PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 4 सामाजिक समूह

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न । (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
किसने समूह की दो किस्मों, अन्तःसमूह और बाह्य समूह का वर्णन किया है ?
उत्तर-
डब्ल्यू०जी० समनर (W.G. Sumner) ने अन्तःसमूह तथा बाह्य समूह का जिक्र किया था।

प्रश्न 2.
अन्तःसमूह के दो उदाहरण के नाम बताओ।
उत्तर-
परिवार तथा खेलसमूह अन्तर्समूहों की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 3.
बाह्य समूह के दो उदाहरणे के नाम बताओ।
उत्तर-
पिता का दफ्तर तथा माता का स्कूल बाह्य समूह की उदाहरणें हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
‘संदर्भ समूह’ की अवधारणा किसने दी है ?
उत्तर-
संदर्भ समूह का संकल्प प्रसिद्ध समाजशास्त्री राबर्ट के० मर्टन (Robert K. Merton) ने दिया था।

प्रश्न 5.
हम भावना क्या है ?
उत्तर-
हम भावना व्यक्ति में वह भावना है जिससे वह अपने समूहों के साथ स्वयं को पहचानता है कि वह उस समूह का सदस्य है।

प्रश्न 6.
सी० एच० कूले के द्वारा दिए गए प्राथमिक समूहों के उदाहरणों के नाम बताओ।
उत्तर-
परिवार, पड़ोस तथा खेल समूह ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक समूहों को परिभाषित करो।
उत्तर-
आगबर्न तथा निमकाफ के अनुसार, “जब कभी भी दो या अधिक व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तो वह एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह से आप क्या समझते हो उदाहरण सहित बताओ ?
उत्तर-
वह समूह जिनके साथ हमारी शारीरिक रूप से नज़दीकी होती है, जिनमें हम अपनेपन को महसूस करते हैं तथा जहां हम रहना पसंद करते हैं, प्राथमिक समूह होते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, पड़ोस, खेल समूह इत्यादि।

प्रश्न 3.
द्वितीय समूह से आप क्या समझते हो उदाहरण सहित बताओ ?
उत्तर-
वह समूह जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से किसी उद्देश्य के कारण लेते हैं तथा उद्देश्य की पूर्ति होने पर सदस्यता छोड़ देते हैं, द्वितीय समूह होते हैं। यह अस्थायी होते हैं। उदाहरण के लिए राजनीतिक दल।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
अन्तःसमूह तथा बाह्य समूह के बीच दो अंतर बताओ।
उत्तर-

  1. अन्तःसमूह में अपनेपन की भावना होती है परन्तु बाह्य समूह में इस भावना की कमी पाई जाती
  2. व्यक्ति अन्त:समूह में रहना पसंद करता है जबकि बाह्य समूह में रहना उसे पसंद नहीं होता।

प्रश्न 5.
द्वितीय समूह की विशेषताओं को बताओ।
उत्तर-

  • द्वितीय समूहों की सदस्यता उद्देश्यों पर आधारित होती है।
  • द्वितीय समूहों की सदस्यता अस्थायी होती है तथा व्यक्ति उद्देश्य की पूर्ति होने के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ देता है।
  • द्वितीय समूहों का औपचारिक संगठन होता है।
  • द्वितीय समूहों के सदस्यों के बीच अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।

प्रश्न 6.
प्राथमिक समूहों की विशेषताओं को बताओ।
उत्तर-

  • इनके सदस्यों के बीच शारीरिक नज़दीकी होती है तथा आकार सीमित होता है।
  • यह समूह अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं।
  • इनके सदस्यों के बीच स्वार्थ वाले संबंध नहीं होते।
  • इनके सदस्यों के बीच संबंधों में निरंतरता होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
1. सामाजिक समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध पाए जाते हैं। सामाजिक समूह व्यक्तियों की एकत्रता को नहीं कहा जाता बल्कि समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्धों के कारण यह सामाजिक समूह कहलाता है। यह आपसी सम्बन्ध अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप पाया जाता है।

2. समूह में एकता की भावना भी पाई जाती है। सामाजिक समूह के सदस्यों में एकता की भावना के कारण ही व्यक्ति आपस में एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। इस कारण हमदर्दी व प्यार भी इसके तत्त्व हैं।

3. समूह के सदस्यों में हम भावना पाई जाती है व उनमें अपनत्व की भावना का विकास होता है और वह एक-दूसरे की मदद करते हैं।

4. समूह का अपने सदस्यों के व्यवहारों पर नियन्त्रण होता है व यह नियन्त्रण, परम्पराओं, प्रथाओं, नियमों आदि द्वारा पाया जाता है।

5. समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्धों के कारण अन्तक्रिया होती है, जिस कारण वे आपस में बहुत नज़दीकी से जुड़े होते हैं।

6. समूह के सदस्यों में साझेपन की भावना होती है, जिससे उनके विचार साझे होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह का महत्त्व लिखें।
उत्तर-

  • प्राथमिक समूह में व्यक्ति व समाज दोनों का विकास होता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति के अनुभवों में से पहला समूह यह ही पाया जाता है।
  • समाजीकरण की प्रक्रिया भी इस समूह से सम्बन्धित है।
  • व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है क्योंकि समूह व्यक्ति में सामाजिक गुण भरता है।
  • व्यक्ति इसके अधीन अपने समाज के परिमापों, मूल्यों, परम्पराओं, रीति-रिवाजों इत्यादि का भी ज्ञान प्राप्त करता है।
  • व्यक्ति सबसे पहले इसका सदस्य बनता है।
  • सामाजिक नियन्त्रण का आधार भी प्राथमिक समूह में होता है जिसमें समूह के हित को अधिक महत्त्व दिया जाता है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों के बीच क्या अंतर हैं ?
उत्तर-

  1. प्राथमिक समूह आकार में छोटे होते हैं व द्वितीय समूह आकार में बड़े होते हैं।
  2. प्राथमिक समूह में सम्बन्ध प्रत्यक्ष, निजी व अनौपचारिक होते हैं पर द्वितीय समूहों में सम्बन्ध अप्रत्यक्ष व औपचारिक होते हैं।
  3. प्राथमिक समूहों के सदस्यों में सामूहिक सहयोग की भावना पाई जाती है पर द्वितीय समूहों में सदस्य एकदूसरे से सहयोग केवल अपने विशेष हितों को ध्यान में रख कर करते हैं।
  4. प्राथमिक समूह के सदस्यों में आपसी सम्बन्ध की अवधि बहुत लम्बी होती है पर द्वितीय समूहों में अवधि की कोई सीमा निश्चित नहीं होती यह कम भी हो सकती है व अधिक भी।
  5. प्राथमिक समूह अधिकतर गांवों में पाए जाते हैं पर द्वितीय समूह प्रायः शहरों में पाए जाते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
अन्तर्समूह की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
समनर द्वारा वर्गीकृत समूह सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में पाए जाते हैं क्योंकि इनके द्वारा व्यक्तित्व भी प्रभावित होता है। अन्तर्समूहों को ‘हम समूह’ (We groups) भी कहा जाता है। समूह को व्यक्ति अपना समझता है। व्यक्ति इन समूहों से सम्बन्धित भी होता है। मैकाइवर व पेज (MacIver & Page) ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ (Society) में अन्तर्समूहों का अर्थ उन समूहों से लिया है जिनसे व्यक्ति अपने आप मिल लेता है। उदाहरण के तौर पर जाति, धर्म, परिवार, कबीला, लिंग इत्यादि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके बारे में व्यक्ति को पूर्ण ज्ञान होता है।

अन्तर्समूहों की प्रकृति शांत होती है व आपसी सहयोग, आपसी मिलनसार, सद्भावना आदि जैसे गुण पाए जाते हैं। अन्तर्समूहों में व्यक्ति का बाहर वालों के प्रति दृष्टिकोण दुश्मनी वाला होता है। इन समूहों में मनाही भी होती है। कई बार लड़ाई करने के समय लोग फिर समूह से जुड़ कर दूसरे समूह का मुकाबला करने लग जाते हैं। अन्तर्समूहों में ‘हम की भावना’ पाई जाती है।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह से तुम क्या समझते हैं ? विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
समूह का अर्थ (Meaning of Group)—साधारण व्यक्ति समूह शब्द को रोज़ाना बोल-चाल की भाषा में प्रयोग करते हैं। साधारण मनुष्य समूह शब्द का एक अर्थ नहीं निकालते बल्कि अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। जैसे यदि हमें किसी वस्तु का लोगों पर प्रभाव अध्ययन करना है तो हमें उस वस्तु को दो समूहों में रख कर अध्ययन करना पड़ेगा। एक तो वह समूह है जो उस वस्तु का प्रयोग करता है एवं दूसरा वह समूह जो उस वस्तु का प्रयोग नहीं करता है। दोनों समूहों के लोग एक-दूसरे के करीब भी रहते हो सकते हैं व दूर भी, परन्तु हमारे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यदि हमारे उद्देश्य भिन्न हैं तो समूह भी भिन्न हो सकते हैं। इस प्रकार आम शब्दों में व साधारण व्यक्ति के लिए मनुष्यों का एकत्र समूह होता है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी रोज़ाना ज़िन्दगी समूह के बीच भाग लेने से सम्बन्धित होती है। सबसे प्रथम परिवार में, परिवार से बाहर निकल कर दूसरे समूहों के बीच वह शामिल हो जाता है। इस सामाजिक समूह के बीच व्यक्तियों की अर्थपूर्ण क्रियाएं पाई जाती हैं। व्यक्ति केवल इन समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपनी आवश्यकताओं को भी पूर्ण करता है किन्तु प्रश्न यह है कि समूह के अर्थ क्या हैं ? एक आम आदमी के अर्थों से समाज शास्त्र के अर्थों में अन्तर है। साधारण व्यक्ति के लिए कुछ व्यक्तियों का एकत्र समूह है, पर समाजशास्त्र के लिए नहीं है। समाजशास्त्र में समूह में कुछ व्यक्तियों के बीच निश्चित सम्बन्ध होते हैं एवं उन सम्बन्धों का परिणाम भाईचारे व प्यार की भावना में निकलता है।

समूह की परिभाषाएं (Definitions of Group) –
1. बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “एक सामाजिक समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों को कहते हैं जिनका ध्यान कुछ साझे लक्ष्यों पर होता है और जो एक-दूसरे को प्रेरणा देते हों, जिनमें साझी भावना हो और जो साझी क्रियाओं में शामिल हों।”

2. सैन्डर्सन (Sanderson) के अनुसार, “समूह दो या दो से अधिक सदस्यों की एकत्रता है जिसमें मनोवैज्ञानिक अन्तर्कार्यों का एक निश्चित ढंग पाया जाता है तथा अपने विशेष प्रकार के सामूहिक व्यवहार के कारण अपने सदस्यों व ज्यादातर दूसरों द्वारा भी इसको वास्तविक समझा जाता है।”

3. गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सामाजिक समूह की उत्पत्ति के लिए एक ऐसी परिस्थिति का होना अनिवार्य है जिससे सम्बन्धित व्यक्तियों में अर्थपूर्ण अन्तर उत्तेजना व अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया हो सके जिसमें सामान्य उत्तेजनाएं व हितों पर सब का ध्यान केन्द्रित हो सके व कुछ सामान्य प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं व भावनाओं का विकास हो सके।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कुछ व्यक्तियों की एकत्रता, जो शारीरिक तौर पर तो नज़दीक हैं परन्तु वह एक-दूसरे के साझे हितों की प्राप्ति के लिए सहयोग नहीं करते व एक-दूसरे के आपसी अन्तक्रिया द्वारा प्रभावित नहीं करते, उन्हें समूह नहीं कह सकते। इसे केवल एकत्र या लोगों की भीड़ कहा जा सकता है। समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों के जोड़ या एकत्र को कहते हैं जो एक समान हों व जिसके सदस्यों में आपसी सामाजिक क्रिया-प्रतिक्रिया, सामाजिक सम्बन्ध, चेतनता, सामान्य हित, प्रेरक, स्वार्थ, उत्तेजनाएं व भावनाएं होती हैं।

इस तरह समूह के सदस्य एक-दूसरे से बन्धे रहते हैं व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक समूह के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी पाया जाता है। सामाजिक समूह के बीच शारीरिक नज़दीकी ही नहीं बल्कि साझे आकर्षण की चेतनता भी पाई जाती है। इसमें सामान्य हित व स्वार्थ भी होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों का आप किस प्रकार वर्णन करोगे ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह (Primary Groups)-चार्ल्स कूले एक अमेरिकी समाजशास्त्री था जिसने प्राथमिक व सैकण्डरी समूहों के बीच सामाजिक समूहों का वर्गीकरण किया। प्रत्येक समाजशास्त्री ने किसी-न-किसी रूप में इस वर्गीकरण को स्वीकार किया है। प्राथमिक समूह में कूले ने बहुत ही नज़दीकी सम्बन्धों को शामिल किया है जैसे, आस-पड़ोस, परिवार, खेल समूह आदि। उसके अनुसार इन समूहों के बीच व्यक्ति के सम्बन्ध बहुत प्यार, आदर, हमदर्दी व सहयोग वाले होते हैं । व्यक्ति इन समूहों के बीच बिना झिझक के काम करता है। यह समूह स्वार्थ की भावना रहित होते हैं। इनमें ईर्ष्या, द्वेष वाले सम्बन्ध नहीं होते। व्यक्तिगत भावना के स्थान पर इनमें सामूहिक भावना होती है। व्यक्ति इन समूहों के बीच प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। चार्ल्स कूले (Charles Cooley) ने प्राथमिक समूह के बारे अपने निम्नलिखित विचार दिए हैं-

“प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ उन समूहों से है जिनमें विशेषकर आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं। यह प्राथमिक कई अर्थों में हैं परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में कि व्यक्ति के स्वभाव व आदर्श का निर्माण करने में मौलिक हैं। इन गहरे व सहयोगी सम्बन्धों के परिणामस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई उद्देश्यों के लिए व्यक्ति का स्वयं ही समूह का साझा जीवन एक उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे सरल तरीका है। इसको ‘हम’ समूह भी कहा जाता है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है एवं ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।”

चार्ल्स कूले के अनुसार प्राथमिक समूह कई अर्थों में प्राथमिक हैं। यह प्राथमिक इसलिए हैं कि यह व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यक्ति का समाज से सम्बन्ध भी इन्हीं द्वारा होता है। आमने-सामने के सम्बन्ध होने के कारण इनमें हमदर्दी, प्यार, सहयोग व निजीपन पाया जाता है। व्यक्ति आपस में इस प्रकार एकदूसरे से बन्धे होते हैं कि उनमें निजी स्वार्थ की भावना ही खत्म हो जाती है। छोटी-मोटी बातों को तो वह वैसे ही नज़र-अन्दाज़ कर देते हैं। आवश्यकता के समय यह एक-दूसरे की सहायता भी करते हैं। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है। कूले के अनुसार, “ये समूह लगभग सारे समय व विकास सभी स्तरों पर सर्वव्यापक रहे हैं। ये मानवीय स्वभाव व मानवीय आदर्शों में जो सर्वव्यापक अंश हैं, उसके मुख्य आधार हैं।” चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों में निम्नलिखित तीन समूहों को महत्त्वपूर्ण बताया-

(1) परिवार (2) खेल समूह (3) पड़ोस
कूले के अनुसार यह तीनों समूह सर्वव्यापक हैं व समाज में प्रत्येक समय व प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति जन्म के पश्चात् अपने आप जीवित नहीं रह सकता इसीलिए उसके पालन-पोषण के लिए परिवार ही प्रथम समूह है जिसमें व्यक्ति स्वयं को शामिल समझता है।

परिवार के बीच रह कर बच्चे का समाजीकरण होता है। बच्चा समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता है अर्थात् प्राथमिक शिक्षा की प्रप्ति उससे परिवार में रह कर ही होती है। व्यक्ति अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं इत्यादि को भी परिवार में रह कर ही प्राप्त करता है। परिवार में व्यक्ति के सम्बन्ध आमने-सामने वाले होते हैं व परस्पर सहयोग की भावना होती है। परिवार के बाद वह अपने आस-पड़ोस के साथ सम्बन्धित हो जाता है, क्योंकि घर से बाहर निकल कर वह आस-पड़ोस के सम्पर्क में आता है। इस प्रकार वह परिवार की भांति प्यार लेता है। उसको बड़ों का आदर करना या किसी से कैसे बात करनी चाहिए इत्यादि का पता लगता है। आस-पड़ोस के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह खेल समूह में आ जाता है। खेल समूह में वह अपनी बराबरी की उम्र के बच्चों में आकर अपने आप को कुछ स्वतन्त्र समझने लग जाता है। खेल समूह में वह अपनी सामाजिक प्रवृत्तियों को रचनात्मक प्रकटीकरण देता है। अलग-अलग खेलों को खेलते हुए वह दूसरों से सहयोग करना भी सीख जाता है। खेल खेलते हुए वह कई नियमों की पालना भी करता है। इससे उसको अनुशासन में रहना भी आ जाता है। वह आप भी दूसरों के व्यवहार अनुसार काम करना सीख लेता है। इससे उसके चरित्र का भी निर्माण होता है। इन सभी समूहों के बीच आमने-सामने के सम्बन्ध व नज़दीकी सम्बन्ध होते हैं। इस कारण इन समूहों को प्राथमिक समूह कहा जाता है।

द्वितीय समूह (Secondary Groups)-चार्ल्स कूले ने दूसरे समूह में द्वितीय समूह का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। आजकल के समाजों में व्यक्ति अपनी ज़रूरतों को प्राथमिक ग्रुप में ही रह कर पूरी नहीं कर सकता। उसे दूसरे व्यक्तियों पर भी निर्भर रहना पड़ता है। इसी कारण द्वितीय ग्रुप की आधुनिक समाज में प्रधानता है। इसी कारण प्राथमिक समूहों की महत्ता भी पहले से कम हो गई है। इन समूहों की जगह दूसरी अन्य संस्थाओं ने भी ले ली है। विशेषकर शहरी समाज में से तो प्राथमिक समूह एक तरह से अलोप हो ही गए हैं। यह समूह आकार में बड़े होते हैं व सदस्यों के आपस में ‘हम’ से सम्बन्ध होते हैं अर्थात् द्वितीय ग्रुप में प्रत्येक सदस्य अपना-अपना काम कर रहा होता है तो भी वह एक-दूसरे के साथ जुड़ा होता है।

इन समूहों के बीच सदस्यों के विशेष उद्देश्य होते हैं जिनकी पूर्ति आपसी सहयोग से हो सकती है। इन समूहों के बीच राष्ट्र, सभाएं, राजनीतिक पार्टियां, क्लब इत्यादि आ जाते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। इनकी उत्पत्ति भी किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही होती है। इसी कारण इस समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे को जानते नहीं होते।

द्वितीय समूह किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विकसित होते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। व्यक्ति अपने स्वार्थ हित की पूर्ति के लिए इसमें दाखिल होता है अर्थात् इस समूह का सदस्य बनता है व उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् इस समूह से अलग हो जाता है। इन समूहों के बीच सदस्यों के आपसी सम्बन्धों में भी बहुत गहराई दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि आकार बड़ा होने से प्रत्येक सदस्य को निजी तौर से जानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा सदस्य के ऊपर गैर-औपचारिक साधनों के द्वारा नियन्त्रण भी होता है। प्रत्येक सदस्य को अपने व्यवहार को इन्हीं साधनों के द्वारा ही चलाना पड़ता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 3.
समाज के सदस्य होने के नाते तुम अन्य समूहों के साथ अन्तर्किया करते हो। आप किस प्रकार इसे समाजशास्त्रीय परिपेक्षय के रूप में देखोगे ?
उत्तर-
हम लोग समाज में रहते हैं तथा समाज में रहते हुए हम कई प्रकार के समूहों से अन्तक्रिया करते ही रहते हैं। अगर हम समाजशास्त्रीय परिप्रेक्षय से देखें तो हम इन्हें कई भागों में विभाजित कर सकते हैं। हम परिवार में रहते हैं, पड़ोस में अन्तक्रिया करते हैं, अपने दोस्तों के समूह के साथ बैठते हैं। यह समूह प्राथमिक होते हैं क्योंकि हम इन समूहों के सदस्यों के साथ प्रयत्क्ष रूप से अन्तर्किया करते हैं क्योंकि हम इनके साथ बैठना पसंद करते हैं। हम इन समूहों के स्थायी सदस्य होते हैं तथा सदस्यों के बीच अनौपचारिक संबंध होते हैं। इन समूहों का हमारे जीवन में काफी अधिक महत्त्व होता है क्योंकि इन समूहों के बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता। व्यक्ति जहाँ मर्जी चला जाए, परिवार, पड़ोस तथा खेल समूह जैसे प्राथमिक समूह उसे प्रत्येक स्थान पर मिल जाएंगे।

प्राथमिक समूहों के साथ-साथ व्यक्ति कुछ ऐसे समूहों का भी सदस्य होता है जिनकी सदस्यता ऐच्छिक होती है तथा व्यक्ति अपनी इच्छा से ही इनका सदस्य बनता है। ऐसे समूहों को द्वितीय समूह कहा जाता है। इस प्रकार के समूहों का एक औपचारिक संगठन होता है जिसके सदस्यों का चुनाव समय समय पर होता रहता है। व्यक्ति इन समूहों का सदस्य किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बनता है तथा वह उद्देश्य प्राप्ति के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ सकता है। राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियन इत्यादि जैसे समूह इसकी उदाहरण हैं।

अगर कोई साधारण व्यक्ति अलग-अलग समूहों के साथ अन्तक्रिया करता है तो उसके लिए इन समूहों का कोई अलग-अलग अर्थ नहीं होगा परन्तु एक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्षय से सभी प्रकार के समूहों को अलग अलग प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है। यहाँ तक कि अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने भी इनके अलग-अलग प्रकार दिए हैं क्योंकि इनके साथ हमारा अन्तक्रिया करने का तरीका भी अलग-अलग होता है।

प्रश्न 4.
‘मानवीय जीवन सामाजिक जीवन होता है। उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
इसमें कोई शक नहीं है कि मनुष्य का जीवन सामूहिक जीवन होता है तथा वह समूह में ही पैदा होता तथा मरता है। जब एक बच्चा जन्म लेता है उस समय वह सबसे पहले परिवार नामक प्राथमिक समूह के सम्पर्क में आता है। मनुष्यों के बच्चे सभी जीवों के बच्चों में से सबसे अधिक समय के लिए अपने परिवार पर निर्भर करते हैं। परिवार अपने बच्चों को पालता-पोसता है तथा धीरे-धीरे उन्हें बड़ा करता है। जिस कारण उसे अपने परिवार के साथ सबसे अधिक प्यार तथा लगाव होता है। परिवार ही बच्चे का समाजीकरण करता है, उन्हें समाज में रहने के तरीके सिखाता है, उनकी शिक्षा का प्रबन्ध करता है, ताकि वह आगे चलकर समाज का अच्छा नागरिक बन सके। इस प्रकार परिवार नामक समूह व्यक्ति को सामूहिक जीवन का प्रथम पाठ पढ़ाता है।

परिवार के बाद बच्चा जिस समूह के सम्पर्क में आता है वह है पड़ोस तथा खेल समूह । छोटे से बच्चे को पड़ोस में लेकर जाया जाता है जहाँ परिवार के अतिरिक्त अन्य लोग भी बच्चे को प्यार करते हैं। बच्चे के ग़लत कार्य करने पर उसे डाँटा जाता है। इसके साथ-साथ बच्चा मोहल्ले के अन्य बच्चों के साथ मिलकर खेल समूह का निर्माण करता है तथा नए-नए नियम सीखता है। खेल समूह में रहकर ही बच्चे में नेता बनने के गुण पनप जाते हैं जोकि सामाजिक जीवन जीने के लिए आवश्यक हैं । यह दोनों समूह भी प्राथमिक समूह होते हैं।

जब बच्चा बड़ा हो जाता है वो यह कई प्रकार के समूहों का सदस्य बनता है जिन्हें द्वितीय समूह कहा जाता है। वह किसी दफ्तर में नौकरी करता है, किसी क्लब, संस्था या सभा का सदस्य बनता है ताकि कुछ उद्देश्यों की पूर्ति की जा सके। वह किसी राजनीतिक दल, ट्रेड यूनियन अथवा अन्य सभा की सदस्यता भी ग्रहण करता है जिससे पता चलता है कि वह जीवन में प्रत्येक समय किसी न किसी समूह का सदस्य बना रहता है। वह अपनी मृत्यु तक बहुत से समूहों का सदस्य बनता रहता है तथा उनकी सदस्यता छोड़ता रहता है।

इस प्रकार ऊपर लिखित व्याख्याओं को देखकर हम कह सकते हैं कि मानवीय जीवन का कोई ऐसा पक्ष नहीं है जब वह किसी न किसी समूह का सदस्य नहीं होता। इस प्रकार मनुष्य का जीवन सामूहिक जीवन होता है तथा समूहों के बिना उसके जीवन का कोई अस्तित्व ही नहीं है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
इनमें से कौन सी प्राथमिक समूह की विशेषता नहीं है ?
(A) स्थिरता
(B) औपचारिक सम्बन्ध
(C) व्यक्तिगत सम्बन्ध
(D) छोटा आकार।
उत्तर-
(B) औपचारिक सम्बन्ध।

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूहों का सामाजिक महत्त्व क्या है ?
(A) यह समाजीकरण की प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
(B) व्यक्ति को प्राथमिक समूह में रहकर सुरक्षा प्राप्त होती है
(C) प्राथमिक समूह सामाजिक नियन्त्रण का प्रमुख आधार है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
द्वितीय समूह में क्या नहीं पाया जाता है ?
(A) प्राथमिक नियन्त्रण
(B) प्रतियोगिता
(C) औपचारिक नियन्त्रण
(D) व्यक्तिवादिता।
उत्तर-
(A) प्राथमिक नियन्त्रण।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 4.
प्राथमिक समूह आकार में कैसे होते हैं ?
(A) बड़े
(B) अनिश्चित
(C) छोटे
(D) असीमित।
उत्तर-
(C) छोटे।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सी सामाजिक समूह की विशेषता है ?
(A) समूह की स्वयं की संरचना
(B) समूह व्यक्तियों का संगठन
(C) समाज का कार्यात्मक विभाजन
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6.
परिवार किस प्रकार का समूह है ?
(A) बर्हिसमूह
(B) द्वितीय समूह
(C) प्राथमिक समूह
(D) चेतन समूह।
उत्तर-
(C) प्राथमिक समूह।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 7.
कौन-से समूह आकार में बड़े होते हैं ?
(A) प्राथमिक समूह
(B) द्वितीय समूह
(C) चेतन समूह
(D) अचेतन समूह।
उत्तर-
(B) द्वितीय समूह।

प्रश्न 8.
इनमें से कौन-सा प्राथमिक समूह है ?
(A) मित्रों का समूह
(B) खेल समूह
(C) परिवार
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 9.
इनमें से कौन-सा द्वितीयक समूह है ?
(A) ट्रेड यूनियन
(B) राजनीतिक दल
(C) वैज्ञानिकों का समूह
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 10.
प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच क्या आवश्यक होता है ?
(A) शारीरिक नज़दीकी
(B) अनौपचारिक सम्बन्ध
(C) सामाजिक प्रबन्ध
(D) लड़ाई।
उत्तर-
(A) शारीरिक नज़दीकी।

प्रश्न 11.
कौन-सा समूह समाजीकरण में अधिक लाभदायक है ?
(A) सन्दर्भ समूह
(B) क्षैतिज समूह
(C) द्वितीय समूह
(D) लम्ब समूह।
उत्तर-
(C) द्वितीय समूह।

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. ………… के अन्तर्समूह तथा बहिर्समूह का वर्गीकरण किया है।
2. ………. अन्तर्समूह की सबसे महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
3. संदर्भ समूह का संकल्प ………. ने दिया था।
4. समूह के सदस्यों के बीच ………. भावना होती है।
5. जो समूह व्यक्ति के काफी नज़दीक होते हैं, उन्हें ……… समूह कहते हैं।
6. ……….. समूह की सदस्यता आवश्यकता के लिए की जाती है।
7. ………. समूहों का औपचारिक संगठन होता है।
उत्तर-

  1. समनर,
  2. परिवार,
  3. राबर्ट मर्टन,
  4. हम,
  5. प्राथमिक,
  6. द्वितीय,
  7. द्वितीय।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

III. सही/गलत (True/False) :

1. व्यक्तियों के इकट्ठ को, जिनसे सामाजिक संबंध होते हैं, समूह कहते हैं।
2. समूह के लिए संबंधों की आवश्यकता नहीं होती।
3. प्राथमिक तथा द्वितीय समूहों का वर्गीकरण कूले ने दिया था।
4. प्राथमिक समूहों में शारीरिक नज़दीकी नहीं होती।
5. द्वितीय समूहों की सदस्यता हितों की पूर्ति के लिए होती है।
6. द्वितीय समूहों में औपचारिक संबंध पाए जाते हैं।
7. प्राथमिक समूहों में गहरे संबंध पाए जाते हैं।
उत्तर-

  1. सही,
  2. गलत,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. सही,
  6. सही,
  7. सही।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
यदि 10 लोग इकटे खड़े हों तो उन्हें हम क्या कहेंगे ?
उत्तर-
यदि 10 लोग इकट्ठे खड़े हों तो उन्हें हम केवल भीड़ ही कहेंगे।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
समूह के लिए क्या आवश्यक है ?
उत्तर-
समूह के लिए व्यक्तियों के बीच सम्बन्ध आवश्यक है।

प्रश्न 3.
संकल्प सन्दर्भ समूह का प्रयोग…………. ने किया था।
उत्तर-
संकल्प सन्दर्भ समूह का प्रयोग हाइमैन ने किया था।

प्रश्न 4.
मनोवैज्ञानिक तौर पर व्यक्ति ……………… समूह से जुड़ा होता है।
उत्तर-
मनोवैज्ञानिक तौर पर व्यक्ति सन्दर्भ समूह से जुड़ा होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 5.
प्राथमिक समूह की आन्तरिक विशेषता क्या है ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह में सम्बन्ध निजी अथवा व्यक्तिगत होते हैं।

प्रश्न 6.
द्वितीय समूह की विशेषता क्या है ?
उत्तर-
द्वितीय समूह में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं, यह आकार में बड़े होते हैं तथा उद्देश्य का विशेषीकरण होता है। .

प्रश्न 7.
प्राथमिक समूह की विशेषता बताएं।
उत्तर-
इसके सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी होती है, आकार छोटा होता है तथा इनमें स्थिरता होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 8.
द्वितीयक समूह की विशेषता बताएं।
उत्तर-
यह आकार में बड़े होते हैं, इनमें औपचारिक संगठन होता है तथा सदस्यों में औपचारिक सम्बन्ध होतेहैं।

प्रश्न 9.
समूह क्या होता है ?
उत्तर-
व्यक्तियों के एकत्र को, जिनमें सामाजिक सम्बन्ध होते हैं, समूह कहते हैं।

प्रश्न 10.
समूह का सबसे बड़ा महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
समूह व्यक्तियों तथा समाज की ज़रूरतें पूर्ण करता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 11.
चार्ल्स कूले ने कितने प्रकार के समूह बताए हैं ?
उत्तर-
चार्ल्स कूले ने दो प्रकार के सामाजिक समूहों का वर्णन किया है-प्राथमिक तथा द्वितीयक समूह।

प्रश्न 12.
प्राथमिक समूह में किस प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह में नज़दीक तथा व्यक्तिगत सम्बन्ध पाए जाते हैं।

प्रश्न 13.
प्राथमिक समूह की उदाहरण दें।
उत्तर-
परिवार, पड़ोस, बच्चों का खेल समूह प्राथमिक समूह की उदाहरणें हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 14.
कूले ने प्राथमिक समूह की कौन-सी उदाहरणे दी हैं ? ।
उत्तर-
कूले के अनुसार परिवार, खेल समूह तथा पड़ोस प्राथमिक समूह की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 15.
द्वितीयक समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जिन की सदस्यता हम अपने हितों की पूर्ति के लिए ग्रहण करते हैं, वह द्वितीयक समूह होते

प्रश्न 16.
किसने अन्तः समूह तथा बाह्या समूह का वर्गीकरण किया था ?
उत्तर-
समनर ने अन्तः समूह तथा बाह्या समूह का वर्गीकरण किया था।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 17.
अन्तः समूह में सदस्यों का व्यवहार कैसा होता है ?
उत्तर-
अन्तः समूह में सदस्यों का व्यवहार प्यार भरा तथा सहयोग वाला होता है।

प्रश्न 18.
बाह्य समूह में सदस्यों का व्यवहार कैसा होता है ?
उत्तर-
बाह्य समूह में सदस्यों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार नफ़रत भरा अथवा हितों से भरपूर होता है।

प्रश्न 19.
प्राथमिक समूह आकार में कैसे होते हैं ?
उत्तर-
प्राथमिक समूह आकार में छोटे तथा सीमित होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 20.
द्वितीयक समूह आकार में ……………. होते हैं।
उत्तर-
द्वितीयक समूह आकार में काफ़ी बड़े होते हैं।

प्रश्न 21.
द्वितीयक समूह की उदाहरण दें।
उत्तर-
दफ़्तर, राजनीतिक दल इत्यादि द्वितीयक समूह की उदाहरणें हैं।

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह।
उत्तर-
समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों का एकत्र है जो एक जैसे हों तथा जिसके सदस्यों के बीच आपसी सामाजिक क्रिया, प्रतिक्रिया संबंध, साझे हित, चेतना, उत्तेजना, स्वार्थ भावनाएं होती हैं तो वह सभी एक-दूसरे से बंधे होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
हम भावना का अर्थ।
उत्तर-
समूह के सदस्यों के बीच अहं की भावना होती है जिस कारण वे सभी एक-दूसरे की सहायता करते हैं। इस कारण उनमें अपनेपन की भावना का विकास होता है तथा एक-दूसरे के समान हितों की रक्षा करते हैं।

प्रश्न 3.
समूह की परिभाषा।
उत्तर-
आगर्बन तथा निमकाफ के अनुसार, “जब कभी भी दो या दो से अधिक व्यक्ति एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं तथा एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं तो वह एक सामाजिक समूह का निर्माण करते हैं।”

प्रश्न 4.
समूह में व्यवहारों की समानता।
उत्तर–
सामाजिक समूहों के बीच इसके सदस्यों में व्यवहारों में समानता दिखाई देती है क्योंकि समूह में सदस्यों के आदर्श, कीमतें, आदतें समान होते हैं। इस कारण इसमें विशेष व्यवहारों का मिलाप पाया जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 5.
कूले का प्राथमिक समूहों का वर्गीकरण।
उत्तर-
चार्ल्स हर्टन कूले के अनुसार प्राथमिक समूह तीन प्रकार के होते हैं-

  1. परिवार समूह (Family)
  2. खेल समूह (Play Group)
  3. पड़ोस (Neighbourhood)।

प्रश्न 6.
प्राथमिक समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जो हमारे सबसे नज़दीक होते हैं, जिनके साथ हमारा रोज़ का उठना, बैठना होता है तथा जिसके सदस्यों के साथ हमारी शारीरिक नज़दीकी होती है, वह प्राथमिक समूह होते हैं। यह आकार में छोटे होते हैं।

प्रश्न 7.
प्राथमिक समूह की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
इन समूहों का आकार छोटा होता है जिस कारण लोग एक-दूसरे को जानने लग जाते हैं। इस कारण इनमें सम्पर्क पैदा होता है तथा उनमें संबंध आमने-सामने होते हैं। इस कारण सामाजिक संबंधों पर भी प्रभाव पड़ता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 8.
द्वितीय समूह क्या होते हैं ?
उत्तर-
वह समूह जो आकार में बड़े होते हैं, जिनके सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी नहीं होती, जो एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानते तथा जिनमें औपचारिक संबंध पाए जाते हैं, वह द्वितीय समूह होते हैं।

प्रश्न 9.
द्वितीय समूह की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक तथा अव्यक्तिगत संबंध होते हैं। इनमें प्राथमिक समूहों की तरह एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता तथा इन समूहों में अपनापन नहीं होता।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह।
उत्तर-
सामाजिक समूह का अर्थ है व्यक्ति का दूसरे व्यक्तियों से सम्पर्क व सम्बन्धित होना। किसी भी स्थान पर यदि व्यक्ति एकत्र हो जाएं तो वह समूह नहीं होगा क्योंकि समूह एक चेतन अवस्था होती है। इसमें केवल शारीरिक नज़दीकी की नहीं बल्कि आपसी भावना व सम्बन्धों का होना ज़रूरी होता है व इसके सदस्यों में सांझापन, परस्पर उत्तेजना, हितों का होना आवश्यक होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
प्राथमिक समूह के बारे में दी गई कूले की परिभाषा।
अथवा
प्राथमिक समूह।
उत्तर-
कूले के अनुसार, “प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ वह समूह है जिनमें ख़ास कर आमने-सामने का गहरा सम्बन्ध व सहयोग होता है। यह प्राथमिक अनेक अर्थों में है परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में एक व्यक्ति के स्वभाव व आदर्शों का निर्माण करने में मौलिक है। इन गहरे व सहयोग सम्बन्धों के फलस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई अन्तरों के लिए व्यक्ति का स्वयं भी समूह का साझा जीवन उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे आसान तरीका इसको ‘हम’ कहने का है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है और ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।

प्रश्न 3.
प्राथमिक समूह की विशेषताएं।
उत्तर-

  • इनमें शारीरिक नज़दीकी पाई जाती है क्योंकि वह व्यक्ति जो एक-दूसरे के नज़दीक होते हैं उनमें विचारों का आदान-प्रदान पाया जाता है। वह एक-दूसरे की मदद भी करते हैं।
  • इन समूहों का आकार छोटा अर्थात सीमित होता है इसी कारण ही व्यक्ति एक-दूसरे को जानने लग जाते हैं। आकार छोटा होने से उनमें सम्पर्क पैदा होता है और उनमें सम्बन्ध गहरे व करीबी पाए जाते हैं जिससे सामाजिक सम्बन्धों पर भी प्रभाव पड़ता है।
  • प्राथमिक समूहों में स्थिरता होती है। नज़दीकी सम्बन्धों के कारण इन समूहों में अधिक स्थिरता रहती है।
  • प्राथमिक समूहों में स्वार्थ सीमित होते हैं। इनमें उस उद्देश्य को मुख्य रखा जाता है जिससे सम्पूर्ण समूह का कल्याण हो।
  • प्राथमिक समूहों में अधिकतर सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना होती है क्योंकि इनमें सदस्यों की गणना कम होती है व प्रत्येक व्यक्ति सामूहिक भावना को लेकर आगे बढ़ता है।

प्रश्न 4.
द्वितीय समूह।
उत्तर-
आधुनिक समाज में व्यक्ति की ज़रूरतें इतनी बढ़ गई हैं जो कि अकेले प्राथमिक ग्रुप का सदस्य बन कर पूरी नहीं हो सकतीं जिस कारण व्यक्ति को दूसरे समूहों का सदस्य भी बनना पड़ता है। इन समूहों में उद्देश्य प्राप्ति ही व्यक्ति का मन्तव्य होता है। इनमें रस्मी सम्बन्ध पाए जाते हैं व इनका आकार भी प्राथमिक की तुलना में बड़ा होता है। इन समूहों में उद्देश्य निश्चित होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 5.
द्वितीय समूह की विशेषताएं।
उत्तर-

  • इनका घेरा विशाल होता है क्योंकि सदस्यों की संख्या काफ़ी होती है।
  • इन समूहों का निर्माण विशेष उद्देश्यों के लिए किया जाता है और इन उद्देश्यों की पूर्ति के कारण ही व्यक्ति इनका मैंबर बनता है।
  • द्वितीय समूहों में व्यक्तियों में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध पाए जाते हैं।
  • इन समूहों में औपचारिक संगठन होता है व इन समूहों के निर्माण के लिए कुछ विशेष नियम बनाए जाते हैं व प्रत्येक सदस्य को इन लिखित नियमों की पालना करनी पड़ती है।
  • द्वितीय समूहों के सदस्यों में औपचारिक व अवैयक्तिक सम्बन्ध होता है। इनमें प्राथमिक समूहों के अनुसार एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता व इन समूहों से हमें अपनापन प्राप्त नहीं होता।

प्रश्न 6.
द्वितीय समूहों का महत्त्व।
उत्तर-

  • द्वितीय समूह व्यक्ति की आवश्यकताओं को पूरा करते हैं क्योंकि आधुनिक समाज में अकेला व्यक्ति अपनी ज़रूरतें पूरी नहीं कर सकता, इसलिए उसको अन्य समूहों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • द्वितीय समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व व योग्यता में भी बढ़ौतरी करते हैं क्योंकि द्वितीय समूह व्यक्ति को घर की चार दीवारी से बाहर निकलने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • यह सामाजिक प्रगति में योगदान देते हैं क्योंकि इन समूहों की सहायता से तकनीकी, औद्योगिक क्रान्ति
    आती है।
  • इनकी मदद से व्यक्ति का दृष्टिकोण बढ़ता है क्योंकि वह अपने प्राइमरी समूह से बाहर निकल कर बाहर देखता है जिस से उसका सम्बन्ध व दृष्टिकोण बढ़ता है।
  • द्वितीय समूह संस्कृति विकास में भी मदद करते हैं।

प्रश्न 7.
बहिर्समूह।
अथवा
बाह्य समूह।
उत्तर-
‘बहिर्समूह’ के लिए ‘वह समूह’ (They Group) शब्द का ही प्रयोग किया जाता है। ये वह समूह होते हैं जिनका व्यक्ति सदस्य नहीं होता व पराया समझता है। साधारणतया व्यक्ति समाज में प्रत्येक समूह से तो जुड़ा नहीं होता, जिस समूह से जुड़ा होता है वह उसका अन्तः समूह कहलाता है व जिस समूह से नहीं जुड़ा होता वह उसके लिए बहिर्समूह कहलाता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बहिर्समूह व्यक्ति के लिए बेगाने होते हैं व वह उनके साथ सीधे तौर से नहीं जुड़ा होता। लड़ाई के समय बाहरी समूह का संगठन बहुत ढीला व असंगठित होता है। व्यक्ति के लिए अन्तर्समूह के विचारों, मूल्यों के सामने बहिर्समूह के विचारों की कीमत काफ़ी कम होती है। यह भी सर्वव्यापक समूह है व प्रत्येक जगह पर पाए जाते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 8.
सदस्यता समूह।।
उत्तर-
यदि हमें सन्दर्भ समूह का अर्थ समझना है तो हमें सबसे पहले सदस्यता समूह का अर्थ समझना पड़ेगा क्योंकि सन्दर्भ समूह सदस्यता समूह के सन्दर्भ में रख कर ही समझा जा सकता है। जिस समूह का व्यक्ति सदस्य होता है। जिस समूह को वह अपना समूह समझ कर उसके कार्यों में हिस्सा लेता है उस समूह को सदस्यता समूह कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक सदस्य होता है व वास्तविक सदस्य होने के नाते उस समूह का उसके साथ उसका अपनापन पैदा हो जाता है। वह उस समूह के विचारों, प्रमापों, मूल्यों आदि को भी अपना मान लेता है। वह स्वयं को उस समूह का अभिन्न अंग मानता है। इस प्रकार उसका प्रत्येक कार्य क्रिया, उन समूहों की कीमतों के अनुसार ही होती है। उस समूह के आदर्श, कीमतें इत्यादि उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाते हैं व दूसरे व्यक्तियों का मूल्यांकन करते समय वह अपने समूह की कीमतें सामने रखता है। इस प्रकार यह व्यक्ति का सदस्यता समूह होता है।

प्रश्न 9.
सन्दर्भ समूह ।
उत्तर-
व्यक्ति जिस समूह का सदस्य होता है, वह उसका सदस्यता समूह माना जाता है। पर कई बार यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति का व्यवहार अपने समूह की कीमतों या आदर्शों के अनुसार नहीं होता बल्कि वह किसी ओर समूह के आदर्शों व कीमतों के अनुसार होता है। पर प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? इसी कारण सन्दर्भ समूह का संकल्प हमारे सामने आया। कुछ लेखकों के अनुसार व्यवहार प्रतिमान व उसकी स्थिति से सम्बन्धित विवेचन के लिए यह जानना आवश्यक नहीं है। क्योंकि किस समूह का सदस्य व उसकी समूह में क्या स्थिति है ? क्योंकि वह अपने समूह का सदस्य होते हुए भी किसी और समूह से प्रभावित होकर उसका मनोवैज्ञानिक तौर से सदस्य बन जाता है।

व्यक्ति उसका वास्तविक सदस्य न होकर भी इससे इतना प्रभावित होता है कि उसके व्यवहार का बहुत सारा हिस्सा उस समूह के अनुसार भी होता है। समाजशास्त्री उस समूह को सन्दर्भ समूह कहते हैं। आम शब्दों में, व्यक्ति किसी भी समूह का सदस्य हो सकता है किन्तु मनोवैज्ञानिक तौर से वह अपने आप को किसी भी समूह से सम्बन्धित मान सकता है व अपनी आदतों, मनोवृत्तियों को उस समूह के अनुसार नियमित करता है। इस समूह को सन्दर्भ समूह कहते हैं। जैसे कोई मध्य वर्गों समूह का सदस्य अपने आप को किसी उच्च वर्ग से सम्बन्धित मान सकता है। अपना व्यवहार, आदतें, आदर्श, कीमतें उसी उच्च वर्ग के अनुसार नियमित करता है। अपने रहन-सहन, खाने-पीने के तरीके वह उसी उच्च वर्ग के अनुसार नियमित व निर्धारित करता है, यही समूह उसका सन्दर्भ समूह होता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ? इसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
समूह का अर्थ (Meaning of Group)—साधारण व्यक्ति समूह शब्द को रोज़ाना बोल-चाल की भाषा में प्रयोग करते हैं। साधारण मनुष्य समूह शब्द का एक अर्थ नहीं निकालते बल्कि अलग-अलग अर्थ निकालते हैं। जैसे यदि हमें किसी वस्तु का लोगों पर प्रभाव अध्ययन करना है तो हमें उस वस्तु को दो समूहों में रख कर अध्ययन करना पड़ेगा। एक तो वह समूह है जो उस वस्तु का प्रयोग करता है एवं दूसरा वह समूह जो उस वस्तु का प्रयोग नहीं करता है। दोनों समूहों के लोग एक-दूसरे के करीब भी रहते हो सकते हैं व दूर भी, परन्तु हमारे लिए यह महत्त्वपूर्ण नहीं है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि यदि हमारे उद्देश्य भिन्न हैं तो समूह भी भिन्न हो सकते हैं। इस प्रकार आम शब्दों में व साधारण व्यक्ति के लिए मनुष्यों का एकत्र समूह होता है।

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसकी रोज़ाना ज़िन्दगी समूह के बीच भाग लेने से सम्बन्धित होती है। सबसे प्रथम परिवार में, परिवार से बाहर निकल कर दूसरे समूहों के बीच वह शामिल हो जाता है। इस सामाजिक समूह के बीच व्यक्तियों की अर्थपूर्ण क्रियाएं पाई जाती हैं। व्यक्ति केवल इन समूहों के बीच सम्बन्ध स्थापित करने तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपनी आवश्यकताओं को भी पूर्ण करता है किन्तु प्रश्न यह है कि समूह के अर्थ क्या हैं ? एक आम आदमी के अर्थों से समाज शास्त्र के अर्थों में अन्तर है। साधारण व्यक्ति के लिए कुछ व्यक्तियों का एकत्र समूह है, पर समाजशास्त्र के लिए नहीं है। समाजशास्त्र में समूह में कुछ व्यक्तियों के बीच निश्चित सम्बन्ध होते हैं एवं उन सम्बन्धों का परिणाम भाईचारे व प्यार की भावना में निकलता है।

समूह की परिभाषाएं (Definitions of Group) –
1. बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “एक सामाजिक समूह दो या दो से अधिक व्यक्तियों को कहते हैं जिनका ध्यान कुछ साझे लक्ष्यों पर होता है और जो एक-दूसरे को प्रेरणा देते हों, जिनमें साझी भावना हो और जो साझी क्रियाओं में शामिल हों।”

2. सैन्डर्सन (Sanderson) के अनुसार, “समूह दो या दो से अधिक सदस्यों की एकत्रता है जिसमें मनोवैज्ञानिक अन्तर्कार्यों का एक निश्चित ढंग पाया जाता है तथा अपने विशेष प्रकार के सामूहिक व्यवहार के कारण अपने सदस्यों व ज्यादातर दूसरों द्वारा भी इसको वास्तविक समझा जाता है।”

3. गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सामाजिक समूह की उत्पत्ति के लिए एक ऐसी परिस्थिति का होना अनिवार्य है जिससे सम्बन्धित व्यक्तियों में अर्थपूर्ण अन्तर उत्तेजना व अर्थपूर्ण प्रतिक्रिया हो सके जिसमें सामान्य उत्तेजनाएं व हितों पर सब का ध्यान केन्द्रित हो सके व कुछ सामान्य प्रवृत्तियों, प्रेरणाओं व भावनाओं का विकास हो सके।”

ऊपर दी गई परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि कुछ व्यक्तियों की एकत्रता, जो शारीरिक तौर पर तो नज़दीक हैं परन्तु वह एक-दूसरे के साझे हितों की प्राप्ति के लिए सहयोग नहीं करते व एक-दूसरे के आपसी अन्तक्रिया द्वारा प्रभावित नहीं करते, उन्हें समूह नहीं कह सकते। इसे केवल एकत्र या लोगों की भीड़ कहा जा सकता है। समाजशास्त्र में समूह उन व्यक्तियों के जोड़ या एकत्र को कहते हैं जो एक समान हों व जिसके सदस्यों में आपसी सामाजिक क्रिया-प्रतिक्रिया, सामाजिक सम्बन्ध, चेतनता, सामान्य हित, प्रेरक, स्वार्थ, उत्तेजनाएं व भावनाएं होती हैं।

इस तरह समूह के सदस्य एक-दूसरे से बन्धे रहते हैं व एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सामाजिक समूह के बीच विचारों का आदान-प्रदान भी पाया जाता है। सामाजिक समूह के बीच शारीरिक नज़दीकी ही नहीं बल्कि साझे आकर्षण की चेतनता भी पाई जाती है। इसमें सामान्य हित व स्वार्थ भी होते हैं।

समूह की विशेषताएं (Characteristics of a Group)-
1. एकता की भावना (Feelings of Unity)—समूह के सदस्यों के बीच एकता की भावना के पाए जाने के साथ ही समूह कायम रह सकता है। समूह के सदस्य इसी भावना के पाए जाने के कारण एक-दूसरे को समझते हैं। उनमें सहयोग की भावना उत्पन्न होती है। यदि इनमें एकता की भावना न हो तो वह समूह नहीं बल्कि कुछ लोगों का एकत्र कहलाए जाएंगे।

2. हम की भावना (We feelings) समूह के सभी व्यक्ति एक-दूसरे की आवश्यकता पड़ने पर मदद करते हैं। इससे अपनत्व की भावना का विकास होता है। वह एक-दूसरे की सहायता करके अपने हितों की रक्षा भी करते हैं। इससे उनमें एकता की भावना का विकास होता है।

3. सामाजिक सम्बन्ध (Social Relations)—समूह की सबसे आवश्यक शर्त यह है कि इसके सदस्यों के बीच सामाजिक सम्बन्ध होते हैं। यह सम्बन्ध स्थिर होते हैं तथा सदस्यों की आपसी अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते हैं।

4. सदस्यता (Membership) समूह का निर्माण केवल एक व्यक्ति के साथ नहीं होता बल्कि समूह का निर्माण केवल दो या दो से अधिक व्यक्तियों के साथ होता है। कई समूहों में सदस्यता सीमित होती है जैसे परिवारों में पति-पत्नी व उनके बच्चों को शामिल किया जाता है। इसमें किसी अन्य व्यक्ति को शामिल नहीं किया जाता। इसी कारण समूह का आकार भी सदस्यों की गणना के आधार पर होता है।

5. स्थिति व भूमिका का विभाजन (Division of Status and Role)—समूह नामक संगठन मे भूमिकाओं व स्थितियों का विभाजन किया जाता है जिससे प्रत्येक सदस्य की समूह में अपनी-अपनी स्थिति व भूमिका होती है। समूह के कार्यों के लिए लिखित व अलिखित नियम भी होते हैं व समूह उन नियमों के अनुसार ही कार्य करता है। चाहे सदस्यों के अपने-अपने व्यक्तिगत हित व लड़ाई-झगड़े इत्यादि होते हैं परन्तु उनमें सहयोग भी होता है जोकि समूह की विशेषता होती है।

6. सामूहिक नियन्त्रण (Control)-समूह के लिए अपने सदस्यों के व्यवहारों को नियन्त्रित व नियमित करना ज़रूरी होता है। प्रत्येक समूह की अपनी परम्पराएं, प्रथाएं, नियम इत्यादि होते हैं जिनकी प्रत्येक व्यक्ति को पालना करनी पड़ती है। यदि कोई उनकी उल्लंघना करता है तो उसको समूह की ओर से दण्ड दिया जाता है।

7. निकटता (Closeness)-समूह के सदस्यों के बीच उनके सम्बन्ध आपस में इतने जुड़े होते हैं कि उनमें अन्तक्रिया होती है। इसका अर्थ है कि समूह के सदस्य आपस में बहुत निकटता से जुड़े होते हैं। इस निकटता के कारण उनमें आपसी अन्तक्रिया होती है जिसके परिणामस्वरूप उनमें सम्बन्ध पैदा होते हैं। समूह के सदस्य इन सम्बन्धों के कारण एक-दूसरे को प्रभावित भी करते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 2.
समूहों के वर्गीकरण के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
समूह की विभिन्न किस्मों के बारे में लिखो।
उत्तर-
अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने सामाजिक समूहों का वर्गीकरण विभिन्न आधारों पर किया है। कई समाजशास्त्रियों ने धार्मिक, आर्थिक, मनोरंजन इत्यादि आधार पर भी इस का वर्गीकरण किया है।

(A) चार्ल्स हर्टन कूले (Charles Hurton Cooley) ने सामाजिक समूहों का अपनी पुस्तक, “सोशल आर्गेनाइजेशन” (Social organization) में वर्गीकरण दो भागों के बीच किया है-

  1. प्राथमिक समूह (Primary Group)
  2. द्वितीय समूह (Secondry group)

प्राथमिक समूह में कूले ने व्यक्ति के गहरे व नज़दीकी सम्बन्धों को बताया है व द्वितीय समूह में कूले ने आधार रहित व बनावटी सम्बन्धों का अध्ययन किया है।

(B) सेपिर (Sapir) ने समूहों का धर्गीकरण शारीरिक निकटता व साझे उद्देश्यों के आधार पर किया है-

  1. परिवार (Family)
  2. नसली समूह (Racial group)
  3. कृषि समूह (Agricultural group)
  4. संघर्ष समूह (Conflicting group)

(C) समनर (Summer) ने अपनी पुस्तक ‘फोक वेज़’ (Folk ways) में समूहों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार किया है-

  1. अन्तः समूह (In group)
  2. बाह्य समूह (Out group)

अन्तः समूह में हम की भावना, सामूहिक भलाई पाई जाती है। इसका आकार भी छोटा होता है। व्यक्ति इन समूहों का आप ही सदस्य होता है व बाह्य समूह में व्यक्तिवादी भावना पाई जाती है। व्यक्ति इस समूह का सदस्य भी नहीं होता। इसका आकार भी बहुत बड़ा होता है।

(D) सोरोकिन (Sorokin) ने समूहों का वर्गीकरण दो भागों में किया है-

  1. विशाल समूह (Horizontal group)
  2. छोटे समूह (Vertical group)

विशाल समूह में बड़े आकार के समूहों को शामिल किया जैसे, राष्ट्र, राजनीतिक दल, सांस्कृतिक संगठन, धार्मिक संगठन इत्यादि।
छोटे समूह में व्यक्ति विशाल समूह द्वारा प्राप्त की स्थिति से सम्बन्धित होता है। इसलिए यह एक विशाल समूह का ही एक हिस्सा होता है।

(E) मैकाइवर व पेज़ (Maclver and Page) ने समूह का वर्गीकरण निम्नानुसार किया-

  1. आकार के आधार पर (on the basis of size)
  2. सामाजिक सम्बन्धों की गहराई के आधार पर (on the basis of intimacy)
  3. हितों के आधार पर (on the basis of Interest)
  4. सामाजिक संगठन के आधार पर (on the basis of organization)
  5. समय (काल) के आधार पर (on the basic of duration) आकार के आधार पर मैकाइवर ने दो रूप बताएनज़दीकी गहरे सम्बन्धों से सम्बन्धित समूह व दूसरे प्रकार का समूह जिसमें व्यक्ति के अव्यक्तिगत सम्बन्ध पाए जाते हैं।

हितों के आधार पर भी दो श्रेणियां मैकाइवर ने बताई हैं-एक तो वह समूह जिसमें व्यक्ति अपनी आम ज़रूरतों को पूरा करते हैं व दूसरा वह समूह जिसमें विशेष ज़रूरतों की पूर्ति व्यक्ति द्वारा की जाती है।

सामाजिक संगठन के आधार पर भी मैकाइवर ने दो रूप बताए हैं। एक तो पूर्ण तौर पर संगठित समूह व दूसरा लचीला समूह। समय के आधार पर स्थायी समूह जिसमें व्यक्ति की सदस्यता जीवन-पर्यन्त रहती है जैसे परिवार में अस्थायी समूह में उद्देश्य प्राप्ति के लिए ही सदस्यता होती है।

(F) गिलिन एण्ड गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार समूह का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है। यह वर्णन उसने अपनी पुस्तक ‘कल्चरल सोशियोलॉजी’ (Cultural Sociology) में किया है।

  1. रक्त के सम्बन्धों के आधार पर (on the basis of blood relations)
  2. शारीरिक लक्षणों पर आधारित (on the basis of physical features)
  3. क्षेत्रीय आधार (Area Basis)
  4. काल के आधार पर (on the basis of duration)
  5. सांस्कृतिक समूह (Cultural group)

(G) जार्ज डासन (George Dawson) के द्वारा सामाजिक समूहों का वर्गीकरण निम्नलिखित अनुसार है-

  1. असामाजिक समूह (unsocial groups)
  2. फर्जी सामाजिक समूह (Pseudo-Social groups)
  3. समाज विरोधी समूह (Anti-Social groups)
  4. समाज पक्षीय समूह (Pro-Social groups)

असामाजिक समूह वह होता है जिसका सदस्य व्यक्ति केवल अपने काम के लिए ही होता है। बाकी कार्यों से वह किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रखता। इसमें वह स्वार्थ की भावना भी रखता है।
फर्जी सामाजिक समूह में वह केवल अपने स्वार्थ से सम्बन्धित होता है। समाज के कल्याण के लिए वह किसी प्रकार की दिलचस्पी नहीं रखता।

समाज विरोधी समूह के बीच वह समाज के उद्देश्यों व कल्याण के विरुद्ध कार्य करता है। उदाहरण के तौर पर व्यक्ति हड़ताल करते हैं, धरना देते हैं और सरकारी या सामाजिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाते हैं। – समाज पक्षीय समूह में समाज के लाभ के लिए या कल्याण के लिए व्यक्ति काम करता है। इसमें उसका अपना स्वार्थ नहीं होता। बल्कि वह लोक कल्याण के कार्यों से स्वयं को सम्बन्धित कर लेता है।

(H) टोनीज़ (Tonnies) ने सामाजिक समूहों का वर्गीकरण दो भागों में वर्गीकृत करके किया है-

  1. सामुदायिक समूह (Communities)
  2. सभा समूह (Associations)

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 3.
प्राथमिक समूह का अर्थ तथा उसकी विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
प्राथमिक समूह का अर्थ-देखें पाठ्य पुस्तक प्रश्न IV-(2)
प्राथमिक समूह की विशेषताएं (Characteristics of Primary Group)-

1. सदस्यों में शारीरिक नज़दीकी होती है (There is Physical Proximity among members)प्राथमिक समूहों के बीच यह आवश्यक होता है कि व्यक्ति आपस में शारीरिक तौर से भी एक-दूसरे के नजदीक हों। इकट्ठे मिल कर बैठें। यह शारीरिक नज़दीकी उनमें विचारों का आदान-प्रदान पैदा करती है और वह एकदूसरे को समझने लगते हैं। रोजाना मिलना, उठना-बैठना, बातचीत करने के साथ उनमें प्यार व सहयोग बढ़ता है। इसीलिए उनमें गहरे सम्बन्ध भी स्थापित हो जाते हैं। कई हालातों में स्थिति, पेशा, लिंग, जाति, उम्र इत्यादि में यदि बहुत अधिक अन्तर हो तो भी निजी सम्बन्धों के पैदा होने में रुकावट आती है। इसी कारण जहां इनकी समानता होगी वहां नज़दीकी सम्बन्ध स्थापित हो जाएंगे।

2. सामूहिक स्थिरता (Stability in Groups)-प्राथमिक समूहों के बीच स्थिरता की प्रवृत्ति होती है। उदाहरण के लिए बच्चा जिस परिवार में जन्म लेता है सम्पूर्ण आयु उस परिवार से सम्बन्धित हो जाता है। इसी तरह से आस-पड़ोस में भी इसी प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। इसीलिए इन समूहों में अधिक स्थिरता रहती है। इन समूहों का निर्माण उद्देश्य प्राप्ति के साथ नहीं होता। जब इन समूहों के सदस्यों में नए साथी शामिल हो जाते हैं तो इनमें उतना स्थायित्व नहीं रहता।।

3. इनका सीमित आकार होता है (They are limited in size)-प्राथमिक समूहों का आकार भी बहुत सीमित होता है। इसी कारण इनमें सम्बन्धों की गहराई पाई जाती है। किसी भी समूह की संख्या जितनी कम होगी उतना ही सदस्य एक-दूसरे को अधिक समझ लेते हैं। उदाहरण के लिए अध्यापक जब छोटे समूह की श्रेणी के बच्चों को पढ़ाता है तो वह प्रत्येक बच्चे के साथ ही पूरी तरह वाकिफ़ हो जाता है। इसी प्रकार जब वह अधिक संख्या की श्रेणी के विद्यार्थियों को पढ़ाता है तो उसकी विद्यार्थियों के साथ नजदीकी भी कम हो जाती है। अध्यापक व विद्यार्थियों के सम्बन्धों में भी कमी आ जाती है।

4. इनमें सीमित स्वार्थ होते हैं (They have limited Self Interest)-प्राथमिक समूहों के बीच इस उद्देश्य को मुख्य रखा जाता है कि जिससे सारे समूह का कल्याण हो अर्थात् सामूहिक हित को मुख्य माना जाता है। उदाहरण के लिए परिवार के सदस्यों में निजी स्वार्थ की भावना नहीं होती। यदि यह भावना उत्पन्न हो जाए तो परिवार टूट जाता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य ऐसा काम करता है जिससे सभी व्यक्तियों या सदस्यों का लाभ हो। कई बार इस प्रकार के समूह में अपने स्वार्थ को सामूहिक स्वार्थ करके त्यागना भी पड़ता है क्योंकि यह समूह किसी भी उद्देश्य को मुख्य रख कर स्थापित नहीं किया जाता। यह समूह अपने आप में ही मनोरथ भरपूर होता है। इसी कारण इनमें सीमित स्वार्थ विकसित रहते हैं।

5. इनमें आंशिक समान5505ता होती है (They have Similarity of Background)-आंशिक समानता के कारण व्यक्तियों में विचारों का आदान-प्रदान बना रहता है। सदस्य एक-दूसरे को अच्छी तरह समझ लेते हैं। यदि इनकी संस्कृति व आदर्शों आदि में किसी प्रकार का अन्तर हों तो इस आधार पर भी सम्बन्धिता कम हो जाती है।

अन्तर जितना अधिक होगा उतनी ही परस्पर सम्बन्धिता कम होगी क्योंकि अन्तर जितना कम होगा उतना वह एकदूसरे को अधिक समझ लेंगे व प्राथमिक समूह अधिकतम मज़बूत हो जाएगा। उदाहरण के लिए जब भी आप किसी नई जगह पर जा कर रहते हो तो जिन व्यक्तियों के साथ आपकी पीछे की समानता होगी, उन व्यक्तियों के करीब आप बहुत जल्दी आ जाते हो व निजीपन महसूस होने लगता है।

6. इनमें आपसी सहयोग होता है (They have Mutual co-operation among them)-प्राथमिक समूहों के बीच अधिकतर सदस्यों में आपसी सहयोग की भावना होती है। इसका एक कारण कम गणना करके भी है। प्रत्येक व्यक्ति सामूहिक भावना को लेकर आगे बढ़ता है क्योंकि वह समूह की भलाई में ही अपनी भलाई समझता है। उदाहरण के तौर पर परिवार के सदस्यों के बीच भी यही विशेषता पाई जाती है। परिवार में प्रत्येक सदस्य एक-दूसरे की भलाई के लिए काम करता है। कई बार व्यक्ति स्वयं दुःख सहता हुआ भी दूसरे को सहयोग देता है अर्थात् व्यक्ति अपने फायदे व नुक्सान को न देख कर दूसरों को सहयोग देता है।

प्रश्न 4.
प्राथमिक समूहों के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
प्राथमिक समूहों का हमारे समाज के लिए बहुत महत्त्व होता है। यह सर्वव्यापक होते हैं। यह प्रत्येक समाज में विकसित होते हैं।
1. प्राथमिक समूह व्यक्ति के समाजीकरण की प्रक्रिया में भी बहुत महत्त्वपूर्ण हिस्सा डालते हैं। व्यक्ति का सबसे प्रथम समाज के साथ सम्पर्क भी इन्हीं समूहों द्वारा ही होता है। क्योंकि व्यक्ति अपनी प्राथमिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी इन्हीं पर निर्भर करता है।

2. व्यक्ति को प्राथमिक समूह में अपना ज्ञान भी होता है। वह समूह के बाकी सदस्यों के सहयोग के साथ ही प्राथमिक शिक्षा का आरम्भ करता है।

3. व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण के लिए भी ये समूह महत्त्वपूर्ण हैं। व्यक्ति पर समूह के सदस्यों के व्यवहार का भी अधिकतम प्रभाव पड़ता है। इन प्राथमिक समूहों के बीच दोस्ती वाला माहौल पाए जाने के साथ भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में बढ़ौतरी होती है। इन प्राथमिक समूहों के बीच व्यक्ति सहयोग, सहनशीलता इत्यादि जैसे गुणों को ग्रहण करते हैं। यही गुण उन्हें आगे जाकर समाज में रहने के काबिल बनाते हैं। व्यक्ति इन्हीं समूहों में रहकर सामाजिक परिमाप, सामाजिक-मूल्यों, आदर्श, परम्पराओं इत्यादि को ग्रहण करता है।

4. व्यक्ति को सुरक्षा की प्राप्ति भी इन्हीं समूहों में रहकर होती है। इन्हीं समूहों के बीच सदस्यों दूसरे सदस्यों को अपना ही एक हिस्सा समझते हैं। व्यक्ति को ज़रूरत पड़ने पर भी सभी सदस्य उसकी मदद के लिए तैयार रहते हैं। बच्चा जब पैदा होता है तो माता-पिता के प्यार के कारण ही वह अपने आप को सुरक्षित समझता है। बच्चा अपने व्यवहार को खुल कर दर्शाता है।

5. प्राथमिक समूह सामाजिक नियन्त्रण का भी मुख्य आधार हैं। स्वभाव द्वारा सभी व्यक्ति एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। यदि हम इन्हें खुला छोड़ दें तो हमारे समाज का आकार ही बिगड़ जाए। इसी कारण समाज में व्यक्ति कुछ नियन्त्रण में रहना सीखता है। इसी कारण समाज में सभी सदस्यों पर नियन्त्रण रखा जाता है जिसका लाभ आगे जाकर समाज को होता है। व्यक्ति बड़ों का सम्मान करना, नियमों में रहना, प्रत्येक से प्यार करना, परिवार की संस्कृति को अपनाने के लिए इन्हीं समूहों के प्रभाव में रहता है। इन गुणों का विकास जब व्यक्ति में हो जाता है तो वह समाज के सभी कार्यों में सही योगदान करने लगता है।

6. व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी प्राथमिक समूहों के बीच रह कर ही होती है। व्यक्ति परिवार, खेल समूह व पड़ोस आदि जैसे प्रमुख प्राथमिक समूहों में रह कर के दूसरे लोगों के साथ रहने का तरीका सीखते हैं।

7. प्राथमिक समूह के सदस्य स्वतन्त्र रूप में एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं। इनके ऊपर किसी प्रकार का कोई बोझ नहीं होता। व्यक्ति में स्वयं का विकास भी इन्हीं समूहों के ही कारण है। व्यक्ति को भावात्मक सन्तुष्टि

भी इन्हीं समूहों से ही प्राप्त होती है। इस समूह के बीच सम्बन्धों की सम्बन्धिता द्वारा व्यक्ति को कई प्रकार के काम करके उत्साह प्राप्त होता है। प्राथमिक समूह के सदस्य अपने सदस्य को गिरने से बचा लेते हैं। व्यक्ति यह महसूस करने लग जाता है कि वह अकेला नहीं है बल्कि उसके साथ दूसरे अन्य भी हैं जो उसकी हर समय मदद करेंगे। यह भावना उन्हें अधिक कोशिश करने के लिए प्रेरित करती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 5.
द्वितीय समूह क्या होते हैं ? इनकी विशेषताओं, प्रकारों व महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
द्वितीय समूह का अर्थ-
प्राथमिक समूह (Primary Groups)-चार्ल्स कूले एक अमेरिकी समाजशास्त्री था जिसने प्राथमिक व सैकण्डरी समूहों के बीच सामाजिक समूहों का वर्गीकरण किया। प्रत्येक समाजशास्त्री ने किसी-न-किसी रूप में इस वर्गीकरण को स्वीकार किया है। प्राथमिक समूह में कूले ने बहुत ही नज़दीकी सम्बन्धों को शामिल किया है जैसे, आस-पड़ोस, परिवार, खेल समूह आदि। उसके अनुसार इन समूहों के बीच व्यक्ति के सम्बन्ध बहुत प्यार, आदर, हमदर्दी व सहयोग वाले होते हैं । व्यक्ति इन समूहों के बीच बिना झिझक के काम करता है। यह समूह स्वार्थ की भावना रहित होते हैं। इनमें ईर्ष्या, द्वेष वाले सम्बन्ध नहीं होते। व्यक्तिगत भावना के स्थान पर इनमें सामूहिक भावना होती है। व्यक्ति इन समूहों के बीच प्राथमिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। चार्ल्स कूले (Charles Cooley) ने प्राथमिक समूह के बारे अपने निम्नलिखित विचार दिए हैं-

“प्राथमिक समूह से मेरा अर्थ उन समूहों से है जिनमें विशेषकर आमने-सामने के सम्बन्ध पाए जाते हैं। यह प्राथमिक कई अर्थों में हैं परन्तु मुख्य तौर से इस अर्थ में कि व्यक्ति के स्वभाव व आदर्श का निर्माण करने में मौलिक हैं। इन गहरे व सहयोगी सम्बन्धों के परिणामस्वरूप सदस्यों के व्यक्तित्व साझी पूर्णता में घुल-मिल जाते हैं ताकि कम-से-कम कई उद्देश्यों के लिए व्यक्ति का स्वयं ही समूह का साझा जीवन एक उद्देश्य बन जाता है। शायद इस पूर्णता को वर्णन करने का सबसे सरल तरीका है। इसको ‘हम’ समूह भी कहा जाता है। इसमें हमदर्दी व परस्पर पहचान की भावना लुप्त होती है एवं ‘हम’ इसका प्राकृतिक प्रकटीकरण है।”

चार्ल्स कूले के अनुसार प्राथमिक समूह कई अर्थों में प्राथमिक हैं। यह प्राथमिक इसलिए हैं कि यह व्यक्ति की प्राथमिक आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यक्ति का समाज से सम्बन्ध भी इन्हीं द्वारा होता है। आमने-सामने के सम्बन्ध होने के कारण इनमें हमदर्दी, प्यार, सहयोग व निजीपन पाया जाता है। व्यक्ति आपस में इस प्रकार एकदूसरे से बन्धे होते हैं कि उनमें निजी स्वार्थ की भावना ही खत्म हो जाती है। छोटी-मोटी बातों को तो वह वैसे ही नज़र-अन्दाज़ कर देते हैं। आवश्यकता के समय यह एक-दूसरे की सहायता भी करते हैं। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए भी यह महत्त्वपूर्ण है। कूले के अनुसार, “ये समूह लगभग सारे समय व विकास सभी स्तरों पर सर्वव्यापक रहे हैं। ये मानवीय स्वभाव व मानवीय आदर्शों में जो सर्वव्यापक अंश हैं, उसके मुख्य आधार हैं।” • चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों में निम्नलिखित तीन समूहों को महत्त्वपूर्ण बताया-

(1) परिवार (2) खेल समूह (3) पड़ोस
कूले के अनुसार यह तीनों समूह सर्वव्यापक हैं व समाज में प्रत्येक समय व प्रत्येक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति जन्म के पश्चात् अपने आप जीवित नहीं रह सकता इसीलिए उसके पालन-पोषण के लिए परिवार ही प्रथम समूह है जिसमें व्यक्ति स्वयं को शामिल समझता है।

परिवार के बीच रह कर बच्चे का समाजीकरण होता है। बच्चा समाज में रहने के तौर-तरीके सीखता है अर्थात् प्राथमिक शिक्षा की प्रप्ति उससे परिवार में रह कर ही होती है। व्यक्ति अपनी संस्कृति, रीति-रिवाज, परम्पराओं इत्यादि को भी परिवार में रह कर ही प्राप्त करता है। परिवार में व्यक्ति के सम्बन्ध आमने-सामने वाले होते हैं व परस्पर सहयोग की भावना होती है। परिवार के बाद वह अपने आस-पड़ोस के साथ सम्बन्धित हो जाता है, क्योंकि घर से बाहर निकल कर वह आस-पड़ोस के सम्पर्क में आता है। इस प्रकार वह परिवार की भांति प्यार लेता है। उसको बड़ों का आदर करना या किसी से कैसे बात करनी चाहिए इत्यादि का पता लगता है। आस-पड़ोस के सम्पर्क में आने के पश्चात् वह खेल समूह में आ जाता है। खेल समूह में वह अपनी बराबरी की उम्र के बच्चों में आकर अपने आप को कुछ स्वतन्त्र समझने लग जाता है। खेल समूह में वह अपनी सामाजिक प्रवृत्तियों को रचनात्मक प्रकटीकरण देता है। अलग-अलग खेलों को खेलते हुए वह दूसरों से सहयोग करना भी सीख जाता है। खेल खेलते हुए वह कई नियमों की पालना भी करता है। इससे उसको अनुशासन में रहना भी आ जाता है। वह आप भी दूसरों के व्यवहार अनुसार काम करना सीख लेता है। इससे उसके चरित्र का भी निर्माण होता है। इन सभी समूहों के बीच आमने-सामने के सम्बन्ध व नज़दीकी सम्बन्ध होते हैं। इस कारण इन समूहों को प्राथमिक समूह कहा जाता है।

द्वितीय समूह (Secondary Groups)-चार्ल्स कूले ने दूसरे समूह में द्वितीय समूह का विस्तारपूर्वक वर्णन किया। आजकल के समाजों में व्यक्ति अपनी ज़रूरतों को प्राथमिक ग्रुप में ही रह कर पूरी नहीं कर सकता। उसे दूसरे व्यक्तियों पर भी निर्भर रहना पड़ता है। इसी कारण द्वितीय ग्रुप की आधुनिक समाज में प्रधानता है। इसी कारण प्राथमिक समूहों की महत्ता भी पहले से कम हो गई है। इन समूहों की जगह दूसरी अन्य संस्थाओं ने भी ले ली है। विशेषकर शहरी समाज में से तो प्राथमिक समूह एक तरह से अलोप हो ही गए हैं। यह समूह आकार में बड़े होते हैं व सदस्यों के आपस में ‘हम’ से सम्बन्ध होते हैं अर्थात् द्वितीय ग्रुप में प्रत्येक सदस्य अपना-अपना काम कर रहा होता है तो भी वह एक-दूसरे के साथ जुड़ा होता है।

इन समूहों के बीच सदस्यों के विशेष उद्देश्य होते हैं जिनकी पूर्ति आपसी सहयोग से हो सकती है। इन समूहों के बीच राष्ट्र, सभाएं, राजनीतिक पार्टियां, क्लब इत्यादि आ जाते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। इनकी उत्पत्ति भी किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही होती है। इसी कारण इस समूह के सभी सदस्य एक-दूसरे को जानते नहीं होते।

द्वितीय समूह किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति के लिए विकसित होते हैं। इनका आकार भी बड़ा होता है। व्यक्ति अपने स्वार्थ हित की पूर्ति के लिए इसमें दाखिल होता है अर्थात् इस समूह का सदस्य बनता है व उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् इस समूह से अलग हो जाता है। इन समूहों के बीच सदस्यों के आपसी सम्बन्धों में भी बहुत गहराई दिखाई नहीं पड़ती क्योंकि आकार बड़ा होने से प्रत्येक सदस्य को निजी तौर से जानना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा सदस्य के ऊपर गैर-औपचारिक साधनों के द्वारा नियन्त्रण भी होता है। प्रत्येक सदस्य को अपने व्यवहार को इन्हीं साधनों के द्वारा ही चलाना पड़ता है।

द्वितीय समूह की विशेषताएं (Characteristics of Secondary Group)-

1. व्यक्तियों में अप्रत्यक्ष सम्बन्ध होते हैं (Humans have indirect relations)—द्वितीय समूह में व्यक्तियों के आपसी सम्बन्ध अप्रत्यक्ष होते हैं। इनमें सहयोग की प्रक्रिया भी आमने-सामने न होकर अप्रत्यक्ष रूप में विकसित रहती है। सदस्य इन समूहों के बीच आपस में एक-दूसरे को जानते नहीं होते। इनका कार्य भूमिका निभाना ही होता है। उदाहरण के लिए किसी फैक्टरी में उत्पादन के लिए कई हज़ार व्यक्ति वहां कार्य कर रहे होते हैं। कार्य करने वाले व्यक्तियों को केवल अपने कार्य के साथ व तनख्वाह से मतलब होता है व कई बार उन्हें यह भी नहीं मालूम होता कि जहां वह काम कर रहे हैं उसका मालिक कौन है। विभिन्न प्रकार का काम करते हुए वह एक-दूसरे से अदृश्य रूप में जुड़े होते हैं। किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह भिन्न-भिन्न प्रकार की भूमिका अदा करते हैं।

2. यह आकार में बड़े होते हैं (They are large in size)-द्वितीय समूहों का आकार बहुत विशाल होता है, इनमें व्यक्तियों की सदस्यता निश्चित नहीं होती। यह दूर-दूर तक फैले होते हैं। उदाहरण के लिए रैडक्रास सोसाइटी (Red-Cross Society) में सदस्यों की गणना कई हज़ारों में है व पूरे संसार में सदस्य फैले हुए हैं। ऐसी और भी कई संस्थाएं हैं जिनमें व्यक्ति भिन्न-भिन्न स्थानों पर फैले हुए हैं। कई बार व्यक्ति को जब दूर-दराज स्थानों की जानकारी प्राप्त करनी होती है तो वह इन्हीं समूहों की मदद से ही करते हैं। व्यक्ति की आवश्यकताएं भी पहले से बढ़ गई हैं जिन्हें वह अकेला प्राथमिक समूह में रह कर पूरी नहीं कर सकता। इसी कारण व्यक्ति इन समूहों का सदस्य बन कर अपनी समस्याओं का हल ढूंढ़ लेता है। इसलिए वह पत्र-व्यवहार, टेलीफोन, इत्यादि का उपयोग करता है।

3. इनका औपचारिक संगठन होता है (They have formal organization)-द्वितीय समूहों के निर्माण के लिए कुछ विशेष नियम बनाए जाते हैं। व्यक्ति को इन नियमों की पालना करनी पड़ती है। इसी कारण इन समूहों के मामलों का निपटारा विशेषज्ञों के हाथ में होता है। कहने का अर्थ यह है कि समूह का सारा कार्य क्षेत्र व्यवस्थित होता है। व्यक्ति को स्थिति व भूमिका उसकी योग्यता अनुसार प्राप्त होती है। इन समूहों में यदि व्यक्ति ने सम्मिलित होना होता है तो वह अपने हितों के लिए कोई भी काम नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए जब कोई व्यक्ति दफ्तर में नौकरी करता है तो उसको अपने ऑफ़िसर का कहना मानना पड़ता है। सरकारी नियमों का पालन करना पड़ता है। इस प्रकार हम देखते हैं कि द्वितीय समूहों में औपचारिक संगठन ही पाया जाता है।

4. इनमें औपचारिक सम्बन्ध होते हैं (They have formal and Impersonal Relations among them)—इन समूहों के बीच व्यक्तियों के अपसी सम्बन्ध औपचारिक होते हैं। इनमें प्राथमिक समूहों के अनुसार एक-दूसरे पर प्रभाव नहीं पड़ता। व्यक्ति अपना काम करता है, नियमों की पालना करता है, तनख्वाह लेता है फिर भी वह एक-दूसरे को अच्छी तरह से जानते नहीं। उदाहरण के लिए हम किसी बैंक में जाते हैं और फिर किसी क्लर्क को मिलते हैं, अपना काम पूरा करके वापिस आ जाते हैं। हम बैंक में काम कर रहे व्यक्तियों की ज़िन्दगी के किसी भी और हिस्से से सम्बन्धित नहीं होते। इन समूहों के बीच हमें अपनत्व प्राप्त नहीं होता।

5. इन समूहों की ऐच्छिक सदस्यता होती है (They have option of Membership)-द्वितीय समूहों में सदस्यता व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर करती है क्योंकि यह समूह किसी खास उद्देश्य को पूरा करने के लिए ही विकसित होते हैं। जिस व्यक्ति का उद्देश्य जिस समूह में पूर्ण होता है वह उसका सदस्य बन जाता है। भाव कि प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक द्वितीय समूह का सदस्य नहीं होता। उदाहरण के लिए हमारे समाज में कई क्लब हैं। जब कोई व्यक्ति चाहता है तो ही क्लब का सदस्य बनता है। यूं यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति क्लब का सदस्य बने। इस प्रकार यह समूह ऐच्छिक होते हैं। उद्देश्य पूर्ति के पश्चात् व्यक्ति इसकी सदस्यता छोड़ भी सकता है।

6. इनमें क्रियाशील व अक्रियाशील सदस्य होते हैं (They have Active and Inactive members)द्वितीय समूहों का आकार विशाल होता है। समूह के सदस्यों में निजीपन की कमी होती है जिससे समूह के सदस्य समूह की क्रियाओं में हिस्सा नहीं लेते। उदाहरण के लिए जब भी कोई कार्यक्रम होता है तो उस कार्यक्रम में हिस्सा लेने वाले बहुत सदस्य होते हैं। कुछ एक सदस्य काम बहुत अधिक करते हैं व कुछ एक केवल एक सदस्य बन कर ही रह जाते हैं। ऐसे सदस्य केवल अपनी सदस्यता को कायम रखने के लिए केवल चन्दा इत्यादि ही देते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 6.
द्वितीय समूहों के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
1. यह ज़रूरतों की पूर्ति करते हैं (Satisfied different needs) आधुनिक समाज में व्यक्ति केवल प्राथमिक समूहों पर निर्भर हो कर अपनी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। दिन-प्रतिदिन व्यक्ति की ज़रूरतें बढ़ती ही जा रही हैं ये ज़रूरतें केवल एक क्षेत्र के साथ सम्बन्धित नहीं हैं इस कारण इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए द्वितीय समूहों का विकास हुआ। प्रत्येक व्यक्ति अपने सम्बन्ध हर क्षेत्र में कायम करना चाहता है ताकि आवश्यकता पड़ने पर उसका काम हो सके। इसी कारण व्यक्ति इन समूहों का सदस्य भी बनना चाहता है।

2. यह व्यक्ति के व्यक्तित्व में बढ़ोतरी करते हैं (These Develop Individuals Personality)द्वितीय समूहों के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व व योग्यता में भी बढ़ौतरी होती है। शुरू के आरम्भिक समाजों में व्यक्ति अपने आप को घर की चारदीवारी तक ही सीमित रखता था। पैतृक काम को अपनाना ही प्रत्येक व्यक्ति के लिए ज़रूरी होता था। इसके अलावा बच्चे अपने परिवार के बड़े सदस्यों के नियंत्रण में रहते थे। वे कोई भी काम अपनी मर्जी से नहीं कर सकते थे। लेकिन जैसे-जैसे समाज में द्वितीय समूहों का निर्माण हुआ व्यक्ति घर की चार दीवारी से बाहर निकल कर अपने व्यक्तित्व में विकास करने लगा। उसको अपनी योग्यता को दिखाने की पूरी स्वतन्त्रता मिली। प्राथमिक समूह में चाहता हुआ भी व्यक्ति विकास नहीं कर सकता था इसी कारण द्वितीय समूहों ने व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास किया व पिछड़े हुए परिवारों में उन्नति ला कर उनका रहन-सहन का स्तर भी उच्च किया।

3. यह सामाजिक प्रगति में योगदान देते हैं (These groups contribute in Social Progress)समाज में प्रगति अधिक होने से आम व्यक्तियों के द्वितीय समूह में शामिल होने से ही पाई गई तकनीकी, औद्योगिक आदि क्रांति भी इन्हीं समूहों के द्वारा हो पाई। व्यक्ति घर से बाहर निकल कर अपनी ज़रूरतों की पूर्ति करने लगा। व्यक्ति को ऐसा वातावरण प्राप्त होने लगा कि वह खुल कर अपनी योग्यता को इस्तेमाल करने लगा। व्यक्ति को द्वितीय समूहों में ही मौके प्राप्त हुए। समूह का प्रत्येक व्यक्ति जितनी योग्यता रखता है उतनी ही तरक्की करता है। व्यक्ति में आगे से आगे बढ़ने की इच्छा ही समाज की प्रगति के लिए सहायक होती है।

4. इनसे विस्तृत दृष्टिकोण होता है (With these outlook becomes wider)-व्यक्ति प्राथमिक समूह का सदस्य होने के नाते विशेष स्थान से जुड़ा होता है। उसकी प्राथमिक समूह में सदस्यता भी स्थायी होती है, इसी कारण आकार में भी ये छोटे होते हैं। प्रत्येक अपने ही हितों पर ध्यान केन्द्रित करता है। उदाहरण के तौर पर खेल समूह, पड़ोस या परिवार के सदस्य केवल अपने ही हितों की रक्षा करते थे। इस प्रकार के दृष्टिकोण के साथ प्राथमिक समूह का घेरा काफ़ी तंग रहता था क्योंकि सदस्य केवल सीमित हितों के बारे में ही सोचते थे। दूसरी ओर द्वितीय समूह के सदस्य बड़े क्षेत्र में फैले होते हैं। उदाहरण के लिए द्वितीय समूह के सदस्य भिन्न-भिन्न जातियों, धर्म, श्रेणियों आदि से सम्बन्धित होते हैं। विभिन्न स्थानों पर फैले होने के कारण व्यक्ति प्राथमिक समूहों से अलग हो जाते हैं। द्वितीय समूह के सदस्यों पर रीति-रिवाजों, परम्पराओं, नियमों इत्यादि का भी काफ़ी प्रभाव रहता है। इससे समूह के सदस्य को अपने सम्बन्ध विभिन्न स्थानों पर बनाने की पूरी स्वतन्त्रता मिलती है। साझे हित होने के कारण भी वह आपसी भेदभावों को मिटा कर एक हो कर काम करते हैं व समूह के सदस्यों में सहनशीलता भी पाई जाती है।

5. यह सांस्कृतिक विकास में मदद करते हैं (These help in cultural development)-द्वितीय समूहों में व्यक्ति विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों से सम्बन्धित होते हैं परन्तु काम उन्हें एक ही स्थान पर मिल कर करना पड़ता है। उदाहरण के लिए किसी दफ्तर या फैक्टरी में कई व्यक्ति काम करते हैं चाहे वह भिन्न-भिन्न स्थानों से आये होते हैं परन्तु फिर भी उनमें औपचारिक सहयोग होने के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान बना रहता है। प्रत्येक संस्कृति से सम्बन्धित व्यक्ति दूसरी संस्कृति के गुणों को अपनाना आरम्भ कर देता है। इससे सांस्कृतिक विकास पाया जाता है। इसके साथ ही जब कोई अनुसंधान किसी देश में होता है तो बाकी देश भी उसको अपना लेते हैं। इससे सांस्कृतिक मिश्रण भी हो जाता है।

प्रश्न 7.
अन्तः समूह और बहिर्समूह (In Groups and Out Groups) के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
समनर द्वारा दिए समूहों के वर्गीकरण की व्याख्या करें।
उत्तर-
समनर ने अपनी पुस्तक “फोकवेज़ (Folk Ways) में मानवीय समाज में पाये जाने वाले दो तरह के समूहों का वर्णन किया है

  1. अन्तः समूह (In Groups)
  2. बहिर्समूह (Out Groups)।

समनर ने समूहों का यह वर्गीकरण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से किया है। जिसमें एक समूह व्यक्ति विशेष के साथ सम्बन्धित है वह अन्तः समूह है और वही समूह दूसरे व्यक्ति के लिये बाहरी समूह बन जाता है। एक व्यक्ति का अन्तः समूह दूसरे व्यक्ति का बहिर्समूह बन जाता है। अब इन समूहों का विस्तार सहित वर्णन करेंगे।

1. अन्तः समूह (In Groups)-समनर द्वारा वर्गीकृत समूह सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में पाये जाते हैं क्योंकि इन्हीं के द्वारा ही व्यक्तियों का व्यवहार भी प्रभावित होता है। अन्तः समूह को ‘हम समूह’ (We Groups) भी कहा गया है। यह वह समूह होते हैं जिनको व्यक्ति अपना समझता है। व्यक्ति इन समूहों से सम्बन्धित भी होता है। मैकाइवर एवं पेज (MacIver and Page) ने अपनी पुस्तक ‘समाज’ (Society) में ‘अन्तः समूह’ का अर्थ उन समूहों से लिया है जिनके साथ व्यक्ति अपने आपको मिला लेता है। उदाहरणार्थ जाति, धर्म, कबीले, लिंग आदि कुछ ऐसे समूह हैं जिनके बारे व्यक्ति को पूरा ज्ञान होता है।

अन्तः समूह की प्रकृति शान्ति वाली होती है और इसमें आपसी सहयोग, आपसी मेल-मिलाप, सद्भावना आदि गुण पाये जाते हैं। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति का दृष्टिकोण बाहरी लोगों के प्रति दुश्मनी वाला होता है। इन समूहों में व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कार्य नहीं कर सकता। कुछ न कुछ कार्य को करने के लिये इन समूहों में मनाही भी होती है। कई बार लड़ाई के समय व्यक्ति एक समूह के साथ जुड़ कर दूसरे समूह का मुकाबला करने लग पड़ते हैं। अन्तः समूह में हम की भावना (We feeling) पाई जाती है। जाति प्रथा के बीच एक जाति के व्यक्ति अपने आपको अन्तः समूहों के साथ जोड़ते हैं और दूसरी जाति के व्यक्ति के लिए ‘बाहरी जाति’ का व्यक्ति जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। कई समाजों में समाज का वर्गीकरण भी ‘अन्तः एवं बाहरी’ समूह के आधार पर किया जाता है। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति अपने आपको जोड़ता है और अपना समझता है।

इन समूहों में वह ‘मेरे’ शब्द का प्रयोग करने लग पड़ता है जैसे मेरा स्कूल, मेरा घर, मेरी जगह, मेरा गांव इत्यादि। इस तरह हम कह सकते हैं वह समूह जिनके साथ व्यक्ति सम्बन्ध रखता है , जिनको वह अपना समझता है, और जिनके लिये वह ‘मेरे’ या ‘हम’ शब्द का प्रयोग करता है, ‘वह अन्तः समूह’ होते हैं। मैकाइवर के अनुसार, “वह समूह जिनके साथ व्यक्ति अपना समरूप कर लेता है वह उसके अन्तः समूह है।” जैसे कि उसका परिवार, कबीला, गांव इत्यादि साधारणतया अन्तः समूहों में सम्बन्ध शांतिप्रिय होते हैं और सदस्य आपसी सहयोग एवं प्यार के साथ रहते हैं। उस समूह के सदस्यों के प्रति व्यक्ति का व्यवहार हमदर्दी वाला होता है और वह समूह के सदस्यों के प्रति अपनापन महसूस करता है। उसको अपने समूह के व्यवहार, विचार, आदर्श इत्यादि अच्छे लगते हैं। वह दूसरे व्यक्ति के बारे में विचार बनाते समय अपने समूह के विचारों, मूल्यों इत्यादि को सामने रखता है। उसे अपने समूह की सारी बातें अच्छी लगती हैं क्योंकि वे सभी उसको अपने लगते हैं। अन्तः समूह का संगठन अधिक मज़बूत एवं निश्चित होता है। अन्तः समूह के बीच होने वाली अन्तक्रियाओं का सदस्यों के ऊपर भी प्रभाव पड़ता है। अन्तः समूह सर्वव्यापक समूह होते हैं जो सांस्कृतिक विकास की सभी अवस्थाओं में क्रियाशील होते हैं।

बहिर्समूह (Out-Groups) बहिर्समूह के लिये ‘वह समूह’ (They Group) शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। यह वह समूह होते हैं जिनका व्यक्ति सदस्य नहीं होता है और बेगाना समझता है। साधारणतया व्यक्ति समाज के बीच प्रत्येक समूह के साथ तो नहीं जुड़ा होता है। जिस समूह के साथ जुड़ा होता है वह उसके अन्तः समूह कहलाते हैं और जिस समूह के साथ नहीं जुड़ा होता है वह उसके बहिर्समूह कहलाते हैं। यह वर्गीकरण व्यक्तिगत दृष्टिकोण से लिया गया है। समाज में दोनों तरह के समूह व्यक्तियों के लिये विकसित होते हैं। उदाहरण के लिये बाहरी जाति, बाहरी धर्म, बाहरी परिवार आदि ऐसे समूह हैं, जो एक व्यक्ति के लिये तो अपनत्व पैदा करते हैं, और जो व्यक्ति उनके समूह का सदस्य नहीं उसके लिये बाहरी भावना पैदा करते हैं। कई कबीलों में इन समूहों के आधार पर भी रिश्तेदारी का भी वर्गीकरण किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि आप कहीं भी जाते हैं, यदि आपको कोई दूसरा व्यक्ति मिलता है तो आप उसके साथ बातचीत करने लग जाते हैं। यदि वह आपकी जाति, धर्म, इत्यादि के साथ सम्बन्ध रखता हो तो आप उसे अन्तः समूह में शामिल कर लेते हैं। यदि वह अलग जाति अथवा धर्म का हो तो उसको ‘बहिर्समूह समूह’ का सदस्य बना देते हैं। समान जाति वालों के साथ आप मित्रता का व्यवहार करते हैं, और असमान जाति वालों के साथ आप दुश्मनी जैसा व्यवहार करने लग पड़ते हैं।

इसलिए हम कह सकते हैं कि ‘बर्हिसमूह’ व्यक्ति के लिए बेगाने से होते हैं और वह उनके साथ प्रत्यक्ष तौर पर नहीं जुड़ा होता। लड़ाई के समय बाहरी समूह का संगठन काफ़ी कमज़ोर एवं असंगठित होता है। व्यक्ति के लिये आन्तरिक समूह के विचारों और मूल्यों के सामने बाहरी समूह के विचारों की कीमत काफ़ी कम होती है। यह भी सर्वव्यापक है और प्रत्येक स्थान पर पाये जाते हैं।

उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि व्यक्ति के लिए अन्तः समूह एवं बहिर्समूह का अर्थ अवस्था, स्थान, समय के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। कभी कोई व्यक्ति अन्तः समूह से सम्बन्धित होता है परन्तु विचारों में समानता न होने की स्थिति में वही उसके लिए बहिर्समूह बन जाता है। अन्तः समूह के बीच व्यक्ति का व्यवहार, सहयोग, हमदर्दी एवं प्यार वाला होता है और व्यक्ति अपने समूह के आदर्शों, विचारों एवं कीमतों का सम्मान करता है और उन्हें उत्तम समझता है। उसको अपने समूह की सम्पूर्ण बातें अच्छी लगती हैं। बहिर्समूह के व्यक्तियों का दृष्टिकोण दुश्मनी वाला होता है। जिन कार्यों की आन्तरिक समूहों में मनाही होती है, बहिसर्मुह में उन कार्यों की इजाज़त भी दी जाती है। ये दोनों समूह सभी समाजों में व्याप्त होते हैं परन्तु इनका निर्माण करने वाली परिस्थितियां भिन्न-भिन्न होती हैं। साधारण व्यक्ति आन्तरिक समूह को बर्हिसमूह से उत्तम समझता है। व्यक्ति का व्यवहार भी इन समूहों से सम्बन्धित होता है। दोस्ती एवं दुश्मनी वाले सम्बन्ध भी इसी दृष्टिकोण से पाये जाते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

प्रश्न 8.
संदर्भ समूह के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तार सहित लिखो।
उत्तर-
1942 में एच० एच० हाइमन (H.H. Hyman) ने सबसे पहले ‘संकल्प संदर्भ समूह’ का प्रयोग अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘स्थितियों के मनोविज्ञान’ (The Psychology status) में किया था। सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग मनोवैज्ञानिकों ने मानवीय व्यवहार के सामाजिक मनोवैज्ञानिक पक्षों के अध्ययन और व्याख्या के लिए किया था और अपना ध्यान इस बात पर केन्द्रित किया, कि कैसे मनुष्य अपने संदर्भ समूह का चुनाव करता है और यह संदर्भ समूह किस प्रकार उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है। बाद में समाजशास्त्रियों विशेषकर ‘मर्टन’ ने संदर्भ समूह की समाजशास्त्र के लिये महत्ता के बारे मैं समझा और कहा कि सामाजिक वातावरण के कार्यात्मक और संरचनात्मक पक्षों को समझने के लिए संदर्भ समूह बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं। इसकी सहायता के साथ सामाजिक व्यवहार की भिन्नताओं में सभी छुपी हुई समानताओं को ढूंढ़ सकते हैं। इस प्रकार इसकी सहायता से मानवीय व्यवहार के सभी पक्षों के बारे में जाना जा सकता है जिसकी सहायता के साथ समाज को आसानी के साथ समझा जा सकता है।

संदर्भ समूह का अर्थ (Meaning of Reference Group)-यदि हमें संदर्भ समूह का अर्थ समझना है तो हमें सर्वप्रथम ‘सदस्य समूह’ का अर्थ समझना पड़ेगा क्योंकि संदर्भ समूह को “सदस्यता समूह” या “सदस्य समूह के संदर्भ में रखकर ही समझा जा सकता है। जिस समूह का व्यक्ति सदस्य होता है, जिस समूह को वह अपना समूह समझ कर उसके कार्यों में भाग लेता है, उस समूह को सदस्यता समूह कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति का अपना एक समूह होता है जिसका वह वास्तविक तौर पर सदस्य होता है और वास्तविक सदस्य होने के कारण उस समूह के साथ उसका अपनापन पैदा हो जाता है और उस समूह के विचारों, कीमतों इत्यादि को भी अपना मान लेता है। वह स्वयं को इस समूह का एक अभिन्न अंग मान लेता है। इस तरह उसका प्रत्येक कार्य या क्रिया उन समूहों की कीमतों के अनुसार ही होती है। इस समूह के आदर्श, विचार, कीमतें इत्यादि उसके व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाती हैं और दूसरे व्यक्तियों का मूल्यांकन करते समय वह अपने समूह की कीमतों को सामने रखता है। इस तरह यह व्यक्ति का सदस्यता समूह होता है।

परन्तु कई बार यह देखने को मिलता है कि व्यक्ति का व्यवहार अपने समूह की कीमतों या आदर्शों के अनुरूप नहीं होता बल्कि वह किसी और आदर्शों एवं कीमतों के अनुसार होता है। परन्तु प्रश्न यह उठता है कि ऐसा क्यों होता है ? इस कारण ही “संदर्भ समूह” का संकल्प हमारे सामने आया। कुछ लेखकों के अनुसार, “व्यवहार प्रतिमान और उसकी स्थिति के साथ सम्बन्धित विवेचन के लिए हमारे लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह किस समूह का सदस्य है और उसकी समूह में क्या स्थिति है ? क्योंकि वह अपने समूह का सदस्य होते हुए भी किसी और समूह से प्रभावित होकर उसका मनोवैज्ञानिक तौर पर सदस्य बन जाता है। व्यक्ति इसका वास्तविक सदस्य होते हुए भी इससे इतना प्रभावित होता है कि उसके व्यवहार का बहुत-सा हिस्सा उस समूह के अनुसार होता है। समाज वैज्ञानिक इस समूह को संदर्भ समूह कहते हैं। जैसे कोई मध्यमवर्गीय समूह का सदस्य अपने आपको किसी उच्चवर्ग से सम्बन्धित मान सकता है। अपने व्यवहारों, आदतों, आदर्शों, कीमतों आदि को उसी उच्चवर्ग के अनुसार निश्चित करता है।

अपने रहन-सहन, खाने-पीने के तरीके उसी उच्चवर्ग के अनुसार ही निश्चित करता है तो वह उच्चवर्ग मध्यवर्गीय समूह का संदर्भ समूह होता है। इस तरह जब व्यक्ति उच्चवर्ग से मानसिक तौर पर सम्बन्धित होता है, तो वह उच्चवर्ग उसके लिए संदर्भ समूह’ होता है। इस तरह वह अपनी आदतों, प्रतिमानों, प्रवृत्तियों को उस ‘संदर्भ समूह’ के अनुसार चलाने की कोशिश करता है। संदर्भ समूह का अर्थ और भी स्पष्ट हो जायेगा यदि हम संदर्भ समूह की परिभाषाएं देखेंगे।

शैरिफ एवं शैरिफ (Sherrif and Sheriff) के अनुसार, “संदर्भ समूह वे समूह हैं, जिनके साथ व्यक्ति अपने आपको समूह के एक अंग के रूप में सम्बन्धित करता है या मनोवैज्ञानिक रूप के साथ सम्बन्धित होने की इच्छा रखता है। दैनिक भाषा में संदर्भ समूह वे समूह हैं जिनके साथ व्यक्ति स्वयं ही पहचान करता है या फिर पहचानने की इच्छा रखता है।”

राबर्ट मर्टन (Robert Merton) के अनुसार, “संदर्भ समूह व्यवहार सिद्धांत का लक्ष्य मूल्यांकन या उप मूल्यांकन की उन प्रक्रियाओं के कारकों एवं परिमापों को क्रमबद्ध करना है जिनमें व्यक्ति और अन्य मनुष्यों एवं समूहों की कीमतों और मापदण्डों को तुलनात्मक निर्देश व्यवस्था के रूप में अपनाता है।”

मर्टन (Merton) के अनुसार “यह देखा जाता है कि जो समूह जीवन की अवस्थाओं में अधिक सफल है व्यक्ति उसको संदर्भ समूह मानने लग पड़ता है। मर्टन के अनुसार यह ज़रूरी नहीं कि कोई व्यक्ति उस समूह का सदस्य हो जिसका वह सदस्य है। वह उस समूह का सदस्य हो सकता है जिसका वह सदस्य नहीं। जिन समूहों के हम वास्तव में सदस्य नहीं होते और जिनके साथ हम कभी भी वास्तव में अन्तक्रिया नहीं करते तो भी यदि वह समूह हमारे विचारों, व्यवहारों को प्रभावित करते हैं तो हम स्वयं को उनके अनुसार ढालते हैं तो वह गैर-सदस्यता भी हमारे लिये संदर्भ समूह ही होगा।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 4 सामाजिक समूह

सामाजिक समूह PSEB 11th Class Sociology Notes

  • मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। उसे अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है। इस प्रकार उसकी लगभग सभी क्रियाओं का केन्द्र समूह होता है।
  • एक सामाजिक समूह उन दो अथवा अधिक व्यक्तियों का एकत्र होता है जिनमें अन्तक्रिया लगातार होती रहनी चाहिए। यह अन्तक्रिया व्यक्ति को समूह के साथ संबंधित होने के लिए प्रेरित करती है।
  • एक सामाजिक समूह की बहुत-सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह व्यक्तियों का एकत्र होता है, समूह में सदस्यों के बीच अन्तक्रियाएं होती रहती हैं, सदस्य अपनी सदस्यता के प्रति चेतन होते हैं, उनमें हम की भावना होती है, समूह के कुछेक नियम होते हैं इत्यादि।
  • वैसे तो समाज में बहुत से समूह होते हैं तथा कई समाजशास्त्रियों ने इनका वर्गीकरण अलग-अलग आधारों पर दिया है परन्तु जो कूले (Cooley) की तरफ से दिया गया वर्गीकरण प्रत्येक विद्धान् ने किसी न किसी रूप में स्वीकार किया है। कूले के अनुसार शारीरिक नज़दीकी तथा दूरी के अनुसार दो प्रकार के समूह होते हैं-प्राथमिक समूह तथा द्वितीय समूह।
  • प्राथमिक समूह वह होते हैं जिनके साथ शारीरिक रूप से नज़दीकी होती है। हम इस समूह के सदस्यों को रोज़ाना मिलते हैं, उनके साथ बातें करते हैं तथा उनके साथ रहना पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, पड़ोस, खेल समूह।
  • द्वितीय समूह प्राथमिक समूह से बिल्कुल ही विपरीत होते हैं। वह समूह जिनकी सदस्यता वह अपनी इच्छा या आवश्यकता के अनुसार लेता है द्वितीय समूह होते हैं। व्यक्ति इनकी सदस्यता कभी भी छोड़ सकता है तथा कभी भी ग्रहण कर सकता है। उदाहरण के लिए राजनीतिक दल, ट्रेड युनियन इत्यादि।
  • प्राथमिक समूहों का हमारे जीवन में काफ़ी महत्त्व है क्योंकि इनके बिना व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता है। यह समूह व्यक्ति का समाजीकरण करने में सहायता करते हैं। यह समूह व्यक्ति के व्यवहार के ऊपर नियन्त्रण भी रखते हैं।
  • द्वितीय समूह की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि शारीरिक नज़दीकी का न होना, यह अस्थायी होते हैं, इसमें औपचारिक संबंध होते हैं तथा इनकी सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  • समनर (Summer) ने भी समूहों का वर्गीकरण दिया है तथा वह हैं-अन्तर्समूह (In-Group) तथा बहिर्समूह (Out-Group) । अन्तर्समूह वह होता है जिनकी सदस्यता के प्रति व्यक्ति पूर्णतया चेतन होता है। बहिर्समूह वह होता है जिनमें व्यक्ति को अपनेपन की भावना नहीं मिलती है।
  • राबर्ट मर्टन ने एक नए प्रकार के समूह के बारे में बताया है तथा वह है संदर्भ समूह (Reference Group)। व्यक्ति कई बार किसी विशेष समूह के अनुसार अपने व्यवहार को नियन्त्रित तथा केन्द्रित करता है। इस प्रकार के समूह को संदर्भ समूह कहा जाता है।
  • हम भावना (We feeling)—वह भावना जिससे व्यक्ति अपने समूहों के साथ स्वयं को पहचानते हैं कि वे उस समूह के सदस्य हैं।
  • प्राथमिक समूह (Primary Group)-वह समूह जिनके सदस्यों में संबंध काफ़ी नज़दीक के होते हैं तथा जिनके बिना जीवन जीना मुमकिन नहीं है।
  • द्वितीय समूह (Secondary Group)-वे समूह जिनकी सदस्यता आवश्यकता के समय ली जाती है तथा बाद में छोड़ दी जाती है।
  • अन्तः समूह (In-Group)-वह समूह जिनके प्रति व्यक्ति के अन्दर अपनेपन की भावना होती है।
  • बहिर्समूह (Out-Group)—वह समूह जिनके प्रति व्यक्ति के अन्दर अपनेपन की किसी भी प्रकार की भावना नहीं होती।
  • दर्भ समूह (Reference Group)—वह समूह जिन्हें व्यक्ति एक आदर्श के रूप में स्वीकार करता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

SST Guide for Class 10 PSEB भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए

प्रश्न 1.
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलों के नाम बताइए।
उत्तर-
खरीफ़ के मौसम में बोई जाने वाली फसलें हैं-चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंगफली, पटसन तथा कपास।

प्रश्न 2.
रबी के मौसम में कौन-कौन सी फसल बोई जाती हैं?
उत्तर-
रबी के मौसम में गेहूं, जौ, चना, सरसों और तोरिया आदि फ़सलें बोई जाती हैं।

प्रश्न 3.
उर्वरक क्या है ?
उत्तर-
उर्वरक भूमि को पोषक तत्त्व देने वाले रासायनिक पदार्थ होते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 4.
दुधारू पशु किसे कहते हैं?
उत्तर-
वे पशु जिनसे हमें दूध मिलता है, दुधारू पशु कहलाते हैं।

प्रश्न 5.
परती भूमि किसे कहते हैं?
उत्तर-
परती भूमि वह भूमि है जिसमें दो या तीन वर्षों में केवल एक ही फसल उगाई जाती है।

प्रश्न 6.
देश के कितने प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं?
उत्तर-
देश के 22.7 प्रतिशत भाग में वन पाए जाते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 7.
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के कितने प्रतिशत भाग पर वन होना जरूरी है?
उत्तर-
वैज्ञानिक आदर्श की दृष्टि से देश के 33 प्रतिशत भाग पर वन होना ज़रूरी है।

प्रश्न 8.
पंजाब में वन क्षेत्रफल कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
पंजाब में 5.7 प्रतिशत भू-भाग पर वन हैं।

प्रश्न 9.
भारत में कितने प्रतिशत भूमि कृषि योग्य है?
उत्तर-
भारत में 51% भूमि कृषि योग्य है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 10.
देश में गेहूँ का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश भारत का सबसे बड़ा गेहूँ उत्पादक राज्य है।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ देश के किस राज्य से प्राप्त होता है?
उत्तर-
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिए सबसे अधिक गेहूँ पंजाब से प्राप्त होता है।

प्रश्न 12.
चरागाह की भूमि घटने का कौन-सा प्रमुख कारण है?
उत्तर-
देश में बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चरागाहों को कृषि भूमि में बदला जा रहा है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 13.
चावल उत्पादन में सबसे बड़े उत्पादक राज्य का नाम क्या है?
उत्तर-
चावल उत्पादन में सबसे बड़ा उत्पादक राज्य पश्चिमी बंगाल है।

प्रश्न 14.
पंजाब प्रति हेक्टेयर गेहं की पैदावार के हिसाब से देश में कौन-से स्थान पर है?
उत्तर-
पहले स्थान पर।

प्रश्न 15.
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
दालों के उत्पादन में भारत का विश्व में पहला स्थान है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 16.
पंजाब में दाल उत्पादन क्षेत्र में हरित क्रान्ति के बाद किस प्रकार का परिवर्तन आया है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद दाल उत्पादन क्षेत्र 9.3 लाख हेक्टेयर से घटकर मात्र 95 हजार हेक्टेयर रह गया।

प्रश्न 17.
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या को कितने खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी ?
उत्तर-
21वीं शताब्दी के अन्त तक भारत की जनसंख्या (अनुमानित 160 से 170 करोड़ के बीच) को 40 करोड़ टन खाद्यान्नों की जरूरत पड़ेगी।

प्रश्न 18.
भारतीय कृषि वर्तमान समय में तीन प्रमुख समस्याएं कौन-सी हैं?
उत्तर-
भारतीय कृषि की तीन मुख्य समस्याएं हैं-
(i) भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव
(ii) कृषि भूमि का असमान वितरण
(iii) कृषकों का अनपढ़ होना।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 19.
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
भारत का गन्ना उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 20.
तिलहन फसलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तिलहन फसलें हैं-मूंगफली, सरसों, तोरिया, सूरजमुखी के बीज, बिनौला, नारियल आदि।

प्रश्न 21.
मूंगफली का उत्पादन किन दो राज्यों में अधिक होता है?
उत्तर-
मूंगफली का उत्पादन गुजरात तथा महाराष्ट्र में सबसे अधिक होता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 22.
तिलहन उत्पादन क्षेत्रफल में किस दशक में देश में सबसे तेजी से वृद्धि हुई?
उत्तर-
तिलहन उत्पादन के क्षेत्रफल में 1980 से 1990 के दशक में सबसे अधिक वृद्धि हुई।

प्रश्न 23.
देश के मुख्यता कपास उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं-महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, सीमांध्र, तेलंगाना, हरियाणा, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु।

प्रश्न 24.
कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार कितनी है?
उत्तर-
भारत में कपास की प्रति हेक्टेयर पैदावार 249 किलोग्राम है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 25.
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
आलू के मुख्य उत्पादक राज्य हैं-उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, बिहार एवं पंजाब।

प्रश्न 26.
पंजाब में प्रमख आल उत्पादक जिलों के नाम बताओ।
उत्तर-
पंजाब में प्रमुख आलू उत्पादक जिले हैं-जालन्धर, होशियारपुर, पटियाला तथा लुधियाना।

प्रश्न 27.
पशुधन में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
पशुधन में पंजाब का देश में तेरहवां स्थान है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 28.
पशुधन किस राज्य में सबसे अधिक पाया जाता है?
उत्तर-
देश में सबसे अधिक पशुधन उत्तर प्रदेश में पाया जाता है।

प्रश्न 29.
फलों तथा सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
फलों एवं सब्जियों के उत्पादन में भारत का विश्व में दूसरा स्थान है।

प्रश्न 30.
सेब उत्पादन में दो प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
सेब उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश मुख्य राज्य हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

II. निम्न प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
कृषि को भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। कुल राष्ट्रीय उत्पादन में अब कृषि का योगदान भले ही केवल 33.7% है, तो भी इसका महत्त्व कम नहीं है।

  1. कृषि हमारी 2/3 जनसंख्या का भरण-पोषण करती है।
  2. कृषि क्षेत्र से देश के लगभग दो-तिहाई श्रमिकों को रोजगार मिलता है।
  3. अधिकांश उद्योगों को कच्चा माल कृषि से प्राप्त होता है। सच तो यह है कि कृषि की नींव पर उद्योगों का महल खड़ा किया जा रहा है।

प्रश्न 2.
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
उत्तर-
हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है।
  2. जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है।
  3. उर्वरकों तथा अच्छी किस्म के बीजों का प्रयोग किया जाता है। सच तो यह है कि हरित क्रान्ति से कृषि तथा कृषि-उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 3.
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत किन-किन चीज़ों को शामिल किया जाता है?
उत्तर-
कृषि क्षेत्र के अन्तर्गत फ़सलें उगाने के अतिरिक्त निम्नलिखित चीजें शामिल हैं —

  1. पशु पालन
  2. मत्स्य उद्योग
  3. वानिकी
  4. रेशम के कीड़े पालना
  5. मधुमक्खी पालना
  6. मुर्गी पालन।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 4.
दुधारू एवं भारवाहक पशुओं के बीच अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
दुधारू पशुओं से अभिप्राय उन पशुओं से है जिनसे हमें दूध मिलता है। उदाहरण के लिए गाय और भैंस दुधारू पशु हैं। इसके विपरीत भारवाही पशु जुताई, बुवाई, गहाई और कृषि उत्पादों के परिवहन में कृषकों की सहायता करते हैं। बैल, भैंसा, ऊँट आदि पशु भारवाही पशुओं के मुख्य उदाहरण हैं।

प्रश्न 5.
चालू परती एवं पुरानी परती भूमि के बीच अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कुछ भूमि ऐसी होती है जिसे केवल एक ही वर्ष के लिए खाली छोड़ा जाता है। एक वर्ष के बाद उस पर फिर से कृषि की जाती है। ऐसी भूमि को चालू परती भूमि (Current Fallow Land) कहा जाता है। शेष परती भूमि को पुरानी परती भूमि (Old Fallow Land) कहते हैं। इस पर काफ़ी समय से कृषि नहीं की गई।

प्रश्न 6.
गेहूं की फसल उगाने हेतु उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित जलवायु परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —

  1. गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
  2. गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जाती है। इसके लिए 50 सें०मी० से 75 सें.मी० की वर्षा पर्याप्त रहती है। वर्षा थोड़े-थोड़े समय के पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
  3. गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
  4. गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 7.
चावल उत्पादक प्रमुख क्षेत्रों के नाम लिखिए।
उत्तर-
भारत के प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र अनलिखित हैं —
अधिक वर्षा वाले क्षेत्र-पूर्वी एवं पश्चिमी तटीय मैदान एवं डेल्टाई प्रदेश, उत्तर-पूर्वी भारत के मैदान तथा निचली पहाड़ियां, हिमालय की गिरिपाद पहाड़ियां, पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तरी आन्ध्र प्रदेश तथा सम्पूर्ण उड़ीसा।
कम वर्षा वाले क्षेत्र-पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मैदान, हरियाणा, पंजाब तथा पंजाब-हरियाणा के साथ लगने वाले राजस्थान के कुछ जिले।

प्रश्न 8.
गन्ना उत्पादन के लिए उपयुक्त परिस्थितियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गन्ने की उपज के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां उपयुक्त रहती हैं —

  1. इसे गर्म आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। इसके लिए लगभग 21° से ग्रे० से 27° से ग्रे० तक तापमान अच्छा रहता है। गन्ने के पौधे के लिए पाला बहुत हानिकारक है।
  2. गन्ने को अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा की मात्रा 75 सें० मी० से 100 सें० मी० तक होनी चाहिए।
  3. इसके लिए वायु में नमी अधिक होनी चाहिए।
  4. गन्ने की कृषि के लिए भूमि उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है। यदि मिट्टी में फॉस्फोरस तथा चूने के अंश अधिक हों तो गन्ने की फसल बहुत अच्छी होती है।
  5. भूमि समतल होनी चाहिए ताकि सिंचाई अच्छी तरह हो सके।

प्रश्न 9.
वनों के प्रमुख लाभ क्या हैं?
उत्तर-
वन एक बहुमूल्य सम्पदा है। इनके मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. वन पारिस्थितिक सन्तुलन तथा प्राकृतिक पारितन्त्र को बनाये रखने में बहुत अधिक योगदान देते हैं।
  2. इनसे हमें इमारती तथा ईंधन योग्य लकड़ी मिलती है। इमारती लकड़ी से फ़र्नीचर, पैकिंग के बक्से, नावें आदि बनाई जाती हैं। इसका उपयोग भवन निर्माण कार्यों में भी होता है।
  3. मुलायम लकड़ी से लुग्दी बनाई जाती है जिसकी कागज़ उद्योग में भारी मांग है।
  4. वनों से हमें लाख, बेंत, राल, जड़ी-बूटियां, गोंद आदि उपयोगी पदार्थ प्राप्त होते हैं।
  5. वनों से पशुओं के लिए चारा (घास) भी प्राप्त होता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 10.
भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
भारत में अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। छोटे-छोटे खेतों पर श्रम तथा पूंजी तो अधिक लगती है, परन्तु आर्थिक लाभ बहुत ही कम होता है। छोटे किसानों को सिंचाई के लिए ट्यूबवैल का पानी तथा कृषि यन्त्र बड़े किसानों से किराए पर लेने पड़ते हैं। उन्हें महंगे उर्वरक भी बाजार से खरीदने पड़ते हैं। इससे उनकी शुद्ध बचत बहुत ही कम हो जाती है। इन्हीं कारणों से भारतीय कृषि को निर्वाह कृषि कहते हैं।

प्रश्न 11.
देश में पशधन विकास के लिए किये गये प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत में पशुधन के विकास के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने अनेक कदम उठाए हैं-उनकी नस्ल सुधारने, उन्हें विविध प्रकार की बीमारियों से बचाने, पशु रोगों पर नियन्त्रण करने तथा बाज़ार की अधिक अच्छी सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष प्रयास किये गये हैं। देश के प्रत्येक विकास खण्ड में कम-से-कम एक पशु चिकित्सालय खोला गया है। ग्रामीण स्तर पर भी पशुधन स्वास्थ्य केन्द्र खोले गये हैं।

प्रश्न 12.
‘हरित क्रान्ति’ को कुछ लोग ‘गेहूं-क्रान्ति’ का नाम क्यों देते हैं?
उत्तर-
गेहूं के उत्पादन में हरित-क्रान्ति के बाद के वर्षों में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। भारत में हरित क्रान्ति का आरम्भ 1966-67 के वर्ष से माना जाता है। गेहूं का उत्पादन जो वर्ष 1960-61 में 1 करोड़ 10 लाख टन था, वर्ष 2004-05 में यह उत्पादन 20 करोड़ टन तक पहुंच गया। गेहूं के अतिरिक्त किसी अन्य खाद्यान्न में हरित क्रान्ति के दौरान इतनी अधिक वृद्धि नहीं हुई। गेहूं उत्पादन में इस अभूतपूर्व उत्पादन वृद्धि के कारण ही कई लोग ‘हरित क्रान्ति’ को ‘गेहूं-क्रान्ति’ की संज्ञा देते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 13.
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के क्या कारण हैं?
उत्तर-
अकृषि कार्यों के लिए बढ़ते हुए भूमि उपयोग के दो मुख्य कारण हैं-जनसंख्या में वृद्धि तथा आर्थिक विकास। आबादी के बढ़ने से शहरी एवं ग्रामीण बस्तियों का विस्तार हो रहा है। इसी प्रकार विकास कार्यों में तेजी आने से काफ़ी बड़ा क्षेत्रफल सड़कों, नहरों, औद्योगिक एवं सिंचाई परियोजनाओं तथा अन्य विकास सुविधाओं के विस्तार के लिए उपयोग में लाया जा रहा है।

प्रश्न 14.
वनों का महत्त्व संक्षिप्त में बताइए।
उत्तर-
वनों का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। निम्नलिखित तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी —

  1. वनों द्वारा पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है। वृक्ष कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण. करके वायुमण्डल के तापमान को बढ़ने से रोकते हैं।
  2. वन, वन्य प्राणियों के घर हैं। वे उन्हें संरक्षण देते हैं।
  3. वनों से वर्षण की मात्रा में वृद्धि होती है तथा बार-बार सूखा नहीं पड़ता।
  4. वन जल का भी संरक्षण करते हैं और मिट्टी का भी। वे नदियों में आने वाली विनाशकारी बाढ़ों को रोकने में समर्थ हैं।

प्रश्न 15.
आजादी के बाद खाद्यान्नों की प्रति व्यक्ति उपलब्धि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् कृषि की उन्नति के लिए भरसक प्रयास किए गए। परिणामस्वरूप खाद्यान्नों के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि हुई। 1950-51 तथा 1994-95 के मध्य चावल के उत्पादन में चार गुणा और गेहूं के उत्पादन में दस गुणा वृद्धि हुई। इस तरह कृषि के क्षेत्र में उन्नति के कारण प्रति व्यक्ति खाद्यान्नों की उपलब्धि पर भी प्रभाव पड़ा। 1950 के वर्ष में यह 395 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन थी। 2005 में यह बढ़कर 500 ग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिदिन हो गई।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 16.
देश में कृषि जोतों के छोटा होने के क्या कारण हैं तथा इसका भारतीय कृषि पर क्या प्रभाव पड़ा है?
उत्तर-
देश में 58% जोतों का आकार 1 हेक्टेयर से कम है। जोतों का आकार छोय होने का कारण उत्तराधिकार का नियम है। पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी भूमि उसकी सन्तान में बराबर बांट दी जाती है। अत: भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते बोझ के कारण जोतों का आकार छोटा है।
जोतें छोटी होने के कारण न तो किसान आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग ही कर सकता है और न ही आधुनिक सिंचाई के साधनों की व्यवस्था कर सकता है। उसे पानी भी किराए पर लेना पड़ता है और कृषि यन्त्र भी। परिणामस्वरूप उसकी शुद्ध बचत कम होती है और वह दिन प्रतिदिन निर्धन होता जा रहा है।

प्रश्न 17.
चावल उत्पादक प्रमुख राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारत में चावल का सबसे अधिक उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। वर्ष 2003-04 में यहां कुल 140 लाख टन चावल का उत्पादन किया गया। इसके बाद उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, पंजाब एवं उड़ीसा का नम्बर आता है। इनमें से हर एक राज्य में प्रति वर्ष 60 लाख टन से अधिक चावल पैदा होता है। इनके अतिरिक्त झारखण्ड, असम, कर्नाटक, महाराष्ट्र तथा हरियाणा में भी बड़ी मात्रा में चावल का उत्पादन किया जाता है।

प्रश्न 18.
पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के क्या कारण हैं?
उत्तर-
पंजाब गेहूं उत्पादन की दृष्टि से भारत में दूसरे स्थान पर आता है। परन्तु प्रति हेक्टेयर गेहूं की उपज एवं केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में इस राज्य का प्रथम स्थान है। पंजाब में गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार अधिक होने के अग्रलिखित कारण हैं —

  1. पंजाब में गेहूं की खेती बहुत ही विस्तृत आधार पर की जाती है। यहां के किसान इसे व्यावसायिक फसल के रूप में पैदा करते हैं।
  2. पंजाब के किसानों को अच्छी सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध हैं।
  3. यहां उगाई जाने वाली गेहूं का झाड़ अधिक होता है।
  4. तेजी से हो रहे मशीनीकरण के कारण भी पंजाब से गेहूं की प्रति हेक्टेयर पैदावार में वृद्धि हुई है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 19.
दालों के उत्पादक क्षेत्र में गिरावट के मुख्य कारण क्या हैं?
उत्तर-
पिछले दशकों में दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं —

  1. दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद अधिक उत्पादन देने वाली गेहूं तथा चावल जैसी फसलों के अधीन कर दिया गया है।
  2. कुछ क्षेत्र को विकास कार्यों के कारण नहरों, सड़कों तथा अन्य विकास परियोजनाओं के अधीन कर दिया गया
  3. बढ़ती हुई जनसंख्या के आवास के लिए बढ़ती हुई भूमि की मांग के कारण भी दालों के उत्पादन क्षेत्र में कमी आई है।

प्रश्न 20.
डेयरी उद्योग के लाभ बताओ।
उत्तर-
डेयरी उद्योग से अभिप्राय दूध प्राप्त करने के लिए पशु पालने से है। वास्तव में डेरी उद्योग कृषि का ही भाग है। इस उद्योग के लाभ निम्नलिखित हैं —

  1. डेयरी उद्योग से सूखाग्रस्त इलाकों में लोगों को रोजगार मिलता है और किसान कृषि की फसल नष्ट होने के बावजूद अच्छा गुजारा कर सकते हैं।
  2. डेयरी उद्योग से कृषि को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है जिससे उनकी कृषि आय में वृद्धि होती है।
  3. दूध के उत्पादन में वृद्धि होने के कारण भोजन में पौष्टिक तत्त्वों की वृद्धि होती है।

प्रश्न 21.
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन अभी कम क्यों है?
उत्तर-
दालों एवं तिलहनों का उत्पादन हमारी आवश्यकताओं से कम है। आओ इस कमी का पता लगाएं —

  1. दालों के उत्पादन में कमी-देश में दालों के उत्पादन में कमी का मुख्य कारण दाल उत्पादन क्षेत्रों में कमी आना है। हरित क्रान्ति के पश्चात् इन क्षेत्रों पर गेहूं तथा चावल की फसलें बोई जाने लगी हैं। इस प्रकार पिछले कुछ वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
  2. तिलहन के उत्पादन में कमी-देश में तिलहन उत्पादन की स्थिति दालों के विपरीत है। तिलहन उत्पादक क्षेत्र में भी वृद्धि हुई है और तिलहन उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके बावजूद देश में तिलहन की मांग पूरी नहीं हो पा रही। इसका मुख्य कारण यह है कि देश में तिलहनों की मांग 5 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रही है और इसके साथ जनसंख्या की वृद्धि दर इस समस्या को गम्भीर बना रही है।”

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 22.
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं क्या हैं ?
उत्तर-
पंजाब की कृषि की मुख्य समस्याएं अनलिखित हैं —

  1. वन तथा चरागाह कम होने के कारण मिट्टी का कटाव अधिक होता है।
  2. पंजाब के कई जिलों की मिट्टियों में अधिक लवणता पाई जाती है। अकेले फिरोजपुर जिले में एक लाख हेक्टेयर से भी अधिक भूमि इससे प्रभावित है।
  3. अधिकतर किसान अनपढ़ होने के कारण वैज्ञानिक ढंग से फसल-चक्र नहीं अपना पाते।
  4. अकृषि कार्यों के लिए भूमि-उपयोग बढ़ने से कृषि क्षेत्र कम होता जा रहा है।
  5. अधिकांश जोतों का आकार बहुत छोटा है। ऐसी जोतें आर्थिक दृष्टि से अलाभकारी हैं। महंगे कृषि औज़ारों को किराए पर लेने, महंगी रासायनिक खादें आदि खरीदने के कारण किसानों की शुद्ध बचत बहुत कम हो जाती है। पंजाब की कृषि की अन्य समस्याएं हैं-भूमिगत जल स्तर में कमी तथा मिट्टियों की उर्वरता का ह्रास।

प्रश्न 23.
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में आये फसल चक्र में तेजी से आए परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद के वर्षों में फसल चक्र में तेजी से परिवर्तन हुए हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों (पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश) में कृषि उत्पादकता बढ़ गई है। परन्तु परम्परागत रूप से चावल उत्पन्न करने वाले पूर्वी क्षेत्रों में कृषि उत्पादकता कम हो गई है। इससे देश के कृषि विकास में क्षेत्रीय असन्तुलन बढ़ गया है। इसके अतिरिक्त हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में कृषि विकास में एक ठहराव-सा आ गया है। इन समस्याओं से निपटने के लिए भारत के विभिन्न भागों में किसान नये-नये फसल चक्र अपनाने लगे हैं। उन्होंने ऐसे फसल चक्र अपनाये हैं जो आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी हैं।

प्रश्न 24.
वे कौन-से संकेत हैं, जिनसे यह पता चलता है कि भारतीय कृषि निर्वाह की ओर से व्यापारिक कृषि की ओर बढ़ रही है?
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान फसल बो कर अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं ही पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। निम्नलिखित तथ्य भारतीय कृषि को उसकी निर्वाह अवस्था से निकालकर व्यापारिक अवस्था में पहुंचाने में सहायक हुए —

  1. ज़मींदारी प्रथा का कानून द्वारा उन्मूलन हो चुका है। इस तरह सरकार और भू-स्वामियों के मध्य आने वाले बिचौलिये समाप्त हो गए हैं।
  2. चकबन्दी द्वारा किसानों के दूर-दूर बिखरे खेत बड़ी जोतों में बदल दिए गए हैं।
  3. सहकारिता आन्दोलन के अन्तर्गत किसान मिल-जुल कर स्वयं ही अपनी ऋण और उपज की बिक्री सम्बन्धी समस्याएं सुलझा रहे हैं।
  4. राष्ट्रीय बैंक किसानों को आसान शतों पर ऋण देने लगे हैं।
  5. खेतों में उपज बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय बीज निगम, केन्द्रीय भण्डार निगम, भारतीय खाद्य निगम, कृषि विश्वविद्यालय, डेयरी विकास बोर्ड तथा दूसरी संस्थाएं किसानों को सहायता पहुंचा रही हैं।
  6. कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है जिससे किसानों को किसी मज़बूरी में अपनी उपज कम कीमत पर नहीं बेचनी पड़ती।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 25.
कृषि विकास के लिए भारत सरकार द्वारा किये गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत सरकार द्वारा कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित प्रमुख कदम उठाए गए हैं —

  1. चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
  2. उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
  3. उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि की शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
  4. खेती के आधुनिक साधन-खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
  5. सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं के अधीन नदियों के पानी को रोककर सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से दीजिए

प्रश्न 1.
भारतीय कृषि की प्रमुख समस्याओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय कृषि की अनेक समस्याएं हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है —

  1. भारतीय कृषि की सम्भवतः सबसे बड़ी समस्या भूमि पर जनसंख्या का भारी दबाव है। देश की अर्जक जनसंख्या का 65 प्रतिशत भाग जीवन निर्वाह के लिए कृषि पर निर्भर तो करता है परन्तु वह देश की कुल आय का 29 प्रतिशत भाग ही जुटा पाता है।
  2. देश में अधिकांश जोतें छोटी हैं और उनका वितरण बहुत ही असामान्य है। छोटी जोतें आर्थिक दृष्टि से बड़ी अलाभकारी हैं।
  3. वनों और चरागाहों के कम होने के कारण मिट्टी के कटाव के साथ-साथ उनकी उर्वरता बनाये रखने वाले स्रोतों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा है।
  4. देश के अधिकांश कृषक अनपढ़ हैं। वे वैज्ञानिक ढंग से फसल चक्र तैयार नहीं कर पाते। इससे मिट्टी की प्राकृतिक उर्वरता कम होती है। इसी तरह गहन कृषि का भी प्राकृतिक उर्वरता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  5. देश में सिंचाई भी एक समस्या बन गई है। एक ओर जहां राजस्थान, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक जैसे बड़ेबड़े राज्यों में सिंचाई सुविधाएं बढ़ाने की आवश्यकता है, वहां पंजाब में सिंचाई साधनों की अधिकता के कारण जलसंतृप्तता (Water logging) तथा लवणता (Salinity) की समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं।
  6. घटता पूंजी निवेश कृषि की एक अन्य समस्या है। 1980-81 में जहां यह निवेश 1769 करोड़ था, वहां 1990-91 में यह घटकर 1002 करोड़ रुपए रह गया। परन्तु इसके बाद से इस निवेश में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
  7. उन्नत किस्म के बीजों को विकसित करने में भी नाममात्र प्रगति हुई है।
  8. फसलों की किस्मों की विभिन्नता का अभाव तथा धीमी वृद्धि दर भी भारतीय कृषि की एक गम्भीर समस्या है।
    सच तो यह है कि सरकार का कृषि क्षेत्र पर कड़ा नियन्त्रण है और वह कृषि उत्पादनों के मूल्यों पर भी नियन्त्रण रखती है। कृषक वर्ग को इतनी अधिक सुरक्षा प्रदान नहीं की जाती जितनी कि उद्योगों तथा विभिन्न सेवाओं में लगे लोगों को प्रदान की जाती है।

प्रश्न 2.
देश में ‘हरित क्रान्ति’ पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति से अभिप्राय उस कृषि क्रांति से है जिसका आरम्भ कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए किया गया। हरित क्रान्ति की मुख्य विशेषता यह है कि इससे कृषि का मशीनीकरण हो जाता है और उत्पादन में बहुत वृद्धि होती है। जुताई, बुवाई तथा गहाई के लिए मशीनों का प्रयोग होता है। उर्वरकों तथा अच्छी नस्ल के बीजों का प्रयोग भी होता है जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है। भारतीय कृषि के विकास के लिए जहां अन्य विधियां अपनायी गयीं वहां अच्छे बीजों और यन्त्रों का भी प्रयोग किया गया। 1961 में इस काम के लिए देश के सात जिलों को चुना गया। पंजाब का लुधियाना ज़िला इन सात जिलों में से एक था। लुधियाना के साथ-साथ सारे पंजाब पर हरित क्रान्ति का प्रभाव पड़ा और पंजाब एक बार फिर भारत की ‘अनाज की टोकरी’ बन गया। प्रभाव-भारतीय समाज पर हरित क्रान्ति के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव निम्नलिखित हैं —
1. आर्थिक प्रभाव —

  1. हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि हुई है।
  2. कृषि निर्वाह अवस्था से निकलकर व्यापारिक अवस्था में बदल गई है।
  3. कृषि का मशीनीकरण हो गया है।
  4. हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप सिंचाई का क्षेत्र काफ़ी बढ़ गया है।
  5. किसानों ने आर्थिक दृष्टि से अधिक-से-अधिक लाभकारी फसल-चक्र अपना लिया है।

2. सामाजिक प्रभाव—

  1. प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के परिणामस्वरूप लोगों के जीवन स्तर में प्रगति हुई है। किसान अब पहले से अच्छे और पक्के मकानों में रहते हैं। उनके पास निजी वाहन हैं।
  2. हरित-क्रान्ति के परिणामस्वरूप किसानों में साक्षरता बढ़ रही है, गांव-गांव में जहां स्कूल खुल रहे हैं वहां अस्पतालों की भी व्यवस्था की जा रही है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 3.
देश में चावल की खेती का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
देश में चावल की खेती का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चावल भारत का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न है। भारत के दो-तिहाई लोगों का मुख्य आहार चावल ही है। इसकी उपज के लिए भौगोलिक परिस्थितियां, इसके उत्पादक राज्यों तथा इसके व्यापार का वर्णन इस प्रकार है —
भौगोलिक परिस्थितियां-चावल की खेती के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनकल रहती हैं —

  1. चावल उष्ण आर्द्र कटिबन्ध की उपज है। इसके लिए ऊंचे तापमान की आवश्यकता होती है। इसके लिए तापमान 25° सेंटीग्रेड से अधिक होना चाहिए। इसे काटते समय विशेष रूप से तापमान काफ़ी ऊंचा होना चाहिए।
  2. चावल के लिए अधिक पानी की आवश्यकता होती है। इसकी जड़ें पानी में डूबी रहनी चाहिएं। इसके लिए 100 सें० मी० तक की वर्षा अच्छी मानी जाती है। इसकी सफलता मानसून पर निर्भर करती है। जिन भागों में वर्षा कम होती है वहां कृत्रिम सिंचाई का सहारा लिया जाता है।
  3. चावल की खेती के लिए भी सभी कार्य हाथों से करने पड़ते हैं। अत: इसकी कृषि के लिए श्रमिकों की आवश्यकता होती है। इस कारण इसकी कृषि प्रायः उन भागों में होती है जहां जनसंख्या अधिक हो और सस्ते श्रमिक सरलता से मिल जाएं।
    चावल उत्पादक राज्य-भारत का चावल उत्पन्न करने में विश्व में दूसरा स्थान है। भारत में सबसे अधिक चावल पश्चिमी बंगाल में उत्पन्न होता है। दूसरा स्थान तमिलनाडु और तीसरा बिहार का है। कर्नाटक, झारखण्ड, केरल, असम, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश आदि अन्य मुख्य चावल उत्पादक राज्य हैं। पंजाब और हरियाणा में भी काफ़ी मात्रा में चावल बोया जाता है। 2001-02 में भारत में लगभग 4.3 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर चावल की बिजाई की गई थी। इस वर्ष चावल का कुल उत्पादन 8.20 करोड़ टन के लगभग था।

प्रश्न 4.
गेहूं की कृषि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गेहूं एक महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। भौगोलिक परिस्थितियां-गेहूं की कृषि के लिए निम्नलिखित भौगोलिक परिस्थितियां अनुकूल रहती हैं —

  1. गेहूं को बोते समय शीतल तथा आई और पकते समय उष्ण तथा शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।
  2. गेहूं की खेती साधारण वर्षा वाले प्रदेशों में की जा सकती है। इसके लिए 50 सें० मी० से 75 सें० मी० तक की वर्षा पर्याप्त रहती है। परन्तु वर्षा थोड़े-थोड़े समय पश्चात् रुक-रुक कर होनी चाहिए।
  3. गेहूं की कृषि के लिए मिट्टी उपजाऊ होनी चाहिए। दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे अच्छी रहती है।
  4. गेहूं के लिए भूमि समतल होनी चाहिए ताकि इसमें सिंचाई करने में कठिनाई न हो।
    उत्पादक राज्य-भारत में सबसे अधिक गेहूं उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है। इसके उत्पादन में दूसरा स्थान पंजाब का है। हरियाणा भी गेहूं का उत्पादन करने में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इन राज्यों के अतिरिक्त बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश तथा महाराष्ट्र में भी काफ़ी मात्रा में गेहूं पैदा होता है।
    उत्पादन-हरित क्रान्ति तथा उसके बाद के वर्षों में गेहूं के उत्पादन में क्रान्तिकारी परिवर्तन आया है। 1960-61 में इसका उत्पादन केवल 1 करोड़ 60 लाख टन था। 2000-01 में यह बढ़कर 6 करोड़ 87 लाख टन हो गया।

प्रश्न 5.
देश में दालों की कृषि पर विस्तार से चर्चा कीजिए।
उत्तर-
देश दालों के उत्पादन में अधिक उन्नतिशील नहीं रहा क्योंकि हमने इनके उत्पादन में कोई विशेष रुचि नहीं दिखाई। पिछले कई दशकों में दालों का उत्पादन घटता-बढ़ता रहा है।
मुख्य दालों में चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर और मटर सम्मिलित हैं। दालें भारी वर्षा वाले क्षेत्रों को छोड़कर देश के सभी भागों में उगाई जाती हैं। एक बात और-मूंग, उड़द और मसूर रबी तथा खरीफ़ दोनों मौसमों में उगाई जाती है।
देश में दालों के क्षेत्रफल में भी वृद्धि नहीं हुई है। इसका मुख्य कारण यह है कि दालों वाले क्षेत्रफल को हरित क्रान्ति के बाद गेहूं तथा चावल जैसी फसलों में लगा दिया गया है। वर्ष 1960-61 में दालों का उत्पादन 2.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि पर किया गया, जो 2000-01 में घटकर 2.3 करोड़ हेक्टेयर रह गया। इस प्रकार पिछले 40 वर्षों में दालों के क्षेत्रफल में 30 लाख हेक्टेयर की कमी आई है।
देश में दालों का कुल उत्पादन 1960-61 में 1.3 करोड़ टन था जो बढ़कर 2000-01 में केवल 1.7 करोड़ टन तक ही पहुंच सका।
सच तो यह है कि दालों के न तो उत्पादन क्षेत्र में वृद्धि हुई है और न ही उत्पादन में। यह एक चिन्ता का विषय है। सरकार को चाहिए कि वह अच्छे बीजों की खोज के लिए अथक एवं निरन्तर प्रयास करे।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 6.
तिलहन उत्पादक क्षेत्रफल में हरित क्रान्ति के बाद हुई गिरावट के कारणों पर प्रकाश डालिए तथा सरकार द्वारा तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के उपायों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
क्षेत्रफल में गिरावट के कारण-तिलहन ऐसी फसलें हैं जो अन्य फसलों के साथ उगाई जाती हैं और जो भूमि की उर्वरता में वृद्धि भी करती हैं। फसलों के वैज्ञानिक चक्र में तिलहन धुरी का काम करती है। इसके बावजूद ऐसे क्षेत्र में कमी आई है जिसमें तिलहन बोया जाता रहा है। हरित क्रान्ति के कारण पंजाब में तिलहन उत्पादन क्षेत्रों में कमी आई है। यहां तिलहन उत्पादक क्षेत्र जो 197576 में 3.2 लाख हेक्टेयर था, 1990-91 तक 1.00 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया। इसके बाद इसमें कुछ वृद्धि अवश्य हुई, परन्तु क्षेत्रफल अस्थिर रहा। 2000-01 में कुल उत्पादक क्षेत्रफल 2 करोड़ 13 लाख हेक्टेयर था। तिलहन उत्पादन में भी भारी उतार-चढ़ाव देखने को मिलता है।
सरकारी प्रयास-तिलहनों की कृषि को बढ़ावा देने के लिए सरकार उन्नत किस्म के बीजों की व्यवस्था कर रही है। इसके अतिरिक्त वह कृषकों को तिलहन के अच्छे मूल्यों की गारण्टी दे रही है, ताकि किसानों की तिलहन की कृषि में रुचि बढ़े।

प्रश्न 7.
कपास उत्पादन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत कपास के पौधे का मूल स्थान है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के अध्ययन से इस बात के प्रमाण मिले हैं कि उस समय भी कपास की पैदावार होती थी। उस काल में यहां की कपास को बेबीलोन के लोग ‘सिन्धु’ तथा यूनानी इसे ‘सिन्दों’ के नाम से पुकारते थे। कपास लंबे, मध्यम तथा छोटे रेशे वाली होती है। भारत में मुख्यतः मध्यम तथा छोटे रेशे वाली कपास उगाई जाती है। लंबे रेशे वाली कपास केवल पंजाब तथा हरियाणा में ही पैदा होती है। देश में कपास उत्पादन का वर्णन इस प्रकार है —

  1. कपास दक्कन के काली मिट्टी वाले शुष्क भागों में खूब उगती है। गुजरात और महाराष्ट्र दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं। महाराष्ट्र में कपास का उत्पादन सबसे अधिक होता है। दूसरे स्थान पर गुजरात व तीसरे स्थान पर पंजाब का नाम आता है।
  2. राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश एवं तमिलनाडु अन्य कपास उत्पादक राज्य हैं।
  3. पिछले वर्षों में पंजाब में कपास का उत्पादन क्षेत्र निरन्तर बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप कपास के उत्पादन में भी वृद्धि हुई। इस समय पंजाब में 17 लाख से भी अधिक कपास की गांठों का उत्पादन होता है।
  4. वर्ष 2000-01 में देश में 86 लाख हेक्टेयर भूमि पर कपास की खेती की गई। इस वर्ष कुल 97 लाख कपास की गांठों का उत्पादन हुआ। इनमें से प्रत्येक गांठ का वजन 170 कि० ग्रा० था।
  5. कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव काफी अधिक होता है। इसका कारण फ़सलों में होने वाली बीमारियां हैं। कपास के मूल्य में होने वाले परिवर्तनों से भी कपास के उत्पादन में उतार-चढ़ाव आता रहता है।

प्रश्न 8.
भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बागवानी खेती से अभिप्राय सब्जियों, फूलों तथा फलों की गहन खेती से है। भारत का फल तथा सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है। हमारे देश में फलों का उत्पादन 3.9 करोड़ टन तथा सब्जियों का उत्पादन 6.5 करोड़ टन तक पहुंच चुका है। भारत में बागवानी खेती की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन इस प्रकार है —

  1. हमारे देश में विभिन्न प्रकार की कृषि-जलवायु दशाएं पाई जाती हैं। इसलिए यहां पर विभिन्न प्रकार के फल, सब्जियां, फूल, मसाले तथा अन्य बागानी फसलें उगाना सम्भव है। उच्च पहाड़ी भागों पर चाय तथा कहवा उगाया जाता है तो समुद्र तटीय भागों में नारियल के पेड़ उगाये जाते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि देश में विभिन्न प्रकार की बागवानी खेती की सम्भावनाएं हैं।
  2. केला, आम, नारियल और काजू उत्पादन में भारत का विश्व में प्रथम स्थान है। इसके अतिरिक्त मौसमी, सेब, सन्तरा, किन्न, अनानास आदि के उत्पादन में भारत विश्व के दस बड़े उत्पादक देशों में से एक है। इसी प्रकार भारत गोभी के उत्पादन में प्रथम तथा आलू, टमाटर, प्याज एवं हरे मटर के उत्पादन में विश्व के दस बड़े उत्पादकों में से एक है।
  3. देश से होने वाले कुल कृषि निर्यातों में बागवानी उत्पादों का हिस्सा लगभग 25.0 प्रतिशत है।
  4. हाल के वर्षों में देश में फूलों के उत्पादन को भारी बढ़ावा मिला है। इसका मुख्य कारण फूलों के लिए बाहर के देशों की बढ़ती हुई मांग है। फूलों के निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 200 निर्यातमुखी इकाइयों को चुना गया है।
  5. भारत में सेब के उत्पादन में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश राज्य के नाम सबसे ऊपर हैं। सन्तरों और केलों के उत्पादन में महाराष्ट्र, आम उत्पादन में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र तथा काजू उत्पादन में कर्नाटक, तमिलनाडु एवं केरल प्रमुख हैं।
    इस प्रकार भारत बागवानी कृषि में निरन्तर प्रगति कर रहा है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

IV. निम्नलिखित को मानचित्र पर प्रदर्शित कीजिए :

  1. प्रमुख गेहूँ उत्पादक क्षेत्र।
  2. प्रमुख ज्वार-बाजरा उत्पादक क्षेत्र।
  3. प्रमुख कपास उत्पादक क्षेत्र।
  4. प्रमुख चावल उत्पादक क्षेत्र।
  5. आलू उत्पादक राज्य।
  6. तिलहन उत्पादक प्रमुख क्षेत्र।
  7. गन्ना उत्पादक क्षेत्र।
  8. दालों के प्रमुख उत्पादक राज्य।
  9. मक्का उत्पादक क्षेत्र।

उत्तर-विद्यार्थी अध्यापक की सहायता से स्वयं करें।

PSEB 10th Class Social Science Guide भूमि उपयोग एवं कृषि विकास Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
वन बाढ़ों पर किस प्रकार नियन्त्रण करते हैं?
उत्तर-
वन वर्षा के जल को मृदा के अन्दर रिसने में सहायता करते हैं और धरातल पर जल के प्रवाह को मंद कर देते हैं।

प्रश्न 2.
वनों की वृद्धि से सूखे की समस्या पर कैसे नियन्त्रण पाया जा सकता है?
उत्तर-
वन वर्षा की मात्रा में वृद्धि करते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 3.
बंजर भूमि का क्या अर्थ है?
उत्तर-
बंजर भूमि वह भूमि है जिसका इस समय उपयोग नहीं हो रहा।

प्रश्न 4.
मनुष्य किन दो तरीकों से बंजर भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है?
उत्तर-
(i) अति चराई द्वारा।
(ii) वनों के विनाश द्वारा।

प्रश्न 5.
भारत में भूमि की मांग क्यों बढ़ती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण भारत में भूमि की मांग बढ़ रही है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 6.
भारत में मृदा की प्राकृतिक उर्वरता क्यों कम होती जा रही है? कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
वनों तथा चरागाहों की कमी का मृदा की प्राकृतिक उर्वरता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।

प्रश्न 7.
भारत में जोतों को आर्थिक दृष्टि से लाभकारी बनाने का कोई एक उपाय बताओ।
उत्तर-
जोतों की चकबन्दी की जाए और जुताई सहकारिता के आधार पर की जाए।

प्रश्न 8.
शष्क कृषि में मेड़बन्दी और समोच्च रेखीय जुताई का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
इससे मृदा में नमी बनी रहती है और मृदा का अपरदन भी नहीं होता।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 9.
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए क्या किया जाना चाहिए?
उत्तर-
भारत में मृदा की उर्वरता को बनाए रखने के लिए हरी तथा गोबर जैसी खादों का प्रयोग किया जाना चाहिए।

प्रश्न 10.
कृषि मूल्य आयोग का क्या कार्य है?
उत्तर-
कृषि मूल्य आयोग उपजों के लाभकारी मूल्य निर्धारित करता है।

प्रश्न 11.
भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुओं के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में मुख्य रूप से दो कृषीय ऋतुएँ हैं-खरीफ तथा रबी।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 12.
डेल्टा प्रदेश चावल की कृषि के लिए उत्तम क्यों हैं?
उत्तर-
डेल्टा प्रदेशों की मिट्टी बहुत ही उपजाऊ है जो चावल की कृषि के अनुकूल है।

प्रश्न 13.
भारत में गेहूं उत्पादक तीन मुख्य राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
भारत में पंजाब, हरियाणा तथा उत्तर प्रदेश गेहूं के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

प्रश्न 14.
कोई दो दूधारू पशुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
गाय तथा बकरी।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 15.
भारत में दालों की कृषि का क्या महत्त्व है? कोई एक बिंदु लिखो।
उत्तर-
दालें भारत की शाकाहारी जनता के लिए प्रोटीन का मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 16.
तिलहन क्या हैं?
उत्तर-
वे बीज जिन से हमें तेल प्राप्त होते हैं, तिलहन कहलाते हैं।

प्रश्न 17.
भारत में चाय के दो सर्वप्रमुख उत्पादक राज्यों के नाम बताइए।
उत्तर-
असम और पश्चिमी बंगाल चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 18.
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य कौन-से हैं?
उत्तर-
भारत के दो प्रमुख कपास उत्पादक राज्य गुजरात और महाराष्ट्र हैं।

प्रश्न 19.
भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में समृद्ध मत्स्य क्षेत्र क्यों पाए जाते हैं?
उत्तर-
भारत में महाद्वीपीय निमग्न तट में समुद्री धाराएं चलती हैं और यहां बड़ी-बड़ी नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं।

प्रश्न 20.
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत के सुन्दर वन क्षेत्र में मैन्ग्रोव जाति के सुन्दरी वृक्ष पाए जाते हैं जिनकी लकड़ी से नावें और बक्से बनाए जाते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 21.
भारत का कुल क्षेत्रफल कितना है?
उत्तर-
भारत का कुल क्षेत्रफल लगभग 32.8 लाख वर्ग कि. मी. है।

प्रश्न 22.
जिस परती भूमि को केवल एक ही साल के लिए खाली छोड़ा जाता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
चालू परती।

प्रश्न 23.
भारत में कुल भूमि के कितने प्रतिशत भाग पर खेती की जाती है?
उत्तर-
56 प्रतिशत।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 24.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
82.2 प्रतिशत।

प्रश्न 25.
देश की कुल राष्ट्रीय आय का कितने प्रतिशत भाग कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है?
उत्तर-
29 प्रतिशत।

प्रश्न 26.
भारतीय कृषि की सबसे बड़ी समस्या क्या है?
उत्तर-
जनसंख्या का भारी दबाव।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 27.
पंजाब में मिट्टी की जल संतृप्त तथा लवणता जैसी समस्याओं का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर-
अधिक सिंचाई।

प्रश्न 28.
‘जायद’ की किन्हीं दो फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
तरबूज़ तथा ककड़ी।

प्रश्न 29.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल कौन-सी है?
उत्तर-
चावल।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 30.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कौन-सा है?
उत्तर-
पश्चिमी बंगाल।

प्रश्न 31.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फसल कौन-सी है?
उत्तर-
गेहूं।

प्रश्न 32.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन तथा केन्द्रीय भण्डार को गेहूं देने में पंजाब का देश में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 33.
मक्का मूल रूप से किस देश की फ़सल है?
उत्तर-
अमेरिका की।

प्रश्न 34.
संसार में दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

प्रश्न 35.
देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को किस क्रान्ति का नाम दिया जाता है?
उत्तर-
हरित क्रांति।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 36.
भारत की तीन रेशेदार फ़सलों के नाम बताओ।
उत्तर-
कपास, जूट तथा ऊन।

प्रश्न 37.
गन्ने का मूल स्थान कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

प्रश्न 38.
गन्ने के उत्पादन में भारत का विश्व में कौन-सा स्थान है?
उत्तर-
प्रथम।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 39.
कृषि पारितंत्र कैसे बनता है?
उत्तर-
कृषि पारितंत्र खेत, कृषक तथा उसके पशुओं के मेल से बनता है।

प्रश्न 40.
सेब उत्पादन में भारत के कौन-से दो राज्य सबसे आगे हैं?
उत्तर-
जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश।

प्रश्न 41.
भारत में सबसे अधिक पशुधन किस राज्य में है?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश में।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. मनुष्य वनों के विनाश तथा अति चराई द्वारा ……………. भूमि का क्षेत्र बढ़ाता है।
  2. खरीफ़ तथा ………….. भारत की दो प्रमुख कृषि ऋतुएं है।
  3. भारत में …………… और असम चाय के दो प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
  4. ……….. भारत का प्रमुख कपास उत्पादक राज्य है।
  5. चालू परती भूमि को केवल ……………… साल के लिए खाली छोड़ा जाता है।
  6. देश की कुल राष्ट्रीय आय का ……………. प्रतिशत भाग कृषि से प्राप्त होता है।
  7. देश में गेहूं और चावल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि लाने वाली लहर को ……………… कहा जाता है।
  8. ………………. गन्ने का मूल स्थान है।
  9. फलों में जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश में ……………. का उत्पादन सबसे अधिक है।
  10. ………………… राज्य में सबसे अधिक पशुधन है।

उत्तर-

  1. बंजर,
  2. रबी,
  3. पश्चिमी बंगाल,
  4. महाराष्ट्र,
  5. एक,
  6. 29,
  7. हरित क्रांति,
  8. भारत,
  9. सेब,
  10. उत्तर प्रदेश।

II. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं —
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र
(B) पंजाब तथा राजस्थान
(C) बिहार तथा गुजरात
(D) पश्चिमी बंगाल तथा महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) गुजरात तथा महाराष्ट्र

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 2.
भारत का कुल क्षेत्रफल है —
(A) 62.8 लाख वर्ग कि० मी०
(B) 42.8 लाख वर्ग कि० मी०
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०
(D) 23.8 लाख वर्ग कि० मी०।
उत्तर-
(C) 32.8 लाख वर्ग कि० मी०

प्रश्न 3.
पंजाब का कुल शुद्ध बोया गया क्षेत्र है —
(A) 92.2 प्रतिशत
(B) 60.2 प्रतिशत
(C) 72.2 प्रतिशत
(D) 82.2 प्रतिशत।
उत्तर-
(D) 82.2 प्रतिशत।

प्रश्न 4.
भारत की सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फ़सल है —
(A) गेहूं
(B) मक्का
(C) चावल
(D) बाजरा।
उत्तर-
(C) चावल

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 5.
भारत में चावल का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है —
(A) पश्चिमी बंगाल
(B) उत्तर प्रदेश
(C) पंजाब
(D) महाराष्ट्र।
उत्तर-
(A) पश्चिमी बंगाल

प्रश्न 6.
भारत की दूसरी महत्त्वपूर्ण खाद्य फ़सल है —
(A) चावल
(B) गेहूं
(C) मक्का
(D) बाजरा।
उत्तर-
(B) गेहूं

प्रश्न 7.
प्रति हेक्टेयर गेहूं उत्पादन में पंजाब का देश में स्थान है —
(A) दूसरा
(B) तीसरा
(C) पहला
(D) चौथा।
उत्तर-
(C) पहला

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. भारत में वनों का क्षेत्रफल वैज्ञानिक आदर्श से बहुत कम है।
  2. भारतीय कृषि पर अधिक जनसंख्या घनत्व का कोई प्रभाव नहीं है।
  3. हरित क्रांति के बाद अपनाया गया फ़सल-चक्र आर्थिक दृष्टि से अधिक लाभकारी है।
  4. गेहूं देश की पहली महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है।
  5. भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक तथा उपभोक्ता देश है।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✗),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

  1. वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — रबी
  2. चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — तिलहन
  3. गेहूं, जौं, चना, सरसों — खरीफ़
  4. मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — परती।

उत्तर-

  1. वह भूमि जिस पर हर वर्ष फसलें नहीं उगाई जाती — परती,
  2. चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का — खरीफ़,
  3. गेहूँ, जौं, चना, सरसों — रबी,
  4. मूंगफली, सरसों, तोरिया, बिनौला — तिलहन।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता औसत जन-घनत्व की अपेक्षा अधिक सार्थक कैसे है?
उत्तर-
कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता से अभिप्राय यह है कि हमारे देश में प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में औसत रूप से कितनी कृषि योग्य भूमि आती है। इसे देश की कुल कृषि योग्य भूमि को देश की कुल जनसंख्या से भाग देकर जाना जा सकता है। इस गणना के अनुसार हमारे देश में कृषि योग्य भूमि की प्रति व्यक्ति प्राप्यता 0.17 हेक्टेयर के लगभग है। यह एक अच्छा लक्षण है, क्योंकि हमारे देश में औसत जनघनत्व बहुत अधिक (382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर) है। अतः हम कह सकते हैं कि यहां कृषि योग्य भूमि की प्राप्यता यहां के औसत जनघनत्व से अधिक सार्थक है।

प्रश्न 2.
किसी देश के भूमि उपयोग के प्रारूप को जानना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
किसी देश के भूमि प्रारूप को जानना निम्नलिखित बातों के कारण आवश्यक है —

  1. इससे भूमि के उपयोग में सन्तुलन पैदा किया जा सकता है।
  2. विभिन्न भूमि क्षेत्रों में उत्पादन क्षमता का पता लगाया जा सकता है।
  3. आवश्यकता के अनुसार भूमि-उपयोग में परिवर्तन किया जा सकता है।
  4. बंजर भूमि तथा परती भूमि के उचित उपयोग की योजना बनाई जा सकती है।

प्रश्न 3.
भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की सबसे सन्तोषजनक विशेषता क्या है? इसकी असन्तोषजनक विशेषताएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
सन्तोषजनक विशेषता-भारत में भूमि के उपयोग की सन्तोषजनक विशेषता यह है कि देश में शुद्ध बोए गए क्षेत्र का विस्तार हो रहा है। पिछले तीन दशकों में इसमें 2.2 करोड़ हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप आजकल यह क्षेत्र 16.2 करोड़ हेक्टेयर हो गया है। यह कुल कृषि का 47.7 प्रतिशत है।
असन्तोषजनक विशेषताएं-भारत में भूमि उपयोग के प्रारूप की निम्नलिखित दो असन्तोषजनक विशेषताएं हैं —

  1. भारत में वन-क्षेत्र बहुत कम है। यहां केवल 22.7 प्रतिशत भूमि पर ही वन हैं, परन्तु आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा उचित पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रों में वनों का होना अनिवार्य है।
  2. भारत में चरागाह क्षेत्र भी बहुत कम है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 4.
परती भूमि तथा बंजर भूमि में अन्तर बताओ। परती भूमि से किसानों को होने वाले दो लाभों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
परती भूमि-परती भूमि वह सीमान्त भूमि है जिसमें हर वर्ष फ़सलें पैदा नहीं की जाती। ऐसी भूमि से दो या तीन वर्ष में केवल एक ही फसल ली जाती है। एक फसल लेने के बाद इसे उर्वरता बढ़ाने के लिए खाली छोड़ दिया जाता है। इसका बहुत कुछ उपयोग अच्छी तथा समय पर होने वाली वर्षा पर निर्भर करता है। बंजर भूमि-बंजर भूमि से अभिप्राय उस भूमि से है जिसका उपयोग नहीं हो रहा है। इसमें मुख्यतः उच्च पर्वतीय क्षेत्र तथा मरुभूमियां शामिल हैं।
परती भूमि के लाभ-

  1. परती भूमि अपनी खोई हुई उर्वरता फिर से प्राप्त कर लेती है।
  2. भूमि की उत्पादकता बढ़ जाने के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।

प्रश्न 5.
किस कारण से हमें अपने वन क्षेत्र को बढ़ाना आवश्यक है?
अथवा
आप कैसे कह सकते हैं कि पारिस्थितिक सन्तुलन बनाए रखने तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए बड़ा वन क्षेत्र होना अनिवार्य है?
उत्तर-
भारत में वन क्षेत्र वैज्ञानिक आदर्श से कम हैं, परन्तु आत्म-निर्भर अर्थव्यवस्था, पारिस्थितिक सन्तुलन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण के लिए एक बड़े वन-क्षेत्र का होना आवश्यक है। एक बात ध्यान देने योग्य यह कि वायुमण्डल में कार्बन डाइऑक्साइड की अधिकता ग्रीन हाऊस के प्रभाव को बढ़ा देती है। इससे तापमान इतना अधिक बढ़ सकता है कि बर्फ की चादरें पिघल सकती हैं और समुद्र का जल स्तर बढ़ सकता है। ऐसी स्थिति में समुद्र तट के निकटवर्ती क्षेत्र पानी में डूब जाएंगे। अतः यह आवश्यक है कि हम अपने वन क्षेत्र को बढ़ाएं।

प्रश्न 6.
भारतीय कषि की पिछड़ी दशा के कोई चार कारण बताइए।
उत्तर-
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के चार कारणों का वर्णन इस प्रकार है —

  1. भारतीय किसान प्राचीन ढंग से खेती करते हैं। वे आधुनिक रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बहुत कम करते हैं।
  2. उनके कृषि के उपकरण पुराने ढंग के हैं।
  3. किसान उत्तम बीजों का प्रयोग नहीं करते हैं। इससे उत्पादन कम होता है।
  4. भारत का किसान निर्धन तथा निरक्षर है। यह बात कृषि की उन्नति के मार्ग में बाधा बनी हुई है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 7.
कृषि की उन्नति के लिए सरकार द्वारा कौन-से पाँच कदम उठाए जा रहे हैं?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि की उन्नति के लिए केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने जो पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं, उनका वर्णन इस प्रकार है —

  1. किसानों को नवीन कृषि विधियों से परिचित करवाया जा रहा है।
  2. किसानों को सस्ती दरों पर ऋण की सुविधाएं दी जा रही हैं ताकि वे नए कृषि-यन्त्र खरीद सकें।
  3. बांध बना कर नहरी सिंचाई का विस्तार किया जा रहा है।
  4. खेतों में चकबन्दी कर दी गई है ताकि खेतों के छोटे-छोटे टुकड़े न होने पाएं।
  5. अधिक-से-अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुंचाई जा रही है ताकि फसलों की नलकूपों द्वारा सिंचाई की जा सके।

प्रश्न 8.
भारत की वर्तमान कृषि की दशा सुधारने के लिए कोई पांच उपाय सुझाइए।
उत्तर-

  1. भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
  2. कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
  3. खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।
  4. सिंचाई की सुविधाओं का विकास करना चाहिए।
  5. राष्ट्रीयकृत बैंकों द्वारा किसानों को आसान शर्तों पर ऋण देने चाहिएं।

प्रश्न 9.
निर्वाह कृषि और व्यापारिक कृषि में अन्तर करने के साथ प्रत्येक का एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
निर्वाह कृषि से अभिप्राय ऐसी कृषि से है जिसमें किसान अपनी फ़सल से केवल अपनी तथा अपने परिवार की आवश्यकताएं पूरी करता है। इसके विपरीत व्यापारिक कृषि से वह बाज़ार की आवश्यकताएं भी पूरी करता है। व्यापारिक कृषि में प्रायः एक ही फ़सल की खेती पर बल दिया जाता है और यह कृषि बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक ढंग से की जाती है। उदाहरण: निर्वाह कृषि-भारत में गेहूँ की कृषि। व्यापारिक कृषि-भारत में चाय की कृषि।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 10.
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलों के नाम बताइए। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए दो उपाय लिखिए।
उत्तर-
भारत में उगाई जाने वाली दो नकदी फ़सलें चाय तथा पटसन हैं। भारत में व्यापारिक कृषि के विकास एवं सुधार के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएं —

  1. कृषि का विशिष्टीकरण करना चाहिए। अर्थात् एक क्षेत्र में केवल एक ही व्यापारिक फ़सल बोनी चाहिए।
  2. परिवहन एवं संचार के साधनों का अधिक-से-अधिक विकास करना चाहिए।

प्रश्न 11.
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो रोपण फ़सलों के नाम बताइए। गन्ने की खेती मुख्यतः उत्तर प्रदेश में होती है। दो कारण लिखिए।
उत्तर-
चाय के अतिरिक्त भारत में उगाई जाने वाली दो अन्य रोपण फ़सलें गन्ना और कपास हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ने की अधिक खेती होने के दो कारण निम्नलिखित हैं —

  1. गन्ने के लिए गर्म-आर्द्र जलवायु की आवश्यकता होती है। उत्तर प्रदेश की जलवायु इसके अनुकूल है।
  2. गन्ने की कृषि से सम्बन्धित अधिकतर काम हाथों से करने पड़ते हैं। अत: सस्ते श्रमिकों का मिलना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश में अधिक जनसंख्या के कारण मजदूरी सस्ती है।

प्रश्न 12.
जूट (पटसन) मुख्यतः पश्चिमी बंगाल में क्यों उगाया जाता है? दो कारण दीजिए।
उत्तर-
पटसन से रस्सियां, बोरियां, टाट आदि वस्तुएं बनाई जाती हैं। यह अधिकतर पश्चिमी बंगाल में पैदा होता है। इसका मुख्य कारण यह है कि पटसन के लिए बहुत ही उपजाऊ मिट्टी की आवश्यकता होती है और पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी हर साल नई मिट्टी लाकर बिछा देती है। नदी द्वारा लाई गई मिट्टी बड़ी उपजाऊ होती है। दूसरे, बंगाल की जलवायु भी पटसन के लिए आदर्श है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 13.
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि में क्या विकास हुआ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतीय कृषि का विकास बड़ी तेजी से हुआ है। खाद्यान्नों का उत्पादन पहले से तीन गुना हो गया है। विभाजन के कारण जूट तथा कपास के उत्पादन में कमी आ गई थी, परन्तु अब इस कमी को पूरा कर लिया गया है। यहां प्रति हेक्टेयर उपज बढ़ी है। अधिक भूमि हल के नीचे लाई गई है और सिंचाई की सुविधाओं का विस्तार अधिक क्षेत्र में किया गया है। कृषि के नवीन ढंग भी अपनाए गए हैं।

प्रश्न 14.
तेजी से बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में क्या-क्या सुधार किए जाने चाहिएं?
उत्तर-
तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या को पर्याप्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए भारतीय कृषि में निम्नलिखित सुधार किए जाने चाहिएं —

  1. भारतीय कृषि को निर्वाह का रूप त्याग करके व्यापारिक कृषि का रूप अपनाना चाहिए।
  2. कृषकों को वैज्ञानिक तरीकों से खेती करनी चाहिए ताकि कम-से-कम भूमि से अधिक-से-अधिक उपज प्राप्त की जा सके।
  3. खाद्यान्नों का भण्डारण भी वैज्ञानिक ढंग से करना चाहिए ताकि खाद्यान्नों की बर्बादी न हो।

प्रश्न 15.
चावल की उपज पंजाब में क्यों बढ़ रही है ? कोई चार कारण लिखो।
उत्तर-
पंजाब में चावल की उपज बढ़ने के निम्नलिखित कारण हैं —

  1. पंजाब का कृषक गहन कृषि करता है और वह अपने खेतों में अच्छे बीजों और अच्छी खादों का प्रयोग करता है।
  2. यहां सिंचाई के साधन बड़े उन्नत हैं।
  3. पंजाब की भूमि उपजाऊ है और यहां के किसान बड़े परिश्रमी हैं।
  4. यहां का कृषि विश्वविद्यालय किसानों को उपज बढ़ाने के नए-नए ढंगों से परिचित कराता रहता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 16.
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण क्या हैं?
उत्तर-
भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम होने के चार कारण निम्नलिखित हैं —

  1. गन्ने की खेती केवल वर्षा पर ही निर्भर है, परन्तु भारत की वर्षा अनिश्चित तथा अनियमित है।
  2. भारत में गन्ने की उन्नत किस्म का अभाव है। इसलिए गन्ने का उत्पादन कम होता है।
  3. आर्द्रता कम होने के कारण गन्ने का रस सूख जाता है।
  4. भारत में कृषि के पुराने ढंग प्रयोग किए जाते हैं।

प्रश्न 17.
फल उत्पादन में भारत की क्या स्थिति है?
उत्तर-
भिन्न-भिन्न प्रकार की जलवायु होने के कारण भारत कई प्रकार के फल पैदा करता है। हम हर वर्ष दो करोड़ टन फल पैदा करते हैं, परन्तु हमारे देश में फलों की प्रति व्यक्ति खपत बहुत ही कम है। आम, केला, संतरा और सेब हमारे देश के मुख्य फल हैं। आम हमारे देश का सबसे बढ़िया फल माना गया है। भारत में आमों की लगभग 100 किस्में उगाई जाती हैं। विदेशों में आम की मांग प्रति वर्ष बढ़ रही है। केला दक्षिणी भारत से आता है। संतरों के लिए: नागपुर और पूना प्रसिद्ध हैं। अंगूरों की खेती का विस्तार किया जा रहा है। सेब के लिए हिमाचल प्रदेश तथा जम्मू और कश्मीर राज्य प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 18.
श्वेत क्रान्ति का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
श्वेत क्रान्ति को ऑपरेशन फ्लड भी कहा जाता है। इसका उद्देश्य दूध के उत्पादन को बढ़ाना है। ग्रामीण जीवन के सामूहिक विकास के लिए श्वेत क्रान्ति की सफलता अनिवार्य है। इससे छोटे और सीमान्त किसानों को अतिरिक्त आय हो सकती है। इसके अतिरिक्त ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए खाद तथा बायो गैस प्राप्त की जा सकती है। दूध व्यवसाय के विकास से अनेक परिवार निर्धनता की रेखा से ऊपर उठ सकते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 19.
भारत के मत्स्य उद्योग के विषय में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
हमें मछलियां तटीय भागों के साथ-साथ फैले बीस लाख वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में बड़ी मात्रा में प्राप्त हो सकती हैं। भारत के महाद्वीपीय निमग्न तट में नदियां मछलियों के लिए भोज्य पदार्थ लाकर जमा करती रहती हैं। इससे सभी क्षेत्र मत्स्य क्षेत्र बन गए हैं। 1950-51 में मछली का उत्पादन 5 लाख टन था, जो 2000-01 में बढ़कर 5656 हज़ार टन (अनुमानित) हो गया। भारत में बने बांधों के पीछे झीलों में भी मछली पालने का व्यवसाय उन्नत किया जा रहा है।

प्रश्न 20.
भारत के पशुधन का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। भारतीय किसान के लिए पशुओं का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत पशुओं की दृष्टि से संसार में सबसे आगे है। यहां भैंस, गाय, बैल, भेड़, बकरी, ऊंट तथा घोड़ा आदि पशु पाये जाते हैं।
महत्त्व-

  1. भारवाही पशु भारतीय किसान को कृषि कार्यों में सहायता देते हैं।
  2. दुधारू पशुओं के दूध से किसान को अतिरिक्त आय प्राप्त होती है।
  3. पशुओं का गोबर तथा मलमूत्र खाद का काम देते हैं।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में भूमि के विभिन्न उपयोगों के प्रारूप की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
भूमि एक अति महत्त्वपूर्ण संसाधन है। भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० है। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश की कुल भूमि के 92.7 प्रतिशत भाग का उपयोग हो रहा है। यहां भूमि का उपयोग मुख्यत: चार रूपों में होता है —

  1. कृषि,
  2. चरागाह,
  3. वन,
  4. उद्योग, यातायात, व्यापार तथा मानव आवास।

1. कृषि-भारत के कुल क्षेत्रफल के लगभग 56 प्रतिशत भाग पर कृषि की जाती है। देश में 16.3 करोड़ हेक्टेयर … भूमि शुद्ध बोये गए क्षेत्र के अधीन है। 1.3 प्रतिशत भाग फलों की कृषि के अन्तर्गत आता है। पाँच प्रतिशत क्षेत्र में परती भूमि है।
2. चरागाह-हमारे देश में चरागाहों का क्षेत्रफल बहुत ही कम है। फिर भी यहां संसार में सबसे अधिक पशु पाले जाते हैं। इन्हें प्रायः पुआल, भूसा तथा चारे की फसलों पर पाला जाता है। कुछ ऐसे क्षेत्रों में भी पशु चराये जाते हैं, जिन्हें वन क्षेत्रों के अन्तर्गत रखा गया है।
3. वन-हमारे देश में केवल 22.7 प्रतिशत से भी कम भूमि पर वन हैं। आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था तथा पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए देश के एक-तिहाई क्षेत्रफल में वनों का होना आवश्यक है। अतः हमारे देश में वन-क्षेत्र वैज्ञानिक दृष्टि से बहुत कम है। भूमि उपयोग के आंकड़ों के अनुसार यहां वनों का विस्तार 6.7 करोड़ हेक्टेयर भूमि में है। परन्तु उपग्रहों द्वारा लिए गए छाया चित्रों के अनुसार यह क्षेत्र केवल 4.6 करोड़ हेक्टेयर ही है।
4. उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास-देश की शेष भूमि या तो बंजर है या उसका उपयोग उद्योग, व्यापार, परिवहन तथा मानव आवास के लिए किया जा रहा है। परन्तु बढ़ती जनसंख्या तथा उच्च जीवन-स्तर के कारण मानव आवास के लिए भूमि की मांग निरन्तर बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरूप अन्य सुविधाओं के विकास के लिए भूमि का निरन्तर अभाव होता जा रहा है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत में भूमि का उपयोग सन्तुलित नहीं है। अतः हमें भूमि के विभिन्न उपयोगों में सन्तुलन बनाए रखने के लिए प्रयत्न करना चाहिए।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 2.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन के क्या कारण हैं ? कृषि की दशा को सुधारने के लिए कुछ सुझाव दो।
उत्तर-
कृषि के पिछड़ेपन के कारण-भारत की कृषि के पिछड़ेपन के अग्रलिखित कारण हैं —

  1. कृषि की वर्षा पर निर्भरता — भारत का किसान सिंचाई के लिए अधिकतर वर्षा पर निर्भर है, परन्तु वर्षा अविश्वसनीय तथा अनिश्चित होने के कारण हमारी कृषि पिछड़ी हुई है।
  2. भूमि में नाइट्रोजन का अभाव — भारत की भूमि में नाइट्रोजन की कमी है। इसका कारण यह है कि हज़ारों साल से हमारी भूमि पर कृषि हो रही है। इसके कारण हमारी भूमि की उपजाऊ शक्ति काफी कम हो गई है।
  3. उचित श्रम का अभाव — हमारे कृषक दुर्बल हैं। परिणामस्वरूप वे इतना परिश्रम नहीं कर पाते जितना कि कृषि के लिए आवश्यक है।
  4. खेतों का अपघटन — हमारे देश में पिता की मृत्यु के बाद भूमि उसके बेटों में बंट जाती है। इस प्रकार खेतों के आकार छोटे होते जाते हैं जिससे उत्पादन कम हो जाता है।
  5. कृषि के पुराने ढंग — भारतीय किसान अभी तक पुराने ढंग से कृषि कर रहा है। इस कारण हमारी कृषि पिछड़ी
  6. अच्छे बीजों का प्रयोग न करना — निर्धन होने के कारण भारतीय कृषक अच्छे बीजों का प्रयोग नहीं कर पाते। अतः हमारे खेतों में उपज कम होती है।
  7. धन का अभाव — कृषि के लिए धन की बड़ी आवश्यकता होती है, परन्तु भारतीय कृषक निर्धन हैं।
  8. दुर्बल पश — भारतीय किसान बैलों की सहायता से अपने खेतों में हल चलाता है। परन्तु हमारे यहां के अधिकतर बैल अच्छी नस्ल के नहीं हैं। ये बैल दुर्बल होते हैं। इनसे कृषि का पूरा कार्य नहीं लिया जा सकता।
  9. निरक्षरता — भारतीय किसान निर्धन होने के अतिरिक्त निरक्षर भी हैं। अत: वह कृषि के नए ढंग अपनाने में कठिनाई अनुभव करता है।

कृषि की दशा सुधारने के उपाय-कृषि की दशा में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित पग उठाए जा सकते हैं —

  1. सहकारी कृषि-सहकारी कृषि की प्रणाली जारी करनी चाहिए। इससे खेत बड़े हो जाएंगे और सभी सुविधाएं प्राप्त हो जाएंगी।
  2. सिंचाई की अधिक सुविधाएं-कृषि की स्थिति में सुधार लाने के लिए सिंचाई की सुविधाएं बढ़ाई जानी चाहिएं।
  3. गहन खेती-हमारे देश में किसान को गहन कृषि के ढंगों को अपनाना चाहिए। इससे भूमि की शक्ति बढ़ जाती है और थोड़ी-सी भूमि से भी अधिक ऊपज प्राप्त होती है।
  4. अच्छे बीज और खाद-सरकार को चाहिए कि वह किसानों को सस्ते दामों पर अच्छे बीज दे। अच्छी खाद खरीदने के लिए उन्हें सरकार द्वारा सहायता मिलनी चाहिए।
  5. नवीन कृषि यत्रों का प्रयोग यदि कृषि के नवीन यन्त्रों का प्रयोग किया जाए तो कृषि में काफी सुधार हो सकता है। सरकार को इन औजारों को खरीदने के लिए कृषक की धन से सहायता करनी चाहिए। .

प्रश्न 3.
केन्द्र तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए कौन-कौन से प्रमुख कदम उठाए हैं?
उत्तर-
केन्द्रीय तथा राज्य सरकारों ने भारतीय कृषि की उन्नति के लिए निम्नलिखित पाँच प्रमुख कदम उठाए हैं —

  1. चकबन्दी-भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन सरकार ने छोटे-छोटे खेतों को मिलाकर बड़े-बड़े चक बना दिए हैं जिसे चकबन्दी कहते हैं। इन खेतों में आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग सरलता से हो सकता है।
  2. उत्तम बीजों की व्यवस्था-सरकार ने खेती की पैदावार को बढ़ाने के लिए किसानों को अच्छे बीज देने की व्यवस्था की है। सरकार की देख-रेख में अच्छे बीज उत्पन्न किए जाते हैं। ये बीज सहकारी भण्डारों द्वारा किसानों तक पहुंचाए जाते हैं।
  3. उत्तम खाद की व्यवस्था- भूमि में बार-बार एक ही फसल बोने से भूमि की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। भूमि की इस शक्ति को बनाए रखने के लिए किसान गोबर की खाद का प्रयोग करते हैं, परन्तु यह खाद हमारे खेतों के लिए पर्याप्त नहीं है। अतः अब सरकार किसानों को रासायनिक खाद भी देती है। रासायनिक खाद की मांग को पूरा करने के लिए देश में बहुत-से कारखाने खोले गए हैं।
  4. खेती के आधुनिक साधन- खेती की उपज बढ़ाने के लिए कृषि के नए यन्त्रों का प्रयोग बढ़ रहा है। अब लकड़ी की जगह लोहे का हल प्रयोग किया जाता है। बड़े-बड़े खेतों में ट्रैक्टरों से जुताई की जाती है। फसल काटने तथा बोने के लिए मशीनों का प्रयोग किया जाता है। सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन देश के विभिन्न भागों में कृषि यन्त्र बनाने के कारखाने खोले हैं।
  5. सिंचाई की समुचित व्यवस्था-सरकार ने देश में अनेक सिंचाई योजनाएं बनाई हैं। इन योजनाओं में भाखडा – नंगल योजना, तुंगभद्रा योजना तथा दामोदर घाटी योजना प्रमुख हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Geography Chapter 5 भूमि उपयोग एवं कृषि विकास

प्रश्न 4.
भारत की प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्यों के बारे में लिखें।
उत्तर-
प्रमुख फ़सलें तथा उनके उत्पादक राज्य —

क्र० सं० फ़सल का नाम उत्पादक राज्य
1. चावल पश्चिमी बंगाल, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, हरियाणा, पंजाब।
2. गेहूं उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार, झारखण्ड, गुजरात तथा महाराष्ट्र।
3. ज्वार, बाजरा ज्वार-कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा राजस्थान।
बाजरा-महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात व राजस्थान।
4. मक्का उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान।
5. दालें पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा।
6. कपास गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु।
7. तिलहन सरसों, तोरिया—उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान।
मूंगफली—पश्चिमी और दक्षिणी भारत, गुजरात, महाराष्ट्र। मध्य प्रदेश तिलहन उत्पादन का मुख्य राज्य है। दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है।
8. गन्ना तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, कर्नाटक, गुजरात।

 

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
18वीं सदी में सिक्खों के मुगलों के साथ संघर्ष की मुख्य घटनाओं की लगभग चर्चा करें ।
उत्तर-
18वीं शताब्दी के आरम्भ में सिक्ख गुरु गोबिन्द सिंह जी के अधीन मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे थे । परन्तु 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु साहिब की नए मुग़ल बादशाह बहादुरशाह से मित्रता हो गई । इससे अगले ही वर्ष गुरु साहिब जी का भी देहान्त हो गया । तत्पश्चात् सिक्खों ने बन्दा बहादुर के अधीन मुग़लों का डटकर सामना किया । बन्दा के बलिदान के बाद सिक्खों के लिए अन्धकार युग आरम्भ हुआ । परन्तु वे अपनी वीरता एवं साहस के बल पर सदा आगे ही बढ़ते रहे । अन्ततः वे कुछ प्रमुख सिक्ख सरदारों के साथ अपने स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने में सफल हुए। यही सिक्ख राज्य 18वीं शताब्दी के अन्त में महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य का आधार बने । संक्षेप में, 18वीं सदी में सिक्खों के मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष की मुख्य घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है :

1. गुरु गोबिन्द सिंह जी के अधीन-

1699 ई० में गुरु जी ने खालसा की स्थापना की और सिक्खों को सिंह का रूप दिया । खालसा की स्थापना के पश्चात् पहाड़ी राजा गुरु जी से भयभीत हो गए और उन्होंने गुरु जी के विरुद्ध मुग़लों की सहायता प्राप्त की। आनन्दपुर की दूसरी लड़ाई में मुगलों ने पहाड़ी राजाओं की सहायता की। 1703 ई० में सरहिन्द के सूबेदार ने एक विशाल सेना भेजी। कई दिन तक सिक्ख भूखे-प्यासे लड़ते रहे। आखिर गुरु जी चमकौर साहिब चले गए। वहां भी मुग़लों तथा पहाड़ी राजाओं की सेनाओं ने उन्हें चारों ओर से घेर लिया। गुरु जी ने अपने चारों पुत्र शहीद करवा दिए, फिर भी मुग़लों के विरुद्ध अपने संघर्ष को जारी रखा। औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु जी के मुग़ल बादशाह से अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो गए।

2. बन्दा बहादुर के अधीन-

बन्दा बहादुर एक वैरागी था। वह नन्देड़ में गुरु गोबिन्द सिंह जी से मिला और उनसे बड़ा प्रभावित हुआ। वह अपने आपको गुरु का बन्दा कहने लगा। गुरु जी ने उसे बहादुर की उपाधि प्रदान की। फलस्वरूप वह इतिहास में बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। गुरु जी ने अकाल चलाना करने से पूर्व बन्दा बहादुर को आदेश दिया कि वह सिक्खों की सहायता से वजीर खां से टक्कर ले। इस सम्बन्ध में उन्होंने पंजाब के सिक्खों के नाम आदेश-पत्र जारी कर दिए। पंजाब पहुँच कर उसने सिक्खों को संगठित किया और अपने सैनिक अभियान आरम्भ कर दिए। शीघ्र ही वह पंजाब में सिक्ख राज्य स्थापित करने में सफल रहा।

सर्वप्रथम बन्दा ने समाना पर आक्रमण किया। वहां उसने भारी लूटमार की तथा अपने शत्रुओं को मौत के घाट उतार दिया। उसके बाद उसने कपूरी नगर को लूटा। इसके बाद साढौरा की बारी आई। सढौरा का शासक उस्मान खां था। वह हिन्दुओं के साथ अच्छा व्यवहार नहीं करता था। बन्दा ने उसे दण्ड देने का निश्चय किया और सढौरा पर धावा बोल दिया। इस नगर में इतने मुसलमानों की हत्या की गई कि इस स्थान का नाम ही कत्लगढ़ी पड़ गया। उसने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां को सरहिन्द के निकट हुई लड़ाई में मार डाला तथा सरहिन्द पर अधिकार कर लिया। इसमें 28 परगने थे। शीघ्र ही बन्दा ने सतलुज और यमुना के बीच के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। इस सारे प्रदेश का वार्षिक कर 50 लाख रुपए के लगभग था।

3. लाहौर के मुग़ल गवर्नरों (सूबेदार) के विरुद्ध सिक्ख संघर्ष –

1716 ई० में बन्दा बहादुर की शहीदी के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग आ गया। इस युग में मुग़लों ने सिक्खों का अस्तित्व मिटा देने का प्रयत्न किया। परन्तु सिक्ख अपनी वीरता और साहस के बल पर अपना अस्तित्व बनाए रखने में सफल रहे। 1716 से 1752 तक लाहौर के पांच मुग़ल सूबेदारों ने सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। इनमें से पहले गवर्नर अब्दुल समद को लाहौर से मुल्तान भेज दिया गया और उसके पुत्र जकरिया खां को लाहौर का सूबेदार बनाया गया। उसे हर प्रकार से सिक्खों को दबाने के आदेश दिए गए। उसने कुछ वर्षों तक तो अपने सैनिक बल द्वारा सिक्खों को दबाने के प्रयत्न किए। परन्तु जब उसे भी कोई सफलता मिलती दिखाई न दी तो उसने अमृतसर के निकट सिक्खों को एक बहुत बड़ी जागीर देकर उन्हें शान्त करने का प्रयत्न किया। उसने मुग़ल सम्राट् से स्वीकृति भी ले ली थी कि सिक्ख नेता को नवाब की उपाधि दी जाए। यह उपाधि कपूर सिंह को मिली और वह नवाब कपूर सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। फलस्वरूप कुछ समय तक सिक्ख शान्त रहे और उन्होंने अपने-अपने जत्थों को शक्तिशाली बनाया। इसी बीच कुछ जत्थेदारों ने फिर से मुग़लों का विरोध करना और सरकारी खजानों को लूटना आरम्भ कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे मुग़लों और सिक्खों में फिर ज़ोरदार संघर्ष छिड़ गया।

इन परिस्थितियों में जकरिया खां ने सिक्खों से जागीर छीन ली और पुनः अपने सैनिकों की सहायता से उन्हें दबाने में जुट गया। सिक्खों में आतंक फैलाने के लिए उसने भाई मनी सिंह को लाहौर में शहीद करवा दिया। भाई मनी सिंह अमृतसर में रहते थे और सिक्खों को एकता और स्वतन्त्रता के लिए प्रेरित करते रहते थे। 1738-39 में ईरान के शासक नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण कर दिया जिसके कारण जकरिया खां को सिक्खों की ओर से अपना ध्यान हटाना पड़ा। फलस्वरूप सिक्खों को अपनी शक्ति बढ़ाने का अवसर मिल गया। उन्होंने अपनी शक्ति इतनी बढ़ा ली कि जब नादिर शाह वापस काबुल जाने लगा तो सिक्खों ने उसके सैनिकों से घोड़े और युद्ध सामग्री छीन ली। उनका साहस देख कर जकरिया खां भी सोच में पड़ गया। अत: नादिरशाह की वापसी के बाद उसने सिक्खों को दबाने के और भी अधिक प्रयत्न किए। उसने अमृतसर पर अधिकार करके अपनी सैनिक चौकी बिठा दी। यह बात सिक्खों के लिए असहनीय थी क्योंकि उनके लिए अमृतसर बड़ा पवित्र स्थान था। अन्त में दो सिक्खों ने अमृतसर के थानेदार मस्सा रंघड़ का वध करके ही चैन लिया। 1745 ई० में जकरिया खां की मृत्यु हो गई। इस समय तक सिक्खों की शक्ति बहुत अधिक बढ़ चुकी थी।

1745 से 1752 तक पंजाब की राजनीतिक दशा खराब रही। पहले तो जकरिया खां के पुत्र याहिया खां और शाहनवाज़ खां लाहौर की सूबेदारी लेने के लिए एक-दूसरे का विरोध करते रहे। अत: उनमें से कोई भी सिक्खों की ओर ध्यान न दे सका। 1747-48 को काबुल के शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर आक्रमण कर दिया। वह नादिरशाह की मृत्यु के पश्चात् अफ़गानिस्तान का शासक बना था। वह नादिरशाह के साथ भारत भी आया था और मुग़ल सम्राट की कमजोरी को भली-भान्ति जानता था। वह भारत का धन लूट कर अफ़गानिस्तान ले जाना चाहता था। इसी समय शाहनवाज़ खां ने उसे भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया। उसके निमन्त्रण को स्वीकार करते हुए उसने लाहौर पर आक्रमण कर दिया। अब शाहनवाज़ खां ने दिखावे के लिए उसे रोकने का असफल प्रयास किया। अहमदशाह अब्दाली सतलुज पार करके दिल्ली की ओर बढ़ने लगा परन्तु सरहिन्द के निकट दिल्ली के मुख्यमन्त्री कमरुद्दीन खां के पुत्र मुइनुलमुल्क ने उसे पराजित करके वापस काबुल लौटने पर विवश कर दिया। मुइनुलमुल्क की इस सफलता के कारण उसे लाहौर का सूबेदार बना दिया गया। वह भीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

मीर मन्न के सूबेदार बनने के पश्चात् दो वर्ष के अन्दर ही अहमदशाह अब्दाली ने पंजाब पर फिर आक्रमण किया। इस बार मीर मन्नू को दिल्ली से कोई सहायता न मिली। अतः अहमदशाह अब्दाली का सामना करने की बजाय उसने उसे पंजाब के चार परगनों का लगान देना स्वीकार कर लिया। 1752 में अहमदशाह अब्दाली ने एक बार फिर पंजाब पर आक्रमण किया। इस बार मीर मन्नू ने उसका सामना किया, परन्तु पराजित हुआ। अहमदशाह अब्दाली ने लाहौर पर अधिकार करके मीर मन्नू को ही वहां अपना सबेदार नियुक्त कर दिया। इस प्रकार पंजाब में मुग़ल राज्य का अन्त हो गया। मीर मन्नू ने इससे पहले मुग़ल सूबेदार के रूप में सिक्खों को दबाने का काफ़ी प्रयत्न किया था। अब इस दिशा में उसने अपने प्रयत्न तेज़ कर दिये। परन्तु सिक्खों की संख्या और शक्ति दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी। मीर मन्नू की मृत्यु (1753 ई०) से पहले उन्होंने कुछ प्रदेशों पर अपना अधिकार भी कर लिया था।

4. सिक्ख मिसलों की स्थापना-

पंजाब के मुस्लिम गवर्नरों याहिया खां, जकरिया खां, मीर मन्नू आदि ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किए। परन्तु ज्यों-ज्यों शासकों के अत्याचार बढ़ते गए, त्यों-त्यों सिक्खों का संकल्प दृढ़ होता गया। उनके अत्याचारों का मुंह तोड़ जवाब देने के लिए सिक्खों ने अपने जत्थों का संगठन करना आरम्भ कर दिया। आरम्भ में केवल दो ही जत्थे थे परन्तु धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़ कर लगभग 65 हो गई। अतः सिक्ख नेताओं के सामने यह समस्या उत्पन्न हो गई कि इनका नेतृत्व किस प्रकार किया जाए। व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सिक्खों के 12 जत्थे बनाए गए। प्रत्येक जत्थे के पास अपना नगारा तथा झण्डा होता था। यही जत्थे बाद में मिसलों के नाम से प्रसिद्ध हुए। 12 सिक्ख मिसलों के नाम ये थे—

  1. सिंहपुरिया
  2. आहलूवालिया
  3. भंगी
  4. रामगढ़िया
  5. शुकरचकिया
  6. कन्हैया
  7. फुल्किया
  8. डल्लेवाल
  9. नकअई
  10. शहीदी
  11. करोड़सिंधिया
  12. निशानवालिया।

बाद में इन मिसलों पर रणजीत सिंह ने अपना अधिकार कर लिया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 2.
विभिन्न सिक्ख सरदारों के अधीन राज्य स्थापना के सन्दर्भ में सिक्खों तथा पठानों (अफ़गानों) के बीच चर्चा करते हुए इसमें सिक्खों की विजय के कारण बताएं।
उत्तर-
बन्दा बहादुर की मृत्यु के पश्चात् सिक्खों के लिए अन्धकार युग प्रारम्भ हो गया। इस समय में पंजाब के मुग़ल गवर्नरों ने सिक्खों पर बड़े अत्याचार किए। इसके साथ अफ़गानिस्तान के पठान शासक अहमदशाह अब्दाली ने भी पंजाब पर आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। अत: सिक्खों को पठानों से भी संघर्ष करना पड़ा। परन्तु मुग़ल अत्याचारों का सामना करतेकरते सिक्ख इस समय तक किसी भी प्रकार के संघर्ष के लिए पूरी तरह तैयार हो चुके थे। उन्हें गुरिल्ला युद्ध का अनुभव हो चुका था। उनकी यह धारणा भी दृढ़ हो चुकी थी कि गुरु गोबिन्द सिंह जी ने खालसा की स्थापना इसलिए की थी कि सिक्ख स्वतन्त्र राज्य स्थापित करके स्वयं शासन करेंगे। ‘राज करेगा खालसा’ में उनका दृढ़ विश्वास था। इस विश्वास को व्यावहारिक रूप देने के लिए वे समय-समय पर छोटे-छोटे प्रदेशों पर अपना अधिकार भी कर लेते थे। अतः जब अहमदशाह अब्दाली का ध्यान सिक्खों की ओर गया, उस समय तक सिक्ख अत्यन्त शक्तिशाली हो चुके थे। संक्षेप में, पठानों के विरुद्ध सिक्खों के संघर्ष, सिक्ख सरदारों द्वारा राज्य स्थापना तथा इस संघर्ष में सिक्खों की विजय के कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. पठानों (अफ़गानों) के विरुद्ध संघर्ष –

अहमदशाह अब्दाली ने 1759 ई० में मराठों को पंजाब छोड़ने के लिए विवश किया और उनकी शक्ति को पूरी तरह कुचलने के लिए दिल्ली की ओर बढ़ा। वह 1760 ई० में सारा वर्ष भारत में ही रहा और मराठों के विरुद्ध गठबन्धन करता रहा। 1761 ई० के आरम्भ में पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठे इतनी बुरी तरह से पराजित हुए कि वे पंजाब पर अधिकार बनाए रखने योग्य न रहे। इस सारे समय में सिक्खों ने अपनी कार्यवाही जारी रखी और जालन्धर, बारी तथा रचना दोआब के बहुत-से प्रदेश अपने अधिकार में ले लिए। सतलुज और यमुना के मध्यवर्ती प्रदेशों में से कुछ पर फूल वंश के सिद्ध बराड़ों ने अपना अधिकार कर लिया, जिनमें से आला सिंह मुख्य था।

अहमदशाह अब्दाली के लिए अब एक नई समस्या उत्पन्न हो गई। उसे यह आभास होने लगा कि पंजाब पर राज्य करने के लिए उसे मुग़लों और मराठों से नहीं अपितु सिक्खों से निपटने की आवश्यकता है। 1761 में काबुल वापस लौटने से पहले उसने पंजाब में अपने प्रतिनिधि नियुक्त कर दिए। परन्तु सिक्खों ने अनेक स्थानों से उन्हें मार भगाया। लाहौर का पठान सूबेदार भी सिक्खों के सामने विवश हो गया। फलस्वरूप 1762 ई० में अहमदशाह अब्दाली ने सिक्खों की शक्ति कुचलने के लिए पुनः पंजाब पर आक्रमण कर दिया। उसने मलेरकोटला के निकट दल खालसा पर आक्रमण करके एक ही दिन में लगभग 15 हज़ार से भी अधिक सिक्खों को मार डाला। सिक्ख इस लड़ाई में लड़ने के साथ-साथ अपने सामान और साथियों को बचाने का प्रयत्न भी कर रह थे। इस कारण उन्हें इस भयंकर रक्तपात का मुंह देखना पड़ा। सिक्ख इतिहास में यह घटना बड़ा घल्लूघारा के नाम से प्रसिद्ध है। इससे पहले छोटा घल्लूघारा 1746 ई० में उस समय हुआ था जब दीवान लखपत राय ने अपने भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए कई हज़ार सिक्खों का वध कर दिया था।

बड़े घल्लूघारे का सिक्खों की शक्ति पर कोई विशेष प्रभाव न पड़ा। कुछ मास पश्चात् ही वे अमृतसर के निकट अहमदशाह अब्दाली से एक बार फिर लड़े। एक दिन की लड़ाई के पश्चात् अहमदशाह अब्दाली मैदान छोड़कर लाहौर भाग गया। काबुल वापस लौटने से पहले वह सरहिन्द और पंजाब में अपने गवर्नर नियुक्त कर गया। परन्तु सिक्खों के आगे उनकी एक न चली। 1763 में उन्होंने सरहिन्द के पठान शाक जैन खां को लड़ाई में मार डाला और सरहिन्द पर अपना अधिकार कर लिया। सिक्खों के भय के कारण लाहौर का सूबेदार भी कभी किले से बाहर आने का साहस नहीं करता था। 1764-65 ई० में अहमदशाह अब्दाली एक बार फिर पंजाब आया, परन्तु सिक्खों से लड़े बिना ही वापस लौट गया। उसके चले जाने के तुरन्त पश्चात् ही सिक्खों ने लाहौर पर अधिकार कर लिया और वहां अपना सिक्का जारी करके अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। अहमदशाह अब्दाली इसके बाद सात-आठ वर्ष और जीवित रहा। परन्तु इस अवधि में उसने फिर कभी पंजाब को सिक्खों से जीतने का विचार न किया।

2. सिक्ख सरदारों के अधीन राज्य की स्थापना –

अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण के पश्चात् रिक्खों ने अपनी शक्ति बढ़ानी आरम्भ की। उन्होंने बारी दोआब में खूब लूटमार की और कई प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने अपनी वापसी यात्रा आरम्भ की। लाहौर में से गुजरते समय सिक्खों ने कई स्थानों पर उसकी सेना पर धावा बोला और उनसे अस्त्र-शस्त्र, घोड़े, ऊंट तथा सामान छीन लिया। 1748 ई० में वे बैसाखी के अवसर पर अमृतसर में एकत्रित हुए। नवाब कपूर सिंह के सुझाव पर यहां सिक्खों की सामूहिक सेना को संगठित किया गया और उसे ‘दल खालसा’ का नाम दिया गया। इस सेना के प्रधान सेनापति का पद जस्सा सिंह आहलूवालिया को सौंपा गया। दल खालसा में कुल मिला कर 11 जत्थे थे, जिनमें प्रत्येक का अपनाअपना नाम, नेता तथा झण्डा था।

सिक्खों के 11 जत्थों तथा उनके नेताओं के नाम इस प्रकार थे-(1) आहलूवालिया जत्था-इस जत्थे का नेता दल खालसा का प्रधान सेनापति जस्सा सिंह आहलवालिया था।
(2) फैज़लपुरिया जत्था-इसका नेता नवाब कपूर सिंह था जिसका सम्बन्ध फैजलपुरिया गांव से था।
(3)शुकरचकिया जत्था-इसका नेता पहले बोध सिंह था, परन्तु बाद में यह पद चढ़त सिंह ने सम्भाला।
(4) निशानवालिया जत्था-इसका नेता दसौंदा सिंह था जो ‘दल खालसा’ का झण्डा (निशान) उठाया करता था।
(5) भंगी जत्था-इसका नेता पहले भूमा सिंह था, परन्तु बाद में हरिसिंह इसका नेता बना।
(6) नक्कई जत्था-इस जत्थे का नेता हरिसिंह था।
(7) डल्लेवालिया जत्था-इस जत्थे का नेता गुलाब सिंह था, जो डल्लेवाल गाँव से था।
(8) कन्हैया जत्था-इसका नेता सरदार जयसिंह था।
(9) करोड़सिंधिया जत्था-इस जत्थे का नेता सरदार करोड़ सिंह था।
(10) दीप सिंह जत्था-इसका नेता दीप सिंह था। उसी के नाम पर ही इस जत्थे को दीप सिंह जत्था कहा जाता था। बाद में इसे शहीद जत्था कहा जाने लगा।
(11) नन्द सिंह जत्था-इसका नेता जस्सा सिंह रामगढ़िया था। इस जत्थे को बाद में रामगढ़िया जत्था कहा जाने लगा। सिक्ख सरदारों द्वारा स्थापित यही जत्थे बाद में स्वतन्त्र सिक्ख राज्यों में परिवर्तित हुए और मिसलों के नाम से प्रसिद्ध हुए। परन्तु मिसलों की कुल संख्या 12 थी।

पठानों के विरुद्ध सिक्खों की सफलता के कारण-पठानों (अफ़गानों) के विरुद्ध सिक्खों की सफलता के कई कारण थे-
1. अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास था। अफ़गानों के विरुद्ध संघर्ष करते हुए सिक्खों के सामने केवल एक ही उद्देश्य था और वह था पंजाब की पवित्र भूमि को अफ़गानों के चंगुल से छुड़ाना। क्रूर से क्रूर अत्याचार भी उन्हें इस उद्देश्य से विचलित नहीं कर सका।

2. सिक्ख बड़े वीर थे और वे युद्ध की परिस्थितियों को भली-भान्ति समझते थे।

3. अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों ने बड़ी नि:स्वार्थ भावना से युद्ध किए। वे व्यक्तिगत हितों के लिए नहीं, बल्कि धर्म तथा जाति की रक्षा के लिए लड़े।

4. सिक्खों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध नीति भी उनकी सफलता का कारण बनी।

5. सिक्ख-अफ़गान संघर्ष में सिक्खों की सफलता का एक अन्य कारण पंजाब के ज़मींदारों द्वारा सिक्खों को सहयोग देना था। अफ़गानों की लूटमार से बचने के लिए बहुत-से ज़मींदार अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सहायता करते थे।

6. अब्दाली के सभी प्रतिनिधि अयोग्य सिद्ध हुए। उनमें राजनीतिक दूरदर्शिता तथा सूझ-बूझ की कमी थी। अतः वे अब्दाली के बाद पंजाब पर अपना नियन्त्रण न रख सके।

7. अहमदशाह अब्दाली का साम्राज्य बड़ा विस्तृत था। उसने जब कभी भारत पर आक्रमण किया उसके पीछे उसके राज्य के किसी-न-किसी भाग में अवश्य विद्रोह हुआ। अत: उसे अपनी भारतीय विजयों को स्थायी बनाए बिना ही वापस लौट जाना पड़ा।

8. सिक्खों को योग्य सेनापतियों का नेतृत्व प्राप्त था। जस्सा सिंह आहलूवालिया इस संघर्ष में सिक्खों की आत्मा थे। संघर्ष के अन्तिम चरण में चढ़त सिंह शुकरचकिया, हरिसिंह भंगी तथा अन्य सरदारों ने भी सिक्खों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इसके विपरीत अफ़गान नेता इतने योग्य नहीं थे।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य में

प्रश्न 1.
औरंगजेब की मृत्यु के बाद भारत का मुगल सम्राट् कौन बना ?
उत्तर-
बहादुरशाह प्रथम।।

प्रश्न 2.
फर्रुखसियर के राजपूतों के साथ कैसे सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
फर्रुखसियर के राजपूतों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे।

प्रश्न 3.
जाटों के नेताओं के नाम लिखो जिन्होंने मुगलों से संघर्ष किया।
उत्तर-
मुग़लों के साथ संघर्ष करने वाले मुख्य जाट नेता गोकुल, राजाराम तथा चूड़ामणि (चूड़ामन) थे।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 4.
भरतपुर में स्वतन्त्र राज्य की नींव किसने रखी ?
उत्तर-
जाट नेता चूड़ामणि (अथवा चूड़ामन) ने।

प्रश्न 5.
सतनामी कहां के रहने वाले थे ?
उत्तर-
सतनामी नारनौल के रहने वाले थे।

प्रश्न 6.
(i) बन्दा बहादुर ने किस स्थान को अपनी राजधानी बनाया तथा
(ii) इसका नया नाम क्या रखा ?
उत्तर-
(i) बन्दा बहादुर ने मुखलिसपुर को अपनी राजधानी बनाया।
(ii) उसने यहां के किले की मुरम्मत करवाई और इसका नाम लौहगढ़ रखा।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 7.
सिक्खों के दो दलों के नाम लिखो। उत्तर-बुड्ढा दल तथा तरुण दल। प्रश्न 8. दल खालसा की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
दल खालसा की स्थापना 1748 ई० में हुई।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) शुजाऊद्दौला …………. ई० में लखनऊ की गद्दी पर बैठा ।
(ii) अली मुहम्मद खां …………… ई० में सरहिंद का शासक बना।
(iii) जाब्ता खां …………… का उत्तराधिकारी था।
(iv) अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला हमला (1747-48) ……….. के आमंत्रण पर किया।
(v) महासिंह शुकरचकिया मिसल के सरदार …………. का पुत्र था।
उत्तर-
(i) 1762
(ii) 1745
(iii) नजीबुद्दौला
(iv) शाहनवाज़ खां
(v) चढ़त सिंह।

3. सही/गलत कथन

(i) सदाअत खां बंगाल का सूबेदार था। — (✗)
(ii) अलीवर्दी खां ने मराठों के साथ 1751 में संधि की। — (✓)
(iii) मुइनुलमुल्क 1748 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। — (✓)
(iv) लाहौर का सूबेदार जकरिया खां मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध था। — (✗)
(v) चालीस मुक्ते मुक्तसर की लड़ाई से संबंधित थे। — (✓)

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
सफ़दरजंग सूबेदार था-
(A) बंगाल का
(B) बिहार का
(C) अवध का
(D) मालवा का ।
उत्तर-
(C) अवध का

प्रश्न (ii)
जाट नेता सूरजमल का उत्तराधिकारी था
(A) मोहर सिंह
(B) बदन सिंह
(C) साहिब सिंह
(D) जवाहर सिंह ।
उत्तर-
(D) जवाहर सिंह ।

प्रश्न (iii)
जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी थी
(A) हरगोबिंदपुर
(B) भरतपुर
(C) करतारपुर
(D) कपूरथला ।
उत्तर-
(A) हरगोबिंदपुर

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न (iv)
निम्न में से किस सिख राजा ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया?
(A) महा सिंह
(B) आला सिंह
(C) चढ़त सिंह
(D) कपूर सिंह ।
उत्तर-
(B) आला सिंह

प्रश्न (v)
जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी थी-
(A) कपूरथला
(B) जालंधर
(C) अमृतसर
(D) मुक्तसर ।
उत्तर-
(A) कपूरथला

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उत्तरी भारत की नई शक्तियों के उत्थान के स्रोतों की चार किस्मों के नाम बताएं।
उत्तर-
उत्तरी भारत की नई शक्तियों के उत्थान सम्बन्धी चार प्रकार के स्रोत हैं- इसरारे समदी, काजी नूर का जंगनामा, खुशवन्त राय की एहवाव-ए-सिखां तथा अहमदशाह बटालिया की तारीख-ए-हिन्द नामक पुस्तकें।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 2.
18वीं सदी के इतिहास के बारे में गुरुमुखी में लिखी सबसे महत्त्वपूर्ण कृति कौन-सी है और यह किसने लिखी ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी के इतिहास के बारे में गुरुमुखी में लिखी सबसे महत्त्वपूर्ण कृति ‘गुरु पन्थ प्रकाश’ है। यह पुस्तक रतन सिंह भंगू ने लिखी।

प्रश्न 3.
18वीं सदी में गंगा के मैदान में जिन चार नई शक्तियों का उदय हुआ उनके नाम बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी में गंगा के मैदान में उदय होने वाली चार नई शक्तियां थीं-बंगाल, अवध, पंजाब के सिक्ख तथा जाट।

प्रश्न 4.
18वीं सदी में राजस्थान के कौन-से दो राज्यों के शासकों ने अपनी स्थिति मजबूत की तथा बाद में वे किन दो शक्तियों के अधीन हो गए ?
उत्तर-
18वीं सदी में राजस्थान में जोधपुर तथा जयपुर के शासकों ने अपनी स्थिति मज़बूत की। बाद में वे क्रमश: मराठों तथा अंग्रेजों के अधीन हो गए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 5.
18वीं सदी में स्वतन्त्र होने वाला उत्तरी भारत का पहला मुगल प्रान्त कौन-सा था और उसके सूबेदार का नाम क्या था ?
उत्तर-
18वीं सदी में स्वतन्त्र होने वाला उत्तरी भारत का पहला मुग़ल प्रान्त बंगाल था। इसका सूबेदार मुर्शिद कुली खां था।

प्रश्न 6.
मुर्शिद कुली खां के अधीन कौन-से दो मुग़ल प्रान्त थे तथा उसने ढाका के स्थान पर किसे अपनी राजधानी बनाया ?
उत्तर-
मुर्शिद कुली खां के अधीन उड़ीसा तथा बंगाल के मुग़ल प्रान्त थे। उसने ढाका के स्थान पर मक्सूदाबाद को अपनी राजधानी बनाया।

प्रश्न 7.
अलीवर्दी खां ने कब-से-कब तक शासन किया ?
उत्तर-
अलीवी खां ने 1740 ई० से 1756 ई० तक शासन किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 8.
अलीवर्दी खां के अधीन कौन-से तीन मुग़ल प्रान्त थे ?
उत्तर-
अलीवर्दी खां के अधीन तीन मुग़ल प्रान्त थे- बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा।

प्रश्न 9.
अलीवर्दी खां को किस वर्ष में मराठों के साथ सन्धि करनी पड़ी और उसने उनको चौथ में कितना रुपया देना स्वीकार किया ?
उत्तर-
अलीवर्दी खां को 1751 ई० में मराठों से सन्धि करनी पड़ी। उसने मराठों को चौथ के रूप में 12 लाख रुपया वार्षिक देना स्वीकार किया।

प्रश्न 10.
अवध का कौन-सा सूबेदार लगभग स्वतन्त्र हो गया और वह किस वर्ष में सूबेदार बना था ?
उत्तर-
अवध का सूबेदार सआदत खां लगभग स्वतन्त्र हो गया। वह 1722 ई० में अवध का सूबेदार बना था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 11.
अवध का कौन-सा सूबेदार मुगल बादशाह का मुख्य वज़ीर बन गया तथा वह कब-से-कब तक उस पद पर रहा ?
उत्तर-
अवध का सूबेदार सफदरजंग मुग़ल बादशाह का मुख्य वज़ीर बन गया। वह 1748 ई० से 1753 ई० तक इस पद पर रहा।

प्रश्न 12.
शुजाऊद्दौला कब लखनऊ की गद्दी पर बैठा तथा वह किस मुग़ल बादशाह का मुख्य वजीर बना ?
उत्तर-
शुजाऊद्दौला 1754 ई० में लखनऊ की गद्दी पर बैठा। वह मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय का मुख्य वज़ीर बना।

प्रश्न 13.
शुजाऊद्दौला किस वर्ष में अंग्रेजों से पराजित हुआ तथा उसने इनकी सहायता से कौन-सा इलाका और कब जीता ?
उत्तर-
शुजाऊद्दौला 1765 ई० में अंग्रेजों से पराजित हुआ। उसने अंग्रेजों की सहायता से 1774 ई० में रुहेलखण्ड का इलाका जीता।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 14.
शुजाऊद्दौला की मृत्यु कब हुई तथा उसका उत्तराधिकारी कौन था ? ।
उत्तर-
शुजाऊद्दौला की मृत्यु 1775 ई० में हुई। उसका उत्तराधिकारी आसफुद्दौला था।

प्रश्न 15.
रुहेला पठानों के दो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
रुहेला पठानों के दो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नेताओं के नाम थे–अली मुहम्मद खां तथा नजीबुद्दौला (नजीब खां)।

प्रश्न 16.
रुहेला पठानों की जन्मभूमि अफ़गानिस्तान में कहां थी तथा भारत में उनके इलाकों को क्या कहा जाने लगा ?
उत्तर-
रुहेला पठानों की अफ़गानिस्तान में जन्म-भूमि रोह थी। भारत में इनके इलाकों को रुहेलखण्ड कहा जाने लगा।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 17.
अली मुहम्मद खां रुहेला को मुग़ल बादशाह से कितना मनसब और कौन-सी उपाधि कौन-से वर्ष में मिली ?
उत्तर-
अली मुहम्मद खां रुहेला को 1740 ई० में मुग़ल बादशाह से 500 का मनसब और नवाब की उपाधि मिली।

प्रश्न 18.
अली मुहम्मद खां कौन-से वर्ष में सरहिन्द का शासक बना तथा वह कब रुहेलखण्ड वापस चला गया ?
उत्तर-
अली मुहम्मद खां 1745 ई० में सरहिन्द का शासक बना। वह 1748 ई० में रुहेलखण्ड वापस चला गया।

प्रश्न 19.
किस वर्ष में रुहेलखण्ड पर अवध का अधिकार हो गया तथा अली मुहम्मद खां के पुत्र को अंग्रेजों ने कौन-सी रियासत दे दी ?
उत्तर-
रुहेलखण्ड पर 1774 ई० में अवध का अधिकार हो गया। अली मुहम्मद खां के पुत्र को अंग्रेजों ने रामपुर की रियासत दे दी।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 20.
नजीब खां ने किस इलाके में जागीर प्राप्त की तथा उसे नजीबुद्दौला की उपाधि कब मिली ?
उत्तर-
नजीब खां ने सहारनपुर के इलाके में जागीर प्राप्त की। उसे नजीबुद्दौला की उपाधि 1757 ई० में मिली।

प्रश्न 21.
पानीपत के युद्ध के बाद अहमदशाह अब्दाली तथा मुगल बादशाह की ओर से नजीबुद्दौला ने कौन-से दो दायित्व सम्भाले ?
उत्तर-
पानीपत के युद्ध के बाद नजीबुद्दौला ने अहमदशाह अब्दाली की ओर से प्रमुख वज़ीर तथा मुग़ल बादशाह की ओर से मीर बख्शी के दायित्व सम्भाले।

प्रश्न 22.
नजीबुद्दौला की मृत्यु कब हुई तथा उसके उत्तराधिकारी का क्या नाम था ?
उत्तर-
नजीबुद्दौला की मृत्यु 1770 ई० में हुई। उसके उत्तराधिकारी का नाम जाब्ता खां था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 23.
किस रुहेला सरदार ने 1788 में कौन-से मुगल बादशाह को अन्धा करवा दिया ?
उत्तर-
1788 में रुहेला सरदार गुलाम कादर ने मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय को अन्धा करवा दिया।

प्रश्न 24.
जाट किस इलाके में मुगल साम्राज्य के विरुद्ध भड़क उठे थे तथा उनके आरम्भिक नेता का नाम बताएं और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
जाट मथुरा के इलाके में मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध भड़क उठे थे। उनके आरम्भिक नेता का नाम चूड़ामन था, जिसकी मृत्यु 1772 ई० में हुई।

प्रश्न 25.
बदन सिंह की राजधानी कौन-सी थी तथा उसको मुगल बादशाह से राजा की उपाधि कब मिली ?
उत्तर-
बदन सिंह की राजधानी भरतपुर थी। उसे 1752 ई० में मुगल बादशाह से राजा की उपाधि मिली।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 26.
बदन सिंह की मृत्यु कब हुई तथा उसका उत्तराधिकारी कौन था ?
उत्तर-
बदन सिंह की मृत्यु 1756 ई० में हुई। उसका उत्तराधिकारी सूरजमल था।

प्रश्न 27.
सूरजमल की मृत्यु कब हुई तथा उसके राज्य का वार्षिक लगान कितना था ?
उत्तर-
सूरजमल की मृत्यु 1763 ई० में हुई। उसके राज्य का वार्षिक लगान एक करोड़ सत्तर लाख रुपये था।

प्रश्न 28.
सूरजमल का उत्तराधिकारी कौन था तथा उसने कब तक शासन किया ?
उत्तर-
सूरजमल का उत्तराधिकारी जवाहर सिंह था। उसने 1768 ई० तक शासन किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 29.
भरतपुर के राजा रणजीत के अधीन उसकी रियासत का वार्षिक लगान कितना रह गया तथा यह रियासत बाद में कौन-सी दो शक्तियों के अधीन हो गई ?
उत्तर-
भरतपुर के राजा रणजीत के अधीन उसकी रियासत का वार्षिक लगान केवल 14 लाख रुपये रह गया। यह रियासत पहले मराठों तथा फिर अंग्रेजों के अधीन हो गई।

प्रश्न 30.
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब के मैदानी तथा पहाड़ी इलाकों में किन तीन लोगों की स्वायत्त रियासतें अस्तित्व में आई थीं ?
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद पंजाब के मैदानी तथा पहाड़ी प्रदेशों में पठानों, राजपूतों तथा सिक्खों की स्वायत्त रियासतें अस्तित्व में आईं।

प्रश्न 31.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पहाड़ी राजाओं के साथ कौन-सी दो लड़ाइयां लड़ी ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने पहाड़ी राजाओं के साथ आनन्दपुर तथा निर्मोह की लड़ाइयां लड़ीं।।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 32.
कौन-सी लड़ाई में गुरु गोबिन्द सिंह जी के दो बड़े साहिबजादे शहीद हुए और किसने दो छोटे साहिबजादों को शहीद करवा दिया ?
उत्तर-
गुरु जी के दो बड़े साहिबजादे चमकौर की लड़ाई में शहीद हुए। उनके दो छोटे साहिबजादों को सरहिन्द के फौजदार वज़ीर खां ने शहीद करवा दिया।

प्रश्न 33.
‘चालीस मुक्ते’ कौन-सी लड़ाई के साथ सम्बन्धित हैं तथा यह किनके बीच हुई ?
उत्तर-
‘चालीस मुक्त’ मुक्तसर की लड़ाई से सम्बन्धित हैं। यह लड़ाई सरहिन्द के सूबेदार वज़ीर खां तथा गुरु गोबिन्द साहिब के बीच हुई।

प्रश्न 34.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने किस मुग़ल बादशाह को पत्र लिखा तथा वे किस मुगल बादशाह से मिले ?
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी ने मुग़ल बादशाह औरंगजेब को पत्र लिखा। वह मुग़ल बादशाह बहादुरशाह से मिले।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 35.
गुरु गोबिन्द सिंह जी ज्योति-जोत कब और कहां समाए और यह स्थान वर्तमान भारत में किस राज्य में
उत्तर-
गुरु गोबिन्द सिंह जी 1708 ई० में नन्देड़ में ज्योति-जोत समाए। यह स्थान वर्तमान भारत के महाराष्ट्र राज्य में

प्रश्न 36.
दक्षिण में गुरु गोबिन्द सिंह जी को कौन-सा वैरागी मिला तथा वह बाद में किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
दक्षिण में गुरु साहिब को माधोदास नामक वैरागी मिला। बाद में वह बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 37.
बन्दा बहादुर ने सरहिन्द सरकार के कितने परगनों पर अधिकार कर लिया तथा बन्दा के अधीन राज्य का वार्षिक लगान कितना था ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर ने सरहिन्द सरकार के 28 परगनों पर अधिकार कर लिया। उसके अधीन राज्य का वार्षिक लगान 50 लाख रुपये से अधिक था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 38.
बन्दा बहादुर ने किस किले का निर्माण करवाया तथा उसके सिक्के पर कौन-सी लिपि अंकित थी ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर ने लोहगढ़ नामक किले का निर्माण करवाया। उसके सिक्के पर फ़ारसी लिपि अंकित थी।

प्रश्न 39.
बन्दा बहादुर को किस मुगल सूबेदार ने कौन-से स्थान पर घेरा ? बन्दा बहादुर को कब और कहां शहीद कर दिया गया ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर को मुग़ल सूबेदार अब्दुल समद खां ने गुरदास नंगल के स्थान पर घेरा। उसे 1716 ई० में दिल्ली में शहीद किया गया।

प्रश्न 40.
1716 से 1752 तक लाहौर के किन्हीं चार मुग़ल सूबेदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
1716 से 1752 तक लाहौर के चार सूबेदार थे-अब्दुल समद खां, जकरिया खां, याहिया खां तथा मीर मन्नू।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 41.
जकरिया खां कब-से-कब तक लाहौर का सूबेदार रहा ?
उत्तर-
ज़करिया खां 1726 ई० से 1745 ई० तक लाहौर का सूबेदार रहा।

प्रश्न 42.
सिक्खों को जागीर किस सूबेदार ने दी तथा नवाब की उपाधि किस सिक्ख नेता को दी गई ?
उत्तर-
सिक्खों को सूबेदार जकरिया खां ने जागीर दी। नवाब की उपाधि सिक्ख नेता कपूर सिंह को दी गई।

प्रश्न 43.
कौन-से मुगल सूबेदार ने भाई मनी सिंह को कहां शहीद करवा दिया ?
उत्तर-
भाई मनी सिंह को मुग़ल सूबेदार जकरिया खां ने लाहौर में शहीद करवाया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 44.
ईरान से कौन-सा आक्रमणकारी कब भारत आया ?
उत्तर-
ईरान से नादिरशाह नामक आक्रमणकारी भारत आया। उसने 1738-39 में भारत पर आक्रमण किया।

प्रश्न 45.
अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला हमला कब और किसके आमन्त्रण पर किया ?
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर पहला आक्रमण 1747-48 में किया। यह आक्रमण उसने शाहनवाज़ खां के निमन्त्रण पर किया।

प्रश्न 46.
मुइनुलमुल्क लाहौर का सूबेदार कब बना तथा वह किस नाम से प्रसिद्ध हआ ?
उत्तर-
मुइनलमुल्क 1748 ई० में लाहौर का सूबेदार बना। वह मीर मन्नू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 47.
अहमदशाह अब्दाली ने मुइनुलमुल्क को अपनी तरफ से सूबेदार कब नियुक्त किया तथा उसकी मृत्यु कब
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली ने मुइनुलमुल्क को अपनी ओर से 1752 ई० में सूबेदार नियुक्त किया। उसकी मृत्यु 1753 ई० में हुई।

प्रश्न 48.
‘गुरमत्ता’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
गुरमत्ता का अर्थ है-गुरु ग्रन्थ साहिब की उपस्थिति में एकत्रित सिंहों द्वारा लिया गया निर्णय। सिंह इसे गुरु का निर्णय (मत) मानते थे।

प्रश्न 49.
1757 में अहमदशाह अब्दाली ने मुगल बादशाह से कौन-से चार प्रान्त तथा कौन-सी सरकार ले ली ?
उत्तर-
1757 में अहमदशाह अब्दाली ने मुग़ल बादशाह से लाहौर, मुल्तान, सिन्ध तथा कश्मीर के सूबे और सरहिन्द की सरकार ले ली।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 50.
‘बड़ा घल्लूघारा’ कब, कहां और किनके बीच हुआ ?
उत्तर-
बड़ा घल्लूघारा 1762 में मलेरकोटला में हुआ। यह अहमदशाह अब्दाली और सिक्खों के बीच हुआ।

प्रश्न 51.
‘छोटा घल्लूघारा’ कब, कहां और किनके बीच हुआ ?
उत्तर-
छोटा घल्लूघारा 1746 में काहनूवान के निकट हुआ। यह घल्लूघारा दीवान लखपत राय और सिक्खों के बीच हुआ।

प्रश्न 52.
सिक्खों ने सरहिन्द तथा लाहौर पर किन वर्षों में अधिकार किया ?
उत्तर-
सिक्खों ने सरहिन्द पर 1763 ई० में तथा लाहौर पर 1765 ई० में अधिकार किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 53.
18वीं सदी के चार प्रमुख सिक्ख सरदारों के नाम बताओ तथा उनकी राजधानियां बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी के चार प्रमुख सरदार थे : जस्सा सिंह आहलूवालिया, हरिसिंह भंगी, जस्सा सिंह रामगढ़िया तथा चढ़त सिंह शुकरचकिया। इनकी राजधानियां क्रमश: कपूरथला, अमृतसर, श्री हरगोबिन्दपुर तथा गुजरांवाला थीं।

प्रश्न 54.
जस्सा सिंह आहलूवालिया का राज्य किन दो दोआबों में था तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया का राज्य जालन्धर-दोआब तथा बारी-दोआब के प्रदेशों में था। उसकी राजधानी कपूरथला थी।

प्रश्न 55.
गुजरात तथा अमृतसर के दो भंगी शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
गुजरात तथा अमृतसर के दो भंगी शासकों के नाम थे-गुज्जर सिंह भंगी तथा हरिसिंह भंगी।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 56.
जस्सा सिंह रामगढ़िया के इलाके किन दो दोआबों में थे तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया के इलाके बारी-दोआब तथा जालन्धर-दोआब में थे। उसकी राजधानी श्री हरगोबिन्दपुर थी।

प्रश्न 57.
चढ़त सिंह शुकरचकिया के इलाके किन दो दोआबों में थे तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
चढ़त सिंह शुकरचकिया के इलाके रचना-दोआब और चज-दोआब में थे। उसकी राजधानी गुजरांवाला थी।

प्रश्न 58.
आला सिंह कौन-से वंश से था तथा उसकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
आला सिंह फुल्किया वंश से था। उसकी राजधानी पटियाला थी।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 59.
बघेल सिंह करोड़सिंधिया तथा तारा सिंह डल्लेवालिया का शासन (राज) किन इलाकों में था ?
उत्तर-
बघेल सिंह करोड़सिंधिया तथा तारा सिंह डल्लेवालिया का शासन जालन्धर-दोआब तथा सतलुज पार के कुछ इलाकों में था।

प्रश्न 60.
18वीं सदी में सिक्ख सरदारों द्वारा चलाए गए दो रुपयों के नाम बताएं।
उत्तर-
18वीं सदी में सिक्ख सरदारों द्वारा चलाए गए दो रुपयों के नाम थे : गोबिन्दशाही रुपया तथा नानकशाही रुपया।

प्रश्न 61.
कौन-से दो सिक्ख राजाओं ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया ?
उत्तर-
अहमदशाह अब्दाली का सिक्का क्रमश: पटियाला के राजा आला सिंह तथा जींद के राजा गजपत सिंह ने चलाया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 62.
कौन-से दो पुराने सिक्ख सरदारों में मरने-मारने का संघर्ष चलता रहा ?
उत्तर-
मरने-मारने का संघर्ष जस्सा सिंह रामगढ़िया और जयसिंह कन्हैया नामक दो पुराने सिक्ख सरदारों के बीच चलता रहा।

प्रश्न 63.
1784-85 तक कौन-सा सिक्ख सरदार सबसे शक्तिशाली होने लगा तथा यह किसका पुत्र था ?
उत्तर-
1784-85 तक महासिंह शुकरचकिया सबसे शक्तिशाली होने लगा। वह चढ़त सिंह शुकरचकिया का पुत्र था।

प्रश्न 64.
महासिंह की मृत्यु कब और किसके साथ लड़ते समय हुई ?
उत्तर-
महासिंह की मृत्यु 1792 ई० में साहिब सिंह के विरुद्ध लड़ते समय हुई।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में उत्तर भारत की नई शक्तियां कौन-कौन सी थी ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी में अवध, बंगाल, पंजाब के सिक्ख तथा रुहेले पठान नवीन शक्ति के रूप में उभरे। अवध का राज्य सआदत खां के सम्बन्धियों के अधीन स्वतन्त्र राज्य के रूप में उभरा। सआदत खां की मृत्यु (1739 ई०) के बाद बादशाह अहमदशाह ने उसके भतीजे सफदर जंग को वजीर नियुक्त कर दिया। 1754 में शुजाऊद्दौला, अवध के स्वतन्त्र शासक के रूप में उभरा। 1717 में मुर्शिद कुली खां बंगाल का सूबेदार नियुक्त किया गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् 1727 में उसका जमाता शुजाऊद्दीन मुहम्मद खान बंगाल तथा बिहार में उसका उत्तराधिकारी बना। बाद में बिहार भी बंगाल की सूबेदारी में शामिल कर दिया गया। इस तरह स्वतन्त्र बंगाल की नींव रखी गई। नवीन शक्तियों में वास्तविक शक्ति सिक्ख सिद्ध हुए। उन्हें गुरु गोबिन्द सिंह जी ने 1699 ई० में सैनिक रूप दिया। 1708 ई० में उन्होंने बन्दा बहादुर को मुग़लों से लड़ने के लिए भेजा। बन्दा बहादुर ने सतलुज और यमुना के बीच के प्रदेश पर अधिकार किया और प्रथम सिक्ख राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 2.
नजीबुद्दौला की शक्ति के उत्थान के बारे में बताएं ।
उत्तर-
नजीब खान पठानों का एक नेता था। उसने दिल्ली के मुख्यमन्त्री अमादुलमुल्क की अवध के सफदर जंग के विरुद्ध सहायता की। बदले में उसे सहारनपुर के प्रदेश में एक बहुत बड़ी जागीर मिल गई। उसने 1757 में अहमदशाह अब्दाली का साथ देकर नजीबुद्दौला की उपाधि प्राप्त की और उसकी सिफारिश से मुगल दरबार का एक शक्तिशाली मन्त्री बन गया। नजीबुद्दौला की बढ़ती हुई शक्ति को देखकर अमादुलमुल्क चिन्ता में पड़ गया। उसने नजीबुद्दौला की शक्ति को कम करने के लिए मराठों की सहायता की। परन्तु पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों की पराजय के पश्चात् एक बार फिर नजीबुद्दौला का प्रभाव बढ़ने लगा। उसे अब भारत में अहमदशाह अब्दाली का प्रतिनिधि समझा जाने लगा । दिल्ली दरबार में वह मीर बख्शी के रूप में कार्य करने लगा। सम्राट शाह आलम द्वितीय के इलाहाबाद जाने के बाद नजीबुद्दौला दिल्ली में उसके प्रतिनिधि के रूप में कार्य करने लगा। नजीबुद्दौला की 1770 में मृत्यु हो गई ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 3.
जाटों की शक्ति का उत्थान कैसे हुआ ?
उत्तर-
मथुरा के जाटों ने पहली बार औरंगजेब के समय में मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया था। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् एक जाट नेता चूड़ामन ने धीरे-धीरे अपनी सैनिक शक्ति बढ़ा ली और मथुरा के आस-पास के बहुत-से प्रदेशों पर अपना शासन स्थापित कर लिया। 1722 ई० में उसकी मृत्यु के बाद उसका भतीजा बदन सिंह उसका उत्तराधिकारी बना। 1752 ई० में बदन सिंह को मुग़ल सम्राट् ने राजा की उपाधि दी। इसके चार वर्ष के बाद ही बदन सिंह की मृत्यु हो गई । 1756 ई० में बदन सिंह का दत्तक पुत्र सूरज मल भरतपुर का राजा बना। सूरज मल एक सफल राजनीतिज्ञ सिद्ध हुआ। 1763 में वह नजीबुद्दौला के साथ लड़ता हुआ मारा गया। सूरजमल का पुत्र तथा उत्तराधिकारी जवाहर सिंह अपने भाइयों तथा जाट नेताओं के साथ लड़ता-झगड़ता रहा। उसके पश्चात् रणजीत सिंह ने भरतपुर की राजगद्दी सम्भाली । उसके समय में जाट राज्य का पतन होने लगा।

प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह जी के मुगलों के साथ सम्बन्धों की मुख्य घटनाएं कौन-सी थीं ?
उत्तर-
मुग़लों के साथ गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे। 1675 ई० में उनके पिता जी की शहीदी ने उन्हें मुगलों के विरुद्ध सैनिक नीति अपनाने के लिए बाध्य किया और उन्होंने अपने सिक्खों को सिक्ख सेना में शामिल होने का आह्वान किया । इसके बाद गुरु जी का सीधा मुकाबला मुग़ल सेनाओं से हुआ। सरहिन्द के गवर्नर ने अलफ खां के नेतृत्व में सेना भेजी । कांगड़ा से 20 मील दूर नादौन में घमासान युद्ध हुआ। इसमें मुग़ल पराजित हुए। सरहिन्द के सूबेदार ने एक बार फिर सेना भेजी, परन्तु वे फिर पराजित हुए । कुछ समय पश्चात् पहाड़ी राजा मुग़लों से जा मिले ।

1703 ई० में सरहिन्द के सूबेदार ने एक विशाल सेना सिक्खों के विरुद्ध लड़ने के लिए भेजी। कई दिन तक सिक्ख भूखेप्यासे लड़ते रहे। आखिर गुरु जी चमकौर साहिब चले गए। गुरु जी के चारों साहिबजादे .हीदी को प्राप्त हुए, फिर भी उन्होंने मुग़लों के विरुद्ध अपने संघर्ष को जारी रखा। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् गुरु जी के नए मुग़ल बादशाह से अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो गए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 5.
बन्दा बहादुर ने किस प्रकार सिक्खों का राज्य स्थापित किया ?
उत्तर-
बन्दा बैरागी का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 में पुच्छ जिला में हुआ था। उसका बचपन का नाम लक्ष्मण दास था। वह नन्देड़ में गुरु गोबिन्द सिंह जी से मिला और अपने आपको गुरु का बन्दा कहने लगा। गुरु जी ने उसे बहादुर की उपाधि प्रदान की। फलस्वरूप वह इतिहास में बन्दा बहादुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। गुरु जी ने सिक्खों की सहायता के लिए उसे पंजाब भेज दिया। पंजाब पहुंच कर उसने सिक्खों को संगठित किया और अपने सैनिक अभियान आरम्भ कर दिए। उसने सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां को सरहिन्द के निकट हुई लड़ाई में मार डाला तथा सरहिन्द पर अधिकार कर लिया।

इस तरह बन्दा बहादुर ने पहला सिक्ख राज्य स्थापित किया। उसने लोहगढ़ के किले को सिक्ख राज्य की राजधानी घोषित किया। उसने स्वतन्त्र सिक्ख राज्य के सिक्के चलाए जिन पर यह दर्शाया गया कि सिक्खों की विजय सिक्ख गुरु साहिबान की विजय है।

प्रश्न 6.
जकरिया खां ने किस प्रकार सिक्खों से निपटने की कोशिश की ?
उत्तर-
ज़करिया खां 1726 ई० में पंजाब का गवर्नर बना। गवर्नर बनते ही उसने सिक्खों के प्रति कत्लेआम की नीति अपनाई। हजारों की संख्या में सिक्ख पकड़े गए और लाहौर में दिल्ली गेट के निकट उनका वध कर दिया गया। यह स्थान बाद में शहीद गंज के नाम से प्रसिद्ध हुआ। नादिरशाह के आक्रमण के पश्चात् जकरिया खां ने सिक्खों का सर्वनाश करने की सोची। उसने किसी सिक्ख को जीवित अथवा मृत लाने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा की। देखते ही देखते सिक्खों को पकड़ा जाने लगा और लाहौर के घोड़ा बाजार में उनका वध किया जाने लगा। जकरिया खां द्वारा मेहताब सिंह, हकीकत राय, बूटा सिंह तथा भाई तारा सिंह को शहीद कराया गया । 1745 में जकरिया खां की मृत्यु हो गई।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 7.
अफ़गानों के विरुद्ध युद्ध में सिक्खों ने अपनी शक्ति किस प्रकार संगठित की ?
उत्तर-
1747 ई० में अफ़गानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली ने भारत पर अपना पहला आक्रमण किया। वह लाहौर को विजय करके दिल्ली की ओर बढ़ गया। मानूपुर के स्थान पर उसका मुग़लों के साथ भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में अहमदशाह अब्दाली पराजित हुआ। इस अराजकता के वातावरण ने सिक्खों को अपनी शक्ति सुदृढ़ करने का उचित अवसर जुटाया। उन्होंने बारी दोआब में खूब लूटमार की और कई प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया। इसी बीच अहमदशाह अब्दाली ने अपनी वापसी यात्रा आरम्भ की । लाहौर में से गुजरते समय सिक्खों ने कई स्थानों पर उसकी सेना पर धावा बोला और उनसे अस्त्र-शस्त्र, घोड़े, ऊँट तथा अन्य सामान छीन लिया। 1748 ई० में बैसाखी के अवसर पर वे अमृतसर में एकत्रित हुए। नबाव कपूर सिंह के सुझाव पर यहां सिक्खों की सामूहिक सेना को संगठित किया गया और उसे ‘दल खालसा’ का नाम दिया गया। इस सेना के प्रधान सेनापति का पद जस्सा सिंह आहलूवालिया को सौंपा गया।

प्रश्न 8.
18वीं सदी में सिक्खों ने किस प्रकार का राज्य प्रबन्ध स्थापित किया ?
उत्तर-
18वीं सदी में सिक्ख शासक अपने-अपने क्षेत्र पर पूर्ण अधिकार रखते थे। वे स्वयं दीवान, फ़ौजदार और कारदार आदि नियुक्त करते थे। उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र या कोई निकट सम्बन्धी उनके उत्तराधिकारी बनते थे। वे अपने सामन्तों से खिराज लेते थे। परन्तु लगभग सारे क्षेत्र में वही सिक्का चलता था, जिस पर बन्दा बहादुर की मोहर पर अंकित फ़ारसी अक्षर उभरे हुए थे। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि प्रत्येक सिक्ख शासक एक स्वतन्त्र शासक था। कुछ समय तक पटियाला के राजा आला सिंह ने और जींद के राजा गजपत सिंह ने अहमदशाह अब्दाली का सिक्का चलाया। परन्तु यह केवल रस्मी अधीनता थी। अपने-अपने क्षेत्र में उनकी शक्ति उस प्रकार सम्पूर्ण थी, जिस तरह अन्य सिक्ख शासकों की थी जो किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहते थे। अपने-अपने क्षेत्र में सिक्ख सरदार लगभग वैसा ही शासन प्रबन्ध चलाते थे जो मुग़ल बादशाहों के समय से चला आ रहा था। यही कारण है कि सभी सिक्ख क्षेत्रों में लगभग एक प्रकार का प्रशासकीय ढांचा था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 9.
‘छोटा घल्लूधारा’ पर एक टिप्पणी लिखिए ।
उत्तर-
सिक्खों के विरुद्ध कड़े नियम पास करने के पश्चात् याहिया खां ने दीवान लखपतराय के नेतृत्व में एक विशाल सेना सिक्खों का पीछा करने के लिए भेजी। सिक्खों ने इस समय काहनूवान के दलदली प्रदेश में शरण ले रखी थी। वे मुग़ल सेना के तोपखाने का सामना न कर सके। इसलिए उन्हें माझा प्रदेश में वापस आना पड़ा। उन्होंने बड़ी कठिनाई से रावी नदी पार की। बटाला के निकट मुग़ल सेना ने हज़ारों सिक्खों का वध कर दिया। कुछ सिक्ख ब्यास की ओर बढ़े परन्तु वहां भी लखपतराय की सेना उनका पीछा करती हुई आ पहुंची। जालन्धर-दोआब में पहुंचने पर उन्हें अदीना बेग की सेना का सामना करना पड़ा। इस लम्बे युद्ध में लगभग आठ हज़ार सिक्खों का वध कर दिया गया और साढ़े तीन हज़ार सिक्खों को बन्दी बनाकर लाहौर ले जाया गया, जहां उन्हें भी मौत के घाट उतार दिया गया। यह 1746 ई० की घटना सिक्ख इतिहास में ‘छोटा घल्लूघारा’ के नाम से प्रसिद्ध है।

प्रश्न 10.
सिक्खों का दमन करने के लिए मीर मन्नू द्वारा किए गए चार कार्य लिखो ।
उत्तर-
मीर मन्नू ने दिल्ली राज्य तथा अफ़गान आक्रमण दोनों के भय से निश्चिन्त होकर अपना ध्यान सिक्खों का दमन करने की ओर लगाया।
1. उसने अदीना बेग खां तथा सादिक खां के नेतृत्व में एक विशाल सेना जालन्धर-दोआब में सिक्खों के विरुद्ध भेजी। उन्होंने सिक्खों पर अचानक धावा बोलकर अनेक सिक्खों को मार डाला।

2. मीर मुमिन तथा हुसैन खां के नेतृत्व में लक्खी जंगल की ओर सिक्खों के विरुद्ध दो अन्य अभियान भेजे गए परन्तु उन्हें कोई विशेष सफलता प्राप्त न हो सकी क्योंकि सिक्ख बारी-दोआब के उत्तर की ओर भाग गए थे।

3. मीर मन्नू अब स्वयं सिक्खों के विरुद्ध बढ़ा। उसने बटाला के आस-पास के प्रदेशों में सिक्खों को भारी हानि पहुंचाई। उसने रामरौणी दुर्ग (जिसमें सिक्खों ने शरण ली थी) को भी घेरे में ले लिया तथा सैंकड़ों की संख्या में सिक्ख मौत के घाट उतार दिए गए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 11.
सिक्खों की शक्ति को कचलने में मीर मन्न की असफलता के कोई चार कारण बताओ ।
उत्तर-
सिक्खों की शक्ति को कुचलने में मीर मन्नू की असफलता के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे :-
1. दल खालसा की स्थापना-मीर मन्नू के अत्याचारों के समय तक सिक्खों ने अपनी शक्ति को दल खालसा के रूप में संगठित कर लिया । इसके सदस्यों ने देश, जाति तथा पन्थ के हितों की रक्षा के लिए प्राणों तक की बलि देने का प्रण कर रखा था।

2. दीवान कौड़ामल की सिक्खों से सहानूभूति-मीर मन्नू के दीवान कौड़ामल को सिक्खों से विशेष सहानुभूति थी। अतः जब कभी भी मीर मन्नू सिक्खों के विरुद्ध कठोर कदम उठाता, कौड़ामल उसकी कठोरता को कम कर देता था।

3. अदीना बेग की दोहरी नीति-जालन्धर-दोआब के फ़ौजदार अदीना बेग ने दोहरी नीति अपनाई हुई थी। उसने सिक्खों से गुप्त सन्धि कर रखी थी तथा दिखावे के लिए एक-दो अभियानों के बाद वह ढीला पड़ जाता था।

4. सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध नीति-सिक्खों ने अपने सीमित साधनों को दृष्टि में रखते हुए गुरिल्ला युद्ध की नीति को अपनाया। अवसर पाते ही वे शाही सेनाओं पर टूट पड़ते और लूट-मार करके फिर जंगलों की ओर भाग जाते ।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बन्दा बहादुर की सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। ..
अथवा
बंदा बहादुर की किन्हीं पांच विजयों का वर्णन कीजिए। उसकी शहीदी किस प्रकार हुई ?
उत्तर-
बन्दा बहादुर (जन्म 27 अक्तूबर,1670 ई०) के बचपन का नाम लछमण दास था। बैराग लेने के पश्चात् उसका नाम माधो दास पड़ा।
वह 1708 ई० में गुरु गोबिन्द सिंह जी के सम्पर्क में आया। गुरु जी के आकर्षक व्यक्तित्व ने उसे इतना प्रभावित किया कि वह शीघ्र ही उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उन्हें सिक्ख बनाया और उन्हें पंजाब में ‘सिक्खों’ का नेतृत्व करने के लिए भेज दिया। गुरु जी का आदेश पा कर बन्दा बहादुर पंजाब पहुंचा और उसने आठ वर्षों तक सिक्खों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इस अवधि में उसकी सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. समाना और कपूरी की लूटमार-बन्दा बहादुर ने सबसे पहले समाना पर आक्रमण कर वहां अपने शत्रुओं का वध कर दिया। तत्पश्चात् उसने कपूरी नगर को लूटा और फिर आग लगा दी।

2. सढौरा पर आक्रमण-इन नगरों के बाद बन्दा बहादुर ने सढौरा पर धावा बोल दिया। वहां के हिन्दू बन्दा बहादुर के साथ हो गए। उसने सढौरा के मुसलमानों का चुन-चुन कर वध किया। इस नगर में इतने मुसलमानों की हत्या की गई कि उस स्थान का नाम ‘कत्लगढ़ी’ पड़ गया।

3. सरहिन्द की विजय-अब बन्दा बहादुर ने अपना ध्यान सरहिन्द की ओर लगाया। गुरु जी के दो छोटे पुत्रों को यहीं पर दीवार में जीवित चिनवा दिया गया था। बन्दा बहादुर ने यहां भी मुसलमानों का बड़ी निर्दयता से वध किया। सरहिन्द का शासक नवाब वजीर खां भी युद्ध में मारा गया। इस प्रकार बन्दा बहादुर ने गुरु जी के साहिबजादों की हत्या का बदला लिया।

4. सहारनपुर, जलालाबाद तथा जालन्धर-दोआब पर आक्रमण-तत्पश्चात् बन्दा बहादुर जलालाबाद की ओर बढ़ा। मार्ग में उसने सहारनपुर पर विजय प्राप्त की, परन्तु आगे चलकर भारी वर्षा तथा जालन्धर-दोआब के लोगों द्वारा सहायता की प्रार्थना किए जाने के कारण उसे जलालाबाद को विजय किए बिना ही वापस लौटना पड़ा। वह जालन्धर की ओर बढ़ा। राहों के स्थान पर एक भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे। इस प्रकार जालन्धर तथा होशियारपुर के क्षेत्र सिक्खों के अधिकार में आ गए।

5. अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट पर अधिकार-बन्दा बहादुर की सफलता से उत्साहित होकर लगभग आठ हज़ार सिक्खों ने अमृतसर, बटाला, कलानौर तथा पठानकोट को अपने अधिकार में ले लिया। कुछ समय पश्चात् लाहौर भी उनके अधिकार में आ गया।

6. मुग़लों का लोहगढ़ पर आक्रमण-बन्दा बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ने मुनीम खां के नेतृत्व में 60 हज़ार सैनिक भेजे। बन्दा बहादुर लोहगढ़ में पराजित हुआ। वहां से वह नंगल पहुंचा और पहाड़ी राजाओं को पराजित किया।

गुरदास नंगल का युद्ध और बन्दा बहादुर की शहीदी-1713 ई० में फर्रुखसियर मुग़ल सम्राट् बना। उसने बन्दा बहादुर के विरुद्ध कश्मीर के गवर्नर अब्दुस्समद के नेतृत्व में एक भारी सेना भेजी। इस सेना ने गुरदास नंगल के स्थान पर सिक्खों को भाई दुनी चन्द की हवेली में घेर लिया। सिक्खों को आठ मास के लम्बे युद्ध के पश्चात् हथियार डालने पड़े क्योंकि उनकी रसद समाप्त हो गई थी। बन्दा बहादुर तथा उसके सभी साथी बन्दी बना कर लाहौर लाए गए। यहां से 1716 ई० को उन्हें दिल्ली ले जाया गया। बन्दा बहादुर तथा उसके 40 साथियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करने को कहा गया। उनके इन्कार करने पर बन्दा बहादुर के सभी साथियों की हत्या कर दी गई। तत्पश्चात् बन्दा बहादुर को अनेक यातनाओं के बाद शहीद कर दिया गया।
सच तो यह है कि बन्दा बहादुर की विजयों ने सिक्खों को एकता की लड़ी में पिरो दिया और उन्हें स्वतन्त्रता का मार्ग दिखाया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 2.
अब्दुस्समद द्वारा किए गए सिक्ख विरोधी कार्यों, जकरियां खां द्वारा सिक्खों का कत्लेआम, याहिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार और मीर मन्नू द्वारा किए गए सिक्खों के विरुद्ध कार्यों का वर्णन करो।
अथवा
1716 से 1747 ई० तक सिक्खों के कत्लेआम का सक्षिप्त वर्णन करो ।
उत्तर-
1. अब्दस्समद द्वारा सिक्ख विरोधी कार्य-सिक्खों की शक्ति कुचलने के लिए अब्दुस्समद ने अनेक कठोर पग उठाए। सिक्खों के सिरों की कीमत भी निश्चित कर दी गई और हज़ारों की संख्या में सिक्ख मौत के घाट उतार दिए गए । अब्दुस्समद तथा उसके सैनिकों ने सिक्खों का इस प्रकार पीछा किया जैसे कोई शिकारी अपने शिकार का करता है। अनेक सिक्खों ने तो आत्म-रक्षा के लिए केश भी कटवा डाले, परन्तु इनमें ज्यादा उन सिक्खों की संख्या थी जो किसी भी अवस्था में अपना धर्म छोड़ने के लिए तैयार न थे। ऐसे में सभी सिक्ख अपने घरों को छोड़ पहाड़ों, जंगलों तथा रेगिस्तानी प्रदेशों में जा छिपे। एक इतिहासकार के अनुसार अब्दुस्समद खां ने पंजाब के मैदान को सिक्खों के खून से इस प्रकार भर दिया जैसे किसी कटोरी को भर दिया जाता है।

2. जकरिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार-पंजाब का गवर्नर बनते ही जकरिया खां ने सिक्ख शक्ति को सदा के लिए समाप्त करने के लिए कठोर नीति को अपनाया। प्रतिदिन सुबह लाहौर से सैनिक टुकड़ियां जंगलों तथा गांवों में सिक्खों की खोज में निकलती और सिक्खों के जत्थे के जत्थे बन्दी बनाकर लाहौर नगर में लाए जाते। वहां उन्हें अनेक यातनाएं दी जाती और फिर उनका सामूहिक रूप से वध कर दिया जाता था। सिक्खों के सिरों की कीमत फिर से निश्चित कर दी गई। सिक्ख का कटा हुआ सिर लाने वाले को सरकार की ओर ईनाम दिया जाने लगा। सिक्खों में आतंक उत्पन्न करने के लिए ज़करिया खां ने सिक्खों के सिरों (कटे हुए) का एक गुम्बद-सा खड़ा कर दिया। हज़ारों सिक्खों ने फिर से जंगलों और पहाड़ों में शरण ली। वे बड़े संकट में थे कि अब क्या किया जाए । ऐसे समय में तारा सिंह नामक एक वीर तथा साहसी व्यक्ति ने उनमें नव-जीवन का संचार किया और उनके आत्म-विश्वास को जगाया।

3. याहिया खां द्वारा सिक्खों पर अत्याचार-ज़करिया खां की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र याहिया खां पंजाब का गवर्नर बना। वह भी अपने पिता की भान्ति बड़ा निर्दयी तथा कठोर स्वभाव वाला व्यक्ति था। पद सम्भालते ही उसने सिक्खों की शक्ति को कुचलने का दृढ़ निश्चय किया और शीघ्र ही उनके विरुद्ध कठोर पग उठाने आरम्भ कर दिए। दीवान लखपत राय तथा उसके भाई जसपतराय ने भी याहिया खां को इस कार्य में पूरा सहयोग दिया। छोटा घल्लूघारा उसके समय में हुआ जिसमें हज़ारों की संख्या में सिक्ख वीरगति को प्राप्त हुए।

4. मीर मन्नू के कार्य-सिक्खों को कुचलने के लिए मीर मन्नू ने अपनी सेना में नए सैनिकों की भर्ती की और उन्हें प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया। अदीना बेग को जालन्धर में तथा कौड़ामल को लाहौर में सिक्खों के प्रति कठोर पग उठाने के आदेश दिए गए। सिक्खों के सिरों के लिए पुरस्कार घोषित कर दिए गए। सिक्खों का पीछा करने के लिए फौजी दस्ते भी भेजे गए। जो मुसलमान सिक्खों के सिर काट कर लाते उन्हें ईनाम मिलने लगे। सभी सिक्ख आत्मरक्षा के लिए जंगलों में छिप गए। वे अवसर मिलने पर मुग़ल सेना पर टूट पड़ते और काफ़ी माल लूट कर ले जाते।
सच तो यह है कि इन सारे अत्याचारों के बावजूद सिक्ख अन्ततः बलशाली बने और वे अपनी मिसलें स्थापित करने में सफल हुए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 15 उत्तरी भारत में नई शक्तियों का उदय

प्रश्न 3.
अहमदशाह अब्दाली सिक्खों की शक्ति का दमन करने में क्यों असफल रहा ? इसके लिए उत्तरदायी किन्हीं पांच महत्त्वपूर्ण कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
1. सिक्खों का दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास-डॉ० हरिराम गुप्ता के अनुसार, अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनका दृढ़ संकल्प तथा आत्मविश्वास था। अफ़गानों के विरुद्ध संघर्ष में उनका केवल एक ही उद्देश्य था-पंजाब की पवित्र भूमि को अफ़गानों के चंगुल से छुड़ाना। क्रूर से क्रूर अत्याचार भी उन्हें इस उद्देश्य से विचलित नहीं कर सका। बड़ा घल्लूघारा में लगभग 12,000 सिक्खों की निर्ममतापूर्वक हत्या कर दी गई थी; परन्तु फिर भी सिक्खों का आत्मविश्वास कम नहीं हुआ। अन्त में 30 वर्षों के संघर्ष के बाद वे पंजाब में स्वतन्त्र सिक्ख साम्राज्य की स्थापना करने में सफल हुए।

2. सिक्खों का युद्ध कौशल- सिक्खों की सफलता का अन्य कारण उनका युद्ध कौशल था। वे बड़े वीर थे और युद्ध की परिस्थितियों को भली-भान्ति समझते थे। अपने सैनिक गुणों द्वारा उन्होंने अब्दाली को इतना तंग कर दिया कि उसने आठवें आक्रमण के बाद पुनः पंजाब की ओर मुंह न किया।

3. सिक्खों की निःस्वार्थ भावना-अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों ने बड़ी निःस्वार्थ भावना से युद्ध किए। वे व्यक्तिगत हितों के लिए नहीं, बल्कि धर्म तथा जाति की रक्षा के लिए लड़ते थे। स्वतन्त्रता प्राप्त करना वे अपना सबसे बड़ा कर्त्तव्य समझते थे। यही उनके संघर्ष का एकमात्र उद्देश्य था। इसके विपरीत अब्दाली के सभी प्रतिनिधि महत्त्वाकांक्षी तथा स्वार्थी थे। अतः वे सिक्खों की संगठित शक्ति का दमन करने में असफल रहे।

4. सिक्खों की गुरिल्ला युद्ध की नीति-सिक्खों द्वारा अपनाई गई गुरिल्ला युद्ध की नीति भी उनकी सफलता का मुख्य कारण बनी। जब कभी आक्रमणकारी सेना लेकर आता तो सिक्ख पहाड़ों या जंगलों की ओर भाग जाते। फिर अवसर पाकर वे शत्रु की सेना पर अचानक ही टूट पड़ते तथा उनकी युद्ध व खाद्य सामग्री लूट कर पुन: अपने गुप्त स्थानों में जा कर छिप जाते। उनकी इस गुरिल्ला युद्ध नीति ने जहां सिक्खों को विनाश से बचाए रखा, वहीं इस नीति ने धीरे-धीरे अफ़गान नेता की शक्ति तथा साधनों को भी क्षीण कर दिया। अफ़गान सैनिक वैसे भी गुरिल्ला युद्ध के अभ्यस्त न थे। वे पंजाब के गुप्त मार्गों से भी अपरिचित थे। इस दशा में अब्दाली की असफलता तथा सिक्खों की सफलता निश्चित ही थी।

5. पंजाब के ज़मींदारों का सिक्खों को सहयोग-सिक्ख अफ़गान संघर्ष में सिक्खों की सफलता का एक अन्य कारण पंजाब के ज़मींदारों द्वारा सिक्खों को सहयोग देना था। पंजाब के ज़मींदार यह भली-भान्ति जानते थे कि अब्दाली के वापस जाने पर उनका सम्बन्ध सिक्खों से ही रहना था। अफ़गानों की लूट-मार से बचने के लिए बहुत-से ज़मींदार अब्दाली के विरुद्ध सिक्खों की सहायता करते थे। इसके अतिरिक्त कुछ ज़मींदार सहधर्मी होने के नाते भी सिक्खों के प्रति सहानुभूति रखते थे। वे सिक्खों की भोजन तथा धन आदि से भी सहायता करते और संकट के समय उन्हें आश्रय देते। परिणामस्वरूप सिक्ख अब्दाली को हर बार पंजाब से मार भगाने में सफल रहे।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत और अमेरिका के परस्पर सम्बन्धों की चर्चा करो।
(Discuss the features of Parliamentary Government in India.)
अथवा
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ भारत के सम्बन्धों का विश्लेषण कीजिए। (Analyse India’s relations with U.S.A.)
अथवा
भारत व अमेरिका (U.S.A.) के सम्बन्धों का वर्णन करें। (Discuss the relation between India and America.)
उत्तर-
भारत तथा अमेरिका के सम्बन्ध शुरू से मित्रता वाले नहीं थे। अमेरिका आरम्भ से ही भारत पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहता था। इसलिए अमेरिका ने ‘दबाव तथा सहायता’ की नीति का अनुसरण किया।

यद्यपि भारत और अमेरिका के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं थे तथापि दोनों देशों में सहयोग का क्षेत्र भी बढ़ा है। अमेरिका ने भारत को अपने पक्ष में करने के लिए दबाव नीति के साथ-साश्च आर्थिक सहायता तथा अनाज की कूटनीति का सहारा लिया। अमेरिका ने भारत को पर्याप्त आर्थिक सहायता दी और मुख्यत: अमेरिकन प्रेरणा से ही विश्व विकास ऋण कोष, तकनीकी सहयोग आदि की संस्थाओं ने भी ऋण तथा उपहार के रूप में भारत को काफ़ी आर्थिक तथा तकनीकी सहायता दी।

1957 में नेहरू ने अमेरिका की यात्रा की जिससे दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ। दिसम्बर, 1959 में अमेरिकन राष्ट्रपति आइजनहॉवर भारत आए जिससे दोनों देशों में और अच्छे सम्बन्ध स्थापित हुए। अमेरिका के राजनीतिक क्षेत्रों में कहा जाने लगा कि भारत का आर्थिक विकास अमेरिकन विदेश नीति का मुख्य लक्ष्य है। राष्ट्रपति आइजनहॉवर ने भारत को विशेष सम्मान देते हुए 4 मई, 1960 को वाशिंगटन में भारत के खाद्य मन्त्री एस० के० पाटिल के साथ स्वयं एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार अमेरिका ने भारत को आगामी 4 वर्षों में चावल तथा गेहूं से भरे हुए 15000 जलयान भेजने का निश्चय किया। मई, 1960 का यह समझौता पी० एल० 480 के नाम से प्रसिद्ध है। 4 वर्ष की अवधि के समाप्त होने पर इस अवधि को पुनः बढ़ा दिया गया।

अक्तूबर, 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत के अनुरोध पर राष्ट्रपति कैनेडी ने शीघ्र ही भारत को सैनिक सहायता दी। अमेरिका ने सैनिक सहायता देने के लिए कोई शर्त नहीं रखी। विदेश मन्त्री डीन रस्क ने भारत की गुट-निरपेक्षता की नीति की प्रशंसा की। 7 दिसम्बर, 1963 को भारत और अमेरिका के बीच नई दिल्ली में एक समझौता हुआ जिसके अनुसार अमेरिका ने भारत को आठ करोड़ डॉलर तारापुर में आण्विक शक्ति संयन्त्र करने के लिए देने का वचन किया।

शास्त्री काल में भारत-अमेरिका सम्बन्ध (1964-1965)-1965 में भारत-पाक युद्ध हुआ और इस युद्ध में भारत तथा अमेरिका के सम्बन्ध पूरी तरह खराब हो गए, क्योंकि अमेरिका की सैनिक सामग्री का पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध प्रयोग किया और अमेरिका ने पाकिस्तान को इसके लिए रोकने का बिल्कुल प्रयास नहीं किया।

इंदिरा काल में भारत-अमेरिका सम्बन्ध (1966 से मार्च, 1977 तक)-28 मार्च, 1966 को श्रीमती गांधी ने अमेरिका की यात्रा की परन्तु इस यात्रा का कोई विशेष परिणाम नहीं निकला।
1969-70 का वर्ष भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में एक प्रकार से शीत-युद्ध का वर्ष था।

1971 का वर्ष भारत और अमेरिका के सम्बन्धों के लिए बंगला देश के मामले पर बहुत ही खराब रहा। 9 अगस्त, 1971 को भारत और रूस में मैत्री सन्धि हुई जिससे अमेरिका की विदेश नीति को बड़ा धक्का लंगा। दिसम्बर, 1971 में भारत-पाक युद्ध के दौरान सुरक्षा परिषद् में अमेरिका ने भारत विरोधी प्रस्ताव पेश किया, जिस पर सोवियत संघ ने . वीटो पावर का प्रयोग किया। अमेरिका ने बंगाल की खाड़ी में सातवें बेड़े को भेजा ताकि भारत पर दबाव डाला जा सके, परन्तु रूस के नौ-सैनिक बेड़े ने अमेरिका को सचेत कर दिया कि यदि अमेरिका ने भारत के विरुद्ध नौ-सैनिक कार्यवाही की तो रूस चुपचाप नहीं बैठा रहेगा। बंगला देश के युद्ध में भारत की विजय हुई और पाकिस्तान का विभाजन हो गया। इस विजय के बाद भारत दक्षिणी एशिया में एक बड़ी शक्ति के रूप में माना जाने लगा तो अमेरिका ने भारत की आर्थिक सहायता रोक दी।

जनता सरकार और भारत-अमेरिका सम्बन्ध-मार्च, 1977 में भारत के आम चुनाव हुए जिसमें जनता पार्टी को सफलता मिली और श्री मोरारजी देसाई के नेतृत्व में सरकार बनी। अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई को बधाई संदेश भेजा और भारत को महान् लोकतान्त्रिक देश बताया। 1 जनवरी, 1978 में अमेरिका के राष्ट्रपति जिमी कार्टर भारत आए और भारतीय नेताओं से उन्होंने बातचीत की। जिमी कार्टर की यात्रा को भारत सरकार ने बहुत महत्त्व दिया।

जून, 1978 में प्रधानमन्त्री श्री मोरारजी देसाई तथा विदेश मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका की यात्रा पर गए और राष्ट्रपति कार्टर से बातचीत करने के बाद राष्ट्रपति कार्टर से यह विश्वास प्राप्त करने में सफल हो गए कि भारत को अमेरिकन Uranium दिया जाएगा।

श्रीमती गांधी की सरकार और भारत-अमेरिका सम्बन्ध (GOVERNMENT OF SMT. GANDHI AND INDO-AMERICA RELATIONS):

जनवरी, 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी के पुनः प्रधानमन्त्री बनने पर अमेरिकन प्रशासन ने इच्छा व्यक्त की कि भारत और अमेरिका में अच्छे सम्बन्ध स्थापित होंगे। अफ़गानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप से गम्भीर स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी के इस कथन का कि किसी भी देश को दूसरे देश में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है, अमेरिका ने स्वागत किया। जून, 1981 में अमेरिका ने भारत की भावनाओं की खुली उपेक्षा करते हुए पाकिस्तान को व्यापक स्तर पर अमेरिकी हथियार दिए। जुलाई, 1982 में प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी संयुक्त राज्य अमेरिका की यात्रा पर गईं। भारत और अमेरिका प्रशासन के बीच हुई सहमति के अन्तर्गत तारापुर के समझौते की व्यवस्थाओं के अनुसार स्वयं तो ईंधन की सप्लाई नहीं करेगा, लेकिन उसे भारत द्वारा फ्रांस से आवश्यक ईंधन खरीदने पर कोई आपत्ति नहीं होगी।

जून, 1985 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी अमेरिका की यात्रा पर गए और उनका राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने ह्वाइट हाऊस में भव्य स्वागत किया। भारत और अमेरिका द्वारा जारी संयुक्त वक्तव्य से अमेरिका ने भारत में आतंकवादी हिंसा के प्रयासों और उसे अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप मिलने के विरुद्ध भारत सरकार को पूरा सहयोग देने का संकल्प व्यक्त किया।

चंद्रशेखर की सरकार और अमेरिका के साथ सम्बन्ध-जनवरी, 1991 में चंद्रशेखर की सरकार ने अमेरिका के साथ सम्बन्ध सुधारने के चक्कर में तटस्थता की नीति से दूर होते हुए अमेरिकी युद्ध विमानों को मुम्बई के सहारा अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे से ईंधन भरने की सुविधा प्रदान की। चंद्रशेखर की सरकार की नीति की सभी दलों तथा विपक्ष के नेता राजीव गांधी ने कड़ी आलोचना की।

नरसिम्हा राव की सरकार और अमेरिका के साथ सम्बन्ध-प्रधानमन्त्री श्री नरसिम्हा राव अमेरिका के राष्ट्रपति बुश को 31 जनवरी, 1992 को न्यूयार्क में मिले। दोनों नेताओं ने भारत-अमेरिका के बीच सहयोग के बढ़ते दायरे पर संतोष व्यक्त किया, परन्तु परमाणु अप्रसार सन्धि पर भारत और अमेरिका के बीच मतभेद बने रहे। जनवरी, 1993 में डेमोक्रेटिक पार्टी के बिल क्लिटन अमेरिका के राष्ट्रपति बने। जी०-7 देशों के टोकियो सम्मेलन में अमेरिका ने भारत को क्रायोजेनिक इंजन प्रणाली न बेचने के लिए भारत पर दबाव डाला। मई, 1994 में भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव अमेरिका की यात्रा पर गए। संयुक्त विज्ञप्ति में यह कहा जाना कि दोनों देश परमाणु आयुधों को संसार से खत्म करने या मिटाने के लिए काम करेंगे, वास्तव में भारतीय दृष्टिकोण है।
भारत के परमाणु परीक्षण तथा भारत-अमेरिका सम्बन्ध-भारत ने 11 मई, 1998 को तीन और 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। 13 मई, 1998 को अमेरिका ने

भारत के परमाणु परीक्षणों की निंदा की और भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्धों की घोषणा की। अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिटन ने भारत की वाजपेयी सरकार को व्यापक परीक्षण प्रतिबन्ध सन्धि (सी० टी० बी० टी०) पर तुरन्त और बिना शर्त हस्ताक्षर करने को कहा। उन्होंने कहा कि भारत के परमाणु परीक्षण अनुचित हैं और इससे एशिया में हथियारों की खतरनाक होड़ शुरू होने का खतरा है। 13 जून, 1998 को प्रधानमन्त्री वाजपेयी के विशेष दूत जसवंत सिंह ने वाशिंगटन में अमेरिकी विदेश उपमन्त्री स्ट्रोब टालबोट के साथ वार्ता करने के बाद कहा कि परीक्षणों को लेकर अमेरिकी समझ बेहतर हुई है।

भारत-अमेरिका की आतंकवाद विरोधी संयुक्त कार्यकारी समूह (Joint Working Group on Counterterrorism)-19 जनवरी, 1999 को भारतीय विदेश मन्त्री जसवंत सिंह और अमेरिकी विदेश उप-सचिव स्ट्रोब टालबोट की लंदन में मुलाकात हुई। दोनों पदाधिकारियों ने आतंकवादी हिंसा को रोकने के लिए इस बात पर सहमति जताई कि दोनों देशों को आतंकवाद विरोधी कार्यकारी समूह स्थापित करना चाहिए। इन मुलाकातों से निश्चित रूप से भारत और अमेरिकी सम्बन्धों में सहयोग की आशा की जा सकती है।

अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटन की भारत यात्रा-21 मार्च, 2000 को अमेरिकन राष्ट्रपति बिल क्लिटन पांच दिन के लिए भारत की सरकारी यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान अमेरिका एवं भारत ने आर्थिक क्षेत्र पर अनेक समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इसके अतिरिक्त भारत अमेरिकी सम्बन्धों की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए विज़न-2000 नामक दस्तावेज़ पर भी हस्ताक्षर किये गए। अमेरिकी राष्ट्रपति की इस यात्रा से भारत-अमेरिकी सम्बन्धों में एक नए युग का सूत्रपात हुआ है।

भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की अमेरिका यात्रा-8 सितम्बर, 2000 को भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी अमेरिका की यात्रा पर गए। अपने लम्बे व्यस्त कार्यक्रम में प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिटन सहित अनेक प्रमुख नेताओं और व्यापारिक संस्थाओं से बातचीत की। इस दौरान आपसी हित के विभिन्न विषयों पर व्यापक बातचीत हुई।

भारत के प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अमेरिका की यात्रा की। वाजपेयी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश के साथ शिखर वार्ता के दौरान आतंकवाद के खिलाफ लडने, नई रणनीतिक योजना बनाने, परमाणु क्षेत्र में शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए संयुक्त रूप से कार्य करने, सुरक्षा सहयोग को बढ़ाने एवं अफ़गानिस्तान के अच्छे भविष्य के लिए मिलकर काम करने की बात की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-सितम्बर, 2004 में संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक अधिवेशन में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह अमेरिकी यात्रा पर गए। यात्रा के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिकन राष्ट्रपति जार्ज बुश से भेंट करके द्विपक्षीय मुद्दों के अतिरिक्त आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष, व्यापक जनसंहार के हथियारों के प्रसार पर अंकुश व भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों पर विचार-विमर्श किया।

प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा-भारत के प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह 17 जुलाई, 2005 को अमेरिका की यात्रा पर गए, जो भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में मील का पत्थर सिद्ध हुई। भारत और अमेरिका के बीच सबसे महत्त्वपूर्ण समझौता परमाणु शक्ति से सम्बन्धित है। अमेरिका ने यह स्वीकार कर लिया है, कि “भारत अत्याधुनिक परमाणु शक्ति सम्पन्न ज़िम्मेदार देश है।” अमेरिका परमाणु शक्ति के असैनिक उपयोग के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग करेगा तथा उस पर लगे प्रतिबन्धों को हटा लेगा।

अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा-मार्च, 2006 में अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश भारत की ऐतिहासिक यात्रा पर आए। इस यात्रा के अवसर पर दोनों देशों के बीच असैनिक परमाणु समझौते के अतिरिक्त कृषि, विज्ञान एवं आर्थिक क्षेत्रों में भी समझौता हुआ। अमेरिकन राष्ट्रपति ने भारत के साथ और अधिक अच्छे सम्बन्धों की वकालत की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-सितम्बर, 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश से भी मुलाकात की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के नेताओं ने द्विपक्षीय व्यापार, विश्व आतंकवाद तथा असैन्य परमाणु समझौते पर विचार-विमर्श किया।
भारतीय विदेश मन्त्री की अमेरिका यात्रा-अक्तूबर, 2008 में भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने असैन्य परमाणु समझौते (Civil Nuclear Deal) पर बातचीत करने के लिए अमेरिका की यात्रा की।

भारत-अमेरिका के बीच असैन्य परमाणु समझौता-नई दिल्ली में 11 अक्तूबर, 2008 को प्रणव मुखर्जी एवं अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने असैन्य परमाणु समझौते पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की अमेरिका यात्रा-नवम्बर, 2009 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका की यात्रा की तथा अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा से द्विपक्षीय बातचीत की। दोनों देशों ने सांझा बयान जारी करते हुए अफगानिस्तान एवं पाकिस्तान में से आतंकी ठिकानों को समाप्त करने की घोषणा की ।

अमेरिकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-अमेरिका के राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा ने 6-8 अक्तूबर, 2010 तक भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन किया। इसी यात्रा के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारतीय और अमेरिकी कम्पनियों के बीच 10 अरब डालर के व्यापारिक करार की घोषणा भी की।

सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ द्विपक्षीय बैठक में भाग लिया, जिसमें दोनों नेताओं ने एच-I वी वीज़ा, नागरिक परमाणु समझौते एवं सामरिक सहयोग पर बाचचीत की।

भारतीय प्रधानमंत्री की अमेरिकी यात्रा-सितम्बर 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित करने के साथ ही अमेरिकन राष्ट्रपति ओबामा से भी महत्त्वपूर्ण मुलाकात की। इस मुलाकात के दौरान दोनों ने कहा कि आतंकवाद के महफूज ठिकानों को नष्ट करने के साथ ही दाऊद को भारत लाने की कोशिश की जायेगी।

सितम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इन दौरान दोनों देशों ने सामारिक सांझेदारी को और बेहतर बनाने का निर्णय किया और सुरक्षा, आतंकवाद एवं कट्टरवाद से निपटने, रक्षा, आर्थिक सांझेदारी तथा जलवायु परिवर्तन पर सहयोग को और गति देने पर सहमति व्यक्त की।

अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा-जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा भारत की तीन दिन की यात्रा पर आए। ओबामा ऐसे पहले राष्ट्रपति थे जो 26 जनवरी की गणतंत्र परेड में मुख्य अतिथि बने। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने नागरिक परमाणु समझौते पर पूर्ण रूप से हस्ताक्षर किये। इसके अतिरिक्त रक्षा, स्वच्छ तथा अक्षय उर्जा एवं चार अर्न्तराष्ट्रीय निर्यात नियन्त्रण व्यवस्थाओं में भारत को सदस्यता दिलाने सम्बन्धी समझौता हुआ। अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का भी समर्थन किया।

जून 2016 तथा 2017 में भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने व्यापार, आतंकवाद, क्षेत्रीय सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा तथा जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर बातचीत की।

निष्कर्ष-भारत एवं अमेरिका पिछले कुछ वर्षों में बहुत अधिक निकट आए हैं। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक सम्बन्ध हैं, आर्थिक क्षेत्र एवं रक्षा क्षेत्र में भी सहयोग बढ़ा है। भारत और अमेरिका के सम्बन्धों में काफ़ी नज़दीकी आई है। भारत के प्रति अमेरिकी सोच में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हो रहा है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 2.
भारत-रूस सम्बन्धों का विस्तार सहित वर्णन करो। (Describe in detail Indo-Russia Relations.)
अथवा
भारत-रूस सम्बन्ध के स्वरूप की विवेचना कीजिए। (Discuss the nature of relationship between India and Russia.)
उत्तर-
सन् 1991 में भूतपूर्व सोवियत संघ का विघटन हो गया और उसके 15 गणराज्यों ने स्वयं को स्वतन्त्र राज्य घोषित कर दिया। रूस भी इन्हीं में से एक है। फरवरी, 1992 में भारतीय प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन को विश्वास दिलाया कि भारत के साथ रूस के सम्बन्ध में कोई गिरावट नहीं आएगी और वे पहले की ही तरह मित्रवत् और सहयोग पूर्ण बने रहेंगे। आज भारत और रूस में घनिष्ठ सम्बन्ध हैं। रूस के राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन तीन दिन की ऐतिहासिक यात्रा पर 27 जनवरी, 1993 को दिल्ली पहुंचे। राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव वार्ता में मुख्यत: आर्थिक एवं व्यापारिक विवादों के समाधान और द्विपक्षीय सहयोग के लिए एजंडे पर विशेष जोर दिया गया। दोनों देशों के बीच 10 समझौते हुए जिनमें रुपया-रूबल विनिमय दर तथा कर्जे की मात्रा व भुगतान सम्बन्धी जटिल समस्याओं पर हुआ समझौता विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। दोनों देशों में 20 वर्ष के लिए मैत्री एवं सहयोग की सन्धि हुई। यह सन्धि 1971 की सन्धि से उस रूप से भिन्न है कि इसमें सामरिक सुरक्षा सम्बन्धी उपबन्ध शामिल नहीं हैं। लेकिन 14 उपबन्धों वाली इस नई सन्धि में यह प्रावधान अवश्य रखा गया है कि दोनों देश ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे एक-दूसरे के हितों पर आंच आती है। वाणिज्य तथा आर्थिक सम्बन्धों के संवर्धन के लिए चार समझौते सम्पन्न हुए। इन समझौतों से व्यापार में भारी वृद्धि की आशा की गई है। भारत रूस समझौतों से रूस को निर्यात करने वाले भारतीय व्यापारियों की परेशानी भी दूर हो गई है। भारतीय सेनाओं के लिए रक्षा कलपुर्जी की नियमित सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए रूसी राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तुत त्रिसूत्रीय फार्मला दोनों देशों ने स्वीकार कर लिया। इस सहमति से भारत को रूस की रक्षा उपकरणों और प्रौद्योगिकी प्राप्त होगी और संयुक्त उद्यमों में भी उसकी भागीदारी होगी। राजनीतिक स्तर पर राष्ट्रपति येल्तसिन तथा प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव की सहमति भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक सफलता है। रूसी राष्ट्रपति ने कश्मीर के मामले पर भारत की नीति का पूर्ण समर्थन किया और यह वचन दिया कि रूस पाकिस्तान को किसी भी तरह की तकनीकी तथा सामरिक सहायता नहीं देगा। रूस संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् में भी कश्मीर के मुद्दे पर भारत को समर्थन प्रदान करेगा। सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्य के लिए भी रूस भारत के दावे का समर्थन करेगा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-29 जून, 1994 को भारत के प्रधानमन्त्री श्री पी० वी० नरसिम्हा राव रूस की यात्रा पर गए। भारत और रूस के मध्य वहां आपसी सहयोग व सैनिक सहयोग के क्षेत्र में 11 समझौते हुए। प्रधानमन्त्री राव की इस यात्रा से भारत और रूस के मध्य नवीनतम तकनीक के आदान-प्रदान के क्षेत्र पर बल दिया गया।

रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1994 में रूस के प्रधानमन्त्री विक्टर चेरनोमिर्दिन भारत की यात्रा पर आए। भारत और रूस के बीच आठ समझौते हुए, इन समझौतों में सैनिक और तकनीकी सहयोग भी शामिल हैं। इन समझौतों का भविष्य की दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है।

प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा की रूस यात्रा-मार्च, 1997 में भारत के प्रधानमन्त्री एच० डी० देवगौड़ा रूस गए। उन्होंने रूस के राष्ट्रपति येल्तसिन और प्रधानमन्त्री चेरनोमिर्दिन से बातचीत कर परम्परागत मित्रता बढ़ाने के लिए कई उपायों पर द्विपक्षीय सहमति हासिल की। रूस ने भारत को परमाणु रिएक्टर देने के पुराने निर्णय को पुष्ट किया।

परमाणु परीक्षण-11 मई, 1998 को भारत ने तीन और 13 मई को दो परमाणु परीक्षण किए। अमेरिका ने भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबन्ध लगाए जिसकी रूस ने कटु आलोचना की। 21 जून, 1998 को रूस के परमाणु ऊर्जा मन्त्री देवगेनी अदामोव और भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डॉ० आर० चिदम्बरम ने नई दिल्ली में तमिलनाडु के कुरनकुलम में अढ़ाई अरब डालर की लागत में बनने वाले परमाणु ऊर्जा संयन्त्र के सम्बन्ध में समझौता किया।
रूस के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1998 में रूस के प्रधानमन्त्री प्रिमाकोव भारत की यात्रा पर आए। 21 दिसम्बर, 1998 को दोनों देशों ने आपसी सहयोग के सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए। दोनों देशों के रक्षा सहयोग की अवधि सन् 2000 से 2010 तक बढ़ाने का निर्णय किया।

रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-अक्तूबर, 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत की यात्रा पर आए। दोनों देशों ने अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद, विघटनवाद, संगठित मज़हबी अपराध और मादक पदार्थों की तस्करी के खिलाफ़ सहयोग करने पर भी सहमति जताई। दोनों देशों ने आपसी हित के 17 विभिन्न विषयों पर समझौते किए। इनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण समझौता सामरिक भागीदारी का घोषणा-पत्र रहा।

भारत के प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-नवम्बर, 2001 में भारत के प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी रूस यात्रा पर गए। वाजपेयी एवं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शिखर वार्ता करके ‘मास्को घोषणा पत्र’ जारी किया जिसमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की बात कही गई। रूस ने सुरक्षा परिषद् में भारत की स्थायी सदस्यता के दावे का भरपूर समर्थन किया। इसके अतिरिक्त अन्य कई क्षेत्रों में भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए।

रूस के उप-प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 2002 के रूस के उप-प्रधानमन्त्री भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को नई गति देने के लिए एक प्रोटोकोल पर हस्ताक्षर किये। इसके साथ ही भारत ने रूस से स्मर्क मल्टी-बैरन रॉकेट लांचर खरीदने और रूस निर्मित 877 ई के० एम० पारस्परिक पनडुबियों को उन्नत बनाने के समझौते किए।

20 जनवरी, 2004 को नई दिल्ली में रूस एवं भारत के रक्षा मन्त्रियों ने बहु-प्रतीक्षित विमान वाहक पोत गोर्खकोव समझौते पर हस्ताक्षर किए।
रूस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2004 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। व्लादिमीर पुतिन ने संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में वीटो सहित भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया।

भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह की रूस यात्रा- भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह दिसम्बर, 2005 में रूस की यात्रा पर गए। दोनों देशों के बीच तीन महत्त्वपूर्ण समझौते हुए

  1. रक्षा के क्षेत्र में हुए बौद्धिक सम्पदा अधिकार समझौते के तहत संयुक्त रक्षा कार्यों की निगरानी करना।
  2. दूसरा समझौता सौर भौतिकी के क्षेत्र में हुआ है।
  3. तीसरा समझौता ग्लोबल नेविगेशन सिस्टम के सन्दर्भ में तकनीकी सुरक्षा से सम्बन्धित हुआ। ये समझौता अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के विकल्प के तौर पर काम करेगा।

नवम्बर, 2007 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तीन दिन की रूस यात्रा पर गए। प्रधानमन्त्री ने रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ वार्षिक बैठक में भाग लिया। दोनों देशों ने रक्षा सहयोग को और अधिक बढ़ाने के अतिरिक्त द्विपक्षीय व्यापार को 2010 तक 10 बिलियन डालर तक ले जाने की सहमति प्रकट की।

रूसी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 2008 में रूसी प्रधानमन्त्री विक्टर ए० जुबकोव (Victor A. Zubkov) दो दिवसीय भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2008 में रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव भारत यात्रा पर आए। मेदवेदेव ने 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निन्दा की। इस यात्रा के दौरन दोनों देशों ने महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2009 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह रूस यात्रा पर गए तथा रूसी राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के साथ वार्षिक बैठक में भाग लिया । इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सहोयग बढ़ाने पर जोर दिया ।

रूसी प्रधामन्त्री की भारत-यात्रा-मार्च, 2010 में रूसी प्रधानमन्त्री श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सुरक्षा एवं सहयोग के पांच समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2010 में रूसी राष्ट्रपति श्री दिमित्री मेदवेदेव भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 30 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2011 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रूस गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2012 में रूसी राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सहयोग एवं रक्षा के 10 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

भारतीय प्रधानमन्त्री की रूस यात्रा- अक्तूबर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनो देशों ने रॉकेट, मिसाइल, नौसेना, प्रौद्योगिकी और हथियार प्रणाली के क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की।

रूसी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-दिसम्बर 2014 में रूसी राष्ट्रपति श्री बलादिमीर पुतिन भारत-रूस वार्षिक शिखर बैठक में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच सुरक्षा, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण समझौते हुए।
भारतीय प्रधानमंत्री की रूस यात्रा-दिसम्बर, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने रूस की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा एवं सहयोग के 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये। अक्तूबर 2016 में रूस के राष्ट्रपति श्री ब्लादिमीर पुतिन ‘ब्रिक्स’ (BRICS) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों ने 16 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

जून 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी रूस यात्रा पर गए। इस दौरान दोनों देशों ने 5 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

अक्तूबर, 2018 में रूसी राष्ट्रपति श्री व्लादिमीर पुतिन वार्षिक शिखर वार्ता के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आठ महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
नि:संदेह भारत और रूस में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो चुके हैं। कुंडकुलम परमाणु ऊर्जा परियोजना इस के सहयोग का ही परिणाम है। असैनिक परमाणु परियोजनाओं में रूस की भागीदारी के वायदे और बहुउद्देशीय परिवहन विमान और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के निर्माण में उसकी मदद की घोषणा को जोड़ ले तो भारत और रूस मित्रता की धारणा की ही पुष्टि होती है। रूस पुरानी मित्रता को निरन्तर निभा रहा है और यह निर्विवाद है कि भारत और रूस के बीच विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग बढ़ने से दोनों देशों की ताकत बढ़ेगी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए जिम्मेवार चार कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए ज़िम्मेदार तीन कारण अग्रलिखित हैं-

  1. शीत युद्ध की समाप्ति-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध की समाप्ति है।
  2. आतंकवाद की समस्या-दोनों ही देश आतंकवाद से ग्रसित है, अतः इस समस्या के समाधान के लिए भी दोनों देश नज़दीक आए हैं।
  3. जार्ज बुश की भारत के प्रति विशेष रुचि-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जार्ज बुश की भारत के प्रति विशेष रुचि रही है। उनके प्रयासों से ही भारत-अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौता हो सका।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर आए परिवर्तनों के कारण भी भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में सकारात्मक परिवर्तन आया है।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि पर नोट लिखिए।
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि क्या है ?
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता क्या है ?
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि 2005 में हुई। इस सन्धि पर भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने हस्ताक्षर किए। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य भारत द्वारा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करना था। इस सन्धि के अन्तर्गत 2020 तक कम-से-कम 20000 मेगावाट अतिरिक्त बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है। भारत ने इस सन्धि के अन्तर्गत अपने 14 परमाणु रिएक्टर अन्तर्राष्ट्रीय निगरानी के लिए खोल दिए हैं। 6 सितम्बर, 2008 को इस सन्धि को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (N.S.G.) की भी स्वीकृति मिल जाने के बाद 11 अक्तूबर, 2008 को भारत के विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी तथा अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने इस पर हस्ताक्षर करके इसे लागू कर दिया। जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के समय इस समझौते को पूर्ण रूप से व्यावहारिक रूप दे दिया गया।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 3.
1971 की भारत सोवियत संघ की सन्धि की मुख्य व्यवस्थाएं क्या थी ?
उत्तर-
1971 की भारत सोवियत संघ की मुख्य व्यवस्थाएं इस प्रकार थीं-

  1. एक-दूसरे की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता का सम्मान करना।
  2. पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के बारे में प्रयास करना।
  3. उपनिवेशवाद तथा प्रजातीय भेदभाव की समाप्ति के लिए प्रयास करना।
  4. एक दोनों के विरुद्ध सैनिक सन्धि में शामिल न होना।
  5. यदि दोनों देशों में किसी एक देश के विरुद्ध अन्य देश युद्ध की घोषणा करता है तो दूसरा देश आक्रमणकारी देश की कोई मदद नहीं करेगा। यदि दोनों देशों में से किसी एक पर आक्रमण हो जाता है तो उस आक्रमण को टालने के लिए दोनों देश आपस में विचार-विमर्श करेंगे।

प्रश्न 4.
रूस-भारत मित्रता के लिए जिम्मेवार मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर-
रूस-भारत मित्रता के लिए निम्नलिखित कारण ज़िम्मेदार हैं

  • रूस-भारत मित्रता के लिए दोनों देशों में पाए गए परस्पर रक्षा सम्बन्ध हैं।
  • रूस एवं भारत में मित्रता के लिए आर्थिक एवं व्यापार क्षेत्र में सहयोग प्रमुख कारण है।
  • रूस एवं भारत आतंकवाद के मुद्दे पर एक हैं।
  • अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले परिवर्तन भी रूस-भारत की मित्रता के लिए जिम्मेदार है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत-अमेरिका सम्बन्धों में सुधार के लिए जिम्मेवार दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. शीत युद्ध की समाप्ति-भारत-अमेरिका सम्बन्धों में आए सकारात्मक मोड़ के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण कारण शीत युद्ध की समाप्ति है।
  2. आतंकवाद की समस्या-दोनों ही देश आतंकवाद से ग्रसित हैं, अतः इस समस्या के समाधान के लिए भी दोनों देश नज़दीक आए हैं।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि पर नोट लिखिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि मार्च, 2006 में हुई। इस सन्धि पर भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह तथा अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश ने हस्ताक्षर किए। इस सन्धि का मुख्य उद्देश्य भारत द्वारा अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करना था। 6 सितम्बर, 2008 को इस सन्धि को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (N.S.G.) की भी स्वीकृति मिल जाने के बाद 11 अक्तूबर, 2008 को भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी तथा अमेरिका की विदेश मन्त्री कोंडालीजा राइस ने इस पर हस्ताक्षर किये। अन्ततः जनवरी, 2015 में अमेरिकन राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान इस समझौते में आने वाली बाधाओं को दूर किया गया।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 3.
1971 की भारत सोवियत संघ समझौते की दो मुख्य व्यवस्थाएं क्या थीं?
उत्तर-

  1. एक-दूसरे की प्रभुसत्ता तथा अखण्डता का सम्मान करना।
  2. पूर्ण नि:शस्त्रीकरण के बारे में प्रयास करना।।

प्रश्न 4.
रूस-भारत मित्रता के लिए जिम्मेवार मुख्य कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. रूस-भारत मित्रता के लिए दोनों देशों में पाए गए परस्पर रक्षा सम्बन्ध हैं।
  2. रूस एवं भारत में मित्रता के लिए आर्थिक एवं व्यापार क्षेत्र में सहयोग प्रमुख कारण है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
सोवियत संघ के विघटन के समय सोवियत संघ का राष्ट्रपति कौन था ?
उत्तर-
सोवियत संघ के विघटन के समय सोवियत संघ का राष्ट्रपति श्री मिखाइल गोर्बाच्योव थे।

प्रश्न 2.
भारत-अमेरिका के बीच सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत-अमेरिका के बीच सम्बन्ध वर्तमान समय में मित्रतापूर्ण हैं।

प्रश्न 3.
1, 2, 3 परमाणु संधि कौन-से दो देशों की बीच हुई ?
उत्तर-
1, 2, 3 परमाणु संधि भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच हुई।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 4.
1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
1971 के भारत-पाक युद्ध में अमेरिका ने खुल कर पाकिस्तान का साथ दिया था तथा भारत पर हर प्रकार का दबाव डाला था।

प्रश्न 5.
अमेरिका का गुटनिरपेक्षता की नीति के प्रति क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
अमेरिका ने गुट निरपेक्षता की नीति को कभी भी पसन्द नहीं किया। अमेरिका चाहता था कि भारत सदैव उसकी नीतियों का समर्थन करे, जोकि भारत को पसन्द नहीं था।

प्रश्न 6.
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका का क्या दृष्टिकोण था ?
उत्तर-
1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से किसी का समर्थन नहीं किया, परन्तु अप्रत्यक्ष रूप से वह पाकिस्तान के साथ था, क्योंकि पाकिस्तान ने अमेरिका से प्राप्त हथियारों से ही युद्ध लड़ा था।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 7.
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि कब हुई ?
अथवा
भारत-अमेरिका परमाणु समझौता कब लागू किया गया ?
उत्तर-
भारत-अमेरिका परमाणु सन्धि 11 अक्तूबर, 2008 को हुई।

प्रश्न 8.
भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
भारत और अमेरिका के बीच हुए परमाणु समझौते के कारण दोनों देश परमाणु क्षेत्र में परस्पर सहयोग कर सकते हैं।

प्रश्न 9.
भारत और रूस सम्बन्धों में तनाव का कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत और रूस सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण भारत और अमेरिका के मजबूत होते सम्बन्ध हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. सोवियत संघ के विघटन के समय ………… राष्ट्रपति थे।
2. भारत को हथियारों की सबसे अधिक आपूर्ति ……….. करता है।
3. भारत एवं ……….. के बीच 28 जून, 2005 को दस वर्षीय समझौता हुआ।
4. 2015 में अमेरिका के राष्ट्रपति श्री ………. भारत यात्रा पर आए।
5. रूस के वर्तमान राष्ट्रपति श्री …………….. हैं।
उत्तर-

  1. मिखाइल गोर्बाचेव
  2. रूस
  3. अमेरिका
  4. बराक हुसैन ओबामा
  5. व्लादिमीर पुतिन।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. भारत के रूस से सदैव ही अच्छे सम्बन्ध रहे हैं।
2. भारत के अमेरिका से हमेशा मित्रतापूर्ण सम्बन्ध रहे हैं।
3. वर्तमान समय में भारत-अमेरिका सम्बन्ध सुधर रहे हैं।
4. मार्च, 2006 में भारत-अमेरिका के बीच असैनिक परमाणु समझौता हुआ।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत के किस प्रधानमन्त्री ने सर्वप्रथम अमेरिका की यात्रा की ?
(क) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ख) श्रीमती इंदिरा गांधी
(ग) श्री लाल बहादुर शास्त्री
(घ) पं० जवाहर लाल नेहरू।
उत्तर-
(घ) पं० जवाहर लाल नेहरू।

प्रश्न 2.
निम्न में किस अमेरिकन राष्ट्रपति ने सर्वप्रथम भारत की यात्रा की
(क) बिल क्लिंटन
(ख) कैनेडी.
(ग) आइजनहावर
(घ) जिमी कार्टर।
उत्तर-
(ग) आइजनहावर

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 3.
अक्तूबर 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब निम्न में से किस देश ने भारत को सहायता दी
(क) अमेरिका
(ख) पाकिस्तान
(ग) श्रीलंका
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) अमेरिका

प्रश्न 4.
अमेरिकन राष्ट्रपति जिमी कार्टर कब भारत यात्रा पर आए?
(क) 1 जनवरी, 1980
(ख) 15 अगस्त, 1978
(ग) 1 जनवरी, 1978
(घ) 26 जनवरी, 19801
उत्तर-
(ग) 1 जनवरी, 1978

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 22 भारत के अमेरिका एवं रूस से सम्बन्ध

प्रश्न 5.
भारत-पाक के बीच ताशकंद समझौता करवाने में किसने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ?
(क) अमेरिकन राष्ट्रपति कैनेडी
(ख) सोवियत नेता
(ग) फ्रांस के राष्ट्रपति
(घ) ब्रिटिश नेता।
उत्तर-
(ख) सोवियत नेता

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Home Science Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

PSEB 6th Class Home Science Guide पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रंग कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
रंग दो प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 2.
नीला और जामुनी रंग किस श्रेणी के रंग हैं ?
उत्तर-
ठण्डे रंग।

प्रश्न 3.
गर्मियों के लिए कैसे रंगों का चुनाव करना चाहिए ?
उत्तर-
ठण्डे रंगों का जैसे सफेद, बादामी रंग।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 4.
सर्दियों के लिए कैसे वस्त्रों का चुनाव करना चाहिए ?
उत्तर-
सर्दियों के लिए ऊनी, सिल्की या नॉयलॉन आदि के वस्त्र खरीदने चाहिएं तथा गर्म रंगों वाले वस्त्र।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
भिन्न-भिन्न प्रकार की रेखाओं का पोशाक पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
विभिन्न प्रकार की रेखाओं का पोशाक पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ता है –
(क) सीधी रेखाएँ-इससे पहनने वाले का आकार लम्बा तथा पतला लगता है। (ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ-इससे आदमी मोटा लगता है।
(ग) तिरछी रेखाएँ-यदि ये ज़्यादा लम्बाई की ओर हों तो आदमी लम्बा तथा यदि चौड़ाई की ओर हों तो छोटा तथा मोटा लगता है।
(घ) गोलाई की रेखाएँ-इससे कंधे चौड़े लगते हैं।
(ङ) टूटी हुई रेखाएँ-ये लम्बाई को छोटा दिखाती हैं।
(च)वी’ शक्ल की रेखाएँ-इस तरह की रेखाएँ शरीर को चौड़ा या लम्बा दिखा सकती हैं। जितनी गहरी ‘वी’ होगी, उतना ही आदमी पतला लगेगा।

प्रश्न 2.
मोटे और छोटे व्यक्ति को कैसी लाइनों का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
मोटे और छोटे व्यक्ति को तिरछी लाइनों का प्रयोग करना चाहिए।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 3.
गर्म और ठण्डे रंग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
गर्म रंग-लाल, संतरी तथा पीला।
ठण्डे रंग-हरा, नीला तथा जामुनी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों का चुनाव करते समय रेखाओं तथा रंगों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कपड़ों का चुनाव करते समय रेखाओं का निम्नलिखित महत्त्व है –
(क) सीधी रेखाएँ-इन्हें देखने के लिए आँख को ऊपर से नीचे की ओर देखना पड़ता है। इससे पहनने वाले का आकार लम्बा तथा पतला लगता है।

(ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ-इन रेखाओं को देखने के लिए एक सिरे से दूसरे सिरे तक देखना पड़ता है। इसलिए ये पहनने वाले को चौड़ा तथा छोटा दिखाती हैं। इससे आदमी मोटा लगता है।

(ग) तिरछी रेखाएँ-ये अधिक लम्बाई की ओर हों तो आदमी लम्बा तथा यदि चौडाई की ओर हों तो आदमी छोटा तथा मोटा लगता है।

(घ) गोलाई की रेखाएँ-इस तरह की रेखाएँ फ्रॉक की चोली, कालर तथा गले पर बनाई जाती हैं। इससे कंधे चौड़े लगते हैं।
(ङ) टूटी हुई रेखाएँ-ये लम्बाई को छोटा दिखाती हैं।

(च) ‘वी’शक्ल की रेखाएँ-इस प्रकार की रेखाएँ शरीर को चौड़ा या लम्बा दिखा सकती हैं। जितनी गहरी ‘वी’ होगी, उतना ही आदमी पतला लगेगा।
PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव 1
कपड़ों का चुनाव करते समय रंगों का महत्त्व-लाल, संतरी तथा पीला रंग गर्म रंग माने गए हैं। इनको पहनने से गर्मी अनुभव होती है। परन्तु भड़कीले होने के कारण इन रंगों का अधिक प्रयोग ज्यादा समय तक नहीं किया जा सकता है। हरे, नीले तथा जामुनी रंगों को ठंडे रंग कहा जाता है। ये काफ़ी सुखदायक होते हैं। परन्तु इनके ज़्यादा इस्तेमाल से व्यक्ति उदास लगता है। रंगों का चुनाव करते समय पहनने वाले का रूप, आकार, मौसम, दिन-रात तथा अवसर का ध्यान रखना ज़रूरी है। पक्के रंग वाली स्त्रियों को ज़्यादा गाढ़े तथा गर्म रंग नहीं पहनने चाहिएं। एक लम्बी स्त्री को हल्के रंग तथा छोटे छापे का कपड़ा नहीं पहनना चाहिए। एक छोटी स्त्री को गाढ़े रंग का तथा बड़े छापे वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिएं। एक मध्यम शरीर वाली स्त्री जो न बहुत लम्बी तथा न बहुत छोटी हो, किसी भी रंग या डिज़ाइन का कपड़ा पहन सकती है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 2.
अपने लिए वस्त्र खरीदते समय आप कौन-कौन सी बातों का ख्याल रखेंगे?
उत्तर-
वस्त्र खरीदते समय ध्यान रखने वाली बातें –

  1. रेखाओं के प्रयोग
    (क) सीधी रेखाएँ
    (ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ
    (ग) तिरछी रेखाएँ
    (घ) गोलाई की रेखाएँ
    (ङ) टूटी हुई रेखाएँ
    (च) ‘वी’ शक्ल की रेखाएँ।
  2. गले की रेखा का आकार
  3. लेस, झालर या बटन लगाना
  4. पोशाक की लम्बाई तथा चौड़ाई
  5. वस्त्र चुनाव के समय रंगों का चुनाव
  6. अवसर के अनुसार वस्त्रों का चुनाव
  7. ऋतु के अनुसार वस्त्रों का चुनाव।

प्रश्न 3.
अवसर तथा ऋतु के अनुसार आप कपड़ों का कैसे चुनाव करोगे ?
उत्तर-
अवसर के अनुसार कपड़ों का चुनाव-रोज़ घर में पहनने वाले वस्त्र अधिक समय तक चलने वाले, सुगमता से धोए जा सकने वाले तथा अधिक महँगे नहीं होने चाहिएं। स्कूल के बच्चों की एक जैसी वर्दी होनी चाहिए ताकि किसी को धनी या निर्धन होने का आभास न हो। बच्चों के रोज़ पहनने वाले वस्त्र ऐसे होने चाहिएं जो जल्दी गन्दे न हों। घर के बाहर काम करने वाली स्त्रियों के वस्त्र अधिक कीमती या भड़कीले नहीं होने चाहिएं। कभी-कभी ब्याह-शादी या अन्य किसी अवसर के लिए सिल्क या अन्य कीमती वस्त्र, जिनके रंग भड़कीले या गाढ़े भी हो सकते हैं, खरीदे जा सकते हैं।

ऋतु के अनुसार कपड़ों का चुनाव-हम ऋतु के अनुसार कपड़े खरीदते हैं। सर्दियों के लिए गाढ़े रंग के तथा गर्म रंगों के कपड़े तथा गर्मियों के लिए हल्के तथा ठंडे रंगों के वस्त्र खरीदने चाहिएं। ब्राउन तथा काला रंग सर्दियों में प्रयोग करना चाहिए और सफेद या बादामी रंग गर्मियों में प्रयोग करना चाहिए। सर्दियों के लिए ऊनी, सिल्की या नॉयलॉन आदि के वस्त्र खरीदने चाहिएं। गर्मियों के लिए सूती कपड़ों या टेरीकॉट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 4.
आप अपने कपड़ों की कैसे देख-भाल करोगे ?
उत्तर-
कपड़ों की देख-भाल –

  1. कपड़ों को सदा साफ़-सुथरा तथा अच्छी दशा में रखना चाहिए।
  2. कालर या कफ़ से कमीज़ फट जाए तो तुरंत ठीक करवा लेना चाहिए।
  3. कपड़ा कहीं से फट जाए या छिद्र हो जाए तो उसे रफू या पैबन्द लगाकर ठीक कर लेना चाहिए।
  4. बटन व हुक आदि टूट जाए तो शीघ्र ही उसे बदल देना चाहिए।
  5. कपड़ों को कभी भी किसी कील में नहीं टाँगना चाहिए।
  6. कपड़ों को अच्छी तरह तह करके अलमारी में रखकर हैंगर में लटकाना चाहिए।

Home Science Guide for Class 6 PSEB पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्म रंग कौन-से माने गए हैं ?
उत्तर-
लाल, संतरी तथा पीला रंग गर्म रंग माने गए हैं।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 2.
ठंडे रंग कौन-से माने गए हैं ?
उत्तर-
हरा, नीला तथा जामुनी रंग ठंडे रंग माने गए हैं।

प्रश्न 3.
स्कूल के बच्चों की यूनीफार्म कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर-
स्कूल के सभी बच्चों की यूनीफार्म एक जैसी होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
गर्मियों में कैसे कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है ?
उत्तर-
गर्मियों में सूती या टेरीकॉट कपड़ों का इस्तेमाल किया जाता है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कपड़ों का चुनाव करते समय गले की रेखाओं का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कपड़ों का चुनाव करते समय गले की रेखाएँ कन्धे को चौड़ा या लम्बा या छोटा दिखा सकती हैं, जैसे कि ‘वी’ या ‘यू’ आकार के गले से गर्दन तथा चेहरे का आकार लम्बा तथा गोल और चौरस गले से चेहरा तथा कन्धे चौड़े तथा गर्दन छोटी लगती है। लम्बी गर्दन वाले को दोहरी पट्टी वाली या कालर वाली कमीज़ पहननी चाहिए।
PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव 2

प्रश्न 2.
ऋतु के अनुसार कपड़ों के चुनाव के बारे में क्या जानते हो ?
उत्तर-
हम ऋतु के अनुसार कपड़े खरीदते हैं। सर्दियों के लिए गाढ़े रंग के तथा गर्म रंगों के कपड़े तथा गर्मियों के लिए हल्के तथा ठंडे रंगों के वस्त्र खरीदने चाहिएं। ब्राउन तथा काला रंग सर्दियों में प्रयोग करना चाहिए और सफेद या बादामी रंग गर्मियों में प्रयोग करना चाहिए। सर्दियों के लिए ऊनी, सिल्की या नॉयलॉन आदि के वस्त्र खरीदने चाहिएं। गर्मियों के लिए सूती कपड़ों या टेरीकॉट का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
कपड़ों की देखभाल के लिए कोई दो बातें बताएं।
उत्तर-

  1. कपड़ों को कील पर न टांगें।
  2. कपड़ों को सदा साफ तथा अच्छी अवस्था में रखें।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
किसी गर्म रंग का नाम बताएँ।
उत्तर-
लाल।

प्रश्न 2.
लम्बी तथा पतली स्त्रियों को किस प्रकार की रेखाओं वाले वस्त्र पहनने चाहिए ?
उत्तर-
लेटी हुई रेखाओं के।

प्रश्न 3.
ठण्डे रंग का नाम बताएँ।
उत्तर-
जामनी।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

प्रश्न 4.
संतरी रंग गर्म है या ठण्डा ।
उत्तर-
गर्म।

प्रश्न 5.
टूटी रेखाएं क्या दर्शाती हैं ?
उत्तर-
लम्बाई को छोटा करती हैं।

प्रश्न 6.
मोटे तथा छोटे व्यक्ति को कैसी लाइनों वाले कपड़े पहनने चाहिए ?
उत्तर-
टेढ़ी लाइनों वाले।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 6 पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव

पहनने वाले वस्त्रों का चुनाव PSEB 6th Class Home Science Notes

  • प्रत्येक व्यक्ति को अपने रंग-रूप, लम्बाई-मोटाई, व्यक्तित्व, ऋतु तथा अपने काम के अनुसार ही वस्त्र खरीदने चाहिए।
  • रंगों तथा लाइनों के प्रयोग से तथा डिज़ाइन बदलने से शारीरिक दोषों को कुछ सीमा तक छुपाया जा सकता है।
  • लाइनदार कपड़ा खरीदते समय ध्यान रखने योग्य बातें –
    (क) सीधी रेखाएँ, (ख) दाएँ-बाएँ लेटी रेखाएँ, (ग) तिरछी रेखाएँ, (घ) गोलाई की रेखाएँ, (ङ) टूटी हुई रेखाएँ, (च) ‘वी’ शक्ल की रेखाएँ।
  • लम्बी गर्दन वाले को दोहरी पट्टी वाली या कालर वाली कमीज़ पहननी चाहिए।
  • छोटी गर्दन वालों को बंद गले या ऊँचे गले वाले वस्त्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • लम्बी तथा पतली स्त्रियों को लेटवीं रेखाओं में तथा मोटी और छोटे कद वाली स्त्रियों को खडी रेखाओं के वस्त्र आदि लेने चाहिएं।
  • छोटे आकार वाली स्त्री को गाढ़े रंग तथा बड़े छापे वाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिएं।
  • वस्त्र व्यक्ति को शोभा तभी बढ़ाते हैं जब उनकी ठीक देख-भाल की जाए।
  • कपड़ों को धोकर प्रेस कर लिया जाए तो वे और भी सुन्दर लगते हैं।

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules.

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. जिमनास्टिक टीम के खिलाड़ी = 8
  2. मुकाबला शुरू होने पर खिलाड़ी बदला जा सकता है। = नहीं
  3. ज्यूरी का फैसला = अंतिम
  4. चोट लगने पर या बीमार होने पर इंतज़ार किया जा सकता है = 30 मिनट
  5. विजेता टीम के कितने खिलाड़ियों के अंक गिने जाते हैं। = 6 खिलाड़ी
  6. अंक दिये जाते हैं = 0 से 10 तक
  7. बिना ज्यूरी के खिलाड़ी खेल छोड़ सकता है। = नहीं
  8. प्रतियोगिता के लिए अधिकारी = कम से कम 3 या पाँच
  9. लड़कों के लिए मुकाबले =
    • पैरेलल बार
    • वाल्टिंग होर्स
    • ग्राऊंड जिम्नास्टिक
    • हॉरिजोंटल बार
    • रोमन डिंग
    • पोमल होर्स।
  10. लड़कियों के लिए मुकाबले =
    • बीम बैलेंस (ज़रूरी)
    • ग्राऊंड जिम्नास्टिक (ज़रूरी)
    • अनइवर बार (ज़रूरी)
    • वाल्टिंग होर्स

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ओलम्पिक में लड़कियों के लिए जिम्नास्टिक कब आरम्भ हुई ?
उत्तर-
1928 ई० के ओलम्पिक्स में।

प्रश्न 2.
लड़कों द्वारा किये जाने वाले जिम्नास्टिक्स अप्रेटस कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-

  1. फ्लोर एक्सरसाइज़
  2. पैरलल बार
  3. हॉरीजोंटल बार
  4. पोमेल हॉर्स
  5. रोमन रिंग्स
  6. वाल्टिंग हॉर्स

प्रश्न 3.
जिम्नास्टिक के मैच में वाल्टिंग हॉर्स की ऊंचाई लिखें।
उत्तर-
1350 मि. मी.।

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
जिम्नास्टिक के मैच में लड़कों की प्रतियोगिता में जजमैंट के लिये कितने जज होते हैं ?
उत्तर-
एक सीनियर जज और 6 अन्य जज।

प्रश्न 5.
पैरलल बार की लम्बाई लिखें।
उत्तर-
3500 मि. मी.।

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
जिमनास्टिक्स का इतिहास लिखें।
उत्तर-
इतिहास (History)-जिमनास्टिक्स एक प्राचीन खेल है। 2600 ईसा पूर्व चीन में जिमनास्टिक्स के व्यायाम किए जाते थे। परंतु इसका वास्तविक विकास यूनान व रोम में शुरू हुआ। ‘जिमनास्टिक्स’ शब्द यूनानी भाषा के ‘जिम्नोस’ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ‘नग्न शरीर’ है। नग्न शरीर के द्वारा जो व्यायाम किए जाते हैं उन्हें जिमनास्टिक कहा जाता है। ये व्यायाम शरीर को स्वस्थ रखने के लिए किए जाते थे। यूनान में जिमनास्टिक पर अधिक बल दिया। स्पार्टवासी अपने युवा वर्ग को जिमनास्टिक का प्रशिक्षण प्रदान कराने में अधिक कठोर थे। उन दिनों लड़कियों और लड़कों से यह आशा की जाती थी कि वह जिमनास्टिक द्वारा अपने स्वास्थ्य को ठीक रखें। यूनान और रोम की सभ्यताओं के पतन के साथ-साथ जिमनास्टिक भी यूनान और रोम से समाप्त हो गई।

जिमनास्टिक के महान् गाड फादर जॉन गुट्स मुथूस ने जिमनास्टिक को पर्शियन स्कूलों में शुरू किया। इस प्रकार जर्मनी ने जिमनास्टिक की पुनः खोज की जिस कारण सन् 1881 में अन्तर्राष्ट्रीय जिमनास्टिक फेडरेशन (International Gymnastic Federation) अस्तित्व में आई। सन् 1894 में पहली जिमनास्टिक प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था। प्रथम आधुनिक ओलम्पिक्स खेलों में पुरुषों के लिए जिमनास्टिक को शामिल किया गया जबकि महिलाओं के लिए जिमनास्टिक को सन् 1928 के ओलम्पिक्स में शामिल किया गया। सन् 1974 एशियाई खेलों में पहली बार इसको शामिल किया गया जिसका आयोजन तेहरान में हुआ था। सन् 1975 में प्रथम विश्व कप का आयोजन हुआ था। जिमनास्टिक एक मनमुग्ध, आकर्षक और अत्यन्त लोकप्रिय खेल है।

जिमनास्टिक के नये सामान्य नियम
(Latest General Rules Related to Gymnastics)
1. पुरुष छः इवेंट्स में भाग लेते हैं जिनमें फ्लोर एक्सरसाइजिज़, वाल्टिंग हार्स, पोमेल्ड हार्स, रोमन रिंग्स, हारीजोंटल बार और पैरलल बार्स होते हैं। महिलाएं चार इवेंट्स में भाग लेती हैं जिसमें वाल्टिंग हार्स, अनईवन बार्स, बैलेंसिंग बीम व फ्लोर एक्सरसाइज़िज होती हैं।

2. सभी जिमनास्ट इवेंट के शुरू होने के पहले तथा बाद में जज के सामने उपस्थित होते हैं। वह सिग्नल मिलने पर ही व्यायाम शुरू करते हैं। अगर एक्सरसाइज के समय वे गिर जाएं तो उन्हें फिर शुरू करने के लिए 30 सैकेंड का समय दिया जाता है।

3. टीम प्रतियोगिता के लिए प्रत्येक टीम के छह जिमनास्ट प्रत्येक एपरेंट्स पर एक अनिवार्य और एक ऐच्छिक, एक्सरसाइज़ करते हैं। सबसे ऊँचे पांच स्कोर को जोड़ लिया जाता है जिससे टीम के अंक जोड़े जा सकें।

4. जिमनास्ट के लिए उचित पोशाक पहनना आवश्यक है। वह पट्टियां बांध सकता है और स्लीपर्स पहन सकता है। जुराबें भी पहन सकता है। सिग्नल मिलने पर 30 सैकेंड में ही अपनी एक्सरसाइज़ शुरू करनी होती है।

होरीजोंटल बार और रोमन रिंग्ज में कोच या एक जिमनास्ट होना ज़रूरी है।

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
जिमनास्टिक के उपकरणों के बारे लिखें।
उत्तर-
खेल के मैदान एवं खेल से सम्बन्धित उपकरणों का वर्णन (Specification of Play field & Sports Equipment)—
(A) पुरुषों के लिए उपकरण (Equipment for men)
1. फर्श 12 × 12 मी०

2. पैरलल बार (Parallel Bar)
बार्स की लम्बाई = 3500 मि०मी०
बार्स की चौड़ाई = 420-520 मि०मी०
बार्स की ऊंचाई = 1750 मि०मी०
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
Parallel Bars

3. हॉरीजोंटल बार (Horizontal Bar)
बार का व्यास = 28 मि०मी०
बार की ऊंचाई = 2.550-2.700 मि०मी०
बार की लम्बाई = 2.400 मि०मी०
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 2
Horizontal Bars

4. पोमेल हॉर्स (Pommel Horse)
पोमेल हार्स की लम्बाई = 1600 मि०मी०
पोमेल हार्स की चौड़ाई = 350 मि०मी०
फर्श की ऊँचाई = 1100 मि०मी०
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 3
Pommel Horse

5. रोमन रिंग्स (Roman Rings)
व्यास (ग्रिप) = 28 मि०मी०
फर्श से स्टैंड की ऊँचाई = 5.500 मि०मी०
चमड़े की पट्टियों की लम्बाई = 700 मि०मी०
मोटाई = 4 मि०मी०
रिंग के अंदर का व्यास = 180 मि०मी०
फर्श से रिंग की ऊँचाई = 2.500 मि०मी०
चौड़ाई पटरियों की = 3.5 मि०मी०
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 4
Roman Rings
वॉल्टिंग हॉर्स (Vaulting Horse)
वॉल्टिंग हॉर्स की ऊँचाई = 1350 मि०मी०
मध्य में समायोजन करने वाले स्टैप्स = 50 मि०मी०
हॉर्स की ऊँचाई = 1600 मि०मी०
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 5
Vaulting Horse

(B) महिलाओं के लिए उपकरण (Equipment for Women)
1. फर्श = 12 मी० × 12 मी०
2. वाल्टिंग हॉर्स (Vaulting Horse)
वाल्टिंग हॉर्स की ऊंचाई = 1,250 मि०मी०
मध्य म समायोजन करने वाले स्टैप्स = 100-150 मि०मी०
हॉर्स की लम्बाई = 1,600 मि०मी०

3. बैलेसिंग बीम (Balancing Beam)
बीम की ऊंचाई = 1200 मि०मी०
बीम की लम्बाई = 1500 मि०मी०
बीम की चौड़ाई = 100 मि०मी०
ऊँचाई का समायोजन = 700-1200 मि०मी०
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 6
Balancing Beam

4. अन-ईवन बार (Uneven Bar)
अन-ईवन बार की लम्बाई = 2400 मि०मी०
फर्श से बार की ऊंचाई = 2300 मि०मी०
बार्स के बीच की दूरी = 580-900 मि०मी०
अपराइट्स का व्यास = 50-60 मि०मी०
अपराइट्स की मोटाई = 30 मि०मी०
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 7
Uneven Bar
जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 8
Gymnasium

महत्त्वपूर्ण टूर्नामैंट्स
(Important Tournaments)

  1. ओलम्पिक गेम्स
  2. एशियन गेम्ज
  3. वर्ल्ड कप
  4. आल इंडिया इन्टर यूनिवर्सिटी जिमनास्टिक्स चैम्पियनशिप
  5. नेशनल चैम्पियनशिप
  6. फेडरेशन कप
  7. स्कूल नेशनल गेम्स
  8. चाइना कप।

प्रसिद्ध खिलाड़ी
(Famous Sports Personalities)
(क) भारतीय खिलाड़ी

  1. शामलाल
  2. कु० कृपाली पटेल
  3. डॉ० कल्पना देवनाथ
  4. मोण्टू देवनाथ
  5. अन्जू दुआ
  6. सुनीता शर्मा।

(ख) विदेशी खिलाड़ी

  1. ओलगा कोहबुत
  2. नादिया कोमानेली
  3. नेलोकिम
  4. लुदिमिला जिस्कोवा
  5. डोवलूपी
  6. कीरनजन्ज।
  7. एलीवश सादी।

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
जिमनास्टिक के मुख्य कौशल लिखें।
उत्तर-
जिम्नास्टिक के मुख्य कौशल
(Fundamental Skill of Gymnastics)
पुरुषों के इवेंट्स (Men’s Events)
(A) पैरलल बार (Parrallel Bar)

  1. अप स्टार्ट
  2. फ्रंट अपराइज
  3. शोल्डर स्टैंट
  4. हैंड स्टैंड
  5. हैंड स्टैंड विद 180° टर्न
  6. हैंड स्टैंड ट फ्रंट टर्न ऑन दि शोल्डर
  7. वैकवर्ड रोल
  8. हैंड स्टैंड टू कार्ट व्हील

(B) हॉरीजोंटल बार (Horizontal Bar)

  1. अप स्टार्ट विद ओवर ग्रिप
  2. अप स्टार्ट विद अंडर ग्रिप
  3. शॉर्ट सर्कल
  4. वन लैग सर्कल विद हील फुट
  5. हील फुट
  6. स्विंग विद श्रू वाल्ट।

(C) पोमेल्ड हार्स (Pommaled Horse)

  1. फ्रंट स्पोर्ट पोजीशन
  2. सिंगल लैग हॉफ सर्कल
  3. डबल लैग सर्कल्स
  4. फ्रंट सीजर्स।

(D) रोमन रिग्स (Roman Rings)

  1. अप स्टार्ट
  2. बैक सर्कल टू बैक हैंग
  3. मसल-अप
  4. बैक लीवर
  5. बैक अपराइज
  6. डिस्लोकेशन
  7. बैक अपराइज विद एल पोजीशन।

(E) वॉल्टिंग हार्स (Vaulting Horse)

  1. स्ट्रैडल वॉल्ट
  2. स्कैटवाल्ट
  3. कार्ट व्हील
  4. हैंड स्टैंड टू कार्ट व्हील
  5. हैंड स्प्रिंग।

(F) फर्श पर किए जाने वाले व्यायाम (Floor Exercises)

  1. फॉरवर्ड रोल टु हैंड स्टैंड
  2. बैकवर्ड रोल टु हैंड स्टैंड
  3. फॉरवर्ड रोल टु हैंड स्प्रिंग
  4. हैंड स्प्रिंग टु डाइव रोल
  5. राउंड ऑफ टु फ्लिक-फ्लैक
  6. वन लैग हैंड स्प्रिंग
  7. हैंड स्टैंड टु फारवर्ड रोल विद स्ट्रेट लैग्स।

महिलाओं के इवेंट्स (Women Events)
(A) बैलेसिंग बीम (Balancing Beam)

  1. गैलोप स्टैप विद बैलेंस
  2. सीर्जस जम्प
  3. फारवर्ड रोल
  4. बैकवर्ड रोल
  5. कार्ट व्हील
  6. ब्रिज
  7. बैलेंस
  8. डिस्काउंट

(B) वाल्टिंग हॉर्स (Vaulting Horse)

  1. स्पलिट वॉल्ट
  2. हैंड स्प्रिंग
  3. स्कवैट वॉल्ट।

(C) अन-ईवन बार्स (Un-even Bars)

  1. स्प्रिंग ऑन अपर बार
  2. बैक अप-राइज
  3. वन लैग फारवर्ड सर्कल
  4. वन लैग बैकवर्ड सर्कल
  5. क्रास बैलेंस
  6. हैंड स्प्रिंग।

(D) फर्श के व्यायाम (Floor Exercises)

  1. फारवर्ड रोल टु हैंड स्टैंड
  2. बैकवर्ड रोल टु हैंड स्टैंड
  3. राउंड आफ
  4. स्लोबैक हैंड स्प्रिंग
  5. स्पलिट सिटिंग
  6. स्लो हैंड स्प्रिंग
  7. हैंड स्प्रिंग
  8. हैड स्प्रिंग।

खिलाड़ी
(Players)
टीम में आठ खिलाड़ी होते हैं और सभी खिलाड़ी सभी अभ्यासों में ही भाग लेते हैं। टीम चैम्पियनशिप के लिए छः सर्वोत्तम खिलाड़ियों का प्रदर्शन गिना जाता है।

अंक या प्वाइंट
(Points)

  1. प्रत्येक अभ्यास के लिए 0 से 10 तक अंक लगाए जाते हैं। एक प्वाइंट के आगे 10 भागों में बांटा जाता है।
  2. यदि निर्णायकों का पैनल पांच का हो तो उच्चतम और न्यूनतम अंकों को जोड़ दिया जाता है और मध्य के तीन अंकों की औसत ले ली जाती है।
  3. यदि पैनल तीन निर्णायकों का हो तो तीनों के अंकों को ही औसत के लिए लिया जाता है।

निर्णय
(Decision)

  1. पांच या कम-से-कम तीन निर्णायक प्रत्येक इवेंट के लिए प्रतियोगिता की समाप्ति तक रखे जाते हैं। इसमें से एक मुख्य निर्णायक माना जाता है।
  2. निर्णायक प्रत्येक उपकरण (आप्रेटस) पर पहले खिलाड़ी के कौतुक के आधार पर अंकों बारे शेष खिलाड़ियों के कौतुकों का मूल्यांकन करते हैं। अभ्यास के लिए परामर्श भी कर सकते हैं ताकि सामान्य आधार का निर्णय कर सकें।
  3. इसके पश्चात् वे स्वतन्त्र रूप में निर्णय करते हैं और किसी विशेष बात (जैसे कि दुर्घटना) के अतिरिक्त वे परामर्श नहीं करते।
  4. तीनों निर्णायकों के अंकों की औसत से परिणाम निकाला जाएगा।
  5. यदि दो निर्णायकों के अंकों में मतभेद हो तो मुख्य निर्णायक की अंकों की संख्या भी देखी जाती है।
  6. मुख्य निर्णायक का यह कर्त्तव्य है कि वह अन्य दोनों निर्णायकों की सन्धि करवाए। यदि ऐसा न हो सके तो मुख्य निर्णायक अपना निर्णय सुना सकता है।

जिम्नास्टिक्स (Gymnastics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 4.
जिमनास्टिक्स के साधारण नियम लिखें।
उत्तर-
प्रतियोगिता के सामान्य नियम
(General Rules of.Competition)
1. प्रतियोगिता के समय खिलाड़ियों को बदलने की आज्ञा नहीं होती।

2. इवेंट्स के जज तथा टीमें ठीक समय पर मैदान में पहुंच जानी चाहिएं।

3. यदि किसी खिलाड़ी की दुर्घटना हो जाए या वह बीमार पड़ जाए तो कप्तान उसी समय डॉक्टर को सूचित करें और उसकी पुष्टि प्राप्त करें।

4. उस खिलाड़ी को स्वस्थ होने के लिए और फिर खेल में सम्मिलित होने के लिए आधे घंटे के लिए खेल स्थगित की जा सकती है। यदि इस समय तक भी खिलाड़ी की दशा में सुधार नहीं होता तो उसे खेल से निकाल दिया जाता है और खेल आरम्भ करनी पड़ती है।

5. टीम प्रतियोगिताएं दो भागों में होंगी। पहले अनिवार्य अभ्यासों के लिए तथा फिर ऐच्छिक अभ्यासों के लिए।

6. केवल वही प्रतियोगी फाइनल में भाग ले सकेंगे जिन्होंने टीम प्रतियोगिता के सभी इवेंट्स में भाग लिया होगा।

7. अनिवार्य व्यायामों में खिलाड़ी को दूसरा अवसर व्यायाम करने के लिए मिल सकता है जबकि वह खिलाड़ी यह महसूस करें कि मेरा पहले प्रदर्शन (परफारमेंस) ठीक नहीं है, या वह अपने व्यायामों के कुछ व्यायाम करना भूल गया है लेकिन मैदान व्यायामों में दूसरा अवसर नहीं दिया जाता। दूसरा अवसर प्राप्त करने के लिए पहले व्यायाम समाप्त करने के उपरान्त खिलाड़ी को हाथ खड़े करके निर्णायक को दूसरा अवसर प्राप्त करने के लिए बताना होगा। परन्तु दूसरा अवसर अपनी टीम के सभी खिलाड़ियों के भाग लेने के बाद ही लेना होता है।

8. लम्बी दौड़ों के वाल्ट पर प्रत्येक खिलाड़ी को दो बार प्रयत्न करने का अधिकार है। सर्वोत्तम प्रदर्शन उचित स्वीकार किया जाता है।

9. फ्री स्टैडिंग अभ्यास को दोहराया नहीं जा सकता।

10. लम्बी दौड़ों के अतिरिक्त ऐच्छिक अभ्यास को दोहराया नहीं जाता।

11. प्रबन्धक उपकरणों की व्यवस्था करेंगे। कोई भी टीम अपने निजी उपकरण प्रयोग नहीं कर सकती।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

PSEB 10th Class Welcome Life Guide आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन Textbook Questions and Answers

अभ्यास-I

सही/ग़लत चुनें

  1. बार-बार अभ्यास करने से कौशल तेज़ होता है।
  2. गायन अभ्यास के साथ परिष्कृत किया जा सकता है।
  3. प्रतिभा जन्म से ही किस्मत वाले लोगों को मिलता है।
  4. प्रतिभा को तराशने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. ग़लत,
  4. सही।

अभ्यास-II

सोचो और बताओ

प्रश्न 1.
कौन-सी बात पर करियर का एक अच्छा विकिल्प निर्भर करता है?
उत्तर-
एक अच्छे करियर का चुनाव किसी के झुकाव पर निर्भर करता है कि वह किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा झका है। यदि कोई व्यक्ति ऐसा करियर चुनता है जो उसे पसंद नहीं है, तो वह करियर उसके लिए अच्छा नहीं होगा। यह व्यक्ति के घर की परिस्थितियों और उस समय की आवश्यकता पर भी निर्भर करता है जिसे वह चुनता है।

प्रश्न 2.
करियर काऊंसलर ने कितने प्रकार की काउंसलिंग के बारे में बताया है?
उत्तर-
करियर काऊंसलर ने तीन प्रकार के परामर्श का सुझाव दिया

  1. पर्सनल काऊंसलिंग-जब एक काऊंसलर किसी व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से काऊंसलिंग करता है, तो उसे व्यक्तिगत परामर्श कहा जाता है।
  2. ग्रुप काऊंसलिंग-जब कुछ छात्र या व्यक्ति एक परामर्शदाता के साथ बातचीत करते हैं, तो उसे ग्रुप काऊंसलिंग कहते हैं।
  3. क्लास काऊंसलिंग-जब काऊंसलर पूरी कक्षा से एक साथ बात करता है और उन्हें करियर के विकल्पों के बारे में बताता है, तो इसे क्लास काऊंसलिंग कहा जाता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 3.
नवदीप किस चीज़ को लेकर खुश था?
उत्तर-
नवदीप खुश था कि स्कूल में अब अच्छे कार्य हो रहे हैं क्योंकि छात्रों का करियर के लिए जागरूक किया जा रहा है।

प्रश्न 4.
आजकल करियर के एक से अधिक विकल्पों के साथ चलना क्यों जरूरी है?
उत्तर-
आजकल एक से अधिक करियर विकल्पों के साथ आगे बढ़ना ज़रूरी है, क्योंकि

  1. हो सकता है कि व्यक्ति की आने वाले समय में उस व्यवसाय में रुचि ही खत्म हो जाए।
  2. यह संभव है कि भविष्य में समाज में एक करियर विशेष का महत्त्व ही खत्म हो जाए।
  3. दूसरी नौकरी में हो सकता है, एक व्यक्ति को आत्म संतुष्टि और अधिक पैसा मिले। ऐसी परिस्थितियों में करियर के लिए एक से अधिक विकल्पों को रखना आवश्यक हो जाता है।

प्रश्न 5.
आप अपने स्कूल में किन अच्छी चीजों को देखते हैं?
उत्तर-

  1. हमारा स्कूल छात्रों के बहुमुखी विकास पर ध्यान केंद्रित करता है।
  2. छात्रों को भविष्य के करियर विकल्पों की एक श्रृंखला में परिचित कराया जाता है।
  3. छात्रों को कहा जाता है कि वे केवल एक करियर के बारे में नहीं बल्कि कम-से-कम तीन करियर विकल्पों के बारे में सोचें।
  4. स्कूल के शिक्षक बच्चों के साथ अच्छे संबंध रखते हैं और समय-समय पर उनको सलाह देते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 6.
मनीषा में आपको कौन-सा गुण मिलता है?
उत्तर-
मनीषा में हमने जानने का गुण देखा। वह जानना चाहती थी कि बच्चों में फॉर्म में तीन विकल्प क्यों भरने को कहा गया। यह गुण हर बच्चे में होना चाहिए कि वह कोई काम क्यों करें। इसका लाभ यह है कि बच्चा तर्कसंगत सोच की गुणवत्ता विकसित करता है।

Welcome Life Guide for Class 10 PSEB आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति में कौशल …………. से आता है।
(a) अभ्यास
(b) अध्ययन
(c) भटकना
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(a) अभ्यास।

प्रश्न 2.
अभ्यास से किसी के गायन कौशल को कैसे सुधार सकते हैं?
(a) गाने सीखकर
(b) अभ्यास द्वारा
(c) गाने सुनकर
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) अभ्यास द्वारा।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 3.
किसी के कौशल को कैसे तराशा जा सकता है?
(a) मेहनत के साथ
(b) एकाग्रता के साथ
(c) अभ्यास के साथ
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
मानव स्वभाव …………. होता है।
(a) परिवर्तनशील
(b) स्थिर
(c) समान
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) परिवर्तनशील।

प्रश्न 5.
संकीर्ण मानसिकता वाला व्यक्ति
(a) नकारात्मकता फैलाता है
(b) कभी भी खुश नहीं होता
(c) कभी आलोचना को स्वीकार नहीं करता
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 6.
एक व्यक्ति की सोच
(a) खुली होनी चाहिए
(b) तंग होनी चाहिए
(c) समान होनी चाहिए
(d) असंतुष्ट होनी चाहिए।
उत्तर-
(a) खुली होनी चाहिए।

प्रश्न 7.
इनमें से एक अच्छे व्यक्तित्व की विशेषता क्या है?
(a) मिलनसार
(b) चुनौती स्वीकार करना
(c) सीखने के लिए तैयार रहना
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 8.
करियर के कम-से-कम…………. विकल्प सभी को रखने चाहिएं।
(a) दो
(b) तीन
(c) चार
(d) पांच।
उत्तर-
(b) तीन।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 9.
इनमें से कौन-सी एक प्रकार की काऊंसलिंग है ?
(a) पर्सनल
(b) क्लास
(c) ग्रुप
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 10.
व्यक्ति को अपने ………. अनुसार करियर चुनना चाहिए।
(a) क्षमता
(b) शौक
(c) रुझान
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

(ख) खाली स्थान भरें

  1. वरिंदर कुमार एक शिक्षक के साथ-साथ एक ……………. भी थे।
  2. करियर के ……………. विकल्प सभी को रखने चाहिए।
  3. एक व्यक्ति की ………….. प्रकृति उसकी प्रगति के रास्ते में बाधा बन जाती है।
  4. ……………….. ने समाज को बहुत प्रगति दी है।
  5. ………… प्रकृति का नियम है।

उत्तर-

  1. काऊंसलर,
  2. तीन,
  3. कठोर,
  4. प्रौद्योगिकी
  5. बदलाव।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति हमेशा प्रगति करता है।
  2. प्रत्येक बच्चा कुशल नहीं है।
  3. अभ्यास किसी के कौशल को बढ़ाता है।
  4. किसी व्यक्ति को अपनी आलोचना खुल कर स्वीकार करनी चाहिए।
  5. व्यक्ति को अपनी रुचि के अनुसार करियर चुनना चाहिए।

उत्तर-

  1. ग़लत,
  2. ग़लत,
  3. सही,
  4. सही,
  5. सही।

(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए  —  कॉलम बी
(a) प्रतिभा — (i) रुझान
(b) विदेशी — (ii) गुणवत्ता
(c) दृष्टिकोण — (iii) ब्रिटिश
(d) व्यक्तित्व — (iv) दृष्टिकोण
(e) रुचि — (v) व्यक्तिगत।
उत्तर-
(a) प्रतिभा — (ii) गुणवत्ता
(b) विदेशी — (iii) ब्रिटिश
(c) दृष्टिकोण — (iv) दृष्टिकोण
(d) व्यक्तित्व — (v) व्यक्तिगत
(e) रुचि — (i) रुझान ।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
एक व्यक्ति को क्या विशेष बनाता है?
उत्तर-
एक व्यक्ति में मौजूद कौशल उसे एक व्यक्ति को विशेष बनाते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 2.
किसी व्यक्ति का कौशल कैसे चमकता है?
उत्तर-
एक व्यक्ति का कौशल केवल अभ्यास के साथ चमकता है।

प्रश्न 3.
हम किसी के गायन कौशल में सुधार कैसे कर सकते हैं?
उत्तर-
किसी व्यक्ति के गायन कौशल में निरंतर अभ्यास से ही सुधार किया जा सकता है।

प्रश्न 4.
किसी व्यक्ति की प्रतिभा को बेहतर बनाने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर-
निरंतर अभ्यास, कड़ी मेहनत और एकाग्रता किसी की प्रतिभा को बेहतर बना सकते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 5.
मनुष्य का स्वभाव कैसा होना चाहिए?
उत्तर-
मनुष्य का स्वभाव परिवर्तनशील होना चाहिए।

प्रश्न 6.
संकीर्ण मानसिकता का एक अवगुण दीजिए।
उत्तर-
संकीर्ण मानसिकता वाला व्यक्ति हमेशा नकारात्मकता फैलाता है।

प्रश्न 7.
खुली मानसिकता का क्या फायदा है?
उत्तर-
खुली मानसिकता वाला व्यक्ति हमेशा खुश रहता है और दूसरों को खुश रखता है।

प्रश्न 8.
क्या संकीर्ण मानसिकता वाला व्यक्ति संबंध बनाए रख सकता है?
उत्तर-
नहीं, वह संबंध नहीं बना सकता।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 9.
खुलेपन का क्या अर्थ है?
उत्तर-
खुलापन किसी के स्वभाव की गुणवत्ता है जो हमें खुलकर सोचने में मदद करता है।

प्रश्न 10.
खुले दिमाग वाले व्यक्ति का एक गुण बताओ।
उत्तर-
एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति हमेशा मिलनसार होता है।

प्रश्न 11.
संकीर्ण मानसिकता वाले व्यक्ति का एक दोष बताओ।
उत्तर-
वह हर चीज़ का आलोचक है।

प्रश्न 12.
किसी व्यक्ति का जिद्दी स्वभाव उसके लिए कितना हानिकारक है?
उत्तर-
किसी व्यक्ति का ज़िद्दी स्वभाव उसकी प्रगति के रास्ते में एक बाधा बन जाता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 13.
व्यक्ति को किस तरह की ज़िद्दी करनी चाहिए?
उत्तर-
ईमानदारी, परिश्रम के साथ कार्य करने की जिद्द, नक्ल न करना, रिश्वत न लेना इत्यादि।

प्रश्न 14.
हम समाज के ज़िम्मेदार नागरिक कैसे बन सकते हैं?
उत्तर-
सामाजिक नियमों का पालन करके और समाज से गलत चीज़ों को हटाने से हम ज़िम्मेदार नागरिक बन सकते हैं।

प्रश्न 15.
एक व्यक्ति के पास कितने करियर विकल्प होने चाहिएं?
उत्तर-
उसके पास न्यूनतम तीन करियर विकल्प होने चाहिएं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 16.
करियर का चुनाव करते समय व्यक्ति को क्या ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-
अपनी रुचि और समय की ज़रूरत का ध्यान रखना चाहिए।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हम किसी कार्य में कैसे महारत हासिल कर सकते हैं? एक उदाहरण से समझाएं।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति में कुछ न कुछ कौशल होता है और उस कौशल को चमकाने की आवश्यकता होती है। किसी के कौशल को चमकाने के लिए अभ्यास करने की आवश्यकता है। यदि वह अभ्यास से कम है तो वह कौशल का स्वामी नहीं हो सकता। उदाहरण के लिए, प्रथम श्रेणी के छात्र का लेखन कभी अच्छा नहीं हो सकता, लेकिन निरंतर लिखने के बाद हो सकता है। बच्चों के रूप में, हम साइकिल चलाना नहीं जानते थे लेकिन अभ्यास के साथ हमने साइकिल चलाना सीख लिया। इस तरह, अभ्यास से एक काम में महारत हासिल कर सकते हैं।

प्रश्न 2.
किसी व्यक्ति को अपने दिमाग को खुला क्यों रखना चाहिए?
उत्तर-
एक व्यक्ति को अपना दिमाग खुला रखना चाहिए। जैसा कि कहा जाता है कि बहता पानी अच्छा दिखता है लेकिन स्थिर पानी गंदा हो जाता है। उसी तरह संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति जीवन में प्रगति नहीं कर सकता। वह न तो खुद को खुश करता है और न ही दूसरों को खुश होने देता है। वह रिश्तों को ठीक से संभाल भी नहीं सकता। वह कभी भी अपनी आलोचना को स्वीकार नहीं करता, जो वास्तव में उसे स्वीकार करनी चाहिए। अपनी सोच को खुला रखना चाहिए और आलोचना को सकारात्मक रूप से स्वीकार करना चाहिए।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 3.
खुले दिमाग के होने के क्या फायदे हैं?
उत्तर-

  1. एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति हमेशा परिवर्तन को स्वीकार करता है।
  2. वह अपनी आलोचना को सकारात्मक रूप से स्वीकार करता है और खुद में बदलाव लाता है।
  3. वह सामाजिक प्रगति में योगदान देता है और अपनी प्रगति भी करता है।
  4. वह खुद को खुश रखता है और दूसरों को भी खुश रखता है।
  5. वह रिश्तों को बेहतर तरीके से बनाए रखता है।

प्रश्न 4.
हमारे जीवन में तकनीक की क्या भूमिका है?
उत्तर-
आजकल नई तकनीक हमारे सामने आ रही है और हम इसे सकारात्मक तरीके से अपना रहे हैं। तकनीक के साथ जीवन लगातार आगे बढ़ रहा है। पुरानी पीढ़ी उतनी तेज़ नहीं है जितनी आज के युवा आधुनिक तकनीक के साथ इतनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। हम अपना हर काम आसानी से कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, कपड़े हाथ से धोए जाते थे लेकिन अब मशीन उन्हें आसानी से धो देती है। इस तरह हम कह सकते हैं कि प्रौद्योगिकी हमारे जीवन में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है और हमारे काम को काफी आसान बनाती है।

प्रश्न 5.
व्यक्ति ज़िद्दी या लचीला होना चाहिए, अपने उत्तर के पक्ष में तर्क दें।
उत्तर-
व्यक्ति को ज़िद्दी नहीं बल्कि स्वभाव से लचीला होना चाहिए। उसकी ज़िद्द उसकी प्रगति के रास्ते में एक बाधा बन जाती है जैसे कि लड़के और लड़कियों को समान नहीं मानना। लोग भेदभाव करना शुरू कर देते हैं और इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है। ऐसी ज़िद्द को बदलना चाहिए। परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन करके व्यक्ति परिवार की प्रगति, समाज की प्रगति और राष्ट्रीय प्रगति में योगदान दे सकता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 6.
ज़िम्मेदार नागरिक के कर्त्तव्य क्या हैं?
उत्तर-

  1. उसे परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को बदलना चाहिए।
  2. उसे सामाजिक बुराइयों को स्वीकार नहीं करना चाहिए बल्कि उन्हें समाप्त करना चाहिए।
  3. उसे सामाजिक सीमाओं के भीतर रहना चाहिए।
  4. उसे दूसरों को सामाजिक नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
  5. उसे सामाजिक परिवर्तन लाने और स्वयं को भी बदलने की कोशिश करनी चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के गुण और अवगुण दें।
उत्तर-
गुण-

  1. सबसे पहले उसे कुछ नया सीखने के लिए तैयार होना चाहिए ताकि परिवर्तित परिस्थितियों के अनुसार खुद को बदल सके।
  2. उसे मिलनसार होना चाहिए और दूसरों के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखना चाहिए।
  3. उसे हर चुनौती को स्वीकार करना चाहिए क्योंकि यदि वह नहीं स्वीकारता तो वह स्थिर हो जाएगा और व्यक्तिगत प्रगति नहीं कर पाएगा।
  4. उसे सभी सामाजिक नियमों का पालन करना चाहिए और दूसरों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

अवगुण-

  1. एक ज़िद्दी व्यक्ति हमेशा अपनी ज़िम्मेदारियों से दूर भागता है जो उसके जीवन के लिए हानिकारक हो सकता है।
  2. एक ज़िद्दी व्यक्ति कभी किसी की सलाह नहीं लेता है। वह हमेशा अपने मन की करता है जिसका उसे नुकसान होता है।
  3. वह अचानक क्रोधित हो जाता है जो खतरनाक हो सकता है।
  4. वह बहुत जल्दी अपना आपा खो देता है।
  5. कई बार वह नियमों का पालन नहीं करता बल्कि उन्हें तोड़ता है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन

प्रश्न 2.
निम्नलिखित चित्रों का अवलोकन करें और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें।
PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 1 आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन 1
(क) चित्र (1) में क्या दिखाया गया है?
(ख) आप चित्र (2) में क्या देखते हैं?
(ग) दोनों तस्वीरों से हमें क्या पता चलता है?
उत्तर-
(क) चित्र (1) हमें संकीर्ण मानसिकता वाले व्यक्ति के बारे में बताता है। वह हमेशा दुखी रहता है। वह न केवल खुद को चोट पहुंचाता है बल्कि अपने आस-पास के लोगों को भी चोट पहुँचाता है। वह अपने रिश्तों को भी बनाए नहीं रख सकता।
(ख) दूसरी तस्वीर में व्यक्ति खुली सोच और स्वभाव का है जो हमेशा बदलाव को स्वीकार करता है। वह खुद भी खुश रहता है और दूसरों को भी खुश रखता है। वह अपने रिश्तों को अच्छी तरह से बनाए रखता है।
(ग) दोनों चित्रों को देखने के बाद, हम कह सकते हैं कि एक व्यक्ति को ज़िद्दी नहीं होना चाहिए। बल्कि खुले दिमाग और परिप्रेक्ष्य का होना चाहिए। यह उनके जीवन को खुशहाल बनाता है। इसके विपरीत, ज़िद्दी व्यक्ति हर बार उदास रहता है जो सही नहीं है। इसलिए हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हमें चुनौती स्वीकार करनी चाहिए और खुश रहना चाहिए।

आत्म-जागरुकता तथा आत्म-अनुशासन PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • प्रत्येक व्यक्ति में कुछ प्रतिभाएं होती हैं और यह प्रतिभा किसी भी प्रकार की हो सकती है।
  • निश्चित रूप से प्रतिभा को चमकाने की ज़रूरत है जो एक व्यक्ति के पास है और इसे बार-बार अभ्यास के माध्यम से पॉलिश किया जा सकता है।
  • किसी भी काम के निपुन्न बनने के लिए बार-बार अभ्यास करना होगा। अभ्यास के बिना कोई भी कार्य उचित तरीके से नहीं किया जा सकता। इसलिए अभ्यास किसी भी प्रतिभा को चमकाने का एक साधन है।
  • मनुष्य और उसका स्वभाव, दोनों ही परिवर्तनशील हैं। जिस तरह से प्रकृति में परिवर्तन आता है, उसी तरह व्यक्ति का स्वभाव भी समय के साथ बदलता है।
  • व्यक्ति को अपनी सोच संकीर्ण नहीं बल्कि खुली रखनी चाहिए और प्रत्येक परिवर्तन का स्वागत करना चाहिए।
  • संकीर्ण सोच वाला व्यक्ति न तो खुद खुश रहता है न ही दूसरों को खुश रहने देता है। संकीर्ण रवैये वाला व्यक्ति अपने रिश्तों को अच्छी तरह से संभाल नहीं सकता है। वह अपनी आलोचना नहीं सुन सकता। एक व्यक्ति को अपनी आलोचना सुनने के भीतर एक गुणवत्ता विकसित करनी चाहिए और अपने जीवन के उस पहलू को बदलना होगा जिसके लिए उसकी आलोचना की जा रही है।
  • एक खुले दिमाग वाला व्यक्ति हर बदलाव को खुले दिल से स्वीकार करता है और जीवन में प्रगति करता है। खुले दिमाग वाला व्यक्ति स्वयं को परिस्थिति के अनुसार ढालता है तो प्रगति करता है। यदि हम ने आधुनिक तकनीक को अपनाया है, तो यह हमारी खुली मानसिकता के कारण है।
  • एक व्यक्ति को कठोर रवैये का नहीं होना चाहिए। इसके बजाय वह लचीली प्रकृति का होना चाहिए। इसके साथ वह अपने सामने आते प्रत्येक हालात को स्वीकार कर लेता है।
  • प्रत्येक व्यक्ति को एक जिम्मेवार बनने की कोशिश करनी चाहिए। यदि हमारे आस-पास कुछ गलत हो रहा है, तो हमें इसे सुधारने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हमारी आने वाली पीढ़ियों को यह समस्या न हो।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण होता है व्यक्ति का अपना रुझान देखना । व्यक्ति का जिस क्षेत्र में रुझान होता है। उसको उसी क्षेत्र में ही काम करना चाहिए जिसमें वह इच्छुक है अन्यथा वह किसी भी कार्य को ठीक से नहीं कर पाएगा। रुझानों को देखने के बाद, उसे उस क्षेत्र में कड़ी मेहनत करनी चाहिए। इस तरह वह आने वाले करियर के बारे में जागरूक हो जाएगा।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

PSEB 10th Class Agriculture Guide प्लांट क्लीनिक Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
पी० ए० यू० में प्लांट क्लीनिक की स्थापना कब की गई ?
उत्तर-
1993 में।

प्रश्न 2.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में कुल कितने प्लांट क्लीनिक स्थापित हैं ?
उत्तर-
18 कृषि विज्ञान केन्द्र तथा क्षेत्रीय खोज केन्द्र अबोहर, बठिंडा, गुरदासपुर।

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किए जाने वाले किन्हीं उपकरणों के नाम लिखिए।
उत्तर-
कम्प्यूटर, माइक्रोस्कोप।

प्रश्न 4.
फसलों पर छिड़काव की जाने वाली दवाइयों की उचित मात्रा पता करने के लिए किस सिद्धान्त को आधार बनाया जाता है ?
उत्तर-
आर्थिक हानि की सीमा।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 5.
स्लाइडों से किस उपकरण की सहायता से चित्र देखे जा सकते हैं ?
उत्तर-
प्रोजैक्टर द्वारा।

प्रश्न 6.
छोटे आकार की निशानियों की पहचान किस उपकरण से की जाती है ?
उत्तर-
माईक्रोस्कोप द्वारा।

प्रश्न 7.
बीमार पत्तों के नमूनों को संभालकर रखे जाने वाले दो रसायनों के नाम लिखिए।
उत्तर-
फार्मालीन, एसीटिक अम्ल।

प्रश्न 8.
पी० ए० यू० प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता क्या है ?
उत्तर-
Plantclinic @ pau.edu

प्रश्न 9.
पी० ए० यू० प्लांट क्लीनिक से किस टैलीफोन नम्बर पर सम्पर्क किया जा सकता है ?
उत्तर-
फोन नं० 0161-240-1960 जिसकी एक्सटेंशन 417 है। मोबाइल नं० 9463048181.

प्रश्न 10.
पी० ए० यू० के प्लांट क्लीनिक के पास गांव-गांव जाकर तकनीकी जानकारी देने के लिए कौन-सी वैन है ?
उत्तर-
निरीक्षण तथा प्रदर्शनी के लिए मोबाइल बैन (Mobile diagnosis cum exhibition van)।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों का एक -दो वाक्यों में उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक क्या है ?
उत्तर-
यह वह कमरा अथवा ट्रेनिंग सैंटर है जहां बीमार पौधों की विभिन्न बीमारियों के बारे में अध्ययन किया जाता है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक शिक्षा का लाभ बताएं।
उत्तर-
इस सिद्धान्त के प्रयोग से ज़मींदारों को उनकी फसलों की कमियों तथा बीमारियों का सही इलाज मिलना आरम्भ हो गया है। इस तरह शिक्षार्थी तो पौधों को देखकर सभी कुछ समझते ही हैं, किसानों को आर्थिक लाभ भी हो रहा है।

प्रश्न 3.
मनुष्यों के अस्पतालों से प्लांट क्लीनिक कैसे भिन्न हैं ?
उत्तर-
मानवीय अस्पतालों में मनुष्य को होने वाले बीमारियों का पता लगाकर उनका इलाज किया जाता है जबकि पौधों के अस्पताल में बीमार पौधों के इलाज के अतिरिक्त बीमार पौधों के बारे में जांच शिक्षा तथा ट्रेनिंग भी करवाई जाती है।

प्रश्न 4.
प्लांट क्लीनिक में कौन-कौन से विषयों का अध्ययन किया जाता है ?
उत्तर-
इनमें पौधों पर बीमारी का हमला, तत्त्वों की कमी, कीड़े का हमला तथा अन्य कारणों का भी अध्ययन किया जाता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 5.
प्लांट क्लीनिक में आवश्यक उपकरणों की सूची बनाएं।
उत्तर-
प्लांट क्लीनिक में आवश्यक साजो-सामान इस तरह है-
माइक्रोस्कोप, मैग्नीफाइंग लैंस, रसायन, इंकुबेटर, कैंची, चाकू, सूखे-गीले सैम्पल सम्भालने का साजो-सामान, कम्प्यूटर, फोटो कैमरा तथा प्रोजैक्टर, किताबें आदि।

प्रश्न 6.
सूक्ष्मदर्शी यन्त्र का प्लांट क्लीनिक में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
पौधे की चीरफाड़ करके बीमारी के लक्षण देखने के लिए माइक्रोस्कोप का प्रयोग किया जाता है। सही रंगों, छोटी निशानियों आदि की पहचान भी इसी से की जाती है।

प्रश्न 7.
इक्नोमिक फैशहोल्ड से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पौधों को लगी बीमारियां अथवा कीड़ों आदि से हुए बचाव के लिए दवाई की उचित मात्रा ढूंढकर छिड़काव करना चाहिए। जब फसल को हानि पहुंचा रहे कीड़ों की संख्या एक खास स्तर पर आ जाए तब ही दवाई स्प्रे करनी चाहिए ताकि फसलों को लाभ भी हो। इस विधि को धैशहोल्ड का नाम दिया गया है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 8.
प्लांट क्लीनिक में कम्प्यूटर का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कई तरह से सैम्पल न तो गीले तथा न ही सूखे सम्भाले जा सकते हैं। ऐसे नमूनों को स्कैन करके कम्प्यूटर में सम्भाल लिया जाता है, ताकि आवश्यकता पड़ने पर इनका प्रयोग किया जा सके।

प्रश्न 9.
उष्मामित्र किस तरह पौधों की बीमारी ढूंढ़ने में मदद करता है ?
उत्तर-
उल्ली आदि को मीडिया के ऊपर रख कर इनकुबेटर (उष्मामित्र) में उचित तापमान तथा नमी पर रख कर उल्ली को उगने का पूरा वातावरण दिया जाता है तथा इसकी पहचान करके जीवाणु की पहचान की जाती है।

प्रश्न 10.
पौधों के नमूनों को शीशे के बर्तनों में अधिक समय रखने के लिए कौन-से रसायनों का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
इस काम के लिए फार्मालीन, एल्कोहल आदि का प्रयोग किया जाता है।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच-छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक के महत्त्व के बारे में एक नोट लिखिए।
अथवा
प्लांट क्लीनिक के क्या-क्या लाभ हैं?
उत्तर-

  • प्लांट क्लीनिक में पौधों में भूमिगत खाद्य तत्त्वों की कमी से पैदा हुए लक्षणों की जांच करके पौधों की बीमारियां तथा हानि पहुंचाने वाले कीड़ों की पहचान की जाती है।
  • खेतों से लाए बीमार पौधों आदि की बीमारी के लक्षणों की पहचान करके मौके पर ही इन बीमारियों की रोकथाम के लिए इलाज बताये जाते हैं।
  • प्लांट क्लीनिकों में व्यक्तियों को शनाख्ती चिन्हों की पहचान करने की ट्रेनिंग दी जाती है।
  • आवश्यक खनिज तथा रसायनों आदि की आवश्यक सही मात्रा निकालने के बारे में बताया जाता है ताकि इनका सही प्रयोग करके अतिरिक्त खर्चे से बचा जा सके।
  • प्लांट क्लीनिकों में फसलों के मुख्य कीड़ों के लिए इक्नामिक के धैशहोल्ड बारे में भी जानकारी दी जाती है। इस तरह प्रयोग की जाने वाली कीड़ेमार दवाइयां तथा पौधों में तत्त्वों की कमी का सही तरह पता लग जाता है तथा इन दवाइयों का प्रयोग सही मात्रा में किया जा सकता है।
  • विभिन्न स्प्रे पम्पों तथा अन्य उपकरणों के प्रयोग बारे भी जानकारी दी जाती है।
  • विद्यार्थियों को बीमार पौधे लाकर दिखाये जाते हैं तथा इलाज की विधि बारे बताया जाता है।
  • प्लांट क्लीनिकों में पौधों का अध्ययन करने के लिए आवश्यक उपकरणों, साजो-सामान, दवाइयां, पौधों के नमूने, पम्पों, खादों, बीज तथा अन्य सम्बन्धित, चीज़ों अथवा उनके नमूने अथवा उनकी तस्वीरें रखी जाती हैं।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक में कौन-कौन सी सुविधाएं उपलब्ध हैं ?
उत्तर-

  • प्लांट क्लीनिक पर किसान भाइयों को तकनीकी जानकारी दी जाती है।
  • फ़सलों के रोगों की पहचान, पहचान चिन, कीड़ों द्वारा फ़सलों को पहुंची हानि आदि के बारे में पता लगाया जाता है।
  • मिट्टी तथा पानी जांच की सुविधा भी उपलब्ध है।
  • टैलीफ़ोन, व्हट्स एप तथा ई-मेल द्वारा किसान अपनी समस्या को हल करवा सकते हैं।
  • इस अस्पताल के पास पौधों के निरीक्षण तथा प्रदर्शनी के लिए चलती फिरती वैन है जिस द्वारा गांव-गांव जाकर कृषि की तकनीकी जानकारी फिल्में दिखा कर दी जाती है।
  • क्लीनिक में कृषि के ज्ञान को प्रत्येक घर तक पहुंचाने के लिए पी० ए० यू० दूत तथा केमास (KMAS) सेवा शुरू की गई है। किसान अपना ई-मेल तथा मोबाइल नम्बर रजिस्ट्र करवा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक की पृष्ठभूमि बताते हुए उसकी आवश्यकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कृषि सम्बन्धी उच्च स्तरीय कोरों में पिछले कई वर्षों में शहरी विद्यार्थियों का दखल काफ़ी बढ़ा है। इन्हें कृषि के बारे में प्रैक्टिकल जानकारी बडी कम होती है तथा जब यह शहरी विद्यार्थी उच्च शिक्षा प्राप्त करके खेतों में कार्य करने के लिए जाते हैं तो इन्हें काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

पहला प्लांट क्लीनिक, पौधा रोग विभाग, पी० ए० यू० में 1978 में स्थापित किया गया था तथा बाद में पी० ए० यू० की तरफ से सैंट्रल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में 1993 में शुरू किया गया। भिन्न-भिन्न जिलों में 18 कृषि विज्ञान केन्द्रों में यह प्लांट क्लीनिक चल रहे हैं। इन क्लीनिकों द्वारा पढ़ाई का विद्यार्थी को काफ़ी लाभ मिल रहा है। इस सिद्धान्त के परिणामस्वरूप ज़मींदारों को उनकी फसलों की कमियों तथा बीमारियों का सही इलाज मिलना आरम्भ हो गया है। रोगों तथा कीटों के हमलों की मौके पर ही पहचान करके इलाज तथा रोकथाम के बारे में बताया जाता है। कृषि विकास से जुड़े व्यक्तियों को पहचान चिन्हों की पहचान का प्रशिक्षण दिया जाता है। भिन्न-भिन्न फ़सलों के मुख्य कीड़ों के लिए आर्थिक हानि की सीमा के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 4.
मोबाइल डाईग्नोस्टिक कम एगज़ीबिशन वैन का विस्तारपूर्वक वर्णन करें ?
उत्तर-
प्लांट क्लीनिकों को गांव-गांव पहुंचाने के लिए प्लांट क्लीनिकों के पास पौधों का निरीक्षण करने हेतु मोबाइल वैन उपलब्ध है। इसको मोबाइल डाईगनोस्टिक कम एगजीबिशन वैन कहा जाता है। इस वैन में प्लांट क्लीनिक से संबंधित साजो-सामान होता है तथा गांव में किसानों को खेती तकनीकों की जानकारी देने के लिए फिल्में भी दिखाई जाती हैं। मौके पर पौधे को आई समस्याओं का निरीक्षण करके कृषि विशेषज्ञों द्वारा इलाज भी बताया जाता है। इस प्रकार किसान को काफ़ी लाभ मिल रहा है।

प्रश्न 5.
फ़ोटो कैमरे तथा स्लाइड प्रोजैक्टर प्लांट क्लीनिक में किस तरह मददगार होते हैं ?
उत्तर-
कैमरे की सहायता से रोगी पौधे की फोटो खींच ली जाती है। इस प्रकार तैयार फ़ोटो तथा स्लाइडों को प्लांट क्लीनिक में संभाल कर रखा जाता है। फ़ोटो तथा स्लाइडों से कोई भी विद्यार्थी तथा वैज्ञानिक रोगी पौधों की पहचान सरलता से कर सकता है। इस तरह स्लाइडों को देखने के लिए प्रोजैक्टर की आवश्यकता पड़ती है। यह फ़ोटो तथा स्लाइडों को बड़े आकार में दिखा सकता है। फ़ोटो को बड़े-बड़े आकार में बनाकर क्लीनिक में लगा लिया जाता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

Agriculture Guide for Class 10 PSEB प्लांट क्लीनिक Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रोगी पौधों के नमूने संभाल कर रखने के लिए रसायन का नाम –
(क) फार्मालीन
(ख) ग्लूकोस
(ग) सोडियम ब्रोमाइड
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(क) फार्मालीन

प्रश्न 2.
पी० ए० यू० में प्लांट क्लीनिक की स्थापना कब की गई?
(क) 2010
(ख) 1993
(ग) 1980
(घ) 1955.
उत्तर-
(ख) 1993

प्रश्न 3.
उल्लियों के जीवाणु ढूंढ़ने के लिए कौन-सा उपकरण प्रयोग किया जाता है ?
(क) सूक्ष्मदर्शी
(ख) इनकुबेटर (उष्मा मित्र)
(ग) प्रोजैक्टर
(घ) सभी।
उत्तर-
(ख) इनकुबेटर (उष्मा मित्र)

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 4.
पंजाब के कितने कृषि विज्ञान केन्द्रों में प्लांट क्लीनिक चल रहे हैं ?
(क) 7
(ख) 27
(ग) 18
(घ) 22.
उत्तर-
(ग) 18

प्रश्न 5.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता क्या है ?
(क) www.gadvasu.in
(ख) www.pddb.in
(ग) [email protected]
(घ) www.pau.edu
उत्तर-
(ग) [email protected]

प्रश्न 6.
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट क्लीनिक का लैंडलाइन टेलीफोन नम्बर क्या है ?
(क) 0161-2401960 एक्सटेंशन 417
(ख) 94630-48181
(ग) [email protected]
(घ) www.pau.edu.
उत्तर-
(क) 0161-2401960 एक्सटेंशन 417

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

II. ठीक/गलत बताएँ

1. पी० ए० यू० के द्वारा वर्ष 1993 में सैंटरल प्लांट क्लीनिक लुधियाना में स्थापित किया गया।
2. प्लांट क्लीनिक में कई तरह के उपकरण तथा साजो-समान की आवश्यकता होती
3. प्लांट क्लीनिक में रसायनों की आवश्यकता नहीं होती।
4. पंजाब एग्रीकल्चर यूनीवर्सिटी प्लांट क्लीनिक का ई-मेल पता plantclinic@ par.edu है।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. गलत
  4. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. स्लाइडों पर चित्र ………………… द्वारा देखे जाते हैं।
2. बीमार पौधों के नमूनों को संभाल कर रखने वाला रसायन ……………… है।
3. कम्प्यूटर, ……………… आदि भी प्लांट क्लीनिक का महत्त्वपूर्ण भाग है।
4. पौधे की चीर फाड़ के लिए चाकू, ………….. आदि का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर-

  1. प्रोजैक्टर
  2. फार्मलीन
  3. स्कैनर
  4. कैंची।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कोई एक कारण बताओ जिस कारण पौधे आवश्यक पैदावार देने से अमसर्थ हो जाते हैं ?
उत्तर-
खाद्य तत्त्वों की कमी, बीमारी का हमला, कीड़ों का हमला।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 2.
पौधों की चीर फाड़ करने के बाद बीमारी के चिन्ह देखने के लिए कौनसा उपकरण प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
माइक्रोस्कोप।

प्रश्न 3.
पौधे की चीर फाड़ के लिए क्या प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर-
चाकू, कैंची आदि।

प्रश्न 4.
उल्लियों के जीवाणु ढूंढ़ने में कौन-सा उपकरण प्रयोग होता है ?
उत्तर-
इनकुबेटर।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 5.
प्लांट क्लीनिक में प्रयोग किये जाने वाले किसी एक रसायन का नाम लिखो।
उत्तर-
फार्मालीन।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्लांट क्लीनिक में चाकू आदि की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर-
चाकू आदि का प्रयोग पौधे को माइक्रोस्कोप के नीचे देखने के लिए, काट कर प्रयोग करने के लिए होता है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक में मैग्नीफाईंग लेन्ज का प्रयोग क्यों होता है ?
उत्तर-
इसका प्रयोग पौधों के छोटे भाग तथा कीड़े तथा अन्य जन्तुओं की पहचान के लिए होता है।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक में कृषि के ज्ञान को प्रत्येक घर तक पहुँचाने के लिए कौन-सी सेवा शुरू की गई है ?
उत्तर-
पी० ए० यू० दूत सेवा तथा केमास (KMAS) सेवा शुरू की गई है। किसान भाई अपना ई-मेल तथा फोन रजिस्ट्रर करवा कर इस सेवा का लाभ उठा सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इक्नामिक बैशहोल्ड का विस्तार से वर्णन करो।
उत्तर-
पौधों की बीमारियां तथा फसलीय कीटों को समाप्त करने वाली दवाइयों की सही मात्रा ढूंढ़ कर पौधों पर इसका प्रयोग किया जाना चाहिए। इस तरह पौधों को अधिक-से-अधिक लाभ मिल सकेगा तथा साथ ही खर्च भी कम-से-कम आएगा। कीडेमार दवाइयों के अन्धाधुन्ध तथा अनावश्यक प्रयोग से कई प्रकार की समस्याएं पैदा हो सकती हैं। जैसे कीड़ों का दवाई के लिए आदि हो जाना, मरने के स्थान पर इनका आदी हो जाना, मित्र कीड़ों का समाप्त होना, जो कीड़े पहले फसलों की हानि नहीं करते थे उनके द्वारा अब नुकसान करना आरम्भ कर देना तथा समूचे वातावरण का गंदा होना खासतौर पर वर्णनीय है।

किसी भी कीडे का फसल पर प्रत्येक वर्ष एक जैसा हमला नहीं होता। यह हमला किसी वर्ष अधिक तथा किसी वर्ष कम होता है। इसके लिए दवाइयों का प्रयोग सोचसमझकर करना चाहिए।

दवाई का प्रयोग तब ही करें जब फसल को नुकसान पहुंचा रहे कीड़ों की संख्या एक खास स्तर पर आ जाए। इस तरह दवाई स्प्रे करने से फसलों को फायदा होगा तथा इस तरह अनावश्यक स्प्रे से भी बचा जा सकेगा।

इस विधि को आर्थिक आधार (इक्नामिक धैशहोल्ड) का नाम दिया जाता है। कीड़ों के लिए आर्थिक आधार कीड़ों की वहीं संख्या है जिस पर हमें फसल पर दवाई का छिड़काव कर देना चाहिए। कीड़ों की संख्या इस नियत हुई संख्या से बढ़ने नहीं देनी चाहिए तथा साथ ही फसल का नुकसान भी न हो तथा किसानों को भी दवाई के अनावश्यक प्रयोग से वित्तीय घाटा न हो।

कई कीड़ों के लिए उनकी संख्या नहीं अपितु आक्रमण की निशानियों को आर्थिक आधार मान लिया जाता है। जैसे धान के गडुएं की संख्या की बजाए धान के गडुएं के हमले से सभी छिद्रों की गिनती कर ली जाती है।

प्रश्न 2.
प्लांट क्लीनिक के भविष्य के बारे में एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
आने वाला समय मुकाबले वाला है इसलिए किसानों को अपनी उपज को बीमारी तथा खाद्य कमियां नहीं होने देनी चाहिएं ताकि अधिक मुनाफा कमाया जा सके। अब कृषि से सम्बन्धित व्यापार प्रान्त अथवा देश में ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होने लगा है। किसानों ने उपज को विदेशों में निर्यात करना होता है।

उपज बढ़िया किस्म की हो तथा मुनाफा अधिक मिल सके इसके लिए प्लांट क्लीनिक की सहायता ली जा सकती है। इनकी मदद से फसल में खाद्य तत्त्वों की कमियों का पता लगाकर इनको दूर किया जा सकता है। बीमारी तथा कीड़ों के लिए उचित दवाई की मात्रा का पता लगाया जा सकता है जिससे अनावश्यक तथा अन्धाधुन्ध दवाई के प्रयोग से बचा जा सकता है तथा दवाई के खर्च को घटाया जा सकता है। इस तरह इक्नामिक क्लीनिकों का भविष्य में बढ़िया उपज प्रदान करने के लिए बहुत योगदान होगा।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 11 प्लांट क्लीनिक

प्रश्न 3.
प्लांट क्लीनिक क्या है ? प्लांट क्लीनिक में कम्प्यूटर किस काम आता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 2 चट्टानें Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 2 चट्टानें

PSEB 11th Class Geography Guide चट्टानें Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो-चार शब्दों में दें-

प्रश्न (क )
चट्टानों से औज़ार कौन-से युग में बनाए जाते थे ?
उत्तर-
पाषाण युग (Stone Age) में।

प्रश्न (ख)
मुसामों के आधार पर चट्टानों की किस्मों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. मुसामदार चट्टानें (Porous Rocks)
  2. गैर मुसामदार चट्टानें (Impervious Rocks)

प्रश्न (ग)
पृथ्वी की सबसे ऊपरीय पेपड़ी को और क्या नाम दिया जाता है ?
उत्तर-
थलमण्डल (Lithosphere) ।

प्रश्न (घ)
पैट्रोलोजी को किसका विज्ञान कहा जाता है ?
उत्तर-
चट्टानों का विज्ञान।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ङ)
रवे किस प्रकार की चट्टानों का अंश हो सकते हैं ?
उत्तर-
अग्नि चट्टानों (Igneous Rocks)।

प्रश्न (च)
माफिक (Mafic) कौन-से दो तत्त्वों का सुमेल है ?
उत्तर-
मैग्नीशियम और लोहे के सुमेल से।

प्रश्न (छ)
अवशेष (पथराट) (Fossils) सर्वाधिक किस किस्म की चट्टानों में मिलते हैं ?
उत्तर-
तहदार तलछटी चट्टानों में।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ज)
रूपांतरित चट्टानों में कौन-से खनिज पदार्थ अधिक मात्रा में मिलते हैं ?
उत्तर-
नेइस और क्वार्टज़ाइट।

प्रश्न (झ)
चूना पत्थर परिवर्तित होकर कौन-सी चट्टान बनता है ?
उत्तर-
संगमरमर।

प्रश्न (ञ)
शेल, भारत में सर्वाधिक कहाँ-से प्राप्त होता है ?
उत्तर-
स्पीति (हिमाचल प्रदेश) से।

2. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दो-तीन वाक्यों में दें-

प्रश्न (क)
पंजाब में शिवालिक हिमालय को कौन-से हिस्सों में बाँटा जाता है ?
उत्तर-

  1. निम्न शिवालिक
  2. मध्य शिवालिक
  3. उच्च शिवालिक।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ख)
चट्टानों की कौन-सी मुख्य किस्में (प्रकार) हैं ?
उत्तर-

  1. अग्नि चट्टानें
  2. तलछटी चट्टानें
  3. परिवर्तित चट्टानें।

प्रश्न (ग)
पृथ्वी के चापड़ निर्माण में कौन-से मुख्य तत्त्व हैं ?
उत्तर-
ऑक्सीजन और सिलीकॉन।

प्रश्न (घ)
खनिज पदार्थ क्या होते हैं ?
उत्तर-
खनिज एक प्राकृतिक रूप में मिलने वाला अजैव तत्त्व अथवा यौगिक है, जिसकी निश्चित रासायनिक रचना होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ङ)
पृथ्वी की सतह का सबसे अधिक हिस्सा कौन-सी चट्टानों का है ?
उत्तर-
धरती की सतह का 75% हिस्सा तलछटी चट्टानों से बना हुआ है।

प्रश्न (च)
थल मण्डल का सबसे अधिक भाग कौन-सी चट्टानों का है ?
उत्तर-
तलछटी चट्टानों का।

प्रश्न (छ)
परिवर्तित चट्टानों की निर्माण-क्रिया कहाँ होती है ?
उत्तर-
धरातल से 12-16 कि०मी० नीचे।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ज)
कोयला रूपांतरित होकर क्या-क्या रूप धारण करता है ?
उत्तर-
पीट, लिग्नाइट, बिटुमिनस और ग्रेफाइट।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 60 से 80 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
अग्नि चट्टानों की कोई तीन विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  1. 1. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार होती हैं।
  2. ये लावे के जमने के बाद ठोस होने से बनती हैं।
  3. ये ठोस और स्थूल अवस्था में मिलती हैं।

प्रश्न (ख)
चट्टान की परिभाषा क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी की पेपड़ी का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक और ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं, जो ग्रेनाइट के समान कठोर और चिकनी मिट्टी के समान कोमल हो सकती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ग)
खुम्भ जैसी चट्टानें कौन-सी हैं ? एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
कई बार लावा धरती की निचली सतह और स्थायी अवस्था में जमकर ठोस हो जाता है, तब इसका आधार चौड़ा और शिखर खुम्भ जैसा बन जाता है, जिसे लैकोलिथ कहते हैं। उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में ये चट्टानें मिलती हैं।

प्रश्न (घ)
संगमरमर और ग्रेफाइट अधिकतर राजस्थान में क्यों मिलते हैं ?
उत्तर-
संगमरमर और ग्रेफाइट ताप परिवर्तित चट्टानें हैं। चूने का पत्थर संगमरमर में बदल जाता है और कोयला ग्रेफाइट में बदल जाता है। ये चट्टानें राजस्थान में बड़े पैमाने पर मौजूद हैं।

प्रश्न (ङ)
कोई तीन चट्टानें बताएँ, जो परिवर्तित होकर कुछ और बनती हैं ?
उत्तर-
मूल चट्टान — परिवर्तित चट्टानें
शेल (Shale) — स्लेट (Slate)
ग्रेनाइट (Granite) — नेइस (Gneiss)
चूने का पत्थर (Limestone) — संगमरमर (Marble)

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (च)
ऊर्जा के साधन खनिज कौन-सी चट्टानों से मिलते हैं और क्यों ?
उत्तर-
कोयला, पैट्रोलियम ऊर्जा खनिज हैं। ये तहदार चट्टानों में मिलते हैं। चट्टानों की परतों में जीव-जन्तुओं के अवशेष, दबाव के कारण कोयला और पैट्रोलियम में बदल जाते हैं।

प्रश्न (छ)
तहदार चट्टानों की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
तहदार चट्टानें अलग-अलग प्रकार के मलबे के नीचे बैठ जाने (settle down) के कारण बनती हैं। अपरदन से प्राप्त तलछट के जमाव से बनी चट्टानों को तलछटी चट्टानें कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ज)
चट्टानों का विज्ञान क्या है ? एक नोट लिखें।
उत्तर-
पैट्रोलोजी (Petrology) को चट्टानों का विज्ञान कहते हैं। चट्टानों की तहों में जीव-जन्तु और वनस्पति के अवशेष चट्टानों की उत्पत्ति और समय के बारे में बताते हैं। (Rocks are the pages of the earth, history and fossils are the writing on it.)

4. प्रश्नों के उत्तर 150 से 250 शब्दों में दें-

प्रश्न (क)
चट्टानों से क्या अभिप्राय है ? इनका वर्गीकरण करें और किसी एक प्रकार की व्याख्या करें।
उत्तर-
चट्टानें (Rocks)—पृथ्वी की पेपड़ी का निर्माण करने वाले सभी प्राकृतिक और ठोस पदार्थों को चट्टान कहते हैं। (‘Any material out of which the crust is made is called a Rock.’) चट्टान ग्रेनाइट के समान कठोर अथवा चिकनी मिट्टी के समान कोमल हो सकती है। यह स्लेट की तरह गैरमुसामदार (Imporous) और चूने की पत्थर की तरह मुसामदार (Porous) भी हो सकती है।

एक अन्य परिभाषा के अनुसार, “Any non-metallic natural substance found in the crust of the earth is called a Rock, whether it is hard as granite or soft as clay.”

पृथ्वी का थलमण्डल चट्टानों का बना हुआ है। इन चट्टानों की रचना कई खनिज पदार्थों के मिलने से होती है। (Rocks are aggregate of Minerals.) इनमें क्वार्टज़ खनिज सबसे अधिक मात्रा में मिलता है। एक ही खनिज से बनी हुई चट्टानें भी मिलती हैं, जैसे चूने का पत्थर और रेत का पत्थर। इन खनिज पदार्थों की अलग-अलग मात्रा के कारण चट्टान की कोमलता या कठोरता, रंग, रूप, गुण और शक्ति अलग-अलग होती है। इस प्रकार रंग (Colour), रचना (Structure), कणों (Texture) के आधार पर अलग-अलग प्रकार की चट्टानें मिलती हैं परन्तु सबसे अच्छा वर्गीकरण चट्टानों की रचना के आधार पर ही किया जा सकता है।

चट्टानों का वर्गीकरण (Types of Rocks)-चट्टानें कई प्रकार की होती हैं। रचना के आधार पर चट्टानें निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-

  1. अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)
  2. तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
  3. परिवर्तित चट्टानें (Metamorphic Rocks)।

अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)—अग्नि चट्टानें वे चट्टानें हैं, जो पृथ्वी के तरल लावे के ठंडा और ठोस होने के कारण बनती हैं। (Igneous Rocks have been formed by cooling of molten matter of the earth.) ये चट्टानें पृथ्वी पर सबसे पहले बनीं, इसीलिए इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं। इग्नियस शब्द लातीनी शब्द इग्निस (Ignis) से बना है, जिसका अर्थ अग्नि (Fire) है। पृथ्वी के भीतरी भाग में पिघला हुआ पदार्थ मैग्मा (Magma) है, जिसका औसत तापमान 595° C है। यह गर्म लावा वायुमण्डल के सम्पर्क में आकर ठंडा होकर जम जाता है। इस तरह मैग्मा और लावे के ठंडे होकर कठोर होने से अग्नि चट्टानें बनती हैं।

अग्नि चट्टानों के प्रकार (Types of Igneous Rocks)—मुख्य रूप से ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 1

(i) बाहरी चट्टानें (Extrusive Rocks)-जब लावा पृथ्वी के धरातल से बाहर आकर ठंडा हो जाता है, तब बाहरी चट्टानें (Extrusive Rocks) अथवा धरातलीय चट्टानें बनती हैं।

(ii) भीतरी चट्टानें (Intrusive Rocks)—जब लावा पृथ्वी के तल के नीचे ही जम जाता है, तब भीतरी चट्टानें बनती हैं।

इस प्रकार लावे के ठोस होने की क्रिया और स्थान के आधार पर ये चट्टानें तीन प्रकार की हैं-

(i) ज्वालामुखी चट्टानें (Volcanic Rocks)—ये चट्टानें ज्वालामुखी के “ज्वाला प्रवाह” (Lava Flow) के कारण बनती हैं, इसलिए इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहते हैं। ये पिघला हुआ पदार्थ वायुमंडल के संपर्क से ठंडा हो जाता है। धरती की सतह पर लावा जल्दी ठंडा हो जाता है और पूर्ण रूप से रवे (Crystals) नहीं बनते। ये चट्टानें शीशे (Glass) की तरह होती हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 2
उदाहरण-(i) बसालट, गैब्बरो (Gabbro) इसके अच्छे उदाहरण हैं। (ii) भारत में पश्चिमी-दक्षिणी पठार (दक्षिपी ट्रैप) और संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में कोलंबिया का
पठार।

(ii) मध्यवर्ती चट्टानें (Intermediate Rocks)—ये भीतरी चट्टानें धरातल से नीचे कुछ गहराई पर छिद्रों और दरारों में लावा जम जाने के कारण बनती हैं। बाहरी तथा भीतरी चट्टानों के बीच में स्थित होने के कारण इन्हें मध्यवर्ती चट्टानें भी कहते हैं। धरती के समानांतर (Horizontal) बनने वाली चट्टानों को सिल और धरती के ऊपर लंब (Vertical) आकार में बनने वाली चट्टानों को डायक (Dyke) कहते हैं। ये भीतरी चट्टानें हैं। इनमें छोटे-छोटे रवे बनते हैं।

उदाहरण-

  • भारत के मध्य प्रदेश में कोरबा (Corba) और बंगाल तथा बिहार के रानीगंज और झरिया के कोयला क्षेत्रों में सिल और डायक मिलते हैं।
  • डोलेराइट (Dolerite) चट्टान इसका उदाहरण है।

(iii) गहरी अग्नि चट्टानें (Plutonic Rocks)-ये चट्टानें अधिक गहराई पर बनती हैं। जब लावा बाहर आने में असमर्थ होता है और लावा शुरू में ही जम जाता है। अधिक गहराई पर लावा धीरे-धीरे ठंडा और कठोर होता है और बड़े-बड़े मोटे रवे बनते हैं। इन चट्टानों का नाम ‘प्लूटो’ (Pluto) के नाम पर रखा गया है, जिसका अर्थ है-पाताल देवता। धरती के कटाव के बाद ये चट्टानें ऊपर नज़र आती हैं। कई प्रकार के गुंबद (Domes) और बैथोलिथ (Batholith) बनते हैं।

उदाहरण-

  • (i) ग्रेनाइट (Granite) नाम की कठोर चट्टान इसका विशेष उदाहरण है।
    (ii) भारत में कांची का पठार और सिंहभूम (बिहार) में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

तेज़ाबी और खारदार चट्टानें (Acid and Basic Rocks)-संरचना की दृष्टि से जिन चट्टानों में सिलिका की मात्रा 66% से अधिक होती है, उन्हें तेज़ाबी चट्टानें (Acid Rocks) और जिनमें सिलिका की मात्रा कम होती है, उन्हें खारदार चट्टानें (Basic Rocks) कहते हैं।

अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics of Igneous Rocks)

  1. ये चट्टानें ढेरों में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में कण और परतें नहीं होतीं, बल्कि रवे (Crystals) होते हैं। ये रवे चपटे तल वाले होते हैं।
  3. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार (Crystalline and granular) होती हैं।
  4. ये ठोस और स्थूल (Compact and Massive) अवस्था में मिलती हैं।
  5. ये ज्वालामुखी क्षेत्रों में मिलती हैं और लावे के जमकर ठोस होने पर बनती हैं।
  6. इनमें जीव-जंतुओं के पिंजर (Fossils) नहीं होते।
  7. इन चट्टानों में बहुत-से जोड़ (Joints) और दरारें (Faults) पड़ जाती हैं।
  8. इनका अपरदन (Erosion) आसानी से नहीं होता। ये कठोर होती हैं।

अग्नि चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Igneous Rocks)-

  1. इन चट्टानों से अनेक प्रकार के खनिज प्राप्त होते हैं।
  2. ग्रेनाइट से मूर्तियाँ, मकानों के लिए पत्थर आदि बनाए जाते हैं।
  3. बसालट, डोलेसाइट पत्थर सड़क बनाने के काम आते हैं।
  4. पीयूमिस पत्थर धार चढ़ाने के काम आता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ख)
अंतर बताएँ-
1. भीतरी और बाहरीय चट्टानें
2. चट्टान व खनिज
3. ताप व प्रादेशिक परिवर्तन।
उत्तर-

(i) अंदरूनी चट्टानें- (ii) बाहरीय चट्टानें
1. जब मैग्मा धरती के भीतरी भाग में ही जमकर ठोस रूप धारण कर लेता है तो उसे भीतरी अग्नि चट्टानें अग्नि चट्टानें कहते हैं। 1. जब लावा धरातल पर ठंडा होकर ठोस रूप धारण कर लेता है, तो उसे बाहरी कहते हैं।
2. धीरे-धीरे ठंडा होने के कारण बड़े-बड़े रवे (Crystals) बनते हैं। 2. लावा के जल्दी ठंडे हो जाने के कारण रवे अच्छी तरह से नहीं बनते।
3. इनकी बनावट मोटी दानेदार होती है। 3. इनकी बनावट शीशे के समान होती है।
4. इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें भी कहते हैं। 4. इन्हें पाताली या गहरी चट्टानें भी कहते हैं।
5. बसालट इसका प्रमुख उदाहरण है। 5. ग्रेनाइट इसका प्रमुख उदाहरण है।

 

चट्टान- खनिज-
1. चट्टानों की रासायनिक बनावट निश्चित नहीं होती है। 1. इनकी रासायनिक बनावट निश्चित होती है।
2. चट्टानों की रचना कई खनिज पदार्थों के योग से होती है। 2. खनिज एक प्राकृतिक रूप से मिलने वाला अजैव तत्त्व है।
3. चट्टानों के भौतिक गुण अलग-अलग होते हैं। 3. हर एक खनिज के भौतिक गुण निश्चित होते हैं।

 

ताप परिवर्तन प्रादेशिक परिवर्तन
1. इस क्रिया में लावे के स्पर्श से चट्टानों में परिवर्तन होता है। 1. इस क्रिया में ऊपरी तहों के दबाव से चट्टानों में परिवर्तन होता है।
2. यह क्रिया स्थानीय रूप में होती है। 2. यह क्रिया बड़े पैमाने पर होती है।
3. इस क्रिया से चूने का पत्थर संगमरमर बन जाता है। 3. इस क्रिया से ग्रेनाइट, नेइस चट्टान में परिवर्तित हो जाता है।

 

प्रश्न (ग)
चट्टान चक्र क्या है ? उदाहरणों व चित्रों से स्पष्ट करें।
उत्तर-
एक प्रकार की चट्टानों का दूसरी प्रकार की चट्टानों में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को चट्टानी चक्र कहते हैं। यह पृथ्वी के भीतरी ताप और बाहरी शक्तियों के अपरदन के कारण होता है। अग्नि चट्टानों के अपरदन के कारण तलछट प्राप्त होते हैं, जिनसे तहदार चट्टानें बनती हैं। ये चट्टानें ताप, दबाव और रासायनिक प्रक्रिया के कारण रूपांतरित चट्टानें बन जाती हैं। ये पिघल कर फिर से अग्नि चट्टानें बन जाती हैं। अपरदन के कारण ये फिर तलछटी चट्टानें बन जाती हैं। इसे चट्टानी चक्र (Rock Cycle) कहते हैं। यह चक्र लगातार चलता रहता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 3

प्रश्न (घ)
तहदार और परिवर्तित चट्टानों के गुणों के आधार पर ब्यान कीजिए कि मनुष्य के लिए कौन-सी प्रकार अधिक लाभदायक है ?
उत्तर-
1. इन चट्टानों से कई प्रकार के प्राकृतिक साधन मिलते हैं, जैसे-कोयला, तेल, गैस आदि सभी पदार्थ वनस्पति और जीव-जंतुओं के अवशेषों से प्राप्त होते हैं। बारीक रेत, गाद, रेत पत्थर, शैल आदि भवन-निर्माण के काम आते हैं। बाढ़ के मैदान खेती के लिए लाभदायक होते हैं। झीलों से जिप्सम पत्थर मिलता है। कांगलोमरेट शिवालिक की पहाड़ियों और तलचर में मिलते हैं। चूने का पत्थर, चॉक, डोलोमाइट सीमेंट उद्योग में काम आते हैं। सटैलरानाईट, सटैलकटालीट चट्टानों से नमक प्राप्त होता है।

2. परिवर्तित चट्टानें- परिवर्तित चट्टानों से सोना, चांदी, कीमती पत्थर, जवाहरात आदि मिलते हैं। कठोर प्रकार के पत्थर ग्रेनाइट, नेइस, सिस्ट उपयोगी होते हैं। संगमरमर, स्लेट, ग्रेफाइट कीमती चट्टानें हैं। क्वार्टज़ाइट चट्टान राजस्थान, बिहार, मध्यप्रदेश में मिलती है। नेइस को भवनों के निर्माण के लिए तथा क्वार्टज़ाइट को शीशा बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रेफाइट से पेंसिल का सिक्का बनता है। कई प्रसिद्ध इमारतें जैसे-ताजमहल, आगरे का किला, लाल किला आदि संगमरमर से बनी हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (ङ)
निक्षेप विधि से बनी तहदार चट्टानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)-अपरदन द्वारा प्राप्त तलछट (Sediments) के जमाव से बनी चट्टानों को तलछटी चट्टानें कहते हैं। (Sedimentary Rocks are those rocks which have been formed by deposition of Sediments.)
तलछट में छोटे और बड़े आकार के कण होते हैं। इन कणों के इकट्ठा होकर बैठ जाने से (settle down) तलछटी चट्टानों का निर्माण होता है।

तलछट के साधन (Sources of Sediments)-पृथ्वी के धरातल पर अपरदन से प्राप्त पदार्थों को जल, हवा और हिम नदी जमा करते रहते हैं।
तलछट जमा होने के स्थान (Places of Deposition)–यह तलछट समुद्रों, झीलों, नदियों, डेल्टाओं आदि क्षेत्रों में जमा होती रहती है।
रचना (Formation)इन चट्टानों की रचना कई स्तरों पर पूरी होती है।

1. तलछट का निक्षेप (Deposition) – ये पदार्थ एक निश्चित क्रम के अनुसार जमा होते रहते हैं। पहले बड़े कण और उसके बाद छोटे कण (During the deposition, the material is sorted out according to the size.)

2. परतों का निर्माण (Layers)-लगातार जमाव के कारण परतों का निर्माण होता है। पदार्थ एक परत के ऊपर दूसरी परत के रूप में जमा होते रहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 4

3. ठोस होना (Solidification)–ऊपरी परतों के भार के कारण नीचे की परतें संगठित होने लगती हैं।
सिलिका, कैलसाइट, चिकनी मिट्टी आदि संयोजक (Cementing agent) चट्टानों को ठोस रूप दे देते हैं। तलछटी चटटानों की किस्में (Types of Sedimentary Rocks)-तलछटी चट्टानें तीन प्रकार से बनती हैं –

1. यांत्रिक क्रिया द्वारा (Machanically Formed Rocks)
2. जैविक पदार्थों द्वारा (Organically Formed Rocks)
3. रासायनिक तत्त्वों द्वारा (Chemically Formed Rocks)

तलछटी चट्टानों के निर्माण के साधनों और जमाव के स्थान के अनुसार नीचे लिखी किस्में हैं-

1. यांत्रिक क्रिया द्वारा बनी चट्टानें (Mechanically Formed Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण कटाव की शक्तियों के द्वारा एक स्थान पर एकत्र होने से होता है : जैसे नदी और हिम नदी आदि। इन चट्टानों के पदार्थ यांत्रिक रूप में प्राप्त होते हैं। ये चट्टानी टुकड़े आपस में जुड़कर कठोर चट्टान का रूप धारण कर लेते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 5

(क) दरियाई चट्टानें (Riverine Rocks)–जब तलछट का जमाव नदी बेसिन (Basin); बाढ़ क्षेत्र और डेल्टा में होता है तब ये चट्टानें बनती हैं; जैसे शेल (Shale), चिकनी मिट्टी (Clay), रेत का पत्थर (Sand Stone)। इन चट्टानों में रेत के कणों और चिकनी मिट्टी के कणों की बहुतायत होती है। ये चट्टानें दो प्रकार की होती हैं-

  • रेत निर्मित चट्टानें (Arenaceous Rocks)–जिनमें रेत, बजरी और क्वार्टज़ अधिक मात्रा में हों। बजरी तथा गोल पत्थरों के आपसी जमाव से कांगलोमरेट चट्टान बनती है।
  • मिट्टी निर्मित चट्टानें (Argillaceous Rocks)-जिनमें चिकनी मिट्टी (clay) के कण अधिक मात्रा में हों। शेल (Shale) और सिल्ट (Silt) से मिट्टी के बर्तन और ईंटें बनती हैं।

(ख) झील परतदार चट्टानें (Laccustrine Rocks)-जब तलछट का जमाव झीलों में होता रहता है, तब झीलों में परतदार चट्टानें बनती हैं। झील के भर जाने या सूख जाने पर तल के ऊपर उठ जाने से ये चट्टानें उभर आती हैं; जैसे नमक और जिप्सम (Gypsum) आदि।

(ग) वायु निक्षेप चट्टानें (Aeolian Rocks)-हवा के द्वारा जमा की गई रेत और मिट्टी जम कर कठोर चट्टानों का रूप धारण कर लेती है। इन चट्टानों में कमज़ोर परतें होती हैं। जिस प्रकार मध्य एशिया के गोबी (Gobi) मरुस्थल से हवा द्वारा लाए गए बारीक कणों से चीन का लोइस (Loess) पठार बन गया है।

(घ) हिम निक्षेप चट्टानें (Glacial Rocks)-जब हिमनदी (Glaciar) पिघलती है तो अपने साथ लाए हुए मलबे को अपने किनारों और सिरों पर जमा कर देती है। मलबे के इन ढेरों को हिम-चट्टानें कहते हैं।

2. जैविक चट्टानें (Organically Formed Rocks)-इन चट्टानों का निर्माण जीव-जंतुओं और वनस्पति के मलबे के इकट्ठे होने से होता है। ये चट्टानें मुख्य रूप से दो प्रकार की होती हैं –

(i) कार्बन प्रधान चटटाने
(ii) चूना प्रधान चट्टानें

(i) कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks)-भूमि की उथल-पुथल के कारण जीव-जंतु और वनस्पति पृथ्वी के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव और गर्मी के कारण वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है, जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), एंथरेसाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण इसी प्रकार होता है।

(ii) चूना प्रधान चट्टानें (Calcareous Rocks)–समुद्र के जीव-जंतु समुद्र के पानी से चूना प्राप्त करके अपने पिंजर (Skeleton) का निर्माण करते हैं। जब ये जीव मर जाते हैं तो ये पिंजर परतों के रूप में इकट्ठे होकर चट्टान बन जाते हैं। इन चट्टानों में चूने की मात्रा अधिक होने के कारण ये चट्टानें चूने का पत्थर (Lime Stone), चॉक (Chalk), डोलोमाइट (Dolomite) आदि में बदल जाती हैं।

3. रासायनिक चट्टानें (Chemically Formed Rocks)—पानी में कई रासायनिक तत्त्व मिले होते हैं। जब पानी भाप बनकर उड़ जाता है, तो रासायनिक पदार्थ परतों के रूप में जमते रहते हैं और कठोर चट्टानें बन जाती हैं, जैसे-पहाड़ी नमक (Rock Salt), जिप्सम (Gypsum), शोरा (Potash) । इन चट्टानों के निर्माण में काफी समय लग जाता है।

तलछटी चट्टानों की विशेषताएं (Characteristics of Sedimentary Rocks)-

  1. इन चट्टानों में अलगअलग परतें होती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) भी कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानांतर मिलती हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जंतुओं और वनस्पति के अवशेष (Fossils) मिलते हैं।
  4. पानी में निर्माण होने के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम होती हैं और इनका अपरदन जल्दी होता है।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग पर फैली होती हैं, परन्तु पृथ्वी की गहराई में इनका विस्तार केवल 5% है। (The Sedimentary rocks are important for extent, not for depth.)
  7. इनका घनत्व कम होता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न (च)
स्थान और आकृति के आधार पर मध्यवर्ती अग्नि चट्टानों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
मध्यवर्ती अग्नि चट्टानों की आकृति और स्थान के आधार पर इन्हें अनेक उपभागों में बाँटा जा सकता है-

1. लैकोलिथ (Laccoliths) जो लावा धरती की निचली सतह और स्थायी अवस्था में जमकर ठंडा हो जाता है, जैसे—दो परतदार चट्टानों के बीच जमा लावा-इन्हें लैकोलिथ कहा जाता है। इनका आधार चौड़ा, एक डबलरोटी के एक टुकड़े (Loaf) अथवा खंभ (Mushroom) की तरह शिखर गुंबद जैसा होता है। ये चट्टानें उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी हिस्से में बहुत आम मिलती हैं।

2. बैथोलिथ (Batholiths)-बैथोलिथ बहुत ही विशाल भीतरी अग्नि चट्टानें हैं। इनकी लम्बाई 100 किलोमीटर से भी अधिक हो सकती है। इनकी मोटाई (Thickness) अधिक होने के कारण आधार को देखना संभव नहीं। जब लावा धरती की तहों के नीचे टेढ़ा और अव्यवस्थित ढंग से जमता है तो ऐसी चट्टानों की उत्पत्ति होती है। इसका आकार बेढंगा और गुंबदनुमा हो सकता है। इस प्रकार से बनी चट्टानों को बैथोलिथ कहा जाता है। इन चट्टानों को हम तभी देख सकते हैं, अगर इस प्रकार की अग्नि चट्टानों पर खुरचने की क्रिया हुई हो। इनकी चौड़ाई 50 से 80 किलोमीटर तक हो सकती है। पर्वतों के आधार इन चट्टानों के ही होते हैं। ग्रेनाइट की विशाल चट्टानें बैथोलिथ चट्टानों का ही रूप हैं। चेन्नई में छोटी-छोटी पहाड़ियाँ बैथोलिथ का ही हिस्सा हैं, जो कि खुरचन क्रिया से ही बनी हैं और अधिकतर गुंबद जैसी (Dome shaped) हैं।

3. लैपोलिथ (Lapolith)-जब लावा तश्तरीनुमा आकार में धरती की सतह के नीचे जम जाता है, तब इसे लैपोलिथ कहते हैं। वास्तव में लैपोलिथ बैथोलिथ का ही एक अलग रूप है। अमेरिका में इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं। कनाडा में ड्रलथ गैब्बरो (Duluth Gabbro) जो कि 2 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैला है, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

4. फैकोलिथ (Phacoliths)-धरती की सतह के नीचे लावा कई लहरों के रूप में जम जाता है। इस प्रकार की आकृति की चट्टान को फैकोलिथ कहा जाता है।

5. स्टॉक (Stock)-जब बैथोलिधं चट्टान छोटे आकार का गुंबदनुमा या गोल आकृति की होती है तो उसे स्टॉक कहते हैं। एक स्टॉक का क्षेत्रफल (area) 100 वर्ग किलोमीटर से कम होता है।

6. सिल (Sills)-जब गर्म लावा चट्टानों की तहों में ठंडा होकर जम जाता है, तो इसे सिल कहा जाता है। इनकी लम्बाई कई सौ मीटर तक हो सकती है। पर अगर मोटाई कुछ मीटर तक ही हो या कम हो, तो इसको शीट (Sheet) कहा जाता है।

7. डायक (Dyke/Dike)-डायक. लम्बाकार रूप में (Vertical) जमा हुआ लावा होता है। इनकी लम्बाई कुछ मीटरों से किलोमीटरों तक और चौड़ाई कुछ सैंटीमीटरों से कई मीटरों तक हो सकती है। भारत में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश राज्यों में इसके उदाहरण देखने को मिलते हैं।

8. ज्वालामुखीय ग्रीवा (Volcanic Neck)-धरती का गर्म लावा एक नली से बाहर आता है। जब ज्वालामुखी __ फटता है, तो विस्फोट के बाद जो लावा रास्ते में ही जम जाता है, उसे ज्वालामुखी Neck कहा जाता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 6

Geography Guide for Class 11 PSEB चट्टानें Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
पृथ्वी की बाहरी परत को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
थलमंडल।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 2.
Igneous शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
अग्नि।

प्रश्न 3.
किन चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें कहते हैं ?
उत्तर-
अग्नि चट्टानों।

प्रश्न 4.
ज्वालामुखी चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
बसालट।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 5.
गहरी अग्नि चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
ग्रेनाइट।

प्रश्न 6.
झील परतदार चट्टानों का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
जिप्सम।

प्रश्न 7.
कार्बन प्रधान चट्टान का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
कोयला।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 8.
चूना प्रधान चट्टान का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
डोलोमाइट।

प्रश्न 9.
परिवर्तन चट्टानों के दो कारण बताएँ।
उत्तर-
ताप और दबाव।

प्रश्न 10.
संगमरमर की मूल चट्टान का नाम बताएँ।
उत्तर-
चूने का पत्थर।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

बहुविकल्पी प्रश्न

नोट-सही उत्तर चुनकर लिखें –

प्रश्न 1.
किन चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें कहते हैं ?
(क) अग्नि
(ख) तलछटी
(ग) परिवर्तित
(घ) परतदार।
उत्तर-
अग्नि।

प्रश्न 2.
कार्बन प्रधान कौन-सी चट्टान है ?
(क) कोयला
(ख) चूना
(ग) संगमरमर
(घ) जिप्सम।
उत्तर-
कोयला।

प्रश्न 3.
संगमरमर किस वर्ग की चट्टान है ?
(क) अग्नि
(ख) तलछटी
(ग) परिवर्तित
(घ) अवसादी।
उत्तर-
परिवर्तित।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 4.
भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले पदार्थ को कहते हैं-
(क) चट्टान
(ख) खनिज
(ग) धातु
(घ) लावा।
उत्तर-
चट्टान।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित में से कौन-सी परिवर्तित चट्टान है ?
(क) ग्रेनाइट
(ख) ग्रेफाइट
(ग) ग्रिट
(घ) गैब्बरो।
उत्तर-
ग्रेफाइट।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions) –

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
थलमंडल से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
थलमंडल से तात्पर्य है-चट्टानी मंडल (Rock Sphere)। थलमंडल का निर्माण चट्टानों से होता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 2.
धरती के समूचे पुंज का निर्माण करने वाले चार तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
लोहा, ऑक्सीजन, सिलीकॉन और मैग्नेशियम।

प्रश्न 3.
Igneous शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
Igneous शब्द लातीनी भाषा के Ignis शब्द से बना है, जिसका अर्थ ज्वाला या आग होता है।

प्रश्न 4.
अग्नि चट्टानों के दो प्रमुख प्रकार बताएँ।
उत्तर-

  1. बाहरी अग्नि चट्टानें
  2. भीतरी अग्नि चट्टानें।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 5.
मैग्मा से क्या भाव है ?
उत्तर-
भू-गर्भ में गर्म, चिपचिपा और तरल पदार्थ मैग्मा कहलाता है।

प्रश्न 6.
भारत में ग्रेनाइट कहाँ मिलता है ?
उत्तर-
दक्षिणी पठार, छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर और राजस्थान में ग्रेनाइट चट्टानें मिलती हैं।

प्रश्न 7.
सिल और डायक में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
जब गर्म लावा चट्टानों की तहों में ठंडा होकर जम जाता है, तो उसे सिल कहते हैं। जब लावा लंबाकार अथवा दीवार के रूप में जमता है, तो उसे डायक कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 8.
दक्षिणी ट्रैप से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर-
भारतीय प्रायद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग में विशाल क्षेत्र बसालट से बना है, इसे दक्षिणी ट्रैप कहते हैं।

प्रश्न 9.
तहदार चट्टानों का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
धरती की 75% सतह पर तहदार चट्टानें मिलती हैं, जबकि ये चट्टानें समूची धरती के स्थलमंडल पर केवल 5% भाग ही हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. ये चट्टानें ढेरों में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में कण और परतें नहीं होतीं, बल्कि रवे (Crystals) होते हैं। ये रवे चपटे तल वाले होते हैं।
  3. ये चट्टानें रवेदार और दानेदार (Crystalline and Granular) होती हैं।
  4. ये ठोस और स्थूल (Compact and Massive) अवस्था में मिलती हैं।
  5. ये ज्वालामुखी क्षेत्रों में मिलती हैं और लावा के जम कर ठोस होने से बनती हैं।
  6. इनमें जीव-जन्तुओं के पिंजर (Fossils) नहीं होते।
  7. इन चट्टानों में बहुत-से जोड़ (Joints) और दरारें (Faults) पड़ जाती हैं।
  8. इनका अपरदन (Erosion) आसानी से नहीं होता क्योंकि ये कठोर होती हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 2.
तलछटी चट्टानों की विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
तलछटी चट्टानों की विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. इन चट्टानों में अलग-अलग परतें मिलती हैं, इसलिए इन्हें परतदार चट्टानें (Stratified Rocks) कहते हैं। ये परतें एक-दूसरे के समानांतर होती हैं।
  2. इनका निर्माण छोटे-छोटे कणों (Particles) से होता है।
  3. इनमें जीव-जन्तुओं और वनस्पति के अवशेष (Fossils) मिलते हैं।
  4. पानी में निर्माण होने के कारण इनमें लहरों, धाराओं और कीचड़ के चिह्न मिलते हैं।
  5. ये चट्टानें मुलायम होती हैं और इनका अपरदन जल्दी होता है।
  6. ये पृथ्वी के धरातल के 75% भाग में फैली हुई हैं, परन्तु ये चट्टानें पृथ्वी के स्थलमंडल का केवल 5% भाग ही हैं।
    (The Sedimentary Rocks are important for extent, not for depth.)
  7. इनका घनत्व कम होता है।

प्रश्न 3.
अग्नि चट्टानों और तलछटी चट्टानों का महत्त्व बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)

  1. इन चट्टानों से अनेक प्रकार के खनिज प्राप्त होते हैं।
  2. ग्रेनाइट से मूर्तियाँ और मकानों के लिए पत्थर बनाए जाते हैं।
  3. बसालट, डोलेराइट पत्थर सड़क बनाने के काम आते हैं।
  4. पीयूमिस पत्थर धार चढ़ाने के काम आता है।

तलछटी चट्टानों का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance)-परतदार चट्टानें मानव जीवन के लिए बहुत कीमती होती हैं-

  • कोयला और पैट्रोलियम ऊर्जा के प्रमुख साधन हैं।
  • इन चट्टानों से सोना, चाँदी और तांबा आदि खनिज पदार्थ मिलते हैं।
  • चिकनी मिट्टी से ईंटें, चूने से सीमेंट और रेत से काँच बनता है।
  • चूने का पत्थर इमारतें बनाने में प्रयोग होता है।
  • कई प्रकार के रासायनिक पदार्थ बनाए जाते हैं।
  • तलछटी चट्टानों से बने मैदान कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण होते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 4.
बसालट और ग्रेनाइट की रचना किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
1. बसालट (Basalt)-यह एक बाहरी अग्नि चट्टान है। सतह के ऊपर आने वाला लावा ठंडा होकर बसालट चट्टान को जन्म देता है। इस चट्टान का रंग काला अथवा गहरा भूरा होता है। लावे के जल्दी ठंडा होने के कारण रवे (Crystals) नहीं बनते। इनकी रचना शीशे (Glass) के समान होती है। इनका प्रयोग मकान बनाने के लिए होता है। भारत में काली मिट्टी के क्षेत्र का निर्माण बसालट के टूटने-फूटने के कारण हुआ है।

2. ग्रेनाइट (Granite)-यह एक अग्नि चट्टान है। यह धरती के भीतरी भाग में गहराई पर बनती है। यह एक गहरी अग्नि चट्टान (Plutonc Rock) है। इसमें लावा धीरे-धीरे ठंडा होता है, इसलिए बड़े-बड़े रवे (Crystals) बनते हैं। इसमें सिलिका (Silica) की मात्रा अधिक होती है। इसका रंग गहरा भूरा, लाल और स्लेटी भी होता है। यह कठोर पत्थर होता है और इसका प्रयोग मकान बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
संगमरमर की रचना कैसे होती है ?
उत्तर-
संगमरमर (Marble)-संगमरमर एक परिवर्तित चट्टान (Metamorphic Rock) है। जब गर्म लावा चूने के पत्थर को स्पर्श करता है तो इसका रूप बदल जाता है और यह एक शुद्ध सफेद रंग का बन जाता है। अशुद्धियों के कारण इसका रंग लाल, हरा और काला भी होता है। यह मुलायम होता है और मकान बनाने के काम आता है। आगरा का ताजमहल संगमरमर का बना हुआ है।

प्रश्न 6.
कोयले की रचना किस प्रकार होती है ?
उत्तर-
कोयला (Coal)-भूमि की उथल-पुथल के कारण जीव-जन्तु और वनस्पति पृथ्वी के नीचे दब जाते हैं। ऊपरी तलछट के दबाव और गर्मी के कारण वनस्पति कोयले के रूप में बदल जाती है, जिसमें कार्बन की प्रधानता होती है। इन चट्टानों को कार्बन प्रधान चट्टानें (Carbonaceous Rocks) कहते हैं, जैसे-पीट (Peat), लिग्नाइट (Lignite), एंथ्रासाइट (Anthracite) कोयले का निर्माण भी इसी प्रकार होता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 7.
अग्नि चट्टानों को प्रारम्भिक चट्टानें क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
आरम्भ में पृथ्वी में मूल पदार्थ मैग्मा (Magma) पिघला हुआ और गर्म अवस्था में था। यह मैग्मा वायु मण्डल के सम्पर्क में आने के कारण ठंडा होकर जम कर ठोस हो गया। इस प्रकार से पहले धरती की पिघली दशा से ठोस रूप में आने पर अग्नि चट्टानों का निर्माण हुआ। सबसे पहले बनने के कारण इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) कहते हैं।

प्रश्न 8.
तलछटी चट्टानों में जीव-जन्तुओं के अवशेष (Fossils) सुरक्षित रहते हैं, जबकि अग्नि चट्टानों में नहीं, क्यों ?
उत्तर-
जीव-जन्तुओं और वनस्पति के बचे-खुचे भागों से अवशेष प्राप्त होते हैं। तलछटी चट्टानें परतों के रूप में मिलती हैं। इन परतों के बीच ये अवशेष सुरक्षित रहते हैं। ये अवशेष उन चट्टानों की उत्पत्ति के समय के बारे में जानकारी देते हैं।
अग्नि चट्टानों में परतें नहीं मिलती हैं। ये गर्म पिघलते हुए मैग्मा से बनती हैं। इनके स्पर्श से अवशेष झुलस जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
अग्नि चट्टानों और तलछटी चट्टानों में अन्तर बताएँ।
उत्तर-
अग्नि चट्टानें (Igneous Rocks)-

  1. रूप-ये चट्टानें ढेरों (Bulks) में मिलती हैं।
  2. कण-इन चट्टानों में चपटे तल वाले रवे (Crystals) मिलते हैं।
  3. रचना-ये चट्टानें लावा (Lava) के ठंडे और ठोस होने से बनती हैं।
  4. कठोरता-ये चट्टानें कठोर होती हैं।
  5. जीव-अवशेष- इनमें जीव-अवशेष नहीं मिलते हैं।
  6. निर्माण-काल-सबसे पहले बनने के कारण इन्हें प्रारम्भिक चट्टानें (Primary Rocks) भी कहते हैं।
  7. कटाव-इन चट्टानों पर टूट-फूट का प्रभाव कम होता है।
  8. जोड़ (Joints)-इनमें जोड़ मिलते हैं।
  9. मुसाम-ये चट्टानें अप्रवेशी हैं।

तलछटी चट्टानें (Sedimentary Rocks)-

  1. ये चट्टानें परतों (Layers) में मिलती हैं।
  2. इन चट्टानों में अलग-अलग आकार के गोल कण (Particles) मिलते हैं।
  3. ये चट्टानें तलछट (Sediments) की परतों के निरन्तर जमाव के कारण बनती हैं।
  4. ये चट्टानें नर्म होती हैं।
  5. इनमें जीव-अवशेष सुरक्षित रहते हैं।
  6. अग्नि चट्टानों के नष्ट होने के बाद बनने के कारण इन्हें गौण चट्टानें (Secondary Rocks) भी कहते हैं।
  7. इन चट्टानों पर टूट-फूट का प्रभाव जल्दी होता
  8. इनमें जोड़ नहीं मिलते हैं।
  9. ये अधिकतर प्रवेशी चट्टानें हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

प्रश्न 10.
धरती के चापड़ में कौन-से प्रमुख तत्त्व हैं ?
उत्तर-
धरती के चापड़ का निर्माण करने वाली चट्टानों में नीचे लिखे तत्त्व दी हुई औसत मात्रा में शामिल होते हैं –
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 7

प्रश्न 11.
भारत में अग्नि चट्टानों के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 8

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें

(Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न-
परिवर्तित चट्टानों से क्या तात्पर्य है ? इनकी रचना किस प्रकार होती है ? उदाहरण दें।
उत्तर-
परिवर्तित चट्टानें (Metamorphic Rocks)-Metamorphic Rocks शब्द का अर्थ है- ‘रूप में परिवर्तन’ (Change in form) । ये वे चट्टानें हैं, जो गर्मी और दबाव के प्रभाव से अपना रंग, रूप, गुण, आकार और खनिज बदल लेती हैं। अग्नि तथा तलछटी चट्टानों का मूल रूप में इतना परिवर्तन हो जाता है कि कई चट्टानों को पहचानना मुश्किल हो जाता है। यह परिवर्तन दो प्रकार से होता है-

1. भौतिक परिवर्तन (Physical Change)
2. रासायनिक परिवर्तन (Chemical Change)
इतना परिवर्तन होते हुए भी चट्टानों में टूट-फूट नहीं होती। यह परिवर्तन दो कारणों से होता है।

परिवर्तन के कारक (Agents of Change)-

1. ताप (Heat)
2. दबाव (Pressure)

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 9

1. ताप से स्पर्शी रूपान्तरण (Heat Contact Metamorphism)-गर्म लावे के स्पर्श से निकट के प्रदेश की चट्टानें झुलस जाती हैं और उनके रवे पूरी तरह से बदल जाते हैं। जिस प्रकार गर्म लावे के स्पर्श से चूने का पत्थर (Lime Stone) संगमरमर (Marble) बन जाता है। दक्षिणी भारत में धारवाड़ (Dharwar) प्रदेश में ऐसी चट्टानें मिलती हैं।

2. दबाव (Pressure) से पृथ्वी की उथल-पुथल, भूचाल, पर्वतों के निर्माण आदि के कारण चट्टानों पर दबाव पड़ता है। ऊपरी परतों के दबाव से निचली चट्टानों के गुणों में परिवर्तन आ जाता है। यह परिवर्तन बड़े पैमाने पर विशाल प्रदेशों में होता है। इसके कुछ उदाहरण आगे लिखे हैं-

मुख्य चट्टानें — परिवर्तित चट्टानें

1. शेल (Shale) — 1. स्लेट (Slate)
2. अभ्रक (Mica) — 2. शिसट (Schist)
3. ग्रेनाइट (Granite) — 3. नेइस (Gneiss)
4. रेतीला पत्थर (Sand Stone). — 4. क्वार्टज़ाइट (Quartzite)
5. कोयला (Coal) — 5. ग्रेफाइट (Graphite)

इसे क्षेत्रीय रूपान्तरण (Regional Metamorphism) भी कहते हैं।

विशेषताएँ (Characteristics)-

  1. इन चट्टानों की कठोरता बढ़ जाती है।
  2. चट्टानों के खनिज पिघल कर इकट्ठे हो जाते हैं।
  3. ठोस होने के कारण अपरदन कम होता है।
  4. इनमें खनिजों से मिले हुए जल के स्रोत मिलते हैं, जिनसे चमड़ी के रोग दूर हो जाते हैं।
  5. मकान बनाने के लिए संगमरमर, स्लेट, क्वार्टज़ाइट मिलते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 2 चट्टानें 10

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 योग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 3 योग

PSEB 10th Class Physical Education Guide योग Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारतीय व्यायाम की प्राचीन विधि कौन-सी है ?
(Which is the oldest method of Indian Exercises ?)
उत्तर-
योगासन।

प्रश्न 2.
शीर्षासन प्रतिदिन कम-से-कम कितने समय के लिए करना चाहिए ?
(How much time Shirsh Asana may be performed daily ?)
उत्तर-
2 मिनट के लिए।

प्रश्न 3.
शीर्षासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantage of Shirsh Asana.)
उत्तर-

  1. शीर्षासन से स्मरण शक्ति तेज़ होती है।
  2. मोटापा दूर होता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 4.
वज्रासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Vajur Asana.)
उत्तर-

  1. वज्रासन से स्वप्न दोष दूर होता है।
  2. इससे शूगर का रोग दूर हो जाता है। ..

प्रश्न 5.
पद्मासन के कोई दो लाभ बताओ।
उत्तर-

  1. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  2. बार-बार मूत्र आना बन्द हो जाता है।

प्रश्न 6.
भुजंगासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Describe any two advantages of Bhujang Asana.)
उत्तर-

  1. कब्ज दूर हो जाती है।
  2. धातु रोग दूर हो जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 7.
धनुरासन के कोई दो लाभ बताओ।
(Mention any two advantages of Dhanur Asana.)
उत्तर-

  1. गठिया की बीमारी दूर हो जाती है।
  2. औरतों के योनि विकार और मासिक धर्म सम्बन्धी रोग दूर हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
हर्निया तथा नल रोगों को ठीक करने में कौन-सा आसन सहायक हो सकता है ?
(Name the Asana which prevent Hernia and urinary disease.)
उत्तर-
चक्र आसन।

प्रश्न 9.
आत्मा को परमात्मा से मिलाने का महत्त्वपूर्ण ढंग कौन-सा है ?
(Which is the means of uniting soul with God ?)
उत्तर-
योग।

प्रश्न 10.
मानसिक एकाग्रता के लिए कौन-सा योगासन सर्वोत्तम है ?
(Which is the best Asana for mental concentration ?
उत्तर-
पद्मासन।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 11.
थकावट कितने प्रकार की है ?
(Mention the types of Fatigue.)
उत्तर-
दो तरह की

  1. मनोरूक,
  2. शारीरिक

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
योग किसे कहते हैं ? इसके क्या लाभ हैं ?
(What is Yoga ? Discuss its uses.)
उत्तर-
भारत की प्राचीन कसरत या व्यायाम की विधि योग है। अतीत में साधु-सन्त, महात्मा लोग इसका अभ्यास करते थे तथा अपना शरीर स्वस्थ रखते थे। इसे हम सामान्यतः तपस्या करने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। योग प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है।
लाभ-योग के हमें निम्नलिखित लाभ हैं—

  1. योगासनों से मनुष्य का शरीर स्वस्थ रहता है।
  2. इससे बहुत-सी बीमारियां दूर हो
  3. मानसिक कमजोरी दूर हो जाती है।
  4. शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
  5. मनुष्य पर शीघ्र घबराहट का प्रभाव नहीं पड़ता।
  6. चिन्ता तथा परेशानियां दूर हो जाती हैं।
  7. मनुष्य का शरीर आकर्षक तथा सुगठित बन जाता है।

प्रश्न 2.
“योग आत्मा और परमात्मा में मिलाप करने का महत्त्वपूर्ण साधन है।” कैसे ?
(“Yoga is the means of uniting soul with God.” How ?)
उत्तर-
प्राचीन काल के साधु-महात्माओं की बातें तथा विचार हम आज तक सुनते आ रहे हैं। उनके विचारों के अनुसार यदि किसी व्यक्ति ने आत्मा का परमात्मा से मिलाप कराना है तो उसका साधन हमारा शरीर है। वही मनुष्य आत्मा को परमात्मा से मिला सकता है या दर्शन करा सकता है जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। अभिप्राय यह कि उसका मन पूर्णतः स्वच्छ और स्वस्थ हो।
हम योग साधनों के द्वारा शरीर को ठीक रख सकते हैं। इनसे बहुत-सी बीमारियां अपने-आप ही दूर हो जाती हैं। इससे सिद्ध होता है कि योग आत्मा तथा परमात्मा का मिलाप कराने का महत्त्वपूर्ण साधन है। इसलिए हमें योगासनों का अभ्यास करना चाहिए।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 3.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से 8 अंग बताए हैं ? उनके बारे में लिखो।
(अभ्यास का प्रश्न 2)
(What are the eight components of Ashtang Yoga according to Patanjali Rishi ? Write briefly about)
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं निरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—

  1. नियम (Observance)-नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं जैसे शरीर की सफ़ाई, नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है।
  2. यम (Restraint) ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है।
  3. आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रख कर टांगों को किसी विशेष दिशा में रख कर बैठना पद्मासन है।
  4. प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)—किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है।
  5. धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
  6. प्रत्याहार (Abstraction)—प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगाना।
  7. ध्यान (Meditation) -इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने-आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
  8. समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा-परमात्मा में लीन हो जाती है।

प्रश्न 4.
“योग स्वास्थ्य का साधन है।” इस बारे अपने विचार प्रकट करो।
(“Yoga is means of Good Health.” Write.)
उत्तर-
योग का सबसे बड़ा उद्देश्य यह है कि व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक रूप से दृढ़ व सचेत तथा व्यवहार में पूर्णतया अनुशासित बनाना। इसकी विशेषताएं इस प्रकार हैं—

  1. योग से मनुष्य की शारीरिक तथा मानसिक बुनियादी शक्तियां विकसित होती हैं। प्राणायाम द्वारा फेफड़ों में बहुत-सी वायु चली जाती है जिससे फेफड़ों की कसरत होती है। इससे फेफड़ों के बहुत-से रोग दूर होते हैं।
  2. योगाभ्यास करने से शरीर पूर्णतया स्वस्थ रहता है। धोती क्रिया तथा बस्ती क्रिया क्रमशः आमाशय तथा आंतों को साफ़ करती है। शरीर सदैव नीरोग रहता है।
  3. योग करने से शरीर मज़बूत बनता है।
  4. योगाभ्यास करने से शारीरिक अंग लचकदार बनते हैं। जैसे हल आसन तथा धनुर आसन करने से रीढ़ की हड्डी की लचक बढ़ती है।
  5. योगासन करने से शरीर की सभी प्रणालियां ठीक प्रकार से काम करने लगती हैं।
  6. योगाभ्यास मनुष्य के शरीर को अच्छी स्थिति (Posture) में रखता है जिससे उसके व्यक्तित्व में निखार आता है। उदाहरणार्थ वृक्ष आसन करने से घुटने नहीं भिड़ते और पद्म आसन करने से न ही पेट आगे को निकलता है और न ही कन्धों में कुबड़ापन आता है।
  7. योगासन करने से मानसिक अनुशासन आता है। यम तथा नियम द्वारा मानवीय संवेग विकारों तथा अनुचित इच्छाओं पर नियन्त्रण स्थापित करने की शक्ति देता है।
  8. उचित आसन करने से कई प्रकार के रोग दूर भागते हैं तथा कई रोगों की रोकथाम हो जाती है। वज्र आसन तथा मत्स्येन्द्रासन मधुमेह (Diabetes) के रोगों को ठीक करता है। इसी प्रकार प्राणायाम फेफड़ों का रोग नहीं लगने देता।
  9. योग शारीरिक तथा मानसिक थकावट को दूर भगाने में सहायता प्रदान करते हैं। शव आसन मनुष्य की थकावट को कोसों दूर भगाता है।
  10. करने से बुद्धि तेज़ होती है तथा स्मरण शक्ति बढ़ती है| हस बात के लिए शीर्षासन बहुत ही उपयोगी है।
  11. योगाभ्यास करने से मनुष्य के शरीर में ताल (Rhythm) आ जाता है। इससे शरीर की शक्ति संयम से व्यय होती है।
  12. योग मानसिक सन्तुलन तथा प्रसन्नता प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कोई 6 आसनों की विधि और लाभ लिखो।
(Discuss the methods of any six Asans and give their uses.)
उत्तर-
1.शव आसन की स्थिति-पीठ के बल लेट कर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ देना चाहिए।
विधि-

  1. पीठ के बल लेट कर शरीर को ढीला छोडो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 1
  2. धीरे-धीरे लम्बे सांस लो।
  3. लेट कर शरीर के समस्त अंगों को पूरा आराम करने दें।
  4. दोनों पैरों को डेढ़ फुट की दूरी पर रखो।।
  5. दोनों हाथों की हथेलियों को ऊपर की ओर करके शरीर से लगभग 6 इंच की दूरी पर रखो।
  6. आंखें बन्द करके अन्तर्ध्यान हो जाओ।
  7. शरीर को पूर्ण विश्राम की स्थिति में रखो।

महत्त्-

  1. शरीर की थकावट को दूर करता है।
  2. मानसिक तनाव दूर हो जाता है।
  3. उच्च रक्त चाप दूर हो जाता है।
  4. मस्तिष्क तथा हृदय में ताज़गी आ जाती है।
  5. शरीर को शक्ति मिल जाती है।

2. पश्चिमोत्तान आसन–इस आसन में सारे शरीर को फैला कर मोड़ना होता है।
विधि-

  1. पश्चिमोत्तान आसन करने के लिए टांगों को आगे फैला कर ज़मीन पर बैठो।
  2. दोनों हाथों से पैरों के अंगूठे पकड़ो।
  3. इसके बाद धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए नाक से घुटनों को छूने का प्रयास करो।
  4. धीरे-धीरे सांस लेते हुए सिर ऊपर उठाओ और पहली वाली स्थिति में आ जाओ।
  5. यह आसन प्रतिदिन 10-15 बार करना चाहिए।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 2
    पश्चिमोत्तान आसन

लाभ-

  1. यह आसन पेट गैस की बीमारी को दूर करता है।
  2. यह आसन नाड़ियों को साफ़ करता है।
  3. इससे पैर शक्तिशाली हो जाते हैं।
  4. इससे शरीर में बढ़ी चर्बी घट जाती है।
  5. यह आसन पेट की बीमारियों को ठीक करता है।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. टांगें टेढ़ी नहीं होती।

3. धनुरासन-स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति कमान की भान्ति होती है।
विधि-

  1. इस आसन को करने के लिए पेट के भार आराम से लेट जाओ।
  2. पैरों को पीठ की ओर करो।
  3. हाथों से टखनों को पकड़ो।
  4. लम्बा सांस लेकर सिर तथा छाती को जहां तक सम्भव हो उठाकर शरीर का आकार धनुष की भान्ति बनाओ।
  5. जितनी देर हो सके इसी स्थिति में रहो। धीरे-धीरे सांस छोड़ते हए शरीर को ढीला छोड़ दो और पहले वाली स्थिति में आ जाओ।

लाभ—

  1. यह आसन आंतों को पुष्ट करता है।
  2. पाचन शक्ति बढ़ाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 3
    धनुरासन स्थिति
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. गठिया आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।

4. पद्मासन की स्थिति–इस आसन में शरीर की स्थिति कमल के समान होती है।
विधि-

  1. पद्मासन करने के लिए पहले चौकड़ी मार के बैठो।
  2. दायां पांव बायें पांव पर इस प्रकार रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ की हड्डी को छुए। इसके बाद बायें पांव को उठा कर दाईं जांघ के ऊपर उसी प्रकार रखो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 4
    पद्मासन
  3. रीढ़ की हड्डी सीधी रखो।

लाभ—

  1. इस आसन से मन स्थिर रहता है।
  2. इस आसन से कमर का दर्द दूर हो जाता है।
  3. इस आसन से दिल तथा पेट की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  4. पाचन–शक्ति बढ़ जाती है।
  5. बार-बार पेशाब आने का रोग नहीं हो सकता।
  6. बहुत-सी आन्तरिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. बाजू तथा पांव मजबूत होते हैं।
  8. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  9. शरीर स्वस्थ रहता है।

5. हल आसन की स्थिति
विधि—अपने पांव फैला कर पीठ के बल ज़मीन पर लेट जाओ। हाथों की हथेलियों को नितम्बों की बगल में जमा दो। कमर के निचले भाग को (दोनों पांवों को) ज़मीन से धीरे से ऊपर उठाओ और इतना ऊपर ले जाओ कि दोनों पांव के अंगूठे सिर के पीछे ज़मीन से लग जाएं। जब तक सम्भव हो, इसी स्थिति में रहो।
पांवों को धीरे से उसी स्थान पर वापस ले जाओ जहां से आरम्भ किया था।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 5
हल आसन
नोट-

  1. यह आसन हर आयु की स्त्री, पुरुष के लिए लाभदायक है।
  2. यह आसन हृदय रोगियों या उच्च या निम्न रक्त चाप वालों के लिए मना है।
  3. इस आसन को झटके से नहीं करना चाहिए।

लाभ—

  1. यह आसन सारे शरीर में रक्त के संचार को नियमित करता है। फलस्वरूप चर्म रोग शीघ्र दूर हो जाते हैं।
  2. मोटापा दूर करने के लिए यह आसन सर्वश्रेष्ठ है। कमर और नितम्ब को पतला करता है।
  3. पेट की स्थूलता को आसानी से कम करता है।
  4. रीढ़ की हड्डी लचकीली होती है। शरीर सुन्दर और नीरोग हो जाता है।
  5. यह आसन शरीर की दुर्गन्ध को दूर करता है। शरीर को सुन्दर बनाता है।
  6. चेहरा प्रसन्न हो जाता है।
  7. आंखों में तेज़ आ जाता है।

6. सर्वांगासन स्थिति-इस आसन में शरीर की स्थिति अर्द्ध-हल की भान्ति हो जाती
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 6
सर्वांगासन
विधि—

  1. इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के भार सीधा लेट जाओ।
  2. हाथों को पेट के बराबर सीधा रखो।।
  3. दोनों पैरों को एक साथ ऊपर उठाकर हथेलियों से पीठ को सहारा देते हुए कुहनियों को ज़मीन पर टिकाओ।
  4. सारे शरीर को सीधा रखो।
  5. सारे शरीर का भार कन्धों तथा गर्दन पर रहे।
  6. ठोडी को छाती के साथ स्पर्श करो।
  7. कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद फिर पहली वाली स्थिति में आ जाओ।

लाभ-

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर शक्तिशाली बन जाता है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. बाजू और पैर मज़बूत हो जाते हैं।
  5. टांगें टेढ़ी नहीं होती।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 2.
भुजंगासन (Bhujangasana), अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatsyandrasana), मत्स्यासन (Matsyasana) और मयूरासन (Mayurasana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. भुजंगासन (Bhujangasana)—
स्थिति-पेट के बल लेटना।
विधि—

  1. पेट के बल ज़मीन पर लेट जाएं। दोनों हाथों के साथ कन्धों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ।
  2. टांगों और हथेलियों को अकड़ाते हुए धीरे-धीरे सिर और छाती को इतना उठाइए कि बाजू सीधे हो जाएं।
  3. पंजों को अन्दर की ओर देखो और सिर को पीछे की ओर फेंको।
  4. धीरे-धीरे पहले की स्थिति में जाओ।
  5. इस आसन को तीन से चार बार करो।

लाभ-

  1. यह आसन पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 7
    भुजंगासन
  2. जिगर के रोगों को दूर करता है।
  3. कब्ज दूर हो जाती है।
  4. यह स्वप्न-दोष दूर करता है।
  5. हड्डियां मज़बूत होती हैं।
  6. तिलों को आराम देता है।

2. अर्द्धमत्स्येन्द्रासन (Ardhmatseyandrasana)-इसमें बैठने की स्थिति में धड़ को पार्यों की ओर धंसा जाता है।
विधि-ज़मीन पर बैठकर बायं पांव की एडी को दाईं ओर नितम्ब के पास ले जाओ जिससे एड़ी का भाग गुदा के निकट लगे। दायें पांव को ज़मीन पर बायें पांव के घुटने के निकट रखो फिर वक्ष स्थल के निकट बाईं भुजा को लाएं, दायें पांव के घुटने के नीचे अपनी
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 8
अर्द्धमत्स्येन्द्रासन
जंघा पर रखें, पीछे की ओर से दायें हाथ द्वारा कमर को लपेट कर नाभि को स्पर्श करने का यत्न करें। फिर पांव बदल कर सारी क्रिया को दोहराएं।
लाभ-

  1. इस आसन द्वारा मांसपेशियां और जोड़ अधिक लचीले रहते हैं और शरीर में शक्ति आती है।
  2. यह आसन वायु विकार और मधुमेह दूर करता है तथा आन्त उतरने (Hemia) में लाभदायक है।
  3. यह आसन मूत्राशय, अमाशय, प्लीहादि के रोगों में लाभदायक है।
  4. इस आसन के करने से मोटापा दूर रहता है।
  5. छोटी तथा बड़ी आन्तों के रोगों के लिए बहुत उपयोगी है।

3. मत्स्यासन (Matsyasana)—इसमें पद्मासन में बैठकर (Supine) लेटे हुए और पीछे की ओर (arch) बनाते हैं।
विधि- पद्मासन लगा कर सिर को इतना पीछे ले जाओ जिससे सिर की चोटी का भाग ज़मीन पर लग जाए और पीठ का भाग ज़मीन से ऊपर उठा हो। दोनों हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे पकड़ें।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 9
मत्स्यासन
लाभ-

  1. यह आसन चेहरे तथा त्वचा को आकर्षक बनाता है। चर्म रोग को दूर करता है।
  2. यह आसन टांसिल, मधुमेह, घुटनों तथा कमर दर्द के लिए लाभदायक है। शुद्ध रक्त का निर्माण तथा संचार करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर में लचक आती है कब्ज दूर होती है, भूख बढ़ती है, पेट की गैस को नष्ट करके भोजन पचाता है।
  4. यह आसन फेफड़ों के लिए लाभदायक है, श्वास सम्बन्धी रोग जैसे खांसी, दमा, श्वास नली की बीमारी आदि दूर करता है। नेत्र रोग दोषों को दूर करता है। यह आसन टांगों और भुजाओं की शक्ति को बढ़ाता है और मानसिक दुर्बलता को दूर करता है।

4. मयूरासन (Mayurasana)
विधि-पेट के बल ज़मीन पर लेट कर दोनों पांवों के पंजों को मिलाओ। दोनों कुहनियों को आपस में मिला कर नाभि पर ले जाओ। सम्पूर्ण शरीर का भार कुहनियों पर देकर घुटनों और पैरों को ज़मीन से उठाए रखो।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 10
मयूरासन
लाभ-

  1. यह आसन फेफड़ों की बीमारी दूर करता है। चेहरे को लाली प्रदान करता है।
  2. पेट की सभी बीमारियां इससे दूर होती हैं और बांहों को बलवान बनाता है।
  3. इस आसन से आंखों की नज़र पास की व दूर की ठीक रहती है। इस आसन से मधुमेह रोग नहीं होता यदि हो जाए तो दूर हो जाता है।
  4. यह आसन रक्त संचार को नियमित करता है।

प्रश्न 3.
वज्रासन (Vajurasana), शीर्षासन (Shirshasana), चक्रासन (Chakarasana) और गरुड़ आसन (Garur Asana) की विधि तथा लाभ बताओ।
उत्तर-
1. वज्रासन (Vajur Asana)—पैरों को पीछे की ओर मोड़ कर बैठना और हाथों को घुटनों पर रखना इसकी स्थिति है।
विधि-

  1. घुटने मोड कर पैरों को पीछे की ओर करके पैरों के तलओं के भार बैठो।
  2. नीचे पैर इस प्रकार हों कि पैर के अंगूठे एक-दूसरे से मिले हों।
  3. दोनों घुटने भी मिले हों और कमर तथा पीठ दोनों एकदम सीधे रहें।
  4. दोनों हाथों को तान कर घुटनों के पास रखो।।
  5. सांसें लम्बी-लम्बी और साधारण हो।
  6. यह आसन प्रतिदिन 3 मिनट से लेकर 20 मिनट तक करना चाहिए।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 11
    वज्रासन

लाभ-

  1. शरीर में स्फूर्ति आती है।
  2. शरीर का मोटापा दूर हो जाता है।
  3. शरीर स्वस्थ रहता है।
  4. मांसपेशियां मज़बूत होती हैं।
  5. इससे स्वप्न दोष दूर हो जाता है।
  6. पैरों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. मानसिक शान्ति प्राप्त होती है।
  8. मनुष्य निश्चिन्त हो जाता है।
  9. इससे मधुमेह की बीमारी में लाभ पहुंचता है।
  10. पाचन-क्रिया ठीक रहती है।

2. शीर्षासन (Shirsh Asana)– इस आसन में सिर नीचे और पैर ऊपर की ओर होते हैं।
विधि-

  1. एक दरी या कम्बल बिछ। कर घुटनों के भार बैठो।
  2. दोनों हाथों की अंगुलियां कस कर बांध लो। दोनों हाथों को कोणदार बना कर कम्बल या दरी पर रखो।
  3. सिर का सामने वाला भाग हाथों में इस प्रकार ज़मीन पर रखो कि दोनों अंगूठे सिर के पिछले हिस्से को दबाएं।
  4. टांगों को धीरे-धीरे अन्दर की ओर मोड़ते हुए शरीर को सिर और दोनों हाथों के सहारे आसमान की ओर उठाओ।
  5. पैरों को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। पहले एक टांग को सीधा करो, फिर दूसरी को।
  6. शरीर को बिल्कुल सीधा रखो।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 12
    शीर्षासन
  7. शरीर का सारा भार बांहों और सिर पर बराबर पड़े।
  8. दीवार या साथी का सहारा लो।

लाभ –

  1. यह आसन भूख बढ़ाता है।
  2. इससे स्मरण शक्ति बढ़ती है।
  3. मोटापा दूर हो जाता है।
  4. जिगर ठीक प्रकार से कार्य करता है।
  5. पेशाब की बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. बवासीर आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  7. इस आसन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कई मानसिक बीमारियां दूर हो जाती हैं।

सावधानियां –

  1. जब आंखों में लाली आ जाए तो बन्द कर दो।
  2. सिर चकराने लगे तो आसन बन्द कर दें।
  3. कानों में सां-सां की ध्वनि सुनाई दे तो शीर्षासन बन्द कर दें।
  4. नाक बन्द हो जाए तो यह आसन बन्द कर दो।
  5. यदि शरीर भार सहन न कर सकें तो आसन बन्द कर दें।
  6. पैरों व बांहों में कम्पन होने लगे तो आसन बन्द कर दो।
  7. यदि दिल घबराने लगे तो भी आसन बन्द कर दो।
  8. शीर्षासन सदैव एकान्त स्थान पर करना चाहिए।
  9. आवश्यकता होने पर दीवार का सहारा लेना चाहिए।
  10. यह आसन केवल एक मिनट से पांच मिनट तक करो।

इससे अधिक शरीर के लिए हानिकारक है।
3. चक्रासन की स्थिति- इस आसन में शरीर को गोल चक्र जैसा बनाना पड़ता है।
PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 13
चक्रासन
विधि-

  1. पीठ के भार लेट कर घुटनों को मोड़ कर, पैरों के तलवों को ज़मीन से लगाओ। दोनों पैरों के बीच में एक से डेढ़ फुट का अन्तर रखो।
  2. हाथों को पीछे की ओर ज़मीन पर रखो। तलवों और अंगुलियों को दृढ़ता के साथ ज़मीन से लगाए रखो।
  3. अब हाथ-पैरों के सहारे पूरे शरीर को कमान या चक्र की शक्ल में ले जाओ।
  4. सारे शरीर की स्थिति गोलाकार होनी चाहिए।
  5. आंखें बन्द रखो ताकि श्वास की गति तेज़ हो सके।

लाभ-

  1. शरीर की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं।
  2. शरीर के सारे अंगों को लचीला बनाता है।
  3. हर्नियां तथा गुर्दो के रोग दूर करने में लाभदायक होता है।
  4. पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
  5. पेट की वायु विकार आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं।
  6. रीढ़ की हड्डी मज़बूत हो जाती है।
  7. जांघ तथा बाहें शक्तिशाली बनती हैं।
  8. गुर्दो की बीमारियां घट जाती हैं।
  9. कमर दर्द दूर हो जाता है।
  10. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।

4. गरुड़ आसन (Garur Asana)-गरुड़ आसन में शरीर की स्थिति गरुड़ पक्षी की भांति पैरों पर सीधे खडा होना होता है।
विधि-

  1. सीधे खड़े होकर बायें पैर को उठा कर दाहिनी टांग में बेल की तरह लपेट लो।
  2. बाईं जांघ दाईं जांघ पर आ जायेगी तथा बाईं जांघ पिंडली को ढांप देगी।
  3. शरीर का सारा भार एक ही टांग पर कर दो।
  4. बाएं बाजू को दायें बाजू से दोनों हथेलियों को नमस्कार की स्थिति में ले जाओ।
  5. इसके बाद बाईं टांग को थोड़ा-सा झुका कर शरीर को बैठने की स्थिति में ले जाओ। इस प्रकार शरीर की नसें खिंच जाती हैं। अब शरीर को सीधा करो और सावधान की स्थिति में हो जाओ।
  6. अब हाथों और पैरों को बदल कर पहली वाली स्थिति में पुनः दोहराओ।

लाभ-

  1. शरीर के सभी अंगों को शक्तिशाली बनाता है।
    PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग 14
    गरुड़ आसन
  2. शरीर स्वस्थ हो जाता है।
  3. यह बांहों को ताकतवर बनाता है।
  4. यह हर्निया रोग से मनुष्य को बचाता है।
  5. टांगें शक्तिशाली हो जाती हैं।
  6. शरीर हल्कापन अनुभव करता है।
  7. रक्त संचार तेज़ हो जाता है।
  8. गरुड़ आसन करने से मनुष्य बहुत-सी बीमारियों से बच जाता है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 4.
पातंजलि ऋषि ने अष्टांग योग के कौन-कौन से आठ अंग बताए हैं? उनके बारे में लिखो।
उत्तर-
महर्षि पातंजलि ने योग द्वारा शारीरिक स्वास्थ्य एवं नीरोगता प्राप्त करने का एक तरीका बताया है, जिसे ‘अष्टांग योग’ का नाम दिया जाता है। इसके आठ अंग निम्नलिखित हैं—

  1. नियम (Observance)—नियम वे ढंग हैं जो मनुष्य के शारीरिक अनुशासन से सम्बन्ध रखते हैं, जैसे शरीर की सफ़ाई नेती तथा बस्ती द्वारा की जाती है। नियमों के पांच अंग हैं-
    • शौच
    • सन्तोष
    • तप
    • स्वाध्याय और
    • ईश्वर परिधान।
  2. यम (Restraint)-ये वे साधन हैं जिनका मनुष्य के मन के साथ सम्बन्ध होता है। इनका अभ्यास मनुष्य को अहिंसा, सच्चाई, पवित्रता, त्याग आदि सिखाता है। इसके पांच अंग हैं-
    • अहिंसा
    • असत्य
    • अस्तेय
    • अपरिग्रह
    • ब्रह्मचर्य।
  3. आसन (Posture)-आसन वह विशेष स्थिति है जिसमें मनुष्य के शरीर को अधिक-से-अधिक समय के लिए रखा जाता है। रीढ़ की हड्डी को बिल्कुल सीधा रखकर टांगों को किसी विशेष दिशा में रखकर बैठना पद्मासन है।
  4. प्राणायाम (Regulation of Breath and Bio-energy)-किसी विशेष विधि के अनुसार सांस अन्दर ले जाने और बाहर निकालने की क्रिया प्राणायाम कहलाती है। यह उपासना का अंग है। इसके तीन भाग हैं-
    • पूरक
    • रेचक
    • कुम्भक।
  5. धारणा (Concentration)—इसका अभिप्राय है मन को किसी विशेष वांछित विषय पर लगाना। इस प्रकार एक ओर ध्यान लगाने से मनुष्य में एक महान् शक्ति का संचार होता है, जिससे उसकी मन की इच्छा की पूर्ति होती है।
  6. प्रत्याहार (Abstration)-प्रत्याहार से अभिप्राय है मन तथा इन्द्रियों को उनकी अपनी क्रियाओं से हटाकर ईश्वर के चरणों में लगानः
  7. ध्यान (Meditation)-इस अवस्था में मनुष्य सांसारिक भटकनों से ऊपर उठकर अपने आप में अन्तर्ध्यान हो जाता है।
  8. समाधि (Trance)—इस स्थिति में मनुष्य की आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती है।

प्रश्न 5.
योग के मुख्य सिद्धान्त कौन-कौन से हैं ? (What are the main Principles of Yoga ?)
उत्तर-
योग के मुख्य सिद्धान्त (Main Principles of Yoga)-योग करते समय कुछ सिद्धान्तों का पालन अवश्य करना चाहिए। इन सिद्धान्तों का वर्णन इस प्रकार हैं—

  1. स्नान करके योगासन किए जाएं तो और भी अच्छा रहेगा। स्नान करने से शरीर हल्का होता है, लचक आती है और आसन अच्छे ढंग से होते हैं। वैसे सायंकाल भी जब पेट खाली हो तो आसन किए जा सकते हैं।
  2. आसन करने का स्थान शांत व स्वच्छ होना चाहिए। किसी उद्यानवाटिका में आसन किए जाएं तो बहुत अच्छा है।
  3. दरी या कम्बल बिछाकर आसन करने चाहिएं, ताकि भूमि की चुम्बकीय शक्ति आपके ध्यान को तोड़े नहीं और नीचे से कोई चीज़ आपको गड़े नहीं।
  4. जितना आप एकाग्र होकर आसन करेंगे, उतना ही अधिक शारीरिक व मानसिक लाभ मिलेगा। आसन शुरू करने से पहले श्वासन करके अपने श्वास, शरीर और मन को शांत कर लें।
  5. इसको करते समय झटके नहीं लगने चाहिएं। हर आसन को शरीर तान कर और खींच कर धीरे-धीरे करें। उसके बाद कुछ क्षण अपने शरीर को शिथिल करें। जब आपका श्वास स्वाभाविक स्थिति में आ जाये तब दूसरा आसन करें।
  6. आसन की पूर्ण स्थिति तक जाने का प्रतिदिन अभ्यास करें। धीरे-धीरे आपके बंद खुलेंगे और शरीर में लचक पैदा होगी।
  7. ऋतु के अनुसार आसनों का कम-से-कम कपड़े पहन कर अभ्यास करें।
  8. योगासनों का अभ्यास सभी वर्गों के बच्चे, बूढ़े, स्त्री-पुरुष कर सकते हैं । दस वर्ष से लेकर 80/85 वर्ष तक के व्यक्ति योगाभ्यः । कर सकते हैं। आसनों का अभ्यास विधिपूर्वक करना चाहिए।
  9. योगासन करने वाले व्यक्ति को अपना भोजन हल्का रखना चाहिए। भोजन सुपाच्य, सात्विक व प्राकृतिक होना चाहिए। जितना हल्का भोजन होगा, उतनी उसकी कार्य शक्ति बढ़ जाएगी।
  10. कठिन रोगों तथा ज्वर से पीड़ित व्यक्ति को आसन, प्राणायाम का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
  11. शुरू में एक ही दिन बहुत-से आसन न करें। प्रत्येक आसन को मनोयोग से आंख मूंद कर धीरे-धीरे करें : सर्वांगासन व शोसन धीरे-धीरे बढ़ाकर दस मिन्ट तक कर
    सकते हैं। आसन की पहली स्थिति से अन्तिम स्थिति में और अन्तिम स्थिति से वापस जल्दी न आएं।
  12. आसनों का अभ्यास-क्रम इस प्रकार रखना चाहिए कि आसन के बाद उसका उपासन (काउन्टरपोज) कर सकें। जैसे पश्चिमोत्तानासन और उसका उपासन कोणासन, सर्वांगासन का बाद मत्स्यासन आदि।
  13. योगासनों की समाप्ति के बाद कुछ समय के लिए श्वासन अवश्य करें। आसनों का लाभ तभी मिल पाएगा जब आप श्वासन करके अपने शरीर को थोड़ा विश्राम दें। श्वासन अपने-आप में पूर्ण आसन है और इससे शरीर में अद्भुत शक्ति का संचार होता है।
  14. योगासन प्राणायम का कार्यक्रम समाप्त करने के बाद कम-से-कम आधे घण्टे तक कुछ न खाएं।
  15. वायु को बाहर निकालने के पश्चात् श्वास क्रिया रोकने का अभ्यास करना चाहिए।
  16. योगाभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 6.
अन्य व्यायाम जैसे सैर, दंड-बैठक, मुग्दर, मल्ल-युद्ध पश्चिमी देशों के खेलों आदि में क्या दोष हैं और योगासनों में ऐसी क्या विशेषताएं हैं, जो उन्हें ही जीवन का अंग बनाया जाए ?
(What are the disadvantages of western exercises like, Astrolt, Dand-Bethak, Wrestling, Mugdhar etc ? Why Yoga is important for our life ?)
उत्तर-

  1. अन्य जितने भी व्यायाम हैं, वे मुख्यत: मांसपेशियों पर ही प्रभाव डालते हैं, जिससे बाहरी शरीर ही बलिष्ठ दिखाई देता है, अंदर काम करने वाले यन्त्रों पर उतना प्रभाव नहीं पड़ता, जिससे व्यक्ति अधिक देर तक स्वस्थ नहीं रह पाता। जबकि योगासनों से व्यक्ति की आयु लम्बी होती है। विकारों को शरीर से बाहर करने की अद्भुत शक्ति प्राप्त होती है और शरीर के सैल बनते अधिक व टूटते कम हैं।
  2. अन्य व्यायाम व खेलों के लिए स्थान व साधनों की आवश्यकता पड़ती है। खेल तो साथियों के बिना खेले ही नहीं जा सकते, जबकि योगासन अकेले ही दरी व चादर पर किए जा सकते हैं।
  3. दूसरे व्यायामों का प्रभाव मन और इन्द्रियों पर बहुत कम पड़ता है, जबकि योगासनों से मानसिक शक्ति बढ़ती है और इन्द्रियों को वश में करने की शक्ति आती है।
  4. दूसरे व्यायामों में अधिक खुराक की आवश्यकता पड़ती है, जिसके लिए अधिक खर्च करना पड़ता है, जबकि योगासनों में बहुत कम भोजन की आवश्यकता पड़ती है।
  5. योगासनों से शरीर की रोगनाशक शक्ति का विकास होता है, जिससे शरीर किसी भी विजातीय द्रव्य को अन्दर रुकने नहीं देता, तुरन्त बाहर निकालने का प्रयत्न करता है, जिसके आप रोगमुक्त होते हैं।
  6. योगासनों से शरीर में लचक पैदा होती है, जिससे व्यक्ति फुर्तीला रहता है, शरीर के हर अंग में रक्त का संचार ठीक होता है, अधिक आयु में भी व्यक्ति युवा लगता है और काम करने की शक्ति बनी रहती है। अन्य व्यायामों से मांसपेशियों में कड़ापन आ जाता है, शरीर कठोर हो जाता है और बुढ़ापा जल्दी आता है।
  7. जिस प्रकार नाली की गंदगी को झाड़ लगाकर, पानी फेंक कर साफ़ करते हैं, उसी प्रकार अलग-अलग आसनों से रक्त की नलिकाओं व कोशिकाओं को साफ़ करते हैं, ताकि उनमें रवानगी रहे और शरीर रोगमुक्त हो। यह केवल योगासन क्रियाओं से ही हो सकता है, अन्य व्यायामों से नहीं। अन्य व्यायामों से तो हृदय की गति तेज़ हो जाती है और रक्त पूरी तरह शुद्ध नहीं हो पाता।
  8. फेफड़ों के द्वारा हमारे रक्त की शुद्धि होती है। योगासनों व प्राणायाम द्वारा हम अपने फेफड़ों के फेलने व सिकुड़ने की शक्ति को बढ़ाते हैं जिससे अधिक-से-अधिक ओषजनक वायु फेफड़ों में भर सके और रक्त की शुद्धि कर सके। दूसरे व्यायामों में फेफड़े जल्दी-जल्दी श्वास लेते हैं, जिससे प्राण वायु फेफड़ों के अन्तिम छोर तक नहीं पहुंच पाती, जिसका परिणाम होता है विकार और विकार रोग का कारण है।
  9. वर्तमान समय में गलत रहन-सहन व अप्राकृतिक भोजन के कारण पाचन संस्थान के यन्त्रों का कार्य सुचारु रूप से नहीं चल पाता। उन्हें क्रियाशील रखने में योगासन बहुत सहायक सिद्ध होते हैं, जबकि दूसरे व्यायामों से पाचन क्रिया बिगड जाती है।
  10. मेरुदण्ड पर हमारा यौवन निर्भर करता है। सारा रक्त संचार व नाड़ी संचालन, इसी से होकर शरीर में फैलता है। जितनी लचक रीढ़ की हड्डी में रहेगी, उतना ही शरीर स्वस्थ होगा, आयु लम्बी होगी, मानसिक संतुलन बना रहेगा। यह केवल योगासनों से ही सम्भव है।
  11. दूसरे व्यायामों से आपको थकावट आएगी, बहुत अधिक शक्ति खर्च करनी पडेगी, जबकि योगासनों से शक्ति प्राप्त की जाती है. क्योंकि योगासन धीरे-धीरे और आराम से किए जाते हैं। इन्हें अहिंसक और शान्तिप्रिय क्रियाएं कहा जाता है।
  12. अन्य व्यायामों से मनुष्य के चरित्र पर कोई खास प्रभाव नहीं पड़ता। योगासन स्वास्थ्य के साथ-साथ चरित्रवान भी बनाते हैं। यौगिक क्रियाओं से मानसिक व नैतिक शक्ति का विकास होता है, मन स्थिर रहता है। मन के स्थिर रहने से बुद्धि का विकास होता है, सत्वगुण की प्रधानता होती है और सत्वगुण से मानसिक शक्ति का विकास होता है। ये सब लाभ केवल योगासन और प्राणायाम से ही प्राप्त हो सकते हैं।
  13. हमारे शरीर में अनेक ग्रन्थियां हैं, जो हमें स्वस्थ व निरोग रखने में महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं। इन ग्रन्थियों का रस रक्त में मिल जाता है, जिससे मनुष्य स्वस्थ व शक्तिशाली बनता है। गले की थाइराइड व पैराथाइराइड ग्रन्थियों से निकलने वाले रस पर्याप्त मात्रा में न होने से बालकों का पूर्ण विकास नहीं हो पाता और युवकों के असमय में ही बाल गिरने लगते हैं तथा शरीर में प्रसन्नता नहीं रहती। शरीर की विभिन्न ग्रन्थियों को सजग करके पर्याप्त मात्रा में रस देने के योग्य बनाने के लिए योगासन पद्धति बड़ी कारगर है। अन्य व्यायामों का प्रभाव इस दिशा में नगण्य है।
  14. शरीर के रोगों को दूर करने में, प्राणायाम और षट्कर्म राम-बाण का काम करते हैं। जब विजातीय द्रव्यों के बढ़ जाने से शरीर के अंग उन्हें बाहर निकाल पाने में समर्थ नहीं होते, तो रोग का आरम्भ होता है। इन विजातीय द्रव्यों को बाहर निकालने के लिए इन क्रियाओं का सहारा लिया जा सकता है और अपने आपको स्वस्थ तथा शक्तिशाली बनाया जा सकता है।
  15. शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक विकास के लिए योग पद्धति २.तम पद्धति है। इसका मुकाबला और कोई पद्धति नहीं कर सकती।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 3 योग

प्रश्न 7.
योग का महत्त्व विस्तार से लिखें।
उत्तर-
योग का महत्त्व (Importance of Yoga)—मानव जीवन में योग का अत्यधिक महत्त्व है। योग मानव में सम्पूर्ण विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। योग द्वारा मनुष्य में निम्नलिखित गुणों का विकास होता है—

  1. शारीरिक, मानसिक एवं गुप्त शक्तियों का विकास (Development of Physical, Mental and Hidden qualities)—प्राणायाम और अष्टांग द्वारा मनुष्य की गुप्त शक्तियों का विकास होता है। अष्टांग योग के नियम और आसन अंगों द्वारा व्यक्ति का शारीरिक एवं मानसिक विकास होता है। विभिन्न आसनों का अभ्यास करने से शरीर के अंग क्रियाशील एवं विकसित होते हैं। इसका हमारी विभिन्न प्रणालियों पर अच्छा प्रभाव पड़ता है और व्यक्ति की कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।
  2. शरीर की आन्तरिक शुद्धता (Purification and Development of Body)योग की छः अवस्थाओं द्वारा शरीर का सम्पूर्ण विकास होता है। आसनों से शरीर स्वस्थ होता है, योगाभ्यास द्वारा मन पर नियन्त्रण तथा नाड़ी संस्थान और मांसपेशी संस्थान का आपसी तालमेल बना रहता है। प्राणायाम द्वारा शरीर स्वस्थ तथा फुर्तीला बना रहता है। ध्यान और समाधि से सांसारिक चिन्ताओं से छुटकारा प्राप्त होता है। इससे आत्मा-परमात्मा में विलीन हो जाती है। इस प्रकार आसन और प्राणायाम शरीर की आन्तरिक सफ़ाई में सहायक सिद्ध होते हैं।
  3. संवेगों पर नियन्त्रण (Control over Eniutions)–आधुनिक युग में मनुष्य मानसिक और आत्मिक शान्ति का इच्छा करता है। प्रायः देखने में आता है कि साधारण सी असफलता अथवा दुःखदाई घटना हमें इतना दु:खी कर देती है कि हमें जीवन नीरस तथा बोझिल दिखाई देता है। इसके विपरीत कई बार साधारण-सी सफलता अथवा प्रसन्नता की बात हमें इतना खुश कर देती है कि हम मदमस्त हो जाते हैं। हम अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। इन बातों में हमारी भावात्मक अपरिपक्वता की झलक दिखाई देती है। योग हमें अपने संवेगों पर नियन्त्रण रखना एवं सन्तुलन में रहना सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि असफलता अथवा सफलता, प्रसन्नता अथवा अप्रसन्नता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यह जीवन दुःखों तथा सुखों का अद्भुत संगम है। दुःखों और खुशियों में समझौता करना ही सुखी जीवन का भेद है। हमें अपने मन के उद्देश्यों पर नियन्त्रण करना चाहिए और सफलता या असफलता को एक समान महत्त्व देना चाहिए।
  4. रोगों से प्राकतिक बचाव (Natural prevention of Diseases) योग क्रियाओं से रोगों से बचाव होता है। रोगों के कीटाणु एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के शरीर में प्रवेश करके रोग फैलाते हैं। योग ज्ञान हमें इन रोगों का मुकाबला करने, इसे छुटकारा पाने और स्वयं को स्वस्थ रखने के ढंग बताता है। जैसे-आसान, धोती, नेचि और जौली आदि द्वारा हमारे आन्तरिक अंग शुद्ध होते हैं और हमें रोगों से मुक्ति मिलती है।
  5. त्याग एवं अनुशासन की भावना (Feeling of Sacrifice and Discipline)योग ज्ञान द्वारा व्यक्ति में त्याग एवं अनुशासन की भावना का संचार होता है। इन गुणों से भरपूर व्यक्ति ही कठिन से कठिन कार्य आसानी से कर सकते हैं। अष्टांग योग में अनुशासन को मुख्य स्थान दिया जाता है। योग के नियमों की पालना करने वाला व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं, मानवीय भावनाओं, संवेग, विचार इत्यादि पर नियन्त्रण रखता है।
    अन्ततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि योग मनुष्य के व्यक्तित्व के सम्पूर्ण विकास में विशेष महत्त्व रखता है।