PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 2 मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 2 मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 2 मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन

PSEB 12th Class Geography Guide मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में दें :

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर आर्थिक क्रियाओं का धुरा किसे कहा जा सकता है ?
उत्तर-
मानव को पृथ्वी पर आर्थिक क्रियाओं का धुरा कहा जाता है।

प्रश्न 2.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या घनत्व का कितना है ?
उत्तर-
सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।

प्रश्न 3.
अरुणाचल प्रदेश राज्य किस जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र में आता है ?
उत्तर-
अरुणाचल प्रदेश राज्य कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र में आता है।

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प्रश्न 4.
विश्व जनसंख्या दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर-
हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है।

प्रश्न 5.
भारत की ज्यादा जनसंख्या किस आयु समूह के साथ सम्बन्धित है ?
उत्तर-
भारत की ज्यादा जनसंख्या 0-14 साल और 60 साल के आयु समूह से सम्बन्धित है।

प्रश्न 6.
2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब का लिंग अनुपात कितना है ?
उत्तर-
2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब का लिंगानुपात सिर्फ 893 है।

प्रश्न 7.
भारत में पहले दर्जे के शहरों की कम से कम जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर-
भारत में पहले दर्जे के शहरों में कम से कम जनसंख्या 1 लाख अथवा इससे अधिक वाले शहर आते हैं।

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प्रश्न 8.
जनसंख्या की स्थान परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कोई दो कारक बताओ।
उत्तर-
जनसंख्या की स्थान परिवर्तन की प्रभावित करने वाले कारक हैं—

  1. आर्थिक कारक,
    • अच्छी कृषि योग्य भूमि का होना
    • रोजगार के अवसरों की उपलब्धता।
  2. सामाजिक कारक
    • धार्मिक स्वतन्त्रता
    • निजी स्वतन्त्रता।

प्रश्न 9.
सबसे अधिक भारतीय किन मध्य पूर्वी देशों में रहते हैं ?..
उत्तर-
सबसे अधिक भारतीय यू०एस०ए०, साऊदी अरब, इंग्लैंड, कैनेडा, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका, यूरोप, न्यूजीलैंड इत्यादि देशों में रहते हैं।

प्रश्न 10.
2011 की जनगणना के अनुसार पुरुषों और औरतों की साक्षरता दर क्या है ?
उत्तर-
2011 की जनगणना के अनुसार पुरुषों की साक्षरता दर 80% और औरतों की साक्षरता दर 65.46% थी।

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प्रश्न 11.
नीचे दिए गए संसार के जनसंख्या के आंकड़ों को मिलाएँ—
1. पाकिस्तान — (क) 134.10 करोड़
2. बंगलादेश — (ख) 121.01 करोड़
3. चीन — (ग) 18.48 करोड़
4. भारत — (घ) 16.44 करोड़।
उत्तर-

  1. ग,
  2. घ,
  3. क,
  4. ख।

प्रश्न 12.
नीचे दिए गए किस राज्य की साक्षरता दर सबसे ज्यादा है ?
(i) मिजोरम,
(ii) मेघालय,
(iii) मणिपुर,
(iv) महाराष्ट्र।
उत्तर-
(iii) मणिपुर।

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प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर चार पंक्तियों में दें :

प्रश्न 1.
अलग-अलग जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों के नाम बताओ।
उत्तर-
जनसंख्या घनत्व का विश्लेषण करने के लिए भारत को तीन श्रेणियों में बाँटा जाता है—

  1. अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र- इस श्रेणी में 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर से अधिक जनसंख्या घनत्व वाले राज्य शामिल हैं जैसे बिहार, पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, पंजाब, झारखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़, पुडुचेरी, दमन, दीऊ और लक्षद्वीप इत्यादि केंद्र शासित प्रदेश इस वर्ग में शामिल
  2. साधारण घनत्व वाले प्रदेश-इस वर्ग में असम, गोआ, त्रिपुरा, कर्नाटक इत्यादि प्रमुख हैं। 3. कम घनत्व वाले प्रदेश-इस वर्ग में जम्मू कश्मीर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 2.
जनसंख्या घनत्व को प्रभावित करने वाले चार कारक बताओ।
उत्तर-
जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले चार कारक हैं—

  1. धरातल-जिस जगह का धरातल समतल होता है वहाँ कृषि करनी आसान होती है। इसलिए लोग ऐसे स्थानों पर रहना अधिक पसंद करते हैं।
  2. खनिज पदार्थ और प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि-जिस स्थान पर अच्छे खनिज पदार्थ और प्राकृतिक स्रोत मिलते हैं उन स्रोतों को प्राप्त करके मनुष्य अपनी आय बढ़ा सकते हैं। इसलिए ऐसे क्षेत्रों की जनसंख्या ज्यादा होगी।
  3. जलवायु-अधिक ठंडे या ज्यादा गर्म क्षेत्रों में लोग रहना पसंद नहीं करते। जहां पर जलवायु समान होती है इसलिए वहां जनसंख्या अधिक होगी।
  4. सामाजिक कारक-जहां लोग फिजूल के रीति रिवाजों को मानते हैं वहाँ पर लोग कम रहना पसंद करते हैं और जहां पर पढ़े-लिखे.और सकारात्मक सोच वाले लोग रहते हों वहाँ पर अधिक जनसंख्या होगी।

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प्रश्न 3.
दस साल में जनसंख्या वृद्धि निकालने का फार्मूला बताओ।
उत्तर-
भारत में हर दस सालों के बाद जनगणना होती है। दस सालों में कुल जनसंख्या में जो परिवर्तन होता है उसे जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं। इलाके में जनसंख्या वृद्धि निकालने का फार्मूला है—
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प्रश्न 4.
अधिक जनसंख्या से होने वाली कोई चार समस्याएँ बताओ।
उत्तर-
अधिक जनसंख्या से होने वाली समस्याएँ हैं—

  1. स्थान की समस्या और मकानों की कमी
  2. पीने वाले जल की कमी
  3. अपराधों की संख्या का बढ़ना
  4. प्रदूषण की समस्या।

प्रश्न 5.
जनसंख्या परिवर्तन के निर्णायक तत्व क्या हैं ?
उत्तर-
किसी देश की जनसंख्या समान नहीं होती। समय-समय पर उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन आते रहते हैं। जनसंख्या परिवर्तन के मुख्य निर्णायक तत्व नीचे लिखे अनुसार हैं—

  1. जन्म दर-जिस क्षेत्र और स्थान की जन्म दर अधिक होती है वहाँ जनसंख्या अधिक होगी। जहां जन्म दर कम होगी वहां जनसंख्या कम होगी।
  2. मृत्यु दर-मृत्यु दर में वृद्धि के साथ जनसंख्या में कमी हो जाती है और कमी के साथ जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है।
  3. प्रवास-स्थान बदली स्थाई और अस्थाई दो प्रकार की होती है। जब लोग शादी और किसी रोज़गार को ढूँढ़ने के लिए किसी अन्य जगह पर चले जाते हैं तब वहाँ पर जनसंख्या बढ़ जाती है स्थायी प्रवास कहते हैं परन्तु जब लोग अस्थाई रूप अर्थात् घूमने के लिए जाते हैं और वापिस अपने शहर लौट आते हैं उसे अस्थाई प्रवास कहते हैं।

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प्रश्न 6.
साक्षरता का अर्थ क्या है ?
उत्तर-
शब्दकोष अनुसार साक्षरता का अर्थ है-पढ़ने और लिखने की क्षमता। पर भारत की जनगणना की परिभाषा के अनुसार किसी भी भाषा में पढ़-लिख और समझ लेने की क्षमता को साक्षरता कहते हैं। इसलिए एक मनुष्य जो एक भाषा लिख और पढ़ सकता है और उसे समझ सकता है और उसकी आयु सात साल की है उसे शिक्षित कहते हैं। साक्षरता किसी देश के मानव विकास का एक प्रमाण चिन्ह होता है। साक्षरता किसी व्यक्ति के समझ के घेरे को और अधिक वृद्धि देती है। सारक्षता को किसी देश के आर्थिक और सामाजिक विकास का मुख्य बिंदु माना जाता है।

प्रश्न 7.
साक्षरता दर निकालने का फार्मूला क्या है?
उत्तर-
साक्षरता दर निकालने का फार्मूला है—
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प्रश्न III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें :

प्रश्न 1.
किसी क्षेत्र में जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले राजनीतिक कारक कौन से हैं ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र में जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले राजनीतिक कारक हैं—

  1. अगर कोई सरकार लोगों की ज़रूरतों और उम्मीदों को पूरा करने योग्य होती है, वहाँ पर लोग रहना पसंद करते हैं पर जिस क्षेत्र की सरकार लोगों की उम्मीदों को पूरा नहीं कर सकती लोग वहाँ पर रहना पसंद नहीं करते जहां किसी विशेष धर्म की पक्षपूर्ति हो वहां लोग रहना कम पसंद करते हैं।
  2. जिस जगह पर पेंशन इत्यादि की और बालिगों के कई अच्छे कानून बनाये गए हों, वहाँ लोग रहना पसंद करते हैं।
  3. जिस स्थान पर लोगों के लिए बढ़िया रोज़गार के मौके सरकार की तरफ से दिए जाते हैं लोग वहाँ पर रहना ज्यादा पसंद करते हैं।
  4. जिस स्थान पर हर राष्ट्रीय मुद्दे को सरकारी स्तर पर सूझ-बूझ के साथ निपटाया जाता है और क्षेत्र में शांति स्थापित की जाती है, वहां पर लोग रहना अधिक पसंद करते हैं।

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प्रश्न 2.
क्या शहरी क्षेत्रों को जनसंख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है, और कैसे ?
उत्तर-
शहरी क्षेत्रों को जनसंख्या के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र के निर्देशों के अनुसार भारत के जनगणना विभाग ने शहरों को नीचे लिखी श्रेणियों में विभाजित किया है—

  1. प्रथम दर्जे के शहर-जिन शहरों में जनसंख्या 1 लाख और इससे अधिक होती हैं-वे प्रथम दर्जे के शहरों के अन्तर्गत आते हैं।
  2. द्वितीय दर्जे के शहर-जिन शहरों की जनसंख्या 50,000 से 99,999 तक होती है, उन्हें द्वितीय दर्जे के शहरों में आंका जाता है।
  3. तृतीय दर्जे के शहर-जिन शहरों की जनसंख्या 20,000 से 49,999 तक होती है, उन्हें तृतीय दर्जे के शहर कहते हैं।
  4. चतुर्थ दर्जे के शहर-जिन शहरों की जनसंख्या 10,000 से 19,999 तक होती है, उन्हें चतुर्थ दर्जे के शहर कहते हैं।
  5. पंचम दर्जे के शहर-जिन शहरों की जनसंख्या 5,000 से 9,999 तक होती है उन्हें पंचम दर्जे के शहरों में आंका जाता है।
  6. छठे दर्जे के शहर-जिन शहरों की जनंसख्या 5,000 से कम होती है उन्हें छठे दर्जे के शहर कहते हैं।

प्रश्न 3.
प्रवास (Migration) के पर्यावरणीय परिणाम कौन-से हैं ?
उत्तर-
प्रवास के पर्यावरणीय नतीजे नीचे लिखे अनुसार हैं—

  1. गाँवों के लोग बेहतर सुविधा के लिए शहरों की तरफ अधिक आकर्षित होते हैं जिसके कारण अधिक संख्या में गाँव के लोग शहरों की तरफ प्रवास कर रहे हैं। इस कारण शहर अधिक जनसंख्या वाले बनते जा रहे हैं।
  2. प्रवास के कारण अप्रवास (Immigration) वाले क्षेत्रों की मूल संरचना पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है।
  3. शहरी क्षेत्रों में अधिक से अधिक प्रवास के कारण शहरों में गैर आयोजन और असंतुलित विकास के निष्कर्ष निकलते हैं।
  4. जब शहरी जनसंख्या बढ़ जाती है तब रहने के लिए जगह की कमी हो जाती है जिस कारण बस्तियां गंदी हो जाती हैं।
  5. शहरों में जनसंख्या के वृद्धि के कारण, क्योंकि मनुष्यों की जनसंख्या बढ़ जाती है कई तरह की समस्याएँ, जैसे कि सफाई की, जल की कमी इत्यादि आ जाती हैं।

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प्रश्न 4.
क्या साक्षरता मानवीय विकास सूचक का मापक है ?
उत्तर-
साक्षरता किसी देश के मानवीय विकास सूचक (HDI) का मापक है। साक्षरता के कारण व्यक्ति की सूझबूझ का घेरा बढ़ जाता है। अधिक साक्षरता किसी देश के सामाजिक, आर्थिक अथवा राजनीतिक विकास में योगदान डालती है और स्पष्ट शब्दों में हम कह सकते हैं कि साक्षरता लोगों के विकास का आधार है। अनपढ़ और अशिक्षित लोग विकास का अनिवार्य स्तर हासिल नहीं कर पाते। साक्षरता के कारण लोगों के रहन-सहन और बोलचाल के ढंग में सुधार आता है। स्त्रियों की सामाजिक दशा में सुधार आता है। मनुष्य की रूढ़िवादी सोच बदल जाती है और स्त्रीपुरुष का भेद कम हो जाता है। यह देश के सामाजिक और आर्थिक विकास का कारण भी है अथवा नतीजा भी। जिन देशों की साक्षरता दर कम होती है उन देशों में अधिकतर पर आर्थिक और सामाजिक विकास की कमी भी देखने को मिलती है और जिस जगह की साक्षरता दर ज्यादा होती है उस देश का आर्थिक, सामाजिक विकास भी ज्यादा होता है। इसलिए हम कह सकते हैं कि साक्षरता मानवीय विकास सूचक का मापक है।

प्रश्न 5.
जनसंख्या की प्रवास के प्रतिकर्ष और अपकर्ष करने वाले कारकों का वर्णन करो।
उत्तर-
जनसंख्या की प्रवास के प्रतिकर्ष और अपकर्ष करने वाले कारकों का वर्णन नीचे लिखे अनुसार है—

प्रतिकर्ष कारक  (Pull Factor) अपकर्ष कारक (Push Factors)
1. जिस स्थान पर लोगों के लिए कोई काम न हो, बेरोजगारी हो, वहाँ से लोग किसी और स्थान की तरफ जाना शुरू कर देते हैं। 1. जिस स्थान पर रोजगार के अच्छे मौके मिल रहेहों लोग उस तरफ को आकर्षित होते हैं।
2. बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोग अपना क्षेत्र छोड़कर चले जाते हैं। 2. जिस स्थान पर प्राकृतिक आपदाओं का संकट न हो, लोग वहाँ चले जाते हैं। ।
3. युद्ध और लड़ाई के डर के कारण लोग अपने स्थान को छोड़ देते हैं। 3. राजनीतिक और सामाजिक सुरक्षा क्षेत्र भी मनुष्य को आकर्षित करते हैं।
4. जिस स्थान की जमीन उपजाऊ नहीं होती, फ़सल करती है। 4. उपजाऊ भूमि वाली जगह भी लोगों को आकर्षित अच्छी नहीं होती, लोग उस जगह को छोड़ देते हैं।
5. किसी स्थान पर सेवा और सुविधाएँ कम होने के कारण लोग उस स्थान को छोड़ देते हैं। 5. किसी स्थान पर अच्छी सेवा और सुविधा के कारण लोग वहाँ पर चले जाते हैं।

 

प्रश्न 6.
भारतीयों के संसार में फैलाव पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारतीयों के संसार में फैलाव का इतिहास बहुत पुराना है। बस्तीवादी काल के दौरान गुलाम मजदूरों को अंग्रेजों ने काम करने के लिए एशिया के दूसरे देशों में भेजा। इन मजदूरों की अधिक संख्या पश्चिमी बिहार, उत्तर प्रदेश, बंगाल तथा उड़ीसा इत्यादि से थी जिनको इग्लैंड की बस्तियों, अफ्रीका, दक्षिण पूर्वी एशिया जैसे देशों में काम के लिए भेजा गया। इन मजदूरों को अधिकतर पर जहाँ चीनी मिल, कपास की खेती, चाय के बाग और रेलमार्ग निर्माण इत्यादि के कामों के लिए भेजा जाता था। अधिकतर मध्यवर्ग के लोगों ने दूसरे देशों में प्रवास किया। इनमें साक्षर और निरक्षर दोनों तरह के मज़दूर मौजूद थे। पंजाब के दोआबा क्षेत्र के इलाकों में बहुत सारे लोगों ने इंग्लैंड, कनाडा, यू०एस०ए०, आस्ट्रेलिया इत्यादि देशों की तरफ प्रवास किया। आज के समय में लगभग हर देश में भारतीयों का फैलाव देखा जा सकता है। आजकल पढ़े-लिखे लोग भी बढ़िया नौकरी की तलाश में या फिर बेहतर साक्षरता के लिए दूसरे देशों की तरफ जा रहे हैं। भारतीयों ने विकसित देशों में अपना अहम स्थान बना रखा है।

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प्रश्न III. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर 20 वाक्यों में दें—

प्रश्न 1.
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं ?
उत्तर-
जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक नीचे दिए अनुसार हैं—
1. जलवायु-जनसंख्या के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों में जलवायु सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण कारक है। जिस स्थान का जलवायु अधिक गर्म तथा अधिक ठंडा होता है लोग वहाँ पर रहना पसंद नहीं करते, पर जिस स्थान का जलवायु औसत दर्जे का होता है लोग वहाँ पर अधिक रहना पसंद करते हैं।

2. धरातल और मिट्टी की किस्म-क्योंकि कृषि मनुष्य की कमाई का मुख्य स्रोत है इसलिए जिस स्थान की मिट्टी ज्यादा उपजाऊ होती है तथा समतल होती है वह स्थान कृषि के लिए उत्तम होता है। लोग वहां पर रहना पसंद करते हैं। यही कारण है कि अधिक तेज ढलान वाले क्षेत्रों में लोग कम रहते हैं।

3. जल, खनिज पदार्थ तथा प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि-जल मनुष्य की पहली जरूरत है। खारे तथा पीने योग्य पानी की कमी वाले क्षेत्रों में जनसंख्या की कमी होती है। खनिज पदार्थ और प्राकृतिक साधनों की उपलब्धि किसी देश के आर्थिक विकास की कुंजी है। मानव का विकास सीधे रूप में आर्थिक विकास के ऊपर निर्भर करता है।

4. यातायात और संचार के साधन-यातायात के विकास के साथ मनुष्य को यातायात के साधनों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना आसान होता है तथा संचार के साधनों के विकास के साथ देश का आर्थिक विकास होता है। इसलिए जिस स्थान पर यातायात और संचार के साधनों की उपलब्धि होती है लोग वहाँ पर रहना पसंद करते हैं।

5. ऊर्जा की उपलब्धि-मानवीय साधनों के विकास के लिए बिजली ऊर्जा शक्ति अति आवश्यक है। इसलिए जिस स्थान पर सस्ती ऊर्जा की उपलब्धि होती है वहाँ लोग अधिक रहना पसंद करते हैं।

6. राजनैतिक तथा सामाजिक सुरक्षा-जिस स्थान पर लड़ाई तथा युद्ध का डर होता है वहाँ लोग कम रहते हैं पर जिस देश की सरकार ने सामाजिक सुरक्षा का भरोसा दिलाया होता है उस स्थान की जनसंख्या अधिक होगी।

7. रोज़गार के अवसरों की उपलब्धि- इसके कारण ही बहुत सारे लोग गाँव को छोड़ कर शहरों की तरफ आकर्षित होते हैं।

प्रश्न 2.
वह कौन-सी समस्याएँ हैं जिनका सामना पहले दर्जे के शहरों के नागरिक, छठे दर्जे के शहरों के नागरिकों से भी अधिक करते हैं ?
उत्तर-
जिन स्थानों की जनसंख्या 1 लाख अथवा इससे अधिक होती है, वे पहले दर्जे के क्षेत्र हैं तथा जिनकी जनसंख्या 5000 से कम होती है, वे छठे दर्जे के क्षेत्रों में आते हैं। कुछ समस्याएँ जिनका सामना पहले दर्जे के शहरों के नागरिक छठे दर्जे के शहरों के नागरिकों से अधिक करते हैं, इस प्रकार हैं—

  1. जनसंख्या विस्फोट असहनीय-जब लोग बेहतरीन अवसरों की खोज में अपना शहर छोड़कर दूसरे शहर में जाकर निवास करते हैं तब उन शहरों की जनसंख्या बढ़ जाती है जिसके कारण रहने के स्थान की कमी हो जाती है, जो आजकल हमारे पहले दर्जे के शहर सहन कर रहे हैं। इसके कारण लोगों को गंदगी वाली हालात में मजबूरी के कारण रहना पड़ता है।
  2. गंदी बस्तियों का जन्म-पहले दर्जे के शहरों में जनसंख्या की वृद्धि के कारण बस्तियों का प्राकृतिक पर्यावरण बिगड़ने लगता है। अधिक भीड़ के कारण गंदगी फैलती है और बस्तियाँ गंदी होनी शुरू हो जाती हैं।
  3. पीने वाले पानी की समस्या-अधिक जनसंख्या के कारण पीने वाले पानी की समस्या बढ़ जाती है।
  4. प्रदूषण की समस्या-जनसंख्या के बढ़ाव के कारण अधिक-से-अधिक उद्योग विकसित होते हैं तथा अधिक-से-अधिक वाहन आने शुरू होते हैं। इसके कारण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न है।
  5. अपराधों की संख्या में बढ़ाव-जिन लोगों को काम के लिए अच्छे अवसर नहीं मिलते वे गलत रास्ते अपना लेते हैं जिसके कारण अपराधों की संख्या बढ़ जाती है।

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प्रश्न 3.
जनसंख्या प्रवास (Migration) के कारण कौन से हैं ?
उत्तर-
किसी क्षेत्र की जनसंख्या की तबदीली को जनसंख्या प्रवास बहुत प्रभावित करती है। प्रवास स्थाई या अस्थाई दो रूप में हो सकती है। जनसंख्या प्रवास के मुख्य कारण नीचे दिए अनुसार हैं—

  1. आर्थिक कारण-आर्थिक कारण स्थान बदली के लिए जिम्मेदार कारणों में सबसे अधिक प्रमुख हैं। जैसे कि—
    • क्षेत्र की आर्थिक दशा कैसी है और क्षेत्र के औद्योगिक विकास का परिदृश्य किस प्रकार का है।
    • क्षेत्र का धरातल तथा मिट्टी की किस्म खेती योग्य है या नहीं।
    • भूमि पर मानव के स्वामित्व का आकार।
    • रोज़गार के अवसर क्षेत्र में कैसे हैं।
    • क्षेत्र में यातायात तथा संचार के साधन किस प्रकार के हैं।
  2. सामाजिक कारण-सामाजिक कारण भी प्रवास में अहम भूमिका निभाते हैं जैसे कि
    • शादी के बाद औरतें अपने माता-पिता का घर छोड़कर पति के घर चली जाती हैं।
    • बढ़िया और उच्च शिक्षा के लिए बच्चे एक से दूसरे स्थान पर चले जाते हैं।
    • जिस स्थान पर धार्मिक आजादी होती है, लोग वहाँ अधिक जाते हैं।
    • सरकारी नीति भी एक बड़ा सामाजिक कारण है।
  3. जनांकण कारण-जनांकण एक महत्त्वपूर्ण कारक है, जैसे कि आयु कारक, स्थान बदली करने वाले लोगों की उम्र (आयु) कितनी है।
  4. राजनैतिक कारण-जिस क्षेत्र की सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरती है, उस स्थान पर लोग अधिक रहना पसंद करेंगे।
  5. ऐतिहासिक कारण-कई प्रकार के ऐतिहासिक कारक भी लोगों की प्रवास पर प्रभाव डालते हैं। लोग अपने धर्म के साथ सम्बन्धित स्थान अथवा ऐतिहासिक महत्त्व वाले स्थानों पर रहना पसंद करते हैं।

प्रश्न 4.
जनांकण परिवर्तन सिद्धान्त के अलग-अलग चरणों की चर्चा करो।
उत्तर-
जनांकण परिवर्तन सिद्धान्त डब्ल्यू० एस० थोपसन और फ्रैंक नोटसटीन द्वारा पेश किया गया। जनांकण परिवर्तन सिद्धान्त के अलग-अलग चरणों का वर्णन नीचे दिए अनुसार है—

1. पहला चरण-इस चरण में जनसंख्या कम होती है तथा आ तौर पर जनसंख्या स्थिर रहती है। दोनों ही जन्म दर तथा मृत्यु दर अधिक होती हैं, पर कई बार देश में खुशहाली के कारण मृत्यु दर कम हो जाती है। पर इसके विपरीत कई बार मृत्यु दर लगातार प्राकृतिक आपदाओं के कारण बढ़ जाती है। लोगों का मुख्य रोज़गार कृषि है। जनसंख्या की वृद्धि कम या नकारात्मक होती है। लोगों के पास तकनीकी ज्ञान की कमी होती है, अधिकतर लोग अशिक्षित होते हैं।

2. दूसरा चरण-उद्योगों के विकास के कारण लोगों का स्वास्थ्य और रहन-सहन अच्छा हो गया है। खास तौर पर जिन शहरों में सफाई और स्वास्थ्य के विकास के तरफ अधिक ध्यान दिया जाता है, वहाँ लोगों का रहनसहन ज्यादा सुधर गया है। इस धारणा का महत्त्व यह है कि उपर्युक्त सेवाएँ, भोजन सुविधा, सफाई प्रबंध इत्यादि के कारण मृत्यु दर में कमी आती है। इस तरह जन्म दर और मृत्यु दर के बीच फासला बढ़ने के कारण जनसंख्या में तेजी के साथ वृद्धि होती है।

3. तीसरा चरण-तीसरा और आखिरी चरण वह चरण है, जहाँ जन्म दर अथवा मृत्यु दर दोनों ही कम हो जाती हैं। जनसंख्या वृद्धि या तो स्थिर होती है या फिर बहुत ज्यादा कम हो जाती है। इस चरण में साक्षरता दर काफी ऊँची हो जाती है। औद्योगिक विकास के कारण शहरीकरण में वृद्धि होती है। यू० एस० ए०, कनाडा, यूरोप इत्यादि देश इस चरण पर हैं। पर भारत के लिए इस चरण को प्राप्त करना एक अन्तिम उद्देश्य है। इस चरण में क्योंकि लोग शिक्षित और सूझवान हैं, मृत्यु दर और जन्म दर दोनों ही कम होने के कारण जनसंख्या भी । कम होनी शुरू हो जाती है।

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प्रश्न 5.
साक्षरता दर क्या है ? इस पक्ष से हमारे राज्यों की स्थिति कितनी अच्छी है ?
उत्तर-
साक्षरता-एक व्यक्ति जो लिख और पढ़ सकता है और उसकी उम्र 7 साल है, उसे साक्षर माना जाता है। शब्दकोष के अनुसार, किसी भी भाषा में पढ़, लिख तथा समझ लेने की योग्यता को साक्षरता कहते हैं। किसी देश के मानव विकास का मापक साक्षरता है। साक्षरता के कारण ही मानव की सूझ-बूझ का विकास होता है।
साक्षरता के अनुसार दुनिया के पहले दस देश निम्नलिखित हैं—

देश साक्षरता दर (प्रतिशत) युवा साक्षरता दर (आयु 15-24)
चीन 94.4% 99.7%
श्री लंका 92.6% 98.8%
म्यांमार 93.1% 96.3%
भारत 74.04% 90.2%
नेपाल 64.7% 86.9%
पाकिस्तान 60.00% 74.8%
बंगला देश 61.5% 83.2%

भारत में सबसे अधिक साक्षरता दर केरल (94%) में है। इसके बाद क्रमवार मिजोरम (91.3%), गोआ (88.70%) आदि हैं और बिहार में (61.80%) सबसे कम साक्षरता दर है। पंजाब की साक्षरता दर 75.8% है।

Geography Guide for Class 12 PSEB मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन Important Questions and Answers

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
21वीं सदी की शुरुआत में संसार की जनसंख्या कितनी थी ?
(A) 4 बिलियन
(B) 6 बिलियन
(C) 8 बिलियन
(D) 10 बिलियन।
उत्तर-
(B)

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प्रश्न 2.
सन् 2011 के आंकड़ों के मुताबिक भारत का जनसंख्या घनत्व कितना है ?
(A) 77 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
(B) 322 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
(C) 382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०
(D) 383 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 3.
किस देश का जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक हैं ?
(A) चीन
(B) भारत
(C) सिंगापुर
(D) इण्डोनेशिया।
उत्तर-
(C)

प्रश्न 4.
हर साल देश की जनसंख्या में कितने लोग शामिल होते हैं ?
(A) 6 करोड़
(B) 7 करोड़
(C) 8 करोड़
(D) 10 करोड़।
उत्तर-
(C)

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प्रश्न 5.
विश्व जनसंख्या दिवस कब मनाया जाता है ?
(A)7 जुलाई
(B) 11 जुलाई ,
(C) 5 मई
(D) 10 फरवरी।
उत्तर-
(B)

प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन-सा जनसंख्या तबदीली निर्धारक नहीं है ?
(A) जन्म दर
(B) मृत्यु दर
(C) स्थान बदली
(D) मध्य काल।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 7.
निम्नलिखित महाद्वीपों में किस महाद्वीप में लिंगानुपात कम हैं ?
(A) यूरोप
(B) एशिया
(C) अमेरिका
(D) ऑस्ट्रेलिया।
उत्तर-
(C)

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प्रश्न 8.
संसार का औसत लिंगानुपात कितना है ?
(A) 970
(B) 980
(C) 990
(D) 910
उत्तर-
(B)

प्रश्न 9.
2011 की जनांकिकी के अनुसार भारत की कुल साक्षरता दर कितनी है ?
(A) 70%
(B) 73%
(C) 72%
(D) 71%
उत्तर-
(B)

प्रश्न 10.
पहले दर्जे के शहर कौन-से हैं ?
(A) जहां जनसंख्या 1 लाख से ज्यादा हो
(B) जहां जनसंख्या 50,000 तक हो
(C) जहां जनसंख्या 99,000 तक हो
(D) जहां जनसंख्या 5,000 है।
उत्तर-
(A)

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प्रश्न 11.
बुढ़ापा जनसंख्या की आयु किससे अधिक है ?
(A) 40 साल
(B) 50 साल
(C) 45 साल
(D) 60 साल।
उत्तर-
(D)

प्रश्न 12.
भारत में काम किस आयु वर्ग के साथ सम्बन्धित है ?
(A) 17-20
(B) 0-15
(C) 0-14
(D) 15-59.
उत्तर-
(D)

B. खाली स्थान भरें :

  1. ………… पृथ्वी पर सभी आर्थिक क्रियाओं का धुरा माना जाता है।
  2. केवल उत्तर प्रदेश में भारत की ………. जनसंख्या निवास करती है।
  3. 1947 में ……….. के विभाजन के कारण जनसंख्या की वृद्धि कम हो गई।
  4. संसार की साक्षरता दर ……… है।
  5. ………….. से कम जनसंख्या वाले शहर छठे दर्जे के शहर हैं।

उत्तर-

  1. मानव,
  2. 16.4%,
  3. भारत और पाकिस्तान,
  4. 86.3%
  5. 5,000.

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C. निम्नलिखित कथन सही (✓) हैं या गलत (✗):

  1. अरुणाचल प्रदेश की जनसंख्या का घनत्व 110 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।
  2. मृत्यु दर में तबदीली किसी स्थान की जनसंख्या में तबदीली हो सकती है।
  3. ऊर्जा की उपलब्धि किसी स्थान की जनसंख्या को प्रभावित नहीं करती।
  4. शहरी क्षेत्रों में बड़े दर्जे पर स्थान बदली गैर योजनाबंदी तथा असंतुलित विकास का कारण बनती है।
  5. पंजाब का लिंग अनुपात 893 है।

उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. गलत,
  4. सही,
  5. सही।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
किस साधन को देश का कीमती स्त्रोत माना जाता है ?
उत्तर-
मनुष्य को।

प्रश्न 2.
2011 की जनांकिकी के अनुसार भारत की औसत जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर-
121.02 करोड़।

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प्रश्न 3.
जनसंख्या और क्षेत्र के आधार पर भारत देश का कौन-सा स्थान है ?
उत्तर-
क्षेत्र के आधार पर सातवां और जनसंख्या के आधार पर दूसरा स्थान है।

प्रश्न 4.
सबसे पहली बार भारत में (जनगणना) जनांकिकी कब शुरू हुई ?
उत्तर-
1881 में।

प्रश्न 5.
भारत की जनसंख्या का घनत्व क्या है ?
उत्तर-
382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०

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प्रश्न 6.
भारत में गाँवों की संख्या कितनी है ?
उत्तर-
2011 की जनगणना के अनुसार 650,244 गाँव भारत में हैं।

प्रश्न 7.
भारत में किस राज्य की सबसे अधिक जनसंख्या तथा किस राज्य की जनसंख्या कम है ?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश में अधिक तथा सिक्किम में कम जनसंख्या है।

प्रश्न 8.
जनसंख्या वृद्धि से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
कुछ कारणों के कारण जब किसी स्थान की जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है, उसे जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं।

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प्रश्न 9.
भारत में लिंग अनुपात का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
एक हजार पुरुषों के पीछे औरतों की संख्या को लिंग अनुपात कहा जाता है।

प्रश्न 10.
भारत के किस राज्य में अधिक तथा किस राज्य में कम लिंग अनुपात है ?
उत्तर-
अधिक केरल में और कम हरियाणा में।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
देश में जनसंख्या का विभाजन एक समान नहीं है, इस कथन की व्याख्या करो।
उत्तर-
प्राकृतिक, आर्थिक तथा सामाजिक भेद के कारण देश की 90% जनसंख्या देश के सिर्फ 10% क्षेत्र में रहती हैं। देश की सबसे अधिक जनसंख्या वाले पहले 10 देशों में 60% तक की देश की जनसंख्या समाई हुई है। इसलिए हम कह सकते हैं कि देश की जनसंख्या का विभाजन एक समान नहीं है।

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प्रश्न 2.
जनसंख्या के घनत्व से क्या अभिप्राय है ? इसको किस तरह मापा जा सकता है ?
उत्तर-
जनसंख्या घनत्व-किसी प्रदेश की जनसंख्या और भूमि के क्षेत्रफल के अनुपात को जनसंख्या घनत्व कहते हैं। यह घनत्व प्रति वर्ग मील या प्रति वर्ग किलोमीटर द्वारा प्रकट किया जाता है।
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प्रश्न 3.
जनसंख्या घनत्व का विश्लेषण करने के लिए भारत को किन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
जनसंख्या घनत्व का विश्लेषण करने के लिए भारत को तीन श्रेणियों में विभाजित किया जाता है—

  1. अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र
  2. मध्यम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र
  3. कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र।

प्रश्न 4.
जनसंख्या वृद्धि से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जनसंख्या वृद्धि का अर्थ है किसी खास क्षेत्र में, किसी खास समय में जब जनसंख्या में वृद्धि होती है, उसे जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 5.
कच्ची जन्म दर क्या है ?
उत्तर-
जब किसी स्थान की जन्म दर ऊंची होती है, तब जनसंख्या में वृद्धि हो जाती है। इसे जन्म दर की कच्ची जन्म दर कहते हैं। इसको इस प्रकार मापा जाता है—
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प्रश्न 6.
कच्ची मृत्यु दर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब किसी स्थान की मृत्यु दर ऊँची हो जाती है, तब जनसंख्या में कमी हो जाती है। मृत्यु दर को कच्ची मृत्यु दर भी कहते हैं। इसे इस प्रकार मापा जाता है—
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प्रश्न 7.
लिंग अनुपात से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
भारत में लिंग अनुपात का अर्थ है कि 1000 मर्दो के पीछे कितनी औरतों की संख्या है। इसको नीचे दिए गए अनुसार निकाला जाता है।
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प्रश्न 8.
जनसंख्या की बनावट से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जनसंख्या की बनावट का अर्थ है जनांकन की संरचना। इसमें आयु, लिंग, साक्षरता, रोजगार, जीवनकाल इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 9.
आयु संरचना का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
जनसंख्या में कौन-कौन से आयु वर्ग के लोग हैं, को आयु संरचना कहते हैं। यह जनसंख्या बनावट का बड़ा महत्त्वपूर्ण अंग है। इस प्रकार हम किसी स्थान में काम करने वाले लोगों की संख्या कितनी है, के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। इस द्वारा हम भविष्य में होने वाली जनसंख्या का भी अंदाजा लगा सकते हैं।

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प्रश्न 10.
भारत में अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र कौन-से हैं ? अधिक जनसंख्या का कोई एक कारण बताओ।
उत्तर-
भारत में कुल 650,244 गाँव हैं। भारत में हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, उड़ीसा, बिहार, उत्तर प्रदेश में 80% ग्रामीण जनसंख्या रहती है। उस जनसंख्या का मुख्य कारण यह है कि इन लोगों का मुख्य रोज़गार कृषि है।

प्रश्न 11.
भारत की जनसंख्या में बहुत असमानता है ? उदाहरण देकर इस कथन को समझाओ।
उत्तर-
भारत की जनसंख्या में बहुत असमानता है, क्योंकि—

  1. भारत के लोग मुख्य रूप में कृषि पर आश्रित हैं इसलिए समतल क्षेत्रों में अधिक लोग रहते हैं। मरुस्थली तथा जंगली क्षेत्रों में जनसंख्या कम है।
  2. बड़े राज्यों में जनसंख्या अधिक है।
  3. नदियों के नज़दीक क्योंकि फसलों के लिए पानी आसानी के साथ मिल जाता है, लोग यहां पर अधिक रहते हैं।

प्रश्न 12.
भारत के उन क्षेत्रों के नाम बताओ जिनमें जनसंख्या कम है और इसके क्या कारण हैं ?
उत्तर-
जिस स्थान पर जनसंख्या घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि० मी० है, वहां पर जनसंख्या कम होती है। ये स्थान हैं—

  1. राजस्थान
  2. मध्य प्रदेश
  3. आंध्र प्रदेश
  4. पूर्वी कर्नाटक
  5. पश्चिमी उड़ीसा
  6. छत्तीसगढ़।

कारण-कम जनसंख्या के कारण हैं—

  1. कम-उपजाऊ भूमि
  2. कम वर्षा वाले क्षेत्र
  3. मरुस्थली क्षेत्र
  4. पानी की कमी इत्यादि।

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प्रश्न 13.
पतिकर्ष कारक (Push Factors) कौन-से हैं ?
उत्तर-
जिन कारकों के कारण लोग अपने स्थानों को छोड़कर कहीं और चले जाते हैं उन्हें प्रतिकर्ष कारक कहते हैं। जैसे कि गरीबी, रोज़गार का न होना, जनसंख्या वृद्धि, आर्थिक संकट, शादी, सुरक्षित पर्यावरण, चिकित्सा सुविधा इत्यादि।

प्रश्न 14.
अपकर्ष कारक (Pull Factors) कौन से हैं ?
उत्तर-
जिन कारकों के कारण लोग किसी अच्छे रोज़गार की तलाश में, चिकित्सा सुविधा, उपजाऊ भूमि, सुरक्षित पर्यावरण इत्यादि से प्रभावित होकर चले जाएं, उन्हें अपकर्ष कारक कहते हैं।

प्रश्न 15.
लिंग अनुपात के कम होने के मुख्य कारण क्या हैं ?
उत्तर-
लिंग अनुपात के कम होने के मुख्य कारण नीचे दिए अनुसार हैं—

  1. लड़कियों के मुकाबले लड़कों की जन्म दर ज्यादा है।
  2. लड़कियों को पेट में ही खत्म करवा दिया जाता है।
  3. लड़के को प्राप्त करने की इच्छा।
  4. लिंग के बारे में पहले जांच करवाना।

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प्रश्न 16.
जनसंख्या की वृद्धि दर (Growth Rate) से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जनसंख्या की वृद्धि असल संख्या में या प्रतिशत में दिखाई जाती है तथा जब जनसंख्या की वृद्धि प्रतिशत में दिखाई जाती हो तब उसे जनसंख्या की वृद्धि दर (Growth Rate) कहते हैं।

प्रश्न 17.
भारत के मिलियन कस्बों (Million Towns) के नाम बताओ।
उत्तर-
कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, बंगलौर, अहमदाबाद, हैदराबाद, पूणे, कानपुर, नागपुर, लखनऊ।

लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अधिक जनसंख्या, कम जनसंख्या तथा साधारण जनसंख्या वाले क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व कितना मिलता है ? हर श्रेणी की एक-एक उदाहरण दो।
उत्तर-
हमारे संसार में जनसंख्या का वितरण समान नहीं है। कई क्षेत्र ऐसे हैं यहाँ जनसंख्या बहुत अधिक है तथा दूसरे तरफ कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ पर जनसंख्या साधारण है और कुछ ऐसे भी हैं जो क्षेत्र खाली हैं।

  1. अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 400 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। इन क्षेत्रों में बिहार, पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, झारखंड इत्यादि आ जाते हैं।
  2. साधारण जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 200 से 400 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि०मी० है। जैसे कि असम, गोआ, त्रिपुरा, कर्नाटक इत्यादि।
  3. कम जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्र-इन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। जैसे ‘कि अरुणाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश इत्यादि।

प्रश्न 2.
जनसंख्या वृद्धि तथा जनसंख्या घनत्व में क्या फर्क है ?
उत्तर-
जनसंख्या वृद्धि-जनसंख्या वृद्धि का अर्थ है कि किसी खास समय में किसी क्षेत्र के लोगों की संख्या कितनी बढ़ गई है। यह किसी देश के विकास में योगदान डालती है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1,21,01,93,422 थी।
जनसंख्या घनत्व-यह प्रतिशत में पेश की जाती है। किसी क्षेत्र के एक वर्ग कि०मी० में कितने लोग मिलते हैं, उसको जनसंख्या घनत्व कहते हैं। 2011 के आंकड़ों के अनुसार भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० था। यह किसी क्षेत्र के जनांकन के गुणों को प्रभावित करता है।

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प्रश्न 3.
जनसंख्या की वृद्धि क्या है ? इसकी किस्में बताओ तथा इसको किस प्रकार संयोजित किया जा सकता है ?
उत्तर-
जनसंख्या की वृद्धि-किसी क्षेत्र में जनसंख्या की वृद्धि और जनसंख्या में हुई तबदीली को जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं। इसको संयोजित निम्नलिखितानुसार किया जाता है—
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जनसंख्या जनसंख्या की वृद्धि को तीन प्रकार विभाजित किया जा सकता है—

  1. प्राकृतिक जनसंख्या की वृद्धि-किसी क्षेत्र में किसी खास समय पर हुए जन्म तथा मृत्यु में आपसी असमानता को जनसंख्या की प्राकृतिक वृद्धि कहते हैं।
  2. सकारात्मक जनसंख्या की वृद्धि-अगर किसी स्थान की जन्म दर उस स्थान की मृत्यु दर से अधिक है या कुछ लोग किसी और स्थान से आकर प्रवास करते हैं तो उसे सकारात्मक जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं।
  3. नकारात्मक जनसंख्या की वृद्धि-अगर किसी स्थान की मृत्यु दर उस स्थान की जन्म दर से अधिक हो जाए तथा वहाँ पर कुछ लोग प्रवास कर गए हों उसे नकारात्मक जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं।

प्रश्न 4.
किस प्रकार के स्थानों पर लिंग अनुपात नकारात्मक है। इसके कोई चार कारण बताओ।
उत्तर-
जिन क्षेत्रों में लिंग को लेकर भेदभाव व्यापक है, उन क्षेत्रों में लिंग अनुपात नकारात्मक है। इसके कारण निम्नलिखित अनुसार हैं—

  1. शिशु हत्या
  2. भ्रूण हत्या
  3. औरत के खिलाफ घरेलू हिंसा
  4. औरत का निम्न सामाजिक-आर्थिक स्तर।

प्रश्न 5.
संसार में भारत का जनसंख्या के आकार तथा घनत्व के तौर पर क्या स्थान है ?
उत्तर-
भारत संसार के अधिक जनसंख्या वाले देशों में एक है। इसकी जनसंख्या 175 प्रतिशत है तथा आकार के अनुसार भारत दुनिया का सातवां बड़ा देश है। यह संसार के कुल क्षेत्रफल का 2.4% हिस्सा है।
भारत की जनसंख्या उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया की कुल जनसंख्या से दोगुणी है। इससे पता चलता है कि भारत की जनसंख्या बहुत अधिक है।

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प्रश्न 6.
साक्षरता दर क्या है ? देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में साक्षरता दरों में भिन्नता क्यों पाई जाती है ?
उत्तर-
साक्षरता दर-सात साल की आयु तक के निवासी जो लिख तथा पढ़ सकते हैं की संख्या या प्रतिशत जनसंख्या को साक्षरता दर कहते हैं। देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में साक्षरता दरों में भिन्नता आर्थिक विकास, शहरीकरण तथा लोगों के रहने के ढंग-तरीकों के कारण होती है। अशिक्षित तथा अनपढ़ लोगों से देश के विकास का आवश्यक स्तर प्राप्त नहीं हो सकता तथा उसे साक्षरता दर भी कम होती है।

प्रश्न 7.
संसार की जनसंख्या में रहने के स्थान के आधार पर दो हिस्सों में विभाजन करके बताओ कि दोनों हिस्सों का रहन-सहन एक-दूसरे से क्यों अलग है ?
उत्तर-
संसार की जनसंख्या को निवास के आधार पर दो हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है—

  1. ग्रामीण जनसंख्या
  2. शहरी जनसंख्या

ग्रामीण अथवा शहरी जनसंख्या में भिन्नतायें—

  1. सामाजिक हालातों में रहन-सहन ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों का अलग होता है।
  2. ग्रामीण जनसंख्या की आरंभिक गतिविधियां जैसे कि कृषि इत्यादि में लगी होती हैं तथा शहरी जनसंख्या टरशरी गतिविधियों इत्यादि में लगी होती है।
  3. ग्रामीण क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व कम होता है तथा शहरी क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व अधिक होता है।

प्रश्न 8.
जनसंख्या अथवा विकास के आपसी संबंध को बयान करो।
उत्तर-
जनसंख्या अथवा विकास चिंतन बहुत आवश्यक है। जब किसी स्थान पर जनसंख्या की वृद्धि होती है तो उस स्थान की भूमि और खान-पान के पदार्थों पर दबाव अधिक बढ़ जाता है। जनसंख्या वृद्धि विकास के लिए एक नकारात्मक घटक है क्योंकि यह इसकी गुणवत्ता पर आधारित है। जनसंख्या की वृद्धि अन्य स्रोतों में एक असंतुलन बना देती है तथा साधन जैसे कि तकनीक, शिल्प विज्ञान इस संतुलन को प्रभावित करते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि विकास सामाजिक, आर्थिक, तकनीकी तथा राजनीतिक कारकों पर निर्भर करता है। एक नया मापक मानव विकास सूचक (HDI) इसको मापने के लिए लाया गया है।

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प्रश्न 9.
उम्र संरचना क्या है ? इसका वितरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर-
किसी देश, शहर, इलाके, क्षेत्र में हर उम्र के लोग रहते हैं। कह सकते हैं कि 0 से 100 साल तक के लोग किसी देश में रहते हैं इसको खास वर्गों में विभाजित किया गया है जिसको आयु संरचना कहते हैं। यह वितरण निम्नलिखित अनुसार है—

  1. 0-14 साल-बच्चे जो स्कूल पढ़ते है और सम्पूर्ण रूप से अपने माता-पिता पर निर्भर करते हैं।
  2. 15-59 साल-जनसंख्या में वे लोग जो कोई-न-कोई काम करते हैं और यह संख्या मज़दूरों में आती है।
  3. 60 या 60 साल से ऊपर-इस जनसंख्या में बूढ़े लोग आते हैं जो अपने बच्चों पर निर्भर करते हैं।

प्रश्न 10.
शहरीकरण क्या है ? शहरीकरण द्वारा मुख्य समस्या कौन-सी सामने आ रही है ?
उत्तर-
गाँव के अधिकतर लोग रोज़गार के अवसरों की तलाश में या अच्छी सुविधाओं की तलाश में शहरों की तरफ आकर्षित होते हैं। स्पष्ट शब्दों में जब गाँव या छोटे कस्बों के लोग बेहतरीन अवसरों की तलाश में किसी जगह रहना शुरू करते हैं तथा धीरे-धीरे उस जगह पूरा विकास हो जाता है, उसे शहरीकरण कहते हैं। शहरीकरण के कारण लोगों को शहरों में नीचे लिखी समस्याओं का सामना करना पड़ता है :

  1. स्थान तथा मकानों की कमी की समस्या, जिस कारण गंदी बस्ती का जन्म होता है।
  2. प्रदूषण की समस्या आम बन जाती है।
  3. पीने के लिए शुद्ध पानी की कमी पड़ जाती है।
  4. यातायात की समस्या।

प्रश्न 11.
शहरी योजनाबंदी से आपका क्या अर्थ है ?
उत्तर-
शहरों में रोज़गार के बढ़िया मौके, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं तथा शिक्षा के साधनों के कारण गाँव तथा छोटे कस्बों के लोगों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है जिस कारण शहरों में समस्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इस समस्या पर कंट्रोल करने के लिए सरकारी की तरफ से कुछ मुख्य योजनाओं की आवश्यकता है। इसलिए किसी नए तथा पुराने शहर के विकास के लिए शहरों को जो सुविधायें दी जा रही हैं वह शहर योजनाबंदी के लिए उठाया गया एक अच्छा कदम है। इस तरह से सही योजनाबंदी के कारण शहरों के लोगों के लिए ज़रूरी सुविधायें उपलब्ध करवाई जा सकती हैं।

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प्रश्न 12.
उन कारणों के बारे में बताओ जिनके कारण किसी इलाके का जनसंख्या घनत्व कम होता है।
या
किसी इलाके का जनसंख्या घनत्व कम होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
किसी इलाके की जनसंख्या घनत्व कम होने के निम्नलिखित कारण हैं—

  1. किसी जगह पर बहुत ठंडा या बहुत गर्म मौसम।
  2. ध्रुवीय क्षेत्रों में जमा हुआ कोहरा।
  3. खनिज पदार्थों तथा कारखानों की कमी।
  4. यातायात तथा संचार के साधनों की कमी।
  5. रेतली तथा पथरीली मिट्टी।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
जनसंख्या घनत्व का क्या अर्थ है ? जनसंख्या घनत्व कौन-कौन से तत्त्वों पर निर्भर करता है ? उदाहरण दो।
उत्तर-
जनसंख्या घनत्व (Density of Population)-किसी स्थान की जनसंख्या तथा भूमि के क्षेत्रफल के अनुपात को जनसंख्या का घनत्व कहते हैं। इससे पता चलता है कि किसी स्थान में लोगों की संख्या कितनी घनी है। इसको प्रति वर्ग कि०मी० द्वारा प्रकट किया जाता है। किसी स्थान में एक वर्ग कि०मी० के दायरे में कितने लोग रहते हैं इसे जनसंख्या का घनत्व कहते हैं। जब हमें किन्हीं दो देशों की जनसंख्या की तुलना करनी होती है तब वह जनसंख्या के घनत्व की सहायता से ही की जाती है। इसका एक मुख्य कारण यह है कि कुछ क्षेत्रफल में पर्वतीय भाग, दलदल, जंगली प्रदेश और मरुस्थल भी शामिल कर लिए जाते हैं, चाहे इन प्रदेशों में मनुष्य निवास बिल्कुल संभव न हो।
जनसंख्या का घनत्व अक्सर बेहतर सेवाओं तथा सुविधाओं पर निर्भर है। प्रकृति की तरफ से प्राप्त सुविधा मुख्य स्थान रखती है पर इसके अतिरिक्त भौतिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा ऐतिहासिक कारण भी जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करते हैं।
(A) भौतिक कारक (Natural Factors)—

1. धरातल (Land)–धरातल जनसंख्या के घनत्व पर प्रभाव डालता है। धरातल को आगे मरुस्थल, पर्वत, मैदान, पठार, समतल इत्यादि भागों में विभाजित किया जाता है। पर्वतीय, मरुथलीय भागों में जलवायु सख्त, उपजाऊ धरती की कमी तथा यातायात के साधनों की कमी होती है जिस कारण वहां पर जनसंख्या का घनत्व कम होता है। मैदानी तथो समतल क्षेत्रों में कृषि, जल सिंचाई, यातायात इत्यादि सुविधा होने के कारण जनसंख्या बढ़ जाती है। हमारे देश की आबादी मुख्य रूप में कृषि पर निर्भर है। इसलिए 50% जनसंख्या संसार के मैदानी क्षेत्रों में रहती है। भारत के गंगा के मैदान, चीन के हवांग हो मैदान विश्व में घनी जनसंख्या के घनत्व वाले क्षेत्र हैं। पर अमेजन घाटी में दलदल भूमि के कारण कम जनसंख्या है।

2. जलवायु (Climate)-तापमान तथा वर्षा जनसंख्या के घनत्व पर स्पष्ट प्रभाव डालते हैं। अधिक ठण्डे या अधिक गर्म क्षेत्रों में कम जनसंख्या होती है। इसीलिए संसार के उष्ण तथा शीत मरुस्थल व ध्रुवीय प्रदेश लगभग खाली हैं। सहारा मरुस्थल, अंटार्कटिका महाद्वीप तथा टुण्ड्रा प्रदेश में कम जनसंख्या मिलती है। सम-शीतोष्ण तथा मानसूनी जलवायु के प्रदेशों में घनी जनसंख्या मिलती है। यहां पर्याप्त वर्षा फसलों के उपयुक्त होती है। पश्चिमी यूरोप तथा दक्षिणी पूर्वी एशिया में उत्तम जलवायु के कारण जनसंख्या का भारी केन्द्रीयकरण हुआ है। मध्य अक्षांशों में शीत उष्ण जलवायु के कारण ही संसार की कुल जनसंख्या का 4/5 भाग निवास करता है।

3. मिट्टी (Soil)–भारत की आबादी कृषि पर अधिक आधारित है। कृषि के लिए उपजाऊ मिट्टी का होना अधिक ज़रूरी है। मानसूनी एशिया की नदी घाटियों की तटीय मिट्टी में चावल का अधिक उत्पादन होने के कारण अधिक जनसंख्या मिलती है।

4. खनिज पदार्थ (Minerals)—बहुत से उद्योगों को चलाने के लिए तथा उनके विकास के लिए खनिज पदार्थ को महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए जिस जगह पर कोयला, लोहा, तेल, सोना इत्यादि खनिज पदार्थ मिलते हैं वहाँ पर जनसंख्या का घनत्व अधिक होगा। भारत में दामोदर घाटी में खनिजों के विशाल भण्डार के कारण घनी जनसंख्या है।

5. शक्ति के साधन (Power Resources)-जिन क्षेत्रों में शक्ति से चलने वाले साधनों का विकास होता है उस स्थान पर घनत्व अधिक होता है।

6. नदियां अथवा जल प्राप्ति (Rivers and Water Supply)-प्राचीन काल से ही नदियों का जल सभ्यताओं के विकास की मुख्य कड़ी रहा है। इन्हें पीने का जल, सिंचाई के लिए, उद्योग आदि में प्रयोग में लाया जाता है। यही कारण है कि कोलकाता, दिल्ली, आगरा तथा इलाहाबाद नदियों के किनारे ही स्थित हैं।

7. ऐतिहासिक कारण (Historical Factors) कई बार ऐतिहासिक महत्त्व के स्थान जनसंख्या के केन्द्र बन जाते हैं। गंगा के मैदान में, सिन्धु के मैदान में तथा चीन में प्राचीन सभ्यता के कई केन्द्रों में जनसंख्या अधिक है। नील घाटी में जनसंख्या का अधिक घनत्व ऐतिहासिक कारणों से ही है।

8. राजनैतिक कारण (Political Factors)-सीमावर्ती प्रदेशों में तथा युद्ध क्षेत्रों के निकट सुरक्षा के अभाव के कारण कम जनसंख्या होती है। इसीलिए उत्तर-पूर्वी भारत, वियतमान तथा अरब देशों में जनसंख्या कम है। सरकारी नीतियां जिस क्षेत्र के लोगों की उम्मीदों पर खरी उतरती हैं और लोगों के हित अनुसार होती हैं, वहां पर जनसंख्या घनत्व अधिक होता है।

9. धार्मिक तथा सामाजिक कारण (Religious and Social Factors)-सामाजिक रीति-रिवाजों तथा धार्मिक विश्वासों का जनसंख्या के वितरण पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। इस्लाम धर्म में चार विवाह की आज्ञा, चीन तथा भारत में बाल विवाह जनसंख्या की वृद्धि के कारण हैं। कई तीर्थ-स्थान अधिक जनसंख्या के केन्द्र बन जाते हैं। परिवार कल्याण अपनाने वाले देशों में जनसंख्या की वृद्धि दर कम होती है। यहूदी लोग भी आर्थिक अत्याचारों से तंग आकर इज़राइल देश में जा बसे हैं।

10. आर्थिक कारण (Economic Factors)—

i) कृषि (Agriculture)—क्योंकि देश में अधिक लोग कृषि पर निर्भर करते हैं, अधिक कृषि उत्पादन वाले क्षेत्रों में अधिक भोजन प्राप्ति के कारण घनी जनसंख्या होती है। चावल उत्पन्न करने वाले क्षेत्रों में साल में तीन-तीन फसलों के कारण अधिक लोगों का निर्वाह हो सकता है। इसीलिए मानसूनी एशिया में अधिक जनसंख्या है।

ii) उद्योग (Industries)—औद्योगिक विकास से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है। औद्योगिक नगरों के निकट बहुत सी बस्तियां बस जाती हैं तथा जनसंख्या अधिक हो जाती है। यूरोप, जापान में औद्योगिक विकास के कारण ही अधिक जनसंख्या है। इन क्षेत्रों में अधिक व्यापार के कारण भी घनी जनसंख्या होती है।

iii) यातायात के साधनों की सुविधा (Easy Means of Transportation)—यातायात के साधनों की सुविधाओं के कारण उद्योगों, कृषि तथा व्यापार का विकास होता है। तटीय क्षेत्रों में जल-मार्ग की सुविधा के कारण संसार की अधिकतर जनसंख्या निवास करती है। पर्वतीय भागों तथा कई भीतरी प्रदेशों में यातायात के साधनों की कमी के कारण कम जनसंख्या होती है, जैसे–पश्चिमी चीन में।

iv) नगरीय विकास (Urban Development) किसी नगर के विकास के कारण उद्योग, व्यापार तथा परिवहन का विकास हो जाता है। शिक्षा, मनोरंजन इत्यादि सुविधाओं के कारण नगरों में तेजी से जनसंख्या बढ़ जाती है।

v) विदेशी आय का आकर्षण (Attraction of Foreign Money)-कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों में कई विदेशी कम्पनियां अधिक वेतन देकर तकनीकी श्रमिकों को रोजगार प्रदान करती हैं। इसलिए भारत और पाकिस्तान इत्यादि कई एशियाई देशों से लोग यहां आकर बस गए हैं।

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प्रश्न 2.
प्रवास (Migration) से आपका क्या भाव है ? इसके क्या कारण हैं ? इसकी किस्में बताओ।
या
प्रवास का क्या अर्थ है ? इसकी किस्में और कारण बताओ।
उत्तर-
प्रवास (Migration)—जनसंख्या तबदीली के निर्णायक कारकों में यह तीसरा मुख्य कारण है। यह एक अच्छी कोशिश है जो लोगों द्वारा जनसंख्या तथा साधनों के बीच एक संतुलन बनाने के लिए की जाती है। यह स्थिर तथा अस्थिर दो प्रकार की होती है। अस्थाई रूप का अर्थ है अगर मौसम खराब होने के कारण, सालाना या कम समय के लिए कोई मनुष्य अपना स्थान छोड़ कर चला जाए पर अगर कोई मनुष्य शादी के बाद, रोज़गार के लिए पूरी तरह से किसी स्थान को छोड़ कर किसी और स्थान पर रहने के लिए चला जाए तो इसे स्थिर प्रवास कहते हैं।
प्रवास की किस्में-जनसंख्या की स्थानीय गति मुख्य रूप में गाँव से गाँव की तरफ, गाँव से शहरों की तरफ, शहर से शहर की तरफ, शहर से गाँव की तरफ प्रवास होती है। प्रवास की मुख्य किस्में इस प्रकार हैं—

1. मौसमी प्रवास (Seasonal Migration)—प्रवास मुख्य रूप में स्थाई और अस्थाई होती है। अस्थाई स्थान बदली मौसमी स्थान बदली होती है। ये कृषि के लिए काम करने वाले श्रमिक होते हैं जो उन स्थानों पर आ जाते हैं जहाँ खेती की कटाई, बिनाई के लिए श्रमिकों की जरूरत होती है। ये श्रमिक एक खास समय के लिए आते हैं जैसे कि यू०पी० और बिहार से पंजाब में खरीफ़ और रबी की फसलों के समय आते हैं।

2. अंतर्राष्ट्रीय प्रवास (International Migration)-एक देश और महाद्वीप के बीच के प्रवास को अंतर्राष्ट्रीय प्रवास कहते हैं। कुछ समय के अंदर ही इस तरह की प्रवास के कारण महाद्वीपों के जनसंख्या घनत्व में फर्क आने लग जाता है। आज के दौर में अंतर्राष्ट्रीय प्रवास ने तेज गति हासिल की है, क्योंकि कुछ महाद्वीपों के बीच खास रोज़गार के मौके लोगों को आकर्षित करते हैं। 21वीं सदी की शुरूआत में यू० एन० के एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 120 मिलियन लोग पूरे देश के अंदर, नज़दीक के देशों में चले गए हैं।

3. अंतरमुखी प्रवास (Internal Migration)—यह जनांकन का एक बहुत ज़रूरी तत्त्व है। इससे लोग अपने क्षेत्र छोड़कर दूसरे क्षेत्र में चले जाते हैं और दूसरे क्षेत्र की जनसंख्या घनत्व बढ़ा देते हैं। जैसे कि विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए शहरों में चले जाते हैं। पंजाब में ही पटियाला शहर के व्यक्ति राजपुरा जा कर रहने लगे हैं। यह अंतरमुखी प्रवास है।

4. ग्रामीण प्रवास (Rural Migration)—जब बढ़िया और उपजाऊ भूमि के कारण गाँव के लोग उपजाऊ भूमि वाले क्षेत्र में चले जाते हैं, उसे ग्रामीण प्रवास कहते हैं।

प्रवास के कारण-प्रवास के कारणों में प्रतिकर्ष तथा अपकर्ष कारक खास स्थान रखते हैं। प्रवास के कारण निम्नलिखितानुसार हैं—
I. आर्थिक कारण (Economic Reasons) आर्थिक कारण प्रवास के कारणों में सबसे अधिक भूमिका निभाते हैं। कुछ आर्थिक कारण निम्नलिखित हैं—

  1. उपजाऊ जमीन जिस पर कृषि निर्भर करती है।
  2. खेती के लिए आदर्श हालात।
  3. उद्योगों की बहुतायत जो किसी स्थान के विकास की खास कड़ी है।
  4. रोजगार के अवसरों का होना जिसके साथ व्यक्ति का भविष्य जुड़ा है।
  5. यातायात और संचार के साधन इत्यादि।

II. सामाजिक कारण (Social Reasons) सामाजिक कारण भी स्थान बदली के लिए समान रूप में ज़रूरी हैं। जैसे कि शादी एक सामाजिक प्रथा है और शादी के बाद लड़कियों को पति के घर रहना पड़ता है। स्थान बदली के मुख्य सामाजिक कारण निम्नलिखित हैं—

  1. लोगों की धार्मिक सोच और धार्मिक स्थानों पर रहने की लोगों की इच्छा।
  2. निजी और सार्वजनिक तत्त्व और सामाजिक उत्थान।
  3. बेहतरीन शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की बहुतायत।
  4. सरकार की जनता की भलाई के लिए बनाई नीतियां। ‘
  5. लोगों की निजी आज़ादी।

III. जनांकन कारण (Demographic Reasons)-कुछ जनांकन कारण नीचे लिखे अनुसार हैं—

  1. आयु सरंचना (Age Composition)-प्रवास में लोगों की आयु भी खास भूमिका निभाती है।
  2. क्षेत्रीय असमानता (Regional Difference)-जनसंख्या के घनत्व में क्षेत्रीय असमानता होती है। प्रवास कई क्षेत्रीय सीमाओं पर भी निर्भर करती है जैसे कि राज्य के अंदर का प्रवास।
  3. राज्य की अंदरूनी प्रवास (Interstate Migration)-जब प्रवास राज्य के अंदर-अंदर ही होता है उसे राज्य के अंदर प्रवास कहते हैं।
  4. अंतर राज्य प्रवास (Intra State Migration)-जब प्रवास एक राज्य से दूसरे राज्य में होती हैं उसे अंतर राज्य प्रवास कहते हैं।
  5. अंतर्राष्ट्रीय प्रवास (International Migration)-जब लोग एक देश को छोड़कर दूसरे देश में चले जाते हैं उसे अंतर्राष्ट्रीय प्रवास कहते हैं।

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प्रश्न 3.
आज़ादी के बाद के संदर्भ की उदाहरण देकर भारत में शहरीकरण के दौर के बारे में चर्चा करो।
उत्तर-
भारत की बहुत जनसंख्या गाँवों में रहती है और उनका मुख्य काम कृषि है। पर कुछ लोग बेहतर सुविधा के कारण शहरों में रहना पसंद करते हैं। शहरों में स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा के बेहतरीन अवसर और रोजगार के अच्छे अवसर उपलब्ध होते हैं इसलिए गाँवों के लोग शहरों की तरफ आकर्षित होते जा रहे हैं। आज से लगभग 200 साल पहले संसार के सिर्फ 2.5% लोग ही थे जो शहरों में रहते थे पर आज के समय में 40% से अधिक लोग हैं जो शहरों में रहते हैं। 2011 की हुई जनगणना के अनुसार यह प्रतिशत 31.20% तक पहुँच चुका है। जनगणना के अनुसार जनसंख्या को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है—

  1. शहरी जनसंख्या,
  2. ग्रामीण जनसंख्या।

जो लोग शहर में रहते हैं, वे शहरी जनसंख्या के अधीन आते हैं। स्थानीय स्तर पर गाँवों का प्रबंध पंचायत संभालती हैं और शहरों का प्रबंध नगर कौंसिल संभालती है। माना जाता है कि देश के अधिकतर लोग खेतीबाड़ी के कामों में लगे हुए हैं।
भारत एक कृषि उत्पादन वाला देश है। अधिकतर लोग गाँव में रहते हैं। भारत के सांस्कृतिक विकास की गाँव एक मुख्य इकाई है। भारत में शहरी जनसंख्या भी काफी है। 2011 की जनगणना के अनुसार 31.20% लोग शहरों में रहते हैं। भारत में देश के सारे शहरी क्षेत्रों से ज्यादा शहरीकरण है। पर भारत में शहरीकरण की मात्रा बाकी देशों से कम है।

देश शहरी जनसंख्या (%) प्रतिशत
यू० एस० ए० 70
ब्राजील 68
इजिप्ट 44
पाकिस्तान 29
भारत 27.8

शहरी जनसंख्या में वृद्धि-जनसंख्या के विस्फोट के कारण शहरी जनसंख्या की वृद्धि की गति में काफी तेजी आई है। पिछले 100 सालों में भारत की कुल जनसंख्या तीन गुणा से अधिक हो चुकी है। पर शहरी जनसंख्या ग्यारह गुणा बढ़ गई है।
ग्रामीण और शहरी जनसंख्या
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शहरी जनसंख्या की वृद्धि साल 1901-61 के बीच धीरे थी। पर 1961-81 के समय में जाकर यह वृद्धि बहुत तेज हो गई।
इस समय दौरान शहरी जनसंख्या 7.8 करोड़ से 15.6 करोड़ तक बढ़ गई। बड़े शहरों के कारण शहरीकरण की गति काफी तेज़ हो गई। बहुत सारे औद्योगिक कस्बों का बनना शुरू हो गया। भारतीय कस्बों को मुख्य रूप में नीचे लिखी 6 श्रेणियों में बाँटा जाता है—

  1. पहले दर्जे के शहर-1 लाख से अधिक जनसंख्या
  2. दूसरे दर्जे के शहर-50,000 से 99,999 तक जनसंख्या
  3. तीसरे दर्जे के शहर-20,000 से 49,999 तक जनसंख्या
  4. चौथे दर्जे से शहर-10,000 से 19,999 तक जनसंख्या
  5. पांचवें दर्जे के शहर-5,000 से 9,999 तक जनसंख्या
  6. छठे दर्जे के शहर-5000 से कम जनसंख्या।

आज़ादी के बाद बड़े शहरों की संख्या बढ़ गई जबकि छोटे शहरों की संख्या कम हो गई। शहरों के जीवन, सुविधा, ज़रूरतें तथा लाभ के कारण लोग शहरों की तरफ आकर्षित होने लगे जिस कारण शहरों की जनसंख्या में वृद्धि हो गई। शहरीकरण की सुविधाएं तथा आकर्षित करने वाले कारणों के सिवाय अब शहरों में शहरी लोगों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है। जैसे कि—

  1. जनसंख्या की वृद्धि के कारण रहने के लिए स्थान तथा मकान दोनों की कमी पैदा हुई तथा मुंबई जैसे शहरों में चॉल (Chawl) इत्यादि में लोगों ने रहना शुरू कर दिया।
  2. इन स्थानों का पर्यावरण शुद्ध न होने के कारण गंदी बस्तियों का जन्म हुआ।
  3. साधनों की बहुलता के कारण प्रदूषण की समस्या आगे आई।
  4. शहरों में अपराधों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई।
  5. यातायात और संचार के साधनों में कमी पड़ गई।
  6. पीने के लिए शुद्ध जल की कमी शहरों में आम देखने को मिलने लगी।

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प्रश्न 4.
भारत में जनसंख्या वितरण की विभिन्नता तथा इसके कारणों का वर्णन करो।
उत्तर-
जनसंख्या का वितरण (Distribution of Population)-भारत क्षेत्रफल के आधार पर संसार में सातवां बड़ा देश है परन्तु जनसंख्या की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121 करोड़ थी तथा जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० था। भारत में जनसंख्या का वितरण बहुत असमान है। देश में प्राकृतिक तथा आर्थिक दशाओं की विभिन्नता के कारण जनसंख्या के वितरण तथा घनत्व में बहुत विभिन्नता है। गंगा-सतलुज के उपजाऊ मैदान में देश के 23% क्षेत्र में 52% जनसंख्या का संकेन्द्रण है जबकि हिमालय के पर्वतीय भाग में 13% क्षेत्र में केवल 2% जनसंख्या निवास करती है। केन्द्र शासित प्रदेश दिल्ली में जनसंख्या का घनत्व 11297 है जबकि अरुणाचल प्रदेश में केवल 10 है। सबसे अधिक जनसंख्या वाला राज्य उत्तर प्रदेश है जहां 20 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं।

भारत में जनसंख्या घनत्व, धरातल, मिट्टी के उपजाऊपन, वर्षा की मात्रा तथा जल सिंचाई पर निर्भर करता है। भारत मूलतः कृषि प्रधान देश है। इसलिए अधिक घनत्व उन प्रदेशों में पाया जाता है जहां भूमि की कृषि उत्पादन क्षमता अधिक है। जनसंख्या का घनत्व वर्षा की मात्रा पर निर्भर करता है। पिछले कुछ वर्षों में औद्योगिक क्षेत्रों में भी जनसंख्या घनत्व बढ़ता जा रहा है।

जनसंख्या का घनत्व (Density of Population)—किसी प्रदेश की जनसंख्या तथा भूमि के क्षेत्रफल के अनुपात को जनसंख्या घनत्व कहते हैं। इसे निम्न प्रकार से प्रकट किया जाता है कि एक वर्ग कि०मी० में औसत रूप से कितने व्यक्ति रहते हैं।
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उदाहरण के लिए भारत का कुल क्षेत्रफल 32.8 लाख वर्ग कि०मी० है तथा जनसंख्या 121 करोड़ है। इस प्रकार भारत की औसत जनसंख्या
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भारत को जनसंख्या के घनत्व के आधार पर क्रमशः तीन भागों में विभाजित किया जाता है।
1. अधिक घनत्व वाले भाग (Densely Populated Areas)-इस भाग में वे राज्य शामिल हैं जहां जनसंख्या घनत्व 500 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है। अधिक घनत्व वाले क्षेत्र प्रायद्वीपीय भारत के चारों ओर एक मेखला बनाते हैं। पंजाब से लेकर गंगा के डेल्टा तक जनसंख्या का घनत्व अधिक है। एक अनुमान हैं कि इस भाग के 17% क्षेत्रफल में 43% जनसंख्या निवास करती है।
जनसंख्या घनत्व-व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०

राज्य घनत्व राज्य घनत्व
पश्चिमी बंगाल 1029 उत्तर प्रदेश 828
केरल 859 तमिलनाडु 555
बिहार 1102 पंजाब 550

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(i) पश्चिमी तटीय मैदान-इस भाग में केरल प्रदेश में घनत्व 859 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि०मी० है।
कारण—

  1. अधिक वर्षा
  2. मैदानी भाग तथा उपजाऊ मिट्टी
  3. चावल की अधिक उपज
  4. उद्योगों के लिए जल विद्युत्
  5. उत्तम बन्दरगाहों का होना
  6. जलवायु पर समुद्र का समकारी प्रभाव।

(ii) पश्चिमी बंगाल-इस भाग में घनत्व 1029 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है।
कारण—

  1. गंगा नदी का उपजाऊ डेल्टा
  2. अधिक वर्षा
  3. चावल की वर्ष में तीन फसलें
  4. कोयले के भण्डार
  5. प्रमुख उद्योगों का स्थित होना।

(iii) उत्तरी मैदान-इस भाग में विभिन्न प्रदेशों के घनत्व-बिहार (1102), उत्तर प्रदेश (828), पंजाब (550),
व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०।
कारण—

  1. सतलुज, गंगा आदि नदियों के उपजाऊ मैदान
  2. पर्याप्त वर्षा तथा स्वास्थ्यप्रद जलवायु
  3. जल सिंचाई की सुविधाएं
  4. कृषि के लिए आदर्श दशाएं
  5. व्यापार, यातायात तथा उद्योगों का विकास
  6. नगरों का अधिक होना।

(iv) पूर्वी तट- इस भाग में तमिलनाडु प्रदेश में घनत्व 555 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है।
कारण—

  1. नदियों के उपजाऊ डेल्टा
  2. उद्योगों की अधिकता
  3. गर्म आर्द्र जलवायु
  4. चावल का अधिक उत्पादन
  5. दोनों ऋतुओं में वर्षा
  6. जल सिंचाई की सुविधा।

2. साधारण घनत्व वाला भाग (Moderately Populated Area)—इस भाग में वे राज्य शामिल हैं जिनका घनत्व 200 से 500 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है। मुख्य रूप से ये प्रदेश पूर्वी तथा पश्चिमी घाट, अरावली पर्वत तथा गंगा के मैदान की सीमाओं के अन्तर्गत स्थित हैं।
जनसंख्या घनत्व-व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०

राज्य घनत्व राज्य घनत्व
हरियाणा 573 आन्ध्र प्रदेश 308
गोआ 399 कर्नाटक 319
असम 397 गुजरात 308
महाराष्ट्र 365 उड़ीसा 269
त्रिपुरा 350

कारण—

  1. इन भागों में पथरीली या रेतीली धरातल होने के कारण कृषि उन्नत नहीं है।
  2. कृषि के लिए वर्षा पर्याप्त नहीं है।
  3. उद्योग उन्नत नहीं हैं।
  4. यातायात के साधन उन्नत नहीं हैं।
  5. परन्तु जल सिंचाई, लावा मिट्टी तथा खनिज पदार्थों के कारण साधारण जनसंख्या मिलती है।

3. कम घनत्व वाला भाग (Sparsely Populated Area)-इस भाग में वे प्रान्त शामिल हैं जिनका घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से कम है।
(i) उत्तर-पूर्वी भारत-इस भाग में मणिपुर, मेघालय, नागालैंड, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश तथा मिज़ोरम शामिल हैं।
जनसंख्या घनत्व-व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी०

राज्य घनत्व राज्य घनत्व
मणिपुर 122 सिक्किम 86
मेघालय 132 मिजोरम 52
नागालैंड 119 अरुणाचल प्रदेश 17

कारण—

  1. असमतल तथा पर्वतीय धरातल
  2. वन प्रदेश की अधिकता
  3. मलेरिया का प्रकोप
  4. उद्योगों का पिछड़ापन
  5. यातायात के साधनों की कमी
  6. ब्रह्मपुत्र नदी की भयानक बाढ़ों से हानि।

(ii) कच्छ तथा राजस्थान प्रदेश-इस भाग में राजस्थान का थार का मरुस्थल तथा खाड़ी कच्छ के प्रदेश शामिल हैं।
कारण—

1. कम वर्षा
2. कठोर जलवायु
3. मरुस्थलीय भूमि के कारण कृषि का अभाव
4. खनिज तथा उद्योगों की कमी
5. जल सिंचाई के साधनों की कमी
6. गुजरात की खाड़ी तथा कच्छ क्षेत्र का दलदली होना।

(iii) जम्मू-कश्मीर तथा हिमाचल प्रदेश-हिमाचल पर्वत के पहाड़ी क्षेत्र में जनसंख्या बहुत कम है। हिमाचल प्रदेश में प्रति वर्ग कि० मी० 123 घनत्व है तथा जम्मू कश्मीर में प्रति वर्ग कि० मी० घनत्व 124 है।
कारण—

1. शीतकाल में अधिक सर्दी
2. बर्फ से ढके प्रदेश का होना
3. पथरीली धरातल के कारण कम कृषि क्षेत्र
4. यातायात के साधनों की कमी
5. वनों का अधिक विस्तार
6. सीमान्त प्रदेश का होना
7. उद्योगों की कमी।

(iv) मध्य प्रदेश- इस प्रान्त में कुछ भागों में बहुत कम जनसंख्या है। मध्य प्रदेश में जनसंख्या घनत्व प्रति वर्ग कि० मी० 196 है।

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प्रश्न 5.
लिंग अनुपात से आपका क्या अर्थ है ? जनसंख्या के अध्ययन में इसका क्या योगदान है ? भारत में लिंग अनुपात कम होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
लिंग अनुपात-लिंग अनुपात किसी समाज में औरतों की स्थिति का महत्त्वपूर्ण मापदंड है। भारत में लिंग अनुपात का अर्थ है कि 1000 पुरुषों पीछे स्त्रियों की संख्या कितनी है जैसे कि—
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इसमें अगर लिंग अनुपात 1000 हो तो इसका अर्थ है कि स्त्रियों और पुरुषों की जनसंख्या बराबर है अगर 1000 से ज्यादा हो तो स्त्रियों की संख्या ज्यादा होगी और 1000 से कम है तो स्त्रियों की संख्या कम होगी।

जनसंख्या के अध्ययन में लिंग अनुपात का योगदान-किसी देश की जनसंख्या के अध्ययन में लिंग अनुपात का असर सिर्फ जनांकन को भी प्रभावित नहीं करता बल्कि इसके सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक स्वरूप को भी प्रभावित करता है। यह जन्म दर और मृत्यु दर को भी प्रभावित करता है। अंतर्मुखी और बाहरमुखी स्थान बदली भी लिंग अनुपात द्वारा प्रभावित होती है। सामाजिक भलाई में, सामाजिक सेवाएं जैसे कि मां और बच्चे, बूढों के लिए यह सब कुछ लिंग अनुपात पर ही आधारित है। अगर किसी देश के विकास के बारे प्रोग्राम का स्वरूप तैयार करना होता है। उस समय उस के लिंग अनुपात के बारे में पता लगाना बहुत ज़रूरी है। जनसंख्या का रिकॉर्ड लिंग अनुपात और आयु संरचना के आधार पर बनाया जाता है।
Sex Ratio (Females per 1000 males) India 1901—2001

Year Sex Ratio Sex Ratio in Children (0-6 years)
1901 972
1911 964
1921 955
1931 950
1941 945
1951 946
1961 941 976
1971 930 964
1981 934 962
1991 929 945
2001 933 927

 

लिंग अनुपात बहुत महत्त्व रखता है क्योंकि यह सामाजिक विकास का स्पष्ट, निर्विवादी और सुविधाजनक सूचक है। हर व्यक्ति का समाज में अपना एक खास महत्त्व है। इस प्रकार परिवार और समाज में उसका स्थान लिंग अनुपात द्वारा दिखाया जा सकता है। जैसे कि हिन्दू परिवार में व्यक्तियों की संख्या स्त्रियों से अधिक होती है। पश्चिम की तरफ औद्योगिक विकास के कारण इन क्षेत्रों में स्त्रियों परिवार संभालने तथा पुरुष खेती इत्यादि का काम करते हैं। आज के समय में स्त्री पुरुष के बराबर घर के बाहर काम कर रही है पर पुरुष घर संभालने का काम आज भी बहुत कम कर रहे हैं।

सन् 1901 से लोकर 2011 तक भारत में लिंग अनुपात हमेशा कम रहा है। सन् 2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार भारत में पुरुषों और स्त्रियों की संख्या क्रमश: 62.37 करोड़ और 58.64 करोड़ थी जबकि भारत की कुल जनसंख्या 121.00 करोड़ थी।

केरल का लिंग अनुपात 1084 है जबकि पंजाब की स्थिति बहुत ही चिंताजनक है यहां यह लिंग अनुपात सिर्फ 893 है। सन् 2001 का पंजाब का लिंग अनुपात 876 था और सन् 2011 में लिंग अनुपात (893) में कुछ सुधार आया है।

भारत में लिंग अनुपात कम होने के कारण-पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश तथा गुजरात (800 लड़कियों के पीछे 1000 लड़के) इसके अतिरिक्त दक्षिण-पश्चिमी दिल्ली, जो कि देश का एक खुशहाल कस्बा माना जाता है, लिंग अनुपात में समानता नहीं है।
भारत लिंग अनुपात की समस्या के साथ लड़ रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लिंग अनुपात 940 था। इसके लिए बहुत सारे कारक जिम्मेदार हैं जो इस प्रकार हैं—

1. सामाजिक कारक (Social Factors)–पुरुष प्रधान समाज में सब से अधिक महत्त्व पुरुष को दिया जाता है। पुराने विचारों के अनुसार अगर बच्चा लड़का होता हो तो इसके साथ परिवार का कुल आगे बढ़ता है।
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साक्षरता की कमी के कारण उनकी यह पुरानी सोच भी लिंग अनुपात के कम होने का कारण है। उनकी सोच है कि शादी के बाद लड़की अपना घर छोड़ कर ससुराल में चली जाती है जिसके कारण बुढ़ापे में माता-पिता का ख्याल नहीं रख सकती और उनका लड़का बुढ़ापे में लाठी के समान है।

2. तकनीकी कारण (Technological Factors) तकनीकी विकास के कारण अल्ट्रासोनीग्राफी द्वारा लिंग की जांच करवा ली जाती है जिस कारण लड़की पता लगने पर उसे पेट में ही कत्ल करवा दिया जाता है।

3. जागरुकता की कमी (Lack of Awareness) आर्थिक विकास में स्त्रियों का योगदान कम रहा है। इसके कारण स्त्रियों को पुरुष के बराबर महत्त्व समाज में नहीं दिया जाता। कुछ खास चीजें और जरूरतें भी स्त्रियों को प्रदान नहीं की जाती।

4. आर्थिक कारण (Economic Factors)-कई समाजिक बुराइयां जैसे कि दहेज जो समाज में लिंग अनुपात पर असर डालती है। दहेज माता-पिता के ऊपर फालतू बोझ होता है। इसलिए परिवार में एक लड़का चाहिए जो कि भविष्य में परिवार की आमदनी में योगदान डालता है यह माना जाता है।

5. सुरक्षा निर्गमन (Security Issues)—आजकल के समय में स्त्रियों के साथ बलात्कार जैसे संगीन अपराध काफी देखने में आ रहे हैं। इस कारण उन्हें ज्यादा से ज्यादा सुरक्षा की ज़रूरत है।

प्रश्न 6.
संसार की जनसंख्या के मुख्य तत्त्वों का वर्णन करें। पृथ्वी पर जनसंख्या के वितरण का वर्णन करो।
उत्तर-
मानवीय भूगोल के अध्ययन में मनुष्य का केन्द्रीय स्थान है। मनुष्य अपने प्राकृतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण से प्रभावित होता है और उसमें परिवर्तन करता है। पृथ्वी पर जनसंख्या के वितरण में लगातार परिवर्तन होता । चला आया है। इस समय जनसंख्या के वितरण में बहुत असमानता है। इस असमानता के प्रमुख कारण विश्वव्यापी हैं।
मुख्य तत्त्व (Main Factors)—

  1. सन् 1650 से 2000 तक संसार की जनसंख्या 50 करोड़ से बढ़ कर 700 करोड़ तक हो गई। इस प्रकार यह आठ गुना हो गई।
  2. वर्तमान में बढ़ाव की दर के साथ यह जनसंख्या सन् 2100 तक दोगुनी हो जाने की उम्मीद है।
  3. धरती पर लगभग 14.5 करोड़ वर्ग कि०मी० थल भाग में 700 करोड़ की जनसंख्या रहती है।
  4. संसार में जनसंख्या का औसत घनत्व 41 व्यक्ति प्रतिवर्ग कि०मी० है।
  5. संसार में सबसे ज्यादा आबादी एशिया महाद्वीप में 430 करोड़ है।
  6. संसार में सबसे अधिक आबादी चीन में लगभग 127 करोड़ है।
  7. संसार में सबसे अधिक आबादी घनत्व बांग्लादेश में 805 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० है।
  8. संसार में 90% आबादी थल के 10% भाग में केन्द्रित है।
  9. संसार की कुल जनसंख्या का 2 भाग 20°N से 40°N अक्षांश के बीच केन्द्रित है। कुल जनसंख्या का 4/5 भाग 20° से 60°N अक्षांश में निवास करता है।

जनसंख्या का वितरण (Distribution of Population)-पृथ्वी पर जनसंख्या का वितरण बड़ा असमान है। पृथ्वी पर थोड़े से भाग घने बसे हुए हैं जबकि अधिक भाग खाली पड़े हैं। विश्व की 50% जनसंख्या केवल 5% स्थल भाग पर निवास करती है। जबकि 50% स्थल भाग पर केवल 5% लोग रहते हैं। जनसंख्या के घनत्व के आधार पर पृथ्वी को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है—
1. अधिक घनत्व वाले प्रदेश (Areas of High Density)-इन क्षेत्रों में जनसंख्या का घनत्व 200 व्यक्ति प्रति वर्ग कि०मी० से अधिक है। इस अधिक घनत्व के दो आधार हैं—
(i) कृषि प्रधान देश-पूर्वी एशिया तथा दक्षिणी एशिया में।
(ii) औद्योगिक प्रदेश-पश्चिमी यूरोप तथा उत्तर पूर्वी अमेरिका में।

  1. दक्षिणी तथा पूर्वी एशिया-पूर्वी एशिया में चीन, जापान, फिलीपाइन द्वीप तथा ताइवान में घनी . जनसंख्या मिलती है। दक्षिणी एशिया में भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश में जनसंख्या का घनत्व अधिक है। इसके अतिरिक्त जाव द्वीप नील नदी घाटी में भी घनी जनसंख्या मिलती है। चीन में संसार की लगभग एक चौथाई जनसंख्या निवास करती है। ह्वांग हो, यंगसी तथा सिकियांग घाटी घनी जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। भारत में गंगा के मैदान तथा पूर्वी तटीय मैदान में जनसंख्या का अधिक महत्त्व है। जापान में क्वांटो मैदान (Kwanto Plain), बांग्लादेश में गंगा-ब्रह्मापुत्र डेल्टा, बर्मा में इरावदी डेल्टा, पाकिस्तान में सिन्धु घाटी अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्र हैं। बांग्लादेश में संसार का सबसे अधिक जनसंख्या घनत्व 16 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर में मिलते हैं।
  2. पश्चिमी यूरोप तथा उत्तरी-पूर्वी अमेरिका-पश्चिमी यूरोप में इंग्लिश चैनल से लेकर रूस से यूक्रेन क्षेत्र तक 50° उत्तरी अक्षांशों के साथ-साथ घनी जनसंख्या मिलती है। यूरोप में 50° अक्षांश को जनसंख्या की धुरी (Axis of Population) कहते हैं। इस क्षेत्र में इंग्लैंड, जर्मनी में रुहर घाटी, इटली में पो डेल्टा, फ्रांस में पेरिस बेसिन, रूस में मास्को-यूक्रेन क्षेत्र अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश हैं। उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग में अटलांटिक तट, सैट लारेंस घाटी तथा महान् झीलों के क्षेत्र में अधिक
    जनसंख्या घनत्व है। इन सब प्रदेशों में जनसंख्या का आधार उद्योग है।

अधिक घनत्व के कारण—

  1. निर्माण उद्योगों का अधिक होना।
  2. सम शीतोष्ण जलवायु।।
  3. समुद्री मार्गी तथा व्यापार का अधिक उन्नत होना।
  4. मिश्रित कृषि के कारण अधिक उत्पादन।
  5. खनिज क्षेत्रों में विशाल भण्डार।
    PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 2 मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन 14
  6. तटीय स्थिति।
  7. लोगों का उच्च जीवन स्तर।
  8. वैज्ञानिक तथा तकनीकी ज्ञान में अधिक वृद्धि।
  9. नगरीकरण के कारण बड़े-बड़े नगरों का विकास।

2. मध्यम घनत्व वाले प्रदेश (Areas of Moderate Density)-इन प्रदेशों में 25 से 200 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर घनत्व मिलता है। इस भाग में निम्नलिखित प्रदेश शामिल हैं। उत्तरी अमेरिका में प्रेयरीज़ का मध्य मैदान, अफ्रीका का पश्चिमी भाग, यूरोप में पूर्वी यूरोप तथा पूर्वी रूस, दक्षिणी अमेरिका में उत्तर-पूर्वी ब्राज़ील, मध्य चिली, मैक्सिको का पठार, एशिया में भारत का दक्षिणी पठार, पश्चिमी चीन तथा हिन्द चीन, पूर्वी ऑस्ट्रेलिया।

3. कम घनत्व वाले प्रदेश (Areas of Low Density)—इन प्रदेशों में जनसंख्या घनत्व 25 व्यक्ति प्रति वर्ग
किलोमीटर से कम है। लगभग 5% क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व केवल 2 से 3 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। यह लगभग निर्जन प्रदेश है। इस भाग में ऊँचे पर्वतीय तथा पठारी प्रदेश, शुष्क मरुस्थल, उष्ण-आर्द्र घने वन तथा टुण्ड्रा जलवायु के ठण्डे प्रदेश शामिल हैं। जैसे उच्च पर्वतीय भाग, मरुस्थल घने वन, टुण्ड्रा प्रदेश इत्यादि।
कम घनत्व के कारण—इन प्रदेशों में मानवीय जीवन के लिए बहुत कम सुविधाएँ प्राप्त हैं तथा लोग कठिनाइयों भरा जीवन व्यतीत करते हैं। इन प्रदेशों को सतत् कठिनाइयों के प्रदेश भी कहा जाता है।

  1. पर्वतीय भागों में समतल भूमि की कमी।
  2. पथरीली तथा रेतीली मिट्टी।
  3. ठण्डे प्रदेशों में कठोर शीत जलवायु
  4. पानी की कमी तथा छोटे उपज काल के कारण कृषि का अभाव।
  5. टुण्ड्रा प्रदेशों में स्थायी बर्फ।
  6. परिवहन के साधनों की कमी।
  7. घातक कीड़ों तथा बीमारियों के कारण कम जनसंख्या।
  8. खनिज पदार्थों तथा उद्योगों का अभाव।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 2 मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन

मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन PSEB 12th Class Geography Notes

  • पथ्वी पर बहत सारे प्राकृतिक स्रोत मिलते हैं। किसी देश के विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का होना अति । आवश्यक है। मनुष्य अपनी तकनीक अथवा हुनर का उपयोग करके प्राकृतिक स्रोतों का तेज गति के साथ उपयोग कर रहा है। इसलिए कह सकते हैं कि संसार का सबसे कीमती स्रोत मनुष्य है। किसी देश का मनुष्य उस देश । का भविष्य होता है। इसलिए जनसंख्या की वृद्धि दर, घनत्व इत्यादि के बारे में पढ़ना अति आवश्यक है।
  • जनसंख्या की दृष्टि से भारत दूसरा स्थान रखता है। साल 2011 के अंत तक संसार की जनसंख्या 700 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है। भारत दुनिया का सातवां बड़ा देश है और यह संसार के कुल क्षेत्र । का सिर्फ 2.4% भाग है। रूस, कैनेडा, यू०एस०ए०, ब्राज़ील और आस्ट्रेलिया जैसे देश हमारे देश से बहुत । बड़े देश हैं पर इनकी आबादी भारत के मुकाबले बहुत कम है।
  • जनसंख्या का घनत्व कई प्राकृतिक कारणों के कारण बढ़ता अथवा कम होता जाता है। जनसंख्या घनत्व किसी देश अथवा क्षेत्र की आबादी की औसत होती है। इसके घनत्व को जलवायु, यातायात अथवा संचार के स्रोत, धर्म, प्राकृतिक स्रोतों की बहुतायत इत्यादि कारक काफी हद तक प्रभावित करते हैं। जब आरम्भिक जनसंख्या की गिनती बढ़ती है तो उसको जनसंख्या की वृद्धि कहते हैं। भारत में प्रत्येक 10 सालों के बाद जनगणना होती है और 10 सालों बाद जो परिवर्तन आबादी में आता है उसे जनसंख्या में वृद्धि कहते हैं। जनसंख्या के परिवर्तन को मुख्य रूप में जन्म दर, मृत्यु दर, स्थान परिवर्तन इत्यादि तत्व प्रभावित करते हैं। स्थान परिवर्तन हर जगह पर प्रभाव डालते हैं। जिस जगह को लोग छोड़ कर चले गये उस पर भी, जहाँ पर जाकर लोगों ने रहना शुरू किया वहाँ पर भी प्रभाव पड़ता है। स्थान बदली के कई तरह के कारक हैं। मुख्य रूप में इन्हें दो हिस्सों प्रतिकर्ष कारक और अपकर्ष कारक के रूप में बाँटा जाता है। किसी देश की जनसंख्या में अलग-अलग आयु वर्ग के लोग रहते हैं। आयु के अनुसार से इन्हें वर्गों , में बाँटा जाता है जैसे कि (0-14) साल जो अपने माता-पिता पर निर्भर करते हैं, (60 साल) जो अपने बच्चों पर निर्भर करते हैं और (15-59) जो कमाते हैं। इस आयु वर्ग के अनुसार ही देश में आर्थिक स्तर को निर्धारित किया जाता है। किसी देश की जनसंख्या के अध्ययन में लिंग अनुपात और साक्षरता का बहुत । महत्त्व होता है। इस द्वारा देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक स्वरूप का पता लगाया जा सकता है।
  • कुल जनसंख्या-सन् 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की कुल जनसंख्या 121.02 करोड़ है, जो कि संसार की कुल जनसंख्या का 17.5% है।
  • चीन के बाद जनसंख्या के आधार पर भारत का दूसरा स्थान है।
  • जनसंख्या घनत्व-जनसंख्या घनत्व किसी देश की जनसंख्या और इलाके का अनुपात होता है। साधारणतया पर इसे व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।
    PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 2 मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन 15
  • भारत का जनसंख्या घनत्व-2011 के आंकड़ों के अनुसार भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है।
  • जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक-जनसंख्या के घनत्व को प्रभावित करने वाले कारक जलवायु, मिट्टी की किस्म, धरातल, जल, खनिज पदार्थ और प्राकृतिक स्रोत इत्यादि की उपलब्धि। इसके अतिरिक्त कई सामाजिक कारक जैसे रीति-रिवाज, सोच इत्यादि अति आवश्यक कारक हैं।
  • हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है।
  • जनसंख्या परिवर्तन के निर्णायक तत्व-जनसंख्या तबदीली के मुख्य निर्णायक तत्व हैं-जन्म दर, मृत्यु दर और प्रवास।
  • जन्म दर-किसी एक साल के दौरान जीवित जन्म अथवा मध्य सालों की जनसंख्या के अनुपात को जन्म दर कहते हैं।
    PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 2 मानवीय संसाधन-जनसंख्या और इसमें परिवर्तन 16
  • लिंगानुपात-लिंगानुपात का अर्थ है एक हजार पुरुषों के पीछे औरतों की गिनती।
  • एशिया की जनसंख्या संसार की सबसे अधिक जनसंख्या है।

PSEB 6th Class Home Science Practical चाय बनाना और परोसना

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Practical चाय बनाना और परोसना Notes.

PSEB 6th Class Home Science Practical चाय बनाना और परोसना

सामग्री—

  1. चाय की पत्ती — 3/4 छोटी चम्मच
  2. चीनी — 1 छोटी चम्मच
  3. दूध — 2-3 बड़े चम्मच
  4. पानी — 1 कप

विधि—पहले केतली में उबलता हुआ थोड़ा-सा पानी डालकर, केतली में चारों ओर हिलाकर, निकाल दें ताकि वह गर्म हो जाए। अब उसमें चाय की पत्ती डाल दें। ऊपर से उबलता हुआ पानी डालकर इसे पाँच मिनट ढक कर रख दें। इसे गर्म दूध और चीनी के साथ परोसें।

PSEB 6th Class Home Science Practical चाय बनाना और परोसना

नोट-

  1. जितने कप चाय बनानी हो उसी हिसाब से सामग्री की मात्रा लें।
  2. दूध, चाय और चीनी की मात्रा स्वादानुसार घटाई-बढ़ाई जा सकती है।
  3. चाय बनाकर देने के लिए प्याले में चीनी और केतली से चाय (गर्म पानी में पत्ती मिली हुई) डालें। प्याला थोड़ा खाली रखें और उसमें दूध मिलायें। चाय तैयार हो जायेगी। इसे बर्तन में डालकर गर्म-गर्म परोस दें।

कुल मात्रा—1 व्यक्ति के लिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

Punjab State Board PSEB 6th Class Physical Education Book Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Physical Education Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

PSEB 6th Class Physical Education Guide सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
सफ़ाई हमारे घर के लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
सफ़ाई (Cleanliness) हमारा शरीर अनोखी मशीन की तरह है। जैसे दूसरी मशीनों की सफ़ाई न की जाए तो वे खराब हो जाती है। इसी तरह शरीर की सफ़ाई की जानी भी ज़रूरी है। जैसे मोटरकार को चलाने के लिए पैट्रोल आदि की ज़रूरत पड़ती है, उसी तरह शरीर को चलाने के लिए अच्छी खुराक, पानी और हवा की ज़रूरत है। शारीरिक सफ़ाई, चोटों व बीमारी आदि से रक्षा करना मनुष्य की आदतों से सम्बन्धित है। अगर हम शरीर पर उचित ध्यान न दें, हमारे लिए. मानसिक, शारीरिक और आत्मिक उन्नति करना सम्भव नहीं होगा। गन्दगी ही हर तरह के रोगों का मूल कारण है। इसलिए यह जरूरी है कि शरीर के सारे अंगों की सफ़ाई की जाए। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे व्यक्तिगत सफ़ाई के साथ-साथ अपने घर तथा आस-पास की सफ़ाई की बहुत आवश्यकता होती है। सफ़ाई स्वास्थ्य की निशानी है। सफ़ाई के बिना स्वस्थ जीवन की कल्पना भी की नहीं जा सकती। व्यक्तिगत सफ़ाई तो स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है ही, परन्तु घर, स्कूल तथा आस-पास की सफ़ाई भी स्वास्थ्य ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक है। यदि हम अपने घर तथा आस-पास की सफ़ाई नहीं रखते तो कई प्रकार की बीमारियां फैल जाएंगी। बहुत-से लोग इन बीमारियों के शिकार हो जाएंगे। इससे हमारा देश तथा समाज कमज़ोर हो जाएगा। इसलिए देश तथा समाज की भलाई के लिए सफ़ाई आवश्यक है।

प्रश्न 2.
घर की सफ़ाई किस तरह रखी जा सकती है ?
उत्तर-
घर की सफ़ाई के ढंग (Methods of Cleanliness of a House)हमें अपने घर की सफाई रखने के लिए। निम्नलिखित ढंग अपनाने चाहिएं –
PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल 1

  • फलों, सब्जियों के छिलके और कूड़ाकर्कट ढक्कनदार ढोल में डालना चाहिए। इस ढोल को प्रतिदिन खाली करने की व्यवस्था होनी चाहिए। ढोल के कूड़े-कर्कट को किसी गड्ढे में दबा देना चाहिए। इस प्रकार यह खाद बन जाएगा।
  • घर की रसोई, स्नान घर और पाखाने के पानी के निकास का उचित प्रबन्ध करना चाहिए।
  • पशुओं के गोबर एवं मल-मूत्र को बाहर दूर किसी गड्ढे में एकत्र करते रहना चाहिए। इस प्रकार कुछ दिनों के पश्चात् अच्छी खाद बन जाएगी।
  • घर के सभी सदस्यों को सफ़ाई के नियमों का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 3.
घर के आस-पास की सफ़ाई में कौन-कौन सी बातें ध्यान देने योग्य हैं ?
उत्तर-
घर के आस-पास की सफ़ाई (Cleanliness of Surrounding of a House)-घर की सफाई के साथ-साथ इसके आस-पास की सफाई की भी बहुत आवश्यकता है। यदि घर साफ़-सुथरा है, परन्तु इसके इर्द-गिर्द गन्दगी के ढेर लगे हुए हैं तो इसका घर वालों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए घर के आस-पास की सफ़ाई की ओर भी विशेष ध्यान देना चाहिए
घर के आस-पास की सफ़ाई के लिए नीचे लिखी बातों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है –

  1. घर के बाहर की नालियां और सड़कें खुली तथा साफ़-सुथरी होनी चाहिएं।
  2. घर के बाहर की नालियां गन्दी नहीं होनी चाहिए।
  3. घर के बाहर गलियों में तथा सड़कों पर पशु नहीं बांधने चाहिए।
  4. घर से बाहर गलियों तथा सड़कों पर कूड़ा-कर्कट नहीं फेंकना चाहिए। इसे या तो दबा देना चाहिए या जला देना चाहिए।
  5. घरों के आगे पानी खड़ा होने नहीं देना चाहिए। घरों के निकट गड्ढों में खड़े हुए पानी में डी० डी० टी० या मिट्टी का तेल डाल देना चाहिए।
  6. गलियों में तथा सड़कों पर चलते समय जगह-जगह नहीं थूकना चाहिए।
  7. इधर-उधर खड़े होकर पेशाब नहीं करना चाहिए। पेशाब केवल पेशाबखानों में ही करना चाहिए।

प्रश्न 4.
स्कूल की सफ़ाई रखने में विद्यार्थियों की क्या भूमिका हो सकती है ?
उत्तर-
स्कूल की सफ़ाई (Cleanliness of aSchool)-स्कूल विद्या का.मन्दिर है। व्यक्तिगत सफ़ाई के साथ-साथ स्कूल की सफ़ाई भी अवश्य रखनी चाहिए। स्कूल एक ऐसा स्थान है जहां बच्चे दिन का काफ़ी समय व्यतीत करते हैं। यदि स्कूल का वातावरण साफ़ और शुद्ध नहीं होगा तो बच्चों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। वे कई प्रकार की बीमारियों का शिकार हो जाएंगे। इसलिए स्कूल की सफ़ाई रखना बहुत ही आवश्यक है।

स्कूल को साफ़-सुथरा रखने के लिए निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए –

  • स्कूल के आंगन में कागज़ आदि के टुकड़े नहीं फेंकने चाहिए। इन्हें कूड़ेदानों में फेंकना चाहिए।
  • स्कूल के सभी कमरों, डैस्कों तथा बैंचों को प्रतिदिन अच्छी तरह साफ़ करना चाहिए।
  • स्कूल में घूमते हुए इधर-उधर थूकना नहीं चाहिए।
  • स्कूल के पाखानों तथा मूत्रालयों (पेशाब-घरों) की सफ़ाई की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। इन्हें प्रतिदिन फिनाइल के साथ धोना चाहिए।
  • स्कूल में पानी पीने वाले स्थान साफ़-सुथरे रहने चाहिएं।
  • दोपहर का खाना खाने के बाद बच्चों को बचा-खुचा खाना, कागज़ आदि स्कूल के भिन्न-भिन्न स्थानों पर पड़े कूड़ेदानों में फेंकना चाहिए।
  • स्कूल के खेल के मैदानों, घास के मैदानों तथा बगीचों को कूड़ा-कर्कट तथा कंकर फेंक कर गन्दा नहीं करना चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 5.
घर की वस्तुओं की सम्भाल किस तरह की जा सकती है ?
उत्तर-
घर की सम्भाल हमें आस-पड़ोस और स्कूल की सफाई के साथ-साथ इन स्थानों पर प्रयोग की जाने वाली वस्तुओं को सम्भाल अवश्य करनी चाहिए। – घर का सारा सामान अपने निश्चित स्थान पर रखना चाहिए। ताकि ढूंढते समय कोई मुश्किल न आए। अपने निश्चित स्थान पर रखा हुआ सामान ढूंढ़ने में आसानी होती है और टूटने से बचा रहता है।

घर में मौसम अनुसार सर्दी में गर्मियों के कपड़े और गर्मी में सर्दियों के कपड़ों को सम्भाल कर रखना चाहिए।
घर में बने लकड़ी के फर्नीचर, खिड़कियां, दरवाज़े आदि को दीमक से बचाने के लिए समय पर दीमक नाशक दवाई का छिड़काव करना अच्छा होता है। लोहे को जंग लगने वाला सामान को समय-समय पेंट करवा लेना चाहिए। घर में इस्तेमाल करने वाले कांच के सामान चाकू, कैंची, पेचकस, सूई, नेलकटर, ब्लेड और कनक को बचाने और दूसरी दवाइयां फिनाइल और तेजाब की बोतल आदि सुरक्षा वाली जगह पर रखने चाहिए जिसके साथ यह चीजें छोटे बच्चों की पहुंच से दूर रहे।

प्रश्न 6.
स्कूल के सामान की सम्भाल के लिए बच्चों को कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
स्कूल और स्कूल के सामान की सम्भाल-हरेक विद्यार्थी को स्कूल और उसके सामान का ध्यान रखना चाहिए। विद्यार्थियों को स्कूल की दीवार पर पैन या पैंसिल के साथ लाइनें नहीं मारनी चाहिए। क्लास में रखे सामान जैसे-फर्नीचर आदि को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। क्लास में लगे पंखे, ट्यूब लाईट आदि को नहीं तोड़ना चाहिए। क्लास के बाहर जाने के समय बिजली के बटनों को बंद कर देना चाहिए। पानी पीने के पश्चात् विद्यार्थियों को नल को बंद कर देना चाहिए। स्कूल में लगे हुए बगीचे में से पौधे और फूल नहीं तोड़ने चाहिए। बल्कि उनके बचाव रखने से स्कूल की सुंदरता में बढ़ोतरी करनी चाहिए। स्कूल लाईब्रेरी की किताबें अच्छे ढंग से अपने निश्चित स्थान पर रखनी चाहिए। लाइब्रेरी में बैठकर पढ़ते समय शांति बनाये रखनी चाहिए। इसके इलावा खेल का सामान एन०सी०सी० बैंड, स्कूल की अलग-अलग प्रयोगशाला के सामान आदि को भी उसके स्थान पर रखना चाहिए।

Physical Education Guide for Class 6 PSEB सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत सफ़ाई के साथ-साथ और किस वस्तु की सफ़ाई ज़रूरी है ?
उत्तर-
आस-पड़ोस की सफ़ाई।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 2.
घर कैसे स्थान पर बनवाना चाहिए ?
उत्तर-
पक्के और ऊंचे स्थान पर।

प्रश्न 3.
गन्दे घर में रहने से क्या होता है ?
उत्तर-
कई तरह के रोग लग जाते हैं।

प्रश्न 4.
घर बनाते समय उस की नींव कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर-
चौड़ी, गहरी और मज़बूत।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 5.
कमरों में किस वस्तु का प्रबंन्ध होना चाहिए ?
उत्तर-
रोशनी और हवा का।

प्रश्न 6.
गन्दे, बिना रोशनी और सींकरे घरों में रहने से क्या होता है ?
उत्तर-
मनुष्य का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता।

प्रश्न 7.
घर किन-किन से दूर होना चाहिए ?
उत्तर-
बाज़ार और रेलवे स्टेशन से।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 8.
घर के कूड़ा-कर्कट को किसमें फेंकना चाहिए ?
उत्तर-
ढक्कनदार ढोल में।

प्रश्न 9.
घर में गन्दे पानी के निकास के लिए किसकी व्यवस्था होनी चाहिए ?
उत्तर-
ढकी हुई नालियों की।

प्रश्न 10.
घर में कूड़े-कर्कट को कैसे ठिकाने लगाना चाहिए ?
उत्तर-
गड्ढे में।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 11.
पशुओं को किस स्थान पर नहीं बांधना चाहिए ?
उत्तर-
गलियों में।

प्रश्न 12.
पानी को शुद्ध करने के लिए इसमें क्या मिलाना चाहिए ?
उत्तर-
लाल दवाई (पोटाशियम परमैगनेट)।

प्रश्न 13.
पाखानों और मूत्रालयों को किस चीज़ से साफ करना चाहिए ?
उत्तर-
फीनाइल से।

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प्रश्न 14.
घरों के पास पानी से भरे गड्ढों में क्या डालना चाहिए ?
उत्तर-
डी० डी० टी०।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
घर के आसपास की सफ़ाई के लिए किन पांच बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर-
घर के आसपास की सफ़ाई के लिए निम्नलिखित बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए –

  • गलियों और सड़कों में कूड़ा-कर्कट नहीं फेंकना चाहिए।
  • घर के बाहर गलियों में पशु नहीं बांधने चाहिएं।
  • घर के सामने पानी खड़ा नहीं होने देना चाहिए।
  • घरों का कूड़ा-कर्कट गली में रखे ढक्कनदार ढोल में डालना चाहिए।
  • स्थान-स्थान पर थूकना नहीं चाहिए।

प्रश्न 2.
घरों की सफ़ाई के लिए पांच बातें लिखो।
उत्तर-
घर की सफाई के लिए विशेष बातें इस प्रकार हैं –

  • घर के कूड़े-कर्कट और गन्दे पानी के निकास का उचित प्रबन्ध करना चाहिए।
  • घर के सभी कमरों को प्रतिदिन साफ़ करना चाहिए।
  • घर के कूड़े-कर्कट को ढक्कनदार ढोल में डालना चाहिए।
  • मक्खियों और मच्छरों से बचाव के लिए घर में फलीट अथवा फिनाइल का छिड़काव करना चाहिए।
  • घर की प्रत्येक वस्तु को उचित स्थान पर रखना चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 3.
स्कूल की सफ़ाई रखने के लिए कोई पांच बातें बताएं।
उत्तर-
स्कूल की सफाई रखने के लिए पांच बातें –

  • स्कूल के बैंचों और डैस्कों को साफ़ रखना चाहिए।
  • स्कूल के आंगन को कूड़ा-कर्कट फेंक कर गन्दा नहीं करना चाहिए।
  • लिखते समय स्याही फ़र्श पर नहीं गिरानी चाहिए।
  • स्कूल के कमरों की प्रतिदिन सफ़ाई करनी चाहिए।
  • पाखानों की सफ़ाई फिनाइल डाल कर करनी चाहिए।

प्रश्न 4.
घर में गन्दगी होने के कारण बताएं।
उत्तर-
घर में गन्दगी होने के कारण –

  • फलों, सब्जियों के छिलके और घर का कूड़ा-कर्कट आदि के रखने के लिए उचित स्थान का न होना।
  • रसोई, पाखाने और स्नानागृह के पानी के निकास का उचित प्रबन्ध न होना।
  • पशुओं के गोबर एवं मल-मूत्र का उचित प्रबन्ध न होना।
  • घर में रहने वालों को सफ़ाई के नियमों का उचित ज्ञान न होना।
  • छोटे घर में अधिक जीवों का रहना।
  • घर में अधिक जीवों के रहने पर घर की सफाई का उचित प्रबन्ध न करना।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 5.
घर में अधिक व्यक्तियों के होने से घर की सफ़ाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है। वर्णन करो।
उत्तर-
घर में अधिक व्यक्तियों के होने से घर की सफ़ाई पर बुरा प्रभाव पड़ता है। यदि घर में अधिक व्यक्ति होंगे तो घर की सफ़ाई ठीक प्रकार से नहीं रखी जा सकती। बच्चे घर की वस्तुओं को इधर-उधर बिखेर देते हैं। वे कागज़ के टुकड़े आदि घर में इधर-उधर फेंक देते हैं। एक व्यक्ति घर में झाड़ देता रहेगा और बच्चे घर में गन्दगी फैलाते रहेंगे। इतना ही नहीं, एक घर में अधिक व्यक्तियों के आते-जाते रहने से बाहर से पांवों से मिट्टी लग कर घर में आ जाएगी। फलत: घर का फ़र्श गन्दा हो जाएगा। इस प्रकार हम देखते हैं कि घर में अधिक व्यक्तियों के रहने से सफ़ाई अच्छी तरह नहीं रह सकेगी।

प्रश्न 6.
शरीर की सफाई के नियम बताओ।
उत्तर-
शरीर की सफ़ाई के मुख्य नियम निम्नलिखित हैं-

  • हमें प्रतिदिन ताज़े और साफ़ पानी से नहाना चाहिए।
  • नहाने के बाद शरीर को साफ़ तौलिये से अच्छी तरह पोंछना चाहिए।
  • बालों को अच्छी तरह सुखा करके कंघी करनी चाहिए।
  • नहाने के बाद मौसम के अनुसार साफ़-सुथरे कपड़े पहनने चाहिएं।
  • बालों की सफाई की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। गर्मियों में सप्ताह में कमसे-कम दो बार और सर्दियों में एक बार किसी बढ़िया साबुन, शैंपू, रीठे, आंवले, दही या नींबू से धोना चाहिए।
  • आंखों की सफाई के लिए आंखों पर ठण्डे पानी के छींटे मारने चाहिएं।
  • दांतों की सफाई के लिए प्रतिदिन सवेरे उठने के बाद और रात को सोने से पहले ब्रुश करना चाहिए। इसके अतिरिक्त हर बार खाना खाने के बाद कुल्ला करना चाहिए।
  • शरीर के अन्य बाहरी अंगों (हाथ, नाक, कान, पैर आदि) की सफ़ाई की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

प्रश्न 7.
घर में गन्दगी फैलने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
घर में गन्दगी होने के कारण (Causes of Dirtness)

  • फलों, सब्जियों, पत्तों और घर के कूड़े-कर्कट के लिए उचित स्थान न होना।
  • रसोई, स्नान घर तथा पाखाने के गन्दे पानी के निकास की ठीक व्यवस्था न होना।
  • गोबर और मल-मूत्र आदि के लिए उचित व्यवस्था न होना।
  • घर वालों को सफ़ाई के नियमों का ज्ञान न होना।
  • छोटे घरों में अधिक सदस्यों का रहना।
  • घर में अधिक सदस्यों के कारण घर की सफ़ाई पर बुरा प्रभाव पड़ना।

प्रश्न 8.
एक अच्छा घर बनाते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
अच्छा घर बनाने के लिए आवश्यक बातें-एक अच्छा घर बनाने के लिए हमें निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए
(क) घर की स्थिति (Situation of a House) –

  • घर खुश्क, सख्त तथा ऊंची भूमि पर बनाना चाहिए।
  • घर मण्डी, कारखाने, रेलवे स्टेशन तथा श्मशान घाट से दूर बनाना चाहिए।
  • घर तक पहुंचने का रास्ता साफ़, पक्का तथा खुला होना चाहिए।
  • घर में रोशनी तथा हवा काफ़ी मात्रा में आनी चाहिए। इसके लिए खिड़कियों और रोशनदानों की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  • पड़ोसी अच्छे तथा मेल-मिलाप वाले होने चाहिएं। अच्छे पड़ोसी ही सुखदुःख के भागीदार होते हैं।

(ख) घर की बनावट (Construction of a House) –

  • घर की नींव गहरी, चौड़ी और दृढ़ होनी चाहिए।
  • घर भूमि या सड़क से काफ़ी ऊंचाई पर होना चाहिए ताकि वर्षा का पानी अन्दर न आ सके।
  • घर का फर्श पक्का एवं दृढ़ होना चाहिए। यह न तो अधिक खुरदरा हो और न ही अधिक फिसलने वाला हो। फ़र्श की ढलान भी उचित होनी चाहिए।
  • घर के दरवाजों और खिड़कियों पर जालियां लगवानी चाहिएं ताकि मक्खीमच्छर अन्दर न आ सकें।
  • मकान पक्के बनवाने चाहिएं। कच्चे घरों में सफ़ाई ठीक ढंग से नहीं हो सकती।
  • पाखाना, स्नान घर और रसोई घर एक-दूसरे कमरों से दूर बनाने चाहिएं।
  • रसोई, स्नान घर और पाखाना बनाते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। इनमें प्रकाश, हवा और पानी की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए।
  • गन्दे पानी के निकास का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। रसोई में धुआं बाहर निकालने के लिए चिमनी आदि का प्रबन्ध होना चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 2 सफ़ाई तथा सांभ-सम्भाल

निम्नलिखित वाक्यों में दिए गए खाली स्थानों को कोष्ठक में दिए गए उचित शब्द चुन कर भरो-

  1. हमें घर ……………. के निकट नहीं बनाना चाहिए। (स्कूल, रेलवे स्टेशन)
  2. घर …………… भूमि पर बनाना चाहिए।(सख्त और ऊंची, नरम और नीची)
  3. पानी को साफ़ करने के लिए ………….. का प्रयोग करना चाहिए। (नीली दवाई, लाल दवाई)
  4. पाखानों और मूत्रालय (पेशाबखानों) को प्रतिदिन …………. के साथ धोना चाहिए। (डी० डी० टी०, फिनाइल)
  5. हमें अपने पशुओं को ………….. में बांधना चाहिए। (गलियों, घरों)

उत्तर-

  1. रेलवे स्टेशन
  2. सख्त और ऊंची
  3. लाल दवाई
  4. फिनाइल
  5. घरों।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Geography Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य

PSEB 11th Class Geography Guide भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक या दो शब्दों में दीजिए :

प्रश्न (क)
फ्रांस में किस राज्य में पहले आरटेजीयन कुआँ लगाया गया ?
उत्तर-
अरटोइस (Artois) राज्य में।

प्रश्न (ख)
कुल्लू घाटी के गर्म चश्मों के नाम बताएँ।
उत्तर-
मनीकरण, गर्म (तत्ता) पानी, ज्वालामुखी।

प्रश्न (ग)
किस देश में पुराना गीज़र (Old Faithful Geyser) स्थित है ?
उत्तर-
संयुक्त राज्य अमेरिका में Yellow Stone Park में।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न (घ)
ठंडे पानी के चश्मे भारत में किस स्थान पर मिलते हैं ?
उत्तर-
हिमालय, पश्चिमी घाट और छोटा नागपुर पहाड़ियों में।

प्रश्न (ङ)
2014 में पंजाब की मानसून वर्षा की मात्रा क्या थी ?
उत्तर-
600 मि०मी० की वार्षिक वर्षा।

2. निम्नलिखित के उत्तर विस्तार सहित दो :

प्रश्न 1.
भू-गर्भ जल अनावृत्तिकरण का साधन है, कैसे ? विस्तार सहित लिखें।
उत्तर
भू-गर्भ जल का अपरदन कार्य (Erosional Work of Underground Water)-
भू-गर्भ जल द्वारा पर्वतीय ढलानों पर भू-स्खलन (Landslide) होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप चट्टानें टूटती हैं। भूगर्भ जल का अपरदन कार्य मुख्य रूप में चूने वाले क्षेत्रों में होता है। इसका कारण यह है कि वर्षा जलवायु से कार्बनडाइऑक्साइड गैस लेकर चूने की चट्टानों को घुलनशील (Soluble) बना देती है, जिससे चूने के प्रदेशों में अलग-अलग प्रकार की भू-आकृतियों की रचना होती है। चूने के प्रदेशों को काट प्रदेश (Karst Region) कहते हैं। यह नाम यूगोस्लाविया देश के ऐडरीआटिक समुद्र (Adriatic sea) के किनारे पर स्थित कार्ट प्रदेश के नाम पर रखा है। कार्ट प्रदेश में उत्पन्न भू-आकृतियों को कार्ट धरातल (Karst Topography) कहते हैं। ऐसे प्रदेश संयुक्त राज्य अमेरिका में फ्लोरिडा, मैक्सिको और भारत में खासी और जबलपुर हैं।

अपरदन (Erosion)-भूमि के भीतरी पानी के कारण हुए भू-स्खलन द्वारा अपरदन का काम होता है। जब झुके हुए धरातल की भूमि पानी में संतृप्त हो जाती है, तो ऊँचे भागों से नीचे सरकने लगती है। इसे भू-स्खलन (Landslide) कहते हैं। पहाड़ी भागों में जब हिम पिघलती है, तो उस पानी के कारण चट्टानी भाग सरक के नीचे गिरते हैं। इन्हें हिमस्खलन (Avalanche) कहते हैं। इनसे पहाड़ी प्रदेशों में मार्ग बंद हो जाते हैं और बहुत नुकसान होता है।

अपरदन के रूप (Kinds of Erosion)-भूमि के भीतर के पानी द्वारा अपरदन के कई रूप हैं-

  1. घुलने की क्रिया (Solution)
  2. पानी दबाव क्रिया (Hydraulic action)
  3. अपघर्षण (Abrasion)

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प्रश्न 2.
भू-गर्भ जल का जमा करने का कार्य क्या है और इससे कौन-सी रूप-रेखाएँ अस्तित्व में आती हैं ? चित्र बनाकर उत्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
भू-गर्भ जल का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of Underground Water)-

भू-गर्भ जल अपनी घुलनशक्ति द्वारा चूने को प्रभावित करता है। इस जल में जब चूने की मात्रा अधिक हो जाती है, तो उसकी परिवहन शक्ति नष्ट हो जाती है, फलस्वरूप चूने का निक्षेप होना आरंभ हो जाता है। भू-पटल की भीतरी उष्णता के कारण जल का वाष्पीकरण हो जाता है, जिसके कारण चूना बाकी रह जाता है।

भू-गर्भ जल निक्षेपण द्वारा भू-आकृतियों की उत्पत्ति (Landforms Produced by Deposition of Underground Water)-
भू-गर्भ जल द्वारा किए गए निक्षेपण से नीचे लिखी भू-आकृतियाँ अस्तित्व में आती हैं-

1. स्टैलक्टाइट (Stalactite)-चूने के प्रदेशों में भूमिगत गुफाओं की छतों से चूना मिले जल की बूंदें टपकती रहती हैं। वाष्पीकरण के कारण इनका जल सूख जाता है, परंतु चूना छतों के साथ लटकता रहता है। इस चूने में अनेक बँदें आकर मिलती रहती हैं। इस क्रिया के निरंतर होते रहने से कुछ समय बाद छत से लटकते हुए नुकीले चूने के स्तंभ बन जाते हैं। इन्हें स्टैलक्टाइट कहते हैं। ये स्तंभ छत की ओर से पतले होते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य 1

2. स्टैलगमाइट (Stalagmite)-चूना प्रदेशों में भूमिगत गुफाओं की छत से चूना मिला हुआ पानी तल पर
भी टपकता रहता है। जल के वाष्पीकरण के बाद गुफाओं के तल से ऊपर की ओर चूने के स्तंभ बन जाते हैं। इन्हें स्टैलगमाइट कहते हैं। ये स्तंभ तल की ओर से मोटे और ऊपर की ओर से पतले होते जाते हैं। कई बार स्टैलक्टाइट और स्टैलगमाइट मिलकर एक पूर्ण स्तंभ का रूप धारण कर लेते हैं। इन्हें गुफ़ा-स्तंभ (Cave Pillars) का नाम दिया जाता है।

3. निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करो :

निम्नलिखित में अंतर स्पष्ट करें-
(i) लैपिज़ – डोलाइन
(ii) स्टैलक्टाइट – स्टैलगमाइट
(iii) युवाला – पोनार
(iv) साधारण कुआँ -आरटेजीयन कुआँ
(v) गीज़र – चश्मे।
उत्तर-
(i) लैपिज़ (Lapies)- चूने के प्रदेश में घुलनशील क्रिया से जोड़ चौड़े हो जाते हैं और लंबवर्ती दीवारें बन जाती हैं। इन्हें Karren भी कहते हैं।
डोलाइन (Doline)- जब जल के सुराख बहुत चौड़े हो जाते हैं, तो इन्हें डोलाइन कहते हैं। ये भूमि के नीचे धंस जाने के कारण बनते हैं।

(ii) स्टैलक्टाइट (Stalactite)-

  1. कार्ट प्रदेशों में गुफ़ाओं की छत से लटकते हुए चूने के निक्षेप से बने स्तंभों को स्टैलक्टाइट कहते हैं।
  2. ये पतले और नुकीले स्तंभ होते हैं।
  3. ये चूने से घुले पानी की टपकती बूंदों से बनते हैं।

स्टैलगमाइट (Stalegmite)-

  1. कार्ट प्रदेशों में गुफाओं के धरातल से ऊपर उठे हुए चूने के निक्षेप से बने स्तंभों को स्टैलगमाइट कहते हैं।
  2. ये मोटे और बेलनाकार स्तंभ होते हैं।
  3. ये चूने से घुले पानी के फ़र्श पर बने निक्षेप से बनते हैं।

(iii) यूवाला (Uvala)- कार्ट प्रदेश में सुरंग की छत नष्ट होने से कई कुंड आपस में मिल जाते हैं। इन्हें यूवाला कहते हैं।
पोनार (Ponar)- पोनार का अर्थ है-सुरंग। यह जल-कुंड को गुफ़ा के साथ मिलाती है। यह लंबवत् दिशा में होती है।

(iv) साधारण कुआँ (Ordinary Well)-

  1. भूतल पर खोदे गए किसी सुराख को कुआँ कहते हैं जिसमें से किसी शक्ति का प्रयोग कर पानी बाहर निकाला जाता है।
  2. इसे स्थायी भू-जल स्तर पानी प्रदान करता है।
  3. इसमें किसी शक्ति का प्रयोग करके पानी निकालना पड़ता है।
  4. भारत के उत्तरी मैदान में सबसे अधिक कुएँ मिलते हैं।

आरटेजीयन कुआँ (Artesian Well)-

  1. जब भूमिगत जल एक सुराख से अपने-आप लगातार बाहर निकलता रहता है, तो उसे आरटेजीयन कुआँ कहते हैं।
  2. इसमें एक अप्रवेशी परत में पानी का भंडार होता है।
  3. इसमें एक सुराख में से पानी दबाव-शक्ति से बाहर निकलता है।
  4. ऑस्ट्रेलिया के क्वीनज़लैंड प्रदेश में सबसे अधिक आरटेज़ीयन कुएँ मिलते हैं।

(v) गीज़र (Geysers)-

  1. फव्वारे के समान उछलकर अपने-आप निकलने वाले गर्म पानी के चश्मे को गीज़र कहते हैं।
  2. गीज़र रुक-रुककर एक निश्चित समय के अंतर पर बाहर निकलता है।
  3. भाप के साथ उबलता हुआ पानी एक प्रकार की पाइप से बाहर निकलता है।
  4. यू०एस०ए० में ओल्ड फेथफुल प्रसिद्ध गीज़र है।

चश्मे (Springs)-

  1. जब भूमि का भीतरी पानी अपने-आप एक धारा के रूप में बाहर निकलता है, तो उसे गर्म पानी का चश्मा कहते हैं।
  2. यह जल लगातार बहता रहता है।
  3. यह धरातल की ढलान के अनुसार किसी प्राकृतिक सुराख से बाहर निकलता है।
  4. हिमाचल प्रदेश में मनीकरण में गर्म पानी के चश्मे हैं।

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Geography Guide for Class 11 PSEB भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भू-गर्भ जल या भूमिगत जल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जो जल मुसामदार चट्टानों के नीचे चला जाता है।

प्रश्न 2.
भू-गर्भ जल का कार्य किन चट्टानों पर अधिक होता है ?
उत्तर-
चूना पत्थर, चॉक, डोलोमाइट।

प्रश्न 3.
जल के प्रयोग के कोई दो कार्य बताएँ।
उत्तर-
कृषि, घरेलू ज़रूरतें।

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प्रश्न 4.
गर्म जल के चश्मे का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
मनीकरण।

प्रश्न 5.
गीज़र क्या है ?
उत्तर-
जब पानी भाप के फव्वारे के समान उछलता है।

प्रश्न 6.
भारत में एक ताप-ऊर्जा के प्लांट का नाम बताएँ।
उत्तर-
मनीकरण (हिमाचल प्रदेश)।

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प्रश्न 7.
Aonifer का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जल प्रदान करना।

प्रश्न 8.
सबसे अधिक आरटेजीयन कुएँ कहाँ हैं ?
उत्तर-
ऑस्ट्रेलिया में Great Artesian Basin.

प्रश्न 9.
भारत में गुफाओं के दो क्षेत्र बताएँ।
उत्तर-
छत्तीसगढ़ और चेरापूंजी।

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प्रश्न 10.
पंजाब में कितने प्रतिशत भाग में भूमिगत जल से सिंचाई होती है ?
उत्तर-
73%.

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
भू-गर्भ जल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
धरती के ठोस तल के नीचे चट्टानों और दरारों में मिलने वाले पानी को भू-गर्भ या भूमिगत जल कहते हैं।

प्रश्न 2.
भू-गर्भ जल के दो मुख्य स्रोत बताएँ।
उत्तर-

  • आकाशीय जल
  • मैगमा से प्राप्त जल
  • खनिज पदार्थों से प्राप्त जल
  • हिम के पिघलने से प्राप्त जल।

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प्रश्न 3.
जल-चक्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
समुद्र, वायुमंडल और स्थल पर पानी के चक्र में घूमने की क्रिया को जल-चक्र कहते हैं।

प्रश्न 4.
पारगामी और अपारगामी चट्टानों में क्या अंतर है ?
उत्तर-
जिन चट्टानों में पानी प्रवेश कर जाता है, उन्हें पारगामी चट्टानें कहते हैं। जिन चट्टानों में पानी प्रवेश नहीं कर सकता, उन्हें अपारगामी चट्टानें कहते हैं।

प्रश्न 5.
भू-जल स्तर किसे कहते हैं ?
उत्तर-
भूमिगत जल की ऊपरी परत को भू-जल स्तर कहते हैं।

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प्रश्न 6.
भू-जल-स्तर किन तत्त्वों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-

  • चट्टानों की पारगमता
  • वर्षा की मात्रा
  • चट्टानों की बनावट।

प्रश्न 7.
आरटेज़ीयन कुआँ क्या होता है ?
उत्तर-
यह एक विशेष प्रकार का कुआँ होता है, जिसमें पानी एक सुराख (Bore) के द्वारा अपने आप लगातार निकलता रहता है।

प्रश्न 8.
ग्रेट आरटेज़ीयन बेसिन कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी क्षेत्र में।

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प्रश्न 9.
गीज़र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
फव्वारे के समान उछलकर अपने आप निकलने वाले गर्म पानी के चश्मे को गीज़र कहते हैं।

प्रश्न 10.
कार्ट प्रदेश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
चूने के पत्थर की चट्टानों से बने प्रदेश को कार्ट प्रदेश कहते हैं।

प्रश्न 11.
भू-गर्भ जल के अपरदन की क्रियाएँ बताएँ।
उत्तर-

  • घुलन क्रिया
  • अपघर्षण
  • जल-दबाव क्रिया।

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प्रश्न 12.
विश्व में सबसे प्रसिद्ध गीज़र कहाँ है ?
उत्तर-
संयुक्त राज्य अमेरिका में Old faithful गीज़र।

प्रश्न 13.
लैपीज़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कार्ट क्षेत्रों में समानांतर नुकीली पहाड़ियों को लैपीज़ कहते हैं।

प्रश्न 14.
डोलाइन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वे चौड़े सुराख, जिनमें से नदियाँ नीचे चली जाती हैं, डोलाइन कहते हैं।

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प्रश्न 15.
भूमिगत गुफाएँ कैसे बनती हैं ?
उत्तर-
चूने के पत्थर की चट्टानों के घुल जाने से गुफाएँ बन जाती हैं।

प्रश्न 16.
स्टैलक्टाइट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कार्ट प्रदेशों में गुफ़ा की छत से लटकते, पतले, नुकीले चूने के स्तंभों को स्टैलक्टाइट कहते हैं।

प्रश्न 17.
स्टैलगमाइट किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कार्ट क्षेत्रों में गुफा के फ़र्श से ऊपर की ओर जाते मोटे और बेलनाकार स्तंभों को स्टैलगमाइट कहते हैं।

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लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
जल-चक्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जल-चक्र (Hydrologic Cycle)-समुद्र, वायुमंडल और स्थल पर पानी के चक्र में घूमने की क्रिया को जल-चक्र (Hydrologic Cycle) कहते हैं।

समुद्र का पानी वाष्प बनकर स्थल पर वर्षा का साधन बनता है। वर्षा के पानी का कुछ भाग वाष्प बनकर उड़ जाता है। कुछ भाग नदियों के रूप में बह (Run Off) जाता है

और कुछ भाग चट्टानों और दरारों में से होकर धरती के नीचे चला जाता है। इस प्रकार यह पानी नदियों, भूमिगत जल आदि साधनों द्वारा अंत में समुद्र में पहुँचता है। पानी का यह चक्र सदा चलता रहता है।

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प्रश्न 2.
भू-जल स्तर की स्थिति किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
भू-जल-स्तर की स्थिति (Position of Water Table)-अलग-अलग स्थानों पर जल स्तर की ऊँचाई भिन्न होती है।

  • नदियों और झीलों के किनारे पर जल-स्तर ऊँचा होता है।
  • मैदानों में जल-स्तर ऊँचा होता है।
  • मरुस्थलों में कम वर्षा के कारण, जल-स्तर सैंकड़ों मीटर नीचे होता है।
  • जल-स्तर वर्षा ऋतु में ऊँचा और शुष्क ऋतु में नीचे हो जाता है।
  • अधिक नमी वाले प्रदेशों में जल-स्तर ऊँचा होता है।

इस प्रकार भू-जल-स्तर की स्थिति नीचे लिखे तत्त्वों पर निर्भर करती है-

  1. चट्टानों की पारगमता
  2. वर्षा की मात्रा
  3. चट्टानों की मुसामदार रचना
  4. चट्टानों की बनावट।

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प्रश्न 3.
भूमि जल-स्तर से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भूमि जल स्तर अथवा संतृप्त तल (Water Table or Saturation Level)-भूमिगत जल के ऊपरी स्तर को भूमि जल-स्तर कहा जाता है। इसके नीचे चट्टानें जल-तृप्त रहती हैं। वर्षा ऋतु में भूमि जल-स्तर ऊँचा और शुष्क ऋतु में नीचे चला जाता है। भू-गर्भ भिन्नताओं और चट्टानों की पारगमता में परिवर्तन के कारण किसी भी क्षेत्र में अलग-अलग जल-स्तर पाए जाते हैं। एक स्थान पर पारगामी चट्टानों के नीचे यदि अपारगामी चट्टानें हों, तो जल का नीचे रिसना रुक जाता है और वहाँ एकत्र होकर जल-स्तर की रचना करता है। जल-स्तर के ऊंचा-नीचा होने को नीचे लिखे तत्त्व नियंत्रित करते हैं-

  1. चट्टानों की पारगमता (Permeability of Rocks)
  2. चट्टानों की मुसामदारी (Porosity of Rocks)
  3. चट्टानों की संरचना (Structure of the Rocks)
  4. चट्टान जोड़ (Rock Joints)
  5. वर्षा की मात्रा (Amount of Rainfall)

प्रश्न 4.
चूने के पत्थर की चट्टानों के क्षेत्र में गुफाएँ किस प्रकार बनती हैं ?
उत्तर-
गुफाएँ (Caves)-घुलनशील क्रिया से भूमि के निचले भाग खोखले हो जाते हैं। धरातल पर कठोर भाग छत के रूप में खड़े रहते हैं। इस प्रकार भूमि के अंदर ही कई मील लंबी गुफाएँ बन जाती हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के केन्द्रीय प्रदेश की मैमथ गुफाएँ (Mammoth Caves) पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं, जोकि 48 कि०मी० लंबी हैं। भारत में मध्य प्रदेश के बस्तर जिले में कुटुमसर (Kutumsar) की गुफाएँ प्रसिद्ध हैं, जिसका बड़ा कक्ष (Chamber) 100 मीटर लंबा और 12 मीटर ऊँचा है।

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प्रश्न 5.
आरटेजीयन कुएँ किस प्रकार बनते हैं ?
उत्तर-
आरटेज़ीयन कुएँ (Artesian Wells)-ये विशेष प्रकार के कुएँ होते हैं। इनमें पानी एक सुराख (Bore) के द्वारा अपने-आप ही लगातार बाहर निकलता रहता है। इस प्रकार के कुएँ सबसे पहले फ्रांस में अरटोइस (Artois) प्रदेश में खोदे गए, इसीलिए इन्हें आरटेजीयन कुएँ (Artesian Wells) कहते हैं।

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रचना (Formation)-आरटेजीयन कुओं की रचना नीचे लिखी परिस्थितियों में होती है-

  • दो अप्रवेशी चट्टानों (Impermeable Rocks) के बीच एक प्रवेशी चट्टान (Permeable Rock) हो।
  • प्रवेशी चट्टान पानी वाली होती है। इसे एक्वीफर (Aquifer) कहते हैं। इसके दोनों सिरे ऊँचे और खुले हों, जहाँ वर्षा अधिक हो।
  • इन चट्टानों का आकार एक तश्तरी (Saucer) के रूप में हो।
  • दोनों ढलानों से पानी नीचे वाले भाग में भर जाए।
  • अप्रवेशी चट्टानों में सुराख करके कुआँ खोदा जाता है।
  • पानी के दबाव की शक्ति (Hydraulic Pressure) से पानी तेज़ी से बाहर निकलता हो।

प्रदेश (Areas)-

  1. ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी भाग में 172 लाख वर्ग कि०मी० क्षेत्र में लगभग 5 लाख आरटेजीयन कुएँ हैं।
  2. भारत में गुजरात राज्य, पांडिचेरी, तमिलनाडु के अरकाट क्षेत्र में और तराई क्षेत्रों में आरटेजीयन कुएँ मिलते हैं।

महत्त्व (Importance)-इन कुओं की शुष्क प्रदेशों और मरुस्थलों में पानी की प्राप्ति के लिए विशेष महानता है। ऑस्ट्रेलिया में इनकी महानता पशु-पालन के लिए है।

प्रश्न 6.
गीज़र किस प्रकार बनते हैं ?
उत्तर-
गीज़र (Geyser)-फव्वारे के समान उछलकर अपने आप निकलने वाले गर्म पानी के स्रोतों को गीज़र (Geyser) कहते हैं। (A Geyser means jumping water.)

रचना (Formation)-

  1. भूमि के नीचे अधिक ताप के कारण गर्म पानी का भंडार (Rescrvoir) होता है।
  2. गर्म पानी एक टेढ़ी-मेढ़ी नली (Pipe) के द्वारा ऊपर आता है।
  3. अधिक ताप के कारण पानी भाप बन जाता है।
  4. भाप के साथ उबलता हुआ पानी बाहर निकलता है।
  5. दुबारा पानी के उबलने में कुछ समय लगता है, इसलिए गीज़र रुक-रुककर पानी उछालते हैं।

प्रदेश (Areas)-

  1. गीज़र साधारण रूप में ज्वालामुखी प्रदेशों में होते हैं।
  2. प्रमुख गीज़र संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) के Yellow Stone Park में, आइसलैंड (Iceland) और न्यूज़ीलैंड के उत्तरी द्वीप में मिलते हैं।
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) में Old Faithful गीज़र कई सालों से प्रति 65 मिनट के अंतर से 100 मीटर ऊपर तक पानी फेंक रहा है।

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प्रश्न 7.
कार्ट भू-रचना से क्या अभिप्राय है ? ..
उत्तर-
कार्ट प्रदेश (Karst Regions)-भूमि के निचले पानी का महत्त्वपूर्ण कार्य चूने के प्रदेश में होता है। भूमि के अंदर का पानी ऐसे विशेष प्रकार की भू-रचना का निर्माण करता है। ऐसे प्रदेश पत्थरों के रेगिस्तान, वनस्पति रहित और असमतल होते हैं। पानी को वायुमंडल से कार्बन-डाईऑक्साइड मिल जाती है। इसमें चूने का पत्थर घुल जाता है। ‘कार्ट’ शब्द यूगोस्लाविया के चूने की चट्टानों के प्रदेश से लिया गया है। इस प्रकार चूने की चट्टानों के प्रदेश की भू-रचना को काट भू-रचना कहते हैं। ऐसे प्रदेश फ्रांस, संयुक्त राज्य अमेरिका में फ्लोरिडा और केंटकी प्रदेश, मैक्सिको में यूकाटन प्रदेश और भारत में खासी और जबलपुर क्षेत्र हैं।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भू-गर्भ जल के अपरदनों का वर्णन करें।
उत्तर-
भू-गर्भ जल के अपरदन को नियंत्रित करने वाले कारक (Factors Controlling the Erosion of Underground Water)-

चूना क्षेत्रों में चट्टानों में मुसाम और उनकी पारगमता के कारण नदियाँ भूमिगत होकर लुप्त हो जाती हैं। इन आकृतियों के विकास के लिए निम्नलिखित परिस्थितियाँ ज़रूरी हैं :

  1. असंगठित चूने के कणों के समतल प्रदेश ताकि जल जल्दी प्रवाहित न हो जाए।
  2. काफी मात्रा में वर्षा।
  3. चट्टानों में मुसाम और पारगमता।

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प्रश्न 2.
भू-गर्भ जल के अपरदन से कौन-सी आकृतियाँ बनती हैं ?
उत्तर-
भू-गर्भ जल के अपरदन द्वारा उत्पन्न भू-आकृतियाँ (Land forms Produced by Erosion of Underground Water)-

भू-गर्भ जल के अपरदन द्वारा नीचे लिखी भू-आकृतियाँ उत्पन्न होती हैं-

1. लैपीज़ (Lapies)—साधारण तौर पर चूने की चट्टानों में जोड़ होते हैं, जिनमें पानी प्रवेश कर जाता है और चूने को घोल देता है, जिसके फलस्वरूप ये जोड़ चौड़े हो जाते हैं। इनकी दीवारें लंबवर्ती और एक-दूसरे के समानांतर नुकीली हो जाती हैं। इन्हें फ्रांसीसी भाषा में लैपीज़ (Lapies) या जर्मन भाषा में केरन (Carren) या क्लिट (Clint) कहते हैं।

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2. गहरे सुराख (Sink Holes)—कार्बन-युक्त पानी जब अपनी घुलनशील क्रिया द्वारा लैपीज़ को बहुत अधिक चौड़ा कर देता है, तब बड़े-बड़े खड्डे बन जाते हैं जिन्हें गहरे सुराख कहते हैं।

3. बड़े सुराख (Swallow Holes)-धीरे-धीरे गहरे सुराख जल की घुलनशील क्रिया द्वारा चौड़े हो जाते हैं और नदियाँ इनमें प्रवेश करके भूमिगत हो जाती हैं और पानी अलोप हो जाता है। इन्हें बड़े सुराख कहते हैं।

4. पोनार (Ponar)-सर्बियन (Serbian) भाषा के इस शब्द पोनार (Ponar) का अर्थ है-सुरंग। वह सुरंग, जो बड़े सुराखों को भूमिगत केंद्रों से मिलाती है, सुरंग या पोनार कहलाती है। यह सुरंग आम तौर पर लंबवत् या थोड़ी झुकी होती है।

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5. डोलाइन (Doline)-घुलनशील क्रिया के कारण कभी-कभी बड़े सुराखों की भूमि अचानक नीचे फँस जाती है। इस प्रकार बड़े और गहरे सुराखों को डोलाइन कहते हैं।

6. युवाला (Uvalas)-कभी-कभी कार्ट प्रदेशों में सुरंगों की छत टूटकर नष्ट हो जाती है और कई कुंड आपस में मिल जाते हैं, जिसके फलस्वरूप विस्तृत खड्डे बन जाते हैं। इन्हें युवाला या कुंड-समूह कहते हैं।

7. भूमिगत गुफाएँ (Underground Caves)—वर्षा का पानी सुरंगों के द्वारा भूमिगत होता हुआ अप्रवेशी चट्टानों की परत तक पहुंच जाता है। धीरे-धीरे ऊपरी प्रवेशी चट्टानों को घोलकर लंबे मार्ग में ढलान के अनुसार जल-धारा बहने लगती है, फलस्वरूप अप्रवेशी चट्टान के ऊपर प्रवेशी चट्टान में भूमिगत जलधारा बहने लगती है। जल-धारा के क्षेत्र को भूमिगत गुफा कहते हैं। इन गुफाओं का अगला भाग जब टूटकर नष्ट हो जाता है, तो जल-धारा दोबारा प्रकट हो जाती है।

उदाहरण-(क) संयुक्त राज्य अमेरिका के केंटकी प्रदेश में मैमथ गुफाएँ (Mammoth Caves) बहुत प्रसिद्ध हैं।
(ख) भारत में छत्तीसगढ़ राज्य के कोतामसर (Kotamsar) की गुफाएँ प्रसिद्ध हैं।

8. प्राकृतिक पुल (Natural Bridge)-भूमिगत गुफाओं की छत अपने-आप कहीं-न-कहीं से टूटती रहती है। बीच का भाग पुल के समान खड़ा रहता है। इसे प्राकृतिक पुल कहते हैं।

9. राजकुंड और चूरनकूट (Poljes and Hums)-चूने के प्रदेश की छतें धीरे-धीरे टूटकर नष्ट होती रहती हैं। इसके फलस्वरूप यह प्रदेश मैदानी रूप में विशाल गर्त का रूप धारण कर लेता है। इसे राजकुंड कहते हैं। गुफाओं की छतों की चट्टानें राजकुंड के तल पर गिरकर ढेरों के रूप में एकत्र हो जाती हैं। इन ढेरों को चूरनकूट कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य 6

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 3.
चश्मे की रचना, प्रकार और प्रदेशों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
चश्मे (Springs)-
कई बार प्रवेशी चट्टानों की परतों के नीचे अप्रवेशी चट्टानें होती हैं। वर्षा का जल प्रवेशी चट्टानों को संतृप्त कर देता है और अप्रवेशी चट्टानों तक पहुंच जाता है और फिर अप्रवेशी चट्टानों की ढलान की दिशा में धीरे-धीरे बहता हुआ किसी दरार आदि से बाहर प्रकट हो जाता है। इसे जल का रिसना (Seepage) कहते हैं। यदि जल की मात्रा अधिक हो और जल तेज़ी से बाहर आए, तो उसे स्रोत या चश्मा कहा जाता है। आम तौर पर ये स्रोत दो प्रकार के होते हैं। एक स्थायी और दूसरा अस्थायी। जिनमें जल कभी नहीं सूखता, उन्हें स्थायी और जिनमें कुछ समय के लिए जल प्रकट होता है, उन्हें अस्थायी कहते हैं। रिसने की क्रिया से बनी झीलें कभी-कभी नदियों का स्रोत बन जाती हैं। कश्मीर घाटी में वैरीनाग (Verinag) इसी प्रकार की झील झेलम नदी का स्रोत है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(iv) भू-गर्भ जल के अनावृत्तिकरण कार्य 7

चश्मे के प्रकार (Types of Springs)-

  1. साधारण चश्मे (Simple Springs)—इनमें साफ़ और मीठा पानी होता है।
  2. गर्म पानी के चश्मे (Hot Springs)-इनमें अधिक गहराई में गर्म पानी होता है।
  3. खनिज चश्मे (Mineral Springs)—इनमें गंधक, नमक आदि खनिज होते हैं।

भारत में पानी के चश्मों का वितरण (Distribution of Springs in India)-

  1. कुल्लू घाटी में – मनीकरण (Manikaran)
  2. कांगड़ा में – calciat (Jawalamukhi) .
  3. पटना में – राजगिरि (Raigiri)
  4. मुंघेर में – सीताकुंड (Sitakund)
  5. उत्तर प्रदेश में – गंगोत्री और यमुनोत्री (Gangotri and Yamunotri)

गीज़र (Geyser)—फव्वारे के समान उछलकर अपने आप निकलने वाले गर्म पानी के स्रोत को गीज़र (Geyser) कहते हैं। (A Geyser means jumping water.)
रचना (Formation)-

  1. भूमि के नीचे अधिक ताप के कारण गर्म पानी का भंडार होता है।
  2. गर्म पानी एक टेढ़ी-मेढ़ी नली (Pipe) के द्वारा ऊपर आता है।
  3. अधिक ताप के कारण पानी भाप बन जाता है।
  4. भाप के साथ उबलता हुआ पानी बाहर निकलता है।
  5. पानी को दोबारा उबलने में कुछ समय लगता है, इसलिए गीज़र रुक-रुककर पानी को उछालते हैं।

प्रदेश (Areas)-

  1. गीज़र आमतौर पर ज्वालामुखी प्रदेशों में होते हैं।
  2. प्रमुख गीज़र संयुक्त राज्य अमेरिका, न्यूज़ीलैंड और आइसलैंड में हैं।
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका में Old Faithful कई वर्षों से प्रति 65 मिनट के अंतर से 100 मीटर पानी उछालता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
दिल्ली सल्तनत की स्थापना, आरम्भिक संगठन तथा विस्तार में इल्तुतमिश, बलबन तथा अलाऊद्दीन खिलजी के योगदान की चर्चा करें।
उत्तर-
1206 ई० से 1290 ई० के काल को दिल्ली सल्तनत की स्थापना तथा आरम्भिक संगठन का काल समझा जाता है। यह शिशु सल्तनत बड़ी अस्थिर तथा असंगठित थी। राज्य को आंतरिक तथा बाहरी शत्रुओं का सामना करना पड़ रहा था। इस कठिन स्थिति को पहले इल्तुतमिश ने और बाद में बलबन ने सम्भाला। फिर अलाऊद्दीन खिलजी ने दिल्ली सल्तनत का खूब विस्तार किया। इन सब के योगदान का वर्णन इस प्रकार है :

I. आरम्भिक संगठन इल्तुतमिश (1211-1236)-

(i) कुतुबुद्दीन ऐबक के पश्चात् 1211 ई० में इल्तुतमिश दिल्ली का सुल्तान बना। इल्तुतमिश ने 25 वर्ष तक राज्य किया। उसने ऐबक के अधूरे छोड़े हुए कार्य को पूरा किया तथा दिल्ली सल्तनत के प्रशासक की रूपरेखा तैयार की।

(ii) इल्तुतमिश ने गज़नी के पुराने तथा नये शासकों के आक्रमणों से अपने राज्य की रक्षा की। उसने अपने प्रतिद्वंद्वियों अर्थात् ताजुद्दीन यल्दौज़ तथा नासिरुद्दीन कुबाचा का सफाया किया और राजपूत शासकों के विरुद्ध लम्बा संघर्ष किया। उसने फिर से बंगाल पर दिल्ली का आधिपत्य स्थापित किया। उसने मंगोल विजेता चंगेज़ खां के विनाशकारी आक्रमण को अपनी सूझबूझ से टाला। इल्तुतमिश के यत्नों के फलस्वरूप दिल्ली सल्तनत का शासन पंजाब, सिंध, गंगा-यमुना दोआब तथा बंगाल में पहले से अधिक सुदृढ़ हो गया।

(iii) (क) इल्तुतमिश ने सल्तनत के लिए केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा न्याय प्रबन्ध की व्यवस्था की। यही व्यवस्था भविष्य में शासन की आधारशिला बनी।

(ख) उसने केन्द्र में स्थायी सेना की व्यवस्था की तथा तुर्क अमीरों पर नियन्त्रण स्थापित किया। इल्तुतमिश द्वारा संगठित किये गये तुर्क अमीरों को बाद में ‘चालीसा’ का नाम दिया गया।

(ग) उसने ‘टका’ तथा ‘जीतल’ नाम के चाँदी और तांबे के सिक्के चलाये।
(घ) इल्तुतमिश ने दिल्ली शहर की भव्यता और सुल्तान की मान-मर्यादा को बढ़ाया।

(ङ) उसने बगदाद के खलीफा से सम्मान के वस्त्र तथा राज्याभिषेक का पत्र प्राप्त किया। खलीफ़ा को इस्लामी जगत् का नेता समझा जाता था। इससे इल्तुतमिश खलीफा की सत्ता को मानने वाले सभी लोगों की दृष्टि में दिल्ली का वास्तविक शासक होने के साथ-साथ कानूनी शासक भी बन गया।

ग्यासुद्दीन बलबन (1266-1287 ई०)-
1236 ई० से 1266 ई० तक इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों ने शासन किया। परन्तु 1240 के बाद वास्तविक सत्ता बलबन नामक सरदार के हाथ में आ गई। वह 1266 ई० में स्वयं सुल्तान बन गया। इल्तुतमिश के उत्तराधिकारियों के समय अमीरों ने सुल्तान को एक कठपुतली अथवा खिलौना मात्र बना लिया था। इससे सुल्तान की प्रतिष्ठा को भी बहुत आघात पहुंचा था और प्रान्तीय तथा राजपूत राजाओं को भी सिर-उठाने का अवसर मिल गया था। इधर 20 वर्षों में उत्तर-पश्चिम की ओर से मंगोलों का दबाव भी बढ़ रहा था। इन परिस्थितियों को देखते हुए बलबन ने किसी नई विजय का विचार त्याग दिया तथा दिल्ली सल्तनत को सुदृढ करने के लिए ‘लौह तथा रक्त’ नीत अपनाई-

(क) सबसे पहले बलबन ने तुर्क अमीरों को सुल्तान की सर्वोच्चता मानने के लिए बाध्य किया। उसने सुल्तान के दैवी अधिकार के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इससे अभिप्राय यह था कि सुल्तान को राज्य करने का अधिकार ईश्वर से मिला है। गुप्तचरों द्वारा अमीरों पर हर समय कड़ी नज़र रखी जाती थी।

(ख) बलबन ने बंगाल के तुर्क गवर्नर तुगरिल खां के विद्रोह को बड़ी क्रूरता से दबाया। उसने दिल्ली के निकट मेवातियों तथा गंगा-यमुना दोआब, अवध एवं कटेहर के प्रदेशों में राजपूतों के विद्रोह को भी सख्ती से कुचला।

(ग) बलबन ने अपनी सेना तथा प्रशासन को संगठित किया। उसने मंगोल आक्रमणों को रोकने के लिए विशेष सेना संगठित की और उसे मुल्तान, सुनाम और समाना आदि सीमावर्ती क्षेत्रों में रखा। इस तरह बलबन ने शिशु दिल्ली सल्तनत को आंतरिक तथा बाहरी सीमावर्ती शत्रुओं से बचाया।

II. दिल्ली सल्तनत का विस्तार अलाऊद्दीन खिलजी–

बलबन की संगठन नीति ने दिल्ली सल्तनत के विस्तार का मार्ग खोल दिया था। अगले 40 वर्षों में खिलजी तथा तुग़लक वंश के सुल्तानों के अधीन दिल्ली का राज्य लगभग पूरे भारत में फैल गया। खिलजी वंश के दूसरे शासक अलाऊद्दीन (12961316 ई०)
उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में अपनी विजयों के लिए विख्यात हैं :- उत्तरी भारत की विजयें-

(क) अलाऊद्दीन सिकन्दर की तरह बहुत बड़ा विजेता बनना चाहता था। उसने अपनी सेना का संगठन किया तथा सैनिक अभियानों के लिये योग्य और विश्वासपात्र सेनापतियों का चुनाव किया। इनमें से अल्प खाँ, नुसरत खाँ, ज़फर खाँ तथा उलुग खाँ प्रसिद्ध सेनापति थे।

(ख) अलाऊद्दीन ने 1296-97 ई० में मुल्तान तथा सिन्ध के प्रदेश विजित किया। ये प्रदेश जलालुद्दीन के पुत्रों के अधिकार में चले गये थे।

(ग) अलाऊद्दीन ने 1299 ई० में गुजरात के उपजाऊ तथा धनी प्रदेश की ओर अपनी सेनाएं भेजीं। गुजरात अपने समुद्री व्यापार के लिए प्रसिद्ध था। गुजरात का शासक राय करण भाग गया।

(घ) दिल्ली तथा गुजरात के बीच राजस्थान की मरुभूमि थी। इसमें कई शक्तिशाली दुर्ग थे। इनको जीते बिना गुजरात का मार्ग नहीं खुल सकता था। अलाऊद्दीन ने पहले 1300-01 में रणथम्भौर के किले को घेर लिया। काफ़ी प्रयत्नों के बाद इसे जीत लिया।

(ड) मेवाड़ में चितौड़ का शक्तिशाली किला भी दिल्ली से गुजरात के रास्ते पर था। एक लम्बे घेरे के बाद उसने 1303 ई० में चितौड़ को भी विजय कर लिया।

(च) अब सुल्तान ने मध्य भारत में मालवा तथा अन्य प्रदेशों के विरुद्ध सेना भेजी। 1305-06 ई० तक उसने माण्डू, धार, उज्जैन तथा चन्देरी पर अधिकार कर लिया।

(छ) 1308 ई० से 1311 ई० के बीच अलाऊद्दीन ने राजस्थान में सिवाना तथा जालौर के किलों को भी जीत लिया।

दक्षिण में विजयें-दक्षिण में अलाऊद्दीन की नीति उसकी उत्तरी भारत में विजय की नीति के विपरीत थी। वह दिल्ली से दक्षिण के राजाओं पर नियन्त्रण रखने की कठिनाइयों को समझता था। इस कारण वह दक्षिण में केवल दिल्ली की प्रभुसत्ता स्थापित करना चाहता था और वहां से धन प्राप्त करना चाहता था। परन्तु वह उत्तर-पश्चिम की ओर से होने वाले मंगोलों के निरन्तर आक्रमणों के कारण दक्षिण की ओर ध्यान न दे सका। 1297 ई० से लेकर 1306 ई० तक मंगोलों ने इस देश पर छ: बार बड़े भयंकर आक्रमण किये। वे दो बार दिल्ली तक भी पहुंच गए थे। अलाऊद्दीन ने उनका सामना करने के लिए एक विशाल सेना तैयार की थी। 1306 ई० में मध्य एशिया के मंगोल शासक की मृत्यु के बाद यह आक्रमण रुक गए। अब अलाऊद्दीन ने इस सेना का प्रयोग दक्षिण की विजयों के लिए किया। उसने अपने योग्य दास तथा सेनानायक मलिक काफूर को दक्षिण की ओर भेजा। इसे गुजरात की विजय के समय एक हज़ार दीनार अर्थात् सोने के सिक्के देकर खरीदा गया था।
विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में इस समय चार राज्य थे-सबसे निकट देवगिरि तथा उसके पूर्व में वारंगल, दक्षिण में द्वारसमुद्र तथा सुदूर दक्षिण में मदुरै का राज्य था।

  • सबसे पहले 1307-08 में देवगिरि के राजा रामचन्द्र देव पर आक्रमण किया गया। उसने अलाऊद्दीन की अधीनता स्वीकार कर ली। सुल्तान ने देवगिरि के प्रदेश को अपनी शेष विजयों के लिए आधार के रूप में प्रयोग किया।
  • अगले दो वर्षों में मलिक काफूर ने वारंगल तथा द्वारसमुद्र के राजाओं को नज़राना देने के लिए बाध्य किया तथा माबर अथवा मदुरै के प्रदेश को लूटा।

इस प्रकार दिल्ली सल्तनत इल्तुतमिश तथा बलबन के काल में संगठित हुई और अलाऊद्दीन के काल में विकसित हुई। अलाऊद्दीन ने शासक के रूप को निखारा और सल्तनत को सशक्त बनाने का प्रयास किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

प्रश्न 2.
तुग़लक सुल्तानों की नीतियों के सन्दर्भ में दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों एवं विघटन की चर्चा करें।
उत्तर-
दिल्ली में खिलजी वंश के पश्चात् तुगलक वंश के राज्य की स्थापना हुई। तुर्क अमीर गाज़ी मलिक ने 1320 ई० में बलबन के उत्तराधिकारियों का वध किया और सल्तनत का स्वामी बन गया। वह ग्यासुद्दीन तुग़लक (1320-1324 ई०) के नाम से गद्दी पर बैठा। उसके वंशज 1412 ई० तक शासन करते रहे। इस वंश का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक मुहम्मद-बिन-तुग़लक था।

  • ग्यासुद्दीन तुगलक ने पूर्वी भारत में बंगाल को फिर से विजय करके दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित किया। उसने तिरहुत अथवा उत्तरी बिहार को भी विजय किया।
  • 1323 ई० में उसके पुत्र मुहम्मद तुगलक ने वारंगल के राज्य को जीत कर दिल्ली सल्तनत में मिला लिया।
  • उसने माबर भी जीत लिया था। उसके राज्यकाल में द्वारसमुद्र का राज्य भी दिल्ली सल्तनत में मिला लिया गया।
  • इस प्रकार मुहम्मद-बिन-तुगलक के अधीन दिल्ली सल्तनत उत्तर में पंजाब से लेकर सुदूर दक्षिण में माबर तक तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैल गई।

पतन के कारण

मुहम्मद-बिन-तुग़लक के राज्यकाल में ही दिल्ली सल्तनत के विस्तार का दौर रुक गया था। यही नहीं बल्कि साम्राज्य का विघटन भी आरम्भ हो गया था। दिल्ली सल्तनत का पतन अकस्मात् नहीं हुआ। पतन की यह प्रक्रिया लम्बे समय तक चलती रही। इसमें विभिन्न सुल्तानों विशेषकर तुग़लक सुल्तानों की नीतियों तथा प्रशासनिक प्रयोगों ने योगदान दिया था, जिसका वर्णन इस प्रकार है।

(i) मुहम्मद तुगलक की दक्षिण नीति-दिल्ली सल्तनत के पतन का आधारभूत कारण इसका दक्षिण में सीधा प्रशासन स्थापित करना था। ग्यासुद्दीन तुगलक के समय में उनका साम्राज्य देवगिरि से लेकर माबर तक फैल जाने के कारण बहुत बड़ा हो गया था। इस विशाल साम्राज्य को दिल्ली से नियन्त्रित करना लगभग असम्भव ही था।

(ii) मुहम्मद-बिन-तुगलक के प्रशासनिक प्रयोग-

(क) साम्राज्य की विशालता के कारण पैदा होने वाली समस्याओं से निपटने के लिए मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने 1328-29 ई० में दक्षिण में देवगिरि को सल्तनत की दूसरी राजधानी बना दिया। इसका नाम दौलताबाद रखा गया। यह पहले से ही उत्तर तथा दक्षिण में एक पुल का काम दे रहा था। नवीन राजधानी दूर थी। इससे सुल्तान का उत्तरी भाग पर नियन्त्रण ढीला हो गया। उधर सुल्तान ने कई अमीरों तथा धार्मिक व्यक्तियों को दिल्ली छोड़कर दौलताबाद जाने के लिए बाध्य किया था। उन सब में बड़ा असन्तोष फैल गया था। बाद में सुल्तान ने जब इनको दिल्ली लौट जाने के लिए कहा तो ये और भी अधिक नाराज हो गए।

(ख) मुहम्मद तुग़लक ने योग्यता के आधार पर बड़ी संख्या में विदेशियों, गैर-तुर्कों तथा गैर-मुसलमानों को शासक वर्ग एवं सेना में उच्च पदों पर नियुक्त किया था। उसके पुराने तुर्क परिवारों का उच्च पदों पर से एकाधिकार समाप्त हो गया। यह बात उनके लिए असहनीय थी।

(ग) उलेमा लोग (अर्थात् इस्लाम धर्म के विद्वान्) सुल्तान के उद्धार धार्मिक विचारों के विरुद्ध थे। वे अन्य धर्मों विशेषकर शैव तथा जैन मत को दिए गए राजकीय संरक्षण के कारण सुल्तानों से रुष्ट थे।

(घ) सुल्तान द्वारा चलाई गई सांकेतिक मुद्रा ने भी उसके विरुद्ध बढ़ते असन्तोष में वृद्धि की। सांकेतिक मुद्रा के कारण कांसे के सिक्के पर चांदी के टके का मूल्य अंकित था। सुनारों तथा साधारण कारीगरों ने बड़ी संख्या में जाली सिक्के बनाने आरम्भ कर दिए। अन्त में सुल्तान ने शाही टकसालों से जारी किए गये सिक्के वापस लेकर बदले में चांदी तथा सोने के सिक्के दे दिये। इससे सरकार को हानि हुई और सुल्तान की प्रतिष्ठा को भी धक्का लगा।

(ङ) मुहम्मद-बिन-तुगलक के विरुद्ध कई अन्य बातों के कारण भी असन्तोष बढ़ा। उसने गंगा-यमुना दोआब में लगान बढ़ाया तथा खुरासान की विजय के लिए तैयार की गई सेना को भंग कर दिया तथा कराचिल अथवा कुल्लू की पहाड़ियों में भेजी गई सेना को भारी क्षति पहुंची।

(च) सुल्तान ने अमीरों तथा उलेमा लोगों को सज़ाएं देकर तथा बल प्रयोग से दबाने का प्रयत्न किया। परिणामस्वरूप साम्राज्य में कई स्थानों पर विद्रोह होने लगे। यह विद्रोह दूर दक्षिण में माबर तथा कम्पिली से लेकर लाहौर और सिन्ध तथा गुजरात से लेकर बंगाल तक फैल गये। सुल्तान के राज्यकाल के अन्त तक इनकी संख्या 22 हो गई थी।

(छ) दक्षिण में विद्रोहियों को दबाने के लिए सुल्तान ने सेना भेजी। इस सेना में महामारी फैल गई। सेना को भारी हानि पहुंची। इस प्रकार दक्षिण के प्रान्तों को स्वतन्त्र होने का अवसर मिल गया।

फिरोज़ तुग़लक की नीतियां-

  • मुहम्मद तुग़लक के उत्तराधिकारी फिरोज़शाह (1351-1357 ई०) के राज्यकाल में सल्तनत का शासन उत्तरी भारत तक ही सीमित हो गया।
  • फिरोज़ ने विद्रोहों के भय से अमीरों तथा उलेमा लोगों के प्रति नरम नीति अपनाई। उनके वेतन और जागीरों में वृद्धि की तथा इनको वंशानुगत बना दिया गया।
  • मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय की सख्त सज़ाएं देने की प्रथा बन्द कर दी गई।
  • सैनिकों की नौकरी भी वंशानुगत बना दी गई। उनको नकद वेतन के स्थान पर भूमि के किसी एक भाग का लगान दिया जाने लगा।

फ़िरोज़ तुग़लक की इन नीतियों के कारण भ्रष्टाचार बढ़ गया तथा सेना कमज़ोर हो गई। दिल्ली सल्तनत अन्दर से खोखली पड़ गई। कुछ इतिहासकार फिरोज़ तुग़लक की धार्मिक कट्टरता को भी सल्तनत के पतन के लिए उत्तरदायी मानते हैं। उसने उलेमा लोगों को प्रसन्न करने के लिए अपने राज्यकाल के अन्तिम वर्षों में गैर सुन्नी मुसलमानों तथा कुछ ब्राह्मणों के साथ सख्ती का व्यवहार किया था। अतः इन सब बातों के कारण दिल्ली सल्तनत के पतन की प्रक्रिया आरम्भ हो गई। यह प्रक्रिया उसके उत्तराधिकारियों के काल में तीव्र हो गई।

फिरोज तुग़लक के उत्तराधिकारी-फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के बाद तुग़लक वंश के छः सुल्तान गद्दी पर बैठे। उनमें प्रायः गृह-युद्ध होते थे। इनमें शासक वर्ग तथा फिरोज़ तुग़लक के दास बड़े सक्रिय थे। इससे प्रशासन और भी कमज़ोर पड़ गया। इससे प्रान्तीय गवर्नरों को स्वतन्त्र होने का अवसर मिल गया। इन परिस्थितियों में 1398-99 ई० में मध्य एशिया से मंगोल विजेता चंगेज़ खां के वंशज तैमूर के आक्रमण ने तुग़लक वंश की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुँचाई। अन्तिम तुग़लक सुल्तान महमूद का छोटा-सा राज्य भी 1412 ई० में समाप्त हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 8 दिल्ली सल्तनत

प्रश्न 3.
केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा स्थानीय स्तर पर दिल्ली सल्तनत के शासन प्रबन्ध की चर्चा करते हुए यह भी बताएं कि सुल्तानों ने किस प्रकार के भवन बनवाए।
उत्तर-
1206 ई० से 1526 ई० तक का युग भारतीय इतिहास में ‘सल्तनत युग’ के नाम से प्रसिद्ध है। इस युग में पांच प्रमुख राजवंशों ने राज्य किया। इन सभी राजवंशों की सामूहिक शासन-व्यवस्था का वर्णन इस प्रकार है–

I. केन्द्रीय शासन

1. खलीफा तथा सुल्तान-नैतिक दृष्टिकोण से समस्त मुस्लिम जगत् का धार्मिक नेता खलीफा माना जाता था। वह बगदाद में निवास करता था। परन्तु सुल्तान खलीफा का नाममात्र का प्रभुत्व स्वीकार करते थे। यद्यपि कुछ सुल्तान खलीफा के नाम से खुतबा पढ़वाते थे और सिक्कों पर भी उसका नाम अंकित करवाते थे, परन्तु यह प्रभुत्व केवल दिखावा मात्र था।

वास्तविक सत्ता सुल्तान के हाथ में ही थी। वह केवल अपने पद को सुदृढ़ बनाने के लिए खलीफा से स्वीकृति प्राप्त कर लेते थे। सुल्तान की शक्तियां असीम थीं। उसकी इच्छा ही कानून थी। वह सेना का प्रधान और न्याय का मुखिया होता था। वास्तव में वह पृथ्वी पर भगवान् का प्रतिनिधि समझा जाता था।

2. मन्त्रिपरिषद् तथा वजीर-सुल्तान का सबसे महत्त्वपूर्ण मन्त्री वित्तीय व्यवस्था तथा लगान का मंत्री था जिसे वज़ीर कहा जाता था। उसकी सहायता के लिए एक महालेखाकार (मुशरिफ) तथा एक महालेखापरीक्षक (मुस्तौफी) होते थे। सैनिक संगठन के मन्त्री को ‘आरिज़-ए-मुमालिक’ कहा जाता था। शाही पत्र-व्यवहार के मन्त्री को ‘दरबार-ए-खास’ तथा गुप्तचर विभाग के मन्त्री को बरीद-ए-खास’ कहा जाता था। अन्य सभी मामलों के मन्त्री ‘वजीर’ से कम महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली थे। यहां तक कि धार्मिक मामलों तथा न्याय के मन्त्री ‘शेख-अल-इस्लाम’ का पद भी वज़ीर जितना महत्त्वपूर्ण नहीं था। इन मंत्रियों के अतिरिक्त सुल्तान के महलों तथा उसके दरबार की देख-रेख करने के लिए भी अधिकारी होते थे। इनमें ‘वकील-ए-दर’ (महलों तथा शाही कारखानों के लिए) तथा ‘अमीर-ए-हाजिब’ (दरबार के लिए) मुख्य थे। सुल्तान अपनी इच्छा से किसी भी मन्त्री को हटा सकता था। कभी-कभी सुल्तान शासन-कार्यों में मुल्लाओं से भी सलाह लिया करता था।

3. केन्द्रीय विभाग-
(i) राजस्व विभाग-इस विभाग का मुखिया दीवान-ए-हजरत होता था। यह विभाग अधिकतर प्रधानमन्त्री अथवा वज़ीर को सौंपा जाता था। कर वसूल करने वाले समस्त अधिकारी इसी विभाग में रहते थे। कृषि कर निर्धारण का भार भी इसी विभाग पर था।

(ii) सैन्य विभाग-इसका मुखिया दीवान-ए-अर्ज़ अथवा आरिज-ए-मुमालिक होता था। राज्य की सेना पर आधारित होने के कारण यह विभाग भी अत्यन्त महत्त्वपूर्ण था।

(iii) दीवान-ए-इन्शाप्रान्तीय सूबेदारों तथा दूर स्थित प्रदेशों के अन्य उच्च पदाधिकारियों के साथ सुल्तान का पत्र-व्यवहार करने का भार दीवानए-इन्शा पर होता था।

(iv) दीवान-ए-अमीर-ए-कोही-यह विभाग बाज़ार पर नियन्त्रण रखता था और कृषि की सुव्यवस्था के लिए कार्य सम्भालता था। इसका प्रधान दीवान-ए-अमीर-ए-कोही होता था।

(v) काजी-उल-कुजात-न्याय विभाग का मुखिया काजी-उल कुजात होता था। वह केन्द्र में रहते हुए प्रान्तों के काज़ियों पर नियन्त्रण रखता था। इन विभागों के अतिरिक्व शाही परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए पृथक् विभाग होता था, जिसका प्रधान वकील-ए-दर कहलाता था।

4. सैनिक व्यवस्था-सुल्तान ने विशाल स्थायी सेना का संगठन किया। इसका प्रधान दीवान-ए-अर्ज़ होता था। केन्द्रीय सेना के अतिरिक्त प्रान्तीय सूबेदार भी अपने पास सेना रखते थे। वे समय पड़ने पर सुल्तान की सहायता करते थे। केन्द्र की सेना अस्त्रों-शस्त्रों से सुसज्जित होती थी। सेना के चार प्रमुख अंग थे, जिनमें सबसे प्रमुख घुड़सवार सेना थी। युद्ध में हाथियों का भी प्रयोग होता था जो सेना का दूसरा अंग था। तीसरा अंग पैदल सेना थी। अस्त्रों-शस्त्रों में तलवार, बी, भाले तथा धनुष-बाणों का प्रयोग किया जाता था। सुल्तान का सैनिक संगठन दाशमिक प्रणाली पर आधारित था। 10 घुड़सवारों पर सरेखैल नामक अधिकारी होता था और 10 सरेखैल पर एक सिपहसालार होता था। इसी प्रकार 10 सिपहसालारों पर एक अमीर होता था। 10 अमीरों पर एक मलिक और दस मलिकों पर एक खान होता था। सेना का आकार समय-समय पर परिवर्तित होता रहता था। अलाऊद्दीन के पास 4 लाख 75 हजार घुड़सवार थे, जबकि फिरोज़ तुग़लक के पास केवल 90 हज़ार घुड़सवार थे।

II. प्रान्तीय प्रशासन : सुल्तानों का साम्राज्य प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रान्तीय गवर्नर का कार्य अपने प्रान्त में शान्ति बनाए रखना था। परन्तु उसका मुख्य दायित्व लगान तथा अन्य कर इकट्ठा करके उनको राजकोष में भेजना था। वह प्रान्तों के अधीन सामन्तों पर भी नियन्त्रण रखता था। परन्तु सामन्तों का स्थानीय प्रशासन में कोई हाथ नहीं था। वह एक ओर तो केन्द्र एवं सामन्तों के बीच कड़ी का काम करता था तथा दूसरी ओर केन्द्रीय प्रशासन एवं स्थानीय प्रबन्ध को जोड़ता था। गवर्नर को ‘मुक्ती’, ‘सूबेदार’ अथवा ‘वली’ कहा जाता था। प्रत्येक प्रान्त में कई परगने थे। कुछ प्रान्तों में परगने से ऊपर एक अन्य प्रशासनिक इकाई भी थी जिसे ‘शिक’ कहा जाता था।

III. स्थानीय शासन स्थानीय शासन परगने से आरम्भ होता था। कई गांवों के समूह को परगना कहते थे। प्रत्येक परगने का मुख्य अधिकारी ‘आमिल’ था। वह भूमि की उपज से सरकारी आय (लगान) एकत्रित करता था और उसका हिसाब-किताब रखता था। लगान इकट्ठा करने में फोतदार अर्थात् खजान्ची और कुछ अन्य कर्मचारी उसकी सहायता करते थे। कानूनगो परगने की ज़मीन तथा लगान से सम्बन्धित सारा रिकार्ड रखता था। एक ही गोत्र से सम्बन्धित कई गांवों में फैले हुए किसान प्रायः किसी एक प्रभावशाली व्यक्ति को सब का साझा प्रधान मान लेते थे। इसको ‘चौधरी’ कहा जाता था। परगने के अधिकारी किसानों अथवा उनके मुखिया के साथ ‘चौधरी’ के माध्यम से निपट सकते थे। प्राचीनकाल की तरह दिल्ली सल्तनत के समय में भी गांव सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई बना रहा। परन्तु अब गांव के मुखिया को मुकद्दम कहा जाता था। गांव की कृषि अधीन भूमि तथा लगान से सम्बन्धित सारे मामलों का रिकार्ड पटवारी रखता था। पटवारी, मुकद्दम, चौधरी तथा कानूनगो के पद वंशानुगत होते थे। इन्हें राज्य की सेवा के बदले लगान का एक भाग दिया जाता था।

सुल्तानों द्वारा बनवाये गए भवन-

दास वंशीय सुल्तानों द्वारा निर्मित भवन-कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली के समीप रायपिथोरा का किला बनवाया। इसके समीप ही ‘कुव्वत-उल-इस्लाम’ नाम की मस्जिद बनवाई गई। कुतुबमीनार दास वंश का सबसे उत्तम उपहार है। इसकी नींव कुतुबुद्दीन ने ही रखी थी, परन्तु इस भवन के पूरा होने से पूर्व ही वह चल बसा था। इसे उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने पूरा करवाया। एक इतिहासकार के अनुसार “इससे अधिक भव्य कोई अन्य मीनार विश्व में नहीं है।” ऐबक ने अजमेर में एक मस्जिद का निर्माण करवाया था। इसे ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा’ कहते हैं। इल्तुतमिश ने अपने बड़े लड़के नासिरुद्दीन महमूद का एक मकबरा बनवाया था। यह भवन कुतुबमीनार से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर बनवाया गया था। भारत के पुराने मकबरों में इसे विशेष स्थान प्राप्त है। इल्तुतमिश ने दिल्ली में एक ‘ईदगाह’ तथा जामा मस्जिद का भी निर्माण करवाया था।

खिलजी सुल्तानों द्वारा निर्मित भवन-इल्तुतमिश की मृत्यु से लेकर अलाऊद्दीन के आगमन तक भवन निर्माण कला का विकास रुका रहा। अलाऊद्दीन के आगमन से भवन निर्माण कला में नए दौर का आरम्भ हुआ। उसने कुतुबुद्दीन ऐबक के समय की मस्जिद का बहुत सुन्दर तथा प्रभावशाली द्वार बनवाया, जिसे ‘अलाई दरवाज़ा’ के नाम से पुकारा जाता है। यह लाल पत्थर का बना है, परन्तु कहीं-कहीं इसमें संगमरमर का भी प्रयोग किया गया है। अलाऊद्दीन ने कुतुबमीनार से तीन मील की दूरी पर ‘सिरी’ नामक दुर्ग बनवाया था। उसने ‘हज़ार सूतन’ नामक एक अन्य भवन का निर्माण भी करवाया।

तुगलक वंश के सुल्तानों द्वारा निर्मित भवन-तुगलक वंश के शासन काल में अनेक भवनों का निर्माण हुआ। इनमें खिलजी काल के भवनों की सी सजावट का अभाव है। ये सादगी तथा विशालता लिए हुए हैं । ग्यासुद्दीन तुग़लक ने कुतुबमीनार के पूर्व में ‘तुग़लकाबाद’ नामक दुर्ग बनवाया था। इस दुर्ग में अनेक भवन भी बनवाए गए थे। संगमरमर का बना ग्यासुद्दीन का ‘मकबरा’ इन भवनों की स्मृति मात्र रह गया है। मुहम्मद तुग़लक ने आदिलाबाद नामक दुर्ग का निर्माण करवाया जो तुग़लकाबाद के पास स्थित है। फिरोज़ तुग़लक को भवन बनवाने का बड़ा चाव था। उसके शासनकाल में अनेक शहरों में से फतेहाबाद, हिसार फिरोजा, जौनपुर आदि प्रसिद्ध थे। फरिश्ता के अनुसार, “सुलतान ने 200 नगर, 20 महल, 30 पाठशालाएं, 40 मस्जिदें, 100 अस्पताल, 100 स्नानगृह, 5 मकबरे और 150 पुल बनवाए।”

सैय्यद तथा लोधी वंश के शासकों द्वारा निर्मित भवन-तैमूर के आक्रमण के कारण दिल्ली सल्तनत की आर्थिक दशा काफी शोचनीय हो गई। परिणामस्वरूप सैय्यद तथा लोधी वंश के शासकों ने भवन निर्माण कला में अधिक रुचि न दिखाई। सैय्यद वंश में प्रथम दो शासकों ने खिज़राबाद और मुबारिकाबाद नाम के दो नगर बसाए। दुर्भाग्यवश इन दोनों नगरों के अवशेष उपलब्ध नहीं हैं। इस काल में मुबारिक शाह सैय्यद, मुहम्मद शाह सैय्यद और सिकन्दर लोधी से सम्बन्धित मस्जिदें तथा मकबरे ही उपलब्ध हैं। लोधी काल में कुछ मस्जिदों का निर्माण हुआ। इसमें सिकन्दर लोधी के प्रधानमन्त्री द्वारा निर्मित ‘मोट की मस्जिद’ उल्लेखनीय है।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
दिल्ली के प्रथम तथा अंतिम सल्तान कौन-कौन थे?
उत्तर-
दिल्ली का प्रथम सुल्तान कुतुबुद्दीन ऐबक तथा अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोदी था।

प्रश्न 2.
पठान सुल्तानों ने दिल्ली पर कब से कब तक राज्य किया?
उत्तर-
पठान सुल्तानों ने दिल्ली पर 1206 ई० से 1526 ई० तक शासन किया।

प्रश्न 3.
तैमूर ने भारत पर कब आक्रमण किया?
उत्तर-
तैमूर ने 1398 ई० में भारत पर आक्रमण किया।

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प्रश्न 4.
सूफ़ी मत के एक सन्त का नाम बताओ।
उत्तर-
बाबा फरीद।

प्रश्न 5.
सिक्ख धर्म के संस्थापक कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी सिक्ख धर्म के संस्थापक थे।

प्रश्न 6.
सैयद वंश की नींव किसने डाली थी?
उत्तर-
सैयद वंश की नींव तैमूर के प्रतिनिधि खिजर खाँ ने डाली थी।

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प्रश्न 7.
खिजर खाँ ने गुजरात पर अधिकार कब किया?
उत्तर-
खिजर खाँ ने 1412 ई० में गुजरात पर अधिकार किया।

प्रश्न 8.
खिजर खाँ की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली की गद्दी पर कौन बैठा?
उत्तर-
खिजर खाँ की मृत्यु के पश्चात् मुबारक शाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा।

प्रश्न 9.
लोदी वंश की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
लोदी वंश की स्थापना 1451 ई० में हुई।

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प्रश्न 10.
लोदी वंश के उस शासक का नाम बताओ जो सर्वप्रथम दिल्ली की गद्दी पर बैठा।
उत्तर-
बहलोल लोदी।

प्रश्न 11.
लोदी वंश का अंतिम सुल्तान कौन था ?
उत्तर-
इब्राहिम लोदी ।

प्रश्न 12.
“तबकाते नासरी” नामक पुस्तक का लेखक कौन था?
उत्तर-
मिनहाज सिराज “तबकाते नासरी” नामक पुस्तक का लेखक था।

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प्रश्न 13.
“अलाई दरवाजा” दिल्ली के किस सुल्तान ने बनवाया ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी ने।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) कुतुबुद्दीन ऐबक…………..ई० में दिल्ली का सुल्तान बना।
(ii) ………..दिल्ली की पहली मुस्लिम शासिका थी।
(iii) …………अपनी ‘रक्त और लौह’ नीति के लिए विख्यात है।
(iv) मलिक काफूर………………का दास सेनानायक था।
(v) ………………को इतिहास में पढ़ा-लिखा मूर्ख सुल्तान’ कहते हैं।
उत्तर-
(i) 1206
(ii) रजिया
(iii) बलबन
(iv) अलाऊद्दीन खिलजी
(v) मुहम्मद तुग़लक ।

3. सही / ग़लत कथन

(i) बलबन एक शक्तिशाली और पक्के इरादे वाला शासक था। — (√)
(ii) गुलाम (दास) वंश के शासकों के बाद सन् 1290 ई० में दिल्ली में तुग़लक वंश का नया राज्य स्थापित हुआ। — (×)
(iii) खिलजी वंश का अन्तिम शासक मार डाला गया और दिल्ली पर सैय्यद वंश का शासन शुरू हुआ। — (×)
(iv) मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने पीतल और ताँबे के सांकेतिक सिक्के चलाए जिन्हें राजकोष से चाँदी-सोने के सिक्कों से बदला जा सकता था। — (√)
(v) अलाऊद्दीन के एक अधिकारी हसन गंगू ने बहमनी राज्य की नींव डाली — (√)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
दिल्ली सल्तनत के शुरू के शासक थे-
(A) तुर्क
(B) अफ़गान
(C) मंगोल
(D) इनमें से कोई नहीं ।
उत्तर-
(B) अफ़गान

प्रश्न (ii)
अलाऊद्दीन खिलजी के लिए दक्षिणी प्रदेश जीते
(A) बलबन ने
(B) ताजुद्दीन यल्दौज ने
(C) नालिरुद्दीन कुबाचा ने
(D) कुतुबुद्दीन ऐबक ने
उत्तर-
(C) नालिरुद्दीन कुबाचा ने

प्रश्न (iii)
निम्न सुल्तान अपने आर्थिक सुधारों (बाज़ार नीति) के लिए विख्यात है-
(A) बलबन
(B) अलाऊद्दीन खिलजी
(C) फिरोज़ तुगलक
(D) इल्तुतमिश।
उत्तर-
(A) बलबन

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प्रश्न (iv)
निम्न सुल्तान ने कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई की विशेष व्यवस्था की-
(A) इल्तुतमिश
(B) मुहम्मद तुगलक
(C) फिरोज़ तुग़लक
(D) कुतुबुदीन ऐबक।
उत्तर-
(D) कुतुबुदीन ऐबक।

प्रश्न (v)
‘जकात’ नामक कर किससे प्राप्त किया जाता था?
(A) अमीर मुसलमानों से
(B) अमीर हिंदुओं से
(C) सभी हिंदुओं से
(D) गैर-मुसलमानों से
उत्तर-
(B) अमीर हिंदुओं से

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार बताएं।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत की जानकारी के लिए स्रोतों के चार प्रमुख प्रकार हैं-समकालीन दरबारी इतिहासकारों के वृत्तान्त, कवियों की रचनाएं, विदेशी यात्रियों के वृत्तान्त तथा सिक्के।

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प्रश्न 2.
अमीर खुसरो की रचनाएं किन तीन सुल्तानों के राज्यकाल पर प्रकाश डालती हैं ?
उत्तर-
अमीर खुसरो की रचनाएं बलबन, अलाऊद्दीन खिलजी तथा ग्यासुद्दीन तुग़लक के राज्यकाल पर प्रकाश डालती हैं।

प्रश्न 3.
मुहम्मद गौरी ने मुल्तान, लाहौर तथा दिल्ली की विजयें किन वर्षों में प्राप्त की ?
उत्तर-
मुहम्मद गौरी ने 1175 ई० में मुल्तान, 1186 ई० में लाहौर तथा 1192 ई० में दिल्ली पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 4.
मुहम्मद गौरी के साम्राज्य में उत्तरी भारत के कौन से चार प्रमुख राज्य सम्मिलित थे ?
उत्तर-
मुहम्मद गौरी के साम्राज्य में उत्तरी भारत का पंजाब का भूतपूर्व गज़नी राज्य, दिल्ली, अजमेर का चौहान राज्य, कन्नौज का गहड़वाल और राठौर राज्य तथा बंगाल का सेन राज्य सम्मिलित था।

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प्रश्न 5.
तराइन का दूसरा युद्ध कब हुआ और इसमें पृथ्वीराज के अधीन लड़ने वाले सामन्तों की संख्या क्या थी ?
उत्तर-
तराइन का दूसरा युद्ध 1192 ई० में हुआ। इस में पृथ्वीराज के अधीन लड़ने वाले सामन्तों की संख्या 150 थी।

प्रश्न 6.
मुहम्मद गौरी के चार दास सेनानियों के नाम बताएं।
उत्तर-
ताजुद्दीन यल्दौज, नासिरुद्दीन कुबाचा, कुतुबुद्दीन ऐबक तथा बख्यितार खिलजी मुहम्मद गौरी के चार दास सेनानी

प्रश्न 7.
यल्दौज़ कहाँ का शासक था और उसे रोकने के लिए ऐबक ने दिल्ली के स्थान पर कौन से नगर को अपनी राजधानी बनाया ?
उत्तर-
यल्दौज गज़नी का शासक था। उसे रोकने के लिए ऐबक ने दिल्ली के स्थान पर लाहौर को अपनी राजधानी बनाया।

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प्रश्न 8.
ऐबक की मृत्यु कब और कैसे हुई ?
उत्तर-
ऐबक की मृत्यु 1210 ई० में घोड़े से गिर जाने के कारण हुई।

प्रश्न 9.
इल्तुतमिश ने किस मंगोल विजेता के आक्रमण को टाला तथा उसके किस शत्रु को दिल्ली में शरण देने से इन्कार किया था ?
उत्तर-
इल्तुतमिश ने मंगोल विजेता चंगेज़ खां के आक्रमण को बड़ी सूझ-बूझ से टाला। उसने चंगेज़ खां के शत्रु ख्वारिज्म के शहज़ादे को दिल्ली में शरण देने से इन्कार कर दिया।

प्रश्न 10.
इल्तुतमिश के तुर्क अमीरों के लिए बाद में किस नाम का प्रयोग किया जाने लगा ?
उत्तर-
इल्तुतमिश के तुर्क अमीरों के लिए बाद में ‘चहलगनी’ नाम का प्रयोग किया जाने लगा।

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प्रश्न 11.
इल्तुतमिश ने कौन से दो सिक्के चलाए ?
उत्तर-
इल्तुतमिश ने ‘जीतल’ तथा ‘टका’ नाम के दो सिक्के चलाए।

प्रश्न 12.
इस्लामी जगत् के नेता को क्या कहा जाता था और इल्तुतमिश ने उससे क्या प्राप्त किया ?
उत्तर-
इस्लामी जगत् के नेता को ‘खलीफा’ कहा जाता था। इल्तुतमिश ने उससे सम्मान के वस्त्र तथा राज्याभिषेक का पत्र प्राप्त किया।

प्रश्न 13.
इल्तुतमिश के किन्हीं दो उत्तराधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
रज़िया तथा नासिरुद्दीन महमूद इतुतमिश के दो उत्तराधिकारी थे।

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प्रश्न 14.
सुल्तान के दैवी-अधिकार से क्या भाव था ?
उत्तर-
सुल्तान के दैवी-अधिकार से भाव यह था कि सुल्तान को राज्य करने का अधिकार ईश्वर से मिला है।

प्रश्न 15.
बलबन ने कौन से चार प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया ?
उत्तर-
बलबन ने बंगाल, दिल्ली, गंगा-यमुना दोआब, अवध एवं कटेहर के प्रदेशों में विद्रोहों को दबाया।

प्रश्न 16.
बलबन ने मंगोलों के आक्रमण रोकने के लिए विशेष सेनाएं किन तीन स्थानों पर तैनात की ?
उत्तर-
बलबन ने मंगोलों के आक्रमण को रोकने के लिए विशेष सेनाओं को ‘मुल्तान’, ‘सुनाम’ और ‘समाना’ के स्थानों पर तैनात किया।

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प्रश्न 17.
खिलजी वंश की स्थापना किसने और कब की ?
उत्तर-
खिलजी वंश की स्थापना 1290 में जलालुद्दीन खिलजी ने की।

प्रश्न 18.
दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए कौन से सुल्तान का काल सबसे महत्त्वपूर्ण है ? इसने कब से कब तक राज्य किया ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के विस्तार के लिए अलाऊद्दीन खिलजी का काल सबसे महत्त्वपूर्ण है। उसने 1296-1316 ई० तक राज्य 1 किया।

प्रश्न 19.
अलाऊद्दीन खिलजी के चार सेनापतियों के नाम बताएं।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी के चार सेनापतियों के नाम थे-अल्प खाँ, नुसरत खाँ, जफर खाँ तथा उलुग खाँ।

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प्रश्न 20.
अलाऊद्दीन द्वारा विजित उत्तर भारत के चार प्रदेशों के नाम बताएं।
उत्तर-
अलाऊद्दीन द्वारा विजित उत्तर भारत के चार प्रदेश रणथम्भौर, मेवाड़, मालवा तथा गुजरात थे।

प्रश्न 21.
अलाऊद्दीन ने राजस्थान में कौन से चार किले जीते थे ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन ने राजस्थान में रणथम्भौर, चित्तौड़, शिवाना तथा जालौर के किलों पर विजय प्राप्त की थी।

प्रश्न 22.
अलाऊद्दीन के समय में मालवा के कौन से चार नगर जीते गए ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन के समय में मालवा के माण्डू, धार, उज्जैन तथा चन्देरी नगर जीते गए।

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प्रश्न 23.
अलाऊद्दीन की चित्तौड़ विजय के साथ कौन-सी लोक-गाथा सम्बन्धित है ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन की चित्तौड़ विजय से सम्बन्धित लोक-गाथा यह है कि अलाऊद्दीन चित्तौड़ के राणा की सुन्दर पत्नी पद्मिनी को प्राप्त करना चाहता था।

प्रश्न 24.
अलाऊद्दीन की दक्षिण विजय के दो उद्देश्य क्या थे ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन की दक्षिण विजय के दो. उद्देश्य थे-दिल्ली की प्रभुसत्ता स्थापित करना तथा वहाँ से धन प्राप्त करना।

प्रश्न 25.
अलाऊद्दीन के समय में मंगोल आक्रमण कब आरम्भ तथा समाप्त हुए तथा इनकी संख्या क्या थी ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन के समय में मंगोल आक्रमण 1297 ई० से 1306 ई० तक हुए। इन आक्रमणों की संख्या छः थी।

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प्रश्न 26.
अलाऊद्दीन ने दक्षिण के किन राज्यों पर अपनी प्रभुत्ता स्थापित की ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन ने दक्षिण भारत के देवगिरी, वारंगल, द्वारसमुद्र तथा मदुरा राज्यों पर विजय प्राप्त की।

प्रश्न 27.
अलाऊद्दीन की दक्षिण की विजयें किस सेनापति के अधीन की गईं ? इसे कहाँ और कितना धन देकर खरीदा गया था ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन ने दक्षिण की विजयें अपने सेनापति मलिक काफूर के अधीन की। उसे गुजरात से एक हज़ार दीनार दे कर खरीदा गया था ?

प्रश्न 28.
तुगलक वंश के पहले दो शासकों के नाम तथा राज्यकाल बताएं।
उत्तर-
तुग़लक वंश के पहले दो शासक ग्यासुद्दीन तुग़लक तथा मुहम्मद-बिन-तुगलक थे। इन का शासन काल 1320 ई० से 1351 ई० तक था।

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प्रश्न 29.
ग्यासुद्दीन तुगलक के समय में जीते गए चार प्रदेशों के नाम बताएँ।
उत्तर-
ग्यासुद्दीन तुग़लक के समय में जीते गए चार प्रदेशों के नाम हैं –तिरहुत, वारंगल, माबर, द्वारसमुद्र।

प्रश्न 30.
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय दिल्ली सल्तनत उत्तर, दक्षिण, पूर्व तथा पश्चिम में किन प्रदेशों तक फैल गई थी ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के समय में दिल्ली सल्तनत उत्तर में पंजाब से लेकर सुदूर दक्षिण में मिबर तक तथा पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में बंगाल तक फैल गई थी।

प्रश्न 31.
दिल्ली सल्तनत के पतन का आधारभूत कारण क्या था ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के पतन का आधारभूत कारण दक्षिण में सीधा प्रशासन स्थापित करना था।

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प्रश्न 32.
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने दक्षिण में कौन से नगर को अपनी दूसरी राजधानी बनाया और इसका क्या नाम रखा ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने ‘देवगिरि’ को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। उसने इसका नाम ‘दौलताबाद’ रखा।

प्रश्न 33.
शासक वर्ग में किस प्रकार के लोगों के शामिल होने के कारण तुर्क अमीर मुहम्मद-बिन-तुगलक से नाराज़ थे ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने बड़ी संख्या में विदेशियों, गैर-तुर्कों और गैर-मुसलमानों को शासक वर्ग में उच्च पद दे दिये थे। इससे तुर्क अमीर उससे नाराज़ हो गये।

प्रश्न 34.
उलेमा लोग सुल्तान से क्यों नाराज थे ?
उत्तर-
उलेमा लोग सुल्तान के उदार धार्मिक विचारों के कारण उस से नाराज़ थे।

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प्रश्न 35.
मुहम्मद-बिन-तुगलक ने कौन से सिक्के के स्थान पर सांकेतिक मुद्रा चलाई और यह किस धातु में थी ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक ने चाँदी के सिक्कों के स्थान पर सांकेतिक मुद्रा चलाई। यह कांसे की थी।

प्रश्न 36.
मुहम्मद-बिन-तुगलक के राज्यकाल में हुए विद्रोहों की संख्या क्या थी तथा इनसे प्रभावित किन्हीं चार प्रदेशों के नाम बताएं।
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के राज्यकाल में हुए विद्रोहों की संख्या 22 थी। इनसे प्रभावित चार प्रदेशों के नाम हैंबिआबर, सिन्ध, गुजरात तथा बंगाल।

प्रश्न 37.
फिरोज़ तुगलक ने अमीरों को प्रसन्न करने के लिए क्या किया ?
उत्तर-
फिरोज़ तुलगक ने अमीरों को प्रसन्न करने के लिए उनके वेतन और जागीरें बढ़ा दीं।

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प्रश्न 38.
फिरोज़ तुगलक के समय में सैनिकों को वेतन किस रूप में दिया जाता था ?
उत्तर-
फिरोज तुग़लक के समय में सैनिकों को वेतन नकद देने के स्थान पर भूमि के एक भाग का लगान दिया जाने लगा।

प्रश्न 39.
तुगलक काल के अन्त में आने वाले विदेशी आक्रमणकारी का नाम तथा उसके आक्रमण का वर्ष बताएं।
उत्तर-
तुगलक काल के अन्त में आने वाले विदेशी आक्रमणकारी का नाम तैमूर था। उस के आक्रमण का वर्ष 139899 ई० था।

प्रश्न 40.
अन्तिम तुगलक सुल्तान का क्या नाम था तथा इसका राज्य कब समाप्त हुआ ?
उत्तर-
अन्तिम तुग़लक सुल्तान का नाम नासिरुद्दीन महमूद शाह था। उस का राज्य 1412 ई० में समाप्त हो गया।

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प्रश्न 41.
फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के बाद कौन-से चार नये राज्य स्थापित हुए ?
उत्तर-
फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के पश्चात् जौनपुर, मालवा, गुजरात तथा खानदेश नये राज्य स्थापित हुए।

प्रश्न 42.
दिल्ली सल्तनत के वित्त तथा लगान सम्बन्धी मन्त्री को क्या कहा जाता था तथा उसकी सहायता के लिए कौन से दो अधिकारी थे ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के वित्त तथा लगान सम्बन्धी मन्त्री को ‘वजीर’ कहा जाता था। उसकी सहायता के लिए ‘महालेखाकार’ तथा ‘महालेखा परीक्षक’ नामक अधिकारी होते थे।

प्रश्न 43.
दिल्ली सल्तनत के अधीन सेना, शाही पत्र-व्यवहार, गुप्तचर विभाग, धार्मिक मामलों तथा न्याय के मन्त्री को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के अधीन सैनिक संगठन के मन्त्री को आरिज-ए-मुमालिक, पत्र व्यवहार के मन्त्री को दरबारए-खास, गुप्तचर विभाग के मन्त्री को बरीद-ए-खास, धार्मिक मामलों तथा न्याय के मन्त्री को शेख-अल-इस्लाम कहते थे।

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प्रश्न 44.
सुल्तानों के महलों तथा दरबार की देख-रेख करने वाले दो अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
सुल्तानों के महलों तथा दरबार की देख-रेख करने वाले दो अधिकारियों के नाम थे-‘वकील-ए-दर’ तथा ‘अमीर-ए-हाजिब’।

प्रश्न 45.
न्याय प्रबन्ध के अन्तर्गत कौन से मामलों में प्रत्येक व्यक्ति राज्य के कानून के सामने बराबर था और कौन से अधिकारी की अदालत में जा सकता था ?
उत्तर-
सम्पत्ति से सम्बन्धित सब बातों में किसी भी धर्म का व्यक्ति इस्लामी कानून के सम्मुख बराबर था। ऐसे मामलों में वह काज़ी की अदालत में जा सकता था।

प्रश्न 46.
सल्तनत की ओर से दिए जाने वाले संरक्षण का अधिकांश भाग किन चार प्रकार की संस्थाओं और व्यक्तियों को मिलता था ?
उत्तर-
सल्तनत की ओर से दिये जाने वाले संरक्षण का अधिकांश भाग प्रायः मस्जिदों, मदरसों, खानकाहों और ऐसे मुसलमानों को जाता था, जिनकी धर्म-परायणता विख्यात थी।

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प्रश्न 47.
अलाऊद्दीन खिलजी की सेना की संख्या कितनी मानी जाती है और एक घुड़सवार को कितना वेतन मिलता था ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी की सेना की संख्या 4,75,000 मानी जाती है। एक घुड़सवार को 234 टके वेतन मिलता था। ।

प्रश्न 48.
सल्तनत की सेना में कौन से तीन अंग थे तथा इनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण कौन सा था ?
उत्तर-
सल्तनत की सेना में घुड़सवार, हाथी तथा पैदल शामिल थे। घुड़सवार सेना का सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भाग थे।

प्रश्न 49.
बाज़ार नियन्त्रण किस सुल्तान ने किया तथा किन्हीं चार वस्तुओं के नाम बताएं जिनके मूल्य॑ इसके वर्गत नियत किए गए।
उत्तर-
बाजार नियन्त्रण अलाऊद्दीन खिलजी ने किया था। इसके अन्तर्गत अनाज, घी, तेल, कपड़ा आदि वस्तुओं के मूल्य 1यत किये गए।

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प्रश्न 50.
दिल्ली सल्तनत के अधीन प्रान्तीय गवर्नरों के लिए कौन से तीन नामों का प्रयोग किया जाता था ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के अधीन गवर्नरों को ‘मुक्ती’, ‘सूबेदार’ अथवा ‘वली’ कहा जाता था।

प्रश्न 51.
परगने का मुख्य अधिकारी कौन था ? उसका क्या कार्य था ?
उत्तर-
परगने का मुख्य अधिकारी ‘आमिल’ होता था। उसका मुख्य कार्य लगान उगाहना तथा हिसाब-किताब रखना था।

प्रश्न 52.
कानूनगो किस स्तर पर और क्या काम करता था ?
उत्तर-
कानूननो परगने की ज़मीन तथा लगान से सम्बन्धित सारा रिकार्ड रखता था।

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प्रश्न 53.
चौधरी किस व्यक्ति को माना जाता था ?
उत्तर-
एक प्रभावशाली व्यक्ति को चौधरी माना जाता था।

प्रश्न 54.
स्थानीय स्तर पर चार अधिकारियों के नाम बतायें जिनके पद वंशानुगत होते थे।
उत्तर–
पटवारी, मुकद्दम, चौधरी तथा कानूनगो के पद वंशानुगत होते थे।

प्रश्न 55.
सल्तनत की आय का मुख्य स्रोत क्या था तथा एवं इसको निर्धारित करने की तीन प्रमुख विधियां कौन सी थीं ?
उत्तर-
सल्तनत की आय का प्रमुख स्रोत भूमि से प्राप्त लगान था। लगान निर्धारित करने की तीन विधियां थीं-बटाई, कनकूत तथा भूमि की पैमाइश।

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प्रश्न 56.
बटाई से क्या भाव था ?
उत्तर-
बटाई से भाव कटी हुई फसल को सरकार तथा किसान के बीच बाँटना था।

प्रश्न 57.
कनकूत से क्या भाव था ?
उत्तर-
कनकूत में लगभग तैयार फसल के आधार पर लगान का अनुमान लगाया जाता था।

प्रश्न 58.
कौन से सुल्तान के समय में लगान की दर सबसे अधिक और कितनी थी ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी के समय में लगान की दर सबसे अधिक थी। लगान की दर उपज का 1/2 भाग थी।

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प्रश्न 59.
लगान की वसूली किन दो रूपों में की जाती थी ?
उत्तर-
लगान की वसूली गल्ले तथा नकदी में की जाती थी।

प्रश्न 60.
इक्ता से क्या भाव था ?
उत्तर-
सरकार के अधिकतर कर्मचारियों को नकद वेतन देने के स्थान पर लगान इकट्ठा करने का अधिकार दे दिया जाता था। इस प्रकार इकट्ठा किये जाने वाले लगान को इक्ता कहा जाता था।

प्रश्न 61.
दिल्ली सल्तनत के शासक वर्ग में सम्मिलित लोग कौन से चार विभिन्न जातीय मलों के थे ?
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के शासक वर्ग में सम्मिलित लोग तुर्क, ईरानी, अरब तथा पठान जाति से थे।

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प्रश्न 62.
सुल्तानों द्वारा बनवाए गए चार भवनों के चार प्रकार बताओ।
उत्तर-
सुल्तानों द्वारा बनवाए गए चार प्रकार के भवन थे-मस्जिदें, मकबरे, किले, महल तथा मीनार।

प्रश्न 63.
सल्तनत काल में बनी किन्हीं चार मस्जिदों के नाम बताएं।
उत्तर-
जौनपुर की अटाला और जामा मस्जिद, दिल्ली की कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद तथा अजमेर की अढ़ाई-दिनका झोपड़ा मस्जिद दिल्ली सल्तनत काल में बनाई गई थीं।

प्रश्न 64.
सल्तनत काल में कौन-सी चार प्रादेशिक सल्तनतों के भवनों के प्रभावशाली नमूने मिले हैं ?
उत्तर-
प्रादेशिक सल्तनतों के भवनों में प्रभावशाली नमूने बंगाल, जौनपुर, मालवा और गुजरात में मिले हैं।

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प्रश्न 65.
कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण किसने आरम्भ किया और इसे क्यों महत्त्व दिया जाता है ?
उत्तर-
कुव्वत-अल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण ऐबक ने कराया था। इसके आंगन में कुतुबमीनार होने से इसे महत्त्व दिया, जाता है।

प्रश्न 66.
कुतुबमीनार कहाँ है तथा इसकी कितनी मंज़िलें हैं ?
उत्तर-
कुतुबमीनार दिल्ली के समीप महरौली के स्थान पर स्थित है। इसकी पाँच मंजिलें हैं।

प्रश्न 67.
दिल्ली में किन चार वंशों के सुल्तानों के मकबरे मिलते हैं?
उत्तर-
दिल्ली में खिलजी, तुग़लक, सैय्यद तथा लोधी वंश के सुल्तानों के मकबरे मिलते हैं।

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प्रश्न 68.
सल्तनत काल में बनवाए गए किन्हीं दो नगरों के नाम तथा उनको बनवाने वाले सुल्तानों के नाम बताएं।
उत्तर-
सल्तनत काल में अलाऊद्दीन खिलजी ने सीरी नगर तथा फिरोजशाह कोटला नगर बसाये।

प्रश्न 69.
सल्तनत काल के बड़े दरवाजों के दो सबसे बढ़िया नमूने कौन से हैं और ये कहाँ मिलते हैं ? .
उत्तर-
सल्तनत काल के बड़े दरवाजों के दो सबसे बढ़िया नमूने गौड़ का दाखली दरवाज़ा तथा कुतुबमीनार के निकट अलाई दरवाज़ा है।

प्रश्न 70.
राजपूतों की विधार्मिक भवन निर्माण कला के दो प्रभावशाली उदाहरण कौन से हैं ?
उत्तर-
राजपूतों की विधार्मिक भवन निर्माण कला के दो प्रभावशाली उदाहरण हैं-ग्वालियर में राजा मानसिंह का महल और चित्तौड़ में राणा कुम्भा का विजय स्तम्भ।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली सल्तनत की स्थापना में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
कुतुबुद्दीन ऐबक मुहम्मद गौरी का एक दास था। उसकी योग्यता से प्रभावित होकर 1192 ई० में मुहम्मद गौरी ने उसे भारत में अपना प्रतिनिधि नियुक्त किया था। उसने मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में 1206 ई० तक अनेक प्रदेश जीते। उसने अजमेर तथा मेरठ के विद्रोहों का दमन किया और दिल्ली पर अपना अधिकार कर लिया। उसने अजमेर के मेढ़ों तथा बुन्देलखण्ड के चन्देलों को भी हराया। शीघ्र ही उसने कालपी और बदायूं पर विजय प्राप्त की। 1206 ई० में मुहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद वह दिल्ली का स्वतन्त्र शासक बन गया। स्वतन्त्र शासक के रूप में उसने हिन्दू सरदारों का दमन किया और दासता से मुक्ति प्राप्त करके दिल्ली सल्तनत की नींव को सुदृढ़ किया। 1210 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 2.
इल्तुतमिश ने दिल्ली सल्तन को किस प्रकार संगठित किया ?
उत्तर-
इल्तुतमिश 1211 ई० में दिल्ली का सुल्तान बना। सिंहासनारोहण के समय उसकी अनेक कठिनाइयां थीं जिन पर उसने बड़ी सूझ-बूझ से नियन्त्रण पाया। सर्वप्रथम उसने पहले कुतुबी सरदारों को हराया। इन सरदारों ने उसे सुल्तान मानने से इन्कार कर दिया था। उसके मार्ग में ताजुद्दीन यल्दौज़ भी बाधा बना हुआ था। इल्तुतमिश ने उसे तराईन (तरावड़ी) के मैदान में करारी हार दी। मुल्तान में नासिरुद्दीन कुबाचा और बंगाल, बिहार में अलीमर्दान ने भी अपने आपको स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया था। इल्तुतमिश ने इन दोनों के विद्रोह का सफलतापूर्वक दमन कर दिया। उसकी सफलताओं से प्रसन्न होकर बगदाद के खलीफा ने उसे सम्मान प्रदान किया, जिससे उसकी स्थिति काफ़ी दृढ़ हो गई। अब उसने गुजरात, मालवा और भीलसा के राजपूतों की शक्ति को कुचला और भारत में सल्तनत राज्य की नींव को पक्का किया।

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प्रश्न 3.
सल्तनत काल में भारत की शिक्षा प्रणाली का वर्णन करो।
उत्तर-
सल्तनतकालीन भारत शिक्षा के क्षेत्र में अपना प्राचीन वैभव खो चुका था। इस युग में नालन्दा, तक्षशिला जैसे उच्चकोटि के विश्वविद्यालय नहीं थे। सुल्तान सदा संघर्षों में उलझे रहे। अतः उनके काल में फिरोज़ तुग़लक को छोड़कर किसी ने शिक्षा के प्रसार की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। प्रायः मस्जिदें तथा मन्दिर ही शिक्षा के केन्द्र होते थे। मुसलमानों के बच्चे उर्दू, फारसी तथा कुरान की शिक्षा ग्रहण करते थे। फिरोज़ तुगलक ने मुसलमानों की शिक्षा के लिए अलग स्कूल भी खुलवाए। जौनपुर उन दिनों शिक्षा का एक बहुत बड़ा केन्द्र माना जाता था। फिरोज़ तुग़लक के पश्चात् यदि किसी मुस्लिम शासक ने शिक्षा के क्षेत्र में उत्साह दिखाया, तो वह था अकबर। उसने अनेक मदरसे खुलवाए तथा प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को इनाम तथा वज़ीफे देने की व्यवस्था की।

प्रश्न 4.
दिल्ली सल्तनत के केन्द्रीय शासन का वर्णन करो।
उत्तर-
केन्द्रीय शासन का मुखिया सुल्तान स्वयं था। इसकी सहायता के लिए कई मन्त्री थे। सबसे महत्त्वपूर्ण मन्त्री वित्तीय व्यवस्था तथा लगान का मन्त्री था। इस को ‘वजीर’ कहा जाता था। उसकी सहायता के लिए एक महालेखाकार (मुशरिफ) तथा एक महालेखापरीक्षक (मुस्तौफी) थे। सैनिक संगठन के मन्त्री को ‘आरिज़-ए-मुमालिक’ कहते थे। शाही पत्र-व्यवहार के मन्त्री को ‘दबीर-ए-खास’ तथा गुप्तचर विभाग के मन्त्री को ‘बरीद-ए-खास’ कहा जाता था। अन्य विषयों के मन्त्री ‘वजीर’ से कम महत्त्वपूर्ण तथा कम शक्तिशाली थे। यहां तक कि धार्मिक मामलों तथा न्याय का मन्त्री भी (जिसको ‘शेखअल-इस्लाम’ कहते थे) ‘वजीर’ जितना महत्त्वपूर्ण नहीं था। इनके अतिरिक्त, सुल्तान के महलों तथा उसके दरबारों की देखरेख करने के लिए भी अधिकारी थे। इनमें महलों तथा शाही कारखानों के लिए ‘वकील-ए-दर’ तथा दरबार के लिए ‘अमीरए-हाजिब’ मुख्य थे।

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प्रश्न 5.
दिल्ली सल्तनत के सैनिक प्रबन्ध के विषय में लिखो।
उत्तर-
सुल्तानों ने विशाल स्थायी सेना का संगठन किया। इसका प्रधान दीवान-ए-अर्ज होता था। केन्द्रीय सेना के अतिरिक्त प्रान्तीय सूबेदार भी अपने पास सेना रखते थे। वे समय पड़ने पर सुल्तान की सहायता करते थे। सेना के चार प्रमुख अंग थे जिनमें सबसे प्रमुख घुड़सवार सेना थी। युद्ध में हाथियों का भी प्रयोग होता था जो सेना का दूसरा अंग था। तीसरा अंग पैदल सेना थी। अस्त्रों-शस्त्रों में तलवार, बर्छा, भाले तथा धनुष बाणों का प्रयोग किया जाता था। सुल्तानों का सैनिक संगठन दाशमिक प्रणाली पर आधारित था। 10 घुड़सवारों पर सरेखैल नामक अधिकारी होता था और 10 सरेखैल पर एक सिपाहसालार होता था। इसी प्रकार 10 सिपाहसालारों पर एक अमीर होता था, 10 अमीरों पर एक मालिक और 10 मालिकों पर एक खान होता था। सेना का आकार समय-समय पर परिवर्तित होता रहता था।

प्रश्न 6.
रजिया सुल्तान में एक शासक के सभी गुण विद्यमान् थे, परन्तु फिर भी वह असफल रही। उसकी असफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि रज़िया एक सर्वगुण सम्पन्न शासिका थी। वह मरदाने कपड़े पहनकर खुले दरबार में बैठती थी। वह अच्छा न्याय करती थी और प्रजा की उन्नति का ध्यान रखती थी। फिर भी अन्त में उसके शत्रुओं की विजय हुई। इसके कई कारण थे : –

1. रज़िया की सबसे बड़ी दुर्बलता यह थी कि वह एक स्त्री थी। एल्फन्स्टोन लिखता है, “रज़िया स्त्री थी। उसकी इस दुर्बलता ने उसके और सभी गुणों को ढांप लिया था।”

2. रज़िया ने अपने प्रेम-सम्बन्धों द्वारा अपना पक्ष कमज़ोर कर लिया। जलालुद्दीन याकूब नामक हब्शी दास पर उसकी विशेष कृपा थी। इसलिए अनेक सरदार तथा अमीर रज़िया के विरुद्ध हो गए और षड्यन्त्र रचने लगे।

3. सरदार तथा अमीर किसी स्त्री के अधीन रहना पसन्द नहीं करते थे। इसलिए उन्होंने रज़िया से छुटकारा पाने के लिए अनेक योजनाएं बनाई और अन्त में उसका वध कर दिया।

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प्रश्न 7.
दक्षिण में अलाऊद्दीन खिलजी की सफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
दक्षिण में अलाऊद्दीन खिलजी की सफलता के मुख्य कारण ये थे

1. अलाऊद्दीन खिलजी की दक्षिण के विषय में व्यक्तिगत जानकारी-सुल्तान बनने से पूर्व ही अलाऊद्दीन दक्षिण में देवगिरि पर आक्रमण कर चुका था। अपने व्यक्तित्व अनुभव के आधार पर उसने काफूर को उचित आदेश दिए जिसके कारण वह विजयी रहा।

2. मलिक काफूर की सैनिक योग्यता-काफूर योग्य सेनानायक सिद्ध हुआ। वह एक प्रदेश विजय करने के पश्चात् दूसरा प्रदेश विजय करने के लिए आगे बढ़ता गया। उसके सैनिक कारनामों की सूचनाएं दक्षिण के राजाओं को पहले से ही मिल जाती थीं और वे उससे लड़ने का साहस खो बैठते थे।

3. दक्षिण के राजाओं में फूट-दक्षिण के राजा अलाऊद्दीन की सेनाओं से मिलकर न लड़े। परिणामस्वरूप मलिक काफूर के लिए उन्हें अलग-अलग पराजित करना सरल हो गया।

4. धार्मिक जोश-मुसलमानों में धार्मिक जोश था। मलिक काफूर और उसके सैनिक इस्लाम के नाम पर लड़े। उन्होंने कई लोगों को मुसलमान बनाया और दक्षिण में मस्जिदें बनाईं।

प्रश्न 8.
अलाऊद्दीन खिलजी की बाज़ार-नियन्त्रण नीति की विवेचना कीजिए।
अथवा
अलाऊद्दीन खिलजी के आधुनिक सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी एक सफल राजनीतिज्ञ और महान् अर्थशास्त्री था। अतः उसने बाजारों पर नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास किया। इस उद्देश्य से उसने तीन प्रकार के बाजारों की स्थापना की-एक खाद्यान्न के लिए, दूसरा घोड़ों, दासों तथा गाय-बैलों के लिए, तीसरा आयात की गई मूल्यवान् वस्तुओं के लिए। उसने इन सभी वस्तुओं के बाजार मूल्य निश्चित कर दिये। सभी दुकानदारों के लिए यह भी आवश्यक था कि वे दुकानों पर मूल्य सूची लगायें। अलाऊद्दीन खिलजी ने वस्तुओं के एकत्रीकरण और वितरण की भी उचित व्यवस्था की। वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए मुल्तानी सौदागर तथा बंजारे नियुक्त किए गए। वस्तुओं के उचित वितरण के लिए राशम-प्रणाली आरम्भ की गई। राशन व्यवस्था तथा मण्डियों के उचित प्रबन्ध के लिए अलग विभाग की स्थापना की गई जिसे ‘दीवान-ए-रियासत’ कहते थे।

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प्रश्न 9.
अलाऊद्दीन खिलजी की कृषि-नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी को मंगोलों के आक्रमणों का सफलतापूर्वक सामना करने तथा साम्राज्य को सुदृढ़ बनाने के लिए बहुत से धन की आवश्यकता थी। अत: उसने कृषि की ओर विशेष ध्यान दिया ताकि राज्य को अधिक-से-अधिक लगान प्राप्त हो। उसने लगान-प्रणाली में भी कई सुधार किये। राज्य की सारी भूमि की पैमाइश करवाई कई तथा उपज का आधा भाग भूमि कर के रूप में निश्चित किया गया। अपनी भूमि-कर प्रणाली को सफल बनाने के लिए उसने ये पग उठाये थे(1) राजस्व अधिकारियों को रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार से बचाने के लिए उनके वेतन बढ़ा दिए गए। (2) किसानों से बचा हुआ भूमिकर उगाहने के लिए अलाऊद्दीन ने मस्तराज नामक अधिकारी की नियुक्ति की। (3) किसान भूमि-कर नकदी अथवा उपज के रूप में दे सकते थे। सुल्तान तो चाहता था किसान नकदी के स्थान पर उपज का ही कुछ भाग कर के रूप में दिया करें।

प्रश्न 10.
अपने शासन को सुदृढ़ करने के लिए अलाऊद्दीन खिलजी ने क्या कार्य किए ?
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी ने अपने शासन को सुदृढ़ बनाने के लिए मुख्य रूप से ये चार कार्य किए-

  • उसने बाहरी आक्रमणों से सुरक्षा के लिए एक विशाल तथा शक्तिशाली सेना का संगठन किया।
  • अलाऊद्दीन खिलजी के समय मंगोल दिल्ली सल्तनत के लिए बहुत बड़ा खतरा बने हुए थे। अलाऊद्दीन ने इन्हें इतनी बुरी तरह पराजित किया कि वे एक लम्बे समय तक दिल्ली राज्य पर आक्रमण करने का साहस न कर सके।
  • अलाऊद्दीन ने सेना तथा गुप्तचरों की सहायता से आन्तरिक विद्रोही तत्त्वों को बुरी तरह कुचला। उसने बाज़ार-नियमों को भी लागू किया ताकि लोगों को सस्ता तथा उचित भोजन मिल सके।
  • अलाऊद्दीन खिलजी ने शासन पर मुल्लाओं के प्रभाव को समाप्त कर दिया। फलस्वरूप सुल्तान की शक्ति एवं प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई और वह स्वतन्त्र रूप से शासन चलाने लगा।

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प्रश्न 11.
मुहम्मद तुगलक की योजनाओं (प्रयोगों) की असफलता के क्या कारण थे ?
उत्तर-
मुहम्मद तुग़लक की योजनाओं की असफलता के मुख्य कारण ये थे-
1. मुहम्मद तुग़लक किसी योजना पर अडिग नहीं रहता था। उसने दिल्ली के स्थान पर देवगिरि को राजधानी बनाया और फिर दिल्ली को ही राजधानी बना लिया। उसने सांकेतिक मुद्रा चलाई और फिर उसे वापिस लेने का निश्चय कर लिया। इस अस्थिर स्वभाव के कारण उसकी योजनाएं असफल रहीं।

2. मुहम्मद तुग़लक तथा उसके अधिकारी बड़ी सख्ती का व्यवहार करते थे। दिल्ली की जनता को विवश करके देवगिरि ले जाया गया। किसानों से अकाल की स्थिति में भी कर उगाहने का प्रयत्न किया गया। अतः उसकी योजनाओं को असफल होना स्वाभाविक ही था।

3. मुहम्मद तुग़लक जी खोलकर दान दिया करता था। इसके अतिरिक्त उसकी योजनाओं पर बहुत अधिक व्यय हुआ। इन सब के कारण राजकोष खाली हो गया।

4. मुहम्मद तुग़लक के दरबारी स्वामिभक्त नहीं थे। उनमें आपसी तालमेल का अभाव था। इस तथ्य ने भी उसकी असफलता के बीज बोये।

प्रश्न 12.
फिरोज़ तुगलक के प्रशासनिक कार्यों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
फिरोज़ तुग़लक ने सभी अनुचित करों को समाप्त कर दिया। उसने केवल वही चार कर रहने दिए जिनकी कुरान अनुमति देता था। उसने कृषि को उन्नति के लिए स्थान-स्थान पर नहरें तथा कुएं खुदवाए। अतिरिक्त भूमि को हल के नीचे लाया गया। फिरोज़ तुग़लक ने अपराधियों को दिए जाने वाले अमानवीय दण्ड कम कर दिए। उसने राज्य में कई नए सिक्के चलाए। निर्धन व्यक्तियों के लिए छोटे सिक्के बनाए गए। उसने प्रजा की भलाई के लिए ‘दीवान-ए-खैरात’ नामक एक अलग विभाग की स्थापना की। परन्तु उसने कुछ दोषपूर्ण कार्य भी किए। उसने जागीरदारी की प्रथा फिर से आरम्भ कर दी। यह प्रथा शासन के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हुई। उसे दास रखने का बड़ा चाव था। उसके पास एक लाख अस्सी हज़ार दास थे। इन दासों पर धन पानी की तरह बहाया जाता था। इससे राजकोष पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। सबसे बढ़कर उसने हिन्दू जाति पर बहुत अत्याचार किए।

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प्रश्न 13.
15वीं शताब्दी में उदय होने वाले राज्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
15वीं शताब्दी में उभरने वाले प्रमुख प्रान्तीय राज्य ये थे-

  1. शर्की वंश का राज्य-इस राज्य की स्थापना 1394 ई० में हुई थी। यह राज्य पूर्वी भारत में था। इस वंश के शासकों के अन्तर्गत जौनपुर कला और साहित्य का प्रसिद्ध केन्द्र बना। इसे पूर्व का ‘शीराज़’ कहा जाने लगा।
  2. बंगाल-दूसरा प्रमुख राज्य बंगाल का था। यूं तो बंगाल पर दिल्ली के सुल्तान कभी पूर्ण रूप से अधिकार न कर पाए परन्तु इस काल में बंगाल पूरी तरह स्वतन्त्र हो गया। यहां के शासकों के अधीन बंगला साहित्य और भाषा की बड़ी उन्नति
  3. मालवा-तीसरा स्वतन्त्र राज्य मालवा था। वहां के शासकों ने संगीत को काफ़ी प्रोत्साहन दिया।
  4. गुजरात -चौथा स्वतन्त्र राज्य गुजरात का था। इस राज्य का प्रमुख शासक अहमदशाह (1411-1442 ई०) था। उसने अहमदाबाद नामक नगर की स्थापना की और उसे अपने राज्य की राजधानी बनाया।

प्रश्न 14.
बलबन ने दिल्ली सल्तनत को किस प्रकार संगठित किया ?
अथवा
बलबन को दास वंश का महान् शासक क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
बलबन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक कार्य किए। सबसे पहले उसने ‘लौह और रक्त नीति’ द्वारा आन्तरिक विद्रोहों का दमन किया और राज्य में शान्ति स्थापित की। बलबन ने दोआब क्षेत्र के सभी लुटेरों और डाकुओं का वध करवा दिया। उसने मंगोलों से राज्य की सुरक्षा के लिए महत्त्वपूर्ण सैनिक सुधार किये। पुराने सिपाहियों के स्थान पर नये योग्य सिपाहियों को भर्ती किया गया। सीमावर्ती किलों को भी सुदृढ़ बनाया गया। उसने बंगाल के विद्रोही सरदार तुगरिल खां को भी बुरी तरह पराजित किया। बलबन ने राज दरबार में कड़ा अनुशासन स्थापित किया। उसने सभी शक्तिशाली सरदारों से शक्ति छीन ली ताकि वे कोई विद्रोह न कर सकें। उसने अपने राज्य में गुप्तचरों का जाल-सा बिछा दिया। इस प्रकार के कार्यों से उसने दिल्ली सल्तनत को आन्तरिक विद्रोहों और बाहरी आक्रमणों से पूरी तरह सुरक्षित बनाया। इसी कारण ही बलबन को दास वंश का महान् शासक कहा जाता है।

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प्रश्न 15.
13वीं शताब्दी के दिल्ली सल्तनत के काल के लिए सबसे उपयुक्त नाम क्या है और क्यों ? .
उत्तर-
13वी शताब्दी में दिल्ली सल्तनत के लिये उपयुक्त नाम दास वंश या गुलाम वंश है। इसका कारण यह है कि इस शताब्दी के सभी सुल्तान या तो स्वयं दास थे या दासों की सन्तान थे। कुतुबुद्दीन ऐबक गौरी का दास था, इल्तुतमिश कुतुबुद्दीन ऐबक का दास था और बलबन इल्तुतमिश का दास था। निस्सन्देह ये सभी दास शासक शक्तिशाली सुल्तान थे। इतिहासकार दास वंश की जगह इन दास शासकों को इलबरी तुर्क भी कहते हैं। परन्तु ये दास शासक एक परिवार से सम्बन्धित नहीं हैं। इलबरी तुर्कों को एक राजवंश का सदस्य नहीं कहा जा सकता। अतः उन्हें दास वंश का नाम देना अधिक उपयुक्त

प्रश्न 16.
दक्षिण भारत की विजयों के लिए अलाऊद्दीन ने किस प्रकार की नीति अपनाई ? (M. Imp.)
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिलजी प्रथम मुस्लिम सुल्तान था, जिसने दक्षिणी भारत के प्रदेशों को भी विजय करने की योजना बनाई और इसका कार्यभार उसने अपने सेनापति मलिक काफूर को सौंपा। दक्षिण में उसने कुल मिलाकर चार राज्य जीते। इनके नाम थे-देवगिरि, वारंगल, द्वारसमुद्र तथा मदुरै। उसने दक्षिण में विजित इन राज्यों के प्रति एक विशेष नीति अपनाई। उसने इन राज्यों के शासकों से केवल अपनी अधीनता स्वीकार करवाई और उनसे धन प्राप्त किया। उसने दक्षिण के इन प्रदेशों को अपने साम्राज्य में न मिलाया। वह इस बात को भली-भांति जानता था कि दक्षिण के सुदूर प्रदेशों पर नियन्त्रण रखना उसके लिए बहुत कठिन होगा। वास्तव में उसके अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लिए ही दक्षिण को अपना निशाना बनाया था। अपने इस उद्देश्य में उसे पूरी तरह सफलता मिली।

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प्रश्न 17.
मुहम्मद-बिन-तुगलक के किन प्रशासनिक प्रयोगों के कारण लोगों में असन्तोष फैला ?
उत्तर-
मुहम्मद-बिन-तुग़लक के निम्नलिखित प्रशासनिक प्रयोगों के कारण लोगों में असन्तोष फैल गया(1) उसने धन-प्राप्ति के लिए दोआब के उपजाऊ प्रदेश में किसानों पर भारी कर लगा दिए। अकाल के कारण किसान इन करों को देने में असमर्थ थे, इसलिए वे अपनी जमीनें छोड़कर भाग गए। (2) 1328-29 ई० में मुहम्मद तुग़लक ने अपनी राजधानी दिल्ली की बजाए दौलताबाद में बनाई। दिल्ली की जनता को भी दौलताबाद जाने के लिए विवश किया गया परन्तु थोड़े ही समय में उसने फिर उन लोगों को दिल्ली चलने का आदेश दिया। (3) इसी बीच तारमशीरी खां के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर आक्रमण कर दिया। मुहम्मद तुग़लक उनका सामना करने के स्थान पर उन्हें धन देकर वापस भेजने लगा। (4) मुहम्मद तुग़लक ने सोने-चांदी के सिक्कों के स्थान पर तांबे के सिक्के भी चलाए। परन्तु लोगों ने अपने घरों में ही ये सिक्के बनाने आरम्भ कर दिए। अतः यह योजना भी असफल रही।

प्रश्न 18.
फिरोज़ तुगलक की कौन-सी नीतियों ने सल्तनत के पतन में योगदान दिया ?
उत्तर-
फिरोज़ तगलक एक कट्टर मुसलमान था। उसने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। उनके मन्दिरों और पवित्र मूर्तियों को बड़ी निर्दयता से तोड़ा गया। हिन्दुओं को उच्च पदों से वंचित कर दिया गया। उन पर जजिया भी लगा दिया गया। इससे हिन्दू उसके विरुद्ध हो गए। इसके अतिरिक्त उसकी सैनिक अयोग्यता के कारण साम्राज्य कमजोर हो गया। देश षड्यंत्रों, और विद्रोहियों का गढ़ बन गया। उसने दण्ड विधान को नर्म बना दिया। इससे भी विद्रोहियों और अपराधियों को बहुत सहारा मिला। दासों के प्रति अत्यधिक प्रेम, उन पर राजकोष का अपव्यय, दानशीलता और सामन्त प्रथा ने साम्राज्य को खोखला कर दिया। फिरोज़ तुग़लक की इन्हीं नीतियों ने सल्तनत के पतन में योगदान दिया।

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प्रश्न 19.
क्या दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र कहना उपयुक्त होगा ?
उत्तर-
धर्म-तन्त्र से हमारा अभिप्राय पूर्ण रूप से धर्म द्वारा संचालित राज्य से है। दिल्ली सल्तनत के कई सुल्तान खलीफा के नाम पर राज्य करते थे और कुछ ने तो अपने समय के खलीफा से मान्यता-पत्र भी लिया था। परन्तु वास्तव में खलीफा की मान्यता का सुल्तान की शक्ति का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता था। सुल्तान से शरीअत (इस्लामी कानून) के अनुसार कार्य करने की अपेक्षा की जाती थी। परन्तु उसकी नीति एवं कार्य प्रायः उस समय की परिस्थितियों पर निर्भर करते थे। कभीकभी शरीअत के कारण कुछ जटिल समस्याएं भी उत्पन्न हो जाती थीं। ऐसे समय सुल्तान जानबूझ कर अनदेखी कर देते थे। वास्तव में जब कोई सुल्तान शरीअत की दुहाई देता था तो यह साधारणत: उसकी शासक के रूप में कमजोरी का चिन्ह माना जाता था। इसलिए दिल्ली सल्तनत को एक धर्म-तन्त्र समझना उचित नहीं होगा।

प्रश्न 20.
दिल्ली सल्तनत के अधीन ‘इक्ता’ व्यवस्था के बारे में बताएं।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के अधीन अधिकांश कर्मचारियों को नकद वेतन देने की बजाए भूमि से लगान इकट्ठा करने का
गांवों या परगनों का लगान दिया जाता था। इस प्रकार एकत्रित किए गए लगान को ‘इक्ता’ कहा जाता था। इसका अर्थ थाभूमि से उपज का एक हिस्सा। इसका कुछ भाग उच्च अधिकारी अपने अधीन कर्मचारियों तथा सैनिकों को वेतन के रूप में दे सकते थे। इस व्यवस्था के अन्तर्गत एक साधारण घुडसवार सैनिक को भी वेतन भूमि के लगान के रूप में दिया जा सकता था। यह व्यवस्था फिरोज तुग़लक तथा बाद में लोधी सुल्तानों के काल में अधिक प्रचलित हो गई। समय बीतने पर इक्ता प्रणाली को ‘जागीरदारी प्रबन्ध’ कहा जाने लगा। अब लगान एकत्रित करने के लिए दी गई भूमि को जागीर तथा जागीरदार की उपमा दी गई।

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प्रश्न 21.
दिल्ली के सुल्तानों के शासक वर्ग के साथ किस प्रकार के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
सल्तनत काल में शासक वर्ग में मुख्यत: बड़े-बड़े अमीरों तथा सरदारों की गणना होती थी। सुल्तान और अमीरों के आपसी सम्बन्ध प्रशासनिक दृष्टिकोण से बड़े महत्त्वपूर्ण थे। इन सम्बन्धों में कभी-कभी तनाव भी रहता था। इल्तुतमिश के समय में यह सम्बन्ध अच्छे थे। परन्तु उसके उत्तराधिकारियों के समय में अमीर बहुत शक्तिशाली हो गए थे। बलबन ने सुल्तान की शक्ति बढ़ाने के लिए अमीरों की शक्ति का दमन कर दिया था। अलाऊद्दीन खिलजी के समय में तो सुल्तान का दबदबा चरम सीमा तक पहुंच गया। अन्तिम सुल्तान इब्राहिम लोधी ने पठान अमीरों को दबाने का असफल प्रयत्न किया, जिसके परिणामस्वरूप सल्तनत भीतर ही भीतर कमजोर हो गई। यहां तक कि पंजाब के लोधी सूबेदार दौलत खां ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का सुझाव देने से भी संकोच न किया।

प्रश्न 22.
सल्तनत काल की भवन निर्माण कला की मुख्य विशेषताएं क्या थीं।
उत्तर-
सल्तनत काल की भवन निर्माण कला की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं-
1. सल्तनत काल के सबसे प्रभावशाली स्मारक मस्जिदें हैं। उदाहरण के लिए गौड़ की अदीना और तांतीपाड़ा मस्जिद, जौनपुर की अटाला और जामा मस्जिद तथा अहमदाबाद और चम्पानेर की मस्जिदें बड़ी प्रभावशाली हैं। दिल्ली की कुव्वतअल-इस्लाम मस्जिद अन्यों की अपेक्षा अधिक प्रसिद्ध है। अजमेर की अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद भी बड़ी प्रभावशाली है।

2. कुतुबमीनार इस काल का विशेष उल्लेखनीय भवन है। इसका निर्माण कार्य भी ऐबक ने आरम्भ किया था तथा इल्तुतमिश ने इसे पूरा किया था।

3. इस काल की वास्तुकला में मस्जिदों के पश्चात् सुल्तानों के मकबरों का महत्त्व है। इनमें विशेष उल्लेखनीय मकबरे दिल्ली, अहमदाबाद और माण्डू में स्थित हैं।

4. उत्तरी भारत में केवल राजस्थान ही ऐसा प्रदेश था जहां प्रभावशाली मन्दिरों का निर्माण होता रहा। चित्तौड़ में राणा कुम्भा का बनवाया चौमुखा मन्दिर, ग्वालियर में राजा मानसिंह का महल और चित्तौड़ में राणा कुम्भा का विजय स्तम्भ मन्दिर कला के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

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प्रश्न 23.
मंगोलों को आगे बढ़ने के लिए दिल्ली के सुल्तानों में क्या पग उठाए ?
उत्तर-
मंगोलों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए दिल्ली के सुल्तानों ने अनेक पग उठाए। इस सम्बन्ध में बलबन तथा अलाऊद्दीन खिलजी की भूमिका विशेष महत्त्वपूर्ण रही जिसका वर्णन इस प्रकार है

1. उन्होंने सीमावर्ती प्रदेशों में नए दुर्ग बनवाए और पुराने दुर्गों की मुरम्मत करवाई। इन सभी दुर्गों में योग्य सैनिक अधिकारी नियुक्त किए गए।

2. उन्होंने मंगोलों का सामना करने के लिए अपने सेना का पुनर्गठन किया। वृद्ध तथा अयोग्य सैनिकों के स्थान पर युवा सैनिकों की भर्ती की गई। सैनिकों की संख्या में भी वृद्धि की गई।

3. सुल्तानों ने द्वितीय रक्षा-पंक्ति की भी व्यवस्था की। इसके अनुसार मुल्तान, दीपालपुर आदि प्रान्तों में विशेष सैनिक टुकड़ियां रखी गईं और विश्वासपात्र अधिकारी नियुक्त किए। अतः यदि मंगोल सीमा से आगे बढ़ भी आते तो यहां उन्हें कड़े विरोध का सामना करना पड़ता।

4. सुल्तानों ने मंगोलों को पराजित करने के पश्चात् कड़े दण्ड दिए। इसका उद्देश्य उन्हें सुल्तान की शक्ति के आंतकित करके आगे बढ़ने से रोकना ही था।

प्रश्न 24.
दिल्ली सल्तनत के पतन के कोई चार कारण बताओ।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के पतन के अनेक कारण थे। इनमें से चार कारणों का वर्णन इस प्रकार है-
1. धार्मिक पक्षपात-दिल्ली के सुल्तानों ने धार्मिक पक्षपात की नीति अपनायी। उन्होंने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। परिणामस्वरूप हिन्दू दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध हो गए। वह बात दिल्ली सल्तनत के पतन का मुख्य कारण बनी।

2. उत्तराधिकार के नियम का अभाव-दिल्ली के सुल्तानों में उत्तराधिकार का कोई उचित नियम नहीं था। फलस्वरूप
अधिकतर सुल्तानों ने अपने से पहले सुल्तान का वध करके राजगद्दी प्राप्त की। इन षड्यन्त्रों और हत्याओं के कारण दिल्ली सल्तनत की शक्ति दिन-प्रतिदिन कम हो गई।

3. निरंकुश शासन-दिल्ली के सुल्तानों का शासन निरंकुश था। शासन की सारी शक्तियां सुल्तान में ही केन्द्रित थीं। अत: शासन केवल तभी स्थिर रह सकता था जब केन्द्र में कोई शक्तिशाली शासक हो, परन्तु फिरोज तुग़लक की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के सभी सुल्तान निर्बल सिद्ध हुए। परिणामस्वरूप केन्द्रीय शक्ति शिथिल पड़ गई।

4. तैमूर का आक्रमण-1398 ई० में तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया। उस के आक्रमण से दिल्ली सल्तनत को जनधन की भारी हानि उठानी पड़ी। इसके अतिरिक्त उसने सल्तनत राज्य की राजनीतिक शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मुहम्मद गौरी के भारतीय सैनिक अभियानों का वर्णन कीजिए। इनके क्या प्रभाव पड़े।
अथिवा
तराइन की पहली तथा दूसरी लड़ाई का वर्णन करते हुए मुहम्मद गौरी के किन्हीं पांच भारतीय सैनिक अभियानों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
मुहम्मद गौरी एक महान् योद्धा तथा कुशल सेनानायक था। वह 1173 ई० में गजनी का शासक बना। 1175 ई० से 1206 ई० तक उसने भारत पर अनेक आक्रमण किये और इस देश में मुस्लिम राज्य की स्थापना की। उसके मुख्य आक्रमणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. मुल्तान तथा उच्च की विजय-मुहम्मद गौरी ने भारत का पहला आक्रमण 1175-76 ई० में किया। उसने मुल्तान के कारमाथी कबीले को परास्त किया और मुल्तान पर अधिकार कर लिया। मुल्तान विजय के पश्चात् उसने उच्च के दुर्ग पर भी अधिकार कर लिया।

2. अनहिलवाड़ा पर आक्रमण-अनहिलवाड़ा में उन दिनों भीमदेव द्वितीय का शासन था। उसने गौरी को करारी पराजय दी और उसे अपमानित होकर स्वदेश लौटना पड़ा।

3. लाहौर पर आक्रमण-अब मुहम्मद गौरी ने अपना ध्यान पंजाब की ओर लगाया। पंजाब में महमूद गज़नवी के प्रतिनिधि मलिक खुसरो का शासन था। 1179 ई० में गौरी ने पंजाब पर आक्रमण करके यहाँ के बहुत-से प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1186 ई० में उसने एक बार फिर खुसरो पर आक्रमण किया। इस युद्ध में गौरी ने धोखे से खुसरो को बन्दी बना लिया और उसकी हत्या करवा दी।

4. तराइन का पहला युद्ध-पंजाब विजय के बाद मुहम्मद गौरी दिल्ली की ओर बढ़ा। उसने 1191 ई० में वहाँ के शासक पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण कर दिया। परन्तु तराइन के स्थान पर पृथ्वीराज ने मुहम्मद गौरी को बुरी तरह हराया।

5. तराइन का दूसरा युद्ध-अपनी पराजय का बदला लेने के लिए गौरी ने अगले वर्ष (1192 ई० में) पुनः दिल्ली के राज्य पर आक्रमण किया। इस बार कन्नौज के राजा जयचन्द ने भी उसका साथ दिया। तराइन के स्थान पर गौरी और पृथ्वीराज की सेनाओं में एक बार फिर युद्ध हुआ। इस बार मुहम्मद गौरी विजय रहा। पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर उसका वध कर दिया गया।

6. कन्नौज पर आक्रमण-1194 ई० में मुहम्मद गौरी ने कन्नौज पर आक्रमण किया। छिंदवाड़ा के स्थान पर उसकी तथा जयचन्द की सेनाओं में भयंकर युद्ध हुआ। राजपूत असाधारण वीरता से लड़े, पर भाग्य ने गौरी का साथ दिया। इस युद्ध में जयचन्द की पराजय हुई और गौरी को अपार धन प्राप्त हुआ।

7. अजमेर, अनहिलवाड़ा, हाँसी तथा कालिंजर पर अधिकार-कन्नौज विजय के बाद गौरी पुनः गज़नी लौट गया। उसकी अनुपस्थिति में उसके प्रतिनिधि कुतुबुद्दीन ऐबक ने अपने अभियान जारी रखे। उसने अजमेर, अनहिलवाड़ा, हाँसी और कालिंजर पर अधिकार कर लिया।

8. बिहार और बंगाल की विजय-कुतुबुद्दीन के सेना नायक बख्तियार खिलजी ने बिहार पर आक्रमण करके वहाँ के राजा इन्द्रदमन को परास्त किया। उसने यहाँ बहुत लूटमार की और अनेक बौद्ध भिक्षुओं को मौत के घाट उतार दिया। इसके पश्चात् बख्तियार खिलजी ने बंगाल के राजा लक्ष्मण सेन को हराकर वहाँ भी अपना अधिकार जमा लिया।

9. खोखरों का दमन-जेहलम और चिनाब के बीच के क्षेत्र के खोखरों ने गौरी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। परन्तु गौरी ने धैर्य न छोड़ा और अपने स्वामिभक्त दास ऐबक के सहयोग से खोखरों को बुरी तरह कुचल डाला।

मुहम्मद गौरी के आक्रमणों के प्रभाव-

  • मुहम्मद गौरी के आक्रमणों के परिणामस्वरूप भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना हुई।
  • मुहम्मद गौरी ने भारत में दिल्ली, अजमेर, रणथम्भौर तथा कुछ अन्य राजपूत राजाओं को पराजित किया। फलस्वरूप राजपूत शक्ति को भारी क्षति पहुंची।
  • उसके आक्रमणों का भारत के आर्थिक जीवन पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।
  • मुहम्मद गौरी ने भारत में अनेक मन्दिरों, विहारों तथा पुस्तकालयों को नष्ट कर दिया। इसके अतिरिक्त मुसलमान सैनिकों ने अनके धार्मिक तथा ऐतिहासिक ग्रन्थों को जला दिया। फलस्वरूप भारतीय संस्कृति के अनेक स्मारक नष्ट हो गए।

प्रश्न 2.
कुतुबुद्दीन ऐबक के जीवन तथा सफलताओं का वर्णन करो।
अथवा
(क) मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में तथा स्वतंत्र शासक के रूप में कुतुबुद्दीन ऐबक की सफलताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
कुतुबुद्दीन ऐबक का जन्म एक तुर्क परिवार में हुआ। बचपन में ही वह अपने माता-पिता से अलग हो गया और उसे निशानपुर के काजी ने खरीद लिया। काजी की कृपा-दृष्टि से ऐबक ने उसके पुत्रों के साथ लिखना-पढ़ना, तीर चलाना तथा घुड़सवारी सीख ली। काजी की मृत्यु पर उसके पुत्रों ने ऐबक को एक व्यापारी के पास बेच दिया। यह व्यापारी उसे गज़नी ले गया जहां उसे गौरी ने खरीद लिया। इससे उसके जीवन में एक नया अध्याय आरम्भ हुआ और वह अन्त में दिल्ली का शासक बना।

कुतुबुद्दीन ऐबक की सफलताएं-कुतुबुद्दीन ऐबक की सफलताओं को दो भागों में बांटा जा सकता है-

I. मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में-1192 ई० से लेकर 1206 ई० तक ऐबक भारत में गौरी के प्रतिनिधि के रूप में शासन करता रहा। इन 14 वर्षों में कुतुबुद्दीन ऐबक ने निम्नलिखित सफलताएं प्राप्त की-

1. अजमेर, मेरठ तथा कोइल के विद्रोहों का दमन-1192 ई० में ऐबक ने अपने स्वामी मुहम्मद गौरी की अनुपस्थिति में अजमेर और मेरठ के विद्रोहों का दमन किया। उसने दिल्ली, कन्नौज और कोइल (अलीगढ़) पर भी अधिकार कर लिया।

2. अजमेर के विद्रोह का पुनः दमन-कोइल विजय के पश्चात् ऐबक पुनः अजमेर पहुंचा, जहां चौहानों ने फिर विद्रोह कर दिया। ऐबक ने इस विद्रोह को दबा दिया। उसने रणथम्भौर के दुर्ग पर अधिकार कर लिया।

3. अजमेर में मेढ़ों का दमन तथा अनहिलवाड़ा की लूट-1195 ई० में अजमेर प्रान्त के मेढ़ों ने तुर्की साम्राज्य के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। ऐबक ने मेढ़ों को सफलतापूर्वक दबा दिया। इसी वर्ष उसने गुजरात के शासक भीमदेव को भी हराया और अनहिलवाड़ा में भारी लूटमार की।

4. कालिंजर दुर्ग पर अधिकार-1202 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक ने बुन्देलखण्ड के चन्देल शासक को पराजित करके वहां के प्रसिद्ध दुर्ग कालिंजर पर अधिकार कर लिया।

5. अन्य विजयें-मुहम्मद गौरी के प्रतिनिधि के रूप में विजय प्राप्त करते हुए ऐबक ने कालपी और बदायूं को भी अपने अधिकार में ले लिया।

II. स्वतन्त्र शासक के रूप में-1206 ई० में दमयक के स्थान पर मुहम्मद गौरी का वध कर दिया गया। उसकी मृत्यु के बाद ऐबक ने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। इस तरह वह एक स्वतन्त्र शासक बन गया। स्वतन्त्र शासक के रूप में उसकी सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. ताजुद्दीन यलदौज़ से टक्कर-यल्दौज़ गौरी का सेनानायक था और उसने गौरी की मृत्यु के पश्चात् गज़नी की राजगद्दी पर बलपूर्वक अधिकार कर लिया था। ऐबक ने नासिरुद्दीन कुबाचा को साथ मिलकर उसे मार भगाया, परन्तु जल्दी ही वह दिल्ली लौट आया। उसके वापस आते ही यल्दौज़ ने गज़नी पर अधिकार कर लिया, किन्तु इसके पश्चात् उसने कभी भी कुबाचा अथवा ऐबक को परेशान नहीं किया।

2. दास्ता से मुक्ति-कुतुबुद्दीन ने गज़नी में रह कर गौरी के उत्तराधिकारियों से मुक्ति-पत्र प्राप्त कर लिया। इस प्रकार उसने अपनी दासता के कलंक को धो दिया।

3. बंगाल की अधीनता-कुतुबुद्दीन ने बंगाल को पूरी तरह से अपने अधीन करने का प्रयास किया। वहां अली मर्दान नामक सरदार ने कब्जा कर लिया था। खिलजी सरदारों ने उसे पकड़ कर जेल में डाल दिया। परन्तु वह किसी तरह बच निकला और ऐबक की शरण में आ पहुंचा। ऐबक ने खिलजी सरदारों से बातचीत की। उन्होंने ऐबक की अधीनता स्वीकार कर ली जिससे बंगाल ऐबक के अधीन हो गया।

4. मध्य एशिया की राजनीति से पृथक्कता-कुतुबुद्दीन ऐबक की एक बड़ी सफलता यह थी कि उसने स्वयं को मध्य . एशिया की राजनीति से पृथक् रखा।

5. हिन्दू सरदारों का दमन-कुतुबुद्दीन ने भारत में हिन्दू सरदारों से भी बड़ी सूझ-बूझ से मुक्ति पाई। उसने ऐसे सभी हिन्दू सरदारों की शक्ति को कुचल डाला जो उसकी सत्ता को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे।

6. प्रशासनिक सफलताएं-कुतुबुद्दीन ऐबक का शासन शुद्ध सैनिक शासन था। उसने राजधानी में एक विशाल सेना रखी हुई थी। वह बड़ा न्यायप्रिय शासक था। उसकी न्यायप्रियता की प्रशंसा करते हुए मिनहास सिराज लिखता है, “उसके राज्य में शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीते थे।”1 कुतुबुद्दीन ऐबक को कला से भी प्रेम था। कुतुबमीनार का निर्माण कार्य उसी ने आरम्भ करवाया था।

मृत्यु-कुतुबुद्दीन ऐबक चार वर्ष ही शासन कर पाया। वह 1210 ई० में चौगान खेलते समय घोड़े से गिर पड़ा और वहीं उसकी मृत्यु हो गई।

सच तो यह है कि कुतुबुद्दीन ऐबक एक महान् सेनानायक तथा कुशल शासन प्रबन्धक था। उसके कार्यों को देखते हुए डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव लिखते हैं, “कुतुबुद्दीन ऐबक भारत में तुर्क साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक था।”2

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प्रश्न 3.
अल्तमश (इल्तुतमिश) के आरम्भिक जीवन और कठिनाइयों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। उसने इन कठिनाइयों पर किस प्रकार काबू पाया ?
अथवा
अल्तमश के आरम्भिक जीवन और सफलताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
I. आरम्भिक जीवन –
अल्तमश (इल्तुतमिश) अलबारी कबीले के एक तुर्क परिवार से सम्बन्ध रखता था। उसका पूरा नाम शम्स-उद्दीनइल्तुतमिश था। वह कई व्यक्तियों के पास दास के रूप में रहा और अन्त में ऐबक ने उसे खरीद लिया। ऐबक के अधीन रहकर अल्तमश ने अपनी योग्यता का परिचय दिया। उसकी योग्यता से प्रसन्न होकर ऐबक ने उसे दासता से मुक्त कर दिया और अपनी पुत्री का विवाह भी उसी के साथ कर दिया। 1196 ई० में ऐबक ने उसे ग्वालियर का गवर्नर बना दिया। कुछ समय बाद बर्न और बदायूं का शासन-प्रबन्ध भी उसके हाथों में आ गया। इस प्रकार अल्तमश थोड़े से ही वर्षों में राज्य का महत्त्वपूर्ण अधिकारी बन गया।

कुतुबुद्दीन की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र आरामशाह सिंहासन पर बैठा। वह एक अयोग्य शासक था। अत: दिल्ली के सरदारों ने अल्तमश को राज्य सम्भालने का निमन्त्रण भेजा। उसने शीघ्र ही दिल्ली की ओर प्रस्थान किया। आते ही उसने आरामशाह को कैद कर लिया और स्वयं सुल्तान बन बैठा।

II. कठिनाइयां तथा सफलताएं
1. कुतुबी सरदारों का दमन-कुछ कुतुबी सरदारों ने अल्तमश को ऐबक का उत्तराधिकारी मानने से इन्कार कर दिया। उसने ‘जड़’ के रणक्षेत्र में इन सरदारों को बुरी तरह हराया।

2. ताजुद्दीन यल्दौज़ का दमन-गज़नी के शासक ताजुद्दीन यल्दौज़ ने अल्तमश को भारत का सुल्तान स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। अल्तमश ने तराइन के युद्ध में यल्दौज़ को बुरी तरह हराया और अपने मार्ग की एक और बाधा दूर की।

3. नासिरुद्दीन कुबाचा का दमन-ऐबक की मृत्यु के पश्चात् सिन्ध और मुल्तान से नासिरुद्दीन कुबाचा ने अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया। अल्तमश ने उसके विरुद्ध कई बार सेनाएं भेजी और उसकी शक्ति का अन्त किया

4. अली मर्दान का दमन-बंगाल और बिहार के प्रदेश ऐबक के अधीन थे, परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् वहां के शासअली मर्दान ने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। अल्तमश ने 1226 ई० तक अली मर्दान के विरुद्ध तीन बार सेनाएं भेज अन्त में वह उसका दमन करने में सफल हुआ।

III. अन्य सफलताएं –
1. खलीफा द्वारा सम्मान-अल्तमश की सफलताओं से प्रभावित होकर बगदाद के खलीफा ने 1228 ई० में अल्तम के सम्मान के लिए ‘खिल्लत’ तथा एक नियोजन पत्र भेजा। खलीफा द्वारा सम्मान पा लेने के कारण उसके सभी विरोधी शान्त हो गए।

2. राजपूतों से युद्ध-अल्तमश ने 1232 ई० में राजपूतों का दमन करने का निश्चय किया। उसने शीघ्र ही गुजरात, मालवा तथा भील्सा के राजपूतों पर विजय प्राप्त कर ली।

3. मंगोलों के आक्रमण से बचाव-अल्तमश ने खारिज्म के शासक जलालुद्दीन को शरण देने से इन्कार कर दिया था। जलालुद्दीन ने अल्तमश से शरण मांगी परन्तु उसने जलालुद्दीन को शरण न देकर अपने राज्य को मंगोलों के आक्रमण से बचा लिया।

4. कला तथा विद्या को प्रोत्साहन-अल्तमश एक कला प्रेम सुल्तान था। उसने अपने गुरु ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार की यादगार में कुतुबमीनार बनवाई। शिक्षा के प्रसार के लिए उसने कई मस्जिदें बनवाईं।

5. सच तो यह है कि अल्तमश एक योग्य तथा बुद्धिमान् शासक था। एक दास होकर सम्राट् पद प्राप्त करना अल्तमश की योग्यता का ही परिणाम था। डॉ० दत्ता ने ठीक कहा है, “अल्तमश दिल्ली सल्तनत के आरम्भिक सुल्तानों में सबसे महान् था।”

प्रश्न 4.
बलबन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ करने के लिए कौन-कौन से कार्य किए ?
अथवा
दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ बनाने में बलबन के योगदान की किन्हीं पांच बिंदुओं के आधार पर चर्चा कीजिए।
उत्तर-
प्रधानमन्त्री और शासक के रूप में बलवन ने दिल्ली सल्तनत को सुदृढ़ करने के लिए अनेक कार्य किए जिनका वर्णन इस प्रकार है
1. खोखर जाति का दमन-खोखर जाति झेलम और चिनाब के बीच के क्षेत्र में रहती थी। ये लोग बड़े उपद्रवी थे। बलबन ने एक विशाल सेना लेकर उनको कुचल डाला। उसने हज़ारों खोखरों को मौत के घाट उतार दिया।

2. दोआबा के हिन्दू राजाओं के विद्रोहों का दमन-दोआब के हिन्दू राजाओं तथा सामन्तों ने अपनी खोई हुई राजसत्ता को पुनः प्राप्त करने के लिए विद्रोह कर दिया था। बलबन एक शक्तिशाली सेना के साथ उनके विरुद्ध बढ़ा और उनका बुरी तरह से दमन किया।

3. राजपूतों के विरुद्ध अभियान-बलबन ने ग्वालियर, चन्देरी, कालिंजर तथा मालवा के विद्रोही राजपूत शासकों को पराजित करके उनके प्रदेश दिल्ली राज्य में मिला लिए।

4. मेवातियों के विद्रोहों का दमन-दिल्ली के आस-पास के प्रदेश में मेवाती सरदारों तथा डाकुओं ने आतंक फैला रखा था। 1248 ई० में बलबन ने मेवातियों के प्रदेश पर आक्रमण करके उन्हें जान और माल की भारी हानि पहुंचाई। 1259 ई० में उसने मेवात पर पुनः एक ज़ोरदार आक्रमण किया और उसने लगभग 12,000 मेवातियों को मौत के घाट उतार दिया।

5. कुतलुग खां के विद्रोह का दमन-अवध के गवर्नर कुतलुग खां ने जो बलबन का कट्टर विरोधी था, 1255 ई० में रिहान से मिलकर दिल्ली पर आक्रमण करने की योजना बनाई परन्तु वह बलबन द्वारा पराजित हुआ।

6. किश्लू खां का विद्रोह-बलबन का भाई किश्लू खां मुल्तान तथा उच्च का गवर्नर था। वह बलबन के विरुद्ध मंगोल नेता हलाकू खां से जा मिला। उसने मंगोलों से सैनिक सहायता लेकर 1257 ई० में पंजाब पर आक्रमण कर दिया। लेकिन बलबन ने उसे बुरी तरह पराजित किया।

7. मेवातियों का पुनः विद्रोह और उनका दमन-मेवात के विद्रोही एक बार फिर उत्पात मचाने लगे थे। बलबन ने एक बार फिर उन पर आक्रमण किया और उनके रक्त की नदियां बहा दीं।

8. कटेहर के हिन्दू सरदारों का दमन-मेवातियों के विद्रोह से प्रेरित होकर कटेहर (रुहेलखण्ड) के हिन्दू सरदारों ने भी विद्रोह कर दिया। परन्तु बलबन ने इन विद्रोहियों को कुचल डाला।

9. मंगोलों के आक्रमणों से देश का बचाव-उसने दिल्ली राज्य की मंगोलों के आक्रमणों से रक्षा करने के लिए उत्तरीपश्चिमी सीमा को सुदृढ़ बनाया। उसने सीमावर्ती प्रान्तों में दुर्गों और चौकियों की मुरम्मत करवाई तथा वहाँ नए किलों का निर्माण करवाया। 1279 ई० में उसने मंगोलों को इतनी बुरी तरह से परास्त किया कि वे भविष्य में बहुत समय तक भारत पर आक्रमण करने का सहस न कर सके।

10. बंगाल के विद्रोह का दमन-इसी बीच बंगाल के शासक तुगरिल खाँ ने अपने आप को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। बलबन ने एक भारी सेना लेकर उस पर आक्रमण किया तो तुगरिल खाँ भाग निकला। परन्तु बलबन के सिपाहियों ने किसी तरह ढूँढ निकाला और उसका वध कर दिया।

प्रशासनिक सुधार-बलबन ने सल्तनत को सुदृढ़ करने के लिए अनेक सुधार भी किए-

  • पैदल तथा घुड़सवार सेना का नए ढंग से संगठन किया गया।
  • सेना का उचित संचालन करने के लिए अनुभवी तथा स्वामीभक्त सरदारों को नियुक्त किया गया।
  • बलबन ने राजपद की प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए अनेक कठोर नियम बनाए। अब राजा की आज्ञा के बिना दरबार में कोई भी व्यक्ति किसी प्रकार की बात नहीं कर सकता था। उसने शराब पीना तथा रंगरलियां मनाना बन्द कर दिया। दरबार का अनुशासन भंग करने वाले दरबारी को कठोर दण्ड दिया जाता था। सच तो यह है कि, “उसने शासन व्यवस्था में नया जीवन डाल दिया और राज्य की शक्ति को नष्ट होने से बचा लिया।”

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प्रश्न 5.
अलाऊद्दीन खिलजी के प्रशासनिक, सैनिक, सामाजिक तथा आर्थिक सुधारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अलाऊद्दीन खिजली सफल विजेता होने के साथ-साथ कुशल शासन प्रबन्धक भी था। उसके प्रमुख सुधारों का वर्णन इस प्रकार है-

I. प्रशासनिक सुधार-

1. सरदारों की शक्ति कुचलना-अलाऊद्दीन ने सरदारों की शक्ति को कुचलने के लिए निम्नलिखित पग उठाए :

  • उसने अमीरों तथा सरदारों की शक्ति कम करने के लिए सबकी जागीरें छीन लीं।
  • सुल्तान ने अनेक योग्य गुप्तचरों की नियुक्ति की। वे सरकारी अधिकारियों के कार्यों पर कड़ी निगरानी रखते थे।
  • अलाऊद्दीन ने सरदारों के आपसी मेलजोल पर भी रोक लगा दी। उसने यह आदेश जारी किया कि सुल्तान की आज्ञा के बिना सरदार किसी दावत में एकत्रित नहीं हो सकते।

2. भूमि सुधार-अलाऊद्दीन खिलजी ने सारी भूमि की पैमाइश करवायी तथा उपज का आधा भाग भूमि-कर के रूप में निश्चित किया। उसने भूमि-कर प्रणाली को सफल बनाने के लिए निम्नलिखित पग उठाए :

  • राजस्व अधिकारियों को रिश्वतखोरी तथा भ्रष्टाचार से बचाने के लिए उनके वेतन बढ़ा दिए गए।
  • किसानों से बचा हुआ भूमि-कर उगाहने के लिए ‘मस्तकराज’ नामक अधिकारी की नियुक्ति की गई।
  • किसान भूमि-कर नकदी अथवा उपज के रूप में दे सकते थे।

3. उचित न्याय प्रणाली-अलाऊद्दीन एक न्यायप्रिय शासक था। न्याय का मुख्य स्रोत सुल्तान स्वयं था। सभी बड़े-बड़े अभियोगों का निर्णय वह स्वयं करता था। दण्ड बहुत कठोर थे। धनी से धनी व्यक्ति भी अपराधी सिद्ध होने पर कानून के पंजे से नहीं बच सकता था।

II. सैनिक सुधार-

  • अच्छा सैनिक संगठन-अलाऊद्दीन ने एक विशाल तथा सुदृढ़ सेना का संगठन किया। उसकी सेना में 4,75,000 घुड़सवार थे। उसके अतिरिक्त उसकी सेना में पैदल सैनिक तथा हाथी भी थे।
  • दाग तथा हुलिया प्रथा-अलाऊद्दीन ने सेना में ‘दाग’ तथा ‘हुलिया’ के नियम आरम्भ किये। दाग के अनुसार प्रत्येक सरकारी घोड़े को दागा जाता था। ‘हुलिया’ के अनुसार प्रत्येक सैनिक का हुलिया दर्ज कर लिया जाता था।
  • दुर्गों का निर्माण-अलाऊद्दीन ने उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रदेशों में नवीन दुर्गों का निर्माण करवाया तथा सभी पुराने किलों की मुरम्मत करवाई।
  • नौजवान सैनिकों की नियुक्ति-अलाऊद्दीन खिलजी ने सभी निर्बल सैनिकों को हटाकर उनके स्थान पर नवयुवक सैनिकों की भर्ती की।

III. सामाजिक सुधार-

  • शराब पीने पर रोक-अलाऊद्दीन ने शाही आदेश के द्वारा शराब पर रोक लगा दी। शराब बेचने वाले तथा शराब पीने वाले को गन्दे कुओं में फेंकने का दण्ड निश्चित किया गया। उसने स्वयं भी शराब पीनी बन्द कर दी।
  • वेश्यावृत्ति पर रोक-अलाऊद्दीन ने वेश्यावृत्ति पर रोक लगा दी। अनुचित सम्बन्ध रखने वाले स्त्री-पुरुष के लिए कठोर दण्ड निश्चित कर दिये गये।
  • जुआ खेलने पर रोक-अलाऊद्दीन ने जुआ खेलने पर रोक लगा दी। यदि कोई जुआ खेलते पकड़ा जाता था तो उसे कुएँ में फेंक दिया जाता था।

IV. आर्थिक सुधार-

  • आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निर्धारित करना-सुल्तान ने सभी आवश्यक वस्तुओं के मूल्य निश्चित कर दिए। वस्तुओं के मूल्यों की सूचियाँ तैयार की गईं तथा दुकानदारों को यह आदेश दिया गया कि वे निर्धारित भावों से अधिक मूल्य पर कोई भी वस्तु न बेचें।
  • वस्तुएँ एकत्रित करना-वस्तुओं को एकत्रित करने के लिए मुल्तानी सौदागर तथा बंजारे नियुक्त किए गए। ये सभी कर्मचारी अपने चारों ओर सौ-सौ कोस की दूरी तक रहने वाले कृषकों से अनाज एकत्रित करते थे।
  • राशनिंग व्यवस्था-अलाऊद्दीन ने अपने राज्य में राशन-प्रणाली चलाई। अकाल के समय राशन-प्रणाली शुरू कर दी जाती थी।
  • अलग विभाग की स्थापना-राशन तथा मण्डियों की उचित व्यवस्था के लिए एक अलग विभाग की स्थापना की गई जिसे ‘दिवान-ए-रियासत’ कहते थे।

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प्रश्न 6.
मुहम्मद तुगलक की हवाई योजनाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
मुहम्मद तुग़लक का वास्तविक नाम जूना खाँ था। उसके राजनैतिक उद्देश्य बहुत ऊँचे थे। उसने कई नई योजनाएँ बनाईं, परन्तु सभी असफल रहीं। उसकी प्रमुख योजनाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. राजधानी बदलना-1327 ई० में मुहम्मद तुग़लक ने दिल्ली के स्थान पर दक्षिण में देवगिरि को अपनी राजधानी बनाया। देवगिरि उसके राज्य के केन्द्र में स्थित थी। उसने इस नयी राजधानी का नाम दौलताबाद रखा और अपने सभी कर्मचारियों को वहाँ जाने की आज्ञा दी। उसने दिल्ली के लोगों को भी देवगिरि जाने के लिए कहा। अनेक लोग लम्बी यात्रा के कारण मर गए। उत्तरी भारत में शासन की व्यवस्था बिगड़ गई। विवश होकर मुहम्मद तुग़लक ने फिर से दिल्ली को राजधानी बना लिया। लोगों को फिर दिल्ली जाने की आज्ञा दी गई। इस प्रकार जान-माल की बहुत हानि हुई।

2. दोआब में कर बढ़ाना-मुहम्मद तुग़लक को अपनी सेना के लिए धन की आवश्यकता थी। इसीलिए उसने 1330 ई० में दोआब में कर बढ़ा दिया, परन्तु उस साल वर्षा न हुई और दोआब में अकाल पड़ गया। किसानों की दशा बहुत बिगड़ गई। उनके पास लगान देने के लिए धन न रहा, परन्तु लगान इकट्ठा करने वाले कर्मचारी उनसे कठोर व्यवहार करने लगे। तंग आकर कई किसान जंगलों में भाग गए। बाद में सुल्तान को अपनी गलती का अनुभव हुआ तो उसने उन किसानों की सहायता की।

3. ताँबे के सिक्के चलाना-कुछ समय बाद मुहम्मद तुग़लक ने सोने तथा चाँदी के सिक्कों के स्थान पर ताँबे के सिक्के आरम्भ कर दिए। अतः लोगों के घरों में जाली सिक्के बनाने आरम्भ कर दिए और भूमि का लगान तथा अन्य कर इन्हीं सिक्कों में चुकाए, जिससे सरकार को बहुत हानि हुई।

विदेशी व्यापारियों ने भी ताँबे के सिक्के लेना अस्वीकार कर दिया। इसलिए सुल्तान ने ताँबे के सिक्के बन्द कर दिये। लोगों को इन सिक्कों के बदले चाँदी के सिक्के दिए गए। कई लोगों ने जाली सिक्के बनाकर सरकार से चाँदी के असली सिक्के लिए। इस प्रकार राज्य के कोष को बहुत हानि हुई।

4. मंगोलों को धन देना-सुल्तान जब अपनी नई राजधानी दौलताबाद ले गया तो उत्तर-पश्चिमी सीमा की ओर उसका ध्यान कम हो गया। मंगोलों ने इसका लाभ उठाया तथा उन्होंने मुल्तान तथा लाहौर में लूट-मार की। सुल्तान ने उनके आक्रमणों को रोकने के लिए मंगोल सरदार को बहुत सारा धन दिया, परन्तु मंगोलों ने धन के लालच में आ कर और अधिक आक्रमण करने आरम्भ कर दिए।

5. खुरासान पर आक्रमण की योजना-मुहम्मद तुग़लक ने खुरासान को जीतने के लिए भी एक योजना बनाई। इसलिए उसने एक विशाल सेना तैयार की। एक वर्ष तक इस सेना को वेतन भी मिलता रहा। अन्त में सुल्तान ने खुरासान पर आक्रमण करने का विचार त्याग दिया। इस योजना के कारण राज-कोष पर बहुत बोझ पड़ा।

प्रश्न 7.
फिरोज तुगलक के प्रशासन का वर्णन करो। दिल्ली सल्तनत के पतन के लिए वह कहां तक उत्तरदायी है ?
अथवा
फिरोज़ तुगलक के त्रुटिपूर्ण/दोषपूर्ण कार्यों की चर्चा करते हुए यह बताइए कि उन कार्यों ने दिल्ली सल्तनत के पतन की भूमिका किस प्रकार तैयार की ?
उत्तर-
फिरोज़ तुग़लक एक योग्य शासक था। उसने अनेक प्रशासनिक सुधार किए। परन्तु उसने कुछ बुरे कार्य भी किए। इन सब कार्यों का वर्णन इस प्रकार है :

अच्छे कार्य-
1. अनुचित करों का अन्त-फिरोज़ तुग़लक ने सभी अनुचित करों का अन्त कर दिया। व्यापारी वर्ग पर लगे अनुचित करों का अन्त कर दिया गया। इस प्रकार कृषि तथा वाणिज्य की उन्नति हुई।

2. कृषि को प्रोत्साहन-फिरोज़ तुग़लक ने कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए अनेक नहरें तथा कुएं खुदवाए। अतिरिक्त भूमि को हल तले लाया गया। इस प्रकार प्राप्त भूमि-कर से सरकार की आय में वृद्धि हुई।

3. प्रजा हितार्थ कार्य-फिरोज़ तुग़लक ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए भी बहुत से कार्य किए। उसने ‘दीवान-एखैरात’ नामक एक अलग विभाग की स्थापना की। इसके दो भाग थे-(1) रोजगार विभाग (2) विवाह विभाग। कोतवाल हर नगर के बेरोज़गार लोगों के नाम दर्ज कर लेता था। सुल्तान इतना दयालु था कि वह बेरोज़गार तथा ज़रूरतमन्द लोगों के लिए नई-नई नौकरियों पैदा कर देता था। विवाह विभाग का काम उन व्यक्तियों की सूची तैयार करना था जिन्हें अपनी पुत्रियों के विवाह के लिए शाही सहायता की आवश्यकता होती थी।

4. दण्ड विधान में सुधार-फिरोज़ तुगलक ने अपराधियों को दी जाने वाली यातनाओं-जैसे अंगों का काटना और मृत्यु-दण्ड पर रोक लगा दी। परन्तु दण्ड विधान सम्बन्धी सुधारों का लाभ केवल मुसलमान प्रजा को ही हुआ।

5. मुद्रा सुधार-सुल्तान ने मुद्रा प्रणाली में भी कई सुधार किये। उसने कई नवीन सिक्कों को प्रचलित किया। ये सिक्के तांबे तथा चांदी को मिला कर बनाए जाते थे ताकि लोग नकली सिक्के बना कर लाभ न उठा सकें।

दोषपूर्ण कार्य-
1. जागीरदारी प्रथा का पुनः आरम्भ-सुल्तान ने जागीरदारी प्रथा पुनः प्रचलित की। उसने सैनिक अधिकारियों तथा अन्य अधिकारियों को वेतन के स्थान पर जागीरें देना आरम्भ कर दिया। यह प्रथा शासन के लिए घातक सिद्ध हुई।

2. त्रुटिपूर्ण सैन्य संगठन-फिरोज़ तुग़लक का सैन्य संगठन भी काफ़ी त्रुटिपूर्ण था। इन त्रुटियों के कारण उसका साम्राज्य विद्रोहों का अड्डा बन कर रहा गया।

3. धार्मिक असहनशीलता-फिरोज़ तुग़लक एक कट्टर मुसलमान था। उसने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। उनके मन्दिरों और पवित्र मूर्तियों को बड़ी निर्दयता से तोड़ा गया। हिन्दुओं को उच्च पदों से वंचित कर दिया गया। उन पर जज़िया भी लगा दिया गया।

4. दासों पर धन का अपव्यय-सुल्तान को अधिक-से-अधिक दास रखने का चाव था। कहते हैं कि सुल्तान के पास लगभग एक लाख अस्सी हज़ार दास थे। इन दासों के लिए धन पानी की तरह बहाया जाता था।

सल्तनत के पतन में फिरोज़ तुगलक का दायित्व-फिरोज़ तुग़लक एक कट्टर मुसलमान था। उसने हिन्दुओं पर बहुत अत्याचार किये। इससे हिन्दू उसके विरुद्ध हो गए। इसके अतिरिक्त उसकी सैनिक अयोग्यता के कारण साम्राज्य कमज़ोर हो गया। देश षड्यन्त्रों और विद्रोहियों का गढ़ बन गया। उसने दण्ड विधान नर्म बना दिया। इससे भी विद्रोहियों और अपराधियों को बहुत सहारा मिला। दासों के प्रति अत्यधिक प्रेम, उन पर राजकोष का अपव्यय, दानशीलता और सामन्ती प्रथा ने साम्राज्य को खोखला कर दिया। परिणामस्वरूप सल्तनत का पतन आरम्भ हो गया।

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प्रश्न 8.
दिल्ली सल्तनत के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत के पतन के मुख्य कारण निम्नलिखित थे-
1. धार्मिक पक्षपात-दिल्ली के सुल्तानों ने धार्मिक पक्षपात की नीति अपनाई। उन्होंने हिन्दुओं पर अनेक अत्याचार किए। परिणामस्वरूप हिन्दू दिल्ली सल्तनत के विरुद्ध हो गए। यह बात दिल्ली साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण बनी।

2. विस्तृत साम्राज्य-मुहम्मद तुग़लक ने अपनी राजनीतिक अयोग्यता का प्रमाण दिया। उसने दक्षिण के विभिन्न राज्यों को सीधे सल्तनत में मिला लिया। उसकी इस नीति से सल्तनत साम्राज्य का विस्तार इतना बढ़ गया कि उस पर नियन्त्रण रखना कठिन हो गया। फलस्वरूप चारों ओर विद्रोह होने लगे और अनेक सरदारों ने अपनी सत्ता स्थापित कर ली।

3. निरंकुश शासन-दिल्ली के सुल्तानों का शासन निरंकुश था। शासन की सारी शक्तियाँ सुल्तान में ही केन्द्रित थीं। अतः शासन केवल तभी स्थिर रह सकता था जब केन्द्र में कोई शक्तिशाली शासक होता। परन्तु फिरोज़ तुग़लक की मृत्यु के पश्चात् दिल्ली के सभी सुल्तान निर्बल सिद्ध हुए। परिणामस्वरूप केन्द्रीय शक्ति शिथिल पड़ गई।

4. फिरोज़ तुग़लक के अयोग्य उत्तराधिकारी-फिरोज़ तुग़लक के उत्तराधिकारी दुर्बल और अयोग्य सिद्ध हुए। उन्होंने अपना अधिकांश समय विलासिता और आपसी झगड़ों में व्यतीत किया। इसका दिल्ली सल्तनत पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

5. सैनिक दुर्बलता-दिल्ली सल्तनत की राजसत्ता का आधार सैनिक शक्ति था। परन्तु फिरोज़ तुग़लक ने सामन्त प्रथा ६.. फिर से आरम्भ कर दिया। इस प्रथा के कारण सामन्तों की शक्ति बढ़ने लगी और उन्होंने विद्रोह करने आरम्भ कर दिए। परिणामस्वरूप साम्राज्य सुरक्षित न रह सका।

6. मुसलमानों का नैतिक पतन-मुस्लिम सैनिक, अमीर तथा अधिकारी आलसी तथा विलासप्रिय हो गए थे। इस कारण उनका शारीरिक बल शिथिल पड़ गया।

7. आर्थिक दुर्बलता-तुग़लक सुल्तानों के विवेकहीन कार्यों से शाही खज़ाना खाली हो गया। धन के बिना सल्तनत साम्राज्य का स्थिर रहना असम्भव था।

8. तैमूर का आक्रमण-तैमूर ने 1398 ई० में भारत पर आक्रमण कर दिया। उसके आक्रमण से दिल्ली साम्राज्य को जनधन की भारी हानि उठानी पड़ी। इसके अतिरिक्त उसने सल्तनत राज्य की राजनीतिक शक्ति को छिन्न-भिन्न कर दिया।

सच तो यह है कि कई बातों के कारण दिल्ली सल्तनत का पतन हुआ। अन्ततः पानीपत की पहली लड़ाई के कारण तो इसका अस्तित्व ही मिट गया। किसी ने ठीक ही कहा है, “पानीपत का युद्ध दिल्ली के अफ़गानों के लिए कब्र बन गया।”

प्रश्न 9.
दिल्ली के सुल्तानों के अधीन मध्यकालीन भारत में लोगों की (क) सामाजिक तथा (ख) आर्थिक अवस्था का वर्णन करो।
उत्तर-
1206 ई० से 1526 ई० तक भारत सुल्तानों के अधीन रहा। यह काल इतिहास में सल्तनत काल के नाम से भी प्रसिद्ध है। इस समय के भारत की सामाजिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है :

(क) सामाजिक दशा-
सल्तनत काल में भारतीय समाज मुख्य रूप से दो भागों में बंटा हुआ था-मुस्लिम समाज और हिन्दू समाज।
(क) मुस्लिम समाज-यह समाज शासक वर्ग से सम्बन्धित था। अतः मुसलमानों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे। शासन के सभी उच्च पदों पर मुसलमानों को ही नियुक्त किया जाता था, परन्तु केवल जन्मजात मुसलमान ही उच्च पद के योग्य समझे जाते थे। मुस्लिम समाज में स्त्रियों की शिक्षा तथा सम्मान का ध्यान रखा जाता था। परन्तु पर्दा प्रथा उनके विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई थी। बहु-पत्नी प्रथा भी प्रचलित थी। तलाक की प्रथा आम थी। स्त्रियां राजनैतिक कार्यों में भाग नहीं लेती थीं। केवल रजिया सुल्तान ही इसका अपवाद है। मुसलमानों में दास प्रथा काफ़ी ज़ोरों पर थी। सरदारों तथा शासकों को दास रखने का बड़ा चाव था। फिरोज़ तुगलक के पास एक लाख अस्सी हज़ार दास थे। दास-प्रथा के कारण उद्योगों की उन्नति हुई जिसके फलस्वरूप कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश तथा बलबन जैसे सुल्तान इतिहास में उभरे।

(ख) हिन्दू समाज-हिन्दू समाज मुसलमानों से पराजित हो चुका था। उसकी बड़ी शोचनीय थी। प्रत्येक हिन्दू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पद नहीं मिलते थे, उन्हें काफिर समझा जाता था। हिन्दू कृषकों से अधिक कर लिया जाता था। इस युग में हिन्दू नारी की दशा दयनीय हो चुकी थी। राजपूत शासक भी स्त्री को विलास की सामग्री मानने लगे थे। समाज में कई कुप्रथाएँ थीं। जैसे-सती प्रथा, बाल विवाह, बहु-विवाह तथा पर्दा प्रथा। इसके कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज की दशा शोचनीय हो चुकी थी।

(ख) आर्थिक दशा-

सल्तनत काल में मुस्लिम जनता समृद्ध थी। उन्हें नाम मात्र के कर देने पड़ते थे। इसके विरपीत हिन्दू जनता की आर्थिक दशा बड़ी दयनीय थी। संक्षेप में, सल्तनत युग में लोगों की आर्थिक दशा का विवरण इस प्रकार है-

  • कृषि-उन दिनों लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। सिंचाई कुओं तथा नहरों द्वारा की जाती थी। हिन्दू किसानों का जीवन सुखी नहीं था।
  • उद्योग-उद्योग विकसित थे। उन दिनों के उद्योगों में कपड़ा, चीनी, धातु की वस्तुएँ तैयार करना तथा कागज़ बनाना प्रम्ख थे।
  • व्यापार-उन दिनों में विदेशी व्यापार जोरों पर था। भारत का मलाया, चीन, मध्य एशिया, अफ़गानिस्तान तथा ईरान के साथ व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित था।
  • रहन-सहन का स्तर-धनी और निर्धन व्यक्तियों के रहन-सहन के स्तर में बड़ा अन्तर था। धनी और अधिकारी लोग बड़े ठाट-बाठ का जीवन व्यतीत करते थे। वे करों से भी मुक्त थे। इसके विपरीत निर्धन वर्ग की दशा बड़ी शोचनीय थी।
    सच तो यह है कि सल्तनत काल में मुसलमानों की दशा अच्छी और हिन्दुओं की दशा शोचनीय थी। दोनों के जीवन में वही अन्तर था जो शासक तथा शासित वर्ग में होता है।

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प्रश्न 10.
सुल्तान काल में कला एवं साहित्य की प्रगति का वर्णन करो।
उत्तर-
कला-दिल्ली के सुल्तानों के समय भारत में ललित कलाओं का बहुत विकास हुआ। सूफी सन्तों, भक्तों और राजदरबारियों के कारण संगीत में उन्नति हुई। कहा जाता है कि सुल्तान सिकन्दर लोधी के समय में अनेक प्रसिद्ध गायक हुए। इस काल में चित्र कला अधिक उन्नत नहीं थी। फिर भी ग्वालियर के मान मन्दिर तथा एलौरा के मन्दिरों की दीवारों पर चित्रकला के कुछ नमूने दिखाई देते हैं।

इस काल में अनेक इमारतें बनीं। इसमें मन्दिर-मस्जिद तथा दुर्ग उल्लेखनीय हैं। कुछ स्थानों पर ‘विजय स्तम्भ’ भी बनाए गए। इस काल में हिन्दू मन्दिरों की तीन प्रमुख शैलियाँ प्रचलित थीं। उत्तर भारत में बने मन्दिरों में शिखर एक बड़े स्तम्भ के रूप में बनाया जाता था और वह वह ऊपर की ओर तंग होता जाता था। इस शैली के मन्दिर भुवनेश्वर, खजुराहो, ग्वालियर तथा गुजरात में देखे जा सकते हैं। दक्षिण भारत के मन्दिरों में शिखर का निर्माण अनेक सीढ़ियों के रूप में किया जाता था। द्राविड़ शैली के मन्दिर तंजौर, मदुरा और श्रीरंगम् आदि स्थानों पर विद्यमान हैं।

इस काल में बने प्रमुख दुर्ग ग्वालियर, रणथम्भौर, कालिंजर, चित्तौड़, देवगिरि तथा वारंगल में हैं। ये दुर्ग काफ़ी मज़बूत हैं। इस काल में अनेक मस्जिदें भी बनीं। इस समय की इमारतों में कुतुबमीनार प्रमुख हैं। इसे कुतुबुद्दीन ने बनवाना आरम्भ किया था। परन्तु इसको इल्तुतमिश ने पूरा किया। अलाऊद्दीन खिलजी भी एक महान् भवन निर्माता था। उसने ‘अलाई दरवाज़ा’ बनवाया जो बहुत ही सुन्दर तथा आकर्षक है।

ग्यासुद्दीन तुग़लक ने दिल्ली में तुगलकाबाद की नींव रखी। इस नगर के खण्डहर आज भी देखे जा सकते हैं। फिरोज़ तुग़लक भवन बनवाने में रुचि रखता था। उसने अनेक नगरों, मस्जिदों, मकबरों आदि का निर्माण करवाया। फतेहाबाद, हिसार फिरोजा और जौनपुर नगर उसी के काल में बनाए गए।

साहित्य-सल्तनत युग में साहित्य पर भी इस्लाम का काफ़ी प्रभाव पड़ा। बहुत-से हिन्दुओं ने फारसी में ग्रन्थ लिखे और काफ़ी मुसलमानों ने हिन्दी साहित्य में अपना योगदान दिया। इस काल की साहित्यिक कृतियों का वर्णन इस प्रकार है-

  • अलबेरूनी द्वारा रचित ‘तहकीके हिन्द’ इस काल की कृति है। इसमें ग्यारहवीं शताब्दी के भारत का चित्र प्रस्तुत किया गया है।
  • गुलाम वंश का इतिहास हमें सिराज के ‘तबकाते नासरी’ से पता चलता है।
  • बर्नी की तारीख-ए-फिरोजशाही इस काल की शोभा है। ‘फरिश्ता’ भी इसी युग का प्रसिद्ध इतिहासकार था।
  • अमीर खुसरो ने फारसी के अतिरिक्त हिन्दी साहित्य में भी योगदान दिया। उसने विभिन्न विषयों पर फारसी में पुस्तकें लिखीं।
  • सिकन्दर लोधी ने आयुर्वेद का फारसी में अनुवाद करवाया।
  • इसके अतिरिक्त कल्हण की ‘राजतरंगिणी’, जयदेव का ‘गीत गोविन्द’, कबीर की ‘साखी’ तथा मीरा के ‘गीत’ इस काल की उत्तम साहित्यिक रचनाएँ हैं।
    सच तो यह है कि कला तथा साहित्य की दृष्टि से सल्तनत युग बड़ा ही भाग्यशाली था।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 1 नक्शे

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 1 नक्शे.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 1 नक्शे

प्रश्न 1.
नक्शे से क्या अभिप्राय है ? इसकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर-
नक्शा (Map)-धरती या उसके किसी भाग के ऊपर से दिखाई देने वाले स्वरूप को समतल कागज़ पर चित्रण को नक्शा कहते हैं (A map is the conventional representation of the earth or a part of it as seen from the above.)। किसी भी क्षेत्र के लक्षणों को स्पष्ट करने के लिए नक्शे बनाए जाते हैं । नक्शा या मानचित्र (Map) शब्द लातीनी भाषा के शब्द मप्पा (Mappa) से लिया गया है। नक्शे की विशेषताएँ-

  1. नक्शे समतल कागज़ पर बनाए जाते हैं, जिनमें लंबाई और चौड़ाई भी दिखाई जा सकती है।
  2. नक्शे एक निश्चित पैमाने पर ही बनाए जाते हैं।
  3. प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों को रूढ़ चिन्हों द्वारा दिखाया जाता है। नक्शे अक्षांश और देशांतर रेखाओं की मदद से बनाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
नक्शे के आवश्यक तत्त्व बताएँ।
उत्तर-
नक्शे के आवश्यक तत्त्व-किसी भाग का ठीक वर्णन देने के लिए नक्शों पर नीचे लिखे तत्त्व ज़रूर दिखाए जाते हैं

  1. नक्शे का शीर्षक
  2. पैमाना
  3. दिशा
  4. संकेत
  5. अक्षांश और देशांतर रेखाएँ।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 1 नक्शे

प्रश्न 3.
मानचित्र कला की परिभाषा दें।
उत्तर-
मानचित्र कला-नक्शा बनाने की कला को मानचित्र कला या नक्शाकशी की कला (Cartography) कहा जाता है। इसमें धरातलीय नक्शे, हवाई फोटो नक्शे आदि बनाए जाते हैं।

प्रश्न 4.
चार्ट (Chart) और प्लान (Plan) में अंतर बताएँ।
उत्तर-
चार्ट (Chart) और (Plan)—चार्ट शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द कार्टे (Carte) से लिया गया है। चार्ट शब्द का अर्थ नक्शा होता है। वास्तव में चार्ट अलग-अलग आंकड़ों का रेखाचित्र होता है। इन चार्टों पर समुद्री जहाज़ों के मार्ग भी दिखाए जाते हैं।
‘प्लान’ शब्द भवनों के नक्शों के लिए प्रयोग होता है। इसका पैमाना 6″ : 1 मील से बड़ा होता है। इससे किसी जायदाद या भूमि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया जाता है।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 1 नक्शे

प्रश्न 5.
नक्शों की क्या ज़रूरत होती है ?
उत्तर-
नक्शों की ज़रूरत-पृथ्वी एक गोला है। यह केवल ग्लोब के साथ ही सही रूप में दिखाई जा सकती है। ग्लोब पृथ्वी का एक छोटा-सा प्रतिरूप या नमूना है। परंतु कई बार ग्लोब के प्रयोग में मुश्किलें आती हैं, जिसके लिए नक्शों का प्रयोग ज़रूरी हो जाता है।

  1. ग्लोब पर पूरी पृथ्वी का एक समय में अध्ययन नहीं हो सकता।
  2. ग्लोब पर किसी क्षेत्र को विस्तारपूर्वक दिखाया नहीं जा सकता।
  3. ग्लोब पर दो स्थानों की दूरी मापनी मुश्किल होती है।
  4. ग्लोब पर दो क्षेत्रों का तुलनात्मक अध्ययन संभव नहीं है।
    यही कारण है कि नक्शों के प्रयोग को आवश्यक समझा जाता है। पृथ्वी या उसके किसी भाग को एक समतल कागज़ पर दिखाया जा सकता है।

प्रश्न 6.
नक्शों के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
नक्शों का महत्त्व-नक्शे भौगोलिक अध्ययन के लिए ज़रूरी उपकरण (Tools) हैं। आज के युग में नक्शों . का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। वास्तव में नक्शे ही भूगोल की कुंजी होते हैं। ये भूगोल के विद्यार्थियों के लिए एक संकेत लिपि (Short Hand) का काम करते हैं। नक्शों का महत्त्व कई क्षेत्रों में बढ़ता जा रहा है।

  1. भूगोल-प्रयोगात्मक भूगोल के लिए नक्शे आवश्यक होते हैं। इनके बिना भूगोल का विद्यार्थी एक ऐसे सिपाही के समान होता है, जिसके पास हथियार नहीं हों।
  2. युद्धों में प्रयोग-आज के युग में युद्ध नक्शों के सहारे ही लड़े जाते हैं। दूसरे विश्वयुद्ध में कई करोड़ नक्शे तैयार किए गए थे। हिटलर के शब्दों में “Give me a detailed map of a country and I shall conquer it.”
  3. यात्रियों के लिए-नक्शे यात्रियों और पर्यटकों के लिए ज़रूरी होते हैं। ये मार्ग-प्रदर्शन में सहायता करते हैं।
  4. प्रबंधकों के लिए-नक्शों के द्वारा ही अलग-अलग प्रांतों का राज्य-प्रबंध चलाया जाता है।
  5. आवागमन के साधनों के लिए-नक्शे रेल, सड़क, समुद्री और हवाई मार्गों की जानकारी के लिए प्रयोग किए जाते हैं।
  6. नक्शे विद्यार्थियों, अध्यापकों, उद्योगपतियों, अर्थशास्त्रियों, इतिहासकारों और इंजीनियरों के लिए लाभदायक होते हैं।

PSEB 11th Class Geography Practical Chapter 1 नक्शे

प्रश्न 7.
नक्शों का वर्गीकरण करें।
उत्तर-
नक्शों का वर्गीकरण-नक्शाकशी की कला बड़ी प्राचीन है। आज से लगभग चार हजार वर्ष पहले भी नक्शे बनाए जाते थे। प्राचीन समय में भारतीय, यूनानी, रोमन आदि जातियों को इस कला की जानकारी थी। नक्शे कई प्रकार के होते हैं। इनका वर्गीकरण दो प्रकार से किया जा सकता है-

  1. पैमाने के आधार पर (According to Scale)
  2. उद्देश्य के आधार पर (According to Purpose)

1. पैमाने के आधार पर नक्शे (According to Scale)-
पैमाने के आधार पर नक्शे दो प्रकार के होते हैं1. छोटे पैमाने के नक्शे (Small Scale Maps)—ये नक्शे छोटे पैमाने पर बनाए जाते हैं। इनमें पैमाना – 1 इंच : 16 मील से छोटा होता है। संसार के नक्शे, एटलस नक्शे और दीवारी नक्शे इस प्रकार के हो सकते हैं।
2. बड़े पैमाने के नक्शे (Large Scale Maps)—इन नक्शों पर भवनों और संपत्ति का अधिक विस्तृत वर्णन दिखाया जाता है। यह आमतौर पर 6″ : 1 मील पैमाने पर होता है। इस प्रकार पैमाने के आधार पर चार प्रकार के नक्शे होते हैं-

  • सीमावर्ती नक्शे (Cadastral Maps) ये बड़े पैमाने के नक्शे होते हैं, जिनमें जायदाद संबंधी विषय दिखाए जाते हैं। इनका प्रयोग पटवारी और नगरपालिकाएँ करती हैं।
  • स्थल-आकृतिक नक्शे (Topographical Maps)-1″ : 1 मील के पैमाने से बने नक्शे किसी क्षेत्र के प्राकृतिक और सांस्कृतिक लक्षणों को दिखाते हैं। जिस प्रकार सर्वे विभाग के नक्शे।
  • दीवारी नक्शे (Wall Maps)-शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग किए जाने वाले नक्शे छोटे पैमाने के होते हैं।
  • एटलस नक्शे (Atlas Maps)-ये छोटे पैमाने के नक्शे होते हैं। कई प्रकार के नक्शों को पुस्तकीय आकार देकर मान-चित्रावली तैयार की जाती है।

2. उद्देश्य के आधार पर नक्शे (Maps According to Purpose)-
उद्देश्य को आधार मानकर नीचे लिखे प्रकार के भौतिक और सांस्कृतिक नक्शे बनाए जाते हैं-

  • धरातलीय नक्शे (Relief Maps)—इसमें किसी क्षेत्र के धरातल, जल-प्रवाह, मिट्टी आदि का विभाजन दिखाया जाता है।
  • भू-गर्भीय नक्शे (Geological Maps)-इनमें अलग-अलग प्रकार की चट्टानों आदि का विभाजन दिखाया जाता है।
  • मौसमी नक्शे (Weather Maps)—वायुमंडल की दशाओं को दिखाने वाले नक्शों को मौसमी नक्शे कहा जाता है। भारत में ये नक्शे पुणे (Pune) में तैयार किए जाते हैं।
  • वनस्पति नक्शे (Vegetation Maps)-इन नक्शों में भूमि के प्रयोग और विभाजन दिखाए जाते हैं।
  • भूमि-प्रयोग के नक्शे (Land use Maps)-इन नक्शों में भूमि के प्रयोग और विभाजन दिखाए जाते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय नक्शे (International Maps)—ये नक्शे 1/1000000 के पैमाने पर बनाए जाते हैं।
  • राजनीतिक नक्शे (Political Maps)—इन नक्शों पर राजनीतिक सीमाएँ, देश, नगर और राजधानियाँ दिखाई जाती हैं।
  • आबादी के नक्शे (Population Maps)—इन नक्शों पर आबादी का विभाजन और घनत्व दिखाए जाते हैं।
  • परिवहन नक्शे (Transport Maps)-इन नक्शों पर सड़कों, रेलों, समुद्री और हवाई मार्गों के नक्शे दिखाए जाते हैं।
  • आर्थिक नक्शे (Economic Maps)—इन नक्शों पर कृषि, पशु-पालन उद्योग, व्यापार आदि कारकों का वर्णन किया जाता है।
  • भाषा संबंधी नक्शे (Linguistic Maps)—अलग-अलग प्रदेशों में बोली जाने वाली भाषाओं का विभाजन इन नक्शों पर दिखाया जाता है।
    मानव-जाति के नक्शे (Ethnographic Maps)—इन नक्शों पर अलग-अलग प्रदेशों में रहने वाली मानव-जातियों का विभाजन दिखाया जाता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 10 मछली पालन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 10 मछली पालन

PSEB 11th Class Agriculture Guide मछली पालन Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
दो विदेशी किस्म की मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
कॉमन क्रॉप, सिल्वर क्रॉप विदेशी जातियां हैं।

प्रश्न 2.
मछलियां पालने वाला जौहड़ कितना गहरा होना चाहिए ?
उत्तर-
इसकी गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
मछली पालन के उपयोग किए जाने वाले पानी की पी०एच० कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
इसकी पी०एच० अंक 7-9 के मध्य होना चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 4.
मछली पालन के लिए तैयार जौहड़ में कौन-कौन सी रासायनिक खादों का उपयोग किया जाता है ?
उत्तर-
जौहड़ के लिए यूरिया खाद तथा सुपरफास्फेट का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5.
प्रति एकड़ में कितने बच्च तालाब में छोड़े जाते हैं ?
उत्तर-
प्रति एकड़ में बच्च की संख्या 4000 होनी चाहिए।

प्रश्न 6.
मछलियों का बच्च कहां से प्राप्त होता है ?
उत्तर-
मछलियों का बच्च गुरु अंगद देव वैटरनरी तथा एनीमल साइंसज विश्वविद्यालय, लुधियाना के मछली कॉलेज या पंजाब सरकार के मछली बच्च फार्म से प्राप्त किए जा सकते हैं।

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प्रश्न 7.
दो भारतीय मछलियों के नाम लिखो।
उत्तर-
कतला, रोहू।

प्रश्न 8.
मछलियों के छप्पड़ वाली जमा की मिट्टी किस तरह की होनी चाहिए ?
उत्तर-
चिकनी या चिकनी मैरा।

प्रश्न 9.
व्यापारिक स्तर या मछली पालन के लिए छप्पड़ का क्या आकार होना चाहिए ?
उत्तर-
क्षेत्रफल 1 से 5 एकड़ तथा गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए।

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प्रश्न 10.
किसी भी मांसाहारी मछली का नाम लिखो।
उत्तर-
सिंघाड़ा, मल्ली।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
मछली पालन के लिए पाली जाने वाली भारतीय और विदेशी मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
भारतीय मछलियां-कतला, रोहू तथा मरीगल। विदेशी मछलियां-कॉमन क्रॉप, सिल्वर क्रॉप, ग्लास क्रॉप।।

प्रश्न 2.
मछली पालन के लिए तैयार किए जाने वाले जौहड़ के डिज़ाइन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जौहड़ का डिज़ाइन तथा खुदाई-व्यापारिक स्तर पर मछलियां पालने के लिए जौहड़ का क्षेत्रफल 1 से 5 एकड़ तथा गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए। जौहड़ का तल समतल तथा किनारे ढलानदार होने चाहिएं। पानी डालने तथा निकालने का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। इसके लिए पाइपों पर वाल्व लगे होने चाहिएं। खुदाई फरवरी के मास में करनी चाहिए ताकि मार्च-अप्रैल में मछलियों के बच्चे तालाब में छोड़े जा सकें। एक एकड़ के तालाब में बच्चे रखने के लिए एक कनाल (500 वर्ग मीटर) का नर्सरी तालाब अवश्य बनाओ जिसमें बच्चे रखे जा सकें। कम भूमि पर भी छोटे तालाब आदि बनाए जा सकते हैं जहां मछलियां पाली जा सकती हैं।

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प्रश्न 3.
मछली पालन के लिए उपयोग किए जाने वाले पानी के स्तर के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
पानी में घुली हुई ऑक्सीजन तथा इसका तेजाबीपन जोकि पी०एच० अंक से पता चलता है बहुत महत्त्वपूर्ण है। मछलियों के जीवित रहने तथा वृद्धि विकास के लिए ये बातें बहुत प्रभाव डालती हैं। पी०एच० अंक 7-9 के मध्य होना चाहिए। 7 से कम पी०एच० अंक बढ़ाने के लिए बारीक पिसा हुआ चूना (80-100 किलो प्रति एकड़) पानी में घोल कर ठण्डा करने के पश्चात् तालाब में छिटक देना चाहिए।

प्रश्न 4.
मछली पालन के व्यवसाय के लिए भिन्न-भिन्न किस्म की मछलियों के बच्च में क्या अनुपात होता है ?
उत्तर-
विभिन्न प्रकार की मछलियों के बच्चों का अनुपात निम्नलिखित अनुसार है(i) कतला 20%, रोहू 30%, ग्रास क्रॉप 10%, सिल्वर क्रॉप 10%, मरीगल 10%, कॉमन क्रॉप 20%। (ii) कतला 25%, कॉमन क्रॉप 20%, मरीगल 20%, रोहू 35%।

प्रश्न 5.
मछली तालाब में खरपतवार की समाप्ति के तरीके बताओ।
उत्तर-
पुराने तालाबों में खरपतवार न उग सकें। इसके लिए पानी का स्तर 5-6 फुट होना चाहिए। खरपतवार को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित ढंग हैं-

  • भौतिक साधन-तालाब का पानी निकाल कर इसे खाली करके खरपतवार को कंटीली तार से निकाला जा सकता है।
  • जैविक साधन-ग्रास कार्प मछलियां कई खरपतवारों (स्पाईरोडैला, हाईड्रिला, वुल्फीया, वेलीसनेरिया, लेमना) को खा जाती हैं। सिल्वर कार्प मछलियां, काई, पुष्पपुंज (एल्गल ब्लूमज़) को कंट्रोल करने में सहायक हैं।

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प्रश्न 6.
जौहड़ में नहरी पानी के उपयोग के समय कौन-सी सावधानी ध्यान रखनी चाहिए ?
उत्तर-
नहरी पानी का प्रयोग करते समय खाल के मुंह पर लोहे की बारीक जाली लगानी चाहिए। ऐसा मांसाहारी तथा नदीन मछली को तालाब में जाने से रोकने के लिए करना आवश्यक है।

प्रश्न 7.
जौहड़ में मछली के दुश्मनों के बारे में बताओ।
उत्तर-
मांसाहारी मछलियां (मल्ली, सिंगाड़ा), नदीन मछलियां (शीशा, पुट्ठी कंघी), मेंढक, सांप आदि मछली के दुश्मन हैं।

प्रश्न 8.
मछलियों को खुराक कैसे दी जाती है ?
उत्तर-
मछलियों को 25% प्रोटीन वाली खुराक देनी चाहिए। बारीक पिसी हुई खुराक को 3-4 घण्टे तक भिगो कर रखना चाहिए। फिर इस भोजन के पेड़े बनाकर पानी के तल से 2-3 फुट नीचे रखी ट्रे अथवा टोकरियों अथवा छेदों वाले प्लास्टिक के थैलों में डालकर मछलियों को खाने के लिए देना चाहिए।

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प्रश्न 9.
मछलियों को रोगों से बचाने के उपाय बताओ।
उत्तर-
मछलियों को बीमारियों से बचाने के लिए पूंग को लाल दवाई के घोल (100 ग्राम प्रति लीटर) में डुबो देने के पश्चात् तालाब में छोड़ो। लगभग प्रत्येक 15 दिन के अन्तर के पश्चात् मछलियों के स्वास्थ्य की जांच करनी चाहिए। बीमार मछलियों के उपचार के लिए सिफ़ारिश किये गये ढंगों का प्रयोग करो अथवा विशेषज्ञों के साथ सम्पर्क करो।

प्रश्न 10.
मछली पालन बारे प्रशिक्षण कहां से लिया जा सकता है ?
उत्तर-
मछली पालन बारे में प्रशिक्षण जिला मछली पालन अफ़सर, कृषि विज्ञान केन्द्र या फिर गुरु अंगद देव वैटनरी तथा एनीमल साईंसज विश्वविद्यालय लुधियाना से प्राप्त किया जा सकता है।

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(ग) पांच-छः वाक्यों में उत्तर दें-

प्रश्न 1.
मछली पालन के लिए जौहड़ बनाने के लिए जगह का चुनाव और उनके डिजाइन व खुदाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जौहड़ बनाने के लिए स्थान का चुनाव-चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि जौहड़ बनाने के लिए ठीक रहती है क्योंकि इसमें पानी सम्भालने की शक्ति अधिक होती है। पानी खड़ा करने के लिए हल्की (रेतीली)भूमि में कद्दू किया जा सकता है। पानी का साधन अथवा स्रोत भी निकट ही होना चाहिए ताकि जौहड़ को सरलता से भरा जा सके तथा समय-समय पर सूखे के कारण जौहड़ में पानी की कमी को पूरा किया जा सके। इसके लिए नहरी पानी का प्रयोग भी किया जा सकता है। इसके लिए नाली के मुंह पर लोहे की बारीक जाली लगा देनी चाहिए ताकि मांसाहारी तथा खरपतवार आदि मछलियां नहरी पानी द्वारा जौहड़ में न मिल जाएं।

जौहड़ का डिजाइन तथा खुदाई-व्यापारिक स्तर पर मछलियां पालने के लिए जौहड़ का क्षेत्रफल 1 से 5 एकड़ तथा गहराई 6-7 फुट होनी चाहिए। जौहड़ का तल समतल तथा किनारे ढलानदार होने चाहिएं। पानी डालने तथा निकालने का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। इसके लिए पाइपों पर वाल्व लगे होने चाहिएं। खुदाई फरवरी के महीने में करनी चाहिए ताकि मार्च-अप्रैल में मछलियों का पूंग तालाब में छोड़ा जा सके। एक एकड़ के जौहड़ में पूंग रखने के लिए एक कनाल (500 वर्ग मीटर) का नर्सरी जौहड़ अवश्य बनवाओ जिसमें पूंग रखा जा सके।

प्रश्न 2.
पुराने जौहड़ों को मछली पालन के योग्य कैसे बनाया जाए ?
उत्तर-
पुराने जौहड़ में नदीन न पनप सके इसके लिए पानी का स्तर 5-6 फुट होना चाहिए। नदीनों को समाप्त करने के लिए निम्नलिखित ढंग हैं –

  • भौतिक विधि-जौहड़ का पानी निकाल कर इसे खाली करके नदीनों को कंटीली तार से निकाला जा सकता है।
  • जैविक विधि-ग्रास कार्प मछलियां कई खरपतवारों (स्पाइरो डैला, हाइड्रिला, वुल्फीया, वेलिसनेरिया, लैमना) को खा जाती हैं। सिल्वर कार्प मछलियां काई, पुष्पपुंज (एल्गल ब्लूमज) को कंट्रोल करने में सहायक हैं।

पुराने जौहड़ों में से मछली के शत्रुओं की समाप्ति-पुराने तालाबों में पाई जाने वाली मांसाहारी मछलियां डौला, सिंगाड़ा, मल्ली तथा नदीन मछलियां। शीशा, पुट्ठी कंघी, मेंढक तथा सांपों को बार-बार जाल लगाकर तालाब में से निकालते रहना चाहिए। सांपों को बड़ी सावधानी से मार दो।

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प्रश्न 3.
पुराने जौहड़ों में से खरपतवार की समाप्ति कैसे करेंगे ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दो।

प्रश्न 4.
मछली पालन के समय जौहड़ों में कौन-सी खादें डाली जाती हैं ?
उत्तर-
नये खोदे गये तालाब में मछली का प्राकृतिक भोजन (प्लैंकटन) की लगातार उपज होती रहे। इसके लिए खादों का प्रयोग किया जा सकता है। तालाब में पूंग छोड़ने से 15 दिन पहले खाद डालनी चाहिए। पुराने तालाब में खाद डालने की दर उसके पानी की क्वालिटी तथा प्लैंकटन की उपज पर निर्भर करती है।

दूसरी किश्त पहली किश्त के 15 दिन पश्चात् तथा रासायनिक खाद की दूसरी किश्त एक मास के पश्चात् डालो।
प्लैंकटन की लगातार पैदावार के लिए गोबर की खाद, मुर्गियों की खाद, बायोगैस सल्लरी, यूरिया, सुपरफॉस्फेट आदि खादों का प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 5.
मछली पालन व्यवसाय के विकास में मछली पालन विभाग और वेटरनरी यूनिवर्सिटी की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
मछली पालन का व्यवसाय प्रारम्भ करने से पहले मछली पालन विभाग, पंजाब से प्रशिक्षण प्राप्त कर लेना चाहिए। इस विभाग की ओर से प्रत्येक जिले में प्रति मास पांच दिन की ट्रेनिंग दी जाती है।

प्रशिक्षण प्राप्त करने के पश्चात् यह विभाग मछली पालन के व्यवसाय के लिए तालाब के निर्माण तथा पुराने तालाब को ठीक करने अथवा सुधार के लिए सहायता भी देता है।
मछली पालन का प्रशिक्षण वेटरनरी यूनिवर्सिटी से प्राप्त किया जा सकता है।

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Agriculture Guide for Class 11 PSEB मछली पालन Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मछली कितने ग्राम की होने पर बेचने योग्य हो जाती है ?
उत्तर-
500 ग्राम।

प्रश्न 2.
एक खरपतवार मछली का नाम बताओ।
उत्तर-
पुट्ठी कंघी।

प्रश्न 3.
मछली का प्राकृतिक भोजन क्या है ?
उत्तर-
प्लैंकटन।

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प्रश्न 4.
मछलियां पालने वाला छप्पड़ कितना गहरा होना चाहिए ?
उत्तर-
6-7 फुट।

प्रश्न 5.
डौला——–किस्म की मछली है।
उत्तर-
मांसाहारी।

प्रश्न 6.
जौहड़ बनाने के लिए कैसी मिट्टी वाली भूमि का चुनाव करना चाहिए ?
उत्तर-
उसके लिए चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि चुनो।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 10 मछली पालन

प्रश्न 7.
चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि ही क्यों जौहड़ के लिए चुनी जाती है ?
उत्तर-
क्योंकि ऐसी मिट्टी में पानी सम्भालने की शक्ति अधिक होती है।

प्रश्न 8.
जौहड़ की खुदाई किस मास में करनी चाहिए ?
उत्तर-
जौहड़ की खुदाई फरवरी मास में करनी चाहिए।

प्रश्न 9.
खरपतवार को कौन-सी मछलियां खा लेती हैं ?
उत्तर-
ग्रास क्रॉप तथा सिल्वर क्रॉप।

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प्रश्न 10.
खरपतवार मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
शीशा तथा पुट्ठी कंघी।

प्रश्न 11.
मांसाहारी मछलियों के नाम बताओ।
उत्तर-
सिंघाड़ा, मल्ली, डौला।।

प्रश्न 12.
यदि पानी का पी० एच० अंक 7 से कम हो जाए तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
बारीक पिसा हुआ चूना पानी में घोल कर ठण्डा करके तालाब में 80-100 किलो प्रति एकड़ की दर से छिड़क दो।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-
मछलियां पकड़ने तथा पूंग छोड़ने के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
जब मछलियां 500 ग्राम की हो जाएं तो वह बेचने योग्य हो जाती हैं। मछलियां जिस प्रकार की निकाली जाएं उतना ही उस प्रकार का मछलियों का पूंग नर्सरी तालाब में से निकाल कर तालाब में छोड़ देना चाहिए।

मछली पालन PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • वैज्ञानिक विधि से मछलियां पालने से वर्ष में लाभ कृषि से भी अधिक हो जाता
  • मछलियों की भारतीय किस्में हैं-कतला, रोहू तथा मरीगल ।
  • मछलियों की विदेशी किस्में हैं-कॉमन क्रॉप, सिल्वर क्रॉप तथा ग्रास क्रॉप।
  • जौहड़ (छप्पड़) बनाने के लिए चिकनी अथवा चिकनी मैरा मिट्टी वाली भूमि का प्रयोग करना चाहिए।
  • जौहड़ (छप्पड़) 1-5 एकड़ क्षेत्रफल के तथा 6-7 फुट गहरा होना चाहिए।
  • पानी की गहराई 5-6 फुट होनी चाहिए।
  • पानी का पी०एच० अंक 7-9 के मध्य होना चाहिए। यदि 7 से कम हो तो चूने के प्रयोग से बढ़ाया जा सकता है।
  • जौहड़ में 1-2 इंच आकार के 4000 प्रति एकड़ के हिसाब से डालो।
  • बच्चे का अनुपात इस प्रकार हो सकता है
    (i) कतला 20%, कॉमन क्रॉप 20%, मरीगल 10%, ग्रास क्रॉप 10%, रोहू 30%, सिल्वर क्रॉप 10% ।
    (ii) कतला 25%, मरीगल 20%, रोहू 35%, कॉमन क्रॉप 20% ।
  • मछलियों को 25% प्रोटीन वाला सहायक भोजन दो।
  • 500 ग्राम की मछली को बेचा जा सकता है।
  • विभिन्न संस्थाओं से मछली पालन के व्यवसाय के लिए प्रशिक्षण लेना चाहिए।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गान्धी जी के राजनीतिक विचारों की व्याख्या करो।
(Explain the Political ideas of Gandhi Ji.)
अथवा
महात्मा गान्धी जी के राजनीतिक विचारों का विस्तार सहित वर्णन करो।
(Describe Political ideas of Mahatama Gandhi Ji in detail.)
अथवा
महात्मा गान्धी के मुख्य राजनीतिक विचारों की संक्षेप में व्याख्या कीजिए। (Explain briefly the main Political Ideas of Mahatma Gandhi.)
उत्तर-
गान्धी जी वह महान् आत्मा थे जिन्होंने भारत की आत्मा को जगाया। उन्होंने अपने उच्च सिद्धान्तों, उद्देश्यों और आदर्श जीवन द्वारा राजनीतिक जीवन को नया मार्ग दिखाया। गान्धी जी के उन विचारों को, जोकि वे समय-समय पर राजनीतिक, धार्मिक, सामाजिक तथा आर्थिक ढांचे के बारे में प्रकट करते रहे, उनको इकट्ठा करके लोगों ने गान्धीवाद का नाम दिया। गान्धीवाद सिद्धान्तों, मतों, नियमों तथा आदर्शों का समूह नहीं, बल्कि यह एक जीवन युक्ति है। हम इसे एक जीवन मार्ग भी कह सकते हैं।
गान्धी जी के राजनीतिक विचार इस प्रकार हैं-

1. राजनीति का अध्यात्मीकरण (Spiritualisation of Politics)-गोपाल कृष्ण गोखले के समानं गान्धी जी राजनीति का अध्यात्मीकरण करना चाहते थे। उन्होंने राजनीति के प्रचलित मूल्यों को अस्वीकार किया और राजनीति में शुद्ध धार्मिक तथा अध्यात्मिक मूल्यों की प्रतिष्ठा के लिए पूरा प्रयास किया। गान्धी जी राजनीति को धर्म की आधारशिला पर खड़ा करना चाहते थे और उन्होंने घोषणा की कि धर्म के बिना राजनीति पाप है। गान्धी जी का कहना था कि धर्म राजनीति का अभिन्न अंग है और राजनीति को धर्म से पृथक् नहीं किया जा सकता। वे चाहते थे कि राजनीतिक अनैतिकता से दूर रहे। राजनीति उनकी दृष्टि में धर्म और नैतिकता की एक शाखा थी। धर्म से अलग होकर राजनीति एक मृत देह के समान है जिसको जला देना ही उचित है। गान्धी जी का कहना है, “बहुत-से धार्मिक व्यक्ति जिनसे मैं मिला हूँ, छुपे हुए राजनीतिज्ञ हैं परन्तु मैं तो राजनीतिज्ञ दिखाई देता हूँ, वास्त में धार्मिक हूँ।” गान्धी जी का राजनीति के अध्यात्मीकरण का केवल विचारही नहीं रहा बल्कि उन्होंने तो इसका अपने जीवनकाल में भी प्रयोग करके दिखाया।

2. अहिंसा सम्बन्धी विचार (Views about Non-Violence)-गान्धी जी अहिंसा के पुजारी थे और उन्होंने अहिंसा को अपने जीवन के कार्यक्रम का एक अंग बनाया हुआ था।
गान्धी जी ने अहिंसा को आत्मिक और ईश्वरीय शक्ति बताया है। अहिंसा का अर्थ कायरता या हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहना नहीं है। अत्याचार को चुपचाप सहन करना भी अहिंसा नहीं कहा जा सकता। अहिंसा आत्म-बलिदान करने, कठिनाइयां सहने और दुःख उठाने के बाद भी सत्य और न्याय पर डटे रहने को ही कहा जा सकता है। यह नकारात्मक शक्ति नहीं है। यह एक सकारात्मक शक्ति है जो बिजली से भी अधिक तेज़ और ईथर से भी अधिक शक्तिशाली है। बड़ी-से-बड़ी हिंसा का विरोध भी बड़ी-से-बड़ी अहिंसा से किया जा रहा है।’

3. साधनों की पवित्रता पर विश्वास (Faith in the Purity of Means)—व्यक्ति तथा समाज को सदाचार के सांचे में ढालने के लिए गान्धी जी ने मानवीय आचरण को ऊंचा उठाने के लिए सत्य, अहिंसा और साधनों की पवित्रता पर जोर दिया। यह सारे सिद्धान्त एक-दूसरे में शामिल हैं और एक-दूसरे के सहायक तथा पूरक हैं। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने साधन की पवित्रता पर जोर दिया। अच्छे नतीजों की प्राप्ति के लिए वह नैतिक साधनों का प्रचार करते रहे। उनका विश्वास था कि यदि कोई साधनों का ध्यान रखे तो उद्देश्य अपना ध्यान स्वयं रख लेगा।

4. सत्याग्रह (Satyagraha)-अहिंसा के साधनों के प्रयोग द्वारा सच्चे आदर्शों की प्राप्ति के प्रयासों को सत्याग्रह कहा जाता है या दूसरे शब्दों में सत्य और अहिंसा के संगठन द्वारा बुराई का विरोध करना तथा अन्याय को दूर करवाने का नाम सत्याग्रह है। सत्याग्रह का अर्थ है ‘सत्य के साथ चिपटे रहना’ अर्थात् ‘सत्य की शक्ति’ । गान्धी जी का विश्वास इस आत्मिक शक्ति की श्रेष्ठता को सिद्ध करता है। सत्याग्रही मारने की अपेक्षा मरना अच्छा समझता है। उनका विश्वास था कि कायरता और अहिंसा इकट्ठे नहीं रह सकते। एक कायर खतरे से दूर दौड़ता है। गान्धी जी ने एक बार बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा था कि यदि उन्हें कायरता और अहिंसा में से चुनाव करना हो तो अवश्य ही अहिंसा को चुनेंगे। असहयोग, हड़ताल, धरना, भूख-हड़ताल या व्रत सत्याग्रह के विभिन्न रूप हैं।

5. राज्य सम्बन्धी विचार (Views about State)-गान्धी जी को प्रायः अराजकतावादी दार्शनिक कहा गया है। उनके विचार अनुसार जो आज्ञा देता है और जो कुछ आज्ञा के रूप में किया जाता है, उसकी कोई नैतिक कीमत नहीं हो सकती। केवल स्वतन्त्र इच्छा से किया गया काम ही नैतिक कहला सकता है। राज्य संगठित तथा एकत्रित हिंसा का प्रतिनिधि है। व्यक्ति तो आत्मा का स्वामी है, परन्तु राज्य एक आत्म-रहित मशीन है। हिंसा को राज्य से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य इसके बल पर ही कायम है। गान्धी जी का कहना था कि राज्य द्वारा पुलिस, न्यायालय और सैनिक शक्ति के माध्यम से व्यक्तियों पर अपनी इच्छा थोपी जाती है। गान्धी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई इसलिए भी बताया क्योंकि उनके विचारानुसार राज्य एक बाध्यकारी शक्ति है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को कुण्ठित करती है।

6. गान्धी जी राज्य को साध्य न मान कर साधन मानते हैं (State is not end but a means)-आदर्शवादी राज्य को साध्य और व्यक्ति को साधन मानते हैं परन्तु गान्धीवाद राज्य को साधन और व्यक्ति को साध्य मानता है। राज्य की उत्पत्ति मनुष्य के लिए हुई है न कि मनुष्य की राज्य के लिए। गान्धीवादी दर्शन राज्य की उत्पत्ति तथा अस्तित्व में कोई रहस्यात्मक पवित्रता स्वतन्त्रता हीगल की भान्ति नहीं देखता। गान्धी जी राज्य को जन-कल्याण का एक साधन मानते थे। गान्धीवादी दर्शन राज्य का स्वतन्त्र तथा उच्च स्तर व्यक्तित्व स्वीकार नहीं करता। गान्धी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई कहा है।

7. राज्य का कार्यक्षेत्र (Sphere of State-Activity)-व्यक्तिवादियों की तरह गान्धीवादी भी राज्य को कमसे-कम कार्य सौंपना चाहते हैं । गान्धी जी के अनुसार राज्य को व्यक्ति के कामों में न्यूनतम हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए। फ्रीमैन की भान्ति गान्धी जी का भी यह विचार था कि सर्वोत्तम सरकार वह है जो सबसे कम शासन करती है।

8. साध्य और साधन दोनों ही श्रेष्ठ होने चाहिएं (Both ends and means Should be good)-आदर्शवादी दर्शन साध्य को महत्त्व देता है और साधन ही नाम-मात्र भी चिन्ता नहीं करता। प्रायः सभी भौतिकवादी दर्शन साध्य पर ही जोर देते हैं; परन्तु गान्धी जी केवल साध्य की महानता से ही सन्तुष्ट नहीं थे। गान्धी जी ने साध्य और साधन दोनों के महत्त्व पर बल दिया है। उनके अनुसार, बुरे साधनों द्वारा अच्छे लक्ष्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती। साधनों का पवित्र होना अति आवश्यक है।

9. व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल (Stress on the moral purity of the individual)-गान्धी जी के अनुसार मनुष्य की सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समस्याएं मूल रूप में नैतिक समस्याएं ही हैं और इनका हल भी नैतिक साधनों द्वारा होना चाहिए। जब तक मनुष्य स्वार्थ भावना से ऊपर नहीं उठता तब तक उसका नैतिक विकास नहीं हो सकता। नैतिक विकास के लिए व्यक्ति का सच्चरित्र होना आवश्यक है। इसीलिए गान्धी जी कहा करते थे कि चरित्र की महानता बुद्धि की महानता से अधिक है।

10. स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार (Views about Freedom)—गान्धी जी के हृदय में नैतिक तथा आध्यात्मिक स्वतन्त्रताओं के प्रति अगाध श्रद्धा थी। वे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता को राष्ट्रीय स्वतन्त्रता से अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे। उनके अनुसार जब तक कोई व्यक्ति व्यक्तिगत रूप से स्वतन्त्र नहीं है तो उसके लिए राष्ट्रीय स्वतन्त्रता का कोई लाभ नहीं है। गान्धी जी के अनुसार, “व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का बलिदान करके किसी समाज का निर्माण नहीं किया जा सकता।” (“No Society can possibly be built on a denial of individual freedom.”) परन्तु वे राजनीतिक स्वतन्त्रता को भी आवश्यक मानते थे। गान्धी जी राज्य को सत्य, जिसको वह ईश्वर मानते थे, का ही अंश मानते थे। उनके विचारानुसार राजनीतिक स्वतन्त्रता कठिन परिश्रम करने तथा दुःख उठाने के पश्चात् ही प्राप्त हो सकती है।

11. स्वतन्त्रता का उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है (Sole Object of liberty is all round development of the individual)-गान्धी जी के अनुसार स्वतन्त्रता का एकमात्र उद्देश्य व्यक्ति का सर्वांगीण विकास करना है। आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा नैतिक, चारों प्रकार की स्वतन्त्रताएं मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास करती हैं। व्यक्तिवादियों की भान्ति गान्धी जी निर्बाध स्वतन्त्रता में विश्वास नहीं करते और न ही वे आदर्शवादियों की भान्ति व्यक्ति की सच्ची स्वतन्त्रता राजकीय आज्ञाओं का पालन करने में मानते हैं। गान्धीवादी दर्शन को स्वतन्त्रता व्यक्तिवाद और आदर्शवाद के बीच की वस्तु है।

12. राष्ट्रीयता तथा अन्तर्राष्ट्रीयता में कोई संघर्ष नहीं (No Clash between Nationalism and Internationalism)—आदर्शवादी, फासीवादी और नाजीवादी अन्तर्राष्ट्रीयता में विश्वास नहीं करते थे। वे राष्ट्र को अन्तिम लक्ष्य मानते हैं, परन्तु गान्धी जी अन्तर्राष्ट्रीयता के अन्य विचारकों के विचारों से भिन्न है। अन्य अन्तर्राष्ट्रीयवादी राष्ट्र और अन्तर्राष्ट्रीयता में विरोध मानते हैं। उनके अनुसार अन्तर्राष्ट्रीयता के रास्ते में राष्ट्रीयता एक महान् बाधक है, परन्तु गान्धी जी राष्ट्रीयता को एक बाधा नहीं समझते। गान्धी जी के अनुसार अन्तर्राष्ट्रीयता के लिए राष्ट्रीयता आधार अन्तर्राष्ट्रीयता का पहला कदम राष्ट्रीयता है। यदि इन दोनों में संघर्ष होता है तो इसका कारण यह है कि हम राष्ट्रीयता का अर्थ संकुचित रूप में लेते हैं। गान्धी जी देश भक्ति में विश्वास करते हैं, परन्तु वे अपने राष्ट्र के हित के लिए दूसरे राष्ट्र का अहित करने के पक्ष में नहीं हैं।

13. विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था (Decentralised Economy)-गान्धी जी के अनुसार पूंजीवाद के दोषों से बचने का सबसे अच्छा उपाय आर्थिक विकेन्द्रीकरण है। विकेन्द्रीकरण में गांवों की जनता को अधिक लाभ होगा। आर्थिक क्षेत्र में प्रत्येक गाँव एक आर्थिक इकाई के रूप में कार्य करेगा। प्रत्येक इकाई अपनी आवश्यकतानुसार वस्तुओं का उत्पादन कर सकेगी। इसीलिए गान्धीवाद कुटीर उद्योग के पक्ष में है। गान्धी जी स्वदेशी खद्दर के पक्ष में थे। खद्दर उद्योग के द्वारा ग़रीबों को काम मिलता है और पैसा भी विदेशों में नहीं जाता। इसलिए गान्धी जी ने स्वदेशी आन्दोलन चलाया।

14. साम्राज्यवादी नीति के विरुद्ध (Against the Policy of Imperialism-गान्धी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे। साम्राज्यवाद मानवता का विरोधी है। विश्व-युद्धों का एकमात्र कारण साम्राज्यवाद है। साम्राज्यवादी हिंसावादी हैं। गान्धी जी साम्राज्यवाद के समर्थकों को आर्थिक राक्षस मानते हैं। अतः गान्धी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे।

15. पूंजीवाद को पूर्ण रूप से नष्ट करने के पक्ष में नहीं (Not in favour of fully abolishing Capitalism)-गान्धीवाद पूंजीवादी को पूर्ण रूप से नष्ट करने के पक्ष में नहीं है। पूंजीवाद का स्वरूप समाप्त करने से उद्योग-धन्धे बन्द हो जाएंगे, एक क्रान्ति उत्पन्न हो जाएगी, अनावश्यक रक्त बहेगा। पूंजीपतियों को समाजोपयोगी बनाया जा सकता है। समाज के ट्रस्टी के रूप में वे कार्य कर सकते हैं। गान्धी जी के शब्दों में, “प्रत्येक पूंजी दोष नहीं है। पूंजी की किसी-न-किसी रूप में सदैव आवश्यकता रहेगी।”

16. अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्यों पर अधिक बल (More stress on duties than the Rights)-गान्धी जी अधिकारों की अपेक्षा कर्त्तव्यों पर अधिक ज़ोर देते हैं। कर्त्तव्य पालन से अधिकारों की प्राप्ति होती है। गान्धी जी के शब्दों में, “जो कर्तव्यों का पालन करता है अधिकार उसे स्वतः ही प्राप्त हो जाते हैं। वास्तव में अपने कर्तव्यों का पालन करने का अधिकार ही केवल एक ऐसा अधिकार है जो मृत्यु और जीवित रहने के योग्य है।”

17. वर्ग-संघर्ष के सिद्धान्त में विश्वास नहीं (No faith in the theory of class struggle)-साम्यवादियों की तरह गान्धी जी वर्ग-संघर्ष में विश्वास नहीं करते। गान्धी जी के विचारानुसार, वर्ग-संघर्ष हिंसात्मक है। श्रमिकों को उद्योगों के प्रबन्ध में हिस्सेदार बनना चाहिए। यदि व्यक्ति अमीरों के सम्पर्क में रहेगा तो उनकी बुद्धि का लाभ उठा सकेगा। गान्धी जी का विचार है कि श्रमिक वर्ग पूंजीपतियों से पृथक् रहने की अपेक्षा उनके साथ रहने से अधिक लाभ उठा सकता है।

18. बहुमत के सिद्धान्त का विरोध (Opposed to the principle of majority) गान्धी जी लोकतन्त्र में विश्वास रखते हैं, परन्तु वे लोकतन्त्र के बहुमत के सिद्धान्त को नहीं मानते। गान्धी जी के अनुसार बहुसंख्यकों को अल्पसंख्यकों के सहयोग से शासन चलाना चाहिए। बहुमत वर्ग को अन्य वर्गों के विचारों का सम्मान करना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि बहुमत का निर्णय सदैव ठीक हो। लोकतन्त्र का अर्थ है, सबका हित न कि किसी विशेष वर्ग का हित।

19. प्रतिनिधि प्रणाली, संसदीय व्यवस्था आदि पर विचार (Viws about Representative System, Parliamentary System etc.)-गान्धी जी प्रतिनिधित्व लोकतन्त्रात्मक प्रणाली के पक्ष में है। गान्धी जी चुनावों के विरुद्ध नहीं थे। उनके अनुसार-जनता को उन्हीं उम्मीदवारों को चुनना चाहिए जो योग्य, अनुभवी, नि:स्वार्थी तथा ईमानदार हों। गान्धी जी वयस्क मताधिकार के समर्थक थे, परन्तु उनका कहना था कि उसी नागरिक को वोट का अधिकार होना चाहिए जो अपनी रोजी स्वयं कमाता हो। दूसरे शब्दों में गान्धी जी श्रमिक मताधिकार के पक्ष में थे।

20. पुलिस तथा फ़ौज (Police and Military)-गान्धी जी के आदर्श राज्य में पुलिस और फ़ौज का कोई स्थान नहीं है, परन्तु वर्तमान राज्य में गान्धीवादी पुलिस और फ़ौज की आवश्यकता महसूस करते हैं। गान्धीवादियों के अनुसार पुलिस और फ़ौज के कर्मचारी अहिंसावादी होंगे, उनके पास हथियार होंगे, पर उनका प्रयोग बहुत कम किया जाएगा। पुलिस और फ़ौज में बदले की भावना नहीं होगी और इसका मुख्य उद्देश्य जनता का कल्याण होगा।

21. न्याय और जेल (Justice and Jails)-गान्धी जी के अनुसार न्याय शीघ्र और सस्ता होना चाहिए। राजसत्ता की भान्ति न्याय का भी विकेन्द्रीकरण होना चाहिए। पंचायत को न्याय करने का अधिकार होना चाहिए। गान्धी जी न्यायाधीश और वकीलों के तिरस्कार की दृष्टि से देखा करते थे। गान्धी जी दण्ड को एक आवश्यक बुराई मानते थे। उनके अनुसार दण्ड के दो उद्देश्य हैं-प्रथम यह कि दण्ड अपराधी को दोबारा अपराध करने से रोके और द्वितीय, भविष्य में उस प्रकार के अपराधों को रोकना है। गान्धी जी के अनुसार अपराधियों को घृणा की नज़र से नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि उनके प्रति सहानुभूति और प्रेम करना चाहिए। जेलों को अस्पताल और जेल के कर्मचारियों को अपराधियों से डॉक्टर तथा नौं जैसा बर्ताव करना चाहिए। अपराधियों को अच्छे जीवन की सुरक्षा देनी चाहिए, ताकि अपराधी सज़ा समाप्त होने के पश्चात् अच्छा नागरिक बन सके। गान्धी जी जेलों को सुधार घर बनाने के पक्ष में थे।

22. आदर्श समाज की कल्पना-गान्धी जी एक आदर्श समाज की स्थापना करने के पक्ष में हैं। गान्धी जी का आदर्श समाज राम राज्य था। उनकी कल्पना के समाज में सत्य का साम्राज्य होना चाहिए। जनता का जीवन नैतिक तथा आध्यात्मिक आधार पर होना चाहिए। उनके आदर्श समाज की नींव प्रेम, आपसी सहयोग, स्वेच्छा से काम और कर्त्तव्य का पालन था। ऐसे समाज में प्रत्येक व्यक्ति सत्याग्रही, सत्य का खोजी तथा अहिंसक होना चाहिए। इस तरह के समाज की कल्पना में कुछ मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

(i) राज्य की कम-से-कम शक्ति-राज्य प्रकृति से ही अत्याचारी और निजी आज़ादी का नाशक है। गान्धी जी के आदर्श समाज में राज्य को न्यूनतम शक्तियां प्राप्त होनी चाहिएं। आदर्श समाज में सरकार ग्राम-पंचायतों को अधिक अधिकार देगी। पुलिस शक्ति होगी तो सही, परन्तु पुलिस के सिपाही जनता के सेवक होंगे, स्वामी नहीं, दण्ड-सुधारक होंगे। जेलों को सुधार-गृहों में बदल दिया जाएगा, जहां अपराधियों का सुधार चिकित्सा तथा शिक्षा होगी।।

(ii) न्यूनतम ज़रूरतमन्द वाला समाज-जहां तक हो सके मनुष्य को अपनी ज़रूरतों को कम करना चाहिए और सत्य के साक्षात्कार करने के सर्वोत्तम उद्देश्य को सामने रखकर न्यूनतम ज़रूरत से ही सन्तुष्ट रहना चाहिए। सभ्यता का वास्तविक अर्थ जरूरतों की वृद्धि, बल्कि उन्हें इच्छापूर्वक काम करना है।

(iii) समान अवसर-गान्धी जी प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति करने के समान अवसर देना चाहते थे। वे धन की असमान बांट को समाप्त करना ज़रूरी समझते थे। जरूरत से अधिक धन को समाज की अमानत समझा जाना चाहिए और उसे जनकल्याण के लिए प्रयोग में लाना चाहिए।

(iv) गान्धी जी प्रत्येक व्यक्ति को शारीरिक श्रम करने के लिए कहते थे और वे ग्रामीण आर्थिकता में विश्वास करते थे। उनकी नज़र में मशीन तथा ऊंचे स्तर का उत्पादन ही संसार में दुःख तथा शोषण के कारण हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 2.
महात्मा गांधी जी की सत्याग्रह की विधियों का वर्णन करो।
(Describe methods of Satyagraha of Mahatama Gandhi Ji.)
अथवा
महात्मा गांधी जी के सत्याग्रह के विभिन्न ढंगों का वर्णन कीजिए। (Discuss Mahatma Gandhiji’s Various methods of Satyagraha.)
उत्तर-
आधुनिक भारत के सामाजिक तथा राजनीतिक चिन्तकों में गान्धी जी का स्थान बहुत ऊंचा है। उन्होंने समस्त विश्व के लिए लाभदायक सिद्ध हुआ। यह उनका सत्याग्रह का सिद्धान्त था। इस सिद्धान्त का गांधी जी ने स्वयं स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रयोग किया। गांधी जी के सत्याग्रह आन्दोलन का समस्त विश्व पर प्रभाव पड़ा और इसका प्रयोग अफ्रीका तथा अमेरिका में भी किया गया। आधुनिक युग वैज्ञानिक युग है। जहां एक ओर परमाणु बमों का आविष्कार किया गया है और वहां दूसरी ओर गान्धी जी ने लड़ने के लिए सत्याग्रह का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। इसकी शक्ति भौतिक न होकर नैतिक है और गान्धी जी ने इसी शक्ति द्वारा भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति दिलाई। गान्धी जी का कहना था कि “सत्याग्रह मानव आत्म की शक्ति की राजनीतिक एवं आर्थिक प्रभुत्व के विरुद्ध दृढ़ोक्ति है।”

सत्याग्रह के स्रोत (Sources of Satyagrah)—गान्धी जी का प्रारम्भ से ही झुकाव सत्य की खोज की तरफ था। उन्होंने सभी धर्मों पर गहरा अध्ययन किया और सत्याग्रह का सिद्धान्त निकाला। वे गीता और बाइबिल से अत्यधिक प्रभावित हुए थे। उन्हें ईसा मसीह का यह उपदेश कि, “यदि कोई तुम्हारे दाहिने गाल पर चांटा मारे तो अपना बायां गाल भी उसके सामने कर दो”, अहिंसा का पवित्र मन्त्र प्रतीत हुआ था। गान्धी जी ने जे० जे० डोके (J. J. Doke) को बताया कि “न्यू टेस्टामैंट और विशेषकर सरमन ऑन दी माउण्ट (Sermon on the Mount) ने उन्हें सत्याग्रह की शुद्धता और उसके महत्त्व के प्रति जागृत किया।” गान्धी जी का कहना था कि ईसा मसीह सबसे उच्चकोटि के सत्याग्रही थे।

गान्धी जी ने अफ्रीका में जब अंग्रेजों के अत्याचार को भारतीय जनता के ऊपर होते देखा तो उनके मन में पहली बार सत्याग्रह का विचार आया। उन्होंने वहां की जनता को अहिंसात्मक ढंग से आन्दोलन करने के लिए तैयार किया। उन्हीं दिनों गान्धी जी ने एच० डी० थ्यूरी का ‘सविनय अवज्ञा’ (Civil Disobedience) का एक लेख पढ़ा और वह इस लेख से बहुत प्रभावित हुए तथा उन्होंने लिखा, “इस पुस्तक ने मेरी सत्याग्रह की धारणा को वैज्ञानिक विश्लेषण प्रदान किया है।”

सत्याग्रह का अर्थ (Meaning of Satyagrah)-सत्याग्रह का वास्तविक अर्थ अहिंसा में अटूट विश्वास रखने वाले मनुष्य का सत्य के प्रति आग्रह है। अहिंसा के साथ सत्य को मिला देने से एक नई स्थिति पैदा हो जाती है। सत्याग्रह में सब कुछ सत्य के लिए किया जाता है। दूसरों को तनिक भी कष्ट या पीड़ा पहुंचाना उसका उद्देश्य नहीं होता। लेकिन सत्याग्रह में बड़ी से बड़ी हिंसक शक्ति को झुकाने की सामर्थ्य होती है। सत्याग्रह स्वयं ही सहन करने की इच्छा का नाम है। इसलिए इसमें वैर-भावना नहीं होती। गान्धी जी के शब्दों में, “सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं तकलीफ उठाकर सत्य की रक्षा करना। (Satyagrah is the vindication of truth, not by the infliction of suffering on the opponent buton one’s own self.”) “यह सच्चाई के लिए तपस्या है।”

(“Satyagrah is nothing but Tapasya for truth.”) गान्धी जी कहते थे कि “मैंने इसे प्रेम शक्ति या आत्म शक्ति (Soul force) भी कहा है। सत्याग्रह प्रयोग की प्रारम्भिक अवस्थाओं में मैंने यह अनुभव किया कि सत्य मार्ग का अनुसरण विरोधी पर हिंसा-प्रयोग की स्वीकृति नहीं देता है। सत्याग्रह ही अपने विरोधी को कभी कष्ट नहीं पहुंचाता और हमेशा कोमल तर्क द्वारा या तो उसकी बुद्धि को प्रेरित करता है या आत्म-बलिदान द्वारा उनके हृदय को। सत्याग्रह दोहरा वरदान है, यह उसके लिए भी वरदान है जो इसका आचरण करता है और उसके लिए भी जिसके विरुद्ध इसका प्रयोग किया जाए। सत्याग्रही हारना तो जानता ही नहीं क्योंकि बिना थके-हारे सत्य के लिए लड़ता है। इस संग्राम में सत्य मोक्ष होता है और कारागृह स्वतन्त्रता का द्वार।” डॉ० पट्टाभि सीतारमैया ने सत्याग्रह की रचनात्मक भूमिका को स्पष्ट करते हुए कहा था, “सत्याग्रह एक विधेयात्मक एवं अप्रतिहत शक्ति के रूप में कार्य करता है। इसका प्रभाव अनुभव सिद्ध है।” संक्षेप में, सत्याग्रह सत्य व निरापद खोज है और गान्धी जी राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं को भी इस अस्त्र के द्वारा तय करना चाहते थे।

गान्धी जी का सत्याग्रह का शस्त्र कितना महान् था इसे समझने के लिए हमें सत्याग्रह का अर्थ बराबर ध्यान में रखना चाहिए। ‘सत्य’ का अर्थ सच्चाई और ‘आग्रह’ का अर्थ किसी वस्तु को मज़बूती से पकड़ लेने का है। अतः सत्याग्रह का अर्थ है सच्चाई पर अड़े रहना और उसे कभी न छोड़ना चाहे उसके लिए हमें कितनी भी तकलीफें या मुसीबतें क्यों न उठानी पड़ें।

सत्याग्रह निर्बलों का शस्त्र नहीं (Satyagrah not a weapon of the weak)—गान्धी जी के अनुसार, “सत्याग्रह कमज़ोरों का शस्त्र नहीं है।” सत्याग्रह के नाम पर अपनी कायरता छिपानी अनुचित है। सत्याग्रह एक शक्तिशाली के द्वारा किया जा सकता है और शक्ति निर्भीकता में निहित है न कि मनुष्य के मांस और पट्टों में। सत्याग्रह वीरों का शस्त्र है। महात्मा गांधी कहते थे कि “कायरता और अहिंसा इसी तरह इकट्ठी नहीं चल सकती जैसा कि पानी और आग।” (“Satyagrah, is a quality of the brave. Cowardice and Ahimsa do not go together any more than water and fire.”)

सत्याग्रही के लिए नियम (Rules for Satyagrahi)-सत्याग्रह के इस गांधीवादी दर्शन में किसी भी आन्दोलन के प्रतिफल उस आन्दोलन में ही छिपे रहते हैं। एक सच्चा सत्याग्रहीं समझौते के किसी भी अवसर को खोता नहीं है और वह सदा विनम्र बना रहता है। ऐसे सत्याग्रही को निराशा कभी नहीं मिलती और आखिर में वह सबल एवं शक्तिशाली बन जाता है। जिस तरह सूर्य का पूरी तरह वर्णन नहीं किया जा सकता वैसी ही स्थिति एक सच्चे सत्याग्रही की है। सत्याग्रह सत्य और प्रेम पर टिका हुआ है और दरअसल सत्याग्रह की सम्पूर्ण पद्धति पारिवारिक जीवन का राजनीतिक क्षेत्र में विस्तार कर देती है जिसमें प्रत्येक समस्या का हल आपसी सद्भाव द्वारा निकाला जाता है। यह पद्धति आत्म निर्भर होने के साथ-साथ मानव जाति के सन्तुलित विकास और सभ्यता की प्रगति के लिए बहुत ज़रूरी है। इसका प्रयोग कर पाना कुछ लोगों की बपौती नहीं है बल्कि सभी लोग सत्याग्रह के मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं बशर्ते कि वे सत्य और अहिंसा की शक्ति में विश्वास करते हों। यह संघर्ष का ऐसा तरीका है जिसका प्रयोग अचानक नहीं किया जाता। जब अन्य सभी उपाय नाकामयाब हो जाते हैं तभी इसका सहारा समाज में सामूहिक हित के लिए लिया जाता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता। ईश्वर के प्रति अटूट निष्ठा रखनी ज़रूरी है हालांकि संख्या बल का कोई विचार इसकी सफलता के लिए आवश्यक नहीं है। सत्याग्रह प्रयोग करने वाले और जिसके विरुद्ध इसका प्रयोग किया जा रहा हो दोनों का ही भला करता है।

सत्याग्रही में सत्याग्रह के सिद्धान्त का पालन करने के लिए कुछ विशेषताएं होनी चाहिएं। इन विशेषताओं के होने पर ही कोई व्यक्ति सच्चा सत्याग्रही बन सकता है। ये विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

  • सत्याग्रही को क्रोध नहीं करना चाहिए।
  • उसे अपने विरोधी के क्रोध को सहन करना चाहिए।
  • उसे दण्ड के भय से झुकना नहीं चाहिए। उसे निडर होना चाहिए।
  • यदि कोई सरकारी अधिकारी सत्याग्रही को गिरफ्तार करना चाहे तो सत्याग्रही स्वेच्छा से गिरफ्तार हो जाए।
  • यदि किसी सत्याग्रही के पास कोई ट्रस्ट की सम्पत्ति है तो उसके लिए बलिदान देने के लिए तैयार होना चाहिए।
  • सत्याग्रही न मारेगा, न कसम खाएगा और न गाली देगा।
  • सत्याग्रही अपने विरोधी का अपमान नहीं करेगा और न वह ऐसे नारे लगाएगा जिससे हिंसा की बू आती हो।

सत्याग्रहियों के लिए योग्यताएं (Qualifications for the Satyagrahis)-1930 में गांधी जी ने सत्याग्रही के लिए 9 नियम बताए थे जिनका पालन करना उसके लिए बहुत आवश्यक था-

  • सत्याग्रही को ईश्वर में अटल विश्वास होना चाहिए।
  • सत्याग्रही को सत्य तथा अहिंसा में पूर्ण विश्वास होना चाहिए।
  • वह शुद्ध जीवन बिताने वाला हो अर्थात् उसमें आन्तरिक शुद्धि हो तथा वह खुशी से अपनी सम्पत्ति तथा जीवन को उद्देश्य की प्राप्ति के लिए त्याग करने वाले होना चाहिए।
  • सत्याग्रही सद्भाव वाला तथा खद्दर पहनने वाले और सूत कातने वाला होना चाहिए।
  • वह नशीली वस्तुओं से दूर रहे जिनसे इसकी बुद्धि चंचल होती है।
  • अनुशासन के नियमों का पालन करना चाहिए।
  • उसे जेल के नियमों का भी तब तक पालन करना चाहिए जब तक वे उसके सम्मान को भंग न करें।
  • शत्रु के प्रति मन, वचन तथा कर्म से हिंसा का भाव नहीं होना चाहिए।
  • उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बलिदान देने वाला हो।

सत्याग्रह की विशेषताएं (Characteristics of Satyagraha)-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

  • सत्याग्रह व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है (Satyagraha is the birth right of Everyone)-गांधी जी के अनुसार भ्रष्टाचारी एवं असंवैधानिक सरकार के विरुद्ध सत्याग्रह करना. प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार है।
  • सत्याग्रह दूसरों को प्रार्थना द्वारा बदलने की विधि (Satyagraha is a method to change the opponent through an appear)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह, का उद्देश्य दूसरों को क्षति पहुंचाना नहीं होता, बल्कि प्रार्थना द्वारा उसको प्रभावित करना तथा सही रास्ते पर लाना है।
  • स्वयं कष्ट सहना (Self Suffering)-गान्धी जी के अनुसार स्वयं कष्ट सहना सत्याग्रह का एक महत्त्वपूर्ण भाग है इसके द्वारा दूसरों की आत्मा को सुधारा जा सकता है।
  • सत्याग्रह का आधार नैतिक शक्ति है (Moral Power is the basis of Satyagraha)—गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह का आधार नैतिक शक्ति है। एक सच्चा सत्याग्रही नैतिक शक्ति के आधार पर सभी बाधाओं को पार कर जाता है।
  • सामाजिक कल्याण (Social Welfare)गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह का उद्देश्य सामाजिक कल्याण होता है। गांधी जी का मानना है कि एक व्यक्ति का कल्याण निजी स्वार्थों से प्रेरित होता है, जबकि सामाजिक कल्याण सामूहिक कल्याण की भावना से प्रेरित होता है।
  • हिंसा का विरोध (Opoose to Violence)-गान्धी जी हिंसा का विरोध करते हैं। उनके अनुसार हिंसा तथा सत्याग्रह परस्पर विरोधी है। गान्धी जी के अनुसार हिंसा द्वारा किसी भी समस्या का हल नहीं निकल सकता।
  • सत्याग्रह का व्यापक प्रयोग (Wider use of Satyagraha)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह एक ऐसी आत्मशक्ति है, जिसका प्रयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में किया जा सकता है।
  • पारदर्शिता (Transperacy)-गान्धी जी के अनुसार सत्याग्रह में पारदर्शिता पाई जाती है। गान्धी जी के अनुसार जो कार्य चोरी छिप किये जाते हैं वे कार्य प्रायः उचित नहीं होते। इसलिए गान्धी जी सत्याग्रह के माध्यम से प्रत्येक गतिविधि खुले रूप में करने का समर्थन करते हैं।

सत्याग्रह के स्वरूप (Forms of Satyagrah)-सत्याग्रह के विभिन्न स्वरूप निम्नलिखित हैं –

(1) बातचीत (Negotiations)
(2) आत्मपीड़न (Self-suffering)
(3) असहयोग (Non-co-operation)
(4) सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)
(5) हड़ताल (Strike)
(6) उपवास या व्रत (Fasting)
(7) धरना (Picketing)
(8) सामाजिक बहिष्कार (Social Boycott)
(9) स्वेच्छा से पलायन (Hijrat)

1. बातचीत का सिद्धान्त (Principle of Negotiation)-सत्याग्रही को किसी व्यक्ति का विरोध करने से पहले उसे यह अच्छी प्रकार समझा देना चाहिए कि वह गलती पर है। हो सकता है कि उस व्यक्ति ने वह गलती निजी स्वार्थ या अज्ञानता के कारण की हो। यदि विरोधी फिर भी न समझे तो किसी मध्यस्थ के द्वारा समझा-बुझा कर सही रास्ते पर लाना चाहिए। गान्धी जी कहते हैं “यदि समझाने बुझाने से वह न माने तो सत्याग्रही को कोई कठोर पग उठाना चाहिए।”

2. आत्म-पीड़न (Self-suffering)-महात्मा गांधी के अनुसार यदि विरोधी किसी मध्यस्थ द्वारा भी समझौते के लिए तैयार नहीं होता और अपना गलत रास्ता नहीं छोड़ता तो सत्याग्रही को उसके विरुद्ध कोई ठोस कदम उठाना चाहिए। ठोस कदम से गान्धी जी का अभिप्राय यह नहीं कि सत्याग्रही को अपने विरोधी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना चाहिए या उसे हानि पहुंचानी चाहिए बल्कि इसका अर्थ है स्वयं कष्ट सहना चाहिए। आत्म-पीड़न (अपने आपको कष्ट देने से है) विरोधी के हृदय में दया और सद्भावना जागृत करती है।

3. असहयोग Non-co-operation)-गान्धी जी के मतानुसार जो, लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों, उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए और उन्हें यह अनुभव कराना चाहिए कि वे अकेले हैं। इस प्रकार के हालातों में ही अन्यायी और दमन करने वाला व्यक्ति आन्दोलनकारियों की उचित मांगों को सुनने के लिए तैयार होता है। लेकिन असहयोग का सहारा लेने के लिए, साहस और आत्म बलिदान की ज़रूरत होती है जिसके बिना असहयोगी अपने लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता।

4. सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience) शक्तिशाली शत्रु के खिलाफ़ लड़ने के लिए सविनय अवज्ञा भी गान्धी जी की दृष्टि में एक अनोखा तरीका था। वे सशस्त्र प्रतिरोध (Armed Resistance) के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।

5. हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमनकर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल भी है। प्रत्येक कारखाने में मजदूरों को उद्योगपतियों के विरुद्ध लड़ने के लिए संगठित होना ज़रूरी है। पर मजदूरों को इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि ऐसे साधनों का उद्देश्य मज़दूरों के उचित अधिकारों को प्राप्त करना और श्रम की गरिमा स्थापित करना है। इसी तरह हड़तालें पूरी तरह अहिंसक होनी चाहिएं।

6. उपवास या व्रत (Fasting)-गांधी जी के जीवन में विशुद्ध सात्विकता का प्रवेश जिस रूप में हुआ है, उसे उपवास जैसे विलक्षण साधनों ने और भी अधिक शक्ति प्रदान की है। गांधी जी के अनुसार उपवास, सत्याग्रह का ही एक रूप है। उपवास आत्म-शुद्धि का एक साधन है। उनके मतानुसार जब उपवास सामूहिक मांगों को मनवाने के लिए किया जाए तो केवल उसी समय किया जाना चाहिए जब कि अन्य साधन समाप्त हो चुके हों।

7. सामाजिक बहिष्कार (Social Boycott)-सामाजिक बहिष्कार का प्रयोग अहिंसात्मक ढंग से होना चाहिए। इसका प्रयोग या तो उन लोगों के विरुद्ध होना चाहिए जो जनमत की अवहेलना करते हैं या फिर सरकार के पिहुओं के विरुद्ध।

8. धरना (Picketing)-धरना बहिष्कार का एक ढंग है। इसका प्रयोग अहिंसात्मक ढंग से होना चाहिए। जो लोग शराब, अफीम, अन्य नशीली वस्तुएं तथा विदेशी कपड़ा बेचते थे गांधी जी उनके विरुद्ध धरने की आज्ञा देते हैं।

9. हिज़रत (Hijrat)–गांधी जी के मतानुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और वह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही सबसे अच्छा तरीका है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 3.
गान्धी जी के आदर्श राज्य की विशेषताएं लिखो। (Write down the characteristics of the ideal state of Gandhiji.)
अथवा
महात्मा गांधी जी के आदर्श राज्य की विशेषताओं का वर्णन करो। (Write down the feature of Mahatama Gandhiji’s Ideal State.)
अथवा
गांधी जी के आदर्श राज्य की मुख्य विशेषताएं लिखो। (Write down the feature of Gandhiji’s Ideal State.)
उत्तर-
जब हम गान्धी जी के धार्मिक और आध्यात्मिक विश्वासों के आधार पर नए समाज के विषय में विचार करने बैठते हैं तो एक अत्यन्त कठिन समस्या हमारे सामने उपस्थित होती है। इसका कारण यह है कि वे एक कर्मयोगी थे। अतः अपने आदर्श राज्य की स्थापना का विस्तार से वर्णन उन्होंने कभी नहीं किया। जब कभी कोई उनसे उनके नवीन समाज की बात करता तो वे चुप हो जाते थे। एक बार न्यूमैन से उन्होंने कहा था-“मैं दूरस्थ लक्ष्य देखने की कामना नहीं करता। मेरे लिए तो एक कदम काफ़ी है।” (“I do not ask to see the distant scence ; one step is enough for me.”) इस विषय में 11 फरवरी, 1933 के ‘हरिजन’ में उन्होंने लिखा था –

“अहिंसा पर टिके हुए समाज में राज्य और सरकार की रूप-रेखा क्या होगी ? उनकी चर्चा मैं जानबूझ कर नहीं करता रहा हूँ।……जब समाज का निर्माण अहिंसा के नियमों के अनुसार किया जाएगा तो उसका रूप आज के समाज के मूलरूप से भिन्न होगा। मैं पहले से ही यह नहीं कह सकता कि पूरी तरह से अहिंसा पर आधारित आदर्श राज्य या सरकार का स्वरूप क्या होगा।

इस प्रकार गांधी जी अपने नवीन समाज की कोई स्पष्ट रूप-रेखा प्रस्तुत न कर सके। यह काम उन्होंने जनता पर छोड़ दिया। स्वतन्त्रता के पश्चात् जिस संविधान सभा का निर्माण हुआ, उसमें गान्धी जी ने भाग नहीं लिया। यदि वे भाग ले भी लेते तो वे संविधान सभा द्वारा अहिंसात्मक सरकार की स्थापना करने में सफल न होते क्योंकि संविधान सभा के कई सदस्य अहिंसा में पूर्ण विश्वास नहीं रखते थे।

गान्धी जी के नवीन समाज की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

1. राज्य विहीन व्यवस्था-महात्मा गांधी हिंसा को जड़ से काट डालना चाहते थे। वह हिंसा को किसी क्षेत्र में भी पनपने देना नहीं चाहते थे। वे राज्य की सत्ता को हिंसा का प्रतीक समझते थे। गान्धी जी अहिंसा के पुजारी हैं, वे राज्य का विरोध इसलिए करते हैं कि यह हिंसा मूलक है। राज्य का विरोध करते हुए गान्धी जी कहते हैं-“मुझे जो बात ना पसन्द है, वह है बल के आधार पर बना हुआ संगठन, राज्य ऐसा ही संगठन है।” गान्धी जी की दृष्टि में राज्य हिंसा का प्रतीक होने के बावजूद व्यक्ति की अपूर्णता का द्योतक है। इसलिए वह ऐसी व्यवस्था की कल्पना करते हैं जब राज्य अपने आप समाप्त हो जाएगा।

2. आदर्श समाज या राज्यविहीन लोकतन्त्र स्वशासी तथा सत्याग्रही ग्रामों का संघ होगा (The ideal society or stateless democracy will be a federation of mover or les self-suffering and self-governing Satyagrahi Village Communities) गान्धी जी का राज्यविहीन समाज आपसी सहयोग पर आधारित गणराज्य होगा अथवा अनेकों पंचायतों का एक समूह या संघ होगा। ऐसे राज्य की अपनी कोई केन्द्रित शक्ति नहीं होगी, बल्कि उनकी शक्ति इन पंचायतों में बिखरी रहेगी। इस प्रकार का संघ लोगों की स्वतन्त्र इच्छा पर आधारित होगा।

3. व्यक्ति और समाज के आपसी सम्बन्ध (Relationship between the Individual and the State)गान्धीवादी व्यवस्था में व्यक्ति को साध्य माना गया है। समाज के सभी क्रिया-कलापों का केन्द्र व्यक्ति ही होगा। राज्य एक साधन माना गया है। राज्य व्यक्ति का सेवक होगा, स्वामी नहीं। पर समाज की प्रगति की ज़रूरतों के अनुसार मनुष्य को भी अपने आपको बनाना पड़ेगा। व्यक्ति को स्वतन्त्रता देने के बावजूद भी वह यह नहीं भूलते कि वह एक सामाजिक प्राणी है।

गान्धी जी के अनुसार व्यक्ति की आजादी और समाज के कर्तव्यों के बीच संघर्ष का असली कारण राज्य का अहिंसा पर आधारित स्वरूप है। उसमें लोगों का शोषण करने का अवसर कुछ व्यक्तियों को मिल जाता है। यहां पर ध्यान देने की बात यह है कि जितना ही लोग अहिंसा, सत्य और प्रेम को हृदयंगम करेंगे और आपसी सेवा एवं सहयोग के लिए तत्पर रहेगे उतना ही ऐसे संघर्ष समाप्त हो जाएंगे।

4. विकेन्द्रीकरण (Decentralisation)-गान्धी जी का अहिंसात्मक राम राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा। राज्य के केन्द्रीकृत होने से व्यक्ति की आज़ादी नहीं रह जाती और व्यक्ति की आज़ादी के बिना अहिंसा पंगु बन कर रह जाएगी।

आर्थिक विकेन्द्रीकरण के क्षेत्र में बड़े स्तर के उद्योग-धन्धों को प्रोत्साहन नहीं दिया जाएगा। बल्कि कुटीर उद्योग घर-घर स्थापित किए जाएंगे। इससे सामाजिक और आर्थिक समता स्थापित करने में मदद मिलेगी। आधुनिक जगत् से जहां कहीं हिंसा की बातें दिखाई पड़ती हैं उनका मुख्य कारण राज्यों का बहुत अधिक केन्द्रीकृत और सशक्त होना है। आर्थिक विकेन्द्रीकरण से मज़दूरों का शोषण भी नहीं होगा क्योंकि उत्पादन के साधनों और उत्पादित धन के स्वामी वे स्वयं होंगे।

5. वर्ण-व्यवस्था-गान्धी जी के आदर्श राज्य में वर्ण-व्यवस्था के आधार पर काम किया जाएगा। प्रत्येक मनुष्य पुरखों से चला आ रहा काम करेगा जिससे इस व्यवस्था को कोई नुकसान न पहुंचे। इससे समाज के जीवन में होड़ की भावना नहीं उठेगी क्योंकि लोग अपना धन्धा कुछ मर्यादाओं के अन्दर रहकर करेंगे। गान्धी जी के अनुसार वर्ण के नियम ने विशेष प्रकार की योग्यता वाले मनुष्यों के लिए कार्य क्षेत्र स्थापित कर दिया। इससे अनुचित प्रतियोगिता (Unworthy Competition) दूर हो गई। वर्ण नियम ने मनुष्यों की मर्यादाओं को तो माना किन्तु ऊंच-नीच को स्थान न दिया।

गान्धी जी की वर्ण व्यवस्था में सभी उद्योगों को समानता दी जाएगी। ऊंच-नीच के भेदभाव नहीं होंगे1 दूसरी बात यह है कि पुरखों से चले आ रहे काम केवल जीविका चलाने और सामाजिक हित की भावना से ही किए जाएंगे। लाभ कमाना उनका लक्ष्य न होगा।

6. अपरिग्रह (Non-possession)-गान्धीवाद राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। स्वयं गान्धी जी ने वस्तुएं कभी भी इकट्ठी नहीं की। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीजें इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है। अगर हमें ईश्वर पर भरोसा है तो वह हमारी सन्तुष्टि के लिए हमें वस्तुएं अवश्य देगा।

7. न्यासी (Trusteeship)-गान्धीवादी राज्य में जब लोग अपनी ज़रूरत से अधिक किसी वस्तु का संग्रह नहीं करेंगे तो सभी लोग सुख और शान्ति से रह सकेंगे। गान्धी जी का कहना था कि सम्पत्ति का उत्पादन किया जाए और उसके उत्पादन में काम करने वालों को समान हिस्सा मिले। किसी के पास कितनी भी सम्पत्ति क्यों न हो वह समाज की न्यास सम्पत्ति (Trust) समझी जाए। गान्धी जी का कहना था कि ट्रस्टीशिप सिद्धान्त में आपस के झगड़े समाप्त हो जाएंगे।

8. जीविका के लिए श्रम (Bread-labour)-गान्धी जी का विचार था कि प्रत्येक स्वस्थ मनुष्य को अपनी जीविका कमाने के लिए शारीरिक श्रम करना ज़रूरी है। वे तो कहा करते थे कि बौद्धिक काम करने वालों को भी शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए। इससे श्रम को आदर मिलेगा और समाज में ऊंच-नीच की भावना का विकास नहीं होगा।

9. आदर्श समाज कृषि प्रधान होगा (Ideal Society will be predominantly agricultural)-गान्धी जी के अनुसार, “ जो समाज अपरिग्रह और शारीरिक श्रम के आदर्शों पर स्थापित किया जाएगा, वह कृषि प्रदान होगा और ग्रामीण सभ्यता को अपनाएगा। आर्थिक जीवन में पूंजीवादी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी और मालिक नौकर के बनावटी सम्बन्धों का अन्त हो जाएगा। उत्पादन ग्रामीण उद्योग-धन्धों द्वारा होगा।” यद्यपि गान्धी जी सभी प्रकार की मशीनों के विरुद्ध नहीं थे परन्तु उनका विचार था मुनाफे के लिए लगाए जाने वाले बड़े-बड़े मिल-कारखानों के साथ-साथ सत्याग्रही सभ्यता का विकास असम्भव है।

10. आदर्श समाज में खेती सहकारी ढंग से होगी (Agriculture will be an Co-operative basis in an ideal Society)—गान्धी जी के अनुसार, “खेती स्वेच्छा पर आधारित पद्धति से होनी चाहिए। महात्मा गान्धी की सहकारिता की धारणा यह भी थी कि ज़मीन किसानों के सहकारी स्वामित्व में हो और जुताई तथा खेती सहकारी नीति से हो। इससे श्रम, पूंजी और औज़ारों आदि की बचत होगी। भूमि के स्वामी सहकारिता से कार्य करेंगे और पूंजी,
औज़ार, पशु, बीज इत्यादि के सहकारी स्वामी होंगे। उनकी धारणा थी कि सहकारी कृषि देश का रूप बदल देगी और किसानों के बीच से निर्धनता और आलस्य को दूर कर देगी।”

11. आदर्श समाज में यातायात के भारी साधन, बड़े नगर, वकील और अदालतें नहीं होंगी (No heavy transport, big cities, courts and lawyers in an Ideal society)— it oft otot farari e forti, “आदर्श समाज में न तो यातायात के भारी साधन होंगे, न वकील और कचहरियां होंगी, न आजकल डॉक्टर और दवाइयां होंगी और न बड़े नगर होंगे।”

12. आदर्श समाज में प्राकृतिक चिकित्सा पर बल दिया जाएगा (Emphasis on natural treatment will be put in ideal society)—गान्धी जी के आदर्श समाज में पेशेवर डॉक्टर नहीं होंगे और न ही दवाइयों का बड़ा उत्पादन होगा बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा पर बल दिया जाएगा।

13. धर्म-निरपेक्षता (Secularism)-गान्धीवाद धर्म-निरपेक्षता में विश्वास करता है। गान्धी जी के अनुसार राज्य का अपना कोई धर्म नहीं होना चाहिए। इसके साथ-साथ सभी नागरिकों को कोई भी धर्म अपनाने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

14. अपराध, सजा एवं न्याय (Crime, Punishment and Justice)-गान्धीवाद के अनुसार अपराध समाज में एक बीमारी के समान है और इस बीमारी से हमें छुटकारा तभी मिल सकता है, जब हम अपराधियों के प्रति घृणा एवं बदले की भावना न रखें तथा उन्हें सुधारने का प्रयास करें।

निष्कर्ष (Conclusion)-अब प्रश्न उठता है कि क्या गान्धीवादी राज्य की स्थापना कर पाना सम्भव है? इस बारे में बहुत-से आलोचकों का कहना यह है कि गान्धी जी के राज्य व्यवस्था के सम्बन्धी विचार प्लेटो के काल्पनिक विचारों की तरह ही हैं। उन्हें व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। वस्तुतः सच्चाई यह है कि लोग ऐसा कहते हैं वे मनुष्य को एक दैनिक प्राणी न मान कर एक बर्बर प्राणी ही समझते हैं जो जंगलीपन से ऊपर नहीं उठ सकता। इसके विपरीत गान्धी जी का दृष्टिकोण यह था कि मनुष्य में दैवी अंश मौजूद है। अतः उनका जीवन कानून, सत्य, प्रेम और अहिंसा के आधार पर चलना चाहिए किन्तु जिन लोगों का दृष्टिकोण भौतिक है और आत्मा एवं परमात्मा की सत्ता में जिन्हें विश्वास ही नहीं है उनको इन सिद्धान्तों के विषय में विश्वास दिला पाना बहुत अधिक कठिन है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
गांधी जी के धर्म और राजनीति के सम्बन्धों के बारे में मौलिक दृष्टिकोण का वर्णन कीजिए।
अथवा
गांधी जी के अनुसार “धर्म तथा राजनीति का परस्पर सम्बन्ध है।” वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गांधी जी राजनीति को धर्म की आधारशिला पर खड़ा करना चाहते थे। गांधी जी का विश्वास था कि धर्म राजनीति का अभिन्न अंग है और राजनीति को धर्म से अलग नहीं किया जा सकता है। गांधी जी चाहते थे कि राजनीति अनैतिकता से दूर रहे। उनकी नज़र में राजनीति, धर्म और नैतिकता की शाखा थी। धर्म से अलग होने पर राजनीति एक शव की भान्ति है जिसको जला देना चाहिए। गांधी जी के शब्दों में, “बहुत सारे धार्मिक व्यक्ति जिनसे मैं मिलता हूँ वह छुपे हुए राजनीतिज्ञ होते हैं, परन्तु मैं जो एक राजनीतिज्ञ दिखाई देता हूँ वास्तव में धार्मिक हूँ।”

प्रश्न 2.
गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह से क्या अभिप्राय है?
अथवा
सत्याग्रह से गांधी जी का क्या भाव है ? सत्याग्रह की विधियों का नाम बताएं।
उत्तर-
गांधी जी ने सार्वजनिक विरोध के लिए सत्याग्रह के सिद्धान्त का आविष्कार किया। सत्याग्रह का अर्थ है अहिंसा में अटूट विश्वास रखने वाले मनुष्य का सत्य के प्रति आग्रह । सत्याग्रह में सब कुछ सत्य के लिए किया जाता है, दूसरों को तनिक भी कष्ट या पीड़ा पहुंचाना उसका उद्देश्य नहीं होता। गांधी जी के शब्दों में, “सत्याग्रह का अर्थ है विरोधी को पीड़ा देकर नहीं, बल्कि स्वयं तकलीफ उठा कर सत्य की रक्षा करना।” यह सच्चाई के लिए तपस्या है। गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह कमज़ोरों का शस्त्र नहीं है। सत्याग्रह वीरों का शस्त्र है। इस सिद्धान्त का गांधी जी ने स्वयं स्वतन्त्रता आन्दोलन में प्रयोग किया। एक सच्चा सत्याग्रही समझौते के किसी भी अवसर को खोता नहीं है और वह सदा विनम्र बना रहता है। व्यक्तिगत लाभ के लिए इसका प्रयोग नहीं किया जाता।

सत्याग्रह की विधियां-

  1. असहयोग (Non-Co-Operation)-गांधी जी के मतानुसार जो लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों तो उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए।
  2. सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)-शक्तिशाली शत्रु के ख़िलाफ लड़ने के लिए गांधी जी ने सविनय अवज्ञा के तरीके पर जोर दिया है। गांधी जी सशस्त्र प्रतिरोध के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।
  3. हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमन कर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल है।
  4. उपवास या व्रत-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह का एक तरीका उपवास या व्रत रखना है। प

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प्रश्न 3.
सत्याग्रह की चार विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • असहयोग (Non-Co-Operation)-गांधी जी के मतानुसार जो लोग अन्याय करते हों या दूसरों को अनुचित तरीकों से दबाते हों तो उनके साथ किसी भी तरह का सहयोग नहीं करना चाहिए।
  • सविनय अवज्ञा (Civil Disobedience)-शक्तिशाली शत्रु के ख़िलाफ लड़ने के लिए गांधी जी ने सविनय अवज्ञा के तरीके पर जोर दिया है। गांधी जी सशस्त्र प्रतिरोध के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए।
  • हड़ताल (Strike)-गांधी जी के अनुसार दमन कर्ता या अन्याय करने वाले के विरुद्ध लड़ने का एक तरीका हड़ताल है।
  • उपवास या व्रत-गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह का एक तरीका उपवास या व्रत रखना है।

प्रश्न 4.
गांधी जी के चार महत्त्वपूर्ण विचार लिखो।
उत्तर-

  • अहिंसा सम्बन्धी विचार-गांधी जी अहिंसा के पुजारी थे। गांधी जी ने अहिंसा को आत्मिक तथा ईश्वरीय शक्ति बताया है। अहिंसा, आत्म बलिदान करने, कठिनाइयां सहने और दुःख भोगने के बाद भी सत्य और न्याय पर डटे रहने को ही कहा जा सकता है। सत्य, प्रेम, निर्भीकता, व्रत, नि:स्वार्थ भावना, आन्तरिक पवित्रता आदि अहिंसा के आधार हैं।
  • साधनों की पवित्रता पर विश्वास-व्यक्ति तथा समाज को सदाचार के सांचे में ढालने के लिए गांधी जी ने मानवीय आचरण को ऊंचा उठाने के लिए सत्य, अहिंसा और साधनों की पवित्रता पर जोर दिया। समाज में परिवर्तन लाने के लिए उन्होंने साधन की पवित्रता पर जोर दिया। गांधी जी का विश्वास था कि यदि कोई साधन का ध्यान रखे तो उद्देश्य अपना ध्यान स्वयं रख लेगा।
  • राज्य का कार्य क्षेत्र-गांधी जी के अनुसार राज्य को व्यक्ति के कार्यों में न्यूनतम हस्तक्षेप करने का अधिकार होना चाहिए। सर्वोत्तम सरकार वह है जो सबसे कम शासन करे। गांधी जी राज्य को कम-से-कम कार्य सौंपना चाहते थे।
  • गांधी जी ने व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल दिया है।

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प्रश्न 5.
राज्य सम्बन्धी गांधी जी के विचार लिखिए।
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार राज्य संगठित तथा एकत्रित हिंसा का प्रतिनिधि हैं। व्यक्ति तो आत्मा का स्वामी है, परन्तु राज्य एक आत्मा रहित मशीन है। हिंसा को राज्य से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि राज्य इसके बल पर ही कायम है। गांधी जी का कहना था कि राज्य द्वारा पुलिस, न्यायालय और सैनिक शक्ति के माध्यम से व्यक्तियों पर अपनी इच्छा थोपी जाती है। गांधी जी ने राज्य को अनावश्यक बुराई इसलिए भी बताया, क्योंकि उनके विचारानुसार राज्य एक बाध्यकारी शक्ति है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास को कुण्ठित करती है। राज्य के विरोध में गांधी जी का यह भी तर्क था कि अहिंसा पर आधारित किसी भी आदर्श समाज में राज्य अनावश्यक है। अतः गांधी जी राज्य की शक्ति का अन्त करना चाहते थे, परन्तु वह राज्य की व्यवस्था का तुरन्त अन्त करने के पक्ष में नहीं थे।

प्रश्न 6.
महात्मा गांधी जी के अहिंसा सम्बन्धी विचारों पर विस्तार से वर्णन करें। (P.B. 2017)
अथवा
गांधी जी के अनुसार अहिंसा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
गांधी जी पूरे संसार में अहिंसा के लिए प्रसिद्ध है। गांधी जी का अहिंसा से अभिप्राय है-“सृष्टि पर सब प्राणियों को मन, वाणी और कर्म से किसी प्रकार की कोई हानि न पहुंचाई जाए।” गांधी जी के अनुसार, अहिंसा का अर्थ है कि किसी को क्रोध में अथवा निजी स्वार्थ के लिए उसको चोट पहुंचाने के इरादे से दुःख न दिया जाए और न ही हत्या की जाए। अहिंसा से अभिप्राय सत्य के आग्रह से है। अहिंसा का अर्थ खतरे के समय कायरता दिखाना या हाथ पर हाथ रख कर बैठे रहना नहीं है। गांधी जी के अनुसार अहिंसा ऐसी शक्ति है जो बिजली से भी अधिक तेज़ है और ईश्वर से भी अधिक शक्तिशाली है। भीषण से भीषण हिंसा का सामना ऊंची से ऊंची अहिंसा द्वारा किया जा सकता है। गांधी जी के अनुसार अहिंसा उन व्यक्तियों का शस्त्र है जो भौतिक रूप से कमज़ोर, परन्तु नैतिक रूप से बलवान् हैं। अहिंसा का मूल आधार सत्य है। प्रेम, आन्तरिक पवित्रता, व्रत, निर्भीकता, अपरिग्रह इत्यादि अहिंसा के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।

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प्रश्न 7.
गांधी जी के आदर्श राज्य (राम राज्य) की चार विशेषताएं लिखिए।
अथवा
गाँधी जी के आदर्श राज्य की चार विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
महात्मा गांधी के आदर्श राज्य के सिद्धांत की व्याख्या करो।
उत्तर-
1. विकेन्द्रीकरण-गांधी जी का अहिंसात्मक राम राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा। राज्य के केन्द्रीयकृत होने से व्यक्ति की आज़ादी नहीं रह जाती और व्यक्ति की आज़ादी के बिना अहिंसा पंगु बनकर रह जाएगी। गांधी जी आर्थिक व राजनीतिक शक्ति के विकेन्द्रीकरण के महान् समर्थक रहे हैं।

2. अपरिग्रह-गांधीवादी राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीजें इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है।

3. आदर्श समाज कृषि प्रधान होगा-गांधी जी के अनुसार, “जो समाज अपरिग्रह और शारीरिक श्रम के आदर्शों पर स्थापित किया जाएगा, वह खेती प्रधान होगा और ग्रामीण सभ्यता को अपनाएगा।” किन्तु गांधी जी ऐसे सादे औज़ारों और मशीनों का स्वागत करते थे जो बिना बेकारी बढ़ाए लाखों ग्रामीणों के बोझ को हल्का करते हैं। 4. धर्म-निरपेक्षता-गांधी जी के अनुसार राज्य धर्म-निरपेक्ष होना चाहिए।

प्रश्न 8.
गांधी जी का अमानती सिद्धात क्या है ?
अथवा
अमानतदारी प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गांधी जी ट्रस्टीशिप का सिद्धान्त समाज की वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था को समता व्यवस्था में बदलने का एक साधन है। यह पूंजीवाद को बढ़ावा नहीं देता तथा पूंजीपतियों को अपना सुधार करने का अवसर देता है। वह सम्पत्ति के व्यक्तिगत स्वामी बनने के सिद्धान्त को अस्वीकार करता है। उसके अनुसार देश की सारी भूमि, सम्पत्ति व उत्पादन के साधन सारे राष्ट्र अथवा समाज के हैं। यद्यपि उन पर बड़े-बड़े ज़मींदारों तथा पूंजीपतियों का नियन्त्रण है, परन्तु वे केवल उस सम्पत्ति के संरक्षक हैं। वे अपनी निजी साधारण आवश्यकता के अनुसार अपने लिए थोड़ी-सी सम्पत्ति का प्रयोग कर सकते हैं। इस प्रकार इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति अपनी सम्पत्ति को समाज के हितों को ध्यान में रखे बिना अपने स्वार्थ के लिए प्रयोग करने में स्वतन्त्र नहीं होगा। जिस प्रकार लोगों के लिए न्यूनतम वेतन निश्चित करने का प्रस्ताव है उसी प्रकार लोगों की अधिकतम आय की सीमा भी निर्धारित करनी होगी। न्यूनतम और अधिकतम आय का भेद उचित न्याय पर आधारित होगा और समय-समय पर बदलता रहेगा।

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प्रश्न 9.
महात्मा गांधी कौन थे ?
उत्तर-
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी वास्तव में एक युग पुरुष थे। गांधी जी के नेतृत्व में भारत ने अपनी स्वतन्त्रता की लड़ाई सफलतापूर्वक लड़ी तथा अहिंसा के मार्ग पर चलकर ही अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। महात्मा गांधी का असली नाम मोहनदास था। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को आधुनिक गुजरात राज्य में स्थित पोरबन्दर नामक रियासत में हुआ। मोहनदास के पिता का नाम कर्मचन्द था तथा उनकी माता का नाम पुतली बाई था।
महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीयों ने असहयोग आन्दोलन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन तथा भारत छोड़ो आन्दोलन चलाकर भारत को अंग्रेज़ों के चंगुल से आज़ाद कराया।

प्रश्न 10.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन सम्बन्धी गांधी जी के विचारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
गांधी जी के अनुसार सिविल अवज्ञा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
शक्तिशाली शत्रु के खिलाफ लड़ने के लिए सविनय अवज्ञा भी गांधी जी की दृष्टि में एक अनोखा तरीका था। वे सशस्त्र प्रतिरोध (Armed Resistance) के विरोधी थे पर उनका मत था कि मनुष्यों को सामूहिक सामाजिक कल्याण के विरुद्ध लागू होने वाले नियमों और अन्यायपूर्ण कानूनों को नहीं मानना चाहिए। लोगों में ऐसे बुरे और अन्यायी कानूनों को बुरा बताने का साहस होना ज़रूरी है। उन्हें ऐसे सभी कानूनों को अमान्य कर जो भी कष्ट या दण्ड उन्हें दिया जाए, उसे सहने के लिए उस समय तक तैयार रहना चाहिए, जब तक कि उन कानूनों को रद्द न कर दिया जाए। गांधी जी के शब्दों में, “मेरा यह निश्चित मत है कि हमारा पहला कर्त्तव्य यह है कि हम स्वेच्छा से कानूनों का पालन करें पर ऐसा करते समय मैं इस नतीजे पर भी पहुंचा हूं कि जो कानून असत्य और अन्याय को बढ़ावा देते हों उनको तोड़ना भी हमारा आवश्यक कर्त्तव्य है।”

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प्रश्न 11.
‘हिजरत’ से गांधी जी का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हिज़रत गांधी जी द्वारा प्रस्तुत सत्याग्रह के अनेक रूपों में से एक है। गांधी जी के मतानुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और यह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही सबसे अच्छा तरीका है। पर इसके इस्तेमाल करने वाले में भी बहुत साहस की ज़रूरत होती है। उसकी वजह यह है कि अपने पूर्वजों के स्थान पर जहां उसका जन्म हुआ, पल कर बड़ा हुआ, अपनी उस मातृभूमि के प्रति अत्यधिक लगाव की भावना उसमें पैदा हो जाती है। अतः अपने देश, रिश्तेदारों और दोस्तों आदि.से सम्बन्ध तोड़ कर दूर जाने का निश्चय करना अत्यन्त साहस की बात है। पर इसका सहारा भी बहुत सोच-समझ कर लेना चाहिए और जो ऐसा करें, उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
‘नौकरशाही, शब्द के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
नौकरशाही अथवा ब्यूरोक्रेसी फ्रांसीसी भाषा के शब्द ब्यूरो से बना है जिसका अर्थ है-डेस्क या लिखने की मेज़। अतः इस शब्द का अर्थ हुआ डेस्क सरकार। इस प्रकार नौकरशाही का अर्थ डेस्क पर बैठकर काम करने वाले अधिकारियों के शासन से है।

दूसरे शब्दों में, नौकरशाही का अर्थ है प्रशासनिक अधिकारियों का शासन। नौकरशाही शब्द का अधिकाधिक प्रयोग लोक सेवा के प्रभाव को जताने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 2.
नौकरशाही की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. मार्शल ई० डीमॉक (Marshall E. Dimock) के अनुसार, “नौकरशाही का अर्थ है विशेषीकृत पद सोपान एवं संचार की लम्बी रेखाएं।”
  2. मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार, “नौकरशाही प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है जिसकी विशेषताविशेषज्ञ, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।”

प्रश्न 3.
नौकरशाही के कोई दो और नाम बताएं।
उत्तर-

  1. दफ्तरशाही
  2. अफसरशाही।

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प्रश्न 4.
नौकरशाही की दो मुख्य विशेषताओं को लिखो।
उत्तर-

  • निश्चित अवधि-नौकरशाही का कार्यकाल निश्चित होता है। सरकार के बदलने पर नौकरशाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। मन्त्री आते हैं और चले जाते हैं, परन्तु नौकरशाही के सदस्य अपने पद पर बने रहते हैं। लोक सेवक निश्चित आयु पर पहुंचने पर ही रिटायर होते हैं।
  • निर्धारित वेतन तथा भत्ते-नौकरशाही के सदस्यों को निर्धारित वेतन तथा भत्ते दिए जाते हैं। पदोन्नति के साथ उनके वेतन में भी वृद्धि होती रहती है। अवकाश की प्राप्ति के पश्चात् नौकरशाही के सदस्यों को पेन्शन मिलती है।

प्रश्न 5.
नौकरशाही के किन्हीं दो कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1. प्रशासकीय कार्य (Administrative Functions)—प्रशासकीय कार्य नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण कार्य है। मन्त्री का कार्य नीति बनाना है और नीति को लागू करने की ज़िम्मेदारी नौकरशाही की है।

2. अपरिग्रह-गांधीवादी राज्य की एक अन्य विशेषता अस्तेय है। इस व्यवस्था में कोई भी व्यक्ति ज़रूरत से अधिक वस्तु अपने पास नहीं रखेगा। उनका कहना था कि जो व्यक्ति भविष्य के लिए अपने पास चीज़ इकट्ठी करता है उसे ईश्वर पर विश्वास नहीं है।

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प्रश्न 7.
अमानतदारी प्रणाली (न्यासिता सिद्धान्त) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
गांधी जी ने आर्थिक विषमता को दूर करने और समाज में भाईचारे की भावना बनाए रखने के लिए ट्रस्टीशिप (अमानतदारी) का सिद्धान्त प्रस्तुत किया। उसके अनुसार उत्पादन एवं सम्पत्ति पर बड़े-बड़े ज़मींदारों तथा पूंजीपतियों का नियन्त्रण है, परन्तु वे केवल उस सम्पत्ति के संरक्षक हैं। वे अपनी निजी साधारण आवश्यकता के अनुसार अपने लिए थोड़ी-सी सम्पत्ति का प्रयोग कर सकते हैं। जिस प्रकार लोगों के लिए न्यूनतम वेतन निश्चित करने का प्रस्ताव है. उसी प्रकार लोगों की अधिकतम आय की सीमा भी निर्धारित करनी होगी। न्यूनतम और अधिकतम आय का भेद उचित न्याय पर आधारित होगा और समय-समय पर बदलता रहेगा।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
महात्मा गांधी का जन्म कहां हुआ था ?
उत्तर-
महात्मा गांधी का जन्म गुजरात में हुआ।

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प्रश्न 2.
महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि किसने दी ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी को महात्मा की उपाधि रविन्द्र नाथ टैगोर ने दी।

प्रश्न 3.
सत्याग्रह की कोई एक विधि लिखें।
उत्तर-
सत्याग्रह की एक विधि असहयोग है।

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प्रश्न 4.
महात्मा गांधी जी के जीवन पर प्रभाव डालने वाले दो धार्मिक ग्रन्थों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. गीता
  2. बाइबल।

प्रश्न 5.
महात्मा गांधी जी का आदर्श राज्य किस प्रकार का है ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी का आदर्श राज्य राम राज्य जैसा है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 6.
महात्मा गांधी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को हुआ।

प्रश्न 7.
गांधी जी के अहिंसा के बारे में विचार लिखो।
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार अहिंसा सकारात्मक एवं गतिशील अवधारणा है, जोकि सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, दया एवं सद्भावना की अभिव्यक्ति है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 7 महात्मा गान्धी के राजनीतिक विचार

प्रश्न 8.
सिविल-ना-फरमानी से गांधी जी का क्या भाव था ?
उत्तर-
ब्रिटिश सरकार के गलत कानूनों को सामूहिक रूप से मानने से इन्कार करना।

प्रश्न 9.
हिज़रत से गांधी जी का क्या भाव है ?
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार यदि मनुष्य अन्याय सहन नहीं कर पाता और वह भी जानता है कि वह एक अच्छा सत्याग्रही नहीं बन सकता तो उसके लिए अपने पूर्वजों के उस स्थान को छोड़ देना या हिज़रत कर जाना ही अच्छा है।

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प्रश्न 10.
गांधी जी किस विद्वान् को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

प्रश्न 11.
महात्मा गांधी जी की सत्याग्रह की दो विधियों के नाम लिखो।
अथवा
सत्याग्रह की कोई एक विधि लिखो।
उत्तर-

  1. असहयोग
  2. धरना देना।

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प्रश्न 12.
महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता का खिताब किसने दिया था ?
उत्तर-
महात्मा गांधी जी को राष्ट्रपिता का खिताब नेता जी सुभाष चन्द्र बोस ने दिया था।

प्रश्न 13.
गांधी जी के आदर्श राज्य की एक विशेषता लिखो। .
उत्तर-
गांधी जी का आदर्श राज्य राजनीतिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से विकेन्द्रित होगा।

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प्रश्न 14.
गांधी जी किस व्यक्ति से प्रभावित थे ?
उत्तर-
गांधी जी रस्किन, टॉलस्टाय तथा थ्योरो से अत्यधिक प्रभावित थे।

प्रश्न 15.
गांधी जी किस विद्वान् को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे?
उत्तर-
गांधी जी गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरु मानते थे।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. महात्मा गांधी को भारत का ……………….. कहा जाता है।
2. महात्मा गांधी का जन्म ……………….. 1869 को हुआ।
3. महात्मा गांधी की पत्नी का नाम ..
था। 4. महात्मा गांधी एक मुकद्दमे की पैरवी करने के लिए सन् 1893 में ………………. गए।
5. महात्मा गांधी सन् ……… में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापिस आए।
उत्तर-

  1. राष्ट्रपिता
  2. 2 अक्तूबर
  3. कस्तूरबा गांधी
  4. दक्षिण अफ्रीका
  5. 1915

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें

1. गांधी जी साधनों की पवित्रता पर विश्वास करते थे।
2. गांधी जी राज्य को साधन न मानकर साध्य मानते थे।
3. गांधी जी व्यक्ति की नैतिक पवित्रता पर बल देते थे।
4. गांधी जी केन्द्रीयकृत अर्थव्यवस्था में विश्वास रखते थे।
5. गांधी जी साम्राज्यवाद के विरुद्ध थे।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधी जी के अनुसार सत्याग्रह के स्वरूप हैं
(क) बातचीत
(ख) आत्मपीड़न
(ग) असहयोग
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ)

प्रश्न 2.
गांधी जी का राजनीतिक गुरु कौन था ?
(क) फिरोज़ शाह मेहता
(ख) गोपाल कृष्ण गोखले
(ग) दादा भाई नौरोजी
(घ) मौलाना अबुल कलाम।
उत्तर-
(ख)

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प्रश्न 3.
चम्पारण सत्याग्रह कब शुरू हुआ ?
(क) 1916 में
(ख) 1917 में
(ग) 1919 में
(घ) 1914 में ।
उत्तर-
(ख)

प्रश्न 4.
निर्धन ग्रामीणों के उत्थान के लिए गांधी जी ने कौन-सा विचार दिया था ?
(क) सर्वोदय
(ख) अन्त्योदय
(ग) निर्धनता उन्मूलन
(घ) इनमें से कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ख)

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प्रश्न 5.
गांधी जी के अनुसार लोकतन्त्र की क्या विशेषता है ?
(क) विकेन्द्रित लोकतन्त्र
(ख) अहिंसावादी लोकतन्त्र
(ग) जनता वास्तविक सत्ता की स्वामी
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ)

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 4 महासागर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Geography Chapter 4 महासागर

SST Guide for Class 7 PSEB महासागर Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 1-15 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
सागर का जल खारा क्यों होता है?
उत्तर-
सागर के जल में कई लवण घुले होते हैं। इसी कारण सागरीय जल खारा होता है।

प्रश्न 2.
न्यूफाऊण्डलैंड के पास हर समय घनी धुन्ध क्यों रहती है?
उत्तर-
न्यूफाऊण्डलैंड के पास खाड़ी की ऊष्ण धारा तथा लेब्राडोर की शीत धारा आपस में मिलती है। इसी कारण वहां सदा सघन धुन्ध रहती है।

प्रश्न 3.
दक्षिणी अन्ध महासागरीय चक्र की मुख्य धाराओं के नाम बताओ।
उत्तर-
दक्षिणी अन्ध महासागर की प्रमुख धाराएं हैं-फाकलैंड की धारा तथा बैंगुएला की धारा।

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प्रश्न 4.
खाड़ी की धारा के मार्ग का वर्णन करो।
उत्तर-
खाड़ी की धारा मैक्सिको खाड़ी से प्रारम्भ होकर न्यूफाऊण्डलैंड के टापुओं तक पहुंचती है।

प्रश्न 5.
उत्तरी शान्त महासागरीय चक्र की मुख्य धाराओं के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. उत्तरी भूमध्य रेखा की धारा
  2. कुरोश्विो की धारा
  3. उत्तरी प्रशान्त महासागरीय धारा
  4. कैलिफोर्निया की धारा।

प्रश्न 6.
सुनामी से क्या भाव है?
उत्तर-
सुनामी एक जापानी शब्द है जो कि दो शब्दों TSO (अर्थात् किनारा) और NAMI (अर्थात् पानी की ऊंची और लम्बी छड़ी) के मेल से बना है। इस प्रकार सुनामी का अर्थ है समुद्र के तटों पर टकराने वाली लम्बी ऊँची समुद्री लहरें।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
बड़े ज्वार-भाटे तथा लघु ज्वार-भाटे में क्या अन्तर है?
उत्तर-
बड़ा ज्वार-भाटा-जब सागर के जल की ऊंचाई सबसे अधिक होती है तो उसे बड़ा ज्वार-भाटा कहा जाता है। बड़ा ज्वार-भाटा केवल अमावस और पूर्णिमा को आता है। अमावस तथा पूर्णिमा को सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं और सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों मिल कर सागर के जल को अपनी ओर खींचते हैं।
लघु (छोटा) ज्वार-भाटा-लघु (छोटा) ज्वार भाटा चन्द्रमा की सातवीं तथा इक्कीसवीं तिथि को आता है। यह नीचा होता है।

इन तिथियों को सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी के साथ 90° का कोण बनाते हैं और दोनों ही अपनी शक्ति से जल को अपनी ओर खींचते हैं। क्योंकि चन्द्रमा जल के अधिक निकट होता है, इसलिए जल चन्द्रमा की ओर ही उछलता है। सूर्य का आकर्षण दूसरी दिशा में होने के कारण जल का उछाल अधिक ऊंचा नहीं होता।

प्रश्न 2.
गर्म धारा और ठण्डी धारा में क्या अन्तर है?
उत्तर-
(1) भूमध्य रेखा की ओर से आने वाली धाराएं गर्म होती हैं और भूमध्य रेखा की ओर आने वाली धाराएं सदा ठण्डी होती हैं।

(2) ऊष्ण (गर्म) जलधारा का जल इतना अधिक गर्म नहीं होता। इसी प्रकार शीत (ठण्डी) जलधारा का जल अधिक शीत नहीं होता। यह केवल अपने समीप के जल की तुलना में अधिक गर्म या ठण्डा लगता है।

(3) गर्म जलधारा जल के ऊपरी भाग में तथा ठण्डी धारा जल के नीचे प्रवाहित होती है।
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प्रश्न 3.
हिन्द महासागर की धाराएं इतनी निश्चित तथा नियमित क्यों नहीं?
उत्तर-
इसमें कोई सन्देह नहीं कि हिन्द महासागर में बहने वाली धाराएं नियमित तथा निश्चित नहीं हैं। इसका मुख्य कारण हिन्द महासागर में चलने वाली मौसमी पवनें हैं। ये पवनें गर्मी में दक्षिणी-पश्चिमी दिशा में परन्तु सर्दी में उत्तरपूर्व दिशा में चलती हैं। इस परिवर्तन के कारण सागरीय धाराएं भी ऋतु के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं। अतः स्पष्ट है कि ये धाराएं निश्चित एवं नियमित नहीं हो सकती।

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प्रश्न 4.
“बर्तानिया की पश्चिमी बन्दरगाहें सर्दी की ऋतु में भी खुली रहती हैं, जबकि इन्हीं अक्षांशों पर स्थित उत्तरी अमेरिका की पूर्वी बन्दरगाहें इस ऋतु में बर्फ जमने के कारण बन्द पड़ी रहती हैं।” कारण बताओ।
उत्तर-
धाराओं का किसी देश की जलवायु पर गहरा प्रभाव पड़ता है। शीत ऋतु में बर्तानिया के उत्तर-पश्चिम में सर्दी पड़ती है परन्तु उत्तरी अन्ध महासागरीय धारा पश्चिमी पवनों के प्रभावाधीन पूर्व दिशा की ओर मुड़ जाती है। यह उष्ण धारा बर्तानिया के उत्तर-पश्चिम से होती हुई सुदूर नार्वे, स्वीडन के ठण्डे देशों तक पहुंचती हैं। अपने उष्ण प्रभाव के कारण सर्दी की ऋतु में भी बर्तानिया की पश्चिमी बन्दरगाहें खुली रहती हैं। परन्तु ऐसा वातावरण न मिलने के कारण उत्तरी अमेरिका की पूर्वी बन्दरगाहों में बर्फ जम जाती है और वे बन्द हो जाती हैं।

प्रश्न 5.
‘ज्वार-भाटा जहाजों के लिए बड़ा लाभदायक सिद्ध होता है।’ कैसे?
उत्तर-
1. ज्वार-भाटा के कारण नदियों के मुहानों में से कीचड़ तथा मिट्टी बहती रहती है। परिणामस्वरूप इन तटों पर स्थित बन्दरगाहों पर मिट्टी नहीं जमती और जहाज़ दूर अन्दर तक आ-जा सकते हैं।

2. बड़े तथा भारी जहाज़ दूर गहरे समुद्र में खड़े ज्वार-भाटों की प्रतीक्षा करते हैं। जब जल में चढ़ाव आता है तो जहाज़ भी उसके साथ बन्दरगाहों तक पहुंच जाते हैं। बन्दरगाहों पर माल उतार कर वे फिर ज्वार-भाटों की प्रतीक्षा करते हैं ताकि सागर की ओर सुगमता से वापिस जाया जा सके। कोलकाता तथा लन्दन की बन्दरगाहें इसके अच्छे उदाहरण हैं।

प्रश्न 6.
बड़ा ज्वार-भाटा पूर्णिमा तथा अमावस को क्यों आता है?
उत्तर-
बड़ा ज्वार-भाटा के समय सागरीय पानी का चढ़ाव अधिक होता है। यह सदा पूर्णिमा तथा अमावस के दिन ही होता है। इसका कारण यह है कि इन दोनों तिथियों को सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक ही सीध में आ जाते हैं। इस तिथि को सूर्य और चन्द्रमा मिलकर महासागरीय जल को अपनी ओर खींचते हैं। इस दोहरे आकर्षण के कारण लहरों का उछाल बढ़ जाता है जिसे बड़ा ज्वार-भाटा कहते हैं।

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प्रश्न 7.
खाड़ी की धारा यूरोप की जलवायु पर क्या प्रभाव डालती है?
उत्तर-
खाड़ी की धारा को अंग्रेज़ी में गल्फ स्ट्रीम कहते हैं। यह संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण उष्ण जलधारा है। इसकी चौड़ाई लगभग 400 किलोमीटर तक है। इसका जल 5 किलोमीटर प्रति घण्टा के वेग से बहता है। न्यूफाऊण्डलैंड के समीप इस धारा में लैब्राडोर की शीत धारा आ मिलती है। परिणामस्वरूप यहां गहन धुन्ध छाई रहती है। यहां मछलियां भी अधिक मात्रा में मिलती हैं। इसके बाद यह यूरोप की ओर मुड़ जाती हैं। इसके कारण उत्तर-पश्चिमी यूरोप में शीत ऋतु अधिक ठण्डी नहीं होती। इसके अतिरिक्त यूरोप के तटीय भागों में वर्षा होती है।

प्रश्न 8.
सारागासो सागर क्या है तथा कैसे बनता है?
उत्तर-
उत्तरी अन्ध महासागर की धाराएं भूमध्य रेखा से आरम्भ होकर उत्तर की ओर जाती हैं। जाते हुए यह अमेरिका के तट के साथ-साथ आगे बढ़ती हैं और लौटते समय यूरोप के तट के साथ होते हुए फिर से भूमध्य रेखा की धारा के साथ मिल कर चक्र पूरा कर लेती हैं। इस प्रकार यह धारा चक्र घड़ीवत् दिशा में ही चलता है। महासागरों का जो भाग इस चक्र के बीच आ जाता है, उसे सारागासो सागर कहा जाता है।

प्रश्न 9.
सागरी लहरों तथा धाराओं में क्या अन्तर है?
उत्तर-
सागर का पानी सदा ऊंचा-नीचा होता रहता है। ऋतु की दशानुसार यह गति कभी तेज़ हो जाती है, कभी मन्द जिससे लहरें या तरंगें पैदा होती हैं। जल-कण ऊपर नीचे दौड़ते हैं जिससे सागर में सिलवटें पड़ी हुई दिखाई देती हैं।

जब सागर का जल किसी निश्चित दिशा की ओर चल पड़ता है तो उसे महासागरीय धारा कहा जाता है। महासागर में बड़े नियमित ढंग से जल एक स्थान को छोड़कर दूसरे स्थान की ओर चलता रहता है। प्रायः धारा की गति 2 कि० मी० प्रति घण्टा से 10 कि० मी० प्रति घण्टा तक हो सकती है।

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प्रश्न 10.
सुनामी से सम्बन्धित किसी स्थान का वृत्तांत लिखो।
उत्तर-
26 दिसम्बर, 2004 को हिन्द महासागर में ज़बरदस्त सुनामी लहरें आईं। ये समुद्र के तल पर 9.0 के रिचर पैमाने पर आए भूकम्प के कारण उत्पन्न हुईं। इस भूकम्प का अधिकेन्द्र इण्डोनेशिया का पश्चिमी तट था। कुछ घण्टों में ही इन समुद्री लहरों ने 11 हिन्द महासागरीय देशों में भारी विनाश ला दिया। इनके कारण. कितने ही लोग बह गए और कितने ही घर डूब गए। इनके कारण समुद्री तट पर अफ्रीका से लेकर थाईलैंड तक अनेक देश बुरी तरह से प्रभावित हुए।

भारत सरकार के अनुमान के अनुसार लगभग 5322 करोड़ की जान-माल की हानि हुई। भारत में सबसे अधिक विनाश तमिलनाडु, केरल, आन्ध्र प्रदेश तथा पाण्डेचेरी में हुआ। इसमें दो लाख से भी अधिक लोग मारे गए और इससे कई गुणा लोग बेघर हो गए।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125-130 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
महासागरीय धाराएं क्यों चलती हैं? इनका किसी देश की जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
किसी निश्चित दिशा में बहने वाले महासागरीय जल को महासागरीय धारा कहते हैं। ये वास्तव में समुद्र के अन्दर बहने वाली गर्म और ठण्डे जल की नदियां होती हैं जिनके किनारों का जल स्थिर होता है।
चलने के कारण-महासागर धाराओं के चलने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

1. प्रचलित पवनें-प्रचलित पवनें सदा एक ही दिशा में चलती रहती हैं। ये समुद्र के जल को भी अपने साथ बहा कर ले जाती हैं। इस तरह धाराएं उत्पन्न होती हैं।

2. तापमान में अन्तर-भूमध्य रेखीय प्रदेशों में तापमान अधिक होता है। इस कारण वहां सागर का जल फैलता है और फैल कर ध्रुवों की ओर बढ़ता है। दूसरी ओर ध्रुवों पर तापमान कम होता है और वहां का जल भीतर-ही-भीतर भूमध्य रेखा की ओर बढ़ने लगता है। इस प्रकार जल-धाराओं का जन्म होता है।

3. लवणों में अन्तर-समुद्र के जल में अनेक लवण घुले होते हैं। जिस जल में लवण अधिक होते हैं, वह जल भारी होकर नीचे बैठ जाता है। इसका स्थान लेने के लिए कम लवण वाला हल्का जल इसकी ओर बहने लगता है। इस कारण धारा उत्पन्न हो जाती है।

4. महाद्वीपीय तटों की बनावट-जल धाराएं महाद्वीपों के तटों के साथ-साथ बहती हैं। अतः महाद्वीपों के तटों की बनावट धाराओं को नई दिशा देती है। दिशा परिवर्तन के साथ ही एक नई धारा का जन्म होता है।

प्रभाव-समुद्री धाराएं अपने आस-पास के क्षेत्रों की जलवायु पर गहरा प्रभाव डालती हैं। गर्म धारा अपने पास के प्रदेशों की जलवायु को गर्म और ठण्डी धारा ठण्डा बना देती है। दूसरे, जिन देशों के पास से गर्म धाराएं गुज़रती हैं, वहां भारी वर्षा होती है, परन्तु जिन-जिन स्थानों के निकट से शीत धाराएं गुज़रती हैं, वहां कम वर्षा होती है और वे स्थान मरुस्थल बन जाते हैं। इसके अतिरिक्त जहां उष्ण और शीत धाराएं आपस में मिलती हैं, वहां गहरी धुन्ध छा जाती है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर

प्रश्न 2.
अन्ध महासागरीय धाराओं का वर्णन विश्व के मानचित्र में दर्शा कर करें।
उत्तर-
अन्ध महासागर की धाराओं के दो निश्चित चक्र हैं-(1) उत्तरी चक्र तथा (2) दक्षिणी चक्र।
I. उत्तरी चक्र
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर 2

1. उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा-भूमध्य रेखा के उत्तर में समुद्र का जल व्यापारिक पवनों के कारण पूर्व से पश्चिम की ओर बहने लगता है। इस धारा को उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा कहते हैं। यह गर्म पानी की धारा है।

2. गल्फ स्ट्रीम अथवा खाड़ी की धारा-उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा अफ्रीका की ओर से अमेरिका की ओर बहती है। जब यह धारा अमेरिका के पूर्वी तट के साथ-साथ उत्तर-पश्चिम की ओर जाती है, तो इसका नाम खाड़ी की धारा पड़ जाता है। अंग्रेज़ी में इसे गल्फ स्ट्रीम कहते हैं। यह धारा मैक्सिको से प्रारम्भ होकर न्यूफाऊण्डलैंड के टापुओं तक पहुंचती है।

3. लैब्राडोर की धारा-यह शीत धारा है। यह उत्तर की ओर से आकर न्यूफाउण्डलैंड के टापुओं के पास खाड़ी की धारा में आ मिलती है।

4. उत्तरी महासागरीय धारा-न्यूफाऊण्डलैंड के पश्चात् खाड़ी की धारा पश्चिमी पवनों के प्रभाव में पूर्व की ओर हो जाती है। यहां इसे उत्तरी महासागरीय धारा कहते हैं।

5. कनेरी की धारा-उत्तरी महासागर की धारा यूरोप के पश्चिमी तट के साथ टकराती है जिससे इसके दो भाग हो जाते हैं। इसका एक भाग दक्षिण की ओर प्रवाहित होता है, जिसे कनेरी की धारा कहते हैं। यह शीत जल की धारा है। यह धारा अन्ततः भूमध्य रेखा की धारा में मिलकर उत्तरी चक्र को पूरा कर देती है।

II. दक्षिणी चक्र

यह चक्र घड़ी की विपरीत दिशा से चलता है।
1. दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा-यह गर्म पानी की धारा है। भूमध्य रेखा के दक्षिण में व्यापारिक पवनों के प्रभाव के कारण समुद्र का जल पूर्व से पश्चिम की ओर बहने लगता है। इसे दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा कहते हैं।

2. ब्राज़ील की धारा–भूमध्य रेखा की दक्षिणी धारा जब ब्राज़ील के तट के साथ टकराती है तो इसके दो भाग हो जाते हैं। इसका जो भाग ब्राजील के तट के साथ दक्षिण की ओर बहता है, उसे ब्राज़ील की धारा कहते हैं।

3. फाकलैंड की धारा-ब्राज़ील की धारा में दक्षिण की ओर से शीतल जल की धारा आकर मिल जाती है। इसी धारा को फाकलैंड की धारा कहते हैं। फिर यह धारा पश्चिमी पवनों के प्रभाव में आकर पूर्व की ओर मुड़ जाती है। इसे पश्चिमी पवनों का झाल कहा जाता है।
उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा तथा दक्षिणी भूमध्य रेखीय धारा के बीच विरोधी भूमध्य रेखीय धारा बहती है। यह पश्चिम से पूर्व की ओर चलती है।

4. बेंगुएला की धारा-यह ठण्डे पानी की धारा है। इसकी उत्पत्ति पश्चिमी पवनों के झाल से होती है। यह दक्षिणी अफ्रीका के पश्चिमी तट के साथ-साथ उत्तर की ओर बहती है।

प्रश्न 3.
शांत (प्रशान्त ) महासागर की धाराओं का वर्णन विश्व के मानचित्र में दर्शा कर करें।
उत्तर-
प्रशान्त महासागर संसार का सबसे बड़ा और गहरा महासागर है। इसकी धाराओं को क्रमश: दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है-1. उत्तरी चक्र
2. दक्षिणी चक्र।
I. उत्तरी चक्र

1. उत्तरी भूमध्य रेखा की धारा-प्रशान्त महासागर के उत्तरी भाग में व्यापारिक पवनें चलती रहती हैं। इन पवनों के प्रभाव के कारण महासागर में पूर्व से पश्चिम की ओर एक जल धारा बहने लगती है। इस धारा को उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा कहते हैं, जो गर्म पानी की धारा है।

2. कुरोशीवो की धारा-उत्तरी भूमध्य रेखा की धारा पूर्वी द्वीप के पास पहुँच कर उत्तर की ओर बहती है। यहां इसका नाम कुरोशीवो की धारा है।

3. उत्तरी प्रशान्त महासागरीय धारा-कुरोशीवो की धारा जब एशिया के पूर्वी तटों से टकराती है तो यह उत्तरपूर्व की ओर बहने लगती है। इसे उत्तरी प्रशान्त महासागरीय धारा कहते हैं।

4. कैलीफोर्निया की धारा-उत्तरी प्रशान्त महासागरीय धारा उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ टकराती है। यहां इसके दो भाग हो जाते हैं। इसका एक भाग अलास्का की धारा तथा दूसरा भाग कैलीफोर्निया की धारा कहलाता है क्योंकि कैलीफोर्निया की धारा ध्रुवों की ओर से आती है इसलिए यह शीत धारा है।

II. दक्षिणी चक्र
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर 3

1. भूमध्य रेखा की दक्षिणी धारा-भूमध्य रेखा के दक्षिण में समुद्र का जल व्यापारिक पवनों के प्रभाव के कारण पूर्व से पश्चिम की ओर बहने लगता है। इसे भूमध्य रेखा की दक्षिणी धारा कहते हैं जो गर्म पानी की धारा है।

2. पूर्वी आस्ट्रेलिया की धारा-यह भी गर्म पानी की धारा है। भूमध्य रेखा की दक्षिणी धारा पूर्वी-द्वीप समूह में पहुंच कर दक्षिण की ओर मुड़ जाती है और आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के पास से बहने लगती है। इसे पूर्वी आस्ट्रेलिया की धारा कहते हैं।

3. दक्षिणी प्रशान्त महासागरीय धारा-यह गर्म पानी की धारा है। पूर्वी आस्ट्रेलिया की धारा पश्चिमी पवनों के कारण पूर्व की ओर बहने लगती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में होने के कारण यह धारा पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। इसे दक्षिणी प्रशान्त महासागरीय धारा कहते हैं।

4. पीरू की धारा-यह ठण्डे पानी की धारा है। दक्षिणी प्रशान्त महासागरीय धारा का एक भाग दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट से टकराता है और दक्षिण से उत्तर की ओर बहने लगता है। इसे पीरू की धारा कहते हैं। यह धारा भूमध्य रेखा की धारा में मिल कर प्रशांत महासागर की धाराओं के चक्र को पूरा कर देती है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर

प्रश्न 4.
ज्वार भाटा कैसे उत्पन्न होता है? चित्र बनाकर स्पष्ट करें।
उत्तर-
ज्वार-भाटा-समुद्र का पानी दिन में दो बार तट की ओर चढ़ता है तथा दो बार नीचे उतरता है। समुद्र के पानी के इसी उतार-चढ़ाव को ज्वार-भाटा कहते हैं।

ज्वार-भाटा आने का कारण-ज्वार-भाटा सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति के कारण आता है। यूं तो सूर्य की आकर्षण शक्ति चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति से कई गुना अधिक है, परन्तु चन्द्रमा के पृथ्वी के अधिक निकट होने के कारण सागरीय जल पर इसकी आकर्षण शक्ति का अधिक प्रभाव पड़ता है। इसलिए चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति को ही ज्वार-भाटे का मुख्य कारण माना जा सकता है।
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर 4
बड़ा ज्वार-भाटा-बड़े ज्वार-भाटे से अभिप्राय लहरों के अत्यधिक ऊंचा उठने से है। ऐसा उस समय होता है जब सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों मिल कर सगार के जल को अपनी ओर खींचते हैं। बड़ा ज्वार-भाटा केवल अमावस्या तथा पूर्णिमा को ही आता है। इन दोनों दिनों में सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीधी रेखा में स्थित होते हैं। अतः चन्द्रमा और सूर्य मिल कर सागर के जल को अपनी ओर खींचते हैं। इसलिए सागर के जल की ऊंचाई अन्य दिनों की तुलना में अधिक होती है। इसे बड़ा ज्वार-भाटा कहते हैं।

छोटा ज्वार-भाटा-चन्द्रमा की सातवीं तथा इक्कीसवीं तिथि को चन्द्रमा और सूर्य दोनों ही पृथ्वी के साथ समकोण (90°) बनाते हैं। अतः वे दोनों ही सागर के जल को अपनी-अपनी ओर खींचते हैं। क्योंकि चन्द्रमा सूर्य की अपेक्षा पृथ्वी के निकट है इसलिए सागर का जल चन्द्रमा की ओर से ही उछलता है। परन्तु जल में सूर्य के खिंचाव के कारण चन्द्रमा
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर 5
की आकर्षण शक्ति इतनी कम रह जाती है कि सागर का जल एक साधारण लहर से अधिक ऊंचा नहीं उठ पाता। इसे छोटा ज्वार-भाटा कहते हैं।

प्रश्न 5.
जलधारा (महासागरीय धारा) क्या है? इनकी उत्पत्ति के क्या कारण हैं?
उत्तर-
समुद्र के पानी का वह भाग जो निश्चित क्रम से एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर निश्चित दिशा में चलता है, उसे जलधारा अथवा महासागरीय धारा कहते हैं। ये वास्तव में समुद्र के अन्दर बहने वाली गर्म और ठण्डे जल की नदियां होती हैं जिनके किनारे स्थिर पानी के बने होते हैं।
चलने के कारण-महासागरीय धाराओं के चलने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

1. प्रचलित पवनें-प्रचलित पवनें सदा एक ही दिशा में चलती रहती हैं। ये समुद्र के जल को भी अपने साथ बहा कर ले जाती हैं। इस तरह धाराएं उत्पन्न होती हैं।

2. तापमान में अन्तर-भूमध्य रेखीय प्रदेशों में तापमान अधिक होता है। इस कारण वहां सागर का जल फैलता है और ध्रुवों की ओर बढ़ता है। दूसरी ओर ध्रुवों पर तापमान कम होता है और वहां का जल भीतर-ही-भीतर भूमध्य रेखा की ओर बढ़ने लगता है। इस प्रकार जल-धाराओं का जन्म होता है।

3. लवणों में अन्तर-समुद्र के जल में अनेक लवण घुले होते हैं। जिस जल में लवण अधिक होते हैं, वह जल भारी होकर नीचे बैठ जाता है। इसका स्थान लेने के लिए कम लवण वाला हल्का जल इसकी ओर बहने लगता है। इस कारण धारा उत्पन्न हो जाती है।

4. महाद्वीपीय तटों की बनावट-जल धाराएं महाद्वीपों के तटों के साथ-साथ बहती हैं। अत: महाद्वीपों के तटों की बनावट धाराओं को नई दिशा देती है। दिशा परिवर्तन के साथ ही एक नई धारा का जन्म होता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर

PSEB 7th Class Social Science Guide महासागर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
महासागर किसे कहते हैं? महासागर की कोई एक विशेषता बताओ।
उत्तर-
धरातल पर जल के कुछ विशाल भण्डार (खण्ड) पाए जाते हैं। इन्हीं विशाल जल खण्डों को महासागर कहते हैं। इनका जल खारा होता है।

प्रश्न 2.
ज्वार-भाटा किसे कहते हैं?
उत्तर-
समुद्र का पानी दिन में दो बार तट की ओर ऊपर चढ़ता है और नीचे उतरता है। समुद्र के पानी के इस उतार-चढ़ाव को ज्वार-भाटा कहते हैं।

प्रश्न 3.
बड़ा ज्वार-भाटा पूर्णिमा तथा अमावस्या को क्यों आता है?
उत्तर-
पूर्णिमा और अमावस्या को चन्द्रमा के साथ सूर्य का आकर्षण भी मिल जाता है। इस दोहरे आकर्षण के कारण ज्वार-भाटा की ऊंचाई बढ़ जाती है जिसे- बड़ा ज्वार-भाटा कहते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर

प्रश्न 4.
महासागरीय जल की कितनी गतियां हैं और कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
महासागरीय जल की तीन गतियां हैं। इनके नाम हैं-लहरें, सागरीय धाराएं तथा ज्वार-भाटा।

प्रश्न 5.
लहर और सागरीय धारा में कोई एक अन्तर बताओ।
उत्तर-
लहर में जल ऊंचा-नीचा होता रहता है, परन्तु यह गति नहीं करता। इसके विपरीत सागरीय धारा में जल एक दिशा से दूसरी दिशा की ओर गति करता रहता है।

प्रश्न 6.
हमारी पृथ्वी पर कितने महासागर हैं? इनके नाम तथा मुख्य विशेषता बताओ।
उत्तर-हमारी पृथ्वी पर पांच महासागर हैं। इनके नाम हैं –

  1. प्रशान्त महासागर
  2. अन्ध महासागर
  3. हिन्द महासागर
  4. उत्तरी ध्रुव हिम (आर्कटिक) महासागर
  5. दक्षिणी ध्रुव हिम (अंटार्कटिक) महासागर। ये सभी महासागर एक-दूसरे से जुड़े हैं। इनका पानी एक-दूसरे में मिलता रहता है।

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प्रश्न 7.
किन्हीं चार महासागरों का क्षेत्रफल बताओ।
उत्तर-
महासागर – क्षेत्रफल (करोड़ वर्ग कि० मी०)

  1. प्रशान्त महासागर – 16.6
  2. अन्ध महासागर – 8.2
  3. हिन्द महासागर – 7.3
  4. उत्तरी ध्रुव (आर्कटिक) हिम महासागर – 1.3

प्रश्न 8.
ताजे पानी और नमकीन पानी में क्या अन्तर होता है?
उत्तर-
ताज़ा पानी-वर्षा, पिघलती बर्फ, नदियों, नहरों, नल-कूपों आदि द्वारा लाया गया पानी ताज़ा पानी होता है।
नमकीन पानी-झीलों, बन्द सागरों और खुले समुद्रों का पानी नमकीन होता है। सबसे अधिक नमक की मात्रा मृत सागर में है। यह सागर सभी ओर से स्थल से घिरा हुआ है।

प्रश्न 9.
संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण उष्ण जलधारा कौन-सी है? यह कहां से कहां तक चलती है?
उत्तर-
संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण उष्ण जलधारा खाड़ी की धारा है। यह मैक्सिको की खाड़ी से प्रारम्भ होकर न्यूफाऊण्डलैंड के टापुओं तक पहुंचती है।

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प्रश्न 10.
नार्वे के मछुआरे समुद्र में दूर तक मछलियां पकड़ने क्यों चले जाते हैं?
उत्तर-
नार्वे के समीप से होकर उत्तरी महासागरीय उष्ण धारा बहती है। इसके उष्ण प्रभाव के फलस्वरूप ही नार्वे के मछेरे दूर तक मछलियां पकड़ने चले जाते हैं।

प्रश्न 11.
पश्चिमी यूरोपीय देशों की पश्चिमी बन्दरगाहें सर्दी की ऋतु में भी क्यों खुली रहती हैं?
उत्तर-
उत्तरी महासागरीय धारा के उष्ण प्रभाव के कारण पश्चिमी यूरोपीय देशों की पश्चिमी बन्दरगाहें सर्दियों में भी खुली रहती हैं। उष्ण प्रभाव के कारण ये जमती नहीं हैं।

प्रश्न 12.
“शीत धाराओं के निकटवर्ती प्रदेशों में मरुस्थल पाए जाते हैं।” क्यों?
उत्तर-
जब कोई पवन शीत धारा के ऊपर से गुज़रती है तो यह ठण्डी और शुष्क हो जाती है। अतः शीत धाराओं के निकटवर्ती प्रदेशों में मरुस्थल बन जाते हैं।

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प्रश्न 13.
महासागरीय धाराएं जहाज़रानी पर क्या प्रभाव डालती हैं?
उत्तर-
सागरीय बेड़े प्रायः धाराओं की दिशा में चलते हैं। इससे उनकी गति बढ़ जाती है और ईंधन भी कम लगता है।

प्रश्न 14.
समुद्री धाराओं के पैदा होने के कोई दो कारण लिखो।
उत्तर-
समुद्री धाराओं के पैदा होने के दो कारण हैं –

  1. प्रचलित पवनें महासागरों के जल को अपनी दिशा में बहाकर ले जाती हैं।
  2. महासागरों के जल के तापमान में अन्तर के कारण भी जल में गति उत्पन्न होती है।

प्रश्न 15.
महासागरीय धाराओं का किसी देश की जलवायु पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
(1) महासागरीय धाराओं का अपने पड़ोसी देशों की जलवायु पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। गर्म धाराएं अपने निकटवर्ती क्षेत्रों के तापमान को बढ़ा देती हैं। दूसरी ओर, ठण्डी धाराएं अपने निकट के स्थानों को ठण्डा बना देती हैं।

(2) गर्म धाराओं के ऊपर से गुजरने वाली पवनें नमी सोख लेती हैं और तटवर्ती प्रदेशों में वर्षा करती हैं। परन्तु शीत धारा के ऊपर से गुजरने वाली पवनें ठण्डी और शुष्क हो जाती हैं।

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प्रश्न 16.
महासागर तथा सागर में क्या अन्तर है?
उत्तर-
महासागर तथा सागर दोनों का सम्बन्ध पृथ्वी के जल भाग से है। जल के सबसे बड़े खण्ड महासागर कहलाते हैं। प्रत्येक महासागर फिर कई छोटे-छोटे खण्डों में बंटा हुआ है। इस छोटे खण्ड को सागर कहते हैं। प्रत्येक सागर किसी-न-किसी महासागर का ही भाग होता है। उदाहरण के लिए हिन्द महासागर में दो भाग हैं-अरब सागर तथा खाड़ी बंगाल।

प्रश्न 17.
लहर किसे कहते हैं? इसकी उत्पत्ति कैसे होती है?
उत्तर-
सागर का पानी सदा ऊंचा-नीचा होता रहता है। इसके साथ जल-कण ऊपर-नीचे होते रहते हैं। इस प्रकार सागर के जल में सिलवटें पड़ी हुई दिखाई देती हैं। इसी को लहर कहते हैं। लहरों का जन्म पवन की गति के कारण होता है। जब पवन समुद्र के ऊपर से गुज़रती है तो यह समुद्र के पानी को हिला देती है। पानी के हिलने पर लहरें उत्पन्न हो जाती हैं।

प्रश्न 18.
क्या कारण है कि उत्तर-पश्चिमी यूरोप में दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट की अपेक्षा अधिक वर्षा होती है?
उत्तर-
यूरोप के उत्तर-पश्चिमी तट के साथ-साथ उत्तरी अन्ध महासागर की गर्म धारा बहती है। गर्म धारा अपने निकटवर्ती प्रदेशों में वर्षा लाने में सहायक होती है। अतः इस धारा के कारण यूरोप के इस भाग में काफी वर्षा होती है। इसके विपरीत दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट के साथ पीरू की धारा बहती है। इस ठण्डी धारा के कारण अमेरिका के पश्चिमी तट के निकटवर्ती भागों में बहुत कम वर्षा होती है।

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प्रश्न 19.
उत्तरी हिन्द महासागर की धाराएं शीत तथा ग्रीष्म ऋतुओं में एक-दूसरे की विपरीत दिशा में क्यों बहती हैं?
उत्तर-
धाराओं की दिशा पर सबसे अधिक प्रभाव प्रचलित पवनों का होता है। पवनें जिस दिशा में लम्बे समय के लिए चलती हैं, वे समुद्र के जल को भी उसी दिशा में बहा कर ले जाती हैं। उत्तरी हिन्द महासागर में मौसमी पवनें शीत तथा ग्रीष्म ऋतुओं में विपरीत दिशा में चलती हैं। फलस्वरूप इस सागर की धाराएं भी विपरीत दिशा में बहने लगती

प्रश्न 20.
छोटा ज्वार-भाटा चन्द्रमा की सातवीं तथा इक्कीसवीं तिथि को ही क्यों आता है? कारण बताओ।
उत्तर-
चन्द्रमा की सातवीं तथा इक्कीसवीं तिथि को चन्द्रमा और सूर्य पृथ्वी के साथ समकोण (90°) बनाते हैं। परिणामस्वरूप चन्द्रमा और सूर्य सागर के जल को विपरीत दिशाओं में खींचने हैं। चूंकि चन्द्रमा पृथ्वी के अधिक निकट है, इसलिए सागर का जल चन्द्रमा की ओर ही उछलता है। परन्तु इस उछाल की ऊंचाई एक साधारण लहर से भी कम होती है। इसी को छोटा ज्वार-भाटा कहते हैं।

प्रश्न 21.
हिन्द महासागर की धाराओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करो। इन्हें मानचित्र पर भी दिखाओ।
उत्तर-
हिन्द महासागर की धाराओं का चक्र इतना निश्चित तथा नियमित नहीं है जितना कि प्रशान्त महासागर की धाराओं का। इसका मुख्य कारण इस महासागर की मौसमी पवनें हैं। ये पवनें ऋतु परिवर्तन के साथ अपनी दिशा बदल देती हैं। इसके साथ-साथ हिन्द महासागर की धाराओं की दिशा भी बदलती रहती है। इन धाराओं को दो मुख्य भागों में बांट सकते हैं –
(1) उत्तरी चक्र
(2) दक्षिणी चक्र

1. उत्तरी चक्र

1. दक्षिणी-पश्चिमी मानसून धारा-दक्षिणी-पश्चिमी मानसून पवनों के प्रभाव के कारण हिन्द महासागर का जल पश्चिम से पूर्व की ओर बहने लगता है। इसे दक्षिणी-पश्चिमी मानसून धारा कहते हैं।

2. उत्तरी भूमध्य रेखी धारा-भूमध्य रेखा के उत्तर में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून धारा की दिशा पूर्व से पश्चिम की ओर होती है। इसे उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा कहते हैं। यह गर्म पानी की धारा है।

3. उत्तरी-पूर्वी मानसून धारा-उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा का जल भूमध्य रेखा के उत्तर में पूर्व से पश्चिम की ओर बहने लगता है। इसे उत्तरी-पूर्वी मानसून धारा कहते हैं। यह गर्म पानी की धारा है।
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर 6

2. दक्षिणी चक्र

दक्षिणी गोलार्द्ध में धाराओं का चक्र अधिकतर निश्चित है जिसका वर्णन इस प्रकार है –
1. भूमध्य रेखा की दक्षिणी धारा-उष्ण जल की धारा पवनों के प्रभाव के कारण भूमध्य रेखा के दक्षिण में पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है।

2. मौज़म्बीक की धारा-यह धारा भूमध्य रेखा की दक्षिणी धारा का ही एक भाग है। भूमध्य रेखा की दक्षिणी धारा जब अफ्रीका के पूर्वी तट के साथ टकराती है तो इसका पानी दक्षिण की ओर बहने लगता है। यह पानी दक्षिण अफ्रीका के पूर्वी तट के पास से गुज़रता है। यहां इसे मौज़म्बीक की धारा कहते हैं। यह धारा गर्म पानी की धारा है।

3. अगुलहास की धारा-मैलागासी टापू के पूर्व से एक शाखा दक्षिण की ओर बहती है। इसे अगुलहास की धारा कहते हैं।

4. पश्चिमी आस्ट्रेलिया की धारा-दक्षिणी हिन्द महासागर की धारा आस्ट्रेलियां के दक्षिणी-पश्चिमी तटं के साथ टकराती है और इसका एक भाग उत्तर की ओर मुड़ जाता है। इसे पश्चिमी आस्ट्रेलिया की धारा कहते हैं। यह शीत धारा अन्त में उत्तरी भूमध्य रेखीय धारा से जा मिलती है।

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(क) रिक्त स्थान भरो:

  1. ……………….. सबसे बड़ा तथा गहरा महासागर है।
  2. समुद्रों का पानी स्वाद में …………… होता है।
  3. भूमध्य रेखा की ओर जाने वाली जल धाराएं सदा …………… होती हैं।
  4. …………. ज्वारभाटा सदैव पूर्णिमा या अमावस के दिन ही आता है।

उत्तर-

  1. प्रशान्त महासागर,
  2. नमकीन,
  3. ठण्डी,
  4. बड़ा।

(ख) सही जोड़े बनाझर :

  1. चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति – अंध महासागर
  2. मौज़म्बीक की धारा – समुद्री धाराओं की उत्पत्ति
  3. खाड़ी की धारा – ज्वारभाटा की उत्पत्ति
  4. पवन की गति – हिन्द महासागर

उत्तर-

  1. चन्द्रमा की आकर्षण शक्ति – ज्वारभाटा की उत्पत्ति
  2. मौज़म्बीक की धारा – हिन्द महासागर
  3. खाड़ी की धारा – अंध महासागर
  4. पवन की गति – समुद्री धाराओं की उत्पत्ति।

(ग) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
पृथ्वी पर छोटे-बड़े पांच महासागर हैं। बताइए कि निम्नलिखित में से सबसे छोटा महासागर कौन-सा है?
(i) हिम (आर्कटिक) महासागर
(ii) अन्ध महासागर
(iii) हिन्द महासागर।
उत्तर-
(i) हिम (आर्कटिक) महासागर।

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प्रश्न 2.
दिए चित्र में क्या दर्शाया गया है?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 4 महासागर 7
(i) महासागरीय धाराओं की उत्पत्ति
(ii) ज्वरभाटा की उत्पत्ति
(iii) पृथ्वी पर जल और थल का वितरण।
उत्तर-
(iii) पृथ्वी पर जल और थल का वितरण।

प्रश्न 3.
संसार की सबसे महत्त्वपूर्ण उष्ण जल धारा कौन-सी है?
(i) ब्राजील की धारा
(ii) न्यूफाऊंडलैण्ड की धारा
(ii) खाड़ी की धारा।
उत्तर-
(iii) खाड़ी की धारा।

PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम

Punjab State Board PSEB 8th Class Home Science Book Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Home Science Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम

PSEB 8th Class Home Science Guide घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मक्खी से कौन-से रोग फैलते हैं ?
उत्तर-
मक्खी से हैजा रोग फैलता है।

प्रश्न 2.
चूहे के पिस्सू से कौन-सी बीमारी फैलती है?
उत्तर-
चूहे के पिस्सू से प्लेग की बीमारी फैलती है।

प्रश्न 3.
मलेरिया किस मच्छर के काटने से होता है?
उत्तर-
मादा एनोफिलीज़ मच्छर के काटने से।

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प्रश्न 4.
मच्छरों को कैसे नष्ट किया सकता है?
उत्तर-
मच्छरों को डी० डी० टी० से नष्ट किया जाता है।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
कीड़े-मकौड़े कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
कीड़े-मकौड़े तीन प्रकार के होते हैंउत्तर-

  1. खून चूसने वाले-मच्छर, खटमल।
  2. भोजन को जहरीला बनाने वाले-मक्खी , चींटी।
  3. घर के सामान को हानि पहुंचाने वाले–काक्रोच, दीमक।

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प्रश्न 2.
मक्खी, मच्छर से बचने के लिए क्या करोगे ? इनसे क्या नुकसान हैं ?
अथवा
मक्खियों से कौन-से रोग फैलते हैं ? इनकी रोकथाम के ढंग लिखें।
उत्तर-
मक्खियों से बचने के उपाय

  1. घर के आस-पास मक्खियों के अण्डे देने और मक्खी पैदा होने के स्थान नष्ट कर देने चाहिए।
  2. गन्दगी वाले स्थान पर डी० डी० टी० के घोल का छिडकाव करना चाहिए। (3) कड़ेदान ढके होने चाहिए और उसके कूड़े का नियमित विसर्जन होना चाहिए।
  3. खाने की वस्तुओं को खुला नहीं छोड़ना चाहिए। उन्हें तार की जाली या मलमल के कपड़े से ढककर रखना चाहिए।
  4. दरवाज़े एवं खिड़कियों पर जाली लगवानी चाहिए।
  5. जब मक्खियाँ बहुतायत में हों तो मक्खीमार कागज़ तथा मक्खीमार दवा का इस्तेमाल करना चाहिए।
  6. मक्खियों के अण्डे, लारवा तथा प्यूपा को नष्ट करने के लिए क्रिसोल, तूतिया या सुहागे के घोल का छिड़काव कूड़ा-करकट वाले तथा अन्य ग़न्दे स्थानों पर करना चाहिए।
  7. नालियों में फिनायल का छिड़काव करना चाहिए।
  8. घर में स्वच्छता की ओर ध्यान देना चाहिए।

मक्खियों से नुकसान-मक्खी मनुष्य की सबसे बड़ी शत्रु है । यह अनेक रोगों, जैसे– हैंजा, पेचिस, तपेदिक, अतिसार आदि रोगों को फैलाने का कार्य करती है।

मक्खी उन गन्दे पदार्थों की ओर आकर्षित होती हैं जिनमें रोगों के रोगाणु या जीवाणु उपस्थित रहते हैं। जब यह गन्दगी पर बैठती है तो इसके रोंयेदार शरीर तथा चिपचिपे पैरों में गन्दगी व रोगों के जीवाणु लग जाते हैं। भोजन तथा कटे फलों आदि पर बैठकर यह रोगों के जीवाणुओं को वहाँ छोड़ देती है। इन रोगाणुयुक्त पदार्थों का सेवन करने से स्वस्थ व्यक्ति भी रोगों का शिकार हो जाता है।
PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 1
चित्र 6.1

मक्खी मच्छरों से बचने के उपाय

  1. घर के आँगन में या आस-पास पानी रुकने नहीं देना चाहिए।
  2. मच्छर शाम को काफी चुस्त होता है अतः शाम होते ही दरवाज़े व खिड़कियाँ बन्द कर देनी चाहिए।
  3. रात को सोने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए।
  4. मच्छर मारने के लिए फ्लिट का छिड़काव खासतौर पर मोटे पर्दो व अलमारियों के पीछे तथा अन्धेरे कोनों में करना चाहिए।
  5. कमरे में रात को तम्बाकू, धूप, नीम की पत्ती, अगरबत्ती व गन्धक की धूनी देनी चाहिए।
    PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 2
    चित्र 6.2 मच्छर
  6. सोने से पूर्व शरीर पर सरसों का तेल या ओडोमास क्रीम लगानी चाहिए।
  7. घर के आस-पास कूड़ा-करकट इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए। घर और आसपास की जगह साफ़ रखनी चाहिए।

मच्छरों से नुकसान

  1. मलेरिया-मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से।
  2. डेंगू बुखार-एडिस एजेप्टी मच्छर के काटने से।
  3. फाइलेरिया-मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से।
  4. मस्तिष्क ज्वर-क्यूलेक्स की जाति के कारण।
  5. पीत ज्वर-एडिस मच्छर के काटने से।

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प्रश्न 3.
कॉकरोच को कैसे ख़त्म करोगे? यह क्या खराब करता है?
उत्तर-
कॉकरोच एक हानिकारक घरेलू कीट है। यह नमी वाले स्थानों पर होता है। इसलिए यह प्रायः शौचालय, रसोईघर व भण्डारगृह में अधिक मिलता है। यह भोजन और घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम अन्य सामान को खराब करता है। यह लगभग हर चीज़ को खा जाता है, जैसे-कूड़ा, पुराने कागज़, किताबें, चमड़ा, सब्जियों और फलों के छिलके और खाने की अन्य वस्तुएँ।
PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 3
चित्र 6.3 कॉकरोच
सेकथाम व नष्ट करने के उपाय

  1. सीलन वाले स्थानों की सफ़ाई जल्दीजल्दी करनी चाहिए।
  2. रसोई का फर्श बिल्कुल साफ़ रहना चाहिए।
  3. रसोईघर की तथा मकान की अन्य नालियों में सप्ताह में कम-से-कम एक बार मिट्टी का तेल या अन्य कीटनाशक दवा डालनी चाहिए। इसके बाद उबलता हुआ पानी नालियों में डालना चाहिए। इससे अण्डे देने के स्थान भी साफ़ हो जाते हैं।
  4. तिलचट्टों को मारने के विशेष अभियान में 10% डी०डी०टी० और 40% गैमेक्सीन या पाइरेथ्रम का छिड़काव करना चाहिए।
  5. पाइरेथ्रम पाउडर जलाने से ये बेहोश हो जाते हैं और फिर इन्हें झाड़ के साथ मारकर फेंक देना चाहिए।

प्रश्न 4.
किताबों के और कपड़ों के कीड़े से क्या नुकसान हैं ?
उत्तर–
किताबों के और कपड़ों के कीड़े से निम्नलिखित नुकसान हैं-

  1. ये पुस्तकों, तस्वीरों और गलीचे जो काफी दिनों तक बॉक्स में बंद रहते हैं उनको नुकसान पहुंचाते हैं।
  2. ये कीड़े रेशम के कपड़े और ऊनी कपड़ों को खाते हैं।
  3. ये कीड़े जो ऊनी कपड़ों में अण्डे होते हैं उनसे लारवा निकलते हैं। ये कपड़ों को खाते हैं जिनमें छेद हो जाते हैं।

प्रश्न 5.
कुछ ऐसे प्रतिकारक बताओ जिनको सब कीड़ों-मकौड़ों से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
उत्तर-
कुछ मिले-जुले प्रतिकारक निम्नलिखित हैं-

  1. नींबू, तम्बाकू व तुलसी के पौधे।
  2. नीम, तम्बाकू आदि के पत्ते।
  3. चील काफूर की लकड़ी।
  4. यूक्लिप्टस की लकड़ी, पत्तियाँ व तेल।
  5. नैष्थलीन की गोलियाँ।।
  6. गन्धक, पाइरेथ्रम, बोरिक एसिड।
  7. साबुन का चूरा, फिटकरी या काली मिर्च का पाउडर।

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प्रश्न 6.
खून चूसने वाले चार कीड़ों के नाम बताओ।
उत्तर-
मच्छर, खटमल, पिस्स, सैंड-फ्लाई।

प्रश्न 7.
पुस्तकों को नुकसान पहुँचाने वाले कीड़ों का नाम बताओ।
उत्तर-
पुस्तकों को हानि पहुँचाने वाले कीड़े कॉकरोच, दीमक और झींगुर हैं।

प्रश्न 8.
भोजन वाली डोली के पाए पानी में क्यों रखने चाहिए?
उत्तर-
चींटियों से बचने के लिए भोजन वाली डोली के पाए पानी में रखने चाहिए।

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प्रश्न 9.
सैंडफ्लाई कैसा कीड़ा है और यह क्या नुकसान पहुँचाता है ?
उत्तर-
यह बहुत छोटा कीट है जो मच्छरदानी में भी पहुँच जाता है। विशेषकर रात को टखने और गुट पर काटता है। इससे बुखार भी हो जाता है।

प्रश्न 10.
खटमल कहाँ रहते हैं ? इनकी रोकथाम के ढंग लिखो।
उत्तर-
खटमल गन्दे फर्श, दरी या टूटे फर्श की दरार और खाट के सिरों में रहते हैं।
रोकथाम के ढंग-

  1. खटमल को नष्ट करने के लिए मिट्टी और तारपीन का तेल छिड़कना चाहिए।
  2. फर्श पर उबलता पानी डालना चाहिए इससे खटमल मर जाता है।
  3. खिड़की की चुगाठ को मिट्टी के तेल से साफ करना चाहिए।
  4. जहाँ खटमल हों वहाँ गंधक की धूनी करनी चाहिए।

प्रश्न 11.
मक्खीमार कागज़ कैसे तैयार किया जा सकता है?
उत्तर-
मक्खीमार कागज़ तैयार करने के लिए पाँच भाग अरंडी का तेल और आठ भाग रेजिन पाउडर लेकर गर्म करते हैं और उसे सूखने से पहले गर्म ही किसी कागज़ पर लगाते हैं। इस प्रकार मक्खी मार कागज़ तैयार हो जाता है।

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प्रश्न 12.
दीमक और झींगुर किस वस्तु की हानि करते हैं ?
उत्तर-
दीमक और झींगुर कागज़, लकड़ी और कपड़ों को नुकसान करते हैं।

प्रश्न 13.
घरेलू जीव-जन्तु कौन-कौन से हैं ? यह क्या नुकसान पहुंचाते हैं और इनसे कैसे बचा जा सकता है ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कुछ ऐसे प्रतिकारक बताओ जिनको सब कीड़ों-मकौड़ों से बचाव के लिए इस्तेमाल किया जा सके।
उत्तर-
कुछ मिले-जुले प्रतिकारक अग्रलिखित हैं-

  1. नींबू, तम्बाकू व तुलसी के पौधे।
  2. नीम, तम्बाकू आदि के पत्ते।
  3. चील काफूर की लकड़ी।
  4. यूक्लिप्टस की लकड़ी, पत्तियाँ व तेल।
  5. नैथलीन की गोलियाँ।
  6. गन्धक, पाइरेथ्रम, बोरिक एसिड।
  7. साबुन का चूरा, फिटकरी या काली मिर्च का पाउडर।

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प्रश्न 2.
सैंडफ्लाई, पिस्सू, खटमल को मारने के लिए क्या प्रयोग करोगे?
उत्तर-
1. सैंडफ्लाई-
यह बहुत छोटा कीड़ा है। यह मच्छरदानी में भी दाखिल हो जाता है। यह विशेषकर रात को टखने और मुँह पर काटता है। इससे बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए
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चित्र 6.4 सैंड फ्लाई

  1. कुर्सियों, मेज़ और चारपाई के नीचे मच्छरमार तेल छिड़कना चाहिए।
  2. रात को मच्छरमार धूप जलानी चाहिए।
  3. बहुत बारीक मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए।
  4. घर के आस-पास की गीली जगहों पर फिनाइल छिड़कना चाहिए।

2. पिस्सूप्लेग बीमारी का कारण चूहे के पिस्सू होते हैं। पिस्सू छोटे और भूरे रंग के होते हैं। इनको मारने के निम्न उपाय करने चाहिए
PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 5
चित्र 6.5 पिस्सू

  1. घर में पाले कुत्ते को कार्बोलिक साबुन से नहलाना चाहिए और नहलाने के पानी में कार्बोलिक अम्ल डालना चाहिए।
  2. जहाँ भी पिस्सू की सम्भावना हो, मिट्टी का तेल या तारपीन का तेल छिड़कना चाहिए।
  3. चूहों के द्वारा भी पिस्सू फैलते हैं अतः पिस्सू को नष्ट करने से पहले चूहों को नष्ट करना चाहिए।
  4. दीवार तथा फर्श की दरारों को सीमेंट से भर देना चाहिए।
  5. भूमि पर नमक अथवा चूना छिड़क देना चाहिए।
  6. सूर्य की तेज़ किरणों के प्रभाव से पिस्सुओं के लारवा मर जाते हैं।
  7. जीवाणुनाशक पाऊडर का प्रयोग करना चाहिए जिससे पिस्सुओं द्वारा प्लेग न फैले।

3. खटमल-खटमल गन्दे फर्श, दरी या टूटे फर्श की दरार और खाट के सिरों में रहते हैं। खटमल लाल भूरे रंग का कीड़ा होता है। यह 1/6 इंच से 1/7 इंच तक लम्बा होता है।
खटमल मारने के उपाय
PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 6
चित्र 6.6 खटमल

  1. खटमल को नष्ट करने के लिए मिट्टी और तारपीन का तेल मिलाकर छिड़कना चाहिए।
  2. फर्श पर उबलता पानी डालना चाहिए इससे भी खटमल मर जाता है।
  3. जहाँ खटमल हो वहाँ गंधक की धूनी करनी चाहिए। इससे खटमल मर जाता है।

प्रश्न 3.
चूहे के घर में होने से क्या हानि होती है ? बचाव के उपाय बताओ।
उत्तर-
चूहे घर की खाद्य सामग्री तथा कपड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। ये भण्डार घर में अधिक पलते हैं।
चूहों पर प्लेग के कीट पिस्सू रहते हैं और चूहों के द्वारा ही वे मनुष्य तक पहुँचते हैं। ऐसे चूहे जिन व्यक्तियों को काटते हैं वे प्लेग के रोगी हो जाते हैं। इस प्रकार चूहे पिस्सुओं को आश्रय देकर बीमारियाँ फैलाते हैं। ‘
चूहों से बचाव के उपाय-

  1. चूहों के बिलों को काँच से या सीमेंट से भरकर अच्छी तरह बन्द कर देना चाहिए।
  2. चूहे मारने की दवा आटे में मिलाकर उनके बिल के पास डाल देने से चूहे उसे खाकर मर जाते हैं।
  3. भण्डारघर व रसोईघर में सभी खाद्य सामग्री को बन्द पीपों या डिब्बों में रखना चाहिए।
  4. भण्डारघर में से कुछ भी खाद्य सामग्री निकालते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि कुछ भी ज़मीन पर न बिखरे।
  5. सब्जियाँ तथा फलों को तारों वाली टोकरी में ऊँची जगह पर टाँगना चाहिए।
  6. घर साफ-सुथरा रखना चाहिए। कोई भी खाने की चीज़ इधर-उधर नहीं बिखरनी चाहिए।
  7. इनको पकड़ने के लिए पिंजड़े (चूहेदानी) का प्रयोग करना चाहिए।
  8. चूहों को पकड़ने पर उन्हें अपने स्थान से बहुत दूर छोड़कर आना चाहिए।

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प्रश्न 4.
छिपकली और मकड़ी से छुटकारा पाने के ढंग बताओ।
उत्तर-
छिपकली से छुटकारा पाने के ढंग

  1. घर की दीवारों एवं छिद्रों में तथा फर्नीचरों में फ्लिट या डी० डी० टी० छिड़कते रहना चाहिए क्योंकि ऐसी जगहों पर ये अपना बिल बना लेती हैं।
  2. घर के भोज्य पदार्थों को ढककर रखना चाहिए।
  3. घर को साफ़ एवं कीटरहित रखना चाहिए क्योंकि कीट ही छिपकली का भोजन है। घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम

मकड़ी से छुटकारा पाने के ढंग-

  1. घर को सदा साफ़ रखना चाहिए।
  2. फ्लिट तथा डी० डी० टी० पाउडर घर की दीवारों पर छिड़कना चाहिए।
  3. मकड़ी के जालों को साफ करते रहना चाहिए।

प्रश्न 5.
कीड़े और जीव-जन्तु मारने के लिए कौन-कौन सी कीटाणुनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है?
उत्तर-
कीड़े और जीव-जन्तु मारने के लिए निम्नलिखित कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग किया जा सकता है

  1. चूना-कच्चा तथा बुझा हुआ।
  2. पोटेशियम परमैंगनेट (लाल दवाई)।
  3. साबुन।
  4. डी० डी० टी०
  5. नीला तूतिया (कॉपर सल्फेट)
  6. कार्बोलिक अम्ल-कार्बोलिक साबुन तथा घोल के रूप में।
  7. डेटोल।
  8. फ़ार्मेलिन।
  9. लाईसोल।
  10. फिनाइल।
  11. क्रिसोल।
  12. क्लोरीन गैस।
  13. गन्धक का धुआँ।
  14. फार्मेल्डिहाइड गैस के रूप में।

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प्रश्न 6.
जुएँ कहाँ तथा क्यों पड़ जाती हैं ? इसकी रोकथाम के उपाय बताओ।
उत्तर-
जुएँ मनुष्य के सिर में तथा शरीर पर हो जाती हैं। सिर की जुएँ सिर के बालों में रहती हैं। यहाँ वे अण्डे देती हैं जिन्हें लीख कहते हैं। दूसरे प्रकार की जुएँ गन्दे कपड़ों व शरीर की त्वचा पर रहती हैं जुएँ बड़ी आसानी से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँच जाती हैं।
जुएँ गन्दी होती हैं। इनसे टाइफस बुखार तथा त्वचा के रोग हो जाते
जुओं की रोकथाम के ढंग-
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चित्र 6.7 जूं

  1. जूं के मिलते ही उसे मार देना चाहिए।
  2. सिर में जुएँ होने पर बाज़ार में उपलब्ध जूं मार रसायन को। लगाकर कुछ घण्टों के बाद सिर धो लेना चाहिए।
  3. सिर में यदि जुएँ अधिक संख्या में हों तो बाल कटवा देने चाहिए।
  4. नारियल के तेल में मुश्क-कपूर डालकर सिर में मलने से भी जुएँ मर जाती हैं।
  5. शरीर में जुएँ होने पर बुने हुए कपड़ों को फर्श पर रखकर ऊपर खूब गर्म पानी डालना चाहिए। व्यक्ति को गर्म पानी व साबुन से मल-मलकर नहाना चाहिए।
  6. मैले कपड़ों को उबलते पानी में डालकर धोना चाहिए।
  7. बिस्तर की चादरों आदि की सफ़ाई रखनी भी आवश्यक है।

Home Science Guide for Class 8 PSEB घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पी प्रश्न

प्रश्न 1.
रक्त चूसने वाला कीट है
(क) मच्छर
(ख) मक्खी
(ग) काकरोच
(घ) दीमक।
उत्तर-
(क) मच्छर

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प्रश्न 2.
प्लेग की बिमारी किस से फैलती है ?
(क) मच्छर
(ख) चूहा
(ग) चींटी
(घ) सभी।
उत्तर-
(ख) चूहा

प्रश्न 3.
घर के सामान को हानि पहुँचाने वाला कीट है
(क) चींटी
(ख) खटमल
(ग) दीमक
(घ) मच्छर
उत्तर-
(ग) दीमक

प्रश्न 4.
………… कपड़ों तथा पुस्तकों को नष्ट करता है।
(क) झींगुर
(ख) मच्छर
(ग) खटमल
(घ) काकरोच।
उत्तर-
(क) झींगुर

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प्रश्न 5.
मक्खी से रोग फैलते हैं
(क) हैजा
(ख) पेचिश
(ग) तपैदिक
(घ) सभी ठीक
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

प्रश्न 6.
मलेरिया के इलाज के लिए कौन-सी दवाई का प्रयोग होता है ?
(क) दाल चीनी
(ख) कुनीन
(ग) सौंफ
(घ) अजवाइन।
उत्तर-
(ख) कुनीन

प्रश्न 7.
ठीक तथ्य है
(क) मलेरिया एनाफलीज़ मच्छर के कारण होता है।
(ख) फाइलेरिया, मादा क्यूलैक्स की जाती के कारण होता है।
(ग) चूहे के पिस्सू से प्लेग की बिमारी फैलती है।
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक

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II. ठीक/गलत बताएं

  1. मच्छर भोजन को ज़हरीला बना देता है।
  2. सैंड फलाई छोटा कीट है जो मच्छरदानी में भी दाखिल हो जाता है।
  3. नेवला तथा बिल्ली पालने से सांप से बचाव होता है।
  4. दीमक लाभदायक कीट है।
  5. मादा एनाफलीज़ मच्छर के काटने से मलेरिया होता है।
  6. डेंगू बुखार ऐडीज एजेपटी मच्छर के कारण होता है।

उत्तर-

III. रिक्त स्थान भरें

  1. एनाफलीज मच्छर से ………… हो जाता है। (From Board M.O.P.)
  2. कीड़े-मकौड़ों को ………….. श्रेणियों में बांटा गया है।
  3. ……………… कपड़ों तथा पुस्तकों को नष्ट करती हैं।
  4. चूहे ……………….. के पिस्सू पैदा करते हैं।
  5. खटमल से ……………. ज्वर हो जाता है।

उत्तर-

  1. मलेरिया,
  2. तीन
  3. झींगुर,
  4. प्लेग,
  5. काला।

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IV. एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
बाल-पक्षाघात रोग किस अवस्था में होता है ?
उत्तर-
बच्चों में 5-7 वर्ष की अवस्था में।

प्रश्न 2.
मलेरिया के उपचार के लिए किस औषधि का प्रयोग करना चाहिए?
उत्तर-
कुनीन।

प्रश्न 3.
मच्छरों से कौन-सा बुखार फैलता है?
उत्तर-
मलेरिया।

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प्रश्न 4.
प्लेग की बीमारी किससे फैलती है ?
उत्तर-
चूहे के पिस्सू से ।

प्रश्न 5.
मक्खी से कौन-से रोग फैलते हैं ?
उत्तर-
हैजा रोग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चूहे हानिकारक हैं, कैसे?
उत्तर-
क्योंकि इससे रोग के कीटाणु फैलते हैं।

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प्रश्न 2.
खटमल से कौन-से रोग फैलते हैं ?
उत्तर-
खटमल से काला ज्वर और चर्म रोग फैलते हैं।

प्रश्न 3.
कीड़ों द्वारा फैलने वाले रोगों के उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
मलेरिया, डेंगू, ज्वर, प्लेग, रिलेप्सिंग ज्वर

प्रश्न 4.
मलेरिया के प्रमुख लक्षण क्या हैं ?
उत्तर-
जी घबराना, सिर दर्द, ठण्ड व कंपकपी के साथ ज्वर चढ़ना।

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प्रश्न 5.
प्लेग रोग किन कीटों के काटने से होता है?
उत्तर-
पिस्सुओं के काटने से।

प्रश्न 6.
प्लेग के प्रमुख लक्षण क्या हैं?
उत्तर-
105°-107°F तक ज्वर, कभी-कभी उल्टियाँ तथा दस्त लगना, बगल तथा जाँघ में गिल्टियाँ निकलना।

प्रश्न 7.
डेंगू ज्वर किस मच्छर के काटने से होता है ?
उत्तर-
एडिस ऐजेप्टी।

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प्रश्न 8.
डेंगू ज्वर के क्या लक्षण हैं ?
उत्तर-
ज्वर, पीठ तथा अन्य अंगों में पीड़ा, भूख व नींद मर जाना तथा कमज़ोरी।

प्रश्न 9.
पुनराक्रमण ज्वर (रिलेप्सिंग ज्वर) किन कीटों द्वारा होता है ?
उत्तर-
नँ और खटमल के द्वारा रक्त चूसने से।

प्रश्न 10.
पुनराक्रमण ज्वर के मुख्य लक्षण क्या हैं ?
उत्तर-
ज्वर 104° फा० तक, शरीर पर गुलाबी रंग के दाने, कभी-कभी उल्टी व चक्कर।

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प्रश्न 11.
तपेदिक या क्षय रोग के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
बाल-विवाह, अपूर्ण खुराक, कमज़ोरी।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
चींटियों से क्या नुकसान होता है ? इनसे बचाव के उपाय लिखो।
उत्तर-
चींटियाँ मृत जीव-जन्तु और गन्दगी की सफ़ाई करती हैं परन्तु ये काटकर नुकसान भी पहुंचाती हैं। चींटियाँ अगर खाने में पड़ जाती हैं तो खाना दूषित तथा थोड़ा विषैला हो जाता है।
PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 8
चित्र 6.8 चींटी
चींटियों से बचाव के उपाय-

  1. ये मीठे पदार्थों पर शीघ्र चढ़ती हैं अत: शहद व मुरब्बे आदि की शीशियों को पानी में रखना चाहिए।
  2. भोजन वाली डोली (अलमारी) के पाए पानी में रखने चाहिए।
  3. चींटियों की खुड्डों में बोरेक्स या हल्दी डाल देनी चाहिए।

प्रश्न 2.
मकड़ी से क्या हानि है ?
उत्तर-
मकड़ी गन्दे स्थानों पर पाई जाती है। यह घरेलू कीड़ेमकोड़े खाती है। यदि इसके मुँह से निकलने वाला लसलसा पदार्थ शरीर के किसी भी स्थान पर पड़ जाए तो वहाँ फफोले पड़ जाते हैं।
PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 9
चित्र 6.9 मकड़ी

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प्रश्न 3.
झींगुरों से बचाव के उपाय लिखो।
उत्तर-
झींगुर कागज़ व सूती कपड़े खाते हैं। आमतौर पर ये दिन में अन्धेरे कोनों में छिपे रहकर रात में बाहर आते हैं। झींगुरों से बचाव के उपाय निम्न हैं-
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चित्र 6.10 झींगुर

  1. वस्त्रों में नैप्थलीन की गोलियाँ रखनी चाहिए।
  2. इनके स्थानों पर सुहागे, पाइरेथ्रम या गन्धक का प्रयोग मददगार होता है।
  3. समय-समय पर कीटनाशक दवाइयों का छिड़काव इस कीट को नाश करने में सहायक होता है।
  4. इनकी संख्या बढ़ जाने पर बन्द कमरे में पाइरेथ्रम पाउडर को जलाकर उसके धुएँ से इन्हें मारा जाता है।
  5. इनकी रोकथाम का सर्वोत्तम उपाय घरों की सफ़ाई करते रहना है।

प्रश्न 4.
कपड़ों के कीड़े ( पतंगों) की रोकथाम के उपाय बताओ।
उत्तर-
कपड़ों के पतंगों के लारवा गर्म कपड़ों और बुनी पोषाकों को नष्ट करते हैं। अण्डे जो ऊनी कपड़ों में दिए जाते हैं, उनसे लारवा निकलते हैं। ये कपड़ों को खाते हैं जिनसे उनमें छेद हो जाते हैं। इनकी रोकथाम के उपाय निम्न हैं—

  1. कपड़ों को जल्दी-जल्दी धूप दिखाते रहने से इनके लारवा मर जाते हैं।
  2. ऊनी कपड़ों को अख़बार में लपेटकर टिन के हवाबन्द बक्स में रखना चाहिए। अख़बारों की मुद्रण स्याही से ये पतंगें दूर भागते हैं।
  3. कपूर और नैष्थलीन की गोलियाँ भी कपड़ों में रखने से बचाव होता है।

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प्रश्न 5.
दीमक की रोकथाम और नष्ट करने के उपाय बताओ।
उत्तर-
दीमक मनुष्य के शरीर को हानि नहीं पहुँचाती, परन्तु घर में फर्नीचरों, छतों, दरवाज़ों, अन्य लकड़ी के सामान, पुस्तकों, वस्त्रों आदि को नष्ट कर देती है। लकड़ी इनका मुख्य भोजन है। इनसे बचाव के निम्नलिखित उपाय करने चाहिए
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चित्र 6.11 दीमक

  1. लकड़ी के समान, पुस्तकें आदि को सीलन से बचाना चाहिए।।
  2. लकड़ी की वस्तुओं में जो दरारें हों, उन्हें या तो भर देना | चाहिए या उनमें मिट्टी के तेल का छिड़काव करना चाहिए।
  3. जिन वस्तुओं में दीमक जल्दी लग जाती है उन्हें सप्ताह में एक बार धूप में रखना चाहिए।
  4. दीमक की सम्भावना वाले सामान पर डी० डी० टी० छिड़कते रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
सिल्वर फिश किन चीज़ों को नुकसान पहुँचाती है ? इसकी रोकथाम के उपाय बताओ।
उत्तर-
यह घरों में तस्वीरों के फ्रेम के पीछे के गत्ते, किताबों और कपड़ों को खाती है। यह कृत्रिम रेशम, माँडी लगे कपड़े, कागज़ और लुगदी पर निर्भर होती है। इसकी रोकथाम के उपाय निम्नलिखित हैं

  1. अलमारियों, दराज़ों और बक्सों को अच्छी तरह साफ़ रखना चाहिए।
  2. कागज़ के टुकड़ों जैसे अनावश्यक पदार्थों को घर में इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए।
  3. किताबों की समय-समय पर देखभाल की जानी चाहिए।
  4. पाइरेथ्रम का पाउडर छिड़कना चाहिए।
  5. पाइरेथ्रम तथा गन्धक का धुआँ भी सिल्वर फिश का नाश करता है।

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प्रश्न 7.
मच्छर से बचने के उपाय बताओ।
उत्तर-
मक्खी मच्छरों से बचने के उपाय

  1. घर के आँगन में या आस-पास पानी रुकने नहीं देना चाहिए।
  2. मच्छर शाम को काफी चुस्त होता है अतः शाम होते ही दरवाज़े व खिड़कियाँ बन्द कर देनी चाहिए।
  3. रात को सोने के लिए मच्छरदानी का प्रयोग करना चाहिए।
  4. मच्छर मारने के लिए फ्लिट का छिड़काव खासतौर पर मोटे पर्दो व अलमारियों के पीछे तथा अन्धेरे कोनों में करना चाहिए।
  5. कमरे में रात को तम्बाकू, धूप, नीम की पत्ती, अगरबत्ती व गन्धक की धूनी देनी चाहिए।
    PSEB 8th Class Home Science Solutions Chapter 6 घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम 2
    चित्र 6.2 मच्छर
  6. सोने से पूर्व शरीर पर सरसों का तेल या ओडोमास क्रीम लगानी चाहिए।
  7. घर के आस-पास कूड़ा-करकट इकट्ठा नहीं होने देना चाहिए। घर और आसपास की जगह साफ़ रखनी चाहिए।

प्रश्न 8.
कीड़े-मकौड़ों को हम कितनी श्रेणियों में बांट सकते हैं ? प्रत्येक का उदाहरण दें।
उत्तर-
कीड़े-मकौड़ों को हम तीन श्रेणियों में बांट सकते हैं-

  1. खून-चूसने वाले-मच्छर,
  2. भोजन को ज़हरीला बनाने वाले-कीड़े,
  3. घर के सामान के नुक्सान पहुंचाने वाले-दीमक।

प्रश्न 9.
पिस्सू और खटमल को मारने के लिए क्या करेंगे ?
उत्तर-
देखें प्रश्न 7 (अभ्यास का) का उत्तर।।

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प्रश्न 10.
मच्छरों से क्या हानि है ? इसकी रोक-थाम कैसे करोगे ?
उत्तर-
मच्छरों से नुकसान

  1. मलेरिया-मादा एनोफिलीज मच्छर के काटने से।
  2. डेंगू बुखार-एडिस एजेप्टी मच्छर के काटने से।
  3. फाइलेरिया-मादा क्यूलेक्स मच्छर के काटने से।
  4. मस्तिष्क ज्वर-क्यूलेक्स की जाति के कारण।
  5. पीत ज्वर-एडिस मच्छर के काटने से।

प्रश्न 11.
मक्खियों के बचाव के लिए आप क्या करेंगे तथा इनका क्या नुक्सान है ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 12.
(क) नीम, तम्बाकू या तुलसी का पौधा घर में क्यों लगाना चाहिए?
(ख) साँप बिच्छ्र से बचने के लिए क्या करोगे?
उत्तर-
नीम, तम्बाकू व तुलसी के पौधे घरों में दुर्गन्धनाशक, कीटनाशक व कीट प्रतिकारक होते हैं।
नीम की पत्तियों को अनाजों के बीच रखकर अनाजों को कीटों से सुरक्षित रखा जाता है। नीम की पत्तियाँ ऊनी कपड़ों को सुरक्षित रखती हैं।
तम्बाकू की पत्तियों का धुआँ कीटनाशक होता है। तम्बाकू की धूल से खमीरा बनाया जाता है जिसके धुएँ से कीट मर जाते हैं। इससे एक कीटनाशक औषधि निकोटीन सल्फेट भी बनाई जाती है।
तुलसी का पौधा साँप के काटे में विषमारक के रूप में काम आता है। साँप से बचने के उपाय

  1. घर के निकट की झाड़ियाँ काट देनी चाहिए।
  2. घर के आस-पास की ज़मीन, घर की दरारों और छेदों में फिनाइल डालनी चाहिए।
  3. तम्बाकू के पत्ते उबालकर छिड़कना चाहिए।
  4. नेवला व बिल्ली पालने से भी साँप से बचाव होता है।

बिच्छू से बचने के उपाय-

  1. कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल कर सभी कीटों को मार देना चाहिए।
  2. घर के सभी, खासकर अन्धेरे स्थानों को नियमित रूप से साफ़ करना चाहिए।

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घरेलू कीड़ों और जीव-जन्तुओं की रोकथाम PSEB 8th Class Home Science Notes

  • कीड़े-मकौड़ों को हम तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं
    • खून चूसने वाले,
    • भोजन को ज़हरीला बनाने वाले,
    • घर के सामान को नुकसान पहुँचाने वाले।
  • एनोफेलीज़ जाति के मच्छर की मादाओं के काटने से मलेरिया रोग फैलता है।
  • क्यूलेक्स जाति के मच्छरों के काटने से भी यह रोग होता है।
  • मच्छर मारने के लिए फ्लिट छिड़कना चाहिए ।
  • अगर मच्छर काट ले और दर्द हो तो थोड़ा अमोनिया लगा लेना चाहिए।
  • खटमल गन्दे फर्श, दरी या टूटे फर्श की दरार और खाट के सिरों में रहते हैं।
  • खटमल लाल भूरे रंग का कीड़ा होता है।
  • चूहे के पिस्सू प्लेग की बीमारी फैलाते हैं।
  • कॉकरोच और तिलचट्टा भोजन और सामान दोनों चीज़ों को खराब करता है।
  • दीमक कागज़, लकड़ी आदि को नष्ट करती है। यह लकड़ी को अन्दर खाकर खोखला कर देती है।
  • झींगुर कपड़ों और पुस्तकों को नष्ट करती है।
  • कपड़े के कीड़े रेशम के कपड़े और ऊनी कपड़ों को खाते हैं।
  • चूहे प्लेग के पिस्सू पैदा करते हैं।
  • छिपकली छोटे-छोटे कीड़े-मकौड़े खाकर नुकसान की बजाए हमारी मदद करती है।