PSEB 10th Class SST Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारिक संरचना

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Economics Chapter 2 भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारिक संरचना

SST Guide for Class 10 PSEB भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारिक संरचना Textbook Questions and Answers

I. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दें

प्रश्न 1.
अधारिक संरचना से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अर्थ-व्यवस्था के पूंजी स्टॉक का वह भाग जो विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करने की दृष्टि से आवश्यक होता है, अर्थ-व्यवस्था का सहायक ढांचा अथवा आर्थिक संरचना कहलाता है।

प्रश्न 2.
भारत की मुख्य आर्थिक आधारित संरचनाएं कौन-सी हैं?
उत्तर-
(i) परिवहन तथा संचार
(ii) विद्युत् शक्ति
(iii) सिंचाई
(iv) पूर्ति
(v) बैंकिंग तथा वित्तीय संस्थाएं।

प्रश्न 3.
भारत में परिवहन के मुख्य साधन कौन से हैं?
उत्तर-

  1. रेलवे
  2. सड़क यातायात
  3. जल परिवहन
  4. वायु परिवहन।

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प्रश्न 4.
सिंचाई से क्या अभिप्राय है? सिंचाई की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-
भूमि को कृत्रिम साधनों द्वारा जल देने को ही सिंचाई कहते हैं।
वर्षा की अनियमितता, वर्षा का असमान वितरण व वर्षा का अनिश्चित काल सिंचाई की आवश्यकता के लिए उत्तरदायी कारक हैं। भारत में वर्षा, ट्यूबवैल, कुएँ, तालाब, नहरें व शक्ति चलित पम्पसैट सिंचाई के मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 5.
भारत में बिजली के मुख्य साधन कौन-से हैं?
उत्तर-

  1. ताप विद्युत्
  2. जल विद्युत्
  3. परमाणु विद्युत्।

प्रश्न 6.
कुल कितने व्यापारिक बैंक राष्ट्रीयकरण करे गए हैं?
उत्तर-
सन् 1969 में 14 तथा सन् 1980 में 6 अर्थात् कुल 20 बड़े बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया है। परन्तु अब इनकी संख्या 19 है।

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प्रश्न 7.
भारत के केन्द्रीय बैंक का नाम लिखो।
उत्तर-
भारतीय रिज़र्व बैंक।

प्रश्न 8.
भारत की विशिष्ट बैंकिंग संस्थायें कौन सी हैं?
उत्तर-

  1. भारतीय औद्योगिक विकास बैंक
  2. भारतीय औद्योगिक वित्त निगम
  3. लघु उद्योग विकास बैंक
  4. सहकारी समितियां
  5. ग्रामीण क्षेत्रीय बैंक
  6. राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक
  7. निर्यात-आयात बैंक आदि।

प्रश्न 9.
उपभोक्ता संरक्षण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण से अभिप्राय है उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादकों के अनुचित व्यापार व्यवहारों के कारण होने वाले शोषण से उपभोक्ताओं की रक्षा करना।

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II. लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें

प्रश्न 1.
आधारित संरचना से क्या अभिप्राय है ? इसकी क्या आवश्यकता है?
उत्तर-
आधारित संरचना-आधारित संरचना से आशय उन सुविधाओं, क्रियाओं तथा सेवाओं से है जो अन्य क्षेत्रों के संचालन तथा विकास में सहायक होती हैं।
आधारित संरचना की आवश्यकता वास्तव में, प्रत्येक देश के आर्थिक विकास के लिए आधारित संरचना एक पूर्व शर्त है। इसकी पर्याप्त उपलब्धता विकास का आधार है तथा इसकी अपर्याप्त उपलब्धता विकास में सबसे बड़ी बाधा है।

प्रश्न 2.
भारत की मुख्य आर्थिक आधारित संरचनाएं कौन सी हैं ? वर्णन करो।
उत्तर-
आर्थिक आधारित संरचना से अभिप्राय उस पूंजी स्टॉक से है जो उत्पादन प्रणाली को प्रत्यक्ष सेवाएं प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में, आर्थिक आधारित संरचनाएं वे सुविधाएं तथा सेवाएं हैं जो उत्पादन तथा वितरण प्रणाली को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
भारत की मुख्य आर्थिक आधारित संरचनाएं —

  1. परिवहन तथा संचार
  2. शक्ति
  3. सिंचाई
  4. मुद्रा पूर्ति
  5. बैंकिंग तथा अन्य वित्तीय संस्थाएं।

प्रश्न 3.
भारत की मुख्य मौद्रिक संस्थायें कौन सी हैं?
उत्तर-
भारत की मुख्य मौद्रिक संस्थाएं निम्नलिखित हैं —

  1. साहूकार-ये बहुत अधिक ब्याज लेते हैं।
  2. भारतीय रिज़र्व बैंक-यह भारत का केन्द्रीय बैंक है।
  3. व्यापारिक बैंक-ये बैंक प्राय: अल्पकालीन ऋण देते हैं।
  4. विशिष्ट बैंकिंग संस्थाएं-भारतीय औद्योगिक विकास बैंक, ग्रामीण क्षेत्रीय बैंक, निर्यात-आयात बैंक इत्यादि विशिष्ट बैंकिंग संस्थाएं हैं।
  5. गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं-भारत की मुख्य गैर-बैंकिंग संस्थाएं यूनिट ट्रस्ट तथा जीवन बीमा निगम हैं। 6. स्टॉक एक्सचेंज-ये वे संस्थाएं हैं जहां कम्पनियों के शेयर या डिबेन्चर खरीदे और बेचे जाते हैं।

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प्रश्न 4.
उपभोक्ता के शोषण से क्या अभिप्राय है? उपभोक्ता संरक्षण के मुख्य उपाय बतायें।
उत्तर-
उपभोक्ता का शोषण-उपभोक्ता के शोषण से अभिप्राय है, उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादकों के अन्तर्गत व्यापार, व्यवहारों के फलस्वरूप होने वाला शोषण। उत्पादक उपभोक्ताओं का कई प्रकार से शोषण करते हैं, जैसेउत्पादन के गुणों के विषय में झूठी सूचनाएं देना, मिलावट करना, कम वज़न या गलत मापों का प्रयोग करना इत्यादि।
उपभोक्ता संरक्षण के मुख्य उपाय —

  1. एकाधिकार एवं प्रतिबन्धात्मक व्यापार व्यवहार अधिनियम (1969)-भारत में बड़े उत्पादकों तथा व्यावसायिक समूहों से उपभोक्ताओं तथा छोटे उत्पादकों को संरक्षण देने के लिए 1969 में यह अधिनियम लागू किया गया।
  2. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986)-उपभोक्ताओं का सभी स्तर के उत्पादकों से संरक्षण करने के लिए 1986 में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पास किया गया। यह अधिनियम 1987 में लागू किया गया है। इसमें उपभोक्ताओं की शिकायतें को कम खर्च पर तथा शीघ्रता से निपटाने के लिए जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निस्तारण फोरम स्थापित किए गए हैं।

प्रश्न 5.
सार्वजनिक वित्त प्रणाली से क्या अभिप्राय है? भारत में सार्वजनिक वित्त प्रणाली की वर्तमान स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
सार्वजनिक वित्त प्रणाली-सार्वजनिक वित्त प्रणाली द्वारा सरकार देश की जनता, विशेष रूप से निर्धन वर्ग को उचित कीमत की दुकानों के द्वारा जीवन की आवश्यक वस्तुओं जैसे-अनाज, चीनी, मिट्टी का तेल, मोटे कपड़े आदि का रियायती कीमतों पर निश्चित मात्रा में वितरण करती है।
भारत में सार्वजनिक वित्त प्रणाली के तीन मुख्य अंग हैं —

  1. न्यूनतम कीमतों पर वसूली-वर्ष 1988 में सरकार ने 140 लाख टन अनाज की वसूली निर्धारित कीमतों पर की थी। वर्ष 2009 में यह वसूली बढ़कर 437 लाख टन हो गई।
  2. बफर स्टॉक-सार्वजनिक प्रणाली का दूसरा ढंग सरकार द्वारा अनाज, चीनी आदि आवश्यक वस्तुओं का स्टॉक रखना है। इस स्टॉक को बफर स्टॉक कहा जाता है।
  3. उचित कीमत की दुकानें-सरकार ने आवश्यक वस्तुओं का कम कीमतों पर राशन कार्डों के माध्यम से वितरण के लिए लगभग 4.6 लाख उचित कीमतों की दुकानें खोली हैं।

PSEB 10th Class Social Science Guide भारतीय अर्थव्यवस्था की आधारिक संरचना Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
उपभोक्ता कौन होता है?
उत्तर-
जब हम कोई वस्तु खरीदते हैं तो हम उपभोक्ता बन जाते हैं।

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प्रश्न 2.
आर्थिक आधारिक संरचना का एक अवयव बताएं।
उत्तर-
सिंचाई।

प्रश्न 3.
भारतीय परिवहन का मुख्य साधन बताएँ।
उत्तर-
रेलवे।

प्रश्न 4.
भारत में सिंचाई के मुख्य दो साधन क्या हैं?
उत्तर-
मानसून तथा नदियां।

प्रश्न 5.
भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर-
1935.

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प्रश्न 6.
किसी एक उपभोक्ता संरक्षण कानून का नाम बताएँ।
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 ।

प्रश्न 7.
भारतीय रिज़र्व बैंक का कोई एक कार्य लिखें।
उत्तर-
नोट जारी करना।

प्रश्न 8.
भारत का केन्द्रीय बैंक कौन-सा है?
उत्तर-
भारतीय रिज़र्व बैंक।

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प्रश्न 9.
भारत की विशिष्ट बैंकिंग संस्था का नाम बताएँ।
उत्तर-
नाबार्ड।

प्रश्न 10.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अन्तर्गत दी जाने वाली किसी एक वस्तु का नाम बताएं।
उत्तर-
चीनी।

प्रश्न 11.
अर्थव्यवस्था की एक आधारिक संरचना का नाम लिखो।
उत्तर-
परिवहन।

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प्रश्न 12.
स्टॉक एक्सचेंज क्या है?
उत्तर-
जहां शेयर व डिबेंचर खरीदे व बेचे जाते हैं।

प्रश्न 13.
भारत की कोई गैर-बैंकिंग संस्था का नाम बताएँ।
उत्तर-
जीवन बीमा निगम।

प्रश्न 14.
भारत की बहुउद्देशीय योजना का नाम लिखें।
उत्तर-
भाखड़ा नंगल परियोजना।

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प्रश्न 15.
भारत में सामुद्रिक यातायात के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की किसी बड़ी कम्पनी का नाम लिखें।
उत्तर-
मुग़ल लाइन।

प्रश्न 16.
संचार का मुख्य साधन बताएं।
उत्तर-
दूरभाष।

प्रश्न 17.
भारत में बिजली का मुख्य स्रोत बताएं।
उत्तर-
ताप विद्युत्।

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प्रश्न 18.
वाणिज्य बैंक कौन होते हैं?
उत्तर-
जो अल्पकालीन ऋण देते हैं।

प्रश्न 19.
बहुउद्देशीय योजनाओं का एक उद्देश्य बताएं।
उत्तर-
जल विद्युत् का उत्पादन।

प्रश्न 20.
उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
उपभोक्ता की शिकायतों का सरल व सस्ता समाधान।

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प्रश्न 21.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आवश्यकता का एक कारण लिखें।
उत्तर-
अपर्याप्त उत्पादन।

प्रश्न 22.
सिंचाई क्या है?
उत्तर-
कृषि योग्य भूमि को आवश्यक पानी प्रदान करना।

प्रश्न 23.
कुछ आधारिक संरचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
परिवहन व संचार के साधन, शक्ति के साधन, सिंचाई के साधन, मौद्रिक तथा वित्तीय संस्थाएं, शिक्षा व चिकित्सा के साधन, आवास तथा नगरीय सेवाएं।

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प्रश्न 24.
आर्थिक आधारिक संरचनाओं से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
आर्थिक आधारिक संरचनाएं वे सुविधाएं तथा सेवाएं हैं जो उत्पादन तथा वितरण प्रणाली को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 25.
किसी देश की परिवहन प्रणाली से क्या आशय है?
उत्तर-
किसी देश की परिवहन प्रणाली से आशय उन विभिन्न साधनों से है जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर लोगों और वस्तुओं को लाते तथा ले जाते हैं। इन साधनों में रेल, सड़क, जल तथा वायु यातायात शामिल हैं।

प्रश्न 26.
संचार के प्रमुख साधनों के नाम लिखिए।
उत्तर-
डाक सेवाएं, तार, टेलीफोन, रेडियो, टेलीविज़न आदि संचार के मुख्य साधन हैं।

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प्रश्न 27.
भारत में सामुद्रिक यातायात के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की दो बड़ी कम्पनियों के नाम बताइए।
उत्तर-

  1. भारतीय शिपिंग निगम तथा
  2. मुगल लाइन।

प्रश्न 28.
भारत की दो बहु-उद्देशीय योजनाओं के नाम लिखिए। .
उत्तर-

  1. भाखड़ा नंगल परियोजना तथा
  2. दामोदर घाटी परियोजना।

प्रश्न 29.
भारत की किसी एक विशिष्ट बैंकिंग संस्था का नाम बताइए।
उत्तर-
भारतीय औद्योगिक विकास बैंक।

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प्रश्न 30.
भारत की प्रमुख गैर-बैंकिंग संस्थाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-

  1. यूनिट ट्रस्ट तथा
  2. जीवन बीमा आयोग।

प्रश्न 31.
स्टॉक एक्सचेंज से क्या आशय है?
उत्तर-
स्टॉक एक्सचेंज वे संस्थाएं हैं जहां कम्पनियों के शेयर या डिबेन्चर (साख पत्र) खरीदे और बेचे जाते हैं, इन्हें शेयर बाज़ार भी कहा जाता है।

प्रश्न 32.
भारतीय रिज़र्व बैंक का कोई एक कार्य लिखो।
उत्तर-
नोट जारी करना।

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प्रश्न 33.
उपभोक्ता शिक्षा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उपभोक्ता शिक्षा से तात्पर्य उस शिक्षा से है जो उपभोक्ता को दी जानी चाहिए, जिससे उपभोक्ता अपनी सीमित आय से अधिकतम सन्तुष्टि प्राप्त कर सके और बाज़ार में व्याप्त बुराइयों से अपने आपको शोषण से बचा सके।

प्रश्न 34.
यातायात के महत्त्वपूर्ण साधनों के नाम दें।
उत्तर-
रेलवे, सड़क, जल, वायु यातायात ही भारत में प्रमुख यातायात साधन हैं।

प्रश्न 35.
विद्युत् शक्ति के साधनों के नाम लिखें।
उत्तर-
ताप शक्ति, बिजली व आण्विक शक्ति इसके प्रमुख साधन हैं।

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प्रश्न 36.
सिंचाई के साधन कौन-से हैं?
उत्तर-
वर्षा, कुएं, ट्यूबवैल, तालाब आदि इसके मुख्य साधन हैं।

प्रश्न 37.
भारत के केन्द्रीय बैंक का क्या नाम है?
उत्तर-
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया।

प्रश्न 38.
रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया कब स्थापित किया गया?
उत्तर-
1935 में ।

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प्रश्न 39.
व्यापारिक बैंक क्या होते हैं?
उत्तर-
सामान्यतया ये बैंक अल्पकालीन ऋण देते हैं।

प्रश्न 40.
दो गैर-बैंकिंग संस्थाओं के नाम बताएं।
उत्तर-
U.T.I., LI.C.

प्रश्न 41.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कब पारित हुआ?
उत्तर-
1986 में।

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प्रश्न 42.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली क्या है?
उत्तर-
यह एक ऐसी प्रणाली है जिसके द्वारा सरकार देश की जनता विशेषकर निर्धन वर्ग को उचित मूल्य की दुकानों द्वारा जीवन की आवश्यक वस्तुओं का वितरण करती है।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. RBI की स्थापना ………… में हुई । (1945/1935)
  2. जब हम किसी वस्तु का उपभोग करते हैं तब हम ……….. बन जाते हैं। (उत्पादक/उपभोक्ता)
  3. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ……….. में लागू किया गया। (1985/1986)
  4. ……….. भारत का केन्द्रीय बैंक है। (SBI/RBI)
  5. ……….. अल्पकालीन ऋण देता है। (केन्द्रीय बैंक/वाणिज्य बैंक)
  6. NABARD की स्थापना ………… में की गई। (1982/1999)
  7. सिंचाई ………… आधारिक संरचना का तत्त्व है। (सामाजिक/आर्थिक)
  8. ………… देश में नोट जारी करता है। (RBI/SBI)

उत्तर-

  1. 1935,
  2. उपभोक्ता,
  3. 1986
  4. RBI,
  5. वाणिज्य बैंक,
  6. 1982,
  7. आर्थिक,
  8. RBI.

III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
RBI का कोई एक कार्य बताएं।
(A) नोट जारी करना
(B) सरकार का बैंक
(C) बैंकों का बैंक
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 2.
RBI की स्थापना कब हुई?
(A) 1925
(B) 1935
(C) 1945
(D) 1955.
उत्तर-
(B) 1935

प्रश्न 3.
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम कब लागू हुआ?
(A) 1980
(B) 1982
(C) 1986
(D) 1988.
उत्तर-
(C) 1986

प्रश्न 4.
NABARD की स्थापना कब हुई?
(A) 1982
(B) 1986
(C) 1988
(D) 1999.
उत्तर-
(A) 1982

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प्रश्न 5.
भारत का केन्द्रीय बैंक कौन-सा है?
(A) SBI
(B) PNB
(C) RBI
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(C) RBI

प्रश्न 6.
भारत में आर्थिक आधारिक संरचना का मुख्य तत्त्व कौन-सा है?
(A) बैंकिंग
(B) विद्युत् शक्ति
(C) सिंचाई
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 7.
भारत की विशिष्ट बैंकिंग संस्था कौन-सी है?
(A) क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक
(B) नाबार्ड
(C) Exim बैंक
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

IV. सही/गलत

  1. RBI की स्थापना 1935 में हुई थी।
  2. SBI भारत का केंद्रीय बैंक है।
  3. भारत में बिजली के तीन मुख्य स्त्रोत है।
  4. नाबार्ड की स्थापना 1992 में हुई।
  5. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम वर्ष 1986 में लागू हुआ।

उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. गलत
  5. सही।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आधारभूत संरचनाओं की क्या आवश्यकता है?
उत्तर-
किसी देश का राष्ट्रीय उत्पादन केवल वस्तुओं से नहीं बल्कि वस्तुओं तथा सेवाओं दोनों से मिलकर बना होता है। आधारभूत संरचनाएं-परिवहन व संचार के साधन, शक्ति व सिंचाई के साधन, बैंकिंग प्रणाली, शिक्षा तथा प्रशिक्षण सेवाएं, स्वास्थ्य तथा सफ़ाई सेवाएं अर्थ-व्यवस्था को उत्पादन तथा वितरण का आधार प्रस्तुत करती हैं। वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रियाओं के लिए कई प्रकार की सेवाओं की आवश्यकता होती है। इन आधारभूत संरचनाओं के अभाव में किसी अर्थ-व्यवस्था की उत्पादन प्रक्रिया रुक जाएगी।

प्रश्न 2.
एक अर्थ-व्यवस्था में परिवहन के साधनों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
यातायात अथवा परिवहन के साधनों का आशय मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने से है। प्रत्येक देश की आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास दर पर परिवहन के साधनों का प्रभाव पड़ता है। परिवहन के साधनों का महत्त्व बताते हुए किसी विद्वान् ने सत्य ही कहा है कि यदि कृषि तथा उद्योग किसी देश की अर्थ-व्यवस्था में शरीर व हड्डियों के समान हैं तो परिवहन के साधन (रेल, सड़कें, जल व वायु आदि) शिराओं एवं धमनियों का कार्य करते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में परिवहन के साधन के रूप में रेलवे पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
रेलवे लम्बी दूरी के भारी माल के लिए तथा यात्रियों के आवागमन के लिए सबसे ज्यादा सस्ता परिवहन का साधन है। भारत में 16 अप्रैल, 1853 को पहली रेलवे लाइन बम्बई (मुम्बई) से थाणा के बीच बनाई गई। भारतीय रेलवे व्यवस्था एशिया में सबसे बड़ी और संसार में चौथी मानी जाती है। इस समय भारत में रेलवे लाइनों की कुल लम्बाई 62759 किलोमीटर है। भारत में प्रतिदिन 7056 स्टेशनों के बीच 13 हज़ार गाड़ियां चलती हैं जोकि प्रतिदिन औसतन 110.5 लाख सवारियां तथा 6.9 लाख टन सामान ढोती हैं।

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प्रश्न 4.
भारत में परिवहन के साधन के रूप में वायु परिवहन पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
यातायात का सबसे तेज़ तथा महंगा साधन वायु परिवहन है। भारत में वायु परिवहन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की दो कम्पनियां हैं-इण्डियन एयर लाइन्स कारपोरेशन तथा एयर इण्डिया इण्टरनेशनल। सन् 1992 से कई निजी क्षेत्र की कम्पनियां भी स्थापित की गई हैं। भारत में 4 अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई तथा कोलकाता में हैं, जिनका संचालन अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा प्राधिकरण द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 5.
यह क्यों कहा जाता है कि संचार सेवाओं का सम्बन्ध एक अर्थ-व्यवस्था की सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं दोनों से होता है?
उत्तर-
आर्थिक संरचनाएं प्रत्यक्ष रूप से किसी अर्थ-व्यवस्था की उत्पादन प्रक्रिया को प्रभावित करती हैं। सामाजिक संरचनाएं परोक्ष रूप से ऐसा करती हैं। संचार सेवाएं किसी अर्थ-व्यवस्था की आर्थिक प्रक्रिया को प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूपों से प्रभावित करती हैं इसलिए संचार सेवाओं को आर्थिक तथा सामाजिक दोनों संरचनाओं में शामिल किया जाता है। – संचार संरचना सामाजिक एवं आर्थिक आधारभूत संरचना दोनों का ही अंग होता है। संचार प्रणाली निवेशकर्ता, उत्पादक एवं उपभोक्ता द्वारा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के लिए महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के प्रवाह को ले जाने का कार्य करती हैं। यह बाज़ार के अन्तर्गत हो रहे सभी परिवर्तनों की जानकारी देती है। अतः इस अर्थ में तो संचार संरचना स्वयं उत्पादन प्रक्रियाओं और इस कारण आधारभूत संरचना का ही एक अंग है। किन्तु दूसरी ओर संचार संरचना को शिक्षा की भान्ति एक व्यापक रूप में देखा जा सकता है। उदाहरणार्थ, प्रसारण प्रणाली का उपयोग किया जा सकता है। इस अर्थ में संचार संरचना सामाजिक आधारभूत संरचना का ही अंग बन जाता है।

प्रश्न 6.
भारत में बिजली के मुख्य स्रोतों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
भारत में बिजली के तीन मुख्य स्रोत हैं —

  1. ताप विद्युत्- यह बिजली ताप विद्युत् स्टेशनों में कोयले से उत्पन्न की जाती है। भारत में बिजली उत्पन्न करने का यह सबसे प्रमुख स्रोत है। भारत में बिजली की कुल उत्पादन क्षमता में ताप बिजली का भाग 65% प्रतिशत है।
  2. जल विद्यत-यह बिजली तेजी से बहती हुई नदियों पर ऊंचे डैम बनाकर उनके पानी से उत्पन्न की जाती है। भारत में बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के विकास के साथ-साथ जल विद्युत् का उत्पादन बढ़ता जा रहा है।
  3. परमाणु विद्युत्-भारत संसार के उन थोड़े-से देशों में है जो परमाणु शक्ति के उत्पादन की क्षमता रखते हैं। भारत में परमाणु शक्ति उत्पादन करने के लिए काफी मात्रा में खनिज उपलब्ध हैं, परन्तु परमाणु विद्युत् का उत्पादन बहुत कम मात्रा में किया जाता है।

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प्रश्न 7.
बहु-उद्देशीय योजनाओं से क्या अभिप्राय है ? बहु-उद्देशीय नदी घाटी परियोजनाओं के उद्देश्य बताइए।
उत्तर-
बहु-उद्देशीय योजना-बहु-उद्देशीय योजनाओं से तात्पर्य उन बहुमुखी परियोजनाओं से है जिनका निर्माण एक से अधिक समस्याओं का समाधान करने के लिए किया गया है।
बहु-उद्देशीय योजनाओं के उद्देश्य —

  1. जल-विद्युत् का उत्पादन।
  2. सिंचाई की सुविधाएं जुटाना।
  3. बाढ़ों की रोकथाम करना।
  4. दलदलों को सुखाना तथा कृषि योग्य भूमि बढ़ाना।
  5. जल-यातायात की सुविधाएं जुटाना।
  6. कृत्रिम जलाशयों में मछली पालन करना।
  7. वृक्षारोपण करना तथा वनों का उचित शोषण करना।

प्रश्न 8.
उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
उपभोक्ता संरक्षण कानून 1986 की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. निजी, सार्वजनिक और सहकारी क्षेत्र के सभी विक्रेताओं पर यह कानून लागू होता है।
  2. यह कानून उपभोक्ताओं की शिकायतों का सरल और सस्ता समाधान करता है।
  3. उपभोक्ताओं की शिकायतों का समाधान करने के लिए त्रि-स्तरीय अदालतें स्थापित की गई हैं
    (i) जिला फोरम
    (ii) राज्य आयोग
    (iii) राष्ट्रीय आयोग।
  4. उपभोक्ता अपनी शिकायतें वस्तु के खरीदने के दो साल तक कर सकता है।

प्रश्न 9.
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आवश्यकता पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की आवश्यकता इसलिए अनुभव की गई, क्योंकि मांग तथा पूर्ति की बाज़ार शक्तियां जीवन की आवश्यक वस्तुओं का सामाजिक दृष्टि से उचित वितरण करने में असमर्थ रहीं। इसके लिए पूर्ति तथा मांग दोनों को प्रभावित करने वाली शक्तियां निम्नलिखित कारणों से ज़िम्मेदार हैं —

  1. भारत में जीवन की आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति तीन कारणों से मांग की तुलना में कम है, जैसे
    (i) अपर्याप्त उत्पादन,
    (ii) उत्पादन के भण्डारण तथा बिक्री की सुविधाओं की कमी तथा
    (iii) जमाखोरी।
  2. भारत में अधिकतर उपभोक्ताओं के निर्धन होने के कारण उनके द्वारा बाजार कीमत पर आवश्यक वस्तुएं खरीदने की सम्भावना कम होती है। इसके फलस्वरूप भुखमरी तथा कुपोषण की बुराइयां उत्पन्न होने की सम्भावनाएं रहती हैं।

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प्रश्न 10.
उपभोक्ताओं के शोषण के क्या कारण हैं ?
उत्तर-

  1. अधिकांश भारतीय अशिक्षित, भाग्यवादी एवं रूढ़िवादी हैं। उपभोक्ता अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करते, इसीलिए उत्पादकों व दुकानदारों द्वारा उनका समय-समय पर शोषण किया जाता है।
  2. उपभोक्ताओं में संगठन व एकता का अभाव है। वे अपने ‘उपभोक्ता आन्दोलन’ में भी सक्रिय भाग नहीं लेते।
  3. उत्पादक व दुकानदार शासन की निष्क्रियता का लाभ उठाते हैं।
  4. अधिकांश भारतीय उत्पादकों तथा व्यापारियों का व्यावसायिक स्तर अत्यधिक निम्न है। अधिक लाभ कमाने के लालच में वे अवसर पाते ही उपभोक्ताओं को धोखा देकर उन्हें लूट लेते हैं।

प्रश्न 11.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली पर नोट लिखें।
उत्तर-
भारत सरकार देश के निर्धन वर्ग के लिए जीवन की आवश्यक वस्तुओं जैसे गेहूँ, चावल, चीनी, मिट्टी का तेल तथा कपड़े का कम कीमतों पर वितरण कराने के लिए प्रयत्नशील है। अतः इस उद्देश्य के लिए देश में सार्वजनिक वितरण प्रणाली अपनाई गई है। दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा सरकार देश की जनता, विशेष रूप से निर्धन वर्ग को उचित कीमत की दुकानों के द्वारा जीवन की आवश्यक वस्तुओं जैसे-अनाज, चीनी, मिट्टी का तेल, मोटे कपड़े आदि की रियायती कीमतों पर निश्चित मात्रा में वितरण करती है।

प्रश्न 12.
भारत में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की वर्तमान स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर-
सरकार ने आवश्यक वस्तुओं का कम कीमतों पर राशन कार्डों के माध्यम से वितरण करने के लिए लगभग 4.37 लाख उचित कीमत की दुकानें खोली हैं। 1988 में 180 लाख टन तथा 1996-97 में 190 लाख टन अनाज के अतिरिक्त चीनी, मिट्टी का तेल, कोयले तथा मोटे कपड़े का भी वितरण किया जाता है। पहाड़ी तथा सूखे क्षेत्रों की जनसंख्या वालों के लिए चाय, साबुन, दालों और आयोडाईज्ड नमक जैसी वस्तुओं का वितरण करने के लिए नई स्कीम चालू की गई है। इसे संशोधित सार्वजनिक वितरण प्रणाली कहा जाता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत भारतीय खाद्य निगम द्वारा विभिन्न राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को विशेष रियायती दरों पर खाद्यान्नों की पूर्ति की जाती है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत के आर्थिक विकास में यातायात तथा संचार के महत्व की व्याख्या करें। उत्तर-भारत के आर्थिक विकास में यातायात तथा संचार का बहुत अधिक महत्त्व है।

  1. यातायात (Transport) यातायात किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास के लिए उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना मानव विकास के लिए शरीर में रक्त संचार था। मानव शरीर में रक्त का संचार विभिन्न धमनियों से होकर गुजरता है उसी प्रकार यातायात के संदर्भ में सड़कें किसी देश की अर्थव्यवस्था में धमनियों का काम करती हैं। उत्पादन करने के लिए उद्योग कहीं स्थापित है तथा कच्चा माल किसी दूसरे स्थान पर मिलता है। अतः कच्चे माल को उत्पादन क्षेत्रों तक पहुंचाने के लिए यातायात के साधन ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी प्रकार निर्यात माल को भी उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए यातायात ही महत्त्वपूर्ण है।
  2. संचार (Communication)-किसी देश के आर्थिक विकास में यातायात के साथ-साथ संचार का भी बहुत महत्त्व है। संचार से अभिप्राय है कि किसी संदेश या सूचना को एक स्थान से दूसरे स्थान या व्यक्तियों तक पहुँचाना। आज विश्व के सभी क्षेत्रों चाहे वह सरकारी, निजी, शिक्षा, व्यवसाय, कृषि, विज्ञापन प्रैस, मीडिया या रक्षा क्षेत्र हों सभी क्षेत्रों में अच्छे संचार की व्यवस्था की आवश्यकता होती है। इसके लिए हम डाकघर, टैलीफोन, विदेश संचार, रेडियो, दूरदर्शन आदि के द्वारा अपना संदेश एक-दूसरे तक पहुँचाते हैं। इसी प्रकार क्रेता तथा विक्रेता को बाजार के बारे में सूचना प्रदान कर बाज़ार के क्षेत्र का भी विकास होता है।

प्रश्न 2.
केंद्रीय बैंक के किन्हीं तीन प्रमुख कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-केंद्रीय बैंक के तीन प्रमुख कार्यों का वर्णन हम निम्नलिखित प्रकार से कर सकते हैं —

  1. नोट जारी करने वाला बैंक (Bank of Note Issue)-आजकल लगभग हर देश में नोट छापने का अधिकार वैधानिक तौर पर केंद्रीय बैंक को सौंपा गया है। इसके सिवाय और कोई बैंक नोट जारी नहीं कर सकता। यह शक्ति केंद्रीय बैंक को नोट निर्गमन का एकाधिकार सौंपती है। भारत में केंद्रीय बैंक (Reserve Bank of India) के पास नोट निर्गमन का एकाधिकार नहीं है। क्योंकि एक रुपये के नोट वित्त मंत्रालय द्वारा जारी किए जाते हैं। परन्तु बाकी सभी नोट केंद्रीय बैंक द्वारा जारी किए जाते हैं।
  2. सरकार का बैंक, एजेंट व सलाहकार (Bankers Agent and Adviser to the Govt.) केंद्रीय बैंक केंद्र व सरकारों को वही सेवाएं प्रदान करता है जो कि वाणिज्य बैंक अपने ग्राहकों को प्रदान करते हैं। अतः सरकार का बैंकर होने के नाते यह सरकार की ओर से लेन-देन करता है और आवश्यकता पड़ने पर यह सरकार को अल्पकालीन ऋण भी देता है ताकि संकट पर काबू पाया जा सके।
  3. व्यापारिक बैंकों की सुरक्षित नकदी का रक्षक (Custodian of the Cash Reserves of Commercial Banks)-सभी व्यापारिक बैंक कानूनी तौर पर या प्रथा के आधार पर अपने जमा खातों का कुछ भाग केंद्रीय बैंक के पास रखते हैं। इसी कारण केंद्रीय बैंक को व्यापारिक बैंकों की सुरक्षित नकदी का रक्षक कहा जाता है। सभी व्यापारिक बैंकों द्वारा अपनी सुरक्षित नकदी का कुछ भाग केंद्रीय बैंक में रखने के बहुत-से लाभ हैं।
    (a) सुरक्षित नकदी का यह केंद्रीयकरण बैंकिंग प्रणाली को सुदृढ़ अर्थात् मज़बूत बनाता है तथा व्यापारिक बैंकों में लोगों का विश्वास बनाए रखता है।
    (b) केंद्रीय बैंक में व्यापारिक बैंकों की नकदी को केंद्रित करने से साख का ढांचा विस्तृत व लचकदार बनता है।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 4 आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं)

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 4 आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं) Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 4 आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं)

आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं) Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें:

प्रश्न 1.
भारत के कुल घरेलू उत्पादन में कृषि उत्पादन का कितना हिस्सा है ?
उत्तर-
भारत के कुल घरेलू उत्पादन में कृषि का 17% हिस्सा है।

प्रश्न 2.
गेहूँ और चावल की उपज के लिए कौन-सी मिट्टी सही है ?
उत्तर-
गेहूँ की उपज के लिए उपजाऊ जलोढ़ी दोमट मिट्टी और दक्षिणी पठार की काली मिट्टी और चावल की उपज के लिए चिकनी दोमट मिट्टी सही है।

प्रश्न 3.
काली मिट्टी में उगाई जाने वाली कोई दो फ़सलों के नाम लिखो।
उत्तर-
कपास और गन्ना।

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प्रश्न 4.
खानाबदोश ज़िन्दगी जीने वाले लोगों का मुख्य धंधा क्या रहा है ?
उत्तर-
खानाबदोश ज़िन्दगी जीने वाले लोगों का मुख्य धंधा पशु-पालन रहा है।

प्रश्न 5.
धनगर चरागाहें कौन-से राज्यों में मिलती हैं ?
उत्तर-
धनगर चरागाहें मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में मिलती हैं।

प्रश्न 6.
कोई दो मोटे अनाजों का नाम लिखो।
उत्तर-
ज्वार, बाजरा।

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प्रश्न 7.
जोड़े बनाओ—
(i) बाग़वानी फ़सल — (क) चने
(ii) खुराकी अनाज — (ख) गन्ना
(iii) रोपण फ़सल — (ग) नींबू
(iv) नकद फ़सल — (घ) अदरक।
उत्तर-

  1. (ग),
  2. (क),
  3. (घ),
  4. (ख)।

प्रश्न 8.
कौन-से तीन राज्य भारत का अन्न भंडार कहलाते हैं ?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा।

प्रश्न 9.
हिमाचल प्रदेश की कौन-सी घाटी चाय उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा, जोगिंदर नगर, मंडी इत्यादि स्थानों से चाय का उत्पादन होता है।

प्रश्न 10.
SOWT विश्लेषण में कितने किस्म की विशिष्टता शामिल है ?
उत्तर-
SOWT विश्लेषण में पंजाब की कृषि की ताकत, कमजोरी, अवसर इत्यादि खतरों का विश्लेषण किया जाता है।

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प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें :

प्रश्न 1.
कोई दो भारतीय पशु-पालक भाईचारों और उनके राज्यों के नाम लिखो।
उत्तर-
गोला (गाय), करोमा (भेड़) पशु-पालक भाईचारा आंध्र प्रदेश में मिलते हैं और टोडा (भैंस) पशु-पालक भाईचारा मध्य प्रदेश में मिलते हैं।

प्रश्न 2.
ऋतु प्रवास क्या होता है ? स्पष्ट करो।
उत्तर-
जब पशु पालक चरवाहे अपने पशुओं के साथ मौसम बदलने के कारण दूसरे क्षेत्र में चले जाते हैं उसे ऋतु रवास कहते हैं। हिमालय के पहाड़ों में पशु-पालन ऋतु प्रवास के चक्र अनुसार होता है। सर्दी में चरवाहे, बर्फ से पहले ही पशुओं को लेकर मैदानी इलाकों में चले जाते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में कृषि के मौसमों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारतीय कृषि को मुख्य रूप में चार मौसमों में विभाजित किया जाता है—

  1. खरीफ-ज्वार, बाजरा, चावल, कपास, मूंगफली इत्यादि।
  2. जैद खरीफ-चावल, ज्वार, सफेद सरसों, कपास इत्यादि।
  3. रबी-गेहूँ, जौं, चने, अलसी के बीज, मटर, मसर इत्यादि।
  4. जैद रबी-तरबूज, तोरी, खीरा इत्यादि।

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प्रश्न 4.
निर्वाह कृषि क्या होती है ? नोट लिखो।
उत्तर-
इस कृषि प्रणाली द्वारा स्थानीय जरूरतों की पूर्ति करनी होती है। इस कृषि का मुख्य उद्देश्य भूमि के उत्पादन को अधिक से अधिक बढ़ाया जाए ताकि जनसंख्या का पालन-पोषण किया जा सके। इसको निर्वाह कृषि कहते हैं। घूमंतु कृषि, स्थानाबंध कृषि और घनी कृषि निर्वाह कृषि कहलाती हैं। इस कृषि द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग को पूरा किया जाता है।

प्रश्न 5.
कोई चार नकद फ़सलों के नाम लिखो।
उत्तर-
चार नकद फसलों के नाम नीचे लिखे अनुसार हैं—

  1. कपास,
  2. पटसन,
  3. गन्ना,
  4. तम्बाकू।

प्रश्न 6.
हिमाचल प्रदेश में अधिकतर कौन-कौन से फलों के बाग मिलते हैं ?
उत्तर-
हिमाचल प्रदेश में अधिकतर सेब, चैरी, नाशपाती, आड़, बादाम, खुरमानी और अखरोट के बाग मिलते हैं।

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प्रश्न 7.
चाय पत्ती की किस्मों के नाम लिखो।
उत्तर-
चाय पत्ती की चार किस्मों के नाम नीचे दिए अनुसार हैं—

  1. सफेद चाय-मुरझाई हुई पत्ती।
  2. पीली चाय-ताजी पत्ती वाली चाय।
  3. हरी चाय-ताजी पत्ती।
  4. काली चाय-पीसी हुई छोटी पत्ती।

प्रश्न 8.
बाबा बूढ़न पहाड़ी कारोबार के इतिहास से परिचय करवाओ।
उत्तर-
काहवा का उत्पादन मुख्य रूप में 1600 ई० में शुरू हुआ था। जब एक सूफी संत बाबा बूढ़न ने यमन के ‘मोचा’ शहर से मक्का की तरफ यात्रा शुरू की तो मोचा शहर में काहवा की फलियों से बना काहवा पीकर देखा तो खुद को तरोताजा महसूस किया। वह काहवा के बीज वहाँ से अपने साथ लाए और कर्नाटक के चिंकमंगलूर शहर में बीज दिए। आज इस कारोबार को बाबा बूढ़न के पहाड़ कहा जाता है।

प्रश्न 9.
भारत में गन्ना उत्पादन के लिए प्रसिद्ध क्षेत्रों के बारे में बताएं।
उत्तर-
भारत में गन्ना उत्पादन महाराष्ट्र, कर्नाटक, बिहार, गुरदासपुर इत्यादि क्षेत्रों में अधिक होता है। दक्षिणी भारत में उगाया जाने वाला गन्ना बेहतर जलवायु के कारण अधिक मिठास और रसभरा होता है।

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प्रश्न 10.
सुनहरी रेशा क्या है ? यह कहाँ-कहाँ उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
पटसन एक सुनहरी चमकदार प्राकृतिक रेशेदार फ़सल है, इसलिए पटसन को सुनहरी रेशा कहते हैं। इसको नीचे दिए कारणों के लिए उपयोग किया जाता है—

  1. कृषि उत्पादों की संभाल के लिए, बोरी और रस्सी बनाने के लिए।
  2. टाट बनाने के लिए।
  3. कपड़े इत्यादि पटसन से ही बनते हैं।

प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
तापमान, वर्षा और मिट्टी के पक्ष से नीचे लिखे का मुकाबला करो।
1. गेहूँ और चावल
2. चाय और काहवा।
उत्तर-

गेहूँ चाय
1. गेहूँ की बिजाई के समय 10 से 15 डिग्री सैंटीग्रेड तापमान और कटाई के समय 21 से 26 डिग्री सैंटीग्रेड तापमान ठीक रहता है। 1. चाय के पौधे के लिए 20 से 30° सैंटीग्रेड तापमान ज़रूरी होता है।
2. गेहूँ के लिए 75 से 100 सैंटीमीटर वर्षा ठीक रहती है। 2. चाय की पैदावार के लिए 150 से 300 सैंटीमीटर वर्षा सालाना चाहिए।
3. उपजाऊ जलोढ़ी दोमट मिट्टी और दक्षिण के पठार की काली मिट्टी गेहूँ की फसल के लिए अच्छी मानी जाती है। 3. चाय की पैदावार के लिए अच्छी दोमट मिट्टी और जंगली मिट्टी सहायक होती है।

 

चावल काहवा
1. 24 डिग्री सैंटीग्रेड से 30 डिग्री सैंटीग्रेड तापमान चावलों की बिजाई और कटाई के लिये बिल्कुल ठीक माना जाता है। 1. काहवा के पौधे के बढ़ने के लिए 20° से 27° सैंटीग्रेड तापमान ठीक होता है। काहवा को काटने के समय तापमान गर्म होना चाहिए।
2. चावल की बेहतर फसल के लिए 50 से 200 सैंमी० सालाना वर्षा ज़रूरी है। 2. काहवा के लिये कम से कम 100 से 200 सैं०मी० सालाना वर्षा जरूरी है।
3. चिकनी, दोमट मिट्टी चावलों की फसल के लिए अच्छी मानी जाती है। 3. काहवा की पैदावार के लिए दोमट मिट्टी का उपयोग किया जाता है।

 

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प्रश्न 2.
पटसन की फसल के लिए जरूरी भौगोलिक हालातों और भारत के उत्पादन पर नोट लिखो।
उत्तर-
कपास के बाद पटसन दूसरी महत्त्वपूर्ण रेशेदार फ़सल है, इसको सुनहरी रेशे वाली फ़सल भी कहते हैं। पटसन की फसल के लिए ज़रूरी भौगोलिक हालत निम्नलिखित हैं—

  1. पटसन के उत्पादन के लिए गर्म और नमी वाले मौसम की ज़रूरत होती है। इसमें 24° से 35° सैंटीग्रेड तापमान की ज़रूरत होती है।
  2. पटसन के उत्पादन के लिए कम-से-कम नमी 80 से 90 प्रतिशत रहनी चाहिए।
  3. पटसन के उत्पादन के लिए 120 से 150 सैं०मी० तक वर्षा होनी चाहिए। पटसन की फसल काटने के बाद भी इसके रेशे बनाने की क्रिया के लिए अधिक पानी चाहिए।

उत्पादन-1947 में भारत-पाकिस्तान क्षेत्र विभाजन के साथ ही पटसन उद्योग को काफी नुकसान हुआ। पटसन का उत्पादन करने वाला 75% क्षेत्र बंगलादेश में रह गया।

विभाजन के कारण पटसन के अधिकतर कारखाने पश्चिमी बंगाल में रह गए। इसलिए बाद में भारत के पटसन के अधीन क्षेत्र में काफी बढ़ावा हुआ और साल 2015-16 में पटसन की 8842 गांठों का उत्पादन हुआ। भारत में पटसन का उत्पादन मांग से कम होता है। इसलिए हमें पटसन बंगलादेश से आयात करनी पड़ती है। 2016 में पटसन की आयात की मात्रा में 69% से 130% तक की कीमत का बढ़ाव दर्ज किया गया।

प्रश्न 3.
घनी निर्वाह कृषि पर नोट लिखो।
उत्तर-
घनी निर्वाह कृषि को दो मुख्य भागों में विभाजित किया जाता है :
1. चावल प्रधान घनी निर्वाह कृषि—इस तरह की कृषि में चावल एक प्रमुख फ़सल है। इस तरह की कृषि अधिकतर मानसूनी एशिया में की जाती है। इस तरह की कृषि में भूमि का आकार छोटा होता है। किसान और उसका पूरा परिवार सख्त मेहनत करके अपने निर्वाह योग्य अनाज पैदा करता है। बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि का आकार और छोटा हो जाता है। उदाहरण के तौर पर केरल और बंगाल।

2. घनी निर्वाह कृषि (चावल रहित)-भारत के कई भागों में धरातल, मिट्टी, जलवायु, तापमान, नमी इत्यादि और सामाजिक-आर्थिक कारणों के कारण चावल के अलावा और फसलें भी उगाई जाती है। पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में घनी निर्वाह कृषि की जाती है।

प्रश्न 4.
भारत में उगाई जाने वाली फसलों के वितरण पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत में उगाई जाने वाली फसलों को हम नीचे लिखे अनुसार विभाजित कर सकते हैं:

  1. खाद्यान्न (Food Crops)-गेहूँ, मक्की, चावल, मोटे अनाज, ज्वार, बाजरा, दालें, अरहर इत्यादि।
  2. नकद फसलें (Cash Crops)-कपास, पटसन, गन्ना, तम्बाकू, तेलों के बीज, मूंगफली, अलसी, तिल, अरंडी का तेल, सफेद सरसों और काली सरसों इत्यादि।
  3. रोपण फसलें (Plantation Crops) चाय, काहवा, इलायची, मिर्च, अदरक, हल्दी, नारियल, सुपारी और रबड़ इत्यादि।
  4. बागवानी फसलें (Horticulture)-फल जैसे-सेब, आडू, नाशपाती, अखरोट, बादाम, स्ट्राबेरी, खुरमानियां, आम, केला, संतरा, किन्नू और सब्जियां इत्यादि।

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प्रश्न 5.
परती भूमि क्या होती है ? इसकी किस्में भी लिखो।
उत्तर-
परती भूमि-यह वह भूमि होती है, जो किसी कारण खाली छोड़ दी जाती है। इसमें भविष्य में उपयोग में लाने के लिए खाली छोड़ी भूमि, स्थाई चरागाहों और पेड़ों के नीचे भूमि आ जाती है। परती भूमि को मुख्य रूप में दो किस्मों में विभाजित किया जाता है—

  1. वर्तमान परती भूमि-ऐसी भूमि जो उत्पादन के योग्य है मगर किसान द्वारा वह एक साल के लिए या इससे कम समय के लिए खाली छोड़ दी जाती है, ताकि उसकी उपजाऊ शक्ति बढ़ जाए और वर्तमान में ऐसी भूमि परती भूमि कहलाती है।
  2. पुरानी परती भूमि-ऐसी ज़मीन जो कृषि योग्य है और उसकी उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिए उसको 1 साल या इससे अधिक समय के लिए खाली छोड़ दी जाए, पुरानी परती भूमि कहलाती है।

प्रश्न 6.
हिमालय में पशु पालन पर नोट लिखें।
उत्तर-
हिमालय के पहाड़ों में पशु पालन ऋतु प्रवास के चक्र के अनुसार किया जाता है। सर्दी में बर्फ पड़ने से पहले ही चरवाहे अपने पशुओं को लेकर मैदानी क्षेत्रों में चले जाते हैं, ताकि उनके पशुओं के लिए चारे का भी अच्छा प्रबंध किया जा सके। गर्मी शुरू होते ही ये चरवाहे वापिस पहाड़ों की ओर चले आते हैं। पश्चिम और पूर्वी हिमालय श्रेणी में प्रवासी चरवाहे पशु पालते हैं। मुख्य तौर पर जम्मू कश्मीर में बकरवाल, भैसों को पालने वाले चरवाहे, ‘गुज़र, कानेत कौली, किन्नौरी, भेड़-पालन वाले भेटिया, शोरपा खुबू इत्यादि चरवाहे कबीले मिलते हैं।

प्रश्न 7.
पंजाब की कृषि की दरपेश खतरों (Threats) से परिचित करवाएं।
उत्तर-
पंजाब की कृषि को नीचे लिखे खतरों का सामना करना पड़ता है—

  1. खुदकुशी-कृषि में लगाए धन पर कम मुनाफे के कारण वापिस न मिलना और किसानों का कर्ज के घेरे में फंस जाना, इसी कारण पंजाब में किसानों द्वारा खुदकुशी की जा रही है। 1995 से 2015 तक 21 सालों में भारत में 3,18,528 किसान खुदकुशी कर चुके हैं।
  2. मौसम की अनिश्चितता-पंजाब में वर्षा, तापमान इत्यादि की अनिश्चितता के कारण प्राकृतिक स्रोतों का नुकसान हो रहा है।
  3. कीटों के हमले के कारण फसलों का नुकसान-फसलों पर जहरीली रासायनिक कीटनाशकों का प्रभाव कम हो गया और कीटों के लगातार हमले बढ़ रहे हैं।
  4. कर्जे की मार-बढ़ती लागत में महंगी हो रही मशीनरी, बीज और कम होती कृषि उत्पादन की कीमतों के कारण किसान और कर्जा लेने के लिए मजबूर हो जाते हैं जिसके कारण वह कर्जदार हो जाते हैं।
  5. कृषिबाड़ी-कृषिबाड़ी में नई पीढ़ी का रुझान कम हो गया है।
  6. महंगी हो रही कृषि की लागत-किसानों की कृषि के साथ जुड़ी हर ज़रूरत की चीज़ महंगी होती जा रही

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प्रश्न IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
भारत में गेहूँ की कृषि के अलग-अलग पहलू के बारे में लिखो।
उत्तर-
गेहूँ रबी के मौसम की फसल है। यह फसल वास्तविकता में रोम सागर के पूर्व भाग, लेवांत (Levant) क्षेत्र से शुरू हुई मानी जाती है। पर अब यह फसल पूरे संसार में बीजी जाती है और मनुष्य के लिए प्रोटीन का मुख्य स्रोत है। इसमें 13% प्रोटीन के तत्त्व मौजूद हैं जोकि बाकी अन्न फसलों के मुकाबले अधिक है। भारत दुनिया का चौथा बड़ा गेहूँ उत्पादक देश है यह दुनिया की 87% गेहूँ का उत्पादन करता है।

गेहूँ की पैदावार के लिए ज़रूरी हालात-गेहूँ उगाने के लिए बिजाई और कटाई का समय अलग-अलग जलवायु खंडों में विभाजित किया जाता है। भारत में गेहूँ की बिजाई आमतौर पर अक्तूबर/नवम्बर में की जाती है और इसकी कटाई अप्रैल महीने में की जाती है। गेहूँ मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों की मुख्य फ़सल है। इसके लिए ठंडी जलवायु और मध्यम वर्षा उपयोगी सिद्ध होती है। इसकी बिजाई समय तापमान 10 से 15 सैंटीग्रेड और कटाई के समय तापमान 21 से 26 डिग्री सैंटीग्रेड चाहिए। कटाई के समय भारी वर्षा और अधिक तापमान गेहूँ की फसल के लिए नुकसानदायक होता है। गेहूँ के लिए तकरीबन 75 से 100 सैंटीमीटर वर्षा चाहिए। इसके लिए जलोढ़ दामोदर और दक्षिणी पठार की काली मिट्टी बहुत उपयोगी है।

2014-15 में 31.0 लाख हैक्टेयर ज़मीन पर गेहूँ की फसल उगाई गई। गेहूँ का कुल उत्पादन 88.9 लाख टन था। 1971 में गेहूँ की पैदावार 1307 किलो प्रति हैक्टेयर से बढ़कर साल 2014-15 में 2872 किलो प्रति हैक्टेयर तक हो गया पर आज के समय में भी हमारे देश की पैदावार संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, रूस इत्यादि के मुकाबले काफी कम है।
संसार में उत्पादन-गेहूँ मध्य अक्षांश के शीत उष्ण खास के मैदानों की पैदावार है। संसार में गेहूँ की कृषि का क्षेत्र लगातार बढ़ता जा रहा है।

देश उत्पादन (लाख टन) देश उत्पादन (लाख टन)
रूस 441 ऑस्ट्रेलिया 185
यू०एस०ए० 687 तुर्की 180
चीन 1226 अर्जेंटाइना 143
भारत 690
कनाडा 242
फ्रांस 339

उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा गेहूँ के प्रमुख उत्पादक हैं। इन राज्यों को भारत का अन्न भंडार भी कहते हैं। पंजाब गेहूँ का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश राज्य है और क्षेत्रफल के तौर पर यह पंजाब से छ: गुणा अधिक है।
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 4 आर्थिक भूगोल कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं) 1
व्यापार-गेहूँ के कुल उत्पादन का एक तिहाई (1/3) हिस्सा व्यापार में आ जाता है। भारत के मुख्य निर्यात राज्य पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश हैं जो अपनी गेहूँ को महाराष्ट्र, बिहार, बंगाल इत्यादि जगह पर बेचते हैं।

भारत ने 1970-71 में 29.33 लाख टन गेहूँ की पैदावार की जो कि 1975-76 में 70.94 लाख टन तक पहुँच गई और 2015-16 में 618020.01 लाख टन गेहूँ का निर्यात होने लगा। मुख्य खरीददार बांगलादेश, अरब, ताइवान, नेपाल इत्यादि हैं।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 4 आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं)

प्रश्न 2.
पंजाब का कृषि की SWOT पक्षों के बारे में बताते हुए प्रत्येक दो-दो विशेषताओं के बारे में लिखो।
उत्तर-
पंजाब की कृषि SWOT का अर्थ-Strengths (ताकत) Weaknesses (कमज़ोरी) Opportunities (अवसर), Threats (खतरे) इत्यादि पक्षों के बारे बताया।
पंजाब एक कृषि प्रधान प्रदेश है। यहाँ के निवासियों का मुख्य कार्य कृषि है। हरित क्रांति (1960) के बाद पंजाब की परंपरागत कृषि तो खत्म हो गई और पंजाब ने गेहूँ और चावल का रिकॉर्ड तोड़ उत्पादन किया। 1990 के बाद कृषि के बाद जुड़ी हुई मशीनरी और बीजों की बढ़ रही कीमतों और गेहूँ-चावल के फसली चक्र ने पंजाब के सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण इत्यादि के माहौल के खराब कर दिया। इस सबकी रिपोर्ट इस तरह है—
1. (S) पंजाब की कृषि की ताकतें-पंजाब की कृषि का उत्पादन आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार काफी अधिक हो गया, क्योंकि—

  1. प्राकृतिक वातावरण अनुकूल-प्रकृति ने पंजाब को उपजाऊ मिट्टी, शुद्ध पानी के साथ नवाजा है। यहाँ की जलवायु कृषि के लिए बहुत ही अनुकूल है।
  2. हरित क्रांति का प्रभाव-1960 में आई हरित क्रांति के कारण लोगों ने बढ़िया बीजों, रासायनिक खादों का उपयोग, सिंचाई में सुधार के कारण और उपजाऊ जमीन के कारण फसलों का उत्पादन बहुत बढ़ा लिया।

इसके अतिरिक्त तकनीक की निपुणता इत्यादि के कारण कृषि का उत्पादन पहले से काफी बढ़ा लिया।
2. कृषि की कमजोरियां (W)—कृषि की विशेषता के साथ-साथ कई कमजोरियां भी हैं, जैसे कि—

  1. उत्पादन में स्थिरता/कमी-अधिक से अधिक भूमि के उपयोग के कारण भूमि की उपजाऊ शक्ति में कमी आ गई। जिस कारण 1970-80 के दशक के बाद पंजाब में कृषि के उत्पादन में कमी आई।
  2. मूल स्त्रोतों की बर्बादी-लोगों ने उत्पादन के लालच में प्राकृतिक स्रोतों का अधिक से अधिक उपयोग शुरू कर दिया क्योंकि तकनीक के बढ़ाव के कारण कृषि अधीन क्षेत्र भी काफी बढ़ गया जिस कारण प्राकृतिक स्रोतों का उपयोग बढ़ गया और 1990 के बाद लगातार प्राकृतिक स्रोतों की बर्बादी हुई जिस कारण पानी का स्तर कम होता चला गया।

इसके बिना कटी फसल का भी काफी नुकसान हुआ और आधुनिक तकनीक तक कम पहुँच भी कृषि की एक कमजोरी है।
3. पंजाब की कृषि में अवसर (O)—पंजाब की कृषि ने लोगों को रोजगार के कई अवसर भी दिए हैं। जैसे कि—

  1. कृषि में बहुरूपता-फसली चक्र के कारण लोगों ने चावल और गेहूँ दो तरह की फसलों की पैदावार शुरू की जिसने पंजाब के प्राकृतिक स्रोतों को काफी नुकसान पहुँचाया जिस कारण फसली चक्र अब बदलता जा रहा है। पंजाब में किसानों को फल, सब्जियां इत्यादि पैदा करने के लिए अब प्रेरित किया जा रहा है। इस प्रकार कृषि में बहुरूपता आ रही है।
  2. जैविक कृषि को उत्साहित करना-रासायनिक कृषि को कम करने की और प्राकृतिक स्रोतों से बचाने के लिए जैविक कृषि की तरफ लोगों को प्रेरित करने की जरूरत है। दाल, सब्जी इत्यादि की पैदावार के साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।

4. पंजाब की कृषि को खतरा (T)—पंजाब की कृषि की पैदावार के साथ-साथ कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि—

  1. मौसम की अनिश्चितता-पंजाब में वर्षा, मौसम इत्यादि निश्चित नहीं है जिस कारण पानी का उपयोग अधिक हो रही है। क्योंकि वर्षा अनिश्चित हो रही है और कुदरती स्रोतों का नुकसान हो रहा है।
  2. कीटों के हमले कारण फसलों का नुकसान-फसली कीड़ों का प्रभाव बढ़ने के कारण फसलों का नुकसान हो रहा है। अब कीटनाशक दवाइयां, नदीननाशक तक बेअसर होते जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर कुछ साल पहले मालवा में कपास पट्टी सफेद मक्खी ने तबाह कर दिया था।
    इसके अतिरिक्त किसानों द्वारा खुदकुशियाँ कर्जे की मार, कृषि में नई पीढ़ी का कम रुझान, महंगी हो रही कृषि लागत इत्यादि कुछ खतरे पंजाब की कृषि को सहने पड़ रहे हैं।
    पंजाब को भारत का अन्न-भंडार कहा जाता है। पंजाब की कृषि ने एक नया इतिहास रचा है जिसने पिछले सारे रिकार्ड तोड़ दिए। इसलिए पंजाब की कृषि SWOT विश्लेषण विद्यार्थियों के लिए किया गया।

प्रश्न 3.
गन्ने की फसल के लिए जरूरी भौगोलिक हालात और इसके उत्पादन और वितरण से परिचय करवाओ।
उत्तर-
सारे संसार में खांड (चीनी) लोगों के भोजन का एक जरूरी अंग है। गन्ना और चुकन्दर खांड के दो मुख्य साधन हैं। संसार की 65% चीनी गन्ने और बाकी चुकन्दर से प्राप्त होती है। गन्ना एक व्यापारिक और औद्योगिक फसल है। गन्ने से कई पदार्थ जैसे, गुड़, शक्कर, सीरा, कागज, खाद, मोम इत्यादि तैयार किए जाते हैं। भारत को गन्ने का जन्मस्थान माना जाता है। यहाँ के गन्ने का विस्तार पश्चिमी देशों में हुआ है।
भौगोलिक हालात-गन्ने की फसल के लिए जरूरी भौगोलिक हालात नीचे लिखे अनुसार हैं—

1. तापमान-गन्ने की फसल को पूरी तरह तैयार होने के लिए तकरीबन 15 या कई बार 18 महीने लग जाते हैं। गन्ने को नमी वाली और गर्म जलवायु की जरूरत होती है। गन्ने की फसल के लिए 21° से लेकर 27° सैंटीग्रेड तक तापमान की जरूरत होती है। फसल को पकने के लिए 20 सैंटीग्रेड तक तापमान की जरूरत होती है जो फसल में मिठास को बढ़ा देता है।

2. वर्षा-गन्ना उगाने के समय 75 से लेकर 100 सैंटीमीटर तक वर्षा की जरूरत होती है। अगर वर्षा की मात्रा इससे अधिक हो जाए या भारी हो जाए तब गन्ने की मिठास कम हो जाती है। जिन क्षेत्रों में वर्षा 100 सैं० मी० से कम होती है वहाँ सिंचाई की सहायता से कृषि की जाती है। गन्ने की फसल के लिए पकने के समय खुश्क और ठंडा मौसम अनुकूल रहता है। कोहरा गन्ने के लिए बिल्कुल भी अच्छा नहीं होता। कोहरा पड़ने से पहले ही फसल को इसलिए काट लिया जाता है।

3. मिट्टी-गन्ने की पैदावार के लिए दोमट, चिकनी दोमट और काली मिट्टी उपयोगी है। दक्षिणी भारत की भूरी और लाल मिट्टी, लेटराइट मिट्टी काफी उपयोगी है। मिट्टी में चूना तथा फॉस्फोरस का अंश अधिक होना चाहिए। नदी घाटियों की कांप की मिट्टी गन्ने की फसल के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है।

4. सस्ते मज़दूर-गन्ने की कृषि में अधिकतर काम हाथ से किए जाते हैं। इसलिए सस्ते मजदूरों की जरूरत होती

5. धरातल-गन्ने की कृषि के लिए समतल मैदानी धरातल होना चाहिए। मैदानी भागों में जल-सिंचाई और यातायात के साधन आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। मैदानी भागों में मशीनों को कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है।

6. तटीय प्रदेश-अधिकतर गन्ने की पैदावार समुद्री तटीय भागों में की जाती है। यहाँ समुद्री हवा गन्ने में रस की मात्रा बढ़ा देती है।

उत्पादन-भारत ब्राजील के बाद संसार का दूसरा बड़ा गन्ना उत्पादक देश है। भारत में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन उत्तर प्रदेश में होता है। यहाँ का उत्पादन देश के कुल उत्पादन का 38.61% होता है। दूसरे और तीसरे स्थान पर क्रमवार महाराष्ट्र और कर्नाटक हैं। इसके अतिरिक्त भारत में गन्ने का उत्पादन बिहार, हरियाणा, असम, गुजरात, आंध्रा प्रदेश और तमिलनाडु में होता है। पंजाब में गन्ने का उत्पादन गुरदासपुर, होशियारपुर, नवांशहर, रूपनगर इत्यादि जिलों में होता है।

2014-15 में पंजाब में गन्ने का उत्पादन 705 लाख क्विंटल था और 2015-16 में भारत में गन्ने का उत्पादन 26 मिलियन टन था जो कि पिछले साल से कम है। इसका कारण था कि महाराष्ट्र और कर्नाटक में सूखा पड़ गया था।

भारत में गन्ने की कृषि के लिए आदर्श दशाएं दक्षिणी भारत में मिलती हैं। यहाँ उच्च तापक्रम और काफी वर्षा होती है जिसके कारण गन्ना लम्बे समय तक पीड़ा जा सकता है। उत्तर भारत में लम्बी, खुश्क ऋतु और ठंड के कारण अनुकूल दशाएं नहीं हैं। फिर भी उपजाऊ मिट्टी और सिंचाई के कारण भारत का 80% गन्ना उत्तरी मैदान में होता है।
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वितरण—गन्ना उत्पादन के लिए निम्नलिखित तीन क्षेत्र प्रसिद्ध हैं—

  1. सतलुज गंगा के मैदान पंजाब से लेकर बिहार तक के प्रदेश इसमें शामिल है। इसमें 51% गन्ने के अतिरिक्त क्षेत्र आता है और उत्पादन 60% होता है।
  2. महाराष्ट्र और तमिलनाडु की पूर्व ढलान से लेकर पश्चिमी घाट वाली काली मिट्टी का क्षेत्र।
  3. आंध्र प्रदेश से कृष्णा घाटी का तटीय क्षेत्र।

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प्रश्न 4.
भारत में प्रमुख फसलों के वितरण पर विस्तार से नोट लिखें।
उत्तर-
भारत के लोगों का मुख्य रोज़गार कृषि है और लगभग आधी भारतीय जनसंख्या अपना जीवन निर्वाह कृषि और इसके साथ जुड़े सहायक रोजगारों से कर रही है। 2011-12 के राष्ट्रीय सैम्पल सर्वे दफ्तर के अनुसार कुल जनसंख्या का 48.9% हिस्सा कृषि के अतिरिक्त आता है। पर कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा सिर्फ 17.4 प्रतिशत तक ही पहुँच सका है। भारत में धरातल, जलवायु, मिट्टी, तापमान इत्यादि की भिन्नता मिलती है और इस भिन्नता के कारण हम अलग-अलग फसलें बीजने में असमर्थ हैं। यही कारण है कि उष्ण, उप उष्ण और शीत-उष्ण जलवायु में पैदा होने वाली फसलें हम उगाते हैं। भारत में उगाई जाने वाली फसलों का विस्तृत विवरण निम्नलिखित अनुसार है—

1. खाद्यान्न- कृषिबाड़ी हमारे देश के लोगों की रीढ़ की हड्डी है और खाद्यान्न फसलें हमारे देश की कृषि की रीढ़ की हड्डी हैं। हमारे देश के लगभग तीन-चौथाई भाग में खाद्यान्न फसलें उगाई जाती हैं। देश के तकरीबन हर कोने में खाद्यान्न फसलें उगाई जाती हैं। गेहूँ, मक्की, चावल, मोटे अनाज, ज्वार, बाजरा, रागी, दालें, अरहर इत्यादि मुख्य खाद्यान्न फसलें हैं।

2. नकद फसलें-नकद फसलें कृषि सम्बन्धी फसलें हैं जो कि बेचने और लाभ या मुनाफे के लिए पैदा की जाती हैं। यह अधिकतर रूप में पर उनके द्वारा खरीदी जाती है जोकि एक खेत का हिस्सा नहीं होते। कपास, पटसन, गन्ना, तम्बाकू, तेलों के बीज, मूंगफली, अलसी, तिल, सफेद सरसों, काली सरसों इत्यादि मुख्य नकदी फसलें हैं।

3. रोपण फसलें-चाय, कॉफी, मसाले, इलायची, मिर्च, अदरक, हल्दी, नारियल, सुपारी और रबड़ इत्यादि मुख्य रोपण फसलें हैं। ये एक विशेष तरह की व्यापारिक फसलें हैं। इसमें किसी एक फसल की बड़े स्तर पर कृषि की जाती है। यह कृषि बड़े-बड़े आकार के फार्मों में की जाती है और केवल एक फसल की बिक्री के ऊपर ज़ोर दिया जाता है।

4. बागवानी फसलें-बागवानी व्यापारिक कृषि का ही एक घना रूप है। इसमें आमतौर पर फल जैसे-आड, सेब, नाशपाति, अखरोट, बादाम, स्ट्रॉबेरी, खुरमानी, आम, केला, नींबू, संतरा और सब्जियों इत्यादि का उत्पादन किया जाता है। इस कृषि का विकास संसार के औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों के पास होता है। यह कृषि छोटे स्तर पर की जाती थी पर इसमें एक उच्च स्तर का विशेषीकरण होता है। भूमि पर घनी कृषि की जाती है। सिंचाई और खाद का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक ढंग, उत्तम बीज और कीटनाशक दवाइयां इत्यादि का उपयोग किया जाता है। उत्पादों को जल्दी बिक्री करने के लिए यातायात की अच्छी सुविधा होती है। इस प्रकार प्रति व्यक्ति आमदन अधिक होती है।

प्रश्न 5.
भारत में कृषि के मौसमों की सूची बनाकर मुख्य पक्षों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत में कृषि के मुख्य मौसम दो हैं-खरीफ और रबी। इनको आगे दो उप मुख्य मौसमों में विभाजित किया जाता है। जैद खरीफ और रबी जैद। इन मौसमों और उप-मौसमों के आधार पर भारत की कृषि के मुख्य मौसमों की क्रमवार सूची और उनके पक्ष नीचे लिखे अनुसार हैं—

1. खरीफ-खरीफ की फसल की बिजाई का मुख्य काम मई में शुरू हो जाता है और इस फसल की कटाई का काम अक्तूबर में किया जाता है। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के शुरू होते ही इस फसल की बुआई का काम शुरू कर दिया जाता है। मुख्य फसलें-ज्वार, बाजरा, चावल, मक्की, कपास, पटसन, मूंगफली, तम्बाकू इत्यादि प्रमुख खरीफ की फसलें हैं।

2. जैद खरीफ-इसकी बुआई का काम अगस्त में शुरू होता है और कटाई का काम जनवरी में होता है। मुख्य फसलें-चावल, ज्वार, सफेद सरसों, कपास, तिलहन के बीज इत्यादि जैद खरीफ की फसलें हैं।

3. रबी-इन फसलों की बुआई का काम अक्तूबर में शुरू हो जाता है और कटाई का काम मध्य अप्रैल में ही शुरू हो जाता है। लौट रही मानसून के समय तक इसकी बुआई चलती है। मुख्य फसलें-गेहूँ, जौ, चने, अलसी की बीज, सरसों, मसर, और मटर इत्यादि इस मौसम की मुख्य फसलें

4. जैद रबी-इसकी बुआई का काम फरवरी और मार्च तक होता है और कटाई का काम अप्रैल के मध्य से मई तक होता है। कई फसलों की कटाई जून तक भी पहुँच जाती है। मुख्य फसलें-तरबूज/खरबूजा, तोरिया, खीरा, अंधवा और सब्जियां इस मौसम की मुख्य फसलें हैं।

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Geography Guide for Class 12 PSEB आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं) Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
“आर्थिक भूगोल पृथ्वी के तल पर आर्थिक क्रियाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं का अध्ययन है।” यह किस भूगोलवेत्ता का कथन है ?
(A) जॉन अलैग्जेण्डर
(B) डॉर्कन बाल्ड
(C) मैक्फ्रालैन
(D) हंटिगटन।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 2.
नीचे दिए गए में से सहायक व्यवसाय कौन-सा है ?
(A) लकड़ी काटना
(B) कृषि
(C) खनिज निकालना
(D) निर्माण उद्योग।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सी बागानी फ़सल नहीं है ?
(A) काहवा
(B) गन्ना
(C) गेहूँ
(D) रबड़।
उत्तर-
(C)

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प्रश्न 4.
कौन-सा कबीला पशु चराने का कार्य करता है ?
(A) पिगमी
(B) बकरवाल
(C) रैड इण्डियन
(D) मिसाई।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 5.
गहन निर्वाह कृषि की मुख्य फसल है :
(A) चावल
(B) गेहूँ
(C) मक्का
(D) कपास।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 6.
डेनमार्क किस कृषि के लिए प्रसिद्ध है ?
(A) मिश्रित कृषि
(B) पशु-पालन
(C) डेयरी फार्मिंग
(D) अनाज कृषि।
उत्तर-
(C)

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प्रश्न 7.
राईरा (रेबेरी) (ऊंट, भेड़, बकरी) चरागाह भाईचारा किस राज्य में मिलता है ?
(A) कर्नाटक
(B) केरल
(C) राजस्थान
(D) तमिलनाडु।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 8.
खरीफ की काल अवधि क्या है ?
(A) मई से अक्तूबर
(B) अगस्त से जनवरी
(C) अक्तूबर से जनवरी
(D) मई से जून।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 9.
चाय की कृषि के लिए किस प्रकार की मिट्टी उपयोग की जाती है ?
(A) गहरी मिट्टी
(B) काली मिट्टी
(C) चिकनी मिट्टी
(D) रेगर मिट्टी।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन-सी काहवे की किस्म नहीं है ?
(A) अरेबिका
(B) रोबसटा
(C) लाईवेरिका
(D) लगून।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 11.
निम्नलिखित में से कौन-सी कपास की किस्म नहीं है ?
(A) लम्बे रेशे वाली
(B) साधारण रेशे वाली
(C) छोटे रेशे वाली
(D) मोटे रेशे वाली।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 12.
किस फसल को सुनहरी रेशा कहा जाता है ?
(A) पटसन
(B) काहवा
(C) गेहूँ
(D) चावल।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 13.
संसार का सबसे अधिक गन्ना कहाँ पर होता है ?
(A) ब्राज़ील
(B) कैनेडा
(C) कर्नाटक।
(D) यू०एस०ए०।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 14.
सफेद क्रांति किससे सम्बन्धित है ?
(A) दूध से
(B) कृषि से
(C) कोयले से
(D) चमड़े के उत्पादन से।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 15.
मनुष्य का सबसे पुराना धन्धा कौन-सा है ?
(A) मछली पालन
(B) कृषि
(C) औद्योगीकरण
(D) संग्रहण।
उत्तर-
(D)

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प्रश्न 16.
संग्रहण कहाँ की जाती है ?
(A) अमाजोन बेसिन
(B) गंगा बेसिन
(C) नील बेसिन
(D) हवांग हो।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 17.
कौन-सी फसल के उत्पादन में भारत का संसार में पहला स्थान है ?
(A) पटसन
(B) काहवा
(C) चाय
(D) चावल।
उत्तर-
(A)

प्रश्न 18.
कौन-सा राज्य सबसे अधिक गेहूँ की पैदावार करता है ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) पंजाब
(C) हरियाणा
(D) राजस्थान।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 19.
हरित क्रांति किसकी पैदावार से सम्बन्धित है ?
(A) पटसन की
(B) चमड़े की
(C) फसलों की पैदावार की
(D) मछली की।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 20.
निम्नलिखित में से कौन सा खतरा पंजाब की कृषि को नहीं है ?
(A) मौसम की भिन्नता
(B) कर्ज की मार
(C) खुदकुशियाँ
(D) रोज़गार के साधन।
उत्तर-
(D)

B. खाली स्थान भरें :

  1. गुलाबी क्रांति …………….. के साथ सम्बन्धित है।
  2. पंजाब की ………………. कृषि सिंचाई अधीन है।
  3. ब्राज़ील के बाद ………………… संसार का दूसरा गन्ना उत्पादक देश है।
  4. भारत में ………………… का उत्पादन मांग से कम है।
  5. …………….. सुनहरी, चमकदार, कुदरती रेशेदार फसल है।
  6. लम्बे रेशे वाली कपास में रेशे की लम्बाई ……………….. कि०मी० तक होती है।

उत्तर-

  1. मीट उत्पादन,
  2. 80%,
  3. भारत,
  4. पटसन,
  5. पटसन,
  6. 24 से 25.

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C. निम्नलिखित कथन सही (✓) है या गलत (✗):

  1. कपास की कृषि के लिए 200 सैंटीमीटर वर्षा की जरूरत होती है।
  2. भारत के कपास के क्षेत्र के हिसाब से पहला और उत्पादन के हिसाब से चीन का पहला स्थान है।
  3. भारत 45 से अधिक देशों को काहवा निर्यात करता है।
  4. चाय की 10 प्रचलित किस्में हैं।
  5. भारत दुनिया का बड़ा चावल उत्पादक देश है।
  6. गेहूँ मुख्य रूप में उत्तर-पश्चिमी भारत पैदा की जाती है।

उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. सही,
  6. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
आर्थिक भूगोल का अर्थ समझने के लिए क्या ज़रूरी है ?
उत्तर-
आर्थिक भूगोल का अर्थ समझने के लिए उसकी शाखाओं का अध्ययन आवश्यक है।

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प्रश्न 2.
टरशरी क्षेत्र कौन से होते हैं ?
उत्तर-
आर्थिकता का टरशरी क्षेत्र सेवाओं का उद्योग होता है।

प्रश्न 3.
भारत में कृषि के मौसम कौन-से हैं ?
उत्तर-
खरीफ, रबी और जैद।

प्रश्न 4.
एल नीनो का फसलों के उत्पादन पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
एल नीनो के कारण वर्षा कम होती है और फसलों का उत्पादन कम होता है।

प्रश्न 5.
पश्चिम बंगाल में चावल की तीन फसलें बताओ।
उत्तर-
अमन, ओस, बोगे।

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प्रश्न 6.
चावल की कृषि के लिए तापमान और वर्षा कितनी आवश्यक है ?
उत्तर-
तापमान-21°C, वर्षा 150 cm.

प्रश्न 7.
संसार में सबसे अधिक चावल पैदा करने वाला देश कौन सा है ?
उत्तर-
चीन।

प्रश्न 8.
चावल का कटोरा किस प्रदेश को कहते हैं ?
उत्तर-
हिन्द-चीन।

प्रश्न 9.
गेहूँ की दो किस्में कौन-सी हैं ?
उत्तर-
शीतकालीन गेहूँ, बसन्तकालीन गेहूँ।

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प्रश्न 10.
भारत में गेहूँ उत्पन्न करने वाले तीन राज्य बताओ।
उत्तर-
उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा।

प्रश्न 11.
एक रेशेदार फसल का नाम लिखो।
उत्तर-
कपास।

प्रश्न 12.
संयुक्त राज्य में कपास पेटी के तीन राज्य बताओ।
उत्तर-
टैक्सास, अलाबामा, टेनेसी।

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प्रश्न 13.
मिश्र देश में लम्बे रेशे वाली कपास का क्षेत्र बताओ।
उत्तर-
नील डेल्टा।

प्रश्न 14.
चाय की कृषि के लिए आवश्यक वर्षा तथा तापमान बताओ।
उत्तर-
वर्षा 200 सैं०मी०, तापमान 25°CI

प्रश्न 15.
दार्जिलिंग की चाय अपने स्वाद के लिए क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
अधिक ऊँचाई तथा पर्वतीय ढलानों के कारण धीरे-धीरे उपज बढ़ती है।

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प्रश्न 16.
गन्ने के उपज के लिए दो देश बताओ।
उत्तर-
क्यूबा तथा जावा।

प्रश्न 17.
फैजेन्डा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
ब्राज़ील में काहवे के बड़े-बड़े बाग़ान का।

प्रश्न 18.
कृषि से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
धरती से उपज प्राप्त करने की कला।

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प्रश्न 19.
Slash and burn कृषि किस वर्ग की कृषि है ?
उत्तर-
स्थानान्तरी कृषि।

प्रश्न 20.
भारत के तीन राज्य बताओ, जहाँ स्थानांतरी कृषि होती है ?
उत्तर-
मेघालय, नागालैंड, मणिपुर।

प्रश्न 21.
बागाती कृषि क्या है ?
उत्तर-
बड़े-बड़े खेतों पर एक व्यापारिक फसल की कृषि।

प्रश्न 22.
घनी कृषि करने वाले कोई दो देश बताओ।
उत्तर-
भारत और चीन।।

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प्रश्न 23.
काहवा की किस्में बताओ।
उत्तर-
अरेबिका और रोबस्टा।

प्रश्न 24.
पंजाब के कृषि की कोई दो ताकतों के बारे में बताओ।
उत्तर-
अनुकूल पर्यावरण और हरित क्रांति के प्रभाव।

प्रश्न 25.
पंजाब की कृषि को होने वाले कोई दो खतरे बताओ।
उत्तर-
कर्जे की मार, महंगी हो रही कृषि लागत।

प्रश्न 26.
परती भूमि को कौन-से दो भागों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
वर्तमान परती भूमि और पुरानी परती भूमि।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक भूगोल की परिभाषा बताओ।
उत्तर-
भूगोल धरती को मनुष्य का निवास स्थान मानकर अध्ययन करता है और इसका वर्णन करता है। भूगोल किसी क्षेत्र में मनुष्य, पर्यावरण और मनुष्य की क्रियाओं का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
एल नीनो और लानीना का कृषि की पैदावार पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
संसार में एल नीनो और लानीना का कृषि की पैदावार पर बड़ा असर पड़ता है। एल नीनो के समय पर कम वर्षा होती है जिसके साथ फसलों का उत्पादन कुछ हद तक कम हो जाता है और लानीना के कारण वर्षा अच्छी हो जाती है और फसलों की पैदावार पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 3.
खानाबदोश पशु-पालक भारत में किन स्थानों पर मिलते हैं और यह कौन-से पशु पालते हैं ?
उत्तर-
भारत में खानाबदोश पशु-पालक पश्चिमी भारत में थार के रेगिस्तान, दक्षिण के पठार, हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में मिलते हैं। यह मुख्य रूप में भैंस, गाय, भेड़, बकरी, ऊँट, खच्चर, गधे इत्यादि पालते हैं।

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प्रश्न 4.
मोनपा चरवाहों के बारे में बताओ।
उत्तर-
मोनपा चरवाहे अरुणाचल प्रदेश के तवांग इत्यादि स्थानों पर रहते हैं और इनकी नस्ली पहचान बोधी/ तिब्बती है। यह कामेरा, तबांग से नीचे वाले क्षेत्रों में ऋतु प्रवास के समय चले जाते हैं।

प्रश्न 5.
मनुष्य धंधों के नाम बताओ और इनके वर्ग भी बताओ।
उत्तर-
कृषि, पशु-पालन, खनिज निकालना, मछली पकड़ना। यह धंधे तीन वर्गों में विभाजित किये जाते हैं।

  1. आरम्भिक धंधे
  2. सहायक धंधे
  3. टरशरी धंधे।।

प्रश्न 6.
कृषि से आपका क्या अर्थ है ? कृषि का विकास किन कारणों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-
पृथ्वी से उपज प्राप्त करने की कला को कृषि (कृषि) कहते हैं। यह मनुष्य की मुख्य क्रिया है। कृषि का विकास धरातल, मिट्टी, जलवायु, सिंचाई, खाद इत्यादि यंत्रों के प्रयोग पर निर्भर करता है। अब कृषि सिर्फ किसी प्रक्रिया पर निर्भर नहीं है। कृषि का विकास तकनीकी ज्ञान और सामाजिक पर्यावरण की देन है।

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प्रश्न 7.
फिरतू (स्थानान्तरी) कृषि किसे कहते हैं ? इसके दोष कौन से हैं ?
उत्तर-
वनों को काट कर तथा झाड़ियों को जला कर भूमि को साफ कर लिया जाता है और फिर कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है इसे स्थानान्तरी कृषि कहते हैं। इससे वनों का नाश होता है। इससे पर्यावरण को हानि होती है। इससे मिट्टी की उपजाऊ शक्ति कम होती है और मिट्टी अपरदन बढ़ जाता है।

प्रश्न 8.
भारत में कौन-से प्रदेशों में घूमंतु कृषि की जाती है ?
उत्तर-
भारत के कई प्रदेशों में इत्यादिवासी जातियों के लोग घूमंतु कृषि करते हैं। उत्तरी पूर्वी भारत के वनों में से त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, मिज़ोरम प्रदेशों में अनेक जन-जातियों द्वारा यह कृषि की जाती है। मध्य प्रदेश में भी यह कृषि प्रचलित है।

प्रश्न 9.
रोपण (बाग़ानी) कृषि किसे कहते हैं ? रोपण कृषि से किन फसलों की कृषि की जाती है ?
उत्तर-
उष्ण कटिबन्ध में जनसंख्या कम होती है जबकि यह कृषि बड़े-बड़े आकार के खेतों या बाग़ान पर की जाती है। रोपण कृषि की मुख्य फसलें हैं रबड़, चाय, काहवा, कॉफी, गन्ना, नारियल, केला इत्यादि।

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प्रश्न 10.
रोपण कृषि में क्या समस्याएं हैं ?
उत्तर-
रोपण कृषि वाले क्षेत्र कम आजादी वाले क्षेत्र हैं। यहाँ पर मजदूरों की कमी होती है। यहाँ उष्ण नमी वाले प्रदेशों में मिट्टी अपरदन और घातक कीड़ों और बीमारियों की समस्या है।

प्रश्न 11.
सामूहिक कृषि किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यह एक ऐसी कृषि प्रणाली है जिसका प्रबंध इत्यादि सहकारिता के आधार पर किया जाता है। इस तरह की कृषि में सारे प्रतियोगी अपनी इच्छानुसार अपनी भूमि एक-दूसरे के साथ इकट्ठा करते हैं। कृषि का प्रबंध सहकारी संघ के द्वारा किया जाता है। डैनमार्क को सहकारिता का देश कहते हैं।

प्रश्न 12.
बुश फैलो (Bush Fallow) कृषि से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बुश फैलो कृषि स्थानान्तरी कृषि का ही एक उदाहरण है। वनों को काटना और झाड़ियों को जला कर भूमि को कृषि के लिए तैयार किया जाता है। इसको काटना और जलाना कृषि भी कहते हैं।

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प्रश्न 13.
झूमिंग (Jhumming) से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
यह कृषि भी स्थानान्तरी कृषि की एक उदाहरण है। भारत के उत्तर पूर्वी भाग में आदिम जातियों के लोग पेड़ों को काटकर या जलाकर भूमि को साफ़ कर लेते हैं। इन खेतों की उपजाऊ शक्ति कम होने पर नये खेतों को साफ़ किया जाता है।

प्रश्न 14.
चाय की कृषि पहाड़ी ढलानों वाली भूमि पर की जाती है। क्यों ?
उत्तर-
चाय के बाग़ पहाड़ी ढलानों पर होते हैं, इसके लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। इसलिए भूमि का ढलानदार होना ज़रूरी होता है, ताकि पौधों की जड़ों में पानी इकट्ठा न हो।

प्रश्न 15.
काहवा के पौधों को पेड़ों की छाँव में क्यों लगाया जाता है ?
उत्तर-
सूर्य की सीधी और तेज़ किरणे काहवे की फसल के लिए हानिकारक होती हैं। पाला तथा तेज़ हवाएं काहवे के लिए हानिकारक होती हैं। इसलिए कहवे की कृषि सुरक्षित ढलानों पर की जाती है ताकि काहवे के पौधे तेज़ सूर्य की रोशनी और पाले से सुरक्षित रहें।

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प्रश्न 16.
कपास की फसल के पकते समय वर्षा क्यों नहीं होनी चाहिए ?
उत्तर-
कपास खुश्क क्षेत्रों की फसल है। फसल को पकते समय खुश्क मौसम की जरूरत होती है। आसमान साफ हों और चमकदार धूप होनी चाहिए। इसके साथ कपास का फूल अच्छी तरह खिल जाता है और चुनाई आसानी से हो जाती है।

प्रश्न 17.
संसार की अधिकतर गेहूँ 25° से 45° अक्षांशों में क्यों होती है ?
उत्तर-
गेहूँ शीत उष्ण प्रदेश का पौधा है। उष्ण कटिबन्ध अधिक तापमान के कारण शीत कटिबन्ध कम तापमान के कारण गेहूँ की कृषि के लिए अनुकूल नहीं है। 25° से 45° अक्षांशों के बीच के प्रदेशों में शीत काल में कम सर्दी और कम वर्षा हो जाती हैं, जैसे रोम सागर खंड में।

प्रश्न 18.
दार्जिलिंग की चाय क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग क्षेत्र की चाय अपने विशेष स्वाद के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहाँ अधिक ऊंचाई के कारण तापमान कम रहता है। सारा साल सापेक्ष नमी रहती है। कम तापमान व नमी के कारण चाय धीरेधीरे बढ़ती है। इससे चाय का स्वाद अच्छा होता है।

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प्रश्न 19.
संसार का अधिक चावल दक्षिणी और दक्षिणी पूर्वी एशिया में क्यों मिलता है ?
उत्तर-
यह प्रदेश उष्ण कटिबन्ध में है। यहाँ पर तापमान सारा साल उच्च मिलता है। मानसून के कारण वर्षा अधिक होती है। नदियों से उपजाऊ मैदान और डेल्टा चावल की कृषि के लिए अनुकूल है। घनी जनसंख्या के कारण मजदूर अधिक मात्रा में मिल जाते हैं। इस प्रकार अनुकूल भौगोलिक हालतों के कारण दक्षिण-पूर्वी एशिया में सबसे अधिक चावल पैदा किए जाते हैं।

प्रश्न 20.
चाय की विभिन्न किस्मों का वर्णन करो।
उत्तर-
चाय निम्नलिखित किस्मों की होती है—

  1. सफेद चाय-इसकी पत्तियाँ मुरझाई हुई होती हैं।
  2. पीली चाय-इसकी पत्तियां ताजी होती हैं।
  3. हरी चाय-उत्तम प्रकार की चाय है।
  4. अलौंग चाय-सबसे उत्तम प्रकार की चाय है।
  5. काली चाय-जो कि साधारण प्रकार की चाय है।
  6. खमीरा करने के बाद बनाई पत्ती। इसका रंग हरा होता है।

प्रश्न 21.
ट्रक कृषि (Truck Farming) किसे कहते हैं ? उदाहरण दो।
उत्तर-
व्यापार के उद्देश्य से सब्जियों की कृषि को ट्रक कृषि कहते हैं। नगरों के इधर-उधर के क्षेत्रों में यह कृषि प्रसिद्ध है। इन चीजों को ट्रक के द्वारा नगर के बाज़ार तक भेजा जाता यह कृषि न्यूयार्क में लांग द्वीप (Long Island) में और भारत के श्रीनगर में डल झील में की जाती है।

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प्रश्न 22.
गन्ने की कृषि के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र कौन-से हैं ?
उत्तर-
गन्ने के उत्पादन के लिए प्रसिद्ध क्षेत्र हैं—

  1. सतलुज गंगा के मैदान से बिहार तक।
  2. महाराष्ट्र से तमिलनाडु के पूर्वी ढलानों से पश्चिमी घाट
  3. आन्ध्र प्रदेश में कृष्ण घाटी का तटीय क्षेत्र।

प्रश्न 23.
काहवा के प्रकार बताओ।
उत्तर-
काहवे के भारत में अधिकतर रूप में दो प्रकार से मिलते हैं—

  1. अरेबिका
  2. रोबस्टा।

हालांकि काहवा का लाईबेरिका और कई और प्रकार भी संसार में उगाये जाते हैं। प्रमुख रूप में अरेबिका और रोबस्टा प्रसिद्ध हैं।

प्रश्न 24.
भारत में उगाई जाने वाली फसलों को किस प्रकार की फसलों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
भारत में फसलों को इस प्रकार विभाजित किया जाता है :

  1. खाद्यान्न
  2. नकद फसलें
  3. रोपण फसलें
  4. बागवानी फसलें।

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प्रश्न 25.
जीविका कृषि किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इस कृषि प्रणाली द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है। इस कृषि का मुख्य उद्देश्य भूमि के उत्पादन से अधिक से अधिक जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके। इसे निर्वाहक कृषि भी कहते हैं। स्थानान्तरी कृषि, स्थानबद्ध कृषि तथा गहन कृषि, जीविका कहलाती हैं। इस कृषि द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग को पूरा किया जाता है।

प्रश्न 26.
किसी देश की आर्थिकता को कुछ क्षेत्रों में क्यों विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
किसी देश की आर्थिकता को अलग-अलग क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, क्योंकि किसी क्षेत्र के कार्य में व्यस्त जनसंख्या का अनुपात ही उस देश की आर्थिक क्रिया के लिए उस क्षेत्र का महत्त्व तय करती है। इस तरह वर्गीकरण यह भी निश्चित करता है कि क्रियाओं का प्राकृतिक साधनों के साथ क्या और कितना सम्बन्ध है, क्योंकि मौलिक आर्थिक क्रियाओं का सम्बन्ध सीधे तौर पर धरती पर मिलते कच्चे साधनों के उपयोग से होता है। जो कृषि और खनिजों के रूप में मिलते हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक भूगोल क्या है ? इसका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
भूगोल पृथ्वी को मनुष्य का निवास स्थान मान कर अध्ययन करता है और इसका वर्णन करता है। भूगोल किसी क्षेत्र में मनुष्य, पर्यावरण और मानवीय क्रिया का अध्ययन करता है। आर्थिक भूगोल, मानवीय भूगोल की ही एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। आर्थिक भूगोल का विस्तृत अर्थ समझने के लिए इसकी शाखाओं का अध्ययन बहुत आवश्यक है।
आर्थिक भूगोल का हमारे देश भारत जोकि विकासशील देश के लिए बहुत महत्त्व रखता है, क्योंकि इसके अध्ययन द्वारा देश का विकास करने के ढंग-तरीकों का अध्ययन किया जाता है।

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प्रश्न 2.
किसी देश की आर्थिकता को कौन से मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है ? अध्ययन करो।
उत्तर-
किसी देश की आर्थिकता को मुख्य रूप में पाँच क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है जैसे कि—

  1. प्राकृतिक साधनों पर आधारित क्षेत्र-जो सीधे रूप में कृषि और प्राकृतिक साधनों पर आधारित हैं।
  2. सहायक क्षेत्र या दूसरे स्तर के क्षेत्र-इस क्षेत्र में कच्चे माल को इस्तेमाल करके काम में आने वाली चीजें बनाई जाती हैं। इसमें निर्माण उद्योग और नवीन उद्योग की तकनीकों को शामिल किया जाता है।
  3. टरशरी क्षेत्र या तीसरे स्तर के क्षेत्र-आर्थिकता का यह स्तर उद्योग के साथ सम्बन्धित है जैसे कि परिवहन, व्यापार, संचार साधन, यातायात का विभाजन, मंडी इत्यादि।
  4. चतुर्धातुक क्षेत्र या चौथे स्तर के क्षेत्र-इस क्षेत्र की क्रिया बौद्धिक विकास की क्रिया होती है, जैसे कि तकनीक और खोज कार्य इत्यादि।
  5. पांचवें स्तर के क्षेत्र-इसमें सर्वोत्तम और नीतिगत फैसले लेने वाली क्रिया को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 3.
काहवे के इतिहास पर नोट लिखो।
या
काहवे के पेशे को बाबा बूदन पहाड़ क्यों कहते हैं ?
उत्तर-
काहवे के उत्पादन की मुख्य रूप में शुरुआत 1600 ई० में शुरू हुई। इसका इतिहास यह है कि एक सूफी फकीर बाबा बूदन ने यमन के मोचा शहर से मक्का तक की एक यात्रा शुरू की। तब मोचा शहर में काहवा की फलियों से बनाये काहवे को पिया और काहवा पीने के बाद उसकी सारी थकान दूर हो गई और उसने अपने आपको तरो ताज़ा महसूस किया। उसने काहवा का बीज वहाँ से लाकर कर्नाटक के स्थान चिकमंगलूर शहर में बीज दिया और आज इस पेशे को इस कारण बाबा बूदन पहाड़ भी कहते हैं।

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प्रश्न 4.
जीविका कृषि की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
जीविका कृषि की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं—

  1. खेत छोटे आकार के होते हैं।
  2. साधारण यन्त्र प्रयोग करके मानव श्रम पर अधिक जोर दिया जाता है।
  3. खेतों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने तथा मिट्टी का उपजाऊपन कायम रखने के लिए हर प्रकार की खाद, रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता है।
  4. भूमि का पूरा उपयोग करने के लिए साल में दो-तीन या चार-चार फसलें भी प्राप्त की जाती हैं। शुष्क ऋतु में अन्य खाद्य फसलों की भी कृषि की जाती है।
  5. भूमि के चप्पे-चप्पे पर कृषि की जाती है। पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीदार खेत बनाए जाते हैं। अधिकतर कार्य मानव श्रम द्वारा किए जाते हैं। 6. चरागाहों के लिए भूमि प्राप्त न होने के कारण पशु पालन कम होता है।

प्रश्न 5.
उद्यान कृषि (Horticulture) की मुख्य किस्मों पर नोट लिखो।
उत्तर-
उद्यान कृषि की मुख्य किस्में इस प्रकार हैं—

  1. बाज़ार के लिए सब्जी कृषि-बड़े-बड़े नगरों की सीमाओं पर सब्जियों की कृषि की जाती है। प्रत्येक मौसम के अनुसार ताजा सब्जियां बाज़ार में भेजी जाती हैं। भारत में मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली, कोलकाता तथा श्रीनगर सब्जियों की कृषि के लिए प्रसिद्ध हैं।
  2. ट्रक कृषि-नगरों से दूर, अनुकूल जलवायु तथा मिट्टी के कारण कई प्रदेश में सब्जियों या फलों की कृषि की जाती है। इन फलों तथा सब्जियों का ऊँचा मूल्य प्राप्त करने के लिए नगरीय बाजारों में भेज दिया जाता है। इन वस्तुओं को प्रतिदिन नगरीय बाजारों में लाने के लिए ट्रकों का प्रयोग किया जाता है।
  3. पुष्प कृषि-इस कृषि द्वारा विकसित प्रदेशों में फूलों की माँग को पूरा किया जाता है।
  4. फल उद्यान-उपयुक्त जलवायु के कारण कई क्षेत्रों में विशेष प्रकार के फलों की कृषि की जाती है।

प्रश्न 6.
संसार में कृषि के बदलते स्वरूप पर नोट लिखो।
उत्तर-
जनसंख्या की वृद्धि के कारण और कृषि में नये बीजों के कारण तथा कृषि के मशीनीकरण के कारण कृषि का स्वरूप बड़ी तेजी से बदल रहा है। अब कृषि को करने का ढंग पिछले तरीकों से बिल्कुल अलग है। अब कृषि में अच्छे बीजों और कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है। किसानों के लिए कृषि अब एक प्रभावशाली पेशा बनता जा रहा है। कृषि का उत्पादन दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। भारत के कुल घरेलू उत्पादन में कृषि का हिस्सा 17% है और चीन का 10 प्रतिशत, जब कि संयुक्त राज्य अमेरिका का सिर्फ 1.5 प्रतिशत है। उष्ण खंडी घाट के मैदानों में दालें और अनाज की कृषि की जाती है और डेल्टाई क्षेत्रों में चावल की, शीतोउष्ण घास के मैदानों में अनाज के साथ फल, सब्ज़ियाँ और दूध का उत्पादन किया जाता है। इस तरह कृषि का स्वरूप बदलता जा रहा है। पहले लोग फसली चक्र से अनजान थे, पर अब अलग-अलग प्रकार की फसलें उगाई जा रही हैं।

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प्रश्न 7.
पशु-पालन से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
प्रारम्भिक मनुष्य जंगलों में रहता था, जानवरों का शिकार करता था और कच्चा मांस खाता था। धीरे-धीरे उसने माँस पका के खाना शुरू कर दिया और फिर मांस पकाने और शिकार करने के अतिरिक्त जानवरों को पालना भी शुरू कर दिया। विश्व में धरातल के साथ-साथ जलवायु में भी काफी भिन्नता मिलती है। जिसके कारण देश की अलग अलग जगहों पर अलग-अलग तरह के जानवर पाले जाते हैं। यह पशु-पालन परंपरागत तौर पर घास के मैदानों या चरागाहों में किया जाता है। इसलिए इसको Pastoralism भी कहते हैं। मौजूदा समय में तकनीकी विकास के कारण पशुपालन का पेशा और भी अधिक विकसित हो गया है और व्यापारिक स्तर पर भी इस पेशे को अपना लिया गया है।

प्रश्न 8.
भूमि के उपयोग के सारे पक्षों को विस्तृत रूप में लिखो।
उत्तर-
भूमि के सही उपयोग के लिए इसके सभी पक्षों की जानकारी अति आवश्यक है। इसके पक्षों की जानकारी इस प्रकार है—

  1. जंगल अतिरिक्त क्षेत्र-वह क्षेत्र जो जंगल के अधीन आता है। जंगलों अतिरिक्त क्षेत्र कहलाता है। जंगल अधीन बड़े क्षेत्र का अर्थ यह नहीं कि जंगल वहाँ पहले ही हों, बल्कि यह भी हो सकता है जंगल लगाने के लिए जगह भी वहाँ खाली करवाई जाए।
  2. बंजर और कृषि योग्य भूमि-इस भूमि के अधीन वह भूमि आती है जिसमें सड़कें, रेलगाड़ी और ट्रक या बंजर ज़मीन आती है।
  3. परती भूमि-यह कृषि योग्य भूमि, जो किसान द्वारा एक साल या उससे कम समय के लिए खाली छोड़ दी जाए, जिससे उसकी उपजाऊ शक्ति बढ़ जाए। परती भूमि कहलाती है।
  4. कल बिजाई अधीन क्षेत्र-वह भूमि जिस पर फसलें बीजी गई हों।
  5. कृषि अधीन कुल क्षेत्र-वह भूमि जिसमें फसलें बीजी गई हों।

प्रश्न 9.
जीविका कृषि पर नोट लिखो।
उत्तर-
इस कृषि द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होती है। इस कृषि का मुख्य उद्देश्य भूमि के उत्पादन से अधिक से अधिक जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके। इसे निर्वाहक कृषि भी कहते हैं। इसको दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है—

1. इत्यादिकालीन या पुरानी निर्वाहक कृषि-इस तरह की कृषि किसान सिर्फ अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए करता है। इस कृषि में कोई मशीन या रासायनिक पदार्थ नहीं प्रयोग किया जाता है। अधिकतर कृषि स्थानान्तरी कृषि होती है। जिस कारण भूमि पहले से ही उपजाऊ होती है।

2. घनी निर्वाह कृषि-घनी निर्वाह कृषि को आगे दो भागों में विभाजित किया जाता है। एक जगह पर चावल अधिक उगाये जाते हैं उसे घनी चावल प्रधान निर्वाह कृषि कहते हैं। एक स्थान पर चावलों की जगह और फसलों की बिजाई की जाती है तो उसे चावल रहित निर्वाह कृषि कहते हैं।

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प्रश्न 10.
कृषि के मौसमों पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत की कृषि को मुख्य रूप में चार मौसमों में विभाजित किया जाता है—

  1. खरीफ-ये फसलें मई से अक्तूबर तक की अवधि की होती हैं। इस मौसम की मुख्य फसलें हैं-ज्वार, बाजरा, चावल, मक्की, कपास, मूंगफली, पटसन इत्यादि।
  2. जैद खरीफ-इसकी समय अवधि अगस्त से जनवरी तक की है। इसकी मुख्य फसलें-चावल, ज्वार, सफेद सरसों, कपास, तेलों के बीज इत्यादि हैं।
  3. रबी-इसकी समय अवधि अक्तूबर से दिसम्बर तक की होती है। इसकी मुख्य फसलें हैं-गेहूँ, छोले, अलसी के बीज, सरसों, मसर और मटर इत्यादि।
  4. जैद रबी-इसका समय फरवरी से मार्च तक का होता है। इस मौसम की मुख्य फसलें है तरबूज, तोरिया, खीरा और सब्जियां इत्यादि।

प्रश्न 11.
गेहूँ की मुख्य किस्में बताओ।
उत्तर-
गेहूँ की किस्में-ऋतु के आधार पर गेहूँ को दो भागों में विभाजित किया गया है—

  1. सर्द ऋतु की गेहूँ-इस तरह गेहूँ गर्म जलवायु वाले प्रदेशों में नवम्बर से दिसम्बर तक के महीने में बीजी जाती हैं और गर्म ऋतु के शुरू में ही काट ली जाती हैं। विश्व में गेहूँ के कुल क्षेत्रफल 67% भाग में सर्द ऋतु के गेहूँ की फसल बोई जाती है।
  2. बसंत ऋतु का गेहूँ-बहुत ठंडे क्षेत्रों में बर्फ पिघल जाने के बाद बसंत ऋतु में इस तरह की फसल बोई जाती है।

प्रश्न 12.
चावल की मुख्य किस्में और बिजाई की पद्धतियों के बारे में बताओ।
उत्तर-
चावल की मुख्य रूप में दो किस्में होती हैं—

  1. पहाड़ी चावल-इन चावलों की पर्वतीय ढलानों सीढ़ीदार खेत बना के बिजाई की जाती हैं।
  2. ‘मैदानी चावल-इस किस्म में चावल की नदी घाटियों या डेल्टा में समतल धरती पर बिजाई की जाती है।

चावल बीजने की पद्धतियाँ-चावल बीजने में अधिक प्रसिद्ध तीन तरीके मिलते है।

  1. छटा दे के
  2. पनीरी लगा कर
  3. खोद कर।

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प्रश्न 13.
काहवा की कृषि के मुख्य क्षेत्र कौन से हैं ? काहवा की मुख्य किस्में बताओ।
उत्तर-
काहवा भी चाय की तरह एक पेय पदार्थ है। इसको बागाती कृषि कहते हैं। यह काहवा पेड़ों के फलों के बीजों का चूर्ण होता है। इसमें कैफ़ीन नामक पदार्थ होता है, जिसके कारण काहवा नशा देता है। काहवा का अधिक प्रयोग U.S.A. में होता, जबकि चाय का अधिक प्रयोग पश्चिमी यूरोप में होता है। इसका जन्म स्थान अफ्रीका के इथोपिया देश के कैफ़ा प्रदेश से माना जाता है।
काहवा की मुख्य किस्में—

  1. अरेबिका
  2. रोबस्टा
  3. लाईबेरिका।

प्रश्न 14.
कपास की विभिन्न किस्मों का वर्णन करें।
उत्तर-
रेशे की लम्बाई के अनुसार कपास को मुख्य रूप से तीन किस्मों में विभाजित किया जाता है—
1. लम्बे रेशे वाली कपास-इस प्रकार की कपास का रेशा 24 से 27 मिलीमीटर तक होता है और देखने में इस तरह की कपास काफी चमकदार होती है। भारत में इस किस्म की कपास कुल कपास के उत्पादन में 50% योगदान डालती है।

2. मध्य रेशे वाली कपास-इस प्रकार की कपास के रेशे की लम्बाई 20 से 24 मिलीमीटर तक की होती है। इसका कुल उत्पादन भारत में 44 प्रतिशत तक होता है।

3. छोटे रेशे वाली कपास-इस प्रकार की कपास का रेशा 20 मिलीमीटर तक लम्बाई वाला होता है। इस प्रकार के रेशे वाली कपास घटिया किस्म की कपास मानी जाती है।

प्रश्न 15.
पटसन की फसल को सुनहरी फसल क्यों कहते हैं ? पटसन की कृषि के लिए ज़रूरी हालातों पर नोट लिखें।
उत्तर-
पटसन एक सुनहरी और चमकदार प्राकृतिक रेशेदार फसल है; जिस कारण इसको सुनहरी रेशे वाली फसल कहते हैं। यह कपास के बाद मुख्य रेशेदार फसल है। पटसन से मुख्य रूप में कृषि के उत्पादन को संभालने के लिए बोरी, रस्सियां, टाट, कपड़े इत्यादि तैयार किये जाते हैं। इसकी माँग दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।

पटसन की कृषि की मुख्य हालात-पटसन की कृषि के लिए गर्म और नमी वाला मौसम चाहिए। इसको 24 सैंटीग्रेड से 35 सैंटीग्रेड तापमान की ज़रूरत होती है। इसकी कृषि के लिए 80 से 90 प्रतिशत तक की नमी की ज़रूरत होती हैं। इसके लिए 120 से 150 सैंटीमीटर वर्षा की ज़रूरत होती है। पटसन की फसल काटने के बाद भी इसको रेशे बनाने की क्रिया के लिए काफी अधिक पानी चाहिए।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 4 आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं)

प्रश्न 16.
पंजाब की कृषि के लिए मुख्य ताकतें क्या हैं ?
उत्तर-
पंजाब की कृषि की मुख्य विशेषताएं और ताकतें निम्नलिखित अनुसार हैं—

  1. अनुकूल प्राकृतिक पर्यावरण-प्रकृति ने पंजाब को उपजाऊ मिट्टी, धरातल और शुद्ध पानी के साथ नवाजा है, जिस कारण अधिकतर लोग पंजाब में कृषि के पेशे से जुड़े हुए हैं।
  2. तकनीक का विकास-तकनीक के विकास के कारण नई-नई मशीनों का जन्म हुआ जिसके साथ कृषि का उत्पादन बढ़ गया है।
  3. हरित क्रान्ति का प्रभाव-1960 में हरित क्रान्ति के बाद अच्छे बीज और रासायनिक पदार्थों के प्रयोग के कारण उत्पादन में काफी वृद्धि हुई।

प्रश्न 17.
पंजाब की कृषि की कमजोरियों पर नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब की कृषि में विशेषताओं के साथ-साथ कुछ कमजोरियाँ भी हैं—
1. उत्पादन में कमी-1960 की हरित क्रान्ति के बाद किसानों ने अधिक-से-अधिक उत्पादन के लिए रासायनिक पदार्थों का उपयोग करना शुरू किया, जिसके साथ भूमि का उपजाऊपन कम हो गया और 1970 के बाद उत्पादन में भारी गिरावट आने लगी।

2. मूल स्रोतों की बर्बादी-कृषि में अधिकतर उत्पादन के कारण प्राकृतिक स्रोत प्रदूषित हो रहे हैं। कृषि के अधिक विकास के कारण पानी भी अधिक-से-अधिक उपयोग किया जाता है, जिसके कारण पानी का स्तर काफी नीचे चला गया है।

3. कटी फसल का नुकसान-फसल को काटने की परम्परा के अनुसार, काटने के बाद बहुत सारी फसल का नुकसान हो जाता है।

4. आधुनिक तकनीक तक कम पहुँच-पंजाब के बहुत सारे किसानों के पास अभी भी आधुनिक तकनीकों की कमी है क्योंकि गरीबी के कारण बहुत सारे किसान मूल्यवान मशीनें और रासायनिक पदार्थों को हासिल नहीं कर सकते।

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निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक भूगोल क्या है ? आर्थिक भूगोल में आर्थिकता को कौन-से मुख्य क्षेत्रों में विभाजित किया गया है और आर्थिक भूगोल का महत्त्व भी बताओ।
उत्तर-
आर्थिक भूगोल भी मानव भूगोल की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। इसमें मनुष्य और पर्यावरण के पारस्परिक सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। इसका उद्देश्य मनुष्य की मूल आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए किए गए उत्पादन प्रयत्नों का अध्ययन करना है। प्रत्येक क्षेत्र के पर्यावरण के अनुसार आर्थिक व्यवसायों का विकास होता है। जैसे घास के मैदानों में पशु-पालन, शीतोष्ण कटिबन्ध में लकड़ी काटना तथा मानसून खण्ड में कृषि मुख्य धन्धे हैं। इन धंधों के कारण ही प्रत्येक क्षेत्र का विस्तार स्तर विभिन्न है। इस प्रकार हम ज्ञात कर सकते हैं कि पृथ्वी पर प्राकृतिक साधनों का कहां, क्यों, कैसे और कब उपयोग किया जाता है। इस प्रकार आर्थिक भूगोल मानवीय क्रियाओं पर पर्यावरण के प्रभाव का विश्लेषण करता है। आर्थिक क्रियाओं के आर्थिक सम्बन्धों से आर्थिक भू-दृश्य का जन्म होता है जिसकी व्याख्या की जाती है। इस प्रकार आर्थिक भूगोल पृथ्वी पर मानव की आर्थिक क्रियाओं की क्षेत्रीय विभिन्नताओं, स्थानीय वितरण, स्थिति तथा उनके सम्बन्धों व प्रतिरूपों का अध्ययन है।

मेकफरलेन के अनुसार, “आर्थिक भूगोल उन भौगोलिक दशाओं का वर्णन है जो वस्तुओं के उत्पादन, परिवहन तथा व्यापार पर प्रभाव डालती हैं।”
किसी भी देश की आर्थिकता को आगे कई क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, क्योंकि हर एक क्षेत्र में लगी जनसंख्या देश की आर्थिक क्रिया पर अलग असर डालती है। आर्थिक भूगोल में आर्थिकता को मुख्य रूप में अग्रलिखित क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है—

1. प्रारम्भिक क्षेत्र या पहले स्तर का क्षेत्र (Primary Sector)—प्रारम्भिक क्षेत्र में आमतौर पर कृषि या प्रारम्भिक क्रियाओं को शामिल किया जाता है। इसमें हर प्रकार की मानवीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कच्चे माल का उत्पादन किया जाता है। इस क्षेत्र में स्रोत कच्चे माल और खनिज पदार्थों के रूप में मिलते हैं।
Primary Level. Resources needed to make a pencitwood, Graphite (lead), Rubber, Metal comes from Primary sector.
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2. सहायक क्षेत्र या दूसरे स्तर का क्षेत्र (Secondary Sector)-इस क्षेत्र के बीच औद्योगिक विकास शामिल है। इस क्षेत्र में कच्चे माल से कोई प्रयोग योग्य सामान तैयार किया जाता है। इस क्षेत्र की मुख्य क्रियाएं हैं जैसे कि स्वचालित कार, कृषि के पदार्थ जैसे कि कपास से कपड़ा बनाना इत्यादि।

3. टरशरी क्षेत्र (Tertiary Sector)-इस क्षेत्र में उद्योग और क्षेत्रीय सेवाएं शामिल होती हैं। इस क्षेत्र में मुख्य रूप में सेवाएँ आती हैं। प्रारम्भिक क्षेत्र और सहायक क्षेत्र में पैदा किए और बनाए सामान को बाजारों में और इस क्षेत्र में बेचा जाता है।

4. चतुर्धातुक क्षेत्र (Quaternary Sector)-इस क्षेत्र में मुख्य रूप में क्रियाओं को शामिल किया जाता है। कई जटिल स्रोतों के संसाधन के लिए यहाँ ज्ञान इत्यादि का उपयोग किया जाता है।

5. पाँच का क्षेत्र (Quinary Sector)—इस क्षेत्र में आर्थिक विकास का स्तर अधिक होता है और लोगों के सामाजिक फैसले योग्य संस्थानों द्वारा लिए जाते हैं।

आर्थिक भूगोल का महत्त्व (Importance of Economic Geography)-आज के समय में आर्थिक भूगोल का अध्ययन बहुत उपयोगी है। पिछले कुछ सालों से भूगोल की इस शाखा का बहुत विकास हुआ है। आर्थिक भूगोल एक प्रगतिशील ज्ञान है। इसका अध्ययन क्षेत्र बहुत वृद्धि आई है। इसके अध्ययन के साथ यह आसानी से पता लगता है कि देश के किसी क्षेत्र में विकास की संभावना है और क्यों ? सफल कृषि, उद्योग और व्यापार आर्थिक भूगोल के ज्ञान पर निर्भर हैं। इसका अध्ययन किसानों के लिए, उद्योगपतियों के लिए, व्यापारियों के लिए, योजनाकारों के लिए, राजनीतिवानों के लिए और साधारण व्यक्तियों के लिए बहुत उपयोगी है।

प्रश्न 2.
कृषि की किस्मों पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
कृषि को अलग-अलग किस्मों में विभाजित किया जाता है, जो कि निम्नलिखितानुसार हैं.
1. स्थानान्तरी कृषि (Shifting Cultivation)—यह कृषि का बहुत प्राचीन ढंग है जो अफ्रीका तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया के उष्ण आर्द्र वन प्रदेशों में रहने वाले इत्यादिवासियों का मुख्य धन्धा है। वनों को काट कर तथा झाड़ियों को जला कर भूमि को साफ कर लिया जाता है। वर्षा काल के पश्चात् उसमें फसलें बोई जाती हैं। जब दो-तीन फसलों के पश्चात् उस भूमि का उपजाऊपन नष्ट हो जाता है, तो उस क्षेत्र को छोड़ कर नए स्थान पर वनों को साफ करके नए खेत बनाए जाते हैं। इसे स्थानान्तरी कृषि कहते हैं। यह कृषि वन प्रदेशों के पर्यावरण की दशाओं के अनुकूल होती है। इसमें खेत बिखरे-बिखरे मिलते हैं। इस कृषि में फसलों के हेर-फेर के स्थान पर खेतों का हेर-फेर होता है। खेतों का आकार छोटा होता है। यह , आकार 0.5 से 0.7 हैक्टेयर तक होता है। इस कृषि में मोटे अनाज चावल, मक्की, शकरकन्द, कसावा इत्यादि कई फसलें एक साथ बोई जाती हैं।

2. स्थानबद्ध कृषि (Sedentary Agriculture)-यह कृषि स्थानान्तरी कृषि से कुछ अधिक उन्नत प्रकार की होती है। इसमें किसान स्थायी रूप से एक ही प्रदेश में कृषि करते हैं। जिन प्रदेशों में कृषि योग्य भूमि की कमी होती है, नई-नई कृषि भूमियां उपलब्ध नहीं होती, वहां लोग एक ही स्थान पर बस जाते हैं तथा स्थानबद्ध कृषि अपनाई जाती है। आजकल संसार में अधिकतर कृषि स्थानबद्ध कृषि के रूप में अपनाई जाती है। इस कृषि ने ही मानव को स्थायी जीवन प्रदान किया है। इस कृषि में अनुकूल भौतिक दशाओं के कारण आवश्यकताओं से कुछ अधिक उत्पादन हो जाता है। इसमें कृषि के उत्तम ढंग प्रयोग किए जाते हैं। इसमें फसलों का हेर-फेर किया जाता है। भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए खाद का भी प्रयोग होता है। मुख्य रूप से अनाजों की कृषि की जाती है।

3. जीविका कृषि (Subsistance Agriculture)—इस कृषि प्रणाली द्वारा स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति करनी होता है। इस कृषि का मुख्य उद्देश्य भूमि के उत्पादन से अधिक से अधिक जनसंख्या का भरण-पोषण किया जा सके। इसे निर्वाहक कृषि भी कहते हैं। इस द्वारा बढ़ती हुई जनसंख्या की मांग को पूरा किया जाता है। खेत छोटे आकार के होते हैं। साधारण यन्त्र प्रयोग करके मानव श्रम पर अधिक जोर दिया जाता है। खेतों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने तथा मिट्टी का उपजाऊपन कायम रखने के लिए हर प्रकार की खाद, रासायनिक उर्वरक का प्रयोग किया जाता है। भूमि का पूरा उपयोग करने के लिए साल में दो, तीन या चार फसलें भी प्राप्त की जाती हैं। शुष्क ऋतु में अन्य खाद्य फसलों की भी कृषि की जाती है।

4. व्यापारिक कृषि (Commercial Agriculture)-इस कृषि में व्यापार के उद्देश्य से फसलों की कृषि की जाती है। यह जीविका कृषि से इस प्रकार भिन्न है कि इस कृषि द्वारा संसार के दूसरे देशों को कृषि पदार्थ निर्यात किए जाते हैं। अनुकूल भौगोलिक दशाओं में एक ही मुख्य फ़सल के उत्पादन पर जोर दिया जाता है ताकि व्यापार के लिए अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त हो सके। यह आधुनिक कृषि का एक प्रकार है। इसमें उत्पादन मुख्यतः बिक्री के लिए किया जाता है। यह कृषि केवल उन्नत देशों में ही होती है। यह बड़े पैमाने पर की जाती है। इसमें रासायनिक खाद, उत्तम बीज, मशीनों तथा जल-सिंचाई साधनों का प्रयोग किया जाता है।

5. गहन कृषि (Intensive Agriculture)-थोड़ी भूमि से अधिक उपज प्राप्त करने के ढंग को गहन कृषि कहते हैं। इस उद्देश्य के लिए प्रति इकाई भूमि पर अधिक मात्रा में श्रम और पूंजी लगाई जाती है। अधिक जनसंख्या के कारण प्रति व्यक्ति कृषि योग्य भूमि कम होती है। इस सीमित भूमि से अधिक से अधिक उपज प्राप्त करके स्थानीय खपत की पूर्ति की जाती है। यह प्राचीन देशों की कृषि प्रणाली है। खेतों का आकार बहुत छोटा होता है। खाद, उत्तम बीज, कीटनाशक दवाइयां, सिंचाई के साधन तथा फसलों का हेर-फेर का प्रयोग किया जाता है।

6. विस्तृत कृषि (Extensive Agriculture)-कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में कृषि योग्य भूमि अधिक होने के कारण बड़े-बड़े फार्मों पर होने वाली कृषि को विस्तृत कृषि कहते हैं। कृषि यन्त्रों के अधिक प्रयोग के कारण इसे यान्त्रिक कृषि भी कहते हैं। इस कृषि में एक ही फ़सल के उत्पादन पर जोर दिया जाता है ताकि उपज को निर्यात किया जा सके। इसलिए इसका दूसरा नाम व्यापारिक कृषि भी है। यह कृषि मुख्यतः नए देशों में की जाती है। इसमें अधिक से अधिक क्षेत्र में कृषि करके अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। यह एक आधुनिक कृषि प्रणाली है जिसका विकास औद्योगिक क्षेत्रों में खाद्यान्नों की मांग बढ़ने के कारण हुआ है। यह कृषि समतल भूमि वाले क्षेत्रों पर की जाती है जहाँ कृषि का आकार बहुत बड़ा होता है। कृषि यन्त्रों का अधिक प्रयोग किया जाता है। जैसे ट्रैक्टर, हारवैस्टर, कम्बाइन, थ्रेशर इत्यादि।

7. मिश्रित कृषि (Mixed Agriculture)-जब फ़सलों की कृषि के साथ-साथ पशु पालन इत्यादि सहायक धन्धे भी अपनाए जाते हैं तो उसे मिश्रित कृषि कहते हैं। इस कृषि में फसलों तथा पशुओं से प्राप्त पदार्थों में एक पूर्ण समन्वय स्थापित किया जाता है। इस कृषि में दो प्रकार की फसलें उत्पादित की जाती हैं-खाद्यान्न ‘ तथा चारे की फ़सलें। पशुओं को शीत ऋतु में चारे की फ़सलें खिलाई जाती हैं। ग्रीष्म ऋतु में चरागाहों पर चराया जाता है तथा खाद्यान्नों का एक भाग जानवरों को खिलाया जाता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में मक्का पट्टी में मांस प्राप्त करने के लिए पशुओं को मक्का खिलाया जाता है। इसके साथ एक ही खेत पर एक साथ कई फसलों की कृषि की जाती है। इस प्रकार मुद्रा-फसलों की कृषि भी की जाती है। इस प्रकार की कृषि के लिए वैज्ञानिक ढंग प्रयोग किए जाते हैं। यह कृषि का एक अंग है।

8. उद्यान कृषि (Horticulture)-उद्यान कृषि व्यापारिक कृषि का एक सघन रूप है। इसमें मुख्यतः सब्जियों, फल और फूलों का उत्पादन होता है। इस कृषि का विकास संसार के औद्योगिक तथा नगरीय क्षेत्रों के पास होता है। यह कृषि छोटे पैमाने पर की जाती है परन्तु इसमें उच्च स्तर का विशेषीकरण होता है। भूमि पर सघन कृषि होती है। सिंचाई तथा खाद का प्रयोग किया जाता है। वैज्ञानिक ढंग, उत्तम बीज तथा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जाता है। उत्पादों को बाज़ार में तुरन्त बिक्री करने के लिए यातायात की अच्छी सुविधाएं होती हैं। इस प्रकार प्रति व्यक्ति आय बहुत अधिक होती है।

9. रोपण कृषि (Plantation Agriculture)-यह एक विशेष प्रकार की व्यापारिक कृषि है। इसमें किसी एक नकदी की फसल की बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है। यह कृषि बड़े-बड़े आकार के खेतों या बागान पर की जाती है इसलिए इसे बागानी कृषि भी कहते हैं। रोपण कृषि की मुख्य फसलें रबड़, चाय, काहवा, कोको, गन्ना, नारियल, केला इत्यादि हैं। इसमें केवल एक फसल की बिक्री के लिए कृषि पर जोर दिया जाता है। इसका अधिकतर भाग निर्यात कर दिया जाता है। इस कृषि में वैज्ञानिक विधियों, मशीनों, उर्वरक, अधिक पूंजी का प्रयोग होता है ताकि प्रति हैक्टेयर उपज को बढ़ाया जा सके, उत्तम कोटि का अधिक मात्रा में उत्पादन हो।

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प्रश्न 3.
कृषि से आपका क्या अर्थ है ? कृषि के वर्गीकरण और कृषिबाड़ी के मौसमों पर नोट लिखो।
उत्तर-
भूमि से उपज प्राप्त करने की कला को कृषि (कृषि) कहते हैं। यह मनुष्य की प्राथमिक आर्थिक क्रिया है। कृषि का विकास धरातल, मिट्टी, जलवायु, सिंचाई, खाद और यंत्रों के प्रयोग पर निर्भर करता है। अब कृषि सिर्फ प्रकृति पर निर्भर नहीं है। कृषि का विकास तकनीकी ज्ञान और सामाजिक पर्यावरण की देन है।
संसार में कृषि का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। कृषि हमारे देश के लोगों की आर्थिकता का मुख्य साधन है। डॉ० एम०एस० रंधावा (1959) ने कृषि का वर्गीकरण किया। डॉ० महेन्द्र सिंह रंधावा का जन्म जीरा (फिरोजपुर) में हुआ। वह एक जीव विज्ञानी थे और इसके अतिरिक्त वह एक प्रशासनिक अधिकारी थे। उन्होंने भारतीय कृषि को अलगअलग क्षेत्रों में विभाजित किया है। जिसका ज्ञान हमारे लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह क्षेत्र इस प्रकार हैं—

1. शीत उष्ण हिमालय क्षेत्र (The Temperate Himalayan Region)—इन क्षेत्रों के अधीन मुख्य रूप में हिमालय के पास वाले पश्चिम में जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और पूर्व में अरुणाचल प्रदेश और असम के राज्य शामिल हैं। इसको आगे दो मंडलों में विभाजित किया जाता है।

  • पहले उपमंडल में वे राज्य शामिल हैं यहां वर्षा अधिक होती है जैसे कि पूर्व भाग में सिक्किम, नागालैंड, त्रिपुरा असम इत्यादि। इन राज्यों में घने जंगल मिलते हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप में चावल और चाय की कृषि की जाती है।
  • दूसरे उपमंडल में वे राज्य शामिल हैं यहाँ मुख्य रूप में उद्यान इत्यादि की फसलें उगाई जाती हैं। इसमें पश्चिमी क्षेत्र जैसे कि जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तरांखड इत्यादि शामिल हैं। इन क्षेत्रों में मुख्य रूप से फल और सब्जियों इत्यादि की कृषि की जाती है पर मक्की, चावल, गेहूं और आलू की कृषि भी इन क्षेत्रों में प्रचलित है।

2. उत्तरी खुश्क क्षेत्र [The Northan Dry (Wheat) Region] —इन क्षेत्रों के अधीन पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, उत्तरी पश्चिमी मध्य प्रदेश इत्यादि आते हैं, क्योंकि अब सिंचाई की सुविधा की काफी उपलब्ध है इसलिए राजस्थान को इस क्षेत्र में शामिल कर लिया गया है। पंजाब, हरियाणा जैसे प्रदेशों में ट्यूबवैल इत्यादि की मदद से कृषि की सिंचाई सुविधा दी जाती है। इन क्षेत्रों की मुख्य फसलें हैं-गेहूं, मक्की, कपास, सरसों, चने, चावल, गन्ना और मोटे अनाज।

3. पूर्वी नमी वाले क्षेत्र (The Eastern wet Region)-इन क्षेत्रों में भारत के पूर्वी भाग असम, मेघालय, मिजोरम, पश्चिमी बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश इत्यादि शामिल हैं। इन क्षेत्रों में वर्षा 150 सैंटीमीटर तक हो जाती है जो कि चावलों की कृषि के लिए लाभदायक सिद्ध होती है। इन क्षेत्रों की मुख्य फसलें हैं चावल, पटसन, दालें, तिलहन, चाय और गन्ना इत्यादि।

4. पश्चिमी नमी वाले क्षेत्र (The Western wet Region)-इन क्षेत्रों के अधीन महाराष्ट्र और केरल तक का तटीय क्षेत्र शामिल होता है। यहाँ वर्षा 200 सैंटीमीटर होती है और कई बार 200 सैंटीमीटर से भी अधिक हो जाती है। इन क्षेत्रों की मुख्य फसलें नारियल, रबड़, काहवा, काजू और मसाले इत्यादि।

5. दक्षिणी क्षेत्र (South Region)-इस क्षेत्र के अधीन गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक इत्यादि क्षेत्र आते हैं। जहाँ वर्षा 50 से 100 सैंटीमीटर तक होती है। इस क्षेत्र की मुख्य फसलें हैं-कपास, बाजरा, मूंगफली, तिलहन और दालें इत्यादि।

कृषि के मौसम (Agricultural Season)—भारत में कृषि को मुख्य रूप में चार मौसमों में विभाजित किया जाता हैं, जो हैं—

  1. खरीफ-इसकी बिजाई मई में होती है और कटाई अक्तूबर में की जाती है। इस कृषि अधीन आती मुख्य फसलें हैं-बाजरा, चावल, मक्की, कपास, मूंगफली, पटसन, तम्बाकू इत्यादि।
  2. जैद खरीफ-इस मौसम में बिजाई का समय अगस्त महीने में है और कटाई जनवरी में की जाती है। इस मौसम की फसलें हैं-चावल, ज्वार, सफेद सरसों, कपास, तेलों के बीज इत्यादि।
  3. रबी-इन फसलों की बिजाई अक्तूबर और कटाई अप्रैल के मध्य में शुरू हो जाती है। इसके अधीन आती फसलें हैं-गेहूं, जौ, अलसी के बीज, सरसों, मसूर और मटर इत्यादि।
  4. जैद रबी-इस मौसम में बिजाई का काम फरवरी में होता है और कटाई अप्रैल के मध्य तक होती है। इस मौसम की मुख्य फसलें हैं-तरबूज, तोरी, खीरा इत्यादि सब्जियां।।

प्रश्न 4.
गेहूं की कृषि के लिए अनुकूल भौतिक दशाओं की व्याख्या करो तथा भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादन क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
गेहूं संसार का सबसे प्रमुख अनाज है। इसमें पौष्टिक तत्वों की काफी मात्रा शामिल होती है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई से पता चलता है कि सिंधु घाटी में गेहूं की कृषि आज से लगभग पांच हजार साल पहले से की जा रही है-रूम सागरी प्रदेशों को गेहूं का जन्म स्थान माना जाता है। गेहूं शब्द उर्दू भाषा के शब्द गंधुम से बना है जिसका हिंदी भाषा में अर्थ है गेहूं। यह एक मौसम की फसल है।
गेहूं की किस्में (Types of Wheat)-ऋतु के आधार पर गेहूं दो तरह की होती है—

  1. सर्द ऋतु की गेहूं (Winter Wheat)—इस तरह की गेहूं गर्म जलवायु के प्रदेशों में नवंबर-दिसंबर के महीने में बीजी जाती है और गर्म ऋतु के शुरू में ही काट ली जाती है। संसार में गेहूं कुल क्षेत्रफल के 67% भाग में सर्द ऋतु की गेहूं की बिजाई की जाती है।
  2. बसंत ऋतु की गेहूं (Spring Wheat)-बहुत ठंडे प्रदेशों में बर्फ पिघल जाने के तुरन्त बाद बसंत ऋतु में इस तरह की गेहूं की कृषि की जाती है। संसार में कुल गेहूं उगाने वाले क्षेत्रफल का 33% हिस्सा बसंत ऋतु की गेहूं अधीन आता है। जैसे-कैनेडा, चीन और रूस के उत्तरी भाग में।

उपज और भौगोलिक स्थिति (Geographical Conditions of Growth) गेहूं शीत-उष्ण कटिबन्ध का पौधा है, परन्तु यह अनेक प्रकार की जलवायु में उत्पन्न होता है। वर्ष में कोई समय ऐसा नहीं जबकि संसार में गेहूं की फसल बोई या काटी न जाए। गेहूं की उपज, क्षेत्रों का विस्तार 22° से 60° उत्तर तथा 20° से 45° दक्षिण अक्षांशों के बीच हैं। संसार में बहुत कम देश हैं जो गेहूं की कृषि नहीं करते। विश्व में अलग-अलग प्रदेशों में व्यापारिक ठंड उद्देश्य के लिए गेहूं की कृषि मध्य विस्तार हैं।

1. तापमान (Temperature) गेहूं की कृषि को बोते समय कम तापमान 10° C से 15° C और पकते समय ऊचे तापमान 20°C से 27° C आवश्यक है। गेहूं की फसल के लिए कम-से-कम 100 दिन पाला रहित मौसम चाहिए। गेहूं अति निम्न तापमान सह नहीं सकता।

2. वर्षा (Rainfall)-गेहूं की कृषि के लिए साधारण वर्षा 50 से 100 सेंटीमीटर तक होनी चाहिए। बोते समय ठंडे मौसम और साधारण वर्षा तथा पकते समय गर्म व खुश्क मौसम ज़रूरी है। इसलिए रूम सागरीय जलवायु गेहूं के लिए आदर्श जलवायु है। इसके अतिरिक्त चीन तुल, मानसून ब्रिटिश तुल और अर्ध मरुस्थल जलवायु के क्षेत्रों में भी गेहूं की कृषि की जाती है।

3. जल सिंचाई (Irrigation)-कम वर्षा वाले क्षेत्रों में गेहूं के लिए जल सिंचाई आवश्यक है जैसे कि सिन्ध …. घाटी और पंजाब के खुश्क भागों में खुश्क कृषि के ढंग अपनाये जाते हैं।

4. मिट्टी (Soil)—गेहूं के लिए दोमट तथा चिकनी मिट्टी उत्तम है। अमेरिका के प्रेयरीज तथा रूस के स्टेप प्रदेश की गहरी काली भूरी मिट्टी सबसे उत्तम है। इसमें वनस्पति के अंश तथा नाइट्रोजन में वृद्धि होती है।

5. धरातल (Topography)-गेहूं के लिए समतल मैदानी भूमि चाहिए ताकि उस पर कृषि यन्त्र और जल सिंचाई का प्रयोग किया जा सके। साधारण, ऊंची-नीची यां लहरदार धरातल और जल निकास का अच्छा विकास होता है।

6. आर्थिक तत्व (Economical Abstract)—गेहूं की फसल कृषि के लिए ट्रैक्टरों, कम्बाइन इत्यादि मशीनों का प्रयोग आवश्यक है। उत्तम बीज व खाद के प्रयोग से प्रति एकड़ उपज में वृद्धि होती है। गेहूं को रखने के लिए गोदामों की सुविधा आवश्यक है। गेहूं की कटाई के लिए सस्ते मजदूरों की आवश्यकता होती है। गेहूं के लिए रासायनिक खादों की आवश्यकता है। जिस कारण यूरोप के देशों में गेहूं की प्रति हैक्टेयर उपज आज बहुत अधिक है।

भारत के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र-भारत का संसार में गेहूं के उत्पादन में चौथा स्थान है। भारत में गेहूं रबी की फसल हैं। जहां कुल उत्पादन 664 लाख मीट्रिक टन है। देश में हरित क्रान्ति के कारण भारत गेहूं के उत्पादन में आत्म निर्भर हैं। अधिक उपज देने वाली किस्मों का उपयोग करने से उपज में भारी वृद्धि हुई है। भारत में अधिकतर वर्षा वाले क्षेत्र
और मरुस्थलों को छोड़कर उत्तरी भारत के सारे राज्यों में गेहूं की कृषि होती है। भारत के पर्वतीय ठंडे प्रदेशों में बसंत ऋतु की गेहूं की कृषि होती है। हिमाचल प्रदेश में किन्नौर, लाहौर, जम्मू कश्मीर में लद्दाख, सिक्किम और हिमालय के पर्वतीय भागों में इस किस्म के गेहूं की बिजाई की जाती है। गेहूं प्रमुख रूप में उत्तर-पश्चिमी भारत में बीजी जाती है।

1. उत्तर प्रदेश-यह राज्य भारत में सबसे अधिक (200 लाख टन) गेहूं उत्पन्न करता है। इस राज्य में गंगा यमुना, दोआब, तराई प्रदेश, गंगा-घाघरा दोआब प्रमुख क्षेत्र हैं। इस प्रदेश में नहरों द्वारा जल-सिंचाई तथा शीत काल की वर्षा की सुविधा है।

2. पंजाब-यह राज्य 110 लाख टन गेहूं का उत्पादन करता है। इसे भारत का अन्न भण्डार कहते हैं। यहाँ उपजाऊ मिट्टी, शीत काल की वर्षा, जल सिंचाई व खाद की सुविधाएँ प्राप्त हैं। इस राज्य में मालवा का मैदान तथा दोआब प्रमुख क्षेत्र हैं।

3. हरियाणा-हरियाणा में रोहतक से करनाल तक के क्षेत्र में गेहूं की पैदावार की जाती है। इसके अतिरिक्त मध्य प्रदेश में भोपाल जबलपुर क्षेत्र, राजस्थान में गंगानगर क्षेत्र, बिहार में तराई क्षेत्र, में गेहूं की पैदावार होती है। भारत ने साल 1970-71 में 29.23 लाख टन गेहूं की आयात की थी जो कि इन क्षेत्रों के अतिरिक्त भारत और मध्य प्रदेश के भोपाल जबलपुर के क्षेत्र राजस्थान के गंगानगर क्षेत्र और बिहार के तराई क्षेत्र गेहूं के उत्पादन के लिए काफी प्रसिद्ध हैं। भारत के गेहूं के मुख्य खरीददार देश हैं बंगलादेश, नेपाल, अरब अमीरात, ताईवान और फिलपाइन्ज।
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PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 4 आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं)

प्रश्न 5.
चावल की कृषि के लिए भौगोलिक दशाएं, उत्पादन और उत्तर भारत में मुख्य उत्पादक क्षेत्रों का वर्णन करो।
उत्तर-
संसार में चावल की कृषि पुराने समय से की जा रही है। चीन में चावल की कृषि ईसा से 3000 साल पहले ही की जाती थी। भारत तथा चीन को चावल की जन्मभूमि माना जाता है। इन देशों से ही यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका के देशों में चावल की कृषि का विस्तार हुआ है। मानसून प्रदेशीय एशिया के लोगों का मुख्य भोजन चावल है। संसार की लगभग 40% जनसंख्या का मुख्य भोजन चावल है। इसे Gift of Asia भी कहते हैं। चावल पैदा करने वाले देशों में जनसंख्या घनी होती है।
चावल की किस्में (Types of Rice)—चावलों की मुख्य रूप में दो किस्में होती हैं—

  1. पहाड़ी चावल (Upland Rice)—यहाँ चावलों की पर्वतीय ढलानों और सीढ़ीदार खेत बनाकर बिजाई की जाती है।
  2. मैदानी चावल (Lowland Rice)-इस किस्म के चावल की नदी घाटियों या डेल्टाई क्षेत्रों में समतल भूमि पर बिजाई की जाती है।

चावल की बिजाई के तरीके (Methods of Cultivation)-चावल की बिजाई के प्रसिद्ध तीन तरीके हैं1. छटा दे कर 2. पनीरी लगा कर 3. खोद कर।
उपज की भौगोलिक दशाएं (Conditions of Growth) चावल उष्ण और उपोष्ण कटिबन्ध का पौधा है। चावल की कृषि 40° उत्तर से 40° दक्षिण अक्षांशों के बीच होती है। मुख्यतः चावल की कृषि मानसून एशिया में सीमित हैं। यहाँ चावल की गहन जीविका कृषि की जाती है।

1. तापमान (Temperature)-चावल को बोते समय 20° C तथा पकते समय 24°C तापमान की आवश्यकता होती है। ऐसे तापमान के कारण ही पश्चिमी बंगाल में वर्ष में तीन फसलें होती हैं। चावल की फसल 120 200 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।

2. वर्षा (Rainfall)-चावल की कृषि के लिए 100 से 150 सें.मी. तक वर्षा अनुकूल होती है। चावल का पौधा 15 सें०मी० पानी में 75 दिनों तक डूबा रहना चाहिए। गर्मी की ऋतु में वर्षा बहुत सहायक होती है। कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल सिंचाई की सहायता से चावल की कृषि की जाती है, जैसे पंजाब में।

3. धरातल (Topography)-चावल के पौधे को हमेशा पानी में रखने के लिए समतल भूमि की आवश्यकता होती है ताकि वर्षा व जल सिंचाई से प्राप्त जल खेतों में खड़े रह सके। चीन और जापान की पहाड़ी ढलानों पर सीढ़ीनुमा कृषि की जाती है। अधिकतर भागों में 1000 मीटर की ऊंचाई तक चावल की कृषि होती है।

4. मिट्टी (Soil)-चावल की कृषि के लिए चिकनी या भारी दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। यह मिट्टी अधिक-से-अधिक पानी की बचत कर सकती है। इसी कारण चावल नदी घाटियों, डेल्टाओं तथा तटीय मैदानों में अधिक होता है। बाढ़ के मैदानी में मिट्टी, चावल की कृषि के लिए उत्तम है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस इत्यादि खादों की जरूरत होती है।

5. सस्ते मजदूर (Cheap Labour)-चावल की कृषि के सभी कार्य हाथ से करने पड़ते हैं। इसे “खुरपे की कृषि’ भी कहते हैं। इसीलिए घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों में सस्ते मजदूरों की आवश्यकता होती है। इस कृषि, के लिए सारे काम हाथ से किए जाते हैं। इसलिए चावल की कृषि कार्य प्रधान कृषि है। इटली, U.S.A., और फिलीपाइंस में मशीनों के द्वारा चावल की कृषि होती है। चावल में ज़्यादा तापमान, अधिक वर्षा, अधिक धूप अधिक भारी मिट्टी और मजदूरों की जरूरत होती है।

उत्पादन (Production)—साल 2014-15 के समय में भारत में चावल का कुल उत्पादन 104.8 लाख टन था और प्रति हैक्टेयर उपज 2390 किलो थी। संसार का 90% चावल मानसून एशिया में ही पैदा होता है। इस चावल की खपत भी एशिया में ही हो जाती थी। चावल की कृषि मानसून एशिया तक सीमित नहीं लगभग हर देश में चावल की कृषि होती है। यह क्षेत्र एक चावल की त्रिकोण बनाते हैं, जो कि जापान, भारत और जावा को मिलाने से बनती है।

भारत का विश्व में चावल के उत्पादन में दूसरा स्थान है। देश की 23 % कृषि योग्य भूमि पर चावल की कृषि की जाती है। 400 लाख हैक्टेयर भूमि में 835 लाख मीट्रिक टन चावल उत्पन्न होता है। देश में चावल का प्रति हैक्टेयर उपज कम है। परन्तु अब जापानी तरीकों से और उत्तम बीजों से अधिक उपयोग कारण उपज में वृद्धि हो रही है।

भारत में राजस्थान और दक्षिणी पठार के शुष्क क्षेत्रों को छोड़कर सारे भारत में चावल की कृषि होती है। भारत में चावल की कृषि के लिए आदर्श जलवायु है। 200 सैंटीमीटर से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में चावल एक मुख्य फसल है।
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  1. पश्चिमी बंगाल-यह राज्य भारत में सबसे अधिक (95 लाख टन) चावल का उत्पादन करता है। इस राज्य की 80% भूमि पर चावल की कृषि होती है। सारा साल ऊंचे तापमान व अधिक वर्षा के कारण वर्ष में तीन फसलें अमन, ओस तथा बोरो होती हैं। शीतकाल में अमन की फसल मुख्य फसल है, जिसका कुल उत्पादन का 86% भाग प्राप्त होता है।
  2. तमिलनाडु-इस राज्य में वर्ष में दो फसलें होती हैं। यह राज्य चावल उत्पन्न करने में दूसरा स्थान रखता है। यहाँ पर 58 लाख टन चावल उत्पन्न होता है।
  3. आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा-पूर्वी तटीय मैदान तथा नदी डेल्टाओं में चावल की कृषि होती है।
  4. बिहार, उत्तर प्रदेश-भारत के उत्तरी मैदान में उपजाऊ क्षेत्रों में जल सिंचाई की सहायता से चावल का उत्पादन होता है।
  5. पंजाब, हरियाणा-इन राज्यों में प्रति हैक्टेयर उपज सबसे अधिक है। ये राज्य भारत में कमी वाले भागों को चावल भेजते हैं। इन्हें भारत का चावल का कटोरा कहते हैं। चीन, जापान, भारत, श्रीलंका, इण्डोनेशिया, बांग्लादेश चावल आयात करने वाले प्रमुख देश हैं।

प्रश्न 6.
कपास की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाओं का वर्णन करो। भारत में कपास के वितरण, उत्पादन और व्यापार बताओ।
उत्तर-
कपास विश्व की सर्वप्रमुख रेशेदार फसल है। अरब और ईरान को कपास की जन्म भूमि माना जाता है। हैरोडोटस के लेखों से पता चलता है कि ईसा से 3000 हजार वर्ष पहले भारत में कपास की कृषि होती थी। आज के युग में कई प्रकार के बनावटी रेशे का उत्पादन होता है। सूती कपड़ा उद्योग कपास की उपज पर आधारित है।
कपास की किस्में (Types of Cotton) रेशे की लम्बाई के अनुसार कपास चार प्रकार की होती है।

  1. अधिक लम्बे रेशे वाली कपास (Very Long Staple)-इस कपास का रेशा 32 से 56 मिलीमीटर लम्बा होता है। ये अधिकतर मित्र तथा पीरू में होती हैं। इसको समुद्र द्वीपीय कपास यां मिस्री कपास भी कहते हैं।
  2. लम्बे रेशे वाली कपास (Long Staple) इस कपास का रेशा 31 मिलीमीटर से कुछ अधिक लम्बा होता है। यह सूडान तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न की जाती है।
  3. मध्य रेशे वाली कपास (Medium Staple) 25 से 32 मिलीमीटर लम्बे रेशे वाली इस कपास का अधिक उत्पादन रूस तथा ब्राजील में होता है।
  4. छोटे रेशे वाली कपास (Short Staple) इस कपास का रेशा 25 मिलीमीटर से कम लम्बा होता है। इस कपास की अधिक उपज भारत में होती है। इसलिए इसे भारतीय कपास भी कहते हैं।

उपज की दशाएं (Conditions of Growth) कपास उष्ण तथा उपोष्ण प्रदेशों की उपज है इसकी कृषि 40° उत्तर से 30° दक्षिण अक्षांशों के मध्य है।

  1. तापमान (Temperature) कपास के लिए, तेज चमकदार धूप तथा उच्च तापमान (22°C से 32°C) की आवश्यकता है। पाला इसके लिए हानिकारक है। अतः इसे 200 दिन पाला रहित मौसम चाहिए। समुद्री वायु के प्रभाव में उगने वाली कपास का रेशा लम्बा और चमकदार होता है।
  2. वर्षा (Rainfall) कपास के लिए 50 से से 100 सेंमी० वर्षा चाहिए। चुनते समय शुष्क पाला रहित मौसम होना चाहिए। फसल पकते समय वर्षा न हो। साफ आकाश तथा चमकदार धूप हो। अधिक वर्षा हानिकारक
  3. जल सिंचाई (Irrigation)-कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जल-सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं जैसे पंजाब में इससे प्रति हैक्टेयर उपज भी अधिक होती है।
  4. मिट्टी (Soil)-कपास के लिए लावा की काली मिट्टी सबसे उचित है। मिट्टी में लोहे व चूने का अंश अधिक हो। लाल मिट्टी तथा नदियों की कांप की मिट्टी (दोमट मिट्टी) में भी कपास की कृषि होती है। खाद का प्रयोग अधिक हो ताकि मिट्टी की उपजाऊ शक्ति बनी रहे।
  5. सस्ता श्रम (Cheap Labour)-कपास के लिए सस्ते मजदूरों की आवश्यकता है। कंपास चुनने के लिए स्त्रियों को लगाया जाता है।
  6. धरातल (Topography)-कपास की कृषि के लिए समतल मैदानी भाग अनुकूल होते हैं। साधारण ढाल वाले क्षेत्रों में पानी इकट्ठा नहीं होता।
  7. कीड़ों तथा बीमारियों की रोकथाम (Prevention of Insects and diseases)-अधिक ठण्डे प्रदेशों में बाल-वीविल (Boll Weevil) नामक कीड़ा कपास की फसल को नष्ट कर देता है। इन कीड़ों तथा कई बीमारियों की रोकथाम के लिए नाशक दवाइयां छिड़ ना आवश्यक है।

भारत में कपास का उत्पादन-कपास भारत की एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक फसल है। भारत का सूती कपड़ा उद्योग कपास पर निर्भर है। भारत विश्व की 10% कपास पैदा करके चौथे स्थान पर आता है। भारत की धरती पर संसार की सबसे अधिक कपास की कृषि होती है, परन्तु प्रति हैक्टेयर उपज कम है। भारत में 77 लाख हैक्टेयर धरती पर 12 लाख टन कपास पैदा की जाती है। भारत में अधिकतर छोटे रेशे वाली कपास उत्पन्न की जाती है। सूती कपड़ा उद्योग के लिए लम्बे रेशे वाले कपास मिस्र, सूडान और पाकिस्तान से मंगवाई जाती है।
उपज के क्षेत्र (Areas of Cultivation)-भारत में जलवायु तथा मिट्टी में विभिन्नता के कारण कपास के क्षेत्र बिखरे हुए हैं। उत्तरी भारत की अपेक्षा दक्षिणी भारत में अधिक कपास होती है।

  1. काली मिट्टी का कपास क्षेत्र-काली मिट्टी का कपास क्षेत्र सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसमें गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश राज्यों के भाग शामिल हैं। गुजरात राज्य भारत में सबसे अधिक कपास उत्पन्न करता है। इसे राज्य के खानदेश व बरार क्षेत्रों में देशी कपास की कृषि होती है।
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  2. लाल मिट्टी का क्षेत्र-तमिलनाडु, कर्नाटक तथा आन्ध्र प्रदेश राज्यों में लाल मिट्टी क्षेत्र में लम्बे रेशे वाली कपास (कम्बोडियन) उत्पन्न होती है।
  3. दरियाई मिट्टी का क्षेत्र-उत्तरी भारत में दरियाई मिट्टी के क्षेत्रों में लम्बे रेशे वाली अमेरिकन कपास की कृषि होती है। पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान राज्य प्रमुख क्षेत्र हैं। पंजाब में जल सिंचाई के कारण देश में सबसे अधिक प्रति हैक्टेयर उत्पादन है। संसार में कपास के कुल उत्पादन का 1/3 भाग निर्यात होता है। लगभग 20 देश कपास का निर्यात करते हैं। लम्बे रेशे वाली कपास का अधिक निर्यात होता है। यूरोप के सती कपड़ा उद्या में उन्नत देश कपास का अधिक आयात करते हैं। संसार में सबसे अधिक कपास यू०एस०ए निर्यात करता है। रूस, मित्र, सूडान, पाकिस्तान तथा ब्राजील भी कपास का निर्यात करते हैं। जापान, चीन, भारत, इंग्लैंड तथा यूरोप के अन्य देश आयात करते हैं।

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प्रश्न 7.
चाय की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं का वर्णन करो। भारत में चाय के उत्पादन, वितरण तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के बारे में बताओ।
उत्तर-
चाय संसार में प्रमुख पेय पदार्थ है। असम, शान पठार तथा यूनान पठार को चाय की जन्मभूमि माना जाता है। यहां से ही एशिया के दूसरे भागों में चाय की कृषि का विस्तार हुआ। यूरोपियन लोगों के यत्नों से कई प्रदेशों में चाय की बागानी कृषि का विकास हुआ। चाय एक सदाबहार झाड़ीनुमा पौधा होता है। इसमें थीन (Theine) नामक तत्व होता है जिसके कारण पीने में नशा होता है।
चाय की किस्में (Types of Tea)

  1. सफेद चाय-मुरझाई हुई पत्ती
  2. पीली चाय-ताजी पत्ती वाली चाय
  3. हरी चाय-ताजी पत्ती
  4. लौंग चाय-ताजी पत्ती
  5. काली चाय-पीसी हुई पत्ती
  6. खमीरा करने के बाद बनाई पत्ती-हरी चाय।

उपज की दशाएं (Conditions of Growth)-चाय गर्म, आर्द्र प्रदेशों का पौधा है। उष्ण तथा उप-उष्ण प्रदेशों में 55° तक चाय की कृषि होती है।

  1. तापमान (Temperature)-चाय के लिए सारा साल समान रूप में ऊँचे तापमान 22° C से 29° C की आवश्यकता होती है। ऊँचे तापमान के कारण वर्ष भर पत्तियों की चुनाई होती है जैसे अमन में। पाला चाय के लिए हानिकारक होता है।
  2. वर्षा (Rainfall)—चाय के लिए अधिक वर्षा 200 से 250 सेंमी० तक होनी चाहिए। चाय के पौधों के लिए वृक्षों की छाया अच्छी होती है। 3. मिट्टी (Soil)-चाय के उत्तम स्वाद के लिए गहरी मिट्टी चाहिए जिसमें पोटाश, लोहा तथा फॉस्फोरस का अधिक अंश हो। चाय के स्वाद को अच्छा बनाने के लिए रासायनिक खाद का प्रयोग होता है।
  3. धरातल (Topography) चाय की कृषि पहाड़ी ढलानों पर की जाती है ताकि पौधों की जड़ों में पानी इकट्ठा न हो। प्राय: 300 मीटर की ऊंचाई वाले प्रदेश उत्तम माने जाते हैं। मिट्टी के बहाव को रोकने के लिए सीढ़ीदार खेत बनाये जाते हैं।
  4. श्रम (Labour)–चाय की पत्तियों को चुनने, सुखाने तथा डिब्बों में बन्द करने के लिए सस्ते मज़दूर चाहिए। प्राय: स्त्रियों को इन कार्यों में लगाया जाता है।
  5. प्रबन्ध (Administration)–बागान के अधिक विस्तार के कारण उचित प्रबन्ध पूंजी की आवश्यकता होती
  6. मौसम (Weather)-उच्च आर्द्रता, गहरी ओस तथा कुहरा पत्तियों के विकास में सहायक होता है।

भारत में उत्पादन-भारत में चाय एक व्यापारिक फसल है जिसकी बागाती कृषि होती है। भारत संसार में 30% चाय उत्पन्न करता है और पहला स्थान रखता है। भारत संसार में चाय निर्यात करने वाला सबसे बड़ा देश है। देश में लगभग 700 चाय की कम्पनियां हैं। देश में लगभग 12,000 चाय के बाग हैं जिनमें मजदूर काम करते हैं। सर राबर्ट थरूस ने सन् 1823 में असम में चाय का पहला बाग लगाया। देश में 365 हजार हैक्टेयर भूमि में 70 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन होता है। देश में हरी चाय और काली चाय दोनों ही पैदा की जाती हैं।
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उपज के क्षेत्र (Areas of Cultivation) भारतीय चाय का उत्पादन दक्षिणी भारत की अपेक्षा उत्तरी भारत में कहीं अधिक है। देश में चाय के क्षेत्र एक दूसरे से दूर-दूर हैं।

1. असम-यह राज्य भारत में सबसे अधिक चाय उत्पन्न करता है। इस राज्य में ब्रह्मपुत्र घाटी तथा दुआर का प्रदेश चाय के प्रमुख क्षेत्र हैं। इस क्षेत्र को कई सुविधाएं प्राप्त हैं।

  • मानसून जलवायु,
  • अधिक वर्षा तथा ऊंचे तापमान,
  • पहाड़ी ढलाने,
  • उपजाऊ मिट्टी
  • योग्य प्रबन्ध।

2. पश्चिमी बंगाल-इस राज्य में दार्जिलिंग क्षेत्र की चाय अपने विशेष स्वाद के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। यहां अधिक ऊंचाई, अधिक नमी व कम तापमान के कारण चाय धीरे-धीरे बढ़ती है। जलपाइगुड़ी भी प्रसिद्ध क्षेत्र है।

  • तमिलनाडु में कोयम्बटूर तथा नीलगिरी क्षेत्र।
  • केरल में मालाबार तट।
  • कर्नाटक में कुर्ग क्षेत्र।
  • महाराष्ट्र में रत्नागिरी क्षेत्र ।

इसके अतिरिक्त झारखंड में रांची का पठार, हिमाचल प्रदेश में पालमपुर का क्षेत्र, उत्तरांचल में देहरादून का क्षेत्र, त्रिपुरा क्षेत्र में मेघालय प्रदेश। भारत संसार में सबसे अधिक 21% चाय निर्यात करता है। देश के उत्पादन का लगभग \(\frac{1}{4}\) भाग विदेशों को निर्यात किया जाता हैं। इससे लगभग ₹ 1250 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। यह निर्यात मुख्य रूप में इंग्लैंड, रूस, ऑस्ट्रेलिया, कैनेडा इत्यादि 80 देशों का होता है। भारत में हर साल 30 करोड़ किलोग्राम चाय की खपत होती है।

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प्रश्न 8.
काहवा की कृषि के लिए भौगोलिक दशाओं, उत्पादन तथा भारत में वितरण का वर्णन करो।
उत्तर-
काहवा भी चाय की तरह एक पेय पदार्थ हैं। इसकी बागाती कृषि की जाती है। यह काहवा पेड़ों के फलों के बीजों का चूर्ण होता है। इसमें कैफीन नामक पदार्थ होता है जिसके कारण काहवा उत्तेजना प्रदान करता है। काहवा की अधिक प्रयोग U.S.A में होता है, जबकि चाय का अधिक प्रयोग पश्चिमी यूरोप में होता है। इसका जन्म स्थान अफ्रीका के इथोपिया देश के कैफ़ा प्रदेश को माना जाता है।
कहवा की किस्में (Types of coffee) काहवा की कई किस्में हैं, पर इनमें तीन प्रमुख किस्में हैं—

  1. अरेबिका-लातीनी अमरीका में।
  2. रोबस्टा-एशिया में।
  3. लिबिरिया-अफ्रीका में।

उपज की दशाएं (Conditions of Growth)-काहवा उष्ण कटिबन्ध के उष्ण आर्द्र प्रदेशों का पौधा है। अधिक काहवा अधिकांश 25° उत्तरी तथा 25° दक्षिणी अक्षांशों के बीच उच्च प्रदेशों में बोया जाता है। यह एक प्रकार के सदाबहार पौधे के फलों के बीजों को सूखा के पीस कर चूर्ण तैयार कर लिया जाता है।

1. तापमान (Temperature)-काहवे के उत्पादन के लिए सारा साल ऊंचा तापमान औसत 22° C होना चाहिए। पाला तथा तेज़ हवाएं काहवे के लिए हानिकारक होती हैं। इसलिए काहवे की कृषि सुरक्षित ढलानों पर की जाती है।

2. वर्षा (Rainfall) काहवे के लिए 100 से 200 सें०मी०, वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है। वर्षा का वितरण वर्ष भर समान रूप से हो। शुष्क-ऋतु में जल सिंचाई के साधन प्रयोग किए जाते हैं। फल पकते समय ठण्डे शुष्क मौसम की आवश्यकता होती है।

3. छायादार वृक्ष (Shady trees)—सूर्य की सीधी व तेज़ किरणे काहवे के लिए हानिकारक होती हैं। इसलिए काहवे के बागों में केले तथा दूसरे छायादार फल उगाए जाते हैं। यमन देश में प्रात:काल की धुंध सूर्य की तेज़ किरणों से सुरक्षा प्रदान करती है।

4. मिट्टी (Soil) काहवे की कृषि के लिए गहरी उपजाऊ मिट्टी होनी चाहिए जिसमें लोहा, चूना तथा वनस्पति के अंश अधिक हों। लावा की मिट्टी तथा दोमट्ट मिट्टी काहवे के लिए अनुकूल होती है।

5. धरातल (land)-काहवे के बाग पठारों तथा ढलानों पर लगाए जाते हैं ताकि पानी का अच्छा निकास हो। काहवा की कृषि 1000 मीटर तक ऊंचे देशों में की जाती है।

6. सस्ते श्रमिक (Cheap Labour)-काहवे की कृषि के लिए सस्ते मजदूरों की आवश्यकता होती है। पेड़ों को छांटने, बीज तोड़ने तथा काहवा तैयार करने में सब काम हाथों से किये जाते हैं।

7. बीमारियों की रोकथाम (Absence of Diseases) काहवे के बाग़ बीटल नामक कीड़े तथा कई बीमारियों के कारण भारत, श्रीलंका तथा इण्डोनेशिया में नष्ट हो गए हैं। इन बीमारियों की रोकथाम आवश्यक है।

भारत में उत्पादन और वितरण-भारत में कहवा की कृषि एक मुस्लिम फकीर बाबा बूदन द्वारा लाए गए बीजों द्वारा आरम्भ की गई। भारत में काहवे का पहला बाग सन् 1830 में कर्नाटक राज्य के चिकमंगलूर क्षेत्र में लगाया गया। धीरे-धीरे काहवे की कृषि में विकास होता गया। अब भारत में लगभग दो लाख हैक्टेयर भूमि पर दो लाख टन कहवे का उत्पादन होता है। देश में काहवे की खपत कम है। देश में कुल उत्पादन का 60न भाग विदेशों को निर्यात कर दिया
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जाता है। इस निर्यात से लगभग 330 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। यह निर्यात कोजीकोड़े, मद्रास तथा बंगलौर की बन्दरगाहों से किया जाता है।
उपज के क्षेत्र-भारत के काहवे के बाग दक्षिणी पठार की पर्वतीय ढलानों पर ही मिलते हैं। उत्तरी भारत में ठण्डी जलवायु के कारण काहवे की कृषि नहीं होती।

  1. कर्नाटक राज्य-यह राज्य भारत में सबसे अधिक काहवा उत्पन्न करता है। यहां पश्चिमी घाट तथा नीलगिरी की पहाड़ियों पर काहवे के बाग मिलते हैं। इस राज्य में शिमोगा, काटूर, हसन तथा कुर्ग क्षेत्र काहवे के लिए प्रसिद्ध हैं।
  2. तमिलनाडु-इस राज्य में उत्तरी अर्काट से लेकर त्रिनेवली तक के क्षेत्र में काहवे के बाग मिलते हैं। यहां नीलगिरी तथा पलनी की पहाड़ियों की मिट्टी या जलवायु काहवे की कृषि के अनुकूल है।
  3. केरल-केरल राज्य में इलायची की पहाड़ियों का क्षेत्र।
  4. महाराष्ट्र में सतारा ज़िला।
  5. इसके अतिरिक्त आन्ध्र प्रदेश, असम, पश्चिमी बंगाल तथा अण्डेमान द्वीप में काहवा के लिए यत्न किए जा रहे है।

प्रश्न 8.
पटसन की कृषि के लिए आवश्यक भौगोलिक दशाओं और भारत में इसके उत्पादन तथा वितरण का वर्णन करो।
उत्तर-
कपास के बाद पटसन एक महत्त्वपूर्ण रेशेदार फसल है। प्रयोग और उत्पादन के तौर पर पटसन की कृषि बहुत अच्छी है। यह सुनहरी रंग की एक प्राकृतिक रेशेदार फसल है। इसका रेशा सुनहरी रंग का होता है। इसलिए इसे सोने का रेशा भी कहते हैं। इससे टाट, बोरे, पर्दे, गलीचे तथा दरियां इत्यादि बनाई जाती हैं। व्यापार में महत्त्व के कारण इसे थोक व्यापारी का खाकी कागज़ भी कहते हैं। भारत का पटसन उद्योग पटसन की कृषि पर निर्भर करता है
उपज की दशाएं (Conditions of the production of Jute)-पटसन एक खरीफ के मौसम की फसल है। इसकी बिजाई मार्च-अप्रैल में की जाती है और पटसन की कृषि के लिए आवश्यक दशाएं हैं।

1. तापमान (Temperature)-पटसन के उत्पादन के लिए गर्म और नमी वाला तापमान चाहिए। इसके लिए 26° सैंटीग्रेड अनुकूल तापमान की आवश्यकता है। तापमान मुख्य रूप से 24° से 37° C तक बढ़ और कम हो सकता है। मुख्य रूप में नमी 80% से 90% आवश्यक होती है।

2. वर्षा (Rainfall)-पटसन एक प्यासा पौधा है। इसको अपने काश्त के दौरान पर्याप्त वर्षा की आवश्यकता होती है। पटसन के लिए अधिक वर्षा 150 सें०मी० की आवश्यकता पड़ती है। पटसन की कृषि के लिए पकने के बाद कटाई के समय भी रेशा बनाने के लिए अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है।

3. मिट्टी (Soil)—पटसन के लिए गहरी उपजाऊ मिट्टी उपयोगी है। नदियों में बाढ़ क्षेत्र, डेल्टा प्रदेश, पटसन के – लिए आदर्श क्षेत्र होते हैं यहां नदियों द्वारा हर वर्ष मिट्टी की नई परत बिछ जाती है। खाद का भी अधिक प्रयोग किया जाता है।

4. सस्ता श्रम (Cheap Labour)—पटसन को काटने, धोने और छीलने के लिए, सस्ते तथा कुशल मज़दूरों की आवश्यकता होती है।

5. HYV–पटसन के रेशे के उत्पादन की वृद्धि के लिए अच्छी किस्म के HYV बीजों की आवश्यकता होती है जैसे कि JRC-212, JRC-7447, JRO-632, JRO-7835 इसके लिए बहुत उपयोगी हैं।

6. स्वच्छ जल-पटसन को काटकर धोने के लिए नदियों के साफ पानी की आवश्यकता होती है।

भारत में उत्पादन और वितरण-भारत में पटसन का उत्पादन मांग से कम ही है। इसलिए हमें पटसन बंगलादेश से खरीदनी पड़ती है। भारत में मुख्य पटसन उत्पादन प्रदेश हैं—

1. पश्चिमी बंगाल-यह राज्य भारत में सबसे अधिक पटसन उत्पन्न करता है। यहां पर अनुकूल भौगोलिक दशाएं माजूद हैं। सस्ते मजदूरों माजूद हैं और जिस कारण पटसन की कृषि अच्छी होती है। यहां पर नदी घाटियां तथा गंगा डेल्टाई प्रदेश, अधिक वर्षा, ऊंचा तापमान इस कृषि के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ है। नाड़िया कूच, बिहार, जलपाईगुड़, हुगली, पश्चिम दिनाजपुर, वर्धमान मालदा और मेदनीपुर प्रांत पटसन की काश्त के लिए प्रसिद्ध हैं। सारी पटसन उद्योगों में चली जाती है। साल 2015-16 में पश्चिमी बंगाल में 8075 गाँठ पटसन पैदा की गई।

2. बिहार-भारत में पटसन उत्पादन के अतिरिक्त बिहार का दूसरा स्थान है। पूर्णिया, कटिहार, सहरसा इत्यादि प्रांतों में पटसन का उत्पादन अधिक होता है।

3. असम-यह तीसरा मुख्य पटसन उत्पादन राज्य है। बाकी मुख्य राज्यों का क्रम इस प्रकार है।
Top tute producing states of India 2012-13
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PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 4 आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं)

आर्थिक भूगोल : कृषि तथा कृषि का संक्षिप्त विवरण (मौलिक क्षेत्र की क्रियाएं) PSEB 12th Class Geography Notes

  • आर्थिक भूगोल, मानव भूगोल की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है। आर्थिक साधनों और उनके वितरण एवं भौगोलिक वितरण का अध्ययन ही आर्थिक भूगोल है।
  • मौलिक आर्थिक क्रियाओं का संबंध सीधे रूप में धरती में मिल रहे कच्चे साधनों के उपयोग के साथ होता ।
  • संसार में कृषि का स्वरूप दिन-प्रतिदिन बदलता जा रहा है। फ़सलों और कृषि करने के तरीकों में दिन प्रतिदिन सुधार आ रहा है। अब कृषि लोगों के लिए सिर्फ एक रोज़गार नहीं, बल्कि एक उपयोगी रोज़गार बन गया है। कुल घरेलू उत्पादन में इसका हिस्सा भारत में 17%, चीन में 10%, यू०ए०एस० में 1.5% | रह गया है।
  • भारत में कृषि करने के मौसम हैं-रबी, खरीफ और जैद।
  • संसार में एल नीनो और ला नीना कृषि की पैदावार पर बड़ा असर डालती हैं।
  • पशु पालन खानाबदोशी लोगों का सबसे प्राचीन रोज़गार है। वह अपने जानवरों को चरागाहों और पानी की खोज के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान तक लेकर जाते हैं।
  • भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्र 328.73 मिलियन है पर उपयोग के लिए 30 करोड़ हैक्टेयर ही उपलब्ध है।
  • भूमि के उपयोग संबंधी रिकॉर्ड तैयार किया गया जिसमें जंगलों के अधीन क्षेत्र, बंजर और कृषि योग्य भूमि, परती भूमि, बिजाई अधीन क्षेत्र, कृषि अतिरिक्त क्षेत्र का रिकॉर्ड तैयार किया गया।
  • कृषि को मुख्य रूप में दो हिस्सों में विभाजित किया जाता है। प्राचीन निर्वाह कृषि और घनी निर्वाह कृषि। ।
  • मुख्य फ़सलें-खाद्यान्न-गेहूँ, चावल, मोटे अनाज, बाजरा, रागी, दालें, छोले, अरहर इत्यादि।
  • नकद फ़सलें-कपास, पटसन, गन्ना, तम्बाकू, तेल के बीज, मूंगफली, अलसी, तिल, अरंडी के बीज इत्यादि। |
  • रोपण कृषि-चाय, काहवा, मसाले, इलायची इत्यादि। |
  • बागवानी फ़सलें-फल, सब्ज़ियाँ, अखरोट, बादाम, स्ट्राबेरी, खुरमानी इत्यादि।
  • आर्थिक भूगोल-आर्थिक साधनों और उनके उपयोग के भौगोलिक वितरण का अध्ययन आर्थिक भूगोल है।
  • ऋतु प्रवास-पशु-पालक चरवाहे अपने पशुओं के साथ सर्दी शुरू होते ही मैदानी क्षेत्र में आ जाते हैं और गर्मी में वापिस अपने पहाड़ी क्षेत्रों में चले जाते हैं। इसको ऋतु प्रवास कहते हैं।
  • ग्रामीण काव्य (Pastoralism)-पशु-पालन के रोज़गार में जो खास कर परंपरागत तौर पर घास के मैदानों या चरागाहों में किया जाता है को अंग्रेज़ी में पैसट्रोलियम कहते हैं।
  • भारत में उगाई जाने वाली फ़सलों को मुख्य रूप में चार वर्गों में विभाजित किया जाता है—
    • खाद्यान्न
    • नकद फ़सलें
    • रोपण फ़सलें
    • बागवानी फ़सलें।
  • चाय की प्रचलित किस्में-सफेद चाय, पीली चाय, हरी चाय, लौंग चाय, काली चाय और खमीरीकरण के बाद बनाई चाय।
  • कपास की किस्में—
    • लम्बे रेशे वाली कपास-रेशे की लंबाई 24 से 27 मिलीमीटर।
    • मध्य रेशे वाली कपास-रेशे की लंबाई 20 से 24 मिलीमीटर।
    • छोटे रेशे वाली कपास-रेशे की लंबाई 20 मिलीमीटर से कम।
  • सुनहरी क्रांति-पटसन उत्पादन की तेज गति पकड़ने को सुनहरी क्रांति का नाम दिया गया है।
  • सफेद क्रांति-दूध और दूध से बनी वस्तुओं के उत्पादन के बढ़ावे को सफेद क्रांति कहते हैं।
  • बागवानी-बागवानी व्यापारिक कृषि का एक घना रूप है। इसमें मुख्य तौर से फल और फूलों का उत्पादन होता है। इस कृषि का विकास संसार के औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों के पास होता है।
  • मिश्रित कृषि-जब फ़सलों की कृषि के साथ-साथ पशु-पालन इत्यादि के सहायक धंधे भी अपनाए जाते हैं तब उसे मिश्रित कृषि कहते हैं।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Physical Education Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

PSEB 10th Class Physical Education Guide व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव Textbook Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मांसपेशियां क्या है?
(Define Muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियों में मांस सूत्र सैलों का सुमेल है। मांसपेशियां हड्डियों के साथ जुड़ी होती हैं। मांसपेशियों के सिकुड़ने से हड्डियों में खिंचाव उत्पन्न होता है तथा भिन्न-भिन्न अंग कार्य करते हैं।

प्रश्न 2.
मांसपेशियों की किस्मों के नाम लिखें।
(Name the types of Muscles.)
उत्तर-

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)
  3. हृदय की मांसपेशियां (Cardiac Muscles)

प्रश्न 3.
मल निकास प्रणाली क्या है?
(What is Excretory System ?)
उत्तर-
मल निकास प्रणाली ‘मल त्याग प्रणाली’ उस प्रबन्ध को कहते हैं जिसके द्व रीर से व्यर्थ एवं हानिकारक पदार्थों का निकास होता है।

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प्रश्न 4.
मल त्याग प्रणाली के मुख्य अंगों के नाम लिखें।
(Name the organs of excretory system.)
उत्तर-

  1. फेफड़े
  2. गुर्दे
  3. त्वचा
  4. आन्तें।

प्रश्न 5.
मांसपेशियों के कोई दो कार्य लिखें।
(Write two functions of Muscles.)
उत्तर-

  1. मांसपेशियां शरीर को रूप प्रदान करती हैं।
  2. इनकी सहायता से व्यक्ति चलना, फिरना, उछलना, कूदना और सांस लेता है।

प्रश्न 6.
ऐच्छिक मांसपेशियां क्या हैं ?
(What are voluntary Muscles ?)
उत्तर-
ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार चलती हैं।

प्रश्न 7.
अनैच्छिक मासपेशियां क्या हैं ?
(What are involuntary Muscles ?)
उत्तर-
यह मांसपेशियां व्यक्ति के वश में नहीं होतीं। वे व्यक्ति की बिना इच्छा के कार्य करती हैं।

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प्रश्न 8.
हृदय की मांसपेशियां क्या होती हैं ?
(What is are Cardiac Muscles?)
उत्तर-
यह मांसपेशियां अनैच्छिक मांसपेशियों जैसी होती हैं। परन्तु लगातार काम करने पर भी इनमें थकावट नहीं आती।

प्रश्न 9.
शरीर में कितने गुर्दे होते हैं?
(How many Kidneys are there in our body ?)
उत्तर-
दो।

प्रश्न 10.
व्यक्ति के शरीर में फेफड़ों की गिनती बताएं।
(How many Lungs a person possesses ?)
उत्तर-
दो।

प्रश्न 11.
रक्त का कार्य लिखें।
(Write the functions of the blood.)
उत्तर-
रक्त शरीर को ऑक्सीजन देता है और व्यर्थ पदार्थों को शरीर से निकालने का मल त्याग प्रणाली द्वारा कार्य करता है।

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प्रश्न 12.
नाक द्वारा सांस लेने के क्या लाभ हैं ?
(What are the uses of nose breathing?)
उत्तर-
नाक द्वारा सांस लेने में वायु शुद्ध और गर्म होकर शरीर में जाती है।

प्रश्न 13.
सांस लेते समय हम कौन-सी गैस अन्दर ले जाते हैं ?
(Which Gas do we take while breathing.)
उत्तर-
ऑक्सीजन गैस।

प्रश्न 14.
शारीरिक थकावट से क्या भाव है?
(What do you mean by Physical Fatigue?)
उत्तर-
इसमें शरीर थक जाता है और कार्य करने का मन नहीं करता।

प्रश्न 15.
श्वास क्रिया द्वारा कौन-सी गैस बाहर निकालते हैं ?
(Which Gas do we take out while breathing ?)
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड।

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प्रश्न 16.
मानसिक थकावट क्या है?
(What is Mental Fatigue?)
उत्तर-
जब कार्य करते-करते शरीर के साथ मन भी थक जाता है तो उसे मानसिक थकावट कहते हैं।

प्रश्न 17.
प्राणायाम के क्या लाभ हैं ?
(What are the uses of Pranayam?)
उत्तर-
शरीर स्वस्थ तथा मन संतुष्ट रहता है। शरीर को ऑक्सीजन की मात्रा पर्याप्त मिलती रहती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
श्वास क्रिया किसे कहते हैं ?
(What is Respiration ?)
उत्तर-
श्वास क्रिया दो क्रियाओं का मेल है। एक है सांस अन्दर ले जाने की क्रिया जिसे उच्छ्वास क्रिया (Inspiration) कहते हैं। दूसरी है सांस बाहर निकालने की क्रिया जिसे प्रश्वास क्रिया (Expiration) कहते हैं। श्वास क्रिया का मानवीय जीवन के लिए विशेष महत्त्व है। सामान्य व्यक्ति 20 से 22 सांस लेता है।

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प्रश्न 2.
रक्त किसे कहते हैं ?
(What is Blood ?)
उत्तर-
रक्त एक प्रकार का तरल पदार्थ है। यह शरीर में शिराओं (Veins) तथा. धमनियों में दिन-रात चलता रहता है। यह गाढ़े रंग का नमकीन पदार्थ है। यह व्यक्ति में उसके शरीर के 1/12 या 1/13 भाग के बराबर होता है।

प्रश्न 3.
रक्त के विभिन्न भागों के बारे में तुम क्या जानते हो ?
(What do you know about the Composition of Blood ?)
उत्तर-
रक्त में निम्नलिखित पदार्थ होते हैं-

  1. प्लाज्मा (Plasma)
  2. लाल रक्त कण (Red Corpuscles)
  3. श्वेत रक्त कण (White Corpuscles)
  4. प्लेटलेट्स।

प्लाज्मा पीले रंग का नमकीन पदार्थ है। इसमें लाल तथा श्वेत रक्त कण तैरते रहते हैं। लाल रक्त कण गोल तथा दोनों ओर से चिपके होते हैं। इनकी आयु 115 दिन होती है। श्वेत रक्त कण शरीर की रोगों के आक्रमणों से रक्षा करते हैं। ये रंगहीन और बेडोल आकार के होते हैं। प्लेटलेट्स का आकार लाल कणों से \(\frac{1}{2}\), या \(\frac{1}{3}\) होता है। ये रक्त को बहने से रोकते हैं।

प्रश्न 4.
रक्त दबाव क्या होता है ?
(What is Blood Pressure ?)
उत्तर-
शिराओं, धमनियों तथा कोशिकाओं की सहायता से रक्त शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में भ्रमण करता है। शिराओं में अशुद्ध तथा धमनियों में शुद्ध रक्त चक्कर लगाता है। इस परिभ्रमण में रक्त नलियों की दीवारों से टकराता रहता है जिससे दबाव बढ़ता है। जब यह दबाव कम होता है तो रक्त आगे को बढ़ता है। इस बढ़ने या कम होने की क्रिया को रक्त दबाव (Blood Pressure) कहते हैं। इसको सफैगनो मैनो मीटर से मापा जाता है।
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प्रश्न 5.
मांसपेशियों के कार्य बताओ।
(Describe the functions of Muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियां हड्डियों से जुड़ी होती हैं। उनके मुख्य कार्य इस प्रकार हैं-

  1. ये शरीर को रूप प्रदान करती हैं।
  2. ये शरीर को गति करने में सहायता करती हैं।
  3. इनकी सहायता से व्यक्ति चलता, उछलता, कूदता तथा सांस आदि लेता है।
  4. मांसपेशियां छाती के पट्ठों को फैलने में सहायता देती हैं।
  5. इनके द्वारा शरीर विकास करता है।
  6. मांसपेशियां हडियों को मजबूत रखती हैं।
  7. जोड़ों का विकास करने में मांसपेशियां सहायता करती हैं।

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प्रश्न 6.
मांसपेशियां कितनी प्रकार की होती हैं ?
(Mention the types of muscles.)
उत्तर-
मांसपेशियां दो प्रकार की होती हैं

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)-ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार चलती हैं। उन्हें जैसी सूचना मिलती है वैसे ही काम करती हैं। ये शरीर को गति प्रदान करती हैं। ये शरीर को सम्भाल कर रखती हैं तथा इनमें गर्मी पैदा करती हैं। ये टांगों तथा भुजाओं में पाई जाती हैं।
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)-ये मांसपेशियां व्यक्ति के वश में नहीं होतीं। ये व्यक्ति की इच्छा के बिना कार्य करती रहती हैं। ये व्यक्ति के सोते हुए भी काम करती हैं। ये दिल, जिगर तथा आंतड़ियों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 7.
त्वचा के बारे में संक्षेप जानकारी दो।
(Describe briefly about Skin.)
उत्तर-
त्वचा एक प्रकार का पर्दा है जो आन्तरिक मांसपेशियों तथा अंगों को ढक कर रखती है। यह दो प्रकार की होती है-बाह्य या ऊपरी (Epidermis) तथा निचली या आन्तरिक (Endodermis)। ऊपरी त्वचा में छोटे-छोटे मुसाम होते हैं जिनमें से होकर पसीना शरीर से बाहर निकलता है। आन्तरिक या निचली त्वचा में चर्बी होती है जो शरीर में गर्मी पैदा करने में सहायता करती है।

प्रश्न 8.
गुर्दो के कार्य बताओ।
(Describe the functions of the kidneys.)
उत्तर-
गुर्दे पेट के पीछे की ओर होते हैं। ये संख्या में दो होते हैं। इनका आकार सेम के बीज जैसा होता है। इनके द्वारा यूरिया, यूरिक एसिड, खनिज लवण पेशाब के रूप में शरीर से बाहर आते हैं। ये रक्त में पानी की मात्रा को समान रखते हैं जिसके फलस्वरूप शरीर में एसिड तथा क्षार की मात्रा में समानता रहती है।

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प्रश्न 9.
फेफड़ों की शक्ति क्या है ? इस विषय में लिखो।
(What is Vital Capacity ? Write briefly.)
उत्तर-
फेफड़ों की शक्ति (Capacity of Lungs or Vital Capacity) वह क्रिया जिनके द्वारा गहरी सांस लेने से वायु की मात्रा अन्दर ले जाई जाती है और फिर ज़ोर से बाहर निकाली जाती है, उसे फेफड़ों की शक्ति (Vital Capacity) कहते हैं। (2014 A)
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साधारणतः हम लगभग 300 सी० सी० वायु अन्दर ले जाते हैं और लगभग 1500 सी०सी० वायु बाहर निकालते हैं। यदि हम ज़ोर से सांस बाहर निकालें तो 1500 सी० सी० और वायु निकाल सकते हैं। इतना करने पर भी हमारे फेफड़े वायु से शून्य नहीं हो जाते। तब भी लगभग 500 सी० सी० वायु इनमें रह जाती है। फेफड़ों की इस शक्ति अथवा सामर्थ्य को मापने के लिए स्पाइरोमीटर यन्त्र का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 10.
थकावट क्या है ?
(What is Fatigue ?)
उत्तर-
मांसपेशियों में कार्य करने की शक्ति को कम होने को थकावट कहते हैं। जब हमारे शरीर की मांसपेशियां लगातार कार्य करती रहती हैं तो उनमें लैकटिक एसिड जमा हो जाता है जिस से शरीर में थकावट हो जाती है। अधिक खेलने, भागने अथवा अधिक ताकत से कार्य करने से थकावट हो जाती है। थकावट को आराम, नींद, मालिश और मनोरंजन क्रिया द्वारा दूर किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
थकावट कितने प्रकार की होती है ?
(Mention the type of Fatigue.)
उत्तर-थकावट दो प्रकार की होती है–

  1. शारीरिक
  2. मानसिक।

प्रश्न 12.
रक्त प्रणाली के मुख्य अंगों के नाम लिखो।
(Write the main organs of circulatory system.)
उत्तर-
हृदय, शिराएं, धमनियां और कोशिकाएं।

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प्रश्न 13.
मल निकास प्रणाली के प्रमुख अंगों को सामने रखते हुए व्यायाम के प्रभावों के बारे में बताएं।
(Discuss the main organs of Excretory System. Give the effects of exercises on Excretory System.)
उत्तर-
मल निकास प्रणाली (Excretory System)—उस प्रबन्ध को मल निकास प्रणाली कहते हैं जिसके द्वारा शरीर में से व्यर्थ एवं हानिकारक पदार्थों का निकास होता है। यदि ये व्यर्थ मल निकास प्रणाली और हानिकारक पदार्थ शरीर में ही जमा रहें तो शरीर अनेक प्रकार के रोगों का शिकार हो सकता है। इन बाहर आने वाले पदार्थों में यूरिया, कार्बन डाइऑक्साइड, पसीना तथा पानी प्रमुख हैं। इन पदार्थों का निकास फेफड़ों, गुर्दो, त्वचा (Skin) तथा आन्तों के द्वारा होता है।
व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise)—व्यायाम मल निकास प्रणाली को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित करता है

  1. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल होती है जिसके कारण रक्त की गति तेज़ हो जाती है। शरीर में गैसों की अदला-बदली (Exchange of gases) के कारण पौष्टिक पदार्थ हज्म हो जाते हैं तथा व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है। इससे शरीर का तापमान स्थिर रहता है।
  2. व्यायाम के कारण शरीर की विभिन्न मांसपेशियों को काम करना पड़ता है। इससे शरीर में टूट-फूट होती रहती है जिससे त्वचा में से गन्दगी का निकास होता रहता है। इस प्रकार शरीर चर्म रोगों से मुक्त रहता है।
  3. व्यायाम करने से शरीर में से अनावश्यक पदार्थों के रूप में विषैली वस्तुओं का शरीर से बाहर निकास होता रहता है। इस प्रकार विषैले कीटाणु शरीर में एकत्रित नहीं होते तथा शरीर में इन विषैले कीटाणुओं के विरुद्ध संघर्ष करने की शक्ति बढ़ती है।।
  4. व्यायाम करने से गुर्दे व्यर्थ पदार्थों को छान कर पेशाब के रूप में बाहर निकालते हैं। इस प्रकार ये एक छाननी का कार्य करते हैं।

प्रश्न 14.
नबज क्या है? (What is Pulse ?)
उत्तर-
रक्त की गति के कारण शिराओं और धमनियों की दीवारें फैलती और सिकुड़ती हैं। इस क्रिया को नब्ज कहते हैं। जो साधारण मनुष्य में 76 से 80 बार होता है। नबज को एक हाथ द्वारा दूसरी बाजू पर अंगुलियों का दबाव डाल कर देखा जा सकता है। खिलाड़ी की नब्ज़ एक मिनट में 60 से कम भी हो सकती है।
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प्रश्न 15.
मानसिक थकावट के मुख्य कारण क्या हैं ?
(What are the main causes of mental fatigue ?)
उत्तर-

  1. भोजन में पोषटिक पदार्थों की कमी
  2. अच्छी तरह से नींद न आना
  3. व्यक्ति की समर्था से ज्यादा काम का बोझ
  4. रोग
  5. एकाग्रता की कमी।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
रक्त के भिन्न-भिन्न अंगों का वर्णन करो। रक्त के मुख्य कार्य क्या हैं ?
(What is composition of blood ? Discuss its functions.)
उत्तर-
रक्त और उसके अंग (Blood and its Parts) रक्त या खून एक प्रकार का तरल पदार्थ है जिसका निर्माण उन खाद्य पदार्थों से होता है जिन्हें हम अपने शरीर में पहुंचाते हैं। रक्त हमारे शरीर में एक महत्त्वपूर्ण पदार्थ है। मनुष्य के शरीर में रक्त उसके शरीर के भार का बारहवां (\(\frac{1}{12}\) )भाग होता है। प्रायः एक नवयुवक के शरीर में रक्त की मात्रा 2 से 3 लिटर (Litre) तक होती है। कई दिशाओं में यह मात्रा कम या अधिक भी हो सकती है।

यदि हम त्वचा (Skin) के किसी भाग को काटें तो उसमें से एक तरल (Liquid) पदार्थ निकलता है। इस तरल पदार्थ का नाम ही ‘रक्त’ है। देखने में तो यह लाल रंग का प्रतीत होता है, परन्तु वास्तव में ऐसा है नहीं। यदि हम इस तरल पदार्थ अर्थात् रक्त को सूक्ष्मदर्शी (Microscope) से देखें तो हमें पता चलेगा कि रक्त में असंख्य छोटे-छोटे कण होते हैं। इन कणों का रंग सफ़ेद या लाल होता है। इन्हें लाल रक्त कण (Red Corpuscles) तथा श्वेत रक्त कण (White Corpuscles) कहते हैं। ये एक प्रकार के हल्के पीले द्रव्य (Yellow Liquid) में तैरते हैं जिसे रक्तवारि अथवा प्लाज़मा (Plasma) कहते हैं।
रक्त में मुख्यतः निम्नलिखित पदार्थ होते हैं जिन्हें नीचे दी गई तालिका द्वारा इस प्रकार प्रकट किया जाता है-
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1. रक्तवारि या प्लाज्मा (Plasma) —यह रक्त का हल्के-पीले रंग का पारदर्शक (Transparent) पदार्थ होता है। इसमें लाल और सफ़ेद कण तैरते रहते हैं। इसमें 90% पानी और 10% ठोस पदार्थ घुले रहते हैं। ये ठोस पदार्थ प्रोटीन, खनिज लवण और वसा (Fat) होते हैं। प्लाज्मा (Plasma) रक्त के दबाव (Pressure) को ठीक रखता है तथा लाल और सफ़ेद रक्त कणों को जाने में सहायता करता है। इसकी प्रोटीन रक्त के बहने को रोकने में सहायता देती है।

2. लाल रक्त कण (Red Corpuscles) —मनुष्य के लाल रक्त कण गोल तथा दोनों ओर से चिपके होते हैं। मनुष्य के एक घन मिलीमीटर रक्त में इनकी संख्या लगभग 5,000,000 होती है। ये इतने छोटे होते हैं कि यदि किनारे से किनारा मिला कर रखे जाएं तो 2.5 वर्ग सैंटीमीटर स्थान में ये लगभग 1 करोड़ आ जाएंगे। इनकी बाहरी परत एक लचीले खोल के रूप में होती है, जिसके अन्दर पीले रंग का लोहे का एक रंग (Pigment) होता है जिसे हिमोग्लोबिन (Heamoglobin) कहते हैं जो कि लोहे तथा प्रोटीन वस्तुओं से मिलकर बनती है। हिमोग्लोबिन ऑक्सीजन को चूस लेता है। इससे इसका रंग चमकदार हो जाता है और यह ऑक्सी हिमोग्लोबिन (Oxy Heamoglobin) में बदल जाता है। इसी पदार्थ के कारण रक्त फेफड़ों से ऑक्सीजन को चूस कर शरीर के भीतरी भाग तक पहुंचता है। लड़कियों में लाल रक्त कण लड़कों की अपेक्षा कम होते हैं। अधिक व्यायाम करने से तथा ऊंचाई पर लाल रक्त कणों की संख्या बढ़ जाती है।
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चित्र-लाल और सफ़ेद रक्त कण

3. सफ़ेद रक्त कण (White Corpuslces)—शरीर की तुलना एक राज्य से की जा सकती है। जिस प्रकार राज्य की रक्षा के लिए सेना का प्रबन्ध होता है, उसी प्रकार शरीर रूपी राज्य के लिए सफ़ेद रक्त कण रूपी सेना का प्रबन्ध है। सफ़ेद रक्त कणों की संख्या लाल रक्त कणों की अपेक्षा कम होती है। शरीर में लगभग 600 लाल रक्त कणों के पीछे केवल 1 (एक) सफ़ेद रक्त कण होता है। एक घन मिलीमीटर में सफ़ेद रक्त कणों की संख्या लगभग 8,000 से 10,000 होती है। ये रंगहीन और बेडौल (Irregular) आकार के होते हैं। इनकी सहायता से शरीर रोगों का सामना करता है। इनका कार्य रोग के कीटाणुओं (germs) को घेर कर उन्हें समाप्त करना है। शरीर में चोट आदि लगने पर ये घावों को भरने में सहायक होते हैं।

4. प्लेटलेट्स (Platelets) —मनुष्य के रक्त में लाल तथा सफ़ेद रक्त कणों के अतिरिक्त एक तीसरे प्रकार के रक्त कण भी पाए जाते हैं जिन्हें रक्त प्लेटलेट्स (Platelets) कहते हैं। ये लाल और सफ़ेद रक्त कणों से बिल्कुल भिन्न हैं। ये लाल कणों का \(\frac{1}{2}\), या \(\frac{1}{3}\) होते हैं। रक्त के एक घन मिली मीटर में इनकी संख्या लगभग 3 लाख होती है। ये सफ़ेद और बेडौल (Irregular) आकार के होते हैं। इनका प्रमुख कार्य रक्त को बहने से रोकना है।
रक्त के कार्य (Functions of Blood) रक्त के निम्नलिखित कार्य होते हैं-

  1. रक्त हमारे भोजन के पचे हुए भाग को शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने का कार्य करता है।
  2. रक्त ही शरीर में विषैले व्यर्थ पदार्थ के निकास में सहायता देता है। यह इन पदार्थों
    को अपने अन्दर घोल कर गुर्दे में ले जाता है जहां से वे मूत्र (Urine) के रूप में बाहर निकल जाते हैं।
  3. रक्त में उपस्थित लाल रक्त कण (Red Corpuscles) फेफड़ों में ऑक्सीजन चूस कर शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों में ले जाते हैं।
  4. लाल रक्त कण ही ऑक्सीजन क्रिया के बाद बनी कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) को फेफड़ों में लाकर बाहर निकालने का कार्य करते हैं।
  5. सफ़ेद रक्त कण (White Corpuscles) शरीर की कीटाणुओं से रक्षा करते हैं।
  6. रक्त प्लेटलेट्स चोट लगने पर रक्त को शरीर से बाहर बह जाने से रोकने का काम करते हैं।
  7. रक्त हार्मोन्स (Harmones) को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने का कार्य करता है।
  8. रक्त के द्वारा शरीर के विभिन्न अंग परस्पर मिले रहते हैं और सूख कर नष्ट होने से बच जाते हैं।
  9. रक्त के द्वारा ही शरीर के विभिन्न अंगों का तापक्रम स्थिर रहता है।

संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि रक्त जीवन देने वाला है। यदि किसी अंग में रक्त का प्रवाह न हो तो वह अंग पीला पड़ जाता है और कमजोर हो जाता है। अधिक समय तक इस क्रम के रहने से अंग मर भी सकता है।

प्रश्न 2.
श्वास प्रणाली के अंगों का नाम लिखो। श्वास प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव लिखो।
(Mention the main organs of Respiration. Describe the effects of exercises on Respiration System.)
उत्तर-
श्वास लेने तथा छोड़ने की क्रिया को श्वास-क्रिया (Respiration) कहते हैं। इस क्रिया द्वारा मनुष्य वायु के साथ ऑक्सीजन फेफड़ों में ले जाता है और वायु के साथ शरीर में उत्पन्न हुई कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकाल देता है। श्वास क्रिया में अनेक अंग जैसे नाक, श्वास नली, फेफड़े आदि काम करते हैं। श्वास प्रणाली के विभिन्न अंग निम्नलिखित हैं

  1. नाक (Nose)
  2. ग्रसनिका या पूर्वकण्ठ (Pharynx)
  3. स्वर यन्त्र अथवा कण्ठ (Larynx)
  4. श्वास नली या टेंटुआ (Wind-Pipe or Trachea)
  5. वायु नलियां (Bronchial Tubes)
  6. फेफड़े (Lungs)

हमारे शरीर में वायु नाक व मुँह दोनों में ही प्रवेश करती है, परन्तु हमें नाक से ही वायु अन्दर ले जानी चाहिए क्योंकि वायु में धूल-कण विद्यमान होते हैं। नासिकाओं में बालों द्वारा इन्हें रोककर शुद्ध वायु ग्रसनिका में पहुंचाई जाती है। वहां से टेंटुंओं के रास्ते से होते हुए फेफड़ों में जाती है। जब हम सांस लेते हैं तो छाती में स्थित खोह फैल जाती है। इससे फेफड़े भी ज्यादा वायु खींचकर फैल जाते हैं और छाती के फैले हुए भाग को घेर लेते हैं। जब छाती पोल सिकुड़ता है तो वायु का कोशिकाओं के अन्दर दबाव पड़ता है। इससे वायु कुछ वायु कोशों से होकर बाहर निकाल दी जाती है।

जब डायाफ्राम की मांसपेशियां सिकुड़ती हैं तो यह चपटी हो जाती हैं जिसमें छाती खोह बढ़ जाता है और फेफड़े फैल जाते हैं जिससे ज्यादा वायु आ जाती है। इसके पश्चात् डायाफ्राम दोबारा अपनी पहली स्थिति में आ जाता है जिससे फेफड़ों पर दबाव पड़ता है और वह सिकुड़ते हैं तथा अन्दर की वायु बाहर निकल जाती है। जब अन्दर की वायु का दबाव वायु के मुकाबले में कम हो जाता है जिससे बाहर की वायु उसका स्थान ग्रहण कर लेती है। इस प्रक्रिया का नाम दुहार क्रिया है। इसके पश्चात् डायाफ्राम एवं पसलियां सिकुड़ कर अपनी पहली स्थिति में आ जाती हैं तथा फेफड़े सिकुड़ जाते हैं जिससे हवा बाहर निकल जाती है। इस प्रक्रिया को प्रश्वास कहा जाता है। इसके पश्चात् फिर से वही क्रम शुरू हो जाता है, परन्तु इस क्रिया के दोबारा आरम्भ होने को आराम कहा जाता है।
इस पूर्ण क्रिया को (जिसमें अन्तः श्वसन, आराम तथा प्रश्वास क्रिया होती है) पूर्ण श्वास क्रिया कहा जाता है।

श्वास प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Respiratory System)
व्यायाम श्वास प्रणाली पर विशेष प्रभाव डालता है जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—

  1. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल पैदा होती है जिससे शरीर से विषैले पदार्थ, पसीना, मल त्याग तथा पेशाब के रास्ते शरीर से बाहर निकल जाते हैं। इससे शरीर रोगों से मुक्त रहता है।
  2. व्यायाम करने से फेफड़ों में वायु भरने की शक्ति में वृद्धि होती है जिसके फलस्वरूप फेफड़ों में अधिक लचक आती है तथा ये कई रोगों से बचे रहते हैं।
  3. व्यायाम करने में शरीर से रक्त अधिक मात्रा में साफ़ होता है। इसके परिणामस्वरूप शरीर के भिन्न-भिन्न सैलों में श्वास-क्रिया के द्वारा रक्त अधिक मात्रा में पहुंचता है।
  4. व्यायाम करने से शरीर से व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है जिससे शरीर में काम करने की शक्ति अधिक पैदा होती है।
  5. व्यायाम करने से शरीर के सभी सैलों को अधिक मात्रा में ऑक्सीजन मिलती है। इसके फलस्वरूप शरीर स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनता है।
  6. इसके द्वारा जोर का कार्य करने से व्यक्ति की जीवन धारा. बढ़ जाती है। (7) इसके द्वारा विकास अधिक-से-अधिक किया जा सकता है।’
  7. इसके द्वारा गैसों की अदला-बदली तीव्रता और ठीक तरह से होती है। (9) इसके द्वारा शरीर की मुकाबला करने की शक्ति बढ़ जाती है।
  8. व्यायाम करने से कार्बन डाइऑक्साइड के बाहर निकलने और ऑक्सीजन के अन्दर प्रवेश करने की मात्रा में वृद्धि हो जाती है।

PSEB 10th Class Physical Education Solutions Chapter 1 व्यायाम का श्वास-क्रिया, रक्त चक्र, मांसपेशियों तथा मल निकास पर प्रभाव

प्रश्न 3.
रक्त प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव लिखो।
(Write down the effects of Exercises on Circulatory System.)
उत्तर-
रक्त प्रणाली एक प्रकार का तरल पदार्थ (Liquid) है। इसका निर्माण उन खाद्य एवं पेय पदार्थों से होता है जिन्हें हम अपने शरीर में पहुंचाते हैं। मानव शरीर में रक्त उसके शरीर के कुल भार का \(\frac{1}{12}\), या \(\frac{1}{13}\) में भाग होता है। रक्त में असंख्य छोटे-छोटे लाल एवं श्वेत कण होते हैं जो कि प्लाज्मा नामक हल्के पीले रंग के द्रव्य में तैरते रहते हैं। रक्त हमारे शरीर के विभिन्न अंगों में दिन-रात भ्रमण करता रहता है। रक्त की इस गति को रक्त परिवहन (Blood Circulation) कहते हैं। रक्त परिवहन में शरीर के जो अंग भाग लेते हैं, उनके समूह को रक्त प्रणाली (Circulatory System) कहते हैं।

रक्त प्रणाली पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Circulatory System.) रक्त प्रणाली पर व्यायाम के निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं—

  1. व्यायाम करते समय हृदय मांसपेशियों को आवश्यकतानुसार अधिक रक्त देता है. जिसके फलस्वरूप छोटी रक्त नलियों तथा तन्तुओं के तनों में अधिक वृद्धि होती है।
  2. व्यायाम करने वालों के शरीर में शुद्ध एवं अशुद्ध रक्त की अदला-बदली शीघ्र होती रहती है। इसके फलस्वरूप शरीर में पौष्टिक पदार्थ तथा ऑक्सीजन की मात्रा अधिक मिलती है और शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड आदि व्यर्थ और हानिकारक पदार्थों का पसीने तथा पेशाब के रूप में निकास हो जाता है। इससे शरीर हृष्ट-पुष्ट व नीरोग रहता है।
  3. व्यायाम करने वाले व्यक्ति का रक्त दबाव अधिक नहीं होता। उसकी मांसपेशियां सिकुड़ती और फैलती हैं। फलस्वरूप रक्त शीघ्र साफ हो जाता है।
  4. व्यायाम करते समय शरीर का प्रत्येक अंग काम करता है। इस कारण उन्हें ऑक्सीजन की अधिक आवश्यकता पड़ती है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के खून की गति साधारण व्यक्ति से दुगुनी होती है।
  5. व्यायाम करने से मांसपेशियां मज़बूत होती हैं। इसके फलस्वरूप आराम की स्थिति में हृदय की धड़कन मन्द चलती है, परन्तु रक्त की गति तेज़ होती है।
  6. व्यायाम करने वाले मनुष्य को ऑक्सीजन की अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है। इस प्रकार ऑक्सीजन की खपत में वृद्धि होती है तथा रक्त में इसकी मात्रा बढ़ती है। इस बढ़ी हुई ऑक्सीजन के कारण लैक्टिक एसिड में वृद्धि नहीं होती। इसलिए खिलाड़ी तथा एथलीट बिना थकावट महसूस किए काफ़ी समय तक खेल में भाग ले सकते हैं।
  7. व्यायाम करते समय रक्त नलियों के मुंह खुलते और बन्द होते रहते हैं जिससे व्यायाम करते समय ऑक्सीजन अधिक मात्रा में अन्दर जाती रहती है। भारी व्यायाम तथा दौड़ते समय ऑक्सीजन 3500 घन मिली लिटर तक अन्दर चली जाती है जबकि साधारण व्यायाम करने वाले में ऑक्सीजन की मात्रा केवल 5000 से 8000 घन मिली लिटर तक होती है।
  8. व्यायाम करने वाले व्यक्ति की शिराओं (Veins) तथा धमनियों (Arteries) को अधिक काम करना पड़ता है। फलस्वरूप इनकी दीवारें मज़बूत हो जाती हैं। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के दिल की रक्त स्ट्रोक (Stroke Volume) साधारण व्यक्ति से अधिक होती है।

प्रश्न 4.
मांसपेशियां क्या हैं ? ये कितने प्रकार की हैं ? इन पर व्यायाम के प्रभावों के बारे में बताएं।
(What are Muscles ? Give its types. Write down the effects of exercises on muscular system.)
उत्तर-
मांसपेशियां (Muscles)-मानव शरीर का सर्वोत्तम गुण इसकी गति अथवा चलना-फिरना है। मनुष्य के घूमने-फिरने से हड्डियां धुरी की भूमिका निभाती हैं। हड्डियों के साथ मांसपेशियां जुड़ी होती हैं। ये विभिन्न आकार की होती हैं। इन मांसपेशियों में मांस सूत्र सैलों का सुमेल है। प्रत्येक मांसपेशी हड्डी के साथ जुड़ी होती है।
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मांसपेशियों के सिकुड़ने से हडियों में भी खिंचाव उत्पन्न होता है तथा भिन्न-भिन्न अंग कार्य करते हैं। मांसपेशियों में 75% पानी, 18% प्रोटीन तथा शेष (वसा) चर्बी तथा नमक आदि होते हैं। रक्त तथा सुषम्ना नाड़ियां इन मांसपेशियों को सूचना पहुंचाने का काम करती
मांसपेशियों के प्रकार (Types of Muscles)—मांसपेशियां निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं—

  1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles)
  2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles)

1. ऐच्छिक मांसपेशियां (Voluntary Muscles) ऐच्छिक मांसपेशियां वे हैं जो व्यक्ति की इच्छानुसार कार्य करती हैं। ये हड्डियों के पिंजर के ऊपर लगी होती हैं। ये टांगों तथा भुजाओं में मिलती हैं। ये प्राप्त सूचना के अनुसार कार्य करती हैं। ये शरीर को गति प्रदान करती हैं, शारीरिक ढांचे को सम्भाल कर रखती हैं तथा शरीर में गर्मी उत्पन्न करती हैं।
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चित्र-ऐच्छिक मांसपेशियां
2. अनैच्छिक मांसपेशियां (Involuntary Muscles) (2005 B)-अनैच्छिक मांसपेशियां वे मांसपेशियां हैं जो व्यक्ति के वश में नहीं होती और उसकी इच्छा के बिना ही काम करती रहती हैं। ये हृदय, जिगर तथा आन्तों आदि में पाई जाती हैं। ये व्यक्ति के सोते हुए भी कार्य करती रहती हैं। ये रक्त परिवहन तथा पाचन क्रिया में सहायता पहुंचाती हैं। इनके लक्षण सिकुड़ना, फैलाव तथा लचक आदि हैं।
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चित्र-अनैच्छिक मांसपेशियां

मांसपेशियों पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Muscles)— याम के मांसपेशियों पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ते हैं—

  1. व्यायाम करने वाले व्यक्तियों की मांसपेशियां अधिक काम करती हैं। इस प्रकार उन्हें ऑक्सीजन द्वारा पौष्टिक खुराक अधिक मात्रा में प्राप्त होती है। इससे ये अधिक पुष्ट और मज़बूत बन जाती है।
  2. प्रतिदिन व्यायाम करने से मांसपेशियों का आपसी ताल-मेल बढ़ता है। इनमें व्यायाम के कारण अधिक शक्ति आती है। फलस्वरूप व्यक्ति लम्बी अवधि तक काम करके भी थकावट महसूस नहीं करता है।
  3. व्यायाम करने से मांसपेशियों को अधिक काम करना पड़ता है। व्यायाम करने वाले व्यक्ति के अन्दर ऑक्सीजन की खपत भी बढ़ जाती है। इस प्रकार मांसपेशियों में तेजी से रक्त पहुंचता रहता है।
  4. व्यायाम करने से शरीर में हिल-जुल होती रहती है। इसमें कई व्यर्थ पदार्थों का शरीर से निकास हो जाता है तथा शरीर का तापमान प्रायः समान ही रहता है।
  5. व्यायाम करने से मांसपेशियों को ग्लाइकोजन, फॉस्कोराटीन तथा पोटाशियम आदि रासायनिक पदार्थ प्राप्त होते रहते हैं। रासायनिक पदार्थ रक्त की गति में वृद्धि करते हैं।
  6. व्यायाम करने से शरीर की मांसपेशियों में लचक तथा स्फूर्ति आती है। इससे हमारा शरीर नीरोग तथा मजबूत,रहता है।
  7. व्यायाम करने से छाती की हड्डियों के पट्ठों के फैलने की शक्ति बढ़ जाती है।
  8. इसके द्वारा पट्ठों को प्रयोग के योग्य रखा जा सकता है।
  9. इसके द्वारा हमारी हड्डियां कठोर हो जाती हैं और अधिक समय तक काम कर सकती हैं।
  10. विश्राम अवस्था में व्यक्ति का रक्त चक्र पूरा होने के लिए 21 सैकिंड लगते हैं। परन्तु व्यायाम करने से यह 8.15 या 10 सैकिंड में पूरा हो जाता है।

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प्रश्न 5.
मलत्याग प्रणाली के मुख्य अंगों पर व्यायाम के प्रभाव लिखें।
(Discuss the main organs of Excretory System. Write the effects of Exercise on Excretory System.)
उत्तर-
मलत्याग प्रणाली उसको कहते हैं जिसके द्वारा शरीर में व्यर्थ और हानिकारक पदार्थों का निकास होता है। यदि यह व्यर्थ पदार्थ शरीर में ही रहें तो कई प्रकार के रोग लग सकते हैं। बाहर आने वाले पदार्थ यूरिया, कार्बन डाइऑक्साइड, पसीना और पानी हैं, जो फेफड़ों, गुर्दो, त्वचा और आंतड़ियों द्वारा बाहर निकलते हैं।

  1. व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercises)-व्यायाम द्वारा रक्त की गति तेज़ हो जाती है, शरीर में गैसों के परिवर्तन के कारण पौष्टिक पदार्थ दब जाते हैं और व्यर्थ पदार्थों का निकास हो जाता है तथा शरीर का तापमान स्थिर रहता है।
  2. व्यायाम द्वारा मांसपेशियों को कार्य करना पड़ता है जिससे त्वचा द्वारा गंदगी का निकास होता रहता है जिससे शरीर त्वचा के रोगों से मुक्त रहता है।
  3. व्यायाम द्वारा व्यर्थ पदार्थ और ज़हरीली वस्तुएं शरीर से बाहर निकल जाती हैं और ज़हरीले कीटाणु शरीर में इकट्ठे नहीं हो सकते।
  4. व्यायाम द्वारा गुर्दे व्यर्थ पदार्थों को पेशाब द्वारा बाहर निकाल देते हैं।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पर नोट लिखो
(क) त्वचा के कार्य
(ख) गुर्दे
(ग) दिल
(घ) शिराएं तथा धमनियां। (अभ्यास का प्रश्न 6)
[Write a note on the following
(a) Functions of Skin
(b) Kidneys
(c) Heart
(d) Arteries and Veins.]
उत्तर-
(क) त्वचा के कार्य (Functions of Skin) त्वचा (चमड़ी) एक प्रकार का आवरण (पर्दा) है जो शरीर के आन्तरिक अंगों तथा मांसपेशियों को ढांप कर रखती है। त्वचा दो प्रकार की होती है-ऊपरी या बाह्य (Epidermic) तथा निचली या आन्तरिक (Dermis)। ऊपरी त्वचा सख्त तथा नर्म होती है। इसमें छोटे-छोटे मुसाम होते हैं, जिनसे पसीना शरीर में से बाहर निकलता रहता है। निचली या आन्तरिक त्वचा बन्धक तन्तुओं (Connective tissues) की बनी होती है। इसमें वसा (चर्बी) होती है जो गर्मी पैदा करने में सहायता प्रदान करती है। इसमें दो प्रकार की पसीना तथा चिकनाहट की ग्रन्थियां होती हैं जो शरीर के तापमान को एक समान रखने में सहायता देती हैं।
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चित्र-त्वचा

(ख) गुर्दे (Kidneys) (P.S.E.B. 2009 C, 2014 A, 2017 B)—गुर्दे संख्या में दो होते हैं। ये पेट के पीछे की ओर स्थित होते हैं। इनका आकार सेम के बीज जैसा होता है। ये पेशाब का शरीर से निकास करने में सहायता देते हैं। ये शरीर में रक्त व पानी की मात्रा एक समान रखते हैं। गुर्दे के द्वारा शरीर में से यूरिया, यूरिक एसिड, खनिज लवण पेशाब के रूप में निकलते रहते हैं।
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चित्र-गुर्दे

(ग) दिल (Heart)—यह शरीर का सबसे कोमल तथा रक्त परिवहन का प्रमुख अंग है। यह छाती के बाईं ओर स्थित है। इसका आकार बन्द मुट्ठी जैसा होता है। यह लम्बाई की ओर से दो भागों में बंटा होता है। प्रत्येक भाग आगे दो भागों में बंटा होता हैऊपरी भाग तथा निचला भाग। ऊपर के भाग को ऊपरी खाना (Auricle) तथा निचले भाग को निचला खाना (Ventricle) कहते हैं। शरीर में से शुद्ध वायु विभिन्न अंगों तथा
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चित्र-दिल
शिराओं के माध्यम से दिल के दाएं ऊपरी खाने (Auricle) तक पहुंचती है तथा ऊपर से त्रिकपर्दीय (Triscupid Valve) के द्वारा निचले खाने (Ventricle) में पहुंचती है। यहां से यह ऊपर वापस नहीं जा सकती। दायें निचले खाने से रक्त फेफड़ों वाली धमनी (Pulmonary Artery) से फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए जाता है तथा वापसी में ऑक्सीजन से मिश्रित शुद्ध रक्त दिल के बायें ऊपरी खाने में पहुंच जाता है। यह निचले खाने में द्विकपर्दीय (Bicuspid) द्वार के द्वारा पहुंचता है। निचले खाने से यह महाधमनी (Aorta) के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचता है। इस प्रकार रक्त परिवहन का यह चक्र निरन्तर कार्य करता रहता है।

(घ) शिराएं एवं धमनियां (Veins & Arteries)—जो नलियां रक्त को फेफड़ों तथा शरीर के अन्य भागों से फेफड़ों की ओर ले जाती हैं उन्हें शिराएं (Veins) कहते हैं। इनकी दीवारों की बनावट तो धमनियों जैसी होती है, परन्तु इनमें लचीली तथा मांसदार पेशियों की तह बहुत बारीक होती है। पलमोनरी शिरा को छोड़कर शेष सभी शिराएं अशुद्ध रक्त को ही हृदय में लाती हैं।
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चित्र-धमनियां, शिराएं, कोशिकाएं
धमनियां (Arteries) शुद्ध रक्त को हृदय से शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाती है। ये लचकदार तथा मोटी दीवार की बनी होती हैं। इसमें स्वच्छ रक्त को ले जाने वाली धमनी को पलमोनरी धमनी (Pulmonary Artery) कहते हैं। धमनियों में सबसे प्रमुख धमनी को मूल धमनी या महाधमनी (Aorta) कहते हैं।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे

प्रश्न-
स्थल-आकृतिक नक्शे क्या होते हैं ? इन पर प्रयोग किए जाने वाले रूढ़- चिह्नों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्थल-आकृतिक नक्शे-धरती के किसी क्षेत्र के प्राकृतिक और मानवीय तत्त्वों को दर्शाने वाले नक्शों को स्थल-आकृतिक नक्शे कहा जाता है। ये नक्शे छोटे-से क्षेत्र का एक समचा दृश्य प्रकट करते हैं। ये नक्शे बड़े पैमाने पर बनाए जाते हैं। ये नक्शे बहु-उद्देशीय नक्शे होते हैं, जिनमें किसी क्षेत्र का सर्वे करके विस्तारपूर्वक चित्रण किया जाता है। प्राकृतिक तत्त्व जैसे धरातल, नदियाँ, वनस्पति तथा मानवीय और सांस्कृतिक तत्त्व जैसे-सड़कें, रेलें, शहर, गाँव आदि नक्शे पर दिखाए जाते हैं। भारतीय सर्वे विभाग (Survey of India) ऐसे ही नक्शे तैयार करता है।

रूढ़ चिह्न-धरती के प्राकृतिक और सांस्कृतिक तत्त्वों को नक्शों पर चिह्नों (Symbols) की सहायता से दिखाया जाता है। इन चिह्नों को रूढ़ चिह्न (Conventional signs) कहा जाता है। विश्व के नक्शों पर ये चिह्न दिखाने की एक परंपरा बन गई है। कई लक्षण नक्शे के पैमाने के अनुसार नहीं दिखाए जा सकते क्योंकि वे बहुत छोटे होते हैं। ये आमतौर पर उन स्थल-आकृतियों से मिलते-जुलते होते हैं, इसलिए इन्हें रूढ़ चिह्न कहा जाता है।

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रंगों का प्रयोग-
भारतीय सर्वे विभाग स्थल-आकृतियों के नक्शों पर नीचे लिखे रंग प्रयोग करता है-

  1. लाल रंग-भवनों और सड़कों के लिए।
  2. पीला रंग-कृषि की जमीन के लिए।
  3. हरा रंग-वनस्पति के लिए।
  4. नीला रंग-नदियों और पानी के स्रोत के लिए।
  5. काला रंग-रेलमार्ग और सीमाओं के लिए।
  6. कत्थई रंग-समोच्च रेखाओं के लिए।
  7. भूरा रंग-पर्वतीय छाया के लिए।

रूढ़ चिह्न-धरती पर प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों को स्थल-आकृतिक नक्शों पर रूढ़ चिह्नों की मदद से दिखाया जाता है। सुविधा के लिए ये चिह्न स्थल-आकृतिक नक्शे के निचले भाग पर दिखाए जाते हैं। सर्वे विभाग द्वारा इन चिह्नों को एक चार्ट पर दिखाया गया है, इसे लक्षण-चार्ट (Characteristic Sheet) कहते हैं। अलग-अलग शीर्षकों के अंतर्गत प्रयोग किए जाने वाले चिह्न : स प्रकार हैं-

1. सांस्कृतिक लक्षण (Cultural Features)-
1. मंदिर 2. धर्च 3. मस्जिर 4. मकबरा 5. पगोडा 6. ईदगाह 7. छाता 8. सर्वेक्षित गाँव 9. सीमाबद्ध गाँव 10. खंडहर गाँव 11. वीरान गाँव 12. बिखरी हुई झोंपड़ियाँ 13. सर्वेक्षित किला 14. खेल का मैदान 15. कब्रिस्तान 16. तेल का कुआँ 17. खदान 18. निशानबद्ध क्षेत्र 19. हवाई अड्डा 20. सर्वेक्षित हवाई अड्डा 21. सर्वेक्षित हवाई पट्टी 22. हवाई जहाज़ उतरने की पट्टी 23. कुआँ 24. चश्मा 25. पाइपलाईन।

2. प्राकृतिक लक्षण (Physical Features)- जल-मार्ग (Drainage) वनस्पति (Vegetation)- 1. पक्का तालाब 2. दलदल 3. सदा बहने वाली नदी 4. सदा बहने वाली नहर 5. शुष्क नदी 6. पक्का बाँध 7. बाग 8. अंगूर का बाग 9. घास 10. कोणधारी वन 11. खजूर के पेड़ 12. बाग 13. समोच्च रेखा 14. खंड रेखाएँ 15. ट्रिगनोमैट्रिकल स्टेशन 16. बैंच मार्क।

3. भवन (Buildings) और सीमाएँ (Boundaries)-1. सीमा पत्थर 2. लोहे के तार की सीमा 3. तहसील की सीमा 4. जले की सीम 5. प्रांतीय सीमा 6. अंतर्राष्ट्रीय सीमा (बिना सर्वे के) 7. सर्वेक्षित अंतर्राष्ट्रीय सीमा 8. बिना सर्वे किया हुआ सीमा पत्थर 9. रैस्ट हाऊस 10. पुलिस थाना 11. पोस्ट ऑफिस 12. तारघर 13. सर्किट हाऊस 14. डाक बंगला 15. सुरक्षित वन 16. शासकीय वन 17. किला 18. पड़ाव 19. प्रकाश-स्तंभ।

4. आवाजाही के साधन (Means of Transport)-1. रेलवे लाइन 2. स्टेशन सहित रेलवे लाइन 3. छोटी लाइन (डबल) 4. छोटी लाइन (सिंगल) 5. पावर लाइन 6. टैलीफोन लाइन 7. पक्की सड़क 8. कच्ची सड़क 9. पगडंडी 10. फुटपाथ 11. नदी पर सड़क का पुल 12. नावों का पुल 13. रेल लाइन के ऊपर सड़क 14. सड़क के ऊपर रेलवे लाइन 15. पुल, रेलवे सुरंग।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे 1

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे 2

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे 3

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 4 स्थल-आकृतिक नक्शे 4

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय दल प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो। (Explain the main features of the Indian Party System.)
अथवा
भारतीय दल-प्रणाली की छः विशेषताओं का विस्तार से वर्णन करें।। (Explain in detail six features of Indian Party System.)
अथवा
भारतीय दल प्रणाली की कोई छः विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe any six features of Indian Party System.)
उत्तर-
वर्तमान युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र के लिए दल अनिवार्य हैं। दोनों एक-दूसरे का अभिन्न अंग हैं। राजनीतिक दलों के बिना लोकतन्त्रात्मक सरकार नहीं चल सकती और लोकतन्त्र के बिना राजनीतिक दलों का विकास नहीं हो सकता। प्रो० मुनरो के मतानुसार, “स्वतन्त्र राजनीतिक दल ही लोकतन्त्रीय सरकार का दूसरा नाम है।” भारत विश्व में सबसे बड़ा लोकतन्त्रात्मक देश है।

अत: भारत में राजनीतिक दलों का होना स्वाभाविक है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है।
अन्य देशों के राजनीतिक दलों की तरह भारतीय दलीय व्यवस्था की अपनी विशेषताएं हैं जिसमें मुख्य निम्नलिखित हैं

1. राजनीतिक दलों का पंजीकरण (Registration of Political Parties)-जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 (People’s Representative Act) और उसके संशोधित कानून 1988 के अनुसार सभी राजनीतिक दलों को चुनाव आयोग के पास पंजीकृत करवाना अनिवार्य है। जो दल पंजीकृत नहीं होगा उसे राजनीतिक दल के रूप में मान्यता नहीं मिलेगी। पंजीकरण करवाते समय प्रत्येक राजनीतिक दल को अपने संविधान में प्रावधान शामिल करना होगा- “दल भारत के संविधान में तथा समाजवाद, धर्म-निरपेक्षतावाद, लोकतन्त्र के सिद्धान्तों में पूर्ण आस्था व भक्ति रखेगा और भारत की प्रभुसत्ता एकता व अखण्डता का समर्थन करेगा।”

2. चुनाव आयोग द्वारा दलों को मान्यता (Recognition of Political Parties By Election Commission)-चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को मान्यता तथा चुनाव चिह्न प्रदान करता है। चुनाव आयोग के नियमों के तहत किसी दल को राज्य स्तरीय दल का दर्जा तब प्रदान किया जाता है जब उसे लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में कुल वैध मतों के कम-से-कम छः प्रतिशत मत मिले हों और विधानसभा में कम-से-कम दो सीटें मिली हों अथवा राज्य विधानसभा में कुल सीटों की कम-से-कम तीन प्रतिशत सीटें अथवा कम-से-कम तीन सीटें (इनमें से जो भी अधिक हो) मिली हों अथवा उस दल ने लोकसभा के किसी आम चुनाव में लोकसभा की प्रत्येक 25 सीटों पर एक जीत या इसके किसी अन्य आबंटित हिस्से में इसी अनुपात में जीत हासिल की हो। इसके विकल्प के तौर पर सम्बन्धित राज्य में पार्टी द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवारों को सभी संसदीय क्षेत्रों में मतदान का कम-से-कम 6% मत प्राप्त होना चाहिए। इसके अलावा इसी आम चुनाव में पार्टी को राज्य में कम-से-कम एक लोकसभा सीट पर जीत हासिल होनी चाहिए। राष्ट्रीय स्तर का दर्जा प्राप्त करने के लिए पार्टी को लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम-से-कम छ: प्रतिशत वैध मत प्राप्त करने के साथ ही लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीतना आवश्यक है। अथवा कम-से-कम 3 राज्यों में लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कम-से-कम 11 सीटें) प्राप्त करना आवश्यक है। अथवा उस दल को कम-से-कम चार राज्यों में क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो। चुनाव आयोग ने 7 दलों को राष्ट्रीय दलों के रूप में एवं 58 दलों को राज्य स्तरीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है।

3. बहु-दलीय पद्धति (Multiple Party System)-भारत में स्विट्ज़रलैण्ड की तरह बहु-दलीय प्रणाली है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में और 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिन्ह के साथ मान्यता दी हुई है। राष्ट्रीय स्तर के दल हैं-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय मार्क्सवादी दल, तृणमूल कांग्रेस पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी।।

4. एक दल की प्रधानता का अन्त (End of Dominance of Single Party)-इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारत में अनेक दल चुनाव में भाग लेते हैं, परन्तु 1967 से पूर्व केन्द्र तथा राज्य में कांग्रेस की प्रधानता ही रही है। 1967 के चुनाव में कांग्रेस को राज्यों में इतनी अधिक सफलता न मिली जिसके फलस्वरूप कई राज्यों में गैर-कांग्रेसी मन्त्रिमण्डलों का निर्माण हुआ। परन्तु गैर-कांग्रेसी नेता इतने मूर्ख निकले कि उन्होंने इस सुनहरी अवसर का पूरा लाभ उठाने की बजाय अपनी हानि ही की। उन्होंने जनता की भलाई न करके अपने स्वार्थ की ही पूर्ति की। अतः गैर-कांग्रेसी सरकार अधिक समय तक न चल सकी। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 1971 में मध्यावधि चुनाव करवाए जिसमें इन्दिरा कांग्रेस को इतनी सफलता मिली कि कांग्रेस पहले से कहीं अधिक शक्तिशाली हो गई है।

जनता पार्टी की स्थापना से कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त हो गया। मार्च, 1977 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 153 सीटें मिली जबकि जनता पार्टी को 272 तथा कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी को 28 सीटें मिलीं। इस प्रकार पहली बार केन्द्र में गैर-कांग्रेस पार्टी (जनता पार्टी) की सरकार बनी। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा क्योंकि इसे केवल 44 सीटें ही मिलीं, जबकि भाजपा को लोकसभा में स्पष्ट बहुमत (282 सीटें) प्राप्त हुआ। अब कांग्रेस की पहले जैसी प्रधानता नहीं रही।

5. प्रभावशाली विरोधी दल का उदय (Rise of Effective Opposition)-भारतीय दल प्रणाली की एक यह भी विशेषता रही है कि यहां पर इंग्लैण्ड की भान्ति संगठित विरोधी दल का अभाव रहा है। 1977 से पहले लोकसभा में कोई मान्यता प्राप्त विरोधी दल नहीं था।

मार्च, 1977 के चुनाव में जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हुआ और कांग्रेस को केवल 153 सीटें मिलीं और इस प्रकार कांग्रेस की हार से संगठित विरोधी दल का उदय हुआ। जनता सरकार ने विरोधी दल के नेता को कैबिनेट स्तर के मन्त्री की मान्यता दी। चुनाव के पश्चात् लोकसभा में विरोधी दल के नेता श्री यशवन्त राव चह्वान थे।

पिछले कुछ वर्षों से भारत में प्रभावशाली विरोधी दल पाया जाने लगा है। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को विरोधी दल के रूप में मान्यता दी गई, और इस दल के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी को विरोधी दल के नेता के रूप में मान्यता दी गई। दिसम्बर, 2009 में भारतीय जनता पार्टी ने श्री लाल कृष्ण आडवाणी के स्थान पर श्री मती सुषमा स्वराज को लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त किया। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के पश्चात् किसी भी दल को मान्यता प्राप्त विरोधी दल का दर्जा नहीं दिया गया।

6. साम्प्रदायिक दलों का होना (Existence of Communal Parties) भारतीय दलीय प्रणाली की एक विशेषता साम्प्रदायिक दलों का होना है। यद्यपि धर्म-निरपेक्ष राज्य में साम्प्रदायिक दलों का भविष्य उज्ज्वल नहीं है। तथापि साम्प्रदायिक दलों के प्रचार तथा गतिविधियों से देश का राजनीतिक वातावरण दूषित हो जाता है।

7. प्रादेशिक दलों का होना (Existence of Regional Parties)-साम्प्रदायिक दलों के साथ-साथ भारतीय दलीय प्रणाली की महत्त्वपूर्ण विशेषता प्रादेशिक दलों का होना है। चुनाव आयोग द्वारा मान्यता प्राप्त प्रादेशिक दलों की संख्या 58 है जिसमें मुख्य हैं शिरोमणि अकाली दल, नैशनल कांफ्रैस, बंगला कांग्रेस, इण्डियन नैशनल लोकदल, झारखण्ड पार्टी, अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (A.D.M.K.), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (D.M.K.), तेलुगू देशम् (Telgu Desam) तथा राष्ट्रीय जनता दल आदि। चुनाव आयोग ने 58 दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिन्हों के साथ मान्यता दी हुई है। 1996 में संयुक्त मोर्चे में कई क्षेत्रीय दल शामिल थे। सन् 1984 में लोकसभा के चुनाव में क्षेत्रीय दल तेलगू देशम् को सभी विपक्षी दलों से अधिक सीटें मिलीं। प्रादेशिक दल राष्ट्रीय हित के लिए बहुत हानिकारक हैं क्योंकि यह दल राष्ट्र हित में न सोचकर अपने दल और क्षेत्रीय हित को अधिक महत्त्व देते हैं। डी० एम० के० (D.M.K.) के नेताओं ने अपने निजी स्वार्थों के लिए देश के दक्षिणी व उत्तरी भाग में मतभेद उत्पन्न करने की कोशिश की है जोकि देश के हित में नहीं हैं। केन्द्र और राज्यों में तनाव के लिए काफ़ी हद तक क्षेत्रीय दल ज़िम्मेवार हैं क्योंकि क्षेत्रीय दल राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने की मांग करते हैं, जोकि केन्द्र ,को स्वीकार नहीं है।

8. स्वतन्त्र सदस्य (Independent Members)-भारत में अनेक दलों के होते हुए भी संसद् तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतन्त्र सदस्यों की संख्या बहुत पाई जाती है। 1952 के आम चुनाव में 20 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने स्वतन्त्र सदस्यों को वोट डाले। __ परन्तु मार्च, 1977 के लोकसभा चुनाव में और जून, 1977 में राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में स्वतन्त्र उम्मीदवारों को कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। लोकतन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है कि स्वतन्त्र उम्मीदवारों को कोई विशेष सफलता नहीं मिलनी चाहिए। 1989 से लेकर 2014 तक के लोकसभा के चुनावों में स्वतन्त्र उम्मीदवारों को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

9. जनता के साथ कम सम्पर्क (Less Contact with the Masses)-भारतीय दल प्रणाली की एक अन्य विशेषता यह है कि दल जनता के साथ सदा सम्पर्क बनाकर नहीं रखते। भारत में कई दल तो बरसाती मेंढकों की तरह चुनाव के समय ही अस्तित्व में आते हैं और चुनाव के साथ प्राय: लुप्त हो जाते हैं। जो दल स्थायी हैं वे भी चुनाव के समय ही अपने दल को संगठित करते हैं तथा जनता के साथ सम्पर्क बनाने का प्रयत्न करते हैं। यहां तक कांग्रेस दल भी चुनाव के पश्चात् जनता के साथ सम्पर्क बनाना अपनी मानहानि समझता है।

10. विक्षुब्ध गुट (Dissidents) भारतीय राजनीतिक दलीय प्रणाली की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता विक्षुब्ध गुटों का पाया जाना है। प्रायः प्रत्येक राज्य में कांग्रेस या जनता पार्टी के अन्दर दो गुट पाए जाते हैं-सत्तारूढ़ (Ministerliasts) तथा विक्षुब्ध (Dissidents) गुट। सत्ता हथियाने के लिए नेताओं में परस्पर इतनी होड़ रहती है कि गुटबन्दी अत्यधिक ज़ोरों पर काम करती है। 1977 तथा 1979 में जनता पार्टी में केन्द्र में भी विक्षुब्ध गुट पाया जाता था जिसका नेतृत्व चौधरी चरण सिंह और राज नारायण कर रहे थे। प्रत्येक राज्य में जनता पार्टी में विक्षुब्ध गुट पाया जाता था। असन्तुष्ट गुटों के कारण ही प्रधानमन्त्री राजीव गांधी को महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार आदि कांग्रेस सत्तारूढ़ राज्यों में कई बार मुख्यमन्त्री बदलने पड़े ताकि असन्तुष्टों को सन्तुष्ट किया जा सके। 1990 में जनता दल में सत्तारूढ़ और विक्षुब्ध गुट में मतभेद कारण नवम्बर, 1990 में जनता दल का विभाजन हुआ और प्रधानमन्त्री वी० पी० सिंह को त्याग-पत्र देना पड़ा। विक्षुब्ध गुट के कारण ही 19 मई, 1995 को कांग्रेस पार्टी में फूट पड़ गई और कांग्रेस (इ) दो गुटों में बंट गई।

11. दल-बदल (Defection)-भारतीय दलीय प्रणाली की एक अन्य महत्त्वपूर्ण विशेषता तथा दोष दल-बदल’ है। दल-बदल के अनेक उदाहरण हैं। ‘दल-बदल’ ने राज्यों की राजनीति तथा शासन में अस्थिरता ला दी है जिससे भारत में संसदीय लोकतन्त्र को खतरा पैदा हो गया है। जुलाई, 1979 में प्रधानमन्त्री श्री मोरार जी देसाई को भी त्यागपत्र देना पड़ा क्योंकि बहुत-से सदस्यों ने जनता पार्टी को छोड़ दिया था। केन्द्रीय सरकार के इतिहास में यह पहला अवसर था जब किसी प्रधानमन्त्री को अपनी पार्टी के सदस्यों के कारण त्याग-पत्र देना पड़ा। जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव से पूर्व और बाद में दल-बदल भारी संख्या में हुआ और यह दल-बदल कांग्रेस (इ) के पक्ष में हुआ। जनवरी, 1985 में संविधान में 52वां तथा दिसम्बर, 2003 में 91वां संशोधन किया गया ताकि दल-बदल की बुराई को समाप्त किया जा सके। इस संशोधन के अन्तर्गत दल-बदल गैर-कानूनी है और इससे संसद् या राज्य विधानमण्डल की सदस्यता समाप्त हो जाती है। इस संशोधन के बावजूद भी दल-बदल की बुराई समाप्त नहीं हुई है।

12. कार्यक्रमों की अपेक्षा नेतृत्व की प्रमुखता (More Emphasis on Leadership than on Programme)-भारत में अनेक राजनीतिक दलों में कार्यक्रम की अपेक्षा नेतृत्व को प्रमुखता दी जाती है और अब भी दी जा रही है। पहले आम चुनावों में कांग्रेस ने पं. जवाहर लाल नेहरू के नाम पर भारी सफलता प्राप्त की। कांग्रेस ने अपने कार्यक्रम का कभी भी प्रचार नहीं किया। 1980 में कांग्रेस (इ) की विजय वास्तव में श्रीमती गांधी की विजय थी। जनता ने इन्दिरा गांधी के नाम पर वोट डाले न कि कांग्रेस (इ) के कार्यक्रम को देखकर। इसी प्रकार दिसम्बर, 1984 में लोकसभा के चुनाव में जनता ने श्री राजीव गांधी के नाम पर वोट डाले न कि कांग्रेस (इ) की कार्यक्रम को देखकर। कांग्रेस (इ) को राजीव गांधी के नेतृत्व में इतनी महान् सफलता मिली जो पहले कभी भी कांग्रेस पार्टी को नहीं मिली। 1989, 1991 और 1996 के लोकसभा के चुनाव में दलों ने कार्यक्रमों की अपेक्षा नेताओं को महत्त्व दिया, फरवरी-मार्च, 1998 एवं सितम्बर-अक्तूबर, 1999 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस पार्टी ने सोनिया गांधी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जबकि भारतीय जनता पार्टी ने अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव कांग्रेस ने श्रीमती सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी एवं भारतीय जनता पार्टी ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लड़े। परन्तु उचित दल प्रणाली के लिए यह आवश्यक है कि दल के कार्यक्रम पर जोर दिया जाए न कि नेता को प्रमुखता दी जाए।

13. अनुशासन का अभाव (Lack of Discipline)-अधिकांश दलों में अनुशासन का अभाव है और अनुशासन को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। दलों के सदस्य अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए दल के अनुशासन की परवाह नहीं करते। यदि किसी सदस्य को चुनाव लड़ने के लिए दल का टिकट नहीं मिलता तो वह सदस्य पार्टी छोड़ देता है और इसके पश्चात् वह या तो अपनी अलग पार्टी बना लेता है या किसी और दल के टिकट पर चुनाव लड़ता है या स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ता है। मई, 1982 में हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की विधानसभाओं के चुनाव में अनेक कांग्रेस (इ) के सदस्यों ने पार्टी के उम्मीदवार के विरुद्ध स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा। कांग्रेस (इ) हाई कमाण्ड ने विद्रोही कांग्रेसियों को 6 वर्ष के लिए पार्टी से निकाल दिया परन्तु जो विद्रोही कांग्रेस (इ) स्वतन्त्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीत गए उन्हें बड़े सम्मान के साथ दोबारा पार्टी में सम्मिलित कर लिया गया और कुछ को मन्त्री भी बनाया गया। ऐसी परिस्थिति में सदस्यों से अनुशासन की उम्मीद करना बेकार है। अनुशासन ही कमी के कारण ही दल-बदल की बुराई पाई जाती है।

14. राजनीतिक दलों में लोकतन्त्र का अभाव (Lack of Democracy in Political Parties)-जिन राजनीतिक दलों पर लोकतन्त्र की प्रतिष्ठा बनाए रखने का भार है वे स्वयं अपने दलों में लोकतन्त्र की स्थापना नहीं कर सके हैं। राजनीतिक दलों के अपने संगठनात्मक चुनाव 10-10 वर्षों तक नहीं होते हैं। जनता पार्टी की 1977 की स्थापना के बाद कभी भी संगठनात्मक चुनाव नहीं हुए। कांग्रेस (इ) की 1978 की स्थापना के बाद 1991 के अन्त में संगठनात्मक चुनाव हुए हैं। दलों का काम-काज पूर्णतः नामजद व अस्थायी नेतृत्व के द्वारा चलाया जा रहा है। इस स्थिति ने सभी राजनीतिक दलों में दलीय तानाशाही की प्रवृत्ति को उजागर किया है।

15. राजनीतिक दलों के सिद्धान्तहीन समझौते (Non-Principle Aliance of Political Parties)—भारतीय दलीय व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता और दोष यह है कि राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति के लिए सिद्धान्तहीन समझौते करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव में सभी दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए। उदाहरण के लिए अन्ना द्रमुक केन्द्रीय स्तर पर लोकदल सरकार में शामिल था और लोकदल के चौधरी चरण सिंह के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध था, लेकिन दूसरी ओर इस दल ने तमिलनाडु में जनता पार्टी के साथ चुनाव गठबन्धन किया। विचित्र बात यह थी कि यह गठबन्धन उसकी केन्द्रीय सरकार को गिराने के लिए किया गया जिसमें वह शामिल थी। अकाली दल के अध्यक्ष तलवंडी ने लोकदल के साथ गठबन्धन किया जबकि अधिकांश विधायक और मुख्यमन्त्री प्रकाश सिंह बादल जनता पार्टी के साथ गठबन्धन की बातें करते रहे। कांग्रेस (इ) जो अन्य दलों के समझौतों को सिद्धान्तहीन कहती रही, स्वयं तमिलनाडु में द्रमुक (D.M.K.) के साथ चुनाव गठबन्धन कर बैठी। आपात्काल में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने द्रमुक की करुणानिधि की सरकार को बर्खास्त कर दिया था। मार्च, 1987 में कांग्रेस (इ) जम्मू-कश्मीर में नैशनल कांफ्रेंस के साथ मिलकर और केरल में कांग्रेस (आई) ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। पिछले कुछ वर्षों में लोकसभा के चुनाव के समय सभी राजनीतिक दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए।

निष्कर्ष (Conclusion)-भारतीय दलीय प्रणाली की विशेषताओं से स्पष्ट है कि इसमें महत्त्वपूर्ण गुणों की कमी है जो दलीय सरकार की सफलता के लिए अनिवार्य है। बहु-दलीय, सुसंगठित विरोधी दल का न होना, एक दल की प्रधानता, साम्प्रदायिक तथा क्षेत्रीय दलों का होना और दल-बदल भारतीय प्रणाली की कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो संसदीय शासन प्रणाली की सफलता के लिए घातक सिद्ध हो रही हैं। अत: आवश्यकता इस बात की है कि सामान्य विचारधारा वाले दल मिलकर एक सुसंगठित तथा शक्तिशाली विरोधी दल की स्थापना करें। महान् गठबन्धनों (Grand Alliances) की आवश्यकता नहीं है क्योंकि देश की समस्याओं को हल करने के स्थान पर देश के राजनीतिक वातावरण को दूषित कर देते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 2.
कांग्रेस (आई०) पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए। [Explain the policies and programmes of Congress (I) Party.]
अथवा
कांग्रेस दल की नीतियों और कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए। (Describe the Policies and Programmes of Congress Party.)
उत्तर-
यदि जनवरी, 1977 को जनता पार्टी की स्थापना के लिए भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में सदैव याद रखा जाएगा तो जनवरी, 1978 को कांग्रेस के विभाजन के लिए सदैव स्मरण किया जाएगा। वर्ष का पहला दिन, पहली जनवरी कांग्रेस के एक और विभाजन से प्रारम्भ हुआ जिसका कांग्रेस के प्रायः सभी वरिष्ठ नेताओं को दुःख हुआ। मार्च, 1977 के आम चुनाव में कांग्रेस को करारी पराजय का सामना करना पड़ा और श्रीमती इन्दिरा गांधी तथा उनके पुत्र संजय गांधी भी चुनाव हार गए। मई, 1977 में जब कांग्रेस महासमिति की बैठक हुई तो श्रीमती इन्दिरा गांधी की रज़ामन्दी से ब्रह्मानन्द रेड्डी अध्यक्ष चुने गए। परन्तु शीघ्र ही इन्दिरा गांधी का यह भ्रम दूर हो गया कि ब्रह्मानन्द रेड्डी उसी गुलाम की भान्ति आचरण करेंगे, जिसका परिचय उन्होंने आपात्काल में दिया था। शीघ्र ही रेड्डी, चह्वान के समर्थकों और इन्दिरा गांधी के समर्थकों में मतभेद पैदा हो गए।

कर्नाटक की समस्या ने स्थिति को इतना तनावपूर्ण बना दिया कि श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 1977 को कांग्रेस कार्य समिति से इस्तीफा दे दिया।

इन्दिरा गांधी के समर्थकों ने पहली और 2 जनवरी, 1978 को कांग्रेस-जनों का एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजन करने का निश्चय किया। रेड्डी और चह्वान ने इस सम्मेलन को पार्टी विरोधी बताते हुए कांग्रेस-जनों को निर्देश दिया कि वे इन्दिरा गांधी द्वारा आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग न लें।

राष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन श्री मीर कासिम ने किया और पहले दिन अध्यक्षता श्रीमती गांधी ने की। दो जनवरी को साढ़े ग्यारह बजे कमलापति त्रिपाठी ने एक प्रस्ताव रखा जिसमें कहा गया कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करने वाला यह सम्मेलन जिसमें अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अधिकांश सदस्य उपस्थित हैं, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का असली प्रतिनिधि सम्मेलन है। यह सम्मेलन कांग्रेस और राष्ट्र को चुनौतियों का सामना करने के लिए तथा प्रभावशाली नेतृत्व देने के लिए सर्वसम्मति से श्रीमती इन्दिरा गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित करता है। इस प्रस्ताव का अनुमोदन भूतपूर्व केन्द्रीय राज्यमन्त्री अनन्त प्रसाद शर्मा ने किया। इसके पश्चात् विभिन्न प्रदेशों के प्रतिनिधियों ने इसका समर्थन किया। इस प्रकार श्रीमती गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस का विभाजन विट्ठल भाई पटेल भवन के प्रांगण में उसी स्थान पर हुआ जहां 1969 में पार्टी के दो टुकड़े हुए थे।

कांग्रेस कार्यसमिति ने 3 जनवरी को सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास करके श्रीमती गांधी और उनके समर्थकों को दल से निष्कासित कर दिया और इस प्रकार रिक्त स्थानों को भरने का अधिकार कांग्रेस अध्यक्ष ब्रह्मानन्द रेड्डी और जिला प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों को सौंप दिया।

2 फरवरी, 1978 को चुनाव आयोग ने कांग्रेस (इ) को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दे दी और इस दल को चुनाव लड़ने के लिए ‘हाथ’ चुनाव चिन्ह दिया। 23 जून, 1980 को श्रीमती इन्दिरा गांधी के सुपुत्र संजय गांधी का एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया। जिससे कांग्रेस (इ) को भारी क्षति पहुंची। मई, 1981 में श्रीमती इन्दिरा गांधी के बड़े सुपुत्र राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश किया था।

23 जुलाई, 1981 को मुख्य चुनाव आयुक्त ने कांग्रेस (इ) को असली कांग्रेस के रूप में मान्यता दे दी। कांग्रेस (इ) का चुनाव निशान ‘हाथ’ (Hand) है। श्रीमती इन्दिरा गांधी जीवन के अंत तक कांग्रेस (इ) की अध्यक्षा रहीं और उनकी मृत्यु के पश्चात् श्री राजीव गांधी अध्यक्ष बने। वर्तमान अध्यक्ष श्री राहुल गांधी हैं।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कार्यक्रम (PROGRAMME OF INDIAN NATIONAL CONGRESS)-

अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के अवसर पर भारतीय, राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने पार्टी का चुनाव घोषणा-पत्र जारी किया था। इसमें देश भर के सभी वरिष्ठ नेताओं के सुझावों को ध्यान में रखा है। कांग्रेस ने स्थिरता, विकास, राष्ट्रीय एकता, धर्म-निरपेक्षता, भ्रष्टाचार उन्मूलन, स्वच्छ तथा जवाबदेह शासन का वायदा किया है। पार्टी ने गैर-कांग्रेसी राज्यों में ठप्प हो गए विकास कार्यक्रमों को नई गति देकर शुरू करने और देश में धर्म-निरपेक्ष लोकतन्त्र की रक्षा के लिए सजग रहने की प्रतिबद्धता दोहराई है। 2014 के लोकसभा के चुनाव के अवसर पर घोषित चुनाव घोषणा-पत्र के आधार पर कांग्रेस का मुख्य कार्यक्रम एवं नीतियां इस प्रकार हैं

1. राजनीतिक कार्यक्रम (POLITICAL PROGRAMMES)

  • कांग्रेस का लोकतन्त्र में अटूट विश्वास है।
  • कांग्रेस लोकतन्त्र के अनिवार्य और अपरिहार्य अंग के रूप में प्रेस की आज़ादी के प्रति वचनबद्ध है।
  • पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए वचनबद्ध है।
  • कांग्रेस ने देश में स्वच्छ प्रशासन प्रदान करने और सार्वजनिक क्षेत्रों से भ्रष्टाचार को दूर करने का वचन दिया है। भ्रष्टाचार को जन्म देने वाले सभी नियन्त्रण समाप्त कर दिए जाएंगे और भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सी० बी० आई० जैसी एजेन्सियों को पूर्ण स्वायत्तता दी जाएगी।
  • संविधान में कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 लागू रहेगी।
  • देश की सुरक्षा के सभी पहलुओं पर गौर करने की दृष्टि से राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् को पुनर्जीवित करने का आश्वासन दिया है। सेनाओं का आधुनिकीकरण किया जाएगा।

2. आर्थिक तथा सामाजिक कार्यक्रम
(ECONOMIC AND SOCIAL PROGRAMME)

1. आत्मनिर्भरता-कांग्रेस का लक्ष्य है भारत को आत्मनिर्भर बनाना। भारत जैसे ग़रीब देश को सम्पन्नता की ओर ले जाना है।
2. ग़रीबी दूर करना-कांग्रेस ग़रीबी को दूर करने के लिए वचनबद्ध है।

3. रोज़गार-कांग्रेस रोजगार के अवसर बढ़ाने पर विशेश ध्यान देगी। कांग्रेस कृषि विकास की दर में वृद्धि करके, निर्यात को प्रोत्साहन देकर तथा आवास और निर्माण के क्षेत्र में विशाल परियोजना चला कर रोज़गार के नए अवसर पैदा करेगी। कांग्रेस शिक्षित बेरोजगारों पर विशेष रूप से ध्यान देगी। बेरोज़गारी को दूर करने के लिए प्रत्येक वर्ष एक करोड़ नए रोजगार उपलब्ध कराए जाएंगे।

4. आर्थिक सुधार–आर्थिक सुधारों की गति बनाए रखी जाएगी ताकि सकल घरेलू उत्पाद की वार्षिक दर 8 से 9 प्रतिशत प्राप्त की जा सके। पार्टी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय सुधारों के अनुरूप बुनियादी परिवर्तन लाने का वायदा किया है ताकि परिवहन, संचार और जीवन की अन्य मूलभूत आवश्यकताओं के मामले में शहर और गांवों का अन्तर कम किया जा सके।

5. कृषि सुधार-घोषणा-पत्र में कृषि पैदावार और किसानों की आर्थिक हालत में सुधार के लिए राज्य सहायता, प्रोत्साहन मूल्य तथा अन्य सम्बन्ध नीतियां जारी रखने और इनमें मज़बूती लाने का वायदा किया गया है। कृषि ऋण प्रणाली मज़बूत बनाई जाएगी तथा समूह ऋण योजना को बढ़ावा दिया जाएगा। सभी सार्वजनिक नलकूपों की हालत सुधारने और उन्हें चालू करने का समयबद्ध कार्यक्रम शुरू किया जाएगा। कांग्रेस काश्तकारों के लिए पट्टेदारी की व्यवस्था, ज़मीन की चकबन्दी और फालतू जमीन के वितरण की व्यवस्था और भूमि रिकार्ड रखने की बेहतर और सही व्यवस्था पर जोर देती रहेगी। कृषि को पूरी तरह से उद्योग का दर्जा दिया जाएगा। किसानों को उचित मज़दूरी दिलाई जाएगी।

6. उद्योग-औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि दर तीव्र की जाएगी। कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास पर विशेष बल दिया जाएगा। लघु उद्योगों के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया जाएगा। कांग्रेस ने उद्योग और व्यापार के उदारीकरण की जो प्रक्रिया 1991 में की उसे वह जारी रखेगी। कांग्रेस सामरिक और सुरक्षा से सम्बद्ध क्षेत्रों को छोड़कर अन्य सभी उद्योगों में गैर-लाइसैंसीकरण की प्रक्रिया को तेज़ करेगी। कांग्रेस निर्यात को प्रोत्साहन देने को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी।

7. आवास-कांग्रेस आवास और निर्माण कार्यों में तेजी लाने के मार्ग में आ रही सभी कानूनी बाधाओं और अप्रभावी कानूनों को दूर करेगी। झुग्गियों और कच्ची बस्तियों को रहने लायक स्थानों परिवर्तित किया जाएगा। सभी बेघरों को घर दिए जाएंगे।

8. सार्वजनिक वितरण प्रणाली-सार्वजनिक वितरण प्रणाली का विस्तार किया जाएगा कांग्रेस ये सुनिश्चित करेगी कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली का लाभ सिर्फ ग़रीब और जरूरतमंद लोगों को मिले।
9. दोपहर का भोजन-प्राइमरी स्कूलों के सभी बच्चों को दोपहर का भोजन दिया जाएगा।
10. सभी बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य व शिक्षा की व्यवस्था की जाएगी।
11. देश में आपरेशन ब्लैक बोर्ड योजना लागू की जाएगी।
12. धर्म-निरपेक्षता-कांग्रेस का धर्म-निरपेक्षता में अटल विश्वास है।

13. अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां-अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जन-जातियों के कल्याणकारी कार्यक्रम को और तेज़ किया जाएगा। कांग्रेस ये सुनिश्चित करेगी कि अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए नौकरी और शिक्षा में आरक्षण की वर्तमान नीति को पूरी तरह लागू किया जाए। आरक्षण को वैधानिक रूप देकर उन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाएगा। अनुसूचित जाति तथा जनजाति के विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रमों का और अधिक विस्तार किया जाएगा। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की समुदायों की लड़कियों को प्रत्येक स्तर पर निःशुल्क शिक्षा दी जाएगी। देश के सभी आदिवासी क्षेत्रों में विशेष न्यायालयों को स्थापित किया जाएगा।

14. महिलाएं-कांग्रेस पार्टी महिलाओं के कल्याण और पुरुषों के समान अधिकार देने के लिए वचनबद्ध है। पार्टी महिलाओं के पूर्ण कानूनी, आर्थिक और राजनीतिक अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष जारी रखेगी। शिक्षा और रोज़गार में लिंग भेद समाप्त कर दिया जाएगा। महिला मृत्यु दर कम करने की दृष्टि से विशेष योजनाएं शुरू की जाएंगी। सती प्रथा, दहेज प्रथा, महिला भ्रूण हत्या और बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं के विरुद्ध समाज सुधार आन्दोलन में कांग्रेस सदैव आगे रहेगी। समूह बचतों और ग्रामीण महिलाओं की गतिविधियों में महिला समृद्धि योजना का विस्तार करके उनके पक्ष में ही खाते खोलने तथा ब्याज के भुगतान की सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।

15. अल्पसंख्यक-कांग्रेस अल्पसंख्यकों के आर्थिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देने के लिए वचनबद्ध है। कांग्रेस अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए अपने 15 सूत्री कार्यक्रम की समय-समय पर समीक्षा करेगी और उसमें सुधार करेगी। पार्टी ने अल्पसंख्यकों के व्यक्तिगत कानून के मामले में किसी तरह का हस्तक्षेप न करने का वायदा किया है। कांग्रेस अल्पसंख्यकों और मानवाधिकारों के लिए एक नया मन्त्रालय गठित करेगी, ताकि इन दोनों के बीच बेहतर समन्वय सुनिश्चित किया जा सके। कांग्रेस उर्दू को उसका उचित स्थान दिलाएगी।

16. विकलांगों का कल्याण-अपंगता से ग्रस्त व्यक्तियों के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने तथा उन्हें राष्ट्रीय जीवनधारा में बराबरी का अवसर देने के लिए अलग से पूरा कानून शीघ्र ही बनाने का वायदा किया है।

17. युवा वर्ग-कांग्रेस सभी स्कूलों में एन० सी० सी० को अनिवार्य करेगी। साक्षरता, वनीकरण योजना, परिवार नियोजन कार्यक्रम, समाज सुधार आन्दोलन, कानूनी अधिकारों की जानकारी जैसे आन्दोलन चलाने के लिए शिक्षित युवा जन को संगठित किया जाएगा और इन कार्यों में काम करने के लिए उन्हें उचित पारिश्रमिक दिया जाएगा।

18. बाल मज़दूर-बाल मजदूरी को कम करने के लिए हर सम्भव उपाय किए जाएंगे तथा खतरनाक उद्योगों में बाल मजदूरी को पूरी तरह समाप्त किया जाएगा।

19. बिजली-बिजली का उत्पादन अधिक किया जाएगा।
20. दूर-संचार तथा डाक-कांग्रेस दूर-संचार में एक क्रान्ति लाएगी। सभी गांवों और ग्राम पंचायतों को राष्ट्रीय दूर-संचार जाल तन्त्र से जोड़ दिया जाएगा। डाक प्रणाली को और अधिक कुशल बनाया जाएगा।

21. रेल लाइनें-देशभर में बड़ी रेल लाइनों का जाल बिछाया जाएगा।
22. सभी गांवों को रेल और सड़क मार्गों से जोड़ा जाएगा।
23. कांग्रेस ने असंगठित क्षेत्रों में कर्मचारियों के लिए नई सामाजिक बीमा योजना शुरू करने का वायदा किया है।

24. शिक्षा-कांग्रेस 14 वर्ष तक की अवस्था के बच्चों के लिए नि:शुल्क बुनियादी शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के लिए संविधान में संशोधन करेगी। कांग्रेस प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बनाने के पक्ष में है। किसी भी विश्व विद्यालय में भर्ती होने वाले अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के विद्यार्थियों को ट्यूशन फ़ीस और गुजारा भत्ता देने की छ: वर्ष की गारंटी दी जाएगी।

25. विदेश नीति-कांग्रेस की गुट-निरपेक्षता की नीति पर पूरा विश्वास है और पार्टी सभी देशों के साथ विशेषकर पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के पक्ष में है। कांग्रेस नेपाल और बंगलादेश के साथ हिमालय क्षेत्र की नदियों के लिए एक नया एकीकृत विकास कार्यक्रम आरम्भ करेगी। कांग्रेस देश में पाकिस्तान के समर्थन से चलाए जा रहे आतंकवाद का मुकाबला करेगी। साथ ही वह पाकिस्तान के साथ आर्थिक, व्यापार, संस्कृति, शिक्षा और राजनीति के क्षेत्र में नज़दीकी सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करेगी। भारत रूस के साथ व्यापार और रक्षा के क्षेत्रों में और निकट सम्बन्ध बनाने के प्रयास जारी रखेगा। कांग्रेस अमेरिका के साथ आपसी हित और चिन्ता के सभी मुद्दों पर रचनात्मक बातचीत जारी रखेगी। कांग्रेस पूर्ण निशस्त्रीकरण के पक्ष में है और कांग्रेस सरकार परमाणु हथियारों के निशस्त्रीकरण के लिए अपनी कोशिश जारी रखेगी। हमारी परमाणु नीति हमेशा शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के प्रति समर्पित होगी। यदि पाकिस्तान ने परमाणु हथियारों को बनाना जारी रखा तो भारत को भी मजबूर होकर अपनी नीति बदलनी होगी।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अपनी रणनीति में बदलाव की आवश्यकता-निःसन्देह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीय प्रजातन्त्र पर अमिट छाप छोड़ी है। लम्बे अर्से तक भारतीय राजनीतिक व्यवस्था पर छाई रहने वाली कांग्रेस पार्टी ने अन्य राजनीतिक दलों को कभी भी पनपने का अवसर नहीं दिया। दीर्घ काल तक भारतीय प्रजातन्त्र और समूचे राष्ट्र की बागडोर कांग्रेस पार्टी द्वारा संचालित होती रही। लेकिन पिछले एक दशक से कांग्रेस का प्रभुत्व, गरिमा, रणनीति और विश्वास विलुप्त होता जा रहा है। यही कारण है कि 1989 से लेकर 2014 तक के सभी आम चुनावों में कांग्रेस पार्टी को पर्याप्त बहुमत नहीं मिल सका है जिससे कि वह अपनी सरकार बना सके। पिछले एक दशक से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जनाधार अन्य क्षेत्रीय एवं राष्ट्रीय दलों की ओर चला गया है। विशेषतः दलितों और मुस्लिम मतदाताओं का कांग्रेस पार्टी से मोह भंग हुआ है। दूसरे कांग्रेस पार्टी की कार्यशीलता भी उसकी असफलता के लिए उत्तरदायी रही है। अतः ऐसी परिस्थिति में केन्द्र में सत्ता प्राप्त करने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनी रणनीति में बदलाव लाना होगा। कांग्रेस को अन्य प्रतिद्वन्द्वी दलों के मुकाबले अपने दाव-पेचों में कुशलता लानी होगी। निःसन्देह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बदलते हुए राजनीतिक वातावरण की आवश्यकताओं के अनुरूप अपनी रणनीति में बदलाव करेगी।

चुनाव सफलता (Election Successes)-1980 के लोकसभा में जिन 525 स्थानों के लिए मतदान हुआ उनमें 351 स्थान कांग्रेस (आई) को मिले। इस प्रकार कांग्रेस (आई) को दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हुआ।

मई, 1980 में हुए 9 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में कांग्रेस (इ) को तमिलनाडु को छोड़कर शेष अन्य आठ राज्यों-बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में भारी बहुमत प्राप्त हुआ और इसकी सरकारें बनीं। 1984 के लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस (इ) को स्वर्गीय श्री राजीव गांधी के नेतृत्व में ऐतिहासिक विजय प्राप्त हुई थी, जो पहले कभी भी कांग्रेस को प्राप्त नहीं हुई थी। कांग्रेस (इ) को 508 सीटों (जिनके लिए चुनाव हुआ) में से 401 सीटें मिलीं। मार्च, 1985 में 11 राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में कांग्रेस (इ) को 8 राज्यों (बिहार, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश) में भारी सफलता मिली और कांग्रेस (इ) की सरकारें बनीं। नवम्बर, 1989 की लोकसभा में कांग्रेस (इ) को केवल 193 सीटें मिलीं। कांग्रेस (इ) पार्टी के नेता राजीव गांधी को लोकसभा के विरोधी दल के नेता के रूप में मान्यता मिली थी। फरवरी, 1990 में 8 राज्य विधान सभाओं के चुनाव में कांग्रेस (इ) को महाराष्ट्र तथा अरुणाचल प्रदेश के अतिरिक्त अन्य राज्यों में कोई विशेष सफलता नहीं मिली। 1991 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 225 सीटें प्राप्त हुईं और फिर भी इसकी सरकार बनी।

नवम्बर, 1993 में पांच राज्यों-हिमाचल, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा मिज़ोरम में सरकार बनाई। दिल्ली विधानसभा में कांग्रेस को केवल 14 सीटें मिलीं। दिसम्बर, 1993 में जनता दल (अ) के कांग्रेस (इ) में विलय के परिणामस्वरूप कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत प्राप्त हुआ। अप्रैल-मई, 1996 में लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को 144 सीटें मिलीं। इन चुनावों के साथ पांच राज्य विधान सभाओं के भी चुनाव हुए थे। इनमें भी कांग्रेस को भारी पराजय का मुंह देखना पड़ा। सितम्बर-अक्तूबर, 1996 को जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनावों में भी पार्टी को कोई विशेष सफलता प्राप्त नहीं हुई। फरवरी, 1997 में पंजाब राज्य विधानसभा के चुनावों में पार्टी की भारी पराजय हुई। 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस को केवल 142 सीटें प्राप्त हुईं और कांग्रेस को विरोधी दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। जबकि 1999 में 13वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस को केवल 114 सीटें ही प्राप्त हुईं। यह कांग्रेस पार्टी की अब तक की सबसे बुरी पराजय है।

मई, 2001 में चार राज्यों और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव के बाद कांग्रेस ने असम और केरल में सरकार का निर्माण किया। फरवरी, 2002 में चार राज्यों-पंजाब, उत्तर प्रदेश, मणिपुर और उत्तराखंड की विधानसभाओं के चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को पंजाब में 62, उत्तर प्रदेश में 25, मणिपुर में 12 और उत्तराखंड में 36 सीटें प्राप्त की। कांग्रेस ने इन चुनावों के बाद पंजाब, मणिपुर और उत्तराखंड में सरकार बनाई। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस गठबन्धन को 217 सीटें मिलीं। इनमें से कांग्रेस को 145 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई। कांग्रेस ने डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में “संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन” की सरकार बनाई। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों में कांग्रेस गठबन्धन को 261 सीटें मिलीं। इनमें से कांग्रेस को 206 सीटों पर सफलता प्राप्त हुई। अतः कांग्रेस ने पुनः डॉ० मनमोहन सिंह के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की सरकार बनाई। परंतु 2014 में हुए 16वीं लोक सभा के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को केवल 44 सीटें ही मिल पाई थी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 3.
भारतीय जनता पार्टी की नीतियों तथा कार्यक्रमों का वर्णन कीजिए। (Explain the policies and programmes of Bhartiya Janata Party.)
उत्तर-
यद्यपि जुलाई, 1979 में जनता पार्टी का विभाजन दोहरी सदस्यता के प्रश्न पर हुआ था, परन्तु विभाजन के बाद भी दोहरी सदस्यता का विवाद समाप्त नहीं हुआ। 19 मार्च, 1980 को जनता पार्टी के केन्द्रीय संसदीय बोर्ड ने बहुमत से यह फैसला किया कि जनता पार्टी का कोई भी अधिकारी, विधायक और संसद् सदस्य राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की रोजमर्रा की गतिविधियों में हिस्सा नहीं ले सकता। बोर्ड की बैठक में श्री अटल बिहारी वाजपेयी, श्री लाल कृष्ण अडवाणी और श्री नाना जी देशमुख ने बोर्ड के इस निर्णय का विरोध किया और इस सम्बन्ध में तैयार किए गए प्रस्ताव में अपना भी मत दर्ज कराया। 4 अप्रैल को जनता पार्टी का एक और विभाजन प्रायः निश्चित हो गया, जब पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने अपने संसदीय बोर्ड के प्रस्ताव का अनुमोदन कर पार्टी के विधायकों और पदाधिकारियों पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यों में भाग लेने पर रोक लगा दी। अनुमोदन प्रस्ताव के पक्ष में 17 सदस्यों ने और विरोध में 14 सदस्यों ने मत दिए। श्री अडवाणी के शब्दों में, “जनता पार्टी की कार्य समिति में पहली बार मतदान हुआ और यह भी किसी एक गुट को पार्टी से निकालने के लिए।”

5 अप्रैल, 1980 को भूतपूर्व जनसंघ के सदस्यों ने नई दिल्ली में दो दिन का सम्मेलन किया और एक नई पार्टी बनाने का निश्चय किया। सम्मेलन की अध्यक्षता श्रीमती विजयराजे सिंधिया ने की। 6 अप्रैल को भूतपूर्व विदेश मन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की अध्यक्षता में लगभग चार हजार प्रतिनिधि शामिल हुए और दो दिन का यह समारोह एक राजनीतिक दल के वार्षिक अधिवेशन की तरह ही संचालित किया गया। ”
भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा (Ideology of Bhartiya Janata Party)–भारतीय जनता पार्टी ने स्वर्गीय लोकनायक श्री जयप्रकाश नारायण के समग्र क्रान्ति के सपनों को साकार करने और राजनीति को सत्ता का खेल न बनाने का संकल्प किया है। 6 अप्रैल शाम को रामलीला मैदान में नई पार्टी के मठन की घोषणा सार्वजनिक रूप से करते हुए श्री वाजपेयी ने कहा कि हमारी पार्टी राष्ट्रीयता, लोकतन्त्र, गांधीवाद, समाजवाद और धर्म-निरपेक्षता में विश्वास करती है और इन सिद्धान्तों पर चल कर रचनात्मक और आन्दोलनात्मक कार्यक्रम अपनाएगी और देश में जन-जागृति का अभियान करेगी।

भारतीय जनता पार्टी की नीतियां एवं कार्यक्रम (Policies and Programme of BhartiyaJanata Party)अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के एक प्रमुख घटक के रूप में लड़े। भारतीय जनता पार्टी की महत्त्वपूर्ण नीतियों एवं कार्यक्रमों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है

(क) राजनीतिक कार्यक्रम (Political Programmes)-

1. राज्य की सत्ता की पुनःस्थापना-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि पार्टी का सबसे प्रमुख कार्य राज्य और शासन की ‘इज्जत’ और ‘इकबाल’ को पुनः स्थापित करना है।
2. राष्ट्रीय एकता एवं अखण्डता-चुनाव घोषणा-पत्र में कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी देश की एकता और अखण्डता की रक्षा के लिए प्रतिज्ञाबद्ध है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सारे भारत को एक देश मानती है तथा सब भारतीयों को, चाहे वे कोई भी भाषा बोलते हों, जाति या धर्म में विश्वास रखते हों, एक जन समझती है।

संवैधानिक सुधार-

  • पार्टी संविधान के अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएगी।
  • भाजपा विदर्भ की अलग राज्यों के रूप में स्थापना करेगी। दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा।
  • विधानमण्डलों सहित सभी निर्वाचित निकायों की निर्धारित अवधि 5 वर्ष सुनिश्चित करने के लिए उपाय किए जाएंगे।

3. सकारात्मक धर्म-निरपेक्षता-भारतीय जनता पार्टी सकारात्मक धर्म-निरपेक्षता में विश्वास रखती है। धर्मनिरपेक्षता का अर्थ धर्महीन राज्य नहीं है। पार्टी सभी धर्मों को समान मानने में विश्वास रखती है। पार्टी देश की संस्कृति में विश्वास रखती है। धर्म-निरपेक्षता को कभी एक सम्प्रदाय को खुश रखने का बहाना अथवा सामूहिक रूप से वोट इकट्ठे करने की घृणित राजनीतिक चाल नहीं बनने देनी चाहिए।

4. केन्द्र और राज्य में सम्बन्ध-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि पार्टी देश की एकता और अखण्डता को मज़बूत करने तथा सभी क्षेत्रों का संतुलित विकास सुनिश्चित करने के लिए एक मज़बूत केन्द्र के साथ ही सशक्त स्वायत्तशासी राज्यों का भी पक्षधर है। घोषणा-पत्र में लिखा है कि भारतीय जनता पार्टी केन्द्र और राज्यों के बीच उस सन्तुलन को पुनः स्थापित करेगी जिसकी हमारे संविधान निर्माताओं ने कल्पना की थी और इस उद्देश्य से निम्नलिखित कार्य किए जाएंगे-

  • भारतीय जनता पार्टी सरकारिया आयोग की प्रमुख सिफ़ारिशों को लागू करेगी।
  • पार्टी राज्य सरकारों को बर्खास्त करने और राज्य विधानमण्डलों को भंग करने के लिए अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को समाप्त करेगी।
  • राज्य सरकारों का समर्थन किया जाएगा और उन्हें शक्तिशाली बनाया जाएगा, उनमें अस्थिरता नहीं लायी जाएगी और न ही उनका तख्ता पलटा जाएगा।
  • राज्यों के राज्यपालों की नियुक्ति राज्य सरकारों की सलाह से की जाएगी।

5. निष्पक्ष चुनाव-चुनाव उद्घोषणा-पत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि भारतीय जनता पार्टी चुनावों की श्रेष्ठता को मानती है। इसका विश्वास है कि चुनाव नियमित रूप से तथा बहुत ही निष्पक्षता से कराए जाने चाहिएं और इसलिए चुनाव सम्बन्धी सुधार को उच्च प्राथमिकता देगी।

6. भ्रष्टाचार-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि सारे भ्रष्टाचार की जड़ राजनीतिक तथा चुनाव सम्बन्धी भ्रष्टाचार में निहित है जबकि चुनावों को साफ़-सुथरा बनाने के आयोग का पहले वर्णन किया है तो भी राजनीतिक भ्रष्टाचार के सम्बन्ध में सामान्य रूप से निम्नलिखित कदम उठाए जाएंगे-

  • विदेशों से किए गए समझौतों में भ्रष्टाचार के मामलों पर रक्षा सौदों में कमीशन लेने वालों की जांच की जाएगी और दोषियों को दण्डित किया जाएगा।
  • यह ओम्बुड्समैन-लोकपाल तथा लोकायुक्त तथा नियुक्त करने के लिए कानून बनाएगी और प्रधानमन्त्री तथा मुख्य मन्त्रियों को इनके अन्तर्गत लाया जाएगा।
  • सरकारी तथा सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में क्रय एवं ठेके आदि देने सम्बन्धी प्रक्रिया तथा नियमों को सुचारु बना दिया जाएगा और राजनीतिक अधिकारियों के स्व-विवेक की शक्तियों को विनियमित कर दिया जाएगा।
  • क्रय तथा ठेके आदि देने का काम करने वाले सरकारी विभागों तथा सार्वजनिक क्षेत्रों के निगमों के दैनिक कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप तथा दखल-अन्दाजी को समाप्त कर दिया जाएगा।
  • बचत के लिए पर्याप्त प्रोत्साहन तथा ईमानदार कर दाता को परेशानी से बचाने के लिए और काले धन को बढ़ने से रोकने के लिए व्यवस्था करके ढांचे को वैज्ञानिक और सुचारु रूप दिया जाएगा।
  • सब मन्त्रियों को प्रति वर्ष अपनी सम्पत्ति के बारे में घोषणा करनी होगी।
  • सरकारी विभागों के खर्चे में कमी की जाएगी।

7. उत्तर-पूर्व क्षेत्र (North-East Region)-उत्तर-पूर्व क्षेत्र की समस्याओं को हल करने के लिए पार्टी विशेष ध्यान देगी। भारत-बंगला देश की सीमा पर कांटेदार तार लगाई जाएगी। बाहर से आए लोगों का पता लगाकर उनका नाम मतदाता सूची से काटा जाएगा। सीमावर्ती राज्यों में सभी नागरिकों को पहचान-पत्र दिए जाएंगे। सीमा पार से प्रशिक्षण शिविरों से आतंकवादियों तथा विदेशी हथियारों को अन्दर आने से रोका जाएगा। सुरक्षा तन्त्र तथा खुफिया नेटवर्क को सुदृढ़ किया जाएगा।

8. जम्मू-कश्मीर-जम्मू-कश्मीर से सभी विदेशियों को निकाला जाएगा। आतंकवाद के खतरे और पाकिस्तान से आ रहे आतंकवादियों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को पूरी स्वतन्त्रता दी जाएगी। डोडा को अशान्त क्षेत्र घोषित किया जाएगा। जम्मू-कश्मीर के सभी आतंकग्रस्त क्षेत्रों के विस्थापितों का पुनर्वास किया जाएगा। राज्य में स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव कराए जाएंगे।

9. हिमालय क्षेत्र- भारतीय जनता पार्टी हिमालय क्षेत्र के लिए एक सुरक्षा नीति तैयार करेगी ताकि भारत के राष्ट्रीय हितों की पूरी रक्षा की जा सके।

10. न्यायिक सुधार-भारतीय जनता पार्टी शीघ्र, निष्पक्ष और कम खर्चीले न्याय की व्यवस्था के लिए उचित कदम उठाएगी। न्यायाधीशों के खाली पदों पर तुरन्त नियुक्ति की जाएगी और ऐसा कानून बनाएगी कि मुकद्दमों का निपटारा एक वर्ष में किया जा सके।

11. पुलिस और जनता-पुलिस राज्य का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। पिछले कई वर्षों से पुलिस और जनता के बीच की खाई निरन्तर चौड़ी होती जा रही है। जनता पुलिस के जुल्म की शिकायत करती है और पुलिस राजनीतिक हस्तक्षेप तथा रहन-सहन और काम की खराब हालत की शिकायत करती है। पुलिस आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाएगा।

12. प्रशासनिक सुधार-प्रशासन को जनता का हितैषी, निष्पक्ष और जवाबदेह बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी प्रशासन में महत्त्वपूर्ण सुधार करेगी। हिंसा फैलने के लिए जिला प्रशासन को जिम्मेवार ठहराया जाएगा। नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों का सेवाकाल बढ़ाने का समर्थन नहीं किया जाएगा। केन्द्र और राज्यों में प्रशासनिक सुधार विभाग को सुदृढ़ किया जाएगा।

13. मानव अधिकार आयोग- भारतीय जनता पार्टी वर्तमान प्रभावहीन अल्पसंख्यक आयोग के क्षेत्राधिकार को बढ़ाकर इसे एक मानव अधिकार आयोग के रूप में परिवर्तित कर देगी जिससे वह सभी व्यक्तियों, वर्गों तथा सम्प्रदायों के उचित अधिकारों की देखभाल कर सके।

14. शक्तियों का विकेन्द्रीकरण और पंचायती राज-भारतीय जनता पार्टी शक्तियों के विकेन्द्रीकरण और पंचायती राज संस्थाओं में विश्वास रखती है। पंचायती राज को सुदृढ़ बनाने के लिए 73वें और 74वें संशोधन में उचित परिवर्तन करेगी। पंचायतें को आर्थिक दृष्टि से आत्म-निर्भर बनाया जाएगा।

(ख) राष्ट्रीय अर्थ-व्यवस्था (National Economy)-भारतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणा-पत्र में यह वायदा किया गया है कि देश में मानव हितकारी अर्थव्यवस्था की स्थापना की जाएगी। पार्टी पूर्ण रोजगार प्राप्त करने, अधिकतम उत्पादन करने, मूल्यों को स्थिर रखने और अधिकाधिक लोगों को ग़रीबी की रेखा से ऊपर उठाने के लिए सब आवश्यक कदम उठाएगी, जब तक कि देश से ग़रीबी न समाप्त हो जाए। भारतीय जनता पार्टी स्वदेशी पर जोर देगी। भारतीय जनता पार्टी के आर्थिक कार्यक्रम एवं नीतियां इस प्रकार हैं

1. कृषि और ग्रामीण विकास-घोषणा-पत्र में कहा गया है कि भूमि सम्बन्धी कानूनों को लागू किया जाएगा, चालू बड़ी-बड़ी परियोजनाओं को जल्दी से पूरा किया जाएगा, हज़ारों छोटे-छोटे सिंचाई के कामों को शुरू किया जाएगा, खेती के काम आने वाली चीज़ों को सस्ते दामों में उपलब्ध कराया जाएगा, किसानों को फसल के लाभप्रद मूल्य दिए जाएंगे, कृषिजन्य पदार्थों तथा औद्योगिक वस्तुओं के मूल्यों में समानता स्थापित की जाएगी। पार्टी किसानों, कृषि श्रमिकों और ग्रामीण कारीगरों के कर्जे माफ़ करेगी। पार्टी कृषि-श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी दिलवाएगी। योजना राशि का 60 प्रतिशत कृषि और ग्रामीण विकास के लिए निर्धारित किया जाएगा। प्रत्येक गांव में सड़कों, सिंचाई, पीने के पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। गांव में बेघर लोगों को घर दिए जाएंगे।

2. गौ-रक्षा-पार्टी गायों और गौवंशों के वध पर प्रतिबन्ध लगाएगी, जिसमें बैल और बछड़े भी शामिल होंगे और गौ-मांस के निर्यात सहित इनके व्यापार पर प्रतिबन्ध लगाएगी।

3. उद्योग-चुनाव घोषणा-पत्र में कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी उद्योग का चहुंमुखी विकास करेगी और उन्हें प्रोत्साहन देगी। लघु तथा कुटीर उद्योगों के क्षेत्र को प्रोत्साहन दिया जाएगा। बहु-राष्ट्रीय निगमों, अन्य विदेशी कम्पनियों बड़े उद्योगों, लघु उद्योगों तथा कुटीर उद्योगों का क्षेत्र निर्धारित किया जाएगा। औद्योगिक कारखानों का आधुनिकीकरण किया जाएगा।

4. कर नीति- पार्टी ने कर ढांचे को युक्तिसंगत बनाने तथा चुंगी एवं बिक्री कर को समाप्त करने का पूरा आश्वासन दिया है। पार्टी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष करों के दायित्व को स्वेच्छा से पालन करने के लिए एक पद्धति तैयार करेगी। घोषणापत्र में कहा गया है कि कर वंचकों तथा तस्करों से सख्ती के साथ निपटने के लिए नियमों से समुचित प्रावधान करेगी।

5. कीमतों में स्थिरता-घोषणा-पत्र के अनुसार भ्रष्टाचार को समाप्त करके एवं वितरण को सुचारु बनाकर मूल्यों में स्थिरता बनाए रखी जाएगी। यदि मूल्यों में वृद्धि हुई तो महंगाई भत्तों में तुरन्त वृद्धि करके उसके प्रभाव को समाप्त कर दिया जाएगा।

6. उपभोक्ता संरक्षण–पार्टी उपभोक्ता संरक्षण कानून में सुधार करेगी और उसको अच्छे ढंग से लागू करेगी। उपभोक्ता आन्दोलन को बढ़ावा दिया जाएगा।

7. काला धन-पार्टी काले धन के निर्माण को रोकने के कड़े उपाय करेगी।

(ग) सामाजिक कार्यक्रम (Social Programmes)-

1. अनुसूचित जाति एवं जनजाति-पार्टी अस्पृश्यता विरोधक कानूनों को सख्ती से लागू करेगी तथा खेतिहर मजदूरों को भूमि बांटने तथा बेघर लोगों को मकान बनाने के लिए भूमिखण्ड देने के सम्बन्ध में अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी, आदिवासियों के लिए नई वन-नीति बनाएगी। पार्टी आरक्षण सहित सभी विशेष सुविधाओं और वरीयता प्राप्त अवसरों सम्बन्धी प्रावधानों को इस ढंग से लागू करेगी जिससे अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों से जुड़े अधिकसे-अधिक वर्गों और अधिक लोगों को हर तरह से और हर स्तर पर लाभ पहुंचे।

2. पिछड़े वर्ग-भाजपा पिछड़े वर्गों के सामाजिक और आर्थिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण नीति जारी रहेगी।

3. अल्पसंख्यक-भाजपा अल्पसंख्यक समुदायों को उनकी खुशहाली के लिए समान अवसर प्रदान करेगी तथा उन्हें शिक्षा ग्रहण करने के लिए प्रोत्साहित करेगी।

4. महिलाएं-भारतीय जनता पार्टी लिंग के आधार पर असमानता को समाप्त करेगी और शादी की रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करेगी। पार्टी महिलाओं के लिए छात्रावास बनाएगी, बाल-विवाह को रोकेगी, पत्नी को पति की सम्पत्ति तथा आय में बराबर का भागीदार बनाएगी और दहेज के कारण हुई मृत्यु को हत्या माना जाएगा। सरकारी नौकरियों में महिलाओं के लिए तीस प्रतिशत आरक्षण करेगी। राज्य विधानसभाओं या संसद् में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित की जाएंगी। तलाक सम्बन्धी कानूनों में भेदभाव पूर्ण धाराओं को हटाया जाएगा और बहु-विवाह को समाप्त किया जाएगा। समान काम के लिए समान वेतन के सिद्धान्त को लागू किया जाएगा। लड़कियों को शिक्षा देने के लिए विशेष सुविधाएं दी जाएंगी।

5. बच्चे-पार्टी बच्चों के विकास के लिए अच्छे विद्यालय खोलेगी, खेल के मैदानों की व्यवस्था करेगी तथा पीने के लिए अच्छे दूध का प्रबन्ध करेगी। प्रत्येक बच्चे की वार्षिक शारीरिक जांच करवाई जाएगी।

6. युवाजन-भारतीय जनता पार्टी युवाजनों को ग़रीबी दूर करने तथा सामाजिक बुराइयों को दूर करने में लगाएगी।

7. घर और शहर विकास-पार्टी प्रत्येक परिवार को घर के लिए सस्ते भाव पर ज़मीन देगी और शहर के विकास के लिए उचित कदम उठाएगी।

8. शिक्षा- भारतीय जनता पार्टी 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देगी और प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम लागू करेगी। पार्टी नैतिक शिक्षा को अनिवार्य करेगी और अध्यापकों के वेतन तथा स्तर में वृद्धि करेगी।

9. भाषा-पार्टी तीन-सूत्रीय भाषा फार्मूला लागू करेगी और सरकारी भाषा पर संसदीय समिति की सिफ़ारिशों को लागू करेगी। पार्टी हिन्दी और संस्कृत का विकास करेगी।

(घ) राष्ट्रीय सुरक्षा (National Security)—पार्टी राष्ट्रीय सुरक्षा को जिम्मेवारी से निभाने के लिए बड़ी जिम्मेवारी से काम लेगी। पार्टी सामाजिक दृष्टि से संवेदनशील सीमावर्ती राज्यों जैसे-जम्मू और कश्मीर, पंजाब, पूर्वोत्तर प्रदेश तथा असम की सामाजिक तथा राजनीतिक गड़बड़ियों को दूर करने की कोशिश करेगी।

(ङ) विदेश नीति (Foreign Policy)—पार्टी ने स्पष्ट किया है कि वह स्वतन्त्र विदेश नीति अपनाएगी तथा विश्व शान्ति, नि:शस्त्रीकरण तथा नई अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था पर जोर देगी। भाजपा परमाणु अस्त्र नीति का पुनर्मूल्यांकन करेगी और परमाणु अस्त्र बनाने का विकल्प इस्तेमाल करेगी। पार्टी ने गुट-निरपेक्ष आन्दोलन को मजबूत करने, महाशक्तियों के प्रभुत्त्व को कम करने तथा पड़ोसी देशों के साथ शान्ति और मित्रता की नीति अपनाने का भी वचन दिया है। पार्टी संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में भारत को स्थायी सदस्य का स्थान दिलाने के लिए प्रयास करेगी। विदेशों में गए भारतीयों के लिए दोहरी नागरिकता के प्रश्न पर नए सिरे से विचार किया जाएगा। भाजपा सभी देशों के बीच शान्ति स्थापित करने, विश्व के सभी लोगों की समृद्धि और इस महान् तथा प्राचीन सभ्यता वाले देश के गौरव के अनुरूप विश्व के मामलों में भारत की भूमिका के विस्तार के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है।

केन्द्र में सत्ता प्राप्ति के सन्दर्भ में भाजपा की क्षमता-भारत में दीर्घ काल तक एक ही राजनीतिक दल का प्रभुत्व बना रहा। अन्य दलों को उभरने का अधिक अवसर नहीं मिला, इसी कारण उनकी केन्द्र में सत्ता प्राप्ति की दावेदारी अल्पकालिक ही रही। इसी दौड़ में भारतीय जनता पार्टी का भी नाम आता है। भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाया जाता है कि यह हिन्दुवादी और संकीर्ण विचारों वाली पार्टी है। इसे यदि केन्द्र में सत्ता में लाया गया तो भारतीय विविधतापूर्ण समाज को भारी क्षति होगी। आलोचकों का मत है भाजपा की उग्र विचारधारा भारतीय समुदाय के एक बड़े वर्ग को निराश कर देगी जिससे राष्ट्रीय एकता की नींव हिल जाएगी। परन्तु आलोचकों का ऐसा मानना उचित नहीं कहा जा सकता। भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा पुरातन भारतीय संस्कृति का स्पष्टीकरण है। इसकी नीतियां बड़ी सुदृढ़ और कार्यक्रम बहुत व्यापक है।

इसका संगठनात्मक आधार अत्यन्त सुदृढ़ है। इसके नेताओं के पास प्रशासनिक कार्यों का दीर्घकालीन अनुभव है। विशेषतया भूतपूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी की नेतृत्व क्षमता पर किसी को सन्देह नहीं था। इतना ही नहीं इस पार्टी के अनेक नेताओं ने अपनी राजनीतिक क्षमता के कारण ही विदेशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। इस पार्टी ने समाज के हर वर्ग अथवा समुदाय को साथ लेकर चलने तथा आम सहमति से शासन संचालन पर बल दिया। आर्थिक रूप से भी भाजपा की नीतियां राष्ट्र हित को सर्वोपरि मानती हैं। भाजपा द्वारा अपनी नीतियों और कार्यक्रमों मे किए जाने वाले समयानुकूल बदलाव तथा इसकी प्रशासनिक क्षमता को ध्यान में रख कर ही भारतीय मतदाताओं ने 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में इस पार्टी को 282 सीटें जिता दी थी, परिणामस्वरूप इस पार्टी ने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया।

चुनाव सफलताएं (Election Successes) भारतीय जनता पार्टी को चुनाव आयोग ने राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी और इसको चुनाव लड़ने के लिए ‘कमल का फूल’ चुनाव चिह्न दिया। दिसम्बर, 1984 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को केवल दो सीटें मिलीं और पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव हार गए। मार्च, 1985 में राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में भी इसको विशेष सफलता नहीं मिली। परन्तु नवम्बर, 1989 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 88 सीटें मिलीं और भारतीय जनता पार्टी के समर्थन के कारण ही राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बन सकी। फरवरी, 1990 में हुए 8 राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में बहुत अधिक सफलता मिली। मध्य प्रदेश और गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल के साथ मिलकर सरकार बनाई। 1991 में दसवीं लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी को 119 सीटें मिली और इसे विरोधी दल के रूप में मान्यता दी गई।

जून, 1991 में उत्तर प्रदेश में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी। नवम्बर, 1993 में हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, मिज़ोरम, मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभाओं के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को दिल्ली में सबसे अधिक सफलता मिली और इसकी दिल्ली तथा राजस्थान में सरकार बनी। उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में इसे उम्मीद से कम सीटें मिली जबकि हिमाचल प्रदेश में इसकी बुरी तरह पराजय हुई। नवम्बर-दिसम्बर, 1994 व फरवरी-मार्च 1995 में दस राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव हुए। इन चुनावों में इस दल को अच्छी सफलता प्राप्त हुई। इस दल ने गुजरात में अकेले व महाराष्ट्र में शिव सेना के साथ मिलकर अपनी सरकारें बनाईं। भारतीय जनता पार्टी ने दक्षिणी राज्यों में भी अपने पांव पसारे हैं। 1996 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 161 सीटें प्राप्त हुईं।

भारतीय जनता पार्टी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी। राष्ट्रपति ने पार्टी के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमन्त्री नियुक्त किया। लोकसभा में बहुमत सिद्ध न होने के कारण अटल बिहारी वाजपेयी को 28 मई, 1996 को प्रधानमन्त्री पद से त्याग-पत्र देना पड़ा। जून, 1996 में भारतीय जनता पार्टी को मान्यता प्राप्त विरोधी दल का दर्जा दिया गया और अटल बिहारी वाजपेयी मान्यता प्राप्त विरोधी नेता बने। फरवरी-मार्च, 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें प्राप्त हुईं। भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई। भारतीय जनता पार्टी ने सितम्बर-अक्तूबर, 1999 में 13वीं लोकसभा का चुनाव राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में लड़ा। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को 182 सीटें प्राप्त हुईं और इसने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन के दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। मई, 2001 में चार राज्यों (असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल) और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को केवल 12 सीटें प्राप्त हुईं।

फरवरी, 2002 में हुए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और पंजाब विधानसभाओं के चुनावों में भाजपा को क्रमश: 107, 19, 4 तथा 3 सीटें प्राप्त हुईं। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले ‘राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन’ को केवल 186 सीटें ही मिल पाईं। इसमें से भारतीय जनता पार्टी को केवल 138 सीटें ही मिलीं, जिस कारण इस पार्टी को सत्ता से हटना पड़ा। अप्रैल-मई, 2009 में हए 15वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को केवल 159 सीटें ही मिल पाईं। इसमें से भारतीय जनता पार्टी को केवल 116 सीटें ही मिलीं। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनावों में भाजपा को 282 सीटें (राजग को 334 सीटें) मिलीं। अतः इसने श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार का निर्माण किया।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 4.
भारतीय साम्यवादी दल के संगठन तथा कार्यक्रमों का वर्णन करो। (Discuss the organisation and programmes of the Communist Party of India.)
अथवा
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पर संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on the Communist Party of India.)
उत्तर-
भारतीय साम्यवादी दल राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक दल है। इसकी स्थापना 1924 में की गई। इसकी स्थापना में मानवेन्द्र नाथ राय (M.N. Roy) का बड़ा हाथ था।
स्वतन्त्रता के पश्चात् इस दल ने बड़ी तेजी से प्रगति की। 1957 में केरल राज्य में इसे सरकार बनाने का अवसर मिला। यह भारत के किसी राज्य में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार थी। 1959 में इस दल में फूट पड़ गई और उसके दो गुट बन गए। 1962 में जब भारत का चीन के साथ विवाद उठा तो एक गुट ने भारत सरकार को ठीक बताया तथा उसका समर्थन किया परन्तु दूसरे ने चीन को ठीक बताया तथा सरकार पर जोर दिया कि वह चीन के साथ शान्ति वार्ता आरम्भ करे। अप्रैल, 1964 में दल की राष्ट्रीय परिषद् की बैठक में 96 से 32 सदस्य बाहर चले गए। 8 सितम्बर, 1964 को लोकसभा के 32 में से 11 साम्यवादी सदस्यों ने गोपालन के नेतृत्व में अपना एक अलग दल मार्क्सिस्ट (C.P.M.) नाम से संगठित कर लिया और 15 सितम्बर, 1964 को उसे चुनाव आयोग ने भी मान्यता दे दी। आजकल श्री एस. सुधाकर रेड्डी इसके महासचिव हैं।

भारतीय साम्यवादी दल का कार्यक्रम (Programme of the C.P.L.)-अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर चुनावी घोषणा-पत्र जारी करते हुए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने राष्ट्रीय जनतान्त्रिक गठबन्धन तथा संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन की आलोचना की। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में राजनीतिक अस्थिरता, निर्धनता, बेरोज़गारी, महंगाई व बढ़ते हुए भ्रष्टाचार के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस को दोषी ठहराया। पार्टी ने कहा कि कांग्रेस ही केन्द्र में एकमात्र विकल्प नहीं है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का कहना है कि आज की विषम परिस्थितियों में राजनीतिक स्थिरता, एकता, सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक विकास को केवल वामपंथी दल ही सुनिश्चित कर सकते हैं। घोषणा-पत्र में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने मतदाताओं से अपील की कि वे कांग्रेस तथा साम्प्रदायिक शक्तियों को हराएं तथा वामपंथी दलों को सरकार बनाने का अवसर दें।

(क) राजनीतिक कार्यक्रम (Political Programme of the C.P.I.)-पार्टी का राजनीतिक कार्यक्रम एवं नीतियां निम्नलिखित हैं

  • पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है।
  • पार्टी साम्प्रदायिक सद्भावना और धर्म-निरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने के पक्ष में हैं। पार्टी धार्मिक स्थानों का साम्प्रदायिक तथा देश विरोधी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करने के विरुद्ध है। घोषणा-पत्र में कहा गया है कि धर्म-निरपेक्ष ताकतों की मजबूती के लिए ज़रूरी है कि विध्वंसकारी तत्त्वों पर काबू पाया जाए।
  • पार्टी केन्द्र राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन कर के राज्यों को आर्थिक शक्तियां देने के पक्ष में है।
  • पार्टी अन्तर्राज्य परिषद् को पुनर्गठित करके उसे क्रियाशील बनाएगी।
  • जम्मू कश्मीर के सम्बन्ध में संविधान की धारा 370 की रक्षा की जाएगी।
  • भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए फौरन लोकपाल विधेयक व्यवस्था बनाई जाएगी जिसके अधिकार क्षेत्र में प्रधानमन्त्री को भी लाया जाएगा। भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए कारगर कदम उठाए जाएं।

(ख) आर्थिक कार्यक्रम (Economic Programme)-नौकरशाही नियन्त्रण को समाप्त करने और लाल फीताशाही खत्म करने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुए भारतीय साम्यवादी दल ने अपना निम्न कार्यक्रम प्रस्तुत किया-

  • सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोका जाए। दूरसंचार, बिजली आदि नीतियों को बदला जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को चुस्त-दुरुस्त किया जाए।
  • मौजूदा औद्योगिक नीति को बदला जाए। अंधाधुंध उदारीकरण की नीतियों को बदला जाए जोकि देश की सम्प्रभुता को कमजोर कर रही है।
  • बजट का 50 प्रतिशत कृषि, बागवानी, मत्स्यपालन, पशु-पालन आदि के विकास के लिए आबंटित किया जाएगा और सिंचाई की सुनिश्चित व्यवस्था की जाएगी।
  • किसानों को निर्धारित कीमतों पर कृषि सामानों की आपूर्ति की जाएगी। खासकर छोटे और सीमांत किसानों को सहायता प्राप्त कृषि सामान, कर्ज़, आदि दिया जाएगा।

(ग) सामाजिक कार्यक्रम (Social Programme)-

  • बाल-मज़दूरी और बन्धुआ मज़दूरी जैसी बुराइयों का उन्मूलन किया जाना चाहिए। राष्ट्रीय बाल मज़दूर एवं बन्धुआ मज़दूर आयोग का गठन हो।
  • सभी लोगों को अवश्य ही संतुलित आहार, स्वच्छ पेयजल के लिए संतुलित सुनिश्चित आर्थिक सुविधा की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • बाल शोषण, खासकर लड़कियों के शारीरिक शोषण के लिए अवश्य ही कठोर सज़ा दी जानी चाहिए।
  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली को अवश्य ही मज़बूत किया जाना चाहिए।
  • काम के अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकार के रूप में शामिल करना और बेकारी भत्ता देना चाहिए।
  • सभी गांवों तथा शहरी इलाकों में स्वच्छ पेयजल की व्यवस्था करना।
  • शिक्षा तथा जन साक्षरता का प्रसार किया जाए। शिक्षा के निजीकरण को रोका जाए।
  • महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लैंगिक समानता सम्बन्धी विश्व महिला सम्मेलन द्वारा स्वीकृत बीजिंग घोषणा 1995 को लागू किया जाए। संविधान के अन्तर्गत दी गई संवैधानिक तथा कानूनी गारंटियों को लागू किया जाए। सभी समुदायों की महिलाओं के लिए समान कानूनी अधिकार प्रदान किए जाएं।
  • श्रमजीवी महिलाओं के लिए होस्टल एवं शिशु-शालाओं की स्थापना की जानी चाहिए।
  • आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों को रोका जाए।

(घ) विदेश नीति (Foreign Policy)—विश्व के बदलते हुए परिवेश में अमेरिका द्वारा विश्व पर अपनी नई विश्व व्यवस्था थोपने और थानेदारी जमाने का दृढ़तापूर्वक प्रतिरोध किया जाएगा। पार्टी विकासशील देशों के आपसी सहयोग पर बल देगी। भारत की परमाणु अप्रसार सन्धि की नीति के प्रति पार्टी को दृढ़ विश्वास है। वर्तमान विश्वसन्दर्भ में गुटनिरपेक्ष आन्दोलन को और अधिक सशक्त बनाया जाएगा।

चुनाव सफलताएं (Election Successes)-जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को केवल 11 सीटें मिलीं। मई, 1980 में हुए 9 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में इसको 54 सीटें मिलीं। दिसम्बर, 1984 के लोकसभा के चुनाव में इसे केवल 8 सीटें मिलीं। 1989 के लोकसभा के चुनाव में पार्टी को केवल 12 सीटें मिलीं। फरवरी, 1990 में हुए 8 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। मई, 1991 में भारतीय साम्यवादी दल ने जनता दल तथा अन्य वामपंथी दलों से मिल-कर चुनाव लड़ा। परन्तु इसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली। इसको केवल 13 सीटें प्राप्त हुईं। नवम्बर, 1993 में हुए पांच राज्यों तथा दिल्ली की विधानसभाओं के चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी को विशेष सफलता नहीं मिली।

नवम्बर-दिसम्बर 1994 में हुए और फरवरी-मार्च 1995 में हुए दस राज्य विधानसभा के चुनावों में इसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली। आन्ध्र में इसने तेलुगू देशम् के सहयोगी दल के रूप में चुनाव लड़ा। 1996 के लोकसभा के चुनाव में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को केवल 12 सीटें मिलीं। अन्य दलों के साथ मिलकर कम्युनिस्ट पार्टी पहली बार केन्द्र में मन्त्रिमण्डल में सम्मिलित हुई। पार्टी संयुक्त मोर्चा सरकार में घटक रही है। फरवरी, मार्च 1998 में 12वीं लोकसभा चुनावों में पार्टी को 9 सीटें जबकि 1999 में 13वीं लोकसभा में केवल 4 सीटें प्राप्त हुईं। मई, 2001 में चार राज्यों (असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिमी बंगाल) और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव में भारतीय साम्यवादी पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनावों में भारतीय साम्यवादी पार्टी ने 10 सीटें जीती। इस पार्टी ने कांग्रेस के नेतृत्व में बनी “संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन” की सरकार को बाहर से समर्थन दिया। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में भारतीय साम्यवादी पार्टी ने केवल 4 सीटें जीतीं। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में इस दल को केवल एक सीट ही मिल पाई थी।

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प्रश्न 5.
मार्क्सवादी साम्यवादी दल की नीतियां तथा उसके कार्यक्रमों का वर्णन करो। .
[Describe the policies and programme of C.P.I. (M]
उत्तर-
1959 में चीन के साथ सम्बन्धों के बारे में भारतीय साम्यवादी दल में दो गुट बन गए और 1962 के चीन के आक्रमण ने इस मतभेद को और अधिक बढ़ा दिया। एक गुट ने चीन के आक्रमण को आक्रमण कहा और इसका मुकाबला करने के लिए भारत सरकार को पूरी सहायता देने का वचन दिया, परन्तु दूसरे गुट ने जो चीन के प्रभाव में था, इसे सीमा सम्बन्धी विवाद कह कर पुकारा। परिणामस्वरूप 1964 में वामपंथी सदस्य जिनकी संख्या लगभग एकतिहाई थी, भारतीय साम्यवादी दल से अलग हो गए और मार्क्सवादी साम्यवादी दल (C.P.M.) की स्थापना की। आजकल श्री सीता राम यचुरी पार्टी के महासचिव हैं।

मार्क्सवादी पार्टी का कार्यक्रम (PROGRAMME OF MARXIST PARTY)-

अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा चुनावों के अवसर पर मार्क्सवादी पार्टी ने चुनाव घोषणा-पत्र जारी किया। मार्क्सवादी पार्टी का कार्यक्रम एवं नीतियां निम्नलिखित हैं

(I) राजनीतिक कार्यक्रम (Political Programmes)-

  • राज्यों को और अधिक शक्तियां देकर केन्द्र राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन किया जाए।
  • राज्यों के पक्ष में और वित्तीय साधनों का वितरण और केन्द्र के हाथों में इन साधनों का अति-केन्द्रीयकरण समाप्त हो।
  • धर्म को राजनीति से अलग रखने सम्बन्धी कानून का निर्माण।
  • अल्पसंख्यकों के जायज अधिकारों की रक्षा की जाए।
  • सभी धार्मिक स्थलों की 15 अगस्त, 1947 को जो स्थिति थी उसे ज्यों का त्यों बनाए रखने की व्यवस्था का कड़ाई से पालन किया जाए। अयोध्या विवाद का जल्दी निपटारा करने के लिए उसे सर्वोच्च न्यायालय को सौंपने का वायदा किया।
  • कश्मीर समस्या के समाधान के लिए सभी राजनीतिक उपायों की घोषणा की जाए। इसके साथ ही धारा-370 की रक्षा की जाए।

(II) आर्थिक कार्यक्रम (Economic Programmes)

  • देश की आर्थिक सम्प्रभुता की रक्षा की जाए और उसकी आत्मनिर्भरता को मजबूत बनाया जाए। अंधाधुंध उदारीकरण की नीतियों को बदला जाए जोकि देश की सम्प्रभुता को कमजोर कर रही है।
  • सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण रोका जाए। दूरसंचार, बिजली आदि नीतियों को बदला जाए। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को चुस्त दुरस्त किया जाए।
  • मौजूदा औद्योगिक नीति को बदला जाए। नई नीति ऐसी हो जोकि घरेलु उद्योगों को मज़बूती प्रदान करे। विदेशी पूंजी के प्रवेश में इजाज़त देने का फैसला, राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और औद्योगिक सम्बन्धी ज़रूरतों के आधार पर हो।
  • 1970 के भारतीय पेटेंट कानून में ऐसा कोई भी संशोधन न हो जो भारत की सम्प्रभुत्ता को कमजोर करता हो।
  • मज़दूरों को भयानक शोषण से बचाया जाए व पांचवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू किया जाए।
  • गुप्त मतदान के जरिए ट्रेड यूनियनों को मान्यता दी जाए।
  • सैनिकों के लिए एक रैंक एक पेन्शन की व्यवस्था लागू की जाए।
  • काम के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी जाए।

(III) कृषि क्षेत्र (Agriculture Area)

  • भूमि सुधारों को ज़ोरों से लागू किया जाए। जोतने वालों में भूमि का वितरण किया जाए।
  • ग़रीब किसानों का कर्ज माफ किया जाए। किसानों को पैदावार के लाभकारी दाम दिए जाएं और उन्हें सस्ते ऋण तथा अनुदान देकर खेती में लगने वाली चीजें उपलब्ध कराई जाएं।
  • सिंचाई के प्रसार के लिए कहीं ज्यादा योजना आबंटन हो, फ़सल बीमा की समुचित योजनाएं हों।
  • समुचित जल संसाधन नीति बनाई जाए ताकि साल दर साल आने वाले सूखे और बाढ़ की आपदा से छुटकारा मिल सके।

(IV) सामाजिक कार्यक्रम (Social Programmes)

  • अनुसूचित जातियों के खिलाफ अत्याचार रोके जाएं। जातिवादी भेदभाव का खात्मा हो, समानता की गारंटी करने वाले कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाए।
  • आदिवासियों के खिलाफ अत्याचारों को रोका जाए।
  • अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण लागू किए जाएं। अनुसूचित जातियों में दलित ईसाइयों को भी आरक्षण प्रदान किया जाए।
  • आवास को प्राथमिक अधिकार का दर्जा प्रदान किया जाए।
  • प्राथमिक स्वास्थ्य तथा सफाई की व्यवस्था के प्रबन्ध किए जाएं। स्वास्थ्य रक्षा सुविधाओं की निजीकरण से रक्षा होनी चाहिए।

विदेश नीति-गुट-निरपेक्षता की नीति को मज़बूत किया जाए और विश्व शान्ति का जोरदार समर्थन तथा नाभिकीय युद्ध के खतरे के विरुद्ध संघर्ष किया जाए। विश्व शान्ति व सुरक्षा को प्रोत्साहन दिया जाए। बदलते हुए परिवेश में अमेरिका द्वारा विश्व पर नई विश्व व्यवस्था थोपने का दृढ़तापूर्वक प्रतिरोध किया जाए। विकासशील देशों के आपसी सहयोग पर बल दिया जाए।

चुनाव सफलताएं-दिसम्बर, 1984 के लोकसभा के चुनाव में पार्टी को केवल 20 सीटें मिलीं। मार्च, 1985 में हुए 11 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में इसको कोई विशेष सफलता नहीं मिली। मार्च, 1987 में पश्चिमी बंगाल और केरल की विधानसभा के चुनावों में मार्क्सवादी दल को महान् सफलता मिली। नवम्बर, 1989 के लोकसभा के चुनाव में पार्टी को 32 सीटें मिलीं। फरवरी, 1990 में हुए 8 राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव में पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली। 1991 के लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को 35 सीटें प्राप्त हुईं। पश्चिमी बंगाल में मार्क्सवादी पार्टी 25 वर्ष से सत्ता में है। नवम्बर, 1993 में हुए पांच राज्यों तथा दिल्ली की विधानसभाओं के चुनाव में और नवम्बर-दिसम्बर, 1994 में और फरवरी-मार्च, 1995 में हुए दस राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में मार्क्सवादी पार्टी को कोई विशेष सफलता नहीं मिली।

1996 के लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को 32 सीटें प्राप्त हुईं। मार्क्सवादी पार्टी ने अन्य दलों के साथ मिलकर संयुक्त मोर्चा की स्थापना की, परन्तु मार्क्सवादी संयुक्त मोर्चा की सरकार में सम्मिलित नहीं हुआ। मार्क्सवादी पार्टी ने संयुक्त मोर्चा की सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1998 में 12वीं लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को 32 सीटें प्राप्त हुईं। 1999 में लोकसभा के चुनावों में मार्क्सवादी पार्टी को 33 सीटें प्राप्त हुईं। मई, 2001 में चार राज्यों (असम, केरल, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल) और एक संघीय क्षेत्र (पाण्डिचेरी) की विधानसभाओं के चुनाव में मार्क्सवादी पार्टी को पश्चिम बंगाल की विधानसभा में लगातार छठी बार सफलता प्राप्त हुई और मार्क्सवादी नेता बुद्धदेव भट्टाचार्य के नेतृत्व में वामपंथी मोर्चा की सरकार बनी।

अप्रैल-मई, 2004 में हुए 14वीं लोकसभा के चुनाव में मार्क्सवादी साम्यवादी दल ने 43 सीटें जीतीं। इस दल ने कांग्रेस के नेतृत्व में “संयुक्त प्रगतिशील गठबन्धन” की सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। अप्रैल-मई, 2009 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनावों में इस पार्टी को केवल 16 सीटें ही मिलीं। अप्रैल-मई, 2011 में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में मार्क्सवादी दल के नेतृत्व में वाममोर्चा को कुल 294 सीटों में से केवल 62 सीटें ही मिलीं। इस प्रकार पिछले 34 सालों से सत्ता में रहे वाममोर्चा को करारी हार का सामना करना पड़ा। 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में इस दल को केवल 9 सीटें ही मिल पाई थीं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 15 भारत में दलीय प्रणाली

प्रश्न 6.
भारत में राजनीतिक दलों की मुख्य समस्याओं की व्याख्या कीजिए। (Discuss the main problems of the Political Parties in India.)
अथवा भारत की दल प्रणाली की समस्याओं का वर्णन करें।
(Discuss the problems facing the Party System of India.)
उत्तर-
भारत में संसदीय शासन-प्रणाली की व्यवस्था की गई है। संसदीय शासन-प्रणाली राजनीतिक दलों के बिना नहीं चल सकती। निःसन्देह भारत में संसदीय शासन प्रणाली के सफलतापूर्वक संचालन का श्रेय यहां के राजनीतिक दलों को दिया जाता है। परन्तु भारत में प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था इतनी अधिक सफल नहीं हो पाई है जितनी कि इंग्लैण्ड, अमेरिका, स्विट्ज़रलैण्ड आदि में। इसका प्रमुख कारण राजनीतिक दलों के समक्ष आने वाली समस्याएं हैं। भारत में राजनीतिक दलों को निम्नलिखित समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है-

1. संगठनात्मक समस्याएं (Organisational Problems)-प्रायः सभी राजनीतिक दलों में संगठनात्मक समस्याएं पाई जाती हैं। 1969 के विभाजन से पूर्व कांग्रेस एक संगठित तथा व्यापक आधारित संगठन था, परन्तु 1969 में कांग्रेस का विभाजन हुआ जिससे दल की संगठनात्मक समस्याएं उभर कर आईं। सत्तारूढ़ कांग्रेस अपने संगठन के बल पर ही 1971 से 1977 तक सत्ता में रही जबकि कांग्रेस (संगठन), संगठन के अभाव में बिखर गई। 1977 में कांग्रेस की पराजय के बाद कांग्रेस में गुटबन्दी ने दल को दोबारा विभाजित कर दिया तथा इस प्रकार दल कमज़ोर हो गया। यद्यपि कांग्रेस (इ) 1980 से नवम्बर, 1989 तक सत्ता में रही और जून, 1991 से मई, 1996 तक सत्ता रही तथापि इस पार्टी का संगठन बहुत संगठित नहीं है। दोनों साम्यवादी दल संगठन पर आधारित दल हैं परन्तु इन दलों का संगठन राष्ट्रव्यापी नहीं है क्योंकि इन दलों का प्रभाव पश्चिमी बंगाल और केरल में ही है। भूतपूर्व जनसंघ और वर्तमान भारतीय जनता पार्टी के पास संगठन है। इसके पास कार्यकर्ताओं की कमी नहीं है, लेकिन इसका प्रभाव उत्तर भारत में अधिक एवं दक्षिण भारत में कम है।

2. गुटबन्दी (Groupism)-प्रायः सभी राजनीतिक दलों में गुटबन्दी पाई जाती है जो दलों के प्रभावशाली संगठन के मार्ग में एक मुख्य बाधा है। गुटबन्दी के कारण ही कांग्रेस का 1969, 1978 तथा 1979 में विभाजन हुआ। भारतीय साम्यवादी दल में गुटबन्दी होने के कारण ही तीन दल बने-भारतीय साम्यवादी दल, मार्क्सवादी दल तथा मार्क्सवादी लेनिनवादी दल। डी० एम० के० का गुटबन्दी के कारण विभाजन हुआ और अन्ना डी० एम० के० का जन्म हुआ। जनता पार्टी जनता (एस) तथा लोकदल। जनता दल में भी गुटबन्दी पाई जाती रही है और इसी गुटबन्दी के कारण ही जनता दल का 1990, फरवरी 1992, जुलाई 1993 और जून 1994, जुलाई 1997, दिसम्बर 1997 और सातवीं बार जुलाई 1999 में विभाजन हुआ। आपसी गुटबन्दी के कारण ही 115 वर्षों से भी अधिक पुरानी कांग्रेस पार्टी में 19 मई, 1995 को तीसरी बार विभाजन हुआ और यह दो गुटों में बंट गई। राजनीतिक दलों में गुटबन्दी सैद्धान्तिक आधारों पर न होकर व्यक्तिगत मतभेदों के कारण है।

3. दल-बदल (Defections)—प्रायः सभी राजनीतिक दलों को दल-बदल की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। अन्तर केवल इतना है कि कभी किसी दल को दल-बदल से लाभ होता है तो कभी किसी को और जिस दल-बदल से लाभ हो रहा होता है वह उस समय दल-बदल को रोकने की मांग नहीं करता जबकि अन्य दल ऐसी मांग करते हैं। संविधान में 52वां तथा 91वां संशोधन करके दल-बदल की बुराई को समाप्त करने का प्रयास किया गया है परन्तु दल-बदल की बुराई आज भी पाई जाती है।

4. नेतृत्व का संकट (A Crisis of Leadership)-प्रायः सभी दलों के नेताओं को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि देश में नीतिवान और युवा नेताओं की बहुत कमी है। राजनीतिक दलों का नेतृत्व प्रायः उन लोगों के हाथों में है जिनकी आयु 60 से 70 वर्ष से ऊपर है ऐसा प्रतीत होता है कि देश के प्रतिभाशाली नौजवान राजनीति में आना पसन्द नहीं करते। श्री राजीव गांधी ने राजनीति में आकर अच्छी शुरुआत की थी।

5. धन सम्बन्धी समस्या (Financial Problems)–संसद् और विधान सभाओं के चुनाव के लिए करोड़ों रुपये की आवश्यकता होती है। राजनीतिक दल अधिक-से-अधिक धन इकट्ठा करने का प्रयास करते हैं ताकि चुनाव में पैसा पानी की तरह बहा सकें। राजनीतिक दलों की आय का मुख्य स्रोत सदस्यता शुल्क, दान तथा कोष-संचालन है। प्रायः सभी दल पूंजीपतियों तथा उद्योगपतियों से धन लेते हैं। जो लोग धन देते हैं, वे बदले में अनुचित लाभ उठाना चाहते हैं इसलिए कहा जाता है कि कोई भी दल सत्ता में क्यों न आए पूंजीपतियों के हित की अवहेलना नहीं हो सकती। इसके अतिरिक्त राजनीतिक दल सदस्यता शुल्क तथा कोष-संचालन के साधनों से प्राप्त धन का ब्योरा भी नहीं प्रकाशित करते। काले धन का भारतीय राजनीति पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।

6. जाति एवं धर्म का महत्त्व (Importance of Caste and Religion)-यद्यपि भारत धर्म-निरपेक्ष राज्य है और सभी मुख्य राष्ट्रीय राजनीतिक दल जातिवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाते हैं, लेकिन व्यवहार में योग्य उम्मीदवारों के बजाय इन लोगों को चुनाव में टिकटें दी जाती हैं जिनकी जाति वालों का उस चुनाव क्षेत्र में बाहुल्य हो। चुनाव प्रसार में प्राय: सभी राजनीतिक दल जातीय और साम्प्रदायिक भावनाओं का लाभ उठाने का प्रयास करते हैं। कई राजनीतिक दल धर्म पर आधारित हैं। जाति की राजनीति भारत के भविष्य के लिए बहुत खतरनाक है।

7. राजनीतिक दलों के सिद्धान्तहीन समझौते (Non-principled Alliance of Political Parties) भारतीय दलीय व्यवस्था की एक महत्त्वपूर्ण समस्या यह है कि राजनीतिक दल अपने हितों की पूर्ति के लिए सिद्धान्तहीन समझौते करने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। जनवरी, 1980 के लोकसभा चुनावों में सभी दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए। उदाहरण के लिए अन्ना डी० एम० के० केन्द्रीय स्तर पर लोकदल सरकार में शामिल था और जनता पार्टी के विरुद्ध चौधरी चरण सिंह के साथ सहयोग करने के लिए प्रतिबद्ध था, लेकिन दूसरी ओर इस दल ने तमिलनाडु में जनता पार्टी के साथ चुनाव गठबन्धन किया। कांग्रेस (इ) जो अन्य दलों के समझौतों को सिद्धान्तहीन कहती रही, स्वयं तमिलनाडु में डी० एम० के० के साथ चुनाव गठबन्धन कर बैठी। आपात्काल में श्रीमती गांधी ने डी० एम० के० के करुणानिधि की सरकार को भ्रष्टाचार के आरोप के कारण बर्खास्त कर दिया था। मार्च, 1987 में कांग्रेस (आई) ने जम्मू-कश्मीर में नेशनल कान्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और केरल में कांग्रेस (आई) ने मुस्लिम लीग के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। 1999, 2004, 2009 तथा 2014 में हुए लोकसभा के चुनाव के अवसर पर सभी राजनीतिक दलों ने सिद्धान्तहीन समझौते किए।

8. जन-आधार सम्बन्धी समस्या (Problems relating to Masses)-जनता का समर्थन प्राप्त करने के लिए राजनीतिक नेताओं तथा प्रतिनिधियों का आम जनता के साथ सम्पर्क होना अत्यावश्यक है अर्थात् राजनीतिक दलों का जनआधार होना चाहिए। कांग्रेस ही एक ऐसा दल रहा है और आज भी कांग्रेस (इ) है जिसका जन-आधार है और जिसको समाज के सभी वर्गों का समर्थन प्राप्त है। अन्य राजनीतिक दलों का आधार संकुचित है। भारतीय जनता पार्टी का जन-आधार मुख्यतः शहरों में है और वह भी उत्तरी भारत में है। दक्षिण भारत और गांवों में भारतीय जनता पार्टी को बहुत कम समर्थन प्राप्त है। साम्यवादी दल खेतिहर किसानों, कृषक-मजदूरों और शहरी मज़दूरों का नेतृत्व करते हैं।

9. स्पष्ट विचारधारा का अभाव (Absence of well defined Ideology)-भारत में पाए जाने वाले राजनीतिक दलों में विचारधारा एवं सिद्धान्तों का अभाव पाया जाता है। वामपंथी दलों के अतिरिक्त अन्य सभी दलों के प्रायः सभी कार्यक्रम एवं नीतियां एक जैसी हैं। भारत के राजनीतिक दलों में वचनबद्धता का भी अभाव पाया जाता है। राजनीतिक दलों में अस्पष्ट विचारधारा के कारण वे स्वार्थी तथा सिद्धान्तहीन व अवसरवादी प्रतीत होते हैं।

10. राजनीतिक दलों का ग़लत आधार (Wrong Basis of Political Parties)-भारत में राजनीतिक दलों से सम्बन्धित एक अन्य समस्या यह है कि इनका निर्माण ग़लत आधारों पर होता है। किसी भी राजनीतिक दल को भारतीय चुनाव आयोग से मान्यता प्राप्त करने के लिए संविधान के प्रति वफ़ादार बने रहने की तथा धर्म-निरपेक्षता, प्रभुसत्ता तथा देश की एकता एवं अखण्डता में प्रति वचनबद्धता प्रकट करनी पड़ती है। परन्तु भारत में जाति, धर्म, भाषा तथा क्षेत्र इत्यादि के आधार पर राजनीतिक दलों का निर्माण होता है।

11. दल की अपेक्षा व्यक्तियों को महत्त्व (Importance to Individual rather than Party)—भारत में राजनीतिक दलों की एक समस्या है कि यहां पर राजनीतिक दलों की अपेक्षा व्यक्तियों को अधिक महत्त्व दिया जाता है। कांग्रेस में सोनिया गांधी, भारतीय जनता पार्टी, शिरोमणि अकाली दल में प्रकाश सिंह बादल, बहुजन समाज पार्टी में मायावती तथा डी० एम० के० में करुणानिधि को पार्टी की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया जाता है।

12. राजनीतिक दलों में अविश्वास (Lack of Faith in National Parties)-भारतीय राजनीति में राजनीतिक दलों की एक अन्य महत्त्वपूर्ण समस्या यह है, कि भारत में राष्ट्रीय दलों को भी देश के सभी क्षेत्रों में लोगों का विश्वास प्राप्त नहीं है। मार्क्सवादी पार्टी, भारतीय साम्यवादी दल, बहुजन समाज पार्टी तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का प्रभाव पूरे देश में न होकर कहीं-कहीं पर ही है।

13. अनुशासन का अभाव (Lack of discipline)-अनुशासन का अभाव भी राजनीतिक दलों की एक प्रमुख समस्या है। एक ही दल के नेता व्यक्तिगत हितों के लिए एक-दूसरे से विरोधी भावनाएं रखते हैं तथा एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं। यदि उन्हें दल का टिकट न मिले तो वे दूसरे दल में शामिल हो जाते हैं, या स्वतन्त्र चुनाव लड़ते हैं या अलग दल का निर्माण कर लेते हैं। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के समय सभी दलों के अधिकांश सदस्यों ने, जिनको दल का टिकट नहीं मिला, अपने ही दल के उम्मीदवार के विरुद्ध चुनाव लड़ा जो कि अनुशासनहीनता का उदाहरण है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
तीन अखिल भारतीय राजनीतिक दलों के नाम लिखिए। किसी राजनीतिक दल को अखिल भारतीय स्तर का घोषित करने का आधार क्या है ? वर्णन करें।
उत्तर-
चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान की हुई है। इनमें मुख्य अखिल भारतीय दल इस प्रकार हैं__(1) इण्डियन नैशनल कांग्रेस (2) भारतीय जनता पार्टी, (3) बहुजन समाज पार्टी। किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर का तभी घोषित किया जाता है यदि उस दल ने पिछले लोकसभा तथा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम-से-कम छः प्रतिशत वैध मत हासिल करने के साथ ही लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीती हों अथवा कम-से-कम 3 राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कमसे-कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो अथवा कम से कम चार राज्यों में उस दल को क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त
हो।

प्रश्न 2.
भारत में किस प्रकार की दल प्रणाली है ?
उत्तर-
भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर और 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिह्न के साथ मान्यता दी हुई है। राष्ट्रीय स्तर के दल हैं-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय मार्क्सवादी दल, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी। क्षेत्रीय दलों की संख्या 58 है।

प्रश्न 3.
भारत के सात राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखें।
उत्तर-
चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दलों की मान्यता दी है। ये दल हैं-(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (2) भारतीय जनता पार्टी (3) भारतीय साम्यवादी दल (4) भारतीय मार्क्सवादी दल (5) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (6) बहुजन समाज पार्टी (7) तृणमूल कांग्रेस पार्टी।

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प्रश्न 4.
भारतीय साम्यवादी दल की चार महत्त्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का राजनीतिक कार्यक्रम इस प्रकार है-

  • पार्टी राष्ट्रीय एकता और अखण्डता को बनाए रखने के लिए वचनबद्ध है।
  • पार्टी साम्प्रदायिक सद्भावना और धर्म-निरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था को बनाए रखने की पक्षधर है।
  • पार्टी केन्द्र-राज्य सम्बन्धों का पुनर्गठन करके राज्यों को अधिक शक्तियां देने के पक्ष में है।
  • पार्टी धारा 370 को बनाए रखने के पक्ष में है।

प्रश्न 5.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की आर्थिक नीति के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  • भूमि सुधारों को ज़ोरों से लागू किया जाए, जोतने वालों में ज़मीन बांटी जाए, भूमि का केन्द्रीयकरण समाप्त किया जाए और किसानों को सस्ते ऋण तथा अनुदान देकर खेती में लगने वाली चीजें उपलब्ध कराई जाएं।
  • राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को विदेशी प्रभाव से पूरी तरह स्वतन्त्र रखकर मुक्त विकास को ध्यान में रखते हुए नियोजन की प्राथमिकताओं और नीतियों को बदला जाए।
  • पार्टी ने आवास तथा काम करने के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बनाने का वायदा किया है। (4) घरेलू उद्योगों को मज़बूती प्रदान की जायेगी।

प्रश्न 6.
भारतीय जनता पार्टी की हिन्दुत्व धारणा की व्याख्या करो।
अथवा
भारतीय जनता पार्टी द्वारा हिन्दुत्व की, की गई चर्चा की व्याख्या करो।
उत्तर-
भारतीय जनता पार्टी 1951 में डॉ० श्यामा मुखर्जी द्वारा गठित भारतीय जनसंघ का रूपान्तरण है। नौवीं लोकसभा के चुनावों में हिन्दू जनाधार को अपने पक्ष में करने के लिए इसने राम जन्म भूमि पर राम मन्दिर के निर्माण का कार्यक्रम प्रस्तुत किया और इससे हिन्दू जनाधार का समर्थन भी मिला। उसे लोकसभा की 88 सीटें प्राप्त हुईं और इसी के सहयोग से राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी। राम मन्दिर निर्माण के मुद्दे को लेकर अक्तूबर, 1990 को भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार से अपना समर्थन वापिस ले लिया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहयोग से इसने राम जन्मभूमि पर मन्दिर बनाने के लिए अक्तूबर-नवम्बर, 1990 में दो असफल प्रयास किए। 1991 के चुनावों के समय जारी घोषणा-पत्र में ‘राम राज्य की ओर’ का नारा दिया गया। 6 दिसम्बर, 1992 को हिन्दू कार्यकर्ताओं व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने बाबरी मस्जिद का ढांचा गिरा दिया। जिस कारण भारतीय जनता पार्टी की तीखी आलोचना हुई।

यद्यपि आज यह राष्ट्रीय दल है परन्तु यह दल अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण की नीति का विरोधी है जिस कारण संकुचित दृष्टि से सोचने वालों का समर्थन इसे प्राप्त नहीं है। वे इसे हिन्दू पार्टी के नाम से पुकारते हैं क्योंकि इसके 90 प्रतिशत सदस्य हिन्दू ही हैं।

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प्रश्न 7.
राजनीतिक दलों में व्यक्तित्व पूजा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
राजनीतिक दलों में व्यक्तित्व पूजा से अभिप्राय है, कि राजनीतिक दल अपने कार्यक्रमों एवं नीतियों की अपेक्षा अपने नेता को अधिक महत्त्व देते हैं। भारत के लगभग सभी राजनीतिक दल किसी-न-किसी नेता के ईर्द-गिर्द ही घूमते हैं। उदाहरण के लिए कांग्रेस पार्टी पहले पं० नेहरू, श्रीमती इंदिरा गांधी तथा श्री राजीव के इर्द-गिर्द घूमती थी, जबकि आजकल श्रीमती सोनिया गांधी एवं श्री राहुल गांधी के आस-पास घूमती है। इसी तरह भारतीय जनता पार्टी भी वर्तमान समय में श्री नरेन्द्र मोदी के आस-पास घूमती है।

प्रश्न 8.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म सन् 1885 में हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना में एक अंग्रेज़ अधिकारी ए० ओ० ह्यम ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का प्रारम्भिक उद्देश्य भारतीयों तथा ब्रिटिश सरकार में अच्छे सम्बन्ध स्थापित करना था। परन्तु धीरे-धीरे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का उद्देश्य बदलकर ‘पूर्ण स्वराज्य की मांग’ हो गया।

प्रश्न 9.
कांग्रेस की विदेश नीति के बारे में लिखिए।
अथवा
कांग्रेस पार्टी की विदेश नीति लिखो।
उत्तर-

  • कांग्रेस ने शान्ति, नि:शस्त्रीकरण और पर्यावरण का ध्यान रखते हुए विकास करने के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए गुट-निरपेक्षता की नीति के प्रति अपनी वचनबद्धता को पुनः दोहराया है।
  • कांग्रेस विदेश नीति को देश की आर्थिक प्राथमिकताओं और चिन्ताओं से जोड़ेगी।
  • कांग्रेस दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (सफ्टा) बनाने के लिए प्रतिबद्ध है।
  • कांग्रेस पार्टी गुट निरपेक्षता की नीति में विश्वास रखती है।

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प्रश्न 10.
कांग्रेस (आई) की आर्थिक नीतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की आर्थिक नीतियां एवं कार्यक्रम इस प्रकार हैं

  • ग़रीबी दूर करना-ग़रीबी दूर करना कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य है और ग़रीबी को जड़ से मिटाने के प्रति कांग्रेस वचनबद्ध है।
  • कृषि किसान तथा खेत मज़दूर-कांग्रेस ने कृषि को उद्योग का दर्जा देने तथा कृषि ऋण प्रणाली को मजबूत बनाने का वायदा किया है। कांग्रेस ने कृषि उत्पादन बढ़ाने और किसान तथा खेत मजदूरों के हितों की रक्षा करने का वायदा किया है।
  • श्रमिक-कांग्रेस बीमार कम्पनियों की हालत सुधारने के लिए कर्मचारियों के संगठनों को सक्रिय रूप से प्रोत्साहन और समर्थन देगी। असंगठित क्षेत्रों में श्रमिकों, विशेष रूप से महिलाओं के लिए सामाजिक सुरक्षा और बीमा योजनाओं को सुदृढ़ किया जाएगा एवं उसका विस्तार किया जाएगा। कांग्रेस प्रबन्ध में श्रमिकों के लिए साझेदारी बढ़ाने को वचनबद्ध है।
  • पार्टी औद्योगिक क्षेत्र में वृद्धि दर को तेज़ करेगी।

प्रश्न 11.
भारतीय दलीय प्रणाली की चार विशेषताएं लिखें।
अथवा
भारतीय राजनीतिक दल प्रणाली की कोई चार विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-
भारतीय दलीय प्रणाली की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं
1. बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है। चुनाव आयोग ने 7 राष्ट्रीय स्तर के दलों को मान्यता दी हुई है। ये दल इस प्रकार हैं-कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, मार्क्सवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी। राष्ट्रीय दलों के अतिरिक्त अनेक राज्य स्तर के और क्षेत्रीय दल पाए जाते हैं।

2. साम्प्रदायिकता-भारतीय दलीय प्रणाली की प्रमुख विशेषता साम्प्रदायिक दलों का होना है। 3. भारत में क्षेत्रीय दल भी पाए जाते हैं। 4. भारत में कार्यक्रम की अपेक्षा नेतृत्व को प्रमुखता दी जाती है।

प्रश्न 12.
भारत में विरोधी दल द्वारा किए जाने वाले मुख्य चार कार्य लिखें।
उत्तर-
भारत में विरोधी दल निम्नलिखित कार्य करते हैं-

  • आलोचना-भारत में विरोधी दल का मुख्य कार्य सरकार की नीतियों की आलोचना करना है। विरोधी दल संसद् के अन्दर और संसद् के बाहर सरकार की आलोचना करते हैं।
  • वैकल्पिक सरकार-भारत में संसदीय प्रणाली होने के कारण विरोधी दल वैकल्पिक सरकार बनाने के लिए तैयार रहता है।
  • अस्थिर मतदाता को अपील करना-विरोधी दल सत्तारूढ़ दल को आम चुनाव में हराने का प्रयत्न करता है। इसके लिए विरोधी दल सत्तारूढ़ दल की आलोचना करके मतदाताओं के सामने यह प्रमाणित करने का प्रयत्न करता है कि यदि उसे अवसर दिया जाए तो वह देश का शासन सत्तारूढ़ दल की अपेक्षा अच्छा चला सकता है।
  • विरोधी दल लोकतन्त्र की सुरक्षा करता है।

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प्रश्न 13.
भारत में साम्यवादी दल की आर्थिक नीति लिखिए।
अथवा
भारतीय साम्यवादी दल की कोई चार नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारतीय साम्यवादी दल का आर्थिक कार्यक्रम इस प्रकार है-

  • पार्टी का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र का पुनर्गठन किया जाए और इसे अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास किया जाए।
  • आवास तथा काम के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों के अध्याय में अंकित किया जाए।
  • मज़दूरों के सम्बन्ध में कोई भी कानून बनाते समय उनकी सलाह ली जाए।
  • देशभर में फसल तथा पशु बीमा का विस्तार किया जायेगा।

प्रश्न 14.
भारतीय दल प्रणाली की कोई चार कमियों (कमजोरियों) को लिखें।
अथवा
भारतीय राजनीतिक दलों की कोई चार कमियां लिखिए।
उत्तर-

  • राजनीतिक दलों का ग़लत आधार-भारत में अनेक राजनीतिक दल धर्म, जाति, क्षेत्र आदि पर आधारित हैं। ऐसे राजनीतिक दल जातिवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकतावाद आदि को बढ़ावा देते हैं।
  • गुटबन्दी–प्रायः सभी राजनीतिक दलों में गुटबन्दी पाई जाती है जो दलों के प्रभावशाली संगठन के मार्ग में बाधा
  • दल-बदल-भारतीय दलीय प्रणाली का एक महत्त्वपूर्ण दोष दल-बदल है।
  • सिद्धान्तहीन समझौते-भारतीय राजनीतिक दल प्रायः सिद्धान्तहीन समझौते करते रहते हैं।

प्रश्न 15.
बहुजन समाज पार्टी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
अथवा
भारत में किसने, कब और क्यों बहुजन समाज पार्टी का निर्माण किया था?
उत्तर-
बहुजन समाज पार्टी को प्रायः बसपा के नाम से जाना जाता है। यह पार्टी दलित लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। बसपा की स्थापना 14 अप्रैल, 1984 को कांशी राम ने की थी। इस पार्टी का पहला नाम डी० एस० 4 (D.S. 4) था। जिसका आधार है-दलित, शोषित समाज संघर्ष समिति (Dalit, Shoshit Samaj Sangharsh Samiti) । कांशीराम के अनुसार अनुसूचित जातियों, अनुसूचित, जन-जातियों, शैक्षणिक तथा सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग, अल्पसंख्यक, कारीगर और वे सभी दलित जिनका पूंजीपतियों ने शोषण किया है बहुजन समाज है। इस पार्टी की स्थापना इसलिए की गई थी ताकि दलित वर्ग के लोगों को राजनीति व प्रशासन में समुचित भागीदारी मिल सके। इस पार्टी का उद्देश्य बहुजन समाज का कल्याण करना है।

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प्रश्न 16.
भारतीय जनता पार्टी की चार महत्त्वपूर्ण नीतियों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • उपभोक्ता संरक्षण-पार्टी उपभोक्ता कानून में सुधार करेगी और उसको अच्छे ढंग से लागू करेगी। उपभोक्ता आन्दोलन को बढ़ावा दिया जाएगा।
  • काला धन-पार्टी काले धन के निर्माण को रोकने के कड़े उपाय करेगी।
  • श्रम-घोषणा-पत्र के अनुसार भारतीय जनता पार्टी औद्योगिक क्षेत्र में श्रमिक भागीदारी शुरू करेगी।
  • पूर्ण रोज़गार-पार्टी बेरोज़गारी को दूर करने के लिए हर संभव प्रयास करेगी।

प्रश्न 17.
राजनीतिक दलों का पंजीकरण क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
दिसम्बर, 1988 में संसद् ने चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए जन प्रतिनिधि कानून 1950 और 1951 में संशोधन किया। इस संशोधन के अनुसार कोई भी गुट, समूह, संघ अथवा संस्था तब तक राजनीतिक दल नहीं बन सकता जब तक कि वह चुनाव आयोग के पास पंजीकृत नहीं होगा। इसके लिए उसे चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित नियमों का पालन करना होगा। राजनीतिक दलों के लिए पंजीकरण (Registration) को इसलिए अनिवार्य माना गया है ताकि चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों के सदस्य जन प्रतिनिधि बनने के बाद संविधान के प्रति आस्था रखें। वे प्रजातान्त्रिक मूल्यों को बढ़ावा दें। देश की सुरक्षा, हितों व शान्ति के विरुद्ध कार्य न करें। राजनीतिक दलों का पंजीकरण इसलिए भी ज़रूरी है ताकि कोई संस्था, गुट अथवा समूह असंगठित व अनियन्त्रित लोगों का समूह मात्र बनकर सामाजिक उन्माद न फैला सके। राजनीतिक दल के पंजीकरण द्वारा सरकार को उस दल के पदाधिकारियों, संगठन व आय के स्रोतों का पता चल जाता है। इस प्रकार राजनीतिक दलों को कानून के दायरे में रखने के लिए उनका पंजीकरण अनिवार्य किया जाता है।

प्रश्न 18.
भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए भारतीय जनता पार्टी की क्या नीति है ?
उत्तर-
भारतीय जनता पार्टी ने अपने घोषणा-पत्र में कहा है कि भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जायेंगे

  • विदेशों से किए गए समझौतों में भ्रष्टाचार के मामलों पर रक्षा सौदों में कमीशन लेने वालों की जांच की जाएगी और दोषियों को दण्डित किया जाएगा।
  • यह ओम्बुड्समैन-लोकपाल तथा लोकायुक्त नियुक्त करने के लिए कानून बनाएगी और प्रधानमन्त्री तथा मुख्य मन्त्रियों को इनके अन्तर्गत लाया जाएगा।
  • क्रय तथा ठेके आदि देने का काम करने वाले सरकारी विभागों तथा सार्वजनिक क्षेत्रों के निगमों के दैनिक कार्य में राजनीतिक हस्तक्षेप तथा दखल-अन्दाजी को समाप्त कर दिया जाएगा।
  • सरकारी विभागों के खर्चों में कमी की जायेगी।

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प्रश्न 19.
भारत में राजनीतिक दलों के लिए लीडरशिप (नेतृत्व) का क्या संकट है ?
अथवा
भारत में राजनीतिक दलों की नेतत्व की क्या समस्याएं हैं? ।
उत्तर-
भारत में प्राय: सभी राजनीतिक दलों में ऐसे नेताओं की कमी है, जो दल एवं देश का कुशलतापूर्वक मार्गदर्शन कर सकें। प्रायः सभी दलों के नेताओं को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि देश में नीतिवान और युवा नेताओं की बहुत कमी है। राजनीतिक दलों का नेतृत्व प्रायः उन लोगों के हाथों में है जिनकी आयु 60 से 70 वर्ष से ऊपर है। ऐसा प्रतीत होता है कि देश के प्रतिभाशाली नौजवान राजनीति में आना पसन्द नहीं करते। श्री राजीव गांधी ने राजनीति में आकर अच्छी शुरुआत की।

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
चुनाव आयोग के नियमों के अनुसार किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर का दल तभी घोषित किया जाता है यदि उस दल ने लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में 6 प्रतिशत वैध मत हासिल करने के साथ-साथ लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीती हों अथवा कम-से-कम तीन राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कम-से-कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो अथवा कमसे-कम चार राज्यों में उस दल को क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो। इसी आधार पर चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की।

प्रश्न 21.
राष्ट्रीय राजनीतिक दलों और उनके अध्यक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर –
दलों के नाम — अध्यक्षों के नाम
(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस — श्री राहुल गांधी
(2) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी — श्री एस० सुधाकर रेड्डी
(3) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी — श्री सीता राम यचुरी
(4) भारतीय जनता पार्टी — श्री अमित शाह
(5) बहुजन समाज पार्टी — सुश्री मायावती
(6) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी — श्री शरद पवार
(7) तृणमूल कांग्रेस पार्टी — सुश्री ममता बनर्जी

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प्रश्न 22.
राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के चुनाव निशान लिखें।
अथवा
भारत में पाए जाने वाले चार राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम व चुनाव चिन्ह बताएं।
उत्तर-
दलों का नाम — चुनाव निशान
(1) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस — हाथ
(2) भारतीय जनता पार्टी — कमल का फूल
(3) भारतीय साम्यवादी पार्टी — दराती और गेहूं की बाली
(4) भारतीय मार्क्सवादी पार्टी — दराती, हथौड़ा और तारा
(5) बहुजन समाज पार्टी — हाथी
(6) राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी — घड़ी
(7) तृणमूल कांग्रेस पार्टी — पुष्प एवं घास

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय राजनीतिक दल किसे कहते हैं ?
उत्तर-
किसी भी राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर का दल तभी घोषित किया जाता है यदि उस दल ने पिछले लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम-से-कम 6% वैध मत हासिल करने के साथ लोकसभा की कम-से-कम 4 सीटें जीती हों, अथवा कम-से-कम 3 राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का 2% (वर्तमान 543 सीटों में से कम-से-कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो। अथवा कम से कम चार राज्यों में क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हो।।

प्रश्न 2.
भारत में किस प्रकार की राजनीतिक दल प्रणाली है?
उत्तर-
भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर और 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर पर आरक्षित चुनाव चिन्ह के साथ मान्यता दी हुई है। राष्ट्रीय स्तर के दल हैं-भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी।

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प्रश्न 3.
भारतीय दलीय प्रणाली की दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-

  • बहु-दलीय प्रणाली-भारत में बहु-दलीय प्रणाली पाई जाती है।
  • साम्प्रदायिकता-भारतीय दलीय प्रणाली की प्रमुख विशेषता साम्प्रदायिकता दलों का होना है।

प्रश्न 4.
भारतीय साम्यवादी दल का आर्थिक कार्यक्रम लिखें।
उत्तर-

  • पार्टी का कहना है कि सार्वजनिक क्षेत्र का पुनर्गठन किया जाए और इसे अधिक मज़बूत बनाने का प्रयास किया जाए।
  • आवास तथा काम के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों के अध्याय में अंकित किया जाए।

प्रश्न 5.
भारतीय राजनैतिक दलों की कोई दो कमियां लिखिए।
उत्तर-

  1. राजनीतिक दलों का ग़लत आधार-भारत में अनेक राजनीतिक दल धर्म, जाति, क्षेत्र आदि पर आधारित हैं।
  2. गुटबन्दी–प्रायः सभी राजनीतिक दलों में गुटबन्दी पाई जाती है जो दलों के प्रभावशाली संगठन के मार्ग में बाधा है।

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प्रश्न 6.
बहुजन समाज पार्टी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
बहुजन समाज पार्टी को प्रायः बसपा के नाम से जाना जाता है। यह पार्टी दलित लोगों का प्रतिनिधित्व करती है। बसपा की स्थापना 14 अप्रैल, 1984 को कांशी राम ने की थी। इस पार्टी का पहला नाम डी० एस० 4 (D.S. 4) तथा जिसका अर्थ है-दलित, शोषित, समाज संघर्ष समिति (Dalit, Shoshit, Samaj Sangharsh Samiti)। इस पार्टी की स्थापना इसलिए की गई थी ताकि दलित वर्ग के लोगों को राजनीति व प्रशासन में समुचित भागीदारी मिल सके। इस पार्टी का उद्देश्य बहुजन समाज का कल्याण करना है।

प्रश्न 7.
भारत में कुल कितने क्षेत्रीय दल हैं ?
उत्तर-
भारत में अनेक क्षेत्रीय दल पाए जाते हैं। चुनाव आयोग ने 58 राजनीतिक दलों को क्षेत्रीय दलों के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है। इनमें से तीन क्षेत्रीय दलों के नाम हैं-

  1. शिरोमणि अकाली दल
  2. नैशनल कान्फ्रैंस
  3. डी० एम० के०।

प्रश्न 8.
भारत के दो राष्ट्रीय और दो क्षेत्रीय दलों के नाम लिखें।
उत्तर-
राष्ट्रीय दल- 1. भारतीय जनता पार्टी, 2. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।
क्षेत्रीय दल-1. शिरोमणि अकाली दल, 2. इण्डियन नेशनल लोकदल।

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प्रश्न 9.
भारत में जाति के आधार पर बने दो राजनीतिक दलों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. डी० एम० के० (D.M.K.)
  2. ए० आई० ए० डी० एम० के० (AIADMK)।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
भारतीय दलीय प्रणाली की मुख्य विशेषता क्या है ?
उत्तर-
भारतीय दलीय प्रणाली बहु-दलीय है।

प्रश्न 2.
वर्तमान समय में भारत में कितने मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं ?
उत्तर-
भारत में 7 मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।

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प्रश्न 3.
चुनाव आयोग ने कितने राज्य स्तरीय दलों को मान्यता प्रदान की हुई है?
उत्तर-
चुनाव आयोग ने 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तर के रूप में मान्यता दी हुई है।

प्रश्न 4.
भारत में दो राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखो।
अथवा
भारत में पाए जाने वाले दो मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
  2. भारतीय जनता पार्टी।

प्रश्न 5.
भारत में कोई दो क्षेत्रीय दलों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. इण्डियन नेशनल लोकदल
  2. शिरोमणि अकाली दल।

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प्रश्न 6.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना सन् 1924 में की गई।

प्रश्न 7.
कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हाथ’ है।

प्रश्न 8.
बहुजन समाज पार्टी के कार्यक्रम की एक महत्त्वपूर्ण बात लिखें।
उत्तर-
छुआछूत को समाप्त करना और छुआछूत का पालन करने वालों के विरुद्ध कठोर कानूनी कार्यवाही करना।

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प्रश्न 9.
बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हाथी’ है।

प्रश्न 10.
कांग्रेस पार्टी की वर्तमान अध्यक्ष कौन है ?
उत्तर-
कांग्रेस पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष श्री राहुल गांधी हैं।

प्रश्न 11.
भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं ?
उत्तर-
भारतीय जनता पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष श्री अमित शाह हैं।

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प्रश्न 12.
भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
‘कमल का फूल’ भाजपा का चुनाव चिह्न है।

प्रश्न 13.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव चिह्न क्या है ?
उत्तर-
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी का चुनाव चिह्न ‘हथौड़ा, दरांती एवं तारा’ है।

प्रश्न 14.
बहुजन समाज पार्टी की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर-
सन् 1984 में।

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प्रश्न 15.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर-
सन् 1964 में।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें

1. भारत में …………. प्रणाली पाई जाती है।
2. भारत में ………….. राष्ट्रीय राजनीतिक दल हैं।
3. कांग्रेस पार्टी की स्थापना सन् ……………….. में हुई।
4. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष श्री. ………………. हैं।
5. भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष ………………. हैं।
उत्तर-

  1. बहुदलीय
  2. 7
  3. 1885
  4. राहुल गांधी
  5. श्री अमित शाह।

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प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें

1. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष श्री राहुल गांधी हैं।
2. भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष श्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं।
3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी पूंजीवादी विचारधारा का समर्थन करती है ?
4. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव श्री सीता राम येचुरी हैं।
5. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती हैं।
6. भारत में एक दलीय प्रणाली है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. ग़लत
  4. सही
  5. सही
  6. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में कौन-सी दल प्रणाली है ?
(क) एक दलीय
(ख) द्वि-दलीय
(ग) बहु दलीय
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) बहु दलीय

प्रश्न 2.
कौन-सा राजनीतिक दल अनुच्छेद 370 को संविधान में से निलम्बित करना चाहता है ?
(क) भारतीय साम्यवादी दल
(ख) जनता दल
(ग) कांग्रेस
(घ) भारतीय जनता पार्टी।
उत्तर-
(घ) भारतीय जनता पार्टी।

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प्रश्न 3.
भारतीय साम्यवादी दल का दो भागों में विभाजन हुआ।
(क) 1957 में
(ख) 1960 में
(ग) 1952 में
(घ) 1964 में।
उत्तर-
(घ) 1964 में।

प्रश्न 4.
भारत में कितने मान्यता प्राप्त क्षेत्रीय राजनीतिक दल हैं ?
(क) 38
(ख) 40
(ग) 58
(घ) 55.
उत्तर-
(ग) 58

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

PSEB 11th Class Geography Guide भूचाल या भूकंप Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भूचाल (भूकंप) क्या होते हैं ?
उत्तर-
धरती पर अचानक झटकों को भूचाल (भूकंप) कहते हैं।

प्रश्न 2.
हाईपोसैंटर क्या होता है ?
उत्तर-
भूचाल के केंद्र को हाईपोसैंटर कहते हैं।

प्रश्न 3.
अधिकेंद्र या ऐपीसैंटर क्या होता है ?
उत्तर-
धरती के ऊपर जिस स्थान पर भूचाल पैदा होता है, उसे अधिकेंद्र या एपीसैंटर कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 4.
फोकस और अधिकेंद्र क्या होते हैं ? इनके चित्र भी बनाएँ।
उत्तर-
भूचाल जिस स्थान से आरंभ होता है, उसे फोकस कहते हैं। धरातल के जिस स्थान पर सबसे पहले भूचाल अनुभव होता है, उसे अधिकेंद्र कहते हैं।
(नोट-चित्र के लिए देखें अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के लघूत्तरात्मक प्रश्न)

प्रश्न 5.
भूचाल मापने वाले यंत्र को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
सिस्मोग्राफ।

प्रश्न 6.
भूचाल आने के कारणों को विस्तार से लिखें।
उत्तर-
(उत्तर के लिए देखें-अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों के लघूत्तरात्मक प्रश्न-1)

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 7.
प्लेट टैक्टॉनिक का सिद्धांत क्या है ?
उत्तर-
पृथ्वी का क्रस्ट कई प्लेटों में बँटा हुआ है। ये प्लेटें खिसकती रहती हैं। इन्हें प्लेट टैक्टॉनिक कहते हैं।

प्रश्न 8.
मानवीय कारण भूचाल के लिए कैसे ज़िम्मेदार हैं ?
उत्तर-
खानों को गहरा करने, डैम, सड़कों और रेल पटरियों को बिछाने के लिए ऐटमी धमाके करने से भूचाल आते हैं।

प्रश्न 9.
भूचाल की तीव्रता क्या होती है? भूचाल की तीव्रता कैसे मापी जाती है ?
उत्तर-
भूचाल की तीव्रता मापने के लिए रिक्टर पैमाने का प्रयोग किया जाता है। भूचाल की तीव्रता उसमें पैदा हुई शक्ति को कहा जाता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 10.
अग्नि-चक्र क्या है ?
उत्तर-
प्रशांत महासागर के इर्द-गिर्द ज्वालामुखियों की श्रृंखला को अग्नि-चक्र कहते हैं।

प्रश्न 11.
भूचालों के विश्व-विभाजन का वर्णन करें।
उत्तर-
(उत्तर के लिए देखें-अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नों में निबंधात्मक प्रश्न सं.-2)

प्रश्न 12.
भारत में भूचाल क्षेत्रों के बारे में लिखें।
उत्तर-
भारत में प्रायद्वीप पठार स्थित खंड भूचाल रहित होते हैं। अधिकतर भूचाल हिमालय पर्वत, गंगा के मैदान और पश्चिमी तट पर आते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 13.
सुनामी से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सागर तल पर आए भूचाल (भूकंप) के कारण उत्पन्न हुई विशाल लहरों को सुनामी कहा जाता है।

प्रश्न 14.
क्या भूचालों की भविष्यवाणी की जा सकती है ?
उत्तर-
भूचालों की भविष्यवाणी करना भूचाल वैज्ञानिकों के लिए बहुत मुश्किल काम है या यह कह लीजिए कि लगभग असंभव है। केवल आम भूचालों से ग्रस्त क्षेत्र और धरती की पपड़ी पर प्लेट टैक्टॉनिक का नक्शा और प्लेट सीमा का गहन अध्ययन भूचालों के बारे में अनुमान लगाना आसान कर सकता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

Geography Guide for Class 11 PSEB भूचाल या भूकंप Important Questions and Answers

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भूचाल आने के कारणों को विस्तार से लिखें।
उत्तर-
भूचाल के कारण (Causes of Earthquakes)-प्राचीन काल में लोग भूचाल को भगवान का क्रोध मानते थे। धार्मिक विचारों के अनुसार, जब मानवीय पाप बढ़ जाते हैं, तो पापों के भार से धरती काँप उठती है। परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार भूचाल के नीचे लिखे कारण हैं-

1. ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)–ज्वालामुखी विस्फोट से आस-पास के क्षेत्र काँप उठते हैं और हिलने लगते हैं। अधिक विस्फोटक शक्ति के कारण खतरनाक भूचाल आते हैं। 1883 ई० में काराकटोआ विस्फोट से पैदा हुए भूचाल का प्रभाव ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका तक अनुभव किया गया था।

2. दरारें (Faults)-धरती की हलचल के कारण धरातल पर खिंचाव या दबाव के कारण दरारें पड़ जाती हैं। इन्हीं के सहारे भू-भाग ऊपर या नीचे की ओर सरक जाते हैं और जिससे भूचाल पैदा होते हैं। 1923 में कैलीफोर्निया का भयानक भूचाल ‘सेन ऐंडरीयास-दरार’ (San Andreas Faults) के कारण हुआ था। 11 दिसंबर, 1927 में कोयना (महाराष्ट्र) का भूचाल भी इसी कारण आया था।

3. धरती का सिकुड़ना (Contraction of Earth)-धरती अपनी मूल अवस्था में गर्म थी, परंतु अब धीरे धीरे यह ठंडी हो रही है। तापमान कम होने से धरती सिकुड़ती है और चट्टानों में हलचल होती है।

4. गैसों का फैलना (Expansion of Gases)-धरती के भीतरी भाग से गैसें और भाप बाहर आने का यत्न करती हैं। इनके दबाव से भूचाल आते हैं।

5. चट्टानों की लचक शक्ति (Elasticity of Rocks)-जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है, तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है, इससे भू-भाग हिल जाते हैं। .

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भूचाल के अलग-अलग प्रकार बताएँ। भूचाली लहरों का वर्णन करें।
उत्तर-
भूचाल के प्रकार (Types of Earthquakes) –
भूचाल के पैदा होने के कई कारण होते हैं-
गहराई के आधार पर भूचाल के प्रकार (Types of Earthquakes according to Depth)-प्रसिद्ध वैज्ञानिकों गुटनबर्ग (Gutenberg) और रिचर (Ritchter) ने गहराई के आधार पर भूचालों को तीन वर्गों में बाँटा है।

जिन भूचालों की लहरें (Shock) 50 किलोमीटर या इससे कम गहराई पर उत्पन्न होती हैं, उन्हें साधारण भूचाल (Normal Earthquakes) कहते हैं। जब लहरें 70 से 250 किलोमीटर की गहराई से उत्पन्न होती हैं, तो इन्हें मध्यवर्ती भूचाल (Intermediate Earthquakes) कहते हैं। जब लहरों की उत्पत्ति 250 से 700 किलोमीटर की गहराई के बीच होती है तो इन्हें गहरे केंद्रीय भूचाल (Deep Focus earthquakes) कहते हैं।

भूमि-कंपन लहरें (Earthquake Waves) –
भूचाल संबंधी ज्ञान को भूचाल विज्ञान (Semology) कहते हैं। भूचाल की तीव्रता और उत्पत्ति-स्थान की तीव्रता पता करने के लिए भूचाल मापक-यंत्र (Seismograph) की खोज हुई है। इस यंत्र में लगी एक सूई द्वारा ग्राफ पेपर के ऊपर भूचाल के साथ-साथ ऊँची-नीची (लहरों के रूप में) रेखाएँ बनती रहती हैं। जिस स्थान-बिंदु से भूचाल आरंभ होता है, उसे भूचाल उत्पत्ति केंद्र (Seismic Focus) कहते हैं। भू-तल पर जिस स्थान-बिंदु पर भूचाल का अनुभव सबसे पहले होता है, उसे अधिकेंद्र (Epicentre) कहते हैं। यह भूचाल उत्पत्ति केंद्र के ठीक ऊपर से आरंभ होता है। भूचाल लहरें (Earthquake Waves) उत्पत्ति केंद्र में उत्पन्न होकर शैलों में कंपन करती हुई सबसे पहले अधिकेंद्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्र में पहुँचती हैं। परंतु भूचाल का सबसे अधिक प्रभाव अधिकेंद्र और इसके निकटवर्ती क्षेत्र पर पड़ता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 1

भूचाली लहरों को रेखाओं में लिया जाता है, जोकि अक्सर अंडे के आकार (Elliptical) की होती हैं। इन्हें भूचाल उत्पत्ति रेखाएँ (Homoseismal lines) कहा जाता है। ऐसे स्थानों को, जिन्हें एक जैसी लहरों के पहुँचने के कारण एक जैसी हानि हुई हो, तो मानचित्र पर रेखाओं द्वारा मिला दिया जाता है। इन रेखाओं को सम-भूचाल रेखाएँ (Isoseismal lines) कहते हैं।

भूचाल लहरें-उत्पत्ति केंद्र से उत्पन्न होने वाली भूमि-कंपन लहरें एक जैसी नहीं होती और न ही इनकी गति में समानता होती है। इन तथ्यों को आधार मानकर इन तरंगों को नीचे लिखे तीन भागों में बाँटा गया है-

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 2

1. प्राथमिक लहरें (Primary or Push or ‘P’ waves)—ये लहरें ध्वनि लहरों (Sound waves) के समान आगे-पीछे (to and fro) होती हुई आगे बढ़ती हैं। ये ठोस भागों में तीव्र गति से आगे बढ़ती हैं और अन्य प्रकार की लहरों की अपेक्षा तीव्र चलने वाली लहरें होती हैं। इनकी गति 8 से 14 कि०मी० प्रति सैकिंड होती है। प्राथमिक लहरें तरल और ठोस पदार्थों को एक समान रूप में पार करती हैं।

2. गौण लहरें (Secondary or ‘S’ Waves)-ये लहरें ऊपर-नीचे (Up and down) होती हुई आगे बढ़ती _हैं। इनकी गति 4 से 6 किलोमीटर प्रति सैकिंड होती है। ये द्रव्य पदार्थों को पार करने में असमर्थ होती हैं और ये उसमें ही अलोप हो जाती हैं।

3. धरातलीय लहरें (Surface or ‘L’ waves)-इनकी गति 3 से 5 किलोमीटर प्रति सैकिंड होती है। ये धरती की ऊपरी परतों में ही चलती हैं अर्थात् ये भू-गर्भ की गहराइयों में प्रवेश नहीं करतीं। ये अत्यंत ऊँची और नीची होकर चलती हैं जिससे भू-तल पर अपार धन-माल की हानि होती है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 2.
भूचाल किसे कहते हैं ? भूचालों की उत्पत्ति के क्या कारण हैं ? विश्व में भूचाल क्षेत्रों के विभाजन के बारे में बताएँ।
उत्तर-
जब धरातल का कोई भाग अचानक काँप उठता है, तो उसे भूचाल कहते हैं। इस हलचल के कारण धरती हिलने लगती है और आगे-पीछे, ऊपर-नीचे सकरती है। इन्हें झटके (Termors) कहते हैं। (An Earthquake is a simple shiver on the skin of our planet.)

भूचाल के कारण (Causes of Earthquakes)—प्राचीन काल में लोग भूचाल को भगवान का क्रोध मानते थे। धार्मिक विचारों के अनुसार जब मानवीय पाप बढ़ जाते हैं, तो पापों के भार से धरती काँप उठती है। परंतु वैज्ञानिकों के अनुसार भूचाल के लिए उत्तरदायी कारण नीचे लिखे हैं-

1. ज्वालामुखी विस्फोट (Volcanic Eruption)-ज्वालामुखी विस्फोट से आस-पास के क्षेत्र काँप उठते हैं
और हिलने लगते हैं। अधिक विस्फोटक शक्ति के कारण खतरनाक भूचाल आते हैं। 1883 में काराकाटोआ विस्फोट से पैदा हुए भूचाल का प्रभाव ऑस्ट्रेलिया और दक्षिणी अमेरिका तक अनुभव किया गया।

2. दरारें (Faults)-धरती की हलचल के कारण धरातल पर खिंचाव या दबाव के कारण दरारें पड़ जाती हैं। इनके सहारे भूमि-भाग ऊपर या नीचे की ओर सरकने से भूचाल पैदा होते हैं। 1923 में कैलीफोर्निया का भयानक भूचाल “सेन ऐंडरीयास-दरार’ (San Andreas Faults) के कारण हुआ था। 11 दिसंबर, 1927 में कोयना (महाराष्ट्र) का भूचाल भी इसी कारण आया था।

3. धरती का सिकुड़ना (Contraction of Earth) धरती अपनी मूल अवस्था में गर्म थी, परन्तु अब धीरे धीरे ठंडी हो रही है। तापमान कम होने से धरती सिकुड़ती है और चट्टानों में हलचल होती है।

4. गैसों का फैलना (Expansion of Gases)-धरती के भीतरी भाग से गैसें और भाप बाहर आने का यत्न करती हैं इनके दबाव से भूचाल आते हैं।

5. चट्टानों की लचक-शक्ति (Elasticity of Rocks)-जब किसी चट्टान पर दबाव पड़ता है, तो वह चट्टान उस दबाव को वापस धकेलती है, इससे भू-भाग हिल जाते हैं।

6. साधारण कारण (General Causes)-हल्के या छोटे भूचाल कई कारणों से पैदा हो जाते हैं-

  • पहाड़ी भागों में भू-स्खलन (Landslide) और हिम-स्खलन (Avalanche) होने से।
  • गुफाओं की छतों के बह जाने से।
  • समुद्री तटों से तूफानी लहरों के टकराने से।
  • धरती के तेज़ घूमने से।
  • अणु-बमों (Atom Bombs) के विस्फोट और परीक्षण से।
  • रेलों, ट्रकों और टैंकों के चलने से।

विश्व के भूचाल-क्षेत्र (Earthquake Zones of the World)-

  1. ज्वालामुखी क्षेत्रों में।
  2. नवीन बलदार पहाड़ों के क्षेत्रों में।
  3. समुद्र तट के क्षेत्र में।

भूचाल कुछ निश्चित पेटियों (Belts) में मिलते हैं-

  • प्रशांत महासागरीय पेटी (Circum Pacific Belt)—यह विशाल भूचाल क्षेत्र प्रशांत महासागर के दोनों तटों (अमेरिकी और एशियाई) के साथ-साथ फैला हुआ है। यहाँ विश्व के 68% भूचाल आते हैं। इसमें कैलीफोर्निया, अलास्का, चिली, जापान, फिलीपाइन प्रमुख क्षेत्र हैं। जापान में तो हर रोज़ लगभग 4 भूचाल आते हैं। हर तीसरे दिन एक बड़ा भूचाल आता है।
  • मध्य-महाद्वीपीय पेटी (Mid-world Belt)—यह पेटी यूरोप और एशिया महाद्वीप के बीच बलदार पर्वतों (अल्पस और हिमालय) के सहारे पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली है। यहाँ संसार के 11% भूचाल आते हैं। भारत के भूचाल-क्षेत्र 1. भारत के उत्तरी भाग में अधिक भूचाल आते हैं। 2. मध्यवर्ती मैदानी-क्षेत्र में कम भूचाल अनुभव होते हैं।
  • दक्षिणी भारत एक स्थिर भाग है। यहाँ भूचाल बहुत कम आते हैं।
  • भारत में आए हुए प्रसिद्ध भूचाल हैंकच्छ (1819), असम (1897), कांगड़ा (1903), बिहार (1934)।

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प्रश्न 3.
मानवीय जीवन पर भूचाल के प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
भूचाल के प्रभाव (Effects of Earthquakes)-भूचाल पृथ्वी की एक भीतरी शक्ति है, जो अचानक (Sudden) परिवर्तन ले आती है। यह जादू के खेल के समान क्षण-भर में अनेक परिवर्तन ले आती है। भूचाल मनुष्य के लिए लाभदायक और हानिकारक दोनों ही है। विनाशकारी प्रभाव के कारण इसे शाप माना गया है, परंतु इसके कई लाभ भी हैं। भूचालों से होने वाली हानियों व लाभों का वर्णन नीचे दिया गया है-

हानियाँ (Disadvantages)-
1. जान व माल का नाश (Loss of Life and Property)-भूचाल से जान व माल की बहुत हानि होती है। 1935 में क्वेटा के भूचाल से 60,000 लोग मारे गए थे। एक अनुमान के अनुसार पिछले 4000 वर्षों में 1/2 करोड़ आदमी भूचाल के कारण मारे जा चुके हैं।

2. नगरों का नष्ट होना (Distruction of Cities) भूचाल से पूरे के पूरे नगर नष्ट हो जाते हैं। पुल टूट जाते हैं, सड़कें टूट जाती हैं, रेल की पटरियाँ टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं जिससे आवाजाही रुक जाती है।

3. आग का लगना (Fire Incidents)-भूचाल से अचानक आग लग जाती है। 18 अप्रैल, 1906 ई० में सैन फ्रांसिस्को में आग से शहर का काफी बड़ा भाग जल गया था।

4. दरारों का निर्माण (Formation of Faults)-धरातल फटने से दरारें बनती हैं। असम में 1897 ई० के भूचाल के कारण 11 किलोमीटर चौड़ी और 20 किलोमीटर लंबी दरार बन गई थी।

5. भू-स्खलन (Landslide)-पहाड़ी क्षेत्रों के अलग-अलग शिलाखंड और हिमखंड (Avalanche) टूटकर नीचे गिरते रहते हैं। समुद्र में बर्फ के शैल (Iceberge) तैरने लगते हैं।

6. बाढ़ें (Floods)-नदियों के रास्ते बदलने से बाढ़ें आती हैं। 1950 ई० में असम में भूचाल से ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ आई थी।

7. तूफानी लहरें (Tidal waves)-समुद्र में तूफानी लहरें तटों पर नुकसान करती हैं। इन्हें सुनामी (Tsunami) कहते हैं। 1775 ई० में लिस्बन (पुर्तगाल) में भूचाल से 12 मीटर ऊँची लहरों के कारण वह शहर नष्ट हो गया था।

8. तटीय भाग का धंसना (Sinking of the Coast)-भूचाल से तटीय भाग नीचे धंस जाते हैं। जापान में 1923 ई० के संगामी खाड़ी के भूचाल से सागर तल का कुछ भाग 300 मीटर नीचे धंस गया था।

लाभ (Advantages)-

  • भूचाल से निचले पठारों, द्वीपों और झीलों की रचना होती है।
  • भूचाल से कई चश्मों का (Springs) का जन्म होता है।
  • तटीय भागों में गहरी खाइयाँ बन जाती हैं, जहाँ प्राकृतिक बंदरगाह बन जाते हैं।
  • भूचाल द्वारा अनेक खनिज पदार्थ धरातल पर आ जाते हैं।
  • कृषि के लिए नवीन उपजाऊ क्षेत्र बन जाते हैं।
  • भूचाली लहरों द्वारा धरती के भू-गर्भ (Interior) के बारे में जानकारी मिलती है।
  • चट्टानों के टूटने से उपजाऊ मिट्टी का निर्माण होता है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप

प्रश्न 4.
सुनामी से क्या अभिप्राय है ? इसके प्रभाव बताएँ।
उत्तर-
सुनामी (Tsunami)—’सुनामी’ जापानी भाषा का एक शब्द है, जिसका अर्थ है-‘तटीय लहरें’। ‘TSU’ , शब्द का अर्थ है-तट और ‘Nami’ शब्द का अर्थ है-तरंगें। इन्हें ज्वारीय लहरें (Tidal waves) या भूचाली तरंगें (Seismic Waves) भी कहा जाता है।

सुनामी अचानक ऊँची उठने वाली विनाशकारी तरंगें हैं। इससे गहरे पानी में हिलजुल होती है। इसकी ऊँचाई आमतौर पर 10 मीटर तक होती है। सुनामी उस हालत में पैदा होती है, जब सागर के तल में भूचाली क्रिया के कारण हिलजुल होती है और महासागर में सतह के पानी का लंब रूप में विस्थापन होता है। हिंद महासागर में सुनामी तरंगें बहुत कम महसूस की गई हैं। अधिकतर सुनामी प्रशांत महासागर में घटित होती है।

सुनामी की उत्पत्ति (Origin of Tsunami)-भीतरी दृष्टि से पृथ्वी एक क्रियाशील ग्रह है। अधिकतर भूचाल टैक्टॉनिक प्लेटों (Tectonic Plates) की सीमाओं पर पैदा होते हैं। सुनामी अधिकतर सबडक्शन जोन (Subduction Zone) के भूचाल के कारण पैदा होती है। यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहाँ दो प्लेटें एक-दूसरे में विलीन (Coverage) हो जाती हैं। भारी पदार्थों से बनी प्लेटें हल्की प्लेटों के नीचे खिसक जाती हैं। समुद्र के गहरे तल का विस्तार होता है। यह क्रिया एक कम गहरे भूचाल को पैदा करती है।

26 दिसंबर, 2004 की सुनामी आपदा (Tsunami Disaster of 26th December, 2004)-प्रातः 7.58 बजे, एक काले रविवार (Black Sunday) 26 दिसंबर, 2004 को, क्रिसमस से एक दिन बाद सुनामी दुर्घटना घटी। यह विशाल, विनाशकारी सुनामी लहर हिंद महासागर के तटीय प्रदेश से टकराई। इस लहर के कारण इंडोनेशिया से लेकर भारत तक के देशों में 3 लाख आदमी विनाश के शिकार हुए थे।

महासागरीय तल पर एक भूचाल पैदा हुआ, जिसका अधिकेंद्र सुमात्रा (इंडोनेशिया) के 257 कि०मी० दक्षिण-पूर्व में था। यह भूचाल रिक्टर पैमाने पर 8.9 शक्ति का था। इन लहरों के ऊँचे उठने पर पानी की एक ऊँची दीवार बन गई थी।

आधुनिक युग के इतिहास में यह एक महान् दुर्घटना के रूप में लिखी जाएगी। सन् 1900 के बाद, यह चौथा बड़ा भूचाल था। इस भूचाल के कारण पैदा हुई सुनामी लहरों से हिरोशिमा बम की तुलना में लाखों गुणा अधिक ऊर्जा का विस्फोट हुआ था। इसलिए इसे भूचाल प्रेरित विनाशकारी लहर भी कहा जाता है। यह भारत और म्यांमार के प्लेटों के

मिलन स्थान पर घटी थी, जहाँ लगभग 1000 किलोमीटर प्लेट-सीमा खिसक गई थी। इसके प्रभाव से सागर तल 10 मीटर ऊपर उठ गया और ऊपरी पानी हज़ारों घन मीटर की मात्रा में विस्थापित हो गया था। इसकी गति लगभग 700 कि०मी० प्रति घंटा थी। इसे अपने उत्पत्ति स्थान से भारतीय तट तक पहुँचने में दो घंटे का समय लगा। इस दुर्घटना ने तटीय प्रदेशों के इतिहास और भूगोल को बदलकर रख दिया है।

सुनामी दुर्घटना के प्रभाव (Effects of Tsunami Disaster)-
हिंद महासागर के तटीय देशों इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, म्याँमार, भारत, श्रीलंका और मालदीव में सनामी दुर्घटना के विनाशकारी प्रभाव पड़े। भारत में तमिलनाडु, पांडेचेरी, आंध्र-प्रदेश, केरल आदि राज्य सबसे अधिक प्रभावित हुए। अंडमान और निकोबार द्वीप में इस लहर का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। इंडोनेशिया में लगभग 1 लाख आदमी, थाईलैंड में 10,000 आदमी, श्रीलंका में 30,000 आदमी तथा भारत में 15,000 आदमी इस विनाश के शिकार हुए।

भारत में सबसे अधिक नुकसान तमिलनाडु के नागापट्नम जिले में हुआ, जहाँ पानी शहर के 1.5 कि०मी० अंदर तक पहुँच गया था। संचार, परिवहन के साधन और बिजली की सप्लाई में भी मुश्किलें पैदा हुईं। अधिकतर श्रद्धालु वेलान कन्नी (Velan Kanni) के तट (Beach) के सागरीय पानी में बह गए। तट की विनाशकारी वापिस लौटती हुई लहरें हज़ारों लोगों को बहाकर ले गईं। मरीना तट (एशिया का सबसे बड़ा तट) पर 3 कि०मी० लंबे क्षेत्र में सैंकड़ों लोग सागर की चपेट में आ गए। यहाँ लाखों रुपयों के चल व अचल संसाधनों की बर्बादी हुई।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 5(ii) भूचाल या भूकंप 3

कलपक्कम अणु-ऊर्जा केंद्र में पानी प्रवेश करने पर अणु-ऊर्जा के रिएक्टरों को बंद करना पड़ा। मामलापुरम् के विश्व प्रसिद्ध मंदिर को तूफानी लहरों से बहुत नुकसान हुआ। सबसे अधिक मौतें अंडमान-निकोबार द्वीप पर हुईं। ग्रेट निकोबार के दक्षिणी द्वीप पर, जोकि भूचाल के केंद्र से केवल 150 कि०मी० दूर था, सबसे अधिक प्रभाव पड़ा। निकोबार द्वीप पर भारतीय नौसेना का एक अड्डा नष्ट हो गया। ऐसा लगता है कि इन द्वीपों का अधिकांश क्षेत्र समुद्र ने निगल लिया हो। इस प्रकार सुनामी लहरों ने इन द्वीप समूहों के भूगोल को बदल दिया है और यहाँ फिर से मानचित्रण करना पड़ेगा। इस देश की मुसीबतों के शब्दकोश में एक नया शब्द ‘सुनामी मुसीबत’ जुड़ गया है। अमेरिकी वैज्ञानिकों के अनुसार इस कारण पृथ्वी अपनी धुरी से हिल गई और इसका परिभ्रमण तेज़ हो गया है, जिस कारण दिन हमेशा के लिए एक सैकंड कम हो गया है। सुनामी लहरें सचमुच ही प्रकृति का कहर होती हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
पानीपत के पहले दो युद्धों के बीच की राजनीतिक घटनाओं की रूप रेखा बताएं।
उत्तर-
पानीपत का प्रथम युद्ध 1526 ई० तथा दूसरा युद्ध 1556 ई० में हुआ। इन दो युद्धों के मध्य राजनीतिक घटनाएं चार व्यक्तियों के गिर्द घूमती हैं। ये व्यक्ति हैं-बाबर, हुमायूं, शेरशाह एवं उसके उत्तराधिकारी तथा अकबर। इन व्यक्तियों ने अपने-अपने ढंग से राजनीतिक घटनाओं को प्रभावित किया। संक्षेप में इनका वर्णन इस प्रकार है :

I. बाबर के अधीन राजनीतिक घटनाएं-

पानीपत की विजय (1526 ई०) द्वारा बहुत बड़ा प्रदेश बाबर के अधिकार में आ गया। बाबर ने दिल्ली के सिंहासन को काबुल के सिंहासन की अपेक्षा अधिक महत्त्व दिया और हिन्दुस्तान में ही रहने का निर्णय किया।

(i) राणा सांगा के साथ संघर्ष-बाबर के भारत में रहने के निर्णय के कारण उसका मेवाड़ के राणा संग्राम सिंह से संघर्ष होना अवश्यम्भावी था। राणा सांगा के अधीन मेवाड़ राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य बन गया था। जब बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोधी के इलाके से अफ़गानों को निकालना आरम्भ किया, तो उनमें से कुछ ने राणा सांगा से सहायता मांगी। राणा सांगा तो पहले ही उत्तरी भारत पर बाबर के अधिकार को अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के लिए रोड़ा समझता था। बाबर के विरुद्ध राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले महत्त्वपूर्ण अफ़गानों में सुल्तान इब्राहीम लोधी का भाई महमूद लोधी और मेवात का शासक हसन खां थे। मार्च 1527 ई० में राणा सांगा ने आगरा की ओर कूच किया। बाबर की सेना से उसका सामना फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ के स्थान पर हुआ। दस घण्टों के घमासान युद्ध में बाबर को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। इस युद्ध में बाबर ने उन्हीं युद्ध-चालों का प्रयोग किया जो उसने पानीपत के युद्ध में अपनाई थीं। खनुआ ने युद्ध से मेवाड़ की शक्ति और सम्मान को गहरा आघात पहुंचा और बाबर के लिए भारत विजय के द्वार खुल गए।

(ii) बाबर के अन्य सैनिक अभियान और मृत्यु-एक-एक कर बाबर ने अपने विरोधी अफ़गानों को समाप्त करना शुरू कर दिया। खनुआ की लड़ाई के शीघ्र ही बाद उसने हसन खां मेवाती की राजधानी अलवर पर अधिकार कर लिया। बाबर ने महमूद लोधी को बिहार से खदेड़ दिया। महमूद लोधी ने बंगाल के शासक नुरसत शाह की शरण ली। अफ़गानों ने महमूद लोधी के नेतृत्व में मई, 1529 ई० में बाबर के विरुद्ध घाघरा-गंगा संगम के निकट युद्ध किया। उस युद्ध में बाबर को ही विजय मिली। नुसरत शाह ने बाबर को दिल्ली का बादशाह स्वीकार कर लिया। उसने यह भी मान लिया कि वह अफ़गानों को शरण नहीं देगा। इस प्रकार लोधियों का सारा प्रदेश अब बाबर के अधिकार में आ गया। दिसम्बर, 1530 ई० में उसकी मृत्यु हो गई और उसका पुत्र हुमायूं राजगद्दी पर बैठ गया।

II. हुमायूं के अधीन राजनीतिक घटनाएं-

(i) राज्य का विभाजन-हुमायूं ने अपने पिता से मिले राज्य को अपने भाइयों में बांट दिया। उसने कामरान को काबुल और पंजाब का प्रदेश और अस्करी तथा हिन्दाल को क्रमशः सम्भल और मेवात के प्रदेश दिए।

(ii) आरम्भिक विजयें तथा विद्रोह-इसके उपरान्त हुमायूं ने कालिंजर के शासक पर आक्रमण किया और उसे नज़राना देने के लिए विवश किया। 1532 ई० में उसने जौनपुर की ओर बढ़ते हुए महमूद लोधी को पराजित किया। तत्पश्चात् उसने 1534 ई० में अपने रिश्तेदार मिर्जा मुहम्मद ज़मां और मुहम्मद सुल्तान के विद्रोह को कुचला।

(iii) मालवा और गुजरात पर अस्थायी अधिकार-हुमायूं ने अब अपना ध्यान गुजरात की ओर लगाया। उसके विरोधी अफ़गानों तथा मिर्जा मुहम्मद जमां को शरण देकर बहादुरशाह भी अब हुमायूं का शत्रु बन गया था। उसने मालवा को 1531 ई० में विजय करके अपनी शक्ति को और अधिक बढ़ा लिया था। उसने अगले दो वर्षों में राजस्थान के कई किलों पर अधिकार जमा लिया। हुमायूं ने शीघ्र बहादुरशाह के विरुद्ध कूच किया। बहादुरशाह को अपना राज्य छोड़ना पड़ा। हुमायूं ने अपने भाई अस्करी को गुजरात का सूबेदार नियुक्त किया। फरवरी 1532 ई० में हुमायूं मालवा लौटा। शीघ्र ही बहादुरशाह ने चम्पानेर और अहमदाबाद सहित गुजरात पर पुनः अधिकार कर लिया।

(iv) हुमायूं का भारत से निष्कासन-गुजरात से वापसी पर हुमायूं ने पूर्व में शेरशाह की ओर ध्यान दिया। अक्तूबर 1532 ई० में हुमायूं ने चुनार के किले को घेर लिया जो शेरखां के पुत्र कुतुब खां के अधिकार में था। यह मज़बूत किला बंगाल की ओर जाने वाले रास्ते पर था। इस पर अधिकार करने में छः माह लग गए । किला हुमायूं के अधिकार में आने के एक महीने बाद ही शेरखां ने बंगाल की राजधानी गौड़ पर अधिकार कर लिया। हुमायूं अब उसके विरुद्ध चल पड़ा। शेरखां ने स्थिति को समझते हुए हुमायूं से लड़ाई न की । हुमायूं ने आसानी से बंगाल पर अधिकार कर लिया किन्तु शेरखां ने बिहार पर आक्रमण करके हुमायूं की वापसी के रास्ते को रोक लिया। बंगाल से वापस लौटते समय शेरखां ने उसे पहले चौसा के स्थान पर तथा फिर कन्नौज के स्थान पर पराजित किया। अन्त में हुमायूं भारत छोड़कर भाग गया।

III. शेरशाह और उसके उत्तराधिकारियों की समकालीन राजनीतिक घटनाएं –

(i) शेरशाह द्वारा राज्य का विस्तार-शेरशाह ने कामरान को पंजाब से निकाल कर सिन्धु नदी तक के इलाके को अपने अधीन कर लिया। 1542 ई० में उसने मालवा को जीता। अगले वर्ष उसने मध्य भारत में स्थित रायसीन की चौहान रियासत को नष्ट कर दिया। 1543 में उसने मारवाड़ के मालदेव को पराजित किया। शेरशाह ने मेवाड़ तथा रणथम्भौर पर भी अधिकार कर लिया। उसने राजस्थान के अन्य इलाकों पर भी विजय प्राप्त की। इस प्रकार सारे राजस्थान पर शेरशाह का प्रभुत्व स्थापित हो गया। 1544 ई० के अन्तिम चरण में उसने कालिन्जर को घेर लिया तथा 22 मई, 1545 को उसने कालिन्जर को जीत लिया। उसी दिन धावा बोलते समय बारूद में आग लगने से उसकी मृत्यु हो गई। जब शेरशाह की मृत्यु हुई तब गुजरात को छोड़ कर लगभग सारा उत्तरी भारत उसके अधीन था।

(ii) शेरशाह के उत्ताधिकारियों की समकालीन राजनीतिक घटनाएं-शेरशाह की मृत्यु के बाद उसके छोटे पुत्र जलालखां ने इस्लामशाह की उपाधि धारण कर लगभग आठ वर्षों अर्थात् 1553 ई० तक शासन किया। उसने पूर्वी बंगाल को अपने राज्य में मिला लिया।

इस्लामशाह की मृत्यु (30 अक्तूबर, 1553) के बाद उसका बारह वर्षीय पुत्र फिरोज़ उत्तराधिकारी बना। किन्तु गद्दी पर बैठने के तीन दिन बाद ही उसके मामा मुबारिज़ खां ने उसका वध कर दिया। मुबारिज़ खां मुहम्मद आदिलशाह के नाम पर सिंहासन पर बैठा। उसे अफ़गान लोग अन्धा कहते थे। उसने पुराने अमीरों के विश्वास को जीतने का असफल प्रयत्न किया। किसी पठान की जगह आदिलशाह ने हेम को अपना वज़ीर बनाया जिससे अफ़गान अमीरों का रोष और भी बढ़ गया और वे स्वतन्त्र होने के बारे में सोचने लगे। शीघ्र ही शेरशाह द्वारा स्थापित राज्य पांच भागों में बंट गया।

(iii) हुमायूं का पुनः शक्ति में आना-हुमायूं ने स्थिति का लाभ उठाया। वह ईरान के शासक से सैनिक सहायता लेकर काबुल तक पहुंच चुका था। उसने 1554 के अन्त में पंजाब पर आक्रमण करने का निश्चय किया और छः महीनों के भीतर ही उसे हथिया लिया। सिकन्दरशाह सूर की सरहिन्द के निकट जून 1555 में पराजय हुई। हुमायूं ने दिल्ली पर और बाद में आगरा पर अधिकार कर लिया। किन्तु सात मास के पश्चात् हुमायूं की मृत्यु हो गई।

IV. अकबर के अधीन राजनीतिक घटनाएं हुमायूं की मृत्यु के समय अकबर की आयु 13 वर्ष थी। उसके संरक्षक बैरम खां ने उसका कलानौर में राजतिलक किया। उसके बाद वह दिल्ली की ओर चल दिया।

हुमायूं की मृत्यु के शीघ्र ही बाद हेमू ने आदिलशाह की ओर से आगरा पर अधिकार कर लिया और दिल्ली की तरफ चल पड़ा। मुग़ल सेनापति तारदी बेग पराजित हुआ। वह पंजाब की ओर भाग गया। बैरम खां ने तारदी बेग की पराजय के कारण उसका वध करवा दिया। उसके बाद अकबर ने पानीपत के युद्ध में नवम्बर 1556 ई० में हेमू को पराजित किया।

इस तरह पानीपत के प्रथम युद्ध की भान्ति पानीपत के दूसरे युद्ध ने भी मुग़लों के ही भाग्य को चमकाया। बाबर की विजय अस्थायी रही, परन्तु अकबर ने मुग़ल साम्राज्य की नींव को सुदृढ़ किया और एक विशाल राज्य की स्थापना की।

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प्रश्न 2.
अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों के अधीन दक्कन में मुग़ल साम्राज्य के विस्तार से सम्बन्धित मुख्य घटनाएं क्या थी ?
उत्तर-
दक्कन का प्रदेश नर्मदा के पार स्थित था। अकबर से पूर्व किसी भी मुसलमान शासक ने दक्कन के किसी प्रदेश को अपने राज्य का भाग नहीं बनाया। अकबर पहला बादशाह था जिसके राज्य के तीन प्रान्त दक्षिण से सम्बन्धित थे। अकबर के बाद उसके उत्तराधिकारियों ने दक्कन में पूरी रुचि दिखाई। औरंगजेब ने तो अपना आधा शासनकाल दक्कन में ही व्यतीत कर दिया और उसकी मृत्यु भी वहीं हुई। संक्षेप में अकबर तथा उसके उत्तराधिकारियों की दक्कन में विस्तारवादी-नीति का वर्णन इस प्रकार है :

I. अकबर के अधीन दक्कन नीति 1591 ई० में अकबर ने अपने प्रतिनिधियों अर्थात वकीलों को दक्षिणी राज्यों (खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा) भेजा ताकि उनके शासक उसके प्रभुत्व को स्वीकार कर लें। इनमें सबसे कम शक्तिशाली तथा उत्तरी भारत के सबसे निकट खानदेश का शासक राजा अली खां था। उसने तुरन्त अकबर के प्रभुत्व को स्वीकार कर लिया और आजीवन स्वामिभक्त रहा। परन्तु उसके पुत्र एवं उत्तराधिकारी मीरा बहादुरशाह ने मुग़लों की अधीनता को त्यागने का निश्चय किया। अकबर ने तुरन्त खानदेश की राजधानी बुरहानपुर को अपने अधिकार में ले लिया। उसने राज्य के महत्त्वपूर्ण किले आसीरगढ़ पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार खानदेश 1601 ई० में मुग़ल साम्राज्य का एक प्रान्त बन गया। अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा के सुल्तानों ने अकबर के वकीलों का परामर्श मानने से इन्कार कर दिया। परिणामस्वरूप कई सैनिक अभियान अहमदनगर के विरुद्ध भेजे गए। आखिर 1599 ई० में दौलताबाद पर अधिकार कर लिया गया। अहमदनगर सल्तनत की राजधानी अहमदनगर पर भी 1600 ई० में मुग़लों का अधिकार हो गया। अकबर ने अहमदनगर राज्य को समाप्त नहीं किया बल्कि उसने वहां के प्रदेशों का एक अलग प्रान्त बना दिया। अकबर की मृत्यु से पूर्व दक्कन अर्थात् विंध्य पर्वत और कृष्णा नदी के बीच के प्रदेश में तीन अधीनस्थ रियासतें बन चुकी थीं-खानदेश, बरार और अहमदनगर। इस तरह मुग़ल अपने साम्राज्य को नर्मदा के उस पार तक ले जाने में सफल हुए।

II. जहांगीर की दक्कन नीति-

जहांगीर ने दक्कन में प्रथम अभियान 1608 ई० में भेजा था। किन्तु उसे 1617 ई० में सफलता प्राप्त हुई जब शाहज़ादा खुर्रम ने अहमदनगर के सुल्तान को सन्धि करने के लिए बाध्य किया। सन्धि की शर्त यह थी कि सुल्तान विजित प्रदेश मुग़लों को सौंप दे। चार वर्षों के पश्चात् खुर्रम ने न केवल अहमदनगर के सुल्तान को अपितु बीजापुर और गोलकुण्डा के सुल्तानों को भी खिराज देने के लिए विवश कर दिया। उन्होंने क्रमशः बारह, अठारह और बीस लाख रुपए वार्षिक खिराज देना स्वीकार कर लिया। यह दक्कन में जहांगीर की सफलता का उत्कर्ष था। परन्तु 1627 ई० में उसकी मृत्यु के समय दक्कन में मुग़ल स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी।

III. शाहजहां की दक्कन नीति –

(i) गोलकुण्डा के साथ शाहजहां की सन्धि-1636 ई० में शाहजहां ने गोलकुण्डा के सुल्तान को अपनी प्रभुसत्ता स्वीकार करने के लिए बाध्य कर दिया। सुल्तान को यह शर्त भी माननी पड़ी कि गोलकुण्डा के सिक्कों पर तथा खुतबे में शाहजहां के नाम के अतिरिक्त पहले चारों खलीफों के नाम भी हों। यह शर्त शाहजहां ने इसलिए रखी थी क्योंकि गोलकुण्डा का सुल्तान शिया होने के नाते केवल मुहम्मद साहिब के दामाद हज़रत अली को खलीफा मानता था। उसने 16 वर्षों के बकाया 128 लाख रुपया देना तो स्वीकार कर ही लिया, साथ में आठ लाख रुपए वार्षिक खिराज देना भी स्वीकार कर लिया। इसके बदले में मुग़ल सम्राट को गोलकुण्डा के सुल्तान की बीजापुर और मराठों से रक्षा करनी थी

(ii) बीजापुर के साथ शाहजहां की सन्धि-इसी समय मुग़ल सेना ने बीजापुर पर आक्रमण किया। बीजापुर का सुल्तान समझौते के लिए राजी हो गया। उसने मुग़ल सम्राट् की प्रभुसत्ता को स्वीकार कर लिया। उसने यह भी स्वीकार कर लिया कि वह गोलकुण्डा पर आक्रमण नहीं करेगा। उसने शाहजहां को 20 लाख रुपया देना और उसकी मध्यस्थता को भी स्वीकार कर लिया। बदले में मुग़ल सम्राट ने बीजापुर के जीते हुए कुछ प्रदेश उसे लौटा दिए। साथ में उसे अहमदनगर राज्य के कुछ नये प्रदेश भी दिए गए। इसके बाद बीस वर्षों तक मुग़ल बादशाह को बीजापुर तथा गोलकुण्डा के विरुद्ध अभियान नहीं भेजना पड़ा।

(iii) गोलकुण्डा तथा बीजापुर पर आक्रमण-1636 ई० को सन्धियों के पश्चात् गोलकुण्डा और बीजापुर के सुल्तानों ने अपनी-अपनी शक्ति और प्रदेश में वृद्धि कर ली। उन्होंने विजयनगर राज्य के प्रदेशों को हड़प कर अपने राज्य का विस्तार किया। शाहजहां ने दक्कन के तत्कालीन गवर्नर औरंगजेब को आज्ञा दी कि वह गोलकुण्डा और बीजापुर से बकाया खिराज वसूल करे। अत: औरंगज़ेब ने फरवरी 1656 ई० में गोलकुण्डा के किले को घेर लिया। औरंगजेब के डर से गोलकुण्डा का सुल्तान शाहजहां को पहले ही अपने एलची भेज चुका था। जब औरंगजेब की जीत होने वाली थी उसी समय उसे बादशाह की आज्ञा मिली कि वह गोलकुण्डा का घेरा उठा ले और वापस आ जाए। बादशाह ने गोलकुण्डा से स्वयं खिराज वसूल किया।

1656 ई० के बाद शाहजहां ने औरंगजेब को बीजापुर को विजय करने की आज्ञा दी। औरंगज़ेब ने तुरन्त ही बीदर और कल्याणी पर अधिकार कर लिया और बीजापुर पर आक्रमण कर दिया। 1657 ई० में बीजापुर के सुल्तान ने डेढ़ करोड़ रुपए देना और मांगे सभी प्रदेशों को वापस करना स्वीकार कर लिया। परन्तु तभी औरंगजेब को युद्ध बन्द कर देने और पीछे हटने का आदेश मिला। औरंगज़ेब निराश होकर 1658 ई० के आरम्भ में औरंगाबाद लौट आया। .

IV. औरंगजेब की दक्कन नीति-

औरंगज़ेब एक महत्त्वाकांक्षी सम्राट् था और वह सारे भारत पर मुग़ल पताका फहराना चाहता था। इसके अतिरिक्त उसे दक्षिण में शिया रियासतों का अस्तित्व भी पसन्द नहीं था। दक्षिण के मराठे भी काफ़ी शक्तिशाली होते जा रहे थे। वह उनकी शक्ति को कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने बीजापुर राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1686 ई० में वह इस पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को भी अपने अधीन कर लिया। परन्तु इन दो राज्यों की विजय उसकी निर्णायक सफलता नहीं थी बल्कि उसकी कठिनाइयों का आरम्भ थी। अब उसे शक्तिशाली मराठों से सीधी टक्कर लेनी पड़ी। इससे पूर्व उसने वीर मराठा सरदार शिवाजी को दबाने के अनेक प्रयत्न किए थे, परन्तु उसे कोई विशेष सफलता नहीं मिली थी। अब मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शंभू जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगज़ेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता भी एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। इसके विपरीत औरंगजेब का बहुत-सा धन और समय दक्षिण के अभियानों में व्यर्थ नष्ट हो गया। यहां तक कि 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगजेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
बाबर ने भारत का सर्वप्रथम अभियान कब किया?
उत्तर-
बाबर ने भारत का सर्वप्रथम अभियान 1519 ई० में किया।

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प्रश्न 2.
बाबर के भारत आक्रमण के समय दिल्ली का शासक कौन था ?
उत्तर-
इब्राहीम लोधी।

प्रश्न 3.
पानीपत की पहली लड़ाई किस-किस के बीच हुई?
उत्तर-
पानीपत की पहली लड़ाई बाबर एवं इब्राहीम लोधी के बीच हुई।

प्रश्न 4.
बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का गवर्नर कौन था?
उत्तर-
बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोधी था।

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प्रश्न 5.
हुमायूं की माता का क्या नाम था ?
उत्तर-
हुमायूं की माता का नाम महम बेगम था।

प्रश्न 6.
हुमायूं सिंहासन पर कब बैठा?
उत्तर-
हुमायूं 30 दिसम्बर, 1530 ई० में सिंहासन पर बैठा।

प्रश्न 7.
किस रानी ने हमायूं से बहादुरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी थी?
उत्तर-
रानी कर्णवती ने हमायूं से बहादुरशाह के विरुद्ध सहायता मांगी थी।

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प्रश्न 8.
शेर खां ने शिक्षा कहां प्राप्त की?
उत्तर-
शेर खां ने जौनपुर में शिक्षा प्राप्त की।

प्रश्न 9.
शेर खां ने कौन-कौन से ग्रन्थों का अध्ययन किया था?
उत्तर-
शेर खां ने गुलस्तां, बोस्ता, सिकन्दरनामा आदि ग्रन्थों का अध्ययन किया था।

प्रश्न 10.
फरीद को शेर खां की उपाधि किसने दी?
उत्तर-
फरीद को शेर खां की उपाधि बहार खां लोहानी ने दी।

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प्रश्न 11.
शेर खां के सम्राट् बनने की भविष्यवाणी किस मुग़ल सम्राट् ने की थी?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट् बाबर ने शेर खां के सम्राट बनने की भविष्यवाणी की थी।

प्रश्न 12.
अकबर के सिंहासनारोहण के समय दिल्ली का शासक कौन था?
उत्तर-
अकबर के सिंहासनारोहण के समय दिल्ली का शासक हेमू था।

प्रश्न 13.
बैरम खां का वध किसने किया?
उत्तर-
बैरम खां का वध मुबारक खां ने किया।

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प्रश्न 14.
अकबर ने किस निर्णायक युद्ध द्वारा दिल्ली पर अधिकार किया था ?
उत्तर-
अकबर ने पानीपत की दूसरी लड़ाई द्वारा दिल्ली पर अधिकार किया था।

प्रश्न 15.
किस राजपूत राजा ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी?
उत्तर-
राजपूत राजा राणा प्रताप ने अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।

प्रश्न 16.
शाहजहां का सिंहासनारोहण कब हुआ ?
उत्तर-
शाहजहां का सिंहासनारोहण 1627 ई० में हुआ।

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प्रश्न 17.
शाहजहां ने किस बुंदेल नेता को संधि करने पर विवश किया ?
उत्तर-
शाहजहां ने जोझार सिंह ओरछा बुंदेल नेता को संधि करने पर विवश किया।

प्रश्न 18.
शाहजहां की सबसे प्रिय पत्नी कौन-सी थी?
उत्तर-
शाहजहां की सबसे प्रिय पत्नी मुमताज महल थी।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

(i) बाबर के पिता का नाम
(ii) बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण ………………… लोधी ने दिया।
(iii) हुमायूं की मृत्यु ………………… ई० में हुई।
(iv) शेरशाह सूरी का जन्म …………. ई० में हुआ।
(v) ………………… सूर साम्राज्य का संस्थापक था।
(vi) सूर साम्राज्य का अंतिम शासक …………… था।
(vii) ‘अकबरनामा’ का लेखक ……………. था।
(viii) ……………. अकबर का संरक्षक था।
(ix) जहाँगीर का वास्तविक नाम ………………… था।
(x) गुरु …………… की शहीदी के लिए जहाँगीर उत्तरदायी था।
(xi) शाहजहाँ के बचपन का नाम ……………… था।
(xii) औरंगजेब की मृत्यु ……………… ई० में अहमदनगर में हुई।
उत्तर-
(i) उमरशेख मिर्जा
(ii) दौलत खां
(iii) 1556
(iv) 1472
(v) शेरशाह सूरी
(vi) सिकंदर सूर
(vii) अबुल फज़ल
(viii) बैरम खां
(ix) मुहम्मद सलीम
(x) अर्जन देव जी
(xi) खुर्रम
(xii) 1707.

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3. सही/गलत कथन

(i) बाबर के आक्रमण के समय उत्तरी भारत का मेवाड़ सबसे शक्तिशाली हिन्दू राज्य था। — (√)
(ii) इब्राहीम लोधी मेरठ का शासक था। — (×)
(iii) भारत में बाबर की अंतिम लड़ाई पानीपत की लड़ाई थी। — (×)
(iv) शेर खां का पिता हसन खां जमाल खां के पास नौकरी करता था। — (√)
(v) शेर खां ने हुमायूं को सूरजगढ़ के युद्ध में पराजित किया। — ()
(vi) शेरशाह का मकबरा सहसराम नामक स्थान पर स्थित है। — (√)
(vii) अकबर का सिंहासनारोहण अमरकोट में हुआ। — (×)
(viii) नूरजहाँ ने राजकुमार खुसरो का वध करवाया। — (×)
(xi) जहाँगीर के शासनकाल में सर टॉमस रो भारत आया। — (√)
(x) औरंगजेब के शासनकाल में गुरु अर्जन देव जी ने शहीदी दी। — (×)

4. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
बाबर का पिता शासक था-
(A) कन्वाहा का
(B) फरगाना का
(C) काबुल का
(D) सिंध का
उत्तर-
(B) फरगाना का

प्रश्न (ii)
बाबर के आक्रमण के समय मेवाड़ का शासक था
(A) इब्राहीम लोधी
(B) दौलत खां लोधी
(C) राणा संग्राम सिंह
(D) आधम खां लोधी।
उत्तर-
(C) राणा संग्राम सिंह

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प्रश्न (iii)
चन्देरी का युद्ध हुआ
(A) 1528 ई० में
(B) 1526 ई० में
(C) 1556 ई० में
(D) 1530 ई० में ।
उत्तर-
(A) 1528 ई० में

प्रश्न (iv)
‘तुजके बाबरी’ का लेखक है
(A) अकबर
(B) बाबर
(C) जहांगीर
(D) अबुल फज़ल ।
उत्तर-
(B) बाबर

प्रश्न (v)
हुमायूं तथा शेर खां के बीच चौसा का युद्ध हुआ
(A) 1526 ई० में
(B) 1530 ई० में
(C) 1556 ई० में।
(D) 1539 ई० में ।
उत्तर-
(D) 1539 ई० में ।

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प्रश्न (vi)
शेर खां ने हुमायूं को हराया
(A) घाघरा के युद्ध में
(B) चंदेरी के युद्ध में
(C) चौसा के युद्ध में
(D) कालिंजर के युद्ध में ।
उत्तर-
(C) चौसा के युद्ध में

प्रश्न (vii)
शेरशाह की मृत्यु हुई
(A) घाघरा के युद्ध में
(B) चंदेरी के युद्ध में
(C) चौसा के युद्ध में
(D) कालिंजर के युद्ध में ।
उत्तर-
(D) कालिंजर के युद्ध में ।

प्रश्न (viii)
राजकुमार खुसरो का वध करवाया
(A) खुर्रम ने
(B) जहांगीर ने
(C) नूरजहां ने
(D) मुहम्मद सलीम ने ।
उत्तर-
(A) खुर्रम ने

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प्रश्न (ix)
औरंगजेब अपनी निम्न नीति द्वारा मुग़ल साम्राज्य को पतन की ओर ले गया
(A) हिंदू नीति
(B) राजपूत नीति
(C) दक्षिण नीति
(D) उपरोक्त सभी ।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी ।

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मुग़ल साम्राज्य के इतिहास के लिए चार प्रकार के स्त्रोतों के नाम बताएं।
उत्तर-
ऐतिहासिक स्त्रोत (अकबरनामा आदि), भवन, विदेशी यात्रियों के विवरण तथा मुग़लकालीन सिक्के मुग़ल इतिहास की जानकारी कराते हैं।

प्रश्न 2.
भारत में मुगल शासक अपने आपको किसका उत्तराधिकारी समझते थे और उसकी राजधानी कौनसी थी ?
उत्तर-
भारत के मुग़ल शासक अपने आपको तैमूर का उत्तराधिकारी मानते थे। उसकी राजधानी समरकन्द थी।

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प्रश्न 3.
बाबर के पिता का क्या नाम था और वह किस रियासत का शासक था ?
उत्तर-
बाबर के पिता का नाम उमरशेख मिर्जा था। वह फरगाना का शासक था।

प्रश्न 4.
उज़बेक कौन थे तथा उनके नेता का नाम बताएं।
उत्तर-
उज़बेक एक.प्रकार की जाति थी जो तैमूर के उत्तराधिकारियों से लड़ते रहते थे। उनका नेता शैबानी खां था।

प्रश्न 5.
शैबानी खां को ईरान के किस राजवंश के कौन-से शासक ने कब हराया ?
उत्तर-
शैबानी खां को ईरान के सफवी राजवंश के संस्थापक शाह इस्माइल ने 1510 में हराया।

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प्रश्न 6.
बाबर ने काबुल किस वर्ष जीता और समरकन्द पर उसने तीसरी बार किस वर्ष में अधिकार किया ?
उत्तर-
बाबर ने काबुल 1504 में जीता और समरकन्द पर उसने तीसरी बार 1511 में अधिकार किया।

प्रश्न 7.
बाबर को कौन-से वर्ष में बारूद के प्रयोग की सम्भवानाओं का पता चला और उसने अपने तोपखाने के लिए किसे नियुक्त किया ?
उत्तर-
बाबर को 1514 में बारूद के प्रयोग की सम्भावनाओं का पता चला और उसने तोपखाने के लिए अली नामक एक अनुभवी उस्ताद को नियुक्त किया।

प्रश्न 8.
16वीं सदी के आरम्भ में उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्यों के नाम बताएं।
उत्तर-
16वीं सदी के आरम्भ में उत्तर भारत के चार प्रमुख राज्य-दिल्ली, लाहौर, मेवाड़ तथा बंगाल थे।

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प्रश्न 9.
इब्राहीम लोधी के विरोधी दो लोधी सरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
इब्राहीम लोधी के विरोधी दो लोधी सरदारों में से एक दौलत खां लोधी और दूसरा आलम खां लोधी था।

प्रश्न 10.
इब्राहीम लोधी के साथ बाबर का युद्ध कहां और कब हुआ ?
उत्तर-
इब्राहीम लोधी के साथ बाबर का युद्ध पानीपत में 1526 ई० में हुआ।

प्रश्न 11.
इब्राहीम लोधी के विरुद्ध बाबर की विजय के दो मुख्य कारण बताएं।
उत्तर-
बाबर की विजय का मुख्य कारण उत्तम युद्धनीति तथा सामरिक चालों के साथ तोपखाने का प्रयोग था।

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प्रश्न 12.
बाबर के समय राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य कौन-सा था और उसके शासक का नाम क्या था.?
उत्तर-
बाबर के समय राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य मेवाड़ था। उसके शासक का नाम राणा संग्राम सिंह था।

प्रश्न 13.
राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले दो अफ़गान सरदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
राणा सांगा के साथ गठजोड़ करने वाले दो अफ़गान सरदार महमूद लोधी और हसन खां थे।

प्रश्न 14.
बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध कहां और कौन-से वर्ष में हुआ ?
उत्तर-
बाबर और राणा सांगा के बीच युद्ध 1527 ई० में फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ के स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 15.
बाबर ने महमूद लोधी से युद्ध कहां और कौन-से वर्ष में किया ?
उत्तर-
बाबर ने महमूद लोधी से मई 1529 ई० में घाघरा-गंगा संगम के निकट युद्ध किया।

प्रश्न 16.
बाबर ने पंजाब पर किस वर्ष में अधिकार किया और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
बाबर ने पंजाब पर 1524 ई० में अधिकार किया। उसकी मृत्यु 1530 ई० में हुई।

प्रश्न 17.
बाबर के चार बेटों के नाम बताएं।
उत्तर-
बाबर के चार बेटे हुमायूं, कामरान, अस्करी तथा हिन्दाल थे।

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प्रश्न 18.
हुमायूं ने कौन-से चार प्रदेश अपने भाइयों को सौंप दिए ?
उत्तर-
हुमायूं ने अपने भाइयों को-पंजाब, काबुल, सम्भल और मेवात के प्रदेश दिए।

प्रश्न 19.
हुमायूं के कौन-से दो रिश्तेदारों ने उसके विरुद्ध विद्रोह किया ?
उत्तर-
हुमायूं के दो रिश्तेदारों मिर्जा मुहम्मद जमां और मिर्ज़ा मुहम्मद सुल्तान ने उसके विरुद्ध विद्रोह किया।

प्रश्न 20.
हुमायूं ने गुजरात किस सुल्तान से जीता था और वहां का सूबेदार किसको नियुक्त किया ?
उत्तर-
हुमायूं ने गुजरात सुल्तान बहादुरशाह से जीता। उसने अपने भाई अस्करी को वहां का सूबेदार नियुक्त किया।

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प्रश्न 21.
गुजरात के दो प्रधान नगरों के नाम बताओ।
उत्तर-
गुजरात के दो प्रधान नगर-चम्पानेर और अहमदाबाद थे।

प्रश्न 22.
पूर्व तथा पश्चिम में हुमायूं के दो प्रमुख प्रतिद्वन्द्वियों ने नाम बताएं।
उत्तर-
पूर्व में शेरखां और पश्चिम में बहादुरशाह हुमायूं के प्रमुख प्रतिद्वन्द्वी थे।

प्रश्न 23.
शेरखां किस कबीले से था और उसने आरम्भ में किस प्रदेश में अपनी शक्ति को संगठित किया ?
उत्तर-
शेरखां पठान कबीले से था। उसने दक्षिण बिहार में अपनी शक्ति को संगठित किया।

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प्रश्न 24.
शेरशाह ने किन वर्षों में बंगाल के शासक को दो बार हराया ?
उत्तर-
उसने बंगाल के शासक को पहले 1534 ई० में और फिर 1536 ई० में पराजित किया।

प्रश्न 25.
हुमायूं ने बंगाल के रास्ते में किस किले पर घेरा डाला और यह किसके अधिकार में था ?
उत्तर-
हुमायूं ने बंगाल के रास्ते चुनार के किले पर घेरा डाला। यह किला शेरखां के पुत्र कुतुब खां के अधिकार में था।

प्रश्न 26.
हुमायूं तथा शेरखां के बीच दो निर्णायक युद्ध किन स्थानों पर तथा कब हुए ?
उत्तर-
हुमायूं तथा शेरखां के बीच पहला युद्ध चौसा के स्थान पर जून 1539 ई० में और दूसरा युद्ध कन्नौज में मई 1540 ई० में हुआ।

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प्रश्न 27.
शेरखां ने शेरशाह की उपाधि कब धारण की और उसकी मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
चौसा के युद्ध के बाद शेरखां ने शेरशाह की उपाधि धारण की। उसकी मृत्यु 22 मई, 1545 ई० को हुई।

प्रश्न 28.
हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह ने कौन-सी चार विजयें प्राप्त की ?
उत्तर-
हुमायूं को हराने के बाद शेरशाह ने पंजाब, मालवा, रायसिन तथा रणथम्भौर के प्रदेशों पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 29.
शेरशाह ने आवागमन की सुविधा के लिए कौन-से दो कार्य किए ?
उत्तर-
शेरशाह ने आवागमन की सुविधा के लिए सड़कें बनवाईं और उनके साथ-साथ थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सरायें बनवाईं।

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प्रश्न 30.
शेरशाह के लगान प्रबन्ध से किन्हें लाभ हुआ ?
उत्तर-
शेरशाह के लगान प्रबन्ध से राज्य तथा कृषकों को लाभ हुआ।

प्रश्न 31.
शेरशाह के बाद राज करने वाले चार सूर सुल्तानों के नाम बताएं।
उत्तर-
शेरशाह के बाद इस्लाम शाह, फिरोज, मुहम्मद आदिलशाह तथा सिकन्दर शाह सूर सुल्तान बने।

प्रश्न 32.
शेरशाह द्वारा स्थापित राज्य किन पांच भागों में बंट गया तथा इनके शासक कौन थे ?
उत्तर-
ये पांच भाग थे-पूर्वी उत्तर प्रदेश तथा बिहार, बंगाल, मालवा, दिल्ली तथा आगरा और पंजाब। इनके शासक क्रमशः आदिलशाह सूर, मुहम्मद शाह, बाज़बहादुर, इब्राहीम शाह सूर तथा सिकन्दरशाह सूर थे।

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प्रश्न 33.
शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं को किस देश के कौन-से शासक से सहायता मिली ?
उत्तर-
शेरशाह से हारने के बाद हुमायूं को ईरान के शाह ताहमस्प की सहायता मिली।

प्रश्न 34.
हुमायूं ने फिर से पंजाब कब जीता और उसकी मुत्यु कब हुई ?
उत्तर-
हुमायूं ने 1555 ई० में फिर से पंजाब जीता। उसकी 1556 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 35.
अकबर का राज्याभिषेक कहां हुआ तथा उस समय उसकी आयु क्या थी ?
उत्तर-
अकबर का राज्याभिषेक कलानौर में हुआ। उस समय उसकी आयु 13 वर्ष थी।

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प्रश्न 36.
अकबर के अभिभावक का नाम बताएं तथा कौन-से वर्षों में उसका प्रभाव रहा ?
उत्तर-
अकबर के अभिभावक का नाम बैरम खां था। उसका प्रभाव 1556 ई० से 1560 ई० तक रहा।

प्रश्न 37.
पानीपत का दूसरा युद्ध किस वर्ष में हुआ तथा इसमें अफ़गान सेनाओं का सेनापति कौन था ?
उत्तर-
पानीपत का दूसरा युद्ध 1556 ई० में हुआ। इस युद्ध में अफ़गान सेनाओं का नेतृत्व हेमू ने किया।

प्रश्न 38.
अकबर ने अपने राज्यकाल के आरम्भिक वर्षों में किन दो शक्तिशाली अमीरों से और कब छुटकारा प्राप्त किया ?
उत्तर-
अकबर ने आरम्भिक वर्षों में बैरम खां तथा आधम खां नामक अमीरों से क्रमशः 1560 ई० तथा 1562 ई० में छुटकारा प्राप्त किया।

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प्रश्न 39.
अकबर के सौतेले भाई का क्या नाम था और वह किस प्रदेश का शासक था ?
उत्तर-
अकबर के सौतेले भाई का नाम मिर्जा हकीम था। वह काबुल का शासक था।

प्रश्न 40.
1560 ई० से 1570 ई० के बीच अकबर ने किन चार राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाया ?
उत्तर-
इस अवधि के दौरान अकबर ने मालवा, मारवाड़, मेड़ता तथा गढ़-कटंगा आदि प्रदेशों को अपने साम्राज्य में मिलाया।

प्रश्न 41.
अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाली चार राजपूत रियासतों के नाम बताएं।
उत्तर-
अकबर की अधीनता स्वीकार करने वाली चार राजपूत रियासतें थीं : जयपुर, कालिन्जर, बीकानेर तथा रणथम्भौर।

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प्रश्न 42.
अकबर ने गुजरात, बंगाल तथा उड़ीसा की विजयें कब प्राप्त की ?
उत्तर-
अकबर ने गुजरात को 1572-73, बंगाल को 1574-76 तथा उड़ीसा को 1591 ई० में विजय किया।

प्रश्न 43.
अकबर ने काबुल, कश्मीर, सिन्ध तथा बिलोचिस्तान की विजयें कौन-से वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
अकबर ने काबुल को 1581 ई०, कश्मीर को 1585 ई०, सिन्ध को 1591 ई० तथा बलुचिस्तान को 1595 ई० में विजय किया।

प्रश्न 44.
अकबर ने दक्षिण की कौन-सी चार सल्तनतों की ओर अपने वकील भेजे ?
उत्तर-
अकबर ने खानदेश, अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा में अपने वकील भेजे।

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प्रश्न 45.
सबसे पहले अकबर की अधीनता मानने वाला दक्षिण के किस राज्य का शासक था तथा उसका नाम क्या था ?
उत्तर-
सबसे पहले दक्षिण के खानदेश राज्य के शासक ने अकबर की अधीनता स्वीकार की। उसका नाम राजा अली खां था।

प्रश्न 46.
खानदेश की राजधानी कौन-सी थी और इसके किस महत्त्वपूर्ण किले पर अकबर ने अधिकार किया ?
उत्तर-
खानदेश की राजधानी बुरहानपुर थी। अकबर ने इसके असीरगढ़ नामक किले पर अधिकार किया।

प्रश्न 47.
अकबर ने किन वर्षों में बरार, दौलताबाद, अहमदनगर तथा खानदेश को जीत लिया ?
उत्तर-
अकबर ने बरार को 1596 ई०, दौलताबाद को 1599 ई०, अहमदनगर को 1600 ई० तथा खानदेश को 1601 ई० में जीता।

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प्रश्न 48.
दक्कन में अकबर ने कौन-से दो प्रान्त बनाए ?
उत्तर-
अकबर ने वहां खानदेश तथा बरार नाम के दो प्रान्त बनाए।

प्रश्न 49.
जहांगीर का आरम्भिक नाम क्या था तथा वह कब गद्दी पर बैठा ?
उत्तर-
जहांगीर का आरम्भिक नाम सलीम था। वह 1605 ई० में गद्दी पर बैठा।

प्रश्न 50.
जहांगीर ने नूरजहां से कब विवाह किया तथा उसका आरम्भिक नाम क्या था ?
उत्तर-
जहांगीर ने नूरजहां से 1611 ई० में विवाह किया। उसका आरम्भिक नाम मेहरुन्निसा था।

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प्रश्न 51.
नूरजहां के पिता और भाई के नाम बताएं ।
उत्तर-
नूरजहां के पिता का नाम ग्यासबेग तथा भाई का नाम आसफ खां था।

प्रश्न 52.
मेवाड़ के किस शासक ने और कब जहांगीर की अधीनता स्वीकार की ?
उत्तर-
मेवाड़ के राणा अमरसिंह ने 1615 ई० में जहांगीर की अधीनता स्वीकार की।

प्रश्न 53.
जहांगीर ने कांगड़ा का किला कब जीता और वहां कौन-सा अधिकारी नियुक्त किया ?
उत्तर-
जहांगीर ने कांगड़ा का किला 1620 ई० में जीता। उसने वहां अपना फौजदार नियुक्त किया।

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प्रश्न 54.
जहांगीर के समय कन्धार मुग़लों से कब छिन गया तथा इस पर किसने अधिकार किया ?
उत्तर-
जहांगीर के समय कन्धार 1622 ई० में छिन गया। इस पर ईरान के शाह अब्बास ने अधिकार किया।

प्रश्न 55.
जहांगीर के समय दक्कन की किन सल्तनतों ने मुग़ल साम्राज्य को खिराज देना स्वीकार कर लिया ?
उत्तर-
जहांगीर के समय अहमदनगर, बीजापुर और गोलकुण्डा की सल्तनतों ने मुग़ल साम्राज्य को खिराज देना स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 56.
अहमदनगर कौन-से बादशाह के समय और कब मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया ?
उत्तर-
अहमदनगर को शाहजहां के समय 1633 ई० में मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया गया।

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प्रश्न 57.
गोलकुण्डा का सुल्तान इस्लाम के किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित था तथा वह किसको पहला खलीफा मानता था ?
उत्तर-
गोलकुण्डा का सुल्तान इस्लाम के शिया सम्प्रदाय से सम्बन्धित था। वह मुहम्मद साहिब के दामाद हज़रत अली को पहला खलीफा मानता था।

प्रश्न 58.
शाहजहां ने कन्धार पर फिर से अधिकार कब किया गया तथा उस समय कन्धार का गवर्नर कौन था ?
उत्तर-
शाहजहां ने 1638 ई० में कन्धार पर फिर से अधिकार कर लिया गया। उस समय कन्धार का गवर्नर अली मर्दान खां था।

प्रश्न 59.
कन्धार मुगलों से हमेशा के लिए कब छिन गया और इस पर किस देश का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
कन्धार मुग़लों से 1649 ई० में छिन गया। इस पर ईरान का अधिकार स्थापित हो गया।

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प्रश्न 60.
शाहजहां ने मध्य एशिया की विजय के लिए कौन-से शहजादों को और किन वर्षों में भेजा ?
उत्तर-
शाहजहां ने मध्य एशिया की विजय के लिए मुराद को 1644 ई० और औरंगज़ेब को 1647 ई० में भेजा।

प्रश्न 61.
शाहजहां के चार पुत्रों के नाम बताएं।
उत्तर-
शाहजहां के चार पुत्रों के नाम दारा, शुजा, मुराद और औरंगजेब थे।

प्रश्न 62.
उत्तराधिकार के युद्ध कब हुए और औरंगजेब ने दारा को किन दो लड़ाइयों में हराया ?
उत्तर-
उत्तराधिकार के युद्ध अप्रैल तथा मई, 1658 ई० में हुए। औरंगजेब ने दारा को धरमत तथा सामूगढ़ की लड़ाइयों में हराया।

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प्रश्न 63.
शाहजहां का राज्य किस वर्ष जाता रहा और वह कब तक जीवित रहा ?
उत्तर-
शाहजहां का राज्य जून, 1658 ई० में जाता रहा। वह 1666 ई० तक जीवित रहा।

प्रश्न 64.
यूसुफजई पठानों ने किस वर्ष में तथा किन इलाकों में मुगलों के विरुद्ध सिर उठाया ?
उत्तर-
यूसुफजई पठानों ने 1667 ई० में पेशावर, अटक और हज़ारा नामक इलाकों में मुग़लों के विरुद्ध सिर उठाया।

प्रश्न 65.
अफरीदियों ने किस वर्ष मुगलों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की तथा इन्हें किस कवि का समर्थन प्राप्त था ?
उत्तर-
अफरीदियों ने 1672 ई० में मुग़लों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की। इन्हें कवि खुशाल खां का समर्थन प्राप्त था।

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प्रश्न 66.
मारवाड़ की राजधानी कौन-सी थी और इसका राजा कौन था एवं उसकी मृत्यु किस वर्ष हुई ?
उत्तर-
मारवाड़ की राजधानी जोधपुर थी। इसका राजा जसवन्त सिंह था जिसकी मृत्यु 1678 ई० में हुई।

प्रश्न 67.
शहजादा अकबर ने औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह कब किया तथा उसे कौन-सी दो राजपूत रियासतों का समर्थन मिला ?
उत्तर-
शहजादा अकबर ने 1681 ई० में मेवाड़ और मारवाड़ के समर्थन से औरंगजेब के विरुद्ध विद्रोह किया।

प्रश्न 68.
औरंगजेब दक्कन में किस वर्ष से किस वर्ष तक रहा ?
उत्तर-
औरंगज़ेब दक्कन में 1682 ई० से 1707 ई० तक रहा।

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प्रश्न 69.
औरंगजेब ने बीजापुर कब जीता और उस समय उसका सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
औरंगजेब ने 1686 ई० में बीजापुर को जीता। उस समय इसका सुल्तान सिकन्दर आदिलशाह था।

प्रश्न 70.
औरंगजेब ने गोलकुण्डा कब जीता और उस समय उसका सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
औरंगज़ेब ने 1687 ई० में गोलकुण्डा को जीता। उस समय इसका सुल्तान अबुल हसन था।

प्रश्न 71.
मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारणों की जड़ क्या थी ?
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य के पतन के कारणों की जड़ औरंगजेब की दक्षिण नीति थी।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर तथा लोधी अफ़गानों के बीच संघर्ष के बारे में बताएं।
उत्तर-
बाबर और लोधी अफ़गानों के बीच पांच वर्ष तक संघर्ष चला। सर्वप्रथम बाबर ने सिकन्दर लोधी को 1525 ई० में पंजाब में पराजित किया। तत्पश्चात् उसने इब्राहीम लोधी के साथ पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में 1526 ई० में टक्कर ली। इब्राहीम लोधी अपने कई हजार सैनिकों के साथ मारा गया। युद्ध में बाबर ने श्रेष्ठ युद्ध नीति का प्रदर्शन किया। इसके अतिरिक्त उसके तोपखाने ने भी शत्रुओं का साहस तोड़ दिया। बाबर ने शीघ्र ही दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया। उसने लोधी अफ़गानों को अपने प्रदेश से निकालना आरम्भ किया। अतः उन्होंने राणा संग्राम सिंह से सहायता मांगी। कनवाहा की लड़ाई (1527 ई०) में उन्होंने राणा सांगा का साथ दिया। इस युद्ध में बाबर की ही विजय हुई। 1529 ई० में अफगानों ने घाघरागंगा-संगम के निकट बाबर से युद्ध किया। इस बार भी बाबर विजयी रहा। इस तरह बाबर अफ़गानों की शक्ति कुचलने में सफल रहा।

प्रश्न 2.
बाबर तथा राणा सांगा के बीच युद्ध के बारे में बताएं।
उत्तर-
बाबर तथा राणा सांगा के बीच 1527 ई० में युद्ध हुआ। पानीपत की विजय के पश्चात् बाबर ने भारत में रहने का निश्चय किया। यह बात मेवाड़ के शासक राणा सांगा की महत्त्वाकांक्षाओं के मार्ग में बाधा थी। मेवाड़ राजस्थान का सबसे शक्तिशाली राज्य था। इसी बीच बाबर ने सुल्तान इब्राहीम लोधी के इलाकों से अफ़गानों को निकालना आरम्भ कर दिया। तंग आकर कुछ अफ़गान सरदारों ने राणा सांगा से सहायता मांगी। वह तुरन्त उनकी सहायता करने के लिए तैयार हो गया। मार्च 1527 ई० में राणा सांगा ने आगरा की ओर कूच किया। बाबर अपनी सेना को लेकर फतेहपुर सीकरी के निकट खनुआ आ पहुंचा। दोनों पक्षों में दस घण्टे तक युद्ध हुआ। बाबर को निर्णायक विजय प्राप्त हुई। राणा सांगा की प्रतिष्ठा को बड़ा आघात पहुंचा और एक वर्ष के भीतर ही उसकी मृत्यु हो गई। भारत में बाबर के लिए विजय द्वार खुल गए।

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प्रश्न 3.
हुमायूं तथा बहादुरशाह के बीच संघर्ष के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुजरात के शासक बहादुरशाह के साथ हुमायूं के सम्बन्ध आरम्भ से ही शत्रुतापूर्ण थे। बहादुरशाह उन अफ़गानों को आश्रय दे रहा था जिन पर मुग़ल साम्राज्य के प्रति विद्रोह का आरोप था। वह दिल्ली पर अधिकार करने का भी आकांक्षी था। हुमायूं पहले तो शान्त रहा, परन्तु जब बहादुरशाह सभी युद्धों से निपट चुका, तब हुमायूं ने उस पर आक्रमण किया। उसने बहादुरशाह की सेना को मन्दसौर के स्थान पर घेरा। बहादुरशाह अपने पांच साथियों सहित शिविर बन्द करके भाग निकला। हुमायूं ने उसका मांडू तथा चम्पानेर तक पीछा किया। बहादुरशाह खम्बात की ओर भागने को विवश हो गया। हुमायूं वापिस लौट आया और उसने चम्पानेर पर अधिकार कर लिया। यहां हुमायूं ने फिर भूल की। वह विजित प्रदेशों का प्रबन्ध किए बिना ही आगरा लौट आया। परिणामस्वरूप उसके जाते ही शत्रुओं ने अपने आपको स्वतन्त्र घोषित कर दिया।

प्रश्न 4.
हुमायूं तथा शेरशाह सूरी के बीच संघर्ष के बारे में बताएं। .
उत्तर-
शेर खां भारत के पूर्वी प्रदेशों में अपनी शक्ति बढ़ा रहा था। 1531 ई० में हुमायूं शेर खां के विरुद्ध बढ़ा। परन्तु उसने पहले मार्ग में स्थित चुनार के किले को जीतना उचित समझा। इस अवसर का लाभ उठाकर शेर खां ने अपनी शक्ति दृढ़ कर ली। उधर उसके सैनिकों ने हुमायूं को मार्ग में तेहरिया गढ़ी के स्थान पर रोक दिया और उसे बंगाल की राजधानी गौड़ की ओर न बढ़ने दिया। इसी बीच शेर खां ने गौड़ का कोष और अफ़गान परिवार रोहतासगढ़ भेज दिए। इसके बाद ही हुमायूं गौड़ को जीत सका। यहां वह रंगरलियों में डूब गया। हुमायूं जब वापिस चला तो चौसा के स्थान पर दोनों पक्षों में पुनः युद्ध हुआ, जिसमें हुमायूं बुरी तरह पराजित हुआ। शेर खां हुमायूं का पीछा करता हुआ कन्नौज तक बढ़ आया। हुमायूं के लिए यह संकट की घड़ी थी। उसने 1000 सैनिक इकट्ठे किए और एक बार फिर कन्नौज की ओर बढ़ा। दोनों पक्षों में युद्ध हुआ। चौसा की भान्ति यहां भी हुमायूं पराजित हुआ।

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प्रश्न 5.
शेरशाह किन कार्यों के लिए प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
शेरशाह सूरी ने 1540 ई० से 1545 ई० तक शासन किया। उसने मुग़ल राज्य (1540), मालवा (1542), मारवाड़ (1543) तथा रोहतासगढ़ तक के प्रदेश को विजय किया। इन महत्त्वपूर्ण विजयों के अतिरिक्त शेरशाह कई अन्य कार्यों के लिए भी प्रसिद्ध है। उसने अनेक सड़कें बनवाईं और सड़कों के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर सराएं बनवाईं। उसके द्वारा बनवाई गई सबसे लम्बी सड़क शाही सड़क (जी० टी० रोड) थी जो बंगाल से सिन्ध नदी तक जाती थी। सड़कों के कारण सेनाओं, व्यापारियों तथा जनसाधारण को लाभ पहुंचा। शेरशाह सूरी ने अपने राज्य में शान्ति स्थापित की तथा एक उत्तम प्रकार की लगान व्यवस्था आरम्भ की। इस लगान व्यवस्था से राज्य तथा कृषकों को बड़ा लाभ पहुंचा। सच तो यह है कि शेरशाह एक सफल विजेता तथा उच्चकोटि का प्रबन्धक था।

प्रश्न 6.
पानीपत की पहली लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ई० में हुई। इस लड़ाई के परिणामस्वरूप भारत में सुल्तानों के राज्य का अन्त हुआ और मुगल वंश की स्थापना हुई। इस लड़ाई के कई कारण थे। मध्य-एशिया के युद्धों में बाबर को असफलता का मुंह देखना पड़ा था। फरगाना का राज्य भी उससे छिन गया था। भारत में दिल्ली सल्तनत बहुत कमजोर हो चुकी थी। इसी समय दौलत खां लोधी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण दिया। इस प्रकार परिस्थितियां बाबर के लिए अनुकूल थीं। उसने इनका लाभ उठाया और अपनी सेनाओं सहित भारत आ पहुंचा। पानीपत के निकट आकर उसने बड़े अच्छे ढंग से मोर्चाबन्दी की और युद्ध की तैयारी करने लगा। 21 अप्रैल, 1526 ई० की प्रातः बाबर और इब्राहीम लोधी की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। इब्राहीम लोधी बाबर जैसा योग्य सेनापति नहीं था। अतः वह युद्ध में हार गया और मारा गया। युद्ध में विजय पाने के बाद बाबर ने दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 7.
बैरम खां के अधीन मुगल साम्राज्य का स्थिरीकरण किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-
बैरम खां अकबर का संरक्षक था। उसी ने 1556 ई० में अकबर को कलानौर में हुमायूं का उत्तराधिकारी घोषित किया। इसीलिए शासन के आरम्भिक चार वर्षों में (1556 ई० से 1560 ई० तक) बैरम खां का मुग़ल दरबार में अत्यधिक प्रभाव रहा। हुमायूं की मृत्यु के शीघ्र बाद ही हेमू ने मुगल सेनापति तारदी बेग को पराजित कर दिया था। बैरम खां ने तारदी बेग की पराजय के कारण उसका वध करवा दिया। इसके बाद उसने अकबर को दिल्ली जाने का परामर्श दिया। 1556 ई० में पानीपत के मैदान में हेमू और मुग़ल सेनाओं में जम कर लड़ाई हुई। हेमू पराजित हुआ। इसी बीच उसके स्वामी आदिल शाह को बंगाल के खिज्र खां ने मार डाला। बैरम खां के प्रयत्नों के कारण सिकन्दर सूर ने आत्मसमर्पण कर दिया तथा बिहार में जागीर स्वीकार कर ली। बैरम खां ने ग्वालियर को भी जीता। इस प्रकार 1560 ई० तक बैरम खां ने काबुल से जौनपुर और पंजाब की पहाड़ियों से लेकर अजमेर तक फैले अकबर के राज्य को स्थिरता प्रदान की।

प्रश्न 8.
आपके विचार में भारत के मुसलमान शासकों में शेरशाह सूरी का क्या स्थान है ?
उत्तर-
शेरशाह सूरी को भारत के मुसलमान शासकों में एक बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त है। एक साधारण जागीरदार के पुत्र की स्थिति से उठकर वह भारत का सम्राट बना। इस प्रकार उसने अपनी योग्यता, बल और उच्च कोटि के नेतृत्व का परिचय दिया। उसने केवल पांच वर्ष ही राज्य किया। इस थोड़े से समय में ही उसने शान्ति, सुरक्षा और सुव्यवस्था स्थापित करके देश को सुदृढ़ बनाया। वह प्रजा का हितैषी था। उसने अनुभव किया कि हिन्दू जनता का सहयोग प्राप्त किए बिना कोई भी राज्य स्थायी नहीं रह सकता। इसलिए उसने धार्मिक कट्टरता से मुक्त होकर हिन्दुओं के प्रति उदारता और सहनशीलता की नीति अपनाई। इस प्रकार शेरशाह ने अपने शासन सम्बन्धी सुधारों और धार्मिक उदारता की नीति से सम्राट अकबर के महान कार्य के लिए उचित वातावरण तैयार किया। यदि उसे राष्ट्र-निर्माता भी कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी।

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प्रश्न 9.
“शेरशाह सूरी अकबर का अग्रणी था” सिद्ध करो।
उत्तर-
निम्नलिखित चार बातों से यह स्पष्ट हो जाएगा कि शेरशाह सूरी अकबर का अग्रणी था :-
1. उच्च राजकीय आदर्श-शेरशाह सूरी कभी भी अपना समय नष्ट नहीं करता था। जनता की भलाई के लिए वह कठोर परिश्रम करता था। अकबर शेरशाह द्वारा दिखाई गई इसी राह पर चला।

2. प्रशासनिक विभाजन-शेरशाह ने शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए राज्य को ‘सरकारों’ तथा ‘परगनों’ में बांटा हुआ था। अकबर ने भी शेरशाह के समय की प्रशासकीय इकाइयों तथा नागरिक संस्थाओं को उनके नाम बदलकर अपनाया।

3. प्रजा-हितार्थ कार्य-शेरशाह ने अपने राज्य में सड़कें बनवाईं और सड़कों के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगवाए। यात्रियों की सुविधा के लिए उसने सराएं बनवाईं। अकबर ने भी राज्य में सड़कों का जाल बिछाया। उसने अनेक सरायें बनवाईं, अस्पताल खुलवाए और कुएं खुदवाए।

4. धार्मिक सहनशीलता-शेरशाह पहला मुस्लिम शासक था जिसने हिन्दुओं के प्रति उदारता दिखाई। अकबर ने भी इसी उदारता की नीति को अपनाया।

प्रश्न 10.
“अकबर एक राष्ट्रीय शासक था।” क्यों ?
उत्तर-
अकबर पहला मुस्लिम सम्राट् था जिसने किसी धर्म या सम्प्रदाय को उन्नत करने की बजाए राष्ट्रीय हितों को बढ़ावा दिया। उसने समस्त उत्तरी भारत को विजय करके एक सूत्र में बांधा। उसने समस्त राज्य में समान कानून तथा शासनप्रणाली लागू की। पहली बार हिन्दू-जनता को मुसलमानों के समान धार्मिक स्वतन्त्रता प्राप्त हुई। जज़िया समाप्त कर दिया गया। मुग़ल सम्राट अकबर ने न केवल राजपूत राजकुमारियों से विवाह ही किया बल्कि उन्हें पूरी तरह हिन्दू परम्पराओं के अनुसार पूजा-पाठ करने की अनुमति भी दे रखी थी। दीन-ए-इलाही अकबर की धार्मिक सहनशीलता की चरम सीमा थी। उसने यह धर्म हिन्दू तथा मुसलमानों में एकता स्थापित करने के लिए आरम्भ किया था। इन सभी कार्यों द्वारा अकबर देश में राष्ट्रीय राज्य स्थापित करने में सफल हुआ।

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प्रश्न 11.
अकबर की धार्मिक नीति के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
अकबर आरम्भ में परम्परावादी मुसलमान था परन्तु धीरे-धीरे उसके धार्मिक विचारों में उदारता आने लगी। उसने तीर्थ-कर और जजिया कर हटा दिये। उसने फतेहपुर सीकरी में इबादतखाना बनवाया जहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों के लोग धार्मिक विषय पर चर्चा करते थे। इन सभी विचारों के सम्मिश्रण से अकबर ने एक नवीन धर्म का प्रारम्भ किया जिसे दीन ए-इलाही का नाम दिया जाता है। अकबर ने इस धर्म में अच्छे-अच्छे सिद्धान्तों का संग्रह किया। इसके अतिरिक्त अकबर ने राजपूत राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। सभी हिन्दू रानियों को हिन्दू परम्पराओं के अनुसार पूजा-पाठ करने की स्वतन्त्रता प्राप्त थी। अकबर ने नौकरियों के द्वार सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से खोल रखे थे। इस प्रकार मुस्लिम युग में पहली बार किसी मुसलमान शासक के अधीन धार्मिक सहनशीलता का वातावरण अस्तित्व में आया।

प्रश्न 12.
दीन-ए-इलाही से आप क्या समझते हैं ? उसके मुख्य सिद्धान्तों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
दीन-ए-इलाही अकबर की धार्मिक भावनाओं के विकास की चरम सीमा थी। उसने इबादतखाने में हुए वादविवादों से यह निष्कर्ष निकाला कि सभी धर्म मूल रूप से एक हैं। इस बात से प्रेरणा लेकर उसने 1582 ई० में दीन-ए-इलाही धर्म प्रचलित किया। उसने इसमें सभी धर्मों के मौलिक सिद्धान्तों का समावेश किया। देवी-देवताओं तथा पीर-पैगम्बरों का इस नए धर्म में कोई स्थान न था। इसके अनुसार ईश्वर एक है और अकबर उसका सबसे बड़ा पुजारी है। इस धर्म के अनुयायियों के लिए मांस खाने की मनाही थी। इसके मानने वाले “अल्लाह-हु-अकबर” कहकर एक-दूसरे का स्वागत करते थे। वे . सम्राट के लिए अपना सब कुछ न्योछावर करने के लिए भी तैयार रहते थे। परन्तु दीन-ए-इलाही अधिक लोकप्रिय न हो सका। अकबर ने इसके प्रचार के लिए भी कोई विशेष पग न उठाया। परिणामस्वरूप अकबर की मृत्यु के साथ ही इस धर्म का अन्त हो गया।

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प्रश्न 13.
अकबर की राजपूतों के प्रति नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
अकबर की राजपूत नीति उसकी राजनीतिक बुद्धिमता का प्रमाण थी। वह जानता था कि राजपूतों के सहयोग के बिना वह राष्ट्रीय शासक नहीं बन सकता। अतः उसने राजपूतों के प्रति मित्रता और सहनशीलता की नीति अपनाई। उसने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किए, राजपूतों को उच्च पदों पर नियुक्त किया और उनको धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की। उसने अम्बर (जयपुर) के राजा बिहारीमल, बीकानेर तथा जैसलमेर के राजपूत राजाओं से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए। भगवान् दास, मानसिंह, उदय सिंह आदि राजपूत अकबर के समय के उच्च सैनिक अधिकारी थे। उसने न तो राजपूतों के पवित्र मन्दिरों को तोड़ा और न ही अपने किसी युद्ध को जिहाद (धर्मयुद्ध) का नाम दिया। अकबर की राजपूत नीति का यह परिणाम हुआ कि राजपूत अकबर के मित्र बन गए। इस हिन्दू-मुस्लिम सहयोग के कारण ही अकबर आगे चलकर राष्ट्र-निर्माण के उद्देश्य में सफल हो सका।

प्रश्न 14.
एक शासक के रूप में जहांगीर के प्रमुख कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
जहांगीर अपने पिता अकबर की मृत्यु के बाद 1605 ई० में मुग़ल सम्राट् बना। उसने मेवाड़ के साथ चले आ रहे लगभग 40 वर्षों के संघर्ष को समाप्त किया। उसने बंगाल में शान्ति स्थापित करने में भी सफलता प्राप्त की। 1622 ई० में उसका स्वास्थ्य गिर जाने के कारण राजनीति की बागडोर उसकी पत्नी नूरजहां के हाथ आ गई जिसके साथ उसने 1611 ई० में विवाह किया था। जहांगीर को अपने दूसरे पुत्र खुर्रम (शाहजहां) के विद्रोह के कारण कन्धार का किला भी खोना पड़ा। तत्पश्चात् उसे अपने एक सरदार महावत खां के विद्रोह में उलझना पड़ा जहां से उसे नूरजहां ने बचाया। उसने अकबर द्वारा स्थापित मनसबदारी प्रणाली में कुछ परिवर्तन किए। उदाहरण के लिए उसने सवार के औसत वेतन को घटा दिया और इस प्रणाली में दुअस्पाह-सिह-अस्पाह व्यवस्था का समावेश किया। इस नई व्यवस्था के अनुसार इस पदवी के मनसबदार को उसके सवार की पदवी के आधार पर निश्चित सैनिकों से दुगुने सैनिक रखने पड़ते थे। इसके लिए उसे वेतन भी दुगुना ही दिया जाता था। 1627 ई० में जहांगीर की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 15.
नूरजहां पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
नूरजहां का असली नाम मेहरून्निसा था। वह एक ईरानी सरदार ग्यासबेग की पुत्री थी। ग्यासबेग काम की तलाश में भारत आ रहा था। काफिले के सरदार मलिक मसऊद की सहायता से ग्यासबेग को अकबर के दरबार में छोटी-सी नौकरी मिल गई। 1595 ई० में मेहरून्निसा का विवाह एक ईरानी नवयुवक अली कुली खां से हो गया। अली कुली खां को सलीम से शेर अफ़गान की उपाधि भी प्राप्त हुई। सलीम जब राजा (जहांगीर) बना तो उसने शेर अफ़गान को बर्दवान का सूबेदार बना दिया। परन्तु 1607 ई० में शेर अफ़गान का वध कर दिया गया। इसके चार वर्ष बाद जहांगीर ने नूरजहां से स्वयं विवाह कर लिया। नूरजहां एक कुशल स्त्री थी। उसने शासन में काफ़ी अधिकार प्राप्त कर लिए। धीरे-धीरे शासन के सभी कार्य वह स्वयं करने लगी। प्रसिद्ध इतिहासकार एलफिंस्टन के मतानुसार, “नूरजहां बड़ी तीव्र बुद्धि की स्त्री थी जिसने फर्नीचर, आभूषणों तथा नवीन वेशभूषा का आविष्कार किया।”

प्रश्न 16.
शासक के रूप में शाहजहां के कार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
शाहजहां अपने पिता जहांगीर की मृत्यु के बाद 1628 ई० में मुग़ल सम्राट् बना। अगले ही वर्ष उसने कन्धार पर फिर से मुगलों का अधिकार स्थापित किया, परन्तु लगभग 20 वर्ष बाद ईरानियों ने इस प्रदेश को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। कन्धार के बाद शाहजहां ने मध्य एशिया में बल्ख और बदख्शां को विजय करने का प्रयत्न किया, परन्तु कन्धार की भान्ति ये प्रदेश भी मुग़ल राज्य का स्थायी अंग न बन सके। शाहजहां ने कला तथा प्रशासन के क्षेत्र में कुछ महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की। उसके द्वारा बनवाए गए आगरा तथा दिल्ली के भवन कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। उसने मनसबदारी प्रथा में एक परिवर्तन किया। अब प्रत्येक सरकार को अपनी सवार पदवी के आधार पर निश्चित संख्या के एक-तिहाई सवारों को रखना पड़ता था। कुछ परिस्थितियों में यह संख्या एक-चौथाई अथवा पांचवां भाग भी होती थी। शाहजहां ने अपनी सेना को भी सुदृढ़ बनाया। 1666 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 17.
औरंगजेब की धार्मिक नीति का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और वह सुन्नी सम्प्रदाय के अतिरिक्त किसी भी धर्म को फलता-फूलता नहीं देख सकता था। अतः उसने सभी गैर-मुस्लिम सम्प्रदायों के विरुद्ध असहनशीलता की नीति अपनाई। उसने हिन्दुओं के अनेक मन्दिर नष्ट-भ्रष्ट कर दिए और उन पर लगे करों में वृद्धि कर दी। उसने हिन्दुओं से ‘जज़िया’ नामक धार्मिक कर भी फिर से लेना आरम्भ कर दिया। 1671 ई० में एक आदेश द्वारा उसने प्रशासन में नियुक्त सभी हिन्दुओं को उनके पदों से हटा दिया। उसने उनके उत्सवों पर भी रोक लगा दी और इस बात की मनाही कर दी कि कोई भी हिन्दू पालकी में बैठकर नहीं जा सकता। इतना ही नहीं, उसने हिन्दुओं को मुसलमान बनाने के लिए बल और प्रलोभन दोनों का प्रयोग किया। उसके इन कार्यों से सभी हिन्दू जातियां मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध हो गईं और स्थान-स्थान पर विद्रोह होने लगे। फलस्वरूप सारा प्रशासनिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया।

प्रश्न 18.
औरंगजेब की राजपूत नीति क्या थी और इसके क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
राजपूतों के प्रति औरंगजेब की नीति अकबर की नीति के बिल्कुल विपरीत थी। अकबर ने उन्हें सीने से लगाया, परन्तु औरंगजेब ने उनकी पीठ में छुरा घोंपा। उसने अपने दो राजपूत सेनानायकों राजा जसवन्त सिंह तथा राजा जयसिंह के साथ बहुत बुरा व्यवहार किया। राजा जयसिंह को उसने विष दिलवा दिया और जसवन्त सिंह को अटक के पार भेज कर मौत के मुंह में धकेल दिया। 10 दिसम्बर, 1678 ई० को जसवन्त सिंह की जमरूद में मृत्यु हो गई और मुग़लों ने बड़ी सरलता से जोधपुर पर अधिकार कर लिया। वहां फौजदार, किलादार, कोतवाल तथा अमीन के पदों पर मुसलमानों को नियुक्त कर दिया गया। औरंगज़ेब राजा जसवन्त सिंह के पुत्र अजीत सिंह को अपने अधिकार में रखना चाहता था। इसलिए औरंगज़ेब और मारवाड़ में एक लम्बा युद्ध चला, जिसमें मेवाड़ का राजा भी सम्मिलित हो गया। औरंगज़ेब का अपना पुत्र अकबर भी राजपूतों से मिल गया। औरंगज़ेब की राजपूत नीति के कारण राजपूत मुग़ल साम्राज्य के कट्टर विरोधी हो गए थे। उनकी यह शत्रुता मुग़ल साम्राज्य के विनाश का कारण बनी।

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प्रश्न 19.
औरंगजेब की दक्षिण नीति की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
औरंगजेब को दक्षिण की शिया रिसायतों का अस्तित्व पसन्द नहीं था। वह मराठों की शक्ति को भी कुचल देना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने दक्षिण को विजय करने का निश्चय किया। उसने गोलकुण्डा राज्य पर कई आक्रमण किए। कुछ असफल अभियानों के बाद 1687 ई० में वह इस राज्य पर विजय प्राप्त करने में सफल रहा। अगले ही वर्ष उसने रिश्वत और धोखेबाजी से बीजापुर राज्य को अपने अधीन कर लिया। दक्षिण में मराठों का नेतृत्व शिवाजी के पुत्र शम्भा जी के हाथ में था। 1689 ई० में औरंगज़ेब ने उसे पकड़ लिया और उसका वध कर दिया। औरंगज़ेब की यह सफलता एक भ्रम मात्र थी। मराठे शीघ्र ही पुनः स्वतन्त्र हो गए। 1707 ई० में दक्षिण में अहमदनगर के स्थान पर उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार ‘दक्षिण’ औरंगज़ेब और मुग़ल साम्राज्य दोनों के लिए कब्र सिद्ध हुआ।

प्रश्न 20.
औरंगज़ेब भारत का राज्य लेने में किस तरह सफल हुआ ?
उत्तर-
1657 ई० में अपने पिता की बीमारी का समाचार सुन कर औरंगजेब ने बड़ी चालाकी से काम लिया। वह उस समय दक्षिण का सूबेदार था। उसने अपने भाई मुराद को, जो उस समय गुजरात का सूबेदार था, आधे राज्य का लालच देकर अपनी ओर मिला लिया। दोनों की संयुक्त सेनाएं आगरा की ओर बढ़ीं। मार्ग में उन्होंने राजा जसवन्त सिंह को हराया और फिर सामूगढ़ के मैदान में अपने बड़े भाई दारा को पराजित किया। तत्पश्चात् औरंगज़ेब ने अपने भाई मुराद को शराब पिला कर बन्दी बना लिया और ग्वालियर के किले में कैद कर लिया। बाद में उसे फांसी दे दी गई। उसने अपने पिता शाहजहां को भी कैद कर लिया। कुछ समय पश्चात् उसने दारा और उसके पुत्र सुलेमान शिकोह को मरवा दिया। इसी बीच उसके भाई शुजा का अराकान में वध हो चुका था। इस प्रकार अपने सभी शत्रुओं से मुक्त हो कर औरंगज़ेब भारत की राजगद्दी प्राप्त करने में सफल रहा।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर के प्रारम्भिक जीवन, उसकी विजयों और चरित्र का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्रारम्भिक जीवन-बाबर का जन्म 1483 ई० को फरगाना की राजधानी अन्दीजन में हुआ। उसका पिता उमर शेख मिर्जा फरगाना का शासक था। जब बाबर 11 वर्ष का था तो उसके पिता का देहान्त हो गया। आरम्भ में बाबर ने तैमूर की राजधानी समरकन्द को जीतने का प्रयत्न किया, परन्तु वह इसमें असफल रहा। इस चक्कर में उसकी पैतृक सम्पत्ति फरगाना भी उनसे छिन गई। इतना होने पर भी बाबर ने साहस नहीं छोड़ा। 1504 ई० में उसने काबुल और गज़नी पर अधिकार कर लिया और अपने राज्य की स्थापना की।

बाबर की भारत-विजय-काबुल और गज़नी में राज्य स्थापित करने के पश्चात् बाबर ने भारत को विजय करने की योजना बनाई। आरम्भ में उसने कई भारतीय प्रदेशों पर आक्रमण किए, परन्तु उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण लड़ाई दिल्ली के शासक इब्राहीम लोधी के विरुद्ध थी। यह लड़ाई 1526 ई० में पानीपत के मैदान में हुई। बाबर के तोपखाने के सामने इब्राहिम लोधी की सेना न टिक सकी। इस युद्ध में इब्राहीम लोधी मारा गया और बाबर विजयी हुआ। पानीपत की विजय के पश्चात् बाबर ने दिल्ली और आगरा पर भी अधिकार कर लिया।

दिल्ली विजय के पश्चात् बाबर को राजपूत शासक राणा सांगा से टक्कर लेनी पड़ी। 1527 ई० में आगरा के समीप कनवाहा नामक गांव में बाबर और राणा सांगा के बीच भयंकर युद्ध हुआ। राणा सांगा अन्त में मैदान छोड़कर भाग निकला और बाबर को विजय प्राप्त हुई। 1529 ई० में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़गानों को परास्त किया। इस प्रकार भारत पर बाबर का अधिकार हो गया।

बाबर का चरित्र-बाबर एक सफल शासक तथा अनुभवी सैनिक था। वह विद्वान् और कला-प्रेमी था। इसके अतिरिक्त वह बड़ा साहसी और धैर्यवान था। कठिनाइयों में वह कभी नहीं घबराया। एक व्यक्ति के रूप में भी उसका चरित्र बड़ा प्रभावशाली था। वह एक अच्छा पिता, दयालु स्वामी तथा उदार मित्र था। वह हंसमुख और मिलनसार था। वह सदा अपने से बड़ों का आदर तथा छोटों से प्रेम करता था। इन गुणों के बावजूद बाबर में शराब तथा विषय-भोग जैसे अवगुण भी थे। परन्तु यह अवगुण उसके कर्त्तव्यपालन के मार्ग में कभी बाधा नहीं बन पाये। सच तो यह है कि भारतीय इतिहास में बाबर को एक बहुत उच्च स्थान प्राप्त है।

प्रश्न 2.
बाबर के पश्चात् हुमायूं के सामने कौन-कौन सी कठिनाइयां थीं ?
उत्तर-
1530 ई० में बाबर की मृत्यु के पश्चात् हुमायूं राजसिंहासन पर बैठा। परन्तु गद्दी पर बैठते ही उसे अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इन कठिनाइयों का वर्णन इस प्रकार है :

1. अस्थिर और अव्यवस्थित राज्य-हुमायूं को उत्तराधिकार में एक ऐसा राज्य मिला जो न तो सुदृढ़ था और न ही सुव्यवस्थित। बाबर ने न तो बंगाल को अपने अधीन किया था और न ही गुजरात को। राजपूत बाबर से पराजित अवश्य हुए थे, परन्तु उनकी शक्ति को पूर्णतः कुचला नहीं गया था। इस प्रकार हुमायूं चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था।

2. विभाजित राज्य-राजगद्दी पर बैठते ही हुमायूं ने राज्य को अपने तीन भाइयों में बांट दिया। उसके तीनों भाई बड़े ही अयोग्य थे। उन्होंने हुमायूं की सहायता करने की बजाय उसके मार्ग में बाधाएं डालनी आरम्भ कर दी।

3. अफ़गानों का विरोध-पानीपत तथा घाघरा की लड़ाई में परास्त होकर भी अफ़गान शक्ति नष्ट नहीं हुई थी। बड़ेबड़े अफ़गान सरदार दिल्ली के सिंहासन को वापस लेना चाहते थे। प्रसिद्ध अफगान सरदार शेर खां तो हुमायूं के लिए एक बहुत बड़ा खतरा बन गया था।

4. खाली राजकोष-हुमायूँ के पिता बाबर ने अपनी उदारता के कारण अपना काफ़ी सारा धन व्यर्थ में व्यय कर दिया। फलस्वरूप हुमायूँ को एक ऐसा राजकोष मिला जो लगभग खाली हो चुका था। धन के अभाव में हुमायूँ के लिए शासन चलाना सरल नहीं था।

5. विश्वासपात्र सैनिकों का अभाव हुमायूं की सेना में किसी एक जाति के लोग नहीं थे। उसमें चुगताई, तुर्क, उजबेग, मुग़ल, अफ़गान और ईरानी सभी लोग शामिल थे। परिणामस्वरूप सेना में एकता का बड़ा अभाव था। सैनिक संगठन की कमी के कारण हुमायूं की कठिनाइयां और भी बढ़ गईं।

6. व्यक्तिगत दोष-हुमायूँ बड़ा ही विलासी व्यक्ति था। वह हर समय अफीम खाकर मस्त रहता था। शेर खां और बहादुरशाह जब उसके लिए खतरा बने हुए थे तो उसने अपना कीमती समय रंगरलियों में खो दिया। परिणामस्वरूप उसके शत्रुओं को शक्ति बढ़ाने को अवसर मिल गया।
इस प्रकार हुमांयू जीवन-भर इन कठिनाइयों से घिरा रहा। उसने अपनी भूलों से अपनी कठिनाइयों को और अधिक बढा दिया।

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प्रश्न 3.
शासक के रूप में हुमायूं की असफलता के क्या कारण थे ?
अथवा
हुमायूँ की भूलों का वर्णन करो।
उत्तर-
हुमायूं अपनी निम्नलिखित भूलों के कारण शासक के रूप में असफल रहा :

1. हुमायूं द्वारा राज्य का मूर्खतापूर्ण विभाजन-गद्दी पर बैठते ही हुमायूं के कदम लड़खडा गये। उसने अपने भाइयों में राज्य का विभाजन राज्य के हितों को ध्यान में रखकर न किया, बल्कि अपने भाइयों की इच्छाओं को ध्यान में रखकर किया। उसने कामरान को काबुल तथा कन्धार, अस्करी को सम्भल और हिन्दाल को अलवर का शासक बना दिया। शीघ्र ही उसे अपनी भूल के परिणाम भुगतने पड़े। कामरान कुछ ही दिनों में अपने असली रूप में प्रकट हुआ। वह हुमायूं को राज्याभिषेक पर बधाई देने की आड़ में पंजाब की ओर बढ़ आया और वहां अपना अधिकार जमा लिया। इससे हुमायूं का आधा राज्य जाता रहा और उसकी सैनिक शक्ति काफ़ी दुर्बल हो गई। उसके अन्य भाइयों ने भी उसके लिए अनेक कठिनाइयां उत्पन्न की।

2. समय तथा धन की बर्बादी-हुमायूँ समय तथा धन के महत्त्व को नहीं समझता था। उसने अपने आरम्भिक वर्षों में दिल्ली तथा आगरा में धन को पानी की तरह बहाया। उसने राज्याधिकारियों को बहुमूल्य पुरस्कार दिए। “उसने अपना काफ़ी समय और धन दिल्ली में एक विशाल दुर्ग बनाने की योजना में नष्ट किया।” यह सब काम उसने उस समय किया जब गुजरात का बहादुरशाह उसके शत्रुओं को पनाह दे रहा था और अपनी शक्ति बढ़ाने में लगा हुआ था। समय और धन की यह बर्बादी हुमायूं की दूसरी बड़ी भूल थी।

3. गुजरात अभियान की भूलें-गुजरात अभियान में हुमायूं ने अनेक भूलें कीं। उसने रानी कर्णवती की पेशकश को ठुकरा कर राजपूतों की मित्रता से हाथ धो लिया। उसका समय पर बहादुरशाह पर आक्रमण न करना भी उसकी भूल थी। जब बहादुरशाह कर्णवती के विरुद्ध उलझा हुआ था तो हुमायूं रंगरलियों में डूब गया। फिर जब हुमायूं ने बहादुरशाह का पीछा किया तो उसका वध किए बिना ही वापस लौट आया। यह उसकी बड़ी भूल थी, क्योंकि कुछ समय के पश्चात् बहादुरशाह दियु से लौटकर हुमायूं के लिए समस्या बन गया। उसे गुजरात का शासन अस्करी को नहीं सौंपना चाहिए था। अस्करी न तो इतना योग्य था और न ही हुमायूँ का स्वामिभक्त । अतः उसके अधीन गुजरात की शासन-व्यवस्था बिगड़ गई और यह प्रान्त मुग़लों के हाथों से निकल गया।

4. शेर खां के विरुद्ध संघर्ष में उसकी भूल- शेर खां के विरुद्ध अभियान में भी हुमायूँ ने अनेक भूलें कीं। उसने चुनार पर घेरा डालकर गौड़ खो दिया। फिर गौड़ की रंगीनियों में डूबकर आगरा जाने वाला मार्ग छिनवा बैठा। गौड़ की वापसी पर भी उसने सुरक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं किया। चौसा के मैदान में काफ़ी समय पड़ा रहना हुमायूं की भारी भूल थी। उसे शीघ्रातिशीघ्र आगरा पहुंचना चाहिए था। चौसा के मैदान में उसने पहरेदारी का काम एक विश्वासघाती को सौंप रखा था। शेर खां ने सोये हुए मुग़ल सैनिकों पर पौ फटने से पहले ही आक्रमण किया था। हुमायूं को इसकी कोई खबर तक न हुई। उसे तो स्वयं नदी में कूद कर अपनी जान बचानी पड़ी। हुमायूं की इन भूलों ने उसे भारत छोड़कर भागने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 4.
“शेरशाह सूरी योग्यता तथा कूटनीति में अकबर का. अग्रगामी था।” कोई पांच तर्क देकर व्याख्या कीजिए।
अथवा
शेरशाह सूरी को अकबर का अग्रगामी कहना कहां तक उचित है ?
उत्तर-
शेरशाह तथा अकबर में वही सम्बन्ध था जो मार्गदर्शक तथा मार्ग पर चलने वालों में होता है। शेरशाह ने मार्ग तैयार किया। अकबर उस मार्ग पर चला भी और उसने वह मार्ग संवारा भी। निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जायेगा कि शेरशाह अकबर का अग्रगामी था :

1. उच्च राजकीय आदर्श-शेरशाह सूरी ने उच्च राजकीय आदर्श स्थापित किए। वह कभी भोग-विलास में अपना समय नष्ट नहीं करता था। जनता की भलाई के लिए वह कड़ा परिश्रम करता था। अकबर शेरशाह द्वारा दिखाई गई इसी राह पर चला।

2. प्रशासनिक विभाजन-शेरशाह ने शासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए राज्य को ‘सरकारों’ तथा ‘परगनों’ में बाँटा हुआ था। अकबर ने भी शेरशाह के समय की प्रशासकीय इकाइयों तथा नागरिक संस्थाओं को अपनाया। अन्तर केवल दोनों के समय के अधिकारियों और प्रशासनिक इकाइयों के नामों में था।

3. भूमि-कर-प्रबन्ध-शेरशाह ने भूमि की पैमाइश करवाई, उपज को तीन श्रेणियों में बाँटा, एक-चौथाई भूमि-कर नियत किया तथा किसानों की सुविधा के लिए अनेक अन्य पग उठाये। अकबर ने भी शेरशाह की भूमि-प्रणाली को अपनाया, उसने भूमि को बाँसों के गजों से नपवाया और भूमि को चार भागों में बांटा। उसने किसानों को भी सुविधाएं प्रदान की।

4. धार्मिक सहनशीलता-धार्मिक सहनशीलता में भी शेरशाह सूरी ने अकबर का पथ-प्रदर्शन किया। शेरशाह पहला मुस्लिम शासक था जिसनें हिन्दुओं के प्रति उदारता दिखाई थी। अकबर ने तो क्षेत्र में एक नवीन आदर्श स्थापित किया। उसने हिन्दुओं से ‘जज़िया’ लेना बन्द कर दिया और उन्हें उच्च पदों पर भी नियुक्त किया।

5. सैनिक प्रबन्ध-सैनिक संगठन में भी शेरशाह सूरी अकबर का अग्रगामी था। अकबर ने शेरशाह की भान्ति स्थायी

6. मुद्रा-प्रणाली-शेरशाह ने मुद्रा-प्रणाली में प्रशासकीय सुधार किए। अकबर ने भी उसी द्वारा प्रचलित मुद्रा-प्रणाली को . अपनाया, परन्तु आवश्यकतानुसार उसका थोड़ा-सा रूप बदल दिया।

7. भवन-निर्माण कला-अकबर को भवन बनवाने का बड़ा चाव था, परन्तु इसकी प्रेरणा भी उसने शेरशाह सूरी से ही ली थी। शेरशाह ने सहसराम का मकबरा बनवाकर भवन-निर्माण में योगदान दिया था। अकबर ने भी अनेक सुन्दर भवन बनवाये। फतेहपुर सीकरी का बुलन्द दरवाज़ा, “जामा मस्जिद’, रानियों के महल तथा अन्य भवन उसने शेरशाह से प्रेरित होकर ही बनवाये थे।

8. प्रजा-हितार्थ कार्य-शेरशाह ने अनेक प्रजा-हितार्थ कार्य किये। उसने कई सड़कें बनवाईं। सड़कों के दोनों किनारों पर छायादार वृक्ष लगवाये और यात्रियों की सुविधा के लिए सरायों की व्यवस्था की। शेरशाह सूरी का अनुकरण करते हुए अकबर ने भी ये सभी प्रजा-हितार्थ कार्य किए। उसने कुछ सामाजिक सुधार भी किए।

9. सच तो यह है कि शेरशाह सूरी ने लगभग हर क्षेत्र में अकबर का मार्ग-दर्शन किया। डॉ० कानूनगो के शब्दों में, “शेरशाह ने अपने प्रशासकीय तथा आर्थिक सुधारों और सहनशील धार्मिक नीति द्वारा अकबर की महानता की नींव रखी।” (“Sher Shah laid the foundaitons of Akbar’s greatness by his administrative and economic reforms and the policy of religious toleration.”) अतः उसे अकबर का अग्रसर कहना उचित ही है।

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प्रश्न 5.
“अकबर ने सारे उत्तरी भारत को एकता के सूत्र में बांध दिया।” सिद्ध कीजिए।
अथवा
अकबर की
(क) उत्तरी भारत तथा
(ख) दक्षिणी भारत की विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अकबर एक महान् विजेता था। वह 1556 ई० में राजगद्दी पर बैठा। अल्प आयु होने के कारण बैरम खां ने उसका संरक्षण किया और उसके लिए अनेक प्रदेश विजय किए। उसने पानीपत की दूसरी लड़ाई में हेमू को पराजित करके दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया। उसने मेवात को भी विजय किया। सिकन्दर सूरी की सेना ने उसके सामने आत्म-समर्पण कर दिया। तत्पश्चात् अकबर ने निम्नलिखित प्रदेश विजय किये :- .

(क) उत्तरी भारत की विजय-
1. मालवा की विजय-1560 ई० में अकबर ने मालवा पर विजय प्राप्त की और मालवा का प्रदेश पीर मुहम्मद को सौंप दिया गया। परन्तु पीर मुहम्मद शासन चलाने में असफल रहा और वहां के शासक बाज बहादुर ने मालवा को पुनः अपने अधिकार में ले लिया। 1562 ई० में अकबर ने उसके विरुद्ध एक बार फिर विशाल सेना भेजी। इस बार वह मालवा पर पूर्ण विजय प्राप्त करने में सफल रहा।

2. राजपूताना की विजय-1562 ई० में अकबर ने राजपूताना पर आक्रमण कर दिया। आमेर के राजा बिहारीमल ने शीघ्र ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अपनी बेटी का विवाह भी अकबर से कर दिया। इसके साथ कई अन्य राजपूत शासकों ने भी अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली, जैसे-कालिन्जर, मारवाड़, जैसलमेर, बीकानेर आदि।

3. मेवाड़ से संघर्ष-मेवाड़ का शासक अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहता था। 1568 ई० में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। परन्तु फिर भी महाराणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। वह अन्त तक मुग़लों से संघर्ष करता रहा।

4. गुजरात पर विजय-1572-73 ई० में अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त कर ली।

5. बिहार-बंगाल की विजय-1574-76 ई० में अकबर ने अफ़गानों को पराजित करके बिहार और बंगाल पर विजय प्राप्त कर ली।

6. अन्य विजयें-अकबर ने धीरे-धीरे कश्मीर, सिन्ध, उड़ीसा, बिलोचिस्तान तथा कन्धार पर भी विजय प्राप्त कर ली।

(ख) दक्षिणी भारत की विजयें उत्तरी भारत में अपनी शक्ति संगठित कर अकबर ने दक्षिणी भारत की ओर ध्यान दिया। दक्षिण में उसने निम्नलिखित विजयें प्राप्त की :

  • बीजापुर तथा गोलकुण्डा की विजय-1591 ई० में अकबर ने बीजापुर तथा गोलकुण्डा पर विजय प्राप्त कर ली।
  • खानदेश की विजय-1601 ई० में खानदेश के सुल्तान अली खां ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
  • अहमदनगर पर अधिकार-1600 ई० में अकबर की सेनाओं ने अहमदनगर की संरक्षिका चांद बीबी को परास्त कर दिया तथा अहमदनगर पर विजय पा ली।
  • बरार पर अधिकार-अकबर ने दक्षिणी भारत के बरार प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया। इस प्रकार अकबर ने एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 6.
“शाहजहां के राज्यकाल को मुगल साम्राज्य का उत्कर्ष काल अथवा स्वर्ण युग कहा जाता है।” आप इस विचार से कहां तक सहमत हैं ?
अथवा
मुगलकालीन इतिहास को शाहजहां की क्या देन थी ? किन्हीं पांच देनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
शाहजहां महान् मुग़ल शासकों में से एक था। उसके राज्य को मुग़ल साम्राज्य का उत्कर्ष काल अथवा स्वर्ण युग कहा जाता है। शाहजहां के काल में देश में चारों ओर शान्ति और समृद्धि थी तथा कला के हर क्षेत्र में अतुलनीय प्रगति हो रही थी। हिन्दू और मुसलमानों में एकता थी तथा व्यपार और वाणिज्य ने काफ़ी उन्नति की। इन सभी बातों के कारण शाहजहां के काल को स्वर्ण युग कहा जाता है। इसका विस्तारपूर्वक वर्णन इस प्रकार है :-

1. पूर्ण शान्ति-शाहजहां के शासन काल मे सब ओर शान्ति का वातावरण था। राजपूत राज्य के शुभचिन्तक थे। उत्तरपश्चिम में कन्धार को छोड़कर शेष सम्पूर्ण मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह सुरक्षित था। दक्षिण की ओर से अब कोई भय न था। इस काल में अहमदनगर भी मुग़ल साम्राज्य में मिल चुका था। पुर्तगालियों की शक्ति का भी पतन हो रहा था परंतु उनका स्थान किसी अन्य शक्तिशाली यूरोपीय जाति ने अभी नहीं लिया था। तात्पर्य यह कि शाहजहां के राज्य में पूर्ण सुख-शान्ति थी और देश आन्तरिक विद्रोहों तथा विदेशी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित था। .

2. अच्छी आर्थिक अवस्था तथा समृद्धि-देश में सुख और शान्ति बने रहने के कारण लोग अपने-अपने व्यवसायों में जुटे हुए थे। इस प्रकार उनकी आर्थिक दशा बहुत सुदृढ़ हो रही थी। राज्य प्रबन्ध अकबर के समय से ही बहुत अच्छा था।

3. भवन-निर्माण कला के क्षेत्र में उन्नति-शाहजहां का शासनकाल भवन-निर्माण कला के क्षेत्र में अनुपम उन्नति के लिए विशेषकर प्रसिद्ध है। उसने आगरा, दिल्ली और कई अन्य स्थानों पर सुन्दर भवनों का निर्माण करवाया। ताजमहल इस काल की एक अनूठी कृति थी। यह प्रसिद्ध मकबरा सम्राट ने अपनी प्यारी मलिका मुमताज महल की याद में बनवाया था और यह अब भी विश्व में दाम्पत्य-प्रेम और अनुराग का एक अद्वितीय स्मारक है। ताज के अतिरिक्त आगरा में स्थित मोती मस्जिद और दिल्ली में जामा मस्जिद तथा दीवाने खास शाहजहां के कुछ अन्य शानदार भवन हैं। सम्राट् ने लगभग एक करोड़ की लागत से प्रसिद्ध तख्ते-ताऊस का निर्माण भी करवाया।

4. अन्य ललित कलाओं का विकास-चित्रकला तथा संगीत कला को शाहजहां के काल में काफ़ी प्रोत्साहन मिला। उसके शासनकाल का सबसे प्रसिद्ध चित्रकार मुहम्मद नादिर समरकन्दी था। उसके दरबार के सर्वप्रसिद्ध संगीतकार थे जगन्नाथ, महापतेर, राम दास. और लाल खां जो तानसेन का जमाता था। शाहजहां के काल में साहित्य भी किसी अन्य कला से पीछे नहीं था। उसके दरबार में काज़बीकी, अब्दुल हमीद लाहौरी, पीर अबुल कासिम ईरानी, मिर्जा जयाबुद्दीन, शेख बहलोल कादरी आदि बड़े-बड़े विद्वान् थे। इन मुसलमान विद्वानों के अतिरिक्त इस काल में बहुत से हिन्दू विद्वान् भी थे, जैसे सुन्दरदास, चिन्तामणि, कवीन्द्राचार्य और जगन्नाथ।

5. सबके लिए एस समान न्याय-शाहजहां बड़ा न्यायप्रिय शासक था। न्याय करते समय वह बड़े-बड़े अधिकारियों को भी दोषी होने पर क्षमा नहीं करता था। उसके काल में दण्ड बड़े कठोर थे। इसलिए अपराध करने का किसी को साहस नहीं होता था।”

6. व्यापार और वाणिज्य में उन्नति-शाहजहां के काल में व्यापार तथा वाणिज्य ने काफ़ी उन्नति की। विदेशों के साथ भारत का व्यापार काफ़ी उन्नति पर था। परिणामस्वरूप बहुत-सा विदेशी धन भारत में आने लगा।

7. प्रजा हितार्थ कार्य-शाहजहां ने प्रजा की भलाई के लिए बहुत से तालाब, नहरें, सड़कें, पुल तथा सराएं आदि बनवाईं। उसने लाहौर के निकट के खेतों की सिंचाई के लिए एक लाख रुपए के व्यय से रावी नदी से एक बड़ी नहर निकलवाई और फिरोजशाह तुग़लक द्वारा बनवाई गई पश्चिमी यमुना नहर की मुरम्मत करवाई। शाहजहां के राजकीय इतिहासकार अब्दुल हमीद के अनुसार शाहजहां ने अकाल पीड़ितों की खुले दिल से सहायता की, मुफ्त लंगर खुलवाये और लोगों के लगान माफ कर दिए। इन सब बातों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि शाहजहां का काल वास्तव में ही मुग़ल इतिहास का स्वर्ण युग था।

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प्रश्न 7.
औरंगजेब की राजपूत नीति तथा उसके परिणामों की व्याख्या कीजिए। उसकी यह नीति मुग़ल साम्राज्य के पतन के लिए कहां तक उत्तरदायी थी ?
अथवा
औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति कैसी नीति अपनाई ? उसकी यह नीति मुगल साम्राज्य के लिए किस प्रकार घातक सिद्ध हुई ?
उत्तर-
औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसके हृदय में राजपूतों के लिए कोई प्रेम नहीं था। वह राजपूतों को अपने दरबार मे उच्च पद देने के पक्ष में नहीं था। परन्तु जब तक दो वीर राजपूत-सरदार मिर्जा राजा जयसिंह तथा जसवन्त सिंह राठौर-जीवित रहे, उसने राजूपतों के विरुद्ध कोई कठोर पग न उठाया। उनकी मृत्यु के पश्चात् औरंगजेब ने राजपूतों के प्रति दमन की नीति अपनाई। औरंगज़ेब की राजपूतों के प्रति ऐसी नीति और उसके परिणामों का वर्णन इस प्रकार है :-

जसवन्त सिंह की मृत्यु-जसवन्त सिंह राठौर मारवाड़ का शासक था। वह शाहजहां के राज्यकाल में मुग़ल दरबार का मनसबदार था। 10 दिसम्बर, 1678 ई० को जमरूद में जसवन्त सिंह का देहान्त हो गया। उसकी मृत्यु के पश्चात औरंगजेब के लिए मारवाड़ पर अधिकार करना सरल हो गया। औरंगज़ेब ने जसवन्त सिंह के सिंहासन पर नागौड़ के राजपूत सरदार इन्द्र सिंह को बिठाया। उसे 36 लाख रुपए दिए गए और वह अपने यहां मुसलमान अधिकारी रखने के लिए राजी हो गया। परन्तु शीघ्र ही औरंगज़ेब के इस कार्य का विरोध होने लगा।

अजीत सिंह तथा दुर्गादास-औरंगज़ेब जसवन्त सिंह के नवाजात शिशु अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं था। उसने अजीत सिंह को दिल्ली में ही कैद कर लिया। परन्तु दुर्गादास राठौर के प्रयत्नों से जसवन्त सिंह की दोनों रानियां और अजीत सिंह जोधपुर पहुंचने में सफल हुए।

मारवाड़ पर आक्रमण-मारवाड़ की जनता ने अजीत सिंह के पक्ष में विद्रोह कर दिया और इन्द्र सिंह को शासक मानने से इन्कार कर दिया। औरंगज़ेब ने अपने पुत्र अकबर को मेवाड़ पर अक्रमण करने का आदेश दिया। इस युद्ध में राजपूत पराजित हुए और इस प्रकार मारवाड़ फिर मुग़लों के अधिकार में आ गया। विवश होकर राजपूतों ने पर्वतों तथा वनों में आश्रय लिया और यहीं से उन्होंने गुरिल्ला युद्ध जारी रखा।

मेवाड़ तथा मारवाड़ का संगठन-मारवाड़ के पतन से मेवाड़ के राणा को बड़ा दुःख हुआ। उसने राठौरों और वीर सिसौदियों के साथ मुग़लों के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया, परन्तु औरंगजेब की विशाल सेना के समक्ष यह संयुक्त मोर्चा विफल साबित हुआ। राजपूतों ने अब मुग़लों के विरुद्ध गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई और काफ़ी सीमा तक सफल भी रहे।

अकबर का राजपूतों से गठजोड़ तथा विद्रोह-राजकुमार अकबर राजपूतों के सहयोग से दिल्ली का सिंहासन प्राप्त करना चाहता था। अतः उसने औरंगज़ेब के प्रति विद्रोह कर दिया। राजपूतों ने अकबर को हर सम्भव सहायता देने का वचन दिया। परन्तु यह मित्रता ज्यादा दिनों तक नहीं चली। औरंगज़ेब राजपूतों और अकबर के मध्य फूट डालने में सफल रहा।

उदयपुर की सन्धि-24 जून, 1681 ई० को औरंगज़ेब और मेवाड़ के राणा जयसिंह के बीच एक सन्धि हुई। इस सन्धि के अनुसार राजपूतों ने मुग़ल साम्राज्य के विरुद्ध कोई भी सहायता न करने का वचन दिया। जयसिंह को मेवाड़ का महाराणा मान लिया गया। उसे पांच हज़ारी मनसबदार भी नियुक्त किया गया।

उदयपुर की सन्धि के बाद भी राजपूतों ने मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा। पहले दुर्गादास और फिर अजीत सिंह के नेतृत्व में उनका संघर्ष चलता रहा। 1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् अजीत सिंह ने जोधपुर के मुग़ल सूबेदार को मार भगाया और स्वयं मारवाड़ का स्वतन्त्र शासक बना।

राजपूत नीति के परिणाम-

  1. राजभक्त राजपूत मुग़लों के शत्रु बन गए। उनकी शत्रुता मुग़ल साम्राज्य के लिए विनाशकारी सिद्ध हुई।
  2. राजस्थान की शासन व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। वहां की अव्यवस्था से पड़ोसी मुग़ल प्रदेश में अराजकता फैल गई।
  3. राजपूतों की मित्रता से वंचित होने के कारण सम्राट को अन्य अभियानों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
  4. साम्राज्य को जन और धन की अपार हानि उठानी पड़ी।
  5. शाही प्रतिष्ठा को भारी ठेस लगी। राजपूतों के आकस्मिक हमलों ने मुग़ल साम्राज्य की जड़ें खोखली करने का कार्य किया।

सच तो यह है कि औरंगजेब की राजपूत नीति महान् राजनीतिक आदर्शों से प्रेरित न थी। उनका सहयोग प्राप्त करके मुग़ल साम्राज्य को सुदृढ़ करने के स्थान पर उसने राजपूतों को अपना शत्रु बना लिया। राजपूतों की मित्रता के कारण मुग़ल साम्राज्य सशक्त बना था और उनकी शत्रुता के कारण मुग़ल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हुआ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना

प्रश्न 8.
शेरशाह सूरी के शासन-प्रबन्ध अथवा प्रशासनिक सुधारों का वर्णन करो।
अथवा
शेरशाह सूरी एक योग्य एवं प्रजाहितकारी शासक था ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
शेरशाह एक योग्य शासक था। उसने केवल पांच वर्ष राज्य किया। इतने कम समय में उसने इतना अच्छा राज्य प्रबन्ध किया कि इतिहास में उसका नाम अमर हो गया। उसके शासन-प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित है :-

1. केन्द्रीय शासन-केन्द्रीय शासन का मुखिया शेरशाह स्वयं था। सारे काम उसकी आज्ञा से होते थे। उसकी सहायता के लिए अनेक मन्त्री भी थे। वह लोगों की भलाई का ध्यान रखता था। वह राज्य का भ्रमण करके लोगों की शिकायतें सुनता था। प्रजा उससे बड़ी प्रसन्न थी।

2. प्रान्तीय शासन-शेरशाह ने अपने राज्य को अनेक प्रान्तों में बांटा हुआ था। प्रान्तों को सरकारों अथवा ज़िलों में विभक्त किया गया था। प्रत्येक सरकार परगनों में बंटी हुई थी। शासन की इन इकाइयों में शेरशाह ने बड़े योग्य अधिकारी नियुक्त किए हुए थे। गांव के प्रबन्ध के लिए पंचायतें थीं।
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 12 मुग़ल साम्राज्य की स्थापना 1

3. भूमि प्रबन्ध-शेरशाह ने सारे राज्य की भूमि की पैमाइश करवाई और उपज के आधार पर इसे तीन भागों में . बांटा-उत्तम, मध्यम तथा निम्न। उपज के आधार पर ही भूमिकर नियत किया गया जो उपज का एक-तिहाई भाग होता था।

4. कृषकों से अच्छा व्यवहार-शेरशाह सदा कृषकों की भलाई का ध्यान रखता था। उन्हें अकाल के दिनों में ऋण दिया जाता था। शेरशाह ने अपने सैनिकों को चेतावनी दी हुई थी कि वे चलते समय किसी कृषक की फसल को हानि न पहुँचाएं।

5. पुलिस-जनता के धन-माल तथा जीवन की रक्षा के लिए शेरशाह सूरी ने पुलिस की उत्तम-व्यवस्था की। अंपराधों के लिए स्थानीय अधिकारी स्वयं ज़िम्मेदार होते थे।

6. गुप्तचर विभाग-शेरशाह ने देश में गुप्तचर विभाग स्थापित किया। गुप्तचर राजा को सभी घटनाओं से सूचित करते रहते थे।

7. न्याय-शेरशाह एक प्रसिद्ध सम्राट् था। न्याय करते समय छोटे-बड़े या अमीर-ग़रीब का भेदभाव नहीं रखा जाता था। उसके दण्ड बड़े कठोर थे। दण्ड देते समय वह अपने सरदारों और निकट सम्बन्धियों को भी नहीं छोड़ता था।

8. सड़कों का निर्माण तथा डाक व्यवस्था-शेरशाह सूरी ने पुरानी सड़कों की मुरम्मत करवाई और नई सड़कों का निर्माण करवाया। उसकी बनवाई हुई सड़कों में से पहली सड़क पेशावर से सुनार गांव तक जाती है। दूसरी आगरा से बुरहानपुर तक जाती थी। तीसरी सड़क आगरा से जोधपुर तक और चौथी सड़क लाहौर से मुल्तान तक चली गई थी। शेरशाह सूरी ने डाक लाने और ले जाने के लिए सड़कों पर डाक चौकियों की स्थापना भी की।

9. प्रजा की भलाई के कार्य-शेरशाह सूरी ने प्रजा की भलाई के लिए अनेक कार्य किए। उसने यात्रियों की सुविधा के लिए कुएँ खुदवाए और सड़कों के किनारे छायादार वृक्ष लगवाये। रात को ठहरने के लिए थोड़-थोड़ी दूरी पर सराएं भी बनवाई गईं।

सच तो यह है कि शेरशाह सूरी एक महान् शासन-प्रबन्धक था। उसके शासन-प्रबन्ध की प्रशंसा करते हुए कीन ने ठीक ही कहा है, “किसी भी सरकार ने, यहां तक कि अंग्रेजी सरकार ने भी, इस पठान, (शेरशाह) जैसी योग्यता नहीं दिखाई।”

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 3 शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय

PSEB 11th Class Physical Education Guide शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
रिक्त स्थान भरो : (Fill in the blanks)

  1. मानवीय शरीर एक ……………….. मशीन है।
  2. मानवीय शरीर के भिन्न-भिन्न अंग मिलकर शरीर की को चलाते हैं।

उत्तर-

  1. उलझी
  2. क्रिया प्रणाली।

प्रश्न 2.
कोशिका क्या है ? (What is cell ?)
उत्तर-
कोशिका (Cell) कोशिका अंगों का जन्म मानवीय कोशिका (सैल) के पैदा होने के साथ हुआ है।
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यह मानवीय जीवन की प्राथमिक इकाई होती है। इन्हें नंगी आँख के साथ नहीं देखा जा सकता। इनका काम अपने :अन्दर भोजन को एकत्रित करके रखना है और भोजन के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा पैदा करना होता है।
सैल के प्रकार (Types of Cell)—सैल दो प्रकार के होते हैं-यूकेरेओटिक तथा प्रकोरीओटिक। यूकेरेओटिक सैल पौधों, जानवरों तथा मनुष्यों में पाया जाता है।
यूकेरेओटिक सैलों के आधारभूत ढांचों में डी०एन०ए० (DNA) रिबोसोम, एंडोप्लास्मिक रैटीक्यूलम, गॉलजी उपकरण, साइटोस्केलेटन, माईटोकॉड्रिया, सैंटीअलाइज़, लाइसोम, प्लाज्मा झिल्ली और साइटोप्लाज्म आदि शामिल होते हैं। ।
सैल की बनावट तथा फंक्शन चार्ट
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Fig. Different types of cells

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प्रश्न 3.
हड्डियाँ क्या हैं ? इनकी किस्मों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें। (What are the bones ? Write in detail about their types.)
उत्तर-
“हड्डियां” (Bones)-मनुष्य के शरीर की रचना अनगिनत कोशिकाओं (Cells) से बनी हुई है। मनुष्य शरीर के अंग भिन्न-भिन्न किस्म की कोशिकाओं से बने हुए हैं जो अलग-अलग तरह के काम में लगे हुए हैं। शरीर के सारे अंग चमड़ी द्वारा ढके हुए हैं। चमड़ी शरीर के अंगों की रक्षा करती है। यदि शरीर में किसी भाग को ज़ोर से दबाकर देखा जाए तो हमें कुछ चीज़ महसूस होगी। ये सख्ती हड्डियों के कारण होती है। हड्डियां कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों के मिलाप से बनती हैं। ये संवेदनशील अंगों की रक्षा करती हैं। हमारे शरीर में 206 हड्डियां होती हैं।

हड्डी की कड़क एवं रचना (Stiffiness and Construction of Bones)-शरीर के लगभग सारे अंगों में हड्डियां होती हैं। ये हड्डियां कई प्रकार की मज़बूत और कठोर कोशिकाओं से बनी होती हैं। हड्डियों में कड़क कुछ विशेष प्रकार के लक्षणों के कारण होती है। इनमें प्रमुख लक्षण कैल्शियम कारबोनेट, मैग्नीशियम फास्फेट और कैल्शियम फास्फेट की बड़ी हड्डियों के साथ-साथ छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं जो इन तत्त्वों से ही बनी होती हैं।

मनुष्य का अस्थि पिंजर (Human Skeleton)-शरीर के अन्दर मिलने वाली बड़ी और छोटी हड्डियां मिलकर एक पिंजर की रचना करती हैं। ये पिंजर की भिन्न-भिन्न हड्डियां जब मिलकर शरीर के लिए काम करती हैं तो इसको हम मानवीय अस्थि पिंजर (Human Skeleton) कहते हैं।
मानवीय अस्थि पिंजर के कार्य (Functions of Human Skeleton)—

  1. मनुष्य अस्थि पिंजर शरीर को एक विशेष प्रकार की शक्ल देता है।
  2. ये शरीर को सीधा रखता है।
  3. पेशी प्रबन्ध और अन्य अंगों को सहारा देता है और उसके साथ मिलकर शरीर के अलग-अलग अंगों को हिलने और चलने-फिरने की शक्ति देता है।
  4. मनुष्य पिंजर में स्थान-स्थान पर उत्तोलक (Levers) बनते हैं।
  5. पिंजर का कुछ भाग जैसे पसलियां (Ribs) और सीना हड्डी (Sternum) की खास क्रिया सहायक होता है।
  6. अनियमित हड्डियां (Irregular Bones)-जैसे रीढ़ की हड्डियां।

हड्डियों का वर्गीकरण (Different Types of Bones)—

  1. लम्बी हड्डियां-ये अपने आकार में लम्बी होती हैं। ये लम्बी सॉफ्ट से मिलकर बनती हैं जिसके दो सिरे होते हैं। ये आमतौर पर सघन होती हैं, परंतु हड्डी के अंत में ये गुद्देदार होती हैं । टांग (फीमर), बाजू (ह्यूमर्स) आदि लम्बी हड्डियों की उदाहरण हैं।
  2. छोटी हड्डियां-ये आमतौर पर लम्बकारी, चपटी और आकार में छोटी हड्डियां होती हैं। ये ज्यादातर स्पंजी हड्डियां हैं जो कि सघन हड्डी की पतली परत के साथ ढकी होती हैं। छोटी हड्डियों में कलाई तथा ऐड़ी की हड्डियां शामिल होती हैं।
  3. चपटी हड्डियां-पतली, स्टीपांड और आमतौर पर समतल होती हैं; जैसे-खोपड़ी तथा कुछ चेहरे की हड्डियां।
  4. अनियमित हड्डियां-हड्डियां जो कि उपरोक्त तीनों श्रेणियों में नहीं आती, वह मुख्य तौर पर खोखली हड्डियां होती हैं। ये आमतौर पर स्पंजी हड्डियां होती हैं जो कि कॉमपैक्ट हड्डी की पतली परत के साथ ढकी होती हैं। रीढ़ की हड्डी तथा कुछ खोपड़ी की हड्डियां इसी की उदाहरण हैं।
  5. तिल रूप की हड्डियां-ये हड्डियां जोड़ों को पकड़ने में सहायक होती हैं। ये बीज के आकार की होती हैं। ये जोड़ों के नज़दीक मांस-पेशियों में पाई जाती हैं।

अस्थि पिंजर की कुल हड्डियों की गिनती
(Total Number of Bones in Human Skelton)

हड्डियां कुल गिनती
खोपड़ी और चेहरे की हड्डियां 22
धड़ की हड्डियां 33
पसलियों की हड्डियां 24
छाती की हड्डी 01
कॉलर की हड्डियां 02
कंधे की हड्डियां 02
बाजुओं की हड्डियां 60
टांगों की हड्डियां 62
कुल हड्डियां 206

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Fig. Different Types of Bones

मानव हड्डियों का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है :—
खोपड़ी की हड्डियां (Bones of the Skull)-खोपड़ी की हड्डियों में दिमाग घर की हड्डियां (Bones of the craniãUm) और चेहरे की हड्डियां (Bones of the face) शामिल हैं। ये कुल 22 हड्डियां हैं। 8 हड्डियां दिमाग घर और 14 चेहरे की हैं।
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Fig. Bones of the Skull

दिमाग घर की हड्डियां (Bones at the skull)-दिमाग घर की हड्डियां इस प्रकार हैं—

  1. माथे की हड्डी या ललाट हड्डी (Fronta-1 Bone)—ये हड्डी सामने माथे और ऊपरी भाग का निर्माण करती
  2. मोति अस्थि या टोकरी की हड्डियां (Parietal Bones)—ये हड्डियां गिनती में 2 हैं। ये खोपड़ी को दो बराबर भागों में बांटती हैं। इस प्रकार ये दाएं-बाएं और बाएं-दाएं का निर्माण करती हैं।
  3. कनपटी की हड्डियां (Temporal Bones)—ये गिनती में 2 हैं। ये दाएं कनपटी और बाईं कनपटी की बनाक्ट करती हैं।
  4. पंचर हड्डी (Sphenoid Bone)-इस हड्डी द्वारा खोपड़ी के आधार (Base) का निर्माण होता है। इसकी शक्ल चमगादड़ (Bat) या खुले हुए पंख जैसी होती है। कनपटी की हड्डियों और पिछली कपाल अस्थि (Dicipital Bones) में मिलती है।
  5. पिछली कपाल अस्थि (Occipital Bones)-ये हड्डी सिर के पिछले भाग का निर्माण करती है।
  6. छानगी हड्डी (Ethnoid Bone)-ये हड्डी नाक की छत का निर्माण करती है। ये पंचर हड्डी के आगे होती है। ये कनपटी को दो बराबर भागों में बांटती है। यह सामने की तरफ की ललाट हड्डी Frontal Bones से मिलती है।

चेहरे की हड्डियां (Bones of the face) चेहरे की कुल 14 हड्डियां हैं। ये इस प्रकार हैं—

  1. ऊपरी जबड़े की दो हड्डियां (Superior Maxillary Bones)
  2. निचले जबड़े की हड्डी (Inferior Maxillary Bones)
  3. तालू की दो हड्डियां (Palate Bones)
  4. नाक की हड्डियां (Nasal Bones)
  5. गोल की दो हड्डियां (Molar Bones)
  6. सीप आकार की दो हड्डियां (Spongy Bones)
  7. अश्रु की हड्डियां (Lachrymal bones) ये छोटी-छोटी दो हड्डियां हैं जो आंखों के रगेल का अगला भाग बनाती हैं।
  8. नाक के पर्दे वाली हड्डी (Vomer bone) एक ऐसी हड्डी है जो नाक के पर्दे का निर्माण करती है।

धड़ की हड्डियां (Bones of the Trunk)-मानवीय शरीर के गर्दन से लेकर कमर तक के भाग को धड़ (Trunk) कहते हैं। डायाफ्राम (Diaphragm) इस भाग के आधे में होता है जो उसको दो भागों में बांटता है। सामने की ओर सीना हड्डी (Breast Bones Sternum) और पिछले भाग में रीढ़ की हड्डी है। इन दोनों तरह की हड्डियों से पसली की हड्डियां जुड़ी होती हैं। इन सब हड्डियों को हम धड़ की हड्डियां (Bones of the Trunk) कहते हैं।

हम ऐसे भी कह सकते हैं कि धड़ की हड्डियों में रीढ़ की हड्डी पसलियां, कंधे की हड्डी, डायाफ्राम और गुर्दे की हड्डियां हैं। इन सबका बारी-बारी वर्णन निम्नलिखित है—

रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column)-रीढ़ की हड्डी को मानवीय शरीर का आधार कहा जाता है। ये गर्दन से शुरू होकर मल-मूत्र के निकास स्थान तक जाती है। आदमी के शरीर में इसकी लम्बाई 70 सैंटीमीटर और औरतों के शरीर में 60 सैंटीमीटर होती है। इस बीच 33 मोहरे या मनके (Vertebral) हैं। इन 33 मनकों के संग्रह को हम रीढ़ की हड्डी (Vertebral Column) कहते हैं। रीढ़ की हड्डी का बीच का भाग खोखला होता है। ये मोहरे की नली (Neural Canal) का निर्माण करती है। इस बीच सुषम्ना नाड़ी (Spinal Cord) निकलती है।
रीढ़ की हड्डी के भाग (Parts of Vertebral Column)-रीढ़ की हड्डी को हम निम्नलिखित पांच प्रमुख भागों में बांट सकते हैं—

1. गर्दन के मनके (Cervical Vertebrae)-पहले सात मनकों को हम गर्दनी मनके कहते हैं। ये कंधे के ऊपर होते हैं। सब से पहले मनके को सिर का आधार स्थान (Atlas) कहते हैं। ये सिर को सहारा देता है। दूसरे गर्दन के मनके को (Axis) कहते हैं। पहले दोनों मनकों की बनावट शेष मनकों से अलग है।

2. पीठ के मनके (Dorsal Vertebrae)-ये 12 मनकों का समूह है। इन मनकों के आगे पसलियां होती हैं। ये सब मनके सामने की पसलियों के साथ और पीछे पीठ की रीढ़ की हड्डी से जुड़े होते हैं।

3. कमर के मनके (Lumber vertebrae)-ये पांच मनके होते हैं जो कमर का निर्माण करते हैं। इसकी कुल लम्बाई 18 सैंटीमीटर होती है। ये हिलने वाले मनके होते हैं। सबसे नीचे वाला मनका कीमत की या तिडागी की . हड्डी (Sacrum) ऊपर टिका होता है।
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4. तिलम की या तिड़ागी हड्डी (Sacrum)—इस बीच पांच मनके होते हैं जो मिलकर एक तिकोणी हड्डी का निर्माण करते हैं, जो मुलेह के ऊपरी और पिछले भाग में स्थित हैं। ये कूल्हे के बीच दोनों हड्डियों के बीच एक पंचर की तरह होती है।

5. हड्डियां (Bones)-ये रीढ़ की हड्डी का सबसे निचला भाग है। ये चार मनकों का संग्रह है। छाती की हड्डी (Stornum)-ये लगभग 6-7 इंच लम्बी होती है। इसका ऊपरी भाग चौड़ा और नीचे वाला भाग पतला होता है। इसके ऊपरी भाग या चौड़े भाग में गर्दनी मनके (Cervical vertabrae) दोनों ओर जुड़े होते हैं। ये गर्दनी मनके ऊपर और नीचे (Cortal Cartilages) द्वारा पड़ती है।

पसलियां (Ribs)-छाती की हड्डी के दोनों ओर 12-12 पसलियां होती हैं। इनका अगला भाग Cortal Cartilages द्वारा छाती की हड्डी में जुड़ता है। पहली सात पसलियां छाती की हड़ी से अलग-अलग रूप में जुड़ जाती हैं। आठवीं, नौवीं और दसवीं पसलियां छाती की हड्डी के साथ जुड़ने से पहले ही सातवीं पसली में जुड़ जाती हैं। आखरी दो पसलियां स्वतन्त्र हैं। इनको उड़ती या तैरती VERTEBRAL FLOATING पसलियां (Floating Ribs) भी कहा जाता है। ये सब पसलियां मिलकर एक पिंजर का निर्माण करती हैं। ये पिंजर दिल और फेफड़ों की रक्षा करता है। पसलियों के बीच के स्थान में मांसपेशियां होती हैं। ये मांसपेशियां श्वास लेने से फैलती या सिकुड़ती हैं जिस कारण ये पिंजर ऊपर नीचे उठता बैठता रहता है।
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भुजाओं की हड्डियां (Bones of the upper limbs)-भुजाओं की हड्डियों की गिनती 64 है। भुजाओं की गिनती 2 है। इस तरह प्रत्येक भुजा में 32 हड्डियां हैं। भुजाओं की हड्डियों में कंधे व हाथों की हड्डियां शामिल हैं। आइए इन हड्डियों का अलग-अलग तौर पर वर्णन करें—

(क) कंधे की हड्डियां (Bones of the shoulders)-कन्धे की हड्डियों में दो प्रमुख हड्डियां हैं—
1. हंसली हड्डियां या छाती की हड्डियां (Clavicles or Collar Bones)

(ख) मौर की हड्डी (Scapula)-इनका विस्तार से वर्णन नीचे किया गया है—
1. हंसली हड्डी या मौर की हड्डी (Clavicles or Collar Bones)-हंसली हड्डी की शक्ल अंग्रेजी के अक्षर S की तरह होती है। यह छाती के ऊपरी भाग में अगली तरफ स्थित होती है। यह एक तरफ छाती की हड्डी के सिरे के साथ व दूसरी तरफ कंधे की हड्डी के साथ जुड़ी होती है। दूसरा मुख्य काम कंधे की हड्डी को अपनी जगह पर स्थिर रखना है। छाती की हड्डी से जुड़े हुए हिस्से को छाती का बाहरी तल (External surface) व मौर की हड्डी के साथ जुड़ने वाले हिस्से को अर्सकुट तल (Acrominal surface) कहते हैं।
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Fig. Clavicles or Collar Bones
मौर की हड्डी (Scapula)—यह चौड़ी व तिकोने आकार की होती है। यह पीठ के ऊपरी भाग में होती है। इसके ऊपर वाले बाहरी कोण पर एक चिकना अंडे की तरह का गड्ढा होता है। इसमें डौले की हड्डी ठीक तरह बैठती है।
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बाजू की हड्डी (Bones of upper Arms)-बाजू की हड्डियों का वर्णन नीचे किया गया है—
डौले की हड्डी (Humerus)-डौले की एक लम्बी हड्डी होती है। इसका ऊपरी भाग गोल होता है जो कि कंधे की हड्डी में ठीक बैठता है। इसका निचला भाग बीणी व दोनों हड्डियों से मिल कर कुहनी के जोड़ (Elbow Joint) का निर्माण करती है।
बाज के अगले भाग की हड़ियां (Bones of for Arms)

1. छोटी वीण-हड्डी रेडियस (Radius)-यह बाजू के अगले भाग में अंगठे की तरफ एक बड़ी हड्डी है। इस हड्डी का ऊपरी सिरा गोल होता है। यह दोनों की हड्डी के साथ जुड़ा होता है। इसका नीचे का भाग हाथ के पास हड्डियों से जुड़ा होता है।

2. बड़ी वीण हड्डी (UIna)—यह बाजू के बीच में होता है। यह रेडियस या छोटी वीण हड्डी से कुछ बड़ी होती है। इसके तीन भाग होते हैं—
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(1) ऊपरी
(2) बीच वाला
(3) नीचे वाला
यह डौले की हड्डी के साथ कुहनी के जोड़ के द्वारा मिलती है। इसके
ऊपरी सिरे पर एक हड्डी बाहर को निकली रहती है। जिस के साथ कुहनी पर नोकदार उभार (Obsecranon) वाला है। जिसका निचला सिरा छोटा व गोल होता है, जोकि हाथ के पास हड्डियों से मिलता है।

3. कलाई की हड्डियां (Carpal Bones)—यह छोटी-छोटी 8 हड्डियां हैं जो कि चार-चार की दो लाइनों में स्थित हैं। यह इनके द्वारा जुड़ कर अपने स्थान पर ठीक तरह कायम रहती हैं। यह हड्डी के ऊपरी भाग बड़ी वीण हड्डी व निचली तरफ हथेली हड्डी के साथ जुड़ी होती है।

4. हथेली की हड्डियां (Metacarpal bones)–हथेली की पांच छोटी व पांच बड़ी हड्डियां हैं। ये एक तरफ उंगलियों की हड्डियों से जुड़ी होती हैं।

5. उंगलियों की हड्डियां (Bones of the fingers or Phalanges)-उंगलियों में कुल 14 हड्डियां हैं। प्रत्येक उंगली में तीन-तीन व अंगूठे में दो हड्डियां होती हैं। ये हड्डियां छोटी व मज़बूत होती हैं। हथेली की तरफ प्रत्येक हड्डी हथेली की हड्डियों से जुड़ी होती है। यह अंगुली के भीतर उंगली हड्डी जोड़ का निर्माण करती है।

टांग की हड्डियां (Bones of leg)-टांग की हड्डियों का वर्णन निम्नलिखित किया गया है—
1. हिप की हड्डी (The Hip Bone)-इस हड्डी की शक्ल बेढंगी सी होती है। ये काफ़ी बड़ी होती है। ये ऊपर और नीचे फैली हुई होती है और बीच से पतली होती है। ये हड्डी अगले तरफ दूसरे तरफ की साथी हड्डी से जुड़ती है। ये दोनों हड्डियां हड्डी Loccyx और तिड़ागी हड्डी (Sacrum) से मिलकर, पेडू गर्लड (Pelvic Girdle) का निर्माण करती है। हिप की हड्डी के नीचे लिखे तीन प्रमुख भाग हैं—

  1. पेडू अस्थि (Illum)-ये कूल्हे का ऊपरी चौड़ा भाग है।
  2. आसन अस्थि (Ischenum)—ये कूल्हे का निचला भाग है।
  3. पिऊबिस (Pubis)—ये कूल्हे का निचला भाग है।

ये तीन भाग बच्चों में उप-अस्थि से जुड़े होते हैं परन्तु आयु के बढ़ने के साथ जवानी तक ये हड्डी द्वारा जुड़ जाते हैं। कूल्हे के ये तीन भाग ही हड्डी से मिलकर एक प्याले या टोपी की शक्ल का निर्माण करते हैं। इस प्याले को एसीटैनबुलम (Acetabulum) कहते हैं। इस बीच जांघ की हड्डी (Femur) का गोल सिरा घूमता है। पेडू-अस्थि Pelvis की शक्ल एक बर्तन की तरह होती है जिसको निचली टांगें सहारा देकर रखती हैं। यह बर्तन पेट के कोमल अंगों की रक्षा करता है।
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2. जांघ की हड्डी (The Femur)-हमारे शरीर की जांघ की हड्डी सबसे लम्बी हड्डी है। यह शरीर की सभी … हड्डियों से शक्तिशाली होती है। यह डोलों की हड्डी की तरह होती है। इस का नीचे वाला भाग चौड़ा होता है व यह पिंडी की टिबिया (Tibia) हड्डी के साथ जोड़ का निर्माण करती है। इसके ऊपरी भाग पर गोल आकार की एक टोपी या प्याले जैसे होती है जो कि ऐसीटेबुलम (Acetabulum) में फंस कर चूल्हे के जोड़ का निर्माण करती है।
3. पिंजनी अस्थि या टिबिया (The Tibia)—यह टांग की दोनों हड्डियों से मोटी व बलशाली होती है। यह शरीर में लम्बाई व ताकत में जांच की हड्डी के बाद दूसरे नम्बर पर है। इसका रूप कुछ चपटा होता है। इस के दो सिरे उभरे होते हैं—

  1. ऊपरी भाग (Upper end)—यह मोटा होता है। इसका रूप कुछ चपट होता है।
  2. नीचे वाला भाग (Lower end) यह नीचे पैर के पास हड्डियों के साथ मिलता है। इसकी शाफ्ट (Shaft) तिकोनी होती है।

4. बाहरी पिंजनी अस्थि (The Fibula)—यह आकार में पिंजनी अस्थि (Tibia) से पतली है। यह पिंजनी वाली तरफ स्थित होती है। यह शरीर का सारा भार उठाती है। इस के नीचे लिखे मुख्य भाग हैं—
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1. ऊपरी
2. मध्य वाला
3. नीचे वाला

इसका ऊपरी व नीचे वाला भाग दोनों ही मजबूती के साथ जुड़े होते हैं। इस कारण यह पिंजनी अस्थि टिबिया के आसपास नहीं घूम सकती। यह टिबिया के बिल्कुल समानान्तर होती है। पिंजनी अस्थि (Tibia) व बाहरी पिंजनी अस्थि (Fibula) दोनों मिल कर नीचे के जोड़ का निर्माण करती हैं।

5. घुटने की हड्डी (Knee Cap or Patella)यह तिकोने आकार की हड्डी होती है। यह चौदह मज़बूत तंतुओं द्वारा स्थित रहती है। यह घुटने के जोड़ के ऊपर होती है व जोड़ की रक्षा करती है।
6. पैर की हड्डियां (Bones of the foot)-पैर की हड़ियां मुख्य रूप में नीचे लिखे तीन तरह की होती हैं—
(i) टखने की हड्डियां
(ii) पंजे की हड्डियां
(ii) उंगलियों की हड्डियां

  1. टखने की हड्डियां (Ankle Bones or Tarsal Bones) ये संख्या में सात हैं। ये छोटी-छोटी हड्डियां होती हैं। ये पैर के पिछले आधे भाग यानि एड़ी रखने व पैर का निर्माण करती हैं। ये हड्डियां कलाई की हड्डी से मोटी व मज़बूत होती हैं। ये शरीर का सारा भार बांट कर उठाती हैं। ये भी कलाई की हड्डियों की तरह दो लाइनों में होती हैं।
  2. पंजे की हड्डियां (In-stepbones, Meta Carpal Bones)—इनकी संख्या भी पांच है। यह आकार में पतली व लम्बी होती हैं। ये अगली तरफ उंगलियों व पिछली तरफ टखने की हड्डियों से जुड़ी होती हैं।
  3. उंगलियों की हड्डियां (The Phalenges of the foot or toes) हाथों की उंगलियों की हड्डियों की तरह पैर की उंगलियों की हड्डियों की संख्या में व बनावट में मिलती-जुलती हैं। अंगूठे में दो व प्रत्येक उंगली में तीनतीन हड्डियां होती हैं। यह हाथ की उंगलियों की हड्डियों के मुकाबले में लम्बाई में छोटी होती हैं।

पैरों को शरीर का सारा भार उठाना पड़ता है। इस कारण पैरों की हड्डियों की तरफ़ से ही भारी, चपटी व मजबूत होती है। पैरों में एक खाली स्थान (ARCH) होता है, जो मनुष्य को चलने में मदद करता है।

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प्रश्न 4.
जोड़ क्या हैं ? इनकी किस्में लिखें। किसी एक जोड़ की पूरी जानकारी दीजिए। (What are joints ? Names their types and explain any one type in detail.)
उत्तर-
परिभाषा (Definition)-प्रत्येक वह जगह जहां की दो या दो से अधिक हड्डियों से सिरे मिलते हैं, उनको जोड़ (Joints) कहते हैं।
जोड़ों की बनावट (Structure of Joints)-लम्बी हड्डियां अपने सिरों, बेडौल हड्डियां अपने तलों के कुछ हिस्सों व चपटी हड़ियां अपने किनारों के साथ जोड़ों का निर्माण करती हैं।
जोड़ मानव पिंजर (Human skeleton) को लचक देते हैं। आम तौर पर जोड़ों के तल हड्डियों के शाफ्टों से मोटे होते हैं।
जोड़ों की किस्में या श्रेणियों में बांट (Kinds, Types, Classification of Joints)—जोड़ों के कार्य और इनकी बनावट के आधार पर हम इनको निम्नलिखित मुख्य श्रेणियों में बांट सकते हैं—

  1. रिसावदार अथवा सिनोवीयल (Synovial) जोड़।
  2. रेशेदार जोड़।
  3. उप-अस्थि जोड़।

जोड़ों की इन श्रेणियों का संक्षिप्त वर्णन नीचे किया गया है—
1. रिसावदार अथवा सिनोवीयल जोड़ (Synovial Joints)-शरीर में इस प्रकार के काफ़ी जोड़ हैं, जैसे कि टांगों और भुजाओं के जोड़। इन जोड़ों के अन्दर बहुत ही मुलायम सिनोवीयल (Synovial) झिल्ली होती है। इस प्रकार के जोड़ों में रक्त की नाड़ियां (Blood Vessels) और लसीका वाहनियों (Lymphatic Vessels) का बहुत प्रसार होता है। यह जोड़ों के ठीक प्रकार से कार्य करने के लिए आवश्यक हैं। ये जोड़ शेष दो प्रकार के जोड़ों से काफ़ी अलग प्रकार के हैं।
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Fig. Synovial Joint
Fig. Section of Synovial Joint
रिसावदार जोड़ों की किस्में (Classification of Synovial Joints)-गति के आधार पर रिसावदार जोड़ों को हम निम्नलिखित मुख्य भागों में बांट सकते हैं—

1. कब्जेदार जोड़ (Hinged Joints)-इन जोड़ों में विरोधी तल इस प्रकार लगे होते हैं कि गति केवल एक ओर ही हो सकती है। इस प्रकार के जोड़ों की हड्डियां बहुत ही सुदृढ़ उप-अस्थियों के साथ बन्धी हुई हैं, जैसे-टखनों और उंगलियों के जोड़।

2. घूमने वाले जोड़ (Pivot Joints)—इस प्रकार को जोड़ों की गति चक्र में होती है। इस प्रकार के जोड़ में एक हड्डी छल्ला बनाती है और दूसरी इसमें एक धुरी की भांति फंसी हुई होती है। यह छल्ला एक सख़्त हड्डी और उपअस्थि का बना होता है। इसी प्रकार के जोड़ का निर्माण एटलस (Atlas) और एक्सिस (Axis) कशेरुकाओं के साथ होता है।
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Fig. Hinged Joint

3. फिसलनदार जोड़ (Sliding Joints)—इन जोड़ों में गति फिसलनदार होती है। इन जोड़ों की गति इनका निर्माण करने वाले तन्तुओं (Ligaments) के ऊपर निर्भर करती है। इस प्रकार के जोड़ साधारणतया तलों की विरोधता से बनते हैं। इस प्रकार के जोड़ प्राय: कलाई, घुटने और रीढ़ की हड्डी की कशेरुकाओं में मिलते हैं।

4. गेंद और छेद वाले जोड़ (Ball and Socket Joints)-इस प्रकार के जोड़ में हड्डी का एक सिरा गेंद
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Fig. Ball and Socket Joints
की भांति गोल और दूसरा एक प्याले की भांति होता है। गेंद वाला भाग प्याले में फिट होता है। इस प्रकार गेंद वाली हड्डी किसी भी दिशा में घूम सकती है। इस प्रकार के जोड़ कन्धे और कूल्हे में होते हैं।

5. कोनडिलॉयड जोड़ (Condyloid Joint)—ये कब्जेदार जोड़ जैसे ही जोड़ होते हैं। परंतु इनमें गति दोनों तरफ होती है। इस तरह के जोड़ों में लचकता, फैलाव जैसी गतियां या हलचलें पैदा की जाती हैं।

6. सैडल जोड़ (Saddle Joint)—इस प्रकार के जोड़ों में हड्डी उत्तल तथा अवतल प्रकार से जुड़ी होती है। अंगूठे का जोड़ इसका उदाहरण है।

2. रेशेदार जोड़ (Fibrous Joints)-वे जोड़ जिनमें हड्डियों के तल धागे जैसे बारीक रेशों से बन्धे हुए होते. हैं, रेशेदार जोड़ कहलाते हैं। ये जोड़ गतिहीन होते हैं, जैसे कपाल की हड़ियों के जोड़।
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Fig. Fibrous Joints
Fig. Cartilagenous Joints

3. उप-अस्थि जोड़ (Cartilaginous Joints)-इन विरोधी हड्डियों के सिरे उप-अस्थियों के साथ जुड़े होते हैं और इनमें गति किसी विशेष सीमा तक ही होती है। यह उप-अस्थि अन्त में हड्डी का रूप धारण कर लेती है। इस प्रकार की उप-अस्थियों में सीधा रक्त प्रसार नहीं होता। वे अपनी खुराक जोड़ के अन्दर से सिनोवीयल रस से प्राप्त करते हैं। यह स्वस्थ मांस पट्टी काफ़ी सुदृढ़ होती है और इसमें काफ़ी लचक भी होती है परन्तु जब जोड़ों में से सिनोवीयल रस की मात्रा समाप्त हो जाती है तो ये सख्त हो जाते हैं और इसी कारण जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है।

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Physical Education Guide for Class 11 PSEB शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान का परिचय Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
रीढ़ की हड्डी के मनके होते हैं ?
उत्तर-
रीढ़ की हड्डी के कुल 33 मनके होते हैं।

प्रश्न 2.
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक जगह मिलें तो उसे क्या कहते हैं ?
उत्तर-
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक जगह मिलें तो उसे जोड़ कहते हैं।

प्रश्न 3.
जोड़ों की किस्में होती हैं :
(a) रिसावदार अथवा सिनोवीयल जोड़
(b) रेशेदार जोड़
(c) उप-अस्थि जोड़।
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 4.
रिसावदार की किस्में होती हैं.
(a) चार
(b) तीन
(c) दो
(d) पाँच।
उत्तर-
(a) चार।

प्रश्न 5.
(1) बड़ी वीण हड्डी (UIna)
(2) छोटी वीण हड्डी-हड्डी रेडियस (Radius) ये हड्डियाँ कहाँ पाई जाती हैं ?
उत्तर–
बाजू की हड्डियों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 6.
रिसावदार जोड़ों की कितनी किस्में हैं ?
उत्तर-
रिसावदार जोड़ों की चार किस्में हैं।

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प्रश्न 7.
लम्बी हड्डियां शरीर में कहाँ पाई जाती हैं ?
उत्तर-
लम्बी हड्डियां शरीर में बाजू और टांगों में पाई जाती हैं।

प्रश्न 8.
मनुष्य में कुल मिला कर कितनी हड्डियां होती हैं ?
उत्तर-
मनुष्य में कुल मिलाकर 206 हड्डियां होती हैं।

प्रश्न 9.
जोड़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब दो या दो से अधिक हड्डियां एक स्थान पर मिलें तो उसे जोड़ कहते हैं।

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प्रश्न 10.
अनाटमी क्या है ?
उत्तर-
अनाटमी वह विज्ञान है जो शरीर की बनावट और सभी अंगों का आपसी सम्बन्ध की जानकारी देते हैं।

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक शिक्षा और खेलों के बीच अनाटमी और फिजिओलोजी के दो लाभ लिखें।
उत्तर-

  1. खिलाड़ियों के प्रदर्शन में वृद्धि होती है।
  2. अच्छी सेहत बनती है।

प्रश्न 2.
कोशिकाएं (Cells) क्या हैं ?
उत्तर-
कोशिकाएं जीवन की प्राथमिक इकाई हैं। इन कोशिकाओं और कोशिका अंगों को नंगी आँख के साथ नहीं देखा जा सकता। इन्हें सूक्ष्मदर्शी की सहायता से देखा जा सकता है। ये अपने भीतर को एकत्रित करके रखते हैं और भोजन के ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा उत्पन्न करते हैं। इस ऊर्जा का प्रयोग शारीरिक क्रियाएं करने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 3.
लम्बी हड्डियां शरीर में कहां पाई जाती हैं ?
उत्तर-
इस किस्म की हड्डियां टांगों तथा बाजुओं में पाई जाती हैं। यह हमें चलने-फिरने तथा क्रियाएं करने में मदद करती हैं। इन हड़ियों के बिना शारीरिक क्रियाएं करना असम्भव है। इन हड्डियों के दो सिरे तथा एक शाफ्ट होती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अस्थि पिंजर के कोई तीन कार्य लिखो।
उत्तर-

  1. मनुष्य अस्थि पिंजर शरीर को एक खास प्रकार की शक्ल देता है।
  2. यह शरीर को सीधा रखता है।
  3. मनुष्य पिंजर में जगह-जगह पर उतोलक (Livers) बनते हैं।

प्रश्न 2.
हड्डियों की किस्में लिखो।
उत्तर-

  1. लम्बी हड्डियाँ
  2. छोटी हड्डियाँ
  3. चपटी हड्डियाँ
  4. बेढंगी हड्डियाँ
  5. तिल रूपी हड्डियाँ।

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प्रश्न 3.
शारीरिक रचना विज्ञान क्या है ?
उत्तर-
मानवीय शरीर रचना विज्ञान का अध्ययन करने से पता लगता है कि शारीरिक अंगों का जन्म मानवीय कोशिका (सैल) के उत्पन्न होने के साथ हुआ है। कोशिका (सैल) के समूह से ऊतक (टिशु) बनते हैं, और उतकों का समूह एकत्रित होकर अंग और अंगों के सुमेल से प्रबंध बनते हैं।

प्रश्न 4.
ऊतक तथा प्रबन्ध का वर्णन करो।
उन्नर-
1. ऊतक (Tissue)-कोशिका (सैल) के समूह से ऊतक बनते हैं। जब एक ही आकृति और काम करने वाली कोशिकाओं के समूह मिलकर काम करते हैं, तो उन्हें ऊतक कहा जाता है। इन ऊतकों में 60% से 90 तक पानी होता है। मानवीय शरीर में चार तरह के ऊतक पाये जाते हैं, जैसे-संयोजक ऊतक, मांसपेशियां ऊतक एवं नाड़ी ऊतक।

2. प्रबंध (System).-सैल के समूह ऊतक, ऊतक के समूह से अलग-अलग अंग तथा एक जैसे काम करने वाले अलग-अलग अंग मिलकर प्रबंध (System) बनाते हैं। साधारण शब्दों में शरीर के अलग-अलग अंगों के मिश्रण से प्रबंध बनते हैं, जैसे-श्वास प्रबंध, रक्त प्रवाह प्रबंध, मांसपेशियां प्रबंध, नाड़ी प्रबंध, मल त्याग आदि। ये अंग अपनाअपना काम लय और दूसरे अंगों के सहयोग के साथ करते हैं।

प्रश्न 5.
उड़ती या तैरती पसलियां क्या होती हैं ?
उत्तर-
छाती की हड्डी के दोनों ओर 12-12 पसलियां होती हैं। इनका अगला भाग Cortal Cartilages द्वारा छाती ” की हड्डी में जुड़ता है। पहली सात पसलियां छाती की हड्डी से अलग-अलग रूप में जुड़ जाती हैं। आठवीं, नौवीं और दसवीं पसलियां छाती की हड्डी के साथ जुड़ने से पहले ही सातवीं पसली में जुड़ जाती हैं। आखरी दो पसलियां स्वतन्त्र हैं। इनको उड़ती या तैरती पसलियां (Floating Ribs) भी कहा जाता है। ये सब पसलियां मिलकर एक पिंजर का निर्माण करती हैं। ये पिंजर दिल और फेफड़ों की रक्षा करता है। पसलियों के बीच के स्थान में मांसपेशियां होती हैं। ये मांसपेशियां श्वास लेने से फैलती या सिकुड़ती हैं। जिस कारण ये पिंजर ऊपर नीचे उठता बैठता रहता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न | (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
शारीरिक क्रियाओं और खेलों के क्षेत्र में अनाटमी और फिजिओलोजी का योगदान तथा लाभ के बारे में लिखें।
उत्तर-
आधुनिक युग में शारीरिक शिक्षा और खेलों का मानवीय जीवन में बहुत महत्व हैं। ये व्यक्ति का सम्पूर्ण विकास करने में सहायक होते है। खिलाड़ियों की तरफ से रोज़ खेल के मैदान में अलग-अलग प्रकार की क्रियाएं की जाती हैं। इन खेल क्रियाओं के अभ्यास से खिलाड़ियों के खेल प्रदर्शन में सुधार होता रहता है। जिससे खिलाड़ियों के अंगों और प्रबंधों के कार्य करने की समर्था में वृद्धि होती है। इसलिए खेल क्रियाओं में सुधार के लिए विभिन्न अंगों की बनावट और काम को समझना अनिवार्य है। शरीर को नया निरोग, ताकतवर रखने के लिए, शारीरिक रचना और क्रिया विज्ञान (Anatomy and Physiology) के बारे में जानकारी होना बहुत अनिवार्य है।
शारीरिक शिक्षा और खेलों के क्षेत्र में अनाटमी और फिजिओलोजी के लाभ—

  1. ये खिलाड़ी की समार्थ्यता के मूटयांकन में मदद करता है।
  2. ये मानवीय शरीर पर अभ्यासों के प्रभावों के अध्ययन में मदद करता है।
  3. ये ट्रेनिंग सैशन के दौरान शरीर की सही स्थिति बनाने में मदद करता है।
  4. ये चोटों की किस्मों की पहचान करने में मदद करता है।
  5. यह स्पोर्टस पोषण की आधारभूत जानकारी प्राप्त करने में मदद करता है।
  6. ये खेल की चोटों के शीघ्र उपचार करने में मदद करता है।
  7. ये किसी खिलाड़ी की स्पोर्टस कार्यक्षमता को बेहतर बनाने में मदद करता है।
  8. ये खिलाड़ी को शरीरिक शक्ति के अनुसार किसी खेल का चुनाव करने में मदद करता है।
  9. ट्रेनिंग सैशन के दौरान हुई थकावट की रिकवरी में मदद करता है।
  10. ये किसी खिलाड़ी के शारीरिक ढांचे के सकारात्मक या नकारात्मक पहलुओं की जानकारी प्रदान करता है।

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प्रश्न 2.
मानवीय अस्थि पिंजर पर व्यायाम के प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-
मानवीय अस्थि पिंजर पर व्यायाम के प्रभाव (Effects of Exercise on Human Skeletal System)-व्यायाम के मानवीय अस्थि पिंजर पर क्या प्रभाव पड़ते हैं ? इस बात को समझने के लिए कम समय और लगातार व्यायाम करते रहना भाव प्रशिक्षण (Training) में अन्तर डालना चाहिए। थोड़ी-थोड़ी और लगातार व्यायाम करने के लिए मानवीय अस्थि पिंजर (Human Skeleton) के ऊपर कई प्रभाव पड़ जाते हैं। कभी-कभी अनियमित ढंग के साथ व्यायाम करने के साथ शरीर के ऊपर जो प्रभाव पड़ते हैं, थोड़ी देर के लिए (अस्थायी) होते हैं। अगर इस प्रकार के व्यायाम को कुछ दिन न किया जाए तो शरीर पहले की अवस्था पर आ जाता है, परन्तु कुछ महीनों तक लगातार नियमानुसार व्यायाम करते रहने पर शरीर में पूरी तरह परिवर्तन आ जाता है। जिनकी पहचान बहुत आसानी के साथ की जा सकती है।
लागातार व्यायाम करते रहने से मानवीय अस्थि पिंजर के ऊपर जो प्रभाव पड़ते हैं वह इस प्रकार हैं—

1. लम्बाई में वृद्धि (Increase in Height)-कुछ समय लगातार व्यायाम करने के साथ नवयुवकों की हड़ियों की लम्बाई में रुकावट की वृद्धि होती है। जिस कारण उनके शरीर की लम्बाई में बढ़ोत्तरी होती है। परन्तु इसमें याद रखने योग्य बात यह है कि वृद्धि बचपन की अवस्था के अन्त तक होती है।

2. जोड़ के तन्तुओं की ताकत में वृद्धि (Increase in the strength of ligaments of Joints) लगातार नियमानुसार व्यायाम करते रहने के साथ हड्डियों और जोड़ के तन्तुओं में मजबूती आ जाती है। जिस के साथ वह ज्यादा खिंच सहने योग्य हो जाते हैं।

3. शरीर सामर्थ्य में वृद्धि और शरीर के पित्त वाले विकारों की समाप्ति (Increase in physical capacity and elimination of physical defects)-शारीरिक सामर्थ्य में वृद्धि होती है और शरीर के पित्त वाले विकार भी काफ़ी ज्यादा खत्म हो जाते हैं।

4. जोड़ों में तड़क (Flexibility of Joints) लगातार व्यायाम करने के कारण जोड़ों में तड़क उत्पन्न होती

5. आसन सम्बन्धी अवगुणों का दूर होना (Removing Postural defects) लगातार व्यायाम करने के कारण शरीर के आसन सम्बन्धी अवगुण जिस तरह कुबड़ापन या रीढ़ की हड्डी आदि का सिकुड़ना दूर हो जाते हैं।

6. प्रणालियों को दोषों से मुक्त करना (Preventing defects in systems) लगातार व्यायाम करते रहने से आसन सम्बन्धी दोषों को दूर करके शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

बिंदा सिंह बहादुर का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Banda Singh Bahadur)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक जीवन के बारे में आप क्या जानते हैं ? संक्षिप्त वर्णन करें। (What do you know about the early career of Banda Singh Bahadur ? Explain briefly.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जो सिख इतिहास में बंदा बहादुर के नाम से अधिक विख्यात हैं को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने अपनी योग्यता के बल पर पंजाब में एक के बाद एक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० में कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी नामक गाँव में हुआ। उसके बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उसके पिता जी का नाम राम देव था। वह डोगरा राजपूत जाति से संबंधित थे।

2. बचपन (Childhood)-लक्ष्मण देव एक बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था। अतः जब लक्ष्मण देव कुछ बड़ा हुआ तो वह कृषि के कार्य में पिता जी का हाथ बँटाने लग पड़ा। लक्ष्मण देव अपने खाली समय में तीरकमान लेकर वनों में शिकार खेलने चला जाता।

3. बैरागी के रूप में (As a Bairagi)-जब लक्ष्मण देव की आयु लगभग 15 वर्ष की थी तो एक दिन शिकार खेलते हुए उसने एक गर्भवती हिरणी को तीर मारा। वह हिरणी और उसके बच्चे लक्ष्मण देव के सामने तड़प-तड़पकर मर गए। इस करुणामय दृश्य का लक्ष्मण के दिल पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसने संसार को त्याग दिया और बैरागी बन गया। उसने अपना नाम बदल कर माधो दास रख लिया। घूमते-घूमते माधोदास की मुलाकात तंत्रविद्या में निपुण औघड़ नाथ से हो गई और वह उसका शिष्य बन गया। औघड़ नाथ की मृत्यु के बाद माधोदास नंदेड आ गया और शीघ्र ही अपनी तंत्र विद्या के कारण लोगों में विख्यात हो गया।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर 1
BANDA SINGH BAHADUR

4 गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट (Meeting with Guru Gobind Singh Ji)-1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड आए तो वह माधोदास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। गुरु साहिब और माधोदास के मध्य कुछ प्रश्न- उत्तर हुए। माधोदास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब जी का अनुयायी बन गया। गुरु साहिब ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तित करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

5. बंदा सिंह बहादुर का पंजाब की ओर प्रस्थान (Banda Singh Bahadur Proceeds towards Punjab)-जब बंदा सिंह बहादुर ने गुरु साहिब से पंजाब में सिखों पर मुगलों द्वारा किए गए अत्याचारों और गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदानों के संबंध में सुना तो उसका राजपूती खून खौलने लगा। उसने इन अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए गुरु साहिब जी से पंजाब जाने के लिए आज्ञा माँगी। गुरु साहिब जी ने इस निवेदन को स्वीकार कर लिया। गुरु साहिब जी ने बंदा सिंह बहादुर को पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए 25 अन्य सिखों को भी साथ भेजा। गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हुक्मनामे भी दिए। इन हुक्मनामों में पंजाब के सिखों को यह आदेश दिया गया था कि बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता मानें तथा मुग़लों के विरुद्ध धर्म युद्धों में उसका पूरा साथ दें। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को भी कुछ आदेश दिए। पहला, ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना। दूसरा, सच्चाई के मार्ग पर चलना। तीसरा, नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं चलाना। चौथा, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं . करना। पाँचवां, स्वयं को खालसा का सेवक समझना। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके 1708 ई० में पंजाब की ओर रुख किया।

बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामे (Military Exploits of Banda Singh Bahadur)

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों की चर्चा करें और पंजाब के इतिहास में उसके महत्त्व का मूल्यांकन करें।
(Discuss the military exploits of Banda Singh Bahadur and estimate their significance in the History of the Punjab.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों का विवरण दें।
(Give briefly the account of the battle fought by Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुग़लों के साथ लड़ाइयों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें। (Write in detail the battles fought between Banda Singh Bahadur and the Mughals.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों अथवा सफलताओं का संक्षेप में वर्णन करें।
(Explain briefly the military exploits or achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी तथा अन्य सिखों पर हुए अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए बंदा सिंह बहादुर गुरु जी की आज्ञा से पंजाब की ओर चल पड़ा। यहाँ पहुँचते ही उसने गुरु जी के हुक्मनामे जारी किये। परिणामस्वरूप हज़ारों की संख्या में सिख उसके ध्वज तले एकत्र हो गए। तद्उपरांत बंदा सिंह बहादुर ने अपनी सैनिक गतिविधियाँ आरंभ कर दीं
इसमें बंदा सिंह बहादुर काफ़ी सीमा तक सफल रहा। उसके महत्त्वपूर्ण सैनिक कारनामों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. सोनीपत पर आक्रमण (Attack on Sonepat)—बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ सोनीपत से किया। उसने 1709 ई० में सोनीपत पर आक्रमण कर दिया। सोनीपत का फ़ौजदार बिना मुकाबला किए ही दिल्ली की ओर भाग गया। इस प्रकार सिखों का सरलता से सोनीपत पर अधिकार हो गया।

2. समाना की विजय (Conquest of Samana)-समाना में गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद करने वाला और गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिनवा देने वाले जल्लाद रहते थे। इसलिए बंदा सिंह बहादुर ने नवंबर, 1709 ई० में समाना पर बड़ा जोरदार आक्रमण किया। समाना सिखों ने खंडहर के ढेर में परिवर्तित कर दिया। यह बंदा सिंह बहादुर की पहली महत्त्वपूर्ण विजय थी।

3. घुड़ाम तथा मुस्तफाबाद पर अधिकार (Conquest of Ghuram and Mustafabad)-समाना की विजय के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने घुड़ाम एवं मुस्तफाबाद पर आक्रमण किया तथा सुगमता से अधिकार कर लिया।

4. कपूरी की विजय (Conquest of Kapuri)-कपूरी का शासक कदमुद्दीन हिंदुओं के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। फलस्वरूप बंदा बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके कदमुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार कपूरी पर विजय प्राप्त की गई।

5. सढौरा की विजय (Conquest of Sadhaura) सढौरा का शासक उस्मान खाँ अपने अत्याचारों के लिए कुख्यात था। उसने पीर बुद्ध शाह की इसलिए हत्या करवा दी थी, क्योंकि उसने भंगाणी की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी की सहायता की थी। अतः बंदा सिंह बहादुर ने इसका बदला लेने के लिए सढौरा पर आक्रमण कर दिया। यहाँ पर मुसलमानों को इतनी भारी संख्या में मारा गया, कि सढौरा का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

6. सरहिंद की विजय (Conquest of Sirhind)-सरहिंद पर विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए अति महत्त्वपूर्ण था। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। उसकी सेनाओं के हाथों ही गुरु जी के दोनों बड़े साहिबज़ादे चमकौर साहिब की लड़ाई में शहीद हो गए थे। वज़ीर खाँ के ही भेजे गए दो पठानों में से एक पठान ने गुरु साहिब को नंदेड़ के स्थान पर छुरा मार दिया। इस कारण वह ज्योति-जोत समा गए। अतः सिखों में सरहिंद प्रति अत्यधिक घृणा थी। 12 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं के बीच सरहिंद से लगभग 16 किलोमीटर दूर चप्पड़चिड़ी नामक स्थान पर भयंकर लड़ाई हुई। फ़तह सिंह के हाथों वज़ीर खाँ के मरते ही मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई। सिखों ने वज़ीर खाँ के शव को एक वृक्ष पर लटका दिया तथा समूचे सरहिंद में भारी लूटपाट की। यह बंदा सिंह बहादुर की अति महत्त्वपूर्ण विजय थी।

7. यमुना-गंगा दोआब की विजय (Conquest of Jamuna-Ganga Doab)-सरहिंद की विजय के बाद बंदा सिंह बहादुर ने यमुना-गंगा दोआब के प्रदेशों पर आक्रमण किया। शीघ्र ही बंदा सिंह बहादुर ने सहारनपुर, बेहात, ननौता और अंबेटा को अपने अधिकार में ले लिया।

8. जालंधर दोआब की विजय (Conquest of Jalandhar Doab)-जालंधर दोआब का फ़ौजदार शमस खाँ बड़ा अत्याचारी था। उसके अत्याचारों से तंग आकर सिखों ने बंदा सिंह बहादुर से सहायता माँगी। अतः 12 अक्तूबर, 1710 ई० में राहों के स्थान पर बंदा सिंह बहादुर ने शमस खाँ को करारी पराजय दी। फलस्वरूप समूचे जालंधर दोआब पर उसका अधिकार हो गया। इसके उपरांत बंदा सिंह बहादुर ने अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट के प्रदेशों पर भी बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया।

9. मुग़लों का लोहगढ़ पर आक्रमण (Attack of Mughals on Lohgarh)—बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति को देखते हुए मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ने उसकी शक्ति का दमन करने का निर्णय किया। उसने जरनैल मुनीम खाँ के नेतृत्व में 60,000 सैनिकों की एक विशाल सेना पंजाब भेजी। इस सेना ने 10 दिसंबर, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर की राजधानी लोहगढ़ पर अचानक आक्रमण कर दिया। सिख दुर्ग के भीतर से ही मुग़लों का डटकर सामना करते रहे। खाद्य-पदार्थों की कमी के कारण सिखों का पक्ष कमज़ोर पड़ने लगा। अतः बंदा सिंह बहादुर वेश बदल कर नाहन की पहाड़ियों की ओर चला गया।

10. गुरदास-नंगल की लड़ाई (Battle of Gurdas-Nangal)-बंदा सिंह बहादुर ने शीघ्र ही अपनी स्थिति को फिर से दृढ़ बना लिया। उसने बड़ी सरलता से बहरामपुर, रायपुर, कलानौर और बटाला के प्रदेशों पर फिर से अधिकार कर लिया। अतः नए मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर के आदेश पर लाहौर के सूबेदार अब्दुस समद खाँ ने बंदा सिंह बहादुर को गुरदास-नंगल के स्थान पर अचानक घेरे में ले लिया। बंदा सिंह बहादुर ने दुनी चंद की हवेली से मुग़ल सेना का सामना जारी रखा। यह घेरा 8 मास तक चला। धीरे-धीरे खाद्य-सामग्री की कमी के कारण सिखों की स्थिति गंभीर हो गई। ऐसे समय में बाबा बिनोद सिंह अपने साथियों सहित गढ़ी छोड़ कर चला गया। इस कारण बंदा सिंह बहादुर की स्थिति और बिगड़ गई। अंततः 7 दिसंबर, 1715 ई० को बंदा सिंह बहादुर तथा 740 सिखों को बंदी बना लिया गया।

11. बंदा सिंह बहादुर का बलिदान (Martyrdom of the Banda Singh Bahadur)-बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को फरवरी 1716 ई० में दिल्ली भेजा गया। दिल्ली पहुँचने पर उनका जलूस निकाला गया। बंदा सिंह बहादुर को एक पिंजरे में बंद किया गया था। मार्ग में उसका एवं अन्य सिखों का भारी अपमान किया गया। सिख इस दौरान प्रसन्नचित्त गुरवाणी का जाप करते रहे। फिर उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया। परंतु सिखों ने भी इस्लाम को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। इसके उपरांत प्रतिदिन 100 सिखों को शहीद किया जाने लगा। अंत में 9 जून, 1716 ई० को बंदा सिंह बहादुर को शहीद करने से पहले जल्लाद ने उसके चार वर्ष के पुत्र अजय सिंह की उसकी आँखों के सामने निर्ममता से हत्या की। तत्पश्चात् बंदा सिंह बहादुर का अंग-अंग काट कर उन्हें शहीद कर दिया गया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बंदा सिंह बहादुर को 19 जून, 1716 ई० को शहीद किया गया था। अंत में हम प्रसिद्ध इतिहासकार पतवंत सिंह के इन शब्दों से सहमत हैं,

“इस प्रकार उस व्यक्ति के जीवन का अंत हुआ जिसने 7 वर्ष के अल्पकाल में ही अपनी विजयों द्वारा महान् मुग़ल साम्राज्य को ऐसी चुनौती प्रस्तुत की कि वह दुबारा उस प्रदेश (पंजाब) पर पुनः आत्मविश्वास से शासन न कर सका।”1

1. “So ended the life of a man who in seven short years had so mocked the might of the Mughals with his victories that they could never again reassert their authority over the land they had once ruled with such a plomb.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 81 .

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर के जीवन तथा सफलताओं का वर्णन करें। (Describe the career and achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जो सिख इतिहास में बंदा बहादुर के नाम से अधिक विख्यात हैं को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने अपनी योग्यता के बल पर पंजाब में एक के बाद एक महत्त्वपूर्ण सफलताएँ प्राप्त की। बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० में कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी नामक गाँव में हुआ। उसके बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उसके पिता जी का नाम राम देव था। वह डोगरा राजपूत जाति से संबंधित थे।

2. बचपन (Childhood)-लक्ष्मण देव एक बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था। अतः जब लक्ष्मण देव कुछ बड़ा हुआ तो वह कृषि के कार्य में पिता जी का हाथ बँटाने लग पड़ा। लक्ष्मण देव अपने खाली समय में तीरकमान लेकर वनों में शिकार खेलने चला जाता।

3. बैरागी के रूप में (As a Bairagi)-जब लक्ष्मण देव की आयु लगभग 15 वर्ष की थी तो एक दिन शिकार खेलते हुए उसने एक गर्भवती हिरणी को तीर मारा। वह हिरणी और उसके बच्चे लक्ष्मण देव के सामने तड़प-तड़पकर मर गए। इस करुणामय दृश्य का लक्ष्मण के दिल पर इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उसने संसार को त्याग दिया और बैरागी बन गया। उसने अपना नाम बदल कर माधो दास रख लिया। घूमते-घूमते माधोदास की मुलाकात तंत्रविद्या में निपुण औघड़ नाथ से हो गई और वह उसका शिष्य बन गया। औघड़ नाथ की मृत्यु के बाद माधोदास नंदेड आ गया और शीघ्र ही अपनी तंत्र विद्या के कारण लोगों में विख्यात हो गया।
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BANDA SINGH BAHADUR

4. गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट (Meeting with Guru Gobind Singh Ji)-1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड आए तो वह माधोदास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। गुरु साहिब और माधोदास के मध्य कुछ प्रश्न- उत्तर हुए। माधोदास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब जी का अनुयायी बन गया। गुरु साहिब ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तित करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

5. बंदा सिंह बहादुर का पंजाब की ओर प्रस्थान (Banda Singh Bahadur Proceeds towards Punjab)-जब बंदा सिंह बहादुर ने गुरु साहिब से पंजाब में सिखों पर मुगलों द्वारा किए गए अत्याचारों और गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदानों के संबंध में सुना तो उसका राजपूती खून खौलने लगा। उसने इन अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए गुरु साहिब जी से पंजाब जाने के लिए आज्ञा माँगी। गुरु साहिब जी ने इस निवेदन को स्वीकार कर लिया। गुरु साहिब जी ने बंदा सिंह बहादुर को पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए 25 अन्य सिखों को भी साथ भेजा। गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हुक्मनामे भी दिए। इन हुक्मनामों में पंजाब के सिखों को यह आदेश दिया गया था कि बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता मानें तथा मुग़लों के विरुद्ध धर्म युद्धों में उसका पूरा साथ दें। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को भी कुछ आदेश दिए। पहला, ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना। दूसरा, सच्चाई के मार्ग पर चलना। तीसरा, नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं चलाना। चौथा, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं . करना। पाँचवां, स्वयं को खालसा का सेवक समझना। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके 1708 ई० में पंजाब की ओर रुख किया।

बंदा सिंह बहादुर की सफलता एवं असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Success and Failure)

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं और अंतिम असफलताओं के क्या कारण थे ?
(What were the causes of initial success and ultimate failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादर की आरंभिक सफलता तथा अंत में असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of early success and ultimate failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की आरंभ में सफलताओं और बाद में असफलताओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
(Give a brief account of initial success and ultimate failure of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
I. बंदा सिंह बहादुर की सफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Success)
बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब के सिखों का जिस योग्यता, लगन और वीरता से नेतृत्व किया उसका इतिहास में कोई और उदाहरण मिलना मुश्किल है। उसने बड़ी तीव्रता से पंजाब के विस्तृत भू-भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। बंदा सिंह बहादुर की इस आरंभिक सफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगलों के घोर अत्याचार (Great Atrocities of the Mughals)-पंजाब के मुग़ल शासक सिखों के कट्टर शत्रु थे। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह जी तथा फतह सिंह जी) को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े साहिबजादे (अजीत सिंह जी और जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में उसके सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। अतः सिखों का खून खौल रहा था। परिणामस्वरूप, वे बंदा सिंह बहादुर के झंडे अधीन एकत्र हो गए और बंदा सिंह बहादुर के लिए विजय अभियान आसान हो गया।

2. गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामे (Hukamnamas of Guru Gobind Singh Ji)—गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर के हाथ सिख संगत के नाम कुछ हुक्मनामे’ भेजे थे। इन हुक्मनामों में गुरु साहिब ने सिख संगत को मुग़लों के विरुद्ध होने वाले धर्म युद्धों में बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग देने को कहा। सिख संगत के सहयोग के कारण बंदा सिंह बहादुर एवं उसके साथियों का उत्साह बढ़ गया।

3. औरंगजेब के कमजोर उत्तराधिकारी (Weak Successors of Aurangzeb)-1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् हुआ मुग़ल शासक बहादुर शाह उत्तराधिकारिता के युद्ध में ही उलझा रहा। अतः वह साम्राज्य में व्याप्त अराजकता को नियंत्रण में रखने में असफल रहा जबकि उसके बाद बनने वाला मुग़ल बादशाह जहाँदार शाह बहुत ही अयोग्य शासक प्रमाणित हुआ। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने इस स्वर्ण अवसर का उचित लाभ उठाया तथा अनेक सफलताएँ प्राप्त की।

4. बंदा सिंह बहादुर का योग्य नेतृत्व (Able leadership of Banda Singh Bahadur)-बंदा सिंह बहादुर एक निर्भीक योद्धा एवं योग्य सेनापति था। उसने सभी लड़ाइयों में सेना का स्वयं नेतृत्व किया तथा वह अपने अधीन सैनिकों को युद्ध के समय में अत्यधिक प्रोत्साहित करता था। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर ने अपने आरंभिक वर्षों में प्रशंसनीय सफलताएँ प्राप्त की।

5. बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे (Banda Singh Bahadur’s early exploits were against petty local Mughal Officials)-बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण सरहिंद को छोड़कर छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे। ये अधिकारी अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में बहुत बदनाम थे। फलस्वरूप, जब बंदा सिंह बहादुर ने इन प्रदेशों पर आक्रमण किये तो स्थानीय लोगों ने बंदा सिंह बहादुर को अपना समर्थन दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर एक के बाद दूसरी सफलता प्राप्त करता गया।

6. बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध (Good Administration of Banda Singh Bahadur)बंदा सिंह बहादुर ने अपने अधीन प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने बहुत ही योग्य एवं ईमानदार अधिकारी नियुक्त किए। उसने ज़मींदारी प्रथा को खत्म करके किसानों को न केवल ज़मींदारों के अत्याचारों से बचाया बल्कि उन्हें भूमि का स्वामी भी बना दिया। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के लोगों से पूरा समर्थन मिला और इसी कारण उसे आरंभिक काल में अनेक सफलताएँ प्राप्त हुईं।

II. बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Ultimate Failure)
पंजाब आने के बाद बंदा सिंह बहादर ने अपने प्रारंभिक वर्षों में अनेक महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। परंतु शीघ्र ही उसे असफलता का मुँह देखना पड़ा। बंदा सिंह बहादुर की इस अंतिम असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगल साम्राज्य की शक्ति (Strength of the Mughal Empire)-मुग़ल साम्राज्य के पास विशाल तथा असीमित साधन थे। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर के साधन बहुत सीमित थे। मुग़लों की तुलना में उसके सैनिकों की संख्या बहुत कम थी। बंदा सिंह बहादुर की आय का मुख्य साधन लूटमार ही था। ऐसी स्थिति में मुग़लों पर पूर्ण विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए बिल्कुल असंभव था।

2. सिखों में संगठन का अभाव (Lack of Organisation among the Sikhs)-बंदा सिंह बहादुर के अधीन सिख सैनिकों में संगठन और अनुशासन का अभाव था। वे किसी योजनानुसार लड़ाई नहीं करते थे। अतः संगठन और अनुशासन के अभाव में ऐसे सिखों का असफल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

3. बंदा सिंह बहादुर द्वारा आदेशों का उल्लंघन (Violation of Instructions by Banda Singh Bahadur)-गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को कुछ आवश्यक आदेश दिए थे। कालांतर में उसने इनका उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। उसने गुरु साहिब के आदेशों के विरुद्ध चंबा की राजकुमारी से विवाह करवा लिया था और शाही ठाठ से रहने लग पड़ा था। उसने ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तह’ के स्थान पर ‘फ़तह धर्म और फ़तह दर्शन’ के शब्दों को प्रचलित करके सिख मत में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। फलस्वरूप, गुरु गोबिंद सिंह जी के अनेक श्रद्धालु सिख बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध हो गए।

4. फ़र्रुखसियर की सिखों के विरुद्ध कार्यवाहियाँ (Measures of Farukhsiyar against the Sikhs)1713 ई० में फ़र्रुखसियर मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह सिखों को कुचलने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था। उसने सिखों का दमन करने के लिए अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दुस समद खाँ ने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए कोई कसर न उठा रखी। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को आत्म-समर्पण करना ही पड़ा।

5. गुरदास-नंगल में सिखों पर अचानक आक्रमण (Surprise attack on the Sikhs at Gurdas Nangal)-अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर पर हुआ अचानक आक्रमण भी उनके पतन का एक प्रमुख कारण बना। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिख अचानक आक्रमण के कारण दुनी चंद की हवेली में घिर गए। इस हवेली में से अधिक समय तक मुग़लों का सामना नहीं किया जा सकता था। इसके बावजूद बंदा सिंह बहादुर ने 8 माह तक लड़ाई जारी रखी पर अंत में उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।

6. बंदा सिंह बहादुर और बिनोद सिंह में मतभेद (Differences between Banda Singh Bahadur and Binod Singh)-गुरदास नंगल की लड़ाई के समय बंदा सिंह बहादुर और उसके साथी बिनोद सिंह में मतभेद उत्पन्न हो गए। बिनोद सिंह हवेली छोड़कर भाग निकलने के पक्ष में था। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर चाहता था कि कुछ समय और लड़ाई को जारी रखा जाए। परिणामस्वरूप, बिनोद सिंह अपने साथियों सहित हवेली छोड़कर निकल गया। अतः बंदा सिंह बहादुर को पराजय का मुख देखना पड़ा।

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प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of the initial success of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की सफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Success)
बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब के सिखों का जिस योग्यता, लगन और वीरता से नेतृत्व किया उसका इतिहास में कोई और उदाहरण मिलना मुश्किल है। उसने बड़ी तीव्रता से पंजाब के विस्तृत भू-भाग पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। बंदा सिंह बहादुर की इस आरंभिक सफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगलों के घोर अत्याचार (Great Atrocities of the Mughals)-पंजाब के मुग़ल शासक सिखों के कट्टर शत्रु थे। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (जोरावर सिंह जी तथा फतह सिंह जी) को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े साहिबजादे (अजीत सिंह जी और जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में उसके सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। अतः सिखों का खून खौल रहा था। परिणामस्वरूप, वे बंदा सिंह बहादुर के झंडे अधीन एकत्र हो गए और बंदा सिंह बहादुर के लिए विजय अभियान आसान हो गया।

2. गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामे (Hukamnamas of Guru Gobind Singh Ji)—गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर के हाथ सिख संगत के नाम कुछ हुक्मनामे’ भेजे थे। इन हुक्मनामों में गुरु साहिब ने सिख संगत को मुग़लों के विरुद्ध होने वाले धर्म युद्धों में बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग देने को कहा। सिख संगत के सहयोग के कारण बंदा सिंह बहादुर एवं उसके साथियों का उत्साह बढ़ गया।

3. औरंगजेब के कमजोर उत्तराधिकारी (Weak Successors of Aurangzeb)-1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् हुआ मुग़ल शासक बहादुर शाह उत्तराधिकारिता के युद्ध में ही उलझा रहा। अतः वह साम्राज्य में व्याप्त अराजकता को नियंत्रण में रखने में असफल रहा जबकि उसके बाद बनने वाला मुग़ल बादशाह जहाँदार शाह बहुत ही अयोग्य शासक प्रमाणित हुआ। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने इस स्वर्ण अवसर का उचित लाभ उठाया तथा अनेक सफलताएँ प्राप्त की।

4. बंदा सिंह बहादुर का योग्य नेतृत्व (Able leadership of Banda Singh Bahadur)-बंदा सिंह बहादुर एक निर्भीक योद्धा एवं योग्य सेनापति था। उसने सभी लड़ाइयों में सेना का स्वयं नेतृत्व किया तथा वह अपने अधीन सैनिकों को युद्ध के समय में अत्यधिक प्रोत्साहित करता था। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर ने अपने आरंभिक वर्षों में प्रशंसनीय सफलताएँ प्राप्त की।

5. बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे (Banda Singh Bahadur’s early exploits were against petty local Mughal Officials)-बंदा सिंह बहादुर के प्रारंभिक आक्रमण सरहिंद को छोड़कर छोटे-छोटे मुग़ल अधिकारियों के विरुद्ध थे। ये अधिकारी अपने अत्याचारों के कारण प्रजा में बहुत बदनाम थे। फलस्वरूप, जब बंदा सिंह बहादुर ने इन प्रदेशों पर आक्रमण किये तो स्थानीय लोगों ने बंदा सिंह बहादुर को अपना समर्थन दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर एक के बाद दूसरी सफलता प्राप्त करता गया।

6. बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध (Good Administration of Banda Singh Bahadur)बंदा सिंह बहादुर ने अपने अधीन प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने बहुत ही योग्य एवं ईमानदार अधिकारी नियुक्त किए। उसने ज़मींदारी प्रथा को खत्म करके किसानों को न केवल ज़मींदारों के अत्याचारों से बचाया बल्कि उन्हें भूमि का स्वामी भी बना दिया। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के लोगों से पूरा समर्थन मिला और इसी कारण उसे आरंभिक काल में अनेक सफलताएँ प्राप्त हुईं।

प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of ultimate failure of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के कारण (Causes of Banda Singh Bahadur’s Ultimate Failure)
पंजाब आने के बाद बंदा सिंह बहादर ने अपने प्रारंभिक वर्षों में अनेक महत्त्वपूर्ण विजयें प्राप्त की। परंतु शीघ्र ही उसे असफलता का मुँह देखना पड़ा। बंदा सिंह बहादुर की इस अंतिम असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुगल साम्राज्य की शक्ति (Strength of the Mughal Empire)-मुग़ल साम्राज्य के पास विशाल तथा असीमित साधन थे। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर के साधन बहुत सीमित थे। मुग़लों की तुलना में उसके सैनिकों की संख्या बहुत कम थी। बंदा सिंह बहादुर की आय का मुख्य साधन लूटमार ही था। ऐसी स्थिति में मुग़लों पर पूर्ण विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए बिल्कुल असंभव था।

2. सिखों में संगठन का अभाव (Lack of Organisation among the Sikhs)-बंदा सिंह बहादुर के अधीन सिख सैनिकों में संगठन और अनुशासन का अभाव था। वे किसी योजनानुसार लड़ाई नहीं करते थे। अतः संगठन और अनुशासन के अभाव में ऐसे सिखों का असफल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

3. बंदा सिंह बहादुर द्वारा आदेशों का उल्लंघन (Violation of Instructions by Banda Singh Bahadur)-गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को कुछ आवश्यक आदेश दिए थे। कालांतर में उसने इनका उल्लंघन करना आरंभ कर दिया। उसने गुरु साहिब के आदेशों के विरुद्ध चंबा की राजकुमारी से विवाह करवा लिया था और शाही ठाठ से रहने लग पड़ा था। उसने ‘वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फ़तह’ के स्थान पर ‘फ़तह धर्म और फ़तह दर्शन’ के शब्दों को प्रचलित करके सिख मत में परिवर्तन लाने का प्रयास किया। फलस्वरूप, गुरु गोबिंद सिंह जी के अनेक श्रद्धालु सिख बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध हो गए।

4. फ़र्रुखसियर की सिखों के विरुद्ध कार्यवाहियाँ (Measures of Farukhsiyar against the Sikhs)1713 ई० में फ़र्रुखसियर मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह सिखों को कुचलने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था। उसने सिखों का दमन करने के लिए अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दुस समद खाँ ने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए कोई कसर न उठा रखी। परिणामस्वरूप, बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को आत्म-समर्पण करना ही पड़ा।

5. गुरदास-नंगल में सिखों पर अचानक आक्रमण (Surprise attack on the Sikhs at Gurdas Nangal)-अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर पर हुआ अचानक आक्रमण भी उनके पतन का एक प्रमुख कारण बना। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिख अचानक आक्रमण के कारण दुनी चंद की हवेली में घिर गए। इस हवेली में से अधिक समय तक मुग़लों का सामना नहीं किया जा सकता था। इसके बावजूद बंदा सिंह बहादुर ने 8 माह तक लड़ाई जारी रखी पर अंत में उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।

6. बंदा सिंह बहादुर और बिनोद सिंह में मतभेद (Differences between Banda Singh Bahadur and Binod Singh)-गुरदास नंगल की लड़ाई के समय बंदा सिंह बहादुर और उसके साथी बिनोद सिंह में मतभेद उत्पन्न हो गए। बिनोद सिंह हवेली छोड़कर भाग निकलने के पक्ष में था। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर चाहता था कि कुछ समय और लड़ाई को जारी रखा जाए। परिणामस्वरूप, बिनोद सिंह अपने साथियों सहित हवेली छोड़कर निकल गया। अतः बंदा सिंह बहादुर को पराजय का मुख देखना पड़ा।

बंदा सिंह बहादुर के चरित्र तथा सफलताओं का मूल्याँकन (Estimate of Banda Singh Bahadur’s Character and Achievements)

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डालें। (P.S.E.B. July 2006) (Describe in detail about the achievements of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के चरित्र एवं उपलब्धियों का विवेचन करें। क्या वह रक्त-पिपासु मनुष्य था ?
(Assess the character and achievements. of Banda Singh Bahadur Was he a ruthless blood-sucker ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के चरित्र तथा सफलताओं का मूल्यांकन करें।
(Form an estimate of the character and achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक बहुमुखी प्रतिभा का स्वामी था। वह एक वीर योद्धा, कुशल सेनापति, योग्य शासन प्रबंधक, सिख धर्म का सच्चा अनुयायी तथा पावन जीवन व्यतीत करने वाला मनुष्य था। बंदा सिंह बहादुर के चरित्र और सफलताओं का मूल्याँकन निम्नलिखित अनुसार है—
मनुष्य के रूप में (As a Man)
1. शक्ल-सूरत (Physical Appearance)—बंदा सिंह बहादुर की शक्ल-सूरत गुरु गोबिंद सिंह जी से काफी हद तक मिलती-जुलती थी। उसका शरीर पतला, कद मध्यम और रंग गेहुँआ था। वस्तुतः उसका व्यक्तित्व इतना प्रभावपूर्ण था कि उसके शत्रु भी उससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे।

2. वीर और साहसी (Brave and Bold)—बंदा सिंह बहादुर को इतिहास में उसकी वीरता और साहस के कारण ही प्रसिद्धि प्राप्त है। बड़े-से-बड़े संकट में भी वह घबराता नहीं था। लोहगढ़ के दुर्ग में जब वह घिर गया था तथा गुरदास-नंगल की लड़ाई में उसने अपने अद्वितीय साहस का प्रमाण दिया। उसका संपूर्ण जीवन ही उसकी बहादुरी के कारनामों से भरा पड़ा है।

3. सिख धर्म का सच्चा अनुयायी (A true follower of Sikhism)-बंदा सिंह बहादुर का सिख धर्म में बहुत दृढ़ विश्वास था। वह सिख धर्म का सच्चा अनुयायी था। शासन संभालने पर उसने गुरु नानक साहिब एवं गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर सिक्के जारी किये। इस प्रकार उसने सिख धर्म का प्रचार किया।

4. सहिष्णु (Tolerant)-चारित्रिक रूप में बंदा सिंह बहादुर की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता उसका दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णुपन था। उसने अपने धर्म के प्रचार के लिए कोई अत्याचार नहीं किया। उसकी मुग़लों के साथ लड़ाई भी अत्याचार के विरुद्ध थी। उसकी अपनी सेना में अनेक मुसलमान भर्ती थे और उन्हें पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त थी। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर धार्मिक रूप से पूर्ण सहिष्णु था।

5. उच्च आचरण (High Character)-बंदा सिंह बहादुर का आचरण बहुत उज्ज्वल था। वह बड़ा सरल तथा पवित्र जीवन व्यतीत करता था। वह शराब, माँस और अन्य मादक द्रव्यों का प्रयोग नहीं करता था। वह महिलाओं का बहुत सम्मान करता था। उसने सिखों को यह आदेश दिया था, कि वे लड़ाई के समय भी महिलाओं से किसी प्रकार की अभद्रता न करें।

योद्धा तथा सेनापति के रूप में (As a Warrior and General)
बंदा सिंह बहादुर अपने समय का एक महान् योद्धा तथा उच्च कोटि का सेनापति था। उसने अपने सीमित साधनों के बावजूद महान् मुग़ल साम्राज्य के साथ करारी टक्कर ली । उसने मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों में शानदार सफलताएँ प्राप्त की। वह युद्ध-चालों में बहुत प्रवीण था तथा आवश्यकता पड़ने पर पीछे हटने में अपना अपमान नहीं समझता था। वह शत्रु के कमज़ोर पक्ष पर अचानक आक्रमण करके अपनी विजय सुनिश्चित कर लेता था। वह युद्ध के मैदान को अपनी सुविधा के अनुसार चुनता और इस प्रकार अपनी स्थिति को दृढ़ कर लेता था। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने अपनी प्रत्येक लड़ाई में विजय प्राप्त की। प्रसिद्ध इतिहासकार एस० एस० गाँधी का कहना बिल्कुल ठीक है, “वह (बंदा सिंह बहादुर) उच्च कोटि का योद्धा तथा सेनापति था।”2

प्रशासक के रूप में (As an Administrator)
बंदा सिंह बहादुर एक उच्चकोटि का प्रशासक भी था। उसने अपने जीते हुए प्रदेशों में उचित प्रशासनिक व्यवस्था की। उसने खालसा के नाम पर शासन किया। उसने अपने राज्य में मुसलमान कर्मचारियों को हटा दिया क्योंकि वे भ्रष्ट हो चुके थे और उनकी जगह योग्य हिंदुओं तथा सिखों को नियुक्त किया। निम्न वर्गों के लोगों को भी उच्च पदों पर नियुक्त किया गया। बंदा सिंह बहादुर ने अपने राज्य में ज़मींदारी प्रथा का भी अंत कर दिया। इससे किसान भूमि के स्वामी बन गए। बंदा सिंह बहादुर अपने निष्पक्ष न्याय के कारण भी बहुत विख्यात था। न्याय करते समय वह किसी भी तरह का भेदभाव नहीं करता था। प्रसिद्ध लेखक हरबंस सिंह का कहना बिल्कुल सही
“बंदा सिंह बहादुर का शासन यद्यपि अल्पकालिक रहा, परंतु इसका पंजाब के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा।”3

2. “He was a warrior and a general of the highest order.” S. S. Gandhi, Struggle of the Sikhs for Sovereignty (Delhi : 1980) p. 33.
3. Banda Singh’s rule, though short-lived, had a far reaching impact on the history of the Punjab.” Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (New Delhi : 1983) p. 118.

संगठनकर्ता के रूप में
(As an Organiser)
जब बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ से पंजाब आया था तो उसके साथ केवल 25 सिख थे। शीघ्र ही उसने अपने ध्वज के नीचे हज़ारों सिखों को एकत्र कर लिया। उसने नई भावना उत्पन्न करके उन्हें शक्तिशाली मुग़ल साम्राज्य से टक्कर लेने के लिए तैयार किया। बंदा सिंह बहादुर ने अल्पकाल में ही मुग़ल साम्राज्य की नींव को हिला कर रख दिया। शीघ्र ही बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब में एक स्वतंत्र सिख राज्य स्थापित करने में सफलता प्राप्त की। इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि बंदा सिंह बहादुर में महान् संगठनकर्ता के सभी गुण विद्यमान् थे।

बंदा सिंह बहादुर का इतिहास में स्थान (Banda Singh Bahadur’s Place in History)
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उसने अल्पकाल में ही मुग़लों के शक्तिशाली साम्राज्य की नींव को हिला कर रख दिया। उसने मुग़लों के अजय होने के भ्रम को भंग कर दिया। उसने सिखों में स्वतंत्रता की नई भावना उत्पन्न की। बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके एक क्रांतिकारी पग उठाया। उसने निम्न जातियों को शासन प्रबंध के उच्च पद देकर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया। इस प्रकार अपनी महान् उपलब्धियों के कारण बंदा सिंह बहादुर का इतिहास में एक प्रमुख स्थान है।
डॉक्टर राजपाल सिंह के शब्दों में,
“निस्संदेह बंदा सिंह बहादुर 18वीं शताब्दी के महान् नेताओं में से एक था। वास्तव में उसका नाम स्वतंत्रता, निष्ठा एवं शहीदी का प्रतीक बन गया।”4
एक अन्य विख्यात इतिहासकार डॉक्टर जी० एस० दियोल के अनुसार,
“18वीं शताब्दी के पंजाब के इतिहास में बंदा बहादुर को विशेष स्थान प्राप्त है।”5

4. ‘No doubt, Banda Bahadur emerges as one of the most outstanding leaders that produced in the eighteenth century……… In fact, his name has come to symbolize freedom, dedication and sacrifice.” Dr. Raj Pal Singh, Banda Bahadur and His Times (New Delhi : 1998) p. XIII.
5. “Banda Bahadur occupies a significant place in the history of the Punjab of the 18th century.” Dr. G. S. Deol, Banda Bahadur (Jalandhar : 1972) p. 7.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम क्या था ? वह बैरागी क्यों बना ? (What was Banda Singh Bahadur’s childhood name ? Why did he become a Bairagi ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Describe briefly the early life of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उसे बचपन से ही शिकार खेलने का शौक था। एक दिन वह जंगल में शिकार खेलने के लिए गया। उसने वहाँ पर एक ऐसी हिरणी को तीर मारा जो गर्भवती थी। जब लक्ष्मण देव ने उस हिरणी का पेट चीरा तो उसके पेट से दो बच्चे निकले। वे भी उसकी आँखों के सामने तड़पतड़प कर मर गए। इस दर्दनाक दृश्य का लक्ष्मण देव के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा। वह जानकी प्रसाद नाम के एक साधु से प्रभावित होकर बैरागी बन गया।

प्रश्न 2.
बंदा बैरागी कौन था ? वह सिख कैसे बना ?
(Who was Banda Bairagi ? How did he become a Sikh ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था, कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी गाँव का रहने वाला था। एक दिन गर्भवती हिरणी को मारने के कारण उसके दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप वह बैरागी बन गया। उसने अपना नाम बदल कर माधो दास रख लिया। उसने 1708 ई० में नंदेड़ में उसकी भेंट गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई। माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुआ और वह सिख बन गया।

प्रश्न 3.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजते समय क्या कार्यवाही की तथा उसे क्या आदेश दिए ?
(What action and orders were given to Banda Singh Bahadur by Guru Gobind Singh Ji before sending him to Punjab ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजने से पूर्व अपने पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए पाँच प्यारे तथा 20 अन्य बहादुर सिखों को साथ भेजा। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हक्मनामे भी दिए। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना, सदा सत्य बोलना, नया धर्म नहीं चलाना, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं करना, स्वयं को खालसा का सेवक समझना और उनकी इच्छाओं के अनुसार आचरण करने का आदेश दिया।

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प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर ने सिखों का राज्य किस तरह स्थापित किया ?
(How did Banda Singh Bahadur set up the Sikh empire ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर ने सिख राज्य की स्थापना कैसे की ?
(How did Banda Singh Bahadur establish the Sikh State ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब में मुग़लों के विरुद्ध सिखों का नेतृत्व करने का आदेश दिया। जब बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ से पंजाब पहुँचा तो सिखों ने उसे बढ़-चढ़ कर सहयोग दिया। रास्ते में बंदा सिंह बहादुर ने कैथल, समाना, कपूरी और सढौरा को लूटा और बहुत-से मुसलमानों की हत्या कर दी। 12 मई, 1710 ई० में चप्पड़चिड़ी की भयंकर लड़ाई में सरहिंद का फ़ौजदार वज़ीर खाँ मारा गया। सरहिंद की विजय बंदा सिंह बहादुर की एक बहुत बड़ी सफलता थी। उसने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। उसने नए सिक्के चलाकर स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए । (Give a brief account of the military exploits of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की किन्हीं तीन सैनिक विजयों की चर्चा करें। (Describe any three military conquests of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की तीन मुख्य सैनिक सफलताओं का वर्णन करो । (Describe the three major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-

  1. बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ 1709 ई० में सोनीपत से किया। बंदा सिंह बहादुर ने इसे सुगमता से जीत लिया था।
  2. बंदा सिंह बहादुर ने नवंबर, 1709 ई० में समाना पर आक्रमण करके दस हज़ार मुसलमानों को मौत के घाट उतार दिया ।
  3. बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके वहाँ के अत्याचारी शासक कदमऊद्दीन को मौत के घाट उतार दिया।
  4. सढौरा का शासक उसमान खाँ भी अपने अत्याचारों के कारण बहुत बदनाम था। बंदा सिंह बहादुर ने उसे एक अच्छा सबक सिखाया
  5. बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 ई० को चप्पड़चिड़ी नामक स्थान पर वज़ीर खाँ को पराजित कर सरहिंद पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर की सढौरा विजय पर एक संक्षिप्त नोट लिखें । (Write a short note on the conquest of Sadhaura by Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
सढौरा का शासक उस्मान खाँ अपने अत्याचारों के लिए कुख्यात था। उस क्षेत्र में कोई भी हिंदू स्त्री ऐसी नहीं जिसे उसने अपमानित न किया हो। वह हिंदुओं को धार्मिक उत्सव मनाने नहीं देता था। उसने पीर बुद्ध शाह की हत्या करवा दी। बंदा सिंह बहादुर ने इन अपमानों का प्रतिशोध लेने के लिए सढौरा पर आक्रमण कर दिया। यहाँ पर मुसलमानों को इतनी बड़ी संख्या में मौत के घाट उतारा गया कि सढौरा का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

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प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद की विजय पर संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the conquest of Sirhind by Banda Singh Bahadur.).
अथवा
चप्पड़चिड़ी की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करें।
(Give a brief accoúnt of battle of Chapparchiri.)
उत्तर-
सिखों में सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ के विरुद्ध भारी रोष था। उस ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों-साहिबजादा जोरावर सिंह जी और साहिबज़ादा फ़तह सिंह जी को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने 12 मई, 1710 ई० को चप्पड़चिड़ी नामक स्थान पर वज़ीर खाँ पर आक्रमण कर दिया। यह लड़ाई बड़ी भयानक थी। वज़ीर खाँ के मरते ही उसकी सेना में भगदड़ मच गई। इस लड़ाई में सिख विजयी रहे। इस महत्त्वपूर्ण विजय के कारण सिखों के उत्साह में बहुत वृद्धि हुई।

प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर की लोहगढ़ लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखो। (Write a short note on the battle of Lohgarh by Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति मुग़लों के लिए एक चुनौती थी। इसलिए मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ने बंदा सिंह बहादुर की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से उसने अपने एक सेनापति मुनीम खाँ के अधीन 60,000 सैनिकों की एक विशाल सेना पंजाब भेजी। इस सेना ने 10 दिसंबर, 1710 ई० को लोहगढ़ पर अचानक आक्रमण कर दिया। लोहगढ़ बंदा सिंह बहादुर की राजधानी थी। खाद्य-पदार्थों की कमी के कारण सिखों के लिए इस लड़ाई को अधिक समय तक जारी रखना असंभव था। बंदा सिंह बहादुर वेश बदलकर दुर्ग से बच निकलने में सफल हो गया।

प्रश्न 9.
गुरदास नंगल की लड़ाई पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on the battle of Gurdas Nangal.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर एवं मुग़लों के मध्य हुई गुरदास नंगल की लड़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए ।
(Give a brief account of the battle of Gurdas Nangal fought between Banda Singh Bahadur and the Mughals.)
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ ने अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल के स्थान पर घेर लिया। धीरे-धीरे खान-पान की सामग्री समाप्त होने पर सिखों की स्थिति दयनीय हो गई । ऐसे समय में बाबा विनोद सिंह ने बंदा सिंह बहादुर को दूनी चंद की हवेली से भाग निकलने का परामर्श दिया। परंतु बंदा सिंह बहादुर ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप, विनोद सिंह अपने साथियों को लेकर गढ़ी छोड़कर भाग निकला। विवश होकर बंदा सिंह बहादुर को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी।

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प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर को कब, कहाँ तथा कैसे शहीद किया गया ?
(When, where and how was Banda Singh Bahadur martyred ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर और कुछ अन्य सिखों को बंदी बनाने के बाद अब्दुस समद खाँ ने इन सिखों को फरवरी, 1716 ई० में दिल्ली भेजा। दिल्ली में इनका जुलूस निकाला गया। मार्ग में उनका भारी अपमान किया गया। उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा गया, परंतु सिखों ने इंकार कर दिया। अतः प्रतिदिन 100 सिखों को शहीद किया जाने लगा। अंत में 9 जून, 1716 ई० को बंदा सिंह बहादुर की बारी आई। उसे शहीद करने से पूर्व जल्लाद ने उसके चार वर्ष के पुत्र अजय सिंह की उसकी आँखों के सामने निर्ममता से हत्या कर दी। अंत में बंदा सिंह बहादुर का अंग-अंग काटकर उन्हें शहीद किया गया।

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं के कारणों का उल्लेख करो। (Mention the causes of early success of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलता के क्या कारण थे ? (What were the main causes of early success of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-

  1. पंजाब के मुग़ल शासकों द्वारा सिखों पर किए गए घोर अत्याचारों के कारण पंजाब के लोगों ने बंदा सिंह बहादुर को हर प्रकार का सहयोग दिया।
  2. गुरु गोबिंद सिंह जी की अपील पर सिखों ने बंदा सिंह बहादुर को पूर्ण सहयोग दिया।
  3. औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी बहुत अयोग्य थे । परिणामस्वरुप वे बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति की ओर ध्यान न दे सके।
  4. बंदा सिंह बहादुर ने एक उच्च कोटिं के शासन प्रबंध की स्थापना की थी।
  5. पंजाब के पहाड़ भी बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं में सहायक सिद्ध हुए।

प्रश्न 12.
अंत में बंदा सिंह बहादुर की असफलता के क्या कारण थे ? (What were the causes of final failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की असफलता के कारणों का वर्णन करें।
(Mention the causes of ultimate failure of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की असफलता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Describe in brief the failure of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की असफलता के कोई तीन कारण बताएँ। (Give any three causes of the failure of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के क्या कारण थे ?
(What were the causes of final failure of Banda Singh Bahdur.)
उत्तर-

  1. मुग़ल साम्राज्य का अत्यंत शक्तिशाली होना बंदा सिंह बहादुर की असफलता का एक मुख्य कारण बना।
  2. बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए गए निर्देशों का उल्लंघन आरंभ कर दिया था।
  3. पंजाब के हिंदू राजाओं तथा ज़मींदारों ने बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध सरकार को अपना सहयोग दिया।
  4. पंजाब के सूबेदार अब्दुस समद खाँ ने बंदा सिंह बहादुर की शक्ति कुचलने में कोई प्रयास नहीं छोड़ा।

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प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर के व्यक्तित्व की विशेषताएँ बताएँ । (Describe traits of Banda Singh Bahadur’s personality.)
उत्तर-

  1. बंदा सिंह बहादुर बड़ा ही निडर और साहसी था । बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी घबराता नहीं था ।
  2. वह सिख धर्म का सच्चा सेवक था । उसने अपनी सफलताओं को गुरु साहिब का वरदान माना।
  3. बंदा सिंह बहादुर एक महान् सेनापति था। अपने सीमित साधनों के बावजूद उसने मुग़ल शासकों को नानी याद करवा दी थी।
  4. बंदा सिंह बहादुर एक योग्य शासक भी था। उसने अपने जीते हुए प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी ।

प्रश्न 14.
एक योद्धा और सेनापति के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करो। (Describe briefly the achievements of Banda Singh Bahadur as a warrior and general.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर का एक वीर योद्धा तथा सेनापति के रूप में मूल्यांकन करें।
(Explain the main contribution of Banda Singh Bahadur as a brave warrior and great military general.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक महान् योद्धा और उच्चकोटि का सेनापति था। बंदा सिंह बहादुर के साधन मुग़लों के मुकाबले नाममात्र थे, परंतु उसने अपनी योग्यता के बल पर 7-8 वर्ष मुग़ल सेना के नाक में दम कर रखा था। उसने जितनी भी लड़ाइयाँ लड़ीं, लगभग सभी में उसने बड़ी शानदार सफलताएँ प्राप्त की। युद्ध के मैदान में वह बड़ी तीव्रता से स्थिति का अनुमान लगा लेता था और अवसर अनुसार अपना निर्णय तुरंत कर लेता था। वह युद्ध की चालों में बड़ा निपुण था। वह युद्ध तभी शुरू करता था जब उसे विजय की पूर्ण आशा होती थी।

प्रश्न 15.
एक प्रशासक के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं की संक्षिप्त जानकारी दें।
(Write briefly about Banda Singh Bahadur’s achievements as an administrator.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने अपने विजित प्रदेशों में अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की। उसने खालसा के नाम से शासन किया और अपने राज्य में गुरु साहिब द्वारा दर्शाए गए नियमों को लागू करने का यत्न किया। उसने अपने राज्य में भ्रष्ट कर्मचारियों को हटाकर बड़े योग्य और ईमानदार व्यक्तियों को नियुक्त किया। निर्धनों और निम्न जाति के लोगों को उच्च पदों पर लगाकर उनको एक नया सम्मान दिया। बंदा सिंह बहादुर ने ज़मींदारी प्रथा का अंत करके एक अत्यंत सराहनीय कार्य किया।

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प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में आप क्या स्थान देते हैं ?
(What place would you assign to Banda Singh Bahadur in the History the Punjab ?)
अथवा
पंजाब के इतिहास में बंदा सिंह बहादुर को क्या स्थान प्राप्त है ? (What is the place of Banda Singh Bahadur in the History of the Punjab ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सिखों को मुख्य देन क्या है ?
(What is the main contribution of Banda Singh Bahadur to Sikhs ?) .
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में विशेष स्थान प्राप्त है। वह एक महान् योद्धा, वीर सेनापति, योग्य प्रशासक तथा उच्च कोटि का नेता था। वह पहला व्यक्ति था जिसने सिखों को अत्याचारियों का मुकाबला करने तथा स्वतंत्रता के लिए मर मिटने का पाठ पढ़ाया। उसने मुग़लों के अजेय होने के जादू को तोड़ा। बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी पग उठाया। उसने निर्धनों और निम्न वर्ग के लोगों को शासन प्रबंध में ऊँचे पद देकर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न A (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कब हुआ था ?
उत्तर-
27 अक्तूबर, 1676 ई०।।

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
राजौरी।

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प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर का आरंभिक नाम क्या था ?
अथवा
बंदा सिंह बहादुर का बचपन का क्या नाम था ?
उत्तर-
लक्ष्मण देव।

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
रामदेव।

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर का वैराग्य धारण करने के पश्चात् क्या नाम पड़ा ?
अथवा
बैरागी बनने के पश्चात् बंदा सिंह बहादुर ने अपना नाम क्या रखा ?
उत्तर-
माधो दास।

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प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर बैरागी क्यों बना ?
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन की कौन-सी घटना थी जिसने उसे वैरागी बना दिया ?
अथवा
किस घटना ने बंदा सिंह बहादुर के जीवन को परिवर्तित किया ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने एक ऐसी हिरणी को मार दिया था जो गर्भवती थी।

प्रश्न 7.
गुरु गोबिंद सिंह जी को बंदा सिंह बहादुर कहाँ मिला था ?
उत्तर-
नांदेड़ में।

प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर को यह नाम गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिया गया था।

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प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कब किया ?
उत्तर-
1709 ई०।

प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कहाँ से किया था ?
उत्तर-
सोनीपत।

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर की पहली महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी ?
उत्तर-
समाना।

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प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर आक्रमण क्यों किया ?
उत्तर-
क्योंकि यहाँ का शासक उस्मान खाँ अपने अत्याचारों के लिए बहुत कुख्यात था।

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर ने क्या नारा दिया ?
उत्तर-
फ़तेह धर्म, फ़तेह दर्शन।

प्रश्न 14.
बंदा सिंह बहादुर की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी ?
उत्तर-
सरहिंद।

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प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद कब विजय किया ?
अथवा
चप्पड़चिड़ी की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
12 मई, 1710 ई०

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद पर आक्रमण क्यों किया?’
उत्तर-
क्योंकि यहाँ का फ़ौजदार वज़ीर खाँ सिखों का घोर शत्रु था।

प्रश्न 17.
वज़ीर खाँ कौन था ?
उत्तर-
सरहिंद का फ़ौजदार।

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प्रश्न 18.
सरहिंद की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर ने किसे पराजित किया था ?
उत्तर-
वज़ीर खाँ को।

प्रश्न 19.
बंदा सिंह बहादुर ने अपनी राजधानी का क्या नाम रखा ?
उत्तर-
लोहगढ़।

प्रश्न 20.
बंदा सिंह बहादुर ने किस राज्य की राजकुमारी के साथ विवाह किया ?
उत्तर-
चंबा।

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प्रश्न 21.
बंदा सिंह बहादुर के पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर-
अजय सिंह।

प्रश्न 22.
बंदा सिंह बहादुर और मुग़लों के बीच हुई अंतिम लड़ाई कौन-सी थी ?
उत्तर-
गुरदास नंगल।

प्रश्न 23.
बंदा सिंह बहादुर की मुग़लों से अंतिम लड़ाई में मुग़ल सेना का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ।

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प्रश्न 24.
गुरदास नंगल का युद्ध कब हुआ ?
उत्तर-
1715 ई०।

प्रश्न 25.
बंदा सिंह बहादुर को किसने शहीद करवाया था?
उत्तर-
अब्दुस समद खाँ।

प्रश्न 26.
बंदा सिंह बहादुर को कब शहीद किया गया था ?
उत्तर-
9 जून, 1716 ई०।

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प्रश्न 27.
बंदा सिंह बहादुर को कहाँ शहीद किया गया था ?
उत्तर-
दिल्ली।

प्रश्न 28.
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के समय किस मुगल बादशाह का शासन था ?
उत्तर-
फर्रुखसियर

प्रश्न 29.
बंदा सिंह बहादुर ने किस प्रथा को समाप्त किया ?
उत्तर-
ज़मींदारी प्रथा।

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प्रश्न 30.
बंदा सिंह बहादुर की प्रारंभिक सफलता का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
मुग़लों के घोर अत्याचारों के कारण पंजाब के लोग बंदा सिंह बहादुर के झंडे तले इकट्ठे हुए।

प्रश्न 31.
बंदा सिंह बहादुर की असफलता का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर के साधन मुग़लों की तुलना में बहुत सीमित थे

प्रश्न 32.
बंदा सिंह बहादुर ने किस नाम के सिक्के जारी किए ?
उत्तर-
नानकशाही तथा गोबिंदशाही।

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प्रश्न 33.
बंदा सिंह बहादुर की सिखों को मुख्य देन क्या थी ?
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर ने सिखों को राजनीतिक स्वतंत्रता का प्रथम सबक सिखाया।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म …… में हुआ।
उत्तर-
(1670 ई०)

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म ……… गाँव में हुआ था।
उत्तर-
(राजौरी)

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प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर के पिता का नाम …….. था।
उत्तर-
(रामदेव)

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर का आरंभिक नाम …… था।
उत्तर-
(लक्ष्मण देव)

प्रश्न 5.
…….. के शिकार ने बंदा सिंह बहादुर के जीवन को एक नई दिशा प्रदान की।
उत्तर-
(एक हिरनी)

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प्रश्न 6.
जानकी प्रसाद नामक एक वैरागी ने लक्ष्मण देव का नाम बदल कर …… रख दिया।
उत्तर-
(माधो दास)

प्रश्न 7.
1708 ई० में बंदा सिंह बहादुर की गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ ……. में मुलाकात हुई।
उत्तर-
(नंदेड़)

प्रश्न 8.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने माधो दास को …… का नाम दिया।
उत्तर-
(बंदा सिंह बहादुर)

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प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ ………. से किया।
उत्तर-
(सोनीपत)

प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर ने ………. में सोनीपत को विजय किया।
उत्तर-
(1709 ई०)

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा के शासक …….. को एक कड़ी पराजय दी।
उत्तर-
(उस्मान खाँ)

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प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर के समय सरहिंद का फ़ौजदार …… था।
उत्तर-
(वजीर खाँ)

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर ने ……… को सरहिंद का शासक नियुक्त किया।
उत्तर-
(बाज़ सिंह)

प्रश्न 14.
बंदा सिंह बहादुर की राजधानी का नाम …….. था।
उत्तर-
(लोहगढ़)

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प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर ने …….. को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
(लोहगढ़)

प्रश्न 15.
गुरदास नंगल की लड़ाई …….. में हुई।
उत्तर-
(1715 ई०)

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को …….. में शहीद किया गया।
उत्तर-
(दिल्ली)

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प्रश्न 17.
बंदा सिंह बहादुर को……..में शहीद किया गया।
उत्तर-
(1716 ई०)

प्रश्न 18.
………ने सिख कौम के पहले सिक्के जारी किए।
उत्तर-
(बंदा सिंह बहादुर)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० को हुआ था।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म राजौरी में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर के पिता जी का नाम लक्ष्मण देव था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम रामदेव था।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 5.
जानकी प्रसाद नामक एक बैरागी ने लक्ष्मण देव का नाम बदल कर माधो दास रख दिया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु गोबिंद सिंह जी बंदा सिंह बहादुर को दिल्ली में मिले थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर ने अपनी विजयों का आरंभ 1709 ई० में सोनीपत से किया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर ने कंपूरी में कदमुद्दीन को हराया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा के शासक उस्मान खाँ को करारी हार दी थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय रोपड़ की थी।
उत्तर-
गलत

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर ने 1710 ई० में सरहिंद पर विजय प्राप्त की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर के समय सरहिंद का फ़ौजदार वजीर खाँ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर ने लोहगढ़ को अपने राज्य की राजधानी बनाया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 14.
गुरदास नंगल की लड़ाई 1715 ई० में लड़ी गई थी। ”
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर को 1716 ई० में शहीद किया गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को लाहौर में शहीद किया गया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 17.
बंदा सिंह बहादुर पंजाब का पहला ऐसा शासक था जिसने सिख सिक्के जारी किए।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कब हुआ ?
(i) 1625 ई० में
(ii) 1660 ई० में
(iii) 1670 ई० में
(iv) 1675 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 2.
बंदा सिंह बहादुर का जन्म कहाँ हुआ ?
(i) राजगढ़ में
(ii) राजौरी में
(iii) सढौरा में
(iv) नांदेड़ में।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर का आरंभिक नाम क्या था ?
(i) लक्ष्मण देव
(ii) राम देव
(iii) माधो दास
(iv) ग़रीब दास।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 4.
बंदा सिंह बहादुर के पिता का क्या नाम था ?
(i) नाम देव
(ii) राम देव
(iii) सहदेव
(iv) लक्ष्मण देव।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर बैरागी क्यों बना ?
(i) एक गर्भवती हिरणी को मारने के कारण
(ii) एक गर्भवती शेरनी को मारने के कारण
(iii) एक गर्भवती हथनी को मारने के कारण
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
बैरागी बनने के बाद बंदा सिंह बहादुर ने अपना क्या नाम रखा ?
(i) लक्ष्मण देव
(ii) माधो दास
(ii) जानकी प्रसाद
(iv) औघड़ नाथ।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट कहाँ हुई थी ?
(i) श्री आनंदपुर साहिब
(ii) अमृतसर
(iii) गोइंदवाल साहिब
(iv) नांदेड़।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 8.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब क्यों भेजा ?
(i) सिख राज की स्थापना के लिए
(ii) मुग़लों के अत्याचारों का बदला लेने के लिए
(iii) अफ़गानों के अत्याचारों का बदला लेने के लिए
(iv) उपरोक्त सी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 9.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कब किया ?
(i) 1708 ई० में
(ii) 1709 ई० में
(iii) 1710 ई० में
(iv) °1715 ई० में।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर ने अपने सैनिक कारनामों का आरंभ कहाँ किया ?
(i) पानीपत से
(ii) सोनीपत से
(iii) समाना से
(iv) कपूरी से।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा के किस शासक को पराजित किया था ?
(i) रहमत खाँ
(ii) जकरिया खाँ
(iii) उस्मान खाँ
(iv) वज़ीर खाँ।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय कौन-सी थी ?
(i) सढौरा की
(ii) लोहगढ़ की
(iii) रोपड़ की
(iv) सरहिंद की।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 13.
वज़ीर खाँ कहाँ का मुग़ल सूबेदार था ?
(i) समाना
(ii) सोनीपत
(iii) सरहिंद
(iv) गुरदास नंगल।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद पर कब विजय प्राप्त की थी ?
(i) 1708 ई० में
(ii) 1709 ई० में
(iii) 1710 ई० में
(iv) 1712 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
बंदा सिंह बहादुर की राजधानी का क्या नाम था ?
(i) लोहगढ़
(ii) गुरदास नंगल
(iii) अमृतसर
(iv) कलानौर।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर ने किस राज्य की राजकुमारी के साथ विवाह किया ?
(i) बिलासपुर
(ii) चंबा
(iii) मंडी
(iv) कुल्लू।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 17.
बंदा सिंह बहादुर के पुत्र का क्या नाम था ?
(i) अजय सिंह
(ii) अभय सिंह
(iii) दया सिंह
(iv) बिनोद सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
गुरदास नंगल की लड़ाई कब हुई ?
(i) 1709 ई० में
(ii) 1710 ई० में
(iii) 1712 ई० में
(iv) 1715 ई० में।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 19.
बंदा सिंह बहादुर को कहाँ शहीद किया गया था ?
(i) दिल्ली में
(ii) लाहौर में
(iii) मुलतान में
(iv) अमृतसर में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 20.
बंदा सिंह बहादुर को कब शहीद किया गया ?
(i) 1714 ई० में
(ii) 1715 ई० में
(iii) 1716 ई० में
(iv) 1718 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 21.
बंदा सिंह बहादुर को किस मुग़ल बादशाह के आदेश पर शहीद किया गया था ?
(i) औरंगजेब
(ii) बहादुर शाह प्रथम
(iii) जहाँदार शाह
(iv) फर्रुखसियर।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 22.
बंदा सिंह बहादुर की प्रारंभिक सफलता का क्या कारण था ?
(i) बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध
(ii) औरंगजेब के कमज़ोर उत्तराधिकारी ।
(iii) गुरु गोबिंद सिंह जी के हक्मनामे
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 23.
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता का मुख्य कारण क्या था ?
(i) मुग़ल साम्राज्य का शक्तिशाली होना
(ii) गुरदास नंगल पर अचानक आक्रमण
(iii) बंदा सिंह बहादुर और विनोद सिंह में मतभेद
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम क्या था ? वह बैरागी क्यों बना ? (What was Banda Singh Bahadur’s childhood name ? Why did he become a Bairagi ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें। (Describe briefly the early life of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जो सिख इतिहास में बंदा बहादुर के नाम से अधिक विख्यात हैं, को अत्यंत गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। बंदा सिंह बहादुर के आरंभिक जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. जन्म और माता-पिता-बंदा सिंह बहादुर का जन्म 27 अक्तूबर, 1670 ई० में कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी नामक गाँव में हुआ। उसके बचपन का नाम लक्ष्मण देव था। उनके पिता जी का नाम राम देव था। वह डोगरा राजपूत जाति से संबंधित थे।

2. बचपन-लक्ष्मण देव एक बहुत ही निर्धन परिवार से संबंधित था। अत: लक्ष्मण देव कुछ बड़ा हुआ तो वह कृषि के कार्य में पिता जी का हाथ बंटाने लग पड़ा। लक्ष्मण देव अपने खाली समय में तीर-कमान लेकर वनों में शिकार खेलने चला जाता था।

3. जीवन में नया मोड़-जब लक्ष्मण देव की आयु लगभग 15 वर्ष की थी तो एक दिन शिकार खेलते हुए उसने एक गर्भवती हिरणी को तीर मारा। वह हिरणी और उसके बच्चे लक्ष्मण देव के सामने तड़प-तड़प कर मर गए। इस करुणामय दृश्य का लक्ष्मण के दिल पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसने संसार को त्याग दिया।

4. बैरागी के रूप में-लक्ष्मण देव शीघ्र ही जानकी प्रसाद नामक बैरागी के संपर्क में आया। जानकी प्रसाद ने उसका नाम बदल कर माधो दास रख दिया। शीघ्र ही माधोदास की मुलाकात तंत्र विद्या में निपुण औघड़ नाथ से हो गई और वह उसका शिष्य बन गया। औघड़ नाथ की मृत्यु के बाद माधोदास नंदेड़ आ गया और शीघ्र ही अपनी तंत्र विद्या के कारण लोगों में विख्यात हो गया।

5. गुरु गोबिंद सिंह जी से भेंट-1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड़ आए तो वह माधोदास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। गुरु साहिब और माधोदास के मध्य कुछ प्रश्न-उत्तर हुए। माधोदास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु जी का अनुयायी बन गया। गुरु जी ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तित करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

6. बंदा सिंह बहादुर का पंजाब की ओर प्रस्थान-जब बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह जी से पंजाब में सिखों पर मुग़लों द्वारा किए गए अत्याचारों और गुरु तेग़ बहादुर जी के बलिदानों के संबंध में सुना तो उसका राजपूती खून खौलने लगा। उसने इन अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए गुरु जी से पंजाब जाने की आज्ञा माँगी। गुरु जी ने इस निवेदन को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके 1708 ई० में पंजाब की ओर रुख किया।

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प्रश्न 2.
बंदा बैरागी कौन था ? वह सिख कैसे बना ? (Who was Banda Bairagi ? How did he become a Sikh ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था, कश्मीर के जिला पंछ के राजौरी गाँव का रहने वाला था। उसके पिता एक साधारण कृषक थे। एक गर्भवती हिरणी को मारने के कारण उसके दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप वह बैरागी बन गया। लक्ष्मण. देव का नाम बदल कर माधो दास रख दिया गया। उसने पंचवटी के एक साधु औघड़नाथ से तंत्र विद्या की जानकारी प्राप्त की। कुछ समय वहाँ रहने के बाद माधो दास नांदेड़ नामक स्थान पर आ गया। नांदेड़ में ही 1708 ई० में उसकी भेंट गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई। इस भेंट के दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी और माधो दास के मध्य कुछ प्रश्न-उत्तर हुए। माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब का बंदा (दास) बन गया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने उसे अमृत छका कर सिख बना दिया और उसको बंदा सिंह बहादुर का नाम दिया। इस तरह बंदा बैरागी सिख बना।

प्रश्न 3.
बंदा सिंह बहादुर की गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई मुलाकात का वर्णन करें। (Discuss Banda Singh Bahadur’s meeting with Guru Gobind Singh Ji.)
उत्तर-
1708 ई० में जब गुरु गोबिंद सिंह जी नंदेड़ आए तो वे माधो दास के आश्रम में उससे भेंट करने के लिए गए। जब गुरु जी उसके आश्रम में पहुँचे तो उसने उन्हें चारपाई पर बिठाया और अपनी तंत्र विद्या से उनकी चारपाई उलटानी चाही। परंतु गुरु साहिब चारपाई पर शाँत बैठे रहे। उन पर माधो दास की तंत्र विद्या का तनिक भी प्रभाव न हुआ। यह देखकर माधो दास आश्चर्यचकित रह गया और उसने गुरु साहिब से कुछ प्रश्न पूछने आरंभ कर दिए जिनका उत्तर गुरु जी ने इस प्रकार दिया—
माधो दास-तुम कौन हो ?
गुरु गोबिंद सिंह जी-मैं वही हूँ जिसे तुम जानते हो।
माधो दास-मैं कैसे जानता हूँ।
गुरु गोबिंद सिंह जी-अपने मन में सोचो।
माधो दास-तो क्या आप गुरु गोबिंद सिंह जी हैं ?
गुरु गोबिंद सिंह जी-हाँ !
माधो दास-तो आप यहाँ किस लिए आये हैं ?
गुरु गोबिंद सिंह जी-तुम्हें अपना शिष्य बनाने के लिए।
माधो दास-मुझे स्वीकार है, साहिब ! मैं आप ही का बंदा (दास) हूँ।
माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब का अनुयायी बन गिया। गुरु साहिब ने भी उसे अमृत छकाकर सिख बनाया और उसका नाम परिवर्तन करके बंदा सिंह बहादुर रख दिया।

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प्रश्न 4.
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजते समय क्या कार्यवाही की तथा उसे क्या आदेश दिए ? ‘
(What action and orders were given to Banda Singh Bahadur by Guru Gobind Singh Ji before sending him to Punjab ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब भेजने से पूर्व अपने पाँच तीर दिए और उसकी सहायता के लिए पाँच प्यारे बिनोद सिंह, काहन सिंह, बाज सिंह, दया सिंह, रण सिंह तथा 20 अन्य बहादुर सिखों को साथ भेजा। इसके अतिरिक्त गुरु साहिब ने पंजाब के सिखों के नाम कुछ हुक्मनामे भी दिए। इन हुक्मनामों में पंजाब के सिखों को यह आदेश दिया गया था कि वे बंदा सिंह बहादुर को अपना नेता स्वीकार करें तथा मुग़लों के विरुद्ध धर्म युद्धों में अपना पूरा समर्थन दें। गुरु साहिब ने बंदा सिंह बहादुर को आगे दिए आदेशों का पालन करने के लिए कहा-पहला, ब्रह्मचारी जीवन व्यतीत करना। दूसरा, सदा सत्य बोलना और सच्चाई के मार्ग पर चलना। तीसरा, नया धर्म अथवा संप्रदाय नहीं चलाना। चौथा, अपनी विजयों पर अहंकार नहीं करना। पाँचवां, स्वयं को खालसा का सेवक समझना और उनकी इच्छाओं के अनुसार आचरण करना। बंदा सिंह बहादुर ने गुरु साहिब से आदर सहित तीर लिए और उनकी आज्ञा का पालन करने का प्रण किया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने अक्तूबर, 1708 ई० में गुरु जी का आशीर्वाद प्राप्त करके पंजाब के लिए प्रस्थान किया।

प्रश्न 5.
बंदा सिंह बहादुर ने सिखों का राज्य किस तरह स्थापित किया ? (How did Banda Singh Bahadur set up the Sikh empire ?)
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर को पंजाब में मुग़लों के विरुद्ध सिखों का नेतृत्व करने का आदेश दिया। जब बंदा सिंह बहादुर नांदेड़ से पंजाब पहुँचा तो सिखों ने उसे बढ़-चढ़ कर सहयोग दिया। उसका पहला काम सरहिंद के फौजदार वज़ीर खाँ से गुरु जी के दो छोटे साहिबजादों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फ़तह सिंह जी.) की शहीदी का बदला लेना था। इस उद्देश्य से वह बहुत से सिखों को साथ लेकर सरहिंद की ओर चल पड़ा। रास्ते में बंदा सिंह बहादुर ने कैथल, समाना, कपूरी और सढौरा को लूटा और बहुत से मुसलमानों की हत्या कर दी। 12 मई, 1710 ई० में चप्पड़चिड़ी की भयंकर लड़ाई में वज़ीर खाँ मारा गया। बड़ी संख्या में मुसलमानों को मौत के घाट उतारा गया। सरहिंद की विजय बंदा सिंह बहादुर की एक बहुत बड़ी सफलता थी। उसने गंगा दोआब, जालंधर दोआब और गुरदासपुर के बहुत सारे क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया था। उसने लोहगढ़ को अपनी राजधानी बनाया। उसने नए सिक्के चलाकर स्वतंत्र सिख राज्य की स्थापना की।

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प्रश्न 6.
बंदा सिंह बहादुर की कोई छः मुख्य सैनिक सफलताओं के बारे में लिखें। (Describe six major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की छः महत्त्वपूर्ण विजयों की संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the six important conquests of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुख्य सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। (Describe major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयों का विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. सोनीपत पर आक्रमण-बंदा सिंह बहादुर ने सर्वप्रथम नवंबर 1709 ई० में 500 सिखों सहित सोनीपत पर आक्रमण किया। सोनीपत का फ़ौजदार बिना सामना किए दिल्ली की ओर भाग गया। इस सरल विजय से सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

2. समाना की विजय-समाना में गुरु तेग़ बहादुर जी को तथा गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को शहीद करने वाले जल्लाद रहते थे। बंदा सिंह बहादुर ने समाना पर आक्रमण करके दस हज़ार मुसलमानों का वध कर दिया। यह बंदा सिंह बहादुर की प्रथम महत्त्वपूर्ण विजय थी।

3. कपूरी की विजय-कपूरी का शासक कदमुद्दीन हिंदुओं के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। फलस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके कदमुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर सुगमता से विजय प्राप्त की।

4. सढौरा की विजय-सढौरा का शासक उसमान खाँ बड़ा अत्याचारी था। उसने पीर बुद्ध शाह की इसलिए निर्मम हत्या करवा दी थी क्योंकि उसने भंगाणी की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी की सहायता की थी। अत: बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर आक्रमण कर दिया तथा बहुसंख्या में मुसलमानों की हत्या कर दी। इस कारण इस स्थान
का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

5. सरहिंद की विजय-सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फ़तह सिंह जी को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए 12 मई, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर ने चप्पड़चिड़ी के स्थान पर वज़ीर खाँ की सेनाओं पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सिखों ने मुसलमानों का भयंकर रक्त-पात किया। वजीर खाँ की हत्या करके उसके शव को वृक्ष पर लटका दिया गया। इस विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

6. अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट की विजयें-बंदा सिंह बहादुर की विजयों से प्रोत्साहित होकर अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट के सिखों ने भी वहाँ के अत्याचारी मुग़ल शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। बंदा सिंह बहादुर के सहयोग से सिखों ने इन प्रदेशों पर बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया।

प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद की विजय पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the conquest of Sirhind by Banda Singh Bahadur.)
अथवा
सरहिंद की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करो।
(Write briefly about the Battle of Sirhind.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ से गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी का बदला कैसे लिया ?
(How did Banda Singh Bahadur take revenge on Wazir Khan, the Faujdar of Sirhind for the martyrdom of younger sons of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद विजय का वर्णन करें। यह लड़ाई सिखों के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण थी ?
(Describe Banda Singh Bahadur’s conquest of Sirhind. Why was this battle significant for the Sikhs ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुख्य सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। (Describe major military achievements of Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयों का विवरण निम्नलिखित अनुसार है—
1. सोनीपत पर आक्रमण-बंदा सिंह बहादुर ने सर्वप्रथम नवंबर 1709 ई० में 500 सिखों सहित सोनीपत पर आक्रमण किया। सोनीपत का फ़ौजदार बिना सामना किए दिल्ली की ओर भाग गया। इस सरल विजय से सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

2. समाना की विजय-समाना में गुरु तेग़ बहादुर जी को तथा गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को शहीद करने वाले जल्लाद रहते थे। बंदा सिंह बहादुर ने समाना पर आक्रमण करके दस हज़ार मुसलमानों का वध कर दिया। यह बंदा सिंह बहादुर की प्रथम महत्त्वपूर्ण विजय थी।

3. कपूरी की विजय-कपूरी का शासक कदमुद्दीन हिंदुओं के साथ बहुत दुर्व्यवहार करता था। फलस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर आक्रमण करके कदमुद्दीन को मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने कपूरी पर सुगमता से विजय प्राप्त की।।

4. सढौरा की विजय-सढौरा का शासक उसमान खाँ बड़ा अत्याचारी था। उसने पीर बुद्ध शाह की इसलिए निर्मम हत्या करवा दी थी क्योंकि उसने भंगाणी की लड़ाई में गुरु गोबिंद सिंह जी की सहायता की थी। अत: बंदा सिंह बहादुर ने सढौरा पर आक्रमण कर दिया तथा बहुसंख्या में मुसलमानों की हत्या कर दी। इस कारण इस स्थान का नाम कत्लगढ़ी पड़ गया।

5. सरहिंद की विजय-सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फ़तह सिंह जी को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। इस अपमान का प्रतिशोध लेने के लिए 12 मई, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर ने. चप्पड़चिड़ी के स्थान पर वज़ीर खाँ की सेनाओं पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सिखों ने मुसलमानों का भयंकर रक्त-पात किया। वज़ीर खाँ की हत्या करके उसके शव को वृक्ष पर लटका दिया गया। इस विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

6. अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट की विजयें-बंदा सिंह बहादुर की विजयों से प्रोत्साहित होकर अमृतसर, बटाला, कलानौर और पठानकोट के सिखों ने भी वहाँ के अत्याचारी-मुग़ल शासकों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। बंदा सिंह बहादुर के सहयोग से सिखों ने इन प्रदेशों पर बड़ी आसानी से अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 7.
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद की विजय पर संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the conquest of Sirhind by Banda Singh Bahadur.)
अथवा
सरहिंद की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करो।
(Write briefly about the Battle of Sirhind.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ से गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबजादों की शहीदी का बदला कैसे लिया ?
(How did Banda Singh Bahadur take revenge on Wazir Khan, the Faujdar of Sirhind for the martyrdom of younger sons of Guru Gobind Singh Ji ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सरहिंद विजय का वर्णन करें। यह लड़ाई सिखों के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण थी ?
(Describe Banda Singh Bahadur’s conquest of Sirhind. Why was this battle significant for the Sikhs ?).
अथवा
चप्पड़चिड़ी की लड़ाई का संक्षेप में वर्णन करें। (Give a brief account of the battle of Chapparchiri.)
उत्तर-
सरहिंद की विजय बंदा सिंह बहादुर की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण विजयों में से एक थी। सरहिंद का फ़ौज़दार वज़ीर खाँ सिखों का घोर शत्रु था। उसने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी एवं साहिबज़ादा फ़तह सिंह जी) को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। उसकी सेनाओं के हाथों ही गुरु जी के दोनों बड़े साहिबज़ादे (साहिबज़ादा अजीत सिंह जी एवं साहिबज़ादा जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में शहीद हो गए थे। वज़ीर खाँ द्वारा भेजे गए पठान ने गुरु साहिब को नांदेड़ के स्थान पर छुरा मार दिया था जिसके कारण वे ज्योति-जोत समा गए थे। इन कारणों से बंदा सिंह बहादुर वज़ीर खाँ को एक ऐसा पाठ पढ़ाना चाहता था जोकि मुसलमानों को दीर्घकाल तक याद रहे। 12 मई, 1710 ई० को दोनों सेनाओं के बीच सरहिंद से लगभग 16 किलोमीटर दूर चप्पड़चिड़ी में बहुत भयंकर लड़ाई आरंभ हुई। आरंभ में वज़ीर खाँ के तोपखाने के कारण सिखों को बहुत क्षति पहुँची किंतु उन्होंने धैर्य का त्याग नहीं किया। बंदा सिंह बहादुर ने सत् श्री अकाल की जय-जयकार गुंजाते हुए मुसलमानों पर बड़ा जोरदार आक्रमण किया। मुसलमानों के लिए इस आक्रमण को रोकना बड़ा मुश्किल हो गया। फ़तह सिंह ने वज़ीर खाँ को यमलोक पहुँचा दिया। उसकी मृत्यु के साथ ही मुग़ल सेना में भगदड़ मच गई। सिखों ने इन भागे जा रहे सैनिकों का पीछा करके उनकी बड़ी संख्या में हत्या कर दी। वज़ीर खाँ के शव को एक वृक्ष पर उल्टा लटका दिया। 14 मई को सिख सेनाएँ सरहिंद पहुँची। उन्होंने मुसलमानों के ऐसे छक्के छुड़ाए कि उनकी आत्मा भी काँप उठी। इस प्रकार बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद की ईंट से ईंट बजा दी।

प्रश्न 8.
बंदा सिंह बहादुर की लोहगढ़ लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Lohgarh by Banda Singh Bahadur.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की बढ़ती हुई शक्ति मुगलों के लिए एक चुनौती थी। इसलिए मुग़ल बादशाह बहादुर । शाह ने बंदा सिंह बहादुर की शक्ति का दमन करने का निर्णय किया। इस उद्देश्य से उसने अपने एक जरनैल मुनीम खाँ के अंतर्गत 60,000 सैनिकों की एक विशाल सेना पंजाब भेजी। इस सेना ने 10 दिसंबर, 1710 ई० को लोहगढ़ पर अचानक आक्रमण कर दिया। लोहगढ़ बंदा सिंह बहादुर की राजधानी का नाम था। इसे उसने मुखलिसपुर के स्थान पर बनाया था। सिख दुर्ग के भीतर से मुग़लों का डटकर सामना करते थे। खाद्य-पदार्थों की कमी के कारण सिखों के लिए इस लड़ाई को अधिक समय तक जारी रखना संभव नहीं था। बंदा सिंह बहादुर इतनी. सरलता से मुग़लों के हाथ आने वाला नहीं था। वह वेश बदलकर दर्ग से बच निकलने में सफल हो गया और नाहन की पहाड़ियों की ओर चला गया। अगले दिन जब मुगलों ने दुर्ग पर अधिकार किया तो उन्हें यह जानकर बहुत निराशा हुई कि हाथ आया बाज़ उड़ गया है।

प्रश्न 9.
गुरदास नंगल की लड़ाई पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Gurdas Nangal.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर एवं मुग़लों के मध्य हुई गुरदास नंगल की लड़ाई का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(Give a brief account of the battle of Gurdas-Nangal fought between Banda Singh Bahadur and the Mughals.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर के अधीन पंजाब में बढ़ रही सिखों की शक्ति को रोकने के लिए मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। उसको सिखों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए। उसने अप्रैल, 1715 ई० में एक विशाल सेना के साथ बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल के स्थान पर घेर लिया। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिखों ने दुनी चंद की हवेली से इस मुग़ल सेना से मुकाबला जारी रखा। यह घेरा आठ महीने तक चलता रहा। धीरे-धीरे खान-पान की सामग्री समाप्त होने पर सिखों की स्थिति बड़ी दयनीय हो गई। ऐसे समय में बाबा बिनोद सिंह ने बंदा सिंह बहादुर को हवेली से भाग निकलने का परामर्श दिया पर बंदा सिंह बहादुर ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप बिनोद सिंह अपने साथियों को साथ लेकर गढ़ी छोड़कर भाग निकला। इससे बंदा सिंह बहादुर की स्थिति और बिगड़ गई। अंत में विवश होकर बंदा सिंह बहादुर को अपनी पराजय स्वीकार करनी पड़ी। इस प्रकार 7 दिसंबर, 1715 ई० को बंदा सिंह बहादुर और उसके दो सौ साथियों को बंदी बना लिया गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 11 बंदा सिंह बहादुर

प्रश्न 10.
बंदा सिंह बहादुर को कब, कहाँ तथा कैसे शहीद किया गया ? (When, where and how was Banda Singh Bahadur martyred ?)
उत्तर-
गुरदास नंगल से अब्दुस समद खाँ ने 200 सिखों को बंदी बनाया था, परंतु बाद में लाहौर की ओर आते मार्ग में उसने 540 अन्य सिखों को बंदी बना लिया। बंदा सिंह बहादुर और इन 740 सिखों को फरवरी, 1716 ई० में दिल्ली भेजा गया। दिल्ली पहुँचने पर उनका जुलूस निकाला गया। बंदा सिंह बहादुर को एक पिंजरे में बंद किया गया था। मार्ग में उनका भारी अपमान किया गया। बाद में उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए कहा। ऐसा करने पर उन्हें प्राण दान दिए जा सकते थे, परंतु इन स्वाभिमानी सिखों में से किसी ने भी इस्लाम धर्म स्वीकार करने से इंकार कर दिया। अत: प्रतिदिन 100 सिखों को शहीद किया जाने लगा। अंत में 9 जून, 1716 ई० को बंदा सिंह बहादुर की बारी आई। उसे शहीद करने से पूर्व जल्लाद ने उसके चार वर्ष के पुत्र अजय सिंह की उसकी आँखों के सामने निर्ममता से हत्या की और उसके तड़पते हुए दिल को निकाल कर बंदा सिंह बहादुर के मुँह में लूंस दिया। तत्पश्चात् बंदा सिंह बहादुर का अंग-अंग काटकर उसे शहीद किया गया। बंदा सिंह बहादुर के सैनिक कारनामे एवं शहीदी आने वाली नस्लों के लिए एक प्रेरणा का स्रोत बन गई।

प्रश्न 11.
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं के कारणों का उल्लेख करो। (Mention the causes of early success of Banda Singh Bahadur.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं के कारण बतायें।
(What were the causes of early success of Banda Singh Bahadur ?) .
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की सफलता के छः प्रमुख कारण कौन से थे ? (P.S.E.B. Model Test Paper) (What were the six causes of success of Banda Singh Bahadur ?)
उत्तर-
1. मुगलों के घोर अत्याचार-पंजाब के मुग़ल शासक सिखों के कट्टर शत्रु थे। सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी तथा साहिबजादा फतह सिंह जी) को जीवित ही दीवार में चिनवा दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी के दोनों बड़े साहिबज़ादे (साहिबजादा अजीत सिंह जी और साहिबजादा जुझार सिंह जी) चमकौर साहिब की लड़ाई में उसके सैनिकों से लड़ते हुए शहीद हो गए थे। अतः सिखों का खून खौल रहा था। परिणामस्वरूप वे बंदा सिंह बहादुर के झंडे अधीन एकत्र हो गए।

2. गुरु गोबिंद सिंह जी के हुक्मनामे-गुरु गोबिंद सिंह जी ने बंदा सिंह बहादुर के हाथ सिख संगत के नाम कुछ हुक्मनामे भेजे. थे। इन हुक्मनामों में गुरु साहिब ने सिख संगत को मुगलों के विरुद्ध होने वाले धर्म युद्धों में बंदा सिंह बहादुर को पूरा सहयोग देने को कहा। सिख संगत के सहयोग के कारण बंदा सिंह बहादुर एवं उसके साथियों का उत्साह बढ़ गया।

3. औरंगजेब के कमज़ोर उत्तराधिकारी-1707 ई० में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद हुआ मुग़ल शासक बहादुर शाह उत्तराधिकारिता के युद्ध में ही उलझा रहा। अतः वह साम्राज्य में व्याप्त अराजकता को नियंत्रण में रखने में असफल रहा जबकि उसके बाद मुग़ल बादशाह बनने वाला जहाँदार शाह एक वेश्या लाल कंवर के चक्करों में फंसा रहा। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने इस स्वर्ण अवसर का उचित लाभ उठाया तथा अनेक सफलताएँ प्राप्त की।

4. बंदा सिंह बहादुर का योग्य नेतृत्व बंदा सिंह बहादुर एक निर्भीक योद्धा एवं योग्य सेनापति था। उसने सभी लड़ाइयों में सेना का स्वयं नेतृत्व किया तथा वह अपने अधीन सैनिकों को युद्ध के समय में अत्यधिक प्रोत्साहित करता था। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर ने अपने आरंभिक वर्षों में प्रशंसनीय सफलताएँ प्राप्त की।

5. बंदा सिंह बहादुर का अच्छा शासन प्रबंध-बंदा सिंह बहादुर ने अपने अधीन प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने बहुत ही योग्य एवं ईमानदार अधिकारी नियुक्त किए। उसने ज़मींदारी प्रथा को खत्म करके किसानों को न केवल ज़मींदारों के अत्याचारों से बचाया बल्कि उन्हें भूमि का स्वामी भी बना दिया। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के लोगों से पूरा समर्थन मिला।

6. पंजाब के पहाड़ तथा जंगल-पंजाब के पहाड़ तथा जंगल बंदा सिंह बहादुर की आरंभिक सफलताओं में सहायक सिद्ध हुए। बंदा सिंह बहादुर ने संकट के समय इन पहाड़ों तथा जंगलों में जाकर आश्रय लिया। यहाँ वे पुनः संगठित होकर मुग़ल प्रदेशों पर आक्रमण कर देता था।

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प्रश्न 12.
बंदा सिंह बहादुर जी असफलता के छः मुख्य कारणों का वर्णन करें।
(What were the six causes of failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के क्या कारण थे ? (What were the causes of final failure of Banda Singh Bahadur ?)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर की मुग़लों के विरुद्ध अंतिम असफलता के कारण लिखें। (Write down the causes of ultimate failure of Banda Singh Bahadur aganist Mughals.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर पंजाब,में एक स्थाई सिख शासन की स्थापना में क्यों विफल रहा? (Why did Banda Singh Bahadur fail in setting up a permanent Sikh rule in Punjab ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की अंतिम असफलता के लिए निम्नलिखित कारण उत्तरदायी थे—
1. मुग़ल साम्राज्य की शक्ति-मुग़ल साम्राज्य के पास विशाल तथा असीमित साधन थे। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर के साधन बहुत सीमित थे। मुग़लों की तुलना में उसके सैनिकों की संख्या बहत कम थी। ऐसी स्थिति में मुग़लों पर पूर्ण विजय प्राप्त करना बंदा सिंह बहादुर के लिए बिल्कुल असंभव था।

2. सिखों में संगठन का अभाव-बंदा सिंह बहादुर के अधीन सिख सैनिकों में संगठन और अनुशासन का अभाव था। वे किसी योजनानुसार लड़ाई नहीं करते थे। अतः संगठन और अनुशासन के अभाव में ऐसे सिखों का असफल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।

3. बंदा सिंह बहादुर द्वारा आदेशों का उल्लंघन-बंदा सिंह बहादुर ने गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा दिए आदेशों का उल्लंघन करना आरंभ कर दिया था। फलस्वरूप गुरु गोबिंद सिंह जी के अनेक श्रद्धालु सिख बंदा सिंह बहादुर के विरुद्ध हो गए।

4. फ़र्रुखसियर की सिखों के विरुद्ध कार्यवाहियाँ-1713 ई० में फ़र्रुखसियर मुग़लों का नया बादशाह बना था। वह सिखों को कुचलने के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था। उसने सिखों का दमन करने के लिए अब्दुस समद खाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। अब्दुस समद खाँ ने सिखों की शक्ति का दमन करने के लिए कोई कसर न उठा रखी। परिणामस्वरूप बंदा सिंह बहादुर और उसके साथियों को आत्म-समर्पण करना ही पड़ा।

5. गुरदास नंगल में सिखों पर अचानक आक्रमण-अप्रैल, 1715 ई० में बंदा सिंह बहादुर पर हुआ अचानक आक्रमण भी उनके पतन का एक प्रमुख कारण बना। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिख अचानक आक्रमण के कारण दुनी चंद की हवेली में घिर गए। इस हवेली में से अधिक समय तक मुग़लों का सामना नहीं किया जा सकता था। इसके बावजूद बंदा सिंह बहादुर ने 8 माह तक लड़ाई जारी रखी पर अंत में उसे पराजय स्वीकार करनी पड़ी।

6. बंदा सिंह बहादुर और बिनोद सिंह में मतभेद-गुरदास नंगल की लड़ाई के समय बंदा सिंह बहादुर और उसके साथी बिनोद सिंह में मतभेद उत्पन्न हो गए। बिनोद सिंह हवेली छोड़कर भाग निकलने के पक्ष में था। दूसरी ओर बंदा सिंह बहादुर चाहता था कि कुछ समय और लड़ाई को जारी रखा जाए। परिणामस्वरूप बिनोद सिंह अपने साथियों सहित हवेली छोड़कर निकल गया। अत: बंदा सिंह बहादुर को पराजय का मुख देखना पड़ा।

प्रश्न 13.
बंदा सिंह बहादुर के व्यक्तित्व की मख्य विशेषताएँ बताएँ। (Describe the main traits of Banda Singh Bahadur’s personality.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर बड़ा ही निडर और साहसी था। बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी वह घबराता नहीं था। मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों में उसने अपनी अद्वितीय वीरता का परिचय दिया। वह इतना निडर था कि जब मुग़ल बादशाह ने उसको पूछा कि वह किस प्रकार की मृत्यु पसंद करेगा तो उसने बिना झिझक उत्तर दिया कि जैसी मृत्यु बादशाह अपने लिए पसंद करेगा। वह सिख धर्म का सच्चा सेवक था। उसने अपनी सफलताओं को गुरु साहिब का वरदान माना। उसने गुरु नानक देव जी और गुरु गोबिंद सिंह जी के नाम पर अपने सिक्के जारी किए। उसने सिख धर्म का प्रचार अत्यंत उत्साह के साथ किया। बंदा सिंह बहादुर एक महान् सेनापति था। अपने सीमित साधनों के बावजूद उसने मुग़ल शासकों की रातों की नींद हराम कर दी थी। वह युद्ध की चालों में बड़ा दक्ष था और युद्ध के मैदान में वह स्थिति के अनुसार अपनी कार्यवाही बड़ी तीव्रता के साथ करता था। बंदा सिंह बहादुर एक योग्य शासक भी था। उसने अपने जीते हुए प्रदेशों में बहुत अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की थी। उसने पहली बार निर्धनों को ऊंचे पदों पर नियुक्त किया था। वह अपनी प्रजा को निष्पक्ष न्याय देता था। उसने अपने राज्य में से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके किसानों को उनके अत्याचारों से बचाया।

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प्रश्न 14.
एक योद्धा और सेनापति के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
(Describe briefly the achievements of Banda Singh Bahadur as a Warrior and General.)
अथवा
बंदा सिंह बहादुर का एक वीर योद्धा तथा सेनापति के रूप में मूल्यांकन करें।
(Explain the main contributions of Banda Singh Bahadur as a brave warrior and great military organiser.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक महान् योद्धा और उच्चकोटि का सेनापति था। बंदा सिंह बहादुर के साधन मुग़लों के मुकाबले नाममात्र थे, परंतु उसने अपनी योग्यता के बल पर 7-8 वर्ष मुग़ल सेना के नाक में दम कर रखा था। उसने जितनी भी लड़ाइयां लड़ीं, लगभग सभी में उसने बड़ी शानदार सफलताएँ प्राप्त की। युद्ध के मैदान में वह बड़ी तीव्रता से स्थिति का अनुमान लगा लेता था और अवसर अनुसार अपना निर्णय तुरंत कर लेता था। वह युद्ध की चालों में बड़ा निपुण था। यदि किसी स्थान पर वह यह समझता था कि शत्रुओं की सेनाएँ उसके मुकाबले में बहुत अधिक हैं तो वह पीछे हटने में अपना अपमान नहीं समझता था। वह युद्ध तभी शुरू करता था जब उसे विजय की पूर्ण आशा होती थी। वह आवश्यकतानुसार खुले मैदानों, पहाड़ों या किलों में से लड़ता था। वास्तव में इन जंगी चालों ने उसको एक उच्चकोटि का सेनापति बना दिया था।

प्रश्न 15.
एक प्रशासक के रूप में बंदा सिंह बहादुर की सफलताओं की संक्षिप्त जानकारी दें। (Write briefly about Banda Singh Bahadur’s achievements as an administrator.)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर एक योग्य शासन प्रबंधक था। उसने अपने विजित प्रदेशों में अच्छे शासन प्रबंध की व्यवस्था की। उसने खालसा के नाम से शासन किया और अपने राज्य में गुरु साहिब द्वारा दर्शाए गए नियमों को लागू करने का यत्न किया। उसने अपने राज्य में भ्रष्टाचारी कर्मचारियों को हटाकर बड़े योग्य और ईमानदार व्यक्तियों को नियुक्त किया। निर्धनों और निम्न जाति के लोगों को उच्च पदों पर लगाकर उनको एक नया सम्मान दिया। बंदा बहादुर ने ज़मींदारी प्रथा का अंत करके एक अत्यंत सराहनीय कार्य किया। इससे एक तो वे ज़मींदारों द्वारा किए गए अत्याचारों से बच गए और दूसरे वे भूमि के मालिक बन गए। बंदा सिंह बहादुर अपने निष्पक्ष न्याय के कारण भी बहुत प्रसिद्ध था। न्याय करते समय वह ऊँच-नीच में कोई भेद नहीं करता था। निस्संदेह बंदा सिंह बहादुर का शासन प्रबंध खालसा शासन के अनुसार था।

प्रश्न 16.
बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में आप क्या स्थान देते हैं ? (What place would you assign to Banda Singh Bahadur in the History of Punjab ?)
अथवा
पंजाब के इतिहास में बंदा सिंह बहादुर को क्या स्थान प्राप्त है ? (What is the place of Banda Singh Bahadur in the History of the Punjab ?)
उत्तर-
निस्संदेह बंदा सिंह बहादुर को पंजाब के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वह पहला व्यक्ति था जिसने सिखों की स्वतंत्रता की नींव डाली। उसने पंजाबियों को अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मर मिटने का पाठ पढ़ाया। उसने 7-8 वर्षों के थोड़े से समय में मुग़लों के शक्तिशाली साम्राज्य की नींव हिला कर एक आश्चर्यजनक कार्य कर दिखाया। उसने मुग़लों के अजेय होने के जादू को तोड़ा तथा उन्हें अनेक लड़ाइयों में पराजित किया। उसने सिखों में स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए नव प्राण फूंके। उसके द्वारा सुलगाई गई स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए यह चिंगारी अंदर ही अंदर सुलगती रही जो बाद में भयंकर आग का रूप धारण कर गई तथा जिसमें मुग़ल साम्राज्य जलकर भस्म हो गया। बंदा सिंह बहादुर ने पंजाब से ज़मींदारी प्रथा को समाप्त करके एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी पग उठाया। उसने निर्धनों और सदियों से शोषित निम्न वर्ग के लोगों को शासन प्रबंध में ऊँचे पद देकर एक नया उदाहरण प्रस्तुत किया। परिणामस्वरूप ये लोग बंदा सिंह बहादुर के एक इशारे पर अपनी कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए। वास्तव में बंदा सिंह बहादुर के प्रशंसनीय योगदान के कारण उसके नाम को सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।

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Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
बंदा सिंह बहादुर जिसका बचपन का नाम लक्ष्मण देव था, कश्मीर के जिला पुंछ के राजौरी गाँव का रहने वाला था। उसके पिता एक साधारण कृषक थे। एक गर्भवती हिरणी को मारने के कारण उसके दिल पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। परिणामस्वरूप वह बैरागी बन गया। लक्ष्मण देव का नाम बदल कर माधो दास रख दिया गया। उसने पंचवटी के एक साधु औघड़नाथ से तंत्र विद्या की जानकारी प्राप्त की। कुछ समय वहाँ रहने के बाद माधो दास नांदेड़ नामक स्थान पर आ गया। नांदेड़ में ही 1708 ई० में उसकी भेंट गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ हुई। इस भेंट के दौरान गुरु गोबिंद सिंह जी और माधो दास के मध्य कुछ प्रश्न-उत्तर हुए। माधो दास गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि वह गुरु साहिब का बंदा (दास) बन गया। गुरु गोबिंद सिंह जी ने उसे अमृत छका कर सिख बना दिया और उसको बंदा बहादुर का नाम दिया। इस तरह बंदा बैरागी सिख बना।

  1. बंदा सिंह बहादुर के बचपन का क्या नाम था ?
  2. बंदा सिंह बहादुर के दिल में किस घटना का गहरा प्रभाव पड़ा ?
  3. गुरु गोबिंद सिंह जी तथा बंदा सिंह बहादुर के मध्य मुलाकात कहाँ हुई थी ?
  4. गुरु गोबिंद सिंह जी तथा बंदा सिंह बहादुर के मध्य भेंट कब हुई थी ?
    • 1705 ई०
    • 1706 ई०
    • 1707 ई०
    • 1708 ई०
  5. बंदा सिंह बैरागी सिख कैसे बना था ?

उत्तर-

  1. बंदा सिंह बहादुर के बचपन का नाम लक्ष्मण देव था।
  2. बंदा सिंह बहादुर द्वारा एक गर्भवती हिरणी का शिकार करने के कारण उसके दिल पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  3. गुरु गोबिंद सिंह जी तथा बंदा सिंह बहादुर के मध्य मुलाकात नांदेड़ में हुई।
  4. 1708 ई०।
  5. गुरु गोबिंद सिंह जी ने माधो दास को अमृत छकाया। इस प्रकार बंदा बैरागी सिख बन गया।

2
सरहिंद के फ़ौजदार वज़ीर खाँ ने गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों जोरावर सिंह तथा फ़तह सिंह को दीवार में जिंदा चिनवा दिया था। इसलिए बंदा सिंह बहादुर उसे एक ऐसा पाठ पढ़ाना चाहता था जो मुसलमानों को दीर्घकाल तक स्मरण रहे। 12 मई, 1710 ई० को बंदा सिंह बहादुर ने चप्पड़चिड़ी के स्थान पर वज़ीर खाँ की सेनाओं पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सिखों ने मुसलमानों का ऐसा रक्त-पात किया कि उनकी आत्मा भी काँप उठी। वज़ीर खाँ की हत्या करके उसके शव को वृक्ष पर उल्टा लटका दिया गया। 14 मई, 1710 ई० को सारे सरहिंद में भारी रक्तपात और लूटपात की गई। इस भव्य विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

  1. वज़ीर.खाँ कौन था ?
  2. बंदा सिंह बहादुर ने सरहिंद पर आक्रमण क्यों किया ?
  3. वज़ीर खाँ किस स्थान पर सिखों के साथ मुकाबला करते हुए मारा गया था ?
  4. चप्पड़चिड़ी की लड़ाई कब हुई थी ?
    • 1706 ई०
    • 1708 ई०
    • 1709 ई०
    • 1710 ई०
  5. चप्पड़चिड़ी की लड़ाई में कौन विजयी रहा ?

उत्तर-

  1. वज़ीर खाँ सरहिंद का नवाब था।
  2. बंदा सिंह बहादुर वज़ीर खाँ द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी के दो छोटे साहिबजादों को दीवार में जिंदा चिनवा दिए जाने का बदला लेना चाहता थे।
  3. वजीर खाँ चप्पड़चिड़ी में सिखों के साथ मुकाबला करते हुए मारा गया था।
  4. 1710 ई०।
  5. चप्पड़चिड़ी की लड़ाई में सिख विजयी रहे।

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3
बंदा सिंह बहादुर के अधीन पंजाब में बढ़ रही सिखों की शक्ति को रोकने के लिए मुग़ल बादशाह फर्रुखसियर ने अब्दुस समद ख़ाँ को लाहौर का सूबेदार नियुक्त किया। उसको सिखों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए। उसने अप्रैल, 1715 ई० में एक विशाल सेना के साथ बंदा सिंह बहादुर को गुरदास नंगल के स्थान पर घेर लिया। बंदा सिंह बहादुर तथा उसके साथी सिखों ने दुनी चंद की हवेली में इस मुग़ल सेना से मुकाबला जारी रखा। यह घेरा आठ महीने तक चलता रहा। धीरे-धीरे खान-पान की सामग्री समाप्त होने पर सिखों की स्थिति बड़ी दयनीय हो गई। ऐसे समय में बाबा बिनोद सिंह ने बंदा बहादुर को हवेली से भाग निकलने का परामर्श दिया पर बंदा सिंह बहादुर ने इंकार कर दिया। परिणामस्वरूप बिनोद सिंह अपने साथियों को साथ लेकर गढ़ी छोड़कर भाग निकला। अंत में विवश होकर 7 दिसंबर, 1715 ई० को बंदा सिंह बहादुर को अपनी पराजय को स्वीकार करना पड़ा।

  1. अब्दुस समद खाँ कौन था ?
  2. गुरदास नंगल में बंदा सिंह बहादुर ने किस हवेली से मुग़ल सेना का मुकाबला किया ?
  3. गुरदास नंगल की लड़ाई कितनी देर तक चली ?
  4. गुरदास नंगल की लड़ाई में उसका कौन-सा साथी उसका साथ छोड़ गया था ?
  5. बंदा बहादर को कब गिरफ्तार किया गया था ?
    • 1705 ई०
    • 1710 ई०
    • 1711 ई०
    • 1715 ई०।

उत्तर-

  1. अब्दुस समद खाँ लाहौर का सूबेदार था।
  2. गुरदास नंगल में बंदा सिंह बहादुर ने दुनी चंद की हवेली से मुग़ल सेना का मुकाबला किया।
  3. गुरदास नंगल की लड़ाई 8 महीनों तक चली।
  4. गुरदास नंगल की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर का साथी बाबा बिनोद सिंह उसका साथ छोड़ गया था।
  5. 1715 ई०।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 10 दिल्ली सल्तनत

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 10 दिल्ली सल्तनत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 10 दिल्ली सल्तनत

SST Guide for Class 7 PSEB दिल्ली सल्तनत Textbook Questions and Answers

(क) निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
दिल्ली सल्तनत के मुख्य ऐतिहासिक स्रोतों के नाम लिखें।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत की जानकारी के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित हैं –
1. विदेशी यात्रियों के लेख-इब्नबतूता और मार्को पोलो आदि यात्रियों ने सल्तनत काल में भारत की यात्रा की। उन्होंने दिल्ली के सुल्तानों के व्यक्तित्व और विभिन्न क्षेत्रों की जानकारी सम्बन्धी लेख लिखे।

2. शाही वृत्तान्त-तुग़लकनामा, तारीख ए-इलाही, तारीख-ए-फिरोज़शाही, फतुहात-ए-फ़िरोजशाही, तारीख-एमुबारकशाही और मखज़ारी-ए-अफ़गान आदि शाही वृत्तान्तों से हमें दिल्ली के सुल्तानों और प्रमुख घटनाओं के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है।

3. ऐतिहासिक भवन-दिल्ली सल्तनत के काल के ऐतिहासिक भवनों, जैसे कि कुवैत-उल-इस्लाम मस्जिद, इलाही दरवाज़ा, तुग़लकाबाद, हौज़ खास, लोधी गुंबद, फिरोजशाह कोटला आदि से हमें दिल्ली के सुल्तानों की कलात्मक रुचियों के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 2.
दिल्ली सल्तनत के इतिहास के निर्माण में ऐतिहासिक इमारतों का क्या योगदान था?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के मुख्य ऐतिहासिक भवन हैं-कुवैत-उल-इस्लाम मस्जिद, इलाही (अलाई) दरवाजा, तुग़लकाबाद, हौज़ खास, लोधी गुंबद, फ़िरोजशाह कोटला आदि। इन भवनों से हमें दिल्ली के सुल्तानों की कलात्मक रुचियों की जानकारी मिलती है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 10 दिल्ली सल्तनत

प्रश्न 3.
बलबन ने सल्तनत का संगठन कैसे किया ?
उत्तर-
बलबन 1266 ई० में दिल्ली का सुल्तान बना। वह दिल्ली सल्तनत का महान् शासक था। उसने सुल्तान की सर्वोच्चता को स्थापित किया।

  1. उसने दिल्ली के पास मेवातियों द्वारा फैलाई गई अशान्ति और दोआबा के लुटेरों पर काबू पाया।
  2. उसने बंगाल में तुग़रिल खां के विद्रोह को कुचला। दोषियों को कठोर दंड दिये गए।
  3. सेना का पुनर्गठन किया गया। मंगोल आक्रमणों से राज्य की रक्षा करने के लिए उत्तर-पश्चिमी सीमावर्ती प्रान्तों में विशेष सेना रखी गई।
  4. बलबन ने मंगोलों के विरुद्ध कठोर नीति अपनाई। जिसे ‘लहू और लोहे की नीति’ कहा जाता है।
  5. उसने शासन प्रबन्ध में भी सुधार किये और प्रजा को न्याय दिया।
    1286 ई० में बलबन की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 4.
मुहम्मद बिन तुग़लक ने अपनी राजधानी दिल्ली से देवगिठी क्यों बदली थी ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के पास एक विशाल साम्राज्य था। वह अपनी राजधानी उस स्थान पर बनाना चाहता था, जो राज्य के केन्द्र में स्थित हो। इसलिए 1327 ई० में उसने साम्राज्य की राजधानी दिल्ली से देवगिरी (दौलताबाद) बदलने का निर्णय किया। इस के दो कारण थे –
(1) सुल्तान का विश्वास था कि ऐसा करने से साम्राज्य की मंगोलों के आक्रमणों से रक्षा की जा सकती है।
(2) उसने अनुभव किया कि वह साम्राज्य के शासन प्रबन्ध को दिल्ली की अपेक्षा देवगिरी से अच्छी प्रकार चला सकेगा।

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प्रश्न 5.
मुहम्मद-बिन-तुगलक की योजनाओं के क्या परिणाम निकले थे ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक (1325-1351 ई०) के राजनीतिक उद्देश्य बहुत ऊंचे थे। उसने कई राजनीतिक योजनाएं बनाईं। परन्तु ये सभी योजनाएं असफल रहीं। उसकी इन योजनाओं तथा उनके परिणामों का वर्णन इस प्रकार हैं –
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1. राजधानी बदलना-1327 ई० में मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने दिल्ली के स्थान पर दक्षिण में देवगिरी को अपनी राजधानी बनाया। उसने इस नई राजधानी का नाम दौलताबाद रखा और अपने सभी कर्मचारियों को वहां जाने की आज्ञा दी। उसने दिल्ली के लोगों को भी देवगिरी जाने के लिए कहा। अनेक लोग लम्बी यात्रा के कारण मर गए। उत्तरी भारत में शासन की व्यवस्था भी बिगड़ गई। विवश होकर मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने फिर दिल्ली को ही राजधानी बना लिया। लोगों को फिर से दिल्ली जाने की आज्ञा दी गई। इस प्रकार जान-माल की बहुत हानि हुई।

2. दोआब में कर बढ़ाना-मुहम्मद-बिन-तुग़लक को अपनी सेना के लिए धम की आवश्यकता थीं। इसलिए उसने दोआब में कर बढ़ा दिया, परन्तु उस साल वर्षा नहीं हुई और दोआब में अकाल. पड़ गया। किसानों की दशा बहुत बिगड़ गई। उनके पास लगान देने के लिए धन न रहा। लगान इकट्ठा करने वाले कर्मचारी उनके साथ कठोर व्यवहार करने लगे। तंग आकर कई किसान जंगलों में भाग गए। बाद में सुल्तान को अपनी गलती का पता चला। उसने उन किसानों की सहायता की।

3. तांबे के सिक्के चलाना-1330 ई० में मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने सोने तथा चांदी के सिक्कों के स्थान पर तांबे के सिक्के चलाए। अतः कई लोगों ने घरों में नकली सिक्के बनाने आरम्भ कर दिए और वे भूमि का लगान तथा अन्य कर इन्हीं सिक्कों से चुकाने लगे, जिससे सरकार को बहुत हानि हुई। इसलिए सुल्तान ने तांबे के सिक्के बन्द कर दिए। लोगों को इनके बदले में चांदी के सिक्के दिए गए। कई लोगों ने नकली सिक्के बनाकर सरकार से चांदी के असली सिक्के प्राप्त किए। इस प्रकार राज्य के कोष को बहुत हानि पहुंची।

4. खुरासान को जीतने की योजना-मुहम्मद तुगलक एक महान् शासक बनना चाहता था। अतः उसने खुरासान (इरान) को जीतने का निर्णय किया। उसने एक बड़ी सेना एकत्रित की। इन सैनिकों को एक साल तक वेतन दिया गया। उनके प्रशिक्षण पर और शस्त्रों पर भी बहुत धन खर्च किया गया। परन्तु एक साल बाद सुल्तान ने खुरासान को जीतने का विचार त्याग दिया और सैनिकों को हटा दिया। बेरोज़गार सैनिकों ने राज्य में अशान्ति फैला दी। क्योंकि सुल्तान ने साधारण जनता का विश्वास खो दिया था, इसलिए राज्यों में विद्रोह हो गये और बहुत से प्रान्तों ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। सुल्तान का अपने साम्राज्य पर नियंत्रण न रहा। 1351 ई० में उस की मृत्यु हो गई।

(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करो

  1. कुतुबुद्दीन ऐबक ………….. का संस्थापक था।
  2. रजिया सुल्ताना …………… की बेटी थी।
  3. इल्तुतमिश ……………. ई० में शासक बना।
  4. इल्तुतमिश ने ………….. को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
  5. मलिक काफूर …………….. का सेनापति था।
  6. मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने अपनी राजधानी ……….. से बदलकर देवगिरी करने का निर्णय किया।
  7. तैमूर ने ……………. वंश के शासकों के राज्यकाल में भारत पर आक्रमण किया।

उत्तर-

  1. दास वंश
  2. इल्तुतमिश
  3. 1211
  4. रजिया सुल्ताना
  5. अलाउद्दीन खिलजी
  6. दिल्ली
  7. तुग़लक।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिह्न लगाएं

  1. इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दास था।
  2. बलबन दास वंश का संस्थापक था।
  3. अलाउद्दीन खिलजी ने बाज़ार नियन्त्रण नीति को प्रचलित किया।
  4. लोधियों को सैय्यदों ने पराजित किया।
  5. सिकन्दर लोधी तथा बाबर का पानीपत की प्रथम लड़ाई में सामना हुआ था।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✗)
  5. (✗)

PSEB 7th Class Social Science Guide दिल्ली सल्तनत Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
भारत में सल्तनत काल कब से कब तक रहा ?
उत्तर-
भारत में सल्तनत काल 1206 ई० से 1526 ई० तक रहा।

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प्रश्न 2.
सल्तनत में दिल्ली पर कौन-कौन से राजवंशों ने शासन किया ?
उत्तर–
दास वंश, खिलजी वंश, तुग़लक वंश, सैय्यद वंश तथा लोधी वंश ने।

प्रश्न 3.
सल्तनत वंश के कुछ महान् सुल्तानों के नाम बताओ।
उत्तर-
इल्तुतमिश, बलबन, अलाउद्दीन खिलजी, मुहम्मद-बिन-तुग़लक तथा फिरोजशाह तुग़लक।

प्रश्न 4.
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु कब और कैसे हुई ?
उत्तर-
कुतुबुद्दीन ऐबक की मृत्यु 1210 ई० में घोड़े से गिरने से हुई।

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प्रश्न 5.
आराम शाह कौन था ?
उत्तर-
आराम शाह कुतुबुद्दीन ऐबक का पुत्र था जो उसके बाद दिल्ली का सुल्तान बना। वह एक अयोग्य शासक था। अतः उसे इल्तुतमिश ने बंदी बना लिया और बाद में उसका वध कर दिया।

प्रश्न 6.
चालीसा क्या था ?
उत्तर-
इल्तुतमिश ने शासन-प्रबन्ध चलाने के लिए 40 अमीरों की नियुक्ति की थी। इन्हें चालीसा कहा जाता था।
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प्रश्न 7.
रजिया सुल्ताना कौन थी ?
उत्तर-
रजिया सुल्ताना इल्तुतमिश की पुत्री थी। इल्तुतमिश के बाद वह दिल्ली की शासक बनी। उसने 1236 ई० से 1240 ई० तक शासन किया। उसने प्रादेशिक राज्यपालों के विद्रोह को कुचला। परन्तु अमीर और सेनापति उसकी आज्ञा का पालन नहीं करते थे। उसे 1240 ई० में मार दिया गया।

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प्रश्न 8.
कुतुबुद्दीन ऐबक के शासनकाल का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। .
उत्तर-
कुतुबुद्दीन ऐबक भारत में तुर्क राज्य का वास्तविक संस्थापक था। वह दिल्ली सल्तनत का प्रथम शासक था। राजगद्दी पर बैठने के समय उसे बहुत-सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसने गज़नी के शासक यल्दौज के पंजाब पर आक्रमण को रोकने के लिए पंजाब पर अधिकार कर लिया। उसने लाहौर को अपनी राजधानी बनाया। ऐबक एक महान् कला-प्रेमी था। उसने दिल्ली और अजमेर में मस्जिदें बनवाईं। उसने कुतुबुमीनार का निर्माण कार्य भी आरम्भ करवाया था। 1210 ई० में अचानक घोड़े से गिर जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 9.
अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिणी विजयों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
अलाउद्दीन खिलजी ने दक्षिण भारत की विजय के लिए अपने सेनापति मलिक काफूर के अधीन एक बहुत बड़ी सेना भेजी। मलिक काफूर ने देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र तथा मदुरै के प्रदेश जीत लिए। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी ने इन प्रदेशों को अपने राज्य में नहीं मिलाया।

प्रश्न 10.
इल्तुतमिश की सफ़लताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दास था और बाद में उसका दामाद बन गया। ऐबक की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र आराम शाह दिल्ली का सुल्तान बना, जो एक अयोग्य सुल्तान था। इल्तुतमिश ने आरामशाह को हराया और उसे बन्दी बना लिया और बाद में उसे मार दिया गया। इस प्रकार 1211 ई० में इल्तुतमिश अपने परिश्रम और योग्यता के कारण शासक बन गया।
सफलताएं-इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक प्रयास किए –

  1. उसने अमीरों पर काबू पाया जो दिल्ली सल्तनत के विरोधी थे।
  2. उसने गज़नी के ताजुद्दीन यल्दौज और मुलतान के नसीर-उद्-दीन कुबाचा को पराजित किया।
  3. उसने रणथम्भौर, ग्वालियर और उज्जैन आदि राजपूत किलों पर अधिकार कर लिया।
  4. उसने बंगाल के विद्रोह को कुचल दिया और उस पर दोबारा अधिकार कर लिया।
  5. 1221 ई० में उसने चंगेज़ खान के नेतृत्व में मंगोल आक्रमण से भारत की रक्षा की।
  6. उसने राज्य का शासन प्रबन्ध चलाने के लिए 40 अमीरों की नियुक्ति की, जिन्हें चालीसा कहा जाता था।

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प्रश्न 11.
जलालुद्दीन खिलजी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
जलालुद्दीन खिलजी खिलजी वंश का संस्थापक था। उसने 1290 ई० से 1296 ई० तक शासन किया। उसके समय में दरबार षड्यन्त्रों का अड्डा बन गया था। 1296 ई० में जलालुद्दीन खिलजी का वध करके उस का भतीजा एवं दामाद अलाउद्दीन खिलजी राजगद्दी पर बैठा।

प्रश्न 12.
अलाउद्दीन खिलजी की विजयों तथा सुधारों की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
अलाउद्दीन खिलजी खिलजी वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक था। उसने 1296 ई० से 1316 ई० तक शासन किया। वह एक आशावादी शासक था। वह भारत में एक साम्राज्य स्थापित करना चाहता था।
विजयें-
(1) 1299 ई० में अलाउद्दीन ने गुजरात पर जीत प्राप्त की।
(2) 1301 ई० में उसने रणथम्भौर पर अधिकार कर लिया।
(3) 1303 ई० में उसने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
(4) इसके बाद उसने अपने सेनापति मलिक काफूर के नेतृत्व में एक बड़ी सेना दक्षिण भारत में भेजी। मलिक काफूर ने देवगिरि, वारंगल, द्वारसमुद्र और मदुरै के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी ने इन क्षेत्रों को दिल्ली सल्तनत में शामिल नहीं किया।
अलाउद्दीन खिलजी के सुधार
1. आर्थिक सुधार-अलाउद्दीन खिलजी ने सभी आवश्यक वस्तुओं के मूल्य बहुत कम कर दिए। मूल्यों पर नियन्त्रण रखने के लिए उसने मण्डी-अधिकारियों को नियुक्त किया। जो दुकानदार नियमों का उल्लंघन करता था, उसे कठोर दण्ड दिया जाता था।
2. सैनिक सुधार-अलाउद्दीन खिलजी ने सैनिकों का हुलिया लिखने और घोड़ों को दागने की प्रथा आरम्भ की। उसने सैनिकों को नकद वेतन देना आरम्भ किया। उसने साम्राज्य के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में गुप्तचरों को भी नियुक्त किया।

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प्रश्न 13.
फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल के बारे में लिखो।
उत्तर-
फिरोज़ तुग़लक मुहम्मद तुग़लक की मृत्यु के बाद दिल्ली का सुल्तान बना। उसने अनेक महत्त्वपूर्ण सुधार किए –

  1. उसने कृषि की उन्नति के लिए नहरें बनवाईं और सिंचाई का प्रबन्ध किया।
  2. उसने हिसार, फिरोज़ा, जौनपुर, फिरोज़ाबाद आदि नए नगर बसाए। उसने कई बांधों, महलों, स्कूलों, मस्जिदों आदि का निर्माण भी करवाया।
  3. उसने निर्धनों की सहायता के लिए दीवान-ए-खैरात नामक विभाग की स्थापना की।
  4. फिरोज तुग़लक ने अपने दासों पर बहुत ही अधिक धन व्यय किया। इससे राजकोष खाली हो गया।

प्रश्न 14.
इब्राहीम लोधी के राज्यकाल के बारे में लिखो।
उत्तर-
इब्राहीम लोधी अपने वंश का अन्तिम शासक था। उसने 1517 ई० से 1526 ई० तक शासन किया। वह अपने केन्द्रीय शासन को शक्तिशाली बनाना चाहता था। परन्तु उसको अफ़गान सरदार पसन्द नहीं करते थे। उन्होंने उसके लिए अनेक कठिनाइयां उत्पन्न की। वास्तव में इब्राहीम लोधी बहुत दूरदर्शी शासक नहीं था। वह अपने अमीरों के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार करके उनका मन जीत सकता था। परन्तु अपने हठी स्वभाव के कारण इब्राहीम लोधी ने उन्हें अपना शत्र बना लिया। परिणामस्वरूप उन्होंने दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध विद्रोह करने आरम्भ कर दिए। 1526 ई० में इब्राहीम लोधी (पानीपत की पहली लड़ाई में) बाबर के विरुद्ध युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया।

प्रश्न 15.
भारत पर तैमूर के आक्रमण का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
तैमूर मध्य एशिया में बलख़ का शासक था। 1398 ई० में उसने भारत पर आक्रमण कर दिया और दिल्ली में भारी लूट-मार की। अनेक लोग मारे गए। वह लूट मार करके मध्य एशिया लौट गया। तैमूर के वापिस जाने के बाद पंजाब, मालवा, मेवाड़, जौनपुर, खानदेश, गुजरात आदि प्रान्तों ने अपने को स्वतन्त्र घोषित कर दिया।

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प्रश्न 16.
सैय्यद वंश (1414 ई०-1451 ई०) पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
तैमूर ने दिल्ली छोड़ने से पहले खिज़र खान को मुल्तान, लाहौर और दीपालपुर का राज्यपाल नियुक्त किया था। 1414 ई० में ख़िजरखान ने दिल्ली को जीत लिया और सैय्यद वंश की स्थापना की। इस वंश ने 1414 ई० से 1451 ई० तक शासन किया। इस वंश का अन्तिम शासक अलाउद्दीन आलम शाह लाहौर के राज्यपाल बहलोल लोधी से पराजित हुआ था।

प्रश्न 17.
बहलोल लोधी तथा सिकन्दर लोधी का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
बहलोल लोधी-बहलोल लोधी लोधी वंश का संस्थापक और प्रथम शासक था। उसने दिल्ली सल्तनत के गौरव को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया। उसने देश में शान्ति और कानून व्यवस्था स्थापित की। 1488 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। उसका पुत्र सिकन्दर लोधी उसका उत्तराधिकारी बना।

सिकन्दर लोधी-सिकन्दर लोधी (1488 ई०-1517 ई०) लोधी वंश का बहुत ही शक्तिशाली शासक था। वह अच्छा शासन-प्रबन्धक था। उसने लोगों के कल्याण के लिए कई काम किये। उदाहरण के लिए उसने खेतीबाड़ी में सुधार किया और आवश्यक वस्तुओं के मूल्य कम कर दिए। 1503 ई० में उसने आगरा नगर की स्थापना की और इसे अपनी राजधानी बनाया। 1517 ई० उसकी मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 18.
दिल्ली सल्तनत के दौरान राजनीतिक संस्थाओं के विकास का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के समय राजनीतिक संस्थाओं के विकास का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
I. केन्द्रीय सरकार-सुल्तान निरंकुश शासक था और उसके पास बहुत शक्तियां थीं। वह मन्त्रियों की सहायता से शासन प्रबन्ध चलाता था। सुल्तान द्वारा सभी महत्त्वपूर्ण विभागों के नियुक्त मन्त्री सुल्तान के आदेश अनुसार ही अपने विभागों का शासन प्रबन्ध चलाते थे। दिल्ली सल्तनत का शासन-प्रबन्ध मुख्य रूप से इस्लामी कानूनों पर आधारित था। सरकार के अनेक विभाग थे। हर विभाग की देख-भाल किसी मन्त्री या अधिकारी द्वारा की जाती थी।

1. वज़ीर-वज़ीर राज्य का सबसे महत्त्वपूर्ण मन्त्री था। वह वित्त और लगान (कर) विभाग का प्रमुख था। उसकी सहायता के लिए बहुत से अधिकारी नियुक्त किये जाते थे। इन में से ‘मुशरिफ़-ए-ममालिक’ (महालेखाकार) और ‘मुस्तोफी-ए-ममालिक’ (महालेखा निरीक्षक) महत्त्वपूर्ण थे।

2. आरिज़-ए-मामलिक : यह सेना का मन्त्री था।
3. दीवान-ए-इंशाह : यह गुप्तचर विभाग का मन्त्री था।
4. दीवान-ए-रिसालत : यह विदेशी विभाग का मन्त्री था।
5. सदर-ए-सादूर : यह धार्मिक शिक्षा मामलों का मन्त्री था।

II. प्रान्तीय प्रबन्ध-शासन प्रबन्ध की सुविधा के लिए साम्राज्य को कई प्रान्तों में बाँटा गया था। प्रान्तीय शासन चलाने के लिए कई राज्यपाल व गवर्नर नियुक्त किये गए थे। उन्हें सूबेदार, मुफती या वली कहा जाता था। प्रान्तों को आगे परगनों में बांटा गया था। ग्रामों के एक समूह को मिला कर एक परगना बनता था। आमिल परगने का मुख्य अधिकारी होता था। ग्राम के प्रमुख को मुकद्दम कहा जाता था।

III. सैनिक नियन्त्रण के ढंग-सुल्तान की शक्ति उस की सेना पर निर्भर करती थी। दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों ने अपनी-अपनी सेना की सहायता से भारत के बहुत से भागों पर अधिकार कर लिया था। उन्होंने सेना की सहायता से विदेशी आक्रमणों को रोका। सेना की सहायता से ही उन्होंने अपने राज्यों में कानूनी व्यवस्था स्थापित की। विद्रोहों को दबाने के लिए भी सैनिक शक्ति का होना अत्यावश्यक था। शक्तिशाली सेना के बिना वे अपने अस्तित्व के बारे सोच भी नहीं सकते थे। अतः दिल्ली के सुल्तानों ने सैनिक नियन्त्रण के सभी साधनों का प्रयोग किया।

प्रश्न 19.
दिल्ली सल्तनत के संदर्भ में निम्न पर संक्षिप्त लेख लिखिए –
1. शाही दरबार
2. कुलीन वर्ग
3. भूमि-सुधार
4. लगान के अस्थिर स्रोत।
उत्तर-
1. शाही दरबार-दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों ने अपने-अपने दरबार की स्थापना की। राजकुमारों को आगे वाली सीटें (स्थान) दी गईं। मन्त्री, विभाग प्रमुख, अन्य अधिकारियों और विदेशी राजदूतों को स्थायी स्थान प्रदान किये गये। सुलतान द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने के लिए विभाग-प्रमुख हमेशा उपस्थित रहते थे।

2. कुलीन वर्ग-दिल्ली सल्तनत के सुल्तान पूर्ण रूप से निरंकुश थे। वे कुलीन वर्ग की सहायता से शासन प्रबन्ध करते थे। उनमें से बहुत से कुलीन, तुर्क या अफ़गान परिवारों से सम्बन्ध रखते थे। परन्तु अलाउद्दीन खिलजी के राज्यकाल के पश्चात् मुसलमानों और हिन्दुओं को भी अधिकारी नियुक्त किया जाने लगा था। इस प्रकार उन्होंने भी कुलीन वर्ग की रचना की। केन्द्रीय मन्त्री, प्रान्तों के गवर्नर तथा सेना के प्रमुख कुलीन वर्ग में सम्मिलित थे।

3. भूमि-सुधार-भूमि कर सल्तनत की आय का प्रमुख साधन था। उस समय भूमि-कर निश्चित करने के लिए तीन विधियां प्रचलित थीं। ये बटाई, कानकूत और भूमि के माप पर आधारित थीं। भूमि कर नकद अथवा किसी अन्य रूप में एकत्रित किया जाता था। अलाउद्दीन खिलजी ने भूमि-सुधार की तरफ विशेष ध्यान दिया। उसने कृषि योग्य भूमि का माप करवाया तथा खेतीबाड़ी की देख-भाल करने के लिए ‘दीवान-ए-मस्त-ख़राज़’ नामक विभाग की स्थापना की। उस समय भूमि कर की दर बहुत ऊंची थी। फ़िरोज़शाह तुग़लक ने भी खेतीबाड़ी को प्रोत्साहन दिया। उसने सिंचाई के लिए बहुत-सी नहरें खुदवाईं। उसने भूमि कर की दर कम और किसानों के कर्जे माफ़ कर दिए।

4. लगान के अस्थिर स्त्रोत-दिल्ली सल्तनत के लगान का स्थिर स्रोत भूमि कर था। परंतु लगान के कई अस्थिर स्रोत भी थे; जैसे-खराज़, खमस, जकात और जजिया । खराज गैर-मुस्लिमों से वसूल किया जाता था। यह कर कुल उपज का 10% से 50% तक होता था। खमस युद्ध में लूटे गए माल का 1/5 भाग होता था। इस पर सुल्तान का अधिकार होता था। लूट के माल का शेष 4/5 भाग सेना में बांट दिया जाता था। जकात एक धार्मिक कर था, जो मुसलमानों पर लगाया जाता था। यह कर उनकी सम्पत्ति का 2.5% होता था। जजिया कर गैर-मुसलमानों पर लगाया जाता था। कहा जाता है कि महिलाओं, बच्चों और ग़रीब लोगों पर यह कर नहीं लगाया जाता था। इस कर की वसूली आय के आधार पर 10 से 40 टका तक की जाती थी।

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(क) सही जोड़े बनाइए :

  1. इल्तुतमिश – सैनिकों का हुलिया
  2. अलाउद्दीन खिलजी – पानीपत की पहली लड़ाई
  3. मुहम्मद-बिन-तुग़लक – चालीस अमीरों की नियुक्ति
  4. इब्राहिम लोधी – बुद्धिमान मूर्ख

उत्तर-

  1. इल्तुतमिश – चालीस अमीरों की नियुक्ति
  2. अलाउद्दीन खिलजी – सैनिकों का हुलिया
  3. मुहम्मद बिन तुग़लक – विद्वान मूर्ख
  4. इब्राहिम लोधी – पानीपत की पहली लड़ाई

(ख) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
दास वंश के किस शासक की मृत्यु घोड़े से गिर जाने के कारण हुई थी?
(i) कुतुबुद्दीन ऐबक
(ii) इल्तुतमिश
(iii) बलबन।
उत्तर-
(i) कुतुबुद्दीन ऐबक।

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प्रश्न 2.
क्या आप अलाउद्दीन खिलजी की दक्षिणी भारत की विजयों का नेतृत्व करने वाले जनरल का नाम बता सकते हैं?
(i) मुबारकशाह
(ii) मलिक काफूर
(iii) जलालुद्दीन ख़िलजी।
उत्तर-
(ii) मलिक काफूर।

प्रश्न 3.
चित्र में दिखाया गया व्यक्ति 1526 ई० में बाबर के हाथों एक लड़ाई में पराजित हुआ था। वह लड़ाई कौन-सी थी?
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(i) पानीपत की पहली लड़ाई
(ii) पानीपत की दूसरी लड़ाई
(iii) पानीपत की तीसरी लड़ाई।
उत्तर-
(i) पानीपत की पहली लड़ाई।