PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत तथा पाकिस्तान के सम्बन्धों का सर्वेक्षण करो। (Make a survey of Indo-Pak relations.)
अथवा
भारत-पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Explain the relationship between India and Pakistan.)
उत्तर-
15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ, परन्तु साथ ही भारत का विभाजन भी हुआ और पाकिस्तान का जन्म हुआ। पाकिस्तान का जन्म ब्रिटिश शासकों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति का परिणाम था। पाकिस्तान भारत का पड़ोसी देश है, जिसके कारण भारत-पाक सम्बन्धों का महत्त्व है।
विस्थापित, संपत्ति, देशी रियासतों की संवैधानिक स्थिति, नहरी पानी, सीमा-निर्धारण, वित्तीय और व्यापारिक समायोजन, जूनागढ़, हैदराबाद तथा

कश्मीर और कच्छ के विवादों के लिए भारत और पाकिस्तान में युद्ध होते रहे हैं और तनावपूर्ण स्थिति बनी रही है।
कश्मीर विवाद (Kashmir Controversy)-स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी।
पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों (Tribesmen) को प्रेरणा और सहायता देकर कश्मीर पर आक्रमण करवा दिया। इस पर जम्मू-कश्मीर के राजा हरी सिंह ने 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। 27 अक्तूबर को भारत सरकार ने इस प्रार्थना को स्वीकार कर लिया।

भारत ने पाकिस्तान से कबाइलियों को मार्ग न देने के लिए कहा परन्तु पाकिस्तान पूरी सहायता देता रहा। इस पर लॉर्ड माऊंटबेटन के परामर्श पर भारत सरकार ने 1 जनवरी, 1948 को संयुक्त राष्ट्र चार्टर की 34वीं और 38वीं धारा के अनुसार सुरक्षा परिषद् से पाकिस्तान के विरुद्ध शिकायत की और अनुरोध किया कि वह पाकिस्तान को आक्रमणकारियों की सहायता बंद करने को कहें।। – कश्मीर और संयुक्त राष्ट्र-परन्तु सुरक्षा परिषद् कश्मीर विवाद का कोई समाधान करने में असफल रही। 21 अप्रैल, 1948 को सुरक्षा परिषद् ने 5 सदस्यों को भारत और पाकिस्तान के लिए संयुक्त आयोग (U.N.C.I.P.) की नियुक्ति की और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर में युद्ध विराम हो गया। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है तथा पाकिस्तान ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पी०ओ०के०) पर नाजायज कब्जा कर रखा है।

सन् 1965 का पाक आक्रमण-सन् 1965 में भारत को दो बार पाकिस्तान के आक्रमण का शिकार होना पड़ापहली बार अप्रैल में कच्छ के रणक्षेत्र में और दूसरी बार सितम्बर में कश्मीर में।
सितम्बर, 1965 में पाकिस्तानी सेनाओं ने अन्तर्राष्ट्रीय सीमा का उल्लंघन करके छंब क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। अन्त में सुरक्षा परिषद् के 20 सितम्बर के प्रस्ताव का पालन करते हुए दोनों पक्षों ने 22-23 सितम्बर की सुबह 3-30 बजे युद्ध बंद कर दिया। इस समय तक भारतीय सेनाएँ लाहौर के दरवाज़े तक पहुंच चुकी थीं।

ताशकंद समझौता-10 जनवरी, 1966 को सोवियत संघ के प्रधानमन्त्री श्री कोसिगन के प्रयत्न से दोनों देशों में ताशकंद समझौता हो गया जिसके द्वारा भारत के प्रधानमन्त्री तथा पाकिस्तान के राष्ट्रपति इस बात पर सहमत हो गए कि दोनों देशों के सभी सशस्त्र सैनिक 25 फरवरी, 1966 से पूर्व उस स्थान पर वापस बुला लिए जाएंगे जहां वे 5 अगस्त, 1965 से पूर्व थे तथा दोनों पक्ष युद्ध विराम रेखा पर युद्ध-विराम शर्तों का पालन करेंगे।

1969 में अयूब खां के हाथ से सत्ता निकल कर जनरल याहिया खां के हाथों में आ गई। याहिया खां ने भारत के साथ अमैत्रीपूर्ण नीति का अनुसरण किया।

1971 का युद्ध-1971 में पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बंगला देश) में जनता ने याहिया खां की तानाशाही के विरुद्ध स्वतन्त्रता का आन्दोलन आरम्भ कर दिया। याहिया खां ने आन्दोलन को कुचलने के लिए सैनिक शक्ति का प्रयोग किया। भारत ने बंगला देश के मुक्ति संघर्ष में उसका साथ दिया। मुक्ति संघर्ष के समय लगभग एक करोड़ शरणार्थियों को भारत में आना पड़ा। इससे भारत की आर्थिक व्यवस्था पर बड़ा बोझ पड़ा।

पाकिस्तान ने 3 दिसम्बर, 1971 को भारत पर आक्रमण कर दिया। भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने का निश्चय किया और पाकिस्तान के आक्रमण का डटकर मुकाबला किया। 5 दिसम्बर को श्रीमती इन्दिरा गान्धी ने भारतीय संसद् में बंगला देश गणराज्य के उदय की सूचना दी। 16 दिसम्बर, 1971 में ढाका में जनरल नियाज़ी ने आत्म-समर्पण के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर कर दिए और लगभग 1 लाख सैनिकों ने आत्म-समर्पण कर दिया।

1972 में हुआ शिमला समझौता हुआ था। इस समझौते के बाद से भारत-पाक के मध्य सामाजिक एवं आर्थिक समबन्ध सुधरने लगे थे परन्तु 1981 से पुनः आपसी सम्बन्धों में कटुता आनी प्रारम्भ हो गई। 1987 में पाकिस्तान में सियाचीन ग्लेशियर की पहाड़ी तराइयों पर, भारतीय चौंकियों पर कब्जा जमाने की असफल कोशिश की। 1988 में भारत एवं पाकिस्तान के मध्य तीनं समझौते हुए जिनमें एक-दूसरे के परमाणु संयन्त्रों पर आक्रमण न करने का समझौता सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। हाल के कुछ वर्षों में भारत-पाक सम्बन्धों में आए उतार-चढ़ाव निम्नलिखित हैं

6 अप्रैल, 1991 को भारत एवं पाक के मध्य सीमा पर तनाव कम करने के उद्देश्य से दो समझौते हुए। ये समझौते एक-दूसरे की वायु सीमा के उल्लंघन पर रोक एवं युद्धाभ्यास की अग्रिम सूचना देने से सम्बन्धित हैं।

1998 में दोनों देशों द्वारा किए गए परमाणु परीक्षणों द्वारा इनके आपसी सम्बन्धों में भारी तनाव पैदा हो गया। .
आपसी सम्बन्धों को सुधारने के लिए भारत-पाक के मध्य बस सेवा शुरू करने के लिए 17 फरवरी, 1999 को एक समझौता किया।
भारत-पाक सम्बन्धों में नया मोड़ लाने के लिए 20 फरवरी, 1999 को भारत के प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वयं बस द्वारा लाहौर गए। ___

मई, 1999 में पाकिस्तान द्वारा कारगिल क्षेत्र में भारी घुसपैठ की गई। अनन्त धैर्य के पश्चात् 26 मई, 1999 को भारत ने कारगिल एवं द्रास क्षेत्र में आक्रमण का समुचित जवाब दिया। युद्ध मोर्चों पर भारी पराजय और अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तान को नियन्त्रण रेखा के पीछे हटना पड़ा।

24 दिसम्बर, 1999 को सशस्त्र उग्रवादियों द्वारा भारतीय विमान का अपहरण कर लिया गया। विमान अपहरण में एक अफ़गानी और चार पाकिस्तानी उग्रवादियों का हाथ था।

भारत ने पाकिस्तान से सम्बन्ध सुधारने हेतु वहां के शासक परवेज मुशर्रफ को बातचीत के लिए निमन्त्रण दिया और वे जुलाई, 2001 में भारत आए परन्तु मुशर्रफ के अड़ियल रवैये के कारण यह वार्ता असफल रही।

10 दिसम्बर 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने भारतीय संसद् पर हमला किया। जिसके बाद भारत ने पाकिस्तान जाने वाली एवं वहां से आने वाली बसों, रेलों एवं हवाई सेवाओं पर रोक लगा दी।
सितम्बर, 2002 में पुनः पाक समर्थित उग्रवादी संगठन ने गुजरात के नारायण स्वामी मंदिर अक्षरधाम पर हमला किया जिसमें कई लोग मारे गए।
25 नवम्बर, 2002 में पुनः पाक प्रशिक्षित आतंकवादियों ने जम्मू के प्रसिद्ध रघुनाथ मन्दिर पर हमला कर कई बेगुनाह लोगों की जान ली।

लगातार आतंकवादी हमलों के चलते भारत-पाक सम्बन्धों में कड़वाहट आई है जिसके कारण भारत ने जनवरी, 2003 में पाकिस्तान में होने वाले सार्क शिखर सम्मेलन में भाग लेने से इन्कार कर दिया।

वर्ष 2004 में भारत-पाक सम्बन्धों में सुधार की उम्मीद जगाई । 2004 के सार्क सम्मेलन के दौरान भारत-पाक ने विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने के लिए सहमति व्यक्त की। दोनों देशों के मध्य बंद हुई रेल सेवा, बससेवा एवं विमान सेवा पुनः आरम्भ कर दी गई।

सितम्बर, 2004 में भारत के प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की न्यूयार्क में शिखर वार्ता हुई। इस बैठक में मुनाबावो-खोखरापार रेल सेवा तथा श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा शुरू करने पर बातचीत शुरू करने की सहमति बनी। जम्मू-कश्मीर के मामले में सांझा ब्यान में कहा गया कि दोनों नेताओं ने इस पर सहमति व्यक्त की कि बातचीत के द्वारा इस मुद्दे के शान्तिपूर्ण समाधान के सभी विकल्प ईमानदारी व उद्देश्यपूर्ण ढंग से तलाशे जायेंगे।

नवम्बर, 2004 में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री शौकत अजीज भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान शौकत अजीज ने भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह से जम्मू-कश्मीर,श्रीनगर-मुजफ्फराबाद बस सेवा शुरू करने तथा बैंकिग क्षेत्र में पारस्परिक सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की।

16 फरवरी, 2005 को दोनों देशों ने श्रीनगर-मुजफ्फराबाद के बीच 7 अप्रैल, 2005 से बस चलाने का ऐलान किया। इस बस में पासपोर्ट के बजाए एंट्री परमिट के ज़रिए दोनों देशों के नागरिक सफर कर सकेंगे। इसी तरह अमृतसर और लाहौर तथा ननकाना साहिब तक बस चलाने पर भी दोनों देश सहमत हो गए।

जनरल मुशर्रफ की भारत यात्रा-17 अप्रैल, 2005 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ नई दिल्ली आये। जनरल मुशर्रफ की इस यात्रा से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते को नया आयाम मिला। दोनों देशों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वे शांति प्रक्रिया से पीछे नहीं हटेंगे। दोनों नेताओं ने अन्तिम समाधान मिलने तक जम्मू-कश्मीर पर सार्थक और दूरगामी बातचीत रखने पर सहमति जताई।

कश्मीर में भूकम्प से तबाही-8-9 अक्तूबर, 2005 को भूकम्प से कश्मीर विशेषकर पाक अधिकृत कश्मीर में तबाही हुई। भारत द्वारा भेजी गई राहत सामग्री यद्यपि पाकिस्तान ने स्वीकार कर ली, परन्तु भारत के साथ संयुक्त राहत कार्यों की पेशकश को पाकिस्तान ने ठुकरा दिया।

पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-3-4 अप्रैल, 2007 को पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री शौकत अजीज भारत यात्रा पर आए तथा भारतीय प्रधानमन्त्री के साथ कई द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा की। .

मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को आतंकवादियों ने मुम्बई के दो प्रसिद्ध होटलों पर हमला करके कई व्यक्तियों को मार दिया। इस आतंकवादी हमले के कारण भारत-पाकिस्तान सम्बन्ध बहुत बिगड़ गए। क्योंकि सभी आतंकवादी पाकिस्तानी नागरिक थे, तथा यह हमला पाकिस्तान की मदद से ही हुआ था। अतः भारत ने पाकिस्तान से सभी वांछित अपराधियों की मांग के साथ-साथ पाकिस्तानी सीमा में चल रहे आतंकवादी प्रशिक्षण स्थलों को बन्द करने की मांग की। परन्तु पाकिस्तान ने इन सभी मांगों को ठुकराते हुए युद्ध की तैयारी शुरू कर दी जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध और खराब हुए।

जुलाई, 2009 में भारतीय प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसूफ रजा गिलानी मिस्र में 15वें गुट निरपेक्ष आन्दोलन के दौरान मिले । संयुक्त घोषणा-पत्र जारी करते हुए दोनों देशों में आतंकवाद से मिलकर जूझने की घोषणा की।

25 फरवरी, 2010 को भारत-पाकिस्तान के बीच विदेश सचिव स्तरीय बातचीत हुई। इस वार्ता के दौरान भारत ने पाकिस्तान से वांछित आतंकवादियों को भारत को सौंपने को कहा।
नवम्बर 2011 में भारत-पाकिस्तान के प्रधानमंत्री सार्क सम्मेलन के दौरान मालद्वीव मिले। इस मुलाकात के दौरान दोनों देशों ने विवादित मुद्दों पर बातचीत जारी रखने पर सहमति प्रकट की।

8 अप्रैल, 2011 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति श्री आसिफ अली जरदारी भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित मुद्दों पर शांतिपूर्ण ढंग से हल करने की बात की। दिसम्बर 2012 में पाकिस्तान के आन्तरिक मंत्री श्री रहमान मलिक भारत यात्रा पर आए। इस अवसर पर दोनों देशों ने वीजा नियमों को और सरल बनाने का समझौता किया।

सितम्बर, 2013 में संयुक्त राष्ट्र संघ के वार्षिक सम्मेलन में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ ने न्यूयार्क में मुलाकात की। इस दौरान दोनों देशों ने सभी विवादित विषयों को बातचीत द्वारा हल करने पर सहमति व्यक्त की।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नबाज शरीफ मई 2014 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।

नबम्बर 2014 में नेपाल में हुए सार्क सम्मेलन में दोनों देशों के बीच तनाव होने के कारण कोई द्विपक्षीय बातचीत नहीं हो पाई।
दिसम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान की यात्रा करके दोनों देशों के सम्बन्धों को सुधारने का प्रयास किया। वर्तमान समय में भारत-पाकिस्तान के सम्बन्ध खराब बने हुए हैं।

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प्रश्न 2.
भारत-पाकिस्तान के बीच में तनाव के छः कारणों का वर्णन करें। (Describe in detail Six reasons of Tension between India and Pakistan.)
उत्तर-
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव के निम्नलिखित कारण हैं
1. कश्मीर समस्या-स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आज़ाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या अब भी है। इसका कारण यह है कि भारत सरकार कश्मीर को भारत का अंग मानती है जबकि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह करवा कर यह निर्णय करना चाहता है कि कश्मीर भारत में मिलना चाहता है या पाकिस्तान के साथ। परन्तु पाकिस्तान की मांग गलत और अन्यायपूर्ण है, इसलिए इसे माना नहीं जा सकता।

2. सिन्धु नदी जल बंटवारा-सिन्धु नदी जल बंटवारा भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। भारत का मानना है, कि सिन्धु नदी जल समझौता तार्किक नहीं है। अर्थात् पाकिस्तान को आवश्यकता से अधिक पानी दिया जाता है। इसीलिए भारत सरकार सिन्धु नदी जल बंटवारे समझौते पर पुनर्समीक्षा कर रही है।

3. कारगिल युद्ध-कारगिल युद्ध भी दोनों देशों के बीच तनाव का कारण बना है। पाकिस्तान ने धोखे से भारतीय क्षेत्र में स्थित कारगिल पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। भारत ने साहस का परिचय देते हुए पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया था।

4. भारतीय संसद् पर हमला-13 दिसम्बर, 2001 को पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी संगठनों लश्कर-ए-तोइबा एवं जैश-ए-मोहम्मद ने भारतीय संसद् पर हमला किया जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत खराब हो गये तथा दोनों देशों ने सीमा पर फ़ौजें तैनात कर दीं, परन्तु विश्व समुदाय के हस्तक्षेप एवं पाकिस्तान द्वारा लश्कर-ए-तोइबा एवं जैशए-मोहम्मद पर पाबन्दी लगाए जाने से दोनों देशों में तनाव कुछ कम हुआ।

5. मुम्बई पर आतंकवादी हमला-26 नवम्बर, 2008 को पाकिस्तानी समर्थित आतंकवादियों ने मुम्बई के होटलों पर कब्जा करके कई व्यक्तियों को मार दिया। भारत ने पाकिस्तान में चल रहे आतंकवादी शिविरों को बंद करने की मांग की, जिसे पाकिस्तान ने नहीं माना, इससे दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए।

6. परमाणु हथियार-भारत एवं पाकिस्तान दोनों के पास परमाणु हथियार हैं। जहां तक भारत के परमाणु हथियारों का सम्बन्ध है तो वे सुरक्षित हाथों में हैं। परंतु पाकिस्तान परमाणु हथियारों के आतंकवादियों के पास जाने की संभावना बनी रहती है। जिससे दोनों देशों में तनाव बना रहता है।

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प्रश्न 3.
भारत तथा बंगला देश के बीच मधुर एवं तनावपूर्ण सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए। (Explain the phases of cordial and strainded relations between India and Bangladesh.)
अथवा
भारत और बंगला देश के सम्बन्धों की विस्तार से व्याख्या कीजिए। (Explain in detail the relationship between India and Bangladesh.)
उत्तर-
बंगला देश के अस्तित्व और उसकी स्वतन्त्रता का श्रेय भारत को है। 1971 में बंगला देश स्वतन्त्र देश बना। इससे पूर्व बंगला देश पाकिस्तान का हिस्सा तथा पूर्वी पाकिस्तान कहलाता था। बंगला देश की स्वतन्त्रता के लिए भारत के जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी। 6 दिसम्बर, 1971 को भारत ने बंगला देश को मान्यता दे दी।

1971 की मैत्री सन्धि-शेख मुजीबुर्रहमान 12 जनवरी, 1972 को बंगला देश के प्रधानमन्त्री बने। फरवरी, 1972 में जब वे भारत आए तो उन्होंने कहा था, “भारत और बंगला देश की मित्रता चिरस्थायी है, उसे दुनिया की कोई ताकत तोड़ नहीं सकती।” 19 मार्च, 1972 को भारत और बंगला देश में 25 वर्ष की अवधि के लिए मित्रता और सहयोग की सन्धि हुई। इस सन्धि की महत्त्वपूर्ण बातें इस प्रकार थीं

(1) आर्थिक, तकनीकी, वैज्ञानिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों में दोनों देश एक-दूसरे के साथ सहयोग करेंगे। (2) दोनों देश एक-दूसरे की अखण्डता व सीमाओं का सम्मान करेंगे। (3) दोनों देश एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। (4) दोनों देश किसी तीसरे देश को कोई ऐसी सहायता नहीं देंगे जो दोनों में किसी देश के हित के विरुद्ध हो। (5) दोनों देश उपनिवेशवाद का विरोध करेंगे।

बंगला देश को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने में भारत की सहायता-बंगला देशं ने 9 अगस्त, 1972 को संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के लिए प्रार्थना-पत्र भेजा, जिसका पाकिस्तान और चीन ने विरोध किया। चीन ने सुरक्षा परिषद् में वीटो का भी प्रयोग किया, परन्तु भारत के प्रयास के फलस्वरूप और रूस के सहयोग से अन्त में बंगला देश संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बन गया।

शेख मुजीबुर्रहमान की भारत यात्रा-1974 में शेख मुजीबुर्रहमान ने भारत यात्रा की तथा 1975 में गंगा जल के बंटवारे से सम्बन्धित विवाद को बातचीत द्वारा समाप्त करने की कोशिश की।

सम्बन्धों में परिवर्तन-15 अगस्त, 1975 को बंगला देश के संस्थापक शेख मुजीबुर्रहमान की परिवार सहित हत्या कर दी गई। शेख की हत्या के बाद भारत-बंगला देश के सम्बन्धों में तेजी से परिवर्तन आ गया। नवम्बर, 1975 में जनरल ज़ियाउर्रहमान राष्ट्रपति बने। तब से बंगला देश में भारत-विरोधी प्रचार तेज़ हो गया।

जनता सरकार और भारत-बंगला देश सम्बन्ध-मार्च, 1977 में भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी और दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार की किरण दिखाई दी। अक्तूबर, 1977 में फरक्का समझौता हुआ। अप्रैल, 1979 में प्रधानमन्त्री मोरार जी देसाई बंगला देश गए और दोनों देशों के सम्बन्धों में कुछ सुधार हुआ।

श्रीमती इंदिरा गांधी की सरकार और भारत-बंगला देश सम्बन्ध-नवम्बर, 1979 से भारत-बंगला देश सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए। भारत के साथ विवाद का मुद्दा फरक्का बांध और नवमूर द्वीप है। मई, 1981 ई० में बंगला देश की सरकार ने सरकारी और गैर-सरकारी माध्यमों से नवमूर द्वीप पर कथित भारतीय कब्जे. और अन्य गैर-कानूनी कार्यवाहियों का आरोप लगाना शुरू कर दिया और 12 मई को 3 सशस्त्र नावें नवमूर द्वीप के इर्द-गिर्द आपत्तिजनक रूप में चक्कर काटने लगीं। भारत सरकार ने नवमूर द्वीप की रक्षा के लिए तुरन्त उचित उपाय किए। नवमूर द्वीप वास्तव में

अक्तूबर, 1983 में बंगला देश के मुख्य मार्शल-ला प्रशासक जनरल इरशाद की दो दिवसीय भारतीय यात्रा से दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के एक नए अध्याय का सूत्रपात हुआ, क्योंकि दोनों पक्ष फरक्का बांध पर गंगा जल के बंटवारे तथा तीन बीघा गलियारे के उपयोग के बारे में काफी समय से चली आ रही अड़चनों को निपटाने में काफ़ी सीमा तक सफल हो गए। नवम्बर, 1985 में भारत तथा बंगला देश ने फरक्का के पानी के बंटवारे के सम्बन्ध में अगले तीन वर्षों के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह 1982 के समझौते पर आधारित था।

जुलाई, 1986 में बंगला देश के राष्ट्रपति इरशाद भारत आए और उन्होंने दोनों देशों के बीच चले आ रहे विवादों को हल करने के लिए भारतीय नेताओं से बातचीत की। अप्रैल, 1987 में भारत के विदेश सचिव बंगला देश गए और उन्होंने बंगला देश के विदेश सचिव से विभिन्न विवादों को हल करने के लिए बातचीत की।

चकमा शरणार्थियों की समस्या-बंगला देश से अप्रैल, 1990 में लगभग 60 हज़ार चकमा शरणार्थी भारत आ चुके थे। चकमा शरणार्थियों की वापसी के लिए कई बार बातचीत हुई परन्तु कोई समझौता नहीं हुआ। इसका कारण यह रहा कि बंगला देश की सरकार चकमा शरणार्थियों की सुरक्षा की विश्वसनीय गारंटी नहीं देती थी।
सितम्बर, 1991 में बंगला देश ने भारत को आश्वासन दिया कि पूर्वोत्तर क्षेत्र में आतंकवादी और उग्रवादी गतिविधियों को किसी तरह की सहायता नहीं देगा।

तीन बीघा गलियारे का हस्तान्तरण-तीन बीघा गलियारा पट्टा भारत और बंगला देश के बीच तनाव का कारण रहा है। 26 मई, 1992 को बैंगला देश की प्रधानमन्त्री बेग़म खालिदा जिया भारत आईं। दोनों देशों में तीन बीघा पर एक समझौता हुआ जिसके अन्तर्गत 26 जून, 1992 को भारत ने तीन बीघा गलियारा बंगला देश को पट्टे पर सौंप दिया, परन्तु इस गलियारे पर प्रशासनिक अधिसत्ता भारत की ही रहेगी।

बंगला देश की प्रधानमन्त्री खालिदा बेग़म और भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने अनेक महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बातचीत की और दोनों देशों में पानी के बंटवारे पर सहमति हो गई। चकमा शरणार्थियों को वापसी पर भी आम सहमति हो गई।

बंगला देश की संसद् के प्रस्ताव पर भारत की आपत्ति-बंगला देश की संसद् ने 20 जनवरी, 1993 को एक प्रस्ताव पारित कर अयोध्या में 6 सितम्बर को विवादित ढांचा गिराए जाने की कड़ी आलोचना की और बाबरी मस्जिद को दोबारा बनाने की मांग की। भारत ने बंगला देश संसद् द्वारा पारित इस प्रस्ताव पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमारे आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप है।

गंगा जल पर भारत व बंगला देश के बीच समझौता-बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद 11 दिसम्बर, 1996 को भारत की यात्रा पर आईं। 12 दिसम्बर, 1996 को भारत और बंगला देश में फरक्का गंगा जल बंटवारे पर एक ऐतिहासिक समझौता हुआ जिससे पिछले दो दशकों से चले आ रहे विवाद का अन्त हो गया।

प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद की भारत यात्रा-जून, 1998 में बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद भारत आईं और उन्होंने प्रधानमन्त्री वाजपेयी से बातचीत की। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने इस बात पर जोर दिया कि द्विपक्षीय समस्याओं का हल द्विपक्षीय वार्ता द्वारा होना चाहिए।

19 जून, 1999 को भारत व बंगला देश के सम्बन्धों में सुधार लाने के लिए दोनों देशों के बीच बस सेवा प्रारम्भ की गई। स्वयं भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी कलकत्ता (कोलकाता) से चली इस बस की अगुवाई के लिए ढाका पहुंचे। अपनी बंगला देश की यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री ने बंगला देश को 200 करोड़ रुपये का कर्ज देने का समझौता किया। इसके अतिरिक्त भारत ने बंगला देश से ‘प्रशुल्क रहित आयात’ के लिए भी सैद्धान्तिक रूप से स्वीकृति प्रदान की।

भारत और बंगला देश ने 9 अप्रैल, 2000 को अगरतला और ढाका के बीच एक नई बस सेवा चलाने का निर्णय किया। सन् 2000 में दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध और मज़बूत हुए। भारत ने कुछ चुनिंदा बंगलादेशी वस्तुओं को बिना किसी तटकर के देश में प्रवेश की इजाज़त दी।
फरवरी, 2003 में बंगला देश द्वारा भारत में घुसपैठिये भेजने से दोनों देशों के बीच असहजता की स्थिति बन गई थी। परन्तु भारत के कड़ा विरोध करने पर बंगला देश ने अपने घुसपैठियों को वापस बुला लिया।
भारत बंगलादेश सीमा पर तार (बाड़) लगाने के पक्ष में है ताकि कोई बंगलादेश का नागरिक गैर-कानूनी ढंग से भारत की सीमा के अन्दर न आ जाए। परन्तु बंगला देश इसके पक्ष में नहीं है।

भारतीय प्रधानमन्त्री की बंगला देश यात्रा-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 14 नवम्बर, 2005 को सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए बंगला देश की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर भी विचार विमर्श किया।

बंगलादेशी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-बंगलादेश की प्रधानमन्त्री खालिदा ज़िया 19 मार्च, 2006 को भारत यात्रा पर आईं। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने व्यापार एवं आर्थिक हितों से सम्बन्धित दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए।
भारतीय विदेश मन्त्री की बंगला देश यात्रा-भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी 10 फरवरी, 2009 को बंगला देश की यात्रा पर गए तथा बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजिद से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

बंगलादेशी प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-जनवरी, 2010 में बंगलादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना भारत यात्रा पर आई। इस यात्रा के दौरान भारत ने बंगलादेश को 250 मेगावट बिजली देने की घोषणा की तथा बंगला देश के 300 छात्रों को प्रतिवर्ष छात्रवृति देने की घोषणा की। दूसरी ओर बंगला देश की प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वह अपने क्षेत्र का प्रयोग भारत विरोधी गति विधियों के लिए नहीं होने देंगी।

भारतीय प्रधानमन्त्री की बंगला देश की यात्रा-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 6-7 सितम्बर, 2011 को बंगला देश की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ने बैठक की। इस दौरान दोनों नेताओं ने परस्पर द्विपक्षीय मुद्दों पर बाचचीत की।

जून 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बंगला देश की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने भूमि सीमा समझौते सहित 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
अक्तूबर 2016 में बंगला देश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना ‘बिम्सटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आई। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

अप्रैल 2017 में बंगला देशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आईं। इस दौरान दोनों देशों ने 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
मई 2018 में बंगलादेशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आईं। इस दौरान दोनों देशों ने रोहिंग्या मुद्दे सहित द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की ।
संक्षेप में, भारत ने बंगला देश को हर परिस्थिति व समय पर सहायता दी है, लेकिन भारत को बंगला देश से वैसा सहयोग प्राप्त नहीं हुआ जिसकी भारत आशा रखता है।

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प्रश्न 4.
भारत-श्रीलंका सम्बन्धों का मूल्यांकन करो। (Evaluate Indo Sri Lanka relations.)
अथवा
भारत और श्रीलंका के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए। (Give brief account of India’s relations with Sri Lanka.)
उत्तर-
भारत और श्रीलंका के सम्बन्ध लगभग दो हज़ार वर्षों से अधिक पुराने हैं। भारत पर ब्रिटिश शासन स्थापित होने पर श्रीलंका भी इंग्लैंड के अधीन आ गया। दोनों में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध राष्ट्रीय आन्दोलन चले। 1947 में भारत के स्वतन्त्र होने पर अंग्रेज़ अधिक समय तक श्रीलंका पर शासन न कर सके और 1948 में श्रीलंका स्वतन्त्र हुआ। दोनों देशों में लोकतन्त्र की स्थापना की गई और 1948 में गुट-निरपेक्षता की नीति का अनुसरण किया, परन्तु 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तब श्रीलंका ने भारत का समर्थन नहीं किया, जिससे भारतीयों की भावना को ठेस लगी।

श्रीलंका में भारतीय वंशजों की समस्या- भारत और श्रीलंका में तनाव का कारण श्रीलंका में बसे लाखों भारतीयों की समस्या रही है। श्रीलंका की स्वतन्त्रता के समय लगभग दस लाख भारतीय मूल के लोग वहां रह रहे थे। श्रीलंका ने 1949 में नागरिकता अधिनियम पास कर दिया। लगभग सभी भारतीय मूल के निवासियों (लगभग 8.2 लाख) ने इस अधिनियम के अन्तर्गत नागरिकता के लिए प्रार्थना की परन्तु अक्तूबर, 1964 तक केवल 1 लाख 34 हज़ार व्यक्तियों को ही नागरिकता प्राप्त हुई। श्रीलंका सरकार ने जिन भारतीयों को नागरिकता प्रदान नहीं की थी उन्हें तुरन्त भारत चले जाने के लिए कहा। परन्तु भारत सरकार का कहना था कि जो व्यक्ति कई पीढ़ियों से वहां रह रहे हैं उनको निकालना गलत है और वे वहीं के नागरिक हैं न कि भारत के। अब भी यह समस्या पूरी तरह हल नहीं हुई है। । कच्चा टीबू द्वीप-कच्चा टीबू द्वीप विवाद को हल करने के लिए जून, 1974 में दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके अनुसार कच्चा टीबू द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया।

जनवरी, 1978 में श्रीलंका को भारत ने 10 करोड़ रु० का ऋण आसान शर्तों पर दिया। फरवरी, 1979 में प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने श्रीलंका की यात्रा की और दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों में वृद्धि हुई।

तमिल समस्या–भारत और श्रीलंका के सम्बन्धों में तनाव का महत्त्वपूर्ण कारण तमिल समस्या है। 1984 में तमिल समस्या इतनी गम्भीर हो गई कि दोनों देशों के सम्बन्धों में काफ़ी तनाव रहा। प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने बारबार घोषणा की कि भारत सरकार श्रीलंका के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगी और यदि श्रीलंका की सरकार चाहेगी तो भारत सरकार तमिल समस्या हल करने के लिए श्रीलंका की सरकार को पूरा सहयोग देगी।

दिसम्बर, 1984 में प्रधानमन्त्री राजीव गांधी ने तमिल जाति के निर्दोष लोगों की अन्धाधुन्ध हत्याओं की कड़ी निंदा की और तमिल समस्या का राजनीतिक हल निकालने की अपील की। नवम्बर, 1986 में प्रधानमन्त्री श्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्धने ने जातीय समस्या के हल के लिए बातचीत की, परन्तु कोई हल नहीं निकला।

तमिल समस्या के हल के लिए दोनों देशों में समझौता-काफ़ी प्रयासों के फलस्वरूप तमिल समस्या को हल करने के लिए प्रधानमन्त्री राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे० आर० जयवर्धने ने 29 जुलाई, 1987 को शान्ति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इस समझौते के अनुसार तमिल बहुल उत्तरी एवं पूर्वी प्रांतों का विलय होगा जिसमें एक ही प्रशासनिक इकाई होगी। दोनों प्रांतों के लिए एक ही प्रान्तीय परिषद्, एक मुख्यमन्त्री तथा एक मन्त्रिमण्डल होगा। समझौते को लागू करने की गारंटी भारत की है।

इस समझौते का बहुत विरोध किया गया। लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (लिट्टे) की हठधर्मी के कारण हिंसा और तनाव का वातावरण बन गया। भारत ने श्रीलंका में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए भारतीय शान्ति सेना भेजी। अक्तूबर, 1987 में भारत सरकार ने स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए सेनाध्यक्ष सुन्दरजी और रक्षा मन्त्री के० सी० पन्त को श्रीलंका भेजा। श्रीलंका की संसद् ने 12 नवम्बर, 1987 को प्रान्तीय विधेयक परिषद् पास कर दिया। भारतीय शान्ति सेना ने श्रीलंका में शान्ति स्थापना में बहुत ही सराहनीय कार्य किया।

शान्ति सेना की वापसी-जनवरी, 1989 में भारतीय शान्ति सेना की वापसी आरम्भ हुई। 23 जून, 1989 को श्रीलंका के राष्ट्रपति प्रेमदास ने घोषणा की कि 29 जुलाई, 1989 तक भारतीय शान्ति सेना वापस चली जानी चाहिए। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनने के पश्चात् दोनों देशों की सरकारों में यह सहमति हुई कि शान्ति सेना की 31 मार्च, 1990 से पहले पूरी तरह वापसी होगी। राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने अपना वायदा पूरा किया और शान्ति सेना की आखिरी टुकड़ी ने 25 मार्च को श्रीलंका को छोड़ दिया।

तमिल शरणार्थी-मार्च, 1990 को श्रीलंका से कई हज़ार तमिल शरणार्थी भारत आए हैं। आवश्यकता इस बात की है कि तमिल शरणार्थी समस्या को बढ़ने से पहले ही हल कर लिया जाए।
संयुक्त आयोग की स्थापना-दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों ने जुलाई, 1991 में संयुक्त आयोग के गठन के समझौते पर हस्ताक्षर किए। 7 जनवरी, 1992 को संयुक्त आयोग की दो दिवसीय बैठक के बाद भारत और श्रीलंका ने व्यापार, आर्थिक और प्रौद्योगिक के क्षेत्र में आपसी सहयोग का दायरा बढ़ाने का फ़ैसला किया।
श्रीलंका के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-1992 में श्रीलंका के प्रधानमन्त्री भारत की यात्रा पर आए और दोनों देशों के सम्बन्धों में और सुधार हुआ।
मई, 1993 में श्रीलंका के नव-निर्वाचित प्रधानमन्त्री तिलकरत्ने भारत की यात्रा पर आए।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका की राष्ट्रपति चन्द्रिका कुमारतुंगा अप्रैल, 1995 में भारत की यात्रा पर आईं ओर दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ।
परमाणु परीक्षण-मई, 1998 में भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किए, जिस पर अमेरिका तथा कई अन्य देशों ने भारत पर अनेक प्रतिबन्ध लगाए, जिनकी श्रीलंका ने कड़ी आलोचना की। 27 दिसम्बर, 1998 को श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमती चन्द्रिका भंडारनायके कुमारतुंगा तीन दिन की यात्रा पर भारत आईं। भारत और श्रीलंका ने मुक्त व्यापार समझौता किया। राष्ट्रपति कुमारतुंगा ने इस समझौते को ऐतिहासिक बताया। दोनों देशों के बीच हुए मुक्त व्यापार समझौते के बाद आपसी सम्बन्धों का एक नया अध्याय शुरू हुआ है।

भारतीय विदेश मन्त्री की श्रीलंका यात्रा-जून, 2000 में भारतीय विदेश मन्त्री जसवन्त सिंह श्रीलंका की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मन्त्री ने श्रीलंका को 100 मिलियन डॉलर तत्काल मानवीय सहायता के लिए ऋण के रूप में देने की घोषणा की।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-फरवरी, 2001 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा भारत यात्रा पर आईं। उन्होंने भारतीय प्रधानमन्त्री को नार्वे एवं लिट्टे के बीच चल रही बातचीत की जानकारी दी। भारत ने श्रीलंका को इस समस्या पर हर सम्भव सहायता देने की बात कही।

श्रीलंका के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2001 में श्रीलंकी के प्रधानमन्त्री श्री रानिल विक्रमसिंघे भारत यात्रा पर आए। दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद भारत ने 18 साल से चली आ रही लिट्टे समस्या पर हर सम्भव सहायता देने की बात कही। इसके अतिरिक्त भारत ने श्रीलंका को 3 लाख टन गेहूं देने की घोषणा की। दोनों देश कृषि, बिजली एवं सूचना तकनीकी उद्योग पर एक-दूसरे को सहयोग देने पर राजी हुए।

श्रीलंका की राष्ट्रपति की भारत यात्रा-नवम्बर, 2004 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा भारत यात्रा पर आईं। कुमारतुंगा की भारतीय प्रधानमन्त्री के साथ हुई बातचीत के पश्चात् जारी सांझे बयान में कहा गया, कि भारत श्रीलंका में ऐसे शान्ति समझौते का समर्थन करेगा, जो सभी सम्बन्धित पक्षों को स्वीकार्य हो। भारत की प्रस्तावित सेतुसमुद्रम परियोजना के विषय पर दोनों देशों में बातचीत हुई।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपाक्से (Mahinda Rajapakse) 28 दिसम्बर, 2005 को भारत की यात्रा पर आए। राष्ट्रपति महिंदा राजपाक्से ने भारत को श्रीलंका में शांति स्थापना की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाने को कहा।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से 3 अप्रैल, 2007 को 14वें सॉर्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान देशों ने द्विपक्षीय सम्बन्धों पर भी विचार-विमर्श किया।
भारतीय प्रधानमन्त्री की श्रीलंका यात्रा- भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 2-3 अगस्त, 2008 को सॉर्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए श्रीलंका की यात्रा पर गए तथा इस यात्रा के दौरान श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से से भी बातचीत की।
भारतीय विदेश मन्त्री की श्रीलंका यात्रा- भारतीय विदेश मन्त्री प्रणव मुखर्जी ने फरवरी, 2009 में श्रीलंका की यात्रा की। इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य श्रीलंका एवं लिट्टे के बीच जारी घमासान लड़ाई थी। अपनी यात्रा के दौरान प्रणव

मुखर्जी ने इस विषय में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से से बातचीत की तथा लिट्टे के विरुद्ध लड़ाई में श्रीलंका का समर्थन किया, साथ ही उन्होंने श्रीलंका सरकार से यह भी अनुरोध किया कि श्रीलंका में तमिल नागरिकों के हितों की रक्षा की जाए।

श्रीलंका के राष्ट्रपति की भारत यात्रा-श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से ने 8-11 जून 2010 को भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के सात समझौतों पर हसताक्षर किए। इस अवसर पर भारतीय प्रधान मन्त्री ने श्रीलंका में लिट्टे के सफाए के बाद 70 हजार तमिल विस्थापितों के पुनर्वास की प्रक्रिया को तेज़ करने की आवश्यकता जताई।

जून, 2011 में श्रीलंका के राष्ट्रपति महिन्दा राजपाक्से भारत यात्रा पर आए तथा दोनों देशों ने सुरक्षा एवं विकास से सम्बन्धित सात समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी तथा श्रीलंका के राष्ट्रपति राजपक्षे ने अलग से मुलाकात करके द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

मार्च, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने श्रीलंका के लोगों को वीजा ऑन अराइवल देने की घोषणा की।
अक्तूबर 2016 में श्री लंका के राष्ट्रपति श्रीसेना ‘बिम्गटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

मई 2017 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने श्रीलंका की यात्रा की। इन दौगन दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।
अक्तूबर 2018 में श्रीलंका के प्रधानमंत्री ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने बुनियादी स्तर के चलाए जाने वाले कार्यक्रमों को गति प्रदान करने पर सहमति प्रकट की । READERSARASTRIERREELATES

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प्रश्न 5.
भारत-चीन सम्बन्धों का विस्तार से वर्णन करो। (Explain in detail the Indo-China relations.)
उत्तर-
भारत और चीन में पहले गहरी मित्रता थी परन्तु सन् 1962 में चीन ने भारत पर अचानक आक्रमण करके इसको शत्रुता में परिवर्तित कर दिया। आज भी चीन ने भारत की कुछ भूमि पर अपना अधिकार जमाया हुआ है। भारत चीन से सम्बन्ध सुधारने के लिए प्रयत्नशील है परन्तु चीन अभी भी शत्रुतापूर्ण रुख अपनाए हुए है।

नेहरू युग में भारत-चीन सम्बन्ध (1947-मई, 1964) (INDO-CHINA RELATIONS IN NEHRU ERA):
चीन के प्रति मैत्रीपूर्ण नीति-आरम्भ से ही भारत ने साम्यवादी चीन के प्रति मैत्रीपूर्ण और तुष्टिकरण की नीति अपनाई। पहले उसने चीन को मान्यता दी और फिर संयुक्त राष्ट्र में उसके प्रवेश का समर्थन किया।

29 अप्रैल, 1954 को चीन के साथ एक व्यापारिक समझौता करके भारत ने तिब्बत में प्राप्त बहिर्देशीय अधिकारों (Extra-territorial Rights) को चीन को दे दिया और स्वयं कुछ भी प्राप्त नहीं किया। समझौते के समय दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। सन् 1955 में बांडुंग सम्मेलन में इन्हीं सिद्धान्तों का विस्तार किया गया। चीन के प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई, 1954 में भारत की यात्रा पर आए और पं० नेहरू ने चीन का दौरा किया। इसके पश्चात् भारत और चीन के सम्बन्धों में तनाव आना शुरू हो गया।

1962 का चीनी आक्रमण-चीन ने 20 अक्तूबर, 1962 को भारत पर बड़े पैमाने पर आक्रमण किया। भारत को इस युद्ध में अपमानजनक पराजय का मुंह देखना पड़ा और चीन ने भारत की हजारों वर्ग मील भूमि पर कब्जा कर लिया। इससे पं० नेहरू की शान्तिपूर्ण नीतियों को गहरी चोट पहुंची।

शास्त्री काल में भारत-चीन के सम्बन्ध ( मई, 1964 से जनवरी, 1966)-श्री लाल बहादुर शास्त्री, श्री नेहरू के बाद 10 जनवरी, 1966 तक भारत के प्रधानमन्त्री रहे। इस काल में भी भारत और चीन के सम्बन्धों में कोई सुधार नहीं हुआ। चीन ने 1965 में भारत-पाक युद्ध में भी अपना शत्रुतापूर्ण रवैया दिखाया। चीन ने पाकिस्तान को पूरा समर्थन दिया और भारत को आक्रमणकारी घोषित किया।

मैकमोहन रेखा विवाद-भारत और चीन में सीमा विवाद का मुख्य कारण दोनों देशों की सीमा का मैकमोहन रेखा द्वारा निर्धारण और दोनों पक्षों द्वारा उसकी व्याख्या है। सर हैनरी मैकमोहन 1914 में भारत के विदेश सचिव थे। उन्होंने तिब्बती प्रतिनिधि मण्डल के साथ विचार-विमर्श करके इस सीमा का निर्धारण किया। चीन इस सीमा निर्धारण के पक्ष में नहीं था, लेकिन सीमा निर्धारण के बाद उसे इसकी सूचना दे दी गई है। चीन की सरकार ने मैकमोहन रेखा को कभी मान्यता नहीं दी और आज भी नहीं दे रही है। इसलिए दोनों देशों में सीमा विवाद चला आ रहा है।

इंदिरा काल में भारत और चीन के सम्बन्ध (जनवरी, 1966 से फरवरी, 1977 तक)-लाल बहादुर शास्त्री के बाद 1966 में श्रीमती इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमन्त्री बनीं। उन्होंने चीन के साथ सम्बन्ध-विवाद सुलझाने के लिए कूटनीतिक प्रयत्न किए, परन्तु 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय इन दोनों देशों के सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गए। चूंकि भारत-पाक युद्ध के बीच हुई सुरक्षा परिषद् की बैठकों में चीन ने पाकिस्तान का समर्थन किया। अप्रैल, 1976 तक भारत-चीन सम्बन्ध लगभग तनावपूर्ण ही रहे।

जनता सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध (JANATA GOVERNMENT AND INDO-CHINA RELATIONS):
मार्च, 1977 में जब भारत में जनता पार्टी की सरकार बनी और श्री मोरारजी देसाई प्रधानमन्त्री बने तो चीन की सरकार ने इस सरकार का स्वागत किया। जनता सरकार ने चीन से सम्बन्ध सुधारने का प्रयास किया।

भारतीय विदेश मन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी 12 फरवरी, 1979 को पीकिंग पहुंचे। वहां उन्होंने अपनी बातचीत के दौरान इस बात पर जोर दिया कि जब तक सीमा विवाद को नहीं सुलझाया जाता, तब तक दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं हो सकते।

कांग्रेस (इ) की सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध . (GOVERNMENT OF CONGRESS (I) AND INDO CHINA RELATIONS)

भारत में सहयोग करने की चीनी नेताओं की इच्छा तथा सम्बन्ध सुधारने के लिए प्रयास-जनवरी, 1980 में श्रीमती गांधी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद चीनी नेता कई बार भारत से सम्बन्ध सुधारने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। चीन के प्रधानमन्त्री झाओ जियांग ने अपनी पाकिस्तान यात्रा के दौरान 3 जून, 1981 को कहा कि एशिया के दो बड़े देश, चीन और भारत को शान्तिपूर्वक रहना चाहिए। यह क्षेत्रीय और विश्व के स्थायित्व दोनों के हित में है। 15 अगस्त, 1984 को भारत और चीन में व्यापारिक समझौता हुआ जो कि निश्चय ही महत्त्वपूर्ण घटना है।

राजीव गांधी की सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध-19 दिसम्बर, 1988 को प्रधानमन्त्री राजीव गांधी पांच दिन की यात्रा पर चीन पहुंचे। पिछले 34 वर्षों के दौरान किसी भी भारतीय प्रधानमन्त्री की यह पहली चीन यात्रा थी। राजीव गांधी की चीन यात्रा से दोनों देशों के आपसी सम्बन्धों में एक नया अध्याय शुरू हुआ।

राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और भारत-चीन सम्बन्ध-दिसम्बर, 1989 में श्री वी० पी० सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार बनी और दोनों देशों के नेताओं ने स्थाई सम्बन्ध स्थापित करने की घोषणा की।

11 दिसम्बर, 1991 के चीन के प्रधानमन्त्री ली फंग भारत की यात्रा पर आने वाले पिछले 31 वर्षों में पहले प्रधानमन्त्री हैं। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने पंचशील के सिद्धान्त में आस्था दोहराते हुए इस बात पर बल दिया कि किसी देश को दूसरे देश के आन्तरिक मामलों में दखल देने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। दोनों नेताओं ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि दोनों देशों के सीमा विवाद का ‘उचित’ और ‘सम्मानजनक’ हल निकलेगा और तीन दशक पुराना यह मुद्दा द्विपक्षीय सम्बन्ध मज़बूत बनाने में आड़े नहीं आएगा।

प्रधानमन्त्री पी० वी० नरसिम्हा राव की चीन यात्रा-6 सितम्बर, 1993 को भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव चार दिन की सरकारी यात्रा पर चीन गए। वहां पर चार ऐतिहासिक समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए, जिसके कारण भारत व चीन के मध्य सम्बन्धों में सुधारों का एक और अध्याय जुड़ गया।

चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन की भारत की यात्रा-28 नवम्बर, 1996 को चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन भारत की यात्रा पर आए जिससे दोनों देशों के बीच सम्बन्धों का एक नया युग शुरू हुआ है। चीन के राष्ट्रपति ज्यांग ज़ेमिन की पहली भारत यात्रा के दौरान परस्पर विश्वास भावना और सीमा पर शांति कायम रखने के उपायों पर विस्तृत विचारविमर्श के पश्चात् दोनों देशों ने चार महत्त्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

परमाणु परीक्षण तथा भारत-चीन सम्बन्ध-11 मई व 13 मई, 1998 को भारत ने पांच परमाणु परीक्षण किये। चीन ने परमाणु परीक्षणों को लेकर भारत की कड़ी निंदा ही नहीं की बल्कि चीन ने अपने सरकारी न्यूज़ के ज़रिए फिर से अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोंक कर पुराने विचार को जन्म दे दिया। चीन ने यहां तक कहा कि भारत से उसके पड़ोसियों को ही नहीं बल्कि चीन को भी खतरा पैदा हो गया है।

दलाईलामा की प्रधानमन्त्री वाजपेयी से मुलाकात-अक्तूबर, 1998 में तिब्बत के धार्मिक नेता दलाईलामा ने भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी से बातचीत की जिस पर चीन ने कड़ी आपत्ति उठाई।

भारतीय राष्ट्रपति की चीन यात्रा-मई, 2000 में भारतीय राष्ट्रपति के० आर० नारायणन चीन की यात्रा पर गए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग के अनेक विषयों पर बातचीत हुई।

चीनी नेता ली फंग की भारत यात्रा-जनवरी, 2001 में चीन के वरिष्ठ नेता ली फंग भारत आए। उन्होंने भारत के प्रधानमन्त्री वाजपेयी से मुलाकात कर क्षेत्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय और द्विपक्षीय महत्त्व के मुद्दों पर विचार-विमर्श किया। चीनी नेता ने भारत की धरती में किसी भी रूप में और किसी भी स्थान में उठने वाले आतंकवाद की निंदा की।

चीन के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-चीन के प्रधानमन्त्री झू रोंग्ली (Zhu Rongli) ने जनवरी, 2002 में भारत यात्रा की। रूस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने आतंकवाद का मिलकर सामना करने की बात कही। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के बीच अन्तरिक्ष, विज्ञान और प्रौद्योगिकी और ब्रह्मपुत्र नदी पर पानी सम्बन्धी सूचनाओं के आदान-प्रदान से सम्बन्धित छः समझौते किये गये।

भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा-जून, 2003 में भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में और सुधार हुआ। जहां भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना, वहीं पर चीन ने भी सिक्किम को भारत का हिस्सा माना। चीन ने भारत में 50 करोड़ डालर निवेश करने के लिए एक कोष बनाने की घोषणा की। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बंद करके इसे भारत का अभिन्न अंग मान लिया।

नवम्बर, 2004 में ‘आसियान’ की बैठक में भाग लेने के लिए भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह लाओस गए। वहां पर डॉ० मनमोहन सिंह ने चीनी प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ से मुलाकात की। दोनों देशों के प्रधानमन्त्रियों ने सीमा विवाद सुलझाने पर चर्चा के अतिरिक्त द्विपक्षीय व्यापार, सांस्कृतिक आदान-प्रदान व लोगों की एक-दूसरे के यहां यातायात बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।

प्रथम रणनीतिक संवाद-भारत एवं चीन के मध्य पहला रणनीतिक संवाद 24 जनवरी, 2005 को नई दिल्ली में हुआ। दोनों पक्षों ने सीमा विवाद सहित सभी द्विपक्षीय मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।

चीन के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा (2005)-चीन के प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ अप्रैल, 2005 में भारत यात्रा पर आए और दोनों देशों के बीच सीमा विवाद हल की प्रक्रिया के सम्बन्ध में एक समझौते के अतिरिक्त 11 अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। दोनों देश 2008 तक द्विपक्षीय व्यापार 13 अरब से बढ़ाकर 20 अरब डालर करेंगे। दोनों देश वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर सैन्य अभ्यास नहीं करेंगे। दोनों देशों ने वर्ष 2006 को भारत-चीन मित्रता के रूप में मनाने का ऐलान किया है।

भारतीय प्रधानमन्त्री की चीन यात्रा (2008)-भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह 13 जनवरी, 2008 को चीन यात्रा पर गए। दोनों देशों ने सीमा विवाद को शान्तिपूर्ण साधनों द्वारा हल करने पर सहमति प्रकट की तथा द्विपक्षीय व्यापार को 2010 तक 40 अरब डालर से बढ़ाकर 60 अरब डालर करने की घोषणा की। भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह 25 अक्तूबर, 2008 को पुनः चीन यात्रा पर गए तथा चीनी राष्ट्रपति ह० जिन्ताओ से द्विपक्षीय सम्बन्धों पर बातचीत की।

अक्तूबर, 2009 में भारत-चीन सम्बन्धों में उस समय तनाव आ गया जब चीन ने भारतीय प्रधानमंत्री एवं तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा की अरुणाचल प्रदेश यात्रा पर आपत्ति उठाई, परंतु भारत ने इन आपत्तियों को नकारते हुए अरुणाचल प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया। इसी संदर्भ में भारत एवं चीन के प्रधानमन्त्री 15वें आसियान सम्मेलन के दौरान थाइलैण्ड में मिले तथा सभी विवादित मुद्दों को बातचीत द्वारा हल करने पर जोर दिया।

चीनी प्रधान मन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 2010 में भारत-चीन सम्बन्धों को सुधारने के लिए चीनी प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओ ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 6 समझौतों पर हस्ताक्षर किए तथा सन् 2015 तक आपसी व्यापार को 100 बिलियन तक ले जाने पर सहमति प्रकट की।

भारतीय प्रधानमन्त्री की चीन यात्रा- अक्तूबर, 2013 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ० मनमोहन सिंह ने चीन की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने परस्पर सहयोग के नौ समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

चीनी राष्ट्रपति की भारत यात्रा-सितम्बर 2014 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

मई, 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चीन की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रेलवे तथा खनन
जैसे क्षेत्रों सहित 24 समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

अक्तूबर, 2016 में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुलाकात में व्यापार एवं स्वच्छ ऊर्जा जैसे मुद्दों पर बातचीत की।

सितम्बर 2017 एवं जून 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी चीन यात्रा पर गए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।
संक्षेप में, चीन इस बात को मानता है, कि अन्तर्राष्ट्रीय विषयों में भारत की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। सिक्किम भारत का भाग है, और अब सिक्किम कोई मुद्दा नहीं रहा। भारत ने भी तिब्बत को चीन का हिस्सा माना है और तिब्बतियों को भारत की धरती से चीन विरोधी गतिविधियां चलाने की अनुमति नहीं दी जायेगी।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 21 भारत एवं उसके पड़ोसी देश : नेपाल, श्रीलंका, चीन, बंगलादेश एवं पाकिस्तान

प्रश्न 6.
भारत और नेपाल के पारस्परिक सम्बन्धों का मूल्यांकन कीजिए। (Assess relationship between India and Nepal.)
अथवा
भारत और नेपाल के आपसी सम्बन्धों में विवाद और सहयोग के मुख्य मुद्दों का विवेचन कीजिए।
(Discuss the main issues of conflicts and Co-operation in the relationship between India and Nepal.)
उत्तर-
नेपाल, भारत और चीन के बीच तिब्बत क्षेत्र में स्थित है और चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। भारत और नेपाल धर्म, संस्कृति और भौगोलिक दृष्टि से एक-दूसरे के जितने निकट हैं, उतने विश्व के शायद ही कोई अन्य देश हों। नेपाल की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक भारत पर निर्भर करती है। दोनों देशों के बीच खुली सीमा है। आवागमन पर कोई रोक नहीं है। सन् 1950 से 1960 तक दोनों देशों के सम्बन्ध बहुत मित्रतापूर्ण रहे। कश्मीर के प्रश्न पर नेपाल ने भारत का समर्थन किया तथा उसे भारत का अभिन्न अंग बताया। भारत ने आर्थिक क्षेत्र से नेपाल की बहुत सहायता की। 1952 में प्रारम्भ किया गया भारतीय सहायता कार्यक्रम धीरे-धीरे आकार तथा क्षेत्र में फैलता गया। नेपाली वित्त मन्त्रालय के एक वक्तव्य के अनुसार सन् 1951 से जुलाई, 1964 के बीच नेपाल द्वारा प्राप्त की गई विदेशी सहायता में संयुक्त राज्य अमेरिका तथा सोवियत संघ के बाद भारत का तीसरा स्थान है।

दोनों देशों में तनावपूर्ण काल-1960 में नेपाल के महाराजा ने संसद् को भंग कर नेताओं को जेल में डाल दिया। इस पर भारत के प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के महाराजा की आलोचना करते हुए कहा कि, “नेपाल से लोकतन्त्र समाप्त हो गया।” इससे दोनों देशों के सम्बन्ध मैत्रीपूर्ण नहीं रहे। नेपाल ने चीन और पाकिस्तान से व्यापारिक समझौते करने शुरू कर दिए। प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री ने नेपाल की यात्रा की जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध में थोड़ा सुधार हुआ।

सहयोग का काल-1975 में नेपाल नरेश भारत आए जिससे दोनों देशों में पुनः अच्छे सम्बन्ध स्थापित हो सके। दिसम्बर, 1977 में प्रधानमन्त्री मोरारजी देसाई ने नेपाल की यात्रा की और दोनों देशों में मित्रता बढ़ी। जनवरी, 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी के पुनः सत्ता में आने पर भारत-नेपाल सम्बन्धों में सुधार हुआ। 3 फरवरी, 1983 को नेपाल के प्रधानमन्त्री भारत आए और दोनों देशों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हुए। भारत और नेपाल के बीच करनाली बहु-उद्देशीय सिंचाई परियोजना पर विस्तार से विचार-विमर्श हुआ। इसके साथ ही पंचेश्वर परियोजना तथा कुछ अन्य नदी परियोजनाओं पर भारत और नेपाल के बीच सहयोग की सम्भावनाओं पर विचार-विमर्श चल रहा है। भारत और नेपाल के बीच सहयोग बढ़ाने की दृष्टि से दोनों देशों के विदेश मन्त्रियों के स्तर पर संयुक्त आर्थिक आयोग की स्थापना करने का निर्णय किया गया है। दोनों देशों में दो व्यापार समझौते हुए। एक है भारत और नेपाल में व्यापार को बढ़ाने के सम्बन्ध में और दूसरा है, सीमा पर तस्करी रोकने के बारे में। 21 जुलाई, 1986 को राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह नेपाल की पांच दिवसीय राजकीय यात्रा पर गए। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने कहा कि भारत आर्थिक बुनियादी ढांचे को मज़बूत बनाने और आत्म-निर्भरता के रास्ते पर आगे बढ़ाने में नेपाल की पूरी मदद देगा। 1987 में दोनों देशों ने संयुक्त आयोग के गठन पर समझौता किया। नेपाल द्वारा उदासीन रुख दिखाने और वांछित शर्ते पूरी करने में आनाकानी करने के कारण भारत-नेपाल व्यापार एवं माल आवागमन सन्धि 23 मार्च, 1989 को समाप्त हो गई।

तनावपूर्ण सम्बन्ध-भारत-नेपाल व्यापार तथा पारगमन सन्धि नवीकरण न होने से दोनों देशों के सम्बन्धों में कटुता आ गई। भारत एक समन्वित सन्धि के पक्ष में था जबकि नेपाल मार्च, 1989 तक जारी व्यवस्था के तहत दो अलग सन्धियां करने के लिए ज़ोर देता रहा। फरवरी, 1990 में दोनों देशों के विदेश सचिवों की नई दिल्ली में तीन दिन बातचीत हुई। भारत और नेपाल के बीच उन सभी मसलों को निपटाने के बारे में व्यापक सहमति हो गई, जिसके कारण दोनों देशों के सम्बन्धों में एक वर्ष से ज़बरदस्त दरार पड़ी हुई थी।

5 दिसम्बर, 1991 को नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भारत की दो दिन की यात्रा पर आए। यात्रा की समाप्ति पर 6 दिसम्बर, 1991 को दोनों देशों के बीच पांच सन्धियों पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों ने बीच व्यापार तथा पारगमन सुविधा के लिए दो अलग-अलग सन्धियां कीं। दोनों देशों ने जल-संसाधनों के बंटवारे और विकास से सम्बन्धित विवाद पर सन्धि की। चौथा समझौता कृषि क्षेत्र के सहयोग के लिए है। पांचवां समझौता स्वर्गीय विश्वेश्वर प्रसाद कोइराला की स्मृति में एक फाउंडेशन गठित करने के लिए भारत और नेपाल में शिक्षा, संस्कृति और विज्ञान तथा टैक्नालॉजी के क्षेत्र में सम्बन्ध बढ़ाने की व्यवस्था की गई। नेपाल ने आतंकवाद को समाप्त करने के लिए भारत के साथ सहयोग पर सहमत होने के साथ ही यह साफ़ कर दिया कि भविष्य में वह अपनी रक्षा ज़रूरतों के लिए चीन से हथियार नहीं लेगा और उस पर निर्भर नहीं करेगा।

प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव की नेपाल यात्रा-19 अक्तूबर, 1992 को भारत के प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव तीन दिन की यात्रा पर नेपाल गए। भारत और नेपाल के विभिन्न क्षेत्रों में आपसी सहयोग बढ़ाने, भारत को नेपाल के उदार शर्तों पर निर्यात वृद्धि करने और विपुल जल संसाधनों का दोनों देशों के साझे हित में प्रयोग करने पर सहमति व्यक्त की।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-अप्रैल, 1995 में नेपाल के प्रधानमन्त्री मनमोहन अधिकारी भारत की यात्रा पर आए और उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार हुआ। भारत सरकार ने नेपाल की ज़रूरतों के अनुसार उसे दो अन्य बंदरगाहें बम्बई (मुम्बई) और कांधला से माल भेजने और मंगाने की सुविधा उपलब्ध करा दी है।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-फरवरी, 1996 में नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री शेर बहादुर देऊबा भारत की यात्रा पर आए और उनकी इस यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार की दिशा में एक नया अध्याय जुड़ गया। नेपाल और भारत के मध्य आपसी सहयोग में कई समझौते हुए। नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री देऊबा ने कहा कि उनका देश शीघ्र ही नेपाल भारत के मध्य सम्पन्न 1950 की सन्धि की समीक्षा के लिए एक आयोग गठित करेगा।

महाकाली सन्धि-29 फरवरी, 1996 को भारत और नेपाल ने सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए महाकाली नदी के पानी का उपयोग करने के लिए एक सन्धि पर हस्ताक्षर किए। महाकाली समन्वित विकास सन्धि को नेपाल की संसद् ने 20 सितम्बर, 1996 को स्वीकृति दे दी। महाकाली सन्धि भारत और नेपाल दोनों देशों के सम्बन्धों को मजबूत करेगी तथा दोनों देशों के विकास में सहायक सिद्ध होगी।

भारतीय विदेश मन्त्री की नेपाल यात्रा-सितम्बर, 1999 को भारतीय विदेश मन्त्री जसवंत सिंह ने चार दिन के लिए नेपाल की यात्रा की। यहां भारतीय विदेश मंत्री ने नेपाल के प्रधानमन्त्री कृष्ण प्रसाद भट्टाराई से बातचीत की। दोनों देशों ने यह संकल्प व्यक्त किया कि वे आतंकवादी गतिविधियों का मिलकर मुकाबला करेंगे। दोनों देशों ने इस बात पर भी सहमति जताई कि एक दूसरे की सुरक्षा के लिए घातक कोई गतिविधि अपने क्षेत्रों में नहीं होने दी जाएगी। भारतीय विदेश मन्त्री ने इस यात्रा के सन्दर्भ में कहा कि भारत-नेपाल सम्बन्धों में एक नई बुनियाद डालने का निर्णय लिया है। अपनी यात्रा के अन्त में विदेश मन्त्री जसवंत सिंह ने कहा कि यह यात्रा अत्यधिक सफल और सार्थक रही।

नेपाल के प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-दिसम्बर, 1999 में नेपाल की राजधानी काठमांडू से भारतीय विमान सेवा के एक विमान IC-814 का आतंकवादियों ने अपचालन (Hijacking) कर लिया और इसे अफ़गानिस्तान में कंधार नामक स्थान पर ले गए। इस घटना से भारत को यह आशंका हुई कि नेपाल में आतंकवादियों की बढ़ रही गतिविधियां भारत के लिए खतरा पैदा कर रही हैं। इसके परिणामस्वरूप भारत और नेपाल के बीच तनाव उत्पन्न हो गया। दोनों देशों के बीच इसी तनाव को कम करने तथा अन्य विषयों पर बातचीत करने के उद्देश्य से अगस्त, 1999 में नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला भारत की यात्रा पर आए। भारत की सुरक्षा चिंता को देखते हुए नेपाली प्रधानमन्त्री ने भारत को यह आश्वासन दिया कि वह अपनी भूमि से भारत के विरुद्ध कोई भी आतंकवादी गतिविधि नहीं चलने देगा और आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष में भारत का साथ देगा। इस यात्रा के दौरान दोनों देश सप्तकोसी बांध परियोजना के निर्माण कार्य को इसी दशक में पूरा करने में सहमत हुए। इस परियोजना पर पिछले 50 वर्ष से बातचीत चल रही थी जिसका कोई निष्कर्ष नहीं निकल रहा था। यह परियोजना जहां भारत के लिए लाभदायक होगी वहीं इससे नेपाल का राष्ट्रीय उत्पादन भी दुगुना हो जाएगा।

नेपाल में आपात्काल एवं भारतीय प्रधानमन्त्री द्वारा मदद का आश्वासन-24 नवम्बर, 2001 को नेपाल में माओवादियों ने 50 सुरक्षा कर्मियों की हत्या कर दी, जिस कारण नेपाल में आपात्काल लागू कर दिया गया। 30 नवम्बर, 2001 को भारतीय प्रधानमन्त्री वाजपेयी ने नेपाल को हर सम्भव सहायता देने की बात की।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-सितम्बर, 2004 में नेपाल के प्रधानमन्त्री शेर बहादुर देउबा भारत यात्रा पर आए। भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह से बातचीत के दौरान नेपाली प्रधानमन्त्री ने नेपाल में जारी माओवादी हिंसा से निपटने के लिए भारत से सहायता मांगी। भारत ने हर सम्भव सहायता देने का वचन दिया।

नेपाल में आपात्काल और देऊबा सरकार बर्खास्त-1 फरवरी, 2005 को नेपाल के राजा ज्ञानेंद्र ने शेर बहादुर देउबा सरकार बर्खास्त कर के सभी कार्यकारी शक्तियां अपने हाथ में ले लीं और नेपाल में आपात्काल की घोषणा कर दी। भारत ने बदले हालात को चिंताजनक बताते हुए इसे लोकतन्त्र के लिए झटका बताया है। भारत ने नेपाल को लोकतन्त्र को पुनः स्थापित करने के लिए भारत नेपाल को स्थिर, शान्तिपूर्ण और खुशहाल देश के रूप में देखना चाहता है।

आपात्काल को हटाया गया-30 अप्रैल, 2005 को नेपाल नरेश ने भारत व अन्य देशों के दबाव पर आकर आपात्काल को हटा दिया।

नेपाल में लोकतान्त्रिक आन्दोलन एवं भारत की भूमिका-नेपाल में 2006 तथा 2007 में चलाए गए लोकतान्त्रिक आन्दोलन को भारत ने पूर्ण समर्थन प्रदान किया। पिछले 240 वर्षों से चले आ रहे राजतन्त्र को मई 2008 में सदा के लिए समाप्त करवा कर लोकतान्त्रिक सरकार बनाने में भारत ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री गिरिजा प्रसाद कोइराला 3 अप्रैल, 2007 को सार्क सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए तथा भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के साथ कई मुद्दों पर बातचीत की।

नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री पुष्प कुमार दहल ‘प्रचण्ड’ 14 सितम्बर, 2008 को भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देश 50 वर्षीय मैत्री सन्धि की समीक्षा के लिए सहमत हुए थे। दोनों प्रधानमन्त्री कोसी नदी पर बांध बनाने और बाढ़ सम्बन्धी सूचना देने के लिए भी तैयार हुए।

नेपाली राष्ट्रपति को भारत यात्रा-फरवरी 2010 में नेपाल के राष्ट्रपति श्री राम बरन यादव भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के चार समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
नेपाली प्रधानमन्त्री की भारत यात्रा-नेपाल के प्रधानमन्त्री श्री बाबू राम भटाराई अक्तूबर, 2011 में भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने पारस्परिक सहयोग के तीन समझौतों पर हस्ताक्षर किये। नेपाल के लिये 250 अरब डालर की ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ उपलब्ध कराने के लिए भी एक समझौता हुआ।

भारतीय प्रधानमंत्री की नेपाल यात्रा-अगस्त 2014 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नेपाल की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान भारत ने नेपाल को 61 अरब रुपये की मदद देने की घोषणा की।
भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने नवम्बर 2014 में 18वें सार्क सम्मेलन के दौरान नेपाल की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान उन्होंने नेपाली प्रधानमंत्री से भी अलग बैठक करके द्विपक्षीय मुद्दों पर बातचीत की।

अक्तूबर 2016 में नेपाल के प्रधानमन्त्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचण्ड’,’ बिम्सटेक’ (BIMSTEC) सम्मेलन में भाग लेने के लिए भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।
अगस्त 2017 में नेपाल के प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आए। इस दौरान दोनों देशों ने 8 समझौतों पर हस्ताक्षर किये।
अगस्त 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने बिम्सटेक सम्मेलन में भाग लेने के लिए नेपाल की यात्रा की। इन दौरान दोनों देशों ने द्विपक्षीय मुद्दों पर भी बातचीत की।

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लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
कश्मीर समस्या क्या है ? वर्णन कीजिए।
अथवा
कश्मीर समस्या क्या है ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता से पूर्व कश्मीर भारत के उत्तर-पश्चिमी कोने में स्थित एक देशी रियासत थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत स्वतन्त्र हुआ और पाकिस्तान की भी स्थापना हुई। पाकिस्तान ने पश्चिमी सीमा प्रान्त के कबाइली लोगों को प्रेरणा और सहायता देकर 22 अक्तूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और कश्मीर को भारत में शामिल करने की प्रार्थना की। भारत में कश्मीर का विधिवत् विलय हो गया, परन्तु पाकिस्तान का आक्रमण जारी रहा और पाकिस्तान ने कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया और अब भी उस क्षेत्र पर जिसे ‘आज़ाद कश्मीर’ कहा जाता है, पाकिस्तान का कब्जा है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को खदेड़ दिया। भारत सरकार ने कश्मीर का मामला संयुक्त राष्ट्र को सौंप दिया और 1 जनवरी, 1949 को कश्मीर का युद्ध विराम हो गया। संयुक्त राष्ट्र संघ ने कश्मीर की समस्या को हल करने का प्रयास किया पर यह समस्या अब भी है। इसका कारण यह है कि भारत सरकार कश्मीर को भारत का अंग मानती है जबकि पाकिस्तान कश्मीर में जनमत संग्रह करवा कर यह निर्णय करना चाहता है कि कश्मीर भारत में मिलना चाहता है या पाकिस्तान के साथ। परन्तु पाकिस्तान की मांग गलत और अन्यायपूर्ण है, इसलिए इसे माना नहीं जा सकता।

प्रश्न 2.
शिमला समझौते की मुख्य व्यवस्थाएं लिखिए।
उत्तर-
दिसम्बर, 1971 में भारत ने पाकिस्तान को युद्ध में ऐतिहासिक मात दी। इस युद्ध में पाकिस्तान के लगभग एक लाख सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया। भारत ने पाकिस्तान की इस हार का कोई अनुचित लाभ न उठाया। तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने दोनों देशों की समस्याओं पर विचार करने के लिए 1972 में एक सम्मेलन बुलाया। इस सम्मेलन में पाकिस्तान के तत्कालीन शासक प्रधानमन्त्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने भाग लिया। सम्मेलन में दोनों देशों ने एक समझौता किया जिसे शिमला समझौता कहा जाता है। इस समझौते की प्रमुख शर्ते इस प्रकार हैं

  1. दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शान्तिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़-संकल्प हैं।
  2. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।
  3. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखण्डता और राजनीतिक स्वतन्त्रता के विरुद्ध बल प्रयोग या धमकी का प्रयोग नहीं करेंगे।
  4. दोनों देशों द्वारा परस्पर विरोधी प्रचार नहीं किया जाएगा। (5) दोनों देश परस्पर सामान्य सम्बन्ध स्थापित करने के लिए प्रयत्न करेंगे।

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प्रश्न 3.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य क्या है ?
अथवा
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य लिखें।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध सदैव अस्थिर रहे हैं और अधिकांश समय से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। यदि भविष्य में भारत-पाक अपने सम्बन्धों को सामान्य बनाना चाहते हैं, तो इन्हें द्विपक्षीय स्तर पर कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाने होंगे। विशेषकर पाकिस्तान को भारत से मधुर सम्बन्ध बनाने के लिई कई बड़े कदम उठाने होंगे जैसे आतंकवाद को समर्थन देना बन्द करके भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा कश्मीर समस्या को सुलझाने में और अधिक उदारता दिखाकर इत्यादि। यदि इस प्रकार के कदम उठाये जाएं तो भारत-पाक सम्बन्ध भविष्य में बेहतर बन सकते हैं।

प्रश्न 4.
भारत-चीन सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत और चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। 1954 में दोनों देशों ने आपस में व्यापारिक समझौता किया तथा पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। 1965 तथा 1971 के पाकिस्तान के साथ युद्धों में चीन ने पाकिस्तान का साथ दिया। इसके बावजूद भी भारत ने चीन से सम्बन्ध सुधारने के प्रयास जारी रखे। 1971 में चीन भारत ने चीन की संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता का समर्थन किया। 1979 में भारतीय विदेश मन्त्री वाजपेयी की चीन यात्रा से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार आया। दिसम्बर, 1988 में भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए एक संयुक्त दल का गठन किया। दिसम्बर, 1991 में चीन के प्रधानमन्त्री ली फंग भारत यात्रा पर आए। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बन्द करके, उसे भारत का अभिन्न अंग माना। जनवरी 2008 में भारतीय प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चीन की यात्रा की। सितम्बर 2014 में चीनी राष्ट्रपति श्री जिनपिंग ने भारत की यात्रा की। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 12 समझौतों पर हस्ताक्षर किए। सन् 2017 में डोकलाम विवाद ने दोनों देशों के सम्बन्धों में असहजता पैदा कर दी।

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प्रश्न 5.
भारत और बांग्लादेश के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के बंगला देश के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत और बांग्लादेश के सम्बन्ध अधिकांशतः अच्छे रहे हैं। सन् 1971 में बांग्लादेश के एक नए राज्य के रूप में अस्तित्व में आने में भारत ने सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। 19 मार्च, 1972 को भारत और बांग्ला देश के बीच 25 वर्षीय मित्रता व सहयोग की संधि हुई। चकमा शरणार्थियों तथा तीन बीघे गलियारे के कारण दोनों देशों में मतभेद रहे हैं। 26 जून, 1992 को भारत ने तीन बीघे गलियारे को बांग्लादेश को पट्टे पर दे दिया। 12 दिसम्बर, 1996 को भारत-बांग्लादेश में फरक्का गंगा जल बंटवारे पर समझौता हुआ। जनवरी, 2010 में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री श्री शेख हसीना भारत आईं। भारत ने बांग्लादेश को 250 मेगावाट बिजली तथा 300 बांग्लादेशी छात्रों को प्रतिवर्ष छात्रवृत्ति देने की घोषणा की, जबकि बांग्लादेशी प्रधानमंत्री ने घोषणा की कि वह अपने क्षेत्र से भारत विरोधी गतिविधियां नहीं होने देगी। नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए 18वें सार्क सम्मेलन में बंग्ला देश की प्रधानमन्त्री श्रीमती शेख हसीना एवं भारतीय प्रधानमन्त्री श्री नेरन्द्र मोदी ने द्विपक्षीय बातचीत में समान मुद्दों पर बातचीत की। अप्रैल 2017 में बांग्ला देशी प्रधानमंत्री भारत यात्रा पर आई तथा भारत के साथ 22 समझौतों पर हस्ताक्षर किये थे।

प्रश्न 6.
भारत और पाकिस्तान के सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत के पाकिस्तान के साथ सम्बन्धों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत और पाकिस्तान के सम्बन्ध आरम्भ से ही अच्छे नहीं रहे हैं। पाकिस्तान ने भारत पर 1947, 1965 एवं 1971 में आक्रमण किया, जिसमें उसको हार का सामना करना पड़ा। सन् 1966 में ताशकंद समझौते एवं 1972 में शिमला समझौते द्वारा दोनों देशों ने शान्ति स्थापित करने का प्रयास किया, परन्तु पाकिस्तान के अड़ियल व्यवहार के कारण सम्बन्ध सामान्य नहीं हो पाए। फरवरी, 1999 में भारतीय प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान यात्रा पर गए तथा लाहौर घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए, परन्तु पाकिस्तान ने मई, 1999 में कारगिल में घुसपैठ करा कर यह साबित कर दिया कि वह भारत से अच्छे सम्बन्ध नहीं चाहता, नवम्बर 2014 में नेपाल में हुए में 18वें सार्क सम्मेलन में भी पाकिस्तान का रवैया मित्रतापूर्ण नहीं रहा। वर्तमान समय में भी दोनों देशों के सम्बन्ध अच्छे नहीं हैं।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
शिमला समझौते की कोई दो मुख्य व्यवस्थाएं लिखिए।
उत्तर-

  1. दोनों राष्ट्र अपने पारस्परिक झगड़ों को द्विपक्षीय बातचीत और मान्य शान्तिपूर्ण ढंगों से हल करने के लिए दृढ़-संकल्प हैं।
  2. दोनों राष्ट्र एक-दूसरे की राष्ट्रीय एकता, क्षेत्रीय अखण्डता, राजनीतिक स्वतन्त्रता और सार्वभौम समानता का सम्मान करेंगे।

प्रश्न 2.
भारत-चीन सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारत और चीन एशिया के दो महत्त्वपूर्ण देश हैं। दोनों देशों ने पंचशील के सिद्धान्तों के प्रति विश्वास दिलाया। 1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया। दिसम्बर, 1988 में भारतीय प्रधानमन्त्री राजीव गांधी की चीन यात्रा के दौरान भारत-चीन सीमा विवाद को हल करने के लिए एक संयुक्त दल का गठन किया। मई, 2004 में चीन ने सिक्किम को अपने नक्शे में एक अलग राष्ट्र दिखाना बन्द करके, उसे भारत का अभिन्न अंग माना। वर्तमान समय में दोनों देशों के सम्बन्ध सुधार की ओर बढ़ रहे हैं।

प्रश्न 3.
दो देशों के नाम बताएं, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था ?
उत्तर-

  1. पाकिस्तान,
  2. चीन।

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प्रश्न 4.
“शिमला समझौता” (सन्धि) कब और कौन-से दो देशों के बीच हुई ?
उत्तर-
शिमला समझौता सन् 1972 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुआ था।

प्रश्न 5.
1999 के कारगिल युद्ध के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
पाकिस्तानी सैनिकों ने शिमला समझौते एवं लाहौर समझौते का उल्लंघन करते हुए 1999 में भारतीय क्षेत्र की कारगिल पहाड़ियों में घुसपैठ करके अपना कब्जा कर लिया था। भारत के विरोध के बावजूद उन्होंने कब्जे वाले स्थान को खाली करने से मना कर दिया। अतः भारतीय सेना ने बल प्रयोग करके सभी पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। इस घटना से पाकिस्तानी सरकार का दोहरा मापदण्ड एक बार फिर सामने आ गया।

प्रश्न 6.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य लिखें।।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्ध सदैव अस्थिर रहे हैं और अधिकांश समय से दोनों देशों के सम्बन्ध मधुर नहीं रहे हैं। पाकिस्तान को भारत से मधुर सम्बन्ध बनाने के लिए कई बड़े कदम उठाने होंगे जैसे आतंकवाद को समर्थन देना बन्द करके भारत के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने तथा कश्मीर समस्या को सुलझाने में और अधिक उदारता दिखाकर इत्यादि। यदि इस प्रकार के कदम उठाये जाएं तो भारत-पाक सम्बन्ध भविष्य में बेहतर बन सकते हैं।

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प्रश्न 7.
बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
भारत व बांग्लादेश की सीमा लगभग 3200 किलोमीटर लम्बी है। स्थिति यह है कि दोनों देशों के बीच कोई प्राकृतिक सीमा न होने के कारण प्राय: बांग्लादेश के लोग शरणार्थियों के रूप में भारत की सीमा में आते रहते हैं। इसके कारण भारत में विविध प्रकार की आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं। असम व त्रिपुरा जैसे छोटे राज्यों में यह समस्या विशेष रूप से गम्भीर बनी हुई है, जहां चकमा जाति के अनगिनत शरणार्थी वहां के जनजीवन को प्रभावित करते हुए भारत के लिए बड़ी कठिनाई पैदा करते हैं।

प्रश्न 8.
भारत की पड़ोसी देशों के प्रति क्या नीति है ?
उत्तर-
भारत सैदव ही पड़ोसी देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्ध चाहता है। भारत का मानना है कि बिना मित्रतापूर्ण सम्बन्ध के कोई भी देश सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक विकास नहीं कर सकता। इसलिए भारत ने पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल एवं भूटान आदि पड़ोसी देशों से सम्बन्ध मधुर बनाये रखने के लिए समय-समय पर कई कदम उठाये हैं। उन्हीं महत्त्वपूर्ण कदमों में एक कदम सार्क की स्थापना है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
शिमला समझौता कब हुआ ?
उत्तर-
शिमला समझौता सन् 1972 में हुआ।

प्रश्न 2.
शिमला समझौता किन दो देशों के बीच हुआ ?
उत्तर-
शिमला समझौता भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था।

प्रश्न 3.
लाहौर घोषणा कब हुई ?
उत्तर-
लाहौर घोषणा सन् 1999 में हुई।

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प्रश्न 4.
चीन ने भारत पर कब आक्रमण किया ?
उत्तर-
चीन ने भारत पर सन् 1962 में आक्रमण किया।

प्रश्न 5.
मैक-मोहन रेखा क्या है ?
उत्तर-
मैक-मोहन रेखा भारत एवं चीन की सीमा रेखा को निर्धारित करती है। मैक-मोहन रेखा सन् 1914 में निश्चित की गई थी।

प्रश्न 6.
भारत-चीन सम्बन्धों का एक उदाहरण लिखें।
उत्तर-
श्री राजीव गांधी ने सन् 1988 में चीन की यात्रा की।

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प्रश्न 7.
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का क्या भविष्य है ? उदाहरण लिखें।
अथवा
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य क्या है ?
उत्तर-
भारत-पाकिस्तान सम्बन्धों का भविष्य उज्ज्वल नहीं है क्योंकि पाकिस्तान लगातार भारत में आतंकवादी गतिविधियाँ करवाता रहता है।

प्रश्न 8.
शिमला समझौते पर हस्ताक्षर किन दो नेताओं द्वारा किए गए थे? ।
उत्तर-
शिमला समझौते पर भारतीय प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी एवं पाकिस्तान के प्रधानमंत्री श्री जुल्फिकार अली भुट्टो द्वारा हस्ताक्षर किये गए थे।

प्रश्न 9.
पंचशील के विषय में चीन की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
चीन ने भारत के साथ मिलकर पंचशील सिद्धान्तों का निर्माण किया।

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प्रश्न 10.
भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता (संधि) कब हुआ ?
उत्तर-
भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता सन् 1954 में हुआ था।

प्रश्न 11.
भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का एक कारण लिखो।
उत्तर-
भारत-पाक सम्बन्धों में तनाव का एक महत्त्वपूर्ण कारण कश्मीर का मामला है।

प्रश्न 12.
बांग्लादेश की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
बांग्लादेश की स्थापना सन् 1971 में हुई।

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प्रश्न 13.
ताशकन्द समझौता क्या है ?
अथवा
ताशकंद समझौता कौन-से दो देशों के बीच हुआ ?
उत्तर-
10 जनवरी, 1966 को भारत-पाकिस्तान के बीच ताशकन्द में हुए समझौते को ताशकन्द समझौता कहा जाता है। यह समझौता दोनों देशों के बीच सन् 1965 के युद्ध के बाद किया गया था।

प्रश्न 14.
लिट्टे से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लिट्टे (L.T.T.E.) का अर्थ लिबरेशन टाइगर ऑफ तमिल ईलम (Liberation Tigers of Tamil Ealm) है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. ……….. दक्षिण एशिया का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश है।
2. भारत एवं पाकिस्तान से ब्रिटिश राज की समाप्ति सन् …….. में हुई।
3. पाकिस्तान सीटो तथा सैन्टो जैसे ……….. गठबन्धन में शामिल हुआ।
4. बंगलादेश …….. से लेकर ……….. तक पाकिस्तान का अंग रहा है।
5. बंगलादेश के नेताओं द्वारा मार्च, ……… में स्वतन्त्रता की घोषणा की गई।
उत्तर-

  1. भारत
  2. 1947
  3. सैनिक
  4. 1947, 1971
  5. 1971.

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प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. दक्षिण एशिया, एशिया में स्थित है, जिसमें भारत, पाकिस्तान एवं श्रीलंका जैसे महत्त्वपूर्ण देश शामिल हैं।
2. 1947 में भारत से अलग होकर बंगलादेश एक नये राज्य के रूप में सामने आया।
3. पाकिस्तान शीत युद्धकालीन सैनिक गठबन्धनों जैसे सीटो और सैन्टो में शामिल हुआ।
4. 1960 में भारत एवं पाकिस्तान ने सिन्धु नदी जल समझौते पर हस्ताक्षर किये।
5. भारत के प्रयासों से 1971 में जापान नामक देश अस्तित्व में आया।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मैकमोहन रेखा कौन-से दो देशों की सीमा क्षेत्र को निश्चित करती है :
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-चीन
(ग) भारत-अमेरिका
(घ) पाकिस्तान-चीन।
उत्तर-
(ख) भारत-चीन

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प्रश्न 2.
निम्न में से किसने पंचशील के सिद्धान्तों का निर्धारण किया ?
(क) सरदार पटेल
(ख) डॉ० राजेन्द्र प्रसाद
(ग) पं० नेहरू
(घ) महात्मा गांधी।
उत्तर-
(ग) पं० नेहरू

प्रश्न 3.
1965 में किन दो देशों के बीच युद्ध हुआ?
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-चीन
(ग) भारत-श्रीलंका
(घ). पाकिस्तान-नेपाल।
उत्तर-
(क) भारत-पाकिस्तान

प्रश्न 4.
ताशकन्द समझौता किन दो देशों के बीच हुआ?
(क) भारत-चीन
(ख) भारत-पाकिस्तान
(ग) भारत-नेपाल
(घ) भारत-श्रीलंका।
उत्तर-
(ख) भारत-पाकिस्तान

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प्रश्न 5.
महाकाली सन्धि किन दो देशों के बीच हुई ?
(क) भारत-पाकिस्तान
(ख) भारत-नेपाल
(ग) भारत-चीन
(घ) भारत-जापान।
उत्तर-
(ख) भारत-नेपाल

प्रश्न 6.
नेपाल में नया संविधान कब लागू किया गया ?
(क) 20 सितम्बर, 2015
(ख) 2 फरवरी, 2007
(ग) 4 मार्च, 2008
(घ) 9 जुलाई, 2009।
उत्तर-
(क) 20 सितम्बर, 2015

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

PSEB 11th Class Agriculture Guide बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
बीजों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिए लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
सीड कन्ट्रोल आर्डर 1983।

प्रश्न 2.
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिए लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
खाद कन्ट्रोल आर्डर, 1985।

प्रश्न 3.
खादों की परख के लिये प्रयोगशालाएं कहां-कहां हैं ?
उत्तर-
लुधियाना तथा फरीदकोट।

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प्रश्न 4.
कीटनाशक दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये लागू कानून का नाम बताओ।
उत्तर-
इन्सैक्टीसाइड अधिनियम-1968 ।

प्रश्न 5.
भारत सरकार को कीटनाशक एक्ट लागू करने के लिए सुझाव कौन देता है ?
उत्तर-
केन्द्रीय कीटनाशक (सेन्ट्रल इन्सैक्टीसाइड) बोर्ड।

प्रश्न 6.
कीटनाशक दवाइयों की जांच के लिए प्रयोगशालाएं कहां हैं ?
उत्तर-
लुधियाना, बठिंडा, अमृतसर।।

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प्रश्न 7.
विदेशों से कीटनाशक दवाइयों के निर्यात की आज्ञा कौन देता है ?
उत्तर-
सेन्ट्रल (केन्द्रीय) रजिस्ट्रेशन कमेटी।

प्रश्न 8.
कीटनाशक एक्ट के अन्तर्गत कीटनाशक इन्स्पेक्टर किसे घोषित किया गया है ?
उत्तर-
खेतीबाड़ी विकास अधिकारियों को इस अधिनियम के अन्तर्गत इन्सैक्टीसाइड इन्स्पैक्टर घोषित किया गया है।

प्रश्न 9.
घटिया खाद बेचने वाले के विरुद्ध किसको शिकायत की जाती है ?
उत्तर-
जिले के मुख्य खेतीबाड़ी अधिकारी को शिकायत की जा सकती है।

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प्रश्न 10.
टी० एल० किस वस्तु का लेबल है?
उत्तर-
प्रमाणित बीज का, विश्वासयोग्य क्वालटी।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
खादों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों ज़रूरी है ?
उत्तर-
कृषि में खाद का बहुत महत्त्व है। यह पौधों को बढ़ने-फूलने के लिये आवश्यक तत्त्व देने में सहायक होती है। यदि खादों की क्वालिटी घटिया होगी तो फ़सलों को इसकी बहुत हानि पहुंचेगी। पूरी मेहनत पर पानी फिर जायेगा। इसलिये खादों का क्वालिटी कन्ट्रोल बहुत ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
बीजों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों जरूरी है ?
उत्तर-
यदि बीज उच्च क्वालिटी के नहीं होंगे तो फसल घटिया किस्म की पैदा होगी, उपज कम हो जायेगी तथा पूरी मेहनत बेकार हो जायेगी। इसलिये बीज बढ़िया होना चाहिए।

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प्रश्न 3.
ज़रूरी वस्तुओं से संबंधित कानून के अन्तर्गत कृषि से सम्बन्धित कौनसी वस्तुएं शामिल की गई हैं ?
उत्तर-
भारत सरकार ने आवश्यक वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत कृषि में काम आने वाली तीन वस्तुएं बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयों को शामिल किया है।

प्रश्न 4.
बीज, खाद और कीटनाशक दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये कौन-कौन से कानून लागू किये गये हैं ?
उत्तर-
बीजों के लिये सीड कन्ट्रोल आर्डर 1983, खादों के लिये फर्टीलाइज़र कन्ट्रोल आर्डर 1985, कीटनाशक दवाइयां तथा इन्सैक्टीसाइड अधिनियम 1968 कानून लागू किये गये हैं।

प्रश्न 5.
बीजों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये बीज इन्स्पेक्टर के क्या अधिकार हैं ?
उत्तर-
बीज इन्स्पेक्टर किसी भी डीलर से बीज के स्टॉक के बारे में, बिक्री के बारे में, खरीद के बारे में तथा स्टोर में पड़े बीज के बारे में कोई भी सूचना मांग सकता है। बीज वाले स्टोर या दुकान की तलाशी ले सकता है तथा उपलब्ध बीजों के नमूने भर कर उनकी जांच बीज जांच प्रयोगशाला से करवा सकता है, कोई नुक्स होने पर बिक्री पर पाबन्दी लगा सकता है। इन्सपेक्टर बीजों से सम्बन्धित दस्तावेज़ कब्जे में ले सकता है तथा चैक कर सकता है। इसके अतिरिक्त दोषी का लाइसेंस रद्द करने के लिये लाइसेंस अधिकारी को लिख सकता है।

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प्रश्न 6.
बीज कन्ट्रोल आर्डर के अन्तर्गत किसान को क्या अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
बीज कन्ट्रोल कानून के अन्तर्गत बीज खरीदने वाले किसानों के अधिकार सुरक्षित रखे गये हैं, ताकि बीजों में कोई नुक्स होने पर उनके द्वारा बीजों पर किये गये खर्च का मुआवज़ा उसको मिल सके। यदि किसान यह समझता हो कि उसकी फ़सल के फेल होने का मुख्य कारण उसको बीज डीलर द्वारा दिया गया घटिया बीज है तो वह इस सम्बन्ध में बीज इन्सपेक्टर के पास अपनी शिकायत लिखित रूप में दर्ज करवा सकता है।

प्रश्न 7.
खराब बीज प्राप्त होने पर शिकायत दर्ज करवाने के लिये प्रमाण स्वरूप किन दस्तावेजों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
शिकायत दर्ज करवाते समय किसान को निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है-

  • बीज की खरीद के समय दुकानदार द्वारा दिया गया पक्का बिल या रसीद।
  • बीज की थैली पर लगा हुआ लेबल।
  • बीज वाला खाली पैकेट या थैला या डिब्बा।
  • खरीदे हुए बीज में से बचा कर रखा हुआ बीज का नमूना।

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प्रश्न 8.
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल सम्बन्धी कानून का क्या नाम है ? इसको कृषि विभाग के किन अफसरों के सहयोग से लागू किया जाता है ?
उत्तर-
खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल सम्बन्धी कानून का नाम फर्टीलाइज़र कन्ट्रोल आर्डर 1985 है।
यह कानून पंजाब राज्य में कृषि विभाग के राज्य स्तरीय अधिकारी (डायरेक्टर कृषि पंजाब चण्डीगढ) की देख-रेख में जिले के चीफ एग्रीकल्चर ऑफिसरों तथा उनके सहयोगी अधिकारियों, जिनमें एग्रीकल्चर ऑफिसर (A.O.) तथा उनके अधीन काम कर रहे एग्रीकल्चर डिवैल्पमैंट ऑफिसर (A.D.O.) के सहयोग से लागू किया जाता है।

प्रश्न 9.
कीटनाशक इन्स्पेक्टर कीड़ेमार दवाइयों के क्वालिटी कन्ट्रोल के लिये क्या कार्यवाही करता है ?
उत्तर-
इन्सैक्टीसाइड इन्स्पेक्टर अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में इन्सैक्टीसाइड बेचने वाली दुकानों, गोदामों, सेल सेंटरों तथा अन्य सम्बन्धित स्थानों पर निरीक्षण करते हैं। वह इन दुकानों से नमूने लेकर उनकी पड़ताल करने के लिये लुधियाना, भटिण्डा तथा अमृतसर की प्रयोगशालाओं में भेजता है।।

स्टॉक चैक करके पता लगाता है कि कीटनाशक दवाइयां निश्चित समय की सीमा पार तो नहीं कर गईं। इसके अतिरिक्त स्टॉक में पड़ी दवाइयों का भार तथा अन्य तथ्यों की पड़ताल की जाती है तथा देखा जाता है कि कोई कानूनी उल्लंघना न हो रही हो। अधिनियम की उल्लंघना करने वाले व्यक्तियों के लाइसेंस रद्द कर दिये जाते हैं तथा उनके विरुद्ध कानूनी कारवाई भी की जाती है। दोषी व्यक्तियों को जुर्माना तथा जेल का दण्ड भी हो सकता है।

प्रश्न 10.
बीज कानून की धारा-7 क्या है ?
उत्तर-
इस धारा के अन्तर्गत केवल नोटीफाइड सूचित किस्मों के बीजों की ही बिक्री की जा सकती है।

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(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
बीज, खादों और कीटनाशक दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल क्यों ज़रूरी
उत्तर-
फ़सलों की बढ़िया उपज के लिये बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयां मुख्य तीन वस्तुएं हैं। कृषि में ये तीनों वस्तुएं बहुत ही महत्त्वपूर्ण हैं। इसलिये इनकी क्वालिटी का उचित स्तर का होना बहुत ज़रूरी है। यदि बीज उच्च स्तर के तथा सही किस्म के नहीं होंगे, तो सारी मेहनत बेकार हो जायेगी। इसी प्रकार यदि खादों की क्वालिटी सही नहीं होगी, तो फ़सलों से पूरी उपज नहीं मिलेगी। फ़सलों में खरपतवारों, हानिकारक कीटों तथा बीमारियों की रोकथाम के लिये सही किस्म की दवाइयों तथा ज़हरों का प्रयोग भी बहुत ज़रूरी है।

इन तीनों वस्तुओं पर खर्चा भी हो जाएगा तथा पैदावार भी कम मिलेगी, नदीन समाप्त नहीं होंगे, कीड़े फसल को खा जाएंगे। इसलिए तीनों वस्तुओं का क्वालिटी कण्ट्रोल बहुत जरूरी है।

प्रश्न 2.
कीटनाशक एक्ट (इन्सेक्टीसाइड एक्ट) की सहायता से कीटनाशक दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
यह अधिनियम 1968 में बनाया गया था तथा सारे देश में लागू कर दिया गया था।
यह अधिनियम कीटनाशक दवाइयों आदि में मिलावट, कमी तथा अन्य कमियां दूर करने के लिये लागू किया गया है। इस अधिनियम के अन्तर्गत पुरानी आऊटडेटड हो चुकी तथा कम माप वाली दवाइयों की बिक्री अवैध है। पंजाब सरकार द्वारा जिला स्थित चीफ कृषि अधिकारियों को यह दवाइयां बेचने सम्बन्धी लाइसेंस देने का अधिकार दिया गया है। संबंधित अधिकारी कीटनाशक बेचने वाली दुकानों की चैकिंग करते हैं तथा सैंपल लेकर लुधियाना, अमृतसर, भटिंडा की प्रयोगशाला में भेजते हैं। कानून की उल्लंघना करने वाले दुकानदार के विरुद्ध कानूनी कारवाई तथा लाइसेंस रद्द किया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
बीज कन्ट्रोल आर्डर की प्रमुख धाराओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1. लाइसेंस देने का अधिकार-बीज कन्ट्रोल आर्डर, 1983 के अन्तर्गत राज्य सरकार को यह अधिकार दिये गये हैं कि वह किसी भी अधिकारी को जिसे वह ठीक समझती हो, लाइसेंस अधिकारी नियुक्त किया जा सकता है तथा इस अधिकारी का कार्यक्षेत्र भी निर्धारित कर सकती है। पंजाब राज्य में यह अधिकार डायरेक्टर कृषि संयुक्त डायरेक्टर कृषि विभाग, पंजाब को दिये गये हैं।

2. बीज इन्स्पेक्टर-इस अधिनियम के अन्तर्गत सरकार द्वारा कृषि विकास अधिकारियों को बीज इन्स्पेक्टर नियुक्त किया गया है उनका अधिकार क्षेत्र तथा उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली शक्तियों को भी नोटिफाई किया गया है। बीज इन्स्पैक्टर किसी भी डीलर से बीज के स्टॉक के बारे में, बिक्री के बारे में, खरीद के बारे में तथा स्टोर में पड़े बीज के बारे में कोई भी सूचना मांग सकता है। बीज वाले स्टोर या दुकान की तलाशी ले सकता है तथा उपलब्ध बीजों के नमूने भरकर उनकी जांच, बीज जांच प्रयोगशाला से करवा सकता है, कोई कमी होने पर बिक्री पर पाबन्दी लगा सकता है। इन्स्पेक्टर बीजों से सम्बन्धित दस्तावेज़ अपने कब्जे में ले सकता है तथा चैक कर सकता है। इसके अतिरिक्त दोषी का लाइसेंस रद्द करने के लिये लाइसेंस अधिकारी को लिख सकता है।

3. किसानों के अधिकार-सीड कन्ट्रोल कानून के अन्तर्गत बीज खरीदने वाले किसानों के अधिकार सुरक्षित रखे गये हैं, ताकि बीजों में कोई कमी होने पर उस द्वारा बीजों पर किये गये खर्च का मुआवज़ा उसको मिल सके। यदि किसान यह समझता हो कि उसकी फसल के फेल होने का मुख्य कारण उसको बीज डीलर द्वारा दिया गया घटिया बीज है तो वह इस सम्बन्ध में बीज इन्स्पेक्टर के पास अपनी शिकायत लिखित रूप में दर्ज करवा सकता है।

शिकायत दर्ज करवाते समय किसान को निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है –

  • बीज खरीदते समय दुकानदार द्वारा दिया गया बिल या रसीद।
  • बीज की थैली पर लगा हुआ लेबल।
  • बीज वाला खाली पैकेट या थैला या डिब्बा।
  • खरीदे हुए बीज में से रखा हुआ बीज का नमूना।

बीज इन्स्पेक्टर यह शिकायत प्राप्त होने पर इसकी पूरी जांच-पड़ताल करेगा तथा यदि इस नतीजे पर पहुंचता है कि फ़सल का फेल होने का कारण बीज की खराबी है तो वह बीज के डीलर/विक्रेता के विरुद्ध कानूनी कार्यवाई शुरू करेगा तथा बीज कानून के अन्तर्गत उसको दण्ड मिल सकता है।

बीज कन्ट्रोल आदेश, 1983 की उल्लंघना करने वाले दोषी को आवश्यक वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत दिये जाते दण्ड दिये जाएंगे क्योंकि बीज को भारत सरकार द्वारा एक आवश्यक वस्तु का दर्जा दिया गया है।

प्रश्न 4.
बीज कन्ट्रोल आर्डर अधीन किसानों को क्या-क्या अधिकार प्राप्त हैं ?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 5.
कृषि विकास से संबंधित तीन प्रमुख वस्तुओं के नाम बताओ तथा उनके क्वालिटी कन्ट्रोल पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बीज कन्ट्रोल एक्ट कब बना ?
उत्तर-
1983.

प्रश्न 2.
खाद कन्ट्रोल आर्डर बन बना ?
उत्तर-
1985.

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प्रश्न 3.
पंजाब में बीज, खाद, कीटनाशक से संबंधित कानूनों को किस द्वारा लागू किया जाता है?
उत्तर-
कृषि विभाग, पंजाब।

प्रश्न 4.
बीजों के बन्द पैकटों, डिब्बों या थैलों पर कौन-सा क्वालिटी का लेबल लगा होता है ?
उत्तर-
टी० एल०।

प्रश्न 5.
कौन-से बीजों का प्रमाणीकरण किया जा सकता है ?
उत्तर-
उन किस्मों का ही प्रमाणीकरण किया जा सकेगा जो कि निर्धारित हैं।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इन्सैक्टीसाइड अधिनियम, 1968 कब पारित किया गया है ?
उत्तर-
यह अधिनियम भारतीय पार्लियामेंट द्वारा 1968 में पारित किया गया था तथा सारे देश में लागू कर दिया गया।

प्रश्न 2.
पंजाब सरकार ने इन्सैक्टीसाइड दवाइयां बेचने सम्बन्धी लाइसेंस देने का अधिकार किस को दिया है ?
उत्तर-
जिला के मुख्य कृषि अधिकारियों को यह अधिकार मिला है।

प्रश्न 3.
कीटनाशक दवाइयां खरीदते समय कौन-सी बातों की तरफ ध्यान देना चाहिए ?
उत्तर-
किसानों को कीटनाशक दवाइयां बेचने वालों से खरीद की रसीद अवश्य लेनी चाहिए। डिब्बों तथा दवाई की बोतलों का सील बन्द होना बहुत ज़रूरी है। खरीद करते समय यह भी देखना बहुत ज़रूरी है कि दवाई आऊटडेटड न हुई हो। किसी किस्म का सन्देह होने पर कृषि विकास अधिकारी या चीफ कृषि अधिकारी को इसके बारे में तुरन्त सूचित करें।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
खाद कन्ट्रोल आर्डर 1985 से क्या अभिप्राय है ? यह खादों के क्वालिटी कन्ट्रोल में कैसे सहायक होता है ?
उत्तर-
खाद कन्ट्रोल आर्डर,1985 खादों की क्वालिटी मिलावट, पूरे वज़न, घटिया तथा अप्रमाणित खादें बेचने तथा अन्य प्रकार की उल्लंघना को रोकने के लिये बनाया गया है।

किसी भी स्थान पर खादें बेचने से पहले डीलरों को जिले के सम्बन्धित चीफ एग्रीकल्चरल अधिकारी से खादें बेचने का लाइसेंस लेना ज़रूरी है। लाइसेंस तभी मिल सकता है, जब किसी खाद बनाने वाली कम्पनी ने उस डीलर को खाद बेचने के लिये अधिकार पत्र दिया हो।

खादों की क्वालिटी चैक करने के लिये खाद कन्ट्रोल आर्डर के नियमों के अनुसार विभिन्न स्तर पर कारवाई की जाती है। कोई भी व्यक्ति निश्चित स्तर से घटिया खाद नहीं बेच सकता। किसानों को सप्लाई की जाने वाली/बेचने वाली खादों की क्वालिटी पर निगरानी रखने के लिये खाद कन्ट्रोल 1985 के अन्तर्गत सम्बन्धित अधिकारियों को योग्य अधिकार दिए गये हैं। उनके द्वारा अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में खादों के कारोबारी विभागों का निरीक्षण किया जाता है। आवश्यकता अनुसार खादों के नमूने भरे जाते हैं। इन नमूनों को कृषि विभाग की खाद जांच लैब्राटरी, लुधियाना तथा फरीदकोट में परख करने के लिये भेजा जाता है। यदि नमूने क्वालिटी में घटिया पाए जाते हैं, तो उनके कारोबारी विभागों के विरुद्ध नियमों के अनुसार कानूनी कार्यवाई की जाती है। न्यायालय द्वारा दोषियों को जेल की सज़ा भी की जा सकती है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 5 बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल

बीज, खाद और कीड़ेमार दवाइयों का क्वालिटी कन्ट्रोल PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • फ़सलों की लाभदायक उत्पादन के लिए बीज, खाद तथा कीटनाशक दवाइयां मुख्य तीन वस्तुएं हैं।
  • भारत सरकार ने अनिवार्य वस्तुओं के कानून के अन्तर्गत कृषि में काम आने वाली इन तीनों वस्तुओं के लिए विभिन्न कानून बनाए हैं।
  • ये कानून हैं बीज कन्ट्रोल आर्डर, खाद कन्ट्रोल आर्डर, कीटनाशक एक्ट।
  • सीड कन्ट्रोल आर्डर के अनुसार पंजाब में लाइसेंस अधिकारी नियुक्त किए गए हैं। पंजाब में यह अधिकार कृषि विभाग, पंजाब को दिए गए हैं।
  • यदि बीज डीलर द्वारा किसान को घटिया बीज देने से फ़सल खराब हो गई हो तो किसान अपनी शिकायत बीज इन्सपैक्टर से कर सकता है।
  • बीज इंस्पैक्टर को यदि बीज की खराबी के कारण फसल के फेल होने का पता चलता है तो वह बीज डीलर के विरुद्ध कानूनी कारवाई शुरू करता है।
  • बीज कानून की धारा 7 के अन्तर्गत केवल निर्धारित बीजों की ही बिक्री की जा सकती है।
  • खाद परीक्षण प्रयोगशाला लुधियाना तथा फरीदकोट में है।
  • खाद कन्ट्रोल आर्डर 1985, बनाया गया है जो कि खादों की क्वालटी तथा वजन को ठीक रखने तथा मिलावट, घटिया तथा अप्रमाणित खादें बेचने को रोकने के लिए सहायक है।
  • इन्सैक्टीसाइड अधिनियम (कीटनाशक एक्ट) 1968 में बनाया गया।
  • सेन्ट्रल इन्सैक्टीसाइड बोर्ड (केन्द्रीय कीटनाशक बोर्ड) सरकार को यह अधिनियम लागू करने की सलाह देता है।
  • सेन्ट्रल (केन्द्रीय) रजिस्ट्रेशन कमेटी कृषि रसायनों की रजिस्ट्रेशन करके इन्हें बनाने तथा आयात निर्यात के लिए आज्ञा देती है।
  • दवाइयां चैक करने के लिए प्रयोगशालाएं लुधियाना, बठिंडा तथा अमृतसर में हैं।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

Punjab State Board PSEB 7th Class Physical Education Book Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Physical Education Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

PSEB 7th Class Physical Education Guide नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Textbook Questions and Answers

अभ्यास के प्रश्नों के उत्तर

प्रश्न 1.
सिगरेट तथा बीड़ी ये दोनों नशे किस पदार्थ से बनते हैं ?
उत्तर-
सिगरेट और बीड़ी में तम्बाकू डाला जाता है। सिगरेट कागज़ में तम्बाकू डाल कर बनाई जाती है और बीड़ी किसी विशेष वृक्ष के पत्तों से बनती है। इस तरह तम्बाकू पीने के और भी ढंग हैं। जैसे-बीड़ी, सिगरेट पीना, हुक्का पीना और चिलम पीना आदि। इस तरह खाने के ढंग भी अलग-अलग हैं जैसे-तम्बाकू चूने में मिला कर सीधा मुँह में रख कर खाना। तम्बाकू में खतरनाक जहर निकोटीन होता है। इसके अतिरिक्त अमीनिया कार्बनडाइआक्साइड आदि भी होती है जिसका बुरा प्रभाव सिर पर पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है।

प्रश्न 2.
किस नशे के सेवन से जीभ, गले तथा मुंह का कैंसर होने का खतरा रहता है?
उत्तर-
तम्बाकू के प्रयोग से जीभ, गले और मुँह का कैंसर होने का खतरा रहता है। तम्बाकू में निकोटीन नाम का जहरीला पदार्थ होता है जिस कारण कैंसर की बीमारी लगने का डर बढ़ जाता है। खासतौर पर छाती और गले के कैंसर का डर रहता है।
तम्बाकू के नुकसान इस तरह हैं—

  1. तम्बाकू खाने या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है।
  2. इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। दिल का रोग लग जाता है जो कि मृत्यु का कारण बना सकता है।
  3. आविष्कारों से पता लगा है कि तम्बाकू पीने या खाने से रक्त की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं।
  4. तम्बाकू शरीर के तन्तुओं को उत्तेजित रखता है, जिससे नींद नहीं आती और नींद न आने की बीमारी लग सकती है।
  5. तम्बाकू के प्रयोग से पेट खराब रहने लग जाता है।
  6. तम्बाकू के प्रयोग से खांसी लग जाती है जिससे फेफड़ों के टी० बी० होने का खतरा बढ़ जाता है।
  7. तम्बाकू के प्रयोग से खुराक नली, मुंह के कैंसर का डर भी रहता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 3.
शराब मनुष्य के लिए किस प्रकार हानिकारक है ?
उत्तर-
शराब का सेहत पर प्रभाव (Effect of Alcohol on Health)-शराब एक नशीला तरल पदार्थ है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बाज़ार में बेचने से पहले प्रत्येक शराब की बोतल पर यह लिखना ज़रूरी है। फिर भी बहुत-से लोगों को इस की लत (आदत) लगी हुई है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर को कई तरह के रोग लग जाते हैं । फेफड़े कमज़ोर हो जाते हैं और व्यक्ति की आयु घट जाती है। ये शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव डालती है। पहले तो व्यक्ति शराब को पीता है। कुछ समय पीने के बाद शराब आदमी को पीने लग जाती है। भाव शराब शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लग जाती है।
शराब पीने के नुकसान निम्नलिखित हैं—

  1. शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। नाड़ी प्रबन्ध बिगड़ जाता है और दिमाग़ कमजोर हो जाता है। मनुष्य के सोचने की शक्ति घट जाती है।
  2. शरीर में गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
  3. शराब पीने से पाचन रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है जिससे पेट खराब रहने लग जाता है।
  4. श्वास की गति तेज़ और सांस की अन्य बीमारियां लग जाती हैं।
  5. शराब पीने से रक्त की नाड़ियां फूल जाती हैं। दिल को अधिक काम करना पड़ता है और दिल के दौरे का डर बना रहता।
  6. लगातार शराब पीने से मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है। शरीर बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य नहीं रहता।
  7. आविष्कारों से पता लगा है कि शराब पीने वाला मनुष्य शराब न पीने वाले व्यक्ति से काम कम करता है। शराब पीने वाले व्यक्ति को बीमारियां भी जल्दी लगती हैं।
  8. शराब से घर, स्वास्थ्य, पैसा आदि बर्बाद होता है और यह एक सामाजिक बुराई है।

प्रश्न. 4.
विद्यार्थियों को नशों से किस प्रकार बचाया जा सकता है?
उत्तर-
1. विद्यार्थियों को इन नशीली वस्तुओं से जान पहचान करवानी चाहिए जिससे वह नशीली वस्तुओं से दूर रह सकते हैं।

2. विद्यार्थी किसी भी आयु के हों उनको इन नशीली वस्तुओं की तरफ झुकाव नहीं रखना चाहिए। उनका इरादा कमजोर नहीं होना चाहिए । वह दृढ़ इरादे वाला होना चाहिए।

3. माता पिता और अध्यापक द्वारा बच्चों को नशों से बचाने के लिए अच्छी पुस्तकें पढ़ने के लिए देनी चाहिए और उनको खेलों में भाग लेने, मनोरंजन क्रियाओं में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

Physical Education Guide for Class 7 PSEB नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं दो नशीली वस्तुओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. शराब
  2. हशीश

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुएं किन दो क्रियाओं पर अधिक प्रभाव डालती हैं ?
उत्तर-

  1. पाचन क्रिया पर
  2. खेलने की शक्ति पर।

प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं के कोई दो दोष लिखें।
उत्तर-

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।

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प्रश्न 4.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर कोई दो बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर-

  1. लापरवाई तथा बेफिक्री।
  2. खेल भावना का अन्त।

प्रश्न 5.
खेल में हार नशीली वस्तुओं के प्रयोग के कारण हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
शराब का असर पहले दिमाग़ पर होता है। ठीक अथवा ग़लत
उत्तर-
ठीक

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 7.
तम्बाकू खाने से या पीने से नजर कमजोर हो जाती है। ठीक अथवा ग़लत
उत्तर-
ठीक।

प्रश्न 8.
तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ता है अथवा कम होता है ?
उत्तर-
डर बढ़ जाता है।

प्रश्न 9.
तम्बाकू के प्रयोग से खांसी नहीं लगती और टी० बी० भी नहीं हो सकती। ठीक अथवा ग़लत ।
उत्तर-
ग़लत।

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प्रश्न 10.
नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है। सही अथवा ग़लत
उत्तर-
सही।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं की सूची बनाएं और यह भी बताएं कि नशीली वस्तुएं पाचन क्रिया और सोचने की शक्ति पर कैसे प्रभाव डालती हैं?
उत्तर-
मादक पदार्थ ऐसे नशीले पदार्थ हैं जिनके सेवन से किसी-न-किसी प्रकार की उत्तेजना या शिथिलता आ जाती है। मनुष्य के स्नायु संस्थान पर सभी किस्म के मादक पदार्थों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे कई प्रकार के विचार, कल्पनाएं तथा भावनाएं पैदा होती हैं। इससे व्यक्ति में घबराहट, गुस्सा और व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है। नशीले पदार्थों का इस्तेमाल करने से व्यक्ति का अपने व्यवहार और शरीर पर नियन्त्रण नहीं रहता। नशीली वस्तुएं निम्नलिखित हैं—

  1. शराब
  2. अफीम
  3. तम्बाकू
  4. भांग
  5. हशीश
  6. चरस
  7. कोकीन
  8. एलडरविन।

पाचन क्रिया पर प्रभाव (Effects on Digestion)-नशीली वस्तुओं का पाचन क्रिया पर बहुत प्रभाव पड़ता है। इनमें अम्लीय अंश बहुत अधिक होते हैं। इन अंशों के कारण आमाशय की कार्य करने की शक्ति कम हो जाती है और कई प्रकार के पेट के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

सोचने की शक्ति पर प्रभाव (Effects on Thinking)-नशीली वस्तुओं के प्रयोग से व्यक्ति अच्छी तरह बोल नहीं सकता और वह बोलने के स्थान पर तुतलाने लगता है। वह अपने पर नियन्त्रण नहीं रख सकता। वह खेल में आई अच्छी स्थितियों के विषय में सोच नहीं सकता और न ही ऐसी स्थितियों से लाभ उठा सकता है।

PSEB 7th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशीले पदार्थों के विद्यार्थियों पर कुप्रभाव

प्रश्न 2.
खेल में हार नशीली वस्तुएं के प्रयोग के कारण हो सकती है, कैसे ?
उत्तर-

  1. नशे में खेलते समय खिलाड़ी बहुत-से ऐसे काम कर जाता है जिससे टीम हार जाती है।
  2. नशे में खिलाड़ी विरोधी टीम की चालें नहीं समझ सकता और अपनी टीम के लिए पराजय का कारण बनता है।
  3. यदि किसी खिलाड़ी को नशे में खेलते हुए पकड़ लिया जाए तो उसे खेल में से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि उसे इनाम मिलना है तो नहीं दिया जाता। इस प्रकार उसकी विजय पराजय में बदल जाती है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Home Science Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

PSEB 6th Class Home Science Guide शुद्ध वायु का आवागमन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
शुद्ध हवा में ऑक्सीजन कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
शुद्ध हवा में ऑक्सीजन 20 प्रतिशत होती है।

प्रश्न 2.
शुद्ध हवा में कार्बन डाइऑक्साइड कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
शुद्ध हवा में कार्बन डाइऑक्साइड 0.04 प्रतिशत होती है।

प्रश्न 3.
प्रत्येक मनुष्य को एक घण्टे में कितने घन फुट ताज़ा हवा की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
3000 घन फुट ताज़ी वायु की।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 4.
घर में हवा के आगमन के लिए क्या उचित है ?
उत्तर-
दरवाज़ों और खिड़कियों की संख्या अधिक हो और वे आमने-सामने हों।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
दूषित हवा में साँस लेना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक क्यों है ?
उत्तर-
गन्दी वायु में श्वास लेने से जी ख़राब होने लगता है, खून की कमी हो जाती है तथा पाचन क्रिया बिगड़ जाती है। शरीर का रंग पीला पड़कर चमड़ी पर छूत की बीमारियाँ लगने की भी सम्भावना रहती हैं।

प्रश्न 2.
अन्दर तथा बाहर की वायु के तापमान में अन्तर होने का क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
अन्दर तथा बाहर की वायु के तापमान में जितना अन्तर होगा उतना ही वायु का दौरा तीव्र होगा।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 3.
रसोई में वायु का प्रबन्ध कैसा होना चाहिए ?
उत्तर-
रसोई में वायु का प्रबन्ध शुद्ध होना चाहिए।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शुद्ध वायु के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
शुद्ध वायु के निम्नलिखित लाभ हैं –

  1. शुद्ध वायु शरीर के आन्तरिक अंगों की सफाई के लिए आवश्यक है, क्योंकि शुद्ध वायु द्वारा ऑक्सीजन की ठीक मात्रा शरीर के अन्दर जाती है।
  2. इससे फेफड़े और पाचन-क्रिया ठीक ढंग से काम करते हैं।
  3. शरीर का तापमान भी ठीक रहता है।

प्रश्न 2.
वायु शुद्ध करने के बनावटी ढंग बताओ।
उत्तर-
वायु शुद्ध करने के बनावटी ढंग निम्नलिखित हैं –

1.पंखे-यह गन्दी हवा बाहर निकालने का एक उत्तम तथा वैज्ञानिक तरीका है। जब पंखा चलता है तो गंदी हवा बाहर निकल जाती है तथा उसके स्थान पर साफ़ और शुद्ध हवा अन्दर आ जाती है।

2. वायु निकासी मशीन-वायु निकासी मशीन का कार्य मशीन से गैस बाहर निकालना है। बड़े-बड़े हाल कमरे जहाँ ड्रामे होते हैं, लैक्चर हॉलों तथा सिनेमाघरों में हवा को बाहर निकाला जाता है।
PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन 1

3. पाइप या नालियों द्वारा- यह विधि वहाँ पर प्रयोग की जाती है जहाँ कमरों की गन्दी हवा बाहर निकालने के लिए रोशनदान तो हों परन्तु खिड़कियाँ न हों और यदि हों भी तो खोली न जा सकती हों। जिन कमरों में दरवाजे बंद हों और केवल रोशनदान ही खुलें हों, उन कमरों में गन्दी हवा रोशनदान द्वारा बाहर निकाल दी जाती है। साफ़ हवा पाइपों द्वारा कमरों में आती है।

4. पाइप तथा हवा निकासी मशीन से-बड़े-बड़े कान्फ्रेंस हालों में यदि खिड़कियाँ और रोशनदान न भी हों या रोशनदान और खिड़कियाँ बन्द हों और उन्हें किसी कारणवश खोला न जा सकता हो तो ऐसे स्थानों से मशीन द्वारा गन्दी वायु को बाहर निकाल दिया जाता है। स्वच्छ वायु पाइपों द्वारा कमरों में भेजी जाती है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 3.
वायु का आवागमन ठीक रखने के लिए किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
वायु का आवागमन-मकान में शुद्ध वायु के आवागमन का प्रबन्ध अत्यन्त आवश्यक है, क्योंकि शुद्ध वायु और प्रकाश का स्वास्थ्य से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। घर में संवातन की समुचित व्यवस्था हेतु उचित एवं आवश्यकतानुसार खिड़कियाँ एवं दरवाज़े होने चाहिएं जिससे कमरे की अशुद्ध वायु बाहर निकल सके एवं शुद्ध वायु कमरों में प्रविष्ट हो सके। प्रत्येक व्यक्ति सांस-क्रिया द्वारा शुद्ध वायु ग्रहण करता है और दूषित वायु बाहर निकालता है जिसमें कार्बन-डाइऑक्साइड की प्रधानता रहती है। ऐसी वायु में रोग के जीवाणु मिलकर कमरे की वायु को दूषित बना देते हैं। इस प्रकार की दूषित वायु का निरन्तर सेवन करते रहने से हमारा शरीर अनेक रोगों को जन्म देता है। दूषित वायु गर्म होकर हल्की हो जाती है और हल्की होने के कारण यह ऊपर की ओर उठती है, अतएव वह वायु रोशनदानों के सहारे कमरे से बाहर निकलती है।

कमरों में खिड़कियों, दरवाज़ों तथा रोशनदानों का होना ही पर्याप्त नहीं है, अपितु इन्हें खुला रखना भी ज़रूरी है जिससे दूषित वायु बाहर जाये एवं शुद्ध वायु कमरे के भीतर आ सके।

कमरों में वायु के आवागमन हेतु प्रवेश-द्वार एवं निकास द्वारों का होना भी आवश्यक है। प्रवेश-द्वार फ़र्श के पास होना चाहिए जिससे शुद्ध वायु कमरे में पर्याप्त मात्रा में प्रवेश कर सके। प्रवेश-द्वार की भूमिका खिड़कियाँ एवं दरवाज़े निभाते हैं। अशुद्ध वायु को बाहर निकलने के लिए निकास द्वार होना चाहिए। निवास द्वार छत के पास होना चाहिए। निकास द्वार कमरे के अनुपात में हो तथा उसे उचित रूप से खोलने एवं बन्द करने का प्रबन्ध होना चाहिए। निकास द्वार का काम रोशनदान करते हैं। हमारे देश में ग्रीष्मकाल में अधिक लू (गर्म हवाएँ) चलती हैं। इसलिए बड़ी-बड़ी खिड़कियों की अपेक्षा छोटे-छोटे छिद्र हों तो अधिक उचित है।

इस प्रकार शुद्ध वायु के आवागमन एवं सुरक्षा की दृष्टि से मकान में खिड़कियों, दरवाज़ों एवं रोशनदानों का उचित स्थान पर एवं उचित संख्या में होना आवश्यक है।

प्रश्न 4.
वायु शुद्ध रखने के प्राकृतिक ढंग कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
वायु शुद्ध रखने के प्राकृतिक ढंग निम्नलिखित हैं –

1. पौधों द्वारा-पौधे वायु में से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर प्रकाश तथा पत्तों की सहायता से भोजन तैयार करते हैं। इस तरह ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड तथा कार्बन अलग-अलग हो जाते हैं। मनुष्य तथा पशु श्वास द्वारा जो कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं पौधे उसे प्रयोग कर लेते हैं तथा पौधे जो ऑक्सीजन छोड़ते हैं उसे मनुष्य तथा पशु श्वास लेने के लिए प्रयोग करते हैं। पौधे कार्बन डाइऑक्साइड इस्तेमाल करके वायु को शुद्ध करते हैं।

2. धूप द्वारा-धूप दुर्गन्ध को दूर करती है तथा रोगाणुओं को नष्ट करके वायु को शुद्ध करती है।

3. तीव्र हवा-जब गर्मी ज़्यादा बढ़ जाए तो तापमान बढ़ जाता है। गर्म हवा हल्की होकर ऊपर उठती है। यह हवा कृमियों, दुर्गन्ध, रेत तथा मिट्टी को उड़ाकर ले जाती है और उसकी जगह साफ़ और ठंडी हवा आ जाती है।

4. वर्षा-वर्षा द्वारा वायु में घुली अशुद्धियाँ वातावरण में से निकलकर तथा पानी में घुलकर धरती पर आ गिरती हैं तथा वायु शुद्ध हो जाती है।

5. गैसों के बहाव तथा आपसी मेल से-गैसें स्वयं एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती रहती हैं। इसलिए वायु के आने-जाने में कोई रुकावट न डाली जाए तो स्वच्छ और गन्दी हवाएँ आपस में मिल जाती हैं तथा वायु स्वच्छ होती रहती है। इस प्रकार हम गन्दी हवा से बच सकते हैं।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

Home Science Guide for Class 6 PSEB शुद्ध वायु का आवागमन Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
शुद्ध हवा में नाइट्रोजन कितने प्रतिशत होती है ?
उत्तर-
शुद्ध हवा में नाइट्रोजन 79 प्रतिशत होती है।

प्रश्न 2.
खिड़कियाँ मकान के धरातल से कितने फट ऊँची होनी चाहिए ?
उत्तर-
खिड़कियाँ मकान के धरातल से 27 फुट ऊँची होनी चाहिए।

प्रश्न 3.
मकान में वायु प्रवेश व निकास का उचित प्रबन्ध क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
दूषित वायु की हानियों से बचने और शुद्ध वायु प्राप्त करने के लिए मकान में वायु के प्रवेश व निकास का उचित प्रबन्ध आवश्यक है।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 4.
दिन के समय सूर्य के प्रकाश का कमरों में आना क्यों आवश्यक है ?
उत्तर-
सूर्य का प्रकाश स्वास्थ्य को ठीक रखता है। यह हानिकारक कीटाणुओं का नाश करके वायु को शुद्ध करता है।

प्रश्न 5.
कम या धुंधली रोशनी में काम करने या पढ़ने से क्या हानि होती है ?
उत्तर-
आँखों की ज्योति कमजोर हो जाती है।

प्रश्न 6.
प्रकाश के कृत्रिम साधन कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
प्रकाश के कृत्रिम साधन मोमबत्ती, दीपक, लालटेन, गैस की लालटेन आदि हैं।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
हवा में …………….. % कार्बन डाइऑक्साइड होती है।
उत्तर-
0.04%.

प्रश्न 2.
रसोई में आग जलाने से कौन-सी गैस पैदा होती है ?
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड।

प्रश्न 3.
शुद्ध हवा से …………… तथा पाचन क्रिया ठीक काम करते हैं।
उत्तर-
फेफड़े।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

प्रश्न 4.
प्रकाश के बनावटी स्त्रोत की एक उदाहरण दें।
उत्तर-
लालटेन।

प्रश्न 5.
निकास द्वार का काम ……………….. करते हैं।
उत्तर-
रोशनदान।

प्रश्न 6.
………………… हवा में से कार्बन डाइऑक्साइड लेकर हवा को शुद्ध करते हैं।
उत्तर-
पौधे।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 5 शुद्ध वायु का आवागमन

शुद्ध वायु का आवागमन PSEB 6th Class Home Science Notes

  • घर एक निजी स्वर्ग का नाम है।
  • प्रत्येक जीवित प्राणी के लिए वायु सबसे अधिक ज़रूरी है।
  • शुद्ध वायु कुछ गैसों का मिश्रण है। इसमें निम्नलिखित गैसें होती हैं –
    ऑक्सीजन-20%, नाइट्रोजन-79%, कार्बन-डाइऑक्साइड-0.04%.
  • वायु के सारे तत्त्वों में से ऑक्सीजन का एक विशेष स्थान है। यह श्वास लेने के लिए ज़रूरी है।
  • वायु को शुद्ध करने की विधियाँ-1. प्राकृतिक, 2. बनावटी।
  • पौधे वायु में से कार्बन-डाइऑक्साइड लेकर प्रकाश तथा हरी पत्तियों की सहायता से भोजन तैयार करते हैं।
  • पौधे कार्बन-डाइऑक्साइड का प्रयोग करके वायु को शुद्ध करते हैं।
  • जब गर्मी बहुत बढ़ जाए तो तापमान बढ़ जाता है। गैसें स्वयं एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाती रहती हैं।
  • पंखे गन्दी हवा बाहर निकालने का एक अति उत्तम तथा वैज्ञानिक तरीका है।
  • वायु निकास का अर्थ है मशीन से गैस बाहर निकालना।
  • स्वच्छ वायु शरीर के आन्तरिक अंगों की सफाई के लिए आवश्यक है।
  • स्वच्छ वायु से फेफड़े और पाचन क्रिया ठीक काम करते हैं।
  • स्वच्छ वायु से शरीर का तापमान भी ठीक रहता है।
  • रसोई में शुद्ध वायु का आवागमन बहुत ज़रूरी है।
  • रसोई में आग जलाने से कार्बन-डाइऑक्साइड उत्पन्न होती है।
  • हैदराबादी धुएँ रहित चूल्हा धुएँ तथा गंदी हवा से छुटकारा दिला सकता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय किन राजनीतिक, सामाजिक व धार्मिक परिस्थितियों में हुआ ?
उत्तर-
जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इस समय तक देश के राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक क्षेत्रों में नए विचार उभर रहे थे। देश में कुछ बड़े-बड़े राज्य स्थापित हो चुके थे। इनमें शासक नवीन विचारों के पनपने का कोई विरोध नहीं कर रहे थे। इसी प्रकार सामाजिक एवं धार्मिक वातावरण भी नवीन धार्मिक आन्दोलनों के उदय के अनुकूल था। वैदिक धर्म में अनेक कुरीतियां आ गई थीं। व्यर्थ के रीति-रिवाजों, महंगे यज्ञों और ब्राह्मणों के झूठे प्रचार के कारण यह धर्म अपनी लोकप्रियता खो चुका था। इन सब कुरीतियों का अन्त करने के लिए देश में लगभग 63 नये धार्मिक आन्दोलन चले जिनका नेतृत्व विद्वान् हिन्दू कर रहे थे। परन्तु ये सभी धर्म लोकप्रिय न हो सके। केवल दो धर्मों को छोड़कर शेष सभी समाप्त हो गये। ये दो धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म । संक्षेप में जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का उदय निम्नलिखित राजनीतिक, सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियों में हुआ:

I. राजनीतिक परिस्थितियां

1. राजतंत्रों तथा गणतंत्रों की स्थापना-छठी शताब्दी ई० पू० देश में कुछ बड़े-बड़े राजतन्त्र तथा गणराज्य स्थापित हो चुके थे। इनके शासक अपनी सत्ता के विस्तार के लिए आपसी संघर्ष में उलझे हुए थे। इसी वातावरण में नए विचारों का उद्भव हुआ। अतः किसी भी शासक ने इन विचारों का विरोध न किया। यही नवीन विचार अन्ततः जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उदय में सहायक हुए।

2. धनी व्यापारियों की आकांक्षा-इस काल में व्यापार का महत्त्व बहुत बढ़ गया। फलस्वरूप अनेक धनी व्यापारी सामने आए। ये लोंग समाज में उचित स्थान पाना चाहते थे। परन्तु वर्ण-व्यवस्था के कारण उन्हें वैश्यों से उच्च नहीं समझा जाता था। फलस्वरूप वे किसी नवीन सामाजिक एवं धार्मिक संगठन की आकांक्षा करने लगे।

II. सामाजिक एवं धार्मिक परिस्थितियां

1. वैदिक धर्म में जटिलता – प्रारम्भा में वैदिक धर्म काफी सरल था | परन्तु छठी शताब्दी ई० पूo तक यह बहुत जटिल हो गया था। शास्त्रों के गहन विचार आम लोग नहीं समझ सकते थे। मोक्ष प्राप्त करने के लिए कर्म-मार्ग, तप-मार्ग तथा ज्ञानमार्ग का प्रचार किया जा रहा था। कुछ लोग कहते थे कि यज्ञ करने चाहिएं और वेद मन्त्र पढ़ने चाहिएं। कुछ शरीर को कष्ट देने तथा संन्यास पर जोर देते थे। कुछ का विचार था कि अधिक-से-अधिक ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त हो सकता है। इसलिए आम लोग इस उलझन में थे कि उन्हें किस मार्ग पर चलना चाहिए। यह बड़ी जटिल समस्या थी। इसी का हल ढूंढ़ने के कारण नवीन धर्मों का उदय हुआ।

2. ब्राह्मणों का नैतिक पतन-आरम्भ में केवल पढ़े-लिखे तथा विद्वान् पुरुषों को ही ब्राह्मण माना जाता था। बाद में ब्राह्मणों की सन्तान भी अपने आप को ब्राह्मण कहलवाने लगी। अनेक ब्राह्मणों की सन्तान को न तो धार्मिक ग्रन्थों का वास्तविक ज्ञान था और न ही वे अपने पूर्वजों की भान्ति चरित्रवान् थे। वे सीधे-सादे लोगों से धन बटोरने में लगे हुए थे और उन्हें धर्म की गलत परिभाषा बताकर उल्लू बना रहे थे। वैसे भी कुछ ब्राह्मण स्वार्थी तथा कपटी बन चुके थे। उच्च परिवारों के विद्वान् क्षत्रिय इस भ्रष्टाचार को सहन न कर सके और उन्होंने इसे दूर करने के लिए धार्मिक आन्दोलन चलाएं।

3. जाति-प्रथा तथा छूत-छात-छठी शताब्दी ई० पू० तक जाति-बन्धन बहुत कठोर हो चुके थे। इसका सबसे बुरा प्रभाव शूद्र जाति के लोगों पर पड़ा। उन्हें न तो शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था और न ही लोग उनसे सामाजिक मेलजोल रखते थे। लोग शूद्रों को अपने कुओं से पानी भी नहीं भरने देते थे। इसके साथ-साथ ब्राह्मणों ने यह धारणा भी पैदा कर दी कि शूद्रों को अच्छे से अच्छे कर्म करने पर भी मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता। इसके विपरीत नीच से नीच कार्य करने वाले ब्राह्मण अपने आप को सर्वोच्च मानते थे। शूद्रों के प्रति यह घोर अन्याय था। इस अन्याय को समाप्त करने के लिए मुख्य रूप से महावीर स्वामी और महात्मा बुद्ध ने समाज को नई राह दिखाई।

4. महंगा वैदिक धर्म-वैदिक धर्म में यज्ञों का बड़ा महत्त्व था। आरम्भ में यज्ञ करना इतना सरल था कि इसे कोई भी व्यक्ति आसानी से कर सकता था। यज्ञ करने के लिए न तो पुरोहितों की आवश्यकता होती थी और न ही धन की। परन्तु छठी शताब्दी ईसा पूर्व तक यह धर्म काफ़ी महंगा हो गया। यज्ञ करना आवश्यक समझा जाने लगा और इसकी विधि काफ़ी जटिल हो गई। अब व्यक्ति स्वयं यज्ञ नहीं कर सकता था। इसके लिए अनेक पुरोहितों को बुलाना पड़ता था और सभी को भोज देना पड़ता था। यज्ञों में आहुति के लिए घी, दूध, फल तथा अन्य कई प्रकार की वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती थी। विशेष अवसरों पर पशु-बलि भी दी जाने लगी थी। कई यज्ञ तो 12 वर्ष तक चलते रहते थे जिन पर अधिक व्यय होता था। इस प्रकार यज्ञ इतने महंगे हो गए कि साधारण जनता उनके बारे में सोच विचार भी नहीं कर सकती थी। अन्य धार्मिक रीति-रिवाजों को पूरा करने के लिए भी ब्राह्मण बुलाने पड़ते थे जो दक्षिणा के रूप में धन बटोरते थे। आखिर कुछ महापुरुषों ने इन खर्चीले रीतिरिवाजों का खण्डन किया और नये धर्मों को जन्म दिया।

5. कठिन संस्कृत भाषा-वैदिक धर्म के सिद्धान्तों में जहां जटिलता आ गई थी, वहां इस धर्म के सभी ग्रंथ वेद, उपनिषद्, ब्राह्मण-ग्रंथ, रामायण, महाभारत आदि, कठिन संस्कृत भाषा में लिखे हुए थे। इस भाषा को आम लोग नहीं समझ सकते थे। इसलिए लोग अपने धर्म का वास्तविक ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते थे। फलस्वरूप वे कोई ऐसा धर्म चाहते थे जिसके ग्रंथ सरल भाषा में लिखे हों और उन्हें ब्राह्मणों की सहायता के बिना पढ़ा जा सके।

6. महापुरुषों का जन्म-सौभाग्य से छठी शताब्दी ई० पू० में अनेक महापुरुषों का जन्म हुआ। ये सभी अपने-अपने ढंग से दुःखी तथा दलित जनता का उद्धार करते रहे। उन्होंने लोगों को जीवन का सरल तथा सच्चा मार्ग दिखाया। इन महापुरुषों में महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध अधिक लोकप्रिय हुए। इन्हीं सिद्धान्तों ने धीरे-धीरे जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का रूप ले लिया।

इस प्रकार हम देखते हैं कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की उत्पत्ति मुख्यतः वैदिक धर्म में आई गिरावट के कारण हुई। धर्म की जटिलता, ब्राह्मणों का नैतिक पतन, छुआछूत, महंगे यज्ञ, कठिन भाषा तथा महापुरुषों का जन्म-ये सभी ऐसी बातें थीं जिन्होंने नए धर्मों के उभरने के लिए वातावरण तैयार किया। इस विषय में डॉ० एन० एन० घोष ठीक ही कहते हैं, “महावीर तथा गौतम बुद्ध ने हिन्दू धर्म में आए भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाई।” उनकी यही आवाज़ धीरे-धीरे नए धर्मों में बदल गई जिन्हें बदले हुए राजनीतिक वातावरण ने संरक्षण प्रदान किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 2.
समाज के लिए महत्त्व तथा देन के संदर्भ में जैन धर्म की शिक्षाओं तथा साम्प्रदायिक विकास की चर्चा करें।
उत्तर-
जैन धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इसके संस्थापक महावीर स्वामी थे। उन्होंने लोगों को अहिंसा तथा सदाचार का पाठ पढ़ाया। भले ही यह धर्म अत्यधिक लोकप्रिय न हो सका, तो भी भारतीय समाज, साहित्य तथा कला पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा। आगे चलकर यह धर्म श्वेताम्बर तथा दिगम्बर नामक दो सम्प्रदायों में बंट गया। परन्तु इसमें मूल रूप में कोई महत्त्वपूर्ण परिवर्तन न आया। यह पहले की तरह की समाज में भाई-चारे, आपसी प्रेम तथा संयमित जीवन का प्रचार करता रहा। जैन धर्म की शिक्षाओं, उसके सामाजिक महत्त्व तथा इस धर्म के साम्प्रदायिक विकास का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है

जैन धर्म की शिक्षाएं-

1. त्रिरत्न-जैन धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्त करना प्रत्येक मनुष्य के जीवन का लक्ष्य है। निर्वाण प्राप्ति के लिए मनुष्य को ‘त्रिरत्न’ (तीन सिद्धान्तों) पर चलना चाहिए। प्रथम सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को धर्म में दृढ़ विश्वास रखना चाहिए।। दूसरे, उसे व्यर्थ के आडम्बरों में समय नष्ट करने की बजाय सच्चा ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। तीसरे, मनुष्य को सत्य, अहिंसा तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
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2. अहिंसा-जैन धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया है। इसके अनुसार संसार की प्रत्येक वस्तु में आत्मा (जीव) है। पशु, पक्षी, वृक्ष, वायु तथा अग्नि सभी में जीव है। अतः वे किसी भी जीव को कष्ट देना पाप समझते हैं। जीव-हत्या के डर से जैनी लोग आज भी पानी छान कर पीते हैं, नंगे पांव चलते हैं, मुंह पर पट्टी बांधते हैं और रात को भोजन नहीं करते। वे नहीं चाहते कि कोई कीड़ा-मकौड़ा उनके पांवों के नीचे आ जाए या कोई कीटाणु उसके शरीर में चला जाए। संक्षेप में, हम यही कहेंगे कि जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है।

3. घोर तपस्या-‘घोर तपस्या करना भी जैन धर्म का प्रमुख सिद्धान्त है। महावीर स्वामी अपने शरीर को अधिक से अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते थे। उनका मत है कि उपवास करके प्राण त्यागने से ही मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होता है। स्वयं महावीर जी ने अपने शरीर को कष्ट पहुंचा कर ही निर्वाण प्राप्त किया था। अतः उन्होंने अपने अनुयायियों को संसार त्याग देने तथा घोर तपस्या करने का उपदेश दिया।

4. ईश्वर में अविश्वास-महावीर स्वामी ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते थे। वे हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त को नहीं मानते थे कि सृष्टि की रचना ईश्वर ने की है।

5. आत्मा में विश्वास–जैन धर्म में आत्मा में अस्तित्व को स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार आत्मा अमर है। यह शक्तिशाली है, परन्तु हमारे बुरे कर्म इसको निर्बल कर देते हैं। आत्मा में ज्ञान अमर है और यह सुख-दुःख का अनुभव करता है। एक जैन मुनि ने ठीक ही कहा है–आत्मा शरीर में रहकर भी शरीर से भिन्न होती है।’

6. यज्ञ, बलि आदि में अविश्वास-जैन धर्म में यज्ञ, बलि आदि व्यर्थ के रीति-रिवाजों का कोई स्थान नहीं है। महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को पशु-बलि की मनाही कर दी। उनके अनुसार पशु-बलि पाप है। मोक्ष प्राप्ति के लिए यज्ञ आदि की कोई आवश्यकता नहीं है।

7. वेदों तथा संस्कृत की पवित्रता में अविश्वास-जैन लोग वेदों को ईश्वरीय ज्ञान नहीं मानते। संस्कृत को भी वे पवित्र भाषा स्वीकार नहीं करते। उनके अनुसार वेद मन्त्रों का गायन आवश्यक नहीं है। अत: महावीर स्वामी ने स्वयं अपने सिद्धान्तों का प्रचार जन-साधारण की भाषा में किया।

8. जाति-पाति में अविश्वास-जैन धर्म के अनुयायी जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं। जाति के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं है।

9. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-जैन धर्म के अनुयायी कर्म सिद्धान्त में बड़ा विश्वास रखते हैं। उनका मत है कि मनुष्य अपने पिछले जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार जन्म लेता है और उसका अगला जन्म इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार होगा। “कोई भी मनुष्य कर्मों के फल से नहीं बच सकता।”
(“There is no escape from the effect of one’s actions.”) अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएं।

10. मोक्ष प्राप्ति-जैन धर्म के अनुसार आत्मा को कर्मों के बन्धन से छुटकारा दिलाने का नाम मोक्ष है। कर्म चक्र समाप्त होते ही जीव (आत्मा) को मुक्ति मिल जाती है। उसे पुनः किसी भी जन्म के चक्कर में नहीं फंसना पड़ता।

11. सदाचार पर बल-महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने उपदेश दिया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कार्यों से बचें।

जैन धर्म की क्रियाओं का समाज के लिए महत्त्व एवं देन-

(1) जैन धर्म ने भारतीय जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया। इसने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा और समाज प्यार तथा भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया। जैन धर्म ने हमें समाज सेवा का उपदेश दिया। लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की।

(2) जैन धर्म के प्रचार के कारण हिन्दू धर्म में काफी सुधार हुए। जैन धर्म वालों ने हिन्दू धर्म में प्रचलित कुरीतियों तथा कर्म-काण्डों की घोर निन्दा की। इधर जैन धर्म के अपने सिद्धान्त बड़े साधारण थे जो लोगों को बड़े प्रिय लगे। जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म काफ़ी सरल बन गया।

(3) जैन ऋषियों ने ही अहिंसा के महत्त्व को समझा तथा इसका प्रचार किया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाकर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए।

(4) जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की याद में विशाल मंदिर तथा मठ बनवाए। ये मंदिर अपने प्रवेश द्वारों तथा सुन्दर मूर्तियों के कारण प्रसिद्ध थे। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर ताजमहल को लजाता है। कहते हैं कि मैसूर में बनी जैन धर्म की सुन्दर मूर्तियां दर्शकों को आश्चर्य में डाल देती हैं। इसी प्रकार आबू पर्वत का जैन-मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खुजराहो के जैन मन्दिर कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। जैन धर्म में इस महान् योगदान की अपेक्षा नहीं की जा सकती। जैन धर्म के अनुयायियों ने लोक भाषाओं के प्रचार किया। उनका अधिकांश साहित्य संस्कृत की बजाय स्थानीय भाषाओं में लिखा गया। यही कारण है कि कन्नड़ साहित्य आज भी अपने उत्कृष्ट साहित्य के लिए जैन धर्म का अभारी है। इसके अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य में खूब योगदान दिया।

साम्प्रदायिक विकास

जैन धर्म में साम्प्रदायिक विकास मौर्य काल में आरम्भ हुआ। उन दिनों देश में भीषण अकाल पड़ा। कुछ जैन भिक्षु भद्रबाहु की अध्यक्षता में दक्षिण चले गए। वहां उन्होंने नग्न रह कर महावीर स्वामी की भांति जीवन व्यतीत किया। समय बीतने के साथ-साथ जैन भिक्षुओं ने उत्तरी भारत में श्वेत वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिये। दक्षिण में रहने वाले भिक्षु दिगम्बर कहलाये तथा उत्तरी भारत के भिक्षु श्वेताम्बर कहलाए। दिगम्बर का अर्थ है ‘नग्न’ तथा श्वेताम्बर का अर्थ है ‘श्वेत वस्त्र’। समय बीतने के साथ-साथ दिगम्बर भिक्षुओं ने भी वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए। परन्तु दोनों पक्षों में ऊपरी भेद आज भी बना हुआ है। यह भेद केवल मठों के आचार्यों तक ही सीमित है। मौर्य काल में हुई पाटलिपुत्र की एक सभा में जैन धर्म के सिद्धान्तों को 12 अंगों में विभाजित किया गया, परन्तु इन्हें दक्षिण के भिक्षुओं ने मानने से इन्कार कर दिया। अतः दोनों ने अपनी अलगअलग भाषा तथा टीकाएं लिखीं। ये ग्रन्थ प्राकृत तथा संस्कृत भाषा में लिखे गए। दोनों मतों में मूल रूप से कोई मतभेद नहीं

जैन धर्म की शिक्षाओं तथा उनके सामाजिक महत्त्व के अध्ययन से स्पष्ट है कि यह धर्म विश्व के महानतम धर्मों में से एक है। समाज में अहिंसा, प्रेम, कर्म तथा सेवा के भाव इस धर्म की मुख्य देन हैं। इस धर्म के कारण नवीन कला-कृतियां भी अस्तित्व में आईं जो आज भी भारतीय संस्कृति की समृद्धि का प्रतीक बनी हुई हैं।

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प्रश्न 3.
महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं एवं संघ-व्यवस्था के संदर्भ से बौद्ध धर्म के विश्वास की चर्चा करें।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध छठी शताब्दी ई० पू० के एक महान् धर्म प्रवर्तक थे। जैन धर्म की भान्ति उन्होंने भी नवीन धार्मिक आदर्श प्रस्तुत किए। उन्होंने भी अहिंसा पर बल दिया और यज्ञ, बलि, जाति-पाति आदि बातों का घोर खण्डन किया। उन्होंने लोगों को मध्य-मार्ग पर चल कर जीवन व्यतीत करने का संदेश दिया। अपने धर्म को व्यवस्थित रूप देने के लिए उन्होंने मठ वासी जीवन अर्थात् संघ-व्यवस्था को बड़ा महत्त्व दिया। इन विशेषताओं के फलस्वरूप बौद्ध धर्म का विकास बड़ी तीव्र गति से हुआ। कुछ ही समय में यह धर्म एक विश्वव्यापी धर्म बन गया। इस धर्म की शिक्षाओं, संघ-व्यवस्था एवं विकास का विस्तृत वर्णन इस प्रकार है-

बौद्ध धर्म की शिक्षाएं अथवा भगवान् बुद्ध के उपदेश —

महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं बड़ी सरल थीं। इन शिक्षाओं को साधारण जनता आसानी से अपना सकती थी, फलस्वरूप हज़ारों की संख्या में लोग उनके शिष्य बनने लगे। थोड़े ही समय में बौद्ध धर्म विश्व का एक महान् धर्म बन गया। बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. चार महान् सत्य-महात्मा बुद्ध ने चार महान् सत्यों पर बल दिया। ये थे-

  • संसार दुःखों का घर है।
  • इन दुःखों का कारण मनुष्य की तृष्णा अथवा लालसा है।
  • अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही मनुष्य दुःखों से छुटकारा पा सकता है और निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
  • मनुष्य अपनी लालसाओं का दमन अष्ट-मार्ग पर चलकर ही कर सकता है।

2. अष्ट-मार्ग-महात्मा बुद्ध ने अष्ट-मार्ग में निम्नलिखित आठ बातें सम्मिलित हैं

  • शुद्ध दृष्टि
  • शुद्ध संकल्प
  • शुद्ध वचन
  • शुद्ध कर्म
  • शुद्ध कमाई
  • शुद्ध प्रयत्न
  • शुद्ध स्मृति
  • शुद्ध समाधि।

ये सभी सिद्धान्त एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए शुद्ध कमाई केवल शुद्ध कर्म से ही हो सकती है। शुद्ध कर्म के लिए शुद्ध संकल्प तथा शुद्ध दृष्टि आवश्यक है। इस प्रकार अष्ट-मार्ग मनुष्य को पूर्ण रूप से सदाचारी बनाता है और उसे दुःखों से छुटकारा दिलाता है। इसे मध्य-मार्ग भी कहा जाता है।

3. अहिंसा-महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को मन, वचन तथा कर्म से किसी भी जीव को कष्ट नहीं पहुंचाना चाहिए। यही अहिंसा है। इसके अनुसार जीव-हत्या तथा पशु-बलि पाप है। इसके विपरीत उन्होंने इस बात का प्रचार किया कि मनुष्य को सभी जीवों के साथ दया तथा प्रेम का व्यवहार करना चाहिए।

4. कर्म सिद्धान्त-बौद्ध धर्म में कर्म सिद्धान्त को पूर्ण रूप से स्वीकार किया गया है। इसके अनुसार मनुष्य को इस जन्म के कर्मों का फल अगले जन्म में अवश्य भोगना पड़ता है। अच्छे कर्मों का फल अच्छा और बुरे कर्मों का फल बुरा होता है। यज्ञ आदि करने से पापों से मुक्ति नहीं मिल सकती। अतः मनुष्यों को अपना भविष्य सुधारने के लिए अच्छे कर्म करने चाहिएं।

5. उच्च चरित्र तथा नैतिकता पर बल-महात्मा बुद्ध ने उच्च नैतिक तथा पवित्र जीवन पर बड़ा बल दिया। उनका कहना था कि केवल सदाचारी व्यक्ति सांसारिक दुःखों से छुटकारा पा सकता है। चरित्रवान् तथा सदाचारी बनने के लिए मनुष्य को इन नियमों का पालन करना चाहिए-(i) सदा सच बोलो। (ii) चोरी न करो। (iii) मादक पदार्थों का सेवन न करो। (iv) पराई स्त्रियों से दूर रहो। (v) ऐश्वर्य के जीवन से दूर रहो। (vi) नाच रंग में रुचि न रखो। (vii) धन से दूर रहो। (viii) सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग न करो। (ix) झूठ न बोलो। (x) किसी को कष्ट न दो।

6. निर्वाण-महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य जीवन का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्ति है। हिन्दू धर्म की भान्ति वह मृत्यु के पश्चात् नरक-स्वर्ग के झगड़े में नहीं पड़ना चाहते थे। वे चाहते थे कि मनुष्य संसार में रहकर अपने इसी जीवन में निर्वाण प्राप्त करे। निर्वाण से उनका अभिप्राय सच्चे ज्ञान से था। उनका कहना था कि जो व्यक्ति निर्वाण प्राप्त कर लेते हैं, उन्हें जीवन-मरण के चक्कर से छुटकारा मिल जाता है।

7. ईश्वर के विषय में मौन-महात्मा बुद्ध परमात्मा तथा अन्य देवी-देवताओं की पूजा में विश्वास नहीं रखते थे। वह ईश्वर की सत्ता के विषय में सदा मौन रहे। फिर भी वे समझते थे कि कोई ऐसी शक्ति अवश्य है जो संसार को चला रही है। इस शक्ति को वे ईश्वर की बजाए धर्म मानते थे।

8. यज्ञ बलि का निषेध-महात्मा बुद्ध यज्ञ बलि को व्यर्थ के रीति-रिवाज समझते थे। वे हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त को नहीं मानते थे कि यज्ञ आदि करके मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। वे तो ऊंचे स्वर में मन्त्रों का उच्चारण करना भी व्यर्थ समझते थे। वे उस धर्म को सच्चा धर्म मानते थे जिसमें आडम्बर और व्यर्थ के रीति-रिवाज शामिल न हों।

9. वेदों तथा संस्कृत सम्बन्धी विचार-महात्मा बुद्ध के वेदों तथा संस्कृत के सम्बन्ध में विचार हिन्दू-धर्म से बिल्कुल भिन्न थे। हिन्दू धर्म के अनुसार वेद ईश्वरीय ज्ञान का भण्डार हैं। यह ज्ञान ऋषि-मुनियों को ईश्वर की ओर से प्राप्त हुआ था। हिन्दू धर्म वाले तो इस बात में भी विश्वास रखते थे कि वेदों का ज्ञान उन्हें संस्कृत भाषा पढ़ने से ही हो सकता है परन्तु महात्मा बुद्ध हिन्दू धर्म के इस सिद्धान्त से सहमत नहीं थे। उनके अनुसार सच्चा ज्ञान किसी भी भाषा में दिया जा सकता है। उन्होंने यह मानने से इन्कार कर दिया कि संस्कृत अन्य भाषाओं से अधिक पवित्र है। उन्होंने वेदों को भी अधिक महत्त्व नहीं दिया।

10. जाति-प्रथा में अविश्वास-महात्मा बुद्ध जाति-प्रथा के भेदभाव को नहीं मानते थे। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं और जाति के आधार पर कोई छोटा-बड़ा नहीं है। इसलिए उन्होंने सभी जातियों के लोगों को अपना शिष्य बनाया। उनका यह भी कहना था कि ज्ञान-प्राप्ति का मार्ग सभी जातियों के लिए समान रूप से खुला है। .

11. तपस्या का विरोध-महात्मा बुद्ध घोर तपस्या के पक्ष में नहीं थे। उनके अनुसार भूखा प्यासा रहकर शरीर को कष्ट देने से कुछ प्राप्त नहीं होता। उन्होंने स्वयं भी 6 वर्ष तक तपस्या का जीवन व्यतीत किया, परन्तु उन्हें कुछ प्राप्त न हुआ। वे समझते थे कि गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए भी निर्वाण प्राप्त किया जा सकता है।

II. संघ-व्यवस्था

बौद्ध संघ बौद्ध भिक्षुओं के संगठन का नाम था। इन भिक्षुओं ने संसार का परित्याग कर दिया और बौद्ध धर्म का प्रसार करने में अपना जीवन लगा दिया। बौद्ध धर्म में दो प्रकार के अनुयायी थे-उपासक तथा भिक्षु । उपासक गृहस्थ जीवन व्यतीत करते थे तथा महात्मा बुद्ध द्वारा बताए गए साधारण नियमों का पालन करते थे। ये संघ के सदस्य नहीं होते थे। इसके विपरीत भिक्षु पूर्ण रूप से बौद्ध धर्म के सदस्य होते थे। उन्हें संघ के कठोर अनुशासन का पालन करना पड़ता था। संघ समस्त देश के लिए साझा नहीं होता था। प्रत्येक स्थान की अपनी अलग संस्था होती थी, जिसे संघ कहते थे। महात्मा बुद्ध ने अपने जीवनकाल में ही संघ प्रणाली का श्रीगणेश किया था। उन्होंने विस्तारपूर्वक संघ के नियम निश्चित कर दिए। इन नियमों की संख्या 227 से 360 तक मानी जाती है। इन नियमों का संग्रह ‘विनय पिटक’ में किया गया। सभी संघ इन नियमों का पालन करते हुए बौद्ध धर्म का प्रसार करते रहे।

सदस्यता-

  • 15 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति ही संघ का सदस्य बन सकता था।
  • सदस्य बनने के लिए जातपात का ध्यान नहीं रखा जाता था।
  • सदस्य बनने के लिए गृह त्याग करना पड़ता था। इसके लिए घर वालों की आज्ञा लेना आवश्यक था।
  • सिपाही, दास, ऋणी, अपराधी, रोगी आदि व्यक्ति संघ के सदस्य नहीं बन सकते थे।
  • स्त्री सदस्यों को भिक्षुणी कहा जाता था। उन्हें न तो मत देने का अधिकार था और न ही उन्हें कोरम में गिना जाता था।
  • भिक्षु बनने के लिए एक व्यक्ति को पूरी दीक्षा दी जाती थी-उसे बाल मुंडवा कर पीले वस्त्र धारण करने पड़ते थे। उसे दस वर्ष तक किसी भिक्षु से शिक्षा लेनी पड़ती थी। उसे सदाचारी जीवन व्यतीत करने का प्रशिक्षण दिया जाता था। यदि वह नियमों पर पूरा उतरता था तथा अपना चरित्र ऊंचा रखता था तो उसे भिक्षु संघ में सम्मिलित कर लिया जाता था।

बौद्ध संघ में प्रवेश के समय उसे शपथ लेनी पड़ती थी। उसे ये शब्द दोहराने पड़ते थे : “मैं बुद्ध की शरण लेता हूँ, मैं धर्म की शरण लेता हूँ, मैं संघ की शरण लेता हूँ।”

दस आदेश-संघ के सदस्यों को अनुशासित जीवन व्यतीत करना पड़ता था। महात्मा बुद्ध ने उनके लिए दस आदेशों का पालन करना अनिवार्य बताया-

  • कभी झूठ न बोलो
  • दूसरों की सम्पत्ति पर आंख न रखो
  • जीव हत्या न करो
  • नशीली वस्तुओं का सेवन न करो
  • स्त्रियों के साथ मिलकर न रहो
  • वर्जित समय पर भोजन न करो
  • धन पास न रखो
  • फूलों, आभूषणों तथा सुगन्धित वस्तुओं का प्रयोग न करो
  • नाच-गाने में भाग न लो
  • नर्म गद्दे पर विश्राम न करो। संघ के सभी सदस्यों को इन नियमों का पालन करना पड़ता था।

संघ की बैठकें-संघ की सभाएं पन्द्रह दिन के पश्चात् होती थीं। संघ के सभी सदस्य इसमें भाग ले सकते थे। बैठक की कार्यवाही शुरू करने से पहले एक सभापति चुना जाता था। प्रायः वह कोई बौद्ध भिक्षु ही होता था। उसकी आज्ञा से कार्यवाही आरम्भ होती थी। प्रस्ताव पेश किए जाते थे और उन पर निर्णय लिए जाते थे। निर्णयों के लिए मतदान होता था।

इस प्रकार बौद्ध भिक्षु प्रजातन्त्र के सिद्धान्तों के अनुसार अपने मतभेदों को दूर करने और धर्म के प्रचार में लीन रहते थे। कुछ भी हो, बौद्ध धर्म संघ एक आदर्श संस्था थी। डॉ० आर० सी० मजूमदार के शब्दों में, “यह संघ विश्व में बने सभी

महान् संगठनों में से एक बन गया।” (“The Sangha became one of the greatest religious corporations, the world has ever seen.”) बौद्ध संघ के आदर्शों तथा बौद्ध की सरल शिक्षाओं ने इस धर्म के विकास की गति को काफ़ी तीव्र कर दिया।

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प्रश्न 4.
बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक विकास एवं पतन के कारणों की चर्चा करें।
उत्तर-
बौद्ध धर्म का उदय छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ था। अपनी सरल शिक्षाओं, महान् आदर्श तथा राजकीय संरक्षण के कारण यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया। यहां तक कि अनेक विदेशी राजाओं ने भी इसे अपना लिया। परन्तु समय के साथ इसमें ऐसी अनेक त्रुटियां आ गईं जिनके कारण इसकी लोकप्रियता कम होने लगी। कनिष्क के काल में यह धर्म दो सम्प्रदायों में बंट गया। इन दो विरोधी धाराओं के कारण इसकी लोकप्रियता और भी कम होने लगी और अन्ततः इस धर्म का पतन हो गया। संक्षेप में बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक विकास एवं पतन के कारणों का वर्णन इस प्रकार है

I. साम्प्रदायिक विकास

बौद्ध धर्म के साम्प्रदायिक भेदभाव का आरम्भ महात्मा बुद्ध के देहान्त से लगभग 100 वर्ष बाद हुआ। सर्वप्रथम बौद्धों के आपसी मतभेद वैशाली की बौद्ध सभा में सामने आए। इस सभा में एक ओर रूढ़िवादी थे। वे चाहते थे कि संघ का प्रबन्ध पहले की भान्ति केवल वृद्ध भिक्षुओं के हाथ में ही रहे। दूसरी ओर युवा भिक्षु थे जो यह चाहते थे कि संघ के प्रबन्ध में सभी भिक्षु समान रूप से भाग लें। ये मतभेद वास्तव में साधारण थे। परन्तु इस सभा में रूढ़िवादियों का पक्ष भारी होने के कारण युवा भिक्षु अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए और अधिक प्रयत्न करने लगे। महाराजा अशोक के शासनकाल में पाटलिपुत्र में एक और बौद्ध सभा हुई। इसी सभा में भी यही समस्या उठाई गई। परन्तु अशोक के समर्थन के कारण इस बार भी रूढ़िवादियों की ही विजय हुई। अनेक बौद्ध भिक्षुओं को मठों से भी निकाल दिया गया। इस पर भी युवा भिक्षुओं ने अपने विचार न छोड़े और अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील रहे।

कनिष्क के शासनकाल में कश्मीर में बौद्ध धर्म की एक महासभा बुलाई गई। इस सभा में ‘महाविभाष’ नामक एक ग्रन्थ का संकलन किया गया। इस ग्रन्थ में जिन सिद्धान्तों का संकलन किया गया, वे परम्परा-विरोधी थे। इन सिद्धान्तों पर आधारित सम्प्रदाय को ‘सर्वास्तिवादिन’ का नाम दिया गया। यह नया सम्प्रदाय पहली तथा दूसरी शताब्दी में कश्मीर के साथ-साथ मथुरा में भी विकसित हुआ। इस समय तक बौद्ध धर्म में कई अन्य भी ऐसे परम्परा विरोधी सम्प्रदायों का उदय हो चुका था। धीरेधीरे इन सभी परम्परा विरोधी सम्प्रदायों ने अपने आपको रूढ़िवादियों के विरुद्ध संगठित कर लिया। इसी नये संगठित सम्प्रदाय को ही ‘महायान’ का नाम दिया गया। महायान के भिक्षुओं ने रूढ़िवादियों को नीचा दिखाने के लिए उनके सम्प्रदाय को ही “हीनयान’ के नाम से पुकारना आरम्भ कर दिया।

II. बौद्ध धर्म के पतन के कारण

1. हिन्दू धर्म में सुधार-लोगों ने हिन्दू धर्म के व्यर्थ के रीति-रिवाजों से तंग आकर बौद्ध धर्म स्वीकार किया था। उनका … हिन्द धर्म के मुख्य सिद्धान्तों में कोई विरोध न था। समय अनुसार हिन्दू धर्म में अनेक सुधार किए गए। धर्म में आडम्बरों का महत्त्व समाप्त कर दिया गया। परिणामस्वरूप लोग पुनः हिन्दू धर्म को अपनाने लगे। इस प्रकार हिन्दू धर्म की लोकप्रियता बौद्ध धर्म के ह्रास का कारण बनी।

2. गुप्त राजाओं का हिन्दू धर्म में विश्वास-अशोक आदि राजाओं का सहयोग पाकर बौद्ध धर्म का विकास हुआ था। इसी प्रकार गुप्त राजाओं का संरक्षण पाकर हिन्दू धर्म पुनः बल पकड़ गया। गुप्त राजाओं का किसी धर्म के प्रति विरोध नहीं था, परन्तु वे व्यक्तिगत रूप से हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। उनके शासन काल में हिन्दू देवी-देवताओं के मन्दिरों की स्थापना हुई। कृष्ण, विष्णु, शिव की उपासना आरम्भ हुई। संस्कृत भाषा को भी काफ़ी बल मिला। इस तरह हिन्दू धर्म में नवीन जागृति आई। लोग काफ़ी संख्या में हिन्दू धर्म में लौट आए। इससे बौद्ध धर्म को बहुत आघात पहुंचा। बौद्ध धर्म के लिए यह बहुत बड़ी चोट थी।

3. बौद्ध भिक्षुओं की चरित्रहीनता-बौद्ध भिक्षुओं के उच्च चरित्र तथा सदाचारी जीवन ने लोगों को बड़ा प्रभावित किया था, परन्तु समय की करवट ने बौद्ध संघ के अनुशासन को शिथिल कर दिया। स्त्रियों को भी संघ में शामिल कर लिया गया। बौद्ध भिक्षु महात्मा बुद्ध के दस आदेशों को भूल गए। वे विलासी जीवन व्यतीत करने लगे। ऐसे लोगों को जनता भला कबी क्षमा करने वाली थी। अतः भिक्षुओं का दूषित आचरण भारत में बौद्ध धर्म को ले डूबा।

4. राजकीय सहायता की समाप्ति-हर्ष की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म राजकीय आश्रय खो बैठा। उसके बाद फिर किसी राजा ने बौद्ध धर्म की धन से सहायता नहीं की। इससे इस धर्म की प्रतिष्ठा को काफ़ी धक्का लगा। जिन लोगों ने शायद अपने राजा को प्रसन्न करने के लिए बौद्ध धर्म स्वीकार किया था, अब बौद्ध धर्म छोड़ दिया।

5. बौद्ध धर्म में मूर्ति पूजा-प्रथम शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म की महायान शाखा के अनुयायी बुद्ध को देवता मानने लगे। वे उसकी मूर्ति बनाकर पूजा करने लगे। मूर्ति पूजा के कारण ये लोग हिन्दू धर्म के अधिक निकट आ गए। आखिर महायान शाखा के बहुत से अनुयायी हिन्दू धर्म में आ गए।

6. बौद्ध धर्म में फूट-बौद्ध धर्म के अनुयायी कई शताब्दियों तक एकता के सूत्र में बन्धे रहे। वे मिलकर आपसी मतभेद दूर करते रहे और उन्होंने अपनी एकता को बनाए रखा। आखिर पहली शताब्दी तक ये भेदभाव विकट रूप से धारण कर गए। चौथी बौद्ध परिषद् के पश्चात् यह धर्म हीनयान तथा महायान नामक दो शाखाओं में बंट गया। इन दोनों शाखाओं में आपसी भेदभाव बढ़ते चले गए। इन भेदभावों का बौद्ध धर्म की लोकप्रियता पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

7. अहिंसा का सिद्धान्त-बौद्ध धर्म में अहिंसा को परम धर्म माना जाता था। इसके प्रभाव में आकर अशोक ने युद्ध करना बन्द कर दिया था। देखने में तो यह एक महान् बात थी, परन्तु इसके कारण भारत में सैनिक दुर्बलता आ गई। अतः हम विदेशी आक्रमणकारियों के हाथों पिट गए। लोगों ने पराजय का मुख्य कारण बौद्ध धर्म के अहिंसा के सिद्धान्त को माना। अत: भारत में बौद्ध धर्म की लोकप्रियता का कम होना स्वाभाविक ही था।

8. हूणों के आक्रमण-हूणों के आक्रमणों के कारण भी बौद्ध धर्म को बड़ा आघात पहुंचा। वे बड़े निर्दयी तथा अत्याचारी लोग थे। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिमी सीमान्त प्रान्त में अपना राज्य स्थापित कर लिया। मिहिरगुल उनका प्रसिद्ध राजा था जिसने बौद्ध धर्म के स्तूपों तथा मठों को नष्ट-भ्रष्ट करवा दिया। कहते हैं कि उसने अनेक बौद्धों को मरवा डाला। शेष बौद्ध लोग वहां से बच निकले। इस प्रकार भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में बौद्ध धर्म का पूर्णतया ह्रास हो गया।

9. हिन्दू प्रचारक-आठवीं तथा नौवीं शताब्दी में हिन्दू धर्म को दो महान् विभूतियों ने भारत में हिन्दू धर्म की जड़ें फिर से मजबूत करने में महान् योगदान दिया। ये थे-शंकराचार्य तथा कुमारिल भट्ट। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रचार के साथ-साथ बौद्ध मत का खण्डन भी किया। उन्होंने हिमालय से कन्याकुमारी तक भ्रमण किया तथा हिन्दू धर्म के सिद्धान्तों को पुनः स्थापित किया।

10. राजपूतों का विरोध-आठवीं शताब्दी से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी तक समस्त उत्तरी भारत राजूपतों के प्रभुत्व में आ गया था। राजपूत वीर योद्धा थे जो अहिंसा की बजाए रक्तपात में विश्वास रखते थे। अतः राजपूत राजाओं की छत्रछाया में बौद्ध भिक्षुओं के लिए धर्म प्रचार कठिन हो गया। अनेक बौद्ध विद्वान् भारत छोड़कर विदेशों में चले गए। उचित प्रचार कार्यों के अभाव के कारण बौद्ध धर्म का लोप होने लगा।

11. मुसलमान आक्रमणकारी-11वीं तथा 12 शताब्दी में भारत पर मुसलमानों के आक्रमण आरम्भ हो गए। उन्होने भारत पर अपना राज्य स्थापित कर लिया। यह बात बौद्ध धर्म के लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध हुई। मुसलमान शासकों ने बौद्ध भिक्षुओं पर बड़े अत्याचार किए तथा उनके मठ तथा मन्दिर भी नष्ट करवा दिए। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म का पतन हो गया।

12. महान् व्यक्तित्व का अभाव-महात्मा बुद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म ने कोई महान् व्यक्ति पैदा नहीं किया। यदि 8वीं शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म का नेतृत्व किसी महान् व्यक्ति के हाथ में होता तो शायद वह धर्म सुधार करके उसे सफल बना देता। वह शायद अहिंसा की परिभाषा ही बदल देता। एक उचित पग-प्रदर्शक के अभाव के कारण बौद्ध धर्म का अन्त हो गया।

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प्रश्न 5.
भारत तथा विदेशों में बौद्ध धर्म के शीघ्र प्रसार के क्या कारण थे ?
उत्तर-
बुद्ध धर्म का विकास इतिहास की एक रोमांचकारी घटना है। महात्मा बुद्ध की आज्ञा पाकर बौद्ध भिक्षु धर्म प्रचार के लिए भारत की चारों दिशाओं में फैल गए। आरम्भ में प्रचार की गति बड़ी धीमी रही। परन्तु महात्मा बुद्ध की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म जहां भारत में तीव्र गति से फैला, वहां उसने भारत की सीमाएं पार करके विदेशियों को भी अपनी ओर आकर्षित किया। इतिहास इस बात का साक्षी है कि चीन, जापान, लंका, मयनमार (बर्मा) आदि देशों के निवासियों ने प्रसन्नतापूर्वक इस धर्म को अपनाया और इसे अपने जीवन का अंग बना लिया। राजा तथा प्रजा दोनों ही बौद्ध धर्म के रंग में रंग गए। बौद्ध धर्म की इस अत्यधिक लोकप्रियता के अनेक कारण थे जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

1. महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व-महात्मा बुद्ध का व्यक्तित्व महान् था। उन्होंने राजघराने में जन्म लेकर भी संन्यास 1 के दुःख झेले। वे सिंहासन ग्रहण कर सकते थे, परन्तु उन्होंने आसन ग्रहण किया। उन्होंने सत्य की खोज में अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। त्याग, सच्चाई तथा परोपकार की तो वे साक्षात मूर्ति थे। उनका हृदय शुद्ध तथा पवित्र था। वे केवल उन्हीं बातों का प्रचार करते थे जिनको उन्होंने स्वयं अपना लिया था। वे जो कुछ चाहते थे स्वयं भी करते थे। अनेक लोग उनके महान् व्यक्तित्व से बड़े प्रभावित हुए और वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए। विलियम (William) ने बौद्ध धर्म के प्रसार में बुद्ध के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए ठीक कहा है, “The influence of the personal character of Buddha combined with extraordinary persuasiveness of his teachings was irreistible.”

2. अनुकूल परिस्थितियां-बौद्ध धर्म का उदय ऐसे वातावरण में हुआ जब लोगों को इस धर्म की बहुत आवश्यकता थी। लोग हिन्दू धर्म के व्यर्थ के कर्म-काण्डों, खर्चीले यज्ञों तथा अन्य रीति-रिवाजों से तंग आ चुके थे। उन्हें एक ऐसे सरल धर्म की आवश्यकता थी जो उन्हें इन व्यर्थ के आडम्बरों से छुटकारा दिला सकता। ऐसे समय में बौद्ध धर्म जैसे सरल धर्म ने लोगों को बहुत आकर्षित किया।

3. सरल शिक्षाएं-बौद्ध धर्म की शिक्षाएं बड़ी सरल थीं। उनमें गूढ-दर्शन की बातें न थीं जिन्हें जन-साधारण समझ न पाते। इसके अनुसार मनुष्य को नरक-स्वर्ग अथवा आत्मा-परमात्मा के वाद-विवाद में पढ़ने की आवश्यकता न थी। उसे सदाचारी जीवन व्यतीत करना चाहिए। अष्ट-मार्ग के सिद्धान्त, घोर तपस्या से कहीं अच्छे थे। ये सभी शिक्षाएं दुःखी मानवता के लिए मरहम थीं। अत: लोगों ने दिल खोलकर बौद्ध धर्म का स्वागत किया।

4. लोक भाषा में प्रचार-हिन्दू धर्म के सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में थे। जन-साधारण के लिए इस कठिन भाषा को समझना आसान न था। उन्हें ब्राह्मणों द्वारा बताई हुई व्याख्या पर विश्वास करना पड़ता था। इसके विपरीत महात्मा बुद्ध तथा अन्य भिक्षुओं ने धर्म प्रचार पाली अथवा प्राकृत जैसी बोल-चाल की भाषा में किया। इस प्रकार लोग बिना कठिनाई के बौद्ध धर्म की शिक्षा को समझने लगे।

5. जाति-प्रथा में अविश्वास-बौद्ध धर्म में जाति प्रथा का कोई स्थान नहीं था। सभी जातियों के लोग बौद्ध धर्म में शामिल हो सकते थे। किसी भी जाति का व्यक्ति बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को अपना सकता है। बौद्ध धर्म के इस सिद्धान्त ने चमत्कारी प्रभाव दिखाया। निम्न वर्गों के लोगों को चाण्डाल समझा जाता था। भला ऐसे लोग बौद्ध धर्म का स्वागत क्यों नहीं करते ?

6. बौद्ध संघ-बौद्ध संघ ने बौद्ध धर्म के प्रचार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। यह संघ भिक्षुओं तथा भिक्षुणियों को बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों का प्रशिक्षण देता था। पूरी तरह दीक्षा लेने के पश्चात् भिक्षु प्रचार कार्य में लग जाते। ये लोग वर्ष में 8 मास प्रचार कार्य में लगे रहते। वर्षा के 4 मास वे मठों में व्यतीत करते। उस समय भी वे भविष्य में प्रचार का कार्यक्रम बनाते। भिक्षु लोगों के इस निरन्तर प्रचार के कारण बौद्ध धर्म का काफ़ी प्रसार हुआ। इस विषय में डॉ० वी० ए० स्मिथ ने सत्य ही कहा है, “भिक्षु तथा भिक्षुणियों का सुव्यवस्थित संघ इस धर्म के प्रसार में अत्यन्त प्रभावशाली बात सिद्ध हुई।”

7. बौद्ध भिक्षुओं का उच्च नैतिक चरित्र-बौद्ध भिक्षु चरित्रवान होते थे। वे झूठ नहीं बोलते थे। नशीली वस्तुओं तथा सुगन्धित पदार्थों का सेवन नहीं करते थे। वे धन, स्त्री, संगीत तथा अन्य ऐश्वर्य की वस्तुओं से दूर रहते थे। वे संसार को त्याग कर पीले वस्त्र धारण करते थे। इन उचित चरित्र वाले लोगों से साधारण जनता बड़ी प्रभावित हुई। अत: बौद्ध धर्म का उत्थान स्वाभाविक ही था।

8. राजकीय सहायता-बौद्ध धर्म एक अन्य दृष्टिकोण से भी भाग्यशाली था। उसे अशोक, कनिष्क तथा हर्ष जैसे प्रतापी राजाओं का सहयोग प्राप्त हुआ। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अशोक ने इस धर्म के प्रचार के लिए स्वयं को, अपनी सन्तान को, सरकारी मशीनरी तथा खज़ाने को लगा दिया। संसार में किस धर्म को ऐसा सौभाग्य प्राप्त हुआ ? कनिष्क तथा हर्ष ने भी धन तथा व्यक्तिगत सेवाओं से बौद्ध धर्म को उन्नत किया। कनिष्क के प्रयत्नों के फलस्वरूप ही बौद्ध धर्म चीन, जापान तथा तिब्बत जैसे देशों में फैल गया। सच तो यह है कि राजकीय सहायता पाकर बौद्ध धर्म भारत में ही नहीं, अपितु उसकी सीमाओं के बाहर भी फैल गया।

9. बौद्ध धर्म में लचीलापन-आरम्भ में बौद्ध धर्म मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं करता था। परन्तु पहली शताब्दी के पश्चात् बौद्ध धर्म की महायान शाखा ने बुद्ध को देवता के रूप में पूजना आरम्भ कर दिया। बद्ध की मूर्तियां बनाकर बौद्ध मन्दिरों में स्थापित की गईं। इस प्रकार बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने समय-समय पर धर्म में परिवर्तन करके इसकी लोकप्रियता को बनाये रखा। भले ही आज बौद्ध धर्म भारत में लोकप्रिय नहीं है, परन्तु सुधारों के कारण यह आज भी विश्व के महान् धर्मों में गिना जाता है।

10. विश्वविद्यालयों का योगदान-बौद्ध धर्म को फैलाने में तक्षशिला, नालन्दा आदि विश्व-विद्यालयों का बड़ा योगदान रहा। यहां देश-विदेश से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आया करते थे। उन्हें बौद्ध धर्म के मुख्य सिद्धान्तों तथा विचारधारा से अवगत कराया जाता था। ये विद्यार्थी जहां जाते बौद्ध धर्म का प्रचार करते। चीन, तिब्बत, जापान, लंका, स्याम आदि देशों में बौद्ध धर्म का प्रचार इन्हीं विद्यार्थियों द्वारा किया गया।

11. प्रचारक धर्मों का अभाव-उन दिनों कोई धर्म ऐसा नहीं था जो अपने प्रचार में लगा हुआ हो। इस्लाम तथा ईसाई … धर्म तो बाद में आए। बौद्ध धर्म का मुकाबला केवल हिन्दू धर्म ही कर सकता था। परन्तु हिन्दू धर्म एक प्रचारक धर्म नहीं था। उसके प्रचार के लिए साधुओं या संन्यासियों का गिरोह नहीं घूमता था। अत: बौद्ध धर्म के प्रचारक निर्विरोध अपना कार्य करते गए और इन्होंने इसे विश्वव्यापी धर्म बना दिया।

12. बौद्ध धर्म के सम्मेलन-समय-समय पर बौद्ध धर्म से सम्बन्धित भेदभावों को दूर करने के लिए परिषदें बुलाई गईं। ऐसी कुल चार परिषदें बुलाई गईं। इन परिषदों में बौद्ध भिक्षु आपसी भेदभाव को दूर करके बौद्ध धर्म को ठोस रूप प्रदान करते रहे।

इस प्रकार हम देखते हैं कि महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व, पाली भाषा, बौद्ध संघ, भिक्षुओं के चरित्र, विश्वविद्यालयों, जाति-प्रथा में अविश्वास आदि अनेक बातों ने बौद्ध धर्म के प्रसार में काफ़ी योगदान दिया। इसके अतिरिक्त बौद्ध साहित्य, प्रजातन्त्रात्मक व्यवस्था तथा विदेशियों को अपनी ओर आकृष्ट करने की क्षमता ने भी इस धर्म के उत्थान में बड़ा योगदान दिया। शीघ्र ही यह धर्म विश्व धर्म बन गया। आज भी इसकी गणना संसार के प्रमुख धर्मों में की जाती है।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक-

प्रश्न 1.
अजातशत्रु की मृत्यु कब हुई ?
उत्तर-
अजातशत्रु की मृत्यु 461 ई० पू० में हुई।

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प्रश्न 2.
प्राकृत भाषा किस भाषा का परिवर्तित रूप थी ?
उत्तर-
प्राकत भाषा संस्कृत भाषा का परिवर्तित रूप थी।

प्रश्न 3.
छठी शताब्दी ई० पू० में जन्म लेने वाले दो प्रमुख धर्मों के नाम बताओ।
उत्तर-
छठी शताब्दी ई० पू० में जन्म लेने वाले दो प्रमुख धर्म थे-जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म।

प्रश्न 4.
जैन धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
जैन धर्म के संस्थापक वर्द्धमान महावीर थे।

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प्रश्न 5.
महावीर स्वामी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का जन्म वैशाली में हुआ था।

प्रश्न 6.
महावीर स्वामी का देहान्त कितने वर्ष की आयु में हुआ ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का देहान्त 72 वर्ष की आयु में हुआ।

प्रश्न 7.
महावीर स्वामी का देहान्त कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी का देहान्त पावाग्राम में हुआ था।

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प्रश्न 8.
महावीर स्वामी के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी के पिता का नाम सिद्धार्थ था।

प्रश्न 9.
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम क्या था ?
उत्तर-
महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोधरा था।

प्रश्न 10.
बौद्ध धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म के संस्थापक महात्मा बुद्ध थे।

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प्रश्न 11.
महात्मा बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध को सच्चे ज्ञान की प्राप्ति गया नामक स्थान पर हुई।

प्रश्न 12.
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश कहाँ दिया था ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ नामक स्थान पर दिया था।

प्रश्न 13.
महात्मा बुद्ध के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन था।

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प्रश्न 14.
जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर कौन थे ?
उत्तर-
जैन धर्म के तेइसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे।

प्रश्न 15.
जैन धर्म के 24वें और सबसे महत्वपूर्ण तीर्थंकर का नाम बताओ।
उत्तर-
जैन धर्म के 24वें और सबसे महत्त्वपूर्ण तीर्थंकर का नाम वर्धमान महावीर था।

प्रश्न 16.
बौद्ध धर्म के दो सम्प्रदायों के नाम लिखो।
उत्तर-
हीनयान और महायान।

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2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) …………… सबसे शक्तिशाली महाजनपद था।
(ii) छठी शताब्दी ई० पू० में व्यापारियों के संगठन को …………. कहा जाता था।
(iii) जैनियों के ………….. तीर्थंकर थे।
(iv) वर्द्धमान स्वामी का जन्म ………… ई० पू० में हुआ था।
(v) जैन धर्म के अनुसार …………… मुक्ति का मार्ग है।
उत्तर-
(i) मगध
(ii) श्रेणी
(iii) 24
(iv) 599
(v) त्रिरत्न।

3. सही/ग़लत कथन-

(i) गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। — (√)
(ii) महात्मा बुद्ध को कुशीनारा (कुशीनगर) में सच्चा ज्ञान प्राप्त हुआ। — (×)
(iii) अष्टमार्ग बौद्ध धर्म का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है। — (√)
(iv) बिम्बिसार का वध उसके पुत्र बृहद्रथ ने किया था। — (×)
(v) अजातशत्रु मगध के राजा बिम्बिसार का पुत्र था। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न (i)
महाजनपद संख्या में कितने थे ?
(A) 8
(B) 12
(C) 16
(D) 20
उत्तर-
(C) 16

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प्रश्न (ii)
महावीर जैन की माता का नाम था-
(A) महामाया
(B) त्रिशला
(C) वैशाली
(D) गौतमी।
उत्तर-
(B) त्रिशला

प्रश्न (iii)
जैनधर्म के पहले तीर्थंकर थे
(A) ऋषभदेव
(B) महावीर स्वामी
(C) सिद्धार्थ
(D) शंकरदेव।
उत्तर-
(A) ऋषभदेव

प्रश्न (iv)
छठी शताब्दी ई० पू० में निम्न भाषा महत्त्वपूर्ण बनी-
(A) अवधी
(B) संस्कृत
(C) ब्रज
(D) प्राकृत।
उत्तर-
(D) प्राकृत।

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प्रश्न (v)
तीर्थंकर शब्द का अर्थ है
(A) मुक्ति दिलाने वाला
(B) धन में वृद्धि करने वाला
(C) तीर्थ यात्रा का फल देने वाला
(D) वंश वृद्धि करने वाला ।
उत्तर-
(A) मुक्ति दिलाने वाला

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
छठी सदी ई० पू० के चार मुख्य राजतन्त्र कौन-से थे ?
उत्तर-
छठी सदी ई० पू० के चार मुख्य राजतंत्र ये थे-कौशल, काशी, मगध और अंग।

प्रश्न 2.
अजातशत्रु किसका पुत्र था उसकी राजधानी का क्या नाम था ?
उत्तर-
अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था और उसकी राजधानी का नाम ‘राजगृह’ था।

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प्रश्न 3.
छठी शताब्दी ई० पू० में प्रयोग में आने वाली नई भाषा का क्या नाम था और यह किन लोगों की भाषा थी ?
उत्तर-
इस काल में प्रयोग में आने वाली नई भाषा का नाम ‘प्राकृत’ था। ‘प्राकृत’ जन-साधारण की भाषा थी। ।

प्रश्न 4.
गोशाल मस्करि पुत्र से सम्बन्धित आन्दोलन का क्या नाम था और इसे किस शासन का संरक्षण प्राप्त था ?
उत्तर-
गोशाल मस्करि पुत्र से सम्बन्धित आन्दोलन का नाम ‘आजीविक आन्दोलन’ था। इसे राजा अशोक का संरक्षण प्राप्त था।

प्रश्न 5.
महावीर का आरम्भिक नाम क्या था और इसका सम्बन्ध कौन-से कबीले से था ?
उत्तर-
महावीर का आरम्भिक नाम वर्धमान था। उसका सम्बन्ध ‘लिच्छवी’ कबीले से था।

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प्रश्न 6.
दक्षिणी तथा पश्चिमी भारत में जैन धर्म के बारे में लिखने वाले दो जैन विद्वानों के नाम क्या हैं ?
उत्तर-
भद्रभाहु और हेम-चन्द्र।

प्रश्न 7.
महावीर की संन्यास-पद्धति को आरम्भ में क्या नाम दिया गया तथा उसका शाब्दिक अर्थ क्या
उत्तर-
महावीर की संन्यास-पद्धति को आरम्भ में ‘निर्ग्रन्थी’ का नाम दिया गया। निर्ग्रन्थी का अर्थ है, ‘बन्धनों से रहित’।

प्रश्न 8.
जैन धर्म में निर्वाण से क्या भाव है ?
उत्तर-
जैन धर्म में निर्वाण से भाव है-जन्म-मरण से मुक्त होना।

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प्रश्न 9.
पूर्वी भारत में जैन धर्म के सबसे बड़े संरक्षक शासक का क्या नाम था और यह वर्तमान के किस राज्य के इलाके का शासक था ?
उत्तर-
पूर्वी भारत में जैन धर्म के सबसे बड़े संरक्षक शासक का नाम ‘खारवेल’ था। वह उड़ीसा का शासक था।

प्रश्न 10.
गुजरात के कौन-से वंश के राजा ने 12वीं सदी में जैन मत को संरक्षण दिया ?
उत्तर-
गुजरात के सोलंकी वंश के राजा ने 12वीं सदी में जैन मत को संरक्षण दिया।

प्रश्न 11.
वर्तमान भारत के कौन-से तीन राज्यों में जैन धर्मावलम्बी बड़ी संख्या में हैं ?
उत्तर-
जैन धर्मावलम्बी गुजरात, राजस्थान तथा कर्नाटक में बड़ी संख्या में विद्यमान हैं।

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प्रश्न 12.
सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर कौन-से दो स्थानों पर हैं ?
उत्तर-
सबसे अधिक प्रभावशाली जैन मन्दिर राजस्थान में आबू पर्वत पर तथा मैसूर में श्रावणवेलगोला में हैं।

प्रश्न 13.
त्रिपिटिकों के क्या नाम हैं ?
उत्तर-
त्रिपिटिकों के नाम हैं-विनय-पिटक, सुत्त-पिटक तथा अभीधम्मपिटक।

प्रश्न 14.
लंका में बौद्ध धर्म पर लिखी गई दो पुस्तकों के क्या नाम हैं ?
उत्तर-
लंका में बौद्ध धर्म पर लिखी गई दो पुस्तकों के नाम दीपवंश तथा महावंश हैं।

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प्रश्न 15.
महात्मा बुद्ध का आरम्भिक नाम क्या था और वे कौन-से गणराज्य के राजकुमार थे ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध का आरम्भिक नाम सिद्धार्थ था। वह शाक्य गणराज्य के राजकुमार थे।

प्रश्न 16.
बुद्ध की पत्नी तथा पुत्र का नाम क्या था ?
उत्तर-
बुद्ध की पत्नी का नाम ‘यशोधरा’ था। उनके पुत्र का नाम ‘राहुल’ था।

प्रश्न 17.
‘धर्मचक्र प्रवर्तन’ से क्या भाव है और यह किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर-
धर्मचक्र-प्रवर्तन से भाव बुद्ध के पहले प्रवचन से है। यह सारनाथ के स्थान पर हुआ।

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प्रश्न 18.
‘महापरिनिर्वाण’ से क्या भाव है और यह किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर-
महापरिनिर्वाण से हमारा भाव बुद्ध के देहान्त की घटना से है। यह घटना कुशीनगर नामक स्थान पर घटित हुई।

प्रश्न 19.
महात्मा बुद्ध के जन्म और मृत्यु से सम्बन्धित स्थानों के नाम बताएं।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी वाटिका में हुआ। उनकी मृत्यु कुशीनगर के स्थान पर हुई।

प्रश्न 20.
बुद्ध की काल्पनिक जीवनियों का वृत्तान्त कौन-सी कथाओं से मिलता है और यह कौन-सी भाषा में है ?
उत्तर-
बुद्ध की काल्पनिक जीवनियों का वृत्तान्त ‘जातक’ कथाओं में मिलता है। ये कथाएं ‘प्राकृत’ भाषा में हैं।

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प्रश्न 21.
बुद्ध को सत्य की प्राप्ति कौन-से स्थान पर हुई तथा उन्होंने अपना पहला प्रवचन कहां पर दिया ?
उत्तर-
बुद्ध को सत्य की प्राप्ति ‘गया’ के स्थान पर हुई। उन्होंने अपना पहला प्रवचन सारनाथ की मृग वाटिका में दिया।

प्रश्न 22.
स्तूप किस घटना का प्रतीक था तथा इसमें क्या रखा जाता था ?
उत्तर-
स्तूप बुद्ध के परिनिर्वाण का प्रतीक था और उसमें बुद्ध के स्मृति-चिह्न रखे जाते थे।

प्रश्न 23.
अमरावती, भारहुत तथा सांची के स्तूप आज के भारत के कौन-से दो राज्यों में हैं ?
उत्तर-
अमरावती, भारहुत तथा सांची के स्तूप मध्य प्रदेश तथा तमिलनाडु में हैं।

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प्रश्न 24.
बुद्ध धर्म में परम्परा के समर्थक सम्प्रदाय का आरम्भिक तथा बाद का नाम क्या था ?
उत्तर-
बुद्ध धर्म में परम्परा के समर्थक सम्प्रदाय का आरम्भिक नाम थेरावाद अथवा हीनयान तथा बाद का नाम महायान था।

प्रश्न 25.
कनिष्क के काल में हुई बौद्ध धर्म की सभा में किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित कौन-सा ग्रन्थ संकलित किया गया ?
उत्तर-
कनिष्क के काल में हुई बौद्ध धर्म की सभा में ‘महाविभाष’ नामक ग्रन्थ को संकलित किया गया। इस ग्रन्थ में जिस सम्प्रदाय के सिद्धान्त थे, उसका नाम ‘सर्वास्तिवादिन’ था।

प्रश्न 26.
कनिष्क से पहले बौद्ध धर्म की दो सभाएं कहां बुलाई गई थीं और अशोक इनमें से किसके साथ सम्बन्धित था ?
उत्तर-
कनिष्क से पहले बौद्ध धर्म की दो सभाएं वैशाली तथा पाटलिपुत्र में बुलाई गई थीं। अशोक का सम्बन्ध पाटलिपुत्र की सभा के साथ था।

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प्रश्न 27.
‘यान’ का शब्दिक अर्थ क्या था और बौद्ध धर्म में बोधिसत्व के विचार के साथ जुड़े हुए सम्प्रदाय का क्या नाम था ?
उत्तर-
‘यान’ का शाब्दिक अर्थ था–मुक्ति प्राप्त करने का एक तरीका। बौद्ध धर्म में बोधिसत्व के विचार के साथ जुड़े हुए सम्प्रदाय का नाम ‘महायान’ था।

प्रश्न 28.
जादू-टोने तथा मन्त्रों के साथ जुड़े हुए बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय का क्या नाम था ? इसके अन्तर्गत उपासना-पद्धति को क्या कहा जाता था तथा इसका महत्त्वपूर्ण विहार कहां था ?
उत्तर-
जादू-टोने तथा मन्त्रों के साथ जुड़े हुए बौद्ध धर्म सम्प्रदाय का नाम ‘वज्रयान’ था तथा इस सम्प्रदाय की उपासना पद्धति को ‘तान्त्रिक’ कहा जाता था। वज्रयान सम्प्रदाय का महत्त्वपूर्ण विहार विक्रमशिला के स्थान पर था।

प्रश्न 29.
नागार्जुन अथवा नागसेन का सम्बन्ध कौन-से बौद्ध सम्प्रदाय से था और उसका किस यूनानी शासक के साथ बौद्ध धर्म पर संवाद हुआ था ?
उत्तर-
नागार्जुन अथवा नागसेन का सम्बन्ध ‘महायान’ सम्प्रदाय से था। इसका संवाद यूनानी शासक मिनांडर से हुआ था।

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प्रश्न 30.
बौद्ध धर्म भारत से बाहर किन चार देशों में फैला ?
उत्तर-
भारत से बाहर जिन देशों में बौद्ध धर्म फैला, उनके नाम हैं-चीन, जापान, श्री लंका तथा म्यनमार (बर्मा)।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
अजातशत्रु के समय मगध राज्य की शक्ति के क्या कारण थे ?
उत्तर-
अजातशत्रु के समय मगध राज्य काफ़ी शक्तिशाली बना। इसके कई कारण थे-

  • अजातशत्रु एक साहसी तथा शक्तिशाली शासक था। उसने अपने राज्य का खूब विस्तार किया।
  • कच्चा लोहा पास ही उपलब्ध होने के कारण मगध राज्य अपने विरोधियों की अपेक्षा अच्छे शस्त्र बनाने में सफल हुआ।
  • मगध की राजधानी की स्थिति ऐसी थी कि उसे जीतना बच्चों का खेल नहीं था।
  • मगध एक अत्यधिक उपजाऊ प्रदेश था और जहां अच्छी वर्षा होती थी। अतः यहां की कृषि बड़ी उन्नत थी।
  • मगध राज्य अपने पड़ोसी राज्यों के विरुद्ध हाथियों का प्रयोग कर सकता था। इस सैनिक सुविधा के कारण मगध राज्य के विकास में विशेष सहायता मिली।
  • मगध राज्य का व्यापार भी काफ़ी उन्नत था। व्यापार से होने वाली आय से राजा स्थायी सेना रख सकता था।

प्रश्न 2.
महावीर स्वामी अथवा जैन धर्म की शिक्षाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
महावीर स्वामी ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग दिखाया। उनके अनुसार मनुष्य को त्रिरत्न अथवा शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन का पालन करना चाहिए। उन्होंने मोक्ष प्राप्ति के लिए लोगों को प्रेरित किया और इसके लिए घोर तपस्या का मार्ग ही सर्वोत्तम मार्ग स्वीकार किया। वह समझते थे कि पशु, पक्षी, वायु, अग्नि, वृक्ष आदि सभी वस्तुओं में आत्मा है और उन्हें कष्ट नहीं देना चाहिए। उनका वेदों, जाति-पाति, यज्ञ तथा बलि में कोई विश्वास नहीं था। उनका विचार था कि मनुष्य अपने अच्छे या बुरे कर्मों के कारण जन्म लेता है और आत्मा को पवित्र रखकर ही वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है। . उन्होंने अपने अनुयायियों को बताया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कामों से दूर रहें और सदाचारी बनें।

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प्रश्न 3.
महात्मा बुद्ध अथवा बौद्ध धर्म की शिक्षाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध ने लोगों को जीवन का सरल मार्ग सिखाया। उन्होंने लोगों को बताया कि संसार दुःखों का घर है। दुःखों का कारण तृष्णा है। निर्वाण प्राप्त करके ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से छूट सकता है। निर्वाण-प्राप्ति के लिए महात्मा बुद्ध ने लोगों को अष्ट मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों को अहिंसा, नेक काम तथा सदाचार पर चलने के लिए कहा। सच तो यह है कि बौद्ध धर्म ने व्यर्थ के रीति-रिवाजों यज्ञों तथा कर्मकाण्डों को त्यागने पर बल दिया।

प्रश्न 4.
महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन के लिए क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
महावीर की शिक्षाओं का साधारण मनुष्य के जीवन में बड़ा महत्त्व था :

  • उन्होंने जाति-प्रथा का घोर विरोध किया। इससे भारतीय समाज में लोगों का आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा। भेदभाव का स्थान सहकारिता ने ले लिया। ऊंच-नीच की भावना समाप्त होने लगी और समाज प्यार और भाईचारे की भावनाओं से ओत-प्रोत हो गया।
  • महावीर ने लोगों को समाज-सेवा का उपदेश दिया। अतः लोगों की भलाई के लिए जैनियों ने अनेक संस्थाएं स्थापित की। इससे न केवल जनता का ही भला हुआ बल्कि दूसरे धर्मों के अनुयायियों को भी समाज सेवा के कार्य करने का प्रोत्साहन मिला।
  • जैन धर्म की बढ़ती हुई लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने भी पशु-बलि, कर्म-काण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग करना शुरू कर दिया। इस प्रकार वैदिक धर्म भी काफ़ी सरल बन गया।
  • इसके अतिरिक्त महावीर ने अहिंसा पर बल दिया। अहिंसा के सिद्धान्त को अपना कर लोग मांसाहारी से शाकाहारी बन गए। उनका जीवन सरल तथा संयमी बना।

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प्रश्न 5.
महात्मा बुद्ध के मध्य मार्ग से क्या भाव है ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध के उपदेशों के मूल सिद्धान्त चार महान् सत्य थे-

  • संसार दुःखों का घर है।
  • इन दुःखों का कारण तृष्णा अथवा लालसा है।
  • अपनी लालसाओं का दमन करने पर ही दुःखों से छुटकारा मिलता है और मनुष्य निर्वाण प्राप्त कर सकता है।
  • तृष्णा के दमन के लिए मनुष्य को अष्ट मार्ग अथवा मध्य मार्ग पर चलना चाहिए।

महात्मा बुद्ध के अष्ट मार्ग में ये आठ बातें शामिल हैं-

  • शुद्ध दृष्टि
  • शुद्ध संकल्प
  • शुद्ध वचन
  • शुद्ध कर्म
  • शुद्ध कमाई
  • शुद्ध प्रयत्न
  • शुद्ध स्मृति
  • शुद्ध समाधि।

ये सभी सिद्धान्त एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए शुद्ध कमाई केवल शुद्ध कर्म द्वारा ही सम्भव हो सकती है। शुद्ध कर्म के लिए शुद्ध संकल्प तथा शुद्ध दृष्टि आवश्यक है। अतः अष्ट मार्ग मनुष्य को पूर्ण रूप से सदाचारी बनाता है और उसे दुःखों से छुटकारा दिलाता है। इसे मध्य मार्ग इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह घोर तपस्या तथा ऐश्वर्यमय जीवन के बीच का रास्ता है।

प्रश्न 6.
बुद्ध द्वारा चलाई गई संघ व्यवस्था की क्या विशेषताएं थीं ?
उत्तर-
बुद्ध द्वारा चलाई गई संघ व्यवस्था की मुख्य विशेषताएं ये थीं-
1. प्रत्येक स्त्री-पुरुष संघ का सदस्य बन सकता था। संघ में प्रवेश करने की रस्म बड़ी साधारण थी। इसमें तीन पीले वस्त्र धारण करना, मुण्डन संस्कार एवं तीन ‘रत्नों’ का उच्चारण शामिल था। ये तीन रत्नं थे : ‘बुद्धं शरणम् गच्छामि, ‘धर्मं शरणम् गच्छामि’, ‘संघ शरणम् गच्छामि।

2. नये भिक्षुओं को दस शील विरतियों के पालन का प्रण करना पड़ता था। मुख्य शील विरतियां थीं : जीवों को कष्ट न देना, किसी वस्तु को उसकी इच्छा के बिना न लेना, आवेग में दुर्व्यवहार न करना, झूठा न बोलना, नशे का सेवन न करना आदि।

3. भिक्षु के दैनिक जीवन की भी बहुत-सी क्रियाएं थीं। वह भिक्षा मांग कर दिन में केवल एक समय भोजन करता था। वह संघीय उपासना में भाग लेने के अतिरिक्त अपना समय अध्ययन एवं अष्टमार्ग के अनुसार धार्मिक अभ्यास में लगाता था। मठ को साफ़-सुथरा रखने के लिए श्रमदान भी करना पड़ता था।

4. मठीय जीवन का संचालन या विभिन्न मठवासियों की गतिविधियों को संयोजित करने के लिए केन्द्रीय संस्था नहीं थी। मठ का संचालन मुख्य भिक्षु के नेतृत्व में सभी वयोवृद्ध भिक्षु मिलकर करते थे।

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प्रश्न 7.
कला के दृष्टिकोण से स्तूप का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
स्तूप महात्मा बुद्ध के परिनिर्वाण का प्रतीक थे। यह एक विशाल अर्द्ध गोलाकार गुम्बज होता था जिसके बीचोंबीच स्थित एक छोटे कमरे में बुद्ध के स्मृति-चिन्ह एक संदूकचे में रखे जाते थे। स्तूप पर लकड़ी या पत्थर का छत्र बना होता था। कला की दृष्टि से सर्वोत्तम स्तूपों के नमूने कृष्णा नदी की घाटी के निचले भाग में अमरावती में एवं मध्य प्रदेश में भरहुत और सांची में मिलते हैं। स्तूपों पर की गई नक्काशी की कला भी कम प्रभावशाली नहीं थी। लकड़ी पर नक्काशी के नमूने तो बहुत देर तक सुरक्षित न रह सके। परन्तु अमरावरती एवं सांची के स्तूपों के तोरणों (प्रवेश द्वार) पर पत्थर पर हुई सुन्दर नक्काशी आज भी देखी जा सकती है। इन पर चित्रित दृश्य मुख्यतः बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित हैं। इनमें अधिकांश का सम्बन्ध बुद्ध के जन्म, गृह त्याग, ज्ञान-प्राप्ति, धर्मचक्र प्रवर्तन एवं उनके महा-परिनिर्वाण से है।

प्रश्न 8.
बौद्ध धर्म के पतन के क्या कारण थे ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म के पतन के मुख्य कारण थे :

  • समय के अनुसार वैदिक धर्म में अनेक सुधार किये गये। अतः वे सभी लोग जो हिन्दू से बौद्ध बने थे, फिर वैदिक धर्म में शामिल हो गए।
  • बौद्ध धर्म धीरे-धीरे काफ़ी जटिल हो गया। इसमें अनेक कुरीतियां और व्यर्थ के रीति-रिवाज शामिल हो गए।
  • बौद्ध भिक्षु बड़ा विलासी जीवन व्यतीत करने लगे। इस बात का लोगों पर बुरा प्रभाव पड़ा।
  • हर्ष की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजकीय सहायता न मिल सकी। फलस्वरूप बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम होने लगी।
  • बौद्ध धर्म के ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे जाने लगे। लोग इस कठिन भाषा से पहले ही तंग थे।
  • महात्मा बुद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म में कोई भी उन जैसा महान् व्यक्ति पैदा न हुआ जो इस धर्म को लोकप्रिय बना सकता।

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प्रश्न 9.
छठी शताब्दी ई० पू० में कौन-सी नई भाषा महत्त्वपूर्ण बनी और क्यों ?
उत्तर-
छठी शताब्दी ई० पू० में ‘प्राकृत’ भाषा महत्त्वपूर्ण बनी। प्राकृत भाषा का महत्त्व बढ़ने से पहले वैदिक संस्कृत भाषा को अधिक महत्त्व दिया जाता था। उस समय हिन्दुओं के सभी ग्रन्थ इसी भाषा में लिखे हुए थे और ब्राह्मण तथा कुलीन वर्ग के अन्य लोग इसी भाषा का प्रयोग करते थे। परन्तु यह भाषा बहुत ही कठिन थी और साधारण लोगों की समझ से बाहर थी। परिणामस्वरूप साधारण लोग न तो वैदिक ग्रन्थों को पढ़ सकते थे और न ही उनका अर्थ समझ पाते थे। इसी समय कुछ नये विचारकों का जन्म हुआ। वे अपने विचार प्रत्येक व्यक्ति तक पहुंचाना चाहते थे। यह तभी सम्भव था जब वे अपने प्रचार कार्य आम जनता की बोलचाल की भाषा में करते। अतः उन्होंने ‘प्राकृत’ भाषा को अपनाया जिसके कारण यह भाषा काफ़ी महत्त्वपूर्ण बन गई।

प्रश्न 10.
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
भारतीय जीवन पर जैन धर्म के महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। जैन धर्म ने जाति-प्रथा का खण्डन किया। फलस्वरूप देश में जाति-प्रथा के बन्धन शिथिल पड़ गए। इस मत के सरल सिद्धान्तों की लोकप्रियता को देखकर ब्राह्मणों ने पशु-बलि, कर्मकाण्ड तथा अन्य कुरीतियों का त्याग कर दिया। फलस्वरूप वैदिक धर्म एक बार फिर सरल रूप धारण करने लगा। जैन धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया। इस सिद्धान्त को अपना कर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए। जैनियों ने अपने तीर्थंकरों की स्मृति में विशाल मन्दिर तथा मठ बनवाए। दिलवाड़ा का जैन मन्दिर, आबू पर्वत के जैन मन्दिर, एलोरा की गुफाएं तथा खजुराहो के जैन मन्दिर कला के सर्वोत्तम नमूने हैं। इस धर्म के कारण कन्नड़, हिन्दी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओं के साहित्य ने भी बड़ी उन्नति की।

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प्रश्न 11.
जैन मत लोकप्रिय क्यों न हो सका ?
उत्तर-
जैन मत भारत में अनेक कारणों से अधिक लोकप्रिय न हो सका :

  • इसमें घोर तपस्या पर बल दिया गया था जिसके अनुसार मनुष्य को कई दिन तक भूखा-प्यासा रहना पड़ता था। साधारण लोग इतना कठोर जीवन व्यतीत नहीं कर सकते थे।
  • जैन मत के अनुयायियों ने इस धर्म के प्रचार पर अधिक बल न दिया।
  • इस धर्म में अहिंसा के सिद्धान्त को अत्यन्त कठोर रूप में अपनाया गया था।
  • इसे बौद्ध धर्म की भान्ति अधिक राजकीय सहायता न मिल सकी।
  • बौद्ध धर्म के सिद्धान्त जैन मत की अपेक्षा अधिक सरल थे। अतः अधिक से अधिक लोग बौद्ध धर्म को अपनाने लगे और जैन धर्म अपनी लोकप्रियता खो बैठा।

प्रश्न 12.
जैन धर्म के दो सम्प्रदायों अर्थात् दिगम्बर तथा श्वेताम्बर के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
जैन धर्म के दो सम्प्रदाय हैं-दिगम्बर तथा श्वेताम्बर। दोनों सम्प्रदायों में मूल रूप से कोई अन्तर नहीं। दोनों महावीर की शिक्षाओं में विश्वास रखते हैं और उनके दर्शन को स्वीकार करते हैं। इन दोनों सम्प्रदायों में भिन्नता मौर्य काल में आरम्भ हुई। उन दिनों देश में भीषण अकाल पड़ा। कुछ जैन भिक्षु भद्रबाहु की अध्यक्षता में दक्षिण चले गए। वहां उन्होंने नग्न रह कर महावीर स्वामी की भान्ति जीवन व्यतीत किया। समय बीतने के साथ-साथ जैन भिक्षुओं ने उत्तरी भारत में श्वेत वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिये। दक्षिण में रहने वाले भिक्षु दिगम्बर कहलाए तथा उत्तरी भारत में भिक्षु श्वेताम्बर कहलाए। दिगम्बर का अर्थ है ‘नग्न’ तथा श्वेताम्बर का अर्थ है ‘श्वेत-वस्त्र धारण करने वाले।’ समय बीतने के साथ-साथ दिगम्बर भिक्षुओं ने भी वस्त्र धारण करने आरम्भ कर दिए। परन्तु दोनों पक्षों में ऊपरी भेद आज भी बना हुआ है।

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प्रश्न 13.
बौद्ध मत लोकप्रिय क्यों हुआ ?
उत्तर-
भारत में बौद्ध मत की लोकप्रियता के मुख्य कारण थे :

  • यह एक सरल धर्म था। लोग इसके नियमों को आसानी से समझ सकते थे और उन्हें अपना सकते थे।
  • महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश भी साधारण बोल-चाल की भाषा में दिया। परिणामस्वरूप इस धर्म ने जन-साधारण को बड़ा प्रभावित किया।
  • महात्मा बुद्ध ने जाति-प्रथा का भी घोर खण्डन किया और भाईचारे की भावना पर बल दिया। परिणामस्वरूप निम्न जातियों के अनेक लोग समाज में आदर पाने के लिए धर्म के अनुयायी बन गए।
  • बौद्ध धर्म की उन्नति का एक अन्य बड़ा कारण हिन्दू धर्म की कुरीतियां थीं। अतः अनेक लोग हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।
  • अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि अनेक राजाओं ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इन सभी राजाओं के प्रयत्नों में यह धर्म केवल भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया।

प्रश्न 14.
बौद्ध धर्म की क्या देन है ?
उत्तर-
बौद्ध धर्म की देन वास्तुकला, मूर्तिकला एवं चित्रकला के सुन्दर नमूनों में देखी जा सकती है। भारतीय धर्मों एवं दर्शनों पर तो बौद्ध धर्म का प्रभाव अत्यन्त गहरा है। पन्द्रह सौ वर्षों तक बौद्ध धर्म ने भारत में करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित किया। यही नहीं, चीन, जापान, लंका, म्यनमार (बर्मा) एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों में और तिब्बत में वहां की कला एवं वास्तुकला बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाती है। इन देशों का अपना बौद्ध धार्मिक एवं दार्शनिक साहित्य भी इनकी अत्यन्त मूल्यवान सांस्कृतिक पूंजी है। एशिया के करोड़ों लोग भारत को आज तक भी बुद्ध की धरती के रूप में जानते हैं।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के उदय के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म का जन्म छठी शताब्दी ई० पू० में हुआ। इन धर्मों का जन्म ऐसे समय पर हुआ जब समाज पर ब्राह्मणों का प्रभुत्व छाया हुआ था। यज्ञ बड़े महंगे और आवश्यक थे। धर्म अपना सरल रूप खो चुका था। ठीक इसी समय महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध ने मानवता को धर्म की सही राह दिखाई। संक्षेप में, जैन तथा बौद्ध धर्म का जन्म निम्नलिखित कारणों से हुआ

1. हिन्दू धर्म में जटिलता-ऋग्वैदिक काल में आर्यों का धर्म बड़ा सरल था और इसके सिद्धान्तों को आसानी से अपनाया जा सकता था, परन्तु धीरे-धीरे वैदिक (आर्य) धर्म जटिल होता चला गया। व्यर्थ के कर्म-काण्ड धर्म का अंग बन गए। लोगों के लिए इस धर्म के सिद्धान्तों को अपनाना मुश्किल हो गया। परिणामस्वरूप वे किसी सरल धर्म की इच्छा करने लगे।

2. जाति-प्रथा तथा छुआछूत-छठी शताब्दी ई० पू० तक जाति बन्धन बहुत कठोर हो चुके थे। लोगों में छुआछूत की भावना इतनी बढ़ गई कि वे शूद्रों को छूना भी पाप समझने लगे। अतः शूद्र लोग किसी ऐसे धर्म की इच्छा करने लगे जिसमें उन्हें उचित स्थान मिल सके।

3. ब्राह्मणों की स्वार्थ भावना-धर्म का कार्य ब्राह्मणों को सौंपा गया था। आरम्भ में वे बिना किसी लोभ लालच के अपना कार्य करते थे, परन्तु धीरे-धीरे वे स्वार्थी बन गए। वे धर्म की व्याख्या अपने ही ढंग से करने लगे। परिणामस्वरूप साधारण जनता ब्राह्मणों से बचने का कोई उपाय सोचने लगी।

4. कठिन भाषा-उस समय वैदिक धर्म के सभी ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गए थे। कठिन होने के कारण साधारण लोग इस भाषा को नहीं समझ सकते थे। इसलिए वे किसी ऐसे धर्म की खोज में रहने लगे जिस धर्म के ग्रन्थ लोगों की बोलचाल की भाषा में लिखे गए हों।

5. महंगे यज्ञ-ऋग्वैदिक काल तक आर्य बड़े ही सरल ढंग से यज्ञ किया करते थे, परन्तु धीरे-धीरे यज्ञ काफ़ी महंगे होते चले गए। यज्ञ में अनेक ब्राह्मणों को भोज देना पड़ता था। साधारण जनता के लिए ऐसे यज्ञ करना असम्भव हो गया। अत: लोग किसी सरल धर्म की इच्छा करने लगे।

6. तन्त्र-मन्त्र में विश्वास-छठी शताब्दी में लोग अन्धविश्वासी हो चुके थे। वे वेद मन्त्रों की बजाए तन्त्र-मन्त्र में . विश्वास रखने लगे। यहां तक कि रोगों का इलाज भी जादू-टोनों के द्वारा किया जाने लगा। इस अन्धविश्वास को समाप्त करने के लिए किसी नए धर्म की आवश्यकता थी।

7. महापुरुषों का जन्म-छठी शताब्दी ई० पू० में भारत में दो महापुरुषों ने जन्म लिया जिनके नाम थे-महावीर स्वामी तथा महात्मा बुद्ध । उन्होंने हिन्दू धर्म में सुधार करके उसे नए रूप में प्रस्तुत किया, परन्तु उनके उपदेशों ने क्रमशः दो नए धर्मों का रूप धारण कर लिया। ये नवीन धर्म जैन मत और बौद्ध मत के नाम से प्रसिद्ध हुए।

सच तो यह है कि बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का उदय वैदिक धर्म में गिरावट के कारण हुआ। धर्म में जटिलता, ब्राह्मणों का नैतिक पतन, छुआछूत, महंगे यज्ञ, कठिन भाषा-यें सभी बातें थीं जिनके कारण बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का उदय हुआ। इस विषय में डॉ० राधाकृष्णन ठीक ही लिखते हैं, “महावीर अथवा गौतम ने किसी नए तथा स्वतन्त्र धर्म का आरम्भ नहीं किया। उन्होंने तो अपने प्राचीन वैदिक धर्म पर आधारित एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत किया।”

प्रश्न 2.
जैन धर्म के मुख्य उपदेश (सिद्धान्त) क्या-क्या हैं ?
अथवा
‘त्रिरत्न’ तथा ‘अहिंसा’ का विशेष रूप से वर्णन करते जैन धर्म के किन्हीं पांच सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म अथवा महावीर स्वामी की शिक्षाएं (उपदेश) बड़ी सरल थीं। उनकी मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. त्रिरत्न-जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक मनुष्य के जीवन का उद्देश्य निर्वाण प्राप्त करना है। निर्वाण प्राप्त करने के लिए तीन साधन बताए गए हैं–शुद्ध ज्ञान, शुद्ध चरित्र तथा शुद्ध दर्शन। जैन धर्म को मानने वाले इन तीन सिद्धान्तों को ‘त्रिरत्न’ कहते हैं।

2. घोर तपस्या में विश्वास-जैन धर्म के अनुयायी घोर तपस्या करने तथा अपने शरीर को अधिक-से-अधिक कष्ट देने में विश्वास रखते हैं। उनके अनुसार शरीर को कष्ट देने से जल्दी मोक्ष प्राप्त होता है।

3. अहिंसा-जैन धर्म में अहिंसा पर बहुत बल दिया गया है। इस धर्म के अनुयायियों का विश्वास है कि संसार की सभी वस्तुओं में जीव (आत्मा) है। इसलिए वे किसी भी जीव को कष्ट देना पाप समझते हैं।

4. ईश्वर में विश्वास-जैन धर्म को मानने वाले ईश्वर को नहीं मानते। वे ईश्वर के स्थान पर अपने तीर्थंकरों की पूजा करते हैं।

5. वेदों में अविश्वास-जैन धर्म को मानने वाले वेदों को ईश्वरीय ज्ञान नहीं मानते। वे वेदों से मुक्ति के लिए बताए गए मुक्ति के साधनों-यज्ञ, हवन, आदि को व्यर्थ समझते हैं।

6. आत्मा में विश्वास-जैन धर्म को मानने वाले आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार आत्मा अमर है। यह शरीर में रह कर भी शरीर से भिन्न होती है।

7. जाति-पाति में अविश्वास-जैन धर्म के अनुयायी जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते। उनके अनुसार सभी मनुष्य समान हैं। जाति के आधार पर कोई व्यक्ति छोटा-बड़ा नहीं है।

8. कर्म सिद्धान्त में विश्वास-जैन धर्म के अनुसार मनुष्य अपने पिछले जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार जन्म लेता है और उसका अगला जन्म इस जन्म में किए गए कर्मों के अनुसार होगा। अतः हमें अच्छे कर्म करने चाहिएं।

9. मोक्ष-प्राप्ति-जैन धर्म के अनुसार आत्मा को कर्मों के बन्धन से छुटकारा दिलाने का नाम मोक्ष है। कर्म-चक्र समाप्त होते ही जीव (आत्मा) को मुक्ति मिल जाती है।

10. सदाचार पर बल-महावीर स्वामी ने अपने अनुयायियों को उच्च नैतिक जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दी। उन्होंने आदेश दिया कि वे क्रोध, लोभ, ईर्ष्या, चोरी, निन्दा आदि अनैतिक कार्यों से बचें।

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प्रश्न 3.
(क) बौद्ध धर्म के मुख्य उपदेशों का वर्णन करें।
(ख) भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
(क) बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएं-

  • बौद्ध धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के लिए मध्यम मार्ग ही सबसे अच्छा मार्ग है। निर्वाण न तो भोग-विलास से मिल सकता है और न ही कठोर तपस्या से।
  • संसार दुःखों का घर है। तृष्णा इन दुःखों का कारण है। इसी तृष्णा के कारण मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर में फंसा रहता है। तृष्णा और वासना का त्याग ही इन दुःखों से छुटकारा दिला सकता है।
  • महात्मा बुद्ध के अनुसार मनुष्य को अष्ट मार्ग पर चल कर ही दुःखों से मुक्ति मिल सकती है। अष्ट मार्ग में ये आठ बातें सम्मिलित हैं- (i) सम्यक् दृष्टि (ii) सम्यक् संकल्प, (iii) सम्यक् वचन, (iv) सम्यक् ध्यान, (v) सम्यक् प्रयत्न, (vi) सम्यक् विचार, (vii) सम्यक् आजीविका।
  • महात्मा बुद्ध पुनर्जन्म के सिद्धान्त को मानते हैं। उनका कहना था कि मनुष्य को अपने कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है। यज्ञ और घोर तपस्या आदि द्वारा यह कर्मों के फल से नहीं बच सकता।
  • बौद्ध धर्म वेदों की प्रमाणिकता में विश्वास नहीं रखता। इसके अनुसार हवन, यज्ञ, बलि आदि भी व्यर्थ हैं।
  • महात्मा बुद्ध ने ईश्वर के सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा है। इस विषय में सदा मौन रहे।
  • बौद्ध धर्म में जाति-पाति के भेद-भाव को व्यर्थ समझा जाता है।
  • बौद्ध धर्म में अहिंसा पर बड़ा बल दिया गया है। इसके अनुसार किसी भी जीव को कष्ट देना पाप है।
  • बौद्ध धर्म में शुद्ध आचरण को बहुत महत्त्व दिया गया है। इसमें चोरी करना, झूठ बोलना आदि बातों को पाप माना गया है।
  • बौद्ध धर्म के अनुसार मनुष्य का सबसे बड़ा लक्ष्य निर्वाण प्राप्त करना है। निर्वाण से ही मनुष्य जन्म-मरण के चक्कर से बच सकता है।

(ख) भारतीय समाज पर बौद्ध धर्म का प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म के कारण लोग सदाचारी बने। उन्होंने झूठ बोलना, चोरी करना, किसी की निन्दा करना आदि सभी बुरे कर्म छोड़ दिए।
  • बौद्ध धर्म के कारण लोगों के खान-पान में आश्चर्यजनक परिवर्तन आया। अहिंसा का सिद्धान्त अपनाकर लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में अनेक स्तूप, मठ और विहार बने। ये सभी कला के उत्तम नमूने हैं।
  • महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं तथा उनके जीवन से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे गए। परिणामस्वरूप भारतीय साहित्य का विकास हआ।
  • बौद्ध धर्म ने अनेक राजाओं की राज्य-नीति को भी प्रभावित किया। उदाहरण के लिए अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रभाव में आकर जन-कल्याण को अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया। इसी प्रकार कनिष्क और हर्ष ने भी प्रजा-हित के लिए अनेक कार्य किए।

प्रश्न 4.
बौद्ध धर्म की शीघ्र उन्नति के कारण बताओ।
अथवा
बौद्ध धर्म बड़ी शीघ्रता से फैला। इसके लिए उत्तरदायी कोई पांच कारण बताएं।
उत्तर-
भारत में बौद्ध धर्म बड़ी शीघ्रता से फैला। यहां तक कि अनेक राजा भी इस धर्म के अनुयायी बन गए और उन्होंने इसको विश्व धर्म बना दिया। इस धर्म की शीघ्र उन्नति के कारण निम्नलिखित थे-

1. सरल धर्म-बौद्ध धर्म एक सरल धर्म था। लोग इसके नियमों को आसानी से समझ सकते थे और इन्हें अपना सकते थे। इसलिए यह धर्म शीघ्र ही लोकप्रिय हो गया।

2. बोलचाल की भाषा-महात्मा बुद्ध ने अपना उपदेश साधारण बोलचाल की भाषा में दिया। परिणामस्वरूप इस धर्म ने जन-साधारण को बड़ा प्रभावित किया।

3. अनुकूल वातावरण-बौद्ध धर्म के उदय के समय भारत में कोई ऐसा धर्म नहीं था जो इस धर्म का सामना कर सकता। हिन्दू धर्म में अनेक दोष आ चुके थे। जैन धर्म भी अपने जटिल नियमों के कारण अधिक लोकप्रिय न हो सका। ऐसे वातावरण में बौद्ध धर्म की उन्नति स्वाभाविक ही थी।

4. जाति-प्रथा का विरोध-महात्मा बुद्ध ने जाति-प्रथा का घोर खण्डन किया और भाई-चारे की भावना पर बल दिया। परिणामस्वरूप निम्न जातियों के अनेक लोग समाज में आदर पाने के लिए बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

5. हिन्दू धर्म की कुरीतियां-बौद्ध धर्म की उन्नति का सबसे बड़ा कारण हिन्दू धर्म की कुरीतियां थीं। हिन्दू धर्म में यज्ञों और पशु बलि पर अधिक बल दिया जाने लगा था। यज्ञ इतने महंगे थे कि साधारण लोगों के लिए यज्ञ कराना असम्भव था। अतः अनेक लोग हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

6. महात्मा बुद्ध का महान् व्यक्तित्व-महात्मा बुद्ध का अपना जीवन बड़ा आकर्षक तथा प्रभावशाली था। वह जिन नियमों का लोगों को उपदेश देते थे, स्वयं भी उनका पालन करते थे। उनकी वाणी भी बड़ी मधुर थी। उनके इस महान् व्यक्तित्व से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।

7. बौद्ध भिक्षुओं का उच्च चरित्र-बौद्ध भिक्षुओं का चरित्र बड़ा ऊंचा था। उनके चरित्र से अनेक लोग प्रभावित हुए और वे बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।

8. राजकीय सहायता-अशोक, कनिष्क, हर्ष आदि अनेक राजाओं ने भी बौद्ध धर्म ग्रहण किया। इन सभी राजाओं ने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए अनेक प्रयत्न किए। उनके प्रयत्नों से यह धर्म केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय हो गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 5.
भारत में बौद्ध धर्म का तो पतन हो गया पर जैन धर्म कुछ भागों में जमा रहा। इसके कारणों की समीक्षा करें।
उत्तर-
भारत में बौद्ध धर्म जितनी तीव्रता से फैला, उसी तीव्रता से इस धर्म का पतन भी हो गया। परन्तु जैन धर्म का देश के कुछ भागों में अस्तित्व बना रहा। इसके कुछ विशेष कारण थे जिनका वर्णन इस प्रकार है :
बौद्ध धर्म के पतन के कारण-

1.धर्म में जटिलता-बौद्ध धर्म धीरे-धीरे काफ़ी जटिल हो गया। अनेक व्यर्थ के रीति-रिवाज इस धर्म का अंग बन गये। परिणामस्वरूप लोगों का इस धर्म में विश्वास उठने लगा।

2. संस्कृत भाषा-बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने बुद्ध के उपदेशों को संस्कृत में लिपिबद्ध करना आरम्भ कर दिया। यह भाषा साधारण लोगों की समझ से बाहर थी। परिणामस्वरूप बौद्ध धर्म की लोकप्रियता कम हो गयी।

3. भिक्षुओं का दूषित चरित्र-बौद्ध भिक्षुओं का चरित्र आरम्भ से बड़ा ऊंचा था, परन्तु धीरे-धीरे उनके चरित्र में अनेक दोष आ गये। अत: लोगों को उनसे घृणा होने लगी। इस बात का बौद्ध धर्म पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

4. हिन्दू धर्म में सधार-हिन्दू धर्म में समय के अनुसार अनेक आवश्यक सुधार किये गये। परिणामस्वरूप अनेक लोग, जिन्होंने हिन्दू धर्म को छोड़कर बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था, फिर से हिन्दू धर्म में शामिल हो गये।

5. राजकीय सहायता का अभाव-राजा कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् बौद्ध धर्म को राजकीय सहायता न मिल सकी। यह बात भी बौद्ध धर्म की उन्नति के मार्ग में बाधा बनी। .

6. बौद्ध धर्म का विभाजन-कनिष्क के काल में बौद्ध धर्म महायान और हीनयान नामक दो शाखाओं में बंट गया। महायान और हिन्दू धर्म के नियमों में विशेष अन्तर नहीं था। परिणामस्वरूप महायान के अनेक अनुयायी हिन्दू धर्म में शामिल हो गये।

7. राजाओं का अत्याचार-मौर्य वंश के पश्चात् पुष्यमित्र शुंग ने बौद्धों पर अनेक अत्याचार किये। उसने अनेक बौद्धों की हत्या करवा दी। उसके अत्याचार से डरकर अनेक लोगों ने बौद्ध धर्म छोड़ दिया।

8. विदेशी आक्रमण-विदेशी आक्रमणकारियों ने बौद्धो के अनेक मठ और विहार तोड़ डाले। उन्होंने इन मठों और विहारों में रहने वाले बौद्ध भिक्षुओं का भी वध कर दिया। इस प्रकार धीरे-धीरे भारत में बौद्ध धर्म पूरी तरह लुप्त हो गया।

जैन धर्म के जमे रहने के कारण-

9. भारत में जैन धर्म को उतना राजाश्रय नहीं मिला था जितना कि बौद्ध धर्म को। इसलिए राजाश्रय समाप्त होने पर भी इस धर्म को अधिक क्षति न पहुंची।

10.जैन धर्म का प्रसार मुख्यत: व्यवहार और वाणिज्य में लगे लोगों में हुआ था। इन लोगों पर बदलती हुई परिस्थितियों का अधिक प्रभाव नहीं पड़ा। इसलिए भारत में जैन धर्म आज भी किसी न किसी रूप में अपना अस्तित्व बनाये हुए है।

प्रश्न 6.
बौद्ध धर्म का भारतीय समाज और संस्कृति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
अथवा
भारतीय समाज के निम्नलिखित पक्षों पर बौद्ध धर्म के प्रभाव की व्याख्या कीजिए :
(क) सामाजिक जीवन तथा धार्मिक जीवन
(ख) राजनीतिक जीवन तथा कला एवं साहित्य।
उत्तर-
प्रत्येक धार्मिक आन्दोलन का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बौद्ध धर्म ने भी पूर्ण रूप से भारतीय जीवन को प्रभावित किया। हमारे सामाजिक जीवन, कलाओं, साहित्य तथा अन्य क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुए जिनका वर्णन इस प्रकार है

सामाजिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म में अहिंसा के सिद्धान्त पर बड़ा बल दिया गया था। इस सिद्धान्त के कारण लोगों ने मांस खाना छोड़ दिया और वे शाकाहारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण समाज में जाति-प्रथा की कठोरता कम हो गई। सभी जातियों के लोग अब मिल-जुल कर रहने लगे।
  • महात्मा बुद्ध ने लोगों में ऐसे सिद्धान्तों का प्रचार किया था जिससे कि लोगों का चरित्र ऊंचा हो सके। इन नियमों का पालन करके लोग सदाचारी बन गए।
  • बौद्ध धर्म के कारण समाज-सेवा की भावना को बड़ा बल मिला।
  • इस धर्म के कारण देश में तर्क की प्रधानता बढ़ी और अन्धविश्वास कम हो गए। परिणामस्वरूप भारतीय समाज एक आदर्श समाज बन गया।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में भीख मांगने की कुप्रथा आरम्भ हो गई। बौद्ध भिक्षुओं को लोग दिल खोलकर भिक्षा देते थे, परन्तु धीरे-धीरे कुछ कामचोर लोगों ने भीख मांगना अपना व्यवसाय बना लिया।

धार्मिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म की लोकप्रियता को देखकर हिन्दू धर्म के शुभचिन्तकों ने भी अपने धर्म को फिर से सरल बनाने का प्रयास किया। फलस्वरूप हिन्दू धर्म में अनेक आवश्यक सुधार किए गए।
  • इस धर्म के कारण देश में मूर्ति-पूजा आरम्भ हुई। महात्मा बुद्ध की अनेक मूर्तियां बनाई गईं। उनकी देखा-देखी हिन्दुओं ने भी अपने देवी-देवाताओं की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा करनी आरम्भ कर दी।
  • बौद्ध धर्म के परिणामस्वरूप भारत में मन्दिरों की स्थापना हुई।
  • बौद्ध धर्म की लोकप्रियता को देखते हुए धर्म में प्रचारकों का महत्त्व बढ़ गया।

राजनीतिक जीवन पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म लगभग सारे भारत में लोकप्रिय हुआ। एक ही धर्म के अनुयायी होने के कारण भारतीयों में मेल-जोल बढ़ा। परिणामस्वरूप देश में राजनीतिक एकता को बल मिला।
  • बौद्ध धर्म ने लोगों को मानव-प्रेम का सन्देश दिया। जिन राजाओं ने भी इसे अपनाया, उन्होंने मानव-कल्याण के लिए अनेक कार्य किए। अशोक, कनिष्क तथा हर्ष इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण हैं।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में सैनिक दुर्बलता आ गई। उदाहरण के लिए अहिंसा के सिद्धान्त को अपनाकर अशोक ने युद्ध करने बन्द कर दिए। परिणाम यह हुआ कि भारतीय सैनिक दुर्बल और विलासी बन गए।

कला एवं साहित्य पर प्रभाव-

  • बौद्ध धर्म के कारण देश में अनेक स्तूप, मठ तथा विहार बने। ये सभी भवन-निर्माण कला की दृष्टि से बड़ा महत्त्व रखते
  • बौद्ध धर्म के कारण भारत में मूर्ति-कला में विशेष निखार आया। अनेक नई कला शैलियों का भी जन्म हुआ। गान्धार कला-शैली में महात्मा बुद्ध की अनेक सुन्दर मूर्तियां बनाई गईं।
  • बौद्ध धर्म के कारण भारतीय साहित्य का काफ़ी विकास हुआ। महात्मा बुद्ध के अनुयायियों ने बुद्ध के जीवन और उनकी शिक्षाओं से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ लिखे।

संक्षेप में, इतना कहना ही काफ़ी है कि बौद्ध धर्म ने भारतीय जीवन के हर पहलू पर गहरा प्रभाव डाला। भारत पर इसके प्रभावों का वर्णन करते हुए श्री ई० वी० हैवेल ने ठीक ही कहा है, “बौद्ध धर्म ने भारत को एक राष्ट्र बनाने में उसी प्रकार सहायता की जिस प्रकार ईसाई धर्म ने ऐंग्लो-सैक्सन काल में इंग्लैण्ड में की थी।”

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 3 जैन धर्म और बौद्ध धर्म

प्रश्न 7.
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म की तुलना कीजिए।
अथवा
(क) जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म में क्या समानताएं थीं ?
(ख) जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म के बीच असमानताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म छठी शताब्दी ईसा पूर्व की देन है। दोनों धर्मों का जन्म समान परिस्थितियों में हुआ। इसलिए दोनों में कुछ समानताएं होना स्वाभाविक है। समानताओं के साथ-साथ इनमें कुछ असमानताएं भी पाई जाती हैं। आओ, इन दोनों धर्मों की तुलनात्मक समीक्षा करें।

(क) समानताएं-

  • दोनों धर्मों के संस्थापक क्षत्रिय राजकुमार थे। इन दोनों ने ही घोर तपस्या के पश्चात् सच्चा ज्ञान प्राप्त किया।
  • दोनों धर्मों का जन्म हिन्दू धर्म की प्रतिक्रिया के रूप में हुआ।
  • दोनों धर्मों के सिद्धान्त आरम्भ में बड़े सरल थे। अहिंसा तथा मोक्ष दोनों धर्मों के मूल सिद्धान्त हैं।
  • दोनों धर्म कर्म सिद्धान्त को स्वीकार करते हैं। इनके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल अगले जन्म में मिलता है।
  • दोनों धर्मों ने ही जाति प्रथा का घोर विरोध किया।
  • दोनों धर्मों ने ही ब्राह्मणों के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया।
  • दोनों धर्मों ने ही यज्ञों तथा पशु-बलि का विरोध किया।
  • दोनों धर्मों ने सदाचार और पवित्रता का सन्देश दिया।

(ख) असमानताएं-

  • दोनों धर्मों में अहिंसा को अपनाने का मार्ग भिन्न है। बौद्ध धर्म के अनुसार किसी भी प्राणी को मन, वचन तथा कर्म में कष्ट नहीं देना चाहिए। यही अंहिसा है। इसके विपरीत जैन धर्म वाले प्रत्येक वस्तु में आत्मा मानते हैं। उनके अनुसार किसी जीव या निर्जीव को कष्ट पहुंचाना अहिंसा के सिद्धान्त के विरुद्ध है।
  • दोनों धर्म मोक्ष-प्राप्ति को जीवन का लक्ष्य मानते हैं, परन्तु दोनों धर्मों के मोक्ष प्राप्ति के साधन भिन्न-भिन्न हैं।
    बौद्ध धर्म में मोक्ष-प्राप्ति के लिए “अष्ट-मार्ग” बताया गया है, जबकि जैन धर्म के अनुयायी ‘त्रिरत्न’ का पालन करके मोक्ष प्राप्त करने में विश्वास रखते हैं।
  • दोनों धर्मों ने ही धर्म प्रचार संघ स्थापित किए, परन्तु बौद्ध संघ के भिक्षु जहां स्थान-स्थान पर घूम कर अपने धर्म का प्रचार करते थे, वहां जैन संघ के संन्यासी घोर तपस्या में लीन रहते थे।
  • जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के अनुयायी बिल्कुल नंगे रहते हैं, परन्तु बौद्ध धर्म की किसी शाखा में यह बात नहीं पाई जाती।
  • दोनों धर्मों के पूजनीय व्यक्ति भिन्न हैं। जैन धर्म वाले तीर्थंकरों की पूजा करते हैं, जबकि बौद्ध धर्म वाले बौधिसत्वों की पूजा करते हैं।
  • दोनों धर्मों के धार्मिक ग्रन्थ अलग-अलग हैं। बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘जातक’ और ‘त्रिपिटक’ हैं। दूसरी ओर जैन धर्म के प्रमुख ग्रन्थ “अंग” और “उपांग” हैं।
  • बौद्ध धर्म विदेशों में भी खूब लोकप्रिय हुआ। इसके विपरीत जैन धर्म केवल भारत तक ही सीमित रहा।
  • बौद्ध धर्म का आज भारत में पूरी तरह पतन हो चुका है। इसके विपरीत जैन धर्म के आज भी भारत में अनेक अनुयायी मिलते हैं।

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions फुटबाल (Football) Game Rules.

फुटबाल (Football) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. फुटबाल मैदान की लम्बाई = 120m × 80m (130 गज़ × 100 गज़)
  2. फुटबाल मैदान की चौड़ाई = 50 गज़ से 100 गज़, 45-90 मीटर
  3. मैदान का आकार = आयताकार
  4. खिलाड़ियों की गिनती = 11, बदलवे 7
  5. फुटबाल की परिधि = 27″ से 28″, 68 सैं०मी० 70 सैं०मी०
  6. फुटबाल का भार = 14 से 16 औंस, 410 ग्राम से 450 ग्राम
  7. खेल का समय = 45—45 मिनट के दो हाफ
  8. आराम का समय = 15 मिनट
  9. मैच में बदले जा सकने वाले खिलाड़ी = 3 मिनट
  10. मैच के अधिकारी = एक टेबल आफिशल, एक रैफ़री और दो लाइन मैन.
  11. अंतर्राष्ट्रीय मैच के लिए मैदान का आकार = अधिक-से-अधिक 110 × 75 मीटर 100 × 64 मीटर कम-से-कम
  12. अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में मैदान का माप = अधिकतम 110 मी० × 75 मीटर (120 गज़ × 80 गज़) कम-से-कम 100 मी० × 64 मी० (100 गज़ × 70 गज़)
  13. गोल पोस्ट की ऊँचाई = 2.44 मीटर
  14. कार्नर फ्लैग की ऊँचाई = कम-से-कम 5 फीट

फुटबाल खेल की संक्षेप रूपरेखा
(Brief outline of the Football Game)

  1. मैच दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह खिलाड़ी होते हैं। एक टीम में 16 खिलाड़ी होते हैं जिनमें से 11 खेलते हैं और 5 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं। इनमें से एक गोलकीपर होता है।
  2. एक टीम मैच में तीन से अधिक खिलाड़ी और एक गोलकीपर बदल सकती है।
  3. एक बदला हुआ खिलाड़ी दोबारा नहीं बदला जा सकता।
  4. खेल का समय 45-5-45 मिनट का होता है। मध्यान्तर का समय 5 मिनट का होता है।
  5. मध्यान्तर या अवकाश के बाद टीमें अपनी साइडें बदलती हैं।
  6. खेल का आरम्भ खिलाड़ी एक-दूसरे की सैंटर लाइन की निश्चित जगह से पास देकर शुरू करते हैं और साइडों का फैसला टॉस द्वारा किया जाता है।
  7. मैच खिलाने के लिए एक टेबल अधिकारी, एक रैफरी और दो लाइनमैन होते हैं।
  8. गोलकीपर की वर्दी अपनी टीम से भिन्न होती है।
  9. खिलाड़ी को कोई ऐसी वस्तु नहीं पहननी चाहिए जो दूसरे खिलाड़ियों के लिए घातक हो।
  10. मैदान के बाहरी भाग से कोचिंग नहीं होनी चाहिए।
  11. जब गेंद गोल रेखा या साइड लाइन को पार कर जाए तो खेल रुक जाता है।
  12. रैफ़री स्वयं भी किसी वजह से खेल बन्द कर सकता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल का मैदान, गोल क्षेत्र, गोल, पैनल्टी क्षेत्र, कार्नर क्षेत्र, रेखाएं और गेंद के बारे में बताइए।
खेल का मैदान
(Playing Field)
आकार-फुटबॉल का मैदान आयताकार होता है। इसकी लम्बाई 100 m से कम और 120 m से अधिक न होगी। इसकी चौड़ाई 55 m से कम और 90 m से अधिक न होगी। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में इसकी लम्बाई 90 से 120 m तक चौड़ाई 50 से 90 m होगी। – रेखांकन (Lining)-खेल का मैदान स्पष्ट रेखाओं द्वारा अंकित होना चाहिए। लम्बी रेखाएं स्पर्श रेखाएं या पक्ष रेखाएं कहलाती हैं और छोटी रेखाओं को गोल रेखाएं कहा जाता है। मैदान के प्रत्येक कोने पर 1.50 m ऊँचे खम्बे पर झंडी (कार्नर फ्लैग) लगाई जाएगी। यह केन्द्रीय रेखा पर कम-से-कम एक गज़ पर होनी चाहिए। मैदान के मध्य में एक वृत्त लगाया जाता है जिसका अर्द्धव्यास 9.15 m गज़ होगा।
FOOTBALL GROUND
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
कार्नर क्षेत्र-प्रत्येक कार्नर क्षेत्र पोस्ट से खेल के क्षेत्र के अन्दर एक गज़ के अर्द्धव्यास का चौथाई वृत्त खींचा जाएगा।
गोल क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर रेखाएं खींची जाएंगी जो गोल रेखा पर लम्ब होंगी। ये मैदान में 5.5 m की दूरी तक फैली रहेंगी और गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा से मिला दी जाएंगी। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं द्वारा घिरे मध्य क्षेत्र को गोल क्षेत्र कहते हैं।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2
पैनल्टी क्षेत्र-खेल के मैदान में दोनों सिरों पर प्रत्येक गोल पोस्ट से 16.50 m की दूरी पर गोल रेखा के समकोण पर दो रेखाएं खींची जाएंगी। ये मैदान में 16.50m की दूरी तक फैली होंगी। इन्हें गोल रेखा के समानान्तर एक रेखा खींच कर मिलाया जाएगा। इन रेखाओं तथा गोल रेखाओं से घिरे हुए क्षेत्र को पैनल्टी क्षेत्र कहा जाएगा।

गोल-गोल रेखा के मध्य में से 7.32 m की दूरी पर दो पोल (डंडे) गाड़े जाएंगे। इनके सिरों को एक क्रासबार द्वारा मिलाया जाएगा जिसका निचला सिरा भूमि से 2.44 m ऊंचा होगा। गोल पोस्टों तथा क्रासबार की चौड़ाई और गहराई 5 इंच से अधिक नहीं होगी। देखें खेल के मैदान का चित्र।
गेंद-गेंद का आकार गोल होगा। यह चमड़े या किसी अन्य स्वीकृत वस्तु की बनी होनी चाहिए। इसकी परिधि 27″ से 28″ तक होगी। इसका भार 14 औंस से 16 औंस तक होगा। रैफ़री की आज्ञा के बिना खेल के दौरान गेंद बदली नहीं जा सकती।

खिलाड़ी और उसकी पोशाक
खिलाड़ी का सामान-खिलाड़ी प्रायः जर्सी या कमीज़, निक्कर, जुराबें तथा बूट पहन सकता है। गोल कीपर की कमीज़ या जर्सी का रंग बाकी खिलाड़ियों से भिन्न होगा। बूट पहनने आवश्यक हैं। कोई भी खिलाड़ी ऐसी वस्तु नहीं पहन सकता जो अन्य खिलाड़ियों के लिए हानिकारक हो।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
निम्नलिखित से आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ियों की संख्या, अधिकारियों की गिनती, खेल की अवधि, स्कोर अथवा गोल।
खिलाड़ियों की संख्या-फुटबॉल का खेल दो टीमों के बीच होता है। प्रत्येक टीम में ग्यारह-ग्यारह तथा अतिरिक्त (Extra) 5 खिलाड़ी होते हैं। एक मैच में किसी टीम को दो से अधिक खिलाड़ियों को बदलने की आज्ञा नहीं होती। बदले हुए खिलाड़ी को पुनः इस मैच में भाग लेने का अधिकार नहीं दिया जाता। मैच में गोलकीपर बदल सकते हैं। । अधिकारी-एक रैफ़री, दो लाइनमैन, एक टाइम कीपर रैफ़री खेल के नियमों का पालन करवाता है और किसी भी झगड़े वाले प्रश्न का निर्णय करता है। खेल में क्या हुआ और परिणाम क्या निकला इस पर उसका निर्णय अन्तिम होता है।
खेल की अवधि-खेल 45-45 मिनट की दो समान अवधियों में खेला जाएगा। पहले 45 मिनट के खेल के बाद 10 मिनट का मध्यान्तर (Interval) या इससे अधिक
होगा।

गोल्डन गोल (Golden Goal)-फुटबॉल खेल में यदि समय समाप्ति पर दोनों टीमें बराबर रहती हैं तो बराबर की स्थिति में फालतू समय 15-15 मिनट का खेल होगा। इस समय के खेल में जहां भी गोल हो जाए तो खेल समाप्त हो जाता है। गोल करने वाली टीम विजयी घोषित की जाती है। उसके बाद यदि फिर भी गोल न हो तो दोनों टीमों को 5-5 पैनल्टी किक उस समय तक दिए जाते रहेंगे जब तक फैसला नहीं हो जाता परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।
खेल का आरम्भ-खेल के प्रारम्भ में टॉस द्वारा किक मारने और साइड (पक्ष) चुनने का निर्णय किया जाता है। टॉस जीतने वाली टीम को किक लगाने या साइड चुनने की छूट होती है। गेंद खेल से बाहर-गेंद खेल से बाहर मानी जाएगी—

  1. जब गेंद भूमि या हवा में गोल रेखा या स्पर्श रेखा पूरी तरह पार कर जाए।
  2. जब रैफरी खेल को रोक दे।

स्कोर (फलांकन) या गोल-जब गेंद नियमानुसार गोल पोस्टों के बीच क्रास बार के नीचे और गोल रेखा के पार चली जाए तो गोल माना जाता है। जो भी टीम अधिक गोल बना लेगी उसे विजयी माना जाएगा। यदि कोई गोल नहीं होता या बराबर संख्या में गोल होते हैं तो खेल बराबर माना जाएगा। परन्तु यदि लीग विधि से टूर्नामैंट हो रहा हो तो बराबर रहने पर दोनों टीमों को एक-एक अंक (Point) दिया जाएगा।

प्रश्न
फुटबाल खेल में ऑफ साइड, फ्री किक, पैनल्टी किक, कार्नर किक और गोल किक क्या होते हैं ?
उत्तर-
ऑफ साइड-कोई भी खिलाड़ी अपने मध्य में ऑफ साइड नहीं होता।
ऑफ साइड उस समय होता है जब वह विरोधी टीम के मध्य में हो और उसके पीछे दो विरोधी खिलाड़ी न हों।

  1. उसकी अपेक्षा विरोधी खिलाड़ी अपनी गोल रेखा के निकट न हों।
  2. वह मैदान में अपने अंर्द्ध-क्षेत्र में न हो।
  3. गेंद अन्तिम बार विरोधी को न लगी हो या उसके द्वारा खेली न गई हो।
  4. उसे गोल-किक, कार्नर किक, थ्रो-इन द्वारा गेंद सीधी न मिली हो या रैफ़री ने न फेंका हो।

दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर विरोधी खिलाड़ी को उस स्थान से फ्री किक दी जाएगी, जहां पर नियम का उल्लंघन हुआ हो।
फ्री किक-फ्री किक दो प्रकार की होती है-प्रत्यक्ष फ्री किक (Direct Kick) तथा अप्रत्यक्ष फ्री किक (Indirect Kick)। प्रत्यक्ष फ्री किक वह है जहां से सीधा गोल किया जा सकता है। जब तक कि गेंद किसी और खिलाड़ी को छू न जाए।
जब कोई खिलाड़ी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाता है तो अन्य खिलाड़ी गेंद से कम से कम दस गज की दूरी पर होंगे। वे अपने परिधि पथ और पैनल्टी क्षेत्र को पार करते ही गेंद फौरन खेलेंगे। यदि गेंद पैनल्टी क्षेत्र से परे सीधे खेल में किक नहीं लगाई गई तो किक पुनः लगाई जाएगी।
दण्ड-इस नियम का उल्लंघन करने पर रक्षक टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक लगाने को मिलेगी।
फ्री किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को दूसरी बार उस समय तक नहीं छू सकता जब तक इसे किसी अन्य खिलाड़ी ने न छू लिया हो।
पैनल्टी किक-पैनल्टी किक पैनल्टी निशान से लगाई जाएगी। पैनल्टी किक लगाने के समय किक मारने वाला (प्रहारक) तथा गोल रक्षक ही पैनल्टी क्षेत्र में होंगे। बाकी ‘खिलाड़ी पैनल्टी क्षेत्र से बाहर और पैनल्टी के निशान से कम से कम 10 गज़ दूर होंगे। गेंद को किक लगने तक गोल रक्षक गोल रेखा पर स्थिर खड़ा रहेगा। किक मारने वाला गेंद को दूसरी बार छू नहीं सकता जब तक कि उसे गोल कीपर छू नहीं लेता।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर—

  1. यदि रक्षक टीम द्वारा उल्लंघन होता है और यदि गोल न हुआ हो तो किक दूसरी बार ली जाएगी।
  2. यदि आक्रामक टीम द्वारा उल्लंघन होता है तो गोल हो जाने पर भी दोबारा किक दी जाएगी।
  3. यदि पैनल्टी किक लेने वाले खिलाड़ी से अथवा उसके साथी से गोल उल्लंघन होता है तो विरोधी खिलाड़ी उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष गोल किक लगाएगा।

थो-इन-जब गेंद भूमि पर या हवा में पार्श्व रेखाओं (Side Lines) से बाहर चली जाती है तो विरोधी टीम का एक खिलाड़ी उस स्थान से जहां से गेंद पार हुई होती है, खड़ा होकर गेंद मैदान के अन्दर फेंकता है।
गेंद अन्दर फेंकने वाला खिलाड़ी मैदान की ओर मुंह करके दोनों पांवों का कोई भाग स्पर्श रेखा या स्पर्श रेखा से बाहर ज़मीन पर रख कर खड़ा हो जाता है। वह हाथों से गेंद पकड़ कर सिर के ऊपर से घुमा कर अन्दर मैदान में फेंकेगा। वह उस समय तक गेंद को नहीं छू सकता जब तक किसी दूसरे खिलाड़ी ने इसे न छू लिया हो।
दण्ड—

  1. यदि थ्रो-इन उचित ढंग से न हो तो विरोधी टीम का खिलाड़ी थ्रो-इन करेगा।
  2. यदि थ्रो-इन करने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छुए जाने से पहले ही स्वयं छू लेता है तो विरोधी टीम को एक अप्रत्यक्ष किक लगाने को दी जाएगी।
    फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
    गोल किक-किसी आक्रामक टीम के खिलाड़ी द्वारा खेले जाने पर जब गेंद भूमि के साथ हवा में गोल रेखा को पार कर जाए तो रक्षक टीम का खिलाड़ी इसे गोल क्षेत्र से बाहर किक करता है। यदि वह गोल क्षेत्र से बाहर नहीं निकलती और सीधे खेल के मैदान में नहीं पहुंच पाती तो किक दोबारा लगाई जाएगी। किक करने वाला खिलाड़ी गेंद को उस समय तक पुनः नहीं छू सकता जब तक इसे किसी दूसरे खिलाड़ी द्वारा छू न लिया जाए।
    दण्ड-यदि किक लगाने वाला खिलाड़ी गेंद को किसी अन्य खिलाड़ी द्वारा छूने से पहले पुनः छू ले तो विरोधी को उसी स्थान से एक अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जहां कि उल्लंघन हुआ है।

कार्नर किक-जब रक्षक टीम के किसी खिलाड़ी द्वारा रखेले जाने पर गेंद भूमि पर या हवा में गोल रेखा पार कर जाए तो आक्रामक टीम का खिलाड़ी निकटतम कार्नर फ्लैग पोस्ट के चौथाई वृत्त के भीतर से गेंद को किक लगाएगा। ऐसी किक से प्रत्यक्ष गोल भी किया जा सकता है। जब तक कार्नर किक न ले ली जाए, विरोधी टीम के खिलाड़ी 10 गज दूर रहेंगे। किक करने वाला खिलाड़ी भी उस समय तक गेंद को दुबारा नहीं छू सकता जब तक किसी अन्य खिलाड़ी ने उसे छ न लिया हो।
दण्ड-इस नियम के उल्लंघन पर विरोधी टीम को उल्लंघन वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल खेल में कौन-कौन से फाऊल हो सकते हैं ?
उत्तर-
फाऊल तथा त्रुटियां
(क) यदि कोई भी खिलाड़ी निम्नलिखित अवज्ञा या अपराधों में से कोई भी जान-बूझ कर करता है तो विरोधी दल को अवज्ञा अथवा अपराध वाले स्थान से प्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 4

  1. विरोधी खिलाड़ी को किक मारे या किक मारने की कोशिश करे।
  2. विरोधी खिलाड़ी पर कूदे या धक्का या मुक्का मारे अथवा कोशिश करे।
  3. विरोधी खिलाड़ी पर भयंकर रूप से आक्रमण करे।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से आक्रमण करे।
  5. विरोधी खिलाडी को पकड़े या उसके वस्त्र पकड़ कर खींचे।
  6. विरोधी खिलाड़ी को चोट लगाए या लगाने की कोशिश करे।
  7. विरोधी खिलाड़ी के रास्ते में बाधा बने या टांगों के प्रयोग से उसे गिरा दे या गिराने की कोशिश करे।
  8. विरोधी खिलाड़ी को हाथ या भुजा के किसी भाग से धक्का दे।
  9. गेंद को हाथ से पकड़ता है।

यदि रक्षक टीम का खिलाड़ी इन अपराधों में से कोई एक अपराध पैनल्टी क्षेत्र में जान-बूझकर करता है तो आक्रामक टीम को पैनल्टी किक दी जाएगी।
(ख) यदि निम्नलिखित अपराधों में से कोई एक अपराध करता है तो विरोधी टीम को अपराध वाले स्थान से अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी—

  1. जब गेंद को खतरनाक ढंग से खेलता है।
  2. जब गेंद कुछ दूर हो तो दूसरे खिलाड़ी को कन्धे मारे।
  3. गेंद खेलते समय विरोधी खिलाड़ी को जान-बूझ कर रोकता है।
  4. गोलकीपर पर आक्रमण करना, केवल उन स्थितियों को छोड़कर जब वह
    • विरोधी खिलाड़ी को रोक रहा हो।
    • गेंद पकड़ रहा हो।
    • गोल क्षेत्र से बाहर निकल गया हो।
    • गोल रक्षक के रूप में गेंद भूमि पर बिना टप्पा मारे चार कदम आगे को जाना।
    • गोल रक्षक के रूप में ऐसी चालाकी में लग जाना जिससे खेल में बाधा पड़े, समय नष्ट करे और अपने पक्ष को अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश करे।

(ग) खिलाड़ी को चेतावनी दी जाएगी और विरोधी टीम को अप्रत्यक्ष फ्री किक दी जाएगी जब कोई खिलाड़ी

  1. खेल के नियमों का लगातार उल्लंघन करता है।
  2. दुर्व्यवहार का अपराधी होता है।
  3. शब्दों या प्रक्रिया द्वारा रैफरी के निर्णय से मतभेद प्रकट करता है।

(घ) खिलाड़ी को खेल के मैदान से बाहर निकाल दिया जाएगा यदि—

  1. वह गाली-गलौच करता है या फाऊल करता है।
  2. चेतावनी मिलने पर भी बुरा व्यवहार करता है।
  3. वह गम्भीर फाऊल खेलता है या दुर्व्यवहार करता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
फुटबाल की महत्त्वपूर्ण तकनीकों के बारे में लिखें।
उत्तर-
किकिंग-किकिंग वह ढंग है जिसके द्वारा बॉल को इच्छित दिशा में पांवों की सहायता से इच्छित गति से, यह देखते हुए कि बॉल इच्छित स्थान पर पहुंच जाए, आगे बढ़ाया जाता है । किकिंग की कला में सही निशाना, गति, दिशा एवं अन्तर केवल एक पांव, बाएं या दहने में नहीं बल्कि दोनों पांवों से काम किया जाता है। शायद नवसिखयों को सिखलाई जाने वाली सबसे जरूरी बात दोनों पांवों से खेल को खेलने पर बल देने की ज़रूरत है। युवकों और नवसिखयों को दोनों पांवों से खेलना सिखाना आसान है। इसके बगैर खेल के किसी सफलता के मरतबे पर पहुंच पाना असम्भव है।

  1. पांवों को अंदरूनी भाग से किक मारना—
  2. पावों का बाहरी भाग—

जब बॉल को नज़दीक दूरी पर किक किया जाता है तो इन दोनों परिवर्तनों का इस्तेमाल किया जाता है। ताकत कम लगाई जाती है, परन्तु इस में अधिक शुद्धता होती है और नतीजे के तौर पर यह ढंग गोलों का निशाना बनाते समय अधिक इस्तेमाल किया जाता है।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 5
हॉफ़ वाली तथा वॉली किक—
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जब बॉल खिलाड़ी के पास उछलता हुआ या हवा में आ रहा हो तो उस समय एक अस्थिरता होती है, न केवल फुटबाल के क्रीड़ा स्थल की सतह के कारण इसके उछलन की दिशा के बारे, बल्कि इसकी ऊंचाई और गति के बारे में भी। इसको प्रभावशाली ढंग से साफ करने हेतु जो बात ज़रूरी है वह है शुद्ध समय और मार रहे पांव के चलने का तालमेल और शुद्ध ऊंचाई तक उठाना।

ओवर हैड किकइस किक—
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का उद्देश्य तीन पक्षीय होता है (क) सामने मुकाबला कर रहे खिलाड़ी से बॉल की और दिशा में मोड़ना, (ख) बॉल को किक की पहली दिशा में ही आगे बढ़ाना और (ग) बॉल को वापिस उसी दिशा में मोड़ना. जहां से वह आया होता है। ओवर हैड किक संशोधित वॉली किक है और इसका इस्तेमाल आमतौर पर ऊंचे उछलते हुए बॉल को मारने हेतु किया जाता है।
पास देना—
फुटबॉल में पास देने का काम टीम वर्क का आधार है। पास टीम को, समन्वय बढ़ाते हुए और टीम वर्क को अहसास कराते हुए जोड़ता है। पास खेल की स्थिति से जुड़ी हुई खेल की सच्चाई है तथा एक मौलिक तत्त्व है, जिसके लिए टीम की सिखलाई और अभ्यास के दौरान अधिक समय और विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। गोलों में प्रवीणता के लिए टीम का पास व्यक्तिगत खिलाड़ी का शुद्ध आलाम है। यह कहा जाता है कि एक सफल पास तीन किकों से अच्छा होता है। पास देना तालमेल का एक अंग है, व्यक्तिगत बुद्धिमता को खेल में आक्रमण करते समय या सुरक्षा समय खिलाड़ियों में हिलडुल के पेचीदा ढांचे को एक सुर करना है। पास में पास देने वाला, बॉल और पास हासिल करने वाला शामिल होते हैं।
पास देने की क्रिया को आमतौर पर दो भागों में बांटा गया है-लम्बे पास तथा छोटे पास।

  1. लम्बे पास-ऐसे पास का इस्तेमाल खेल की तेज़ गति की स्थिति में किया जाता है, जहां कि लम्बे पास गुणकारी होते हैं और पास दाएं-बाएं या पीछे की ओर भी दिया जा सकता है। सभी लम्बे पासों में पांवों में पांव के ऊपरी हिस्से का इस्तेमाल किया जाता है। लम्बे सुरक्षा पास को मज़बूत करते हैं तथा छोटे पास देने को आसान करते हैं।
  2. छोटे पास-छोटे पास 15 गज़ या इतनी-सी ही दूरी तक पास देने में इस्तेमाल किए जाते हैं। ये पास लम्बे पासों से अधिक तेज़ एवं शुद्ध होते हैं।

पुश पास—
पुश पास का इस्तेमाल आमतौर पर जब दूसरी टीम का खिलाड़ी अधिक नज़दीक न हो, नज़दीक से गोलों में बॉल डालने के लिए और बॉल को बाएं-दाएं ओर फेंकने हेतु किया जाता है।
लॉब पास—
यह पुश पास से छोटा होता है। मगर इसमें बॉल को ऊपर उठाया जाता है या उछाला जाता है। लॉब पास का इस्तेमाल दूसरी टीम का खिलाड़ी जब पास में हो या थ्रो बॉल लेने की कोशिश कर रहा हो तो उसके सिर के ऊपर से बॉल को आगे बढ़ाने हेतु किया जाता है।
पांव का बाहरी भाग……..फलिक या जॉब पास—
पहले बताए गए दो पासों के विपरीत फलिक पास से पाँव को भीतर की ओर घुमाते हुए बॉल को फलिक किया जाता है या पुश किया जाता है। इस तरह के पास का पीछे की ओर पास देने हेतु बॉल को नियन्त्रण में रखते हुए और धरती पर ही आगे रेंगते हुए इस्तेमाल किया जाता है।
ट्रैपिंग—
ट्रैपिंग बॉल को नियन्त्रण में रखने का आधार है। बॉल को ट्रैप करने का अर्थ बॉल को खिलाड़ी के नियन्त्रण से बाहर जाने से रोकना है। यह केवल बॉल को रोकने या गतिहीन करने की ही क्रिया नहीं बल्कि आ रहे बॉल को मजबूत नियन्त्रण में करने के लिए अनिवार्य तकनीक भी है। रोकना तो बॉल नियन्त्रण का पहला अंग है और दूसरा अंग जो खिलाड़ी इससे उपरान्त अपने एवं टीम के लाभ हेतु करता है, भी बराबर अनिवार्य है।
नोट-ट्रैप की सिखलाई

  1. रेंगते बॉल तथा
  2. उछलते बॉल के लिए दी जानी चाहिए।

पांव के निचले भाग से ट्रैप—
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यदि कोई शीघ्रता नहीं होती और जिस वक्त काफ़ी स्वतन्त्र अंग होता है खिलाड़ी के आसपास कोई नहीं होता तो इस तरह की ट्रैपिंग बहुत गुणकारी होती है।

पांव के भीतरी भाग से ट्रैप—
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यह सबसे प्रभावशाली और आम इस्तेमाल किया जाता ट्रैप है। इस तरह का ट्रैप न केवल खिलाड़ी को बॉल ट्रैप करने के योग्य बनाता है, बल्कि उसको किसी भी दिशा में जाने के लिए सहायता करता है और अक्सर उसी गति में ही। यह ट्रैप दाएं-बाएं ओर से या तिरछे आ रहे बॉल के लिए अच्छा है। यदि बॉल सीधा सामने से आ रहा है तो बदन को उसी दिशा में घुमाया जाता है जिस ओर बॉल ने जाना होता है।

पांव के बाहरी भाग से ट्रैप—
यह पहले जैसा ही है, मगर कठिन है, क्योंकि हरकत में खिलाड़ी को बदन का भार बाहर की तथा केन्द्र से बाहर सन्तुलन करने के लिए ज़रूरी होता है।
पेट तथा सीना ट्रैप—
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यदि बॉल कमर से ऊंचा हो और पांव से असरदार ढंग से ट्रैप न हो सकता हो तो बॉल को पेट तथा सीने पर सीधा या धरती से उछलता हुआ लिया जाता है।
हैड ट्रैप—
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यह अनुभवी खिलाड़ियों के लिए है और उसके लिए है जो हैडिंग में अपने को अच्छी तरह स्थापित कर चुके हैं।
फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 12
(क) सामने की ओर हैडिंग

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(ख) बाई तथा दाई ओर हैडिंग

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(ग) नीचे की ओर हैडिंग

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PSEB 10th Class Physical Education Practical फुटबाल (Football)

प्रश्न 1.
फुटबाल के मैदान की लम्बाई और चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल के मैदान की लम्बाई 130 गज़ से अधिक और 100 गज़ से कम नहीं होनी चाहिए और चौड़ाई 100 गज़ से अधिक और 50 गज़ से कम नहीं होनी चाहिए। अन्तर्राष्ट्रीय मैचों में लम्बाई 120 गज़ से 110 गज़ और चौड़ाई 70 से 80 गज़ तक होनी चाहिए।

प्रश्न 2.
फुटबाल की खेल में कुल खिलाड़ी कितने होते हैं और किन-किन स्थितियों में खेलते हैं ?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में कुल 16 खिलाड़ी होते हैं जिनमें 11 खिलाडी खेलते हैं और 5 खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं। स्थिति-गोल कीपर = 1, फुलबैक = 2, हाफ = 3, फ़ारवर्ड = 5.

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 3.
फुटबाल के खेल का समय बताइए।
उत्तर-
फुटबाल के खेल का समय 45-5-45 मिनट होता है।

प्रश्न 4.
फुटबाल का भार कितना होता है और उसकी गोलाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल का भार 14 औंस से 16 औंस तक होता है और उसकी गोलाई 27 इंच से 28 इंच तक होती है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 5.
फुटबाल के मैदान की लाइनों की मोटाई बताओ।
उत्तर-
फुटबाल के मैदान की सभी लाइनें 5 सैं० मी० चौड़ी होती हैं।

प्रश्न 6.
फुटबाल में हवा का भार कितना होता है ?
उत्तर-
फुटबाल में हवा का भार 0.6007 या 9.01505 पौंड वर्ग इंच होगा।

प्रश्न 7.
फुटबाल का खेल कैसे शुरू होता है ?
उत्तर-
फुटबाल का खेल गेंद के पास द्वारा शुरू होता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 8.
गोल पोस्टों की लम्बाई और ऊंचाई बताओ।
उत्तर-
गोल पोस्टों की लम्बाई 8 गज़ और ऊंचाई 8 फुट होती है।

प्रश्न 9.
पैनल्टी किक की दूरी बताओ।
उत्तर-
पैनल्टी किक 16 गज़ की दूरी से लगाई जाती है।

प्रश्न 10.
गोल कब होता है ?
उत्तर-
जब गेंद गोल पोस्टों के मध्य रेखा गोल को पार कर जाए तो गोल माना जाता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 11.
फुटबाल में किक लगाते समय विरोधी खिलाड़ियों को कितनी दूरी पर खड़े होना चाहिए?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में किक लगाते समय 10 गज की दूरी पर विरोधी खिलाड़ियों को खड़े होना चाहिए।

प्रश्न 12.
थो-इन किसे कहा जाता है ?
उत्तर-
जब गेंद खेल के मैदान से पूरे तौर पर बाहर चली जाती है तो विरोधी खिलाड़ी उसी स्थान पर खड़े होकर गेंद को अन्दर फेंकता है तो उसको थ्रो-इन कहा जाता है।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 13.
फुटबाल के खेल में कितने फ्लैग लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
फुटबाल की खेल में 6 फ्लैग लगाए जाते हैं जिनमें से 4 ग्राऊंड के कार्नर में तथा दो ग्राऊंड की मध्य की सैंटर लाइन के अन्त में एक गज़ की दूरी पर पीछे हट कर लगाए जाते हैं।

प्रश्न 14.
फुटबाल की खेल के चार फाऊल बताओ।
उत्तर-
फुटबाल की खेल के चार फाऊल निम्नलिखित हैं—

  1. विरोधी खिलाड़ी को ठुड्ड मारना,
  2. फुटबाल को हाथ लगाना।
  3. धक्का देना।
  4. विरोधी खिलाड़ी पर पीछे से हमला करना।

फुटबाल (Football) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 15.
फुटबाल के खेल को खेलाने वाले अधिकारियों की संख्या बताओ।
उत्तर-

  1. टेबल आफिसर = 1
  2. रैफरी = 1
  3. लाइनमैन = 2

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ बताइये।
उत्तर-
मैकाइवर के अनुसार, “समाज सामाजिक संबंधों का जाल है।”

प्रश्न 2.
समाज और समुदाय किन शब्दों से लिये गए हैं ?
उत्तर-
समाज (Society) शब्द लातीनी भाषा के शब्द ‘Socius’ से निकला है जिसका अर्थ है साथ अथवा मित्रता। समुदाय (Community) भी लातीनी भाषा के शब्द ‘Communitas’ से निकला है जिसका अर्थ है ‘सबका सांझा’।

प्रश्न 3.
किसने कहा, “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ?”
उत्तर-
ये शब्द अरस्तु (Aristotle) के हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 4.
सरल युग्म समाज, युग्म समाज, द्वि-युग्म समाज तथा त्रि-युग्म समाज का वर्गीकरण किसने दिया ?
उत्तर-
यह वर्गीकरण हरबर्ट स्पैंसर (Herbert Spencer) ने दिया था।

प्रश्न 5.
समिति किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करके संगठन का निर्माण करते है तो इस संगठित संगठन को समिति कहते हैं।

प्रश्न 6.
खुला समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जिस समाज में अलग-अलग वर्गों में आने-जाने की पाबंदी नहीं होती उसे खुला समाज कहते हैं।

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
समाज की तीन विशेषताएं बताइये।
उत्तर-

  1. समाज लोगों का समूह होता है जिनमें आपसी संबंध होते हैं।
  2. समाज हमेशा समानताओं तथा अंतरों पर निर्भर करता है।
  3. समाज सहयोग तथा संघर्ष पर आधारित होता है।
  4. प्रत्येक समाज में स्तरीकरण पाया जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
समाज के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सम्पूर्ण संसार में बहुत-से समाज मिल जाते हैं जैसे कि जनजातीय समाज, ग्रामीण समाज, औद्योगिक समाज, उत्तर औद्योगिक समाज इत्यादि। परन्तु अलग-अलग विद्वानों ने समाजों के अलग-अलग आधारों पर प्रकार दिए हैं जैसे कि काम्ते (बौद्धिक विकास), स्पैंसर (संरचनात्मक जटिलता), मार्गन (सामाजिक विकास), टोनीज़ (सामाजिक संबंधों के प्रकार), दुर्थीम (एकता के प्रकार) इत्यादि।

प्रश्न 3.
समुदाय किसे कहते हैं ?
उत्तर-
जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहां पर व्यतीत करते हैं तो उसे हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है जिसके सदस्यों के बीच हम भावना होती है।

प्रश्न 4.
समाज किस प्रकार समुदाय से भिन्न है ? दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  • समाज का कोई भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता परन्तु समुदाय का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है।
  • समाज में सहयोग तथा संघर्ष दोनों होते हैं परन्तु समुदाय में केवल सहयोग ही होता है।

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प्रश्न 5.
समिति को परिभाषित कीजिए तथा इसकी विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
बोगार्डस के अनुसार, “सभा साधारणतया कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों का मिल कर कार्य करना है।” इसकी कुछ विशेषताएं होती हैं जैसे कि इसकी विचारपूर्वक स्थापना होती है, इसका निश्चित उद्देश्य होता है, इसका जन्म तथा विनाश होता रहता है, इसकी सदस्यता इच्छा पर आधारित होती है इत्यादि।

प्रश्न 6.
समुदाय तथा समिति के मध्य दो अन्तर बताइये।
उत्तर-

  1. समुदाय किसी निश्चित उद्देश्य के लिए नहीं बनाया जाता परन्तु सभा एक निश्चित उद्देश्य के लिए निर्मित होती है।
  2. समुदाय की सदस्यता ऐच्छिक नहीं होती परन्तु सभा की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  3. समुदाय का निश्चित संगठन नहीं होता परन्तु सभा का एक निश्चित संगठन होता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
मानव समाज पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
इस पृथ्वी पर मनुष्य तथा मानवीय समाज प्रकृति द्वारा बनाई गई एक अनुपम रचना है। मानवीय समाज की कुछ ऐसी विशेषताएं होती हैं जो इसे पृथ्वी के अन्य जीवों से अलग करती हैं। इन विशेषताओं के कारण ही मानवीय समाज ने प्रगति की है तथा इसकी अपनी संस्कृति तथा सभ्यता विकसित हो सकी है। मानवीय समाज ने अपनी संस्कृति विकसित कर ली है जो काफ़ी आधुनिक स्तर पर पहुंच चुकी है चाहे प्रत्येक समाज के लिए यह अलग-अलग होती है। मानवीय समाज की इकाइयां अर्थात् मनुष्य अलग-अलग स्थितियों, उत्तरदायित्वों, अधिकारों, संबंधों के प्रति भी जागरूक होते हैं। मानवीय समाज हमेशा परिवर्तनशील होता है तथा इसमें समय के साथ-साथ परिवर्तन आते रहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
अगस्ते कोंत द्वारा प्रस्तुत मानव समाज के तीन चरणों के नाम बताइये।
उत्तर-
अगस्ते कोंत ने मानवीय समाज के उद्विकास के तीन स्तर दिए हैं तथा वे हैं-

  1. आध्यात्मिक पड़ाव (Theological Stage)
  2. अधिभौतिक पड़ाव (Metaphysical Stage)
  3. सकारात्मक पड़ाव (Positive Stage)।

प्रश्न 3.
समुदाय के प्रमुख आधार कौन-से हैं ?
उत्तर-

  • समुदाय का जन्म स्वयं ही हो जाता है।
  • प्रत्येक समुदाय का एक विशेष नाम होता है।
  • समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसमें व्यक्ति रहता है।
  • आजकल के समुदाय का एक विशेष आधार होता है कि यह स्वयं में आत्मनिर्भर होता है।
  • प्रत्येक समुदाय में हम-भावना मिल जाती है।
  • समुदाय में हमेशा स्थिरता रहती है अर्थात् यह टूटते नहीं हैं।

प्रश्न 4.
समिति के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर-

  1. राजनीतिक दल (Political Parties)
  2. लेबर यूनियन (Labour Union)
  3. धार्मिक संगठन (Religious Organisations)
  4. अन्तर्राष्ट्रीय संगठन (International Associations)।

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प्रश्न 5.
टोनीज़ द्वारा प्रस्तुत समाज के प्रकार कौन से हैं ?
उत्तर-
1. जैमिन शाफ़ट (Gemein Schaft)-टोनीज़ के अनुसार, “जैमिनशाफ़ट एक समुदाय है जिसके सदस्य एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हुए रहते हैं तथा अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इस समुदाय के जीवन में स्थायी रूप तथा प्राथमिक संबंध पाए जाते हैं।” उदाहरण के लिए ग्रामीण समुदाय।।

2. गैसिल शाफ़ट (Gesell Schaft)-टोनीज़ के अनुसार गैसिल शाफ़ट एक नया सामाजिक प्रकरण है जो औपचारिक तथा कम समय वाला होता है। यह और कुछ नहीं बल्कि समाज के लोगों का जीवन है। इसके सदस्यों के बीच द्वितीय संबंध पाए जाते हैं।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
समाज शब्द से आप क्या समझते हैं ? एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
साधारण भाषा में समाज का अर्थ ‘व्यक्तियों के समूह’ से लिया जाता है। बहुत से विद्वान् इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में करते हैं। इस प्रकार समाज का अर्थ किसी समूह के व्यक्तियों द्वारा लिया जा सकता है अपितु उनके मध्य के रिश्तों से नहीं। कभी-कभी समाज के अर्थ को किसी संस्था के नाम से भी लिया जाता है जैसेआर्य समाज, ब्रह्म समाज इत्यादि। इस प्रकार साधारण व्यक्ति की भाषा में समाज का अर्थ इन्हीं अर्थों में लिया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इस शब्द का अर्थ कुछ और ही अर्थों में लिया जाता है।

समाजशास्त्र में ‘समाज’ शब्द का अर्थ लोगों के समूह से नहीं लिया जाता अपितु उनके बीच में पैदा हुए रिश्तों के फलस्वरूप जो सम्बन्ध पैदा हुए हैं उनसे लिया जाता है। सामाजिक रिश्तों में लोगों का बहुत महत्त्व होता है। वे समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं यह एक प्रक्रिया है न कि वस्तु। समाज में एक आवश्यक वस्तु लोगों के बीच के रिश्ते एवं अन्तर्सम्बन्धों के बीच के नियम हैं जिसके साथ समाज के सदस्य एक-दूसरे के साथ रहते हैं। जब समाजशास्त्री समाज शब्द का अर्थ साधारण रूप में करते हैं तो उनका अर्थ समाज में होने वाले सामाजिक सम्बन्धों के जाल से है और जब वह समाज शब्द को विशेष रूप में प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ होता है कि समाज उन व्यक्तियों का समूह है जिनमें विशेष प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं।

समाज (Society)—जब समाजशास्त्री ‘समाज’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ सिर्फ लोगों के समूह मात्र से नहीं होता बल्कि उनका अर्थ होता है समाज के लोगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों के जाल से जिसके साथ लोग एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। सिर्फ कुछ लोगों को इकट्ठा करने से ही समाज नहीं बन जाता। समाज उस समय ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो जाएं। यह सम्बन्ध अस्थिर होते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते और न ही इनका कोई ठोस रूप होता है। हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। यह जीवन के प्रत्येक रूप में मौजूद होते हैं। इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग-अलग करना बहुत मुश्किल है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों के बीच होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते इसीलिए यह अमूर्त होते हैं।

कुछ लेखक यह विचार करते हैं कि समाज तभी बनता है जब इसके सदस्य एक-दूसरे को जानते हों और उनके कुछ आपसी हित हों। उदाहरण के लिए यदि कोई दो व्यक्ति बस में सफर कर रहे हों और एक-दूसरे को जानते न हों, तो वह समाज नहीं बना सकते। परन्तु यदि वही दो व्यक्ति आपस में बातचीत करनी शुरू कर देते हैं, एक-दूसरे के बारे में जानना शुरू कर देते हैं तो समाज का अस्तित्व कायम होना शुरू हो जाता है। उन दोनों के बीच में एक-दूसरे की तरफ व्यवहार ज़रूरी है।

वास्तव में समाज, सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। व्यक्ति जो एक स्थान पर रहते हैं उनके बीच आपसी सम्बन्ध होते हैं और एक-दूसरे के साथ लाभ जुड़े होते हैं। वह एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं और इस प्रकार समाज का निर्माण करते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

प्रश्न 2.
व्यक्ति तथा समाज अन्तःसम्बन्धित हैं। तर्क दीजिए।
उत्तर-
ग्रीक (यूनानी) फ़िलॉस्फर अरस्तु (Aristotle) ने कहा था कि “मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।” इस का अर्थ यह है कि मनुष्य समाज में रहता है। समाज के बिना मनुष्य की कीमत कुछ भी नहीं है। वह मनुष्य जो और मनुष्यों के साथ मिलकर साझे जीवन को नहीं निभाता, वह मनुष्यता के नीचे स्तर से है। मनुष्य को लंबा जीवन जीने के लिए बहुत सारी ज़रूरतों के लिए अन्य मनुष्यों पर निर्भर रहना पड़ता है। उसे अपनी सुरक्षा, भोजन, शिक्षा, सामान, कई प्रकार की सेवाओं के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। मनुष्य को हम सामाजिक प्राणी तीन अलग-अलग आधारों पर कह सकते हैं

1. मनुष्य प्रकृति से सामाजिक है (Man is social by nature)-सबसे पहले मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। मनुष्य अकेला नहीं रह सकता। कोई भी समाज से अलग रह कर आम तरीके से विकास नहीं कर सकता। बहुत-से समाजशास्त्रियों ने अनुभव किए हैं कि जो बच्चे समाज से अलग रह कर के बड़े हुए हैं वह सही तरह विकास नहीं कर सके हैं। यहाँ तक कि एक बच्चा 17 साल की उम्र का होकर भी सही तरह से चल नहीं सकता है। उसको शिक्षा देने के बाद भी वह साधारण मनुष्यों की भांति नहीं रह सका।

इसके साथ का एक केस हमारे सामने आया। 1920 में दो हिन्दू बच्चे एक भेड़िए की गुफ़ा में मिले थे। उनमें से एक बच्चा तो मिलने से कुछ समय बाद ही मर गया था पर दूसरे बच्चे ने अजीब तरह से व्यवहार किया। वह मनुष्यों की भाँति चल नहीं सकता था। वह उनकी तरह खा भी नहीं सकता था और बोल भी नहीं सकता था। वह जानवरों की तरह चार हाथों पैरों के भार चलता था, उस के पास कोई भाषा नहीं थी और वह भेड़िए की तरह चीखता था। वह बच्चा मनुष्यों से डरता था। उसके बाद उस बच्चे के साथ हमदर्दी और प्यार भरा व्यवहार अपनाया गया जिसके कारण वह कुछ सामाजिक आदतें और व्यवहार सीख सका।

एक और केस अमेरिका में एक बच्चे के साथ प्रयोग किया गया। उस बच्चे के माता-पिता का पता नहीं था। उसको 6 महीने की उम्र से ही एक कमरे में एकांत में रखा गया। 5 साल बाद देखा गया कि वह बच्चा न तो चल सकता है और न ही बोल सकता है तथा वह और मनुष्यों से भी डरता था।

यह सभी उदाहरण यह साबित करते हैं कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। मनुष्य उस स्थिति में ही ठीक तरह से विकास कर सकते हैं जब वह समाज में रहते हों और अपने जीवन को दूसरे मनुष्यों के साथ बाँटते हों। उपरोक्त उदाहरणों से हम देख सकते हैं कि उन बच्चों में मनुष्यों जैसा सामर्थ्य तो था पर सामाजिक समझौतों की कमी में वह सामाजिक तौर पर विकास करने में असमर्थ रहे। समाज में ऐसी चीज़ है जो मनुष्य की प्रकृति की आवश्यक चीज़ों को पूरा करती है। यह कोई भगवान् द्वारा थोपी गई चीज़ नहीं है बल्कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है।

2. आवश्यकता इन्सान को सामाजिक बनाती है (Necessity makes a man social)—मनुष्य समाज में इसलिए रहता है क्योंकि उसको समाज से बहुत कुछ चाहिए होता है। यदि वह समाज के दूसरे सदस्यों के साथ सहयोग नहीं करेगा तो उसकी बहुत-सी ज़रूरतें पूरी नहीं होंगी। हर बच्चा आदमी और औरत के आपसी सम्बन्धों का परिणाम होता है, बच्चा अपने माँ-बाप की देख-रेख में बड़ा होता है और अपने माँ-बाप के साथ रहते हुए वह बहुत कुछ सीखता है। बच्चा अपने अस्तित्व के लिए लिए पूरी तरह समाज पर निर्भर करता है। यदि एक नए जन्मे बच्चे को समाज की सुरक्षा न मिले तो शायद वह नया जन्मा बच्चा एक दिन भी जिंदा न रह सके। मनुष्य का बच्चा इतना असहाय होता है कि उसको समाज की सहायता की आवश्यकता पड़ती ही है। हम उसके खाने, कपड़े और रहने की ज़रूरतें पूरी करते हैं क्योंकि हम सब समाज में रहते हैं और सिर्फ समाज में रह कर ही ये आवश्यकताएं पूरी हो सकती हैं। ऊपर दी गई उदाहरणों ने यह साबित किया है कि जो बच्चे जानवरों द्वारा बड़े किए जाते हैं वह आदतों से जानवर ही रहते हैं। बच्चे के शारीरिक विकास और मानसिक विकास के लिए समाज का होना आवश्यक है। कोई भी तब तक मनुष्य नहीं कहलाता जब तक वह मनुष्य के समाज में अन्य मनुष्यों के साथ न रहे। खाने की भूख हमें अन्य लोगों के साथ सम्बन्ध बनाने को बाध्य करती है इसलिए हमें कुछ काम करने पड़ते हैं तथा यह काम औरों के साथ सम्बन्ध बनाते हैं। इस तरह सिर्फ मनुष्य की प्रकृति के कारण ही नहीं बल्कि अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए समाज में रहता है।

3. समाज व्यक्ति का व्यक्तित्व बनाता है (Society makes personality)- मनुष्य समाज में अपने शारीरिक एवं मानसिक पक्ष को विकसित करने के लिए रहता है। समाज अपनी संस्कृति और विरासत को संभाल कर रखता है ताकि इसको अपनी अगली पीढ़ी को सौंपा जा सके। यह हमें स्वतन्त्रता भी देता है ताकि हम अपने गुणों को निखार सकें और अपने व्यवहार, इच्छाओं, विश्वास, रीतियों इत्यादि को परिवर्तित कर सकें। समाज के बिना व्यक्ति का मन एक बच्चे के मन की भाँति होता है। हमारी संस्कृति और हमारी विरासत हमारे व्यक्तित्व को बनाती हैं क्योंकि हमारे व्यक्तित्व पर सबसे ज्यादा प्रभाव हमारी संस्कृति का होता है। समाज सिर्फ हमारी शारीरिक आवश्यकताएं ही नहीं बल्कि मानसिक आवश्यकताओं को भी पूरी करता है।

इस तरह हम कह सकते हैं कि मनुष्य प्रकृति से ही सामाजिक है। यदि मनुष्य मनुष्यों की तरह रहना चाहता है तो उसको समाज की ज़रूरत है। उसको सिर्फ एक दो या कुछ आवश्यकताओं के लिए ही नहीं बल्कि अपने व्यक्तित्व को बनाने के लिए भी समाज की आवश्यकता पड़ती है।

व्यक्तियों के बिना समाज भी अस्तित्व में नहीं आ सकता। समाज कुछ नहीं है बल्कि सम्बन्धों का एक जाल है और सम्बन्ध सिर्फ व्यक्तियों में ही हो सकते हैं। इसीलिए यह एक-दूसरे पर निर्भर हैं। दोनों के बीच सम्बन्ध एक तरफ़ा नहीं है। यह दोनों एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए ज़रूरी हैं। व्यक्तियों को सिर्फ जीव नहीं कहा जा सकता और समाज सिर्फ मनुष्य की ज़रूरतों को पूरा करने का साधन नहीं है। समाज वह है जिसके बिना व्यक्ति नहीं रह सकते तथा व्यक्ति वह है जिनके बिना समाज अस्तित्व में नहीं आ सकता। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या समाज से ज्यादा मनुष्य ज़रूरी है या मनुष्यों से ज्यादा समाज ज़रूरी है। यह प्रश्न उस प्रश्न के समान है कि दुनिया में पहले मुर्गी आई या अंडा। वास्तविकता यह है कि सभी मनुष्य समाज में पैदा हुए हैं और पैदा होते ही समाज में डाल दिए जाते हैं। कोई भी पूर्ण रूप में व्यक्तिगत नहीं हो सकता और न ही कोई पूर्ण रूप में सामाजिक हो सकता है।

वास्तव में ये दोनों एक-दूसरे पर निर्भर हैं। दोनों में से यदि एक भी न हो तो दूसरे का होना मुश्किल है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। समाज ही व्यक्ति में स्वैः (Self) का विकास करता है। समाज में रहकर ही व्यक्ति सामाजिक आदतों को ग्रहण करता है और सामाजिक बनता है। इसके साथ समाज व्यक्तियों के बिना नहीं बन सकता। समाज बनाने के लिए कम-से-कम दो व्यक्तियों की ज़रूरत पड़ती है। उनके बीच सम्बन्ध होना भी ज़रूरी है। इस तरह समाज व्यक्तियों के बीच में पैदा हुए सम्बन्धों का जाल है। इस तरह एक का अस्तित्व दूसरे पर निर्भर करता है। एक की अनुपस्थिति से दूसरे का अस्तित्व मुमकिन नहीं है।

प्रश्न 3.
समुदाय से आप क्या समझते हैं ? समुदाय की विशेषताओं की विस्तृत चर्चा कीजिए।
उत्तर–
प्रत्येक समाज में अलग-अलग प्रकार के समूह पाए जाते हैं। इन अलग-अलग प्रकार के समूहों को अलग-अलग प्रकार के नाम दिए गए हैं और समुदाय इन नामों में से एक है। समुदाय अपने आप में एक समाज है और यह एक निश्चित क्षेत्र में होता है जैसे-कोई गाँव अथवा शहर। जब से मनुष्य ने एक जगह पर रहना शुरू किया है तब से ही वह समुदाय में रहता आया है। सबसे पहले जब मनुष्य ने कृषि करनी शुरू की उस समय से ही व्यक्ति ने समुदाय में रहना शुरू कर दिया है क्योंकि व्यक्ति एक ही स्थान पर रहना शुरू हो गया और इसके साथ लेन-देन शुरू हो गया।

समाजशास्त्र में समुदाय का अर्थ- समाजशास्त्र में इस शब्द समुदाय के व्यापक अर्थ हैं। साधारण शब्दों में जब कुछ व्यक्ति एक समूह में, एक विशेष इलाके में संगठित रूप से रहते हैं और वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही उधर बिताते हैं तब उसको हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है। समुदाय की स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। इसका जन्म भी नहीं होता इसका तो विकास होता है और अपने आप ही हो जाता है। जब लोग इलाके में रहते हैं और सामाजिक प्रक्रियाएँ करते हैं तो यह अपने आप ही विकास कर जाता है। समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जहाँ सदस्य अपनी ज़रूरतें खुद ही पूरी कर लेते हैं क्योंकि सदस्यों में आपस में लेन-देन होता है। समुदाय के सदस्य अपनी हर प्रकार की ज़रूरत को खुद ही पूरा कर लेते हैं। जब व्यक्ति ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं तो उनमें साझ पैदा हो जाती है जिसके कारण हम भावना उत्पन्न हो जाती है। जब लोग आपस में मिलकर रहते हैं तो उनमें कुछ नियम भी उत्पन्न हो जाते हैं।

समुदाय की विशेषताएं या तत्त्व (Characteristics or Elements of Community) –

1. हम भावना (We feeling)—समुदाय की यह विशेषता होती है कि इसमें हम भावना होती है। हम भावना के कारण ही समुदाय का हर सदस्य अपने आपको एक-दूसरे से अलग नहीं समझता बल्कि उन पर विश्वास करते हैं कि वह सब एक हैं। वह औरों जैसा और औरों में से एक है।

2. भूमिका की भावना (Role feeling) समुदाय की दूसरी विशेषता यह है कि इसके सदस्यों में भूमिका की भावना होती है। समुदाय में हर किसी को कोई-न-कोई पद और भूमिका प्राप्त होती है और उन को पता होता है कि उन्होंने कौन-से काम करने हैं और कौन-से कर्तव्यों का पालन करना है ।

3. निर्भरता (Dependence)-समुदाय की एक और विशेषता यह होती है कि समुदाय के सदस्य अपनी ज़रूरतों के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं और अकेले एक व्यक्ति के लिए समुदाय से अलग रहना सम्भव नहीं है। व्यक्ति सभी कार्य अकेले नहीं कर सकता। इसीलिए उसको अपने बहुत सारे कार्यों के लिए औरों पर निर्भर रहना पड़ता है।

4. स्थिरता (Permanence)—समुदाय में स्थिरता होती है। इसके सदस्य अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं। यदि कोई व्यक्ति कुछ समय के लिए समुदाय छोड़कर चला जाता है तो कोई बात नहीं फिर भी वह अपने समुदाय से जुड़ा रहता है। यदि कोई अपना समुदाय छोड़कर विदेश चला जाता है तो समुदाय का दायरा बढ़ने लग जाता है क्योंकि बाहरी देश में जाने के बाद भी व्यक्ति अपने समुदाय को भूलता नहीं है। आज-कल कोई व्यक्ति सिर्फ एक समुदाय का सदस्य नहीं है। अलग-अलग समय में व्यक्ति अलग-अलग समुदाय का सदस्य होता है। इसलिए व्यक्ति चाहे जिस भी समुदाय का सदस्य हो उसमें भी स्थिरता रहती है।

5. आम जीवन (Common life)-समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। उसका सिर्फ एक ही उद्देश्य होता है कि सारे अपना जीवन आराम से बिता सकें और मनुष्य अपना जीवन समुदाय में रहते हुए ही बिता देता है।

6. भौगोलिक क्षेत्र (Geographical Area) हर समुदाय का अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है जिसमें वह रहता है। बिना किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र के समुदाय नहीं बन सकता।

7. अपने आप जन्म (Spontaneous Birth) समुदाय अपने आप ही पैदा हो जाता है। समुदाय का कोई विशेष इरादा नहीं होता। इसकी स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। जिस जगह पर व्यक्ति अधिक समय के लिए रहना शुरू कर देते हैं उधर समुदाय अपने आप पैदा हो जाता है। समुदाय उसको वे सभी सहूलतें देते हैं जिसके साथ मनुष्य अपनी ज़रूरतें आराम से पूरी कर सकता है।

8. विशेष नाम (Particular Name)-प्रत्येक समुदाय को एक विशेष नाम दिया जाता है जोकि समुदाय के बनने के लिए आवश्यक है।

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प्रश्न 4.
समुदाय को परिभाषित कीजिए। समुदाय किस अर्थ में समाज से भिन्न है ? चर्चा कीजिए।
उत्तर-
नोट- समुदाय की परिभाषा-इसके लिए प्रश्न देखें 3.
समुदाय तथा समाज में अंतर (Difference between Community and Society)

  1. समाज व्यक्तियों का समूह है जो स्वयं ही विकसित हो जाता है परन्तु समुदाय चाहे स्वयं ही विकसित होता है परन्तु यह होता किसी विशेष क्षेत्र में है।
  2. समाज का कोई विशेष भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता परन्तु समुदाय का एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र होता है।
  3. समाज का कोई विशेष नाम नहीं होता परन्तु समुदाय का एक विशेष नाम होता है।
  4. समाज सामाजिक संबंधों पर आधारित होता है जिस कारण यह अमूर्त होता है परन्तु समुदाय एक मूर्त संकल्प है।
  5. प्रत्येक समाज अपने आप में आत्मनिर्भर नहीं होता परन्तु प्रत्येक समुदाय अपने आप में आत्मनिर्भर होता है जिस कारण यह अपने सदस्यों की सभी आवश्यकताएं पूर्ण कर सकता है।
  6. समाज के सदस्यों के बीच हम भावना नहीं होती परन्तु समुदाय के सदस्यों के बीच हम भावना होती है।

प्रश्न 5.
समुदाय तथा समिति के मध्य अन्तर कीजिए।
उत्तर-
समुदाय तथा समिति में अन्तर-

  1. समुदाय अपने आप में विकसित होता है, इसको बनाया नहीं जाता जबकि समिति का निर्माण जानबूझ कर किया जाता है।
  2. समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। यह सभी के हितों की पूर्ति करता है जबकि समितियों का एक निश्चित उद्देश्य होता है।
  3. एक व्यक्ति एक समय में सिर्फ एक समुदाय का सदस्य होता है जबकि व्यक्ति एक ही समय में कई समितियों का सदस्य हो सकता है।
  4. समुदाय की सदस्यता व्यक्ति की ज़रूरत होती है जबकि समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है।
  5. समुदाय के लिए एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का होना ज़रूरी है जबकि समिति के लिए यह जरूरी नहीं है।
  6. समुदाय अपने आप में एक उद्देश्य होता है जबकि समिति किसी उद्देश्य को पूरा करने का साधन होती है।
  7. समुदाय स्थायी होता है पर समिति अस्थायी होती है।
  8. व्यक्ति समुदाय में पैदा होता है और इसमें ही मर जाता है पर व्यक्ति समिति में इसीलिए हिस्सा लेता है क्योंकि उसको किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति करनी होती है।
  9. समुदाय का कोई वैधानिक दर्जा नहीं होता पर समिति का वैधानिक दर्जा होता है।

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प्रश्न 6.
समाज तथा सभा के मध्य अन्तर की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1. सभा व्यक्तियों का समूह है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए निर्मित की जाती है परन्तु समाज व्यक्तियों का समूह है जो किसी विशेष उद्देश्य के लिए नहीं बल्कि स्वयं ही विकसित हो जाता है।

2. सभा की सदस्यता व्यक्ति के लिए ऐच्छिक होती है तथा व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के पश्चात् इनकी सदस्यता छोड़ भी सकता है परन्तु समाज की सदस्यता ऐच्छिक नहीं होती बल्कि आवश्यक होती है तथा व्यक्ति को तमाम आयु समाज का सदस्य बन कर रहना पड़ता है। .

3. सभा एक मूर्त व्यवस्था है क्योंकि यह लोगों की आवश्यकताओं पर आधारित होती है परन्तु समाज अमूर्त व्यवस्था है क्योंकि यह सामाजिक संबंधों पर आधारित होता है जोकि अमूर्त होते हैं।

4. सभा चेतन रूप से लोगों के प्रयासों से विकसित होती है परन्तु समाज स्वयं ही विकसित हो जाते हैं तथा इसमें चेतन प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती।

5. सभा का एक औपचारिक ढांचा होता है जिसमें प्रधान, सैक्रेटरी, कैशियर, सदस्य इत्यादि होते हैं तथा इनका चुनाव निश्चित समय के लिए होता है परन्तु समाज का कोई औपचारिक ढांचा नहीं होता तथा सभी व्यक्ति ही इसके सदस्य होते हैं। यह तमाम आयु इसकी सदस्यता नहीं छोड़ सकते।

6. सभा की उत्पत्ति केवल उन व्यक्तियों के प्रयासों का परिणाम होती है जिनके इसके साथ उद्देश्य जुड़े हुए होते हैं परन्तु समाज की उत्पत्ति सभी लोगों की सहमति से होती है तथा इसके साथ किसी व्यक्ति विशेष का स्वार्थ नहीं जुड़ा होता।

7. व्यक्ति अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के पश्चात् सभा को अचानक ही खत्म कर देते हैं परन्तु कोई भी व्यक्ति को तोड़ नहीं सकता तथा इसका अस्तित्व खत्म नहीं हो सकता।

8. सभा की उत्पत्ति विचार से नहीं बल्कि उद्देश्य से संबंधित होती है परन्तु समाज की उत्पत्ति सामाजिक संबंधों पर निर्भर करती है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions) :

प्रश्न 1.
यह शब्द किसके हैं-“मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।”
(A) मैकाइवर
(B) वैबर
(C) अरस्तु
(D) प्लेटो।
उत्तर-
(D) प्लेटो।

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प्रश्न 2.
समाज के निर्माण के लिए समानता तथा अन्तरों की क्या आवश्यकता है ?
(A) सम्बन्ध बनाने के लिए
(B) सामाजिक प्रगति के लिए
(C) समाज को जनसंख्यात्मक रूप में आगे बढ़ाने के लिए
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
मार्क्स के अनुसार ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे पहला समाज कौन-सा था ?
(A) आदिम साम्यवादी
(B) सामन्तवादी
(C) दास मूलक
(D) पूंजीवादी।
उत्तर-
(A) आदिम साम्यवादी।

प्रश्न 4.
व्यक्ति और व्यक्तियों के साथ सामाजिक सम्बन्ध क्यों बनाता है ?
(A) अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए
(B) स्वयं निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए
(C) अपने आपको स्वार्थी व्यक्तियों के उत्पीड़न से बचने के लिए
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 5.
व्यक्ति एवं समाज एक-दूसरे के …….. माने जाते हैं।
(A) विरुद्ध
(B) पूरक
(C) समान
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) पूरक।

प्रश्न 6.
इनमें से समाज में क्या पाया जाता है ?
(A) समानता
(B) सहयोग
(C) संघर्ष
(D) संघर्ष तथा सहयोग।
उत्तर-
(D) संघर्ष तथा सहयोग।

प्रश्न 7.
व्यक्तियों का एक संगठन जो किन्हीं सामान्य उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया गया है, उसे क्या कहते है ?
(A) एक समाज
(B) समाज
(C) समूह
(D) एक संगठन।
उत्तर-
(A) एक समाज।

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प्रश्न 8.
इनमें से कौन समुदाय के बीच नहीं आता ?
(A) केरल के लोग दिल्ली में
(B) अमेरिका में जन्मे लोग
(C) ट्रेड यूनियन आन्दोलन
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(D) कोई नहीं।

प्रश्न 9.
समाज किसका जाल है ?
(A) सामाजिक परिमापों का
(B) एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों का
(C) व्यक्तिगत रिश्तों का
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(B) एक-दूसरे के साथ सम्बन्धों का।

प्रश्न 10.
व्यक्ति तथा समाज में क्या सम्बन्ध है ?
(A) मनुष्य प्रकृति से सामाजिक है तथा वह अकेला नहीं रह सकता
(B) मनुष्य अपनी आवश्यकताओं के लिए समाज में रहता है
(C) समाज व्यक्ति का व्यक्तित्व बनाता है
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. समाज ……………. पर आधारित होता है।
2. समुदाय लोगों की ……………. से स्वयं ही विकसित हो जाता है।
3. …………. की स्थापना विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच समझ कर की जाती है।
4. ………….. की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर आधारित होती है।
5. समाज ……… होता है।
6. ……….. समाज में टोटम का महत्त्व होता है।
7. ………. की सदस्यता औपचारिक होती है।
उत्तर-

  1. सामाजिक संबंधों,
  2. अन्तक्रियाओं,
  3. समिति,
  4. समिति,
  5. अमूर्त,
  6. आदिवासी,
  7. समिति।

III. सही गलत (True/False) :

1. समाज की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करती है।
2. समाज सामाजिक संबंधों के कारण बनता है।
3. समुदाय स्वयं विकसित होता है।
4. समिति का निर्माण जानबूझ कर दिया जाता है।
5. समिति की सदस्यता अनौपचारिक होती है।
6. मानवीय समाज में भाषा का बहुत महत्त्व होता है।
7. संस्था किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है।
उत्तर-

  1. गलत,
  2. सही,
  3. सही,
  4. सही,
  5. गलत,
  6. सही,
  7. सहीं।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
व्यक्तियों के समूह को कौन समाज कहता है ?
उत्तर-
एक साधारण व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह को समाज कहता है।

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प्रश्न 2.
अगर समाज के सदस्यों के बीच सहयोग खत्म हो जाए तो क्या होगा ?
उत्तर-
अगर समाज के सदस्यों के बीच सहयोग खत्म हो जाए तो समाज खत्म हो जाएगा।

प्रश्न 3.
समाज………..पर आधारित है।
उत्तर-
समाज सम्बन्धों पर आधारित है।

प्रश्न 4.
किसने कहा था कि, “समाज समानताओं एवं असमानताओं के बिना चल नहीं सकता।”
उत्तर-
यह शब्द वैस्टमार्क के हैं।

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प्रश्न 5.
किताब SOCIETY का लेखक………….है।
उत्तर-
किताब SOCIETY के लेखक मैकाइवर तथा पेज हैं।

प्रश्न 6.
समाज अमूर्त क्यों होता है ?
उत्तर-
क्योंकि समाज सम्बन्धों का जाल है तथा सम्बन्ध अमूर्त होते हैं और हम सम्बन्धों को देख नहीं सकते।

प्रश्न 7.
समाज की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है तथा भिन्नताओं और समानताओं पर आधारित होता है।

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प्रश्न 8.
समाज क्या होता है ?
उत्तर-
साधारण शब्दों में, व्यक्तियों के समूह को समाज कहते हैं, परन्तु समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।

प्रश्न 9.
समाज का प्रमुख आधार क्या होता है ?
उत्तर-
समाज की इकाइयों अर्थात् व्यक्तियों में पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्ध समाज के प्रमुख आधार हैं।

प्रश्न 10.
समुदाय क्या है ?
उत्तर-
समुदाय मनुष्यों का एक भौगोलिक समूह है जहाँ व्यक्ति अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

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प्रश्न 11.
क्या मनुष्यों में सभी समूह समुदाय होते हैं ?
उत्तर-
जी नहीं, वे संस्थाएं अथवा कई अन्य प्रकार के समूह भी हो सकते हैं।

प्रश्न 12.
समुदाय का शाब्दिक अर्थ बताएं।
उत्तर-
समुदाय शब्द अंग्रेज़ी के Community शब्द का हिन्दी रूपांतर है जिसका अर्थ है इकट्ठे मिलकर बनाना।

प्रश्न 13.
शब्द Community किन दो लातीनी शब्दों को मिलाकर बना है ?
उत्तर-
शब्द Community लातीनी भाषा के शब्दों Com तथा Munus से मिलकर बना है।

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प्रश्न 14.
समुदाय कैसे विकसित होता है ?
उत्तर-
समुदाय लोगों की अंतक्रियाओं से स्वयं ही विकसित हो जाता है।

प्रश्न 15.
समुदाय का जन्म किस प्रकार होता है ?
उत्तर-
समुदाय का जन्म अपने आप ही हो जाता है।

प्रश्न 16.
क्या समुदाय में सामुदायिक भावना होती है ?
उत्तर-
जी हाँ, समुदाय में सामुदायिक भावना होती है।

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प्रश्न 17.
सभा क्या है ?
उत्तर-
जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं।

प्रश्न 18.
सभा की स्थापना कैसे होती है ?
उत्तर-
सभा की स्थापना विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-समझ कर की जाती है।

प्रश्न 19.
सभा की सदस्यता का आधार क्या है ?
उत्तर-
सभा की सदस्यता का आधार व्यक्ति की इच्छा है अर्थात् वह अपनी इच्छा से सभा का सदस्य बनता है।

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प्रश्न 20.
सभा की सदस्यता किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
सभा की सदस्यता औपचारिक होती है।

प्रश्न 21.
सभा तथा समुदाय में एक अन्तर बताएं।
उत्तर-
समुदाय अपने आप विकसित होता है। इसे बनाया नहीं जाता परन्तु किसी संभा का निर्माण चेतन प्रयासों से किया जाता है।

अति लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज।
उत्तर-
समाज का अर्थ केवल लोगों के इकट्ठे होने से नहीं है बल्कि समाज के लोगों में पाए जाने वाले संबंधों के जाल से है जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़े होते थे। तब लोगों के बीच संबंध बनते हैं तो समाज का निर्माण होता है।

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प्रश्न 2.
समाज की परिभाषा।
उत्तर-
पारसन्ज़ के अनुसार, “समाज को उन संबंधों की पूर्ण जटिलता के रूप में पारिभाषित किया जा सकता है जो कार्यों के करने से उत्पन्न हुए हों तथा यह कार्य व उद्देश्य के रूप में किए गए हों चाहे वह आंतरिक हों या सांकेतिक।”

प्रश्न 3.
समाज की दो विशेषताएं।
उत्तर-

  1. समाज संबंधों पर आधारित होता है, लोगों के बीच बिना संबंधों के समाज का निर्माण नहीं हो सकता।
  2. समाज समानताओं तथा भिन्नताओं पर आधारित होता है। दोनों के बिना समाज कायम नहीं हो सकता।

प्रश्न 4.
अमूर्तता।
उत्तर-
समाज अमूर्त होता है क्योंकि यह संबंधों का जाल है। इन संबंधों को हम देख नहीं सकते तथा न ही स्पर्श कर सकते हैं। इन्हें तो केवल महसूस किया जा सकता है क्योंकि हम इन्हें स्पर्श नहीं कर सकते इसलिए यह अमूर्त होता है।

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प्रश्न 5.
समाज में भाषा का महत्त्व।
उत्तर-
मानवीय समाज में भाषा का बहुत महत्त्व होता है क्योंकि भाषा ही अपने विचार व्यक्त करने का सबसे महत्त्वपूर्ण साधन है। बिना भाषा के संबंध स्थापित नहीं हो सकते तथा समाज स्थापित नहीं हो सकता ।

प्रश्न 6.
मानवीय समाज तथा पशुओं के समाज में एक अन्तर।
उत्तर-
मानवीय समाज में केवल मनुष्य ही है जो बोल सकते हैं तथा अपने विचारों को स्पष्ट रूप दे सकते हैं। अन्य कोई पशु या प्राणी बोल नहीं सकता। वह केवल तरह-तरह की आवाजें निकाल सकते हैं।

प्रश्न 7.
समुदाय।
उत्तर-
जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष इलाके में संगठित रूप में रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहीं व्यतीत करते हैं तो उसे हम समुदाय कहते हैं।

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प्रश्न 8.
समुदाय का शाब्दिक अर्थ।।
उत्तर-
समुदाय अंग्रेज़ी के Community का हिंदी रूपांतर है। यह लातीनी भाषा के दो शब्दों Com जिसका अर्थ है इकट्ठे मिलकर रहना तथा Munus जिसका अर्थ है बनाना, से मिल कर बना है तथा इकट्ठे होकर इसका अर्थ है इकट्ठे मिल कर बनाना।

प्रश्न 9.
सभा का अर्थ।
उत्तर-
सभा सहयोग के ऊपर आधारित होती है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं।

प्रश्न 10.
सभा की परिभाषा।
उत्तर-
गिलिन तथा गिलिन के अनुसार, “सभा व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों के लिए परस्पर संबंधित होते हैं तथा स्वीकृत कार्य प्रणालियों तथा व्यवहारों द्वारा संगठित रहते हैं।”

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प्रश्न 11.
संस्था का अर्थ।
उत्तर-
संस्था किसी कार्य या उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए परिमापों की व्यवस्था है। संस्था तो किसी विशेष महत्त्वपूर्ण मानवीय क्रिया के द्वारा केंद्रित रूढ़ियों तथा लोकरीतियों का गुच्छा है। संस्थाएं तो संरचित प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा व्यक्ति अपने कार्य करता है।

प्रश्न 12.
संस्था का एक आवश्यक तत्त्व।
उत्तर-
विचार संस्था का आवश्यक तत्त्व है। किसी आवश्यकता को पूर्ण करने के लिए एक विचार की शुरुआत होती है जिसे समूह अपने लिए आवश्यक समझता है। इस कारण इसकी रक्षा के लिए संस्था विकसित होती है।

प्रश्न 13.
संस्था के प्रकार।
उत्तर-
वैसे तो संस्थाएं कई प्रकार की होती हैं परन्तु यह मुख्य रूप से चार प्रकार की होती हैं तथा वह हैं-

  1. सामाजिक संस्थाएं
  2. धार्मिक संस्थाएं
  3. राजनीतिक संस्थाएं
  4. तथा आर्थिक संस्थाएं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

लघु उतरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ।
उत्तर-
जब समाजशास्त्री समाज शब्द का उपयोग करते हैं तो उनका अभिप्राय केवल लोगों के योग मात्र से नहीं बल्कि उनका अर्थ होता है। समाज के लोगों में पाए गए सम्बन्धों के जाल से जिससे लोग एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। केवल कुछ लोग इकट्ठे करने से समाज नहीं बन जाता। समाज केवल तब ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थ पूर्ण सम्बन्ध बन जाते हैं। यह सम्बन्ध अमूर्त होते हैं हम इन्हें देख नहीं सकते हैं। यह जीवन के हर रूप में मौजूद होते हैं इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से भिन्न नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग करना कठिन है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों में होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। इन्हें हम देख नहीं सकते इसलिए यह अमूर्त होते हैं।

प्रश्न 2.
समाज की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. समाज सामाजिक सम्बन्धों पर आधारित होता है।
  2. समाज भिन्नताओं व समानताओं पर आधारित होता है।
  3. समाज के व्यक्ति एक-दूसरे पर अन्तर्निर्भर होते हैं।
  4. समाज अमूर्त होता है, क्योंकि यह सम्बन्धों का जाल है।
  5. समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त उसकी जनसंख्या होती है।
  6. समाज में सहयोग व संघर्ष ज़रूरी होता है।

प्रश्न 3.
समुदाय।
उत्तर-
आम शब्दों में, जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं व वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना जीवन ही वहां बिताते हैं तो उसको हम समुदाय कहते हैं। यह एक मूर्त संकल्प है। समुदाय की स्थापना जान-बूझ कर नहीं की जाती। इसका तो विकास अपने आप ही हो जाता है।

समुदाय का अपना एक भौगोलिक क्षेत्र होता है जहां सदस्य आप अपनी ज़रूरतों को पूरा कर लेते हैं। जब वह आपस में अपनी ज़रूरतें पूरी करते हैं तो उनमें ‘हम’ की भावना पैदा हो जाती है।

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प्रश्न 4.
समुदाय की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. प्रत्येक समुदाय में ‘हम’ की भावना होती है।
  2. समुदाय के सदस्यों में एकता की भावना होती है।
  3. समुदाय के सदस्य अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं।
  4. समुदाय में स्थिरता होती है व इसके सदस्य अस्थायी नहीं बल्कि स्थायी होते हैं।
  5. समुदाय के लोग समुदाय में ही अपना जीवन व्यतीत कर देते हैं।
  6. प्रत्येक समुदाय का अपना भौगोलिक क्षेत्र होता है जिस में वह रहता है।
  7. समुदाय का कोई विशेष उद्देश्य नहीं होता। यह तो अपने आप ही पैदा हो जाता है।

प्रश्न 5.
सभा।
उत्तर-
सभा सहयोग पर आधारित होती है। जब कुछ लोग विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं व संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं। आम शब्दों में, किसी विशेष उद्देश्य के लिए बनाए गए संगठन को सभा कहते हैं। सभा का एक निश्चित उद्देश्य होता है जिसकी पूर्ति के बाद इसको छोड़ा जा सकता है।

प्रश्न 6.
सभा की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. सभा व्यक्तियों का समूह होती है।
  2. सभा की स्थापना किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-विचार कर की जाती है।
  3. सभा के निश्चित उद्देश्य होते हैं।
  4. सभा का जन्म व विनाश होता रहता है।
  5. सभा की सदस्यता व्यक्ति की इच्छा पर आधारित होती है।
  6. सभा की सदस्यता पारम्परिक होती है।
  7. प्रत्येक सभा अपने कुछ अधिकारियों का चनाव करती है।
  8. प्रत्येक सभा के कुछ निश्चित उद्देश्य होते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न :

प्रश्न 1.
समाज का अर्थ, परिभाषाओं तथा विशेषताओं के साथ बताएं।
उत्तर-
समाज का अर्थ-
साधारण भाषा में समाज का अर्थ ‘व्यक्तियों के समूह’ से लिया जाता है। बहुत से विद्वान् इस शब्द का प्रयोग इसी अर्थ में करते हैं। इस प्रकार समाज का अर्थ किसी समूह के व्यक्तियों द्वारा लिया जा सकता है अपितु उनके मध्य के रिश्तों से नहीं। कभी-कभी समाज के अर्थ को किसी संस्था के नाम से भी लिया जाता है जैसेआर्य समाज, ब्रह्म समाज इत्यादि। इस प्रकार साधारण व्यक्ति की भाषा में समाज का अर्थ इन्हीं अर्थों में लिया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इस शब्द का अर्थ कुछ और ही अर्थों में लिया जाता है।

समाजशास्त्र में ‘समाज’ शब्द का अर्थ लोगों के समूह से नहीं लिया जाता अपितु उनके बीच में पैदा हुए रिश्तों के फलस्वरूप जो सम्बन्ध पैदा हुए हैं उनसे लिया जाता है। सामाजिक रिश्तों में लोगों का बहुत महत्त्व होता है। वे समाज का एक महत्त्वपूर्ण अंग हैं यह एक प्रक्रिया है न कि वस्तु। समाज में एक आवश्यक वस्तु लोगों के बीच के रिश्ते एवं अन्तर्सम्बन्धों के बीच के नियम हैं जिसके साथ समाज के सदस्य एक-दूसरे के साथ रहते हैं। जब समाजशास्त्री समाज शब्द का अर्थ साधारण रूप में करते हैं तो उनका अर्थ समाज में होने वाले सामाजिक सम्बन्धों के जाल से है और जब वह समाज शब्द को विशेष रूप में प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ होता है कि समाज उन व्यक्तियों का समूह है जिनमें विशेष प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं।

समाज (Society)—जब समाजशास्त्री ‘समाज’ शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका अर्थ सिर्फ लोगों के समूह मात्र से नहीं होता बल्कि उनका अर्थ होता है समाज के लोगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों के जाल से जिसके साथ लोग एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं। सिर्फ कुछ लोगों को इकट्ठा करने से ही समाज नहीं बन जाता। समाज उस समय ही बनता है जब समाज के उन लोगों में अर्थपूर्ण संबंध स्थापित हो जाएं। यह सम्बन्ध अस्थिर होते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते और न ही इनका कोई ठोस रूप होता है। हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। यह जीवन के प्रत्येक रूप में मौजूद होते हैं। इन सम्बन्धों को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। यह तो आपस में इतने अन्तर्सम्बन्धित होते हैं कि इनको अलग-अलग करना बहुत मुश्किल है। यह सभी सम्बन्ध जो व्यक्तियों के बीच होते हैं, इनके जाल को ही समाज कहते हैं। हम इन्हें देख नहीं सकते इसीलिए यह अमूर्त होते हैं।

कुछ लेखक यह विचार करते हैं कि समाज तभी बनता है जब इसके सदस्य एक-दूसरे को जानते हों और उनके कुछ आपसी हित हों। उदाहरण के लिए यदि कोई दो व्यक्ति बस में सफर कर रहे हों और एक-दूसरे को जानते न हों, तो वह समाज नहीं बना सकते। परन्तु यदि वही दो व्यक्ति आपस में बातचीत करनी शुरू कर देते हैं, एक-दूसरे के बारे में जानना शुरू कर देते हैं तो समाज का अस्तित्व कायम होना शुरू हो जाता है। उन दोनों के बीच में एक-दूसरे की तरफ व्यवहार ज़रूरी है।

वास्तव में समाज, सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। व्यक्ति जो एक स्थान पर रहते हैं उनके बीच आपसी सम्बन्ध होते हैं और एक-दूसरे के साथ लाभ जुड़े होते हैं। वह एक-दूसरे के ऊपर निर्भर होते हैं और इस प्रकार समाज का निर्माण करते हैं।

परिभाषाएँ (Definitions)-
1. मैकाइवर और पेज (Maclver and Page) के अनुसार, “समाज व्यवहारों एवं प्रक्रियाओं की, अधिकार एवं परस्पर सहयोग की, अनेक समूहों एवं विभागों की, मानव व्यवहार के नियन्त्रण एवं स्वाधीनता की व्यवस्था है। इस निरन्तर परिर्वतनशील व्यवस्था को हम ‘समाज’ कहते हैं। यह सामाजिक सम्बन्धों का जाल है।”

2. गिडिंग्ज़ (Giddings) के अनुसार, “समाज एक संगठन है, यह पारस्परिक औपचारिक सम्बन्धों का ऐसा मेल है जिसके कारण उसके अन्तर्गत सभी व्यक्ति एक-दूसरे के साथ जुड़े रहते हैं।”

3. टालक्ट पारसन्ज (Talcot Parsons) के अनुसार, “समाज को उन सम्बन्धों की पूर्ण जटिलता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कार्यों के कारण से पैदा हुए हों और कार्य एवं उद्देश्य के रूप में किए गए हों चाहे वह आन्तरिक हों या सांकेतिक।”

4. कूले (Cooley) के अनुसार, “समाज स्वरूपों या प्रक्रियाओं का एक जाल है जिसमें हर कोई एक-दूसरे के साथ क्रिया करके जीता और आगे बढ़ता है और सभी एक-दूसरे के साथ इस प्रकार जुड़े होते हैं कि एक के प्रभावित होने के साथ बाकी सभी भी प्रभावित होते हैं।”

इस प्रकार समाज की ऊपर लिखी परिभाषाओं को देख कर हम यह कह सकते हैं कि यह परिभाषाएँ दो प्रकार की हैं। पहली प्रकार की हैं कार्यात्मक (Functional) परिभाषाएँ और दूसरी प्रकार की हैं संगठनात्मक (Structural) परिभाषाएँ। कार्यात्मक पक्ष से हम समाज को इस तरह परिभाषित कर सकते हैं कि यह समूहों का जाल है जिसमें अनुपूरक प्रकार के रिश्ते हों जो एक-दूसरे के साथ और जिन व्यक्तियों को अपने जीवन के काम करने में मदद करें और व्यक्ति को और व्यक्तियों के साथ रहते हुए उस की इच्छाएं पूरी करने में मदद करें।

संगठनात्मक पक्ष से समाज तो हमारे रीति-रिवाजों, आदतों, संस्थाओं, इच्छाओं आदि की एक सामाजिक विरासत है। इस प्रकार समाज कार्यात्मक एवं संगठनात्मक रूप, दोनों के साथ परिभाषित किया गया है कि यह व्यक्तियों के आपसी रिश्तों के साथ बना है और साथ ही साथ यह एक व्यवस्था है, एक जाल है न कि लोगों का एकत्र। हम समाज को इस प्रकार परिभाषित कर सकते हैं कि समाज मनुष्य के सम्बन्धों का वह संगठन है जिसको मनुष्यों द्वारा निर्मित, संचालित और परिवर्तित किया जाता है। सरल शब्दों में समाज एक अमूर्त धारणा है, समाज लोगों का सिर्फ समूह नहीं है। यह समाज सामाजिक सम्बन्धों का संगठन या व्यवस्था है।

समाज की विशेषताएँ (Characteristics of Society) –

1. समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है (Society is based on relationships)-मैकाइवर और पेज के अनुसार, “समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है।” इसका अर्थ यह हुआ कि समाज सम्बन्धों पर आधारित होता है। यहाँ ‘जाल’ शब्द का प्रयोग क्यों हुआ ? क्योंकि समाज में हजारों प्रकार के सम्बन्ध पाए जाते हैं। सिर्फ एक परिवार में 15 से ज्यादा तरह के सम्बन्ध पाए जा सकते हैं। इस से हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि समाज में कितने प्रकार के सम्बन्ध मौजूद होंगे। समाज केवल मनुष्यों का समूह मात्र नहीं है।

2. समाज अन्तरों और समानताओं पर आधारित होता है (Society depends upon likeness and differences)—समाज अन्तरों एवं समानताओं, दोनों पर आधारित होता है। दोनों के बिना समाज कायम नहीं रह सकता। यह चाहे एक-दूसरे के विरोध में रहती हैं परन्तु यह एक-दूसरे के बिना भी नहीं रह सकतीं। समाज में कभी समानता आती है और कभी अंतर आते है और इसलिए यह एक-दूसरे के पूरक होते हैं। सामाजिक सम्बन्ध तब ही स्थापित हो सकते हैं यदि किसी प्रकार की समानता हो क्योंकि इसके बिना एक-दूसरे के प्रति खिंचाव नहीं उत्पन्न हो सकता और समाज उत्पन्न नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त अन्तरों का होना भी आवश्यक है।

3. अन्तर्निर्भरता (Inter-dependence)- समाज के बने रहने के लिए अन्तर्निर्भरता एक आवश्यक तत्त्व है। मनुष्य को अपनी ज़रूरतों को पूरा करने हेतु अन्य व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध रखने पड़ते हैं क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की इतनी समर्था नहीं होती कि वह सभी कार्य अपने आप कर सके । उसको अन्य व्यक्तियों पर निर्भर रहना ही पड़ता है। व्यक्ति जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है वैसे-वैसे दूसरों पर निर्भर होता जाता है क्योंकि उसकी आवश्यकताएं बढ़ती जाती हैं। इस प्रकार अन्तर्निर्भरता समाज का एक ज़रूरी तत्त्व है।

4. समाज अमूर्त होता है (Society is abstract)-समाज अमूर्त होता है क्योंकि यह सम्बन्धों का जाल है इन सम्बन्धों को हम देख नहीं सकते और न ही स्पर्श सकते हैं। इनको तो हम सिर्फ महसूस कर सकते हैं। क्योंकि हम सम्बन्धों को स्पर्श नहीं सकते इसीलिए इनका कोई ठोस रूप नहीं होता। इसीलिए यह अमूर्त होते हैं। क्योंकि सम्बन्ध अमूर्त होते हैं इसीलिए सम्बन्धों द्वारा बना समाज भी अमूर्त होता है।

5. जनसंख्या (Population)-समाज का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व मनुष्य है। मनुष्यों के बिना कोई समाज नहीं बन सकता। यदि मनुष्य ही नहीं होंगे तो सम्बन्ध कौन स्थापित करेगा और समाज कैसे बनेगा। व्यक्तियों के अस्तित्व के बिना समाज का अस्तित्व होना नामुमकिन है। इसीलिए ज़रूरी है कि जनसंख्या हो। जनसंख्या के होने के लिए भी कई चीजें ज़रूरी हैं जैसे-जनसंख्या को काफ़ी मात्रा में भोजन उपलब्ध हो, जनसंख्या की हर मुसीबत से सुरक्षा हो, समाज का और जनसंख्या का आगे बढ़ना ज़रूरी है क्योंकि यदि जनसंख्या न बढ़ी तो एक दिन सभी लोग खत्म हो जाएंगे। इस प्रकार जनसंख्या के बिना समाज का बनना नामुमकिन है।

6. समाज में सहयोग और संघर्ष ज़रूरी होता है (Co-operation and conflict are must for society)-जैसे समानताएं और अंतर समाज के अस्तित्व के लिए ज़रूरी हैं उसी प्रकार सहयोग एवं संघर्ष भी समाज के अस्तित्व के लिए ज़रूरी है। सहयोग समाज के निर्माण का एक ज़रूरी तत्त्व है। समाज में मनुष्य रहते हैं और वह एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। यह अन्तर्निर्भरता तब ही होती है यदि उनके बीच सहयोग होगा। एक बच्चे को बड़ा करने में कई हाथ महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और यह सिर्फ सहयोग पर आधारित है। परिवार भी तब ही आगे बढ़ता है यदि पति-पत्नी आपस में सहयोग करें। इस तरह समाज के हर पक्ष में सहयोग की आवश्यकता है। इसी तरह संघर्ष भी ज़रूरी है। जीवन जीने के लिए व्यक्ति को कई प्रकार की शक्तियों से लड़ना पड़ता है। जीने के लिए व्यक्ति को संघर्ष करना पड़ता है।

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प्रश्न 3.
सभा की परिभाषा दें। सभा की विशेषताओं पर विस्तार से लिखें।
अथवा
सभा के अर्थ तथा लक्षणों की व्याख्या करें ।
उत्तर-
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और सामाजिक प्राणी होने के नाते उसकी कुछ आवश्यकताएं भी होती हैं। अपनी इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए व्यक्ति कई प्रकार की कोशिशें करता है। वह तीन प्रकार की कोशिशें करता है-

  • पहली कोशिश यह होती है कि वह अपनी आवश्यकताएं बिना किसी सहायता के पूर्ण करें, पर आज कल के आधुनिक समाज में अकेले रह पाना और अकेले ही अपनी ज़रूरतें पूरी कर पाना सम्भव नहीं है।
  • दूसरा तरीका यह होता है वह अपनी आवश्यकता की चीजें दुनिया से छीनकर पूरी कर सके। पर दूसरों से छीनकर अपनी आवश्यकताएं पूरी करना मुमकिन नहीं है क्योंकि यह तरीका गैर-सामाजिक है और मनुष्य समाज में रहते हुए इस तरह के तरीके नहीं अपना सकता।
  • तीसरा आखिरी और सबसे बढ़िया तरीका यह है कि मनुष्य समाज में रहते हुए दूसरों के साथ सहयोग करते हुए अपनी ज़रूरतें पूरी करे क्योंकि यह ही जीवन का आधार है।

सभा भी इसी सहयोग पर आधारित है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य के लिए आपस में सहयोग करते हैं और संगठन बनाते हैं तो इस संगठित हुए संगठन को सभा कहते हैं। आम शब्दों में, किसी विशेष मकसद के लिए बनाए गए संगठन को सभा कहते हैं। सभा का एक निश्चित उद्देश्य होता है जिसकी पूर्ति के बाद इसको छोड़ भी जा सकता है।

मनुष्य का स्वभाव और ज़रूरतें उसको समाज में रहने के लिए मजबूर करती हैं। जानवरों की तरह मनुष्यों की सिर्फ शारीरिक ज़रूरतें ही नहीं होतीं बल्कि इनसे ज्यादा ज़रूरी सामाजिक आवश्यकताएं भी होती हैं जिनको पूरा करना उसके लिए आवश्यक होता है। इस तरह जब समाज के अलग-अलग व्यक्ति अपनी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं तो इसके साथ सभा या समिति का जन्म होता है। यहां एक बात ध्यान रखने वाली है कि व्यक्ति अपनी आवश्यकताएं पूर्ण होने के बाद इसको छोड़ भी सकता है।

परिभाषाएं (Definitions)-

  • बोगार्डस (Bogardus) के अनुसार, “सभा आम तौर पर कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्तियों का मिल कर काम करना है।”
  • जिन्सबर्ग (Ginsberg) के अनुसार, “सभा परस्पर सम्बन्धित उन सामाजिक प्राणियों का एक समूह है जो एक निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आम संगठन बना लेते हैं।”
  • गिलिन और गिलिन (Gillin and Gillin) के अनुसार, “सभा व्यक्तियों का ऐसा समूह है जो किसी निश्चित उद्देश्य या उद्देश्यों के लिए परस्पर सम्बन्धित होते हैं और स्वीकृत कार्य प्रणालियों और व्यवहारों द्वारा संगठित. रहते हैं।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि सभा के तीन मुख्य आधार हैं-

  • सब कुछ व्यक्तियों का समूह है।
  • यह संगठन सहयोग पर आधारित है।
  • इसके द्वारा कुछ उद्देश्यों की पूर्ति होती है।

इस तरह सभा हमारी सभी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती। संक्षेप में जब कोई व्यक्ति संगठित रूप में सोचविचार करके कुछ विशेष कामों की पूर्ति के लिए आपस में सहयोग करते हैं उस संगठन या समूह को सभा कहते

सभा की विशेषताएं (Characteristics of Association) –
1. सभा व्यक्तियों का समूह है (Group of people)-सभा की स्थापना कुछ व्यक्तियों के द्वारा की जाती है जिसके कारण इसको समूह कहा जाता है। इस तरह सभा मूर्त है क्योंकि व्यक्ति मूर्त होते हैं।

2. विचारपूर्वक स्थापना (Thoughtful establishment)—सभा समुदाय की तरह अपने आप ही पैदा नहीं हो जाती। इसका निर्माण तो किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सोच-समझ कर और विचार करने से स्थापित किया जाता है।

3. निश्चित उद्देश्य (Definite aim)- सभा के निश्चित उद्देश्य होते हैं। सभा हमारे सामाजिक जीवन की सारी ज़रूरतें नहीं बल्कि कुछ ज़रूरतें पूरी करती है और साथ ही साथ अपने सदस्यों के हितों की रक्षा करती है।

4. सभाओं का जन्म और विनाश होता रहता है (Association takes birth and comes to an end)- सभा का स्वभाव अस्थायी होता है क्योंकि इसकी स्थापना कुछ विशेष उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होती है और उन सारे उद्देश्यों की पूर्ति के बाद सभा की ज़रूरत भी खत्म हो जाती है।

5. सदस्यता इच्छा पर आधारित होती है (Membership is based on wish)—सभा व्यक्तियों का इच्छुक संगठन होता है। व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार इसका सदस्य बन सकता है और जब चाहे इसको छोड़ सकता है। इसका कारण यह है कि व्यक्ति को जब लगता है कि सभा उसके लिए लाभदायक है तो वह उसको अपना लेता है और जब उसका फायदा पूरा हो जाता है तो उसे छोड़ देता है।

6. सभा की सदस्यता औपचारिक होती है (Formal membership)-इसकी सदस्यता औपचारिक होती है। वह जब चाहे इसको अपना सकता है और जब चाहे इसको छोड़ सकता है पर इसके लिए उसको त्याग-पत्र या प्रार्थना-पत्र देना पड़ता है और सदस्यता फीस भी देनी पड़ती है।

7. हर सभा कुछ अधिकारियों को चुनती है (Selection of officers) हर सभा अपने कामों के लिए कुछ अधिकारियों को चुनती है जैसे प्रधान, उप-प्रधान, सैक्रेटरी कैशियर इत्यादि। इन सबका चुनाव भी निश्चित समय पर होता है।

8. हर सभा के कुछ निश्चित नियम होते हैं (Definite rules)-हर सभा अपने कामों की पूर्ति के लिए नियम भी बनाती है और हर सदस्य को इन नियमों के अन्तर्गत रहकर काम करना पड़ता है।

9. सहयोग की भावना (Feeling of co-operation)—सभा का जन्म सहयोग की भावना पर आधारित होता है। किसी विशेष उद्देश्य की प्राप्ति हेतु सहयोग की भावना ही व्यक्ति को सभा का निर्माण करने के लिए प्रेरित करती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 3 समाज, समुदाय तथा समिति

समाज, समुदाय तथा समिति PSEB 11th Class Sociology Notes

  • अरस्तु के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह अकेला नहीं रह सकता। व्यक्ति समाज से बाहर न तो रह सकता है तथा न ही इसके बारे में सोच सकता है। उसे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • व्यक्ति को अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए अन्य लोगों से संबंध बनाने पड़ते हैं तथा सामाजिक संबंधों के जाल को समाज कहते हैं। जब दो अथवा दो से अधिक लोगों के बीच संबंध बनते हैं तो हम कह सकते हैं कि समाज का निर्माण हो रहा है।
  • सम्पूर्ण संसार में बहुत-से समाज मिल जाते हैं जैसे कि जनजातीय समाज, ग्रामीण समाज, औद्योगिक समाज, उत्तर-औद्योगिक समाज इत्यादि। अलग-अलग समाजशास्त्रियों ने समाजों को अलग-अलग आधारों पर विभाजित किया है। उदाहरण के लिए काम्ते (बौद्धिक विकास), स्पैंसर (संरचनात्मक जटिलता),
    मार्गन (सामाजिक विकास), टोनीज़ (सामाजिक संबंधों के प्रकार), दुर्थीम (एकता के प्रकार) इत्यादि।
  • समाज की बहुत-सी विशेषताएं होती हैं जैसे कि यह अमूर्त होता है, यह समानताओं तथा अंतरों पर आधारित होता है, इसमें सहयोग तथा संघर्ष दोनों होते हैं, इसमें स्तरीकरण की व्यवस्था होती है इत्यादि।
  • व्यक्ति का समाज से काफ़ी गहरा संबंध होता है क्योंकि व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता। उसे जीवन जीने के लिए अन्य व्यक्तियों की आवश्यकता होती है। दुर्थीम के अनुसार समाज हमारे जीवन के प्रत्येक पक्ष से संबंधित है तथा उसमें मौजूद है। समाज के लिए भी व्यक्ति सबसे महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि व्यक्ति के बिना समाज का कोई अस्तित्व ही नहीं है।
  • जब कुछ व्यक्ति एक समूह में एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में संगठित रूप से रहते हैं तथा वह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपना सम्पूर्ण जीवन ही वहां पर व्यतीत करते हैं तो उसे समुदाय कहते हैं। समुदाय में ‘हम’ भावना आवश्यक रूप में पाई जाती है।
  • समुदाय के कुछ आवश्यक तत्त्व होते हैं जैसे कि लोगों का समूह, निश्चित क्षेत्र, सामुदायिक भावना, समान संस्कृति इत्यादि। समाज तथा समुदाय में काफ़ी अंतर होता है।
  • सभा सहयोग पर आधारित होती है। जब कुछ लोग किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए आपस में सहयोग करते हैं तथा संगठन बनाते हैं तो इस संगठित संगठन को सभा कहते हैं।
  • एकत्रता (Aggregate)-किसी स्थान पर इक्ट्ठे हुए लोगों का समूह जिनमें आपस में कोई संबंध नहीं होता।
  • सहयोग (Co-operation)-जब कुछ लोग किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक-दूसरे की सहायता करते हैं तो उसे सहयोग कहते हैं।
  • संस्था (Institution) समुदाय के बीच व्यक्तियों के व्यवहार को नियमित करने वाला सामाजिक व्यवस्था का एक साधन।
  • कानून (Law)-लिखे हुए नियम जिन्हें किसी सरकारी संस्था द्वारा लागू किया जाता है।
  • पहचान (Identity)—एक व्यक्ति अथवा समूह के चरित्र की विशेषताएं जो यह बताती हैं कि वे कौन हैं तथा उनके लिए अर्थपूर्ण हैं।
  • उत्पादन के साधन (Means of Production)—वह साधन जिनसे समाज में भौतिक वस्तुओं का उत्पादन किया जाता है, जिनमें न केवल तकनीक बल्कि उत्पादकों के आपसी संबंध भी शामिल हैं।
  • हम भावना (We-feeling)-वह शक्तिशाली भावना जिससे एक समूह के सदस्य स्वयं को पहचानते हैं तथा अन्य लोगों से अलग करते हैं। इससे उनमें शक्तिशाली एकता भी दिखती है।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था

SST Guide for Class 10 PSEB गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखिए-

प्रश्न 1.
बहलोल खाँ लोधी कौन था?
उत्तर-
बहलोल खाँ लोधी दिल्ली का सुल्तान (1450-1489) था।

प्रश्न 2.
इब्राहिम लोधी के व्यक्तित्व का कोई एक गुण बताइए।
उत्तर-
इब्राहिम लोधी एक वीर सिपाही तथा काफ़ी सीमा तक सफल जरनैल था।

प्रश्न 3.
इब्राहिम लोधी के किन्हीं दो अवगुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. इब्राहिम लोधी पठानों के स्वभाव तथा आचरण को नहीं समझ सका।
  2. उसने पठानों में अनुशासन स्थापित करने का असफल प्रयास किया।

PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 2 गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था

प्रश्न 4.
बाबर को पंजाब पर जीत कब प्राप्त हुई तथा इस लड़ाई में उसने किसे हराया?
उत्तर-
बाबर को पंजाब पर 21 अप्रैल, 1526 को जीत प्राप्त हुई। इस लड़ाई में उसने इब्राहिम लोधी को हराया।

प्रश्न 5.
मुस्लिम समाज कौन-कौन सी श्रेणियों में बंटा हुआ था?
उत्तर-
15वीं शताब्दी के अन्त में मुस्लिम समाज चार श्रेणियों में बंटा हुआ था-

  1. अमीर तथा सरदार,
  2. उलेमा तथा सैय्यद,
  3. मध्य श्रेणी तथा
  4. गुलाम अथवा दास।

प्रश्न 6.
उलेमा बारे आप क्या जानते हो?
उत्तर-
उलेमा मुस्लिम धार्मिक वर्ग के नेता थे जो अरबी भाषा तथा धार्मिक साहित्य के विद्वान् थे।

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प्रश्न 7.
मुस्लिम तथा हिन्दू समाज के भोजन में क्या फ़र्क था?
उत्तर-
मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काजी लोगों का भोजन बहुत तैलीय (घी वाला) होता था, जबकि हिन्दुओं का भोजन सादा तथा वैष्णो (शाकाहारी) होता था।

प्रश्न 8.
सैय्यद कौन थे?
उत्तर-
सैय्यद अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की सन्तान मानते थे।

प्रश्न 9.
मुस्लिम-मध्य श्रेणी का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम मध्य श्रेणी में सरकारी कर्मचारी, सिपाही, व्यापारी तथा किसान आते थे।

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प्रश्न 10.
मुसलमान स्त्रियों के पहरावे का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमान स्त्रियां जम्पर, घाघरा तथा पायजामा पहनती थीं और बुर्के का प्रयोग करती थीं।

प्रश्न 11.
मुसलमानों के मनोरंजन के साधनों का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम सरदारों तथा अमीरों के मनोरंजन के मुख्य साधन चौगान, घुड़सवारी, घुड़दौड़ आदि थे, जबकि ‘चौपड़’ का खेल अमीर तथा ग़रीब दोनों में प्रचलित था।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 30-50 शब्दों में लिखें

प्रश्न 1.
सिकन्दर लोधी की धार्मिक नीति का वर्णन करो।
उत्तर-
मुसलमान इतिहासकारों के अनुसार सिकन्दर लोधी एक न्यायप्रिय, बुद्धिमान् तथा प्रजा हितैषी शासक था। परन्तु डॉ० इन्दू भूषण बैनर्जी इस मत के विरुद्ध हैं। उनका कथन है कि सिकन्दर लोधी की न्यायप्रियता अपने वर्ग (मुसलमान वर्ग) तक ही सीमित थी। उसने अपनी हिन्दू प्रजा के प्रति अत्याचार और असहनशीलता की नीति का परिचय दिया। उसने हिन्दुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया और उनके मन्दिरों को गिरवाया। हजारों की संख्या में हिन्दू सिकन्दर लोधी के अत्याचारों का शिकार हुए।

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प्रश्न 2.
सिकन्दर लोधी के राज्य-प्रबन्ध का वर्णन करो।
उत्तर-
सिकन्दर लोधी एक शक्तिशाली शासक था। उसने अपने राज्य प्रबन्ध को केन्द्रित किया तथा अपने सरदारों एवं जागीरदारों पर पूरा नियन्त्रण रखा। उसने दौलत खाँ लोधी को पंजाब राज्य का निज़ाम नियुक्त किया। उस समय पंजाब प्रान्त की सीमाएं भेरा (सरगोधा) से लेकर सरहिंद तक थीं। दीपालपुर भी पंजाब का एक शक्तिशाली उप-प्रान्त था। परन्तु यह प्रान्त नाममात्र ही लोधी साम्राज्य के अधीन था।
सिकन्दर लोधी एक प्रजा हितकारी शासक था और वह उनकी शिकायतों को दूर करना अपना कर्त्तव्य समझता था। परन्तु उसकी यह नीति मुसलमानों तक ही सीमित थी। हिन्दुओं से वह बहुत अधिक घृणा करता था।

प्रश्न 3.
इब्राहिम लोधी के समय हुए विद्रोहों का वर्णन करो।
उत्तर-
1. पठानों का विद्रोह-इब्राहिम लोधी ने स्वतन्त्र स्वभाव के पठानों को अनुशासित करने का प्रयास किया। पठान इसे सहन न कर सके। इसलिए उन्होंने विद्रोह कर दिया। इब्राहिम लोधी इस बगावत को दबाने में असफल रहा।
2. पंजाब में दौलत खां लोधी का विद्रोह-दौलत खाँ लोधी पंजाब का सूबेदार था। वह इब्राहिम लोधी के कठोर, घमण्डी तथा शक्की स्वभाव से दुखी था। इसलिए उसने स्वयं को स्वतन्त्र करने का निर्णय कर लिया और वह दिल्ली के सुल्तान के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगा। उसने अफ़गान शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए भी आमन्त्रित किया।

प्रश्न 4.
दिलावर खां लोधी दिल्ली क्यों गया ? इब्राहिम लोधी ने उसके साथ क्या बर्ताव किया?
उत्तर-
दिलावर खाँ लोधी अपने पिता की ओर से आरोपों की सफाई देने के लिए दिल्ली गया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खाँ को खूब डराया धमकाया। उसने उसे यह भी बताने का प्रयास किया कि विद्रोही को क्या दण्ड दिया जा सकता है। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य दिखाए जो विद्रोही लोगों को दी जाती थीं और फिर उसे बन्दी बना लिया। परन्तु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। लाहौर पहुंचने पर उसने अपने पिता को दिल्ली में हुई सारी बातें सुनाईं। दौलत खाँ समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा।

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प्रश्न 5.
बाबर के सैय्यद के आक्रमण का वर्णन करो।
उत्तर-
सियालकोट को जीतने के बाद बाबर सैय्यदपुर (ऐमनाबाद) की ओर बढ़ा। वहां की रक्षक सेना ने बाबर की घुड़सेना का डटकर सामना किया। फिर भी अन्त में बाबर की जीत हुई। शेष बची हुई रक्षक सेना को कत्ल कर दिया गया। सैय्यदपुर की जनता के साथ भी निर्दयतापूर्ण व्यवहार किया गया। कई लोगों को दास बना लिया गया। गुरु नानक देव जी ने इन अत्याचारों का वर्णन ‘बाबर वाणी’ में किया है।

प्रश्न 6.
बाबर के 1524 ई० के हमले का हाल लिखो।
उत्तर-
1524 ई० में बाबर ने भारत पर चौथी बार आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खाँ ने बाबर से प्रार्थना की थी कि वह उसे दिल्ली का सिंहासन पाने में सहायता प्रदान करे। पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ ने भी बाबर से सहायता के लिए प्रार्थना की थी। अतः बाबर भेरा होते हुए लाहौर के निकट पहुंच गया। यहां उसे पता चला कि दिल्ली की सेना ने दौलत खाँ को मार भगाया है। बाबर ने दिल्ली की सेना से दौलत खाँ लोधी की पराजय का बदला तो ले लिया, परन्तु दीपालपुर में दौलत खाँ तथा बाबर के बीच मतभेद पैदा हो गया। दौलत खाँ को आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा, परन्तु बाबर ने उसे केवल जालन्धर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। दौलत खाँ ईर्ष्या की आग में जलने लगा। वह पहाड़ियों में भाग गया ताकि तैयारी करके बाबर से बदला ले सके। स्थिति को देखते हुए बाबर ने दीपालपुर का प्रदेश आलम खां को सौंप दिया और स्वयं और अधिक तैयारी के लिए काबुल लौट गया।

प्रश्न 7.
आलम खाँ ने पंजाब को हथियाने के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए?
उत्तर-
आलम खाँ इब्राहिम लोधी का चाचा था। अपने चौथे अभियान में बाबर ने उसे दीपालपुर का प्रदेश सौंपा था। अब वह पूरे पंजाब को हथियाना चाहता था। परन्तु दौलत खाँ लोधी ने उसे पराजित करके उसकी आशाओं पर पानी फेर दिया। अब वह पुन: बाबर की शरण में जा पहुंचा। उसने बाबर के साथ एक सन्धि की। इसके अनुसार उसने बाबर को दिल्ली का राज्य प्राप्त करने में सहायता देने का वचन दिया। उसने यह भी विश्वास दिलाया कि पंजाब का प्रदेश प्राप्त होने पर वह वहां पर बाबर के कानूनी अधिकार को स्वीकार करेगा। परन्तु उसका यह प्रयास भी असफल’ रहा। अन्त में उसने इब्राहिम लोधी (दिल्ली का सुल्तान) के विरुद्ध दौलत खाँ लोधी की सहायता की। परन्तु यहां भी उसे पराजय का सामना करना पड़ा और उसकी पंजाब को हथियाने की योजनाएं मिट्टी में मिल गईं।

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प्रश्न 8.
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी तथा बाबर की फ़ौज की योजना का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोधी की सेना संख्या में एक लाख थी। इसे चार भागों में बांटा गया था

  1. आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी,
  2. केन्द्रीय सेना,
  3. दाईं ओर की सेना तथा
  4. बाईं ओर की सेना। सेना के आगे लगभग 5000 हाथी थे।

बाबर ने अपनी सेना के आगे 700 बैलगाड़ियां खड़ी की हुई थीं। इन बैलगाड़ियों को चमड़े की रस्सियों से बांध दिया गया था। बैलगाड़ियों के पीछे तोपखाना था। तोपों के पीछे अगुआ सैनिक टुकड़ी तथा केन्द्रीय सेना थी। दाएं तथा बाएं तुलुगमा पार्टियां थीं। सबसे पीछे बहुत-सी घुड़सवार सेना तैनात थी जो छिपी हुई थी।

प्रश्न 9.
अमीरों तथा सरदारों के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
अमीर तथा सरदार ऊंची श्रेणी के लोग थे। इनको ऊंची पदवी और खिताब प्राप्त थे। सरदारों को ‘इक्ता’ अर्थात् इलाका दिया जाता था जहां से वे भूमिकर वसूल करते थे। इस धन को वह अपनी इच्छा से व्यय करते थे।
सरदार सदा लड़ाइयों में ही व्यस्त रहते थे। वे सदा स्वयं को दिल्ली सरकार से स्वतन्त्र करने की सोच में रहते थे। स्थानीय प्रबन्ध की ओर वे कोई ध्यान नहीं देते थे। धनी होने के कारण ये लोग ऐश्वर्य प्रिय तथा दुराचारी थे। ये बड़ीबड़ी हवेलियों में रहते थे और कई-कई विवाह करवाते थे। उनके पास कई पुरुष तथा स्त्रियां दासों के रूप में रहती थीं।

प्रश्न 10.
मुसलमानों के धार्मिक नेताओं के बारे में लिखें।
उत्तर-
मुसलमानों के धार्मिक नेता दो उप-श्रेणियों में बंटे हुए थे। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है —

  1. उलेमा-उलेमा धार्मिक वर्ग के नेता थे। इनको अरबी तथा धार्मिक साहित्य का ज्ञान प्राप्त था।
  2. सैय्यद-उलेमाओं के अतिरिक्त एक श्रेणी सैय्यदों की थी। वे अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री बीबी फातिमा की सन्तान मानते थे। समाज में इन का बहुत आदर मान था।
    इन दोनों को मुस्लिम समाज में प्रचलित कानूनों का भी पूरा ज्ञान था।

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प्रश्न 11.
गुलाम श्रेणी का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. गुलामों का मुस्लिम समाज में सबसे नीचा स्थान था। इनमें हाथ से काम करने वाले लोग (बुनकर, कुम्हार, मज़दूर) तथा हिजड़े सम्मिलित थे। युद्ध बंदियों को भी गुलाम बनाया जाता था। कुछ गुलाम अन्य देशों से भी लाये जाते थे।
  2. गुलाम हिजड़ों को बेग़मों की सेवा के लिए रनिवासों (हरम) में रखा जाता था।
  3. गुलाम स्त्रियां अमीरों तथा सरदारों के मन-बहलाव का साधन होती थीं। इनको भर-पेट खाना मिल जाता था। उनकी सामाजिक अवस्था उनके मालिकों के स्वभाव पर निर्भर करती थी।
  4. गुलाम अपनी चतुराई से तथा बहादुरी दिखाकर ऊंचे पद प्राप्त कर सकते थे अथवा गुलामी से छुटकारा पा सकते थे।

प्रश्न 12.
मुसलमान लोग क्या खाते-पीते थे?
उत्तर-
उच्च वर्ग के लोगों का भोजन-मुस्लिम समाज में अमीरों, सरदारों, सैय्यदों, शेखों, मुल्लाओं तथा काज़ियों का भोजन बहुत घी वाला होता था। उन के भोजन में मिर्च मसालों की अधिक मात्रा होती थी। ‘पुलाव तथा कोरमा’ उनका मन-पसन्द भोजन था। मीठे में हलवा तथा शरबत का प्रचलन था। उच्च वर्ग के मुसलमानों में नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना साधारण बात थी। – साधारण लोगों का भोजन-साधारण मुसलमान मांसाहारी थे। गेहूँ की रोटी तथा भुना हुआ मांस उनका रोज़ का भोजन था। यह भोजन बाजारों में पका पकाया भी मिल जाता था। हाथ से काम करने वाले मुसलमान खाने के साथ लस्सी (छाछ) पीना पसन्द करते थे।

प्रश्न 13.
मुसलमानों के पहरावे के बारे में लिखिए।
उत्तर-

  1. उच्च वर्गीय मुसलमानों का पहनावा भड़कीला तथा बहुमूल्य होता था। उनके वस्त्र रेशमी तथा बढ़िया सूत के बने होते थे। अमीर लोग तुर्रेदार पगड़ी पहनते थे। पगड़ी को ‘चीरा’ भी कहा जाता था।
  2. शाही गुलाम (दास) कमरबन्द पहनते थे। वे अपनी जेब में रूमाल रखते थे और पैरों में लाल जूता पहनते थे। उनके सिर पर साधारण सी पगड़ी होती थी।
  3. धार्मिक श्रेणी के लोग मुलायम सूती वस्त्र पहनते थे। उनकी पगड़ी सात गज़ लम्बी होती थी। पगड़ी का पल्ला उनकी पीठ पर लटकता रहता था। सूफ़ी लोग खुला चोगा पहनते थे।
  4. साधारण लोगों का मुख्य पहनावा कमीज़ तथा पायजामा था। वे जूते और जुराबें भी पहनते थे। (5) मुसलमान औरतें जम्पर, घाघरा तथा उनके नीचे तंग पायजामा पहनती थीं।

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प्रश्न 14.
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा का वर्णन इस प्रकार है —

  1. महिलाओं को समाज में कोई सम्मानजनक स्थान प्राप्त नहीं था।
  2. अमीरों तथा सरदारों की हवेलियों में स्त्रियों को हरम में रखा जाता था। इनकी सेवा के लिए दासियां तथा रखैलें रखी जाती थीं।
  3. समाज में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी। परन्तु ग्रामीण मुसलमानों में पर्दे की प्रथा सख्त नहीं थी।
  4. साधारण परिवारों में स्त्रियों के रहने के लिए अलग स्थान बना होता था। उसे ‘ज़नान खाना’ कहा जाता था। यहां से स्त्रियां बुर्का पहन कर ही बाहर निकल सकती थीं।

प्रश्न 15.
गुरु नानक साहिब के काल से पहले की जाति-पाति अवस्था के बारे में लिखें।
उत्तर-
गुरु नानक साहिब के काल से पहले का हिन्दू समाज विभिन्न श्रेणियों अथवा जातियों में बंटा हुआ था। ये जातियां थीं-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र। इन जातियों के अतिरिक्त अन्य भी कई उपजातियां उत्पन्न हो चुकी थीं।

  1. ब्राह्मण-ब्राह्मण समाज के प्रति अपना कर्त्तव्य भूल कर स्वार्थी बन गए थे। वे उस समय के शासकों की चापलूसी करके अपनी श्रेणी को बचाने के प्रयास में रहते थे। साधारण लोगों पर ब्राह्मणों का प्रभाव बहुत अधिक था। वे ब्राह्मणों के कारण अनेक अन्धविश्वासों में फंसे हुए थे।
  2. वैश्य तथा क्षत्रिय-वैश्यों तथा क्षत्रियों की दशा ठीक थी।
  3. शूद्र-शूद्रों की स्थिति अत्यन्त दयनीय थी। उन्हें अछूत समझ कर उनसे घृणा की जाती थी। हिन्दुओं की जातियों तथा उप-जातियों में आपसी सम्बन्ध कम ही थे। उनके रीति-रिवाज भी भिन्न-भिन्न थे।

प्रश्न 16.
बाबर तथा इब्राहिम लोधी के सेना-प्रबन्ध के बारे में लिखिए।
उत्तर-
इसके लिए प्रश्न 8 पढ़ें।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में लिखिए

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक अवस्था का वर्णन करो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी से पहले (16वीं शताब्दी के आरम्भ में ) पंजाब की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। यह प्रदेश उन दिनों लाहौर प्रान्त के नाम से प्रसिद्ध था और दिल्ली सल्तनत का अंग था। परन्तु दिल्ली सल्तनत की शान अब जाती रही थी। इस लिये केन्द्रीय सत्ता की कमी के कारण पंजाब के शासन में शिथिलता आ गई थी। संक्षेप में, 16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब के राजनीतिक जीवन की झांकी इस प्रकार प्रस्तुत की जा सकती है —

  1. निरंकुश शासन-उस समय पंजाब में निरंकुश शासन था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकन्दर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। राज्य की सभी शक्तियां उन्हीं के हाथों में केन्द्रित थीं। उनकी इच्छा ही कानन का ऐसे निरंकुश शासक के अधीन प्रजा के अधिकारों की कल्पना करना भी व्यर्थ था।
  2. राजनीतिक अराजकता-लोधी शासकों के अधीन सारा देश षड्यन्त्रों का अखाड़ा बना हुआ था। सिकन्दर लोधी के शासन काल के अन्तिम वर्षों में सारे देश में विद्रोह होने लगे। इब्राहिम लोधी के काल में तो इन विद्रोहों ने और भी भयंकर रूप धारण कर लिया। उसके सरदार तथा दरबारी उसके विरुद्ध षड्यन्त्र रचने लगे थे। प्रान्तीय शासक या तो अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित करने के प्रयास में थे या फिर सल्तनत के अन्य दावेदारों का पक्ष ले रहे थे। परंतु वे जानते थे कि पंजाब पर अधिकार किए बिना कोई भी व्यक्ति दिल्ली का सिंहासन नहीं पा सकता था। अतः सभी सूबेदारों की दृष्टि पंजाब पर ही टिकी हुई थी। फलस्वरूप सारा पंजाब अराजकता की लपेट में आ गया।
  3. अन्याय का नंगा नाच-16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोग-विलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे तथा अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था, “न्याय दुनिया से उड़ गया है।” वह आगे कहते हैं, “कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो रिश्वत लेता या देता न हो। शासक भी तभी न्याय देता है जब उसकी मुट्ठी गर्म कर दी जाए।”
  4. युद्ध-इस काल में पंजाब युद्धों का अखाड़ा बना हुआ था। सभी पंजाब पर अपना अधिकार जमा कर दिल्ली की सत्ता हथियाने के प्रयास में थे। सरदारों, सूबेदारों तथा दरबारियों के षड्यन्त्रों तथा महत्त्वाकांक्षाओं ने अनेक युद्धों को जन्म दिया। इस समय इब्राहिम लोधी और दौलत खां में संघर्ष चला। यहां बाबर ने आक्रमण आरम्भ किए।

प्रश्न 2.
बाबर की पंजाब पर विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
बाबर की पंजाब विजय पानीपत की पहली लड़ाई का परिणाम थी। यह लड़ाई 1526 ई० में बाबर तथा दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी के बीच हुई। इसमें बाबर विजयी रहा और पंजाब पर उसका अधिकार हो गया।
बाबर का आक्रमण-नवम्बर, 1525 ई० में बाबर 12000 सैनिकों सहित काबुल से पंजाब की ओर बढ़ा। मार्ग में दौलत खाँ लोधी को पराजित करता हुआ वह दिल्ली की ओर बढ़ा। दिल्ली का सुल्तान इब्राहिम लोधी एक लाख सेना लेकर उसके विरुद्ध उत्तर पश्चिम की ओर निकल पड़ा। उसकी सेना चार भागों में बंटी हुई थी-आगे रहने वाली सैनिक टुकड़ी, केन्द्रीय सेना, दाईं ओर की सैनिक टुकड़ी तथा बाईं ओर की सैनिक टुकड़ी। सेना के आगे लगभग 5000 हाथी थे। दोनों पक्षों की सेनाओं का पानीपत के मैदान में सामना हुआ।
युद्ध का आरम्भ-पहले आठ दिन तक किसी ओर से भी कोई आक्रमण नहीं हुआ। परन्तु 21 अप्रैल, 1526 ई० की प्रातः इब्राहिम लोधी की सेना ने बाबर पर आक्रमण कर दिया। बाबर के तोपचियों ने भी लोधी सेना पर गोले बरसाने आरम्भ कर दिए। बाबर की तुलुगमा सेना ने आगे बढ़कर शत्रु को घेर लिया । बाबर की सेना के दाएं तथा बाएं पक्ष आगे बढ़े और उन्होंने ज़बरदस्त आक्रमण किया। इब्राहिम लोधी की सेनाएं चारों ओर से घिर गईं। वे न तो आगे बढ़ सकती थीं और न पीछे हट सकती थीं। इब्राहिम लोधी के हाथी घायल होकर पीछे की ओर दौड़े और उन्होंने अपने ही सैनिकों को कुचल डाला। देखते ही देखते पानीपत के मैदान में लाशों के ढेर लग गए। दोपहर तक युद्ध समाप्त हो गया। इब्राहिम लोधी हज़ारों लाशों के मध्य मृतक पाया गया। बाबर को पंजाब पर पूर्ण विजय प्राप्त हुई।

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PSEB 10th Class Social Science Guide गुरु नानक देव जी से पहले के पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक अवस्था Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
इब्राहिम लोधी के अधीन पंजाब की राजनीतिक दशा कैसी थी?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर दौलत खां लोधी काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित करके षड्यन्त्र रच रहा था।

प्रश्न 2.
इब्राहिम लोधी ने दौलत खाँ लोधी को दिल्ली क्यों बुलवाया?
उत्तर-
इब्राहिम लोधी ने दौलत खां लोधी को दण्ड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।

प्रश्न 3.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म कब और कहां हुआ?
उत्तर-
1469 ई० में तलवण्डी नामक स्थान पर।

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प्रश्न 4.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया?
उत्तर-
बहलोल लोधी ने।

प्रश्न 5.
लोधी-वंश का सबसे प्रसिद्ध बादशाह किसे माना जाता है?
उत्तर-
सिकन्दर लोधी को।

प्रश्न 6.
तातार खाँ के बाद पंजाब का सूबेदार कौन बना?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी।

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प्रश्न 7.
दौलत खाँ लोधी के छोटे पुत्र का नाम बताओ।
उत्तर-
दिलावर खां लोधी।

प्रश्न 8.
बाबर ने 1519 के अपने पंजाब आक्रमण में किन स्थानों पर अपना अधिकार किया?
उत्तर-
बजौर तथा भेरा पर।

प्रश्न 9.
बाबर का लाहौर पर कब्जा कब हुआ?
उत्तर-
1524 ई०।

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प्रश्न 10.
पानीपत की पहली लड़ाई (21 अप्रैल, 1526) किसके बीच हुई?
उत्तर-
बाबर तथा इब्राहिम लोधी के बीच।

प्रश्न 11.
स्वयं को हज़रत मुहम्मद की सुपुत्री बीबी फातिमा की सन्तान कौन मानता था?
उत्तर-
सैय्यद।

प्रश्न 12.
न्याय सम्बन्धी कार्य कौन करते थे?
उत्तर-
काजी।

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प्रश्न 13.
मुस्लिम समाज में सबसे निचले दर्जे पर कौन था?
उत्तर-
गुलाम।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी से पहले हिन्दुओं को क्या समझा जाता था?
उत्तर-
जिम्मी।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी से पहले हिन्दुओं पर कौन-सा धार्मिक कर था?
उत्तर-
जज़िया।

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प्रश्न 16.
‘सती’ की कुप्रथा किस जाति में प्रचलित थी?
उत्तर-
हिन्दुओं में।

प्रश्न 17.
मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुरेदार पगड़ी को क्या कहा जाता था?
उत्तर-
चीरा।

प्रश्न 18.
दौलत खाँ लोधी ने दिल्ली के सुल्तान के पास अपने पुत्र दिलावर खाँ को क्यों भेजा?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी भांप गया कि सुल्तान उसे दण्ड देना चाहता है।

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प्रश्न 19.
दौलत खाँ लोधी ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए क्यों बुलाया?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोधी की शक्ति का अन्त करके स्वयं पंजाब का स्वतन्त्र शासक बनना चाहता था।

प्रश्न 20.
दौलत खाँ लोधी बाबर के विरुद्ध क्यों हआ?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी को विश्वास था कि विजय के पश्चात् बाबर उसे सारे पंजाब का गवर्नर बना देगा। परंतु जब बाबर ने उसे केवल जालन्धर और सुल्तानपुर का ही शासन सौंपा तो वह बाबर के विरुद्ध हो गया।

प्रश्न 21.
दौलत खाँ लोधी ने बाबर का सामना कब किया?
उत्तर-
बाबर द्वारा भारत पर पांचवें आक्रमण के समय दौलत खाँ लोधी ने उसका सामना किया।

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प्रश्न 22.
बाबर के भारत पर पाँचवें आक्रमण का क्या परिणाम निकला?
उत्तर-
इस लड़ाई में दौलत खाँ लोधी पराजित हुआ और सारे पंजाब पर बाबर का अधिकार हो गया।

प्रश्न 23.
16वीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब की राजनीतिक दशा के विषय में गुरु नानक देव जी के विचारों पर दो वाक्य लिखो।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी लिखते हैं”राजा शेर है तथा मुकद्दम कुत्ते हैं जो दिन-रात प्रजा का शोषण करने में लगे रहते हैं” अर्थात् शासक वर्ग अत्याचारी है।
“इन कुत्तों (लोधी शासकों) ने हीरे जैसे देश को धूलि में मिला दिया है।”

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. बाबर ने पंजाब को …………… ई० में जीता।
  2. सैय्यद अपने आप को हज़रत मुहम्मद की पुत्री …………. की संतान मानते थे।
  3. इब्राहिम लोधी ने ………… लोधी को दण्ड देने के लिए दिल्ली बुलवाया।
  4. तातार खां लोधी के बाद …………. को पंजाब का सूबेदार बनाया गया।
  5. मुस्लिम अमीरों द्वारा पहनी जाने वाली तुर्रेदार पगड़ी को ……….. कहा जाता था।
  6. …………. दौलत खां लोधी का पुत्र था।

उत्तर-

  1. 1520,
  2. बीबी फ़ातिमा,
  3. दौलत खां,
  4. दौलत खां लोधी,
  5. चीरा,
  6. दिलावर खां लोधी।

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III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बाबर ने 1526 की लड़ाई में हराया
(A) दौलत खां लोधी को
(B) बहलोल लोधी को
(C) इब्राहिम लोधी को
(D) सिकंदर लोधी को।
उत्तर-
(C) इब्राहिम लोधी को

प्रश्न 2.
श्री गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ
(A) 1269 ई० में
(B) 1469 ई० में
(C) 1526 ई० में
(D) 1360 ई० में।
उत्तर-
(B) 1469 ई० में

प्रश्न 3.
तातार खां को पंजाब का निज़ाम किसने बनाया?
(A) बहलोल लोधी ने
(B) इब्राहिम लोधी ने
(C) दौलत खां लोधी ने
(D) सिकंदर लोधी ने
उत्तर-
(A) बहलोल लोधी ने

प्रश्न 4.
लोधी वंश का सबसे प्रसिद्ध बादशाह माना जाता है
(A) बहलोल लोधी को।
(B) इब्राहिम लोधी को
(C) दौलत खां लोधी को
(D) सिकंदर लोधी को।
उत्तर-
(D) सिकंदर लोधी को।

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प्रश्न 5.
स्वयं को हज़रत मुहम्मद की सुपुत्री बीबी फ़ातिमा की सन्तान मानते थे
(A) शेख
(B) उलेमा
(C) सैय्यद
(D) काजी।
उत्तर-
(C) सैय्यद

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. बाबर को पंजाब पर 1530 ई० में जीत प्राप्त हुई।
  2. सैय्यद अपने आपको ख़लीफा अबु बकर के उत्तराधिकारी मानते थे।
  3. श्री गुरु नानक देव जी का जन्म तलवण्डी नामक स्थान पर हुआ।
  4. पानीपत की पहली लड़ाई बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच हुई।
  5. सती की कुप्रथा मुस्लिम समाज में प्रचलित थी।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. हज़रत मुहम्मद की पुत्री फातिमा से संबंधित — दौलत खां लोधी
  2. तातार खां को पंजाब का निज़ाम बनाया — बाबर तथा इब्राहिम लोधी
  3. तातार खां के बाद पंजाब का सूबेदार — बहलोल लोधी
  4. पानीपत की पहली लड़ाई — सैय्यद

उत्तर-

  1. हज़रत मुहम्मद की पुत्री फातिमा से संबंधित — सैय्यद,
  2. तातार खां को पंजाब का निज़ाम बनाया — बहलोल लोधी,
  3. तातार खां के बाद पंजाब का सूबेदार — दौलत खां लोधी,
  4. पानीपत की पहली लड़ाई — बाबर तथा इब्राहिम लोधी।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब की राजनीतिक दशा की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब का राजनीतिक वातावरण बड़ा शोचनीय चित्र प्रस्तुत करता है। उन दिनों यह प्रदेश लाहौर प्रान्त के नाम से जाना जाता था और यह दिल्ली सल्तनत का अंग था। इस काल में दिल्ली के सभी सुल्तान (सिकन्दर लोधी, इब्राहिम लोधी) निरंकुश थे। उनके अधीन पंजाब में राजनीतिक अराजकता फैली हुई थी। सारा प्रदेश षड्यन्त्रों का अखाड़ा बना हुआ था। पूरे पंजाब में अन्याय का नंगा नाच हो रहा था। शासक वर्ग भोगविलास में मग्न था। सरकारी कर्मचारी भ्रष्टाचारी हो चुके थे और वे अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते थे। इन परिस्थितियों में उनसे न्याय की आशा करना व्यर्थ था। गुरु नानक देव जी ने कहा था कि न्याय दुनिया से उड़ गया है। भाई गुरुदः । श्री इस समय में पंजाब में फैले भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी का वर्णन किया है।

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प्रश्न 2.
16वीं शताब्दी के आरम्भ में इब्राहिम लोधी तथा दौलत खाँ लोधी के बीच होने वाले संघर्ष का क्या कारण था? इब्राहिम लोधी से निपटने के लिए दौलत खाँ ने क्या किया?
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी इब्राहिम लोधी के समय में पंजाब का गवर्नर था। कहने को तो वह दिल्ली के सुल्तान के अधीन था, परन्तु वास्तव में वह एक स्वतन्त्र शासक के रूप में कार्य कर रहा था। उसने इब्राहिम लोधी के चाचा आलम खाँ लोधी को दिल्ली की राजगद्दी दिलाने में सहायता देने का वचन देकर उसे अपनी ओर गांठ लिया। इब्राहिम लोधी को जन गौलत खाँ के षड्यन्त्रों की सूचना मिली तो उसने दौलत खाँ को दिल्ली बुलाया। परन्तु दौलत खाँ ने स्वयं जाने की बजाए अपने पुत्र दिलावर खाँ को भेज दिया। दिल्ली पहुंचने पर सुल्तान ने दिलावर खाँ को बन्दी बना लिया। कुछ ही समय के पश्चात् दिलावर खाँ जेल से भाग निकला और अपने पिता के पास लाहौर जा पहुंचा। दौलत खाँ ने इब्राहिम लोधी के इस व्यवहार का बदला लेने के लिए बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया।

प्रश्न 3.
बाबर तथा दौलत खाँ में होने वाले संघर्ष पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए दौलत खाँ लोधी ने ही आमन्त्रित किया था। उसे आशा थी कि विजयी होकर बाबर उसे पंजाब का सूबेदार नियुक्त करेगा। परन्तु बाबर ने उसे केवल जालन्धर और सुल्तानपुर के ही प्रदेश सौंपे। अतः उसने बाबर के विरुद्ध विद्रोह का झण्डा फहरा दिया। शीघ्र ही दोनों पक्षों में युद्ध छिड़ गया जिसमें दौलत खाँ और उसका पुत्र गाजी खाँ पराजित हुए। इसके बाद बाबर वापस काबुल लौट गया। उसके वापस लौटते ही दौलत खाँ ने बाबर के प्रतिनिधि आलम खाँ को मार भगाया और स्वयं पुनः सारे पंजाब का शासक बन बैठा। आलम खाँ की प्रार्थना पर बाबर ने 1525 ई० में पंजाब पर पुनः आक्रमण किया। दौलत खाँ लोधी पराजित हुआ और पहाड़ों में जा छिपा।

प्रश्न 4.
बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच संघर्ष का वर्णन कीजिए।
अथवा
पानीपत की पहली लड़ाई का वर्णन कीजिए। पंजाब के इतिहास में इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
बाबर दौलत खाँ को हरा कर दिल्ली की ओर बढ़ा। दूसरी ओर इब्राहिम लोधी भी एक विशाल सेना के साथ शत्रु का सामना करने के लिए दिल्ली से चल पड़ा। 21 अप्रैल, 1526 ई० के दिन पानीपत के ऐतिहासिक मैदान में दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हो गई। इब्राहिम लोधी पराजित हुआ और रणक्षेत्र में ही मारा गया। बाबर अपनी विजयी सेना सहित दिल्ली पहुंच गया और उसने वहां अपनी विजय पताका फहराई। यह भारत में दिल्ली सल्तनत का अन्त और मुग़ल सत्ता का श्रीगणेश था। इस प्रकार पानीपत की लड़ाई ने न केवल पंजाब का बल्कि सारे भारत के भाग्य का निर्णय कर दिया।

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प्रश्न 5.
सोलहवीं शताब्दी के पंजाब में हिन्दुओं की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के हिन्दू समाज की दशा बड़ी ही शोचनीय थी ! प्रत्येक हिन्दू को शंका की दृष्टि से देखा जाता था। उन्हें उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त नहीं किया जाता था। उनसे जज़िया तथा तीर्थ यात्रा आदि कर बड़ी कठोरता से वसूल किए जाते थे। उनके रीति-रिवाजों, उत्सवों तथा उनके पहरावे पर भी सरकार ने कई प्रकार की रोक लगा दी थी। हिन्दुओं पर भिन्न-भिन्न प्रकार के अत्याचार किए जाते थे ताकि वे तंग आ कर इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लें। सिकन्दर लोधी ने बोधन (Bodhan) नाम के एक ब्राह्मण को इस्लाम धर्म न स्वीकार करने पर मौत के घाट उतार दिया था। यह भी कहा जाता है कि सिकन्दर लोधी एक बार कुरुक्षेत्र के एक मेले में एकत्रित होने वाले सभी हिन्दुओं को मरवा देना चाहता था। परन्तु वह हिन्दुओं के विद्रोह के डर से ऐसा कर नहीं पाया।

प्रश्न 6.
16वीं शताब्दी में पंजाब में मुस्लिम समाज के विभिन्न वर्गों का वर्णन करें।
उत्तर-
16वीं शताब्दी में मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में बंटा हुआ था —

  1. उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में अफगान अमीर, शेख, काज़ी, उलेमा (धार्मिक नेता), बड़े-बड़े जागीरदार इत्यादि शामिल थे। सुल्तान के मन्त्री, उच्च सरकारी कर्मचारी तथा सेना के बड़े-बड़े अधिकारी भी इसी श्रेणी में आते थे। ये लोग अपना समय आराम तथा भोग-विलास में व्यतीत करते थे।
  2. मध्य श्रेणी-इस श्रेणी में छोटे काज़ी, सैनिक, छोटे स्तर के सरकारी कर्मचारी, व्यापारी आदि शामिल थे। उन्हें राज्य की ओर से काफ़ी स्वतन्त्रता प्राप्त थी तथा समाज में उनका अच्छा सम्मान था।
  3. निम्न श्रेणी-इस श्रेणी में दास, घरेलू नौकर तथा हिजड़े शामिल थे। दासों में स्त्रियां भी सम्मिलित थीं। इस श्रेणी के लोगों का जीवन अच्छा नहीं था।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
16वीं शताब्दी में पंजाब में मुसलमानों की सामाजिक दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
सोलहवीं शताब्दी के आरम्भ में पंजाब में मुसलमानों की काफ़ी संख्या थी। उनकी स्थिति हिन्दुओं से बहुत अच्छी थी। इसका कारण यह था कि उस समय पंजाब पर मुसलमान शासकों का शासन था। मुसलमानों को उच्च सरकारी पदों पर नियुक्त किया जाता था।
मुसलमानों की श्रेणियां-मुस्लिम समाज निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित था —

  1. उच्च श्रेणी-इस श्रेणी में बड़े-बड़े सरदार, इक्तादार, उलेमा, सैय्यद आदि की गणना होती थी। सरदार राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त थे। उन्हें ‘खान’, ‘मलिक’, ‘अमीर’ आदि कहा जाता था। इक्तादार एक प्रकार के जागीरदार थे। सभी सरदारों का जीवन प्रायः भोग-विलास का जीवन था। वे महलों अथवा भवनों में निवास करते थे। वे सुरा, सुन्दरी और संगीत में खोये रहते थे। उलेमा लोगों का समाज में बड़ा आदर था। उन्हें अरबी भाषा तथा कुरान की पूर्ण जानकारी होती थी। अनेक उलेमा राज्य के न्याय कार्यों में लगे हुए थे। वे काज़ियों के पदों पर आसीन थे और धार्मिक तथा न्यायिक पदों पर काम कर रहे थे।
  2. मध्य श्रेणी-मध्य श्रेणी में कृषक, व्यापारी, सैनिक तथा छोटे-छोटे सरकारी कर्मचारी सम्मिलित थे। मुसलमान विद्वानों तथा लेखकों की गणना भी इसी श्रेणी में की जाती थी। यद्यपि इस श्रेणी के मुसलमानों की संख्या उच्च श्रेणी के लोगों की अपेक्षा अधिक थी, फिर भी इनका जीवन स्तर उच्च श्रेणी जैसा ऊंचा नहीं था। मध्य श्रेणी के मुसलमानों की आर्थिक दशा तथा स्थिति हिन्दुओं की तुलना में अवश्य अच्छी थी। इस श्रेणी का जीवन-स्तर हिन्दुओं की अपेक्षा काफ़ी ऊंचा था।
  3. निम्न श्रेणी-निम्न श्रेणी में शिल्पकारों, निजी सेवकों, दास-दासियों आदि की गणना की जाती थी। इस श्रेणी के मुसलमानों का जीवन-स्तर अधिक ऊंचा नहीं था। उन्हें आजीविका कमाने के लिए अधिक परिश्रम करना पड़ता था। बुनकर, सुनार, लुहार, बढ़ई, चर्मकार आदि शिल्पकार सारे दिन के परिश्रम के पश्चात् ही अपना पेट भर पाते थे। निजी सेवकों तथा दास-दासियों को बड़े-बड़े सरदारों की नौकरी करनी पड़ती थी।

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प्रश्न 2.
16वीं शताब्दी के पंजाब में स्त्रियों की दशा कैसी थी?
उत्तर-
16वीं शताब्दी के पंजाब में स्त्री का जीवन इस प्रकार का था —

  1. स्त्रियों की दशा-16वीं शताब्दी के आरम्भ में समाज में स्त्रियों की दशा अच्छी नहीं थी। उसे अबला, हीन और पुरुषों से नीचा समझा जाता था। घर में उनकी दशा एक दासी के समान थी। उन्हें सदा पुरुषों के अधीन रहना पड़ता था। कुछ राजपूत कबीले ऐसे भी थे जो कन्या को दुःख का कारण मानते थे और पैदा होते ही उसका वध कर देते थे। मुस्लिम समाज में भी स्त्रियों की दशा शोचनीय थी। वह मन बहलाव का साधन मात्र ही समझी जाती थीं। इस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक स्त्री को बड़ा ही दयनीय जीवन व्यतीत करना पड़ता था।
  2. कुप्रथाएं-समाज में अनेक कुप्रथाएं भी प्रचलित थीं जो स्त्री जाति के विकास के मार्ग में बाधा बनी हुई थीं। इनमें से मुख्य प्रथाएं सती-प्रथा, कन्या-वध, बाल-विवाह, जौहर प्रथा, पर्दा-प्रथा, बहु-पत्नी प्रथा आदि थीं। सती-प्रथा के अनुसार जब किसी स्त्री के पति की मृत्यु हो जाती थी तो उसे भी अपने मृतक पति के साथ जीवित जल जाना पड़ता था। यदि कोई स्त्री इस क्रूर प्रथा का पालन नहीं करती थी तो उसके साथ बड़ा कठोर व्यवहार किया जाता था और उसे घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। वास्तव में, उससे जीवन की सभी सुविधाएं छीन ली जाती थीं। जौहर की प्रथा राजपूत स्त्रियों में प्रचलित थी। इसके अनुसार वे अपने सतीत्व तथा सम्मान की रक्षा के लिए जीवित जल जाती थीं।
  3. पर्दा प्रथा-पर्दा प्रथा हिन्दू तथा मुसलमान दोनों में ही प्रचलित थी। हिन्दू स्त्रियों को बूंघट निकालना पड़ता था और मुसलमान स्त्रियां बुर्के में रहती थीं। मुसलमानों में बहु-पत्नी प्रथा जोरों से प्रचलित थी। सुल्तान तथा बड़े सरदार अपने मनोरंजन के लिए सैंकड़ों स्त्रियां रखते थे। स्त्री शिक्षा की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता था। केवल कुछ उच्च घराने की स्त्रियां ही अपने घर पर शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं। शेष स्त्रियां प्रायः अनपढ़ ही होती थीं। स्त्रियों पर कुछ और प्रतिबन्ध भी लगे हुए थे। उदाहरण के लिए वे घर की चारदीवारी में ही बन्द रहती थीं। उनका घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं समझा जाता था। पंजाब में प्रायः स्त्री के विषय में यह कहावत प्रसिद्ध थी-“घर बैठी लक्ख दी बाहर गई कख दी।”

प्रश्न 3.
पंजाब में दौलत खाँ लोधी के षड्यन्त्रों तथा महत्त्वपूर्ण कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
दौलत खाँ लोधी तातार खाँ (Tatar Khan) का बेटा पंजाब का गवर्नर था। वह सिकन्दर लोधी के जीवन काल में तो दिल्ली सल्तनत के प्रति वफ़ादार रहा, परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् वह स्वतन्त्र शासक बनने के लिए षड्यन्त्र रचने लगा। नया सुल्तान इब्राहिम लोधी एक घमण्डी तथा मूर्ख शासक था। वह अपने सम्बन्धियों का घोर विरोधी था। इसका लाभ उठाकर दौलत खाँ लोधी ने अपनी स्थिति को दृढ़ बनाना शुरू कर दिया। इसके लिए उसने षड्यन्त्रों का सहारा लिया।

  1. इब्राहिम लोधी के विरुद्ध षड्यन्त्र-इब्राहिम लोधी को दौलत खाँ के षड्यन्त्रों का पता चल गया। उसने उसे सफ़ाई देने के लिए दिल्ली बुलवा भेजा। दौलत खाँ ने स्वयं जाने की बजाय अपने पुत्र दिलावर खाँ को दिल्ली भेज दिया। इब्राहिम लोधी ने दिलावर खाँ को खूब डराया धमकाया। उसने उसे उन यातनाओं के दृश्य भी दिखाए जो विद्रोहियों को दी जाती थीं। उसने दिलावर खाँ को बन्दी बना लिया। परन्तु वह किसी-न-किसी तरह जेल से भाग निकला। इस घटना से दौलत खाँ समझ गया कि इब्राहिम लोधी उससे दो-दो हाथ अवश्य करेगा। अतः उसने तुरन्त ही अपने आप को स्वतन्त्र शासक घोषित कर दिया और अपने हाथ मज़बूत करने के लिए वह काबुल के शासक बाबर के साथ सांठ-गांठ करने लगा। बाबर भारत का सम्राट बनने की इच्छा रखता था। वह पहले भी भारत पर कई आक्रमण कर चुका था। अत: दौलत खाँ का निमन्त्रण पाकर वह पूरी शक्ति के साथ भारत की ओर बढ़ा और बड़ी आसानी से उसने लाहौर पर विजय प्राप्त कर ली। परन्तु जब वह आगे बढ़ा तो कुछ अफ़गान सरदारों ने उसका घोर विरोध किया। इस पर उसने अपनी सेना को लाहौर में लूटमार करने की आज्ञा दे दी। बाद में उसने दीपालपुर और जालन्धर को भी लूटा। पंजाब विजय के पश्चात् बाबर ने दौलत खाँ को जालन्धर का सूबेदार नियुक्त किया और शेष सारा प्रदेश उसने आलम खाँ को सौंप दिया।
  2. बाबर के विरुद्ध विद्रोह-दौलत खाँ को पूरा विश्वास था कि बाबर उसे पूरे पंजाब का स्वतन्त्र शासक बनाएगा। परन्तु जब बाबर ने उसे केवल जालन्धर दोआब का ही सूबेदार नियुक्त किया तो वह क्रोध से भड़क उठा। उसने अपने पुत्र गाजी खाँ को साथ लेकर बाबर के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। बाबर ने बड़ी आसानी से विद्रोह को कुचल डाला। परंतु बाबर के वापिस जाने के बाद उसने आलम खाँ और इब्राहिम लोधी की सेनाओं को पराजित कर पंजाब के अधिकांश भाग पर अपना अधिकार कर लिया।
  3. दौलत खाँ की पराजय और मृत्यु-बाबर दौलत खाँ की गतिविधियों से बेखबर नहीं था। उसे जब पता चला
    लाहौर पहुंचने पर उसे सूचना मिली कि दौलत खाँ होशियारपुर में स्थित मलोट नामक स्थान पर डेरा डाले हुए है। अत: बाबर ने तुरन्त ही मलोट पर आक्रमण कर दिया। दौलत खाँ बाबर की शक्ति के सामने अधिक देर तक न टिक सका और पराजित हुआ।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

Punjab State Board PSEB 12th Class Geography Book Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Geography Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

PSEB 12th Class Geography Guide आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) Textbook Questions and Answers

प्रश्न I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक वाक्यों में दें:

प्रश्न 1.
निर्माण उद्योग आर्थिकता के कौन-से क्षेत्र की क्रिया है ?
उत्तर-
निर्माण उद्योग आर्थिकता के द्वितीयक क्षेत्र की क्रिया है।

प्रश्न 2.
गन्ने की कृषि पर निर्माण क्षेत्र का कौन-सा उद्योग आधारित है ?
उत्तर-
गन्ने की कृषि पर चीनी उद्योग आधारित है।

प्रश्न 3.
कागज़ बनाने का उद्योग कौन-सी मौलिक क्रिया पर आधारित है ?
उत्तर-
लकड़ी की लुगदी से कागज़ बनाने की क्रिया पर।।

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प्रश्न 4.
किसी उद्योग के स्थानीयकरण पर कैसे दो कारक प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-
1. कच्चा माल, मज़दूर, यातायात के साधन (भौगोलिक कारक),
2. पूंजी, सरकारी नीति, (गैर भौगोलिक कारक)।

प्रश्न 5.
TISCO का पूरा नाम क्या था ?
उत्तर-
टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी लिमिटेड।

प्रश्न 6.
ढाका में बनता कौन-सी किस्म का कपड़ा बहुत प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
ढाके की मलमल का कपड़ा बहुत प्रसिद्ध रहा है।

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प्रश्न 7.
गन्ने से चीनी के अलावा क्या-क्या बनाया जा सकता है ?
उत्तर-
गन्ने से कई पदार्थ, जैसे-चीनी, शीरा, मोम, खाद, कागज़ इत्यादि भी तैयार किए जाते हैं।

प्रश्न 8.
बठिंडा स्थित तेल शोधक कारखाने का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
गुरु गोबिंद सिंह रिफायनरी, तेल शोधक कारखाने का पूरा नाम है।

प्रश्न 9.
आर्थिकता के चौथे स्तर पर किस किस्म के उद्योग आते हैं ?
उत्तर-
इसमें विद्वान्, चिंतक तथा बुद्धिजीवी उद्योग आते हैं।

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प्रश्न 10.
मीडिया सेवाएं, आर्थिकता के कौन-से स्तर की क्रियाएं हैं ?
उत्तर-
मीडिया सेवाएं आर्थिकता के पांचवें स्तर की क्रियाएं हैं।

प्रश्न 11.
CAGR का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
Compound Annual Growth Rate/Compound Advance Growth Rate.

प्रश्न 12.
हरा कालर श्रमिक कौन से क्षेत्रों के क्रियाशील व्यक्तियों को कहते हैं ?
उत्तर-
पर्यावरण वैज्ञानिक, सलाहकार, सौर ऊर्जा क्षेत्रों के साथ जुड़े क्रियाशील व्यक्तियों को हरा कालर श्रमिक कहते हैं।

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प्रश्न 13.
कामकाजी औरतों की रोजगार क्रियाएं कौन-से रंग के कालर से संबंधित होती हैं ?
उत्तर-
गुलाबी कालर श्रमिक से संबंधित होती हैं।

प्रश्न 14.
कृषि निर्यात जोन के अधीन पंजाब से क्या कुछ निर्यात किया जा सकेगा?
उत्तर-
कृषि निर्यात जोन अधीन सब्जियां, आलू, चावल, शहद, पंजाब से निर्यात किया जाएगा।

प्रश्न 15.
भारत का मानचैस्टर कौन-से शहर को कहते हैं ?
उत्तर-
अहमदाबाद को भारत का मानचैस्टर कहते हैं।

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प्रश्न II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-चार पंक्तियों में दें:

प्रश्न 1.
मज़दूरों की संख्या के आधार पर उद्योगों का विभाजन करो तथा विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
मजदूरों की संख्या के आधार पर उद्योगों को निम्नलिखित तीन किस्मों में विभाजित किया जाता है-

  1. बड़े पैमाने के उद्योग-जहाँ मज़दूरों की संख्या बहुत अधिक हो।
  2. मध्यम पैमाने के उद्योग-जहाँ मज़दूरों की संख्या न अधिक होती हैं न कम; जैसे-साइकिल उद्योग, बिजली ‘ उपकरण उद्योग इत्यादि।
  3. छोटे पैमाने के उद्योग-जहाँ निजी स्तर से या बहुत कम मज़दूरों की आवश्यकता हों।

प्रश्न 2.
ग्रामीण उद्योग तथा कुटीर उद्योगों की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
ग्रामीण उद्योग-यह गाँव में स्थित होते हैं तथा गाँव की आवश्यकता को पूरा करते हैं; जैसे-गेहूं, चक्की इत्यादि।
घरेलू/कुटीर उद्योग-जहाँ शिल्पकार अपने घर में ही लकड़ी, बांस, पत्थरों इत्यादि को तराश कर सामान बनाते . हैं; जैसे-खादी, चमड़े के उद्योग इत्यादि।

प्रश्न 3.
पूंजी प्रधान तथा मज़दूर प्रधान उद्योगों में अंतर स्पष्ट करो।
उत्तर-
पूंजी प्रधान- जिन उद्योगों में पैसे के निवेश की आवश्यकता होती है; जैसे-लौहा तथा इस्पात, सीमेंट इत्यादि पूंजी प्रधान उद्योग कहलाते हैं।
मज़दूर प्रधान – जिन उद्योगों में ज्यादा मजदूरों की आवश्यकता होती है; जैसे-जूते, बीड़ी उद्योग इत्यादि मजदूर प्रधान उद्योग कहलाते हैं।

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प्रश्न 4.
यातायात उद्योगों के स्थानीयकरण के कारक के तौर पर कैसे प्रभाव डालते हैं ?
उत्तर-
कच्चे माल को उद्योगों तक पहुँचाने तथा फिर निर्माण उद्योग से उपयोग योग्य तैयार सामान को बाजार तक पहुँचाने के लिए अच्छी सड़कें, रेल मार्ग, जल मार्ग तथा समुद्री मार्ग की आवश्यकता होती है। बंदरगाहों के कारण कोलकाता, मुंबई, चेन्नई शहरों के आस-पास काफी उद्योग विकसित हो सके हैं। यहाँ तक पंजाब में लुधियाना के पास लगते रेलवे स्टेशन ढंडारी कलां को तो शुष्क बंदरगाह तक का नाम दे दिया गया है।

प्रश्न 5.
भद्रावती के लोहा इस्पात उद्योग से जान-पहचान करवाओ।
उत्तर-
18 जनवरी, 1923 को मैसूर आयरन वर्क्स के नाम के अंतर्गत भद्रावती (कर्नाटक) में शुरू हुए थे। इस प्लांट का नाम भारत के मशहूर इंजीनियर भारत रत्न श्री एम० विश्वेश्वरैया के नाम पर विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड रख दिया गया। यह उत्पादन केंद्र भी स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के अंतर्गत ही आता है।

प्रश्न 6.
भारत में सूती वस्त्र के उत्पादन संबंधी इतिहास के बारे में कुछ बताओ।
उत्तर-
भारतीय सूती वस्त्र तथा इसके सूत का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता से शुरू हुआ समझा जाता है। 1500 ईसा पूर्व से 1500 ई० तक लगभग 3000 साल तक भारत के सूती वस्त्र का उत्पादन विश्व में काफी प्रसिद्ध है। ढाका शहर के मलमल का कपड़ा, मसूलीपटनम का छींट, कालीकट की कल्लीकैंज से कैम्बे में बने बफता वस्त्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे। भारत में पहली सूती कपड़े की मिल 1818 में फोर्ट ग्लोस्टर कोलकाता में लगाई गई थी परंतु यह मिल अधिक कामयाब नहीं हुई। फिर एक कामयाब मिल 1854 में मुंबई में लगाई गई तथा देश के विभाजन के समय 1941, में लंबे रेशे वाली कपास वाले क्षेत्र पाकिस्तान की तरफ चले गए परंतु कपड़े के उद्योग गुजरात तथा महाराष्ट्र में रह गए।

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प्रश्न 7.
सूती वस्त्र मिलों को कौन-से वर्गों में विभाजित किया जा सकता है ?
उत्तर-
सूती वस्त्र मिलों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

  • कताई मिलें (Spinning Mills)
  • बुनाई मिलें (Weaving Mills)
  • धागे तथा कपड़ा मिलें (Thread and Cotton both produced)

कताई मिलों को आगे अन्य भागों में विभाजित किया जाता है।

  • हथकरघा (Handloom)
  • बिजली के साथ चलने वाली कताई मशीनें (Powerloom)।

प्रश्न 8.
मन्जूर माल भाड़ा गलियारा से जान पहचान करवाएं।
उत्तर-
यह गलियारा पश्चिमी गलियारे दादरी से जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह, मुंबई तक लगभग 1468 कि०मी० का क्षेत्र शामिल है। इसके अलावा पूर्वी गलियारा-लुधियाना (पंजाब) से पश्चिमी बंगाल तक लगभग 1760 कि०मी० का क्षेत्र शामिल है।

प्रश्न 9.
दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
यह गलियारा देश के कुछ सात राज्यों में फैला हुआ है। यह योजनाबद्ध औद्योगिक गलियारा देश की राजधानी दिल्ली से लेकर आर्थिक राजधानी मुंबई तक 1500 किलोमीटर तक लंबा है। इसमें 24 औद्योगिक क्षेत्र, 8 स्मार्ट शहर तथा दो हवाई अड्डे, 5 बिजली उत्पादन केंद्र तथा बेहतर यातायात प्रबंध शामिल हैं।

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प्रश्न 3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 10-12 पंक्तियों में दें: :

प्रश्न 1.
किसी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए कौन-कौन से गैर भौगोलिक कारक कार्यशील होते हैं ?
उत्तर-
किसी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए गैर भौगोलिक कारक निम्नलिखित हैं-

  • पूंजी-पूंजी की उद्योगों को लगाने तथा चलाने के लिए खास आवश्यकता होती हैं।
  • सरकारी नीतियां-किसी देश की अच्छी सरकारी नीतियां उस देश के औद्योगिक विकास में योगदान डालती हैं
  • औद्योगिक सुविधाएं-जब कोई उद्योग अपनी उत्पत्ति वाले स्थान पर स्थापित होकर पूरा विकास करे; जैसे-उत्तर प्रदेश में अलीगढ़ में तालों का उद्योग तथा लुधियाना में हौजरी उद्योग इत्यादि।
  • कुशल संगठन-कुशल प्रबंध का होना भी अति आवश्यक है। अयोग्य प्रबंधन कारण कई बार कामयाब उद्योग भी बर्वाद हो जाते हैं।
  • बैंक की सुविधा-उद्योग लगाने तथा इसके प्रबंधन के लिए काफी धन राशि की आवश्यकता होती है। इसलिए इस उद्योग के लिए बैंक की सुविधाएं ज़रूरी होनी चाहिए।
  • बीमा-किसी भी अनहोनी दुर्घटना जो मनुष्य या मशीनरी इत्यादि के साथ भी हो, की सूरत में बीमे की सुविधा का होना ज़रूरी है।

प्रश्न 2.
भारत में लोहा तथा इस्पात उद्योग की शुरुआत तथा स्थापना के लिए जरूरी कारकों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत में लोहा-इस्पात की शुरुआत 1874 ई० में हुई। जब बंगाल आयरन वर्क्स ने पश्चिमी बंगाल में आसनसोल के नज़दीक ‘कुलटी’ नामक स्थान पर स्टील प्लांट लगाया गया था परंतु यह अधिक सफल न हो सका। यह प्लांट 1907 ई० में कामयाब हुआ जब जमशेद जी टाटा द्वारा झारखंड में ‘साकची’ नामक स्थान पर सम्पूर्ण भारतीय कंपनी टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी का प्लांट लगाया गया तथा 1,20,000 टन कच्चे लोहे का निर्माण किया। सन् 1947 ई० के समय जहाँ 10 लाख टन कच्चे लोहे का निर्माण हुआ। 2014-15 तक भारत संसार में लोहे का तीसरा बड़ा उत्पादक देश बन गया।

कच्चा लोहा, इस्पात उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक कारक-इन उद्योगों के लिए पानी की बड़ी मात्रा की आवश्यकता होती है। यह उद्योग विशेषतया उन क्षेत्रों में लगाये जाते हैं जहाँ नदियां, नहरें, झीलें हों क्योंकि इन क्षेत्रों में पानी की उपलब्धि के साथ-साथ यातायात भी आसान हो जाती है। इसके साथ-साथ पूंजी, मजदूर, रेल तथा सड़क यातायात तथा उचित बाजार की आवश्यकता है।

प्रश्न 3.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग की मुसीबतों तथा उनके समाधान बताओ।
उत्तर-
भारत में सूती वस्त्र उद्योग में आने वाली मुख्य कठिनाइयां (मुसीबतें) निम्नलिखित हैं-

  • देश में लम्बे रेशे वाली कपास का उत्पादन कम है।
  • कारखाने काफी पुराने हैं जिस कारण उत्पादकता पर असर पड़ता है। मशीनरी पुरानी है जिसको बदलना बहुत ज़रूरी है तथा औद्योगिक पक्ष से देश पीछे है तथा मशीनरी महंगी है।
  • भारतीय सूती वस्त्र को कृत्रिम रेशे के साथ मुकाबला करना पड़ रहा है।
  • भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बंगलादेश, चीन, जापान तथा इंग्लैंड से मुकाबला करना पड़ रहा है जिनका कच्चा माल भारत के कच्चे माल में ज्यादा अच्छा है।
  • पूंजी की कमी भी सूती वस्त्र उद्योग के लिए समस्या का एक कारण है।

समाधान-नई तकनीक वाली मशीनरी को लाना चाहिए तथा उद्योग को आधुनिक बनाने के लिए सस्ते ब्याज पर ऋण उपलब्ध करवाने चाहिए। तैयार माल की कीमतों को कम रखने के लिए औद्योगिक उत्पादन को बढ़ाया जाना चाहिए। कच्चे माल, बिजली तथा मजदूरों की निरन्तर पूर्ति होनी चाहिए।

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प्रश्न 4.
भारत में चीनी उद्योग में पंजाब का क्या योगदान है तथा समूचे तौर पर उद्योग को क्या-क्या कठिनाइयां आ रही हैं ?
उत्तर-
भारत में चीनी उद्योग में पंजाब का योगदान-पंजाब राज्य में कुल 17 चीनी मिलें हैं जिनमें 10 मिलें चालू हालात में हैं जो कि अजनाला, बटाला, भोगपुर, बुंदेबाल, फाजिल्का, फगवाड़ा, गुरदासपुर, नवांशहर, नकोदर, मोरिंडा में स्थित हैं। परंतु यहां की 17 चीनी मिलों में 7 मिलें बंद हो गई हैं जोकि धूरी, फरीदकोट, रखड़ा, तरनतारन, जीरा, बुढ़लाडा, जगराओं में हैं।

कठिनाइयां –

  • गन्ने की लागत पर ज्यादा खर्चा होता है परंतु मूल्य में गिरावट होती है।
  • गन्ना कटाई के बाद तेजी से सूख जाता है तथा लंबे समय के लिए इसको बचा के न रख सकना भी बड़ी समस्या है।
  • चीनी मिलों के मालिकों द्वारा किसानों को समय पर अदायगी न करने से भी गन्ना उत्पादक किसान निराश होता है।
  • कोहरे के कारण भारत की फसल खराब हो जाती है।
  • यातायात की लागत बढ़ने के साथ भी गन्ने की फसल में कठिनाइयां आती हैं।
  • चीनी मिलें छोटी हैं तथा सहकारी क्षेत्र की मिलों में सिर्फ मुनाफा कमाने की नीति कारण रुकावट आ चुकी

प्रश्न 5.
भारत के औद्योगिक गलियारे से पहचान करवाओ तथा किसी एक गलियारे पर नोट लिखो।
उत्तर-
उद्योगों में कच्चा माल पहुंचाने तथा तैयार हुए माल को बाजार तक पहुंचाने के लिए रेल मंत्रालय के अंतर्गत माल गाड़ियां चलाने के लिए अलग-अलग रेल लाइनें बिछाने की योजना तैयार की गई। इसके लिए निरोल माल भाड़ा गलियारा निगम की स्थापना की गई। ऐसे गलियारे की योजना, विकास, निर्माण, कामकाज तथा देख-रेख इत्यादि का सारा प्रबंध 11वीं पंचवर्षीय योजना के समय किया गया तथा इस योजना के अधीन पूर्वी निरोल माल-भाड़ा गलियारा पंजाब में लुधियाना से पश्चिमी बंगाल तक के पश्चिमी निरोल माल-भाड़ा गलियारा जवाहर लाल नेहरू बंदरगाह मुंबई से उत्तर प्रदेश में दादरी तक होगा। इस गलियारा को बनाने का मुख्य उद्देश्य है कि समर्थ, भरोसे योग्य, सुरक्षित तथा सस्ती गाड़िया चलाना तथा पर्यावरण की संभाल रखते हुए रेलवे में लोगों के भरोसे को बढ़ाना। इस तरह से गलियारों के साथ-साथ आवश्यकता का सामान भी उपलब्ध करवाना है ताकि योजना से अधिक से अधिक लाभ उठाया जा सके।

सुनहला चतुर्भुज माल-भाड़ा गलियारा-यह गलियारा केंद्रों, सड़कों, यातायात तथा राजमार्ग मंत्रालय की योजना है जिसके द्वारा मुख्य रूप में 4 महानगरों, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई तथा कोलकाता को जोड़कर एक चतुर्भुज बनाई जाती है तथा उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम की तरफ दो लंब रूप मालभाड़ा गलियारा बनाया गया। इस द्वारा सड़क मार्गों की लंबाई 10,122 कि०मी० होगी तथा भारतीय रेल की तरफ जाए तो मालभाड़े के 55% हिस्से से भी अधिक कमाई की जाए।

प्रश्न 6.
भारत की आर्थिकता में तृतीयक क्षेत्र की क्रियाओं पर विस्तार से एक नोट लिखो।
उत्तर-
तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र आर्थिकता की पहली तथा दूसरी श्रेणी के बाद तीसरा महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इसमें उत्पादकता के प्रदर्शन के ज्ञान में जानकारी का प्रयोग करके वृद्धि की जाती है। इस क्षेत्र में खासकर सेवाओं का प्रयोग किया जाता है। इस क्षेत्र में आने वाली मुख्य सेवाएं हैं मनोरंजन, सरकारी सेवाएं, टैलीकॉम, दूरसंचार, पर्यटन, मीडिया, शिक्षा, बीमा, बैकिंग सुविधाएं, निवेश, लेखा सेवाएं, वकीलों के सुझाव, चिकित्सा सेवाएं, यातायात के साधन इत्यादि को शामिल किया जाता है। भारत में सेवा क्षेत्र, राष्ट्रीय तथा राज्यों की आमदनी तथा आर्थिकता का बड़ा हिस्सा है जो कि व्यापार, सीधी विदेशी पूंजीकारी तथा नौकरी में वृद्धि संबंधी देश की काफी सहायता करता है। यह आर्थिक वृद्धि की पूंजी है। यह क्षेत्र की कुल कीमत की वृद्धि में 66.1% हिस्सा भारत में डालता है तथा विदेशी निवेश की तरफ खींच पैदा करता है। केन्द्रीय आंकड़ा दफ्तर के अनुमान मुताबिक साल 2016-17 में सेवा क्षेत्र 8.8% की दर से बढ़ेगा।

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प्रश्न 7.
भारत सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ प्रोग्राम से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारत के निर्माण उद्योग को ताकतवर बनाने के लिए खोज तथा स्थापना के क्षेत्रों में देश को विश्व स्तर पर लाने के लिए भारत सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ योजना की शुरुआत की। इस योजना के मुख्य रूप में चार स्तंभ हैं पहला यह एक नयी प्रक्रिया, दूसरा नयी बुनियादी संरचना, तीसरा नया विकास क्षेत्र तथा चौथा नई सोच। बुनियादी संरचना तथा सेवा के क्षेत्र को भी इस योजना में लाया गया। सरकार ने इस योजना के तहत लैब पैट्रोल की योजना संबंधी जागरुकता तथा जानकारी हित शुरू किया है। इसमें राष्ट्रीय बुनियादी तथा दिल्ली, मुंबई औद्योगिक गलियारे शामिल हैं। इन 25 क्षेत्रों में स्वचालित कार, खनन, सेहत, पर्यटन, वस्त्र, ताप, ऊर्जा, चमड़ा, सूचना तकनोलॉजी, निर्माण रसायन, उड्डयन, बिजली मशीनरी इत्यादि शामिल हैं।

प्रश्न 8.
भारत के पैट्रोकैमिकल उद्योग पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारत का पैट्रोकैमिकल उद्योग देश के सब उद्योगों से तेजी के साथ बढ़ रहा है क्योंकि यह उद्योग वस्त्र, कृषि, निर्माण तथा दवाइयों के उद्योगों को मूल सहायता करवाता है। देश में इस औद्योगिक विकास के कारण आर्थिकता को काफी उभार मिलता हैं। भारत में मुख्य रूप में चार बड़ी कंपनियां हैं जो पैट्रोकैमिकल कंपनी की पूरी मार्किट पर कंट्रोल करती हैं। इनमें रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड, इंडियन पैट्रोकैमिकल की जोड़ी तथा गैस अथारिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड तथा हल्दियां पैट्रोकैमिकल की जोड़ी शामिल हैं। भारत में हर रोज प्रयोग किए जाने वाले खनिज तेल का 70 प्रतिशत भाग बाहर से आयात किया जाता हैं। हम अपनी ज़रूरत का सिर्फ 30% हिस्सा ही अपने साधनों से पैदा करते हैं। बाकी का तेल ईरान, साऊदी अरब तथा खाड़ी के देशों से लाया जाता है। पैट्रोकैमिकल उद्योगों को मुख्य रूप में दो स्तर होते हैं-

1. पृथ्वी से कच्चा तेल निकालना
2. तेल शोधन करना।

प्रश्न 4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 20 पंक्तियों में दो :

प्रश्न 1.
भारत के लोहा-इस्पात उद्योगों के साथ संबंधित प्लांटों से पहचान करवाओ।
उत्तर-
लोहा-इस्पात उद्योग आधुनिक समाज का नींव पत्थर है। लोहा कठोरता, प्रबल तथा सस्ता होने के कारण दूसरी धातुओं की तुलना में अधिक उपयोगी है। इसके साथ कई तरह की मशीनों, यातायात के साधन, कृषि, उपकरण, ऊंचे-ऊंचे पुल, सैनिक हथियार, टैंक, रॉकेट तथा दैनिक प्रयोग की गई वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लोहा-इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदंड है। आधुनिक सभ्यता लोह-इस्पात पर निर्भर करती है। इसलिए वर्तमान युग को ‘इस्पात युग’ कहते हैं। लोहा निर्माण का काम आज से 3000 साल पहले, मिस्र, रोम इत्यादि देशों में किया जाता था। इस युग को लोह युग कहा जाता है। पृथ्वी की खानों में लोहा अशुद्ध रूप में मिलता है। लोहे को भट्टी में गला कर साफ करके इस्पात बनाया जाता है। इस कार्य के लिए कई वर्ग प्रयोग किए जाते हैं। खुली भट्टी, कोक भट्टी तथा बिजली की पावर भट्टियों का भी ज्यादातर प्रयोग किया जाता है।

भारत के कुछ महत्त्वपूर्ण स्टील प्लांट-
1. टाटा स्टील लिमिटेड-इसका पहले नाम टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO) था। यह भारत की बहुराष्ट्रीय स्टील कंपनी है। इसका मुख्यालय मुंबई में है। इसकी कुल क्षमता 2 करोड़ 53 लाख टन उत्पादन की थी, यह 2015 में विश्व की 10वीं बड़ी स्टील उत्पादन कंपनी है। इसका सबसे बड़ा प्लांट जमशेदपुर में 1907 में जमशेद जी टाटा ने लगाया था।

2. इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (IISCO)—यह स्टील प्लांट आसनसोल (ज़िला बर्धमान) के नज़दीक बर्नपुर में है जो कि स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के अधीन इस्पात का उत्पादन करता है।

3. विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड-भद्रावती (कर्नाटक) में 18 जनवरी, 1923 को मैसूर आयरन वर्क्स के नाम पर शुरू हुए इस प्लांट का नाम प्रसिद्ध भारतीय श्री एम० विश्वेश्वरैया के नाम पर विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील प्लांट पड़ गया।

4. भिलाई स्टील प्लांट (BSP) भिलाई स्टील प्लांट छत्तीसगढ़ राज्य में स्थित सबसे बड़ा उत्पादन प्लांट है। यहाँ इस्पात की चौड़ी पलेटें बनती हैं। जहाँ इस्पात के निर्माण का काम 1955 में शुरू हुआ।

5. दुर्गापुर स्टील प्लांट (DSP)—यह उद्योग पश्चिमी बंगाल के दुर्गापुर शहर में स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया का एक सामूहिक स्टील प्लांट है। इसको 1955 में बर्तानिया की सहायता के साथ स्थापित किया गया था।

6. बोकारो स्टील प्लांट-यह प्लांट स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के अंतर्गत, झारखण्ड राज्य के बोकारो शहर में है। इसको 1864 में रूस की सहायता से लगाया गया तथा बाद में स्टील अथारिटी जो कि भारतीय सरकार की कंपनी है के कंट्रोल में आ गया।

7. राऊरकेला स्टील प्लांट-राऊरकेला स्टील प्लांट भी स्टील अथारिटी आफ इंडिया अंतर्गत उत्पादन वाला . सरकारी क्षेत्र का प्लांट है। यह उड़ीसा में है। इसकी स्थापना 1960 में हुई। तब से पश्चिमी जर्मनी ने इसकी सहायता की है।

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प्रश्न 2.
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग के विभाजन में पश्चिमी तथा पूर्वी क्षेत्रों की तुलना करो।
उत्तर-
वस्त्र मनुष्य की मूल आवश्यकता है। सूती वस्त्र उद्योग बहुत प्राचीन है। आज से लगभग 5000 साल पहले सूती वस्त्र उद्योग भारत में घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत थे। ढाके की मलमल विश्व भर में प्रसिद्ध थी। सूती वस्त्र मिल उद्योग की शुरुआत 18वीं सदी में ग्रेट, ब्रिटेन में हुई। औद्योगिक क्रांति के कारण आरकराईट, क्रामपटन तथा कार्टराइट नामी कारीगरों ने पावरलूम इत्यादि कई मशीनों की खोज की। सूती वस्त्र बनाने की मशीनों के कारण इंग्लैंड का लेका शहर सूती वस्त्र के उद्योग कारण प्रसिद्ध हो गया।

भारतीय सूती वस्त्र उद्योग के विभाजन में पश्चिमी पूर्वी क्षेत्र की तुलना-

1. पश्चिमी क्षेत्र–भारत के पश्चिमी क्षेत्र में महाराष्ट्र, गुजरात, मुंबई इत्यादि सूती वस्त्र उद्योग के मुख्य केंद्र हैं।
अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर कहते हैं। अहमदाबाद सूती वस्त्र उद्योग का बड़ा केन्द्र है। यहाँ 75 मिलें हैं। इसके अतिरिक्त महाराष्ट्र में सूरत, भावनगर, राजकोट इत्यादि बहुत प्रसिद्ध सूती वस्त्र के उत्पादक केन्द्र हैं। महाराष्ट्र राज्य सूती कपड़ा उद्योग में सबसे आगे है। यहां 100 मिलें हैं। मुंबई शुरू से ही सूती वस्त्र उद्योग का मुख्य केन्द्र रहा है। इसलिए इसको सूती वस्त्रों की राजधानी कहते हैं। गुजरात की सूती कपड़े के उत्पादन में दूसरी जगह है। देश के पश्चिमी क्षेत्र में सूती वस्त्र उद्योग भी विकसित हुआ। इसके कारण हैं

  • महाराष्ट्र तथा गुजरात की उपजाऊ काली मिट्टी जो कपास की कृषि के लिए बहुत उपयुक्त है। इस प्रकार कच्चा माल, कपास आसानी के साथ मिल जाती है।
  • पश्चिमी घाट से पनबिजली आसानी से मिल जाती है।
  • मुंबई तथा कांडला की बंदरगाहों के कारण माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाना आसान हो जाता है तथा व्यापार विकसित होता है।
  • नमी वाली जलवायु होने के कारण धागा बुनना आसान है।
  • पारसी तथा भाटिया व्यापारी पूंजी के निवेश में योगदान डालते हैं।
  • कोंकण, सतारा तथा शोलापुर और इलाकों में स्थानीय कुशल तथा सस्ते मज़दूर मिल जाते हैं।
  • यातायात के बढ़िया साधनों के कारण भी यहां व्यापार अच्छा है।

2. पूर्वी क्षेत्र-इस क्षेत्र में पश्चिमी बंगाल, बिहार, उड़ीसा तथा असम राज्य शामिल हैं। अधिकतर मिलें कोलकाता, बेलगाड़ियां, श्याम नगर, गुमुरी, सालकिया, श्रीरामपुर, मुरीग्राम इत्यादि स्थानों पर हैं। इस क्षेत्र में कोलकाता बंदरगाह व्यापार को काफी फायदा देती हैं। क्षेत्र में उद्योगों के विकास के कारण –

  • कोलकाता की बंदरगाहें व्यापार के लिए काफी उपयोगी हैं।
  • यातायात के साधन अच्छे हैं।
  • जलवायु में नमी की मात्रा मौजूद है तथा सूती वस्त्र की मांग बहुत ज्यादा है।

प्रश्न 3.
पंजाब की खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के बारे विस्तार से नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब की कृषि में भिन्नता लाने के लिए तथा खाद्यान्न से जुड़े हुए उद्योगों के विकास के लिए पूंजी लगाने को प्रोत्साहित करने के लिए भारतीय सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने देश में खासकर पंजाब में इस उद्योग को बढ़ावा दिया।

1. पंजाब में 2762 करोड़ रुपये की लागत से मैगा कृषि प्रसंस्करण यूनिट मंजूर किये गए हैं। इसके साथ 2680 ‘करोड़ के साथ 20 मैगा प्रकल्प (Project) जिसमें एशनोन निर्माण, सेहत के लिए खाने, चीनी, बच्चों के लिए खाना इत्यादि के 20 मैगा प्रकल्पों को शामिल किया गया। इनके साथ 23145 यूनिट बहुत छोटे क्षेत्र में 1258 करोड़ की लागत से लगाए गए। इनमें अनाज, दालें, सब्जी, डेयरी, मुर्गीपालन आजि पर आधारित उद्योग शामिल हैं।

2. कृषि उत्पाद निर्यात जोन-2002 में भारत सरकार ने कृषि निर्यात जोन सब्जियों; जैसे कि आलू, चावल, शहद इत्यादि निर्यात करने के लिए बनाए। इनमें फतेहगढ़ साहिब, संगरूर, रोपड़ तथा लुधियाना तथा पटियाला के जिले शामिल हैं।

3. कृषि फूड पार्क-छोटे तथा मध्यम यूनिटों का विकास करने के लिए खोज, कोल्ड स्टोर बनाने पर भंडारीकरण तथा पैकिंग सुविधाएँ बढ़ाने के लिए पंजाब एग्रो ऑक्सपोर्ट जोन बनाया गया जो कि पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, संगरूर, रोपड़ तथा लुधियाना में बने।

4. मैगा खाद्य पार्क-फूड प्रसंस्करण मंत्रालय ने 8 मैगा खादृा पूरे भारत में लाने का फैसला लिया जिसके बीच सिर्फ पंजाब में तीन मैगा खाद्य पार्क लगाए जाने थे। अब इ२, पंजाब में फाजिल्का में मैगा खाद्य पार्क लगाने का फैसला लिया गया। पंजाब में लगने वाले यह मैगा खाद्य पार्क पंजाब की कृषि के लिए बहुत उपयोगी है। यह केन्द्र मुख्य तौर पर समराला, नाभा, होशियारपुर, लालगढ़ तथा गुरदासपुर में बनाए गए।

खाद्य मंत्रालय ने कपूरथला जिले के गाँव रेहाणा जट्टां में मक्की पर आधारित मैगा खाद्य पार्क का नींव पत्थर रखा। यह पार्क सुरजीत मैगा खाद्य पार्क एंड एनफरा कंपनी लगाने वाली है। इसमें सालाना 250 करोड़ रुपये की लागत के साथ 30 यूनिट लगाये जाने का सुझाव है जिसका सालाना कारोबार 500 करोड़ रुपये होने का अंदाजा है तथा इसके साथ 2500 किसानों को फायदा होगा तथा 5000 लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर
रोज़गार मिलेगा।

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प्रश्न 4.
भारत में दवाइयां बनाने के उद्योग के बारे में विस्तार से नोट लिखो।
उत्तर-
भारत संसार की 10 प्रतिशत तक की दवाइयां बनाकर, संख्या तथा उद्योग के आधार पर तीसरा स्थान हासिल कर रहा है परंतु दवाइयों की कीमत तथा खर्च के अंदाजे के अनुसार भारत का तीसरा स्थान नहीं यह 13वां स्थान बनता है। भारत के रसायन तथा खाद्य मंत्रालय अंतर्गत आते फर्मासुटिकल विभाग के अनुसार साल 2008 से सितंबर 2009 तक देश ने 21 अरब 4 करोड़ अमेरिकी डॉलर का कुल कारोबार किया। भारत दुनिया में कई देशों को दवाइयां निर्यात करता है तथा यूरोप, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा जापान के साथ कई देश भारतीय दवाइयों के खरीददार हैं। भारत जैनरिक दवाइयों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, जो कि संसार की 20 फीसदी जैनरिक दवाइयों को बना रहा है। दवाइयों की सामूहिक सालाना विकास दर के हिसाब से 2005-2016 तक दवाइयों के उत्पादन में 17.46% की दर से वृद्धि हुई तथा 2005 में उत्पादन मूल्य 6 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़ कर 2016 के साल दौरान 36 अरब 70 करोड़ अमेरिका डॉलर तक पहुंच गया। एक अंदाजे के अनुसार 2020 तक यह कारोबार 15.92 फीसदी की दर से बढ़ कर 55 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है। भारतीय दवाइयों के अच्छे उत्पादन के कारण इस क्षेत्र में भारत का झंडा बुलंद है। भारत में पांच दवाइयां बनाने के बड़े केन्द्र हैं, सरकारी क्षेत्र में पांच क्षेत्र हैं, जैसे कि-
PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग 1
1. इंडियन ड्रग एंड फार्मासुटिकल लिमिटेड (IDPL)—यह भारत सरकार के अंतर्गत सबसे बड़ी कंपनी है जो दवाइयां बनाती है। इसके बड़े कारखाने हैदराबाद, ऋषिकेश, गुड़गाँव तथा छोटे कारखाने चेन्नई तथा मुजफ्फरनगर में हैं। चेन्नई वाला कारखाना नंदमबक्म में स्थित है।

2. हिन्दुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड, पिंपरी-पुणे (HAL)—यह दवाइयां बनाने का सरकारी क्षेत्र में एक बड़ा उद्योग है। यह 10 मार्च, 1954 को स्थापित किया गया तथा साल 1955-56 में इसने अपना काम शुरू किया। यह भारत का सबसे पुराना उद्योग है। इस कारखाने में एंटीबायोटिक तथा कृषि-वैध दवाइयां बनती हैं।

3. बंगाल कैमिकल एंड फार्मासुटिकल वर्क्स लिमिटेड-12 अप्रैल, 1901 में ब्रिटिश राज्य के दौरान यह कारखाना स्थापित हुआ था। सबसे पहला 1905 में यह कारखाना माणिकताल जो कि कोलकाता में है लगाया गया। इसके बिना पणीग्पट्टी, उत्तरी 24 परगना ज़िला, पश्चिमी बंगाल में 1920 के समय 1938 में मुंबई में तथा कानपुर में 1949 में इस तरह तीन कारखाने लगाये हैं।

प्रश्न 5.
भारतीय उद्योगों के कोई तीन आधारों पर वर्गीकरण करो तथा विशेषताओं से पहचान करवाओ।
उत्तर-
भारतीय उद्योगों के आधार, उनका वर्गीकरण तथा विशेषताएं निम्नलिखित अनुसार हैं-
मज़दूरों की संख्या के आधार पर वर्गीकरण-इस प्रकार के उद्योगों को तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है।

  • बड़े पैमाने के उद्योग-इस प्रकार के उद्योगों में मजदूरों की संख्या अधिक होती है तथा अधिकतर काम मज़दूर अपने हाथों द्वारा करते हैं। जैसे कि सूती वस्त्र तथा पटसन उद्योग।
  • मध्यम पैमाने के उद्योग-इस प्रकार के उद्योगों में मजदूरों की संख्या बहुत अधिक भी नहीं होती है तथा अधिक कम भी नहीं होती ; जैसे कि साइकल उद्योग, टेलीविज़न उद्योग इत्यादि।
  • छोटे पैमाने के उद्योग-इस प्रकार के उद्योगों में मजदूरों की संख्या काफी कम होती है तथा यह उद्योग निजी स्तर पर ही स्थापित होते हैं।

II. कच्चे तथा तैयार माल पर आधार तथा वर्गीकरण-कच्चे माल की उपलब्धि के आधार पर भी उद्योगों को दो वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • भारे उद्योग-जिन उद्योगों में भारी कच्चा माल अधिक उपयोग किया जाता हैं उन्हें भारे उद्योग कहते हैं ; जैसे कि लौहा तथा इस्पात उद्योग।
  • हल्के उद्योग-जिन उद्योगों में हल्का कच्चा माल उपयोग किया जाता है, उन्हें हल्के उद्योग कहते हैं; जैसे कि पंखे, सिलाई मशीनें इत्यादि।

III. स्वामित्व के आधार तथा वर्गीकरण-स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को आगे चार वर्गों में विभाजित किया जाता है-

  • निजी उद्योग-जो उद्योग किसी खास व्यक्ति या कंपनी के द्वारा चलाया जाए, निजी उद्योग कहलाता हैं; जैसे-रिलायंस, बजाज; अडानी, टाटा आयरन एंड स्टील इत्यादि।
  • सरकारी क्षेत्र के उद्योग-जो उद्योग सरकार के अधीन चलते हैं सरकारी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं। जैसे कि हैवी इलैक्ट्रीकल उद्योग, भिलाई स्टील प्लांट, दुर्गापुर स्टील प्लांट इत्यादि।
  • सामूहिक क्षेत्र के उद्योग-यह उद्योग जो सरकार तथा निजी, गैर सरकारी दोनों द्वारा चलाये जाए सामूहिक उद्योग कहलाते हैं। जैसे-ऑल इंडिया तथा ग्रीन गैस लिमिटेड इत्यादि।
  • सहकारी क्षेत्र-जो उद्योग लोगों द्वारा मिलजुल कर चलाये जाए, सहकारी क्षेत्र के उद्योग कहलाते हैं। जैसे कि अमूल, मदर डेयरी इत्यादि।

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I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर (Objective Type Question Answers)-

A. बहु-विकल्पी प्रश्न :

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से कौन-सा औद्योगिक स्थापना का कारक नहीं है ?
(A) बाजार
(B) पूंजी
(C) ऊर्जा
(D) आबादी का घनत्व।
उत्तर-
(D) आबादी का घनत्व।

प्रश्न 2.
पहली सूती वस्त्र मिल मुंबई में क्यों लगाई गई?
(A) मुंबई एक बंदरगाह है
(B) यह कपास पैदा करने वाले क्षेत्रों के नज़दीक है
(C) मुंबई में पूंजी है
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
मुंबई में पहली सूती वस्त्र मिल कब लगाई गई ?
(A) 1834
(B) 1844
(C) 1864
(D) 1854.
उत्तर-
(D) 1854.

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन-से उद्योग फुटकल उद्योग कहलाते हैं ?
(A) ग्रामीण उद्योग
(B) जंगलों पर आधारित उद्योग
(C) सहकारी उद्योग
(D) बड़े उद्योग।
उत्तर-
(A) ग्रामीण उद्योग

प्रश्न 5.
उद्योगों के स्थानीयकरण पर प्रभाव डालने वाले निम्नलिखित कौन-सा भौगोलिक कारक नहीं है ?
(A) कच्चा माल
(B) मज़दूर
(C) बाज़ार
(D) बैंक की सुविधा।
उत्तर-
(D) बैंक की सुविधा।

प्रश्न 6.
जमशेद जी टाटा ने साकची नामक स्थान पर टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी का प्लांट कब लगाया?
(A) 1907
(B) 1905
(C) 1906
(D) 1909.
उत्तर-
(A) 1907

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प्रश्न 7.
ढाके में किस प्रकार का वस्त्र मशहूर है ?
(A) मलमल
(B) छींट
(C) सूती
(D) सिल्क।
उत्तर-
(A) मलमल

प्रश्न 8.
निम्नलिखित में कौन-सा सूती वस्त्र उद्योग का क्षेत्र पश्चिम की तरफ स्थित है ?
(A) कर्नाटक
(B) महाराष्ट्र
(C) हरियाणा
(D) कोलकाता।
उत्तर-
(A) कर्नाटक

प्रश्न 9.
भारत में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादन किस राज्य में होता है ?
(A) उत्तर प्रदेश
(B) हरियाणा
(C) पंजाब
(D) दिल्ली।
उत्तर-
(A) उत्तर प्रदेश

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प्रश्न 10.
संसार में सबसे अधिक गन्ने का उत्पादक देश कौन-सा है ?
(A) ब्राजील
(B) ऑस्ट्रेलिया
(C) अफ्रीका
(D) रूस।
उत्तर-
(A) ब्राजील

प्रश्न 11.
कोंची शोधनशाला किस राज्य में स्थित है ?
(A) केरल
(B) तमिलनाडु
(C) पश्चिमी बंगाल
(D) उत्तर प्रदेश।
उत्तर-
(A) केरल

प्रश्न 12.
वेतन भोगी दफ़्तरी श्रमिक किस कॉलर के मज़दूर हैं ?
(A) सफेद कॉलर
(B) नीला कॉलर
(C) गुलाबी कॉलर
(D) सुनहरी कॉलर।
उत्तर-
(A) सफेद कॉलर

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प्रश्न 13.
किस नगर को भारत की इलैक्ट्रॉनिक राजधानी कहते हैं ?
(A) मुंबई
(B) कोलकाता
(C) बंगलौर
(D) पूना।
उत्तर-
(C) बंगलौर

प्रश्न 14.
निर्माण किस वर्ग की क्रिया है ?
(A) प्राथमिक
(B) द्वितीयक
(C) तृतीयक
(D) चतुर्थक।
उत्तर-
(B) द्वितीयक

प्रश्न 15.
निम्नलिखित में से किस उद्योग को खनिजों पर आधारित उद्योग कहते हैं ?
(A) वस्त्र उद्योग
(B) तांबा उद्योग
(C) डेयरी उद्योग
(D) कृषि उद्योग।
उत्तर-
(B) तांबा उद्योग

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B. ‘खाली स्थान भरें :

1. उद्योगों को चलाने के लिए ………. की ज़रूरत होती है।
2. भारत में आधुनिक लौह तथा इस्पात उद्योग ………. में शुरू हुआ।
3. पश्चिमी बंगाल के …………… शहर में स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया के सामूहिक यत्नों का बड़ा स्टील प्लांट है।
4. अहमदाबाद को ………. भी कहा जाता है।
5. भारत में ………….. करोड़ टन गन्ना उगाने वाले किसान हैं।
उत्तर-

  1. ऊर्जा,
  2. 1874,
  3. दुर्गापुर,
  4. मानचेस्टर आफ इंडिया,
  5. 2.5.

C. निम्नलिखित कथन सही (√) हैं या गलत (×):

1. बंगाल कैमिकल एंड फार्मासुटिकल वर्क्स लिमिटेड की स्थापना ब्रिटिश राज्य के समय 1901 में हुई।
2. कैदी लोग संतरी कॉलर वाले मज़दूर हैं। 3. भिलाई स्टील प्लांट पश्चिमी बंगाल के दुर्गापुर शहर में स्थित है।
4. सूती वस्त्र उद्योग गुजरात में उन्नत है क्योंकि जहाँ सस्ते मज़दूरों की उपलब्धि है।
5. दवाइयां बनाने के उद्योग में, संसार की दवाइयां बनाकर, संख्या के पक्ष में भारत का पहला स्थान है।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. सही
  5. गलत।

Geography Guide for Class 12 PSEB आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) Important Questions and Answers

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्नोत्तर (One Word/Line Question Answers) :

प्रश्न 1.
निर्माण उद्योग क्या है ?
उत्तर-
कच्चे माल से तैयार वस्तुएं बनाना।

प्रश्न 2.
टूशरी व्यवसाय क्या हैं ?
उत्तर-
जो सेवाएं प्रदान करते हैं।

प्रश्न 3.
द्वितीयक उद्योग क्या हैं ?
उत्तर-
निर्माण उद्योग इस उद्योग के अंतर्गत आते हैं।

प्रश्न 4.
कोयले पर आधारित दो औद्योगिक प्रदेश बताओ।
उत्तर-
रूहर घाटी, दामोदर घाटी।

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प्रश्न 5.
भारत में पहला लौह-इस्पात कारखाना कहां और कब लगाया गया ?
उत्तर-
1907 में जमशेदपुर झारखण्ड में।

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य में लौह-इस्पात उद्योग के दो केन्द्र बताओ।
उत्तर-
पिट्सबर्ग तथा यंगस्टाऊन।

प्रश्न 7.
भारत में इस्पात उद्योग में सरकारी क्षेत्र में तीन केन्द्र बताओ।
उत्तर-
भिलाई, राऊरकेला, दुर्गापुर।

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प्रश्न 8.
भारत में सूती वस्त्र उद्योग के लिए किस नगर को मानचेस्टर कहा जाता है ?
उत्तर-
अहमदाबाद।

प्रश्न 9.
संसार में चीनी का कटोरा किस देश को कहते हैं ?
उत्तर-
क्यूबा।

प्रश्न 10.
पृथ्वी का तापमान बढ़ने के दो कारण बताओ।
उत्तर-
पथराट बालन का अधिक प्रयोग तथा औद्योगिक विकास।

प्रश्न 11.
सूती वस्त्र मिलों को कौन-से तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है ?
उत्तर-
कताई मिलें, बुनाई मिलें तथा धागा तथा वस्त्र मिलें।

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प्रश्न 12.
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग कौन-से चार प्रमुख इलाकों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
पश्चिमी क्षेत्र, दक्षिणी क्षेत्र, उत्तरी क्षेत्र तथा पूर्वी क्षेत्र।

प्रश्न 13.
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग को आने वाली कोई एक कठिनाई बताओ।
उत्तर-
भारत में लम्बे रेशे वाली कपास कम उगाई जाती है।

प्रश्न 14.
पैट्रोकैमिकल उद्योग के प्रमुख स्तर कौन से हैं ?
उत्तर-
धरती के नीचे से तेल निकालना तथा तेल का शोधन करना पैट्रोकैमिकल उद्योग का ही मुख्य स्तर है।

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प्रश्न 15.
बरौनी शोधनशाला भारत के किस राज्य में है ?
उत्तर-
बिहार में।

प्रश्न 16.
सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण पर प्रभाव डालने वाले कारक बताओ।
उत्तर-
कच्चा माल, ऊर्जा, रासायनिक पदार्थ, मशीनरी, मज़दूर, यातायात के साधन तथा बाजार।

प्रश्न 17.
भारत में किस राज्य में सबसे अधिक सूती मिलें हैं ?
उत्तर-
तमिलनाडु 439 मिलें।

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प्रश्न 18.
पहली सूती वस्त्र मिल भारत में कब और कहां लगी ?
उत्तर-
1854 में मुंबई में।

प्रश्न 19.
कच्चेमाल के स्रोत के आधार पर उद्योगों को कौन-से मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता है ?
उत्तर-
कृषि पर आधारित उद्योग, खनिजों पर आधारित, पशुओं पर आधारित तथा जंगलों पर आधारित उद्योग।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आप ऐसा क्या सोचते हो कि लौह-इस्पात उद्योग भारत के औद्योगिक विकास की मूल इकाई है?
उत्तर-
आज के औद्योगिक विकास के लिए लौह तथा इस्पात उद्योग एक मूल इकाई है। यह बड़े उद्योगों के लिए कच्चे माल को संभालता है। इस द्वारा नयी मशीनों का निर्माण किया जाता है। इसलिए यह एक मूल तथा बुनियादी उद्योग है।

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प्रश्न 2.
कच्चे माल के नज़दीक कौन-से उद्योग लगाए जाते हैं ? उदाहरण दो।
उत्तर-
कच्चा माल निर्माण उद्योग का आधार है। जिन उद्योगों का निर्माण के बाद भार कम हो जाता है। वह उद्योग कच्चे माल के नज़दीक लगाये जाते हैं। जैसे गन्ने से चीनी बनाना। जिन उद्योगों में भारी कच्चे माल का प्रयोग किया जाता है। वह उद्योग कच्चे माल के नज़दीक लगाए जाते हैं; जैसे-लौह-इस्पात उद्योग।

प्रश्न 3.
उद्योगों की स्थापना के लिए किस प्रकार का श्रम ज़रूरी है? कुशल श्रमिक के आधार पर कहाँकहाँ उद्योग स्थित हैं ?
उत्तर-
उद्योगों की स्थापना के लिए सस्ते, कुशल तथा अधिक मात्रा में मजदूरों की आवश्यकता होती है। भारत में जगाधरी तथा मुरादाबाद में बर्तन उद्योग, फिरोजाबाद में कांच उद्योग तथा जापान में खिलौनों का उद्योग कुशल श्रमिक के कारण ही विकसित हुआ है।

प्रश्न 4.
यातायात के साधनों का उद्योग की स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
उत्तर-
सस्ते यातायात के साधन उद्योगों की स्थिति में सहायक होते हैं। कच्चा माल कारखानों तक ले जाने तथा बनाये माल को बाजार तक लाने में कम लागत लगती है। महान् झीलें तथा तट्टी तथा हुगली नदी घाटी में जापान के पत्तनों तथा राईन नदी घाटी में उद्योगों का संकेंद्रण सस्ते जल मार्गों के कारण ही है।

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प्रश्न 5.
विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी क्यों है ?
उत्तर-
निर्माण उद्योगों के लिए अधिक पूंजी आवश्यक होती है। इन उद्योगों के लिए मांग क्षेत्र तथा बाजार का होना भी आवश्यक है, पर विकासशील देशों में पूंजी की कमी है तथा लोगों की खरीद शक्ति कम है। इसलिए मांग भी कम है। इसलिए विकासशील देशों में भारी उद्योग की कमी है।

प्रश्न 6.
भारत के कोई पाँच लौह-इस्पात केंद्र वाले नगरों के नाम लिखो।
उत्तर-
लौह-इस्पात नगर— भारत में निम्नलिखित नगरों में आधुनिक इस्पात कारखाने स्थित हैं। इन्हें लौहा इस्पात नगर भी कहा जाता है।

  • जमशेदपुर (झारखंड)
  • बोकारो (झारखंड)
  • भिलाई (छत्तीसगढ़)
  • राऊरकेला (उड़ीसा)
  • भद्रावती (कर्नाटक)

प्रश्न 7.
भारे उद्योग किसे कहते हैं ?
उत्तर-
खनिज पदार्थों का प्रयोग करने वाले आधारभूत उद्योगों को भारे उद्योग कहते हैं। इन उद्योगों में भारी पदार्थों का आधुनिक मिलों में निर्माण किया गया है। यह उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास की आधारशिला हैं। लौहइस्पात उद्योग, मशीनरी, औज़ार तथा इंजीनियरिंग सामान बनाने के उद्योग भारी उद्योग के वर्ग में गिने जाते हैं।

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प्रश्न 8.
निर्माण उद्योग से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
जब कच्चे माल की मशीनों की सहायता के रूप बदल कर अधिक उपयोगी तैयार माल प्राप्त करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं। यह मनुष्य का एक सहायक या गौण व्यवसाय है इसलिए निर्माण उद्योग में जिस वस्तु का रूप बदल जाता है, वह वस्तु अधिक उपयोगी हो जाती है तथा निर्माण द्वारा उस पदार्थ की मूल्य-वृद्धि हो जाती है जैसे लकड़ी से लुगदी तथा कागज़ बनाया जाता है।

प्रश्न 9.
लौह तथा इस्पात उद्योग के महत्त्वपूर्ण प्लांट (उत्पादन केंद्र) कौन से हैं ?
उत्तर-
लौह तथा इस्पात उद्योग के महत्त्वपूर्ण प्लांट निम्नलिखित हैं –

  • टाटा आयरन लिमिटेड
  • इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी
  • विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील कंपनी
  • भिलाई स्टील प्लांट
  • दुर्गापुर स्टील प्लांट
  • राऊरकेला स्टील प्लांट
  • बोकारो स्टील प्लांट ।

प्रश्न 10.
गन्ने की कृषि का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
सारे संसार में चीनी लोगों के भोजन का एक आवश्यक अंग है। गन्ना तथा चुकंदर चीनी के दो मुख्य साधन हैं। संसार की 65% चीनी गन्ने से तथा बाकी चुकंदर से तैयार की जाती है। गन्ना एक व्यापारिक तथा औद्योगिक फ़सल है। गन्ने से कई पदार्थ-कागज़, शीरा, खाद, मोम, चीनी इत्यादि भी तैयार किए जाते हैं। भारत को गन्ने का जन्म स्थान माना जाता है। यहाँ से गन्ने का विस्तार पश्चिमी देशों में हुआ है।

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प्रश्न 11.
चीनी उद्योग में आने वाली कोई दो कठिनाइयों के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. गन्ने की उत्पादन लागत से बिक्री मूल्य का कम होना चीनी उद्योग के लिए बड़ी कठिनाई है ।
  2. गन्ने के रस को निकालने के बाद यह जल्दी ही सूख जाता है तथा लम्बे समय के लिए इसको बचा कर रखना बड़ी समस्या है।

प्रश्न 12.
पेट्रो रसायन उद्योग का महत्त्व क्या है ?
उत्तर-
पेट्रो रसायन उद्योग की महत्ता इस प्रकार है –

  • यह उद्योग कपड़ा, कृषि, पैकिंग, निर्माण तथा दवाइयों के उद्योगों को मूल सहायता प्रदान करता है।
  • इन उद्योगों के विकास के साथ देश की आर्थिकता के स्तर में भी वृद्धि हुई है।

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प्रश्न 13.
हिन्दुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड पर नोट लिखें।
उत्तर-
हिन्दुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड, पिंपरी-पुणे-दवाइयां बनाने का सरकारी क्षेत्र का एक बड़ा उद्योग है। यह 10 मार्च, 1954 को स्थापित हुआ तथा 1955-56 में इसने अपना काम शुरू किया। इस तरह यह भारत का पुराना उद्योग हैं। इस उद्योग में एंटीबायोटिक तथा ऐग्रो तथा वैट दवाइयां बनती हैं।

प्रश्न 14.
ज्ञान आधारित उद्योग कौन-से हैं ?
उत्तर-
ज्ञान पर आधारित उद्योग आर्थिकता की रीढ़ की हड्डी का काम करते हैं। 1970 से सबसे अधिक रोज़गार के साधनों में विकास ज्ञान पर आधारित क्षेत्रों में हुआ। इसमें दवाइयां सेहत से संबंधित, दूरसंचार, साफ्टवेयर, डाक्टरी उपकरण, हवाई जहाज, इत्यादि उद्योग शामिल हैं। इन उद्योगों का कच्चा माल प्रकृति से हमें नहीं मिलता, बल्कि मनुष्य यह खुद अपनी समझ के साथ बनाता है।

प्रश्न 15.
औद्योगिक गलियारों से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
यह एक भौगोलिक क्षेत्र है यहाँ उद्योगों के विकास के लिए हर संभव स्वरूप अपनाया जाता है तथा औद्योगिक विकास को काफी प्रोत्साहन मिलता है तथा प्रारभिक ज़रूरतें एक जगह पर ही प्राप्त हो जाती हैं। औद्योगिक गलियारा कहलाता है। जैसे कि बंदरगाह, राष्ट्रीय राजमार्ग इत्यादि।

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प्रश्न 16.
निरोल मालभाड़ा गलियारा निगम की स्थापना कब तथा क्यों हुई ?
उत्तर-
निरोल मालभाड़ा गलियारा निगम की स्थापना कंपनी एक्ट 1956 के तहत 30 अक्तूबर, 2006 में हुई। उद्योगों के विकास के कारण कच्चा माल तथा तैयार माल एक स्थान से दूसरी जगह पर पहुंचाने के लिए भारतीय रेलवे मंत्रालय ने मालगाड़ियों को चलाने के लिए अलग रेल लाइनें बनाने की योजना बनाई थी। ताकि आसानी से इस माल की सप्लाई की जा सके। इसलिए इस गलियारा निगम की स्थापना की गयी।

प्रश्न 17.
पूंजी प्रधान उद्योग कौन-से हैं ?
उत्तर-
जिन उद्योगों के लिए कच्चा माल खरीदने तथा तैयार माल बनाने के लिए काफी मात्रा में पैसे के निवेश की ज़रूरत होती है, पूंजी पर आधारित उद्योग कहलाते हैं; जैसे लौहा तथा इस्पात उद्योग, सीमेंट उद्योग तथा एल्यूमीनियम उद्योग इत्यादि।

प्रश्न 18.
किसी उद्योग के स्थानीयकरण पर प्रभाव डालने वाले कोई दो गैर भौगोलिक कारकों की जानकारी दो।
उत्तर-

  1. पूंजी-उद्योगों को स्थापित करने, कच्चा माल खरीदने तथा माल को तैयार करने के लिए काफी पूंजी की आवश्यकता होती है। मुंबई, कोलकाता जैसे नगरों में उद्योगों के विकास होने के कारण जहाँ पूंजीपतियों की अधिकता का होना आवश्यक है।
  2. बैंक की सुविधा-जैसे कि एक उद्योग को चलाने के लिए काफी पूंजी का निवेश होता है। इसलिए उद्योग लगाने के लिए बैंक की सुविधा का होना अति आवश्यक है।

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प्रश्न 19.
लौह-इस्पात का महत्त्व बताओ।
उत्तर-
लौह-इस्पात उद्योग आधुनिक उद्योग का नींव पत्थर है। लोहा कठोर, प्रबल तथा सस्ता होने के कारण दूसरी धातुओं की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ कई तरह की मशीनों, यातायात के साधन, कृषि उपकरण, ऊंचे ऊंचे सैनिक हथियार, टैंक, राकेट तथा दैनिक प्रयोग की कई वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लौह-इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदंड है। आधुनिक सभ्यता लौह-इस्पात पर निर्भर करती है। इसलिए वर्तमान युग को इस्पात युग भी कहते हैं।

प्रश्न 20.
कौन-सा कच्चा माल पैट्रो रसायन उद्योग के लिए आवश्यक है ? इस उद्योग की स्थापना के लिए ज़रूरी कारक कौन-से हैं ?
उत्तर-
कच्चे माल के रूप में पैट्रो रसायन उद्योग के लिए काफी उपयोगी है। पैट्रोरसायन उद्योग खासकर तेल शोधनशालाओं के पास भी लगाये जाते हैं। उद्योग की स्थापना के लिए आवश्यक कारक है-

  • धरती के नीचे से तेल निकालना।
  • यह कच्चे माल के नजदीकी स्थान पर लगेंगे।
  • मंडी तथा बाजार पास होना।
  • या किसी बंदरगाह के पास।

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लघु उत्तरीय प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
उद्योगों का वर्गीकरण किस विभिन्न प्रकार द्वारा किया जा सकता है?
उत्तर-
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधार पर किया जाता है –
1. उद्योगों के आकार पर आधारित वर्गीकरण-

  • बड़े पैमाने के उद्योग
  • मध्यम पैमाने के उद्योग
  • छोटे पैमाने के उद्योग।

2. कच्चे माल के आधार पर वर्गीकरण

  • कृषि पर आधारित उद्योग
  • खनिजों पर आधारित उद्योग
  • भारे उद्योग
  • हल्के उद्योग।

3. विकास पर आधारित उद्योग-

  • ग्रामीण उद्योग
  • कुटीर उद्योग
  • सहायक उद्योग
  • उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग
  • पूंजी प्रधान उद्योग
  • मजदूर प्रधान उद्योग।

4. स्वामित्व पर आधारित वर्गीकरण-

  • सार्वजनिक उद्योग
  • निजी उद्योग
  • सहकारी क्षेत्र के उद्योग

5. कच्चे माल पर आधारित वर्गीकरण

  • पशुओं पर आधारित उद्योग।
  • जंगलों पर आधारित उद्योग।

प्रश्न 2.
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण करो ।
उत्तर-
स्वामित्व के आधार पर उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखित है-

  • सरकारी क्षेत्र के उद्योग-यह राज्य द्वारा चलाये जाते हैं। यह खासकर भारे उद्योग होते हैं तथा पूरी तरह सरकारी हाथों में होते हैं; जैसे कि भिलाई स्टील प्लांट।
  • निजी क्षेत्र के उद्योग-यह उद्योग किसी निजी हाथों या गैर सरकारी कंपनियों के द्वारा चलाये जाते हैं; जैसे TISCO.
  • सामूहिक क्षेत्र के उद्योग-जो उद्योग सरकार तथा प्राइवेट सामूहिक क्षेत्र में आते हैं, वह सामूहिक क्षेत्र के उद्योग हैं; जैसे-ऑल इंडिया, ग्रीन गैस लिमिटेड।
  • सहकारी क्षेत्र के उद्योग-जो उद्योग सहकारी क्षेत्र में या लोगों के द्वारा मिल कर चलाया जाए; जैसे कि अमूल, मदर डेयरी इत्यादि।

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प्रश्न 3.
भारी उद्योग तथा कृषि उद्योगों में अन्तर स्पष्ट करो।
उत्तर-
कृषि उद्योग (Agro Industries):

  1. यह प्रायः प्राथमिक उद्योग होते हैं।
  2. यह उद्योग कृषि पदार्थों पर आधारित होते हैं।
  3. इसको कृषि पदार्थों का रूप बदल कर अधिक उपयोगी पदार्थ जैसे कपास से कपड़ा बनाया जाता है।
  4. यह श्रम-प्रधान उद्योग होते हैं।
  5. इसमें प्राय: छोटे तथा मध्यम वर्ग के उद्योग लगाए जाते हैं।
  6. यह विकासशील देशों में अधिकतर पाए जाते हैं।

भारी उद्योग (Heavy Industries):

  1. यह प्रायः गौण उद्योग होते हैं।
  2. इन उद्योगों में शक्तिचालित मशीनों का अधिक प्रयोग होता है।
  3. इन उद्योगों में बड़े पैमाने पर विषम यन्त्र तथा मशीनें बनाई जाती हैं।
  4. यह पूंजी प्रधान उद्योग होते हैं।
  5. इनमें प्राय: बड़े पैमाने के उद्योग लगाए जाते हैं।
  6. ये उद्योग विकसित देशों में स्थापित हैं।

प्रश्न 4.
इस्पात निर्माण ढंग पर नोट लिखो।
उत्तर-
लौहा निर्माण का काम आज से 3000 साल पहले, भारत, मिस्र तथा रोम इत्यादि देशों में किया जाता था। इस युग को लौह युग कहा जाता है। लौहे को भट्टी में गला कर साफ करके इस्पात बनाया जाता है। इस कार्य के लिए कई ढंग प्रयोग में लाये जाते हैं। खुली भट्टी, कोक भट्टी तथा बिजली की पावर भट्टी का अधिक प्रयोग किया जाता है

  • लौहे को पिघला कर शुद्ध करके कच्चा लौहा तैयार किया जाता है।
  • कच्चे लौहे में मैंगनीज को मिलाकर इस्पात बनाया जाता हैं जिसके साथ गार्डर, रेल, पटरियां, चादरे तथा पाइप इत्यादि बनाये जाते हैं।
  • क्रोमियम तथा निक्कल मिलाने के साथ जंग न लगने वाला स्टेनलेस स्टील बनाया जाता है।
  • कोबाल्ट मिलाने के साथ तेज गति के साथ धातु काटने वाले उपकरण बनाये जाते हैं।

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प्रश्न 5.
लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कारक बताओ।
उत्तर-
लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के कारक-लौह-इस्पात उद्योग का स्थानीयकरण निम्नलिखित कारणों पर निर्भर करता है।

  • कच्चा माल (Raw material)-यह उद्योग लोहे तथा कोयले की खानों के नजदीक लगाया जाता हैं इसके अलावा मैंगनीज, चूने के पत्थर, पानी तथा रद्दी, लोहा इत्यादि कच्चे माल भी नजदीक हो।
  • कोक कोयला (Coking Coal)-लौह-इस्पात उद्योग की भट्टियों में लौहा साफ करने के लिए कोक प्राप्त हो। कई बार लकड़ी का कोयला भी प्रयोग किया जाता है।
  • सस्ती भूमि (Cheap Land)—इस उद्योग के साथ कोक भट्टिया, गोदामों, इमारतों इत्यादि के बनाने के लिए सस्ती तथा काफी धरती की आवश्यकता है, ताकि कारखानों का विस्तार भी किया जा सके।
  • मंडी से नजदीकी (Nearness to the Market)-इस उद्योग से बनी मशीनों तथा उपकरण भारे होते हैं। इसलिए यह उद्योग मांग क्षेत्रों के नजदीक लगाये जाते हैं।
  • पूंजी (Capital) इस उद्योग को आधुनिक स्तर पर लगाने में काफी पूंजी की जरूरत होती है। इसलिए उन्नत देशों की सहायता के साथ विकासशील देशों में इस्पात कारखाने लगाये जाते हैं। भारत में रूस की सहायता के साथ बोकारो तथा भिलाई के इस्पात कारखाने लगाए गये हैं।

प्रश्न 6.
भारत में लोहा तथा इस्पात उद्योग को पेश आने वाली मुश्किलों तथा उनके समाधान के बारे में बताएं।
उत्तर-
भारत में लोहा तथा इस्पात उद्योग को पेश आने वाली मुश्किलें निम्नलिखित हैं-

  • सस्ती आयात-चीन, कोरिया, तथा रूस इत्यादि से आ रहे सस्ते आयात के कारण देश के लोहे के उत्पादन पर गलत प्रभाव पड़ता है।
  • कच्चे माल की समस्या-विश्व मंडी में इस्पात की कीमत कम होने के कारण भारत में कच्चे माल की मांग की प्राप्ति के बाद इस्पात के उत्पादन के मूल्य में काफी वृद्धि आ जाती है।
  • लचकदार सरकारी नीतियां-सरकारें साधारणतया कच्चे लोहे की खानों की आबंटन में देरी तथा नीतियां बदलती रहती हैं जिस कारण उत्पादन पर बुरा असर पड़ता है।
  • निम्न स्तर उत्पादन-भारतीय उद्योग लोहे के मूल्यों का मुकाबला करने के लिए 50% स्क्रैप लोहे का उपयोग कर जो घटिया प्रकार का होता है उद्योग चलाते हैं।
  • ऊर्जा की कमी-भारत में बढ़िया किस्म का कोयला तथा उसकी निर्यात होने के कारण तथा भारतीय कोयला उत्पादक, कोल इंडिया लिमिटेड की तरफ घटिया किस्म का कोयला ही उपलब्ध करवाया जाए तथा उसकी भी ज़रूरत के अनुसार पूर्ति न करके इस्पात उत्पादक केंद्रों की ऊर्जा की आवश्यकता कभी भी पूरी नहीं होती।
  • पूंजी-पूंजी की कमी भी लोहा तथा इस्पात उद्योग के लिए समस्या का एक कारण है।

समाधान-कच्चे माल की समस्या का समाधान करना चाहिए : सरकार को बार-बार नीतियों में परिवर्तन नहीं करनी चाहिए तथा साफ-स्पष्ट नीतियां बनानी चाहिए। स्क्रैप लोहे के उपयोग पर पाबंदी लगानी चाहिए तथा बैंक की सुविधा प्रदान करनी चाहिए और उचित ऊर्जा की सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिए।

PSEB 12th Class Geography Solutions Chapter 6 आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं)

प्रश्न 7.
चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व बताओ।
उत्तर-
चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व-

  • कच्चा माल-चीनी मिलें गन्ना पैदा करने वाले क्षेत्रों में लगाई जाती हैं। इसलिए उष्ण कटिबन्ध के देशों में चीनी बनाने के बहुत कारखाने मिलते हैं।
  • सस्ते यातायात-गन्ने की यातायात के लिए सस्ते साधन आवश्यक होते हैं।
  • सस्ते मज़दूर-गन्ने की कटाई इत्यादि तथा मिलों में काम करने के लिए सस्ते तथा अधिक मजदूरों की जरूरत पड़ती है।
  • खपत का ज्यादा होना-चीनी उद्योगों से बचे हुए पदार्थों जैसे कि शीर, एल्कोहल, खाद्य, मोम, कागज इत्यादि उद्योग चलाये जाते हैं इसलिए यह उद्योग कागज तथा गन्ना मिलों के नज़दीक होने चाहिए।

प्रश्न 8.
भारत के चीनी उद्योग के विकास का वर्णन करो।
उत्तर–
चीनी उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। सन् 1932 में सरकार ने विदेशों से आने वाली चीनी पर टैक्स लगा दिया। इस तरह बाहर से आने वाली चीनी महंगी हो गई है तथा देशों में चीनी उद्योगों का विकास हो गया। अब देश में 500 चीनी मिलें हैं तथा चीनी का उत्पादन लगभग 140 लाख टन है। भारत संसार में सबसे अधिक चीनी पैदा करता है। देश की अर्थव्यवस्था में चीनी उद्योग का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रति साल 10 लाख टन चीनी निर्यात की जाती है।

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प्रश्न 9.
भारतीय चीनी उद्योग को आने वाली मुख्य कठिनाइयों कौन-सी हैं ?
उत्तर-
भारतीय चीनी उद्योग को आने वाली मुख्य कठिनाइयां हैं-

  • गन्ने के उत्पादन के लिए लगी हुई पूंजी से बिक्री मूल्यों में भारी गिरावट एक मुख्य समस्या है!
  • गन्ने के रस को निकालने के बाद इसको अधिक समय के लिए बचाया नहीं जा सकता. यह सूख जाता है।
  • चीनी मिलों के मालिकों द्वारा भुगतान किसानों को समय पर नहीं दिया जाता।
  • कोहरा पड़ने के कारण फसल खराब हो जाती है।
  • यातायात पर लागत अधिक आती है।
  • चीनी मिलें छोटी होती हैं।
  • गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं।

प्रश्न 10.
तीसरे क्षेत्र के क्षेत्र या सेवा क्षेत्र बारे में आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
आर्थिकता के पहले स्तर तथा दूसरे क्षेत्र से प्राप्त वस्तुओं के बाद तीसरा स्तर आता है जिसको सेवाक्षेत्र कहते हैं। इसमें उत्पादकता के स्तर में सुधार होता है क्योंकि इस क्षेत्र में ज्ञान का आदान प्रदान होता है। इस क्षेत्र में कई सेवाएं, जैसे-मनोरंजन, सरकारी सेवाएं, टेलीकॉम, दूरसंचार. अतिथि उद्योग, मीडिया, सेहत संभाल, सूचना तकनोलॉजी, कूड़ा संभाल, परचून, बिक्री सलाह. अचल जायदाद, शिक्षा, बीमा बैंकिंग सेवाएं, वकीलों के सुझाव इत्यादि को इसके अंतर्गत शामिल किया जाता है।

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प्रश्न 11.
पंजाब के खाद्य संसाधन उद्योग पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब की कृषि को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि पर आधारित उद्योगों में पूंजी लगाने के लिए पूंजीपतियों को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने खाद्य संसाधन उद्योग मंत्रालय देश भर में लगाये हैं तथा इस उद्योग को प्रोत्साहित किया है।

पंजाब में 2762 करोड़ रुपये खर्च करके 33 मैगा कृषि संसाधन यूनिट स्थापित किया गया है। इसके अलावा 20 मैगा प्रोजैक्ट जो कि 2680 करोड़ रुपये की लागत के हैं। स्वास्थ्य प्रगति, खाना बनाने, चीनी, बच्चों के भोजन इत्यादि के लिए शामिल किये गए हैं। कपूरथला के जिला रेहाना जट्टां में मक्की पर आधारित मैगा खाद्य पार्क का नींव पत्थर भी केंद्र सरकार के खाद्य संसाधन मंत्रालय द्वारा रखा गया।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

प्रश्न 1.
निर्माण उद्योग क्या हैं ? इन उद्योगों का वर्गीकरण करो।
उत्तर-
वस्तुओं का रूप बदल के माल तैयार करने की क्रिया को निर्माण उद्योग कहते हैं। यह मनुष्य का एक सहायक धंधा (रोजगार) है। प्राचीन काल से निर्माण उद्योग छोटे पैमाने पर शिल्प उद्योग के रूप में था। आधुनिक युग में यह उद्योग मिल के रूप में बड़े पैमाने पर स्थापित हो गए हैं।
उद्योगों का वर्गीकरण निम्नलिखितानुसार किया जा सकता है-

1. मजदूरों की संख्या के आधार पर वर्गीकरण (On the basis of Labour)—मज़दूरों की संख्या के आधार पर उद्योगों को दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • बड़े पैमाने के उद्योग (Large Scale Industries) इन क्षेत्रों में जनसंख्या की वृद्धि के कारण मजदूर आसानी के साथ मिल जाते हैं तथा मजदूरों की संख्या अधिक होती है। बड़े पैमाने के उद्योग है; जैसे कि सूती कपड़ा तथा पटसन उद्योग।
  • छोटे पैमाने के उद्योग (Small Scale Industries)-जो छोटे उद्योग होते हैं खासकर निजी स्तर पर खोले जाते हैं तथा कम मजदूरों की आवश्यकता होती है, छोटे पैमाने के उद्योग हैं।

2. कच्चे माल पर आधारित उद्योग (On the basis of Product or Raw Material) कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को आगे दो भागों में विभाजित किया जाता है-

  • भारे उद्योग (Heavy Industries) जिन उद्योगों में भारे कच्चे माल का प्रयोग किया जाता है, भारे उद्योग कहलाते हैं; जैसे-लौहा तथा इस्पात उद्योग।
  • हल्के उद्योग (Light Industries)-हल्के कच्चे माल का प्रयोग करने वाले उद्योगों को हल्के उद्योग कहते हैं; जैसे कि सिलाई मशीनों के उद्योग।

3. स्वामित्व के आधार पर वर्गीकरण (On the Basis of Ownership)-स्वामित्व के आधार पर उद्योगों को चार मुख्य भागों में वर्गीकृत किया जाता है।

  • निजी उद्योग (Private Industries)—जो उद्योग कुछेक व्यक्तियों द्वारा चलाये जाते हैं तथा सरकार के कंट्रोल के बाहर हों, पूरी तरह से निजी हाथों में हों, निजी उद्योग कहलाते हैं। जैसे-बजाज, रिलायंस इत्यादि।
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  • सरकारी उद्योग (Public Industries)–जो उद्योग सरकारी कंट्रोल के अंतर्गत आते हों तथा सरकार
    द्वारा चलाये जाएं, सरकारी उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि भारी विद्युत्, दुर्गापुर स्टील प्लांट इत्यादि।
  • सामूहिक क्षेत्र के उद्योग (Joint Sector Industries)—जो उद्योग सरकार तथा प्राइवेट दोनों के अंतर्गत हों, सहायक क्षेत्र का उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि आयल इंडिया इत्यादि।
  • सहकारी क्षेत्र (Cooperative Industries) जब कुछ व्यक्ति या लोग मिलकर किसी उद्योग को चलाएं सहकारी क्षेत्र का उद्योग कहलाता हैं; जैसे कि अमूल, मदर डेयरी इत्यादि।

4. कच्चे माल पर आधारित उद्योग (On the basis of Raw Material) कच्चे माल पर आधारित उद्योगों को निम्नलिखित चार भागों में विभाजित किया जाता है-

  • कृषि पर आधारित उद्योग (Agro Based Industries)—जो उद्योग अपने लिए कच्चा माल कृषि से हासिल करते हैं कृषि पर आधारित उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि चीनी उद्योग, सूती वस्त्र उद्योग इत्यादि।
  • खनिजों पर आधारित उद्योग (Mineral Based Industries)-जो उद्योग अपने लिए कच्चा माल खानों में से खनिज के रूप में लेते हैं, खनिजों पर आधारित उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि तांबा उद्योग, इस्पात उद्योग इत्यादि।
  • पशुओं पर आधारित उद्योग (Animals Based Industries)-जब किसी उद्योग को चलाने के लिए कच्चा माल पशुओं से लिया जाता है, पशुओं पर आधारित उद्योग कहलाता है। जैसे कि जूते, डेयरी उत्पाद इत्यादि।
  • जंगलों पर आधारित उद्योग (Forest Based Industries)-जब किसी उद्योग के लिए कच्चा माल जंगलों से लिया जाता है, जगलों पर आधारित उद्योग कहलाते हैं, जैसे कि कागज़, टोकरी, इत्यादि के उद्योग।

5. फुटकल उद्योग (Miscellaneous Industries)-इन उद्योगों को मुख्य रूप में सात भागों में विभाजित किया जाता हैं-

  • ग्रामीण उद्योग (Rural Industries)—जो उद्योग गाँव में लगाये जाते हैं तथा वह गाँव की ज़रूरतों को पूरा करते हैं। ग्रामीण उद्योग कहलाते हैं; जैसे-आटा चक्कियां इत्यादि।
  • कुटीर उद्योग (Cottage Industries)—जब कोई शिल्पकार अपने घर में ही कोई सामान बनाये, जैसे कि बांस, पीतल इत्यादि को तराश के, वह कुटीर उद्योग कहलाते हैं; जैसे चमड़े के सामान बनाने का उद्योग।
  • उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग (Consumer Products Industries)-जिनमें कच्चे माल को तैयार करके उपभोक्ता तक पहुँचाया जाता है उपभोक्ता वस्तुओं के उद्योग कहते हैं-जैसे वस्त्र, चीनी इत्यादि।
  • सहायक उद्योग (Co-operative Industries)-जब किसी स्थान पर छोटे पुर्जे इत्यादि बना कर बड़े उद्योगों को भेजे जाते हैं, तब छोटे पुर्जे बनाने वाले उद्योग सहायक उद्योग कहलाते हैं जैसे-ट्रक, बस, रेल इंजन इत्यादि।
  • बुनियादी उद्योग (Basic Industries)-जो उद्योग निर्माण की प्रक्रिया के लिए दूसरे उद्योगों पर निर्भर करते हैं, बुनियादी उद्योग कहलाते हैं, जैसे बिजली बनाना।
  • पूंजी प्रधान उद्योग (Money Based Industries)-जिन उद्योगों में पैसे का प्रयोग अधिक होता है, पूंजी प्रधान उद्योग कहलाते हैं; जैसे सीमेंट, एल्यूमीनियम उद्योग।
  • मजदूर प्रधान उद्योग (Labour Based Industries)-जिन उद्योगों में मजदूरों की अधिक से अधिक आवश्यकता होती है, वह मज़दूर प्रधान उद्योग कहलाते हैं; जैसे कि बीड़ी उद्योग इत्यादि।

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प्रश्न 2.
उद्योगों का स्थानीयकरण कौन से तत्वों पर निर्भर करता है ? उदाहरण सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
उद्योगों का स्थानीयकरण भौतिक तथा मानवीय दो तरह के मुख्य तत्वों पर निर्भर करता है। उदाहरणों सहित व्याख्या इस प्रकार है-
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I. भौगोलिक कारक (Geographical Factors)-

1. कच्चे माल की निकटता (Nearness of Raw Material) उद्योग कच्चे माल के स्रोत के निकट ही स्थापित किए जाते हैं। कच्चा माल उद्योगों की आत्मा है। उद्योग वहीं पर स्थापित किए जाते हैं, जहां कच्चा माल अधिक मात्रा में कम लागत पर, आसानी से उपलब्ध हो सके। इसलिए लौहे और चीनी के कारखाने कच्चे माल की प्राप्ति-स्थान के निकट लगाए जाते हैं। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुएं जैसे डेयरी उद्योग भी उत्पादक केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं। भारी कच्चे माल के उद्योग उन वस्तुओं के मिलने के स्थान के निकट ही लगाए जाते हैं। इस्पात उद्योग कोयला तथा लौहा खानों के निकट स्थित है। कागज़ की लुगदी के कारखाने तथा आरा मिले कोणधारी वन प्रदेशों में स्थित है। उदाहरण-कच्चे माल की प्राप्ति के कारण ही चीनी उद्योग उत्तर प्रदेश में, पटसन उद्योग पश्चिमी बंगाल में, सूती वस्त्र उद्योग महाराष्ट्र में तथा लौह इस्पात उद्योग बिहार, उड़ीसा में लगे हुए हैं।

2. शक्ति के साधन (Power Resources) कोयला, पेट्रोलियम तथा जल-विद्युत् शक्ति के प्रमुख साधन हैं।
भारी उद्योगों में शक्ति के साधनों का अधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। इसलिए अधिकतर उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां कोयले की खाने समीप हों या पेट्रोलियम अथवा जल-विद्युत् उपलब्ध हो। भारत में दामोदर घाटी, कोयले के कारण ही प्रमुख औद्योगिक केन्द्र हैं। खाद व रासायनिक उद्योग, एल्यूमीनियम उद्योग, कागज़ उद्योग, जल-विद्युत् शक्ति केन्द्रों के निकट लगाए जाते हैं, क्योंकि इनमें अधिक मात्रा में सस्ती बिजली की आवश्यकता होती है।

उदाहरण-भारत में इस्पात उद्योग झरिया तथा रानीगंज की कोयला खानों के समीप स्थित है। पंजाब में भाखड़ा योजना से जल-विद्युत् प्राप्ति के कारण खाद का कारखाना नंगल में स्थित है। एल्यूमीनियम उद्योग एक ऊर्जा-गहन (Energy intensive) उद्योग है जो रेनूकूट में (उत्तर प्रदेश) विद्युत शक्ति उपलब्धता के कारण स्थापित है।

3. यातायात के साधन (Means of Transport)-उन स्थानों पर उद्योग लगाए जाते हैं, जहां सस्तो, उत्तम
कुशल और शीघ्रगामी यातायात के साधन उपलब्ध हो। कच्चा माल, श्रमिक तथा मशीनों को कारखानों तक पहुंचाने के लिए सस्ते साधन चाहिए। तैयार किए हुए माल को कम खर्च पर बाज़ार तक पहुंचाने के लिए उत्तम परिवहन साधन बहुत सहायक होते हैं।

उदाहरण-जल यातायात सबसे सस्ता साधन है। इसलिए अधिक उद्योग कोलकाता, चेन्नई आदि बंदरगाहों
के स्थान पर हैं जो अपनी पश्चभूमियों (Hinterland) से रेल मार्ग तथा सड़क मार्गों द्वारा जुड़ी हुई हैं।

4. कुशल श्रमिक (Skilled Labour)-कुशल श्रमिक अधिक और अच्छा काम कर सकते हैं जिससे उत्तम तथा सस्ता माल बनता है। किसी स्थान पर लम्बे समय से एक ही उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों के कारण औद्योगिक केन्द्र बन जाते हैं। आधुनिक मिल उद्योग में अधिक कार्य मशीनों द्वारा होता है, इसलिए कम श्रमिकों .. की आवश्यकता होती है। कुछ उद्योगों में अत्यन्त कुशल तथा कुछ उद्योगों में अर्द्ध-कुशल श्रमिकों की आवश्यकता होती है। श्रम प्रधान उद्योग (Labour Intensive) उद्योग कुशल तथा सस्ते श्रम क्षेत्रों की ओर आकर्षित होते हैं। उदाहरण-मेरठ और जालन्धर में खेलने का सामान बनाने, लुधियाना में हौजरी उद्योग तथा वाराणसी में जरी उद्योग, मुरादाबाद में पीतल के बर्तन बनाने तथा फिरोजाबाद में चूड़ियां बनाने का उद्योग कुशल श्रमिकों के कारण ही है।

5. जल की पूर्ति (Water Supply) कई उद्योगों में प्रयोग किए जल की विशाल राशि की आवश्यकता होती है जैसे-लौह-इस्पात उद्योग, खाद्य संसाधन. कागज़ उद्योग, रसायन तथा पटसन उद्योग, इसलिए ये उद्योग झीलों, नदियों तथा तालाबों के निकट लगाए जाते हैं।
उदाहरण-जमशेदपुर में लौह-इस्पात उद्योग खोरकाई तथा स्वर्ण रेखा नदियों के संगम पर स्थित है।

6. जलवायु (Climate) कुछ उद्योगों में जलवायु का मुख्य स्थान होता है। उत्तम जलवायु मनुष्य की कार्य कुशलता पर भी प्रभाव डालती है। सूती कपड़े के उद्योग के लिए आर्द्र जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु में धागा बार-बार नहीं टूटता। वायुयान उद्योग के लिए शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है। उदाहरण-मुंबई में सूती कपड़ा उद्योग आर्द्र जलवायु के कारण तथा बंगलौर में वायुयान उद्योग (Aircraft) शुष्क जलवायु के कारण स्थित है।

7. बाजार से निकटता (Nearness to Market) मांग क्षेत्रों का उद्योग के निकट होना आवश्यक है। इससे कम खर्च पर तैयार माल बाजारों में भेजा जाता है। माल की खपत जल्दी हो जाती है तथा लाभ प्राप्त होता है। शीघ्र खराब होने वाली वस्तुओं के उद्योग जैसे डेयरी उद्योग, खाद्य उद्योग बड़े नगरों के निकट लगाए जाते हैं। यहां अधिक जनसंख्या के कारण लोगों की माल खरीदने की शक्ति अधिक होती है। एशिया के देशों में अधिक जनसंख्या है, परन्तु निर्धन लोगों के कारण ऊंचे मूल्य वस्तुओं की मांग कम है। यही कारण है कि विकासशील देशों में निर्माण उद्योगों की कमी है। छोटे-छोटे पुर्ने तैयार करने वाले उद्योग बड़े कारखानों के निकट लगाए जाते हैं जहां इन पों का प्रयोग होता है।

8. सस्ती व समतल भूमि (Cheap and Level Land)-भारी उद्योगों के लिए समतल मैदानी भूमि की बहुत आवश्यकता होती है। इसी कारण से जमशेदपुर का इस्पात उद्योग दामोदर नदी घाटी के मैदानी क्षेत्र में स्थित है।

9. स्थान (Site) किसी भी उद्योग के लिए अच्छे धरातल अर्थ सही समतल ज़मीन की जरूरत होती है ताकि यातायात के साधन अच्छे हों। खासकर खुली जगह पर ऐसे उद्योग स्थापित किये जाते हैं।

II. मानवीय कारक-कच्चे माल के भाव में, मौजूदा विज्ञान तथा तकनीकी विकास के अनुसार कई चीजों को
शामिल किया गया है। उपरोक्त लिखे कई भौगोलिक कारकों के बिना कई गैर भौगोलिक कारक भी हैं जो किसी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए ज़रूरी हैं जैसे कि-

1. पूंजी की सुविधा (Capital) -उद्योग उन स्थानों पर लगाए जाते हैं जहां पूंजी पर्याप्त मात्रा में ठीक समय पर तथा उचित दर पर मिल सके। निर्माण उद्योग को बड़े पैमाने पर चलाने के लिए अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में पूंजी लगाने के कारण उद्योगों का विकास हुआ है। राजनीतिक स्थिरता और बिना डर के पूंजी विनियोग उद्योगों के विकास में सहायक है। उदाहरण-दिल्ली, मुंबई, कोलकाता आदि नगरों में बड़े-बड़े पूंजीपतियों और बैंकों की सुविधा के कारण ही औद्योगिक विकास हुआ है।

2. पूर्व आरम्भ (Early Start) जिस स्थान पर कोई उद्योग पहले से ही स्थापित हों, उसी स्थान पर उस उद्योग के अनेक कारखाने स्थापित हो जाते हैं। मुम्बई में सूती कपड़े के उद्योग तथा कोलकाता में जूट उद्योगों इसी कारण से केन्द्रित हैं। किसी स्थान पर अचानक किसी ऐतिहासिक घटना के कारण सफल उद्योग स्थापित हो जाते हैं। अलीगढ़ में ताला उद्योग इसका उदाहरण है।

3. सरकारी नीति (Government Policy)—सरकार के संरक्षण में कई उद्योग विकास कर जाते हैं, जैसे देश में चीनी उद्योग सन् 1932 के पश्चात् सरकारी संरक्षण से ही उन्नत हुआ है। सरकारी सहायता से कई उद्योगों को बहुत-सी सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। सरकार द्वारा लगाए टैक्सों से भी उद्योग पर प्रभाव पड़ता है। मथुरा में तेल शोधनशाला, कपूरथला में कोच फैक्टरी तथा जगदीशपुर में उर्वरक कारखाना सरकारी नीति के अधीन लगाए गए हैं।

4. बैंकों की सुविधाएं (Facilities of Banks)-उद्योग में खरीद तथा बेच के रुपये का लेन-देन बहुत होता है। इसलिए बैंक की सहूलियतें बड़े शहरों में उद्योगों के लिए आकर्षित करते हैं।

5. सुरक्षा (Defence)-देश में सैनिक सामान तैयार करने वाले कारखाने सुरक्षा के दृष्टिकोण के साथ देश के अंदरूनी भागों में लाये जाते हैं। बंगलौर में हवाई जहाजों का उद्योग इसलिए ही स्थापित है।

6. ऐतिहासिक कारक (Historical Factors) अचानक ही किसी स्थान से कभी कोई उद्योग का रूप धारण कर लेता है; जैसे अलीगढ़ में ताला उद्योग इसलिए ही प्रसिद्ध है।
7. बीमा (Insurance) किसी भी अनहोनी जो मनुष्य या मशीनरी इत्यादि किसी के साथ भी हो ऐसी सूरत में बीमा की सुविधा होनी ज़रूरी है।

8. औद्योगिक जड़त्व (Industrial Inertia)-जिस स्थान पर कोई उद्योग शुरू हुआ होता है कई बार वहाँ ही पूरी तरह से विकसित हो जाता है। यह जड़त्व भौगोलिक तथा औद्योगिक किसी भी प्रकार का हो सकता है; जैसे उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में तालों का उद्योग इत्यादि।

9. अन्य तत्व (Other Factors)-कई और तत्व भी औद्योगिक विकास पर प्रभाव डालते हैं। जल की पूर्ति के लिए कई उद्योग नदियों या झीलों के तट पर लगाये जाते हैं। तकनीकी ज्ञान प्रबंध, संगठन तथा राजनीतिक ‘ कारण भी उद्योग की स्थापना पर प्रभाव डालते हैं।

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प्रश्न 3.
भारत में लौह तथा इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण तथा उद्योग का विवरण दो। भारत में लगाये गये कारखानों का वर्णन करो।
उत्तर-
लौह-इस्पात उद्योग आधुनिक औद्योगिक युवा की आधारशिला है। लोहा कठोरता, प्रबलता तथा सस्ता होने के कारण अन्य धातुओं की तुलना में अधिक महत्त्वपूर्ण है। इससे अनेक प्रकार की मशीनें, परिवहन के साधन, कृषि यन्त्र, ऊंचे-ऊंचे भवन, सैनिक अस्त्र-शस्त्र, राकेट तथा दैनिक प्रयोग की अनेक वस्तुएं तैयार की जाती हैं। लौह इस्पात का उत्पादन ही किसी देश के आर्थिक विकास का मापदंड है। आधुनिक सभ्यता लौह-इस्पात पर निर्भर करती है, इसलिए वर्तमान युग को ‘इस्पात युग’ कहते हैं।

इस्पात निर्माण ढंग-लोहा निर्माण का काम आज से 3000 साल पहले, भारत, मिस्र तथा रोम इत्यादि देशों में किया जाता था। इस युग को लौहयुग कहा जाता है। पृथ्वी की खानों में लोहा अशुद्ध रूप में मिलता है। लोहे को भट्टी में गला कर साफ करके इस्पात बनाया जाता हैं। इस कार्य के लिए ढंग प्रयोग में लाये जाते हैं। खुली भट्टी, कोक भट्टी तथा बिजली की पावर भट्टियों का प्रयोग किया जाता है।

  1. लोहे को पिघला कर शुद्ध करके कच्चा लौहा तैयार किया जाता है।
  2. कच्चे लोहे में मैंगनीज़ मिलाकर इस्पात बनाया जाता है जिसके साथ गार्डर, रेल पटरियां, चादरें तथा पाइप इत्यादि बनाये जाते हैं।
  3. क्रोमियम तथा निक्कल मिलाकर रखने से जंगाल न लगने वाला स्टेनलेस स्टील बनाया जाता है।
  4. कोबाल्ट मिलाने से तेज गति के साथ धातु काटने वाले उपकरण बनाये जाते हैं।

लौह-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व (Locational Factors)-लौह-इस्पात उद्योग निम्नलिखित दशाओं पर निर्भर करता है।

  • कच्चा कोयला (Raw Material)—यह उद्योग लोहे तथा कोयले की खानों के निकट लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त मैंगनीज़, चूने के पत्थर, पानी तथा रद्दी लौहा (Scrap Iron) इत्यादि कच्चे माल भी निकट ही प्राप्त हों।
  • सस्ती भूमि (Cheap Land)—इस उद्योग से बाकी भट्टियों, गोदामों, इमारतों इत्यादि के बनाने के लिए सस्ती तथा पर्याप्त भूमि चाहिए ताकि कारखानों का विस्तार भी किया जा सके।
  • कोक कोयला (Coking Coal)-लौह-इस्पात उद्योग की भट्टियों में लोहा साफ करने के लिए ईंधन के रूप में कोक कोयला प्राप्त हों। कई बार लकड़ी का कोयला भी प्रयोग किया जाता है।
  • बाज़ार की निकटता (Nearness to the Market)-इस उद्योग से बनी मशीनों तथा यन्त्र भारी होते हैं इसलिए यह उद्योग मांग क्षेत्रों के निकट लगाये जाते हैं।
  • पूंजी (Capital)-इस उद्योग को आधुनिक स्तर पर लगाने के लिए पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है। इसलिए उन्नत देशों की सहायता से विकासशील देशों में इस्पात कारखाने लगाए जाते हैं।
  • इस उद्योग के लिए परिवहन के सस्ते साधन, कुशल, श्रमिक, सुरक्षित स्थानों तथा तकनीकी ज्ञान की सुविधाएं प्राप्त होनी चाहिएं। भारत में आधुनिक ढंग का पहला कारखाना सन् 1907 में साकची जमशेदपुर बिहार में जमशेद जी टाटा ने लगाया था जो अब झारखण्ड राज्य में है।

निजी क्षेत्र के प्रमुख इस्पात केंद्र-

1. जमशेदपुर में टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO)

  • कच्चा लौहा-सिंहभूमि जिले में कच्चा लोहा निकट ही से प्राप्त हो जाता है। उड़ीसा की मयूरभंज खानों से 75 कि०मी० दूरी से कच्चा लोहा मिलता है।
  • कोयला-कोक कोयले के क्षेत्र झरिया तथा रानीगंज के निकट ही हैं।
  • अन्य खनिज पदार्थ-चूने के पत्थर गंगपुर में, मैंगनीज़ बिहार से तथा क्वार्टज मिट्टी कालीमती स्थान से आसानी से प्राप्त हो जाती है।
  • नदियों की सुविधा-रेत तथा जल कई नदियों से जैसे दामोदर स्वर्ण रेखा, खोरकाई से प्राप्त हो जाते हैं।
  • सस्ते व कुशल श्रमिक-बिहार, बंगाल राज्य के घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों में सस्ते व कुशल श्रमिक आसानी से मिलते हैं।
  • बंदरगाहों की सुविधा-कोलकाता बंदरगाह निकट है तथा आयात व निर्यात की आसानी है।
  • यातायात के साधन-रेल, सड़क व जलमार्गों के यातायात के सुगम व सस्ते साधन प्राप्त हैं।
  • समतल भूमि-नदी घाटियों में समतल व सस्ती भूमि प्राप्त है, जहां कारखाने लगाए जा सकते हैं।

2. बेर्नपुर में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी (IISCO)—पश्चिमी बंगाल में यह निजी क्षेत्र में इस्पात कारखाना स्थित है। यह कारखाना सन् 1972 ई० से केन्द्र द्वारा नियंत्रित है। यहां निम्नलिखित सुविधाएं प्राप्त हैं।

  • रानीगंज तथा झरिया से 137 कि०मी० की दूरी पर कोयला प्राप्त होता है।
  • लौहा झारखंड में सिंहभूमि क्षेत्र में।
  • चूने का पत्थर उड़ीसा से, गंगपुर क्षेत्र से।
  • जल दामोदर नदी से प्राप्त हो जाता है।
  • कोलकाता बंदरगाह से आयात-निर्यात तथा व्यापार की सुविधाएं प्राप्त हैं।

3. विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड (VISL) यह कारखाना कर्नाटक राज्य में भद्रा नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित भद्रावती स्थान पर सन् 1923 में लगाया गया।

सुविधाएं (Factors)-

  • हैमेटाइट लोहा बाबा बूदन पहाड़ियों से।
  • लकड़ी का कोयला कादूर के वनों से।
  • जल बिजली जोग जल प्रपात तथा शिवसमुद्रम प्रपात से
  • चूने का पत्थर भंडी गुड्डा से प्राप्त होता है।
  • शिमोगा से मैंगनीज़ प्राप्त होता है।

सार्वजनिक क्षेत्र से लौह-इस्पात केंद्र-देश में इस्पात उद्योग में वृद्धि करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र में हिंदस्तान स्टील लिमिटेड (HSL) कंपनी की स्थापना की गई। इसके अधीन विदेशी सहायता से चार इस्पात कारखाने लगाए गए हैं।

I. भिलाई-यह कारखाना छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले में भिलाई स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लौहा 97 कि०मी० दूरी से धाली-राजहारा पहाड़ी से प्राप्त होता है।
  • कोयला कोरबा तथा झरिया खानों से मिलता है।
  • मैंगनीज़ बालाघाट क्षेत्र से तथा चूने का पत्थर नंदिनी खानों से प्राप्त होता है।
  • तांदुला तालाब से जल प्राप्त होता है।
  • यह नगर कोलकाता, नागपुर रेलमार्ग पर स्थित है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन किया जा रहा है।

II. दुर्गापुर-यह इस्पात कारखाना पश्चिमी बंगाल में इंग्लैंड की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लोहा सिंहभूम क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • कोयला रानीगंज क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • गंगपुर क्षेत्र में डोलोमाइट व चूने का पत्थर मिलता है।
  • दामोदर नदी से जल तथा विद्युत प्राप्त होती है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 16 लाख टन से बढ़ाकर 24 लाख टन किया जा रहा है।

III. राऊरकेला-यह कारखाना उड़ीसा में जर्मनी की फर्म क्रुप एण्ड डीमग की सहायता से लगाया गया है।

  • यहां लोहा उड़ीसा के बोनाई क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • कोयला झरिया तथा रानीगंज से प्राप्त होता है।
  • चूने का पत्थर पुरनापानी तथा मैंगनीज़ ब्राजमदा क्षेत्र से प्राप्त होता है।
  • हीराकुंड बांध से जल तथा जल विद्युत् मिल जाती है। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 18 लाख टन से बढ़ा कर 28 लाख टन करने की योजना है।

IV. बोकारो-यह कारखाना झारखंड में बोकारो नामक स्थान पर रूस की सहायता से लगाया गया है।

  • इस केन्द्र की स्थिति कच्चे माल के स्रोतों के मध्य में है। यहां बोकारो, झरिया से कोयला, उडीसा के क्योंझर क्षेत्र से लोहा प्राप्त होता है।
  • जल विद्युत हीराकुंड तथा दामोदर योजना से।
  • जल बोकारो तथा दामोदर नदियों से। इस कारखाने की उत्पादन क्षमता को 25 लाख टन से बढ़ाकर 40 लाख टन किया जा रहा है।

सातवीं पंचवर्षीय योजना के नए कारखाने-सातवीं पंचवर्षीय योजना में तीन नए कारखाने लगाए जाने की योजना बनाई गई है।

  1. आंध्र में विशाखापट्टनम
  2. तमिलनाडु में सेलम
  3. कर्नाटक में होस्पेट के निकट विजय नगर।

उत्पादन-देश में उत्पादन बढ़ जाने के कारण कुछ ही वर्षों में भारत संसार के प्रमुख इस्पात देशों में स्थान प्राप्त कर लेगा। 2009 में देश में तैयार इस्पात का उत्पादन 597 लाख टन था। यंत्रों इत्यादि के लिए स्पैशल इस्पात का उत्पादन
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5 लाख टन था। भारत में इस्पात की प्रति व्यक्ति खपत केवल 32 किलोग्राम है जबकि अमेरिका में 500 किलोग्राम है। भारत में प्रतिवर्ष 20 लाख टन लोहा तथा इस्पात विदेशों को निर्यात किया जाता हैं। जिसका मूल्य ₹ 2000 करोड़ है।

भविष्य-24 जनवरी, 1973 को स्टील अथारिटी ऑफ इंडिया (SAIL) की स्थापना की गई है। यह संगठन लौह इस्पात, उत्पादन व निर्यात का कार्य संभालेगा। विभिन्न कारखानों की क्षमता को बढ़ाकर उत्पादन 1000 लाख टन तक ले जाने का लक्ष्य है। देश में इस्पात बनाने के लिए छोटे-छोटे कारखाने लगाकर उत्पादन बढ़ाया जाएगा।

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प्रश्न 4.
भारत में सूती कपड़ा उद्योग के स्थानीयकरण तथा सूती कपड़ा उद्योग का विवरण दो। यह उद्योग किन कारणों से मुंबई तथा अहमदाबाद में केंद्रित है?
उत्तर-
इतिहास (History)—वस्त्र मनुष्य की मूल आवश्यकता है। सूती कपड़ा उद्योग बहुत प्राचीन है। आज से लगभग बहुत समय पहले सूती वस्त्र उद्योग भारत में घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत था। ढाके की मलमल संसार में प्रसिद्ध थी। सूती मिल उद्योग का आरम्भ 18वीं शताब्दी में ग्रेट ब्रिटेन में हुआ। औद्योगिक क्रान्ति के कारण आर्कराइट, क्रोम्पटन तथा कार्टहाईट नामक कारीगरों ने पावरलूम इत्यादि कई मशीनों का आविष्कार किया। सूती कपड़ा बनाने की इन मशीनों के कारण इंग्लैंड का लंकाशायर प्रदेश संसार भर में सूतीवस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध हो गया है। इसके पश्चात् सूती वस्त्र का मिल उद्योग संसार में कई क्षेत्रों में यू०एस०ए०, रूस, यूरोप, भारत तथा जापान इत्यादि में फैल गया।

सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण के तत्व (Factors of Location)सूती वस्त्र उद्योग संसार के बहुत सारे देशों में फैल गया है। लगभग 40 देशों में यह उद्योग उन्नत है। कपास की प्राप्ति तथा हर एक देश की मांग होने के कारण इस उद्योग का विस्तार होता जा रहा है। यह उद्योग अग्रलिखित तत्वों पर निर्भर करता है।

  • कच्चे माल की नजदीकी-सूती वस्त्र उद्योग कपास पैदा करने वाले क्षेत्रों में लगाना उपयोगी होता है जैसे भारत में अहमदाबाद क्षेत्र तथा यू०एस०ए० की कपास की पेटी में सूती वस्त्र उद्योग है। जापान तथा इंग्लैंड विदेशों से कपास निर्यात करते हैं।
  • जलवायु-सूती कपड़ा उद्योग के लिए सिल्ल तथा समुद्री जलवायु अनुकूल होती है। इस जलवायु में धागा बार-बार नहीं टूटता। इसीलिए मुंबई, लंकाशायर तथा जापान तट पर यह उद्योग स्थापित है। कई खुश्क भागों में बनावटी नमी पैदा करने वाली मशीनों का प्रयोग किया जाता है; जैसे कानपुर में, परन्तु इस तरह से उत्पादन करने पर खर्च ज्यादा होता है।
  • सस्ती यातायात-जापान तथा इंग्लैंड सस्ती यातायात द्वारा कपास मंगवा कर अपने देश में उद्योग चलाते हैं।
  • सस्ते तथा कुशल श्रमिक-इस उद्योग के लिए कुशल मजदूर अधिक मात्रा में होने चाहिए।
  • बाजार से निकटता- यह उद्योग बाज़ार मुखी उद्योग है। यह उद्योग स्थानिक खपत केन्द्रों तथा विदेशी मंडियों के नज़दीक लगाये जाते हैं। भारत, चीन, जापान में इस उद्योग की एशिया की घनी जनसंख्या के कारण एक विशाल मंडी है।
  • शक्ति के साधन-इस उद्योग के लिए जल बिजली की सुविधा हो या कोयला निकट हो जैसे कोलकाता में रानीगंज कोयला क्षेत्र नजदीक है।
  • अन्य तत्व-इसके बिना सूती वस्त्र उद्योग के लिए मशीनरी, साफ जल, ज्यादा पूंजी, तकनीकी ज्ञान, सरकारी सहायता, रासायनिक पदार्थों इत्यादि की ज़रूरत भी होती है। सूती कपड़ा उद्योग भारत का प्राचीन उद्योग है। ढाका की मलमल दूर-दूर के देशों में प्रसिद्ध है। यह उद्योग घरेलू उद्योग के रूप में उन्नत है, परन्तु अंग्रेजी सरकार ने इस उद्योग को समाप्त करके भारत को इंग्लैंड में बने कपड़े की एक मंडी बना दिया। भारत में पहली आधुनिक मिल सन् 1818 में कोलकत्ता (कोलकाता) में स्थापित की गई।

महत्त्व (Importance)-

  • यह उद्योग भारत का सबसे बड़ा तथा प्राचीन उद्योग है।
  • इसमें 10 लाख मज़दूर काम करते हैं।
  • सब उद्योगों में से अधिक पूंजी इसमें लगी हुई है।
  • इस उद्योग के माल के निर्यात से 2000 करोड़ की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
  • इस उद्योग पर रंगाई, धुलाई, रासायनिक उद्योग निर्भर करते हैं। इस उद्योग में 50 लाख रुपए के रासायनिक पदार्थ प्रयोग होते हैं।

सूती कपड़ा उद्योग का स्थानीयकरण (Location)-भारत में इस उद्योग की स्थापना के लिए निम्नलिखित अनुकूल सुविधाएं हैं-

1. अधिक मात्रा में कपास। 2. उचित मशीनें । 3. मांग का अधिक होना।

उत्पादन (Production)-देश में 1300 कपड़ा मिलें थीं। इन कारखानों में 200 लाख तकले तथा 2 लाख करघे हैं। इन मिलों में लगभग 150 करोड़ किलोग्राम सूत तथा 2000 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार किया जाता है।
वितरण (Distribution)-सूती कपड़े के कारखाने सभी प्रान्तों में हैं। लगभग 80 नगरों में सूती मिलें बिखरी हुई हैं। इन प्रदेशों में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति निम्नलिखित कारणों से हैं-

1. महाराष्ट्र-यह राज्य सूती कपड़ा उद्योग मे सबसे आगे है। यहां 100 मिलें हैं। मुंबई आरम्भ से ही सूती वस्त्र उद्योग का प्रमुख केंद्र है। इसलिए इसे सूती वस्त्रों की राजधानी (Cotton-Polis of India) कहते हैं। मुंबई के अतिरिक्त नागपुर, पुणे, शोलापुर, अमरावती प्रसिद्ध केन्द्र हैं । मुंबई नगर में सूती कपड़ा उद्योग की उन्नति के निम्नलिखित कारण हैं-

    • पूर्व आरम्भ-भारत की सबसे पहली आधुनिक मिल मुंबई में खोली गई।
    • पूंजी-मुंबई के व्यापारियों ने कपड़ा मिलें खोलने में बहुत धन लगाया।
    • कपास-आस-पास के खानदेश तथा बरार प्रदेश की काली मिट्टी के क्षेत्र में उत्तम कपास मिल जाती है।

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  • उत्तम बन्दरगाह-मुंबई एक उत्तम बन्दरगाह है, जहां मशीनरी तथा कपास आयात करने तथा कपड़ा निर्यात करने की सुविधा है।
  • सम जलवायु-सागर से निकटता तथा नम जलवायु इस उद्योग के लिए आदर्श है।
  • सस्ते श्रमिक-घनी जनसंख्या के कारण सस्ते श्रमिक प्राप्त हो जाते हैं।
  • जल विद्युत्-कारखानों के लिए सस्ती बिजली टाटा विद्युत् केन्द्र से प्राप्त होती है।
  • यातायात-मुंबई रेलों व सड़कों द्वारा देश के भीतरी भागों से मिला है।
  • जल प्राप्ति-कपड़े की धुलाई, रंगाई द्वारा देश के लिए पर्याप्त जल मिल जाता है।

2. गुजरात-गुजरात राज्य का इस उद्योग में दूसरा स्थान हैं। अहमदाबाद प्रमुख केंद्र है। जहां 75 मिलें हैं। अहमदाबाद को भारत का मानचेस्टर कहते हैं। इसके अतिरिक्त सूरत, बड़ौदा, राजकोट प्रसिद्ध केन्द्र हैं। यहां सस्ती भूमि व उत्तम कपास के कारण उद्योग का विकास हुआ है।

3. तमिलनाडु-इस राज्य में पनबिजली के विकास तथा लम्बे रेशे की कपास की प्राप्ति के कारण यह उद्योग बहुत उन्नत है मुख्य केन्द्र मदुराई, कोयम्बटूर, सेलम, चेन्नई हैं।

4. पश्चिमी बंगाल- इस राज्य में अधिकतर मिलें हुगली क्षेत्र में हैं। यहां रानीगंज से कोयला, समुद्री आर्द्र जलवायु, सस्ते मज़दूर व अधिक मांग के कारण यह उद्योग स्थित हैं।

5. उत्तर प्रदेश-यहां अधिकतर (14) मिलें कानपुर में स्थित हैं। कानपुर को उत्तरी भारत का मानचेस्टर कहते हैं। यह कपास उन्नत करने वाला राज्य है। यहां घनी जनसंख्या के कारण सस्ते मजदूर हैं व सस्ते कपड़े की मांग अधिक है। इसके अतिरिक्त आगरा, मोदीनगर, बरेली, वाराणसी, सहारनपुर प्रमुख केन्द्र हैं।

6. मध्य प्रदेश में इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, भोपाल।
7. आन्ध्र प्रदेश में हैदराबाद तथा वारंगल ।
8. कर्नाटक में मैसूर तथा बंगलौर।।
9. पंजाब में अमृतसर, फगवाड़ा, अबोहर, लुधियाना।
10. हरियाणा में भिवानी।
11. अन्य नगर दिल्ली, पटना, कोटा, जयपुर, कोचीन।

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प्रश्न 5.
भारत में चीनी उद्योग के स्थानीयकरण, विकास तथा उद्योग का विवरण दो। भारतीय चीनी उद्योग कौन-कौन सी मुख्य कठिनाइयों का सामना कर रहा है ?
उत्तर-
भारत में चीनी पैदा करने का मुख्य स्रोत (कच्चा माल) गन्ना है। सूती कपड़े के उद्योग के बाद गन्ना उद्योग भारत का दूसरा बड़ा उद्योग है जिसमें 1 अरब से अधिक पूंजी लगी हुई है। देश को 500 मिलों में 2.5 लाख मजदूर काम करते हैं। इस उद्योग में देश के 2 करोड़ कृषकों को लाभ होता है। संसार में ब्राजील के बाद भारत सबसे बड़ा गन्ना उत्पादक राज्य है। भारत विश्व की 10% चीनी उत्पन्न करता है। यहाँ 500 से भी ज्यादा चीनी बनाने की मिलें हैं। इस उद्योग के बचे-खुचे पदार्थों पर एल्कोहल, खाद, मोम, कागज़ उद्योग पर निर्भर करते हैं।

चीनी उद्योग के स्थानीयकरण के लिए महत्वपूर्ण कारक-भारतीय चीनी उद्योग पूरी तरह से गन्ने पर आधारित हैं जो कि भारी तथा जल्दी से सूखने वाली फसल है। इसको काटने के शीघ्र बाद ही इसका रस निकालना जरूरी होता हैं, नहीं तो इसका रस सूख जाता है! औद्योगीकरण के लिए महत्वपूर्ण कारक हैं-
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  • कच्चे माल की निकटता-गन्ना एक भारी पदार्थ है तथा जल्दी ही कटाई के बाद सूख जाता है। इसलिए कच्चा माल उद्योग के नजदीक ही उपलब्ध होना चाहिए, ताकि कटाई के जल्द बाद इसका रस निकाल लिया जाए।
  • बाजार की निकटता-बाज़ार की निकटता भी इस उद्योग के लिए उपयोगी है।
  • सस्ते तथा कुशल मज़दूर-इस उद्योग के लिए कुशल तथा सस्ते मजदूर अधिक मात्रा में चाहिए।
  • अनुकूल जलवायु-इस फसल के लिए तापमान 21°C से 27° C तक चाहिए तथा कम से कम 75 cm से 100 cm तक वार्षिक वर्षा की ज़रूरत है। जिन स्थानों पर वर्षा कम होती है, सिंचाई सुविधा से कृषि की जाती है।

भारतीय चीनी उद्योग में राज्यों की देन इस प्रकार है-

1. उत्तर प्रदेश-भारत में उत्तर प्रदेश चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है। गन्ना उत्पादन में भी यह प्रदेश प्रथम
स्थान पर है। यहां चीनी मिलें भी दो क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
(क) तराई क्षेत्र-गोरखपुर, बस्ती, सीतापुर, फैजाबाद।
(ख) दोआब क्षेत्र-सहारनपुर, मेरठ, मुजफ्फरनगर।

उत्तरी भारत में सुविधाएं-भारत का 50% गन्ना उत्तर प्रदेश में उत्पन्न होता है। अधिक जनसंख्या के कारण खपत अधिक है तथा सस्ते श्रमिक प्राप्त हैं। सस्ती जल बिजली तथा बिहार से कोयला मिल जाता है। यातायात के साधन उत्तम हैं।

2. महाराष्ट्र-महाराष्ट्र में चीनी उद्योग का विकास तेजी से हुआ है। यहाँ ज्यादातर मिलें पश्चिमी हिस्से में हैं यहाँ के पठारी इलाके में नदी घाटियां स्थित हैं यहां अहमदाबाद सब से बड़ा चीनी का उत्पादक राज्य है। कोल्हापुर, पुणे, शोलापुर, सितारा तथा नासिक चीनी के लिए काफी प्रसिद्ध हैं।
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3. तमिलनाडु-पिछले कुछ सालों से तमिलनाडु के चीनी उद्योग का विकास हो रहा है। यहाँ कुल 32 चीनी मिलें हैं जो कि कोयम्बटूर, तिरुचिरापल्ली, रामानाथपुरम, अरकोट इत्यादि स्थानों पर स्थित हैं।

4. कर्नाटक-कर्नाटक में तकरीबन 30 चीनी मिलें हैं जो देश की. 14.7 फीसदी चीनी का उत्पादन करती हैं। राज्य में सबसे ज्यादा चीनी बेलगांव, रामपुर, पाण्डुपुर से आती है।

5. आन्ध्र प्रदेश-यहाँ 35 से भी अधिक चीनी मिलें हैं। ज्यादातर मिलें पूर्वी तथा पश्चिमी गोदावरी जिलों तथा कृष्णा नदी घाटियों में मौजूद हैं। मुख्य चीनी मिलें हैदराबाद, विशाखापट्टनम, विजयवाड़ा, हास्पेट, पीठापुरम में हैं।

6. गुजरात-गुजरात के सूरत, भावनगर, अमरेली, राजकोट, अहमदनगर इत्यादि स्थानों पर भीनी मिलें हैं।

7. हरियाणा-हरियाणा में रोहतक, पलवल, पानीपत, यमुनानगर, जींद, कैथल, सोनीपत, फरीदाबाद इत्यादि .. जिलों में चीनी मिलें मौजूद हैं।
8. पंजाब-पंजाब में 17 मुख्य चीनी मिलें हैं जिनमें 10 ही चलती हैं। सात चीनी मिलें बंद पड़ी हैं। जो कि धूरी, .बुढ़लाड़ा, फरीदकोट, जगराओं, रखड़ा, तरनतारन तथा जीरा में हैं। अजनाला, बटाला, भोगपुर, बुद्देवाल, फाजिल्का, फगवाड़ा, गुरदासपुर, नकोदर, मोरिंडा, नवांशहर इत्यादि चीनी मिलें काफी प्रसिद्ध हैं।

चीनी उद्योग को आने वाली मुख्य कठिनाइयां-

  • भारत में गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज कम है।
  • गन्ने पर पैसा उत्पादन के समय ज्यादा लगता है तथा बिक्री मूल्य में दिन प्रति दिन गिरावट आ रही है।
  • गन्ने की कटाई के बाद इसका रस जल्दी सूख जाता है। इसको लम्बे समय तक बचाकर नहीं रखा जा सकता।
  • चीनी मिलों के मालिक किसानों को पैसे का भुगतान समय पर नहीं करते।
  • गन्ना एक भारी पदार्थ है। एक जगह से दूसरी जगह लेकर जाना मुश्किल है। यातायात पर लागत ज्यादा आती
  • गन्ना प्राप्त न होने के कारण मिलें वर्ष में कुछ महीने बन्द रहती हैं।
  • चीनी उद्योग के बचे खुचे पदार्थों का ठीक उपयोग नहीं होता।

भविष्य-पिछले कुछ वर्षों में चीनी उद्योग दक्षिणी भारत की ओर स्थानान्तरित कर रहा है। कोयम्बटर में गन्ना खोज केन्द्र भी स्थापित किया गया है। दक्षिणी भारत में गन्ना अधिक मोटा होता है तथा इसमें रस की मात्रा अधिक होती है। दक्षिणी भारत में गन्ने की पिराई का समय भी अधिक होता है। गन्ने की प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक है। यहां आधुनिक चीनी मिलें सहकारी क्षेत्र में लगाई गई हैं।

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प्रश्न 6.
औद्योगिक गलियारे से आपका क्या भाव है ? भारतीय औद्योगिक गलियारों के निर्माण के अलगअलंग स्तरों का वर्णन करो।
उत्तर-
जिस क्षेत्र में उद्योगों के विकास के लिए हर संभव कोशिश की जाती है तथा एक गलियारा ढांचा तैयार करवाया जाता है, ताकि उद्योग को प्रोत्साहन मिल सके तथा प्रारंभिक ज़रूरतों को एक स्थान से ही पूरा किया जा सके।
औद्योगिक गलियारा कहलाता है। उदाहरण-बंदरगाह, राष्ट्रीय मार्ग तथा रेल प्रबंध इत्यादि को विकसित करना। औद्योगिक गलियारों के निर्माण स्तर-इस समय भारत में लगभग सात औद्योगिक गलियारे तैयार किये गये हैं तथा इनका निर्माण अलग अलग स्तरों पर होता है। जिसका वर्णन इस प्रकार है.

1. दिल्ली-मुंबई औद्योगिक गलियारा (Delhi-Mumbai Industrial corridors) यह गलियारा देश के सात राज्यों में फैला हुआ है। यह गलियारा दिल्ली से आर्थिक राजधानी मुंबई तक फैला है। जिसकी लंबाई – 1500 किलोमीटर हैं। जिसमें 24 औद्योगिक क्षेत्रों के साथ-साथ 8 स्मार्ट शहर, दो हवाई अड्डे भी शामिल हैं। यहां यातायात के साधन भी विकसित हैं।

2. मंबई-बेंगलरू आर्थिक गलियारा (Mumbai-Bangaluru Industrial Corridors) यह गलियारा देश की आर्थिक राजधानी मुंबई से लेकर बेंगलुरू (कर्नाटक की राजधानी) तक फैला हुआ हैं। इसमें महाराष्ट्र तथा कर्नाटक राज्यों में चितदुर्ग, हुबली, बेलागांव, शोलापुर इत्यादि शहर शामिल हैं।

3. चेन्नई-बेंगलुरू औद्योगिक गलियारा (CBIC) यह गलियारा भारत सरकार का एक विशाल तथा बुनियादी ढांचा प्रदान करने वाला प्रोजैक्ट है, जिसका निर्माण अभी तक चल रहा है। इसके अधीन चेन्नई, श्री पोरंबदर, राणीपेट, चिंतुर, पालामानौर इत्यादि शामिल हैं।

4. विशाखापट्टनम-चेन्नई औद्योगिक गलियारा (VCIC)—इस गलियारे को विजाग चेन्नई औद्योगिक गलियारा भी कहते हैं। यह पूर्वी तटी आर्थिक गलियारे का एक हिस्सा है। यह सुनहरो चतुर्भुज के साथ जुड़ा हुआ है तथा भारत के पूर्व के तरफ ध्यान दें तथा मेक इन इंडिया जैसे प्रोग्राम हैं जो इसकी वृद्धि में काफी सहायक हैं।

5. अमृतसर, कोलकाता औद्योगिक गलियारा (AKIC)—यह औद्योगिक गलियारा अमृतसर, दिल्ली, कोलकाता इत्यादि महत्त्वपूर्ण शहरों से जुड़ा हुआ है। यह गलियारा भी भारत के सात रज्यों में निकलता है। इस प्रोजैक्ट के अधीन सड़कें, बंदरगाहें, हवाई मार्ग इत्यादि का विकास किया जा रहा है।

6. वडारेवू तथा निजामापट्टनम (VANPIC)-यह गलियारा आन्ध्र प्रदेश के गंटूर के प्रकासम जिलों से जुड़ा हुआ है।

7. उधना पालमाणा औद्योगिक गलियारा (OPIC)-यह गलियारा गुजरात तथा पालमाणा राजस्थान के बीच फैला हुआ है जिसमें धातुओं से जुड़े उद्योग, सूती कपड़ा, दवाइयां, प्लास्टिक तथा रासायन इत्यादि उद्योग शामिल हैं।

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आर्थिक भूगोल निर्माण उद्योग (सहायक सेवा तथा ज्ञान/विशेष क्षेत्रों की क्रियाएं) PSEB 12th Class Geography Notes

  • आर्थिक भूगोल मुख्य रूप में प्रारंभिक, द्वितीयक, तृतीयक तीन क्षेत्रों में विभाजित होती है तथा निर्माण । उद्योग द्वितीयक सैक्टर के अंतर्गत आता है। इसमें प्रारंभिक क्षेत्र से लेकर आये कच्चे माल का उपयोग योग्य सामान उद्योगों में तैयार किया जाता है।
  • उद्योगों को आगे उनमें मजदूरों की संख्या के आधार पर, कच्चे माल पर आधारित उद्योग, मालिकी के आधार पर, कच्चे माल के स्रोतों के आधार पर फुटकल उद्योगों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
  • उद्योगों की स्थापना पर कई भौगोलिक कारक (जैसे कच्चा माल, मजदूर, यातायात इत्यादि), गैर भौगोलिक कारक (पूंजी, सरकारी नीतियां, बैंक की सुविधा इत्यादि) प्रभाव डालते हैं।
  • लौहा तथा इस्पात का उद्योग प्रारंभिक उद्योग है। इसका उपयोग यातायात के साधनों, मशीनरी, भवन निर्माण, समुद्री जहाज़ बनाने इत्यादि में किया जाता है।
  • भारत में मौजूदा लौह तथा इस्पात उद्योग की शुरुआत सन् 1854 ई० में हुई।
  • भारत में TISCO, VISL, BSP, DSP तथा बोकारो स्टील प्लांट, राऊरकेला प्रमुख स्टील प्लांट हैं।
  • भारतीय लौहा तथा इस्पात उद्योग को मुख्य रूप में सस्ती दरामद, कच्चे माल की समस्या, लचकदार सरकारी नीति, ऊर्जा तथा पूंजी की कमी इत्यादि मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
  • आने वाले समय में 2025 तक भारत में लौह-इस्पात के उत्पादन की क्षमता 30 करोड़ तक पहुंचा देने का उद्देश्य रखा गया है।
    भारतीय सूती कपड़े की मिल 1818 में फोर्ट ग्लॉस्टर कोलकाता में लगाई गई थी जो कि नाकाम रही। पहली सफल कपड़ा मिल 1854 में मुंबई में लगाई गई।
  • भारतीय सूती कपड़ा उद्योग देश के कुल 14 प्रतिशत उत्पादन का हिस्सा डालता हैं। भारत में ढाके की । मलमल, मसूलीपटनम छींट, कालीकट की कल्लीकेंज से कैम्बे में बने बफता वस्त्र पूरे विश्व में प्रसिद्ध है।।
  • चीनी का उत्पादन गन्ने तथा चुकन्दर से होता है। ब्राजील के बाद भारत का गन्ना उत्पादन में दूसरा स्थान है। देश में 35 करोड़ टन गन्ना तथा 2 करोड़ टन चीनी का वार्षिक उत्पादन होता है। भारत में मुख्य गन्ना उत्पादक राज्य हैं-उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, हरियाणा इत्यादि।
  • भारत का पैट्रोकैमिकल उद्योग देश के सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाले उद्योगों में सबसे आगे हैं। यह उद्योग वस्त्र, पैकिंग, कृषि, निर्माण तथा दवाइयों के उद्योगों को मुख्य सुविधा उपलब्ध करवाता है।।
  • पैट्रो रसायन उद्योग के दो उद्योग पृथ्वी के नीचे से कच्चा तेल निकालना तथा तेलशोधन करना, इत्यादि प्रमुख हैं।
  • औषधि बनाने के उद्योग में भारत विश्व की 10 फीसदी औषधियां बनाता है तथा विश्व में तीसरा स्थान प्राप्त करता है।
  • विश्व की नई आर्थिकता की रीढ़ की हड्डी ज्ञान पर आधारित उद्योग है। 1970 के बाद संसार में इन उद्योगों का विकास अधिक हुआ।
  • उद्योग तथा गलियारे वह भौगोलिक क्षेत्र होते हैं जिसमें उद्योगों के विकास के लिए हर एक संभव बुनियादी स्वरूप उपलब्ध करवाया जाता है। इसमें भारत में सात बड़े उद्योग गलियारे हैं जो कि DMIC, CBIC, BMEC, VCIC, AKIC, VANPIC इत्यादि हैं।
  • निर्माण उद्योग-यह एक सहायक क्रिया है जिसमें कच्चे माल को मशीनों की सहायता से रूप बदल कर अधिक उपयोगी बनाया जाता है।
  • उद्योगों की किस्में (1) बड़े पैमाने तथा छोटे पैमाने के उद्योग (2) भारी तथा हल्के उद्योग (3) निजी, सरकारी तथा सार्वजनिक उद्योग (4) कृषि आधारित तथा खनिज आधारित उद्योग (5) कुटीर उद्योग तथा मिल उद्योग।
  • उद्योगों के स्थानीयकरण को प्रभावित करने वाले भौगोलिक कारक (1) कच्चा माल, (2) ऊर्जा, (3) यातायात, (4) मजदूर, (5) बाज़ार, (6) पानी, (7) जलवायु इत्यादि।
  • इस्पात उद्योग-भारत में पहला इस्पात उद्योग जमशेदपुर में 1907 में लगाया गया।
  • सहकारी क्षेत्र-वह उद्योग जो सहकारी क्षेत्र या फिर लोगों द्वारा मिलकर चलाये जाते हैं सहकारी क्षेत्र के उद्योग होते हैं-जैसे-डेयरी, अमूल इत्यादि।
  • विश्वेश्वरैया आयरन एंड स्टील लिमिटेड (VISL)- यह 18 जनवरी, 1923 को मैसूर आयरन वर्क्स के नाम से शुरू हुआ था। बाद में इसका नाम मशहूर इंजीनियर भारत रत्न श्री एम० विश्वेश्वरैया के नाम पर VISL पड़ गया।
  • सूती वस्त्र मिल का वर्गीकरण-मुख्य रूप में सूती कपड़ा मिल को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है।
    1.कताई मिलें, 2. बुनाई मिलें, 3. धागे से कपड़ा मिलें।
  • विश्व में ब्राजील, भारत, यूरोपीय संघ, चीन तथा थाइलैंड पांच बड़े चीनी के उत्पादक राज्य हैं।
  • नीला कॉलर श्रमिक-नीला कॉलर श्रमिक हाथ से काम करने वाले मजदूर हैं जो कि कुछ घंटों या किये गये काम के मुताबिक वेतन लेते हैं।
  • बड़े पैमाने के उद्योग-वह उद्योग जिनमें मजदूरों की संख्या ज्यादा हो जैसे-सूती कपड़ा उद्योग।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 20 भारत और सार्क

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 20 भारत और सार्क Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 20 भारत और सार्क

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (दक्षेस) की पृष्ठभूमि एवं इसकी स्थापना के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन कीजिए।
(Describe the background and efforts made for the establishment of South Asian Association for Regional Co-operation-SAARC.)
अथवा
सार्क की स्थापना पर नोट लिखें तथा सार्क के उद्देश्यों का वर्णन करें। (Write a note on Establishment (formation) of SAARC and discuss its objectives.)
उत्तर-
दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) दक्षिण एशिया के आठ देशों-भारत, पाकिस्तान, बंगलादेश, भूटान, नेपाल, मालदीव, अफ़गानिस्तान और श्रीलंका का एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। इस संगठन की स्थापना आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग द्वारा दक्षिणी एशिया के लोगों के कल्याण के लिए की गई थी।

सार्क की स्थापना (Establishment of SAARC)-द्वितीय महायुद्ध के बाद विश्व दो गुटों-पूंजीवादी गुट और साम्यवादी गुट में बंट गया था। पूंजीवादी गुट का नेतृत्व अमेरिका जबकि साम्यवादी गुट का नेतृत्व सोवियत संघ करने लगा। विश्व में आर्थिक सहयोग और सुरक्षात्मक उद्देश्यों को लेकर क्षेत्रीय संगठन बनने लगे। आपसी संगठन बनाने की यह प्रक्रिया पूरे यूरोप और धीरे-धीरे विश्व भर में फैलने लगी।
1975 में व्यापारिक उद्देश्यों के लिए बंगला देश, भारत, फिलीपीन्स, लाओस, श्रीलंका, थाइलैंड आदि देशों ने समझौता किया।

दक्षिण एशियाई देशों में सामाजिक, जातीय, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक मूल्यों की सामान्य सांझ है और तीव्र विकास की इच्छा भी है लेकिन इनमें कई बातों पर आपसी अविश्वास की भावना भी देखी जा सकती है। विशेष रूप से इन देशों के सुरक्षात्मक हित, विभिन्न राजनीतिक संस्कृति भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद और इस क्षेत्र में भारत की विशेष स्थिति अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। 70 के दशक के अंत में बंगला देश के दिवंगत राष्ट्रपति जिआउर्रहमान ने एक विचार दिया था कि दक्षिण एशिया के सात देशों को मिलकर इस क्षेत्र की समस्याओं पर विचार करना चाहिए और आर्थिक विकास के लिए प्रयास करना चाहिए। आपसी सहयोग की प्रक्रिया को आगे बढ़ाते हुए दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग के लिए बंगला देश कार्यकारी पत्र (Bangladesh Working paper on South Asian Regional Cooperation) जारी किया गया जिसमें सहयोग के 11 प्रमुख बिंदुओं पर बल दिया गया। ये 11 प्रमुख बिंदु थे-दूर संचार, यातायात, जहाजरानी, शैक्षणिक व सांस्कृतिक सहयोग, वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग, कृषि अनुसन्धान, पर्यटन, संयुक्त उपक्रम, बाज़ार प्रोत्साहन, मौसम विज्ञान। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ की स्थापना करने वाली घोषणा के अनुच्छेद 10 की पहली धारा में कहा गया है कि ‘सारे निर्णय सर्वसम्मति से होंगे।’ दूसरी धारा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सार्क के दो सदस्यों के द्विपक्षीय’ मामलों पर विचार नहीं किया जाएगा। सार्क कोई राजनीतिक संघ

या मंच नहीं है। इस संघ का उद्देश्य सामूहिक सहयोग है। सभी सदस्य एक-दूसरे की सम्प्रभुता को मान्यता देते हैं और कोई देश किसी दूसरे के आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा और सभी सदस्य सामूहिक हित के लिए काम करेंगे।

अनेक अध्ययनों के पश्चात् 1-2 अगस्त, 1983 को दिल्ली में सात देशों-भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव और बंगला देश के विदेश मंत्रियों की एक बैठक हुई। इस बैठक में सातों देशों के विदेश मंत्रियों ने दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। समझौते की उद्घोषणा में कहा गया कि दक्षिणी एशिया में आपसी सहयोग लाभदायक, वांछनीय और आवश्यक है और इससे क्षेत्र के लोगों के जीवन को सुधारने में मदद और प्रोत्साहन मिलेगा। अंतत: दक्षिणी एशियाई देशों के शासनाध्यक्षों का प्रथम शिखर सम्मेलन बंगला देश की राजधानी ढाका में हुआ जिसमें 8 दिसम्बर, 1985 को सार्क घोषणा-पत्र (Charter) को स्वीकार किया गया। इस प्रकार औपचारिक रूप से दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) अस्तित्व में आया। इस संगठन की स्थापना में भारत की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण रही। इसके प्रथम शिखर सम्मेलन से लेकर अन्त तक भारत का योगदान इसमें विशेष स्थान रखता है। इसका प्रमुख कारण यह है कि भारत दक्षिणी एशिया का एक प्रमुख देश है और सार्क की सफलता या असफलता बहुत सीमा तक भारत के सक्रिय सहयोग पर ही निर्भर करती है।

निष्कर्ष (Conclusion)-इस प्रकार स्पष्ट है कि सार्क दक्षिणी एशिया के आठ देशों का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। यह एक राजनीतिक संगठन नहीं है। यह सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, तकनीकी व वैज्ञानिक हितों की पूर्ति के लिए आपसी सहयोग पर आधारित अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। इस संगठन का उदय भी अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं से प्रेरित है। सार्क की स्थापना में भारत की सक्रिय भागीदारी रही है।
सार्क के उद्देश्य-

सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों-भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बंगला देश, नेपाल, मालदीव, अफ़गानिस्तान और भूटान का एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। इस संगठन की स्थापना भी बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण के सन्दर्भ में हुई। इस संगठन की स्थापना बंगला देश के दिवंगत शासनाध्यक्ष जिआउर्रहमान की पहल पर हुई। इसके लिए 1-2 अगस्त, 1983 को नई दिल्ली में इन सात देशों के विदेश मन्त्रियों की बैठक हुई। इस बैठक में सदस्य देशों ने आपसी सहयोग के कुछ मुद्दों पर एक सहमति पत्र तैयार किया। इस सहमति पत्र के आधार पर दिसम्बर, 1985 में ढाका में सार्क देशों के शासनाध्यक्षों का प्रथम शिखर सम्मेलन हुआ। इस शिखर सम्मेलन में 8 दिसंबर को सार्क का घोषणा-पत्र स्वीकार किया गया।

सार्क के सिद्धान्त (Principles of SAARC) दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की स्थापना करने वाली घोषणा के अनुच्छेद 10 की पहली धारा में कहा गया है कि सारे निर्णय सर्वसम्मति से होंगे। दूसरी धारा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सार्क के दो सदस्यों के ‘द्वि-पक्षीय’ मामलों पर विचार नहीं किया जाएगा। सार्क सदस्य देशों की प्रभुसत्ता, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता व राजनीतिक स्वतन्त्रता का सम्मान करता है और किसी दूसरे देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। सार्क एक राजनीतिक संघ या मंच नहीं है। इसका उद्देश्य आपसी सहयोग द्वारा विकास करना है। इसके लिए सदस्य देश आपसी सहयोग को प्राथमिकता देंगे।

सार्क के उद्देश्य (Objectives of the SAARC)-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के चार्टर में इसके निम्नलिखित उद्देश्यों का वर्णन किया गया है

  • दक्षिण एशियाई देशों के लोगों का कल्याण और जीवन में गुणात्मकता लाना।
  • आर्थिक वृद्धि, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास।
  • सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
  • आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • अन्य क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में आपसी सहयोग को मज़बूत बनाना।
  • एक दूसरे की समस्याओं के लिए आपसी विश्वास, समझ-बूझ व सहृदयता विकसित करना।

निष्कर्ष (Conclusion)-इस प्रकार स्पष्ट है कि सार्क एक ऐसा संगठन है जो सदस्य देशों की प्रभुसत्ता, स्वतन्त्रता, समानता व अखण्डता में विश्वास रखते हुए क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए आपसी सहयोग की अपेक्षा रखता है। सार्क क्षेत्रीय विकास एवं कल्याण के लिए बनाया गया संगठन है। यह कोई सैनिक या राजनीतिक गठबन्धन नहीं है। सार्क के घोषणा पत्र में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इसमें द्वि-पक्षीय मामलों पर बहस नहीं की जाएगी। किन्तु इसकी बैठकों में कई बार द्वि-पक्षीय मामले उठाने का भी प्रयास किया गया है। आमतौर पर पाकिस्तान की ओर से यह प्रयास अधिक होता है। भारत ने सदैव इसका विरोध किया है। सार्क क्षेत्रीय सहयोग के लिए बनाया गया है और यदि यह निर्धारित सिद्धान्तों का पालन करें तो घोषित उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 20 भारत और सार्क

प्रश्न 2.
सार्क के लक्ष्य और सिद्धान्त क्या हैं ? । (What are objectives and principles of SAARC ?)
उत्तर-
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों-भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बंगला देश, नेपाल, मालदीव, अफ़गानिस्तान और भूटान का एक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है। इस संगठन की स्थापना भी बदलते हुए अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण के सन्दर्भ में हुई। इस संगठन की स्थापना बंगला देश के दिवंगत शासनाध्यक्ष जिआउर्रहमान की पहल पर हुई। इसके लिए 1-2 अगस्त, 1983 को नई दिल्ली में इन सात देशों के विदेश मन्त्रियों की बैठक हुई। इस बैठक में सदस्य देशों ने आपसी सहयोग के कुछ मुद्दों पर एक सहमति पत्र तैयार किया। इस सहमति पत्र के आधार पर दिसम्बर, 1985 में ढाका में सार्क देशों के शासनाध्यक्षों का प्रथम शिखर सम्मेलन हुआ। इस शिखर सम्मेलन में 8 दिसंबर को सार्क का घोषणा-पत्र स्वीकार किया गया।

सार्क के सिद्धान्त (Principles of SAARC) दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की स्थापना करने वाली घोषणा के अनुच्छेद 10 की पहली धारा में कहा गया है कि सारे निर्णय सर्वसम्मति से होंगे। दूसरी धारा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सार्क के दो सदस्यों के ‘द्वि-पक्षीय’ मामलों पर विचार नहीं किया जाएगा। सार्क सदस्य देशों की प्रभुसत्ता, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता व राजनीतिक स्वतन्त्रता का सम्मान करता है और किसी दूसरे देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। सार्क एक राजनीतिक संघ या मंच नहीं है। इसका उद्देश्य आपसी सहयोग द्वारा विकास करना है। इसके लिए सदस्य देश आपसी सहयोग को प्राथमिकता देंगे।

सार्क के उद्देश्य (Objectives of the SAARC)-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के चार्टर में इसके निम्नलिखित उद्देश्यों का वर्णन किया गया है

  • दक्षिण एशियाई देशों के लोगों का कल्याण और जीवन में गुणात्मकता लाना।
  • आर्थिक वृद्धि, सामाजिक प्रगति और सांस्कृतिक विकास।
  • सामूहिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना।
  • अन्य देशों के साथ सहयोग करना।
  • आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और वैज्ञानिक क्षेत्रों में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना।
  • अन्य क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के साथ सहयोग करना।
  • अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में आपसी सहयोग को मज़बूत बनाना।
  • एक दूसरे की समस्याओं के लिए आपसी विश्वास, समझ-बूझ व सहृदयता विकसित करना।

निष्कर्ष (Conclusion)-इस प्रकार स्पष्ट है कि सार्क एक ऐसा संगठन है जो सदस्य देशों की प्रभुसत्ता, स्वतन्त्रता, समानता व अखण्डता में विश्वास रखते हुए क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देने के लिए आपसी सहयोग की अपेक्षा रखता है। सार्क क्षेत्रीय विकास एवं कल्याण के लिए बनाया गया संगठन है। यह कोई सैनिक या राजनीतिक गठबन्धन नहीं है। सार्क के घोषणा पत्र में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि इसमें द्वि-पक्षीय मामलों पर बहस नहीं की जाएगी। किन्तु इसकी बैठकों में कई बार द्वि-पक्षीय मामले उठाने का भी प्रयास किया गया है। आमतौर पर पाकिस्तान की ओर से यह प्रयास अधिक होता है। भारत ने सदैव इसका विरोध किया है। सार्क क्षेत्रीय सहयोग के लिए बनाया गया है और यदि यह निर्धारित सिद्धान्तों का पालन करें तो घोषित उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 20 भारत और सार्क

प्रश्न 3.
सार्क की महत्त्वपूर्ण गतिविधियां क्या रही हैं ? उनमें भारत की भूमिका क्या है ?
(What important actiyities of SAARC has taken up during its existence ? What has been India’s role in them ?)
अथवा
दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) द्वारा अपने अस्तित्व में किए गए मुख्य कार्य कौन-से हैं ? इनमें भारत की भूमिका क्या रही है ?
(What important activities has SAARC taken up during its existense ? What has been India’s role in them.)
उत्तर-
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का एक सहयोग संगठन है। इस संगठन का उद्देश्य इन देशों के बीच अधिकाधिक क्षेत्रों में सहयोग स्थापित करना है ताकि समस्याएं एक-दूसरे की सहायता से हल हो सकें। दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ की स्थापना करने वाली घोषणा के अनुच्छेद 10 की पहली धारा में कहा गया है कि, ‘सारे निर्णय सर्वसम्मति से होंगे।’ दूसरी धारा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सार्क के दो सदस्यों के ‘द्विपक्षीय’ मामलों पर विचार नहीं किया जाएगा।’ सार्क कोई राजनीतिक संघ या मंच नहीं है। इस संघ का उद्देश्य सामूहिक सहयोग है। सभी सदस्य एक-दूसरे को सम्प्रभुता को मान्यता देते हैं और कोई देश किसी दूसरे की आन्तरिक मामले में हस्तक्षेप नहीं करेगा और सभी सदस्य सामूहिक हित के लिए काम करेंगे।

प्रथम शिखर सम्मेलन-दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संघ का प्रथम शिखर सम्मेलन 1985 में ढाका में हुआ। इस सम्मेलन में सभी सदस्यों ने पारस्परिक सहयोग के लिए अपनी वचनबद्धता पर सहमति प्रकट की।

द्वितीय शिखर सम्मेलन-द्वितीय शिखर सम्मेलन नवम्बर, 1986 में भारत में बंगलौर में हुआ। इन देशों ने 1990 तक सार्वभौमिक प्रतिरक्षण, सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा, मातृ-शिशु पोषाहार, साफ़ सुरक्षित पेय जल की व्यवस्था और 2000 से पूर्व समुचित आवास के लक्ष्य निर्धारित किए। – तृतीय शिखर सम्मेलन-सार्क का तीसरा शिखर सम्मेलन नवम्बर, 1987 में काठमांडू में हुआ। इस सम्मेलन में तीन ऐतिहासिक निर्णय लिए गए

(1) आतंकवाद को समाप्त करने का समझौता हुआ।
(2) दक्षिण एशियाई खाद्य सुरक्षा भंडार की स्थापना का निर्णय किया गया।
(3) तीसरा महत्त्वपूर्ण निर्णय सार्क क्षेत्र के पर्यावरण की रक्षा के उपाय करने के लिए पर्यावरण सम्बन्धी अध्ययन करना है।

चौथा शिखर सम्मेलन-सार्क का चौथा सम्मेलन श्रीलंका की अशांत स्थिति के कारण वहां न होकर 29 सितम्बर, 1988 को पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में हुआ। इस सम्मेलन का विशेष महत्त्व है क्योंकि यह सम्मेलन पाकिस्तान में लोकतन्त्र की बहाली के बाद हुआ। इस सम्मेलन में महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए

  • इस सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राष्ट्रीय संसदों के सदस्य एक विशेष सार्क पत्र दस्तावेज़ पर किसी भी देश की यात्रा कर सकेंगे तथा उन्हें वीज़ा लेने की ज़रूरत नहीं होगी।
  • नशीले पदार्थों के ग़लत प्रयोग को रोकने हेतु ज़ोरदार अभियान जारी रखने का संकल्प किया।
  • इस सम्मेलन की एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि ‘सार्क 2000’ का निर्माण है। ‘सार्क 2000’ एक क्षेत्रीय योजना की अवधारणा है। इस योजना द्वारा शताब्दी के अंत तक इस क्षेत्र के एक अरब से ज्यादा लोगों की आवास, शिक्षा और साक्षरता की आवश्यकताएं पूरी की जा सकें।
  • संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार वर्ष 1989 को ‘बालिका वर्ष’ के रूप में मनाने का आह्वान किया गया। (5) परमाणु निःशस्त्रीकरण का भी निर्णय लिया गया।
  • शिखर सम्मेलन के निर्णय के अनुसार इस क्षेत्र का कोई भी देश सार्क का सदस्य बन सकता है, यदि वह इसके घोषणा-पत्र के सिद्धान्तों एवं उद्देश्यों में विश्वास रखता है।

कोलंबो सम्मेलन-21 दिसम्बर, 1991 को सार्क का सम्मेलन कोलंबो में हुआ। सार्क के सातों देश क्षेत्र में व्यापार को उदार बनाने पर सहमत हो गए। सातों सदस्य देशों ने नि:शस्त्रीकरण की सामान्य प्रवृत्तियों का स्वागत किया। घोषणा-पत्र में मानव अधिकारों की रक्षा की बात कही गई है।

ढाका शिखर सम्मेलन-12 दिसम्बर, 1992 को सार्क का शिखर सम्मेलन ढाका (बंगला देश) में होना था, परन्तु भारत के आग्रह पर स्थगित कर दिया गया और 13 जनवरी, 1993 को शिखर सम्मेलन होना निश्चित किया गया। 13 जनवरी को भी यह सम्मेलन न हो सका। यह सम्मेलन 10 और 11 अप्रैल को ढाका में हुआ। इस सम्मेलन में दक्षेस राष्ट्रों के नेताओं ने सातों राष्ट्रों के बीच एक ‘महाबाज़ार’ का निर्माण करने तथा दक्षिण एशिया के स्वतन्त्र व्यक्तित्व पर विशेष बल दिया।

नई दिल्ली सम्मेलन-2 मई, 1995 को सार्क का आठवां शिखर सम्मेलन भारत की राजधानी नई दिल्ली में आरम्भ हुआ। इस सम्मेलन की मुख्य उपलब्धि आपसी सहयोग के क्षेत्र में दक्षिण एशियाई वरीयता व्यापार व्यवस्था (साप्टा) पर सदस्य राष्ट्रों की सहमति है। सभी सदस्य राज्यों ने वर्ष 1995 को ‘दक्षेस ग़रीबी उन्मूलन वर्ष’ मनाने का फैसला
किया।

नौवां शिखर सम्मेलन-मई, 1997 में मालद्वीप की राजधानी माले में सार्क का नौवां शिखर सम्मेलन हुआ। माले शिखर सम्मेलन में सन् 2001 तक दक्षेस में मुक्त व्यापार क्षेत्र (SAFTA) स्थापित करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया गया।

दक्षेस का दसवां शिखर सम्मेलन-दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन का दसवां शिखर सम्मेलन तीन दिन के लिए कोलंबो में 28 जुलाई, 1998 को प्रारम्भ हुआ और 31 जुलाई को समाप्त हुआ। दक्षेस ने सदस्य देशों की सभी क्षेत्रों में समृद्धि के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक कार्यसूची की घोषणा की। सदस्य देशों ने परमाणु हथियारों को पूरी तरह से नष्ट करने और प्रभावशाली अन्तर्राष्ट्रीय नियंत्रण के तहत विश्वभर में परमाणु निःशस्त्रीकरण को बढ़ावा देने की आवश्यकता की अपनी वचनबद्धता को दोहराया।

दक्षेस का 11वां शिखर सम्मेलन-दक्षेस का 11वां शिखर सम्मेलन नेपाल की राजधानी काठमांडू में भारत एवं पाकिस्तान के तनाव के बीच 5 एवं 6 फरवरी, 2002 को हुआ। इस सम्मेलन में अनेक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिये गये, जैसे कि आतंकवाद को समाप्त करने एवं दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र (साफ्टा) को शीघ्र लागू करने के फैसले लिए। इसके अतिरिक्त महिलाओं की खरीद-फरोख्त पर रोक और एड्स के मुकाबले के लिए सामूहिक पहल की बात भी दक्षेस घोषणा में कही गई।

12वां सार्क शिखर सम्मेलन, जनवरी-2004-‘दक्षेस’ देशों का 12वां शिखर-सम्मेलन 4 जनवरी, 2004 को इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में हुआ। इस सम्मेलन में भारत का प्रतिनिधित्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया। सम्मेलन के अन्त में 11 पृष्ठों का एक सांझा घोषणा-पत्र (इस्लामाबाद घोषणा-पत्र) जारी किया गया। इस सम्मेलन की प्रमुख बातें निम्नलिखित रहीं-

  • ‘दक्षिणी एशियाई मुक्त व्यापार व्यवस्था’ (साफ्टा) को मंजूरी दी गई। यह समझौता 1 जनवरी, 2006 से लागू होगा।
  • दक्षिणी एशिया से ग़रीबी, पिछड़ापन आदि दूर करने के लिए सामाजिक घोषणा-पत्र जारी किया गया।
  • 1987 में किए गए आतंकवाद निरोधक सार्क समझौते की समीक्षा की गई तथा आतंकवाद पर प्रभावी रोकथाम . लगाने पर सहमति हुई।
  • दक्षेस पुरस्कार आरम्भ करने का निर्णय लिया गया।

13वां सार्क शिखर सम्मेलन-नवम्बर, 2005-सार्क का 13वां शिखर सम्मेलन नवम्बर, 2005 में ढाका में हुआ। सार्क सदस्य देशों ने परस्पर वीजा नियमों को उदार बनाने के लिए सार्क संचार परिषद् का गठन करने के लिए तथा सीमा शुल्क मामलों में परस्पर सहयोग के लिए आपस में समझौता किया।

14वां सार्क शिखर सम्मेलन-सार्क का 14वां शिखर सम्मेलन 3-4 अप्रैल, 2007 को भारत की राजधानी नई दिल्ली में हुआ। इस सम्मेलन में अफ़गानिस्तान को सार्क का 8वां सदस्य बनाया गया। इस सम्मेलन में सदस्य देशों ने निम्नलिखित मुद्दों पर अपनी सहमति प्रकट की

  • आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए उनको मिलने वाली वित्तीय सहायता को रोकने का प्रयास किया जाए।
  • दक्षिण एशिया विकास फंड की शुरुआत की जाए।
  • साफ्टा को और मज़बूत किया जाए।
  • सार्क देशों से ग़रीबी दूर करने तथा बच्चों एवं महिलाओं के विकास के लिए विशेष प्रयास किए जाएं।

15वां सार्क शिखर सम्मेलन-सार्क का 15वां शिखर सम्मेलन 2-3 अगस्त, 2008 को श्रीलंका की राजधानी कोलम्बो में हुआ। इस सम्मेलन में एक 41 सूत्रीय घोषणा पत्र जारी किया गया जिसके महत्त्वपूर्ण प्रावधान इस प्रकार

  • आतंकवाद को रोकने के लिए प्रभावशाली प्रयास किए जाएंगे।
  • साफ्टा पूर्ण तौर पर लागू किया जाए।
  • एक सांझा खाद्यान्न भण्डार स्थापित किया जाएगा।
  • सार्क देशों में मादक पदार्थों, मानवीय और हथियारों की तस्करी को रोकने के लिए एक सांझा कानूनी तन्त्र विकसित किया जाएगा। ___

16वां सार्क शिखर सम्मेलन-सार्क का 16वां शिखर सम्मेलन 28-29 अप्रैल, 2010 को भूटान की राजधानी थिम्पू में हुआ। सार्क घोषणा पत्र में सभी तरह के आतंकवाद की आलोचना करते हुए उसके विरुद्ध लड़ने के लिए पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने की बात की गई। सार्क नेताओं ने 2011-20 के दशक को डिकेट ऑफ़ इंट्रारीजनल कनेक्टिविटी इन सार्क के रूप में मनाने के प्रस्ताव का अनुमोदन किया।

17वां सार्क शिखर सम्मेलन-सार्क का 17वां शिखर सम्मेलन 10-11 नवम्बर, 2011 को मालदीव में हुआ। इस सम्मेलन में राष्ट्रों ने आपसी व्यापार, आपदा प्रबन्धन, समुद्री दस्युओं से निपटने की समस्या व वैश्विक आर्थिक संकट के मुद्दों पर चर्चा हुई।

18वां सार्क शिखर सम्मेलन-सार्क का 18वां शिखर सम्मेलन 26-27 नवम्बर 2014 को नेपाल में हुआ। भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सार्क सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए आतंकवाद तथा अर्न्तदेशीय अपराधों से निपटने का

आहवान किया। उन्होंने व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सार्क देशों को तीन से पांच साल का व्यापार वीजा देने की घोषणा की।

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प्रश्न 4.
सार्क का महत्त्व लिखो और इसके सामने आने वाली समस्याओं का वर्णन करो। (Write down the Importance of SAARC and explain its Problems.).
अथवा
सार्क की समस्याओं का वर्णन करो। (Explain the Problems of SAARC)
अथवा
सार्क की स्थापना कब हई ? सार्क की असफलताओं के कारणो का वर्णन करें। (When was ‘SAARC’ formed ? Explain the reasons for the failure of SAARC.)
उत्तर-
आज के तकनीकी युग में कोई देश आपसी सहयोग के बिना उन्नति नहीं कर सकता। विश्व के लगभग सभी राष्ट्र आर्थिक उन्नति के लिए एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं। इसी आपसी सहयोग को बनाने एवं बढ़ाने के विचार से दक्षिण एशिया के सात देशों ने देश की स्थापना की। सार्क के दक्षिण एशिया के सदस्य राष्ट्रों की आर्थिक उन्नति में महत्त्वपूर्ण भूमिका अभिनीत की है। आर्थिक सहयोग को बढ़ाने के लिए 1995 में सार्क देशों ने साफ्टा को लागू किया। इस सहयोग को और अधिक बढ़ाने के लिए सार्क के 12वें शिखर सम्मेलन में साफ्टा को वर्ष 2006 से लागू करने की अनुमति दे दी है।

सार्क का महत्त्व/सफलताएं-सार्क देशों द्वारा अपनाए गए आर्थिक सहयोग कार्यक्रम का महत्त्व निम्नलिखित

  • दक्षिण एशियाई देशों द्वारा आर्थिक रूप से एक-दूसरे से सहयोग के कारण इस क्षेत्र में लोगों के जीवन स्तर में भारी सुधार आया है।
  • इसने आर्थिक विकास को गति प्रदान की है।
  • आर्थिक सहयोग के चलते सदस्य राष्ट्रों द्वारा एक-दूसरे पर से विभिन्न प्रकार के कर हटाने से व्यापार को बढ़ावा मिला है।
  • दक्षिण एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था में सुधार आया है।
  • आर्थिक क्षेत्र में सहयोग से सार्क देशों के सम्बन्धों में अधिक मज़बूती आई है।

सार्क की समस्याएं-

  • सार्क की सफलता में सदैव भारत-पाक के कटु सम्बन्ध रुकावट पैदा करते हैं।
  • सार्क के सदस्य देश भारत जैसे बड़े देश पर पूर्ण विश्वास नहीं कर पा रहे हैं।
  • सार्क के अधिकांश देशों में आन्तरिक अशान्ति एवं अस्थिरता इसके मार्ग में रुकावट है।
  • सार्क देशों में अधिक मात्रा में अनपढ़ता, बेरोज़गारी तथा भुखमरी पाई जाती है, जोकि इसकी सफलता में बाधा पैदा करती है।
  • सार्क के देश एक ही वस्तु के लिए परस्पर प्रतियोगिता करते हैं।
  • सार्क क्षेत्र में महाशक्तियों की राजनीति के कारण विकास की प्रक्रिया प्रभावित होती है।
  • सार्क की एक महत्त्वपूर्ण समस्या आतंकवाद है।
  • सार्क देशों के बीच अर्तक्षेत्रीय व्यापार बहुत कम है।
  • सार्क देशों में प्रशासनिक बाधाएं बहुत अधिक पाई जाती हैं।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
सार्क से आपका क्या अभिप्राय है? इसके मुख्य उद्देश्यों के बारे में संक्षेप में लिखिए। (P.B. 2010)
अथवा
सार्क के मुख्य उद्देश्य लिखो।
उत्तर-
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का एक सहयोग संगठन है। इस संगठन की स्थापना 1-2 अगस्त, 1983 को सात देशों के विदेश मन्त्रियों की नई दिल्ली की बैठक में की गई। दक्षेस का प्रथम शिखर सम्मेलन 7-8 दिसम्बर, 1985 को ढाका में हुआ। इस प्रकार औपचारिक रूप से सार्क की स्थापना हुई। दक्षेस के सदस्य हैं-भारत, मालदीव, पाकिस्तान, बंगला देश, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान और नेपाल । दक्षेस के मुख्य उद्देश्य इस प्रकार हैं
(1) दक्षिण एशिया के राज्यों में सहयोग बढ़े और एक-दूसरे के विकास में सकारात्मक सहायता प्रदान करें। (2) दक्षेस के राज्य अपनी आपसी समस्याओं का समाधान शान्तिपूर्ण ढंग से करें। (3) क्षेत्र की अधिक-से-अधिक सामाजिक और सांस्कृतिक उन्नति करना। (4) दक्षिण एशिया के देशों में सामूहिक आत्म-विश्वास पैदा करना।

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प्रश्न 2.
दक्षेस (SAARC) का क्या अर्थ है ? इसके महत्त्व का वर्णन करें।
अथवा
सार्क (SAARC) की महत्ता लिखें।
उत्तर-
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का एक सहयोग संगठन है। इस संगठन की स्थापना अगस्त, 1983 में सात देशों के विदेश मन्त्रियों की नई दिल्ली में बैठक की गई। दक्षेस का प्रथम शिखर सम्मेलन दिसम्बर, 1985 में ढाका (बंगला देश) में हुआ। इस प्रकार 1985 में सार्क की औपचारिक स्थापना हो गई। सार्क का मुख्य उद्देश्य दक्षिण एशिया के राष्ट्रों की समस्याओं को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाना है और इन राष्ट्रों में राजनीतिक, सामाजिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में विकास करना है।
महत्त्व-(1) सार्क के कारण दक्षिण एशिया के देश एक-दूसरे के समीप आए हैं और कुछ सामान्य समस्याओं को हल करने में सार्क सफल रहा है।
(2) क्षेत्र के बाहर के देशों का हस्तक्षेप काफ़ी कम हो गया है।

प्रश्न 3.
सार्क (SAARC) के मुख्य सिद्धान्त क्या हैं ?
उत्तर-
दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) की स्थापना करने वाली घोषणा के अनुच्छेद 10 की पहली धारा में कहा गया है कि सारे निर्णय सर्वसम्मति से होंगे। दूसरी धारा में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि सार्क के दो सदस्यों के ‘द्वि-पक्षीय’ मामलों पर विचार नहीं किया जाएगा। सार्क सदस्य देशों की प्रभुसत्ता, समानता, क्षेत्रीय अखण्डता व राजनीतिक स्वतन्त्रता का सम्मान करता है और किसी दूसरे देश के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा। सार्क एक राजनीतिक संघ या मंच नहीं है। इसका उद्देश्य आपसी सहयोग द्वारा विकास करना है। इसके लिए सदस्य देश आपसी सहयोग को प्राथमिकता देंगे।

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प्रश्न 4.
‘साप्टा’ पर संक्षेप टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
‘साप्टा’ का उद्देश्य सार्क देशों के मध्य व्यापारिक सहयोग को बढ़ाकर एक ‘दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र’ (साप्टा) की स्थापना करना है। मुक्त व्यापार क्षेत्र से अभिप्राय सदस्य देशों के बीच ऐसे व्यापार से है जो कस्टम और प्रशुल्क के प्रतिबन्धों से मुक्त हो अर्थात् ऐसा क्षेत्र जिसमें वस्तुओं का स्वतन्त्र आवागमन हो। ‘साफ्टा’ की स्थापना इसी उद्देश्य के लिए की गई थी। यह भी आशा की गई थी कि 21वीं शताब्दी के शुरू होने से पहले ‘साप्टा’ का स्थान साफ्टा ले लेगा। सार्क के 10वें शिखर सम्मेलन (ढाका) में यह निर्णय लिया गया कि साफ्टा’ के सम्बन्ध में एक विशेषज्ञ समिति की स्थापना की जाए जो 2001 की एक सन्धि तक पहुंचने के लिए अपना निष्कर्ष दे। जनवरी, 2004 में इस्लामाबाद (पाकिस्तान) में हुए 12वें सार्क शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (साप्टा) समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता ‘दक्षिण एशियाई अधिमानिक व्यापार व्यवस्था’ (साप्टा) का स्थान लेगा। इस समझौते के लागू होने से यह आशा की जा सकती है कि इससे दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।

प्रश्न 5.
‘सार्क’ से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके मुख्य उद्देश्यों के बारे में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-
‘सार्क’ का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें। सार्क के उद्देश्य(1) सार्क के सामने सबसे बड़ी समस्या इस क्षेत्र में पायी जाने वाली राजनीतिक असिथरता है। (2) वर्तमान समय में सार्क के सामने दूसरी सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद है। (3) सार्क के सामने एक अन्य समस्या इस क्षेत्र में पाए जाने वाली निर्धरता एवं बेरोज़गारी है।

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प्रश्न 6.
‘सार्क’ की कोई चार उपलब्धियां लिखिए।
उत्तर-

  • सार्क ने इस क्षेत्र में शान्ति की सम्भावनाएं पैदा की हैं।
  • सार्क के माध्यम से कई क्षेत्रों में सहयोग के विकास का प्रयास किया गया है।
  • सार्क देशों ने खाद्यान्नों की सुरक्षा के लिए भण्डार बनाया है।
  • सार्क के कारण दक्षिण एशिया के देश परस्पर समीप आए हैं।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
सार्क से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
सार्क दक्षिण एशिया के आठ देशों का एक सहयोग संगठन है। इस संगठन की स्थापना 1-2 अगस्त, 1983 को सात देशों के विदेश मन्त्रियों की नई दिल्ली की बैठक में की गई। दक्षेस का प्रथम शिखर सम्मेलन 78 दिसम्बर, 1985 को ढाका में हुआ। इस प्रकार औपचारिक रूप से सार्क की स्थापना हुई। दक्षेस के सदस्य हैंभारत, मालदीव, पाकिस्तान, बंगला देश, श्रीलंका, भूटान, अफगानिस्तान और नेपाल।

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प्रश्न 2.
सार्क के कोई दो उद्देश्य लिखें।
उत्तर-

  • दक्षिण एशिया के राज्यों में सहयोग बढ़े और एक-दूसरे के विकास में सकारात्मक सहायता प्रदान करें।
  • दक्षेस के राज्य अपनी आपसी समस्याओं का समाधान शान्तिपूर्ण ढंग से करें।

प्रश्न 3.
सार्क (SAARC) का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
सार्क (SAARC)-दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (South Asian Association for Regional Co-operation)।

प्रश्न 4.
सार्क (SAARC) के कोई चार देशों के नाम बताएं।
उत्तर-
सार्क (SAARC) के चार देश हैं-(1) भारत (2) बांग्लादेश (3) श्रीलंका (4) भूटान।

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प्रश्न 5.
‘सार्क’ की कोई दो उपलब्धियां लिखिए।
उत्तर-

  • सार्क ने इस क्षेत्र में शान्ति की सम्भावनाएं पैदा की हैं।
  • सार्क के माध्यम से कई क्षेत्रों में सहयोग के विकास का प्रयास किया गया है। .

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
दक्षेस (सार्क) का अर्थ लिखें।
उत्तर-
दक्षेस (सार्क) अर्थात् ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन’ दक्षिण एशिया के आठ देशों का एक संगठन है, जिसकी स्थापना इन देशों ने आपसी सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से की है।

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प्रश्न 2.
सार्क की स्थापना कब की गई थी ?
उत्तर-
सन् 1985 में।

प्रश्न 3.
सार्क के किसी एक सदस्य देश का नाम लिखें।
उत्तर-
भारत सार्क का एक महत्त्वपूर्ण सदस्य देश है।

प्रश्न 4.
दक्षेस (SAARC) का कार्यालय कहाँ स्थापित किया गया है ?
उत्तर-
दक्षेस (SAARC) का कार्यालय नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में स्थापित किया गया है।

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प्रश्न 5.
सार्क का पूरा नाम क्या है ?
उत्तर-
सार्क (SAARC)–दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (South Asian Association for Regional Co-operation)।

प्रश्न 6.
साफ्टा (SAFTA) का पूर्ण रूप लिखिए।
उत्तर-
दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र (South Asian Free Trade Area)।

प्रश्न 7.
सार्क देशों में कौन-सा देश है, जिसकी सीमाएं सभी सार्क देशों के साथ लगती हैं ?
उत्तर-
भारत की सीमाएं सभी स्पर्क देशों के साथ लगती हैं।

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प्रश्न 8.
सार्क के अब तक कितने सम्मेलन हो चुके हैं ?
उत्तर-
सार्क के अब तक 18-शिखर सम्मेलन हो चुके हैं।

प्रश्न 9.
‘सार्क’ में शामिल देशों के नाम लिखो।
उत्तर-
सार्क में भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, मालद्वीप तथा अफ़गानिस्तान शामिल हैं।

प्रश्न 10.
अफ़गानिस्तान सार्क का सदस्य कब बना था?
उत्तर-
अफ़गानिस्तान को अप्रैल 2007 में भारत में हुए 14वें सार्क शिखर सम्मेलन में सार्क का सदस्य बनाया गया।

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प्रश्न 11.
वर्तमान समय में सार्क के कितने देश सदस्य हैं ?
उत्तर-
वर्तमान समय में सार्क के 8 सदस्य हैं।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. दक्षिण एशिया के सहयोग संगठन को …….. कहते हैं।
2. 70 के दशक में बांग्ला देश के दिवंगत राष्ट्रपति ……….. ने सार्क का विचार दिया।
3. 1-2 अगस्त ……. को दक्षिण एशिया के सात देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक दिल्ली में हुई।
4. सार्क की औपचारिक रूप से स्थापना सन् …….. में हुई।
उत्तर-

  1. सार्क
  2. जिआउर्रहमान
  3. 1983
  4. 1985.

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही या ग़लत का चुनाव करें

1. सार्क एक राष्ट्रीय संगठन है।
2. सार्क दक्षिण एशियाई देशों का संगठन है।
3. सार्क की स्थापना 1990 में की गई ।
4. सार्क का पहला सम्मेलन ढाका में हुआ।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सार्क का उद्देश्य है
(क) दक्षिण एशियाई देशों में सहयोग बढ़े
(ख) दक्षेस के राज्य समस्याओं का समाधान शांतिपूर्ण ढंग से करें
(ग) दक्षिण एशिया के देशों में सामूहिक आत्मविश्वास पैदा करना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
सार्क है एक
(क) सर्वव्यापक (संस्था) संगठन
(ख) क्षेत्रीय संगठन
(ग) विश्व संगठन
(घ) अन्तर्राष्ट्रीय संगठन।
उत्तर-
(ख) क्षेत्रीय संगठन

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प्रश्न 3.
सार्क ने ग़रीबी उन्मूलन वर्ष किस वर्ष मनाने का निर्णय किया ?
(क) 1990
(ख) 1995
(ग) 2000
(घ) 2005.
उत्तर-
(ख) 1995

प्रश्न 4.
साप्टा (SAPTA) का अर्थ है
(क) दक्षिण एशियाई अधिमानिक व्यापार व्यवस्था
(ख) दक्षिण एशियाई मुक्त व्यापार क्षेत्र
(ग) दक्षिण एशियाई हिंसा क्षेत्र
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) दक्षिण एशियाई अधिमानिक व्यापार व्य