PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 शार्टकट सब ओर

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 19 शार्टकट सब ओर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 19 शार्टकट सब ओर

Hindi Guide for Class 12 PSEB शार्टकट सब ओर Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
शार्टकट को जीवन दर्शन के रूप में अपनाने का श्रीगणेश कब हुआ ?
उत्तर:
एक प्राचीन कथा के आधार पर शार्टकट की इस नवीन प्रणाली को जन्म देने का श्रेय पार्वती जी को है, जिन्होंने अपने प्रिय पुत्र गणेश जी को, युवराज पद के संघर्ष में भगवान् शंकर के प्रिय पुत्र कार्तिकेय जी की अपेक्षा, यह सलाह दी कि तीनों लोकों की परिक्रमा करने की बजाए, अपने वाहन चूहे पर सवार होकर भगवान् शंकर की परिक्रमा कर लें। क्योंकि भगवान् शंकर भी तो त्रिलोकीनाथ हैं। त्रिलोक की परिक्रमा उनके सामने क्या महत्त्व रखती है। इसी शार्टकट को अपना कर गणेश जी ने विजय प्राप्त की।

प्रश्न 2.
शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ रहे शार्टकट का वर्णन अपने शब्दों में करें।
उत्तर:
शिक्षा के क्षेत्र में शार्टकट के कारण पाठ्य-पुस्तकों की जगह कुंजियों, नोट्स की धूम मची है। मॉडल पेपर और टैस्ट पेपर छपते हैं जो एक सप्ताह, एक दिन, एक घंटा परीक्षा से पहले पढ़ लेने पर पास होने के पासपोर्ट समझे जाते हैं। आजकल तो परीक्षा से पाँच मिनट पूर्व शीर्षक की पुस्तकें भी छपनी शुरू हो गई हैं। इसी तरह ग्रेजुएट बनने के लिए भी वाया बठिण्डा नामक शार्टकट का चलन हो गया है। प्रभाकर, ज्ञानी या शास्त्री की परीक्षा पास कर केवल अंग्रेजी में एक पर्चा देकर ग्रेजुएट बना जा सकता है। साहित्य के क्षेत्र में भी बड़ी-बड़ी पुस्तकों की बजाए उनके लघु संस्करण छपने लगे हैं। प्रबन्ध काव्य की जगह मुक्तक काव्य ने ले ली है। एक नाटक की जगह एकांकी और कहानी की जगह छोटी कहानी की जगह शार्टकट के कारण ही ले रही है। यही नहीं साहित्य की प्रत्येक विधा को शार्टकट ने अपने शिकंजे में कस रखा है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 डॉ० संसार चन्द्र

प्रश्न 3.
‘शार्टकट सब ओर’ में लेखक ने व्यंग्य के द्वारा शार्टकट के कुप्रभावों की ओर कैसे संकेत किया है ?
उत्तर:
लेखक ने शार्टकट की संस्कृति के प्रभाव स्वरूप आगे बढ़ने की होड़ में बेतहाशा भागना शुरू कर दिया है। स्त्रियों ने टाइट ड्रैस पहननी शुरू कर दी है और बाल कटवाने शुरू कर दिये हैं। पाठ्य-पुस्तकों की बजाए कुंजियों, नोट्स और मॉडल टैस्ट पेपरों ने ले ली है। विवाह के झंझट से बचने के लिए प्रेम विवाह होने लगे हैं। ये सब शार्टकट के कुप्रभाव ही तो हैं।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 4.
‘शार्टकट सब ओर’ निबन्ध आज के युग का यथार्थ चित्रण है। इसमें जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में शार्टकट अपना कर आगे बढ़ने की प्रवृत्ति का वर्णन किया गया है।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में हास्य के पुट के साथ आधुनिक युग के गम्भीर यथार्थ को सामने रखा है। आज मनुष्य कामकाज के बोझ से इतना दब गया है कि शार्टकट के बिना उसकी गाड़ी चल ही नहीं सकती। उसके हर काम में हर क्षेत्र में शार्टकट का ही बोल बाला है। टाइट ड्रैस और हेयर कट इसी शार्टकट का ही परिणाम हैं। साहित्य के क्षेत्र में भी शार्टकट का सहारा लिया जाने लगा है। आज बड़ी-बड़ी पुस्तकें कोई नहीं पढ़ता। लघु संस्करणों ने उनकी जगह ले ली है। पाठ्य-पुस्तकों के स्थान पर कुंजियाँ, नोट्स, मॉडल पेपर, टैस्ट पेपर लोग पढ़ते हैं और अब तो ऐसी पुस्तकें भी बाज़ार में आ गई हैं जो परीक्षा से एक सप्ताह पहले, एक घण्टा पहले और पाँच मिनट पहले शीर्षक वाली हैं। ये सब शार्टकट का ही तो परिणाम है। उपन्यास की जगह कहानी, छोटी कहानी, नाटक की जगह एकांकी और महाकाव्य की जगह मुक्तक काव्य ने ले ली है। सच्चाई यह है कि आज शार्टकट ने साहित्य की प्रत्येक विधा को अपने शिकंजे में ले लिया है।

शादी के सिलसिले में प्रेम विवाह भी इसी शार्टकट की देन है। शिक्षा के क्षेत्र में वाया बठिण्डा ग्रेजुएट होने के लिए शार्टकट का सहारा लिया जाता है। लेखक ने शार्टकट के कारण गागर में सागर भरने की बात को स्पष्ट करते हुए कहा है कि आजकल लोगों के पास बात । तक करने की भी फुर्सत नहीं है इसलिए वे शार्टकट का सहारा लेकर इशारों ही इशारों में बात करते हैं। – इस तरह लेखक ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए शार्टकट का सहारा लेने की बात कही है। प्रश्न 5. ‘शार्टकट सब ओर’ निबन्ध का सार अपने शब्दों में लिखो। उत्तर-देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया सार। (ग) सप्रसंग व्याख्या करें

प्रश्न 6.
एक गम्भीर दौड़ छिड़ गई है। हर कोई एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ में है। यह दौड़ कछुए और खरगोश की नहीं बल्कि सिर्फ खरगोशों की दौड़ है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० संसार चन्द्र द्वारा लिखित निबन्ध ‘शार्टकट सब ओर’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक शार्टकट के माध्यम से लोगों के एक-दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ की चर्चा कर रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि शार्टकट आधुनिक संस्कृति का दूसरा नाम बन जाने के कारण लोगों में एक गम्भीर दौड़ छिड़ गई है। हर कोई एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहता है। यह दौड़ कोई कछुए और खरगोश की दौड़ नहीं जिसमें कछुआ तो धीरे-धीरे चलता है और खरगोश कुलाचे भरता हुआ सरपट दौड़ता है परन्तु यह दौड़ तो केवल खरगोशों की दौड़ है जिसमें हर कोई तेज़ी से भाग रहा है और एक-दूसरे से आगे निकल जाना चाहता है।

विशेष:

  1. आधुनिक युग में हर कोई शार्टकट कर रहा है।
  2. भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।

प्रश्न 7.
मुक्तक रचना ने प्रबन्ध की कमर तोड़ दी है। एकांकी नाटक के प्राण हर रहा है। छोटी कहानी बड़ी का गला दबोच रही है। सच्चाई यह है कि साहित्य की प्रत्येक विधा को शिकंजे में कस कर शार्टकट किया जा रहा है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० संसार चन्द्र द्वारा लिखित निबन्ध ‘शार्टकट सब ओर’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक साहित्य पर शार्ट के प्रभाव का वर्णन कर रहे हैं।

व्याख्या:
लेखक शार्टकट के साहित्य पर पड़ने वाले प्रभाव का उल्लेख करते हुए कहते हैं शार्टकट के कारण मुक्तक काव्य की रचना होने लगी जिसने प्रबन्ध काव्य की कमर तोड़ दी अर्थात् उसकी रचना बन्द हो गई। इसी तरह एकांकी ने नाटक के प्राण हर लिए अर्थात् शार्टकट के कारण नाटक के स्थान पर एकांकी का प्रचलन शुरू हो गया। इसी तरह छोटी कहानी ने कहानी का गला दबोच लिया अर्थात् कहानी के स्थान पर छोटी कहानी लिखी जाने लगी। सच तो यह है कि साहित्य की प्रत्येक विधा को निबन्ध, संस्मरण, रेखाचित्र-आदि को शार्टकट ने अपने शिकंजे में कस लिया है अर्थात् साहित्य की सभी विधाएँ इसके प्रभाव में आ गई हैं।

विशेष:

  1. साहित्य के क्षेत्र में मुक्तकों, कहानी, एकांकी को शार्टकट माना गया है।
  2. भाषा सहज तथा मुहावरों से युक्त है।

प्रश्न 8.
ये महानुभाव अपने समग्र कार्य व्यापार आँखों के इशारों से चलाते हैं। इसके पास बात करने की फुर्सत कहाँ। किसी उर्दू शायर ने सम्भवतः इनकी इस अदा पर कुर्बान होकर ही यह शेयर पढ़ा हैजमाने को फुरसत नहीं गुफ़तगू की
अरुसे सुखन ये इशारों के दिन हैं। प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० संसार चन्द्र द्वारा लिखित निबन्ध ‘शार्टकट सब ओर’ में से ली गई हैं।

प्रस्तुत:
पंक्तियाँ में लेखक ने बातचीत पर भी शार्टकट के प्रभाव का वर्णन किया है।

व्याख्या:
लेखक मौन व्रत को शार्टकट सम्प्रदाय का बहुत बड़ा अनुष्ठान मानते हुए कहते हैं कि ये लोग, जो मौन व्रत के समर्थक हैं, अपना सारा कार्य व्यापार आँखों के इशारों से चलाते हैं। उनके पास बात तक करने की फुर्सत नहीं है। किसी उर्दू कवि ने शायद इनकी इसी अदा पर न्योछावर होते हुए यह शेयर पढ़ा था जिसका अर्थ है कि ज़माने को बातचीत करने की भी फुर्सत नहीं है क्योंकि दुल्हन से बातचीत इशारों से करने के दिन हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने मौन को भी वार्तालाप का शार्टकट माना है।
  2. भाषा बोलचाल की उर्दू शब्दों से युक्त है।

PSEB 12th Class Hindi Guide शार्टकट सब ओर Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ० संसार चंद का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?
उत्तर:
डॉ० संसार चंद का जन्म जम्मू के मीरपुर गाँव में सन् 1917 में हुआ था।

प्रश्न 2.
डॉ० संसार चंद के अधिकतर निबंध किस तरह के हैं ?
उत्तर:
व्यग्यात्मक।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 19 डॉ० संसार चन्द्र

प्रश्न 3.
डॉ० संसार चंद के द्वारा रचित कुछ निबंध संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सोने के दाँत, बातें या झूठी, तिनकों के घाट, महामूर्ख मंडल।

प्रश्न 4.
लेखक ने आज की संस्कृति को दूसरा नाम क्या दिया है?
उत्तर:
शार्टकट।

प्रश्न 5.
शार्टकट का इतिहास कैसा है?
उत्तर:
बहुत पुराना।

प्रश्न 6.
गणेश जी ने शार्टकट कैसे मारकर विजय प्राप्त कर ली थी?
उत्तर:
उन्होंने भगवान् शंकर की परिक्रमा करके विजय प्राप्त कर ली थी।

प्रश्न 7.
साहित्य के क्षेत्र में आजकल कौन-से शार्टकट के उदाहरण हैं ?
उत्तर:
मॉडल पेपर, टैस्ट पेपर, कुंजियां, नोट्स, लघु संस्करण।

प्रश्न 8.
लेखक के अनुसार कहानी किसका शार्टकट है?
उत्तर:
उपन्यास का।

प्रश्न 9.
मुक्तक किसके शार्टकट माने जाते हैं ?
उत्तर:
प्रबंध काव्य के।

प्रश्न 10.
‘वाया बठिंडा’ क्या है?
उत्तर:
शिक्षा से संबंधित डिग्री प्राप्त करने के लिए टुकड़ों में प्राप्त की गई शिक्षा।

प्रश्न 11.
लेखक की दृष्टि में आजकल सब तरफ किसका बोलबाला है?
उत्तर:
शार्टकट का।

प्रश्न 12.
लेखक की दृष्टि में कौन-सा मुहावरा शार्टकट की तरफ संकेत करता है?
उत्तर:
गागर में सागर भरना।

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वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 13.
हर कोई एक-दूसरे से..
उत्तर:
आगे बढ़ने की दौड़ में है।

प्रश्न 14.
…………….नाटक के प्राण हर रहा है।
उत्तर:
एकांकी।

प्रश्न 15.
छोटी कहानी बड़ी कहानी……………..।
उत्तर:
का गला दबोच रही है।

प्रश्न 16.
ये महानुभाव अपने समग्र कार्य.. ………….. …….से चलाते हैं।
उत्तर:
आँखों के इशारों।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
शिक्षा के क्षेत्र में शार्टकट बढ़ रहे हैं।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
मुक्तक रचना ने प्रबंध की कमर तोड़ दी है।
उत्तर:
हाँ।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शार्टकट सब ओर’ निबंध के लेखक का नाम लिखें।
उत्तर:
डॉ० संसार चंद।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. ‘शार्टकट सब ओर’ किस विद्या की रचना है ?
(क) निबंध
(ख). कहानी
(ग) संस्मरण
(घ) रेखाचित्र।
उत्तर:
(क) निबंध

2. ‘शार्टकट सब ओर’ कैसा निबंध है ?
(क) विचारात्मक
(ख) व्यंग्यात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) आत्म कथात्मक।
उत्तर:
(ख) व्यंग्यात्मक

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3. लेखक के अनुसार शार्टकट को जन्म देने का श्रेय किसकों है ?
(क) पार्वती को
(ख) शिव को
(ग) गणेश को
(घ) महादेवी को
उत्तर:
(क) पार्वती को

4. शार्टकट के कारण मुक्तक ने किसकी जगह ली ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) प्रबंध काव्य
(घ) काव्य
उत्तर:
(ग) प्रबंध काव्य

5. शार्टकट का इतिहास कितना पुराना है ?
(क) बहुत पुराना
(ख) सौ साल पुराना
(ग) दो सौ साल पुराना
(घ) पचास साल पुराना
उत्तर:
(क) बहुत पुराना

कठिन शब्दों के अर्थ

शार्टकट = छोटा रास्ता। अबाध गति = बिना रुकावट के चाल। कुलाचें भरना = छलांगें मारना। सरपट भागना = तेज़ भागना । गर्जे कि = यहाँ तक कि। सिक्का मानना = प्रभाव मानना। श्रीगणेश करना = आरम्भ करना। परिक्रमा करना = चारों ओर चक्कर लगाना। द्रुतगामी = तेज़ चलने वाला। वाहन = सवारी। बिसात = हैसियत, सामर्थ्य । शिल्पविधि = रचना का तरीका। जनाज़ा = अर्थी । शार्ट = छोटा। किस्सा = कहानी। काबिले गौर = ध्यान देने योग्य। धूर्तराज = धोखेबाज़ों का राजा। मज़मून = विषय। बिलबिलाना = तड़पना । लबरेज़ होना = पूरा भरना। सब्र = सन्तोष। दामन = आँचल। फ़िलासफी = दर्शन। जेहाद = संघर्ष। बुलन्द करना = ऊँचा उठाना। अबूर करना = पार करना। ईजाद = आविष्कार। दुश्वार = कठिन। हनूज दिल्ली दूर अस्त = अभी दिल्ली दूर है। बेतकल्लुफ़ = निस्संकोच, बेधड़क, अनौपचारिक। तफ़रीह = दिल्लगी, हँसी। कारगर = उपयोगी। खारिज = अलग किया हुआ। जौक = एक प्रसिद्ध उर्दू कवि। हकीकत = वास्तविकता। बयान करना = वर्णन करना। चन्द एक = कुछ एक।वृहद् = बड़ा। भौन = भवन, घर। गुफ़तगू = बातचीत।

शार्टकट सब ओर Summary

शार्टकट सब ओर जीवन परिचय

डॉ० संसार चन्द्र जी का जीवन परिचय लिखिए।

डॉ० संसार चन्द्र का जन्म सन् 1917 में जम्मू के मीरपुर नामक गाँव में हुआ। हिन्दी संस्कृत में एम० ए० करने के बाद आपने पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच०डी० एवं डी०लिट् की उपाधि प्राप्त की। आपने जम्मू में अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया। फिर सनातन धर्म कॉलेज (लाहौर) अम्बाला छावनी में हिन्दी संस्कृत विभाग के अध्यक्ष रहे। बाद में पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में रीडर पद पर काम किया। सन् 1970 में जम्मू विश्वविद्यालय में हिन्दी विभागाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। यहीं से 1977 में आप सेवानिवृत्त होकर चण्डीगढ़ में बस गए। आपने अधिकतर व्यंग्यात्मक निबन्ध लिखे हैं। आपके प्रसिद्ध निबन्ध संग्रहों में सोने के दाँत, अपनी डाली के काँटे, बातें ये झूठी हैं, गंगा जब उल्टी बहे, महामूर्ख मण्डल, तिनकों के घाट, लाख रुपए की बात उल्लेखनीय हैं।

शार्टकट सब ओर निबन्ध का सार

‘शार्टकट सब ओर’ निबन्ध का सार 150 शब्दों में लिखिए।

प्रस्तुत व्यंग्यपरक निबन्ध में डॉ० संसार चन्द्र ने आधुनिक युग के एक गम्भीर यथार्थ को प्रस्तुत किया है। लेखक का मानना है कि आज की संस्कृति का दूसरा नाम शार्टकट है। इसके पीछे हम बेतहाशा दौड़ रहे हैं। हर कोई जीवन के हर क्षेत्र में शार्टकट को अपना रहा है। शार्टकट का इतिहास बहुत पुराना है। इसे जन्म देने का श्रेय पार्वती जी को है जिन्होंने गणेश जी को तीनों लोकों की परिक्रमा का शार्टकट यह बताया कि वे भगवान् शंकर की परिक्रमा कर लें। शार्टकट अपना कर गणेश जी विजयी हुए।

साहित्य के क्षेत्र में भी आज लघु संस्करणों, कुंजियों, नोटों, मॉडल पेपर और टैस्ट पेपर का युग है। परीक्षा से एक सप्ताह पहले, एक घण्टा पहले शार्टकट का ही परिणाम है। इस दिशा में परीक्षा से पाँच मिनट पहले के शार्टकट निकल चुके हैं। इसी तरह नाटक की जगह एकांकी और उपन्यास की जगह कहानी, प्रबन्ध काव्य की जगह मुक्तक का प्रचलन शार्टकट का ही परिणाम है।

शादी के क्षेत्र में भी प्रेम विवाह शार्टकट के कारण प्रचलन हुआ है। आज माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आने पर ही फल लगने की कौन प्रतीक्षा करता है। शिक्षा के क्षेत्र में वाया बठिण्डा परीक्षा पास करना शार्टकट के कारण ही सम्भव हो सका है। स्पष्ट है कि आज के युग में शार्टकट का ही बोलबाला है। गागर में सागर भरने मुहावरे का भी यही अर्थ है कि व्यक्ति थोड़े में बहुत कुछ कह जाता है अर्थात् शार्टकट से काम लेता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 24 उपेक्षिता

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 24 उपेक्षिता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 24 उपेक्षिता

Hindi Guide for Class 12 PSEB उपेक्षिता Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
कमला का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
कमला लड़की को जन्म देना बुरा नहीं समझती क्योंकि वह स्वयं अपने माँ-बाप की सबसे बड़ी बेटी है। उसके पिता तो लडकियों को माँ-बाप को सुख देने वाली मानते हैं। कमला लोगों की सहानुभूति, दिलासे की कोई परवाह नहीं करती। वह अपनी मौसी सास की टिप्पणियों की परवाह न कर बेटी को छाती से लगाते हुए सोचती है कि उसके लिए यह बेटी तो बेटों से भी बढ़कर है।

प्रश्न 2.
लेखक के मित्रों ने लड़की पैदा होने पर अपने उद्गार कैसे पेश किए ?
उत्तर:
लेखक के मित्र मिस्टर चोपड़ा ने लेखक को चुप और परेशान हाल में देखकर कहा–’एक ही तो होना था, लड़का या लड़की।’ भले ही उनकी आवाज़ धीमी और ढीली थी। मिसेज़ चोपड़ा ने लड़के और लड़की में कोई फर्क न होने की बात कह कर लेखक के तनाव को कुछ कम किया। मिसेज़ सहगल ने कहा हमारी भी तो दो लड़कियाँ हैं। सहगल साहब ने तो कभी सोचा भी नहीं अतः लड़की होने की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। मिस्टर गुप्ता ने सान्त्वना देते हुए कहा भगवान् ने चाहा तो एक छोड़ अनेक लड़के भी हो जाएँगे। मिसेज़ गुप्ता ने कहा कि लड़की होने से घबराने की कोई आवश्यकता नहीं।

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प्रश्न 3.
कमला के माँ-बाप ने लड़की पैदा होने पर उसे कैसे सांत्वना दी ?
उत्तर:
कमला के पिता ने लेखक को सान्त्वना देते हुए कहा कि बड़े खुश किस्मत हो, जो तुम्हारी पहली सन्तान बेटी है। लड़कियाँ ही माँ-बाप को सुख देने वाली होती हैं । कमला ने जितना सुख हमें दिया है, बस मैं ही जानता हूँ और साथ ही पंजाबी की एक लोकोक्ति भी सुना दी, जिस का अर्थ था कि यदि तू अपना सुख चाहता है तो तेरी पहली सन्तान लड़की हो।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 4.
उपेक्षिता कहानी का सार अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया सार।

प्रश्न 5.
‘परिवार में लड़की का पैदा होना ठीक क्यों नहीं समझा जाता’ उपेक्षिता कहानी के आधार पर इस तथ्य की पुष्टि करें।
उत्तर:
हमारे समाज में लड़की के जन्म को अभी भी एक अभिशाप समझा जाता है। इक्कीसवीं सदी शुरू हो गई किन्तु भ्रूण-हत्या आज भी हो रही है। सदियों से चली आ रही रूढ़ियों को हम बदल नहीं सके हैं। लड़के के जन्म पर लड्डू बाँटे जाते हैं, लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है जबकि लड़की को उपेक्षिता समझा जाता है। भले ही आज लड़की और लड़के में कोई भेद नहीं समझा जाता। किरण बेदी जैसी लड़कियाँ उच्च पदों पर पहुँच कर अपनी कार्यक्षमता का परिचय दे रही हैं किन्तु हमारी मानसिकता अभी तक बदली नहीं है। प्रस्तुत कहानी में अस्पताल की नर्स का व्यवहार और वहाँ मौजूद एक बूढी औरत का यह कहना कि ‘तैयारी तो लड़के की थी पर हुई लड़की’ इसी मानसिकता की ओर संकेत करता है। लेखक के पिता का कोई बात नहीं कहना तथा रिश्तेदारों को लड़की के जन्म की सूचना तार द्वारा न भेजकर पोस्टकार्ड द्वारा भेजने को कहना तथा रिश्तेदारों का उत्तर में बधाई न देना भी इसी मानसिकता की ओर संकेत करता है। मित्रों का सान्त्वना देना भी इसी बात का परिचायक है कि हमारे समाज में घर में लड़की का जन्म ठीक नहीं माना जाता।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करो:

प्रश्न 6.
“कपड़े लत्ते तो बेचारों ने बहुत अच्छे ही बनाये हैं, तैयारी तो लड़के की थी, पर हुई लड़की।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता द्वारा लिखित कहानी ‘उपेक्षिता’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ अस्पताल में उपस्थित एक बुढ़िया ने नर्स को बच्ची का सामान देते देख कर अपनी साथ वाली औरत से कही हैं।

व्याख्या:
अस्पताल में जब लेखक नर्स को बच्ची का सामान दे रहा था तो वहाँ उपस्थित एक बुढ़िया ने पास वाली औरत से कहा कि बेचारों ने कपड़े-लत्ते तो बहुत अच्छे बनाए थे, जिन्हें देखकर लगता है कि उन्होंने तैयारी तो लड़के की की थी अर्थात् उन्हें लड़का पैदा होने की उम्मीद थी किन्तु हुई लड़की।

प्रश्न 7.
“लड़कियाँ तो पैदा होने के वक्त से ही माँ का खून चूसने लगती हैं। जान बच जाए तो समझो बड़ी बात है।”
उत्तर:
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता द्वारा लिखित कहानी ‘उपेक्षिता में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ लेखक से अस्पताल में मौजूद एक बूढ़ी औरत ने कही हैं जो लड़की के जन्म पर अपने अनुभव बता रही है।

व्याख्या:
अस्पताल में उपस्थित बूढी औरत ने लेखक से लड़की के जन्म लेने पर अपने अनुभव का वर्णन करते हुए कहा कि लड़कियाँ तो पैदा होते ही अपनी माँ का खून चूसने लगती हैं अर्थात् माँ को उसके विवाह दहेज की चिन्ता सताने लगती है। लड़की की और उसकी माँ की जान बच जाए तो इसे ही बड़ी बात समझना चाहिए।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 24 वीरेन्द्र मेंहदीरता

प्रश्न 8.
“ओ तीवी सुलछ्छनी, जेहड़ी जम्मे पहली लछछमी।”
उत्तर:
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्ति श्री वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता द्वारा लिखित कहानी ‘उपेक्षिता’ में से ली गई है। प्रस्तुत पंक्ति लेखक की माँ ने लेखक की पत्नी कमला के सिर हाथ फेरते हुए उसे सान्त्वना देते हुए कही है।

व्याख्या:
लेखक की माँ ने उसकी पत्नी को बेटी के जन्म लेने पर सान्त्वना देते हुए कहा कि वही स्त्री सुलक्षणों वाली होती है जो पहली कन्या अर्थात् लक्ष्मी को जन्म दे।

प्रश्न 9.
“मैं तो कहती हूँ लड़की हो या लड़का, पर हो किस्मत वाला।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्ति श्री वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता द्वारा लिखित कहानी ‘उपेक्षिता’ में से ली गई है। प्रस्तुत पंक्ति मिसेज़ चोपड़ा ने लेखक और उसकी पत्नी को सान्त्वना देते हुए कही है।

व्याख्या:
लड़की और लड़के में कोई अन्तर न होने की बात को आगे बढ़ाते हुए मिसेज़ चोपड़ा कहती हैं कि लड़की हो या लड़का किन्तु होना चाहिए किस्मत वाला क्योंकि सब अपनी-अपनी किस्मत लेकर आते हैं। परोक्ष में मिसेज़ चोपड़ा लेखक और उसकी पत्नी को दिलासा दिला रही है।

PSEB 12th Class Hindi Guide उपेक्षिता Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ० वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
सन् 1930 ई० में रावलपिंडी (पाकिस्तान)में।

प्रश्न 2.
डॉ० मेंहदीरत्ता का योगदान किस साहित्यिक विधा के लिए सराहनीय है?
उत्तर:
रंगमंच।

प्रश्न 3.
डॉ० वीरेन्द्र ने चंडीगढ़ में किस संस्था की स्थापना की थी?
उत्तर:
‘अभिनेत’ नाट्य संस्था की।

प्रश्न 4.
माँ ने पहली लड़की को क्या कहा था?
उत्तर:
लक्ष्मी।

प्रश्न 5.
लेखक को पिता के द्वारा कहा गया कौन-सा वाक्य समझ नहीं आया था?
उत्तर:
कोई बात नहीं।

प्रश्न 6.
लड़की के जन्म की सूचना किस तरह देने के लिए कहा गया था?
उत्तर:
तार से नहीं बल्कि पोस्टकार्ड से।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 24 वीरेन्द्र मेंहदीरता

प्रश्न 7.
किसने कहा था कि आजकल लड़के और लड़की में कोई अंतर नहीं होता।
उत्तर:
मिसेज़ चोपड़ा ने।

प्रश्न 8.
चंडीगढ़ से बाहर रहने वालों ने किस तरह से बधाई दी थी?
उत्तर:
चंडीगढ से बाहर वालों ने खत लिखा लेकिन बधाई नहीं दी थी।

प्रश्न 9.
कौन लोगों की सहानुभूति-दिलाने की परवाह नहीं करती थी?
उत्तर:
कमला।

प्रश्न 10.
लड़की होने पर किसने न घबराने की बात कही थी?
उत्तर:
मिसेज गुप्ता ने।

प्रश्न 11.
किसने कहा था कि लड़कियाँ ही माँ-बाप को सुख देने वाली होती हैं ?
उत्तर:
कमला के पिता ने।

प्रश्न 12.
अस्पताल में बूढी औरत ने लड़कियों के जन्म होने पर क्या कहा था?
उत्तर:
लड़कियाँ तो पैदा होने के वक्त से ही माँ का खून पीने लगती हैं।

प्रश्न 13.
किस ने कहा था कि वही स्त्री सुलक्षणों वाली होती है कन्या को जन्म देती है ?
उत्तर:
लेखक की माँ ने।

प्रश्न 14.
लेखक के प्रसिद्ध कहानी संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शिमले की क्रीम, खरोंच, मिट्टी पर नंगे पांव, सिद्धार्थ से पूछूगा।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
…………………….पर हुई लड़की।
उत्तर:
तैयारी तो लड़के की थी।

प्रश्न 16.
मैं तो कहती हूँ लड़की हो या लड़का……
उत्तर:
पर हो किस्मत वाला।

प्रश्न 17.
ओ तीवीं सुलछ छनी………..
उत्तर:
जेहड़ी, जम्मे पहली लछछमी।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
लेखक के घर लड़के ने जन्म लिया था।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 19.
कमला के पिता ने लड़की का जन्म लेना अच्छा माना था।
उत्तर:
हाँ।

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प्रश्न 20.
लड़की के जन्म की सूचना तार से दी गई।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. उपेक्षिता किस विद्या की रचना है ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) रेखाचित्र
(घ) संस्मरण
उत्तर:
(क) कहानी

2. लेखक के अनुसार बच्चे किसका रूप होते हैं ?
(क) मां का
(ख) पिता का
(ग) भगवान का
(घ) दादा का
उत्तर:
(ग) भगवान का

3. उपेक्षित कहानी का केन्द्र बिन्दु कौन है ?
(क) लड़की
(ख) लड़का
(ग) सैनिक
(घ) किसान
उत्तर:
(क) लड़की

4. ‘वीरेन्द्र मेहंदीरत्ता’ किस विद्या के प्रमुख लेखक हैं ?
(क) कहानी
(ख) उपन्यास
(ग) रंगमंच
(घ) रेखाचित्र
उत्तर:
(ग) रंगमंच

उपेक्षिता Summary

उपेक्षिता जीवन परिचय

डॉ० वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता का जीवन परिचय लिखिए।

डॉ० वीरेन्द्र मेंहदीरत्ता का जन्म सन् 1930 में रावलपिण्डी (पाकिस्तान)में हुआ। आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम० ए० किया। पंजाब विश्वविद्यालय से पीएच० डी० की डिग्री प्राप्त की। आपने लगभग 40 वर्ष तक राजकीय कॉलेज लुधियाना और पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी-विभाग में पढ़ाया। आप पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से प्रोफेसर के पद से रिटायर हुए। कहानी के क्षेत्र के अतिरिक्त नाटक और रंगमंच में भी आप का योगदान सराहनीय है। चण्डीगढ़ में ‘अभिनेत’ नाट्य संस्था के आप संस्थापक हैं। शिमले की क्रीम, पुरानी मिट्टी नए ढाँचे, मिट्टी पर नंगे पाँव, खरोंच, सिद्धार्थ से पूछूगा-आपके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं।

उपेक्षिता कहानी का सार

‘उपेक्षिता’ कहानी का सार 150 शब्दों में लिखें।

लेखक के घर एक लड़की ने जन्म लिया है। उसकी सुन्दरता को देख लेखक सोचता है कि बच्चे सचमुच भगवान् का रूप होते हैं किन्तु समाज में लड़की को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता है। अस्पताल की नर्स ने भी लड़की के जन्म की खबर सुनाना भी उचित नहीं समझा था। वहाँ उपस्थित एक बुढ़िया ने भी कहा-तैयारी तो लड़के की थी, पर हुई लड़की। समाज में लड़की को जन्म देना कष्टदायक माना जाता है जबकि लड़के को जन्म देने पर माँ अपनी तकलीफ़ भूल जाती है। लेखक सोचता है कि क्या उसकी पत्नी कमला भी ऐसे ही सोचती होगी? वह तो अपने माँ-बाप की सबसे बड़ी बेटी है। कमला के पिता ने भी लड़की के जन्म को अच्छा माना था। माँ ने भी पहली लड़की को लक्ष्मी कहा था। पर पिता ने कहा था कोई बात नहीं, घर में लक्ष्मी आई है। लेखक को ‘कोई बात नहीं’ का अर्थ समझ में नहीं आया। लगा कि वे लेखक को तसल्ली दे रहे हों और अपने मन को समझा रहे हों। इसी कारण लड़की के जन्म की सूचना तार द्वारा न भेजकर पोस्टकार्ड द्वारा भेजने को कहा था।

चण्डीगढ़ में जैसे-जैसे लोगों को पता चला-वे मिलने आने लगे। मिसेज़ चोपड़ा ने जब कहा कि आजकल लड़के और लड़की में कोई अन्तर नहीं होता तब लेखक का तनाव कुछ कम हुआ। लेखक के एक मित्र ने कहा कि लड़की के जन्म पर उसे चिन्तित नहीं होना चाहिए। चण्डीगढ़ से बाहर के रिश्तेदारों ने खत ज़रूर लिखा पर बधाई नहीं दी। उन्होंने अनेक प्रकार की बातें लिखीं पर लेखक की पत्नी ने बेटी को छाती से लगाते हुए कहा- मेरे लिए यह बेटी बेटों से भी बढ़कर है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 23 ठेस

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 23 ठेस Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 23 ठेस

Hindi Guide for Class 12 PSEB ठेस Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘ठेस’ कहानी के शीर्षक की सार्थकता पर अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, सटीक और सार्थक है। सिरचन एक ग्रामीण कलाकार है, भले ही लोग उसे मुफ्तखोर, कामचोर या चटारे कहते हैं, किंतु वह अपनी कला में माहिर है। सिरचन एक स्वाभिमानी व्यक्ति है। चाची की जली-कटी सुनकर उसके स्वाभिमान को ठेस पहुँचती है। वह नई धोती का मोह त्याग कर अधूरा काम छोड़ कर लौट आता है। वह कलाकार का, कला का अपमान नहीं सहन कर सकता। लेखक भी मानता है कि कलाकार के दिल में ठेस लगी है।

प्रश्न 2.
ठेस कहानी के आधार पर सिरचन का चरित्र-चित्रण करें।
उत्तर:
सिरचन एक ग्रामीण कलाकार है। चिक, शीतलपाटी, कुशासन आदि बनाने में माहिर। उसकी कला के कारण ही बड़े-बड़े लोग उसकी खुशामद करते हैं। सिरचन को गाँव वाले मुफ्तखोर, कामचोर और चटोर समझते हैं, किंतु वह कामचोर नहीं मुँहजोर अवश्य है। वह ठीक से सेवा न होने पर उच्चजाति वालों को भी बेइज्जत करने से नहीं झिझकता। सिरचन बड़ा स्वाभिमानी है, लेखक की चाची से सुगन्धित जर्दा माँगने पर जली-कटी सुनकर उसके हृदय को ठेस लगती है और वह काम छोड़कर चला जाता है। किन्तु अपनी कोमल हृदयता और आत्मीयता का परिचय देते हुए मानू को स्टेशन पर शीतपाटियाँ, चिकें और कुशासन देने पहुँच जाता है बदले में वह किसी प्रकार का प्रतिदान भी स्वीकार नहीं करता।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 23 फणीश्वरनाथ 'रेणु'

प्रश्न 3.
सिरचन किस बात से नाराज़ होकर काम छोड़कर चला जाता है ?
उत्तर:
एक दिन सिरचन लेखक की बहन के लिए शीतलपाटी और चिक बना रहा था कि एक दिन मानू ने उसे पान का बीड़ा दिया। पान खाते समय सिरचन ने चाची से गमकौआ जर्दा माँग लिया। इस पर चाची भड़क उठी। उसने सिरचन को भला-बुरा कहा। यह सुनकर सिरचन के हृदय को ठेस लगी। वह अधूरा काम छोड़ अपनी छुरी, हँसिया उठाकर वहाँ से चला गया।

प्रश्न 4.
लेखक द्वारा मनाने पर भी न आने वाला सिरचन स्वयं ही मानू के लिए स्टेशन पर शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसनी कुश को क्यों पहुँचाता है ? स्पष्ट करें।
उत्तर:
कामचोर, चटोरा तथा मुँहजोर कहलाने वाला सिरचन एक कलाकार था; कोमल हृदय वाला कलाकार। अपनी कला का अपमान होते देख उसके हृदय को ठेस लगती है पर मानू के प्रति उसके हृदय में आत्मीयता का भाव भी है। वह काकी की सबसे छोटी बेटी थी और उसका दूल्हा अफसर। फिर मानू ने तो उसे ठेस नहीं पहुँचाई थी बल्कि उसने तो उसे पान का बीड़ा लाकर दिया था। इसलिए मानू से स्नेह होने के कारण वह उसके लिए शीतलपाटी आदि लेकर स्टेशन पहुँचा था। बदले में वह किसी प्रतिदान को भी स्वीकार नहीं करता।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 5.
‘ठेस’ कहानी का सार अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
देखिए पाठ के आरम्भ में दिया गया सार।

प्रश्न 6.
‘ठेस’ कहानी कलाकार की संवेदनशीलता की कहानी है, स्पष्ट करें।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में एक सच्चे कलाकार की कोमल भावनाओं और कारुणिक जीवन गाथा का मार्मिक चित्रण किया गया है। सिरचन एक कलाकार है। वह शीतलपाटी, चिक और कुशासन बनाने में माहिर है। बड़े-बड़े लोग उसकी खुशामद करते हैं, किन्तु वह चटोर है। एक बार तो उसने ब्राह्मण चौधरी के लड़के को कम परोसने पर बेइज्जत कर दिया था। सिरचन एक सच्चा कलाकार है। अपने काम के दौरान किसी की टोका-टाकी सहन नहीं कर सकता। सिरचन को लोग चटोर भी समझते थे। उसको बुलाने से पहले तली बघारी हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाले दूध का प्रबन्ध पहले से ही करना पड़ता था।

लेखक की सबसे छोटी बहन मानू पहली बार ससुराल जा रही थी। उसके दूल्हे ने चिक और शीतलपाटी भेजने की फरमाईश की थी। सिरचन के खाने-पीने का प्रबन्ध करके उसे काम पर बुलाया गया। सिरचन ने काम शुरू किया। लगता है कि बहुत बढ़िया वस्तुएँ बन रही हैं। इसी बीच मानू ने उसे पान दिया तो उसने चाची से सुगन्धित जर्दा माँग लिया जिस पर चाची ने उसे जली-कटी सुनाई। चाची की बातों से कलाकार सिरचन के हृदय को ठेस लगी। वह काम छोड़ कर चला गया। किन्तु मानू के ससुराल जाते समय शीतलपाटी, चिक और कुशासन सौंप कर अपनी संवदेनशीलता का परिचय दिया। उसने मोहर वाली धोती के दाम भी लेने से इनकार कर दिया।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

7. “बड़ी बात ही है बिटिया, बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है। नहीं तो दो-दो पटेर की पाटियों का काम सिर्फ खंसारी का सत्तू खिलाकर कोई करवाए भला ? यह तुम्हारी माँ ही कर सकती है।”
उत्तर:
प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सिरचन ने महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी को कही हैं जो सिरचन की किसी कड़ी बात पर तिलमिला कर कहती है कि इतनी बड़ी बात।

व्याख्या:
सिरचन ने भज्जू की बेटी से कहा कि बड़ी बात ही है बेटी। बड़े आदमियों की बस बातें ही बडी होती हैं अर्थात् उनके कर्म और व्यवहार में बड़प्पन नहीं होता। यदि व्यवहार में बड़प्पन होता तो क्या दो-दो पटेर की पाटियाँ कोई सिर्फ खसारी का सत्तू खिला कर बनवा सकता है। यह काम तो तुम्हारी माँ ही करवा सकती है। सिरचन का स्पष्ट संकेत है कि उसे थोड़ा-सा खिला कर अधिक काम लिया जाता है।

विशेष:

  1. कामगार के शोषण पर कटाक्ष है।
  2. भाषा बोलचाल की तथा भावपूर्ण है।

8. “बबुआ जी! अब नहीं। कान पकड़ता हूँ, अब नहीं। मोहर छाप वाली धोती लेकर क्या करूँगा ? कौन पहनेगा ? ससुरी खुद मरी, बेटे-बेटियों को भी ले गई अपने साथ। बबुआ जी, मेरी घरवाली जिंदा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता। यह शीतलपाटी को छूकर कहता हूँ, अब यह काम नहीं करूँगा।”

उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ सिरचन ने लेखक से कही हैं, जब वह काम बीच में ही छोड़ आने पर उसे मनाने के लिए गया था। – व्याख्या-सिरचन ने लेखक से कहा कि मैं कान पकड़ता हूँ कि अब चिक आदि बनाने का काम नहीं करूँगा। आपकी माँ ने मुझे जो मोहर छाप वाली नई धोती देने का वादा किया था, उसे लेकर मैं क्या करूँगा। कौन पहनेगा उसे। मेरी पत्नी स्वयं तो मरी ही साथ में बेटे-बेटियों को भी ले गई। बबुआ जी, मेरी पत्नी यदि जीवित होती तो मैं ऐसी दुर्दशा को क्यों भोगता अर्थात् घर-घर काम करने क्यों जाता। यह शीतलपाटी उसी की बनी हुई है इसी को छू कर कहता हूँ कि अब मैं यह काम नहीं करूँगा।

विशेष:

  1. लेखक की चाची के कथन से लगी ठेस के कारण सिरचन भविष्य में चिक आदि न बनाने का निर्णय लिया
  2. भाषा सहज तथा भावपूर्ण है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 23 फणीश्वरनाथ 'रेणु'

9. खिड़की के पास खड़े होकर सिरचन ने हकलाते हुए कहा-यह मेरी ओर से है। सब चीज़ है दीदी। शीतलपाटी, चिक और एक जोड़ी आसनी कुश की। गाड़ी चल पड़ी।
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ कहानी के अंत में सिरचन द्वारा लेखक की छोटी बहन मानू को अपनी तरफ से चिक आदि भेंट करने के समय की हैं।

व्याख्या-सिरचन मन को ठेस लगने पर लेखक के घर से काम छोड़ कर चला आता है, किंतु हृदय की कोमलता और आत्मीयता के कारण मानू के ससुराल जाते समय उसके लिए चिक आदि तैयार कर उसे भेंट करने पहुँच जाता है। गाड़ी की खिड़की के पास खड़े होकर सिरचन ने रुक-रुक कर बोलते हुए कहा यह मेरी ओर से तुम्हारे लिए भेंट है। इस बंडल में वह सब चीज़ है जो तुम्हारे दूल्हा ने मंगवाई थीं। शीतलपाटी, चिक और जोड़ी कुशासन की। सिरचन के इतना कहते ही गाड़ी चल पड़ी।

विशेष:

  1. सिरचन के मन में मानू के प्रति स्नेह है इसलिए वह उसे विदाई के अवसर पर चिक आदि देने स्टेशन पर पहुंच जाता है।
  2. भाषा भावपूर्ण तथा सहज है।

प्रश्न 10.
‘ठेस’ कहानी से हमें क्या शिक्षा मिलती है ?
उत्तर:
‘ठेस’ कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि सच्चे कलाकार का दिल नहीं दुखाना चाहिए। जब उस के दिल को ठेस लगती है तो वह बढ़िया से बढ़िया खाने, अच्छे पैसों आदि की भी चिंता न करते हुए काम करने से इनकार कर देता है, जैसा कि सिरचन ने चाची के ताने सुनकर किया था। कलाकार का हृदय बहुत कोमल होता है इसलिए वह मानू को विदाई के अवसर पर स्टेशन पर ही भेंट स्वरूप चिक आदि दे देता है।

PSEB 12th Class Hindi Guide ठेस Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ठेस’ शीर्षक कहानी किसके द्वारा रचित है?
उत्तर:
फणीश्वर नाथं ‘रेणु’।

प्रश्न 2.
फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ का जन्म कहाँ और कब हुआ था?
उत्तर:
बिहार के पूर्णिया जिले में 11 फरवरी, सन् 1921 को।

प्रश्न 3.
रेणु जी की शिक्षा कहाँ-कहाँ हुई थी?
उत्तर:
रेणु जी की शिक्षा विराट नगर नेपाल तथा हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में हुई थी।

प्रश्न 4.
सिरचन कहां का कारीगर था?
उत्तर:
सिरचन गाँव का एक कारीगर था।

प्रश्न 5.
गाँव वाले सिरचन को किस नाम से पुकारते थे?
उत्तर:
गाँव वाले सिरचन को मुफ्तखोर, कामचोर और चटोर कहकर पुकारते थे।

प्रश्न 6.
सिरचन के काम करते समय टोक देने पर वह क्या करता था?
उत्तर:
सिरचन गुस्से में फुफकार उठता था और काम छोड़कर चल देता था।

प्रश्न 7.
ठेस कहानी में लेखक की छोटी बहन का क्या नाम है ?
उत्तर:
मानू।

प्रश्न 8.
दूल्हे ने क्या लेने की फरमाइश की थी?
उत्तर:
दूल्हे ने तीन जोड़ी चिक-चिक और पटेर की दो शीतल पाटियों की फरमाइश की थी।

प्रश्न 9.
सिरचन को क्या देने का वायदा किया गया था?
उत्तर:
असली मोहर छाप वाली नई धोती देने का वायदा किया गया था।

प्रश्न 10.
मानू ने चुपके से सिरचन को क्या दिया था?
उत्तर:
पान का बीड़ा।

प्रश्न 11.
किस की बात से सिरचन के मन को ठेस लगी थी?
उत्तर:
चाची की बात से सिरचन के मन को ठेस लगी थी।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 23 फणीश्वरनाथ 'रेणु'

प्रश्न 12.
सिरचन सारा सामान देने के लिए कहाँ पहुँच गया था?
उत्तर:
रेलवे स्टेशन पर।

प्रश्न 13.
मानू फूट-फूट कर क्यों रोने लगी थी?
उत्तर:
अपनत्व के भाव के कारण।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 14.
बबुआ जी। अब नहीं…..
उत्तर:
कान पकड़ता हूँ, अब नहीं।

प्रश्न 15.
यह शिलापाटी को छू कर कहता हूँ..
उत्तर:
अब यह काम नहीं करूंगा।

प्रश्न 16.
सब चीज़ है……..।
उत्तर:
दीदी।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 17.
कलाकार का दिल वास्तव में ही बहुत कोमल होता है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 18.
सब चीज़ है भैया।
उत्तर:
नहीं।

बोर्ड परीक्षा में पूछे गए प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ठेस’ कहानी के लेखक का नाम लिखें।
उत्तर:
फणीश्वर नाथ रेणु।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. फनीश्वर नाथ रेणु कैसे उपन्यासकार थे ?
(क) आंचलिक
(ख) व्यंग्यात्मक
(ग) संस्मरणात्मक
(घ) रचनात्मक
उत्तर:
(क) आंचलिक

2. रेणु का पहला आंचलिक उपन्यास कौन-सा है ?
(क) आँचल
(ख) मैला आँचल
(ग) तीसरी कसम
(घ) ठेस।
उत्तर:
(ख) मैला आँचल

3. मानू किस कारण फूट-फूट कर रोने लगी ?
(क) अपनत्व के
(ख) मानवता के
(ग) सेवा के
(घ) सुरक्षा के
उत्तर:
(क) अपनत्व के

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 23 फणीश्वरनाथ 'रेणु'

4. सिरचन क्या था ?
(क) सैनिक
(ख) कारीगर
(ग) सेवक
(घ) विद्यार्थी
उत्तर:
(ख) कारीगर

कठिन शब्दों के अर्थ

मुफ्तखोर = मुफ्त की खाने वाला। चटोर = लालची, स्वाद का लालची। मडैया = झोंपड़ी। खुशामद = चापलूसी। इलाका = क्षेत्र। बेपानी = बेइज्जत, अपमानित । नाखून से खाँट कर देना = बहुत-थोड़ा देना, कंजूसी से देना। हुलस कर = प्रसन्न होकर। नेनू = मक्खन। मोथी = एक प्रकार की घास। शीतलपाटी = खस की चिक। पनियाई = पानी भरी। हिन्दी पुस्तक-12 . पटेर = तालाबों में उगने वाला एक पौधा–काई। पाटी = चटाई। तन्मयता = तल्लीनता। मुँहज़ोर = बोलने में कड़वा। झाल = तीखापन। बरदाश्त करना = सहन करना। चिकनाई = चिकनापन। अधकपाली दर्द = आधे सिर का दर्द। ताल = ताड़एक वृक्ष। मूंज = एक प्रकार की घास। बेकाम = व्यर्थ का। खंसारी का सत्तू = भुने हुए जौ का आटा। तिलमिला उठना = क्रोध से बेचैन हो उठना। बबुनी = बिटिया। बैरिंग = बिना टिकट लगा। तैनात करना = नियुक्त करना। झब्बे = गुच्छे, फँदने। बिनाई = बुनती। सुधि = होश। सूप = छाज। बुंदिया = लड्डू की बूंदी। नैहर = मायका। बतकुट्ठी = बातें करना, बतियाना। गमकौआ = सुंगन्धित । जर्दा = तम्बाकू। मसखरी = मज़ाक । यत्परोनास्ति = इससे कोई बढ़कर नहीं है। हनहनाता हुआ = बड़बड़ाता हुआ। मुँह झौंसे = मुँह जले। आसनी कुश = कुशा (घास) का बना आसन।

ठेस Summary

ठेस जीवन परिचय

फणीश्वरनाथ रेणु जी का जीवन परिचय लिखिए।

फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ जी का जन्म 11 फरवरी, सन् 1921 को बिहार के पूर्णिया जिले के हिगना गाँव में हुआ। आप की शिक्षा विराट नगर, नेपाल तथा हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में हुई। सन् 1942 के भारत छोड़ो जन आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने पर 3 वर्ष तक आप नजर बंद रहे। जेल से छूटने के पश्चात् आप का सम्बन्ध जयप्रकाश नारायण की समाजवादी पार्टी से हो गया। स्वतन्त्रता के बाद देश में आपात्काल स्थिति लागू किए जाने पर आप कुछ देर के लिए जेल में बंद रहे। उन्होंने जयप्रकाश नारायण के जन आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। आपके पहले आँचलिक उपन्यास ‘मैला आँचल’ ने हिन्दी जगत में धूम मचा दी थी। रस प्रिया’ तीसरी कसम, ‘ठेस’ पंचलाइट इनकी प्रमुख कहानियां हैं।

ठेस कहानी का सार

ठेस कहानी का सार 150 शब्दों में दें।

सिरचन गाँव का एक कारीगर था। वह मोथी घास और पटेर की शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की चिकें, मूंज की रस्सी आदि बनाने में माहिर था। सिरचन की इसी कला के कारण बड़े-बड़े लोग उसकी खुशामद करते थे। उनकी सवारियाँ. उसकी झोंपड़ी के आगे बँधी रहतीं। किंतु गाँव वाले उसे मुफ्तखोर कामचोर और चटोर कहते थे। उसे बुलाने के लिए उसके खान-पान का विशेष प्रबन्ध करना ज़रूरी होता था। खाने के लिए कम मिलने पर वह दूसरों का अपमान करने से भी नहीं चूकता था । काम करते हुए यदि कोई उसे टोक देता तो वह फुफकार उठता और काम छोड़ कर चला जाता था। सिरचन मुँह ज़ोर है, कामचोर नहीं।

लेखक की सबसे छोटी बहन मानू की विदाई होने वाली थी। उसके दूल्हे ने तीन जोड़ी चिक और पटेर की दो शीतल पाटियाँ भेजने की फरमाइश की थी। इसलिए लेखक की माँ ने असली मोहर छाप वाली नई धोती देने का वादा करते हुए सिरचन को काम पर लगा दिया। सिरचन मन लगा कर काम करने लगा। काम करते समय सिरचन की जीभ जरा बाहर निकल आती थी। उसे अच्छा कलेवा दिया जाता था। मिठाई दी जाती थी। एक दिन मानू ने चुपके से एक पान का बीड़ा दिया। सिरचन ने पान खाते समय लेखक की चाची से जरा सुगन्धित जर्दा देने को कहा। इस पर चाची ने उसे भला-बुरा कहा, और डाँटा। चाची की बातें सुनकर सिरचन के मन को ठेस लगी। वह अधूरा काम छोड़ कर वहाँ से उठ कर चला गया था। लेखक के मनाने के लिए जाने पर भी वह नहीं आया। कलाकार के हृदय को ठेस लग गई थी।

लेखक जब अपनी छोटी बहन को ससुराल छोड़ने जा रहा था तो स्टेशन पर गाड़ी चलने के समय सिरचन दौड़ता हुआ आया और मानू के लिए शीतलपाटी चिक और कुशासन सौंप कर चला गया। उसने मोहर छाप वाली धोती के दाम भी लेने से इनकार कर दिया। मानू उसके इस अपनत्व भरे व्यवहार को देखकर फूट-फूट कर रोने लगी थी।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 तत्सत्

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 22 तत्सत् Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 22 तत्सत्

Hindi Guide for Class 12 PSEB तत्सत् Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
पशु और पेड़-पौधे वन के नाम से भयातुर क्यों होने लगे थे ?
उत्तर:
जंगल में आने वाले शिकारियों ने कहा था कैसा भयानक जंगल है और कितना घना वन है। उनकी बातों में जंगल की भयानकता की बात सुनकर वन के सभी पशु और पेड़-पौधे डर गए। उन्हें लगा कि अवश्य ही वन कोई शेर-चीतों से बढ़कर भयानक होगा।

प्रश्न 2.
शिकारी प्रमुख द्वारा अपने साथियों की सलाह न मानने का क्या कारण था ?
उत्तर:
जंगल के पेड़-पौधों और वनचरों ने आदमियों से जब जंगल दिखाने के लिए कहा नहीं तो उनकी खैर नहीं। इस पर शिकारी के साथियों ने कहा कि यार कह दो जंगल नहीं है। इस पर शिकारी प्रमुख ने मरने से न डरते हुए कहासदा कौन जिया है ? इससे इन भोले प्राणियों को भुलावे में क्यों रखें ? इसी कारण शिकारी प्रमुख ने अपने साथियों की सलाह मानने से इन्कार कर दिया।

प्रश्न 3.
शिकारी जब पुन: वन में आए तो पश और वनस्पतियाँ भड़क उंठीं. क्यों ?
उत्तर:
शिकारी जन जब दोबारा जंगल में आए तो सारा जंगल जाग उठा। वे सब तरह-तरह की बोली बोलकर अपना विरोध दर्शाने लगे। मानो आदमियों की भर्त्सना कर रहे थे। वे सभी इसलिए भड़क उठे क्योंकि आज तक उन्होंने जंगल नाम की कोई वस्तु नहीं देखी थी। आदमियों ने उसे भयानक भी कहा था। इसलिए वे भयानक वस्तु के बारे में जानना चाहते थे।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर लिखें:

प्रश्न 4.
तत्सत् कहानी का सार अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
देखें पाठ के आरम्भ में दिया गया कहानी का सार।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 5.
‘तत्सत्’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करें।
उत्तर:
‘प्रस्तुत’ कहानी में जैनेन्द्र जी ने पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि आज का व्यक्ति इतना व्यक्तिवादी हो गया है कि उसे अपने सिवा और कुछ सूझता ही नहीं। वह यह नहीं समझता कि उसका अस्तित्व समग्र में एक खण्ड के समान उसी प्रकार है जैसे किसी बाग में किसी फूल का। लेखक ने अपने इस उद्देश्य को स्पष्ट करने के लिए पशुओं और पेड़-पौधों का सहारा लिया है जिन्हें अपने-अपने अलग अस्तित्व का तो बोध है किन्तु अपने समग्र रूप जंगल से वे अनजान हैं। अपनी इसी अज्ञानता के कारण वे सभी अपनी-अपनी ढफली अपना-अपना राग अलापते रहते हैं। अन्त में जब उन्हें समग्रता का बोध होता है तो वे वन की सत्ता को स्वीकार कर लेते हैं।

प्रश्न 6.
‘तत्सत्’ कहानी के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
तत्सत्’ कहानी एक प्रतीकात्मक कहानी है। इसमें लेखक ने कथा निर्माण के लिए वनचरों एवं वनस्पतियों की संवेदना को आधार बना कर किया है। जैनेन्द्र जी ने प्रायः सोद्देश्य शीर्षकों का चयन अधिक किया है। चाहे शीर्षक ‘तत्सत्’ कहानी के शीर्षक की तरह प्रतीकात्मक हों किन्तु यह शीर्षक सार्थक, आकर्षक एवं जिज्ञासा एवं कुतूहल भरा है। लेखक ने इस कहानी के कथानक द्वारा यह सिद्ध किया है कि यह जगत् सत्य नहीं है, अपितु वह ब्रह्म ही सत्य है तथा वही सर्वत्र व्याप्त है। अतः हम कह सकते हैं कि कहानी का शीर्षक अत्यन्त सार्थक बन पड़ा है। शीर्षक सारगर्भित भी है, रोचक और संक्षिप्त एवं आकर्षक भी है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस शीर्षक में एकजुटता का संदेश भी छिपा है जो हमारी वर्तमान राजनीतिक अवस्था के लिए अत्यन्त ज़रूरी है। देश है तो हम हैं अतः देशहित के लिए हमें निजी स्वार्थों को भूलकर एक हो जाना चाहिए।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें :

7. “जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा वे चलते कैसे हैं ? अपने तने की दो शाखाओं पर भी चलते चले जाते हैं।”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ बड़ के वृक्ष ने शीशम के वृक्ष से उस समय कही हैं जब शीशम पूछता है कि जंगल को भयानक कहने वाले कौन थे ?

व्याख्या:
जब शीशम के पेड़ ने जंगल के सबसे बड़े पेड़ बड़ से उन शिकारियों के बारे में पूछना चाहा कि वे कौन थे, जिन्होंने जंगल को भयानक कहा था, तो बड़ ने उत्तर देते हुए कहा कि जब मैं छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। ये ऐसे पेड़ होते हैं जिनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना होता है। तुमने देखा नहीं कि ये लोग कैसे चलते हैं ? अपने तने की दो टहनियों पर ही चलते चले जाते हैं। विशेष-एक पेड़ की आदमी के बारे में जानकारी पर प्रकाश डाला गया है।

8. “मालूम होता है, हवा मेरे भीतर के रिक्त में वन-वन-वन ही कहती हुई घूमती रहती है। पर ठहरती नहीं। हर घड़ी सुनता हूँ, वन है, वन है पर मैं उसे जानता नहीं हूं। क्या वह किसी को दिखा है ?”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ बाँस के पेड़ ने जंगल के दूसरे पेड़ों से कहीं हैं।

व्याख्या:
जब सब पेड़ों ने बाँस के पेड़ से पूछा कि वह उन्हें वन के बारे में बताए कि वह क्या है तो बाँस के पेड़ ने कहा कि ऐसा मालूम होता है कि हवा मेरे अन्दर के खाली स्थान में वन-वन-वन कहती घूमती रहती है, पर ठहरती नहीं। मैं हर घड़ी यह तो सुनता हूँ किं वन है, पर मैं उसे जाना नहीं हूँ। क्या वह किसी को दिखाई दिया है ? विशेष-वन के बारे में बांस के पेड़ की प्रतिक्रिया पर प्रकाश डाला गया है।

9. “ओ सिंह भाई, तुम बड़े पराक्रमी हो। जाने कहां कहां छापा मारते हो। एक बात तो बताओ, भाई ?”
उत्तर:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित प्रतीकात्मक कहानी ‘तत्सत्’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में जंगल के सबसे बड़े पेड़ बड़ ने जंगल के सबसे शक्तिशाली पशु सिंह से वन के बारे में बताने के लिए कही

व्याख्या:
बड़ को जब जंगल के किसी पेड़ ने वन के बारे कुछ बताने से इन्कार कर दिया तो उसने वहाँ आए सिंह से यही प्रश्न पूछने के लिए प्रस्तुत पंक्तियाँ कहीं है। बड़ ने कहा-अरे सिंह भाई, तुम बड़े बहादुर हो। जाने कहाँ-कहाँ शिकार हासिल करने के लिए छापे मारते हो। एक बात तो बताओ भाई ? बड़ सिंह से वन के बारे में पूछना चाहता है कि क्या उसने कभी वन को देखा है ? विशेष-सिंह से वन के संबंध में बड़दादा पूछ रहे हैं।

PSEB 12th Class Hindi Guide तत्सत् Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जैनेन्द्र कुमार का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर:
जैनेन्द्र कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के कौडियागंज गाँव में सन् 1905 ई० में हुआ था।

प्रश्न 2.
जैनेन्द्र ने किन-किन विश्वविद्यालयों से शिक्षा प्राप्त की थी?
उत्तर:
पंजाब विश्वविद्यालय और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से।

प्रश्न 3.
जैनेन्द्र की शिक्षा अधूरी क्यों रह गई थी?
उत्तर:
देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ने के कारण।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 4.
जैनेन्द्र को किस विश्वविद्यालय ने डी० लिट० की उपाधि प्रदान की थी?
उत्तर:
दिल्ली विश्वविद्यालय ने।

प्रश्न 5.
जैनेन्द्र के कहानी संग्रहों के नाम लिखिए।
उत्तर:
ध्रुव यात्रा, नीलम देश की राजकन्या, फांसी।

प्रश्न 6.
जैनेन्द्र के चार उपन्यासों के नाम लिखिए।
उत्तर:
परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी।

प्रश्न 7.
‘तत्सत’ किस शैली में रचित कहानी है?
उत्तर:
प्रतीक शैली।

प्रश्न 8.
जैनेंद्र कैसे दार्शनिक और विचारक थे?
उत्तर:
बुद्धिवादी, दार्शनिक और विचारक।

प्रश्न 9.
कितने शिकारी शिकार की टोह में पहुँचे थे?
उत्तर:
दो शिकारी।

प्रश्न 10.
किस पेड़ ने दूसरे पेड़ को ‘दादा’ कहा था?
उत्तर:
शीशम के पेड़ ने बरगद के पेड़ को ‘दादा’ कहा था।

प्रश्न 11.
बबूल ने बड़दादा से क्या प्रश्न किया था?
उत्तर:
बबूल ने बड़दादा से प्रश्न किया था कि क्या उन्होंने कभी वन देखा था।

प्रश्न 12.
जंगल के प्राणियों ने मनुष्य के बारे में क्या निर्णय किया था?
उत्तर:
उन्होंने निर्णय किया था कि मनुष्य की बात का कोई भरोसा नहीं।

प्रश्न 13.
बड़दादा ने प्राणियों को ‘वन’ के बारे में क्या समझाया था ?
उत्तर:
बडदादा में प्राणियों को समझाते हुए कहा था कि ‘यह वन ही है हम नहीं’ हम सब ही वन हैं।

वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 14.
अपने तन की दो शाखों पर ही……..
उत्तर:
चलते चले जाते हैं।

प्रश्न 15.
आस-पास के और पेड़ साल, सेंमर, सिरस…………
उत्तर:
उस बातचीत में हिस्सा लेने लगे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

प्रश्न 16.
तब सबने घास से पूछा…………
उत्तर:
घास री घास, तू वन को जानती है।

प्रश्न 17.
चढ़ते-चढ़ते वह उसकी…….
उत्तर:
सबसे ऊपर की फुनगी तक पहुँच गया।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
तत्सत् प्रतीक शैली में रचित है।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
जंगल में आदमी को देखने की बात बड़ ने स्वीकार की थी?
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 20.
“दादा ओ दादा, तुमने बहुत दिन देखे हैं। बताओ कि किसी वन को भी देखा है?”-घास ने कहा।
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 21.
बरगद ने सीटी-सी आवाज़ देखकर कहा, “मुझे बताओ, मुझे बताओ।”
उत्तर:
नहीं।

प्रश्न 22.
“मैं पोला हूँ। मैं बहुत जानता हूँ।”-बबूल ने कहा।
उत्तर:
नहीं।

बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. जैनेन्द्र कुमार कैसे कहानीकार हैं ?
(क) मनोवैज्ञानिक
(ख) विचारपरक
(ग) आत्मकथात्मक
(घ) विवेचनात्मक
उत्तर:
(क) मनोवैज्ञानिक

2. तत्सत् किस प्रकार की कहानी है ?
(क) आत्मकथात्मक
(ख) प्रतीकात्मक
(ग) विवेचनात्मक
(घ) व्यंग्यात्मक
उत्तर:
(ख) प्रतीकात्मक

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

3. शीशम के पेड़ ने किसको दादा कहा ?
(क) बरगद
(ख) पीपल
(ग) वट
(घ) नीम
उत्तर:
(क) बरगद

4. लेखक के अनुसार आज व्यक्ति कैसा बन गया है ?
(क) संस्कारी
(ख) व्यक्तिवादी
(ग) भाववादी
(घ) निराशावादी
उत्तर:
(ख) व्यक्तिवादी

जैनेन्द्र कुमार सप्रसंग व्याख्या

1. “जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा वे चलते कैसे हैं ? अपने तने की दो शाखों पर ही चलते चले जाते हैं।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं जिसमें लेखक ने पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से मानव के व्यक्तिवादी होने पर व्यंग्य करते हुए यह स्पष्ट किया है कि उसका अस्तित्व समग्र में एक खंड जैसा है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब शीशम जंगल के सब से बड़े वृक्ष बड़ से यह पूछता है कि जंगल को भयानक कहने वाले कौन थे ? तब बड़ उत्तर देते हुए कहता है कि जब वह छोटा था तब उसने इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। ये ऐसे पेड़ हैं जिनके पत्ते नहीं होते, केवल तना ही तना होता है। वह शीशम से कहता है कि उसने देखा नहीं कि वे कैसे चलते हैं ? वे अपने तने की दो टहनियों के सहारे ही चलते चले जाते हैं। विशेष-लेखक ने मनुष्य के संबंध में वनस्पतियों की भावनाओं का चित्रण किया है।

2. बड़दादा ने कहा, “हमारी-तुम्हारी तरह इनमें जड़ें नहीं होती। बढ़े तो काहे पर ? इससे वे इधर-उधर चलते रहते हैं, ऊपर की ओर बढ़ना उन्हें नहीं आता। बिना जड़, न जाने वे जीते किस तरह हैं !” इतने में बबूल, जिसमें हवा साफ़ छनकर निकल जाती थी, रुकती नहीं थी और जिसके तन पर काँटे थे, बोला, “दादा, ओ दादा, तुमने बहुत दिन देखे हैं। बताओ कि किसी वन को भी देखा है ? ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे। तुमने उस भयावने वन को देखा है ?”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का मनुष्य अपने व्यक्तिगत स्वार्थों में इतना अधिक लिप्त हो गया है कि वह यह भी भूल गया है कि वह उस विराट का ही एक अंश है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में उस समय का वर्णन है जब दो शिकारी वन की सघनता और भयानकता का वर्णन करके चले जाते हैं तो वन के वृक्ष आपस में बातें करते हैं। शीशम बड़ से पूछता है कि मनुष्य इतने छोटे कद के क्यों होते हैं ? तब बड़दादा उत्तर देते हैं कि इन मनुष्यों की उनके समान जड़ें नहीं होती हैं इसलिए ये बढ़ते नहीं हैं छोटे ही रहते हैं। ये इधर-उधर चलते-फिरते रहते हैं ऊपर की ओर ये बढ़ना नहीं जानते। बड़ को भी आश्चर्य होता है कि वे बिना जड़ के कैसे जी रहे हैं। तभी बबूल ने कहा कि दादा बड़ आपने तो बहुत समय देखा है। आप बतायें कि क्या आपने किसी वन को भी देखा है ? ये लोग किस वन की बात कर रहे थे ? क्या आपने उस भयानक वन को देखा है ? बबूल के शरीर पर काँटे थे और हवा उसमें से छन कर निकल जाती थी।

विशेष:

  1. लेखक ने मनुष्य की ओछी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है तथा बताया है कि आज का मनुष्य किस प्रकार अपने स्वार्थ में लिप्त हो गया है कि वह ऊपर उठना ही नहीं चाहता। अपने स्वार्थों में ही डूबा रहना चाहता है।
  2. भाषा सहज, सरल, लाक्षणिक तथा शैली प्रतीकात्मक है। यहाँ संवादात्मक शैली के दर्शन होते हैं।

3. इसी तरह उनमें बातें होने लगीं। वन को उनमें कोई नहीं जानता था। आस-पास के और पेड़ साल, सेंमर, सिरस उस बातचीत में हिस्सा लेने लगे। वन को कोई मानना नहीं चाहता था। किसी को उसका कुछ पता नहीं था। पर अज्ञात भाव से उसका डर सबको था। इतने में पास ही जो बाँस खड़ा था और जो ज़रा हवा चलने पर खड़-खड़, सन्-सन् करने लगता था, उसने अपनी जगह से ही सीटी-सी आवाज़ देकर कहा, “मुझे बताओ, मुझे बताओ, क्या बात है । मैं पोला हूँ। मैं बहुत जानता हूँ।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य पशुओं और वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का मनुष्य अपने स्वार्थों में लिप्त होकर यह भी भूल गया है कि वह स्वयं कुछ न होकर उस विराट का एक अंश मात्र है।

व्याख्या:
लेखक बताता है कि जब दो शिकारी वन की सघनता और भयंकरता का वर्णन करके चले गए तो वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों में परस्पर बातचीत होने लगी कि यह सघन और भयानक वन क्या किसी ने देखा है ? परन्तु उनमें से वन को कोई भी नहीं जानता था। वन के साल, सेंमर, सिरस आदि वृक्ष भी इस वार्तालाप में भाग लेने लगे। कोई भी यह स्वीकार नहीं कर पा रहा था कि वन भी कुछ होता है। किसी को भी वन का कुछ भी पता नहीं था कि वन क्या होता है ? पर उन सबके मन में एक अनजाना-सा भय अवश्य छा गया था कि न जाने वन कैसा भयंकर होगा ? तभी पास उगा हुआ बाँस अपनी जगह से सीटी-सी आवाज़ करते हुए पूछने लगा कि मुझे बताओ कि क्या बात है ? मैं भीतर से खोखला होते हुए भी बहुत कुछ जानता हूँ। बाँस ज़रा-सी हवा के चलने पर ही खड़-खड़, सन्-सन् की आवाज़ करने लगता था।

विशेष:

  1. वन्य जीवों तथा वनस्पति.जगत् में व्याप्त भयंकर वन के काल्पनिक भय का सजीव चित्रण करते हुए लेखक इस ओर संकेत करता है कि मनुष्य भी कई बार अज्ञात भय से भयभीत हो जाता है।
  2. भाषा सहज, सरल, ध्वनि अर्थ व्यंजन से युक्त, प्रवाहमयी है। शैली में संवादात्मकता तथा प्रतीकात्मकता है। बाँस का पोलापन उन लोगों पर व्यंग्य है जो कुछ न जानते हुए भी सर्वज्ञ बनने का ढोंग करते हैं।

4. तब सबने घास से पूछा, “घास री घास, तू वन को जानती है ?”

घास ने कहा, “नहीं तो दादा, मैं उन्हें नहीं जानती। लोगों की जड़ों को ही मैं जानती हूँ। उनके फल मुझसे ऊँचे रहते हैं। पदतल के स्पर्श से सबका परिचय मुझे मिलता है। जब मेरे सिर पर चोट ज्यादा पड़ती है, समझती हूँ यह ताकत का प्रमाण है। धीमे कदम से मालूम होता है, यह कोई दुखियारा जा रहा है।” “दुःख से मेरी बहुत बनती है, दादा ! मैं उसी को चाहती हुई यहाँ से वहाँ तक बिछी रहती हूँ। सभी कुछ मेरे ऊपर से निकलता है। पर वन को मैंने अलग करके कभी नहीं पहचाना।” ।

प्रसंग:
यह गद्यावतरण जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने मनुष्य की स्वार्थी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है। वह अपने में लीन रह कर यह भूल जाता है कि वह किसी विराट का अंश मात्र है।

व्याख्या:
इन पंक्तियों में लेखक वन के वन्य जीवों तथा वनस्पति जगत् में व्याप्त इस भय को अभिव्यक्ति प्रदान करता है जो उन्हें दो शिकारियों से यह सुनकर हो रहा था कि वन घना और भयंकर है। किसी ने आज तक वन को नहीं देखा था। इसलिए उन्होंने एक दूसरे से वन के बारे में पूछने के बाद तथा उनसे नकारात्मक उत्तर पा कर घास से पूछा कि क्या वह वन को जानती है ? घास ने भी यही उत्तर दिया कि वह वन को नहीं जानती। वह तो केवल उन लोगों को जानती है जिन की जड़ें होती हैं। बाकी सब कुछ उससे बहुत ऊँचा होता है, इसलिए वह उन्हें नहीं जान पाती।

वह तो सब के पैरों के तलवों के स्पर्श से ही सबको पहचानती है। जब किसी के उसके ऊपर चलने से उसे चोट पहुँचती है तो वह उसे समझती है कि यह इस की ताकत का प्रमाण है जो उसे कुचल रहा है। जब कोई धीमे-धीमे कदमों से उसके ऊपर चलता है तो उसे लगता है कि वह कोई दुःखी है जो इस प्रकार चल रहा है। वह दुःखियों की मददगार है क्योंकि दुःख उसे बहुत प्रिय है। दुःखियों की सेवा के लिए वह बिछी रहती है। सब उसके ऊपर से निकल जाते हैं परन्तु उसने वन को अलग से नहीं पहचाना है।

विशेष:

  1. लेखक ने शक्तिशाली द्वारा अशक्त को कुचले जाने पर व्यंग्य किया है तथा दुःखियों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की है।
  2. भाषा सहज परन्तु तत्सम शब्दों से युक्त भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी है। शैली संवादात्मक एवं प्रतीकात्मक है।

5. बड़दादा तो चुप रहे, लेकिन औरों ने कहा कि सिंहराज, तुम्हारे भय से बहुत-से जंतु छिपकर रहते हैं। वे मुँह नहीं दिखाते। वन भी शायद छिपकर रहता हो। तुम्हारा दबदबा कोई कम तो नहीं है। इससे तो साँप धरती में मुँह गाड़कर रहते हैं, ऐसी भेद की बातें उनसे पूछनी चाहिएं। रहस्य कोई जानता होगा, तो अँधेरे में मुँह गाड़कर रहने वाला साँप जैसा जानवर ही जानता होगा। हम पेड़ तो उजाले में सिर उठाए खड़े रहते हैं। इसलिए हम बेचारे क्या जानें।

शेर ने कहा कि जो मैं कहता हूँ, वही सच है। उसमें शक करने की हिम्मत ठीक नहीं है। जब तक मैं हूँ, कोई डर न करो। कैसा साँप और जैसा कुछ और। क्या कोई मुझसे ज्यादा जानता है ?

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने वन्य प्राणियों तथा वनस्पतियों के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि आज का व्यक्ति अपने स्वार्थों में लीन हो कर यह भूल गया है कि उस की अपनी कोई सत्ता नहीं है वह तो उस विराट का अंशमात्र है अतः उसे स्वार्थ सिद्ध के स्थान पर जन कल्याण करना चाहिए।

व्याख्या:
जब वनस्पतियों तथा वन्य प्राणियों से वन का कोई पता नहीं चलता तो कुछ वनस्पतियों ने साँप से वन के विषय में पता करने के लिए सिंह से कहा। उनका मानना था कि शायद सिंह के भय से वन भी अन्य जन्तुओं के समान कहीं छिपकर रहता होगा। वह भी सिंह को अपना मुँह नहीं दिखाना चाहता होगा। वे मानते हैं कि सिंह का बहुत रौब है। उसके इसी प्रभाव से भयभीत होकर अन्य जीव जन्तु उससे मुँह छिपाते फिरते हैं। उन्हें लगता है कि साँप सदा धरती के अन्दर मुँह गाड़कर रहता है इसलिए इस प्रकार की रहस्य पूर्ण बातें उसी में पूछनी चाहिएं।

वह अवश्य ही जानता होगा कि वन क्या है ? वनस्पतियाँ स्वयं को उजाले में सिर उठा कर खड़ी रहने वाली मानती हैं इसलिए वे भेदभाव से दूर रहती हैं। साँप जैसे अंधेरे में मुँह गाड़कर रहने वाले ही भेदभाव की नीति से परिचित हो सकते हैं। शेर उन्हें वन से भय न करने के लिए कहता है तथा उन्हें सांत्वना देता है कि जब तक वह है उन्हें किसी से भयभीत नहीं होना चाहिए। चाहे वह साँप का अन्य कोई क्यों न हो ? सिंह स्वयं को इन सबसे अधिक जमने वाला मानता है।

विशेष:

  1. लेखक ने सिंह जैसे घमंडियों तथा साँप जैसे आस्तीन के साँप लोगों पर व्यंग्य किया है जो अपने सामने किसी के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते हैं।
  2. भाषा सहज, सरल, लाक्षणिक, मुहावरों से युक्त, भावपूर्ण तथा प्रवाहमयी है। शैली संवादात्मक तथा व्यंग्यात्मक है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 22 जैनेन्द्र कुमार

6. उनमें सबको ही अपना-अपना ज्ञान था। अज्ञानी, कोई नहीं था। पर उस वन का जानकार कोई नहीं था। वह नहीं जाने, दो नहीं जानें, दस-बीस नहीं जानें, लेकिन जिसको कोई नहीं जानता, ऐसी भी भला कोई चीज़ कभी हुई है या हो सकती है ? इसलिए उन जंगली जंतुओं में और वनस्पतियों में खूब चर्चा हुई, खूब चर्चा हुई। दूर-दूर तक उनकी तू-तू मैं-मैं सुनाई देती थी। ऐसी चर्चा हुई, ऐसी चर्चा हुई कि विद्याओं पर विद्याएँ उसमें से प्रस्तुत हो गईं। अंत में तय पाया कि दो टाँगों वाला आदमी ईमानदार जीव नहीं है। उसने तभी वन की बात बनाकर कह दी है। वन बन गया है । सच में वह नहीं है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया कि वास्तविकता को जानने के कारण मनुष्य उसी प्रकार भटकता रहता है जैसे वन के विषय में जानकर वन्य प्राणी तथा वन की वनस्पतियाँ भयभीत हो रही थीं।

व्याख्या:
दो शिकारी व्यक्तियों द्वारा वन की भयानकता के विषय में सुनकर सभी वनस्पतियां तथा वन्य प्राणी वन को जानने के लिए व्याकुल हो उठते हैं कि वन है क्या ? परन्तु कोई भी वन को नहीं जानता था। सभी अपना-अपना पक्ष रखते हैं परन्तु समझदार होते हुए भी कोई नहीं बता पाया कि वन क्या है ? वन के विषय में किसी को भी कुछ नहीं पता था। वे सभी इस बात से परेशान थे कि उन में से जब कोई भी वन को नहीं जानता तो क्या वह हो भी सकता है ? उन में खूब तर्क-वितर्क होता है और दूर-दूर तक उन की बहस सुनाई देती है। प्रत्येक अपने कथन के पक्ष में अनेक तर्क प्रस्तुत करता है और एक से एक गहरी बातें करता है। जब कोई समाधान नहीं हुआ तो वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह दो टांगों वाला जीव जो आदमी कहलाता है ईमानदार नहीं है। उसने अपने मन से ही बना कर वन की बात कही है और हम इसे सच मान बैठे जबकि वास्तव में वन कहीं नहीं है।

विशेष:

  1. लेखक ने तर्क-वितर्क की व्यर्थता की ओर संकेत किया है तथा मनुष्य की बेईमानी मनोवृत्ति पर व्यंग्य किया है।
  2. भाषा सहज, सरल, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा लाक्षणिक है। शैली व्यंग्यात्मक तथा वर्णनात्मक है।

7. उस समय आदमी और बड़दादा में कुछ ऐसी धीमी-धीमी बातचीत हुई कि वह कोई सुन नहीं सका। बातचीत के बाद वह पुरुष उस विशाल बड़ के वृक्ष के ऊपर चढ़ता दिखाई दिया। चढ़ते-चढ़ते वह उसकी सबसे ऊपर की फुनगी तक पहुँच गया। वहाँ दो नए-नए पत्तों की जोड़ी खुले आसमान की तरफ़ मुसकराती हुई देख रही थी। आदमी ने उन दोनों को बड़े प्रेम से पुचकारा। पुचकारते समय ऐसा मालूम हुआ, जैसे मंत्ररूप में उन्हें कुछ संदेश भी दिया है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गई हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया है किस प्रकार वास्तविकता से परिचित न होने पर हम भटक जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार के व्यर्थ के वाद-विवादों में फँस जाते हैं जैसे कि वन के अस्तित्व से अनजान वन की वनस्पतियों और वन्य प्राणियों की दशा होती है।

व्याख्या:
लेखक कहता है कि जब दुबारा वे शिकारी उस जंगल में आते हैं तो वनस्पतियां उनसे वन के बारे में पूछती हैं। तब वे उन्हें बताते हैं कि वे सब मिलाकर वन हैं। उन्हें इस कथन पर विश्वास नहीं होता। तब बड़दादा और शिकारी में धीरे धीरे कुछ बातचीत होती है। इसे अन्य वनस्पतियां नहीं सुन पातीं। बड़दादा से बातचीत करके वह शिकारी उस विशाल बड़ के पेड़ के ऊपर चढ़ता है और चढ़ते-चढ़ते उसकी सबसे ऊपर वाली फुनगी तक पहुँच जाता है। वह वहाँ देखता है कि दो नए-नए पत्ते खुले आकाश की ओर देख रहे हैं। उन का देखना उसे ऐसा लगा जैसे वे आकाश को देखकर मुस्करा रहे हैं। वह शिकारी उन्हें प्रेमपूर्वक पुचकारता है। जब वह उन्हें ‘पुचकार रहा था तो ऐसा लग रहा था जैसे वह उन्हें मन्त्र के रूप में कोई संदेश भी दे रहा है।

विशेष:

  1. यहाँ लेखक ने प्रकृति के प्रति मानवीय प्रेम को व्यक्त किया है। वह वन संरक्षण का संदेश देता है।
  2. भाषा सहज, सरस, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा काव्यात्मक है। शैली चित्रात्मक तथा भावात्मक है।

8. वन के प्राणी यह सब-कुछ स्तब्ध भाव से देख रहे थे। उन्हें कुछ समझ में न आ रहा था। देखते-देखते पत्तों की वह जोड़ी उद्ग्रीव हुई। मानो उसमें चैतन्य भर आया। उन्होंने अपने आस-पास और नीचे देखा। जाने उन्हें क्या दिखा कि वे काँपने लगे। उनके तन में लालिमा व्याप गई। कुछ क्षण बाद मानो वे एक चमक से चमक आए। जैसे उन्होंने खंड को कुल में देख लिया। देख लिया कि कुल है, खंड कहाँ है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित कहानी ‘तत्सत्’ से ली गयी हैं। इस कहानी में लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि वास्तविकता से परिचित न होने पर मनुष्य उसी प्रकार से भटक जाता है जैसे वन के अस्तित्व से अनजान वनस्पतियों तथा वन्य प्राणियों की दशा होती है।

व्याख्या:
लेखक उस समय का वर्णन करता है जब एक शिकारी विशाल बड़ के वृक्ष की फुनगी तक पहुँचकर उसे पुचकारता है। वन के समस्त प्राणी यह दृश्य टकटकी लगाकर देखते रहते हैं। उनकी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था। उन्होंने देखा कि बड़ के पत्तों की वह जोड़ी उस शिकारी द्वारा पुचकारे जाने पर इस प्रकार ऊपर की ओर उठी जैसे उस में चेतनता आ गयी हो। वे अपने आस-पास और नीचे भी देखने लगीं। यह सब तथा कुछ अनजाना-सा देखकर वे काँप उठीं। उनका शरीर भय से लाल हो गया। परन्तु कुछ ही क्षणों के बाद वे एक अनोखी चमक से चमकने लगीं। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे उन्होंने अपने अंश अथवा खंड को उस पूर्ण में देख लिया है। जिस की वे अंश हैं। उन्होंने सम्पूर्ण को देखने के बाद यह अनुभव किया कि वे उस सम्पूर्ण की ही खंड मात्र हैं।

विशेष:

  1. लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि मनुष्य का अस्तित्व इस संसार में उस विराट के एक खंड के रूप में उसी प्रकार से है जैसे वाटिका में एक पुष्प-पादप। इसी प्रकार से समस्त वनस्पतियां और वन्य प्राणी भी विशाल वन के एक खंड मात्र हैं।
  2. भाषा तत्सम प्रधान, भावपूर्ण, प्रवाहमयी तथा प्रतीकात्मक है। शैली भावपूर्ण एवं प्रतीकात्मक है।

कठिन शब्दों के अर्थ

तत्सत् = उस का सत्य। गहन = घना। वन = जंगल। टोह = खोज। दहशत = भय, डर। अजब = विचित्र। ओछे = छोटे कद वाले, तुच्छ। प्रीति = प्रेम। पोला = खोखला। दीखा = दिखाई देना। पदतल = पैरों के तलवे। वाग्मी = वाचाल, बहुत बोलने वाला, घमंडी। वंश = बाँस। जिज्ञासु = जानने के इच्छुक। दबदबा = रौब। मंथर = धीमी। अतिशय = बहुत अधिक। श्याम = काला। छिद्र = सुराख। अंतर्भेद = अन्दर का हाल, रहस्य। फ़र्जी = नकली। रोज़ = दिन। भर्त्सना = फटकारना। निर्धम = भ्रम रहित, शंकाओं से मुक्त। उद्ग्रीव = ऊपर उठना। अभ्यंतराभ्यंतर = अंत:करण।

तत्सत् Summary

तत्सत् जीवन परिचय

जैनेन्द्र कुमार का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।

जैनेन्द्र कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के कौड़ियागंज गाँव में सन् 1905 ई० में हुआ। इनकी आरम्भिक शिक्षा हस्तिनापुर जिला मेरठ में हुई। इन्होंने सन् 1919 में पंजाब विश्वविद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा पास करके काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, किन्तु गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर पढाई छोड कर स्वतन्त्रता आन्दोलन में कूद पड़े। इन्हें भारत सरकार ने पद्मभूषण से तथा दिल्ली विश्वविद्यालय ने डी० लिट की उपाधि से सम्मानित किया था। इनकी रचनाओं में मनोभावों तथा संवेदनाओं का सूक्ष्म चित्रण मिलता है। जीविका चलाने के लिए व्यापार किया, नौकरी भी की किन्तु सफल न हो सके और स्वतन्त्र लेखन को ही जीवन का ध्येय बना लिया। ध्रुवयात्रा, नीलम देश की राजकन्या, फाँसी इनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं। परख, सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी आदि उनके उपन्यास हैं। सन् 1989 ई० में इनका निधन हो गया था।

तत्सत् कहानी का सार

श्री जैनेन्द्र कुमार द्वारा रचित ‘तत्सत्’ नामक कहानी प्रतीक शैली में लिखी हुई है। इसमें जीवन के सूक्ष्म अनुभवों के स्वतंत्र मौलिक चिंतन द्वारा गूढ प्रश्नों का समाधान दार्शनिक दृष्टिकोण से किया गया है। जैनेन्द्र कुमार बुद्धिवादी दार्शनिक एवं विचारक हैं। वैयक्तिक स्थितियों के आंतरिक चित्रण का सुंदर और सहज रूप इस कहानी में उपलब्ध होता है। – एक घने जंगल में दो शिकारी शिकार की टोह में पहुँचे । दोनों पुराने शिकारी थे पर इतना भयानक वन उन्होंने आज तक न देखा था। एक बड़े पेड़ की छाँह में बैठकर उस भयानक और घने वन के संबंध में बात करते हुए, कुछ देर विश्राम करने के बाद वह दोनों चले गये। उनके चले जाने पर पास के शीशम के पेड़ ने उस.पेड़ से कहा कि.ए बड़ दादा अभी तुम्हारी छाँह में कौन बैठे थे, वे गये। बड़दादा उसे बताते हैं कि वे आदमी कहलाते हैं। उनके न पत्ते होते हैं न जड़ें, बस तना ही तना होता है। अपने तने की दो शाखों पर चलते हैं, इधर-उधर चलते हैं, ऊपर की ओर बढ़ना उन्हें नहीं

आता। तभी बबूल ने बड़दादा से पूछा कि क्या आपने वन देखा है। अभी ये आदमी किसी भयानक वन की बात कर रहे थे। बड़दादा ने कहा कि मैंने शेर, चीता, भालू, हाथी, भेड़िया सभी जानवर देखे हैं पर वन नाम के जानवर को मैंने अब तक नहीं देखा। आदमी एक टूटी-सी टहनी से आग की लपट छोड़कर शेर-चीतों को मार देता है। उन्हें ऐसे मरते अपने सामने हमने देखा है पर वन की लाश हमने नहीं देखी। वह ज़रूर कोई बड़ा भयानक जानवर होगा।

बड़दादा, शीशम और बबूल में इसी प्रकार बातें हो रही थीं। आस-पास के साल, सेंमर, सिरस, बाँस, घास आदि पेड़ भी इस बातचीत में हिस्सा लेने लगे। उनमें से कोई भी वन को नहीं जानता था। पर सभी अज्ञात रूप से वन से डरने लगे थे। सबमें काफ़ी बहस हुई पर कोई भी यह न बता सका कि वन कौन-सा जानवर है। तभी वहां सिंह आया। बड़दादा ने उससे वन के सम्बन्ध में पूछा। पर सिंह भी न बता सका कि वन कौन है। लोग सलाह करते हैं कि साँप से इस सम्बन्ध में पूछना चाहिए। संयोग से एक नाग भी उधर आ निकला। वन के सम्बन्ध में अनेक प्रकार की कल्पना की गई पर इसका निश्चय नहीं हो सका कि वह कौन जानवर है। सभी जीव-जन्तु और पेड़-पौधों ने आपस में पूछताछ की और अंत में यह तय हुआ कि दो पैर वाले मनुष्य की बात का कोई भरोसा नहीं। मनुष्य ईमानदार जीव नहीं है। तभी उसने वन की बात कह दी पर वास्तव में वह कुछ नहीं है। बड़दादा ने कहा कि उन आदमियों को फिर आने दो तब उनसे पूछा जायेगा कि वन क्या है ?

एक दिन वे दोनों शिकारी फिर उधर आ निकले। उनके आने पर जंगल के सभी जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तरह-तरह की आवाज़ों में बोलकर मानों उनका विरोध करने लगे। इस विचित्र स्थिति में अपने को पाकर आदमियों ने अपनी बंदूकें सम्भाली पर बड़दादा ने बीच में पड़कर जंगल के प्राणियों को शांत किया और उन आदमियों से पूछा कि जिस जंगल की तुम बात किया करते हो बताओ कि वह कहाँ है। आदमियों ने कहा कि जहाँ हम सब हैं यह जंगल ही तो है। इस पर किसी को भला कैसे विश्वास हो सकता था। वह सेंमर है, वह सिरस है, वह घास है, वह सिंह है, वह पानी है फिर भला जंगल कहाँ है। आदमी ने कहा यह सब कुछ जंगल ही है। पर सभी अपना नाम बताते और जंगल या वन कौन है यह कोई मानने को तैयार न था। आदमी और बड़दादा में थोड़ी देर तक धीमी आवाज़ में बातचीत होती रही। इसके बाद बड़दादा ने अन्य प्राणियों को बताया है कि यह वन ही है हम नहीं, हम सब ही वन हैं। समग्रता का बोध होने पर ही बड़दादा वन की सत्ता स्वीकार कर लेता है और अन्य वन्य प्राणियों को भी वन की सत्ता स्वीकार करने के लिए कहता है।

PSEB 11th Class Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi रचना अनुच्छेद-लेखन

(ख) अनच्छद लखन

यदि आप किसी भी छपी गद्य रचना को ध्यान से देखें तो आप पाएँगे कि प्रत्येक लेख, अध्याय, कहानी, उपन्यास आदि अनुच्छेदों में बंटा है । प्रत्येक अनुच्छेद पंक्ति से थोड़ा दाएँ हट कर शुरू किया जाता है । ऐसा उस गद्य रचना को पढ़ने और समझने में सहायक होता है।

परिभाषा:
अनुच्छेद लेखन का अर्थ है कि किसी कथन, निजी अनुभव अथवा संस्मरण को संक्षेप में किन्तु सार गर्भित ढंग से लिखना । मान लीजिए आपने कोई विशेष घटना देखी हो, किसी नेता का भाषण सुना हो अथवा कोई निजी अनुभव या कथन पर कुछ लिखना हो तो उसे एक ही अनुच्छेद में लिखना अनुच्छेद लेखन कहलाता है ।

अनुच्छेद लेखन और सार में अन्त:
अनुच्छेद लेखन सार लेखन से बिल्कुल विपरीत है । सार लेखन में एक अनुच्छेद दिया गया होता है उसका लगभग एक तिहाई शब्दों में संक्षेपीकरण या सार लिखना होता है, जबकि अनुच्छेद लेखन के लिए कोई एक विषय दिया गया होता है । जिस पर आपको केवल एक अनुच्छेद लिखना होता है । अनुच्छेद विषयानुसार छोटा बड़ा हो सकता है ।

अनुच्छेद लेखन का उद्देश्य:
परीक्षा में अनुच्छेद लेखन का प्रश्न विद्यार्थी की मौलिक सूझ-बूझ, स्मरण शक्ति और कल्पना शक्ति के विकास में सहायता करने के लिए रखा जाता है । भावी जीवन में इसका बहुत बड़ा महत्त्व होता है ।

अनुच्छेद लेखन के भेद:
अनुच्छेद लेखन दो प्रकार का होता है
(1)निजी अनुभव पर(किसी घटना आदि से सम्बन्धित) संस्मरणात्मक अनुच्छेद:
ऐसे अनुच्छेद में लेखक आपबीती उत्तम पुरुष एकवचन में लिखता है । जैसे भीड़ भरी बस की यात्रा, मतदान केन्द्र का दृश्य आदि विषयों पर लिखे अनुच्छेद।

(2) विचारात्मक अनुच्छेद:
ऐसे अनुच्छेद किसी महापुरुष के कथन, किसी मुहावरे या विचारात्मक विषय पर लिखे जाते हैं । जैसे परहित सरिस धर्म नहिं भाई, सवै दिन जात न एक समान, नेता नहीं नागरिक चाहिए, बढ़ते फैशन और युवावर्ग आदि।

अनुच्छेद लेखन में ध्यान देने योग्य बातें

  1. अनुच्छेद लेखन में सारी बात एक ही अनुच्छेद में लिखनी चाहिए
  2. अनुच्छेद लेखन में भाव या विचार की एकता होनी चाहिए ।
  3. अनुच्छेद लेखन में ऐसा कोई वाक्य नहीं होना चाहिए जो मूल विषय या कथन से सम्बन्ध न रखता हो । सारे वाक्य एक ही भाव से परस्पर जुड़े हुए होने चाहिएं । इसमे इधर-उधर की बातों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है ।
  4. निजी अनुभव पर आधारित अनुच्छेद उत्तम पुरुष एकवचन में लिखना चाहिए जैसे कोई आत्मकथा लिख रहा हो ।
  5. शब्दों में चित्रात्मकता का गुण होना चाहिए । जैसे मैं पढ़ने बैठा ही था कि अचानक बादल घिर आए, बिजली कड़कने लगी, तेज़ हवा भी चलने लगी और घर की बिजली अचानक बन्द हो गई—आदि ।
  6. वाक्य रचना ऐसी होनी चाहिए कि अनुच्छेद रोचक बन जाए ।
  7. अनुच्छेद की भाषा सरल, स्पष्ट और व्याकरण की अशुद्धियों से रहित होनी चाहिए । भाषा ऐसी हो जो विषय को स्पष्ट कर दे।
  8. अनुच्छेद जहाँ तक हो सके संक्षिप्त होना चाहिए । यदि परीक्षा में अनुच्छेद लेखन की कोई शब्द-सीमा निर्धारित की गई हो तो उसका ध्यान भी रखना चाहिए ।

विशेष:
यहाँ आपकी जानकारी एवं मार्ग दर्शन के लिए निजी अनुभव पर आधारित तथा कुछ विचारात्मक विषयों पर प्रसिद्ध साहित्याकरों, महापुरुषों द्वारा लिखे गए निबन्धों या आत्मकथाओं से अलग-अलग उदाहरण दे दिए गये हैं ।

प्रस्तुत पुस्तक में अनुच्छेद लेखन को दो भागों में प्रस्तुत किया गया है–(क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद (ख) विचारात्मक विषयों, कथनों पर आधारित अनुच्छेद। परीक्षा की दृष्टि से सभी सम्भावित विषयों पर अनुच्छेद लेखन के उदाहरण दिये गये हैं । अभ्यास से आप किसी भी विषय पर आसानी से अनुच्छेद लिख सकते हैं ।

(क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद

1. हीरो बनने के चक्कर में

अपने मित्र के कहने पर एक दिन मैंने भान्जे साहब से, क्योंकि वे मुझ से काफ़ी खुल गये थे, अपनी इच्छा प्रकट की । मित्र ने भी रद्दा जमाया । मेरी एक्टिंग, मेरे गले और मेरी बॉडी की प्रशंसा की और कहा कि इस बार यदि कैमरा टैस्ट हो जाए तो मेरे हीरो बनने के रास्ते में कोई बाधा नहीं हो सकती । मेरा ख्याल था कि मेरी इच्छा सुनते ही मामा का वह भान्जा झट मेरे साथ पूना की गाड़ी पर जा बैठेगा । इतने दिन मेरे पैसे पर उसने गुलछर्रे उड़ाए थे । लेकिन नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई । बड़े इत्मीनान से उसने कहा कि यदि उसे पचास रुपए दिये जाएं तो वह मामा से मिलायेगा और पचास और दिये जाएं तो कैमरा टैस्ट का प्रबन्ध करेगा । मेरे लगभग सात-आठ सौ रुपए उन पन्द्रह बीस दिनों में खर्च हो चुके थे, पाँच-छ: सौ रुपए बचे थे । सौ-डेढ़ सौ का नुस्खा उसने बता दिया, लेकिन मैं चुप रहा । बोला कुछ नहीं । हां, मेरे होटल वाले मित्र को बड़ा क्रोध आया। उसने उसे डॉटा । बड़ी खिट-खिट हुई । आखिर वह पच्चीस रुपए उस समय, पच्चीस मामा से मिलाने पर ओर पचास टैस्ट करा देने और काम बनवा देने के बाद लेने को तैयार हो गया । खैर साहब, हम तीनों पूना के लिए दक्खन क्वीन में सवार हुए ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

ट्रेन फर्राटे भरती उड़ चली और साथ ही मेरी कल्पना दक्खन क्वीन से भी तेज़ फर्राटे भरती उड़ चली। मुझे लगा कि मंज़िल अब बहुत दूर नहीं । माइक और साऊँड टैस्ट हुआ कि मैं हीरो बना । पूना पहुँच कर स्टेशन के पास ही एक होटल में टिका। नाश्ता-वाश्ता करके हम स्टूडियो को चले। गेट पर चौकीदार ने रोक दिया। तब मामा के उस भान्जे ने एक चिट्ठी लिखी । कुछ देर बाद उत्तर आ गया हमें बाहर ही रोक कर वह अन्दर गया । कोई पन्द्रह मिनट बाद वापस आया तो बोला मामा जी स्टूडियो में व्यस्त हैं, फिल्म की शूटिंग हो रही है। कल सुबह मिलने का टाइम उन्होंने दिया है। मैंने कहा, हमें शूटिंग ही दिखा दो । उसने कहा तुमने पहले कहा होता तो मैं तय कर आता, लेकिन अब कल ही दिखा दूंगा, बात पक्की हुई समझो। खुश-खुश हम लौटे। रात को मित्र ने सुझाया कि भान्जे को खुश रखना चाहिए ताकि यह टैस्ट ही न कराये, बल्कि तुम्हें हीरो का कांट्रेक्ट ले दे । बात उसकी ठीक थी । पूरी बोतल मेज़ पर आ गई । वह खत्म हुई तो दूसरी आयी । बस इतना ही याद है और कुछ याद नहीं । सुबह उठा तो देखा कमरा खाली है । बस जो कपड़े तन पर हैं, वही हैं, बाकी सब कुछ गायब हैं।
(-उपेन्द्रनाथ अश्क द्वारा लिखित एक रिपोर्ताज से)

2. सहानुभूति दिखाना भी मुसीबत मोल लेना है

एक और जाति को सहानुभूति दिखाकर मुझे भारी नुकसान उठाना पड़ा है । यह जाति परीक्षा में बैठने वाले स्टूडेंट्स की है जो अपने नम्बर बढ़वाने के लिए पहुँच जाते हैं । इस बारे में एक पुरानी घटना याद आ रही है । एक बार एक लड़की ने मुझे यहाँ तक धमकी दे दी कि अगर मैं उसे पास नहीं करता तो वह नदी में छलांग लगा देगी । मैं इतना डर गया कि मैंने सहानुभूति दिखाने का उसे वचन भी दे डाला । वह बिना सहायता के पास थी, लेकिन एक महीने के बाद मेरे बारे में जांच पड़ताल शुरू हो गई क्योंकि उस लड़की ने अपनी सहेलियों से शोखी मैं आकर यह कह दिया कि वह मेरी सहानभूति से पास हुई है । उसकी एक सहेली ने मेरे बारे में गुमनाम शिकायत लिख कर भेज दी । तब से कानों को हाथ लगाया और तय किया कि इनसे सहानुभूति करना कितना खतरनाक हो सकता है। अब भी कभी कभार स्टूडेंट्स आ टपकते हैं और यही दलील देते हैं कि सब परीक्षक सहानुभूति दिखाते हैं, मैं इतना कठोर क्यों हो गया हूँ ? मेरा एक ही जबाव होता है कि इस तरह की सहानुभूति दिखाने से मेरी नौकरी छूटने का भय है और मैं एक डरपोक आदमी हूँ। वह मेरी बात मानते तो नहीं लेकिन निराश होकर चले अवश्य जाते हैं ।।
(—श्री इन्द्रनाथ मदान द्वारा लिखित निबन्ध ‘सहानुभूति दिखाने पर’ में से)

3. आँखों देखा गोली काण्ड

दोपहर होते-होते नौजवानों की भीड़ ‘नहीं रखनी सरकार भाइयों नहीं रखनी, यह अंग्रेज़ी सरकार भाइयो नहीं रखनी’ के नारे लगाते हुए तिरंगा झण्डा लिए सचिवालय की ओर बढ़ने लगे। गोरखा फौज उनके सामने दीवार की तरह आकर खड़ी हो गई । जिलाधीश ने नौजवानों से पूछा, ‘तुम क्या चाहते हो ? ‘उन्होंने उत्तर दिया हम सचिवालय पर तिरंगा झण्डा फहरायेंगे । ज़िलाधीश ने कहा, वहाँ तो यूनियन-जैक लहरा रहा है । नौजवानों ने कहा-अब वहाँ तिरंगा लहरायेगा । अंग्रेज़ तमतमा उठा, बोला ऐसा कभी भी नहीं हो सकता । भाग जाओ । नौजवानों ने कहा हम तो आज तिरंगा झण्डा फहराकर ही लौटेंगे । अंग्रेज़ का अहंकार गुर्रा उठा, बोला, तुम में से जो झण्डा फहराना चाहता है वह आगे आए । ग्यारह विद्यार्थी भीड़ में से एक साथ आगे बढ़ कर आए। इन ग्यारह में सब से आगे जो विद्यार्थी था, उसकी देह ने अभी चौदहवीं वर्षगांठ भी न मनाई थी, पर उसके कंधों का तनाव ऐसा प्रचण्ड था कि पहाड़ के शिखिर भी देखकर शरमा जाएँ ? अंग्रेज़ ज़िलाधीश ने राक्षसी क्रूरता से उस किशोर से पूछा ‘तुम भी फहराओगे झण्डा ?’ ‘हाँ क्यों नहीं ?’ भारत की आत्मा उस बालक के कण्ठ से कूक उठी।

तभी अंग्रेज़ ने अपने गोरखा सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया ग्यारह राइफलें उभर कर गरी—’धड़ाम’ । जीते जागते ग्यारह राम-लक्ष्मण पलक मारते धरती पर गिर पड़े, खून से लथपथ, पर शान्त। ‘फायर’ अंग्रेज़ अफ़सर फिर चिल्लाया और सिपाहियों ने गोलियाँ दागीं। बहुत से लोग घायल हो कर गिर पड़े पर भागा कोई नहीं । पीछे कोई नहीं हटा । ‘इन्कलाब ज़िन्दाबाद’, ‘अंग्रेज़ो भारत छोड़ो’ के नारों से आकाश गूंज उठा । तभी न जाने किधर से एक विद्यार्थी सचिवालय के गुम्बद पर जा चढ़ा और उसने तिरंगा झण्डा फहरा कर वहीं से नारे लगाये । अंग्रेज़ अफसर का मुँह एक बार तो काला पड़ गया था तब उसने दांत किटकिटा कर कहा—फायर तब वह किशोर टूटते तारे-सा धरती पर आ गिरा । अस्पताल की मेज़ पर उसने पूछा मेरे गोली कहाँ लगी है ? छाती में डॉक्टर ने कहा । तब ठीक है मैंने पीठ पर गोली नहीं खाई उसने कहा और हमेशा के लिए आँख मूंद ली ।
(— कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर के एक लेख से)

4. जब मैं घर से बाहर पढने गया

इस कमरे में भी मैं तो बहुत परेशान हाल में रहा । देश बहुत याद आता था । माता का प्रेम आँखों के सामने नाचा करता । रात हुई कि रोना शुरू हुआ । घर की अनेक प्रकार की स्मृतियों की चढ़ाई के कारण नींद कहां से आ पाती ? यह दुःख गाथा किसी से कह भी न सकता था । कहने से फायदा भी क्या था ? मैं स्वयं नहीं जानता था कि क्या करने से मेरा चित्तन्त होगा। मनुष्य विचित्र, रहन-सहन विचित्र, घर भी विचित्र । घरों में रहने की रीति-नीति भी वैसी ही विचित्र । क्या बोलने और क्या करने में यहाँ का शिष्टाचार भंग होता है, इस का भी बहुत कम पता था । तिस पर से खाने-पीने का बराव-बचाव । जो चीजें खा सकता वे रूखी और नीरस लगती थीं । इस से मेरी दशा सौते में सुपारी की सो हो गई । विलायत रुच नहीं रहा था और देश को लौटा नहीं जा सकता । विलायत आया था तो तीन साल पूर करने ही थे ।
(-महात्मा गान्धी की आत्म कथा से)

5. जब दाखिला लेने गया

एक महीने के बाद मैं फिर मि० रिचर्डसन से मिला और सिफारिशी चिट्ठी दिखाई । प्रिंसिपल ने मेरो ओर तीव्र नेत्रों से देख कर पूछा ‘इतने दिन कहाँ थे’ ? ‘बीमार हो गया था’ मैंने कहा। क्या बीमारी थी ? मैं इस प्रश्न के लिए तैयार न था। अगर ज्वर बताता हूँ तो शायद साहब मुझे झुठा समझें । ज्वर मेरी समझ में हल्की चीज़ थी, जिसके लिए इतनी लम्बी गैर हाजिरी अनावश्यक थी। कोई ऐसी बीमारी बतानी चाहिए जो अपनी कष्ट साध्यता के कारण दया भी उभारे । उस वक्त मुझे नाम याद न आया । ठाकुर इन्द्रनारायण सिंह से जब मैं सिफारिश के लिए मिला था तब उन्होंने अपने दिल की धड़कन की बीमारी की चर्चा की थी। वह शब्द याद आ गया मैंने कहा, पेलपिटेशन आफ हार्ट (दिल की धड़कन) सर ।

साहब ने विस्मित होकर मेरी ओर देखा और कहा, अब तुम बिल्कुल अच्छे हो ? जी हाँ, मैंने कहा । उन्होंने कहा, अच्छा प्रवेश पत्र लाओ । मैंने समझा बेड़ा पार हुआ । फार्म लिया, खाना पुरी की और पेश कर दिया । साहब उस समय कोई क्लास ले रहे थे । तीन बजे मुझे फार्म वापस मिला । उस पर लिखा था-इसकी योग्यता की जाँच की जाए । यह नई समस्या उपस्थित हुई। मेरा दिल बैठ गया । अंग्रेज़ी के सिवा और किसी विषय में पास होने की आशा न थी और बीजगणित से मेरी रूह काँपती थी । जो कुछ याद था वह भी भूल गया था, परन्तु दूसरा उपाय ही क्या था ।(-प्रेमचंद की आत्मकथा से)

(ख) विचारात्मक अनुच्छेद

1. मजदूरी का महत्व

खेद का विषय है कि हमारे और अन्य पूर्वी देशों में लोगों को मज़दूरी से लेश मात्र भी प्रेम नहीं है, पर वे तैयारी कर रहे हैं काली मशीनों का आलिगंन करने की । पश्चिम वालों के तो यह गले पड़ी हुई बहती नदी की काली कमली हो रही है । वे छोड़ना चाहते हैं, परन्तु काली कमली उन्हें नहीं छोड़ती । देखेंगे पूर्व वाले इस कमली को छाती से लगाकर कितना आनन्द अनुभव करते हैं। यदि हम में से हर आदमी अपनी दस उंगलियों की सहायता से साहसपूर्वक अच्छी तरह काम करे तो हम मशीनों की कृपा से बढ़े हुए पश्चिम वालों को, वाणिज्य के जातीय संग्राम में सहज ही पछाड़ सकते हैं । इंजनों की वह मज़दूरी किस काम की जो बच्चों, स्त्रियों और कारीगरों को ही भूखा और नंगा रखती है और केवल सोने, चाँदी, लोहे आदि धातुओं का ही पालन करती है। पश्चिम को विदित हो चुका है इससे मनुष्य का दुःख दिन पर दिन बढ़ता है ।

भारतवर्ष जैसे दरिद्र देश में मनुष्यों के हाथों की मज़दूरी के बदले कलों के काम लेना काल का डंका बजाना होगा । दरिद्र प्रजा और भी दरिद्र होकर मर जाएगी । चेतन से चेतन की वृद्धि होती है । मनुष्य को तो मनुष्य सुख दे सकता है। परस्पर की निष्कपट सेवा से मनुष्य जाति का कल्याण हो सकता है । धन एकत्र करना तो मनुष्य के आनन्द मण्डल का एक साधारण सा और महातुच्छ उपाय है । धन की पूजा करना नास्तिकता है, ईश्वर को भूल जाना है। अपने भाई-बहनों तथा मानसिक सुख और कल्याण के देने वालों को मार कर अपने सुख के लिए शारीरिक राज्य की इच्छा करना हैं। जिस डाल पर बैठे हैं, उसी डाल को स्वयं ही कुल्हाड़े से काटना है । अपने प्रियजनों से रहित राज्य किस काम का ? आओ, यदि हो सके तो, टोकरी उठा कर कुदाली हाथ में लें । मिट्टी खोंदे और अपने हाथ से उस के प्याले बनावें । फिर एक-एक प्याला घर-घर में, कुटियाकुटिया में रख आयें और सब लोग उसी में मजदूरी का प्रेमामृत पान करें ।
(सरदार पूर्ण सिंह के लेख ‘मज़दूरी और प्रेम से’ )

2. अंग्रेज़ी हटाओ, राष्ट्रभाषा और प्रान्तीय भाषा लाओ

संविधान के निर्णयानुसार 15 वर्षों के भीतर, अर्थात् सन् 1965 तक हिन्दी का राज भाषा विषयक रूप विकसित हो जाना चाहिए था अर्थात् उस समय तक कानून की सभी पुस्तकों का हिन्दी में अनुवाद हो जाना चाहिए, साहित्य एवं विज्ञान की इतनी पुस्तकें प्रकाशित हो जानी चाहिएं कि हिन्दी के माध्यम से विश्वविद्यालयों में ऊंची-से-ऊंची शिक्षा दी जा सके तथा न्यायालयों एवं महान्यायालयों में हिन्दी के माध्यम से विचार और विमर्श किया जा सके । साथ ही हिन्दी प्रान्तों में तब तक हिन्दी का इतना प्रचार भी कर देना है कि उन प्रान्तों के साथ केन्द्रीय एवं अन्य प्रान्तीय शासनों का पत्राचार हिन्दी में चल सके तथा जो व्यक्ति सार्वदेशीय धरातल से देश के साथ हिन्दी में बोलना चाहें, उन्हें शिक्षा साधनों के सीमित होने के कारण कोई कठिनाई नहीं हो । प्रायः लोग इस भ्रम में पड़ जाते हैं कि अंग्रेज़ी के हटने पर जो स्थान रिक्त होगा वह सब का सब हिन्दी को मिल जाएगा। यह हिन्दी के पक्ष में अनुचित उत्साह है। अंग्रेजी केवल हिन्दी का अधिकार दबा कर नहीं बैठी है। वह अधिक स्थान तो क्षेत्रीय भाषाओं के ही दबाए हुए हैं । अंग्रेज़ी के हटने पर भी प्रान्तीय शासन और जनता चाहे तो, शिक्षा के भी काम वहाँ की प्रान्तीय भाषाओं में ही चलेंगे ।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

अतएव आवश्यकता है कि प्रत्येक क्षेत्र की जनता में अपनी मातृभाषा के लिए अनुराग उत्पन्न किया जाए । इसी अनुराग को जगाकर हम अंग्रेज़ी को वर्तमान पद से हटा सकते हैं । जब तक जनता में मातृभाषा के लिए प्रेम नहीं जागता, तब तक प्रान्तीय भाषाओं के क्षेत्रों में राष्ट्रभाषा का मार्ग भी वंचित रहेगा। प्रसन्नता की बात है कि हिन्दी प्रान्तों में शासन के कार्यों में हिन्दी का प्रयोग बढ़ने लगा है। इसका अनुकरण अन्य भाषा अनुच्छेद लेखन भाषी क्षेत्रों में भी होना चाहिए जिससे वहाँ के भी शासन सम्बन्धी कार्य क्षेत्रीय भाषाओं में किये जा सकें। प्रान्तों में जब क्षेत्रीय भाषाओं का प्रयोग होना आरम्भ हो जाएगा, तभी वहाँ की जनता अंग्रेज़ी के स्थान पर अपनी राष्ट्रभाषा सीखने के महत्त्व को सरलता से समझेगी और तभी यह आशंका भी दूर हो जाएगी जिस से ग्रसित होने के कारण कहीं-कहीं लोग यह समझ रहें हैं कि राष्ट्रभाषा के प्रचार से क्षेत्रीय भाषाओं का दलन होने वाला है ।
(श्री रामधारी सिंह दिनकर के राष्ट्रभाषा शीर्षक लेख से-)

3. अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी

हिन्दू नारी का घर और समाज इन्हीं दो से विशेष सम्पर्क रहता है । परन्तु इन दोनों ही स्थानों में उसकी स्थिति कितनी करुण है उसके विचार मात्र से ही किसी भी सहृदय का हृदय काँपे बिना नहीं रहता । अपने पितृ गृह में उसे वैसे ही स्थान मिलता है जैसा किसी दुकान में उस वस्तु को प्राप्त होता है जिसके रखने और बेचने दोनों में ही दुकानदार को हानि की सम्भावना रहती है । जिस घर में उसके जीवन को ढलकर बनना पड़ता है, उसके चरित्र को एक विशेष रूप रेखा धारण करनी पड़ती है जिस पर वह शैशव का सारा स्नेह ढुलकाकर भी तृप्त नहीं होती उसी घर में वह भिक्षुक के अतिरिक्त और कुछ नहीं हैं । दुःख के समय अपने आहत हृदय और शिथिल शरीर को लेकर वह उसमें विश्राम नहीं पाती, भूल के समय वह अपना लज्जित मुख उसके स्नेहांचल में नहीं छिपा सकती और आपत्ति के समय एक मुट्ठी अन्न की भी उस घर से आशा नहीं रख सकती।

ऐसी ही है उसकी वह अभागी जन्म भूमि, जो जीवित रहने के अतिरिक्त और कोई अधिकार नहीं देती । पति गृह, जहाँ उस उपेक्षित प्राणी को जीवन का शेष भाग व्यतीत करना पड़ता है, अधिकार में उससे कुछ अधिक परन्तु सहानुभूति में उससे बहुत कम है इसमें सन्देह नहीं । यहाँ उसकी स्थिति पल-भर भी आशंका से रहित नहीं । यदि वह विद्वान पति की इच्छानुकूल विदुषी नहीं तो उसका स्थान दूसरी को दिया जा सकता है । यदि वह सौंदर्योपासक पति की कल्पना के अनुरूप अप्सरा नहीं है तो उसे अपना स्थान रिक्त कर देने का आदेश दिया जा सकता है । यदि वह पति कामना का विचार करके संतान या पुत्रों की सेना नहीं दे सकती, यदि वह रुग्ण है या दोषों का नितांत अभाव होने पर भी पति की अप्रसन्नता की दोषी है तो भी उसे घर में दासत्व स्वीकार करना पड़ेगा ।
(महादेवी वर्मा द्वारा लिखित ‘नारीत्व का अभिशाप’ शीर्षक निबन्ध से )

4. जीवन युद्ध है आराम नहीं

जीवन को जो आराम मानते हैं, वे जीवन को नहीं जानते । वे जीवन का स्वाद नहीं पाएँगे। जीवन युद्ध है आराम नहीं और अगर आराम है तो वह उसी को प्राप्य है जो उस युद्ध में पीछे कुछ न छोड़ अपने पूरे अस्तित्व से उस में जूझ पड़ता है । जो सपने लेते हैं वे सपने लेते रहेंगे । वे आराम नहीं, आराम के ख्याल में ही भरमाये रहते हैं । पर जो सदानन्द है, वह क्या सपने से मिलता है ? आदमी सोकर सपने लेता है । पर जो जागेगा वही पाएगा । सोने का पाना झूठा पाना है । सपना सपने से बाहर खो जाता है । असल उपलब्धि वहाँ नहीं । इससे मिलेगा वही जो कीमत देकर लिया जाएगा । जो आनन्दरूप है, वह जानने से जान लिया नहीं जाएगा । उसे तो दुःख पर दुःख उठाकर उपलब्ध करना होगा । इसलिए लिखने-पढ़ने और मनन करने से उसकी स्तुति अर्चना ही की जा सकती है, उपलब्धि नहीं की जा सकती । उपलब्धि तो उसे होगी जो जीवन के प्रत्येक क्षण योद्धा है, जो अपने को बचाता नहीं है, और बस अपने इष्ट को ही जानता है, कहो कि उसके लिए अपने को भी नहीं रखता है ।
(-जैनेन्द्र कुमार द्वारा लिखित निबन्ध ‘युद्ध’ से)

5. सांस्कृतिक कार्यक्रम कितने असांस्कृतिक

आज हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की सर्वत्र धूम है । पंजाब में सभ्याचारक मेलों के नाम पर ऐसे कार्यक्रम सरकार द्वारा भी जगह-जगह करवाये जा रहे हैं । इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लचरपने को देखकर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है और हम यह सोचने पर विवश हो जाते हैं कि क्या यही हमारी संस्कृति है जिसके बूते पर हम संसार का गुरु होने का दावा सदियों तक करते रहे हैं । आज किसी शिक्षण संस्था को देखिए, किसी राष्ट्रीय पर्व में शामिल होइए या किसी विदेशी अतिथि के स्वागत समारोह में जाइए-आपको सर्वत्र पायलों की झंकार और नुपुरों की मधुर रुनझुन सुनाई देगी। आज प्राइमरी स्कूलों के नन्हें-मुन्ने बालक-बालिकाओं से लेकर विश्वविद्यालयों के विकसित मस्तष्कि वाले युवक-युवतियां भी इन तथाकथित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मग्न दिखाई दे रही हैं। प्रश्न उठता है कि हमारे देश की संस्कृति केवल नृत्य, गीत, राग-रस तक ही सीमित रह गयी है । संस्कृति के उदात्त तत्व को केवल संगीत और अभिनय तक ही सीमित कर देना कहां तक न्याय है ? हमारे देश के विद्यालयों के अधिकांश छात्रों का पर्याप्त समय इन कार्यक्रमों की तैयारी में ही नष्ट हो जाता है । आज 15 अगस्त है तो कल 26 जनवरी !

आज युवक समारोह (Youth Festival) है तो कल कुछ और । छात्रों को शिक्षा और उनके चरित्र के विषय में कुछ भी अवगत न कराया जाए परन्तु एक रसिक आयोजन अवश्य होगा। इन आयोजनों की तैयारी में छात्रों का अमूल्य समय और उससे भी मूल्यवान चरित्र कितना नष्ट होता है, इसकी ओर किसी का ध्यान ही नहीं है । आज विदेशी अतिथि आते हैं, हमारी सभ्यता, विचारधारा और जीवन निर्वाह के साधन देखने के लिए, परन्तु हम भारत की वास्तविकता दिखाने की अपेक्षा ‘कल्चरल प्रोग्राराम’ के नाम पर उन्हें दिखाते हैं अपनी जवान बहिन-बेटियों का नाच ? क्या हमारे पास कोई अच्छी वस्तु दिखाने को नहीं है । क्या हम उन्हें अरविन्द आश्रम, शान्ति-निकेतन और गुरुकुलों की सैर नहीं करा सकते? जो लोग इन नाचों को कराते हैं, चाहे वे माता-पिता हों या शिक्षक हों या सरकारी अधिकारी हों अथवा मन्त्री हों वे अवश्य ही पापों को प्रोत्साहन देने वाले हैं । हम शिक्षकों और शिक्षिकाओं से निवेदन करते हैं कि कृपया वे बालिकाओं को नाचना न सिखायें और उनका जीवन विलासिताप्रिय न बनाएं । प्रसिद्ध आचार्य श्री क्षति मोहन सेन ने ठीक ही कहा था कि मुझे तो ऐसा लगता है कि हम लोग संस्कृति शब्द का अर्थ ही भूल गये हैं ।
(कल्याण मासिक’ के वर्ष 62 के वार्षिकांक में प्रकाशित श्री भवानी लाल जी भारतीय के एक लेख से)

2. (क) निजी अनुभव पर आधारित संस्मरणात्मक अनुच्छेद

1. मेले में दो घंटे

भारत एक त्योहारों का देश है । इन त्योहारों को मनाने के लिए जगह- जगह मेले लगते हैं । इन मेलों का महत्त्व कुछ कम नहीं है किन्तु पिछले दिनों मुझे जिस मेले को देखने का सुअवसर मिला वह अपने आप में अलग ही था । इस मेले में बिताए दो घंटों का विवरण यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ । भारतीय मेला प्राधिकरण तथा भारतीय कृषि और अनुसंधान परिषद् के सहयोग से हमारे नगर में एक कृषि मेले का आयोजन किया गया था । भारतीय कृषि विश्वविद्यालयों का इस मेले में सहयोग प्राप्त किया गया था । इस मेले में विभिन्न राज्यों ने अपने-अपने मंडप लगाए थे । उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार और महाराष्ट्र के मंडपों में गन्ने और गेहूँ की पैदावार से सम्बन्धित विभिन्न चित्रों का प्रदर्शन किया गया था। केरल, गोवा के काजू और मसालों, असम में चाय, बंगाल में चावल, गुजरात, मध्य प्रदेश और पंजाब में रुई की पैदावार से संबंधित सामग्री प्रदर्शित की थी ।

अनेक व्यावसायिक एवं औद्योगिक कम्पनियों ने भी अपने अलग-अलग मंडप सजाए थे । इसमें रासायनिक खाद , ट्रैक्टर, डीज़ल पम्प, मिट्टी खोदने के उपकरण, हल, अनाज की कटाई और छटाई के अनेक उपकरण प्रदर्शित किए गए थे । इसी मेले में मुझे यह जानकारी प्राप्त कर खुशी हुई कि पंजाब में बने ट्रैक्टरों की बिक्री और मांग देश में सबसे अधिक है । यह मेला एशिया में अपनी तरह का पहला मेला था । इसमें अनेक एशियाई देशों ने भी अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मण्डप लगाए थे । इनमें जापान का मंडप सबसे विशाल था । इस मंडप को देख कर हमें पता चला कि जापान जैसा छोटासा देश कृषि के क्षेत्र में कितनी उन्नति कर चुका है । हमारे प्रदेश के बहुत-से कृषक यह मेला देखने आए थे । मेले में उन्हें अपनी खेती के विकास संबंधी काफी जानकारी प्राप्त हुई । इस मेले का सबसे बड़ा आकर्षण था मेले में आयोजित विभिन्न प्रान्तों के लोकनृत्यों का आयोजन । सभी नृत्य एक से बढ़ कर एक थे । मुझे पंजाब और हिमाचल प्रदेश के लोकनृत्य सबसे अच्छे लगे । इन नृत्यों को आमने-सामने देखने का मेरा यह पहला ही अवसर था । लगभग दो घंटे मेले में बिताने के बाद मैं घर लौट आया और अपने साथ ढेर सारी सूचना एकत्र करके लाया ।

2. प्रदर्शनी अवलोकन

पिछले महीने मुझे दिल्ली में अपने किसी मित्र के पास जाने का अवसर प्राप्त हुआ । संयोग से उन दिनों दिल्ली के प्रगति मैदान में एक अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी चल रही थी । मैंने अपने मित्र के साथ इस प्रदर्शनी को देखने का निश्चय किया । शाम अनुच्छेद लेखन को लगभग पांच बजे हम प्रगति मैदान पर पहुंचे । प्रदर्शनी के मुख्य द्वार पर हमें यह सूचना मिल गई कि इस प्रदर्शनी में लगभग तीस देश भाग ले रहे हैं । हमने देखा की सभी देशों ने अपने-अपने पंडाल बड़े कलात्मक ढंग से सजाए हुए हैं। उन पंडालों में उन देशों की निर्यात की जाने वाली वस्तुओं का प्रदर्शन किया जा रहा था। अनेक भारतीय कम्पनियों ने भी अपने-अपने पंडाल सजाए हुए थे । प्रगति मैदान किसी दुल्हन की तरह सजाया गया था । प्रदर्शनी में सजावट और रोशनी का प्रबन्ध इतना शानदार था कि अनायास ही मन से वाह निकल पड़ती थी ।

प्रदर्शनी देखने आने वालों की काफी भीड़ थी। हमने प्रदर्शनी के मुख्य द्वार से टिकट खरीद कर भीतर प्रवेश किया। सबसे पहले हम जापान के पंडाल में गए । जापान ने अपने पंडाल में कृषि, दूर संचार, कम्प्यूटर आदि से जुड़ी वस्तुओं का प्रदर्शन किया था । हमने वहां इक्कीसवीं सदी में टेलीफोन एवं दूर संचार सेवा कैसी होगी इस का एक छोटा-सा नमूना देखा । जापान ने ऐसे टेलिफोन का निर्माण किया था जिसमें बातें करने वाले दोनों व्यक्ति एक-दूसरे की फोटो भी देख सकेंगे । वहीं हमने एक पॉकेट टेलीविज़न भी देखा जो माचिस की डिबिया जितना था। सारे पंडाल का चक्कर लगाकर हम बाहर आए ।

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उसके बाद हमने दक्षिण कोरिया,ऑस्ट्रेलिय और जर्मनी के पंडाल देखे । उस प्रदर्शनी को देख कर हमें लगा कि अभी भारत को उन देशों का मुकाबला करने के लिए काफ़ी मेहनत करनी होगी । हमने वहां भारत में बनने वाले टेलीफोन, कम्प्यूटर आदि का पंडाल भी देखा । वहां यह जानकारी प्राप्त करके मन बहुत खुश हुआ कि भारत दूसरे बहुत-से देशों को ऐसा सामान निर्यात करता है । भारतीय उपकरण किसी भी हालत विदेशों में बने सामान से कम नहीं थे । कोई घण्टा भर प्रदर्शनी में घूमने के बाद हमने प्रदर्शनी में ही बने रस्टोरेंट में चाय-पान किया और इक्कीसवीं सदी में दुनिया में होने वाली प्रगति का नक्शा आँखों में बसाए विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में होने वाली अत्याधुनिक जानकारी प्राप्त करके घर वापस आ गए ।

3. नदी किनारे एक शाम

गर्मियों की छुट्टियों के दिन थे । कॉलेज जाने की चिंता नहीं थी और न ही होमवर्क की । एक दिन चार मित्र एकत्र हुए और सभी ने यह तय किया कि आज की शाम नदी किनारे सैर करके बिताई जाए । कुछ तो गर्मी से राहत मिलेगी कुछ प्रकृति के सौन्दर्य के दर्शन करके जी खुश होगा। एक ने कही दूजे ने मानी के अनुसार हम सब लगभग छ: बजे के करीब एक स्थान पर एकत्र हुए और पैदल ही नदी की ओर चल पड़े । दिन अभी ढला नहीं था बस ढलने ही वाला था । ढलते सूर्य की लाललाल किरणें पश्चिम क्षितिज पर ऐसे लग रही थीं मानो प्रकृति रूपी युवती लाल-लाल वस्त्र पहने मचल रही हो । पक्षी अपने-अपने घौंसलों की ओर लौटने लगे थे । खेतों में हरियाली छायी हुई थी । ज्यों ही हम नदी किनारे पहुंचे सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी पर पड़ती हुई बहुत भली प्रतीत हो रही थीं । ऐसे लगता था मानों नदी के जल में हजारों लाल कमल एक साथ खिल उठे हों। नदी तट पर लगे वृक्षों की पंक्ति देख कर ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए’ कविता की पंक्ति याद हो आई । नदी तट के पास वाले जंगल से ग्वाले पशु चरा कर लौट रहे थे । पशुओं के पैरों से उठने वाली धूलि एक मनोरम दृश्य उपस्थित कर रही थी ।

हम सभी मित्र बातें कम कर रहे थे, प्रकृति के रूप रस का पान अधिक कर रहे थे । हमने देखा कुछ शहरी लोग नदी किनारे सूर्यास्त का दृश्य देखने के लिए आ रहे हैं । हमने उन लोगों से दूर रहना ही उचित समझा क्योंकि वे लोग बातें अधिक कर रहे थे, प्रकृति का रूप कम निहार रहे थे। थोड़ी ही देर में सूर्य अस्तांचल की ओर जाता हुआ प्रतीत हुआ । नदी का जो जल पहले लाल-लाल लगता था अब धीरे-धीरे नीला पड़ना शुरू हो गया था । उड़ते हुए बगुलों की सफेद-सफेद पंक्तियाँ उस धूमिल वातावरण में और भी अधिक सफेद लग रही थीं । नदी तट पर सैर करते-करते हम गांव से काफी दूर निकल आए थे। प्रकृति की सुन्दरता निहारते-निहारते ऐसे खोये थे कि समय का ध्यान ही न रहा । हम सब गांव की ओर लौट पड़े और हम सब ने एक-दूसरे को यह बताया कि हमने क्या देखा, क्या अनुभव किया । सभी एक मत थे कि नदी तट पर नृत्य करती हुई प्रकृति रूपी नदी की यह शोभा विचित्र थी, अनोखी थी जिसे कोई दिल वाला ही अनुभव कर सकता है। नदी किनारे सैर करते हुए बितायी वह शाम ज़िन्दगी भर नहीं भूलेगी।

4. छुट्टी का दिन

छुट्टी के दिन की हर किसी को प्रतीक्षा होती है । विशेषकर विद्यार्थियों को तो इस दिन की प्रतीक्षा बड़ी बेसबरी से होती है। उस दिन न तो जल्दी उठने की चिन्ता होती है; न कॉलेज जाने की। स्कूल में भी छुट्टी की घण्टी बजते ही विद्यार्थी कितनी प्रसन्नता से ‘छुट्टी ओए’ का नारा लगाते हुए कक्षाओं से बाहर आ जाते हैं । प्राध्यापक महोदय के भाषण का आधा वाक्य ही उनके मुँह में रह जाता है और विद्यार्थी कक्षा छोड़ कर बाहर की ओर भाग जाते हैं और जब यह पता चलता है कि आज दिन भर की छुट्टी है तो विद्यार्थी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता । छुट्टी के दिन का पूरा मज़ा तो लड़के ही उठाते हैं। वे उस दिन खूब जी भर कर खेलते हैं, घूमते हैं । कोई सारा दिन क्रिकेट के मैदान में बिताता है तो कोई पतंग बाज़ी में सारा दिन बिता देते हैं । सुबह के घर से निकले शाम को ही घर लौटते हैं । कोई कुछ कहे तो उत्तर मिलता है कि आज तो छुट्टी है।

परन्तु हम लड़कियों के लिए छुट्टी का दिन घरेलू काम-काज का दिन होता है । हाँ यह ज़रूर है कि उस दिन पढ़ाई से छुट्टी होती है । छुट्टी के दिन मुझे सुबह सवेरे उठ कर अपनी माता जी के साथ कपड़े धोने में सहायता करनी पड़ती है । मेरी माता जी एक स्कूल में पढ़ाती हैं अत: उनके पास कपड़े धोने के लिए केवल छुट्टी का दिन ही उपयुक्त होता है। कपड़े धोने के बाद मुझे अपने बाल धोने होते हैं बाल धोकर स्नान करके फिर रसोई में माता जी का हाथ बटाना पड़ता है । छुट्टी के दिन ही हमारे घर में विशेष व्यंजन पकते हैं ।

दूसरे दिनों में तो सुबह सवेरे सब को भागम भाग लगी होती है। किसी को स्कूल जाना होता है तो किसी को दफ्तर । दोपहर के भोजन के पश्चात् थोड़ा आराम करते हैं । फिर माता जी मुझे लेकर बैठ जाती हैं । कुछ सिलाई, बुनाई या कढ़ाई की शिक्षा देने । उनका मानना है कि लड़कियों को ये सब काम आने चाहिएं । शाम होते ही शाम की चाय का समय हो जाता है । छुट्टी के दिन शाम की चाय में कभी समोसे, कभी पकौड़े बनाये जाते हैं । चाय पीने के बाद फिर रात के खाने की चिन्ता होने लगती है और इस तरह छुट्टी का दिन एक लड़की के लिए छुट्टी का नहीं अधिक काम का दिन होता है । सोचती हूं काश मैं लड़का होती तो मैं भी छुट्टी के दिन का पूरा आनन्द उठाती ।

5. वर्षा ऋतु की पहली वर्षा

जून का महीना था । सूर्य अंगारे बरसा रहा था । धरती तप रही थी । पशु-पक्षी तक गर्मी के मारे परेशान थे । हमारे यहां तो कहावत प्रचलित है कि ‘जेठ हाड़ दियाँ धुपां पोह माघ दे पाले’ । जेठ अर्थात् ज्येष्ठ महीना हमारे प्रदेश में सबसे अधिक तपने वाला महीना होता है । इसका अनुमान तो हम जैसे लोग ही लगा सकते हैं । मजदूर और किसान ही इस तपती गर्मी को झेलते हैं । पंखों, कूलरों या एयर कंडीशनरों में बैठे लोगों को इस गर्मी की तपश का अनुमान नहीं हो सकता । ज्येष्ठ महीना बीता, आषाढ़ महीना शुरू हुआ इस महीने में ही वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होती है । सब की दृष्टि आकाश की ओर उठती है । किसान लोग तो ईश्वर से प्रार्थना के लिए अपने हाथ ऊपर उठा देते हैं । सहसा एक दिन आकाश में बादल छा गये । बादलों की गड़गड़ाहट सुन कर मोर अपनी मधुर आवाज़ में बोलने लगे । हवा में भी थोड़ी शीतलता आ गई । मैं अपने कुछ साथियों के साथ वर्षा ऋतु की पहली वर्षा का स्वागत करने की तैयारी करने लगा । धीरे-धीरे हल्की-हल्की बूंदा-बंदी शुरू हो गयी । हमारी मण्डली की खुशी का ठिकाना न रहा । मैं अपने साथियों के साथ गांव की गलियों में निकल पड़ा । साथ ही हम नारे लगाते जा रहे थे, ‘कालियाँ इट्टां काले रोड़ मीह बरसा दे जोरो जोर’। कुछ साथी गा रहे थे ‘बरसो राम धड़ाके से, बुढ़िया मर गई फाके से’ ।

किसान लोग भी खुश थे । उनका कहना था – ‘बरसे सावन तो पाँच के हों बावन’ नववधुएं भी कह उठी ‘बरसात वर के साथ’ और विरहिणी स्त्रियां भी कह उठीं कि ‘छुट्टी लेके आजा बालमा, मेरा लाखों का सावन जाए ।’ वर्षा तेज़ हो गयी थी । हमारी मित्र मंडली वर्षा में भीगती गलियों से निकल खेतों की ओर चल पड़ी । खुले में वर्षा में भीगने, नहाने का मजा ही कुछ और है । हमारी मित्र मंडली में गांव के और बहुत से लड़के शामिल हो गये थे । वर्षा भी उस दिन कड़ाके से बरसी । मैं उन क्षणों को कभी भूल नहीं सकता । सौन्दर्य का ऐसा साक्षात्कार मैंने कभी न किया था। जैसे वह सौंदर्य अस्पृश्य होते हुए भी मांसल हो । मैं उसे छू सकता था, देख सकता था और पी सकता था । मुझे अनुभव हुआ कि कवि लोग क्योंकर ऐसे दृश्यों से प्रेरणा पाकर अमर काव्य का सृजन करते हैं । वर्षा में भीगना, नहाना, नाचना, खेलना उन लोगों के भाग्य में कहां जो बड़ी-बड़ी कोठियों में एयरकंडीशनर कमरों में रहते हैं।

6. रेलवे प्लेटफार्म का दृश्य

एक दिन संयोग से मुझे अपने बड़े भाई को लेने रेलवे स्टेशन पर जाना पड़ा । मैं प्लेटफार्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के अन्दर गया। पूछताछ खिड़की से पता लगा कि दिल्ली से आने वाली गाड़ी प्लेटफार्म नं० 4 पर आएगी । मैं रेलवे पुल पार करके प्लेटफार्म नं० 4 पर पहुंच गया। वहां यात्रियों की काफ़ी बड़ी संख्या मौजूद थी । कुछ लोग मेरी तरह अपने प्रियजनों को लेने के लिए आये थे तो कुछ लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराने के लिए आये हुए थे । जाने वाले यात्री अपने-अपने सामान के पास खड़े थे । कुछ यात्रियों के पास कुली भी खड़े थे । मैं भी उन लोगों की तरह गाड़ी की प्रतीक्षा करने लगा । इसी दौरान मैंने अपनी नज़र रेलवे प्लेटफार्म पर दौड़ाई ।

मैंने देखा कि अनेक युवक और युवितयाँ अनुच्छेद लेखन अत्याधुनिक पोशाक पहने इधर-उधर घूम रहे थे । कुछ युवक तो लगता था यहाँ केवल मनोरंजन के लिए ही आए थे । वे आने-जाने वाली लड़कियों, औरतों को अजीब-अजीब नज़रों से घूर रहे थे । ऐसे युवक दो-दो, चार-चार के ग्रुप में थे । कुछ यात्री टी-स्टाल पर खड़े चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, परन्तु उनकी नज़रे बार-बार उस तरफ उठ जाती थीं, जिधर से गाड़ी आने वाली थी। कुछ यात्री बड़े आराम से अपने सामान के पास खड़े थे, लगता था कि उन्हें गाड़ी आने पर जगह प्राप्त करने की कोई चिन्ता नहीं । उन्होंने पहले से ही अपनी सीट आरक्षित करवा ली थी ।

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कुछ फेरी वाले भी अपना माल बेचते हुए प्लेटफार्म पर घूम रहे थे । सभी लोगों की नज़रें उस तरफ थीं जिधर से गाड़ी ने आना था । तभी लगा जैसे गाड़ी आने वाली हो । प्लेटफार्म पर भगदड़-सी मच गई । सभी यात्री अपना-अपना सामान उठा कर तैयार हो गये । कुलियों ने सामान अपने सिरों पर रख लिया । सारा वातावरण उत्तेजना से भर गया । देखते ही देखते गाड़ी प्लेटफार्म पर आ पहुंची । कुछ युवकों ने तो गाड़ी के रुकने की भी प्रतीक्षा न की । वे गाड़ी के साथ दौड़ते-दौड़ते गाड़ी में सवार हो गये । गाड़ी रुकी तो गाड़ी में सवार होने के लिए धक्कम-पेल शुरू हो गयी । हर कोई पहले गाड़ी में सवार हो जाना चाहता था। उन्हें दूसरों की नहीं केवल अपनी चिन्ता थी। मेरे भाई मेरे सामने वाले डिब्बे में थे । उनके गाड़ी से नीचे उतरते ही मैंने उनके चरण स्पर्श किये और उनका सामान उठाकर स्टेशन से बाहर की ओर चल पड़ा । चलते-चलते मैंने देखा जो लोग अपने प्रियजनों को गाड़ी में सवार कराकर लौट रहे थे उनके चेहरे उदास थे और मेरी तरह जिनके प्रियजन गाड़ी से उतरे थे उनके चेहरों पर रौनक थी, खुशी थी।

7. बस अड्डे का दृश्य

आजकल पंजाब में लोग अधिकतर बसों से ही यात्रा करते हैं । पंजाब का प्रत्येक गांव मुख्य सड़क से जुड़ा होने के कारण बसों का आना-जाना अब लगभग हर गांव में होने लगा है । बस अड्डों का जब से प्रबन्ध पंजाब रोडवेज़ के अधिकार क्षेत्र में आया है बस अड्डों का हाल दिनों-दिन बरा हो रहा है । हमारे शहर का बस अड्डा भी उन बस अड्डों में से एक है जिसका प्रबन्ध हर दृष्टि से बेकार है । इस बस अड्डे के निर्माण से पूर्व बसें अलग-अलग स्थानों से अलगअलग अड्डों से चला करती थीं । सरकार ने यात्रियों की असुविधा को ध्यान में रखते हुए सभी बस अड्डे एक स्थान पर कर दिये । शुरू-शुरू में तो लोगों को लगा कि सरकार का यह कदम बड़ा सराहनीय है किन्तु ज्यों-ज्यों समय बीतता गया जनता की कठिनाइयां, परेशानियां बढ़ने लगीं। हमारे शहर के बस अड्डे पर भी अन्य शहरों की तरह अनेक दुकानें बनाई गई हैं । जिनमें खान-पान, फल-सब्जियों आदि की दुकानों के अतिरिक्त पुस्तकों की, मनियारी आदि की भी अनेक दुकानें हैं । हलवाई की दुकान से उठने वाला धुआँ सारे यात्रियों की परेशानी का कारण बनता है । चाय पान आदि की दुकानों की साफ सफाई की तरफ कोई ध्यान नहीं देता । वहाँ माल भी महँगा मिलता है और गंदा भी।

बस अड्डे में अनेक फलों की रेहड़ी वालों को भी माल बेचने की आज्ञा दी गई है । ये लोग काले लिफाफे रखते हैं जिनमें वे सड़े गले फल पहले से ही तोल कर रखते हैं और लिफाफा इस चतुराई से बदलते हैं कि यात्री को पता नहीं चलता । घर पहुंच कर ही पता चलता है कि उन्होंने जो फल चुने थे वे सब बदल दिये गये हैं । अड्डा इन्चार्ज इस सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं करते। बस अड्डे की शौचालय की साफ-सफ़ाई न होने के बराबर है । यात्रियों को टिकट देने के लिए लाइन नहीं लगवाई जाती । बस आने पर लोग भाग दौड़ कर बस में सवार होते हैं । औरतों, बच्चों और वृद्ध लोगों का बस में चढ़ना ही कठिन होता है । बहुत बार देखा गया है कि जितने लोग बस के अन्दर होते हैं उतने ही बस के ऊपर चढ़े होते हैं । पंजाब में एक कहावत प्रसिद्ध है कि रोडवेज़ की लारी न कोई शीशा न कोई बारी । पर बस अड्डों का हाल तो उनसे भी बुरा है । जगह-जगह खड्डे, कीचड़, मक्खियां, मच्छर और न जाने क्या-क्या । आज यह बस अड्डे जेब कतरों और नौसर बाजों के अड्डे बने हुए हैं । हर यात्री को अपने-अपने घर पहुंचने की जल्दी होती है इसलिए कोई भी बस अड्डे की इस दुर्दशा की ओर ध्यान नहीं देता ।

8. मतदान केन्द्र का दृश्य

प्रजातन्त्र में चुनाव अपना विशेष महत्त्व रखते हैं । गत 13 फरवरी को हमारे कस्बे में नवांशहर विधानसभा क्षेत्र के लिए भी चुनाव हुआ । चुनाव से कोई महीना भर पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बड़े जोर-शोर से चुनाव प्रचार किया गया । धन और शराब का खुलकर वितरण किया गया । पंजाब में एक कहावत प्रसिद्ध है कि चुनाव के दिनों में यहाँ नोटों की वर्षा की जाती है और शराब की नदियां बहती हैं । चुनाव आयोग ने लाख सिर पटका पर ढाक के तीन पात ही रहे । आज मतदान का दिन है । मतदान से एक दिन पूर्व ही मतदान केन्द्रों की स्थापना की गई है । मतदान वाले दिन जनता में भारी उत्साह देखा गया ।

इस बार पंजाब में पहली बार इलेक्ट्रॉनिक मशीनों का प्रयोग किया जा रहा था । अब मतदाताओं को मतदान केन्द्र पर मत-पत्र नहीं दिये जाने थे और न ही उन्हें अपने मत मतपेटियों में डालने थे । अब तो मतदाताओं को अपनी पसन्द के उम्मीदवार के नाम और चुनाव चिह्न के आगे लगे बटन को दबाना भर था । इस नए प्रयोग के कारण भी मतदाताओं में काफी उत्साह देखने में आया। मतदान प्रात: आठ बजे शुरू होना था किन्तु मतदान केन्द्रों के बाहर विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने-अपने पंडाल समय से काफ़ी पहले सजा लिये । उन पंडालों में उन्होंने अपनी-अपनी पार्टी के झण्डे एवं उम्मीदवार के चित्र भी लगा रखे थे । दो तीन मेजें भी पंडाल में लगाई गई थीं जिन पर उम्मीदवार के कार्यकर्ता मतदान सूचियाँ लेकर बैठे थे और मतदाताओं को मतदाता सूची में से उनकी क्रम संख्या तथा मतदान केन्द्र की संख्या तथा मतदान केन्द्र का नाम लिखकर एक पर्ची दे रहे थे ।

आठ बजने से पूर्व ही मतदान केन्द्रों पर मतदाताओं की लम्बी-लम्बी कतारें लगनी शुरू हो गई थीं । मतदाता विशेषकर स्त्री मतदाता खूब सज-धज कर आए थे । ऐसा लगता था कि वे किसी मेले में आए हों । दोपहर होते-होते मतदाताओं की भीड़ में कमी आने लगी । राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ता मतदाताओं को घेर-घेर कर ला रहे थे । हालांकि चुनाव आयोग ने मतदाताओं को किसी प्रकार के वाहन में लाने की मनाही की है किन्तु सभी उम्मीदवार अपने-अपने मतदाताओं को रिक्शा, जीप या कार में बिठा कर ला रहे थे । सायं पांच बजते-बजते यह मेला उजड़ने लगा। भीड़ मतदान केन्द्र से हट कर उम्मीदवारों के पंडालों में जमा हो गयी थी और सभी अपने-अपने उम्मीदवार की जीत के अनुमान लगाने में मस्त थे ।

9. रेल यात्रा का अनुभव

हमारे देश में रेलवे ही एक ऐसा विभाग है जो यात्रियों को टिकट देकर सीट की गारण्टी नहीं देता । रेल का टिकट खरीद कर सीट मिलने की बात तो बाद में आती है पहले तो गाड़ी में घुस पाने की भी समस्या सामने आती है । और यदि कहीं आप बाल-बच्चों अथवा सामान के साथ यात्रा कर रहे हों तो यह समस्या और भी विकट हो उठती है । कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि टिकट पास होते हुए भी आप गाड़ी में सवार नहीं हो पाते और ‘दिल की तमन्ना दिल में रह गयी’ गाते हुए या रोते हुए घर लौट आते हैं । रेलगाड़ी में सवार होने से पूर्व गाड़ी की प्रतीक्षा करने का समय बड़ा कष्टदायक होता है । मैं भी एक बार रेलगाड़ी में मुम्बई जाने के लिए स्टेशन पर गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था । गाड़ी कोई दो घंटे लेट थी । यात्रियों की बेचैनी देखते ही बनती थी । गाड़ी आई तो गाड़ी में सवार होने के लिए जोर आज़माई शुरू हो गयी । किस्मत अच्छी थी कि मैं गाड़ी में सवार होने में सफल हो सका । गाड़ी चले अभी घंटा भर ही हुआ था कि कुछ यात्रियों के मुख से मैंने सुना कि यह डिब्बा जिसमें मैं बैठा था अमुक स्थान पर कट जाएगा ।

यह सुनकर मैं तो दुविधा में पड़ गया । गाड़ी रात के एक बजे उस स्टेशन पर पहुंची जहाँ हमारा वह डिब्बा मुख्य गाड़ी से कटना था और हमें दूसरे डिब्बे में सवार होना था । उस समय अचानक तेज़ वर्षा होने लगी । स्टेशन पर कोई भी कुली नज़र नहीं आ रहा था। सभी यात्री अपना-अपना सामान उठाये वर्षा में भीगते हुए दूसरे डिब्बे की ओर भागने लगे । मैं भी ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का स्मरण करते हुए अपना सामान स्वयं ही उठाने का निर्णय करते हुए अपना सामान गाड़ी से उतारने लगा । मैं अपना अटैची लेकर उतरने लगा कि एक दम से वह डिब्बा चलने लगा । मैं गिरते-गिरते बचा और अटैची मेरे हाथ से छूट कर प्लेटफार्म पर गिर पड़ा और पता नहीं कैसे झटके के साथ खुल गया । मेरे कपड़े वर्षा में भीग गये। मैंने जल्दी-जल्दी अपना सामान समेटा और दूसरे डिब्बे की ओर बढ़ गया । गर्मी का मौसम और उस डिब्बे के पंखे बन्द । खैर गाड़ी चली तो थोड़ी हवा लगी और कुछ राहत मिली । बड़ी मुश्किल से मैं मुम्बई पहुँचा ।।

10. बस यात्रा का अनुभव

पंजाब में बस-यात्रा करना कोई आसान काम नहीं है । एक तो पंजाब की बसों के विषय में पहले ही कहावत प्रसिद्ध है कि रोडवेज़ दी लारी न कोई शीशा न कोई बारी’ दूसरे 52 सीटों वाली बस में ऊपर-नीचे कोई सौ सवा सौ आदमी सवार होते हैं । ऐसे अवसरों पर कंडक्टर महाश्य की तो चांदी होती है । वे न किसी को टिकट देते हैं और न किसी को बाकी पैसे । मुझे भी एक बार ऐसी ही बस यात्रा करने का अनुभव हुआ । मैं बस अड्डे पर उस समय पहुँचा जब बस चलने वाली ही थी अतः मैं टिकट खिड़की की ओर न जाकर सीधा बस की ओर बढ़ गया। बस ठसा ठस भरी हुई थी । मुझे जाने की जल्दी थी इसलिए मैं भी उस बस में घुस गया । बड़ी मुश्किल से खड़े होने की जगह मिली । मेरे बस में सवार होने के बाद भी बहुत से यात्री बस में चढ़ना चाहते थे । कंडक्टर ने उन्हें बस की छत्त के ऊपर चढ़ने के लिए कहा । पुरुष यात्री तो सभी अनुच्छेद लेखन छत पर चढ़ गये परन्तु स्त्रियां और बच्चे न चढ़े। बस चली तो लोगों ने सुख की सांस ली। थोड़ी देर में बस कंडक्टर टिकटें काटता हुआ मेरे पास आया । मुझे लगा उसने शराब पी रखी है । मुझ से पैसे लेकर उसने बकाया मेरी टिकट के पीछे लिख दिया और आगे बढ़ गया ।

मैंने अपने पास खड़े एक सज्जन से कंडक्टर के शराब पीने की बात कही तो उन्होंने कहा कि शाम के समय ये लोग ऐसे ही चलते हैं । हराम की कमाई है शराब में नहीं उड़ाएंगे तो और कहाँ उड़ाएंगे । थोड़ी ही देर में एक बूढ़ी स्त्री का उस कंडक्टर से झगड़ा हो गया । कंडक्टर उसे फटे हुए नोट बकाया के रूप में वापस कर रहा था और बुढ़िया उन नोटों को लेने से इन्कार कर रही थी । कंडक्टर कह रहा था ये सरकारी नोट हैं हमने कोई अपने घर तो बनाये नहीं । इसी बीच उसने उस बुढ़िया को कुछ अपशब्द कहे । बुढ़िया ने उठ कर उसको गले से पकड़ लिया । सारे यात्री कंडक्टर के विरुद्ध हो गये। कंडक्टर बजाए क्षमा मांगने के और भी गर्म हो रहा था । अभी उन में यह झगड़ा चल ही रहा था कि मेरे गांव का स्टाप आ गया । बस रुकी और मैं जल्दी से उतर गया । बस क्षण भर रुकने के बाद आगे बढ़ गयी। मेरी सांस में सांस आई । जैसे मुझे किसी ने शिकंजे में दबा रखा हो। इसी घबराहट में मैं कंडक्टर से अपने बकाया पैसे लेना भी भूल गया।

11. परीक्षा भवन का दृश्य

अप्रैल महीने की पहली तारीख थी । उस दिन हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हो रही थीं । परीक्षा शब्द से वैसे सभी मनुष्य घबराते हैं परन्तु विद्यार्थी वर्ग इस शब्द से विशेष रूप से घबराता है । मैं जब घर से चला तो मेरा दिल भी धक-धक कर रहा था । रात भर पढ़ता रहा। चिन्ता थी कि यदि सारी रात के पढ़े में से कुछ भी प्रश्न पत्र में न आया तो क्या होगा । परीक्षा भवन के बाहर सभी विद्यार्थी चिन्तित से नज़र आ रहे थे । कुछ विद्यार्थी किताबें लेकर अब भी उनके पन्ने उलट पुलट रहे थे। कुछ बड़े खुश-खुश नज़र आ रहे थे। लड़कों से ज्यादा लड़कियां अधिक गम्भीर नज़र आ रही थीं । कुछ लड़कियाँ तो इसी आत्मविश्वास के कारण ही शायद हर परीक्षा में लड़कों से बाजी मार जाती हैं। मैं अपने सहपाठियों से उस दिन के प्रश्न पत्र के बारे में बात कर ही रहा था कि परीक्षा भवन में घंटी बजनी शुरू हो गई । यह संकेत था कि हमें परीक्षा भवन में प्रवेश कर जाना चाहिए। सभी विद्यार्थियों ने परीक्षा भवन में प्रवेश करना शुरू कर दिया । भीतर पहुँच कर हम सब अपने अपने रोल नं० के अनुसार अपनी-अपनी सीट पर जाकर बैठ गये ।

थोड़ी ही देर में अध्यापकों द्वारा उत्तर पुस्तिकाएं बांट दी गईं और हम ने उस पर अपना-अपना रोल नं० आदि लिखना शुरू कर दिया । ठीक नौ बजते ही एक घंटी बजी और अध्यापकों ने प्रश्न पत्र बाँट दिये । कुछ विद्यार्थी प्रश्न पत्र प्राप्त करके उसे माथा टेकते देखे गये। मैंने भी ऐसा ही किया। माथा टेकने के बाद मैंने प्रश्न पत्र पढ़ना शुरू किया । मेरी खुशी का कोई ठिकाना न था क्योंकि प्रश्न पत्र के सभी प्रश्न मेरे पढ़े हुए या तैयार किये हुए प्रश्नों में से थे । मैंने किये जाने वाले प्रश्नों पर निशान लगाये और कुछ क्षण तक यह सोचा कि कौन-सा प्रश्न पहले करना चाहिए और फिर उत्तर लिखना शुरू कर दिया । मैंने देखा कुछ विद्यार्थी अभी बैठे सोच ही रहे थे शायद उनके पढ़े में से कोई प्रश्न न आया हो । तीन घण्टे तक मैं बिना इधर-उधर देखे लिखता रहा । परीक्षा भवन से बाहर आकर ही मुझे पता चला कि कुछ विद्यार्थियों ने बड़ी नकल की परन्तु मुझे इसका कुछ पता नहीं चला । मेज़ से सिर उठाता तो पता चलता । मैं प्रसन्न था कि उस दिन मेरा पर्चा बहुत अच्छा हुआ था।

12. मेरे जीवन की अविस्मरणीय घटना

आज मैं बी० ए० प्रथम वर्ष में हो गया हूँ । माता-पिता कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गये हो । मैं भी कभी-कभी सोचता हूँ कि क्या मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ । हां, मैं सचमुच बड़ा हो गया हूँ । मुझे बीते दिनों की कुछ बातें आज भी याद हैं जो मेरा मार्गदर्शन कर रही हैं । एक घटना ऐसी है जिसे मैं आज भी याद करके आनन्द विभोर हो उठता हूँ । घटना कुछ इस तरह से है । कोई दो तीन साल पहले की घटना है । मैंने एक दिन देखा कि हमारे आंगन में लगे वृक्ष के नीचे एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में पड़ा है । मैं उस बच्चे को उठा कर अपने कमरे में ले आया। मेरी माँ ने मुझे रोका भी कि इसे इस तरह न उठाओ यह मर जाएगा किन्तु मेरा मन कहता था कि इस चिड़िया के बच्चे को बचाया जा सकता है । मैंने उसे चम्मच से पानी पिलाया । पानी मुँह में जाते ही उस बच्चे ने जो बेहोश-सा लगता था पंख फड़फड़ाने शुरू कर दिये । यह देख कर मैं प्रसन्न हुआ । मैंने उसे गोद में लेकर देखा कि उस की टांग में चोट आई है । मैंने अपने छोटे भाई से माँ से मरहम की डिबिया लाने को कहा । वह तुरन्त मरहम की डिबिया ले आया। उस में से थोड़ी सी मरहम मैंने उस चिड़िया के बच्चे की चोट पर लगाई ।

मरहम लगते ही मानो उसकी पीड़ा कुछ कम हुई । वह चुपचाप मेरी गोद में ही लेटा था । मेरा छोटा भाई भी उस के पंखों पर हाथ फेर कर खुश हो रहा था । कोई घण्टा भर मैं उसे गोद में ही लेकर बैठा रहा । मैंने देखा कि बच्चा थोड़ा उड़ने की कोशिश करने लगा था । मैंने छोटे भाई से एक रोटी मंगवाई और उसकी चूरी बनाकर उसके सामने रखी । वह उसे खाने लगा । हम दोनों भाई उसे खाते हुए देख कर खुश हो रहे थे । मैंने उसे अब अपनी पढ़ाई की मेज़ पर रख दिया । रात को एक बार फिर उस के घाव पर मरहम लगाई । दूसरे दिन मैंने देखा चिड़िया का वह बच्चा मेरे कमरे में इधर-उधर फुदकने लगा है । वह मुझे देख चींची करके मेरे प्रति अपना आभार प्रकट कर रहा था । एक दो दिनों में ही उस का घाव ठीक हो गया और मैंने उसे आकाश में छोड़ दिया । वह उड़ गया । मुझे उस चिड़िया के बच्चे के प्राणों की रक्षा करके जो आनन्द प्राप्त हुआ उसे मैं जीवन भर नहीं भुला पाऊँगा ।

13. आँखों देखी दुर्घटना का दृश्य

पिछले रविवार की बात है मैं अपने मित्र के साथ सुबह-सुबह सैर करने माल रोड पर गया। वहाँ बहुत से स्त्री-पुरुष और बच्चे भी सैर करने आये हुए थे। जब से दूरदर्शन पर स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रम आने लगे हैं अधिक-से-अधिक लोग प्रातः भ्रमण के लिए इन जगहों पर आने लगे हैं। रविवार होने के कारण उस दिन भीड़ कुछ अधिक थी । तभी मैंने वहाँ एक युवा दम्पति को अपने छोटे बच्चे को बच्चा गाड़ी में बिठा कर सैर करते देखा । अचानक लड़कियों के स्कूल की ओर एक तांगा आता हुआ दिखाई पड़ा। उस में चार पाँच सवारियाँ भी बैठी थीं । बच्चा गाड़ी वाले दम्पत्ति ने तांगे से बचने के लिए सड़क पार करनी चाही। जब वे सड़क पार कर रहे थे तो दूसरी तरफ से बड़ी तेज़ गति से आ रही एक कार उस तांगे से टकरा गई। तांगा चलाने वाला और दो सवारियां बुरी तरह से घायल हो गये थे। बच्चा गाड़ी वाली स्त्री के हाथ से बच्चा गाड़ी छूट गयी किन्तु इस से पूर्व कि वह बच्चे समेत तांगे और कार की टक्कर वाली जगह पर पहुँच कर उन से टकरा जाती मेरे साथी ने भागकर उस बच्चा गाड़ी को सम्भाल लिया। कार चलाने वाले सज्जन को भी काफ़ी चोटें आई थीं पर उस की कार को कोई खास क्षति नहीं पहुंची थी।

माल रोड पर गश्त करने वाली पुलिस के तीन चार सिपाही तुरन्त घटना स्थल पर पहुँच गये । उन्होंने वायरलैस द्वारा अपने अधिकारियों और हस्पताल को फोन किया। कुछ ही मिनटों में वहाँ एम्बुलैंस गाड़ी आ गई । हम सब ने घायलों को उठा कर एम्बुलैंस में लिटाया। पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी भी तुरन्त वहाँ पहुँच गये। उन्होंने कार चालक को पकड़ लिया था। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि सारा दोष कार चालक का था। इस सैर सपाटे वाली सड़क पर वह 100 कि० मी० की स्पीड से कार चला रहा था और तांगा सामने आने पर ब्रेक न लगा सका। दूसरी तरफ बच्चे को बचाने के लिए मेरे मित्र द्वारा दिखाई फुर्ती और चुस्ती की भी लोग सराहना कर रहे थे। उस दम्पति ने उस का विशेष धन्यवाद किया । बाद में हमें पता चला कि तांगा चालक ने हस्पताल में जाकर दम तोड़ दिया । जिसने भी इस घटना के बारे में सुना वह दु:खी हुए बिना न रह सका ।

14. कैसे मनायी हम ने पिकनिक

पिकनिक एक ऐसा शब्द है जो थके हुए शरीर एवं मन में एक दम स्फूर्ति ला देता है । मैंने और मेरे मित्र ने परीक्षा के दिनों में बड़ी मेहनत की थी । परीक्षा का तनाव हमारे मन और मस्तिष्क पर विद्यमान था अतः उस तनाव को दूर करने के लिए हम दोनों ने यह निर्णय किया कि क्यों न किसी दिन माधोपुर हैडवर्क्स पर जाकर पिकनिक मनायी जाए । अपने इस निर्णय से अपने मुहल्ले के दो-चार और मित्रों को अवगत करवाया तो वे भी हमारे साथ चलने को तैयार हो गये। माधोपुर हैडवर्क्स हमारे शहर से लगभग 10 कि० मि० दूरी पर था अतः हम सब ने अपने-अपने साइकलों पर जाने का निश्चय किया । पिकनिक के लिए रविवार का दिन निश्चित किया गया क्योंकि उस दिन वहाँ बड़ी रौनक रहती है ।

रविवार वाले दिन हम सब ने नाश्ता करने के बाद अपने-अपने लंच बाक्स तैयार किये तथा कुछ अन्य खाने का सामान अपने-अपने साइकलों पर रख लिया । मेरे मित्र के पास एक छोटा टेपरिकार्डर भी था उसे भी उसने साथ ले लिया तथा साथ में कुछ अपने मन पसन्द गानों की टेपस् भी रख ली । हम सब अपनी-अपनी साइकल पर सवार हो, हँसते गाते एक-दूसरे को चुटकले सुनाते पिकनिक स्थल की ओर बढ़ चले । लगभग 45 मिनट में हम सब माधोपुर हैडवर्क्स पर पहुँच गये। वहां हम ने प्रकृति को अपनी सम्पूर्ण सुषमा के साथ विराजमान देखा । चारों तरफ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे, शीतल, और मन्द-मन्द हवा बह रही थी । हम ने एक ऐसी जगह चुनी जहाँ घास की प्राकृतिक कालीन बिछी हुई थी । हमने वहाँ एक दरी, जो हम साथ

अनुच्छेद लेखन लाये थे, बिछा दी । साइकिल चलाकर हम थोड़ा थक गये थे अत: हमने पहले थोड़ी देर विश्राम किया । हमारे एक साथी ने हमारी कुछ फोटो उतारी । थोड़ी देर सुस्ता कर हमने टेप रिकार्डर चला दिया और गीतों की धुन पर मस्ती में भर कर नाचने लगे । कुछ देर तक हम ने इधर-उधर घूम कर वहाँ के प्राकृतिक दृश्यों का नज़ारा किया । दोपहर को हम सब ने अपनेअपने टिफन खोले और सबने मिल बैठ कर एक दूसरे का भोजन बांट कर खाया । उस के बाद हम ने वहां स्थित कैनाल रेस्ट हाऊस रेस्टोरों में जाकर चाय पी । चाय पान के बाद हम ने अपने स्थान पर बैठ कर ताश खेलनी शुरू की । साथ में हम संगीत भी सुन रहे थे । ताश खेलना बन्द करके हमने एक दूसरे को कुछ चुटकले और कुछ आप बीती हंसी मज़ाक की बातें बताईं । हमें समय कितनी जल्दी बीत गया इसका पता ही न चला । जब सूर्य छिपने को आया तो हम ने अपना-अपना सामान समेटा और घर की तरफ चल पड़े । सच ही वह दिन हम सबके लिए एक रोमांचकारी दिन रहा।

15. पर्वतीय स्थान की यात्रा

आश्विन महीने के नवरात्रों में पंजाब के अधिकतर लोग देवी दुर्गा माता के दरबार में हाजिरी लगवाने और माथा टेकने जाते हैं। पहले हम हिमाचल प्रदेश में स्थित माता चिन्तापूर्णी और माता ज्वाला जी के मंदिरों में माथा टेकने आया करते थे। इस बार हमारे मुहल्ले वासियों ने मिल कर जम्मू क्षेत्र में स्थित माता वैष्णों देवी के दर्शनों को जाने का निर्णय किया । हमने एक बस का प्रबन्ध किया था, जिसमें लगभग पचास के करीब बच्चे-बूढ़े और स्त्री-पुरुष सवार होकर जम्मू के लिए रवाना हुए । सभी परिवारों ने अपने साथ भोजन आदि सामग्री भी ले ली थी । पहले हमारी बस पठानकोट पहुँची, वहां कुछ रुकने के बाद हम ने जम्मू क्षेत्र में प्रवेश किया । हमारी बस टेढ़े-मेढ़े पहाड़ी रास्ते को पार करती हुई जम्मू तवी पहुँच गयी । सारे रास्ते में दोनों तरफ अद्भुत प्राकृतिक दृश्य देखने को मिले जिन्हें देख कर हमारा मन प्रसन्न हो उठा । बस में सवार सभी यात्री माता की भेंटें गा रहे थे और बीच में माँ शेरा वाली का जयकारा भी बुला रहे थे । लगभग 6 बजे हम लोग कटरा पहुँच गये । वहाँ एक धर्मशाला में हम ने अपना सामान रखा और विश्राम किया और वैष्णो देवी जाने के लिए टिकटें प्राप्त की। दूसरे दिन सुबह सवेरे हम सभी माता की जय पुकारते हुए माता के दरबार की ओर चल पड़े। कटरा से भक्तों को पैदल ही चलना पड़ता है । कटरे से माता के दरबार तक जाने के दो मार्ग हैं । एक सीढ़ियों वाला मार्ग तथा दूसरा साधारण ।

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हमने साधारण मार्ग को चुना । इस मार्ग पर कुछ लोग खच्चरों पर सवार होकर भी यात्रा कर रहे थे । यहाँ से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर माता का मन्दिर है । मार्ग में हमने बाण गंगा में स्नान किया । पानी बर्फ-सा ठंडा था फिर भी सभी यात्री बड़ी श्रद्धा से स्नान कर रहे थे। कहते हैं यहाँ माता वैष्णो देवी ने हनुमान जी की प्यास बुझाने के लिए बाण चलाकर गंगा उत्पन्न की थी । यात्रियों को बाण गंगा में नहाना ज़रूरी माना जाता है अन्यथा कहते हैं कि माता के दरबार की यात्रा सफल नहीं होती । चढ़ाई बिल्कुल सीधी थी । चढ़ाई चढ़ते हुए हमारी सांस फूल रही थी परन्तु सभी यात्री माता की भेंटें गाते हुए और माता की जय जयकार करते हुए बड़े उत्साह से आगे बढ़ रहे थे । सारे रास्ते में बिजली के बल्ब लगे हुए थे और जगह-जगह पर चाय की दुकानें और पीने के पानी का प्रबंध किया गया था । कुछ ही देर में हम आदक्वारी नामक स्थान पर पहुँच गये । मन्दिर के निकट पहुँच कर हम दर्शन करने वाले भक्तों की लाइन में खड़े हो गये । अपनी बारी आने पर हम ने माँ के दर्शन किये । श्रद्धा पूर्वक माथा टेका और मन्दिर से बाहर आ गए । आजकल मन्दिर का सारा प्रबन्ध जम्मू-कश्मीर की सरकार एवं एक ट्रस्ट की देख-रेख में होता है । सभी प्रबन्ध बहुत अच्छे एवं सराहना के योग्य थे । घर लौटने तक हम सभी माता के दर्शनों के प्रभाव को अनुभव करते रहे ।

16. ऐतिहासिक स्थान की यात्रा

यह बात पिछली गर्मियों की है । मुझे मेरे एक पत्र मित्रं का पत्र प्राप्त हुआ जिसमें मुझे कुछ दिन उसके साथ आगरा में बिताने का निमंत्रण दिया गया था । यह निमन्त्रण पाकर मैं बहुत प्रसन्न हुआ । किसी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान को देखने का मुझे अवसर मिल रहा था । मैंने अपने पिता से बात की तो उन्होंने खुशी-खुशी मुझे आगरा जाने की अनुमति दे दी। मैं रेल द्वारा आगरा पहुँचा। मेरा मित्र मुझे स्टेशन पर लेने आया हुआ था । वह मुझे अपने घर लिवा ले गया । यह मात्र संयोग की बात थी या फिर मेरा सौभाग्य कि उस दिन पूर्णिमा थी और कहते हैं पूर्णिमा की चाँदनी में ताजमहल को देखने का आनन्द ही कुछ और होता है । रात के लगभग नौ बजे हम घर से निकले ।

दूर से ही ताजमहल के मीनारों और गुम्बदों का दृश्य दिखाई दे रहा था । हमने प्रवेश द्वार से टिकट खरीदे और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगे। भारत सरकार ने ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए कई उपाय किये हैं जिन में यात्रियों की संख्या को नियन्त्रित करना भी एक है। ताजमहल के चारों ओर लाल पत्थर की दीवारें हैं जिसमें एक बहुत बड़ा और सुन्दर उद्यान है जिस की सजावट और हरियाली देख कर मन मोहित हो उठता है । हमने ताजमहल परिसर में जब प्रवेश किया तो देखा कि अन्दर देशी कम विदेशी पर्यटक अधिक थे । ताजमहल तक जाने के लिए सब से पहले एक बहुत ऊँचे और सुन्दर द्वार से होकर जाना पड़ता है ।

ताजमहल उद्यान के एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है जो सफेद संगमरमर का बना है । इसका गुम्बद बहुत ऊँचा है उस के चारों ओर बड़ीबड़ी मीनारें हैं । ताजमहल के पश्चिम की ओर यमुना नदी बहती है । यमुना जल में ताज की परछाई बहुत सुंदर व मोहक लग रही थी । हम ने ताजमहल के भीतर प्रवेश किया। सबसे नीचे के भवन में मुग़ल सम्राट शाहजहां और उस की पत्नी और प्रेमिका मुमताज महल की कब्रे हैं । उन पर अरबी भाषा में कुछ लिखा हुआ है और बहुत से रंग बिरंगे बेलबूटे बने हुए हैं। इस कमरे के ठीक ऊपर एक ऐसा ही भाग है । सौन्दर्य की दृष्टि से भी उसका विशेष महत्त्व है। कहते हैं इस में बनी संगमरमर की जाली की जगह पहले सोने की बनी जाली थी जिसे औरंगजेब ने हटवा दिया था । कहते हैं कि ताजमहल के निर्माण में बीस वर्ष लगे थे और उस युग में तीस लाख रुपए खर्च हुए थे । इसे बनाने में तीस हज़ार मजदूरों ने योगदान किया था । यह स्मारक बादशाह ने अपनी पत्नी की याद में बनवाया था ।

आज इसे संसार का आठवां अजूबा भी कहा जाता है । दुनिया भर से हर वर्ष लाखों लोग इसे देखने के लिए आते हैं । आज ताजमहल भी प्रदूषण का शिकार हो रहा है इसे बचाने के हर सम्भव उपाय किये जाने चाहिए । इसे देखकर हमारे मन में यह भाव जाग्रत होते हैं कि सच्चा प्रेम सदा अमर रहता है । जी न करते हुए भी हमें वहाँ से लौटकर वापस घर आना पड़ा।

17. तेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर

बड़े बुजुर्गों ने ठीक ही कहा है कि लेते पाँव पसारिये जेती लाम्बी सौर। अर्थात् व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही कार्य करना चाहिए अथवा खर्च करना चाहिए। अपनी सामर्थ्य से बाहर खर्च करने पर व्यक्ति को कष्ट तो उठाना ही पड़ता है बाद में दुःख भी झेलना पड़ता है। आज महंगाई बढ़ने का एक कारण यह भी है कि मध्यम वर्ग ने अपनी चादर से बाहर पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। अमीर बनने या अमीरी का दिखावा करने के कारण वह सामर्थ्य से बाहर खर्च करने का आदी बन गया है। घर में दिखावे की प्रत्येक वस्तु फ्रिज, टी० वी०, कूलर, ए० सी० आदि पर खर्च कर वह चादर से बाहर पैर पसारने का यत्न करता है। आजकल कार रखना भी एक स्टेटस सिम्बल बन गया है।

मध्यवर्गीय व्यक्ति ब्याह-शादी में भी अमीरों की नकल करते हुए खर्च करता है चाहे उसका बाल-बाल कर्जे में बिंध जाए पर अपनी नाक रखने के लिए समाज में अपने रुतबे को ध्यान में रखते हुए वह आखा, ढाका, सगाई और विवाह जैसी दिखावे की रस्मों पर अपनी सामर्थ्य से बढ़कर खर्च करता है। पुराने समय में एक कमाता था तो दस खाते थे क्योंकि वे अपनी चादर के भीतर ही पैर पसारते थे और सुखी रहते थे। आज के ज़माने में दस के दस कमाते हैं फिर भी घर का खर्च नहीं चलता। कारण लोगों को चादर से बाहर पैर पसारने की आदत पड़ गई है। इसी कारण आज गृहस्वामिनी को भी नौकरी करनी पड़ रही है। चादर से बाहर पैर पसारने की आदत ने लोगों को पैसे की दौड़ में शामिल होने पर विवश कर दिया है और पैसा कमाने के लिए लोगों को कई प्रकार के अनैतिक कार्य भी करने पड़ रहे हैं। बड़ों की मानें तो चादर के भीतर ही पैर पसारने में सुख है।

18. जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत
अथवा
सत्संगति

अंग्रेज़ी में एक कहावत है कि “A man is known by the company he keeps”. अर्थात् मनुष्य अपनी संगति से जाना जाता है। कबीर जी ने बुरी संगति को काजल की कोठरी से उपमा देते हुए कहा है कि इसमें कितना ही सयाना जाए उसे एक न एक काली लकीर अवश्य लग जाएगी। इसलिए उन्होंने साधु संगति पर बल दिया है। साधु संगति अर्थात् सत्संगति मनुष्य के स्वभाव को निर्मल ही नहीं बनाती बल्कि उसके कई दोष अथवा विकार भी दूर करती है। इसके अनुच्छेद लेखन विपरीत कोयले की दलाली में हमेशा मुँह काला ही होता है। मनुष्य को सबसे पहले संगति अपने माता-पिता की मिलती है। माता-पिता यदि सज्जन होंगे तो बच्चे का स्वभाव भी अच्छा होगा।

माता-पिता से ही बच्चे गालियाँ निकालना, सिगरेट-शराब आदि पीना, झूठ बोलना, चोरी करना जैसी बुरी आदतें सीखते हैं। व्यक्ति के सम्पर्क में दूसरा व्यक्ति मित्र आता है। मित्र यदि सच्चरित्र, लायक, प्रतिभावान होगा तो व्यक्ति विशेष भी चरित्रवान और प्रतिभावान होगा। इसके विपरीत यदि मित्रगण अच्छे नहीं हैं तो व्यक्ति बुरी आदतें जैसे नशा करना आदि सीखते हैं। कुसंगति वैसी ही है, जैसे एक मछली सारे तालाब को गन्दा कर देती है और सत्संगति वैसी ही है जैसे चन्दन का वृक्ष जो अपने आस-पास के वृक्षों को भी सुगन्धित बना देता है। सत्संगति के कारण ही ढाक का पत्ता राजा तक पहुँचने का गौरव प्राप्त करता है क्योंकि पान का बीड़ा उसी में बाँधा जाता है। अतः यह ठीक ही कहा गया है कि”जैसी संगति बैठिए तैसोई फल होत”।

19. बोए पेड़ बबूल के आम कहाँ ते होय

यदि कोई व्यक्ति काँटेदार वृक्ष बबूल को बो कर उस पर मीठे आम लगने की आशा करता है तो निश्चय ही वह मूर्ख है। जो बोया जाता है अन्त में उसे ही काटना पड़ता है। इस नियम में कोई परिवर्तन नहीं हो सकता। हिन्दू विश्वास के अनुसार व्यक्ति के कर्म फल को टाला नहीं जा सकता। जो व्यक्ति दूसरों को दुःखी करता है, कष्ट पहुँचाता है वह कैसे दूसरों से सुख की कामना कर सकता है। उसे तो जीवन में दुःख ही मिलेगा। हिरण्यकश्यप, रावण, कंस आदि ने सुख और महत्त्व पाने की आशा से बुरे कर्म किए, लोगों को सताया, वे लोग दूसरों से सुख की आशा रखते थे जो दुराशा ही सिद्ध हुई और उन्हें अपने बुरे कर्मों का फल भोगना भी पड़ा। दुर्योधन ने भी सुखों की आशा में अपने भाई पाण्डवों पर अत्याचार किए, उनके अधिकार छीने किन्तु अन्त में जैसी करनी वैसी भरनी वाली बात ही हुई, दुर्योधन युद्ध में पराजित ही नहीं हुआ अपने प्राणों से भी हाथ धो बैठा।

अंग्रेजों ने भी भारत पर अधिकार बनाए रखने के लिए लाठी, गोली का प्रयोग किया। निरपराध और निहत्थे लोगों की हत्याएँ की, परन्तु अंग्रेजों के इन अत्याचारों ने क्रांति की भावना को न केवल जन्म दिया बल्कि उसे भड़काया भी। परिणामस्वरूप अंग्रेजों को भारत छोड़कर जाना पड़ा। इससे यह स्पष्ट है कि व्यक्ति के अच्छे कर्म का फल सदा अच्छा ही होता है। आम बो कर ही आम खाए जा सकते हैं। बबूल बोकर आमों की आशा करना असम्भव तो है ही प्रकृति के नियमों के विरुद्ध भी है।

20. परिवर्तन प्रकृति का नियम है
अथवा
सब दिन न होत एक समान

संसार परिवर्तनशील है। कुछ परिवर्तन हमें नज़र आते हैं, कुछ सूक्ष्म रूप से होते रहते हैं। जैसे फूलदान में रखे फूल, आज ताज़े हैं पर कल वे मुरझा जाएँगे। यह हुआ सामने नज़र आने वाला परिवर्तन। वह फूलदान जिस मेज़ पर रखा है उस मेज़ में होने वाले परिवर्तन सूक्ष्म होते हैं। कल जहाँ सुन्दर भवन था आज वहाँ खण्डहर नज़र आता है। कल का शिशु आज का युवक बन जाता है। आज का युवक कल बूढ़ा हो जाएगा। अत: यह कहा जा सकता है कि परिवर्तन का नाम ही संसार है। हमारा जीवन भी परिवर्तनशील है। उसमें सुख-दुःख आते-जाते रहते हैं। यदि सदा ही सुख या सदा ही दुःख रहें तो मनुष्य जीवन की इस एकरसता से ऊब जाएगा। पंत जी ने ठीक ही कहा है

जग पीड़ित है अति दुःख से,
जग पीड़ित रे अति सुख से।

सब दिन सदा एक समान नहीं रहते। रहीम जी ने ठीक ही कहा है “जब नीके दिन आइ हैं, बनत न लगि है देर।” अगर सभी के दिन एक जैसे रहते तो मनुष्य का जीवन आकर्षणहीन हो जाता। संसार में जहाँ सृजन है वहाँ संहार भी है। वही भारत जो एक दिन सोने की चिड़िया कहलाया करता था आज एक निर्धन देश कहलाता है। यह परिवर्तन की ही तो माया है। राजा हरिशचन्द्र को चाण्डाल का दास बनना पड़ा। भगवान् राम को चौदह बरस का बनवास हुआ। सीता जी का गर्भावस्था में परित्याग हुआ। यह सभी घटनाएँ परिवर्तन की सूचक हैं। यही परिवर्तन प्रकृति में सदा गतिशीलता बनाए रखता है।

21. अनुशासन

अपने ऊपर शासन करना अनुशासन है। अपने को वश में करना अनुशासन है। सत्ता, संस्था, समाज, वर्ग के नियमानुसार आचरण करना अनुशासन है। कुछ लोग माता-पिता और गुरुओं की आज्ञा का पालन करने को भी अनुशासन मानते हैं। नियमपूर्वक जीवन बिताना अर्थात् समय पर सोना, समय पर जागना, समय पर भोजन करना आदि नित्य कर्म करना भी अनुशासन में ही गिने जाते हैं। अनुशासन व्यक्ति के मन को निडर और निर्मल बनाता है। अनुशासन व्यक्ति के वचनों में मधुरता लाता है। अनुशासन में रहता हुआ व्यक्ति ही सत् कर्म करने की ओर प्रवृत्त होता है। उसके अन्तःकरण में दिव्य चेतना का प्रकाश होता है। आज देखने में आ रहा है कि समाज के प्रत्येक वर्ग में अनुशासनहीनता घर किए हुए है।

हमारी राय में इसके लिए सर्वप्रमुख उत्तरदायी माता-पिता हैं। क्योंकि वे आरम्भ में ही बच्चों को अनुशासन का प्रशिक्षण नहीं देते। अनुशासनहीनता का दूसरा बड़ा कारण हमारी शिक्षा प्रणाली है। आज की शिक्षा विद्यार्थी को निश्चित भविष्य का आश्वासन नहीं देती। अनिश्चित भविष्य होने के कारण युवा पीढ़ी में असन्तोष के साथसाथ अनुशासनहीनता भी बढ़ती जा रही है। अतः देश में अनुशासन की स्थापना के लिए शिक्षा व्यवस्था में नैतिक और चारित्रिक शिक्षा पर बल दिया जाना चाहिए। अनुशासित राष्ट्र विकास के पथ पर अग्रसर होगा। अनुशासित समाज सभ्यता और संस्कृति का उत्तम प्रतीक बनेगा।

22. कथनी से करनी भली

कहने का सम्बन्ध केवल जिह्वा से है। इसलिए यह कह देना बहुत आसान है, किन्तु जुबानी जमा खर्च से कुछ नहीं भरता जब तक उस कथन को क्रियात्मक रूप न दिया जाए। इसीलिए यह कहा जाता है कि कथनी से करनी भली। जो व्यक्ति केवल कहता है किन्तु आप उस बात का पालन नहीं करता उसका प्रभाव दूसरों पर कदापि नहीं पड़ सकता। दूसरों को गुड़ न खाने का उपदेश देने वाले के कथन का तभी प्रभाव होगा जब वह स्वयं गुड़ खाना छोड़ देगा। गाँधी जी प्रायः जिस बात का उपदेश दिया करते थे उसे वह अपनी जीवनचर्या के अंग के रूप में अपनाये होते थे। उन्होंने कताई का कोरा उपदेश ही नहीं दिया अपितु संध्या वंदना आदि की तरह ही उसे अपनी दैनिकचर्या का अंग बनाया।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran व्यावहारिक व्याकरण वाक्य विचार : वाक्य विश्लेषण/संश्लेषण

आजकल के साधु उपदेश देते समय प्राय: माया के मिथ्या होने की और उसके जाल में न फंसने की बात कहते हैं, किन्तु स्वयं बड़े-बड़े मठ और भवन बनाते हैं। गुरु गद्दी के लिए नित्य लड़ाई-झगड़े होने की बात आम है। क्या यह अच्छा होता यदि प्रत्येक साधु झोंपड़ी में रहकर जीवन बिताए और सेवा भाव को अपनाकर समाज कल्याण में जुट जाए। देश के दूसरे प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का उदाहरण हमारे सामने है जिन्होंने देश के लिए जो कहा वह कर भी दिखाया। कथनी और करनी में एकता के लिए मन, वचन, कर्म की एकाग्रता होनी जरूरी है। कहने से कर दिखाना कहीं श्रेष्ठ है।

23. निर्धनता एक अभिशाप है

धन सम्पत्ति का न होना ही निर्धनता है। यह मनुष्य जीवन के लिए एक भयानक अभिशाप है। भले ही यह कहा जाता है कि निर्धन व्यक्ति चैन से सोते हैं। किन्तु यह सत्य है कि निर्धनता भरा जीवन नरक के समान दुःखदायी होता है। निर्धन व्यक्ति का सारा जीवन रोटी, कपड़ा और मकान की दौड़-धूप में ही बीत जाता है। कड़ी मेहनत करने पर भी उसे भर-पेट रोटी नसीब नहीं होती। न तन ढाँपने को पूरे वस्त्र मिलते हैं और न ही सिर छुपाने के लिए कोई जगह। बीमारी की दशा में उनके पास दवाई तक खरीदने के पैसे नहीं होते। निर्धनता के कारण वे बच्चों का ठीक ढंग से पालन पोषण भी नहीं कर सकते। उनका भविष्य बनाने की बात तो दूर रही। अन्ततः निर्धनता ही बच्चों में चोरी की आदत डालती है अथवा अन्य अपराधों को जन्म देती है। निर्धनता एक ऐसा दुःख है, जिसको बटाने के लिए कोई आगे नहीं आता।

यहाँ तक कि उसके सगे-सम्बन्धी भी उससे मुँह फेर लेते हैं। निर्धन व्यक्ति न तो इस लोक को संवार सकता है न ही परलोक को। वह बेचारा तो अपनी मन की इच्छाओं को अपने मन में ही दबाए रखता है। कई बार निर्धनता अनुच्छेद लेखन व्यक्ति को आत्महत्या तक करने को विवश कर देती है। आंध्र प्रदेश का उदाहरण हमारे सामने है। वहाँ कितने ही किसानों ने निर्धनता से तंग आकर आत्महत्या कर ली है। कभी-कभी ऐसे समाचार भी सुनने में आते हैं कि निर्धनता से तंग आकर व्यक्ति ने अपने पूरे परिवार को समाप्त कर दिया। जो जीवन की सारी इच्छाओं का गला घोंट दे वह निर्धनता अभिशाप नहीं तो क्या है।

24. परिश्रम सफलता की कुंजी है

मनुष्य अपनी बुद्धि और परिश्रम द्वारा जो खजाना चाहे खोज ले और जहाँ तक चाहे उन्नति के शिखर पर पहुँच जाए। परिश्रम करना उसके अपने हाथ में है और सफलता रूपी देवी भी उसी के सामने प्रकट होती है जो परिश्रम करता है। एक साधारण किसान से लेकर बड़े-बड़े विज्ञान वेत्ताओं तक की सफलता का मूल कारण परिश्रम ही है। जो काम देखने में बड़े कठोर और भयंकर दिखाई देते हैं परिश्रम रूपी मंत्र उन्हें सरल बना देता है। यह एक ऐसी चमत्कारपूर्ण शक्ति है जिसके आगे असफलता का भूत टिक ही नहीं सकता। पूरे मनोयोग से किया हुआ परिश्रम मनुष्य को अपने ध्येय तक पहुँचा देता है। किसान के कठोर परिश्रम से ही धरती अनाज से भर जाती है। वैज्ञानिकों के कठोर परिश्रम के परिणामस्वरूप ही अनेक उपग्रह छोड़े जा चुके हैं। अन्तरिक्ष में मनुष्य की विजय वैज्ञानिकों के परिश्रम का ही परिणाम है। अपने परिश्रम द्वारा ही महान् वैज्ञानिक डॉक्टर ए० पी० जे० अब्दुल कलाम हमारे देश के राष्ट्रपति के पद पर आसीन हए थे। परिश्रम रूपी कुँजी को लेकर ही मनुष्य उन रहस्यों का ताला खोल सकता है जिनमें न जाने कितनी अमूल्य निधियाँ भरी पड़ी हैं। मनुष्य अपने जीवन का लक्ष्य पूरा करने में सफल तभी हो सकता है जब वह परिश्रम को अपने जीवन का मूल मन्त्र बना ले।

25. समय का सदुपयोग

समय सबसे मूल्यवान् वस्तु है। संसार की अन्य समस्त वस्तुएँ एक बार खो जाने पर पुनः प्रयास करके प्राप्त किया जा सकता है, लेकिन एक बार जो समय गुजर गया उसे किसी भी स्थिति में दोबारा नहीं पाया जा सकता। ‘समय’ के बारे में विदेशी लेखकों व समीक्षकों ने अपने विचारों में कहा है-Time is precious’ ; “Time is gold.’ भारतीय मनीषियों ने समय की महत्ता को जानते हुए कहा है कि आज का काम कल पर मत छोड़ो।

“काल करे सो आज कर, आज करे सो अब
पल में प्रलय होयगी बहुरि करेगा कब।”

कल किसने जाना है, किसने देखा है। जो है बस यही एक पल है। इतिहास साक्षी है कि संसार में जिन लोगों ने समय के महत्त्व को समझा वे जीवन में सफल रहे और जिन्होंने समय के पालन में जरा सी भी चूक की, समय ने उसे भी कहीं का नहीं रखा। पृथ्वीराज चौहान समय के मूल्य को न समझने के कारण ही गौरी से पराजित हुआ। नेपोलियन भी वाटरलू के युद्ध में पाँच मिनटों के महत्त्व को न समझ पाने के कारण पराजित हुआ। इसके विपरीत जर्मन के महान् दार्शनिक कांट, जो अपना जीवन समय के बंधन में बाँधकर कुछ इस तरह बिताते थे कि लोग उन्हें दफ्तर आते देखकर अपनी घड़ियाँ मिलाया करते थे।

आधुनिक जीवन में तो समय का महत्त्व
और भी बढ़ गया है। आज जीवन में दौड़-भाग और व्यस्तता इतनी अधिक हो गई है कि यदि हम समय के साथ-साथ कदम मिलाकर न चलें तो जीवन की दौड़ में अवश्य पीछे रह जाएंगे। समय की दौड़ के साथ हमारे कदम न मिले तो यही सुनने को मिलेगा

‘अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत।’ ।
अत: आज के युग में सच्चे कर्मयोगी की यही पहचान है ‘वर्तमान पर नज़र रखो और हर पल का भरपूर प्रयोग करो।’ अतः जब तक सांस है तब तक समय का सदुपयोग करो।

26. मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना

इस संसार में अनेकों धर्म, सम्प्रदाय और पंथ प्रचलित हैं, किन्तु कोई भी धर्म एक-दूसरे से ईर्ष्या, द्वेष या वैर-भाव रखने का उपदेश नहीं देता। प्रत्येक धर्म आपसी भाईचारे और प्रेम सौहार्द का संदेश देता है। धर्म का आधार केवल मनुष्य को ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग बताना भर है। आज मनुष्य ने अपनी बौद्धिक क्षमता से प्रकृति के समस्त रहस्यों को जान लिया है, आकाश की ऊँचाइयों को छू लिया है, लेकिन खेदजनक है कि इक्कीसवीं सदी में पदार्पण करके भी हम आज भी मजहब के नाम पर रक्त बहाने को तत्पर हैं। हमारी अभी भी यह मानसिकता नहीं बदली। आज भी हमने धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर कई दीवारें खड़ी कर रखी हैं।

यह जानते हुए भी कि ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’, हम छोटी-छोटी बातों में लड़ते-झगड़ते रहते हैं। इसी साम्प्रदायिकता के विष के परिणामस्वरूप देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए जिनमें हज़ारों बेकसूर लोग आहत हुए। इससे भी खेदजनक है जब पढ़े-लिखे लोग ही यह घोषणा करते फिरें कि यह प्रान्त मेरा है, यह धर्म मेरा है, इस पर दूसरों का कोई हक नहीं। अरे चाहिए तो यह कि हम सब यह कहें, यह सोचें कि यह देश हमारा है, इसकी प्रगति कैसे करें। हम सब मानव ही बने रहें यही सबसे बड़ी बात होगी। सभी धर्म एक हैं। सभी मनुष्य समान हैं। सभी में उसी अव्वल अल्लाह का नूर बसता है। सभी धर्म ‘सरबत का भला’ चाहते हैं। भारतीय सभ्यता तो आरम्भ से ही ‘जीयो और जीने दो’ के सिद्धान्त को मानने वाली रही है। अतः हमें भारत देश के विकास के लिए धर्म, मजहब के बन्धनों से मुक्त होकर एक राष्ट्र का नागरिक बनना होगा।

27. व्यायाम के लाभ

महर्षि चरक के अनुसार शरीर की जो चेष्टा देह को स्थिर करने एवं उसका बल बढ़ाने वाली हो, उसे व्यायाम कहते हैं। महाकवि कालिदास ने भी कहा है ‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम्’ अर्थात् धर्म का सर्वप्रथम साधन स्वस्थ शरीर है। यदि शरीर स्वस्थ नहीं तो मन भी स्वस्थ नहीं रह सकता। मन स्वस्थ नहीं तो विचार भी स्वस्थ नहीं हो सकते। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना व्यक्ति का परम कर्त्तव्य है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए व्यायाम नितान्त आवश्यक है। पुराने समय में हमारे बड़े-बुजुर्गों ने हमारी दिनचर्या कुछ ऐसी निश्चित की थी कि जिससे हमारा व्यायाम भी नियमित होता रहे और हमें पता भी न चले। सूर्योदय से पहले उठना, सैर को जाना, कसरत करना, बग़ीचे की सैर करना, खुली हवा में विचरना ये सब क्रियाएँ हमारे शरीर को स्वस्थ रखने का ही उपाय था।

लेकिन आज भौतिक सुख लिप्सा में ग्रस्त मानव इन सब नियमों की तिलांजलि देकर दिन-रात केवल धन के चक्कर में अपना स्वास्थ्य बिगाड़ने पर उतारू है। उसे अपने स्वस्थ और निरोग शरीर की परवाह उतनी नहीं जितनी धन को बचाने और कमाने की है। आराम पसन्द व्यक्ति हर काम पैसे के बल पर बैठे-बैठे ही कर लेना चाहता है। सारा दिन कुर्सी पर बैठकर काम करने वाला व्यक्ति यदि कोई व्यायाम नहीं करेगा तो स्वयं ही बीमारियों को आमन्त्रण देने का काम करेगा। आज अधिकतर लोग मधुमेह, उच्च रक्तचाप, आदि अनेक बीमारियों से ग्रस्त हैं उनके पीछे मूल कारण ही अव्यवस्थित दिनचर्या और अपौष्टिक खान-पान है। मनीषियों के साथ-साथ अब तो डॉक्टर भी सबको स्वस्थ रहने के लिए प्रातः भ्रमण और व्यायाम करने की सलाह देने लगे हैं। नीरोग रहने के लिए वे भी व्यायाम को ही आवश्यक और अचूक औषधि मानने लगे हैं। अतः नीरोगी काया के लिए व्यायाम अपरिहार्य है।

28. संगठन में शक्ति है

कहते हैं अकेला चना भाड़ भी नहीं झोंक सकता। पानी की एक बूंद का भी कुछ महत्त्व नहीं होता। जब तक पानी की अनेक बँदें मिलकर धारा का रूप धारण नहीं करती तो वे बड़े-बड़े पर्वतों को काटकर भी अपने लिए रास्ता बना लेती हैं। पानी की एक बूंद असमर्थ और तुच्छ होती है और यही बूंद मिलकर जब सागर बन जाती है तो वह शक्तिशाली बन जाती है। उसकी एक लहर बड़े-बड़े जहाजों को डूबोने की शक्ति रखती है। सागर की लहरें तटवर्ती नगरों को पल भर में वीरान बना सकती हैं। व्यक्ति अकेला एक कण की तरह है और उसका संगठित रूप सागर की शक्ति का रूप धारण कर लेता है। एक अकेला होता है दो ग्यारह होते हैं। भारतवासियों की संगठन शक्ति का ही यह परिणाम था कि उन्होंने शक्तिशाली अंग्रेज़ को देश छोड़ने पर विवश कर दिया। रूस में भी मज़दूर और किसान संगठन द्वारा ही ज़ार के राज्य को पलटने में समर्थ हो गए।

आज भी हम देखते हैं कि जिन मजदूरों या कर्मचारियों का मज़बूत संगठन होता है वे अपनी माँगें तुरन्त मनवा लेते हैं। जाल में बँधे हुए कबूतरों ने अपनी संगठित शक्ति द्वारा ही अपनी जान बचाई थी। अकेली लकड़ी को हर कोई तोड़ सकता है, किन्तु लकड़ियों के गढे को तोड़ना मुश्किल ही नहीं असम्भव भी है। अत: यह निश्चित ही है कि अकेला व्यक्ति चाहे कितना भी बुद्धिमान, धनवान्, शक्तिमान क्यों न हो वह संगठन के बिना सफल नहीं हो सकता क्योंकि संगठन में ही शक्ति है।

29. जिन्दगी जिन्दादिली का नाम है

ज़िन्दादिली से जिया गया जीवन अल्पकालीन भले ही हो किन्तु आदर्श जीवन होता है। बंदा वैरागी से जब बादशाह ने पूछा कि बोल तुझे कैसी मौत चाहिए तो उसने निर्भीकता से बादशाह को गीता का ज्ञान सुनाते हुए कहा, तू कौन होता है मुझे पूछने वाला ? मेरा शरीर भले ही नाशवान है पर आत्मा अमर है। मैं मरकर भी नहीं मरूँगा। महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवा जी महाराज जितनी देर तक जीवित रहे ज़िन्दादिली से जिए। उन्होंने मुग़लों की अधीनता स्वीकार नहीं की। गुरु गोबिन्द सिंह जी के दोनों साहबजादों ने भी जिन्दादिली दिखाई। दीवारों में चुना जाना तो स्वीकार किया पर झुकना नहीं। ऐसी ही ज़िन्दादिली बाल हकीकत राय ने भी दिखाई। वे लोग अमर हो गए।

मरकर भी वे मरे नहीं। वे मृत्यु से भयभीत नहीं हुए। मृत्यु पर जैसे उन्होंने विजय पा ली हो। इसके विपरीत जो लोग मुर्दादिल होते हैं उनका जीवन पशुओं के समान व्यतीत होता है। जीवित रहकर भी वे मरे हुओं के समान होते हैं। उनका जीवन लोहार की धौंकनी की तरह होता है जो साँस लेती हुई भी मुर्दा होती है। आज की महानगरीय सभ्यता ने मनुष्य को मुर्दादिल बना दिया है। उसका हृदय संवेदना शून्य हो गया है। उसे हरदम अपने स्वार्थ साधन की चिन्ता होती है। वे समाज के लिए कोई आदर्श स्थापित नहीं कर पाते। जबकि जिन्दादिल मनुष्य जो कुछ भी कर जाता है वह आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श बन जाता है। मृत्यु तो एक दिन सबको आनी है लेकिन जब तक जिओ ज़िन्दादिली से जिओ जीवन का वास्तविक आनन्द इसी में है।

30. आँखों देखा हॉकी मैच

भले ही आज लोग क्रिकेट के दीवाने बने हुए हैं। परन्तु हमारा राष्ट्रीय खेल हॉकी ही है। लगातार कई वर्षों तक भारत हॉकी के खेल में विश्वभर में सब से आगे रहा, किन्तु खेलों में भी राजनीतिज्ञों के दखल के कारण हॉकी के खेल में हमारा स्तर दिनों दिन गिर रहा है। 70 मिनट की अवधि वाला यह खेल अत्यन्त रोचक, रोमांचक और उत्साहवर्धक होता है। मेरा सौभाग्य है कि मुझे ऐसा ही एक हॉकी मैच देखने को मिला। यह मैच नामधारी एकादश और रोपड़ हॉक्स की टीमों के बीच रोपड़ के खेल परिसर में खेला गया। दोनों टीमें अपने-अपने खेल के लिए पंजाब भर में जानी जाती हैं। दोनों ही टीमों में राष्ट्रीय स्तर के कुछ खिलाड़ी भाग ले रहे थे। रोपड़ हॉक्स की टीम क्योंकि अपने घरेलू मैदान पर खेल रही थी इसलिए उसने नामधारी एकादश को मैच के आरम्भिक दस मिनटों में दबाए रखा उसके फारवर्ड खिलाड़ियों ने दो-तीन बार विरोधी गोल पर आक्रमण किये। परन्तु नामधारी एकादश का गोलकीपर बहुत चुस्त और होशियार था। उसने अपने विरोधियों के सभी आक्रमणों को विफल बना दिया। तब नामधारी एकादश ने तेजी पकड़ी और देखते ही देखते रोपड़ हॉक्स के विरुद्ध एक गोल दाग दिया।

गोल होने पर रोपड़ हॉक्स की टीम ने भी एक जुट होकर दो-तीन बार नामधारी एकादश पर कड़े आक्रमण किये, परन्तु उनका प्रत्येक आक्रमण विफल रहा। इसी बीच रोपड़ हॉक्स को दो पनल्टी कार्नर भी मिले पर वे इसका लाभ न उठा सके। नामधारी एकादश ने कई अच्छे मूव बनाये उनका कप्तान बलजीत सिंह तो जैसे बलबीर सिंह ओलंपियन की याद दिला रहा था। इसी बीच नामधारी एकादश को भी एक पनल्टी कार्नर मिला जिसे उन्होंने बड़ी खूबसूरती से गोल में बदल दिया। इससे रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी हताश हो गये। रोपड़ के दर्शक भी उनके खेल को देख कर कुछ निराश हुए। मध्यान्तर के समय नामधारी एकादश दो शून्य से आगे थी। मध्यान्तर के बाद खेल बड़ी तेज़ी से शुरू हुआ। रोपड़ हॉक्स के खिलाड़ी बड़ी तालमेल से आगे बढ़े और कप्तान हरजीत सिंह ने दायें कोण से एक बढ़िया हिट लगाकर नामधारी एकल पर एक गोल कर दिया। इस गोल से रोपड़ हॉक्स के जोश में ज़बरदस्त वृद्धि हो गयी। उन्होंने अगले पांच मिनटों में दूसरा गोल करके मैच बराबरी पर ला दिया। दर्शक खुशी के मारे नाच उठे। मैच समाप्ति की सीटी के बजते ही दर्शकों ने अपने खिलाड़ियों को मैदान में जाकर शाबाशी दी। मैच का स्तर इतना अच्छा था कि मैच देख कर आनन्द आ गया।

31. परीक्षा शुरू होने से पहले

वैसे तो हर मनुष्य परीक्षा से घबराता है, किन्त विद्यार्थी इससे विशेष रूप से घबराता है। परीक्षा में पास होना ज़रूरी है नहीं तो जीवन का एक बहुमूल्य वर्ष नष्ट हो जाएगा। अपने साथियों से बिछड़ जाएंगे। ऐसी चिन्ताएं हर विद्यार्थी को रहती हैं। परीक्षा शुरू होने से पूर्व जब मैं परीक्षा भवन पहुँचा तो मेरा दिल धक-धक् कर रहा था। परीक्षा शुरू होने से आधा घंटा पहले मैं वहां पहुंच गया था। मैं सोच रहा था कि सारी रात जाग कर जो प्रश्न तैयार किए हैं यदि वे प्रश्नपत्र में न आए तो मेरा क्या होगा ? इसी चिंता में अपने सहपाठियों से खुलकर बात नहीं कर रहा था। परीक्षा भवन के बाहर का दृश्य बड़ा विचित्र था। परीक्षा देने आए कुछ विद्यार्थी बिल्कुल बेफिक्र लग रहे थे। वे आपस में ठहाके मारमार कर बातें कर रहे थे। कुछ ऐसे भी विद्यार्थी थे जो अभी तक किताबों या नोट्स से चिपके हुए थे। कुछ विद्यार्थी आपस में नकल करने के तरीकों पर विचार कर रहे थे।

मैं अकेला ऐसा विद्यार्थी था जो अपने साथ घर से कोई किताब या सहायक पुस्तक नहीं लाया था। क्योंकि मेरे पिता जी कहा करते हैं कि परीक्षा के दिन से पहले की रात को ज्यादा पढ़ना नहीं चाहिए। सारे साल का पढ़ा हुआ भूल नहीं जाता, यदि आप ने कक्षा में अध्यापक को ध्यान से सुना हो। वे परीक्षा के दिन से पूर्व की रात को जल्दी सोने की भी सलाह देते हैं ताकि सवेरे उठकर विद्यार्थी ताज़ा दम होकर परीक्षा देने जाए न कि थका-थका महसूस करे। परीक्षा भवन के बाहर लड़कों की अपेक्षा लड़कियाँ अधिक खुश नज़र आ रही थीं। उनके खिले चेहरे देखकर ऐसा लगता था मानो परीक्षा के भूत का उन्हें कोई डर नहीं। उन्हें अपनी स्मरण शक्ति पर पूरा भरोसा था।

इसी आत्मविश्वास के कारण तो लड़कियां हर परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करती हैं। दूसरे, लड़कियाँ कक्षा में दत्तचित्त होकर अध्यापक का भाषण सुनती हैं जबकि लड़के शरारतें करते रहते हैं। थोड़ी देर में घंटी बजी। यह घंटी परीक्षा भवन में प्रवेश की घंटी थी । इसी घंटी को सुनकर सभी ने परीक्षा भवन की ओर जाना शुरू कर दिया। हंसते हुए चेहरों पर भी अब गम्भीरता आ गई थी। परीक्षा भवन के बाहर अपना रोल नं० और सीट नं० देखकर मैं परीक्षा भवन में दाखिल हुआ और अपनी सीट पर जाकर बैठ गया। कुछ विद्यार्थी अब भी शरारतें कर रहे थे। मैं मौन हो धड़कते दिल से प्रश्न-पत्र बंटने की प्रतीक्षा करने लगा।

32. नशाबन्दी

भारत में नशीली वस्तुओं का प्रयोग दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। विशेषकर हमारी युवा पीढ़ी इस लत की अधिक शिकार हो रही है। यह चिन्ता का कारण है। उपन्यास सम्राट् प्रेमचन्द जी ने कहा था कि जिस देश में करोड़ों लोग भूखों मरते हों वहां शराब पीना, गरीबों का रक्त पीने के बराबर है। किन्तु शराब ही नहीं अन्य नशीले पदार्थों के सेवन का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। कोई भी खुशी का मौका हो शराब पीने पिलाने के बिना वह अवसर सफल नहीं माना जाता। होटलों, क्लबों में खुले आम शराब पी-पिलाई जाती है। पीने वालों को पीने का बहाना चाहिए। शराब को दारू अर्थात् दवाई भी कहा जाता है किन्तु कौन ऐसा है जो इसे दवाई की तरह पीता है। यहाँ तो बोतलों की बोतलें चढ़ाई जाती हैं। शराब महंगी होने के कारण नकली शराब का धन्धा भी फल-फूल रहा है। इस नकली शराब के कारण कितने लोगों को जान गंवानी पड़ी है। यह हर कोई जानता है कितने ही राज्यों की सरकारों ने सम्पूर्ण नशाबन्दी लागू करने का प्रयास किया।

किन्तु वे असफल रहीं। ऐसा उदाहरण हरियाणा का लिया जा सकता है। कितने ही होटल बन्द हो गए और नकली शराब बनाने वालों की चांदी हो गई। विवश होकर सरकार को नशाबन्दी समाप्त करनी पड़ी। पंजाब में भी टेकचन्द कमेटी ने नशाबन्दी लागू करने का बारह सूत्री कार्यक्रम दिया था। किन्तु जो सरकार शराब की बिक्री से करोड़ों रुपए कमाती हो, वह इसे कैसे लागू कर सकती है। आप शायद हैरान होंगे कि पंजाब में शराब की खपत देश भर में सब से अधिक है, किसी ने ठीक ही कहा है बुरी कोई भी आदत हो वह आसानी से नहीं जाती। किन्तु सरकार यदि दृढ़ निश्चय कर ले तो क्या नहीं हो सकता। सरकार को ही नहीं जनता को भी इस बात का ध्यान रखना होगा कि नशा अनेक झगड़ों को ही जन्म नहीं देता बल्कि वह नशा करने वाले के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है। ज़रूरत है जनता में जागरूकता पैदा करने की। नशाबन्दी राष्ट्र की प्रगति के लिए आवश्यक है। शराब की बोतलों पर चेतावनी लिखने से काम न चलेगा, कुछ ठोस कदम उठाने होंगे।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 गुरु गोबिन्द सिंह

Punjab State Board PSEB 12th Class Hindi Book Solutions Chapter 20 गुरु गोबिन्द सिंह Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Hindi Chapter 20 गुरु गोबिन्द सिंह

Hindi Guide for Class 12 PSEB गुरु गोबिन्द सिंह Textbook Questions and Answers

(क) लगभग 60 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 1.
‘जफ़रनामा’ के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गुरु जी ने दीना नामक गाँव से मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब को फ़ारसी में एक पत्र लिखा जिसे जफ़रनामा कहते हैं। यह गुरु जी की एक उत्कृष्ट एवं विख्यात कविता है । इस कविता या पत्र में गुरु जी ने औरंगजेब की धर्मान्धता, संकीर्णता और अत्याचारों पर बड़ी फटकार बताई है।

प्रश्न 2.
गुरु जी के मानवीय दृष्टिकोण का परिचय कैसे मिलता है ? अपने शब्दों में लिखें।
उत्तर:
गुरु जी ने भाई कन्हैया को कहा हुआ था कि युद्ध में प्रत्येक को जल पिलाओ चाहे वह हिन्दू हो या मुसलमान। मित्र हो या शत्रु। इतना ही नहीं मरहम पट्टी करने वालों को भी उनका यही आदेश था कि मित्र और शत्रु के भेद को भुला कर घायलों का उपचार किया जाए। इस आदेश से गुरु जी के मानवीय दृष्टिकोण का परिचय मिलता है।

प्रश्न 3.
बन्दा वैरागी कौन था ? गुरु जी से उसकी भेंट का अपने शब्दों में वर्णन करें।
उत्तर:
बन्दा वैरागी का असली नाम माधवदास था। वह दक्षिण में गोदावरी के किनारे रहता था। गुरु जी उस योगी और वैरागी से मिले। वह भी गुरु जी से प्रभावित हुआ और उनका शिष्य बन गया। गुरु जी ने उन्हें अत्याचार का विनाश करने के लिए पंजाब भेजा। बन्दा वैरागी के रूप में उन्होंने वीरतापूर्वक ढंग से अपने कर्त्तव्य को निभाने का प्रयत्न किया।

(ख) लगभग 150 शब्दों में उत्तर दो:

प्रश्न 4.
गुरु गोबिन्द सिंह के जन्म के समय की परिस्थितियों का वर्णन करते हुए उनके बाल्यकाल का वर्णन करो।
उत्तर:
गुरु गोबिन्द सिंह जी का जन्म सन् 1666 में नवम् गुरु तेग़ बहादुर के घर पटना में हुआ। उस समय औरंगजेब के अत्याचारों से भारतीय जनता दुःखी थी। गुरु जी का जन्म हिन्दू धर्म की रक्षा करने और उनका उद्धार करने के लिए हुआ था। बचपन से ही गुरु जी निडर, साहसी और आत्मविश्वासी थे। उन्हें बहादुरी के खेल खेलने का शौक था। पटना में नवाब की सवारी को देखकर चौबदार ने उन्हें खड़े होकर नवाब को सलाम करने को कहा। स्वाभिमानी गुरु जी ने न केवल स्वयं सलाम करने से इन्कार किया बल्कि अपने साथियों को भी सलाम न करने को कहा। बचपन में उन्होंने आनन्दपुर साहब आकर अपने पिता को यह कह कर बलिदान देने के लिए प्रेरित किया कि आप से बढ़कर महान् कौन हो सकता है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

प्रश्न 5.
‘खालसा पंथ की साजना’ गुरु जी के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण घटना है। अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर:
सन् 1699 का वैशाखी का दिन था। गुरु जी ने सब शिष्यों की एक सभा बुलाई और घोषणा की कि धर्म की रक्षा के लिए कुछ व्यक्तियों के बलिदान की आवश्यकता है। सभा में सन्नाटा छा गया। तभी गुरु जी की ललकार को सुनकर लाहौर का दयाराम सामने आया। गुरु जी उसे लेकर पास के एक तम्बू में गए और खून से भरी तलवार लेकर वे तम्बू से बाहर आए और बलिदान के लिए और भेंट माँगी। तब दिल्ली का धर्मदास सामने आया। गुरु जी उसे भी तम्बू में ले गए और खून की सनी हुई तलवार लेकर बाहर आए और तीसरा बलिदान माँगा।

तब द्वारिका का मोहकम चंद, बीदर (दक्षिण) का साहिबचन्द और जगन्नाथपुरी का हिम्मत राय बारी-बारी सामने आए। गुरु जी उन्हें भी बारी-बारी तम्बू में ले गए। कुछ देर बाद वे उन पाँचों को साथ लेकर तम्बू से बाहर आए और सारी सभा के सामने उन्हें प्रस्तुत कर उन्हें ‘पंज प्यारे’ की संज्ञा दी। गुरु जी ने पहले उन पाँचों को दीक्षित किया फिर आप उनसे दीक्षित हुए। इस प्रकार उन्होंने ‘खालसा पंथ’ की नींव रखी और अपने शिष्यों को अपने नाम के आगे सिंह लगाने का आदेश दिया। स्वयं भी गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह हो गए।

(ग) सप्रसंग व्याख्या करें:

प्रश्न 6.
गुरु जी को चिन्तित देखकर बालक गोबिन्द राय ने कारण पूछा। कारण सुनकर बालक गोबिन्द राय एक दम बोल उठा, “पिता जी, आपसे बढ़कर महान् व्यक्ति कौन हो सकता है।”

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में गुरु गोबिन्द सिंह जी द्वारा अपने पिता को बलिदान देने की प्रेरणा देने की घटना का उल्लेख है।

व्याख्या:
मुग़लों के अत्याचारों से दुःखी होकर कश्मीर के कुछ ब्राह्मण गुरु तेग़ बहादुर जी की शरण में आए और उनसे अपने धर्म की और अपनी रक्षा की प्रार्थना की। उनकी प्रार्थना सुनकर गुरु जी इस परिणाम पर पहुँचे कि इस समय धर्म की रक्षा के लिए किसी महान व्यक्ति के बलिदान की आवश्यकता है। अपने पिता को चिन्तित देखकर पास बैठे बालक गोबिन्दराय ने कहा कि आपसे बढ़कर महान् व्यक्ति कौन हो सकता है।

विशेष:

  1. बालक गोबिन्द राय पिता को आत्मबलिदान की प्रेरणा देते हैं।
  2. भाषा सरल, सहज तथा उद्बोधनात्मक है।

प्रश्न 7.
इसी समय वे स्वयं गुरु गोबिन्दराय से गुरु गोबिन्द सिंह बन गए। इस प्रकार गुरु नानक की परम्परा में जो धर्म अब तक आध्यात्मिक प्रधान था, उसे गुरु ने वीरता का पाठ भी पढ़ा दिया।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में गुरु जी द्वारा खालसा पंथ की नींव रखने के बाद की घटना का उल्लेख किया गया है।

व्याख्या:
लेखक कहते हैं कि खालसा पंथ की नींव रखने के बाद गुरु जी ने अपने नाम के साथ सिंह शब्द जोड़ दिया इस तरह वे गुरु गोबिन्द राय से गुरु गोबिन्द सिंह हो गए। इस तरह उन्होंने सिक्खों के पहले गुरु नानक देव जी की परम्परा में अब तक जो आध्यात्मिकता प्रधान थी उसमें वीरता भी जोड़कर सिक्ख धर्म को एक नया पाठ पढ़ाया।

विशेष:

  1. गुरु जी द्वारा खालसा पंथ की नींव रखने के बाद स्वयं को ‘सिंह’ कहने की परंपरा का वर्णन है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है।

प्रश्न 8.
गुरु जी ने इन 40 शूरवीरों को चालीस मुक्ते की उपाधि दी और उस स्थान का नाम, जहाँ वे वीर शहीद हुए थे, मुक्तसर रखा।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित ‘गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने खिद्राणा नामक स्थान पर आनन्दपुर साहब में गुरु जी का साथ छोड़ गए 40 शिष्यों द्वारा अपने कुकृत्य पर पछताते हुए वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति प्राप्त करने की घटना के बाद गुरु.जी द्वारा उनके प्रति आदर व्यक्त करने की बात कही गई है।

व्याख्या:
खिद्राणा के युद्ध में वीरतापूर्वक लड़ते हुए 40 शिष्यों के वीरगति प्राप्त करने पर गुरु गोबिन्द सिंह जी ने उन 40 शूरवीरों को 40 मुक्ते की उपाधि प्रदान की और उस स्थान को, जहाँ वे शहीद हुए थे, मुक्तसर नाम दिया।

विशेष:

  1. मुक्तसर नगर के नामकरण का कारण स्पष्ट किया है।
  2. भाषा सहज तथा भावपूर्ण है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

प्रश्न 9.
इन पुत्रन के सीस पर वार दिए सुत चार।
चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हजार।।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ डॉ० धर्मपाल मैनी द्वारा लिखित ‘गुरु गोबिन्द सिंह जी की जीवनी’ में से ली गई हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ गुरु जी ने कहे जब उन से उनके पुत्रों की मृत्यु के बारे में पूछा था।

व्याख्या:
गुरु जी ने उत्तर देते हुए कहा कि मैंने अपने शिष्यों की रक्षा करने के लिए अपने चार पुत्रों को न्यौछावर कर दिया है। इन चारों की मृत्यु से कुछ न होगा बल्कि इनके बलिदान के कारण कई हजार वीर शिष्य पैदा हो जाएँगे।

विशेष:

  1. प्रस्तुत उक्ति से गुरु जी के त्यागपूर्ण, उदार एवं व्यापक दृष्टिकोण का पता चलता है।
  2. भाषा सहज, भावपूर्ण है। शैली ओजपूर्ण है।

PSEB 12th Class Hindi Guide गुरु गोबिन्द सिंह Additional Questions and Answers

अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘गुरु गोबिंद सिंह’ शीर्षक निबंध किस के द्वारा रचित है?
उत्तर:
डॉ० धर्मपाल मैनी।

प्रश्न 2.
डॉ० मैनी ने अपनी उच्च शिक्षा कहाँ-कहाँ से प्राप्त की थी?
उत्तर:
पटियाला और बनारस से।

प्रश्न 3.
डॉ० मैनी ने किन-किन भाषाओं में साहित्य की रचना की है ?
उत्तर:
हिंदी, पंजाबी और अंग्रेज़ी।

प्रश्न 4.
‘श्री गुरु ग्रंथ साहिब-एक परिचय’ किस के द्वारा रचित है?
उत्तर:
डॉ० धर्मपाल मैनी।

प्रश्न 5.
गुरु गोबिंद सिंह जी का जन्म कब और किस नगर में हुआ था?
उत्तर:
सन् 1666 ई०, पटना।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

प्रश्न 6.
गुरु गोबिंद सिंह जी का बचपन का नाम क्या था?
उत्तर:
गुरु जी के बचपन का नाम गोबिन्दराय था।

प्रश्न 7.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने किस की रक्षा में अपना बलिदान दे दिया था?
उत्तर:
धर्म की रक्षा में।

प्रश्न 8.
बालक गोबिंदराय ने कितने वर्ष की अवस्था में गुरु गद्दी संभाली थी?
उत्तर:
नौ वर्ष की अवस्था में।

प्रश्न 9.
गुरु जी ने खालसा पंथ की स्थापना कब और कहाँ की थी?
उत्तर:
गुरु जी ने सन् 1699 में वैशाखी के दिन आनन्दपुर साहब में खालसा पंथ की स्थापना की थी।

प्रश्न 10.
गुरु जी किस दिन गोबिन्द राय से गोबिन्द सिंह हो गए थे?
उत्तर:
जिस दिन खालसा पंथ की स्थापना हुई थी–सन् 1699 में वैशाखी के दिन।

प्रश्न 11.
किस नदी के निकट मुग़ल सैनिकों ने अपना वादा तोड़ते हुए हमला किया था?
उत्तर:
सरसा नदी के निकट।

प्रश्न 12.
गुरु जी ने 40,मुक्त की उपाधि किन्हें दी थी?
उत्तर:
जिन चालीस सिखों ने खिदराणा में गुरु जी की ओर से लड़ते हुए शहीदी पाई थी।

प्रश्न 13.
गुरु जी किस बादशाह के करीब आ गए थे?
उत्तर:
बादशाह बहादुर शाह के।

प्रश्न 14.
गुरु जी किस दिन ज्योति-जोत समा गए थे? .
उत्तर:
सन् 1708 में। वाक्य पूरे कीजिए

प्रश्न 15.
गुरु जी को चिन्तित देखकर…
उत्तर:
बालक गोबिन्द राय ने कारण पूछा।

प्रश्न 16.
इन पुत्रन के सीस पर बार दिए सुत चार, ………….।
उत्तर:
चार मुए तो क्या हुआ जीवित कई हज़ार।

प्रश्न 17.
इस प्रकार गुरु नानक की परंपरा में जो धर्म अब तक आध्यात्मिक प्रधान था,……
उत्तर:
उसे गुरु जी ने वीरता का पाठ भी पढ़ा दिया।

हाँ-नहीं में उत्तर दीजिए

प्रश्न 18.
गुरु जी को चिन्तित देखकर बालक गोबिन्द राय ने कारण पूछा।
उत्तर:
हाँ।

प्रश्न 19.
गुरु जी ने कहा, “पिता जी, आपसे बढ़कर महान् व्यक्ति कौन हो सकता है।”
उत्तर:
हाँ।

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बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर

1. गुरु गोबिन्द सिंह जी सिक्खों के कौन-से गुरु थे ?
(क) सातवें
(ख) आठवें
(ग) नवम्
(घ) दशम्
उत्तर:
(घ) दशम्

2. गुरु गोबिन्द सिंह जी का बचपन का नाम क्या था ?
(क) गोबिन्द राय
(ख) मुकुल राय
(ग) सुरेन्द्र
(घ) शिवेन्द्र।
उत्तर:
(क) गोबिन्द राय

3. गुरु जी ने सन् 1699 में वैशाखी के दिन किस पंथ की स्थापना की ?
(क) खालसा पंथ
(ख) निर्गुण पंथ
(ग) सगुण पंथ
(घ) निराकार पंथ
उत्तर:
(क) खालसा पंथ

4. गुरु जी की भक्ति किसके प्रति समर्पित है ?
(क) निर्गुण के
(ख) सगुण के
(ग) अकाल पुरुष के
(घ) निराकार के
उत्तर:
(ग) अकाल पुरुष के

कठिन शब्दों के अर्थ

निर्भीकता = निडरता। द्वेष = कलह । टक्कर लेना = मुकाबला करना। साजना = सजाना, निर्माण करना। अदम्य = अद्भुत, अत्यन्त । नवरक्त = नया खून। आवेश = जोश। दीक्षा देना = गुरुमन्त्र देना। समता = बराबरी। कुकृत्य = बुरा कर्म । उत्कृष्ट = श्रेष्ठ। विख्यात = प्रसिद्ध। संकीर्णता = तंगदिली। टीला = ऊंचा स्थान। कलह = झगड़ा। अभाव = कमी। विधिवत = उचित तरीके से। आत्मीय = अपनापन। विकृत = बिगड़ा हुआ। चिल्ला चढ़ाना = धनुष की डोरी खींचना।

गुरु गोबिन्द सिंह Summary

गुरु गोबिन्द सिंह जीवन परिचय

डॉ० धर्मपाल मैनी जी का जीवन परिचय लिखिए।

डॉ० धर्मपाल मैनी का जन्म सन् 1929 में हुआ। महेन्द्रा कॉलेज, पटियाला से हिन्दी में एम० ए० करने के बाद हिन्दू विश्वविद्यालय बनारस से पीएच० डी० की उपाधि प्राप्त की। आप एस० डी० राजकीय कॉलेज, लुधियाना में तथा पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक रहे। फिर आप गुरु नानक देव विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग में रीडर भी रहे। पंजाब विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग से सेवानिवृत्त होकर आप चण्डीगढ़ में ही बस गए हैं। आपने हिन्दी, पंजाबी और अंग्रेज़ी में लिखा है। इनकी प्रमुख रचनाएँ ‘संतो के धार्मिक विश्वास श्री गुरु ग्रंथ साहिब एक परिचय, गुरु गोबिन्द सिंह के काव्य में भारतीय संस्कृति हैं’

गुरु गोबिन्द सिंह निबन्ध का सार

‘गुरु गोबिन्द सिंह’ निबन्ध का सार 150 शब्दों में लिखें।

‘गुरु गोबिन्द सिंह’ का जन्म सन् 1666 में सिक्खों के नवम् गुरु तेग़ बहादुर जी के घर पटना में हुआ। आपका बचपन का नाम गोबिन्दराय था। पाँच वर्ष तक पटना में रहने के बाद आप विभिन्न तीर्थों की यात्रा करते हुए आनन्दपुर साहब पहुँचे। वहीं एक दिन इनके पिता ने धर्म की रक्षा के लिए किसी महान् व्यक्ति के बलिदान की बात कही। तब बालक गोबिन्द राय ने अपने पिता से कहा कि आप से बढ़कर महान् व्यक्ति और कौन हो सकता है। गुरु तेग़ बहादुर जी ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दे दिया। फलस्वरूप बालक गोबिन्दराय को नौ वर्ष की अवस्था में ही गुरु गद्दी सम्भालनी पड़ी। गद्दी सम्भालते ही गुरु जी ने अपनी शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी जिससे अनेक राजाओं और मुग़ल सरदारों को इनसे वैर और ईर्ष्या होने लगी। गढ़वाल के राजा फतेहशाह के साथ पांवटा से छ: मील दूर भंगाणी नामक स्थान पर गुरु जी को युद्ध करना पड़ा। नादौन में गुरु जी ने पहाड़ी राजाओं की सहायता करते हुए जम्मू के सूबेदार मियाँ खान के सेनापति से युद्ध किया।

सन् 1699 के वैशाखी के दिन गुरु जी ने आनन्दपुर साहब में खालसा पंथ की स्थापना की और हर सिक्ख को अपने नाम के साथ सिंह लगाने का आदेश दिया। आप भी उसी दिन से गोबिन्दराय से गोबिन्द सिंह हो गए। अप्रैल सन् 1704 को लाहौर और सरहिन्द के सूबेदारों ने आनन्दपुर साहब में गुरु जी को घेर लिया। आठ महीने की इस घेराबन्दी के दौरान 40 सिक्ख आपको छोड़कर चले गए। दिसम्बर 1704 में गुरु जी आनन्दपुर साहब छोड़कर निकले तो सरसा नदी के पास मुग़ल सैनिकों ने वादा तोड़ते हुए आप पर आक्रमण कर दिया। गुरु के सिंह बड़ी वीरता से लड़े। गुरु जी कुछ सिक्खों के साथ चमकौर पहुँचे और वहाँ कच्ची गढ़ी में मोरचा लगा लिया।

गुरु जी के साथ केवल 40 सिक्ख थे बाहर दुश्मन ने घेरा डाल लिया। इसी युद्ध में गुरु जी के दो बड़े बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह शहीद हो गए। गुरु जी रात को वहाँ से निकल मालवा प्रान्त की ओर बढ़े। सरसा के युद्ध में उनका परिवार उनसे बिछुड़ गया था। उनकी माता गुजरी अपने दो पोतों-जोरावर सिंह और फतेह सिंह को लेकर अपने रसोइए गंगू के साथ उसके गाँव में चली गई। गंगू ने धोखे से धन के लालच में आकर दोनों साहबजादों को सरहिन्द के नवाब को सौंप दिया जिसने उन्हें इस्लाम धर्म कबूल करने को कहा। साहबजादों के इन्कार करने पर उन्हें जीवित दीवार में चिनवा दिया गया।

गुरु जी का साथ छोड़ गए 40 सिक्ख अपनी करनी पर पछता रहे थे। उन्होंने खिद्राणा के स्थान पर युद्ध में गुरु जी की ओर से लड़ते हुए शहीदी पाई। गुरु जी ने उन्हें 40 मुक्ते की उपाधि दी और उस स्थान का नाम मुक्तसर रख दिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरु जी बादशाह बहादुरशाह के करीब आ गए। इसी से ईर्ष्या करते हुए सरहिन्द के नवाब ने गुरु जी की हत्या करने की ज़िम्मेदारी दो पठानों को सौंपी जिनमें से एक ने एक दिन नन्देड़ (दक्षिण) में उनके पेट में छुरा घोंप दिया। उसी घाव के टांके एक दिन चिल्ला चढ़ाते समय खुल गए जिसके फलस्वरूप सन् 1708 में आप ज्योति-जोत समा गए।

गुरु गोबिन्द सिंह जी का साहित्यिक परिचय दीजिए। सिख धर्म के दशम् गुरु गोबिन्द सिंह जी अत्यन्त प्रतिभाशाली कवि थे। उनके काव्य प्रेम के कारण ही उस समय के अनेक कवि उनके आश्रय में रहते थे। उनके द्वारा रचित साहित्य को डॉ० जय भगवान गोयल ने तीन भागों में बांटा है

  1. भक्ति प्रधान एवं आध्यात्मिक विचारों से युक्त रचनाएँ-जापु साहिब, अकाल उस्तुति, ज्ञान प्रबोध, श्रीमुख वक सवैये-आदि।
  2. वीर रसात्मक रचनाएँ-बिचित्र नाटक, चौबीस अवतार कथाएँ, चंडी चरित्र (उक्ति विलास), चंडी-चरित्र द्वितीय, चंडी दी वार, शस्त्र नाम माला।
  3. उपख्यान चरित्र-इसमें नारी के प्रेम, शौर्य और प्रवंचना का विषद् वर्णन करते हुए उसके चरित्र का उद्घाटन किया गया है।

PSEB 12th Class Hindi Solutions Chapter 20 डॉ० धर्मपाल मैनी

साहित्यिक विशेषताएँ:
गुरु जी के साहित्य में भक्ति भावना की प्रधानता है। कुछ विद्वान् चाहे उन्हें युद्ध वीर के रूप में देखते हैं लेकिन वास्तव में वे पहले धर्म संस्थापक थे और बाद में योद्धा। उन्होंने अनेक स्थानों पर अवतारवाद
और मूर्ति पूजा का खंडन किया था। वे ईश्वर को निर्गुण, निराकार और अकाल पुरुष मानते थे। वे कहते हैं कि ईश्वर प्राप्ति का सरल एवं सहज. मार्ग उस ब्रह्म और उसके जीव-जन्तुओं से प्रेम करने में निहित हैं।
गुरु जी ने अपने साहित्य में भक्ति और वीरता का समन्वय किया था। चंडी चरित्र (उक्ति विलास) में उन्होंने ऐसी ही प्रार्थना की थी।

देहि शिवा वर मोहि इहै शुभ करमन ते कबहूँ न टरौं।
न डरों अरिसों जब जाय लरौ निश्चय कर अपनी जीत करों।

गुरु जी की भक्ति भावना की विशेषता है कि वे ‘अकाल पुरुष’ के प्रति पूरी तरह से समर्पित हैं। इन्होंने अन्य भक्तोंकवियों की तरह विनय पद लिखे हैं। उनके काव्य में ब्रह्म की कृपालुता, भक्तिवत्सलता, दीनबंधुता आदि का वर्णन किया गया है। गुरु जी के काव्य में शक्ति की वंदना की गई है। उन्होंने भक्ति और वीरता का समन्वय करते हुए अपने शिष्यों के सामने आदर्श की स्थापना भी की थी। ‘चंडी-चरित्र’ (उक्त विलास) में गुरु जी ने ऐसा ही चित्रण किया है। गुरु जी ने आडंबरों का विरोध किया और पाखंडों का खंडन किया। उन्होंने मानवतावादी दृष्टिकोण अपनाते हुए जातिपाति और भेदभाव का खंडन किया। वे भाई-चारे में विश्वास करते थे।

गुरु जी को फारसी, पंजाबी और ब्रजभाषा का गहरा ज्ञान था। दोहा, चौपाई, सवैया आदि छंदों का प्रयोग करते हुए उन्होंने तत्कालीन लोक भाषाओं का प्रयोग किया था। उसमें तत्कालीन विदेशी भाषाओं का प्रयोग भी किया गया है।

PSEB 11th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

Punjab State Board PSEB 11th Class Hindi Book Solutions Hindi रचना पत्र-लेखन Questions and Answers, Notes.

PSEB 11th Class Hindi रचना पत्र-लेखन

(क) पत्र-लेखन

पत्र लिखना भी एक कला है। जिस प्रकार संगीत, नृत्य इत्यादि के लिए अभ्यास की आवश्यकता है, उसी प्रकार पत्र लिखने के अभ्यास से ही अच्छा पत्र लिखा जा सकता है। एक विद्वान् ने कहा है जिस प्रकार कुंजी बक्स खोलने में सहायक होती है उसी प्रकार पत्र भी हृदय के अनेक द्वारों को खोलने में सहायक होते हैं। मनुष्य अपनी अनुभूतियों को पत्र द्वारा ही अभिव्यक्त (प्रकट) कर सकता है। यह दो व्यक्तियों के बीच हृदय सम्बन्धों को दृढ़ बनाने में सहायक होता है। अतः पत्र का हमारे जीवन में बड़ा महत्त्व है। इसका अनुभव आप इसी एक बात से लगा सकते हैं कि आज बहुत-से उपन्यास भी पत्र-शैली में लिखे जाने लगे हैं। उदाहरणस्वरूप, आप हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार श्री उग्र जी का “चन्द हसीनों के खतूत” उपन्यास देख सकते हैं। पत्र में जितनी स्वाभाविकता होगी, वह उतना ही प्रभावशाली होगा। एक अच्छे पत्र से लेखक की भावनाएं ही व्यक्त नहीं होतीं, बल्कि उससे उसका व्यक्तित्व भी उभर कर सामने आता है।

अच्छे पत्र के गुण

अच्छे पत्र में निम्नलिखित गुण होने चाहिएँ

1. सरल भाषा-शैली:
पत्र में साधारणतः सरल और बोल-चाल की भाषा होनी चाहिए। शब्द बड़ी सावधानी से प्रयोग में लाए जाएं। थोड़े-से बहुत कहने की रीति को अपनाया गया हो। बात सीधे-साधे ढंग से कही जाए। घुमा-फिरा कर लिखने से पत्र की शोभा बिगड़ जाती है।

2. संक्षेप विवरण:
पत्र में व्यर्थ की व्याख्या नहीं होनी चाहिए। जितनी बात प्रश्न में पूछी गई है, उसकी व्याख्या करनी चाहिए। इधर-उधर की हांकने से पत्र में दोष आ जाता है। पत्र को पढ़ने वाले के दिमाग में सारी बात स्पष्ट हो जानी चाहिए, यह न हो कि वह किसी प्रकार की उलझन में फँसा रहे।

3. प्रभावोत्पादक:
पत्र ऐसा होना चाहिए कि जिसको पढ़कर पढ़ने वाले पर प्रभाव पड़े। इसके लिए उसे पत्र के आरम्भ और अन्त को ध्यानपूर्वक लिखना चाहिए। इसके लिए पत्र लिखने के नियमों का पूरा पालन किया गया हो।

पत्रों के प्रकार:
मुख्यतः पत्र दो तरह के होते हैं

  1. अनौपचारिक पत्र
  2. औपचारिक पत्र।

1.अनौपचारिक पत्र-ऐसे पत्रों में निजी या पारिवारिक पत्र आते हैं। इन पत्रों को लिखते समय व्यक्ति को खुली छूट होती है कि वह जैसा चाहे पत्र लिख सकता है। ऐसे पत्र प्रायः अपने परिवार के सदस्यों-भाई, बहन, माता-पिता आदि तथा मित्रों को लिखे जाते हैं। ऐसे पत्रों का विषय प्रायः व्यक्तिगत होता है। कभी-कभी ऐसे पत्रों में उपदेश या सलाह भी दी जाती है। बधाई पत्र, शोक पत्र तथा सांत्वना पत्र भी इसी कोटि में आते हैं।

2. औपचारिक पत्र-निजी या पारिवारिक पत्रों को छोड़कर हम जितने भी पत्र लिखते हैं, वे सब औपचारिक पत्र होते हैं। ऐसे पत्र प्रायः उन लोगों को लिखे जाते हैं जिनसे हमारा व्यक्तिगत सम्बन्ध नहीं होता।
औपचारिक पत्रों के प्रकारऔपचारिक पत्र कई प्रकार के हो सकते हैं, जैसे

1. प्रशासनिक पत्र या अधिकारियों को पत्र-ऐसे पत्र उच्च अधिकारियों या शासकीय अधिकारियों को लिखे जाते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं
(क) आवेदन-पत्र
(ख) अधिकारियों को शिकायत सम्बन्धी पत्र
(ग) अधिकारियों या समाचार-पत्र के सम्पादक को सुझाव सम्बन्धी पत्र।

2. कार्यालयी पत्र:
ऐसे पत्र प्रायः एक कार्यालय से दूसरे कार्यालय को लिखे जाते हैं। राज्य सरकार अपने अधीनस्थ कार्यालयों या केन्द्र सरकार को ऐसे पत्र लिखती है। केन्द्र सरकार के कार्यालय भी जो पत्र राज्य सरकारों या अपने कार्यालय के अधिकारियों को लिखते हैं वे भी इसी कोटि में आते हैं।

3. व्यावहारिक पत्र:
ऐसे पत्र किसी व्यापारिक संस्थान द्वारा अथवा किसी व्यापारिक संस्थान को उपभोक्ता या ग्राहक द्वारा लिखे जाते हैं।

ध्यान रहे कि औपचारिक पत्रों की भाषा नियमबद्ध और परम्परागत होती है। ऐसे पत्र अति संक्षिप्त होते हैं। पारिवारिक पत्र लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें पारिवारिक या व्यक्तिगत पत्र लिखते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है

(1) लिखने की शैली उत्तम हो अर्थात् पत्र में उचित स्थान पर ठीक शब्दों का प्रयोग किया जाए जिससे पढ़ने वाले को पत्र में लिखी बातें आसानी से समझ में आ जाएं।
(2) पत्र की भाषा सरल होनी चाहिए। मुश्किल शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए।
(3) पत्र संक्षिप्त होना चाहिए। (4) पत्र में छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
(5) पत्र में केवल प्रसंग की ही बात लिखनी चाहिए। कहानियां लिखने नहीं लग जाना चाहिए।

पारिवारिक पत्र के अंग

पारिवारिक पत्र लिखते समय पत्र के निम्नलिखित अंगों पर विशेष ध्यान देना चाहिए

1. पत्र का आरम्भ:
पत्र के आरम्भ में सबसे ऊपर दाहिनी ओर पत्र लिखने वाले का अपना पता लिखना चाहिए। पते के नीचे तिथि भी लिखनी चाहिए। जिस पंक्ति में तिथि लिखो जाए उससे अगली पंक्ति में पत्र के बायीं ओर हाशिया छोड़ कर जिसे पत्र लिखा जा रहा है उसे यथा विधि सम्बोधन करना चाहिए। आगे सम्बोधन शब्द अलग से दिये गये हैं। सम्बोधन से अगली पंक्ति में ऊपर की पंक्ति से कुछ अधिक स्थान छोड़कर अभिवादन सूचक लगाना चाहिए।

2. पत्र का कलेवर:
पत्र का कलेवर बहुत बड़ा नहीं चाहिए। पत्र में हर विचार अलग-अलग पैरा में लिखना चाहिए।

3. पत्र का अन्त:
पत्र समाप्त होने पर लिखने वाले को पत्र के अन्त में दायीं ओर अपना नाम, पारिवारिक सम्बन्ध का स्वनिर्देश भी लिखना चाहिए।

पत्र के आरम्भ तथा अन्त में लिखने वाली
कुछ याद रखने वाली बातें

पत्र लिखने वाला जिसे पत्र लिखता है उसके पारिवारिक सम्बन्ध के अनुसार पत्र में सम्बोधन, अभिवादन और स्वनिर्देश में परिवर्तन हो जाता है, जैसे-नीचे दिये ब्योरे में दिया गया है

1. अपने से बड़ों को-जैसे माता, पिता, बड़ा भाई, बड़ी बहन, चाचा, अध्यापक, गुरु आदि।
सम्बोधन-पूज्य, पूजनीय, परमपूज्य, आदरणीय,
अभिवादन-प्रणाम, नमस्कार, नमस्ते, सादर प्रणाम
स्वनिर्देश-आपका आज्ञाकारी, आपका स्नेह पात्र, आपका प्रिय भाई, आपका प्रिय भतीजा, आपका प्रिय शिष्य

याद रखिए

स्त्री सम्बन्धी या परिचितों के लिए भी ‘पूज्य’ और ‘आदरणीय’ सम्बोधन का प्रयोग होगा। जैसे पूज्य माता जी, आदरणीय मुख्याध्यापिका जी आदि। ‘पूज्य’ या ‘आदरणीया’ का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

2. अपने से छोटों को – जैसे छोटा भाई, मित्र आदि।
सम्बोधन – प्रिय, प्रियवर, चिंरजीव, प्यारे।।
अभिवादन – खुश रहो, शुभाशीष, शुभाशीर्वाद, स्नेह भरा प्यार, प्यार।
स्वनिर्देश – तुम्हारा शुभचिन्तक, शुभाभिलाषी, हितचिन्तक।

3. मित्रों को या हम उमर को

सम्बोधन – प्रिय भाई, प्रिय दोस्त (मित्र का नाम), प्रियवर, बन्धुवर, प्रिय बहन, प्रिय सखी, प्रिय-(सखी का नाम)
अभिवादन – नमस्ते, जयहिन्द, सप्रेम नमस्ते, मधुर स्मरण, स्नेह भरा नमस्ते, प्यार।
स्वनिर्देश – तुम्हारा मित्र, तुम्हारा स्नेही मित्र, तुम्हारा दोस्त, तुम्हारी सखी, तुम्हारी स्नेह पात्र, तुम्हारी अपनी, तुम्हारी अभिन्न सखी।

पत्र शुरू किन वाक्यों से करना चाहिए

  1. आपका कृपा पत्र प्राप्त हुआ। धन्यवाद।
  2. तुम्हारा हिन्दी में लिखा पत्र मिला। पढ़कर बड़ी खुशी हुई।
  3. आपका कुशल समाचार बड़ी देर से नहीं मिला। क्या बात है ?
  4. आपका पत्र पाकर कृतज्ञ हूँ।
  5. आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि.
  6. यह जानकर हार्दिक हर्ष हुआ कि………
  7. खेद के साथ लिखना पड़ता है कि….
  8. यह जानकर अत्यन्त दुःख हुआ कि..
  9. आपको एक कष्ट देना चाहता हूं, आशा है कि आप क्षमा करेंगे।
  10. एक प्रार्थना है, आशा है आप उस पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करेंगे।

ध्यान रखें:
आजकल पत्र का आरम्भ ऐसे वाक्यों में नहीं किया जाता
‘हम यहां पर कुशलपूर्वक हैं आपकी कुशलता श्री भगवान् से शुभ चाहते हैं।’ यह फैशन पुराना हो गया है। अतः सीधे वर्ण्य विषय का आरम्भ कर देना चाहिए।

पत्र समाप्त करने के लिए वाक्य

  1. कृपया पत्र का उत्तर शीघ्र देने का कष्ट करें।
  2. पत्र का उत्तर शीघ्र दें/लौटती डाक से दें।
  3. भेंट होने पर और बातचीत होगी।
  4. कभी-कभी पत्र लिखते रहा करें।
  5. तुम्हारे पत्र का इंतज़ार रहेगा।
  6. यहां सब कुशल हैं। माँ-पिता की ओर से ढेर सारा प्यार।
  7. अपने पूज्य पिता जी तथा माता जी को मेरा प्रणाम/नमस्ते कहिए।
  8. आपके उत्तर की प्रतीक्षा में हूं।
  9. सब मित्रों को मेरी ओर से नमस्ते कहना।
  10.  इसके लिए मैं सदा आपका आभारी रहूंगा।

प्रशासकीय या अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र में ध्यान रखने वाली बातें

ऐसे पत्र शासकीय काम-काज से सम्बन्धित होते हैं। कभी-कभी ऐसे पत्र आम आदमी भी लिखता है, जैसे-आवेदन पत्र या उच्च अधिकारियों को की जाने वाली शिकायत सम्बन्धी। ऐसे पत्रों में पत्र लिखने वाला कोई प्रार्थना या शिकायत अथवा सुझाव प्रस्तुत करता है। याद रखिए अधिकारियों को शिकायत भी प्रार्थना के रूप में ही की जानी चाहिए।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

अधिकारियों को लिखे जाने वाले औपचारिक पत्र के अंग
उच्च अधिकारियों को लिखे जाने वाले पत्र के निम्नलिखित अंग होते हैं

  1. शीर्षक
  2. पत्र संख्या एवं दिनांक
  3. प्रेषित का नाम और पता
  4. विषय
  5. सन्दर्भ
  6. सम्बोधन
  7. पत्र का मूल भाग
  8. प्रशंसात्मक अन्त
  9. स्वनिर्देश एवं हस्ताक्षर
  10. प्रेषक का नाम और पता

औपचारिक पत्र लिखते समय ध्यान में रखने योग्य बातें

1. पत्र का आरम्भ:
औपचारिक पत्र लिखते समय सब से पहले पत्र के बायें कौने में हाशिये के साथ सेवा में, लिखना चाहिए। उसके बाद कुछ जगह छोड़ कर दूसरी पंक्ति में जिस अधिकारी को पत्र लिखा जाना है उसका पदनाम, फिर उससे अगली पंक्ति में उसका पता लिखना चाहिए।
औपचारिक पत्र पदनाम से ही लिखने चाहिएँ। उसके बाद जहां आपने सेवा में लिखा है उसके ठीक नीचे विषय शब्द लिख कर (:) विराम चिह्न लगाना चाहिएइसी पंक्ति में जहां से आपने अधिकारी का पदनाम लिखा है उसके ठीक नीचे पत्र का विषय लिखना चाहिए।
औपचारिक पत्रों में अभिवादन शब्द अनौपचारिक पत्रों के समान अलग-अलग नहीं होता बल्कि सब पत्रों में एक-जैसा ही होता है, जैसे–महोदय, प्रिय महोदय।

2. पत्र का मूल भाग:
पत्र में जहाँ से आपने अधिकारी का पदनाम लिखा है उसके ठीक नीचे से सम्बोधन सूचक शब्द के बाद वाली पंक्ति में-पत्र लिखना आरम्भ करना है। पत्र की दूसरी पंक्ति आप ने वहां से शुरू करनी है जहाँ से आप ने सेवा में लिखा था। पत्र में पहले अनुच्छेद को क्रम नहीं दिया जाता। उसके बाद के अनुच्छेदों में 2, 3, 4 क्रम दिया जा सकता है।

औपचारिक पत्र लिखने की एक खास विधि होती है जिसका ध्यान रखना ज़रूरी है। ऐसे पत्र बहुत लम्बे नहीं होते। मतलब की बात कम-से-कम शब्दों में लिखनी चाहिए। भाषा में भी औपचारिकता बरतनी चाहिए।

3. प्रशंसात्मक अन्त:
अनौपचारिक पत्र यदि आम आदमी की तरफ से-जो स्वयं अधिकारी नहीं है-लिखा जाता है तो पत्र के मूल भाग के प्रशंसात्मक शब्द लिख कर समाप्त करना चाहिए। यह प्रशंसात्मक शब्द नयी पंक्ति में लिखना चाहिए। सभी ऐसे पत्रों में प्रशंसात्मक शब्द समान होता है, जैसे-‘धन्यवाद सहित’।

4. समाप्ति निर्देश:
औपचारिक पत्रों में समाप्ति निर्देश आपका आज्ञाकारी या भवदीय लिख कर नीचे पत्र भेजने वाला अपना हस्ताक्षर करता है तथा अपना पूरा पता लिखता है।
ऐसा पत्र की बायीं ओर लिखा जाता है। नीचे आपकी जानकारी के लिए अनौपचारिक तथा औपचारिक पत्रों की रूपरेखा दी जा रही है।

अनौपचारिक (पारिवारिक या सामाजिक) पत्र की रूपरेखा

अपने से बड़ों को पत्र-पिता को पत्र

18-लाजपतराय नगर,
जी० टी० रोड,
जालन्धर।
दिसम्बर, 18…
पूज्य पिता जी,
सादर प्रणाम।
आपका कृपा पत्र मिला, समाचार ज्ञात हुआ। निवेदन है कि……………………………………..
…………………………………………………………………….
……………………………………………………………………
………………………………………………………………………
पूज्य माता जी को मेरा प्रमाण कहना।
आपका आज्ञाकारी पुत्र
…………………………..
……………………………

प्रशासनिक पत्र की रूपरेखा

उच्च अधिकारियों को लिखा जाने वाला पत्र
सेवा में
कलक्टर,
ज़िला…………………………………..
पंजाब।
विषय:
लाऊडस्पीकर के प्रयोग पर पाबन्दी लगाये जाने बारे।
महोदय,
सविनय निवेदन है कि…………………………………………
2. ………………………………………..
3…………………………………………
धन्यवाद सहित,
आपका विश्वासी
(हस्ताक्षर)
नाम-पता……………………………
………………………….
दिनांक ……………………….

विशेष रूप से ध्यान देने योग्य बातें

ऊपर दी गई रूप-रेखा के अनुसार ही पत्र लिखने चाहिएँ, चाहे वे व्यक्तिगत पत्र हों या प्रशासनिक (प्रार्थना-पत्र आदि)। प्रायः देखने में आता है कि लोग इन नियमों का पालन नहीं करते हैं। हालांकि इस छोटी-सी बात को दफ्तरों का साधारण कर्मचारी जानता है। वह ऊपर दिये गये नियमों के अनुसार ही पत्र लिखता अथवा टाइप करता है। आगे चलकर इन नियमों का पालन करते हुए लिखे गये पत्र को ही अच्छे अंक दिये जाते हैं। आशा है आप पत्र लिखते समय इन नियमों का पूरी तरह पालन करेंगे।

1. कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति की शिकायत।
सेवा में
खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति अधिकारी
रामनगर,
जालन्धर।
विषय-कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति बारे।
महोदय,
इस पत्र के द्वारा मैं आप का ध्यान नगर की एकमात्र कुकिंग गैस वितरण की ऐजेंसी द्वारा कुकिंग गैस की अनियमित आपूर्ति की ओर दिलाना चाहता हूँ।
महोदय, उपर्युक्त ऐजेंसी ने गैस के कनक्शन देते समय सभी उपभोक्ताओं को भरोसा दिलाया था कि गैस बुक करवाने के एक सप्ताह के भीतर कुकिंग गैस उपभोक्ता के घर पर पहुंचा दी जाएगी। भारतीय तेल कम्पनी ने भी ऐसी ही सुविधा की घोषणा कर रखी है, किन्तु खेद के साथ कहना पड़ता है कि ऊपरिलिखित गैस एजेंसी के मालिक बार-बार याद दिलाने पर भी गैस की आपूर्ति में दो से तीन सप्ताह का समय लगाते हैं। कुकिंग गैस के उपभोक्ताओं को कितना कष्ट झेलना पड़ता है, इसका आप सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।

आप से प्रार्थना है कि आप समय-समय पर उक्त गैस ऐजेंसी का निरीक्षण करें और गैस की आपूर्ति को नियमित करने के आवश्यक निर्देश जारी करें। सुनने में आया है कि ऐजेंसी के मालिक गैस ब्लैक में बेचते हैं, भले ही हमारे पास इसका कोई प्रमाण नहीं है, किन्तु यदि आप नियमित रूप से इस गैस एजेंसी के स्टॉक और वितरण प्रणाली का निरीक्षण करते रहेंगे तो गैस की ब्लैक रुक जाएगी।

हम आशा करते हैं कि नगर निवासियों को पेश आने वाली असुविधाओं को ध्यान में रखते हुए आप इस दिशा में तुरन्त व उचित कार्रवाई करेंगे। हम आपके आभारी होंगे।

धन्यवाद सहित,
आपका विश्वासी,
(सुजान सिंह कालरा)
512-नेहरू नगर,
जालन्धर शहर।
दिनांक 2 जनवरी, 20…..

2. किसी समाचार पत्र के सम्पादक को केबल नेटवर्क एवं वीडियो खेलों के दुष्परिणामों के बारे में।
113, कर्णपुरी,
मोहाली।
5 जनवरी, 20….
सेवा में
सम्पादक,
दैनिक जागरण
चंडीगढ़।
विषय : केबल नेटवर्क एवं वीडियो खेलों के दुष्परिणामों के बारे।
महोदय,
मैं आपके लोकप्रिय दैनिक की नियमित पाठिका हूँ। आपके समाचार-पत्र के माध्यम से मैं केबल नेटवर्क एवं वीडियो गेम्स के दुष्परिणामों से आपके पाठकों को अवगत करवाना चाहती हूँ।
भवदीय
मारिया
आशा है आप मेरे इन विचारों को अपने पत्र में प्रकाशित करके मुझे अनुगृहीत करेंगे। इस लेख में आपको उचित संशोधन करने की पूरी छूट है।

आज का युग विज्ञान का युग होने के कारण नए-नए आविष्कार हो रहे हैं। इसी कारण देश के कोने-कोने में सुखसुविधाओं के अनेक साधन उपलब्ध हैं, किन्तु जब से दूरदर्शन पर केबल नेटवर्क का प्रसारण शुरू हुआ है शहरों के साथसाथ गाँव भी इसकी लपेट में आते जा रहे हैं। भले ही दूरदर्शन का प्रसार हमारे राष्ट्र की उन्नति का प्रतीक है परन्तु केबल नेटवर्क पर जो विदेशी चैनलों द्वारा जो अश्लील कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं उनका बुरा असर हमारी सभ्यता और संस्कृति पर भी हो रहा है।

इन कार्यक्रमों का सब से बुरा असर छोटे बच्चों पर हो रहा है, क्योंकि छोटे बच्चों पर बुरी बातों का जल्दी असर होता है। बच्चे अधिकतर अपने टी० वी० सैट के सामने बैठे रहते हैं। पढ़ाई की तरफ ध्यान देना तो दूर की बात वे खेलों की ओर भी ध्यान नहीं देते। अधिक देर तक टी० वी० सैट के सामने बैठने पर वे अनेक रोगों का शिकार हो रहे हैं। जिन में उनकी नेत्र ज्योति कमजोर होना सब से बड़ी बीमारी है। सोने पर सुहागा वीडियो गेम्स ने किया है। छोटे बच्चे घंटों तक इस खेल में मस्त रहते हैं।

हमारे यहाँ लगभग 40 चैनलों पर कार्यक्रम दिखाये जाते हैं जिस में ‘एफ’ चैनल जैसे चैनल तो फैशन-परेड ही दिखाते हैं। नग्न, अर्धनग्न लड़कियों को देख कर शहरों के ही नहीं, गाँवों के लड़के-लड़कियां भी बिगड़ने लगे हैं। इस दिशा में सरकार कुछ नहीं कर सकती। जो कुछ करना है हमें ही करना है। यदि हम यह प्रतिज्ञा कर लें कि अपने घरों में ऐसे गन्दे, बेहूदा कार्यक्रम नहीं देखेंगे तो समाज और देश का भला हो सकता है।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

3. निदेशक, शिक्षा निदेशालय को बोर्ड की वार्षिक परीक्षा के दौरान परीक्षा भवन में हो रही नकल की शिकायत करते हुए।
108, संत नगर
अमृतसर।
सेवा में
निदेशक,
शिक्षा निदेशालय,
चण्डीगढ़।

विषय:
परीक्षा भवन में नकल होने बारे। महोदय,

मैं इस पत्र द्वारा आपका ध्यान बोर्ड की वार्षिक परीक्षाओं के दौरान अपने क्षेत्र के उच्च माध्यमिक विद्यालय में हो रही नकल की ओर दिलाना चाहता हूँ। महोदय, आज वार्षिक परीक्षा शुरू हुए मात्र तीन ही दिन हुए हैं। इन तीन दिनों में मैंने देखा है कि परीक्षा भवन में खुले आम नकल हो रही है। कुछ गुंडा टाइप के विद्यार्थी तो खुले आम पुस्तकें खोलकर प्रश्न-पत्र हल करते हैं। उन्हें निरीक्षक दल का कोई भी अध्यापक कुछ नहीं कहता। देखा देखी दूसरे विद्यार्थी भी नकल करने लगे हैं।

महोदय, नकल के कारण मेरे जैसे कुछ विद्यार्थी काफ़ी घाटे में रहेंगे, क्योंकि जो मेहनत करता है, ईमानदारी से परीक्षा देता है उसके अंक तो कम आएँगे और नकल करने वाले विद्यार्थी अधिक अंक प्राप्त करने में सफल हो जाएंगे।

आप से विनम्र प्रार्थना है कि अपने निदेशालय की ओर से कुछ अधिकारियों को उड़न दस्ते के रूप में भेजकर उक्त विद्यालय में ही नहीं अन्य परीक्षा केन्द्रों पर भी छापे मारे जाएँ और दोषी विद्यार्थियों और अध्यापकों को कड़ी-से-कड़ी सज़ा दी जाए।

मैं आपसे अपना नाम और पता गुप्त रखने की प्रार्थना के साथ परीक्षा में नकल की रोकथाम किये जाने की उचित कार्रवाई किये जाने की भी प्रार्थना करता हूँ।
आपका विश्वासी,
अमरजीत सिंह

4. महाप्रबन्धक, राज्य परिवहन निगम को अपने गाँव में बस स्टॉप की मंजूरी के लिए पत्र लिखती लिखता है।
513, सेक्टर-6
मोहाली।
5 जून 20….
सेवा में
महाप्रबन्धक
पंजाब राज्य परिवहन निगम,
चण्डीगढ़।

विषय-गाँव दोनापावला में बस स्टाप की मंजूरी की प्रार्थना
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से दोनापावला गाँव के समस्त निवासियों, विशेषकर छात्रों की ओर से आपकी सेवा में यह निवेदन करना चाहता हूँ कि हमारे गाँव में एक नियमित बस स्टॉप बनाया जाए।

आपका ध्यान गाँववासियों की इस तकलीफ की ओर भी दिलाना चाहता हूँ कि नियमित बस-स्टॉप न होने के कारण सभी बसें हमारे गाँव में नहीं रुकती हैं। कभी कभार यदि कोई बस पीछे से खाली आ रही हो तो रुकती है नहीं तो नहीं रुकती। गाँववासियों को विशेषकर छात्रों को कई-कई घंटे बस की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। कभी-कभी तो दिन भर कोई भी बस हमारे गाँव में रुकती ही नहीं। यदि आप हमारे गाँव में एक नियमित बस स्टॉप मंजूर करके उसकी मंजूरी की सूचना अपने सभी बस चालकों और कण्डक्टरों को प्रसारित कर सूचित कर दें तो हम आपके अति आभारी होंगे।

यहाँ यह बात भी आपके ध्यान में लाना ज़रूरी समझता हूँ कि हमारी ग्राम पंचायत ने इस आशय का एक प्रस्ताव पारित करके तथा बस स्टॉप के लिए पंचायत के खर्चे पर शैड बनाने के भरोसे की सूचना आपको पहले ही भेजी जा चुकी है।
आशा है आप गाँववासियों के कष्ट का निवारण करने हेतु उचित एवं शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद सहित,
विश्वजीत

5. मुख्य अभियन्ता राज्य विद्युत् बोर्ड को बिजली का बिल बढ़ा-चढ़ा कर भेजने की शिकायत बारे।
13, विधि नगर
मोहाली।
13 जनवरी, 20…..
सेवा में
मुख्य अभियंता,
चंडीगढ़।
विषय-बिजली के बिल में गड़बड़ी के विषय में।
महोदय,
मैं इस पत्र के माध्यम से आपके कार्यालय द्वारा भेजे गए जनवरी-फरवरी 2018 के बिजली के बिल में कुछ गड़बड़ी होने की ओर दिलाना चाहता हूँ।

मैं शान्ति नगर के मकान नं0 521 का निवासी हूँ। मेरा खाता नं० ए० डी० 1563 है। इस बार बिजली का बिल 2000/रुपए का भेजा गया है और अन्तिम मीटर रीडिंग 51007 दिखाई गई है। इस बिल में कोई गड़बड़ी लगती है। हमारा बिजली । का बिल कभी दो-तीन सौ से ऊपर नहीं आया। इस तथ्य की जांच आप मेरे खाते को देखकर कर सकते हैं। हमारा मीटर आज भी रीडिंग 41047 दिखा रहा है जबकि आपके बिल में 51007 दिखाया है। लगता है मीटर पढ़ने वाले कर्मचारी ने भूल से 4 के स्थान पर 5 अंक लिख दिया है।

आप से नम्र निवेदन है कि आप मामले की व्यक्तिगत स्तर पर जाँच करके मेरे बिजली के बिल को सही करके दोबारा भेजें ताकि मैं बिजली का किराया समय पर आपके कार्यालय में जमा करा सकूँ।
आपसे तुरन्त एवं उचित कार्रवाई करने की पुन: प्रार्थना की जाती है।
भवदीय
शिवराज।

6. पुलिस अधीक्षक को नगर में चोरी की बढ़ती घटनाओं की रोकथाम करने के उपाय करने की प्रार्थना करते हुए।
525, आदर्श नगर
अमृतसर,
13 जून, 20….
सेवा में
पुलिस अधीक्षक,
अमृतसर।
विषय-नगर में बढ़ती चोरी की घटनाओं की रोकथाम करने के बारे में। महोदय,
मैं आपके पुलिस क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले रामनगर मुहल्ले का निवासी हूं। इस पत्र द्वारा इस तथ्य की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं कि हमारे मुहल्ले में पिछले कुछ दिनों से कई चोरियां हुई हैं। समाचार-पत्रों के माध्यम से हमें ऐसी जानकारी मिली है कि हमारे ही मुहल्ले में नहीं बल्कि नगर के अनेक क्षेत्रों में चोरी की घटना हुई है।

मुझे खेद के साथ कहना पड़ता है कि इस सम्बन्ध में पुलिस विभाग ने कोई उचित कार्रवाई नहीं की है। ऐसे भी समाचार मिले हैं कि नगर में कोई ससंगठित चोरों का गिरोह आया हुआ है जो इन चोरियों के लिए उत्तरदायी है, पर लगता है आपका विभाग घोड़े बेचकर सो रहा है। नगर में इतनी घटनाएं हो गईं और पुलिस विभाग के कान पर जूं तक नहीं रेंगी।

मान्यवर, आप तो जानते ही हैं पुलिस विभाग पर आम नागरिकों की जान-माल की सुरक्षा का उत्तरदायित्व होता है पर पुलिस ही ऐसी घटनाओं के प्रति उदासीनता दिखाए तो आम आदमी का पुलिस विभाग और लोकतन्त्र में विश्वास कैसे बहाल किया जा सकता है।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप इस सम्बन्ध में अपने विभाग को अधिक चुस्त-दुरुस्त करें और अपराधियों को पकड़ने के उचित उपाय करें ताकि आम जनता भयमुक्त होकर राहत की सांस ले सके और अपने आपको सुरक्षित समझ सके।
आपसे उचित और शीघ्र कार्रवाई के लिए पुनः प्रार्थना की जाती है।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
समर सिंह।

7. मुहल्ले में प्रदूषित जल की आपूर्ति के सम्बन्ध में नगरपालिका के स्वास्थ्य अधिकारी को शिकायती-पत्र लिखिए
मकान संख्या-1303
गांधी नगर,
लुधियाना।
13 अगस्त, 20….
सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी।
लुधियाना।
विषय- मुहल्ला गाँधी नगर में प्रदूषित जल की आपूर्ति के बारे में।
महोदय,
मैं मुहल्ला गाँधी नगर के निवासियों की ओर से आपका ध्यान, नगरपालिका द्वारा घरों में सप्लाई किये जाने वाले प्रदूषित जल के बारे में आकर्षित करना चाहता हूं। हमारे मुहल्ले में पिछले कई दिनों से नगरपालिका के नलों में गन्दा पानी आ रहा है। कभी-कभी उसमें कुछ कीड़े-मकोड़े भी देखे गए हैं। ऐसा जल पीने के योग्य नहीं है। ऐसे जल से तो लोग कपड़े तक धोने में भी झिझक महसूस करते हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप जल आपूर्ति विभाग के कर्मचारियों को उचित आदेश देकर जहाँ-जहाँ से पानी की पाइप फटी हुई है और उनमें गन्दा पानी प्रवेश कर रहा है, उन पाइपों की तुरन्त मरम्मत करवाएं।
आपका ध्यान मैं इस बात की ओर भी दिलाना चाहता हूं कि ऐसा पानी पी कर लोगों का स्वास्थ्य तो बिगड़ेगा ही नगर में संक्रामक रोग फैलने का भी डर है।

मैं आशा करता हूं कि मुहल्ला वासियों के स्वास्थ्य का ध्यान करके तुरन्त शुद्ध एवं प्रदूषण रहित जल की आपूर्ति करने के लिए उचित व शीघ्र कार्रवाई करेंगे।
धन्यवाद सहित,
भवदीय,
अमरजीत सिंह।

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

8. कलेक्टर महोदय, को पत्र लिखकर लाउडस्पीकरों के प्रयोग पर पाबन्दी लगाने की प्रार्थना।
103, रामनगर,
नवांशहर,
2 मार्च, 20….
सेवा में
उपायुक्त महोदय,
नवांशहर।
विषय-ऊँची आवाज़ में लाउडस्पीकर बजाने को बन्द करने के बारे में।
महोदय,
मैं आपकी सेवा में समूह छात्र वर्ग की ओर से प्रार्थना करना चाहता हूं कि आजकल हमारी वार्षिक परीक्षाएं शुरू हैं, किन्तु नगर में आए दिन किसी-न-किसी बात को लेकर लाउडस्पीकरों पर ऊँची-ऊँची आवाज़ में फिल्मी गाने बजाए जाते हैं। इस शोर से हमारी पढ़ाई में बाधा पड़ती है। लाउडस्पीकर की आवाज़ में घरों में एक-दूसरे से बात करना भी कठिन होता जाता है। कुछ सुनाई ही नहीं देता। घरों में बच्चे विशेषकर बूढ़े लोग काफ़ी परेशान होते हैं। रोगियों की दशा का तो अन्दाज़ा सहज ही लगाया जा सकता है।

आपसे विनम्र, निवेदन है कि आप लाउडस्पीकर बजाने पर पाबन्दी लगा दें। यदि आप ऐसा न कर सकते हों तो कमसे-कम रात दस बजे के बाद हर हालत में लाउडस्पीकर का प्रयोग करने पर पाबन्दी लगा दें। ऐसी पाबन्दी लगाना आपके अधिकार क्षेत्र में है। समूह नगर निवासी आपके आभारी होंगे। नागरिक शोर प्रदूषण के भयंकर परिणामों से भी सुरक्षित रहेंगे।

आपसे उचित एवं शीघ्र कार्रवाई की पुनः प्रार्थना करता हूं।
धन्यवाद सहित,
भवदीय
विश्वास सिंह

9. महाप्रबन्धक, पंजाब राज्य सड़क, परिवहन निगम चण्डीगढ़ को बस कंडक्टर की पैसे लेकर टिकट न देने की शिकायत करते हुए।
202, कृष्ण कुंज
संत नगर,
अमृतसर।
2 अगस्त, 20…..
सेवा में
महाप्रबन्धक,
पंजाब राज्य सड़क परिवहन निगम,
चण्डीगढ़।
विषय- बस कंडक्टर के भ्रष्टाचार के बारे में शिकायत।
महोदय,
इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान आपके परिवहन निगम की बस नं० 1313 के कंडक्टर के भ्रष्टाचार की ओर दिलाना चाहती हूँ।

कल मैं सुबह सात बजे के करीब ऊपर लिखी बस में अमृतसर के लिए जाने पर सवार हुई। मैंने नोट किया कि बस कंडक्टर यात्रियों से पैसे तो ले रहा है पर टिकट नहीं दे रहा। जब वह मेरे पास आया तो मैंने पैसे देकर उसे टिकट देने की मांग की। इस पर वह कंडक्टर भड़क उठा और मुझ से अशिष्ट भाषा में बात करने लगा। उसने कहा जब अन्य यात्री टिकट की मांग नहीं कर रहे हैं तो आप क्यों ऐसा कर रही हैं। उसने मुझे जो कुछ कहा वह मैं लिख नहीं सकती। मैंने उसे कहा कि तुम्हें महिलाओं से बात करने की भी तमीज़ नहीं है तो उसने कहा सारी तमीज़ तुम्हीं में है। बस में सवार अन्य यात्रियों ने उसे सभ्य व्यवहार करने को कहा पर उस पर कोई असर नहीं हुआ।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप उस कंडक्टर के विरुद्ध उचित अनुशासनिक कार्रवाई करें। उसके द्वारा टिकट के पैसों में घपला करने की भी जाँच कारवाई जाए। यह देखा जाए कि 52 यात्रियों वाली बस में उसने कितनी टिकटों के पैसे निगम के कार्यालय में जमा करवाये हैं। एक जागरूक नागरिक के नाते आपको इस भ्रष्टाचार की सूचना देना मैं अपना कर्तव्य समझ कर दे रही हूँ।
भवदीय,
सिमरनजीत कौर।

10. पिता जी के स्थानान्तरण पर प्राचार्य को पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र प्रदान करने हेतु आवेदन पत्र लिखिए।
सेवा में
प्राचार्य,
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय,
पटेल नगर।
विषय-पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र जारी किए जाने हेतु।
महोदय,
निवेदन है कि मैं आपकी पाठशाला में ग्यारहवीं कक्षा के अनुभाग ‘ख’ का विद्यार्थी हूं। मेरे पिताजी भारतीय स्टेट बैंक में मैनेजर के पद पर नियुक्त हैं। कुछ ही दिन पूर्व उनका स्थानान्तरण भोपाल हो गया है। हम सब भी उनके साथ भोपाल जा रहे हैं। आपसे विनम्र निवेदन है कि मुझे पाठशाला त्याग प्रमाण-पत्र प्रदान करने की कृपा करें। ताकि मैं भोपाल में किसी पाठशाला में प्रवेश ले सकूँ।
मैं आपका हृदय से आभारी रहूंगा।
आपका आज्ञाकारी छात्र
सतनाम सिंह

11. मुख्य अभियन्ता को अपने गाँव के रास्ते की मरम्मत के लिए प्रार्थना-पत्र लिखते हुए।
संत सदन,
राम नगर,
चंडीगढ़।
13 मई, 20….
सेवा में
मुख्य अभियन्ता,
सार्वजनिक बांधकाम विभाग,
पंजाब सरकार, चण्डीगढ़।
विषय-गाँव रामनगर की सड़क की मरम्मत बारे।
महोदय,

मैं इस पत्र के माध्यम से आपका ध्यान गाँव रामनगर के रास्ते की खस्ता हालत की ओर दिलाना चाहता हूँ। गत दो वर्षों से इस रास्ते की मरम्मत की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया। सारे रास्ते पर कई-कई फुट चौड़े और गहरे खड्डे बने हुए हैं, जिससे अक्सर यहाँ दुर्घटनाएँ होती रहती हैं। यह रास्ता वर्षा के दिनों में तो एक नहर का रूप धारण कर लेता है। आपका ध्यान इस बात की ओर भी दिलाना चाहता हूँ कि जगह-जगह पानी जमा हो जाने पर उस पर मच्छर पलते हैं जो बीमारी फैलाने का कारण बन सकते हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि अपने विभाग को इस रास्ते की मरम्मत पहल के आधार पर किये जाने के उचित एवं तुरन्त आदेश जारी किया जाएं ताकि आम जनता सुख की साँस ले सके और उनकी किसी संक्रामण रोग से रक्षा हो सके। सभी गाँव वासी आपके अति आभारी होंगे।
भवदीय
अक्षर।

12. प्राचार्य महोदय को रुग्णावकाश हेतु प्रार्थना-पत्र लिखते हुए।
सेवा में
प्राचार्य,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
बालघाट
फरीदकोट।
विषय-रुग्णावकाश के लिए प्रार्थना।
महोदय,
मैं आपकी विद्यालय में कक्षा ग्यारह का विद्यार्थी हूं। गत एक सप्ताह से मुझे थोड़ा-थोड़ा बुखार था। बुखार की हालत में मैं विद्यालय आता रहा। आज बाद दोपहर से मुझे 102 डिग्री बुखार हो गया है। डॉक्टर को दिखाया है। उसने मुझे कमसे-कम चार दिनों के लिए आराम करने की सलाह दी है। अतः आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मुझे दिनांक 4 जनवरी से 7 जनवरी 20…… तक के लिए अवकाश की मंजूरी प्रदान की जाए। मैं आपका अति आभारी रहूंगा।
आपका आज्ञाकारी,
अंकेश भण्डारी
कक्षा XI, क्रम संख्या-642 अनुभाग ‘ख’

13. पुलिस थाने के थानेदार को अपने घर में हुई चोरी की खबर देते हुए।
म.नं. 513
गोविंदपुर
5 मई, 2018
सेवा में
थाना अधिकारी,
पुलिस थाना, गोविंद पुर
गोविंदगढ़।
विषय-घर में चोरी के बारे में प्रथम सूचना रिपोर्ट। महोदय,

निवेदन है कि मैं मोहन लाल सुपुत्र श्री सोहन लाल वासी मकान नं0 513 अपने घर में कल रात हुई चोरी के बारे प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाना चाहता हूँ। घटना का ब्योरा नीचे दिया जा रहा है-कल रात दिनांक 24 फरवरी सन् 20…. रात्रि के समय मेरे घर में चोरी हो गई है। यह घटना रात्रि के 2 बजे से 4 बजे के बीच होने की सम्भावना है क्योंकि रात एक बजे तक तो परिवार के सभी सदस्य दूरदर्शन पर एक फिल्म देख रहे थे। हमें चोरी का ज्ञान प्रायः 5 बजे के करीब हुआ जब मैं प्रातः प्रार्थना के लिए उठा। सोने के कमरे के अतिरिक्त सारे घर का सामान बिखरा पड़ा था। घर का बहुत-सा सामान और नकद पाँच हज़ार रुपए जो मेरे मेज़ की दराज़ में पड़े थे गायब पाये गये हैं।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि आप स्वयं हमारे घर पधार कर पंचनामा तैयार कर लें तथा चोरों के पैरों या हाथों के निशान उतारने के उपकरण भी साथ लाएं।
आपसे प्रार्थना है कि शीघ्र अति शीघ्र मामले की जाँच करके चोरों को पकड़ने और हमारा चोरी हो गया सामान बरामद करने के लिए उचित कार्रवाई करें। मैं आपका आभारी हूँगा।
धन्यवाद सहित,
भवदीय मोहनलाल

14. अधिक बस सेवा के लिए प्रार्थना-पत्र।
131, कबीर नगर,
मुक्तसर।
13 जनवरी, 20…..
सेवा में
सम्पादक,
पंजाब केसरी
अमृतसर।
विषय- ज्यादा बसें चलाए जाने के बारे राज्य परिवहन निगम से प्रार्थना।
महोदय,
आपके लोकप्रिय दैनिक पत्र द्वारा मैं राज्य परिवहन निगम से यह प्रार्थना करना चाहती हूँ कि प्रातः स्कूल एवं कॉलेज के खुलने तथा सायं इन शिक्षा संस्थाओं के बन्द होने के समय नगर-निगम की ओर से कुछ अतिरिक्त बसें चलाई जाएँ।

हमने अपने विद्यालय के प्राचार्य महोदय के द्वारा भी परिवहन विभाग के निदेशक महोदय को एक प्रत्यावेदन भिजवाया था किन्तु न तो उस पत्र की कोई पावती सूचना प्राचार्य महोदय को दी गई और न ही कोई वांछित कार्रवाई की गई। इसी कारण मैंने आपके पत्र द्वारा राज्य परिवहन निगम विभाग तक अपनी मांग पहुंचाने का निर्णय लिया है।

हमारी प्रार्थना है कि प्रातः 7 बजे से नौ बजे के बीच तथा सायं चार बजे से छ: बजे के बीच अतिरिक्त बसें चलाई जाएँ। इस अवधि में स्कूल-कॉलेज एवं दफ्तरों को जाने वाले यात्रियों को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। प्राय: बसें पीछे से ठसा ठस भरी आती हैं तथा वे निश्चित बस स्टॉप पर रुकती ही नहीं। यदि रुकती भी है तो उनमें चढ़ना विशेषकर लड़कियों एवं महिलाओं के लिए भारी मुसीबत का कारण बनता है। ऐसी भीड़ भरी बसों में चढ़ने पर लड़कियों और महिलाओं को अभद्र व्यवहार या छेड़खानी जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है। कुछ ऐसी ही समस्याओं से महिलाओं को संध्या के समय चलने वाली बसों में दो-चार होना पड़ता है।

हमारी प्रार्थना है कि यदि नगर निगम और परिवहन विभाग इन समयों में कुछ अतिरिक्त बस सेवा चालू कर दें तो बहुतसी समस्याओं का समाधान हो सकता है। हमारी उचित एवं शीघ्र कार्रवाई के लिए विभाग से प्रार्थना है।
भवदीय,
नवनीत।

15. मुहल्ले में फैले मलेरिया से बचाव के लिए प्रार्थना-पत्र।
मकान नं. 13
नेहरू नगर
जालन्धर।
13 मई, 20….
सेवा में
मुख्याधिकारी,
स्वास्थ्य केन्द्र,
जालंधर।
विषय-नेहरू नगर, में फैले मलेरिया की रोकथाम बारे।
महोदय,

निवेदन है कि आप का ध्यान मुहल्ला नेहरू नगर, में फैले मलेरिया के फैलाव और उसकी रोकथाम के लिए उचित एवं शीघ्र कार्रवाई करने की ओर दिलाना चाहता हूँ।

हमारे मुहल्ले में मलेरिया जैसा भयानक रोग फैलने के दो मुख्य कारण हैं जिनकी ओर आपका ध्यान दिलाना ज़रूरी समझता हूँ। पहला कारण यह है कि मुहल्ले की सफ़ाई का कोई उचित प्रबन्ध नहीं है। जगह-जगह कूड़े-कर्कट के ढेर लगे हैं जिनसे बदबू फैलने के साथ-साथ मक्खी और मच्छर भी पलते हैं। दूसरा कारण मुहल्ले की गलियों और सड़कों की काफ़ी देर से मुरम्मत न होना है जिसके कारण जगह-जगह गड्ढे बन गये हैं। जिनमें बरसात का पानी जमा हो जाता है जो मच्छरों की संख्या में वृद्धि करने में सहायक होता है।

आपसे विनम्र प्रार्थना है कि मलेरिया की रोकथाम के लिए सबसे पहले मुहल्ले की सफ़ाई की ओर ध्यान दिया जाए तथा दूसरे डी० डी० टी० जैसी कीटाणु नाशक दवाइयों का सारे मुहल्ले में, और अगर हो सके तो सारे शहर में छिड़काव किया जाए। नगर के सभी अस्पतालों में मलेरिया से पीड़ित रोगियों के लिए अलग से एवं उचित प्रबन्ध किए जाएं। सभी स्वास्थ्य केन्द्रों में दवाइयों का समुचित स्टॉक उपलब्ध करवाया जाए।

महोदय आपको विदित ही है कि कुछ वर्ष पहले नवम्बर मास में बिहार तथा आन्ध्र प्रदेश में इस रोग से कितने लोगों की जानें गयी थीं। ऐसा न हो कि पंजाबवासियों के लिए और आपके लिए यह बीमारी भी एक रोग बन जाए। इसे फैलने से पूर्व ही इसके उचित उपाय करने की आप से पुनः प्रार्थना की जाती है।
धन्यवाद सहित,
अभिजीत सिंह

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

16. नगरपालिका को बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे से उत्पन्न होने वाली समस्याओं से अवगत करवाते हुए नगरपालिका स्वास्थ्य अधिकारी को इस कचरे को तुरन्त उठाने की प्रार्थना करते हुए।
1056, देवनगर
मोहाली।
1 मार्च, 20…..
सेवा में
स्वास्थ्य अधिकारी,
मोहाली।

विषय-लक्ष्मी बिल्डिंग मोहाली के सामने पड़े कचरे के ढेर को हटाये जाने के बारे।
महोदय,

इस पत्र के द्वारा मैं आपका ध्यान नगर में लक्ष्मी बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे के ढेर की तरफ दिलाना चाहता हूँ। गन्दगी का यह ढेर गत एक महीने से यूँ ही पड़ा है, बल्कि इसमें दिन-प्रतिदिन और वृद्धि होती जा रही है। नगरपालिका का कोई भी सफ़ाई कर्मचारी इसे हटाने का प्रबन्ध नहीं करता। इस क्षेत्र में सफाई कर्मचारी को कई बार इस ढेर को उठाने की प्रार्थना की गई पर उस पर हमारी प्रार्थना का कोई असर नहीं होता। कई बार क्षेत्र के नगर पिता के ध्यान में भी यह बात लायी गयी है। उनका कहना है कि मैं चूंकि विरोधी दल का सदस्य हूँ, इसलिए मेरे क्षेत्र की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता।

महोदय नगरवासियों के स्वास्थ्य एवं नगर की सफ़ाई का उत्तरदायित्व समूची नगरपालिका पर है न कि किसी एक नगर पिता पर । इस बिल्डिंग के सामने पड़े कचरे से इतनी दुर्गन्ध उठने लगी है कि बिल्डिंग में रहने वालों का जीना तो दूभर हो ही गया है, यहां से गुजरने वाले राहगीरों की परेशानी का कारण भी है। यदि आपने तुरन्त इस कचरे के ढेर को हटाने का प्रबन्ध न किया तो मुहल्ले में ही नहीं नगर में भी किसी संक्रामक रोग के फैलने का डर पैदा हो सकता है।

हम आशा करते हैं कि इस, सम्बन्ध में शीघ्र कार्रवाई करके आप बिल्डिंग वासियों की कठिनाई को दूर करने की कृपा करेंगे। हम सब आपके आभारी होंगे।
भवदीय,
सर्वजीत सिंह।

17. महाप्रबन्धक, पंजाब रोडवेज़, लुधियाना को बस कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की शिकायत है।
1050, संतपुरी,
लुधियाना।
11 फरवरी, 20…….
सेवा में
महाप्रबन्धक,
पंजाब रोडवेज़,
लुधियाना।
विषय: बस कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की शिकायत।
महोदय,
मैं आपका ध्यान आपके परिवहन की बस नं० PBN 2627 के कंडक्टर के अशिष्ट व्यवहार की ओर दिलाना चाहती हूँ। घटना दिनांक 4 मार्च की है। मैं अपने विद्यालय जाने के लिए सराभा नगर बस-स्टैण्ड से बस स्टैण्ड की ओर जाने वाली बस में सुबह के करीब 7 बजे सवार हुई। बस में काफ़ी भीड़ थी। बहुत-से लोग खड़े थे। बस कंडक्टर टिकटें काटते समय जहाँ लड़की बैठी थी उसकी सीट के साथ सटकर टिकट काट रहा था। जब वह मेरे पास टिकट देने के लिए आया तो वह कुछ आपत्तिजनक मुद्रा में मेरे साथ सटकर खड़ा हो गया।

पहले तो मैं अपने आपको बचाने के लिए कुछ परे खिसकी पर कंडक्टर भी उसी ओर बढ़ने लगा। मैंने उसे चेतावनी देते हुए सही ढंग से खड़े होने को कहा तो वह अनाप-शनाप बकने लगा। मैंने उसे कहा कि तुम्हें लड़कियों से बात तक करने की तमीज़ नहीं तो उसने कहा अपनी तमीज़ अपने पास रखो यहाँ तो ऐसे ही चलेगा। बस में सवार अन्य यात्रियों ने भी उसे मना किया कि वह लड़कियों से छेड़खानी क्यों करता है और सही ढंग से क्यों नहीं बोलता।

महोदय, बस से उतरने पर मेरी सहपाठिनों ने मुझे बताया कि वह कंडक्टर लड़कियों से आए दिन बदतमीज़ी करता है। आपसे विनम्र प्रार्थना है कि उस कंडक्टर के विरुद्ध उचित और शीघ्र अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाए। किसी दिन विद्यार्थी वर्ग ने सामूहिक रूप से उसके विरुद्ध स्वयं कार्यवाही करने की ठान ली तो प्रशासन के लिए कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो जाएगी।

मैं आशा करती हूँ कि आप उक्त कंडक्टर के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करेंगे एवं उसे भविष्य में यात्रियों से विशेषकर महिलाओं से अशिष्ट व्यवहार न करने की चेतावनी दी जाएगी।
धन्यवाद सहित,
भवदीया
सिमर कौर

18. परीक्षा में विशेष सफलता पाने पर माता की ओर से पुत्री को पत्र लिखो।
सी-17, शक्ति विहार,
लुधियाना।
तिथि : 2 जुलाई, 20….
चिरंजीव मालती,
स्नेहाशीष।
आज प्रात: जैसे ही समाचार-पत्र हाथ में लिया तो ऊपर ही मोटे-मोटे अक्षरों में तुम्हारी बारहवीं कक्षा के परीक्षापरिणाम सम्बन्धी खबर पढ़ी। जब रोल नम्बरों की सूची में तुम्हारा रोल नं० ढूंढ रही थी तो मेरी धड़कन तेज़ हो गई थी। यद्यपि मुझे पूरा विश्वास था कि तुम दसवीं के परीक्षा-परिणामों के अनुरूप यहां भी प्रथम श्रेणी में ही उत्तीर्ण होगी। तुम्हारा रोल नं० पाकर कुछ सन्तुष्टि हुई फिर उसी समय तुम्हारे पापा को गजट में तुम्हारा परिणाम देखने को भेजा। अंकों के आधार पर पता चला कि तुम 75 प्रतिशत अंक प्राप्त कर प्रथम श्रेणी में पास हुई हो।

प्यारी बिटिया, तुम्हारे जन्म से ही मुझे तुमसे कुछ आशाएँ बंध गई थी कि जो लक्ष्य जीवन में मैं न पा सकी उन्हें तुम प्राप्त करो। मेरा आशीर्वाद सदा-सदा तुम्हारे साथ है, तुम जीवन में हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करो और अपना तथा परिवार का नाम रोशन करो। तुम्हारे पापा भी आज बहुत खुश हैं। तुम्हारा छोटा भाई तो खुशी से फूला ही नहीं समा रहा। वह तो अपने दोस्तों को भी बता आया है।

तुम्हारे पिता जी की ओर से तुम्हें ढेर सारा प्यार। निशांत की ओर से प्यार। पत्र का उत्तर शीघ्र देना।
तुम्हारी माता,
सुनीता।

19. कुसंगति में फंसे अपने छोटे भाई को पत्र लिखो जिसमें सदाचार के गुण बताते हुए उसे बुरी संगति से दूर रहने की प्रेरणा हो।
317-आदर्श नगर,
जालन्धर शहर।
दिनांक : 6 फरवरी, 20….
प्रिय भाई संजीव,
आयुष्मान रहो।
पिछले दो सप्ताह से तुम्हारा कुछ भी संवाद नहीं मिल रहा, क्या कारण है। सारा परिवार तुम्हारी ही चिन्ता में पड़ा हुआ है। कभी-कभी तो मन सोचने लगता है कि हमने तुम्हें दूर होस्टल में पढ़ने भेजकर कहीं कुछ ग़लत तो नहीं किया। हमने तो ऐसा केवल इसलिए किया कि तुम अच्छे विद्यालय में पढ़कर अच्छी विद्या ग्रहण कर सको ताकि तुम्हारा भविष्य सुन्दर हो जाए। लेकिन हमें निरन्तर डर लगा रहता है कि तुम कहीं पढ़ाई से विमुख होकर कुसंगति का शिकार न हो जाओ। जीवन की उन्नति का आधार सदाचार है। सदाचार का अर्थ है-श्रेष्ठ आचरण। इसमें सत्य, उच्च विचार, नैतिकता आदि गुण आते हैं। वस्तुत: नैतिक मूल्यों के बिना, मनुष्य-जीवन ही व्यर्थ है। सदाचारहीन व्यक्ति अपना तो सर्वनाश कर ही लेता है, वह अपने समाज और राष्ट्र को भी कलंकित कर देता है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है। उसे भले-बुरे का ज्ञान ही नहीं रहता।

प्रिय राजीव ! विद्या की देवी सदाचारी पर ही रीझती है। आज तक जितने भी महापुरुष हुए हैं, वे सदाचार के बल पर ही ऊंचे उठे हैं। विद्या प्राप्ति के लिए जीवन में कठोर तप और साधना करनी पड़ती है। तप और साधना सदाचारी ही कर सकता है। आचारहीन तो हाथ ही मलता रह जाता है, विद्या रूपी सुवासित फूल उसे कभी प्राप्त नहीं हो पाता। वह प्रख्यात उक्ति एक बार फिर तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ कि-‘आचारहीन न पुनन्ति वेदाः’ अर्थात् चरित्रहीन व्यक्ति को देव भी पवित्र नहीं कर सकते।

प्रिय भाई ! शिक्षा-काल में तो सदाचार की महती आवश्यकता रहती है क्योंकि संयम, धैर्य, सहिष्णुता, गुरु सेवा, व्रत आदि गुणों से ही पूर्ण शिक्षा उपलब्ध होती है। सदाचार का सूर्य शिक्षा का प्रकाश फैला सकता है। इसलिए मेरा बार-बार तुम से यही अनुरोध है कि जीवन में सदाचार को अपनाओ। गुरुजनों की आज्ञा से सदाचारी रहते हुए विद्या प्राप्ति के लिए जुट जाओ। किसी चीज़ की आवश्यकता हो तो नि:संकोच लिख भेजो। पत्र का उत्तर शीघ्र दे दिया करो।
तुम्हारा बड़ा भाई, राकेश।

20. पुत्र के विवाह के अवसर पर अपने मित्र को निमन्त्रण देते हुए पत्र लिखो।
47-बी, किशनपुरा,
गोल मार्किट, फगवाड़ा।
दिनांक : 12 जनवरी, 20….
प्रिय बन्धु ज्ञानेश्वर,
सादर नमस्कार।

आपको यह जानकर हार्दिक आनन्द का अनुभव होगा कि मेरे पुत्र संजीव का शुभ विवाह जालन्धर निवासी और उद्यमी पंकज आर्य की सुपुत्री संगीता के साथ 6 फरवरी, 20…. को होना निश्चित हुआ है। अतः आपसे निवेदन है कि इस शुभ अवसर पर आप सपरिवार हमारे निवास स्थान पर पधारें और नव वर-वधू को आशीर्वाद प्रदान कर कृतार्थ करें।

कार्यक्रम

सेहरा बन्दी-5 बजे शाम।
बारात रवानगी-7 बजे रात्रि।
(जालन्धर के लिए)

उत्तरापेक्षी
समस्त परिवारगण।

तुम्हारा अभिन्न।
राजशेखर।

21. पुलिस अधीक्षक दिल्ली को यात्रा में सामान खो जाने पर रिपोर्ट दर्ज करवाने के बाद भी पुलिस की अकर्मण्यता के सम्बन्ध में आवेदन पत्र लिखें।
ए-13, शांतिपुरम
रोहिणी, दिल्ली।
3 जून, 20…..
सेवा में
पुलिस अधीक्षक,
रोहिणी, दिल्ली।
विषय-यात्रा में खोए सामान और पुलिस की अकर्मण्यता सम्बन्धी।
महोदय,

विनम्र निवेदन यह है कि मैं दिनांक 13 अगस्त को जालन्धर से दिल्ली (रोहिणी सैक्टर 12) में अपनी बहन की लड़की की शादी में सपरिवार जा रहा था। कंडक्टर ने मुझे सामान बस के ऊपर रखने के लिए कहा। मेरे मना करने पर भी वह जिद्द में अड़ गया कि आपका सामान ज्यादा है इसे आप बस के ऊपर ही रखें। बेबसी में मुझे अपना सामान ऊपर ही रखना पड़ा। रास्ते में अम्बाला से कुछ आगे चलकर बस जब एक स्थान पर खाना खाने के लिए रुकी तो मैं बस पर चढ़कर अपना सामान देख आया। तब तक तो सारा सामान ठीक रखा हुआ था। इसके बाद जब बस दिल्ली पहुँची तो मैंने कुली को कहकर अपना सामान उतरवाया तो बाकी सामान तो मिल गया, लेकिन मेरा एक सूटकेस गायब
था जिसमें हमारा कीमती सामान और कुछ रुपए थे।

मैंने जब कंडक्टर से पूछा तो उसने भी सीधे मुँह कोई बात नहीं की। मैंने फिर इस चोरी की सूचना तुरन्त ही पुलिस थाना, दिल्ली में की किन्तु आज आठ दिन हो गए हैं, लेकिन कोई भी उचित कार्रवाई नहीं की गई। इस सम्बन्ध में जब भी थानेदार महोदय से मिलने की कोशिश की तो वह ठीक से बात ही नहीं करता।

साहब, इस चोरी से मेरा बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है। मेरे सारे कीमती जेवर चोरी चले गए हैं। अतः आपसे निवेदन है कि आप व्यक्तिगत रूप से रुचि लेकर इसकी जाँच करवाएँ ताकि मुझ ग़रीब को न्याय जल्दी-से-जल्दी मिल सके।
आशान्वित।
भवदीय
दिव्यम भारती

PSEB 11th Class Hindi Vyakaran सन्धि और सन्धिच्छेद

22. हिन्दी की पुस्तकें मँगवाने के लिए पुस्तक प्रकाशक को पत्र लिखिए।
अ-111, संत नगर
नवांशहर।
10 मई, 20…..
सेवा में
प्रबन्धक,
मल्होत्रा बुक डिपो,
रेलवे रोड,
जालन्धर।
महोदय,

हमारे विद्यालय के पुस्तकालय के लिए हमें हिन्दी की निम्नलिखित पुस्तकें वी०पी०पी० द्वारा शीघ्रातिशीघ्र भेजकर अनुगृहीत करें। पुस्तकें भेजते समय इस बात का ध्यान रखें कि कोई पुस्तक मैली और फटी न हो। आपके नियमानुसार पाँच सौ रुपए मनीआर्डर द्वारा पेशगी के रूप में भेज रहा हूँ।

ये पुस्तकें पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के नये पाठ्यक्रम पर आधारित होनी चाहिएं।
पुस्तकें
1. हिन्दी साहित्यिक निबन्ध 8 प्रतियाँ
2. ऐम०बी०डी० नूतन पत्रावली 8 प्रतियाँ
3. ऐम०बी०डी० साहित्य रत्नाकर 8 प्रतियाँ
4. ऐम०बी०डी० हिन्दी व्याकरण बोध 8 प्रतियाँ
भवदीय,
मोहन लाल।