PSEB 12th Class History Notes Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

→ प्रारंभिक जीवन (Early Career)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था-

→ आपके पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी और माता जी का नाम गंगा देवी था-

→ आपके घर पाँच पुत्रों तथा एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया—आप 1606 ई० में गुरुगद्दी पर विराजम्प्रन हुए।

→ गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ कारण (Causes)-मुग़ल बादशाह जहाँगीर इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को विकसित होता नहीं देख सकता था-

→ जहाँगीर ने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था-

→ गुरु अर्जन देव जी ने स्वयं नई नीति अपनाने का गुरु हरगोबिंद जी को आदेश दिया था।

→ विशेषताएँ (Features)-गुरु हरगोबिंद जी ने सांसारिक तथा धार्मिक सत्तां का प्रतीक मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की-

→ गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना का संगठन किया गया-अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया गया-

→ गुरु जी राजसी ठाठ-बाट से रहने लगे और उन्होंने राजनीतिक प्रतीकों को अपना लिया-अमृतसर शहर की किलेबंदी की गई-

→ लोहगढ़ दुर्ग का निर्माण करवाया गया—गुरु साहिब ने अपने दैनिक जीवन में अनेक परिवर्तन किए।

→ महत्त्व (Importance)-सिख संत सिपाही बन गए—सिखों के परस्पर भाईचारे में वृद्धि हुई-

→ सिख धर्म का प्रचार और प्रसार बढ़ा-सिखों तथा मुग़लों के संबंधों में तनाव और बढ़ गया—नई नीति ने खालसा पंथ की स्थापना का आधार तैयार किया।

→ गुरु हरगोबिंद जी और जहाँगीर (Guru Hargobind Ji and Jahangir)-जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को 1606 ई० में बंदी बना लिया उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में रखा गया-

→ गुरु साहिब के बंदी काल के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है- जब गुरु साहिब को रिहा किया गया तो उनकी जिद्द पर वहाँ बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा-

→ इस कारण गुरु जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा—रिहाई के बाद गुरु साहिब के जहाँगीर के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रहे।

→ गुरु हरगोबिंद जी और शाहजहाँ (Guru Hargobind Ji and Shah Jahan)-1628 ई० में शाहजहाँ के मुग़ल बादशाह बनते ही मुग़ल-सिख संबंध पुनः बिगड़ गए-

→ शाहजहाँ ने अपनी कट्टरतापूर्ण कारवाइयों से सिखों को अपने विरुद्ध कर लिया-1634 ई० में मुग़लों तथा सिखों में प्रथम लड़ाई अमृतसर में हुई—इसमें सिख विजयी रहे-

→ मुग़लों तथा सिखों के मध्य हुई लहरा, करतारपुर और फगवाड़ा की लड़ाइयों में भी सिखों की जीत हुई—इन विजयों से गुरु हरगोबिंद जी की ख्याति दूर दूर तक फैल गई।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नगर बसाया उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दस वर्ष यहाँ व्यतीत किए-

→ ज्योति जोत समाने से पूर्व उन्होंने हर राय जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-गुरु हरगोबिंद जी 3 मार्च, 1645 ई० को कीरतपुर साहिब में ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 6 गुरु अर्जन देव जी और उनका बलिदान

→ आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties): गुरु अर्जन देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1563 ई० को गोइंदवाल साहिब में हुआ–

→ आपके पिता जी का नाम गुरु रामदास जी और माता जी का नाम बीबी भानी था-आपका विवाह मऊ गाँव के वासी कृष्ण चंद की सुपुत्री गंगा देवी जी से हुआ-आप 1581 ई० में गुरुगद्दी पर विराजमान हुए-

→ आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का आपके बड़े भाई पृथी चंद ने कड़ा विरोध किया-आपको नक्शबंदी संप्रदाय तथा ब्राह्मण वर्ग का भी कड़ा विरोध सहना पड़ा-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी आपसे नाराज़ था।

→ गरु अर्जन देव जी के अधीन सिख पंथ का विकास (Development of Sikhism under Guru Arjan Dev Ji): गुरु अर्जन देव जी ने अपने गुरुगद्दी काल दौरान सिख पंथ के विकास के लिए बहुपक्षीय कार्य किए-

→ उनके गुरु काल में हरिमंदिर साहिब का निर्माण 1588 ई० में आरंभ करवाया गया-इसका निर्माण कार्य 1601 ई० में पूर्ण हुआ-

→ 1590 ई० में तरनतारन, 1593 ई० में जालंधर जिला में करतारपुर तथा 1595 ई० में हरगोबिंदपुर नामक नगरों की स्थापना की गई-

→ आदि ग्रंथ साहिब जी का संकलन गुरु अर्जन देव जी का सबसे महान् कार्य था-यह महान् कार्य 1604 ई० में पूर्ण हुआ-गुरु अर्जन देव जी ने मसंद प्रथा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया-

→ गुरु साहिब ने सिखों को अरब देशों के साथ घोड़ों का व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया- उन्होंने अपने उत्तराधिकारी की नियुक्ति कर सिख पंथ के द्वार खुले रखे।

→ गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji): गुरु अर्जन देव जी के बलिदान से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ कारण (Causes)-जहाँगीर बड़ा ही कट्टर सुन्नी मुसलमान था–सिख पंथ की हो रही उन्नति उसके लिए असहनीय थी-गुरु अर्जन देव जी के बड़े भाई पृथी चंद ने गुरुगद्दी की प्राप्ति के लिए षड्यंत्र आरंभ कर दिए थे-लाहौर का दीवान चंदू शाह भी अपने अपमान का गुरु साहिब से बदला लेना चाहता था-

→ नक्शबंदियों ने जहाँगीर को गुरु जी के विरुद्ध खूब भड़काया-गुरु अर्जन देव जी द्वारा शहज़ादा खुसरो की सहायता उनके बलिदान का तत्कालीन कारण बनी।

→ बलिदान (Martyrdom)- जहाँगीर के आदेश पर गुरु अर्जन देव जी को 24 मई, 1606 ई० को बंदी बनाया गया-उन्हें 2 लाख रुपये जुर्माना देने को कहा गया जो गुरु जी ने इंकार कर दिया-30 ‘मई, 1606 ई० को गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया गया।

→ महत्त्व (Importance)- गुरु अर्जन देव जी की शहीदी को सिख इतिहास की एक महान् घटना माना जाता है क्योंकि गुरु अर्जन देव जी शहीदी देने वाले प्रथम सिख गुरु थे, इसलिए उन्हें ‘शहीदों का सरताज’ कहा जाता है-

→ इस शहीदी के परिणामस्वरूप सिख धर्म के स्वरूप में परिवर्तन आ गयागुरु हरगोबिंद जी ने मीरी तथा पीरी नामक नई नीति धारण करने का निर्णय किया-सिख एकता के सत्र में बंधने लगे-सिखों तथा मुग़लों में तनावपूर्ण संबंध स्थापित हो गए-

→ मुग़ल अत्याचारों का दौर प्रारंभ हो गया-सिख धर्म पहले से अधिक लोकप्रिय हो गया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 5 गुरु अंगद देव जी, गुरु अमरदास जी और गुरु रामदास जी के अधीन सिख धर्म का विकास

→ गुरु अंगद देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Angad Dev Ji)-गुरु अंगद देव जी का जन्म 31 मार्च, 1504 ई० को मत्ते की सराय नामक गाँव में हुआ-उनका आरंभिक नाम भाई लहणा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम फेरूमल तथा माता जी का नाम सभराई देवी थाआपका विवाह आपके ही गाँव के श्री देवी चंद की सुपुत्री बीबी खीवी जी से हुआ-एक बार आप ज्वाला जी की यात्रा पर गए तो आपने करतारपुर में गुरु नानक देव जी के दर्शन किए-

→ गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर आप उनके अनुयायी बन गए-आपकी अथक सेवा से प्रसन्न होकर गुरु नानक देव जी ने 7 सितंबर, 1539 ई० को आपको गुरु गद्दी सौंप दी।

→ गुरु अंगद देव जी के अधीन सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Angad Dev Ji): गुरु अंगद देव जी ने गुरमुखी लिपि को लोकप्रिय बनाया-गुरु जी ने गुरु नानक साहिब की वाणी को एकत्रित किया-

→ उन्होंने स्वयं 62 शब्दों की रचना की-उन्होंने भाई बाला जी से गुरु नानक देव जी के जीवन के संबंध में एक जन्म साखी लिखवाई-

→ गुरु जी ने लंगर प्रथा का विकास किया-संगत संस्था को और अधिक संगठित किया-उदासी मत का खंडन करके गुरु जी ने सिखमत के अलग अस्तित्व को बनाए रखने में सफलता प्राप्त की-आपने खडूर साहिब के समीप 1546 ई० में गोइंदवाल साहिब नामक नए नगर की स्थापना की-

→ आपने मुग़ल बादशाह हुमायूँ को आशीर्वाद देकर सिखों तथा मुग़लों के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित किए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): अपना अंत समय निकट देखकर गुरु अंगद देव जी ने अमरदास जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-29 मार्च, 1552 ई० को गुरु अंगद देव जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु अमरदास जी का आरंभिक जीवन और कठिनाइयाँ (Early Career and Difficulties of Guru Amar Das ji): गुरु अमरदास जी का जन्म 5 मई, 1479 ई० को जिला अमृतसर के गाँव बासरके में हुआ-

→ आपके पिता जी का नाम तेजभान भल्ला था-आपका विवाह देवी चंद जी की सुपुत्री मनसा देवी जी से हुआ-आप 62 वर्ष की आयु में गुरु अंगद देव जी के अनुयायी बने-आप मार्च, 1552 ई० में सिखों के तीसरे गुरु नियुक्त हुए-

→ उस समय आपकी आयु 73 वर्ष थी-आपको गुरुगद्दी सौंपे जाने का गुरु अंगद देव जी के पुत्रों दासू और दातू ने कड़ा विरोध किया-आपको गुरु नानक देव जी के बड़े सुपुत्र बाबा श्री चंद जी का भी विरोध सहना पड़ा-गुरु अमरदास जी को कट्टर मुसलमानों तथा ब्राह्मण वर्ग के भी कड़े विरोध का सामना करना पड़ा।

→ गुरु अमरदास जी के समय सिख धर्म का विकास (Development of Sikhism Under Guru Amar Das Ji): गुरु अमरदास जी 1552 ई० से 1574 ई० तक गुरगद्दी पर आसीन रहे।

→ गुरु अमरदास जी की गतिविधियों का केंद्र गोइंदवाल साहिब था-गुरु अमरदास जी ने गोइंदवाल साहिब में 84 सीढ़ियों वाली एक बाऊली का निर्माण करवाया-उन्होंने लंगर संस्था का विकास किया-

→ गुरु जी ने गुरु नानक देव जी और गुरु अंगद देव जी की बाणी का संग्रह किया-गुरु अमरदास जी ने स्वयं 907 शब्दों की रचना की-गुरु जी ने दूर-दूर के क्षेत्रों में सिख धर्म के प्रचार के लिए 22 मंजियों की स्थापना की-गुरु जी ने उदासी संप्रदाय का खंडन किया-

→ गुरु अमरदास जी ने समाज में प्रचलित कुप्रथाओं का डट कर विरोध किया-गुरु जी ने सिखों के जन्म, विवाह तथा मृत्यु के अवसरों के लिए विशेष रस्में प्रचलित की-1568 ई० में अकबर के गोइंदवाल साहिब आगमन से सिखों और मुग़लों में मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 1574 ई० में गुरु अमरदास जी ने अपने दामाद भाई जेठा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1574 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

→ गुरु रामदास जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Ram Das Ji): गुरु रामदास जी का जन्म 24 सितंबर, 1534 ई० को चूना मंडी, लाहौर में हआ था-आपका आरंभिक नाम भाई जेठा जी था-

→ आपके पिता जी का नाम हरिदास और माता जी का नाम दया कौर था-आप गुरु अमरदास जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनके अनुयायी बन गए-1553 ई० में आपका विवाह गुरु अमरदास जी की छोटी लड़की बीबी भानी जी के साथ हुआ-1574 ई० में आप गुरु गद्दी पर विराजमान हुए-आप सिखों के चौथे गुरु थे।

→ गुरु रामदास जी के समय सिख मत का विकास (Development of Sikhism under Guru Ram Das Ji): 1577 ई० में गुरु रामदास जी ने रामदासपुरा अथवा अमृतसर की स्थापना की-

→ रामदासपुरा में अमृतसर और संतोखसर नामक दो सरोवरों की खुदवाई का कार्य आरंभ किया गया-सिख मत्त के प्रचार तथा संगतों से धन को एकत्रित करने के लिए मसंद प्रथा आरंभ की गईउदासी संप्रदाय तथा सिखमत में समझौता सिख पंथ के विकास में एक मील पत्थर सिद्ध हुआसंगत, पंगत और मंजी संस्थाओं को जारी रखा गया-मुग़ल बादशाह अकबर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध और दृढ़ हुए।

→ ज्योति जोत समाना (Immersed in Eternal Light): ज्योति जोत समाने से पूर्व, गुरु रामदास जी ने अपने छोटे पुत्र अर्जन देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया-1 सितंबर, 1581 ई० को गुरु जी ज्योति जोत समा गए।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

→ गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन (Early Career of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को राय भोय की तलवंडी में हआ-आपके पिता जी का नाम मेहता कालू तथा माता जी का नाम तृप्ता जी था

→ आपकी बहन का नाम बेबे नानकी था। गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे-गुरु साहिब के आध्यात्मिक ज्ञान से उनके अध्यापक चकित रह गए

→ गुरु नानक देव जी के पिता जी ने उन्हें कई व्यवसायों में लगाने का प्रयत्न किया परंतु गुरु जी ने कोई रुचि न दिखाई

→ 14 वर्ष की आयु में आपका विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया

→ 20 वर्ष की आयु में आप सुल्तानपुर लोधी के मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी करने लगे-सुल्तानपुर लोधी में आपको बेईं नदी में स्नान के दौरान सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई-उस समय आपकी आयु 30 वर्ष की थी।

→ गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji): 1499 ई० में ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा पर निकल पड़े-गुरु साहिब ने कुल 21 वर्ष इन उदासियों अथवा यात्राओं में व्यतीत किए

→ इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता को दूर करना और एक ईश्वर की आराधना का प्रचार करना था-गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में भाई मरदाना के साथ अपनी पहली उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने सैदपुर, तालुंबा, कुरुक्षेत्र, पानीपत, दिल्ली, हरिद्वार, गोरखमता, बनारस, कामरूप, गया, जगन्नाथपुरी, लंका और पाकपटन के प्रदेश की यात्रा की-

→ गुरु नानक देव जी ने 1513-14 ई० में अपनी दूसरी उदासी आरंभ की-इस उदासी में गुरु जी ने पहाड़ी रियासतों, कैलाश पर्वत, लद्दाख, कश्मीर, हसन अब्दाल और स्यालकोट की यात्रा की-

→ 1517 ई० में आरंभ की गई अपनी तृतीय उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने मुलतान, मक्का, मदीना, बगदाद, काबुल, पेशावर और सैदपुर के प्रदेशों की यात्रा कीइन उदासियों के दौरान गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों लोग उनके अनुयायी बन गए।

→ गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ (Teachings of Guru Nanak Dev Ji): गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल और प्रभावशाली थीं-गुरु जी के अनुसार ईश्वर एक है-

→ वह इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और नाशवान्कर्ता हैं-वह निराकार और सर्वव्यापक है-उनके अनुसार माया मनुष्य के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है-हऊमै (अहं) मनुष्य के सभी दुःखों का मूल कारण है-

→ गुरु जी ने जाति प्रथा तथा खोखले रीति रिवाजों का जोरदार शब्दों में खंडन किया-गुरु जी ने स्त्रियों को समाज में सम्मानजनक स्थान देने के लिए आवाज़ उठाई-गुरु जी द्वारा नाम जपने पर विशेष बल दिया गया-उन्होंने गुरु को मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी माना है।

→ ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light): 22 सितंबर, 1539 ई० को गुरु नानक देव जी ज्योति-जोत समा गए। ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 3 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दशा

→ राजनीतिक दशा (Political Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी दयनीय थी-पंजाब दिल्ली सल्तनत के अधीन था जिस पर लोधी सुल्तानों का शासन था

→ 1469 ई० में दिल्ली सुल्तान बहलोल लोधी ने ततार खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त कियाततार खाँ लोधी सुल्तान के खिलाफ किए गए असफल विद्रोह में मारा गया

→ 1500 ई० में एक नए लोधी सुल्तान सिकंदर लोधी ने दौलत खाँ लोधी को पंजाब का गवर्नर नियुक्त किया- इब्राहीम लोधी के नए सुल्तान बनते ही दौलत खाँ लोधी ने उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचने आरंभ कर दिए

→ दौलत खाँ ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण दिया-बाबर ने 1519 ई० से 1526 ई० तक पंजाब पर पाँच आक्रमण किए

→ अपने पाँचवें आक्रमण के दौरान बाबर ने दौलत खाँ लोधी को हरा कर पंजाब पर अधिकार कर लिया-21 अप्रैल, 1526 ई० को पानीपत की पहली लड़ाई में बाबर ने इब्राहिम लोधी को परास्त किया

→ परिणामस्वरूप पंजाब लोधी वंश के हाथों से निकल कर मुग़ल वंश के हाथों में चला गया।

→ सामाजिक दशा (Social Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की सामाजिक दशा बड़ी ही दयनीय थी

→ समाज हिंदू और मुसलमान नामक दो मुख्य वर्गों में विभाजित था

→ शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण मुसलमानों को विशेष अधिकार प्राप्त थे

→ मुस्लिम समाज उच्च, मध्य तथा निम्न वर्गों में विभाजित था

→ मुस्लिम स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी

→ हिंदू बहुसंख्या में थे, परंतु उन्हें अधिकारों से वंचित रखा गया था-हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था–हिंदू स्त्रियों को पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था

→ समाज का अमीर वर्ग स्वादिष्ट भोजन करता और बहुमूल्य वस्त्र पहनता था

→ निम्न वर्गों का भोजन और वस्त्र साधारण होते थे

→ उस समय शिकार, चौगान, जानवरों की लड़ाइयाँ, शतरंज, नृत्य, संगीत और ताश आदि मनोरंजन के साधन थे

→ शिक्षा मस्जिदों, मदरसों और मंदिरों में प्रदान की जाती थी।

→ आर्थिक दशा (Economic Condition): 16वीं शताब्दी के आरंभ में पंजाब की आर्थिक दशा बहुत अच्छी थी

→ पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था

→ यहाँ की मुख्य फसलें गेहूँ, कपास, जौ, मकई और गन्ना थीं

→ फसलों की पर्याप्त उपज होती थी

→ लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग था

→ उद्योगों में वस्त्र उद्योग सर्वाधिक प्रसिद्ध था

→ चमड़ा, शस्त्र, बर्तन, हाथी दाँत और खिलौने आदि के उद्योग भी प्रचलित थे

→ पशु पालन का व्यवसाय भी किया जाता था

→ पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार बड़ा उन्नत था

→ विदेशी व्यापार अफ़गानिस्तान, ईरान, अरब, सीरिया, तिब्बत और चीन आदि देशों के साथ था

→ लाहौर और मुलतान पंजाब के दो सर्वाधिक प्रसिद्ध नगर थे

→ कम मूल्यों के कारण साधारण लोगों का निर्वाह भी सुगमता से हो जाता था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 2 पंजाब के ऐतिहासिक स्रोत

→ पंजाब के इतिहास संबंधी समस्याएँ (Difficulties Regarding the History of the Punjab): मुस्लिम इतिहासकारों द्वारा लिखे गए फ़ारसी के स्रोतों में पक्षपातपूर्ण विचार प्रकट किए गए हैं—पंजाब में फैली अराजकता के कारण सिखों को अपना इतिहास लिखने का समय नहीं मिला— विदेशी आक्रमणों के कारण पंजाब के अमूल्य ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए-1947 ई० के पंजाब के बँटवारे कारण भी बहुत से ऐतिहासिक स्रोत नष्ट हो गए।

→ स्त्रोतों के प्रकार (Kinds of Sources)-पंजाब के इतिहास से संबंधित स्रोतों के मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ सिखों का धार्मिक साहित्य (Religious Literature of the Sikhs): आदि ग्रंथ साहिब जी से हमें उस काल की सर्वाधिक प्रमाणित ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है। इसका संकलन 1604 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने किया-दशम ग्रंथ साहिब जी गुरु गोबिंद सिंह जी और उनके दरबारी कवियों की रचनाओं का संग्रह है—इसका संकलन भाई मनी सिंह जी ने 1721 ई० में किया-ऐतिहासिक पक्ष से इसमें ‘बचित्तर नाटक’ और ‘ज़फ़रनामा’ सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं.

→ भाई गुरदास जी द्वारा लिखी गई 39 वारों से हमें गुरु साहिबान के जीवन तथा प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों का पता चलता है—गुरु नानक देव जी के जीवन पर आधारित जन्म साखियों में पुरातन जन्म साखी, मेहरबान जन्म साखी, भाई बाला जी की जन्म साखी तथा भाई मनी सिंह जी की जन्म साखी महत्त्वपूर्ण हैं—सिख गुरुओं से संबंधित हुक्मनामों से हमें समकालीन समाज की बहुमूल्य जानकारी प्राप्त होती है—गुरु गोबिंद सिंह जी के 34 हुक्मनामों तथा गुरु तेग़ बहादुर सिंह जी के 23 हुक्मनामों का संकलन किया जा चुका है।

→ पंजाबी और हिंदी में ऐतिहासिक और अर्द्ध-ऐतिहासिक रचनाएँ (Historical and SemiHistorical works in Punjabi and Hindi): ‘गुरसोभा’ से हमें 1699 ई० में खालसा पंथ की स्थापना से लेकर 1708 ई० तक की घटनाओं का आँखों देखा वर्णन मिलता है—गुरसोभा की रचना 1741 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी के दरबारी कवि सेनापत ने की थी—’सिखाँ दी भगतमाला’ से हमें सिख गुरुओं के काल की सामाजिक परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है—इसकी रचना भाई मनी सिंह जी ने की थी—केसर सिंह छिब्बड़ द्वारा रचित ‘बंसावली नामा’ सिख गुरुओं से लेकर 18वीं शताब्दी तक की घटनाओं का वर्णन है—भाई संतोख सिंह द्वारा लिखित ‘गुरप्रताप सूरज ग्रंथ’ तथा रत्न सिंह भंगू द्वारा लिखित ‘प्राचीन पंथ प्रकाश’ का भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में विशेष स्थान है।

→ फ़ारसी में ऐतिहासिक ग्रंथ (Historical Books in Persian): मुग़ल बादशाह बाबर की रचना ‘बाबरनामा’ से हमें 16वीं शताब्दी के प्रारंभ के पंजाब की ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती हैअबुल फज़ल द्वारा रचित ‘आइन-ए-अकबरी’ और ‘अकबरनामा’ से हमें अकबर के सिख गुरुओं के साथ संबंधों का पता चलता है—मुबीद जुलफिकार अरदिस्तानी द्वारा लिखित ‘दबिस्तान-ए-मज़ाहिब’ में सिख गुरुओं से संबंधित बहुमूल्य ऐतिहासिक जानकारी प्राप्त होती है—सुजान राय भंडारी की ‘खुलासत-उत-तवारीख’, खाफी खाँ की ‘मुंतखिब-उल-लुबाब’ और काज़ी नूर मुहम्मद की ‘जंगनामा’ से हमें 18वीं शताब्दी के पंजाब की जानकारी प्राप्त होती है—सोहन लाल सूरी द्वारा रचित ‘उमदत-उततवारीख’ तथा गणेश दास वडेहरा द्वारा लिखित ‘चार बाग़-ए-पंजाब’ में महाराजा रणजीत सिंह के काल से संबंधित घटनाओं का विस्तृत विवरण है।

→ भट्ट वहियाँ (Bhat vahis): भट्ट लोग महत्त्वपूर्ण घटनाओं को तिथियों सहित अपनी वहियों में दर्ज कर लेते थे—इनसे हमें सिख गुरुओं के जीवन, यात्राओं और युद्धों के संबंध में काफ़ी नवीन जानकारी प्राप्त होती है।

→ खालसा दरबार रिकॉर्ड (Khalsa Darbar Records): ये महाराजा रणजीत सिंह के समय के सरकारी रिकॉर्ड हैं—ये फ़ारसी भाषा में हैं और इनकी संख्या 1 लाख से भी ऊपर है—ये महाराजा रणजीत सिंह के काल की घटनाओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं।

→ विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ (Writings of Foreign Travellers and Europeans): विदेशी यात्रियों तथा अंग्रेजों की रचनाएँ भी पंजाब के इतिहास के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं—इनमें जॉर्ज फोरस्टर की ‘ऐ जर्नी फ्राम बंगाल टू इंग्लैंड’, मैल्कोम की ‘स्केच ऑफ़ द सिखस्’, एच० टी० प्रिंसेप की ‘ओरिज़न ऑफ़ सिख पॉवर इन पंजाब’, कैप्टन विलियम उसबोर्न की ‘द कोर्ट एण्ड कैंप ऑफ़ रणजीत सिंह’, सटाईनबख की ‘द पंजाब’ और जे० डी० कनिंघम द्वारा रचित ‘हिस्ट्री ऑफ़ द सिखस्’ प्रमुख हैं।

→ ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के (Historical Buildings, Paintings and Coins): पंजाब के ऐतिहासिक भवन, चित्र तथा सिक्के पंजाब के इतिहास के लिए एक अमूल्य स्रोत हैं—खडूर साहिब, गोइंदवाल साहिब, अमृतसर, तरनतारन, करतारपुर और पाऊँटा साहिब आदि नगरों, विभिन्न दुर्गों, गुरुद्वारों में बने चित्रों तथा सिख सरदारों के सिक्कों से तत्कालीन समाज पर विशेष प्रकाश पड़ता है।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 1 पंजाब की भौतिक विशेषताएँ तथा उनका इसके इतिहास पर प्रभाव

→ पंजाब के विभिन्न नाम (Different Names of the Punjab): पंजाब फ़ारसी भाषा के दो शब्दों ‘पंज’ और ‘आब’ से मिलकर बना है-पंजाब का शाब्दिक अर्थ है पाँच नदियों का प्रदेश-पंजाब को प्राचीन काल में टक देश, ऋग्वैदिक काल में ‘सप्त-सिंधु’, पुराण काल में ‘पंचनद’, यूनानियों द्वारा ‘पैंटापोटामिया’, मध्यकाल में ‘लाहौर सूबा’ तथा अंग्रेजों द्वारा ‘पंजाब प्रांत’ कहा जाता था।

→ पंजाब की भौतिक विशेषताएँ (Physical Features of the Punjab): पंजाब की भौतिक विशेषताओं से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ हिमालय और सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ (The Himalayas and Sulaiman Mountain Ranges): हिमालय पर्वत पंजाब के उत्तर में स्थित है-यह पर्वत आसाम से लेकर अफ़गानिस्तान तक फैला हुआ है-यह पंजाब के लिए वरदान सिद्ध हुआ है-हिमालय पर्वत के फलस्वरूप पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ बन गई है-सुलेमान पर्वत श्रेणियाँ पंजाब के उत्तर-पश्चिम में स्थित हैं – इन्हीं श्रेणियों में खैबर, कुर्रम, बोलान, टोची तथा गोमल नामक दर्रे स्थित हैं।

→ अर्द्ध-पर्वतीय प्रदेश (Sub-Mountainous Region): यह प्रदेश शिवालिक पहाड़ियों और पंजाब के मैदानी भाग के मध्य स्थित है-इसे तराई प्रदेश भी कहा जाता है-इसमें होशियारपुर, काँगड़ा, अंबाला, गुरदासपुर तथा स्यालकोट के प्रदेश आते हैं।

→ मैदानी प्रदेश (The Plains): मैदानी प्रदेश पंजाब का सबसे बड़ा और महत्त्वपूर्ण खंड है-यह प्रदेश सिंध और यमुना नदियों के मध्य स्थित है-इसका अधिकाँश भाग पाँच दोआबों से घिरा हुआ हैइन दोबाओं को बिस्त जालंधर दोआब, बारी दोआब, रचना दोआब, चज दोआब और सिंध सागर दोआब कहा जाता है-पंजाब के मैदानी भाग में सतलुज और घग्घर नदियों के बीच के क्षेत्र को मालवा तथा बांगर कहा जाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का प्रदेश रेगिस्तानी है। अतः यहाँ की जनसंख्या बहुत कम है।

→ भौतिक विशेषताओं का पंजाब के इतिहास पर प्रभाव (Influence of Physical Features on the History of the Punjab): पंजाब पर उसकी भौतिक विशेषताओं के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक प्रभावों से संबंधित मुख्य तथ्य इस प्रकार हैं—

→ राजनीतिक प्रभाव (Political Effects): उत्तर-पश्चिम में विभिन्न दर्रे स्थित होने के कारण पंजाब विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भारत का प्रवेश द्वार बन गया सभी महत्त्वपूर्ण और निर्णायक लड़ाइयाँ इसी क्षेत्र में हुईं-पंजाब के शहरों का राजनीतिक महत्त्व बढ़ गया-पंजाबियों को शताब्दियों तक भारी कष्टों और अत्याचारों का सामना करना पड़ा।

→ सामाजिक प्रभाव (Social Effects): पंजाबियों में वीरता, साहस, कष्ट सहने और बलिदान के विशेष गुण उत्पन्न हो गए-यहाँ पर जातियों तथा उपजातियों की संख्या में वृद्धि हुई-पंजाब में कला और साहित्य के विकास को धक्का लगा।

→ धार्मिक प्रभाव (Religious Effects): पंजाब को हिंदू धर्म की जन्म भूमि कहा जाता हैपंजाब में इस्लाम का प्रसार भारत के अन्य भागों की तुलना में अधिक हुआ-पंजाब की भूमि को सिख धर्म की उत्पत्ति और विकास का श्रेय जाता है।

→ आर्थिक प्रभाव (Economic Effects): पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ होने के कारण पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय कृषि है-पंजाब का आंतरिक तथा विदेशी व्यापार काफ़ी उन्नत हो गयापंजाब में अनेक व्यापारिक नगर अस्तित्व में आए-पंजाबी आर्थिक रूप से काफ़ी समृद्ध हो गए।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

Sociology Guide for Class 11 PSEB ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ Textbook Questions and Answers

I. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 1-15 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇੱਕ ਅਕਾਦਮਿਕ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਰਸਮੀ ਅਧਿਐਨ ਕਿਸ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਕਿਸ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਸੀ ?
ਉੱਤਰ-
ਇੱਕ ਅਕਾਦਮਿਕ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਰਸਮੀ ਅਧਿਐਨ ਫਰਾਂਸ ਯੂਰੋਪ ਵਿੱਚ 19ਵੀਂ ਸ਼ਤਾਬਦੀ ਵਿੱਚ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਉਹਨਾਂ ਤਿੰਨ ਕਾਰਕਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜਿਹੜੇ ਕਿ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਸੁਤੰਤਰ ਰੂਪ ਨੂੰ ਉਭਾਰਨ ਵਿੱਚ ਸਹਾਈ ਹੋਏ ।
ਉੱਤਰ-
ਉਦਯੋਗਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀ, ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਅਤੇ ਨਵਜਾਗਰਣ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਫੈਲਾਅ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਇੱਕ ਸੁਤੰਤਰ ਵਿਸ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਗਿਆਨ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋਏ ਦੋ ਚਿੰਤਕਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਚਾਰਲਸ ਮਾਂਟੇਸਕਿਯੂ (Charles Montesquieu) ਅਤੇ ਜੀਨ ਜੈਕਸ ਰੂਸੋ (Jean Jacques Rousseau) Enlightenment ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਦੋ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਵਿਚਾਰਕ ਸਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਕਿਹੜੇ ਸੰਨ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ?
ਉੱਤਰ-
ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ 1789 ਈ: ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਸ਼ਬਦ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਿਸ ਲਈ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਮੰਨਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜ ਕੁੱਝ ਸਥਿਰ ਨਿਯਮਾਂ ਅਨੁਸਾਰ ਕੰਮ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੱਭਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ ਹੀ ਸਕਾਰਾਤਮਕਵਾਦ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਸਮਾਜਿਕ ਸਟੈਟਿਕਸ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਡਾਇਨਿਮਿਕਸ ਦੀਆਂ ਦੋ ਸ਼ਾਖਾਵਾਂ ਕਿਸ ਨੇ ਦਿੱਤੀਆਂ ਹਨ ? .
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ (Auguste Comte) ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਨੂੰ ਸਮਾਜਿਕ ਸਥੈਤਿਕੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਗਤੀਆਤਮਕਤਾ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪੜਾਵਾਂ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦਾ ਚਾਰਟ ਬਣਾਉ ॥
ਉੱਤਰ-
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਵਰਗ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਕਿਸ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਵਰਗ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ ਕਿ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਕੋਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇੱਕ ਸਮੂਹ ਕੋਲ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
‘ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਮੈਨੀਫੈਸਟੋ’ ਕਿਤਾਬ ਕਿਸਨੇ ਲਿਖੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਿਤਾਬ ‘ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਮੈਨੀਫੈਸਟੋ’ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਲਿਖੀ ਸੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਪੜਾਅ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜਿਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦੇ ਚਾਰ ਮੁੱਖ ਪੱਧਰ ਹਨ-ਆਦਿਮ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ, ਦਾਸਮੂਲਕ ਸਮਾਜ, ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਕਿਸਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਏਕਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਵਰਗੀਕ੍ਰਿਤ ਕੀਤਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਮ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਏਕਤਾ ਦੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਵੰਡਿਆ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੀਆਂ ਗਈਆਂ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਏਕਤਾਵਾਂ ਬਾਰੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਏਕਤਾ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ-ਯਾਂਤਰਿਕ ਏਕਤਾ (Mechanical Solidarity) ਅਤੇ ਆਂਗਿਕ ਏਕਤਾ (Organic Solidarity) ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਚਾਰ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਬਾਰੇ ਦੱਸਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ Zweckrational, Wertrational, affective font s traditional ਕਿਰਿਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਦੁਆਰਾ ਦਰਸ਼ਾਈਆਂ ਗਈਆਂ ਸੱਤਾ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਸੱਤਾ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਿੱਤੇ ਹਨ ਅਤੇ ਉਹ ਹਨ-ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਸੱਤਾ (Traditional Authroity), ਵਿਧਾਨਿਕ ਸੱਤਾ (Legal Authority) ਅਤੇ ਕਰਿਸ਼ਮਈ ਸੱਤਾ (Charismatic Authority) ।

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II. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 30-35 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਗਿਆਨ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਗਿਆਨ ਉਹ ਸਮਾਂ ਸੀ ਜਦੋਂ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਬੌਧਿਕ ਵਿਕਾਸ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਏ । ਇਹ ਸਮਾਂ 17ਵੀਂ-18ਵੀਂ ਸਦੀ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸੀ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਮਸ਼ਹੂਰ ਵਿਚਾਰਕ ਸਨ ਚਾਰਲਸ ਮਾਨਟੇਸਕਿਯੂ ਅਤੇ ਜੀਨ ਜੈਕਸ ਰੂਸੋ । ਇਹ ਵਿਚਾਰਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਸਰਵਉੱਚਤਾ (Supemacy) ਅਤੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਉੱਪਰ ਤਰਕ ਨੂੰ ਉੱਚਾ ਮੰਨਦੇ ਸਨ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਚਾਰਕਾਂ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਪ੍ਰਕਟਨਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਦੇ ਯੋਗ ਉੱਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਧਾਰਮਿਕ ਅਤੇ ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ ਉੱਤੇ ਛੋਟਾ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਮਤੇ ਅਨੁਸਾਰ ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਕਾਲਪਨਿਕ ਸਨ । ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪਰਮਾਤਮਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਝਦਾ ਸੀ । ਧਾਰਨਾ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਚਾਹੇ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨਿਰਜੀਵ ਹਨ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਸਰਵਸ਼ਕਤੀ ਵਿਆਪਕ ਹੈ । ਅਧਿਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ 14ਵੀਂ ਤੋਂ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਬੇਰੋਕ ਨਿਰੀਖਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸਦੀ ਕੋਈ ਸੀਮਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਆਤਮਿਕਤਾ ਦਾ ਪਤਨ ਹੋਇਆ ਜਿਸਦਾ ਦੁਨਿਆਵੀ ਪੱਖ ਉੱਤੇ ਵੀ ਅਸਰ ਹੋਇਆ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਜੀਵਵਾਦ (Animism) ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੀਵਵਾਦ ਇੱਕ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਲੋਕ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਕਰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਪਰਮਾਤਮਾ ਸਿਰਫ਼ ਚਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਜਾਂ ਜੀਣ ਵਾਲੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਸ਼ਬਦ Anima ਦਾ ਅਰਥ ਹੈ ਆਤਮਾ (Soul) ਜਾਂ ਚਾਲ (Movement) । ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਜਾਨਵਰਾਂ, ਪੰਛੀਆਂ, ਧਰਤੀ ਅਤੇ ਹਵਾ ਦੀ ਵੀ ਪੂਜਾ ਕਰਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਮਾਰਕਸਵਾਦ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਗਏ ਵਰਗ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਅਨੁਸਾਰ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦਾ ਉਹ ਸਮੂਹ ਜਿਹੜਾ ਸਮਾਨ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਉਸ ਨੂੰ ਵਰਗ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਦੋ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ-ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਸਮੂਹ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਸਮੂਹ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਕ ਵਰਗ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਸਮਾਨ ਹਿੱਤਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਜਾਗਰੁਕਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਸੇ ਜਾਗਰੁਕਤਾ ਨੂੰ ਹੀ ਅਸੀਂ ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਾਂ | ਵਰਗ ਚੇਤਨਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੀ ਅੱਡ-ਅੱਡ ਵਰਗਾਂ ਨੂੰ ਇਕ-ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਅੱਡ ਕੀਤਾ। ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਪਦਾਰਥਵਾਦ ਨੂੰ ਪਰਿਭਾਸ਼ਿਤ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ ਉਹ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਵਿੱਦਿਆ ਹੈ ਜੋ ਇੱਕ ਅਖੰਡ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਤੇ ਉਸ ਵਿਵਸਥਾ ਦੇ ਕੰਮ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਮੁੱਖ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਇਤਿਹਾਸਿਕ, ਭੌਤਿਕਵਾਦ, ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਸਿਧਾਂਤ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇਹ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਿਧਾਂਤ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥਾਂ ‘ਤੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਅਤੇ ਆਪਣੀ ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਪਹਿਲੇ Chapter ਦੇ ਅੰਤ ਵਿੱਚ ਇਸਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਦਿੱਤੀ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਇੱਕ ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥ ਕ੍ਰਿਆ ਕਰਨ ਦਾ ਹਰੇਕ ਸਥਾਈ, ਅਸਥਾਈ ਤਰੀਕਾ ਹੈ, ਜੋ ਆਦਮੀ ਉੱਪਰ ਬਾਹਰੀ ਦਬਾਅ ਪਾਉਣ ਵਿੱਚ ਸਮਰੱਥ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਾਂ ਦੁਬਾਰਾ ਕਿਆ ਕਰਨ ਦਾ ਹਰੇਕ ਤਰੀਕਾ ਜੋ ਕਿਸੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਆਮ ਰੂਪ ਨਾਲ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਪਰ ਨਾਲ ਹੀ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੋਂ ਸੁਤੰਤਰ ਹੋਂਦ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ।”

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਸਮਾਜਿਕ ਏਕਤਾ (Organic Solidarity) ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮਾਜਿਕ ਏਕਤਾ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਹ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਮੌਜੂਦ ਅੰਤਰਾਂ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ । ਇਹ ਵੱਧ ਜਨਸੰਖਿਆ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਜਿੱਥੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਅਵਿਅਕਤੀਗਤ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤੀਕਾਰੀ ਕਾਨੂੰਨ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਜੈਕਰੈਸ਼ਨਲ ਕ੍ਰਿਆ ਤੋਂ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਸਮਝਦੇ ਹੋ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੈਕਰੈਸ਼ਨਲ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਅਰਥ ਅਜਿਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਉਪਯੋਗਤਾ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿੱਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਅਨੇਕਾਂ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਲਈ ਤਾਰਕਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਨਿਰਦੇਸ਼ਿਤ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਵੱਲ ਹੀ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਬਲਕਿ ਮੁੱਲ ਤੇ ਵੀ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਭਾਵਨਾਤਮਕ ਕ੍ਰਿਆ (Affective Action) ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਇਹ ਉਹ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਹਨ ਜੋ ਮਨੁੱਖੀ ਭਾਵਨਾਵਾਂ, ਸੰਵੇਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਾਈ ਭਾਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਸਾਨੂੰ ਪੇਮ, ਨਫ਼ਰਤ, ਗੁੱਸਾ ਆਦਿ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਤੀ ਜਾਂ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਅਵਸਥਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਪਰੰਪਰਾ ਅਤੇ ਤਰਕ ਦਾ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਵੀਂ ਸਹਾਰਾ ਨਹੀਂ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸੱਤਾ (Authority) ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਹੇਰਕ ਸੰਗਠਿਤ ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਸੱਤਾ ਦੇ ਤੱਤ ਮੂਲ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਸੰਗਠਿਤ ਸਮੂਹ ਵਿੱਚ ਕੁੱਝ ਤਾਂ ਸਾਧਾਰਨ ਮੈਂਬਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕੁੱਝ ਅਜਿਹੇ ਵਿਅਕਤੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਜ਼ਿੰਮੇਵਾਰੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਹੋਰ ਲੋਕਾਂ ਤੋਂ ਵਿਧਾਨਿਕ ਤੌਰ ਉੱਤੇ ਆਦੇਸ਼ ਦੇ ਕੇ ਆਪਣੀ ਗੱਲ ਮੰਨਵਾਉਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਗੱਲ ਮੰਨਵਾਉਣ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਹੀ ਸੱਤਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

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III. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 75-85 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਦੇ ‘ਤਿੰਨ ਪੜਾਵਾਂ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ’ ਬਾਰੇ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਉਦਵਿਕਾਸ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਤਿੰਨ ਪੜਾਅ ਹਨ-ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ, ਅਧਿਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ ਅਤੇ ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਪੜਾਅ | ਅਧਿਆਤਮਿਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਸਾਰੇ ਵਿਚਾਰ ਕਾਲਪਨਿਕ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਸਭ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਅਲੌਕਿਕ ਜੀਵ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮੰਨਦਾ ਸੀ । ਧਾਰਨਾ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਭਾਵੇਂ ਸਭ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨਿਰਜੀਵ ਹਨ ਪਰ ਉਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਉਹੀ ਸ਼ਕਤੀ ਵਿਆਪਕ ਹੈ । ਦੂਜਾ ਪੜਾਅ ਅਧਿਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ ਸੀ ਜੋ 14ਵੀਂ ਤੋਂ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ । ਇਸ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਕ੍ਰਾਂਤਿਕ ਅੰਦੋਲਨ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟਵਾਦ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਨਕਾਰਾਤਮਕ ਸਿਧਾਂਤ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸ ਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਵ ਸਮਾਜਿਕ ਤਬਦੀਲੀ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਬੇਰੋਕ ਨਿਰੀਖਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ਅਤੇ ਨਿਰੀਖਣ ਦੀ ਕੋਈ ਸੀਮਾ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਸਕਾਰਾਤਮਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਉਦਯੋਗਿਕ ਸਮਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਵਿਗਿਆਨ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਅਤੇ ਤਰੱਕੀ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਦਵੰਦ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਯਾਤ੍ਰਿਕ ਏਕਤਾ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਏਕਤਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਰੂਪਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰ ਇੱਕੋ ਜਿਹੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
  2. ਸਾਂਝੇ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਅਤੇ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਏਕਤਾ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹਨ । ਇਸ ਸਮਾਜ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮੂਹਿਕ ਚੇਤਨਾ ਮੌਜੂਦ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  3. ਯਾਤ੍ਰਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਦਮਨਕਾਰੀ ਕਾਨੂੰਨ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ਜਿਨਾਂ ਵਿੱਚ ਅਪਰਾਧੀ ਨੂੰ ਪੂਰੇ ਦੰਡ ਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  4. ਨੈਤਿਕਤਾ ਯਾਤਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਦਾ ਮੂਲ ਆਧਾਰ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਬਣੀ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ ।
  5. ਧਰਮ ਯਾਤ੍ਰਿਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਆਧਾਰ ਹੈ ਅਤੇ ਧਰਮ ਅਨੁਸਾਰ ਹੀ ਆਚਰਨ ਤੇ ਵਿਵਹਾਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਆਂਗਿਕ ਜਾਂ ਸਜੀਵ ਏਕਤਾ ਦੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-

  1. ਆਂਗਿਕ ਜਾਂ ਆਂਗਿਕ ਏਕਤਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਭੇਦੀਕਰਨ ਅਤੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ੀਕਰਨ ਪਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਵਰਗ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।
  2. ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਦਾ ਬੋਲਬਾਲਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਲੋਕ ਆਪਣੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਦੀ ਪੂਰਤੀ ਲਈ ਇੱਕਦੂਜੇ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
  3. ਇਹਨਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸੰਗਠਨ ਅਤੇ ਸਮੂਹ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ਜਿਸ ਕਰਕੇ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤੀਕਾਰੀ ਕਾਨੂੰਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਧਾਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
  4. ਆਂਗਿਕ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਝੌਤਿਆਂ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸੰਬੰਧ ਸਮਾਜਿਕ ਏਕਤਾ ਦਾ ਸਰੋਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਨੌਕਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਨੂੰ ਅਨੁਬੰਧ (Contract) ਉੱਤੇ ਰੱਖਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
  5. ਆਂਗਿਕ ਏਕਤਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਕਾਫੀ ਘੱਟ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।
  6. ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਸਮਾਜ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਧਰਮ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਅਤੇ ਪਰਾਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ ਵਿੱਚ ਭਿੰਨਤਾ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
(i) ਧਰਮ-ਸ਼ਾਸਤਰੀ – ਇਹ ਪੜਾਅ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵੇਲੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜਦੋਂ ਮਨੁੱਖ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਤਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਤੋਂ ਡਰਦਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਉਹ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸੇ ਅਲੌਕਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਨਤੀਜੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵੇਖਦਾ ਸੀ । ਉਹ ਸੋਚਦਾ ਸੀ ਕਿ ਚਾਹੇ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਨਿਰਜੀਵ ਹਨ ਪਰ ਸਭ ਵਿੱਚ ਪਰਮਾਤਮਾ ਮੌਜੂਦ ਹੈ । ਇਹ ਪੜਾਅ ਅੱਗੇ ਤਿੰਨ ਉਪ-ਪੜਾਵਾਂ-ਪ੍ਰਤੀਕ ਪੂਜਨ, ਬਹੁ-ਦੇਵਤਾਵਾਦ ਅਤੇ ਇੱਕ-ਈਸ਼ਵਰਵਾਦ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਹੈ ।

(ii) ਪਰਾ ਭੌਤਿਕ ਪੜਾਅ – ਇਸ ਪੜਾਅ ਨੂੰ ਕਾਮਤੇ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਦਾ ਭਾਂਤਿਕ ਸਮਾਂ ਵੀ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਹ ਪੜਾਅ 5 ਸਦੀਆਂ ਤੱਕ 14ਵੀਂ ਤੋਂ 19ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ । ਇਸ ਨੂੰ ਦੋ ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ ਪਹਿਲੇ ਭਾਗ ਵਿੱਚ ਕ੍ਰਾਂਤਿਕ ਅੰਦੋਲਨ ਆਪਣੇ ਆਪ ਹੀ ਚਲ ਪਿਆ ਅਤੇ ਭਾਂਤਿਕ ਫਿਲਾਸਫ਼ੀ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਟੇਸਟੈਂਟਵਾਦ ਦੇ ਆਉਣ ਨਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈ । ਦੂਜਾ ਭਾਗ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਨਕਾਰਾਤਮਕ ਸਿਧਾਂਤ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਜਿਸਦਾ ਮੁੱਖ ਮੰਤਵ ਸਮਾਜਿਕ ਤਬਦੀਲੀ ਸੀ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਬੇਰੋਕ ਨਿਰੀਖਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਸੋਚਦੇ ਹੋ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਏਗਾ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੀ ਨਹੀਂ, ਅਸੀਂ ਨਹੀਂ ਸੋਚਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਭਵਿੱਖ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਸਾਮਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਬਦਲ ਦੇਵੇਗੀ । ਅਸਲ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਸੁਤੰਤਰ ਮਾਰਕੀਟ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੈ ਜਦਕਿ ਸਾਮਵਾਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਸਰਕਾਰੀ ਨਿਯੰਤਰਨ ਦੇ ਅਧੀਨ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਅੱਜ-ਕਲ੍ਹ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਵੀ ਸਰਕਾਰੀ ਨਿਯੰਤਰਨ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਨਹੀਂ ਕਰਦਾ 1917 ਵਿੱਚ ਰੂਸ ਵਿੱਚ ਵੀ ਰਾਜਸ਼ਾਹੀ ਨੂੰ ਸਾਮਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੇ ਬਦਲ ਦਿੱਤਾ ਸੀ ਪਰ ਉੱਥੇ ਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਬੁਰਾ ਹਾਲ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ । ਇਸ ਕਰਕੇ ਹੀ 1990 ਵਿੱਚ ਉੱਥੇ ਯੂ. ਐੱਸ. ਐੱਸ. ਆਰ. (U.S.S.R.) ਦੇ ਟੁਕੜੇ-ਟੁਕੜੇ ਹੋ ਗਏ ਅਤੇ ਉਹ ਕਈ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਸੀਂ ਕਹਿ ਸਕਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਸਾਮਵਾਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਬਦਲ ਨਹੀਂ ਸਕਦੀ ।

IV. ਨਿਮਨਲਿਖਤ ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਂ ਦੇ ਉੱਤਰ 250-300 ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਦਿਓ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਕੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਵਿਚਾਰਕ ਆਗਸਤ ਕਾਮਤੇ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂਰਨ ਤੌਰ ਤੇ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਬਦ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ (Sociology) ਦਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਪ੍ਰਯੋਗ ਅਗਸਤੇ ਕਾਮਤੇ ਨੇ 1839 ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਸੀ । ਕਾਮਤੇ ਨੇ ਇੱਕ ਕਿਤਾਬ ਲਿਖੀ “The Course on Positive Philosophy’ ਜਿਹੜੀ ਕਿ 6 ਭਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਛਪੀ ਸੀ । ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਭਾਗਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਕਰਦੇ ਹਨ, ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਲਈ ਸਮਾਜ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਹਿੱਸੇ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਰਾਜਨੀਤੀ ਵਿਗਿਆਨ ਕਰਦਾ ਹੈ, ਆਰਥਿਕ ਹਿੱਸੇ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਅਰਥ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਵਿਗਿਆਨ ਵੀ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਜੋ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰੇ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ, ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਕਲਪਨਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਵਿਗਿਆਨ ਸਾਹਮਣੇ ਆਇਆ ਜਿਸਨੂੰ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਨਾਮ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ ।”

ਕਾਮਤੇ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹਰਬਰਟ ਸਪੈਂਸਰ ਨੇ ਕਈ ਸੰਕਲਪ ਦਿੱਤੇ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਸ਼ੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ । ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਪਹਿਲਾ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਸੀ ਜਿਸ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਉਸਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧਿਐਨਾਂ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਕਿਹਾ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਨਿਰੀਖਣ ਆਦਿ ਦੀ ਮੱਦਦ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਵਲੋਂ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ ਸੰਕਲਪਾਂ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਤੱਥ, ਆਤਮ ਹੱਤਿਆ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ, ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ, ਧਰਮ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਆਦਿ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਸਾਫ਼ ਝਲਕਦਾ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਪਹਿਲੇ ਪ੍ਰੋਫੈਸਰ ਸਨ ।

ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਅਤੇ ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵੀ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ । ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਸੰਪੂਰਨ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਸੰਘਰਸ਼ ਸਿਧਾਂਤ ਦੇ ਆਲੇ-ਦੁਆਲੇ ਘੁੰਮਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਆਰਥਿਕ ਪੱਖ ਤੋਂ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਹੈ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਦੋ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਵਰਗਾਂ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਵਿਚਕਾਰ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਚਲਦੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਵਿਸਤ੍ਰਿਤ ਵਰਣਨ ਕੀਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ, ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ, ਵਰਗ ਅਤੇ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ, ਅਲਗਾਵ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਵਰਗੇ ਸੰਕਲਪ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਦਿੱਤੇ । ਮੈਕਸ ਵੈਬਰ ਨੇ ਵੀ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦਿੱਤੀ, ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ, ਸੱਤਾ ਅਤੇ ਕੁੱਤਾ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ, ਧਰਮ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦਿੱਤੀ ਅਤੇ ਕਰਮਚਾਰੀਤੰਤਰ (Bureaucracy) ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਦਿੱਤਾ ।

ਇਹਨਾਂ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਸੰਸਥਾਪਕਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਹੋਏ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨੂੰ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਉਹਨਾਂ ਦੇ ਯੋਗਦਾਨ ਨੂੰ ਨਕਾਰਿਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਟਾਲਕਟ ਪਾਰਸੰਸ਼, ਜੇ. ਐੱਸ. ਮਿਲ, ਮੈਲਿਨੋਵਸਕੀ, ਰਾਬਰਟ ਮਰਟਨ, ਗਿਲਿਨ ਅਤੇ ਗਿਲਿਨ, ਜੀ. ਐੱਸ. ਘੁਰੀਏ ਆਦਿ ਵਰਗੇ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨੀ ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਹਨ ।

ਹੁਣ ਪਿਛਲੇ ਕਾਫੀ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਧੀਆਂ ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਾਫੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ਤਾਂ ਕਿ ਅਧਿਐਨ ਨੂੰ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਸਤੂਨਿਸ਼ਠ (Objective) ਅਤੇ ਨਿਰਪੱਖ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਸਕੇ । ਇਸ ਨਾਲ ਇੱਕ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਕੀਤੇ ਅਧਿਐਨਾਂ ਨੂੰ ਦੂਜੇ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਲਾਗੂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇਗਾ । ਉਪਕਲਪਨਾ, ਨਿਰੀਖਣ, ਸੈਂਪਲ ਵਿਧੀ, ਇੰਟਰਵਿਉ, ਅਨੁਸੂਚੀ, ਪ੍ਰਸ਼ਨਾਵਲੀ, ਕੇਸ ਸਟੱਡੀ, ਵਰਗੀਕਰਣ, ਸਾਰਣੀਕਰਣ, ਅੰਕੜਿਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਯੋਗ ਆਦਿ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਰੂਪ ਨਾਲ ਇੱਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਸਥਾਪਿਤ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਕੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਉੱਨਤ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਪ੍ਰਸਥਾਪਨਾ ਵਿੱਚ ਇਹ ਗੱਲ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਅਲੱਗ ਸਮਾਜਿਕ ਸਮੂਹਾਂ ਦੇ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਹੋਂਦ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕੀਤੀ | ਸਭ ਤੋਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਚੰਗੀ ਵਿਆਖਿਆ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ | ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਵਿਚਾਰਕ ਖੋਜ ਦਾ ਇੱਕ ਉਦੇਸ਼ ਇਹ ਪਤਾ ਲਾਉਣਾ ਸੀ ਕਿ ਇਹ ਮਾਨਵ ਸਮਾਜ ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਰਹਿ ਰਹੇ ਹਾਂ ਤੇ ਇਸ ਦਾ ਜੋ ਰੁਪ ਅੱਜ ਦਿੱਸਦਾ ਹੈ, ਉਹ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਿਉਂ ਹੈ, ਉਸ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਉਂ ਤੇ ਕਿਹੜੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ? ਨਾਲ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਇਸਦਾ ਵੀ ਸਪੱਸ਼ਟ ਵਿਸ਼ਲੇਸ਼ਣ ਤੇ ਡੂੰਘਾ ਵਿਵੇਚਨ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ ਅੱਗੇ ਚੱਲ ਕੇ ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕਿਵੇਂ ਪਰਿਵਰਤਨ ਹੋਣਗੇ ? ਆਪਣੀ ਖੋਜ ਨਾਲ ਮਾਰਕਸ ਤੇ ਉਸਦੇ ਗੁੜੇ ਸਹਿਯੋਗੀ ਏਂਜਲਸ ਇਸ ਨਤੀਜੇ ਤੇ ਪਹੁੰਚੇ ਕਿ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਘੋਰ ਅਮਾਨਵੀ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਫੈਲਿਆ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਖੋਜ ਦਾ ਦੂਜਾ ਉਦੇਸ਼ ਇਸ ਬਗੈਰ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕਰਨ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤਕ ਰਸਤਾ ਲੱਭ ਲੈਣਾ ਦੱਸਿਆ ।

ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਇਹ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਬਾਹਰੀ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਤੇ ਮਾਨਵੀ ਸਮਾਜ ਦੋਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਇਕਦਮ ਨਹੀਂ ਹੋ ਜਾਂਦੇ । ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਅੰਦਰਲਾ ਮੁਸ਼ਕਲ ਸੰਘਰਸ਼ ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਸੰਘਰਸ਼ ਤੋਂ ਹੀ ਘਟਨਾਵਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਗਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਕਾਸ ਦਾ ਚੱਕਰ ਚਲਦਾ ਰਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਮੁਲ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਸਿਧਾਂਤ ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ ਕਹਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਦੁਆਰਾ ਕੀਤੀ ਗਈ ਸਮਾਜ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਭੌਤਿਕਵਾਦ ਕਹਿਲਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਇਸਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਪਰਿਵਰਤਨ ਕਿਸੇ ਦੇਵਤਾ, ਸਮਰਾਟ ਜਾਂ ਨੇਤਾ ਦੀ ਬੁੱਧੀਮਾਨੀ ਜਾਂ ਵੀਰਤਾ ਦੇ ਕਾਰਨ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਕਿਸੇ ਖ਼ਾਸ ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ ਕਾਰਨਾਂ ਨਾਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਮਨੁੱਖਾਂ ਦੇ ਸੋਚਣ, ਸਮਝਣ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦਾ ਰੂਪ ਤੇ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਸਤਰ ਤੇ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਦੇ ਤਰੀਕੇ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਮਨੁੱਖ ਲਗਾਤਾਰ ਆਪਣੀ ਮਿਹਨਤ ਨੂੰ ਘੱਟ ਦੁੱਖਦਾਇਕ ਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਉਤਪਾਦਕ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਮਨੁੱਖੀ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰ ਤੇ ਪ੍ਰਕਿਰਤੀ ਵਿੱਚ ਵਿਰੋਧੀ ਤੱਤਾਂ ਤੇ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਵੀ ਚਲਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਵਿੱਚ ਮਨੁੱਖ ਨਵਾਂ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਗਿਆਨ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਕੇ ਪੁਰਾਣੀ ਉਤਪਾਦਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਬਦਲ ਦੇਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਸ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਆਰਥਿਕ ਢਾਂਚੇ ਉੱਪਰ ਖੜ੍ਹਾ ਹੋਇਆ ਸਮਾਜਿਕ ਢਾਂਚਾ ਵੀ ਬਦਲ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਯੁੱਗ ਦੇ ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਮੁਸ਼ਕਿਲਾਂ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹੱਲ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਉਸ ਯੁੱਗ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ-ਆਰਥਿਕ ਢਾਂਚੇ ਦੇ ਅੰਦਰਲੇ ਦਵੰਦਾਂ ਤੇ ਵਿਰੋਧਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।

ਵਰਗ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ? (What is Class ?) – ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਨੂੰ ਸਮਝਣ ਲਈ ਇਹ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਇਹ ਸਮਝ ਲਈਏ ਕਿ ਵਰਗ ਕੀ ਹੈ ? ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਜ਼ੋਰਦਾਰ ਵਕਾਲਤ ਕੀਤੀ ਕਿ ਸਾਨੂੰ ਇਹ ਅਧਿਐਨ ਉਸ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਤੋਂ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਨਿਯਮਾਂ ਦਾ ਪਤਾ ਲਾ ਸਕੀਏ ਜੋ ਪੂਰੇ ਮਨੁੱਖੀ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਸੰਚਾਲਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨ ਲਈ ਸਾਨੂੰ ਕੁੱਝ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਵਿਅਕਤੀਆਂ ਦੇ ਕੰਮਾਂ ਦੀ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਆਮ ਜਨਤਾ, ਉਸਦੇ ਕੰਮਾਂ ਅਤੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦੇਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਆਮ ਸਮਾਜ ਦੀ ਗੱਲ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲਗਪਗ ਹਰ ਸਮਾਜ ਕਈ ਜਨ-ਸਮੂਹਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡੇ ਹੋਏ ਹਨ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਅਲੱਗ ਵਰਗ ਇੱਕ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮਾਜਿਕ, ਆਰਥਿਕ ਇਕਾਈ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰਦੇ ਸੀ । ਇਸ ਇਕਾਈ ਨੂੰ ਅਸੀਂ ‘ਵਰਗ’ ਦੇ ਨਾਂ ਨਾਲ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ ।

ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ‘ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਮੈਨੀਫੈਸਟੋ’ ਦੇ ਪਹਿਲੇ ਅਧਿਆਇ ਦਾ ਸ਼ੁਭਾਰੰਭ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸ਼ਬਦਾਂ ਨਾਲ ਕੀਤਾ ਸੀ ਕਿ, “ਹਾਲੇ ਤੱਕ ਸਮਾਜ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸ ਰਿਹਾ ਹੈ ।” ਇਤਿਹਾਸ ਦੇ ਵਿਗਤ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਹਮੇਸ਼ਾਂ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਲੱਗ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੇਖਦੇ ਹਾਂ । ਸਮਾਜਿਕ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਦੀ ਬਹੁ-ਰੂਪੀ ਦਰਜਾਬੰਦੀ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਰੋਮ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਟੀਸ਼ੀਅਨ, ਨਾਈ ਪਲੇਬੀਅਨ ਤੇ ਦਾਸ ਮਿਲਦੇ ਹਨ | ਮੱਧ ਯੁੱਗ ਵਿੱਚ ਸਾਨੂੰ ਸਾਮੰਤੀ ਪ੍ਰਭੁ, ਅਧੀਨ ਜਗੀਰਦਾਰ, ਉਸਤਾਦ-ਕਾਰੀਗਰ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਕਾਰੀਗਰ, ਜ਼ਮੀਨੀ ਦਾਸ ਆਦਿ ਦਿੱਖਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਲਗਪਗ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰਿਆਂ ਵਿੱਚ ਦੁਤੀਆ ਵਰਗ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਵਰਗ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਲੈਨਿਨ ਨੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਪੇਸ਼ ਕੀਤੀ ਹੈ । ਲੇਨਿਨ ਨੇ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ, “ਵਰਗ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਅਜਿਹੇ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸਮੂਹਾਂ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਇਤਿਹਾਸ ਵਲੋਂ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਕਿਸੇ ਪੱਦਤੀ ਵਿੱਚ, ਆਪਣੀ-ਆਪਣੀ ਜਗ੍ਹਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ, ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਸੰਬੰਧ (ਜੋ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਮਾਮਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਕਾਨੂੰਨ ਦੁਆਰਾ ਨਿਸਚਿਤ ਤੇ ਨਿਰੂਪਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ) ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ, ਮਿਹਨਤ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਗਠਨ ਵਿੱਚ ਭੂਮਿਕਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਅਤੇ ਫਲਸਰੂਪ ਸਮਾਜਿਕ ਸੰਪੱਤੀ ਦੇ ਜਿੰਨੇ ਹਿੱਸੇ ਦੇ ਉਹ ਮਾਲਕ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਉਸਦੇ ਪਰਿਮਾਣ ਤੇ ਉਸਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਤੌਰ-ਤਰੀਕੇ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਅਲੱਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।”

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਭੌਤਿਕਵਾਦੀ ਧਾਰਨਾ ਵਿੱਚ ਇਹ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ਹੈ ਕਿ ਮਾਨਵ ਜੀਵਨ ਦੇ ਪੋਸ਼ਣ ਦੇ ਲਈ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸਾਧਨਾਂ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਤੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਬਾਅਦ ਬਣੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦਾ ਵਟਾਂਦਰਾ ਹਰ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਅਧਾਰ ਹੈ ਕਿ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਜਿੰਨੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਹੋਈਆਂ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਜਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਧਨ ਦੀ ਵੰਡ ਹੋਈ ਹੈ ਤੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਰਗਾਂ ਤੇ ਸ਼੍ਰੇਣੀਆਂ ਵਿੱਚ ਬਟਵਾਰਾ ਹੋਇਆ ਹੈ ਉਹ ਇਸ ਗੱਲ ਉੱਤੇ ਨਿਰਭਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੀ ਉਤਪਾਦਨ ਹੋਇਆ ਹੈ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਹੋਇਆ ਹੈ ਅਤੇ ਫੇਰ ਉਪਜ ਦਾ ਵਟਾਂਦਰਾ ਕਿਵੇਂ ਹੋਇਆ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਯੁੱਗ ਵਿੱਚ ਮਿਹਨਤ ਦੀ ਵੰਡ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਜੀਉਣ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਅਲੱਗਅਲੱਗ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਮਨੁੱਖ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ ਵਰਗ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਚੇਤਨਤਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਵਰਗ ਤੋਂ ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਮਤਲਬ ਭਾਰਤ ਦੀ ਜਾਤ ਵਿਵਸਥਾ ਜਿਹੀ ਕੋਈ ਧਾਰਨਾ ਨਾਲ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਵਰਗ ਤੋਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਅਰਥ ਉਨ੍ਹਾਂ ਜਨ-ਸਮੂਹਾਂ ਤੋਂ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਰਿਭਾਸ਼ਾ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦੇ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕਦੀ ਹੈ | ਆਮ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇ ਤਾਂ, “ਵਰਗ ਅਜਿਹੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਮੂਹ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਆਪਣੀ ਜੀਵਿਕਾ ਇੱਕ ਹੀ ਢੰਗ ਨਾਲ ਕਮਾਉਂਦੇ ਹਨ ।” ਵਰਗ ਦਾ ਜਨਮ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਤਰੀਕਿਆਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ-ਜਿਵੇਂ ਉਤਪਾਦਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਵਿੱਚ ਪਰਿਵਰਤਨ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ਪੁਰਾਣੇ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਨਵੇਂ ਵਰਗ ਲੈ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ।

ਅਲੱਗ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in various Societies) – ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵਰਗ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੀ ਸੱਚਾਈ ਨੂੰ ਸਥਾਪਿਤ ਕਰਨ ਲਈ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਮਿਲਣ ਵਾਲੇ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵਰਗ ਵਿਵਸਥਾ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲਿਆ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਆਦਮ-ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਹੁਣ ਤਕ ਦੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਅਰਥਾਤ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੁਝ ਨਿਸਚਿਤ ਵਰਗ ਰਹੇ ਹਨ । ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਇਸ ਵਿਵੇਚਨਾ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਥੋੜ੍ਹਾ ਵਿਸਤਾਰ ਨਾਲ ਸਮਝਣਾ ਹੋਵੇਗਾ ।

1. ਆਮ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in Primitive Communal Society) – ਅਸੀਂ ਸਭ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਆਦਮ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਲਈਏ । ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਵੱਡੇ-ਵੱਡੇ ਸਮੂਹ ਗੋਤਰ ਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਸਮੁਦਾਇ ਅਤੇ ਕਬੀਲੇ ਸਨ ਉਹ ਆਪਣੇ ਨਿਵਾਸ ਖੇਤਰ, ਸੰਖਿਆ ਤੇ ਭਾਸ਼ਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਇੱਕ-ਦੂਜੇ ਤੋਂ ਅਲੱਗ-ਅਲੱਗ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿੱਚ ਜਗ੍ਹਾ ਦੀ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਦੇ ਅਲੱਗ ਮੈਂਬਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕੋਈ ਖ਼ਾਸ ਫ਼ਰਕ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਪਹਿਲਾਂ ਕਿਰਤ ਵੰਡ ਔਰਤਾਂ, ਆਦਮੀਆਂ ਤੇ ਅਲੱਗ ਉਮਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਤੇ ਬਾਅਦ ਵਿੱਚ ਜ਼ਮੀਨ ਜੋਤਣ ਵਾਲੇ, ਪਸ਼ੂ ਪਾਲਣ ਵਾਲੇ ਤੇ ਸ਼ਿਕਾਰ ਤੇ ਜੀਵ ਵਾਲੇ ਕਬੀਲਿਆਂ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਆਦਮ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਮਲਕੀਅਤ ਸੀ, ਇਸ ਲਈ ਕਿਸੇ ਵੀ ਗੋਤ ਜਾਂ ਕਬੀਲੇ ਦੇ ਸਾਰੇ ਮੈਂਬਰ ਬਰਾਬਰ ਸਨ । .

2. ‘ ਗੁਲਾਮੀ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in Slave Society) – ਪਰ ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਗੁਲਾਮੀ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ । ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਤੇ ਕੁਝ ਲੋਕਾਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਹੋਣ ਲੱਗੀ ਤੇ ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਹੋਈ ਜੋ ਆਪਣੇ ਪਹਿਲੇ ਸਮਾਜ ਤੋਂ ਬਿਲਕੁਲ ਅਲੱਗ ਸੀ ।

ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਗੁਲਾਮ ਮਲਕੀਅਤ ਦੇ ਵੱਡੇ ਪੈਮਾਨੇ ਦੇ ਪ੍ਰਚਲਨ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੇ ਦਾਸ ਮੁਲਕ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਲੋਕ ਸਮੁਦਾਇ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਿਸਾਨ ਸਨ । ਉਹ ਸਮੁਦਾਇ ਅਤੇ ਨਵੇਂ ਉਭਰ ਰਹੇ ਰਾਜਾਂ ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲਘੂ ਉਤਪਾਦਕ ਸਨ । ਉਹ ਕਿਰਤ ਦੇ ਔਜ਼ਾਰਾਂ, ਮਵੇਸ਼ੀ, ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਘਰਾਂ, ਬੀਜਾਂ ਆਦਿ ਦੇ ਮਾਲਕ ਸਨ, ਸਮੁਦਾਇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਦੀ ਹੈਸੀਅਤ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਮੀਨ ਜੋਤਣ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਸੀ ਤੇ ਉਹ ਸਮੁਦਾਇਕ ਚਰਾਗਾਹਾਂ ਆਦਿ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕਰਦੇ ਸਨ | ਸੁਤੰਤਰ ਕਿਸਾਨ ਆਪਣੀ ਵੰਡ ਦੀਆਂ ਸੀਮਾਵਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਆਪ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਦਾ ਸੰਗਠਨਕਰਤਾ ਸੀ । ਉਹ ਸਾਰਿਆਂ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ ਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਖ਼ਰਚ ਕਰਨ ਵਾਲਾ ਸੀ, ਜਿਸ ਵਿੱਚੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਦੀ ਉਹ ਆਪ ਤੇ ਉਸਦਾ ਪਰਿਵਾਰ ਉਪਯੋਗ ਕਰਦਾ ਸੀ । ਉਸਦੇ ਕੋਲ ਅਨਾਜ, ਮਾਸ ਤੇ ਹੋਰ ਖਾਣ ਦਾ ਸਮਾਨ ਐਨਾ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਜਿਹੜਾ ਅਗਲੀ ਫਸਲ ਤਕ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਸੀ । ਉਤਪਾਦਾਂ ਦਾ ਕੁੱਝ ਹਿੱਸਾ ਰਾਜ ਨੂੰ ਦੇਣਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਉਸਦਾ ਇੱਕ ਭਾਗ, ਬਹੁਤ ਛੋਟਾ ਜਿਹਾ ਭਾਗ ਉਨ੍ਹਾਂ ਜ਼ਰੂਰੀ-ਜ਼ਰੂਰੀ ਵਸਤਾਂ ਤੇ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਲਈ ਅਲੱਗ ਰੱਖ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਸੀ ਜਿਸਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਉਹ ਸੁਤੰਤਰ ਕਿਸਾਨ ਆਪ ਨਹੀਂ ਕਰ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਲੱਛਣਾਂ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਸਮੂਹਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਇੱਕ ਵਰਗ ਕਿਹਾ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ।

ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਜਿਵੇਂ ਸਮਾਜ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਗਿਆ, ਕੁੱਝ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਧਨ ਇਕੱਠਾ ਕੀਤਾ ਤੇ ਦੂਜਿਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਧਨ ਇਕੱਠਾ ਨਹੀਂ ਹੋਇਆ । ਇਸਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਵੀ ਇੱਕ ਵਰਗ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਿਆ । ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਆਰਥਿਕ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅਲੱਗ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ । ਉਹ ਗੁਲਾਮ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਆਪਣੇ ਮਾਲਕ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਬਣ ਗਏ ਤੇ ਮਾਲਕ ਆਮ ਤੌਰ ਤੇ ਕੋਈ ਆਦਮੀ ਹੀ ਹੁੰਦਾ ਸੀ ਪਰ ਕੁੱਝ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿੱਚ, ਜਿਵੇਂ ਪ੍ਰਾਚੀਨ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਜਿੱਥੇ ਸਮੁਦਾਇਕ ਸੰਬੰਧ ਸੂਤਰ ਮਜਬੂਤ ਸਨ, ਪੁਰਾ ਸਮੁਦਾਇ ਹੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਸੀ । ਗੁਲਾਮਾਂ ਕੋਲ ਕਿਰਤ ਦੇ ਔਜ਼ਾਰ ਜਾਂ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਹੋਰ ਸਾਧਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਸਿਰਫ਼ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਉਪਯੋਗ ਦੀਆਂ ਕੁੱਝ ਚੀਜ਼ਾਂ ਹੁੰਦੀਆਂ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮਾਲਕ ਕਦੇ ਵੀ ਖਿੱਚ ਸਕਦਾ ਸੀ । ਗੁਲਾਮ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਆਪ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਸਨ, ਉਹ ਸਿਰਫ਼ ਆਪਣੇ ਮਾਲਕ ਦਾ ਹੁਕਮ ਪੂਰਾ ਕਰਦੇ ਸਨ ।

ਉਹ ਵਰਗ ਜੋ ਗੁਲਾਮ ਵਰਗ ਨਾਲ ਸਿੱਧੇ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਤ ਸਨ ਤੇ ਸਿੱਧੇ ਗੁਲਾਮ ਵਰਗ ਦਾ ਵਿਰੋਧੀ ਸੀ, ਉਹ ਦਾਸਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕਾਂ ਦਾ ਵਰਗ ਸੀ । ਦਾਸ ਸੁਆਮੀ ਦੂਜੇ ਵਰਗ ਦੇ ਸਨ । ਉਹ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਬੁਨਿਆਦੀ ਸਾਧਨਾਂ ਜ਼ਮੀਨ, ਮਵੇਸ਼ੀ ਤੇ ਕਿਰਤ ਦੇ ਔਜ਼ਾਰ), ਮਕਾਨਾਂ, ਅਤੇ ਧਨ ਦੇ ਮਾਲਕ ਵੀ ਸਨ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲਈ ਗੁਲਾਮਾਂ ਨੂੰ ਖਰੀਦਣਾ ਸੰਭਵ ਸੀ । ਦਾਸ-ਸਵਾਮੀ ਹੀ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਕਰਤਾ ਸਨ-ਆਦਮੀਆਂ ਦੀ ਹੈਸੀਅਤ ਨਾਲ ਅਤੇ ਰਾਜ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀਆਂ ਦੀ ਹੈਸੀਅਤ ਨਾਲ ਵੀ । ਆਪਣੇ ਦਾਸਾਂ ਦੁਆਰਾ ਉਤਪੰਨ ਫ਼ਾਲਤੂ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾਸ-ਸੁਆਮੀਆਂ ਦੀ ਸੰਪੱਤੀ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਸੀ ।

ਦਾਸ ਮੂਲਕ ਸਮਾਜ ਨੇ ਕਾਫ਼ੀ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਆਰਥਿਕ ਉੱਨਤੀ ਕੀਤੀ । ਉਸਨੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕੀਤਾ, ਵਪਾਰ ਦਾ ਵਿਕਾਸ ਕੀਤਾ, ਲੋਹੇ ਦੇ ਹਥਿਆਰਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਤਕਨੀਕੀ ਸੁਵਿਧਾਵਾਂ ਨਾਲ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਸੈਨਾਵਾਂ ਖੜੀਆਂ ਕੀਤੀਆਂ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਹੀ, ਦਾਸ ਸੁਆਮੀਆਂ ਦੁਆਰਾ ਵਾਧੂ ਧਨ ਜਮਾਂ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਉਤਪੰਨ ਵਿਲਾਸ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮੰਗ ਦਾ ਇਹ ਤਕਾਜ਼ਾ ਸੀ ਕਿ ਹਸਤਸ਼ਿਲਪ ਦਾ ਕਾਫ਼ੀ ਵਿਸਤਾਰ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾਸ ਮੁਲਕ ਸਮਾਜ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹਸਤ ਸ਼ਿਲਪੀਆਂ, ਛੋਟੇ ਤੇ ਸੁਤੰਤਰ ਉਤਪਾਦਕਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਵਰਗ ਖੜਾ ਹੋ ਗਿਆ ।

3. ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਰਗ (Class in Feudal Society) – ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ‘ਵਰਗ-ਬਣਤਰ’ ਉੱਤੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰੀਏ । ਉਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਆਮ ਲੋਕ ਸਾਮੰਤੀ ਜ਼ੰਜੀਰਾਂ ਵਿੱਚ ਜਕੜੇ ਕਿਸਾਨ ਸਨ । ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਉੱਨਤ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ਇਸ ਵਰਗ ਨੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦਾ ਰੂਪ ਧਾਰਨ ਕਰ ਲਿਆ ।ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦੇ ਮੁੱਖ ਵਰਗ ਬਣ ਗਏ ।

ਜਗੀਰਦਾਰ ਕੰਮ ਨਾ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਸੰਪੱਤੀ ਦੇ ਮਾਲਕ ਲੋਕ ਸਨ ।ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਵੱਡੀਆਂ-ਵੱਡੀਆਂ ਜਗੀਰਾਂ ਸਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਉੱਪਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਤਾਂ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਸੰਪੱਤੀ ਅਧਿਕਾਰ ਜ਼ਰੂਰ ਸੀ । ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮ ਜਗੀਰਦਾਰਾਂ ਦੇ ਲਈ ਕੰਮ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮਜਬੂਰ ਸਨ ਤੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਦਾਸ ਪ੍ਰਥਾ ਦੇ ਸੰਸਥਾਤਮਕ ਬਣ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਅਦ ਵੀ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਦੇ ਨਾਲ ਖਰੀਦ ਫਰੋਖਤ ਹੋਣ ਲੱਗੀ । ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਕਿਰਤ ਦੇ ਸੰਗਠਨ ਕਰਤਾ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਉਣ ਲੱਗੇ ਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਜ਼ਮੀਨੀ ਗੁਲਾਮ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜ਼ਮੀਨ ਤੇ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਘਰਾਂ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਕਿਸਾਨਾਂ ਵੱਲੋਂ ਪੈਦਾ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਵਾਧੂ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹਿੱਸਾ ਆਪ ਹੜੱਪ ਕਰ ਜਾਂਦੇ ਸਨ ।

4. ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵਰਗ (Class in Capitalistic Society) – ਜਗੀਰਦਾਰੀ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਸਦੇ ਅੰਦਰ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦਾ ਇੱਕ ਨਵਾਂ ਵਰਗ ਵੀ ਵਿਕਸਿਤ ਹੁੰਦਾ ਗਿਆ । ਇਹੀ ਉਹ ਵਰਗ ਸੀ ਜਿਸਨੇ ਸਾਮੰਤੀ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਹੀ ਆਪਣੀਆਂ ਜੜਾਂ ਜਮਾਉਣੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀਆਂ | ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਉਦਯੋਗ ਤੇ ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ ਤੇ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਧਨੀ ਸੰਪੱਤੀਧਾਰੀਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਗਠਿਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਆਪਣੀਆਂ ਕੰਮ ਕਰਨ ਵਾਲੀਆਂ ਥਾਂਵਾਂ ਤੇ ਕਿਰਤ ਕ੍ਰਿਆ ਦਾ ਸੰਗਠਨ ਕਰਦੇ ਹਨ ਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦੇ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੇ ਫਲਸਰੂਪ ਮੁਨਾਫ਼ੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਫਾਲਤੂ ਉਤਪਾਦਨ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਦਾ ਦੂਜਾ ਪ੍ਰਧਾਨ ਵਰਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ-ਮਜ਼ਦੂਰ । ਮਜ਼ਦੂਰ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਦਾ ਵਿਰੋਧੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਤੇ ਇਹ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਉਸਦੇ ਹੋਂਦ ਦੀ ਇੱਕ ਜ਼ਰੂਰੀ ਸ਼ਰਤ ਵੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਗਠਨ ਭਾੜੇ ਦੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਮਲਕੀਅਤ ਤੋਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਹਾਸਲ ਕਰਨ ਦੇ ਮੌਕੇ ਤੋਂ ਵੰਚਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਆਰਥਿਕ ਜ਼ੋਰ ਜ਼ਬਰਦਸਤੀ ਦੇ ਸਹਾਰੇ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਹੈ ।ਵਰਗ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦੇ ਕੋਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਵੇਚ ਕੇ ਹੀ ਆਪਣੀ ਜੀਵਿਕਾ ਕਮਾਉਣ ਲਈ ਪੂੰਜੀਪਤੀਆਂ ਦੇ ਕੋਲ ਕੰਮ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮਜਬੂਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਵਰਗ ਇੱਕ ਪ੍ਰਤੀਸ਼ੀਲ ਵਰਗ ਸੀ । ਆਪਣੇ ਥੋੜੇ ਜਿਹੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਹੀ ਬਹੁਤ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਉਤਪਾਦਨ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਇਹ ਵਰਗ ਹੋਰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸ਼ਕਤੀਸ਼ਾਲੀ ਹੋ ਗਿਆ ਪਰ ਇਸਨੇ ਆਪਣੀ ਸਾਰਥਕਤਾ ਖੋਹ ਦਿੱਤੀ । ਹੁਣ ਇਹ ਵਰਗ ਬਜਾਇ ਉਤਪਾਦਨ ਨੂੰ ਸੰਗਠਿਤ ਕਰਨ ਦੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕੰਮ ਦੇ ਆਮ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਉੱਨਤੀ ਨੂੰ ਰੋਕਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਦੋ-ਦੋ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਵਿਵੇਚਨਾ ਕੀਤੀ ਹੈ | ਮਾਰਕਸ ਦੀ ਵਰਗ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਨੂੰ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਖੁੱਲ੍ਹ ਕੇ ਸਮਝ ਲੈਣ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਹੁਣ ਅਸੀਂ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਹਾਂ ਕਿ ਉਸਦੀ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਨੂੰ ਸਮਝੀਏ | ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਦੱਸਿਆ ਕਿ ਹਰ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਦੋ ਵਿਰੋਧੀ ਵਰਗ-ਇੱਕ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਨ ਵਾਲਾ’ ਤੇ ਦੁਜਾ ‘ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਹੋਣ ਵਾਲਾ’ ਵਰਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਨੂੰ ਮਾਰਕਸ ‘ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼’ ਕਹਿੰਦਾ ਹੈ । ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਘੋਸ਼ਣਾ-ਪੱਤਰ ਵਿੱਚ ਉਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਸਮਾਜ ਦੀ ਹੋਂਦ ਦੇ ਨਾਲ ਹੀ ਨਾਲ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਜਨਮ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਮਾਰਕਸ ਦਾ ਇਹ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਸਿਧਾਂਤ ਉਸਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਿੱਚ ਤੇ ਸੰਸਾਰ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ । ਇਸੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦੇ ਕਾਰਨ ‘ਸਮਾਲ ਥਾਸਟਰੀਨ ਬੇਵਲੀਨ’ ਅਤੇ ‘ਕੁਲੇ” ਆਦਿ ਨੇ ਵੀ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਚਿੰਤਨ ਦਾ ਇੱਕ ਅੰਗ ਮੰਨਿਆ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿੱਚ ਅਲੱਗ ਵਰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਭੂਮਿਕਾਵਾਂ ਅਲੱਗ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਅੰਤ ਵਰਗਾਂ ਦੀਆਂ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਤੇ ਹਿੱਤਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਸਥਿਤੀ ਦਾ ਪੈਦਾ ਹੋਣਾ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਤੇ ਇਹੀ ਸੰਘਰਸ਼ ਵਿਰੋਧੀ ਵਿਚਾਰਧਾਰਾਵਾਂ ਲਈ ਇੱਕ ਧਰਾਤਲ ਪੇਸ਼ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਵਿਕਾਸਸ਼ੀਲ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀਆਂ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਤੇ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆਵਾਦੀ ਅਤੇ ਸਥਿਰ ਸੰਪੱਤੀ ਦੇ ਸੰਬੰਧਾਂ ਵਿੱਚ ਟਕਰਾਓ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੀ ਗਤੀ ਤੇਜ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਇਤਿਹਾਸ ਦੀ ਗਤੀ ਵਰਗਾਂ ਦੀ ਭੂਮਿਕਾ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਨਿਰਧਾਰਤ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਆਰਥਿਕ ਵਰਗ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਜਿੱਥੇ ਕਿਰਤ ਦੀ ਵੰਡ ਦਾ ਆਮ ਸਿਧਾਂਤ ਲਾਗੂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਇੱਕ ਅਜਿਹੀ ਉਤਪਾਦਨ ਵਿਵਸਥਾ ਤੋਂ ਪੈਦਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਜੋ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਅਲੱਗਅਲੱਗ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਵਰਗ ਮੁਸ਼ਕਿਲ ਕਿਰਤ ਕਰਕੇ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਦਾਸ, ਅੱਧੇ ਦਾਸ, ਕਿਸਾਨ, ਮਜ਼ਦੂਰ ਆਦਿ ਤੇ ਦੂਜਾ ਵਰਗ ਉਤਪਾਦਨ ਲਈ ਬਗੈਰ ਕੋਈ ਮਿਹਨਤ ਕੀਤੇ, ਬਿਨਾਂ ਕੋਈ ਕੰਮ ਕੀਤੇ, ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਬਹੁਤ ਵੱਡੇ ਭਾਗ ਦਾ ਉਪਯੋਗ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਵੇਂ ਦਾਸਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ, ਜਾਗੀਰਦਾਰ, ਜ਼ਮੀਨਾਂ ਦੇ ਮਾਲਕ, ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਆਦਿ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਸ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਨੂੰ ਮਨੁੱਖ ਦੇ ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਪਹਿਲੀ ਅਤੇ ਉੱਚੀ ਅਵਸਥਾ ਤਕ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿਚ ਇਹ ਮੱਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਮੰਨਦੇ ਹਨ ਕਿ ਕੋਈ ਵੀ ਕਾਂਤੀ ਜਦੋਂ ਸਫਲ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸ ਨਾਲ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਆਰਥਿਕ-ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਉਭਰਦੀ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਨਿੱਜੀ ਸੰਪੱਤੀ ਹੀ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਮੂਲ ਰੂਪ ਨਾਲ ਆਰਥਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਦੋ ਮੁੱਖ-ਵਰਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚੋਂ ਇਕ ਵਰਗ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਆਰਥਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਰੇ ਸਾਧਨ ਕੇਂਦਰਿਤ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਸਦੇ ਕਾਰਨ ਉਹ ਵਰਗ ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਤੇ ਕਮਜ਼ੋਰ ਵਰਗ ਦਾ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਕਰਦਾ ਆਇਆ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਰਗਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਦੀ ਹੁਣ ਤਕ ਦੀ ਹਰ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ (ਆਦਿਮ ਸਾਮਵਾਦ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ) ਲਗਾਤਾਰ ਸੰਘਰਸ਼ ਚਲਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ ।

ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਉੱਤੇ ਅਧਿਕਾਰ ਕਰਕੇ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਬਲ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਸਿਧਾਂਤਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਤੇ ਜੀਵਨ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਨੂੰ ਸਾਰੇ ਸਮਾਜ ਤੇ ਥੋਪਦਾ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਉਹ ਵਰਗ ਜੋ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਭੌਤਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਨਾਲ ਹੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸ਼ਾਸਕ ਬੌਧਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਵਰਗ ਜਿਸ ਕੋਲ ਭੌਤਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਮਾਨਸਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਉੱਤੇ ਵੀ ਨਿਯੰਤਰਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਿਯੰਤਰਨ ਲਈ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਬਲ ਦਾ ਪੂਰਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਕਰਦਾ ਹੈ ।ਉਸਦੇ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜ ਉੱਤੇ ਥੋਪੇ ਗਏ ਧਰਮ, ਦਰਸ਼ਨ, ਰਾਜਨੀਤੀ, ਅਰਥ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਤੇ ਨੈਤਿਕਤਾ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਉਸਦੇ ਇਸ ਕੰਟਰੋਲ ਨੂੰ ਮਜਬੂਤ ਕਰਨ ਲਈ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਦੇ ਦਾਸ ਬਣ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦੀ ਇਸ ਸੰਪੱਤੀ ਨੂੰ ਬਣਾਏ ਰੱਖਣ ਲਈ ਨਵੇਂ ਉਭਰਦੇ ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਵਰਗ ਨੂੰ ਬਲ ਨਾਲ ਦਬਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੋ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਲਈ ਮਾਰਕਸ ਨੇ ਕਿਹਾ ਹੈ-ਬਲ ਨਵੇਂ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਗਰਭ ਵਿੱਚ ਧਾਰਨ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਹਰ ਪੁਰਾਣੇ ਸਮਾਜ ਦੀ ਦਾਈ (Midwife) ਹੈ ।

ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਕਾਸ ਅਲੱਗ ਅਵਸਥਾਵਾਂ ਦੀ ਦੇਣ ਹੈ । ਕਿਸੇ ਵੀ ਸਮਾਜ ਵਿਵਸਥਾ ਜਾਂ ਇਤਿਹਾਸਕ ਯੁੱਗ ਦਾ ਮੁੱਲਾਂਕਣ, ਪਰਿਸਥਿਤੀਆਂ, ਦੇਸ਼ ਤੇ ਕਾਲ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਕੋਈ ਵੀ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਅਜਰ-ਅਮਰ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਸਾਰੀਆਂ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦਵੰਦਾਤਮਕ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਉਤਪਾਦਨ ਦੀ ਨਵੀਂ ਵਿਕਾਸਸ਼ੀਲ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ (ਵਾਦ) ਅਤੇ ਪੁਰਾਣੀ ਪ੍ਰਕ੍ਰਿਆ (ਸੰਵਾਦ) ਦੇ ਵਿੱਚ ਜੋ ਅੰਦਰਲਾ ਸੰਘਰਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਉਹੀ ਇਸ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਕ ਸ਼ਕਤੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । ਪੁਰਾਣੀ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਤੇ ਨਵੀਂ ਪੱਦਤੀ ਨੂੰ ਅਪਨਾਉਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਰਿਮਾਣਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਇਕਦਮ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਗੁਣਾਤਮਕ ਪਰਿਵਰਤਨ ਵਿੱਚ ਬਦਲ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਨਿਯਮ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਸੁਭਾਵਿਕ ਅਤੇ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਇਹ ਪਰਿਵਰਤਨ ਬਲ (Force) ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਵਿਕਾਸ ਦੇ ਸਿਲਸਿਲੇ ਵਿੱਚ ਅਸੰਗਤੀਆਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵਿਰੋਧੀ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਵਿੱਚ ਟਕਰਾਓ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਅੰਤ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਤੇਜ਼ ਹੋਣਾ ਅਤੇ ਉਭਰਦੇ ਹੋਏ ਸ਼ੋਸ਼ਿਤ ਵਰਗ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦਾ ਅੰਤਮ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਿੱਤਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੋਧਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ‘ਪੂੰਜੀਵਾਦ’ ਆਪ ਆਪਣੇ ਵਿਨਾਸ਼ ਦਾ ਬੀਜ ਬੀਜਦਾ ਹੈ ।

ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਵਸਥਾ ਵਿਚ ਦਿਨ-ਪ੍ਰਤੀ-ਦਿਨ ਗ਼ਰੀਬੀ, ਭੁੱਖਮਰੀ ਤੇ ਬੇਰੁਜ਼ਗਾਰੀ ਵੱਧਦੀ ਜਾਵੇਗੀ । ਸਹਿਣ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਕ ਸੀਮਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਆਪਣੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਜੰਜ਼ੀਰਾਂ ਨੂੰ ਤੋੜ ਦੇਵੇਗਾ ਅਤੇ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦਾ ਯੁੱਗ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਉੱਤੇ ਆਧਾਰਿਤ ਆਖ਼ਰੀ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਸਥਾ ਹੋਵੇਗੀ । ਆਪਣੇ ਸਵਾਰਥਾਂ ਨਾਲ ਘਿਰੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਸੰਸਦੀ ਨਿਯਮਾਂ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਏਕਾਧਿਕਾਰ ਦਾ ਕਦੇ ਤਿਆਗ ਨਹੀਂ ਕਰਨਗੇ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਮਹਾਤਮਾ ਗਾਂਧੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਟਰੱਸਟੀਸ਼ਿਪ ਦੇ ਸਿਧਾਂਤ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਵਿੱਚ ਕਿਹਾ ਸੀ । ਸ਼ਾਂਤੀਪੂਰਨ ਢੰਗ ਨਾਲ ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਨੂੰ ਮਿਟਾਇਆ ਨਹੀਂ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਇਸਦੇ ਲਈ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਡਾ ਭਾਗ ਮਜ਼ਦੂਰ ਬਣਦਾ ਜਾਵੇਗਾ ਤੇ ਇਹੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀ ਪਰਿਵਰਤਨ ਦਾ ਹਰਿਆਲਾ ਦਸਤਾ ਹੋਵੇਗਾ ।

ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦੀ ਲੀਡਰਸ਼ਿਪ ਵਿੱਚ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਰਾਜ ਦੇ ਯੰਤਰ ਉੱਤੇ ਅਧਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਣ ਦੇ ਬਾਅਦ ਸਮਾਜਵਾਦ ਦੇ ਯੁੱਗ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਵੇਗੀ । ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਰਾਜ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਦੇ ਹੱਥਾਂ ਵਿੱਚ ਦਮਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਹਥਿਆਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੇ ਬਾਅਦ ਵੀ ਸਾਮੰਤਵਾਦ ਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਦਲਾਲ ਪ੍ਰਤੀ-ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਮਾਜਵਾਦ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵਿੱਚ ਮਜ਼ਦੂਰ ਦੀ ਸੱਤਾ ਦੀ ਅਸਥਾਈ ਅਵਸਥਾ ਹੋਵੇਗੀ । ਸਮਾਜਵਾਦ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਦੇ ਬਾਅਦ, ਸ਼ੋਸ਼ਣ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਜਾਣ ਤੇ ਵਰਗ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਜਾਣਗੇ ਅਤੇ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਕਿਰਤ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਉਤਪਾਦਨ ਦਾ ਭਾਗ ਮਿਲੇਗਾ, ਪਰ ਸਾਮਵਾਦ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਉੱਨਤ ਅਵਸਥਾ ਵਿੱਚ ‘ਹਰ ਇੱਕ ਨੂੰ ਉਸ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਅਨੁਸਾਰ’ ਹੀ ਮਿਲਣ ਲੱਗ ਜਾਵੇਗਾ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਰਾਜ ਜੋ ਸ਼ੋਸ਼ਕ ਵਰਗ ਦਾ ਹਥਿਆਰ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਬਿਖਰ ਜਾਵੇਗਾ ਤੇ ਇਸ ਦੀ ਥਾਂ ਆਪਸੀ ਸਹਿਯੋਗ ਤੇ ਸਹਿਕਾਰਤਾ ਦੇ ਅਧਾਰ ਤੇ ਬਣੀਆਂ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਲੈ ਲੈਣਗੀਆਂ । ਵਰਗ ਅਤੇ ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅੰਤ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ ।

ਮਜ਼ਦੂਰ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਪਤੀ ਦੇ ਵਿੱਚ ਛਿੜੇ ਵਰਗ-ਸੰਘਰਸ਼ ਦਾ ਅੰਤ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਖਾਤਮੇ ਤੇ ਹੋਵੇਗਾ । ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਸਾਧਨਾਂ ਉੱਤੇ ਸਮਾਜ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਹੋ ਜਾਣ ਨਾਲ ਉਤਪਾਦਨ ਤੇ ਲੱਗੇ ਪ੍ਰਤੀਬੰਧ ਹਟ ਜਾਣਗੇ, ਉਤਪਾਦਨ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਅਤੇ ਉਪਜ ਦੀ ਬਰਬਾਦੀ ਬੰਦ ਹੋ ਜਾਵੇਗੀ । ਵਰਗ ਸੰਘਰਸ਼ ਦੁਆਰਾ ਵਰਗਾਂ ਦਾ ਖ਼ਾਤਮਾ ਅੱਜ ਸਿਰਫ਼ ਇੱਕ ਸੁਪਨੇ ਦੀ ਗੱਲ ਬਣ ਕੇ ਨਹੀਂ ਰਹਿ ਗਈ ਹੈ । ਸੰਸਾਰ ਬੜੀ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਵਰਗਹੀਨ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਸਮਾਜ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਵੱਲ ਵੱਧ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਏਂਜਲਸ ਨੇ ਬਹੁਤ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਕਿਹਾ ਸੀ, “ਅੱਜ ਇਤਿਹਾਸ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਇਸਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਗਈ ਹੈ ਕਿ ਸਮਾਜਿਕ ਉਤਪਾਦਨ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜ ਦੇ ਹਰ ਮੈਂਬਰ ਨੂੰ ਅਜਿਹਾ ਜੀਵਨ ਮਿਲ ਸਕੇ, ਜੋ ਭੌਤਿਕ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਹੋ ਜਾਵੇ ਤੇ ਦਿਨ-ਪ੍ਰਤੀ-ਦਿਨ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੰਪੰਨ ਹੋ ਜਾਏ, ਇਹੀ ਨਹੀਂ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਜੀਵਨ ਉਪਲੱਬਧ ਹੋਵੇ, ਜਿਸ ਵਿੱਚ ਹਰ ਵਿਅਕਤੀ ਦੀ ਸਰੀਰਕ ਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਸ਼ਕਤੀਆਂ ਦਾ ਉਨਮੁੱਖ ਵਿਕਾਸ ਸੁਨਿਸਚਿਤ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਗੱਲ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਪੈਦਾ ਹੋਈ ਹੈ, ਪਰ ਹੋਈ ਜ਼ਰੂਰ ਹੈ ।”

ਮਜ਼ਦੂਰ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੇ ਦੁਆਰਾ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਰੋਧਾਂ ਅਤੇ ਹੋਰ ਵਿਰੋਧਾਂ ਦਾ ਹੱਲ ਹੋਵੇਗਾ | ਮਜ਼ਦੂਰ ਮੁਕਤੀ ਦੇ ਇਸ ਕੰਮ ਨੂੰ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ ਆਧੁਨਿਕ ਮਜ਼ਦੂਰ ਵਰਗ ਦਾ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਫ਼ਰਜ਼ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਬਾਅਦ ਮਨੁੱਖ ਆਪ ਮਜ਼ਦੂਰ ਸਚੇਤ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਆਪਣੇ ਇਤਿਹਾਸ ਦਾ ਆਪ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰੇਗਾ | ਏਂਜਲਸ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਇਸੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਮਨੁੱਖ ਵਲੋਂ ਚਲਦੀਆਂ ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਸਿੱਟੇ ਮੁੱਖ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਲਗਾਤਾਰ ਵੱਧਦੀ ਹੋਈ ਮਾਤਰਾ ਵਿੱਚ ਉਸਦੀ ਇੱਛਾ ਦੇ ਮੁਤਾਬਿਕ ਹੋਣਗੇ । ਇਹ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਮਜਬੂਰੀ ਦੇ ਰਾਜ ਤੋਂ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦੇ ਰਾਜ ਵਿੱਚ ਛਲਾਂਗ ਹੈ ।”

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਰੂਸ ਅਤੇ ਚੀਨ ਦੀਆਂ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀਆਂ ਉੱਪਰ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉਤੱਰ-
(i) ਰੂਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ (Russian Revolution) – ਰੂਸ ਉੱਤੇ ਰੋਮਾਨੋਵ (Romany) ਪਰਿਵਾਰ ਦਾ ਰਾਜ ਸੀ । ਪਹਿਲੇ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ (1914) ਦੇ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਵੇਲੇ ਜ਼ਾਰ ਨਿਕੋਲਸ 11 ਦਾ ਉਸ ਉੱਤੇ ਸਾਮਰਾਜ ਸੀ । ਮਾਸਕੋ ਦੇ ਆਲੇ ਦੁਆਲੇ ਦੇ ਖੇਤਰ ਤੋਂ ਇਲਾਵਾ ਉਸ ਸਮੇਂ ਦੇ ਰੂਸੀ ਸਾਮਰਾਜ ਵਿੱਚ ਅੱਜ ਦੇ ਮੌਜੂਦਾ ਦੇਸ਼ ਫਿਨਲੈਂਡ, ਲਾਟਵੀਆ, ਲਿਥੂਆਨੀਆਂ, ਐਸਟੋਨੀਆਂ, ਪੋਲੈਂਡ ਦਾ ਹਿੱਸਾ, ਯੂਕਰੇਨ ਅਤੇ ਬੇਲਾਰੂਸ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ । ਜਾਰਜੀਆ, ਆਰਮੀਨੀਆ ਅਤੇ ਅਜ਼ਰਬਾਈਜਾਨ ਵੀ ਇਸਦਾ ਹਿੱਸਾ ਸਨ ।

1914 ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਰੂਸ ਵਿੱਚ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲਾਂ ਦੀ ਮਨਾਹੀ ਸੀ । 1898 ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਰਸੀ ਲੋਕਤੰਤਰੀ ਵਰਕਰਜ਼ ਪਾਰਟੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀ ਅਤੇ ਉਹ ਕਾਰਲ ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਸਰਕਾਰੀ ਨੀਤੀਆਂ ਅਨੁਸਾਰ, ਇਸਨੂੰ ਗੈਰ-ਕਾਨੂੰਨੀ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਆਪਣਾ ਕੰਮ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਨਾ ਪਿਆ । ਇਸਨੇ ਆਪਣਾ ਅਖ਼ਬਾਰ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ, ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਹੜਤਾਲਾਂ ਕਰਨੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੀਆਂ ।

ਰੂਸ ਵਿੱਚ ਤਾਨਾਸ਼ਾਹੀ ਸ਼ਾਸਨ ਸੀ । ਹੋਰ ਯੂਰਪੀ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਉਲਟ, ਜ਼ਾਰ ਉੱਥੇ ਦੀ ਸੰਸਦ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਜਵਾਬਦੇਹ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਉਦਾਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਇੱਕ ਅੰਦੋਲਨ ਚਲਾਇਆ ਤਾਂਕਿ ਇਸ ਗ਼ਲਤ ਪ੍ਰਥਾ ਨੂੰ ਖ਼ਤਮ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕੇ । ਉਦਾਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਸਮਾਜਵਾਦੀ ਲੋਕਤੰਤਰੀ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਕ੍ਰਾਂਤੀਕਾਰੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਕੇ ਕਿਸਾਨਾਂ ਅਤੇ ਮਜ਼ਦੂਰਾਂ ਨੂੰ ਇਕੱਠੇ ਕੀਤਾ ਅਤੇ 1905 ਦੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਦੌਰਾਨ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਉਹਨਾਂ ਦੀਆਂ ਇਹਨਾਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਰੂਸ ਦੇ ਵਰਕਰ ਵੀ ਚੇਤਨ ਹੋ ਗਏ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਕੰਮ ਦੇ ਘੰਟੇ ਘਟਾਉਣ ਅਤੇ ਵੱਧ ਤਨਖਾਹ ਦੀ ਮੰਗ ਕੀਤੀ । ਜਦੋਂ ਉਹ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਲਈ ਤਿਆਰੀ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ, ਪੁਲਿਸ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਉੱਤੇ ਹਮਲਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । 100 ਤੋਂ ਵੱਧ ਵਰਕਰ ਮਰ ਗਏ ਅਤੇ 300 ਤੋਂ ਵੱਧ ਜ਼ਖ਼ਮੀ ਹੋ ਗਏ । ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਘਟਨਾ ਐਤਵਾਰ ਨੂੰ ਹੋਈ ਸੀ, ਇਸ ਲਈ ਇਸਨੂੰ Bloody Sunday ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਵੀ ਜਾਣਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

1914 ਵਿੱਚ ਪਹਿਲਾ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਜ਼ਾਰ ਨੇ ਰੁਸ ਨੂੰ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਧੱਕ ਦਿੱਤਾ । ਰੂਸ ਦੀ ਹਾਲਤ ਜਿਹੜੀ ਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਹੀ ਖ਼ਰਾਬ ਚਲ ਰਹੀ ਸੀ, ਹੋਰ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਖ਼ਰਾਬ ਹੋ ਗਈ । ਰੂਸ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਲਝ ਗਿਆ ਸੀ । ਇੱਕ ਪਾਸੇ ਜ਼ਾਰ ਸੰਸਦ ਡੁਮਾ ਨੂੰ ਭੰਗ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ ਅਤੇ ਦੂਜੇ ਪਾਸੇ ਸੰਸਦ ਦੇ ਮੈਂਬਰ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਤੋਂ ਬਚਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰ ਰਹੇ ਸਨ । ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਪੈਟਰੋਗਰਾਡ (Petrograd) ਵਿੱਚ 22 ਫਰਵਰੀ, 1917 ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਫੈਕਟਰੀ ਬੰਦ ਹੋ ਗਈ ਅਤੇ ਸਾਰੇ ਵਰਕਰ ਬੇਰੋਜ਼ਗਾਰ ਹੋ ਗਏ । ਹਮਦਰਦੀ ਦੇ ਕਾਰਨ ਉੱਥੋਂ ਦੀਆਂ 50 ਫੈਕਟਰੀਆਂ ਦੇ ਵਰਕਰਾਂ ਨੇ ਵੀ ਹੜਤਾਲ ਕਰ ਦਿੱਤੀ । ਇਸ ਸਮੇਂ ਤੱਕ ਕੋਈ ਵੀ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲ ਇਸ ਅੰਦੋਲਨ ਦੀ ਅਗਵਾਈ ਨਹੀਂ ਕਰ ਰਿਹਾ ਸੀ । ਸਰਕਾਰੀ ਇਮਾਰਤਾਂ ਨੂੰ ਵਰਕਰਾਂ ਨੇ ਘੇਰ ਲਿਆ ਅਤੇ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਕਰਫਿਊ (Curfew) ਲਗਾ ਦਿੱਤਾ । ਸ਼ਾਮ ਤੱਕ ਵਰਕਰ ਖਿੰਡ ਗਏ ਪਰ ਉਹ 24 ਅਤੇ 25 ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਫੇਰ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ । ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਸੱਦ ਲਿਆ ਅਤੇ ਪੁਲਿਸ ਨੂੰ ਉਹਨਾਂ ਉੱਤੇ ਨਿਗਰਾਨੀ ਰੱਖਣ ਲਈ ਕਿਹਾ ਗਿਆ ।

25 ਫਰਵਰੀ, ਐਤਵਾਰ ਨੂੰ ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਸੰਸਦ (ਡੁਮਾ) ਨੂੰ ਭੰਗ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਨੇਤਾਵਾਂ ਨੇ ਇਸ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਬੋਲਣਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਕਾਰੀ ਪੂਰੀ ਤਾਕਤ ਨਾਲ 26 ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਵਾਪਸ ਆ ਗਏ । 27 ਤਰੀਕ ਨੂੰ ਪੁਲਿਸ ਦਾ ਹੈਡਆਫਿਸ ਤਬਾਹ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਸੜਕਾਂ ਉੱਤੇ ਲੋਕ ਬਾਹਰ ਆ ਗਏ ਅਤੇ ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਬੈਡ, ਤਨਖਾਹ, ਕੰਮ ਦੇ ਘੱਟ ਘੰਟੇ ਅਤੇ ਲੋਕਤੰਤਰ ਦੇ ਨਾਅਰੇ ਲਾਉਣੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੇ । ਸਰਕਾਰ ਨੇ ਫ਼ੌਜ ਨੂੰ ਫਿਰ ਵਾਪਸ ਬੁਲਾ ਲਿਆ ਪਰ ਫ਼ੌਜ ਲੋਕਾਂ ਉੱਤੇ ਗੋਲੀ ਚਲਾਉਣ ਤੋਂ ਮਨਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਿਸ ਅਫਸਰ ਨੇ ਗੋਲੀ ਚਲਾਉਣ ਦਾ ਹੁਕਮ ਦਿੱਤਾ ਉਸਨੂੰ ਮਾਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਫ਼ੌਜੀ ਵੀ ਹੜਤਾਲੀਆਂ ਨਾਲ ਮਿਲ ਗਏ ਅਤੇ ਸੋਵੀਅਤ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਉਸ ਇਮਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇਕੱਠੇ ਹੋ ਗਏ ਜਿੱਥੇ ਡੁਮਾ ਪਿਛਲੀ ਵਾਰੀ ਇਕੱਠੀ ਹੋਈ ਸੀ ।

ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਵਰਕਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਤੀਨਿਧੀ ਮੰਡਲ ਜ਼ਾਰ ਨੂੰ ਮਿਲਣ ਲਈ ਗਿਆ । ਫ਼ੌਜੀ ਜਰਨੈਲਾਂ ਨੇ ਜ਼ਾਰ ਨੂੰ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਨਕਾਰੀਆਂ ਦੀ ਗੱਲ ਮੰਨਣ ਦੀ ਸਲਾਹ ਦਿੱਤੀ | ਅੰਤ 2 ਮਾਰਚ ਨੂੰ ਜ਼ਾਰ ਨੇ ਉਹਨਾਂ ਦੀ ਗੱਲ ਮੰਨ ਲਈ ਅਤੇ ਜ਼ਾਰ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਅਕਤੂਬਰ ਵਿੱਚ ਲੈਨਿਨ ਨੇ ਰੂਸ ਦਾ ਸ਼ਾਸਨ ਸਾਂਭ ਲਿਆ ਅਤੇ ਰੂਸੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਪੂਰੀ ਹੋ ਗਈ ।

(ii) ਚੀਨੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ (Chinese Revolution) – 1 ਅਕਤੂਬਰ, 1949, ਚੀਨੀ ਕਮਿਉਨਿਸਟ ਨੇਤਾ ਮਾਉ-ਤਸੇ-ਤੁੰਗ ਨੇ People’s Republic of China ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ । ਇਸ ਘੋਸ਼ਣਾ ਨਾਲ ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਅਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ ਵਿੱਚ ਚਲ ਰਹੀ ਲੜਾਈ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਈ ਜਿਹੜੀ ਦੂਜੇ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । PRC ਦੇ ਬਣਨ ਨਾਲ ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਲੰਬੇ ਸਮੇਂ ਤੋਂ (1911 ਦੀ ਚੀਨੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਚੱਲਿਆ ਆ ਰਿਹਾ ਸਰਕਾਰੀ ਉਥਲ-ਪੁਥਲ ਦਾ ਕੰਮ ਵੀ ਖ਼ਤਮ ਹੋ ਗਿਆ । ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ ਦੇ ਹਾਰਨ ਨਾਲ ਅਮਰੀਕਾ ਨੇ ਚੀਨ ਨਾਲ ਸਾਰੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਸੰਬੰਧ ਖ਼ਤਮ ਕਰ ਲਏ ।

ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ 1921 ਵਿੱਚ ਸੰਘਾਈ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ । ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਨੇ 1926-27 ਦੇ ਉੱਤਰੀ ਹਮਲੇ ਸਮੇਂ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਪਾਰਟੀ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਕੀਤਾ । ਇਹ ਸਮਰਥਨ 1927 ਦੇ White Terrees ਤੱਕ ਚੱਲਿਆ ਜਦੋਂ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਨੂੰ ਮਾਰਨਾ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ ।

1931 ਵਿੱਚ ਜਾਪਾਨ ਨੇ ਮੰਰੀਆ ਉੱਤੇ ਕਬਜ਼ਾ ਕਰ ਲਿਆ । ਇਸ ਸਮੇਂ Republic of China ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਤਿੰਨ ਪਾਸਿਓਂ ਹਮਲੇ ਦਾ ਡਰ ਸੀ ਅਤੇ ਉਹ ਸਨ-ਜਾਪਾਨੀ ਹਮਲਾ, ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਵਿਦਰੋਹ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਵਾਲੇ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਹਮਲੇ ਦਾ ਡਰ | ਚੀਨ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਦੇ ਕੁੱਝ ਜਰਨੈਲ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਲੀਡਰ ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ (Chiang-kai-Shek) ਦੇ ਇਸ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਦੁੱਖੀ ਹੋ ਗਏ ਕਿ ਉਹ ਅੰਦਰੂਨੀ ਖਤਰਿਆਂ ਉੱਤੇ ਵੱਧ ਧਿਆਨ ਦੇ ਰਿਹਾ ਸੀ ਨਾ ਕਿ ਜਪਾਨੀ ਹਮਲੇ ਉੱਤੇ । ਉਹਨਾਂ ਨੇ ਸ਼ੇਕ ਨੂੰ ਪਕੜ ਲਿਆ ਅਤੇ ਉਸ ਨੂੰ ਕਮਿਉਨਿਸਟ ਫ਼ੌਜ ਨਾਲ ਸਹਿਯੋਗ ਕਰਨ ਲਈ ਕਿਹਾ । ਇਹ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀ ਸਰਕਾਰ ਅਤੇ ਚੀਨੀ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ (CCP) ਵਿੱਚ ਸਹਿਯੋਗ ਕਰਨ ਵਾਸਤੇ ਪਹਿਲੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਸੀ ਪਰ ਇਹ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਘੱਟ ਸਮੇਂ ਲਈ ਹੀ ਰਹੀ । ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀਆਂ ਨੇ ਜਾਪਾਨ ਦੇ ਉੱਪਰ ਧਿਆਨ ਕਰਨ ਲਈ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਵੱਲ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਜਦਕਿ ਕਮਿਊਨਿਸਟ ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਧਾਉਣ ਵਿੱਚ ਲੱਗੇ ਰਹੇ ।

ਦੂਜੇ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਦੌਰਾਨ ਕਮਿਉਨਿਸਟਾਂ ਲਈ ਸਮਰਥਨ ਕਾਫ਼ੀ ਵੱਧ ਗਿਆ | ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਅਮਰੀਕੀ ਅਧਿਕਾਰੀਆਂ ਨੇ ਰਾਸ਼ਟਰਵਾਦੀਆਂ ਅਧੀਨ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਸਮਰਥਨ ਨੂੰ ਦਬਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਇਹਨਾਂ ਅਲੋਕਤੰਤਰਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਅਤੇ ਯੁੱਧ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਹੋ ਰਹੇ ਭ੍ਰਿਸ਼ਟਾਚਾਰ ਨੇ ਚੀਨ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਕਮਿਊਨਿਸਟਾਂ ਵਿਰੁੱਧ ਕਾਫੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਕਮਿਉਨਿਸਟ ਪਾਰਟੀ ਨੇ ਪੇਂਡੂ ਖੇਤਰਾਂ ਵਿੱਚ ਭੂਮੀ ਸੁਧਾਰ ਕਰਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤੇ ਜਿਸ ਨਾਲ ਉਹਨਾਂ ਦਾ ਸਮਰਥਨ ਵੱਧ ਗਿਆ ।

1945 ਵਿੱਚ ਜਾਪਾਨ ਯੁੱਧ ਹਾਰ ਗਿਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਗ੍ਰਹਿ ਯੁੱਧ (Civil war) ਦਾ ਖਤਰਾ ਵੱਧ ਗਿਆ | ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਨੂੰ ਅਮਰੀਕੀ ਸਮਰਥਨ ਮਿਲਣਾ ਜਾਰੀ ਰਿਹਾ ਕਿਉਂਕਿ ਕਮਿਉਨਿਸਟਾਂ ਦੇ ਵੱਧਦੇ ਖਤਰੇ ਨੂੰ ਚੀਨ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ ਉਹ ਹੀ ਰੋਕ ਸਕਦਾ ਸੀ । 1945 ਵਿੱਚ ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ ਅਤੇ ਮਾਉ-ਤਸੇ-ਤੁੰਗ ਮਿਲੇ ਤਾਂ ਕਿ ਲੜਾਈ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੀ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਗਠਨ ਉੱਪਰ ਚਰਚਾ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕੇ । ਦੋਵੇਂ, ਲੋਕਤੰਤਰ ਦੀ ਬਹਾਲੀ, ਇਕੱਠੀ ਸੈਨਾ ਅਤੇ ਚੀਨ ਦੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਦਲਾਂ ਦੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਉੱਤੇ ਹਾਮੀ ਭਰ ਚੁੱਕੇ ਸਨ । ਸੰਧੀ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਸੀ ਪਰ ਅਮਰੀਕੀਆਂ ਦੇ ਦਖਲ ਕਾਰਨ ਉਹ ਨਾ ਹੋ ਸਕੀ ਅਤੇ 1946 ਵਿੱਚ ਗ੍ਰਹਿ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ ।

ਹਿ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ 1947 ਤੋਂ 1949 ਵਿੱਚ ਕਮਿਉਨਿਸਟਾਂ ਦੀ ਜਿੱਤ ਯਕੀਨੀ ਲੱਗ ਰਹੀ ਸੀ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹਨਾਂ ਨੂੰ ਜਨਸਮਰਥਨ ਹਾਸਲ ਸੀ, ਉੱਚ ਦਰਜੇ ਦੀ ਫ਼ੌਜ ਸੀ ਅਤੇ ਮੰਚੁਰੀਆ ਵਿੱਚ ਜਾਪਾਨੀਆਂ ਤੋਂ ਖੋਏ ਹਥਿਆਰ ਵੀ ਸਨ । ਅਕਤੂਬਰ, 1949 ਵਿੱਚ ਕਈ ਫ਼ੌਜੀ ਜਿੱਤਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮਾਉ-ਤਸੇ-ਤੁੰਗ ਨੇ People’s Republic of China ਦੇ ਗਠਨ ਦੀ ਘੋਸ਼ਣਾ ਕੀਤੀ । ਚਿਆਂਗ-ਕਾਈ-ਸ਼ੇਕ ਆਪਣੀਆਂ ਫ਼ੌਜਾਂ ਦੇ ਪੁਨਰਗਠਨ ਲਈ ਤਾਈਵਾਨ ਭੱਜ ਗਿਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ 1949 ਵਿੱਚ ਚੀਨੀ ਭਾਂਤੀ ਪੂਰੀ ਹੋ ਗਈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਦੇਣ ਦਾ ਉਲੇਖ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਅਤੇ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ ਇਮਾਈਲ ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪਰੈਲ, 1858 ਨੂੰ ਉੱਤਰ ਪੂਰਬੀ ਫਰਾਂਸ ਦੇ ਲਾਰੇਨ (Loraine) ਖੇਤਰ ਦੇ ਵਿੱਚ ਏਪੀਨਲ (Epinal) ਨਾਮਕ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਹੋਇਆ ਸੀ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਸਿੱਖਿਆ ਏਪੀਨਲ ਦੀ ਇੱਕ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਸਥਾ ਵਿੱਚ ਹੀ ਹੋਈ । ਬਚਪਨ ਤੋਂ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਇੱਕ ਹੋਣਹਾਰ, ਪ੍ਰਤਿਭਾਵਾਨ ਅਤੇ ਦਿਮਾਗ ਵਾਲੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਾਣੇ ਜਾਂਦੇ ਸਨ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਪੂਰਵਜ ‘ਰੈਬੀ ਸ਼ਾਸਤਰਕਾਰ’ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸਨ । ਇਸ ਲਈ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਤਾਂ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਵਿਰਾਸਤ ਤੋਂ ਹੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋ ਗਈ ਸੀ । ਏਪੀਨਲ ਵਿੱਚ ਹੀ ਗਰੈਜੂਏਟ ਤਕ ਦੀ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉੱਚੀ ਸਿੱਖਿਆ ਲਈ ਦਰਖੀਮ ਫਰਾਂਸ ਦੀ ਰਾਜਧਾਨੀ ਪੈਰਿਸ ਚਲੇ ਗਏ ।

ਪੈਰਿਸ ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਉੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਹੋਈ । ਇੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਸਥਾ “ਇਕੋਲ ਨਾਰਮੇਲ ਅਕਾਦਮੀ (Ecole Normale Superieure) ਵਿੱਚ ਦਾਖ਼ਲਾ ਲੈਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਇਹ ਕਹਿਣਾ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੂੰ ਹੀ ਦਾਖ਼ਲਾ ਮਿਲਦਾ ਸੀ ।ਦੋ ਅਸਫਲ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1879 ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਵਿਚ ਦਾਖ਼ਲਾ ਮਿਲ ਹੀ ਗਿਆ । ਇਹ ਸੰਸਥਾ ਫਰਾਂਸੀਸੀ, ਲੈਟਿਨ ਅਤੇ ਸ਼੍ਰੀਕ ਦਰਸ਼ਨ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਉੱਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦੀ ਸੀ ਅਤੇ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਪੂਰੇ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਇਹੀ ਵਿਸ਼ੇ ਸ਼ਾਮਲ ਸਨ ਪਰ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦੀ ਅਤੇ ਵਿਗਿਆਨਿਕ ਵਿਤੀ ਵਾਲੇ ਦੁਰਖੀਮ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਵਿੱਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਰੁਚੀ ਨਾ ਲੈ ਸਕੇ ਕਿਉਂਕਿ ਉਹ ਤਾਂ ਸਮਾਜ ਦੀ ਅਸਲੀ, ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਬੌਧਿਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਆਦਿ ਦਸ਼ਾਵਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਵਿੱਚ ਦਿਲਚਸਪੀ ਰੱਖਦੇ ਸਨ ।

ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਇਹ ਪੱਕਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਸੀ ਕਿ ਗਿਆਨ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦ (Positivism) ਜ਼ਰੂਰ ਹੋਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਆਪਦਾ ਮੰਨਣਾ ਸੀ ਕਿ ਕਿਸੇ ਵੀ ਗਿਆਨ ਜਾਂ ਦਰਸ਼ਨ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਦੇ ਸਮੇਂ ਵਰਤਮਾਨ ਰਾਜਨੀਤਿਕ, ਬੌਧਿਕ ਅਤੇ ਸਮਾਜਿਕ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਤਾਂ ਉਸ ਗਿਆਨ ਦਾ ਕੋਈ ਫਾਇਦਾ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਆਪਣੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਦੁਰਖੀਮ ਇਸ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਵਾਤਾਵਰਨ ਤੋਂ ਇੰਨੇ ਅਸੰਤੁਸ਼ਟ ਸਨ ਕਿ ਉਹ ਕਦੀ-ਕਦੀ ਤਾਂ ਆਪਣੇ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਵੀ ਹੋ ਜਾਇਆ ਕਰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਫਿਰ ਵੀ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਇਕੋਲ ਨਾਰਮੇਲ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਅੰਦਰ ਇੰਨਾ ਵਸਾ ਲਿਆ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਆਂਦਰੇ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਦਾਖ਼ਲਾ ਦਿਵਾਇਆ ।

ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦੀ ਅਤੇ ਮਹਾਨ ਇਤਿਹਾਸਕਾਰ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਕੁਲਾਂਜ (Prof. Fustel de Coulanges) 1880 ਵਿਚ ਇਸ ਸੰਸਥਾ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ਕ ਬਣੇ ।ਉਹ ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਅਧਿਆਪਕਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ ਸਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਦੁਰਖੀਮ ਨਾਲ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਪਿਆਰ ਸੀ । ਕੁਲਾਂਜ ਨੇ ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਵਿੱਚ ਬਦਲਾਵ ਕੀਤਾ ਜਿਸ ਨਾਲ ਦੁਰਖੀਮ ਬਹੁਤ ਖ਼ੁਸ਼ ਹੋਏ । ਦੁਰਖੀਮ ਕੁਲਾਂਜ ਦਾ ਇੰਨਾ ਆਦਰ ਕਰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਲੈਟਿਨ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਮਾਨਟੇਸਕਿਉ (Montesquieu) ਨਾਮਕ ਕਿਤਾਬ ਲਿਖੀ ਜਿਹੜੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਕੁਲਾਂਜ ਨੂੰ ਸਮਰਪਿਤ ਕੀਤੀ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਇਮਾਈਲ ਬੋਟਰੋਕਸ (Emile Boutroux) ਨੂੰ ਵੀ ਮਿਲੇ । ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਦੁਰਖੀਮ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਿਰਦੇਸ਼ਨ ਵਿਚ ਡਾਕਟਰੇਟ ਦਾ ਸ਼ੋਧ ਪ੍ਰਬੰਧ ਲਿਖਿਆ । ਇੱਥੇ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਅਤੇ ਹੋਰ ਪ੍ਰਤਿਭਾਵਾਨ ਵਿਦਿਆਥੀਆ ਨੂੰ ਮਿਲੇ ਜਿਹੜੇ ਬਾਅਦ ਵਿਚ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਬਣੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਸ਼ਵ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਵਿਦਵਾਨਾਂ ਦੇ ਸੰਪਰਕ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਨਾਲ ਦੁਰਖੀਮ ਦੇ ਬੌਧਿਕ ਅਤੇ ਮਾਨਸਿਕ ਚਿੰਤਨ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

1882 ਵਿਚ ਉਹ ਇਕੋਲ ਨਾਰਮੇਲ ਨੂੰ ਛੱਡ ਕੇ 5 ਸਾਲਾਂ ਤਕ ਪੈਰਿਸ ਦੇ ਕੋਲ ਸਥਿਤ ਹਾਈ ਸਕੂਲਾਂ-ਸੇਂਸ, ਸੇਂਟ, ਕਯੂਟਿੰਨ ਅਤੇ ਇਜ਼ ਵਿੱਚ ਦਰਸ਼ਨ ਸ਼ਾਸਤਰ ਪੜ੍ਹਾਉਂਦੇ ਰਹੇ । ਨਾਲ ਹੀ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਕੂਲਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਨਵਾਂ ਪਾਠਕ੍ਰਮ ਵੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ । ਦੁਰਖੀਮ ਬਹੁਤ ਵਧੀਆ ਅਧਿਆਪਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਮਨ ਇੱਥੇ ਨਾ ਲੱਗਿਆ । 1885-86 ਵਿੱਚ ਉਹ ਉੱਚ ਅਧਿਐਨ ਦੇ ਲਈ ਨੌਕਰੀ ਤੋਂ ਇੱਕ ਸਾਲ ਦੀ ਛੁੱਟੀ ਲੈ ਕੇ ਸਾਲ ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਜਰਮਨੀ ਚਲੇ ਗਏ ।

ਜਰਮਨੀ ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਅਰਥ ਸ਼ਾਸਤਰ, ਲੋਕ ਮਨੋਵਿਗਿਆਨ, ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਮਾਨਵਵਿਗਿਆਨ ਆਦਿ ਦਾ ਕਾਫੀ ਡੂੰਘਾਈ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ। ਇੱਥੇ ਹੀ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਕਾਮਟੇ (Comte) ਦੇ ਲੇਖਾਂ ਦਾ ਬਰੀਕੀ ਨਾਲ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਸ਼ਾਇਦ ਉਸ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋ ਕੇ ਸਮਾਜਸ਼ਾਸਤਰੀ ਪ੍ਰਤੱਖਵਾਦ (Sociological Positivism) ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਿੱਤਾ ।

1887 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਜਰਮਨੀ ਆ ਗਏ ਅਤੇ ਬੋਰਡਿਅਕਸ ਯੂਨੀਵਰਸਿਟੀ ਵਿੱਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰੂਪ ਨਾਲ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਇੱਕ ਵੱਖ ਨਵਾਂ ਵਿਭਾਗ ਖੋਲਿਆ ਅਤੇ ਆਪ ਨੂੰ ਇੱਥੇ ਅਧਿਐਨ ਲਈ ਸੱਦਿਆ ਗਿਆ । ਲਗਭਗ 9 ਸਾਲ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1896 ਵਿਚ ਉਹ ਇਸੇ ਵਿਭਾਗ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਬਣ ਗਏ । ਇਸੇ ਦੌਰਾਨ ਪੈਰਿਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਦੁਆਰਾ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ 1893 ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਫਰਾਂਸੀਸੀ ਭਾਸ਼ਾ ਵਿਚ ਲਿਖੇ ਸ਼ੋਧ ਗੰਥ De la Division du Travail Social (Division of Labour in Society) ਉੱਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਡਾਕਟਰੇਟ ਦੀ ਉਪਾਧੀ ਦਿੱਤੀ ਗਈ । ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਇਹ ਗੰਥ ਜਲਦੀ ਹੀ ਛੱਪ ਗਿਆ ਅਤੇ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋ ਗਿਆ । ਇਸ ਤੋਂ 2 ਸਾਲ ਬਾਅਦ ਹੀ 1895 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਦੁਜੇ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਗੰਥ Les Regles de ea Methode Sociologique (The rules of Sociological Method) ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । 1897 ਵਿੱਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਤੀਜੇ ਮਹਾਨ ਗ੍ਰੰਥ Le Suicide : Etude de Sociologie (Suicide-A study of Sociology) ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਹਾਨ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੁਰਖੀਮ ਦਾ ਨਾਮ ਦੁਨੀਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਮੁੱਖ ਦਾਰਸ਼ਨਿਕ, ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਤੇ ਮਹਾਨ ਲੇਖਕ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਜਾਣਿਆਂ ਜਾਣ ਲਗ ਪਿਆ ।

1898 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ 1 Annee Sociologique ਨਾਮ ਦੀ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਸੰਬੰਧੀ ਮੈਗਜ਼ੀਨ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਕੀਤੀ ਜਿਸਦੇ ਉਹ ਆਪ 1910 ਤਕ ਸੰਪਾਦਕ ਕਰੇ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਇਹ ਮੈਗਜੀਨ ਫਰਾਂਸ ਦੇ ਬੌਧਿਕ ਵਾਤਾਵਰਣ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਇਸ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਉੱਚ-ਕੋਟੀ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕਾਂ; ਜਿਵੇਂ ਜਾਰਜਸ ਡੈਵੀ, ਸਾਈਮੰਡ, ਲੈਵੀ ਸਟਰਾਸ ਆਦਿ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੱਤਰ ਛਪਵਾਏ ।

ਇਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪ੍ਰਸਿੱਧੀ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ 1902 ਵਿਚ ਪੈਰਿਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਵਿੱਚ ਸਿੱਖਿਆ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦੇ ਪ੍ਰੋਫ਼ੈਸਰ ਪਦ ਦੇ ਲਈ ਬੁਲਾਇਆ ਗਿਆ ਅਤੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਇਸ ਕੰਮ ਨੂੰ ਸੰਭਾਲਿਆ । ਇੱਥੇ ਇਹ ਗੱਲ ਧਿਆਨ ਰੱਖਣਯੋਗ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਸਮੇਂ ਤਕ ਦੁਨੀਆਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਦਾ ਕੋਈ ਵੱਖ ਵਿਭਾਗ ਨਹੀਂ ਸੀ । ਦੁਰਖੀਮ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਤੋਂ ਬਾਅਦ 1913 ਵਿਚ ਸਿੱਖਿਆ-ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਭਾਗ ਦਾ ਨਾਮ ਬਦਲ ਕੇ ਸਿੱਖਿਆ ਸ਼ਾਸਤਰ ਅਤੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰ ਵਿਭਾਗ ਰੱਖ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ । ਇੱਥੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਹੋਰ ਵਿਸ਼ਿਆਂ ਦੇ ਨਾਲ ਨੈਤਿਕ ਸਿੱਖਿਆ, ਧਰਮ ਦੀ ਉਤਪੱਤੀ, ਵਿਕਾਸ ਤੇ ਪਰਿਵਾਰ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ, ਕਾਮਤੇ ਅਤੇ ਸੇਂਟਸਾਈਮਨ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਦਰਸ਼ਨ ਨੂੰ ਬੜੀ ਲਗਨ ਨਾਲ ਪੜ੍ਹਾਇਆ । ਜਿਹੜੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਦੁਰਖੀਮ ਤੋਂ ਪੜ੍ਹੇ ਉਹ ਉਨ੍ਹਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਹੋਏ । 1912 ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਹੋਰ ਕਿਤਾਬ Les Formes Elementairs delavie Religiouse (Elementary forms of Religious Life) ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ।

ਦੁਰਖੀਮ ਜਦੋਂ ਬੋਰਡਿਅਕਸ ਵਿਸ਼ਵਵਿਦਿਆਲੇ ਵਿੱਚ ਨਿਯੁਕਤ ਹੋਏ ਉਸ ਸਮੇਂ ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਵਿਆਹ ਕਰ ਲਿਆ ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਤਨੀ ਦਾ ਨਾਮ ਲੁਇਸ ਡਰੇਣੁ (Louise Drefus) ਸੀ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਦੋ ਬੱਚੇ, ਕੁੜੀ ਮੈਰੀ (Marie) ਅਤੇ ਪੁੱਤਰ ਆਂਦਰੇ (Andre) ਸਨ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਤਨੀ ਨੇ ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਬਹੁਤ ਮੱਦਦ ਕੀਤੀ ਸੀ । ਸੰਪਾਦਨ ਦੇ ਕੰਮ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਸਾਰਾ ਕੰਮ ਚੈਕ ਕਰਨਾ, ਉਸਨੂੰ ਸੰਸ਼ੋਧਿਤ ਕਰਨਾ, ਪੱਤਰ ਵਿਵਹਾਰ ਕਰਨੇ ਅਜਿਹੇ ਕੰਮ ਸਨ ਜਿਹੜੇ ਉਹ ਬਹੁਤ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਕਰਦੀ ਸੀ ।

1914 ਵਿਚ ਪਹਿਲਾ ਵਿਸ਼ਵ ਯੁੱਧ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਗਿਆ । ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਨੂੰ ਸਮਾਜ ਸੇਵਾ ਲਈ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਉਹ ਆਪ ਆਪਣੇ ਲੇਖਾਂ ਅਤੇ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਨਾਲ ਜਨਤਾ ਦਾ ਮਨੋਬਲ ਬਣਾਏ ਰੱਖਣ ਵਿੱਚ ਲਗ ਗਏ । ਕਿਉਂਕਿ ਦੁਰਖੀਮ ਸ਼ਾਂਤੀ ਦੇ ਸਮਰਥਕ ਸਨ ਇਸ ਲਈ ਯੁੱਧ ਨੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਮਾਨਸਿਕ ਤੌਰ ਤੇ ਕਾਫੀ ਕਮਜ਼ੋਰ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਜਦੋਂ ਦਰਖੀਮ ਯੁੱਧ ਵਿੱਚ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾ ਰਹੇ ਸਨ ਤਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਯੁੱਧ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਪੁੱਤਰ ਆਂਦਰੇ ਦੀ ਮੌਤ ਦਾ ਸਮਾਚਾਰ ਮਿਲਿਆ ਜਿਸ ਦੀ ਮੌਤ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ ਬੁਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਫੱਟੜ ਹੋ ਜਾਣ ਤੇ ਬੁਲਗਾਰੀਆ ਦੇ ਹਸਪਤਾਲ ਵਿੱਚ ਹੋਈ ਸੀ । ਆਂਦਰੇ ਦੀ ਮੌਤ ਨੇ ਦੁਰਖੀਮ ਨੂੰ ਅੰਦਰੋਂ ਤੋੜ ਦਿੱਤਾ । ਆਂਦਰੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਪੁੱਤਰ ਹੀ ਨਹੀਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਵੀ ਸੀ ।

1916 ਦੇ ਅੰਤ ਵਿਚ ਦੁਰਖੀਮ ਇਕਦਮ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਬਿਮਾਰ ਹੋ ਗਏ । ਇਸ ਬਿਮਾਰੀ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਵੀ ਆਪ 1917 ਦੀ ਗਰਮੀ ਵਿੱਚ ਨੀਤੀਸ਼ਾਸਤਰ ਉੱਤੇ ਕਿਤਾਬ ਲਿਖਣ ਲਈ ਫਾਊਂਟਨਬਲਿਊ ਨਾਮਕ ਥਾਂ ਉੱਤੇ ਗਏ ਪਰ ਰੱਬ ਨੂੰ ਕੁੱਝ ਹੋਰ ਹੀ ਮਨਜ਼ੂਰ ਸੀ । 15 ਨਵੰਬਰ, 1917 ਨੂੰ ਇਸ ਅਸਾਧਾਰਨ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਵਾਲੇ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਦੀ 59 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਮੌਤ ਹੋ ਗਈ ।

ਦੁਰਖੀਮ ਦੀਆਂ ਲਿਖਤਾਂ (Writings of Durkheim)

ਦੁਰਖੀਮ ਨੇ ਆਪਣੇ ਜੀਵਨਕਾਲ ਵਿੱਚ ਕਈ ਮਹਾਨ ਗ੍ਰੰਥਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾ ਕੀਤੀ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਹੇਠਾਂ ਲਿਖੇ ਹਨ-

  1. The Division of Labour in Society – 1893
  2. The Rules of Sociological Method – 1895
  3. Suicide – 1897
  4. Elementary Forms of Religious Life – 1912
  5. Education and Sociology (After death) – 1922
  6. Sociology and Philosophy (After death) – 1924
  7. Moral Education (After death) – 1925
  8. Sociology and Saint Simon (After death) – 1925
  9. Pragmatism and Sociology (After death) – 1955

ਦੁਰਖੀਮ ਦੀ ਮੌਤ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਪਤਨੀ ਅਤੇ ਦੋਸਤਾਂ ਨੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਲੇਖਾਂ ਅਤੇ ਭਾਸ਼ਣਾਂ ਨੂੰ ਕਿਤਾਬਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਛਪਵਾਇਆ ਜਿਸ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਸ਼ਾਸਤਰੀ ਸਾਹਿਤ ਦੇ ਭੰਡਾਰ ਵਿੱਚ ਵਾਧਾ ਹੋਇਆ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਵੈਬਰ ਦੁਆਰਾ ‘ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀ ਚਰਚਾ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
Types – ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਦੀ ਪੂਰੀ ਵਿਆਖਿਆ ਪੇਸ਼ ਕਰਦੇ ਹੋਏ ਵੈਬਰ ਨੇ ਚਾਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਕਿਰਿਆ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦੀ ਗੱਲ ਦੱਸੀ ਹੈ-

1. ਤਾਰਕਿਕ ਉਦੇਸ਼ ਪੂਰਨ ਵਿਵਹਾਰ (Zweckrational) – ਵੈਬਰ ਦੱਸਦਾ ਹੈ ਕਿ ਤਾਰਕਿਕ ਉਦੇਸ਼ ਪੂਰਨ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਮਤਲਬ ਅਜਿਹੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਤੋਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਉਪਯੋਗਿਤਾ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਅਨੇਕਾਂ ਉਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਦੇ ਲਈ ਤਾਰਕਿਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਨਿਰਦੇਸ਼ਿਤ ਹੋਵੇ । ਇਸ ਵਿਚ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਚੋਣ ਵਿਚ ਸਿਰਫ਼ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਦੇ ਵੱਲ ਹੀ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਬਲਕਿ ਮੁੱਲ ਤੇ ਵੀ ਧਿਆਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਟੀਚੇ ਤੇ ਸਾਧਨਾਂ ਦੀ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਜਾਂਚ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਤੇ ਉਸੇ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਕਿਰਿਆ ਸੰਪਾਦਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

2. ਮੁੱਲਾਤਮਕ ਵਿਵਹਾਰ (Wertrational) – ਮੁੱਲਾਤਮਕ ਵਿਵਹਾਰ ਦੇ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਤੇ ਸੱਪਸ਼ਟ ਮੁੱਲ ਨੂੰ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਉਪਲੱਬਧ ਸਾਧਨ ਦੁਆਰਾ ਸਥਾਨ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ਤੇ ਦੂਜੇ ਮੁੱਲਾਂ ਦੀ ਕੀਮਤ ਤੇ ਕੋਈ ਧਿਆਨ ਨਹੀਂ ਦਿੱਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਵਿਚ ਤਾਰਕਿਕ ਆਧਾਰ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦਾ ਬਲਕਿ ਨੈਤਿਕ, ਧਾਰਮਿਕ ਜਾਂ ਸੁੰਦਰਤਾ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਹੀ ਮੰਨ ਲਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਨੈਤਿਕ ਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਮਾਨਤਾਵਾਂ ਨੂੰ ਬਣਾਈ ਰੱਖਣ ਲਈ ਮੁੱਲਾਤਮਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੇ ਮੰਨਣ ਵਿਚ ਕਿਸੇ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦੇ ਤਰਕ ਦੀ ਸਹਾਇਤਾ ਨਹੀਂ ਲਈ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਬੱਸ ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹੀ ਮੰਨ ਲਈਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਰਨ ਵਿਚ ਸਮਾਜਿਕ ਮਾਣ ਵੀ ਵੱਧਦਾ ਹੈ ਤੇ ਆਤਮਿਕ ਸੰਤੋਸ਼ ਵੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ ।

3. ਸੰਵੇਦਾਤਮਕ ਵਿਵਹਾਰ (Affectual behaviour) – ਅਜਿਹੀਆਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਮਨੁੱਖੀ ਭਾਵਨਾਵਾਂ, ਸੰਵੇਗਾਂ ਅਤੇ ਸਥਾਈ ਭਾਵਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਰਹਿੰਦੇ ਹੋਏ ਸਾਨੂੰ ਪ੍ਰੇਮ, ਨਫ਼ਰਤ, ਗੁੱਸਾ ਆਦਿ ਭਾਵਨਾਵਾਂ ਦਾ ਸ਼ਿਕਾਰ ਹੋਣਾ ਪੈਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਦੇ ਕਾਰਨ ਹੀ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸ਼ਾਂਤੀ ਜਾਂ ਅਸ਼ਾਂਤੀ ਦੀ ਅਵਸਥਾ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦੇ ਕਰਨ ਵਿਚ ਪਰੰਪਰਾ ਤੇ ਤਰਕ ਦਾ ਥੋੜ੍ਹਾ ਜਿਹਾ ਵੀ ਸਹਾਰਾ ਨਹੀਂ ਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ।

4. ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਵਿਵਹਾਰ (Traditional behaviour) – ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਨਿਸ਼ਚਿਤ ਪ੍ਰਤੀਮਾਨਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸਮਾਜਿਕ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਸਰਲ ਤੇ ਸ਼ਾਂਤੀ ਵਾਲਾ ਰੱਖਣ ਲਈ ਪਰੰਪਰਾਗਤ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਮੰਨੀਆਂ ਜਾਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਸੰਭਵ ਹੈ ਕਦੀ ਉਹ ਸਥਿਤੀ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਵੇ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਦੁਆਰਾ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਸੰਘਰਸ਼ ਪੈਦਾ ਹੋ ਜਾਵੇ ਪਰ ਵੈਸੇ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਤਰਕ, ਕਾਰਜਕੁਸ਼ਲਤਾ ਤੇ ਕਿਸੇ ਹੋਰ ਪ੍ਰਭਾਵ ਦਾ ਸਹਾਰਾ ਲੈਣ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਰਹਿੰਦੀ ਹੈ । ਸਮਾਜ ਦੀਆਂ ਪ੍ਰਥਾਵਾਂ ਹੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕਿਰਿਆਵਾਂ ਨੂੰ ਸੰਚਾਲਿਤ ਤੇ ਨਿਯੰਤਰਿਤ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਵੈਬਰ ਅਨੁਸਾਰ ਧਰਮ ਦਾ ਆਰਥਿਕ ਕਿਰਿਆ ਨਾਲ ਕੀ ਸੰਬੰਧ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਵੈਬਰ ਦਾ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਅਧਿਐਨ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਪ੍ਰਵਿਰਤੀ ਉੱਤੇ ਕੇਂਦਰਿਤ ਹੈ ਜੋ ਆਧੁਨਿਕ ਸਮਾਜ ਵਿਚ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਰੂਪ ਵਿਚ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦੀ ਹੈ । ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ 1904 ਤੇ 1905 ਵਿਚ ਜਿਹੜੇ ਲੇਖ ਲਿਖੇ ਸਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਤੇ ਉਸਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪ੍ਰਸਿੱਧ ਕਿਤਾਬ The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism ਦੇ ਨਾਮ ਨਾਲ ਛਪੀ । ਇਸ ਕਿਤਾਬ ਦੇ ਜ਼ਿਆਦਾਤਰ ਭਾਗ ਵਿਚ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਸ ਸਮੱਸਿਆ ਤੇ ਪ੍ਰਕਾਸ਼ ਪਾਇਆ ਹੈ ਕਿ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਜਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੇ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕੀਤਾ ਹੈ । ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਮਾਰਕਸ ਦੇ ਇਸ ਸਿਧਾਂਤ ਦੇ ਲਈ ਇਕ ਖੁੱਲੀ ਚੁਣੌਤੀ ਸੀ ਕਿ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਚੇਤਨਾ, ਉਸਦੇ ਸਮਾਜਿਕ ਵਰਗ ਦੁਆਰਾ ਨਿਰਧਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਵੈਬਰ ਦੇ ਵਿਚਾਰ ਨਾਲ ਆਧੁਨਿਕ ਉਦਯੋਗਿਕ ਜਗਤ ਦੇ ਮਨੁੱਖ ਦੀ ਇੱਕ ਗੱਲ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੈ ਕਿ ਉਸਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ ਕਰਨੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, “ਸਖ਼ਤ ਕੰਮ ਇੱਕ ਕਰਤੱਵ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸਦਾ ਨਤੀਜਾ ਇਸੇ ਦੇ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ ।” ਇਹ ਵਿਚਾਰ ਵੈਬਰ ਦੇ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਨਾਲ ਆਧੁਨਿਕ ਉਦਯੋਗਿਕ ਜਗਤ ਦੇ ਮਨੁੱਖ ਦਾ ਖ਼ਾਸ ਗੁਣ ਹੈ । ਮਨੁੱਖ ਆਪਣੇ ਕੰਮ ਵਿਚ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਕੰਮ ਕਰਨ ਇਸ ਲਈ ਨਹੀਂ ਕਿ ਉਸਨੂੰ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਪਵੇਗਾ ਬਲਕਿ ਇਸ ਲਈ ਕਿ ਉਹ ਅਜਿਹਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਇਹ ਉਸਦੀ ਵਿਅਕਤਿਕ ਸੰਤੁਸ਼ਟੀ ਦਾ ਆਧਾਰ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਆਪ ਲਿਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ਇਕ ਵਿਅਕਤੀ ਤੋਂ ਆਪਣੀ ਉਪਜੀਵਿਕਾ ਦੇ ਮੂਲ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਕਰਤੱਵ ਦਾ ਅਨੁਭਵ ਕਰਨ ਦੀ ਆਸ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਉਹ ਅਜਿਹਾ ਕਰਦਾ ਵੀ ਹੈ, ਚਾਹੇ ਉਹ ਕਿਸੇ ਵੀ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕਿਉਂ ਨਾ ਹੋਵੇ । ਅਮਰੀਕਾ ਦੀ ਇਕ ਕਹਾਵਤ ਹੈ ਕਿ, “ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਵਿਅਕਤੀ ਕੰਮ ਕਰਨ ਦੇ ਯੋਗ ਹੈ ਤਾਂ ਉਸਨੂੰ ਸਭ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਢੰਗ ਨਾਲ ਪੂਰਾ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ।” ਇਹ ਕਹਾਵਤ ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦਾ ਸਾਰ ਵੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਧਾਰਨਾ ਦਾ ਸੰਬੰਧ ਕਿਸੇ ਅਲੌਕਿਕ ਉਦੇਸ਼ ਤੋਂ ਨਹੀਂ ਬਲਕਿ ਆਰਥਿਕ ਜੀਵਨ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਸਫਲਤਾ ਤੋਂ ਹੈ, ਚਾਹੇ ਕਿਸੇ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ ਸਮੇਂ ਵਿਚ ਇਹ ਧਾਰਨਾ ਧਾਰਮਿਕ ਨੈਤਿਕਤਾ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਰਹੀ ਹੈ ।

ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਸਦੀ ਤੁਲਨਾ ਇਕ ਹੋਰ ਆਰਥਿਕ ਕ੍ਰਿਆ ਨਾਲ ਕੀਤੀ ਹੈ ਜਿਸਦਾ ਨਾਮ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਪਰੰਪਰਾਵਾਦ ਰੱਖਿਆ ਹੈ | ਆਰਥਿਕ ਆਵਾਂ ਵਿਚ ਪਰੰਪਰਾਵਾਦ ਉਹ ਸਥਿਤੀ ਹੈ ਜਿਸ ਵਿਚ ਵਿਅਕਤੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਲਾਭ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਘੱਟ ਤੋਂ ਘੱਟ ਕੰਮ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਉਹ ਕੰਮ ਦੇ ਦੌਰਾਨ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਆਰਾਮ ਕਰਨਾ ਪਸੰਦ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਕੰਮ ਦੇ ਨਵੇਂ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਅਨੁਕੂਲਨ ਕਰਨ ਦੀ ਇੱਛਾ ਨਹੀਂ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਉਹ ਜੀਵਨ ਜਿਉਣ ਦੇ ਲਈ ਸਾਧਾਰਨ ਤਰੀਕਿਆਂ ਨਾਲ ਹੀ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇਕਦਮ ਲਾਭ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਸਿਧਾਂਤਹੀਨ ਰੂਪ ਨਾਲ ਧਨ ਦਾ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਆਰਥਿਕ ਪਰੰਪਰਾਵਾਦ ਦਾ ਹੀ ਇਕ ਪਾਸਾ ਹੈ । ਇਹ ਸਾਰੀਆਂ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਦੇ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਲਟ ਹਨ ।

ਅਸਲ ਵਿਚ ਆਧੁਨਿਕ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਅੰਤਰ-ਸੰਬੰਧਿਤ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਦਾ ਇੱਕ ਅਜਿਹਾ ਵੱਡਾ ਇਕੱਠ (Complex) ਹੈ, ਜਿਸਦਾ ਆਧਾਰ ਆਰਥਿਕ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਹਨ ਨਾ ਕਿ ਸਟੋਰੀਆਂ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਅੰਤਰਗਤ ਵਪਾਰੀ ਨਿਗਮਾਂ ਦਾ ਕਾਨੂੰਨੀ ਰੂਪ, ਸੰਗਠਿਤ ਲੈਣ-ਦੇਣ ਦਾ ਕੇਂਦਰ, ਸਰਕਾਰੀ ਕਰਜ਼ਾ ਪੱਤਰਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਰਵਜਨਿਕ ਕਰਜ਼ਾ ਦੇਣ ਦੀ ਪ੍ਰਣਾਲੀ ਅਤੇ ਅਜਿਹੇ ਉਦਯੋਗਾਂ ਦੇ ਸੰਗਠਨਾਂ ਦਾ ਇਕੱਠ ਹੈ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਵਸਤਾਂ ਦੇ ਤਾਰਕਿਕ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰਨਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਨਾ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਵਪਾਰ ਕਰਨਾ । ਵੈਬਰ ਦਾ ਵਿਚਾਰ ਸੀ ਕਿ ਦੱਖਣੀ ਯੂਰਪ, ਰੋਮ ਦੇ ਅਭਿਜਾਤ ਵਰਗ ਅਤੇ ਐਲਬ ਨਦੀ ਦੇ ਪੂਰਬ ਦੇ ਜ਼ਿਮੀਂਦਾਰਾਂ ਦੀਆਂ ਆਰਥਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਇਕਦਮ ਲਾਭ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਕੀਤੀਆਂ ਗਈਆਂ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਸਾਰੇ ਨੈਤਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਦਾ ਤਿਆਗ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਆਰਥਿਕ ਲਾਭ ਦੀਆਂ ਤਾਰਕਿਕ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਦੀ ਘਾਟ ਸੀ । ਜਿਸ ਕਾਰਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਬਰਾਬਰ ਨਹੀਂ ਰੱਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ।

ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਦਾ ਗੁਣ ਸਿਰਫ਼ ਪੱਛਮੀ ਸਮਾਜ ਦਾ ਹੀ ਗੁਣ ਨਹੀਂ ਹੈ । ਅਨੇਕਾਂ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਅਜਿਹੇ ਵਿਅਕਤੀ ਹੋਏ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵਧੀਆ ਢੰਗ ਨਾਲ ਚਲਾਇਆ, ਜੋ ਨੌਕਰਾਂ ਤੋਂ ਵੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਿਹਨਤ ਕਰਦੇ ਸਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਸਾਦਾ ਸੀ ਅਤੇ ਜਿਹੜੇ ਆਪਣੀ ਬੱਚਤ ਨੂੰ ਵੀ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਵਿਚ ਲਾ ਦਿੰਦੇ ਸਨ । ਪਰ ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾਵਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰਭਾਵ ਪੱਛਮੀ ਸਮਾਜਾਂ ਵਿਚ ਕਿਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਿਲਦਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸਦਾ ਕਾਰਨ ਇਹ ਸੀ ਕਿ ਪੱਛਮ ਵਿਚ ਇਹ ਗੁਣ ਇਕ ਵਿਅਕਤਿਕ ਗੁਣ ਨਾ ਰਹਿ ਕੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੇ ਆਮ ਤਰੀਕੇ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਵਿਕਸਿਤ ਹੋਇਆ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਵਿਚ ਫੈਲੀ ਸਖ਼ਤ ਮਿਹਨਤ, ਵਪਾਰਿਕ ਵਿਵਹਾਰ, ਸਰਵਜਨਿਕ ਕਰਜ਼ਾ ਵਿਵਸਥਾ, ਪੂੰਜੀ ਦਾ ਲਗਾਤਾਰ ਵਪਾਰ ਵਿਚ ਲਗਦੇ ਰਹਿਣਾ ਅਤੇ ਮਿਹਨਤ ਪ੍ਰਤੀ ਇੱਛਾ ਹੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦਾ ਸਾਰ ਹੈ। ਇਸਦੇ ਉਲਟ ਇਕਦਮ ਲਾਭ ਪਾਉਣ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼, ਮਿਹਨਤ ਨੂੰ ਬੋਝ ਅਤੇ ਸਰਾਪ ਸਮਝ ਕੇ ਉਸ ਨੂੰ ਨਾ ਕਰਨਾ, ਧਨ ਨੂੰ ਇਕੱਠਾ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਜੀਵਨ ਜੀਣ ਦੇ ਸਾਧਾਰਨ ਪੱਧਰ ਤੋਂ ਹੀ ਸੰਤੁਸ਼ਟ ਹੋ ਜਾਣਾ ਆਮ ਆਰਥਿਕ ਆਦਤਾਂ ਹਨ ।

ਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ (Protestant Ethic) – ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦਾ ਸਾਰ ਹੈ, ਵੈਬਰ ਨੇ ਅਜਿਹੇ ਅਨੇਕਾਂ ਕਾਰਨ ਦੱਸੇ ਹਨ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਸੁਧਾਰ ਅੰਦੋਲਨ ਦੇ ਧਾਰਮਿਕ ਵਿਚਾਰਾਂ ਵਿਚ ਇਸਦੀ ਉਤਪੱਤੀ ਨੂੰ ਲੱਭਣਾ ਹੈ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਆਪਣੇ ਇਕ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਬਾਡੋਨ (Baden) ਨੂੰ ਰਾਜ ਵਿਚ ਧਾਰਮਿਕ ਸੰਬੰਧਾਂ ਅਤੇ ਸਿੱਖਿਆ ਦੀ ਚੋਣ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਕਿਹਾ | ਬਾਡੇਨ ਨੇ ਇਕ ਨਤੀਜਾ ਇਹ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਕਿ ਕੈਥੋਲਿਕ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਦੀ ਤੁਲਨਾ ਵਿਚ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਿੱਖਿਆ ਸੰਸਥਾਵਾਂ ਵਿਚ ਜ਼ਿਆਦਾ ਦਾਖਲਾ ਲੈਂਦੇ ਹਨ ਜੋ ਉਦਯੋਗਿਕ ਜੀਵਨ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਨ । ਇਕ ਹੋਰ ਕਾਰਨ ਇਹ ਵੀ ਸੀ ਕਿ ਯੂਰਪ ਵਿਚ ਸਮੇਂ-ਸਮੇਂ ਤੇ ਘੱਟ ਗਿਣਤੀ ਸਮੂਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਮਾਜਿਕ ਅਤੇ ਰਾਜਨੀਤਿਕ ਹਾਨੀ ਨੂੰ ਸਖ਼ਤ ਆਰਥਿਕ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਪੂਰਾ ਕਰ ਲਿਆ ਜਦਕਿ ਕੈਥੋਲਿਕ ਅਜਿਹਾ ਨਾ ਕਰ ਸਕੇ ।

ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨਾਲ ਵੈਬਰ ਦੀ ਇਸ ਧਾਰਨਾ ਨੂੰ ਬਲ ਮਿਲਿਆ ਕਿ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀ ਅਤੇ ਆਰਥਿਕ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਵਿਚ ਕੋਈ ਸੰਬੰਧ ਜ਼ਰੂਰ ਹੈ । ਇਸ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਹ ਵੀ ਵੇਖਿਆ ਕਿ 16ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਅਮੀਰ ਦੇਸ਼ਾਂ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਰਾਂ ਨੇ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਸਵੀਕਾਰ ਕਰ ਲਿਆ ਕਿਉਂਕਿ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਆਪਣੀਆਂ ਅਨੇਕਾਂ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਆਰਥਿਕ ਲਾਭ ਦੀਆਂ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਾ ਰਿਹਾ ਹੈ । ਇਸੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਹ ਪਤਾ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਕਿ ਕੀ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦਾ ਪ੍ਰਚਾਰ ਆਰਥਿਕ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਪਿਛੜੇ ਹੋਏ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਕੀ ਉੱਨਤ ਪੂੰਜੀਵਾਦੀ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਵੀ ਕਿਸੇ ਖੇਤਰ ਵਿਚ ਕੈਥੋਲਿਕ ਧਰਮ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਬਣਿਆ ਰਿਹਾ ।

The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism ਲਿਖਣ ਵਿਚ ਵੈਬਰ ਦਾ ਉਦੇਸ਼ ਬਹੁਤ ਕੁੱਝ ਇਸ ਵਿਰੋਧ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰ ਕੇ ਆਰਥਿਕ ਜੀਵਨ ਉੱਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਨੂੰ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨਾ ਸੀ । ਵੈਬਰ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨਾ ਚਾਹੁੰਦੇ ਸਨ ਕਿ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਦੇ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਾ ਸਰੋਤ ਬਣ ਗਈਆਂ ਜੋ ਆਰਥਿਕ ਲਾਭਾਂ ਨੂੰ ਤਾਰਕਿਕ ਨਜ਼ਰ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕਰਨ ਦੇ ਹੱਕ ਵਿਚ ਸਨ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਕਿਸੇ ਵੀ ਧਰਮ ਦੇ ਨਾਲ ਸੰਬੰਧਿਤ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਉੱਤੇ ਇਸ ਨਜ਼ਰ ਨਾਲ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਸਿਧਾਂਤ ਆਪਣੇ ਚੇਲਿਆਂ ਨੂੰ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਦਾ ਪ੍ਰੋਤਸਾਹਨ ਦਿੰਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਦੇ ਹੋਏ ਵੈਬਰ ਨੇ ਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੇ ਸ਼ੁੱਧ ਵਿਚਾਰਵਾਦੀ ਪਾਦਰੀਆਂ ਦੇ ਲੇਖਾਂ ਨੂੰ ਪਰਖਿਆ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਆਰਾ ਬਣਾਏ ਕਾਲਵਿਨਵਾਦੀ ਸਿਧਾਂਤਾਂ ਦਾ ਸਮੁਦਾਇ ਦੇ ਦੈਨਿਕ ਵਿਵਹਾਰ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ ।

ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀ ਨੀਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸੇਂਟ ਪਾਲ ਦੇ ਇਸ ਆਦੇਸ਼ ਨੂੰ ਵਿਆਪਕ ਰੂਪ ਨਾਲ ਹਿਣ ਕੀਤਾ ਜਾਣ ਲੱਗਾ ਕਿ, “ਜਿਹੜਾ ਵਿਅਕਤੀ ਕੰਮ ਨਹੀਂ ਕਰੇਗਾ ਉਹ ਰੋਟੀ ਨਹੀਂ ਖਾਵੇਗਾ ਅਤੇ ਗਰੀਬ ਦੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਅਮੀਰ ਵੀ ਰੱਬ ਦੇ ਗੌਰਵ ਨੂੰ ਵਧਾਉਣ ਲਈ ਕਿਸੇ ਨਾ ਕਿਸੇ ਕੰਮ ਜਾਂ ਵਪਾਰ ਨੂੰ ਜ਼ਰੂਰ ਕਰਨ।” ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਮਿਹਨਤੀ ਜੀਵਨ ਹੀ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀ ਸ਼ੁੱਧ ਵਿਚਾਰਵਾਦੀ ਧਾਰਮਿਕ ਭਗਤੀ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਹੈ । ਰਿਚਰਡ ਬੈਂਕਸਟਰ (Richard Baxter) ਨੇ ਕਿਹਾ ਕਿ, ‘ਸਿਰਫ਼ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਹੀ ਰੱਬ ਸਾਡੀ ਅਤੇ ਸਾਡੀਆਂ ਕ੍ਰਿਆਵਾਂ ਦੀ ਰੱਖਿਆ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਮਿਹਨਤ ਹੀ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਨੈਤਿਕ ਅਤੇ ਪ੍ਰਾਕ੍ਰਿਤਕ ਉਦੇਸ਼ ਹੈ, ਸਿਰਫ਼ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਹੀ ਰੱਬ ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੇਵਾ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ ।” ਇਕ ਹੋਰ ਸੰਤ ਜਾਨ ਬਨਿਅਨ ਨੇ ਕਿਹਾ ਸੀ ਕਿ, “ਇਹ ਨਹੀਂ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਕੀ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਕਰਦੇ ਸੀ, ਸਿਰਫ਼ ਇਹ ਕਿਹਾ ਜਾਵੇਗਾ ਕਿ ਤੁਸੀਂ ਕੁਝ ਮਿਹਨਤ ਵੀ ਕਰਦੇ ਸੀ ਜਾਂ ਸਿਰਫ਼ ਗੱਲਾਂ ਹੀ ਮਾਰਦੇ ਸੀ ।”

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀ ਨੀਤੀ ਵਿਚ ਕੰਮ ਕਰਦੇ ਜੀਵਨ ਨੂੰ ਹੀ ਰੱਬ ਦੀ ਭਗਤੀ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਮੰਨ ਲਿਆ ਗਿਆ । ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਵਿਚ ਮਿਹਨਤ ਦੀ ਪਸੰਸਾ ਨੇ ਨਵੇਂ ਨਿਯਮਾਂ ਨੂੰ ਜਨਮ ਦਿੱਤਾ । ਇਸਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਮੇਂ ਨੂੰ ਵਿਅਰਥ ਨਸ਼ਟ ਕਰਨਾ ਪਾਪ ਹੈ । ਜੀਵਨ ਛੋਟਾ ਅਤੇ ਮੁੱਲਵਾਨ ਹੈ, ਇਸ ਲਈ ਮਨੁੱਖ ਨੂੰ ਹਰੇਕ ਸਮੇਂ ਰੱਬ ਦਾ ਗੌਰਵ ਵਧਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਆਪਣਾ ਸਮਾਂ ਆਪਣੇ ਉਪਯੋਗੀ ਕੰਮ ਵਿਚ ਲਗਾਉਣਾ ਚਾਹੀਦਾ ਹੈ । ਵਿਅਰਥ ਦੀ ਗੱਲ-ਬਾਤ, ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਿਲਣਾ, ਜ਼ਰੂਰਤ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸੇਵਾ ਅਤੇ ਦੈਨਿਕ ਕੰਮਾਂ ਨੂੰ ਹਾਨੀ ਪਹੁੰਚਾ ਕੇ ਧਾਰਮਿਕ ਕੰਮਾਂ ਵਿਚ ਲੱਗੇ ਰਹਿਣਾ ਪਾਪ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਕਾਰਨ ਰੱਬ ਦੁਆਰਾ ਦਿੱਤੇ ਉਪਜੀਵਿਕਾ ਕੰਮ ਨੂੰ ਰੱਬ ਦੀ ਇੱਛਾ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਪੂਰਾ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ । ਇਸ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀਕੋਣ ਨਾਲ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਅਕਤੀਗਤ ਨੀਤੀ ਦੇ ਇਸ ਆਦਰਸ਼ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹਨ ਕਿ, “ਅਮੀਰ ਵਿਅਕਤੀ ਕੋਈ ਕੰਮ ਨਾ ਕਰੇ ਜਾਂ ਇਹ ਕਿ ਧਾਰਮਿਕ ਧਿਆਨ ਸੰਸਾਰਿਕ ਕੰਮਾਂ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮੁੱਲਵਾ੩੩ਨ ਹੈ ।’ ਇਹੀ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 12 ਪੱਛਮੀ-ਸਮਾਜ ਵਿਗਿਆਨ ਦੇ ਵਿਚਾਰਕ

ਪੰਜੀਵਾਦ ਅਤੇ ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ ਦਾ ਸੰਬੰਧ (Relationship of Capitalism and Protestant Ethic) – ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀਆਂ ਦੇ ਅਧਿਐਨ ਨਾਲ ਵੈਬਰ ਨੂੰ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਆਧਾਰਾਂ ਵਿਚ ਸਮਾਨਤਾ ਮਿਲਦੀ ਹੈ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਮਾਨਤਾਵਾਂ ਨੇ ਵੈਬਰ ਨੂੰ ਇਸ ਤੱਥ ਉੱਤੇ ਵਿਚਾਰ ਕਰਨ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਦਿੱਤੀ ਕਿ ਆਰਥਿਕ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਅਤੇ ਧਾਰਮਿਕ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਚ ਕਿਹੜੇ ਹਾਲਾਤ ਕਾਰਨ ਹਨ ਅਤੇ ਕਿਹੜੇ ਹਾਲਾਤ ਨਤੀਜੇ ਹਨ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਪਹਿਲਾਂ 16ਵੀਂ ਅਤੇ 17ਵੀਂ ਸਦੀ ਵਿਚ ਧਰਮ ਸੰਘਾਂ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਮਾਨਤਾਵਾਂ ਵਿਚ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਪਰਿਵਰਤਨਾਂ ਦਾ ਮਨੁੱਖੀ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਉੱਤੇ ਪ੍ਰਭਾਵਾਂ ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਕੀਤਾ । ਸ਼ੁਰੂ ਵਿਚ ਅਨੇਕਾਂ ਧਰਮ ਸੰਘਾਂ ਨੇ ਭੌਤਿਕ ਚੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਇਕੱਠ ਉੱਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਅਤੇ ਕੁਝ ਸਮੇਂ ਬਾਅਦ ਧਨ ਦੇ ਇਕੱਠ ਨੂੰ ਅਧਾਰਮਿਕਤਾ ਦੀ ਸ਼੍ਰੇਣੀ ਵਿਚ ਰੱਖਿਆ ਜਾਣ ਲੱਗਿਆ ਜਿਸ ਵਿਚ ਮਿਹਨਤ ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਸਾਰੀਆਂ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ ਕਰ ਲੈਣਾ ਠੀਕ ਸੀ ।

ਇਸ ਧਰਮ ਸਿੰਘ ਨੇ ਇੱਛਾਵਾਂ ਨੂੰ ਖਤਮ ਕਰਨ ਨੂੰ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖਤਾ ਦੇ ਖਤਮ ਕਰਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਨਾ ਲੈ ਕੇ ਕਿਰਤ ਦੇ ਰਸਤੇ ਵਿਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਰੁਕਾਵਟ ਨੂੰ ਇੱਛਾ ਖਤਮ ਕਰਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕੀਤਾ | ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ, ਜਦੋਂ ਇੱਛਾ ਖਤਮ ਕਰ ਲੈਣ ਦੀ ਧਾਰਨਾ ਧਰਮ ਕੇਂਦਰਾਂ ਦੀ ਸੀਮਾ ਤੋਂ ਬਾਹਰ ਨਿਕਲ ਕੇ ਸੰਸਾਰਿਕ ਨੈਤਿਕਤਾ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਨ ਲੱਗੀ ਤਾਂ ਇਸਨੇ ਆਧੁਨਿਕ ਅਰਥ-ਵਿਵਸਥਾ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵਿਚ ਵੀ ਆਪਣਾ ਯੋਗਦਾਨ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤਾ । ਇਸ ਪਰਿਵਰਤਨ ਨੇ ਵੈਬਰ ਨੂੰ ਅਧਿਐਨ ਦੀ ਇਕ ਦਿਸ਼ਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕੀਤੀ ਕਿ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਹੀ ਉਹ ਮੂਲ ਕਾਰਨ ਹਨ ਜੋ ਵਿਅਕਤੀ ਦੇ ਆਰਥਿਕ ਅਤੇ ਧਰਮ ਨਿਰਪੱਖ ਵਿਵਹਾਰਾਂ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਵੈਬਰ ਨੇ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਇਤਿਹਾਸਿਕ ਸਬੂਤਾਂ ਦੁਆਰਾ ਇਹ ਸਪੱਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦੀ ਕੋਸ਼ਿਸ਼ ਕੀਤੀ ਕਿ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਯੂਰਪ ਦੇ ਅਨੇਕਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਵਿਚ ਸ਼ੁਰੂਆਤੀ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਲਈ ਠੀਕ ਸਨ । ਪੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੇ ਸੁਧਾਰ ਅੰਦੋਲਨ ਨੇ ਸ਼ੁਰੂ ਤੋਂ ਹੀ ਧਾਰਮਿਕ ਸਮਾਰੋਹਾਂ ਵਿਚ ਪ੍ਰਵੇਸ਼ ਕਰਨ ਦਾ ਅਧਿਕਾਰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ ਦਿੱਤਾ ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਇਸ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸ਼ਰਧਾ ਸੀ । ਧਾਰਮਿਕ ਪਰਿਸ਼ਦਾਂ ਦੇ ਮੈਂਬਰਾਂ ਨੂੰ ਇਹ ਸਿੱਧ ਕਰਨਾ ਪੈਂਦਾ ਸੀ ਕਿ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿਚ ਆਪਣੇ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੀਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵਿਵਹਾਰਿਕ ਰੂਪ ਦੇਣ ਦੀ ਪੂਰੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੈ । ਇਹ ਪਰੰਪਰਾ ਵੈਬਰ ਦੇ ਅਨੁਸਾਰ ਸਾਧਨਾਂ ਨਾਲ ਸੰਪੰਨ ਉਪਜੀਵਿਕਾ ਨੂੰ ਮਹੱਤਵ ਦੇ ਕੇ ਆਧੁਨਿਕ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿਚ ਬਹੁਤ ਜ਼ਿਆਦਾ ਸਹਾਇਕ ਸਿੱਧ ਹੋਈ । ਹੌਲੀ-ਹੌਲੀ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਧਰਮ ਦੀਆਂ ਨੈਤਿਕ ਸਿੱਖਿਆਵਾਂ ਇਸਦੇ ਸਾਰੇ ਮੰਨਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੇ ਜੀਵਨ ਦੀ ਇਕ ਵਿਵਸਥਿਤ ਸ਼ੈਲੀ ਵਿਚ ਬਦਲ ਗਈ । ਵੈਬਰ ਨੇ ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਨੂੰ ਇਕ ਅਜਿਹੀ ਘਟਨਾ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿਚ ਸਵੀਕਾਰ ਕੀਤਾ ਕਿ ਜਿਸ ਨਾਲ ਪੱਛਮੀ ਜੀਵਨ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪਹਿਲੂਆਂ ਵਿਚ ਤਰਕਵਾਦ ਵਧਿਆ । ਇਹ ਤਰਕਵਾਦ ਪੱਛਮੀ ਸੱਭਿਅਤਾ ਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਰੂਪਾਂ ਵਿਚ ਸਪੱਸ਼ਟ ਹੋਇਆ ਅਤੇ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਵਿਕਾਸ ਨਾਲ ਇਸਦਾ ਪ੍ਰਤੱਖ ਸੰਬੰਧ ਹੈ । ਇਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਪੂੰਜੀਵਾਦ ਦੇ ਸਾਰ ਅਤੇ ਪ੍ਰੋਟੈਸਟੈਂਟ ਨੀਤੀ ਦੇ ਸੰਬੰਧ ਦੀ ਵਿਆਖਿਆ ਦੇ ਆਧਾਰ ਉੱਤੇ ਧਰਮ ਨੂੰ ਸਮਝਾਇਆ ਹੈ ।

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1

Punjab State Board PSEB 11th Class Maths Book Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1

Question 1.
How many 3-digit numbers can be formed from the digits 1,2,3, 4 and 5 assuming that
(i) repetition of the digits is allowed?
(ii) repetition of the digits is not allowed?
Answer.
(i) There are five digits, 1, 2, 3, 4 and 5.
Every digits can be selected any number of times.
Hence, we can select first digit 5 times.
The second digits 5 times and third digit 5 times.
The number of ways in which the selection of three digits made = 5 × 5 × 5= 125.

(ii) Under the restriction, first digit can be selected in 5 ways.
After the selection of first digit four digits are left second digit can be selected in 4 ways and third digits can be selected in 3 ways.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1

Question 2.
How many 3-digit even numbers can be formed from the digits 1, 2, 3, 4, 5, 6 if the digits can he repeated?
Answer.
There will be as many ways as there are ways,of filling 3 vacant places PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1 2 in succession by the given six digits.
In this case, the units place can be filled by 2 or 4 or 6 only i.e., the units place can be filled in 3 ways.
The tens place can be filled by any of the 6 digits in 6 different ways and also the hundreds place can be filled by any of the 6 digits in 6 different ways, as the digits can be repeated.
Therefore, by multiplication principle, the required number of three digit even numbers is 3 × 6 × 6 = 108.

Question 3.
How many 4-letter code can be formed using the first 10 letters of the English alphabet, if no letter can be repeated?
Answer.
First letter of the code word can be selected in 10 ways. After the selection of the first letter, we have 9 letters.
Hence, the second letter can be selected in 9 ways. According to FPC, first two letters can be selected in 10 × 9 ways.
Similarly, third letter can be selected in 8 ways and the fourth letter can be selected in 7 ways.
According to FPC (Fundamental Principle of Counting), number of ways of selecting four letters out of 10 letters of English alphabet is = 10 × 9 × 8 × 7 = 5040.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1

Question 4.
How many 5-digit telephone numbers can be constructed using the digits 0 to 9 if each number starts with 67 and no digit appears more than once?
Answer.
It is given that the 5-digit telephone numbers always start with 67.
Therefore, there will be as many phone numbers as there are ways of filling 3 vacant places PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1 1 by the digits 0 – 9, keeping in mind that the digits cannot be repeated.
The units place can be filled by any of the digits from 0 – 9, except digits 6 and 7.
Therefore, the units place can be filled in 8 different ways following which, the tens place can be filled in by any of the remaining 7 digits in 7 different ways, and the hundreds place can be filled in by any of the remaining 6 digits in 6 different ways.
Therefore, by multiplication principle, the required number of ways in which 5-digit telephone numbers can be constructed is 8 × 7 × 6 = 336.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1

Question 5.
A coin is tossed 3 times and the outcomes are recorded. How many possible outcomes are there?
Answer.
When a coin is tossed once, the number of outcomes is 2 (Head and tail) i.e., in each throw, the number of ways of showing a different face is 2.
Thus, by multiplication principle, the required number of possible outcomes is 2 × 2 × 2 = 8.

Question 6.
Given 5 flags of different colours, how many different signals can be generated if each signal requires the use of 2 flags, one below the other?
Answer.
E0ach signal requires the use of 2 flags.
There will be as many flags as there are ways of filling in 2 vacant places PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.1 3 in succession by the given 5 flags of different colours.
The upper vacant place can be filled in 5 different ways by any one of the 5 flags following which, the lower vacant place can be filled in 4 different ways by any one Of the remaining 4 different flags.
Thus, by multiplication principle, the number of different signals that can be generated is 5 × 4 = 20.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Punjab State Board PSEB 11th Class Maths Book Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 1.
Solve the inequality 2 ≤ 3x – 4 < 5.
2 ≤ 3x – 4 < 5
⇒ 2x + 4 < 3x – 4 + 4< 5 + 4
⇒ 6 ≤ 3x ≤ 9
⇒ 2 ≤ x ≤ 3
Thus, all the real numbers x, which are greater than or equal to 2 but less than or equal to 3, are the solutions of the given inequality. The solution set for the given inequality is [2, 3].

Question 2.
Solve the inequality 6 ≤ – 3 (2x – 4) < 12.
Ans.
6 ≤ – 3 (2x – 4) < 12
or \(\frac{6}{3}\) ≤ – 1 (2x – 4) ≤ \(\frac{12}{3}\) [divide by 3]
or 2 ≤ – 1 (2x – 4) ≤ 4
or 2 ≤ (- 2x + 4) ≤ 4
or 2 – 4 ≤ – 2x + 4 – 4 ≤ 4 – 4
or – 2 ≤ – 2x ≤ 0
or \(\frac{-2}{-2} \geq \frac{-2 x}{-2}\) ≥ 0
or 1 ≥ x ≥ 0
Hence, x is less than or equal to 1 and is greater than 0 i.e., x ∈ [0, 1].

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 3.
Solve the inequality – 3 ≤ 4 – \(\frac{7 x}{2}\) ≤ 18.
Answer.
– 3 ≤ 4 – \(\frac{7 x}{2}\) ≤ 18
⇒ – 3 – 4 ≤ – \(\frac{7 x}{2}\) ≤ 18 – 4
⇒ – 7 ≤ – \(\frac{7 x}{2}\) ≤ 14
⇒ 7 ≥ \(\frac{7 x}{2}\) ≥ – 14
⇒ 1 ≥ \(\frac{x}{2}\) ≥ – 2
⇒ 2 ≥ x ≥ – 4

Question 4.
Solve the inequality – 15 < \(\frac{3(x-2)}{5}\) ≤ 0.
Answer.
– 15 < \(\frac{3(x-2)}{5}\) ≤ 0
⇒ – 75 < 3 (x – 2) ≤ 0
⇒ – 25 < x – 2 ≤ 0
⇒ – 25 + 2 < x – 2 + 2 ≤ 0 + 2
⇒ – 23 < x ≤ 2
Thus, the solution set for the given inequality is (- 23, 2].

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 5.
Solve the inequality – 12 < 4 – \(\frac{3 x}{-5}\) ≤ 2.
Answer.
We have, – 12 < 4 – \(\frac{3 x}{-5}\) ≤ 2

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise 1

Question 6.
Solve the inequality 7 ≤ \(\frac{(3 x+11)}{2}\) ≤ 11.
Answer.
7 ≤ \(\frac{(3 x+11)}{2}\) ≤ 11
⇒ 14 ≤ 3x + 11 ≤ 22
⇒ 14 – 11 ≤ 3x ≤ 22 – 11
⇒ 3 ≤ 3x ≤ 11
⇒ 1 ≤ x ≤ \(\frac{11}{3}\).
Thus, the solution set for the given inequality is [1, \(\frac{11}{3}\)].

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 7.
Solve the inequalities and represent the solution graphically on number line : 5x + 1 > – 24, 5x – 1 < 24.
Answer.
5x + 1 > – 24
5x > – 25
x > -5 …………..(i)
5x – 1 < 24
5x < 25
⇒ x < 5 ……………….(ii)
From inequalities (i) and (ii), it can be concluded that the solution set for the given system of inequalities is (- 5, 5).
The solution of the given system of inequalities can be represented on number line as

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise 2

Question 8.
Solve the inequalities and represent the solution graphically on number line:
2(x – 1) < x + 5, 3 (x + 2) > 2x.
Solution.
2(x-l) < x+5
⇒ 2x – 2 < x + 5
⇒ 2x – x < 5 + 2
⇒ x< 7 …………(i) 3(x + 2) > 2 – x
⇒ 3x +6 > 2 – x
⇒ 3x + x > 2 – 6
⇒ 4x > – 4
⇒ x > – 1 ……………..(ii)
From inequalities (i) and (ii), it can be concluded that the solution set for the given system of inequalities is (- 1, 7).
The solution of the given system of inequalities can be represented on number line as

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise 3

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 9.
Solve the following inequalities and represent the solution graphically on number line : 3x – 7 > 2(x – 6), 6 – x > 11 – 2x.
Answer.
3x – 7 > 2 (x – 6)
⇒ 3x – 7 > 2x – 12
⇒ 3x – 2x > – 12 + 7
⇒ x > – 5
6 – x > 11 – 2x
⇒ – x + 2x > 11 – 6
⇒ x > 5 …………….(ii)
From inequalities (i) and (ii), it can be concluded that the solution set for the given system of inequalities is (5, ∞).
The solution of the given system of inequalities can be represented on number line as

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise 4

Question 10.
Solve the inequalities and represent the solution graphically on number line : 5 (2x – 7) – 3(2x + 3) < 0, 2x + 19 < 6x + 47.
Answer.
5 (2x – 7) – 3(2x + 3) ≤ 0
⇒ 10x – 35 – 6x – 9 ≤ 0
⇒ 4x – 44 ≤ 0
⇒ 4x ≤ 44
⇒ x ≤ 11 …………….(i)
2x + 19 ≤ 6x + 47
19 – 47 ≤ 6x – 2x
⇒ – 28 < 4x
⇒ – 7 < x …………….(ii)
From inequalities (i) and (ii), it can be concluded that the solution set for the given system of inequalities is [- 7, 11]. The solution of the given system of inequalities can be represented on number line as

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise 5

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 11.
A solution is to be kept between 68°F and 77°F. What is the range in temperature in degree Celsius (C) if the Celsius/ Fahrenheit (F) conversion formula is given by F = \(\frac{9}{8}\) C + 32 ?
Answer.
Since the solution is to be kept between 68°F and 77°F,
68 < F < 77
Putting F = \(\frac{9}{5}\) C + 32 , we obtain

68 < \(\frac{9}{5}\) C + 32 < 77

⇒ 68 – 32 < \(\frac{9}{5}\) C < 77 – 32

⇒ 36 < \(\frac{9}{5}\) C < 45

⇒ 36 × \(\frac{5}{9}\) < C < 45 × \(\frac{5}{9}\)
⇒ 20 < C < 25
Thus, the required range of temperature in degree Celsius is between 20°C and 25°C.

Question 12.
A solution of 8% boric acid is to be diluted by adding a 2% boric acid solution to it. The resulting mixture is to be more than 4% but less than 6% boric acid. If we have 640 litres of the 8% solution, how many litres of the 2% solution will have to be added?
Answer.
Let x be the number of litres of 2% boric acid solution.
Total mixture = (640 + x) L
∴ According to the question, 2% of x + 8% of 640 > 4% of (640 + x)
⇒ \(\frac{2 x}{100}\) + \(\frac{8}{100}\) × 640 > \(\frac{4}{100}\) (640 + x)
⇒ 2x + 5120 > 2560 + 4x [multiplying both sides by 100]
⇒ 2x + 5120 – 2x > 2560 + 4x – 2x [subtracting 2x from both sides]
⇒ 5120 > 2560 + 2x
⇒ 5120 – 2560 > 2560 + 2x – 2560
⇒ 2560 > 2x
⇒ 2x < 2560
⇒ x < 1280 ………………….(i)
[dividing bothsides by 2]
Also, 2% of x + 8% of 640 < 6% of (640 + x)
⇒ \(\frac{2}{100} \times x+\frac{8}{100} \times 640<\frac{6}{100} \times(640+x)\)
⇒ 2x + 5120 < 3840 + 6x [multiplying both sides by 100]
⇒ 2x + 5120 – 2x < 3840 + 6x – 2x . [subtracting 2x from both sides]
⇒ 5120 < 3840 + 4x
⇒ 5120 – 3840 < 3840 + 4x – 3840 [subtracting 3840 from both sides]
⇒1280 < 4x or 4x > 1280
⇒ \(\frac{4 x}{4}>\frac{1280}{4}\)
⇒ x > 320 ………….(ii)

On combining eqs. (i) and (ii), we get 320 < x < 1280 Thus, the number of litres to be added should be greater than 320 L and less than 1280 L.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 13.
How many litres of water will have to be added to 1125 litres of the 45% solution of acid so that the resulting mixture will contain more than 25% but less than 30% acid content?
Answer.
Let x litres of water is required to be added.
Then,total mixture = (x + 1125) litres.
It is evident that the amount of acid contained in the resulting mixture is 45% of 1125 litres.
This resulting mixture will contain more than 25% but less than 30% acid content.
∴ 30% of (1125 + x) > 45% of 1125
and, 25% of (1125 + x) < 45% of 1125
30% of (1125 + x) > 45% of 1125

\(\frac{30}{100}\) (1125 + x) < \(\frac{45}{100}\) × 1125 ⇒ 30 (1125 + x) > 45 × 1125
⇒ 30 × 1125 + 30x > 45 × 1125
⇒ 30x > 45 × 1125 – 30 × 1125
⇒ 30x > (45 – 30) × 1125
⇒ 30x > 15 × 1125
⇒ x > \(\frac{15 \times 1125}{30}\) = 5625

25% of (1125 + x) < 45% of 1125
⇒ \(\frac{25}{100}\) (1125 + x) < \(\frac{45}{100}\) × 1125
⇒ 25 (1125 + x) < 45 × 1125
⇒ 25 × 1125 + 25x < 45 × 1125
⇒ 25x < 45 × 1125 – 25 × 1125
⇒ 25x < (45 – 25) × 1125
⇒ x < \(\frac{20 \times 1125}{25}\) = 900
∴ 562.5 < x < 900
Thus, the required number of litres of water that is to be added will have to be more than 562.5 litres but less than 900 litres.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 6 Linear Inequalities Miscellaneous Exercise

Question 14.
IQ of a person is given by the formula IQ = \(\frac{M A}{C A}\) × 100, where MA is mental age and CA is chronological age. If 80 ≤ IQ ≤ 140 for a group of 12 years old children, find the range of their mental Age.
Ans.
Given, CA = 12 and 80 ≤ IQ ≤ 140 ………………..(i)
Also, IQ = \(\frac{M A}{C A}\) × 100
On putting this value in eq. (i), we get
80 ≤ \(\frac{M A}{C A}\) × 100 ≤ 140
⇒ 80 ≤ \(\frac{M A}{12}\) × 100 ≤ 140 [∵ CA = 12]
⇒ \(\frac{80 \times 12}{100}\) ≤ MA ≤ \(\frac{12}{100}\)
[multiplying bothsides by (\(\frac{12}{100}\))]
⇒ \(\frac{960}{100}\) ≤ MA ≤ \(\frac{1680}{100}\)
⇒ 9.6 ≤ MA ≤ 16.8.