ने वस्तुओं तथा सेवाओं को व्यवस्था की मांगें कहा है।

2. व्यवहार को नियमित करने के लिए मांगें (Demands for regulation of behaviour)—व्यक्ति राजनीतिक प्रणाली से सार्वजनिक सुरक्षा, सामाजिक व्यवहार सम्बन्धी नियमों के निर्माण आदि की मांगें करते हैं। कुशल और नियमित सामाजिक जीवन के लिये ऐसी मांगें प्रायः की जाती हैं।

3. राजीतिक प्रणाली में भाग लेने सम्बन्धी मांगें (Demands regarding participation in the political System)-लोग मांग करते हैं कि उनको मताधिकार, चुनाव लड़ने का अधिकार, सार्वजनिक पद प्राप्त करने का अधिकार, राजनीतिक संगठन बनाने का अधिकार इत्यादि दिये जाएं। ये ऐसी मांगें हैं जिनके फलस्वरूप लोग राजनीतिक प्रणाली के कार्यों में भाग ले सकते हैं।

4. संचार तथा सूचना प्राप्त करने सम्बन्धी मांगें (Demands for Communication and Information)लोग राजनीतिक प्रणाली का संचार करने वाले विशिष्ट वर्ग से नीति निर्माण सम्बन्धी सूचनाएं प्राप्त करने, सिद्धान्त अथवा नियम निश्चित करने, संकट अथवा औपचारिक अवसरों पर राजनीतिक प्रणाली द्वारा शक्ति के दिखावे इत्यादि के लिये मांगें करते हैं। इन मांगों को डेविड ईस्टन ने संचार तथा सूचना प्राप्त करने सम्बन्धी मांगों का नाम दिया है।

(ख) समर्थन के रूप में निवेश (Inputs in the form of Support)-उपर्युक्त चार प्रकार के निवेश मांगों के रूप में हैं। ये ऐसे कच्चे माल के समान हैं जो राजनीतिक प्रणाली रूपी मशीन में पाया जाता है। कोई भी मशीन उस समय तक कार्य नहीं कर सकती जब तक उसको विद्युत् अथवा तेल अथवा किसी अन्य साधन द्वारा शक्ति न दी जाए। इसी तरह डेविड ईस्टन ने निवेशों के दूसरे रूप को समर्थन निवेश (Support Inputs) का नाम दिया है। ऐसे समर्थन
निवेशों के बिना राजनीतिक प्रणाली कार्य नहीं कर सकती है क्योंकि ये समर्थन निवेश ही राजनीतिक प्रणाली को ऐसी शक्ति देते हैं जिसके बल से राजनीतिक प्रणाली निवेश मांगों (Demand Inputs) सम्बन्धी योग्य कार्यवाही कर सकती है।

निकास क्या होते हैं? (What are Outputs ?) डेविड ईस्टन ने निकासों (Outputs) का बड़ा सरल अर्थ बताया है। लोगों द्वारा निवेशों के रूप में सरकार के पास कुछ मांगें पेश की जाती हैं। राजनीतिक प्रणाली अपने साधन तथा सामर्थ्य के अनुसार उन मांगों सम्बन्धी निर्णय लेती है। इन निर्णयों को डेविड ईस्टन ने निकास (Outputs) बताया है। निकास अनेक प्रकार के हो सकते हैं। जब सरकार मानवीय व्यवहार को नियमित करने के लिये कोई कानूनी निर्णय लेती है उनको भी निकास कहा जाता है। जब सरकार सार्वजनिक सेवाएं अथवा पदों की व्यवस्था करती है उसके ऐसे निर्णय भी निकास कहलाते हैं। संक्षेप में, राजनीतिक प्रणाली के सत्ताधारी निर्णयों को निकास (Outputs) का नाम दिया जाता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 5.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में मुख्य अन्तरों का वर्णन करो।
(Write main differences between State and Political System.)
अथवा
राज्य तथा राजनीतिक प्रणाली में अंतर बताओ।
(Make a distinction between State and Political System.)
उत्तर-
प्राचीनकाल में राज्य को राजनीतिशास्त्र का मुख्य विषय माना जाता था। गार्नर की भान्ति ब्लंटशली (Bluntschli), गैटेल (Gettell), गैरिस (Garies), गिलक्राइस्ट (Gilchrist), लॉर्ड एक्टन (Lord Acton) इत्यादि विद्वानों ने राज्य को ही राजनीतिशास्त्र का केन्द्र-बिन्दु माना। परन्तु आधुनिक विद्वान् इस परम्परागत विचार से सहमत नहीं होते। वे राज्य की अपेक्षा राजनीतिक व्यवस्था को आधुनिक राजनीति अथवा राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय मानते हैं। आधुनिक विद्वानों का विचार है कि राजनीति शास्त्र के क्षेत्र को राज्य तक ही सीमित करना उसकी व्यावहारिकता को बिल्कुल नष्ट करने वाली बात है। इन विद्वानों में आलमण्ड तथा पॉवेल, चार्ल्स मेरियम (Charles Meriam), हैरल्ड लॉसवैल (Harold Lasswell), डेविड ईस्टन (David Easton), स्टीफन एल० वास्बी (Stephen L. Wasbi) इत्यादि के नाम मुख्य हैं। राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर पाए जाते हैं, परन्तु दोनों में अन्तर करने से पहले राज्य और राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ स्पष्ट करना अति आवश्यक है।

राज्य का अर्थ (Meaning of State)-प्रो० गिलक्राइस्ट (Gilchrist) के अनुसार, “राज्य उसे कहते हैं जहां कुछ लोग एक निश्चित प्रदेश में एक सरकार के अधीन संगठित होते हैं। यह सरकार आन्तरिक मामलों में अपनी जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है और बाहरी मामलों में अन्य सरकारों से स्वतन्त्र होती है।” इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार मूल तत्त्व हैं जिनके बिना राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। यदि इन चार तत्त्वों में से कोई भी तत्त्व विद्यमान नहीं है तो राज्य की स्थापना नहीं हो सकती।

राजनीतिक व्यवस्था का अर्थ (Meaning of Political System)-राजनीतिक व्यवस्था में सरकार की संस्थाओं के अतिरिक्त वे सभी औपचारिक अथवा अनौपचारिक संस्थाएं अथवा समूह अथवां संगठन सम्मिलित हैं जो किसीन-किसी तरह राजनीतिक जीवन को प्रभावित करते हैं। राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप में बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में अन्तर (Difference between State and Political System)-राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं (State has four essential elements whereas political system has many elements)-राज्य तथा राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर यह है कि राज्य के अनिवार्य तत्त्व चार हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के तत्त्व अनेक हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता-राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। इनमें से यदि एक तत्त्व भी न हो तो राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व होते हैं जैसे कि इसमें राजनीतिक प्रभावों की खोज, वैधता की प्राप्ति, परिवर्तनशीलता, अन्य विषयों तथा अन्य राजनीतिक व्यवस्थाओं का प्रभाव तथा प्रतिक्रियाओं का अध्ययन इत्यादि सम्मिलित होता है।

2. राज्य कानूनी तथा संस्थात्मक ढांचे से सम्बन्धित होता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था प्रक्रियाओं से सम्बन्धित होती है (State deals with legal and Institutional structure but political system deals with the processes)-राज्य का सम्बन्ध कानूनी तथा संस्थात्मक ढांचे से होता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध प्रक्रियाओं (Processes) से होता है। कई लेखकों ने प्रक्रियाओं से सम्बन्धित मॉडल (Models) पेश किए जिनका सम्बन्ध राजनीतिक व्यवस्था से है।

3. राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से अधिक व्यापक है (Scope of Political System is broader than the Scope of State)-राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से कहीं अधिक विशाल है। राज्य का मुख्य सम्बन्ध औपचारिक संस्थाओं से होता है जबकि राजनीति व्यवस्था में समाज में होने वाली प्रत्येक राजनीतिक प्रक्रिया, औपचारिक और अनौपचारिक भी शामिल की जाती हैं। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं व्यावहारिक (Practical) तथा नीति (Policy) विज्ञान पर आधारित होने के कारण बड़ी विस्तृत होती हैं।

4. राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है (Sovereignty is the main feature of State while legitimate Physical coercive force is the main feature of Political System)-आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है अर्थात् राज्य सर्वशक्तिमान् होता है और सभी नागरिकों तथा संस्थाओं को राज्य के आदेशों का पालन करना पड़ता है। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् इस बात को नहीं मानते कि कोई भी राजनीतिक व्यवस्था आन्तरिक और बाहरी प्रभावों से बिल्कुल स्वतन्त्र होती है। आधुनिक वैज्ञानिक इस बात को स्वीकार करते हैं कि राजनीतिक व्यवस्था आन्तरिक-समाज (Intra-Societal) और बाह्य-समाज (Extra-Societal) के वातावरण से अवश्य प्रभावित होती है। इसके साथ ही आधुनिक अन्तर्राष्ट्रीय युग में बाहरी प्रभुसत्ता का महत्त्व बहुत कम रह गया है। प्रत्येक देश की राजनीतिक व्यवस्था पर दूसरे देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं का थोड़ा बहुत प्रभाव पड़ता है। आधुनिक राजनीतिक वैज्ञानिक आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति (Legitimate Physical Coercive Force) शब्द का प्रयोग करते हैं अर्थात् उनके कथनानुसार राजनीतिक व्यवस्था के पास वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति है।

5. राज्य एक परम्परागत धारणा है जबकि राजनीतिक व्यवस्था एक आधुनिक धारणा है (State is a traditional concept while Political System is a modern one)-राज्य एक परम्परागत धारणा है और परम्परागत राजनीति में प्रायः राज्य, राष्ट्र, सरकार, संविधान, कानून, प्रभुसत्ता और धारणाओं का इस्तेमाल होता रहा है। परन्तु आजकल राज्य शब्द तथा इसके साथ सम्बन्धित धारणाओं का प्रयोग बहुत घट गया है। आधुनिक युग में यदि कोई विद्वान् राजनीतिक व्यवस्था के स्थान पर राज्य शब्द का प्रयोग करता है तो उसे परम्परावादी कहा जाता है।

6. राजनीतिक व्यवस्था में आत्म-निर्भर अंगों का अस्तित्व होता है जबकि राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं है (Political system implies the existence of interdependent parts while the concept of State is devoid of such Character)-सरकार की संस्थाएं अर्थात् विधानमण्डल, न्यायपालिका, कार्यपालिका, राजनीतिक दल, हित समूह, संचार के साधन इत्यादि राजनीतिक व्यवस्था के भाग माने जाते हैं। जब किसी एक भाग में किसी कारण से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन होता है तो उसका प्रभाव राजनीतिक व्यवस्था के अन्य भागों पर भी पड़ता है तथा सम्पूर्ण व्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ता है। परन्तु राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं पाई जाती।।

7. राज्य की क्षेत्रीय सीमाएं निश्चित होती हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं बांधा GT HOAT (Boundaries of State are fixed whereas it is not possible to restrict the boundaries of Political System)-राज्य की क्षेत्रीय सीमाएं होती है। किसी भी राज्य के बारे में यह पता लगाया जा सकता है कि उसकी सीमाएं कहां से शुरू होती हैं और कहां समाप्त होती हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्थाओं को क्षेत्रीय सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता है। राजनीतिक व्यवस्था की सीमाएं उसकी क्रियाओं की सीमाएं होती हैं। ये सीमाएं बदलती रहती हैं।

8. राज्य एक से होते हैं, राजनीतिक व्यवस्थाओं का स्वरूप विभिन्न प्रकार का होता है (States are the same everywhere, but political systems are Different)-सभी राज्य एक से होते हैं। वे छोटे हों या बड़े, उनमें चार तत्त्वों का होना अनिवार्य है-जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता। भारत, इंग्लैण्ड, जापान, चीन, श्रीलंका, बर्मा (म्यनमार), रूस आदि सभी राज्यों में ये चार तत्त्व पाए जाते हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्थाओं का स्वरूप विभिन्न राज्यों में विभिन्न होता है।

9. राज्य स्थायी है, राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील (State is permanent while Political System is Dynamic)-राज्य स्थायी है जबकि राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील है। राज्य का अन्त तब होता है जब उससे प्रभुसत्ता छीन ली जाती है। फिर प्रभुसत्ता मिलने पर दोबारा राज्य की स्थापना हो जाती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील होती है। समय तथा परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था बदलती रहती है।

10. राजनीतिक व्यवस्था में निवेशों को निर्गतों में परिवर्तित करने की क्रिया का विशिष्ट स्थान है, परन्तु राज्य की धारणा कुछ विशेष कार्यों से सम्बन्धित है (The concept of political system involves the process of conversion of inputs into outputs, while the concept of state deals with some specific functions)—निवेशों (Inputs) को निर्गतों (Output) में परिवर्तन करने की क्रिया राजनीतिक व्यवस्था की एक . महत्त्वपूर्ण विशेषता है। निवेशों और निर्गतों में परिवर्तन की प्रक्रिया राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर चलती रहती है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए राजनीतिक व्यवस्था को नियम बनाने का कार्य (Rule Making Functions), नियम लागू करने (Rule application) तथा नियमों के अनुसार निर्णय करने से सम्बन्धित कार्य (Rule adjudication functions) भी करने पड़ते हैं। परन्तु राज्य को कुछ विशेष प्रकार के कार्य ही करने पड़ते हैं। राजनीतिक विद्वानों ने राज्य के कार्यों को अनिवार्य कार्य (Compulsory functions) और ऐच्छिक कार्यों (Optional functional) में बांटा है। इसके अतिरिक्त सांस्कृतिक, धार्मिक, नैतिक क्षेत्र और सामाजिक जीवन के कुछ पक्ष राज्य के अधिकार क्षेत्र से पृथक् माने जाते हैं। परन्तु जीवन के किसी पहलू को राजनीतिक व्यवस्था से अलग नहीं माना जा सकता यदि किसी भी रूप में उसका कोई पक्ष या कार्य राजनीति से सम्बन्धित हो।

11. राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक विश्लेषणात्मक धारणा है (Concept of Political System is more analytical than State)-राज्य के वर्णनात्मक विचार हैं। इसकी व्याख्या की जा सकती है, परन्तु इसका विश्लेषण नहीं किया जा सकता। परन्तु राज्य के विपरीत राजनीतिक व्यवस्था एक विश्लेषणात्मक धारणा है। इसका अस्तित्व व्यक्तियों के मन में होता है। यह वास्तविक जीवन में प्राप्त होने वाली चीज़ नहीं है।

12. राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक एकता तथा सामंजस्य लाने का साधन है (Political system is a better means of bringing integration and adoption than the State)-राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में एक अन्य अन्तर यह है कि राजनीतिक व्यवस्था राज्य की अपेक्षा अधिक सामंजस्य उत्पन्न करती है। आलमण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था स्वतन्त्र राज्यों में एकीकरण
और सामंजस्य उत्पन्न करने के लिए एक साधन है।”

13. राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक समाजीकरण तथा राजनीतिक संस्कृति का विशेष महत्त्व है, राज्य के लिए नहीं (Political Socialisation and Political culture have special importance in Political System, not for the State)राजनीतिक व्यवस्था की धारणा में राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति की धारणाओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है क्योंकि राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति की क्रियाएं राजनीतिक व्यवस्था को निरन्तर प्रभावित करती रहती हैं और इसलिए राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन होते रहते हैं। परन्तु राज्य की धारणा में राजनीतिक समाजीकरण और राजनीतिक संस्कृति को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता।
निष्कर्ष (Conclusion)-अन्त में हम यह कह सकते हैं कि राज्य एक परम्परागत धारणो है जबकि राजनीतिक व्यवस्था आधुनिक धारणा है और राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से बहुत अधिक व्यापक है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक तथा प्रणाली शब्दों के अर्थों की व्याख्या करें।
अथवा
राजनीतिक (पोलिटिकल) शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली शब्द के दो भाग हैं-राजनीतिक तथा प्रणाली।
राजनीतिक शब्द का अर्थ-राजनीतिक शब्द सत्ता अथवा शक्ति का सूचक है। किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उस समय कहा जा सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जाता है। अरस्तु ने राजनीतिक समुदाय को ‘अत्यधिक प्रभुत्व-सम्पन्न तथा अन्तर्भावी संगठन’ (The most sovereign and inclusive association) परिभाषित किया है। अरस्तु के मतानुसार राजनीतिक समुदाय के पास सर्वोच्च शक्ति होती है जो इसको अन्य समुदायों से अलग करती है। आल्मण्ड तथा पॉवेल ने राजनीतिक समुदाय की इस शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति (Legitimate Physical Coercive Power) का नाम दिया है।

व्यवस्था या प्रणाली-प्रणाली शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है। ऑक्सफोर्ड शब्दकोश के अनुसार, “प्रणाली एक पूर्ण समाप्ति है, सम्बद्ध वस्तुओं अथवा अंशों का समूह है, भौतिक या अभौतिक वस्तुओं का संगठित समूह है। आल्मण्ड तथा पॉवेल के अनुसार, “एक ब्यवस्था से अभिप्राय भागों की परस्पर निर्भरता और उसके तथा उसके वातावरण के बीच किसी प्रकार की सीमा से है।” एक प्रणाली के अन्दर कुछ आधारभूत विशेषताएं होती हैं जैसे कि एकता, नियमितता, सम्पूर्णता, संगठन, सम्बद्धता (Coherence), संयुक्तता (Connection) तथा अंशों अथवा भागों की पारस्परिक निर्भरता।

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ लिखिए।
अथवा
राजनीतिक प्रणाली से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली में सरकारी संस्थाओं जैसे विधानमण्डल, न्यायालय, प्रशासकीय एजेन्सियां ही सम्मिलित नहीं होती बल्कि इनके अतिरिक्त सभी पारस्परिक ढांचे जैसे रक्त सम्बन्ध,जातीय समूह, अव्यवस्थित घटनाएं जैसे प्रदर्शन, लड़ाई-झगड़े, हत्याएं, डकैतियां, औपचारिक राजनीतिक संगठन आदि राजनीतिक पहलुओं सहित सभी सम्मिलित हैं। इस प्रकार राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध उन सब बातों, क्रियाओं, संस्थाओं से है जो किसी-न-किसी प्रकार से राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली की परिभाषाएं दीजिए।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की परिभाषाएं अलग-अलग राजनीति-शास्त्रियों ने अलग-अलग ढंग से दी हैं, फिर भी एक बात पर इन विद्वानों का एक मत है कि राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध न्यायसंगत शारीरिक दमन के प्रयोगों के साथ जुड़ा हुआ है। राजनीतिक व्यवस्था की इन सभी परिभाषाओं में न्यायपूर्ण प्रतिबन्धों, दण्ड देने की अधिकारपूर्ण शक्ति लागू करने की शक्ति और बाध्य करने की शक्ति आदि शामिल है।

  • डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।”
  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “जब हम राजनीतिक व्यवस्था की बात कहते हैं तो हम इसमें उन समस्त अन्तक्रियाओं को शामिल कर लेते हैं, जो वैध बल प्रयोग को प्रभावित करती हैं।”
  • रॉबर्ट डाहल के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था मानवीय सम्बन्धों का वह दृढ़ मान है जिसमें पर्याप्त मात्रा में शक्ति, शासन या सत्ता सम्मिलित हो।”
  • लॉसवेल और कॉप्लान के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था गम्भीर वंचना है जो राजनीतिक व्यवस्था को अन्य व्यवस्थाओं से अलग करती है।”

प्रश्न 4.
राजनीतिक प्रणाली की कोई चार विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • मानवीय सम्बन्ध-राजनीतिक व्यवस्था के लिए मनुष्य के परस्पर सम्बन्ध का होना आवश्यक है, परन्तु सभी प्रकार के मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग नहीं माना जा सकता। केवल उन्हीं मानवीय सम्बन्धों को राजनीतिक व्यवस्था का अंग माना जाता हैं जो राजनीतिक व्यवस्था की कार्यशीलता को किसी-न-किसी तरह प्रभावित करते हों।
  • औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग-औचित्यपूर्ण शारीरिक दबाव शक्ति के बिना राजनीतिक व्यवस्था का अस्तित्व सम्भव नहीं है। औचित्यपूर्ण शक्ति के द्वारा ही राजनीतिक व्यवस्था के सभी कार्य चलते हैं।
  • अन्तक्रिया-राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों अथवा इकाइयों में अन्तक्रिया हमेशा चलती रहती है। राजनीतिक व्यवस्था के सदस्यों में व्यक्तिगत अथवा विभिन्न समूहों के रूप में सम्पर्क बना रहता है तथा वे एक-दूसरे को प्रभावित करने की कोशिश करते हैं। इकाइयों में अन्तक्रिया न केवल निरन्तर होती है, बल्कि बहपक्षीय होती है।
  • सर्व-व्यापकता-सर्व-व्यापकता का भाव यह है कि विश्व में कोई ऐसा समाज नहीं होगा जहां राजनीतिक प्रणाली का अस्तित्व न हो। सांस्कृतिक एवं असांस्कृतिक समाजों में भी राजनीतिक प्रणाली का अस्तित्व अवश्य होता है। यह ठीक है कि हर समाज में राजनीतिक प्रणाली का स्वरूप एक समान नहीं होता, परन्तु राजनीतिक प्रणाली का स्वरूप प्रत्येक समाज में अवश्य होता है।

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प्रश्न 5.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में चार मुख्य अन्तर लिखो। .
अथवा
राज्य व राजनैतिक प्रणाली में कोई चार अंतर बताइए।
उत्तर-
राज्य और राजनीतिक व्यवस्था में मुख्य अन्तर निम्नलिखित हैं-

  • राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। इनमें से यदि एक तत्त्व भी न हो, तो राज्य की स्थापना नहीं की जा सकती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व न होकर अनेक तत्त्व होते हैं।
  • राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है। आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर ‘वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति’ शब्दों का प्रयोग करते हैं।
  • राज्य स्थायी है जबकि राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील है। राज्य स्थायी है और इसका अन्त तब होता है जब उससे प्रभुसत्ता छीन ली जाती है। प्रभुसत्ता मिलने पर राज्य की स्थापना दुबारा हो जाती है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था परिवर्तनशील होती है। समय तथा परिस्थितियों के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था बदलती रहती है।
  • राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से अधिक व्यापक है-राजनीतिक व्यवस्था का क्षेत्र राज्य के क्षेत्र से कहीं अधिक विशाल है।

प्रश्न 6.
फीडबैक लूप व्यवस्था किसे कहा जाता है ?
अथवा
डेविड ईस्टन की कच्चा माल फिर देने (Feed back loop) की प्रक्रिया का वर्णन करें।
अथवा
फीडबैक लूप (Feedback Loop) व्यवस्था से आपका क्या अभिप्राय है ।
उत्तर-
डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेशों और निर्गतों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों में निरन्तर सम्पर्क रहता है। फीड बैक का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों और परिणामों को पुनः व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना। ईस्टन के अनुसार निर्गतों के परिणामों को निवेशों के साथ जोड़ने तथा इस प्रकार निवेश तथा निर्गतों के बीच निरन्तर सम्बन्ध बनाने के कार्य को फीड बैक लूप कहते हैं। यदि राजनीतिक व्यवस्था के व्यावहारिक रूप को देखा जाए तो आधुनिक युग में राजनीतिक संस्थाएं और राजनीतिक दल फीड बैक लूप व्यवस्था का कार्य करते हैं। इस प्रकार राजनीतिक व्यवस्था में वह क्रिया तब तक चलती रहती है जब तक एक राजनीतिक व्यवस्था इस पर डाले गए दबावों और मांगों को सहन करती है, परन्तु जब यह खतरनाक सीमा को पार कर जाती है तो राजनीतिक व्यवस्था में दबाव और मांगों को सहन करने की शक्ति नहीं रहती और इससे राजनीतिक व्यवस्था का पतन हो जाता है।

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प्रश्न 7.
राजनीतिक प्रणाली के निकास कार्यों के बारे में लिखिए।
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के किन्हीं तीन निकास कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उपव्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।

2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की जिम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

3. नियम निर्णयन कार्य-समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों की निष्पक्षता को कायम रखा जा सके जिससे नागरिकों का विश्वास बना रहे।

प्रश्न 8.
राजनैतिक प्रणाली के निवेश कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के कोई तीन निवेश कार्य लिखिए।
उत्तर-
निवेश कार्य-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि। आल्मण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं-

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते, परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं, उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

3. हित समूहीकरण-विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देशी नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा।

4. राजनीतिक संचार-राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। संचार के साधन निश्चित ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 9.
“राजनीतिक प्रणाली” की सीमाएं क्या हैं ?
उत्तर-
प्रत्येक राज्य का वातावरण अन्य राज्यों से अलग होता है। इसी वातावरण में रहकर किसी राज्य की राजनीतिक व्यवस्था अपनी भूमिका निभाती है। वास्तव में राजनीतिक व्यवस्था निर्बाध रूप से कार्य नहीं कर सकती। उस पर आन्तरिक व बाहरी वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है। यही वातावरण राजनीतिक व्यवस्था की भूमिका या कार्यों को सीमित कर देता है। आल्पण्ड और पॉवेल के अनुसार प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था की अपनी सीमाएं होती हैं जो इसको अन्य प्रणालियों से अलग करती हैं। राजनीतिक प्रणाली की सीमाएं क्षेत्रीय नहीं बल्कि कार्यात्मक होती हैं और यह सीमाएं समय-समय पर बदलती रहती हैं। उदाहरणतया युद्ध के समय राजनीतिक प्रणाली की सीमाओं में विस्तार हो जाता है, लेकिन युद्ध समाप्त होते ही ये सीमाएं संकुचित हो जाती हैं।

प्रश्न 10.
कानून की दबावकारी शक्ति क्या होती है ?
अथवा
कानून की दबावकारी शक्ति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक राज्य व्यवस्था के सुचारु रूप से संचालन के लिए कानूनों का निर्माण किया जाता है। कानूनों के पीछे राज्य की शक्ति होती है। प्रत्येक नागरिक बिना किसी भेदभाव के कानून के अधीन होता है। सभी व्यक्तियों के साथ एक-जैसी परिस्थितियों में समान व्यवहार किया जाता है। देश के प्रत्येक नागरिक के लिए राज्य द्वारा बनाए गए कानूनों का पालन करना अनिवार्य होता है। यदि कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है अथवा कानून का पालन नहीं करता तो उसे राज्य शक्ति द्वारा दण्डित किया जा सकता है। कानून नागरिकों को किसी कार्य को करने अथवा न करने पर बाध्य कर सकता है। ऐसा न करने पर दण्ड दिया जा सकता है। इसे कानून की बाध्यकारी शक्ति कहा जाता है।

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प्रश्न 11.
राजनीतिक प्रणाली का हित स्पष्टीकरण कार्य क्या है ?
अथवा
राजनैतिक प्रणाली के हित स्पष्टीकरण के कार्य की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हित स्वरूपीकरण या स्पष्टीकरण राजनीतिक प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण कार्य है। समाज में रहते सभी लोगों अथवा सभी वर्गों की मांगें तथा हित एक समान नहीं हो सकते। इसलिए यह अनिवार्य होता है कि विभिन्न वर्गों के लोग अपने हितों अथवा अपनी मांगों का स्पष्टीकरण करें ताकि सरकार उस सम्बन्धी योग्य निर्णय ले सके। जब राजनीतिक दल अथवा अन्य संगठन लोगों की मांगें सरकार तक पहुंचाते हैं तो वह हितों का स्पष्टीकरण कर रहे होते हैं। राजनीतिक दल तथा ऐसे अन्य संगठन राजनीतिक प्रणाली के अंग है। इसलिए उनके द्वारा किए कार्य राजनीतिक प्रणाली के कार्य माने जाते हैं। हित स्पष्टीकरण कार्य व्यापारिक संघों (Trade Unions) तथा अन्य दबाव समूहों (Pressure Groups) द्वारा भी किया जाता है।

प्रश्न 12.
राजनीतिक प्रणाली का राजनीतिक संचार कार्य लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना। राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है। संचार के साधन निश्चय ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता। आधुनिक प्रगतिशील समाज में संचारव्यवस्था को जहां तक हो सका है, तटस्थ बनाने की कोशिश की गई है और इसकी स्वतन्त्रता एवं स्वायत्तता को स्वीकार कर लिया गया है।

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प्रश्न 13.
राजनीतिक प्रणाली का हित समूहीकरण कार्य क्या है?
अथवा
हित समूहीकरण से क्या भाव है ? यह कार्य कौन करता है ?
उत्तर-
विभिन्न संघों के हितों की पूर्ति के लिए अलग-अलग कानून या नीति का निर्माण नहीं किया जा सकता। विभिन्न संघों या समूहों के हितों को इकट्ठा करके उनकी पूर्ति के लिए एक सामान्य नीति निर्धारित की जाती है। विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। आलमण्ड व पॉवेल के शब्दों में, “मांगों को सामान्य नीति स्थानापन्न (विकल्प) में परिवर्तित करने के प्रकार्य को हित समूहीकरण कहा जाता है।” (“The function of converting demands into general policy alternatives is called interest aggregation.”) यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देश नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा । यह प्रकार्य राजनीतिक व्यवस्था में नहीं बल्कि सभी कार्यों में पाया जाता है। मानव अपने विभिन्न हितों को इकट्ठा करके एक बात कहता है। हित-समूह अपने विभिन्न उपसमूहों या मांगों का समूहीकरण करके अपनी मांग रखते हैं। राजनीतिक दल विभिन्न समुदायों या संघों की मांगों को ध्यान में रखकर अपना कार्यक्रम निर्धारित करते हैं। इस प्रकार हित समूहीकरण राजनीतिक व्यवस्था में निरन्तर होता रहता है।

प्रश्न 14.
निवेशों से आपका क्या भाव है ?
अथवा
निवेश समर्थन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था का अपना राजनीतिक ढांचा होता है। राजनीतिक ढांचा तभी कार्य कर सकता है यदि इसके लिए उसे आवश्यक सामग्री प्राप्त हो। राजनीतिक व्यवस्था निवेशों के बिना नहीं चल सकती। डेविड ईस्टन ने निवेशों को दो भागों में बांटा है

1.निवेश मांगें- प्रत्येक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह अथवा संगठन राजनीतिक प्रणाली से कुछ मांगों की पूर्ति की आशा रखते हैं और इसीलिए वे राजनीतिक व्यवस्था के सामने कुछ मांगें प्रस्तुत करते हैं। डेविड ईस्टन के अनुसार ये मांगें चार प्रकार की हो सकती हैं-(1) राजनीतिक व्यवस्था में भाग लेने की मांग (2) वस्तुओं और सेवाओं के वितरण की मांग (3) व्यवहार को नियमित करने के सम्बन्ध में मांग (4) संचारण और सूचना प्राप्त करने के सम्बन्ध में मांग।

2. निवेश समर्थन-डेविड ईस्टन के अनुसार समर्थन उन क्रियाओं को कहा जाता है जो राजनीतिक व्यवस्था की मांगों का मुकाबला करने की क्षमता प्रदान करती है। यदि किसी राजनीतिक व्यवस्था के पास किसी मांग के लिए समर्थन प्राप्त नहीं है अर्थात् उसके पास उसे पूरा करने की क्षमता नहीं है तो वह उसे पूरा नहीं कर सकती। समर्थन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-(1) भौतिक समर्थन (2) वैधानिक समर्थन (3) सहभागी समर्थन (4) सम्मान समर्थन।

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प्रश्न 15.
निकासों के अर्थों की व्याख्या कीजिए।
अथवा
निकासों से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था में मांगों तथा समर्थनों द्वारा आरम्भ की गई गतिविधियों के परिणामों को ही निर्गत या निकास कहा जाता है। यह आवश्यक नहीं है कि मांगों की पूर्ति के ही निकास होते हैं। निकास मांगों के अनुकूल भी हो सकते हैं और उनके विरुद्ध भी। निकास अग्रलिखित प्रकार के हो सकते हैं

  • निकालना-यह लगान, कर, जुर्माना, लूट का माल और व्यक्तिगत सेवाओं के रूप में हो सकती है।
  • व्यवहार का नियमन-व्यवहार का नियम जो मनुष्यों के सम्पूर्ण व्यवहारों तथा सम्बन्धों को प्रभावित करता है।
  • वस्तुओं या सेवाओं का वितरण-निर्गत का एक अन्य रूप वस्तुओं, सेवाओं के अवसर और पदवियों का वितरण आदि है।
  • सांकेतिक निर्गत-इसमें मूल्यों तथा आदर्शों का पुष्टिकरण, राजनीतिक चिह्नों का प्रदर्शन, नीतियों की घोषणा आदि को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 16.
राजनीतिक प्रणाली के छः कार्य लिखें।
उत्तर-
इसके लिए प्रश्न नं० 7 एवं 8 देखें।

1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिए। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उपव्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।

2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। नियमों को यदि सही ढंग से लागू नहीं किया जाता तो नियम बनाने का उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है और उचित परिणामों की आशा नहीं की जा सकती। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की जिम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

3. नियम निर्णयन कार्य-समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अत: यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक अच्छी राजनीतिक व्यवस्था में न्यायालयों को पूर्ण रूप से स्वतन्त्र रखा जाता है ताकि न्यायाधीशों की निष्पक्षता को कायम रखा जा सके जिससे नागरिकों का विश्वास बना रहे।

निवेश कार्य-निवेश कार्य गैर-सरकारी उप-प्रणालियों, समाज तथा सामान्य वातावरण द्वारा पूरे किए जाते हैं, जैसे-दल, दबाव समूह, समाचार-पत्र आदि। आल्मण्ड ने राजनीतिक व्यवस्था के चार निवेश कार्य बतलाए हैं-

1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-आरम्भ में बच्चे राजनीति से अनभिज्ञ होते हैं और उसमें रुचि भी नहीं लेते, परन्तु जैसे-जैसे वे बड़े होते जाते हैं उनके मन में धीरे-धीरे राजनीतिक वृत्तियां बैठती जाती हैं। वे राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं, उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

3. हित समूहीकरण-विभिन्न हितों को इकट्ठा करने की क्रिया को ही हित समूहीकरण कहा जाता है। यह प्रकार्य दो प्रकार से सम्पादित हो सकता है। प्रथम, विभिन्न हितों को संयुक्त और समायोजित करके तथा द्वितीय, एक देशी नीति के प्रतिमान में निष्ठा रखने वाले व्यक्तियों की राजनीतिक भर्ती द्वारा।

4. राजनीतिक संचार-राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि उसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। संचार के साधन निश्चित ही राजनीतिक व्यवस्था को प्रभावित करते हैं। संचार के बिना हित स्पष्टीकरण का काम हो ही नहीं सकता।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजनीतिक प्रणाली से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली का सम्बन्ध उन सब बातों, क्रियाओं तथा संस्थाओं से है जो किसी-न-किसी प्रकार से राजनीतिक जीवन को प्रभावित करती हैं। राजनीतिक व्यवस्था का सम्बन्ध केवल कानून बनाने और लागू करने से ही नहीं बल्कि वास्तविक रूप से बल प्रयोग द्वारा उनका पालन करवाने से भी है।

प्रश्न 2.
राजनीतिक व्यवस्था की दो परिभाषाएं लिखो।
उत्तर-

  • डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते
  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “जब हम राजनीतिक व्यवस्था की बात कहते हैं तो हम इसमें उन समस्त अन्तक्रियाओं को शामिल कर लेते हैं जो वैध बल प्रयोग को प्रभावित करती है।”

प्रश्न 3.
प्रणाली की दो मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. प्रणाली भिन्न-भिन्न अंगों या हिस्सों के जोड़ों से बनती है।
  2. प्रणाली के भिन्न-भिन्न अंगों में परस्पर निर्भरता होती है।

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प्रश्न 4.
राज्य और राजनीतिक प्रणाली में दो मुख्य अन्तर लिखो।
उत्तर-

  1. राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं जबकि राजनीतिक व्यवस्था के अनेक तत्त्व हैं। जनसंख्या, निश्चित भूमि, सरकार तथा प्रभुसत्ता राज्य के चार अनिवार्य तत्त्व हैं। परन्तु राजनीतिक व्यवस्था के निश्चित तत्त्व न होकर अनेक तत्त्व होते हैं।
  2. राज्य की मुख्य विशेषता प्रभुसत्ता है जबकि राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण वैध शारीरिक शक्ति है। आन्तरिक तथा बाहरी प्रभुसत्ता राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है, परन्तु राजनीतिक व्यवस्था में प्रभुसत्ता की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है। आधुनिक राजनीतिक विद्वान् आन्तरिक प्रभुसत्ता की धारणा के स्थान पर ‘वैध शारीरिक दण्ड देने की शक्ति’ शब्दों का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 5.
राजनीतिक प्रणाली में फीडबैक लूप व्यवस्था किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
डेविड ईस्टन के अनुसार, निवेशों और निर्गतों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। इन दोनों में निरन्तर सम्पर्क रहता है। फीड बैक का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों और परिणामों को पुनः व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना। ईस्टन के अनुसार निर्गतों के परिणामों को निवेशों के साथ जोड़ने तथा इस प्रकार निवेश तथा निर्गतों के बीच निरन्तर सम्बन्ध बनाने के कार्य को फीड बैक लूप कहते हैं। यदि राजनीतिक व्यवस्था के व्यावहारिक रूप को देखा जाए तो आधुनिक युग में राजनीतिक संस्थाएं और राजनीतिक दल फीड बैक लूप व्यवस्था का कार्य करते हैं।

प्रश्न 6.
‘शासन की प्रक्रिया’ (The Process of Government) नामक पुस्तक किसने व कब लिखी ?
उत्तर-
‘शासन की प्रक्रिया’ नामक पुस्तक आर्थर बेंटले ने लिखी।

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प्रश्न 7.
‘राजनीतिक प्रणाली’ (The Political System) नाम की पुस्तक किसने व कब लिखी ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली (The Political System) नाम की पुस्तक डेविड ईस्टन ने सन् 1953 में लिखी।

प्रश्न 8.
राजनीतिक प्रणाली के दो निकास (Output) कार्यों के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  1. नियम बनाना-समाज में व्यक्तियों के रहने के लिए आवश्यक है कि उनके पारस्परिक सम्बन्धों को नियमित करने के लिए नियम होने चाहिएं। राजनीतिक व्यवस्था में नियम बनाना मुख्यतः विधानपालिकाओं तथा उप-व्यवस्थापन अभिकरणों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में इस कार्य को किया जाता है।
  2. नियम लागू करना-राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन्हें लागू करना है। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेवारी पूर्णतया सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है।

प्रश्न 9.
राजनीतिक प्रणाली के दो निवेश कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती-जब लोग राजनीति में भाग लेना आरम्भ करते हैं और अपनी भूमिका निभानी आरम्भ करते हैं। इसे ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं। राजनीतिक व्यवस्था में समाजीकरण के साथ-साथ भर्ती का काम भी चलता रहता है। राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।
  2. हित स्पष्टीकरण-अपने-अपने हितों की रक्षा करने के लिए प्रत्येक राजनीतिक प्रणाली के सदस्य अपनी प्रणाली में कुछ मांगें पेश किया करते हैं। जिस तरीके से इन मांगों को सही रूप प्रदान किया जाता है तथा जिस प्रकार से ये मांगें प्रणाली के निर्णयकर्ताओं को प्रस्तुत की जाती हैं उसे हित स्पष्टीकरण की प्रक्रिया कहा जाता है।

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प्रश्न 10.
राजनीतिक संचार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है सूचनाओं का आदान-प्रदान करना। राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक संचार का बहुत महत्त्व है, क्योंकि इसके द्वारा ही अन्य सभी कार्य सम्पादित होते हैं। सभी व्यक्ति चाहे वे नागरिक हों या अधिकारी वर्ग से सम्बन्धित हों, सूचना पर ही निर्भर रहते हैं और उनके अनुसार ही उनकी गतिविधियों का संचालन होता है। इसलिए प्रजातन्त्र में प्रेस तथा भाषण की स्वतन्त्रता पर जोर दिया जाता है जबकि साम्यवादी राज्यों एवं तानाशाही राज्यों में उन पर प्रतिबन्ध लगाने की बात की जाती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की अवधारणा का जन्म 20वीं शताब्दी में हुआ।

प्रश्न 2.
राजनीतिक प्रणाली शब्द का प्रयोग सबसे पहले किस राजनीतिक विज्ञानी ने किया ?
उत्तर-
डेविड ईस्टन ने।

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प्रश्न 3.
राजनीतिक प्रणाली के अधीन ‘राजनीतिक’ शब्द का अर्थ बताएं।
उत्तर-
किसी भी समुदाय या संघ को राजनीतिक उसी समय कहा जा सकता है जबकि उसकी आज्ञा का पालन प्रशासकीय कर्मचारी वर्ग द्वारा शारीरिक बल प्रयोग के भय से करवाया जाता है।

प्रश्न 4.
व्यवस्था शब्द का अर्थ लिखिए।
अथवा
प्रणाली शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
व्यवस्था (प्रणाली) शब्द का प्रयोग अन्तक्रियाओं (interactions) के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली का अर्थ उन अन्योन्याश्रित सम्बन्धों के समूह से लिया जाता है, जिसके संचालन में सत्ता या शक्ति का हाथ होता है।

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प्रश्न 6.
राजनीतिक प्रणाली की कोई एक परिभाषा दें।
उत्तर-
डेविड ईस्टन का कहना है, “राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में निकाला गया है तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।”

प्रश्न 7.
राजनीतिक प्रणाली की कोई एक विशेषता लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था प्रत्येक समाज में पाई जाती है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक प्रणाली का एक निवेश कार्य लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण और प्रवेश या भर्ती।

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प्रश्न 9.
राजनीतिक प्रणाली का एक निकास कार्य लिखें।
उत्तर-
नियम निर्माण कार्य।

प्रश्न 10.
राजनीतिक प्रणाली एवं राज्य में कोई एक अन्तर लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था में आत्मनिर्भर अंगों का अस्तित्व होता है जबकि राज्य की धारणा में ऐसी कोई विशेषता नहीं है।

प्रश्न 11.
फीड बैक लूप व्यवस्था का अर्थ लिखें।
उत्तर-
फीड बैक लूप व्यवस्था का अर्थ है-निर्गतों के प्रभावों के परिणामों को पुन: व्यवस्था में निवेश के रूप में ले जाना।

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प्रश्न 12.
राजनीतिक प्रणाली की धारण को लोकप्रिय बनाने वाले किसी एक आधुनिक लेखक का नाम लिखें।
उत्तर-
डेविड ईस्टन।

प्रश्न 13.
राजनीतिक व्यवस्था का वातावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
समाज के वातावरण या परिस्थितियों का राजनीतिक प्रणाली पर जो प्रभाव पड़ता है, उसे हम सामान्य रूप से राजनीतिक प्रणाली का वातावरण कहते हैं।

प्रश्न 14.
‘नियम निर्माण कार्य’ से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
परम्परावादी दृष्टिकोण के अनुसार विधानमण्डल को सरकार का एक महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता है। इस अंग का मुख्य कार्य कानून बनाना है। इसी कार्य को ही आल्मण्ड ने राजनीतिक प्रणाली के नियम निर्माण के कार्य का स्वरूप बताया है।

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प्रश्न 15.
‘नियम निर्णय कार्य’ क्या होता है ?
उत्तर-
समाज में जब भी कोई नियम बनाया जाता है, उसके उल्लंघन की भी सम्भावना सदैव बनी रहती है। अतः यह आवश्यक है कि जो व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है, उसे दण्ड मिलना चाहिए। प्रायः सभी आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्यों में यह कार्य न्यायालयों द्वारा किए जाते हैं।

प्रश्न 16.
‘नियम लागू करने का कार्य’ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था का कार्य केवल नियम बनाना ही नहीं है, बल्कि उन नियमों को लागू करना भी है। राजनीतिक व्यवस्था में नियमों को लागू करने की ज़िम्मेदारी पूर्णतः सरकारी कर्मचारियों या नौकरशाही की होती है। यहां तक कि न्यायालयों के निर्णय भी कर्मचारी वर्ग द्वारा लागू किए जाते हैं।

प्रश्न 17.
आल्मण्ड के अनुसार राजनीतिक व्यवस्था की कोई एक विशेषता लिखिए।
उत्तर-
राजनीतिक व्यवस्था की सार्वभौमिकता।

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प्रश्न 18.
राजनीतिक प्रणाली के कौन-से निकास कार्य हैं ?
उत्तर-
(1) नियम बनाना
(2) नियम लागू करना
(3) नियम निर्णयन कार्य।

प्रश्न 19.
राजनीतिक प्रणाली की सीमाएं क्या हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक प्रणाली पर आन्तरिक व बाहरी वातावरण का प्रभाव अवश्य पड़ता है, जोकि राजनीतिक प्रणाली की भूमिका को सीमित कर देता है। इसकी सीमाएं क्षेत्रीय नहीं, बल्कि कार्यात्मक होती हैं।

प्रश्न 20.
राजनीतिक प्रणाली के किसी एक अनौपचारिक ढांचे का नाम लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक दल।

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प्रश्न 21.
राजनीतिक प्रणाली के किसी एक औपचारिक ढांचे का नाम लिखें। ।
उत्तर-
विधानपालिका।

प्रश्न 22.
राजनीतिक प्रणाली के दो कार्यों के नाम लिखो।
उत्तर-
(1) राजनीतिक समाजीकरण तथा भर्ती
(2) हित स्पष्टीकरण।

प्रश्न 23.
डेविड ईस्टन के अनुसार राजनैतिक समुदाय का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जो समूह सामूहिक क्रियाओं और प्रयत्नों द्वारा अपनी समस्याओं को हल करने का प्रयास करते हैं, उन्हें राजनीतिक समुदाय कहा जाता है।

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प्रश्न 24.
हित स्पष्टीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
आल्मण्ड व पावेल के अनुसार अलग-अलग व्यक्तियों तथा समूहों द्वारा राजनीतिक निर्णयकर्ताओं से मांग करने की प्रक्रिया को हित स्पष्टीकरण कहते हैं।

प्रश्न 25.
राजनीतिक संचार से क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
राजनीतिक संचार का भाव है, सूचनाओं का आदान-प्रदान करना।

प्रश्न 26.
हित समूहीकरण क्या होता है ?
उत्तर-
विभिन्न हितों को एकत्र करने की क्रिया को हित समूहीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 27.
राजनीतिक भर्ती से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक भर्ती से अभिप्राय उस कार्य से है, जिसके माध्यम से राजनीतिक व्यवस्था की भूमिकाओं की पूर्ति की जाती है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें –

1. राजनीतिक व्यवस्था के दो भाग-राजनीतिक एवं ………………
2. राजनीतिक शब्द ……………….. का सूचक है।
3. व्यवस्था शब्द का प्रयोग …………….. के समूह का संकेत करने के लिए किया जाता है।
4. राजनीतिक समाजीकरण एक …………….. कार्य है।
5. नियम निर्माण एक ……………….. कार्य है।
उत्तर-

  1. व्यवस्था
  2. सत्ता
  3. अन्तक्रियाओं
  4. निवेश
  5. निर्गत ।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. व्यवस्था भिन्न अंगों या हिस्सों से बनती है।
2. प्रत्येक व्यवस्था में एक इकाई के रूप कार्य करने की योग्यता होती है।
3. आल्मण्ड पावेल ने राजनीतिक समुदाय की शक्ति को कानूनी शारीरिक बलात् शक्ति का नाम दिया है।
4. मूल्यों के सत्तात्मक आबंटन की धारणा आल्मण्ड पावेल से सम्बन्धित है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
राजनीतिक व्यवस्था का मुख्य गुण है –
(क) शक्ति या सत्ता
(ख) संगठन
(ग) मानव व्यवहार
(घ) राबर्ट ई० रिग्स।
उत्तर-
(क) शक्ति या सत्ता

प्रश्न 2.
राजनीतिक व्यवस्था शब्द के दो भाग कौन-कौन से हैं ?
(क) राज्य एवं सरकार
(ख) अधिकार एवं कर्त्तव्य
(ग) राजनीतिक एवं व्यवस्था
(घ) स्वतन्त्रता एवं समानता।
उत्तर-
(ग) राजनीतिक एवं व्यवस्था

प्रश्न 3.
“राजनीतिक व्यवस्था अन्तक्रियाओं का समूह है, जिसे सामाजिक व्यवहार की समग्रता में से निकाला गया है, तथा जिसके द्वारा समाज के लिए सत्तात्मक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं।” यह कथन किसका है।
(क) आल्मण्ड पावेल
(ख) डेविड ईस्टन
(घ) राबर्ट डहल।
(ग) लासवैल
उत्तर-
(ख) डेविड ईस्टन

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 1 राजनीतिक व्यवस्था

प्रश्न 4.
राजनीतिक व्यवस्था की विशेषता है
(क) मानवीय सम्बन्ध
(ख) औचित्यपूर्ण शक्ति का प्रयोग
(ग) व्यापकता
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 5.
राजनीतिक व्यवस्था का निवेश कार्य है
(क) हित स्पष्टीकरण
(ख) हित समूहीकरण
(ग) राजनीतिक संचारण
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

PSEB 11th Class Geography Guide नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा कौन-सा है ?
उत्तर-
गंगा-ब्रह्मपत्र डेल्टा।

प्रश्न (ख)
विश्व की सबसे बड़ी कैनियन कौन-सी है ?
उत्तर-
अमेरिका की कोलोरा नदी पर ग्रांड कैनियन।

प्रश्न (ग)
डेल्टा और मियाँडर (Meander) (घुमाव ) शब्द कहाँ से लिए गए हैं ?
उत्तर-
डेल्टा यूनानी भाषा के चौथे अक्षर (A) से लिया गया है। मियाँडर तुर्की भाषा का शब्द है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न (घ)
कोसी नदी के जलोढ़ पंखे की लंबाई-चौड़ाई लिखें।
उत्तर-
154 किलोमीटर लंबा और 143 किलोमीटर चौड़ा।

प्रश्न (ङ)
डेल्टा किसे कहते हैं ? इसकी कोई एक उदाहरण लिखें।
उत्तर-
समुद्र के निकट दरिया के निक्षेप से बने त्रिकोण आकार के मलबे को डेल्टा कहते हैं। गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा इसका उदाहरण है।

2. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
भौतिक मौसमीकरण।
उत्तर-
जब यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने ही स्थान पर टूट-फूट कर चूरा-चूरा हो जाती हैं, तब उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार मौसमीकरण से चट्टानों की टूट-फूट (Disintegration) होती है। इससे रासा

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

प्रश्न (ग)
जैविक मौसमीकरण।
उत्तर-
पौधों, जानवरों और मनुष्यों की गतिविधियों के कारण जब चट्टानों का विघटन हो जाता है, तब इसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं। पौधे अपनी जड़ों से चट्टानों में दरारें डाल देते हैं।

प्रश्न (घ)
अपरदन।
उत्तर-
भू-तल पर काट-छाँट, कुरेदने और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं। नदी, हवा, हिमनदी इसके प्रमुख कारक हैं।

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प्रश्न (ङ)
मानवीय गतिविधियों का मौसमीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
मनुष्य मकानों, सुरंगों, रेलमार्गों, खदानों आदि को बनाने के लिए चट्टानों को तोड़-फोड़ कर कमज़ोर कर देता है।

प्रश्न (च)
मौसमीकरण की क्रिया से क्या अभिप्राय है ? विस्तार सहित लिखें।
उत्तर-
बाहरी शक्तियों के कारण धरती के आकार को बदलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं। इस प्रकार धरती की सतह के ऊपर मौसम के प्रभाव से होने वाली तोड़-फोड़ को मौसमीकरण कहते हैं। जलवायु, नमी, वर्षा, कोहरे आदि के कारण चट्टानें टूटती, फैलती अथवा सिकुड़ती हैं, जिसे मौसमीकरण कहते हैं।

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3. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
अनावृत्तिकरण से क्या अभिप्राय है ? भू-निर्माण (Aggragation) और भू-निमान (निम्न) (Degradation) में अंतर व्याख्या सहित स्पष्ट करें।
उत्तर-
भीतरी और बाहरी शक्तियाँ- भूपटल पर भीतरी (Endogenetic) और बाहरी (Exogenetic) दो प्रकार की शक्तियाँ परिवर्तन लाती हैं। भीतरी शक्तियों द्वारा भूपटल के कुछ भाग ऊँचे उठकर पर्वत, पठार और मैदान बन जाते हैं। कई भाग नीचे धंस जाते हैं और दरारों, घाटियों आदि का रूप धारण कर लेते हैं। इस प्रकार धरातल समतल नहीं होता बल्कि ऊँचा-नीचा हो जाता है। भूपटल की इस असमानता को बाहरी शक्तियाँ (Exogenetic or External Forces) दूर करती हैं। वास्तव में भीतरी और बाहरी शक्तियाँ एक-दूसरे के विपरीत काम करती हैं। जैसे ही धरातल पर भीतरी शक्तियों द्वारा किसी भू-स्थल की रचना होती है, तो बाहरी शक्तियाँ उसे घिसाने का काम आरम्भ कर देती हैं। इन शक्तियों का एक ही काम होता है-धरातल की असमानता को दूर करके भूतल को समतल बनाना। बाहरी शक्तियों को परिवर्तन के बाहरी कारक (External Agents of change) भी कहते हैं।

अनावरण (Denudation)-

मौसमीकरण (Weathering) भूपटल पर परिवर्तन लाने वाली वह बाहरी शक्ति है, जो चट्टानों का विघटन और अपघटन करके उन्हें नष्ट करती है। इसके अलावा एक और प्रक्रिया है, जो चट्टानों को धीरे-धीरे घिसाकर उन्हें नंगा कर देती है और इन चट्टानों से प्राप्त सामग्री को उठाकर ले जाती है, इस प्रक्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं। मौसमीकरण और अपरदन के मिले-जुले प्रभाव को अनावरण कहते हैं। अनावरण चट्टानों को अलग-अलग साधनों द्वारा तोड़-फोड़ कर नंगा करने और फिर उन्हें सपाट करने की क्रिया को कहते हैं। (Denudation means to lay the rocks bare.)

अनावरण के कार्य (Works of Denudation)—अनावरण की क्रिया में नीचे लिखे तीन प्रकार के कार्य होते हैं-

1. अपरदन (Erosion) बहता जल, हिमनदी, वायु आदि शक्तियों के साथ बहते पत्थर, कंकर, रेत आदि भू तल को घिसाते और कुरेदते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।

2. स्थानांतरण (Transportation)-ये कारक अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते हैं। सामग्री को इस प्रकार एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने की क्रिया को ,स्थानांतरण कहते हैं। स्थानांतरण की इस क्रिया में चट्टानों के टुकड़े, पत्थर, कंकड़ आदि आपस में
टकराकर टूटते भी रहते हैं।

3. निक्षेपण (Deposition)—ये कारक अपरदन से प्राप्त मलबे को ले जाकर दूसरे स्थान पर जमा कर देते हैं। इसे निक्षेपण कहते हैं।

इसी प्रकार निचले स्थान को सपाट करने की क्रिया को भू-निर्माण (Aggaradation) कहते हैं और ऊँचे भाग को नीचा करने की क्रिया को भू-निमान (Degradation) कहते हैं।

प्रश्न (ख)
नदी की युवा अवस्था क्या है ? इस अवस्था में नदी कौन-कौन सी आकृतियाँ बनाती है ?
उत्तर-
नदी की युवा अवस्था अथवा प्राथमिक भाग नदी के स्रोत से लेकर मैदानी भाग तक होता है। इस भाग में जल की गति तेज़ होती है, तेज़ ढलान के कारण गहरा कटाव होता हैं और तंग घाटी बनती है। नदी का प्रमुख कार्य अपरदन होता है और इसे युवा नदी कहते हैं।

नदी के कार्य (Works of River)-

भूमि-तल को समतल करने वाली बाहरी शक्तियों में से नदी का सबसे अधिक महत्त्व है। वर्षा का जो पानी धरातल पर बहते हुए पानी (Run-off ) के रूप में बह जाता है, वह नदियों का रूप धारण कर लेता है। नदी के कार्य तीन प्रकार के होते हैं-

  1. अपरदन (Erosion)
  2. स्थानांतरण (Transportation)
  3. निक्षेप (Deposition)

1. अपरदन (Erosion)-नदी का प्रमुख कार्य अपने तल और किनारों पर अपरदन करना है। नदियों का मुख्य . उद्देश्य धरती को समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.)

अपरदन की विधियाँ (Methods of Erosion)-नदी का अपरदन नीचे लिखे तरीकों से होता है-

(i) रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—यह अपरदन घुलन क्रिया (Solution) द्वारा होता है। नदी के जल के संपर्क में आने वाली चट्टानों के नमक (Salts) घुलकर पानी में मिल जाते हैं।

(ii) भौतिक अपरदन (Mechanical Erosion)-नदी के साथ बहने वाले कंकड़, पत्थर आदि नदी के तल और किनारों को काटते हैं। किनारों के कटने से नदी चौड़ी और तल के कटने से नदी गहरी होती है। भौतिक कटाव तीन प्रकार के होते हैं –

(क) तल का कुरेदना (Down cutting)
(ख) किनारों का कुरेदना अथवा तटीय अपरदन (Side Cutting)
(ग) तोड़-फोड़ (Attrition)

नदी के अपरदन की मात्रा आगे लिखी बातों पर निर्भर करती है

यनिक परिवर्तन नहीं होता। सूर्य का ताप और कोहरा इसके प्रमुख कारक हैं।

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प्रश्न (ख)
ऑक्सीकरण।
उत्तर-
इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौहयुक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग लगा देती है। जंग लगने से चट्टानों का रंग पीला या लाल हो जाता है और ये टूटकर बारीक-बारीक कण बन जाती हैं, इसे ऑक्सीकरण कहते हैं।

  1. पानी का परिमाण (Volume of water)
  2. धरातल की ढलान (Slope of the land)
  3. पानी का वेग (Velocity of water)
  4. नदी का भार (Load of water)
  5. चट्टानों की रचना (Nature of the Rocks)

नदी में पानी की मात्रा अधिक होने के कारण अपरदन अधिक होता है।
यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती हैं। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (square) का अनुपात होता है-

अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2
नदी के अपरदन के द्वारा नीचे लिखे भू-आकार बनते हैं-

1. ‘V’ आकार की घाटी (‘V’ Shaped valley)—नदी पहाड़ी भाग में अपने तल को गहरा करती है, जिसके कारण ‘V’ आकार की गहरी घाटी बनती है। ऐसी तंग, गहरी घाटियों को कैनियन (Canyons) अथवा प्रपाती घाटी भी कहते हैं।
उदाहरण-संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में कोलोराडो घाटी में ग्रैंड कैनियन (Grand Canyon) 480 किलोमीटर लंबी और 2000 मीटर गहरी है।

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2. गहरी घाटी/गॉर्ज (Gorges)—पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत गहरे और तंग नदी मार्गों को गॉर्ज (Gorge) अथवा कंदरा कहते हैं। पहाड़ी क्षेत्र ऊँचे उठते रहते हैं, परन्तु नदियाँ निरंतर गहरे कटाव करती रहती हैं। इस प्रकार ऐसे नदी मार्गों का निर्माण होता है, जिनकी दीवारें लंबरूप में होती हैं। उदाहरण-हिमालय पर्वत में सिंध नदी, असम में ब्रह्मपुत्र नदी और हिमाचल प्रदेश में सतलुज नदी गहरे गॉर्ज बनाती है।

3. चश्मे और झरने (Rapids and Water-falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे जल का झरना अथवा जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

(क) जब कठोर चट्टानों की परत नरम चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) रूप में हो, तो निचली नरम चट्टानें जल्दी कट जाती हैं, तब चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।

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उदाहरण-

(i) यू० एस० ए० में नियागरा (Niagra) जल-प्रपात जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है। (ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है। (iii) जब कठोर और नरम चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (vertical) में हों, तब कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

उदाहरण-अमेरिका में यैलो स्टोन नदी (Yellow Stone River) का जल-प्रपात।
चश्मे (Rapids)—जब कठोर और मुलायम चट्टानों की परतें एक-दूसरे के ऊपर बिछी हों और कुछ झुकी हों, तो चश्मों की एक लड़ी बन जाती है।

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उदाहरण-कांगो नदी (Cango River) में लिविंगस्टोन फॉल्ज़ (Living Stone Falls) नामक 32 झरनों की एक लड़ी है।

प्रश्न (ग)
जमा करने की क्रिया के दौरान नदी का भू-आकृतियों का धरातल (Topography) पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
नदी का परिवहन कार्य (Transportation Work of River) –
नदी अपनी अपरदन क्रिया द्वारा प्राप्त सामग्री (Load) को उठाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है। नदी द्वारा इस सामग्री के स्थान-परिवर्तन की क्रिया को नदी-परिवहन कहते हैं। इस सामग्री का स्थान-परिवर्तन अनेक प्रकार से होता है, जो आगे लिखे अनुसार है

1. जल में रगड़ के साथ (Traction)—इसमें बड़े चट्टानी टुकड़े, भारी पत्थर आदि नदी के तल के साथ साथ आगे बढ़ते जाते हैं।

2. जल में उठाया हुआ मलबा (Load in Suspension)—मध्यवर्ती और सूक्ष्म श्रेणी की सामग्री नदी के जल के साथ तैरती जाती है।

3. जल में घुलकर (Solution)—जो सामग्री घुलनशील होती है, वह जल-धारा में घुले हुए रूप में प्रवाह करती है। नदी की परिवहन शक्ति दो तत्त्वों पर निर्भर करती है –

(i) नदी का वेग (Velocity of the River)
(ii) नदी के जल की मात्रा (Volume of water)-नदी के परिवहन और वेग में छठी शक्ति का अनुपात होता है –

नदी की परिवहन शक्ति = (नदी का वेग)6

नदी का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of River)-

नदी का वेग जब कम हो जाता है और उसमें सामग्री की अधिकता हो जाती है, तो इस सामग्री का निक्षेप आरंभ हो जाता है। नदी की इस क्रिया को नदी का निक्षेपण (River Deposition) कहते हैं। इस प्रकार नदियों द्वारा निक्षेपण उनकी अपरदन क्रिया का प्रतिफल है। भारी पदार्थों का मैदानी मार्ग के ऊपरी भागों में और सूक्ष्म कणों का डेल्टा के भागों में निक्षेपण होता है।

नदी का निक्षेपण तब होता है, जब-

1. नदी का जल और अपरदन शक्ति कम हो जाए। 2. मुख्य नदी और सहायक नदियों का भार बढ़ जाए। 3. नदी की ढलान कम हो। 4. नदी का वेग धीमा हो।

नदी निक्षेपण द्वारा बनी भू-आकृतियाँ (Land forms produced by River Deposition)-

नदी अपने मैदानी मार्ग में अपरदन और निक्षेपण दोनों काम करती है, परंतु डेल्टाई भागों में इसका एक ही निक्षेपण का काम होता है। निक्षेपण क्रिया के फलस्वरूप नीचे लिखी भू-आकृतियों का निर्माण होता है-

1. जलोढ़ पंखे अथवा कोन (Alluvial Fan or Cone)–नदी जब पर्वतीय भागों को छोड़कर मैदान में प्रवेश करती है, तो भूमि की ढलान के कम हो जाने के कारण इसका बहाव धीमा हो जाता है। परिणामस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाए चट्टानों के टुकड़ों, पत्थरों, कंकड़ों आदि को आगे ले जाने में असमर्थ हो जाती है और इस सामग्री को पर्वतों के पैरों में छोड़ देती है। यह निक्षेप ढेर के रूप में पर्वतों के सहारे एकत्र हो जाता है। यह ढेर एक कोण के आकार का होता है। इसे जलोढ़ी पंखा भी कहा जाता है।

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2. नदी विसर्पण अथवा नदी में घुमाव (River Meanders)—प्रौढ़ अवस्था में नदी की ढाल कम हो जाती है और नदी का प्रवाह धीमा हो जाता है। नदी की धाराएँ अपने मार्ग में आने वाली छोटी-सी रुकावट के कारण भी मुड़ जाती हैं और एक किनारे की ओर से दूसरे किनारे की तरफ बहने लगती हैं। ये रुकावट वाले किनारे पर निक्षेपण और दूसरे किनारे पर अपरदन करती हैं। अपरदित किनारे से फिर पहले किनारे की ओर मुड़ जाती हैं और फिर वे किनारों को काटती हैं। इस प्रकार ये दोनों किनारे क्रम से कट जाते हैं। साथ-हीसाथ अपरदित सामग्री का किनारों पर निक्षेप भी होता है। इस प्रकार यदि किनारे का एक भाग कट के पीछे हटता है, तो इसी किनारे का दूसरा भाग इस पदार्थ को प्राप्त करके नदी की ओर बढ़ता है। ऐसी ही क्रिया दूसरे किनारे पर भी होती है। परिणामस्वरूप नदी में घुमाव आने शुरू हो जाते हैं। इन घुमावों को ही नदी विसर्पण कहते हैं। तुर्की देश की मिएंडर (Meanders) नदी के मार्ग में ऐसे अनेक घुमाव या विसर्पण हैं। इसीलिए इस नदी के घुमावों को मिएंडर (Meanders) कहते हैं।

3. धनुषदार झील (Oxbow Lake)-ज्यों-ज्यों नदी में विसर्प बड़े हो जाते हैं, वैसे-वैसे उनका आकार वृत्ताकार होता जाता है। इस अवस्था में नदी बाढ़ के समय मोड़ों को छोड़कर इसके निकटवर्ती भाग को काटकर बहने लगती है। यह सीधा प्रवाह-मार्ग बाढ़ के बाद भी बना रहता है। ऐसी अवस्था में मोड़ वाला भाग झील का रूप धारण कर लेता है। इसे धनुषदार झील कहते हैं। आकार में यह बैल के खुर या धनुष के समान प्रतीत होती है, इसलिए इसे गाय-खुर झील भी कहते हैं।

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4. प्राकृतिक बाँध अथवा तटीय बाँध और बाढ़ के मैदान (Natural Embankments or Levees and Flood Plains)-वर्षा ऋतु में नदी में अचानक बाढ़ आ जाती है, जिसके कारण नदी का जल तटों को पार करके निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने का यत्न करता है परंतु ये तट उसके फैलने पर रोक लगाते हैं, इसलिए वह अपना अधिकतर मलबा तटों पर ही इकट्ठा कर देती है। इससे ये किनारे ऊँचे उठ जाते हैं और बाँध के रूप में बाढ़ के पानी को निकटवर्ती क्षेत्र में फैलने से रोकते हैं। इन्हें तटीय बाँध कहते हैं। ह्वांग-हो, गंगा और मिसीसिपी नदियों की निचली घाटियों में कई तटीय बाँध बन गए हैं। भयंकर बाढ़ के कारण जब ये बाँध टूट जाते हैं, तो उनकी रेत को नदी निकटवर्ती क्षेत्र में निक्षेप कर देती है। इस क्षेत्र को बाढ़ का मैदान कहते हैं।

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5. डेल्टा (Delta) सागर में प्रवेश करने से पहले ढलान बहुत कम होने के कारण नदी की शक्ति और वेग बहुत कम हो जाता है। फलस्वरूप नदी अपने साथ बहाकर लाई सामग्री को अपने मुहाने पर ही एकत्र कर देती है और अपना मार्ग बंद कर लेती है। नदी अपना प्रवाह बनाए रखने के लिए नया मार्ग खोजती है। इस स्थल आकृति को डेल्टा कहा जाता है। इसका आकार यूनानी भाषा की वर्णमाला का चौथा अक्षर डेल्टा (Δ) से मिलता है।गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बने सुंदर वन डेल्टा और नील नदी का डेल्टा इसके विशेष उदाहरण हैं। डेल्टा के निर्माण के लिए नीचे लिखी स्थितियों का होना ज़रूरी है –
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  • नदी का स्रोत पर्वतों में हो, जहाँ से यह काफ़ी मात्रा में सामग्री बहाकर ला सके।
  • पर्वत और मैदानी मार्गों में कई सहायक नदियाँ मिलनी चाहिए, ताकि अधिक सामग्री प्राप्त हो सके।
  • नदी का मैदानी मार्ग अधिक लंबा होना चाहिए, ताकि उसका प्रवाह धीमा हो जाए और नदी द्वारा लाई सामग्री सीधी सागर में न जा गिरे।
  • नदी के मार्ग में कोई झील नहीं होनी चाहिए। मार्ग में यदि कोई झील होगी, तो सामग्री का निक्षेप उसमें हो जाएगा और डेल्टा के निर्माण के लिए सामग्री नहीं रहेगी।
  • नदी के मुहाने के पास सागर शांत होना चाहिए, नहीं तो सागर की धाराएँ, लहरें और ज्वारभाटा सामग्री को गहरे सागर में ले जाएंगे और मुहाने के पास निक्षेप नहीं होगा।

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प्रश्न (घ)
नदी अपरदन की क्रिया को निर्धारित करने वाले तत्त्वों के बारे में लिखें।
उत्तर-
नदी का अपरदन कार्य (Erosional Work of the River)-

नदी द्वारा प्रवाहित पत्थर, कंकड़, रेत आदि नदी घाटी को घिसाते, कुरेदते और चट्टानों की तोड़-फोड़ करते हैं। इस क्रिया को अपरदन कहते हैं।
नदी सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। नदी का मुख्य उद्देश्य धरती को काटकर समुद्र तक ले जाना है। (Rivers carry the land to the sea.) नदी आगे लिखे तरीकों से अपरदन करती है-

  1. भौतिक अपरदन (Physical Erosion)—इसमें नदी किनारों के कटाव (Side Cutting) और तल के कटाव (Down Cutting) का काम करती है।
  2. रासायनिक अपरदन (Chemical Erosion)—नदी घुलनशील चट्टानों को घोलकर नष्ट कर देती है।

नदी के अपरदन के प्रकार (Types of River Erosion)-

  1. रगड़न (Abrasion)–नदी बहते पत्थर, कंकड़, बज़री आदि के साथ रगड़ने की क्रिया करती है।
  2. सहरगड़न (Attrition)—पत्थर, कंकड़ आदि आपस में टकराते हैं।
  3. घुलकर (Solution)-नदी का जल कई चट्टानों को घोल देता है। अनुमान है कि नदियाँ हर वर्ष 500 करोड़ टन खनिज पदार्थ घोलकर समुद्र में ले जाती हैं।
  4. जल-दबाव क्रिया (Hydraulic action) नदी के जल के दबाव के साथ भी चट्टानें टूटती रहती हैं।

नदी अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling River Erosion)-नदी अपरदन को नीचे लिखे कारक नियंत्रित करते हैं-

1. नदी में जल की मात्रा (Volume of water in a River) नदी में जल की मात्रा अधिक होने से अपरदन भी अधिक होता है। यही कारण है कि जिन नदियों में बाढ़ें अधिक आती हैं, उनमें अपरदन भी अधिक होता है।

2. नदी के जल की गति (Velocity of River Water)—तेज़ी से प्रवाह करती हुई नदी में अधिक शक्ति होती है। नदी का वेग नदी घाटी की ढलान और जल प्राप्ति पर निर्भर करता है। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो अपरदन शक्ति चौगुनी हो जाती है। नदी के वेग और अपरदन शक्ति में वर्ग (Square) का अनुपात होता है
अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)2

3. नदी जल में सामग्री की मात्रा (Volume of Load in a River)–नदी अपने जल के साथ घाटी से प्राप्त अनेक प्रकार की सामग्री का प्रवाह करती है। कुछ सामग्री जल में घुली हुई, कुछ तैरती हुई अवस्था में और कुछ तल के साथ-साथ लुढ़कती हुई चलती है। यह सामग्री नदी के उपकरण (Tools) होते हैं।

4. चट्टानों की कठोरता (Solidity of Rocks) नदी तल पर चट्टानों की संरचना और उनके लक्षणों पर भी अपरदन निर्भर करता है। तल की चट्टानों के कठोर होने के कारण कटाव धीरे-धीरे होता है। नदी तल पर चट्टानों में दरारें अपरदन में सहायता करती हैं।

प्रश्न (ङ)
अंतर बताएं :
(i) झरना-चश्मा (उछलकायें)
(ii) जलोढ़ कोन-जलोढ़ पंखा
(iii) जल कुंड-प्राकृतिक बांध
(iv) बाढ़ के मैदान-डेल्टा
उत्तर-
(i) झरना (Waterfall)

  1. जब नरम चट्टानों के ऊपर क्षैतिज अवस्था में कठोर चट्टानों की परत हो, तो झरना बनता है।
  2. नील नदी इसका उदाहरण है।

चश्मा (Rapid)-

  1. जब कठोर और नरम चट्टानों की परतें लंब रूप में होती हैं, जिसके फलस्वरूप जल चश्मे के रूप में बहना शुरू हो जाता है।
  2. नियागरा झरना इसका उदाहरण है।

(ii) जलोढ़ कोन (Alluvial Cone)-

  1. जब नदी पर्वतीय भाग से निकलकर पहाड़ों के दामन में निक्षेप करती है, तो जलोढ़ कोन बनते हैं।
  2. हिमालय के दामन में कई जलोढ़ कोन हैं।

जलोढ़ पंखे (Alluvial Fans)-

  1. कई जलोढ़ी कोन मिलकर एक जलोढ़ी पंखे का निर्माण करते हैं।
  2. कोसी नदी का जलोढ़ पंखा।

(iii) जलकुंड-
नदी के मार्ग में छोटे-छोटे गड़े बन जाते हैं। धीरे-धीरे ये गड्ढे बड़े होकर जलकुंड बन जाते हैं।

प्राकृतिक बाँध-
नदी के निचले भाग में नदी घाटी के मार्ग में निक्षेप के कारण एक बाँध बन जाता है जिसे प्राकृतिक बाँध कहते हैं।

(iv) बाढ़ के मैदान-
नदी का पानी अपने निचले मार्ग पर किनारों के बाहर बहता है, तब तलछट के निक्षेप से बाढ़ का मैदान बन जाता है।

डेल्टा –
समुद्र में गिरने से पहले नदी एक त्रिकोण के आकार की भू-आकृति बनाती है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

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Geography Guide for Class 11 PSEB नदी के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
किन्हीं तीन बाहरी शक्तियों के नाम बताएँ।
उत्तर-
हवा, नदी, हिमनदी।

प्रश्न 2.
अनावृत्तिकरण की क्रिया के दो कारक बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और गुरुत्वाकर्षण शक्ति।

प्रश्न 3.
Mass Wasting से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
फ्लाक के अनुसार मलबे का परिवहन।

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प्रश्न 4.
कार्बनीकरण की क्रिया किन क्षेत्रों में होती है ?
उत्तर-
चूने की चट्टानों के क्षेत्र में।

प्रश्न 5.
जलकरण की क्रिया का एक क्षेत्र बताएँ।
उत्तर-
विंध्याचल पहाड़ियाँ।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के दो साधन बताएँ।
उत्तर-
सूर्य का ताप और वर्षा।

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प्रश्न 7.
मौसमीकरण में सहायक एक तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
ढलान।

प्रश्न 8.
सूर्य के ताप के माध्यम से मौसमीकरण किस प्रदेश में अधिक होता है ?
उत्तर-
मरुस्थल।

प्रश्न 9.
कोहरा पड़ने पर पानी के जम जाने से आयतन कितना बढ़ जाता है ?
उत्तर-
1/11 गुणा।

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प्रश्न 10.
भारत में खाइयाँ (Ravines) किस प्रदेश में मिलती हैं ?
उत्तर-
चंबल घाटी।

प्रश्न 11.
भारत में मिट्टी के काम किस प्रदेश में मिलते हैं ?
उत्तर-
स्पीति घाटी।

प्रश्न 12.
ऑक्सीकरण की क्रिया के लिए कौन-सी गैस काम करती है ?
उत्तर-
ऑक्सीजन।

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प्रश्न 13.
कार्बनीकरण का एक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
गुफाओं का बनना।

बहुविकल्पी प्रश्न नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें-

प्रश्न 1.
ऑक्सीकरण क्रिया में कौन-सी गैस काम करती है ?
(क) ऑक्सीजन
(ख) नाइट्रोजन
(ग) कार्बन-डाइऑक्साइड
(घ) ओज़ोन।
उत्तर-
ऑक्सीजन।

प्रश्न 2.
मिट्टी का निर्माण किस क्रिया से होता है?
(क) मौसमीकरण
(ख) अपरदन
(ग) परिवहन
(घ) निक्षेप।
उत्तर-
मौसमीकरण।

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प्रश्न 3.
जम जाने पर पानी का आयतन कितना बढ़ जाता है।
क) \(\frac{1}{2}\)
(ख) \(\frac{2}{3}\)
(ग) \(\frac{3}{4}\)
(घ) \(\frac{1}{10}\)
उत्तर-
\(\frac{1}{10}\)

प्रश्न 4.
कार्बन-डाइऑक्साइड किस चट्टान को घोल देती है ?
(क) चूने का पत्थर
(ख) ग्रेनाइट
(ग) बसालट
(घ) शैल।
उत्तर-
चूने का पत्थर।

प्रश्न 5.
वर्षा के जल से कौन-सी क्रिया होती है ?
(क) भूमि का खिसकना
(ख) घोल
(ग) जलकरण
(घ) ऑक्सीकरण।
उत्तर-
भूमि का खिसकना।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न – (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—वायुमंडल की शक्तियों द्वारा चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 2.
अनावरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अनावरण (Denudation)-चट्टानों को तोड़-फोड़ कर नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण कहते हैं।

प्रश्न 3.
अपरदन की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
अपरदन (Erosion)—दरियाओं के मौसमीकरण द्वारा हुई टूट-फूट को अपने साथ बहाकर ले जाना अपरदन कहलाता है।

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प्रश्न 4.
विघटन की परिभाषा दें।
उत्तर-
विघटन (Disintegration)—जब चट्टानें अपने स्थान पर ही टूटती हैं, तो उसे विघटन कहते हैं।

प्रश्न 5.
अपघटन किसे कहते हैं ?
उत्तर-
अपघटन (Decomposition)—जब चट्टानों के टूटने से उनकी रासायनिक संरचना बदल जाती है, तो उसे अपघटन कहते हैं।

प्रश्न 6.
भौतिक मौसमीकरण की परिभाषा दें।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-जब यांत्रिक शक्तियों के कारण चट्टानें टूट-फूट जाती हैं, तो उसे भौतिक मौसमीकरण कहते हैं।

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प्रश्न 7.
रासायनिक मौसमीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-जब गैसों के प्रभाव से चट्टानें टूटती हैं, तो उसे रासायनिक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 8.
जैविक मौसमीकरण क्या है ?
उत्तर-
जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-जब मनुष्य, पेड़-पौधे, जीव-जंतु आदि चट्टानों को तोड़ने-फोड़ने में मदद करते हैं, तो उसे जैविक मौसमीकरण कहते हैं।

प्रश्न 9.
अपवाह क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
वह प्रदेश, जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और सहायक नदियों में बहता है, उसे नदी का अपवाह क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 10.
नदी के मार्ग को तीन भागों में बाँटें।
उत्तर-

  • ऊपरी भाग
  • मैदानी भाग
  • डेल्टा भाग।

प्रश्न 11.
नदी के अपरदन के अनुसार तीन अवस्थाएँ लिखें।
उत्तर-

  • युवावस्था (Young Stage)
  • प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)
  • वृद्धावस्था (Old Stage)।

प्रश्न 12.
नदी अपरदन के दो तरीके बताएँ।
उत्तर-

  • भौतिक अपरदन
  • रासायनिक अपरदन।

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प्रश्न 13.
नदी के अपरदन और नदी के वेग में क्या संबंध है ?
उत्तर-
नदी की अपरदन शक्ति = (नदी का वेग)। इस प्रकार नदी के अपरदन और वेग में वर्ग का अनुपात है।

प्रश्न 14.
नदी का अपरदन किन तत्त्वों पर निर्भर करता है?
उत्तर-

  • नदी में जल की मात्रा
  • नदी में जल की गति
  • नदी में उठाया सामान
  • चट्टानों की कठोरता।

प्रश्न 15.
गहरी घाटी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी के पर्वतीय भाग में गहरे और तंग मार्ग को गहरी घाटी (Gorge) कहते हैं।

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प्रश्न 16.
भारत में गहरी घाटियों के दो उदाहरण दें।
उत्तर-
सतलुज नदी का गॉर्ज और ब्रह्मपुत्र नदी का गॉर्ज।

प्रश्न 17.
ग्रैंड कैनियन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
तंग और गहरी नदी घाटी को कैनियन कहते हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका में कोलोराडो नदी का ग्रैंड कैनियन 480 कि०मी० लम्बा और 1906 मीटर गहरा है।

प्रश्न 18.
झरना किसे कहते हैं ? ।
उत्तर-
जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग से सीधी ढलान वाले क्षेत्र से नीचे गिरता है, तो उसे झरना कहते हैं। अमेरिका में नियागरा झरना बहुत प्रसिद्ध है।

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प्रश्न 19.
नदी के घुमाव से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नदी जब मोड़ खाती हुई चक्कर बना कर बहती है, तो उन्हें घुमाव अथवा मिएंडर (Meauders) कहते हैं।

प्रश्न 20.
किन्हीं तीन बाढ़ के मैदानों के नाम बताएँ।
उत्तर-
गंगा नदी, मिसीसिपी नदी और ह्वांग हो नदी के मैदान।

प्रश्न 21.
गो-खुर झील (Oxbow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी में बाढ़ के समय एक मोड़ का किनारा जब दूसरे मोड़ के किनारे के निकट आ जाता है, तो नदी के मार्ग में एक मोड़ अलग होकर रह जाता है। इस नाम के खुर जैसे मोड़ को गो-खुर झील कहते हैं।

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प्रश्न 22.
डेल्टा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
नदी जब समुद्र में निक्षेप करती है, तो त्रिकोण आकार का थल रूप बनता है, जिसे डेल्टा कहते हैं।

प्रश्न 23.
संसार के प्रमुख डेल्टा के नाम बताएँ।
उत्तर-
नील नदी का डेल्टा, गंगा नदी का डेल्टा, मिसीसिपी नदी का डेल्टा, नाईज़र नदी का डेल्ट, यंगसी नदी का डेल्टा।

प्रश्न 24.
पंजा डेल्टा क्या होता है?
उत्तर-
जब नदी कई शाखाओं में बँटकर निक्षेप करती है, तो उसकी धाराएँ उँगली के समान फैल जाती हैं, उसे पंजा डेल्टा कहते हैं।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अपरदन और मौसमीकरण में अंतर बताएँ-
उत्तर-
अपरदन (Erosion)-

  1. भू-तल पर काट-छाँट, खुरचन और तोड़-फोड़ की क्रिया को अपरदन कहते हैं।
  2. अपरदन एक बड़े क्षेत्र में होता है।
  3. अपरदन गतिशील कारकों के द्वारा होता है जैसे नदी, हिमनदी, हवा आदि।
  4. मौसमीकरण अपरदन की क्रिया में मदद करता है।

मौसमीकरण (Weathering)-

  1. चट्टानों के अपने ही स्थान पर टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण कहते हैं।
  2. मौसमीकरण एक छोटे क्षेत्र की क्रिया है।
  3. मौसमीकरण सूर्य के ताप, कोहरा और रासायनिक क्रियाओं के द्वारा होता है।
  4. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर करके अपरदन में मदद करता है।

प्रश्न 2.
भौतिक मौसमीकरण और रासायनिक मौसमीकरण में अंतर बताएँ।
उत्तर-
भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering)-

  1. इसमें यांत्रिक साधनों द्वारा चट्टानें टूटकर चूर चूर-चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों की खनिज रचना में कोई अंतर नहीं आता।
  3. यह मौसमीकरण शुष्क और ठंडे प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. भौतिक मौसमीकरण की मुख्य शक्तियाँ ताप, कोहरा, वर्षा और हवा हैं।

रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-

  1. इसमें रासायनिक क्रिया द्वारा चट्टानें टूट-फूट कर चूर हो जाती हैं।
  2. इसमें चट्टानों के खनिज भी बदल जाते हैं।
  3. यह मौसमीकरण उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में अधिक होता है।
  4. रासायनिक मौसमीकरण में कार्बन-डाइऑक्साइड, ऑक्सीजन और हाइड्रोजन गैसों का प्रभाव होता है।

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प्रश्न 3.
सूर्य का ताप किस प्रकार मौसमीकरण का काम करता है ?
उत्तर-
सूर्य का ताप (Temperature) सूर्य की गर्मी से दिन के समय चट्टानें एकदम गर्म होकर फैलती हैं और रात को तेज़ी से ठंडी होकर सिकुड़ती हैं। बार-बार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानों में दरारें पड़ जाती हैं फलस्वरूप ये टूटती हैं और चूरा-चूरा हो जाती है। इस मलबे को Talus कहते हैं।
सूर्य के ताप के द्वारा मौसमीकरण कई बातों पर निर्भर करता है-

  • मोटे कणों वाली चट्टानों पर अधिक और जल्दी मौसमीकरण होता है।
  • काले रंग की चट्टानों पर अधिक मौसमीकरण होता है।
  • पहाड़ी ढलानों और मरुस्थलों में मौसमीकरण महत्त्वपूर्ण है।

उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में ताप में अधिक अंतर के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की आवाज़ जैसी होती है।

प्रश्न 4.
शीत प्रदेशों में कोहरा किस प्रकार मौसमीकरण का कार्य करता है ?
उत्तर-
कोहरा (Frost)—पहाड़ी ठंडे प्रदेशों में कोहरा मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है। चट्टानों की दरारों में पानी भर जाता है। यह पानी सर्दी के कारण रात को जम जाता है। जमने से पानी का आयतन (Volume) 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग से दबाव डालता है। इस दबाव के साथ चट्टानें टूटती रहती हैं। यह मलबा पर्वत की ढलान के साथ रोड़ी (Scree) के रूप में जमा होता रहता है। हिमालय के पहाड़ी प्रदेशों में ऐसा होता है। चट्टानें बड़े-बड़े टुकड़ों (Blocks) के रूप में टूटती रहती हैं।

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प्रश्न 5.
ऑक्सीकरण किस प्रकार मौसमीकरण की क्रिया में सहायक है ?
उत्तर-
रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीजन, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों तथा रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) भी कहते हैं। यह रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है आक्सीकरण (Oxidation)-चट्टानों के लौह खनिज के साथ ऑक्सीजन के मिलने से चट्टानों को जंग (Rust) लग जाता है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं।

उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्षों में ही जंग लग गया।

प्रश्न 6.
मौसमीकरण के प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण के प्रभाव (Effects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। यह मिट्टी वनस्पति और कृषि का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बनाकर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण के कारण ही घाटियाँ चौडी होती रहती हैं।

प्रश्न 7.
अपरदन और मौसमीकरण में अन्तर बताएँ।
नोट-
उत्तर के लिए प्रश्न नं० 1 (लघु उत्तरात्मक प्रश्न) देखें।

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प्रश्न 8.
भू-निर्माण (Aggradation) और भू-निमान (Degradation) में क्या अंतर है ?
उत्तर-
धरती की बाहरी शक्तियाँ लगातार परिवर्तन करती रहती हैं। धरती का आकार बदलता रहता है। भू-आकार मिटते रहते हैं और नए भू-आकार बनते रहते हैं। भीतरी शक्तियाँ भू-आकारों का निर्माण करती है और बाहरी शक्तियां भू-आकारों को समतल करने का काम करती रहती हैं। इस प्रकार चट्टानों को तोड़-फोड़ और नंगा करके समतल करने की क्रिया को अनावरण (Denudation) कहते हैं।

भू-निर्माण (Aggradation) वह क्रिया है, जिसमें निक्षेप के द्वारा ऊँचे प्रदेशों का निर्माण होता है। बाहरी शक्तियाँ कुरेदे हुए मलबे को अपने साथ बहाकर ले जाती हैं और निचले स्थानों पर जमा कर देती हैं। इस प्रकार एक नए स्तर का अथवा तल का निर्माण होता है।

भू-निमान (Degradation) वह क्रिया है, जिसमें बाहरी शक्तियाँ अपरदन और मौसमीकरण के द्वारा ऊँचे प्रदेशों की ऊँचाई को कम कर देती हैं। इसमें अपरदन और मौसमीकरण किसी तल को नीचा करने का काम करते हैं। इस प्रकार भू-निर्माण और भू-निमान एक-दूसरे की विपरीत क्रियाएँ हैं, पर एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करती हैं।

प्रश्न 9.
नदी मार्ग को स्रोत से लेकर मुहाने तक अलग-अलग भागों में बाँटें।
उत्तर-
नदी के भाग (Sections of a river)-
नदी का विस्तार किसी पहाड़ी प्रदेश से लेकर समुद्र तक होता है। नदी के निकास से लेकर नदी के मुहाने तक नदी को तीन भागों (Sections) में बाँटा जाता है। प्रत्येक भाग में नदी का कार्य, घाटी का रूप और भू-आकार अलग-अलग होते हैं।

1. पहाड़ी भाग अथवा आरंभिक भाग (Mountain Stage or Upper Course)—इस भाग में नदी की गति 10 मीटर प्रति कि०मी० से अधिक होती है। इसे युवा भाग (Young Stage) भी कहते हैं।

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2. घाटी वाला भाग अथवा मध्य भाग (Valley Stage or Middle Course)-इस भाग में नदी की गति 2 मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की प्रौढ़ अवस्था (Mature Stage) भी कहते हैं।

3. मैदानी भाग अथवा निचला भाग (Plain Stage or Lower Course)—इस भाग में नदी की गति मीटर प्रति किलोमीटर होती है। इसे नदी की वृद्धावस्था (Old Stage) भी कहते हैं।

प्रश्न 10.
“नदी का अपरदन पानी की मात्रा और धरती की ढलान पर निर्भर करता है।” व्याख्या करें।
उत्तर-
नदी का अपरदन मुख्य रूप में पानी के वेग की मात्रा और घाटी की ढलान पर निर्भर करता है। अधिक ढलान के कारण नदी का वेग बढ़ जाता है और पर्वतीय भाग में कटाव अधिक होता है। बर्फ से ढके ऊँचे पर्वतों से निकलने वाली नदियाँ अधिक पानी के कारण गहरी घाटियाँ बनाती हैं। यदि नदी का वेग दुगुना हो जाए, तो नदी की अपरदन-शक्ति चौगुनी हो जाती है।

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प्रश्न 11.
धनुषदार झील (Ox-bow Lake) कैसे बनती है ?
उत्तर-
नदी-मार्ग में बनने वाले मोड़ बड़े होकर पूरी तरह गोल हो जाते हैं। इनका आकार अंग्रेज़ी अक्षर ‘S’ जैसा हो जाता है। कई बार दो मोड़ एक-दूसरे के बहुत नज़दीक आ जाते हैं, तो गर्दन जैसे आकार का मोड़ बन जाता है। नदी के एक मोड़ का किनारा दूसरे किनारे से मिल जाता है। इस प्रकार नदी का एक मोड़ धनुष के आकार की झील के रूप में नदी से कट जाता है।

प्रश्न 12.
डेल्टा की रचना किन बातों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
समुद्र में गिरने से पहले नदी अपने मलबे के साथ डेल्टा की रचना करती है। नदी का अंतिम भाग समतल और धीमी ढलान वाला होता है। इसलिए मलबे का निक्षेप आसानी से हो जाता है। डेल्टा तब बनता है, यदि नदी के मुहाने पर ज्वारभाटे की कमी हो, समुद्र कम गहरा हो, कोई तेज़ धारा न बहती हो और नदी के मार्ग में कोई झील न हो, ताकि नदी का भार कम न हो जाए।

प्रश्न 13.
भारत के पश्चिमी तट पर नर्मदा और ताप्ती नदियाँ डेल्टा क्यों नहीं बनाती हैं ?
उत्तर-
पश्चिमी तट पर नदियों के निचले भाग में तेज़ ढलान होती है। यहाँ नदियां तेज़ गति से समुद्र में गिरती हैं, इसलिए मिट्टी का निक्षेप नहीं होता। मलबे की कमी के कारण डेल्टा नहीं बनता। पश्चिमी तट की चौड़ाई भी कम है, इसलिए डेल्टा की रचना के लिए समतल भूमि की कमी है।

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प्रश्न 14.
जल-प्रपात की रचना के बारे में बताएँ।
उत्तर-
जल-प्रपात (Water-Falls)-जब अधिक ऊँचाई से पानी अधिक वेग के साथ सीधी ढलान वाले क्षेत्र में नीचे गिरता है, तो उसे जल-प्रपात कहते हैं। जल-प्रपात चट्टानों की अलग-अलग रचना के कारण बनते हैं।

1. जब कठोर चट्टानों की परत नर्म चट्टानों की परत पर क्षैतिज (Horizontal) अवस्था में हो, तो नीचे की नर्म चट्टानें जल्दी कट जाती हैं। उन चट्टानों के सिरे पर जल-प्रपात बनता है।
उदाहरण-(i) यू०एस०एस० में नियागरा जल-प्रपात, जो कि 167 फुट (51 मीटर) ऊँचा है।
(ii) नर्मदा नदी पर कपिलधारा जल-प्रपात (Kapildhara Falls) 100 फुट ऊँचा है।

2. जब कठोर और नर्म चट्टानें एक-दूसरे के समानांतर लंब रूप (Vertical) हों, तो कठोर चट्टानों की ढलान पर जल-प्रपात बनता है। इस प्रकार एक स्थायी जल-प्रपात का निर्माण होता है।

प्रश्न 15.
‘V’ आकार घाटी और ‘U’ आकार घाटी में अंतर बताएँ।
उत्तर-
‘V’ आकार की घाटी (V-Shaped Valley)-

  1. नदी के अपरदन से ‘V’ आकार घाटी बनती है।
  2. जब यह घाटी और अधिक गहरी हो जाती है, तो ‘I’ आकार की बन जाती है और इसे कैनियन कहते हैं।
  3. इसके किनारे पूरी तरह लंब रूप नहीं होते।
  4. नदी अपने गहरे कटाव से इस घाटी की रचना करती है।

‘U’ आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-

  1. हिमनदी के अपरदन से ‘U’ आकार घाटी बनती है।
  2. यह घाटी अधिक गहरी नहीं होती। इससे ऊँचाई से बनने वाली घाटी को लटकती घाटी कहते हैं।
  3. इसकी दीवारें लंब रूप में होती हैं।
  4. हिमनदी नदी घाटी का रूप बदलकर ‘U’ आकार की घाटी बना देती है।

प्रश्न 16.
घुमाव/मोड़ (Meanders) कैसे बनते हैं ?
उत्तर-
घुमाव/मोड़ (Meanders)—जब नदी मोड़ खाती हुई बहती है, तो उसके टेढ़े-मेढ़े रास्तों में छोटे-मोटे मोड़ पड़ जाते हैं, जिन्हें नदी के मोड़/घुमाव (Meanders) कहते हैं। नदी के अवतल किनारों (Concave Sides) के बाहरी तट पर तेज़ धारा के कारण कटाव होते हैं, पर नदी के उत्तल किनारों (Convex Sides) के भीतरी तट पर धीमी धारा के कारण निक्षेप होता है। इस प्रकार ये मोड़ और घुमाव धीरे-धीरे आकार में बढ़ जाते हैं। तुर्की में मिएंडर (Meander) नदी के घुमाव को देखकर ही यह नाम रखा गया है।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
मौसमीकरण की परिभाषा दें। इसकी अलग-अलग शक्तियों के कार्य बताएँ।
उत्तर-
मौसमीकरण (Weathering)—मौसम के भिन्न-भिन्न तत्त्वों द्वारा चट्टानों की टूट-फूट के कारण चट्टानों के टूटने, भुरने और घुलने की क्रिया को मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। (Weathering is the breaking up of Rocks by the elements of weather.) प्रसिद्ध भूगोलकार लॉबेक (Lobeck) के अनुसार, “मौसमीकरण चट्टानों के विघटन और अपघटन की प्रक्रियाओं के द्वारा होता है।” (Weathering results from the processes of rock disintegration and decomposition.)

चट्टानों की यह तोड़-फोड़ अथवा मौसमीकरण नीचे दी गई क्रियाओं से होती है-

  • विघटन (Disintegration)-ताप-अंतर के कारण जब चट्टानें टुकड़े-टुकड़े हो जाती हैं, तो उसे विघटन कहा जाता है।
  • अपघटन (Decomposition)-रासायनिक क्रियाओं द्वारा जब चट्टानें धीरे-धीरे नष्ट हो जाती हैं, तो उसे अपघटन कहा जाता है। इस प्रकार चट्टानें ताप-अंतर द्वारा टूटती हैं और रासायनिक क्रिया द्वारा घिसती हैं और नष्ट होती हैं। इन चट्टानों का विघटन और अपघटन उनके अपने स्थान पर ही होता है।

मौसमीकरण को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling Weathering)-

प्रत्येक स्थान पर मौसमीकरण एक समान नहीं होता क्योंकि भूतल पर चट्टानें और जलवायु सदा एक जैसी नहीं होतीं। मौसमीकरण नीचे लिखे तत्त्वों पर निर्भर करता है-

1. चट्टानों की संरचना (Structure of Rocks) असंगठित, घुलनशील और मुसामदार चट्टानों पर मौसमीकरण का प्रभाव बड़ी तेजी से होता है। नर्म चट्टानें जल्दी ही टूट जाती हैं, पर कठोर चट्टानें धीरे-धीरे टूटती हैं।

2. भूमि की ढलान (Slope of the Land)—वे क्षेत्र, जिनकी ढलान अधिक होती है, वहां मौसमीकरण तेज़ी से होता है। ढलान के कारण चट्टानों का संगठन कमज़ोर पड़ जाता है क्योंकि गुरुत्वा शक्ति के फलस्वरूप नीचे को खिसककर चट्टानें अपने आप ही टूटने लगती हैं और मार्ग में आने वाली चट्टानों को भी तोड़ देती हैं।

3. जलवायु में भिन्नता (Difference in Climate)-संसार के उष्ण और नमी वाले प्रदेशों में तापमान की अधिकता और जल की अधिकता के कारण नर्म और घुलनशील चट्टानें आसानी से टूट जाती हैं। इसके विपरीत उष्ण और शुष्क जलवायु के क्षेत्रों में दिन और रात के ताप में अंतर होने के कारण चट्टानें फैलती और सिकुड़ती हैं। इस कारण इनका भौतिक मौसमीकरण होता है।

4. वनस्पति का प्रभाव (Effect of Vegetation) वनस्पति से रहित प्रदेशों में दिन के समय सूर्य-ताप के प्रभाव के कारण चट्टानें फैलती हैं और रात के समय ताप कम होने के कारण वही चट्टानें सिकुड़ने लगती हैं। इसी कारण उनका भौतिक विघटन होता है। इसके विपरीत वनों वाले क्षेत्रों में पेड़-पौधों की जड़ें चट्टानों को पकड़ कर रखती हैं।

5. चट्टानों के जोड़ व दरारें (Joints)-चट्टानों में जोड़ और दरारें तोड़-फोड़ में मदद करती हैं। इन दरारों में उगे पेड़ चट्टानों को चौड़ा करके उन्हें तोड़ देते हैं।

मौसमीकरण के प्रकार (Types of Weathering)-

मौसमीकरण निम्नलिखित तीन प्रकार का होता है-

  1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)
  2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)
  3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)

1. भौतिक मौसमीकरण (Mechanical or Physical Weathering)-जब चट्टानें भौतिक क्रिया द्वारा विघटित (Disintegrate) होती हैं और उनकी टूट-फूट होती है, तो उसे भौतिक मौसमीकरण का नाम दिया जाता है। इसके कारण चट्टानों के खनिजों और गुणों में परिवर्तन नहीं होता, बल्कि उनके खनिजों के टुकड़े हो जाते हैं। यांत्रिक साधनों के द्वारा चट्टानें अपने स्थान पर ही टूट-फूट कर चूरा हो जाती हैं। इसे भौतिक मौसमीकरण (Physical Weathering) अथवा यांत्रिक मौसमीकरण (Mechanical Weathering) कहते हैं। भौतिक मौसमीकरण के नीचे लिखे तीन कारक हैं –

(i) सूर्य का ताप (Insolation) चट्टानों के भौतिक मौसमीकरण में सूर्य के ताप (Insolation) का बहुत महत्त्व है, जो कि उष्ण और शुष्क मरुस्थल में अपना प्रभाव डालता है।

(क) पिंड विघटन (Block Disintegration)—इन प्रदेशों में वर्षा की कमी और दिन-रात के तापमान में बहुत अंतर होने के कारण दिन में चट्टानें फैलती रहती हैं और रात के समय सिकुड़ती हैं। चट्टानों के इस प्रकार टूटने को पिंड विघटन (Block Disintegration) कहते हैं। उदाहरण-राजस्थान के मरुस्थल में अधिक तापमान के कारण चट्टानों के टूटने की आवाज़ पिस्तौल की गोली की आवाज़ जैसी होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 10

(ख) अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation)—दिन के समय मरुस्थलों में तीखी गर्मी पड़ती है, जिसमें चट्टानों की ऊपरी परत गर्म हो जाती है व फैल जाती है। इस प्रकार उनका आयतन बढ़ जाता है और उनकी बाहरी परत छिलके के समान अलग हो जाती है। चट्टानों के इस प्रकार टूटने की क्रिया को अपशल्कन अथवा पल्लवीकरण (Exfoliation) कहा जाता है।
उदाहरण-चट्टानों के टूट कर चूर्ण होने के कारण बने मलबे को टालस (Talus) कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 11

(ii) कोहरा (Frost)—ऊँचे अक्षांशों और ऊँचे पर्वतों पर अत्यधिक सर्दी होती है और बर्फ पड़ती है। दिन के समय सूर्य-ताप के कारण कुछ बर्फ पिघलकर जल का रूप धारण कर लेती है और फिर वह जल चट्टानों की दरारों में प्रवेश कर जाता है। ठंड होने पर फिर यह जल बर्फ का रूप धारण कर लेता है और इसका फैलाव बढ़ जाता है। जमने से पानी का आयतन 1/11 गुणा बढ़ जाता है। जमा हुआ पानी अपने आस-पास की चट्टानों पर 2000 पौंड प्रति वर्ग इंच दबाव डालता है। इस फैलाव के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है और दरारें बड़ी हो जाती हैं और टूट जाती हैं। ढलान पर पड़ी चट्टानें नीचे को लुढ़क जाती हैं और पर्वतों के पैरों में इकट्ठी हो जाती हैं। इस एकत्र हुए पदार्थ को चट्टानी मलबा (Scree or Talus) कहा जाता है।
उदाहरण-हिमालय पर्वत के पहाड़ी प्रदेश में इस मौसमीकरण के कारण बड़े-बड़े टुकड़े टूटते रहते हैं।

(iii) वर्षा (Rainfall)-वर्षा का पानी बहते हुए पानी का रूप धारण कर लेता है और प्रभाव डालता है।
(क) मिट्टी का अपरदन (Soil Erosion)-ढलान वाली भूमि और नदी घाटियों में वर्षा का पानी उपजाऊ मिट्टी बहाकर ले आता है। जैसे भारत में गंगा नदी हर रोज़ 10 लाख टन मिट्टी समुद्र तक बहाकर ले जाती है।

(ख) ऊबड़-खाबड़ भूमि (Bad Land)-ज़ोर से वर्षा होने के कारण जल नालियाँ (Gullies) और खाइयाँ (Ravines) बन जाती हैं जिसके फलस्वरूप बंजर बिखरा हुआ धरातल बन जाता है, जैसे-भारत की चंबल घाटी में।

(ग) मिट्टी के खंभे (Earth Pillars)-वर्षा के प्रहार से नर्म मिट्टी कट जाती है, पर कठोर चट्टानें एक टोपी (Cap) का काम करती हैं और मिट्टी के खंभे खड़े हो जाते हैं, जैसे–इटली के बोलज़ानो (Bolzano) प्रदेश में तथा हिमाचल के स्पीति प्रदेश में।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 12

(घ) भू-स्खलन (Landslides)—वर्षा का पानी नर्म चट्टानों के नीचे जाकर उन्हें भारी बना देता है और चट्टानें ढलान की तरफ फिसल जाती हैं। सड़क मार्ग रुक जाते हैं। गढ़वाल क्षेत्र में भू-स्खलन के कारण सैंकड़ों मनुष्य दबकर मर गए थे।

(iv) हवा (Wind) हवा के कारण मौसमीकरण मरुस्थलों, शुष्क प्रदेशों अथवा वनस्पति-रहित प्रदेशों में होता है। रेत युक्त हवाएँ एक रेगमार (Sand Paper) के समान चट्टानों को चूर-चूर कर देती हैं।

(क) मरुस्थलों में से निकलने वाली रेलगाड़ियों को हर वर्ष रंग (Paint) करना पड़ता है।
(ख) टेलीग्राफ की तारें हवा के प्रहार से जल्दी घिस जाती हैं।
(ग) समुद्र तट की ओर के साधारण शीशे ऐसे दिखाई देते हैं,जैसे दानेदार शीशे (Frosted Glass) हों।
(घ) चट्टानों का आकार अजीब-सा हो जाता है। जैसे-राजस्थान में मांऊट आबू के पास Toad Rock |
(ङ) कई बार आकाशीय बिजली भी चट्टानों को तोड़-फोड़ देती है या पिघला देती है।

2. रासायनिक मौसमीकरण (Chemical Weathering)-ऑक्सीज़न, कार्बन-डाइऑक्साइड, हाइड्रोजन गैसों के प्रभाव से चट्टानों के खनिजों और रासायनिक तत्त्वों में परिवर्तन हो जाता है। चट्टानें ढीली हो जाती हैं और अलग-अलग नहीं होतीं। इसे विघटन (Decomposition) कहते हैं। वर्षा का जल और गैसें रासायनिक मौसमीकरण के प्रमुख कारण हैं। मौसमीकरण अम्ल (Acid) और गैस मिले जल द्वारा होता है। रासायनिक मौसमीकरण कई प्रकार से होता है-

(क) ऑक्सीकरण (Oxidation)—इस प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन गैस लौह युक्त धातुओं पर प्रभाव डालकर लोहे को जंग (Rust) लगा देती है और ये भुरभुरा कर नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण-मिस्र की शुष्क जलवायु में Cleoptra needle लगभग 4000 वर्ष तक ठीक हालत में रही, पर इंग्लैंड की नम जलवायु में उसे केवल 60 वर्ष में ही जंग लग गया।

(ख) कार्बनीकरण (Carbonation)-कार्बन-डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और पानी मिलकर चूने के पत्थर, जिप्सम, संगमरमर आदि को घोल देते हैं। चट्टानों के नष्ट होने से गुफाएँ बनती हैं।
उदाहरण-(i) यू०एस०ए० में Mammoth Caves (ii) भारत में खासी और चेरापूंजी, देहरादून प्रदेश।

(ग) जलकरण (Hydration)-हाइड्रोजन गैस से मिला हुआ जल चट्टानों को भारी बना देता है। दबाव के कारण चट्टानें अंदर ही अंदर घिसकर चूर्ण बन जाती हैं। जबलपुर की पहाड़ियों में कैयोलिन (Keolin) का जन्म इस प्रकार फैलसपार (Felespar) चट्टानों के विघटन से हुआ है।

(घ) घोल (Solution)—पानी कई खनिजों को घोल देता है। ये खनिज घुलकर बह जाते हैं, जैसे चूना मिट्टी में से घुलकर निकल जाता है। भारत में केरल प्रदेश में लेटराइट (Latrite) मिट्टी इसी प्रकार बनी है।

3. जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering)-वनस्पति, जीव-जंतुओं और मानवों द्वारा चट्टानों का जो मौसमीकरण होता है,उसे जैविक मौसमीकरण (Biological Weathering) अथवा (OrganicWeathering) कहा जाता है।
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य 13

  • वनस्पति (Vegetation)-वनस्पति जैविक मौसमीकरण का महत्त्वपूर्ण कारक है। वनस्पति द्वारा चट्टानों का मौसमीकरण यांत्रिक और रासायनिक दोनों प्रकार से होता है। चट्टानों की दरारों में पेड़-पौधे उग आते हैं। उनकी जड़ें चट्टानों को कमजोर कर देती हैं।
  • जीव-जंतु (Animals)-चट्टानों में मांदें बनाकर रहने वाले जीव जैसे-चूहे, खरगोश, लोमड़ी, चींटियां, कीड़े-मकौड़े, केंचुए, दीमक आदि चट्टानों को खोखला बना देते हैं। इससे चट्टानें असंगठित होकर टूट जाती हैं। इसके बाद वायु, जल आदि उन्हें बहाकर ले जाते हैं। चित्र-जैविक मौसमीकरण होमज़ के अनुसार प्रति एकड़ मिट्टी में 1,50,000 केंचुए हो सकते हैं, जो एक वर्ष के समय में 10 से 15 चट्टानों को उत्तम प्रकार की मिट्टी में बदल कर नीचे से ऊपर ले आते हैं।
  • मनुष्य (Man)-मनुष्य भी भूमि पर अनेक प्रकार के परिवर्तन करता है। वह भूमि से खनिज प्राप्त करने के लिए खदानें खोदकर चट्टानों को नर्म कर देता है। इमारतें और बाँध बनाने के लिए सामग्री जैसे-ईंटें, पत्थर, चूना, सीमेंट आदि चट्टानों को तोड़कर ही प्राप्त करता है।

मौसमीकरण के प्रभाव (Affects of Weathering)-

  1. कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का निर्माण मौसमीकरण से होता है। वह मिट्टी वनस्पति और खेती का आधार है।
  2. बहुमूल्य धातु-कण घुलकर एक स्थान पर इकट्ठे होते रहते हैं।
  3. मौसमीकरण चट्टानों को कमज़ोर बना कर अपरदन में सहायक होता है।
  4. मरुस्थलों की रेत इस क्रिया से बनती है।
  5. मौसमीकरण के कारण ही पर्वत घिस-घिस कर मैदान बने हैं।
  6. मौसमीकरण से ही नदी घाटियाँ चौड़ी होती रहती हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(i) नदी के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 2.
नदी और नदी बेसिन की परिभाषा बताएँ। अलग-अलग अवस्थाओं में नदी के कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-
नदी (River)-
भूमि पर वर्षा के जल का कुछ भाग वाष्पीकरण द्वारा वायुमंडल में लोप हो जाता है और कुछ भाग भूमि की पारगामी चट्टानों में से होता हुआ धरती में चला जाता है, परंतु जल का अधिकतर भाग धरातल पर प्रवाहित (Run off ) होकर बह जाता है। वह प्रदेश जिसका समूचा जल उसमें बहने वाली नदी और उसकी सहायक नदियों में बहता हो, वह प्रदेश नदी का अपवाह क्षेत्र (Drainage Area) अथवा बेसिन (Basin) कहलाता है।
जिन नदियों में पूरा वर्ष पानी बहता रहता है, उन्हें स्थायी नदियाँ (Perennial Rivers) कहा जाता है। जिन नदियों में जल केवल वर्षा ऋतु में ही बहता हो, उन्हें मौसमी नदियाँ (Seasonal Rivers) कहते हैं।

नदी की तीन अवस्थाएँ (Three Stages of a River)-

नदी के स्रोत (Source) से लेकर मुहाने (Mouth) तक इसके विकासक्रम को तीन अवस्थाओं में बांटा जा सकता है। ये तीन अवस्थाएं नीचे लिखी हैं-

1. युवावस्था (Youthful Stage)—इस अवस्था में नदी पर्वतों में प्रवाह करती है, इसलिए नदी के इस मार्ग को पर्वतीय मार्ग (Mountain Track) भी कहते हैं। नदी की ढलान 50 फुट प्रति मील होती है। ढलान सीधी होने के कारण जल का बहाव तेज़ होता है। वेग तेज़ होने के कारण अपरदन कार्य तेज़ी से होता है और घाटी गहरी होती है। इस अवस्था में नदी का कार्य प्रमुख रूप से अपरदन का ही होता है। (The mountain stage as a whole, is the stage of erosion) नदी के पर्वतीय भाग को युवा नदी घाटी (Young River Valley) कहते हैं। इस भाग में कैनियन, गॉर्ज, चश्मे और झरने बनते हैं।

2. प्रौढ़ावस्था (Mature Stage)-इस अवस्था में नदी मैदानों में से बहती है, इसलिए नदी के इस भाग को मैदानी मार्ग (Plain Track) भी कहते हैं। यहां भूमि की ढलान कम होती है, जो कि 10 फुट प्रति मील होती है। इस भाग की प्रमुख नदी में अनेक सहायक नदियाँ आकर मिल जाती हैं, इसलिए नदी में पानी की मात्रा काफ़ी अधिक हो जाती है, परंतु प्रवाह की गति कम हो जाने के कारण भारी पदार्थों और कंकड़ आदि का प्रवाह रुक जाता है और इसका निक्षेप होना शुरू हो जाता है। नदी के मैदानी भाग को प्रौढ़ नदी घाटी (Mature River Valley) भी कहते हैं। इस भाग में नदी, किनारे पर अपरदन (Lateral Erosion) द्वारा घाटी को निरंतर चौड़ा करती रहती है। इस भाग में U-आकार घाटी, घुमाव, मोड़, गोखुर झील, तट, बांध आदि बनते हैं। वृद्धावस्था (Old Stage)-नदी-मुहाने (River Mouth) से पहले, मैदान के निचले भाग में ढलान बहुत ही कम हो जाने के कारण जल का प्रवाह अत्यंत मद्धम हो जाता है। नदी की ढलान 1 फुट प्रति मील हो जाती है, फलस्वरूप अपरदन कार्य बिल्कुल समाप्त हो जाता है और निक्षेप तेज़ी से होने लगता है। यह ही नदी की वृद्धावस्था है। नदी के इस मार्ग को डेल्टा मार्ग (Delta Track) भी कहते हैं और नदी की घाटी यहां प्रौढ़ नदी घाटी (Old River Valley) कहलाती है। प्रौढ़ नदी घाटी में नदी का केवल एक काम निक्षेप करना होता है।

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PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

PSEB 10th Class Physical Education Guide एशियन और ओलिम्पिक खेलें Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलों का नाम ओलिम्पिक क्यों पड़ा ?
(Why Olympic games are called Olympic?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें ओलिम्पिया नामक नगर से आरम्भ हुई थीं। इसलिए इन का नाम ओलिम्पिक खेलें पड़ा।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कब आरम्भ हुईं ?
(When Ancient Olympic started ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 3.
ओलिम्पिक ध्वज में कितने रिंग होते हैं ?
(How many rings are there in Olympic Flag ?)
उत्तर-
पांच रिंग।

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प्रश्न 4.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के विजेता को क्या ईनाम मिलता था ?
(What prizes are given to the winners of Ancient Olympic ?)
उत्तर-
जीतने वाले को जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे।

प्रश्न 5.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें के कोई दो नियम लिखो।
(Write any two rules of Ancient Olympic.)
उत्तर-

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।

प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों किसने शुरू करवाईं ?
(Who was the founder of modern Olympic games ?)
उत्तर-
बैरन दि कुबर्टिन ने।

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प्रश्न 7.
नवीन ओलिम्पिक खेलें कहां तथा कब आरम्भ हुई ?
(When and where modern Olympic were started ?)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलें 1896 ई० में ऐथेन में आरम्भ हुईं।

प्रश्न 8.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के कोई दो नियम लिखें।
(Write any two Rules of modern Olympic games.)
उत्तर-

  1. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) ओलिम्पिक में भाग नहीं ले सकता।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलें किस के प्रयल से आरम्भ हुई ?
(Who has originated Asian Games ?)
उत्तर-
महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह और श्री जी० डी० सोंधी के प्रयत्नों से यह खेलें आरम्भ हुईं।

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प्रश्न 10.
एशियाई खेलें कब और कहां शुरू हुई ?
(When and where Asian games were started ?)
उत्तर-
पहली एशियाई खेलें 1951 में नई दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं।

प्रश्न 11.
ओलिम्पिक खेलें कितने वर्षों के बाद होती हैं ?
(After how many years olympic games were held ?).
उत्तर-
चार वर्ष के बाद।

प्रश्न 12.
पांचवीं एशियाई खेलें कहां हुई ?
(Where were the fifth Asian games were held ?)
उत्तर-
1966 में जकार्ता (इण्डोनेशिया) में।

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प्रश्न 13.
मिलखा सिंह ने कौन-से ओलिम्पिक में 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया ?
(In which Olympic Mr. Milkha Singh got 4th position in 400 meters race ?)
उत्तर-
1960 (Rome Olympic) खेलों में मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया था।

प्रश्न 14.
भारत ने ओलिम्पिक में पहली बार कब भाग लिया ?
(In which year India participated in Olympic first time ?)
उत्तर-
1920 की ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया।

प्रश्न 15.
2008 बीजिंग ओलम्पिक खेलों में किस भारतीय खिलाड़ी ने स्वर्ण पदक जीता ?
(Name the Indian player who won the gold medal in 2008 Beizing olympic games.)
उत्तर-
श्री अभिनव बिंदरा ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण पदक जीता।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक झण्डे के विषय में संक्षिप्त जानकारी दो।
(Give brief description about Olympic Flag.)
उत्तर-
ओलिम्पिक झण्डा 1919 ई० में एंटवर्प (Antwerp) में होने वाली ओलिम्पिक खेलों में फहराया गया। इस झण्डे की रचना क्यूबर्टिन ने की थी। इस झण्डे में पांच रंगोंलाल, हरे, पीले, नीले तथा काले से पांच चक्कर परस्पर जोड़ कर बनाए गए हैं। ये पांच चक्कर यूरोप, ऑस्ट्रेलिया, एशिया, अफ्रीका तथा अमेरिका पांच महाद्वीपों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें 1
इन चक्रों का परस्पर जुड़ा होना इन पांच महाद्वीपों की मित्रता तथा सद्भावना का प्रतीक है।

प्रश्न 2.
एशियाई खेलें कब तथा क्यों शुरू हुईं ? इन खेलों को शुरू करने में भारत का क्या योगदान है ?
(When and where Asian games were started ? Write the contribution of India to start Asian games.)
उत्तर-
एशियाई खेलें (Asian Games)-14वीं ओलिम्पिक खेलों का 1948 ई० में लन्दन में आयोजन हुआ। उस समय श्री जी० डी० सोंधी ने यह विचार प्रस्तुत किया कि जब भारतीय या एशियाई खिलाड़ी यूरोपीय देशों में आयोजित खेलों के मुकाबलों में भाग लेने जाते हैं तो वे खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाते। इसलिए यदि एशियाई देशों के खिलाड़ी पहले आपस में मुकाबला कर लें तो एक तो उनमें मुकाबला करने की शक्ति बढ़ेगी और दूसरे खेल का स्तर उन्नत होगा। इस विचार को कार्यरूप देने के लिए उन्होंने 8 अगस्त, 1945 ई० को लन्दन के साऊंड पायल होटल में एशियाई देशों की एक सभा बुलाई। इस सभा में कोरिया, बर्मा (म्यनमार), चीन, श्रीलंका आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इन सभी सदस्यों ने एशिया में खेल मुकाबले करवाने के सुझाव का समर्थन किया।

महाराजा पटियाला श्री यादविन्दर सिंह ने भी एशियाई खेलों के आरम्भ करने में विशेष महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने फरवरी, 1949 में दिल्ली में एशियाई खेलों के लिए एशियाई देशों की सभा बुलाई। इस सभा में भारत, अफ़गानिस्तान, श्रीलंका, बर्मा, पाकिस्तान, इण्डोनेशिया, नेपाल, फिलीपाइन तथा थाइलैंड आदि देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस सभा में एशियाई एथलैटिक्स फैडरेशन को खेल फैडरेशन का नाम दिया गया था। इसके संविधान का निर्माण किया गया। एशियाई खेलों को हर चार वर्ष बाद आयोजित करने का निश्चय किया गया। पहली एशियाई खेलें 4 मार्च से 11 मार्च तक, 1951 में दिल्ली के नैशनल स्टेडियम में हुईं। फिर 1982 में नौवीं एशियाई खेलें दिल्ली में तथा 10वीं एशियाई खेलें सिओल में सम्पन्न हुईं।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
ओलिम्पिक खेलें कब और किन-किन देशों में हुईं ?
(When and where Olympic Games were organised ?)
उत्तर-
पहली ओलिम्पिक खेलों के स्थान एवं तिथियां
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PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें 3
1906 के खेल, आधुनिक खेलों की 10वीं वर्षगांठ मनाए जाने हेतु खेले गये थे, मगर इनकी गिनती नहीं की गई क्योंकि ये खेल 1904-1908 के ओलिम्पियाड के प्रथम वर्ष में नहीं आयोजित किए गए थे।
यहां केवल घुड़-सवारी के खेल ही करवाए गए थे।

प्रश्न 2.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलें कहां और कब आरम्भ हुईं ?
(When and where Ancient Olympic was organised?)
उत्तर-
इतिहास (History)-प्राचीन ओलिम्पिक खेलें 776 ई० पूर्व यूनान के ओलिम्पिया नामक नगर में आरम्भ हुईं। इन खेलों का आरम्भ करने का श्रेय इफिटस तथा कलाऊस्थैनीज़ को दिया जाता है। ये खेलें अगस्त तथा सितम्बर महीने की पूर्णिमा की रात को आरम्भ हुईं। प्रथम ओलिम्पिक खेलों के विजेता का नाम कोर्बस था। ये खेलें हर चार वर्ष के पश्चात् आयोजित की जाती थीं। 394 ई० पू० में रोमन सम्राट् थ्यूसिडियस के आदेश से ये खेलें बन्द हो गईं। ओलिम्पिक नगर एल्फिस नदी के तट पर बसा हुआ था। यह एलिस राज्य का पवित्र नगर था। 1100 ई० पू० में खेलों के लिए विशेष जगह बन गई जिनकी मन्दिर के समान पूजा होने लगी। ओलिम्पिक खेलों के शुरू होने पर सारे यूनान में लड़ाइयां बन्द हो जाती थीं। ओलिम्पिक नगर में कोई भी शस्त्रों के साथ प्रवेश नहीं कर सकता था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले केवल की दौड़ की वृद्धि की गई। पन्द्रहवीं ओलिम्पिक खेलों में तीन मील की दौड़ की वृद्धि की गई। 18वीं ओलिम्पिक में पेंटाथलीन (Pantathlon) शुरू की गई। इसमें लम्बी छलांग, दो सौ गज़ की दौड़, नेज़ा फेंकना तथा कुश्तियां पांच खेलें रखी गईं। 25वीं ओलिम्पिक्स में रथ दौड (Chariot Race) तथा 30वीं ओलिम्पिक्स में मुक्केबाज़ी, पानी की खेलें, कुश्तियां तथा पैक्ट्रयम आदि खेलें सम्मिलित की गईं। ये खेलें तीन से पांच दिन तक चलती थीं। पहले स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में स्त्रियों के लिए भी द्वार खोल दिए गए।

ईनाम (Rewards)—इन खेलों के विजेताओं को खूब सम्मानित किया जाता था। उन्हें जीयस देवता के मन्दिर में ले जाकर जैतून वृक्ष की टहनियां और पत्ते भेंट किए जाते थे। लोग उनकी विजय के गीत गाते थे। विजेताओं के नाम पर खेलों के नाम रखे जाते थे। विजेताओं के साथी बाजा बजाकर उनके घर छोड़ कर आते थे। विजेता खिलाड़ियों पर देश गर्व करता था। सभी यूनानी इन खेलों में विजय प्राप्त करने की हार्दिक कामना करते थे।

समाप्ति (End)—समय की गति के साथ ये खेलें लोकप्रिय होती गईं और अन्य देशों तथा राष्ट्रों ने भी भाग लेना आरम्भ कर दिया। रोमनों द्वारा यूनान की विजय के पश्चात् इन खेलों की लोकप्रियता को ठेस पहुंची। कई व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इनमें भाग लेने लगे। इससे इन खेलों में कई बुराइयां घर कर गईं। रोमन सम्राट् थिओडसस के आदेश से 394 ई० पू० में ये खेलें बन्द कर दी गईं। 395 ई० पू० में जीयस देवता का बुत भी तोड़ दिया गया। ओलिम्पिक नगर की चहल-पहल समाप्त हो गई। रोमन सम्राट् थिओडसस द्वितीय ने स्टेडियम भी नष्ट करवा दिया। इस प्रकार कुछ समय तक ओलिम्पिक खेलों तथा ओलिम्पिया नगर के चिन्ह ही मिट गए।

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प्रश्न 3.
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम थे और कौन-कौन सी खेलें करवाई जाती थी ?
(What were the main rules of the Ancient Olympic Games ? Which were the different games organised ?)
उत्तर-
प्राचीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of Ancient Olympics)प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करना परमावश्यक था—

  1. इन खेलों में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ी यूनान के नागरिक होने चाहिएं।
  2. खिलाड़ी के लिए खेलों में भाग लेने से पूर्व किसी की देख-रेख में 10 मास तक प्रशिक्षण पाना ज़रूरी था। उसे अन्तिम एक मास ओलिम्पिक में व्यतीत करना पड़ता था।
  3. कोई भी व्यावसायिक (Professional) खिलाड़ी इन खेलों में भाग नहीं ले सकता था।
  4. आरम्भ में औरतों को न तो खेलों में भाग लेने और न ही इन्हें देखने की आज्ञा थी।
  5. खिलाड़ियों को खेलों में ठीक ढंग से भाग लेने की शपथ लेनी पड़ती थी।
  6. खिलाड़ियों पर किसी प्रकार के अपराध का आरोप नहीं होना चाहिए था।
  7. ओलिम्पिक में खिलाड़ियों की देख-रेख की ज़िम्मेदारी खेलों के जजों की थी।
  8. पहला और अन्तिम दिन धार्मिक रीतियों और बलियों के लिए निश्चित था।

खेलें (Sports)—प्राचीन ओलिम्पिक खेलों में पहले तो केवल एक दौड़ सम्मिलित थी परन्तु धीरे-धीरे इसमें और खेलों का समावेश हो गया। यह दौड़ लगभग 100 गज़ लम्बी थी। 724 ई० पू० में आयोजित 14वीं ओलिम्पिक खेलों में 400 गज़ की दौड़ और 15वीं ओलिम्पिक खेलों में 3 मील की दौड़ सम्मिलित की गई। 18वीं ओलिम्पिक खेलों में पेंटाथलोन आरम्भ की गई। इसमें लम्बी छलांग, नेज़ाबाजी, 300 गज़ दौड़, डिस्कस थ्रो तथा कुश्तियां पांच खेलें आती थीं। 25वीं ओलिम्पिक्स में पुरुषों के लिए बॉक्सिंग (मुक्केबाज़ी) आरम्भ की गई। ओलिम्पिक खेलों में रथ दौड़ तथा 30वीं ओलिम्पिक्स स्त्रियां इन खेलों में भाग नहीं ले सकती थीं परन्तु बाद में उन्हें अनुमति दे दी गई।

प्रश्न 4.
नवीन ओलिम्पिक खेलें किसने शुरू करवाईं ? उसके विषय में आप क्या जानते हो ?
(Who has started Modern Olympic Games ? What do you know about him ?)
उत्तर-
14वीं शताब्दी तक ओलिम्पिक खेलों के महत्त्व की ओर किसी ने तनिक ध्यान न दिया। परन्तु इन खेलों का पुनर्जन्म लिखा हुआ था। 1829 ई० में जापानी तथा फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने ओलिम्पिया की खुदवाई का काम आरम्भ किया। वर्षों के प्रयत्नों के पश्चात् उनके हाथ सफलता लगी। इन खुदाइयों से ओलिम्पिया के मन्दिर और स्टेडियम प्राप्त हुए।
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बैरन दि कबर्टिन को नवीन ओलिम्पिक खेलों के जन्मदाता माना जाता है। उनका जन्म 1863 ई० में फ्रांस में हुआ। वह फ्रांस के शिक्षा विभाग में कार्य करते थे। उनकी शारीरिक शिक्षा से विशेष रुचि थी। 1854 ई० में वे इंग्लैण्ड के भ्रमण पर गए। वे इंग्लैण्ड के शैक्षणिक ढांचे से अत्यधिक प्रभावित हुए।

कुबर्टिन बर्तानिया और अमेरिका गए। वहां इन्होंने लोगों को अपनी योजनाओं से अवगत कराया। इस पर अन्य खेल प्रेमियों ने उनको सहायता देने का समर्थन किया। कुबर्टिन खेलों के माध्यम से स्वास्थ्य, सुन्दरता, मनोरंजन तथा सहयोग बढ़ाना चाहते थे। उन्होंने विभिन्न देशों का दौरा किया और वहां के लोगों को अपने विचारों की जानकारी दी। उन्होंने फ्रांस में फ्रांसीसी खेल संघ की आधारशिला रखी। 16 जून, 1894 ई० को एक अन्तर्राष्ट्रीय कांग्रेस के समक्ष ओलिम्पिक योजना रखी गई।
इसका सभी ने समर्थन किया। फलस्वरूप 5 अप्रैल से 15 अप्रैल, 1896 ई० तक प्रथम ओलिम्पिक खेलों का आयोजन किया गया। इन खेलों के लिए कुबर्टिन ने एक महान् आदर्श प्रस्तुत किया। वह आदर्श है-“ओलिम्पिक खेलों में महत्त्वपूर्ण बात, जीत प्राप्त करना नहीं बल्कि उनमें भाग लेना है। आवश्यक बात जीतना नहीं है बल्कि अच्छी तरह मुकाबला करना है।” (“The important thing in Olympics is not to win but to take part. As the important thing in life is not triumph but struggle. The essential thing is not to have conquered but to have fought well.”;

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प्रश्न 5.
नवीन ओलिम्पिक खेलों का मॉटो तथा शपथ क्या है ?
(What is Olympic Motto and Olympic Oath of modern Olympic Games ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक मॉटो (Olympic Motto)-ओलिम्पिक मॉटो तीन शब्दों से बना है। ये तीन शब्द हैं—
सीटियस (Citius), आल्टीयस (Altius), फार्टियस (Fortius)
सीटियस (Citius) का अर्थ है बहुत तेज़.
आल्टीयस (Altius) का अर्थ है बहुत ऊंचा
फार्टियस (Fortius) का अर्थ है बहुत जोर से।
ये तीनों शब्द खिलाड़ी के लक्ष्य को सूचित करते हैं। इनका अभिप्राय है-बहुत तेज़ भागना, बहुत ऊंची छलांग लगाना तथा बहुत जोर से डिस्कस या गोला फेंकना।

ओलिम्पिक शपथ—यह रीति 1920 ई० में अन्तदीप में शुरू हुई थी। वर्ष 1984 में ओलिम्पिक खेलों के चार्टर रूप 63 में कहा गया है कि मेज़बान राष्ट्र का एक खिलाड़ी अपने बाएं हाथ में ओलिम्पिक झण्डे का कोना पकड़ कर और अपना दायां हाथ ऊपर उठा कर निम्नलिखित शपथ लेगा—

“सभी खिलाड़ियों की ओर से मैं बचन लेता हूं कि हम इन ओलिम्पिक खेलों में उन नियमों का आदर करते हुए और उन पर पाबन्द रहते हुए जो कि इसकी निगरानी करते हैं, खिलाड़ियों की सच्ची भावना से खेलों के गौरव और हमारी टीमों के सम्मान के लिए शामिल होंगे।”

ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag)—ओलिम्पिक झण्डा (Olympic Flag) सर्वप्रथम बैल्जियम (Belgium) के ऐंटवरप (Antwerp) नगर में हुई ओलिम्पिक खेलों में लहराया गया। यह झण्डा सफ़ेद रंग का होता है। इसमें पांच चक्र परस्पर जुड़े हुए भिन्न-भिन्न रंगों के (लाल, हरा, पीला, नीला तथा काला) होते हैं। ये अंग्रेजी अक्षर W जैसे आकार के होते हैं। ये संसार के पांच महाद्वीपों यूरोप, अमेरिका, एशिया, अफ्रीका तथा ऑस्ट्रेलिया का प्रतिनिधित्व करते हैं। झण्डे पर ओलिम्पिक मॉटो (Motto), तीन शब्दों Citius, Altius तथा Fortius द्वारा दर्शाया जाता है।
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नोट—सभी खिलाड़ियों की ओर से ओलिम्पिक शपथ लेने वाले खिलाड़ी—

वर्ष नाम राष्ट्र एवं खेल
1920 विक्टर बैन (बैल्जियम, गतका)
1924 जियो एंङ्गीअ (फएंसम ऐथलैटिक्स)
1928 हैनरी डैनिस (नीदरलैंडस, फुटबाल)
1932 जार्ज चार्ल्स कैनन (अमेरिका, गतका)
1936 रुडुलफ इस्मायर (जर्मनी, भार उठाना)
1948 डोनलड फिनले (इंग्लैंड, ऐथलैटिक्स)
1952 हेईकी सावीलैनेन (फिनलैंड, जिमनास्टिक्स)
1956 जॉन लैंडी (आस्ट्रेलिया, ऐथलैटिक्स)
1960 एडोलफो कांसोलिनी (इटली, ऐथलैटिक्स)
1964 टकाशी ऊनो. (जापान, जिमनास्टिक्स)
1968 पाबलो मैरीडो (मैक्सिको, ऐथलैटिक्स)
1972 हेईडी सक्यूल  (पश्चिमी जर्मनी, ऐथलैटिक्स)
1976 पीएरे सेंट जीन (कैनेडा, भार उठाना)
1980 निकोलाई एंड्रीयनोव (सोवियत रूस, जिमनास्टिक्स)

 

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 4 एशियन और ओलिम्पिक खेलें

प्रश्न 6.
नवीन ओलिम्पिक खेलों के क्या नियम हैं ? (अभ्यास का प्रश्न 5)
(Discuss the main rules of Modern Olympics.)
उत्तर-
नवीन ओलिम्पिक खेलों के नियम (Rules of New Olympics)-पहले. तो खेलों के नियम बहुत ही साधारण थे। कोई भी व्यक्ति इनमें भाग ले सकता था। 1908 ई० में ओलिम्पिक खेलें लन्दन में आयोजित की गईं और नियमों का निर्माण किया गया। ये नियम इस प्रकार हैं—

  1. प्रत्येक देश जो ओलिम्पिक खेलों का सदस्य है अपने किसी भी देशवासी को खेलों में भाग लेने के लिए भेज सकता है।
  2. कोई भी व्यावसायिक खिलाड़ी (Professional player) इनमें भाग नहीं ले सकता। इस बात की पुष्टि उसकी राष्ट्रीय कमेटी करती है। इस विषय में खिलाड़ी को भी लिख कर देना पड़ता है।
  3. इनमें भाग लेने वाले खिलाड़ी पर आयु, जाति, धर्म आदि का प्रतिबन्ध नहीं है।
  4. कोई भी खिलाड़ी नशे की हालत में खेलों में भाग नहीं ले सकता।
  5. खिलाड़ी के लिंग की जांच की जाती है।
  6. किसी एक देश की ओर से भाग लेने वाला खिलाड़ी किसी दूसरे राष्ट्र की ओर से भाग नहीं ले सकता।
  7. यदि कोई नया देश अस्तित्व में आया हो तो वह अपना खिलाड़ी भेज सकता है।

इन खेलों का आयोजन, अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी द्वारा किया जाता है। इस कमेटी में प्रत्येक देश का मैम्बर होता है। परन्तु जिस देश में ओलिम्पिक कमेटियां स्थापित हों अथवा जहां खेलों का आयोजन भली-भांति हो, उसके दो सदस्य भी हो सकते हैं। इस कमेटी के सदस्य आठ वर्ष के लिए अपने अध्यक्ष का चुनाव करते हैं। इसके अतिरिक्त चार वर्ष के लिए दो उपाध्यक्षों का चुनाव करते हैं। पांच अन्य सदस्य भी इस कमेटी के सदस्य चुने जाते हैं। यह कमेटी नियमानुसार ओलिम्पिक खेलों का आयोजन करती है।

प्रश्न 7.
भारतीय खिलाड़ियों को ओलिम्पिक खेलों में क्या स्थान प्राप्त है ?
(Discuss the main achievements of Indian players in Olympic ?)
उत्तर-
ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों की सफलताएं (Achievements of Indian players in Olympics)-नवीन ओलिम्पिक खेलों का आरम्भ 1896 ई० में हुआ। इस कार्य में फ्रांस के बैरन दि कुबर्टिन ने प्रशंसनीय भूमिका निभाई थी। इसी कारण उसे ओलिम्पिक खेलों का जन्मदाता कहा जाता है। भारत ने इन खेलों में 1900 ई० में पहली बार भाग लिया। भारतीय खिलाड़ी नार्मन ने 200 मीटर की दौड़ में दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा प्राप्त किया। 1920 ई० की ओलिम्पिक खेलों में भारत की ओर से छ: खिलाड़ियों ने एथलैटिक्स और कुश्तियों में भाग लिया। 1924 में पैरिस ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इन में आठ भारतीय खिलाड़ियों ने भाग लिया। श्री जी० डी० सोंधी, एच० सी० बक और ए० जी० कारेन ने ओलिम्पिक लहर को देश में लोकप्रिय करने के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 1927 ई० में इण्डियन

ओलिम्पिक एसोसिएशन की स्थापना हुई।—1928 ई० में भारतीय हॉकी टीम ने प्रथम बार एमस्टर्डम में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भाग लिया। इसने सोने का तमगा जीता। 1928 ई० से 1956 ई० तक भारत हॉकी जगत् में छाया रहा। 1952 ई० में के० डी० यादव ने कुश्ती के मुकाबले में भाग लिया और तांबे का तमगा जीता। 1956 में मैलबोर्न में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारत की फुटबाल टीम ने पहली बार भाग लिया। इस टीम ने चौथा स्थान प्राप्त किया। 1960 में रोम में हई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त किया और पहला स्थान पाकिस्तानी टीम ने प्राप्त किया। इसी वर्ष मिलखा सिंह ने 400 मीटर दौड़ में चौथा स्थान प्राप्त किया।

1964 में टोकियो में ओलिम्पिक खेलों का आयोजन हुआ। इसमें भारतीय हॉकी की टीम फिर से प्रथम स्थान पाने में सफल हुई। 1968, 1972 तथा 1976 में आयोजित होने वाली ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी – प्रथम स्थान पा कर सोने का तमगा जीतने में सफल रही। 1976 में ओलिम्पिक खेलें मांट्रियाल में हुईं। इसमें शिवनाथ ने मैरथान दौड़ में ग्यारहवां और श्री राम ने 800 मीटर दौड़ में सातवां स्थान प्राप्त किया। 1980 में मास्को में हुई ओलिम्पिक खेलों में भारतीय हॉकी टीम ने सोने का तमगा जीतने में सफलता प्राप्त की। इन खेलों में भारतीय टीम ने एथलैटिक्स, कुश्तियां, बॉक्सिग, बास्केट बाल, निशानेबाज़ी तथा वालीबाल में तो भाग लिया था, परन्तु इनमें उसे कोई विशेष सफलता हाथ नहीं लगी थी। 1984 में लास ऐंजलस में आयोजित ओलिम्पिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा। 28वीं ओलम्पिक खेलें 2004 में ऐन्थन ग्रीस में हुईं इसमें मेजर राजवर्धन सिंह राठौर ने सूटिंग मुकबाले में दूसरा स्थान प्राप्त करके भारत की शान बढ़ाई। ऐथलैटिक में अंजू बोबी जार्ज ने लोंग जम्प में छठा स्थान प्राप्त किया और भारतीय हाकी टीम सातवां स्थान ही प्राप्त कर सकी।

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प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी के बारे संक्षेप से लिखें।
(Write in brief about International Olympic Committee I.O.A.)
उत्तर-
अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक (International Olympic Committee)
ओलिम्पिक खेलों के संगठन के लिए सर्वोच्चतम कमेटी अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी है। 25 जून, 1894 में पेरिस की कांग्रेस के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी को निम्न उत्तरदायित्व सौंपे गए—

  1. खेलों का लगातार करना।
  2. खेलें कुबर्टिन के आम आशय के अनुसार तथा सारे विश्व में प्रेम और शान्ति का सन्देश दें।
  3. खेलों में अव्यावसायिक प्रतियोगिता को उच्चतम स्थान दें।
  4. खेलें विश्व शान्ति तथा मैत्री को बढ़ाएं।

ओलिम्पिक खेलों की इस कमेटी में प्रत्येक देश का एक प्रतिनिधि होता है। परन्तु ऐसे देश जहां ओलिम्पिक खेलें हुई हों तथा वे देश जिन्होंने ओलिम्पिक खेल में महत्त्वपूर्ण काम किया हो, के दो सदस्य होते हैं अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी अपने लिए बैकट द्वारा अपना प्रधान चुनती है जो पांच वर्ष तक इस पद पर रहता है। फिर दुबारा चुने जाने पर वह चार वर्ष और रह सकता है। इसमें दो उप-प्रधान भी होते हैं जिनकी कार्य अवधि चार वर्ष होती है। यह दुबारा चुनाव लड़ सकते हैं। उप-प्रधान तथा पांच कार्यपालिका के सदस्य हर चार साल बाद इन खेलों को कराने में सहायता करते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलिम्पिक कमेटी का मुख्य कार्यालय सीरोन (स्विट्ज़रलैण्ड) में है।
एशियाई खेलें
(Asian Games)
एशियाई खेलों का जन्म 13 जनवरी, 1949 में नई दिल्ली के पटियाला हाऊस में अफगानिस्तान, म्यनमार (बर्मा), भारत, पाकिस्तान तथा फिलीपाइन्स के प्रतिनिधियों के हस्ताक्षरों के साथ हुआ। इन खेलों के लिए सदैव आगे (Ever onward) का आदर्श अपनाया गया। इन खेलों को प्रारम्भ करने का श्रेय अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के भारतीय प्रतिनिधि स्वर्गीय जी० डी० सोंधी को है। श्री सोंधी तत्कालीन भारतीय ऐथलैटिक्स संघ के प्रधान थे। इन खेलों से पहले एशियन क्षेत्र में सुदूर पूर्व खेलें, पश्चिमी एशियन खेलें, जिनमें जापान, चीन, फिलीपाइन तथा स्वेज़ नहर के पूर्वी देश तथा सिंगापुर के पश्चिमी देश भाग लेते थे। मगर यह खेलें द्वितीय विश्व युद्ध के कारण बन्द हो गई।

एशियाई खेलों को कराने के पीछे प्रमुख उद्देश्य था कि एशियाई सब देश खेल के मैदान में इच्छुक हो। इस सम्बन्ध में मार्च, 1949 में पंडित नेहरू द्वारा नई दिल्ली में एशियाई देशों सम्बन्धी कान्फ्रेंस का आयोजन किया गया जिसमें एशियाई खेलों की तरफ आए हुए सदस्यों का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया गया। जी० डी० सोंधी द्वारा पंडित नेहरू का ध्यान इस तरफ आकर्षित किया। श्री नेहरू के इस विचार का अपना अनुमोदन किया। 1949 में लन्दन के ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले एशियाई सदस्यों को एकत्र करके पहले एशियाई खेलों का प्रारम्भ 1950 में माना गया। फलस्वरूप प्रारम्भिक खेलें नई दिल्ली, मार्च, 1951 में कराई गई। ये खेलें हर चार साल बाद कराई जाती हैं। विभिन्न खेलों के विवरण इस तरह हैं—
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सदस्य देश
(Member Countries)
अफगानिस्तान, बेहरी, म्यनमार (बर्मा) चीन, हांगकांग, भारत, इण्डोनेशिया, ईरानइराक, इजराइल, जापान, गणतन्त्र कोरिया, गणतंत्र जनतांत्रिक कोरिया, मलेशिया, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, फिलिपाइन, सऊदी अरब, सिंगापुर, श्रीलंका, थाईलैंड, वियतनाम।

विभिन्न खेलें
(Different Games)
एथलैटिक, बैडमिन्टन, बास्केट बाल, बाक्सिंग, साइकलिंग, सलवान, खाली, फुटबाल, जिमनास्टिक, हॉकी, निशानेबाजी, तैराकी, टेबल-टैनिस, लान-टैनिस यांत्री, भार उठाना, कुश्ती।

प्रश्न 9.
एशियाई खेलों में भारतीयों ने कौन-कौन से इनाम जीते हैं ?
(Write about Indian players who won Lourels in Asian Games ?)
उत्तर-
एशियाई खेलों में भारत की सफलता (India’s achievement in Asian Games)-पहली एशियाई खेलों का आयोजन नई दिल्ली में 1951 ई० में हुआ।

इन खेलों में भारतीयों ने 15 स्वर्ण, 16 रजत तथा 21 कांस्य पदक जीते। भारतीय फुटबाल टीम ने सोने का तमगा जीता। भारतीय एथलीट लेरी पिंटो ने 100 तथा 200 मीटर दौड़ में, रणजीत सिंह ने 800 मीटर में, निक्का सिंह ने 1500 मीटर में एवं मदन लाल ने गोला फेंकने में तथा मक्खन सिंह ने डिस्कस फेंकने में सोने के पदक जीते। 1954 ई० में दूसरे एशियाई खेल मनीला में हुए। इन में अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में, सरवन सिंह ने 110 मीटर बाधा दौड़ में स्वर्ण पदक जीते जबकि सोहन सिंह ने 800 मीटर में तथा जोगिन्दर सिंह ने 400 मीटर दौड़ में रजत पदक पाये। भारतीय महिलाओं ने 4 × 100 मीटर रिले दौड़ में गोल्ड मैडल हासिल किया। 1958 ई० में तीसरी एशियाई खेलें टोकियो में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 200 तथा 400. ‘ मीटर में, बलकार सिंह ने डिस्कस थ्रो में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में तथा महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में स्वर्ण पदक जीते तथा भारत का नाम खेल जगत् में ऊंचा किया। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान प्राप्त करके चांदी का तमगा जीता। भारत ने इन खेलों में 5 सोने के, 4 चांदी के तथा 4 तांबे के तमगे जीते। 1962 की चतुर्थ एशियाई खेलें जर्काता में सम्पन्न हुईं। इन में मिलखा सिंह ने 400 मीटर में, मोहिन्द्र सिंह ने 1500 मीटर में, तरलोक सिंह ने 10,000 मीटर में तथा पुरुषों की 4 × 400 मीटर रिले दौड़ में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। भारत ने इन खेलों में 11 सोने के, 13 चांदी के तथा 10 तांबे के पदक जीते।

1966 ई० में एशियाई खेलों का आयोजन बैंकाक में हुआ जिन में भारतीय खिलाड़ियों ने 7 सोने के, 3 चांदी के तथा 11 तांबे के पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम ने दूसरा स्थान पाया तथा भारतीय एथलीट अजमेर ने 400 मीटर में, बी० एस० बरुआ ने 800 मीटर में, भीम सिंह ने ऊंची छलांग लगाने में, परवीन ने डिस्कस और जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के पदक जीते।

1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में परवीन ने डिस्कस में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टेप जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला में महिला एथलीट कंवलजीत सन्धु ने 400 मीटर दौड़ में सोने का तमगा जीत कर . ख्याति में वृद्धि की। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला। कुल मिला कर भारत ने इन खेलों में 6 सोने के, 9 चांदी के और 10 तांबे के पदक जीते।

1974 में तेहरान में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 4 सोने, 12 चांदी और 12 तांबे के तमगे जीत कर सातवां स्थान प्राप्त किया। इन खेलों में श्री राम सिंह ने 800 मीटर दौड़ में, शिव नाथ सिंह ने 5000 मीटर (नया रिकार्ड) सोने का तथा 10,000 मीटर दौड़ में चांदी का तथा टी० सी० योगनन ने लम्बी छलांग में सोने के तमगे जीते।

1978 ई० में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में भारत ने 11 सोने के, 11 चांदी के तथा 6 तांबे के पदक जीत कर छठा स्थान प्राप्त किया। 5000 तथा 10,000 मीटर दौड़ में हरि चन्द ने, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में, सुरेश बाबू ने लम्बी छलांग में, हुक्म सिंह ने 20 किलोमीटर वाक में स्वर्ण पदक जीते। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर दौड़ में चांदी का मैडल तथा 800 मीटर में स्वर्ण पदक जीते। भारतीय हॉकी टीम को दूसरा स्थान मिला।

1982 में नवम एशियाई खेलें नई दिल्ली में हुईं जिनमें भारत ने 13 सोने, 19 चांदी और 19 कांस्य पदक जीते। भारतीय महिला हॉकी टीम ने सोने का तथा पुरुष हॉकी टीम ने चांदी का पदक प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बाल सम्मा ने 400 मीटर हर्डल दौड़ में तथा 800 मीटर दौड़ में चार्ल्स बरोनियो ने सोने के पदक जीते। 1986 में एशियाई खेल सिओल में आयोजित किए गए। भारतीय महिला एथलीट पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 800 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में स्वर्ण पदक जीत कर भारत को पदक तालिका में सम्मानजनक स्थिति पर ला खड़ा किया। ऊषा ने 100 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान पाया। उसने सर्वोत्तम प्रदर्शन द्वारा भारत के नाम को रोशन किया। भारत ने कुल 5 सोने के, 9 चांदी के तथा 23 कांस्य पदक जीते। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नाम कमाने वाले भारतीय खिलाड़ियों का वर्णन इस प्रकार है—

  1. लैरी पिंटो ने 1951 में हुई पहली एशियाई खेलों में 100 मीटर दौड़ में प्रथम स्थान पाकर सोने का तमगा जीता।
  2. 1954 में मनीला में आयोजित एशियाई खेलों में सोहन सिंह ने 400 मीटर दौड़, अजीत सिंह ने ऊंची छलांग, प्रद्युमन सिंह ने डिस्कस तथा गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते। इनके अतिरिक्त जोगिन्दर सिंह ने चांदी का और ए० ग्रेबियन ने 100 मीटर दौड़ तथा दालू राम ने 3000 और 5000 मीटर दौड़ में तीसरा स्थान प्राप्त करके तांबे के तमगे जीते।
  3. 1958 में हुई एशियाई खेलों में फ्लाईंग सिक्ख (Flying Sikh) मिलखा सिंह ने 200 मीटर और 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, बलकार सिंह ने जैवलिन फेंकने में, प्रद्युमन सिंह ने गोला फेंकने में, एच० चांद ने 100 मीटर हर्डल्ज़ में और 400 मीटर हर्डल्ज़ में जगदेव सिंह ने सोने का तमगा प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त स्वीटी डिसूजा ने 200 मीटर दौड़ की हीट्स में नया रिकार्ड कायम किया। एलिज़ाबैथ डैवनपोर्ट ने 46.07 मीटर दूर जैवलिन फेंक कर दूसरा स्थान प्राप्त किया।
  4. 1966 में हुई एशियाई खेलों में अजमेर सिंह ने 400 मीटर, बी० एस० बरुआ ने डिस्कस थ्रो, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने तथा भीम सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे जीते।
  5. 1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाई खेलों में कंवलजीत संधु ने 400 मीटर दौड़ में, महिन्दर सिंह ने हाप स्टैप एण्ड जम्प में, जोगिन्दर सिंह ने गोला फेंकने में सोने के तमगे प्राप्त किए। इसके अतिरिक्त एडवर्ड शकेरा ने 5000 मीटर में, श्रीराम ने 800 मीटर में, लाभसिंह ने लम्बी छलांग तथा हाप स्टेप जम्प में चांदी के तमगे प्राप्त किये। मनजीत वालिया ने 80 मीटर हर्डल्ज़, सुच्चा सिंह ने 400 मीटर में और गुरमेज सिंह ने 3000 मीटर में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  6. 1974 में तेहरान में हुई एशियाई खेलों में शिवनाथ ने 5000 मीटर में नया रिकार्ड स्थापित किया। कंवलजीत संधू ने 56.5 सैकिण्ड में 400 मीटर की दौड़ जीत कर भारतीय स्त्री खिलाड़ियों की ओर से सोने का तमगा जीता। इन्हीं खेलों में टी० सी० योग ने लम्बी छलांग में तथा वी० एस० चौहान ने 1500 मीटर दौड़ में सोने का तमगा प्राप्त किया। निर्मल सिंह ने हैमर फेंकने में चांदी का तथा लैहम्बर सिंह ने 400 मीटर हर्डल में तांबे का तमगा प्राप्त किया।
  7. 1978 की एशियाई खेलों में हरिचन्द ने 1000 मीटर दौड़ में सोने का तमंगा प्राप्त किया। गीता जुत्शी ने 1500 मीटर में चांदी तथा 800 मीटर दौड़ में सोने के तमगे प्राप्त किए।

उपर्युक्त खिलाड़ियों के अतिरिक्त कई अन्य भारतीय खिलाड़ियों ने ओलिम्पिक खेलों में भी अपने उत्तम खेल का प्रदर्शन करके अन्तर्राष्ट्रीय क्रीडा क्षेत्र में बहुत नाम कमाया।

1982 की नौवीं खेलें जो दिल्ली में हुई थीं, बहादुर सिंह ने गोला फेंकने में नया रिकार्ड कायम किया। गीता जुत्शी ने 800, 1500 मीटर दौड़ में दूसरा स्थान, बालसम्मा ने 400 . मीटर हर्डल दौड़ में प्रथम स्थान, 800 मीटर दौड़ में बरोनियो ने प्रथम स्थान प्राप्त किया। हॉकी में लड़कियों ने सोने का तमगा और लड़कों ने चांदी का तमगा जीता। कुश्तियों में सत्यपाल ने सोने का तमगा और करतार सिंह ने चांदी का तमगा जीता। कौर सिंह ने बाक्सिग में सोने का तमगा जीता। भारत की घोड़ों की टीम ने सोने के तमगे जीते और भारत की गोल्फ की टीम ने सोने के तमगे जीते।

1986 की एशियाई खेलों में भारतीय महिला खिलाड़ी पी० टी० ऊषा ने 200, 400, 400 मीटर हर्डल तथा 4 × 400 मीटर रिले में सोने के पदक जीत कर खेल जगत में तहलका मचा दिया। ऊषा ने सिओल में सम्पन्न इन खेलों में 100 मीटर दौड़ में चांदी का पदक जीता।

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प्रश्न 10.
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें किस देश में हुई थीं।
उत्तर-
वर्ष 1982 में एशियाई खेलें भारत में हुई थीं।

प्रश्न 11.
नवीन ओलिम्पिक खेलों में कौन-कौन सी खेलें होती हैं ?
(Name the main sports events which are organised in Modern Olympic.)
उत्तर-

  1. तीर अन्दाजी
  2. एथलैटिक्स
  3. बॉक्सिग
  4. बास्केटबाल
  5. कैनोईग
  6. साइकलिंग
  7. इकवीएस टीरंग
  8. फुटबाल
  9. जिम्नास्टिकस
  10. हैंडबाल
  11. हाकी
  12. जूड़ो
  13. निशानेबाजी
  14. रोईग
  15. तैराकी और डुबकी लगाना
  16. तलवार बाजी
  17. वालीबाल
  18. भार उठाना
  19. कुश्ती
  20. बाटर पोलो
  21. याट किशती दौड़।

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प्रश्न 12.
11वीं एशियाई खेलों में भारत ने कौन-कौन से इनाम प्राप्त किये?
(Which awards India won in the Eleventh Asian Games ?)
उत्तर-
11वीं एशियाई खेलें बीजिंग (चीन) में 1990 में हुई थी जिसमें भारत ने नीचे लिखे मुकाबलों में इनाम प्राप्त किए थे।
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PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

PSEB 7th Class Agriculture Guide कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
पंजाब का कितना क्षेत्रफल कृषि के अधीन है ?
उत्तर-
41.58 लाख हैक्टेयर।

प्रश्न 2.
दरम्यानी जमीन में प्रति एकड़ कितने क्यारे होने चाहिए ?
उत्तर-
तीन से चार इंच वाले ट्यूबवैल के लिए 10 से 11 क्यारे प्रति एकड़।

प्रश्न 3.
धान लगाने के लिए कितने दिन पानी खेत में खड़ा रखना चाहिए ?
उत्तर-
15 दिन।

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प्रश्न 4.
गेहूँ की काश्त के लिए पहले पानी कम लगाने के लिए कौन-सी ड्रिल का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
जीरो टिल ड्रिल की।

प्रश्न 5.
लेज़र लेवलर द्वारा फसलों के उत्पादन में कितनी वृद्धि होती है ?
उत्तर-
25-30%.

प्रश्न 6.
खेतों में पानी की कार्यक्षमता कितनी नापी गई है ?
उत्तर-
35-40%.

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प्रश्न 7.
पंजाब की मुख्य फसलें कौन-सी हैं ?
उत्तर-
गेहूँ तथा धान।

प्रश्न 8.
धान में उचित सिंचाई के लिए कौन-से यंत्र का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
टैंशियोमीटर।

प्रश्न 9.
कम पानी लेने वाली किन्हीं दो फसलों के नाम लिखो।
उत्तर-
तेल बीज फसलें, कपास।

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प्रश्न 10.
फसलों पर पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
वाष्पीकरण कम होता है।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
टैंशियोमीटर का प्रयोग कैसे करना चाहिए ?
उत्तर-
यह एक यन्त्र है जोकि कांच की पाइप से बना है, इसको फसल वाली भूमि में गाड़ दिया जाता है। इसमें पानी का स्तर जब हरी पट्टी से पीली पट्टी में पहुंच जाता है तो ही खेत में पानी दिया जाता है।

प्रश्न 2.
जीरो टिल डिल का क्या लाभ है ?
उत्तर-
जीरो टिल ड्रिल का प्रयोग करने से पहले हल्का पानी लगाने की आवश्यकता पड़ती है जिससे पानी की बचत हो जाती है।

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प्रश्न 3.
लेज़र लेवलर (कंप्यूटर कराहा) का क्या लाभ है ?
उत्तर-
इससे समतल किए खेत में 25-30% पानी की बचत होती है तथा उपज भी 15-20% बढ़ती है।

प्रश्न 4.
हमें कौन-सी फसलों की काश्त मेड़ों पर करनी चाहिए ?
उत्तर-
जिन फसलों में पौधे से पौधे का फासला अधिक होता है; जैसे-कपास, सूर्यमुखी, मक्का आदि। इन फसलों की खेती समतल खेत के स्थान पर मेड़ों पर करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
फव्वारा और बूंद-बंद सिंचाई के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
फव्वारा तथा बूंद-बूंद सिंचाई से पानी की बहुत बचत होती है तथा फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

प्रश्न 6.
मल्चिग क्या होती है ?
उत्तर-
कई फसलें : जैसे-मक्का, गन्ना आदि में पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण कम हो जाता है, पानी का प्रयोग कम होता है तथा पानी की बचत हो जाती है। इस को मल्चिग कहा जाता है।
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चित्र-मल्चिग

प्रश्न 7.
सिंचाई के लिए प्रयोग में आने वाले भिन्न-भिन्न तरीकों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. खेतों में खुला पानी देना
  2. बूंद-बूंद (ड्रिप) सिंचाई
  3. फव्वारा सिंचाई
  4. बैड्ड बनाकर सिंचाई
  5. मेड़ या नाली बना कर सिंचाई।

प्रश्न 8.
सिंचाई वाले क्यारों का आकार किन बातों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
क्यारों का आकार, मिट्टी की किस्म, ज़मीन की ढलान, ट्यूबवैल के पानी का निकास आदि पर निर्भर करता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

प्रश्न 9.
वर्षा के पानी को कैसे संरक्षित किया जा सकता है ?
उत्तर-
गांव में छप्पड़ (जौहड़) खोदने चाहिएं तथा जौहड़ का पानी सिंचाई आपूर्ति कृषि में पानी का कुशल प्रयोग के लिए प्रयोग करना चाहिए। सूखे पड़े नलकों तथा कुओं को भी वर्षा के पानी की आपूर्ति करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 10.
कृषि-विभिन्नता द्वारा पानी की बचत कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
पंजाब में सावनी की मुख्य फसल धान तथा आषाढ़ी की मुख्य फसल गेहूँ की खेती की जाती है तथा इन्हें पानी की बहुत मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। यदि ऐसी फसलें जिनको कम पानी की आवश्यकता है, जैसे-मक्का, तेल बीज फसलें, दालें, बासमती, कपास, जौ आदि की कृषि की जाए तो भूमिगत जल लम्बे समय तक बचा रह सकता है।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
धान की काश्त में पानी की बचत कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
धान में पहले 15 दिन पानी खड़ा रखने के बाद 2-2 दिन के अन्तर । पर सिंचाई करने से लगभग 25% पानी बच सकता है। धान की सिंचाई के लिए टैंशियोमीटर का प्रयोग करने से भी पानी की बचत हो जाती है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 2
चित्र-टॅशियोमीटर
यह एक कांच की पाइप से बना यंत्र है। इसको ज़मीन में गाड़ दिया जाता है। इसमें पानी का स्तर जब हरी पट्टी से पीली पट्टी में चला जाता है तभी पानी दिया जाता है।

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प्रश्न 2.
खेती में पानी के उचित प्रयोग के पाँच ढंग बताएं।
उत्तर-
खेती में पानी की बचत के ढंग—

  1. धान में टैंशियोमीटर यंत्र का प्रयोग करके पानी की बचत की जा सकती है।
  2. गेहूँ में जीरो टिल ड्रिल का प्रयोग करने से पहले हल्का पानी लगाने की आवश्यकता पड़ती है तथा पानी की बचत हो जाती है।
  3. लेज़र लेवलर से समतल किए खेत में 25-30% पानी की बचत हो जाती है तथा पैदावार 15-20% बढ़ती है।
  4. जिन फसलों में पौधे से पौधे का फासला अधिक होता है ; जैसे-कपास, सूर्यमुखी, मक्का आदि। इन फसलों को समतल खेत की जगह मेड़ों पर बोना चाहिए।
  5. फव्वारा तथा ड्रिप सिंचाई से पानी की बहुत बचत होती है तथा फसल की पैदावार तथा गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
  6. कई फसलें जैसे-मक्का, गन्ना आदि में पराली की परत बिछाने से वाष्पीकरण कम होता है, पानी का प्रयोग कम होता है तथा पानी की बचत हो जाती है। इसको मल्चिंग कहा जाता है।

प्रश्न 3.
अलग-अलग ज़मीन के लिए प्रति एकड़ कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल का आकार 3-4 इंच हो तथा रेतली ज़मीन हो तो क्यारों की संख्या 17-18, दरम्यानी ज़मीन के लिए 10-11 तथा भारी जमीन के लिए 6-7 क्यारे प्रति एकड़ होने चाहिएं।

प्रश्न 4.
वर्षा के पानी के संरक्षण के लिए क्या उपाय कर सकते हैं ?
उत्तर-
मध्य पंजाब के 30% से अधिक क्षेत्र में पानी का स्तर 70 फुट से भी नीचे हो गया है तथा एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक यह स्तर 160 फुट से भी नीचे हो जाएगा। इसलिए वर्षा के पानी को बचाने की बहुत आवश्यकता है। इस काम के लिए आम लोग तथा सरकार को मिलकर काम करने की आवश्यकता भी है तथा अपने स्तर पर भी यह काम करना चाहिए। हमें गांव में जौहड़ खोदने चाहिएं। जौहड़ों के पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए करना चाहिए। हमें सूख चुके नलकों तथा कुओं को भी वर्षा के पानी की पूर्ति करने के लिए प्रयोग करना चाहिए।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 3
चित्र-पुराने सूखे कुओं द्वारा बारिश के पानी की पूर्ति

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प्रश्न 5.
कृषि-विभिन्नता से पानी की बचत पर संक्षेप नोट लिखो।
उत्तर-
यह समय की मांग है कि हम जिस तरह भी हो पानी को बचाएं क्योंकि भूमिगत पानी का स्तर 70 फुट नीचे तक पहुंच गया है जोकि एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक 160 फुट से भी नीचे पहुँच जाएगा। इसलिए पानी बचाने के उपाय करने चाहिएं। इन उपायों में एक है कृषि विभिन्नता।

पंजाब में मुख्य फसलें गेहूँ तथा धान ही रही हैं तथा इनको पानी की बहुत आवश्यकता रहती है। इसलिए अब ऐसी फसलें लगाने की आवश्यकता है जिन्हें कम पानी की आवश्यकता हो, जैसे-दालें, तेल बीज, जौ, मक्का, बासमती, कपास आदि। इस प्रकार कृषि विभिन्नता लाकर हम पानी की बचत कर सकते हैं तथा पानी को लम्बे समय तक बचा सकते हैं।

Agriculture Guide for Class 7 PSEB कृषि में पानी का कुशल प्रयोग Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुल कृषि के अधीन क्षेत्रफल में से पंजाब में कितने प्रतिशत क्षेत्रफल सिंचित है ?
उत्तर-
98%.

प्रश्न 2.
पंजाब में फसल घनत्व को मुख्य रखते हुए वार्षिक औसतन पानी की आवश्यकता बताएं।
उत्तर-
4.4 मिलियन हैक्टेयर मीटर।

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प्रश्न 3.
पंजाब में आज कितने पानी की कमी है ?
उत्तर-
1.3 मिलियन हैक्टेयर मीटर।।

प्रश्न 4.
पंजाब में ट्यूबवैल से कितनी सिंचाई होती है ?
उत्तर-
तीन चौथाई के लगभग।

प्रश्न 5.
पंजाब में नहरों के द्वारा लगभग कितनी सिंचाई होती है ?
उत्तर-
लगभग एक चौथाई।

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प्रश्न 6.
मध्य पंजाब के 30% क्षेत्र में भूमिगत पानी का स्तर कहां पर है ?
उत्तर-
70 फुट से भी नीचे।

प्रश्न 7.
वर्ष 2023 तक भूमिगत जल का स्तर कितना हो जाने की उम्मीद है ?
उत्तर-
160 फुट से भी नीचे।

प्रश्न 8.
पानी का कुशलता से प्रयोग क्यों करना चाहिए ?
उत्तर-
क्योंकि पानी के स्रोत सीमित हैं।

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प्रश्न 9.
दरम्यानी भूमि में कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल 3 से 4 इंच का हो तो 10 से 11 क्यारे प्रति एकड़ बनाने चाहिएं।

प्रश्न 10.
भारी भूमि में कितने क्यारे बनाने चाहिएं ?
उत्तर-
यदि ट्यूबवैल 3 से 4 इंच का हो तो 6-7 क्यारे प्रति एकड़ बनाने चाहिए।

प्रश्न 11.
कौन-सी फसलों को क्यारा विधि द्वारा पानी दिया जाता है ?
उत्तर-
गेहूँ तथा धान।

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प्रश्न 12.
ड्रिप सिंचाई प्रणाली कौन-से क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध होती जा रही है ?
उत्तर-
पानी की कमी तथा खराब पानी वाले क्षेत्रों में।

प्रश्न 13.
कौन-से बागों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
अनार, अंगूर, अमरूद, किन्न, बेर, आम आदि।

प्रश्न 14.
कौन-सी सब्ज़ियों में ड्रिप सिंचाई प्रणाली प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
गोभी, टमाटर, बैंगन, मिर्च, तरबूज, खीरा आदि।

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प्रश्न 15.
फव्वारा सिंचाई प्रणाली कौन-सी भूमियों में प्रयोग की जाती है ?
उत्तर-
रेतली तथा टिब्बों वाली भूमि में।

प्रश्न 16.
क्यारा विधि का क्या नुकसान है ?
उत्तर-
पानी की खपत अधिक होती है।

प्रश्न 17.
बैड्ड प्लांटर से गेहूँ बोने पर कितने प्रतिशत पानी बच जाता है ?
उत्तर-
18-25%.

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प्रश्न 18.
कोई दो फसलों के उदाहरण दें जिनसे पानी की बचत होती है ?
उत्तर-
तेल बीज फसलें, जौ, मक्का, नरमा (कपास)।

प्रश्न 19.
लेज़र लेवलर के प्रयोग से कितनी पैदावार बढ़ती है ?
उत्तर-
25-30%.

प्रश्न 20.
टैंशियोमीटर क्या है ?
उत्तर-
काँच की पाइप से बना यन्त्र।

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प्रश्न 21.
मल्चिंग कौन-सी फसलों में की जाती है ?
उत्तर-
शिमला मिर्च तथा साधारण मिर्च आदि।

प्रश्न 22.
नहरों तथा खालों को पक्का करके कितना पानी बचाया जा सकता है ?
उत्तर-
10-20%.

प्रश्न 23.
केवल वर्षा पर आधारित कषि को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
बारानी या मारू खेती।

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प्रश्न 24.
सिंचाई के मुख्य साधन बताएं।
उत्तर-
नहरी तथा ट्यूबवैल सिंचाई।

प्रश्न 25.
सिंचाई किसको कहते हैं ?
उत्तर–
बनावटी तरीकों से खेतों को पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं।

प्रश्न 26.
ऐसा सिंचाई का कौन-सा साधन है, जिससे सिंचाई करने के लिए किसी उपकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती ?
उत्तर-
नहर का पानी।

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प्रश्न 27.
पानी की कमी का पौधों पर क्या प्रभाव होता है ?
उत्तर-
पानी की कमी से पत्ते मुरझा जाते हैं तथा सूख जाते हैं।

प्रश्न 28.
आप रौणी से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खुले सूखे खेत को बुवाई के लिए तैयार करने के लिए सिंचाई करने को रौणी कहते हैं।

प्रश्न 29.
बीज कैसे अंकुरित होते हैं ?
उत्तर-
बीज भूमि में से पानी सोख कर फूल जाता है तथा अंकुरित हो जाता है।

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प्रश्न 30.
भूमि के अन्दर पानी कम हो जाए तो क्या होता है ?
उत्तर-
भूमि के अन्दर पानी आवश्यकता से कम हो जाए तो पौधे भूमि से अपने पोषक तत्त्व प्राप्त नहीं कर पाते।

प्रश्न 31.
पंजाब में कौन-सी नदियां हैं जिनमें से नहरें निकाल कर सिंचाई की जाती है ?
उत्तर-
सतलुज, ब्यास तथा रावी।

प्रश्न 32.
कछार क्या होता है ?
उत्तर-
नहरों के पानी में तैर रही बारीक मिट्टी को कछार कहते हैं।

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प्रश्न 33.
चरसा क्या है ?
उत्तर-
चरसा चमड़े का बड़ा बोका या थैला होता है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिंचाई से क्या भाव है ?
उत्तर-
बनावटी तरीके से खेतों को पानी देने की क्रिया को सिंचाई कहते हैं।

प्रश्न 2.
सिंचाई की आवश्यकता क्यों है ?
उत्तर-
पौधे पानी के बिना फल-फूल नहीं सकते। खेतों में बोई फसल को वर्षा के पानी या फिर अन्य साधनों द्वारा प्राप्त किए पानी से सींचा जा सकता है। सिंचाई से पौधों को रूप तथा आकार मिल जाता है। पानी धरती में से ठोस तत्त्वों को घोल कर भोजन योग्य बना देता है। पानी पौधे के भोजन को तरल का रूप देकर हर भाग में जाने के योग्य बना देता है। पानी धरती तथा पौधे का तापमान एक समान रखता है। सिंचाई की आवश्यकता को देखते हुए सरकार बड़े-बड़े डैम बना रही है जिनमें से सिंचाई के लिए नहरें निकाली गई हैं।

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प्रश्न 3.
बारानी कृषि से क्या भाव है ?
उत्तर-
जब फसलों की सिंचाई का कोई भी साधन न हो तथा फसलें केवल वर्षा के पानी के आधार पर ही उगाई जाती हों तो इस तरह की खेती को बारानी या मारू खेती कहते है ।
बारानी कृषि केवल वर्षा पर निर्भर है इस प्रकार की कृषि वहीं संभव है जहां पर आवश्यकता अनुसार तथा समय पर वर्षा पड़ती हो।

प्रश्न 4.
नहरी सिंचाई से क्या भाव है ?
उत्तर-
खेती के लिए नहरों का पानी अच्छा समझा जाता है क्योंकि इसमें कछार होती है जो खेत को उपजाऊ बनाती है।
पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन ऐसी नदियां हैं जिनसे नहरें निकाल कर सिंचाई की आवश्यकता को पूरा किया गया है। नहरी सिंचाई का प्रबंध सरकार के सिंचाई विभाग द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 5.
ट्यूबवैल के खराब पानी को सिंचाई योग्य कैसे बनाया जा सकता है ?
उत्तर-
पंजाब के दक्षिणी से पश्चिमी भागों में ट्यूबवैल का पानी खराब या दरम्याना है। इस खराब पानी को विशेषज्ञों की सलाह से नहरों के पानी से मिला कर या इसमें जिपस्म डाल कर ठीक किया जा सकता है।

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प्रश्न 6.
पंजाब में कौन-सी नदियां हैं ? इनका पानी सिंचाई के लिए कैसे प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
पंजाब में सतलुज, ब्यास तथा रावी तीन मुख्य नदियां हैं। इनसे नहरें निकाल कर सिंचाई की आवश्यकता को पूरा किया जाता है।

प्रश्न 7.
तालाबों द्वारा सिंचाई कहां होती है ? पंजाब में इसकी आवश्यकता क्यों नहीं पड़ती ?
उत्तर-
दक्षिण भारत में वर्षा का पानी तालाबों में एकत्र किया जाता है तथा इसको बाद में सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।
पंजाब में नहरी पानी तथा कुएं काफ़ी मात्रा में उपलब्ध हैं। इसलिए यहां तालाबों से सिंचाई नहीं की जाती।

प्रश्न 8.
कुएं में से पानी को सिंचाई के लिए निकालने के लिए प्रयोग होने वाले साधनों की सूची बनाओ।
उत्तर-
कुओं का पानी कई साधनों द्वारा निकाल कर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है। इनकी सूची आगे दी गई है

  1. हल्ट
  2. चरसा
  3. पम्प
  4. ट्यूबवैल।

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प्रश्न 9.
हल्ट क्या होता है ? इसके भागों के नाम लिखें।
उत्तर-
कुएं में से पानी निकालने के लिए हल्ट का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है। इसके निम्नलिखित भाग हैं—

  1. चकला
  2. चकली
  3. वैड़
  4. माहल
  5. पाड़छा
  6. नसार
  7. लट्ठ
  8. टिंडा
  9. कुत्ता।

प्रश्न 10.
आवश्यकता से अधिक सिंचाई के क्या नुकसान हैं ?
उत्तर-
आवश्यकता से अधिक सिंचाई के नीचे लिखे नुकसान हो सकते हैं—

  1. अधिक पानी धरती के नीचे चला जाता है तथा इसका पौधों को कोई लाभ नहीं होता तथा यह अपने साथ पोषक तत्त्वों को भी घोल कर धरती के नीचे गहराई में ले जाता
  2. धरती के रोम बंद हो जाते हैं तथा हवा का आवागमन रुक जाता है।
  3. सेम की समस्या आ सकती है।
  4. मिट्टी में मौजूद सूक्ष्मजीवों का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 11.
पौधों में कितना पानी हो सकता है ?
उत्तर-
पौधों में साधारणतयः 50 से 80% तक पानी हो सकता है, परन्तु बहुत छोटे पौधे तथा केले में 90% पानी होता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में सिंचाई की विधियों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
पंजाब में सिंचाई के लिए मुख्य तौर पर दो विधियों का प्रयोग किया जाता है—
(1) नहरी सिंचाई
(2) ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई।

  1. नहरी सिंचाई-वर्षा के पानी को डैम में एकत्र करके नहरों, सूओं तथा खालों द्वारा आवश्यकता के अनुसार उसको खेतों तक पहुँचाया जाता है। इसको नहरी सिंचाई कहा जाता है।
  2. ट्यूबवैल द्वारा सिंचाई-वर्षा का पानी जब धरती में समा जाता है तथा धरती की सतह के नीचे एकत्र हो जाता है। आवश्यकता के समय पानी को ट्यूबवैल द्वारा निकाल कर प्रयोग किया जाता है। पंजाब में तीन चौथाई भूमि की सिंचाई ट्यूबवैलों से की जाती है। ट्यूबवैल का पानी धरती में नमक की मात्रा के हिसाब से अच्छा या बुरा हो सकता है।

प्रश्न 2.
पौधे के लिए पानी के महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
पौधों के लिए पानी का महत्त्व-सिंचाई की क्रिया जो पौधों के लिए पानी प्रदान करती है, पौधे के फलने-फूलने के लिए कई प्रकार से सहायक होते हैं—

  1. पानी एक अच्छा घोलक है तथा भूमि में घुल कर ही पौधे को प्राप्त होते हैं।
  2. जड़ों द्वारा सोखे जाने के बाद खुराक पानी द्वारा पौधे के दूसरे भागों में पहुंचती है। इस प्रकार पानी पौधे के एक भाग से दूसरे भाग तक खुराक ले जाने का काम करता है।
  3. पानी दो तत्त्वों ऑक्सीजन तथा हाइड्रोजन से मिल कर बना है। यह दोनों तत्त्व पौधे के भोजन के अंश हैं। इसलिए पानी खुद एक खुराक है।
  4. पानी पौधों तथा भूमि के तापमान को स्थिर रखता है। गर्मियों में पानी पौधों को ठण्डा रखता है तथा सर्दी में पौधों को सर्दी से बचाता है।
  5. पानी के बिना पौधे सूर्य की रोशनी में प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं कर सकते। मतलब अपनी खुराक नहीं बना सकते।
  6. पानी भूमि को नर्म रखता है। यदि भूमि नर्म होगी तो जड़ें खुराक ढूंढ़ने के लिए इसके ऊपर आसानी से फैल सकेंगी।
  7. पानी से भूमि के अन्दर लाभदायक बैक्टीरिया अपना काम तेज़ी से कर सकते हैं।
  8. पानी भूमि में मौजूद कूड़ा-कर्कट, घास-फूस तथा अन्य जैविक पदार्थों को गलासड़ा कर भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने में सहायता करता है।
  9. कई बार पानी में बारीक मिट्टी मिली होती है जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ जाती है।

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प्रश्न 3.
सिंचाई के भिन्न-भिन्न तरीकों के बारे में विस्तारपूर्वक बताएं।
उत्तर-
सिंचाई के भिन्न तरीके हैं—
(1) खेतों में खुला पानी देना (क्यारा विधि)
(2) बूंद-बूंद विधि (ड्रिप विधि)
(3) फव्वारा सिंचाई
(4) मेड़ या नाली बना कर सिंचाई
(5) बैड्ड बना कर सिंचाई।

1. खेतों में खुला पानी देना-पंजाब में इस ढंग का प्रयोग अधिक होता है। इस विधि से खेत को पानी एक मेड़ तोड़कर लगाया जाता है, इस प्रणाली में पानी की खपत अधिक होती है। क्यारे का आकार कई बातों पर निर्भर करता है; जैसे-मिट्टी की किस्म, खेत की ढलान, ट्यूबवैल के पानी का निकास आदि। यदि ट्यूबवैल का आकार 3-4 इंच हो तो रेतली भूमि में पानी लगाने के लिए क्यारों की संख्या 17-14, दरम्यानी भूमि में 1011 तथा भारी भूमि में 6-7 क्यारे प्रति एकड़ होनी चाहिए। गेहूँ तथा धान को पानी लगाने के लिए यही ढंग अपनाया जाता है।

2. बूंद-बूंद सिंचाई-इस प्रणाली को ड्रिप सिंचाई प्रणाली भी कहा जाता है। यह नए ज़माने की विकसित सिंचाई प्रणाली है। इससे पानी की बहुत बचत हो जाती है। इसको पानी की कमी तथा खराब पानी वाले क्षेत्रों में प्रयोग करना लाभकारी है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 4
चित्र-बूंद-बूंद सिंचाई
इस प्रणाली में प्लास्टिक की पाइपों के द्वारा पानी पौधों के नज़दीक दिया जाता है, परन्तु बूंद-बूंद (टपक-टपक) करके, इसीलिए इसका नाम टपक सिंचाई प्रणाली भी है। यह ढंग प्रायः बागों में जहाँ-नींब, अनार, अमरूद, पपीता, अंगूर, आम, किन्न आदि तथा सब्जियों में जैसे-टमाटर, गोभी, तरबूज, खीरा, बैंगन आदि में प्रयोग होता है।

3. फव्वारा विधि- यह एक अच्छी सिंचाई प्रणाली है। इसका प्रयोग रेतली तथा टिब्बों वाली ज़मीन में किया जाता है क्योंकि इस ज़मीन को समतल करने का खर्चा बहुत होता है। इस ढंग में पानी की बहुत बचत हो जाती है। यह तरीका अपनाने से फसल की पैदावार तो बढ़ती है तथा साथ में गुणवत्ता भी बढ़ती है। इस प्रणाली की प्राथमिक लागत अधिक होने के कारण इसको नकदी फसलों तथा बागों तक ही सीमित रखा जाता है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 5
चित्र-फब्वारा विधि

4. मेड़ें या नाली बना कर सिंचाई- इस तरीके में मेड़ें बना कर या नाली बना कर सिंचाई की जाती है।
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चित्र–नाली बनाकर सिंचाई

5. बैड्ड बनाकर सिंचाई-इस ढंग में बैड्ड बनाकर सिंचाई की जाती है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग 7
चित्र-बैड्ड बनाकर सिंचाई

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि में पानी का कुशल प्रयोग

कृषि में पानी का कुशल प्रयोग PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • पंजाब में कुल कृषि के अधीन क्षेत्रफल 41.58 लाख हैक्टेयर है।
  • कुल कृषि क्षेत्रफल का 98% सिंचित है।
  • पंजाब में फसल घनत्व को प्रमुख रखते हुए वार्षिक औसतन 4.4 मिलियन – हैक्टेयर मीटर पानी की आवश्यकता है।
  • पंजाब में आज लगभग 1.3 मिलियन हैक्टेयर मीटर पानी की कमी है।
  • मध्य पंजाब में 30% से अधिक क्षेत्र में पानी का स्तर 70 फुट से भी नीचे जा चुका है।
  • एक अनुमान के अनुसार वर्ष 2023 तक पानी का स्तर 160 फुट से भी नीचे हो जाएगा।
  • सिंचाई के तरीके हैं-खेतों में खुला पानी देना, बूंद-बूंद सिंचाई, फव्वारा सिंचाई, मेड़ या नाली बनाकर सिंचाई, बैड्ड बनाकर सिंचाई।
  • पंजाब में अधिक प्रचलित क्यारा सिंचाई प्रणाली है।
  • बूंद-बूंद सिंचाई प्रणाली एक आधुनिक विकसित सिंचाई प्रणाली है जिसको ड्रिप (टपक) सिंचाई प्रणाली कहा जाता है।
  • फव्वारा प्रणाली भी एक बढ़िया सिंचाई प्रणाली है।
  • कम पानी की आवश्यकता वाली फसलें ; जैसे-दालें, मक्का, तेल बीज, बासमती, कपास आदि की खेती से पानी की बचत हो जाती है।
  • लेज़र लेवलर से 25-30% पानी की बचत हो रही है।
  • धान की सिंचाई के लिए टैंशियोमीटर का प्रयोग करके भी पानी की बचत हो जाती है।
  • मक्का, गन्ना की फसलों में पराली की तह बिछाने से पानी की बचत हो जाती है। इसको मल्चिंग कहते हैं।
  • नहरों तथा नालों को पक्का करने से 10-20% पानी की बचत हो जाती है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

Punjab State Board PSEB 6th Class Agriculture Book Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Agriculture Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

PSEB 6th Class Agriculture Guide कृषि सहायक व्यवसाय Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
पंजाब में कितने किसान छोटे तथा सीमांत हैं ?
उत्तर-
एक तिहाई।

प्रश्न 2.
खुम्बों की कितनी किस्में हैं ?
उत्तर-
सर्दी की खुम्बें हैं-बटन, औइस्टर, शिटाकी। गर्मी की खुम्बें हैं-मिल्की खुम्ब, धान की पराली वाली।

प्रश्न 3.
मधुमक्खी की कौन-सी किस्म पंजाब में अधिक प्रचलित है ?
उत्तर-
इटैलियन।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 4.
किस व्यवसाय के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन की तरफ से सब्सिडी दी जाती है ?
उत्तर-
मधुमक्खी पालन व्यवसाय के लिए।

प्रश्न 5.
गाँवों से दूध कौन इकट्ठा करता है ?
उत्तर-
दूध सहकारी संस्थाएं।

प्रश्न 6.
पंजाब में सबसे अधिक कौन-सी खुम्ब की कृषि होती है ?
उत्तर-
बटन खुम्ब की।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 7.
सब्जियों को आगे-पीछे करने के लिए किस तरह की कृषि करनी चाहिए ?
उत्तर-
सुरक्षित काश्त।

प्रश्न 8.
किसानों को मशीनें किराए पर देने वाले केंद्र को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
कृषि सेवा केन्द्र।

प्रश्न 9.
कौन-से पशु पालकों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता दी जाती
उत्तर-
10 दोगली गाएं रखने वाले पशु-पालकों को सरकार की ओर से आर्थिक सहायता दी जाती है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 10.
ऐग्रो प्रोसैसिंग कंपलैक्स (Agro processing complex) का मॉडल किस संस्था की ओर से दिया गया है ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो

प्रश्न 1.
खुम्बों की कौन-कौन सी किस्में हैं ?
उत्तर-
सर्दी की खुम्बे हैं-बटन, औइस्टर, शिटाकी। गर्मी की खुम्बे हैं-मिल्की खुम्ब, धान की पराली वाली।

प्रश्न 2.
मधुमक्खी पालन में किन-किन पदार्थों का उत्पादन होता है ?
उत्तर-
शहद, बी-वैक्स, रॉयल जैली, बी-वैनम, बी-ब्रूड आदि पदार्थों का उत्पादन होता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 3.
फलों और सब्जियों की छोटे स्तर पर प्रोसैसिंग किस रूप में की जा सकती है ?
उत्तर-
फलों तथा सब्जियों के अचार, मुरब्बे, सक्वैश आदि बना कर छोटे स्तर पर प्रोसैसिंग की जा सकती है।

प्रश्न 4.
खुम्बों की कृषि किस मौसम में की जाती है ?
उत्तर-
सर्दी ऋतु की खुम्बों की कृषि सितंबर से मार्च तथा गर्मी की अप्रैल से अगस्त में की जाती है।

प्रश्न 5.
गाय की किन किस्मों से अधिक आय होती है ?
उत्तर-
होलसटीन फ्रीजीयन तथा जर्सी गाय से।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 6.
कृषि पदार्थों से अधिक आय कैसे प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तर-
अनाज, दालें, तेल बीज आदि कृषि पदार्थों से आटा, बड़ियाँ, तेल आदि बना कर अधिक आय प्राप्त की जा सकती है।

प्रश्न 7.
कृषि परामर्श केंद्र में कौन-सी सेवाएं प्रदान की जाती हैं ?
उत्तर-
यहां कृषि से संबंधित सामान, जैसे- बीज, रसायन, खादें आदि बेचे जा सकते हैं तथा किसानों को समय-समय पर आवश्यक सलाह भी दी जा सकती है।

प्रश्न 8.
सहायक व्यवसायों को लघु स्तर से क्यों आरंभ करना चाहिए ?
उत्तर-
किसी भी काम को नया शुरू करने के लिए पूरी जानकारी तथा अनुभव नहीं होता है। इसलिए ऐसे काम में हानि भी हो सकती है। यदि कार्य छोटे स्तर पर किया हो तो हानि भी कम होने की संभावना रहती है। समय के साथ अनुभव हो जाता है तथा काम बड़े स्तर पर किया जा सकता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 9.
घर में सब्ज़ियां लगाना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
घर में सब्जियां लगाने से पैसे की बचत हो जाती है एवं ताजा तथा विष रहित सब्जियां मिल जाती हैं।

प्रश्न 10.
सहायक व्यवसाय संबंधी प्रशिक्षण कहाँ से लिया जा सकता है ?
उत्तर-
यह प्रशिक्षण पंजाब कृषि विश्वविद्यालय तथा जिला स्तर पर कृषि विज्ञान केन्द्रों से लिया जा सकता है।

(ग) पाँच-छः वाक्यों में उत्तर दो

प्रश्न 1.
पंजाब की कृषि में ठहराव आने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
गेहूं, धान के फसल चक्र में पड़कर पंजाब इन फसलों में आत्मनिर्भर बन गया परन्तु इस चक्र में फंस कर प्राकृतिक स्रोतों, पानी तथा मिट्टी का आवश्यकता से अधिक उपयोग किया गया तथा कीटनाशक, नदीननाशकों आदि का भी आवश्यकता से अधिक उपयोग किया गया। इस से भूमिगत जल का स्तर और नीचे चला गया तथा मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम हो गई। पंजाब की कृषि दर कम हो गई तथा कृषि में एक ठहराव सा आ गया। पंजाब के एक तिहाई किसान छोटे तथा सीमांत हैं। इनका गुज़ारा भी केवल कृषि से नहीं हो रहा।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 2.
किसानों को कृषि आधारित सहायक व्यवसाय अपनाने की सिफारिश की गई है ?
उत्तर-
पंजाब में लगभग एक तिहाई किसान छोटे तथा सीमांत हैं। इनके पास एक हैक्टेयर या इससे भी कम भूमि है। इनका गुजारा केवल कृषि की कमाई से होना मुश्किल है। इसलिए ऐसे किसानों से कृषि सहायक व्यवसाय अपनाने की सिफ़ारिश की जाती है।

प्रश्न 3.
कृषि परामर्श केंद्रों के बारे में संक्षिप्त विवरण दो।
उत्तर-
ऐसे केन्द्रों को खोल कर पढ़े-लिखे नवयुवक अपनी आय का स्रोत बना सकते हैं। इन केन्द्रों पर कृषि में आवश्यक सामान जैसे-बीज, रसायन, खादें आदि रखे जा सकते हैं तथा कमाई की जा सकती है। किसानों को समय-समय पर आवश्यक सलाह दी जाती है। इस तरह यह केन्द्र जहां एक तरफ नवयुवकों की कमाई का साधन बन सकते हैं वहीं किसानों के सहायक भी बन सकते हैं।

प्रश्न 4.
पशु-पालन से अधिक आय कैसे प्राप्त की जा सकती है ?
उत्तर-
पशु-पालन शुरू से ही किसानों का तथा गांव में प्रत्येक घर का अहम भाग रहा है। पशुओं से प्राप्त दूध जहां घर में प्रयोग किया जाता है वहीं फालतू दूध बेच कर कमाई भी की जा सकती है। वर्तमान समय में पंजाब के प्रत्येक गांव में सहकारी सभाएं हैं जहां दूध को एकत्र करके दूध की प्रोसैसिंग की जाती है तथा पशु पालक घर बैठे ही कमाई कर सकते हैं। इस व्यवसाय में दोगली गाएं जैसे जर्सी तथा होलसटीन फरीजीयन से अधिक कमाई की जा सकती है। 10 दोगली गाय रखने वाले पशु पालक को सरकार की तरफ से आर्थिक सहायता दी जाती है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 5.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से ऐग्रो प्रोसैसिंग में किन मशीनों की सिफ़ारिश की गई है ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की ओर से एक ऐग्रो प्रोसैसिंग कम्पलैक्स का मॉडल दिया गया है जिसमें एक छोटी आटा चक्की, छोटी चावल निकालने की मशीन, तेल निकालने वाला कोल्हू, दालें तथा मसाले पीसने वाली मशीन, पेंजा, पशु खुराक तैयार करने वाली मशीनें आदि लगाई जाती हैं। नवयुवक किसान इस कम्पलैक्स को लगाकर आमदन का अच्छा साधन बना सकते हैं।

Agriculture Guide for Class 6 PSEB कृषि सहायक व्यवसाय Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटे तथा सीमांत किसानों के पास कितनी भूमि रह गई है ?
उत्तर-
एक हैक्टेयर या इससे भी कम।

प्रश्न 2.
खुम्बों की काश्त कहाँ की जा सकती है ?
उत्तर-
घर के किसी भी कमरे में।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 3.
पंजाब में बटन खुम्बों की काश्त कितने प्रतिशत की जाती है ?
उत्तर-
90 प्रतिशत।

प्रश्न 4.
कितनी दोगली गाय रखने पर सरकार द्वारा आर्थिक सहायता मिलती है ?
उत्तर-
10 दोगली गाय रखने पर।

प्रश्न 5.
आजकल अन्य कौन-से कृषि सहायक व्यवसाय अपनाए जा रहे हैं ?
उत्तर-
मुर्गी पालन, सुअर पालन, भेड़ तथा बकरी पालन, खरगोश पालन आदि।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मधुमक्खी पालन से शहद के अलावा और क्या मिलता है ?
उत्तर-
मधुमक्खी पालन से शहद के अलावा बी-वैक्स, रॉयल जैली, बी-वैनम, बी-ब्रड आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 2.
मधुमक्खी पालन के लिए सब्सिडी किस विभाग से मिलती है ?
उत्तर-
पंजाब बागवानी विभाग द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा इस व्यवसाय के लिए सब्सिडी दी जाती है।

प्रश्न 3.
पशु पालन में कौन-सी गायों से अधिक आय मिल सकती है ?
उत्तर–
दोगली नस्लें जैसे जर्सी तथा होलस्टीन फ्रीजीयन से अधिक आय मिल सकती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
खुम्बों की काश्त के बारे में बताएं।
उत्तर-
खुम्बों की काश्त घर के किसी भी कमरे में की जा सकती है। इसके लिए भूमि की आवश्यकता नहीं होती। गर्मी में मिल्की खुम्ब तथा धान की पराली वाली खुम्बें उगाई जाती हैं तथा सर्दी में बटन, औइस्टर तथा शिटाकी खुम्बों की काश्त होती है। गर्मी वाली खुम्बों को अप्रैल से अगस्त तथा सर्दी वाली खुम्बों को सितम्बर से मार्च तक उगाया जाता है।

PSEB 6th Class Agriculture Solutions Chapter 10 कृषि सहायक व्यवसाय

प्रश्न 2.
मधुमक्खी पालन का विवरण दें।
उत्तर-
मधुमक्खी पालन का व्यवसाय अपना कर कमाई की जा सकती है। इससे कृषि के कामों में कोई भी रुकावट नहीं पड़ती। पंजाब में इटैलियन मक्खी बहुत प्रचलित है।

मधुमक्खी पालन से शहद के अलावा बी-वैक्स, रॉयल जैली, बी-वैनम, बी-ब्रूड आदि पदार्थ प्राप्त होते हैं। पंजाब बागवानी विभाग द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय बागवानी मिशन द्वारा इस व्यवसाय के लिए सब्सिडी भी दी जाती है।

कृषि सहायक व्यवसाय PSEB 6th Class Agriculture Notes

  1. हरित क्रांति से पंजाब गेहूं-धान जैसी फसलों में आत्मनिर्भर हो गया।
  2. पंजाब में एक तिहाई किसान छोटे तथा सीमांत हैं जिनके पास एक हैक्टेयर या इस से भी कम भूमि है।
  3. खुम्बों की काश्त घर के किसी भी कमरे में की जा सकती है।
  4. खुम्बों की सर्द ऋतु की किस्में हैं-बटन, औइस्टर तथा शिटाकी।
  5. गर्मी ऋतु के लिए मिल्की खुम्ब, धान की पराली वाली खुम्ब।
  6. पंजाब में 90 प्रतिशत बटन खुम्ब की काश्त की जाती है।
  7. पंजाब में इटैलियन मक्खी की किस्म बहुत प्रचलित है।
  8. मधुमक्खियों से बी वैक्स, रॉयल जैलीबी वैनम, वी ब्रूड जैसे पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  9. मधुमक्खी पालन के व्यवसाय को शुरू करने के लिए राष्ट्रीय बागवानी मिशन की तरफ से सब्सिडी दी जाती है।
  10. पशु पालन व्यवसाय में दोगली गाएं; जैसे-जर्सी, होल्सटीन फ्रीजियन पाली जाती
  11. सब्जियों की काश्त से अच्छी कमाई की जा सकती है।
  12. खेती पदार्थों की प्रोसैसिंग करके भी अच्छी कमाई की जा सकती है।
  13. कृषि मशीनरी खरीद कर किसानों को किराए पर दी जा सकती हैं तथा कमाई की जा सकती है।
  14. पढ़े-लिखे नवयुवक कृषि से संबंधित सामान तथा कृषि से संबंधित परामर्श देने का केन्द्र खोल सकते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

SST Guide for Class 7 PSEB प्रादेशिक संस्कृति का विकास Textbook Questions and Answers

(क) निम्न प्रश्नों के उत्तर दो :

प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग (800-1200) में उत्तरी भारत में कौन-सी भाषाओं का विकास हुआ?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में उत्तरी भारत में कई भाषाओं जैसे गुजराती, बंगाली, मराठी आदि का बहुत विकास हुआ। इस विकास की गति उस समय और भी तेज़ हो गई, जब भक्ति लहर के महान् सन्तों ने भक्ति लहर का प्रचार क्षेत्रीय भाषाओं में किया।

प्रश्न 2.
दिल्ली सल्तनत काल दौरान प्रादेशिक भाषाओं का विकास क्यों हुआ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत काल में भक्ति लहर के कारण हिन्दी, गुजराती, मराठी, तेलगु, तमिल, पंजाबी, कन्नड़ आदि क्षेत्रीय भाषाओं का विकास हुआ। बहुत-सी पवित्र धार्मिक पुस्तकों का संस्कृत भाषा से विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया गया।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 16 प्रादेशिक संस्कृति का विकास

प्रश्न 3.
मुग़ल काल की साहित्यिक प्राप्तियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
मुग़ल शासक स्वयं भी महान् विद्वान् थे। इसलिए मुग़ल काल में साहित्य के क्षेत्र में बहुत अधिक विकास हुआ।
1. बाबर ने बाबर-नामा या तुजक-ए-बाबरी नामक प्रसिद्ध आत्मकथा लिखी। यह पुस्तक तुर्की भाषा में लिखी गई थी।

2. अकबर ने साहित्य को काफ़ी प्रोत्साहित किया। उसके दरबार में शेख़ मुबारक, अबुल फ़जल और फैज़ी जैसे महान् विद्वान थे। अबुल फज़ल ने आइन-ए-अकबरी और अकबरनामा नाम की पुस्तकें लिखीं। अकबर ने रामायण, महाभारत, राजतरंगिणी, पंच- तन्त्र आदि संस्कृत ग्रन्थों का फ़ारसी में अनुवाद कराया।

3. जहांगीर भी तुर्की, हिन्दी और फ़ारसी भाषाओं का महान् विद्वान् था। उसने फ़ारसी भाषा में तुजक-एजहांगीरी नाम की आत्मकथा लिखी। उसने विद्वानों को संरक्षण भी प्रदान किया। जहांगीर के दरबार के प्रसिद्ध हिन्दी लेखक राय मनोहर दास, भीष्म दास और केशव दास थे।

4. शाहजहां भी एक साहित्य प्रेमी सम्राट् था। उसके राज्य काल में अब्दुल हमीद लाहौरी ने ‘पादशाहनामा’ और मुहम्मद सदीक ने ‘शाहजहांनामा’ नामक प्रसिद्ध पुस्तकें लिखीं। शाहजहां ने हिन्दी साहित्य को भी संरक्षण प्रदान किया।

5. सम्राट औरंगजेब ने इस्लामी कानून पर आधारित ‘फ़तवा-ए-आलमगीरी’ नामक पुस्तक लिखवाई। उसके समय में खाफ़ी खां ने ‘मुतखिब-उल-लुबाब’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।

प्रश्न 4.
चित्रकला के क्षेत्र में राजपूतों की प्राप्तियों का वर्णन करें।
उत्तर-
राजपूत शासकों के राज्य काल में कागजों पर चित्र बनाये जाने लगे थे। इस युग में चित्रकला की पाल और अपभ्रंश शैली का प्रयोग किया जाता था। पाल शैली के चित्र बौद्ध धर्म के ग्रन्थों में मिलते हैं। इन चित्रों में सफ़ेद, काले, लाल और नीले रंगों का प्रयोग किया गया है। अपभ्रंश शैली के चित्रों में लाल और पीले रंगों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया गया है। इस शैली के चित्र जैन और पुराण ग्रन्थों में मिलते हैं।

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प्रश्न 5.
पंजाबी साहित्य का संस्थापक कौन था?
उत्तर-
पंजाबी साहित्य के मूल अथवा संस्थापक बाबा फरीद शकरगंज थे। वह पंजाब के एक महान् सूफी संत थे।

प्रश्न 6.
भाई गुरदास ने कितनी वारों की रचना की?
उत्तर-
भाई गुरदास जी एक महान् कवि थे। उन्होंने पंजाबी भाषा में 39 वारों की रचना की। श्री गुरु अर्जन देव जी ने इन वारों को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की कुंजी कह कर सम्मानित किया।

प्रश्न 7.
चार प्रसिद्ध कवियों के नाम बताओ जिन्होंने पंजाबी साहित्य को महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
उत्तर-
पंजाबी साहित्य को महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले चार प्रसिद्ध कवि शाह हुसैन, बुल्लेशाह, दामोदर तथा वारिस शाह थे।

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प्रश्न 8.
आदि ग्रंथ साहिब का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
आदि ग्रन्थ साहिब का संकलन श्री गुरु अर्जन देव जी ने 1604 ई० में किया। इस ग्रन्थ में श्री गुरु नानक देव जी, श्री गुरु अंगद देव जी, श्री गुरु अमर दास जी, श्री गुरु रामदास जी और श्री गुरु अर्जन देव जी की वाणी को सम्मिलित किया गया। बाद में श्री गुरु तेग बहादुर जी की वाणी को भी इस में शामिल किया गया। सिख गुरु साहिबान के अतिरिक्त आदि ग्रन्थ साहिब में हिन्दू भक्तों और मुसलमान सन्तों और कुछ भाटों की वाणी को भी शामिल किया गया है। इस सारी वाणी में परमात्मा की प्रशंसा की गई है। आदि ग्रन्थ साहिब को पंजाबी साहित्य में सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।

(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करो :

  1. ‘गीत गोबिन्द’ ………. द्वारा लिखी गयी थी।
  2. 1604 ई० में ………… द्वारा आदि ग्रन्थ साहिब की रचना की गई थी।
  3. पृथ्वी राज रासो ………… द्वारा लिखी गयी थी।
  4. कृष्ण राय संस्कृत तथा हिन्दी भाषाओं का प्रसिद्ध ……….. था।
  5. अमीर खुसरो एक ……….. संगीतकार तथा कवि था।

उत्तर-

  1. जयदेव,
  2. श्री गुरु अर्जन देव जी
  3. चन्दबरदाई
  4. कवि
  5. महान्।

(ग) प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिन्ह लगाएं।

  1. दिल्ली सल्तनत काल में रामानुज तथा जयदेव संस्कृत भाषा के दो प्रसिद्ध लेखक थे।
  2. अबुल फ़ज़ल ने आइन-ए-अकबरी नहीं लिखी थी।
  3. तानसेन अकबर के दरबार का प्रसिद्ध गायक था।
  4. मुहम्मद तुग़लक का चित्र मध्यकाल की चित्रकला का प्रसिद्ध उदाहरण है।
  5. राजपूत काल दौरान संगीत का विकास नहीं हुआ था।

संकेत-

  1. (✗)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✓)
  5. (✗)

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(घ) मिलान करो

कॉलम ‘अ’ – कॉलम ‘ब’

  1. जयदेव – 1. विक्रमांक-देव-चरित
  2. कल्हण – 2. आइने-अकबरी
  3. बिल्हण – 3. राजतरंगिणी
  4. अबुल फजल – 4. गीत गोबिन्द
  5. औरंगजेब – 5. फ़तवा-ए-आलमगीरी। ।

उत्तर-

  1. जयदेव – गीत गोबिन्द
  2. कल्हण – राजतरंगिणी
  3. बिल्हण – विक्रमांक-देव-चरित
  4. अबुल फ़जलआइने – अकबरी
  5. औरंगजेब – फ़तवा-ए-आलमगीरी।

PSEB 7th Class Social Science Guide प्रादेशिक संस्कृति का विकास Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
उर्दू भाषा किस प्रकार अस्तित्व में आई?
उत्तर-
भारत में तुर्कों द्वारा फ़ारसी भाषा आरंभ की गई थी। समय बीतने के साथ हिन्दी और फ़ारसी भाषाओं के मेल से एक नई भाषा ‘उर्दू’ अस्तित्व में आई।

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प्रश्न 2.
मुगल काल (1526-1707 ई०) में होने वाले भाषाई विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मुगल काल में फ़ारसी भाषा का सबसे अधिक विकास हुआ। इसलिए मुग़ल काल को फ़ारसी भाषा का स्वर्ण युग कहा जाता है। फ़ारसी मुग़ल साम्राज्य की सरकारी भाषा थी। परिणामस्वरूप पंजाब में फ़ारसी भाषा को बहुत प्रोत्साहन मिला। अकबर ने रामायण और महाभारत का संस्कृत से फ़ारसी में अनुवाद कराया। मुग़ल काल में पंजाबी भाषा की भी बहुत उन्नति हुई। इसके अतिरिक्त एक महत्त्वपूर्ण भाषा होने के कारण हिन्दी ने बहुत उन्नति की। मुग़ल काल में उर्दू भाषा का भी विकास आरंभ हो गया था।

प्रश्न 3.
उत्तर भारत में राजपूत काल में साहित्य के विकास पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
उत्तर भारत में राजपूत शासकों के राज्यकाल में साहित्य का बहुत विकास हुआ। चन्दबरदाई ने पृथ्वी राज रासो नामक ग्रन्थ की रचना की। बंगाल के राज्य-कवि जयदेव ने गीत गोबिन्द नाम का प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। जिसमें कृष्ण और राधा के प्रेम का वर्णन किया गया है। कल्हण ने एक ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘राजतरंगिणी’ की रचना की। इस ग्रन्थ में काश्मीर के इतिहास के बारे में जानकारी मिलती है। बिल्हण ने ‘विक्रमांक-देव-चरित’ नाम का प्रसिद्ध ग्रन्थ लिखा। इसमें चालुक्य राजा विक्रमादित्य छठे के जीवन का वर्णन है। राजपूत काल में रचित कथा-सरित्सागर संस्कृत भाषा की एक शानदार रचना है। यह कथाओं का संग्रह है।

प्रश्न 4.
पंजाब के भाषा एवं साहित्य में निम्नलिखित के योगदान की चर्चा कीजिए –
1. बाबा फरीद शंकरगंज
2. श्री गुरु नानक देव जी
3. दामोदर
4. वारिस शाह
5. शाह मुहम्मद।
उत्तर-
1. बाबा फरीद शंकरगंज (1173-1265 ई०)-बाबा फरीद शंकरगंज पंजाब के प्रसिद्ध सूफी सन्त थे। उन्हें पंजाबी साहित्य का संस्थापक कहा जाता है। उन्होंने अपनी वाणी की रचना लहंदी या मुल्तानी भाषा में की जो आम लोगों की बोली थी। उनके 112 श्लोक और 4 शब्दों को श्री गुरु अर्जन देव जी ने आदि ग्रन्थ साहिब में स्थान दिया।

2. श्री गुरु नानक देव जी (1469-1539 ई०)-श्री गुरु नानक देव जी ने पंजाबी साहित्य के एक नये युग का आरम्भ किया। उनके द्वारा रचा गया पंजाबी साहित्य सभी पक्षों से महान् है। उनके द्वारा रची गई वाणियों में जपुजी साहिब, आसा दी वार, बाबर-वाणी आदि महत्त्वपूर्ण हैं । वास्तव में श्री गुरु जी की वाणी पंजाबी साहित्य को एक अमर देन है।

3. दामोदर-दामोदर मुग़ल सम्राट अकबर का समकालीन था। उसने लहंदी या मुल्तानी पंजाबी बोली में हीर रांझा किस्से की रचना की। इसमें उसने अपने समय की ग्रामीण संस्कृति का चित्रण किया है।

4. वारिस शाह (1710-1798 ई०)-वारिस शाह को पंजाबी किस्सा काव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने ‘हीर’ नामतः पंजाबी किस्से की रचना की जो कि पंजाबी साहित्य को एक महत्त्वपूर्ण देन है।

5. शाह महम्मद ( 1782-1862 ई०)-आपने ‘जंग नामा’ की रचना लिखी। शाह मुहम्मद ने अपनी रचना में महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य के उत्कर्ष, जिसे उन्होंने अपनी आंखों से देखा था, की बहुत प्रशंसा की है। यह रचना पंजाबी साहित्य की अमूल्य निधि है।

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प्रश्न 5.
मध्यकाल में पंजाब में चित्रकला के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
सिख गुरु साहिबान से सम्बन्धित मध्यकाल के अनेक चित्र पुराने ग्रन्थों, गुरुद्वारों की दीवारों तथा राज महलों में बने हुए मिले हैं। उदाहरण के लिए गोइन्दवाल में गुरु अमर दास जी के उन 22 सिखों के चित्र मिले हैं जिन्हें गुरु साहिन जी ने मंजी प्रथा के अधीन सिख धर्म के प्रचार के लिए नियुक्त किया था। ये चित्र उस समय की चित्रकला के विकास पर प्रकाश डालते हैं।

प्रश्न 6.
पंजाबी भाषा एवं साहित्य के विकास में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के योगदान पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी पंजाबी भाषा के एक महान् कवि एवं साहित्यकार थे। उनकी रचनाएं, जैसे कि जाप साहिब, बचित्तर नाटक, ज़फरनामा, चण्डी दी वार और अकाल उस्तत आदि बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। ये रचनाएँ दशम ग्रन्थ में दर्ज हैं। इनमें से ‘चण्डी दी वार’ पंजाबी साहित्य की एक अमर रचना मानी जाती है।

प्रश्न 7.
मुग़ल काल में चित्रकला के क्षेत्र में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
मुग़ल शासक चित्रकला के महान् संरक्षक थे। अतः मुग़लों के राज्य-काल में इस कला का बहुत विकास हुआ।
1. बाबर और हुमायूं चित्रकला में बहुत रुचि रखते थे। बाबर ने अपनी आत्म-कथा को चित्रित करवाया था। हुमायूं दो प्रसिद्ध चित्रकार अब्दुल सैयद और सैयद अली को ईरान से अपने साथ दिल्ली लाया था।

2. अकबर ने चित्रकला के विकास के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की थी। इस विभाग ने पुस्तकों को चित्रित करने के साथ-साथ मुग़ल शासकों के चित्र भी बनाये। दसवन्त और बासवान अकबर के दरबार के दो प्रसिद्ध चित्रकार थे।

3. जहांगीर भी एक अच्छा चित्रकार था। उसके शासन काल में सूक्ष्म चित्रकारी का विकास होने लगा। उस्ताद मन्सूर, अबुल हसन, फ़ारुख बेग, माधव आदि जहांगीर के दरबार के प्रसिद्ध चित्रकार थे।

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प्रश्न 8.
मुग़ल काल में संगीत के क्षेत्र में होने वाले विकास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब को छोड़ कर सभी मुग़ल शासक संगीत प्रेमी थे। इसलिए उनके शासन-काल में संगीत का बहुत विकास हुआ –
1. बाबर और हुमायूं संगीत के महान् प्रेमी थे। हुमायूं सप्ताह में दो दिन संगीत सुना करता था।

2. अकबर संगीत कला में बहुत रुचि रखता था। वह स्वयं भी एक गायक था। उसे संगीत के सुर और ताल का पूरा ज्ञान था। उस के दरबार में तानसेन जैसे उच्च कोटि के संगीतकार थे। तानसेन ने बहुत से रागों की रचना की। तानसेन के अतिरिक्त रामदास अकबर के दरबार का उच्च कोटि का गायक था।

3. जहांगीर और शाहजहां भी संगीत कला के प्रेमी थे। जहांगीर स्वयं एक अच्छा गायक था। उसने कई हिन्दी के गीत लिखे। शाहजहां ध्रुपद राग का बहुत शौकीन था।

4. मुग़ल काल में श्री गुरु अर्जन देव जी ने राग-रागनियों के अनुसार ‘आदि ग्रन्थ साहिब’ की रचना की थी।

सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
भारत में कौन-सा काल फारसी भाषा का ‘सुनहरा युग’ कहलाता है ?
(i) सल्तनत काल
(ii) चोल काल
(iii) मुग़ल काल।
उत्तर-
(ii) मुग़ल काल।

प्रश्न 2.
‘अकबरनामा’ मुग़ल काल की एक पुस्तक है। इसका लेखक कौन था ?
(i) अबुल फ़ज़ल
(ii) खाफ़ी खां
(iii) बीरबल।
उत्तर-
(i) अबुल फ़ज़ल।

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प्रश्न 3.
‘आदि ग्रंथ साहिब’ का संकलन किसने किया ?
(i) वारिस शाह
(ii) श्री गुरु अर्जन देव जी
(iii) श्री गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i) श्री गुरु अर्जन देव जी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन Textbook Exercise Questions and Answers.

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

अब्दाली के आक्रमणों के कारण (Causes of Abdali’s Invasions)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण बताएँ।
(Explain the causes of the invasions of Ahmad Shah ‘Abdali.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर किए गए हमलों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali on Punjab ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण बताएँ।
(Explain the causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के समय के दौरान पंजाब पर आठ बार आक्रमण किये। इन आक्रमणों के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. अब्दाली की महत्त्वाकाँक्षा (Ambition of Abdali)-अहमद शाह अब्दाली बहुत महत्त्वाकाँक्षी शासक था। वह अफ़गानिस्तान के साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। अत: वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। अपनी इस साम्राज्यवादी महत्त्वाकाँक्षा की पूर्ति के लिए अब्दाली ने सर्वप्रथम पंजाब पर आक्रमण करने का निर्णय किया।

2. भारत की अपार धन-दौलत (Enormous Wealth of India)-अहमद शाह अब्दाली के लिए एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना के लिए धन की बहुत आवश्यकता थी। यह धन उसे अपने साम्राज्य अफ़गानिस्तान से प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि यह प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। दूसरी ओर उसे यह धन भारत-जो अपनी अपार धन-दौलत के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था-से मिल सकता था। 1739 ई० में जब वह नादिरशाह के साथ भारत आया था तो वह भारत की अपार धन-दौलत को देख कर चकित रह गया था। नादिरशाह भारत से लौटते समय अपने साथ असीम हीरे-जवाहरात, सोना-चाँदी इत्यादि ले गया था। अब्दाली पुनः भारत पर आक्रमण कर यहाँ की अपार धन-दौलत को लूटना चाहता था।

3. अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना (To consolidate his position in Afghanistan)अहमद शाह अब्दाली एक साधारण परिवार से संबंध रखता था। इसलिए 1747 ई० में नादिरशाह की हत्या के पश्चात् जब वह अफ़गानिस्तान का शासक बना तो वहाँ के अनेक सरदारों ने इस कारण उसका विरोध किया। अतः अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विदेशी युद्ध करना चाहता था। इन युद्धों द्वारा वह अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि कर सकता था तथा अफ़गानों को अपने प्रति वफ़ादार बना सकता था।

4. भारत की अनुकूल राजनीतिक दशा (Favourable Political Condition of India)-1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् महान् मुग़ल साम्राज्य तीव्रता से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था। 1719 ई० में मुहम्मद शाह के सिंहासन पर बैठने से स्थिति अधिक शोचनीय हो गयी। वह अपना अधिकतर समय सुरा-सुंदरी के संग व्यतीत करने लगा। अत: वह रंगीला के नाम से विख्यात हुआ। उसके शासन काल (1719-48 ई०) में शासन की वास्तविक बागडोर उसके मंत्रियों के हाथ में थी जो एक-दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र करते रहते थे। अतः साम्राज्य में चारों ओर अराजकता फैल गई। पंजाब में सिखों ने मुग़ल सूबेदारों की नाक में दम कर रखा था। इस स्थिति का लाभ उठा कर अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

5. अब्दाली का भारत में पूर्व अनुभव (Past experience of Abdali in India)—अहमद शाह अब्दाली 1739 ई० में नादिरशाह के आक्रमण के समय उसके सेनापति के रूप में भारत आया था। उसने पंजाब तथा दिल्ली की राजनीतिक स्थिति तथा यहाँ की सेना की लड़ने की क्षमता आदि का गहन अध्ययन किया था। उसने यह जान लिया था कि मुग़ल साम्राज्य एक रेत के महल की तरह है जो एक तेज़ आँधी के सामने नहीं ठहर सकता। अतः स्वतंत्र शासक बनने के पश्चात् अब्दाली ने इस स्थिति का लाभ उठाने का निर्णय किया।

6. शाहनवाज़ खाँ द्वारा निमंत्रण (Invitation of Shahnawaz Khan)-1745 ई० में जकरिया खाँ की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र याहिया खाँ लाहौर का नया सूबेदार बना। इस बात को उसका छोटा भाई शाहनवाज़ खाँ सहन न कर सका। वह काफ़ी समय से लाहौर की सूबेदारी प्राप्त करने का स्वप्न ले रहा था। उसने 1746 ई० के अंत में याहिया खाँ के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। दोनों भाइयों में यह युद्ध चार मास तक चलता रहा। इसमें शाहनवाज़ खाँ की जीत हुई। उसने याहिया खाँ को बंदी बना लिया और स्वयं लाहौर का सूबेदार बन बैठा। दिल्ली का वज़ीर कमरुद्दीन जोकि याहिया खाँ का ससुर था, यह सहन न कर सका। उसके उकसाने से मुहम्मद शाह रंगीला ने शाहनवाज़ खाँ को लाहौर का सूबेदार मानने से इंकार कर दिया। ऐसी स्थिति में शाहनवाज़ खाँ ने अहमद शाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा। अब्दाली ऐसे ही स्वर्ण अवसर की तलाश में था। अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

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अब्दाली के आक्रमण (Abdali’s Invasions)

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of Ahmad Shah Abdali’ invasions over Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के समय के दौरान पंजाब पर आठ आक्रमण किये। इन आक्रमणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. अब्दाली का पहला आक्रमण 1747-48 ई० (First Invasion of Abdali 1747-48 A.D.)—पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के आमंत्रण पर अहमद शाह अब्दाली दिसंबर, 1747 ई० में भारत की ओर चल पड़ा। उसके लाहौर पहुँचने से पूर्व ही शाहनवाज खाँ ने दिल्ली के वज़ीर कमरुद्दीन के साथ समझौता कर लिया। इस बात पर अब्दाली को बहुत गुस्सा आया। उसने शाहनवाज को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। सरहिंद के निकट हुई लड़ाई में कमरुद्दीन मारा गया। मन्नुपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में कमरुद्दीन के लड़के मुईन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। दूसरी ओर पंजाब में सिखों ने अहमद शाह अब्दाली की वापसी के समय उसका काफ़ी सामान लूट लिया।
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BABA DEEP SINGH JI

2. अब्दाली का दूसरा आक्रमण 1748-49 ई० (Second Invasion of Abdali 1748-49 A.D.)अहमद शाह अब्दाली अपने पहले आक्रमण के दौरान हुई अपनी पराजय का बदला लेना चाहता था। इस कारण अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू ने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का 14 लाख रुपए वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया।

3. अब्दाली का तीसरा आक्रमण 1751-52 ई० (Third Invasion of Abdali 1751-52 A.D.)—मीर मन्नू द्वारा वार्षिक लगान देने में किए गए विलंब के कारण अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। वह अपनी सेना सहित बड़ी तेजी के साथ लाहौर की ओर बढ़ा। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भारी लूटमार मचाई। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच बड़ी भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में दीवान कौड़ा मल मारा गया और मीर मन्नू बंदी बना लिया गया। मीर मन्नू की वीरता देखकर अब्दाली ने न केवल मीर मन्नू को क्षमा कर दिया बल्कि अपनी तरफ से उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया।

4. अब्दाली का चौथा आक्रमण 1756-57 ई० (Fourth Invasion of Abdali 1756-57 A.D.)1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा मुगलानी बेगम पंजाब की सूबेदारनी बनी। वह चरित्रहीन स्त्री थी। मुग़ल बादशाह आलमगीर द्वितीय के आदेश पर मुगलानी बेगम को जेल में डाल दिया गया। अदीना बेग पंजाब का नया सूबेदार बनाया गया। अब्दाली पंजाब पर किसी मुग़ल सूबेदार की नियुक्ति को कदाचित सहन नहीं कर सका। इसी कारण अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथा आक्रमण किया। इस मध्य पंजाब में सिखों की शक्ति काफ़ी बढ़ चुकी थी। अब्दाली ने दिल्ली से वापसी समय सिखों से निपटने का फैसला किया।

अहमद शाह अब्दाली जनवरी, 1757 ई० में दिल्ली पहुँचा और भारी लूटमार की। उसने मथुरा और वृंदावन को भी लूटा। पंजाब पहुंचने पर उसने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों और अफ़गानों में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाबा दीप सिंह जी का शीश कट गया था पर वह अपने शीश को हथेली पर रखकर शत्रुओं का मुकाबला करते रहे। बाबा दीप सिंह जी 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीद हुए। बाबा दीप सिंह जी की शहीदी ने सिखों में एक नया जोश भरा। गुरबख्श सिंह के शब्दों में,
“बाबा दीप सिंह एवं उसके साथियों की शहीदी ने समस्त सिख कौम को झकझोर दिया। उन्होंने इसका बदला लेने का प्रण लिया।”1

5. अब्दाली का पाँचवां आक्रमण 1759-61 ई० (Fifth Invasion of Abdali 1759-61 A.D.)1758 ई० में सिखों ने मराठों से मिलकर पंजाब से तैमूर शाह को भगा दिया। इस कारण अहमद शाह अब्दाली ने 1759 ई० में पंजाब पर पाँचवां आक्रमण कर दिया। उसने अंबाला के निकट तरावड़ी में मराठों के एक प्रसिद्ध नेता दत्ता जी को हराया। शीघ्र ही अब्दाली ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। जब मराठों की पराजय का समाचार मराठों के पेशवा बाला जी बाजीराव तक पहुँचा तो उसने सदा शिवराव भाऊ के नेतृत्व में एक विशाल सेना अहमद शाह अब्दाली का मुकाबला करने हेतु भेजी। 14 जनवरी, 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली ने मराठों की सेना में बड़ी तबाही मचाई। परंतु अहमद शाह अब्दाली सिखों का कुछ न बिगाड़ सका। सिख रात्रि के समय जब अब्दाली के सैनिक आराम कर रहे होते थे तो अचानक आक्रमण करके उनके खजाने को लूट लेते थे। जस्सा सिंह आहलूवालिया ने तो अचानक आक्रमण करके अब्दाली की कैद में से बहुत-सी औरतों को छुड़वा लिया। इस प्रकार जस्सा सिंह ने अपनी वीरता का प्रमाण दिया।

6. अब्दाली का छठा आक्रमण 1762 ई० (Sixth Invasion of Abdali 1762 A.D.)-सिखों के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए अब्दाली ने 1762 ई० में आक्रमण किया। उसके सैनिकों ने मालेरकोटला के समीप गाँव कुप में अकस्मात् आक्रमण करके 25 से 30 हज़ार सिखों को शहीद तथा 10 हज़ार सिखों को घायल कर दिया। इनमें स्त्रियाँ तथा बच्चे भी थे। यह घटना सिख इतिहास में ‘बड़ा घल्लूघारा’ के नाम से प्रख्यात है। यह घल्लूघारा 5 फरवरी, 1762 ई० को हुआ। बड़ा घल्लूघारा में सिखों की यद्यपि बहुत क्षति हुई परंतु उन्होंने अपना साहस नहीं छोड़ा। सिखों ने सरहिंद पर 14 जनवरी, 1764 ई० को विजय प्राप्त की। इसके फ़ौजदार जैन खाँ की हत्या कर दी गई। सिखों ने लाहौर के सूबेदार काबली मल से व्यापक मुआवज़ा वसूल किया। इससे सिखों की बढ़ती हुई शक्ति की स्पष्ट झलक मिलती है।

7. अब्दाली के अन्य आक्रमण 1764-67 ई० (Other Invasions of Abdali 1764-67 A.D.)अब्दाली ने पंजाब पर 1764-65 ई० तथा 1766-67 ई० में आक्रमण किए। उसके ये आक्रमण अधिक प्रख्यात नहीं हैं। वह सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। सिखों ने इस समय के दौरान 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार कर लिया। सिखों ने नये सिक्के चलाकर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

1. “The martyrdom of Baba Deep Singh and his associates shocked the whole Sikh nation. They determined to retaliate with vengeance.” Gurbakhsh Singh, The Sikh Faith : A Universal Message (Amritsar : 1997) p. 95.

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पानीपत की तीसरी लड़ाई 1761 ई० (The Third Battle of Panipat 1761 A.D.):

प्रश्न 3.
पानीपात की तीसरी लड़ाई के कारणों, घटनाओं और परिणामों का वर्णन करें।
(Discuss the causes, events and results of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या कारण थे ? इस लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
(What were the causes of the Third Battle of Panipat ? Briefly describe the consequences of this battle.)
अथवा
पानीपत के तीसरे युद्ध के कारणों तथा परिणामों का वर्णन करें। (Describe the causes and consequences of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कारण एवं घटनाओं की चर्चा करें। (Discuss the causes and events of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-
14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों एवं अहमद शाह अब्दाली के मध्य पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मराठों को कड़ी पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप पंजाब में सिखों की शक्ति का तीव्र गति से उत्थान होने लगा। इस लड़ाई के कारणों और परिणामों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है
(क) कारण (Causes)-पानीपत की तीसरी लड़ाई के लिए निम्नलिखित मुख्य कारण उत्तरदायी थे—
1. मराठों द्वारा रुहेलखंड की लूटमार (Plunder of Ruhelkhand by the Marathas)-रुहेलखंड पर रुहेलों का राज्य था। मराठों ने उन्हें पराजित कर दिया। रुहेले अफ़गान होने के नाते अहमद शाह अब्दाली के सजातीय थे। अतः उन्होंने अब्दाली को इस अपमान का बदला लेने के लिए निमंत्रण दिया।

2. मराठों की हिंदू राज्य स्थापित करने की नीति (Policy of establishing Hindu Kingdom by the Marathas)-मराठे निरंतर अपनी शक्ति में वृद्धि करते चले आ रहे थे। इससे प्रोत्साहित होकर पेशवाओं ने भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की घोषणा की। इससे मुस्लिम राज्यों के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। अतः इन राज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अब्दाली को मराठों का दमन करने के लिए प्रेरित किया।

3. हिंदुओं में एकता का अभाव (Lack of Unity among the Hindus)-मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण भारत में जाट एवं राजपूत मराठों से ईर्ष्या करने लगे। इसका प्रमुख कारण यह था कि वे स्वयं भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। हिंदुओं की इस आपसी फूट को अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने का एक स्वर्ण अवसर समझा।

4. मराठों का दिल्ली एवं पंजाब पर अधिकार (Occupation of Delhi and Punjab by Marathas)अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब तथा 1756 ई० में दिल्ली पर आधिपत्य कर लिया था। उसने पंजाब में अपने बेटे तैमूर शाह तथा दिल्ली के रुहेला नेता नजीब-उद-दौला को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। मराठों ने 1757 ई० में दिल्ली तथा 1758 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया। मराठों की ये दोनों विजयें अहमद शाह अब्दाली की शक्ति को एक चुनौती थीं। इसलिए उसने मराठों तथा सिखों को सबक सिखाने का निर्णय किया।

(ख) घटनाएँ (Events)-1759 ई० के अंत में अहमद शाह अब्दाली ने सर्वप्रथम पंजाब पर आक्रमण किया। इस आक्रमण का समाचार सुन कर पंजाब का मराठा सूबेदार शम्भा जी लाहौर छोड़ कर भाग गया। इसके पश्चात् वह दिल्ली की ओर बढ़ा। रास्ते में उसे मराठों ने रोकने का प्रयत्न किया परंतु उन्हें सफलता प्राप्त न हुई। जब बालाजी बाजीराव को इन घटनाओं संबंधी सूचना मिली तो उसने अब्दाली का सामना करने के लिए एक विशाल सेना उत्तरी भारत की तरफ भेजी। इस सेना की वास्तविक कमान सदाशिव राव भाऊ के हाथों में थी। उसकी सहायता के लिए पेशवा ने अपने पुत्र विश्वास राव को भी भेजा। मराठों द्वारा अपनाई गई अनुचित नीतियों के फलस्वरूप राजपूत तथा पंजाब के सिख पहले से उनसे नाराज़ थे। इसलिए इस संकट के समय में उन्होंने मराठों को अपना सहयोग प्रदान नहीं किया। जाट नेता सूरजमल ने सदाशिव राव भाऊ को अब्दाली के विरुद्ध छापामार ढंग की लड़ाई अपनाने का परामर्श दिया परंतु अहंकार के कारण उसने इस योग्य परामर्श को न माना। इस कारण उसने अपने दस हज़ार सैनिकों सहित मराठों का साथ छोड़ दिया। इस प्रकार मराठों के पास अब शेष 45,000 सैनिक रह गये। दूसरी तरफ अहमद शाह अब्दाली के अधीन 60,000 सैनिक थे। इनमें लगभग आधे सैनिक अवध के नवाब शुजाऊद्दौला तथा रुहेला सरदार नज़ीबउद्दौला द्वारा अब्दाली की सहायतार्थ भेजे गये थे। ये दोनों सेनाएँ पानीपत के क्षेत्र में नवंबर, 1760 ई० में पहँच गईं। लगभग अढाई महीनों तक उनमें से किसी ने भी एक-दूसरे पर आक्रमण करने का साहस न किया।

14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों ने अब्दाली की सेना पर आक्रमण कर दिया। यह बहुत घमासान युद्ध था। इस युद्ध के आरंभ में मराठों का पलड़ा भारी रहा। परंतु अनायास जब विश्वास राव की गोली लगने से मृत्यु हो गई तो युद्ध की स्थिति ही पलट गयी। सदाशिव राव भाऊ शोक मनाने के लिए हाथी से नीचे उतरा। जब मराठा सैनिकों ने उसके हाथी की पालकी खाली देखी तो उन्होंने समझा कि वह भी युद्ध में मारा गया है। परिणामस्वरूप मराठा सैनिकों में भगदड़ फैल गई। इस तरह पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली को शानदार विजय प्राप्त हुई।
(ग) परिणाम (Consequences)—पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई के दूरगामी परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. मराठों का घोर विनाश (Great Tragedy for the Marathas)-पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए घोर विनाशकारी सिद्ध हुई। इस लड़ाई में 28,000 मराठा सैनिक मारे गए तथा बड़ी संख्या में जख्मी हुए। कहा जाता है कि महाराष्ट्र के प्रत्येक परिवार का कोई-न-कोई सदस्य इस लड़ाई में मरा था।

2. मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का (Severe blow to Maratha Power and Prestige)—इस लड़ाई में पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया।

3. मराठों की एकता का समाप्त होना (End of Maratha Unity)-पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहुँचने से मराठा संघ की एकता समाप्त हो गई। वे आपसी मतभेदों एवं झगड़ों में उलझ गए। परिणामस्वरूप रघोबा जैसे स्वार्थी मराठा नेता को राजनीति में आने का अवसर प्राप्त हुआ।

4. पंजाब में सिखों की शक्ति का उत्थान (Rise of the Sikh Power in Punjab)—पानीपत की तीसरी लड़ाई से पंजाब मराठों के हाथों से सदा के लिए जाता रहा। अब पंजाब में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए केवल दो ही शक्तियाँ-अफ़गान एवं सिख रह गईं। इस प्रकार सिखों के उत्थान का कार्य काफी सुगम हो गया। उन्होंने अफ़गानों को पराजित करके पंजाब में अपना शासन स्थापित कर लिया।

5. भारत में अंग्रेजों की शक्ति का उत्थान (Rise of British Power in India)-भारत में अंग्रेजों को अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग में सबसे अधिक चुनौती मराठों की थी। मराठों की ज़बरदस्त पराजय ने अंग्रेज़ों को अपनी सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया। प्रसिद्ध इतिहासकारों पी० एन० चोपड़ा, टी० के० रविंद्रन तथा एन० सुब्रहमनीयन का कथन है कि,
“पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए बहुत विनाशकारी सिद्ध हुई।”2

2. “The third battle of Panipat proved disastrous to the Marathas.” P.N. Chopra, T.K. Ravindran and N. Subrahmanian, History of South India (Delhi : 1979) Vol. 2, p. 170.

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मराठों की असफलता के कारण (Causes of the Maratha’s Defeat)

प्रश्न 4.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the reasons of failure of the Marathas in the Third Battle of Panipat ?)
उत्तर-
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को घोर पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई में मराठों की पराजय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. अफ़गानों की शक्तिशाली सेना (Powerful army of the Afghans)—पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय का एक मुख्य कारण अफ़गानों की शक्तिशाली सेना थी। यह सेना मराठा सेना की तुलना में कहीं अधिक प्रशिक्षित, अनुशासित एवं संगठित थी। इसके अतिरिक्त उनका तोपखाना भी बहुत शक्तिशाली था। अत: मराठा सेना उनका सामना न कर सकी।

2. अहमदशाह अब्दाली का योग्य नेतृत्व (Able Leadership of Ahmad Shah Abdali)-अहमद शाह अब्दाली एक बहुत ही अनुभवी सेनापति था। उसकी गणना एशिया के प्रसिद्ध सेनापतियों में की जाती थी। दूसरी ओर मराठा सेनापतियों सदाशिव राव भाऊ तथा विश्वास राव को युद्ध संचालन का कोई अनुभव न था। ऐसी सेना की पराजय निश्चित थी।

3. मराठों की लूटमार की नीति (Policy of Plunder of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे विजित किए क्षेत्रों में भयंकर लूटमार करते थे। उनकी इस नीति के कारण राजपूताना, हैदराबाद, अवध, रुहेलखंड तथा मैसूर की रियासतें मराठों के विरुद्ध हो गईं। अतः उन्होंने मराठों को इस संकट के समय कोई सहायता न दी। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय को टाला नहीं जा सकता था।

4. छापामार युद्ध प्रणाली का परित्याग (Renounced the Guerilla Method of Warfare)-मराठों का मूल प्रदेश पहाड़ी एवं जंगली था। इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण मराठे छापामार युद्ध प्रणाली में निपुण थे। इस कारण उन्होंने अनेक आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की थीं। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई में उन्होंने छापामार युद्ध प्रणाली को त्याग कर सीधे मैदानी लड़ाई में अब्दाली के साथ मुकाबला करने की भयंकर भूल की। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय हुई।

5. मुस्लिम रियासतों द्वारा अब्दाली को सहयोग (Cooperation of Muslim States to Abdali)पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की विजय का प्रमुख कारण यह था कि उसे भारत की अनेक मुस्लिम रियासतों का सहयोग प्राप्त हुआ। इससे अब्दाली का प्रोत्साहन बढ़ गया। परिणामस्वरूप वह मराठों को पराजित कर सका।

6. मराठों की आर्थिक कठिनाइयाँ (Economic difficulties of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण उनकी आर्थिक कठिनाइयाँ थीं। धन के अभाव के कारण मराठे न तो अपने सैनिकों के लिए युद्ध सामग्री ही जुटा सके तथा न ही आवश्यक भोजन। ऐसी सेना की पराजय को कौन रोक सकता था ?

7. सदाशिव राव भाऊ की भयंकर भूल (Blunder of Sada Shiv Rao Bhau)-जिस समय पानीपत की तीसरी लड़ाई चल रही थी तो उस समय पेशवा का बेटा विश्वास राव मारा गया था। जब यह सूचना सदाशिव राव भाऊ को मिली तो वह श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से अपने हाथी से नीचे उतर गया। उसके हाथी का हौदा खाली देख मराठा सैनिकों ने समझा कि सदाशिव राव भाऊ भी युद्ध क्षेत्र में मारा गया है। अतः उनमें भगदड़ मच गई तथा देखते-ही-देखते मैदान साफ़ हो गया।

प्रश्न 5.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कारणों, इसके परिणामों तथा इसमें मराठों की हार के कारणों का वर्णन कीजिए।
(Describe the causes, results and causes of failure of Marathas in the Third Battle of Panipat.)
उत्तर–
कारण (Causes)-पानीपत की तीसरी लड़ाई के लिए निम्नलिखित मुख्य कारण उत्तरदायी थे—
1. मराठों द्वारा रुहेलखंड की लूटमार (Plunder of Ruhelkhand by the Marathas)-रुहेलखंड पर रुहेलों का राज्य था। मराठों ने उन्हें पराजित कर दिया। रुहेले अफ़गान होने के नाते अहमद शाह अब्दाली के सजातीय थे। अतः उन्होंने अब्दाली को इस अपमान का बदला लेने के लिए निमंत्रण दिया।

2. मराठों की हिंदू राज्य स्थापित करने की नीति (Policy of establishing Hindu Kingdom by the Marathas)-मराठे निरंतर अपनी शक्ति में वृद्धि करते चले आ रहे थे। इससे प्रोत्साहित होकर पेशवाओं ने भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने की घोषणा की। इससे मुस्लिम राज्यों के लिए एक गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया। अतः इन राज्यों ने अपनी सुरक्षा के लिए अब्दाली को मराठों का दमन करने के लिए प्रेरित किया।

3. हिंदुओं में एकता का अभाव (Lack of Unity among the Hindus)-मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण भारत में जाट एवं राजपूत मराठों से ईर्ष्या करने लगे। इसका प्रमुख कारण यह था कि वे स्वयं भारत में अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। हिंदुओं की इस आपसी फूट को अब्दाली ने भारत पर आक्रमण करने का एक स्वर्ण अवसर समझा।

4. मराठों का दिल्ली एवं पंजाब पर अधिकार (Occupation of Delhi and Punjab by Marathas)अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब तथा 1756 ई० में दिल्ली पर आधिपत्य कर लिया था। उसने पंजाब में अपने बेटे तैमूर शाह तथा दिल्ली के रुहेला नेता नजीब-उद-दौला को अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया। मराठों ने 1757 ई० में दिल्ली तथा 1758 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया। मराठों की ये दोनों विजयें अहमद शाह अब्दाली की शक्ति को एक चुनौती थीं। इसलिए उसने मराठों तथा सिखों को सबक सिखाने का निर्णय किया।

पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को घोर पराजय का सामना करना पड़ा। इस लड़ाई में मराठों की पराजय के लिए अनेक कारण उत्तरदायी थे। इन कारणों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. अफ़गानों की शक्तिशाली सेना (Powerful army of the Afghans)—पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय का एक मुख्य कारण अफ़गानों की शक्तिशाली सेना थी। यह सेना मराठा सेना की तुलना में कहीं अधिक प्रशिक्षित, अनुशासित एवं संगठित थी। इसके अतिरिक्त उनका तोपखाना भी बहुत शक्तिशाली था। अत: मराठा सेना उनका सामना न कर सकी।

2. अहमदशाह अब्दाली का योग्य नेतृत्व (Able Leadership of Ahmad Shah Abdali)-अहमद शाह अब्दाली एक बहुत ही अनुभवी सेनापति था। उसकी गणना एशिया के प्रसिद्ध सेनापतियों में की जाती थी। दूसरी ओर मराठा सेनापतियों सदाशिव राव भाऊ तथा विश्वास राव को युद्ध संचालन का कोई अनुभव न था। ऐसी सेना की पराजय निश्चित थी।

3. मराठों की लूटमार की नीति (Policy of Plunder of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि वे विजित किए क्षेत्रों में भयंकर लूटमार करते थे। उनकी इस नीति के कारण राजपूताना, हैदराबाद, अवध, रुहेलखंड तथा मैसूर की रियासतें मराठों के विरुद्ध हो गईं। अतः उन्होंने मराठों को इस संकट के समय कोई सहायता न दी। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय को टाला नहीं जा सकता था।

4. छापामार युद्ध प्रणाली का परित्याग (Renounced the Guerilla Method of Warfare)-मराठों का मूल प्रदेश पहाड़ी एवं जंगली था। इस प्रदेश की भौगोलिक स्थिति के कारण मराठे छापामार युद्ध प्रणाली में निपुण थे। इस कारण उन्होंने अनेक आश्चर्यजनक सफलताएँ प्राप्त की थीं। परंतु पानीपत की तीसरी लड़ाई में उन्होंने छापामार युद्ध प्रणाली को त्याग कर सीधे मैदानी लड़ाई में अब्दाली के साथ मुकाबला करने की भयंकर भूल की। परिणामस्वरूप मराठों की पराजय हुई।

5. मुस्लिम रियासतों द्वारा अब्दाली को सहयोग (Cooperation of Muslim States to Abdali)पानीपत की तीसरी लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली की विजय का प्रमुख कारण यह था कि उसे भारत की अनेक मुस्लिम रियासतों का सहयोग प्राप्त हुआ। इससे अब्दाली का प्रोत्साहन बढ़ गया। परिणामस्वरूप वह मराठों को पराजित कर सका।

6. मराठों की आर्थिक कठिनाइयाँ (Economic difficulties of the Marathas)-मराठों की पराजय का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारण उनकी आर्थिक कठिनाइयाँ थीं। धन के अभाव के कारण मराठे न तो अपने सैनिकों के लिए युद्ध सामग्री ही जुटा सके तथा न ही आवश्यक भोजन। ऐसी सेना की पराजय को कौन रोक सकता था ?

7. सदाशिव राव भाऊ की भयंकर भूल (Blunder of Sada Shiv Rao Bhau)-जिस समय पानीपत की तीसरी लड़ाई चल रही थी तो उस समय पेशवा का बेटा विश्वास राव मारा गया था। जब यह सूचना सदाशिव राव भाऊ को मिली तो वह श्रद्धांजलि अर्पित करने के उद्देश्य से अपने हाथी से नीचे उतर गया। उसके हाथी का हौदा खाली देख मराठा सैनिकों ने समझा कि सदाशिव राव भाऊ भी युद्ध क्षेत्र में मारा गया है। अतः उनमें भगदड़ मच गई तथा देखते-ही-देखते मैदान साफ़ हो गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

अहमद शाह अब्दाली की असफलता के कारण (Causes of the Failure of Ahmad Shah Abdali)

प्रश्न 6.
सिखों के विरुद्ध संघर्ष में अहमद शाह अब्दाली की असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali in his struggle against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the reasons of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
उन कारणों की ध्यानपूर्वक चर्चा कीजिए जिस कारण अहमद शाह अब्दाली अंतिम रूप में सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।
(Examine carefully the causes of Ahmad Shah Abdali’s ultimate failure to suppress the Sikh power.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की सफलता के महत्त्वपूर्ण कारणों की व्याख्या करें।
(Explain the important causes of the success of the Sikhs against Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली एक महान् योद्धा और वीर सेनापति था। उसने बहुत से क्षेत्रों पर अधिकार करके उसे अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया। उसने भारत की दो महान् शक्तियों मुग़लों तथा मराठों को कड़ी पराजय दी थी। इसके बावजूद अब्दाली सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा। उसकी असफलता या सिखों की जीत के निम्नलिखित कारण हैं—

1. सिखों का दृढ़ निश्चय (Tenacity of the Sikhs) अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण सिखों का दृढ़ निश्चय था। अब्दाली ने उन पर भारी अत्याचार किए, परंतु उनका हौसला बुलंद रहा। वे चट्टान की तरह अडिग रहे। बड़े घल्लूघारे में 25,000 से 30,000 सिख मारे गए परंतु सिखों के हौंसले बुलंद रहे। ऐसी कौम को हराना कोई आसान कार्य न था।

2. गुरिल्ला युद्ध नीति (Guerilla tactics of War)-सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण बनी। जब भी अब्दाली सिखों के विरुद्ध कूच करता, सिख तुरंत जंगलों व पहाड़ों में जा शरण लेते। वे अवसर देखकर अब्दाली की सेनाओं पर आक्रमण करते और लुटमार करके फिर वापस जंगलों में चले जाते । इन छापामार युद्धों ने अब्दाली की नींद हराम कर दी थी। प्रसिद्ध लेखक खुशवंत सिंह के अनुसार,
“सिखों के साथ लड़ना इस तरह व्यर्थ था जिस तरह हवा को बाँधने का यत्न करना।”3

3. अब्दाली द्वारा कम सैनिकों की तैनाती (Abdali left insufficient Soldiers)-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण यह था कि वह सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए अधिक सैनिकों की तैनाती न कर सका। परिणामस्वरूप वह सिखों की शक्ति न कुचल सका।

4. अब्दाली के अयोग्य प्रतिनिधि (Incapable representatives of Abdali)-अहमद शाह अब्दाली की हार का महत्त्वपूर्ण कारण यह था कि पंजाब में उस द्वारा नियुक्त किए गए प्रतिनिधि अयोग्य थे। उसका पुत्र तैमूरशाह एक बहुत ही निकम्मा शासक सिद्ध हुआ। इसी प्रकार लाहौर का सूबेदार ख्वाजा उबैद खाँ भी अपने पद के लिए अयोग्य था। अतः पंजाब में सिख शक्तिशाली होने लगे।

5. पंजाब के लोगों का असहयोग (Non-Cooperation of the People of the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली की पराजय का एक प्रमुख कारण यह था कि उसको पंजाब के नागरिकों का सहयोग प्राप्त न हो सका। उसने अपने बार-बार आक्रमणों के दौरान न केवल लोगों की धन-संपत्ति को ही लूटा, अपितु हज़ारों निर्दोष लोगों का कत्ल भी किया। परिणामस्वरूप पंजाब के लोगों की उसके साथ किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं थी। ऐसी स्थिति में अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर विजय प्राप्त करना एक स्वप्न समान था।

6. ज़मींदारों का सहयोग (Zamindars’ Cooperation)-सिख-अफ़गान संघर्ष में पंजाब के ज़मींदारों ने सिखों को हर प्रकार का सहयोग दिया। वे जानते थे कि अब्दाली ने पुनः अफ़गानिस्तान चले जाना है और सिखों के साथ उनका संबंध सदैव रहना है। वे सिखों के विरुद्ध कोई कार्यवाई करके उन्हें अपना शत्रु नहीं बनाना चाहते थे। ज़मींदारों का सहयोग सिख शक्ति के विकास के लिए अत्यंत लाभकारी सिद्ध हुआ।

7. सिखों का चरित्र (Character of the Sikhs)-सिखों का चरित्र अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक अन्य कारण बना। सिख प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहते थे। वे युद्ध के मैदान में किसी भी निहत्थे पर वार नहीं करते थे। वे स्त्रियों एवं बच्चों का पूर्ण सम्मान करते थे चाहे उनका संबंध शत्रु के साथ क्यों न हो। इन गुणों के परिणामस्वरूप सिख पंजाबियों में अत्यंत लोकप्रिय हो गए थे। इसलिए अब्दाली के विरुद्ध उनका सफल होना कोई आश्चर्य वाली बात नहीं है।

8. सिखों के योग्य नेता (Capable Leaders of the Sikhs)-अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की जीत का एक और महत्त्वपूर्ण कारण उनके योग्य नेता थे। इन नेताओं ने बड़ी योग्यता और समझदारी से सिखों को नेतृत्व प्रदान किया। इन नेताओं में प्रमुख नवाब कपूर सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा आला सिंह थे।

9. अमृतसर का योगदान (Contribution of Amritsar) सिख अमृतसर को अपना मक्का समझते थे। 18वीं सदी में सिख अपने शत्रुओं पर आक्रमण करने से पूर्व हरिमंदिर साहिब में एकत्रित होते और पवित्र सरोवर में स्नान करते। वे अकाल तख्त साहिब में अपने गुरमत्ते पास करते जिसका पालन करना प्रत्येक सिख अपना धार्मिक कर्त्तव्य समझता था। अमृतसर सिखों की एकता और स्वतंत्रता का प्रतीकं बन गया था। अहमद शाह अब्दाली ने हरिमंदिर साहिब पर आक्रमण करके सिखों की शक्ति का अंत करने का प्रयास किया, परंतु उसे सफलता प्राप्त न हुई।

10. अफ़गानिस्तान में विद्रोह (Revolts in Afghanistan)-अहमद शाह अब्दाली का साम्राज्य काफ़ी विशाल था। जब कभी भी अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया तो अफ़गानिस्तान में किसी-न-किसी ने विद्रोह का झंडा खड़ा कर दिया। इन विद्रोहों के कारण अब्दाली पंजाब की ओर पूरा ध्यान न दे सका। सिखों ने इस स्थिति का पूर्ण लाभ उठाया और वे अब्दाली द्वारा जीते हुए प्रदेशों पर पुनः अपना अधिकार जमा लेते। परिणामस्वरूप अब्दाली सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहा।

3. “Fighting the Sikhs was like trying to catch the wind in a net.” Khushwant Singh, History of the Sikhs (New Delhi : 1981) p. 276.

अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर प्रभाव (Effects of Abdali’s Invasions on the Punjab)

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर किए गए हमलों के प्रभाव लिखिए।
(Narrate the effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के पंजाब पर राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक प्रभावों का वर्णन करें।
(Study the political, social and economic effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के विभिन्न परिणामों का सर्वेक्षण करें। (Examine the various effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali.)
अथवा
पंजाब के इतिहास पर अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या प्रभाव पड़े ?
(What were the effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions on the Punjab History ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के हमलों के पंजाब के ऊपर क्या प्रभाव पड़े ? विस्तार के साथ बताएँ।
(What were the effects of Ahmad Shah Abdali on Punjab ? Discuss in detail.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने 1747 ई० से लेकर 1767 ई० तक पंजाब पर आठ बार आक्रमण किए। उसके इन आक्रमणों ने पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। इन प्रभावों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित प्रकार है—

(क) राजनीतिक प्रभाव
(Political Effects)
1. पंजाब में मुग़ल काल का अंत (End of the Mughal Rule in the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का पंजाब के इतिहास पर पहला महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया। मीर मन्नू पंजाब में मुग़लों का अंतिम सूबेदार था। अब्दाली ने मीर मन्नू को ही अपनी तरफ से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। मुग़लों ने पुनः पंजाब पर अधिकार करने का प्रयत्न किया पर अब्दाली ने इन प्रयत्नों को सफल न होने दिया। अतः पंजाब में मुग़लों के शासन का अंत हो गया।

2. पंजाब में मराठा शक्ति का अंत (End of Maratha Power in the Punjab)-अदीना बेग के निमंत्रण पर 1758 ई० में मराठों ने तैमूर शाह को हराकर पंजाब पर अपना अधिकार कर लिया। उन्होंने अदीना बेग को पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया, परंतु उसकी शीघ्र ही मृत्यु हो गई। उसके बाद मराठों ने सांभा जी को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दाली ने 14 जनवरी, 1761 ई० को पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को कड़ी पराजय दी। इस पराजय के फलस्वरूप पंजाब से मराठों की शक्ति का सदा के लिए अंत हो गया।

3. सिख शक्ति का उदय (Rise of the Sikh Power)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब से मुग़ल और मराठा शक्ति का अंत हो गया। पंजाब पर कब्जा करने के लिए अब यह संघर्ष केवल दो शक्तियों अफ़गान और सिखों के मध्य ही रह गया था। सिखों ने अपने छापामार युद्धों के द्वारा अब्दाली की रातों की नींद हराम कर दी। अब्दाली ने 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे में कई हज़ारों सिखों को शहीद किया, परंतु उनके हौंसले बुलंद रहे। उन्होंने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था। सिखों ने अपने सिक्के चला कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

4. पंजाब में अराजकता (Anarchy in the Punjab)-1747 ई० से 1767 ई० के दौरान अहमद शाह अब्दाली के हमलों के परिणामस्वरूप पंजाब में अशांति तथा अराजकता फैल गई। सरकारी कर्मचारियों ने लोगों को लूटना शुरू कर दिया। न्याय नाम की कोई चीज़ नहीं रही थी। ऐसी स्थिति में पंजाब के लोगों के कष्टों में बहत बढ़ौतरी हुई।

(ख) सामाजिक प्रभाव
(Social Effects)
1. सामाजिक बुराइयों में बढ़ौतरी (Increase in the Social Evils)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में सामाजिक बुराइयों में बहुत बढ़ौतरी हुई। लोग बहुत स्वार्थी और चरित्रहीन हो गए थे। चोरी, डाके, कत्ल, लूटमार, धोखेबाज़ी और रिश्वतखोरी का समाज में बोलबाला था। इन बुराइयों के कारण लोगों का नैतिक स्तर बहुत गिर गया था।

2. पंजाब के लोगों का बहादुर होना (People of Punjab became Brave)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाबी लोगों को बहुत बहादुर और निडर बना दिया था। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों से रक्षा के लिए यहाँ के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ हुए युद्धों में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की। 7. पंजाबियों का खर्चीला स्वभाव (Punjabis became Spendthrift)-अहमद शाह अब्दाली के हमलों के कारण पंजाब के लोगों में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे। वे खानेपीने तथा मौज उड़ाने में विश्वास करने लगे। उस समय यह कहावत प्रसिद्ध हो गई थी “खादा पीता लाहे दा रहंदा अहमद शाहे दा।”

3. सिखों और मुसलमानों की शत्रुता में वृद्धि (Enmity between the Sikhs and Muslims Increased)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण सिखों और मुसलमानों में आपसी शत्रुता और बढ़ गई। इसका कारण यह था कि अफ़गानों ने इस्लाम के नाम पर सिखों पर बहुत अत्याचार किए। दूसरा, अब्दाली ने सिखों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थान हरिमंदिर साहिब को ध्वस्त करके सिखों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः सिखों और अफ़गानों के बीच शत्रुता दिनों-दिन बढ़ती चली गई।

(ग) आर्थिक तथा साँस्कृतिक प्रभाव .
(Economic and Cultural Effects)
1. पंजाब की आर्थिक हानि (Economic Loss of the Punjab)-अहमद शाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण में पंजाब से भारी मात्रा में लूट का माल साथ ले जाता था। अफ़गानी सेनाएँ कूच करते समय खेतों का विनाश कर देती थीं। पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारी भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने में कोई प्रयास शेष न छोड़ते थे। परिणामस्वरूप अराजकता और लूटमार के इस वातावरण में पंजाब के व्यापार को बहुत भारी हानि हुई। इस कारण पंजाब की समृद्धि पंख लगा कर उड़ गई।

2. कला और साहित्य को भारी धक्का (Great Blow to Art and Literature)-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के दौरान बहुत-से सुंदर भवनों, गुरुद्वारों और मंदिरों इत्यादि को ध्वस्त कर दिया गया। कई वर्षों तक पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना रहा। अशांति और अराजकता का यह वातावरण नई कला कृतियों और साहित्य रचनाओं के लिए भी अनुकूल नहीं था। अत: अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब में कला और साहित्य के विकास को गहरा धक्का लगाया। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० गाँधी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने जीवन के प्रत्येक पक्ष पर बहुमुखी प्रभाव डाले।”4

4. “The invasions of Ahmad Shah Abdali exercised manyfold effects, covering almost all aspects of life.” S.S. Gandhi, op. cit., p. 257.

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संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ? उसके पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ?
(Who was Ahmad Shah Abdali ? What were the reasons of his Punjab invasions ?)
अथवा
पंजाब पर अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के मुख्य कारण लिखिए। (Write the causes of the attacks of Ahmad Shah Abdali on the Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण के कोई तीन कारण बताएँ। (Write any three causes of the invasions of Ahmad Shah Abdali on Punjab.).
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसके पंजाब पर आक्रमणों के कई कारण थे। पहला, अहमद शाह अब्दाली अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। दूसरे, वह पंजाब से धन प्राप्त करके अपनी स्थिति सुदृढ़ करना चाहता था। तीसरा, वह पंजाब पर अधिकार कर अपनी प्रतिष्ठा में वृद्धि करना चाहता था। चौथा, उस समय मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला की नीतियों के कारण भारत में अस्थिरता फैली हुई थी। अहमद शाह अब्दाली इस अवसर का लाभ उठाना चाहता था।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the first invasion of Ahmad Shah Abdali ?)
अथवा
पंजाब पर अब्दाली के प्रथम आक्रमण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Abdali’s first invasion on Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर भारत पर आक्रमण करने का निर्णय किया। उसने शाहनवाज़ खाँ को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। मन्नूपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में मुइन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। मुइन-उल-मुल्क की इस वीरता से प्रभावित होकर मुहम्मद शाह ने उसे लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार अब्दाली का प्रथम आक्रमण असफल रहा।

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प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर दूसरे आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Briefly explain the second invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the second invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली को अपने पहले आक्रमण के दौरान पराजय का सामना करना पड़ा। वह इसका बदला लेना चाहता था। दूसरा, वह जानता था कि दिल्ली का नया वज़ीर सफदर जंग मीर मन्नू के साथ ईर्ष्या करता है। इस कारण मीर मन्नू की स्थिति डावाँडोल थी। परिणामस्वरूप अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू ने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्न ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया।

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के तीसरे आक्रमण पर प्रकाश डालें (Throw light on the third invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भयंकर लूटमार मचाई। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच भीषण लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मीर मन्नू पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। अब्दाली मीर मन्नू की निर्भीकता एवं साहस से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के चौथे आक्रमण का वर्णन करें। (Explain the fourth invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथी बार आक्रमण किया । इस आक्रमण का समाचार सुन कर पंजाब का सूबेदार अदीना बेग़ बिना मुकाबला किए दिल्ली भाग गया। अब्दाली ने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों एवं अफ़गानों में हुए एक घमासान युद्ध में बाबा दीप सिंह जी ने 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीदी प्राप्त की। सिखों ने इस शहीदी का बदला लेने का निश्चय किया।

प्रश्न 6.
तैमूर शाह कौन था ?
(Who was Timur Shah ?)
उत्तर-
तैमूर शाह अफ़गानिस्तान के बादशाह अहमद शाह अब्दाली का पुत्र एवं उसका उत्तराधिकारी था। अहमद शाह अब्दाली ने उसे 1757 ई० में पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अपने पिता की तरह तैमूर शाह सिखों का कट्टर दुश्मन था। उसने सिखों के प्रसिद्ध दुर्ग रामरौणी को नष्ट कर दिया था। इसके अतिरिक्त उसने हरिमंदिर साहिब, अमृतसर के पवित्र सरोवर को भी गंदगी से भरवा दिया था। परिणामस्वरूप 1758 ई० में सिखों ने मराठों एवं अदीना बेग के साथ मिलकर तैमूर शाह को पंजाब से भागने पर बाध्य कर दिया।

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प्रश्न 7.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के तीन कारण बताएँ। (Write the main three causes of the Third Battle of Panipat.)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कोई तीन कारण बताएँ।
(Write any three causes of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-

  1. मराठों द्वारा रुहेलखंड में की गई लूटमार के कारण रुहेल मराठों के विरुद्ध हो गए।
  2. मराठे भारत में हिंदू शासन को स्थापित करना चाहते थे। इसलिए मुस्लमान उनके विरुद्ध हो गए।
  3. मराठों ने दिल्ली और पंजाब पर अधिकार कर लिया था। इसे अब्दाली सहन नहीं कर सकता था।
  4. भारत में मराठों की बढ़ती हुई शक्ति के कारण जाट और राजपूत उनसे ईर्ष्या करने लग गए थे।

प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a brief note on Third Battle of Panipat.)
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई का पंजाब तथा भारत के इतिहास में विशेष स्थान है। यह लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों और अहमद शाह अब्दाली के मध्य हुई। पानीपत के मैदान में अब्दाली तथा मराठों के मध्य एक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ कर रहा था। इस लड़ाई में मराठों को ज़बरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा। उनके बड़ी संख्या में सैनिक मारे गए। परिणामस्वरूप मराठों की शक्ति को एक गहरा धक्का पहुँचा। पानीपत की तीसरी लड़ाई का वास्तविक लाभ सिखों को मिला तथा उनकी शक्ति में पर्याप्त वृद्धि हो गई।

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प्रश्न 9.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? (What were the results of the Third Battle of Panipat ?)
अथवा
पानीपत की तीसरी लड़ाई के कोई तीन नतीजे लिखिए।
(Write down any three results of the Third Battle of Panipat.)
उत्तर-
पानीपत की तीसरी लडाई के दूरगामी परिणाम निकले। इस लड़ाई में मराठों की भारी जान और माल की क्षति हुई। पेशवा बालाजी बाजी राव इस अपमानजनक पराजय का शोक सहन न कर सका एवं वह शीघ्र ही इस दुनिया को अलविदा कह गया। इस लड़ाई में उनकी पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया। इस लड़ाई में पराजय के कारण मराठे आपसी झगड़ों में उलझ गए। इस कारण उनकी आपस में एकता समाप्त हो गई।

प्रश्न 10.
बड़ा घल्लूघारा (दूसरा खूनी हत्याकांड) पर संक्षिप्त नोट लिखिए।
[Write a short note on Wadda Ghallughara (Second Bloody Carnage).]
अथवा
दूसरे बड़े घल्लूघारे पर संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Second Big Ghallughara.)
अथवा
बड़ा घल्लूघारा (अहमद शाह अब्दाली का छठा हमला) पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
[Write a brief note on Wadda Ghallughara (Sixth invasion of Ahmad Shah Abdali.)]
अथवा
दूसरे अथवा बड़े घल्लूघारे पर संक्षेप नोट लिखो। .
(Write a short note on Second or Wadda Ghallughara.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली सिखों के इस बढ़ते हुए प्रभाव को कुचलना चाहता था। उसने 5 फरवरी, 1762 ई० को सिखों को मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में घेर लिया। इस घेराव में 25 से 30 हज़ार सिखों की हत्या कर दी गई। सिख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से जानी जाती है। इस घल्लूघारे में सिखों की भारी प्राण हानि से अब्दाली को विश्वास था कि इससे सिखों की शक्ति को गहरा आघात लगेगा जो गलत प्रमाणित हुआ।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

प्रश्न 11.
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की? (How did the Sikhs organise their power in their struggle against the Afghans ?).
उत्तर-

  1. अफग़ानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपने आपको जत्थों में संगठित कर लिया।
  2. श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा प्रस्ताव पास किए जाते थे। गुरमता का सभी सिख पालन करते थे।
  3. अहमद शाह अब्दाली कई वर्षों तक अफ़गानिस्तान में होने वाले विद्रोहों के कारण सिखों की ओर ध्यान नहीं दे सका था।
  4. पंजाब के लोगों एवं ज़मींदारों ने भी सिख-अफ़गान संघर्ष में सिखों को पूर्ण सहयोग दिया।

प्रश्न 12.
सिखों की शक्ति को कुचलने में अहमद शाह अब्दाली असफल क्यों रहा ?
What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के सिखों के विरुद्ध असफलता के कारण लिखें। (Write causes of the failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs.)
उत्तर-

  1. सिखों की जीत का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ निश्चय और आत्म-विश्वास था। उन्होंने अब्दाली के घोर अत्याचारों के बावजूद भी उत्साह न छोड़ा।
  2. सिखों ने छापामार युद्ध नीति अपनाई। परिणामस्वरूप वे अब्दाली को मात देने में सफल रहे।
  3. अफ़गानिस्तान में बार-बार विद्रोह हो जाने के कारण अब्दाली के सैनिक परेशान हो चुके थे।
  4. सिखों के नेता भी बड़े योग्य थे। वे शत्रुओं के विरुद्ध एकजुट होकर लड़े।

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प्रश्न 13.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब पर क्या राजनीतिक प्रभाव डाला ?
(What were the political effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अफ़गानिस्तान में शामिल कर लिया।
  2. अब्दाली ने 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई के परिणामस्वरूप पंजाब में मराठों की शक्ति का अंत कर दिया।
  3. अहमद शाह अब्दाली के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई।
  4. पंजाब में सिखों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिला।

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर पड़े महत्त्वपूर्ण प्रभावों का वर्णन करो।
(Describe important effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab.)
उत्तर-

  1. पंजाब को 1752 ई० में अफ़गानिस्तान में सम्मिलित कर लिया गया। परिणामस्वरूप पंजाब से सदैव के लिए मुग़ल शक्ति का अंत हो गया।
  2. अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब को भारी आर्थिक हानि का सामना करना पड़ा।
  3. अब्दाली ने आक्रमणों के दौरान अनेक ऐतिहासिक इमारतों और साहित्य को नष्ट कर दिया था।
  4. अब्दाली के इन आक्रमणों के कारण पंजाबियों ने धन को जोड़ने की अपेक्षा उसे खुला खर्च करना आरंभ कर दिया।
  5. इन हमलों के कारण पंजाबी निडर और बहादुर बन गए।

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प्रश्न 15.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या सामाजिक प्रभाव पड़े ?
(What were the social effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-

  1. पंजाबियों के चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे।
  2. अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अनाचार को बढ़ावा मिला।
  3. लोग बहुत स्वार्थी हो गए थे। वे कोई पाप करने से नहीं डरते थे।
  4. अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब के लोग बहादुर और निडर बन गए।
  5. अब्दाली के आक्रमणों के दौरान लूटमार के कारण सिखों एवं मुसलमानों में आपसी शत्रुता बढ़ गई।

प्रश्न 16.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या आर्थिक परिणाम निकले ?
(What were the economic consequences of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण के समय भारी संपत्ति लूट कर अपने साथ ले जाता था। इसने पंजाब को कंगाल बना दिया।
  2. अफ़गान सेनाएँ कूच करते समय रास्ते में आने वाले खेतों को उजाड़ देती थीं। इस कारण कृषि का काफी नुकसान हो जाता था।
  3. पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारियों ने भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने के लिए कोई प्रयास शेष न छोड़ा।
  4. अराजकता के वातावरण में पंजाब के व्यापार को गहरा आघात लगा।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान का शासक।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली कहाँ का शासक था?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान।

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किए ?
उत्तर-
8.

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों का एक कारण बताएँ। .
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के भारत पर बार-बार आक्रमण करने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने किस समय के दौरान पंजाब पर आक्रमण किए ?
उत्तर-
1747 ई० से 1767 ई० के

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
उत्तर-
1747-48 ई०।

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब के ऊपर दूसरा आक्रमण कब किया ?
उत्तर-
1748-1749 ई०।

प्रश्न 8.
मीर मन्नू लाहौर का सूबेदार कब बना ?
उत्तर-
1748 ई०।

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प्रश्न 9.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब अधिकार कर लिया था ?
अथवा
पंजाब में मुग़ल राज का अंत कब हुआ ?
उत्तर-
1752 ई०।

प्रश्न 10.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब का पहला सूबेदार किसे नियुक्त किया था ?
उत्तर-
मीर मन्नू को।

प्रश्न 11.
अहमद शाह अब्दाली ने मीर मन्नू को किस उपाधि से सम्मानित किया था ?
उत्तर-
फरजंद खाँ बहादुर रुस्तम-ए-हिंद।

प्रश्न 12.
अहमद शाह अब्दाली ने अपने चौथे आक्रमण के दौरान किसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया था ?
उत्तर-
तैमूर शाह।

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प्रश्न 13.
तैमूर शाह कौन था ?
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली का पुत्र।

प्रश्न 14.
बाबा दीप सिंह जी कौन थे ?
उत्तर-
शहीद मिसल के प्रसिद्ध नेता।

प्रश्न 15.
बाबा दीप सिंह ने कब तथा कहाँ लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की थी ?
उत्तर-
11 नवंबर, 1757 ई० को अमृतसर में।

प्रश्न 16.
मराठों ने पंजाब पर कब अधिकार कर लिया था ?
उत्तर-
1758 ई०।

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प्रश्न 17.
मराठों ने किसे पंजाब का प्रथम सूबेदार नियुक्त किया था ?
उत्तर-
अदीना बेग़ को।

प्रश्न 18.
पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
14 जनवरी, 1761 ई०

प्रश्न 19.
पानीपत की तीसरी लड़ाई किनके मध्य हुई?
उत्तर-
मराठों एवं अहमद शाह अब्दाली।

प्रश्न 20.
‘बड़ा घल्लूघारा’ कब हुआ ?
अथवा
दूसरा बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
उत्तर-
5 फरवरी, 1762 ई०। ।

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प्रश्न 21.
दूसरा घल्लूघारा अथवा बड़ा घल्लूघारा कहाँ हुआ ?
उत्तर-
कुप में।

प्रश्न 22.
बड़ा घल्लूघारा कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर-
1762 ई० कुप में।

प्रश्न 23.
बड़े घल्लूघारे के लिए कौन जिम्मेवार था ?
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली।

प्रश्न 24.
सिखों ने सरहिंद पर कब अधिकार किया था ?
उत्तर-
14 जनवरी, 1764 ई०।

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प्रश्न 25.
जैन खाँ कौन था?
उत्तर-
1764 ई० में सरहिंद का सूबेदार।

प्रश्न 26.
सिखों ने लाहौर पर कब कब्जा किया ?
उत्तर-
1765 ई०।

प्रश्न 27.
अब्दाली के विरुद्ध सिखों की सफलता का कोई एक मुख्य कारण बताएँ।
उत्तर-
सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला-युद्ध नीति।

प्रश्न 28.
अहमद शाह अब्दाली के हमलों का कोई एक प्रभाव लिखें।
उत्तर-
अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया था।

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प्रश्न 29.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों का कोई एक मुख्य आर्थिक प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
पंजाब को भारी आर्थिक विनाश का सामना करना पड़ा।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली…………….का शासक था।
उत्तर-
(अफ़गानिस्तान)

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली 1747 ई० में………..का शासक बना।
उत्तर-
(अफ़गानिस्तान)

प्रश्न 3.
नादर शाह की हत्या के बाद अफ़गानिस्तान का बादशाह ………… बना।
उत्तर-
(अहमद शाह अब्दाली)

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प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब के ऊपर कुल ……………. हमले किये।
उत्तर-
(आठ)

प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर प्रथम बार…………में आक्रमण किया।
उत्तर-
(1747-48 ई०)

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली ने…………में पंजाब पर कब्जा कर लिया।
उत्तर-
(1752 ई०)

प्रश्न 7.
1752 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने………….को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया।
उत्तर-
(मीर मन्नू)

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प्रश्न 8.
अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में…………….को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया।
उत्तर-
(तैमूर शाह)

प्रश्न 9.
बाबा दीप सिंह जी ने………………को शहीदी प्राप्त की।
उत्तर-
(11 नवंबर, 1757 ई०)

प्रश्न 10.
पानीपत की तीसरी लड़ाई……………………में हुई।
उत्तर-
(14 जनवरी, 1761 ई०)

प्रश्न 11.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठों का पेशवा………………था।
उत्तर-
(बालाजी बाजीराव)

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प्रश्न 12.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठा सेना का नेतृत्व…………………ने किया था।
उत्तर-
(सदाशिव राव भाऊ)

प्रश्न 13.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में…………………की हार हुई।।
उत्तर-
(मराठों)

प्रश्न 14.
बड़ा घल्लूघारा या दूसरा घल्लूघारा………………..में हुआ।
उत्तर-
(1762 ई०)

प्रश्न 15.
बड़ा घल्लूघारा………………….में हुआ।
उत्तर-
(कुप)

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प्रश्न 16.
1764 ई० में बाबा आला सिंह ने सरहिंद के सूबेदार…………….को कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
(जैन खाँ)

प्रश्न 17.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कुल………………..आक्रमण किए।
उत्तर-
(आठ)

प्रश्न 18.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब में……………… राज का अंत हुआ।
उत्तर-
(मुग़ल)

प्रश्न 19.
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के हाथों हुई पराजय का एक मुख्य कारण सिखों की………………युद्ध नीति थी।
उत्तर-
(गुरिल्ला)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली 1747. ई० में अफ़गानिस्तान का शासक बना।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम बार 1749 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के भारत आक्रमण का प्रमुख उद्देश्य यहाँ से धन प्राप्त करना था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने भारत पर कुल छः आक्रमण किए।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
मीर मन्नू ने 1748 ई० में मन्नूपुर की लड़ाई में अहमद शाह अब्दाली को एक कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
अहमद शाह अब्दाली ने 1751 ई० में पंजाब पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
तैमूर शाह बाबर का पुत्र था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
बाबा दीप सिंह जी ने 10 नवंबर, 1757 ई० को शहीदी प्राप्त की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
अहमद शाह अब्दाली और मराठों के मध्य पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
बालाजी बाजीराव के पुत्र का नाम विश्वास राव था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
सिखों ने 1761 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
1761 ई० में लाहौर पर अधिकार करने के कारण जस्सा सिंह आहलूवालिया को सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के छठे आक्रमण के समय बड़ा घल्लूघारा हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
बड़ा घल्लूघारा 1762 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
बड़ा घल्लूघारा काहनूवान के स्थान पर हुआ था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 17.
सिखों ने सरहिंद पर 1764 ई० में आक्रमण किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
सिखों ने 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
अहमद शाह अब्दाली की मृत्यु के बाद नादिर शाह अफ़ग़ानिस्तान का शासक बना था।
उत्तर-
गलत

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
(i) अफ़गानिस्तान का शासक
(ii) ईरान का शासक
(iii) चीन का शासक
(iv) भारत का शासक।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कितने आक्रमण किये ?
(i) सात
(ii) पाँच
(iii) सत्रह
(iv) आठ।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर प्रथम आक्रमण कब किया ?
(i) 1745 ई० में
(ii) 1746 ई० में
(iii) 1747 ई० में
(iv) 1752 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली ने अपने कौन-से आक्रमण के बाद पंजाब पर कब्जा कर लिया था ?
(i) पहले
(ii) दूसरे
(iii) तीसरे
(iv) चौथे।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब्जा कब किया ?
अथवा
पंजाब पर मुगल साम्राज्य का अंत कब हुआ ?
(i) 1748 ई० में
(ii) 1751 ई० में
(iii) 1752 ई० में
(iv) 1761 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 6.
तैमूर शाह पंजाब का सूबेदार कब बना ?
(i) 1751 ई० में
(ii) 1752 ई० में
(iii) 1757 ई० में
(iv) 1759 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 7.
बाबा दीप सिंह जी ने कब शहीदी प्राप्त की ?
(i) 1752 ई० में
(ii) 1755 ई० में
(iii) 1756 ई० में
(iv) 1757 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
(i) 1758 ई० में
(ii) 1759 ई० में
(iii) 1760 ई० में
(iv) 1761 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को किसने पराजित किया था ?
(i) जस्सा सिंह आहलूवालिया ने
(ii) जस्सा सिंह रामगढ़िया ने
(iii) अहमद शाह अब्दाली ने
(iv) मीर मन्नू ने।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
(i) 1746 ई० में
(ii) 1748 ई० में
(iii) 1761 ई० में
(iv) 1762 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 11.
बड़ा घल्लूघारा कहाँ हुआ ?
(i) काहनूवान में
(ii) कुप में
(iii) करतारपुर में
(iv) जालंधर में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 12.
सिखों ने सरहिंद पर कब अधिकार कर लिया ?
(i) 1761 ई० में
(ii) 1762 ई० में
(iii) 1763 ई० में
(iv) 1764 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
सिखों ने लाहौर पर कब अधिकार किया ?
अथवा
सिखों ने अपना पहला सिक्का कब जारी किया ?
(i) 1761 ई० में
(ii) 1762 ई० में
(iii) 1764 ई० में
(iv) 1765 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
अहमद शाह अब्दाली कौन था ? उसके पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ? (Who was Ahmad Shah Abdali ? What were the reasons of his Punjab invasions ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के क्या कारण थे ? (What were the causes of the attacks of Ahmad Shah Abdali on Punjab ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारणों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the causes of Ahmad Shah Abdali’s invasions.)
उत्तर-
1. अहमद शाह अब्दाली कौन था ?-अहमद शाह अब्दाली अफगानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1772 ई० तक शासन किया।

2. अब्दाली के आक्रमणों के मुख्य कारण-अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे

i) अब्दाली की महत्त्वाकाँक्षा-अहमद शाह अब्दाली बहुत महत्त्वाकाँक्षी शासक था। वह अफ़गानिस्तान के अपने छोटे-से साम्राज्य से संतुष्ट नहीं था। अत: वह पंजाब तथा भारत के अन्य प्रदेशों पर विजय प्राप्त कर अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।

ii) भारत की अपार धन-दौलत-अहमद शाह, अब्दाली के लिए एक शक्तिशाली साम्राज्य की स्थापना के लिए धन की बहुत आवश्यकता थी। यह धन उसे अपने साम्राज्य अफ़गानिस्तान से प्राप्त नहीं हो सकता था, क्योंकि यह प्रदेश आर्थिक दृष्टि से बहुत पिछड़ा हुआ था। दूसरी ओर उसे यह धन भारत-जो अपनी अपार धन-दौलत के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध था-से मिल सकता था।

iii) अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति को सुदृढ़ करना-अहमद शाह अब्दाली एक साधारण परिवार से संबंध रखता था। इसलिए 1747 ई० में नादिरशाह की हत्या के पश्चात् जब वह अफ़गानिस्तान का शासक बना तो वहाँ के अनेक सरदारों ने इस कारण उसका विरोध किया। अतः अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विदेशी युद्ध करना चाहता था।

iv) भारत की अनुकूल राजनीतिक दशा-1707 ई० में औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् महान् मुग़ल साम्राज्य तीव्रता से पतन की ओर अग्रसर हो रहा था। औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी अयोग्य निकले। वे अपना अधिकाँश समय सुरा एवं सुंदरी संग व्यतीत करते थे। अतः साम्राज्य में चारों ओर अराजकता फैल गई। इस स्थिति का लाभ उठा कर अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया।

v) शाहनवाज़ खाँ द्वारा निमंत्रण-1745 ई० में जकरिया खाँ की मृत्यु के बाद उसका बड़ा पुत्र याहिया खाँ लाहौर का नया सूबेदार बना। इस बात को उसका छोटा भाई शाहनवाज़ खाँ सहन न कर सका। वह काफ़ी समय से लाहौर की सूबेदारी प्राप्त करने का स्वप्न ले रहा था। ऐसी स्थिति में शाहनवाज़ खाँ ने अहमद शाह अब्दाली को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भेजा। अब्दाली ऐसे ही स्वर्ण अवसर की तलाश में था। अतः उसने भारत पर आक्रमण करने का निर्णय लिया।

प्रश्न 2.
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कब और कितने आक्रमण किए ? उसके मुख्य आक्रमणों की संक्षिप्त जानकारी दें।
(When and how many times did Ahmad Shah Abdali invade Punjab ? Give a brief account of his main invasions.) .
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर 1747 ई० से 1767 ई० के मध्य 8 बार आक्रमण किए। लाहौर के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर अहमद शाह अब्दाली ने दिसंबर, 1747 ई० में भारत पर पहली बार आक्रमण किया। जब वह पंजाब पहुँचा तो शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली को सहयोग देने से इंकार कर दिया। अब्दाली ने शाहनवाज़ खाँ को हरा दिया और वह दिल्ली की ओर भाग गया। मन्नूपुर में हुई लड़ाई में मुईन-उल-मुल्क (मीर मन्नू) ने अब्दाली को कड़ी पराजय दी। इससे प्रसन्न होकर मुग़ल बादशाह ने मीर मन्नू को लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण में दिल्ली से पूरी सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू की पराजय हुई और उसने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू अब्दाली को समय पर लगान नहीं भेज़ सका था। इसलिए अब्दाली ने 1751-52 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान अब्दाली ने पंजाब पर अधिकार कर लिया। अब्दाली ने 1759-61 ई० के मध्य पंजाब पर अपना पाँचवां आक्रमण किया। इस आक्रमण के दौरान 14 जनवरी, 1761 ई० को पानीपत की तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में अब्दाली ने मराठों को कड़ी पराजय दी। 1761-62 ई० में अब्दाली द्वारा पंजाब पर किया गया छठा आक्रमण सबसे प्रसिद्ध है। इस आक्रमण के दौरान 5 फरवरी, 1762 ई० को अब्दाली ने मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में 25,000 से 30,000 सिखों का कत्ल कर दिया था। यह घटना इतिहास में बड़ा घल्लूघारा के नाम से भी जानी जाती है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

प्रश्न 3.
अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the first invasion of Ahmad Shah Abdali ?)
अथवा
पंजाब पर अब्दाली के प्रथम आक्रमण पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the Abdali’s first invasion over Punjab.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का बादशाह था। उसने पंजाब के सूबेदार शाहनवाज़ खाँ के निमंत्रण पर 1747 ई० में भारत पर आक्रमण करने का निर्णय किया। वह बिना किसी विरोध के जनवरी, 1748 ई० को लाहौर के निकट शाहदरा पहुँच गया। इसी मध्य कमरुद्दीन ने शाहनवाज़ खाँ के साथ समझौता कर लिया। परिणामस्वरूप शाहनवाज़ खाँ ने अब्दाली का साथ देने से इन्कार कर दिया। इस बात पर अब्दाली को बहुत गुस्सा आया। उसने शाहनवाज़ खाँ को पराजित करके 10 जनवरी, 1748 ई० को लाहौर पर अधिकार कर लिया। शाहनवाज़ खाँ दिल्ली की तरफ भाग गया। लाहौर पर अधिकार करने के बाद अब्दाली ने वहाँ भारी लूटपाट की। इसके बाद वह दिल्ली की ओर बढ़ा। वज़ीर कमरुद्दीन उसका मुकाबला करने के लिए अपनी सेना समेत आगे बढ़ा। सरहिंद के निकट हुई लड़ाई में कमरुद्दीन मारा गया। मन्नूपुर में 11 मार्च, 1748 ई० को एक घमासान युद्ध में कमरुद्दीन के लड़के मुइन-उल-मुल्क ने अब्दाली को करारी हार दी। मुइन-उल-मुल्क की इस वीरता से प्रभावित होकर मुहम्मद शाह ने उसे लाहौर का सूबेदार नियुक्त कर दिया। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार अब्दाली का प्रथम आक्रमण असफल रहा।

प्रश्न 4.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर दूसरे आक्रमण का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Briefly explain the second invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के दूसरे आक्रमण का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the second invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली अपने पहले आक्रमण के दौरान हुई अपनी पराजय का बदला लेना चाहता था। दूसरे, वह इस बात को जानता था कि दिल्ली का नया वज़ीर सफदर जंग मीर मन्नू के साथ बड़ी ईर्ष्या करता है। इस कारण मीर मन्नू की स्थिति बड़ी डावाँडोल थी। इन्हीं कारणों से अहमद शाह अब्दाली ने 1748 ई० के अंत में पंजाब पर दूसरी बार आक्रमण किया। मीर मन्नू भी अब्दाली का सामना करने के लिए आगे बढ़ा। दिल्ली से कोई सहायता न मिलने के कारण मीर मन्नू को अपनी पराजय निश्चित दिखाई दे रही थी। इसलिए उसने अब्दाली के साथ संधि कर ली। इस संधि के अनुसार मीर मन्नू ने पंजाब के चार महलों (जिलों) स्यालकोट, पसरूर, गुजरात और औरंगाबाद का वार्षिक लगान अब्दाली को देना मान लिया। इनका वार्षिक लगान 14 लाख रुपए बनता था। जब मीर मन्नू अहमद शाह अब्दाली के साथ उलझा हुआ था तब सिखों ने जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में लाहौर में लूटमार की।

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प्रश्न 5.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के तीसरे आक्रमण पर प्रकाश डालें। (Throw light on the third invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
पंजाब में सिखों की लूटमार और मीर मन्नू के विरुद्ध नासिर खाँ के विद्रोह के कारण अराजकता फैल गई थी। परिणामस्वरूप मीर मन्नू अहमद शाह अब्दाली को दिए जाने वाले 14 लाख रुपए न भेज सका। इस कारण अब्दाली ने नवंबर, 1751 ई० में पंजाब पर तीसरी बार आक्रमण किया। वह अपनी सेना सहित बड़ी तेजी के साथ लाहौर की ओर बढ़ रहा था। जब इस आक्रमण का समाचार लाहौर के लोगों को मिला तो उनमें से बहुत अब्दाली की भयंकर लूटमार की आशंका से घबरा कर लाहौर छोड़ कर भाग गए। लाहौर पहुँच कर अब्दाली ने 3 महीनों तक भारी लूटमार मचाई। मीर मन्नू इस मध्य दिल्ली से कोई सहायता मिलने की प्रतीक्षा करता रहा। 6 मार्च, 1752 ई० को लाहौर के निकट अहमद शाह अब्दाली और मीर मन्नू की सेनाओं के बीच भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मीर मन्नू पराजित हुआ तथा उसे बंदी बना लिया गया। अब्दाली मीर मन्नू की निर्भीकता एवं साहस से इतना प्रभावित हुआ कि उसने उसे अपनी ओर से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया।

प्रश्न 6.
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब के चौथे आक्रमण का वर्णन करें। (Explain the fourth invasion of Ahmad Shah Abdali on Punjab.)
उत्तर-
1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा मुगलानी बेग़म पंजाब की सूबेदार बनी। वह एक चरित्रहीन स्त्री थी। इस कारण सारे पंजाब में अराजकता फैल गई। नए मुग़ल बादशाह आलमगीर दूसरे के आदेश पर मुगलानी बेग़म को जेल में डाल दिया गया। अदीना बेग़ को पंजाब का नया सूबेदार बनाया गया। जेल से मुगलानी बेग़म ने पत्रों द्वारा बहुत-से महत्त्वपूर्ण रहस्य अहमद शाह अब्दाली को बताए। इसके अतिरिक्त अब्दाली पंजाब पर किसी मुग़ल सूबेदार की नियुक्ति को कदाचित सहन नहीं करता था। इन्हीं कारणों से अब्दाली ने नवंबर, 1756 ई० में पंजाब पर चौथी बार आक्रमण किया। इस आक्रमण का समाचार सुन कर अदीना बेग़ बिना मुकाबला किए दिल्ली भाग गया। अब्दाली ने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अमृतसर के निकट सिखों एवं अफ़गानों में हुए एक घमासान युद्ध में बाबा दीप सिंह जी ने शहीदी प्राप्त की। सिखों ने इस शहीदी का बदला लेने के उद्देश्य से लाहौर में भयंकर लूटमार की।

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प्रश्न 7.
पानीपत की तीसरी लड़ाई पर एक नोट लिखें।
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों एवं अहमदशाह अब्दाली के मध्य हुई। इस लड़ाई का मुख्य कारण यह था कि दोनों शक्तियाँ उत्तरी भारत में अपनी-अपनी शक्ति की स्थापना करना चाहती थीं। 1758 ई० में मराठों ने तैमूर शाह जो कि अहमदशाह अब्दाली का पुत्र तथा पंजाब का सूबेदार था, को पराजित करके पंजाब पर अधिकार कर लिया था। यह अहमदशाह अब्दाली की शक्ति के लिए एक चुनौती थी। अतः उसने 1759 ई० में पंजाब पर आक्रमण करके उस पर कब्जा कर लिया। इसके बाद उसने दिल्ली की ओर कदम बढ़ाए। पानीपत के मैदान में अब्दाली,तथा मराठों के मध्य एक घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में मराठा सेना का नेतृत्व सदाशिव राव भाऊ कर रहा था। इस लड़ाई में मराठों को ज़बरदस्त पराजय का सामना करना पड़ा।

पानीपत की तीसरी लड़ाई के दूरगामी परिणाम निकले। इस लड़ाई में मराठों की भारी जान-माल की हानि हुई। पेशवा बालाजी बाजी राव इस विनाशकारी पराजय को सहन न कर सका तथा शीघ्र ही चल बसा। इस लड़ाई से पूर्व मराठों की गणना भारत की प्रमुख शक्तियों में की जाती थी। इस लड़ाई में पराजय के कारण उनकी शक्ति तथा गौरव को गहरी चोट पहुँची। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य को स्थापित करने का मराठों का स्वप्न मिट्टी में मिल गया। इस लड़ाई में पराजय के कारण मराठे परस्पर झगड़ों में उलझ गए। इस कारण उनकी आपसी एकता समाप्त हो गई। इस लड़ाई के पश्चात् पंजाब में सिखों को अपनी शक्ति संगठित करने का अवसर मिला। इस लड़ाई के पश्चात् भारत में अंग्रेजों को अपनी शक्ति स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त हो गया।

प्रश्न 8.
पानीपत की तीसरी लड़ाई के क्या परिणाम निकले ? (What were the results of the third battle of Panipat ?)
उत्तर–
पानीपत की तीसरी लड़ाई भारतीय इतिहास की निर्णायक लड़ाइयों में से एक थी। इस लड़ाई के दूरगामी परिणामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. मराठों का घोर विनाश-पानीपत की तीसरी लड़ाई मराठों के लिए घोर विनाशकारी सिद्ध हुई। इस लड़ाई में 28,000 मराठा सैनिक मारे गए तथा बड़ी संख्या में जख्मी हुए। कहा जाता है कि महाराष्ट्र के प्रत्येक परिवार का कोई-न-कोई सदस्य इस लड़ाई में मरा था।

2. मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का —इस लड़ाई में पराजय से मराठों की शक्ति एवं सम्मान को गहरा धक्का लगा। परिणामस्वरूप भारत में हिंदू साम्राज्य स्थापित करने का मराठों का स्वप्न धराशायी हो गया।

3. मराठों की एकता का समाप्त होना–पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की प्रतिष्ठा को भारी आघात पहँचने से मराठा संघ की एकता समाप्त हो गई। वे आपसी मतभेदों एवं झगड़ों में उलझ गए। परिणामस्वरूप रघोबा जैसे स्वार्थी मराठा नेता को राजनीति में आने का अवसर प्राप्त हुआ।

4. पंजाब में सिखों की शक्ति का उत्थान-पानीपत की तीसरी लड़ाई से पंजाब मराठों के हाथों से सदा के लिए जाता रहा। अब पंजाब में प्रभुत्व स्थापित करने के लिए केवल दो ही शक्तियाँ —अफ़गान एवं सिख रह गईं। इस प्रकार सिखों के उत्थान का कार्य काफी सुगम हो गया। उन्होंने अफ़गानों को पराजित करके पंजाब में अपना शासन स्थापित कर लिया।

5. भारत में अंग्रेजों की शक्ति का उत्थान भारत में अंग्रेजों को अपने साम्राज्य विस्तार के मार्ग में सबसे अधिक चुनौती मराठों की थी। मराठों की जबरदस्त पराजय ने अंग्रेजों को अपनी सत्ता स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त कर दिया।

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प्रश्न 9.
बड़ा घल्लूघारा (दूसरा खूनी हत्याकाँड) पर संक्षिप्त नोट लिखिए। [Write a short note on Wada Ghallughara (Second Bloody Carnage).]
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के छठे हमले का वर्णन कीजिए।
(Explain the sixth invasion of Ahmad Shah Abdali.)
उत्तर-
बड़ा घल्लूघारा सिख इतिहास की एक बहुत दुःखदायी घटना थी। सिखों ने 1761 ई० में पंजाब के अनेक क्षेत्रों को अपनी अधीन कर लिया और उन्होंने बहुत सारे अन्य क्षेत्रों में भारी लूटपाट मचाई। सिखों ने अहमद शाह अब्दाली द्वारा नियुक्त पंजाब के सूबेदार ख्वाजा उबेद खाँ को भी पराजित कर दिया। अहमद शाह अब्दाली सिखों के इस बढ़ते हुए प्रभाव को कभी सहन नहीं कर सकता था। इसलिए अब्दाली ने सन् 1761 ई० के अंत में पंजाब पर छठी बार आक्रमण किया। उसने लाहौर पर बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् अहमद शाह अब्दाली ने 5 फरवरी, 1762 ई० को अचानक सिखों को मालेरकोटला के निकट गाँव कुप में घेर लिया। इस अचानक आक्रमण के कारण 25 से 30 हजार तक सिख मारे गए। सिख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से जानी जाती है। बड़े घल्लूघारे में सिखों की भारी प्राण हानि से अब्दाली अति प्रसन्न हुआ। उसका विश्वास था कि इससे सिखों की शक्ति को गहरा आघात लगा होगा पर उसका यह अनुमान गलत निकला। सिखों ने इस घटना से नया उत्साह प्राप्त किया। उन्होंने पूर्ण उत्साह से अब्दाली की सेना पर आक्रमण प्रारंभ कर दिए। सिखों ने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

प्रश्न 10.
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की ? (How did the Sikhs organise their power in their struggle against the Afghans ?)
उत्तर-
अफ़गानों के विरुद्ध लड़ाई में सिखों ने अपने आपको जत्थों में संगठित कर लिया। गुरु ग्रंथ साहिब और सिख पंथ पर विश्वास के कारण उनमें एकता हुई। गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा प्रस्ताव पास किए जाते थे। इस गुरमता का सभी सिख पालन करते थे। गुरमता के द्वारा सारे जत्थों का एक कमांडर नियत किया जाता था और सभी सिख उसके अधीन एकत्रित होकर शत्रु का मुकाबला करते थे। ‘राज करेगा खालसा’ अब प्रत्येक सिख का विश्वास बन चुका था। अहमद शाह अब्दाली कई वर्षों तक अफ़गानिस्तान में होने वाले विद्रोहों के कारण सिखों की ओर ध्यान नहीं दे सका था। उसके द्वारा पंजाब में नियुक्त किए गवर्नर भी सिखों पर नियंत्रण न पा सके। पंजाब के लोगों एवं ज़मींदारों ने भी सिख-अफ़गान संघर्ष में सिखों को पूर्ण सहयोग दिया। सिखों के नेताओं ने भी अफ़गानों के विरुद्ध सिखों को संगठित करने एवं उनमें एक नई स्फूर्ति उत्पन्न करने में प्रशंसनीय योगदान दिया। इस प्रकार सिखों ने अफ़गानों के विरुद्ध अपनी शक्ति को संगठित किया।

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प्रश्न 11.
अहमद शाह अब्दाली सिखों के विरुद्ध असफल क्यों रहा ? कोई छः कारण बताएँ।
(What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ? Write any six reasons.)
अथवा
सिखों की शक्ति को कुचलने में अहमद शाह अब्दाली असफल क्यों रहा ? (What were the causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली की सिखों के विरुद्ध असफलता के छः क्या कारण थे ?
(What were the six causes of failure of Ahmad Shah Abdali against the Sikhs ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली की असफलता या सिखों की जीत के निम्नलिखित कारण हैं—
1. सिखों का दृढ़ निश्चय-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण सिखों का दृढ़ निश्चय था। अब्दाली ने उन पर भारी अत्याचार किए, परंतु उनका हौसला बुलंद रहा। वे चट्टान की तरह अडिग रहे। बड़े घल्लूघारे में 25,000 से 30,000 सिख मारे गए परंतु सिखों के हौसले बुलंद रहे। ऐसी कौम को हराना कोई आसान कार्य न था।

2. गुरिल्ला युद्ध नीति-सिखों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक मुख्य कारण बनी। जब भी अब्दाली सिखों के विरुद्ध कूच करता, सिख तुरंत जंगलों व पहाड़ों में जा शरण लेते। वे अवसर देखकर अब्दाली की सेनाओं पर आक्रमण करते और लूटमार करके फिर वापस जंगलों में चले जाते। इन छापामार युद्धों ने अब्दाली की नींद हराम कर दी थी।

3. पंजाब के लोगों का असहयोग-अहमद शाह अब्दाली की पराजय का एक प्रमुख कारण यह था कि उसको पंजाब के नागरिकों का सहयोग प्राप्त न हो सका। उसने अपने बार-बार आक्रमणों के दौरान न केवल लोगों की धन-संपत्ति को ही लटा, अपित हज़ारों निर्दोष लोगों का कत्ल भी किया। परिणामस्वरूप पंजाब के लोगों की उसके साथ किसी प्रकार की कोई सहानुभूति नहीं थी। ऐसी स्थिति में अहमद शाह अब्दाली द्वारा पंजाब पर विजय प्राप्त करना एक स्वप्न समान था।

4. सिखों का चरित्र ‘सिखों का चरित्र अहमद शाह अब्दाली की असफलता का एक अन्य कारण बना। सिख प्रत्येक स्थिति में प्रसन्न रहते थे। वे युद्ध के मैदान में किसी भी निहत्थे पर वार नहीं करते थे। वे स्त्रियों एवं बच्चों का पूर्ण सम्मान करते थे चाहे उनका संबंध शत्रु के साथ क्यों न हो। इन गुणों के परिणामस्वरूप सिख पंजाबियों में अत्यंत लोकप्रिय हो गए थे।

5. सिखों के योग्य नेता-अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध सिखों की जीत का एक और महत्त्वपूर्ण कारण उनके योग्य नेता थे। इन नेताओं ने बड़ी योग्यता और समझदारी से सिखों को नेतृत्व प्रदान किया। इन नेताओं में प्रमुख नवाब कपूर सिंह, जस्सा सिंह आहलूवालिया, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा आला सिंह थे। ‘

6. अब्दाली के अयोग्य प्रतिनिधि-अहमद शाह अब्दाली की असफलता का प्रमुख कारण पंजाब में उसके अयोग्य प्रतिनिधि थे। उनमें प्रशासनिक योग्यता की कमी थी। इस कारण पंजाब के लोग उनके विरुद्ध होते चले गए।

प्रश्न 12.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर पड़े किन्हीं छः महत्त्वपूर्ण प्रभावों का वर्णन करो। (Describe any six important effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab.)
अथवा
अहमद शाह अब्दाली के पंजाब पर आक्रमणों के क्या प्रभाव पड़े ? (What were the effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने 1747 ई० से लेकर 1767 ई० तक पंजाब पर आठ बार आक्रमण किए। उसके इन आक्रमणों ने पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित किया। इन प्रभावों का संक्षेप में वर्णन निम्नलिखित प्रकार है—
1. पंजाब में मुग़ल शासन का अंत-अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का पंजाब के इतिहास पर पहला महत्त्वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि पंजाब में मुग़ल शासन का अंत हो गया। मीर मन्नू पंजाब में मुग़लों का अंतिम सूबेदार था। अब्दाली ने मीर मन्नू को ही अपनी तरफ से पंजाब का सूबेदार नियुक्त कर दिया। मुग़लों ने पुनः पंजाब पर अधिकार करने का प्रयत्न कियां पर अब्दाली ने इन प्रयत्नों को सफल न होने दिया।

2. सिख शक्ति का उदय-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब से मुग़ल और मराठा शक्ति का अंत हो गया। पंजाब पर कब्जा करने के लिए अब यह संघर्ष केवल दो शक्तियों-अफ़गान और सिखों के मध्य ही रह गया था। अब्दाली ने 1762 ई० में बड़ा घल्लूघारा में कई हज़ारों सिखों को शहीद किया, परंतु उनके हौंसले बुलंद रहे। उन्होंने 1764 ई० में सरहिंद और 1765 ई० में लाहौर पर कब्जा कर लिया था। सिखों ने अपने सिक्के चला कर अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

3. पंजाब के लोगों का बहादुर होना-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाबी लोगों को बहुत बहादुर और निडर बना दिया था। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों से रक्षा के लिए यहां के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ हुए युद्धों में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की।

4. सिखों और मुसलमानों की शत्रुता में वृद्धि-अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण सिखों और मुसलमानों में आपसी शत्रुता और बढ़ गई। इसका कारण यह था कि अफ़गानों ने इस्लाम के नाम पर सिखों पर बहुत अत्याचार किए। दूसरा, अब्दाली ने सिखों के सबसे पवित्र धार्मिक स्थान हरिमंदिर सहिब को ध्वस्त करके सिखों को अपना कट्टर शत्रु बना लिया। अतः सिखों और अफ़गानों के बीच शत्रुता दिनों-दिन बढ़ती चली गई।

5. पंजाब की आर्थिक हानि-अहमदशाह अब्दाली अपने प्रत्येक आक्रमण में पंजाब से भारी मात्रा में लूट का माल साथ ले जाता था। अफ़गानी सेनाएँ कूच करते समय खेतों का विनाश कर देती थीं। पंजाब में नियुक्तं भ्रष्ट कर्मचारी भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने में कोई प्रयास शेष न छोड़ते थे। परिणामस्वरूप अराजकता और लूटमार के इस वातावरण से पंजाब के व्यापार को बहुत भारी हानि हुई।

6. पंजाबियों का खर्चीला स्वभाव-अहमद शाह अब्दाली के हमलों के परिणामस्वरूप उनके चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। क्योंकि अब्दाली अपने आक्रमणों के दौरान लोगों से धन लूटकर अफ़गानिस्तान ले जाता था। इसलिए लोगों ने धन एकत्रित करने की अपेक्षा उसे खाने-पीने तथा मौज उड़ाने पर व्यय करना आरंभ कर दिया था।

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प्रश्न 13.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों ने पंजाब पर क्या राजनीतिक प्रभाव डाला ? (What were the political effects of Ahmad Shah Abdali’s invasions over Punjab ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब पर बड़े गहरे राजनीतिक प्रभाव पड़े। सबसे पहले पंजाब से मुग़ल शासन का अंत हो गया। अब्दाली ने 1752 ई० में पंजाब को अफ़गानिस्तान में शामिल कर लिया। दूसरे, अब्दाली ने 1761 ई० में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों को बड़ी करारी पराजय दी जिसके परिणामस्वरूप पंजाब में मराठों की शक्ति का सदैव के लिए अंत हो गया। तीसरे, अहमद शाह अब्दाली के लगातार आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई। लोगों की जान माल सुरक्षित न रहे। सरकारी कर्मचारियों ने लोगों को लूटना शुरू कर दिया था। न्याय नाम की कोई चीज़ नहीं रही। चौथे, पंजाब में मुग़लों और मराठों की शक्ति का अंत होने के कारण सिखों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिला। उन्होंने अपने छापामार युद्धों से अब्दाली की सेना को कई स्थानों पर हराया। 1765 ई० में सिखों ने लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी।

प्रश्न 14.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या सामाजिक प्रभाव पड़े ?
(What were the social effects of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप लोगों के चरित्र में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आया। अब वे अधिक धन व्यय करने लगे। इसका कारण यह है कि अब्दाली अपने आक्रमणों के दौरान लोगों से धन लूट कर अफ़गानिस्तान ले जाता था। इसलिए लोगों ने धन एकत्रित करने की अपेक्षा उसे खाने-पीने तथा मौज उड़ाने पर व्यय करना आरंभ कर दिया था। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अनेक बुराइयों को उत्साह मिला। लोग बहुत स्वार्थी और आचरणहीन हो गए थे। वे कोई पाप या अपराध करने से नहीं डरते थे। चोरी, डाके, कत्ल, लूटमार, धोखेबाज़ी और रिश्वतखोरी का समाज में बोलबाला था। इन बुराइयों ने पंजाब के समाज को दीमक की तरह खाकर खोखला कर दिया था। अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के परिणामस्वरूप पंजाब के लोग बहादुर और निडर बन गए। इसका कारण यह था कि अब्दाली के आक्रमणों और उसके द्वारा की जा रही लूटमार से रक्षा के लिए यहाँ के लोगों को शस्त्र उठाने पड़े। उन्होंने अफ़गानों के साथ चलने वाले लंबे संघर्ष में बहादुरी की शानदार मिसालें कायम की। इस संघर्ष के अंत में सिख विजेता रहे।

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प्रश्न 15.
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के क्या आर्थिक परिणाम निकले ? (What were the economic consequences of the invasions of Ahmad Shah Abdali ?)
उत्तर-
अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों के विनाशकारी आर्थिक परिणाम निकले। वह अपने प्रत्येक आक्रमण के समय भारी संपत्ति लूट कर अपने साथ ले जाता था। इसने पंजाब को कंगाल बना दिया। दूसरा, अफ़गान सेनाएं कूच करते समय रास्ते में आने वाले खेतों को उजाड़ देती थीं। इस कारण कृषि का काफ़ी नुक्सान हो जाता था। तीसरा, पंजाब में नियुक्त भ्रष्ट कर्मचारियों ने भी लोगों को प्रत्येक पक्ष से लूटने के लिए कोई प्रयास शेष न छोड़ा। चौथा, पंजाब में सिख भी सरकार की नींद हराम करने के उद्देश्य से अक्सर लूटमार करते थे। इन कारणों से पंजाब में अव्यवस्था फैली। ऐसे वातावरण में पंजाब के व्यापार को गहरा आघात लगा। परिणामस्वरूप पंजाब को घोर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। ऐसा लगता था जैसे पंजाब की समृद्धि ने सदैव के लिए अपना मुख मोड़ लिया हो। निस्संदेह यह अत्यंत दुःखद संकेत था।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
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अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था। उसने 1747 ई० से 1772 ई० तक शासन किया। उसने 1747 ई० से 1767 ई० के मध्य पंजाब पर आठ आक्रमण किए। उसने 1752 ई० में मुग़ल सूबेदार मीर मन्न को हराकर पंजाब को अफ़गानिस्तान साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। अहमद शाह अब्दाली और उसके द्वारा पंजाब में नियुक्त किए गए सूबेदारों ने सिखों पर अनगिनत अत्याचार किए। सन् 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे में अब्दाली ने बड़ी संख्या में सिखों को शहीद कर दिया था। इतना सब कुछ होने पर भी सिख चट्टान की भाँति अडिग रहे। उन्होंने अपने छापामार युद्धों से अब्दाली की नींद हराम कर रखी थी। सिखों ने 1765 ई० में लाहौर पर अधिकार करके अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी थी। अब्दाली अपने सारे प्रयासों के बावजूद सिखों की शक्ति को न कुचल सका। वास्तव में उसकी असफलता के कई एक कारण थे। अहमद शाह अब्दाली के इन आक्रमणों से पंजाब के इतिहास पर बड़े गहरे राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक प्रभाव पड़े।

  1. अहमद शाह अब्दाली कौन था ?
  2. अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक कब बना था ?
    • 1747 ई०
    • 1748 ई
    • 1752 ई०
    • 1767 ई०
  3. अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर कितनी बार आक्रमण किए ?
  4. बड़ा घल्लूघारा कब हुआ ?
  5. अहमद शाह अब्दाली सिखों के विरुद्ध क्यों असफल रहा ? कोई एक कारण लिखें।

उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली अफ़गानिस्तान का शासक था।
  2. 1747 ई०।
  3. अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर 8 बार आक्रमण किए।
  4. बड़ा घल्लूघारा 1762 ई० में हुआ।
  5. सिखों के इरादे बहुत मज़बूत थे।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 15 अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण एवं मुग़ल शासन का विखँडन

2
अहमद शाह अब्दाली जनवरी, 1757 ई० में दिल्ली पहुँचा। दिल्ली पहुंचने पर अब्दाली का किसी ने भी विरोध न किया। दिल्ली में अब्दाली ने भारी लूटमार की। इसके पश्चात् उसने मथुरा और वृंदावन को भी लूटा। इसके पश्चात् वह आगरा की ओर बढ़ा पर सेना में हैज़े की बीमारी फैलने के कारण उसने वापस काबुल जाने का निर्णय ले लिया। पंजाब पहुँचने पर उसने अपने पुत्र तैमूर शाह को पंजाब का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दाली ने तैमूर शाह को यह आदेश भी दिया कि सिखों को उनकी कार्यवाइयों के लिए अच्छा सबक सिखाए। तैमूर शाह ने सिखों की शक्ति को कुचलने के लिए जहान खाँ के नेतृत्व में कुछ सेना अमृतसर की ओर भेजी। अमृतसर के निकट सिखों और अफ़गानों में घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिखों के नेता बाबा दीप सिंह जी का शीश कट गया था पर वह अपने शीश को हथेली पर रखकर शत्रुओं का मुकाबला करते रहे। उन्होंने हरिमंदिर साहिब पहुँच कर अपने प्राणों की आहुति दी। इस प्रकार बाबा दीप सिंह जी 11 नवंबर, 1757 ई० को शहीद हुए। बाबा दीप सिंह जी की इस शहीदी ने सिखों में एक नया जोश भरा।

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में भारत के कौन-से शहरों में लूटमार की ?
  2. अहमद शाह अब्दाली आगरे से वापस क्यों मुड़ गया था ?
  3. तैमूर शाह कौन था ?
  4. बाबा दीप सिंह जी कब तथा कहाँ शहीद हुए ?
  5. बाबा दीप सिंह जी की इस शहीदी ने सिखों में एक नया …………….. भरा।

उत्तर-

  1. अहमद शाह अब्दाली ने 1757 ई० में भारत के दिल्ली, मथुरा, वृंदावन तथा पंजाब के शहरों में लूटमार की।
  2. अहमद शाह अब्दाला आगरे से वापिस इसलिए पीछे मुड़ गया था क्योंकि उस समय वहाँ हैजा फैला हुआ था।
  3. तैमूर शाह अहमद शाह अब्दाली का पुत्र था।
  4. बाबा दीप सिंह जी की शहीदी 1757 ई० में अमृतसर में हुई थी।
  5. जोश।

3
14 जनवरी, 1761 ई० को मराठों ने अब्दाली की सेना पर आक्रमण कर दिया। यह बहुत घमासान युद्ध था। इस युद्ध के आरंभ में मराठों का पलड़ा भारी रहा। परंतु अनायास जब विश्वास राव की गोली लगने से मृत्यु हो गई तो युद्ध की स्थिति ही पलट गयी। सदाशिव राव भाऊ शोक मनाने के लिए हाथी से नीचे उतरा। जब मराठा सैनिकों ने उसके हाथी की पालकी खाली देखी तो उन्होंने समझा कि वह भी युद्ध में मारा गया है। परिणामस्वरूप मराठा सैनिकों में भगदड़ फैल गई। अब्दाली के सैनिकों ने यह स्वर्ण अवसर देख कर उनका पीछा किया और भारी तबाही मचाई। इस युद्ध में लगभग समस्त प्रसिद्ध मराठा नेता और 28,000 मराठा सैनिक मृत्यु को प्राप्त हुए। कई हज़ार मराठा सैनिक युद्ध में जख्मी हो गये और अन्य कई हज़ार को गिरफ्तार कर लिया गया।

  1. पानीपत की तीसरी लड़ाई कब हुई ?
  2. पानीपत की तीसरी लड़ाई किनके मध्य हुई ?
    • सिखों तथा मराठों
    • मराठों तथा अब्दाली
    • सिखों तथा अब्दाली |
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।
  3. विश्वास राव कौन था ?
  4. सदाशिव राव भाऊ कौन था ?
  5. पानीपत की तीसरी लड़ाई का कोई एक परिणाम लिखें।

उत्तर-

  1. पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 ई० को हुई।
  2. मराठों तथा अब्दाली।
  3. विश्वास राव पेशवा बालाजी बाजी राव का पुत्र था।
  4. सदाशिव राव भाऊ पानीपत की तीसरी लड़ाई के समय मराठों का सेनापति था।
  5. इस लड़ाई में मराठों का भारी जान-माल का नुकसान हुआ।

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4
अहमद शाह अब्दाली ने बिना किसी रुकावट के लाहौर पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् वह जंडियाला की ओर बढ़ा। वहाँ पहुँचकर उसे समाचार मिला कि सिख वहाँ से जा चुके हैं और इस समय वे मलेरकोटला के निकट स्थित गाँव कूप में एकत्रित हैं। इसलिए वह बड़ी तेजी से मलेरकोटला की तरफ बढ़ा। उसने सरहिंद के सूबेदार जैन खाँ को अपनी फ़ौजों सहित वहाँ पहुँचने का आदेश दिया। इस संयुक्त फ़ौज ने 5 फरवरी, 1762 ई० को गाँव कूप में अचानक सिखों पर आक्रमण कर दिया। सिख उस समय अपने परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर ले जा रहे थे। उस समय उनके शस्त्र तथा भोजन सामग्री गरमा गाँव जो वहाँ से 6 किलोमीटर दूर था, वहाँ पड़ी हुई थी। सिखों ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को चारों ओर से सुरक्षा घेरे में लेकर अब्दाली के सैनिकों से मुकाबला करना शुरू किया, परंतु सिखों के पास शस्त्रों की कमी होने के कारण वे अधिक समय तक उसका मुकाबला न कर सके । इस युद्ध में सिखों की भारी जन हानि हुई। इस युद्ध में 25,000 से 30,000 सिख शहीद हो गए जिसमें स्त्रियाँ, बच्चे और वृद्ध शामिल थे।

  1. बड़ा घल्लूघारा कब तथा कहाँ घटित हुआ ?
  2. बड़े घल्लूघारा के लिए कौन जिम्मेवार था ?
  3. बड़े घल्लूघारा के समय सरहिंद का सूबेदार कौन था ?
  4. बड़े घल्लूघारा में सिखों के अत्यधिक नुकसान का क्या कारण था ?
  5. बड़े घल्लूघारे में सिखों की भारी ……….. हानि हुई।

उत्तर-

  1. बड़ा घल्लूघारा 5 फरवरी, 1762 ई० को कूप गाँव में घटित हुआ।
  2. बड़े घल्लूघारा के लिए अहमद शाह अब्दाली जिम्मेवार था।
  3. बड़े घल्लूघारा के समय सरहिंद का सूबेदार जैन खाँ था।
  4. सिखों के पास शस्त्रों की बहुत कमी थी।
  5. जन।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules.

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. डबल्ज़ खिलाड़ियों के लिए कोर्ट का = 40′ × 20′, 13.40 × 6.10 मीटर आकार
  2. सिंगल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार = 40′ × 17′, 13.40 × 5.18 मीटर
  3. जाल की चौड़ाई = 2′ × 6″
  4. जाल की केन्द्र से पृथ्वी से ऊंचाई = 5′, 1.52 मीटर
  5. पोलो से जाल की ऊंचाई = 5′, 1″, 1.55 मीटर
  6. शटल के परों की गिनती = 16
  7. शटल के परों की लम्बाई = 21/2″ से 33/4″, 62 से 70 मि० मी०
  8. डबल्ज़ खेल में अंक = 21
  9. स्त्रियों के सिंगल खेल के अंक = 21
  10. किनारों की गैलरी का आकार = 1.6″ 45 सी० मी०
  11. पिछली गैलरी का आकार = 2′ 6″, 75 सै० मी०
  12. रैकट का भार और लम्बाई = 85 से 140 ग्राम, लम्बाई 27″, 686 मि०मी०
  13. अधिकारी = रैफ़री एक, अम्पायर एक, सर्विस अम्पायर एक, लाइनमैन 10
  14. सैटों की संख्या = तीन
  15. रैकेट की लम्बाई = 27″ अथवा 80 मि०मी०
  16. फ्रेम की लम्बाई = 11″ या 270 मि०मी०
  17. फ्रेम की चौड़ाई = 9″

बैडमिन्टन खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Badminton Game)

  1. बैडमिन्टन खेल दो प्रकार की होती है-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल में एक खेलने वाला तथा एक अतिरिक्त खिलाड़ी होता है। डबल्ज़ में चार खिलाड़ी, दो खेलने वाले तथा दो स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. सिंगल्ज़ खेल के लिए बैडमिन्टन कोर्ट का आकार 13.40 मीटर × 5.18 मीटर (44′. × 17) होता है तथा डबल्ज़ के लिए 13.40 मीटर × 6.10 मीटर (44.20)
  3. टॉस जीतने वाला इस बात का फैसला करता है कि उसने पहले सर्विस करनी है या साइड लेनी है।
  4. पुरुषों का डबल्ज़ खेल भी 21 अंकों का होगा।
  5. लड़कियों के लिए सिंगल मैच के 11 प्वाईंट का होता है।
  6. सर्विस तब तक नहीं की जा सकती जब तक विरोधी खिलाड़ी पूरी तरह तैयार न हो।
  7. सिंगल्ज़ खेल में 5 प्वाईंट हो जाने पर दोनों खिलाड़ी आधी कोर्ट बदल लेंगे।
  8. बैडमिन्टन खेल का समय नहीं होता बल्कि इसमें बैस्ट आफ थ्री गेम्ज़ होती हैं। जो टीम तीन में से दो गेमें जीत जाती है उसे विजयी घोषित किया जाता है।
  9. खेल में व्हिसल का प्रयोग नहीं किया जाता।
  10. इस खेल को प्राय: Indoor Stadium में ही खेला जाता है।

बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन कोर्ट, जाल, बल्लियां और शटल काक के विषय में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेलें होती हैं-सिंगल्ज़ और डबल्ज। इन दोनों खेलों के लिए बैडमिन्टन कोर्ट के नाप को चित्र में दिखाई \(1 \frac{1}{2}\) (4 सम) मोटी सफ़ेद या लाल रेखाओं से स्पष्ट किया जाएगा।
डबल्ज़ के लिए कोर्ट का आकार 44 फुट × 20 फुट तथा सिंगल्ज़ के लिए 44 फुट × 17 फुट होगा। नैट के दोनों ओर \(6 \frac{1}{2}\) फुट शर्ट सर्विस रेखा खींची जाएगी। कोर्ट को दो समान भागों में बांटने के लिए साइड लाइन के समानान्तर एक रेखा खींची जाएगी। कोर्ट का बायां आधा भाग बाईं सर्विस कोर्ट तथा दायां आधा भाग दाई सर्विस कोर्ट कहलाएगा। पीछे की गैलरी \(2 \frac{1}{2}\) फुट तथा साइड गैलरी \(1 \frac{1}{2}\) फुट होगी।

बल्लियां (Poles)-नैट (जाल) को तान कर रखने के लिए दो बल्लियां लगाई जाएंगी। ये बल्लियां, फर्श से 5 फुट 1 इंच (1.55 मी०) ऊंची होंगी।
जाल (Net)—जाल बढ़िया रंगीन डोरी का बना होगा। इसकी जाली \(\frac{3}{4}\)” से 1″ होगी। इसकी चौड़ाई 2 फुट 6 इंच (0.76 मीटर) होनी चाहिए। इसका ऊपरी भाग केन्द्र में भूमि से 5 फुट तथा बल्लियों से 5 फुट 1 इंच ऊंचा होना चाहिए। जाल के दोनों सिरों पर 3′ दोहरी टेप होनी चाहिए जिनके बीच डोरियां हों जो जाल को बल्लियों पर कस कर ताने रखने के काम लाई जा सकें।।

चिड़ियां (शटल कॉक) (Shuttle Cock)-चिड़िया का वज़न 73 ग्रेन (4.73 ग्राम) से 85 ग्रेन (5.50 ग्राम) हो। इसमें 1″ से \(1 \frac{1}{2}\)व्यास वाली कार्क में 14 से 16 तक कस कर पर लगे हुए हों। परों की लम्बाई \(2 \frac{1}{2}\) से \(2 \frac{3}{4}\) हो तथा ये \(2 \frac{1}{8}\) से \(2 \frac{1}{2}\) फैले हुए हों। कार्क का व्यास \(1 \frac{1}{2}\) तक होता है।
BADMINTON COURT
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बैडमिन्टन (Badminton) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में खिलाड़ी, स्कोर और दिशाएं बदलना से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ी (Players) डबल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में दो खिलाड़ी तथा सिंगल्ज़ खेल में प्रत्येक पक्ष में एक खिलाड़ी होगा। खेल के शुरू में जो टीम पहले सर्विस करेगी, उस टीम की साइड को इन साइड (Inside) और विरोधी टीम की साइड को आऊट साइड (Outside) कहेंगे।
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टॉस (Toss) खेल प्रारम्भ होने से पहले दोनों पक्षों द्वारा टॉस किया जाएगा। टॉस जीतने वाला पक्ष निम्नलिखित का चुनाव करेगा—

  1. पहले सर्विस करना या
  2. पहले सर्विस न करना या
  3. दिशा का चुनाव करना।

शेष बातों का चुनाव टॉस हारने वाला पक्ष करेगा।
स्कोर (Score)-(1) पुरुषों के डबल्ज़ और सिंगल्ज़ के लिए 15 अंकों की खेल होती है। (2) महिलाओं के खेल में 11 अंक होते है। पुरुषों के खेल में स्कोर 14-14 बराबर होने पर पहले 14 अंक बनाने वाला पक्ष 3 अंक पर खेल स्थिर (सैट) कर लेता है। 14 अंकों पर स्थिर होने पर 17 अंक पहले लेने वाला विजयी होता है। महिलाओं के खेल में 10 अंक बराबर होने पर 12 अंक की खेल होती है। जिसने पहले 10 अंक बनाए हों वह 12 अंकों की ऑपशन ले सकता है। जहां पर लड़के और लडकियां बैडमिंटन फैडरेशन के (I.B.E.) अनुसार लागू किए गए हैं।

दिशाएं बदलना (Changing Sides)-पूर्व निर्णय के अनुसार विपक्षी दल तीन खेल खेलेंगे। तीनों में से दो खेल जीतने वाला विजेता कहलाएगा। खिलाड़ी दूसरा खेल आरम्भ होने पर दिशाएं बदलेंगे। यदि खेल के निर्णय के लिए तीसरा खेल आवश्यक हो तो उसमें भी दिशाएं बदली जाएंगी।

प्रश्न-बैडमिन्टन खेल में डबल्ज़ और सिंगल्ज़ खेल क्या होते हैं ?
उत्तर-डबल्ज़ खेल (Doubles)-(1) पहले सर्विस करने वाले पक्ष का निर्णय होने पर उस पक्ष के दायें अर्द्ध-क्षेत्र का खिलाड़ी शुरू करेगा। वह दायें अर्द्ध-क्षेत्र के विपक्षी को सर्विस देगा। यदि विपक्षी खिलाड़ी चिड़िया (शटल कॉक) के भूमि से स्पर्श करने से पहले उसे वापिस कर दे तो खेल आरम्भ करने वाला खिलाड़ी फिर उसे वापिस करेगा। इस प्रकार खेल तब तक जारी रहेगा जब तक कि फाऊल न हो जाए या चिड़िया खेल में न रहे। सर्विस वापिस न होने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने अथवा विपक्षी द्वारा फाऊल होने की दशा में सर्विस करने वाला एक अंक जीत जाएगा। सर्विस करने वाले पक्ष के खिलाड़ी अपना अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे। अब सर्विस करने वाला बायें अर्द्धक में रहेगा तथा सामने की ओर बायें अर्द्धक का खिलाड़ी सर्विस प्राप्त करेगा।
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(2) प्रत्येक पारी के आरम्भ में प्रत्येक टीम पहली सर्विस दायें अर्द्ध-क्षेत्र से करेगी।
सर्विस सम्बन्धी अन्य नियम (Some other rules regarding Service)—

  1. सर्विस वही खिलाड़ी प्राप्त करेगा जिसे सर्विस दी जाती है। यदि चिड़िया दूसरे खिलाड़ी को स्पर्श कर जाए या वह उसे मार दे तो सर्विस करने वाले को अंक मिल जाता है। एक खिलाड़ी खेल में दो बार सर्विस प्राप्त नहीं कर सकता।
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  2. पहली पारी में खेल आरम्भ करने वाला केवल एक ही खिलाड़ी सर्विस करेगा। आगे की पारियों में प्रत्येक खिलाड़ी सर्विस कर सकता है। खेल जीतने वाला पक्ष ही पहले सर्विस करेगा। जीते हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी सर्विस कर सकता है और हारे हुए पक्ष का कोई भी खिलाड़ी इसे प्राप्त कर सकता है।
  3. यदि कोई खिलाड़ी अपनी बारी के बिना या ग़लत अर्द्ध-क्षेत्र से सर्विस कर दे और अंक जीत जाए तो वह सर्विस ‘लैट’ (LET) कहलाएगी, परन्तु इस ‘लैट’ की मांग दूसरी सर्विस शुरू होने से पहले की जानी चाहिए।

सिंगल्ज खेल के लिए (For Singles) ऊपर के सभी नियम सिंगल्ज़ खेल में लागू होंगे परन्तु—

  1. खिलाड़ी उसी दिशा में दायें अर्द्ध-क्षेत्र में सर्विस करेगा या प्राप्त करेगा जब स्कोर शून्य (0) है या खेल में सम (Even) अंक प्राप्त किए गए हों। अंक विषय (Odd) होने की दशा में सर्विस सदैव बायें अर्द्ध-क्षेत्र की ओर से प्राप्त की जाएगी।
  2. अंक बन जाने पर दोनों खिलाड़ी बारी-बारी से अर्द्ध-क्षेत्र बदलेंगे।

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प्रश्न
बैडमिन्टन खेल में त्रुटियों का वर्णन करें।
उत्तर-
त्रुटियां (Faults) खेल रहे पक्ष के खिलाड़ी द्वारा त्रुटि होने पर उस पक्ष का सर्विस करने वाला खिलाड़ी आऊट हो जाएगा। यदि विपक्षी त्रुटि करता है तो खेल रहे पक्ष को एक अंक प्राप्त होगा।
त्रुटि मानी जाएगी—

  1. यदि सर्विस करते समय चिड़िया खिलाड़ी की कमर से ऊंची हो या रैकट का अगला सिरा चिड़िया को मारते समय सर्विस करने वाले रैकट वाले हाथ से ऊंचा उठा हो।
  2. यदि सर्विस करते समय खिलाड़ी के पांव ठीक अर्द्ध-क्षेत्र में न हों।
  3. यदि खिलाड़ी सर्विस करने से पहले या सर्विस करते समय जानबूझ कर विपक्ष के रास्ते में रुकावट डाले।
  4. यदि सर्विस करते समय, खेल के समय चिड़िया सीमाओं से बाहर निकल जाए, जाल के बीच या नीचे से निकल जाए या जाल न पार कर सके या किसी खिलाड़ी के किसी कपड़े या छाती को छू जाए।
  5. यदि खेल के समय जाल पर जाने पर पहले ही मारने वाली की ओर चिड़िया टकरा जाए।
  6. जब चिड़िया खेल में हो और खिलाड़ी रैकट शरीर या कपड़ों से जाल या बल्लियों को छू दे।
  7.  चिड़िया रैकट पर रुक जाए, कोई खिलाड़ी चिड़िया को लगातार दो बार मार दे या पहले वह और बाद में उसका साथी बारी-बारी लगातार मार दे।
  8. विपक्षी तैयार माना जाएगा यदि खेल के समय वह चिड़िया को वापिस करता है या मारने की चेष्टा करता है भले ही वह क्षेत्र की सीमा के बाहर खड़ा हो या भीतर।
  9. यदि कोई खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी की खेल में रुकावट डालता है।

साधारण नियम
(General Rules)

  1. सर्विस करने वाला या सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी अपने-अपने अर्द्ध-क्षेत्रों की सीमाओं में खड़े होंगे तथा इनके दोनों पांवों के कुछ अंग सर्विस प्राप्त होने तक भूमि से टिके रहेंगे।
  2. सर्विस उस समय तक नहीं करनी चाहिए जब तक कि विपक्षी तैयार नहीं होता, परन्तु यदि विपक्षी सर्विस प्राप्त करने की चेष्टा करता है तो उसे तैयार माना जाएगा।

खेल में आराम-यदि दोनों टीमें सहमत हों तो दूसरी तथा तीसरी खेल के मध्य में पांच मिनट का आराम ले सकती हैं।
फाऊल
(Foul)
अधिकारी फाऊल खेलने पर अथवा खेल में किसी प्रकार की अनुचित कारवाई के लिए खिलाडियों को दो प्रकार के कार्ड दिखा सकता है, जो इस प्रकार हैं—
पीला कार्ड (Yellow Card)- यह कार्ड खिलाड़ी को उसके अनुचित व्यवहार के लिए दिखाया जाता है।
लाल कार्ड (Red Card)- यह कार्ड मैच अथवा टूर्नामैंट से बाहर निकालने के लिए दिखाया जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Practical बैडमिन्टन (Badminton)

प्रश्न 1.
बैडमिन्टन में कुल कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो प्रकार की खेल होती है जैसे-सिंगल्ज़ और डबल्ज़। सिंगल्ज़ में 2 खिलाड़ी होते हैं जिनमें एक खिलाड़ी खेलता है और एक खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitute) होता है। डबल्ज में तीन खिलाड़ी होते हैं जिनमें दो खेलते हैं और एक अतिरिक्त (Substitute) होता है।

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प्रश्न 2.
बैडमिन्टन कोर्ट की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन में दो तरह के कोर्ट होते हैं—

  1. सिंगल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 17 फुट होती है।
  2. डबल्ज़ में लम्बाई 44 फुट और चौड़ाई 20 फुट होती है।

प्रश्न 3.
खेल किस प्रकार शुरू होता है ?
उत्तर-
टॉस जीतने वाला यह फैसला करता है कि सर्विस करनी है या साइड लेनी है।

प्रश्न 4.
खेल कितने अंकों की होती है ?
उत्तर-
बैडमिन्टन खेल लड़कों की 15 और लड़कियों की 11 अंकों की होती

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प्रश्न 5.
बैडमिन्टन कोर्ट को हम कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
इसको हम दो भागों में बांट सकते हैं-दाईं कोर्ट और बाई कोर्ट।

प्रश्न 6.
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की गैलरी की लम्बाई-चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
बैडमिन्टन कोर्ट में साइडों की लम्बाई 2/2 फुट और चौड़ाई 19 फुट होती है।

प्रश्न 7.
जाल की लम्बाई बताओ।
उत्तर-
जाल की लम्बाई इतनी हो कि सीमा रेखाओं के दोनों ओर फैल जाए। उसकी चौड़ाई 2 फुट-6 इन्च हो और स्तम्भों की तरफ से इसकी ऊंचाई 5 फुट 1 इन्च हो और मध्य में इसकी ऊंचाई 5 फुट हो।

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प्रश्न 8.
शटल का भार बताओ।
उत्तर-
शटल का भार 73 ग्रेन से 85 ग्रेन तक होता है।

प्रश्न 9.
डबल्ज़ खेल के मुख्य नियम बताओ।
उत्तर-

  1. इसमें कुल चार खिलाड़ी खेल सकते हैं। दो-दो की टीम होती है। टॉस के पश्चात् टीमें अपनी-अपनी कोर्ट सम्भाल कर सर्विस शुरू करती हैं।
  2. इसमें लड़कों के लिए 15 प्वाईंट और लड़कियों के 11 प्वाईंट होते हैं।
  3. यदि 15 प्वाईंट की खेल हो तो 14-14 बराबर होने पर यह गेम 3 प्वाईंट और आगे चल सकती है।

प्रश्न 10.
सिंगल खेल के क्या नियम हैं ?
उत्तर-
इस खेल के लिए डबल के सारे नियम लागू होते हैं। केवल निम्नलिखित बातें ध्यान योग्य हैं—

  1. जब सर्विस करने वाले का प्वाईंट Even हो तो सर्विस हमेशा दाईं कोर्ट में की जाती है या प्राप्त की जाती है। यदि Odd हो तो बाईं कोर्ट में से सर्विस करनी और प्राप्त करनी चाहिए।
  2. एक प्वाईंट हो जाने पर खिलाड़ी कोर्ट बदल लेते हैं।

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प्रश्न 11.
बैडमिन्टन खेल की मुख्य त्रुटियों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. यदि सर्विस ओवर हैड हो अर्थात् सर्विस करते समय शटल खिलाड़ी की कमर से ऊपर हो या उसका हाथ रैकट वाले हाथ से ऊपर हो।
  2. यदि सर्विस करते समय शटल गलत क्षेत्र में जाकर गिरे भाव वह सर्विस करने वाले के सामने वाले आधे भाग में जाकर गिरे या लम्बी सर्विस रेखा से एक तरफ जा गिरे।
  3. सर्विस करते समय खिलाड़ी के पैर ठीक आधे क्षेत्र में न हो या जब तक सर्विस न हो चुके, सर्विस प्राप्त करने वाले खिलाड़ी के पैर अपने अर्द्धक्षेत्र में न हों।
  4. यदि खेल के समय दोनों खिलाड़ी एक समय ही शटल पर चोट करें।
  5. यदि खेल के मध्य खिलाड़ी का रैकट, कपड़ा आदि नैट को छू जाएं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न-
जीते हुए प्रदेशों की व्यवस्था के सन्दर्भ में महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति के उत्थान और विजयों की चर्चा करें।
उत्तर-
1792 ई० में महाराजा रणजीत सिंह के पिता महा सिंह की मृत्यु हो गई। महाराजा रणजीत सिंह उस समय अवयस्क था। इसीलिए शुकरचकिया मिसल की बागडोर 1796 ई० तक उसकी माता राज कौर तथा दीवान लखपत राय के हाथों में रही। 1796 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की सास सदा कौर ने भी इस मिसल के शासन प्रबन्ध में महत्त्वपूर्ण भाग लिया। परन्तु 1797 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने शासन का सारा कार्यभार स्वयं सम्भाल लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने जिस समय शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली तब उसके अधीन गुजरांवाला, वज़ीराबाद, पिंड दादन खां और कुछ अन्य गांव थे। परन्तु कुछ ही समय में उसने लगभग सारे पंजाब पर अधिकार कर लिया। उसकी विजयों का वर्णन इस प्रकार है

शक्ति का उत्थान एवं विजयें-

1. लाहोर तथा सिक्ख-मुस्लिम संघ पर विजय-महाराजा रणजीत सिंह ने सबसे पहले लाहौर पर विजय प्राप्त की। उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सातारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने शीघ्र ही विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा और उसने लाहौर पर अधिकार कर लिया। महाराजा रणजीत सिंह की इस विजय को देखकर आस-पास के सिक्ख तथा मुस्लिम शासक भयभीत हो उठे। अतः उन्होंने संगठित होकर महाराजा रणजीत सिंह से लड़ने का निश्चय किया और उसके विरुद्ध एक शक्तिशाली संघ बना लिया। महाराजा रणजीत सिंह अपने इन शत्रुओं का सामना करने के लिए लाहौर से आगे बढ़ा। 1803 ई० में भसीन नामक स्थान पर युद्ध होना था परन्तु शत्रु सेनाओं के सेनापति गुलाब सिंह भंगी की मृत्यु हो जाने से युद्ध न हुआ और बिना किसी खून खराबे के महाराजा रणजीत सिंह विजयी रहा।

2. सिक्ख मिसलें, कसूर, कांगड़ा और मुल्तान पर विजय-अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथों में थी। अवसर पाकर महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। माई सुक्खां उसका अधिक समय तक सामना न कर सकी। इसी प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर को भी अपने राज्य में मिला लिया। महाराजा रणजीत सिंह ने अब स्वतन्त्र सिक्ख मिसलों की ओर अपना ध्यान दिया। उसने मिसलों के नेताओं को युद्ध में पराजित करके उनकी मिसलों पर अधिकार कर लिया। 1807 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर के शासक कुतुबुद्दीन को हराकर इस प्रदेश पर भी अपना अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् उसने कांगड़ा के राजा की गोरखों के विरुद्ध सहायता करके उससे काँगड़ा का प्रदेश प्राप्त कर लिया। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सेनापति मिसर दीवान चन्द तथा अपने बड़े पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक मुल्तान पर आक्रमण करने के लिए भेजे ! वहां घमासान युद्ध हुआ जिसमें मुल्तान का नवाब मारा गया और मुल्तान पर सिक्खों का अधिकार हो गया।

3. कश्मीर, डेरा गाज़ी खां, डेरा इस्माइल खां, मानकेरा तथा पेशावर पर विजय-1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक सेना कश्मीर विजय के लिए भेजी। कश्मीर का गवर्नर जाबर खाँ सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा। परन्तु सुपान नामक स्थान पर उसकी करारी हार हुई। 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा गाजी खां पर विजय प्राप्त करने के लिए जमांदार खुशहाल सिंह के नेतृत्व में सेना भेजी। उसने वहाँ के शासक जमान खां को पराजित करके डेरा गाजी खां पर अपना अधिकार कर लिया। 1821 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा इस्माइल खां तथा मानकेरा के नवाब अहमद खां के विरुद्ध चढ़ाई की! अहमद खां को महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता स्वीकार करनी पड़ी। 1834 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर पर आक्रमण किया परन्तु उसे भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। आखिर पेशावर जीत लिया गया और सिक्ख राज्य में मिला लिया गया। महाराजा रणजीत सिंह ने हरि सिंह नलवा को पेशावर का गवर्नर नियुक्त किया। इस प्रकार महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक विजयें प्राप्त करके अपनी छोटी-सी मिस्ल को एक विशाल राज्य का रूप दे दिया। उसका राज्य उत्तर में लद्दाख तथा उत्तर-पश्चिम में सुलेमान को पहाड़ियों तक विस्तृत था। दक्षिण-पूर्व में उसके राज्य की सीमाएं सतलुज नदी को छूती थीं। दक्षिण-पश्चिम में शिकारपुर उसके राज्य की सीमा थी।

विजित प्रदेशों की व्यवस्था-

1. विजित प्रदेशों के प्रति अच्छी नीति-महाराजा रणजीत सिंह ने विजित प्रदेशों के प्रति लगभग एक-जैसी नीति अपनाई। कुछ प्रदेशों के सिक्ख, मुसलमान तथा हिन्दू शासकों को केवल महाराजा की अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा गया और उन्हें अपने-अपने प्रदेश का शासक बना रहने दिया गया। ये महाराजा को वार्षिक कर और आवश्यकता पड़ने पर सैनिक सहायता देते थे। जिन शासकों के राज्य छीन लिए गए उनमें से अनेक को यह छूट दी गई कि वे महाराज की नौकरी करके जागीरें प्राप्त कर लें। बहुत-से शासकों ने महाराजा की इस शर्त को स्वीकार कर लिया। जिन शासकों ने यह शर्त स्वकर न की उन्हें भी उनकी स्थिति के अनुसार छोटी-छोटी जागीरें दे दी गईं। यह ढंग महाराजा रणजीत सिंह ने सभी शासकों के प्रति अपनाया चाहे कोई सिक्ख था, हिन्दू था या मुसलमान। इस प्रकार महाराजा को विजित प्रदेशों में शान्ति बनाए रखने में काफ़ी सहायता मिली। इन प्रदेशों से महाराजा को अनेक योग्य व्यक्तियों की सेवाएं प्राप्त हुईं।

2. शक्ति का प्रयोग-कुछ विजित प्रदेशों में महाराजा रणजीत सिंह ने शक्ति का प्रयोग किया। पहले तो यह प्रयास किया गया कि स्थानीय जमींदार महाराजा की अधीनता स्वीकार करके अपने-अपने प्रदेशों का शासन प्रबन्ध चलाते रहें। कुछ ज़मींदारों ने तो इसे स्वीकार कर लिया गया। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या उनके नेताओं ने विरोध न छोड़ा वहां कठोरता से काम लिया गया। ऐसे प्रदेशों में किले बना कर सैनिक रख दिये गए। सरकारी कामों के लिए स्थानीय कर्मचारी नियुक्त किए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों में लगभग पहले वाला शासन प्रबन्ध ही चलता रहा। लगान निर्धारित करने और इसे वसूल करने का ढंग भी पहले जैसा ही रहा।

3. सुदृढ़ सेना का संगठन-महाराजा रणजीत सिंह को शक्तिशाली सेना के महत्त्व का पूरा ज्ञान था। वह जानता र क सेना को शक्तिशाली बनाए बिना राज्य को सुदृढ़ बनाना असम्भव है। इसलिए महाराजा ने अपनी सेना की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेज़ कम्पनी से भागे हुए सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर लिया। सैनिकों को यूरोपियन ढंग से संगठित करने के लिए सेना में यूरोपीय अफसरों को भी नौकरी दी गई। उनकी सहायता से पैदल तथा घुड़सवार सेना और तोपखाने को मनबूत बनाया गया। पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी नामक इकाइयां बनाई गई। इसके अतिक्ति महाराजा प्रतिदिन अपनी सेना का स्वयं निरीक्षण करता था। उसने सेना में हुलिया और दाग की प्रथा भी अपनाई ताकि सैनिक अधिकारियों तथा जागीरदारों के अधीन निश्चित संख्या में सैनिक तथा घोड़े प्रशिक्षण पाते रहें। सेना को अच्छे शस्त्र जुटाने के लिए कुछ कारखाने स्थापित किए गए जिनमें तोपें, बन्दूकें तथा अन्य हथियार बनाए जाते थे। महाराजा की इस सुदृढ़ सेना से साम्राज्य भी सुदृढ़ हुआ।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
(i) रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ?
(ii) उसके पिता का नाम क्या था?
उत्तर-
(i) रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ।
(ii) उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।

प्रश्न 2.
महताब कौर कौन थी ?
उत्तर-
महताब कौर रणजीत सिंह की पत्नी थी।

प्रश्न 3.
‘तिकड़ी की सरपरस्ती’ का काल किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
यह वह काल था (1792 ई० से 1797 ई० तक) जब शुकरचकिया मिसल की बागडोर रणजीत सिंह की सास सदा कौर, माता राज कौर तथा दीवान लखपतराय के हाथों में रही।

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प्रश्न 4.
लाहौर के नागरिकों ने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण क्यों दिया ?
उत्तर-
क्योंकि लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे।

प्रश्न 5.
भसीन के युद्ध में रणजीत सिंह के खिलाफ कौन-कौन से सरदार थे ?
उत्तर-
भसीन की लड़ाई में रणजीत सिंह के विरुद्ध जस्सा सिंह रामगढ़िया, गुलाब सिंह भंगी, साहब सिंह भंगी तथा जोध सिंह नामक सरदार थे।

प्रश्न 6.
अमृतसर तथा लोहगढ़ पर रणजीत सिंह ने क्यों आक्रमण किया ?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन चुका था तथा लोहगढ़ का अपना विशेष सैनिक महत्त्व था।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) महाराजा रणजीत सिंह ने ………… ई० में अपनी सास …………. की सहायता से लाहौर को जीता।
(ii) महाराजा रणजीत सिंह ने 1809 ई० में ………… के साथ अमृतसर की संधि की।
(iii) सरदार खुशहाल सिंह महाराजा रणजीत सिंह के अधीन …………के पद पर आसीन था।
(iv) महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु ………….. ई० में हुई।
(v) ………….. ई० में पंजाब/लाहौर राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया गया।
उत्तर-
(i) 1799, सदा कौर
(ii) अंग्रेजों
(iii) ड्योढ़ीदार
(iv) 1839
(v) 1849.

3. सही गलत कथन

(i) अमृतसर की संधि (1809) के समय अंग्रेज़ों का वक़ील चार्ल्स मेटकॉफ था। –(✓)
(ii) 1831 में महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेज़ गवर्नर लार्ड डल्हौज़ी से भेंट हुई। –(✗)
(iii) 1830 ई० में अंग्रेजों ने सिंध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के विस्तार में सहायता दी। –(✗)
(iv) महाराजा रणजीत सिंह ने सभी धर्मों के लोगों को संरक्षण दिया। –(✓)
(v) महाराजा रणजीत सिंह के अधीन कानूनगो तथा मुकद्दम कारदार की सहायता करते थे। –(✓)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
महाराजा रणजीत सिंह तथा लार्ड विलियम बैंटिंक के बीच भेंट (1831 ई०) हुई ?
(A) रोपड़ में
(B) अमृतसर में
(C) लाहौर में
(D) सरहिंद में।
उत्तर-
(A) रोपड़ में

प्रश्न (ii)
महाराजा रणजीत सिंह के कहां के शासक के साथ राजनीतिक संबंध नहीं थे ?
(A) नेपाल
(B) बीजापुर
(C) राजस्थान
(D) कश्मीर।
उत्तर-
(B) बीजापुर

प्रश्न (iii)
महाराजा रणजीत सिंह के अधीन निम्न मुग़ल प्रांत का बहुत-सा भाग शामिल था
(A) कश्मीर
(B) लाहौर
(C) मुलतान
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न (iv)
महाराजा रणजीत सिंह का विदेश मंत्री था
(A) दीवान मिसर चंद
(B) हरि सिंह नलवा
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन
(D) शेर सिंह
उत्तर-
(C) फ़कीर अजीजुद्दीन

प्रश्न (v)
लाहौर राज्य का अंतिम सिख शासक था
(A) खड़क सिंह
(B) दलीप सिंह
(C) शेर सिंह
(D) जोरावर सिंह।
उत्तर-
(B) दलीप सिंह

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में स्रोतों के चार प्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की जानकारी के बारे में चार स्रोत हैं : सोहन लाल सूरी का उमदा-उत्-तवारीख, गणेशदास वढेरा की चार बागे पंजाब, यूरोपीय यात्रियों के वृत्तान्त तथा खालसा दरबार के रिकार्ड।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार तथा उसकी कृति का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दरबारी इतिहासकार का नाम सोहन लाल सूरी था। उसकी कृति का नाम उमदा-उत्तवारीख था।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ तथा वह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का जन्म 2 नवम्बर, 1780 ई० को हुआ। वह सरदार महा सिंह का पुत्र था।

प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह किस वर्ष गद्दी पर बैठा और उस समय उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह 1792 ई० में गद्दी पर बैठा। उस समय उसकी राजधानी गुजरांवाला थी।

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प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में कौन-से अफ़गान शासक ने किन वर्षों के बीच में पंजाब पर आक्रमण किए ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्यकाल के आरम्भ में जमानशाह ने पंजाब पर 1796 से 1798 के बीच में आक्रमण किए।

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय कब और किसकी सहायता से प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर की विजय 7 जुलाई, 1799 ई० को रानी सदा कौर की सहायता से प्राप्त की।

प्रश्न 7.
भसीन में किन दो शासकों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया तथा महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर किनसे जीता ?
उत्तर-
भसीन में भंगी शासकों तथा कसूर के पठानों ने महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध गठजोड़ किया। महाराजा रणजीत सिंह ने भंगियों से अमृतसर जीता।

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प्रश्न 8.
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने किन चार सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
अमृतसर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात के साहिब सिंह भंगी, चिनियोट के जस्सा सिंह दूल्लू, अकालगढ़ के दल सिंह तथा स्यालकोट के जीवन सिंह के इलाके जीते।

प्रश्न 9.
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महासजा रणजीत सिंह ने किन तीन सिक्ख शासकों के इलाके जीते ?
उत्तर-
1812 ई० से पहले ब्यास के उस पार महाराजा रणजीत सिंह ने बुद्ध सिंह से जालन्धर का इलाका, बघेल सिंह से हरियाणा एवं होशियारपुर का इलाका तथा तारा सिंह डल्लेवालिया से राहों का इलाका जीता।

प्रश्न 10.
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन सिक्ख शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
आरम्भिक वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह के सहयोगी तीन शासक जोध सिंह रामगढ़िया, फतेह सिंह आहलूवालिया तथा रानी सदा कौर थे।

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प्रश्न 11.
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों तथा सदा कौर के इलाके किन वर्षों में जीते ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने रामगढ़ियों का इलाका 1815 में तथा सदा कौर का इलाका 1821 ई० में जीता।

प्रश्न 12.
फतेह सिंह आहलूवालिया किस वर्ष में कपूरथला छोड़ कर सतलुज के पार चला गया तथा उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता कब स्वीकार कर ली ?
उत्तर-
1826 ई० में फतेह सिंह आहलूवालिया कपूरथला छोड़कर सतलुज के पार चला गया। उसने महाराजा रणजीत सिंह की अधीनता 1827 ई० में स्वीकार कर ली।

प्रश्न 13.
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार कौन-से चार इलाकों पर अधिकार कर लिया ?
उत्तर-
1806-07 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पार धर्मकोट, बधणी, जगरावां और नारायणगढ़ नामक चार इलाकों पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 14.
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने जिन सिक्ख राज्यों से खिराज लिया उनमें से चार के नाम बताएं।
उत्तर-
1806 और 1808 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने पटियाला, नाभा, जींद तथा कलसिया नामक राज्यों से खिराज लिया।

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ सन्धि कब और कहां की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ 1809 ई० में अमृतसर में सन्धि की।

प्रश्न 16.
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक, मुल्तान, कश्मीर तथा पेशावर की विजयें किन वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अटक 1813, मुल्तान 1818, कश्मीर 1819 और पेशावर 1823 ई० में विजय किया।

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प्रश्न 17.
सिन्ध नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त कौन-से चार इलाकों पर महाराजा रणजीत सिंह का कब्ज़ा हो गया ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने सिन्धु नदी के दूसरी ओर पेशावर के अतिरिक्त झंग, साहीवाल, खुशाब तथा पिंडी भट्टियां के चार इलाकों पर अधिकार किया।

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने लगभग कितनी पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया तथा उनमें से किन्हीं चार के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 20 से भी अधिक पहाड़ी रियासतों पर अधिकार कर लिया। इनमें से चार इलाकों के नाम कांगड़ा, कुल्लू, जम्मू तथा राजौरी थे।

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कौन-से चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लाहौर, कश्मीर, मुल्तान तथा काबुल नामक चार मुग़ल प्रान्तों का बहुत-सा भाग शामिल था।

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प्रश्न 20.
यूरोपीय अफसरों की सहायता से महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सेना के कौन-से तीन अंगों को सशक्त । बनाया ?
उत्तर-
उसने यूरोपीय अफसरों की सहायता से सेना के पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना नामक अंगों को सशक्त बनाया।

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन, रेजीमैंट तथा बैटरी सेना के कौन-से अंगों से स’ म्बन्धित थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में बटालियन पैदल, रेजीमैंट घुड़सवारों तथा बैटरी तोपखाना नाम .क अंगों से सम्बन्धित थी।

प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पदों के नाम बताओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना में अफसरों के चार पद थे-कमांडेंट, एडजूटैंट (कुमेदान), मेजर और सूबेदार।

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प्रश्न 23.
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को किन दो रूपों में वेतन देता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अपनी सेना को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन देता था।

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर कौन-सो दो व्यक्ति रहे थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय प्रशासन में ड्योढ़ीदार के पद पर सरदार खुशहाल सिंह तथा सरदार ध्यान सिंह आसीन रहे।

प्रश्न 25.
मिसर बेलीराम तथा फकीर अजीजद्दीन कौन-से कार्य सम्भालते थे ?
उत्तर-
मिसर बेलीराम खजाने को तथा फकीर अजीजुद्दीन विदेशी मामलों को सम्भालते थे।

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प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के आठ सूबे थे-जालन्धर-दोआब, माझा, कांगड़ा, वजीराबाद, पिण्ड दादन खां, हज़ारा, पेशावर तथा मुल्तान।

प्रश्न 27.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम अथवा सूबेदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य के चार प्रसिद्ध नाज़िम दीवान सावनमल, सरदार लहणा सिंह मजीठिया, मिसर रूप लाल तथा कर्नल मीहा सिंह थे।

प्रश्न 28.
सूबे की छोटी प्रशासकीय इकाई के दो नाम क्या थे तथा इसके अधिकारी को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
सूबे की छोटी प्रशासनिक इकाई के दो नाम परगना तथा तालुका थे। इनके अधिकारी को कारदार कहते थे।

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प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में कुछ स्थानों पर तालुका थे। परन्तु गांवों के बीच अन्य दो इकाइयां कौन-सी थीं ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में गांवों के बीच तप्प तथा तोप नामक दो इकाइयां थीं।

प्रश्न 30.
कारदार की सहायता करने वाले दो स्थानीय अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
कारदार की सहायता कानूनगो तथा मुकद्दम करते थे।

प्रश्न 31.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में न्याय देने वाले दो विशेष अधिकारियों के नाम थे-काज़ी तथा अदालती।

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प्रश्न 32.
गांवों में समस्याओं को कौन-सी संस्था किस आधार पर हल करती थी ?
उत्तर-
गांवों में समस्याओं को पंचायत स्थानीय रिवाजों के आधार पर हल करती थी।

प्रश्न 33.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में जिन चार पृष्ठ भूमियों के लोग शामिल थे वे सिक्ख, क्षत्रिय, ब्राह्मण तथा राजपूत थे।

प्रश्न 34.
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसरों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के दो यूरोपीय अफसर अलारड तथा वेन्तूरा थे।

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प्रश्न 35.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन प्रमुख जागीरदारों के नाम सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल तथा राजा गुलाब सिंह थे।

प्रश्न 36.
शासक वर्ग के सदस्यों को वेतन किस रूप में दिया जाता था तथा वे किन-किन कार्यों में महाराजा की सहायता करते थे ?
उत्तर-
शासक वर्ग के सदस्यों को जागीरों तथा नकदी के रूप में वेतन मिलता था। वे शान्ति स्थापित करने, लगान वसूल करने तथा सेना तैयार रखने में महाराजा की सहायता करते थे।

प्रश्न 37.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कौन चुनते थे तथा कृषकों को कर्ज किन वस्तुओं के लिए दिया जाता था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य में लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। उन्हें बीज और औजार खरीदने के लिए ऋण दिया जाता था।

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प्रश्न 38.
महाराजा रणजीत सिंह से संरक्षण किन धर्मों के लोगों को तथा किस रूप में मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने हिन्दुओं, सिक्खों तथा मुसलमानों को संरक्षण दिया। वह इन धर्मों के धार्मिक स्थानों को लगान मुक्त भूमि दान में देता था।

प्रश्न 39.
महाराजा रणजीत सिंह के किन चार समकालीन शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के अंग्रेजों तथा अफ़गानिस्तान, नेपाल और राजस्थान के शासकों के साथ राजनीतिक सम्बन्ध थे।

प्रश्न 40.
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेजों का वकील कौन था ? इस सन्धि द्वारा किस क्षेत्र पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि के समय अंग्रेज़ों का वकील चार्ल्स मेटकॉफ था। इस सन्धि द्वारा अंग्रेज़ों का सतलुज पार के क्षेत्र पर अधिकार हो गया।

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प्रश्न 41.
महाराजा रणजीत सिंह कौन-से अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल से कब और कहाँ मिला ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक से 1831 में रोपड़ नामक स्थान पर मिला। .

प्रश्न 42.
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने किन दो इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका ?
उत्तर-
1830 के पश्चात् अंग्रेजों ने सिन्ध तथा सतलुज पार के इलाकों में महाराजा रणजीत सिंह के राज्य का विकास रोका।

प्रश्न 43.
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारियों के तथा उनमें से किसी एक की मां का नाम बताएं।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के तीन उत्तराधिकारी महाराजा खड़क सिंह, महाराजा शेर सिंह तथा महाराजा दलीप सिंह थे। महाराजा दलीप सिंह की मां का नाम महारानी जिन्दा था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 16 महाराजा रणजीत सिंह

प्रश्न 44.
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु कब हुई तथा लाहौर राज्य का अन्त कब हुआ ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु 1839 ई० में हुई और लाहौर राज्य का अन्त 1849 ई० में हुआ।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह ने जीते हुए इलाकों की व्यवस्था कैसे की ?
उत्तर-
जीते हुए सभी इलाकों के प्रति महाराजा रणजीत सिंह की नीति लगभग समान थी। पराजित शासक चाहे वह हिन्द, सिक्ख या मुसलमान हो, को सामन्त के रूप में उसके इलाके में रहने दिया गया। उन्हें महाराजा को खिराज देना पड़ता था। उन्हें आवश्यकता पड़ने पर सेना भी देनी पड़ती थी। कुछ शासकों को यह स्वतन्त्रता दी गई कि वे महाराजा के अधीन नौकरी कर लें और जागीर ले लें। जिन्होंने यह शर्त स्वीकार नहीं की, उनको भी उनके स्तर के अनुसार निर्वाह के लिए छोटी-छोटी. जागीरें दे दी गईं। इसके परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह को जीते हुए इलाकों में शान्ति स्थापित रखने में सहयोग भी .. मिला और उसे श्रेष्ठ व्यक्तियों की सेवा प्राप्त हुई।

सच तो यह है कि जीते हुए इलाकों में महाराजा ने शक्ति और मेल-मिलाप दोनों का प्रयोग किया। स्थानीय ज़मींदारों को प्रबन्ध में प्राथमिकता दी गई। परन्तु जहां कहीं लोगों ने या नेताओं ने उनका विरोध किया, वहां सख्ती से भी काम लिया गया। जीते हुए इलाकों में किले बनवा कर किलेदार नियुक्त किए गए। सरकारी कार्यों के लिए स्थानीय कर्मचारी वहीं रहने दिए गए। इस प्रकार विजित प्रदेशों का लगभग पहले वाला प्रबन्ध जारी रहा। लगान को निश्चित करने और उगाहने के ढंग भी पहले वाले ही रहने दिए गए।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने सेना के संगठन की ओर विशेष ध्यान दिया। उसने अंग्रेजी कम्पनी की सेना को छोड़कर आए सिपाहियों को अपनी सेना में रखा। सेना को यूरोपीय ढंग से संगठित किया गया। इसके लिए यूरोपीय अफसरों को नियुक्त किया गया। उनकी सहायता से पैदल, घुड़सवार सेना और तोपखाने को सशक्त बनाया गया। सेना के विभिन्न अंगों के संगठन के लिए पैदल सेना में बटालियन, घुड़सवारों में रेजीमैंट और तोपखाने में बैटरी स्थापित करने की प्रथा चलाई गई। इनके अधिकारियों में भी कमान्डेन्ट (कुमेदान) ऐड्जूटैन्ट, मेजर और सूबेदार नियुक्त किए गए। समय बीतने पर कई सैनिक टुकड़ियों को मिला करे एक ‘जनरल’ के अधीन रखा जाने लगा। प्रत्येक टुकड़ी के साथ बेलदार, मिस्त्री, घड़याली और टहलिया आदि भी होते थे। सेना का निरीक्षण स्वयं महाराजा करता था। चेहरा नवीसी और घोड़े दागने की प्रथा भी आरम्भ की गई ताकि सैनिक अधिकारी और जागीरदार निश्चित संख्या से कम घोड़े और सिपाही न रख सकें। महाराजा ने तोपें, बन्दूकें और अन्य शस्त्र बनाने के लिए कारखाने स्थापित किए। इनमें पंजाबी और कई अनुभवी यूरोपीय लोग बारूद तैयार करते थे।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के शासक वर्ग में किस पृष्ठ भूमि के लोग थे तथा उनके महाराजा के साथ किस तरह के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
महाराजा महाराजा रणजीत सिंह ने अनेक अधीनस्थ राजाओं को अपना भागीदार बनाकर शासक वर्ग का अंग बना लिया। इन राजाओं के जागीरदारों को भी प्रशासनिक प्रबन्ध में सम्मिलित किया गया। इनके अतिरिक्त महाराजा ने कई नए व्यक्तियों को उनकी योग्यता के अनुसार छोटे-बड़े पदों पर नियुक्त किया। ऐसे जागीरदारों की सामाजिक पृष्ठ भूमि भिन्नभिन्न थी। उनमें कई जाट सिक्ख थे तथा कई खत्री थे। इनमें ब्राह्मण, राजपूत, पठानों और सैय्यदों के अतिरिक्त कई पूर्वी हिन्दोस्तानी और यूरोपीय लोगों को भी इस श्रेणी में जगह दी गई। उदाहरण के लिए जमांदार खुशहाल सिंह और अलारड तथा वेन्तूरा के नाम लिए जा सकते हैं। महाराजा के प्रमुख जागीरदारों में उल्लेखनीय सरदार हरिसिंह नलवा, दीवान सावनमल, राजा गुलाब सिंह, राजा ध्यान सिंह, फकीर अजीजुद्दीन और शेख गुलाम मुइउद्दीन थे। यह सारा शासक वर्ग शासन कार्यों में महाराजा का भागीदार था।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह का प्रजा के प्रति कैसा व्यवहार था ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक प्रजापालक शासक था। उसने अपने नाज़िमों और कारदारों को यह आदेश दे रखा था कि वे प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करें और उनकी भलाई का ध्यान रखें। कृषकों के अधिकारों का विशेष ध्यान रखा जाता था। कई स्थानों पर लगान की दर भी घटा दी गई। लगान देने का ढंग प्रायः कृषक स्वयं चुनते थे। लाहौर दरबार उन्हें बीज और औज़ार आदि खरीदने के लिए ऋण भी देता था। प्रजा राजा से सीधे सम्बन्ध स्थापित कर सकती थी। जब भी महाराजा राज्य के किसी प्रदेश का भ्रमण करता तो वह कृषकों से उनके सुख-दुःख के बारे में पूछा करता था। अत्याचारी नाज़ियों या कारदारों की बदली कर दी जाती थी। कई बार उन पर जुर्माने भी किए जाते थे।

महाराजा महाराजा रणजीत सिंह का संरक्षण केवल सिक्खों तक सीमित नहीं था बल्कि अन्य धर्मों के लोग भी इससे प्रभावित थे। लगान की कुल आय का जितना भाग धर्मार्थ के लिए महाराजा ने दिया, उतना शायद मुग़लों के समय में भी नहीं दिया गया था। महाराजा की ओर से करवाई गई हरमंदर साहिब की सेवा की गवाही आज भी हरमंदर साहिब के द्वार पर सोने के पत्र पर उभरी हुई मिलती है। निःसन्देह महाराजा उदार स्वभाव का व्यक्ति था।

प्रश्न 5.
अमृतसर की सन्धि किन परिस्थितियों में हुई ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने 1806 ई० के पश्चात् सतलुज पार के प्रदेशों को जीतना आरम्भ कर दिया। इससे अंग्रेजों को चिन्ता होने लगी कि कहीं महाराजा का राज्य दिल्ली तक न फैल जाए। वे स्वयं भी सतलुज और यमुना के बीच के इलाकों पर अपना अधिकार करना चाहते थे। अतः महाराजा की शक्ति पर रोक लगाने के लिए उन्होंने चार्ल्स मैटकॉफ को अपना वकील बनाकर महाराजा के पास भेजा। उसने सुझाव दिया कि सतलुज नदी को महाराजा की पूर्वी सीमा मान लिया जाए। अंग्रेजों की यह इच्छा थी कि सतलुज-यमुना के मध्य के सभी शासक महाराजा की बजाए अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार कर लें। महाराजा को यह सुझाव पसन्द तो नहीं था परन्तु उसे अंग्रेजों की शक्ति का पूरा पता था। उसे यह भी ज्ञान था कि इस सुझाव के लाभ क्या हैं। वास्तव में अंग्रेज़ उसे सतलुज के उत्तर-पश्चिम के प्रदेश का एकमात्र स्वतन्त्र शासक मानने को तैयार थे। अन्त में महाराजा ने इस बात को स्वीकार कर लिया और सेना सतलुज के इस ओर बुला ली। इन परिस्थितियों में 25 अप्रैल, 1809 को अमृतसर में एक नियमित सन्धि पर हस्ताक्षर हुए।

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प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब में एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना कैसे की ? –
उत्तर-
रणजीत सिंह ने 1792 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर सम्भाली। 19 वर्ष की आयु में उसको अफ़गानिस्तान के शासक शाहजमान ने लाहौर का गवर्नर बना दिया और उसे राजा की उपाधि दी। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति काफ़ी बढ़ गई। 1802 ई० में उसने अमृतसर पर अधिकार कर लिया। अगले चार-पांच वर्षों में उसने छ: मिसलों को अपने अधिकार में ले लिया। फिर उसने सतलुज और यमुना नदी के मध्य सरहिन्द की ओर बढ़ना आरम्भ कर दिया, परन्तु अंग्रेजों ने उसे उस ओर न बढ़ने दिया। 1809 ई० में उसने अंग्रेजों से सन्धि (अमृतसर की सन्धि) कर ली। सन्धि के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने सतलुज के पश्चिम में स्थित इलाकों में अपने राज्य का विस्तार करना आरम्भ कर दिया। शीघ्र ही उसने मुल्तान (1818), कश्मीर (1819), बन्नू, डेराजात और पेशावर पर अधिकार कर लिया। इस तरह महाराजा रणजीत सिंह एक विशाल राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

प्रश्न 7.
महाराजा रणजीत सिंह के राज्य प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने पंजाब का शासन बड़े अच्छे ढंग से चलाया। केन्द्रीय शासन का मुखिया वह स्वयं था। वास्तव में वह निरंकुश शासक था परन्तु उसे प्रजा की भलाई का पूर्ण ध्यान रहता था। उसने अपनी सहायता के लिए मन्त्री नियुक्त किए हुए थे। राजा ध्यान सिंह उसका प्रधानमन्त्री था और फकीर अजीजुद्दीन उसका बहुत बड़ा सलाहकार और विदेश मन्त्री था। अपने राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए महाराजा रणजीत सिंह ने सारे राज्य को चार मुख्य प्रान्तों में बांटा हुआ था। इन प्रान्तों के नाम थे-लाहौर, मुल्तान, कश्मीर और पेशावर। महाराजा रणजीत सिंह की न्याय प्रणाली बड़ी साधारण थी। दण्ड अधिक कठोर नहीं थे। अपराधी को प्रायः जुर्माना ही किया जाता था। राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि कर ही था। आय कर उपज का 1/2 और 1/3 भाग लिया जाता था। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना का संगठन किया। इसमें घुड़सवार, पैदल और तोपखाना सम्मिलित थे। दीवान मोहकम चन्द प्रधान सेनापति था। सेनापति को यूरोपीय सैनिकों को भान्ति ट्रेनिंग दी जाती थी। वेंतुरा उसकी सेना में एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी सैनिक अधिकारी था।

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प्रश्न 8.
महाराजा रणजीत सिंह को ‘शेरे पंजाब’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक सफल विजेता व कुशल शासक था। उसने पंजाब को एक दृढ़ शासन प्रदान किया। उसने सिक्खों को एक सूत्र में पिरो दिया। उसके राज्य में प्रजा सुखी तथा समृद्ध थी। महाराजा रणजीत सिंह कट्टर धर्मी नहीं था। उसके दरबार में सिक्ख, मुसलमान आदि सभी धर्मों के लोग थे। सरकारी नौकरियां योग्यता के आधार पर दी जाती थीं। वह बड़ा दूरदर्शी था। उसने जीवन भर अंग्रेजों से मित्रता बनाए रखी। इस तरह उसने राज्य को शक्तिशाली अंग्रेजों से सुरक्षित रखा। इन्हीं गुणों के कारण महाराजा रणजीत सिंह की गणना इतिहास के महान् शासकों में की जाती है और उसे ‘शेरे पंजाब’ के नाम से याद किया जाता है।

प्रश्न 9.
अमृतसर की सन्धि कब हुई ? इसका महत्त्व भी बताओ।
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की अंग्रेजों के साथ 1809 ई० की सन्धि के बारे में लिखो।
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि 25 अप्रैल, 1809 ई० को अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच हुई। यह सन्धि अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस सन्धि से सिक्खों का एकमात्र शासक बनने के लिए महाराजा रणजीत सिंह का अपना सपना टूट गया। वह मालवा की रियासतों पर कभी अधिकार नहीं कर सकता था। अमृतसर की सन्धि ने महाराजा रणजीत सिंह की शक्ति, सम्मान तथा पद को भी गहरा आघात पहुँचाया। इस सन्धि ने अंग्रेजी राज्य की सीमा को यमुना से बढ़ा कर सतलुज नदी तक पहुंचा दिया। महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की सीमा के इतने समीप पहुंच जाने के कारण अंग्रेजी सरकार महाराजा की विदेश नीति तथा सैनिक गतिविधियों पर अब अधिक कड़ी नजर रख सकती थी। इस सन्धि से महाराजा को कुछ लाभ भी हुए। इसके फलस्वरूप पंजाब का शिशु राज्य नष्ट होने से बच गया और उसने उत्तर-पश्चिम में अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुल्तान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन इस प्रकार है-

1. लाहौर की विजय-लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसीलिए उन्होंने महाराजा रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। महाराजा रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही महाराजा रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर महाराजा रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।

2. अमृतसर की विजय अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथ में थी। महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खां को सन्देश भेजा कि वह अमृतसर स्थित लोहगढ़ का दुर्ग तथा प्रसिद्ध ज़मज़मा तोप उसके हवाले कर दे। परन्तु माई सुक्खां ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया और माई सुक्खां को पराजित करके अमृतसर को अपने राज्य में मिला लिया।

3. अटक विजय-1813 ई० में महाराजा रणजीत सिंह तथा काबुल के वज़ीर फतेह खां के बीच एक समझौता हुआ। इसके अनुसार महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए 12 हज़ार सैनिक फतेह खां की सहायता के लिए भेजने और इसके बदले फतेह खां ने उसे जीते हुए प्रदेश तथा वहां से प्राप्त किए धन का तीसरा भाग देने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त महाराजा रणजीत सिंह ने फतेह खां को अटक विजय में और फतेह खां ने महाराजा रणजीत सिंह को मुल्तान विजय में सहायता देने का वचन भी दिया। दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने मिलकर कश्मीर पर आसानी से विजय प्राप्त कर ली। परन्तु फतेह खां ने अपने वचन का पालन न किया। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने अटक के शासक को एक लाख रुपये वार्षिक आय की जागीर देकर अटक का प्रदेश ले लिया। फतेहखां इसे सहन न कर सका। उसने शीघ्र ही अटक पर चढ़ाई कर दी। अटक के पास हज़रो के स्थान पर सिक्खों और अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे।

4. मुल्तान विजय-मुल्तान उस समय व्यापारिक और सैनिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। 1818 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान पर छः आक्रमण किए, परन्तु हर बार वहां का पठान शासक मुजफ्फर खां महाराजा रणजीत सिंह को भारी नज़राना देकर पीछा छुड़ा लेता था। 1818 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान को सिक्ख राज्य में मिलाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने मिसर दीवान चन्द तथा अपने पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हजार सैनिक भेजे। सिक्ख सेना ने मुल्तान के किले पर घेरा डाल दिया। मुज़फ्फर खां ने किले से सिक्ख सेना का सामना किया, परन्तु अन्त में वह मारा गया और मुल्तान सिक्खों के अधिकार में आ गया।

5. कश्मीर विजय-अफ़गानिस्तान के वज़ीर फतेह खां ने कश्मीर विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह को उसका हिस्सा नहीं दिया था। अत: अब महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए रामदयाल के अधीन एक सेना भेजी। इस युद्ध में महाराजा रणजीत सिंह स्वयं भी रामदयाल के साथ गया, परन्तु सिक्खों को सफलता न मिल सकी। 1819 ई० में उसने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सेना भेजी। कश्मीर का नया गवर्नर जाबर खां सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा, परन्तु सुपान के स्थान पर उसकी करारी हार हुई।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय नागरिक प्रशासन की प्रमुख विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के केन्द्रीय शासन का वर्णन इस प्रकार है

1. महाराजा-महाराजा रणजीत सिंह केन्द्रीय शासन का मुखिया था। उसकी शक्तियां असीम थीं। फिर भी वह तानाशाह नहीं था। सरकार महाराजा रणजीत सिंह के नाम से नहीं बल्कि ‘खालसा’ के नाम से काम करती थी। उसके सिक्कों पर ‘नानक सहाय’ और ‘गोबिन्द सहाय’ लिखा था। पांच प्यारे शक्ति में उससे ऊपर थे।

2. वजीर तथा केन्द्रीय विभाग-शासन कार्यों में महाराजा को सहायता तथा परामर्श देने के लिए प्रधानमन्त्री तथा कई वजीर थे। उसका सबसे प्रसिद्ध प्रधानमन्त्री राजा ध्यान सिंह डोगरा था। वित्त तथा विदेशी मामलों को छोड़कर शेष सभी विभाग उसकी देख-रेख में चलते थे। विदेश मन्त्री-महाराजा का विदेश मन्त्री फकीर अज़ीजुद्दीन था। महाराजा का गुप्त सलाहकार भी वही था। गृह मन्त्री-गृह मन्त्री (ड्योढ़ीवाला) का कार्य शाही महल के लिए आवश्यक वस्तुओं का प्रबन्ध करना था। इस पद पर जमांदार खुशहाल सिंह काफ़ी समय तक रहा। वित्त मन्त्री-वित्त मन्त्री को ‘दीवान’ कहा जाता था। युद्ध मन्त्रीदीवान मोहकम चन्द, मिसर दीवान चन्द तथा हरिसिंह नलवा युद्ध में सेना का संचालन करते थे। केन्द्रीय शासन के प्रमुख विभाग थे-दफ्तर-ए-अबवाब-उल-माल, दफ्तर-ए-मुआजिब, दफ्तर-ए-तौजिहात, दफ्तर-ए-तोपखाना, दफ्तर-ए-रोजनामचा, दफ्तर-ए-अखराजात आदि।

3. न्याय प्रणाली-न्याय का सबसे बड़ा अधिकारी महाराजा था। राज्य के सभी बड़े मुकद्दमों का निर्णय वह स्वयं करता था। उचित न्याय करना वह अपना कर्त्तव्य समझता था। उसकी अपनी विशेष अदालत थी। महाराजा की अदालत के नीचे लाहौर नगर का उच्च न्यायालय था। इस अदालत को ‘अदालत-ए-आला’ कहते थे। इसके अतिरिक्त अमृतसर और पेशावर में दो विशेष अदालतें थीं। दैनिक न्याय का कार्य प्रान्त तथा जिले के अधिकारी करते थे।

4. भूमि-कर प्रणाली तथा आय के अन्य साधन-महाराजा रणजीत सिंह के समय राज्य की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। भूमि-कर एकत्रित करने के लिए पहले बटाई प्रणाली प्रचलित थी। इसके अनुसार भूमि-कर उपज का आधा लेकर सरकारी गोदामों में जमा कर दिया जाता था। बाद में कनकूत प्रणाली चलाई गई। इस प्रणाली के अनुसार खड़ी फसलों पर ही भूमि-कर नियत कर दिया जाता था। राज्य के कई भागों में बोली प्रणाली भी प्रचलित थी। इस प्रणाली के अनुसार अधिक-से-अधिक बोली देने वाले को भूमि-कर इकट्ठा करने का अधिकार मिल जाता था। उसे निश्चित राशि कोष में जमा करनी पड़ती थी।

भूमि-कर फसलों की किस्मों के अनुसार ही सरकार का भाग – से – तक निश्चित होता था। भूमि-कर के अतिरिक्त प्रजा से चुंगी-कर, बिक्री-कर तथा व्यावसायिक-कर भी वसल किया जाता था। बिक्री-कर, जर्माना, शुकराना, ज़ब्ती तथा ठेकों से प्राप्त करों से सरकार को अच्छी आय प्राप्त हो जाती थी।

प्रश्न 3.
महाराजा रणजीत सिंह के सैनिक प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह की सेना तीन भागों में बंटी हुई थी-पैदल, घुड़सवार तथा तोपखाना। .

(क) पैदल सेना-महाराजा रणजीत सिंह के अधीन पैदल सेना, सेना का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गई। पैदल सेना बटालियनों में बंटी हुई थी। प्रत्येक बटालियन में 800 सैनिक होते थे और इसका मुखिया एक कमाण्डर होता था। इसकी सहायता के लिए एक मेजर-जनरल हुआ करता था। प्रत्येक बटालियन 8 कम्पनियों में बंटी हुई थी और प्रत्येक कम्पनी के चार भाग होते थे। प्रत्येक भाग में 25 सैनिक होते थे। ‘कम्पनी’ हवलदार के अधीन होती थी। हवलदार की सहायता के लिए नायक होता था। पैदल सिपाहियों को ड्रम की धुन पर चलना पड़ता था। उनके कमाण्ड की भाषा फ्रांसीसी थी। नियमित परेड के अतिरिक्त दशहरे के दिन अमृतसर में एक आम परेड होती थी। इसका निरीक्षण महाराजा स्वयं करता था। इसका प्रशिक्षक जनरल वेन्तुरा था।

(ख) घुड़सवार-महाराजा रणजीत सिंह की घुड़सवार सेना तीन भागों में बंटी हुई थी। नियमित घुड़सवार सेना में चुने हुए सिपाही और चुने हुए घोड़े होते थे। इसको यूरोपियन ढंग से ट्रेनिंग दी जाती थी। इसकी कमान फ्रांसीसी जरनैल एलार्ड के हाथ में थी। घुड़सवार सेना का दूसरा अंग घुड़-चढ़े सेना थी। इसको किसी भी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया जाता था। तीसरे अंग में जागीरदारों की घुड़सवार सेना शामिल थी। ये सैनिक जागीरदारों के अधीन होते थे। आवश्यकता के समय वे महाराजा की ओर से युद्ध में भाग लेते थे। महाराजा के पास कुछ अनियमित रैजीमेंट भी थी जिनमें चुने हुए युवक थे जो सदा मरने-मारने के लिए तैयार रहते थे।

(ग) तोपखाना तथा शस्त्र-निर्माण-उसका तोपखाना चार भागों में बंटा हुआ था-

  • तोपखाना फिल्ली
  • तोपखाना शुतरी
  • तोपखाना अश्वी
  • तोपखाना गावी। महाराजा के पास कुल मिलाकर 76 तोपें थीं। तोपखाने का काम कोर्ट गार्डिनर जैसे यूरोपीय अधिकारियों को सौंपा गया था। महाराजा ने शस्त्र बनाने के लिए कई कारखाने खोले हुए थे। लाहौर, मुल्तान, जम्मू और श्रीनगर में शस्त्र बनाने का काम किया जाता था।

महाराजा रणजीत सिंह की सेना का साधारण विश्लेषण-
(i) फौज-ए-किलात-महाराजा रणजीत सिंह की सेना में 10,800 सैनिक ऐसे भी थे जो फौज-ए-किलात के नाम से प्रसिद्ध थे। इन्हें मुल्तान, पेशावर, कांगड़ा तथा अटक के किलों में रखा जाता था। किलों में रहने वाले सैनिकों को 6 रु० मासिक वेतन तथा जमांदार को 12 रु० मासिक वेतन मिलता था।

(ii) फौज-ए-खास-पूरी तरह प्रशिक्षित तथा समीपवर्ती इलाकों में लड़ने वाली इस सेना का कमाण्डर जनरल वेन्तुरा था। इस ब्रिगेड में 3000 पैदल सैनिक, 1500 नियमित घुड़सवार, लगभग 1000 तोपची और 34 तोपें थीं।

(iii) फौज-ए-आइनराज्य के अधीन इस नियमित सेना में तीन अंग शामिल थे। 1830 में इस सेना की कुल संख्या लगभग 38,000 थी जिसमें 30,000 पैदल, 5,000 घुड़सवार और 3,000 तोपची थे।

(iv) फौज-ए-बेकवायद-इस सेना में अकाली जागीरंदारों के सैनिक तथा अन्य सभी प्रकार के सैनिक रखे जाते थे।

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प्रश्न 4.
महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के सम्बन्धों ( 1809-1839 ई०) का वर्णन कीजिए।
अथवा
1809 से 1827 ई० तक अंग्रेज़-सिख संबंधों पर प्रकाश डालिए।
अथवा
1828 के बाद अंग्रेज-सिख संबंधों में तनाव क्यों आया ? त्रिदलीय 1839 इन संबंधों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
25 अप्रैल, 1809 ई० में अंग्रेज़ों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच अमृतसर की सन्धि हुई। इस सन्धि ने भले ही सिक्खों एवं अंग्रेजों के बीच सशस्त्र टक्कर की सम्भावना को समाप्त कर दिया था, तो भी यह सन्धि दोनों शक्तियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सन्देह तथा भय की भावनाओं का अन्त न कर सकी। इस सन्धि के पश्चात् 1839 ई० तक अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों को निम्नलिखित चरणों में से गुज़रना पड़ा-

1. अविश्वास तथा सन्देह काल-1809 से 1811 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेज सरकार दोनों ही एकदूसरे को अविश्वास तथा सन्देह की दृष्टि से देखते रहे। प्रत्येक ने अपने विरोधी की सैनिक तथा कूटनीतिक चालों के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए गुप्तचर छोड़ रखे थे।

2. 1812-1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के सम्बन्ध-1812 से 1822 ई० तक अंग्रेजों तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच आपसी सहयोग तथा मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बने रहे। 1815 ई० में गोरखा वकील महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने साफ़ इन्कार कर दिया। महाराज ने प्रथम अंग्रेज़-नेपाल युद्ध (1814-1815 ई०) में अंग्रेजों की सहायता करके अपनी मित्रता का प्रमाण दिया। इसी प्रकार 1821 ई० में जब आपा साहिब का प्रतिनिधि महाराजा रणजीत सिंह से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता मांगने आया तो महाराजा ने उसे भी साफ इन्कार कर दिया। दूसरी ओर अंग्रेज सरकार ने भी सतलुज के उत्तर-पश्चिम में महाराजा रणजीत सिंह के हितों में किसी प्रकार का हस्तक्षेप न किया।

3. वन्दनी गांव का प्रश्न-1808 ई० के अपने सतलुज अभियान के समय वन्दनी प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह ने 12000 रुपये के बदले अपनी सास रानी सदा कौर को दे दिया था। परन्तु 1820 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सदा कौर को कारावास में डालकर वन्दनी पर पुनः अधिकार कर लिया। रानी सदा कौर ने अंग्रेजों से सहायता की मांग की। लुधियाना के अंग्रेज़ प्रतिनिधि ने ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी भेजकर महाराजा की सेना को वन्दनी से निकाल दिया। महाराजा ने गवर्नर-जनरल से रोष प्रकट किया। अत: 1823 ई० में गवर्नर-जनरल ने वन्दनी पर फिर से महाराजा रणजीत सिंह का आधिपत्य स्वीकार कर लिया।

4. पुनः मैत्री-महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाए रखने का भरसक प्रयत्न किया। भरतपुर के सरदार ने महाराजा को 1,50,000 रुपए प्रतिदिन देने का प्रलोभन भी दिया और प्रार्थना की कि वह 20,000 सैनिकों से उसकी सहायता करे। परन्तु महाराजा ने उसे सहायता देने से इन्कार कर दिया। 1826 ई० में महाराजा रणजीत सिंह बीमार पड़ गया। उसकी प्रार्थना पर अंग्रेज़ सरकार ने डॉ० मूरे (Dr. Murray) को इलाज के लिए लाहौर भेजा। फलस्वरूप दोनों पक्षों में कुछ समय तक पुनः मैत्री बनी रही।

5. सम्बन्धों में पुनः बिगाड़-1828 से 1839 ई० तक लाहौर के शासक तथा ब्रिटिश सरकार में पारस्परिक सम्बन्ध दिनप्रतिदिन तनावपूर्ण होते चले गए। इस समय में निम्नलिखित घटनाओं ने दोनों में तनाव पैदा किया

(i) महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति-पिछले दस वर्षों में महाराजा रणजीत सिंह ने मुल्तान, कश्मीर, डेराजात तथा पेशावर इत्यादि को विजय करके अपनी शक्ति विशेष रूप से बढ़ा ली थी। अंग्रेज़ सरकार महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति से ईर्ष्या करने लगी थी। अतः अंग्रेज सरकार ने एक ओर तो लाहौर राज्य को विभिन्न दिशाओं से ‘घेरा डालने की नीति’ को अपनाना आरम्भ कर दिया, परन्तु दूसरी ओर वे महाराजा के साथ अपनी मित्रता का दिखावा करते रहे।

(ii) सिन्ध का प्रश्न-महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के पारस्परिक सम्बन्धों में मतभेद तथा कटुता उत्पन्न करने वाली समस्याओं में सिन्ध की समस्या का विशेष स्थान है। यह प्रान्त लाहौर राज्य की दक्षिण-पश्चिमी सीमा पर स्थित होने के कारण काफ़ी सैनिक महत्त्व रखता था। महाराजा रणजीत सिंह के लिए आवश्यक था कि वह इसे अपने अधिकार में ले कर अपने राज्य की विदेशी आक्रमणों से रक्षा करे।

अंग्रेज़ सरकार भी सिन्ध तथा शिकारपुर के व्यापारिक महत्त्व को भली-भान्ति समझती थी। अतः वह यह नहीं चाहती थी कि यह प्रदेश महाराजा रणजीत सिंह के हाथ लगे। 1831 ई० में अंग्रेज़ सरकार ने अपने एक नाविक बर्नज (Burmes) को व्यापारिक सन्धि के लिए अमीरों के पास भेजा। उन्होंने इसी मिशन के हाथ महाराजा रणजीत सिंह के लिए उपहार भी भेज दिया ताकि यह अंग्रेजों की आन्तरिक आकांक्षाओं को भांप न सके। भले ही इस मिशन का स्वभाव प्रत्यक्ष रूप से मैत्रीपूर्ण था तथापि इसने महाराजा रणजीत सिंह के मन में अंग्रेजों की सिन्ध नीति के विषय में सन्देह उत्पन्न कर दिया।

(iii) महाराजा रणजीत सिंह तथा विलियम बैंटिंक की रोपड़ में भेंट-गवर्नर-जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंक महाराजा रणजीत सिंह के मन में उत्पन्न हुए सन्देह को भली-भान्ति जानता था। इधर रूस द्वारा भारतीय आक्रमण के समाचार भी जोरों से फैल रहे थे। अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल यह नहीं चाहता था कि इस संकट के समय उनके महाराजा के साथ सम्बन्ध बिगड़ जाएं। अतः उसने अक्तूबर, 1831 ई० में रोपड़ के स्थान पर महाराजा से भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने पोण्टिञ्जर को सिन्ध के अमीरों के साथ एक व्यापारिक सन्धि करने के लिए सिन्ध भेज दिया।

पोण्टिञ्जर के प्रयत्नों से अंग्रेजों तथा सिन्ध के अमीरों के बीच में एक महत्त्वपूर्ण सन्धि हो गई। इसका पता चलने पर महाराजा रणजीत सिंह को बहुत दुःख हुआ।

(iv) शिकारपुर का प्रश्न-शिकारपुर के प्रश्न पर भी महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों में आपसी तनाव काफ़ी बढ़ गया। महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लाने के लिए एक उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे माजरी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किये जाने वाले आक्रमणों से मिला। महाराजा रणजीत सिंह ने माजरी आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया।

(v) फिरोज़पुर का प्रश्न-अंग्रेजों के आपसी सम्बन्धों के इतिहास में फिरोज़पुर के प्रश्न का विशेष महत्त्व है। भले ही महाराजा रणजीत सिंह का फिरोजपुर पर अधिकार उचित तथा न्याय संगत था, तो भी अंग्रेजों ने उसे अधिकार न करने दिया। अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोज़पुर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और तीन वर्ष बाद उसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना लिया। परन्तु महाराजा को इस बार भी गुस्सा पी कर रह जाना पड़ा।

(vi) त्रिदलीय सन्धि-1837 ई० में रूस एशिया की ओर बढ़ने लगा था। अंग्रेजों को यह भय हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण न कर दे। अतः उन्होंने अफ़गानिस्तान के साथ मित्रता स्थापित करनी चाही। अंग्रेजों ने कैप्टन बर्नज़ (Burnes) को काबुल भेजा ताकि वह वहां के अमीर दोस्त मुहम्मद के साथ मित्रता व सन्धि की बातचीत कर सके। दोस्त मुहम्मद ने अंग्रेजों के साथ इस शर्त पर समझौता करना स्वीकार किया कि अंग्रेज़ बदले में महाराजा रणजीत सिंह से पेशावर का प्रदेश लेकर उसे सौंप दें। परन्तु अंग्रेज़ों के लिए महाराजा रणजीत सिंह की मित्रता आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण थी। इसलिए उन्होंने दोस्त मुहम्मद की इस शर्त को न माना। उधर दोस्त मुहम्मद रूस के साथ गठजोड़ करने लगा। अंग्रेजों के लिए यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी। उन्होंने अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा के साथ एक समझौता किया। इस समझौते में महाराजा रणजीत सिंह को भी शामिल किया गया। यह समझौता तीन दलों में होने के कारण त्रिदलीय सन्धि के नाम से प्रसिद्ध है।

महाराजा रणजीत सिंह ने इस सन्धि पर हस्ताक्षर तो कर दिए परन्तु उसने सन्धि की एक महत्त्वपूर्ण धारा पर हस्ताक्षर नहीं किए थे। वह यह थी कि, “अंग्रेज़ों की सेनाएं पंजाब से होकर काबुल पर आक्रमण कर सकती हैं।” परन्तु उसे भय था कि अंग्रेज़ अवश्य ही इस धारा का उल्लंघन करेंगे। अत: उसने अपने शासन काल के अन्तिम वर्षों में अंग्रेजों के विरुद्ध कई कदम उठाने का प्रयत्न किया। अत: 1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई।

सच तो यह है कि 1809 ई० से 1839 ई० तक महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों से अपनी मित्रता बनाए रखने की नीति को अपनाया। उसने यह निश्चय कर रखा था कि वह अंग्रेजों से युद्ध नहीं करेगा भले ही इसके लिए उसे बड़े-से-बड़ा बलिदान भी क्यों न करना पड़े।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखिए

प्रश्न 1.
किस घटना को ‘सच्चा सौदा’ का नाम दिया गया है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार करने के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराना।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पत्नी कहां की रहने वाली थीं ? उनके पुत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी बटाला (ज़िला गुरदासपुर) की रहने वाली थीं। उनके पुत्रों के नाम श्री चन्द तथा लक्षमी दास थे।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद क्या शब्द कहे तथा उनका क्या भाव था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान पाप्ति के बाद ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ इसका भाव था कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने धर्म के मार्ग से भटक चुके हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 4.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने किसके पास क्या काम किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने वहां के फ़ौजदार दौलत खाँ लोधी के अधीन मोदी खाने में भण्डारी का काम किया।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां कौन-सी हैं?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की चार बाणियां हैं-‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी साहिब’ तथा ‘बारह माहा’।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने कुरुक्षेत्र में क्या उपदेश दिए?
उत्तर-
कुरुक्षेत्र में गुरु जी ने यह उपदेश दिया कि मनुष्य को सूर्य ग्रहण तथा चंद्र ग्रहण जैसे अंधविश्वासों में पड़ने की बजाय प्रभु भक्ति और शुभ कर्म करने चाहिएं।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 7.
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने सिद्धों तथा योगियों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने उन्हें उपदेश दिया कि शरीर पर राख मलने, हाथ में डंडा पकड़ने, सिर मुंडाने, संसार त्यागने जैसे व्यर्थ के आडम्बरों से मनुष्य को मोक्ष प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा कैसा है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के मतानुसार परमात्मा निराकार, सर्वशक्तिमान् , सर्वव्यापक तथा सर्वोच्च है।

प्रश्न 9.
‘सच्चा सौदा’ से क्या भाव है?
उत्तर-
सच्चा सौदा से भाव है-पवित्र व्यापार जो गुरु नानक साहिब ने अपने 20 रु० से फ़कीरों को रोटी खिला कर किया था।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के परमात्मा सम्बन्धी विचारों का वर्णन इस प्रकार है

  1. परमात्मा एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को बताया कि परमात्मा एक है। उसे बांटा नहीं जा सकता। उन्होंने एक ओंकार का सन्देश दिया।
  2. परमात्मा निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को निराकार बताया और कहा कि परमात्मा का कोई आकार व रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। उनके अनुसार परमात्मा स्वयंभू तथा अकालमूर्त है। अतः उसकी मूर्ति बना कर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. परमात्मा सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने परमात्मा को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया। उनके अनुसार वह सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता।
  4. परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वश्रेष्ठ है। वह अद्वितीय है। उसकी महिमा तथा महानता का पार नहीं पाया जा सकता।
  5. परमात्मा दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी दूसरी उदासी (यात्रा) के समय कहां-कहां गए?
उत्तर-
अपनी दूसरी उदासी के समय गुरु साहिब सर्वप्रथम आधुनिक हिमाचल प्रदेश में गए। यहां उन्होंने बिलासपुर, मंडी, सुकेत, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों का भ्रमण किया और कई लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया। इस उदासी में गुरु साहिब तिब्बत, कैलाश पर्वत, लद्दाख तथा कश्मीर में अमरनाथ की गुफा में भी गए। तत्पश्चात् उन्होंने हसन अब्दाल तथा सियालकोट का भ्रमण किया। वहां से वह अपने निवास स्थान करतारपुर चले गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की जनेऊ की रस्म का वर्णन करो।
उत्तर-
अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल रही थी कि उन्हें जनेऊ पहनाने का निश्चय किया गया। इसके लिए रविवार का दिन निश्चित हुआ। सभी सगे सम्बन्धी इकट्ठे हुए और ब्राह्मणों को बुलाया गया। प्रारम्भिक मन्त्र पढ़ने के पश्चात् पण्डित हरदयाल ने गुरु नानक देव जी को अपने सामने बिठाया और उन्हें जनेऊ पहनने के लिए कहा। परन्तु उन्होंने इसे पहनने से स्पष्ट इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अपने शरीर के लिए नहीं बल्कि आत्मा के लिए एक स्थायी जनेऊ चाहिए। मुझे ऐसा जनेऊ चाहिए जो सूत के धागे से नहीं बल्कि सद्गुणों के धागे से बना हो।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने अपने प्रारम्भिक जीवन में क्या-क्या व्यवसाय अपनाए?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब जी पढ़ाई तथा अन्य सांसारिक विषयों की उपेक्षा करने लगे थे। उनके व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहां भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने गुरु नानक देव जी को 20 रुपए देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे संतों को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी पहली उदासी (यात्रा) के समय कौन-कौन से स्थानों पर गए?
उत्तर-
अपनी पहली उदासी के समय गुरु नानक साहिब निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. सुल्तानपुर से चलकर वह सैय्यदपुर गए जहां उन्होंने भाई लालो को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तत्पश्चात् गुरु साहिब तुलुम्बा (सज्जन ठग के यहां), कुरुक्षेत्र तथा पानीपत गए। इन स्थानों पर उन्होंने लोगों को शुभ कर्म करने की प्रेरणा दी।
  3. पानीपत से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार गए। इन स्थानों पर उन्होंने अन्ध-विश्वासों का खण्डन किया।
  4. इसके पश्चात् गुरु साहिब ने केदारनाथ, बद्रीनाथ, गोरखमता, बनारस, पटना, हाजीपुर, धुबरी, कामरूप, शिलांग, ढाका, जगन्नाथपुरी तथा दक्षिण भारत के कई स्थानों का भ्रमण किया।
    अंततः पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए वह सुल्तानपुर लोधी पहुंच गए।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी (यात्रा) के महत्त्वपूर्ण स्थानों के बारे में बताओ।
उत्तर-
गुरु साहिब ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ पाकपट्टन से किया। अन्ततः वह सैय्यदपुर से आ गए। इस बीच उन्होंने निम्नलिखित स्थानों की यात्रा की

  1. मुल्तान
  2. मक्का
  3. मदीना
  4. बग़दाद
  5. तेहरान
  6. कंधार
  7. पेशावर
  8. हसन अब्दाल तथा
  9. गुजरात।

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी द्वारा करतारपुर में बिताए गए जीवन का ब्यौरा दीजिए।
उत्तर-
1521 ई० के लगभग गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के किनारे एक नया नगर बसाया। इस नगर का नाम ‘करतारपुर’ अर्थात् ईश्वर का नगर था। गुरु जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष परिवार के अन्य सदस्यों के साथ यहीं पर व्यतीत किये।
कार्य-

  1. इस काल में गुरु नानक देव जी ने अपने सभी उपदेशों को निश्चित रूप दिया और ‘वार मल्हार’ और ‘वार माझ’, ‘वार आसा’, ‘जपुजी’, ‘पट्टी’, ‘ओंकार’, ‘बारहमाहा’ आदि वाणियों की रचना की ।
  2. करतारपुर में उन्होंने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ (लंगर) की संस्था का विकास किया।
  3. कुछ समय पश्चात् अपने जीवन का अन्त निकट आते देख उन्होंने भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। भाई लहना जी सिक्खों के दूसरे गुरु थे जो गुरु अंगद देव जी के नाम से प्रसिद्ध हुए।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः शिक्षाओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएं उतनी ही आदर्श थीं जितना कि उनका जीवन। वह कर्म-काण्ड, जाति-पाति, ऊंच-नीच आदि संकीर्ण विचारों से कोसों दूर थे। उन्हें तो सतनाम से प्रेम था और इसी का सन्देश उन्होंने अपने सम्पर्क में आने वाले प्रत्येक प्राणी को दिया। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. ईश्वर की महिमा–गुरु साहिब ने ईश्वर की महिमा का बखान अपने निम्नलिखित विचारों द्वारा किया है
    1. एक ईश्वर में विश्वास-श्री गुरु नानक देव जी ने इस बात का प्रचार किया कि ईश्वर एक है। वह अवतारवाद को स्वीकार नहीं करते थे। उनके अनुसार संसार का कोई भी देवी-देवता परमात्मा का स्थान नहीं ले सकता।
    2. ईश्वर निराकार तथा स्वयं-भू है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनके अनुसार परमात्मा स्वयं-भू है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जानी चाहिए।
    3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-श्री गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् बताया। उनके अनुसार ईश्वर संसार के कण-कण में विद्यमान है। सारा संसार उसी की शक्ति पर चल रहा है।
      (iv) ईश्वर दयालु है-श्री गुरु नानक देव जी का कहना था कि ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों की सहायता करता है। जो लोग अपने सभी काम ईश्वर पर छोड़ देते हैं, ईश्वर उनके कार्यों को स्वयं करता है।
  2. सतनाम के जाप पर बल-श्री गुरु नानक देव जी ने सतनाम के जाप पर बल दिया। वह कहते थे कि जिस प्रकार शरीर से मैल उतारने के लिए पानी की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मन का मैल हटाने के लिए सतनाम का जाप आवश्यक है।
  3. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु को बहुत आवश्यकता है। गुरु रूपी जहाज़ में सवार होकर संसार रूपी सागर को पार किया जा सकता है। उनका कथन है कि “सच्चे गुरु की सहायता के बिना किसी ने भी ईश्वर को प्राप्त नहीं किया।” गुरु ही मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।
  4. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-गुरु नानक देव जी का विश्वास था कि मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार बार-बार जन्म लेता है और मृत्यु को प्राप्त होता है। उनके अनुसार बुरे कर्म करने वाले व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतने के लिए बार-बार जन्म लेना पड़ता है। इसके विपरीत, शुभ कर्म करने वाला व्यक्ति जन्म-मरण के चक्कर से छूट जाता है और निर्वाण प्राप्त करता है।
  5. आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने आदर्श गृहस्थ जीवन पर बल दिया। उन्होंने इस धारणा को सर्वथा ग़लत सिद्ध कर दिखाया कि संसार माया जाल है और उसका त्याग किए बिना व्यक्ति मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकता। उनके शब्दों में, “अंजन माहि निरंजन रहिए” अर्थात् संसार में रहकर भी मनुष्य को पृथक् और पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  6. मनुष्य-मात्र के प्रेम में विश्वास-गुरु नानक देव जी रंग-रूप के भेद-भावों में विश्वास नहीं रखते थे। उनके अनुसार एक ईश्वर की सन्तान होने के नाते सभी मनुष्य भाई-भाई हैं।
  7. जाति-पाति का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने जाति-पाति का घोर विरोध किया। उनकी दृष्टि में न कोई हिन्दू था और न कोई मुसलमान। उनके अनुसार सभी जातियों तथा धर्मों में मौलिक एकता और समानता विद्यमान है।
  8. समाज सेवा-गुरु नानक देव जी के अनुसार जो व्यक्ति ईश्वर के प्राणियों से प्रेम नहीं करता, उसे ईश्वर की प्राप्ति कदापि नहीं हो सकती। उन्होंने अपने अनुयायियों को नि:स्वार्थ भावना से मानव प्रेम और समाज सेवा करने का उपदेश दिया। उनके अनुसार मानवता के प्रति प्रेम, ईश्वर के प्रति प्रेम का ही प्रतीक है।
  9. मूर्ति-पूजा का खण्डन-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा का कड़े शब्दों में खण्डन किया। उनके अनुसार ईश्वर की मूर्तियां बनाकर पूजा करना व्यर्थ है, क्योंकि ईश्वर अमूर्त तथा निराकार है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर की
  10. यज्ञ, बलि तथा व्यर्थ के कर्म-काण्डों में अविश्वास-गुरु नानक देव जी ने व्यर्थ के कर्मकाण्डों का घोर खण्डन किया और ईश्वर की प्राप्ति के लिए यज्ञों तथा बलि आदि को व्यर्थ बताया। उनके अनुसार बाहरी दिखावे का प्रभु भक्ति में कोई स्थान नहीं है।
  11. सर्वोच्च आनन्द (सचखण्ड) की प्राप्ति-गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य जीवन का उद्देश्य सर्वोच्च आनन्द की (सचखण्ड) प्राप्ति है। सर्वोच्च आनन्द वह मानसिक स्थिति है जहां मनुष्य सभी चिन्ताओं तथा कष्टों से मुक्त हो जाता है। उसके मन में किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता और उसका दुखी हृदय शान्त हो जाता है। ऐसी अवस्था में मनुष्य की आत्मा पूरी तरह से परमात्मा में लीन हो जाती है।
  12. नैतिक जीवन पर बल-गुरु नानक देव जी ने लोगों को नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने आदर्श जीवन के लिए ये सिद्धान्त प्रस्तुत किए-
    1. सदा सत्य बोलना।
    2. चोरी न करना।
    3. ईमानदारी से अपना जीवन निर्वाह करना।
    4. दूसरों की भावनाओं को कभी ठेस न पहुंचाना।
      सच तो यह है कि गुरु नानक देव जी एक महान् सन्त और समाज सुधारक थे। उन्होंने अपनी मधुर वाणी से लोगों के मन में नम्र भाव उत्पन्न किये। उन्होंने लोगों को सतनाम का जाप करने और एक ही ईश्वर में विश्वास रखने का उपदेश दिया। इस प्रकार उन्होंने भटके हुए लोगों को जीवन का उचित मार्ग दिखाया।
      नोट-विद्यार्थी इनमें से कोई छ: शिक्षाएं लिखें।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की पहली उदासी (यात्रा) के बारे में विस्तार से लिखिए।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी अपनी पहली उदासी में भारत की पूर्वी तथा दक्षिणी दिशाओं में गए। यह यात्रा लगभग 1500 ई० में आरम्भ हुई। उन्होंने अपने प्रसिद्ध शिष्य भाई मरदाना को अपने साथ लिया। मरदाना रबाब बजाने में कुशल था। इस यात्रा के दौरान गुरुजी ने निम्नलिखित स्थानों का भ्रमण किया

  1. सैय्यदपुर-गुरु साहिब सुल्तानपुर लोधी से चल कर सबसे पहले सैय्यदपुर गए। वहाँ उन्होंने लालो नामक बढ़ई को अपना श्रद्धालु बनाया।
  2. तुलम्बा अथवा तालुम्बा-सैय्यदपुर से गुरु नानक देव जी मुल्तान जिला में स्थित तुलम्बा नामक स्थान पर पहुंचे। यहां सज्जन नामक एक व्यक्ति रहता था जो बड़ा धर्मात्मा कहलाता था। परन्तु वास्तव में वह ठगों का नेता था। गुरु नानक देव जी के प्रभाव में आकर उसने ठगी का धन्धा छोड़ धर्म प्रचार की राह अपना ली। तेजा सिंह ने ठीक ही कहा है कि गुरु जी की अपार कृपा से “अपराध की गुफ़ा ईश्वर की उपासना का मन्दिर बन गई।” (“The criminal’s den became a temple for God worship.”)
  3. कुरुक्षेत्र-तुलम्बा से गुरु साहिब हिन्दुओं के प्रसिद्ध तीर्थ-स्थान कुरुक्षेत्र पहुंचे। उस वर्ष वहां सूर्य ग्रहण के अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण, साधु-फ़कीर तथा हिन्दू यात्री एकत्रित थे। गुरु जी ने एकत्र लोगों को यह उपदेश दिया कि मनुष्य को बाहरी अथवा शारीरिक पवित्रता की बजाय मन तथा आत्मा की पवित्रता पर बल देना चाहिए।
  4. पानीपत, दिल्ली तथा हरिद्वार-कुरुक्षेत्र से गुरु जी पानीपत पहुँचे। यहाँ से वह दिल्ली होते हुए हरिद्वार पहुँचे। यहाँ गुरु जी ने लोगों को सूर्य की ओर मुँह करके अपने पूर्वजों को पानी देते देखा। इस अन्धविश्वास को दूर करने के लिए गुरु साहिब ने उल्टी ओर पानी देना आरम्भ कर दिया। लोगों के पूछने पर गुरु जी ने बताया कि वह पंजाब में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। लोगों ने उनका मजाक उड़ाया। इस पर गुरु जी ने उनसे यह प्रश्न पूछा कि यदि मेरा पानी कुछ मील दूर नहीं जा सकता तो आप का पानी करोड़ों मील दूर पूर्वजों तक कैसे जा सकता है ? इस उत्तर से अनेक लोग प्रभावित हुए।
  5. गोरखमता-हरिद्वार के बाद गुरु जी केदारनाथ, बद्रीनाथ, जोशीमठ आदि स्थानों का भ्रमण करते हुए गोरखमता पहुंचे। वहाँ उन्होंने गोरखनाथ के अनुयायियों को मोक्ष प्राप्ति का सही मार्ग दिखाया।
  6. बनारस-गोरखमता से गुरु जी बनारस पहुँचे। यहाँ उनकी भेंट पण्डित चतुरदास से हुई। वह गुरु जी के उपदेशों से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि वह अपने शिष्यों सहित गुरुजी का अनुयायी बन गया।
  7. गया-बनारस से चल कर गुरु जी बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध तीर्थ स्थान ‘गया’ पहुँचे। यहाँ उन्होंने बहुत-से लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया और उन्हें अपना श्रद्धालु बनाया।
    यहाँ से वह पटना तथा हाजीपुर भी गए तथा लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  8. आसाम-गुरु नानक देव जी बिहार तथा बंगाल होते हुए आसाम पहुँचे। वहाँ उन्होंने कामरूप की एक जादूगरनी को उपदेश दिया कि सच्ची सुन्दरता सच्चरित्र में है।
  9. ढाका, कटक तथा जगन्नाथपुरी-तत्पश्चात् गुरु जी ढाका पहुँचे। वहाँ पर उन्होंने विभिन्न धर्मों के नेताओं से मुलाकात की। ढाका से कटक होते हुए गुरु जी उड़ीसा में जगन्नाथपुरी गए। पुरी के मन्दिर में उन्होंने बहुत-से लोगों को विष्णु जी की मूर्ति पूजा तथा आरती करते देखा। वहाँ पर गुरु जी ने उपदेश दिया कि मूर्ति पूजा व्यर्थ है। ईश्वर सर्वव्यापक है।
  10. दक्षिणी भारत-पुरी से गुरु नानक देव जी दक्षिण की ओर गए। वह गंटूर, कांचीपुरम, त्रिचन्नापल्ली, नागापट्टम, रामेश्वरम, त्रिवेन्द्रम होते हुए लंका पहुँचे। वहाँ का राजा शिवनाभ गुरु जी के व्यक्तित्व तथा वाणी से बहुत प्रभावित हुआ और वह गुरु जी का शिष्य बन गया। लंका में गुरु साहिब ने झंडा बेदी नामक एक श्रद्धालु को ईश्वर का प्रचार करने के लिए भी नियुक्त किया। · ।
    वापसी यात्रा-लंका से वापसी पर गुरु जी कुछ समय के लिए पाकपट्टन पहुँचे। वहाँ पर उनकी भेंट शेख फरीद के दसवें उत्तराधिकारी शेख ब्रह्म अथवा शेख इब्राहिम के साथ हुई। वह गुरु जी के विचार सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ।
    पाकपट्टन से दीपालपुर होते हुए गुरु साहिब वापिस सुल्तानपुर लोधी आ गए।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के बचपन (जीवन) के बारे में प्रकाश डालिए।
उत्तर-
जन्म तथा माता-पिता-श्री गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को हुआ। उनके पिता का नाम मेहता कालू राम जी तथा माता का नाम तृप्ता जी था।
बाल्यकाल तथा शिक्षा-बालक नानक को 7 वर्ष की आयु में उन्हें गोपाल पण्डित की पाठशाला में पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ दो वर्षों तक उन्होंने देवनागरी तथा गणित की शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् उन्हें पण्डित बृज लाल के पास संस्कृत पढ़ने के लिए भेजा गया। वहाँ गुरु जी ने ‘ओ३म’ शब्द का वास्तविक अर्थ बताकर पण्डित जी को चकित .कर दिया। सिक्ख परम्परा के अनुसार उन्हें अरबी तथा फ़ारसी पढ़ने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास भी भेजा गया।

जनेऊ की रस्म-अभी गुरु नानक देव जी की शिक्षा चल ही रही थी कि उनके माता पिता ने सनातनी रीति-रिवाजों के अनुसार उन्हें जनेऊ पहनाना चाहा। परन्तु गुरु साहिब ने जनेऊ पहनने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि उन्हें सूत के बने धागे के जनेऊ की नहीं, बल्कि सद्गुणों के धागे से बने जनेऊ की आवश्यकता है।

विभिन्न व्यवसाय-पढ़ाई में गुरु नानक देव जी की रुचि न देख कर उनके पिता जी ने उन्हें पशु चराने के लिए भेजा। वहाँ भी गुरु नानक देव जी प्रभु चिन्तन में मग्न रहते और पशु दूसरे किसानों के खेतों में चरते रहते थे। किसानों की शिकायतों से तंग आकर मेहता कालू राम जी ने गुरु नानक देव जी को व्यापार में लगाने का प्रयास किया। उन्होंने श्री गुरु नानक देव जी को 20 रुपये देकर व्यापार करने भेजा, परन्तु गुरु जी ने ये रुपये भूखे साधुओं को भोजन कराने में व्यय कर दिये। यह घटना सिक्ख इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
विवाह-अपने पुत्र की सांसारिक विषयों में रुचि न देखकर मेहता कालू राम जी निराश हो गए। उन्होंने इनका विवाह बटाला के खत्री मूलराज की सुपुत्री सुलखनी से कर दिया। इस समय गुरु जी की आयु केवल 15 वर्ष की थी।

उनके यहां श्री चन्द और लक्षमी दास नामक दो पुत्र भी पैदा हुए। मेहता कालू राम जी ने गुरु जी को नौकरी के लिए सुल्तानपुर लोधी भेज दिया। वहाँ उन्हें नवाब दौलत खाँ के अनाज घर में नौकरी मिल गई। वहाँ उन्होंने ईमानदारी से काम किया। फिर भी उनके विरुद्ध नवाब से शिकायत की गई। परन्तु जब जांच-पड़ताल की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक था।

ज्ञान-प्राप्ति-गुरु जी प्रतिदिन प्रातःकाल ‘काली बेईं’ नदी पर स्नान करने जाया करते थे। वहां वह कुछ समय प्रभु चिन्तन भी करते थे। एक प्रातः जब वह स्नान करने गए तो निरन्तर तीन दिन तक अदृश्य रहे। इसी चिन्तन की मस्ती में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। अब वह जीवन के रहस्य को भली-भान्ति समझ गए। उस समय उनकी आयु 30 वर्ष की थी। शीघ्र ही उन्होंने अपना प्रचार कार्य आरम्भ कर दिया। उनकी सरल शिक्षाओं से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गये।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के सुल्तानपुर लोधी के समय का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1486-87 ई० में गुरु साहिब को उनके पिता मेहता कालू राम जी ने स्थान बदलने के लिए सुल्तानपुर लोधी में भेज दिया। वहाँ वह अपने बहनोई (बीबी नानकी के पति) जैराम के पास रहने लगे।
मोदीखाने में नौकरी-गुरु जी को फ़ारसी तथा गणित का ज्ञान तो था। इसलिए उन्हें जैराम की सिफ़ारिश पर सुल्तानपुर लोधी के फ़ौजदार दौलत खाँ के सरकारी मोदीखाने (अनाज का भण्डार) में भण्डारी की नौकरी मिल गई। वहाँ वह अपना काम बड़ी ईमानदारी से करते रहे। फिर भी उनके विरुद्ध शिकायत की गई। शिकायत में कहा गया कि वह अनाज को साधुसन्तों में लुटा रहे हैं। परन्तु जब मोदीखाने की जांच की गई तो हिसाब-किताब बिल्कुल ठीक निकला।

गृहस्थ जीवन तथा प्रभु सिमरण-कुछ समय पश्चात् गुरु नानक साहिब ने अपनी पत्नी को भी सुल्तानपुर में ही बुला लिया। वह वहाँ सादा तथा पवित्र गृहस्थ जीवन बिताने लगे। प्रतिदिन सुबह वह शहर के साथ बहती हुए बेई नदी में स्नान करते, परमात्मा के नाम का स्मरण करते तथा आय का कुछ भाग ज़रूरतमन्दों को सहायता के लिए देते थे।

ज्ञान-प्राप्ति-जन्म साखी के अनुसार एक दिन गुरु नानक साहिब प्रतिदिन की तरह बेई नदी पर स्नान करने गए। परन्तु वह तीन दिन तक घर वापस न पहुँचे। इस पर सुल्तानपुर लोधी में गुरु जी के बेईं नदी में डूब जाने की अफवाह फैल गई। नानक जी के सगे सम्बन्धी तथा अन्य सज्जन चिन्ता में पड़ गए। लोग तरह-तरह की बातें भी बनाने लगे। परन्तु गुरु नानक जी ने वे तीन दिन गम्भीर चिंतन में बिताए। इसी बीच उन्होंने अपने आत्मिक ज्ञान को अन्तिम रूप देकर उसके प्रचार के लिए एक कार्यक्रम तैयार किया।

ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् जब गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी वापस पहुँचे तो वे चुप थे। जब उन्हें बोलने के लिए विवश किया गया तो उन्होंने केवल ये शब्द कहे-‘न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान।’ लोगों ने गुरु साहिब से इस वाक्य का अर्थ पूछा। गुरु साहिब ने इसका अर्थ बताते हुए कहा कि हिन्दू तथा मुसलमान दोनों ही अपने-अपने धर्म के सिद्धान्तों को भूल चुके हैं। इन शब्दों का अर्थ यह भी था कि हिन्दुओं और मुसलमानों में कोई भेद नहीं है। वे एक समान हैं । उन्होंने इन्हीं महत्त्वपूर्ण शब्दों से अपने सन्देश का प्रचार आरम्भ किया। इस उद्देश्य से उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे कर लम्बी यात्राएँ आरम्भ कर दी।

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के प्रारम्भिक जीवन का वर्णन कीजिए ।
उत्तर-
इसके लिए 100-120 शब्दों वाला प्रश्न नं0 3 पढ़ें।

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प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर के बारे में विचारों का वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर का गुणगान गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का मूल मन्त्र है। ईश्वर के विषय में उन्होंने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किए हैं

  1. ईश्वर एक है-गुरु नानक देव जी ने लोगों को ‘एक ओंकार’ का सन्देश दिया। यही उनकी शिक्षाओं का मूल मन्त्र था। उन्होंने लोगों को बताया कि ईश्वर एक है और उसे बांटा नहीं जा सकता। इसलिए गुरु नानक देव जी ने अवतारवाद को स्वीकार नहीं किया। गोकुलचन्द नारंग का कथन है कि गुरु नानक साहिब के विचार में, “ईश्वर विष्णु , शिव, कृष्ण और राम से बहुत बड़ा है और वह इन सबको पैदा करने वाला है।”
  2. ईश्वर निराकार तथा स्वयंभू है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को निराकार बताया। उनका कहना था कि ईश्वर का कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। फिर भी उसके अनेक गुण हैं जिनका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। वह स्वयंभू, अकाल अगम्य तथा अकाल मूर्त है। अत: उसकी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं की जा सकती।
  3. ईश्वर सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है-गुरु नानक देव जी ने ईश्वर को सर्वशक्तिमान् तथा सर्वव्यापी बताया है। उनके अनुसार ईश्वर सृष्टि के प्रत्येक कण में विद्यमान है। उसे मन्दिर अथवा मस्जिद की चारदीवारी में बन्द नहीं रखा जा सकता। तभी तो वह कहते हैं
    “दूजा काहे सिमरिए, जन्मे ते मर जाए।
    एको सिमरो नानका जो जल थल रिहा समाय।”
  4. ईश्वर दयालु है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर दयालु है। वह आवश्यकता पड़ने पर अपने भक्तों को अवश्य सहायता करता है। वह उनके हृदय में निवास करता है। जो लोग अपने आपको ईश्वर के प्रति समर्पित कर देते हैं, उनके सुख-दुःख का ध्यान ईश्वर स्वयं रखता है। वह अपनी असीमित दया से उन्हें आनन्दित करता रहता है।
  5. ईश्वर महान् तथा सर्वोच्च है-गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सबसे महान् और सर्वोच्च है। मनुष्य के लिए उसकी महानता का वर्णन करना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव है। अपनी महानता का रहस्य स्वयं ईश्वर ही जानता है। इस विषय में नानक जी लिखते हैं, “नानक वडा आखीए आप जाणै आप।” अनेक लोगों ने ईश्वर की महानता का बखान करने का प्रयास किया है, परन्तु कोई भी उसकी सर्वोच्चता को नहीं छू सका।
  6. ईश्वर की आज्ञा का महत्त्व-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में ईश्वर की आज्ञा अथवा हुक्म का बहुत महत्त्व है। उनके अनुसार सृष्टि का प्रत्येक कार्य उसी (ईश्वर) के हुक्म से होता है। अतः हमें उसकी प्रत्येक आज्ञा को ‘मिट्ठा भाणा’ समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए।

PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म कहां हुआ था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म लाहौर के दक्षिण-पश्चिम में 64 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तलवण्डी नामक गाँव में हुआ था। आजकल इसे ननकाना साहिब कहते हैं।

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प्रश्न 2.
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने क्या किया?
उत्तर-
सुल्तानपुर में गुरु नानक देव जी ने दौलत खाँ लोधी के मोदीखाने में दस वर्ष तक कार्य किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर क्यों भेजा गया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी को उनकी बहन नानकी तथा जीजा जैराम के पास इसलिए भेजा गया ताकि वह कोई कारोबार कर सकें।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ कहां किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ करतारपुर में किया।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने एक नए भाई-चारे का आरम्भ किन दो संस्थाओं द्वारा किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने इसका श्री गणेश संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाओं द्वारा किया।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उन यात्राओं से है जो उन्होंने एक उदासी के वेश में की।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य अन्ध-विश्वासों को दूर करना तथा लोगों को धर्म का उचित मार्ग दिखाना था।

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प्रश्न 8.
करतारपुर की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर-
करतारपुर की स्थापना 1521 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की।

प्रश्न 9.
करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि कहां से प्राप्त हुई?
उत्तर-
इसके लिए दीवान करोड़ीमल खत्री नामक एक व्यक्ति ने भूमि भेंट में दी थी।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग से भेंट कहां हुई?
उत्तर-
सज्जन ठग से गुरु नानक देव जी की भेंट तुलम्बा में हुई।

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प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी और सज्जन ठग की भेंट का सज्जन पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
गुरु जी के सम्पर्क में आकर सज्जन ने बुरे कर्म छोड़ दिए और वह गुरु जी की शिक्षाओं का प्रचार करने लगा।

प्रश्न 12.
गोरखमता का नाम नानकमता कैसे पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता में गुरु नानक देव जी ने नाथ योगियों को जीवन का वास्तविक उद्देश्य बताया था और उन्होंने गुरु जी की महानता को स्वीकार कर लिया था। इसी घटना के बाद गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के अन्तिम वर्ष कहां व्यतीत हुए?
उत्तर-
गुरु जी के अन्तिम वर्ष करतारपुर में धर्म प्रचार करते हुए व्यतीत हुए।

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की कोई एक शिक्षा लिखो।
उत्तर-
ईश्वर एक है और हमें केवल उसी की पूजा करनी चाहिए।
अथवा
ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु का होना आवश्यक है।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर सम्बन्धी विचार क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है और वह निराकार, स्वयं-भू, सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान्, दयालु तथा महान् है।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी की माताजी का नाम क्या था?
उत्तर-
तृप्ता जी।

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प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी को पढ़ने के लिए किसके पास भेजा गया?
उत्तर-
पण्डित गोपाल के पास।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी द्वारा 20 रुपये से फ़कीरों को भोजन खिलाने की घटना को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
सच्चा सौदा।

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
श्रीचन्द और लक्ष्मीदास।

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प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, (वैशाख मास) 1469 ई० को हुआ।

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कब हुई?
उत्तर-
1499 ई० में।

प्रश्न 22.
पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी (रबाबी) कौन थे?
उत्तर-
भाई मरदाना।

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प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी के प्रताप से किस स्थान का नाम ‘नानकमता’ पड़ा?
उत्तर-
गोरखमता।

प्रश्न 24.
अपनी दूसरी उदासी में गुरु नानक देव जी कहाँ गए?
उत्तर-
भारत के उत्तर में।

प्रश्न 25.
‘धुबरी’ नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात किस से हुई?
उत्तर-
सन्त शंकर देव से।

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प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी कब आरम्भ की?
उत्तर-
1517 ई० में।

प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर एक जादूगरनी को उपदेश दिया?
उत्तर-
कामरूप।

प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी द्वारा मक्का में काबे की ओर पांव करके सोने का विरोध किसने किया?
उत्तर-
काज़ी रुकनुद्दीन ने।

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प्रश्न 29.
गुरुद्वारा पंजा साहिब कहाँ स्थित है?
उत्तर-
सियालकोट में।

प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी का आरम्भ किस स्थान से किया?
उत्तर-
पाकपट्टन से।

प्रश्न 31.
बाबर ने किस स्थान पर गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया?
उत्तर-
सैय्यदपुर।

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प्रश्न 32.
गुरु नानक देव जी ने अपनी किस रचना में बाबर के सैय्यदपुर पर आक्रमण की निन्दा की है?
उत्तर-
बाबर-वाणी में।

प्रश्न 33.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अन्तिम 18 साल कहाँ व्यतीत किए?
उत्तर-
करतारपुर में।

प्रश्न 34.
परमात्मा के बारे में गुरु नानक देव जी के विचारों का सार उनकी किस वाणी में मिलता है?
उत्तर-
जपुजी साहिब में।

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प्रश्न 35.
लंगर प्रथा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सभी लोगों द्वारा बिना किसी भेदभाव के एक स्थान पर बैठ कर भोजन करना।

प्रश्न 36.
सिक्ख धर्म के संस्थापक अथवा सिक्खों के पहले गुरु कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 37.
गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत कब समाए?
उत्तर-
22 सितम्बर, 1539।

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प्रश्न 38.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब की जनता पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उनकी शिक्षाओं के प्रभाव से मूर्ति पूजा तथा अनेक देवी-देवताओं की पूजा कम हुई और लोग एक ईश्वर की उपासना करने लगे।
अथवा
उनकी शिक्षाओं से हिन्दू तथा मुसलमान अपने धार्मिक भेद-भाव भूल कर एक-दूसरे के समीप आए।

प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी ने बाबर के किस हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने बाबर के भारत पर तीसरे हमले की तुलना ‘पापों की बारात’ से की है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. गुरु नानक देव जी द्वारा व्यापार के लिए दिए गए 20 रुपयों से साधु-संतों को भोजन कराने को ………….. नामक घटना के नाम से जाना जाता है।
  2. …………… गुरु नानक देव जी की पत्नी थीं।
  3. गुरु नानक देव जी के पुत्रों के नाम …………… तथा …………
  4. गुरु नानक देव जी की ‘वार मल्हार’, ‘वार आसा’ …………… और ……….. नामक चार वाणियां हैं।
  5. गुरु नानक जी का जन्म लाहौर के समीप …………… नामक गांव में हुआ।
  6. गुरुद्वारा पंजा साहिब …………… में स्थित है।

उत्तर-

  1. सच्चा सौदा,
  2. बीबी सुलखनी,
  3. श्रीचंद तथा लक्षमी दास,
  4. जपुजी साहिब, बारह माहा,
  5. तलवंडी,
  6. सियालकोट।

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III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की पत्नी बीबी सुलखनी रहने वाली थीं
(A) बटाला की
(B) अमृतसर की
(C) भठिण्डा की
(D) कीरतपुर साहिब की।
उत्तर-
(A) बटाला की

प्रश्न 2.
करतारपुर की स्थापना की
(A) गुरु अंगद देव जी ने
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने
(C) गुरु रामदास जी ने
(D) गुरु अर्जन देव जी ने।
उत्तर-
(B) श्री गुरु नानक देव जी ने

प्रश्न 3.
सज्जन ठग से श्री गुरु नानक देव जी की भेंट हुई
(A) पटना में
(B) सियालकोट में
(C) तुलम्बा में
(D) करतारपुर में।
उत्तर-
(C) तुलम्बा में

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प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की माता जी थीं
(A) सुलखनी जी
(B) तृप्ता जी
(C) नानकी जी
(D) बीबी अमरो जी।
उत्तर-
(B) तृप्ता जी

प्रश्न 5.
बाबर ने गुरु नानक देव जी को बन्दी बनाया
(A) सियालकोट में
(B) कीरतपुर साहिब में
(C) सैय्यदपुर में
(D) पाकपट्टन में।
उत्तर-
(C) सैय्यदपुर में

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. करतारपुर की स्थापना 1526 ई० के लगभग श्री गुरु नानक देव जी ने की थी।
  2. श्री गुरु नानक देव जी को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति 1499 ई० में हुई।
  3. गुरुद्वारा पंजा साहिब अमृतसर में स्थित है।
  4. श्री गुरु नानक देव जी 22 सितम्बर 1539 ई० को ज्योति जोत समाए।
  5. श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी उदासी 1499 ई० में आरम्भ की।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✗),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. गुरु नानक देव जी — भाई मरदाना
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि — करतारपुर की स्थापना
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी — संत शंकर देव
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई — दीवान करोड़ी मल खत्री।

उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी-करतारपुर की स्थापना,
  2. करतारपुर की स्थापना के लिए भूमि-दीवान करोड़ी मल खत्री,
  3. पहली उदासी में गुरु नानक देव जी के साथी-भाई मरदाना,
  4. धुबरी नामक स्थान पर गुरु नानक देव जी की मुलाकात हुई-संत शंकर देव।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु नानक साहिब की यात्राओं अथवा उदासियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब ने अपने संदेश के प्रसार के लिए कुछ यात्राएं की। उनकी यात्राओं को उदासियां भी कहा जाता है। इन यात्राओं को चार हिस्सों अथवा उदासियों में बांटा जाता है। यह समझा जाता है कि इस दौरान गुरु नानक साहिब ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम् तक तथा पश्चिम में पाकपट्टन से लेकर पूर्व में असम तक की यात्रा की थी। वे सम्भवतः भारत से बाहर श्रीलंका, मक्का, मदीना तथा बग़दाद भी गये थे। उनके जीवन के लगभग बीस वर्ष ‘उदासियों’ में गुजरे। अपनी सुदूर ‘उदासियों’ में गुरु साहिब विभिन्न धार्मिक विश्वासों वाले अनेक लोगों के सम्पर्क में आए। ये लोग भांति-भांति की संस्कार विधियों और रस्मों का पालन करते थे। गुरु नानक साहिब ने इन सभी लोगों को धर्म का सच्चा मार्ग दिखाया।

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प्रश्न 2.
गुरु नानक साहिब ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खण्डन किया?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब का विचार था कि बाहरी कर्मकाण्डों में सच्ची धार्मिक श्रद्धा-भक्ति के लिए कोई स्थान नहीं था। इसलिए गुरु साहिब ने कर्मकाण्डों का खण्डन किया। ये बातें थीं-वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा और मानव जीवन के महत्त्वपूर्ण अवसरों से सम्बन्धित संस्कार विधियां और रीति-रिवाज। गुरु नानक देव जी ने जोगियों की पद्धति को भी अस्वीकार कर दिया। इसके दो मुख्य कारण थे-जोगियों द्वारा परमात्मा के प्रति व्यवहार में श्रद्धा-भक्ति का अभाव और अपने मठवासी जीवन में सामाजिक दायित्व से विमुखता। गुरु नानक देव जी ने वैष्णव भक्ति को भी स्वीकार नहीं किया और अपनी विचारधारा में अवतारवाद को भी कोई स्थान नहीं दिया। इसके अतिरिक्त उन्होंने मुल्ला लोगों के विश्वासों, प्रथाओं तथा व्यवहारों का खण्डन किया।

प्रश्न 3.
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ क्या थे?
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के संदेश के सामाजिक अर्थ बड़े महत्त्वपूर्ण थे। उनका सन्देश सभी के लिए था। प्रत्येक स्त्री-पुरुष उनके बताये मार्ग को अपना सकता था। इसमें जाति-पाति या धर्म का कोई भेद-भाव नहीं था। इस प्रकार वर्ण व्यवस्था के जटिल बन्धन टूटने लगे और लोगों में समानता की भावना का संचार हुआ। गुरु साहिब ने अपने आपको जनसाधारण के साथ सम्बन्धित किया। इसी कारण उन्होंने अपने समय के शासन में प्रचलित अन्याय, दमन और भ्रष्टाचार का बड़ा ज़ोरदार खण्डन किया। फलस्वरूप समाज अनेक कुरीतियों से मुक्त हो गया।

प्रश्न 4.
श्री गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने लोगों को ये शिक्षाएं दी –

  1. ईश्वर एक है। वह सर्वशक्तिमान् और सर्वव्यापी है।
  2. जाति-पाति का भेदभाव मात्र दिखावा है। अमीर-ग़रीब, ब्राह्मण, शूद्र सभी समान हैं।
  3. शुद्ध आचरण मनुष्य को महान् बनाता है।
  4. ईश्वर भक्ति सच्चे मन से करनी चाहिए।
  5. गुरु नानक देव जी ने सच्चे गुरु को महान् बताया। उनका विश्वास था कि प्रभु को प्राप्त करने के लिए सच्चे गुरु का होना आवश्यक है।
  6. मनुष्य को सदा नेक कमाई खानी चाहिए।
  7. नारी का स्थान बहुत ऊंचा है। वह बड़े-बड़े महापुरुषों को जन्म देती है। इसलिए सभी को स्त्री का सम्मान करना चाहिए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
एक शिक्षक तथा सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी का वर्णन करो ।
उत्तर-
(क) महान् शिक्षक के रूप में

  1. सत्य के प्रचारक-गुरु नानक देव जी एक महान् शिक्षक थे। कहते हैं कि लगभग 30 वर्ष की आयु में उन्हें सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके पश्चात् उन्होंने देश-विदेश में सच्चे ज्ञान का प्रचार किया। उन्होंने ईश्वर के संदेश को पंजाब के कोने-कोने में फैलाने का प्रयत्न किया। प्रत्येक स्थान पर उनके व्यक्तित्व तथा वाणी का लोगों पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा। गुरु नानक देव जी ने लोगों को मोह-माया, स्वार्थ तथा लोभ को छोड़ने की शिक्षा दी और उन्हें आध्यात्मिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरणा दी। गुरु नानक देव जी के उपदेश देने का ढंग बहुत ही अच्छा था। वह लोगों को बड़ी सरल भाषा में उपदेश देते थे। वह न तो गूढ़ दर्शन का प्रचार करते थे और न ही किसी प्रकार के वाद-विवाद में पड़ते थे। वह जिन सिद्धान्तों पर स्वयं चलते थे उन्हीं का लोगों में प्रचार भी करते थे।
  2. सब के गुरु-गुरु नानक देव जी के उपदेश किसी विशेष सम्प्रदाय, स्थान अथवा लोगों तक सीमित नहीं थे, अपितु उनकी शिक्षाएं तो सारे संसार के लिए थीं। इस विषय में प्रोफैसर करतार सिंह के शब्द भी उल्लेखनीय हैं। वह लिखते हैं-“उनकी (गुरु नानक देव जी) शिक्षा किसी विशेष काल के लिए नहीं थी। उनका दैवी उपदेश सदा अमर रहेगा। उनके उपदेश इतने विशाल तथा बौद्धिकतापूर्ण थे कि आधुनिक वैज्ञानिक विचारधारा भी उन पर टीका टिप्पणी नहीं कर सकती।” उनकी शिक्षाओं का उद्देश्य मानव-कल्याण था। वास्तव में, मानवता की भलाई के लिए ही उन्होंने चीन, तिब्बत, अरब आदि देशों की कठिन यात्राएं कीं।

(ख) सिक्ख धर्म के संस्थापक के रूप में गुरु नानक देव जी ने सिक्ख धर्म की नींव रखी। टाइनबी (Toynbee) जैसा इतिहासकार इस बात से सहमत नहीं है। वह लिखता है कि सिक्ख धर्म हिन्दू तथा इस्लाम धर्म के सिद्धान्तों का मिश्रण मात्र था, परन्तु टाइनबी का यह विचार ठीक नहीं है। गुरु जी के उपदेशों में बहुत-से मौलिक सिद्धान्त ऐसे भी थे जो न तो हिन्दू धर्म से लिए गए थे और न ही इस्लाम धर्म से। उदाहरणतया, गुरु नानक देव जी ने ‘संगत’ तथा ‘पंगत’ की संस्थाओं को स्थापित किया। इसके अतिरिक्त गुरु नानक देव जी ने अपने किसी भी पुत्र को अपना उत्तराधिकारी न बना कर भाई लहना जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। ऐसा करके गुरु जी ने गुरु संस्था को एक विशेष रूप दिया और अपने इन कार्यों से उन्होंने सिक्ख धर्म की नींव रखी।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी (यात्रा) 1514 ई० में आरम्भ की। इस बार वह उत्तर दिशा में गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी निम्नलिखित स्थानों पर गए —

  1. हिमाचल प्रदेश-गुरु जी ने पंजाब के प्रदेशों में से गुजरते हुए आधुनिक हिमाचल प्रदेश में प्रवेश किया। वहाँ पर सबसे पहले उनकी भेंट पीर बुड्डन शाह से हुई। वह पीर गुरु जी का अनुयायी बन गया। हिमाचल में गुरु जी बिलासपुर, मंडी, सुकेत, रिवालसर, ज्वाला जी, कांगड़ा, कुल्लू, स्पीति आदि स्थानों पर गए और वहाँ के विभिन्न सम्प्रदायों के लोगों को अपना शिष्य बनाया।
  2. तिब्बत-स्पीति घाटी पार करके गुरु नानक साहिब ने तिब्बत में प्रवेश किया। जब वह मानसरोवर झील तथा कैलाश पर्वत पर पहुँचे तो यहां पर उन्होंने अनेक सिद्ध योगियों से भेंट की। गुरु जी ने उन्हें उपदेश दिया कि पहाड़ों पर बैठने से कोई लाभ नहीं। उन्हें मैदानों में जाकरं अज्ञान के अन्धेरे में भटक रहे लोगों को ज्ञान का मार्ग दिखाना चाहिए।
  3. लद्दाख-कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु जी लद्दाख गए। वहाँ पर अनेक श्रद्धालुओं ने उनकी याद में एक गुरुद्वारे का निर्माण किया।
  4. कश्मीर-सकारदू तथा कारगिल होते हुए गुरु जी कश्मीर में अमरनाथ की गुफ़ा में गए। इसके बाद वह पहलगांव तथा मटन नामक स्थानों पर पहुंचे। मटन में उनकी भेंट पण्डित ब्रह्मदास से हुई जो वेद-शास्त्रों का बहुत बड़ा ज्ञानी माना जाता था। गुरु जी ने उसे उपदेश दिया कि केवल शास्त्रों को पढ़ लेने मात्र से ही मोक्ष प्राप्त नहीं हो जाता। यहाँ से गुरु जी बारामूला, अनंतनाग तथा श्रीनगर भी गए।
  5. हसन अब्दाल-कश्मीर से वापस आते हुए गुरु जी रावलपिंडी के उत्तर-पश्चिम में स्थित हसन अब्दाल नामक स्थान पर ठहरे। वहाँ उन्हें एक अहंकारी मुसलमान फ़कीर वली कंधारी ने पहाड़ी से पत्थर फेंक कर मारने का प्रयास किया। परन्तु गुरु जी ने उस पत्थर को अपने पंजे से रोक लिया। आजकल वहां एक सुन्दर गुरुद्वारा पंजा साहिब बना हुआ है।
  6. सियालकोट-जेहलम तथा चिनाब नदियों को पार करने के पश्चात् गुरु नानक साहिब सियालकोट पहुँचे। वहाँ पर भी उन्होंने अपने प्रवचनों से अपने श्रद्धालुओं को प्रभावित किया। अंत में गुरु जी अपने निवास स्थान करतारपुर में चले गए।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 3 गुरु नानक देव जी तथा उनकी शिक्षाएं

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने तीसरी उदासी (यात्रा) 1517 ई० में आरम्भ की। इस बार उन्होंने एक मुस्लिम हाजी वाला नीला पहरावा धारण किया। इस बार वह पश्चिमी एशिया की ओर गए। मरदाना भी उनके साथ था। इस यात्रा में वह निम्नलिखित स्थानों पर गए

  1. पाकपट्टन तथा मुल्तान-सर्वप्रथम गुरु साहिब पाकपट्टन पहुंचे। यहाँ शेख ब्रह्म से मिलने के उपरान्त वह मुल्तान पहुँचे। यहाँ पर उनकी भेंट प्रसिद्ध सूफ़ी सन्त शेख बहाउद्दीन से हुई जो गुरु जी के विचारों से अत्यन्त प्रभावित हुआ।
  2. मक्का-गुरु नानक देव जी उच्च शुकर, मियानी तथा हिंगलाज नामक स्थानों पर प्रचार करते हुए हजरत मुहम्मद के जन्म स्थान मक्का पहुँचे। वहाँ गुरु जी काबे की ओर पाँव करके सो गए। वहाँ के काज़ी रुकनुद्दीन ने गुरु जी के ऐसा करने पर आपत्ति प्रकट की। परन्तु गुरु जी शांत रहे। उन्होंने काजी से प्रेमपूर्वक ये शब्द कहे- “आप मेरे पाँव उठा कर उस ओर कर दें, जिधर अल्लाह नहीं है।” काजी तुरन्त समझ गया कि अल्लाह का निवास हर जगह है।
  3. मदीना-मक्का के बाद गुरु जी मदीना पहुँचे। यहाँ पर उन्होंने हज़रत मुहम्मद की कब्र देखी। गुरु जी ने यहाँ इमाम आज़िम खान से धार्मिक विषय पर बातचीत भी की और अनेक लोगों को अपने विचारों से प्रभावित किया।
  4. बग़दाद-मदीना से गुरु जी ने बग़दाद की ओर प्रस्थान किया। वहां वह शेख बहलोल लोधी से मिले। वह उनकी वाणी से प्रभावित होकर उनका शिष्य बन गया। गुरु जी की इस यात्रा की पुष्टि नगर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित शेख बहलोल के मकबरे पर अरबी भाषा में अंकित शब्दों से होती है।
  5. काबुल-बग़दाद से गुरु जी तेहरान तथा कन्धार होते हुए काबुल पहुँचे। काबुल में उस समय बाबर (मुग़ल बादशाह) का राज्य था। यहाँ पर गुरुजी ने अपने उपदेशों का प्रचार किया और अनेक लोगों को अपना श्रद्धालु बनाया।
  6. सैय्यदपुर-काबुल से दर्रा खैबर पार करके गुरु नानक देव जी पेशावर, हसन अब्दाल तथा गुजरात होते हुए सैय्यदपुर पहुंचे। उस समय सैय्यदपुर पर बाबर ने आक्रमण किया हुआ था। इस आक्रमण के समय बाबर ने सैय्यदपुर के लोगों पर बड़े अत्याचार किए। उसने अनेक लोगों को बन्दी बना लिया। गुरु नानक साहिब भी इन में से एक थे। जब बाबर को इस बात का पता चला तो वह स्वयं गुरु जी को मिलने के लिए आया। वह गुरु जी के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने गुरु जी सहित अनेक बंदियों को मुक्त कर दिया। गुरु नानक देव जी ने ‘बाबरवाणी’ में बाबर के इस आक्रमण की घोर निन्दा की है। उन्होंने इसकी तुलना पाप की बारात से की है।
    गुरु नानक देव जी ने अपनी अन्तिम उदासी (यात्रा) 1521 ई० में पूर्ण की। इसके बाद वह पंजाब के आस-पास ही यात्राएं करते रहे। उन्होंने अपने जीवन के अन्तिम 18 वर्ष करतारपुर में अपने परिवार के साथ एक आदर्श गृहस्थी के रूप में ही व्यतीत किए।