PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य

Punjab State Board PSEB 6th Class Physical Education Book Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Physical Education Chapter 1 स्वास्थ्य

PSEB 6th Class Physical Education Guide स्वास्थ्य Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
स्वास्थ्य कितने प्रकार का होता है ?
उत्तर-
स्वास्थ्य (Health)-आमतौर पर रोगों से बचने वाले आदमी को स्वस्थ माना जाता है पर यह पूरी तरह ठीक नहीं। वर्ल्ड हैल्थ ओरगनाइस के अनुसार स्वास्थ्य मनुष्य के शरीर के साथ ही सीमित नहीं है। स्वास्थ्य का सम्बन्ध आदमी के मन, समाज और भावना के साथ जुड़ा है। स्वास्थ्य शिक्षा का वह भाग है जिसके साथ मनुष्य सारी जगह से वातावरण के साथ सुमेल कायम करके शारीरिक और मानसिक विकास कायम कर सके और उसका विकास कर सके। एक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य उतना ही ज़रूरी है जितनी कि फूल के लिए खुशबू। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार “स्वास्थ्य से भाव व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और सामाजिक की तरफ से स्वस्थ होना है। रोग या कमजोरी रहित होना ही स्वास्थ्य की निशानी नहीं है।”

According to W.H.O. “Health is a state of complete physical, mental and social well being, and not merely the absence of disease or infirmity.”
स्वस्थ व्यक्ति वह होता है जो अपने जीवन में शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भावनात्मक आदि सारे पहलुओं में सन्तुलन रखता है।

स्वास्थ्य की किस्में
यह चार प्रकार की होती हैं –

  1. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health)
  2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)
  3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health)
  4. भावनात्मक स्वास्थ्य (Emotional Health)

1. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health) शारीरिक स्वास्थ्य से भाव व्यक्ति के सभी अंग ठीक ढंग से काम करते हैं। शरीर फुर्तीला और तंदुरुस्त और हर रोज़ क्रियाएं करने के लिए तैयार रहना चाहिए। स्वस्थ व्यक्ति का शारीरिक ढांचा सुडौल, मज़बूत और सुन्दर होना चाहिए। उसकी सभी कार्य प्रणाली जैसे-सांस प्रणाली, पाचन प्रणाली, रक्त प्रणाली, अपना-अपना काम ठीक ढंग से करते हैं।

2. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health) इसका मतलब मनुष्य दिमागी तौर से सही और समय से फैसला लेता है और हमेशा ही अपने विश्वास को कायम रखता है। मानसिक तौर पर व्यक्ति हालात के साथ अपने-आप को ढाल लेता है।

3. सामाजिक स्वास्थ्य (Social Health) इससे भाव व्यक्ति अपने समाज के साथ सम्बन्धित है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, जिसको अपने हर रोज़ के कामों की पूर्ति के लिए परिवार और समाज के साथ चलना पड़ता है। मिलनसार व्यक्ति की समाज में इज्जत होती है।

4. भावनात्मक स्वास्थ्य (Emotional Health)-हमारे मन में अलग-अलग तरह की भावनाएँ जैसे-डर, खुशी, गुस्सा, ईर्ष्या आदि पैदा होती हैं। यह सारी भावनाओं को संतुलित करना ज़रूरी है। जिसके साथ हम अपना जीवन अच्छी तरह गुजार सकते हैं।

निजी स्वास्थ्य विज्ञान (Personal Hygiene)–शरीर की रक्षा को निजी शरीर सुरक्षा (Personal Hygiene) कहते हैं। यह दो शब्दों के मेल से बना है । Personal और Hygiene । ‘Personal’ अंग्रेजी का शब्द है जिसका अर्थ है निजी या व्यक्तिगत ‘Hygiene’ यूनानी भाषा के शब्द Hygeinous से बना है, जिसका भाव है आरोग्यता की देवी। आजकल Hygiene का अर्थ जीवन जांच से लिया जाता है। आरोग्यता कायम रखने के लिए शरीर विज्ञान प्राप्त करना ज़रूरी है।

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प्रश्न 2.
बच्चों को किस तरह का भोजन करना चाहिए ?
उत्तर-

  1. बच्चों को संतुलित एवं साफ़-सुथरा भोजन खाना चाहिए। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेटस, चिकनाई, खनिज लवण, विटामिन और पानी जैसे सारे तत्व होने चाहिए।
  2. खाना खाने से पहले हाथ और मुँह साबुन के साथ अच्छी तरह से धो लेना चाहिए।
  3. ज़रूरत से ज़्यादा गर्म या ठंडा भोजन नहीं करना चाहिए।
  4. कम्प्यूटर या टी०वी० देखते हुए खाना नहीं खाना चाहिए।
  5. खाना सीधे बैठकर खाना चाहिए और लेटकर नहीं खाना चाहिए।
  6. फास्टफूड जैसे पीज़ा, बर्गर, न्यूडल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। बच्चों को ज़्यादातर घर का बना खाना ही खाना चाहिए।
  7. भोजन को मिट्टी, धूल और मक्खियों से बचाव के लिए ढक कर रखना चाहिए।
  8. फल हमेशा धोकर खाने चाहिए।

प्रश्न 3.
हमें स्वस्थ रहने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
1. डाक्टरी जांच-

  • बच्चों को अपने शरीर की जांच समय पर करवानी चाहिए और समय पर टीके भी लगवाते रहना चाहिए।
  •  किसी तरह की चोट लगने पर इलाज ज़रूर करवाना चाहिए।

2. स्वभाव-

  • बच्चों को हर समय खुश रहना चाहिए।
  • चिड़चिड़ा स्वभाव स्वास्थ्य पर बुरा असर डालता है।
  • अच्छा स्वभाव स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है।

3 आदतें-

  • समय पर उठना, खाना, पढ़ना और खेलना और आराम करना।
  • अपने शरीर और आस-पास की सफाई रखना।
  • पढ़ते समय रोशनी का उचित प्रबन्ध करना। कम रोशनी में पढ़ने से आँखें कमज़ोर हो जाती हैं।
  • बैठने और सोने के लिए ठीक तरह का फर्नीचर होना ज़रूरी है।

4. कसरत, खेलें और योगा-

  • अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कसरत या योगा करना ज़रूरी है।
  • कसरत अथवा योगा हमेशा खाली पेट करना चाहिए।
  • कसरत अथवा योगा के लिए खुला वातावरण होना ज़रूरी है।
  • बच्चों को ज्यादा से ज्यादा खेलों में भाग लेना चाहिए और पहले शरीर को गर्माना उचित होता है।

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प्रश्न 4.
भोजन खाने के समय कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-

  • भोजन खाने से पहले हाथ अच्छी तरह साबुन के साथ धोने चाहिए।
  • साफ़-सुथरा और संतुलित भोजन खाना चाहिए।
  • फास्टफूड से हमेशा बचना चाहिए और घर का बना भोजन ही खाना चाहिए।
  • बहुत गर्म या बहुत ठंडा भोजन नहीं खाना चाहिए।
  • भोजन ज़रूरत के अनुसार ही खाना चाहिए। भोजन अच्छी तरह चबा कर खाना चाहिए।
  • कम्प्यूटर या टी०वी० देखते हुए खाना नहीं खाना चाहिए।
  • खाना कभी भी लेटकर नहीं खाना चाहिए।
  • फल अच्छी तरह धोकर खाने चाहिए।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पर नोट लिखें
(क) चमड़ी की सफ़ाई, (ख) बालों की सफ़ाई, (ग) आंखों की सफ़ाई, (घ) कानों की सफाई, (ङ) नाक की सफ़ाई, (च) दांतों की सफ़ाई, (छ) नाखूनों की सफ़ाई।
उत्तर-
(क) चमड़ी की सफ़ाई (Cleanliness of Skin)-चमड़ी की दो परतें होती हैं। बाहरी परत (EPIDERMIS) और अन्दरूनी परत (DERMIS) बाहरी परत में न तो खून की नालियां होती हैं और न ही परतें और गिल्टियां तन्तु (Glands) होते हैं। अन्दरूनी परत जुड़वां तन्तुओं की बनी होती है। इसमें रक्त की नालियां होती हैं। यह नालियां चमड़ी को खुराक पहुंचाने का काम करती हैं।

चमड़ी शरीर के अन्दरूनी अंगों को ढक कर रखती है। जहरीले पदार्थों को बाहर निकालती है और शरीर के तापमान को ठीक रखती है। त्वचा हमारे शरीर को सुन्दरता प्रदान करती है। इसलिए हमें अपनी चमड़ी की सफ़ाई खूब अच्छी तरह करनी चाहिए। त्वचा की सफ़ाई का सबसे अच्छा ढंग नहाना है। नहाते समय हमें नीचे लिखी बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए –

  • प्रतिदिन प्रातः साफ़ पानी से नहाना चाहिए।
  • नहाने से पहले पेट साफ़ और खाली होना चाहिए।
  • भोजन करने के तुरन्त बाद नहीं नहाना चाहिए।
  • व्यायाम (कसरत) करने या काम की थकावट के तुरन्त बाद भी नहीं नहाना चाहिए।
  • सर्दियों में नहाने से पहले धूप में बैठकर शरीर की अच्छी तरह मालिश करनी चाहिए।
  • साबुन के साथ नहाने की बजाए बेसन तथा संगतरे के छिलके से बने ऊबटन का प्रयोग करना चाहिए।
  • नहाने के बाद शरीर को साफ़ तथा खुरदरे तौलिए के साथ पोंछना चाहिए।
  • नहाने के बाद मौसम के अनुसार साफ़-सुथरे कपड़े पहनने चाहिएं।

चमड़ी की सफ़ाई के लाभ (Advantages of Cleanliness of Skin) चमड़ी की सफ़ाई के निम्नलिखित लाभ हैं –

  • चमड़ी हमारे शरीर को सुन्दरता प्रदान करती है।
  • यह हमारे शरीर के आन्तरिक भागों को ढांप कर रखती है तथा इनकी रक्षा करती है।
  • चमड़ी के द्वारा शरीर से पसीना तथा अन्य दुर्गन्ध वाली चीज़ों का निकास होता है।
  • यह हमारे शरीर के तापमान को ठीक रखती है।
  • इसको छूने से किसी चीज़ का गुण पता चलता है।

(ख) बालों की सफाई (Cleanliness of Hair) बाल हमारे शरीर और व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाते हैं। बालों की सुन्दरता उनके घने, मज़बूत और चमकदार होने में छुपी होती है।
बालों की सफाई और सम्भाल-बालों की सफ़ाई और सम्भाल अग्रलिखित ढंग से करनी चाहिए-

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  • बालों को साबुन, रीठे, आंवले, अण्डे की जर्दी या किसी बढ़िया शैम्पू के साथ धोना चाहिए।
  • रात्रि को सोने से पहले बालों में कंघी या ब्रुश करना चाहिए। सारा दिन बाल जिस ओर रहे हों इसकी उलट और बालों की जड़ों से लेकर अन्त तक कंघी करनी चाहिए।
  • खाली समय में सिर में सूखे हाथों से मालिश करनी चाहिए।
  • प्रात: उठकर बालों को कंघी करके संवारना चाहिए।
  • बालों को न ही अधिक खुश्क और न ही अधिक चिकना रखना चाहिए।
  • बालों में तीखी पिनें नहीं लगानी चाहिए। नहाने के बाद बालों को तौलिए के साथ रगड़ कर साफ करना चाहिए।
  • अच्छी खुराक जिसमें मक्खन, पनीर, सलाद, हरी सब्जियां तथा फलों आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  • बालों में खुशबूदार तेल नहीं लगाना चाहिए। सिर की कभी-कभी मालिश करनी चाहिए।

(ग) आंखों की सफ़ाई (Cleanliness of Eyes)—आंखें मानव शरीर का कोमल तथा महत्त्वपूर्ण अंग हैं। इनसे हम देखते हैं। इनके बिना संसार अन्धेरा और जीवन बोझ बन जाता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि आंखें गईं तो जहान गया। इसलिए हमें आंखों की सफ़ाई और देखभाल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। यदि आंखों की सफ़ाई न रखी जाए तो आंखों के कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। जैसे आंखों का फ्लू, कुकरे, आंखों में जलन आदि।
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आंखों की सफाई और सम्भाल के लिए हमें निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

  • बहुत तेज़ या बहुत कम रोशनी में आंखों से काम नहीं लेना चाहिए, नंगी आंखों से सूर्य ग्रहण नहीं देखना चाहिए।
  • लेट कर या बहुत नीचे झुक कर पुस्तक नहीं पढ़नी चाहिए।
  • पढ़ते समय पुस्तक को आंखों से कम-से-कम 30 सेंटीमीटर दूर रखना चाहिए।
  • आंखों को गन्दे रूमाल या कपड़े से साफ नहीं करना चाहिए।
  • किसी एक स्थान पर नज़र टिका कर नहीं रखनी चाहिए।
  • आंख में मच्छर आदि पड़ जाने पर आंख को मलना नहीं चाहिए। इसे साफ़ रूमाल से आंखों में से निकालना चाहिए या आंखों में ताजे पानी के छींटे मारने चाहिएं।
  • आंखों में पसीना नहीं गिरने देना चाहिए।
  • पढ़ते समय अपने कद के अनुसार कुर्सी और मेज़ का प्रयोग करना चाहिए।
  • खट्टी चीज़, तेल, शराब, तम्बाकू, चाय, लाल मिर्च, अफीम आदि चीज़ों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • आंखों की बीमारी होने पर किसी योग्य आंखों के चिकित्सक को दिखाना चाहिए।
  • एक ही अंगुली या सलाई के साथ आंखों में दवाई या काजल नहीं डालना चाहिए।
  • चलती हुई गाड़ी या बस में या पैदल चलते हुए पुस्तक नहीं पढ़नी चाहिए।
  • सिनेमा या टेलीविज़न दूर से देखना चाहिए।
  • प्रतिदिन आंखों को साफ़ पानी के छींटे मारने चाहिए।

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(घ) कानों की सफ़ाई (Cleanliness of Ear)-कानों के द्वारा हम सुनते हैं। कान का पर्दा बहुत नाजुक होता है। यदि इसमें कोई नोकीली चीज़ लग जाए तो वह फट जाता है तथा मनुष्य की सुनने की शक्ति नष्ट हो जाती है। हमें कानों की सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

यदि कानों की सफ़ाई करनी हो तो किसी मोटे तिनके पर सख्त रूई लपेटो। इसे हाइड्रोजन परॉक्साइड में भिगोकर कान में फेरो। इससे कान साफ़ हो जाएगा। ऐसा सप्ताह में एक या दो बार करो।

यदि कानों में से पीव बह रही हो तो एक ग्राम बोरिक एसिड को दो ग्राम ग्लिसरीन में घोलो। रात्रि को सोते समय इस घोल की दो बूंदें कानों में डालो। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन नहाने के बाद कान के बाहर के भाग को पानी से साफ़ करके अच्छी तरह पोंछो।

  • कानों में कोई तीखी या नोकदार वस्तु नहीं घुमानी चाहिए। इस तरह करने से कान का पर्दा फट जाता है और अच्छा भला मनुष्य बहरा हो सकता है।
  • कान में फिन्सी होने से कान में पीव बहने लगती है। इस अवस्था में कानों के डॉक्टर की मदद लेनी चाहिए।
  • कानों की सफ़ाई कानों के डॉक्टर से ही करवानी चाहिए।
  • यदि कान बहने लग जाए तो छप्पर, तालाबों आदि में नहाना नहीं चाहिए।
  • अधिक शोर वाले स्थान पर काम नहीं करना चाहिए।
  • कान पर जोरदार चोट जैसे मुक्का आदि नहीं मारना चाहिए।
  • किसी बीमारी के कारण यदि कान भारी लगे तो डॉक्टर की सलाह अनुसार ही दवाई डालनी चाहिए।

(ङ) नाक की सफ़ाई (Cleanliness of Nose)-प्रतिदिन प्रात:काल और सायंकाल नाक को पानी से साफ़ करना चाहिए। एक नासिका में से जल अन्दर ले जाकर दूसरी नासिका द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए।

(च) दांतों की सफ़ाई (Clean-liness of Teeth)-दांत भोजन के खाने में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। अच्छी तरह से चबा कर खाया भोजन शीघ्र हजम हो जाता है। जब बच्चा पैदा होता है तो कुछ महीने के बाद उसके दांत निकलने आरम्भ हो जाते हैं। ये दांत स्थायी नहीं होते। कुछ वर्षों के बाद दांत टूट जाते हैं। इनको दूध के दांत कहा जाता है। 6 से 12 वर्ष की आयु तक पक्के या स्थायी दांत निकल आते हैं। दांत भी हमारे शरीर का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। किसी ने ठीक ही कहा है, ‘दांत गए तो स्वाद गया।’ दांतों के खराब होने से दिल का रोग भी हो सकता है और मौत भी हो सकती है। इसके अतिरिक्त मुंह से दुर्गन्ध आती रहती है और स्वभाव भी चिड़चिड़ा हो जाता है। यदि दांतों को साफ़ न रखा जाए तो पायोरिया नामक दांतों का रोग लग जाता है। इसलिए दांतों की सम्भाल की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए।

दांतों की सफाई तथा देखभाल इस प्रकार की जानी चाहिए –

  • प्रतिदिन प्रात: उठकर और रात को सोने से पहले दांतों को ब्रुश से साफ़ करना चाहिए। भोजन करने के बाद कुल्ला करना चाहिए।
  • गर्म दूध या चाय नहीं पीनी चाहिए तथा न ही बर्फ और ठण्डी चीज़ों का प्रयोग करना चाहिए।
  • दांतों में पिन आदि कोई तीखी चीज़ नहीं मारनी चाहिए।
  • दांतों के साथ न ही किसी शीशी का ढक्कन खोलना चाहिए तथा न ही बादाम या अखरोट जैसी कठोर चीज़ तोड़नी चाहिए।
  • ब्रुश मसूड़ों के एक ओर से दूसरी ओर करना चाहिए।
  • बिल्कुल खराब दांतों को निकलवा देना चाहिए।
  • भुने हुए दाने, गाजर, मूली आदि चीजें खानी चाहिएं। गन्ना चूसना भी दांतों के लिए लाभदायक है।
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  • दूध का अधिक प्रयोग करना चाहिए।
  • दांत खराब होने पर किसी योग्य दांतों के डॉक्टर से इलाज करवाना चाहिए।
  • मिठाइयां, टॉफियां तथा चीनी नहीं खानी चाहिए।

(छ) नाखूनों की सफ़ाई (Cleanliness of Nails) शरीर के बाकी अंगों की सफ़ाई की तरह ही नाखून की सफ़ाई की भी बहुत आवश्यकता है। नाखूनों की सफ़ाई न रखने का अभिप्राय कई रोगों को निमन्त्रण देना है। नाखून की सफ़ाई के लिए निम्नलिखित बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए

(1) नाखून बढ़ाने नहीं चाहिए। (2) भोजन खाने के पहले और बाद में हाथों को अच्छी तरह धोना चाहिए। (3) नाखूनों को दांतों से नहीं काटना चाहिए। नाखूनों को नेल कटर से काटना चाहिए। (4) नाखूनों को सोडियम कार्बोनेट तथा पानी के घोल में डुबोना चाहिए। (5) हाथों के साथ-साथ पैरों के नाखून भी काटने चाहिएं।

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प्रश्न 6.
स्वास्थ्य की दृष्टि से कोई पांच अच्छी आदतों के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  • हमेशा साफ़ सुथरा और संतुलित भोजन करना चाहिए।
  • शरीर के अंदरूनी अंग (जैसे : दिल, फेफड़े आदि) और बाहरी अंग (हाथ, पैर, आंखें आदि) के बारे जानकारी हासिल करनी और इसकी संभाल करनी चाहिये।
  • आपनी उम्र अनुसार ही संभाल करनी चाहिये।
  • समय-समय पर शरीर की डॉक्टरी जांच करवानी चाहिये।
  • शरीर की ज़रूरत और उम्र अनुसार सैर या कसरत करनी चाहिये।
  • हमेशा नाक से सांस लेनी चाहिए।
  • खुली हवा में रहना चाहिये।
  • ऋतु और मौसम के अनुसार कपड़े पहनने चाहिये।
  • हमेशा खुश रहना चाहिये।
  • हमेशा ठीक तरीके के साथ खड़े होना, बैठना और चलना चाहिये।
  • घर के कपड़ों की सफाई रखनी चाहिये।

Physical Education Guide for Class 6 PSEB स्वास्थ्य Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
विज्ञान की उस शाखा को क्या कहते हैं जो हमें स्वस्थ रहने की शिक्षा देती है ?
उत्तर-
व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान।

प्रश्न 2.
स्वस्थ मन का किस स्थान पर निवास होता है ?
उत्तर-
स्वस्थ शरीर में।

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प्रश्न 3.
यदि चमड़ी (त्वचा) की सफ़ाई न रखी जाए तो कौन-से रोग लग सकते हैं ?
उत्तर-
अन्दरूनी व बाहरी रोग।

प्रश्न 4.
आंखों को शरीर का कैसा अंग माना जाता है ?
उत्तर-
कोमल और कीमती।

प्रश्न 5.
आंखों की सफाई के लिए दिन में कई बार क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
ताज़े पानी के छींटे मारने चाहिए।

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प्रश्न 6.
दांतों की सफाई के लिए हमें प्रतिदिन क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
दातुन अथवा मंजन।

प्रश्न 7.
पढ़ते समय हमें पुस्तक को आंखों से कितनी दूरी पर रखना चाहिए ?
उत्तर-
30 सेंटीमीटर अथवा एक फुट।

प्रश्न 8.
दांतों की सफ़ाई न करने से कौन-सा रोग लग सकता है ?
उत्तर–
पाइरिया।

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प्रश्न 9.
बालों की सफ़ाई न रखने से सिर में क्या पड़ जाता है ?
उत्तर-
जुएं और सीकरी।

प्रश्न 10.
चमड़ी की सफ़ाई के लिए हमें हर रोज़ क्या करना चाहिए?
उत्तर-
नहाना चाहिए।

प्रश्न 11.
नहाने के पश्चात् हमें कैसे कपड़े पहनने चाहिए ?
उत्तर-
साफ़-सुथरे।

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प्रश्न 12.
क्या हमें चलती गाड़ी या बस में बैठ कर पुस्तक आदि पढ़नी चाहिए ?
उत्तर-
नहीं।

प्रश्न 13.
हमें अपने कानों को कैसी वस्तु से साफ़ करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए ?
उत्तर-
पिन अथवा किसी नुकीली तीली से।

प्रश्न 14.
यदि आंख में कोई वस्तु पड़ जाए तो हमें क्या नहीं करना चाहिए ?
उत्तर-
आंखों को मलना नहीं चाहिए।

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प्रश्न 15.
कौन-से पोस्चर में पढ़ना हानिकारक है ?
उत्तर-
लेट कर या नीचे झुक कर।

प्रश्न 16.
कौन-से रोग होने से विशेष ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
खसरा और छोटी माता (चेचक)।

प्रश्न 17.
हमें श्वास मुख अथवा नाक द्वारा लेना चाहिए।
उत्तर-
नाकं द्वारा।

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प्रश्न 18.
दांतों के गिरने के बाद कौन-सी वस्तु चली जाती है ?
उत्तर-
स्वाद।

प्रश्न 19.
कौन-सी आयु में बच्चों के दूध के दांत गिर कर स्थायी दांत आते
उत्तर-
6 से 12 वर्ष तक।

प्रश्न 20.
यदि कानों में मैल जम जाए तो किस वस्तु का प्रयोग करना चाहिए?
उत्तर-
हाइड्रोजन परॉक्साइड।

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प्रश्न 21.
नाखूनों को कौन-सी वस्तु से नहीं काटना चाहिए ?
उत्तर-
मुख से।

प्रश्न 22.
यदि कानों में पीव बहने लगे तो कानों में कौन-से घोल की बूंदें डालनी चाहिए ?
उत्तर-
बोरिक ऐसिड और ग्लिसरीन।

प्रश्न 23.
बढ़े हुए नाखूनों को कैसे काटना चाहिए ?
उत्तर-
नेल कटर के साथ।

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प्रश्न 24.
नाक में छोटे-छोटे बाल कौन-सी वस्तु का काम धूल के लिए करते ।
उत्तर-
जाली का।

प्रश्न 25.
सुन्दर बाल मनुष्य के व्यक्तित्व को कैसा बनाते हैं ?
उत्तर-
अच्छा और प्रभावशाली।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वस्थ रहने के लिए कोई पांच नियम लिखें।
अथवा
व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान के कोई पांच नियम लिखें।
उत्तर-

  1. साफ़-सुथरा व सन्तुलित भोजन खाना चाहिए।
  2. श्वास हमेशा नाक द्वारा लेना चाहिए।
  3. आयु अनुसार नींद लेनी चाहिए।
  4. हमेशा खुश रहना चाहिए।
  5. समय-समय पर डॉक्टरी परीक्षण करवाते रहना चाहिए।

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प्रश्न 2.
हमें हमेशा नाक द्वारा श्वास क्यों लेना चाहिए ?
उत्तर-
हमें हमेशा नाक द्वारा श्वास लेना चाहिए। इसका कारण है कि नाक में छोटेछोटे बाल होते हैं। वायु में रोग कीटाणु और धूल कण इनमें अटक जाते हैं और शुद्ध वायु अन्दर जाती है। यदि हम नाक की बजाए मुंह द्वारा श्वास लेंगे तो रोग के कीटाणु हमारे शरीर में प्रवेश करके हमें रोगी बना देंगे। इसलिए हमें नाक द्वारा श्वास लेना चाहिए।

प्रश्न 3.
चमड़ी की सफ़ाई न करने से हमें क्या नुकसान हो सकते हैं ?
उत्तर-
चमड़ी हमारे शरीर के अन्दरूनी अंगों की रक्षा करती है। यदि चमड़ी की सफ़ाई न की जाए तो पसीना और इसकी बदबूदार वस्तुएं शरीर में जमा हो जाएंगी जिनके कारण अन्दरूनी और बाहरी रोग हो जाते हैं। इसलिए चमड़ी की सफ़ाई रखनी बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 4.
यदि आप के सिर में सीकरी पड़ जाए तो आप उसका क्या उपाय करेंगे ?
उत्तर-
सीकरी का इलाज-यदि सिर में सीकरी पड़ जाए तो 250 ग्राम पानी में एक चम्मच बोरिक पाऊडर डालकर सिर धोना चाहिए। नहाने से पहले बालों में नारियल का तेल लगाना चाहिए। ग्लिसरीन और नींबू लगाकर भी सीकरी से छुटकारा पाया जा सकता है। शिकाकाई और आंवलों को भिगोकर बने घोल के प्रयोग से भी सीकरी समाप्त हो जाती है।

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प्रश्न 5.
दांतों की सफ़ाई हमारे लिए क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
दांत हमारे शरीर का महत्त्वपूर्ण भाग हैं। दांतों के खराब होने से हृदय रोग हो सकता है और मृत्यु भी हो सकती है। इसके अलावा मुंह से बदबू आने लगती है और मनुष्य चिड़चिड़ा हो जाता है। दांतों की सफ़ाई न रखने से पाइरिया रोग नाम की बीमारी लग जाती है। इसलिए दांतों की सफ़ाई ज़रूरी है।

प्रश्न 6.
कपड़ों की सफ़ाई किस तरह की जा सकती है ? इसके क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
कपड़ों की सफ़ाई साबुन, सोडा, सर्फ़ तथा अन्य डिटर्जेंट पाऊडरों से की जा सकती है।
लाभ-कपड़ों की सफ़ाई हो तो मैल के कीटाणु हमारे शरीर से नहीं चिपकते जिससे कि हमारे शरीर के मुसाम बन्द नहीं होते। इस तरह शरीर अपने व्यर्थ पदार्थों का कुछ भाग पसीने आदि से निकालता रहता है, जिससे शरीर निरोग रहता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान किसे कहते हैं ?
उत्तर—
Personal Hygiene शरीर की रक्षा को निजी शरीर सुरक्षा (Personal Hygiene) कहते हैं। यह दो शब्दों के मेल से बना है। Personal और Hygiene | ‘Personal’ अंग्रेज़ी का शब्द है जिसका अर्थ है निजी या व्यक्तिगत । ‘Hygiene’ यूनानी भाषा के शब्द Hygeineous से पैदा हुआ है। जिसका भाव है आरोग्यता की देवी। आजकल Hygiene का अर्थ जीवन जांच से लिया जाता है। आरोग्यता कायम रखने के लिए शरीर विज्ञान का ज्ञान प्राप्त करना ज़रूरी है।

“निजी स्वास्थ्य, स्वास्थ्य शिक्षा का वह भाग है जिससे मनुष्य सारे पक्षों से वातावरण के साथ सुमेल कायम करके शारीरिक और मानसिक विकास कायम कर सके और उनका विकास कर सके।” एक व्यक्ति के लिए स्वास्थ्य उतना ही आवश्यक है जितनी कि पुष्प (फूल) के लिए सुगन्ध । इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए। हमें स्वस्थ रहने में व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान बहुत सहायता देता है। व्यक्तिगत स्वास्थ्य विज्ञान, विज्ञान की वह शाखा है जो हमें नीरोग रहने के नियमों के बारे में जानकारी देती है। सत्य तो यह है कि इसमें व्यक्तिगत नीरोगता की वह अमृत धारा है जिसके नियमों का पालन करके मनुष्य स्वस्थ रह सकता है।

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प्रश्न 2.
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए ?
उत्तर-
व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए हमें निम्नलिखित नियमों का पालन करना चाहिए –

  • सदा साफ-सुथरा और सन्तुलित भोजन करना चाहिए।
  • शरीर के आन्तरिक अंगों (जैसे दिल, फेफड़े आदि) तथा बाह्य अंगों (हाथ, पैर, आंखें आदि) के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए तथा इनकी संभाल करनी चाहिए।
  • अपनी आयु के अनुसार पूरी नींद लेनी चाहिए।
  • समय-समय पर शरीर की डॉक्टरी परीक्षा करवानी चाहिए।
  • शरीर की आवश्यकता तथा आयु के अनुसार सैर या व्यायाम (कसरत) करनी चाहिए।
  • सदा नाक के द्वारा ही सांस लेनी चाहिए।
  • खुली हवा में रहना चाहिए।
  • ऋतु और मौसम के अनुसार वस्त्र पहनने चाहिए।
  • सदा प्रसन्न रहना चाहिए।
  • सदा ठीक प्रकार से खड़े होना, बैठना तथा चलना चाहिए।
  • घर और कपड़ों की सफ़ाई रखनी चाहिए।

प्रश्न 3.
बालों को साफ़ न रखने से क्या हानियां होती हैं ?
उत्तर-
बालों को साफ़ न रखने से हानियां-यदि बालों को अच्छी तरह साफ़ न. रखा जाए तो कई प्रकार के बालों और त्वचा के रोग लग जाते हैं। ये रोग नीचे लिखे हैं
1. सिकरी (Dandruf)-सिकरी खुश्क त्वचा के मरे हुए अंश होते हैं। इन अंशों में साबुन और मिट्टी इकट्ठे हो जाते हैं। सिकरी से सिर की त्वचा में रोगाणु पैदा हो जाते हैं।

इलाज (Treatment)-सिर में सिकरी अधिक होने की दशा में 250 ग्राम पानी में एक चम्मच बोरिक पाऊडर डालकर सिर को धोना चाहिए। नहाने से पहले बालों में नारियल का तेल लगाना चाहिए। नींबू तथा ग्लिसरीन लगाकर भी सिकरी से छुटकारा पाया जा सकता है। शिकाकाई और ओलों को भिगोकर बने घोल के प्रयोग से भी सिकरी समाप्त हो जाती है।

2. जुएं पैदा होना (Lice) बालों की सफ़ाई न रखने पर सिर में जुएं पैदा हो जाती हैं। एक जूं एक बार कोई 300 अंडे देती है। दो सप्ताहों के बाद ये जुएं और अण्डे देने के योग्य हो जाती हैं। दैनिक सफ़ाई के अतिरिक्त नीचे लिखी बातों का ध्यान रखने से सिर में जुएं नहीं पैदा होंगी –

  • किसी दूसरे व्यक्ति की कंघी, ब्रुश, सिर की जाली, रूमाल, पगड़ी, टोपी आदि का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • बस की सीट या सिनेमा हाल की कुर्सी की पीठ के साथ अपना सिर लगा कर नहीं बैठना चाहिए।
  • बालों को कंघी करने के बाद कंघी,को किसी ऐसी जगह रखना चाहिए जहां मिट्टी न पड़े।

3. बालों का गिरना (Felling of Hair) बालों की सफ़ाई न रखने से बाल कमज़ोर होकर गिरने लगते हैं। बालों के गिरने की रोकथाम के लिए प्रतिदिन बालों की सफ़ाई रखनी चाहिए तथा साथ ही अच्छा भोजन खाना चाहिए। इसके अतिरिक्त सख्त साबुन या सुगन्धित तेल का कम प्रयोग करना चाहिए।

4. बालों का सफ़ेद होना (Change in Colour)-जुकाम या अच्छी खुराक की कमी के कारण बाल जल्दी ही सफ़ेद हो जाते हैं। इसलिए बालों को सफ़ेद होने से रोकने के लिए सन्तुलित और पौष्टिक भोजन करना चाहिए। रोज़ शारीरिक सफ़ाई रखनी चाहिए।

PSEB 6th Class Physical Education Solutions Chapter 1 स्वास्थ्य

प्रश्न 4.
नाक के बालों के क्या लाभ हैं और नाक की सफ़ाई कैसे की जाती है ?
उत्तर-
नाक के बालों के लाभ (Advantages of Hair in Nostril)-हम नाक द्वारा श्वास लेते हैं। नाक में छोटे-छोटे बाल होते हैं। इन बालों के अधिक लाभ होते हैं। ये बाल धूल आदि के लिए जाली का काम करते हैं। वायु में धूल कण और बीमारी के जर्म होते हैं। जब हम नाक द्वारा सांस लेते हैं तो यह धूल, कण और जर्म नाक के बालों में अटक जाते हैं और हमारे भीतर शुद्ध वायु प्रवेश करती है। यदि नाक में यह बाल न हों तो वायु में मिली धूलकण और जर्म हमारे भीतर चले जाएंगे जिस से हमें कई प्रकार के रोग लग सकते हैं। इसलिए नाक के बालों को काटना या उखाड़ना नहीं चाहिए।

नाक की सफाई (Cleanliness of Nose)-प्रतिदिन प्रातःकाल और सायंकाल नाक को पानी से साफ़ करना चाहिए। एक नासिका में से जल अन्दर ले जाकर दूसरी नासिका द्वारा बाहर निकाल देना चाहिए।

प्रश्न 5.
पैरों की सफाई कैसे की जाती है ?
उत्तर-
पैरों की सफाई (Cleanliness of Feet)

  • पैरों की सफाई की तरफ़ भी विशेष ध्यान रखना चाहिए जैसे हम अपने शरीर के दूसरे अंगों की सफाई की तरफ ध्यान देते हैं। सुबह नहाते समय पैरों को और उंगलियों के बीच स्थान को अच्छी तरह साफ़ कर लेना चाहिए।
  • रात को सोने से पहले भी पैरों को धो कर अच्छी तरह साफ़ कर लेना चाहिए।
  • पैरों के लिए बूट या चप्पल लेते समय पैरों की बनावट और माप का विशेष ध्यान रखना चाहिए। जूती या बूट आरामदायक और ठीक साइज़ के खुले होने चाहिए।
  • यदि पैरों में खारिश, दाद, चंबल आदि के रोग लगे हों तो नाइलोन की जुराबें नहीं पहननी चाहिए।
  • नंगे पांव कभी घूमना नहीं चाहिए।
  • पांवों के नाखून भी समय समय काटते रहना चाहिए।
  • पांवों के नीचे और ऊपर ग्लिसरीन अथवा सरसों के तेल का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 6.
हाथों की सफ़ाई कैसे रखी जा सकती है ?
उत्तर-
हाथों की सफ़ाई (Clealiness of Hands)

  • हाथों को साबुन और पानी के साथ दो बार धोकर भोजन खाना चाहिए।
  • हाथों को सदा नर्म और मुलायम रखने का यत्न करना चाहिए।
  • हाथों या उंगलियों में लाइनों या खुरदरेपन को ग्लेसरीन या किसी अच्छी किस्म की क्रीम से दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए।
  • हाथों को साबुन और साफ़ पानी से धोना चाहिए जिस से छूत की बीमारियों जैसे टाइफाइड, पेचिश और हैज़ा आदि हाथों से न फैल सकें। अगर हाथ साफ़ न किए जाएं तो हाथों की मैल जिसमें कई तरह के कीटाणु होते हैं, पेट में चले जाते हैं।

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रिक्त स्थानों की पूर्ति-

प्रश्न-
निम्नलिखित वाक्यों में दिए गए खाली स्थानों की कोष्ठक (ब्रैकट) में दिए शब्दों में से उचित शब्द चुन कर भरो –

(1) आंखों की सफ़ाई के लिए हमें दिन में कई बार ……. के छींटे मारने चाहिएं। . (ठण्डे पानी, कोसे पानी)
(2) पढ़ते समय पुस्तक को आंखों से कम-से-कम …….. दूर रखना चाहिए। (45 सेंटीमीटर, 30 सेंटीमीटर)
(3) हमें सदा …….. द्वारा सांस लेनी चाहिए। (मुंह, नाक)
(4) कानों में जमी हुई मैल को निकालने के लिए …….. का प्रयोग करना चाहिए। (सोडियम क्लोराइड, हाइड्रोजन परॉक्साइड)
(5) नाखूनों को ……… काटना नहीं चाहिए। (मुंह से, नेल कटर से)
(6) ……… की आयु तक के बच्चों के दूध के दांत गिर जाते हैं। (3 साल से, 5 साल से, 6 साल से, 12 साल)
(7) हमें कभी भी ………. नहीं पढ़ना चाहिए। (बैठ कर, लेट कर)
(8) नाक के बीच वाले छोटे-छोटे बाल ………. का काम करते हैं। (नाली, जाली)
(9) दांतों की सफ़ाई न रखने पर ………. नामक रोग हो जाता है। (हिस्टीरिया, पाइरिया)
(10) नहाने के बाद हमें ………. कपड़े से पहनने चाहिएं। (गन्दे, साफ़-सुथरे)
उत्तर-

  1. ठण्डे पानी
  2. 30 सेंटीमीटर
  3. नाक
  4. हाइड्रोजन परॉक्साइड
  5. मुंह से
  6. 6 साल से 12 साल
  7. लेट कर
  8. जाली
  9. पाइरिया
  10. साफ़ सुथरे

जूडो (Judo) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions जूडो (Judo) Game Rules.

जूडो (Judo) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. जूडो मैदान का आकार = वर्गाकार
  2. जूडो मैदान की एक भुजा की लम्बाई = 10 मीटर
  3. अधिकारियों की संख्या = तीन (1 रैफ़री, 2 जज, 1 स्कोरर)
  4. पोशाक का नाम = जुडोगी
  5. जूडो के भारों की गिनती = 8 पुरुषों के लिए
  6. जूडो के भारों की गिनती = 7 स्त्रियों के लिए
  7. जूडो के भारो की गिनती = 8 जूनियर के लिए
  8. जूडो खेल का समय = 10 ओर 20 मिनट
  9. जूडो के मैदान का नाम = सिआइजो
  10. प्लेटफार्म को कवर करने के लिए टुकड़ों की गिनती = 50, कम-से-कम 16 × 16 मी०
  11. मैदान का कुल क्षेत्र = अधिक-से-अधिक 14 × 14 मी० 128 मैट, कम से कम 98 मैट
  12. प्रत्येक मैट के टुकड़े का आकार = 1 × 2 मीटर
  13. जूडो खिलाड़ियों को एक-दूसरे से खड़े होने की दूरी = 4 मीटर
  14. खतरनाक ज़ोन = 1 मीटर

ऐम बी डी स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा जूडो खेल की संक्षेप रूप-रेखा
(Brief outline of the Judo Game)

  1. जूडो प्रतियोगिता रैफरी के Hajime शब्द कहने से आरम्भ होती है।
  2. खिलाड़ी अंगूठी, कड़ा आदि नहीं पहन सकते और न ही उनके पैरों तथा हाथों के नाखून बढ़े होने चाहिएं।
  3. रैफरी के ‘ओसाई कोमी तोकेता’ कहने से पकड़ हट जाती है।
  4. यदि कभी जज रैफरी के निर्णय से सहमत न हो तो वह रैफरी को अपना सुझाव दे सकता है। रैफरी ठीक समझे तो वह जज के फैसले को मान सकता है।
  5. जूडो प्रतियोगिता की अवधि 3 मिनट से 20 मिनट हो सकती है।
  6. जूडो प्रतियोगिता में पेट का दबाना या सिर या गर्दन को सीधा टांगों से दबाना फाऊल है।
  7. जूडो प्रतियोगिता में यदि कोई खिलाड़ी भाग लेने से इन्कार कर देता है उसके विरोधी खिलाड़ी की त्रुटि के कारण (By Fusangachi) विजयी घोषित किया जाता है।
  8. यदि कोई खिलाड़ी मुकाबले में अपने विरोधी खिलाड़ी की ग़लती से घायल हो जाए तो घायल को विजयी घोषित किया जाता है।

जूडो (Judo) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
जूडो खेल का क्रीडा क्षेत्र, पोशाक, अधिकारी और खेल के मुख्य नियम लिखें।
उत्तर-
क्रीड़ा क्षेत्र (Play Ground) जूडो के क्रीड़ा क्षेत्र को शिआाजो कहते हैं। यह एक वर्गाकार प्लेटफार्म होता है। इसकी प्रत्येक भुजा 30 फुट होती है। यह प्लेटफार्म भूमि से कुछ ऊंचाई पर होता है। इसको टाट के 50 टुकड़ों या कैनवस से ढका जाता है। प्रत्येक टुकड़े का आकार 3 इंच × 6 इंच होता है।
जूडो (Judo) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
अधिकारी (Officials)-जूडो में प्राय: तीन अधिकारी होते हैं। इनमें से एक रैफ़री और दो जज होते हैं। बाऊट (Bout) को रैफरी आयोजित करता है। उसका निर्णय अन्तिम होता है। इसके विरुद्ध अपील नहीं हो सकती, वह प्रतियोगिता क्षेत्र में रह कर खेल प्रगति का ध्यान रखता है।
जूडो (Judo) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
पोशाक (Costume)खिलाड़ी की पोशाक को जूडोगी कहते हैं जूडोगी में एक जैकेट, पायजामा तथा एक पेटी होती है। जूडोगी न होने की अवस्था में खिलाड़ी ऐसी पोशाक धारण कर सकता है जिसकी पेटी इतनी लम्बी हो कि शरीर के गिर्द दो बार आ सके तथा वर्गाकार गांठ (Knot) लगाने के पश्चात् 3″ के सिरे बच जाएं। जैकेट भी इतनी लम्बी हो जिसके साथ पेटी बांधने के पश्चात् भी कूल्हे (Hip) ढके जा सकें। इसके बाजू खुले होने चाहिएं। कफ तथा बाजुओं के मध्य 11/4 का फासला होना चाहिए तथा ये आधी भुजा तक लटकनी चाहिए। पायजामा भी काफी खुला होना चाहिए। खिलाड़ी अंगूठी, हार, मालाएं आदि नहीं पहन सकते क्योंकि इससे चोट लगने का भय रहता है। खिलाड़ियों के हाथों की अंगुलियों के नाखून कटे होने चाहिएं।
प्रतियोगिता की अवधि (Duration of the Competition) मैच के लिए समय की अवधि 3 मिनट से 20 मिनट तक हो सकती है। विशेष दशाओं में इस अवधि में कमी या वृद्धि की जा सकती है।

प्रश्न
जडो प्रतियोगिता का आरम्भ कैसे किया जाता है ? जडो प्रतियोगिता के भिन्न-भिन्न नियमों का वर्णन करें।
उत्तर-
जूडो प्रतियोगिता का आरम्भ (Starting of Judo Competition)प्रतियोगी खिलाड़ी एक-दूसरे से 12 फुट की दूरी पर खड़े होने चाहिएं। उनके मुंह एकदूसरे के सामने होने चाहिएं। वे एक-दूसरे को खड़े ही खड़े झुक कर सलाम (Salute) कहते हैं। इसके पश्चात् रैफरी “हाजीमै” (Hajime) शब्द कह कर बाऊट आरम्भ करवा देता है। हाजीमै का अर्थ है, शुरू करो।
जूडो की विधियां (Judo Techniqes)—जूडो में अग्रलिखित दो विधियां अपनाई जाती हैं—

  1. नागेबाज़ा (गिराने की तकनीक)
  2. काटनेबाज़ा (ग्राऊंड वर्क की तकनीक)

निर्णय देते समय इन दोनों प्रकार की तकनीकों को ध्यान में रखा जाता है। प्रायः निर्णय एक ‘ज्ञप्पन’ अंक से अधिक नहीं दिया जाता।

  1. फेंकने की तकनीक में कुछ प्रगति करने के पश्चात् खिलाड़ी बेझिझक लेटने की स्थिति ग्रहण कर सकता है तथा इस प्रकार वह Offensive में आ जाता है।
  2. फेंकने की तकनीक अपनाते हुए जब कोई प्रतियोगी पड़ता है या प्रतियोगी Offensive ले लेता है तथा जब विरोधी खिलाड़ी गिर पड़ता है तो भी खिलाड़ी लेटने की स्थिति ले सकता है।
  3. खड़े होने की दशा में ग्राऊंड-वर्क तकनीकी अपनाने के पश्चात् जब खिलाड़ी कुछ प्रगति कर लेता है तो वह भी बिना झिझक लेटवीं स्थिति ग्रहण करके Offensive पर आ सकता है।
  4. जब एक या दोनों खिलाड़ी प्रतियोगिता क्षेत्र से बाहर हों तो कोई भी प्रयोग की गई तकनीक निष्फल एवं अवैध घोषित की जाती है।
  5. फेंकने की तकनीक उसी समय पर वैध होती है जब तक फेंकने वाले तथा उसके विरोधी का अधिक-से-अधिक शरीर प्रतियोगिता क्षेत्र में रहता है।
  6. खिलाड़ियों के प्रतियोगिता के क्षेत्र से बाहर चले जाने पर और पकड़ लिए जाने पर रैफ़री ‘सोनोमाना’ शब्द कहता है। सोनोमाना का अर्थ है ‘ठहर जाओ’। रैफरी उन्हें खींच कर प्रतियोगिता क्षेत्र में ले आता है, उनकी स्थिति लगभग वही रहती है, खेल पुनः आरम्भ करने के लिए रैफ़री योशी कहता है, सोनोमाना और योशी के बीच का समय काट लिया जाता है।
  7. किसी खिलाड़ी के फेंकने या ग्राऊंड-वर्क की तकनीक में सफल होने पर इसे ‘इप्पन’ (एक प्वांइट) दिया जाता है और मुकाबला बन्द कर दिया जाता है। रैफ़री विजेता का हाथ ऊंचा उठा कर निर्णय देता है।
  8. जब प्वाइंट बनता दिखाई देता है तो रैफ़री “वाजाअरी” शब्द का उच्चारण करता है, यदि फिर वही खिलाड़ी ‘वाजाअरी’ प्राप्त कर ले तो रैफ़री ‘वाजाअरी’ आवासेत इप्पन (अर्थात् एक प्वाइंट दो तकनीकों से) कहता है और उस खिलाड़ी को विजयी घोषित कर दिया जाता है।
  9. जब रैफ़री ‘ओसाइकोमी’ अर्थात् पकड़ की घोषणा करता है और पकड़ छूट जाती है तो वह ओसाइकोमी तोकेता’ शब्द का उच्चारण करता है। इसका अर्थ है कि पकड़ टूट गई है।
  10. यदि जज रैफरी से निर्णय के असहमत हो तो वह रैफरी को अपना सुझाव भेज सकता है। रैफ़री यदि उचित समझे तो जज के सुझाव को स्वीकार कर सकता है परन्तु रैफ़री का निर्णय अन्तिम होता है।
  11. जब कोई मुकाबला अनिर्णीत रह जाए और समय समाप्त हो जाए तो रैफ़री कहता है SOREMADE इसका अर्थ है ‘बस’।
  12. मुकाबला समाप्त होने पर दोनों जजों का निर्णय लिया जाता है। रैफ़री दोनों जजों के बहु-समर्थन से अपना निर्णय घोषित करता है, वह Yuseigachi (विजय श्रेष्ठता के कारण) या Hikiwake (बराबर) कहता है।
  13. मैच के अन्त में दोनों खिलाड़ी अपनी पहली स्थिति ग्रहण कर लेते हैं तथा रैफ़री द्वारा विहसल बजाने पर एक-दूसरे की ओर मुंह करके खड़े हो जाते हैं।

कुछ अनुचित कार्य (Some Donts)—

  1. पेट को भींचना या सिर या गर्दन को टांगों के बीच लेकर मरोड़ना ‘Do jime’ ।
  2. Kasetsue Waza तकनीक से जोड़ों के ऊपर कुहनी के अतिरिक्त उतारना।
  3. कोई निश्चित तकनीक अपनाए बिना विरोधी खिलाड़ी को लेटवीं स्थिति में धकेलना।
  4. जिस टांग पर आक्रामक खिलाड़ी खड़ा है उसे कैंची मारना।
  5. जो खिलाड़ी पीठ के बल लेटा हो उसे उठा कर मैट पर फेंकना।
  6. विरोधी खिलाड़ी की टांग को खड़े होने की स्थिति में खींचना ताकि लेटवीं स्थिति में हो सके।
  7. विरोधी खिलाड़ी की कमीज़ के बाजुओं या पायजामे में अंगुलियां डाल कर उन्हें पकड़ना।
  8. पीछे से चिपके हुए विरोधी खिलाड़ी पर जानबूझ कर पीछे की ओर गिरना।
  9. लेटे हुए खिलाड़ी द्वारा खड़े खिलाड़ी की गर्दन पर कैंची मारना, पीठ तथा बगलों को मरोड़ना या फिर जोड़ों को लॉक लगाने वाली तकनीकी Kansetsuewaza अपनाना।
  10. कोई ऐसा कार्य करना जिससे विरोधी खिलाड़ी को हानि पुहंचे या भय का कारण बने।
  11. जानबूझ कर स्पर्श या पकड़ से बचने की चेष्टा करना, यदि कोई काम सिरे न चढ़ सके।
  12. पराजित होते समय सुरक्षा का आसन (Posture) धारण करना।
  13. विरोधी के मुंह की ओर हाथ या पैर सीधे रूप से बढ़ाना।
  14. ऐसी पकड़ या लॉक लगाना जिससे विरोधी खिलाड़ी की रीढ़ की हड्डी के लिए संकट पैदा हो जाए।
  15. जानबूझ कर प्रतियोगिता क्षेत्र से बाहर निकलना या अकारण ही विरोधी को बाहर की ओर धकेलना।
  16. रैफ़री की अनुमति के बिना बैल्ट या जैकेट के बाजू पकड़ना।
  17. विरोधी खिलाड़ी की बैल्ट या जैकेट के बाजू पकड़ना।
  18. अनावश्यक इशारे करने, आवाजें करना या चीखना।
  19. ऐसे ढंग से खेलना जिससे जूडो खेल की समूची आत्मा को ठेस पहुंचे।
  20. निरन्तर काफ़ी समय तक अंगुलियां फंसा कर खड़े रहना।

विशेष निर्णय (Special Decisions)—

  1. जब कोई खिलाड़ी प्रतियोगिता में भाग लेने से इन्कार कर देता है तो विरोधी खिलाड़ी को Fusen Sho (Win by Default) अर्थात् त्रुटि के कारण विजयी माना जाता है।
  2. जब कोई खिलाड़ी रैफरी चेतावनी का बार-बार उल्लंघन करता है अथवा चेतावनी के पश्चात् भी वर्जित कार्य को बार-बार करता है उसे Honsakumake अर्थात् नियम उल्लंघन के कारण पराजित माना जाता है।
  3. घायल होने की अवस्था में यदि कोई खिलाड़ी प्रतियोगिता में भाग लेने में समर्थ नहीं रहता तो निर्णय इस प्रकार दिया जाता है
    • यदि कोई खिलाड़ी विरोधी खिलाड़ी की ग़लती के कारण घायल हुआ है तो घायल खिलाड़ी को विजयी घोषित किया जाता है।
    • यदि कोई अपनी ही ग़लती से घायल हुआ हो तो विरोधी खिलाड़ी को विजयी घोषित किया जाता है।
      JUDO WEIGHT CATEGORIES
      जूडो (Judo) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
      Men = Total of Eight Categories
      Women = Total of Seven Categories
      Junior = Total of Eight Categories

जूडो (Judo) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

PSEB 10th Class Physical Education Practical जूडो (Judo)

प्रश्न 1.
जूडो के क्रीडा क्षेत्र को क्या कहा जाता है?
उत्तर–
शियागो।

प्रश्न 2.
जूडो का खेल कैसे आरम्भ होता है?
उत्तर-
रैफ़री के Hafione शब्द कहने से खेल आरम्भ होती है।

प्रश्न 3.
जूडो प्रतियोगिता की अवधि कितनी होती है ?
उत्तर-
3 से 20 मिनट तक हो सकती है।

जूडो (Judo) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 4.
जूडो प्लेटफार्म का आकार कैसा होता है ?
उत्तर-
वर्गाकार।

प्रश्न 5.
जूडो प्लेटफार्म की प्रत्येक भुजा की लम्बाई कितनी होती है ?
उत्तर-
30 फुट।

प्रश्न 6.
प्लेटफार्म को ढकने वाले मैट के टुकड़ों की संख्या तथा आकार क्या होता है ?
उत्तर-
मैट के टुकड़ों की संख्या 50 तथा आकार 3′ × 6′ होता है।

जूडो (Judo) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 7.
जूडो प्रतियोगिता में कितने अधिकारी होते हैं ?
उत्तर-
रैफ़री-1, जज-2.

प्रश्न 8.
जूडो प्रतियोगिता में भारों का वर्णन करो।
उत्तर-
जूडो प्रतियोगिता में निम्नलिखित भार होते हैं—

Men Women
upto 50 Kg upto 44 Kg
upto 55 Kg upto 48 Kg
upto 60 Kg upto 52 Kg
upto 65 Kg upto 56 Kg
upto 71 Kg upto 61 Kg
upto 78 Kg upto 66 Kg
upto 86 Kg upto + 66 Kg
upto + 86 Kg

Men = Total of Eight Categories
Women = Total of Seven Categories

PSEB 6th Class Home Science Practical विभिन्न प्रकार के चूल्हे

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Practical विभिन्न प्रकार के चूल्हे Notes.

PSEB 6th Class Home Science Practical विभिन्न प्रकार के चूल्हे

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
चूल्हा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
कोई भी ऐसी चीज़ जिसमें आग जलाकर भोजन पकाया जाए, उसको चूल्हा कहते हैं।

प्रश्न 2.
अंगीठी कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
अंगीठी दो प्रकार की होती है।

प्रश्न 3.
हैदराबादी या धुआँ रहित चूल्हा की खोज किसने की ?
उत्तर-
डॉक्टर राजू ने।

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प्रश्न 4.
ठोस ईंधन के अन्तर्गत कौन-कौन से ईंधन आते हैं ?
उत्तर-
लकड़ी, उपलें, लकड़ी का कोयला, पत्थर का कोयला (कोक)।

प्रश्न 5.
गाँवों में अधिकतर किस प्रकार के ईंधन का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर-
लकड़ी तथा उपलों का।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
हैदराबादी या धुआँ रहित चूल्हा के बारे में तुम क्या जानते हो? सचित्र वर्णन करो।
उत्तर-
हैदाराबादी चूल्हे में लकड़ी या पत्थर का कोयला प्रयोग करते हैं। इसमें ईंधन कम खर्च होता है, क्योंकि थोड़ा-सा सेंक भी व्यर्थ नहीं जाता है। यह चूल्हा हैदराबाद के डॉ० राजू की खोज है। इसीलिए इसको हैदराबादी या डॉ० राजू का धुआँ रहित चूल्हा कहते हैं। इसका धुआँ चिमनी के रास्ते बाहर निकलता है। इसकी आकृति अंग्रेज़ी के अक्षर L की तरह होती है।
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चित्र 1.1. हैदराबादी चूल्हा

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प्रश्न 2.
देसी चूल्हा क्या है? इसके जलाने की विधि एवं सावधानी लिखो।
उत्तर-
गाँव के प्रत्येक घर में ईंट और मिट्टी का बना चूल्हा खाना बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसे देसी चूल्हा कहते हैं।
जलाने की विधि-किसी पुराने फटे कपड़े, फूस के कागज़ को आग लगाकर चूल्हे में रखकर ऊपर पतली लकड़ियाँ रखकर आग लगाई जाती है।
सावधानी-

  1. कपड़ा या कागज़ हाथ में पकड़कर आग लगाते हुए यह ध्यान रखना चाहिए कि हाथ जल न जाए।
  2. लकड़ियों पर ज़्यादा मिट्टी का तेल नहीं डालना चाहिए।

प्रश्न 3.
पम्प वाले स्टोव के बारे में तुम क्या जानते हो लिखो। सावधानियाँ बताओ।
उत्तर-
पम्प वाले स्टोव भी तेल से जलाये जाते हैं। इसमें तेल डालने के लिए एक टंकी होती है जिसमें तेल भर दिया जाता है। टंकी के बीच में ऊपर से एक बरनर लगा रहता है तथा पम्प के द्वारा हवा भर दी जाती है। हवा भरने में तेल की गैस बनकर एक छोटे से छिद्र के द्वारा बाहर निकलती है। ताप को नियन्त्रित करने के लिए बरनर के ऊपर एक कटोरी लगी होती है। स्टोव में तीन स्टैंड होते हैं जिसके ऊपर एक जाली जैसा तवा रहता है।
PSEB 6th Class Home Science Practical विभिन्न प्रकार के चूल्हे 2
चित्र 1.2. पम्प वाला स्टोव
सावधानियाँ-

  1. हवा भरते समय पम्प सावधानी से प्रयोग करना चाहिए।
  2. स्टोव जलाते समय लाइटर के साथ बरनर को गर्म करने के बाद ही पम्प से हवा भरनी चाहिए।
  3. यदि पम्प करते समय छेद बन्द हो तो पिन मारकर छेद को खोल लेना चाहिए।
  4. स्टोव प्रत्येक दिन साफ़ करना चाहिए।
  5. हमेशा मिट्टी के साफ़ तेल का प्रयोग करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
ईंधन के रूप में उपले जलाने से लाभ तथा हानियों का उल्लेख करो।
उत्तर-
उपलों से लाभ यह है कि ये अन्य ईंधन से सस्ते पड़ते हैं तथा इनको बनाने के लिए ज़्यादा परिश्रम भी नहीं करना पड़ता।
उपलों से हानि यह है कि ये लकड़ी के समान ही धुआँ देते हैं जो रसोई में फैल जाता है। बर्तन तथा रसोई इसके कारण काले हो जाते हैं। इनको इकट्ठा करके रखना स्वास्थ्य की दृष्टि से हानिकारक होता है, क्योंकि बरसात के दिनों में इनसे मच्छर उत्पन्न हो जाते हैं जो मलेरिया रोग फैलाते हैं।

प्रश्न 5.
ईंधन के रूप में लकड़ी जलाने से लाभ तथा हानियाँ बताओ।
उत्तर-
लकड़ी जलाने से लाभ-लकड़ी जलाने से एक लाभ यह है कि यह अन्य ईंधन की अपेक्षा सस्ती मिलती है और इसलिए अधिकतर घरों में जलायी जाती है। यह ताप उत्पन्न करने का उपयोगी एवं सुविधाजनक साधन है।

लकड़ी जलाने से हानियाँ-लकड़ी जलाने से रसोई में धुआँ फैलता है। बर्तन धुएँ के कारण काले हो जाते हैं। धुएँ के कारण दम घुटने लगता है। आँखों से पानी बहने लगता है। धुआँ होने से रसोई की दीवारें आदि खराब हो जाती है। अतः धुएँ से बचने के लिए चूल्हे के ऊपर चिमनी की व्यवस्था होनी चाहिए।

प्रश्न 6.
लकड़ी के कोयले को ईंधन के रूप में प्रयोग करने से क्या लाभ तथा क्या हानियाँ हैं?
उत्तर-
लकड़ी के कोयले पर खाना पकाने से धुएँ की हानियों से बचा जा सकता है और बर्तन भी ज्यादा काले नहीं होते।
लकड़ी के कोयले से हानि यह है कि जल्दी ही इसकी राख बन जाती है और इसका उपयोग लकड़ी की अपेक्षा अधिक महँगा है।

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प्रश्न 7.
पत्थर के कोयले को ईंधन के रूप में प्रयोग करने से लाभ तथा हानि बताओ।
उत्तर-
पत्थर के कोयले से लाभ यह है कि ये देर तक सुलगते हैं तथा जल जाने के बाद धुआँ भी नहीं देते और इसके ताप से बर्तन भी काले नहीं होते।

इससे हानि यह है कि यह कोयला जलकर कार्बन मोनोऑक्साइड (Carbon monoxide) गैस उत्पन्न करता है। दरवाजे, खिड़कियाँ यदि बन्द रह जाएँ तो इस गैस का ज़हरीला प्रभाव पड़ता है और गैस से दम घुटने लगता है। यहाँ तक कि कभी-कभी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने की सम्भावना भी रहती है। अतः इसे जलाकर खिड़की व दरवाज़ों को खोलकर रखना चाहिए जिससे गैस का निकास हो सके।

प्रश्न 8.
स्टोव के प्रयोग से क्या लाभ तथा हानियाँ हैं?
उत्तर-
बिना बत्ती वाले अर्थात् गैस के स्टोव से लाभ यह है कि यह अधिक ताप देता है तथा भोजन जल्दी पक जाता है। यह तेल की बदबू एवं धुआँ नहीं देता। इसमें तेल कम खर्च होता है तथा श्रम की बचत होती है।
PSEB 6th Class Home Science Practical विभिन्न प्रकार के चूल्हे 3
चित्र 1.3. बत्ती वाला स्टोव
इससे हानि यह है कि गैस का दबाव बढ़ने से कभी-कभी इसके फटने का डर रहता है। बत्ती वाले स्टोव से लाभ यह है कि इसे जलाने में आसानी रहती है। लेकिन यह स्टोव तेल की बदबू एवं धुआँ देता है। यदि इसे असावधानी से प्रयोग किया जाये तो इसके खराब होने का डर रहता है। अतः इसकी बत्तियों को समय-समय पर काटते रहना चाहिए। तेल को छानकर टंकी में डालना चाहिए। टंकी में तेल भरा रहना चाहिए। बत्तियाँ छोटी-छोटी हो गई हों या बरनर खराब हो गया हो तो बदलते रहना चाहिए। स्टोव में तेल भर कर उसे बाहर से पोंछ देना चाहिए तथा इसकी समय-समय पर सफ़ाई करवाते रहना चाहिए।

प्रश्न 9.
ईंधन के रूप में गैस का प्रयोग किस प्रकार लाभदायक है ? इससे क्या हानि होती है?
उत्तर-
गैस से लाभ यह है कि ईंधन का यह एक सुविधाजनक साधन है, इससे धुआँ नहीं फैलता, श्रम एवं समय की बचत होती है, रसोई गन्दी नहीं होती तथा इसे जलाने तथा इसमें खाना बनाने में अधिक समय खर्च नहीं होता।
इससे हानि यह है कि ज़रा सी असावधानी से गैस के सिलिन्डर फटने का डर रहता है। परन्तु अब ऐसे प्रबन्ध किए गए हैं कि गैस सिलिन्डर अधिक सुरक्षित हैं।

PSEB 6th Class Home Science Practical विभिन्न प्रकार के चूल्हे

विभिन्न प्रकार के चूल्हे PSEB 6th Class Home Science Notes

  • कोई भी ऐसी चीज़ जिसमें आग जलाकर भोजन पकाया जाए, उसको चूल्हा कहते |
  • अंगीठी दो प्रकार की होती है
    • कोयले वाली
    • बूरे वाली (बुरादे वाली)।
  • हैदराबादी या धुआँ रहित चूल्हा की खोज डॉक्टर राजू ने की।
  • तेल के स्टोव भी दो प्रकार हैं-
    • पम्प वाला
    • एक या अधिक बत्तियों वाला।
  • स्टोव जलाते समय लाइटर के साथ बरनर को गर्म करने के बाद ही पम्प से हवा । भरनी चाहिए। |
  • रोटी बनाते समय ढीले-ढाले और आरामदायक कपड़े पहनना चाहिए।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 4 डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 4 डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त

PSEB 10th Class Home Science Guide डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
डिज़ाइन के मूल अंश कौन-कौन से हैं? नाम बताएं।
उत्तर-
जब कोई भी वस्तु बनाई जाती है तो उसका नमूना भाव डिज़ाइन बनता है। यद्यपि यह वस्तु कुर्सी, मेज़ हो या मकान। एक अच्छा डिज़ाइन बनाने के लिए इसके मूल तत्त्वों का ज्ञान और कला के मूल सिद्धान्तों की जानकारी होना आवश्यक है। इन मूल सिद्धान्तों में रेखाएं, रूप और आकार, रंग और ढांचा (Texture) महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 2.
डिज़ाइन में एकसारता (सुस्वरता) का क्या अर्थ है?
उत्तर-
डिज़ाइन बनाने के लिए लकीरों, आकार, रंग और रचना की आवश्यकता पड़ती है। एक तरह की दो वस्तुओं जैसे एक रंग, एक तरह की लाइनें या आकार से डिज़ाइन में एकसारता लाई जा सकती है। परन्तु यदि प्रत्येक वस्तु अलग प्रकार की हो तो वह परेशानी का अहसास दिलाती है। जब डिज़ाइन के सभी अंशों में एकसारता हो और वह एक डिज़ाइन लगे न कि भिन्न-भिन्न अंशों का बेतुका जोड़, उसको अच्छा डिज़ाइन समझा जाता है।

प्रश्न 3.
डिज़ाइन में सन्तुलन कितनी प्रकार का हो सकता है और कौन-कौन सा?
उत्तर-
डिज़ाइन में सन्तुलन दो तरह का होता है

  1. औपचारिक सन्तुलन (Formal Balance) औपचारिक सन्तुलन को सिमट्रीकल सन्तुलन के नाम से भी जाना जाता है। जब एक केन्द्र बिन्दु के सभी ओर की वस्तुएं हर पक्ष से एक जैसी हों तो इसको औपचारिक सन्तुलन कहा जाता है।
  2. अनौपचारिक सन्तुलन (Informal Balance)-जब वस्तुएं इस प्रकार रखी जाएं कि बड़ी वस्तु केन्द्र बिन्दु के पास हो और छोटी वस्तु को केन्द्र बिन्दु से थोड़ा दूर रखा जाए तो इसको अनौपचारिक सन्तुलन कहा जाता है। यह सन्तुलन बनाना थोड़ा मुश्किल है यदि ठीक अनौपचारिक सन्तुलन बन जाए तो औपचारिक सन्तुलन से बहुत सुन्दर लगता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त

प्रश्न 4.
डिज़ाइन में बल से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
बल से अभिप्राय किसी एक रुचिकर बिन्दु पर अधिक बल देना भाव उसको अधिक आकर्षित बनाना और अरुचिकर वस्तुओं पर कम बल देना है। जब कोई डिज़ाइन पूरा सन्तुलित हो, उसमें पूर्ण अनुरूपता हो, परन्तु फिर भी फीका और अरुचिकर लगे तो मतलब कि उस डिज़ाइन में कोई विशेष बिन्दु नहीं है जहां ध्यान केन्द्रित हो सके। ऐसे डिज़ाइन में बल की कमी है। बल कला का एक सिद्धान्त है। विरोधी रंग का प्रयोग करके भी बल पैदा किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
डिज़ाइन में अनुपात होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
डिज़ाइन में अनुपात से अभिप्राय कमरा और उसके सामान का आपस में सम्बन्ध है। यदि कमरा बड़ा है तो उसका सामान, फर्नीचर भी बड़ा ही अच्छा लगता है, परन्तु बड़ा फर्नीचर छोटे कमरे में रखा जाए तो बुरा लगता है। एक बड़े कमरे में गहरे रंग के बड़े डिज़ाइन वाले पर्दे और भारा और बड़ा फर्नीचर प्रयोग करना चाहिए। इसके विपरीत छोटे कमरे में फीके रंग के पर्दे और हल्का फर्नीचर जैसे बैंत, एल्यूमीनियम या लकड़ी का सादा डिज़ाइन वाला रखना चाहिए जिससे कमरा खुला-खुला लगता है। इसलिए घर का ढांचा या नमूना और उसमें रखा हुआ सामान घर के कमरों के अनुपात में ही होना चाहिए तभी घर सुन्दर नज़र आएगा नहीं तो घर और वस्तुओं पर लगाया गया धन भी बेकार ही लगता है यदि सामान घर के अनुपात में न हो तो।

प्रश्न 6.
डिज़ाइन में लय कैसे उत्पन्न की जा सकती है?
उत्तर-
किसी भी डिज़ाइन में लय निम्नलिखित ढंगों से पैदा की जा सकती है

  1. दोहराने से (Repetition) — डिज़ाइन में लय पैदा करने के लिए रंग, रेखाओं या आकार को दोहराया जाता है, इससे उस वस्तु या जगह के भिन्न-भिन्न भागों में तालमेल पैदा होता है।
  2. दर्जाबन्दी (Gradation) — जब भिन्न-भिन्न वस्तुओं को आकार के हिसाब से एक क्रम में रखा जाए तो भी लय पैदा होती है।
  3. प्रतिकूलता (Opposition) — डिजाइन में लय प्रतिकूलता से भी लाई जाती है ताकि रेखाएं एक दूसरे से सही कोणों पर आएं। वर्गाकार और आयताकार फर्नीचर इसकी एक उदाहरण है।
  4. रेडिएशन (Radiation) — जब रेखाएं एक केन्द्रीय बिन्दु से बाहर आएं तो इसको रेडिएशन कहा जाता है।

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प्रश्न 7.
प्राथमिक या पहले दर्जे के रंग कौन-से हैं?
उत्तर-
प्राथमिक या पहले दर्जे के रंग-पीला, नीला और लाल हैं। ये तीनों रंग अन्य रंगों को मिला कर नहीं बनते। इसलिए इनको प्राथमिक या पहले दर्जे के रंग कहा जाता है।

प्रश्न 8.
उदासीन रंग कौन से हैं?
उत्तर-
काला, स्लेटी, सफेद उदासीन रंग हैं। इनको किसी भी रंग में मिलाया जा सकते हैं।

प्रश्न 9.
विरोधी रंग योजना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
विरोधी रंग योजना में एक दूसरे के विपरीत रंग प्रयोग किए जाते हैं। जैसे रंग चक्र में दिखाया गया है। जैसे लाल और हरा, पीला और जामनी या संतरी और नीला आदि।
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प्रश्न 10.
सम्बन्धित योजना से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
जब रंगों के चक्र के साथ लगते रंगों का चुनाव किया जाए तो इसको सम्बन्धित योजना कहा जाता है। इस योजना से अधिक-से-अधिक तीन रंग प्रयोग किए जाते हैं जैसे कि नीला, हरा नीला और नीला बैंगनी। इसकी एकसारता को तोड़ने के लिए भी रंग चक्र के दूसरी ओर के रंग जैसे-संतरी या संतरी पीला छोटी वस्तुओं के लिए प्रयोग किए जा सकते हैं।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 11.
डिज़ाइन के मूल अंश कौन-से हैं? रूप और आकार डिज़ाइन को कैसे प्रभावित करते हैं? वर्णन करो।
उत्तर-
कोई भी मकान या वस्तु बनाने के लिए पहले उसका डिज़ाइन तैयार किया जाता है और प्रत्येक डिज़ाइन तैयार करने के लिए उसके मूल तत्त्वों का पता होना चाहिए जैसे

  1. रेखाओं-सीधी रेखाएं, लेटी रेखाएं, टेढ़ी रेखाएं और गोल रेखाएं।
  2. रूप और आकार
  3. रंग
  4. ढांचा।

रूप और आकार (Shape and Size) — रूप और आकार का आपस में गहरा सम्बन्ध है, रेखाओं को मिलाकर ही किसी वस्तु को रूप और आकार दिया जाता है। रेखाएं अपने आप में इकाई हैं जिनके मिलाप से कोई वस्तु बनाई जाती है। घर की इमारत या उसकी अन्दरूनी सजावट में रूप और आकार नज़र आता है। आजकल कमरों को बड़ा दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी खिड़कियां रखी जाती हैं ताकि अन्दर और बाहर मिलते नज़र आएं। कमरे का आकार, उसकी छत की ऊँचाई और उसके दरवाजे और खिड़कियां कमरे में रखने वाले फर्नीचर को प्रभावित करते हैं। कमरे के फर्नीचर, पर्दे, कालीन और अन्य सामान सारे कमरे को छोटा करते हैं। यदि किसी कमरे को उसके काम के अनुसार विभाजित किया जाए जैसे कि एक भाग बैठने का, एक खाना खाने का और एक पढ़ने का तो कमरा छोटा लगने लग जाता है। यदि कमरे को बड़ा दिखाना चाहते हो तो इसके कम-से-कम भाग करो। इसके अतिरिक्त कमरे को बड़ा दिखाने के लिए छोटा और हल्का फर्नीचर, कम सजावट का सामान और हल्के रंग प्रयोग करो। पतली टांगों वाले फर्नीचर से कमरा बड़ा लगता है क्योंकि इससे फर्नीचर के नीचे फर्श का अधिक भाग दिखाई देता रहता है।

प्रश्न 12.
रेखाएं कैसी हो सकती हैं और ये डिजाइन को कैसे प्रभावित करती हैं?
उत्तर-
प्रत्येक डिज़ाइन में लाइनें कई तरह की बनी होती हैं, परन्तु इनमें कुछ अधिक उभरी होती हैं जिससे डिजाइन में भिन्नता आती है। रेखाएं कई तरह की होती हैं जैसे सीधी, लेटवी, टेढ़ी, गोल और कोण।

किसी भी फर्नीचर के डिज़ाइन या सजावट के सामान के डिज़ाइन या तस्वीरों को दीवारों पर लगाने का ढंग या कमरे में फर्नीचर रखने के डिज़ाइन को रेखाएं प्रभावित करती हैं। परन्तु इन लाइनों का प्रभाव वहीं पड़ना चाहिए जो आप चाहते हैं। यदि आप कमरे को आरामदायक बनाना चाहते हैं तो लेटवीं लाइनों का प्रयोग करना चाहिए और कमरे की छत को ऊँचा दिखाना है तो सीधी लम्बी लाइनों वाले पर्यों का प्रयोग करना चाहिए। गोल लाइनों का प्रयोग प्रसन्नता और जश्न प्रगटाती हैं जबकि कोण वाली रेखाएं उत्तेजित करने वाली होती हैं।

प्रश्न 13.
प्रांग की रंग प्रणाली क्या है?
उत्तर-
प्रांग के अनुसार सभी रंग प्रारम्भिक तीन रंगों-पीला, नीला और लाल से बनते हैं। यह तीन रंग अन्य रंगों को मिलाकर नहीं बनाए जा सकते। इसलिए इनको प्राथमिक (पहले) दर्जे के रंग कहा जाता है। जब दो प्राथमिक रंगों को एक जितनी मात्रा में मिलाया जाए तो तीन दूसरे दर्जे के रंग बनते हैं। जैसे कि
पीला + नीला = हरा,
नीला + लाल = जामनी,
लाल + पीला = संतरी।
इन छ: रंगों को आधार रंग कहा जाता है। एक प्राथमिक और उसके साथ लगते एक दूसरे दर्जे के रंग को मिलाकर जो रंग बनते हैं उनको तीसरे दर्जे के रंग कहा जाता है जैसे कि
पीला + हरा = पीला हरा,
नीला + हरा = नीला हरा,
नीला + जामनी = नीला जामनी,
लाल + जामनी = लाल जामनी,
लाल + संतरी = लाल संतरी,
पीला + संतरी = पीला संतरी।
इस प्रकार तीन (3) प्राथमिक, तीन (3) दूसरे दर्जे के और छः (6) तीसरे दर्जे के रंग होते हैं। इन रंगों का आपसी अनुपात बढ़ा घटा कर अनेकों रंग बनाए जा सकते हैं। इन रंगों में सफ़ेद रंग मिलाने से हल्के रंग बनते हैं जैसे कि
लाल + सफ़ेद = गुलाबी
नीला + सफ़ेद = आसमानी गुलाबी और आसमानी लाल और नीले रंग का भाग है। किसी भी रंग में काला रंग मिलाने से उस रंग में गहराई आ जाती है जैसे कि
लाल + काला = लाखा। काला, सलेटी (ग्रे) और सफ़ेद को उदासीन (Neutral) रंग कहा जाता है। क्योंकि इनको किसी भी रंग से मिलाया जा सकता है।

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प्रश्न 14.
घरों में रंगों के सम्बन्ध में कैसी योजना बनाई जा सकती है?
उत्तर-
घर में प्रायः रंगों से तीन तरह की योजना बनाई जा सकती है

  1. एक रंग की योजना -इस योजना में एक ही रंग प्रयोग किया जाता है। भाव यह कि एक रंग के भिन्न-भिन्न गहरे/फीके रंग प्रयोग किए जाते हैं। जैसे नीला या लाल के गहरे और हल्के रंग प्रयोग किए जा सकते हैं। इस रंग में प्रिंट भी प्रयोग किया जा सकता है। रंग की समरूपता को तोड़ने के लिए कुशन कवर या लैम्प शेड आदि पीले, हरे या भूरे रंग के प्रयोग किए जा सकते हैं।
  2. विरोधी रंग योजना-यह रंग योजना काफ़ी प्रचलित है। इसमें रंग चक्र के आमने-सामने वाले रंग प्रयोग किए जाते हैं जैसे पीला और जामनी या लाल और हरा या संतरी और नीला आदि।
  3. सम्बन्धित रंग योजना-जब रंग चक्र के साथ-साथ रंग प्रयोग किए जाएं तो इसको सम्बन्धित योजना कहते हैं। इसमें अधिक-से-अधिक तीन रंग प्रयोग किए जाते हैं जैसे कि नीला, हरा नीला, जामनी नीला। परन्तु रंग की समरूपता को तोड़ने के लिए रंग चक्र के दूसरी ओर के रंग जैसे कि संतरी और संतरी पीला कुछ छोटी वस्तुएँ जैसे कुशन या लैम्प शेड के लिए प्रयोग किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
(i) औपचारिक और अनौपचारिक सन्तुलन में क्या अन्तर है और कैसे उत्पन्न किया जा सकता है?
(ii) डिज़ाइन में सन्तुलन क्या होता है तथा कितने प्रकार का होता है?
उत्तर-
(i) औपचारिक सन्तुलन को समिट्रीकल अर्थात् बराबर का सन्तुलन भी कहा जाता है। जब किसी डिज़ाइन या किसी कमरे में रेखा, रंग और स्थान एक जैसे लगें तो दोनों भागों में से कोई भी भाग काल्पनिक बिन्दु प्रतीत हो तो औपचारिक सन्तुलन होता है। यह सन्तुलन शान्ति की भावना पैदा करता है, परन्तु कभी-कभी इस तरह सजाया हुआ कमरा अखरता भी है।

इस सन्तुलन को सी-साअ (See Saw) झूले के रूप में स्पष्ट किया जा सकता है। इसमें एक जैसे भार के दो बच्चे केन्द्र से बराबर दूरी पर बैठे हों तो यह औपचारिक सन्तुलन की एक उदाहरण है। जैसे खाने वाले मेज़ के आस-पास एक ही डिज़ाइन की कुर्सियां एक जैसे फासले पर रखने से। अनौपचारिक सन्तुलन असमिट्रीकल सन्तुलन के नाम से भी जाना जाता है। यह सन्तुलन वस्तुओं की बनावट के अतिरिक्त उनके रंग, नमूने और केन्द्र बिन्दु से दूर या निकट रखकर भी पैदा किया जाता है। यह सन्तुलन पैदा करना मुश्किल है, परन्तु यदि ठीक हो तो औपचारिक सन्तुलन से बढ़िया लगता है साथ ही कुदरती दिखाई देता है।
(ii) देखें भाग (i)

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 16.
डिज़ाइन के मूल सिद्धान्त कौन-से हैं? इनके बारे में ज्ञान होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
जब भी कोई वस्तु बनाई जाती है, चाहे मकान हो, फर्नीचर या घर का अन्य सामान हो उस का एक नमूना तैयार किया जाता है, जिसको डिजाइन कहा जाता है। डिज़ाइन में यह ध्यान रखा जाता है कि नमूने के तत्त्वों का एक दूसरे से तालमेल हो। जैसे कि घर में एक कमरे का दूसरे कमरे से दीवारों, छतों, खिड़कियों और दरवाज़ों का आपस में। इस तरह फनी वर में आकार, रेखाएं, रंग आदि एक जैसे होने चाहिएं जैसे कि लकड़ी का रंग, कपड़े का रंग, बैंत का रंग और उसकी बनावट आदि आपस में मिलते होने चाहिएं। यदि एक करे का साज-सामान आपस में मेल खाता हो तो तभी बढ़िया डिज़ाइन होगा जोकि देखने में सुन्दर लगता है। इसलिए एक अच्छा डिज़ाइन बनाने के लिए उसके मूल सिद्धान्तों की जानकारी होनी बहुत आवश्यक है। यह मूल सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. अनुरूपता (Harmony)
  2. अनुपात (Proportion)
  3. सन्तुलन (Balance)
  4. लय (Rhythm)
  5. बल (Emphasis)।

1. अनुरूपता (Harmony) — किसी भी डिजाइन में एक जैसी वस्तुओं जैसे एक रंग, एक तरह की लाइनें, आकार या रचना का प्रयोग करके अनुरूपता लाई जा सकती है। परन्तु यदि एक कमरे में सभी वस्तुएं एक ही रंग, आकार या रचना की हों तो भी वह बहुत अच्छा नहीं लगता। इसलिए भिन्न-भिन्न तरह की वस्तुओं का प्रयोग आवश्यक है। परन्तु यदि प्रत्येक वस्तु भिन्न हो तो भी वह परेशानी का अहसास दिलाती है। जब डिज़ाइन के सर्भः अंशों में अनुरूपता हो ताकि वह एक अच्छा डिज़ाइन लगे न कि भिन्नभिन्न अंशों का बेढंगा जोड़ तो उसको अच्छा डिज़ाइन समझा जाता है। कई बार भिन्नभिन्न रेखाओं या रंगों के प्रयोग से भी अच्छा डिज़ाइन बनाया जा सकता है।

2. अनुपात (Proportion) — किसी भी कमरे में पड़ी वस्तुएं कमरे के क्षेत्रफल के अनुसार होनी चाहिएं। सभी वस्तुओं का आपस में और कमरे के अनुसार अनुपात ठीक होना चाहिए। एक बड़े कमरे में भारी फर्नीचर या गहरे रंग या बड़े डिजाइन के पर्दे या कालीन का प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु यदि कमरा छोटा हो तो उसमें हल्के रंग, छोटा डिज़ाइन और हल्का फर्नीचर प्रयोग करना चाहिए। बड़े कमरे में छोटा या हल्का फर्नीचर जैसे कि लकड़ी की बैंत की कुर्सियां या बांस का फर्नीचर या एल्यूमीनियम की कुर्सियां रखने से कमरा और भी बड़ा और खाली लगेगा।
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3. सन्तुलन (Balance) — यह सिद्धान्त डिजाइन में उसके भागों की सन्तोषजनक व्यवस्था द्वारा पूर्ण स्थिरता लाता है। इसमें आकारों, रंगों और बनावट को एक केन्द्र बिन्दु के चारों ओर एक प्रकार का समूह बनाकर प्राप्त किया जाता है ताकि केन्द्र के हर तरफ एक-सा आकर्षण रहे। सन्तुलन दो तरह का होता है-
(क) औपचारिक सन्तुलन (ख) अनौपचारिक सन्तुलन।
(क) औपचारिक सन्तुलन — जब एक केन्द्र बिन्दु के सभी ओर की वस्तुएं प्रत्येक पक्ष से एक सी हों जैसे कि खाने वाले मेज़ के आस-पास एक सी कुर्सियां, मेज़ के गिर्द समान दूरी से या एक बड़े सोफे के आस-पास या छोटे सोफे या तिपाइयों का होना। परन्तु इस तरह सजाया बैठने वाला कमरा कुछ अलग प्रतीत होता है परन्तु बड़ा कमरा अच्छा लगता है।
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(ख) अनौपचारिक सन्तुलन — निश्चित सन्तुलन को सुधारने के लिए सन्तुलन वस्तुओं की बनावट के अतिरिक्त उनके रंग या नमूने से या वस्तुओं को केन्द्र बिन्दु के नज़दीक या दूर रखकर भी पैदा किया जा सकता है। अनिश्चित सन्तुलन करना अधिक मुश्किल है। परन्तु यदि अच्छी तरह किया जाए तो यह निश्चित सन्तुलन से अधिक अच्छा लगता है। इस तरह का सन्तुलन प्राकृतिक लगता है और इस में रचनात्मक कला का प्रदर्शन भी होता है।
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4. लय (Rhythm) — जब आप किसी कमरे के अन्दर जाते हैं तो आप की नज़र एक जगह से दूसरी जगह तक जाती है। जब कोई डिज़ाइन के भिन्न-भिन्न अंशों में अधिक भिन्नता न हो और हमारी नज़र एक स्थान से दूसरे स्थान पर आसानी से घूमे तो उस डिज़ाइन में लय होती है। लय कई प्रकार से प्राप्त की जा सकती है।

(क) एक तरह की रेखाएं-एक ही कमरे में कई तरह की रेखाएं होती हैं, परन्तु उनमें एक तरह की रेखाओं को अधिक महत्त्व देना चाहिए, यह देखने में अधिक आरामदायक प्रतीत होती हैं।

(ख) प्रतिलिपि (Repetition) या दोहराना-रंग, रेखा, रचना या आकार को बार-बार दोहराने से भी लय पैदा की जा सकती है। एक आकार की वस्तुओं से भी लय उत्पन्न होती है जैसे कि भिन्न-भिन्न तरह की तस्वीरों को एक से फ्रेम में जुड़वा कर एक केन्द्र बिन्दु के आस-पास लगाना।

5. बल (Emphasis) — बल से अभिप्राय किसी एक रुचिकर बिन्दु पर अधिक बल देना भाव उसको अधिक आकर्षित बनाना और अरुचिकर वस्तुओं पर कम बल देना। जब कोई डिज़ाइन पूरा सन्तुलित हो, उसमें पूर्ण अनुरूपता हो परन्तु फिर भी फीका और अरुचिकर लगे। उस डिज़ाइन में कोई विशेष बिन्दु नहीं है जहां ध्यान केन्द्रित हो सके ऐसे डिजाइन में बल की कमी है। बल कला का एक सिद्धान्त है कि कमरे में जाते ही, जहां आप का सब से पहले ध्यान जाए और फिर महत्त्व के क्रमानुसार और कहीं टिकता है।

प्रश्न 17.
(i) डिज़ाइन के मूल अंश कौन-से हैं ? यह डिज़ाइन को कैसे प्रभावित करते हैं?
(ii) सीधी रेखाएं क्या होती हैं?
(iii) डिज़ाइन में गोल रेखाओं का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
(i) जब भी कोई वस्तु बनाई जाती है तो उसका नमूना या डिज़ाइन बनता है। यह वस्तु यद्यपि कुर्सी, मेज़ हो तथा मकान या कोई शहर। कोई भी वस्तु बनाई जाए उसके भिन्न-भिन्न भागों का आपस में तालमेल आवश्यक है जैसे कि कुर्सी की लकड़ी, उसकी पॉलिश का रंग, उसकी रचना, उसकी बैंत की बनावट या उस पर पड़े कपड़े का रंग, नमूना या बनावट सभी मिल कर एक डिज़ाइन बनाते हैं। घर में भिन्न-भिन्न कमरे’ मिलकर एक डिज़ाइन बनाते हैं। इस तरह एक कमरे में भिन्न-भिन्न तरह का सामान रखकर एक डिज़ाइन बनाया जाता है। यदि एक कमरे की सभी वस्तुओं का आपसी तालमेल ठीक हो तभी एक अच्छा डिज़ाइन बनेगा। रेखा, आकार, रंग, रूप और बनावट की व्यवस्था के साथ ही कोई डिज़ाइन बनता है। इसलिए अच्छा डिज़ाइन बनाने के लिए इसके मूल तत्त्वों का ज्ञान और इनको सहजवादी और कलात्मक ढंग से शामिल करना है।
डिज़ाइन के मूल अंश (Elements of Design)
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1. रेखाएं (Lines) — प्रत्येक डिज़ाइन में कई तरह की रेखाएं शामिल होती हैं, परन्तु इनमें कुछ रेखाएं अधिक उभरी हुई होती हैं जिससे उस डिज़ाइन में विभिन्नता आती है। रेखाएं हमारी भावनाओं को प्रभावित करती हैं इसलिए इनको चुनते समय सावधानी रखनी चाहिए। रेखाएं कई प्रकार की हो सकती हैं

  1. सीधी रेखाएं — सीधी रेखाएं दृढ़ता और सादगी की प्रतीक होती हैं। सीधी रेखाओं का अधिक प्रयोग गिरजा घरों में किया जाता है। घर की सजावट में यदि कमरे की छत नीची हो तो दरवाजे और खिड़कियों पर सीधी रेखाओं वाले पर्दे लगा कर अधिक ऊँचाई का एहसास दिलाया जा सकता है।
  2. लेटवीं रेखाएं — ये रेखाएं शान्ति और आराम की प्रतीक होती हैं। इनको थकावट दूर करने वाली समझा जाता है। यह किसी वस्तु के आकार को नीचा दिखाने का भ्रम पैदा करती हैं। इसलिए जिन कमरों की छत अधिक ऊँची हो उनमें दरवाजों और खिड़कियों के पर्दो में लेटवीं रेखाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
    चित्र-सीधी तथा लेटवीं रेखाओं का प्रभाव
  3. टेढ़ी रेखाएं — टेढी रेखाओं का प्रभाव उनके कोण से प्रभावित होता है। यदि यह सीधी रेखा के निकट हो तो दृढ़ और यदि लेटवीं रेखा के निकट हो तो शान्ति की प्रतीक होती हैं। इन रेखाओं के अधिक प्रयोग से अनुशासन की कमी लगती हैं, बनावटीपन लगता है और देखने में अधिक सुन्दर नहीं लगता।
  4. गोल रेखाएं — गोल रेखाएं हमारी भावनाओं को दर्शाने के लिए मदद करती हैं। इनमें कई भिन्न-भिन्न रूप हो सकते हैं। पूरी गोलाई वाली लाइनें प्रसन्नता और जशन का एहसास दिलाती हैं जैसे कि किसी खुशी के अवसर पर गुब्बारे पर किसी तरह के ग्लोब का प्रयोग करना, बच्चों की टोपियों पर गोल फूंदे या जौकरों की टोपियां और पोल का डिज़ाइन आदि का इस्तेमाल करना। कम गोलाई वाली रेखाएं जैसे कि “S” सुन्दरता और निखार की प्रतीक होती हैं।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त 6
  5. कोण — कोण वाली रेखाएं भी कई प्रकार की होती हैं जिनका प्रभाव भी भिन्न-भिन्न होता है। यह दृढ़, अशान्त या हलचल पैदा करने वाली हो सकती हैं। ये उत्तेजित करने वाली भी हो सकती हैं।
    दीवार पर लगाई गई एक सी तस्वीरें सीधी, लेटवीं और टेढी रेखा में लगाने पर भिन्नभिन्न प्रभाव देती हैं।
    किसी भी फर्नीचर के डिज़ाइन या सजावट के अन्य सामान के डिजाइन में या जिस ढंग से ये वस्तुएं किसी भी कमरे में रखी जाती हैं, उनमें रेखाओं का इस ढंग से प्रयोग करना चाहिए ताकि वह ही प्रभाव पड़ता हो जो आप चाहते हैं। जिस कमरे को आप आरामदायक बनाना चाहते हों उसमें लेटवीं रेखाओं का अधिक प्रयोग होना चाहिए।

2. रूप और आकार (Shape and Size) — रूप और आकार का आपस में गहरा सम्बन्ध है, रेखाओं को मिलाकर ही किसी वस्तु को रूप और आकार दिया जाता है। रेखाएं अपने आप में इकाई हैं जिनके मिलाप से कोई वस्तु बनाई जाती है। घर की इमारत या उसकी अन्दरूनी सजावट में रूप और आकार नज़र आता है। आजकल कमरों को बड़ा दिखाने के लिए बड़ी-बड़ी खिड़कियां रखी जाती हैं ताकि अन्दर और बाहर मिलते नज़र आएं। कमरे का आकार, उसकी छत की ऊँचाई और उसके दरवाजे और खिड़कियां कमरे में रखने वाले फर्नीचर को प्रभावित करते हैं। कमरे के फर्नीचर, पर्दे, कालीन और अन्य सामान सारे कमरे को छोटा करते हैं। यदि किसी कमरे को उसके काम के अनुसार । विभाजित किया जाए जैसे कि एक भाग बैठने का, एक खाना खाने का और एक पढ़ने का तो कमरा छोटा लगने लग जाता है। यदि कमरे को बड़ा दिखाना चाहते हो तो इसके कम-से-कम भाग करो। इसके अतिरिक्त कमरे को बड़ा दिखाने के लिए छोटा और हल्का फर्नीचर, कम सजावट का सामान और हल्के रंग प्रयोग करो। पतली टांगों वाले फर्नीचर से कमरा बड़ा लगता है क्योंकि इससे फर्नीचर के बीच फर्श का अधिक भाग दिखाई देता रहता है।

3. रंग (Colour) — आजकल आदमियों ने रंगों के महत्त्व को पहचाना है। रंगों का प्रभाव हमारी भावनाओं और हमारे काम करने के ढंग पर पड़ता है। आज से कुछ वर्ष पहले कारों के रंग सिर्फ सफ़ेद, काला, ग्रे आदि होते थे। इस तरह टाइपराइटर, टेलीफोन और सिलाई मशीन काले रंग की और फ्रिज और कुकिंग रेंज केवल सफ़ेद ही होते थे। परन्तु आजकल यह सभी वस्तुएं भिन्न-भिन्न रंगों में मिलने लगी हैं। खाना खाने वाली प्लेटों आदि के रंग का प्रभाव हमारी भूख पर पड़ता है। खाने वाली वस्तुओं का रंग यदि प्रिय हो तो भूख लगती है और खाना हज़म भी जल्दी हो जाता है।
परेंग के अनुसार सभी रंग प्रारम्भिक तीन रंगों-पीला, नीला और लाल से बनते हैं। यह तीन रंग अन्य रंगों को मिलाकर नहीं बनाए जा सकते। इसलिए इनको प्राथमिक (पहले) दर्जे के रंग कहा जाता है। जब दो प्राथमिक रंगों को एक जितनी मात्रा में मिलाया जाए तो तीन दूसरे दर्जे के रंग बनते हैं। जैसे कि
पीला + नीला = हरा
नीला + लाल = जामनी
लाल + पीला = संतरी
इन छ: रंगों को आधार रंग कहा जाता है। एक प्राथमिक और उसके साथ लगते एक दूसरे दर्जे के रंग को मिला कर जो रंग बनते हैं उनको तीसरे दर्जे के रंग कहा जाता है जैसे कि
पीला + हरा = पीला हरा
नीला + हरा = नीला हरा
नीला + जामनी = नीला जामनी
लाल + जामनी = लाल जामनी
लाल + संतरी = लाल संतरी
पीला + संतरी = पीला संतरी।
इस प्रकार तीन (3) प्राथमिक, तीन (3) दूसरे दर्जे के और छः (6). तीसरे दर्जे के रंग होते हैं। इन रंगों का आपसी अनुपात बढ़ा घटा कर अनेकों रंग बनाए जा सकते हैं। इन रंगों में सफ़ेद रंग मिलाने से हल्के रंग बनते हैं जैसे कि
लाल + सफेद = गुलाबी
नीला + सफ़ेद = आसमानी
गुलाबी और आसमानी लाल और नीले रंग का भाग है। किसी रंग में काला रंग मिलाने से उस रंग में गहराई आ जाती है जैसे कि
लाल + काला = लाखा।
काला, सलेटी (ग्रे) और सफ़ेद को उदासीन (Neutral) रंग कहा जाता है क्योंकि इनको किसी भी रंग से मिलाया जा सकता है।
यदि रंगों में चक्र को देखा जाए तो इसके आधे भाग पर रंग ठण्डे हैं जैसे कि हरा और नीला, यह अधिक आरामदायक होते हैं। इनको पीछे हटाने वाले (receding) रंग भी कहा जाता है क्योंकि यह पीछे की ओर को जाते प्रतीत होते हैं जिस कारण कमरा बड़ा लगता है।
रंगों के चक्र की दूसरी ओर के रंग लाल, संतरी और पीला गर्म रंग कहलाते हैं। यह रंग भड़कीले और उत्तेजित करने वाले होते हैं। यदि इनका प्रयोग अधिक किया जाए तो झंझलाहट पैदा करते हैं। इनको (advancing) रंग भी कहा जाता है क्योंकि इनके प्रयोग से वस्तुएं आगे-आगे नज़र आती हैं और कमरे का आकार छोटा लगता है। जामनी रंग से यदि लाल अधिक हो तो गर्म और यदि नीला अधिक हो
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 4 डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त 7
घर में प्रायः तीन तरह से रंगों की योजना बनाई जा सकती है
(क) एक रंग — इस तरह की योजना में एक ही रंग प्रयोग किया जाता है। परन्तु इस का अर्थ यह नहीं कि एक ही थान से पर्दे, कुशन, कवर और सोफों के कपड़े आदि बनाए जाएं। भिन्न-भिन्न वस्तुओं के लिए एक ही रंग जैसे कि नीला या हरे के गहरे या हल्के रंग प्रयोग किए जा सकते हैं। किसी वस्तु में प्रिंट भी प्रयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त छोटी वस्तुओं में जैसे कि कुशन कवर या लैंप शेड आदि में लाल, संतरी या पीला प्रयोग किए जा सकते हैं, ताकि अनुरूपता को तोड़ा जा सके।
(ख) आपस में टकराने वाले रंग (विरोधी रंग योजना) (Contrasting Colours) — इस प्रकार की रंग योजना काफ़ी प्रचलित है। रंग के चक्र के सामने वाले रंग प्रयोग किए जाते हैं जैसे कि संतरी और नीला या पीला जामनी या लाल और हरा।
(ग) सम्बन्धित योजना — जब रंगों के चक्र के साथ-साथ लगते रंगों का चुनाव किया जाए तो उसको सम्बन्धित योजना कहा जाता है। इसमें अधिक-से-अधिक तीन रंग प्रयोग किए जाते हैं जैसे कि नीला, हरा, पीला और नीला जामनी। इसकी अनुरूपता को तोड़ने के लिए भी रंग चक्र के दूसरी ओर के रंग जैसे कि संतरी या संतरी पीला भी कुछ छोटी वस्तुओं के लिए प्रयोग किए जाते हैं।

4. रचना/बनावट (Texture)-कुछ वस्तुएं मुलायम होती हैं और कुछ खुरदरी, कुछ सख्त और कुछ नरम, कुछ मद्धम (तेज़हीन)। जिस तरह रेखाएं, आकार और रंग किसी भावना या प्रवृत्ति के प्रतीक होते हैं उसी प्रकार खुरदरी वस्तु भी देखने को सख्त और मज़बूत लगती है। जिन वस्तुओं की रचना कोमल या नाजुक हो वह अधिक शानदार और व्यवस्थित लगती हैं। जिस कमरे में ज़री या शनील का प्रयोग किया गया हो वहां यदि साथ ही पीतल के लैंप शेड या लोहे या चीनी मिट्टी के फूलदान या एश-ट्रे रखी जाए तो अच्छी नहीं लगेगी। अखरोट की लकड़ी के साथ टाहली की लकड़ी का फर्नीचर भी भद्दा लगेगा। लाल, सुनहरी, जामनी, नीला और हरा रंग अधिक भड़कीले लगते हैं पर भूरा, बादामी, मोतिया, हल्का नीला और हरा तेजहीन रंग हैं, रंगों के अतिरिक्त कपड़े की बनावट का भी कमरे पर प्रभाव पड़ता है जैसे कि हल्के नीले रंग की सिल्क या साटन अधिक चमकदार लगेगी जबकि उसी रंग की केसमैंट या खद्दर कम चमकीली होगी।
(ii) देखें भाग (i)
(iii) देखें भाग (i)

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प्रश्न 3.
रंग डिज़ाइन का महत्त्वपूर्ण तत्त्व (अंश) है, कैसे?
उत्तर-
प्रत्येक डिज़ाइन के मूल अंश रेखाएं, आकार, बनावट के अतिरिक्त रंग भी एक महत्त्वपूर्ण अंश है। रंग मनुष्य की मानसिकता को प्रभावित करते हैं। रंग उत्तेजित और हल्के भी हो सकते हैं। सभी रंग प्रकाश से उत्पन्न होते हैं। रंगों की अपनी विशेषताएं हैं जिनके आधार पर इनका प्रयोग किया जाता है। यह निम्नलिखित दी गई हैं
पीला-गर्म, धूप वाला,, चमकदार, खुशी देने वाला (Cheerful) लाल-गरम, उत्तेजनशील (Stimulating), साहसी, तेजस्वी। सन्तरी-सजीव, रुचिकर, खुशी देने वाला, गरम। हरा-ठण्डा, शान्त, चमक और आरामदायक। नीला-सब रंगों से अधिक ठण्डा, कठोर, शान्तिपूर्ण निश्चेष्ठ या स्थिर। बैंगनी-भड़कीला, शाही, ओजस्वी, प्रभावशाली, क्रियाशील। . सफ़ेद-शुद्ध, श्वेत, ठण्डा। काला-निशतबद्धता, मृतक, गम्भीर, गर्म।
किसी भी फर्नीचर के डिज़ाइन या सजावट के अन्य सामान के डिजाइन में रंग की महत्त्वपूर्ण विशेषता है। फर्नीचर का रंग कमरे के रंग और अन्य सामान के रंग के अनुसार हल्का या गहरा होना चाहिए। रंग का प्रयोग कमरे के आकार, फैशन, मौसम और कमरे के प्रयोग पर आधारित हो। जिन कमरों में अधिक समय व्यतीत करना हो वहां की रंग योजना शान्तिपूर्ण होनी चाहिए। इस योजना के लिए हल्के रंगों का प्रयोग किया जाता है। मौसम का भी रंगों पर बहुत प्रभाव होता है। गर्मी के मौसम में हल्के और ठण्डे रंग अच्छे लगते हैं जबकि सर्दियों में गहरे और गर्म रंग ठीक रहते हैं।
किसी घर, फर्नीचर या अन्य सामान का डिज़ाइन तैयार करते समय बाकी सामान के अनुसार रंग का चुनाव किया जाता है।

Home Science Guide for Class 10 PSEB डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डिज़ाइन के मूल अंश बताओ।
उत्तर-
रेखाएं, रूप तथा आकार, रंग, बनावट।

प्रश्न 2.
डिज़ाइन के मूल सिद्धान्त ……….. हैं।
उत्तर-
पांच।

प्रश्न 3.
डिज़ाइन के पांच मूल सिद्धान्त कौन-से हैं?
उत्तर-
एकसारता, अनुपात, सन्तुलन, लय तथा बल।

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प्रश्न 4.
प्राथमिक या प्रथम दर्जे के रंग कौन-से हैं?
उत्तर-
लाल, पीला, नीला।

प्रश्न 5.
प्रार्थी कि रंग कितने हैं?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 6.
दो प्रारम्भिक रंग मिलाकर जो रंग बनते हैं उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर-
दूसरे दर्जे के रंग।

प्रश्न 7.
दूसरे दर्जे के कितने रंग हैं?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 8.
तीसरे दर्जे के कितने रंग हैं?
उत्तर-
छः।

प्रश्न 9.
रंग योजनाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
सम्बन्धित रंग योजना, विरोधी रंग योजना, एक रंग योजना आदि।

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प्रश्न 10.
ठण्डे रंग की उदाहरण दें।
अथवा
ठण्डे रंग कौन-से हैं?
उत्तर-
हरा, नीला, सफ़ेद।

प्रश्न 11.
गर्म रंग कौन-से हैं?
उत्तर-
लाल, काला, पीला।

प्रश्न 12.
सन्तुलन कितने प्रकार का है, नाम बताओ।
अथवा
संतुलन की किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
औपचारिक, सन्तुलन, अनौपचारिक सन्तुलन।

प्रश्न 13.
यदि रेखाएं एक केन्द्रीय बिन्दु से बाहर आएं तो इसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
रेडिएशन।

प्रश्न 14.
लाल + पीला = ?
उत्तर-
संतरी।

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प्रश्न 15.
नीला + लाल = ?
उत्तर-
जामुनी।

प्रश्न 16.
कौन-से छः रंगों को आधार रंग कहते हैं?
उत्तर-
लाल, पीला, नीला, संतरी, जामुनी तथा हरा।

प्रश्न 17.
लाखा रंग कैसे पैदा करोगे?
उत्तर-
लाल + काला = लाखा।

प्रश्न 18.
उदासीन रंग कौन-से हैं?
उत्तर-
काला, स्लेटी।

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प्रश्न 19.
विरोधी रंग योजना की कोई उदाहरण दें।
उत्तर-
पीला तथा जामुनी, लाल तथा हरा।

प्रश्न 20.
सीधी रेखाएं किस की प्रतीक हैं?
उत्तर-
दृढ़ता तथा सादगी।

प्रश्न 21.
प्रसन्नता तथा जश्न का अहसास करवाने वाली कौन-सी रेखाएं होती हैं?
उत्तर-
पूरी गोलार्द्ध वाली रेखाएं।

प्रश्न 22.
सफ़ेद रंग की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
शुद्ध, ठण्डा।

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प्रश्न 23.
लाल रंग की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
गर्म, साहसी, तेजस्वी।

प्रश्न 24.
बैंगनी रंग के गुण बताओ।
उत्तर-
भड़कीला, शाही, ओजस्वी, क्रियाशील।

प्रश्न 25.
काला और स्लेटी कैसे रंग हैं?
उत्तर-
उदासीन रंग।

प्रश्न 26.
लाल, पीला तथा नीला कैसे रंग हैं?
उत्तर-
प्राथमिक रंग।

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प्रश्न 27.
डिज़ाइन में एकसुरता से क्या भाव है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 28.
किसी दो डिजाइन के तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
रेखाएं, रंग।

प्रश्न 29.
माध्यमिक (दूसरे) दर्जे के रंग कौन-से हैं?
उत्तर-
हरा, जामुनी, संतरी।

प्रश्न 30.
तीसरे (तृतीयक) दर्जे के रंग कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
पीला-हरा, नीला-हरा, नीला-जामुनी, लाल-जामुनी, पीला-संतरी, लाल-संतरी।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डिज़ाइन में सन्तुलन तथा लय का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
देखें प्रश्न 16 का उत्तर।

प्रश्न 2.
सीधी और लेटी हुई रेखाओं के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें प्रश्न 17 का उत्तर।

प्रश्न 3.
सन्तुलन से क्या भाव है? यह कितनी प्रकार का होता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 4.
रेखाएं कितनी प्रकार की होती हैं? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 5.
उपचारिक तथा अनौपचारिक संतुलन में क्या अन्तर है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्न में।

प्रश्न 6.
डिजाइन में लय से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
डिज़ाइन में लय से भाव है कि जब आप किसी कमरे में जाएं तो आपकी नज़र पहले एक जगह पर जाती है और फिर धीरे-धीरे अन्य वस्तुओं पर जाती है। यह नज़र की गति यदि लय में हो तो डिज़ाइन लय में है। डिजाइन में लय रंग, आकार. या रेखा के किसी भी क्रम में आपस में जुड़े हुए उस मार्ग से है जिसको आँखें एक गति में देखती जाती हैं।

प्रश्न 7.
आधार रंग कौन-कौन से हैं?
अथवा
दूसरे दर्जे के रंग कौन-से हैं?
उत्तर-
जब दो प्राथमिक रंगों को एक जितनी मात्रा में मिलाया जाए तो तीन दूसरे दर्जे के रंग बनते हैं जैसे
लाल + पीला = संतरी
पीला + नीला = हरा
नीला + लाल = जामनी
इसलिए इन छ: रंगों (लाल, पीला, नीला, संतरी, जामनी और हरा) को आधार रंग कहा जाता है।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
डिज़ाइन में भिन्न-भिन्न रंग योजनाएं क्या हैं तथा रंगों के मिलावट के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 2.
डिज़ाइन के मूल अंश कौन-कौन से हैं? वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

I. रिक्त स्थान भरें

  1. डिज़ाइन के मूल सिद्धान्त ………………. हैं।
  2. लाल, पीला तथा नीला रंग ………. रंग हैं।
  3. सीधी रेखाएं ………………. की प्रतीक हैं।
  4. दो प्राथमिक रंगों को मिला कर ……………….. के रंग बनते हैं।
  5. पीला + नीला = ……………….. रंग।

उत्तर-

  1. पांच,
  2. प्राथमिक,
  3. दृढ़ता तथा सादगी,
  4. दूसरे दर्जे,
  5. हरा।

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. पीला, नीला तथा लाल पहले दर्जे के रंग हैं।
  2. नीला रंग + सफ़ेद रंग = गुलाबी।
  3. दूसरे दर्जे के छः रंग हैं।
  4. एकसुरता, अनुपात, सन्तुलन, लय तथा बल डिज़ाइन के मूल सिद्धान्त हैं।
  5. काला, स्लेटी उदासीन रंग हैं।
  6. सफ़ेद रंग शुद्ध तथा ठण्डा होता है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ग़लत,
  3. ग़लत,
  4. ठीक,
  5. ठीक,
  6. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लाल + काला =
(क) लाखा
(ख) स्लेटी
(ग) जामुनी
(घ) संतरी।
उत्तर-
(क) लाखा

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प्रश्न 2.
पीला + नीला = ………..
(क) जामुनी
(ख) हरा
(ग) संतरी
(घ) गुलाबी।
उत्तर-
(ख) हरा

प्रश्न 3.
दूसरे दर्जे के कितने रंग हैं?
(क) दो
(ख) तीन
(ग) पांच
(घ) छः।
उत्तर-
(ख) तीन

प्रश्न 4.
निम्न में गर्म रंग है
(क) लाल
(ख) काला
(ग) पीला
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

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डिज़ाइन के मूल तत्त्व और सिद्धान्त PSEB 10th Class Home Science Notes

  1. डिज़ाइन के मूल अंश किसी वस्तु को सुन्दर बनाते हैं।
  2. डिज़ाइन के मूल अंश रेखाएं, रूप और आकार, रंग और बनावट हैं।
  3. डिज़ाइन के पाँच मूल सिद्धान्त हैं-समरूपता, अनुपात, संतुलन, लय और बल।
  4. जब कोई फर्नीचर, घर का नक्शा या अन्य सजावट का सामान बनाया जाता है तो इन मूल अंशों को ध्यान में रखा जाता है।
  5. रंग प्रकाश की किरणों से उत्पन्न होते हैं।
  6. लाल, नीला और पीला प्रारम्भिक रंग हैं।
  7. दो प्रारम्भिक रंग मिलाकर जो रंग बनते हैं उनको दूसरे दर्जे के रंग कहा जाता है।
  8. डिज़ाइन में लय लाने के लिए रंग या रेखाओं या आकार को दोहराया, दर्जा बन्दी प्रतिकूलता, समानान्तर या रेडिएशन किया जाता है।
  9. रंगों से विभिन्न रंग योजनाएं जैसे सम्बन्धित रंग योजना, विरोधी रंग योजना और एक रंग योजना तैयार की जाती है।
  10. हरा, नीला और सफ़ेद ठण्डे रंग होते हैं और लाल, काला, पीला गरम रंग होते हैं।

प्रत्येक व्यक्ति की इच्छा होती है कि उसका घर सुन्दर हो। एक साधारण घर को भी सजा कर आकर्षक बनाया जा सकता है। इसलिए धन के अतिरिक्त कला का होना भी बहुत आवश्यक है। घर का सामान खरीदने से पहले सजावटी ढंगों के बारे में जानकारी होनी आवश्यक है। इस जानकारी से कम पैसे खर्च कर घर , को अधिक सुन्दर बनाया जा सकता है। जब कोई वस्तु बनाई या खरीदी जाती है तो उसका एक नमूना या डिजाइन बनाया जाता है जो कमरे, घर और अन्य वस्तुओं के अनुसार होना चाहिए। घर में जो भी वस्तु बनाई जाती है यद्यपि घर ही हो या फिर कोई फर्नीचर पहले उसका नमूना तैयार किया जाता है। यदि कमरे की सभी वस्तुओं का आपसी समन्वय ठीक हो तभी एक बढ़िया डिज़ाइन बनेगा। डिज़ाइन के मूल तत्त्व रेखा रंग, रूप और ढांचा आदि हैं।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
राजा राममोहन राम की मृत्यु के बाद ब्रह्म समाज का पुनर्गठन किसने किया?
उत्तर-
देवेंद्रनाथ टैगोर ने।

प्रश्न 2.
कलकत्ता में पहला विधवा विवाह कब हुआ?
उत्तर-
1856 में।

प्रश्न 3.
स्वामी दयानंद का देहांत कब हुआ?
उत्तर-
1883 ई० में।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार

प्रश्न 4.
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद का संबंध किस प्रदेश से था?
उत्तर-
गुजरात से।

प्रश्न 5.
सर सैय्यद अहमद खां को ‘सर’ की उपाधि कब मिली?
उत्तर-
1888 ई० में।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) सर सैय्यद अहमद खां का देहांत … ………….. में हुआ।
(ii) आजकल निरंकारियों का मुख्यालय ……………….. में है।
(iii) सिंह सभा लहर के प्रयत्नों से 1892 ई० में …………….. में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई।
(iv) नामधारियों को ………….. भी कहा जाता है।
(v) बाबा दयाल का देहांत 1855 ई० में ……………. में हुआ।
उत्तर-
(i) 1898 ई०
(ii) चण्डीगढ़
(iii) अमृतसर
(iv) कूका
(v) रावलपिंडी।

3. सही गलत कथन

(i) प्रार्थना समाज की स्थापना महादेव गोबिंद रानाडे ने की। — (✓)
(ii) रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी रामकृष्ण थे। — (✗)
(iii) मोहम्मडन ऐंग्लो-ओरियंटल कॉलेज की स्थापना अलीगढ़ में हुई। — (✓)
(iv) वहाबी आन्दोलन का आरम्भ सर सैय्यद अहमद खां ने किया था। — (✗)
(v) कूका आन्दोलन को 1872 ई० में दबा दिया गया। — (✓)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
कादियां निम्न में से किस लहर का केंद्र था?
(A) कूका
(B) नामधारी
(C) निरंकारी
(D) अहमदिया।
उत्तर-
(B) नामधारी

प्रश्न (ii)
निरंकारी सम्प्रदाय के संस्थापक थे-
(A) बाबा दयाल
(B) दरबारा सिंह जी
(C) बाबा रामसिंह जी
(D) हुक्म सिंह जी।
उत्तर-
(D) हुक्म सिंह जी।

प्रश्न (iii)
‘सत्यार्थ प्रकाश’ किस संस्था की प्रसिद्ध पुस्तक है?
(A) रामकृष्ण मिशन
(B) आर्य समाज
(C) ब्रह्म समाज
(D) प्रार्थना समाज।
उत्तर-
(A) रामकृष्ण मिशन

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प्रश्न (iv)
भारत में पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित पहले मुस्लिम समाज सुधारक थे-
(A) गुलाम कादरी
(B) सर सैय्यद अहमद खां
(C) आगा खां
(D) मिर्जा गुलाम अहमद।
उत्तर-
(C) आगा खां

प्रश्न (v)
रामकृष्ण मिशन किस नाम से प्रसिद्ध हुआ।
(A) कांची मठ
(B) पुरी मठ
(C) वैलूर मठ
(D) श्रृंगेरी मठ।
उत्तर-
(B) पुरी मठ

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में पहला धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन किस प्रान्त में तथा किस विचारधारा के अधीन हुआ ?
उत्तर-
भारत में पहला धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन बंगाल में हुआ। यह पश्चिमी विचारधारा के अधीन हुआ।

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प्रश्न 2.
‘रिवाइवलिजम’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
धर्म के नाम पर तथा बीते समय का हवाला देते हुए लोगों में जागृति लाने के प्रयास को रिवाइवलिज़म का नाम दिया जाता है।

प्रश्न 3.
ब्रह्म समाज की स्थापना कब, कहां और किसने की ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज की स्थापना 1829 में, कलकत्ता (कोलकाता) में राजा राम मोहन राय ने की।

प्रश्न 4.
राजा राममोहन राय का जन्म कब और कहां हुआ तथा इन्होंने किन तीन भाषाओं में पुस्तकें लिखीं तथा पत्रिकायें निकाली ?
उत्तर-
राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल में 1772 में हुआ। इन्होंने फारसी, अंग्रेज़ी तथा बंगाली भाषाओं में पुस्तकें लिखीं तथा पत्रिकायें निकाली।

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प्रश्न 5.
स्त्रियों की दशा सुधारने के सन्दर्भ में राजा राममोहन राय ने किन दो बातों पर जोर दिया ?
उत्तर-
राजा राममोहन राय ने बाल-विवाह तथा सती प्रथा को समाप्त करने पर जोर दिया।

प्रश्न 6.
ब्रह्म समाज के कार्यक्रम का धार्मिक उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज के कार्यक्रम का धार्मिक उद्देश्य एक परमात्मा की उपासना पर बल देना और वेदों और उपनिषदों की तर्कसंगत व्याख्या करना था।

प्रश्न 7.
राजा राममोहन राय का देहान्त कब हुआ तथा इसके बाद ब्रह्म समाज का पुनर्गठन किसने किया ?
उत्तर-
राजा राममोहन राय का देहान्त 1833 में हुआ। इसके बाद ब्रह्म समाज का पुनर्गठन देवेन्द्र नाथ टैगोर ने किया।

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प्रश्न 8.
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने किस प्रान्त में तथा किन सुधारों का प्रचार किया ?
उत्तर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने बंगाल में विधवा विवाह के पक्ष में प्रचार किया।

प्रश्न 9.
विधवा विवाह के पक्ष में कानून कब पास हुआ तथा कलकत्ता (कोलकाता) में पहला विधवा विवाह कब हुआ?
उत्तर-
विधवा विवाह के पक्ष में कानून 1855 में पास हुआ। कलकत्ता (कोलकाता) में पहला विधवा विवाह 1856 में हुआ:

प्रश्न 10.
1865 तक ब्रह्म समाज की बंगाल में शाखाओं की संख्या क्या थी तथा इस समय बंगाल से बाहर किन तीन प्रान्तों में उनके केन्द्र थे ?
उत्तर-
1865 तक ब्रह्म समाज की बंगाल में शाखाओं की संख्या 50 थी। इस समय बंगाल से बाहर इसके केन्द्र उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु तथा पंजाब में थे।

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प्रश्न 11.
ब्रह्म समाज दो भागों में कब विभक्त हुआ तथा इनके नेता कौन थे ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज 1865 में दो भागों में विभक्त हुआ। इनके नेता देवेन्द्र नाथ टैगोर तथा केशवचन्द्र सेन थे।

प्रश्न 12.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना कब और कहां हुई तथा किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन की स्थापना सन् 1896 में कलकत्ता (कोलकाता) में हुई। यह वैलूर मठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

प्रश्न 13.
रामकृष्ण मिशन का संस्थापक कौन था तथा यह किस नाम से प्रसिद्ध हुआ ?
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानन्द थे। यह मिशन वैलूर मठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

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प्रश्न 14.
रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानन्द का देहान्त कब हुआ ?
उत्तर-
रामकृष्ण परमहंस तथा स्वामी विवेकानन्द का देहान्त क्रमश: 1886 तथा 1902 में हुआ।

प्रश्न 15.
स्वामी विवेकानन्द ने किन चार बातों का खण्डन किया ?
उत्तर-
स्वामी विवेकानन्द ने जाति-पाति, कर्मकाण्ड, व्यर्थ की रीतियों तथा अन्धविश्वासों का खण्डन किया।

प्रश्न 16.
स्वामी विवेकानन्द ने भारत से बाहर किन दो महाद्वीपों में अपने विचारों का प्रचार किया ?
उत्तर-
स्वामी विवेकानन्द ने भारत से बाहर अमेरिका तथा यूरोप महाद्वीपों में अपने विचारों का प्रचार किया।

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प्रश्न 17.
सामाजिक सुधार और सेवा के लिए रामकृष्ण मिशन ने कौन-सी चार प्रकार की संस्थाएं बनाईं ?
उत्तर-
सामाजिक सुधार और सेवा के लिए रामकृष्ण मिशन ने स्कूल स्थापित किए, अस्पतालों का निर्माण करवाया, अनाथ आश्रम बनवाये तथा पुस्तकालय खोले।

प्रश्न 18.
महाराष्ट्र में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए पहला संगठन कौन-सा था तथा यह कब स्थापित हुआ ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए पहला संगठन ‘परमहंस सभा’ था। यह 1849 ई० में स्थापित हुआ।

प्रश्न 19.
ज्योतिबा फूले स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए किन दो बातों के पक्ष में थे ?
उत्तर-
ज्योतिबा फुले स्त्रियों को शिक्षा दिलाने तथा विधवा विवाह के पक्ष में थे।

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प्रश्न 20.
महाराष्ट्र में प्रार्थना सभा’ की स्थापना कब हुई तथा इसके दो प्रमुख नेता कौन थे ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में ‘प्रार्थना सभा’ की स्थापना 1867 में हुई। इसके दो प्रमुख नेता जस्टिस महादेव रानाडे तथा रामकृष्ण गोपाल थे।

प्रश्न 21.
महाराष्ट्र में धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन के चार नेताओं के नाम बताएं तथा इन्होंने अपने विचारों का प्रचार अधिकतर कौन-सी भाषा में किया ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में धार्मिक-सामाजिक आन्दोलनों के चार नेता ज्योतिबा फूले, महादेव गोविन्द रानाडे, गोपाल भण्डारकर तथा गोपाल हरि देश गुरु थे। इन्होंने अपने विचारों का प्रचार अधिकतर मराठी भाषा में किया।

प्रश्न 22.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे तथा यह किस प्रदेश से थे ?
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द थे। यह गुजरात प्रदेश से थे।

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प्रश्न 23.
आर्य समाज की स्थापना कब तथा कहां हुई तथा यह पंजाब में कब आया ?
उत्तर-
आर्य समाज की स्थापना 1875 में बम्बई (मुम्बई) में हुई तथा यह पंजाब में 1877 में आया।

प्रश्न 24.
स्वामी दयानन्द की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम क्या था तथा यह किस वर्ष में प्रकाशित हुई ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द की प्रसिद्ध पुस्तक का नाम ‘सत्यार्थ प्रकाश’ था। यह 1874 में प्रकाशित हुई।

प्रश्न 25.
स्वामी दयानन्द ने किन चार बातों का विरोध किया ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द ने मूर्ति-पूजा, जाति-पाति, पुरोहितों की प्रभुसत्ता तथा तीर्थ यात्रा का विरोध किया।

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प्रश्न 26.
स्वामी दयानन्द का देहान्त कब हुआ तथा 1911 तक आर्य समाजियों की संख्या कितनी हो गई ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द का देहान्त 1883 में हुआ। 1911 तक आर्य समाजियों की संख्या 24 लाख तक पहुंच गई थी।

प्रश्न 27.
पंजाब में सबसे पहले ऐंग्लो-वैदिक स्कूल तथा कॉलेज कब और कहां स्थापित हुए ?
उत्तर-
पंजाब में सबसे पहले ‘एंग्लो-वैदिक’ स्कूल तथा कॉलेज 1886 में लाहौर में स्थापित हुए।

प्रश्न 28.
सैय्यद अहमद बरेलवी ने कौन-सा अभियान चलाया तथा बाद में यह पंजाब के किस शासक के विरुद्ध हो गया?
उत्तर-
सैय्यद अहमद बरेलवी ने वहाबी अभियान चलाया। बाद में यह पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह के विरुद्ध हो गया।

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प्रश्न 29.
1886 के बाद वहाबी प्रभाव अधीन पंजाब के मुसलमानों में कौन-सी दो धार्मिक लहरों का उदय हुआ ?
उत्तर-
1886 के बाद वहाबी प्रभाव अधीन पंजाब के मुसलमानों में दो धार्मिक सुधारों अहले-कुरान तथा अहले हदीस की लहरें आईं।

प्रश्न 30.
भारत में पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित पहले मुस्लिम समाज सुधारक कौन थे तथा उनका जन्म कहां हुआ ?
उत्तर-
भारत में पश्चिमी विचारधारा से प्रभावित पहले मुस्लिम समाज सुधारक सैय्यद अहमद खां थे। उनका जन्म दिल्ली में हुआ।

प्रश्न 31.
सर सैय्यद खां को सर की उपाधि कब मिली और उनका देहान्त कब हुआ ?
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां को सर की उपाधि 1888 ई० में मिली तथा उनका देहान्त 1898 ई० में हुआ।

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प्रश्न 32.
‘मोहम्मडन ओरिएन्टल’ कॉलेज की स्थापना कब और कहां हुई तथा यह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कब परिवर्तित हो गया ?
उत्तर-
‘मोहम्मडन ओरिएन्टल’ कॉलेज की स्थापना 1875 ई० में हुई। यह 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में परिवर्तित हुआ।

प्रश्न 33.
अलीगढ़ आन्दोलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अलीगढ़ आन्दोलन से अभिप्राय उस सामाजिक आन्दोलन से है जिसका आरम्भ सर सैय्यद अहमद खां के नेतृत्व में मुस्लिम समाज में सुधार लाने के लिए हुआ था।

प्रश्न 34.
सर सैय्यद अहमद खां के अतिरिक्त अलीगढ़ आन्दोलन के चार नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां के अतिरिक्त अलीगढ़ आन्दोलन के चार नेता-मौलवी नजीर अहमद, जकाउल्ला, अलताफ हुसैन हाली तथा शिबली नोमानी थे।

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प्रश्न 35.
अलीगढ़ आन्दोलन के अन्तर्गत स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए कौन-सी तीन सामाजिक कमजोरियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई ?
उत्तर-
अलीगढ़ आन्दोलन के अन्तर्गत स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए पर्दा प्रथा, बहुविवाह तथा तुरन्त तलाक जैसी सामाजिक कमजोरियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई गई।

प्रश्न 36.
पंजाब में मुसलमानों में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए बनी संस्थाओं को क्या कहा जाता था तथा 1890 तक इनकी संख्या क्या थी ?
उत्तर-
पंजाब में मुसलमानों में धार्मिक तथा सामाजिक सुधार के लिए बनी संस्थाओं को ‘अन्जुमन-इस्लामिया’ कहा जाता था। 1890 तक इनकी संख्या 60 से अधिक थी।

प्रश्न 37.
मिर्जा गुलाम अहमद का सम्बन्ध किस धार्मिक लहर से है तथा इनका जन्म पंजाब में कब और कहां हुआ ?
उत्तर-
मिर्जा गुलाम अहमद का सम्बन्ध अहमदिया लहर से है तथा उनका जन्म 1835 ई० में जिला गुरदासपुर के कादियां नामक स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 38.
मिर्जा गुलाम अहमद ने अपने अनुयायी बनाने कब शुरू किए तथा अपने आपको पैगम्बर कब कहना आरम्भ किया ?
उत्तर-
मिर्जा गुलाम अहमद ने 1890 ई० में अपने अनुयायी बनाने शुरू किये। 1900 ई० में उन्होंने अपने आपको पैगम्बर कहना आरम्भ कर दिया।

प्रश्न 39.
अहमदिया लहर में दो सम्प्रदाय कब बन गए तथा उसके केन्द्र कहां थे ?
उत्तर-
अहमदिया लहर में दो सम्प्रदाय 1914 ई० में बने तथा उसके केन्द्र कादियां तथा लाहौर में थे।

प्रश्न 40.
अहमदिया लोगों ने भारत से बाहर अपने मत का प्रचार कौन-से तीन महाद्वीपों में किया ?
उत्तर-
अहमदिया लोगों ने भारत से बाहर अपने मत का प्रचार अफ्रीका, यूरोप तथा अमेरिका में किया।

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प्रश्न 41.
निरंकारी सम्प्रदाय के संस्थापक कौन थे तथा इनका जन्म कहां और कौन-से परिवार में हुआ ?
उत्तर-
निरंकारी सम्प्रदाय के संस्थापक बाबा दयाल थे। इनका जन्म पेशावर के एक खत्री सर्राफ के घर हुआ।

प्रश्न 42.
बाबा दयाल ने गुरु ग्रन्थ साहिब की मर्यादा के अनुसार साधारण जीवन के कौन-से चार अवसरों के लिए नीतियां चलाईं ?
उत्तर-
बाबा दयाल ने गुरु ग्रन्थ साहिब की मर्यादा के अनुसार जन्म, नामकरण, विवाह तथा मरण से सम्बन्धित अवसरों पर रीतियां चलाईं।

प्रश्न 43.
बाबा दयाल का देहान्त कब और कहां हुआ तथा दयालसर किस स्थान को कहा जाता है ?
उत्तर-
बाबा दयाल का देहान्त 1855 ई० में रावलपिंडी में हुआ। जिस स्थान पर उनकी देह को नदी में समर्पित किया गया, वहां उनके नाम पर बाद में दयालसर बना।

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प्रश्न 44.
बाबा दयाल के उत्तराधिकारी का नाम लिखो तथा उन्होंने किस दोआब में अपने विचारों का प्रचार किया ?
उत्तर-
बाबा दयाल के उत्तराधिकारी का नाम बाबा दरबारा सिंह था। उन्होंने सिन्ध सागर में अपने विचारों का प्रचार किया।

प्रश्न 45.
बाबा दरबारा सिंह का देहान्त कब हुआ तथा उनके दो उत्तराधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
बाबा दरबारा सिंह का देहान्त 1870 ई० में हुआ। उनके दो उत्तराधिकारी साहिब रत्ता जी तथा बाबा गुरदित्तौ सिंह थे।

प्रश्न 46.
1947 ई० से पहले पंजाब के किस दोआब में निरंकारियों ने अपने मत का प्रचार किया तथा आजकल उनका मुख्यालय कौन-सा है ?
उत्तर-
1947 ई० से पहले पंजाब के सिन्ध सागर दोआब में निरंकारियों ने अपने मत का प्रचार किया। आजकल इनका मुख्यालय चण्डीगढ़ में है।

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प्रश्न 47.
नामधारी लहर के संस्थापक कौन थे तथा उन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के कौन-से दोआब में किया ?
उत्तर-
नामधारी लहर के संस्थापक बाबा बालक सिंह थे। इन्होंने अपने धार्मिक विचारों का प्रचार पंजाब के सिन्ध सागर दोआब में किया।

प्रश्न 48.
बाबा बालक सिंह का देहान्त कब हुआ तथा उनके श्रद्धालुओं को ‘नामधारी’ क्यों कहा जाता था ?
उत्तर-
बाबा बालक सिंह का देहान्त 1862 ई० में हुआ। ‘नाम’ स्मरण पर विशेष बल देने के कारण उनके श्रद्धालुओं को ‘नामधारी’ कहा जाता था।

प्रश्न 49.
नामधारी लहर को पंजाब के केन्द्रीय जिलों में किसने फैलाया तथा ये किस जिले के रहने वाले थे ?
उत्तर-
नामधारी लहर को पंजाब के केन्द्रीय जिलों में बाबा राम सिंह ने फैलाया। यह लुधियाना जिले (भैनी गांव) के रहने वाले थे।

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प्रश्न 50.
नामधारियों के पहरावे की चार विशेषताएं क्या थी ?
उत्तर-
नामधारी सफेद खद्दर का कुर्ता तथा कछहरा पहनते थे। वे सीधी पगड़ी बांधते थे तथा गले में सफेद ऊन की माला डालते थे।

प्रश्न 51.
नामधारियों में बहुसंख्या समाज के कौन-से तीन वर्गों की थी तथा बाबा राम सिंह का पारिवारिक व्यवसाय क्या था ?
उत्तर-
नामधारियों में बहुसंख्या तरखानों, जाटों तथा मजहबी सिक्खों की थी। बाबा राम सिंह का पारिवारिक व्यवसाय बढ़ईगिरी था।

प्रश्न 52.
बाबा राम सिंह ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए कौन-सी दो बातों पर बल दिया ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह ने लड़कियों को पैदा होते ही मार देने की प्रथा का विरोध किया। उन्होंने विधवा विवाह का समर्थन किया।

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प्रश्न 53.
लोग नामधारियों को कूका क्यों कहने लग गए ?
उत्तर-
नामधारी लोग शब्द बाणी पढ़ते समय ऊंची आवाज़ में बोलने या चीख (कूक) मारने लगते थे। इसलिए उन्हें कूका कहा जाने लगा।

प्रश्न 54.
बाबा राम सिंह ने अपने श्रद्धालुओं के साथ सम्पर्क रखने के लिए कौन-सी दो विधियां अपनाईं ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह ने अपने श्रद्धालुओं के साथ सम्पर्क रखने के लिए विभिन्न जिलों में अपने प्रतिनिधि या सूबे नियुक्त किए। उन्होंने अपनी डाक व्यवस्था भी बना ली।

प्रश्न 55.
1871 ई० में नामधारियों ने किन दो स्थानों पर कसाइयों को मारा था तथा उन्हें क्या सजा दी गई ?
उत्तर-
1871 ई० में नामधारियों ने अमृतसर तथा रायकोट में कसाइयों को मारा था। उन्हें फांसी की सजा दी गई।

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प्रश्न 56.
नामधारियों ने मालेरकोटला पर हमला कब किया तथा उन्हें क्या सज़ा दी गई ?
उत्तर-
नामधारियों ने मालेरकोटला पर 1872 ई० में हमला किया। इस कारण उन्हें गिरफ्तार करके तोपों से उड़ा दिया गया।

प्रश्न 57.
बाबा राम सिंह को रंगून कब भेजा गया तथा उन्हें क्या सज़ा दी गई ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह को 1872 ई० में रंगून भेजा गया। उन्हें देश निकाला मिला था।

प्रश्न 58.
बाबा राम सिंह के बाद नामधारियों का नेतृत्व करने वाले दो गुरु कौन थे ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह के बाद नामधारियों का नेतृत्व करने वाले दो गुरु-बाबा हरि सिंह और बाबा प्रताप सिंह थे।

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प्रश्न 59.
सब से पहले दो सिंह सभायें कब तथा कहां स्थापित की गई ?
उत्तर-
पहली सिंह सभा 1873 ई० में अमृतसर और दूसरी 1879 में लाहौर में स्थापित की गई।

प्रश्न 60.
19वीं सदी में सिंह सभाओं की संख्या कितनी हो गई तथा इनका सदस्य कौन बन सकता था ?
उत्तर-
19वीं सदी में सिंह सभाओं की संख्या 120 हो गई। कोई भी सिक्ख इनका सदस्य बन सकता था।

प्रश्न 61.
सिंह सभाओं में कौन-से चार वर्गों के लोग शामिल थे ?
उत्तर-
सिंह सभाओं में उच्च वर्ग के ज़मींदार, साधारण किसान, नौकरी पेशा तथा व्यापारी शामिल थे ।

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प्रश्न 62.
‘चीफ खालसा दीवान’ कब स्थापित हुआ तथा इसने क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
चीफ खालसा दीवान 1902 में स्थापित हुआ। इसने सिंह सभा लहर का नेतृत्व किया तथा सिक्खों के प्रतिनिधि की भूमिका निभाई।

प्रश्न 63.
‘खालसा ट्रस्ट सोसाइटी’ कब स्थापित हुई तथा इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
खालसा ट्रस्ट सोसाइटी 1894 ई० में स्थापित हुई। उसका उद्देश्य पंजाबी भाषा तथा गुरुमुखी लिपि में नए विचारों का प्रचार करना था।

प्रश्न 64.
सिंह सभा लहर के प्रभाव अधीन निकाली जाने वाली दो पत्रिकाओं के नाम बताएं।
उत्तर-
सिंह सभा लहर के प्रभाव अधीन निकाली जाने वाली दो पत्रिकाएं खालसा समाचार’ तथा ‘खालसा एडवोकेट’ थीं।

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प्रश्न 65.
सिंह सभाओं ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए किन दो बातों पर जोर दिया ?
उत्तर-
सिंह सभा ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए लड़कियों की शिक्षा तथा स्त्री-पुरुष समानता पर बल दिया।

प्रश्न 66.
सिंह सभा लहर के शिक्षा के कार्यक्रम का क्या प्रयोजन था ?
उत्तर-
सिंह सभा लहर के शिक्षा के कार्यक्रम का प्रयोजन विज्ञान तथा अंग्रेज़ी को नैतिक और धार्मिक शिक्षा के साथ जोड़ना था।

प्रश्न 67.
सिंह सभा लहर के प्रयत्नों से बनी सबसे महत्त्वपूर्ण शिक्षा संस्था कब तथा कहां स्थापित हुई ?
उत्तर-
सिंह सभा लहर के प्रयत्नों से 1892 ई० में अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई ।

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प्रश्न 68.
सिक्ख एजुकेशनल कान्फ्रेंस कब स्थापित की गई तथा उसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
सिक्ख एजुकेशनल कान्फ्रेंस 1908 ई० में स्थापित की गई। इसका उद्देश्य शिक्षा सम्बन्धी विचार-विमर्श करना तथा शिक्षा के क्षेत्र का विस्तार करना था। .

प्रश्न 69.
सिंह सभा लहर के चार नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
सिंह सभा लहर के चार नेता बाबा खेम सिंह बेदी, सरदार ठाकुर सिंह संधावालिया, प्रो० गुरुमुख सिंह और ज्ञानी . दित्त सिंह थे।

प्रश्न 70.
बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में सभाओं ने गुरुद्वारों के सुधार के लिए कौन-से दो प्रकार के यत्न किए ?
उत्तर-
बीसवीं सदी के पहले दो दशकों में सभाओं के प्रयत्नों से हरमंदर साहिब के बाहरी हिस्सों से मूर्तियों को उठा लिया गया। सिंह सभाओं ने इन्हीं गुरुद्वारों से महन्तों को निकलवाने के लिए सरकार से भी टक्कर ली।

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II. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किस विचारधारा के प्रभाव अधीन ब्रह्म समाज की स्थापना हुई तथा इसका क्या उद्देश्य था ?
उत्तर-
ब्रह्म समाज की स्थापना पश्चिमी विचारधारा तथा भारतीय विचारधारा के संगम के कारण हुई। ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय पश्चिमी विज्ञान तथा तकनीकी को भारतीयता का रंग देना चाहते थे। इसी बात से प्रेरित हो कर उन्होंने ब्रह्म समाज की 1829 ई० में स्थापना की। इस सभा का उद्देश्य एक परमात्मा की उपासना पर बल देना और वेदों एवं उपनिषदों की तर्कसंगत व्याख्या करना था। मूर्ति-पूजा और सामाजिक त्रुटियों का विरोध करना भी इसका एक उद्देश्य था। जाति-पाति के भेद-भाव समाप्त करना भी सभा का महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम था। स्त्रियों की पुरुषों के साथ समानता भी इसके आदर्शों में सम्मिलित था। अतः राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा को समाप्त करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 2.
रामकृष्ण मिशन की विचारधारा तथा कार्यक्रम बताएं।
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन की स्थापना सन् 1896 में स्वामी विवेकानन्द ने कलकत्ता (कोलकाता) में की। यह मिशन विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर चलाया था। रामकृष्ण की रुचि विशेष रूप से धार्मिक सुधार में थी। स्वामी विवेकानन्द का विचार था कि मुक्ति प्राप्त करने के बहुत से मार्ग हैं। वे मुसलमानों और ईसाइयों के साथ भी सम्पर्क रखते थे। उनका यह भी विचार था कि मनुष्य की सेवा करना परमात्मा की सेवा है। स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु के विचारों का प्रचार करने के लिए रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि धर्म के द्वारा ही समाज का पुनर्निर्माण हो सकता है। वे वेदान्त के पक्ष में थे। उन्होंने जाति-पाति का जोरदार खण्डन किया। वे कर्मकाण्ड की व्यर्थ रीतियों और अन्ध-विश्वासों का भी सख्ती से विरोध करते थे। रामकृष्ण मिशन स्थापित करने के छः वर्ष पश्चात् स्वामी विवेकानन्द का देहान्त हो गया। परन्तु तब तक भारत के बहुत-से नगरों में इसको केन्द्र खुल चुके थे। समाज-सुधार और सेवा के क्षेत्र में रामकृष्ण मिशन ने बहुत से स्कूल स्थापित किये, अस्पताल खोले, अनाथ आश्रम चलाये और पुस्तकालय खोले।

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प्रश्न 3.
महाराष्ट्र में समाज सुधारकों ने किस बात पर जोर दिया ?
उत्तर-
महाराष्ट्र में सुधार लहर के उद्देश्य लगभग अन्य सुधारकों से मेल खाते थे। 1849 ई० में ‘परमहंस सभा’ स्थापित हुई। इसका उद्देश्य परमात्मा की एकता का प्रचार करना और जाति-पाति का विरोध करना था। ज्योतिबा फूले ने स्त्री शिक्षा पर बल दिया। वे विधवा-विवाह के पक्ष में भी थे। कुछ समय पश्चात् एक ‘विधवा पुनर्विवाह सभा’ स्थापित हुई। इसी तरह गोपाल हरि देशमुख ने अपने प्रगतिशील विचारों द्वारा सामाजिक त्रुटियों का खण्डन किया।

महाराष्ट्र में सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था 1867 में ‘प्रार्थना सभा’ के नाम से स्थापित हुई। इसके प्रतिनिधि धार्मिक सुधार की अपेक्षा सामाजिक सुधार में अधिक रुचि रखते थे। जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे और रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर ने इस सभा द्वारा समाज की सेवा की। अनाथों के लिए आश्रम खोले गए। सामाजिक सुधार और सेवा की यह रुचि 20वीं सदी के आरम्भ तक चलती रही।

प्रश्न 4.
स्वामी दयानन्द के सामाजिक तथा धार्मिक विचार क्या थे ?
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द सरस्वती थे। उन्होंने समाज का सुधार करने के लिए 1875 ई० में आर्य समाज की स्थापना की। थोड़े ही समय पश्चात् सारे देश में इसकी शाखाओं का जाल-सा बिछ गया। स्वामी दयानन्द के अपने स्वतन्त्र विचार थे जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

  • ईश्वर एक है। वह सर्वव्यापी तथा सर्वशक्तिमान् है। उसका कोई आकार नहीं है। अतः उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करना व्यर्थ है।
  • वेद सत्य हैं। वेद ईश्वर की वाणी हैं। वेद ही हमें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति दिला सकते हैं।
  • ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान के अन्धकार का नाश करना चाहिए।
  • शुद्धि द्वारा प्रत्येक धर्म का अनुयायी हिन्दू बन सकता है।
  • पूर्वजों के श्राद्ध, बाल-विवाह तथा छूतछात के भेदभाव वैदिक धर्म के विपरीत हैं। इस संस्था ने पंजाब के साथ-साथ पूरे देश में धार्मिक तथा सामाजिक उत्थान के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किए।

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प्रश्न 5.
‘अलीगढ़ आन्दोलन’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अलीगढ़ आन्दोलन एक मुस्लिम आन्दोलन था। यह आन्दोलन सर सैय्यद अहमद खां ने मुसलमानों में जागृति पैदा करने के लिए चलाया। उस समय मुसलमान काफ़ी पिछड़े हुए थे। वे अरबी और फारसी को छोड़कर अन्य किसी भी भाषा की शिक्षा प्राप्त करना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे। इसलिए वे सरकारी नौकरियों से वंचित थे। ऐसी दशा में सर सैय्यद अहमद खां ने मुसलमानों को ऊंचा उठाने का निश्चय किया। उन्होंने मुसलमानों को अंग्रेज़ी शिक्षा प्राप्त करने की प्रेरणा दी। मुस्लिम समाज की कुरीतियों को दूर करने के लिए उन्होंने ‘तहजीब-उल-अकल’ नामक एक पत्रिका निकालनी आरम्भ की। 1875 ई० में उन्होंने अलीगढ़ में ऐंग्लो-ओरियण्टल कॉलेज की स्थापना की। यह कॉलेज 1920 ई० में मुस्लिम विश्वविद्यालय बना। इस विश्वविद्यालय ने अनेक विचारकों को जन्म दिया।

प्रश्न 6.
बाबा राम सिंह की शिक्षाएं क्या थी ?
उत्तर-
बाबा राम सिंह प्रमुख नामधारी नेता थे। उनकी शिक्षाएं बड़ी सरल एवं प्रभावशाली थीं। वह जाति प्रथा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने सभी धर्मों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। हिन्दू-मुसलमान आदि सभी लोग कूका मत में सम्मिलित हो सकते थे। वे ब्राह्मणों, महन्तों तथा बेदियों के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं करते थे। उन्होंने मूर्ति पूजा का भारी विरोध किया। उन्होंने अन्तर्जातीय विवाह तथा विधवा विवाह पर बल दिया। बाबा रामसिंह जी ने लोगों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने शिष्यों को आडम्बर, झूठ तथा धोखेबाज़ी से दूर रहने का आदेश दिया। उन्होंने ब्राह्मणों के धार्मिक पाखण्डों के विरुद्ध आवाज़ उठाई तथा सती-प्रथा बन्द करवाने का प्रयास किया। वह बाल-विवाह, कन्या-वध तथा लड़कियों के विक्रय के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने अपने शिष्यों में विवाह की आनन्द कारज प्रथा प्रचलित की। फलस्वरूप विवाह सादा और कम खर्चीला हो गया। कूका लोगों को पवित्र स्थानों पर नंगे सिर जाने की आज्ञा नहीं थी। गुरु राम सिंह ने नामधारियों के लिए दोहरी पगड़ी पहनना आवश्यक बताया। उन्होंने अपने अनुयायियों को दसवें गुरु गोबिन्द सिंह द्वारा रचित ‘ग्रन्थ साहिब’ के अध्ययन करने की प्रेरणा दी।

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प्रश्न 7.
सिंह सभा लहर के उद्देश्य तथा कार्यक्रम के बारे में बताएं।
उत्तर-
सिंह सभा लहर का आरम्भ 1873 ई० में हुआ। 1890 ई० तक 120 स्थानों पर सिंह सभाएं स्थापित हो चुकी थीं। इस लहर का मुख्य उद्देश्य प्राचीन सिक्ख परम्पराओं और खालसा आचरण को फिर से लागू करना था। इनका दूसरा उद्देश्य पंजाबी भाषा तथा गुरुमुखी लिपि का प्रचार करना था। शिक्षा का प्रसार करना भी इस लहर का एक उद्देश्य था।

इस लहर को संगठित करने के लिए 1902 में ‘चीफ खालसा दीवान’ बनाया गया। पंजाबी भाषा के विकास के लिए ‘खालसा ट्रैक्ट सोसाइटी’ स्थापित की गई। अमृतसर में खालसा कॉलेज की स्थापना हुई। 1908 में सिक्ख एजूकेशनल कांफ्रैंस का गठन हुआ। इस तरह सिंह सभा लहर ने गुरुद्वारों को महन्तों से आजाद कराया और सिक्खों में सामाजिक तथा राजनीतिक जागृति पैदा की।

प्रश्न 8.
अहमदिया लहर का धार्मिक पक्ष क्या था ?
उत्तर-
अहमदिया लहर को कादियानी लहर भी कहा जाता है। इसके संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद थे। उनका जन्म 1835 ई० में गुरदासपुर जिले के कादियां नामक स्थान पर हुआ था। उसे देश में प्रचलित सभी धार्मिक लहरों के विषय में पूरी-पूरी जानकारी थी। वह भी देश में अपने ही ढंग से धर्म-सुधार करना चाहता था। वह यह भी चाहता था, कि देश में ईसाई मिशनरियों तथा आर्य समाज के बढ़ते हुए प्रभाव को रोका जाये। अतः उसने लोगों के सामने इस्लाम की एक नई व्याख्या प्रस्तुत की। कुरान के महत्त्व पर अत्यधिक बल दिया और इसकी व्याख्या करना उचित ठहराया। उसकी यही विचारधारा अहमदिया लहर के नाम से प्रसिद्ध हुई। 1890 ई० में अनेक लोग उसके अनुयायी बन गये। उसका प्रभाव इतना बढ़ गया कि 1900 ई० में उसने अपने आपको मसीहा तथा पैगम्बर कहना आरम्भ कर दिया। 1908 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। परन्तु उसके उत्तराधिकारियों ने इस आन्दोलन को जारी रखा। 1914 ई० में यह आन्दोलन दो शाखाओं में बंट गया। एक का केन्द्र कादियां में रहा और दूसरी शाखा ने लाहौर में अपना केन्द्र स्थापित किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार

प्रश्न 9.
धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने मुख्य रूप से किन दो विषयों पर बल दिया ?
उत्तर-
धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने मुख्य रूप से दो महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं पर बल दिया : स्त्रियों की भलाई तथा जाति भेद को समाप्त करना। इन कार्यक्रमों का आधार मानवीय समानता की विचारधारा थी। परन्तु समानता की यह विचारधारा केवल धर्म के क्षेत्र तक ही सीमित नहीं थी। इसका राजनीतिक महत्त्व भी था। अंग्रेजों के राज्य में कानूनी रूप से तो सभी भारतीय समान थे, परन्तु सामाजिक या राजनीतिक रूप से नहीं थे।

भारत में स्त्रियों की संख्या देश की जनसंख्या से लगभग आधी थी। विश्व के अन्य समाजों की भान्ति भारत में भी स्त्री पुरुष के अधीन थी। धर्म और कानून की व्यवस्था भी उसके पक्ष में नहीं थी। पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुप्रथाएं इसी असमानता का परिणाम थीं। धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों ने स्त्रियों की भलाई पर बल दिया। उनके प्रयासों का परिणाम भी अच्छा निकला। धीरे-धीरे स्त्रियों ने राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक और सामाजिक आन्दोलनों में स्वयं भाग लेना आरम्भ कर दिया। उन्होंने समानता की मांग की। देश के प्रमुख नेताओं ने इसका जोरदार समर्थन किया। परिणामस्वरूप स्त्रीपुरुष की समानता का आदर्श स्वीकार कर लिया गया।

प्रश्न 10.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे ? इस संस्था द्वारा किए गए किन्हीं चार धार्मिक तथा सामाजिक सुधारों का वर्णन कीजिए।
अथवा
19वीं शताब्दी में समाज-सुधार के क्षेत्र में आर्य समाज की क्या भूमिका रही ?
उत्तर-
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानन्द सरस्वती ने की थी। इस संस्था द्वारा किए गए चार धार्मिक तथा सामाजिक सुधारों का वर्णन निम्नलिखित है–

  1. इस संस्था ने जाति-प्रथा के विरुद्ध आवाज़ उठाई और भाईचारे की भावना पर बल दिया।
  2. इस संस्था ने सती-प्रथा, बाल-विवाह तथा कन्या-वध आदि सामाजिक कुप्रथाओं का विरोध किया।
  3. इसने विधवाओं को पुनः विवाह करने की अनुमति देने तथा स्त्री शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया।
  4. इस संस्था ने समाज में प्रचलित मूर्ति-पूजा तथा अन्ध-विश्वास का खण्डन किया।

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प्रश्न 11.
मुसलमानों में जागृति लाने के लिए सर सैय्यद अहमद खां ने क्या-क्या कार्य किए ?
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां ने मुसलमानों में जागृति लाने के लिए निम्नलिखित कार्य किए-
1. उनका विश्वास था कि मुसलमानों में केवल पश्चिमी शिक्षा के प्रसार द्वारा ही जागृति लाई जा सकती है, इसलिए उन्होंने मुसलमानों को पश्चिमी शिक्षा प्राप्त करने और पश्चिमी साहित्य का अध्ययन करने की प्रेरणा दी।

2. उन्होंने अलीगढ़ में एम० ए० ओ० कॉलेज की स्थापना की। यहां मुसलमान विद्यार्थियों को पश्चिमी ढंग से शिक्षा दी जाती थी।

3. उनका विचार था कि मुसलमानों के उत्थान के लिए अंग्रेजों की सहानुभूति प्राप्त करना आवश्यक है, इसलिए उन्होंने मुसलमानों को अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार रहने की प्रेरणा दी।

4. उन्होंने मुसलमानों के दृष्टिकोण को आधुनिक बनाने के लिए कुरान की वैज्ञानिक व्याख्या प्रस्तुत की।

प्रश्न 12.
भारतीय नारी की दशा सुधारने के लिए आधुनिक सुधारकों द्वारा किए गए कोई चार कार्य लिखिए।
उत्तर-
1. सती-प्रथा के कारण स्त्री को अपने पति की मृत्यु पर उसके साथ जीवित ही चिता में जल जाना पड़ता था। आधुनिक समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से इस अमानवीय प्रथा का अन्त हो गया।

2. विधवाओं को पुनः विवाह करने की आज्ञा नहीं थी। समाज-सुधारकों के प्रयत्नों से उन्हें दोबारा विवाह करने की आज्ञा मिल गई।

3. आधुनिक सुधारकों का विश्वास था कि पर्दे में बन्द रहकर नारी कभी उन्नति नहीं कर सकती, इसलिए उन्होंने स्त्रियों को पर्दा न करने के लिए प्रेरित किया।

4. स्त्रियों को ऊंचा उठाने के लिए समाज-सुधारकों ने स्त्री शिक्षा पर विशेष बल दिया।

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प्रश्न 13.
ब्रह्म समाज की सामाजिक उपलब्धियों पर नोट लिखें।
उत्तर-
ब्रह्म समाज की स्थापना 1828 ई० में राजा राममोहन राय ने की। इस संस्था की सामाजिक उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार है-
1. राजा राममोहन राय ने सती प्रथा का अन्त करने का प्रयास किया। उनके प्रयत्नों से लॉर्ड विलियम बैंटिक ने 1829 ई० में एक कानून पास करके सती प्रथा को अवैध घोषित कर दिया।

2. ब्रह्म समाज ने जातीय भेद-भाव, छुआछूत, मानव-बलि, बहु-पत्नी विवाह तथा अन्य अनेक सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई।

3. ब्रह्म समाज ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल दिया।

4. ब्रह्म समाज ने देश में पश्चिमी शिक्षा और पश्चिमी सभ्यता के प्रसार पर बल दिया। 1817 ई० में राजा राममोहन राय ने कलकत्ता (कोलकाता) में एक अंग्रेजी स्कूल का संचालन किया। उन्होंने 1825 ई० में एक वेदान्त कॉलेज की स्थापना की जहां पश्चिमी ढंग से शिक्षा का प्रसार होता था।

प्रश्न 14.
आर्य समाज की राजनीतिक उपलब्धियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक क्षेत्र में भी आर्य समाज का योगदान बड़ा ही महत्त्वपूर्ण था। स्वामी दयानन्द पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने ‘स्वराज्य’ शब्द का प्रयोग किया। स्वामी जी ने लोगों को कहा कि वे विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करें। साथ ही उन्होंने लोगों को स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग के लिए प्रेरणा दी। उन्होंने हिन्दी को राज्यभाषा का पद दिलाने की पहल की। स्वतन्त्रता आन्दोलन में कांग्रेस का नेतृत्व करने वाले कुछ व्यक्ति भी आर्य समाज से प्रभावित थे। इस आन्दोलन में भाग लेने वाले लाला लाजपतराय, मदन मोहन मालवीय, स्वामी श्रद्धानन्द, रामभज आदि व्यक्ति आर्य समाज से ही सम्बन्ध रखते थे। इसके अतिरिक्त क्रान्तिकारी आन्दोलन में आर्य समाज ने काफ़ी योगदान दिया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रह्म समाज की उपलब्धियों का वर्णन करें।
उत्तर-
ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय थे। वह एक उच्चकोटि के समाज सुधारक थे। उन्होंने हिन्दू समाज में से न केवल प्रचलित कुप्रथाओं का ही अन्त किया, बल्कि उसे इसाई धर्म के प्रभाव से भी बचाया। उन्होंने सबसे पहले आत्मीय सभा की स्थापना की। इसके पश्चात् 1828 ई० में उन्होंने ब्रह्म समाज की नींव डाली। उन्होंने ब्रह्म समाज के माध्यम से समाज में प्रचलित अनेक कुप्रथाओं का विरोध किया। उन्होंने लोगों का ध्यान वेदों तथा उपनिषदों की महानता की ओर दिलाया और उनसे वेदों द्वारा बताये गये मार्ग पर चलने को कहा।

राजा राममोहन राय की मृत्यु के पश्चात् ब्रह्म समाज दो शाखाओं में बंट गया। पहली शाखा आदि समाज की थी जिसका नेतृत्व देवेन्द्रनाथ टैगोर ने किया। दूसरी शाखा साधारण समाज की थी जिसका नेतृत्व केशवचन्द्र सेन ने किया। ब्रह्म समाज अथवा राजा राममोहन राय की उपलब्धियों का वर्णन इस प्रकार है-

1. सामाजिक जागृति-

  1. राजा राममोहन राय ने सती-प्रथा का अन्त करने का प्रयास किया। उनके प्रयत्नों से 1829 ई० में लॉर्ड विलियम बैंटिंक ने एक कानून पास करके सती-प्रथा को अवैध घोषित कर दिया। यह राजा राममोहन राय तथा ब्रह्म समाज की बहुत बड़ी विजय थी।
  2. उन्होंने जातीय भेद-भाव, छुआछूत, मानव बलि तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  3. उन्होंने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए स्त्री-शिक्षा पर विशेष बल दिया।

2. धार्मिक जागृति-

  1. उन्होंने मूर्ति-पूजा तथा अन्ध-विश्वासों का जोरदार खण्डन किया।
  2. उन्होंने लोगों को एक ही ईश्वर में विश्वास रखने के लिए प्रेरित किया।
  3. उन्होंने लोगों को पापों से दूर रहने और अच्छे कर्म करने का उपदेश दिया। उनका कहना था कि ईश्वर की भक्ति ही मोक्ष-प्राप्ति का एकमात्र साधन है।

3. सांस्कृतिक जागृति-राजा राममोहन राय ने देश में पश्चिमी शिक्षा और पश्चिमी सभ्यता के प्रसार पर बल दिया। उनका कहना था कि पश्चिमी विचारों के प्रसार से सामाजिक कुरीतियाँ अपने-आप दूर हो जाएंगी। शिक्षा के प्रसार के लिए उन्होंने 1817 ई० में कलकत्ता (कोलकाता) में एक अंग्रेजी स्कूल का संचालन किया। ब्रह्म समाज ने 1825 ई० में एक वेदान्त कॉलेज की स्थापना की जहां पश्चिमी ढंग से शिक्षा का प्रसार किया जाता था। .. सच तो यह है कि राजा राममोहन राय ने भारतीय समाज को कई कुरीतियों से मुक्त कराने में महान् कार्य किया। इसलिए उन्हें नये युग का अग्रदूत और भारतीय राष्ट्रवाद का पिता कहा जाता है। मिस कोलिट के अनुसार, “उन्होंने भारत को उसके अतीत से आधुनिक युग में लाने के लिए एक पुल का कार्य किया।”

प्रश्न 2.
आर्य समाज पर एक विस्तृत नोट लिखो।
उत्तर-
आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द जी थे। उन्होंने 1875 ई० में बम्बई (मुम्बई) के स्थान पर आर्य समाज की स्थापना की। लाहौर में आर्य समाज की स्थापना अप्रैल, 1877 में हुई। शीघ्र ही लाहौर आर्य समाज का मुख्य केन्द्र बन गया।

उद्देश्य तथा आदर्श-आर्य समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य वेदों का प्रचार करना तथा मूर्ति पूजा और खोखले रीतिरिवाजों का खण्डन करना था। स्वामी जी ने कर्म व मोक्ष पर भी बल दिया। उन्होंने लोगों को “पुनः वेदों की ओर चलो” का आदेश दिया। उनके द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश में वेदों का ज्ञान भण्डार छिपा है।

उन्होंने स्त्री व पुरुष की समानता पर बल दिया। इसलिए उन्होंने कन्या वध तथा सती प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध किया। वह विधवा विवाह के पक्ष में थे। स्वामी जी ने जाति-पाति का भी कड़ा विरोध किया।

उन्होंने समाज में अज्ञानता को दूर करने के लिए अनिवार्य शिक्षा का समर्थन किया। वह स्त्री शिक्षा के भी समर्थक थे। उन्होंने हिन्दी भाषा को राष्ट्रीय भाषा बनाने का तर्क प्रस्तुत किया।

30 अक्तूबर, 1883 ई० को स्वामी दयानन्द का देहान्त हो गया। उनके पश्चात् भी उनके अनुयायियों ने आर्य समाज के कार्य का प्रसार किया।

धार्मिक कार्य-धार्मिक क्षेत्र में आर्य समाज ने मूर्ति पूजा व कर्मकाण्डों का त्याग करने की शिक्षा दी।।
सामाजिक कार्य-

(i) आर्य समाज ने जाति-पाति की कड़ी आलोचना की। निम्न वर्ग का स्तर ऊँचा उठाने के लिए शिक्षा तथा आर्थिक सहायता का प्रबन्ध किया। इस दिशा में उनका दूसरा प्रयास शुद्धि आन्दोलन था।

(ii) समाज ने अनाथ बच्चों के लिए अनाथालय स्थापित किए।

(iii) विधवा स्त्रियों की सहायता के लिए विधवा आश्रम स्थापित किए गए। शिक्षा के क्षेत्र में शिक्षा के क्षेत्र में आर्य समाज का बहुमूल्य योगदान है। स्वामी जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए उनके अनुयायियों ने 1886 ई० में दयानन्द ऐंग्लो वैदिक (D.A.V.) के नाम पर शिक्षण संस्थाएं स्थापित की।

राजनीतिक क्षेत्र में स्वामी जी की स्वराज्य की प्राथमिकता ने इनके अनुयायियों को देश प्रेम से ओत-प्रोत कर दिया। लाला लाजपत राय, स्वामी हंसराज, स्वामी श्रद्धानन्द, मदन मोहन मालवीय तथा रामभज जैसे बहुत से आर्य समाजियों ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।।

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प्रश्न 3.
नामधारी (कूका) आन्दोलन पर विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
नामधारी आन्दोलन का आरम्भ-नामधारी लहर का आरम्भ 1857 ई० में हुआ। इस वर्ष वैशाखी के दिन बाबा रामसिंह ने एक सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसे ‘नामधारी’ सम्प्रदाय कहा जाता है। ‘नामधारी’ लोग मन्त्रों को मस्ती में उच्च स्वर में गाते थे। ऊंचे स्वर में गाए जाने वाले गीत अथवा कूक के कारण उन्हें कूका कहा जाने लगा और उनके प्रचार कार्य को ‘कूका आन्दोलन’ का नाम दिया गया। इस लहर का प्रमुख केन्द्र भैणी गांव था जोकि ज़िला लुधियाना में स्थित है। बाबा रामसिंह जी स्वयं भी यहीं के रहने वाले थे।
नामधारी आन्दोलन के सिद्धान्त अथवा शिक्षाएं-इस आन्दोलन के प्रमुख सिद्धान्त और शिक्षाएं निम्नलिखित थी-

  1. एक ईश्वर में श्रद्धा।
  2. श्वेत वस्त्र तथा श्वेत ऊन के मनकों की माला पहनना और सीधी पगड़ी पहनना।
  3. श्री गुरु ग्रन्थ साहिब पर अटल विश्वास रखना तथा इसका पाठ करना।
  4. गुरु गोबिन्द सिंह को अपना गुरु मानना।
  5. बाल विवाह, कन्या वध, गो हत्या, दहेज तथा जाति-पाति का विरोध करना।
  6. सादा जीवन, नशीली वस्तुओं का निषेध, पुरोहित वाद, मूर्ति पूजा का खण्डन तथा अन्धविश्वासों का विरोध करना।
  7. पांच ककार धारण करना।

बाबा रामसिंह अंग्रेज़ विरोधी थे तथा स्वदेशी को महत्त्व देते थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को अंग्रेज़ सरकार की नौकरी अस्वीकार करने के लिए कहा। यहां तक कि उन्होंने लोगों को रेल, सरकारी विद्यालय, नौकरियां, कार्यालय, अदालतें, सरकारी डाक-तार आदि का बहिष्कार करने के लिए भी कहा। बाबा राम सिंह ने लोगों को विदेशी वस्तुओं तथा कपड़े का भी बहिष्कार करने की शिक्षा दी। उन्होंने लोगों को चर्खे पर बने खद्दर का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया।

अंग्रेजी सरकार से टकराव-नामधारी सिक्खों ने शीघ्र ही शस्त्र धारण कर लिए। फलस्वरूप अंग्रेजों के साथ उनकी सीधी टक्कर आरम्भ हो गई। उस समय अनेक इसाई मिशनरी सिक्खों के विरुद्ध प्रचार करते थे और अंग्रेजों की ओर से ‘गो हत्या’ की भी खुली छूट थी। नामधारी सिक्ख इन बातों को सहन न कर सके और उन्होंने रायकोट के बूचड़खाने पर आक्रमण करके अनेक गो-हत्यारों को मार डाला। इस आरोप में 66 नामधारियों को तोपों से उड़ा दिया गया। बाबा रामसिंह जी को भी देश-निकाला देकर रंगून भेज दिया गया। यहीं पर 1885 ई० में उनका देहान्त हो गया। इसके बाद भी कुछ नामधारियों ने अपना धार्मिक और सामाजिक कार्यक्रम जारी रखा।

प्रश्न 4.
सिंह सभा लहर क्या थी और यह किस प्रकार अस्तित्व में आई ?
उत्तर-
पंजाब में नामधारी आन्दोलन की गति धीमी होने के बाद सिक्खों में एक अन्य लहर चली। यह लहर थी-सिंह सभा लहर। यह लहर बड़ी ही महत्त्वपूर्ण थी। इस लहर का राजनीति से इतना सम्बन्ध नहीं था जितना कि सिक्खों की सामाजिक तथा धार्मिक गतिविधियों से था। सिंह सभा आन्दोलन का आरम्भ सिक्खों ने अपनी कौमी सुरक्षा के लिए किया।

पहली सिंह सभा की स्थापना 1873 ई० को हुई। खेम सिंह बेदी, विक्रम सिंह आहलूवालिया और ठाकुर सिंह संधावालिया को इस सभा का प्रधान चुन लिया गया। 1879 ई० में लाहौर में एक और सभा की स्थापना की गई। इस सभा के सदस्य मध्यवर्गीय पढ़े-लिखे व्यक्ति थे। पंजाब का गवर्नर सर रॉबर्ट इजर्टन भी इस सभा का सदस्य बन गया और उसने उस समय के वायसराय लॉर्ड लैंसडाऊन को सभा की सहायता करने के लिए कहा। अप्रैल, 1880 ई० को दोनों सभाओं की संयुक्त बैठक हुई परन्तु मामला सुलझ न सका। – 1892-93 ई० में सरदार सुन्दर सिंह मजीठिया नेता के रूप में उभरे। उनका ‘अमृतसर खालसा दीवान’ तथा ‘लाहौर खालसा दीवान’ में समान प्रभाव था। उन्होंने 11 नवम्बर, 1901 ई० को कुछ प्रसिद्ध सिक्ख नेताओं की अमृतसर में सभा बुलाई। इस सभा में एकमत से यह प्रस्ताव पास किया गया कि सिक्खों को एक सर्व-सिक्ख सभा की आवश्यकता है जो उनके हितों की रक्षा करे। लाहौर के खालसा दीवान को भी इसमें शामिल होने के लिए कहा गया जिसने यह बात सहर्ष स्वीकार कर ली। अतः 30 अक्तूबर, 1902 ई० को ‘चीफ खालसा दीवान’ की स्थापना हुई। चीफ खालसा दीवान के उद्देश्य थे-

  1. उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए खालसा कॉलेज को दृढ़ करना और उसका विकास करना
  2. सिक्खों में शिक्षा आन्दोलन को संगठित करना तथा स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना करना।
  3. पंजाबी साहित्य को सुधारना।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 20 सामाजिक/धार्मिक सुधार

प्रश्न 5.
सिंह सभा लहर की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सिंह सभा की सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-
(1) अमृतसर में एक खालसा कॉलेज की स्थापना की गई। यह कॉलेज शीघ्र ही पंजाबी साहित्य का एक मुख्य केन्द्र बन गया। पंजाब के बहुत से नगरों में खालसा स्कूल खोले गए। इन स्कूलों में बच्चों को गुरुमुखी भाषा में शिक्षा दी जाने लगी।

(2) 1908 ई० के पश्चात् प्रान्त के अनेक भागों में वार्षिक शिक्षा सभाओं का आयोजन किया गया। इसके परिणामस्वरूप कई नई सिक्ख संस्थाओं की स्थापना हुई। इसमें गुजरांवाला का खालसा कॉलेज तथा फिरोज़पुर में सिक्ख कन्या महाविद्यालय प्रमुख थे।

(3) सिंह सभा ने सिक्ख धर्म के प्रचार की ओर भी पूरा ध्यान दिया। साहबसिंह बेदी, अतरसिंह, खेमसिंह बेदी तथा संगत सिंह ने धर्म प्रचार का बड़ा सराहनीय कार्य किया। इसके परिणामस्वरूप बहुत से हिन्दू सिक्ख धर्म में शामिल हो गए।

(4) भाई वीर सिंह ने ‘खालसा ट्रैक्ट सोसायटी’ की स्थापना की। उन्होंने खालसा समाचार नाम का समाचार-पत्र भी आरम्भ किया। भाई काहन सिंह जी ने इसमें अमूल्य योगदान दिया। उन्होंने सिक्ख धर्म तथा संस्कृति पर विश्व कोष लिखा। भाई दित्त सिंह . तथा अन्य अनेक कवियों तथा गद्य लेखकों ने पंजाब के साहित्य को समृद्ध बनाया।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 9 सूअर, भेड़ें/बकरियां और खरगोश पालना

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 9 सूअर, भेड़ें/बकरियां और खरगोश पालना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 9 सूअर, भेड़ें/बकरियां और खरगोश पालना

PSEB 11th Class Agriculture Guide सूअर, भेड़ें/बकरियां और खरगोश पालना Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
सूअरों की मुख्य नस्लों के नाम लिखो।
उत्तर-
सफेद यार्कशायर, लैंडरेस।

प्रश्न 2.
मादा सूअर एक साल में कितने बच्चे पैदा करती है ?
उत्तर-
एक वर्ष में 20-24 बच्चे देती है।

प्रश्न 3.
मादा सूअर एक साल में कितनी बार सू जाती है ?
उत्तर-
दो बार।

प्रश्न 4.
सूअर के बच्चों की खुराक में कितनी प्रोटीन होनी चाहिए ?
उत्तर-
20-22% ।

प्रश्न 5.
12 सप्ताह के खरगोश का कितना भार होता है ?
उत्तर-
2 किलोग्राम।

प्रश्न 6.
बकरी की किस्में बताओ।
उत्तर-
देसी नसल-बीटल, जमनापरी। विदेशी नसल-सानन, अलपाइन तथा बोअर।

प्रश्न 7.
भेड़ की किस्में बताओ।
उत्तर-
मैरीनो, कोरीडेल।

प्रश्न 8.
बीटल बकरी कौन से क्षेत्र में मिलती है ?
उत्तर-
पंजाब के अमृतसर, गुरदासपुर, फिरोज़पुर तथा तरनतारन जिलों में।

प्रश्न 9.
जमनापरी कौन से क्षेत्र में मिलती है ?
उत्तर-
उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में।

प्रश्न 10.
माँस वाले छेले को कब खस्सी करवाना चाहिए ?
उत्तर-
2 माह की आयु तक।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
सूअरों की देसी और विदेशी नस्लों में अन्तर बताओ।
उत्तर-
सूअर की देसी नस्लों का शारीरिक विकास बहुत कम होता है और देसी नस्लों के बच्चों की पैदावार भी कम होती है।
विदेशी नस्लों का शारीरिक विकास तेज़ी से होता है और इस नसल के बच्चों की पैदावार भी अधिक है।

प्रश्न 2.
सूअरों को कौन-कौन सी सस्ती खुराक डाली जा सकती है ?
उत्तर-
सब्जी मंडी की बची-खुची खराब हुई सब्ज़ियाँ और पत्ते, होस्टलों, होटलों और कैन्टीनों की जूठन, गन्ने के रस की मैल और लस्सी आदि, जैसे-सस्ते पदार्थों का प्रयोग सूअरों के आहार के लिए किया जा सकता है।

प्रश्न 3.
सूअरों की खुराक की बनावट बताओ।
उत्तर-
सूअरों के बच्चों की खुराक में 20-22% प्रोटीन देना चाहिए और रेशे की मात्रा 5% से अधिक नहीं होनी चाहिए। बढ़ रहे सूअरों की खराक में 16-18% प्रोटीन होना चाहिए और बड़े जानवरों को 2-3 किलोग्राम हरा चारा भी देना चाहिए।

प्रश्न 4.
उत्तम बकरी के गुण बताओ।
उत्तर-
उत्तम बकरी का चुनाव उसकी 120 दिनों के प्रसव बाद के दूध को देखकर की जाती है। उत्तम बकरी को 2 साल की आयु तक बच्चों को जन्म देना चाहिए। बकरी की वेल लम्बी होनी चाहिए। बढ़िया चमकीले बालों वाली होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
खरगोश की ऊन और माँस वाली किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
खरगोश की माँस वाली किस्में हैं-सोवियत चिंचला, न्यूज़ीलैंड व्हाइट, ग्रेअ जिंऐट, व्हाइट जिऐंट।
खरगोश की ऊन वाली किस्में हैं-रूसी अंगोरा, ब्रिटिश अंगोरा, जर्मन अंगोरा।

प्रश्न 6.
खरगोश किस तरह के खाने को ज्यादा पसन्द करता है ?
उत्तर-
खरगोश शाकाहारी जानवर है। इसको नेपीअर बाजरा, पालक, वांह, लुसण, गिन्नी घास, बरसीम, हरे पत्ते और सब्जियों के पत्ते खाने पसन्द हैं।

प्रश्न 7.
खरगोश का खुड्डा या पिंजरा किस तरह का होना चाहिए ?
उत्तर-
खुड्डे या पिंजरें लकड़ी के बनाए जाते हैं जो भिन्न-भिन्न आकार के हो सकते हैं; पर इनमें मलमूत्र के निकास और रोशनी का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए।

प्रश्न 8.
खरगोश हर साल कितने सूए और हर सूए में कितने बच्चों को जन्म देता है ?
उत्तर-
मादा खरगोश हर साल में 6-7 बार बच्चों को जन्म देती है और हर प्रसव में 5-7 बच्चों को जन्म देती है।

प्रश्न 9.
खरगोश की भिन्न-भिन्न नस्लों की ऊन पैदावार के बारे में लिखो।
उत्तर-
खरगोश की किस्म — ऊन की मात्रा।
रूसी अंगोरा – 215 ग्राम
ब्रिटिश अंगोरा – 230 ग्राम
जर्मन अंगोरा – 590 ग्राम

प्रश्न 10.
खरगोश की खुराक में प्रोटीन की मात्रा के बारे में बताओ।
उत्तर-
दूध न देने वाली मादा के आहार में 12-15% प्रोटीन और दूध दे रहे जानवर के आहार में 16-20% प्रोटीन तत्व देना चाहिए।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
सूअर पालन व्यवसाय को लाभदायक बनाने के लिए कौन से तथ्य हैं ?
उत्तर-
सूअर पालन के धन्धे को लाभदायक बनाने के लिए तथ्य हैं –

  • नसल का सही चुनाव करना।
  • सूअर और सूअरी का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए।
  • सूअरों को बीमारियों से बचाने के लिए अच्छा सन्तुलित आहार देना चाहिए।
  • सूअर और सूअरी को रखने और देखभाल का सही प्रबन्ध होना चाहिए।
  • सूअरी की सेहत अच्छी हो, त्वचा कसी हुई और नर्म, बाल भी नर्म, आंखें भी चमकदार, टांगें मज़बूत और कम-से-कम 12 थन होने चाहिए।
  • सूअरी को 8-9 माह की आयु में जब उसका भार 90 किलोग्राम हो, आस करवानी चाहिए।
  • बच्चों से अधिक मास की प्राप्ति के लिए इन्हें 3-4 सप्ताह की आयु में खस्सी करवा लेना चाहिए।

प्रश्न 2.
सूअरों के बाड़े के बारे में विस्तार से बताओ।
उत्तर-
सूअरों के शैड भूमि से ऊँचे, सस्ते तथा आरामदायक होने चाहिए। एक बढ़ रहे सूअर को 8 वर्ग फुट तथा दूध से हट चुकी सूअरी को 10-12 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता होती है। 20 बच्चे रखने के लिए 160 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता होती है। सूअरियों को इकट्ठा रखना हो तो 10 से अधिक नहीं रखनी चाहिए। बच्चों वाली सूअरी के कमरे में दीवार से हट के गार्ड रेलिंग लगानी चाहिए। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सूअरी के नीचे आकर बच्चे मर न जाएं। रेलिंग की फर्श से ऊंचाई 10-12 इंच तथा इतना ही इसको दीवार से दूर रखना चाहिए।

प्रश्न 3.
भेड़ों, बकरियों के बाड़े के बारे नोट लिखो।
उत्तर-
भेड़ों, बकरियों के शैड खुले तथा हवादार होने चाहिए। इनमें सीलन नहीं होनी चाहिए। शैड की लम्बाई पूर्व-पश्चिम दिशा की तरफ होनी चाहिए। एक बकरी या भेड़ को लगभग 10 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता होती है। लेले तथा छेले को 4 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता होती है। शैड के आस-पास 5-6 फुट ऊँची दीवार की हो या कंडियाली तार लगी होनी चाहिए। इससे कुत्ते आदि हानि नहीं कर सकते। शैड के आस-पास पतझड़ी वृक्ष, जैसे-शहतूत, पापुलर, डेक आदि लगा लेने चाहिए।

प्रश्न 4.
खरगोश की खुराक की बनावट के बारे बताओ।
उत्तर-
खरगोश को दालें, फलीदार हरा तथा सूखा चारा, अनाज, बन्दगोभी, गाजर तथा रसोई की बची-खुची वस्तुएँ आदि से पाला जा सकता है। राशन को दलकर या गोलियां बना कर खरगोश को आहार दिया जा सकता है। गोलियां बना कर आहार देने से खरगोश को सांस की बीमारी से बचाव होता है तथा राशन की बचत भी होती है। दूध से हरी मादा को आहार में 12-15% प्रोटीन देना चाहिए तथा दूध दे रही मादा की आहार में प्रोटीन की मात्रा 16-20% होनी चाहिए। खरगोश को गेहूँ, मक्की, बाजरा, चावल की पालिश, मीट मील, धातु का मिश्रण, मूंगफली की खल तथा नमक आदि वाला आहार बनाकर दी जाती है। खरगोश रवाह, गिन्नी घास, नेपियर बाजरा, लुसन, पालक, हरे पत्ते वाली सब्जियां आदि को पसन्द करते हैं। खरगोश अपने शरीर के दसवें भाग के बराबर पानी भी पी जाते हैं। इसलिए पानी का प्रबन्ध भी होना चाहिए।

प्रश्न 5.
खरगोश के पिंजरों के बारे में जानकारी दो।
उत्तर-
खुड्डे या डिब्बे लकड़ी के बनाए जाते हैं जो भिन्न-भिन्न आकार के हो सकते हैं। परन्तु इनमें मलमूत्र के निकास तथा प्रकाश का पूरा प्रबन्ध होना चाहिए। जब बच्चे दूध छोड़ देते हैं, तो इनको पिंजरों में रखा जाता है। पिंजरे का आकार 5 फुट लम्बा तथा 4 फुट चौड़ा होता है। इसमें लगभग 20 बच्चे रखे जाते हैं। नर तथा मादा को अलग-अलग जिस पिंजरे में रखा जाता है उसका आकार 2 फुट लम्बा, 1-2 फुट चौड़ा तथा 1 फुट ऊंचा होना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB सूअर, भेड़ें/बकरियां और खरगोश पालना Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
सूअर की नसल सफेद यार्कशायर का कद तथा रंग बताओ।
उत्तर-
कद मध्यम, रंग सफेद होता है।

प्रश्न 2.
सूअर की कौन-सी नसल उत्तर भारत में बहुत प्यारी है?
उत्तर-
सफेद यार्कशायर।

प्रश्न 3.
लैंडरेस सूअर का मूल घर बताओ।
उत्तर-
डैनमार्क देश।

प्रश्न 4.
स्वस्थ मादा सूअर कितने महीने की आयु में पहली बार कामवेग में आती है ?
उत्तर-
5-6 माह में।

प्रश्न 5.
बढ़ रहे सूअरों के आहार में कितना प्रोटीन होना चाहिए ?
उत्तर-
16-18%।

प्रश्न 6.
बढ़ रहे सूअर को कितने स्थान की आवश्यकता है ?
उत्तर-
8 वर्ग फुट।

प्रश्न 7.
दूध से हट चुकी मादा सूअर को कितने स्थान की आवश्यकता है ?
उत्तर-
10-12 वर्ग फुट ।

प्रश्न 8.
मादा सूअर के कमरे में गार्ड रेलिंग फर्श से कितनी ऊंची होनी चाहिए ?
उत्तर-
10-12 इंच।

प्रश्न 9.
गरीब की गाय किस को कहा जाता है ?
उत्तर-
बकरी को।

प्रश्न 10.
बकरी की देसी नस्ल के नाम बताओ।
उत्तर-
बीटल, जमनापरी।

प्रश्न 11.
बकरी का चुनाव कितने दिन का प्रसव बाद का दूध देख कर किया जाता है ?
उत्तर-
120 दिन।

प्रश्न 12.
भेड़/बकरी का गर्भकाल का समय कितना है ?
उत्तर-
145-153 दिनों का।

प्रश्न 13.
शैड की दिशा किस तरह होनी चाहिए ?
उत्तर-
पूर्व-पश्चिम की तरफ।

प्रश्न 14.
बकरी या भेड़ को कितने स्थान की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
10 वर्ग फुट।

प्रश्न 15.
लेले या छेले (भेड़, बकरी के बच्चे ) को कितने स्थान की आवश्यकता है ?
उत्तर-
4 वर्ग फुट।

प्रश्न 16.
भेड़/बकरी को वर्ष में कितने बार बच्चे देने चाहिए ?
उत्तर-
3 बार।

प्रश्न 17.
मादा खरगोश वर्ष में कितनी बार बच्चे देती है ?
उत्तर-
6-7 बार।

प्रश्न 18.
खरगोश की औसत आयु कितनी है ?
उत्तर-
5 वर्ष।

प्रश्न 19.
खरगोश की ऊन वाली किस्म लिखो।
उत्तर-
रूसी अंगोरा, जर्मन अंगोरा।

प्रश्न 20.
खरगोश की मांस वाली नस्लें बताओ।
उत्तर-
सोवियत चिंचला, ग्रेअ जिएंट।

प्रश्न 21.
दूध से हट चुकी खरगोश के आहार में कितना प्रोटीन होना चाहिए ?
उत्तर-
12-15%।

प्रश्न 22.
दूध दे रही मादा खरगोश का आहार में कितना प्रोटीन होना चाहिए ?
उत्तर-
16-20%।

प्रश्न 23.
6 सप्ताह का खरगोश प्रतिदिन कितना हरा चारा तथा आहार खा जाता है ?
उत्तर-
100 ग्राम हरा चारा तथा 50 ग्राम आहार।

प्रश्न 24.
खरगोश से पहली बार ऊन कितनी आयु में ली जा सकती है ?
उत्तर-
4 माह की आयु में।।

प्रश्न 25.
एक खरगोश से वर्ष में कितनी ऊन प्राप्त हो जाती है ?
उत्तर-
500-700 ग्राम।

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
सूअर की किस्म सफेद यार्कशायर के बारे में बताओ।
उत्तर-
यह सफेद रंग की मध्यम कद वाली नस्ल है। इसकी वेल लम्बी तथा कान खड़े होने चाहिए। इसको पंजाब में आसानी से पाला जा सकता है।

प्रश्न 2.
सूअर की नस्ल लैंडरेस के बारे में बताएं।
उत्तर-
यह विदेशी नस्ल है। इसके कान लटकते हुए, वेल लम्बी तथा रंग सफेद होता है। इसका मूल देश डैनमार्क है। इसके लिए मीट में चर्बी कम मात्रा में होती है।

प्रश्न 3.
मादा सूअर के आस में आने के बारे में बताओ।
उत्तर-
मादा सूअर पहली बार 5-6 माह की आयु में हीट में आ जाती है। पर 90 किलो भार की, 8-9 माह की सूअरी को ही आस में लाना चाहिए।

प्रश्न 4.
मादा सूअर कैसी होनी चाहिए ?
उत्तर-
मादा सूअर का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिए। त्वचा कसी हुई तथा नर्म, बाल नर्म होने चाहिए। टांगें मजबूत होनी चाहिए तथा थन 12 होने चाहिए।

प्रश्न 5.
सूअरों को कितने स्थान की आवश्यकता है ?
उत्तर-
बढ़ रहे सूअर को 8 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता है तथा दूध से हट चुकी सूअरी को 10-12 वर्ग फुट स्थान की आवश्यकता है।

प्रश्न 6.
बच्चों वाली मादा सूअर के कमरे में गार्ड रेलिंग क्यों लगाई जाती है ?
उत्तर-
इसलिए लगाई जाती है ताकि बच्चे सूअरी के नीचे आकर मर न जाए।

प्रश्न 7.
बकरी की नस्ल बीटल के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
यह काले भूरे रंग की होती है तथा इसमें सफेद धब्बे होते हैं। इसके कान लम्बे, लटकते हुए, टेढ़े तथा चेहरा उभरा होता है। मुहाने का आकार बड़ा होता है तथा पहली प्रसव डेढ़ वर्ष की आयु तक मिल सकता है। यह नस्ल अमृतसर, फिरोजपुर, तरनतारन तथा गुरदासपुर में मिलती है।

प्रश्न 8.
जमनापरी नस्ल का विवरण दें।
उत्तर-
इस नस्ल की बकरी का रंग सफेद हल्का भूरा तथा मुंह तथा सिर पर धब्बे होते हैं। इसके कान लटकते हुए, बिंधे तथा नाक उभरा हुआ होता है। इसका कद लम्बा तथा टांगें भी लम्बी होती हैं। यह नस्ल देखने में सुन्दर लगती है तथा उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में मिलती है।

प्रश्न 9.
खरगोश की ऊन उतारने के बारे में बताओ।
उत्तर-
खरगोश से 4 माह की आयु में पहली बार ऊन उतारी जा सकती है। कटाई के समय ऊन कम-से-कम 2 इंच लम्बी होनी चाहिए। पूरी ऊन तो खरगोश के एक वर्ष का होने पर मिलती है। एक वर्ष में खरगोश से लगभग 500-700 ग्राम ऊन मिलती है तथा हर वर्ष मिलती रहती है।

प्रश्न 10.
भेड़ों/बकरियों, खरगोशों को पालने के लिए प्रशिक्षण लेने के बारे में बताओ।
उत्तर-
इन जानवरों के पालने के लिए, प्रशिक्षण लेने के लिए जिले के डिप्टी डायरैक्टर पशु-पालन विभाग, कृषि विज्ञान केन्द्र या गडवासु लुधियाना से सम्पर्क किया जा सकता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
बकरी की नस्लों के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 2.
सूअरों की नस्लों के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

सूअर, भेड़ें/बकरियां और खरगोश पालना PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • सूअर अपने वंश की वृद्धि तेजी से करते हैं तथा कम आहार लेते हैं।
  • सूअरों की विदेशी नस्ल है-सफेद यार्कशायर, लैंडरेस।
  • स्वस्थ मादा सूअर पहली बार 5-6 माह की आयु में कामवेग में आती हैं।
  • मादा सूअर वर्ष में दो बार प्रसव कर सकती है तथा एक बार में 10-12 बच्चे पैदा करती है। 5. सूअरों के 160 वर्ग फुट में 20 बच्चे रखे जा सकते हैं।
  • बकरी का दूध बीमारों तथा बुजुर्गों के लिए बहुत गुणकारी है।
  • बकरी की नस्लें हैं-बीटल, जमनापरी।
  • बकरी की विदेशी नस्लें हैं-सानन, अलपाइन तथा वोअर।
  • भेड़ों की नस्लें हैं-मैरीनो, कोरीडेल।
  • अच्छी बकरी का चुनाव उसके 120 दिन के सूए के दूध को देख कर किया जाता है।
  • बकरी तथा भेड़ का गर्भकाल का समय 145-153 दिन है।
  • बकरी या भेड़ को लगभग 10 फुट जगह की आवश्यकता होती है। जब के भेड़ या बकरी के बच्चे को लगभग 4 फुट जगह की आवश्यकता है।
  • जो छेले मांस के लिए रखे जाते हैं उनको 2 माह की आयु में खस्सी करवा लेना चाहिए।
  • खरगोश की भादा पहली बार 6-9 माह की आयु में गर्भ धारण कर सकती है।
  • खरगोश की आयु औसतन 5 वर्ष की है।
  • खरगोश की ऊन के लिए पाली जाने वाली किस्में हैं-जर्मन अंगोरा, ब्रिटिश अंगोरा, रूसी अंगोरा।
  • खरगोश की मांस वाली किस्में हैं-ग्रे ज्वाइंट, सोवियत चिंचला, वाइट ज्वाइंट, न्यूजीलैंड वाइट।
  • वार्षिक ऊन की क्रमशः पैदावार रूसी, ब्रिटिश तथा जर्मन अंगोरा से 215, 230 तथा 590 ग्राम है।
  • 4 माह की आयु में खरगोश से पहली बार ऊन प्राप्त की जा सकती है।
  • भेड़ों, बकरियों या खरगोश पालन का व्यवसाय शुरू करने से पहले प्रशिक्षण ले लेना चाहिए।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

PSEB 10th Class Welcome Life Guide फैसले लेने की योग्यता Textbook Questions and Answers

भाग-I

सही/ग़लत चुनें

  1. मैं वह पाठ्यक्रम चुनूंगा जो मेरे माता-पिता कहते हैं, भले ही मुझे उस में कोई दिलचस्पी न हो।
  2. यदि मैं अपने परिवार या अन्य परिस्थितियों के कारण डॉक्टर नहीं बन पाता, तो चिकित्सा पेशे जैसे अन्य कोर्स फार्मासिस्ट, नर्सिंग भी तो किए जा सकते हैं।
  3. हमारे भाग्य में जो होगा मिल जाएगा इसलिए काम को लेकर ज्यादा चिंता की ज़रूरत नहीं है।
  4. मुझे वही कोर्स चुनना है, जो मेरे सहपाठी चुनेंगे।
  5. मुझे जीवन में जो बनना है, मुझे वहीं अपना रास्ता चुनना है, यह बात मुझ पर लागू होती है।

उत्तर-

  1. ग़लत,
  2. सही,
  3. ग़लत,
  4. ग़लत,
  5. सही।

भाग-II

प्रश्न 1.
दसवीं के बाद मुझे क्या करना है?
उत्तर-
मैं एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर बनना चाहता हूँ। इसलिए मैं कॉमर्स लूंगा, ताकि मैं बी. कॉम करके एम. बी. ए. करूं और अपने सपने पूरे कर सकूँ। इससे मैं अधिक धन अर्जित कर सकूँगा और अपनी इच्छा के अनुसार काम कर सकूँगा।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

प्रश्न 2.
अपने आस पास के लोगों के कुछ व्यवसायों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  1. डॉक्टर
  2. इंजीनियर
  3. मैनेजर
  4. सुनार
  5. डेयरीफार्मिंग
  6. शिक्षक/प्रोफेसर
  7. सरकारी नौकरी
  8. किराना दुकानदार
  9. दुकानदार
  10. कारपेंटर

प्रश्न 3.
मुझे क्या काम करके अधिक खुशी मिलती है?
उत्तर-
मैं एक बड़ी कंपनी में मैनेजर बनना चाहता हूँ। उसका काम सबके काम पर नज़र रखना है। इसलिए मुझे ऐसा काम करने में खुशी मिलती है जिसमें दूसरों के काम पर नज़र रखनी हो और उसमें सुधार के बारे बताना हो।

अभ्यास (पेज 58)

प्रश्न-कई कठिन परिस्थितियों में फैसला लेने के लिए सामान्य ज्ञान कार्य करता है। उदाहरण के लिए “छात्र एक प्रश्न का उत्तर दें कि एक आदमी घर से बाहर था और लगातार बारिश में भीग रहा था। उसका
फैसले लेने की योग्यता पूरा शरीर बारिश में भीगा हुआ था। उसका सिर पूरी तरह से नंगा था और उसके सिर पर कोई पगड़ी, टोपी या ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे वह अपने सिर को गीला होने से बचा सके। लेकिन उसके सिर का एक भी बाल गीला नहीं हुआ। यह कैसे संभव हो सकता है?”
उत्तर-
उसके सिर पर बाल नहीं हैं क्योंकि वह पूरी तरह गंजा था। जीवन में ऐसे कई प्रश्न हमारे सामने आ सकते हैं जिनके उत्तर देते समय हमें सामान्य ज्ञान का उपयोग करना आवश्यक है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

पाठ पर अधारित प्रश्न

गतिविधि

इस चित्र की कहानी की तरफ ध्यान दें। एक गिलहरी सड़क पार करने लगी, बीच से ही पीछे मुड़ गई, फिर उसे लगा कि सामने से आ रही कार से बच कर पहले ही निकल जाएगी। फिर आगे बढ़ी, पीछे मुड़ने के ख्याल से जब पीछे गई तो पीछे की तरफ से बस आ रही थी। वह फिर आगे बढ़ी और कार के टायर के नीचे आकर मर गई। दुविधा के कारण वह समय पर फैसला नहीं ले सकी।
PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता 1

प्रश्न 1. सही उत्तर चुनो

प्रश्न 1.
गिलहरी की मौत का कारण …………….. था।
(a) बस
(b) कार
(c) दुविधा
(d) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(c) दुविधा।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

प्रश्न 2.
खाली स्थान भरो गिलहरी बच सकती थी अगर वह ……… समय पर ……….. निर्णय लेती।
उत्तर-
ठीक, ठीक।

कक्षा में चर्चा करके आगे दी स्थितियों पर जो बेहतर निर्णय सामने आये उसे लिखें।

स्थिति-1:
क और ख दोनों ही आपके अच्छे मित्र हैं, लेकिन वह एक-दूसरे से झगड़ पड़े, क ने आपसे ख से न बोलने के लिए कहा है, जबकि ख ने आपसे क से बात न करने के लिए कहा है तो आपका निर्णय क्या होगा?
उत्तर-
मैं दोनों को बैठा कर उनकी बात सुनूंगा, उनकी गलतफहमी दूर करूंगा और उन्हें फिर से दोस्त बनाऊंगा।

स्थिति-2:
कल आपकी क्लास में गणित की परीक्षा होगी। आप गणित में बहुत अच्छे हैं लेकिन आपके दोस्तों ने परीक्षा न देने का फैसला किया। आपका निर्णय क्या होगा?
उत्तर-
मैं उन्हें समझाऊंगा कि हमें टेस्ट देना चाहिए। हो सकता है कि हमें कम अंक मिलें लेकिन हम नई चीजें सीखेंगे। मैं उन्हें बताऊंगा कि स्थिति से भागना अच्छा नहीं है लेकिन हमें बड़ी हिम्मत के साथं इसका सामना करना चाहिए।
प्यारे छात्रो ! अब हम अनुमान लगाते हैं कि कौन से पेशे में अभी अधिक सफल हो सकता है। आपको अभी के लिए जो काम अधिक ठीक लगता है उस अनुसार अभी को उस काम के अन्यों से अधिक अंक दें। प्रत्येक काम के लिए हम अभी को पांच में से अंक देंगे।

काम तथा व्यवसाय कुल अंक 5
1. व्यापार
2. डॉक्टर
3. ड्राइविंग
4. कृषि
5. साहित्यिक (कलाकारी)
6. वाहन/परिवहन कार्य
7. वैज्ञानिक
8. विदेश
9. मैकेनिक

उत्तर-यह सारणी छात्र अपने मित्र की इच्छा अनुसार खुद भरेंगे।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

Welcome Life Guide for Class 10 PSEB फैसले लेने की योग्यता Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवन जीने के लिए किसी व्यक्ति को क्या करना पड़ता है?
(a) काम करना पड़ता है
(b) ऐश करनी पड़ती है
(c) सोना पड़ता है
(d) जागना पड़ता है।
उत्तर-
(a) काम करना पड़ता है।

प्रश्न 2.
हमें किस प्रकार का काम करना चाहिए?
(a) जिसे हम पसंद करते हैं
(b) जिसमें अधिक पैसे हों
(c) जिसे करके खुशी मिले
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
राजा ने अपने बेटों को क्यों बुलाया?
(a) उत्तराधिकारी का फैसला करने के लिए
(b) अन्य राज्य पर हमला करने के लिए
(c) राज्य को विभाजित करने के लिए
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(a) उत्तराधिकारी का फैसला करने के लिए।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

प्रश्न 4.
राजा ने अपने किस बेटे को उत्तराधिकारी चुना?
(a) पहले
(b) दूसरे
(c) तीसरे
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) तीसरे।

प्रश्न 5.
तीसरे बेटे ने ऐसा क्या किया कि राजा ने उसे अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया?
(a) उसने राजा को 100 रुपए लौटा दिए
(b) उसने महल को कचरे से भर दिया
(c) उसने महल को सुगंध से भर दिया
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(c) उसने महल को सुगंध से भर दिया।

प्रश्न 6.
किसने कहा, “कल्पना ज्ञान से अधिक महत्त्वपूर्ण है?”
(a) आइंस्टीन
(b) गैलीलियो
(c) मैरी क्यूरी
(d) सुकरात
उत्तर-
(a) आइंस्टीन।

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(ख) खाली स्थान भरें

  1. मानव जीवन बहुत …………… है।
  2. छात्रों में ………….. का कौशल होना चाहिए।
  3. आइंस्टीन ने कहा था कि ……….. ज्ञान से बहुत महत्त्वपूर्ण है।
  4. आइंस्टीन ने ……………. पुरस्कार जीता था।
  5. प्रत्येक व्यक्ति में ……….. का कौशल होना चाहिए।

उत्तर-

  1. जटिल,
  2. सामान्य ज्ञान,
  3. कल्पना,
  4. नोबेल,
  5. सामान्य ज्ञान।

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. प्रत्येक छात्र को सामान्य ज्ञान के कौशल का उपयोग करना चाहिए।
  2. कठिन समय में बुद्धि काम आती है।
  3. राजा के चार पुत्र थे।
  4. निरंतर चलने पर ही लक्ष्य तक पहुँच सकते हैं।
  5. हमें अपनी इच्छा अनुसार व्यवसाय अपनाना चाहिए।

उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. ग़लत,
  4. सही,
  5. सही।

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(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम ए — कॉलम बी
(a) व्यापार — (i) समझ
(b) क्षमता — (ii) व्यवसाय
(c) दुविधा — (iii) अनुमान
(d) कल्पना — (iv) कौशल
(e) सामान्य ज्ञान — (v) असमंजस
उत्तर-
कॉलम ए — कॉलम बी
(a) व्यापार — (ii) व्यवसाय
(b) क्षमता — (iv) कौशल
(c) दुविधा — (v) असमंजस
(d) कल्पना — (iii) अनुमान
(e) सामान्य ज्ञान — (i) समझ

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन यापन के लिए क्या करना पड़ता है?
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन यापन करने के लिए कोई न कोई काम करना पड़ता है।

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प्रश्न 2.
हमें किस प्रकार का काम करना चाहिए?
उत्तर-
हमें वह काम करना चाहिए जिससे हमें अधिक धन और खुशी मिले।

प्रश्न 3.
क्या कोई काम छोटा या बड़ा होता है?
उत्तर-
नहीं, कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता ।

प्रश्न 4.
व्यवसाय अपनाने के दौरान हमें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
व्यवसाय का चयन करते समय हमें अपनी पसंद और बड़ों के अनुभव को ध्यान में रखना चाहिए।

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प्रश्न 5.
राजा ने अपने बेटों को परखने का फैसला क्यों किया?
उत्तर-
क्योंकि वह सिंहासन के लिए अपना उत्तराधिकारी चुनना चाहता था।

प्रश्न 6.
राजा ने अपने तीसरे बेटे को उत्तराधिकारी क्यों चुना?
उत्तर-
क्योंकि राजा के तीसरे पुत्र ने सही समय पर सही फैसला लिया था।

प्रश्न 7.
राजा के तीसरे बेटे ने 100 रुपये का क्या किया?
उत्तर-
तीसरे बेटे ने 100 रुपये के कई सुगंध खरीदे और उन्हें महल में रखा। इससे सारा महल खुशबू से भर गया।

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प्रश्न 8.
हम अपने व्यक्तित्व को किस तरह महका सकते हैं?
उत्तर-
हम अपने व्यक्तित्व को अच्छे गुणों से महका सकते हैं।

प्रश्न 9.
अगर हम अच्छे गुणों को अपनाएंगे तो क्या होगा?
उत्तर-
अच्छे गुणों से हमारे मन में बुरे विचार नहीं आएंगे और हमारा व्यक्तित्व अपने आप बढ़िया होगा।

प्रश्न 10.
मानव जीवन किस प्रकार का है?
उत्तर-
मानव जीवन काफी जटिल और चुनौतियों से भरा है।

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प्रश्न 11.
अल्बर्ट आइंस्टीन कौन थे?
उत्तर-
वह एक प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी थे जिन्होंने नोबेल पुरस्कार जीता था।

प्रश्न 12.
आइंस्टीन ने कल्पना के बारे में क्या बताया?
उत्तर-
उन्होंने बताया के कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 13.
इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर-
इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य छात्रों में सामान्य ज्ञान का कौशल पैदा करना है।

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प्रश्न 14.
सामान्य ज्ञान का महत्त्व क्या है?
उत्तर-
सामान्य ज्ञान के साथ हम अपनी छोटी-बड़ी समस्याओं को भी आसानी से हल कर सकते हैं।

लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1.
हमें कौन सा व्यवसाय चुनना चाहिए?
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति को अपना जीवन निर्वाह करने के लिए कोई न कोई काम करना पड़ता है। इसलिए उसे कोई न कोई व्यवसाय अपनाना पड़ता है। लेकिन व्यवसाय को अपनाने के दौरान, कुछ चीजों को ध्यान में रखना चाहिए। यह बेहतर होगा यटि व्यवसाय हमारी पसंद का होगा। साथ ही अगर उसमें अच्छा पैसा और खुशी मिलती है, तो इससे बेहतर कुछ नहीं है। इस तरह, अगर हम इन बातों का ध्यान रखेंगे, तो हम बेहतरीन पेशा चुनकर अच्छी जिंदगी जी पाएंगे।

प्रश्न 2.
पेशा चुनने में कौन हमारी मदद कर सकता है?
उत्तर-
ऐसा कहा जाता है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता लेकिन व्यक्ति की सोच बड़ी-छोटी हो सकती है। किसी भी काम को देखने का हमारा नज़रिया सकारात्मक होना चाहिए। तब हम बहुत आसानी से व्यवसाय चुन सकते हैं। इसीलिए हम अपने माता-पिता से सलाह ले सकते हैं। हम अपने शिक्षकों या स्कूल परामर्शदाताओं से बात कर सकते हैं। हम सही निर्णय लेने के लिए इंटरनेट, समाचार पत्रों या टी.वी. का उपयोग कर सकते हैं। इससे हमारा समय बचेगा और हम एक बेहतर पेशा चुन पाएंगे।

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प्रश्न 3.
किसी व्यक्ति में निर्णय लेने की क्षमता क्यों होनी चाहिए?
उत्तर-
इस तथ्य में कोई शक नहीं है कि किसी व्यक्ति के पास निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। यदि कोई व्यक्ति सही समय पर सही निर्णय लेता है, तो वह हमेशा जीवन में प्रगति करेगा लेकिन अगर सही समय पर.गलत निर्णय लिया गया तो जीवन बर्बाद हो सकता है। इसलिए कोई भी बुजुर्गों की मदद ले सकता है और अपने निर्णय लेने के कौशल को निखारने के लिए परामर्शदाताओं से बात कर सकता है। इस तरह, वह जीवन में बहुत प्रगति करेगा।

प्रश्न 4.
जीवन में सामान्य ज्ञान या ज्ञान का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन में कई चुनौतियों का सामना करता है। यदि कोई समस्या है तो यह हमारा सामान्य ज्ञान या समझदारी है जो हमारी मदद करती है। इसका कारण यह है कि कभी कभी व्यावहारिक जीवन में, हमें दिल की न सुन कर और बुद्धिमानी से निर्णय लेना पड़ता है जो सभी के लिए काफी फलदायी होता है। कभी कभी हम अपनी कल्पना और सामान्य ज्ञान की मदद से बड़ी-बड़ी समस्याओं को भी हल कर सकते हैं। इसीलिए प्रत्येक मनुष्य में सामान्य ज्ञान होना चाहिए और उसका उपयोग करने का कौशल भी होना चाहिए।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न-अध्याय में दिए गए निर्णय लेने के कौशल के बारे में राजा की कहानी पर चर्चा करें।
उत्तर-एक बार एक राजा था जिसके तीन बेटे थे। राजा उनमें से अपने उत्तराधिकारी का चयन करना चाहता था कि कौन उसका उत्तराधिकारी बनेगा। इस लिए उसने निर्णय लेने की क्षमता के साथ-साथ उनकी परख करने का निर्णय लिया। उसने तीनों बेटों में प्रत्येक बेटे को 100 रुपये दिये और उनसे कुछ भी खरीदने को कहा जिसके साथ पूरा महल भरा जा सके। बड़े बेटे ने सोचा कि वह पूरे महल को केवल 100 रुपये से कैसे भर सकता है। इसीलिए उसने अपने पिता को पैसे लौटा दिए। दूसरे बेटे ने 100 के साथ कचरा खरीदा और पूरे महल को भर दिया। राजा को गुस्सा आ गया और उसने उसे महल की सफाई का काम दे दिया। राजा के तीसरे बेटे ने 100 रुपये के साथ कई सुगंध खरीदे और महल को सुगंध से भर दिया। राजा ने उसे अपने उत्तराधिकारी के रूप में चुनने का पुरस्कार दिया क्योंकि उसने सही समय पर सही निर्णय लिया। इसलिए एक व्यक्ति के पास सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 7 फैसले लेने की योग्यता

फैसले लेने की योग्यता PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • यह अध्याय भविष्य में एक व्यवसाय का चयन करने के मुद्दे के साथ शुरू होता है, कि व्यक्ति को क्या व्यवसाय चुनना चाहिए।
    वास्तव में, लोग हमेशा इस बात को लेकर दुविधा होते हैं कि वे कौन सा व्यवसाय अपनाएं जिसमें उन्हें अधिक पैसा मिले और साथ ही उनका दिल भी लगा रहे।
  • कई बच्चे माता-पिता के दबाव में होते हैं कि उन्हें वही व्यवसाय अपनाना है जो उनके माता-पिता चाहते हैं। चाहे बच्चे की इच्छा हो या न हो। यह गलत है।
  • हमें वही व्यवसाय अपनाना चाहिए जिसे करने का मन हो। हमें दबाव में नहीं आना चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों की इच्छाओं को ध्यान में रखना चाहिए। उन्हें प्रत्येक पेशे के लाभ और हानियों के बारे में बताया जाना चाहिए ताकि वे सही निर्णय ले सकें।
  • सभी में निर्णय लेने की क्षमता होनी चाहिए। भले ही हम अलग-अलग समय पर अलग-अलग निर्णय लेते हैं। कभी-कभी उस निर्णय को लेने में इतना समय लगता है जिससे उसकी अहमियत कम हो जाती है। इसलिए सही समय पर सही फैसले लेने चाहिए।
  • हम अपने व्यक्तित्व को अच्छे गुणों की खुशबू से महका सकते हैं। इससे हमारे मन में बुरे विचार नहीं आएंगे और अच्छे गुण आ जाएंगे। व्यक्ति में कठिन परिस्थितियों से निपटने के लिए पूर्ण आत्मविश्वास भी होना चाहिए। ताकि कठिन परिस्थितियों का डट के सामना किया जा सके।
  • व्यक्ति को अपने जीवन में सामान्य ज्ञान का प्रयोग करने की आवश्यकता है। इस तरह हम कठिन परिस्थितियों में नहीं फंसते और सभी समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं।
  • जीवन में कई ऐसे अवसर आते हैं जब किसी समस्या के बारे में निर्णय लेना काफी मुश्किल हो जाता है। ऐसी स्थिति में, सामान्य ज्ञान उपयोगी है। सभी में सामान्य ज्ञान और सही समय पर इसका उपयोग करने का कौशल होना चाहिए। इससे जीवन आसान बनता है।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की सफ़ाई

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Chapter 5 घर की सफ़ाई Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Home Science Chapter 5 घर की सफ़ाई

PSEB 7th Class Home Science Guide घर की सफ़ाई Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
घर की सफ़ाई के दो महत्त्व बताइए।
उत्तर-

  1. स्वच्छता
  2. सौंदर्य तथा स्वास्थ्य।

प्रश्न 2.
ऋतु के अनुसार सफाई किसे कहते हैं?
उत्तर-
जब ऋतु बदलती है तब घर की सफाई की जाती है इसे ऋतु के अनुसार सफाई करना कहते हैं।

प्रश्न 3.
शीशे को साफ करने के लिए क्या प्रयोग करना चाहिए?
उत्तर-
गीले अखबार या पतंग वाले कागज़ से।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की सफ़ाई

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
शौचघर, गुसलखाने में फिनाइल क्यों छिड़की जाती है?
उत्तर-
शौचघर और गुसलखाने को प्रतिदिन फिनाइल से धोना चाहिए और इनको खुली हवा लगनी चाहिए। नहीं तो ये मक्खी, मच्छर के घर बन जाएंगे। जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ हो सकती हैं।

प्रश्न 2.
सफ़ाई करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
सफ़ाई करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. कमरे का फर्श और दैनिक प्रयोग में आने वाले बर्तनों की सफ़ाई रोज़ करनी चाहिए।
  2. रसोई, गुसलखाना और नालियाँ भी रोज़ाना साफ़ करनी चाहिए।
  3. साप्ताहिक सफ़ाई में दरी या फर्नीचर बाहर निकालकर झाड़ना और दीवारों से जाले उतारने ज़रूरी होते हैं। कपड़ों को धूप लगानी चाहिए।
  4. रोज़ाना प्रयोग में आने वाले बर्तन, पर्दे, चादरें आदि साफ़ करनी चाहिएं।
  5. शौचघर और नालियों में फिनाइल का पानी डालना चाहिए।
  6. ऋत अनसार सफ़ाई में दीवारों और फर्श झाड कर लीप-पोत लेने चाहिएं या फर्श और दीवारों की मुरम्मत करवा लेना चाहिए।
  7. दरवाजों और खिड़कियों को पेंट करवा लेना चाहिए।

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प्रश्न 3.
साप्ताहिक सफाई के अन्तर्गत क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर-
साप्ताहिक सफ़ाई के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य करना चाहिए

  1. साप्ताहिक सफ़ाई में एक बार बिस्तरों को धूप में अवश्य सुखाना चाहिए।
  2. घर का सारा सामान फर्नीचर आदि को धूप अवश्य लगानी चाहिए।
  3. कमरे, आँगन और सीढ़ियों को धोकर साफ़ कर लेना चाहिए।
  4. कमरों को धोने से पहले फर्नीचर बाहर निकालकर दीवारें साफ़ कर लेनी चाहिएं। ताकि जाले आदि अच्छी तरह साफ़ हो जाए।
  5. अलमारियों का सामान निकालकर साफ़ करके उचित जगह पर लगा देना चाहिए।
  6. अगर फर्श पर दरी बिछी हो तो बाहर निकालकर झाड़ लें और फर्श को धोकर गीले कपड़े के साथ पोचा फेर लेना चाहिए।
  7. बिजली के बल्ब और शेड की सफ़ाई भी कर लेनी चाहिए।
  8. नालियों में फिनाइल छिड़क देना चाहिए, ताकि कीटाणु रहित हो जाएं।
  9. शौचघर में फिनाइल और कभी-कभी चूने का पानी छिड़कना चाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दैनिक सफ़ाई क्यों जरूरी है और घर की सफ़ाई कैसे करनी चाहिए?
उत्तर-
दैनिक सफ़ाई से हमारा अभिप्राय उस सफ़ाई से है जो घर में प्रतिदिन की जाती है। अत: गृहिणी का यह प्रमुख कर्त्तव्य है कि वह घर के उठने-बैठने, पढ़ने-लिखने, सोने के कमरे, रसोई, आँगन, स्नानागार, बरामदा तथा शौचालय की प्रतिदिन सफ़ाई करे। दैनिक सफ़ाई के अन्तर्गत प्रायः इधर-उधर बिखरी हुई वस्तुओं को ठीक से लगाना, फर्नीचर को झाड़ना-पोंछना, फर्श पर झाडू करना, गीला पोंछा करना आदि आते हैं। आज के आधुनिक युग की व्यस्त गृहिणियों तथा कार्यरत गृहिणियों को यह कदापि सम्भव नहीं कि वे घर के सभी पक्षों की सफ़ाई प्रतिदिन करें।

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प्रश्न 2.
ऋतु के अनुसार खास सफ़ाई का क्या मतलब है?
उत्तर-
हमारे देश में प्राय: जब वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है, दशहरे या दीपावली के समय वार्षिक सफ़ाई की जाती है। पुताई, पॉलिश आदि करवाने से घर की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, रोग फैलाने वाले कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। अत: स्वास्थ्य की दृष्टि से भी एक वर्ष में एक बार घर की पूर्ण स्वच्छता अनिवार्य है।

Home Science Guide for Class 7 PSEB घर की सफ़ाई Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सफ़ाई क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
अपने स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए तथा घर को आकर्षित बनाने के लिए सफ़ाई ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
शारीरिक सफ़ाई से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
शरीर के विभिन्न अंगों की नियमित सफ़ाई तथा नियमित अच्छी आदतें।

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प्रश्न 3.
दैनिक सफ़ाई से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
दैनिक सफ़ाई से अभिप्राय प्रतिदिन की सफ़ाई से है।

प्रश्न 4.
दैनिक सफ़ाई के अन्तर्गत किन स्थानों की सफाई आवश्यक है?
उत्तर-
प्रतिदिन उठने-बैठने और सोने वाले कमरे, स्नानागार, शौचालय, रसोई, आँगन एवं बरामदा।

प्रश्न 5.
सामयिक सफाई क्या होती है?
उत्तर-
ऋतु अनुसार काम आने वाली वस्तुओं की सफ़ाई करके ठीक रख-रखाव की व्यवस्था करना। जैसे-सर्दी व गर्मी के कपड़े, अनाज संरक्षण आदि।

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प्रश्न 6.
आकस्मिक सफ़ाई किसे कहते हैं?
उत्तर-
अकस्मात् जरूरत पड़ने पर घर की सफ़ाई करना, जैसे ब्याह-शादी पर।

छोटे स्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वातावरण की सफ़ाई को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
वातावरण की सफ़ाई को सामान्यत: छः भागों में बांटा जा सकता है

  1. दैनिक सफ़ाई
  2. साप्ताहिक सफ़ाई
  3. मासिक सफाई
  4. सामयिक सफाई
  5. वार्षिक सफ़ाई
  6. आकस्मिक सफ़ाई।

प्रश्न 2.
दैनिक सफ़ाई के अन्तर्गत क्या-क्या कार्य करने होते हैं?
उत्तर-
दैनिक सफ़ाई के अन्तर्गत निम्नलिखित कार्य आवश्यक रूप से करने होते हैं

  1. घर के सभी कमरों के फर्श, खिड़की, दरवाजे, मेज़-कुर्सी की झाड़-पोंछ करना।
  2. घर में रखे कूड़ेदान आदि को साफ़ करना।
  3. शौचालय तथा स्नानागार आदि की सफ़ाई करना।
  4. रसोई में काम आने वाले बर्तनों की सफ़ाई व रख-रखाव।

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प्रश्न 3.
घर में गन्दगी होने के प्रमुख कारण क्या हैं?
उत्तर-

  1. प्राकृतिक कारण-धूल के कण, वर्षा तथा बाढ़ के पानी के बहाव के साथ आने वाली गन्दगी, मकड़ी के जाले, पक्षियों तथा अन्य जीवों द्वारा गन्दगी।
  2. मानव विकार-मल-मूत्र, कफ, थूक, खखार, पसीना और बाल झड़ना।
  3. घरेलू कार्य-खाद्यान्नों की सफ़ाई से निकलने वाला कूड़ा, साग-सब्जी-फल आदि के छिलके, खाद्य वस्तुओं, बर्तन आदि के धोवन, कपड़ों की धुलाई, साबुन के फेन, मैल, नील, माँड़ रद्दी कागज़ के टुकड़े, सिलाई की कतरनें, कताई की रूई तथा छीजन आदि।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
घर की सफ़ाई कितने प्रकार की होती है? वर्णन कीजिए।
उत्तर-
घर की सफ़ाई को हम मुख्य रूप से चार भागों में बाँटते हैं-दैनिक सफ़ाई, साप्ताहिक सफ़ाई, मासिक सफ़ाई, वार्षिक सफ़ाई।
1. दैनिक सफ़ाई-दैनिक सफ़ाई से हमारा अभिप्राय उस सफ़ाई से है जो घर में प्रतिदिन की जाती है। अतः गृहिणी का यह प्रमुख कर्त्तव्य है कि वह घर के उठने-बैठने, पढ़ने-लिखने, सोने के कमरे, रसोईघर, आँगन, स्नानागार, बरामदा तथा शौचालय की प्रतिदिन सफ़ाई करे। दैनिक सफ़ाई के अन्तर्गत प्रायः इधर-उधर बिखरी हुई वस्तुओं को ठीक से लगाना, फर्नीचर को झाड़ना-पोंछना, फर्श पर झाडू करना, गीला पोंचा करना आदि आते है। आज के आधुनिक युग की व्यस्त गृहिणियों तथा कार्यरत गृहिणियों को यह कदापि सम्भव नहीं कि वे घर के सभी पक्षों की सफ़ाई प्रतिदिन करें।

2. साप्ताहिक सफ़ाई-एक कुशल गृहिणी को घर के दैनिक जीवन में अनेक कार्य करने पड़ते हैं अतः यह सम्भव नहीं कि वह एक ही दिन में घर की पूर्ण सफ़ाई कर सके। समय की कमी के कारण घर में जो वस्तुएँ प्रतिदिन साफ़ नहीं की जातीं उन्हें सप्ताह में या पन्द्रह दिन में एक बार अवश्य साफ़ कर लेना चाहिए। यदि ऐसा न किया गया तो दरवाजों तथा दीवारों की छतों पर जाले एकत्रित हो जायेंगे। दरवाज़ों व खिड़कियों के शीशों, फनीचर की सफ़ाई, बिस्तर झाड़ना व धूप लगाना, अलमारियों की सफ़ाई तथा दरी कालीन को झाड़ना व धूप लगाना आदि कार्य सप्ताह में एक बार अवश्य किये जाने चाहिएं।

3. मासिक सफ़ाई-जिन कमरों या वस्तुओं की सफ़ाई सप्ताह में एक बार न हो सके, उन्हें महीने में एक बार अवश्य साफ़ करना चाहिए। साधारण तौर पर महीने भर की खाद्य-सामग्री एक साथ खरीदी जाती है इसलिए उसको भण्डारगृह में रखने से पूर्व भंडार घर को भली-भाँति झाड़-पोंछकर ही उसमें खाद्य-सामग्री रखी जानी चाहिए। टीन के डिब्बों को भली-भाँति साफ़ करके धूप दिखाकर उसमें सामान भरना चाहिए। मासिक सफ़ाई के अन्तर्गत अनाज, दालों, अचार, मुरब्बे व मसाले आदि को धूप लगानी चाहिए। अलमारी के जाले, बल्बों के शेड आदि भी साफ़ करने चाहिएं।

4. वार्षिक सफ़ाई-वार्षिक सफ़ाई का तात्पर्य वर्ष में एक बार सम्पूर्ण घर की पूर्ण रूप से सफाई करना है। वार्षिक सफाई के अन्तर्गत घर की पुताई, टूटे स्थानों की मरम्मत, दरवाजों, खिड़कियों के किवाड़ों तथा चौखटों की मरम्मत तथा सफाई एवं रोगन करवाना, फर्नीचर और अन्य सामानों की मरम्मत, वार्निश, पॉलिश आदि आती है। कमरों से सभी सामानों को हटाकर चूना, पेंट या डिस्टेम्पर करवाना, पुताई के पश्चात् फर्श को रगड़कर धोना तथा दाग-धब्बे हटाना, सफ़ाई के उपरान्त सारे सामान को पुनः व्यवस्थित करना वार्षिक कार्य हैं। इस प्रकार की सफ़ाई के कमरों को नवीन रूप प्रदान होता है। रजाई, गद्दों को खोलकर रूई साफ़ करवाना, धुनवाना आदि भी वर्ष में एक बार किया जाता है।

हमारे देश में प्रायः जब वर्षा ऋतु समाप्त हो जाती है, दशहरे या दीपावली के समय वार्षिक सफ़ाई की जाती है। पुताई, पॉलिश आदि करवाने से घर की सुन्दरता तो बढ़ती ही है, रोग फैलाने वाले कीटाणु भी नष्ट हो जाते हैं। अतः स्वास्थ्य की दृष्टि से भी वर्ष में एक बार घर की पूर्ण स्वच्छता अनिवार्य है।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
सफ़ाई के प्रबन्ध को कितने हिस्सों में बाँट सकते हैं?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 2.
शौचघर तथा नालियों में ………….का पानी डालना चाहिए।
उत्तर-
फ़िनाईल।

प्रश्न 3.
साप्ताहिक सफ़ाई में ……. की भी सफ़ाई की जाती है।
उत्तर-
दीवारों पर लगे जाले।

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प्रश्न 4.
घर में गन्दगी का एक प्राकृतिक कारण बताएं।
उत्तर-
मकड़ी का जाल।

प्रश्न 5.
दीवाली के समय की जाने वाली सफ़ाई कौन-सी है?
उत्तर-
वार्षिक सफ़ाई।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 5 घर की सफ़ाई

घर की सफ़ाई PSEB 7th Class Home Science Notes

  • मिट्टी और धूल से भरा मकान देखने में बहुत बेकार और खराब लगता है।
  • मक्खियां और मच्छर गन्दगी की देन हैं।। कमरों को साफ़ करते समय कोनों की सफ़ाई का विशेष ध्यान रखना ज़रूरी
  • सफ़ाई करते समय हवा का रुख देखते हुए खिड़कियाँ और दरवाज़े खोलने ठीक रहते हैं।
  • शौचघर और गुसलखाने को प्रतिदिन फिनाइल से धोना चाहिए और उसमें खुली हवादार जाली लगानी चाहिए।
  • सप्ताह में एक दिन सारे घर की सफ़ाई सम्भव नहीं होती इसलिए कमरे बाँट लेना चाहिए।
  • सप्ताह में एक बार बिस्तरों को धूप अवश्य लगवानी चाहिए।
  • शौचघर में फिनाइल और कभी-कभी चूने का पानी छिड़कना चाहिए।
  • सफ़ाई रखने से जहां मकान की सुन्दरता कायम रहती है उसके साथ ही काफ़ी चीज़ों को नष्ट होने से भी बचाया जा सकता है।
  • हमारे देश में ऋतु के बदलने पर सफ़ाई करने का आम रिवाज है।
  • सफ़ेदी करने से पहले दीवारों से कलैण्डर और तस्वीरें उतारकर झाड़कर रख लेने चाहिएं ताकि टूट न जाएं।
  • खिड़कियाँ, अलमारियाँ और दरवाज़े की जालियाँ सोडे या साबुन वाले पानी के साथ साफ़ कर लेनी चाहिएं।
  • वार्षिक सफ़ाई या ऋतु के अनुसार सफ़ाई में दैनिक और साप्ताहिक सफ़ाई के भी सारे काम शामिल होते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 मार्क्सवाद

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 6 मार्क्सवाद Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 6 मार्क्सवाद

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
मार्क्स के समाजवाद के कोई छः सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। (Discuss any six Principles of Marxian Socialism.)
अथवा
मार्क्सवाद के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करो। (Discuss the main principles of Marxism.)
अथवा
मार्क्सवाद क्या है ? कार्ल मार्क्स के चार महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों का वर्णन करें। (What is Marxism ? Discuss four important principles of Karl Marx.)
अथवा मार्क्सवाद के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।। (Explain the main principles of Marxism.)
उत्तर-
कार्ल मार्क्स को साम्यवाद का जन्मदाता माना जाता है। उसने ही समाजवाद को वैज्ञानिक और व्यावहारिक रूप देने का प्रथम प्रयत्न किया। मार्क्सवादी समाज को सर्वहारा समाजवींद (Proletarian Socialism) तथा वैज्ञानिक समाजवाद (Scientific Socialism) के नाम से पुकारा जाता है। मार्क्स इसलिए अपने समाजवाद को वैज्ञानिक कहता है, क्योंकि यह इतिहास के आधार पर आधारित है। मार्क्स से पहले साइमन, फोरियर तथा ओवन ने भी समाजवाद से सम्बन्धित विचार प्रस्तुत किए थे, परन्तु उनके समाजवाद को वैज्ञानिक इसलिए नहीं कहा जाता क्योंकि यह इतिहास पर आधारित न होकर केवल कल्पना पर आधारित था। वेपर (Wayper) के शब्दों में, “उन्होंने केवल सुन्दर गुलाब के नज़ारे लिए थे, गुलाब के वृक्षों के लिए जमीन तैयार नहीं की थी।” प्रो० जोड (Prof. Joad) ने लिखा है, “मार्क्स इसलिए पहला समाजवादी लेखक था जिसकी जातियों को हम वैज्ञानिक कह सकते हैं। क्योंकि उसने न केवल अपने उद्देश्यों के समाज की भूमिका तैयार की बल्कि उसने विस्तार में यह भी बताया है कि वह किन-किन स्थितियों में से होता हुआ स्थापित हो सकेगा।” ।

लुइस वाशरमैन (Washerman) ने मार्क्स के विषय में लिखा है, “उसने समाजवाद को एक षड्यन्त्र के रूप में पाया और उसे एक आन्दोलन के रूप में छोड़ा।” (“He found socialism a conspiracy and left it a movement.”) मार्क्स ने सामाजिक विकास का एक वैज्ञानिक तथा क्रमिक अध्ययन किया। मार्क्स की भौतिकवादी तथा आर्थिक व्याख्या ही मार्क्सवाद है।

मार्क्स ने न केवल अपने विचारों को क्रमबद्ध रूप में प्रतिपादित किया है बल्कि यह भी बताया है कि इनको किस प्रकार लागू किया जा सकता है। मार्क्सवादी विचारधारा एक अविभाज्य इकाई है जिसके चार आधार स्तम्भ हैं-

(1) द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism)
(2) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या (Materialistic Interpretation of History)
(3) वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त (Theory of Class-Struggle)
(4) अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त (Theory of Surplus Value)।

1. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) मार्क्सवादी साम्यवाद का मूलाधार उनका द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) था। इस सिद्धान्त के द्वारा मार्क्स ने समाज के विकास के नियमों को खोजने का प्रयास किया। यह सिद्धान्त उसने अपने दार्शनिक गुरु हीगल से लिया जो कहता था, “संसार में समस्त विकास का कारण विरोधों का संघर्ष (Conflict of opposites) से होता है।” परन्तु मार्क्स ने हीगल के प्रथमवादी सिद्धान्त को भौतिकता के रंग में रंग दिया। इसलिए उसने कहा कि मानव समाज में प्रगति वर्गों में आर्थिक संघर्ष के कारण होती कार्ल मार्क्स के विचार द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद सारे दर्शन के आधार हैं। सभी नए विचार इसी आधार पर उत्पन्न होते हैं। मार्क्स जानता था कि समाज का विकास स्वाभाविक होता है। प्रकृति में चारों ओर संघर्ष चल रहा है जो अन्तर्विरोधी है। यह अन्तर्विरोध दो प्रकार का है अर्थात् एक वाद (Thesis) और दूसरा प्रतिवाद (Anti-thesis)। दोनों प्रकार के विरोधों में वाद तथा प्रतिवाद में संघर्ष निरन्तर चलता रहता है। जिस प्रकार वस्तुएं अपनी मूल प्रकृति में वाद तथा प्रतिवाद में एक-दूसरे की विरोधी होती हैं। जब ‘वाद’ का अपने ‘प्रतिवाद’ से टकराव होता है तो पारस्परिक प्रतिक्रियास्वरूप दोनों ही वस्तुओं के दिखलाई देने वाले स्वरूप का लोप हो जाता है तथा एक नवीन वस्तु का जन्म होता है। मार्क्स ने इसे ‘संवाद’ (Synthesis) का नाम दिया है। उसके अनुसार इस ‘संवाद’ का जन्म दोनों परस्पर विरोधी वस्तुओं के संयोग से हुआ है। अतः इनमें दोनों ही पूर्ववर्ती वस्तुओं के अंश विद्यमान रहते हैं। कालान्तर में यही ‘संवाद’ (Synthesis) ‘वाद’ (Thesis) का रूप धारण कर लेता है। विकास की यह प्रतिक्रिया अविरल रूप में चलती रहती है। ‘संवाद’ को मार्क्स ‘वाद’ एवं ‘प्रतिवाद’ का सुधरा हुआ रूप मानता है। इस प्रकार मार्क्स ने हीगल द्वारा प्रतिपादित द्वन्द्ववादी पद्धति को विचार जगत् में ला खड़ा किया। मार्क्स के शब्दों में, “हीगल का द्वन्द्ववाद सिर के बल खड़ा था मैंने उसे पैरों के बल पर खड़ा किया है।”

मार्क्स ने अपनी द्वन्द्ववादी पद्धति द्वारा समाज के विकास के इतिहास का विवरण प्रस्तुत किया तथा कहा कि समाज में विभिन्न वर्ग होते हैं। इन वर्गों में परस्पर संघर्ष होता रहता है। यह संघर्ष इस समय तक चलता रहता है जब तक समाय में सभी वर्ग समाप्त नहीं हो जाते। धीरे-धीरे ये वर्ग मज़दूर में लुप्त हो जाते हैं। तथा ‘श्रमिक वर्ग की तानाशाही’ (Dictatorship of the Proletariat) स्थापित हो जाती है।

2. इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या (Materialistic Interpretation of History) कार्ल मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक ढंग से ही इतिहास की भी व्याख्या की है। उसका कहना था कि समस्त ऐतिहासिक घटनाओं में आर्थिक घटनाओं का ही प्रभाव पड़ता है। समस्त सामाजिक ढांचा आर्थिक ढांचे के अनुसार ही बदलता रहता है। किसी भी युग का इतिहास ले लिया जाए। उस युग की सभ्यता केवल उस वर्ग का ही इतिहास दिखाई देगी जिसके पास आर्थिक शक्ति थी और उत्पादन के साधनों पर जिसका नियन्त्रण था। उत्पादन के साधन परिवर्तनशील हैं, परन्तु जिस वर्ग के पास उन साधनों का नियन्त्रण होता है, वे इस परिवर्तन में बाधा डालते हैं। इससे समाज मे दो परस्पर विरोधी गुट पैदा हो जाते हैं। और संघर्ष आरम्भ हो जाता है। एक गुट के पास आर्थिक शक्ति होती है तथा दूसरा गुट उसे प्राप्त करना चाहता है। समस्त ऐतिहासिक घटनाओं पर आर्थिक ढांचे का प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक विचार-धाराएं भी आर्थिक विचारधारा से प्रभावित होती हैं।

3. वर्ग-संघर्ष (Class-Struggle) मार्क्स का कहना था कि आज तक सारा संघर्ष एक वर्ग-संघर्ष के अतिरिक्त कुछ नहीं है। आरम्भ में ही समाज दो विरोधी वर्गों में बंटा हुआ रहता है-पूंजीपति और मज़दूर, अमीर और ग़रीब, शोषक और शोषित अर्थात् एक वे जिनके पास आर्थिक व राजनीतिक शक्ति होती है और दूसरे वे जिनके पास कोई शक्ति नहीं होती (Haves and Have-note)। मालिक और नौकर तथा शासक और शासित के वर्ग परस्पर विरोधी ही हैं। आरम्भ से ही आर्थिक शक्ति के किसी-न-किसी एक वर्ग के पास रही है और राजनीतिक शक्ति भी आर्थिक शक्ति के साथ ही मिलती आई है। ऐसे वर्ग ने सदा दूसरे वर्ग पर अन्याय और अत्याचार किए और राज्य ने इसमें उसका साथ दिया। इन दोनों विरोधी वर्गों के हित कभी एक-दूसरे से मेल नहीं खा सकते। प्राचीनकाल में दास-प्रथा थी और दासों का शोषण होता था। राज्य की शक्ति का प्रयोग भी दासों के विरुद्ध होता आया है। सामन्त युग में आर्थिक शक्ति सामन्तों के पास थी जिससे किसानों का शोषण होता था। आधुनिक पूंजीवादी समाज में मजदूरों का शोषण होता है और इस कार्य में राज्य की शक्ति पूंजीवादियों का ही साथ देती है। शोषित वर्ग के पास अपनी दशा को सुधारने के लिए क्रान्ति के अतिरिक्त और कोई साधन नहीं है। विभिन्न देशों में हुई क्रान्तियां इस बात का प्रमाण हैं। साम्यवादी घोषणा-पत्र (Communist Manifesto) में कहा गया था, “स्वामी और गुलाम, उच्च कुल तथा निम्न कुल, ज़मींदार तथा कृषक संघ में अधिकारी और मज़दूर अर्थात् शोषण करने वाले तथा शोषित वर्ग सदैव एक दूसरे के विरोधी रहे हैं।”

4. अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त (Theory of Surplus Value)-अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त पर मार्क्स के विचार मुख्य रूप से आधारित हैं। उसका कहना था कि किसी वस्तु के उत्पादन में श्रम का ही मुख्य हाथ है। मजदूर ही कच्चे माल को पक्के माल में बदलता है। किसी भी वस्तु का मूल्य उस पर लगे श्रम और समय अनुसार ही निश्चित होता है। आधुनिक पूंजीवादी समाज में कच्चे माल अथवा पूंजी पर कुछ धनिकों का ही नियन्त्रण है और मज़दूर के पास अपना श्रम बेचने के अतिरिक्त और कोई रास्ता नहीं। पूंजीपति मज़दूर को उसकी पूरी मजदूरी नहीं देता। उसे केवल इतना वेतन दिया जाता है कि वह जीवित रह सके और पूंजीपतियों की सेवा करता रहे। मज़दूरी और वस्तु के मूल्य में जो अन्तर है, वह वास्तव में मज़दूर का भाग है, परन्तु पूंजीपति उसे लाभ कहकर अपने पास रख लेता है। यही अतिरिक्त मूल्य है जो मज़दूर को मिलना चाहिए, पूंजीपति का उस पर कोई अधिकार नहीं है। पूंजीपति का लाभ मजदूर की मज़दूरी में से छीने गए भाग के अतिरिक्त कुछ नहीं है। मजदूर की मजदूरी एक नाशवान् वस्तु है और वह अपनी उचित मज़दूरी के लिए अधिक दिन तक उसे नष्ट नहीं कर सकते। पूंजीपति मजदूरों की इस शोचनीय दशा का अनुचित लाभ उठाते हैं और उन्हें कम मज़दूरी पर काम करने को विवश करते हैं। पूंजीपति अधिक-से-अधिक लाभ उठा कर मज़दूरों को और भी ग़रीब बनाते हैं।

मार्क्स के अन्य महत्त्वपूर्ण विचार इस प्रकार हैं-

5. पूंजीवाद का आत्मनाश (Self-destruction of Capitalism)-कार्ल मार्क्स ने कहा है कि वर्तमान पूंजीवाद स्वयं ही नाश की ओर जा रहा है। निजी सम्पत्ति और खुली प्रतियोगिता के कारण अमीर अधिक अमीर और ग़रीब अधिक ग़रीब होते जा रहे हैं। छोटे-छोटे पूंजीपति बड़े-बड़े पूंजीपतियों का मुकाबला नहीं कर सकते। कुछ समय बाद उसकी थोड़ी-बहुत सम्पत्ति नष्ट हो जाती है और वे मज़दूर वर्ग में मिल जाते हैं। इस प्रकार पूंजीपतियों की संख्या घटती जा रही है और मजदूरों की संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ समय के बाद पूंजीपतियों की संख्या इतनी कम रह जाएगी कि मजदूरों के लिए उनके विरुद्ध क्रान्ति करना बड़ा ही सरल हो जाएगा। उद्योगों के एक ही स्थान पर केन्द्रीयकरण तथा मशीनों के अधिक-से-अधिक प्रयोग के कारण भी पूंजीवाद स्वयं नाश की ओर जा रहा है। एक ही स्थान पर अधिक उद्योग हो ने से मजदूरों की संख्या भी बढ़ती जाती है। वे एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और उनमें एकता उत्पन्न होती है। मशीनों के कारण मज़दूरों में बेरोज़गारी बढ़ती है और वे पूंजीपतियों के विरोधी हो जाते हैं।

6. राज्य के लुप्त हो जाने में विश्वास (Faith in Withering away of the State)-मार्क्सवाद के अनुसार राज्य का प्रयोग शासक वर्ग श्रमिकों के शोषण के लिए करता है। इसलिए मार्क्सवादी राज्य को समाप्त कर देना चाहते हैं ताकि इसके द्वारा किसी का शोषण न हो सके। क्रान्ति के पश्चात् सर्वहारा वर्ग की तानाशाही की स्थापना हो जाएगी। सर्वहारा वर्ग धीरे-धीरे पूंजीवाद को समाप्त करके वर्ग-भेदों को समाप्त कर देगा। जब कोई वर्ग नहीं रहेगा तब राज्य की भी कोई आवश्यकता नहीं रहेगी और राज्य स्वयं लुप्त हो जाएगा।

7. क्रान्तिकारी साधनों में विश्वास (Faith in Revolutionary Methods)–मार्क्सवादी पूंजीवाद को समाप्त करने के लिए क्रान्ति में विश्वास रखता है। मार्क्स का विश्वास था कि शान्तिपूर्वक साधनों द्वारा पूंजीवाद को समाप्त करके साम्यवाद की स्थापना नहीं की जा सकती क्योंकि पूंजीवादी कभी सत्ता त्यागना नहीं चाहेंगे।

8. एक दल और दलीय अनुशासन में विश्वास (Faith in One Party and Party Discipline)मार्क्सवादी एक दल के शासन और दलीय अनुशासन में विश्वास रखते हैं। मार्क्सवाद के अनुसार शासन की बागडोर केवल साम्यवादी दल के हाथ में होनी चाहिए और किसी अन्य दल की स्थापना नहीं की जा सकती। मार्क्सवाद कठोर दलीय अनुशासन में विश्वास रखता है। कोई भी सदस्य पार्टी की नीतियों के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा सकता।

9. धर्म में कोई विश्वास नहीं (No Faith in Religion) मार्क्सवाद का धर्म में कोई विश्वास नहीं है। मार्क्स धर्म को लोगों के लिए अफीम मानता है। वह धर्म को पूंजीपतियों का समर्थक मानता है। पूंजीपतियों ने धर्म के नाम पर श्रमिकों और ग़रीबों को गुमराह किया है ताकि वे उनके विरुद्ध आवाज़ न उठाएं।

10. वर्गविहीन तथा राज्यविहीन समाजवादी समाज की स्थापना (Establishment of Classless and Stateless Socialist Society)-कार्ल मार्क्स का उद्देश्य अन्त में एक वर्गविहीन तथा राज्यविहीन समाज की स्थापना करना है। एक ऐसा समाज जिसमें विरोधी न हों बल्कि सब के सब मज़दूर हों और कार्य करके अपना पेट पालते हों, जिसमें कोई राज्य न हो क्योंकि राज्य शक्ति पर खड़ा है और जिसके पास भी इसकी शक्ति जाएगी, वह उसका प्रयोग करके दूसरों पर अत्याचार और शोषण करेगा। राज्य के होते हुए समाज का दो विरोधी गुटों में बंटना स्वाभाविक है। वर्गविहीन तथा राज्यविहीन समाय की स्थापना के लिए कार्ल मार्क्स ने निम्नलिखित स्तरों का उल्लेख किया-

(क) सामाजिक क्रान्ति (Social Revolution)-कार्ल मार्क्स ने साम्यवादी समाज की स्थापना के लिए प्रथम प्रयास सामाजिक क्रान्ति को बताया है। वैसे तो पूंजीवाद स्वयं ही नाश की ओर जा रहा है, परन्तु उसकी जड़ें काफ़ी गहरी हैं। मजदूरों को अपनी दशा सुधारने के लिए प्रयत्न अवश्य करने चाहिएं। मजदूरों को चाहिए कि वे अपने आपको संगठित करें और उनमें वर्ग जागृति (Class consciousness) लाने के प्रयत्न किए जाने चाहिएं। संगठित होकर अपनी शक्ति को बढ़ा कर उन्हें हिंसात्मक कार्यों का सहारा लेना चाहिए और हिंसा द्वारा इस वर्तमान पूंजीवादी व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट करना चाहिए। शान्तिपूर्ण तरीकों से या हिंसा द्वारा जैसे भी हो मजदूरों को राज्यसत्ता अपने हाथ में लेनी चाहिए। कार्ल मार्क्स ने मज़दूरों द्वारा सत्ता की प्राप्ति के लिए सभी साधनों को उचित बताया।

(ख) सर्वहारा अर्थात् मज़दूर वर्ग की तानाशाही (Dictatorship of the Proletariat) क्रान्ति और वर्गविहीन तथा राज्यविहीन समाज की स्थापना के बीच के समय को मार्क्स ने मजदूर वर्ग की तानाशाही के रूप में रखा है। केवल क्रान्ति करके ही मज़दूरों का उद्देश्य पूरा नहीं होता और पूंजीवाद एकदम ही नष्ट नहीं हो सकता। राज्यसत्ता पर अधिकार करके मजदूरों को चाहिए कि वे इस मशीनरी का प्रयोग पूंजीपतियों के विरुद्ध और पूंजीवाद को मूलतः नष्ट करने में करें। निजी सम्पत्ति की समाप्ति राष्ट्रीयकरण, व्यापार और व्यवसाय पर नियन्त्रण, भारी कर व्यवस्था (Heavy Taxation), विशेषाधिकारी की समाप्ति, सबके लिए समान कार्य आदि के कानून बनाकर और बल प्रयोग करके पूंजीवाद को नष्ट किया जा सकता है। . कार्ल मार्क्स तथा अन्य समाजवादी राज्य को अच्छी नहीं समझते और अन्त में उसे समाप्त करने के पक्ष में हैं, परन्तु इस अन्तरिम क्रान्तिकारी काल (Transitional Stage) में वे उसे रखने के पक्ष में हैं। जिस शक्ति से पहले पूंजीपति ग़रीबों और मजदूरों का शोषण करते थे, उसी से अब मज़दूर पूंजीपतियों को नष्ट करेंगे। पूंजीपति वर्ग के पूर्ण रूप से समाप्त होने पर जब समाज में परस्पर विरोधी वर्ग न होंगे और सब लोग श्रमिक ही होंगे तो उस समय राज्य को तोड़ दिया जाएगा।

(ग) वर्गविहीन तथा राज्यविहीन समाजवादी समाज (Classless and Stateless Socialist Society)जब पूंजीपतियों की समाप्ति हो जाएगी तो समाज में कोई वर्ग-संघर्ष नहीं होगा। सभी व्यक्ति श्रमिक वर्ग के होंगे इस प्रकार समाज वर्गविहीन हो जाएगा। समाज में आर्थिक समानता उत्पन्न हो जाएगी। ऐसी दशा में राज्य की कोई आवश्यकता नहीं होगी और इसे समाप्त कर दिया जएगा। राज्य का स्थान ऐसे समुदाय ले लेंगे जो व्यक्तियों द्वारा स्वतन्त्र और स्वेच्छा से बनाए जाएंगे ऐसा समाज स्थापित करना साम्यवाद का अन्तिम उद्देश्य है। अधिकतर साम्यवादी परिवार धार्मिक संस्थाओं को उचित नहीं मानते और इस समाज में उनके लिए भी कोई स्थान नहीं देते।

11. उद्देश्य साधनों का औचित्य बताते हैं (Ends Justify The Means)-मार्क्सवाद के अनुसार उद्देश्य साधनों का औचित्य बताते हैं। अत: मार्क्सवादी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कोई भी साधन अपनाने के पक्ष में हैं।

12. निजी क्षेत्र का विरोध (Against Private Ownership)—मार्क्सवादी निजी क्षेत्र का विरोध करता है। मार्क्सवाद के अनुसार निजी क्षेत्र को समाप्त करके सामूहिक अधिकार क्षेत्र स्थापित करना चाहिए।

13. बेगानगी का सिद्धान्त (Theory of Alienation)-मार्क्सवाद के अनुसार मज़दूर मजदूरी करते-करते तथा पूंजीपति अधिक-से-अधिक लाभ कमाने की लालसा में अपने आस-पास के वातावरण से कट जाते हैं।

14. मार्क्सवाद को संसार में फैलना (Global Spread of Marxsim)-मार्क्सवादी मार्क्सवाद को एक आन्दोलन बनाकर पूरे विश्व में फैला देना चाहते हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
मार्क्सवाद क्या है?
उत्तर-
कार्ल मार्क्स की रचनाओं में दिए गए विचारों को सामूहिक रूप में मार्क्सवाद का नाम दिया जाता है। मार्क्स को साम्यवाद का जन्मदाता माना जाता है जिसने समाजवाद को वैज्ञानिक और व्यावहारिक रूप देने का प्रथम प्रयत्न किया। मार्क्स इसलिए अपने समाजवाद को वैज्ञानिक कहता है, क्योंकि यह इतिहास पर आधारित है। मार्क्स ने सामाजिक विकास का वैज्ञानिक तथा क्रमिक अध्ययन किया। मार्क्स की भौतिकवादी और आर्थिक व्याख्या ही मार्क्सवाद है। मार्क्स ने न केवल अपने विचारों को क्रमबद्ध रूप में प्रतिपादित किया है बल्कि यह भी बताया है कि इनको किस प्रकार लागू किया जा सकता है। मार्क्सवादी विचारधारा एक अविभाज्य इकाई है जिसके चार आधार स्तम्भ हैं-(1) द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद, (2) इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या (3) वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त, (4) अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त।

प्रश्न 2.
कार्ल मार्क्स की प्रमुख रचनाओं के नाम लिखें।
अथवा
कार्ल मार्क्स की तीन रचनाओं के नाम लिखिए।
उत्तर-
कार्ल मार्क्स जर्मनी का एक प्रसिद्ध विद्वान् था। मार्क्स ने अपने जीवन काल में अनेक ग्रन्थ व लेख लिखे उनमें से प्रमुख के नाम निम्नलिखित हैं

  • The Poverty of Philosophy 1874.
  • कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो 1848.
  • दास कैपीटल 1867.
  • Value, Price and Profit 1865.

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प्रश्न 3.
कार्ल मार्क्स का वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त लिखो।
अथवा
कार्ल मार्क्स का श्रेणी युद्ध का सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर-
वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त मार्क्स का एक प्रमुख सिद्धान्त है जो समाज में होने वाले परिवर्तनों को सूचित करता है। मार्क्स के अनुसार समाज में सदैव दो विरोधी वर्ग रहे हैं। एक वह वर्ग जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है और दूसरा वह जो केवल शारीरिक श्रम करता है। अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए इन दोनों वर्गों के बीच सदैव संघर्ष होता रहता है। मार्क्स का कथन है कि आज तक का समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है। मार्क्स ने वर्ग संघर्ष के सिद्धान्त को ऐतिहासिक आधार पर प्रमाणित किया है। आदिम युग में मनुष्य की आवश्यकताएं बहुत कम थीं। सम्पत्ति व्यक्तिगत न होकर सामूहिक थी। इसलिए कोई वर्ग नहीं था और न ही वर्ग संघर्ष था। परन्तु इसके पश्चात् उत्पादन के साधनों पर थोड़े-से व्यक्तियों ने स्वामित्व स्थापित कर लिया और शेष दास बन गए। इस प्रकार वर्गों की उत्पति हुई जिससे वर्ग संघर्ष उत्पन्न हो गया। कार्ल मार्क्स के अनुसार, यह संघर्ष तभी समाप्त होगा जब पूंजीवाद का नाश होगा और साम्यवाद की स्थापना होगी।

प्रश्न 4.
कार्ल मार्क्स का भौतिकवाद द्वन्द्ववाद का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर-
मार्क्स के अनुसार प्रत्येक समाज में विरोधी शक्तियां होती हैं और इनके परस्पर विरोध से समाज का विकास होता है। मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीवादी वर्ग तथा मजदूर वर्ग दो विरोधी शक्तियां पाई जाती हैं। दोनों के परस्पर संघर्ष से पूंजीवाद का नाश हो जायेगा तथा एक नया समाजवादी समाज अस्तित्व में आएगा। मार्क्स ने यह सिद्धान्त हीगल से ग्रहण किया है। द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं-

  • पदार्थ एक हकीकत है, जो सभी परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी है।
  • प्रत्येक वस्तु व स्थिति परिवर्तनशील है।
  • प्रत्येक तथ्य (Fact) में अन्तर्विरोध किया है।
  • स्थान और स्थितियां विकास को अवश्य प्रभावित करती हैं।

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प्रश्न 5.
मार्क्सवादी इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या की विवेचना कीजिए।
अथवा
कार्ल मार्क्स के इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-
इतिहास की द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद द्वारा व्याख्या को मार्क्स ने इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या का नाम दिया। मार्क्स ने इतिहास का विश्लेषण भौतिकवाद के माध्यम से किया। मार्क्स का कहना था कि समस्त ऐतिहासिक घटनाओं में आर्थिक घटनाओं का ही प्रभाव पड़ता है। समस्त सामाजिक ढांचा आर्थिक ढांचे के अनुसार ही बदलता रहता है। किसी भी युग का इतिहास ले लिया जाए, उस युग की सभ्यता केवल उस वर्ग के ही इतिहास में दिखाई देगी जिसके पास आर्थिक शक्ति थी और उत्पादन के साधनों पर जिसका नियन्त्रण था। उत्पादन के साधन परिवर्तनशील हैं, परन्तु जिस वर्ग के पास उन साधनों का नियन्त्रण होता है, वे इस परिवर्तन में बाधा डालते हैं। इससे समाज में दो परस्पर विरोधी गुट पैदा हो जाते हैं और संघर्ष आरम्भ हो जाता है। एक गुट के पास आर्थिक शक्ति होती है तथा दूसरा गुट उसे प्राप्त करना चाहता है। समस्त ऐतिहासिक घटनाओं पर आर्थिक ढांचे का प्रभाव पड़ता है। यहां तक कि धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक विचारधाराएं भी आर्थिक विचारधारा से प्रभावित होती हैं।

प्रश्न 6.
कार्ल मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त क्या है ?
अथवा
मार्क्स का अधिक मूल्य का सिद्धान्त क्या है?
उत्तर-
अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त पर मार्क्स के विचार मुख्य रूप से आधारित हैं। उसका कहना था कि किसी वस्तु के उत्पादन में श्रम का ही मुख्य हाथ है। मज़दूर ही कच्चे माल को पक्के माल में बदलता है। किसी भी वस्तु का मूल्य उस पर लगे श्रम और समय अनुसार ही निश्चित होता है। आधुनिक पूंजीवादी समाज में कच्चे माल अथवा पूंजी पर कुछ धनिकों का ही नियन्त्रण है और मजदूर के पास अपना श्रम बेचने के अतिरिक्त और कोई स्रोत नहीं। पूंजीवादी मजदूर को उसकी पूरी मज़दूरी नहीं देता। उसे केवल इतनी मज़दूरी दी जाती है कि वह जीवित रह सके और पूंजीपतियों की सेवा करता रहे। मज़दूरी और वस्तु के मूल्य में जो अन्तर है, वह वास्तव में मज़दूर का भाग है, परन्तु पूंजीपति उसे लाभ कहकर अपने पास रख लेता है। यही अतिरिक्त मूल्य है जो मज़दूर को मिलना चाहिए, पूंजीपति का उस पर कोई अधिकार नहीं है।

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प्रश्न 7.
कार्ल मार्क्स के पूंजीवाद के आत्मनाश के सिद्धान्त के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
कार्ल मार्क्स ने कहा कि वर्तमान पूंजीवाद स्वयं ही नाश की ओर जा रहा है। निजी सम्पत्ति और खुली प्रतियोगिता के कारण अमीर अधिक अमीर और ग़रीब और अधिक गरीब होते जा रहे हैं। छोटे-छोटे पूंजीपति बड़ेबड़े पूंजीपतियों का मुकाबला नहीं कर सकते। कुछ समय बाद उसकी थोड़ी-बहुत सम्पत्ति नष्ट हो जाती है और वे मज़दूर वर्ग में मिल जाते हैं। इस प्रकार पूंजीपतियों की संख्या घटती जा रही है और मज़दूरों की संख्या बढ़ती जा रही है। कुछ समय के बाद पूंजीपतियों की संख्या इतनी कम रह जाएगी कि मज़दूरों के लिए उनके विरुद्ध क्रान्ति करना बड़ा ही सरल हो जाएगा। उद्योगों के एक ही स्थान पर केन्द्रीयकरण तथा मशीनों के अधिक-से-अधिक प्रयोग के कारण भी पूंजीवाद स्वयं नाश की ओर जा रहा है। एक ही स्थान पर अधिक उद्योग होने से मजदूरों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। वे एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं जिससे उनमें एकता उत्पन्न होती है। मशीनों के कारण मजदूरों में बेरोजगारी बढ़ती जाती है जिससे वे पूंजीपतियों के विरोधी हो जाते हैं।

प्रश्न 8.
मार्क्सवाद के मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त-मार्क्सवादी साम्यवाद का मूलाधार उनका भौतिक द्वन्द्वावाद था। इस सिद्धान्त के द्वारा मार्क्स ने समाज के विकास के नियमों को खोजने का प्रयास किया।
  • इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या-मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक ढंग से ही इतिहास की भी व्याख्या की है। उसका कहना था कि समस्त ऐतिहासिक घटनाओं में आर्थिक घटनाओं का ही प्रभाव पड़ता है। किसी भी युग का इतिहास ले लिया जाए तो उस युग की सभ्यता केवल उस वर्ग का ही इतिहास दिखाई देगी जिसके पास आर्थिक शक्ति थी और उत्पादन के साधनों पर जिसका नियन्त्रण होता था।
  • वर्ग संघर्ष-मार्क्स का कहना था कि समाज दो विरोधी वर्गों में बंटा हुआ होता है-पूंजीवादी और मज़दूर, शोषक और शोषित। इन दोनों विरोधी वर्गों के हित कभी एक-दूसरे से मेल नहीं खा सकते। शोषित वर्ग के पास अपनी दशा सुधारने के लिए क्रान्ति के अतिरिक्त कोई साधन नहीं है। विभिन्न देशों में हुई क्रान्तियां इस बात का प्रमाण हैं।
  • मार्क्सवाद का एक अन्य महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त है।

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प्रश्न 9.
मार्क्स का मज़दूरों की तानाशाही का क्या अर्थ है ?
अथवा
मार्क्सवाद का ‘मज़दूरों की तानाशाही’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मार्क्स का यह विश्वास था कि जब श्रमिक संगठित हो जाएंगे और क्रान्ति का बीड़ा उठाएंगे तो पूंजीपति वर्ग अवश्य ही समाप्त हो जाएगा और सर्वहारा वर्ग अर्थात् श्रमिक वर्ग की तानाशाही स्थापित हो जाएगी। क्रान्ति और वर्ग विहीन समाज की स्थापना के बीच के समय को मार्क्स ने सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के रूप में माना है। सर्वहारा के अधिनायकतन्त्र के अन्तर्गत राज्य में वर्ग विरोध का अन्त हो जाएगा। सर्वहारा वर्ग के अधिनायकतन्त्र के समय में राज्य एक वर्ग का न होकर सम्पूर्ण समाज का प्रतिनिधि बन जाता है। सर्वहारा वर्ग का अधिनायकतन्त्र एक प्रकार से श्रमिकों के प्रजातन्त्र का रूप धारण करता है। पूंजीपति वर्ग के पूर्ण रूप से समाप्त होने पर जब समाज में परस्पर विरोधी वर्ग नहीं होंगे और सब लोग श्रमिक ही होंगे तब राज्य अनावश्यक हो जाएगा और स्वयं ही समाप्त हो जाएगा।

प्रश्न 10.
मार्क्सवादियों के धर्म के सम्बन्ध में विचार लिखो।
अथवा
कार्ल मार्क्स का धर्म के सम्बन्ध में क्या विचार था ?
उत्तर-
मार्क्सवादियों का धर्म में कोई विश्वास नहीं था। वह धर्म को लोगों के लिए अफ़ीम समझते थे, क्योंकि जनता धर्म के चक्कर में पड़ कर अन्ध-विश्वासी, रूढ़िवादी, अप्रगतिशील और कायर बन जाती है। मार्क्सवादी धर्म को पूंजीपतियों की रक्षा का यन्त्र मानते हैं। उनका मत है कि पूंजीपति वर्ग धर्म की आड़ में ग़रीब या श्रमिक वर्ग का शोषण करते हैं। इसलिए मार्क्सवादियों ने धर्म को कोई महत्त्व नहीं दिया। साम्यवादी देशों में धर्म को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है।

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प्रश्न 11.
मार्क्सवादियों के राज्य के सम्बन्ध में विचार लिखिए।’
अथवा
मार्क्सवादियों के राज्य के बारे में विचार लिखो।
उत्तर-
मार्क्सवादी राज्य को न तो ईश्वरीय संस्था मानते हैं और न ही किसी समझौते का परिणाम। मार्क्सवादियों के विचारानुसार राज्य का उदय सामाजिक विकास के फलस्वरूप हुआ है। यह समाज के दो वर्गों के बीच संघर्ष का परिणाम है। मार्क्स के अनुसार राज्य कभी कल्याणकारी संस्था नहीं हो सकती क्योंकि राज्य की सत्ता का प्रयोग शोषक वर्ग अपने हितों के लिए करता है। राज्य का सही विकास पूंजीपति युग में हुआ जिसकी शुरुआत मध्य युग के बाद हुई। पंजीपति वर्ग ने श्रमिक वर्ग का शोषण करने के लिए राज्य रूपी यन्त्र का प्रयोग किया और राज्य को और शक्तिशाली बनाया। मार्क्स का विचार है कि वर्तमान बुर्जुआ राज्य को श्रमिक वर्ग क्रान्ति द्वारा समाप्त कर देगा और उसके स्थान पर मज़दूर राज्य (Proletarian State) की स्थापना होगी। मज़दूर राज्य में श्रमिक वर्ग अथवा सर्वहारा वर्ग की तानाशाही की स्थापना होगी। जब पूंजीवाद का पूर्ण विनाश हो जाएगा और राज्य समस्त समाज का वास्तविक प्रतिनिधि बन जाएगा तब राज्य अनावश्यक हो जाएगा। अन्त में राज्य अपने आप लोप हो जाएगा और वर्ग-विहीन तथा राज्य-विहीन समाज की स्थापना हो जाएगी।

प्रश्न 12.
कार्ल मार्क्स के वर्ग विहीन समाज से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मार्क्सवाद के अनुसार पूंजीवाद ही समाज में संघर्ष का प्रमुख कारण है। पूंजीपति अपने निहित स्वार्थों के लिए श्रमिकों का शोषण करते हैं। अतः जब तक पूंजीवाद का नाश नहीं होगा तब तक न तो समाज से संघर्ष की समाप्ति होगी और न ही वर्ग विहीन समाज का सपना साकार होगा। मार्क्सवाद के अनुसार जब पूंजीपतियों की समाप्ति हो जाएगी तो समाज में कोई वर्ग-संघर्ष नहीं होगा । सभी व्यक्ति श्रमिक वर्ग के होंगे। इस प्रकार समाज वर्ग विहीन हो जाएगा। समाज में आर्थिक समानता उत्पन्न हो जाएगी। ऐसी दशा में राज्य की कोई आवश्यकता नहीं होगी और राज्य विलुप्त हो जाएगा। राज्य का स्थान ऐसे समुदाय ले लेंगे जो व्यक्ति द्वारा स्वतन्त्रता और स्वेच्छा से बनाए जाएंगे। ऐसा समाज स्थापित करना साम्यवाद का अन्तिम उद्देश्य है। अधिकतर साम्यवादी धार्मिक संस्थाओं को उचित नहीं मानते और इस समाज में इन्हें कोई स्थान नहीं देते।

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प्रश्न 13.
मार्क्सवाद की आलोचना के किन्हीं चार आधारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मार्क्सवाद की आलोचना मुख्यत: निम्नलिखित आधारों पर की गई है
1. इतिहास वर्ग संघर्ष की कहानी मात्र नहीं है-कार्ल मार्क्स का यह कहना भी सर्वथा उचित नहीं है कि समस्त इतिहास वर्ग संघर्ष की कहानी है। सभी देशों के इतिहास इस बात के साक्षी हैं कि यहां पर बहुत-से शासक ऐसे हुए जिन्होंने अपनी शक्ति का दुरुपयोग न करके शान्ति और व्यवस्था का साम्राज्य स्थापित किया और लोगों ने परस्पर विरोध की बजाय एकता के सूत्र में बंध कर राष्ट्र और समाज की उन्नति के कार्य किए। इतिहास को वर्ग संघर्ष की कहानी कहना इतिहास का गलत चित्रण करना है।

2. राज्य एक बुराई नहीं है-मार्क्सवाद राज्य को एक बुराई मानता है जो वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देती है और पूंजीवादियों को मज़दूरों के शोषण में सहायता देती है, परन्तु यह बात ग़लत है। राज्य एक बुराई नहीं बल्कि अच्छाई है। राज्य लोगों की इच्छा पर आधारित शक्ति पर नहीं।

3. धर्म पर आघात अन्यायपूर्ण-मार्क्सवाद ने धर्म को अफ़ीम कहा है, जो कि उचित नहीं है।
4. मार्क्स के अनुसार राज्य लुप्त हो जाएगा, परन्तु राज्य पहले से भी अधिक शक्तिशाली हुआ है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
मार्क्सवाद क्या है ?
उत्तर-
कार्ल मार्क्स की रचनाओं में दिए गए विचारों को सामूहिक रूप में मार्क्सवाद का नाम दिया जाता है। मार्क्स को साम्यवाद का जन्मदाता माना जाता है जिसने समाजवाद को वैज्ञानिक और व्यावहारिक रूप देने का प्रथम प्रयत्न किया। मार्क्स ने न केवल अपने विचारों को क्रमबद्ध रूप में प्रतिपादित किया है बल्कि यह भी बताया है कि इनको किस प्रकार लागू किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
आप कार्ल मार्क्स के वर्ग संघर्ष के सिद्धांत के विषय में क्या जानते हैं ? .
उत्तर-
मार्क्स के अनुसार समाज में सदैव दो विरोधी वर्ग रहे हैं। एक वह वर्ग जिसके पास उत्पादन के साधनों का स्वामित्व है और दूसरा वह जो केवल शारीरिक श्रम करता है। अपने-अपने हितों की रक्षा के लिए इन दोनों वर्गों के बीच सदैव संघर्ष होता रहता है।

प्रश्न 3.
कार्ल मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धान्त क्या है ?
उत्तर-
अतिरिक्त मूल्य के सिद्धान्त पर मार्क्स के विचार मुख्य रूप से आधारित हैं। उसका कहना था कि किसी वस्तु के उत्पादन में श्रम का ही मुख्य हाथ है। परन्तु पूंजीवादी मजदूर को उसकी पूरी मज़दूरी नहीं देता। उसे केवल इतनी मज़दूरी दी जाती है कि वह जीवित रह सके और पूंजीपतियों की सेवा करता रहे। मज़दूरी और वस्तु के मूल्य में जो अन्तर है, वह वास्तव में मज़दूर का भाग है, परन्तु पूंजीपति उसे लाभ कहकर अपने पास रख लेता है। यही अतिरिक्त मूल्य है जो मज़दूर को मिलना चाहिए।

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प्रश्न 4.
मार्क्सवाद के दो मुख्य सिद्धान्तों का वर्णन करें।
उत्तर-
1. द्वन्द्वात्मक सिद्धान्त-मार्क्सवादी साम्यवाद का मूलाधार उनका भौतिक द्वन्द्ववाद था। इस सिद्धान्त के द्वारा मार्क्स ने समाज के विकास के नियमों को खोजने का प्रयास किया।

2. इतिहास की भौतिकवादी व्याख्या-मार्क्स ने द्वन्द्वात्मक ढंग से ही इतिहास की भी व्याख्या की है। उसका कहना था कि समस्त ऐतिहासिक घटनाओं में आर्थिक घटनाओं का ही प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 5.
कार्ल मार्क्स (मार्क्सवाद) राज्य के विरुद्ध क्यों है ?
उत्तर-
कार्ल मार्क्स राज्य को शोषण का यन्त्र मानता है। यह समाज के दो वर्गों बीच संघर्ष का परिणाम है। मार्क्स के अनुसार राज्य कभी कल्याणकारी संस्था नहीं हो सकती क्योंकि राज्य की सत्ता का प्रयोग शोषक वर्ग अपने हितों के लिए करता है।

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प्रश्न 6.
मार्क्सवाद की वर्गहीन और राज्यहीन धारणा से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मार्क्सवाद के अनुसार जब पूंजीपतियों की समाप्ति हो जाएगी तो समाज में कोई वर्ग-संघर्ष नहीं होगा। सभी व्यक्ति श्रमिक वर्ग के होंगे। इस प्रकार समाज वर्ग विहीन हो जाएगा। समाज में आर्थिक समानता उत्पन्न हो जाएगी। ऐसी दशा में राज्य की कोई आवश्यकता नहीं होगी और राज्य विलुप्त हो जाएगा।

प्रश्न 7.
मार्क्स का मज़दूरों की तानाशाही का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
मार्क्स का यह विश्वास था कि जब श्रमिक संगठित हो जाएंगे और क्रान्ति का बीड़ा उठाएंगे तो पूंजीपति वर्ग अवश्य ही समाप्त हो जाएगा और सर्वहारा वर्ग अर्थात् श्रमिक वर्ग की तानाशाही स्थापित हो जाएगी। क्रान्ति और वर्ग विहीन समाज की स्थापना के बीच के समय को मार्क्स ने सर्वहारा वर्ग की तानाशाही के रूप में माना है। सर्वहारा के अधिनायकतन्त्र के अन्तर्गत राज्य में वर्ग विरोध का अन्त हो जाएगा।

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प्रश्न 8.
कार्ल मार्क्स के धर्म सम्बन्धी विचारों का वर्णन करें।
उत्तर-
मार्क्सवादियों का धर्म में कोई विश्वास नहीं था। वह धर्म को लोगों के लिए अफ़ीम समझते थे, क्योंकि जनता धर्म के चक्कर में पड़ कर अन्ध-विश्वासी, रूढ़िवादी, अप्रगतिशील और कायर बन जाती है। मार्क्सवादी धर्म को पूंजीपतियों की रक्षा का यन्त्र मानते हैं। उनका मत है कि पूंजीपति वर्ग धर्म की आड़ में ग़रीब या श्रमिक वर्ग का शोषण करते हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
मार्क्सवाद का संस्थापक कौन है ?
उत्तर-
मार्क्सवाद का संस्थापक कार्ल मार्क्स है।

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प्रश्न 2.
कार्ल मार्क्स कौन था ?
उत्तर-
कार्ल मार्क्स साम्यवादी विचारक था जिसका जन्म जर्मनी में 5 मई, 1818 ई० को हुआ। कार्ल मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद का जनक माना जाता है।

प्रश्न 3.
कार्ल मार्क्स की दो प्रसिद्ध रचनाओं के नाम लिखो।
अथवा
कार्ल-मार्क्स की एक प्रसिद्ध रचना का नाम लिखो।
उत्तर-

  1. दास कैपिटल
  2. कम्युनिस्ट मैनीफेस्टो।

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प्रश्न 4.
मार्क्सवाद से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मार्क्स की रचनाओं में प्रकट किए गए विचारों के सामूहिक रूप को मार्क्सवाद कहा जाता है।

प्रश्न 5.
मार्क्सवाद का कोई एक आधारभूत सिद्धान्त लिखो।
उत्तर-
वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त मार्क्सवाद का एक प्रमुख सिद्धान्त है। मार्क्स के अनुसार अब तक का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 6 मार्क्सवाद

प्रश्न 6.
द्वन्द्ववाद किस भाषा के किस शब्द से लिया गया है ?
उत्तर-
द्वन्द्ववाद (Dialictic) ग्रीक भाषा के शब्द डाइलगो (Dialogo) से लिया गया है, जिसका अर्थ है, वादविवाद करना।

प्रश्न 7.
मार्क्सवाद की एक आलोचना लिखो।
उत्तर-
मार्क्सवाद राज्य को समाप्त करने के पक्ष में है, परन्तु यह सम्भव नहीं है।

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प्रश्न 8.
मार्क्सवाद का अन्तिम उद्देश्य क्या है ?
उत्तर-
मार्क्सवाद का अन्तिम उद्देश्य वर्ग-विहीन और राज्य-विहीन साम्यवादी समाज की स्थापना करना है।

प्रश्न 9.
वर्ग-विहीन समाज का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
मार्क्स के अनुसार साम्यवादी क्रान्ति के बाद श्रमिक वर्ग का आधिपत्य स्थापित हो जाएगा और समाज में कोई वर्ग नहीं होगा। ऐसा समाज वर्ग-विहीन समाज कहलाएगा।

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प्रश्न 10.
द्वन्द्ववाद किस भाषा के किस शब्द से लिया गया है?
उत्तर-
द्वन्द्ववाद (Dialictic) ग्रीक भाषा के शब्द डाइलगो (Dialogo) से लिया गया है जिसका अर्थ है, वादविवाद करना।

प्रश्न 11.
कार्ल-मार्क्स के दो मुख्य सिद्धान्तों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद
  2. वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. …………….. को साम्यवाद का जन्मदाता माना जाता है।
2. वर्ग-संघर्ष का सिद्धान्त ……………. ने दिया।
3. मार्क्स के अनुसार हीगल का द्वन्द्ववाद ……………. के बल खड़ा था मैंने उसे पैरों के बल पर खड़ा किया।
4. मार्क्सवाद के अनुसार ……………. समाप्त हो जायेगा।
5. ऐंजलस के अनुसार राज्य पूंजीपतियों की ……………. मात्र है।
उत्तर-

  1. कार्ल मार्क्स
  2. कार्ल मार्क्स
  3. सिर
  4. राज्य
  5. प्रबन्धक समिति।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. मार्क्सवाद का जन्मदाता लॉस्की है।
2. राज्य सम्बन्धी मार्क्स की भविष्यवाणी सही साबित नहीं हुई।
3. मार्क्स के अनुसार पूंजीपति का उद्देश्य सदैव अधिक-से-अधिक मुनाफा कमाने का होता है।
4. मार्क्स ने सर्वहारा के अधिनायक तन्त्र का समर्थन नहीं किया।
5. सोरल ने मार्क्सवादी वर्ग को एक अमूर्त कल्पना कहा है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. सही
  4. ग़लत
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय-

प्रश्न 1.
वर्ग संघर्ष का सिद्धान्त किसने दिया है ?
(क) हॉब्स
(ख) लॉक
(ग) मार्क्स
(घ) रूसो।
उत्तर-
(ग) मार्क्स

प्रश्न 2.
“दास कैपिटल’ नामक पुस्तक किसने लिखी ?
(क) मार्क्स
(ख) लेनिन
(ग) माओ
(घ) लॉस्की।
उत्तर-
(क) मार्क्स

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प्रश्न 3.
यह कथन किसका है, “राज्य केवल एक ऐसा यन्त्र है जिसकी सहायता से एक वर्ग दूसरे वर्ग का शोषण करता है।”
(क) कार्ल मार्क्स
(ख) लेनिन
(ग) फ्रेडरिक एंजल्स
(घ) हीगल।
उत्तर-
(क) कार्ल मार्क्स

प्रश्न 4.
मार्क्सवाद के अनुसार राज्य के अस्तित्व से पूर्व आदिम समाज कैसा था ?
(क) वर्ग-विहीन समाज
(ख) दो वर्गों वाला समाज
(ग) वर्ग संघर्ष वाला समाज
(घ) अनेक वर्गों वाला समाज।
उत्तर-
(क) वर्ग-विहीन समाज

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प्रश्न 5.
मार्क्सवाद का सिद्धान्त किसने दिया था ?
(क) लेनिन
(ख) कार्ल मार्क्स
(ग) स्टालिन
(घ) माओ।
उत्तर-
(ख) कार्ल मार्क्स

प्रश्न 6.
यह कथन किसका है, “प्रत्येक समाज में दो वर्ग होते हैं।”
(क) आल्मण्ड पावेल
(ख) एस० एस० उलमार
(ग) रॉबर्ट डाहल
(घ) कार्ल मार्क्स।
उत्तर-
(घ) कार्ल मार्क्स।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 8 राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 8 राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 8 राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
शक्ति से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
शक्ति समूह या व्यक्तियों का वह सामर्थ्य है जिससे वह उस समय अपनी बात मनवाते हैं जब उनका विरोध हो रहा होता है।

प्रश्न 2.
मैक्स वैबर द्वारा प्रस्तुत सत्ता के तीन प्रकार बताइये।
उत्तर-
परंपरागत सत्ता, वैधानिक सत्ता तथा करिश्मायी सत्ता।

प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
समाजशास्त्रियों के अनुसार मानवीय क्रियाएं जो भोजन अथवा सम्पत्ति से संबंधित होती हैं, अर्थ व्यवस्था को बनाती हैं।

प्रश्न 4.
राज्य के कोई दो तत्व बताइये।
उत्तर-
जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र, प्रभुसत्ता तथा सरकार राज्य के प्रमुख तत्त्व हैं।

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प्रश्न 5.
जीववाद का सिद्धांत किसने प्रस्तुत किया ?
उत्तर-
ई० बी० टाईलर (E.B. Tylor) ने जीववाद का सिद्धांत दिया था।

प्रश्न 6.
किसने पवित्र तथा सामान्य वस्तुओं में अंतर किया ?
उत्तर-
दुर्थीम (Durkheim) ने पवित्र तथा अपवित्र वस्तुओं में अंतर दिया था।

प्रश्न 7.
प्रकृतिवाद के विचार की चर्चा किसने की ?
उत्तर-
प्रकृतिवाद का सिद्धांत मैक्स मूलर (Max Muller) ने दिया था।

प्रश्न 8.
किसने धर्म को ‘आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास’ माना है ?
उत्तर-
ई० बी० टाईलर ने धर्म को परा प्राकृतिक शक्ति में विश्वास कहा था।

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प्रश्न 9.
दो ऐसे धर्मों के नाम बताइये जो भारत में बाहर से आये हैं।
उत्तर-
ईसाई और इस्लाम दो धर्म हैं जो भारत में बाहर से आए हैं।

प्रश्न 10.
सम्प्रदाय से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सम्प्रदाय एक धार्मिक विचार व्यवस्था का एक उपसमूह है तथा साधारणतया यह बड़े धार्मिक समूह से निकला एक हिस्सा होता है।

प्रश्न 11.
पंथ का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
पंथ एक धार्मिक संगठन है जो किसी एक व्यक्तिगत नेता के विचारों तथा विचारधारा में से निकला है।

प्रश्न 12.
कार्ल मार्क्स द्वारा प्रस्तुत पूंजीवादी समाज में दो प्रमुख वर्गों के नाम बताइये।
उत्तर-
पूंजीवादी वर्ग तथा मज़दूर वर्ग।

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प्रश्न 13.
औपचारिक शिक्षा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वह शिक्षा जो हम स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय इत्यादि में लेते हैं, वह औपचारिक शिक्षा होती है।

प्रश्न 14.
अनौपचारिक शिक्षा को परिभाषित दीजिए।
उत्तर-
वह शिक्षा जो हम अपने परिवार से, रोज़ाना के अनुभवों से प्राप्त करते हैं, अनौपचारिक शिक्षा होती है।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
राज्यहीन समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जिन समाजों में राज्य नामक संस्था नहीं होती वह राज्य रहित समाज होते हैं। वे सादा या प्राचीन समाज होते हैं। यहां कम जनसंख्या होती है जिस कारण लोगों के बीच आमने-सामने के रिश्ते होते हैं तथा सामाजिक नियंत्रण के लिए समाज या सरकार जैसे किसी औपचारिक साधन की आवश्यकता नहीं होती। यहां बुजुर्गों की सभा से नियंत्रण किया जाता है।

प्रश्न 2.
करिश्मई सत्ता पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति से इतना प्रभावित होता है कि उसके कहने के अनुसार वह कुछ भी कर जाता है तो इस प्रकार की सत्ता करिश्मई सत्ता होती है। किसी व्यक्ति का करिश्मई व्यक्तित्व होता है तथा लोग उससे प्रभावित हो जाते हैं। धार्मिक नेता, राजनीतिक नेता इस प्रकार की सत्ता का प्रयोग करते हैं।

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प्रश्न 3.
वैधानिक-तार्किक सत्ता किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जो सत्ता कुछ नियमों-कानूनों के अनुसार प्राप्त होती है उसे वैधानिक सत्ता का नाम दिया जाता है। सरकार के पास वैधानिक सत्ता होती है तथा प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मंत्री, अधिकारी इस प्रकार की सत्ता का प्रयोग करते हैं जो संविधान की सहायता से प्राप्त की जाती है।

प्रश्न 4.
पंचायती राज प्रणाली के दो गुण लिखिए।
उत्तर-

  1. पंचायती राज व्यवस्था को स्थानीय स्तर पर लागू किया जाता है तथा साधारण जनता को भी सत्ता में भागीदारी करने का मौका प्राप्त होता है।
  2. इस व्यवस्था में स्थानीय स्तर की समस्याओं का स्थानीय स्तर पर ही समाधान कर लिया जाता है तथा कार्य भी जल्दी हो जाता है।

प्रश्न 5.
जीववाद (Animism) और प्रकृतिवाद (Naturism) से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-

  1. जीववाद-यह सिद्धान्त Tylor ने दिया था तथा इसके अनुसार धर्म का उद्भव आत्मा के विचार से सामने आया अर्थात् लोग आत्माओं में विश्वास रखते हैं तथा इससे ही धर्म का जन्म हुआ।
  2. प्रकृतिवाद-इसके अनुसार प्राचीन समय में मनुष्य प्राकृतिक घटनाओं जैसे कि वर्षा, बर्फानी तूफान, आग इत्यादि से डरता था। इसलिए उसने प्रकृति की पूजा करनी शुरू की तथा धर्म सामने आया।

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प्रश्न 6.
हित समूह किसे कहते हैं ?
उत्तर-
हित समूह एक विशेष समूह के लोगों की तरफ से बनाए गए समूह हैं जो केवल अपने सदस्यों के हितों के लिए कार्य करते हैं। उन हितों की प्राप्ति के लिए वह अन्य समूहों के हितों की भी परवाह नहीं करते। उदाहरण के लिए मज़दूर संघ, ट्रेड यूनियन, फिक्की (FICCI) इत्यादि।

प्रश्न 7.
पवित्र एवं सामान्य पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
दुर्थीम ने धर्म से संबंधित पवित्र तथा साधारण वस्तुओं के बारे में बताया था। उनके अनुसार पवित्र वस्तुएं वे हैं जिन्हें हमसे ऊंचा तथा सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। ये असाधारण होती हैं तथा रोज़ाना के कार्यों से दूर होती हैं परन्तु बहुत-सी वस्तुएं ऐसी होती हैं जो रोज़ाना हमारे सामने आती हैं तथा प्रयोग की जाती हैं। इन्हें साधारण वस्तुएं कहा जाता है।

प्रश्न 8.
टोटमवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
टोटमवाद में कोई जनजाति स्वयं को किसी वस्तु, मुख्य रूप से कोई जानवर, पेड़, पौधा, पत्थर या किसी अन्य वस्तु से संबंधित मान लेती है। जिस वस्तु के प्रति उसका श्रद्धा भाव होता है वह जनजाति उस वस्तु के नाम को अपना लेती है तथा उसकी पूजा करती है। वह स्वयं को उस टोटम से पैदा हुई मान लेती है।

प्रश्न 9.
पशुपालक अर्थव्यवस्था (Pastoral Economy) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में समाज अपनी जीविका कमाने के लिए घरेलू जानवरों पर निर्भर करते हैं। इन्हें चरवाहे कहा जाता है। वह भेड़ों-बकरियों, गाय, ऊंट, घोड़े इत्यादि रखते हैं। इस प्रकार के समाज घास वाले हरे-भरे मैदानों या पहाड़ों में मिलते हैं। मौसम बदलने से यह लोग स्थान भी बदल लेते हैं।

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प्रश्न 10.
कृषि अर्थव्यवस्था किस प्रकार औद्योगिक अर्थव्यवस्था से भिन्न है ?
उत्तर-
कृषि अर्थव्यवस्था में लोगों का मुख्य पेशा कृषि होता है तथा वे कृषि करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वहां कम जनसंख्या तथा अनौपचारिक संबंध होते हैं। परन्तु औद्योगिक अर्थव्यवस्था में लोग उद्योगों में कार्य करके पैसे कमाते हैं। वहां अधिकतर जनसंख्या तथा लोगों के बीच औपचारिक संबंध होते हैं।

प्रश्न 11.
जजमानी प्रणाली किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यह व्यवस्था सेवा लेने तथा देने की व्यवस्था है जिसमें निम्न जातियां उच्च जातियों को अपनी सेवाएं देती हैं तथा सेवा देने वाली जाति को अपनी सेवाओं का मेहनताना मिल जाता है। सेवा लेने वाले को जजमान कहा जाता है तथा सेवा देने वाले को कमीन कहा जाता है।

प्रश्न 12.
पूंजीवादी समाज पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
पश्चिमी समाजों को पूंजीवादी समाज कहा जाता है जहां उद्योगों में पूंजी लगाकर पैसा कमाया जाता है। उद्योगों के मालिकों के हाथों में उत्पादन के साधन होते हैं तथा वे मजदूरों को काम पर रख कर वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। पूंजीवाद का मुख्य तत्त्व है मज़दूरों, उत्पादन के साधनों, उद्योगों, मशीनों तथा मालिकों के बीच संबंध। .

प्रश्न 13.
समाजवादी समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
यह संकल्प 19वीं शताब्दी में कार्ल मार्क्स ने दिया था, जिसके अनुसार सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था मज़दूरों के हाथों में होती है। मजदूर उद्योगपतियों के विरुद्ध क्रांति करके उनकी सत्ता खत्म कर देंगे तथा वर्ग रहित समाज की स्थापना करेंगे। सभी लोग कानून के सामने समान होंगे तथा उन्हें उनकी आवश्यकता के अनुसार सरकार की तरफ से मिल जाएगा।

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प्रश्न 14.
शिक्षा के निजीकरण का उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
आजकल प्रत्येक गांव, कस्बे तथा नगर में निजी स्कूल आरंभ हो गए हैं। नगरों में निजी कॉलेज खल गए हैं तथा देश के कई भागों में निजी विश्वविद्यालय खुल गए हैं। यह शिक्षा के निजीकरण के उदाहरण हैं।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
धर्म पर एमिल दुर्खाइम के विचारों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
दुर्थीम के अनुसार, “धर्म पवित्र वस्तुओं से संबंधित विश्वासों तथा आचरणों की ठोस व्यवस्था है जो इन पर विश्वास करने वालों को नैतिक रूप प्रदान करती है। दुर्शीम ने सभी धार्मिक विश्वासों तथा आदर्शात्मक वस्तुओं को ‘पवित्र’ तथा ‘साधारण’ दो वर्गों में विभाजित किया है। पवित्र वस्तुओं में देवताओं तथा आध्यात्मिक शक्तियों या आत्माओं के अतिरिक्त गुफाएं, पेड़, पत्थर, नदी इत्यादि शामिल हो सकते हैं। साधारण वस्तुओं की तुलना में पवित्र वस्तुएं अधिक शक्ति तथा शान रखती हैं। दुर्थीम के अनुसार, “धर्म पवित्र वस्तुओं अर्थात् अलग व प्रतिबन्धित वस्तुओं से संबंधित विश्वासों तथा क्रियाओं की संगठित व्यवस्था है।” .

प्रश्न 2.
धर्म किस प्रकार समाज में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है ?
उत्तर-
सामाजिक संगठन को बनाए रखने के लिए धर्म महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। एक धर्म में लाखों लोग होते हैं जिनके एक समान विश्वास होते हैं। यह विश्वास, प्रतिमान, व्यवहार के तरीके एक धार्मिक समूह को मिला देते हैं जिससे समूह में एकता बनी रहती है। इस प्रकार ही अलग-अलग समूहों में एकता के साथ सामाजिक संगठन बना रहता है। प्रत्येक धर्म अपने लोगों को दान देने व सहयोग करने के लिए कहता है जिससे समाज में मज़बूती तथा स्थिरता बनी रहती है। इस प्रकार धर्म का समाज में महत्त्वपूर्ण स्थान है।

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प्रश्न 3.
शिक्षा संस्था से क्या अभिप्राय है ? सरकार द्वारा अपनायी गयी शिक्षा नीतियों के विषय में लिखिए।
उत्तर-
शैक्षिक संस्था वह होती है जो व्यक्ति को शिक्षा देकर उसे आवश्यक ज्ञान देती है तथा उसे उत्तरदायी नागरिक बनाती है। सरकार की तरफ से लागू की गई शैक्षिक नीतियों का वर्णन इस प्रकार है

  • हमारे संविधान के अनुच्छेद 45 के अनुसार 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त तथा आवश्यक शिक्षा प्रदान की जाएगी।
  • 1960 के कोठारी कमीशन ने सभी बच्चों के स्कूल आने तथा उन्हें लगाकर पढ़ाने पर बल दिया था।
  • 1986 में राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अपनाया गया था जिसमें वोकेशनल ट्रेनिंग तथा पिछड़े समूहों के लिए शैक्षिक सुविधाओं पर बल दिया।
  • सर्व शिक्षा अभियान 1986 तथा 1992 ने इस बात पर बल दिया कि 6-14 वर्ष के सभी बच्चों को आवश्यक शिक्षा प्रदान की जाए।
  • 2010 में शिक्षा का अधिकार (Right to Education) लागू किया गया जिसके अनुसार 6-14 वर्ष के बच्चों को क्लासों में 8 वर्ष की प्राथमिक शिक्षा दी जाएगी।

प्रश्न 4.
शिक्षा के प्रकार्यों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-

  • शिक्षा व्यक्ति के बौद्धिक विकास में सहायता करती है।
  • शिक्षा व्यक्तियों को समाज से जोड़ती है।
  • यह समाज में तालमेल बिठाने में सहायता करती है।
  • यह व्यक्ति की योग्यता बढ़ाने में सहायता करती है।
  • शिक्षा संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाने में सहायता करती है।
  • शिक्षा से बच्चों में नैतिक गुणों का विकास होता है।
  • शिक्षा व्यक्ति के समाजीकरण में सहायक होती है।

प्रश्न 5.
मैक्स वैबर द्वारा प्रस्तुत सत्ता के प्रकारों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
मैक्स वैबर ने सत्ता के तीन प्रकारों का वर्णन किया है-परंपरागत, वैधानिक तथा करिश्मई सत्ता। परंपरागत सत्ता वह होती है जो परंपरागत रूप से प्राचीन समय ही चलती आ रही है तथा जिसके विरुद्ध कोई किन्तु परन्तु नहीं होता। पिता के घर में इस प्रकार की सत्ता होती है। वैधानिक सत्ता वह होती है जो कुछ नियमों, कानूनों के अनुसार प्राप्त की जाती है। सरकार को प्राप्त सत्ता इस प्रकार की सत्ता है। करिश्मई सत्ता वह होती है जो किसी के करिश्मई व्यक्तित्व के कारण उसे प्राप्त हो जाती है तथा उसके चेले उसकी सत्ता बिना किसी प्रश्न के मानते हैं। धार्मिक नेता, राजनीतिक नेता इस प्रकार की सत्ता भोगते हैं।

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प्रश्न 6.
राज्य समाज एवं राज्यहीन समाज में अंतर कीजिए।
उत्तर-
1. राज्य समाज (State Less Society)-आधुनिक समाजों को राज्य वाले समाज कहा जाता है जहां सत्ता राज्य नामक संस्था के हाथों में केन्द्रित होती है परन्तु इसे जनता से प्राप्त किया जाता है। मैक्स वैबर के अनुसार राज्य वह मानवीय समुदाय है जो एक निश्चित क्षेत्र में शारीरिक बल के साथ सत्ता का उपभोग करता

2. राज्य हीन समाज (State Less Society)-जिन समाजों में राज्य नामक संस्था नहीं होती वह राज्य हीन समाज होते हैं। ये सादा या प्राचीन समाज होते हैं। यहां कम जनसंख्या होती है जिस कारण लोगों के बीच आमनेसामने के रिश्ते होते हैं तथा सामाजिक नियंत्रण के लिए राज्य या सरकार जैसे किसी औपचारिक साधन की कोई आवश्यकता नहीं होती। यहां बुजुर्गों की सभा से नियंत्रण रखा जाता है।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें:

प्रश्न 1.
राजनीतिक संस्थाओं से आप क्या समझते हैं, विस्तार से चर्चा कीजिए ।
उत्तर-
हमारा समाज काफ़ी बड़ा है तथा राजनीतिक व्यवस्था इसका एक भाग है। राजनीतिक व्यवस्था मनुष्यों की भूमिकाओं को परिभाषित करती है। राजनीति तथा समाज में काफ़ी गहरा संबंध है। सामाजिक मनुष्यों को नियंत्रण में करने के लिए राजनीतिक संस्थाओं की आवश्यकता होती है तथा वह राजनीतिक संस्थाएं हैं शक्ति, सत्ता, राज्य, सरकार, विधानपालिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका इत्यादि। ये राजनीतिक संस्थाएं हमारे समाज के ऊपर औपचारिक नियंत्रण रखती हैं तथा यह नियंत्रण रखने के उनके अपने साधन होते हैं जैसे कि सरकार, पुलिस, सेना, न्यायालय इत्यादि। इस प्रकार राजनीतिक संस्थाएं वह साधन हैं जिनकी सहायता से समाज में शांति तथा व्यवस्था बना कर रखी जाती है। राजनीतिक संस्थाएं मुख्य रूप से समाज में शक्ति के वितरण से संबंध रखती हैं। राजनीतिक संस्थाओं में शक्ति तथा सत्ता को समझना आवश्यक है।

(i) शक्ति (Power)-शक्ति किसी व्यक्ति या समूह का सामर्थ्य होता है जिसके द्वारा वह अन्य लोगों पर अपनी इच्छा थोपता है चाहे उसका विरोध ही क्यों न हो रहा हो। इसका अर्थ है कि जिनके पास शक्ति होती है वह अन्य लोगों की कीमत पर शक्ति का भोग कर रहे होते हैं। समाज में शक्ति सीमित मात्रा में होती है। जिन लोगों या समूहों के पास अधिक शक्ति होती है वह कम शक्ति वाले समूहों या व्यक्तियों के ऊपर शक्ति का प्रयोग करते हैं तथा उन्हें प्रभावित करते हैं। इस प्रकार शक्ति अपने तथा अन्य लोगों के निर्णय लेने की वह सामर्थ्य है जिसमें वे देखा जाता है कि जिनके लिए निर्णय लिया गया है क्या वह उस निर्णय की पालना कर रहे हैं या नहीं। परिवार के बड़े बुजुर्ग, किसी कंपनी का जनरल मैनेजर, सरकार, मंत्री इत्यादि ऐसी शक्ति का प्रयोग करते हैं।

(ii) सत्ता (Authority)–शक्ति का सत्ता के द्वारा उपभोग किया जाता है। सत्ता शक्ति का ही एक रूप है जो वैधानिक तथा सही है। यह संस्थात्मक है तथा वैधता पर आधारित होती है जिनके पास सत्ता होती है। उनकी बात सभी को माननी पड़ती है तथा इसे वैध भी माना जाता है। सत्ता न केवल व्यक्तियों के ऊपर बल्कि समूहों तथा संस्थाओं पर भी लागू होती है। उदाहरण के लिए तानाशाही में सत्ता एक व्यक्ति, समूह या दल के हाथों में होती है जबकि लोकतंत्र में यह सत्ता जनता या उनके चुने हुए प्रतिनिधियों के हाथों में होती है।

मैक्स वैबर ने तीन प्रकार की सत्ता का जिक्र किया है तथा वह हैं परंपरागत सत्ता, वैधानिक सत्ता तथा करिश्मयी सत्ता। पिता की घर में सत्ता परंपरागत सत्ता होती है, प्रधानमंत्री की सत्ता वैधानिक तथा किसी धार्मिक नेता की अपने चेलों पर स्थापित सत्ता करिश्मयी सत्ता होती है।

(iii) राज्य (State)—राज्य सबसे महत्त्वपूर्ण राजनीतिक संस्था है। राज्य एक ऐसा लोगों का समूह है जो एक निश्चित भू-भाग में होता है, जिसकी जनसंख्या होती है, जिसकी अपनी एक सरकार होती है तथा अपनी प्रभुसत्ता होती है। राज्य एक सम्पूर्ण समाज का हिस्सा है। बेशक यह सामाजिक जीवन के सभी पक्षों को प्रभावित करता है परन्तु फिर भी यह समाज का स्थान कोई नहीं ले सकता। राज्य एक ऐसा साधन है जो सामाजिक समितियों को नियंत्रण में रखता है। राज्य समाज के सभी पक्षों को प्रभावित करता है तथा उनमें तालमेल बिठाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

(iv) सरकार (Government)-सरकार एक ऐसा संगठन होता है जिसके पास आदेशात्मक कन्ट्रोल होता है जो वे राज्य में शांति व्यवस्था बनाए रखने में सहायता करता है। सरकार को वैधता भी प्राप्त होती है क्योंकि सरकार किसी न किसी नियम के अन्तर्गत चुनी जाती है। इसे बहुमत का समर्थन प्राप्त होता है। सरकार राज्य के उद्देश्यों को पूर्ण करने का एक साधन है। यह राज्य का यन्त्र तथा उसका प्रतीक है। सरकार के तीन अंग होते हैंविधानपालिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका।

  • विधानपालिका (Legislature)-यह सरकार का वह अंग है जिसका कार्य देश के लिए कानून बनाना है। देश की संसद् विधानपालिका का कार्य करती है।
  • कार्यपालिका (Executive) यह सरकार का वह अंग है जो विधानपालिका द्वारा बनाए गए कानूनों को देश में लागू करती है। राष्ट्रीय, प्रधानमंत्री, मंत्रिमंडल इसका हिस्सा होते हैं।
  • न्यायपालिका (Judiciary)-सरकार का वह अंग है जो विधानपालिका द्वारा बनाए तथा कार्यपालिका द्वारा लागू किए कानूनों का प्रयोग करता है। हमारे न्यायालय, जज़ इत्यादि इसका हिस्सा होते हैं।

इस प्रकार अलग-अलग राजनीतिक संस्थाएं भी देश को सुचारु रूप से चलाने के लिए अपना योगदान देती हैं। यह संस्थाएं बिना एक-दूसरे के क्षेत्र में आए अपना कार्य ठीक ढंग से करती रहती हैं।

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प्रश्न 2.
पंचायती राज्य पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-
हमारे देश में स्थानीय क्षेत्रों के विकास के लिए दो प्रकार की पद्धतियां हैं। शहरी क्षेत्रों का विकास करने के लिए स्थानीय सरकारें होती हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने के लिए पंचायती राज्य की संस्थाएं होती हैं। स्थानीय सरकार की संस्थाएं श्रम विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित होती हैं क्योंकि इनमें सरकार तथा स्थानीय समूहों में कार्यों को बांटा जाता है। हमारे देश की 70% जनता ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों को जिस स्थानीय सरकार की संस्था द्वारा शासित किया जाता है उसे पंचायत कहते हैं। पंचायती राज्य सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों के संस्थागत ढांचे को ही दर्शाता है।

जब भारत में अंग्रेजी राज्य स्थापित हुआ था तो सारे देश में सामन्तशाही का बोलबाला था। 1935 में भारत सरकार ने एक कानून पास किया जिसने प्रान्तों को पूर्ण स्वायत्तता दी तथा पंचायती कानूनों को एक नया रूप दिया गया। पंजाब में 1939 में पंचायती एक्ट पास हुआ जिसका उद्देश्य पंचायतों को लोकतान्त्रिक आधार पर चुनी हुई संस्थाएं बना कर ऐसी शक्तियां प्रदान करना था जो उनके स्वैशासन की इकाई के रूप में निभायी जाने वाली भूमिका के लिए ज़रूरी थीं। 2 अक्तूबर, 1961 ई० को पंचायती राज्य का तीन स्तरीय ढांचा औपचारिक रूप से लागू किया गया। 1992 में 73वां संवैधानिक संशोधन हुआ जिनमें शक्तियों का स्थानीय स्तर तक विकेन्द्रीकरण कर दिया गया। इससे पंचायती राज्य को बहुत-सी वित्तीय तथा अन्य शक्तियां दी गईं।

भारत के ग्रामीण समुदाय में पिछले 50 सालों में बहुत-से परिवर्तन आए हैं। अंग्रेज़ों ने भारतीय पंचायतों से सभी प्रकार के अधिकार छीन लिए थे। वह अपनी मर्जी के अनुसार गांवों को चलाना चाहते थे जिस कारण उन्होंने गांवों में एक नई तथा समान कानून व्यवस्था लागू की। आजकल की पंचायतें तो आज़ादी के बाद ही कानून के तहत सामने आयी हैं।
ए० एस० अलटेकर (A.S. Altekar) के अनुसार, “प्राचीन भारत में सुरक्षा, लगान इकट्ठा करना, कर लगाने तथा लोक कल्याण के कार्यक्रमों को लागू करना इत्यादि जैसे अलग-अलग कार्यों की जिम्मेदारी गांव की पंचायत की होती थी। इसलिए ग्रामीण पंचायतें विकेन्द्रीकरण, प्रशासन तथा शक्ति की बहुत ही महत्त्वपूर्ण संस्थाएं हैं।”

के० एम० पानीकर (K.M. Pannikar) के अनुसार, “यह पंचायतें प्राचीन भारत के इतिहास का पक्का आधार हैं। इन संस्थाओं ने देश की खुशहाली को मज़बूत आधार प्रदान किया है।”

संविधान के Article 30 के चौथे हिस्से में कहा गया है कि, “गांव की पंचायतों का संगठन-राज्य को गांव की पंचायतों के संगठन को सत्ता तथा शक्ति प्रदान की जानी चाहिए ताकि यह स्वैः सरकार की इकाई के रूप में कार्य कर सकें।”

गांवों की पंचायतें गांव के विकास के लिए बहुत-से कार्य करती हैं जिस लिए पंचायतों के कुछ मुख्य उद्देश्य रखे गए हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है।

पंचायतों के उद्देश्य (Aims of Panchayats) –

  1. पंचायतों को स्थापित करने का सबसे पहला उद्देश्य है लोगों की समस्याओं को स्थानीय स्तर पर ही हल करना। ये पंचायतें लोगों के बीच के झगड़ों तथा समस्याओं को हल करती हैं।
  2. गांव की पंचायतें लोगों के बीच सहयोग, हमदर्दी, प्यार की भावनाएं पैदा करती हैं ताकि सभी लोग गांव की प्रगति में योगदान दे सकें।
  3. पंचायतों को गठित करने का एक और उद्देश्य है लोगों को तथा पंचायत के सदस्यों को पंचायत का प्रशासन ठीक प्रकार से चलाने के लिए शिक्षित करना ताकि सभी लोग मिल कर गांव की समस्याओं के हल निकाल सकें। इस तरह लोक कल्याण का कार्य भी पूर्ण हो जाता है।

गांवों की पंचायतों का संगठन (Organisation of Village Panchayats)-गांवों में दो प्रकार की पंचायतें होती हैं। पहली प्रकार की पंचायतें वे होती हैं जो सरकार द्वारा बनाए कानूनों अनुसार चुनी जाती हैं तथा ये औपचारिक होती हैं। दूसरी पंचायतें वे होती हैं जो अनौपचारिक होती हैं तथा इन्हें जाति पंचायतें भी कहा जाता है। इनकी कोई कानूनी स्थिति नहीं होती है परन्तु यह सामाजिक नियन्त्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

पंचायतों में तीन तरह का संगठन पाया जाता है-

  1. ग्राम सभा (Gram Sabha)
  2. ग्राम पंचायत (Gram Panchayat)
  3. न्याय पंचायत (Nyaya Panchayat)

ग्राम सभा (Gram Sabha) गांव की सम्पूर्ण जनसंख्या में से बालिग व्यक्ति इस ग्राम सभा का सदस्य होता है तथा यह गांव की सम्पूर्ण जनसंख्या की एक सम्पूर्ण इकाई है। यह वह मूल इकाई है जिसके ऊपर हमारे लोकतन्त्र का ढांचा टिका हुआ है। जिस ग्राम की जनसंख्या 250 से अधिक होती है वहां ग्राम सभा बन सकती है। अगर एक गांव की जनसंख्या कम है तो दो गांव मिलकर ग्राम सभा का निर्माण करते हैं। ग्राम सभा में गांव का प्रत्येक वह बालिग सदस्य होता है जिस को वोट देने का अधिकार होता है। प्रत्येक ग्राम सभा का एक प्रधान तथा कुछ सदस्य होते हैं। यह पांच सालों के लिए चुने जाते हैं।

ग्राम सभा के कार्य (Functions of Gram Sabha)-पंचायत के सालाना बजट तथा विकास के लिए किए जाने वाले कार्यक्षेत्रों को ग्राम सभा पेश करती है तथा उन्हें लागू करने में मदद करती है। यह समाज कल्याण के कार्य, प्रौढ़ शिक्षा के कार्यक्रम तथा परिवार कल्याण के कार्यों को करने में मदद करती है। यह गांवों में एकता रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

ग्राम पंचायत (Gram Panchayat)-हर एक ग्राम सभा अपने क्षेत्र में से एक ग्राम पंचायत को चुनती है। इस तरह ग्राम सभा एक कार्यकारिणी संस्था है जो ग्राम पंचायत के लिए सदस्य चुनती है। इनमें 1 सरपंच तथा 5 से लेकर 13 पंच होते हैं। पंचों की संख्या गांव की जनसंख्या के ऊपर निर्भर करती है। पंचायत में पिछडी श्रेणियों तथा औरतों के लिए स्थान आरक्षित होते हैं। यह 5 वर्ष के लिए चुनी जाती है। परन्तु अगर पंचायत अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करे तो राज्य सरकार उसे 5 साल से पहले भी भंग कर सकती है। अगर किसी ग्राम पंचायत को भंग कर दिया जाता है तो उसके सभी पद भी अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं। ग्राम पंचायत के चुनाव तथा पंचों को चुनने के लिए गांव को अलग-अलग हिस्सों में बांट लिया जाता है। फिर ग्राम सभा के सदस्य पंचों तथा सरपंच का चुनाव करते हैं। ग्राम पंचायत में स्त्रियों के लिए आरक्षित सीटें कुल सीटों का एक तिहायी (1/3) होती हैं तथा पिछड़ी जाति के लिए आरक्षित सीटें गांव या उस क्षेत्र में उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुसार होती हैं। ग्राम पंचायत में सरकारी नौकर तथा मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकते। ग्राम पंचायतें गांव में सफ़ाई, मनोरंजन, उद्योग, संचार तथा यातायात के साधनों का विकास करती हैं तथा गांव की समस्याओं का समाधान करती पंचायतों के कार्य (Functions of Panchayat) ग्राम पंचायत गांव के लिए बहुत-से कार्य करती है जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. ग्राम पंचायत का सबसे पहला कार्य गांव के लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना होता है। गांव में बहुत-सी सामाजिक बुराइयां भी पायी जाती हैं। पंचायत लोगों को इन बुराइयों को दूर करने के लिए प्रेरित करती है तथा उनके परम्परागत दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास करती है।

2. किसी भी क्षेत्र के सर्वपक्षीय विकास के लिए यह ज़रूरी है कि उस क्षेत्र से अनपढ़ता ख़त्म हो जाए तथा भारतीय समाज के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण भी यही है। भारतीय गांव भी इसी कारण पिछड़े हुए हैं। गांव की पंचायत गांव में स्कूल खुलवाने तथा लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती है। बालिगों को पढ़ाने के लिए प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र खुलवाने का भी प्रबन्ध करती है।

3. गांव की पंचायत गांव की स्त्रियों तथा बच्चों की भलाई के लिए भी कार्य करती है। वह औरतों को शिक्षा दिलाने का प्रबन्ध करती है। बच्चों को अच्छी खुराक तथा उनके मनोरंजन के कार्य का प्रबन्ध भी पंचायत ही करती है।

4. ग्रामीण क्षेत्रों में मनोरंजन के साधन नहीं होते हैं। इसलिए पंचायतें ग्रामीण समाजों में मनोरंजन के साधन उपलब्ध करवाने का प्रबन्ध भी करती है। पंचायतें गांव में फिल्मों का प्रबन्ध, मेले लगवाने तथा लाइब्रेरी इत्यादि खुलवाने का प्रबन्ध करती है।

5. कृषि प्रधान देश में उन्नति के लिए कृषि के उत्पादन में बढ़ोत्तरी होनी ज़रूरी होती है। पंचायतें लोगों को नई तकनीकों के बारे में बताती है, उनके लिए नए बीजों, उन्नत उर्वरकों का भी प्रबन्ध करती है ताकि उनके कृषि उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी हो सके।

6. गांवों के सर्वपक्षीय विकास के लिए गांवों में छोटे-छोटे उद्योग लगवाना भी जरूरी होता है। इसलिए पंचायतें गांव में सरकारी मदद से छोटे-छोटे उद्योग लगवाने का प्रबन्ध करती हैं। इससे गांव की आर्थिक उन्नति भी होती है तथा लोगों को रोजगार भी प्राप्त होता है।

7. कृषि के अच्छे उत्पादन में सिंचाई के साधनों का अहम रोल होता है। ग्राम पंचायत गांव में कुएँ, ट्यूबवैल इत्यादि लगवाने का प्रबन्ध करती है तथा नहरों के पानी की भी व्यवस्था करती है ताकि लोग आसानी से अपने खेतों की सिंचाई कर सकें।

8. गांव में लोगों में आमतौर पर झगड़े होते रहते हैं। पंचायतें उन झगड़ों को ख़त्म करके उनकी समस्याओं को हल करने का प्रयास करती हैं।

न्याय पंचायत (Nayaya Panchayat)-गांव के लोगों में झगड़े होते रहते हैं। न्याय पंचायत लोगों के बीच होने वाले झगड़ों का निपटारा करती है। 5-10 ग्राम-सभाओं के लिए एक न्याय पंचायत बनायी जाती है। इसके सदस्य चुने जाते हैं तथा सरपंच 5 सदस्यों की एक कमेटी बनाता है। इन को पंचायतों से प्रश्न पूछने का भी अधिकार होता है।.

पंचायत समिति (Panchayat Samiti)-एक ब्लॉक में आने वाली पंचायतें पंचायत समिति की सदस्य होती हैं तथा इन पंचायतों के सरपंच इसके सदस्य होते हैं। पंचायत समिति के सदस्यों का सीधा-चुनाव होता है। पंचायत समिति अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है, गांवों के विकास कार्यों को चैक करती है तथा पंचायतों को गांव के कल्याण के लिए निर्देश भी देती है। यह पंचायती राज्य के दूसरे स्तर पर है।

जिला परिषद् (Zila Parishad)—पंचायती राज्य का सबसे ऊँचा स्तर हैं ज़िला परिषद् जोकि जिले में आने वाले पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह भी एक कार्यकारी संस्था होती है। पंचायत समितियों के चेयरमैन, चुने हुए सदस्य, लोक सभा, राज्य सभा, विधान सभा के सदस्य सभी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। यह सभी जिले में पड़ते गांवों के विकास कार्यों का ध्यान रखते हैं। जिला परिषद् कृषि में सुधार, ग्रामीण बिजलीकरण, भूमि सुधार, सिंचाई बीजों तथा उर्वरकों को उपलब्ध करवाना, शिक्षा, उद्योग लगवाने इत्यादि जैसे कार्य करती है।

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प्रश्न 3.
हित समूह किस प्रकार दबाव समूहों के रूप में काम करते हैं ?
उत्तर-
पिछले कुछ समय के दौरान समाज में श्रम विभाजन नाम का संकल्प सामने आया है। श्रम विभाजन में अलग-अलग व्यक्ति अलग-अलग कार्य करते हैं जिस कारण बहुत से पेशेवर समूह सामने आए हैं। इन सभी पेशेवर समूहों के अपने-अपने हित होते हैं जिनकी प्राप्ति के लिए वे लगातार कार्य करते रहते हैं। इस प्रकार जो समूह किसी विशेष समूह के हितों का ध्यान रखते हैं तथा उन्हें प्राप्त करने के प्रयास करते हैं उन्हें हित समूह कहा जाता है। आजकल के लोकतांत्रिक समाजों में यह राजनीतिक निर्णय तथा अन्य प्रक्रियाओं को अपने हितों के अनुसार बदलने के प्रयास करते रहते हैं। यह समूह आवश्यकता पड़ने पर राजनीतिक दलों की भी सहायता करते हैं तथा उनके द्वारा सरकारी फैसलों को प्रभावित करने के प्रयास करते हैं। लगभग सभी हित समूहों का एक ही उद्देश्य होता है कि उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में महत्त्वपूर्ण स्थान हासिल हो। इसलिए वे सरकार पर उनके लिए नीतियां बनाने का दबाव डालते हैं। जब यह दबाव डालना शुरू कर देते हैं तो इन्हें दबाव समूह भी कहा जाता है

दबाव समूह संगठित या असंगठित होते हैं जो सरकारी नीतियों को प्रभावित करते हैं तथा अपने हितों को आगे बढ़ाते हैं। यह राजनीति को जिस ढंग से प्रभावित करने का प्रयास करते हैं उसका वर्णन इस प्रकार है-

  • यह दबाव समूह किसी विशेष मुद्दे पर आंदोलन चलाते हैं ताकि जनता का समर्थन हासिल किया जा सके। यह संचार साधनों की सहायता लेते हैं ताकि जनता का अधिक-से-अधिक ध्यान खींचा जा सके।
  • यह साधारणतया हड़तालें करवाते हैं, रोष मार्च निकालते हैं तथा सरकारी कार्यों को रोकने का प्रयास करते हैं। यह हड़ताल की घोषणा करते हैं तथा धरने पर बैठते हैं ताकि अपनी आवाज़ उठा सकें। अधिकतर मजदूर संगठन इस प्रकार से अपनी बातें मनवाते हैं।
  • साधारणतया व्यापारी समूह लॉबी का निर्माण करते हैं जिसके कुछ समान हित होते हैं ताकि सरकार पर उसकी नीतियां बदलने के लिए दबा बनाया जा सके।
  • प्रत्येक दबाव समूह या हित समूह किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़ा होता है। यह समूह चुनाव के समय अपने-अपने राजनीतिक दल का तन-मन-धन से समर्थन करते हैं ताकि वह चुनाव जीत कर उनकी मांगें पूर्ण करें।

प्रश्न 4.
धर्म को परिभाषित कीजिए। इसकी विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक शास्त्रियों के लिए सब से मुश्किल काम धर्म की परिभाषा देना है व ऐसी परिभाषा देना जिस पर सभी एक मत हों। इसका कारण है कि धर्म की प्रकृति काफ़ी जटिल है तथा इसके बारे में समाजशास्त्री अलगअलग विचार रखते हैं। यह इस कारण है कि अलग-अलग समाजशास्त्री अलग-अलग देशों व भिन्न-भिन्न संस्कृतियों से सम्बन्ध रखते हैं और इस कारण उनकी धर्म के बारे में व्याख्या भिन्न-भिन्न होती है। दुनिया में बहुत सारे धर्म हैं तथा इसी विविधता के कारण वह सभी धर्म की एक परिभाषा पर सहमत नहीं हैं। परन्तु फिर भी अलगअलग समाजशास्त्रियों ने धर्म की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं दी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

  • दुर्जीम (Durkheim) के अनुसार, “धर्म पवित्र वस्तुओं से सम्बन्धित विश्वासों व आचरणों की एक ठोस व्यवस्था है जो इन पर विश्वास करने वालों को एक नैतिक समुदाय में संगठित करती है।”
  • फ्रेज़र (Frazer) के अनुसार, “धर्म मानव रूप अपने से श्रेष्ठ शक्तियों में विश्वास है। जिस सम्बन्ध में यह विश्वास किया जाता है वह प्रकृति व मानवीय जीवन का मार्ग दर्शन हैं व इसको नियन्त्रण करती है।”
  • मैकाइवर (MacIver) के अनुसार, “धर्म के साथ जैसे कि हम समझते हैं कि केवल मनुष्यों के बीच का सम्बन्ध ही नहीं है बल्कि एक सर्वोच्च शक्ति के प्रति मनुष्य का सम्बन्ध भी सूचित होता है।”
  • मैलिनोवस्की (Malinowski) के अनुसार, “धर्म क्रिया का एक ढंग है व साथ ही विश्वास की एक व्यवस्था है। धर्म एक समाजशास्त्रीय घटना के साथ-साथ व्यक्तिगत अनुभव भी है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि धर्म का आधार आलौकिक शक्ति पर विश्वास है और पद शक्ति मानवीय शक्ति से श्रेष्ठ व शक्तिशाली समझी जाती है। यह जीवन के सभी तत्त्वों यह नियन्त्रण रखती है जिनको आदमी अधिक महत्त्वपूर्ण समझता है। इसका एक आधार भावनात्मक होता है। इस शक्ति को खुश रखने के लिए कई विधियां या संस्कार होते हैं। स्पष्ट है कि धर्म की स्वीकृति परा-सामाजिक है क्योंकि धर्म की पुष्टि परा सामाजिक शक्तियों द्वारा होती है। समाज में धर्म का प्रयोग काफ़ी व्यापक रूप में किया जाता है समाजशास्त्रियों अनुसार धर्म मानव की आदतों व भावनात्मक अनुभूतियों की प्रतिनिधिता करता है। डर की भावनाओं के कारण व कई वस्तुओं प्रति मानव की श्रद्धा के कारण धर्म का विकास हुआ है।

धर्म के तत्त्व या विशेषताएं (Elements or Characteristics of Religion). –

1. आलौकिक शक्ति में विश्वास (Belief in Super natural Power)-धर्म विचारों, भावनाओं व विधियों की जटिलता है जो आलौकिक शक्तियों में विश्वास प्रकट करती है यानि यह शक्ति सर्वव्यापक व सर्व शक्तिमान है। यह विश्वास किया जाता है कि प्रत्येक मानवीय क्रिया का संचालन इसी शक्ति द्वारा होता है। इस प्रकार धर्म की सब से पहली विशेषता आलौकिक शक्ति पर विश्वास है। इस आलौकिक शक्ति के आधार तो भिन्न-भिन्न होते हैं पर यह शक्ति सारे धर्मों में आवश्यक तौर पर पाई जाती है।

2. संस्कार (Rituals)-धार्मिक रीतियां धर्म द्वारा निर्धारित क्रियाएं हैं। यह अपने आप में पवित्र हैं व पवित्रता की प्रतीक भी हैं। उदाहरण के लिए हिन्दू धर्म के अनुसार कई तरह के व्रत व तीर्थ यात्रा धार्मिक संस्कार है। एक धर्म के पैरोकारों को धार्मिक संस्कार एक सूत्र में बांधते हैं जबकि दूसरे धर्म के पैरोकारों को वह खुद से भिन्न समझते हैं।

3. धार्मिक कार्य विधियां (Religion Acts)—प्रत्येक धर्म की एक और महत्त्वपूर्ण विशेषता उसकी विभिन्न धार्मिक गतिविधियां हैं। इन कार्य विधियों द्वारा मानव विशेष आलौकिक शक्तियों को खुश करने की कोशिश करता है और इन्हें सिर चढ़ा कर इन शक्तियों में अपना विश्वास प्रकट करता है। यह कार्य विधियां दो प्रकार की हैं। पहली वह क्रियाएं जिसको पूरा करने के लिए विशेष धार्मिक ज्ञान की आवश्यकता है। आम आदमी यह काम नहीं कर सकता। इनको प्रत्येक धर्म में धार्मिक पण्डितों द्वारा पूरा कराया जाता है। दूसरा साधारण धार्मिक क्रियाएं हैं जैसे प्रार्थना करना, तीर्थ यात्रा आदि जिसके साधारण व्यक्ति आसान तरीके से पूरी कर लेता है। पर प्रत्येक धर्म में यह विश्वास प्रचलित है कि धार्मिक कार्यों को पूरा करके ही व्यक्ति दैवीय शक्तियों को खुश रख सकता है।

4. धार्मिक प्रतीक व चिह्न (Religious Symbols)—प्रत्येक धर्म में आलौकिक शक्ति के दर्शनों के लिए कुछ चिह्नों व प्रतीकों का प्रयोग किया जाता है। जैसे हिन्दू धर्म में मूर्ति को दिव्य शक्ति के रूप में पूजा जाता है। प्रत्येक धर्म के साथ आलौकिक शक्तियों सम्बन्धी कई तरह की कहानियां जुड़ी होती हैं। लोगों को यह विश्वास होता है कि वह इन आलौकिक कथाओं में विश्वास करके भगवान् को खुश कर सकते हैं।

5. धार्मिक प्रस्थिति (Religious Hierarchy)-किसी भी धर्म के सभी पैरोकारों की धार्मिक समूह में प्रस्थिति समान नहीं होती। प्रत्येक धर्म में प्रस्थितियों की व्यवस्था मिलती है। उच्च पदति पर वह लोग होते हैं जो कि धार्मिक क्रियाओं को पूरा करने में माहिर होते हैं इन्हें दूसरे व्यक्तियों की तुलना में पवित्र समझा जाता है जैसे कि पुरोहित या पण्डित। दूसरी जगह वह लोग आते हैं जिन्हें अपने धार्मिक प्रतिनिधियों व सिद्धान्तों में पूरा विश्वास होता है। सबसे नीचे वह व्यक्ति आते हैं जिन्हें पवित्र नहीं माना जाता और वह धर्म द्वारा अपवित्र करार दिए काम करते हैं। अनेकों धर्मों में इस श्रेणी पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध लगा दिए जाते हैं।

6. धार्मिक ग्रन्थ (Religious Books)—प्रत्येक धर्म का एक प्रमुख लक्षण रहा है, उससे सम्बन्धित ग्रन्थ या पुस्तकें। हर एक धर्म से सम्बन्धित कुछ धार्मिक लोग धार्मिक ग्रन्थ लिखते हैं तथा प्रत्येक धर्म की कुछ कथाएं, कहानियां होती हैं जिनका वर्णन इन ग्रन्थों में होता है; जैसे हिन्दू धर्म में रामायण, महाभारत, गीता, चार वेद, मनुस्मृति उपनिषद आदि होते हैं। इस प्रकार मुसलमानों में कुरान, सिक्खों में गुरु ग्रन्थ साहिब व ईसाइयों में बाईबल होते हैं।

7. पवित्रता की धारणा (Concept of Sacredness)-धर्म से सम्बन्धित सभी चीज़ों को पवित्र समझा जाता है। व्यक्ति जिस धर्म से सम्बन्धित होता है, उस धर्म की प्रत्येक वस्तु उसके लिए पवित्र होती है। हम कह सकते हैं कि धर्म पवित्र वस्तुओं से सम्बन्धित ऐसी व्यवस्था है जो नैतिक तौर पर समुदाय को इकट्ठा करती है।

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प्रश्न 5.
धर्म किस प्रकार समाज के लिए उपयोगी व हानिकारक है ?
उत्तर-
धर्म के निम्नलिखित लाभ हैं :
1. सामाजिक संगठन को स्थिरता प्रदान करना (To give stability to social organization)समाज को स्थिरता प्रदान करने में और सामाजिक संगठन को बनाए रखने में धर्म का महत्त्वपूर्ण हाथ होता है। एक धर्म में लाखों व्यक्ति होते हैं, जिनके विचार व विश्वास साझे होते हैं। साझे विश्वास, प्रतिमान, व्यवहार के तरीके कम-से-कम उस धार्मिक समूह को एक कर देते हैं व उस समूह में एकता बन जाती है। इस प्रकार भिन्न-भिन्न समूहों में एकता से सामाजिक संगठन दृढ़ व मज़बूत हो जाता है। प्रत्येक धर्म अपने धर्म के लोगों को दान देने, दया करने, सहयोग देने के लिए कहते हैं जिस कारण समाज में मज़बूती व स्थिरता बनी रहती है। इस तरह धर्म लोगों को अस्थिरता से बचाता है व समाज को स्थिरता प्रदान करता है।

2. सामाजिक जीवन को निश्चित रूप देना (To give definite form to social life) कोई भी धर्म रीति-रिवाज़ों रूढ़ियों का समूह होता है यह रीति-रिवाज व रूढ़ियां संस्कृति का ही भाग होते हैं। इस तरह धर्म के कारण सामाजिक वातावरण व संस्कृति में सन्तुलित बन जाता है। इस सन्तुलन के कारण सामाजिक जीवन को निश्चित रूप मिल जाता है। धर्म करण लोग रीति-रिवाजों तथा रूढ़ियों का आदर करते हैं और अन्य लोगों से सन्तुलन बना कर चलते हैं। इस तरह के सन्तुलन से ही सामाजिक जीवन सही ढंग से चलता रहता है व यह सब धर्म के कारण ही होता है।

3. पारिवारिक जीवन को संगठित करना (To organise family life)-भिन्न-भिन्न धर्मों में विवाह धार्मिक परम्पराओं के अनुसार होता है। धार्मिक परम्पराओं द्वारा परिवार स्थायी बन जाता है व उसका संगठन, जीवन आदि मज़बूत होता है। प्रत्येक धर्म परिवार के भिन्न-भिन्न सदस्यों के कर्त्तव्य व अधिकारों को निश्चित करता है। यह पिता, माता, बच्चों को बताता है कि उनके एक-दूसरे के प्रति क्या कर्त्तव्य हैं ? सारे परिवार में रहते हुए एकदूसरे के प्रति अपने कर्त्तव्यों की पालना करते हैं तथा एक-दूसरे के परिवार चलाने के लिए सहयोग करते हैं। इस तरह परिवार के सभी सदस्यों में सन्तुलन बना रहता है। परिवार में किए जाने वाले आमतौर पर सभी काम धर्म द्वारा निश्चित किए जाते हैं।

4. भेद-भाव दूर करना (To remove mutual differences)-दुनिया में बहुत सारे धर्म हैं व सभी धर्म ही एक-दूसरे के साथ लड़ने का नहीं बल्कि एक-दूसरे से प्यार से रहने का उपदेश देते हैं तथा यह भी कहते हैं कि वह आपसी भेद-भाव दूर करें। आपसी भेद-भाव को दूर करने से समाज में एकता बढ़ती है। इन धर्मों ने व उन्हें चलाने वालों ने समाज की नई जातियों के लोगों को आगे बढ़ाया।

5. सामाजिक नियन्त्रण रखना (To keep social control)-धर्म सामाजिक नियन्त्रण के प्रमुख साधनों में एक है। धर्म के पीछे सभी समुदाय की अनुमति होती है। व्यक्ति पर न चाहते हुए भी धर्म ज़बरदस्ती प्रभाव डालता है तथा वह इसका प्रभाव भी महसूस करता है कि धर्म का उनके जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। धर्म अपने सदस्यों के जीवन को इस तरह नियन्त्रित और निर्देशित करता है कि व्यक्ति को धर्म के आगे झुकना व उसका कहना मानना ही पड़ता है। धर्म आलौकिक शक्ति पर विश्वास है और लोग उस आलौकिक शक्ति के क्रोध से बचने के लिए कोई ऐसा काम नहीं करते जो कि उसकी इच्छाओं के विरुद्ध हो। इस प्रकार लोगों के व्यवहार व क्रिया करने के तरीके धर्म द्वारा नियन्त्रित होते हैं।।

6. समाज कल्याण (Social Welfare)—प्रत्येक धर्म अपने सदस्यों को समाज कल्याण के काम करने के लिए उत्साहित करता है दुनिया के सभी धर्मों में दान देना पवित्र माना जाता है। लोग धर्मशालाएं, अनाथालय, अस्पताल, आश्रम व स्कूलों को खुलवा कर वहां दान देकर उनकी मदद करते हैं।

7. व्यक्ति का विकास (Development of Man)-धर्म समाज का विकास करता है उसकी एकता, व सामाजिक संगठन का भी विकास करता है बल्कि वह व्यक्ति का विकास भी करता है। धर्म व्यक्ति का समाजीकरण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। धर्म उसको समाज में व्यवहार करने के तरीके बताता है, समाज के प्रतिमानों के बारे में बताता है। धर्म व्यक्तियों में भाई-चारे व एकता का निर्माण करता है। धर्म व्यक्ति में आध्यात्मिकता का विकास करता है धर्म से व्यक्तियों का आत्मबल बना रहता है। धर्म मानव को बड़ी-बड़ी मुश्किलों में स्थिर रहने की प्रेरणा देता है। धर्म लोगों को दान देना, सहयोग करना, सहनशीलता रखने की प्रेरणा देता है ताकि समाज के बेसहारा लोगों को सहारा मिल सके, क्योंकि इन बेसहारा लोगों का धर्म के सिवा और कोई नहीं होता।

धर्म के दोष अथवा अकार्य (Demerits or Dysfunctions of Religion) –

1. धर्म सामाजिक उन्नति के रास्ते में रुकावट बनता है (Religion is an obstacle)-धर्म प्रकृति से ही रूढ़िवादी होता है व परिवर्तन प्रकृति का ही नियम है। समाज में परिवर्तन आते रहते हैं जिनके कारण मौलिक तौर पर समाज की प्रगति तो हो जाती है पर आध्यात्मिक तौर पर नहीं होती। धर्म आमतौर पर परिवर्तन का विरोधी होता है। धर्म स्थिति को बदलने के पक्ष में नहीं बल्कि जैसे का तैसा बन कर रखने के पक्ष में होता है। बदले हुए हालात धर्म के अनुसार नहीं होते जिस कारण धर्म परिवर्तन का विरोध करता है। परिवर्तन का विरोध करके यह सामाजिक उन्नति के रास्ते में रुकावट बनता है।

2. व्यक्ति किस्मत के सहारे रह जाता है (Man become fatalist)-धर्म यह कहता है कि जो कुछ व्यक्ति की किस्मत में लिखा है वह उसको प्राप्त होगा। उसको न तो उससे अधिक और न ही उससे कम प्राप्त होगा। ऐसा सोचकर कुछ व्यक्ति अपना कर्म करना बन्द कर देते हैं कि यदि मिलना ही किस्मत के अनुसार है तो काम करने का क्या लाभ है? जो कुछ भी किस्मत में लिखा है वह तो मिल ही जाएगा। इसी तरह व्यक्ति किस्मत के सहारे रह जाता है।

3. राष्ट्रीय एकता का विरोधी (Opposite to National Unity) धर्म को हम राष्ट्रीय एकता का विरोधी ही कह सकते हैं। आमतौर पर प्रत्येक धर्म अपने-अपने सदस्य को अपने धर्म के नियमों पर चलने की शिक्षा देते हैं व यह नियम आमतौर पर दूसरे धर्म के विरोधी होते हैं। अपने धर्म को प्यार करते-करते कई बार लोग दूसरे धर्मों का विरोध करने लग जाते हैं। इस विरोध के कारण धार्मिक संकीर्णता व असहनशीलता पैदा होती है।

4. धर्म सामाजिक समस्याएं बढ़ाता है (Religion increases the Social Problems)—प्रत्येक धर्म में बहुत सारे कर्मकाण्ड, रीतियां आदि होते हैं। धर्म के ठेकेदार, पुजारी, महन्त इत्यादि इन कर्मकाण्डों को ज़रूरी समझते हैं। इन कर्मकाण्डों के कारण व्यक्ति अन्धविश्वासों में फँस जाता है। धर्म के ठेकेदार लोगों को दूसरे धर्मों के विरुद्ध भड़काते हैं। धर्म के कारण ही हमारे देश में कई समस्याएं हैं जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा, विधवा विवाह न होना, अस्पृश्यता, गरीबी आदि।

5. धर्म परिवर्तन के रास्ते में रुकावट है (Religion is an obstacle in the way of change)-धर्म हमेशा परिवर्तन के रास्ते में रुकावट बनता है। दुनिया में भिन्न-भिन्न प्रकार की नई खोजें होती रहती हैं। धर्म क्योंकि रूढ़िवादी होता है इस कारण वह परिवर्तन का हमेशा विरोधी होता है। समाज में होने वाले किसी भी परिवर्तन का विरोध धर्म सब से पहले करता है।

6. धर्म समाज को बांटता है (Religion divides, society)-धर्म समाज को बांट देता है। एक ओर तो वह लोग होते हैं जो अनपढ़ होते हैं व धर्म द्वारा फैलाए अन्ध-विश्वासों, कुरीतियों में फंसे होते हैं व दूसरी ओर वह पढ़े-लिखे होते हैं जो इन धर्म के अन्ध-विश्वासों व कुरीतियों से दूर होते हैं। अनपढ़ अन्ध-विश्वासों को मानते हैं व पढ़े-लिखे इन अन्ध-विश्वासों का विरोध करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि दोनों धर्म एक-दूसरे के विरोधी हो जाते हैं व उनमें अनुकूलन मुश्किल हो जाता है।

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प्रश्न 6.
आदिम, पशुपालक, कृषि तथा औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं की विशेषताओं की संक्षेप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
(i) आदिम अर्थव्यवस्था (Primitive Economy) बहुत-से कबीले दूर-दूर के जंगलों तथा पहाड़ों पर रहते हैं। चाहे यातायात के साधनों के कारण बहुत-से कबीले मुख्य धारा में आकर मिल गए हैं तथा उन्होंने कृषि के कार्य को अपना लिया है परन्तु फिर भी कुछ कबीले ऐसे हैं जो अभी भी भोजन इकट्ठा करके तथा शिकार करके अपना जीवन व्यतीत करते हैं। वे जड़ें, फल, शहद इत्यादि इकट्ठा करते हैं तथा छोटे-छोटे जानवरों का शिकार भी करते हैं। कुछ कबीले कई चीज़ों का लेन-देन भी करते हैं। इस तरह कृषि के न होने की सूरत में वे अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं।

जो कबीले इस प्रकार से अपनी ज़रूरतें पूर्ण करते हैं उनको प्राचीन कबीले कहा जाता है। यह लोग शिकार करने के साथ-साथ जंगलों से फल, शहद, जड़ें इत्यादि भी इकट्ठा करते हैं। इस तरह वे कृषि के बिना भी अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर लेते हैं। जिस प्रकार से वे जानवरों का शिकार करते हैं उससे उनकी संस्कृति के बारे में भी पता चल जाता है। उनके समाजों में औज़ारों तथा साधनों की कमी होती है जिस कारण ही वे प्राचीन कबीलों के प्रतिरूप होते हैं। उनके समाजों में अतिरिक्त उत्पादन की धारणा नहीं होती है। इसका कारण यह है कि वे न तो अतिरिक्त उत्पादन को सम्भाल सकते हैं तथा न ही अतिरिक्त चीजें पैदा कर सकते हैं। वह तो टपरीवास अथवा घुमन्तु जीवन व्यतीत करते हैं।

(ii) पशुपालक आर्थिकता (Pastoral Economy)-पशुपालक अर्थव्यवस्था जनजातीय अर्थव्यवस्था का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। लोग अलग-अलग उद्देश्यों के लिए पशुओं को पालते हैं जैसे कि दूध लेने के लिए, मीट के लिए, ऊन के लिए, भार ढोने के लिए इत्यादि। भारत में रहने वाले चरवाहे कबीले स्थायी जीवन व्यतीत करते हैं तथा मौसम के अनुसार ही चलते हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले कबीले अधिक सर्दी के समय मैदानी क्षेत्रों में अपने पशुओं के साथ चले जाते हैं तथा गर्मियों में वापस अपने क्षेत्रों में चले आते हैं। भारतीय कबीलों में प्रमुख चरवाहा कबीला हिमाचल प्रदेश में रहने वाला गुज्जर कबीला है जो व्यापार के उद्देश्य से गाय तथा भेड़ों को पालता है। इसके साथ-साथ तमिलनाडु के टोडस कबीले में भी यह प्रथा प्रचलित है। यह कबीला जानवरों को पालता है तथा उनसे दूध प्राप्त करता है। दूध कों या तो विनिमय के लिए प्रयोग किया जाता है या फिर अपनी आवश्यकताएं पूर्ण करने के लिए प्रयोग किया जाता है। भारतीय कबीलों में चरवाहे साधारणतया स्थापित जीवन व्यतीत करते हैं तथा उनसे कई प्रकार की चीजें जैसे कि दूध, ऊन, मांस इत्यादि प्राप्त करते हैं। वे पशुओं जैसे कि भेड़ों, बकरियों इत्यादि का व्यापार भी करते हैं।

(iii) कृषि अर्थव्यवस्था (Agrarian Economy)-ग्रामीण समाज का मुख्य व्यवसाय कृषि पेशा या उस पर आधारित कार्य होते हैं क्योंकि ग्रामीण समाज प्रकृति के बहुत ही नज़दीक होता है। क्योंकि इनमें प्रकृति के साथ बहुत ही नज़दीकी के सम्बन्ध होते हैं इस कारण यह जीवन को एक अलग ही दृष्टिकोण से देखते हैं। चाहे गांवों में और पेशों को अपनाने वाले लोग भी होते हैं जैसे कि बढ़ई, लोहार इत्यादि परन्तु यह बहुत कम संख्या में होते हैं तथा यह भी कृषि से सम्बन्धित चीजें ही बनाते हैं। ग्रामीण समाज में भूमि को बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा जाता है तथा लोग यहीं पर रहना पसन्द करते हैं क्योंकि उनका जीवन भूमि पर ही निर्भर होता है। यहां तक कि लोगों तथा गांव की आर्थिक व्यवस्था तथा विकास कृषि पर निर्भर करता है।

(iv) औद्योगिक अर्थव्यवस्था (Industrial Economy)-शहरी अर्थव्यवस्था को औद्योगिक अर्थव्यवस्था का नाम भी दिया जा सकता है क्योंकि शहरी अर्थव्यवस्था उद्योगों पर ही आधारित होती है। शहरों में बड़े-बड़े उद्योग लगे होते हैं जिन में हज़ारों लोग कार्य करते हैं। बड़े उद्योग होने के कारण उत्पादन भी बड़े पैमाने पर होता है। इन बड़े उद्योगों के मालिक निजी व्यक्ति होते हैं। उत्पादन मण्डियों के लिए होता है। ये मण्डियां न केवल देसी बल्कि विदेशी भी होती हैं। कई बार तो उत्पादन केवल विदेशी मण्डियों को ध्यान में रख कर किया जाता है। बड़ेबड़े उद्योगों के मालिक अपने लाभ के लिए ही उत्पादन करते हैं तथा मजदूरों का शोषण भी करते हैं।

शहरी समाजों में पेशों की भरमार तथा विभिन्नता पायी जाती है। प्राचीन समय में तो परिवार ही उत्पादन की इकाई होता था। सारे कार्य परिवार में ही हुआ करते थे परन्तु शहरों के बढ़ने के कारण हज़ारों प्रकार के पेशे तथा उद्योग विकसित हो गए हैं। उदाहरण के लिए एक बड़ी फैक्टरी में सैंकड़ों प्रकार के कार्य होते हैं तथा प्रत्येक कार्य को करने के लिए एक विशेषज्ञ की ज़रूरत होती है। उस कार्य को केवल वह व्यक्ति ही कर सकता है जिस को उस कार्य में महारथ हासिल हो। इस प्रकार शहरों में कार्य अलग-अलग लोगों के पास बंटे हुए होते हैं जिस कारण श्रम विभाजन बहुत अधिक प्रचलित है। लोग अपने-अपने कार्य में माहिर होते हैं जिस कारण विशेषीकरण का बहुत महत्त्व होता है। इस प्रकार शहरी अर्थव्यवस्था के दो महत्त्वपूर्ण अंग श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण हैं।

प्रश्न 7.
श्रम विभाजन पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
दुर्शीम ने 1893 में फ्रेन्च भाषा में अपनी प्रथम पुस्तक (De La Division Trovail Social) नाम से प्रकाशित की चाहे यह उसका पहला ग्रन्थ था पर यह उसकी प्रसिद्धि की आधारशिला थी। इसी पर उसको 1893 में डॉक्टरेट भी मिली थी दीम ने उसको तीन भागों में बांटा वह तीन भाग हैं

1. श्रम विभाजन के कार्य (Functions of Division of Labour)-दुर्थीम हर सामाजिक तथ्य को एक नैतिक तथ्य के रूप में स्वीकार करता है। कोई भी सामाजिक प्रतिमान नैतिक आधार पर ही जीवित सुरक्षित रह सकता है। एक कार्यवादी के रूप में दुर्थीम ने सब से पहले श्रम विभाजन के कार्यों की खोज की। दुर्थीम ने सब से पहले काम शब्द के बारे में बताया कि यह क्या होता है।

  1. कार्य से अर्थ गति व्यवस्था अर्थात् क्रिया से है।
  2. कार्य का अर्थ इस क्रिया या गति व उसके अनुरूप ज़रूरत के आपसी सम्बन्ध से है अर्थात् क्रिया से पूरी होने वाली ज़रूरत से है।

दुर्थीम के अनुसार श्रम विभाजन के कार्य से उनका अर्थ यह है कि श्रम विभाजन की प्रक्रिया समाज की पहचान के लिए किन मौलिक ज़रूरतों को पूरा करती है। काम तो वह काम है जिसके न होने पर उसके तत्त्वों की मौलिक जरूरतों की पूर्ति नहीं हो सकती।

आम तौर पर यह कहा जाता है कि श्रम विभाजन का कार्य सभ्यता का विकास करना है क्योंकि श्रम विभाजन के विकास के साथ-साथ विशेषीकरण के फलस्वरूप समाज की सभ्यता बढ़ती है। दुर्थीम ने इसका विरोध किया है उन्होंने सभ्यता के विकास को श्रम विभाजन का काम नहीं माना। उनका मतलब स्रोत का मतलब काम नहीं है। सुखों के बढ़ने या बौधिक या भौतिक विकास श्रम विभाजन के फलस्वरूप पैदा होते हैं इसलिए यह उनके परिणाम हैं काम नहीं। काम का मतलब परिणाम नहीं होता।

इस प्रकार सभ्यता का विकास श्रम विभाजन का काम नहीं है। दुर्थीम के अनुसार नए समूहों का निर्माण व उनकी एकता ही श्रम विभाजन के काम है। दुर्थीम ने समाज की पहचान से सम्बन्धित किसी नैतिक ज़रूरत को ही श्रम विभाजन के काम के रूप में ढूंढ़ने की कोशिश की है। उनके अनुसार समाज के सदस्यों की संख्या व उनके आपसी सर्पकों के बढ़ने से ही धीरे-धीरे श्रम विभाजन की प्रक्रिया का विकास हुआ है। इस प्रक्रिया से अनेक नएनए व्यापारिक व सामाजिक समूहों का निर्माण हुआ। इन भिन्न-भिन्न समूहों में एकता ही समाज की पहचान के लिए ज़रूरी है। दुर्थीम के अनुसार समाज की इसी ज़रूरत को श्रम विभाजन द्वारा पूरा किया जाता है। जहां एक और श्रम विभाजन से सामाजिक समूहों का निर्माण होता है वहां दूसरी ओर इन्हीं समूहों की आपसी एकता व उनकी सामूहिकता बनी रहती है।

इस प्रकार दुर्थीम के अनुसार श्रम विभाजन का कार्य समाज में, एकता स्थापित करना है। श्रम विभाजन मनुष्यों की क्रियाओं की भिन्नता से सम्बन्धित है यह भिन्नता ही समाज की एकता का आधार है। यह भिन्नता दो व्यक्तियों को करीब लाती है जिससे मित्रता के सम्बन्ध निर्धारित होते हैं। यह दो व्यक्तियों के मन में आपसी एकता का भाव पैदा करता है। – इस प्रकार दुर्थीम के अनुसार श्रम विभाजन समूहों का निर्माण करता है व उनमें एकता पैदा करता है। इस एकता को बनाए रखने के लिए कानूनों का निर्माण किया जाता है। यह कानून दमनकारी भी होते हैं व प्रतिकारी भी। इन कानूनों के आधार पर ही दो भिन्न-भिन्न प्रकार की सामाजिक एकताओं का निर्माण होता है। यह दो प्रकार समाज की भिन्न-भिन्न जीवन शैलियों के परिणाम हैं। दमनकारी कानून का सम्बन्ध आदमी की आम प्रवृति से है, समानताओं से है जब कि प्रतिकारी कानून का सम्बन्ध विभिन्नताओं से या श्रम विभाजन से है। दमनकारी कानून से जिस प्रकार की एकता मिलती है, उसके दुर्थीम ने यान्त्रिक एकता का नाम दिया है व प्रतिकारी कानून से आंगिक एकता पैदा होती है।

इस प्रकार दुर्थीम के अनुसार समाज में दो प्रकार की सामाजिक एकताएं पाई जाती हैं-

1. यान्त्रिक एकता (Mechanical Solidarity)-दुर्थीम के अनुसार यान्त्रिक एकता को हम समाज की दण्ड संहिता में अर्थात् दमनकारी कानूनों में देख सकते हैं। समाज के सदस्यों में मिलने वाली समानताएं इस एकता का आधार है। जिस समाज के सदस्यों में समानताओं से भरपूर जीवन होता है, जहां विचारों, विश्वासों, कार्यों व जीवन शैली के आम प्रतिमान व आदर्श प्रचलित होते हैं व जो समाज इन समानताओं के परिणामस्वरूप एक सामूहिक इकाई के रूप में सोचता है क्रिया करता है। वह यान्त्रिक एकता का प्रदर्शन करता है अर्थात् उसके सदस्य एक यन्त्र या मशीन की भान्ति आपस में संगठित रहते हैं। इस एकता में दुर्थीम ने अपराध, दण्ड व सामूहिक चेतना को भी लिया है, दुर्थीम के अनुसार यह एक ऐसी सामाजिक एकता है जो चेतना की उन निश्चित अवस्थाओं में से पैदा होती है जोकि किसी समाज के सदस्यों के लिए आम है। इस को असल में दमनकारी कानून पेश करता है।

2. आंगिक एकता (Organic Solidarity)-दुर्थीम के अनुसार दूसरी एकता आंगिक एकता है। दमनकारी कानून की शक्ति सामूहिक चेतना में होती है। सामूहिक चेतना समानताओं से शक्ति प्राप्त करती है। आदिम समाज में दमनकारी कानून की प्रधानता होती थी क्योंकि उनमें समानताएं सामाजिक जीवन का आधार है। दुर्थीम के अनुसार आधुनिक समाज श्रम विभाजन व विशेषीकरण से प्रभावित है, जिसमें समानताओं की जगह पर विभिन्नताएं प्रमुख हैं। सामूहिक जीवन की यह विभिन्नता व्यक्तिगत चेतना को प्रमुखता देती है।

आधुनिक समाज में व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप में समूह के साथ बंधा नहीं रहता। इस समाज में मनुष्यों के आपसी सम्बन्धों का महत्त्व काफ़ी अधिक होता है। यही कारण है कि दुर्थीम ने आधुनिक समाज में दमनकारी कानून की जगह प्रतिकारी कानूनों की प्रधानता बताई है। विभिन्नता पूर्ण जीवन में मनुष्यों को एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है। प्रत्येक व्यक्ति केवल एक काम पर योग्यता प्राप्त कर सकता है और सभी कार्यों के लिए उसको दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। समूह के सदस्यों की यह आपसी निर्भरता, उनकी व्यक्तिगत असमानता उन्हें करीब आने के लिए मजबूर करती है जिसके आधार पर समाज मे एकता की स्थापना होती है। इस एकता के दुर्थीम ने आंगिक एकता कहा है। यह प्रतिकारी कानून के कारण होती है।

दुर्थीम के कारण यह एकता शारीरिक एकता के समान है हाथ, पांव, नाक, कान, आंखें इत्यादि अपने भिन्नभिन्न कार्यों के कारण स्वतन्त्र अंगों के रूप में काम करते हैं पर काम तो ही सम्भव है जब तक कि वह एकदूसरे से मिले हुए हों इस प्रकार शरीर के भिन्न-भिन्न अंगों की एकता आपसी निर्भरता पर टिकी हुई है। दुर्थीम के अनुसार जनसंख्या बढ़ने के साथ ज़रूरतें भी बढ़ती है। इन्हें पूरा करने के लिए श्रम विभाजन व विशेषीकरण हो जाता है जिस कारण समाज में आंगिक एकता दिखाई देती है।

3. समझौते पर आधारित एकता (Contractual Solidarity)-आम एकता व आंगिक एकता का अध्ययन करने के पश्चात् दुर्थीम ने एक एकता बारे बताया है जिसको वह समझौते पर आधारित एकता कहता है। दुर्थीम के अनुसार श्रम विभाजन की प्रक्रिया समझौते पर आधारित सम्बन्धों को जन्म देती है। समूह के लोग आपसी समझौते के आधार पर एक-दूसरे की सेवाओं को प्राप्त करते हैं व आपस में सहयोग करते हैं। यह सत्य है कि आधुनिक समाज में समझौतों के आधार पर लोगों में सहयोग व एकता स्थापित होती है। पर श्रम विभाजन का कार्य समझौतों पर आधारित एकता को उत्पन्न करना ही नहीं है। दुर्थीम के अनुसार यह एकता व्यक्तिगत तथ्य है चाहे यह समाज द्वारा ही संचालित होती है।

श्रम विभाजन के कारण (Causes of Division of Labour) – दुर्थीम ने श्रम विभाजन की व्याख्या समाजशास्त्रीय आधार पर की है। उसने श्रम विभाजन के कारणों की खोज सामाजिक जीवन की दिशाओं व उनसे सामाजिक ज़रूरतों से की है। इस प्रकार उसने श्रम विभाजन के कारणों को दो वर्गों में बांटा है

  1. प्राथमिक कारक
  2. द्वितीय कारक।

1. जनसंख्या व उसकी घनत्व का बढ़ना-दुर्थीम के अनुसार जनसंख्या के आकार पर घनत्ता का बढ़ना ही श्रम विभाजन का प्रमुख व प्राथमिक कारण है।
दुर्शीम ने लिखा है कि, “श्रम विभाजन समाज की जटिलता व घनता का सीधा अनुपात है तथा सामाजिक विकास के इस दौरान में लगातार बढ़ोत्तरी होती है अर्थात् इसका कारण यह है कि समाज नियमित रूप से ओर अधिक जटिल होते जा रहे हैं।” दुर्थीम के अनुसार जनसंख्या बढ़ने के दो पक्ष हैं। जनसंख्या के आकार में बढ़ोत्तरी व जनसंख्या की घनत्व में बढ़ोत्तरी। यह दोनों पक्ष श्रम विभाजन को जन्म देते हैं। जनसंख्या के बढ़ने से मिश्रित समाज का निर्माण होने लगता है व जनसंख्या विशेष स्थानों पर केन्द्रित होने लगती है जनसंख्या की घनत्व को दो भागों में बांट सकते हैं।
(a) भौतिक घनत्व-शारीरिक तौर पर लोगों का एक ही स्थान पर एकत्र होना भौतिक घनत्व है।
(b) नैतिक घनत्व-भौतिक घनत्व के कारण लोगों के आपसी सम्बन्ध, क्रिया, प्रतिक्रिया बढ़ती है जिससे जटिलता भी बढ़ती है जिसको नैतिक घनत्व कहते हैं।

2. आम या सामूहिक चेतना की बढ़ती अस्पष्टता-दुर्थीम ने द्वितीय कारकों में सामूहिक चेतना की बढ़ती अस्पष्टता को प्रथम स्थान दिया है। समानताओं के आधार वाले समाज में सामूहिक चेतना का बोलबाला होता है जिस कारण समूह के व्यक्तिगत विचार आगे नहीं आते। दुर्थीम के अनुसार श्रम विभाजन व विशेषीकरण तो ही सम्भव है जब सामूहिक विचार की जगह पर व्यक्तिगत विचार का विकास हो जाए व व्यक्तिगत चेतना सामूहिक चेतना को दबा दे। इस प्रकार श्रम विभाजन भी बढ़ जाएगा।

3. पैतृकता व श्रम विभाजन-श्रम विभाजन के द्वितीय कारक को दूसरे प्रकार को दुीम ने पैतकता के घटते प्रभाव को माना है। उनके अनुसार जितना अधिक पैतृकता का प्रभाव होगा। परिवर्तन के मौके उतने ही कम होंगे। अन्य शब्दों में श्रम विभाजन के विकास लिए यह ज़रूरी है कि पैतृक गुणों को महत्त्व न दिया जाए। श्रम विभाजन की प्रगति तो ही सम्भव है जब लोगों की प्राकृति व स्वभाव में भिन्नता हो। पैतृकता से प्राप्त गुणों के आधार पर मनुष्यों को उनके पूर्वजों से बांधने का यह परिणाम होता है कि हम अपनी खास आदतों का विकास नहीं कर सकते अर्थात् परिवर्तन नहीं कर सकते। इस प्रकार दुर्थीम के अनुसार पैतृकता श्रम विभाजन को रोकती है। समय के साथसाथ समाज का विकास होता है व पैतृकता का प्रभाव कम हो जाता है जिस कारण व्यक्तियों की विभिन्नताएं विकसित होती हैं श्रम विभाजन में बढ़ोत्तरी होती है।

श्रम विभाजन के परिणाम (Consequences of Division of Labour) –
श्रम विभाजन के प्राथिमक व द्वितीय कारकों के पश्चात् दीम इसके विकास के फलस्वरूप पैदा होने वाले परिणामों का जिक्र करता है। दुर्शीम ने श्रम विभाजन के बहुत सारे परिणामों का जिक्र किया है। जिनमें से कुछ प्रमुख हैं।

1. कार्यात्मक स्वतन्त्रता व विशेषीकरण-दुीम ने शारीरिक श्रम विभाजन व सामाजिक श्रम विभाजन में अन्तर किया है और सामाजिक श्रम विभाजन के परिणामों के बारे में बताया है। दुर्थीम के अनुसार श्रम विभाजन का एक परिणाम यह होता है कि जैसे ही काम अधिक बांटा जाता है। श्रम विभाजन के कारण मनुष्य अपने कुछ विशेष गुणों को विशेष कामों में लगा देता है। जिस कारण श्रम विभाजन के विकास का एक परिणाम यह भी होता है कि व्यक्तियों के काम उनके शारीरिक लक्षणों से स्वतन्त्र हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में संरचनात्मक विशेषताएं उनकी कार्यात्मक प्रवृत्तियों को अधिक प्रभावित नहीं करतीं।

2. सभ्यता का विकास-दुर्थीम ने आरम्भ में ही स्पष्ट कर दिया था कि सभ्यता का विकास करना श्रम विभाजन का काम नहीं है क्योंकि श्रम विभाजन एक नैतिक तथ्य है तथा सभ्यता के तीनों अंगों औद्योगिक, कलात्मक व वैज्ञानिक विकास नैतिक विकास से सम्बन्ध नहीं रखते।
उनके अनुसार श्रम विभाजन के परिणाम स्वरूप सभ्यता का विकास होता है। जनसंख्या के आकार तथा घनत्ता में अधिक होना ही सभ्यता के विकास को ज़रूरी बना देता है। श्रम विभाजन व सभ्यता दोनों साथ-साथ प्रगति करते हैं पर श्रम विभाजन का विकास पहले होता है तथा उसके परिणामस्वरूप सभ्यता विकसित होती है। इसलिए दुर्थीम का मानना है कि सभ्यता का न तो श्रम विभाजन का उद्देश्य है और न ही काम बल्कि इसका परिणाम है।

3. सामाजिक प्रगति-प्रगति परिवर्तन का परिणाम है। श्रम विभाजन परिवर्तनों को भी जन्म देता है। परिवर्तन समाज में एक निरन्तर प्रक्रिया है इसलिए समाज में प्रगति भी निरन्तर होती रहती है। इस परिवर्तन का मुख्य कारण श्रम विभाजन है। श्रम विभाजन के कारण परिवर्तन होता है व परिवर्तन के कारण प्रगति होती है। इस प्रकार सामाजिक प्रगति श्रम विभाजन का एक परिणाम है।

दुर्थीम के विचार से प्रगति का प्रमुख कारक समाज है। हम इसके लिए बदल जाते हैं क्योंकि समाज बदल जाता है प्रगति तो ही कर सकती है जब समाज की गति रुक जाए पर ऐसा होना वैज्ञानिक रूप से सम्भव नहीं है। इसलिए दुर्थीम के विचार से प्रगति भी सामाजिक जीवन का परिणाम है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 8 राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा

प्रश्न 8.
आर्थिक संस्था को परिभाषित कीजिए। अर्थप्रणाली में होने वाले परिवर्तनों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
हमारे समाज में बहुत से व्यक्ति रहते हैं तथा प्रत्येक व्यक्ति की कुछ मूल आवश्यकताएं होती हैं। यह मूल आवश्यकताएं हैं-रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य सुविधाएं इत्यादि परन्तु इन सबकी पूर्ति के लिए व्यक्ति को पैसे की आवश्यकता पड़ती है। यह पैसा व्यक्ति को कार्य करके कमाना पड़ता है। पैसा कमाने के लिए व्यक्ति को समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ सहयोग करना पड़ता है तथा उन्हें उनके कार्यों में सहायता करनी पड़ती है ताकि वह भी पैसे कमा सकें।

आर्थिक संस्थाएं वह संस्थाएं हैं जो लोगों के लिए वस्तुओं के उत्पादन, विभाजन व उपभोग का प्रबन्ध करती हैं। समाज में आर्थिक संस्थाओं का बहुत महत्त्व होता है। इसी कारण ही समाज के विभिन्न स्वरूपों को आर्थिक संस्थाओं या अर्थव्यवस्था के आधार पर विभाजित किया गया है जैसे शिकारी, कृषि, औद्योगिक समाज आदि। इन आर्थिक संस्थाओं से ही समाज की अन्य संस्थाओं जैसे परिवार, धर्म आदि प्रभावित होते हैं।

प्रत्येक मानव की कुछ ज़रूरतें व कुछ इच्छाएं होती हैं। कुछ आवश्यकताएं तो जैविक कारणों से पैदा होती हैं। जैसे खाना, पीना, सोना आदि पर व्यक्ति की कुछ इच्छाएं सांसारिक वस्तुओं के कारण होती हैं। जैसे उच्च स्तर, अधिक पैसे होने, ऐशो आराम की सभी चीजें आदि। व्यक्ति अपनी इच्छाएं आप ही बनाता है व उनको पूरा करने की सामर्थ्य भी समाज में व्यवस्थित की गई है। व्यक्ति सभी वस्तुओं को प्राप्त करना चाहता है पर उसके पास इन चीजों की पूर्ति के लिए हमेशा से ही स्रोत की कमी रही है। इसलिए लोग अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दूसरे नित नए साधन ढूंढ़ते रहते हैं। इन साधनों के पता करने में उनसे उम्मीद की जाती है कि इन साधनों में तालमेल स्थापित किया जाए। इस तरह व्यक्ति अपनी ज़रूरतों व इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपने साधनों का उपयोग करता है व उन साधनों को व्यवस्थित करने के लिए जो मापदण्ड व सामाजिक संगठनों का उपयोग करता है उसको धर्म व्यवस्था या आर्थिक संस्थाओं का नाम दिया जाता है।

जॉनस (Jones) के अनुसार, “जीवन निर्वाह की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए वातावरण की उपयोग से सम्बन्धित तकनीकें, विचारों व प्रथाओं की जटिलता को आर्थिक संस्थाएं कहते हैं।”
प्रो० डेविस (Prof. Davis) के अनुसार, “किसी भी समाज में चाहे वह विकसित हो या आदिम, सीमित चीज़ों के विभाजन को निर्धारित करने वाले प्राथमिक विचारों, मानदण्डों व रूतबों को ही आर्थिक संस्था कहते हैं।”
ऑगबर्न व निमकौफ (Ogburn & Nimkoff) के अनुसार, “भोजन व सम्पत्ति के सम्बन्ध में मानव की क्रियाएं आर्थिक सम्पत्ति का निर्माण करती हैं।”

इस प्रकार इन परिभाषाओं को देख कर हम कह सकते हैं कि भौतिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए मानव द्वारा क्रियाओं के निश्चित व संगठित रूप को आर्थिक संस्था कहते हैं।

आर्थिक संस्थाओं में आ रहे परिवर्तन (Changes coming in the economic system)-20वीं शताब्दी के आरंभ से ही आर्थिक संस्थाओं में बहुत से परिवर्तन आने शुरू हो गए जिनका वर्णन इस प्रकार हैं-

  • अब उत्पादन बड़े स्तर पर होता है तथा उत्पादन के लिए Assembly Line नामक तकनीक सामने आ गई है जिसमें मनुष्य तथा मशीन दोनों इकट्ठा मिलकर नई वस्तु का उत्पादन करते हैं।
  • उत्पादन में बड़ी-बड़ी मशीनों का प्रयोग किया जाता है ताकि बड़े स्तर पर उत्पादन किया जा सके।
  • विश्वव्यापीकरण की प्रक्रिया ने सभी देशों की आर्थिक सीमाओं को खोल दिया है। लगभग सभी देशों ने सीमा शुल्क (Custom duty) इतना कम कर दिया है कि सभी वस्तुएं हमारे देश में आसानी से तथा कम दाम पर उपलब्ध हैं।
  • उदारीकरण (Liberalisation) की प्रक्रिया ने भी आर्थिक संस्थाओं में परिवर्तन ला दिए हैं। भारत सरकार ने सन् 1991 के पश्चात् उदारीकरण की प्रक्रिया को अपनाया जिससे देश की आर्थिकता तेज़ी से बढी। देश में बडीबड़ी विदेशी कंपनियों ने अपने उद्योग लगाए जिससे लोगों को रोजगार मिला तथा बेरोज़गारी में भी कमी आई।
  • देश में कम्प्यूटर (Computer) से संबंधित बहुत से उद्योग शुरू हुए।

BPO (Business Process Outsourcing) उद्योग, काल सेंटर, सॉफ्टवेयर सेवाएं इत्यादि ने देश के लिए विदेशी मुद्रा कमाने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की। इसने भारतीय अर्थव्यवस्था को विदेशों की अर्थव्यवस्था से जोड़ दिया। अब प्रत्येक प्रकार के उद्योगों में मशीनों का प्रयोग बढ़ गया है।

प्रश्न 9.
शिक्षा को परिभाषित कीजिए। औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा के मध्य उदाहरणों सहित अन्तर कीजिए।
उत्तर-
शिक्षा व्यक्ति के समाजीकरण का एक साधन है। यह सांस्कृतिक मूल्यों को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का सबसे अच्छा तरीका है। शिक्षा ने ही व्यक्ति का औद्योगीकरण, नगरीकरण इत्यादि के साथ सामंजस्य स्थापित करवाया है। शिक्षा सिर्फ किताबी ज्ञान तक ही सीमित नहीं है। शिक्षा व्यक्ति को जीवन जीने का व्यावहारिक ज्ञान प्रदान करती है। शिक्षा समाज में प्रेम, मैत्री, सहानुभूति, आज्ञाकारिता, अनुशासन इत्यादि जैसे गुणों का विकास करती है।

शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)- शिक्षा को हम ज्ञान के संग्रह के रूप में परिभाषित कर सकते हैं। निम्न परिभाषाओं से शिक्षा का अर्थ और भी स्पष्ट हो जाएगा।

  • फिलिप्स (Philips) के अनुसार, “शिक्षा वह संस्था है जिसका केंद्रीय तत्त्व ज्ञान का संग्रह है।”
  • महात्मा गाँधी (Mahatma Gandhi) के अनुसार, “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बच्चे के शरीर, मन और आत्मा में विद्यमान सर्वोत्तम गुणों का सर्वांगीण विकास करना है।”
  • ब्राउन तथा रासेक (Brown and Rouck) के अनुसार, “शिक्षा अनुभव की वह संपूर्णता है जो किशोर और वयस्क दोनों की अभिवृत्तियों को प्रभावित करती है तथा उनके व्यवहारों का निर्धारण करती है।”

इन परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें तार्किक अनुभव सिद्ध, सैद्धांतिक और व्यावहारिक विचारों का समावेश होता है जिसका उद्देश्य व्यक्ति का सामाजिक व भौतिक पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करना होता है। शिक्षा सामाजिक नियंत्रण में एक अहम भूमिका निभाती है।

मुख्य रूप से शैक्षिक व्यवस्था के दो प्रकार होते हैं-औपचारिक शिक्षा तथा अनौपचारिक शिक्षा।

1. औपचारिक शिक्षा (Formal Education)-औपचारिक शिक्षा वह शिक्षा होती है जो हम औपचारिक तौर पर स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय इत्यादि में जाकर प्राप्त करते हैं। इस तरह की शिक्षा में स्पष्ट पाठ्यक्रम निश्चित किया जाता है तथा अध्यापकगण इस पाठ्यक्रम के अनुसार व्यक्ति को शिक्षा देते हैं। इस तरह की शिक्षा का एक स्पष्ट उद्देश्य होता है तथा वह उद्देश्य होता है व्यक्ति का सर्वपक्षीय विकास ताकि वह समाज का ज़िम्मेदार नागरिक बन सके।

2. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education)-अनौपचारिक शिक्षा वह होती है जो व्यक्ति किसी स्कूल, कॉलेज या विश्वविद्यालय में नहीं लेता है बल्कि वह यह शिक्षा तो रोज़मर्रा के अनुभवों और व्यक्तियों के विचारों, परिवार, पड़ोस, दोस्तों इत्यादि से लेता है। इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति अपने रोज़ाना जीवन से कुछ न कुछ सीखता रहता है। इस को ही अनौपचारिक शिक्षा कहते हैं। इसका कोई निश्चित समय नहीं होता, निश्चित पाठ्यक्रम नहीं होता, निश्चित स्थान नहीं होता। व्यक्ति इसको कहीं भी, किसी से भी तथा किसी भी समय प्राप्त कर सकता। इसके लिए कोई डिग्री नहीं मिलती बल्कि व्यक्ति इसको पाने से परिपक्व हो जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 8 राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा

प्रश्न 10.
समाज में शिक्षा की भूमिका पर प्रकार्यवादी समाजशास्त्रियों के विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
अगर हम आधुनिक समाज की तरफ देखें तो हमें पता चलता है कि जितनी तेजी से समाज में परिवर्तन शिक्षा के साथ आए हैं, उतने परिवर्तन किसी अन्य कारण के साथ नहीं आए हैं। शिक्षा के बढ़ने से सबसे पहले यूरोपियन समाजों में परिवर्तन आए तथा उसके बाद 20वीं शताब्दी के दूसरे उत्तरार्द्ध में एशिया के देशों में परिवर्तन आया। इन परिवर्तनों ने समाज को पूर्णतया बदल कर रख दिया। भारतीय समाज में आधुनिक शिक्षा के कारण ही काफ़ी परिवर्तन आए। लोगों ने पढ़ना लिखना शुरू किया जिससे उनके जीवन का सर्वपक्षीय विकास हुआ। स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन, निम्न तथा पिछड़ी जातियों की स्थिति में परिवर्तन शिक्षा के कारण ही संभव हो सका है। इस कारण समाजशास्त्रियों के लिए भी शिक्षा एक महत्त्वपूर्ण विषय रहा है कि वह समाज पर शिक्षा के प्रभावों को ढूंढ सकें।

समाजशास्त्री सामाजिक परिवर्तन के कारण के रूप में शिक्षा का अध्ययन करने में अधिक रुचि दिखाते हैं। उनके अनुसार शिक्षा मनुष्य को एक जीव से सामाजिक तथा सभ्य जीव के रूप में परिवर्तित कर देता है। फ्रांस के प्रमुख समाजशास्त्री दुर्थीम के अनुसार, “शिक्षा एक वयस्क पीढ़ी की तरफ से अवयस्क पीढ़ी के ऊपर डाला गया प्रभाव है।”

इसका अर्थ है कि शिक्षा वह प्रभाव है जो जाने वाली पीढी आने वाली पीढ़ी पर डालती है ताकि उस पीढी को समाज में रहने के लिए तैयार किया जा सके। दुखीम के अनुसार समाज का अस्तित्व तब ही बना रह सकता है अगर समाज के सदस्यों में एकरूपता (Homogeneity) बनी रहे तथा यह एकरूपता शिक्षा के कारण ही आती है। शिक्षा से ही लोग एक-दूसरे के साथ मिलजुल कर रहना सीखते हैं तथा उनमें एकरूपता आ जाती है। शिक्षा से ही एक बच्चा समाज में रहने के नियम, परिमाप, कीमतों इत्यादि को सीखता व ग्रहण करता है। किंगस्ले डेविस (Kingslay Davis) तथा विलबर्ट मूरे (Wilbert Moore) ने भी शिक्षा के कार्यात्मक पक्ष के बारे में बताया है। उनके अनुसार सामाजिक स्तरीकरण एक तरीका है जिससे समर्थ व्यक्तियों को उचित स्थितियां प्रदान की जाती हैं। इस उद्देश्य की प्राप्ति शिक्षा द्वारा होती है तथा यह इस बात को सुनिश्चित करती है कि सही व्यक्ति को, समाज को सही स्थान प्राप्त हो।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions):

प्रश्न 1.
राज्य की कितनी प्रमुख विशेषताएं हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर-
(D) चार।

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प्रश्न 2.
राज्य के उद्देश्यों को पूरा करने के साधन कौन-से हैं ?
(A) सरकार
(B) समाज
(C) लोग
(D) जाति।
उत्तर-
(A) सरकार।

प्रश्न 3.
सरकार को कौन चुनता है ?
(A) राज्य
(B) समाज
(C) लोग
(D) जाति।
उत्तर-
(C) लोग।

प्रश्न 4.
सरकार के कितने अंग होते हैं ?
(A) एक
(B) दो
(C) तीन
(D) चार।
उत्तर-
(C) तीन।

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प्रश्न 5.
देश की अर्थव्यवस्था को कौन मज़बूत करता है ?
(A) राज्य
(B) समाज
(C) जाति
(D) सरकार।
उत्तर-
(D) सरकार।

प्रश्न 6.
इनमें से कौन सी आर्थिक संस्था है ?
(A) निजी सम्पत्ति
(B) श्रम विभाजन
(C) विनिमय
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 7.
पूंजीवाद में मुख्य तौर पर कितने वर्ग होते हैं ?
(A) दो
(B) तीन
(C) चार
(D) पाँच।
उत्तर-
(A) दो।

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प्रश्न 8.
उस वर्ग को क्या कहते हैं जिसके पास उत्पादन के सभी साधन होते हैं तथा जो श्रमिकों को कार्य देकर उनका शोषण करता है ?
(A) श्रमिक वर्ग
(B) पूंजीपति वर्ग
(C) मध्य वर्ग
(D) निम्न वर्ग।
उत्तर-
(B) पूंजीपति वर्ग।

प्रश्न 9.
धर्म की उत्पत्ति कहां से हुई ?
(A) मनुष्य के विश्वास से
(B) भगवान से
(C) आत्मा से
(D) दैवी शक्तियों से।
उत्तर-
(A) मनुष्य के विश्वास से।

प्रश्न 10.
यह शब्द किसने कहे “धर्म आध्यात्मिक शक्ति में विश्वास है ?”
(A) टेलर
(B) दुर्थीम
(C) लॉस्की
(D) फ्रेजर।
उत्तर-
(A) टेलर।

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प्रश्न 11.
धर्म किसके साथ सम्बन्धित है ?
(A) मूर्ति पूजा के साथ
(B) अलौकिक शक्ति में विश्वास
(C) पुस्तकों के साथ .
(D) A+ B + C.
उत्तर-
(D) A + B + C.

प्रश्न 12.
Elementary Forms of Religious life पुस्तक किसने लिखी ?
(A) दुखीम
(B) टेलर।
(C) वैबर
(D) मैलिनावैसकी।
उत्तर-
(A) दुर्थीम।

प्रश्न 13.
धर्म का क्या कार्य है ?
(A) समाज को तोड़ना
(B) सामाजिक एकता बनाये रखना
(C) समाज को नियन्त्रण में रखना
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) सामाजिक एकता को बनाए रखना।

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प्रश्न 14.
जो धर्म में विश्वास रखता हो उसे क्या कहते हैं ?
(A) आस्तिक
(B) नास्तिक
(C) धार्मिक
(D) अधार्मिक।
उत्तर-
(A) आस्तिक।

प्रश्न 15.
जो धर्म में विश्वास नहीं रखता हो उसे ………… क्या कहते हैं।
(A) धार्मिक
(B) नास्तिक
(C) आस्तिक
(D) अधार्मिक।
उत्तर-
(B) नास्तिक।

प्रश्न 16.
भारत में शिक्षित व्यक्ति किसे कहते हैं ?
(A) जो किसी भी भारतीय भाषा में पढ़ लिख सकता हो
(B) जो आठवीं पास हो
(C) जो मैट्रिक पास हो
(D) जिसने बी० ए० पास की हो।
उत्तर-
(A) जो किसी भी भारतीय भाषा में पढ़ लिख सकता हो।

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प्रश्न 17.
भारत में स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम ………….. तैयार करता है।
(A) U.G.C.
(B) विश्वविद्यालय
(C) NCERT
(D) राज्य का शिक्षा बोर्ड।
उत्तर-
(C) NCERT.

प्रश्न 18.
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली किस चीज़ पर आधारित थी ?
(A) धर्म
(B) विज्ञान
(C) तर्क
(D) पश्चिमी शिक्षा।
उत्तर-
(A) धर्म।

प्रश्न 19.
भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली किस चीज़ पर आधारित है ?
(A) धर्म
(B) पश्चिमी शिक्षा
(C) संस्कृति
(D) सामाजिक शिक्षा।
उत्तर-
(B) पश्चिमी शिक्षा।

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प्रश्न 20.
भारत में 2011 में शिक्षा दर कितनी थी ?
(A) 52%
(B) 74%
(C) 74%
(D) 70%.
उत्तर-
(C) 74%.

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. ……………. के चार तत्त्व होते हैं।
2. वैबर ने ………… के तीन प्रकार बताए हैं।
3. ………. ने. जीववाद का सिद्धांत दिया था।
4. ………… ने पवित्र व साधारण वस्तुओं में अंतर दिया था।
5. प्रकृतिवाद का सिद्धांत ………….. ने दिया था।
6. मार्क्स ने दो वर्गों ……………. तथा ……………… के बारे में बताया था।
7. …………….. शिक्षा वह होती है जो हम स्कूल, कॉलेज में प्राप्त करते हैं।
उत्तर-

  1. राज्य,
  2. तीन,
  3. ई० बी० टाइलर,
  4. दुर्शीम,
  5. मैक्स मूलर,
  6. पूँजीपति, मज़दूर,
  7. औपचारिक।

III. सही/गलत (True/False) :

1. भारत की जनता को आठ मौलिक अधिकार दिए गए हैं।
2. पंचायतों की आधी सीटें स्त्रियों के लिए आरक्षित हैं।
3. भारतीय संविधान 26 नवंबर, 1949 को लागू हुआ था।
4. भारत एक धार्मिक देश है।
5. जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र, सरकार व प्रभुसत्ता राज्य के आवश्यक तत्व हैं।
6. साम्यवाद व समाजवाद के विचार दुर्शीम ने दिए थे।
7. 2011 में भारत की शिक्षा दर 74% थी।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. गलत,
  3. गलत,
  4. गलत,
  5. सही,
  6. गलत,
  7. सही।

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IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
भारत का संविधान कब पास हुआ था ?
उत्तर-
भारत का संविधान 26 नवंबर, 1949 को पास हुआ था परन्तु यह लागू 26 जनवरी, 1950 को हुआ था।

प्रश्न 2.
संविधान में कितने मौलिक अधिकारों का जिक्र है ?
उत्तर-
संविधान में छ: (6) मौलिक अधिकारों का जिक्र है।

प्रश्न 3.
पंचायती राज योजना कब पास हुई थी ?
उत्तर-
पंचायती राज योजना 1959 में पास हुई थी।

प्रश्न 4.
पंचायती राज में महिलाओं के लिए कितना आरक्षण है ?
उत्तर-
पंचायती राज में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण है।

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प्रश्न 5.
गांधी जी के अनुसार कौन-सा राज्य ठीक नहीं है ?
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार जो राज्य शक्ति या बल का प्रयोग करे अथवा जो राज्य बल या शक्ति की मदद से बना हो वह राज्य ठीक नहीं है।

प्रश्न 6.
गांधी जी देश में किस प्रकार की व्यवस्था चाहते थे ?
उत्तर-
गांधी जी देश में पंचायती राज प्रणाली चाहते थे ताकि निचले स्तर तक शक्तियां बांट दी जाएं।

प्रश्न 7.
राज्य किस तरह बनता है ?
उत्तर-
राज्य सोच समझ कर चेतन कोशिशों से बनाया जाता है ताकि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इसका प्रयोग किया जा सके।

प्रश्न 8.
राज्य के उद्देश्यों की पूर्ति कौन करता है ?
उत्तर-
राज्य बनाने के कुछ उद्देश्य होते हैं तथा इन उद्देश्यों की पूर्ति सरकार द्वारा होती है। इस तरह सरकार ही राज्य में उद्देश्यों की पूर्ति करती है।

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प्रश्न 9.
राज्य के आवश्यक कार्य कौन-से हैं ?
उत्तर-
देश की आंतरिक तथा बाहरी खतरों से सुरक्षा राज्य का सबसे आवश्यक कार्य है।

प्रश्न 10.
समाज के लिए न्याय की व्यवस्था कौन करता है ?
उत्तर-
समाज के लिए न्याय की व्यवस्था राज्य करता है। राज्य ही न्यायपालिका का निर्माण करता है।

प्रश्न 11.
राज्य किस प्रकार की व्यवस्था को उत्पन्न करता है?
उत्तर-
राज्य राजनीतिक व्यवस्था को जन्म देता है।

प्रश्न 12.
राज्य के कौन-से ज़रूरी तत्त्व होते हैं?
उत्तर-
राज्य के चार ज़रूरी तत्त्व जनसंख्या, निश्चित भौगोलिक क्षेत्र, सरकार तथा प्रभुसत्ता होनी चाहिए।

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प्रश्न 13.
आर्थिक संस्थाएं क्या होती हैं ?
उत्तर-
जो संस्थाएं आर्थिक क्रियाओं के उत्पादन, बांट, उपभोग इत्यादि का ध्यान रखती हों, वह आर्थिक संस्थाएं होती हैं।

प्रश्न 14.
आर्थिक व्यवस्थाओं की कोई उदाहरण दें।
उत्तर-
आर्थिक व्यवस्थाओं के उदाहरण हैं-पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवाद।

प्रश्न 15.
आर्थिक संस्थाओं के उदाहरण दें।
उत्तर-
निजी सम्पत्ति, श्रम विभाजन, विनिमय इत्यादि आर्थिक संस्थाओं के उदाहरण हैं।

प्रश्न 16.
पूंजीवाद में मुख्य तौर पर कितने वर्ग होते हैं ?
उत्तर-
पूंजीवाद में मुख्य तौर पर दो वर्ग-पूंजीपति वर्ग तथा मज़दूर वर्ग होते हैं।

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प्रश्न 17.
साम्यवादी व्यवस्था में उत्पादन के साधन पर किसका अधिकार होता है ?
उत्तर–
साम्यवादी व्यवस्था में उत्पादन के साधनों पर राज्य का या समाज का अधिकार होता है।

प्रश्न 18.
साम्यवादी व्यवस्था तथा समाजवादी व्यवस्था के विचार किसके थे?
उत्तर-
साम्यवादी व्यवस्था तथा समाजवादी व्यवस्था के विचार कार्ल मार्क्स के थे।

प्रश्न 19.
साम्यवादी किस चीज़ के खिलाफ होते हैं?
उत्तर–
साम्यवादी पैतृक सम्पत्ति तथा निजी सम्पत्ति के खिलाफ होते हैं।

प्रश्न 20.
क्या भारत एक धार्मिक देश है ?
उत्तर-
जी नहीं भारत एक धर्म-निरपेक्ष देश है जहां कई धर्मों के लोग मिलजुल कर एक साथ रहते हैं।

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प्रश्न 21.
धर्म क्या है?
उत्तर-
धर्म विश्वासों तथा संस्कारों का एक संगठन है जो सामाजिक जीवन को नियमित करके नियंत्रित करता है।

प्रश्न 22.
धर्म की उत्पत्ति किसने की?
उत्तर-
धर्म की उत्पत्ति मानव ने की।

प्रश्न 23.
किन समाजशास्त्रियों ने धर्म का अध्ययन किया है?
उत्तर-
दुर्शीम, वैबर, टेलर इत्यादि ने धर्म का अध्ययन किया है।

प्रश्न 24.
आस्तिक कौन होता है?
उत्तर-
जो व्यक्ति अलौकिक शक्ति, प्राचीन परंपराओं तथा धर्म में विश्वास रखता हो उसे आस्तिक कहते हैं।

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प्रश्न 25.
नास्तिक कौन होता है?
उत्तर-
जो व्यक्ति अलौकिक शक्ति तथा धर्म में विश्वास न करता हो उसे नास्तिक कहते हैं।

प्रश्न 26.
धर्म के समाज में चलते रहने का क्या कारण है?
उत्तर-
धर्म में जो भी गुण पाए जाते हैं उन्हीं की वजह से आज भी समाज में धर्म चल रहा है।

प्रश्न 27.
भारत में शिक्षित व्यक्ति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
भारत में जो भी व्यक्ति किसी भी भाषा में पढ़ या लिख सकता है वह शिक्षित व्यक्ति है।

प्रश्न 28.
भारत में स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम कौन बनाता है ?
उत्तर-
भारत में स्कूलों के लिए पाठ्यक्रम N.C.E.R.T. तैयार करता है।

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प्रश्न 29.
भारतीय आधुनिक शिक्षा प्रणाली किस पर आधारित है ?
उत्तर-
भारतीय आधुनिक शिक्षा प्रणाली पश्चिमी शिक्षा पर आधारित है।

प्रश्न 30.
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली किस पर आधारित थी ?
उत्तर-
प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली धर्म या धार्मिक ग्रन्थों पर आधारित थी।

प्रश्न 31.
सबसे पहले बच्चे को शिक्षा कहां प्राप्त होती है ?
उत्तर-
सबसे पहले बच्चे को शिक्षा परिवार में प्राप्त होती है क्योंकि परिवार में ही बच्चा सबसे पहले आंखें खोलता है।

प्रश्न 32.
भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव किसने रखी थी ?
उत्तर-
भारत में आधुनिक शिक्षा की नींव अंग्रेज़ों ने रखी थी।

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प्रश्न 33.
2011 में भारत में साक्षरता दर कितनी थी ?
उत्तर-
2011 में भारत की साक्षरता दर 74% थी।

प्रश्न 34.
भारत में उच्च शिक्षा का ध्यान कौन रखता है ?
उत्तर-
भारत में उच्च शिक्षा का ध्यान U.G.C. रखती है।

प्रश्न 35.
औपचारिक शिक्षा क्या होती है ?
उत्तर-
जो शिक्षा व्यक्ति स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय में प्राप्त करता है उसे औपचारिक शिक्षा कहते हैं।

प्रश्न 36.
अनौपचारिक शिक्षा क्या होती है ?
उत्तर-
जो शिक्षा व्यक्ति अपने रोज़ के कार्यों, अनुभवों, मेल-मिलाप, परिवार इत्यादि में लेता है वह अनौपचारिक शिक्षा होती है।

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प्रश्न 37.
प्राचीन समय में शिक्षा कौन देता था ?
उत्तर-
प्राचीन समय में शिक्षा ब्राह्मण देता था।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गांधी जी के राज्य की शक्तियों के बारे क्या विचार थे ?
उत्तर-
गांधी जी के अनुसार राज्य की शक्चियों का विकेंद्रीकरण अर्थात् शक्तियां विभाजित कर दी जाएं ताकि शक्तियां एक स्थान पर केंद्रित न हों तथा अगर इन्हें अलग-अलग स्तरों पर विभाजित कर दिया जाए तो ही शक्ति का ग़लत प्रयोग नहीं होगा।

प्रश्न 2.
राज्य की कोई दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. राज्य अपनी जनता के कल्याण के कार्य करता रहता है।
  2. अगर आवश्यकता हो तो राज्य शक्ति का प्रयोग भी करता है। (iii) राज्य का अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है, जनसंख्या तथा प्रभुत्त्व भी होता है।

प्रश्न 3.
रूसो तथा प्लैटो के अनुसार राज्य की जनसंख्या कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
बहुत से विद्वानों ने राज्य की जनसंख्या के बारे में अलग-अलग विचार दिए हैं। रूसो के अनुसार राज्य की जनसंख्या कम-से-कम 10,000 होनी चाहिए तथा इसी प्रकार प्लैटो के अनुसार आदर्श राज्य की जनसंख्या 5040 होनी चाहिए।

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प्रश्न 4.
पूंजीपति वर्ग कौन-सा होता है ?
उत्तर-
पूंजीपति वर्ग वह होता है जिसके पास उत्पादन के सभी साधन तथा पैसा होता है तथा जो मज़दूरों को कार्य देकर उनका शोषण करता है। क्योंकि पूंजीपति वर्ग के पास काफ़ी अधिक पैसा होता है इसलिए वह अपने पैसे का निवेश करके काफ़ी मुनाफा कमाता है।

प्रश्न 5.
मज़दूर वर्ग कौन-सा होता है ?
उत्तर-
वह वर्ग जिसके पास उत्पादन के साधन नहीं होते तथा पूंजीपति वर्ग जिसका हमेशा शोषण करता है तथा जो वर्ग केवल अपना श्रम बेचकर अपना पेट पालता है उसे मजदूर वर्ग कहते हैं। इस वर्ग के पास उत्पादन के कोई साधन नहीं होते तथा इसका सदियों से शोषण होता आया है।

प्रश्न 6.
साम्यवादी व्यवस्था क्या होती है ?
उत्तर-
जिस व्यवस्था का मुख्य उद्देश्य वर्ग रहित बनाना अर्थात् उस प्रकार के समाज का निर्माण करना है, जिसमें कोई वर्ग न हो, उसे साम्यवादी व्यवस्था का नाम दिया जाता है। इस प्रकार की व्यवस्था में उत्पादन के सभी साधनों पर राज्य का अधिकार होता है।

प्रश्न 7.
समाजवाद क्या होता है ?
उत्तर-
मार्क्स के अनुसार जिस व्यवस्था में सभी को उनकी आवश्यकता के अनुसार तथा उसकी योग्यता के अनुसार मिलेगा, समाजवाद की व्यवस्था होगी। इस प्रकार की व्यवस्था में समानता व्याप्त हो जाएगी तथा सभी को समान रूप में राज्य की तरफ से मिलेगा।

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प्रश्न 8.
धर्म कैसे व्यक्ति को आलसी बना देता है ?
उत्तर-
धार्मिक व्यक्ति में किस्मत तथा कर्म की विचारधारा आ जाती है। इस कारण वह स्वयं कोई कार्य नहीं करता अपितु कार्य करना ही छोड़ देता है। वह सोचता है कि जो कुछ उसके भाग्य में होगा उसे मिल जाएगा। इस तरह वह आलसी बन जाता है तथा कार्य से दूर भागता है।

प्रश्न 9.
धर्म सामाजिक नियन्त्रण कैसे करता है ?
उत्तर-
धर्म किसी अलौकिक शक्ति के विश्वास पर आधारित है जिसे किसी ने देखा नहीं है। व्यक्ति इस शक्ति से डरता है तथा कोई कार्य नहीं करता जो इसकी इच्छा के विरुद्ध हो। इस प्रकार व्यक्ति स्वयं को नियंत्रित कर लेता है। इस प्रकार धर्म सामाजिक नियंत्रण करता है।

प्रश्न 10.
शिक्षा क्या होती है ?
उत्तर-
शिक्षा व्यक्ति के अंदर समाज तथा स्थितियों के साथ तालमेल बिठाने का सामर्थ्य विकसित करके उसका समाजीकरण करती है। शिक्षा वह प्रभाव है जिसे जा रही पीढ़ी उनके ऊपर प्रयोग करती है जो अभी बालिग नहीं हैं।

प्रश्न 11.
शिक्षा बच्चों के विकास को कैसे प्रभावित करती है ?
उत्तर-
शिक्षा बच्चों के विकास को प्रभावित करती है क्योंकि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बच्चों का सर्वपक्षीय विकास करना है। शिक्षा प्राप्त करने के कारण ही बच्चे को अच्छा जीवन मिल जाता है तथा उसका भविष्य अच्छा बनाने में सहायता मिलती है।

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प्रश्न 12.
शिक्षा के कोई दो कार्य बताएं।
उत्तर-

  • शिक्षा हमारे जीवन को व्यवस्थित तथा नियंत्रित करती है।
  • शिक्षा हमें समाज के साथ अनुकूलन करना सिखाती है।
  • शिक्षा व्यक्ति के अंदर नैतिक गुणों का विकास करती है।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य की चार विशेषताएं।
उत्तर-

  1. राज्य सार्वजनिक हितों की रक्षा करता है।
  2. राज्य अमूर्त होता है।
  3. राज्य के पास वास्तविक शक्तियां या सत्ता होती है।
  4. राज्य की एक सरकार होती है।

प्रश्न 2.
राज्य के कोई चार आवश्यक कार्य बताएं।
उत्तर-

  • राज्य अन्दरूनी शान्ति व सुरक्षा बनाये रखता है।
  • राज्य नागरिक अधिकारों की रक्षा करता है।
  • राज्य न्याय प्रदान करता है।
  • राज्य परिवार के सम्बन्धों को स्थिर रखता है।
  • राज्य बाह्य हमले से रक्षा करता है।

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प्रश्न 3.
राज्य के कोई चार ऐच्छिक कार्य बताइए।
उत्तर-

  1. राज्य यातायात व संचार के साधनों का विकास करता है।
  2. राज्य प्राकृतिक साधनों का उपयोग देश की भलाई के लिये करता है।
  3. राज्य शिक्षा देने का प्रबन्ध करता है।
  4. राज्य लोगों की सेहत का ध्यान रखता है।
  5. राज्य व्यापार एवं उद्योगों का संचालन करता है।

प्रश्न 4.
सरकार।
उत्तर-
सरकार एक ऐसा संगठन है, जिसके पास आदेशात्मक (Control) होता है। जोकि राज्य में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने में सहायता करता है। सरकार को मान्यता प्राप्त होती है क्योंकि सरकार के पास बहुमत का समर्थन होता है। सरकार तो राज्य के उद्देश्यों को पूरा करने का साधन है।

प्रश्न 5.
सरकार की कोई चार विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. सरकार लोगों के द्वारा चुनी जाती है।
  2. सरकार मूर्त होती है।
  3. सरकार कई अंगों से मिलकर बनती है।
  4. सरकार अस्थायी होती है।
  5. सरकार राज्य का साधन है।

प्रश्न 6.
सरकार के कितने अंग हैं ?
उत्तर-
सरकार के तीन अंग होते हैं। कार्यपालिका, विधानपालिका और न्यायपालिका। कार्यपालिका में सरकार के प्रधानमन्त्री एवं मन्त्री इत्यादि कार्य करते हैं। विधानपालिका का अर्थ संसद् या विधानसभा जोकि विंधान या कानून बनाती है और न्यायपालिका अर्थात् अदालतें, जज इत्यादि होते हैं जो कानूनों को लागू करते हैं।

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प्रश्न 7.
सरकार के कोई चार कार्य बताएं।
उत्तर-

  1. सरकार शिक्षा का प्रसार करती है।
  2. सरकार ग़रीबी दूर करने की कोशिश करती है।
  3. सरकार सार्वजनिक क्षेत्र का ध्यान रखती है।
  4. सरकार व्यापार एवं उद्योगों को उत्साहित करती है और उनके लिए नियम बनाती है।
  5. सरकार देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाती है।
  6. सरकार नियुक्तियां करती है।
  7. सरकार कानून बनाती है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक दल क्या होता है ? ।
उत्तर-
राजनीतिक दल एक समूह होता है, जोकि कुछ नियमों के साथ बंधा हुआ होता है। यह एक लोगों की सभा है, जिसका एकमात्र महत्त्व राजनीतिक सत्ता प्राप्त करना होता है जिसके लिए वह सभी मिलकर कोशिश और उपाय करते रहते हैं। इसके सदस्यों के विचार साझे होते हैं, क्योंकि वह सभी एक ही दल से सम्बन्ध रखते है।

प्रश्न 9.
राजनीतिक दल की कोई चार विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. प्रत्येक राजनीतिक दल की भिन्न-भिन्न नीतियां होती हैं।
  2. प्रत्येक दल के सदस्य अच्छी तरह संगठित होते हैं और वह दल भी अच्छी तरह से संगठित व सुदृढ़ होता है।
  3. इसके सभी सदस्य एक ही नीति पर विश्वास करते हैं।
  4. इनके सदस्यों का एक साझा कार्यक्रम होता है।
  5. प्रत्येक अच्छा राजनीतिक दल देश के हितों का ध्यान रखता है।

प्रश्न 10.
राजनीतिक दलों के कोई चार कार्य बताओ।
उत्तर-

  1. यह लोकमत बनाते हैं।
  2. यह राजनीतिक शिक्षा देते हैं।
  3. यह उम्मीदवार चुनने में सहायता करते हैं।
  4. यह लोगों की कठिनाइयों को सरकार तक पहुँचाते हैं।
  5. यह राष्ट्रीय हितों को महत्त्व देते हैं।

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प्रश्न 11.
प्रभुसत्ता (Soveriegnty) ।
उत्तर-
प्रभुसत्ता का अर्थ है राज्य के ऊपर किसी भी प्रकार का बाहरी या आन्तरिक दबाव न हो। वह अपने फैसले लेने के लिये पूर्णतः स्वतन्त्र हो। यह दो प्रकार की होती है। (1) आन्तरिक प्रभुसत्ता (2) बाहरी प्रभुसत्ता। आन्तरिक प्रभुसत्ता से भाव है कि राज अन्य सभी सत्ताओं से सर्वोच्च है। उसकी सीमा के अन्दर (भीतर) रहने वाली संस्थाओं के लिए उसके आदेश मानने आवश्यक होते हैं। अन्य संस्थाओं का अस्तित्व राज्य के ऊपर निर्भर करता है। बाहरीय प्रभुसत्ता से भाव है कि राज्य देश से बाहर की किसी भी शक्ति के अधीन नहीं है। वह अपनी विदेशी एवं घरेलू नोति को बनाने के लिए पूर्णतः स्वतन्त्र होता है।

प्रश्न 12.
राज्य के कार्यों के बढ़ने के कारण।
उत्तर-

  1. सामाजिक परिवर्तन तेजी से हो रहे हैं जिसके कारण राज्य के कार्य बढ़ रहे हैं।
  2. सामाजिक जटिलता के बढ़ने के कारण ही राज्य के कार्य बढ़ रहे हैं।
  3. देश की जनसंख्या के तीव्रता के साथ बढ़ने के कारण उनको सुविधाएं देने के कारण राज्य का कार्य बढ़ रहा है।
  4. कल्याणकारी राज्य की धारणाओं के कारण ही राज्य के कार्य बढ़ रहें है।

प्रश्न 13.
सरकार के तीन अंग।
उत्तर-

  1. विधानपालिका-यह सरकार का वैधानिक अंग है जिसका मुख्य कार्य कानून बनाना एवं कार्यपालिका के ऊपर नियंत्रण रखना है। यह संसद् है।
  2. कार्यपालिका-इसका मुख्य कार्य संसद् या विधानपालिका द्वारा बनाये गये कानूनों को लागू करना है और प्रशासन को चलाना है। यह सरकार है।
  3. न्यायपालिका- इसका मुख्य कार्य संसद् के द्वारा पास और सरकार द्वारा लागू किये गये कानूनों के अनुसार . न्याय करना है। ये अदालतें होती हैं।

प्रश्न 14.
लोकतन्त्र।
उत्तर-
लोकतन्त्र सरकार का ही एक प्रकार है जिसमें जनता का शासन चलता है। इसमें जनता के प्रतिनिधि साधारण जनता के बालिगों द्वारा वोट देने के अधिकार से चुने जाते हैं तथा यह प्रतिनिधि ही जनता का प्रतिनिधित्व करके उनकी तरफ से बोलते हैं। यह कई संकल्पों जैसे कि समानता, स्वतन्त्रता तथा भाईचारे में विश्वास रखता है तथा यह ही इसका कार्यवाहक आधार है। इसके पीछे मूल विचार यह है कि समाज में, सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक समानता होनी चाहिए। इसमें प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुसार बोलने तथा संगठन बनाने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए।

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प्रश्न 15.
शक्ति।
उत्तर-
समाज साधारणतया वर्गों में विभाजित होता है तथा इन वर्गों के हिसाब से व्यक्ति को प्रस्थिति तथा भूमिका प्राप्त होती है। प्रत्येक व्यक्ति की प्रस्थिति तथा भूमिका अलग-अलग होती है। समाज में अलग-अलग वर्गों में विभाजन को स्तरीकरण का नाम दिया जाता है। जब व्यक्ति समाज में रहते हुए अपनी स्थिति तथा भूमिका को निभाते हुए किसी-न-किसी स्थिति को प्राप्त करता है तो यह कहा जा सकता है कि उसके शक्ति अथवा ताकत प्राप्त कर ली है। इस प्रकार शक्ति समझौते तथा सौदे करने की प्रक्रिया है जिसमें प्राथमिकता रख कर सम्बन्धों के लिए निर्णय लिए जाते हैं।

प्रश्न 16.
यान्त्रिक एकता (Mechanical Solidarity) क्या होती है?
उत्तर-
दुर्थीम के अनुसार समाज में सदस्यों के बीच मिलने वाली समानताओं के कारण यान्त्रिक एकता होती · है। जिस समाज के सदस्यों का जीवन समानताओं से भरपूर होता है और विचारों, प्रतिमानों, आदर्शों के प्रतिमान प्रचलित होते हैं, वहां उन समानताओं के फलस्वरूप एकता हो जाती है, जिसको दुर्थीम ने यान्त्रिक एकता कहा है। यहां पर सदस्य एक मशीन या यंत्र की तरह कार्य करते हैं। इसको दमनकारी कानून व्यक्त करता है। यह आदिम समाजों में होती है।

प्रश्न 17.
आंगिक एकता (Organic Solidarity) क्या होती है ?
उत्तर-
आधुनिक समाज में व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप के साथ एक-दूसरे के बंधे नहीं होते है। व्यक्ति में श्रमविभाजन एवं विशेषीकरण के कारण काफ़ी विभिन्नताएं आ जाती हैं। जिस कारण व्यक्तियों को एक-दूसरे के ऊपर निर्भर रहना पड़ता है। व्यक्ति किसी विशेष कार्य में ही योग्यता प्राप्त कर सकता है और सभी इसी कारण एकदूसरे के ऊपर निर्भर करते हैं। सभी मजबूरी में एक दूसरे के पास आते हैं और एक एकता में बंधे रहते हैं। इसे दुर्शीम ने आंगिक एकता का नाम दिया है।

प्रश्न 18.
उत्पादन।
उत्तर-
उत्पादन का अर्थ ऐसी क्रिया से है, जो व्यक्ति की आवश्यकता को पूर्ण करते हेतु किसी वस्तु का निर्माण करती है। इसको किसी वस्तु को उपयोग करने हेतु भी परिभाषित कर सकते हैं। किसी भी वस्तु के निर्माण में बहुत सी वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है। जैसे-प्राकृतिक साधन, मानवीय शक्ति, मज़दूरी, तकनीक, श्रम इत्यादि। इस प्रकार उत्पादन ऐसी क्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये किसी भी वस्तु का निर्माण करता है और उसका उपयोग करता है।

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प्रश्न 19.
उपभोग।
उत्तर-
किसी भी वस्तु के उत्पादन के साथ-साथ उपभोग का होना भी अति आवश्यक होता है क्योंकि बिना उत्पादन के खपत नहीं हो सकती। उपभोग का अर्थ है किसी भी वस्तु का उपभोग करना एवं उपभोग का अर्थ है, वह गुण जो किसी वस्तु को मानव की आवश्यकता पूरा करने के योग्य बनाता है। यह प्रत्येक समाज का मुख्य कार्य होता है कि वह उपभोग को समाज के लिये नियमित व नियंत्रित करे।

प्रश्न 20.
विनिमय।
उत्तर-
किसी भी वस्तु के लेने-देने को वर्तमान में (Exchange) कहते हैं। इसका अर्थ है किसी वस्तु के स्थान पर किसी दूसरी वस्तु को लेना या देना। विनिमय वर्तमान में ही नहीं, बल्कि पुरातन समाज से ही चला आ रहा है। यह कई प्रकार का होता है, वस्तु के बदले वस्तु, सेवा के बदले सेवा, वस्तु के बदले धन, सेवा के बदले धन, यह दो प्रकार का होता है, प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष, विनिमय सर्वप्रथम वस्तुओं का वस्तुओं के साथ, सेवा के बदले वस्तुओं के साथ और सेवा के बदले सेवा के लेने-देने के साथ होता है। अप्रत्यक्ष विनिमय में तोहफे का विनिमय सर्वोत्तम होता है।

प्रश्न 21.
विभाजन।
उत्तर-
आम व्यक्ति के लिये विभाजन का अर्थ वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान के ऊपर ले जाने से और बेचने से है। परन्तु अर्थशास्त्र में विभाजन वह प्रक्रिया है, जिसके साथ किसी आर्थिक वस्तु का कुल मूल्य उन व्यक्तियों में बांटा जाता है, जिन्होंने उस वस्तु के उत्पादन में भाग लिया। भिन्न-भिन्न लोगों एवं समूहों का विशेष योगदान होता है जिस कारण उन्हें मुआवजा मिलना चाहिये। इस तरह उन्हें दिया गया धन या पैसा मुआवजा विभाजन होता है। जैसे ज़मीन के मालिक को किराया, मजदूर को मजदूरी, पैसे लगाने वाले को ब्याज, सरकार को टैक्स आदि के रूप में इस विभाजन का हिस्सा प्राप्त होता है।

प्रश्न 22.
धर्म।
उत्तर-
धर्म मानवीय जीवन की सर्वशक्तिमान, परमात्मा के प्रति श्रद्धा का नाम है या धर्म का अर्थ है परमात्मा के होने का अनुभव। धर्म में व्यक्ति अपने आपको अलौकिक शाक्ति के साथ सम्बन्ध स्थापित करना मानता है।

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प्रश्न 23.
धर्म की कोई चार विशेषताएं बताइये।
उत्तर-

  1. धर्म में अलौकिक शक्तियों में विश्वास होता है।
  2. धर्म में बहुत सारे संस्कार होते हैं।
  3. धर्म में धार्मिक कार्य-विधियां भी होती हैं।
  4. धर्म में धार्मिक प्रतीक एवं चिन्ह भी होते हैं।

प्रश्न 24.
धर्म के कार्य।
उत्तर-

  1. धर्म सामाजिक संगठन को स्थिरता प्रदान करता है।
  2. धर्म सामाजिक जीवन को एक निश्चित रूप प्रदान करता है।
  3. धर्म पारिवारिक जीवन को संगठित करता है।
  4. धर्म सामाजिक नियंत्रण रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
  5. धर्म भेद-भाव को दूर करता है।
  6. धर्म समाज कल्याण के कार्यों के लिये उत्साहित करता है।
  7. धर्म व्यक्ति के विकास करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  8. धर्म व्यक्ति के समाजीकरण करने में सहायता करता है।

प्रश्न 25.
धर्म के दोष।
उत्तर-

  • धर्म सामाजिक उन्नति के रास्ते में रुकावट बनता है।
  • धर्म के कारण व्यक्ति भाग्य के सहारे रह जाता है।
  • धर्म राष्ट्रीय एकता का विरोध करता है।
  • धर्म सामाजिक समस्याओं को बढ़ाता है।
  • धर्म परिवर्तन के रास्ते में रुकावट बनता है।
  • धर्म समाज को बांट देता है।

प्रश्न 26.
धर्म सामाजिक जीवन को निश्चित रूप देता है।
उत्तर-
कोई भी धर्म रीति-रिवाजों व रूढ़ियों का एकत्रित रूप होता है। यह रीति-रिवाज एवं रूढ़ियों संस्कृति का हिस्सा होती हैं। इसलिये धर्म के कारण सामाजिक वातावरण व संस्कृति में सन्तुलन बन जाता है। इसी सन्तुलन कारण जीवन को एक निश्चित रूप मिल जाता है। धर्म के कारण ही लोग रीति-रिवाज़ों, रूढ़ियों आदि पर विश्वास या सत्कार करते हैं और अन्य लोगों के साथ भी सन्तुलन बनाकर चलते हैं। इसी सन्तुलन के कारण ही सामाजिक जीवन सही तरीके के साथ चलता रहता है। यह सब धर्म के फलस्वरूप ही होता है।

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प्रश्न 27.
धर्म एवं सामाजिक नियंत्रण।
उत्तर-
धर्म नियंत्रण के प्रमुख साधनों में से एक है। धर्म के पीछे पूर्ण समुदाय की अनुमति होती है। व्यक्ति के ऊपर न चाहते हुए भी धर्म का जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। धर्म अपने सदस्यों को इस प्रकार नियंत्रित एवं निर्देशित करता है कि व्यक्ति को धर्म के आगे नतमस्तक एवं उसका कहना मानना ही पड़ता है। धर्म एक अलौकिक शक्ति एवं विश्वास है, इसलिये सभी लोग उस अलौकिक शक्ति के प्रकोप से बचना चाहते हैं और कोई भी कार्य ऐसा नहीं करते हैं जो धर्म के विरुद्ध हो। इस प्रकार लोगों के व्यवहार करने के तरीके धर्म के द्वारा ही नियंत्रित होते हैं। धर्म में ही पाप-पुण्य, पवित्र एवं अपवित्र की धारणा होती है। यह व्यक्ति को धर्म के विरुद्ध कार्य करने को रोकती है। यह मान्यता है कि धर्म के विरुद्ध कार्य करना पाप है। जो व्यक्ति को एक नरक में लेकर जाता है और धर्म के अनुसार कार्य करने वाले को स्वर्ग में जगह मिलती है। इसी प्रकार दान देना, सहयोग करना, सहनशीलता सिखाना भी धर्म से ही प्राप्त होते हैं। धर्म लोगों को बुरे कार्यों के विरुद्ध जाने को कहता है, इस प्रकार धर्म समाज के ऊपर एक नियंत्रण शक्ति का कार्य करता है।

प्रश्न 28.
पवित्र।
उत्तर-
दुर्थीम के अनुसार सभी धार्मिक विश्वास आदर्शात्मक वस्तु जगतं को पवित्र (Sacred) तथा साधारण (Profane) दो वर्गों में बाँटते हैं। पवित्र वस्तुओं में देवताओं तथा आध्यात्मिक शक्तियों या आत्माओं के अतिरिक्त गुफाओं, पेड़ों, पत्थर, नदी इत्यादि शामिल हो सकते हैं। साधारण वस्तुओं की तुलना में पवित्र वस्तुएं अधिक शक्ति तथा शान रखती हैं। दुर्थीम के अनुसार, “धर्म पवित्र वस्तुओं अर्थात् अलग तथा प्रतिबन्धित वस्तुओं से संबंधित विश्वासों तथा क्रियाओं की संगठित व्यवस्था है।”

प्रश्न 29.
पंचायती राज्य संस्थाएं।
उत्तर-
हमारे देश में स्थानीय क्षेत्रों का विकास करने के लिए दो प्रकार के ढंग हैं। शहरी क्षेत्रों का विकास करने के लिए स्थानीय सरकारें होती हैं तथा ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने के लिए पंचायती राज्य संस्थाएं होती हैं। हमारे देश की लगभग 68% जनता ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इसलिए ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने के लिए जो संस्थाएं बनाई गई हैं उन्हें पंचायती राज्य संस्थाएं कहते हैं। इसमें तीन स्तर होते हैं। ग्राम स्तर पर विकास करने के लिए पंचायत होती है, ब्लॉक स्तर पर विकास करने के लिए ब्लॉक समिति होती है तथा जिला स्तर पर विकास करने के लिए जिला परिषद् होती है। इन सभी के सदस्य चुने भी जाते हैं तथा मनोनीत भी होते हैं।

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प्रश्न 30.
ग्राम सभा।
उत्तर-
गांव की पूरी जनसंख्या में से बालिग व्यक्ति जिस संस्था का निर्माण करते हैं उसे ग्राम सभा कहते हैं। गांव के सभी वयस्क व्यक्ति इसके सदस्य होते हैं तथा यह गांव की पूर्ण जनसंख्या की एक सम्पूर्ण इकाई है। यह वह मूल इकाई है जिस पर हमारे लोकतन्त्र का ढांचा टिका हुआ है। जिस गांव की जनसंख्या 250 से अधिक होती है वहां ग्राम सभा बन सकती है। यदि एक गांव की जनसंख्या कम है तो दो गांव मिलकर ग्राम सभा बनाते हैं। ग्राम सभा में गांव का प्रत्येक वह बालिग अथवा वयस्क व्यक्ति सदस्य होता है जिसे वोट देने का अधिकार प्राप्त होता है। प्रत्येक ग्राम सभा का एक प्रधान तथा कुछ सदस्य होते हैं जो 5 वर्ष के लिए चुने जाते हैं।

प्रश्न 31.
ग्राम पंचायत।
उत्तर-
प्रत्येक ग्राम सभा अपने क्षेत्र में से एक ग्राम पंचायत का चुनाव करती है। इस प्रकार ग्राम सभा एक कार्यकारी संस्था है जो ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करती है। इसमें एक सरपंच तथा 5 से 13 तक पंच होते हैं। यह 5 वर्ष के लिए चुनी जाती है परन्तु यदि यह अपने अधिकारों का गलत प्रयोग करे तो उसे 5 वर्ष से पहले भी भंग किया जा सकता है। पंचायत में पिछड़ी श्रेणियों तथा स्त्रियों के लिए स्थान आरक्षित हैं। ग्राम पंचायत में सरकारी कर्मचारी तथा मानसिक तौर पर बीमार व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ सकते। ग्राम पंचायत गांव में सफाई, मनोरंजन, उद्योग तथा यातायात के साधनों का विकास करती है तथा गांव की समस्याएं दूर करती है।

प्रश्न 32.
ग्राम पंचायत के कार्य।
उत्तर-

  • ग्राम पंचायत का सबसे पहला कार्य गांव के लोगों के सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के स्तर को ऊँचा उठाना होता है।
  • गांव की पंचायत गांव में स्कूल खुलवाने तथा लोगों को अपने बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करती है।
  • ग्राम पंचायत ग्रामीण समाज में मनोरंजन के साधन जैसे कि फिल्में, मेले लगवाने तथा लाइब्रेरी खुलवाने का भी प्रबन्ध करती है। (iv) पंचायत लोगों को कृषि की नई तकनीकों के बारे में बताती है, नए बीजों, उन्नत उर्वरकों का भी प्रबन्ध करती है।
  • यह गांव में कुएं, ट्यूबवैल इत्यादि लगवाने का प्रबन्ध करती है तथा नदियों के पानी की भी व्यवस्था करती है।
  • यह गांवों का औद्योगिक विकास करने के लिए गांव में उद्योग लगवाने का भी प्रबन्ध करती है।

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प्रश्न 33.
न्याय पंचायत।
उत्तर-
गांवों के लोगों में झगड़े होते रहते हैं जिस कारण उनके झगड़ों का निपटारा करना आवश्यक होता है। इसलिए 5-10 ग्राम सभाओं के लिए एक न्याय पंचायत का निर्माण किया जाता है। न्याय पंचायत लोगों के बीच होने वाले झगड़ों को खत्म करने में सहायता करती है। इसके सदस्य चुने जाते हैं तथा सरपंच पांच सदस्यों की एक कमेटी बनाता है। इन सदस्यों को पंचायत से प्रश्न पूछने का भी अधिकार होता है।

प्रश्न 34.
पंचायत समिति अथवा ब्लॉक समिति।
उत्तर-
पंचायती राज्य संस्थाओं के तीन स्तर होते हैं। सबसे निचले गांव के स्तर पर पंचायत होती है। दूसरा स्तर ब्लॉक का होता है जहां पर ब्लॉक समिति अथवा पंचायत समिति का निर्माण किया जाता है। एक ब्लॉक में आने वाली पंचायतें, पंचायत समिति के सदस्य होते हैं तथा इन पंचायतों के प्रधान अथवा सरपंच इसके सदस्य होते हैं।

पंचायत समिति के इन सदस्यों के अतिरिक्त और सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है। पंचायत समिति अपने क्षेत्र में आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह गांवों के विकास के कार्यक्रमों को चैक करती है तथा पंचायतों को गांव के कल्याण करने के लिए निर्देश देती है। यह पंचायती राज्य के दूसरे स्तर पर है।

प्रश्न 35.
जिला परिषद्।
उत्तर-
पंचायती राज्य के सबसे ऊंचे स्तर पर है ज़िला परिषद् जो कि जिले के बीच आने वाली पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखती है। यह भी एक प्रकार की कार्यकारी संस्था होती है। पंचायत समितियों के चेयरमैन चुने हुए सदस्य, उस क्षेत्र के लोक सभा, राज्य सभा तथा विधान सभा के सदस्य सभी जिला परिषद के सदस्य होते हैं। यह सभी जिले में आने वाले गांवों के विकास का ध्यान रखते हैं। जिला परिषद् कृषि में सुधार, ग्रामीण बिजलीकरण, भूमि सुधार, सिंचाई, बीजों तथा उर्वरकों को उपलब्ध करवाना, शिक्षा, उद्योग लगवाने जैसे कार्य करती है।

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प्रश्न 36.
पंचायती राज्य की समस्याएं।
उत्तर-

  • लोगों के अनपढ़ तथा अन्धविश्वासों में फंसे हुए होने के कारण वह परिवर्तन को जल्दी स्वीकार नहीं करते जो कि पंचायती राज्य संस्थाओं के रास्ते में सबसे बड़ी समस्या है।
  • गांवों में अच्छे तथा ईमानदार नेताओं की कमी होती है तथा वह केवल अपने विकास पर ही ध्यान देते हैं गांवों के विकास पर नहीं।
  • अच्छे पढ़े-लिखे लोग धीरे-धीरे शहरों में बस रहे हैं जिससे गांव में पढ़े-लिखे नेताओं की कमी है।
  • सरकारी अफ़सर, पंचों तथा सरपंचों से मिलकर गांव को मिलने वाले ज़्यादातर पैसे को स्वयं ही खा जाते हैं तथा गांव का विकास रुक जाता है।

प्रश्न 37.
ग्राम पंचायत की आय के साधन।
उत्तर-

  • पंचायत को राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त टैक्स लगाने का अधिकार प्राप्त है जैसे कि सम्पत्ति कर, पशु कर, पेशा कर, मार्ग कर, चुंगी कर इत्यादि इनसे उसे आय होती है।
  • ग्राम पंचायत कई प्रकार के जुर्माने भी लगा सकती है तथा फीस भी इकट्ठी कर सकती है जिससे उसे आय प्राप्त होती है।
  • पंचायतों को प्रत्येक वर्ष सरकार से ग्रांटें प्राप्त होती हैं जिससे उसकी आय बढ़ती है।
  • पंचायत को कूड़ा-कर्कट, गोबर बेचने से आय, मेलों से आय, पंचायत की सम्पत्ति से भी आय प्राप्त हो जाती है।

प्रश्न 38.
पंचायत समिति का चेयरमैन।
उत्तर-
पंचायत समिति के चुने हुए सदस्य अपने में से एक चेयरमैन का चुनाव करते हैं जो कि डिप्टी कमिश्नर की निगरानी में चुना जाता है। इसका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। इसे समिति के क्षेत्र तथा प्रशासन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है। यह समिति की मीटिंग बुलाता है तथा उनकी अध्यक्षता करता है। यह समिति के अधिकारियों की सहायता से समिति का बजट तैयार करके उन्हें पास करवाता है। यह पंचायत समिति के क्षेत्र में आने वाली सभी पंचायतों के कार्यों का ध्यान रखता है तथा उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों का निरीक्षण भी करता है।

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बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आर्थिक संस्थाओं के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
आर्थिक संस्थाओं के मुख्य कार्यों का वर्णन इस प्रकार है-

1. उत्पादन (Production)-उत्पादन का अर्थ ऐसी क्रिया है जो व्यक्ति की ज़रूरत को पूरा करने के लिए किसी चीज़ की निर्माण करती है। इसको किसी चीज़ को उपयोग करने के रूप में भी परिभाषित कर सकती है। किसी वस्तु के निर्माण में बहुत सारी वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है जिसका वर्णन नीचे दिया गया है

(1) सबसे पहले किसी वस्तु के उत्पादन के लिए प्राकृतिक साधनों की ज़रूरत पड़ती है जिससे वस्तु का निर्माण होता है। वे सभी वस्तुएं जो किसी भी चीज़ के निर्माण के लिए ज़रूरी होती हैं साधन कहलाती हैं। साधन में भौतिक वस्तुओं व उनके लिए प्रयोग होने वाली मानवीय ताकत भी शामिल है। भौतिक चीज़ों के उत्पादन के लिए बढ़िया भूमि व जलवायु की आवश्यकता होती है। इस्पात बनाने के लिए कच्चा लोहा व बिजली बनाने के लिए कोयले या पानी की आवश्यकता पड़ती है ताकि मशीनें चल सकें। इस प्रकार वस्तु के उत्पादन के लिए प्राकृतिक साधनों की ज़रूरत होती है। …

(2) प्राकृतिक साधनों के पश्चात् बारी आती है मानवीय शक्ति की। मनुष्य की मज़दूरी धन के उत्पादन के लिए प्रयोग की जाती है। व्यक्ति जब किसी भी चीज़ का निर्माण करता है तो वह अपना परिश्रम लगाता है और यही मेहनत किसी भी चीज़ की उपयोगिता बढ़ा देती है। मजदूर को उसकी मेहनत का किस तरह का फल मिले वह अर्थव्यवस्था पर निर्भर करता है। जैसे पुराने समय में गांवों में कार्य करवा कर उसको दाने, अनाज इत्यादि दिया जाता था पर आजकल उसको तनख्वाह पैसे के रूप में दी जाती है इस प्रकार मज़दूरी तथा मनुष्य की मेहनत का भी उत्पादन में बहुत बड़ा हाथ होता है।

(3) किसी भी चीज़ के उत्पादन के लिए साधनों व मजदूरी की ज़रूरत होती है। इनमें से किसी एक की गैर मौजूदगी से चीज़ नहीं बन सकती। इन दोनों की मदद से व मशीनों, उद्योग की अन्य वस्तुओं जिनकी मदद से चीजों का उत्पादन होता है को पूंजी कहा जाता है। इस प्रकार पूंजी वह चीज़ है जिस का निर्माण प्राकृतिक साधनों पर परिश्रम करके होता है अर्थात् जिसको आगे और पूंजी के उत्पादन में प्रयोग किया जा सकता है।

(4) प्राकृतिक साधनों, मज़दूरी व पूंजी के अतिरिक्त कई अन्य वस्तुएं हैं जो उत्पादन में मदद करती हैं। सबसे पहले टैक्नॉलाजी होती है। टैक्नॉलजी समाज की पूरी कला के ज्ञान का स्रोत है। जिस समाज का ज्ञान व कला जितनी बढ़िया होगा। वह समाज उतनी ही बढ़िया चीज़ का निर्माण करेगा। इसके समय साथ होता है जो किसी भी चीज़ के निर्माण में महत्त्वपूर्ण होता है। यदि हमने किसी चीज़ का निर्माण करना है तो वह निश्चित समय के अन्दर होना ज़रूरी है नहीं तो उस वस्तु के निर्माण की खपत बढ़ जाएगी। फिर बारी आती है निर्माण करने के तरीके की क्योंकि कम समय में साधनों के द्वारा चीज़ों का अधिक-से-अधिक मात्रा में प्राप्त करने का तरीका है। निर्माण करने का तरीका वह है जिससे कम-से-कम समय में अधिक वस्तुएं बनाई जाएं।

(5) अन्त में जो वस्तु उत्पादन में ज़रूरी होती हैं वह है उद्यमी। प्रत्येक उत्पादन की प्रक्रिया में कोई दिशा व किसी न किसी योजना की ज़रूरत होती है। आजकल बड़े-बड़े उद्योगों व समूहों की देख-रेख कुछ विशेष व्यक्ति या मालिक करते हैं। उत्पादन की प्रक्रिया में भिन्न-भिन्न व्यक्ति अपना योगदान डालते हैं। कुछ लोगों के पास प्राकृतिक साधन होते हैं, किसी के पास मज़दूरी होती है व किसी के पास पैसा। उद्यमी व्यक्ति इन सब को इकट्ठा करके चीज़ों का उत्पादन करता है व अपना मुनाफा कमाता है इस उत्पादन की प्रक्रिया में फायदा सब में बांटा जाता है। उद्यमी के साथ-साथ सरकारी नीतियों कानून, मज़दूरों की तनख्वाह उनके झगड़ों का निपटारा, व्यापार, काम के साथ सम्बन्धित कानूनों का निर्माण आदि ही इसमें ज़रूरी है। इस प्रकार इन सभी कारणों के कारण उत्पादन होता है। इस प्रकार आर्थिक संस्थाओं का सब से पहला काम उत्पादन करना होता है।

2. उपभोग (Consumption)-उत्पादन के साथ-साथ उपभोग का होना भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि बगैर उपभोग के उत्पादन नहीं हो सकता। इसका अर्थ होता है किसी चीज़ का उपयोग करना व उपयोग का अर्थ है, वह गुण जो किसी चीज़ को मनुष्य की ज़रूरत पूरा करने के योग्य बनाता है। साधारण समाजों में तो उपभोग की कोई मुश्किल नहीं होती क्योंकि जो भी चीज़ उत्पादित होती है, उसकी खपत आराम से हो जाती है जैसे आदिम समाज में होता था। व्यक्ति भोजन का उत्पादन करते थे व उसका उपभोग कर लेते थे। परन्तु मुश्किल तो जटिल समाज में होती है। जहां व्यक्ति अपनी प्राथिमक ज़रूरतों के अलावा और चीजें व जरूरतों को विकसित कर लेते हैं। जोकि जीवन जीने के लिए कोई खास ज़रूरी नहीं हैं जैसे टी० वी०, बढ़िया मकान, कारें, ऐशो-आराम के समान इत्यादि। जटिल समाज में इन चीजों की उपभोग बहुत अधिक होता है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था बढ़ती है।

प्रत्येक समाज का मुख्य काम होता है कि वह उपभोग को समाज के लिए निर्धारित करे। उपभोग की नियमित कई तरीकों से हो सकती है। जैसे उत्पादन पर नियन्त्रण करके उत्पादन पर नियन्त्रण भी कई ढंगों से हो सकता है, जैसे प्राकृतिक साधनों के भण्डार को बचाकर रखना व ताज़ा उत्पादन में भी उनका कम प्रयोग करना।

इसी प्रकार (Export) या निर्यात भी इसका नियन्त्रण कर सकता है। उपभोग को हम प्रचार करके भी प्रभावित कर सकते हैं जैसे कि यदि किसी नई वस्तु का निर्माण हुआ है तो उसके बारे टी० वी० अखबार इत्यादि में प्रचार करके लोगों को उसके बारे में बता सकते हैं। इस प्रकार किसी वस्तु की खपत इस कारण कम या अधिक हो सकती है। इस के अतिरिक्त सरकार भी कानूनी पाबन्दी लगाकर खपत को प्रभावित कर सकती है। जैसे किसी वस्तु के खतरनाक परिणामों के कारण उस पर प्रतिबन्ध लगाना किसी चीज़ की रिआयत देना जिस कारण खपत कम बढ़ सकती है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि प्रत्येक व्यवस्था एक संस्थागत नियमों की प्रणाली में काम करती है। जैसे जायदाद की परिभाषा व अधिकारियों का विभाजन, श्रम विभाजन व्यवस्था, उत्पादन व उपभोग की व्यवस्थाओं पर नियन्त्रण। इस प्रकार खपत को नियमित करना आर्थिक संस्थाओं का प्रमुख काम है। ..

3. विनिमय (Exchange)-किसी चीज़ के लेन-देन को विनिमय कहते हैं। इसका अर्थ है किसी आर्थिक वस्तु की जगह दूसरी वस्तु को देना। विनिमय आजकल का नहीं बल्कि पुरातन समाज से ही चला आ रहा है। विनिमय कई प्रकार का होता है। जैसे चीज़ के बदले चीज़, सेवा के बदले चीज़, सेवा के बदले सेवा, चीज़ के बदले पैसा, सेवा के बदले पैसा, पैसे के बदले पैसा। विनिमय को जॉनसन दो श्रेणियों में रखते हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष।

प्रत्यक्ष विनिमय सबसे पहले वस्तुओं की वस्तुओं से सेवा बदले सेवा का लेन-देन होता है इसमें व्यवस्थित व्यापार भी होता है व उस समय होता है जब चीज़ों की कीमतों को राजनीतिक सत्ता द्वारा निश्चित किया जाता है। पर समय-समय पर बदल दिया जाता है। इसमें पैसे का विनिमय भी होता है या हम कह सकते हैं कि पैसे देकर चीज़ ली जा सकती है। इस विनिमय के कारण लोगों में बदलने की सुविधा पैदा होती है।

अप्रत्यक्ष विनिमय में तोहफे का बदलना सब से आम रूप है जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष से किसी खास प्रकार का लाभ लेने के लिए समझौता करता है व बिना किसी चीज़ या सेवा के तोहफे (gift) का लेन-देन होता है इसके अलावा समूह द्वारा उत्पादित चीज़ों के एकत्र करके सदस्यों में दुबारा बांट दिया जाता है।

विनिमय के कारण उत्पादन में बढ़ोत्तरी होती है। जब लोगों को अन्य लोगों से किसी चीज़ को प्राप्त करने में कोई कठिनाई होती है तो वह उस चीज़ द्वारा आत्म निर्भर बनने के लिए भिन्न-भिन्न चीजों का निर्माण करते हैं। दूसरी ओर जब बदलाव बहुत अधिक विकसित हो जाता है व प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपने स्रोत से अधिक चीजें लेनी आसान हों तो वह व्यक्ति उत्पादन में उस्ताद हो जाता है तथा अपनी फालतू चीज़ों का उन चीज़ों से बदलाव कर लेता है जिनका उत्पादन और लोग कर रहे होते हैं।

4. विभाजन (Distribution)—साधारण व्यक्ति के लिए विभाजन का मतलब चीजों के एक स्थान से दूसरी जगह ले कर जाना तथा उसके बेचने से है। उसके अनुसार हम चीज़ों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जा कर बेच देते हैं पर अर्थशास्त्र में लाने व लेकर जाने के लिए इसको एक किस्म के उत्पादन के रूप में लिया जाता है क्योंकि यह वस्तुओं की सुविधा देता है क्योंकि इसमें वस्तुओं की मलकीयत है।

विभाजन वह प्रक्रिया है जिससे किसी आर्थिक वस्तु का कुल मूल्य उन व्यक्तियों में बांटा जाता है जिन्होंने उस चीज़ के उत्पादन में हिस्सा डाला होता है। भिन्न-भिन्न लोगों व समूहों का अपना विशेष योगदान होता है जिस कारण उन्हें इनाम या मुनाफा मिलना चाहिए। जिन लोगों के पास भूमि होती है उनको आर्थिक क्रिया प्राप्त होती है। मज़दूर को मज़दूरी या तनख्वाह प्राप्त होती है जो व्यक्ति कारखाने बनाता है, उसमें निवेश करने व उसको चलाने के लिए पैसा देता है उसको उद्यमी कहते हैं। उसको पैसा लगाने का मुआवज़ा ब्याज के रूप में प्राप्त होता है। सरकार का भी उत्पादन में प्रत्यक्ष रूप से हिस्सा होता है व वह अपना मुआवज़ा कर के रूप में लेती है। इतना ।

सब कुछ देने के बाद जो कुछ बचता है उसको उद्यमी या प्रबन्धक बोर्ड लाभ के रूप में रख लेता है।
छोटा व्यापार चलाना काफ़ी साधारण मामला है। यदि छोटा व्यापारी ही प्राकृतिक साधनों, पूंजी व मज़दूरी का, आय का प्रबन्ध करता है तो कर को छोड़ कर बाकी सारी आय उस की होती है। इस प्रकार के मामले में किराया, तनख्वाह, लाभ व ब्याज वही छोटा व्यापारी ही प्राप्त करता है। इस बात का यहां कोई भी महत्त्व नहीं होता कि वह व्यक्ति अपनी आमदन के किस भाग को लाभ, तनख्वाह या ब्याज के रूप में मानता है।

पर आजकल की आधुनिक जटिल अर्थव्यवस्था में बड़े व्यापारिक आकार में विभाजन बहुत बड़ी समस्या होती है। उत्पादन की प्रक्रिया में कई कारक होते हैं व प्रत्येक कारक के मालिक भिन्न-भिन्न होते हैं। प्रत्येक मालिक अपने लिए ज्यादा से ज्यादा मुनाफा प्राप्त करने की कोशिश करता है। मजदूर को अधिक तनख्वाह चाहिए होती है। पूंजीपति को अधिक ब्याज चाहिए होता है। उद्यमी उसको कम देना चाहता है क्योंकि इन्हें कम देने से उसका

लाभ बढ़ जाएगा। प्रबन्धकों से मजदूरों में संघर्ष भी लाभ का विभाजन कारण ही होता है। एक का लाभ दूसरे का नुकसान होता है। जब मज़दूरों, प्रबन्धकों व पूंजीपतियों में अधिक लाभ प्राप्त करने की होड़ लग जाती है तो लोग इनके बीच के झगड़े का उपाय ढूंढने में लग जाते हैं ताकि इनका समझौता हो जाए व समाज को अधिक उत्पादन प्राप्त होता रहे। इस प्रकार आर्थिक संस्थाओं के मुख्य कार्य चीज़ों का उत्पादन, उपभोग, विनिमय व विभाजन है।

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प्रश्न 2.
पूंजीवाद के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तार सहित लिखो।
उत्तर-
पूंजीवाद एक आर्थिक व्यवस्था है जिसमें निजी सम्पत्ति की बहुत महत्ता होती है। पूंजीवाद एक दम से ही किसी स्तर पर नहीं पहुंचा बल्कि उसका धीरे-धीरे विकास हुआ है। इसके विकास को देखने के लिए हमें इसका अध्ययन आदिम समाज में करना होगा।

आदिम समाज में वस्तुओं के लेन-देने की व्यवस्था आदान-प्रदान बदलने की व्यवस्था थी। उस समय लाभ (Profit) का विचार प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आया था। लोग चीज़ों के लाभ के लिए एकत्र नहीं करते थे बल्कि उन दिनों के लिए एकत्र करते थे जब चीज़ों की कमी होती थी या फिर सामाजिक प्रसिद्धि के लिए एकत्र करते थे। व्यापारिक व्यवस्था आमतौर पर सेवा व चीज़ों के देने पर निर्भर करती थी। आर्थिक कारक जैसे कि मजदूरी, निवेश, व्यापारिक लाभ के बारे में आदिम समाज को पता नहीं था।

मध्यमवर्गी समाज में व्यापार व वाणिज्य थोड़े से उन्नत हो गए। चाहे शुरू में व्यापार आदान-प्रदान की व्यवस्था पर आधारित था पर धीरे-धीरे पैसा व्यापार करने का एक माध्यम बन गया। इसी ने व्यापार व वाणिज्य को एक प्रकार का उत्साह दिया जिस कारण पैसे, सोना, चांदी व टैक्स की महत्ता बढ गई। पैसा चाहे सम्पत्ति नहीं था, पर यह सम्पत्ति का सूचक था। इसका उत्पादक शक्तियों के लक्षणों पर पूरा प्रभाव था। सिमल के अनुसार पैसे की ‘संस्था के आधुनिक पश्चिमी समाज में व्यवस्थित होने के कारण ज़िन्दगी के हर भाग पर बहुत गहरे प्रभाव पड़े। इसने मालिक व नौकर को आजादी दी वस्तुओं तथा सेवाओं के बेचने तथा खरीदने वाले पर भी असर पड़ा क्योंकि इससे व्यापार के दोनों ओर से रस्मी रिश्ते पैदा हो गए। सिमल के अनुसार पैसे ने हमारी ज़िन्दगी की फिलासफ़ी में बहुत परिवर्तन ला दिए। इसने हमें Practical बना दिया। क्योंकि अब हम प्रत्येक चीज़ को पैसे में तोलने लग पड़े। समाज सम्पर्क, सम्बन्ध औपचारिक तथा अव्यक्तक हो गए। मानवीय सम्बन्ध भी ठण्डे हो गए।

आधुनिक समय के आरम्भिक दौर में आर्थिक गतिविधियां आमतौर पर सरकारी ताकतों द्वारा संचालित होती थीं। इससे हमें यूरोपीय लोगों के राज्य की सरकार अधीन इकट्ठे होकर आगे बढ़ने का प्रतिबिम्ब दिखाई देता है। इस समय में आर्थिक गतिविधियां राजनैतिक सत्ता द्वारा संचालित हैं। ताकि राज्य का लाभ तथा खज़ाना बढ़ सके। देश व्यापारियों की देख-रेख में चलता था तथा व्यापारी एक आर्थिक संगठन की भान्ति लाभ कमाने में लगे हुए हैं। उत्पादक शक्तियां भी व्यापारिक कानून द्वारा संचालित होती हैं। – इसके पश्चात् औद्योगिक क्रान्ति आई जिसने उत्पादन के तरीकों को बदल दिया। व्यापारिक नीतियां लोगों का भला करने में असफल रहीं जिसका चीज़ों के उत्पादन करने के लिए (Laissez faire) की नीति अपनाई गई। इस नीति के अनुसार कोई भी व्यक्ति अपने व्यक्तिगत हित देख सकता था। उस पर कोई बन्धन नहीं था। राज्य ने आर्थिक कार्य में दखल देना बन्द कर दिया। समनर के अनुसार राज्य के व्यापार व वाणिज्य पर लगे सारे प्रतिबन्ध हटा लेने चाहिएं व उत्पादन, आदान-प्रदान व पैसे को इकट्ठा करने पर लगी सभी पाबन्दियां हटा लेनी चाहिएं। एडम स्मिथ ने इस समय चार सिद्धान्तों का वर्णन किया।

  1. व्यक्तिगत हित की नीति।
  2. दखल न देने की नीति।
  3. प्रतियोगिता का सिद्धान्त।
  4. लाभ को देखना।

इन सिद्धान्तों का उस समय पर काफ़ी प्रभाव पड़ा। इन नियमों के प्रभाव अधीन व औद्योगिक क्रान्ति के कारण सम्पत्ति व उत्पादन की मलकीयत की नई व्यवस्था सामने आई जिसको पूंजीवाद का नाम दिया गया। औद्योगिक क्रान्ति के कारण घरेलू उत्पादन कारखानों के उत्पादन में बदल गया। कारखानों में काम छोटे-छोटे भागों में बंटा होता था तथा प्रत्येक मज़दूर थोड़ा या छोटा सा काम करता था। इससे उत्पादन बढ़ गया। समय के साथ-साथ बड़ेबड़े कारखाने लग गए। इन बड़े कारखानों के मालिक निगम वजूद में आ गए। पूंजीवाद के साथ-साथ श्रमविभाजन, विशेषीकरण व लेन-देन भी पहचान में आया। इस उत्पादन व लेन-देन की व्यवस्था में उत्पादन के साधन के मालिक व्यक्तिगत लोग थे और उन पर कोई सामाजिक ज़िम्मेदारी नहीं थी। सम्पत्ति बिल्कुल निजी थी तथा वह राज्य, धर्म, परिवार व अन्य संस्थाओं की पाबन्दियों से स्वतन्त्र थे। फैक्टरियों के मालिक कुछ भी करने को स्वतन्त्र थे। उनका उद्देश्य केवल लाभ था।

उन पर बिना लाभ की चीजों का उत्पादन करने का कोई बन्धन नहीं था। उत्पादन का तरीका लाभ वाला था और सरकार ने दखल न देने की नीति अपनाई तथा इस दिशा में मालिक का साथ दिया।

पूंजीवाद के लक्षण (Features of Capitalism) –

1. बड़े स्तर पर उत्पादन (Large Scale Production)-पूंजीवाद का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण है उत्पादन का बढ़ना। उद्योगों के लगने से उत्पादन बड़े पैमाने पर होने लगा। पूंजीवाद औद्योगिक क्रान्ति के कारण आया जिस कारण बड़े स्तर पर उत्पादन मुश्किल हुआ। बड़े-बड़े कारखानों व श्रम-विभाजन पर विशेषीकरण के बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ गया। अधिक उत्पादन का अर्थ था पूंजी का बड़े स्तर पर उपयोग और बहुत अधिक फ़ायदा।

2. निजी सम्पत्ति (Private Property)—निजी सम्पत्ति आधुनिक समाज व आधुनिक आर्थिक जीवन का आधार है। यह पूंजीवाद का ही आधार है। पूंजीवाद में प्रत्येक व्यक्ति को कमाने का हक तथा सम्पत्ति को रखने का अधिकार है। सम्पत्ति रखने के हक को व्यक्तिगत अधिकार के रूप में देखा जाता है। निजी सम्पत्ति के कारण ही बड़े-बड़े कारखाने, उद्योग, निगम कार्य प्रणाली में आए व पूंजीवाद बढ़ा।

3. प्रतियोगिता (Competition)-पूंजीवादी व्यवस्था में प्रतियोगिता एक ज़रूरी तत्त्व के परिणाम है। पूंजीवाद में भिन्न-भिन्न पूंजीपतियों में बहुत अधिक मुकाबला देखने को मिलता है। मांग को नकली तौर पर बढ़ाकर व पूर्ति को घटा दिया जाता है व पूंजीवाद में कठिन मुकाबला होता है। इस मुकाबले में बड़े पूंजीपति जीत जाते हैं व छोटे पूंजीपति हार जाते हैं।

4. लाभ (Profit)-मार्क्स के अनुसार लाभ के बिना पूंजीवाद नहीं टिक सकता। पूंजीपति बड़े पैमाने पर पूंजी का निवेश करता है ताकि लाभ कमाया जा सके। पूंजीवाद में उत्पादन लाभ के लिए किया जाता है ना कि समाज कल्याण या समाज की ज़रूरतें पूरी करने के लिए।

5. कीमत प्रणाली (Price System)-पूंजीवाद में मुख्य उद्देश्य अधिक-से-अधिक लाभ प्राप्त करना होता है। किसी चीज़ की कीमत उस पर लगी लागत के आधार पर नहीं बल्कि उस चीज़ की मांग के आधार पर निर्धारित होती है। इसी प्रकार मजदूरों की मज़दूरी भी उनकी मांग के अनुसार निश्चित होती है। उस काम की कीमत अधिक होती है जिसकी बाज़ार में मांग अधिक होती है। चीज़ की कीमत उसकी बाज़ार में मांग के आधार पर निर्धारित होती है। इसी प्रकार श्रम की कीमत भी उनकी मांग के अनुसार कारखाने में ही निर्धारित होती है।

6. मुद्रा और उधार (Money and Credit)-पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पैसे व उधार की बहुत महत्ता होती है। पूंजीपति कर्जे लेते हैं व अपने उत्पादन व व्यापार को बढ़ाते हैं। यह उधार साहूकारों, बैंकों आदि से लिए जाते हैं। इस कर्जे से वह उत्पादन बढ़ाते हैं। इस कर्जे का उन्हें ब्याज़ भी देना पड़ता है।

7. मज़दूरी (Wages)-पूंजीवाद में मजदूर की दशा बहुत ही असुविधाजनक होती है। पूंजीपति का मज़दूरों के प्रति एक ही उद्देश्य होता है व वह है कम-से-कम पैसे देकर अधिक-से-अधिक काम लिया जा सके। मज़दूरों का पूंजीवाद में शोषण होता है।

प्रश्न 3.
राज्य का क्या अर्थ होता है ? इसके परिभाषाओं सहित वर्णन करें।
उत्तर-
राजनीति शास्त्र का मुख्य विषय राज्य है पर राज्य का प्रयोग कई रूपों में किया जाता है जिसके कारण एक आम आदमी को राज्य के अर्थ का पूरा ज्ञान नहीं हो सकता। आमतौर पर राज्य, समाज, सरकार और राष्ट्र में अन्तर नहीं किया जाता और इन शब्दों का अर्थ एक ही लिया जाता है। आम नागरिक के लिए राज्य और सरकार में कोई अन्तर नहीं है। इसी तरह राज्य का प्रयोग राष्ट्र के स्थान पर किया जाता है पर राजनीति शास्त्र की दृष्टि से यह ग़लत है। इन शब्दों का अर्थ राजनीति शास्त्र में अलग-अलग है। कई बार एक संघ (Federation) और उसकी इकाइयों के लिए भी राज्य शब्द प्रयोग किया जाता है। जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका को भी राज्य कहा जाता है और उसकी इकाइयों के लिए भी राज्य शब्द प्रयोग किया जाता है। इसी तरह भारत को भी राज्य कहा जाता है और इसकी इकाइयां-पंजाब, बंगाल, तमिलनाडु, केरल, मध्य प्रदेश को भी राज्य ही कहा जाता है पर असलियत यह है कि संघ की इकाइयां राज्य नहीं हैं और उनके लिए राज्य शब्द प्रयोग करना ग़लत है। इसलिए राज्य शब्द का ठीक-ठाक अर्थ जानना ज़रूरी है।

राज्य शब्द की उत्पत्ति (Etymology of the world ‘state’) राज्य शब्द को अंग्रेजी में स्टेट (State) कहा जाता है। स्टेट (State) शब्द लातीनी भाषा के स्टेटस (Status) शब्द से लिया गया है। स्टेटस (Status) शब्द का अर्थ है किसी व्यक्ति का सामाजिक स्तर। प्राचीन काल में राज्य और समाज में कोई अन्तर नहीं समझा जाता था। इसलिए राज्य शब्द का प्रयोग सामाजिक दर्जे को बताने के लिए किया जाता था पर धीरे-धीरे इसका अर्थ बदल गया। और इसका अर्थ सिस्रो (Cicero) के समय तक सारे समाज के दर्जे के साथ हो गया। आधुनिक अर्थ में इस शब्द का प्रयोग सबसे पहले इटली के प्रसिद्ध राजनीतिक मैकाइवली (Machiaveli) ने किया। उसने ‘राज्य’ शब्द का प्रयोग ‘राष्ट्र राज्य’ के लिए किया। मैकाइवली (Machiaveli) ने अपनी पुस्तक ‘The Prince’ में लिखा है “वह सब शक्तियां’ जिन पर लोगों का अधिकार होता है राज्य (State) होते हैं और वह राज्यतन्त्री या गणतन्त्री होते हैं।” (“All the powers which have had and have authority over man are states (state) and are either monarchies or republic.”) प्रो० बार्कर (Barker) ने लिखा है, “राज्य शब्द जब 16वीं सदी में शुरू हुआ इटली से अपने साथ महान् राज्य या महानता का अर्थ भी लिखवाया जो किसी व्यक्ति या समुदाय में छुपा होता है।”

राज्य एक सम्पूर्ण समाज का हिस्सा है। यद्यपि यह सामाजिक जीवन के सारे पक्षों को प्रभावित करता है पर फिर भी यह समाज का स्थान नहीं ले सकता। राज्य एक ऐसी एजेंसी है जो समाजिक समितियों को नियन्त्रित करती है। राज्य समाज के सारे पक्षों को प्रभावित करता है और उनमें तालमेल बिठाकर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

  • हॉलैंड (Holland) के अनुसार, “राज्य मनुष्यों के उस समूह को कहते हैं जो आमतौर पर किसी निश्चित प्रदेश पर बसा हो, जिसमें बहु-संख्यक दल या किसी निश्चित वर्ग का फैसला उस वर्ग या दल की शक्ति के द्वारा समूह के उन व्यक्तियों से ही स्वीकार करवाया जा सके जो इसका विरोध करते हैं।”
  • बोदिन (Bodin) के अनुसार, “राज्य सम्पत्ति सहित परिवारों का एक संघ है जो किसी उच्च शक्ति और नियमों द्वारा शासित हो।”
  • मैकाइवर (Maciver) के अनुसार, “राज्य एक ऐसी समिति है जो कानून द्वारा शासन व्यवस्था को चलाती है और जिसको एक निश्चित भू-भाग में सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त होता है।”
  • वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) के अनुसार, “लोगों के किसी भूमि भागों में कानून के लिए संगठित होने को ही राज्य कहा जाता है।”
  • ऐंडरसन और पार्कर (Anderson and Parkar) के अनुसार, “राज्य समाज में वह समिति है जो निश्चित भू-भाग में सत्ता का प्रयोग कर सकती है।”

इस तरह इन परिभाषाओं के अध्ययन से हम यह कह सकते हैं कि राज्य एक ऐसे लोगों का समूह है जो कि निश्चित भू-भाग में होता है, अर्थात् उसका अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है, जिसकी एक सरकार होती है, जिसकी मदद के साथ राज्य अपने काम करता है, अपने हुक्म मनवाता है और जनसंख्या पर नियन्त्रण रखता है और जिसकी अपनी प्रभुसत्ता होती है। प्रभुसत्ता से मतलब है कि वह किसी बाहरी दबाव से मुक्त होता है। उस पर किसी किस्म का दबाव नहीं होता। राज्य अपनी सीमाओं की बाहरी हमले से रक्षा करता है और यदि उसके अन्दर ही बगावत होती है तो वह उसको दबाने के लिए भौतिक शक्ति, जो उसके पास होती है सरकार तथा पुलिस के रूप में, का भी प्रयोग करता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 8 राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा

प्रश्न 4.
राज्य के अलग-अलग तत्त्वों का वर्णन करें।
उत्तर-
डॉ० गार्नर के अनुसार राज्य के चार तत्त्व हैं-
(1) मनुष्यों का एक समुदाय।
(2) एक प्रदेश जिसमें वह स्थाई रूप से रहते हों।
(3) अन्दरुनी और बाहर की प्रभुसत्ता।
(4) राजनीतिक संगठन। गैटेल ने भी राज्य के चार तत्त्व बताएं हैं। वह चार तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  1. जनसंख्या (Population)
  2. निश्चित भूमि (Fixed territory)
  3. सरकार (Government)
  4. प्रभु-शक्ति (Sovereignty)

1. जनसंख्या (Population)-राज्य का मुख्य तत्त्व जनसंख्या है। राज्य पशु-पक्षियों का समूह नहीं है। वह मनुष्यों की एक राजनीतिक संस्था है। बिना जनसंख्या के राज्य की स्थापना की तो दूर की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जिस तरह बिना पति-पत्नी के परिवार, मिट्टी के बिना घड़ा और सूत के बिना कपड़ा नहीं बन सकता, उसी तरह बिना आदमियों के समूह के राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। राज्य में कितनी जनसंख्या होनी चाहिए, इसके लिए कोई निश्चित नियम नहीं है पर राज्य के लिए काफ़ी जनसंख्या होनी चाहिए। दस-बीस आदमी राज्य नहीं बना सकते। गार्नर (Garner) के शब्दों में, “राज्य की हस्ती के लिए जनता रूपी भौतिक तत्त्व की बहुत ज़रूरत है। जनता की कमी में राज्य की कल्पना सम्भव नहीं।”

वर्तमान राज्यों की जनसंख्या को देखते हुए हम यह कह सकते हैं कि राज्य की जनसंख्या निश्चित करनी मुश्किल नहीं बल्कि असम्भव भी है पर फिर भी हम अरस्तु (Aristotle) के इस विचार से सहमत हैं कि राज्य की जनसंख्या इतनी होनी चाहिए कि राज्य आत्म-निर्भर हो सके और देश का शासन भी अच्छी तरह से चलाया जा सके। असल में राज्य की जनसंख्या इतनी होनी चाहिए कि वहां की जनता सुखी और खुशहाल जीवन बिता सके। उस पर अच्छे ढंग के शासन की स्थापना की जा सके और इसमें एक स्थाई सरकार कायम हो सके।

2. निश्चित भूमि (Fixed territory)-जिस तरह राज्य के लिए जनसंख्या का होना ज़रूरी है उसी तरह निश्चित भूमि का होना भी ज़रूरी है पर कई प्रकार के लेखकों ने इसको राज्य का आवश्यक तत्त्व नहीं माना। जैलीनेक (Jellinek) ने लिखा है, “19वीं सदी से पहले किसी भी लेखक ने राज्य की परिभाषा में भूमि या प्रदेश का ज़िक्र नहीं किया है और क्लूबर पहला लेखक था जिसने 1817 में राज्य के लिए निश्चित भूमि का होना ज़रूरी माना।”

लेखकों के विचार के अनुसार निश्चित भूमि के बिना राज्य नहीं बन सकता। यदि जनता राज्य की आत्मा है तो भूमि उसका शरीर है।
आदमियों का समूह जब तक किसी निश्चित भू-भाग पर नहीं बस जाता उस वक्त तक राज्य की स्थापना नहीं हो सकती।

खाना-बदोश कबीले (Nomadic tribes), जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं, राज्य की स्थापना नहीं कर सकते क्योंकि उनके पास निश्चित भू-भाग नहीं होता। सन् 1948 से पहले यहूदी सारे संसार में फैले होते हैं पर उनका अपना कोई राज्य नहीं था क्योंकि वह निश्चित भू-भाग पर नहीं रह रहे थे। जब उन्होंने इज़राइल के निश्चित भू-भाग पर रहना शुरू कर दिया तो इज़राइल राज्य बन गया। असल में राज्य का यह तत्त्व राज्य को दूसरे समुदायों से अलग करता है।

3. सरकार (Government)-जनसंख्या तथा भूमि के बाद राज्य की स्थापना के लिए सरकार की ज़रूरत होती है। किसी निश्चित इलाके पर बना आदमियों का समुदाय उस वक्त तक राज्य नहीं कहा जा सकता, जब तक वह राजसी दृष्टि से संगठित न हो। सरकार ही एक ऐसा संगठन है। संस्था (Agency) है जिसकी मदद से राज्य की इच्छा प्रकट होती है और अमल में लाई जाती है। सरकार के बिना जन-समूह संगठित नहीं हो सकता। सरकार द्वारा ही लोगों के आपसी सम्बन्धों को नियमित बनाया जाता है। शान्ति और व्यवस्था को लागू किया जाता है। और बाहर के हमलों से लोगों की रक्षा की जाती है और दूसरे देशों के साथ मित्रता पूर्ण सम्बन्ध स्थापित करती है। सरकार के बिना जनता में आशान्ति रहेगी। इसलिए राज्य एक अमूर्त संस्था है और सरकार उस अमूर्त संस्था का मूर्त रूप सरकार के माध्यम से हम राज्य के साथ सम्बन्ध कायम कर सकते हैं या राज्य तक पहुँच सकते हैं।

राज्य में सरकार किसी भी किस्म की हो सकती है। भारत, इंग्लैण्ड, स्विट्ज़रलैंड, कैनेडा, फ्रांस, जर्मनी, न्यूजीलैंड आदि देशों में लोकराज्य (Democracy) है जबकि चीन, उत्तरी कोरिया, वियतनाम, क्यूबा आदि देशों में कम्यूनिस्ट पार्टी की तानाशाही (Dictatorship) है। कुवैत, सऊदी अरब आदि में राज्य तन्त्र (Monarchy) है। कई देशों में संसदीय सरकार (Parliamentary Government) है और कई देशों में अध्यक्षात्मक सरकार (Presidential Government) है । जापान, इंग्लैण्ड, भारत आदि देशों में संसदीय सरकार है जबकि अमेरिका में अध्यात्मक सरकार हैं। कुछ देशों में संघात्मक सरकार है जबकि कुछ देशों में एकात्मक सरकार (Unitary Government) हैं। अमरीका, स्विट्ज़रलैण्ड और भारत में संघात्मक सरकार हैं जबकि जापान इंग्लैण्ड में सरकार एकात्मक है। किसी राज्य में किस किस्म की सरकार हैं इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि सरकारें तो बदल सकती हैं और बदलती रहती हैं। जिस तरह भू-भाग और जनसंख्या के कम या ज्यादा होने के कारण राज्य पर अन्तर नहीं उसी तरह सरकार के स्वरूप में परिवर्तन आने के साथ ही राज्य के स्तर पर असर नहीं पड़ता क्योंकि सरकार का काम तो कानून बनाना, उनका पालन करवाने, लोगों की रखवाली का प्रबन्ध आदि करना है।

4. प्रभुसत्ता (Sovereignty)-प्रभुसत्ता राज्य के लिए चौथा ज़रूरी तत्त्व हैं। जनता के समूह के लिए एक निश्चित भू-भाग रहने और सरकार का होना ही राज्य के लिए जरूरी नहीं। प्रभुसत्ता के बिना राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। प्रभु शक्ति को अंगेज़ी में (Sovereignt) कहते हैं जो कि लातीनी भाषा के शब्द ‘सुपरेन्स’ (Superanus) से निकला है जिसका अर्थ है ‘सर्वोच्च’ Supreme । इस तरह प्रभुसत्ता (Sovereignt) का अर्थ हुआ राज्य की सर्वोच्च शक्ति राज्य के पास अधिकार होते हैं, कोई भी उसके विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा सकता। प्रभुसत्ता के कारण ही राज्य का अपने सारे नागरिकों और उनकी संस्थाओं पर उसका पूरा नियन्त्रण होता हैं और भू-भाग से बाहर की किसी भी शक्ति के अधीन नहीं रहता।

इस तरह राज्य की स्थापना के लिए चार तत्त्वों की जरूरत है और चारों तत्त्वों में से कोई एक तत्त्व न हो तो राज्य की स्थापना नहीं हो सकती। इन चारों तत्त्वों के बिना प्रो० विलोबी (Willoughby) के अनुसार, “राज्य के लिए यह और ज़रूरी तत्त्व प्रजा द्वारा आज्ञा पालना की भावना है, पर हमारे विचार के अनुसार जब राज्य में चार तत्त्व हों तो प्रजा में आज्ञा पालन की भावना ज़रूर होती है और किसी राज्य के लोगों में आज्ञा पालन की भावना नहीं हैं तो वह राज्य जल्दी नष्ट हो जाता है।”

प्रश्न 5.
राज्य की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
1. स्थिरता (Permanence)—इसका अर्थ यह है कि राज्य एक स्थाई संगठन है। इसका अर्थ गार्नर (Garner) के शब्दों में यह है, “जो लोग एक बार राज्य के तौर पर संगठित हो जाते हैं, हमेशा किसी न किसी राज्य संगठित के अधीन होते हैं।” यदि किसी कारण एक राज्य में दूसरे राज्य का हिस्सा शामिल हो जाए तो या कट जाए तो इसके कारण राज्य की कानूनी हस्ती पर कोई असर नहीं पड़ता। युद्ध पर किसी सन्धि के कारण कई बार कई राज्य खत्म हो जाते हैं या किसी और राज्य में शामिल कर लिए जाते हैं पर ऐसा होने पर प्रभुसत्ता का परिवर्तन होता है अर्थात् प्रभुसत्ता एक राज्य से दूसरे राज्य के पास चली जाती है पर जनता राज्य में ही रहती है, चाहे वह दूसरा राज्य ही हो।

2. निरन्तरता (Continuity) राज्य का सिलसिला निरन्तर बना रहता है। राज्य की सरकार के रूप में परिवर्तन आने पर राज्य पर कोई असर नहीं पड़ता। एक राज्य की सरकार राजतन्त्र से बदलकर गणतंत्र बन जाए और निरंकुश शासन से लोक-राज्य बन जाए तो इन परिवर्तनों के कारण राज्य की एकरूपता या उसकी अन्तर्राष्ट्रीय ज़िम्मेदारी पर कोई असर नहीं पड़ता। यह सिद्धान्त राज्य की निरंतरता का सिद्धान्त है और इसी सिद्धान्त के कारण राज्य की विरासत के सिद्धान्त का जन्म हुआ है।

3. सर्वव्यापकता (All Comprehensiveness)-सर्व-व्यापकता का अर्थ यह हैं कि राज्य की प्रभुसत्ता अपने भू-भाग पर रहने वाले व्यक्ति, संस्था और चीज़ पर लागू होती है। कोई भी व्यक्ति, समुदाय या संस्था राज्य के नियन्त्रण से नहीं बच सकती। यह बात अलग है कि अन्तर्राष्ट्रीय शिष्टाचार के नाते या अन्तर्राष्ट्रीय कानून के सर्वमान्य सिद्धान्तों का आदर करते हुए राज्य अपने आदेशों को कुछ व्यक्तियों पर लागू न कर सके। यह लक्षण असल में अंदरूनी प्रभु-शक्ति में छुपा हुआ है।

4. राज्य समाज की सबसे शक्तिशाली संस्था है (It is an powerful institution of society)-राज्य समाज की सबसे शक्तिशाली संस्था है क्योंकि इसके पास अपनी आज्ञा मनवाने के साधन होते हैं चाहे यह साधन रस्मी होते हैं जैसे-पुलिस, कानून, सरकार आदि, पर इनकी मदद से राज्य समाज की सारी और संस्थाओं पर नियन्त्रण रखता है और सभी को आज्ञा देकर सूत्र में बांधकर रखता है।

5. राज्य के पास वास्तविक शक्तियां और प्रभुसत्ता (State has original powers and Sovereignty)यह राज्य ही है जिस के पास वास्तविक शक्तियां होती हैं चाहे यह शक्तियां आगे बंटी होती हैं, पर यह होती राज्य की हैं। असल में राज्य की सारी शक्तियां सरकार इस्तेमाल करती है पर करती राज्य के नाम पर है। सरकार ऐसा कुछ नहीं कर सकती जो राज्य के विरुद्ध जाए। राज्य के पास अपनी प्रभुसत्ता होती है। सरकार भी आज़ाद होती है पर असल में राज्य अपने आप में स्वतन्त्र होता है और यह किसी के अधीन रह कर काम नहीं करता।

6. राज्य सार्वजनिक हितों की रक्षा करता है (State takes care of Public Interest)-राज्य का एक प्रमुख लक्षण है उसकी जनसंख्या। यह राज्य के लिए ज़रूरी है कि उसकी जनसंख्या हो और वह जनसंख्या सुखी हो। यदि जनसंख्या सुखी नहीं है तो उस राज्य का होना न होना एक बराबर है इसके लिए यह ज़रूरी है कि राज्य लोगों के भले के लिए काम करे और राज्य करता भी है। राज्य किसी खास व्यक्ति या समूह के हितों की रक्षा भी करता है और उनका भला करने की कोशिश करता है ।

7. राज्य अपने आप में एक उद्देश्य है (State is an end itself)-राज्य अपने आप में एक उद्देश्य है और सरकार उस लक्ष्य को प्राप्त करने का साधन है। राज्य की सत्ता और शक्ति सब से ऊंची है और कोई भी राज्य से ऊंचा नहीं है। सरकारें आती रहती हैं, और बदलती रहती हैं पर राज्य अपने स्थान पर खड़ा रहता है।

8. राज्य अमूर्त होता है (State is abstract)-राज्य एक अमूर्त शब्द है। हम राज्य को देख या स्पर्श नहीं सकते पर हम राज्य को और राज्य की शक्ति को महसूस कर सकते हैं। हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते कि यह किस तरह का होगा । उदाहरण के तौर पर भारत माता की हम कल्पना कर सकते हैं पर हमने इसको देखा. नहीं है। हम इसको स्पर्श नहीं सकते। इसी तरह ही राज्य भी अमूर्त होता है।

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प्रश्न 6.
राज्य के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
आधुनिक राज्य का उद्देश्य व्यक्ति का कल्याण करना है। राज्य व्यक्ति के विकास के लिए काम करता है। प्रो० गैटेल और विलोबी ने राज्य के कार्यों को दो हिस्सों में बांटा है-आवश्यक कार्य और इच्छुक कार्य।

आवश्यक कार्य (Compulsory Functions)-

1. बाहरी हमलों से सुरक्षा (Protection from External Aggression)-राज्य अपने नागरिकों की बाहरी हमलों से रक्षा करता है, जो बाहरी हमलों से रक्षा नहीं कर सकता, वह राज्य खत्म हो जाता है। यदि नागरिकों का जीवन बाहरी हमलों से सुरक्षित नहीं है तो नागरिक अपने जीवन का विकास करने के लिए प्रयत्न नहीं करेंगे। राज्य अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए सेना का प्रबन्ध करता है। अन्दरूनी शान्ति की स्थापना के लिए भी सेना की सहायता ली जा सकती है।

2. कर लगाना (Taxation)-मुद्रा निश्चित करना, कर लगाना और इकट्ठा करना राज्य का ज़रूरी काम है। बिना कर लगाए राज्य का काम नहीं चल सकता। जिस राज्य की आमदन कम होगी वह नागरिकों की सहूलियत के लिए उतने ही कम काम करेगा। एक अच्छे राज्य की आय काफ़ी होनी चाहिए पर कर वही लगाने चाहिएं जो उचित हों।

3. जीवन एवं सम्पत्ति की रक्षा करना (Protection of Life and Property) लोगों के जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करना राज्य का ज़रूरी काम है। राज्य को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिसके साथ किसी भी व्यक्ति को अपनी जान का ख़तरा न हो। राज्य को सम्पत्ति के बारे में भी निश्चित कानून बनाने चाहिए। जीवन और सम्पत्ति की रक्षा के लिए राज्य पुलिस का प्रबन्ध करता है जो चोरों, और अपराधियों से व्यक्तियों की रक्षा करती है।

4. नागरिक अधिकारों की रक्षा (Protection of Civil Rights – प्रत्येक राज्य के नागरिकों को कुछ मौलिक अधिकार मिले होते हैं जैसे-जीने का अधिकार, रोटरी कमाने का अधिकार, सम्पत्ति रखने का अधिकार, शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार । इस तरह के अधिकारों की वकालत ता कांयुक्त राष्ट्र (United Nation) भी करता है। यदि व्यक्ति के पास यह अधिकार न हों तो उसका जीवन नर्क बन जाए। इस तरह यह राज्य का कर्तव्य है कि वह नागरिकों के इन अधिकारों की रक्षा करे और इसके लिए उचित कानुन बनाए। जो इन अधिकारों को किसी से छीनने की कोशिश करे तो उसको सज़ा दिलवाना भी सरकार का ही काम होता है।

5. कानन और व्यवस्था की स्थापना करना (Maintenance of law and order)-देश में कानून और व्यवस्था की स्थापना करना राज्य का महत्त्वपूर्ण काम है। अपराधों को रोकना, अपराधियों को दण्ड देना, जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करने के लिए राज्य कानूनों का निर्माण करता है और कानूनों को लागू करता है। पुलिस की व्यवस्था की जाती है ताकि काना तोड़ने वालों को पकड़ा जा सके और उनको सज़ा दी जा सके।

6. न्याय का प्रबन्ध (Administration Judiciary)-जिस राज्य में न्याय की व्यवस्था सर्वोत्तम होती है उसी राज्य को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। उत्तम न्याय व्यवस्था का अर्थ है कि गरीब-अमीर, निर्बल-शक्तिशाली, अनपढ़ और पढ़े-लिखे में किसी तरह के अन्तर का होना अर्थात् कानून के सामने सभी व्यक्ति समान होने चाहिएं। हर एक राज्य न्यायपालिका की स्थापना करता है। न्यायपालिका का स्वतन्त्र होना अति ज़रूरी है। स्वतन्त्र न्यायपालिका ही निष्पक्ष फ़ैसला दे सकती है। इस स्वतन्त्र न्यायपालिका की स्थापना करना राज्य का आवश्यक तत्त्व है।

7. परिवारों के सम्बन्धों को स्थिर रखना (Maintenance of family relations)-परिवार पूरे समाज का केन्द्र बिन्दु है। इसके कारण यह सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है। इसलिए राज्य का कर्तव्य है कि यह पिता और पुत्र, पति-पत्नि, भाई-बहन और बाकी परिवार के आपसी सम्बन्धों की और उनके पारिवारिक अधिकारों और कर्त्तव्यों की व्याख्या करके उनके सम्बन्ध में कानून बनाए।

ऐच्छिक कार्य (Optional Functions)-

1. कृषि की उन्नति (Development of Agriculture)—वर्तमान राज्य कृषि की उन्नति के लिए काम करता है। जिस देश में अन्न की समस्या रहती है उस राज्य को दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता है, जिससे कई बार उनको विदेशी राज्यों की अनुचित मांगों को भी मानना पड़ता है। सरकार किसानों को अच्छे बीज, ट्रैक्टर, खाद और कर्जा देने की सहूलियत प्रदान करती है। सिंचाई के साधनों का उचित प्रबन्ध करना राज्य का काम है।

2. मनोरंजन के साधनों का प्रबन्ध करना (To provide Recreational Facilities)-वर्तमान राज्य नागरिकों के मनोरंजन का प्रबन्ध करता है। इसके लिए राज्य सिनेमा, नाटक घरों, कला केन्द्रों, तालाबों, पार्कों, होटलों आदि की स्थापना करता है। राज्य अच्छे कलाकारों और साहित्यकारों को पुरस्कार भी देता है।

3. शिक्षा का प्रसार (Spread of Education)-वर्तमान राज्य का महत्त्वपूर्ण काम शिक्षा का प्रसार करना है। प्राचीन काल में शिक्षा का प्रसार धार्मिक संस्थाएं करती थीं। परन्तु कोई भी राज्य शिक्षा को धर्म प्रचारकों की इच्छा पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं हो सकता। शिक्षा से मनुष्य को अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान होता है। शिक्षा के बिना नागरिक आदर्श नागरिक नहीं बना सकता और न ही अपनी शख्सीयत का विकास कर सकता है। लोकतान्त्रिक राज्यों में शिक्षा का महत्त्व और भी ज्यादा है क्योंकि प्रजातन्त्र सरकार की सफलता नागरिकों पर निर्भर करती है। हर एक राज्य शिक्षा के प्रसार के लिए स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की स्थापना करता है। ग़रीब विद्यार्थियों को वज़ीफे दिए जाते हैं और शिक्षा के लिए सुविधाएं प्रदान की जाती हैं।

4. समाजिक और नैतिक सुधार (Social and Moral Reforms)-वर्तमान राज्य अपने नागरिकों के समाजिक और नैतिक स्तर को ऊँचा करने के लिए काम करता है। भारत में सती प्रथा, बाल-विवाह प्रथा, छुआछूत आदि अनेक बीमारियां थीं, जिनको कानूनों द्वारा स्थापित किया गया है। अफ़ीम खाना और शराब पीने को अच्छा नहीं समझा जाता था। क्योंकि इससे सेहत खराब हो जाती है। इसलिए कई राज्यों में शराब पीने और अफ़ीम खाने की मनाही है। परन्तु अब इसका प्रयोग कम हो गया है क्योंकि राज्य ने अनेक पाबन्दियां लगाई हैं।

5. संचार के साधनों की उन्नति (Development of the means of communication)–नागरिक खुद संचार साधनों का विकास नहीं कर सकता। संचार के साधनों का विकास राज्य द्वारा ही किया जाता है। राज्य रेलवे, सड़कों, तार-घर, डाक-घर रेडियो आदि की स्थापना करता है। __6. सार्वजनिक उपयोगी काम (Public Utility Works)-वर्तमान राज्य सार्वजनिक उपयोगी काम भी करता है। राज्य नई सड़कों का निर्माण करता है और पुरानी सड़कों की मुरम्मत करता है। बिजली का प्रबन्ध भी इसके द्वारा ही किया जाता है। हवाई जहाज़ और समुद्री जहाज़ का प्रबन्ध आमतौर पर राज्य ही किया करता है। टैलीफोन की व्यवस्था राज्य द्वारा ही की जाती है।

प्रश्न 7.
पंचायत के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
पंचायत भारत में स्थानीय स्वैःशासन की पुरातन संस्था है, जो देश में बहुत सारी सामाजिक और राजनीतिक क्रांतियों और परिवर्तनों के होते हुए भी स्थिर रही है। चालर्स मेटकॉफ (Charles Metcalf) के शब्दों में, ‘ग्रामीण भाईचारे छोटे गणतंत्र होते हैं जो अपनी सीमाओं में रहते हुए अपनी इच्छा के अनुसार जो चाहे कर सकते हैं बाह्य हस्तक्षेप से स्वतन्त्र होते हैं। वह निरन्तर स्थिर चलते आ रहे हैं। खानदान के बाद खानदान की समाप्ति हुई ; क्रान्तियों के बाद क्रान्तियां आईं, पर ग्रामीण समुदायों (Village Communities) ने अलग राज्य के रूप में देश की बहुत सहायता की है।”

पंचायत की रचना (Composition of Panchayat)- पंचायत के सदस्यों की संख्या और चुनाव (Number and Election of Members of Panchayat)—पंचायत के सदस्यों को पंच और इसके प्रधान को सरपंच कहा जाता है। प्रत्येक राज्य में पंचायत के सदस्यों का चुनाव ग्राम सभा के बालिग सदस्यों अर्थात् 18 साल के प्रत्येक पुरुष और स्त्री जिनका नाम राज्य विधान सभा के चुनाव के लिए बनाई गई वोटर सूची में दर्ज है, वह ग्राम पंचायत के सदस्यों के चुनाव के समय वोट देने के हकदार होते हैं। इस तरह पंचायत के सदस्यों का चुनाव सीधे तौर पर किया जाता है। पंचायत के सदस्यों की संख्या ग्राम सभा की आबादी पर निर्भर करती है। भिन्नभिन्न राज्यों में ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या भिन्न-भिन्न है।

सीटों का आरक्षण (Reservation of Seats)-73वें संवैधानिक संशोधन कानून, 1992 के अन्तर्गत सभी राज्यों ने अपने राज्य एक्टों द्वारा, पंचायत राज्य की सभी संस्थाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित कबीलों, पिछड़ी श्रेणियों और स्त्रियों के लिए कुछ सीटें आरक्षित रखने के लिए व्यवस्था की है।

पंचायत के सदस्यों के लिए योग्यताएं (Qualifications for the members of a Panchayat)(1) वह भारत का नागरिक हो, उसको विधान सभा का सदस्य चुने जाने के लिए आवश्यक सभी योग्यताएं प्राप्त हों। (2) वह उस पंचायत क्षेत्र का प्रवासी हो। (3) उसकी आयु 25 साल से कम न हो। (4) वह स्थानिक सरकार या राज्य सरकार या केन्द्र सरकार का कर्मचारी न हो। (5) उसके दिवालिया होने का ऐलान किसी अदालत द्वारा न किया गया हो। (6) वह किसी अपराध में सज़ा न झेल चुका हो, या जिसकी सज़ा को खत्म हुए साल का समय बीत चुका हो।

सरपंच या चेयरपर्सन (Sarpanch or Chairperson)-ग्राम पंचायत के मुखी को सरपंच या चेयरपर्सन कहा जाता है। भिन्न-भिन्न राज्यों मे इसको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। सरपंच की चुनाव प्रणाली भी एक जैसी नहीं है। ज्यादातर राज्यों में इसका चुनाव सीधे तौर पर किया जाता है। अर्थात् ग्राम सभा के सदस्य जिनको वोट देने का अधिकार प्राप्त है और जो ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करते हैं, वह वोटर ही ग्राम पंचायत के सरपंच का चुनाव भी करते हैं। यह प्रणाली बिहार, गुजरात, गोवा, मध्य प्रदेश, आसाम, मणिपुर, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में प्रचलित है। कुछ राज्यों में सरपंच का चुनाव अप्रत्यक्ष तौर पर किया जाता है अर्थात् ग्राम पंचायत के सदस्य अपने में से ही एक व्यक्ति को सरपंच चुन लेते हैं। ऐसी प्रणाली कर्नाटक, केरल, उड़ीसा और अरुणाचल प्रदेश में प्रचलित है। हर एक जिले की पंचायतों में सरपंचों के लिए कुछ सीटें अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित कबीलों के व्यक्तियों के लिए, जिले में इन जातियों तथा कबीलों की आबादी के अनुपात के अनुसार आरक्षित रखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त हर एक ज़िले की पंचायतों के सरपंचों की सीटों में से एक-तिहाई सीटें स्त्रियों के लिए आरक्षित रखी जाती हैं। कुछ राज्यों में सरपंचों की कुछ सीटें पिछड़ी श्रेणियों के लिए भी आरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है।

ग्राम पंचायत के कार्य (Functions of Gram Panchayat) ग्राम पंचायत के कई कार्य होते हैं जिनका वर्णन नीचे दिया है

(i) सार्वजनिक कार्य (Public Functions)—पंचायत के सार्वजनिक कार्य इस प्रकार हैं-

  • अपने क्षेत्र की सड़कों की देखभाल करना, उनकी मुरम्मत करना।
  • गांव की सफ़ाई करना।
  • कुएँ, नल, तालाबों आदि की व्यवस्था करना।
  • गलियों एवं बाजारों में रोशनी का प्रबन्ध करना।
  • शमशानों और कब्रिस्तानों की निगरानी करना।
  • जन्म और मृत्यु का हिसाब रखना।
  • प्राइमरी शिक्षा के लिए यत्न करना।
  • ग्राम सभा से सम्बन्धित किसी भी इमारत की सुरक्षा करना।
  • पशुओं की मण्डी लगवाना और पशुओं की नस्ल में सुधार करना।
  • मेले और त्यौहारों के अतिरिक्त सामाजिक त्यौहारों को मनाना।
  • नए मकान का निर्माण और बनी हुई इमारतों में परिवर्तन या विस्तार करने और कंट्रोल करना।
  • खेती, व्यापार और ग्राम उद्योग के विकास में सहायता देना।
  • सार्वजनिक इमारतों की स्थापना और उनकी देखभाल और मुरम्मत करवाना।
  • स्त्रियों और बच्चों के कल्याण केन्द्रों की स्थापना करना।
  • जानवरों के अस्पतालों की स्थापना करना।
  • खाद इकट्ठा करने के लिए स्थान निश्चित करना।
  • आग बुझाने में सहायता करना और आग लग जाने एवं जीवन और सम्पत्ति की रक्षा करने का प्रयत्न करना।
  • लाइब्रेरियों, रीडिंग रूमों (Reading Rooms) और खेल के मैदानों की व्यवस्था करना।
  • सड़कों के किनारे वृक्ष लगवाना।
  • ज़रूरत के अनुसार पुल की स्थापना करना।
  • गरीबों को सहायता (Relief) देना।

(ii) प्रशासनिक कार्य (Administrative Functions)-प्रशासनिक क्षेत्र में ग्राम पंचायत का कर्तव्य है कि वह-

  • अपने क्षेत्र में अपराधों की रोकथाम और अपराधियों की खोज में पुलिस की सहायता करे।
  • यदि देहाती क्षेत्र में कार्य करने वाले किसी सरकारी कर्मचारी, सिपाही. पटवारी, वन-विभाग के व्यक्ति. चौकीदार, चपड़ासी इत्यादि के विरुद्ध कोई शिकायत हो तो डिप्टी कमिश्नर या किसी और अधिकारी को सूचित करें। पंचायत की रिपोर्ट के अनुसार डिप्टी कमिश्नर या किसी और अधिकारी द्वारा कार्यवाही की गई हो, उसकी सूचना लिखित रूप में ग्राम पंचायत को भेजे।
  • गांवों में शराब के ठेकों और शराब बेचने का विरोध करें।
  • असम, बिहार, उत्तर प्रदेश और उड़ीसा में ग्राम पंचायतों को चौकीदारों (Watch and Wards) का प्रबन्ध करने की शक्ति भी प्रदान की गई है।

(iii) विकासवादी कार्य (Developmental Functions)-क्योंकि देहाती क्षेत्र के विकास की ज़िम्मेदारी पंचायतों पर है, इसलिए इसको कुछ विकासवादी कार्य भी दिए गए हैं। यह विकासवादी योजनाओं को लागू करती है और पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करने में सहयोग देती है। यह खेतीबाड़ी और उद्योग के विकास के लिए यत्न करती है।

(iv) न्यायिक कार्य (Judicial Functions)-पंचायतों को दीवानी और फ़ौजदारी मुकद्दमे सुनने का अधिकार दिया गया है। फ़ौजदारी मुकद्दमे में गाली-गलौच, 50 रुपये तक की चोरी, मार-पिटाई और स्त्री और सरकारी कर्मचारी का अपमान, पशुओं को बेरहमी के साथ पीटना, इमारतों, तालाबों और सड़कों को नुकसान पहुँचाना आदि शामिल है। इसके अलावा कुछ राज्यों में कुछ पंचायतों को विशेष अधिकार प्राप्त हैं। वह हमले, राज्य कर्मचारी का अपमान, दूसरों के माल पर कब्जा करने आदि के विषयों के सम्बन्ध में मुकद्दमा सुन सकती है। इन मुकदमों में साधारण अधिकारों वाली पंचायतों को 100 रुपये और विशेष अधिकारों वाली पंचायतों को 200 रुपये तक जुर्माना करने का अधिकार प्राप्त है। कुछ राज्यों में विशेष अधिकारों वाली पंचायतों को साधारण कैद की सज़ा देने की शक्ति भी प्रदान की गई है। पंचायतें किसी अपराधी को सज़ा भी दे सकती हैं और चेतावनी देकर ज़मानत लेकर छोड़ भी सकती है। दीवानी साधारण पंचायतें 200 रुपये की रकम तक और विशेष अधिकारों वाली पंचायतें 500 रुपये की रकम तक मुकद्दमा सुन सकती हैं, पर वह निम्नलिखित मुकद्दमें नहीं सुन सकती-

  1. साझेदारी के मुकद्दमे।
  2. वसीयत सम्बन्धी मुकद्दमे।
  3. नाबालिग और बालिग व्यक्ति के विरुद्ध मुकद्दमा।
  4. राज्य और केन्द्रीय सरकार के कर्मचारियों के विरुद्ध मुकद्दमा।
  5. दीवालिये के विरुद्ध मुकद्दमा।।
  6. अदालत के विचार अधीन मुकद्दमे इत्यादि।

आय के साधन (Sources of Income)—पंचायतों की आय के साधन निम्नलिखित हैं-
1. टैक्स-पंचायत की आय का पहला साधन टैक्स हैं। पंचायत राज्य सरकार द्वारा प्रदान किए गए टैक्स लगा सकती है, जैसे सम्पत्ति टैक्स, पशु टैक्स, कार्य टैक्स, टोकन टैक्स, मार्ग टैक्स, चुंगी टैक्स इत्यादि।

2. फीस और जुर्माना टैक्स-पंचायत की आय का दूसरा साधन इसके द्वारा किए गये जुर्माने और अन्य प्रकार की फीसें (Fees) हैं, जैसे पंचायत आराम गृह के प्रयोग के लिए फीस, गलियों और बाजारों में रोशनी करने का टैक्स, पानी टैक्स आदि। इनका प्रयोग सिर्फ उन पंचायतों द्वारा ही किया जाता है जो यह सुविधाएं प्रदान करती हैं।

3. सरकारी ग्रांट (Government Grants)—पंचायत की आय का मुख्य साधन सरकारी ग्रांटें (Grants) हैं। सरकार पंचायतों की विकास सम्बन्धी योजनाओं को लागू करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की ग्रांटें प्रदान करती है। आमतौर पर हर राज्य के क्षेत्र में इकट्ठा होने वाले ज़मीन के मालिए का कुछ भाग पंचायतों को दिया जाता है जैसे पंजाब में 15%, उत्तर प्रदेश में 1212% आदि। बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात में पंचायतें ही सरकार के आधार पर भूमि का टैक्स (Land Revenues) को इकट्ठा करती हैं।

4. मिले-जुले साधन-पंचायतों की आय के अन्य साधन हैं जैसे पंचायत की सीमा में कूड़ा-कर्कट, गोबर, गन्दगी आदि को बेचने से प्राप्त आमदनी, शामलाट से आमदनी, मेलों से आमदनी, पंचायत की सम्पत्ति से आमदनी आदि। आन्ध्र प्रदेश, उड़ीसा और पंजाब में पंचायत को मछली पालन एवं उनको बेचने से विशेष आमदनी होती है।

5. कर्जे (Borrowing)-उपरोक्त साधनों के अलावा राज्य सरकार की मंजूरी के साथ पंचायत कर्जे भी ले सकती है।

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प्रश्न 8.
पंचायत समिति के बारे में आप क्या जानते हैं ? विस्तारपूर्वक लिखें।
उत्तर-
पंचायत समिति तीन-स्तरीय पंचायती राज की सबसे महत्त्वपूर्ण संस्था है। यह पंचायती राज तीन स्तरीय प्रणाली का मध्यस्तर (Intermediate tier) है। इसकी स्थापना ब्लॉक (Block) स्तर पर की गई है और यह पंचायत एवं जिला परिषद् मध्य की कड़ी के रूप में कार्य करती है। गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में इसकी व्यवस्था तालुक (Taluk) के स्तर पर की गई है। भिन्न-भिन्न राज्यों में इसको भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। आन्ध्र प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में पंचायत समिति कहते हैं। असम में आंचलिक पंचायत (Anchalik Panchayat), तमिलनाडु में पंचायती संघ समिति (Panchayat Union Council), उत्तर प्रदेश में क्षेत्र समिति (Kshetra Samiti), गुजरात में तालुक पंचायत (Taluk Panchayat) और कर्नाटक में तालुक विकास बोर्ड (Taluk Development Board) कहते हैं।

इसी तरह पंचायत समिति के प्रधान को भी भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है। आन्ध्र प्रदेश, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक में प्रेजीडेंट (President), महाराष्ट्र, तमिलनाडु, उड़ीसा, हरियाणा और पंजाब में चेयरमैन (Chairman), राजस्थान में प्रधान (Pardhan) और उत्तर प्रदेश तथा बिहार में प्रमुख (Parmukha) कहते हैं।

पंचायत समिति की रचना (Composition of Panchayat Samiti)-चुने हुए सदस्य (Elected Members)-पंचायत समिति के सदस्य इसके क्षेत्र के वोटरों द्वारा प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं। पंचायत समिति के सदस्यों की गिनती इसके क्षेत्र की आबादी पर निर्भर करती है और यह भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न होती है। कुछ राज्यों में इसके सदस्यों की गिनती निश्चित है और कुछ राज्यों में ऐसा नहीं है। कर्नाटक में प्रत्येक 10,000 की आबादी के पीछे एक सदस्य चुना जाता है। जबकि बिहार, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश में प्रत्येक 5000 की आबादी के पीछे सदस्य चुना जाता है। त्रिपुरा में एक सदस्य 8000 की आबादी के लिए, आन्ध्र प्रदेश में 3000 से 4000 तक की आबादी के लिए, हिमाचल प्रदेश में 3000 की आबादी के लिए, उत्तर प्रदेश में 2000 की आबादी के लिए और पंजाब में 15,000 की आबादी के लिए चुना जाता है। हरियाणा में यदि पंचायत समिति क्षेत्र की आबादी 40,000 हो तो प्रत्येक 4000 के पीछे एक सदस्य चुना जाता है। पर यदि आबादी 40,000 से ज्यादा हो तो प्रत्येक 5000 की आबादी के लिए एक सदस्य चुना जाता है।

गुजरात में पंचायत समिति के सदस्यों की गिनती 15 निर्धारित की गई है। मध्य प्रदेश में 10 से 15 तक और केरल में 8 से 15 तक सदस्य एक पंचायत समिति में होते हैं। पंजाब में पंचायत समिति के सदस्यों की गिनती 6 से 10 तक होती है। राजस्थान में एक लाख आबादी वाली पंचायत समिति को 15 चुनाव क्षेत्रों में बाँटा जाता है और यदि आबादी एक लाख से ज्यादा हो तो प्रत्येक ज्यादा 15000 की आबादी के पीछे 2 सदस्यों को चुना जाता है। असम में प्रत्येक ग्राम पंचायत में से एक सदस्य आंचलिक पंचायत के लिए चुना जाता है। उड़ीसा और महाराष्ट्र में पंचायत समिति के सदस्यों की गिनती निश्चित नहीं है।

आरक्षित सीटें (Reserved Seats)—प्रत्येक राज्य में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित कबीलों तथा स्त्रियों के लिए पंचायत समिति में कुछ सीटें आरक्षित रखी जाती हैं। अनुसूचित जातियों तथा कबीलों के लिए आरक्षित सीटों की गिनती पंचायत समिति में सीटों की कुल गिनती के लगभग उसी अनुपात में होगी, जिस अनुपात में उस क्षेत्र में उनकी आबादी है। इनमें 1/3 सीटें औरतों के लिए आरक्षित रखी जाएंगी।

चेयरमैन (Chairman) पंचायत समिति के चुने हुए सदस्य अपने में से एक चेयरमैन और एक उप-चेयरमैन का चुनाव करते हैं। यह चुनाव जिले के डिप्टी कमिश्नर या उसके द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारी की निगरानी में होता है। क्योंकि पंचायत समिति का कार्यकाल पांच वर्ष है इसलिए इसके चेयरमैन और उप-चेयरमैन का कार्यकाल भी पांच वर्ष का होता है।

पंचायत समिति के चेयरमैनों में भी आबादी के आधार पर अनुसूचित जातियों और अनुसूचित कबीलों के लिए सीटें आरक्षित रखी जाती हैं और कुल सीटों में से एक-तिहाई सीटें स्त्रियों के लिए आरक्षित रखी होती हैं।

पंचायत समिति के कार्य (Functions of Panchayat Samiti)-पंचायत समिति के कार्य बहुपक्षीय हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है

1. सामूहिक विकास (Community Development)-सभी राज्यों में पंचायत समितियों को विकासवादी कार्यों की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। वह सामूहिक विकास योजना को लागू करती है। वह ब्लॉक स्तर की योजनाओं को तैयार करती है और उनको लाग भी करती हैं।

2. खेतीबाड़ी और सिंचाई सम्बन्धी कार्य (Functions Regarding Irrigation and Agriculture)आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, पंजाब और राजस्थान आदि सभी राज्यों की खेतीबाड़ी के विकास के सम्बन्ध में पंचायत समिति को विशेष शक्ति दी गई है। वह अच्छे बीज और उर्वरक बांटती है। खेतीबाड़ी के वैज्ञानिक तरीकों को प्रचलित करने के लिए प्रयत्न करती है। भूमि बचाओ (Soil Conservation) भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए प्रबन्ध करती है। हरी खाद और खादों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का यत्न करती है।

सब्जियों और फलों को ज्यादा उगाने के लिए उत्साह देती है। सिंचाई के लिए कुओं, तालाबों और सिंचाई के और साधनों की व्यवस्था करती है।

3. पशु पालन और मछली पालन (Animal Husbandry and Fisheries) पंचायत समिति पशु पालन के अच्छे तरीकों का प्रचार और उनकी बीमारियों से रक्षा करने के लिए और उनके इलाज के लिए व्यवस्था करती है। पशुओं की नस्ल सुधारने का प्रयत्न करती है, ब्लॉक में मछली पालन का प्रसार करती है और मछली पालने के लिए स्थान निश्चित करती है।

4. प्राथमिक शिक्षा (Primary Education) आन्ध्र प्रदेश, बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और राजस्थान आदि राज्यों में प्राथमिक शिक्षा की ज़िम्मेदारी पंचायत समिति को सौंपी गई है। इसके अतिरिक्त पंचायत समिति सूचना केन्द्र (Information Centre), मनोरंजन, युवक संगठन, स्त्री मंडल, किसान संघ, नुमायशें, मेले और औद्योगिक समारोहों इत्यादि का प्रबन्ध करती है।

5. Fartea Ta Hung Hopeit abref (Functions Regarding Health and Sanitation)—3714 pite पर सभी राज्यों में स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्य पंचायत समितियों को सौंपे गए हैं। यह छुआ-छूत की बीमारियों की रोकथाम के उपाय करती है। चेचक, हैज़ा, मलेरिया आदि के टीके लगाने का प्रबन्ध करती है। ब्लॉक में हस्पताल, स्त्रियों एवं बच्चों के कल्याण केन्द्रों की स्थापना की देखभाल करती है। पीने के लिए पानी, गंदे नाले और गलियों की सफ़ाई आदि का प्रबन्ध करती है। टिड्डियों, चूहों और अन्य कीड़ों आदि के खात्मे के लिए उपाय करती है।

6. स्थानीय कार्य (Municipal functions)-पंचायत समिति ब्लॉक पंचायती समिति ब्लॉक में सड़कों का निर्माण, मुरम्मत और देखभाल करती है। पीने के पानी, गन्दगी के निकास, सफ़ाई आदि का प्रबन्ध करती है।

7. सहकारिता (Co-operation)—पंचायत समिति औद्योगिक और खेती-बाड़ी में सहकारी समितियाँ (Cooperative societies) की स्थापना करने के लिए हौसला-अफजाई (प्रोत्साहन) और सहायता प्रदान करती है।

8. नियोजन तथा उद्योग (Planning and Industries)-कुछ राज्यों में पंचायत समिति को ब्लॉक स्तर पर नियोजन का अधिकार दिया गया है। वह छोटे पैमाने के तथा घरेलू उद्योगों की स्थापना में सहायता करती है।

पंचायत समिति की आय के स्रोत (Sources of Income of Panchayat Samiti) –

  1. पंचायत समिति द्वारा लगाए गए टैक्स-पंचायत समिति और जिला परिषद् एक्ट की धाराओं के अंतर्गत भिन्न-भिन्न प्रकार के टैक्स लगा सकती है। रोज़गार टैक्स, संपत्ति टैक्स, मार्ग टैक्स (Toll Tax), टोकन टैक्स आदि से होने वाली आय।
  2. संपत्ति से आय-पंचायत समिति के अधिकार में रखी गई संपत्ति से आय।
  3. फ़ीस (Fees)-पंचायत समिति द्वारा प्रदान की गई सेवाओं से आय। पंचायत समिति जिला परिषद् की स्वीकृति से कई प्रकार की फ़ीसें लगा सकती है जैसे मेलों, खेती-बाड़ी की नुमाएशों पर फ़ीस आदि।
  4. सरकारी कर (Government Grants)-राज्य सरकार पंचायत समिति को सामूहिक विकास योजना तथा अन्य कार्यों हेतु कई प्रकार की ग्रांटें देती है।
  5. भूमि कर (Land Revenue)-भूमि कर से आमदनी लगभग सभी राज्यों में ब्लॉक क्षेत्र से प्राप्त होने वाली भूमि मालिए (Land Revenue) का कुछ भाग पंचायत समिति को दिया जाता है, जैसे पंजाब में सरकार द्वारा भूमि कर का 10% भाग पंचायत समिति को दिया जाता है।
  6. कर्जे (Loans)—पंचायत समिति जिला परिषद् और सरकार की स्वीकृति के साथ सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से कर्जे ले सकती है। गैर-सरकारी से 5 लाख रुपए से ज़्यादा कर्जा नहीं लिया जा सकता।

पंचायत समितियों को स्थानिक सत्ता कर्जा एक्ट, 1914 (Local Authorities Loans Act, 1914) और स्थानिक सत्ता कर्जा नियम, 1912 (Local Authorities Loans Rules, 1912) के अधीन सरकारी और गैरसरकारी संस्थाओं से अपने कार्यों को पूरा करने के लिए धन, कर्जे के रूप में प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है।

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प्रश्न 9.
जिला परिषद् के बारे में आप क्या समझते हैं ? विस्तार से लिखें।
उत्तर-
जिला परिषद् पंचायती राज्य की तीसरी तथा सबसे उच्च इकाई है। इसकी स्थापना सभी राज्यों में जिला स्तर पर की गई है। आन्ध्र प्रदेश, बिहार, पंजाब, सिक्किम, उड़ीसा, असम, राजस्थान, हरियाणा, मणिपुर, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, त्रिपुरा, पश्चिमी बंगाल, हिमाचल प्रदेश तथा अरुणाचल प्रदेश में इसको जिला परिषद् कहते हैं। कर्नाटक, गोआ तथा उत्तर प्रदेश में इसको जिला पंचायत जबकि गुजरात, तमिलनाडु तथा केरल में इसे डिस्ट्रिकट पंचायत कहते हैं।

रचना (Composition)-जिला परिषद् में चुने हुए तथा कुछ और सदस्य होते हैं। चुने हुए सदस्यों को जिले के मतदाताओं द्वारा चुनावी क्षेत्र बना कर चुना जाता है। परन्तु चुने हुए सदस्यों की संख्या अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। त्रिपुरा, सिक्किम, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु तथा पश्चिमी बंगाल में पंचायती राज्य एक्ट में चुने हुए सदस्यों की संख्या निर्धारित नहीं की गई है। बिहार, पंजाब, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश में 50,000 की जनसंख्या के लिए एक सदस्य चुना जाता है। आसाम, हरियाणा, कर्नाटक में 40,000 की जनसंख्या के लिए एक सदस्य चुना जाता है। हिमाचल प्रदेश में 20,000 तथा मणिपुर में 15,000 की जनसंख्या के लिए एक सदस्य चुना जाता है।

गुजरात में कम-से-कम 17 तथा गोआ में 20 सदस्य जिला परिषद के लिए चुने जाते हैं। जिला परिषद में चने हुए सदस्यों की संख्या मध्य प्रदेश में 10 से 35 तक, महाराष्ट्र में 40 से 60 तक, केरल में 10 से 20 तक निर्धारित की गई है। राजस्थान में अगर जिला परिषद् की जनसंख्या 4 लाख हो तो 17 सदस्य चुने जाते हैं। अगर आबादी 4 लाख से अधिक हो तो प्रत्येक अधिक एक लाख के लिए 2 सदस्य बढ़ जाते हैं।

महाराष्ट्र के अतिरिक्त ज़िले में चुने हुए संसद् सदस्य (M.P’s) राज्य विधान सभा के सदस्य (M.L.A’s) ज़िला परिषद के अपने पद के कारण सदस्य होते हैं। गुजरात में विधान सभा के सदस्य स्थायी तौर पर जिला परिषद् में बुलाए जाते हैं परन्तु उन्हें वोट देने के अधिकार प्राप्त नहीं हैं।

आन्ध्र प्रदेश में मण्डल पंचायतों के प्रधान, विधान सभा तथा संसद् के सदस्यों के अतिरिक्त अल्पसंख्यकों के दो प्रतिनिधि नियुक्त किए जाते हैं। इनके अतिरिक्त (District Co-operative Marketing Society) का प्रधान, जिला सहकारी केन्द्रीय बैंक का प्रधान, जिले का डिप्टी कमिश्नर तथा Zila Grandholaya संस्था का प्रधान अपने पद के कारण जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। इस तरह मध्य प्रदेश में संसद् तथा विधान सभा के सदस्यों को अतिरिक्त जिला सहकारी बैंक तथा जिला सहकारी और विकास बैंक के प्रधान भी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। यदि अनुसूचित जातियों तथा कबीलों का उपरोक्त में से कोई सदस्य न हो तो जिला परिषद् इन में से एक सदस्य नियुक्त कर सकती है।अनसचित जातियों, कबीलों तथा स्त्रियों के लिए आरक्षण (Reservation of seats for scheduled

castes, scheduled tribes and women)-जिला परिषद् के अनुसूचित जातियों, कबीलों तथा स्त्रियों के लिए सीटें सुरक्षित रखने के प्रावधान रखे गए हैं। अनुसूचित जातियों तथा कबीलों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात सीधे चुने गए सदस्यों के साथ वही होगा जो जिले में इन जातियों की संख्या का ज़िले की कुल जनसंख्या के साथ है।

प्रत्येक जिला परिषद् में 1/3 कुल स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित हैं (S.C. & S.T. मिलाकर) इसमें अनुसूचित जातियों तथा कबीलों की स्त्रियों के स्थान (आरक्षित) भी शामिल हैं।

पिछड़ी श्रेणियों के लिए आरक्षण (Reservation for Backward Classes)-लगभग सभी राज्यों में पिछड़ी श्रेणियों के लोगों के लिए भी कुछ स्थान जिला परिषद् में आरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है परन्तु ऐसा करना सरकार की मर्जी पर निर्भर करता है। जैसे बहुत-से राज्यों में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए उनकी संख्या के अनुसार जिला परिषद् में सीटें आरक्षित रखने की व्यवस्था की गई है।

कार्यकाल (Tenure)-ज़िला परिषद् का कार्यकाल 5 साल का होता है। अगर इससे पहले इसे भंग कर दिया जाता है तो 6 महीने के अंदर इसके सदस्यों का चुनाव करवाना जरूरी होता है।

चेयरमैन (Chairman)—प्रत्येक जिला परिषद् में एक चेयरमैन तथा एक वाइस चेयरमैन होता है। उनका चुनाव जिला परिषद् के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से अपने में से करते हैं। जिला परिषद् के चेयरमैन तथा वाइस चेयरमैन को भिन्न-भिन्न राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाता है।

अनुसूचित जातियों, कबीलों तथा स्त्रियों के लिए जिला परिषद् के चेयरमैन के पद को आरक्षित रखने की व्यवस्था भी की गई है। सदस्यों को इस तरह इन की जनसंख्या के अनुपात में रखा गया है तथा राज्य की कुल सीटों में से 1/3 स्त्रियों के लिए आरक्षित रखी गई है। चेयरमैन का कार्यकाल 5 साल का होता है।

जिला परिषद् के चेयरमैन तथा उप-चेयरमैन को अविश्वास प्रस्ताव पास करके उनके पद से हटाया जा सकता है। अविश्वास प्रस्ताव पास करने के लिए राज्यों में स्थिति भिन्न-भिन्न है।

कर्नाटक, बिहार, त्रिपुरा, सिक्किम, महाराष्ट्र, गोआ, मणिपुर, पश्चिमी बंगाल तथा हिमाचल प्रदेश में चुने हुए सदस्यों का बहुमत यदि अविश्वास प्रस्ताव को पास कर दे तो चेयरमैन को उसके पद से हटाया जा सकता है। इस तरह गुजरात, उड़ीसा, केरल, असम, आन्ध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान तथा अरुणाचल प्रदेश में अविश्वास प्रस्ताव पास करने के लिए चुने सदस्यों का 2/3 इसके पक्ष में होना ज़रूरी होता है। मध्य प्रदेश में 3/4 तथा उत्तर प्रदेश में यदि 50% सदस्यों द्वारा इसे पास कर दिया जाए तो चेयरमैन को उसके पद के हटाया जा सकता है।

जिला परिषद् के कार्य (Functions of Zila Parishad) –

चाहे जिला परिषद् में कार्यों में अलग-अलग राज्यों में भिन्नता मिलती है तो भी इसका मुख्य उद्देश्य पंचायत समितियों के कार्यों का सुमेल तथा निरीक्षण करना है। इस स्थिति में वह निम्नलिखित कार्य करती है-

  1. यह जिले की पंचायत समितियों के बजट को पास करती है।
  2. यह पंचायत समितियों को अपनी सामर्थ्य के अनुसार कार्य करने के लिए निर्देश जारी करती है।
  3. यह पंचायत समितियों को अपनी इच्छा या सरकार के आदेश के अनुसार या पंचायत समिति की विनती पर किसी विशेष विषय पर मशवरा भी दे सकती है।
  4. यह पंचायत समितियों द्वारा तैयार की गई विकास योजनाओं में तालमेल पैदा करती है।
  5. यह दो या दो से अधिक समितियों से सम्बन्धित योजनाओं को पूरा करती है।
  6. सरकार विशेष सूचना द्वारा किसी भी विकास योजना को पूरा करने का कार्य जिला परिषद् को सौंप सकती
  7. ज़िला परिषद् सरकार को जिले के स्तर पर या स्थानीय विकास के सभी कार्यों के सम्बन्ध में सलाह देती है।
  8. सरकार को पंचायत समितियों के कार्यों के विभाजन तथा तालमेल के सम्बन्ध में सलाह देती है।
  9. ज़िला परिषद् सरकार द्वारा दी गई शक्तियों को प्रयोग करने के सम्बन्ध में सरकार को सलाह देती है।
  10. वह सरकार से पूछकर पंचायत समितियों से कुछ धन भी वसूल कर सकती है।
  11. राज्य सरकार जिला परिषदों को पंचायतों का निरीक्षण तथा नियन्त्रण करने की शक्ति भी दे सकती है।

आय के साधन (Financial Resources)-जिला परिषद् की आय के साधन निम्नलिखित हैं-

  1. केन्द्रीय तथा राज्य सरकार द्वारा जिला परिषद् के लिए निश्चित किए गए फण्ड (Funds)।
  2. बड़े तथा छोटे उद्योगों की उन्नति के लिए सर्व भारतीय संस्थाओं द्वारा दी गयी ग्रांट (Grants) ।
  3. भूमि कर तथा दूसरे राज्य करों में से राज्य सरकार द्वारा दिया गया हिस्सा।
  4. जिला परिषद् की अपनी सम्पत्ति से आय।
  5. राज्य सरकार द्वारा निर्धारित किए गए आय के दूसरे साधन ।
  6. जनता तथा पंचायत समितियों द्वारा दी गई ग्रांट ।
  7. पंचायत समितियों से राज्य सरकार की मंजूरी से जिला परिषद् द्वारा ली गई धनराशि।
  8. विकास योजनाओं के सम्बन्ध में राज्य सरकार द्वारा दी गई ग्रांट।
  9. कुछ राज्यों में जिला परिषद् को विशेष प्रकार के टैक्स लगाने तथा पंचायत समिति द्वारा लगाए गए टैक्सों में बढ़ोत्तरी करने की शक्ति दी गई है।
    उपरोक्त स्रोतों के अतिरिक्त जिला परिषद् सरकार तथा गैर-सरकारी संस्थाओं से कर्जे भी ले सकती है। परन्तु ऐसा करने से पहले उसे राज्य सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 8 राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा

राजनीति, धर्म, अर्थ प्रणाली तथा शिक्षा PSEB 11th Class Sociology Notes

  • हमारे समाज में बहुत सी संस्थाएं होती हैं। सामाजिक संस्थाओं में हम विवाह, परिवार और नातेदारी को शामिल करते हैं।
  • राजनीतिक व्यवस्था समाज की ही एक उपव्यवस्था है। यह मनुष्यों की उन भूमिकाओं को निर्धारित करती है जो कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक होती है। राजनीति और समाज में काफ़ी गहरा रिश्ता है।
  • समाजशास्त्र में राजनीतिक संस्थाओं की सहायता ली जाती है तथा कई संकल्पों को समझा जाता है, जैसे कि शक्ति, नेतागिरी, सत्ता, वोट करने का व्यवहार इत्यादि। राजनीतिक संस्थाएं समाज में शांति और व्यवस्था बनाए रखने में सहायता करती हैं।
  • शक्ति समूह अथवा व्यक्तियों की वह समर्था होती है जिसके द्वारा वह उस समय अपनी बात मनवाते हैं जब उनका विरोध हो रहा होता है। समाज में शक्ति एक निश्चित मात्रा में मौजूद है। कुछ समूहों के पास अधिक शक्ति होती है तथा वे कम शक्ति वाले व्यक्तियों या समूहों पर अपनी बात थोपते हैं।
  • शक्ति को सत्ता की सहायता से लागू किया जाता है। सत्ता शक्ति का वह रूप है जिसे सही तथा वैध समझा जाता है जिनके पास सत्ता होती है वे शक्ति का प्रयोग करते हैं क्योंकि इसे न्यायकारी समझा जाता है।
  • मैक्स वैबर ने सत्ता के तीन प्रकार दिए हैं-परम्परागत सत्ता, वैधानिक सत्ता तथा करिश्मई सत्ता। पिता की सत्ता परंपरागत सत्ता होती है, सरकार की सत्ता वैधानिक सत्ता तथा किसी गुरु की बात मानना करिश्मई सत्ता होती है।
  • अलग-अलग प्रकार के समाजों में अलग-अलग राज्य होते हैं। कई समाजों में राज्य नाम का कोई संकल्प : नहीं होता जिस कारण इन्हें राज्य रहित समाज कहा जाता है तथा यह पुरातन समाजों में मिलते हैं। आधुनिक समाजों में सत्ता को राज्य नामक संस्था में शामिल किया है तथा यह सत्ता जनता से ही प्राप्त की जाती है।
  • राज्य राजनीतिक व्यवस्था की एक मूल संस्था है। इसके चार आवश्यक तत्त्व होते हैं तथा वह हैं जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र, प्रभुसत्ता तथा सरकार।
  • सरकार के तीन अंग होते हैं तथा वह हैं-विधानपलिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका। राज्य तथा सरकार को बनाए रखने में इन तीनों के बीच तालमेल का होना आवश्यक है।
  • आजकल की राजनीतिक व्यवस्था लोकतन्त्र के साथ चलती है। लोकतन्त्र दो प्रकार का होता है। प्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता अपने निर्णय स्वयं लेती है तथा अप्रत्यक्ष लोकतंत्र में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि सभी निर्णय लेते हैं।
  • हमारे देश में सरकार ने विकेन्द्रीयकरण की व्यवस्था को अपनाया है तथा स्थानीय स्तर तक सरकार बनाई
    जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में गाँव के स्तर पर पंचायत ब्लॉक के स्तर पर ब्लॉक समिति तथा जिले के स्तर पर जिला परिषद् होते है जो अपने क्षेत्रों का विकास करते हैं।
  • लोकतन्त्र में राजनीतिक दल महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। एक राजनीतिक दल उन लोगों का समूह होता है जिसका मुख्य उद्देश्य चुनाव लड़ कर सत्ता प्राप्त करना होता है। कुछ दल राष्ट्रीय दल होते हैं तथा कुछेक प्रादेशिक दल होते हैं।
  • लोकतन्त्र में हित समूहों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। ये हित समूह किसी विशेष समूह से जुड़े होते हैं तथा वे अपने समूह के हितों की प्राप्ति के लिए कार्य करते रहते हैं।
  • जब से मानवीय समाज शुरू हुए हैं धर्म उस समय से ही समाज में मौजूद है। धर्म और कुछ नहीं बल्कि अलौकिक शक्ति में विश्वास है जो हमारे अस्तित्व और पहुँच से बहुत दूर है।
  • हमारे देश भारत में बहुत से धर्म मौजूद हैं जैसे कि हिन्दू, इस्लाम, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध धर्म, जैन धर्म, पारसी धर्म इत्यादि। भारत एक बहु-धार्मिक देश है जहाँ बहुत से धर्मों के लोग इकट्ठे मिल कर रहते हैं।
  • प्रत्येक व्यक्ति को भोजन, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य सुविधाओं को प्राप्त करने के लिए पैसे की आवश्यकता पड़ती है तथा यह सब हमारी अर्थ व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। अर्थ व्यवस्था हमारे पैसे तथा खर्च का ध्यान रखती है।
  • अलग-अलग समाजों में अलग-अलग अर्थ व्यवस्था मौजूद होती है। कई समाज चीजें एकत्र करने वाले होते हैं, कई समाज चारगाह अर्थ व्यवस्था वाले होते हैं, कई समाज ग्रामीण अर्थ व्यवस्था वाले होते हैं, कई समाज औद्योगिक अर्थ व्यवस्था तथा कई समाज पूँजीवाद वाले भी होते हैं। कार्ल मार्क्स ने समाजवादी अर्थ व्यवस्था के बारे में बताया है।
  • श्रम विभाजन का संकल्प हमारे समाज के लिए नया नहीं है। जब लोग किसी विशेष कार्य को करने लग जाएं तथा वे सभी कार्यों को न कर सकें तो इसे विशेषीकरण तथा श्रम विभाजन का नाम दिया जाता है। भारतीय समाज में जाति व्यवस्था तथा जजमानी व्यवस्था श्रम विभाजन का ही एक प्रकार है।
  • अगर हम अपने समाज की तरफ देखें तो हम कह सकते हैं कि शिक्षा के बिना समाज में कुछ नहीं होता। शिक्षा व्यक्ति को जानवर से सभ्य मनुष्य के रूप में परिवर्तित कर देती है।
  • शिक्षा दो प्रकार की होती है-औपचारिक तथा अनौपचारिक। औपचारिक शिक्षा वह होती है जो हम स्कूल, कॉलेज इत्यादि से प्राप्त करते हैं तथा अनौपचारिक शिक्षा वह होती है जो हम अपने रोजाना के अनुभवों, बुजुर्गों इत्यादि से प्राप्त करते हैं।
  • सत्ता (Authority)-राजनीतिक व्यवस्था द्वारा अपने भौगोलिक क्षेत्र में स्थापित की गई शक्ति।
  • श्रम विभाजन (Division of Labour)-वह व्यवस्था जिसमें कार्य को अलग-अलग भागों में विभाजित कर दिया जाता है तथा प्रत्येक कार्य किसी व्यक्ति या समूह द्वारा ही किया जाता है।
  • अर्थव्यवस्था (Economy)-उत्पादन, विभाजन तथा उपभोग की व्यवस्था को अर्थव्यवस्था कहते हैं।
  • विश्वव्यापीकरण (Globalisation)-सांसारिक इकट्ठा होने की व्यवस्था जो संस्कृति के अलग-अलग पक्षों, अन्तर्राष्ट्रीय विचारों, वस्तुओं इत्यादि के लेन-देन से सामने आती है।
  • टोटम (Totem)-किसी पेड़, पौधे, पत्थर या किसी अन्य वस्तु को पवित्र मानना।
  • राज्य वाले समाज (State Society)-वह समाज जिनमें सरकार का औपचारिक ढांचा मौजूद होता है।
  • राज्य रहित समाज (Stateless Society)-वह समाज जहां सरकार के औपचारिक संगठन नहीं होते।
  • हित समूह (Pressure Groups)—वह समूह जहां लोकतान्त्रिक व्यवस्था में किसी विशेष समूह के हितों के लिए कार्य करते हैं।
  • राज्य (State)-राज्य वह समूह होता है जिसके चार प्रमुख तत्त्व हैं-जनसंख्या, भौगोलिक क्षेत्र, प्रभुसत्ता तथा सरकार।