PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

→ गुरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ-उनका आरंभिक नाम भाई लहणा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम फेरूमल तथा माता जी का नाम सभराई देवी थाआपका विवाह आपके ही गाँव के श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी से हुआ-एक बार आप ज्वाला जी की यात्रा पर गए तो आपने करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन किए-

→ गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आप उनके अनुयायी बन गए-आपकी अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु नानक देव जी ने 7 सितंबर, 1539 ई० को आपको गुरु गद्दी सौंप दी।

→ गुरु अंगद देव जी के अधीन सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji): गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया-गुरु जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित किया-

→ उन्होंने स्वयं 62 शब्दों की रचना की-उन्होंने भाई बाला जी से गुरु नानक देव जी के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई-

→ गुरु जी ने लंगर प्रथा का विकास किया-संगत संस्था को और अधिक संगठित किया-उदासी मत का खंडन करके गुरु जी ने सिखमत के अलग अस्तित्व को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की-आपने खडूर साहिब के समीप 1546 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नए नगर की स्थापना की-

→ आपने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को आशीर्वाद देकर सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): अपना अंत समय निकट देखकर गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-29 मार्च, 1552 ई० को गुरु अंगद देव जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das ji): गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के गाँव बासरके में हुआ-

→ आपके पिता जी का नाम तेजभान भल्ला था-आपका विवाह देवी चंद जी की सुपुत्री मनसा देवी जी से हुआ-आप 62 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव जी के अनुयायी बने-आप मार्च, 1552 ई० में सिखों के तीसरे गुरु नियुक्त हुए-

→ उस समय आपकी आयु 73 वर्ष थी-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू ने कड़ा विरोध किया-आपको गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्री चंद जी का भी विरोध सहना पड़ा-गुरु अमरदास जी को कट्टर मुसलमानों तथा ब्राह्मण वर्ग के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

→ गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji): गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरगद्दी पर आसीन रहे।

→ गुरु अमरदास जी की गतिविधियों का केंद्र गोइंदवाल साहिब था-गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में 84 सीढ़ियों वाली एक बाऊली का निर्माण करवाया-उन्होंने लंगर संस्था का विकास किया-

→ गुरु जी ने गुरु नानक देव जी और गुरु अंगद देव जी की बाणी का संग्रह किया-गुरु अमरदास जी ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की-गुरु जी ने दूर-दूर के क्षेत्रों में सिख धर्म के प्रचार के लिए 22 मंजियों की स्थापना की-गुरु जी ने उदासी संप्रदाय का खंडन किया-

→ गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुप्रथाओं का डट कर विरोध किया-गुरु जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की-1568 ई० में अकबर के गोइंदवाल साहिब आगमन से सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने दामाद भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1574 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Ram Das Ji): गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हआ था-आपका आरंभिक नाम भाई जेठा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम हरिदास और माता जी का नाम दया कौर था-आप गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन गए-1553 ई० में आपका विवाह गुरु अमरदास जी की छोटी लड़की बीबी भानी जी के साथ हुआ-1574 ई० में आप गुरु गद्दी पर विराजमान हुए-आप सिखों के चौथे गुरु थे।

→ गुरु रामदास जी के समय सिख मत का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji): 1577 ई० में गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना की-

→ रामदासपुरा में अमृतसर और संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया-सिख मत्त के प्रचार तथा संगतों से धन को एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा आरंभ की गईउदासी संप्रदाय तथा सिखमत में समझौता सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुआसंगत, पंगत और मंजी संस्थाओं को जारी रखा गया-मुग़ल बादशाह अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और दृढ़ हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): ज्योति जोत समाने से पूर्व, गुरु रामदास जी ने अपने छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1581 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

→ गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोय की तलवंडी में हआ-आपके पिता जी का नाम मेहता कालू तथा माता जी का नाम तृप्ता जी था

→ आपकी बहन का नाम बेबे नानकी था। गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे-गुरु साहिब के आध्यात्मिक ज्ञान से उनके अध्यापक चकित रह गए

→ गुरु नानक देव जी के पिता जी ने उन्हें कई व्यवसायों में लगाने का प्रयत्न किया परंतु गुरु जी ने कोई रुचि न दिखाई

→ 14 वर्ष की आयु में आपका विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया

→ 20 वर्ष की आयु में आप सुल्तानपुर लोधी के मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी करने लगे-सुल्तानपुर लोधी में आपको बेईं नदी में स्नान के दौरान सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई-उस समय आपकी आयु 30 वर्ष की थी।

→ गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji): 1499 ई० में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा पर निकल पड़े-गुरु साहिब ने कुल 21 वर्ष इन उदासियों अथवा यात्राओं में व्यतीत किए

→ इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और एक ईश्वर की आराधना का प्रचार करना था-गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में भाई मरदाना के साथ अपनी पहली उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने सैदपुर, तालुंबा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, गोरखमता, बनारस, कामरूप, गया, जगन्नाथपुरी, लंका और पाकपटन के प्रदेश की यात्रा की-

→ गुरु नानक देव जी ने 1513-14 ई० में अपनी दूसरी उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने पहाड़ी रियासतों, कैलाश पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, हसन अब्दाल और स्यालकोट की यात्रा की-

→ 1517 ई० में आरंभ की गई अपनी तृतीय उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने मुलतान, मक्का, मदीना, बगदाद, काबुल, पेशावर और सैदपुर के प्रदेशों की यात्रा कीइन उदासियों के दौरान गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके अनुयायी बन गए।

→ गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ (Teachings of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल और प्रभावशाली थीं-गुरु जी के अनुसार ईश्वर एक है-

→ वह इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और नाशवान्कर्ता हैं-वह निराकार और सर्वव्यापक है-उनके अनुसार माया मनुष्य के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है-हऊमै (अहं) मनुष्य के सभी दुःखों का मूल कारण है-

→ गुरु जी ने जाति प्रथा तथा खोखले रीति रिवाजों का जोरदार शब्दों में खंडन किया-गुरु जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान देने के लिए आवाज़ उठाई-गुरु जी द्वारा नाम जपने पर विशेष बल दिया गया-उन्होंने गुरु को मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी माना है।

→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 22 सितंबर, 1539 ई० को गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत समा गए। ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

→ राजनीतिक दशा (Political Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी दयनीय थी-पंजाब दिल्ली सल्तनत के अधीन था जिस पर लोधी सुल्तानों का शासन था

→ 1469 ई० में दिल्ली सुल्तान बहलोल लोधी ने ततार खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त कियाततार खाँ लोधी सुल्तान के खिलाफ किए गए असफल विद्रोह में मारा गया

→ 1500 ई० में एक नए लोधी सुल्तान सिकंदर लोधी ने दौलत खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त किया- इब्राहीम लोधी के नए सुल्तान बनते ही दौलत खाँ लोधी ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए

→ दौलत खाँ ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया-बाबर ने 1519 ई० से 1526 ई० तक पंजाब पर पाँच आक्रमण किए

→ अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान बाबर ने दौलत खाँ लोधी को हरा कर पंजाब पर अधिकार कर लिया-21 अप्रैल, 1526 ई० को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को परास्त किया

→ परिणामस्वरूप पंजाब लोधी वंश के हाथों से निकल कर मुग़ल वंश के हाथों में चला गया।

→ सामाजिक दशा (Social Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की सामाजिक दशा बड़ी ही दयनीय थी

→ समाज हिंदू और मुसलमान नामक दो मुख्य वर्गों में विभाजित था

→ शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण मुसलमानों को विशेष अधिकार प्राप्त थे

→ मुस्लिम समाज उच्च, मध्य तथा निम्न वर्गों में विभाजित था

→ मुस्लिम स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी

→ हिंदू बहुसंख्या में थे, परंतु उन्हें अधिकारों से वंचित रखा गया था-हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था–हिंदू स्त्रियों को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था

→ समाज का अमीर वर्ग स्वादिष्ट भोजन करता और बहुमूल्य वस्त्र पहनता था

→ निम्न वर्गों का भोजन और वस्त्र साधारण होते थे

→ उस समय शिकार, चौगान, जानवरों की लड़ाइयाँ, शतरंज, नृत्य, संगीत और ताश आदि मनोरंजन के साधन थे

→ शिक्षा मस्जिदों, मदरसों और मंदिरों में प्रदान की जाती थी।

→ आर्थिक दशा (Economic Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की आर्थिक दशा बहुत अच्छी थी

→ पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था

→ यहाँ की मुख्य फसलें गेहूँ, कपास, जौ, मकई और गन्ना थीं

→ फसलों की पर्याप्त उपज होती थी

→ लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग था

→ उद्योगों में वस्त्र उद्योग सर्वाधिक प्रसिद्ध था

→ चमड़ा, शस्त्र, बर्तन, हाथी दाँत और खिलौने आदि के उद्योग भी प्रचलित थे

→ पशु पालन का व्यवसाय भी किया जाता था

→ पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार बड़ा उन्नत था

→ विदेशी व्यापार अफ़गानिस्तान, ईरान, अरब, सीरिया, तिब्बत और चीन आदि देशों के साथ था

→ लाहौर और मुलतान पंजाब के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध नगर थे

→ कम मूल्यों के कारण साधारण लोगों का निर्वाह भी सुगमता से हो जाता था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

→ पंजाब के इतिहास संबंधी समस्याएँ (Difficulties Regarding the History of the Punjab): मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखे गए फ़ारसी के स्रोतों में पक्षपातपूर्ण विचार प्रकट किए गए हैं—पंजाब में फैली अराजकता के कारण सिखों को अपना इतिहास लिखने का समय नहीं मिला— विदेशी आक्रमणों के कारण पंजाब के अमूल्य ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए-1947 ई० के पंजाब के बँटवारे कारण भी बहुत से ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए।

→ स्त्रोतों के प्रकार (Kinds of Sources)-पंजाब के इतिहास से संबंधित स्रोतों के मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ सिखों का धार्मिक साहित्य (Religious Literature of the Sikhs): आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस काल की सर्वाधिक प्रमाणित ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है। इसका संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया-दशम ग्रंथ साहिब जी गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है—इसका संकलन भाई मनी सिंह जी ने 1721 ई० में किया-ऐतिहासिक पक्ष से इसमें ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं.

→ भाई गुरदास जी द्वारा लिखी गई 39 वारों से हमें गुरु साहिबान के जीवन तथा प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों का पता चलता है—गुरु नानक देव जी के जीवन पर आधारित जन्म साखियों में पुरातन जन्म साखी, मेहरबान जन्म साखी, भाई बाला जी की जन्म साखी तथा भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी महत्त्वपूर्ण हैं—सिख गुरुओं से संबंधित हुक्मनामों से हमें समकालीन समाज की बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है—गुरु गोबिंद सिंह जी के 34 हुक्मनामों तथा गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी के 23 हुक्मनामों का संकलन किया जा चुका है।

→ पंजाबी और हिंदी में ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ (Historical and SemiHistorical works in Punjabi and Hindi): ‘गुरसोभा’ से हमें 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना से लेकर 1708 ई० तक की घटनाओं का आँखों देखा वर्णन मिलता है—गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबारी कवि सेनापत ने की थी—’सिखाँ दी भगतमाला’ से हमें सिख गुरुओं के काल की सामाजिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है—इसकी रचना भाई मनी सिंह जी ने की थी—केसर सिंह छिब्बड़ द्वारा रचित ‘बंसावली नामा’ सिख गुरुओं से लेकर 18वीं शताब्दी तक की घटनाओं का वर्णन है—भाई संतोख सिंह द्वारा लिखित ‘गुरप्रताप सूरज ग्रंथ’ तथा रत्न सिंह भंगू द्वारा लिखित ‘प्राचीन पंथ प्रकाश’ का भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में विशेष स्थान है।

→ फ़ारसी में ऐतिहासिक ग्रंथ (Historical Books in Persian): मुग़ल बादशाह बाबर की रचना ‘बाबरनामा’ से हमें 16वीं शताब्दी के प्रारंभ के पंजाब की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती हैअबुल फज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ और ‘अकबरनामा’ से हमें अकबर के सिख गुरुओं के साथ संबंधों का पता चलता है—मुबीद जुलफिकार अरदिस्तानी द्वारा लिखित ‘दबिस्तान-ए-मज़ाहिब’ में सिख गुरुओं से संबंधित बहुमूल्य ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है—सुजान राय भंडारी की ‘खुलासत-उत-तवारीख’, खाफी खाँ की ‘मुंतखिब-उल-लुबाब’ और काज़ी नूर मुहम्मद की ‘जंगनामा’ से हमें 18वीं शताब्दी के पंजाब की जानकारी प्राप्त होती है—सोहन लाल सूरी द्वारा रचित ‘उमदत-उततवारीख’ तथा गणेश दास वडेहरा द्वारा लिखित ‘चार बाग़-ए-पंजाब’ में महाराजा रणजीत सिंह के काल से संबंधित घटनाओं का विस्तृत विवरण है।

→ भट्ट वहियाँ (Bhat vahis): भट्ट लोग महत्त्वपूर्ण घटनाओं को तिथियों सहित अपनी वहियों में दर्ज कर लेते थे—इनसे हमें सिख गुरुओं के जीवन, यात्राओं और युद्धों के संबंध में काफ़ी नवीन जानकारी प्राप्त होती है।

→ खालसा दरबार रिकॉर्ड (Khalsa Darbar Records): ये महाराजा रणजीत सिंह के समय के सरकारी रिकॉर्ड हैं—ये फ़ारसी भाषा में हैं और इनकी संख्या 1 लाख से भी ऊपर है—ये महाराजा रणजीत सिंह के काल की घटनाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।

→ विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ (Writings of Foreign Travellers and Europeans): विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं—इनमें जॉर्ज फोरस्टर की ‘ऐ जर्नी फ्राम बंगाल टू इंग्लैंड’, मैल्कोम की ‘स्केच ऑफ़ द सिखस्’, एच० टी० प्रिंसेप की ‘ओरिज़न ऑफ़ सिख पॉवर इन पंजाब’, कैप्टन विलियम उसबोर्न की ‘द कोर्ट एण्ड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह’, सटाईनबख की ‘द पंजाब’ और जे० डी० कनिंघम द्वारा रचित ‘हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्’ प्रमुख हैं।

→ ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के (Historical Buildings, Paintings and Coins): पंजाब के ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के पंजाब के इतिहास के लिए एक अमूल्य स्रोत हैं—खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, अमृतसर, तरनतारन, करतारपुर और पाऊँटा साहिब आदि नगरों, विभिन्न दुर्गों, गुरुद्वारों में बने चित्रों तथा सिख सरदारों के सिक्कों से तत्कालीन समाज पर विशेष प्रकाश पड़ता है।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

→ पंजाब के विभिन्न नाम (Different Names of the Punjab): पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ और ‘आब’ से मिलकर बना है-पंजाब का शाब्दिक अर्थ है पाँच नदियों का प्रदेश-पंजाब को प्राचीन काल में टक देश, ऋग्वैदिक काल में ‘सप्त-सिंधु’, पुराण काल में ‘पंचनद’, यूनानियों द्वारा ‘पैंटापोटामिया’, मध्यकाल में ‘लाहौर सूबा’ तथा अंग्रेजों द्वारा ‘पंजाब प्रांत’ कहा जाता था।

→ पंजाब की भौतिक विशेषताएँ (Physical Features of the Punjab): पंजाब की भौतिक विशेषताओं से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ हिमालय और सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ (The Himalayas and Sulaiman Mountain Ranges): हिमालय पर्वत पंजाब के उत्तर में स्थित है-यह पर्वत आसाम से लेकर अफ़गानिस्तान तक फैला हुआ है-यह पंजाब के लिए वरदान सिद्ध हुआ है-हिमालय पर्वत के फलस्वरूप पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ बन गई है-सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ पंजाब के उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं – इन्हीं श्रेणियों में खैबर, कुर्रम, बोलान, टोची तथा गोमल नामक दर्रे स्थित हैं।

→ अर्द्ध-पर्वतीय प्रदेश (Sub-Mountainous Region): यह प्रदेश शिवालिक पहाड़ियों और पंजाब के मैदानी भाग के मध्य स्थित है-इसे तराई प्रदेश भी कहा जाता है-इसमें होशियारपुर, काँगड़ा, अंबाला, गुरदासपुर तथा स्यालकोट के प्रदेश आते हैं।

→ मैदानी प्रदेश (The Plains): मैदानी प्रदेश पंजाब का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण खंड है-यह प्रदेश सिंध और यमुना नदियों के मध्य स्थित है-इसका अधिकाँश भाग पाँच दोआबों से घिरा हुआ हैइन दोबाओं को बिस्त जालंधर दोआब, बारी दोआब, रचना दोआब, चज दोआब और सिंध सागर दोआब कहा जाता है-पंजाब के मैदानी भाग में सतलुज और घग्घर नदियों के बीच के क्षेत्र को मालवा तथा बांगर कहा जाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का प्रदेश रेगिस्तानी है। अतः यहाँ की जनसंख्या बहुत कम है।

→ भौतिक विशेषताओं का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव (Influence of Physical Features on the History of the Punjab): पंजाब पर उसकी भौतिक विशेषताओं के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक प्रभावों से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ राजनीतिक प्रभाव (Political Effects): उत्तर-पश्चिम में विभिन्न दर्रे स्थित होने के कारण पंजाब विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भारत का प्रवेश द्वार बन गया सभी महत्त्वपूर्ण और निर्णायक लड़ाइयाँ इसी क्षेत्र में हुईं-पंजाब के शहरों का राजनीतिक महत्त्व बढ़ गया-पंजाबियों को शताब्दियों तक भारी कष्टों और अत्याचारों का सामना करना पड़ा।

→ सामाजिक प्रभाव (Social Effects): पंजाबियों में वीरता, साहस, कष्ट सहने और बलिदान के विशेष गुण उत्पन्न हो गए-यहाँ पर जातियों तथा उपजातियों की संख्या में वृद्धि हुई-पंजाब में कला और साहित्य के विकास को धक्का लगा।

→ धार्मिक प्रभाव (Religious Effects): पंजाब को हिंदू धर्म की जन्म भूमि कहा जाता हैपंजाब में इस्लाम का प्रसार भारत के अन्य भागों की तुलना में अधिक हुआ-पंजाब की भूमि को सिख धर्म की उत्पत्ति और विकास का श्रेय जाता है।

→ आर्थिक प्रभाव (Economic Effects): पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ होने के कारण पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है-पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार काफ़ी उन्नत हो गयापंजाब में अनेक व्यापारिक नगर अस्तित्व में आए-पंजाबी आर्थिक रूप से काफ़ी समृद्ध हो गए।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 20 ਨਸ਼ਾ-ਮਾੜੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-II

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PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 20 ਨਸ਼ਾ-ਮਾੜੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-II

→ “ਨਸ਼ਿਆਂ ਦਾ ਸੇਵਨ ਸਮੇਂ ਦੀ ਬਰਬਾਦੀ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਡੀ ਯਾਦ-ਸ਼ਕਤੀ, ਸਵੈਮਾਨ ਅਤੇ ਉਹ ਸਭ ਕੁੱਝ ਜੋ ਸਾਡੇ ਅਭਿਮਾਨ ਨਾਲ ਜੁੜਿਆ ਹੋਇਆ ਹੈ, ਨੂੰ ਬਰਬਾਦ ਕਰਦੇ ਹਨ ।” -ਕੁਰਤ ਕੋਬੇਨ

→ ਨਸ਼ੇ ਸਾਡੇ ਜੀਵਨ ਦੇ ਸਾਰੇ ਪਹਿਲੂਆਂ ਸਮਾਜਿਕ, ਭਾਵਨਾਤਮਕ ਅਤੇ ਵਿੱਤ ਸੰਬੰਧੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 20 ਨਸ਼ਾ-ਮਾੜੇ ਪ੍ਰਭਾਵ-II

→ ਨਸ਼ੇ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਦੀ ਮਾਨਸਿਕ ਸਿਹਤ ਖ਼ਰਾਬ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਸ਼ੇ ਕਈ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਅਤੇ ਸਿਹਤ ਸੰਬੰਧੀ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਨਸ਼ਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਅਕਸਰ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਅਪਰਾਧ ਵਿਚ ਫਸ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸ ਦੇ ਨਾਲ ਕਾਨੂੰਨੀ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਸਾਰੇ ਅਪਰਾਧ, ਜੋ ਕਿ ਨਸ਼ਿਆਂ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਹਨ, ਐੱਨ.ਡੀ.ਪੀ.ਐੱਸ. ਕਾਨੂੰਨ (1985) ਦੇ ਤਹਿਤ ਦੰਡ ਦੇਣ ਯੋਗ ਹਨ ।

→ ਇਸ ਦੀ ਸਜ਼ਾ 6 ਮਹੀਨੇ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 20 ਸਾਲ ਤਕ ਦੀ ਕੈਦ ਜਾਂ 10 ਹਜ਼ਾਰ ਰੁਪਏ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ 2 ਲੱਖ ਰੁਪਏ ਦਾ ਜੁਰਮਾਨਾ ਜਾਂ ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਹਨ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 19 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-6)

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PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 19 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-6)

→ ਸ੍ਰੀ ਕੇ. ਐੱਮ. ਮੁਨਸ਼ੀ (Shri K.M. Munshi) ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਉਸ ਸਮੇਂ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਵਿੱਚ ਖੇਤੀ ਅਤੇ ਖ਼ੁਰਾਕ ਮੰਤਰੀ ਸਨ, ਨੇ ਵਣ ਮਹਾਂਉਤਸਵ ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਸੀ ।

→ ਵਣ ਮਹਾਂਉਤਸਵ ਦਾ ਮੁੱਖ ਉਦੇਸ਼ ਵਣ ਸਾਧਨਾਂ ਵਿਚ ਵਾਧਾ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਮਿੱਟੀ ਨੂੰ ਖੁਰਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣਾ ਵੀ ਸੀ ।

→ ਫ਼ਰਵਰੀ ਅਤੇ ਸਤੰਬਰ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਹਫ਼ਤੇ, ਵਣ ਮਹਾਂਉਤਸਵ ਹਰ ਸਾਲ ਮਨਾਉਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਾਈਲੈਂਟ ਘਾਟੀ, ਕੇਰਲ ਦੇ ਪੱਛਮੀ ਘਾਟ ਵਿਖੇ ਸਥਿਤ ਇਕ ਅਲੱਗ ਅਤੇ ਨਿਵੇਕਲਾ ਜੰਗਲ ਹੈ । ਭਾਰਤ ਦੇ ਕੁੱਝ ਥੋੜੀਆਂ ਜਿਹੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਵਿਚ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਥਾਂ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਮਨੁੱਖੀ ਆਬਾਦੀ ਨਹੀਂ ਹੈ ।

→ ਜੈਵਿਕ ਵਿਰਾਸਤ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਤੋਂ ਸਾਈਲੈਂਟ ਘਾਟੀ ਦੀ ਬੜੀ ਮਹੱਤਤਾ ਹੈ । ਇਸ ਘਾਟੀ ਵਿਚ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਪਾਣੀਆਂ ਦੀਆਂ ਅਨੇਕਾਂ ਦੁਰਲੱਭ ਜਾਤੀਆਂ ਪਾਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 19 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-6)

→ ਸਾਈਲੈਂਟ ਘਾਟੀ ਦੀ ਯੋਜਨਾ ਦੇ ਤਿਆਰ ਹੋਣ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ, ਉੱਥੇ, ਉੱਗਣ ਵਾਲੀ ਦੁਰਲੱਭ ਬਨਸਪਤੀ ਅਤੇ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਦੁਰਲੱਭ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਸ਼ਟ ਹੋਣ ਦੇ ਡਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਸ ਪ੍ਰਾਜੈਕਟ ਦਾ ਬੜੀ ਵੱਡੀ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਵਿਰੋਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ।

→ ਇਸ ਜਨਤਕ ਵਿਰੋਧ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਕੇਂਦਰੀ ਸਰਕਾਰ ਦੀ ਸਲਾਹ ਤੇ ਕੇਰਲ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਇਹ ਪ੍ਰਾਜੈਕਟ ਵਾਪਿਸ ਲੈ ਲਿਆ ਅਤੇ ਸਾਈਲੈਂਟ ਘਾਟੀ ਨੂੰ ਸੰਨ 1985 ਵਿਚ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਪਾਰਕ ਵਜੋਂ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।

→ ਗੰਗਾ ਐਕਸ਼ਨ ਪਲੈਨ (Ganga Action Plan) ਸੰਨ 1985 ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ । ਇਸ ਯੋਜਨਾ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮਕਸਦ ਗੰਗਾ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਗੁਣਵੱਤਾ ਵਿਚ ਸੁਧਾਰ ਲਿਆਉਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਜੋ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਨਹਾਉਣ ਲਈ ਸਾਫ਼ ਪਾਣੀ ਮਿਲ ਸਕੇ ।

→ ਗੰਗਾ ਐਕਸ਼ਨ ਪਲੈਨ (GAP) ਦੇ ਘੇਰੇ ਹੇਠ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਕਸਬਿਆਂ/ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦੀ ਸੰਖਿਆ 25 ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ 6 ਉੱਤਰ ਪ੍ਰਦੇਸ਼ ਵਿਚ, 4 ਬਿਹਾਰ ਵਿਚ ਅਤੇ 15 ਪੱਛਮੀ ਬੰਗਾਲ ਵਿਖੇ ਸਥਿਤ ਹਨ ।

→ ਉਦਯੋਗਾਂ ਤੋਂ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲੇ ਵਹਿਣ, ਮੁਰਦਿਆਂ ਦੇ ਸਾੜਣ ਉਪਰੰਤ ਬਚੀ ਰਾਖ ਅਤੇ ਹੱਡੀਆਂ ਦਾ ਗੰਗਾ ਦੇ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਸੁੱਟਣਾ, ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿਚ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਨਹਾਉਣਾ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਰਸਮਾਂ ਆਦਿ ਗੰਗਾ ਦੇ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦੇ ਮੁੱਖ ਕਾਰਨ ਹਨ ।

→ ਗੰਗਾ ਦੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਲਈ ਬਹੁਤ ਵੱਡੀ ਸੰਖਿਆ ਵਿਚ ਕੱਪੜੇ ਧੋਣਾ, ਡੰਗਰਾਂ ਦਾ ਪਾਣੀ ਅੰਦਰ ਲੇਟਣਾ ਵੀ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹਨ ।

→ ਗੰਗਾ ਐਕਸ਼ਨ ਪਲੈਨ (Ganga Action Plan) ਨੂੰ ਦੋ ਹਿੱਸਿਆਂ ਵਿਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਹੈ । ਪਹਿਲੇ ਪੜਾ ਵਿਚ ਯੂ. ਪੀ., ਉਤਰਾਖੰਡ, ਝਾਰਖੰਡ, ਬਿਹਾਰ ਅਤੇ ਪੱਛਮੀ ਬੰਗਾਲ ਦੇ 25 ਕਸਬਿਆਂ/ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਤੋਂ ਗੰਗਾ ਦੇ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਦੂਸ਼ਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਨਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਪੜਾਅ ਨੂੰ ਸੰਨ 1997 ਤਕ ਮੁਕੰਮਲ ਕਰਨ ਦਾ ਟੀਚਾ ਮਿਥਿਆ ਗਿਆ ਸੀ, ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਇਸ ਦੀ ਮਿਆਦ ਵਧਾ ਕੇ ਇਸ ਪੜਾਅ ਨੂੰ GAP-II ਦਾ ਨਾਮ ਦੇ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਅਤੇ ਇਸ ਕੰਮ ਨੂੰ 1999 ਤਕ ਮੁਕੰਮਲ ਕਰਨ ਦਾ ਟੀਚਾ ਮਿੱਥਿਆ ਗਿਆ । ਗੰਗਾ ਐਕਸ਼ਨ ਪਲੈਨ-II ਵਿਚ 29 ਕਸਬੇ/ਸ਼ਹਿਰ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕੀਤੇ ਗਏ ।

→ ਡਾ: ਐੱਮ. ਸੀ. ਮਹਿਤਾ ਦਾ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਕਿ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾ ਮਿਲਣ ਕਾਰਨ ਇਹ ਯੋਜਨਾ ਸਫ਼ਲ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕੀ ।

→ ਸੰਯੁਕਤ ਵਣ ਪ੍ਰਬੰਧਣ (Joint Forest Management) – ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਵਣਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧਣ ਨਾਲ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨੂੰ ਸੰਨ 1990 ਨੂੰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਗਿਆ | ਵਣਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਬੰਧਣ ਅਤੇ ਦੇਖਭਾਲ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਵਣ ਵਿਭਾਗ ਅਤੇ ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਦਾ ਮਿਲ ਕੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਹੈ । ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਰਲ ਕੇ ਨਾ ਕੇਵਲ ਵਣਾਂ ਦੀ ਸਾਂਭ-ਸੰਭਾਲ ਹੀ ਕਰਨਗੇ, ਸਗੋਂ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਥਾਂਵਾਂ ਤੋਂ ਜੰਗਲ ਨਸ਼ਟ ਕੀਤੇ ਗਏ ਹਨ, ਉੱਥੇ ਨਵੇਂ ਰੁੱਖ ਵੀ ਲਗਾਉਣਗੇ ।

→ ਸੰਯੁਕਤ ਵਣ ਪ੍ਰਬੰਧਣ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਵ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਈਂਧਨ, ਚਾਰਾ ਅਤੇ ਛੋਟੀ-ਮੋਟੀ ਇਮਾਰਤੀ ਲੱਕੜੀ ਦੀ ਉਪਲੱਬਧੀ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕਰਨਾ ਹੈ ।

→ ਵਣਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਬੰਧਣ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਗੈਰ-ਸਰਕਾਰੀ ਸੰਗਠਨਾਂ, ਸਰਕਾਰੀ ਮਹਿਕਮਿਆਂ ਅਤੇ ਸਥਾਨਿਕ ਸਮੁਦਾਇ ਰਲ ਕੇ ਇਹ ਕਾਰਜ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਸੰਯੁਕਤ ਵਣ ਪ੍ਰਬੰਧਣ ਦੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਅਨੁਸਾਰ ਚੋਣਵੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ‘ਤੇ ਫਲਦਾਰ ਬੂਟੇ ਅਤੇ ਦੂਸਰੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੇ ਰੁੱਖ ਲਗਾਏ ਜਾਣ ਦੀ ਆਗਿਆ ਹੈ ਪਰ ਮਵੇਸ਼ੀਆਂ ਆਦਿ ਦੇ ਚਰਨ ‘ਤੇ ਮੁਕੰਮਲ ਰੋਕ ਲਗਾਈ ਗਈ ਹੈ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 19 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-6)

→ ਸਮਾਜਿਕ ਫਾਰੈਸਟਰੀ (Social Forestry) ਵੀ ਵਾਤਾਵਰਣ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਹੈ, ਜਿਸ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਵਾਤਾਵਰਣ ਦੀ ਸੁਰੱਖਿਆ ਹੈ । ਇਸੇ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਖ਼ਾਲੀ ਪਈਆਂ ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਵਿਚ ਸਮੁਦਾਇ ਦੇ ਲਈ ਲਾਹੇਵੰਦ ਪੌਦਿਆਂ ਦਾ ਲਗਾਉਣਾ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਈਂਧਨ, ਚਾਰਾ ਅਤੇ ਛਾਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਸਕੇ ।

→ ਸਮਾਜਿਕ ਫਾਰੈਸਟਰੀ-ਇਹ ਪਹਿਲਾਂ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਗ੍ਰਾਮੀਣ ਰੋਜ਼ਗਾਰ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ (National Rural Employment Programme) ਦੇ ਅਧੀਨ ਸੀ । ਪਰ ਹੁਣ ਇਸ ਨੂੰ ਏਕੀਕ੍ਰਿਤ ਗ੍ਰਾਮੀਣ ਵਿਕਾਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ (Integrated Rural Development Programme) ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ।

→ ਸਮਾਜਿਕ ਫਾਰੈਸਟਰੀ ਦਾ ਤਿੰਨ ਹਿੱਸਿਆਂ (ਉ) ਫਾਰਮ ਫਾਰੈਸਟਰੀ (Farm Forestry) (ਅ) ਸਮੁਦਾਇ ਫਾਰੈਸਟਰੀ (Community Forestry) ਅਤੇ (ਈ ਐਗੋ-ਫਾਰੈਸਟਰੀ (Agro-Forestry) ਵਿਚ ਵਰਗੀਕਰਨ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ।

→ ਫਾਰਮ (ਖੇਤ) ਫਾਰੈਸਟਰੀ (Farm Forestry) – ਇਸ ਸਕੀਮ ਦੇ ਅਧੀਨ ਕਿਸਾਨ ਆਪਣੇ ਖੇਤਾਂ ਦੇ ਕਿਨਾਰਿਆਂ ‘ਤੇ ਗੈਰ-ਵਣਜਕ ਕੰਮਾਂ (Non-Commercial purposes) ਲਈ ਰੁੱਖ ਲਗਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਰੱਖ਼ਤਾਂ ਤੋਂ ਨਾ ਕੇਵਲ ਛਾਂ ਹੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਮਿੱਟੀ ਨੂੰ ਖੁਰਣ ਤੋਂ ਬਚਾਉਂਦੇ ਹਨ, ਭੂਮੀ ਜਲ ਸਤਰ (Water table) ਨੂੰ ਕਾਇਮ ਰੱਖਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਹਵਾ ਦੀ ਤੇਜ਼ ਗਤੀ ਨੂੰ ਘਟਾਉਣ ਦਾ ਕਾਰਜ ਵੀ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਮਾਜਿਕ ਫਾਰੈਸਟਰੀ (Social Forestry) – ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦੇ ਅਧੀਨ ਸਮੁਦਾਇ ਦੀ ਖ਼ਾਲੀ ਪਈ ਜ਼ਮੀਨ (ਸ਼ਾਮਲਾਟ ਭੁਮੀ) ਨੂੰ ਰੁੱਖ ਲਗਾਉਣ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਸਕੀਮ ਦੇ ਅਧੀਨ ਰੁੱਖ ਰੇਲਵੇ ਪਟੜੀਆਂ ਦੇ ਨਜ਼ਦੀਕ, ਪਿੰਡਾਂ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ, ਸੜਕਾਂ ਦੇ ਕਿਨਾਰਿਆਂ ‘ਤੇ ਅਤੇ ਘਰਾਂ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਉਗਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਰੁੱਖ ਲਗਾਉਣ ਦੀ ਇਸ ਸਕੀਮ ਦਾ ਮੰਤਵ ਸਮੁਦਾਇ ਨੂੰ ਲਾਭ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਤੋਂ ਹੈ ।

→ ਐਗੋ-ਫਾਰੈਸਟਰੀ (Agro-Forestry) – ਇਸ ਸਕੀਮ ਦੇ ਅਧੀਨ ਰੁੱਖ ਖੇਤੀ ਕਰਨ ਯੋਗ ਜ਼ਮੀਨ ਉੱਤੇ ਜਾਂ ਖੇਤਾਂ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਉਗਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਐਗੋਫਾਰੈਸਟਰੀ ਇਕ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਪ੍ਰਥਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਭੂਮੀ ਨੂੰ ਜ਼ਰਾਇਤੀ ਕਾਰਜਾਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਵਣ ਲਗਾਉਣ, ਪਸ਼ੂ-ਪਾਲਣ ਦੇ ਲਈ ਵੀ ਵਰਤਿਆ ਹੈ । ਫਾਰੈਸਟਰੀ ਦੇ ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਦੇ ਅਧੀਨ ਕਿੱਕਰ, ਅੰਬ, ਸਫ਼ੈਦਾ, ਪਾਪਲਰ ਅਤੇ ਸਰੀਂਹ (Siris) ਆਦਿ ਰੁੱਖ ਲਗਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 18 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-5)

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PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 18 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-5)

→ ਜਿਹੜੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵਰਤੋਂ ਦੇ ਯੋਗ ਨਾ ਹੋਣ ਅਤੇ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਰੱਖ ਕੇ ਕੋਈ ਲਾਭ ਨਾ ਹੁੰਦਾ ਹੋਵੇ, ਤਾਂ ਅਜਿਹੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥ ਜਾਂ ਰਹਿੰਦ-ਖੂੰਹਦ ਆਖਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥ ਠੋਸ, ਤਰਲ ਜਾਂ ਗੈਸੀ ਹੋ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਸ਼ਹਿਰੀ (ਮਿਉਂਸੀਪਲ) ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਗੈਰ ਵਿਗਿਆਨਕ ਢੰਗ ਨਾਲ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਨ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਨਾ ਕੇਵਲ ਵਾਤਾਵਰਣ ਹੀ ਖ਼ਰਾਬ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਕਈ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਲੱਗ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਵਾਤਾਵਰਣ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਿਤ ਹੋਣ ਅਤੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਰੋਗਾਂ ਤੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖਣ ਵਾਸਤੇ ਹਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਕਚਰੇ ਦਾ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ, ਵਿਗਿਆਨਕ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 18 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-5)

→ ਸ਼ਹਿਰੀ ਠੋਸ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥਾਂ (Municipal Waste) ਨੂੰ ਸਹੀ ਅਤੇ ਸੁਚੱਜੇ ਢੰਗ ਨਾਲ ਠਿਕਾਣੇ ਲਗਾਉਣਾ ਅਤੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

→ ਠੋਸ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਨ ਦਾ ਕੇਵਲ ਇਕੋ ਹੀ ਹੱਲ ਨਹੀਂ ਹੈ ਪਰ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਕਈ ਵਿਧੀਆਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਿਆਂ ਹੀ ਵਰਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਸਾਰੇ ਠੋਸ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਇਕ ਥਾਂ ‘ਤੇ ਇਕੱਠਿਆਂ ਕਰਨਾ, ਠੋਸ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਘਟਕਾਂ ਨੂੰ ਵੱਖਰਿਆਂ ਕਰਨਾ, ਮੁੜ ਵਰਤੋਂ ਵਿਚ ਲਿਆਉਣ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਪੁਨਰ-ਚੱਕਰਣ ਵਾਲੇ ਅਤੇ ਮੁਰੰਮਤ ਯੋਗ ਘਟਕਾਂ ਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਕਰਕੇ ਵਰਤੋਂ ਯੋਗ ਬਣਾਉਣਾ ਆਦਿ ।

→ 3-R ਘਟਾਉਣਾ (Reduction), ਮੁੜ ਵਰਤੋਂ (Re-use) ਅਤੇ ਪੁਨਰ-ਚੱਕਰਣ (Recycling), 3-R ਸਿਧਾਂਤ ਵਲ ਸੰਕੇਤ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

→ ਵਿਸ਼ਵ ਸਿਹਤ ਸੰਗਠਨ (WHO) ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਹਰ ਰੋਜ਼ 500 ਗ੍ਰਾਮ ਦੇ ਕਰੀਬ ਠੋਸ ਕਚਰਾ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

→ ਜੇਕਰ ਕਾਗਜ਼ ਦੇ ਦੋਵੇਂ ਪਾਸਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਤਾਂ ਕਚਰੇ ਨੂੰ ਅਧਿਕਤਮ ਸੀਮਾ ਤਕ ਘਟਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਲਿਖਣ ਅਤੇ ਸਿੱਖਣ ਦੇ ਲਈ ਜੇਕਰ ਸਲੇਟਾਂ ਵਰਤੀਆਂ ਜਾਣ ਤਾਂ ਕਾਗਜ਼ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਰੱਖ਼ਤਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਲੋੜ ਪੈਂਦੀ ਹੈ, ਉਹ ਕਟਾਈ ਤੋਂ ਬਚ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਠੋਸ ਕਚਰੇ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਦੇ ਉਦੇਸ਼ ਨਾਲ ਸਾਨੂੰ ਅਜਿਹੇ ਠੋਸ ਪਦਾਰਥ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਸੁੱਟਣ ਯੋਗ ਪਲੇਟਾਂ ਅਤੇ ਗਲਾਸ ਆਦਿ ਨਹੀਂ ਵਰਤਣੇ ਚਾਹੀਦੇ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਕਚਰੇ ਦਾ ਛੇਤੀ ਪਤਨ ਨਾ ਹੋਣ ਕਰਕੇ ਪ੍ਰਦੁਸ਼ਣ ਫੈਲਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਿਹੜਾ ਕਚਰਾ ਦੋਬਾਰਾ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੇ ਕਾਬਲ ਹੋਵੇ, ਉਸ ਨੂੰ ਕਚਰਾ ਨਹੀਂ ਕਹਿੰਦੇ । ਜੇਕਰ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੀਆਂ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੀ ਸਾਂਭ-ਸੰਭਾਲ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਰਦੇ ਹੋ, ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੁਸਤਕਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਦੂਸਰੇ ਹੋਰ ਬੱਚੇ ਵੀ ਕਰ ਸਕਣਗੇ ਮੁੜ ਭਰੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਲਾਈਟਰਾਂ (Refillable lighters) ਅਤੇ ਪੈਂਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

→ ਵਸਤਾਂ ਨੂੰ ਪੈਕ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਵੱਡੇ ਆਕਾਰ ਵਾਲੇ ਪੈਕਟ ਨਹੀਂ ਬਣਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ । ਸਗੋਂ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਸੰਘਣੀ ਸ਼ਕਲ (Concentrated form) ਵਿਚ ਪੈਕ ਕੀਤਾ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੱਚੇ ਮਾਲ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨੂੰ ਘਟਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਅਜਿਹੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰਹਿਣ ਵਿਚ ਕਠਿਨਾਈ ਨਾ ਆਵੇ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਦਾਰਥਾਂ ਉੱਤੇ ਚੰਗੇ ਮਿਆਰ ਵਾਲੇ ਹੋਣ ਦੀ ਮੁਹਰ ਲੱਗੀ ਹੋਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

→ ਬੱਚਿਆਂ ਲਈ ਤੋਹਫ਼ੇ ਕਾਗਜ਼ ਵਿਚ ਲਪੇਟੇ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਾਗਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਟੇਪ ਨਹੀਂ ਲਗਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ 1 ਪੈਕਟ ਨੂੰ ਖੋਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਲਪੇਟਣ ਲਈ ਵਰਤੇ ਗਏ ਕਾਗਜ਼ ਨੂੰ ਫਿਰ ਵਰਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਅਤੇ ਫਲਾਂ ਆਦਿ ਦੇ ਛਿਲਕੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੇ ਖਾਣ ਲਈ ਵਰਤੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਘਰੇਲੁ ਫ਼ਰਨੀਚਰ ਅਤੇ ਦੂਸਰੇ ਸਾਜ਼-ਸਮਾਨ ਦੀ ਮੁਰੰਮਤ ਕਰਾਉਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 18 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-5)

→ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੇ ਬਣੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਪੁਨਰ ਚੱਕਰਣ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਹੈ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਪੁਨਰ-ਚੱਕਰਣ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਬਹੁਤ ਉੱਚੇ ਤਾਪਮਾਨ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਪੁਨਰ-ਚੱਕਰਣ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਤੋਂ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲਾ ਧੂੰਆਂ ਅਤੇ ਗੈਸਾਂ ਵਾਯੂਮੰਡਲ ਨੂੰ ਦੂਸ਼ਿਤ ਕਰ ਦਿੰਦੇ ਹਨ ।

→ ਇਹ ਸਿਫ਼ਾਰਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਸਕੂਲੀ ਬੱਚੇ ਸਕੂਲ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਆਲੇਦੁਆਲੇ ਤੋਂ ਪਲਾਸਟਿਕ ਦੀਆਂ ਸੁੱਟੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਿਆਂ ਕਰਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਵੇਚ ਕੇ ਜਿਹੜੀ ਰਾਸ਼ੀ ਮਿਲੇ, ਉਹ ਸਕੂਲ ਆਦਿ ਦੀ ਬਿਹਤਰੀ ਲਈ ਵਰਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

→ ਕੁੱਝ ਪਲਾਸਟਿਕ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਮੋਟਾ ਪਾਲੀਥੀਨ (Thick Polythene) ਜਿਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਦੁੱਧ ਦੀਆਂ ਥੈਲੀਆਂ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਤੋਂ ਵੱਡੇ ਆਕਾਰ ਵਾਲੇ ਥੈਲੇ ਆਦਿ ਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ । ਪਤਲੀ ਪਾਲੀਥੀਨ ਨੂੰ ਪਿੰਜ ਕੇ, ਇਸਦੀ ਵਰਤੋਂ ਗੁੱਡੀਆਂ (Dolls), ਆਦਿ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਮੋਟੀ ਪਾਲੀਥੀਨ ਦੇ ਟੁਕੜਿਆਂ ਆਦਿ ਨੂੰ ਸਿਉਂ (Stitch) ਕੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਬਾਹਰਲੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਨੂੰ ਚੁੱਕਣ ਲਈ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

→ ਪੁਨਰ-ਚੱਕਰਣ ਤੋਂ ਭਾਵ ਹੈ ਪੁਰਾਣੀਆਂ ਵਸਤਾਂ (ਕਚਰੇ) ਨੂੰ ਕੱਚੇ ਮਾਲ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵਰਤਦਿਆਂ ਹੋਇਆਂ, ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਸਤਾਂ ਤੋਂ ਨਵੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਤਿਆਰ ਕਰਨੀਆਂ ; ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਵਰਤੇ ਹੋਏ ਕਾਗਜ਼ ਦਾ ਪੁਨਰ ਚੱਕਰਣ ਕਰਕੇ ਬਿਲਕੁਲ ਨਵਾਂ ਕਾਗਜ਼ ਤਿਆਰ ਕਰਨਾ । ਰੱਦੀ ਕਾਗਜ਼ਾਂ ਦਾ ਪੁਨਰ ਚੱਕਰਣ ਕਰਕੇ ਇਸ ਤੋਂ ਅਖ਼ਬਾਰੀ ਕਾਗਜ਼, ਗੱਤਾ ਅਤੇ ਹਰ ਕਿਸਮ ਦੇ ਪੈਕਿੰਗ ਕਰਨ ਲਈ ਡੱਬੇ ਆਦਿ ਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਪੁਨਰ ਚੱਕਰਣ ਨੂੰ ਹਮੇਸ਼ਾ ਹੀ ਤਰਜੀਹ ਦਿੱਤੀ ਜਾਂਦੀ ਰਹੀ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਆਪਣੇ ਕੁਦਰਤੀ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਸੁਰੱਖਿਅਤ ਰੱਖ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 18 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-5)

→ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੀ ਰਹਿੰਦ-ਖੂੰਹਦ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਾਗਜ਼ ਅਤੇ ਗੱਤਾ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

→ ਧਾਨ ਦੀ ਫਕ (Rice husk) ਅਤੇ ਮੂੰਗਫਲੀ ਦੇ ਛਿਲਕੇ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਈਂਧਨ ਵਜੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

→ ਵਾਟਰ ਵਰਕਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਗਾਧ ਅਤੇ ਤਾਪ ਬਿਜਲੀ ਘਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਉੱਡਣੀ ਰਾਖ ਤੋਂ ਭਵਨ ਆਦਿ ਦੇ ਨਿਰਮਾਣ ਵਿਚ ਵਰਤਣ ਵਾਲੇ ਪਦਾਰਥ ਤਿਆਰ ਕੀਤੇ ਜਾ ਸਕਦੇ ਹਨ ।

→ ਜਲ-ਹਾਇਆਸਿੰਥ (Water hyacinth) ਵਰਗੇ ਪੌਦਿਆਂ ਨੂੰ ਬਾਇਓਗੈਸ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 17 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-4)

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PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 17 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-4)

→ ਵਾਤਾਵਰਣ ਵਿਚ ਆਈ ਅਣਇੱਛਤ ਤਬਦੀਲੀ ਜਿਹੜੀ ਮਨੁੱਖੀ ਸਿਹਤ ਉੱਤੇ ਦੁਸ਼ਟ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦੀ ਹੋਵੇ, ਉਸ ਤਬਦੀਲੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਜਿਹੜਾ ਵੀ ਪਦਾਰਥ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਉਤਪੰਨ ਕਰੇ, ਉਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਕ ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦੀਆਂ ਕਈ ਕਿਸਮਾਂ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਹਵਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਜਲ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਤੋਂ ਪ੍ਰਦੁਸ਼ਣ, ਸ਼ੋਰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਅਤੇ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਹਨ ।

→ ਹਵਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਪਥਰਾਟ ਈਂਧਨਾਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਕੋਲਾ, ਪੈਟਰੋਲ ਅਤੇ ਕੁਦਰਤੀ ਗੈਸ ਦੇ ਦਹਿਨ ਕਾਰਨ ਫੈਲਦਾ ਹੈ । ਪਥਰਾਟ ਈਂਧਨ ਦੇ ਬਲਣ ਨਾਲ ਸਲਫਰ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ, ਕਾਰਬਨ ਮੋਨੋਆਕਸਾਈਡ ਅਤੇ ਨਾਈਟ੍ਰੋਜਨ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਵਰਗੀਆਂ ਨੁਕਸਾਨਦਾਇਕ ਗੈਸਾਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਕਾਬਨ ਮੋਨੋਆਕਸਾਈਡ ਅਜਿਹੀ ਗੈਸ ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਸਾਹ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿਚ ਦੋਸ਼ ਪੈਦਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 17 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-4)

→ ਸਲਫਰ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਗੈਸ ਨੂੰ ਮਨੁੱਖੀ ਸਰੀਰ ਦੇ ਕੋਮਲ ਅੰਗ ਸੋਖ ਲੈਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸਦੇ ਕਾਰਨ ਕੰਨਾਂ, ਗਲੇ ਅਤੇ ਅੱਖਾਂ ਉੱਤੇ ਦੁਸ਼ਟ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੈਂਦੇ ਹਨ ।

→ ਘਰਾਂ ਦੇ ਰਸੋਈ-ਘਰਾਂ ਤੋਂ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲਾ ਧੂਆਂ ਹਵਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਪੈਦਾ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਧੂੰਆਂ ਰਹਿਤ ਚੁੱਲ੍ਹਿਆਂ (Smokeless chulahas) ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

→ ਧਰਤੀ ਦੇ ਲਾਗੇ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਜਾਂ ਰੋਕਣ ਦੇ ਲਈ ਕਾਰਖ਼ਾਨਿਆਂ ਦੀਆਂ ਚਿਮਨੀਆਂ ਕਾਫ਼ੀ ਉੱਚੀਆਂ ਹੋਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਭੱਠੀਆਂ ਦੀਆਂ ਚਿਮਨੀਆਂ ਵਿਚ ਝਾਂਵੇ (Scrubbers) ਲਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਤਾਂ ਜੋ ਸਲਫਰ ਡਾਈਆਕਸਾਈਡ ਨੂੰ ਹਵਾ ਵਿਚ ਦਾਖਲ ਹੋਣ ਤੋਂ ਰੋਕਿਆ ਜਾ ਸਕੇ ।

→ ਕਾਰਖਾਨਿਆਂ, ਘਰਾਂ ਵਿਚੋਂ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲੇ ਵਹਿਣ, ਸ਼ਹਿਰੀ ਸੀਵੇਜ ਅਤੇ ਖੇਤੀ ਬਾੜੀ ਦੇ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹਨ ।

→ ਦੂਸ਼ਿਤ ਹੋਇਆ ਤਾਜ਼ਾ ਪਾਣੀ ਪੀਣ ਲਈ ਠੀਕ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ | ਅਜਿਹੇ ਪਾਣੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਨਾਲ ਪੀਲੀਆ, ਹੈਜ਼ਾ, ਹੈਪੇਟਾਈਟਸ, ਦਸਤ ਅਤੇ ਪੇਚਿਸ਼ ਵਰਗੀਆਂ ਬੀਮਾਰੀਆਂ ਲੱਗ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਲੋੜ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪੌਸ਼ਟਿਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਨਾਲ ਜਿਹੜੀ ਹਾਲਤ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਸੁਪੋਸ਼ਣ (Europhication) ਆਖਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਹਾਲਤ ਉਸ ਵਕਤ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਦੁੱਧ ਦੇ ਪਲਾਂਟਾਂ, ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਡਿੱਬਾ ਬੰਦ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਉਦਯੋਗਾਂ, ਕਾਗਜ਼ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਖਾਨਿਆਂ ਤੋਂ ਨਿਕਲਣ ਵਾਲਾ ਕਾਰਬਨੀ ਕਚਰਾ, ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਉੱਗਣ ਵਾਲੀ ਕਾਈ ਦੀ ਉਤਪਾਦਿਕਤਾ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਵਾਧਾ ਕਰ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਅਜਿਹੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਤੇ ਹਰੀ ਕਾਈ (Green algae) ਦੀ ਭਰਮਾਰ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਅਲਗੀ ਦੀ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ਭਰਮਾਰ ਵਾਲੀ ਹਾਲਤ ਨੂੰ ਐਲਗੀਦਾ ਬਲੂਮ/ਖਿੜਣਾ (Algal bloom) ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਇਸ ਐਲਗੀ ਦੇ ਮਰਨ ਉਪਰੰਤ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਘਟਣ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਨਿਖੇੜਕਾਂ (Decomposers) ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਆਕਸੀਜਨ ਦੀ ਲੋੜ ਪੈਂਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਆਕਸੀਜਨ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਘੱਟ ਜਾਂਦੀ ਹੈ, ਇਸ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਪਾਣੀ ਵਿਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵਾਂ ਤੇ ਮਾੜਾ ਅਸਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਲਈ ਖ਼ਤਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਐਲਗਲ ਬਲੁਮ ਨੂੰ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਤੋਂ ਰੋਕਣ ਦੇ ਲਈ ਸੀਵੇਜ ਦਾ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਰਪਣ ਕਰਕੇ ਉਸ ਵਿਚਲੇ ਪੌਸ਼ਟਿਕ ਤੱਤ ਕੱਢ ਦੇਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਜਾਂ ਨਿਰਪਤ ਕੀਤੇ ਹੋਏ ਇਸ ਪਾਣੀ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੀ ਸਿੰਜਾਈ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ਜਾਂ ਘੱਟ ਡੂੰਘੇ ਛੱਪੜਾਂ ਵਿਚ ਜਲ-ਜਲੀ ਪੌਦੇ ਉਗਾਉਣ ਵਾਸਤੇ ਨਿਰੂਪਿਤ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਵਰਤਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਦਰਿਆਵਾਂ, ਝੀਲਾਂ ਜਾਂ ਛੱਪੜਾਂ ਵਿੱਚ ਕੱਪੜੇ ਧੋਣ ਦੀ ਮਨਾਹੀ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 17 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-4)

→ ਸੀਵੇਜ ਨਿਰੂਪਣ ਪਲਾਂਟ ਲਗਾਏ ਜਾਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਸੀਵੇਜ ਦਾ ਨਿਰੂਪਣ ਦੇ ਬਾਅਦ ਹੀ ਇਸ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਨਦੀਆਂ ਅਤੇ ਝੀਲਾਂ ਵਿਚ ਛੱਡਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਠੋਸ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਜੈਵਿਕ ਵਿਘਟਨ ਨਾ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੋਵੇ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਟੋਇਆਂ ਅਤੇ ਨੀਵੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਦੀ ਭਰਾਈ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

→ ਪਾਣੀ ਦੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਸੰਬੰਧੀ ਜਨਤਾ ਵਿਚ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

→ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਖੁਰਣ ਨੂੰ ਰੋਕਣ ਦੇ ਲਈ ਅਤੇ ਹਰਿਆਲੀ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਨਦੀਆਂ, ਦਰਿਆਵਾਂ ਆਦਿ ਦੇ ਕਿਨਾਰਿਆਂ ‘ਤੇ ਰੁੱਖ ਲਗਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ।

→ ਤੇਜ਼ਾਬੀ ਮੀਂਹ, ਰਸਾਇਣਿਕ ਖਾਦਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਨਾਲੋਂ ਵੱਧ ਵਰਤੋਂ, ਕੈਡਮੀਅਮ ਅਤੇ ਨਿਕਲ ਆਦਿ ਮਿੱਟੀ ਦੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਲਈ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰ ਹਨ ।

→ ਤਾਂਬੇ, ਲੋਹੇ ਅਤੇ ਟਿਨ ਵਰਗੇ ਠੋਸ ਫੋਕਟ-ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਮੀਨ ਵਿਚ ਨਹੀਂ ਦੱਬਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ।

→ ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਨਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਜੀਵਨਾਸ਼ਕਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਜੈਵਿਕ ਨਿਯੰਤਰਣ ਕੀਤਾ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

→ ਠੋਸ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਪੁਨਰ-ਚੱਕਰਣ ਕਰਕੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਧਾਤਾਂ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰ ਲੈਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਮਨੁੱਖੀ ਜੀਵਨ ਦੀ ਉਤਮਤਾ ਵਿਚ ਸ਼ੋਰ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਦੁਸ਼ਟ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਮਸ਼ੀਨਾਂ, ਹਵਾਈ ਜਹਾਜ਼, ਮੋਟਰਾਂ, ਕਾਰਾਂ, ਦੋ ਪਹੀਆ ਵਾਹਨ ਅਤੇ ਪਟਾਖੇ ਆਦਿ ਉੱਚੀ ਅਵਾਜ਼ ਪੈਦਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪੈਦਾ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਸ਼ੋਰ ਜੀਵਨ ਦੀ ਉਤਮਤਾ ਉੱਪਰ ਭੈੜੇ ਅਸਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਸ਼ੋਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ਸਿਰਦਰਦ ਅਤੇ ਚਿੜਚਿੜਾਪਨ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜ਼ਿਆਦਾ ਸ਼ੋਰ ਦੇ ਕਾਰਨ ਕੰਨਾਂ ਦੇ ਪਰਦੇ ਪਾਟ ਸਕਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਮਨੁੱਖ ਸੁਣਨ ਦੀ ਸ਼ਕਤੀ ਗੁਆ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

→ ਜਨ ਸੂਚਨਾ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਨੂੰ ਧੀਮਾ ਰੱਖਿਆ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

→ ਸ਼ੋਰ ਨੂੰ ਘੱਟ ਕਰਨ ਦੇ ਮਨੋਰਥ ਨਾਲ ਸੜਕਾਂ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਪੌਦੇ ਲਗਾਉਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ । ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਨਾਲ ਸ਼ੋਰ ਦੀ ਤੀਬਰਤਾ ਘਟਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਧੀ ਨੂੰ ਹਰਾ ਕੱਜਣ ਜਾਂ ਨ ਮਫ਼ਲਰ (Green Muffler) ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਆਮ ਹਾਲਤਾਂ ਵਿਚ ਉੱਚੀ ਆਵਾਜ਼ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹਾਰਨਾਂ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਵਜਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ।

→ ਸ਼ੋਰ ਪੈਦਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਖਾਨੇ, ਹਵਾਈ ਅੱਡੇ ਅਤੇ ਰੇਲਵੇ ਸਟੇਸ਼ਨ ਆਦਿ ਆਬਾਦੀ ਤੋਂ ਕਾਫ਼ੀ ਦੂਰ ਹੋਣੇ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ ।

→ ਸਕੂਲਾਂ, ਕਾਲਜਾਂ ਅਤੇ ਹਸਪਤਾਲਾਂ ਦੇ ਨੇੜੇ ਦੇ ਕੁੱਝ ਖੇਤਰ ਨੂੰ ਚੁੱਪ ਖੇਤਰ (Silent Zone) ਵਜੋਂ ਘੋਸ਼ਿਤ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਜਾਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

→ ਪਰਾਵੈਂਗਣੀ ਵਿਕੀਰਣਾਂ (Ultra-violet radiation) ਜਾਂ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਦੁਆਰਾ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਨੂੰ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ (Radiation Pollution) ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 17 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-4)

→ ਕੁੱਝ ਖਾਸ ਕਿਸਮ ਦੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੁਆਰਾ ਪੈਦਾ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਨੂੰ ਰੇਡੀਓ ਐਕਟਿਵੀਟੀ (Radioactivity) ਆਖਦੇ ਹਨ ।

→ ਲਗਾਤਾਰ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਦੇ ਅੱਗੇ ਰਹਿਣ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ ਪੈਦਾ ਹੋ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਜਣਨ ਸ਼ਕਤੀ ਵਿਚ ਅਤੇ ਜੀਨਜ਼ ਵਿਚ ਤਬਦੀਲੀ ਆ ਸਕਦੀ ਹੈ । ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪੈਦਾ ਹੋਏ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਦਾ ਸੰਚਾਰ । ਇਕ ਪੀੜੀ ਤੋਂ ਅਗਲੀ ਪੀੜੀ ਤਕ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

→ ਐਟਮੀ ਭੱਠੀਆਂ ਮਨੁੱਖੀ ਆਬਾਦੀਆਂ ਤੋਂ ਕਾਫ਼ੀ ਦੂਰੀ ‘ਤੇ ਸਥਾਪਿਤ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ ।

→ ਨਿਊਕਲੀ ਫੋਕਟ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਕਰਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਰੂਪਣ ਕਰਨਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

→ ਜਿਹੜੇ ਲੋਕ ਰੇਡੀਓ ਐਕਟਿਵ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਅਜਿਹੀ ਪੋਸ਼ਾਕ ਪਹਿਣਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਉੱਤੇ ਰੇਡੀਏਸ਼ਨ/ਰੇਡੀਓ ਐਕਟਿਵੀਟੀ ਦਾ ਦੁਸ਼ਟ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾ ਪੈ ਸਕੇ । ਨਿਊਕਲੀ ਊਰਜਾ ਪਲਾਂਟਾਂ ਵਿਚ ਦੁਰਘਟਨਾ ਸੰਬੰਧੀ ਢੁੱਕਵੇਂ ਅਤੇ ਅਸਰਦਾਰ ਪ੍ਰਬੰਧ ਕੀਤੇ ਜਾਣੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹਨ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 16 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-3)

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PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 16 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-3)

→ ਖਪਤ (Consumption) ਦੇ ਢਾਂਚੇ ਵਿਚ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਤਬਦੀਲੀਆਂ ਪੈਦਾ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ । ਖਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਵਿਚ ਵਾਧੇ ਦੇ ਕਈ ਕਾਰਣ, ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਜੀਵਨ ਸ਼ੈਲੀ ਵਿਚ ਪਰਿਵਰਤਨ, ਵਰਤੋ ਅਤੇ ਸੁੱਟੋ ਦੀ ਪਾਲਿਸੀ ਅਤੇ ਮਾਰਕੀਟ ਵਿਚ ਮੁਕਾਬਲੇ ਦੀਆਂ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਆਦਿ ਹਨ ।

→ ਖਪਤਵਾਦ ਨਾਲ ਜਿਹੜੀਆਂ ਸਮੱਸਿਆਵਾਂ ਜੁੜੀਆਂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਉਰਜਾ ਦਾ ਸੰਕਟ, ਪਾਣੀ, ਹਵਾ ਅਤੇ ਮਿੱਟੀ ਦਾ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ, ਓਜ਼ੋਨ ਦੀ ਪਰਤ ਦਾ ਪਤਲਿਆਂ ਹੋਣਾ ਭਾਵ ਓਜ਼ੋਨ ਪੱਟੀ ਦਾ ਨਸ਼ਟ ਹੋਣਾ, ਵਿਸ਼ਵ-ਤਾਪਨ, ਰੋਗਾਂ ਦਾ ਫੈਲਾਓ, ਸਿਹਤ ਸੰਬੰਧੀ ਖ਼ਤਰੇ ਅਤੇ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਨਿਪਟਾਰਾ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹਨ ।

→ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਬਚਾਅ ਦਾ ਹੱਲ ਹੈ-

  1. ਅਸੀਂ ਪਾਲੀਥੀਨ ਦੇ ਲਿਫਾਫਿਆਂ ਦੀ ਬਜਾਏ ਕਾਗ਼ਜ਼ ਦੇ ਲਿਫਾਫੇ ਵਰਤ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।
  2. ਪੈਟਰੋਲ ਦੀ ਜਗਾ ਬਾਇਓ ਗੈਸ ਜਾਂ ਬਾਇਓ ਡੀਜ਼ਲ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾ ਸਿਰਫ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਉੱਤੇ ਹੀ ਕੰਟਰੋਲ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਅਸੀਂ ਆਪਣੀਆਂ ਆਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪੀੜੀਆਂ ਦੇ ਲਈ ਪਥਰਾਟ ਈਂਧਨ ਬਚਾ ਕੇ ਵੀ ਰੱਖ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ।

→ ਚਮੜੇ ਦੀ ਥਾਂ ਪੱਲੀਵਿਨਾਇਲ ਕਲੋਰਾਈਡ (Polyvinyl Chloride) ਤੇ ਬਿਨਾਂਬੁਣੇ ਹੋਏ/ ਅਬੁਣੇ ਕੱਪੜੇ (Un-woven fabrics) ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ ।

→ ਮੁਰਦਿਆਂ ਨੂੰ ਜਲਾਉਣ ਦੀ ਪੁਰਾਣੀ ਵਿਧੀ ਨੂੰ ਤਿਆਗ ਕੇ ਬਿਜਲਈ ਦਾਹ-ਭੱਠੀ (Crematonium) ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਇਕ ਤਾਂ ਲੱਕੜ ਦੀ ਬੱਚਤ ਹੋਵੇਗੀ ਅਤੇ ਦੂਸਰਾ ਵਾਯੂ-ਮੰਡਲ ਦੂਸ਼ਿਤ ਵੀ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ ।

PSEB 12th Class Environmental Education Notes Chapter 16 ਵਾਤਾਵਰਣੀ ਕਿਰਿਆ (ਭਾਗ-3)

→ CNG ਕੰਪਰੈਸਡ/ਨਿਪੀੜਤ ਨੈਚੁਰਲ ਗੈਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਪੈਟਰੋਲ ਅਤੇ ਡੀਜ਼ਲ ਦੀ ਥਾਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਨਾਲ ਵਾਤਾਵਰਣ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਨਹੀਂ ਫੈਲਦਾ ।

→ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਚੁੱਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਬਜਾਏ ਸੋਲਰ ਚੁੱਲ੍ਹਿਆਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ ।

→ ਵਿਅਰਥ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਨੂੰ ਘਟਾਉਣ ਦਾ ਹੱਲ ਵੀ ਹੈ-

  1. ਅਲਕੋਹਲ ਰਹਿਤ ਪੇਅ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੇ ਵਾਸਤੇ ਡੱਬਿਆਂ (Cans) ਦੀ ਬਜਾਏ ਸ਼ੀਸ਼ੇ ਦੀਆਂ ਬੋਤਲਾਂ ਵਰਤਣੀਆਂ ਚਾਹੀਦੀਆਂ ਹਨ ।
  2. ਦੁੱਧ ਨੂੰ ਪੈਕ ਕਰਨ ਲਈ ਪਾਲੀਪੈਕਾਂ (Polypacks) ਦੀ ਥਾਂ ਕੱਚ ਦੀਆਂ ਬੋਤਲਾਂ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਣੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਦੂਸ਼ਣ ਨੂੰ ਘਟਾਉਣ ਸੰਬੰਧੀ ਉਪਾਅ-

  • ਕਲੋਰੋਫਲੋਰੋ ਕਾਰਬਨਜ਼ (CFCs) ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਨੂੰ ਨਿਊਨਤਮ ਪੱਧਰ ‘ਤੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾਵੇ ।
  • ਹਾਨੀਕਾਰਕ ਜੀਵਾਂ ਨੂੰ ਨਸ਼ਟ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਡੀ. ਡੀ. ਟੀ. ਅਤੇ ਬੀ. ਐੱਚ. ਸੀ, ਵਰਗੇ ਜ਼ਹਿਰੀਲੇ ਪਦਾਰਥ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨ ਦੀ ਥਾਂ ਬਾਇਓ ਪੈਂਸਟੀਸਾਈਡਜ਼ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਕਿਉਂਕਿ ਡੀ. ਡੀ. ਟੀ. ਭੋਜਨ ਲੜੀ ਵਿਚ ਦਾਖਿਲ ਹੋ ਕੇ ਮਨੁੱਖਾਂ ਵਿਚ ਕਈ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਦੋਸ਼ ਪੈਦਾ ਕਰ ਦਿੰਦੀ ਹੈ ।