PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 12 स्मारक निर्माण कला

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 12 स्मारक निर्माण कला Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 12 स्मारक निर्माण कला

SST Guide for Class 7 PSEB स्मारक निर्माण कला Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षेप में उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
उत्तरी भारत के प्रमुख मन्दिर कौन-से थे?
उत्तर-
800 से 1200 ई० तक उत्तरी भारत में अनेक मन्दिर बने। इनमें से प्रमुख मंदिर थे –
जगन्नाथ पुरी का विष्णु मन्दिर, भुवनेश्वर का लिंगराज मन्दिर, कोणार्क का सूर्य मन्दिर तथा माऊंट आबू का तेजपाल मन्दिर।

प्रश्न 2.
भारतीय-मुस्लिम भवन निर्माण कला की प्रमुख विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
भवन-निर्माण कला भारतीय-मुस्लिम शैली की प्रमुख विशेषताएं नीचे दी गई हैं –

  1. यह शैली तुर्क, अफ़गान तथा भारतीय शैलियों का मिश्रण थी।
  2. इस शैली में अनेक मस्जिदें तथा मकबरे बनवाये गए। नुकीले मेहराब, मीनार तथा गुम्बद इस शैली की मुख्य विशेषताएं हैं।
  3. इन भवनों की दीवारों पर पवित्र कुरान की आयतें लिखी हुई है।
  4. अलाउद्दीन खिलजी के काल में बने अलाई दरवाज़े में लाल पत्थर तथा सफ़ेद संगमरमर का प्रयोग किया गया।
  5. कई इमारतों में स्तम्भों का प्रयोग भी किया गया है।

प्रश्न 3.
दक्षिण भारत के मंदिर कौन-से थे? नाम लिखें।
उत्तर-

  1. चोल शासक राजराजा द्वारा बना राजराजेश्वर मन्दिर।
  2. राजेन्द्र प्रथम चोल द्वारा बना गंगईकोंड चोलपुरम् का मन्दिर।
  3. एलोरा में राष्ट्रकूट शासकों द्वारा बना कैलाश मन्दिर।
  4. तंजौर में स्थित बृहदेश्वर का मन्दिर।

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प्रश्न 4.
दिल्ली सल्तनत काल में बनाए गए स्मारकों की सूची बनाओ।
उत्तर-
दिल्ली के सुल्तानों ने अनेक स्मारक बनवाये। इनमें से मुख्य स्मारकों का वर्णन इस प्रकार है –
1. दास शासकों द्वारा बने स्मारक-कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में कुवत-उल-इस्लाम नाम की एक मस्जिद बनवाई। इसकी दीवारों पर कुरान की पवित्र आयतें अंकित हैं। उसने अजमेर में ‘अढ़ाई-दिन-का-झोंपड़ा’ नामक मस्जिद का निर्माण करवाया। उसने दिल्ली के समीप महरौली में कुतुबमीनार का निर्माण कार्य आरम्भ किया। परन्तु उसकी मृत्यु हो जाने के कारण यह निर्माण कार्य पूरा न हो सका। बाद में उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इस काम को पूरा करवाया। 70 मीटर ऊंची इस इमारत की पांच मंज़िलें हैं।

2. अलाउद्दीन खिलजी के काल में बने स्मारक-अलाउद्दीन खिलजी के राज्य-काल में भवन-निर्माण कला का बहुत अधिक विकास हुआ। उसके द्वारा बनवाई गई इमारतों में से ‘अलाई दरवाज़ा’ सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह दरवाजा लाल पत्थर और सफ़ेद संगमरमर का बना हुआ है। अलाउद्दीन खिलजी ने हज़ार स्तम्भों वाला महल, एक हौज़-ए-खास तथा जमायत-खाना नामक मस्जिद भी बनवाई थी।

3. तुग़लक शासकों द्वारा बने स्मारक-(1) गियासुद्दीन तुगलक ने दिल्ली में तुगलकाबाद नाम का एक नगर बनवाया। (2) मुहम्मद-बिन-तुगलक ने जहांपनाह नाम के एक नये नगर का निर्माण करवाया। (3) फिरोजशाह तुग़लक ने भी कई नये नगर बसाए। इन नगरों में फिरोजाबाद, हिसार फिरोजा तथा जौनपुर प्रमुख हैं। उसने बहुत-सी मस्जिदें, स्कूल और पुल भी बनवाए।

4. लोधी तथा सैय्यद शासकों द्वारा बने भवन-लोधी और सैय्यद सुलतानों ने मुबारक शाह और मुहम्मदशाह के मकबरे बनवाए। सिकन्दर लोधी का मकबरा, बाड़ा, गुम्बद आदि स्मारक लोधी काल में बनवाए गए थे।

प्रश्न 5.
मुग़ल बादशाह शाहजहां को भवन निर्माताओं का शहजादा क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
शाहजहां को भवन बनवाने का बड़ा चाव था। उसके द्वारा बनवाए गए सभी भवन कला और सुन्दरता की दृष्टि से विशेष स्थान रखते हैं। उसने आगरा में जहांगीर महल, रानी जोधाबाई का महल, लाल किले की मोती मस्जिद तथा ताजमहल आदि बनवाए। ताजमहल संसार के सबसे सुन्दर भवनों में से एक है। दिल्ली में यमुना तट पर उसने लाल किला बनवाया। किले में उसने दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, मोती मस्जिद तथा अन्य कई भवन बनवाए। उसने अपने बैठने के लिए हीरे-मोती से जड़ित एक सिंहासन बनवाया जिसे तख्ते-ताऊस कहते हैं। शाहजहां की इन्हीं कृतियों के कारण उसे ‘भवन निर्माण कला का राजकुमार’ कहा जाता है।

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(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. ………… में बृहदेश्वर मन्दिर स्थित है।
  2. ………… द्वारा कुतुबमीनार का निर्माण किया गया था।
  3. मुग़ल बादशाह अकबर ने ………… को अपनी राजधानी बनाया।
  4. बुलन्द दरवाज़ा ………… में स्थित है।
  5. ताजमहल ………… द्वारा ……….. की याद में बनवाया गया था।
  6. ………… का निर्माण जहांगीर ने करवाया था।

उत्तर-

  1. तंजौर
  2. कुतुबुद्दीन ऐबक-इल्तुतमिश
  3. फतेहपुर सीकरी
  4. फतेहपुर सीकरी
  5. शाहजहाँ, अपनी बेग़म मुमताज़
  6. सिकन्दरा में अकबर के मकबरे।

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिन्ह लगाएं

  1. भारत में तुर्कों और अफ़गानों द्वारा भवन निर्माण कला की नई विधियों तथा नमूनों (प्रारूप) को तैयार किया गया था।
  2. चन्देल शासकों द्वारा खजुराहो में मन्दिरों का निर्माण करवाया गया था।
  3. अलाउद्दीन खिलजी ने सीरी को अपनी नई राजधानी बनाया था।
  4. मुहम्मद तुग़लक ने तुग़लकाबाद नगर को बसाया था।
  5. चोल शासकों द्वारा बनाए गए मन्दिरों में भवन निर्माण कला के द्रविड़ शैली नमूनों का प्रयोग किया। गया था।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✓)

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(घ) सही जोड़े बनाएं

नोट-पाठ्य-पुस्तक में दिए इस प्रश्न से सही मिलान नहीं किया जा सकता। इसलिए इस प्रश्न में थोड़ा-बहुत परिवर्तन किया है।

(क) – (ख)

  1. लिंगराज मन्दिर – भुवनेश्वर
  2. वृहदेश्वर मन्दिर – दिल्ली
  3. ढाई-दिन-का-झोंपड़ा – दिल्ली
  4. अदीना मस्जिद – आगरा
  5. हुमायूं का मकबरा – मालदा
  6. मोती मस्जिद – आगरा
  7. लाल किला – तंजौर
  8. ताज़ महल – अजमेर

उत्तर-

  1. लिंगराज मन्दिर – भुवनेश्वर
  2. वृहदेश्वर मन्दिर – तंजौर
  3. ढाई-दिन-का-झोंपड़ा – अजमेर
  4. अदीना मस्जिद – मालदा
  5. हुमायूं का मकबरा – दिल्ली
  6. मोती मस्जिद – आगरा
  7. लाल किला – दिल्ली
  8. ताजमहल – आगरा।

PSEB 7th Class Social Science Guide स्मारक निर्माण कला Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
संसार की सबसे बड़ी मूर्ति कौन-सी है ?
उत्तर-
कर्नाटक में श्रवणबेलगोला में स्थित गोमतेश्वर की मूर्ति संसार की सबसे बड़ी मूर्ति है।

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प्रश्न 2.
800-1200 ई० में उत्तर भारत में बने मन्दिरों की सूची बनाओ।
उत्तर-

  1. जगन्नाथ पुरी का विष्णु मन्दिर
  2. भुवनेश्वर का लिंगराज मन्दिर
  3. कोणार्क का सूर्य मन्दिर तथा माऊंट आबू का तेजपाल मन्दिर आदि।

प्रश्न 3.
तंजौर के बृहदेश्वर मन्दिर की संक्षिप्त जानकारी दीजिए। .
उत्तर-
तंजौर में स्थित बृहदेश्वर का मन्दिर दक्षिण भारत में मन्दिर निर्माण कला का एक शानदार नमूना है। भगवान् शिवजी को समर्पित यह मन्दिर राजराजा प्रथम द्वारा बनवाया गया था। इस मन्दिर के मुख्य द्वार को गोपुरम् कहा जाता है। इसकी ऊँचाई लगभग 94 मीटर है।

प्रश्न 4.
एलोरा के कैलाश मन्दिर पर संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
एलोरा का कैलाश मन्दिर राष्ट्रकूट शासकों की भवन-निर्माण कला का एक सुन्दर नमूना है। यह राष्ट्रकूट राजा कृष्ण प्रथम द्वारा बनवाया गया था। इस मन्दिर का निर्माण चट्टानों को काटकर किया गया है। यह मन्दिर संसार के निर्माण-कला आश्चर्यों में से एक माना जाता है।

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प्रश्न 5.
मुग़ल बादशाह जहांगीर द्वारा बनवाए गए दो भवनों के नाम बताओ।
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहांगीर ने सिकन्दरा में अकबर का और आगरा में इतमाद-उद्-दौला का मकबरा बनवाया।

प्रश्न 6.
भवन निर्माण कला में प्रदेशिक (क्षेत्रीय) राजाओं का क्या योगदान था ?
उत्तर-
क्षेत्रीय राज्यों में बहमनी तथा विजयनगर राज्यों के नाम लिए जा सकते हैं।

  1. बहमनी शासकों ने जामा मस्जिद, चार मीनार, महमूद गवा का मदरसा आदि भवन बनवाए थे। गुलबर्गा में फिरोजशाह का मकबरा, भवन निर्माण कला का बहुत ही सुन्दर नमूना है।
  2. विजयनगर के राजाओं ने हजारा राम और विट्ठल स्वामी मन्दिर बनवाए थे।
  3. बहमनी तथा विजयनगर के शासकों के अतिरिक्त जौनपुर के शर्की शासकों ने भी महत्त्वपूर्ण स्मारक बनवाए। उनके द्वारा बनी अटाला मस्जिद बहुत ही विख्यात है।

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प्रश्न 7.
निम्न पर संक्षिप्त लेख लिखिए।
(क) अकबर द्वारा बनवाये गये स्मारकों का वर्णन करें।
(ख) दक्षिणी भारत के मन्दिरों के नाम लिखें।
(ग) ताजमहल।
उत्तर-
(क) अकबर द्वारा बनवाई गई इमारतें (भवन)-अकबर को भवन निर्माण कला से बहुत ही प्रेम था। उसने बहुत-से किलें और इमारतें बनवाईं जिनमें लाल पत्थर का प्रयोग किया गया है। अकबर द्वारा बनवाई गई इमारतों में जामा मस्जिद, पंच महल, दीवान-ए-खास और दीवान-ए-आम बहुत ही प्रसिद्ध हैं। अकबर ने गुजरात विजय के समय एक बुलन्द दरवाज़ा बनवाया। उसकी इमारतें ईरानी और हिन्दू भवन निर्माण कला के नमूनों पर बनी हैं।

(ख) दक्षिणी भारत के मन्दिरों के नाम-अभ्यास का प्रश्न 3 पढ़ें।

(ग) ताजमहल-ताजमहल मुग़ल सम्राट शाहजहां द्वारा बनवाई गई सबसे सुन्दर इमारत है। यह आगरा में यमुना नदी के तट पर बनी है। इसे शाहजहां ने अपनी प्रिय बेग़म मुमताज की याद में बनवाया था। ताजमहल का निर्माण करने के लिए लगभग 20,000 कारीगरों ने 22 साल तक काम किया था और इस पर तीन करोड़ रुपये खर्च आये थे।

ताजमहल अनेक भवन-निर्माण कलाओं का सुन्दर मिश्रण है। यह सफ़ेद संगमरमर का बना हुआ है। इसे अन्य देशों से मंगवाए गए लगभग 20 प्रकार के कीमती पत्थरों से सजाया गया है। इसकी सुन्दरता के कारण इसकी गणना संसार के सात आश्चर्यों में की जाती है।

प्रश्न 8.
शाहजहां ने ताजमहल के अतिरिक्त अन्य भी कई भवन बनवाये। उनकी संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
उत्तर-
शाहजहां ने ताजमहल के अतिरिक्त निम्नलिखित भवन बनवाए –
1. लाल किला-लाल किला शाहजहां द्वारा 1639 ई० में दिल्ली में, यमुना के किनारे बनवाया गया। यह लाल पत्थर का बना हुआ है। इस किले में रंग महल, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, शाह बुर्ज, ख्वाब-गाह आदि कई सुन्दर इमारतें स्थित हैं। इसे कीमती पत्थरों, हीरों, सोने और चांदी की वस्तुओं से सजाया गया।

2. मोती मस्जिद-मोती मस्जिद शाहजहां द्वारा आगरा के लाल किले में बनवाई गई थी। इसे बनाने में लगभग तीन लाख रुपये का व्यय हुआ था। यह मस्जिद संगमरमर की बनी हुई है।

3. मुस्समन बुर्ज़- यह बुर्ज़ भी संगमरमर का बना हुआ है। यह बहुत ही सुन्दर है। यहां से ताजमहल स्पष्ट दिखाई देता है।

4. शाहजहानाबाद-1639 ई० में शाहजहां ने शाहजहानाबाद नामक नगर की नींव रखी। इस नगर को बनाने के लिए दूर-दूर से कुशल कारीगर तथा मजदूर बुलाये गये थे।

5. जामा मस्जिद-यह भारत की बड़ी मस्जिदों में से एक है। इसे बनाने में लगभग 10 साल का समय लगा था।

6. जहांगीर का मकबरा-शाहजहां ने यह मकबरा शाहदरा (पाकिस्तान) में बनवाया था। इसे संगमरमर से सजाया गया है।

7. शाहजहां का मोर-मुकुट-यह दीवान-ए-खास में रखा हुआ है। इसे तख्ते ताऊस भी कहते हैं। यह संगमरमर का बना हुआ है। इसे बनाने में सात साल लगे थे और इस पर एक करोड़ रुपये खर्च आया था। 1739 ई० में नादिरशाह इसे अपने साथ ईरान ले गया था।
शाहजहां बाग लगवाने में भी बहुत रुचि रखता था। उसने बहुत से बाग लगवाए थे। इनमें से दिल्ली का शालीमार बाग और काश्मीर का वज़ीर बाग बहुत प्रसिद्ध हैं। कुछ बाग ताजमहल और लाल किले में भी लगाए गए थे।

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सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
गौमतेश्वर की विश्व विख्यात मूर्ति श्रवण बेलगोला में स्थित है। बताइए यह किस राज्य में है?
(i) कर्नाटक
(ii) तमिलनाडु
(iii) आंध्र प्रदेश।
उत्तर-
(i) कर्नाटक।

प्रश्न 2.
हजार राम तथा विट्ठल स्वामी मंदिर किन शासकों ने बनवाए?
(i) विजयनगर के शासकों ने
(ii) चोल शासकों ने
(iii) राष्ट्रकूट शासकों ने।
उत्तर-
(i) विजयनगर के शासकों ने।

प्रश्न 3.
चित्र में फतेहपुर सीकरी में स्थित एक प्रसिद्ध भवन दिखाया गया है जिसे अकबर ने बनवाया था? यह किस नाम से प्रसिद्ध है?
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 12 स्मारक निर्माण कला 1
(i) चारमीनार
(ii) जामा मस्जिद
(iii) बुलंद दरबाज़ा।
उत्तर-
(iii) बुलंद दरवाज़ा।

तैराकी (Swimming) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions तैराकी (Swimming) Game Rules.

तैराकी (Swimming) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. तैराकी कुण्ड की लम्बाई = 50 मीटर
  2. कुण्ड की कम-से-कम चौड़ाई = 21 मीटर से 25 मीटर
  3. कुण्ड में पानी की गहराई = 1.8 मीटर से अधिक
  4. ब्रैस्ट स्ट्रोक में तैराक कौन-सी किक नहीं मार सकता = डालफिन किक
  5. तैराकी के अधिकारी = एक रैफ़री, एक सटारटर, टाइम कीपर प्रत्येक लेन में, समाप्ति जज प्रत्येक लेन पर
  6. टरन और स्ट्रोक के इन्सपैक्टर = प्रत्येक लेन पर
  7. रिकार्डर = एक
  8. लेन की संख्या = 8 लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर 10 लेन
  9. लेन की चौड़ाई = 2.5 मी०
    स्टार्टिंग प्लेटफार्म
  10. पानी से प्लेटफार्म की ऊँचाई = 0.5 मी० से 0.75 मी०
  11.  प्लेटफार्म का दरिया (slope) = 0.50 मी० × 0.50 मी०
  12. अधिकतम ढलान = 10° से अधिक नहीं
  13. पूल के पानी का तापमान = + 20° सैल्सियस कम से कम
  14. तैराकी प्रतियोगिता = 1. फरी स्टाइल
    2. बैक स्ट्रोक
    3. ब्रैस्ट स्ट्रोक
    4. बटर फ्लाई स्ट्रोक
    5. रिले = 4 × 100 मीटर फ्री स्टाइल
    = 4 × 400 मीटर मैडले।

तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

तैराकी खेल की संक्षेप रूप-रेखा
(Brief outline of the Swimming Game)

  1. सभी तैराकी रेस इवेंट्स में प्रत्येक तैराक के लिए घूमते हुए पूल के सिरे के साथ शारीरिक स्पर्श करना आवश्यक होता है।
  2. तैराकी कुण्ड (Swimming Pool) की लम्बाई 50 मीटर तथा इसकी कम-से कम चौड़ाई 21 मीटर होती है।
  3. तैराकी कुण्ड में जल की गहराई 1.8 मीटर से अधिक होती है।
  4. इसमें लम्बाई में पानी के तल से 0.3 मीटर ऊपर तथा 0.8 मीटर नीचे छूट होगी।
  5. कोई भी तैराक ऐसी वस्तु का प्रयोग नहीं कर सकता या पहन नहीं सकता जिससे उसे अपनी तैराकी में गति को बढ़ाने में सहायता मिले।
  6. ब्रैस्ट स्ट्रोक तैराकी में तैराक डोल्फिन किक नहीं लगा सकता।
  7. बटर फ्लाई स्ट्रोक में दोनों भुजाओं को एक समय पानी के ऊपर आगे तथा पीछे जाना चाहिए।
  8. बैक स्ट्रोक तैराकी में पीठ की साधारण स्थिति बदलने वाला प्रतियोगी अयोग्य घोषित किया जाता है।
  9. फ्री-स्टाइल तैराकी में तैराक किसी भी ढंग से तैर सकता है।
  10. तैराकी तथा गोता लगाते समय किसी प्रकार की कोचिंग देना मना है।
  11. कोई भी तैराक रेस के इवेंट्स समय अपने शरीर पर तेल या चिकनी वस्तु नहीं मल सकता।
  12. तैराक को नियम अनुसार बनाई गई पोशाक ही पहननी चाहिए।
  13. तैराक को सदैव अपनी पंक्ति में ही तैरना चाहिए।
  14. लेन जिनकी चौड़ाई 2.5 मीटर होगी जोकि रस्सियों के साथ बनी होगी। प्रतियोगिता के समय पानी की सतह एक जैसी होगी।

प्रश्न
ओलम्पिक और अन्तर्राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिता के लिए नियुक्त अधिकारियों का वर्णन करें।
उत्तर-
तैराकी कुण्ड (Swimming Pool)—तैराकी कुण्ड की लम्बाई 50 मीटर तथा इसकी कम-से-कम चौड़ाई 21 मीटर होती है। इसमें जल की गहराई 1.8 मीटर से अधिक होती है।
तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
इसकी लम्बाई में पानी के तल से 0.3 मीटर ऊपर तथा 0.8 मीटर नीचे छूट होगी। लेन (Lane) 8 जिनकी चौड़ाई 2.5 मीटर है रस्सियों से बंधी होगी। मुकाबले के समय पानी की सतह लगातार एक-सी बिना हलचल वाली होनी चाहिए।

अधिकारी (Officials)-ओलम्पिक खेलों, विश्व चैम्पियनशिप तथा अन्य अन्तर्राष्ट्रीय तैराकी प्रतियोगिताओं के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाएंगे
रैफरी (1), स्टार्टर (1), मुख्य टाइम कीपर (3), मुख्य जज (1), समाप्ति के जज (प्रति लेन 3), टर्न के इन्सपैक्टर (प्रत्येक लेन में दोनों सिरों पर एक-एक), एनाऊंसर (2), रिकार्डर (1), क्लर्क ऑफ दी हाऊस परन्तु अन्य प्रतियोगिताओं के लिए कम-सेकम निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं—
रैफरी (1), स्टार्टर (1), टाइम कीपर (प्रति-लेन 1), समाप्ति के जज (प्रति लेन 1), टर्न तथा स्ट्रोक इन्सपैक्टर (प्रत्येक दो लेनों के लिए 1), रिकार्डर (1)।

तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
तैराकी प्रतियोगिता के नियम लिखें।
उत्तर-
तैराकी प्रतियोगिता के नियम
(Rules of Swimming Race)

  1. तैरते समय प्रतियोगी को बाधा डालने वाला व्यक्ति अयोग्य घोषित किया जाएगा।
  2. किसी त्रुटि (फाऊल) के कारण प्रतियोगी की सफलता की सम्भावना संकट में पड़ने की दिशा में जजों को यह अधिकार होगा कि वे उसे अगले दौरे में भाग लेने की आज्ञा दे दें। यदि त्रुटि फाइनल में हुई होगी तो उसे पुनः तैरने की आज्ञा दी जा सकती है।
  3. लौटते समय तैराकी कुण्ड अथवा मार्ग के अन्त में एक अथवा दोनों हाथों से स्पर्श करेंगे। गृह के तल से डग मारने की अनुमति नहीं।
  4. दौड़ के समय यदि प्रतियोगी तल पर खड़ा हो जाए तो उसे अयोग्य नहीं घोषित किया जाएगा, परन्तु वह चलेगा नहीं।
  5. जल-मार्ग की सारी दूरी पार करने वाला प्रतियोगी ही विजेता घोषित किया जाएगा।
  6. रिले दौड़ में जिस प्रतियोगी टीम के पांव निर्वाचित साथी के दीवार से स्पर्श से पूर्व भूमि से हट जाएंगे, वह अयोग्य घोषित किया जाएगा तब तक कि अपराधी प्रतियोगी मूल प्रारम्भ बिन्दु पर न लौट आए। प्रारम्भ प्लेटफार्म तक लौटना आवश्यक नहीं।
  7. प्रतियोगिता के समय किसी प्रतियोगी को कोई ऐसी वस्तु प्रयोग में लाने अथवा पहनने की आज्ञा नहीं होगी जोकि उसकी तैरने की गति तथा सहिष्णुता बढ़ाने में सहायता प्रदान करे।

प्रश्न
ब्रैस्ट स्ट्रोक, बटर फ्लाई स्ट्रोक, बैक स्ट्रोक और फ्री स्टाइल तैराकी क्या
उत्तर-
बटर फ्लाई स्ट्रोक-इसमें दोनों बाजू पानी की सतह के ऊपर इकट्ठे आगे से पीछे ले जाने पड़ते हैं।
मुकाबला शुरू होने पर और समाप्त होने पर छाती ऊपर दोनों कन्धे पानी की सतह पर सन्तुलित हों, पांवों की क्रियाएं इकट्ठी हों।
फ्री स्टाइल-फ्री स्टाइल तैराकी का अर्थ किस प्रकार या ढंग से तैराकी है। इससे भाव तैरने का ढंग जोकि बटर फ्लाई स्ट्रोक, ब्रैस्ट या बैक स्ट्रोक से अलग हो। फ्री स्टाइल में तैराकी कुण्ड पर और दौड़ की समाप्ति के समय तैराकी कुण्ड की दीवार हाथ से छूना ज़रूरी नहीं। वह अपने शरीर के किसी अंग से छू सकता है।
बैक स्ट्रोक-इसमें भाग लेने वाले शुरू होने वाले स्थान पर उस ओर मुंह करके हाथ कुण्ड पर रखें, पैर पानी में होने ज़रूरी हैं। कुण्ड में खड़े नहीं हो सकते।
शुरू का संकेत मिलने पर दौड़ते समय बैक से (पीठ से) तैरेंगे।

ब्रैस्ट स्ट्रोक-इससे शरीर तथा छाती सन्तुलित और दोनों कन्धे पानी की सतह के बराबर होंगे, हाथों और पांवों की क्रियाएं इकट्ठी होंगी जोकि एक लाइन में हों। छाती से दोनों हाथ इकट्ठे आगे पानी के अन्दर या ऊपर और पीछे होने चाहिएं।
टांगों की क्रिया में पांव पीछे से आगे की तरफ मुड़ें, मछली की तरह क्रिया नहीं की जा सकती। मुड़ते समय या समाप्ति पर छू दोनों हाथों से पानी के अन्दर या ऊपर ज़रूरी है। सिर का हिस्सा पानी की सतह से ऊपर रहना ज़रूरी है।

तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
स्कूल स्तर पर लड़के और लड़कियों के लिए तैराकी प्रतियोगिता का वर्णन करें।
उत्तर-
स्कूल स्तर पर लड़के और लड़कियों के लिए तैराकी प्रतियोगिताएं—
तैराकी प्रतियोगिताएं
तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2

PSEB 10th Class Physical Education Practical तैराकी (Swimming)

प्रश्न 1.
तैराकी प्रतियोगताएं कितने की होती हैं ?
उत्तर-
तैराकी (Swimming) तैराकी प्रतियोगिताओं में निम्नलिखित मुकाबले होंगे—
1. लड़के (Boys)—

  1. फ्री स्टाइल (Free Style)-100, 200, 400, 800, 1500 मीटर।
  2. बैक स्ट्रोक (Back Stroke)-100, 200 मीटर।
  3. ब्रैस्ट स्ट्रोक (Breast Stroke)-100, 200 मीटर।
  4. बटरफ्लाई स्ट्रोक (Butterfly Stroke)-100 मीटर।
  5. रीले (Relay) 4 × 100 मीटर की फ्री स्टाइल। 4 × 100 मीटर मेडले (ब्रैस्ट, बैक, बटरफ्लाई और फ्री स्टाइल)।

लड़कियां (Girls)—

  1. फ्री स्टाइल (Free Style)-100, 200, 400 मीटर।
  2. बैक स्ट्रोक (Back Stroke)-100 मीटर।
  3. ब्रैस्ट स्ट्रोक (Breast Stroke)-100 मीटर।
  4. बटरफ्लाई स्ट्रोक (Butterfly Stroke)-100 मीटर।
  5. रीले (Relay)-4 × 100 मीटर फ्री स्टाइल। 4 × 100 मीटर मेडले (ब्रैस्ट, बैक, बटरफ्लाई और फ्री स्टाइल)।

तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 2.
तैराकी प्रतियोगिता में हीटें किस प्रकार बनाई जाती हैं और फाइनल कैसे होता है ?
उत्तर-
हीटों का बनाना और फाइनल (Seeding Heats and Finals)-सारे तैराकी मुकाबलों में सैमी फाइनल और फाइनल में हीटों का निर्माण इस प्रकार होगा—

  1. ट्रायल हीट (Trial Heat) सभी तैराक जिन्हें भाग लेना है, एक परफा में उनका समय उनके नामों के सामने भरकर योग्यता कमेटी को भेज दिया जाता है। जो प्रतियोगी अपना समय नहीं भरते, उनका नाम सूची के अन्त में दर्ज किया जाता है।
  2. सबसे तेज़ तैराक को सबसे अन्तिम हीट में, उससे कम तेज़ तैराक को अन्तिम से पहले वाली हीट में। इसी तरह बाकी के तैराकों या टीमों की हीट का फैसला किया जाता है।
  3. सबसे तेज़ तैराक को सैंटर वाली लाइन दी जाती है, उससे कम तेज़ उसके दाईं तथा बाईं ओर रखे जाते हैं।

फाइनल (Finals)—जहां आरम्भिक हीटों की आवश्यकता न हो तो लाइनों का निर्माण ऊपर दिए (3) के अनुसार होगा।

प्रश्न 3.
तैराकी प्रतियोगताओं के लिए नियुक्त अधिकारियों का वर्णन करो।
उत्तर-

रैफरी 1
जज 1
स्टार्टर 1
टाइम कीपर 1
रिकार्ड कीपर 2
इंस्पैक्टर 2
स्ट्रोक जज 1

 

तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 4.
तैराकी सम्बन्धी हमें कौन-कौन सी सावधानियां प्रयोग में लानी चाहिएं ?
उत्तर-
तैराकी सम्बन्धी सावधानियां निम्नलिखित हैं—

  1. नाक और मुंह में पानी भरने की हालत में एकदम बाहर आ जाओ।
  2. हवा अपनी ताकत अनुसार करो।
  3. तैराकी सीखते समय बहुत गहरे पानी में न जाओ।
  4. गोते खाने की स्थिति में आवाज़ दो।
  5. तैराकी के समय शोर मत करो।

प्रश्न 5.
तैराकी प्रतियोगिता में अंक कैसे दिए जाते हैं ?
उत्तर-
तैराकी प्रतियोगिता में निम्नलिखित ढंग द्वारा अंक दिए जाते हैं—
पहली तीन पोजीशनों को क्रमश: (5-3-1) और रिले दौड़ों में 16-6-2 के अनुसार प्वाईंट दिए जाते हैं।

तैराकी (Swimming) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 6.
तैराकी दौड़ के मुख्य नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
दौड़ (The Race)—

  1. किसी तैराक को बाधा नहीं पैदा करनी चाहिए।
  2. यदि फाऊल के कारण किसी प्रतियोगी की सफलता कम (मध्यम) हो जाती है तो रैफरी उसको अगले राऊंड में हिस्सा लेने का अवसर देगा। यदि फाइनल में हो तो रैफरी दूसरी बार करवाने की आज्ञा दे सकता है।
  3. सारे इवेंट्स (Events) में तैराक घूमते हुए पूल के सिरे से शरीर स्पर्श अवश्य करेगा।
  4. किसी भी प्रतियोगी को किसी ऐसी वस्तु का प्रयोग नहीं करने दिया जाएगा जिससे तैराक को गति बढ़ाने में सहायता मिले।
  5. एक तैराक को उस लेन (Lane) में दौड (Race) समाप्त करनी पड़ेगी, जिससे उसने आरम्भ की है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 13 मुग़ल राज्य-तन्त्र और शासन प्रबन्ध

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 13 मुग़ल राज्य-तन्त्र और शासन प्रबन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 13 मुग़ल राज्य-तन्त्र और शासन प्रबन्ध

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
अकबर के नव राजनीतिक संकल्प के सन्दर्भ में मुग़लों की मनसबदार प्रणाली तथा जागीरदारी प्रथा की चर्चा करें।
उत्तर-
अकबर ने अपनी आवश्यकतानुसार शासन को नवीन रूप प्रदान किया। उसने स्वयं को धार्मिक नेताओं से स्वतन्त्र रखने का प्रयास किया। उसने सैनिक तथा असैनिक कार्यों के लिए मनसबदार नियुक्त किए तथा जागीर व्यवस्था को नये रूप में आरम्भ किया। इन सब का वर्णन इस प्रकार है :

I. नया राजनीतिक संकल्प-

मुग़ल प्रशासन कई प्रकार से पहले की राज्य व्यवस्थाओं से भिन्न था। अकबर के शासनकाल में राज्यतन्त्र का एक नवीन रूप उभरा। यही रूप उसके उत्तराधिकारियों के शसनकाल में भी चलता रहा। इस राज्यतन्त्र में पहला तत्त्व राजपद के नये संकल्प का था। बाबर पहले ही खलीफा का सहारा लेने की बजाय इस बात पर बल देता था कि वह तैमूर का उत्तराधिकारी है। इस तरह उसने खलीफा की काल्पनिक सत्ता समाप्त कर दी थी।

अकबर एक कदम और आगे बढ़ा। उसने राजनीतिक और सरकारी क्षेत्र में मुल्लाओं की भूमिका को बहुत घटा दिया। 1579 में उसके राज्य के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों और विद्वानों ने ‘महाज़र’ नामक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किये। इसके अनुसार अकबर को इमाम-ए-आदिल अर्थात् एक न्यायशील नेता घोषित किया गया। अकबर को अब यह अधिकार दिया गया कि कानून के व्याख्याताओं द्वारा दी गई विरोधी रायों में से किसी एक का चुनाव कर के अपनी प्रजा के हित में निर्णय अथवा फतवा दे सके। वह कुरान के अनुकूल लोगों की भलाई के लिए स्वयं ही आज्ञा जारी कर सकता था। इस घोषणा के कारण अब वह मुसलमानों के विभिन्न सम्प्रदायों के साथ-साथ सारे ग़ैर-मुसलमान लोगों से अपनी प्रजा के रूप में समान व्यवहार कर सकता था। अकबर का यह विश्वास था कि उसने ईश्वर से अपनी सत्ता प्राप्त की है और सारी जनता ईश्वर की रचना होने के नाते बादशाह के समान व्यवहार की पात्र है। उसने हिन्दुओं से जज़िया तथा तीर्थ यात्रा कर लेने बन्द कर दिए।

उसने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किया और उन्हें मुसलमान बनाये बिना ही महलों में अन्य रानियों के बराबर सम्मान दिया। उसने कई राजपूत सरदारों को भी अधीन राजाओं का दर्जा दिया।

हर्ष के पश्चात् अकबर पहला शासक था जिसने बड़े स्तर पर सामन्त प्रथा का विधिवत प्रयोग किया। उसके राज्य में 100 से भी अधिक सामन्त थे। सभी सामन्त गैर-मुसलमान थे। वे दूसरी शक्तियों से राजनीतिक सन्धि नहीं कर सकते थे। उन्हें गद्दी पर बैठने का अधिकार भी सम्राट प्रदान करता था। सामन्त के लिए यह आवश्यक था कि वह सम्राट को वार्षिक खिराज दे। सम्राट् की आज्ञा अनुसार आवश्यकता पड़ने पर सामन्तों को अभियानों के लिए सैनिक भेजने पड़ते थे। सम्राट् की अधीनता में रहते हुए सामन्तों को यह स्वतन्त्रता थी कि वे मुग़ल साम्राज्य में मनसबदार बन सकें। यह पद अधीन शासक के पद के अतिरिक्त था। इस प्रकार सामन्त और मनसबदार के रूप में अधीन राजा का मुग़ल साम्राज्य से दोहरा नाता रहता था। उसका अपना एक राजनीतिक स्तर भी होता था तथा वह प्रशासन का भागीदार भी होता था ।

II. मनसबदारी प्रणाली-

अकबर की मनसबदारी प्रणाली का मूल उद्देश्य सैनिक संगठन में सुधार लाना था। इस उद्देश्य से हर कमाण्डर का मनसब अथवा दर्जा निश्चित किया गया। इससे उसके अधीन सैनिकों की गिनती का पता चल जाता था। मनसब दस से आरम्भ होकर दस-दस के अन्तर से बढ़ते थे ताकि घुड़सवारों की गिनती करनी सरल हो जाए तथा पदों में अन्तर का भी स्पष्ट पता चले। जब अकबर को यह पता चला कि मनसबदार निश्चित संख्या में घुड़सवार नहीं रखते तो उसने दो प्रकार के मनसब बना दिए-जात और सवार। जात के अनुसार मनसबदार का व्यक्तिगत वेतन निश्चित किया जाता था और सवार मनसब से उसके घुड़सवारों की गिनती एवं उनके लिए वेतन निश्चित हो जाता था। अतः स्पष्ट है कि घुड़सवार न रखने को केवल जात मनसब दिया जाता था। इस प्रकार ‘सिविल’ और सैनिक अफसरों में अन्तर काफ़ी सीमा तक कम हो गया। अलग-अलग समय में एक ही व्यक्ति को सिविल’ से सैनिक और सैनिक से ‘सिविल’ सेवाओं में परिवर्तित किया जा सकता था। कुछ मनसबदारों के पास दोनों ही पद थे। ऐसे मनसबदारों को तीन वर्गों में बांटा गया था। पहले वर्ग के पास सवार तथा जात मनसब बराबर थे। दूसरे वर्ग में वे मनसबदार थे जिनका सवार मनसब जात मनसब के आधे से अधिक था। तीसरे प्रकार के मनसबदारों का सवार मनसब उसके जात मनसब के आधे से भी कम था। शाहजहां और औरंगजेब के शासनकाल में मनसबदारी प्रणाली में कुछ परिवर्तन अवश्य किया गया, किन्तु अकबर द्वारा विकसित की गई प्रणाली में मनसबदारों का मूल अस्तित्व बना रहा।

III. जागीरदारी प्रथा-

जागीरदारी प्रथा का स्रोत मनसबदारी था। अकबर सभी मनसबदारों को नकद वेतन नहीं दे सकता था। अतः उसने मनसबदारों को यह अधिकार दिया कि वे अपने वेतन के बराबर लगान वसूल कर लें। जिस भूमि से मनसबदार को लगान वसूल करने का अधिकार मिलता था, उसे उसकी जागीर माना जाता था। जागीरदार का अधिकार उस भूमि से लिए जाने वाले कर तक ही सीमित था। जो भूमि जागीर में नहीं दी जाती थी, उसे बादशाह का खालिसा कहा जाता था। जागीरों की भान्ति खालिसा भूमि भी देश के भिन्न-भिन्न भागों में होती थी।

मनसबदार की जागीर एक ही स्थान पर नहीं होती थी। साम्राज्य की नीति के अनुसार थोड़े-थोड़े समय बाद जागीरों को स्थानान्तरित कर दिया जाता था ताकि जागीरदार स्थानीय लोगों के साथ अधिक मेल-मिलाप न बढ़ा सकें। इसका परिणाम यह निकला कि जागीरदार अधिक लगान वसूल करने की चिन्ता में रहते थे और भूमि के सुधार की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं देते थे। उनका किसानों से व्यवहार भी अच्छा नहीं होता था। अकबर के उत्तराधिकारियों के समय जैसे-जैसे मनसबदारों की गिनती बढ़ती गई वैसे-वैसे जागीरदारों को उनकी इच्छा के अनुकूल जागीरें मिलनी कठिन हो गईं। 17वीं सदी के अन्त में तो मनसबदारों को जागीर प्राप्त करने के लिए कई वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ती थी। औरंगजेब के समय तक साम्राज्य का 80 प्रतिशत भाग जागीरों के रूप में दिया जा चुका था।
उन्हें अपनी जागीरों से आय भी कम प्राप्त होती थी। इस तरह जागीरदारी प्रथा में संकट की स्थिति बन गई और यह पतनोन्मुख हुई। इस प्रथा का पतन अन्तत: मुग़ल साम्राज्य के पतन का कारण बना।

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प्रश्न 2.
लगान प्रबन्ध के सन्दर्भ में मुग़ल साम्राज्य के केन्द्रीय, प्रान्तीय तथा स्थानीय प्रशासन की चर्चा करें।
उत्तर-
मुग़लों ने भारत में उच्चकोटि की शासन-प्रणाली की व्यवस्था की। इसके अधीन केन्द्रीय, प्रान्तीय, स्थानीय शासन तथा लगान प्रबन्ध का वर्णन इस प्रकार है :-

1. केन्द्रीय शासन-केन्द्रीय शासन का मुखिया स्वयं सम्राट् था। उसे असीम शक्तियां प्राप्त थीं जिन पर किसी प्रकार का अंकुश नहीं था। उसे धरती पर ‘ईश्वर की छाया’ समझा जाता था। वह मुख्य सेनापति और मुख्य न्यायाधीश था। वह इस्लाम धर्म का संरक्षक तथा मुस्लिम जनता का आध्यात्मिक नेता भी था। शासन कार्यों में उसे सलाह देने के लिए एक मन्त्रिमण्डल होता था। प्रत्येक मन्त्री के पास एक अलग विभाग होता था। इसमें से कुछ प्रमुख मन्त्री ये थे-वकील या वज़ीर, दीवानए-आला, मीर बख्शी, सदर-उल-सुदूर, खान-एन्सामां तथा प्रधान काजी। सम्राट् के पश्चात् वकील या वजीर का पद सबसे बड़ा होता था। वह सम्राट् का सलाहकार था तथा अन्य विभागों की देखभाल करता था। दीवान-ए-आला वित्त मन्त्री होने के नाते सभी प्रकार के कर एकत्रित करता था। मीर बख्शी मनसबदारों का रिकार्ड रखता था।

2. प्रान्तीय शासन-मुग़लों ने अपने साम्राज्य को विभिन्न प्रान्तों में बांटा हुआ था। अकबर के शासन काल में प्रान्तों की संख्या 15 थी, जो औरंगजेब के समय में बढ़ कर 22 हो गई। प्रान्तीय शासन का मुखिया सूबेदार अथवा नाज़िम होता था। वह प्रान्त में कानून तथा व्यवस्था बनाए रखता था। वह सरकारी आज्ञाओं को भी लागू करवाता था। शासन-कार्यों में उसकी सहायता के लिए प्रान्तीय दीवान होता था। वह प्रान्त के वित्त विभाग का मुखिया होता था। वह सूबेदार के अधीन नहीं होता था। इसके अतिरिक्त बख्शी, सदर, काजी, वाकियानवीस तथा कोतवाल आदि अन्य अधिकारी थे। वे प्रान्तों में वही काम करते थे जो उनके मुखिया केन्द्र में करते थे।

3. स्थानीय शासन-मुग़लों ने शासन की सुविधा को ध्यान में रखते हुए प्रान्तों को आगे सरकारों में बांटा हुआ था। सभी प्रान्तों की सरकारों की संख्या 105 थी। फौजदार, अमल गुज़ार, वितक्ची तथा खज़ानेदार सरकार के प्रमुख अधिकारी थे। फौजदार सरकार का सैनिक तथा कार्यकारी अध्यक्ष होता था। वह सरकार में शान्ति तथा अनुशासन की व्यवस्था करता था। वह ही सम्राट के फरमानों को लागू करवाता था। अमल-गुज़ार सरकार के वित्त विभाग का मुखिया होता था। वह निम्न राजस्व अधिकारियों के कार्यों पर निगरानी रखता था और किसानों को अधिक-से-अधिक भूमि को हल तले लाने के लिए प्रेरित करता था। अमल-गुज़ार की सहायता के लिए वितिक्ची तथा पोतदार अथवा खज़ानेदार नामक दो अधिकारी होते थे। वितिक्ची राजस्व तथा उपज के आंकड़ों का रिकार्ड रखता था और कानूनगो के कार्यों का निरीक्षण करता था। पोतदार तथा खज़ानेदार कृषकों से भूमि कर एकत्रित करके कोष में रखता था। कोष की एक चाबी उसके पास होती थी और दूसरी अमलगुज़ार के अधिकार में रहती थी।

प्रत्येक सरकार को कई परगनों में बांटा गया था। परगनों के प्रमुख कर्मचारियों में शिकदार, आमिल, कानूनगो आदि के नाम लिए जा सकते थे। शिकदार परगने का कार्यपालक अधिकारी होता था। वह परगने में शान्ति तथा व्यवस्था की स्थापना करता था। परगने में फौजदारी मुकद्दमे का फैसला भी वही करता था। आमिल परगने के राजस्व विभाग का मुखिया होता था। उसके कार्य भूमिकर एकत्रित करना, दीवानी मुकद्दमों का फैसला करना तथा शान्ति स्थापना में शिकदार की सहायता करना था। आमिल की सहायता के लिए कानूनगो तथा पोतदार नामक दो अधिकारी होते थे। कानूनगो कृषकों की भूमि तथा भूमिकर सम्बन्धी सारे रिकार्ड रखता था। वह पटवारियों के कार्यों का निरीक्षण भी करता था। पोतदार परगने के किसानों से कर एकत्रित करता था। ग्राम का प्रबन्ध पंचायत के हाथों में होता था। पंचायत के मुख्य कार्यों में लोगों के झगड़ों का निपटारा करना, सफ़ाई तथा शिक्षा का प्रबन्ध करना, मेलों तथा उत्सवों का आयोजन करना आदि प्रमुख थे।

4. न्याय प्रबन्ध-मुग़ल साम्राज्य के अन्य विभागों की भान्ति न्याय प्रबन्ध भी सुव्यवस्थित था। साम्राज्य के सभी नगरों एवं मुख्य कस्बों में एक काजी और एक मुफ्ती नियुक्त किया जाता था। वे शरीअत (इस्लामी कानून) की शर्तों के अनुसार न्यायिक प्रशासन की देखभाल करते थे। मुफ्ती कानून की व्याख्या करता था तथा काजी निर्णय देता था। काज़ी की कचहरी में गैर-मुसलमान भी जा सकते थे। गांवों और कस्बों में पंचायतें भी थीं जो छोटे-मोटे झगड़ों का निपटारा करती थीं। न्याय का अधिकांश कार्य पंचायत तथा काजी ही कर लेते थे। प्रान्त में सूबेदार, दीवान तथा अन्य कर्मचारियों को भी न्याय करने का अधिकार प्राप्त था, विशेष रूप से उन मामलों में जिनसे उनका सीधा सम्बन्ध था। इसी प्रकार केन्द्र में बादशाह के अतिरिक्त सदर एवं अन्य मन्त्री न्याय कार्य करते थे। शाही लश्कर के लिए नियुक्त विशेष काजी को ‘काज़ी-उल-कुजात’ कहते थे।

5. लगान प्रबन्ध-मुग़ल राज्य की आय का सबसे बड़ा स्रोत लगान (भूमिकर) था। अकबर ने कई अनुभवों के आधार पर भूमिकर की जब्ती व्यवस्था लागू की। इस व्यवस्था के अनुसार कृषि अधीन सारी भूमि को नापा गया। इस नाप के लिए एक निश्चित लम्बाई का गज़ प्रयोग में लाया गया जिसे इलाही गज़ कहते थे। नाप के लिए अब रस्से के स्थान पर बांस के टुकड़ों का प्रयोग होने लगा। फिर सारी भूमि को उर्वरता के आधार पर तीन श्रेणियों में बांट कर उनकी प्रति बीघा औसत उपज का हिसाब लगाया। इस औसत उत्पादन का तीसरा भाग सरकार का हिस्सा अथवा लगान निर्धारित किया गया। इसके पश्चात् प्रत्येक फसल को दस वर्षों की कीमतों की औसत निकाल कर लगान की मात्रा नकद राशि में निश्चित की गई। इस प्रकार प्रत्येक फसल को प्रति बीघा लगान दामों में निश्चित हुआ। ऐसे सभी प्रदेशों के लिए, जहां भूमि की उर्वरता तथा जलवायु लगभग एक थे, लगान को नकद राशि में परिवर्तित करने के लिए एक ही दर निश्चित की गई जिसे ‘दस्तूर’ कहते थे। कृषक से लिए जाने वाले लगान का हिसाब इसी दर से ही लगाते थे। बोई हुई भूमि के क्षेत्र का नाप प्रत्येक फसल के लिए किया जाता था। इस व्यवस्था में साधारणतः सरकार तथा किसान दोनों को आरम्भ से ही लगान की राशि का पता चल जाता था।

कुछ स्थानों पर जब्ती के साथ कनकूत तथा बटाई भी प्रचलित थी। बटाई के अनुसार फसल का एक निश्चित भाग लगान के रूप में लिया जाता था। यह किसानों के लिए तो लाभदायक था, परन्तु सरकार को कटी फसल की सुरक्षा की व्यवस्था करनी पड़ती थी। कनकूत में ऐसी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि उसमें खड़ी फसल के आधार पर उपज का अनुमान लगा लिया जाता था। सरकार के करिन्दे बाद में लगान की दर के अनुसार सरकार का हिस्सा वसूल करते थे। प्रायः लगान की राशि निश्चित करके नकदी में उसकी उगराही होती थी। अकबर के उत्तराधिकारियों के समय लगान की दर बढ़ती चली गई तथा 17वीं सदी के अन्त में यह दर उत्पादन के तीसरे भाग से बढ़ कर लगभग आधा भाग हो गई। समय बीतने पर वार्षिक नाप भी छोड़ दिया गया और पहले वर्षों में वसूल किए लगान के आधार पर कृषक का या सारे गांव का सामूहिक लगान निश्चित किया जाने लगा। इसे नस्क कहा जाता था।

सच तो यह है कि मुग़ल सरकार का प्रशासन समय की आवश्यकता के अनुकूल था। इसलिए इसमें आवश्यकता के अनुसार समय-समय पर परिवर्तन भी होते रहते थे। परन्तु प्रशासन के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं होता था।

प्रश्न 3.
लोक कल्याण के कार्य तथा राजकीय संरक्षण का हवाला देते हुए मुग़ल काल में भवन निर्माण, चित्रकला, संगीत तथा साहित्य के क्षेत्र में हुई उन्नति पर लेख लिखें।
उत्तर-
मुग़ल काल में प्रजा हित का रूप वह नहीं था जैसा की वर्तमान कल्याणकारी राज्य में होता है। यह राजा की इच्छा पर निर्भर था कि वह प्रजा-हित के लिए क्या कुछ करता है या नहीं। फिर भी मुग़ल सम्राट् प्रजा हितकारी थे और वे सरकारी आय का कुछ भाग जनकल्याण तथा धर्मार्थ कार्यों पर व्यय करते थे। यात्रियों की सुविधा के लिए सरकार पुल और सड़कें बनवाती थी। लोगों के लिए अस्पताल और सराएं भी बनवाई जाती थीं। इनका प्रयोग सरकारी कार्यों के लिए भी होता था।

मुग़ल शासक मस्जिदों, मदरसों, सूफ़ी सन्तों तथा धार्मिक पुरुषों को संरक्षण देते थे। लोक कल्याण पर व्यय होने वाले राशि का अधिकतर भाग इन्हीं पर खर्च किया जाता था। इन्हें व्यय के लिए सरकार की ओर से कर मुफ़्त भूमि दे दी जाती थी। कुछ गैर-मुस्लिम संस्थाओं को भी सहायता मिलती थी। इनमें वैष्णव, जोगी, सिक्ख तथा पारसी संस्थाएं शामिल थीं। औरंगज़ेब के समय में भी इस सहायता पर कोई रोक न लगाई गई। अतः जब औरंगज़ेब ने कर मुक्त भूमि प्राप्त लोगों को भूमि का स्वामी घोषित किया तो गैर-मुस्लिम संस्थाएं भी अपनी-अपनी भूमि की स्वामी बन गईं। इस प्रकार की भूमि के स्वामी अब अपनी भूमि बेचने या गिरवी रखने में स्वतन्त्र थे।

भवन-निर्माण-

मुग़लकाल में एक लम्बे समय के पश्चात् देश में शान्ति स्थापित हुई। ऐसे वातावरण में जनता में अनेक कलाकार पैदा हुए। फलस्वरूप देश में सभी प्रकार की कलाओं तथा साहित्य का अद्वितीय विकास हुआ। बाबर को भवन बनवाने का बड़ा चाव था। उसके द्वारा बनवाए केवल दो भवन विद्यमान हैं-एक मस्जिद पानीपत में है और दूसरी मस्जिद रुहेलखण्ड के सम्भल नगर में है। हुमायूँ ने फतेहाबाद (जिला हिसार) में एक मस्जिद बनवाई। अकबर ने भी भवन-निर्माण कला को काफ़ी विकसित किया। उसके भवनों में फ़ारसी तथा भारतीय शैलियों का मिश्रण पाया जाता है। उसकी प्रमुख इमारतें ‘जहांगीर महल ‘हुमायूँ का मकबरा’ ‘फतेहपुर सीकरी में ‘जोधाबाई का महल’, ‘बुलन्द दरवाजा’ ‘दीवान-ए-खास’ प्रमुख हैं।

अकबर द्वारा बनाया गया ‘पंज-महल’ तथा ‘जामा मस्जिद’ भी देखने योग्य हैं। जहांगीर ने आगरा में एतमाद-उद्-दौला का मकबरा तथा सिकन्दरा में अकबर का मकबरा बनवाया। शाहजहां ने बहुत से भवनों का निर्माण करवाया। उसकी सबसे सुन्दर इमारत ‘ताजमहल’ है। उसने दिल्ली का लाल किला भी बनवाया। इसमें बने ‘दीवान-ए-खास’ तथा ‘दीवान-ए-आम’ विशेष रूप से देखने योग्य हैं। इसके अतिरिक्त उसने आगरा के दुर्ग में मस्जिद बनवाई। शाहजहां ने एक करोड़ रुपए की लागत से ‘तख्तए-ताऊस’ भी बनवाया। उसकी मृत्यु के बाद भवन निर्माण कला का विकास लगभग रुक-सा गया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद साम्राज्य में अराजकता फैल गई। फलस्वरूप बाद के मुग़ल सम्राटों को इस ओर विशेष ध्यान देने का अवसर ही न मिल सका।

चित्रकला-

मुग़ल सम्राटों ने चित्रकला में भी विशेष रुचि दिखाई। बाबर को हिरात में फारस की चित्रकला का ज्ञान हुआ। उसने उसे संरक्षण प्रदान किया। उसने अपनी आत्मकथा को चित्रित करवाया। हुमायूँ फारस के दो कलाकारों को अपने साथ भारत ले आया था। ये चित्रकार ‘मीर सैय्यद अली’ तथा ‘अब्दुल समद’ थे। इन चित्रकारों ने सुप्रसिद्ध फ़ारसी ग्रन्थ ‘दास्ताने-अमीर हमजा’ को चित्रित किया। अकबर के शासनकाल में चित्रकला ने भारतीय रूप धारण कर लिया। उसने फतेहपुर सीकरी के महलों की दीवारों पर बड़े सुन्दर चित्र अंकित करवाए। ‘सांवलदास,’ ‘ताराचन्द’ ‘जगन्नाथ’ आदि अकबर के समय के प्रसिद्ध चित्रकार थे। जहांगीर की चित्रकला में बड़ी रुचि थी। वह चित्र देख कर ही उसे बनाने वाले का नाम बता दिया करता था। उसके दरबार में अनेक चित्रकार थे जिनमें आगा रज़ा, अब्दुल हसन, मुहम्मद मुराद बहुत ही प्रसिद्ध थे। जहांगीर के बाद केवल राजकुमार दारा शिकोह के प्रयत्नों से ही चित्रकला का कुछ विकास हुआ। औरंगज़ेब तो चित्रकला को प्रोत्साहन देना कुरान के विरुद्ध समझता था। उसने अपने दरबार से सभी चित्रकारों को निकाल दिया।

संगीत कला-

औरंगज़ेब को छोड़ कर सभी मुग़ल सम्राटों ने संगीत कला को भी प्रोत्साहन दिया। बाबर ने संगीत से सम्बन्धित एक पुस्तक की रचना भी की। हुमायूँ सोमवार तथा बुधवार को बड़े प्रेम से संगीत सुना करता था। उसने अपने दरबार में अनेक संगीतकारों को आश्रय दे रखा था। अकबर को संगीत-कला से विशेष प्रेम था। वह स्वयं भी उच्च कोटि का गायक था। अबुल फज़ल के अनुसार उसके दरबार में गायकों की संख्या बहुत अधिक थी। तानसेन, बाबा रामदास, बैजू बावरा तथा सूरदास उसके समय के प्रसिद्ध संगीतकार थे। जहांगीर भी संगीतकारों का बड़ा आदर करता था। छः प्रसिद्ध गायक उसके दरबारी थे। शाहजहां प्रतिदिन शाम के समय संगीत सुना करता था। वह स्वयं भी एक अच्छा गायक था। उसकी आवाज़ बड़ी सुरीली थी। उसके दरबारी संगीतकारों में रामदास प्रमुख था। औरंगजेब को भी आरम्भ में गायन विद्या से काफ़ी लगाव था। परन्तु बाद में उसने अपने गायकों को दरबार से निकाल दिया । फलस्वरूप संगीत कला पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा।

मुग़ल काल में फ़ारसी साहित्य ने बहुत उन्नति की। अकबर के समय का फ़ारसी का सबसे बड़ा लेखक अबुल फज़ल था।’आइन-ए-अकबरी’ और ‘अकबरनामा’ उसकी प्रमुख रचनाएं है। अकबर के समय में रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों का अनुवाद फ़ारसी भाषा में किया गया। बाबर की आत्मकथा ‘तुजके बाबरी’ का अनुवाद भी तुर्की से फ़ारसी भाषा में किया गया। अकबर के पश्चात् जहांगीर ने अपनी आत्मकथा लिखी। इस पुस्तक का नाम ‘तुज़के जहांगीरी’ है। शाहजहां के समय में फ़ारसी में कई ऐतिहासिक ग्रन्थों की रचना हुई। इनमें से लाहौरी का ‘बादशाहनामा’ प्रमुख है। मुग़ल राजकुमारियों ने भी फ़ारसी साहित्य की उन्नति में काफ़ी योगदान दिया। बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने “हुमायूँ नामा” लिखा था।

नूरजहां, मुमताज़ महल, जहांआरा, जेबूनिस्सा ने भी अनेक कविताओं की रचना की। मुग़लकाल में हिन्दी साहित्य का काफ़ी विकास हुआ। मलिक मुहम्मद जायसी ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘पद्मावत’ की रचना इसी काल में की। इस समय के कवियों में सूरदास और तुलसीदास का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। सूरदास ने ‘सूरसागर’ तथा तुलसीदास ने ‘रामचरितमानस’ नामक महान् ग्रन्थों की रचना की। इनके अतिरिक्त केशव दास, सुन्दर, भूषण आदि कवियों ने साहित्य की खूब सेवा की। . सच तो यह है कि मुगलकाल अपनी ललित कलाओं के कारण इतिहास में विशेष स्थान रखता है। आज भी ताज तथा तानसेन मुगलकाल की चरम सीमा के प्रतीक माने जाते हैं। फतेहपुर सीकरी के भवन, लाल किला, दिल्ली की जामा मस्जिद इस बात के प्रमाण हैं कि मुग़लकाल में ललित कलाओं का खूब विकास हुआ। उस समय की कला-कृतियां आज भी देश भर की शोभा हैं।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
मनसबदारी प्रथा किसने आरंभ की ?
उत्तर-
अकबर ने।

प्रश्न 2.
मुग़लकालीन कानूनगो किस प्रशासनिक स्तर का अधिकारी था ?
उत्तर-
परगने के स्तर का ।

प्रश्न 3.
बटाई से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बटाई मुग़लकाल की एक लगान प्रणाली थी ।

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प्रश्न 4.
अकबर के समय के दो प्रसिद्ध कवियों के नाम बताओ।
उत्तर-
फैजी तथा वज़ीरी।

प्रश्न 5.
मुगलकालीन जीवन का एक कार्य बताओ ।
उत्तर-
भूमिकर निर्धारित करना ।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) अकबर की मनसबदारी प्रथा का मुख्य उद्देश्य ……………. संगठन में सुधार करना था।
(ii) अकबरकालीन मुग़ल स्थापत्य कला मुख्य रूप से भारतीय तथा …………… कलाओं का समन्वय थी।
(iii) औरंगज़ेब ने ……….. में बादशाही मस्जिद का निर्माण करवाया।
(iv) सूरसागर ………… की रचना है।
(v) ………. दरवाज़ा संसार का सबसे बड़ा द्वार है।
उत्तर-
(i) सैनिक
(ii) ईरानी
(iii) लाहौर
(iv) सूरदास
(v) बुलंद ।

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3. सही/ग़लत कथन

(i) जहांगीर ने चित्रकला का संरक्षण किया। — (✓)
(ii) हुमायूं तथा अकबर को चित्रकला से प्रेम नहीं था। — (✗)
(iii) अकबर ने गैर-मुसलमानों से जज़िया तथा तीर्थ यात्रा कर लेने बंद कर दिए। — (✓)
(iv) अकबर के समय भूमि की माप के लिए शहनशाही गज़ का प्रयोग किया जाता था। — (✗)
(v) औरंगज़ेब के समय मुग़ल प्रांतों की संख्या 22 थी। — (✓)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
मुगलकाल में पटवारी रिकार्ड रखता था:
(A) जनसंख्या से संबंधित
(B) गांव से संबंधित
(C) बड़े शहरों से संबंधित
(D) राज दरबार से संबंधित ।
उत्तर-
(B) गांव से संबंधित

प्रश्न (ii)
‘माहज़र’ नामक घोषणा-पत्र जारी हुआ-
(A) अकबर के समय में
(B) बाबर के समय में
(C) जहांगीर के समय में
(D) शाहजहां के समय में ।
उत्तर-
(A) अकबर के समय में

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प्रश्न (iii)
जब्ती-व्यवस्था क्या थी ?
(A) मुगलकाल की व्यवस्था
(B) मुगलकाल की शिक्षा प्रणाली
(C) अमीरों से ज़बरदस्ती धन छीनने की व्यवस्था
(D) मुगलकाल के लगान उगाहने की एक व्यवस्था।
उत्तर-
(D) मुगलकाल के लगान उगाहने की एक व्यवस्था।

प्रश्न (iv)
मुगलकाल में प्रधानमंत्री के रूप में कार्य करता था-
(A) मीर बख्शी
(B) मुख्य सदर
(C) वकील या वज़ीर
(D) मुख्य काजी ।
उत्तर-
(C) वकील या वज़ीर

प्रश्न (v)
‘मनसब’ का शाब्दिक अर्थ है-
(A) पदवी
(B) सवार
(C) जात
(D) उमरा ।
उत्तर-
(A) पदवी

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II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नायब-ए-अमीर अलमोमिनीन’ का क्या अर्थ था ?
उत्तर-
‘नायब-ए-अमीर अलमोमिनीन’ का अर्थ था : खलीफा का नायब। ।

प्रश्न 2.
‘माहज़र’ पर कब हस्ताक्षर किये गए तथा इसमें अकबर को किस रूप में पेश किया गया ?
उत्तर-
‘माहज़र’ पर 1579 ई० में हस्ताक्षर किये गये। इसमें अकबर को इमाम-ए-आदिल अर्थात् न्यायशील नेता के रूप में पेश किया गया।

प्रश्न 3.
अकबर ने गैर-मुसलमानों से लिए जाने वाले कौन-से दो कर समाप्त किए ।
उत्तर-
अकबर ने गैर-मुसलमानों से तीर्थ यात्रा कर तथा जजिया कर लेने बन्द कर दिए।

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प्रश्न 4.
सम्राट्-सामन्त सम्बन्धों में कौन-सी दो बातें आवश्यक थीं ?
उत्तर-
सामन्त दूसरी शक्तियों के साथ राजनीतिक सन्धि नहीं कर सकते थे। उन्हें मुग़ल सम्राट को वार्षिक नजराना भी देना पड़ता था।

प्रश्न 5.
अकबर की मनसबदारी प्रथा का मुख्य उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
अकबर की मनसबदारी प्रथा का मुख्य उद्देश्य सैनिक संगठन में सुधार करना था।

प्रश्न 6.
अकबर ने कौन-से दो प्रकार के मनसब बना दिए ?
उत्तर-
अकबर ने ज़ात और सवार नाम के दो अलग ‘मनसब’ बना दिए।

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प्रश्न 7.
पाँच सौ से अधिक मनसब लेने वालों की गिनती किन में होती थी ? अकबर के दो प्रसिद्ध मनसबदारों के नाम बताएं।
उत्तर-
पाँच सौ से अधिक मनसब लेने वालों की गिनती शासक वर्ग में होती थी। अकबर के दो प्रसिद्ध मनसबदार अबुल फज़ल तथा बीरबल थे।

प्रश्न 8.
वेतन में जागीरदार क्या अधिकार प्राप्त करता था ?
उत्तर-
जागीरदार को वेतन के बराबर लगान वसूल करने का अधिकार प्राप्त होता था।

प्रश्न 9.
जागीर किसे कहा जाता था ?
उत्तर-
जागीर से अभिप्राय उस भूमि से था जिससे मनसबदार को लगान वसूल करने का अधिकार मिलता था।

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प्रश्न 10.
खालिसा किसे कहा जाता था ?
उत्तर-
मुग़ल काल में उस सारी भूमि को खालिसा कहते थे जिससे किसी मनसबदार को लगान वसूल करने का अधिकार मिलता था।

प्रश्न 11.
जागीरों के स्थानान्तरण का किसानों पर क्या प्रभाव पड़ता था ?
उत्तर-
इसका प्रभाव यह पड़ता था कि जागीरदारों को अधिक से अधिक लगान वसूल करने की चिन्ता रहती थी और वे जागीर की भूमि की उन्नति की ओर अधिक ध्यान नहीं देते थे।

प्रश्न 12.
औरंगज़ेब के समय तक साम्राज्य की कुल आय का कौन-सा भाग जागीरों में दिया जा चुका था ?
उत्तर-
औरंगज़ेब के समय तक साम्राज्य का 80 प्रतिशत भाग जागीरों में दिया जा चुका था।

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प्रश्न 13.
अकबर के प्रारम्भिक वर्षों में केन्द्रीय सरकार में प्रमुख पद कौन सा था और यह किसको दिया गया ?
उत्तर-
अकबर के प्रारम्भिक वर्षों में केन्द्रीय सरकार में प्रमुख पद ‘वकील’ था। यह पद तब बैरम खां को दिया गया था।

प्रश्न 14.
दीवान के दो मुख्य कार्य बताएं।
उत्तर-
दीवान का कार्य भूमिकर निर्धारित करना और भूमि कर उगाहने सम्बन्धी नियम बनाना था। वह आय का बजट भी तैयार करता था।

प्रश्न 15.
मनसबदारों तथा शाही कारखानों से सम्बन्धित दो मन्त्रियों के नाम बताएं।
उत्तर-
मनसबदारों से सम्बन्धित मन्त्री मीर बख्शी तथा शाही कारखानों से सम्बन्धित मन्त्री मीर सामां था।

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प्रश्न 16.
सदर के दो मुख्य कार्य क्या थे ?
उत्तर-
सदर का काम शैक्षणिक तथा धार्मिक संस्थाओं की देखभाल करना था। वह योग्य व्यक्तियों तथा संस्थाओं को नकद धन या लगान मुक्त भूमि देता था।

प्रश्न 17.
कौन-से तीन मन्त्रियों का कार्य क्षेत्र प्रान्तों तक फैला हुआ था ?
उत्तर-
दीवान, भीर बख्शी तथा मीर सामां का कार्य क्षेत्र प्रान्तों तक फैला हुआ था।

प्रश्न 18.
अकबर तथा औरंगजेब के समय प्रान्तों की गिनती क्या थी ?
उत्तर-
अकबर के समय प्रान्तों की संख्या 15 और औरंगजेब के समय में 22 थी।

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प्रश्न 19.
प्रान्त से अगली प्रशासकीय इकाई कौन-सी थी और यह कौन-से अधिकारी के अधीन थी ?
उत्तर-
प्रान्त से अगली इकाई ‘सरकार’ थी। ‘सरकार’ का प्रबन्ध फौजदार के अधीन था।

प्रश्न 20.
राजस्व के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक इकाई कौन-सी थी और इसका मुख्य अफसर कौन था ?
उत्तर-
राजस्व की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई परगना थी। परगना आमिल के अधीन था।

प्रश्न 21.
कानूनगो किस स्तर का अधिकारी था और इसका मुख्य कार्य क्या था ?
उत्तर-
कानूनगो परगने का अधिकारी था जो आमिल के स्तर से छोटा होता था। वह भूमि तथा लगान सम्बन्धी रिकार्ड रखता था।

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प्रश्न 22.
चौधरी (मुग़लकालीन) किन के बीच सम्पर्क सूत्र था ?
उत्तर-
चौधरी परगने एवं तप्पे (एक प्रशासनिक विभाग) के कर्मचारियों और कृषकों के बीच सम्पर्क सूत्र था।

प्रश्न 23.
पटवारी किससे सम्बन्धित रिकार्ड रखता था ?
उत्तर-
पटवारी गांव से सम्बन्धित रिकार्ड रखता था।

प्रश्न 24
कस्बे में न्याय प्रबन्ध के दो महत्त्वपूर्ण अधिकारियों के नाम तथा कार्य बताएं।
उत्तर-
कस्बों में मुफ्ती कानून की व्याख्या करता था तथा काजी मुकद्दमों का निर्णय देता था।

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प्रश्न 25.
प्रान्तों और केन्द्र में न्याय देने वाले चार अधिकारियों के नाम बताएं।
उत्तर-
प्रान्तों में सूबेदार तथा दीवान को न्याय सम्बन्धी कार्य करने का अधिकार था। सदर तथा अन्य मन्त्री केन्द्र में न्याय देते थे।

प्रश्न 26.
पंचायतें कौन-से स्तरों पर झगड़ों का निपटारा करती थीं ?
उत्तर-
पंचायतें गांवों तथा कस्बों में झगड़ों का निपटारा करती थीं।

प्रश्न 27.
अकबर के समय कौन-से गज़ का प्रयोग किया जाता था और यह किस चीज़ का बना हुआ था ?
उत्तर-
अकबर के समय इलाही गज़ का प्रयोग किया जाता था। यह बांस का बना होता था।

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प्रश्न 28.
अकबर के समय उत्पादन का कौन-सा भाग लगान के रूप में निर्धारित किया गया तथा 17वीं सदी में यह दर कितनी हो गई ?
उत्तर-
अकबर के समय उत्पादन का 1/3भाग लगान के रूप में निर्धारित किया गया। 17वीं सदी में यह दर 1/2 भाग हो गई।

प्रश्न 29.
बटाई से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
बटाई एक लगान प्रणाली थी। इसके अनुसार उपज का एक निश्चित भाग लगान के रूप में लिया जाता था।

प्रश्न 30.
कनकूत से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कनकूत अकबर कालीन लगान की एक प्रणाली थी जिसके अनुसार खड़ी फसल से उपज एवं लगान का अनुमान लगा लिया जाता था।

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प्रश्न 31.
नस्क से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नस्क लगान की वह व्यवस्था थी जिसके द्वारा पहले वर्षों के वसूल किए गए लगान के आधार पर सारे गांव या कृषक पर लगान निर्धारित किया जाता था।

प्रश्न 32.
अकबर के समय लगान निर्धारित करने की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि क्या थी तथा यह किस पर आधारित थी ?
उत्तर-
अकबर के समय लगान निर्धारित करने की सबसे महत्त्वपूर्ण विधि ज़ब्ती व्यवस्था थी। इसके अन्तर्गत कृषि योग्य भूमि पर लगान निश्चित किया जाता था।

प्रश्न 33.
मुग़ल सरकार निर्माण के कौन-से चार प्रकार के कार्यों पर धन खर्च करती थी ?
उत्तर-
मुग़ल सरकार सड़कें, पुल, अस्पताल, सरायें आदि के निर्माण पर धन खर्च करती थी।

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प्रश्न 34.
धर्मार्थ में दान कौन से-दो रूपों में दिया जाता था ? …
उत्तर-
धमार्थ में दान नकद तथा लगान मुक्त भूमि के रूप में दिया जाता था।

प्रश्न 35.
मुग़ल साम्राज्य का सरंक्षण पाने वाले किन्हीं चार धर्मों के नाम बताएं।
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य का संरक्षण पाने वाले चार धर्म इस्लाम, सिक्ख, पारसी तथा वैष्णव एवं शैव मत थे।

प्रश्न 36.
1690 के बाद धर्मार्थ में भूमि लेने वाले का उस पर किस प्रकार का अधिकार हो गया ?
उत्तर-
वह इस भूमि का स्वामी बन गया। वह इसे बेच सकता था, गिरवी रख सकता था तथा दान में दे सकता था।

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प्रश्न 37.
अकबर ने कौन-सा नया शहर बसाया तथा इसकी भवन निर्माण कला का एक शानदार नमूना बताएं ?
उत्तर-
अकबर ने फतेहपुर सीकरी नामक शहर बसाया। यहां का एक प्रसिद्ध भवन बुलन्द दरवाज़ा है।

प्रश्न 38.
आगरा का लाल किला किसने बनवाया तथा किस बादशाह ने इसका विस्तार किया ?
उत्तर-
आगरा का लाल किला अकबर ने बनवाया तथा शाहजहां ने इसका विस्तार किया।

प्रश्न 39.
हुमायूँ, अकबर, जहांगीर तथा शाहजहां के मकबरे किन स्थानों में हैं ?
उत्तर-
हुमायूँ, अकबर, जहांगीर तथा शाहजहां के मकबरे क्रमशः दिल्ली, सिकन्दरा, लाहौर तथा आगरा में हैं।

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प्रश्न 40.
औरंगजेब ने कौन-सी दो मस्जिदों का निर्माण करवाया ?
उत्तर-
औरंगज़ेब ने दिल्ली के लाल किले में ‘मोती मस्ज़िद’ तथा लाहौर में ‘बादशाही मस्जिद’ का निर्माण करवाया।

प्रश्न 41.
शाहजहां द्वारा बनवाई गई दो सुन्दर इमारतों के नाम बताएं तथा ये कौन-से नगरों में हैं ?
उत्तर-
शाहजहां ने आगरा में ताजमहल तथा दिल्ली में जामा मस्जिद नामक सुन्दर भवन बनवाये।

प्रश्न 42.
कौन-से चार मुग़ल बादशाहों ने चित्रकला का संरक्षण किया ?
उत्तर-
हुमायूँ, अकबर, जहांगीर तथा शाहजहां ने चित्रकला का संरक्षण किया।

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प्रश्न 43.
मुग़ल काल के चार प्रसिद्ध चित्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
मुग़ल काल के चार प्रसिद्ध चित्रकार जसवन्त, बसावन, उस्ताद मंसूर तथा अब्दुल समद थे।

प्रश्न 44.
मुग़ल चित्रकला का प्रभाव कौन-सी दो शैलियों पर देखा जा सकता है ?
उत्तर-
मुग़ल चित्रकला का प्रभाव राजपूत शैली और पंजाब की पहाड़ी शैली में देखा जा सकता है।

प्रश्न 45.
कौन-से तीन मुग़ल बादशाहों को संगीत सुनने का शौक था और तानसेन किसके दरबार में था ?
उत्तर-
अकबर, जहांगीर तथा शाहजहां को संगीत सुनने का चाव था। तानसेन अकबर के दरबार में था।

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प्रश्न 46.
अकबर के समय फ़ारसी के तीन प्रसिद्ध कवियों के नाम बताएं।
उत्तर-
अकबरकालीन फ़ारसी के तीन कवि फैज़ी, उर्फी तथा वज़ीरी थे।

प्रश्न 47.
अकबर के समय के दो इतिहासकारों के नाम तथा उनकी रचनाएं बताएं।
उत्तर-
अकबरकालीन दो इतिहासकार थे-अबुल फजल तथा अब्दुल कादिर। अबुल फज़ल ने अकबर नामा और आइन-ए-अकबरी तथा अब्दुल कादिर ने मुन्तखब-उत्-तवारीख नामक ग्रन्थ लिखे।

प्रश्न 48.
अकबर ने संस्कृत की कौन-सी चार कृतियों का फ़ारसी में अनुवाद करवाया ?
उत्तर-
अकबर ने संस्कृत की चार कृतियों राजतरंगिणी, पंचतन्त्र, महाभारत तथा रामायण का फ़ारसी में अनुवाद करवाया।

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प्रश्न 49.
मुगलकाल में किन आठ प्रादेशिक भाषाओं का साहित्य लिखा गया ?
उत्तर-
मुगलकाल में बंगाली, उड़िया, गुजराती, राजस्थानी, पंजाबी, अवधी, मराठी, ब्रजभाषा आदि आठ प्रादेशिक भाषाओं में साहित्य लिखा गया।

प्रश्न 50.
मुगल राज्य व्यवस्था तथा प्रशासन की जानकारी के स्रोतों के चार प्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
मुग़ल राज्य व्यवस्था तथा प्रशासन की जानकारी के चार प्रकार के स्रोत हैं-अबुल फज़ल की ‘आइन-एअकबरी’, तत्कालीन कानूनी दस्तावेज़, बर्नियर का विवरण तथा प्रादेशिक साहित्य।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
‘माहज़र’ से क्या अभिप्राय था और इसका क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
माहज़र एक महत्त्वपूर्ण घोषणा-पत्र था जो अकबर के समय में जारी हुआ। इस घोषणा-पत्र द्वारा अकबर को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त हुए। इस घोषणा-पत्र पर 1579 ई० में उसके राज्य के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों और विद्वानों ने हस्ताक्षर किए। इसके अनुसार अकबर को इमाम-ए-आदिल अर्थात् न्यायशील नेता के रूप में प्रस्तुत किया गया था। इस घोषणा के अनुसार अकबर को अब यह अधिकार दिया गया कि वह कानून के व्याख्याताओं द्वारा दी गई विभिन्न व्याख्याओं में से अपनी इच्छा के अनुसार किसी एक को चुन सके और अपनी प्रजा को फतवा दे सके। वह कुरान के अनुकूल लोगों की भलाई के लिए स्वयं आज्ञा जारी कर सकता था। निःसन्देह इस घोषणा ने अकबर के हाथ मज़बूत कर दिये। अब वह मुसलमानों के विभिन्न सम्प्रदायों के साथ-साथ अपनी गैर-मुस्लिम प्रजा से एक-सा व्यवहार कर सकता था।

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प्रश्न 2.
अकबर के अपने अधीन राजाओं के साथ किस प्रकार के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
अकबर का अपने अधीन राजाओं अर्थात् सामन्तों पर काफ़ी नियन्त्रण था। मुग़ल साम्राज्य के स्थानीय शासक या सामन्त दूसरी शक्तियों से राजनीतिक सन्धि नहीं कर सकते थे। उन्हें राजसिंहासन पर बैठने का अधिकार केवल सम्राट् देता था। सामन्त के लिए आवश्यक था कि वह सम्राट् को वार्षिक खिराज दे। उसे सम्राट की आज्ञा पर आवश्यकता के समय अभियानों के लिए सैनिक टुकड़ियां भेजनी पड़ती थीं। अकबर के राज्य में सामन्तों की संख्या सौ से भी अधिक थी। इनमें अधिकांश सामन्त गैर-मुस्लिम थे। सामन्तों को यह स्वतन्त्रता थी कि वे मुग़ल साम्राज्य में मनसबदार बन सकें। यह पद ‘अधीन शासक’ के पद के अतिरिक्त होता था। इस प्रकार सामन्त और मनसबदार के रूप में अधीन शासकों का मुग़ल साम्राज्य से दोहरा सम्बन्ध स्थापित हो जाता था। इस प्रकार के सम्राट-सामन्त सम्बन्धों से मुगल साम्राज्य को काफ़ी लाभ पहुंचा।

प्रश्न 3.
‘जात और सवार’ मनसबदार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
‘जात और सवार ‘ मनसब का आरम्भ अकबर ने किया था। अकबर को यह पता चला था कि मनसबदार निश्चित संख्या में घुड़सवार नहीं रखते। इसे रोकने के लिए ही उसने दो प्रकार के मनसब बना दिये : जात और सवार। जात के अनुसार मनसबदार का व्यक्तिगत वेतन निश्चित किया जाता था । परन्तु सवार मनसब से उसके घुड़सवारों की गिनती एवं उनके वेतन का पता चलता था। जो मनसबदार कोई घुड़सवार नहीं रखते थे उन्हें केवल जात मनसब ही दिया जाता था। इस प्रकार सिविल और सैनिक अफ़सरों में अन्तर काफ़ी सीमा तक कम हो गया। किसी व्यक्ति को ‘सिविल’ से सैनिक और सैनिक से सिविल सेवाओं में भी लिया जा सकता था। जिन मनसबदारों के पास दोनों पद थे, उन्हें तीन वर्गों में बांटा गया था। पहले वर्ग के सवार तथा जात मनसब समान होते थे : दूसरे वर्ग में वे मनसबदार थे जिनका सवार पब उनके जात मनसब के आधे से अधिक था। जिनका सवार मनसब जात मनसब के आधे से भी कम था, उनकी गणना तीसरे दर्जे के मनसबदारों में होती थी।

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प्रश्न 4.
जागीरदारी प्रणाली में संकट से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जागीरदारी प्रणाली मुगलकालीन राज्य व्यवस्था का मुख्य अंग थी। परन्तु अकबर के उत्तराधिकारियों के समय में जागीरों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही चली गई। कहते हैं कि औरंगजेब के समय तक मुग़ल साम्राज्य का 80 प्रतिशत भाग जागीरों में बंटा हुआ था। अतः इस प्रथा में एक संकट सा उत्पन्न हो गया। अब मनसबदारों को जागीर दिए जाने के अनुमति पत्र मिल जाते थे, परन्तु उन्हें जागीर नहीं मिल पाती थी। यदि उन्हें जागीर मिल भी जाती तो उसकी आय उन्हें प्राप्त होने वाले वेतन से बहुत ही कम होती थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार यह बात मुग़ल साम्राज्य के पतन का कारण बनी।

प्रश्न 5.
मुग़ल साम्राज्य की केन्द्रीय सरकार में कौन-से मन्त्री थे और उनके मुख्य कार्य क्या थे ?
उत्तर-
केन्द्रीय सरकार में वकील के अतिरिक्त चार अन्य मुख्य मन्त्री थे। ये थे- दीवान, मीर सामां, मीर बख्शी तथा सदर। वकील का पद सभी मन्त्रियों में उच्च माना जाता था। परन्तु वह किसी भी विभाग का कार्य नहीं करता था। दीवान वित्त विभाग का मुखिया होता था। वह लगान की दर तथा लगान वसूल करने से सम्बन्धित नियम निर्धारित करता था। राज्य की वार्षिक आय-व्यय का हिसाब-किताब भी उसी के पास होता था। सैनिक विभागों के मुखिया को मीर बख्शी कहते थे। वह .सभी सैनिक कार्यों की देख-रेख करता था। वह अपने पास मनसबदारों की नियुक्ति तथा पदोन्नति के रिकार्ड रखता था। मीर सामां सरकारी कारखानों की देखभाल करता था और शाही महल की प्रतिदिन की आवश्यकताओं की पूर्ति करता था। न्याय एवं धर्मार्थ विभाग के मुखिया को सदर कहते थे। वह सूफियों तथा अन्य धार्मिक पुरुषों को नकदी अथवा कर मुक्त भूमि के रूप में आवश्यक सहायता देता था।

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प्रश्न 6.
मुग़लों के स्थानीय प्रशासन के मुख्य अधिकारी कौन-से थे और उनके कार्य क्या थे ?
उत्तर-
प्रत्येक प्रान्त का मुखिया एक सूबेदार होता था। प्रान्त सरकारों तथा परगनों में विभक्त था। प्रत्येक सरकार में एक फ़ौजदार था। उसकी सहायता थानेदार करते थे। फ़ौजदारों तथा थानेदारों का काम शान्ति तथा व्यवस्था बनाये रखना था। राजस्व की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई परगना थी जिसका मुख्य अधिकारी आमिल था। परगने में कानूनगो का पद भी बड़ा महत्त्वपूर्ण था। वह भूमि और लगान से सम्बन्धित सभी रिकार्ड रखता था। किसी-किसी प्रान्त में परगना तप्पों में बंटा होता था, जिनमें कई गाँव होते थे। प्रत्येक परगना या तप्पे में एक चौधरी होता था। वह सरकारी कर्मचारियों और कृषकों के बीच सम्पर्क सूत्र था। प्रत्येक गांव में कम-से-कम एक मुकद्दम या गांव का मुखिया होता था। उसका काम लगान की वसूली में चौधरी और अन्य कर्मचारियों की सहायता करना था। गांव से सम्बन्धित भूमि के रिकार्ड को रखने वाला कर्मचारी पटवारी कहलाता था।

प्रश्न 7.
जब्ती-व्यवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
ज़ब्ती-व्यवस्था लगान उगाहने की एक व्यवस्था थी। अकबर ने यह व्यवस्था कई अनुभवों के बाद लागू की। इस व्यवस्था के अन्तर्गत सारी कृषि योग्य भूमि को पहले नापा गया। इस नाप के लिए एक निश्चित लम्बाई का माप या गज़ प्रयोग में लाया गया। उसे इलाही गज़ कहते थे। नाप के लिए रस्सी के स्थान पर बांस के टुकड़ों का प्रयोग किया गया क्योंकि रस्सी सूखने या गीली होने पर कम या अधिक नाप देती थी। पैमाइश के बाद भूमि को तीन भागों में बांट कर उनकी प्रति बीघा औसत उपज निकाली गई। इस औसत उत्पादन का तीसरा भाग सरकार का भाग अथवा लगान निर्धारित किया गया । इस के पश्चात् दस वर्षों की कीमतों का मध्यमान निकाल कर लगान की मात्रा नकद निश्चित की गई। अतः प्रत्येक फसल का प्रति बीघा लगान दामों में भी निश्चित किया गया। यह व्यवस्था साम्राज्य के अधिकांश भाग में लागू थी।

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प्रश्न 8.
मुग़ल शासक किस प्रकार के प्रजा हितार्थ कार्य करते थे और किस प्रकार का संरक्षण प्रदान करते थे ?
उत्तर-
मुग़ल सम्राट् प्रजा हितकारी थे और वे सरकारी आय का कुछ भाग जनकल्याण तथा धमार्थ कार्यों पर व्यय करते थे। यात्रियों की सुविधा के लिए सरकार पुल और सड़के बनवाती थी। लोगों के लिए अस्पताल और सराएं भी बनवाई जाती थीं। इनका प्रयोग सरकारी कार्यों के लिए भी होता था। मुगल शासक मस्जिदों, मदरसों, सूफ़ी सन्तों तथा धार्मिक पुरुषों को संरक्षण देते थे। लोक कल्याण पर व्यय होने वाली राशि का अधिकतर भाग इन्हीं पर खर्च किया जाता था। इन्हें व्यय के लिए सरकार की ओर से कर मुक्त भूमि दे दी जाती थी। कुछ गैर-मुस्लिम संस्थाओं को भी यह सहायता मिलती थी। इनमें वैष्णव, जोगी, सिक्ख तथा पारसी संस्थाएं शामिल थीं। औरंगज़ेब ने कर मुक्त भूमि प्राप्त लोगों को भूमि का स्वामी घोषित कर दिया था। इस प्रकार का भूमि स्वामी अब अपनी भूमि को बेचने या गिरवी रखने में स्वतन्त्र थे।

प्रश्न 9.
मुगलों की भवन निर्माण कला (Architecture) में क्या देन है ?
उत्तर-
मुग़ल काल में वास्तुकला ने बड़ी उन्नति की। मुग़ल शासकों ने अनेक भव्य महलों, दुर्गों तथा मस्जिदों का निमार्ण करवाया और बहते हुए पानी से सुसज्जित अनेक बाग लगवाये। भवन-निर्माण में सबसे पहले अकबर ने रुचि दिखाई। उसने फतेहपुर सीकरी में बुलन्द दरवाज़ा और जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। उसने आगरे का किला तथा लाहौर में भी एक दुर्ग बनवाया। अकबर के बाद शाहजहाँ ने भवन-निर्माण में रुचि ली। उसका सबसे सुन्दर भवन आगरा का ‘ताजमहल’ है। उसने दिल्ली में लाल किला और जामा मस्जिद का निर्माण भी करवाया । उसकी एक अन्य प्रसिद्ध कृति एक करोड़ की लागत से बना ‘तख्ते ताऊस’ है। उसके बाद मुग़ल काल में भवन निर्माण कला का विकास रुक गया।

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प्रश्न 10.
मुगलकाल में चित्रकला के क्षेत्र में क्या उन्नति हुई ?
उत्तर-
मुग़ल काल में चित्रकला के क्षेत्र में असाधारण उन्नति हुई। अब्दुल समद, सैय्यद अली, सांवलदास, जगन्नाथ, ताराचन्द आदि चित्रकारों ने अपनी कलाकृतियों से चित्रकला का रूप निखारा। ये सभी चित्रकार अकबर के समय के प्रसिद्ध कलाकार थे। अकबर के बाद जहांगीर ने भी कला के विकास में रुचि ली। चित्रकला में उसकी इतनी रुचि थी कि वह चित्र को देखकर उसे बनाने वाले चित्रकार का नाम बता दिया करता था। उसके दरबार में भी आगा रजा, अब्दुल हसन, मुहम्मद नादिर, मुहम्मद मुराद आदि अनेक चित्रकार थे। जहांगीर की मृत्यु के बाद केवल राजकुमार दारा शिकोह ने ही चित्रकला के विकास में थोड़ा बहुत योगदान दिया। उसके प्रयत्नों से फकीर-उल्ला, मीर हाशिम आदि चित्रकार शाहजहां के दरबार की शोभा बने। औरंगजेब के काल में चित्रकला का विकास काफ़ी सीमा तक रुक गया।

प्रश्न 11.
मुगलकाल में साहित्यिक विकास का वर्णन करो।
उत्तर-
मुग़ल काल में साहित्य के क्षेत्र में खूब विकास हुआ। बाबर और हुमायूं साहित्य प्रेमी सम्राट् थे। बाबर स्वयं अरबी तथा फ़ारसी का बहुत बड़ा विद्वान् था। उसने ‘तुजके बाबरी’ नामक ग्रन्थ की रचना की जिसे तुर्की साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त है। हुमायूं ने इस ग्रन्थ का अरबी भाषा में अनुवाद करवाया । उसके काल में लिखी गई पुस्तकों में ‘हुमायूंनामा’ प्रमुख है। सम्राट अकबर को भी विद्या से बड़ा लगाव था। उसके समय में लिखे गए ग्रन्थों में ‘अकबरनामा’ ‘तबकाते अकबरी’ ‘सूर सागर’ तथा ‘रामचरितमानस’ प्रमुख हैं। जायसी की ‘पद्मावत’ तथा केशव की रामचन्द्रिका की रचना भी इसी काल में हुई थी। जहांगीर ने भी साहित्य को काफ़ी प्रोत्साहन दिया। अनेक विद्वान् उसके दरबार की शोभा थे। वह स्वयं भी एक उच्चकोटि का विद्वान् था। उसने आत्मकथा लिखी थी। शाहजहां के समय अब्दुल हमीद लाहौरी एक प्रसिद्ध विद्वान् था। उसने ‘बादशाह नामा’ ग्रन्थ की रचना की थी । औरंगजेब के काल में साहित्य का विकास रुक गया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अकबर अथवा मुगलों के केन्द्रीय प्रशासन के ढांचे का वर्णन करो।
उत्तर-
अकबर एक उच्चकोटि का प्रशासक था। उसने केन्द्र को अधिक से अधिक मजबूत बनाने का प्रयास किया। उसके द्वारा प्रचलित शासन प्रणाली पूरे मुगलकाल तक जारी रही। संक्षेप में, अकबर अथवा मुगलों के केन्द्रीय प्रशासन की मुख्य विशेषताओं का वर्णन निम्न प्रकार है :-

1 सम्राट-अकबर के काल में सम्राट् शासन का केन्द्र बिन्दु था। शासन की सारी शक्तियां उसी के हाथ में थीं। उसकी शक्तियों पर किसी प्रकार की कोई रोक नहीं थी। फिर भी सम्राट् अन्यायी तथा अत्याचारी तानाशाह के रूप में कार्य नहीं करता था। मुल्लाओं और मौलवियों का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं था। वह अपने आपको ईश्वर का प्रतिनिधि समझता था।

2 मन्त्रिपरिषद्-शासन कार्यों में सम्राट् की सहायता के लिए मन्त्रिपरिषद् की व्यवस्था थी। मन्त्रियों के अधिकार आज के मन्त्रियों की भान्ति अधिक विस्तृत नहीं थे। वे सम्राट की आज्ञा अनुसार काम करते थे। अतः उन्हें सम्राट का सचिव कहना अधिक उचित है। प्रधानमन्त्री का पद अन्य मन्त्रियों से ऊंचा था। सभी गम्भीर विषयों पर सम्राट् उससे सलाह लेता था। सभी मन्त्री सम्राट के प्रतिऊत्तरदायी थे। वे अपने पद पर उसी समय तक कार्य कर सकते थे जब तक सम्राट् उनसे प्रसन्न रहता था।

प्रमुख मन्त्रियों तथा उनके विभागों का वर्णन इस प्रकार है :-

  • वकील या वजीर-वह प्रधानमन्त्री के रूप में कार्य करता था। वह सम्राट को प्रत्येक विषय में परामर्श देता था।
  • दीवान-वह आय-व्यय का हिसाब-किताब रखता था। उसके हस्ताक्षर के बिना किसी रकम का भुगतान सम्भव नहीं था।
  • मीर बख्शी-उसका कार्य सैनिक तथा असैनिक कर्मचारियों को वेतन देना था।
  • मुख्य सदर-धर्म सम्बन्धी सभी कार्य सम्पन्न करना उसका मुख्य कर्त्तव्य था।
  • खान-ए-सामां-वह सम्राट और उसके परिवार के लिए आवश्यक सामान की व्यवस्था करता था।
  • मुख्य काजी-मुख्य काजी न्याय-सम्बन्धी कार्य सम्पन्न करता था। सम्राट के बाद वही सबसे बड़ा न्यायाधीश था।
  • अन्य मन्त्री-उपर्युक्त मन्त्रियों के अतिरिक्त जंगलों का प्रबन्ध, डाक कार्यों, तोपखाने के प्रबन्ध आदि के लिए अलग मन्त्री होते थे। तोपखाने के मुखिया को मीर आतिश के नाम से पुकारा जाता था।

प्रश्न 2
अकबर के शासनकाल में प्रान्तीय प्रशासन का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मुग़ल साम्राज्य बहुत विस्तृत था। प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखते हुए मुग़लों ने अपने राज्य को कई प्रान्तों में बांट रखा था। अकबर के समय में इन प्रान्तों की संख्या 15 थी। प्रान्तीय शासन का आधार केन्द्रीय शासन था। प्रान्त में एक सिपहसालार अथवा नाज़िम, एत दीवान, एक बख्शी, काजी, वाकयानवीस तथा कोतवाल आदि अधिकारी होते थे। इनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है

1. सिपहसालार अथवा नाजिम-प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार होता था। उसकी नियुक्ति स्वयं सम्राट् द्वारा की जाती थी तथा अपने कार्यों के लिए वह केवल सम्राट के प्रति उत्तरदायी होता था। उसके कर्तव्य निम्न प्रकार थे-

  • वह अपने प्रान्त में न्याय तथा व्यवस्था का प्रबन्ध करता था।
  • यदि कोई जागीरदार अथवा अधिकारी उसकी आज्ञा की अवहेलना करता, तो वह उसे दण्ड दे सकता था।
  • वह अपने प्रान्त के लोगों के मुकद्दमों का निर्णय करता था।
  • अपने प्रान्त की प्रजा की सुविधा के लिए वह अस्पताल, सड़कें, बाग, कुएं आदि बनवाता था।
  • भूमि कर एकत्रित करने में वह दीवान-ए-आमिल तथा अन्य अधिकारियों की सहायता करता था।
  • सूबे के सैनिकों में अनुशासन बनाए रखना उसी का कर्तव्य था
  • वह इस बात का ध्यान रखता था कि प्रान्त का व्यय उसकी आय से बढ़ने न पाए।

2. प्रान्तीय दीवान-प्रान्त में सिपहसालार के बाद प्रान्तीय दीवान का नम्बर आता था। यह प्रान्त के वित्त विभाग का मुखिया था। उसकी नियुक्ति सम्राट केन्द्रीय दीवान की सिफ़ारिश से करता था। वह प्रान्त की आय-व्यय का हिसाब रखता था। माल विभाग के कर्मचारियों की निगरानी करना भी उसी का कर्त्तव्य था। वह परगनों से भूमिकर एकत्रित करता था। मास में दो बार वह केन्द्रीय दीवान को कृषकों की अवस्था के बारे में तथा एकत्रित किए हुए धन के बारे में सूचित करता था।

3. बख्शी-सम्राट् मीर बख्शी की सिफ़ारिश पर प्रान्तीय बख्शी को नियुक्ति करता था। वह प्रान्त में सेना की भर्ती करता था तथा घोड़ों को दागने का प्रबन्ध करता था। सैनिकों की पदोन्नति तथा तबदीली करवाना और उनमें अनुशासन बनाए रखना बख्शी का ही कार्य था। वह खज़ाना अधिकारी के रूप में वेतन देने का भी कार्य करता था।

4. सदर तथा काजी-प्रत्येक प्रान्त में एक सदर होता था। उसकी नियुक्ति सम्राट् मुख्य सदर की सिफ़ारिश पर करता था। वह प्रान्त के महात्माओं तथा पीर-फकीरों की सूचियां तैयार करता था तथा उन्हें अनुदान एवं छात्र-वृत्तियां दिलवाता था। धमार्थ दी गई भूमि का प्रबंध करना और उससे सम्बन्धित झगड़ों का निपटारा करना सदर का कार्य होता था। प्रान्तीय काजी प्रान्त का न्यायाधीश होता था। वह फौजदारी मुकद्दमों का निर्णय करता था।

5. वाकयानवीस-वाकयानवीस प्रान्त के गुप्तचर विभाग का मुखिया होता था। गुप्तचरों के माध्यम से वह सम्राट को प्रान्त के अधिकारियों के कार्यों के बारे में गुप्त सूचनाएं भेजता था।

6. कोतवाल-प्रान्त के बड़े-बड़े नगरों में कोतवाल की नियुक्ति की जाती थी। वह नगर में शान्ति तथा व्यवस्था का प्रबन्ध करता था। वह वेश्याओं, शराब तथा मादक वस्तुओं को बेचने वालों पर कड़ी निगरानी रखता था। वह विदेशियों की देख-रेख भी करता था। कब्रिस्तान तथा श्मशान की भूमि का ठीक प्रबन्ध करना भी उसी का कर्तव्य था।

सच तो यह है कि मुग़लों का प्रान्तीय शासन-प्रबन्ध काफ़ी कुशल था। इसमें वे सभी विशेषताएं विद्यमान् थीं जिनके कारण पूरे प्रान्त में सुव्यवस्था बनी रहे और प्रान्त केन्द्र के नियन्त्रण में रहें।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 13 मुग़ल राज्य-तन्त्र और शासन प्रबन्ध

प्रश्न 3.
मनसबदारी प्रथा से क्या अभिप्राय है ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
‘मनसब’ अरबी भाषा का एक शब्द है जिसका अर्थ ‘पदवी’ अथवा ‘स्थान निश्चित करना’ है, परन्तु मुगलकाल में मनसबदार से अभिप्राय उस सैनिक अथवा नागरिक कर्मचारी से लिया जाता था जो प्रशासन चलाने में सम्राट की सहायता करता था। इर्विन के अनुसार ‘मनसबदार’ मुग़ल अधिकारी का पद होता था। यह पद उस अधिकारी का राज्य में दर्जा, वेतन तथा उसका शाही दरबार में स्थान निर्धारित करता था। प्रत्येक मनसबदार को अपने मनसब के अनुसार घुड़सवार, हाथी, ऊंट, खच्चर, छकड़े आदि रखने पड़ते थे, परन्तु एक बात विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि मनसबदार को अपने मनसब की संख्या के अनुसार घुड़सवार तथा अन्य साधन रखने का अधिकार नहीं था। वह उसका केवल एक निश्चित भाग ही रखता था। यह भाग राज्य की ओर से निश्चित किया जाता था। मनसब न केवल सैनिक अधिकारियों की ही दी जाती थी बल्कि असैनिक अधिकारियों को भी सौंपी जाती थी। मनसबदारों के अतिरिक्त अमीरों की और कोई भी श्रेणी नहीं थी।

मनसबदारी प्रथा की विशेषताएं-

1. मनसबदारों की नियुक्ति, पदोन्नति तथा पद-मुक्ति-मनसबदारों की नियुक्ति स्वयं सम्राट् करता था। उनकी नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती थी। भर्ती होने वाले व्यक्ति को मीर बख्शी के पास ले जाया जाता था। वह उसे सम्राट के सम्मुख पेश करता था और सम्राट् उसकी सलाह से प्रस्तुत होने वाले व्यक्ति को मनसबदार नियुक्त कर देता था। नियुक्ति होने पर उसका नाम सरकारी रजिस्टरों में दर्ज कर लिया जाता था। मनसबदारों की पदोन्नति भी सम्राट की इच्छा पर निर्भर होती थी। सम्राट् जब चाहे किसी भी मनसबदार को पद से मुक्त कर सकता था।

2. मनसबदारों की श्रेणियां-अकबर के समय में सबसे छोटा मनसबदार दस तथा सबसे बड़ा मनसबदार दस हज़ार सैनिक अपने पास रखता था। परन्तु आगे चल कर यह संख्या बीस हज़ार हो गई थी। पांच हज़ार से ऊपर की मनसब केवल राजकुमारों को अथवा उच्च कोटि के सरदारों को ही सौंपी जाती थी। राजकुमारों को छोड़कर मुगल साम्राज्य में पांच हजार या उससे अधिक सैनिकों वाले मनसबदार को ‘अमीर-उल-उमरा’ कहा जाता था। 3,000 से 4,000 वाले मनसबदार को ‘उमरा-ए-कुबर’ तथा 1,000 से 2,500 को ‘उमरा’ कहा जाता था। 20 से 1,000 मनसब वाले को केवल ‘मनसबदार’ कहा जाता था। छोटे सरकारी कर्मचारियों को मनसबदार की बजाय ऐजिनदार कहते थे।

3. मनसबदारों के पद-अकबर ने अपने शासन काल के अन्तिम वर्षों में 5,000 से नीचे के मनसबों के लिए ‘जात’ और ‘सवार’ नामक दो पद जारी किए। ये पद केवल 300 अथवा इससे ऊंचे ‘मनसब’ को दे दिए जाते थे। उदाहरण के लिए 300 सवार तथा 750 ‘जात’ परन्तु इन दोनों पदों के महत्त्व के विषय में इतिहासकारों में मतभेद पाया जाता है। ब्लैकमैन के अनुसार ‘जात से अभिप्राय सैनिकों की उस निश्चित संख्या से था जो मनसबदारों को अपने यहां रखनी पड़ती थी जबकि ‘सवार से तात्पर्य केवल घुड़सवारों की निश्चित संख्या से था। इसके विपरीत इर्विन का मत है कि ‘जात’ पद किसी मनसबदार के घुड़सवारों की वास्तविक संख्या प्रकट करता था, परन्तु ‘सवार’ एक प्रतिष्ठा का पद था जो जात द्वारा सूचित घुड़सवारों की संख्या से कुछ अधिक संख्या का परिचय देता था।

4. मनसबदारों के वेतन-मनसबदारों का वेतन उनकी श्रेणियों पर निर्भर करता था । निम्नलिखित तालिका से हमें कुछ मनसबदारों के वेतन का पता चल सकता है :-
PSEB 11th Class History Solutions Chapter 13 मुग़ल राज्य-तन्त्र और शासन प्रबन्ध 1
इस वेतन में से मनसबदारों को अपने अधीन घुड़सवारों तथा घोड़ों का खर्च भी उठाना पड़ता था और सम्राट को कई प्रकार की भेटें देनी पड़ती थीं।

प्रश्न 4.
मनसबदारी प्रथा के गुण-दोषों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
मनसबदारी प्रथा के गुण :

  • इस प्रथा से जागीरदारी प्रथा समाप्त हो गई और विद्रोह का भय जाता रहा । अब प्रत्येक मनसबदार को वेतन लेने के लिए सम्राट् पर निर्भर रहना पड़ता था । इसके अतिरिक्त मनसबदारों पर सम्राट का पूरा नियन्त्रण होता था । उन्हें अपने सैनिकों तथा घोड़ों को उपस्थित करने के लिए किसी भी समय कहा जा सकता था । इस प्रकार सम्राट के विरुद्ध विद्रोह की सम्भावनाएं कम हो गईं ।
  • इस प्रथा में सभी पद योग्यता के आधार पर ही दिए जाते थे । अयोग्य होने पर मनसबदारों को पदमुक्त कर दिया जाता था। इस प्रकार योग्य तथा सफल अधिकारियों के नियुक्त होने से राज्य के सभी कार्य सुचारु रूप से चलने लगे ।
  • इससे सरकार जगीरदारों को बड़ी-बड़ी जगीरें देने के कारण होने वाली आर्थिक हानि से बच गई ।
  • ज़ब्ती प्रथा के अनुसार मृत्यु के पश्चात् मनसबदारों की सारी सम्पत्ति ज़ब्त कर ली जाती थी । इससे सरकार की आय में काफ़ी वृद्धि हुई ।

मनसबदारी प्रथा के दोष :-

(i) मनसबदारी प्रथा का सबसे बड़ा दोष यह था कि मनसबदार सदैव सरकार को धोखा देने की चेष्टा में रहते थे । वे घुड़सवारों की निश्चित संख्या से बहुत कम घुड़सवार अपने पास रखते थे, परन्तु सरकार से वे पूरा वेतन प्राप्त करते थे । इस भ्रष्टाचार का अन्त करने के लिए घोड़ों को दागने तथा सैनिकों का हुलिया लिखने की प्रथा अवश्य जारी की गई, परन्तु इससे कोई विशेष लाभ न हुआ ।

(ii) मनसबदारों को भारी वेतन दिया जाता था । इस प्रकार सरकार के काफ़ी धन का अपव्यय हो जाता था । दूसरी ओर मनसबदार अधिक समृद्ध हो जाने के कारण अपने कर्तव्य का ठीक प्रकार से पालन नहीं करते थे और विलासिता में अपने धन को नष्ट करते रहते थे ।

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प्रश्न 5.
मुग़लों के अधीन भारत में वास्तुकला के विकास का विवरण दीजिए ।
अथवा
वास्तुकला के विकास में अकबर, जहांगीर तथा शाहजहाँ के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
मुग़ल काल में एक लम्बे समय के पश्चात् देश में शान्ति स्थापित हुई । शान्ति के कारण देश समृद्ध बना । राज्य के खजाने भर गए । ऐसे वातावरण में जनता में अनेक कलाकार पैदा हुए । सम्राटों ने कलाकारों को दरबार में आदरणीय स्थान दिया । फलस्वरूप देश में सभी प्रकार की कलाओं में नया निखार आया । कलाकारों ने धरती के सीने को भवनों से सजा दिया । संक्षेप में, इस काल में हुए वास्तुकला के विकास का वर्णन इस प्रकार है :-

1. बाबर के काल में-बाबर को भवन बनवाने का बड़ा चाव था । उसने आगरा, बयाना, धौलपुर, ग्वालियर, अलीगढ़ में भवनों का निर्माण करने के लिए सैंकड़ों कारीगर लगाए थे । परन्तु उसके द्वारा बनाए हुए अधिकतर भवन अब नष्ट हो चुके हैं । इस समय उसके द्वारा बनाए गए केवल दो भवन विद्यमान हैं-एक मस्जिद पानीपत में है और दूसरी मस्जिद रुहेलखण्ड के सम्भल नगर में है।

2. हुमायूं के काल में-हुमायूं का अधिकतर समय युद्धों में गुज़रा । इसलिए वह कलाओं के विकास की ओर विशेष ध्यान न दे सका। फिर भी उसने कुछ मस्जिदों का निर्माण करवाया । उसमें एक मस्जिद फतेहाबाद (हरियाणा) में है ।

3. अकबर के काल में-अकबर ने भी भवन-निर्माण कला को काफ़ी विकसित किया । उसके भवनों में फ़ारसी तथा भारतीय शैलियों का मिश्रण पाया जाता है । आगरा के दुर्ग में जहांगीर महल’ तथा सीकरी की बहुत-सी इमारतों को देखने से ऐसा जान पड़ता है मानो इन्हें किसी राजपूत राजकुमार ने बनवाया हो । अकबर के शासनकाल के प्रथम वर्षों में दिल्ली में हुमायूं का मकबरा बना । अकबर द्वारा बनवाए नए फतेहपुर सीकरी के भवनों में जोधाबाई का महल बहुत सुन्दर है । 1576 ई० में उसने गुजरात विजय की खुशी में बुलन्द दरवाज़े का निर्माण करवाया । सीकरी में स्थित दीवान-ए-खास’ अकबर के कला-प्रेम का एक उत्तम नमूना है । अकबर द्वारा बना गया ‘पंच महल’ तथा ‘जामा मस्जिद’ भी देखने योग्य हैं ।

4. जहांगीर के काल में-जहांगीर को भवन निर्माण कला से विशेष प्रेम नहीं था । फिर भी उसके समय के दो भवन सिकन्दरा में ‘अकबर का मकबरा’ तथा आगरा में ‘एतमाद-उद्धौला का मकबरा’ कला की दृष्टि से काफ़ी महत्त्वपूर्ण हैं ।

5. शाहजहां के काल में-मुगल सम्राटों में शाहजहां को कला के क्षेत्र में विशेष स्थान प्राप्त है । उसने बहुत-से भवनों का निर्माण करवाया । उसकी सबसे सुन्दर इमारत ‘ताजमहल’ है । इसकी शोभा देखने वालों को चकाचौंध कर देती है । उसने दिल्ली का लाल किला बनवाया । इसमें बने ‘दीवान-ए-खास’ तथा ‘दीवान-ए-आम’ विशेष रूप से देखने योग्य हैं । शाहजहां ने आगरा के दुर्ग में मोती मस्जिद बनवाई जो भवन-निर्माण कला का एक सुन्दर नमूना है । शाहजहां ने एक करोड़ रुपये की लागत से ‘तख्त-ए-ताऊस’ को भी बनवाया ।

6. औरंगजेब के काल में-औरंगजेब के काल में भवन-निर्माण कला का विकास लगभग रुक गया । उसके समय में दिल्ली दुर्ग की मस्ज़िद, लाहौर की मस्ज़िद आदि कुछ इमारतों का निर्माण अवश्य हुआ, परन्तु ये सभी कला की दृष्टि से कोई महत्त्व नहीं रखतीं। – औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद साम्राज्य में अराजकता फैल गई । फलस्वरूप बाद के मुग़ल सम्राटों को इस ओर ध्यान देने का अवसर ही न मिल सका ।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics उद्धरण संबंधी प्रश्न

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PSEB 10th Class Social Science Solutions Economics उद्धरण संबंधी प्रश्न

नीचे दिए गए उद्धरणों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और दिए गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

(1)

राष्ट्रीय आय का अनुमान लगाते समय वस्तुओं तथा सेवाओं को उनकी कीमतों से गुणा किया जाता है। यदि राष्ट्रीय उत्पाद की मात्रा को चालू कीमतों से गुणा किया जाता है तो उसे चालू कीमतों पर राष्ट्रीय आय या मौद्रिक आय कहा जाता है। इसके विपरीत यदि राष्ट्रीय उत्पादन की मात्रा को किसी अन्य वर्ष (जिसे आधार वर्ष भी कहते हैं) की कीमतों से गुणा किया जाए तो जो परिणाम प्राप्त होगा उसे स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय या वास्तविक राष्ट्रीय आय कहा जाता है। कीमतों में प्राय: परिवर्तन होता रहता है। इसके फलस्वरूप वस्तुओं तथा सेवाओं की मात्रा में बिना कोई परिवर्तन हुए राष्ट्रीय आय कम या अधिक हो सकती है। एक देश की वास्तविक आर्थिक प्रगति का अनुमान लगाने के लिए विभिन्न वर्षों की राष्ट्रीय आय एक विशेष वर्ष के कीमत स्तर पर मापी जानी चाहिए। कीमतें स्थिर रहने पर वास्तविक आय में होने वाले परिवर्तन केवल वस्तुओं तथा सेवाओं में होने वाले परिवर्तनों के फलस्वरूप उत्पन्न होंगे।
(a) राष्ट्रीय आय से क्या अभिप्राय है?
(b) सकल राष्ट्रीय आय तथा शुद्ध राष्ट्रीय आय में क्या अंतर है?
उत्तर –
(a) राष्ट्रीय आय एक देश के सामान्य निवासियों की एक वर्ष में मजदूरी, ब्याज, लगान तथा लाभ के रूप में साधन आय है। यह घरेलू साधन आय और विदेशों से अर्जित शुद्ध साधन आय का योग है।
(b) एक देश की राष्ट्रीय आय में यदि घिसावट व्यय शामिल रहता है तो उसे सकल राष्ट्रीय आय कहा जाता है। जबकि इसके विपरीत यदि राष्ट्रीय आय में घिसावट व्यय को घटा दिया जाता है तो उसे शुद्ध राष्ट्रीय आय कहा जाता हैं। अर्थात,
राष्ट्रीय आय + घिसावट व्यय = सकल राष्ट्रीय आय
राष्ट्रीय आय – घिसावट व्यय = शुद्ध राष्ट्रीय आय
‘सकल’ शब्द का प्रयोग शुद्ध शब्द की तुलना में विस्तृत अर्थों में किया जाता है।

(2)

उपभोग शब्द का प्रयोग दो अर्थों में किया जाता है; एक तो क्रिया के रूप में तथा दूसरे व्यय के रूप में। क्रिया के रूप में उपभोग वह क्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य की आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि होती है जैसे प्यास बुझाने के लिए पानी का प्रयोग करना या भूख की संतुष्टि के लिए रोटी का प्रयोग करना। अतएव उपभोग वह क्रिया है जिसके द्वारा कोई मनुष्य अपनी आवश्यकता की संतुष्टि के लिए किसी वस्तु की उपयोगिता का प्रयोग करता है। व्यय के रूप में उपभोग से अभिप्राय उस कुल खर्चे से है जो उपभोग वस्तुओं पर किया जाता है।
राष्ट्रीय आय में से लोग अपनी आवश्यकताओं की प्रत्यक्ष संतुष्टि के लिए वस्तुओं और सेवाओं को खरीदने के लिए मुद्रा की जो राशि खर्च करते हैं उसे उपभोग या कुल उपभोग व्यय कहते हैं।
(a) उपभोग किसे कहते हैं? इसे प्रभावित करने वाले तत्त्व कौन-से हैं?
(b) उपभोग प्रवृत्ति क्या है? यह कितने प्रकार की होती है?
उत्तर-
(a) उपभोग से अभिप्राय किसी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष की अवधि में उपभोग पर किए जाने वाले कुल व्यय से लिया जाता है।
उपभोग पर कई तत्त्वों जैसे वस्तु की कीमत, आय, फैशन आदि का प्रभाव पड़ता है। परन्तु उपभोग पर सबसे अधिक प्रभाव आय का पड़ता है। साधारणतया आय के बढ़ने से उपभोग बढ़ता है। परन्तु उपभोग में होने वाली वृद्धि आय में होने वाली वृद्धि की तुलना में कम होती है।
(b) आय के विभिन्न स्तरों पर उपभोग की विभिन्न मात्राओं को प्रकट करने वाली अनुसूची को उपयोग प्रवृत्ति कहा जाता है।
PSEB 10th Class Economics Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न 1

  1. औसत उपभोग प्रवृत्ति (Average Propensity to Consume) — कुल व्यय तथा कुल आय के अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति कहा जाता है। इससे मालूम होता है कि लोग अपनी कुल आय का कितना भाग उपभोग पर खर्च करेंगे तथा कितना भाग बचाएंगे। इसे ज्ञात करने के लिए उपभोग को आय से भाग कर दिया जाता है अर्थात
    PSEB 10th Class Economics Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न 2
  2. सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति (Marginal Propensity to Consume) — आय में होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप उपभोग में होने वाले परिवर्तन के अनुपात को सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति कहते हैं।
    PSEB 10th Class Economics Solutions उद्धरण संबंधी प्रश्न 3

PSEB 10th Class SST Solutions Economics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(3)

सार्वजनिक वित्त दो शब्दों से मिलकर बना है: सार्वजनिक + वित्त। सार्वजनिक शब्द का अर्थ है जनता का समूह जिसका प्रतिनिधित्व सरकार करती है और वित्त का अर्थ है मौद्रिक साधन। अतएव सार्वजनिक वित्त से अभिप्राय किसी देश की सरकार के वित्तीय साधनों अर्थात् आय और व्यय से है। अर्थशास्त्र के जिस भाग में सरकार की आय तथा व्यय संबंधी समस्याओं का अध्ययन किया जाता है उसे सार्वजनिक वित्त कहा जाता है। अतएव सार्वजनिक वित्त राजकीय संस्थानों जैसे केन्द्रीय, राज्य या स्थानीय सरकारों के मामलों का अध्ययन है। सार्वजनिक वित्त में सरकार की आय अर्थात् कर, ब्याज, लाभ आदि शामिल होते हैं। सार्वजनिक व्यय जैसे सुरक्षा, प्रशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, उद्योगों, कृषि आदि पर किया गया व्यय तथा सार्वजनिक ऋण का अध्ययन किया जाता है। समय के साथ-साथ प्रत्येक देश की सरकार के द्वारा की जाने वाली आर्थिक क्रियाओं में बहुत अधिक वृद्धि हो गई है। इसके साथ-साथ सार्वजनिक वित्त का क्षेत्र भी बहुत अधिक विस्तृत हो गया है। इसके अन्तर्गत केवल राज्य की आय और व्यय का अध्ययन ही नहीं किया जाता बल्कि विशेष आर्थिक उद्देश्यों जैसे पूर्ण रोजगार, आर्थिक विकास, आय तथा धन का समान वितरण, कीमत स्थिरता आदि से संबंधित सरकार की आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन भी किया जाता है।
(a) सरकार की आय के मुख्य साधन क्या हैं?
(b) सार्वजनिक वित्त के मुख्य उद्देश्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
(a) सरकार की आय का मुख्य साधन कर (Tax) है। कर दो प्रकार का होता है।

  1. प्रत्यक्ष कर (Direct Taxes) — प्रत्यक्ष कर वह कर होता है जो उसी व्यक्ति द्वारा पूर्ण रूप से दिया जाता है जिस पर कर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए आय कर, उपहार कर, निगम कर, सम्पत्ति कर आदि प्रत्यक्ष कर हैं।
  2. अप्रत्यक्ष कर (Indirect Taxes) — अप्रत्यक्ष कर वह कर होता है जिन्हें सरकार को एक व्यक्ति देता है तथा इनका भार दूसरे व्यक्ति को उठाना पड़ता है। अप्रत्यक्ष कर की परिभाषा उन करों के रूप में की जाती है जो वस्तुओं तथा सेवाओं पर लगाए जाते हैं, अतः लोगों पर यह अप्रत्यक्ष रूप से लगाए जाते हैं। बिक्री कर, उत्पादन कर, मनोरंजन कर, आयात-निर्यात कर अप्रत्यक्ष कर के उदाहरण हैं।

(b) सार्वजनिक वित्त के मुख्य उद्देश्य निम्न हैं:

  1. आय तथा सम्पत्ति का पुनः वितरण (Redistribution of Income and Wealth) — सार्वजनिक वित्त से सरकार कराधान तथा आर्थिक सहायता से आय और सम्पत्ति के बंटवारे में सुधार लाने हेतु प्रयासरत रहती है। संपत्ति और आय का समान वितरण सामाजिक न्याय का प्रतीक है जो कि भारत जैसे किसी भी कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य होता है।
  2. साधनों का पुनः आबंटन (Reallocation of Resources) — निजी उद्यमी सदैव यही आशा करते हैं कि साधनों का आबंटन उत्पाद के उन क्षेत्रों में किया जाए जहां ऊंचे लाभ प्राप्त होने की आशा हो। किन्तु यह भी संभव है कि उत्पादन के कुछ क्षेत्रों (जैसे शराब का उत्पादन) द्वारा सामाजिक कल्याण में कोई वृद्धि न हो। अपनी बजट संबंधी नीति द्वारा देश की सरकार साधनों का आबंटन इस प्रकार करती है जिससे अधिकतम लाभ तथा सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन स्थापित किया जा सकें। उन वस्तुओं (जैसे शराब, सिगरेट) के उत्पादन पर भारी कर लगाकर उनके उत्पादन को निरुत्साहित किया जा सकता है। इसके विपरीत ‘सामाजिक उपयोगिता वाली वस्तुओं’ (जैसे ‘खादी’) के उत्पादन को आर्थिक सहायता देकर प्रोत्साहित किया जाता है।
  3. आर्थिक स्थिरता (Economic Stability) — बाज़ार शक्तियों (मांग तथा पूर्ति की शक्तियों) की स्वतन्त्र क्रियाशीलता के फलस्वरूप व्यापार चक्रों का समय-समय पर आना अनिवार्य होता है। अर्थव्यवस्था में तेजी और मंदी के चक्र चलते हैं। सरकार अर्थव्यवस्था को इन व्यापार चक्रों से मुक्त रखने के लिए सदैव वचनबद्ध होती है। बजट सरकार के हाथ में एक महत्त्वपूर्ण नीति अस्त्र है जिसके प्रयोग द्वारा वह अवस्फीति तथा मुद्रा स्फीति की स्थितियों का मुकाबला करती है।

(4)

प्रत्येक अल्पविकसित देश में उद्योगों, कृषि आदि अन्य क्षेत्रों का विकास तभी संभव हो सकता है, जब आधारिक संरचना पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों। आधारिक संरचना के अभाव में उद्योगों, कृषि आदि क्षेत्रों के विकास में रुकावटें उत्पन्न हो जाती हैं तथा उनकी वृद्धि दर कम हो जाती है। उदाहरण के लिए हम प्रतिदिन अनुभव करते हैं कि भारत में बिजली की कमी के कारण उद्योगों तथा कृषि को कितनी हानि उठानी पड़ती है। इसी प्रकार यदि यातायाद के साधन अपर्याप्त हों तो उद्योगों को समय पर कच्चा माल नहीं मिल सकेगा तथा उनका तैयार माल बाजार में नहीं पहुंच सकेगा। अतएव आधारिक संरचना की कमी उद्योगों तथा कृषि आदि उत्पादक क्षेत्रों के विकास की दर को कम कर देती है। इसके विपरीत आधारिक संरचना की उचित उपलब्धता इनके विकास की दर को तेजी से बढ़ाने में सहायक हो सकती है।
(a) आधारिक संरचना से क्या अभिप्राय है?
(b) आर्थिक आधारिक संरचना का अर्थ बताएं। महत्त्वपूर्ण आर्थिक संरचनाएं कौन-सी हैं?
उत्तर-
(a) किसी अर्थव्यवस्था के पूंजी स्टॉक के उस भाग को जो विभिन्न प्रकार की सेवाएं प्रदान करने की दृष्टि से आवश्यक होता है, आधारिक संरचना कहा जाता है।
(b) आर्थिक आधारिक संरचना से अभिप्राय उस पूंजी स्टॉक से है जो उत्पादन प्रणाली को प्रत्यक्ष सेवाएं प्रदान करता है। उदाहरणादि-देश की यातायात प्रणाली रेलवे, वायु सेवाएं, उत्पादन तथा वितरण प्रणाली के एक हिस्से के रूप में ही सेवाएं प्रदान करतें हैं। इसी प्रकार बैंकिंग प्रणाली, मुद्रा तथा पूंजी बाज़ार दूसरे हिस्से के रूप में उद्योगों तथा कृषि को वित्त प्रदान करती है। महत्त्वपूर्ण आर्थिक संरचनाएं निम्नलिखित हैं

  1. परिवहन तथा संचार
  2. विद्युत् शक्ति
  3. सिंचाई
  4. बैंकिंग तथा अन्य वित्तीय संस्थाएं।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(5)

आधुनिक युग उपभोक्तावाद का युग है। उपभोक्ताओं के उपयोग एवं सुविधा के लिए प्रतिदिन नए उपभोक्ता पदार्थों की पूर्ति की जा रही है। नए प्रकार के खाद्य पदार्थों, नए फैशन के कपड़ों, सजावट के समान, गृहस्थी के उपयोग के लिए नए उपकरणों, परिवहन के नए साधनों, मनोरंजन के नए यन्त्रों जैसे-रंगीन टी०वी० विडियो आदि का निरन्तर आविष्कार तथा उत्पादन किया जा रहा है। इन वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक पहुंचाने के लिए विज्ञापन तथा प्रचार का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जा रहा है। आज का उपभोक्ता आकर्षक विज्ञापनों तथा अनेक उत्पादकों के प्रचार के आधार पर अपने उपभोग की सामग्री का चुनाव करता है। इस संबंध में उसका कई प्रकार से शोषण किया जाता है। उपभोक्ता को इस शोषण से संरक्षण देने के लिए उपभोक्ता संरक्षण की विधि प्रारम्भ की गई है।
(a) उपभोक्ता संरक्षण से क्या अभिप्राय है?
(b) उपभोक्ता के शिक्षण का अर्थ बताएं।
उत्तर-
(a) उपभोक्ता संरक्षण से अभिप्राय है कि उपभोक्ता वस्तुओं के उपभोक्ताओं की उत्पादकों के अनुचित व्यापार व्यवहारों के फलस्वरूप होने वाले शोषण से रक्षा करना।
(b) उपभोक्ता के हितों का संरक्षण करने के लिए उन्हें शिक्षित किया जाना भी आवश्यक है। इस उद्देश्य के लिए प्रतिवर्ष देश भर में 15 से 21 मार्च तक उपभोक्ता सप्ताह (Consumer’s Week) मनाया जाता है। इसमें उपभोक्ताओं में उनके अधिकारों के बारे में जागरूकता जगाने पर विशेष जोर दिया जाता है। इस अवसर पर प्रदर्शनियों, गोष्ठियों तथा नुक्कड़ सभाओं का आयोजन किया जाता है। उनमें उपभोक्ताओं को बताया जाता है कि उन्हें मिलावट, कम तोलने जैसे अनुचित व्यापारिक गतिविधियों के बारे में क्या करना चाहिए तथा इस संबंध में उन्हें कौन-सी कानूनी सुविधाएं प्राप्त हैं।

(6)

भारत एक कृषि प्रधान देश माना जाता है क्योंकि भारत में आज भी 68 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रही है। स्वतन्त्रता के पश्चात् भारतवासियों ने अंग्रेजों से पिछड़ी हुई कृषि अर्थव्यवस्था ही विरासत में पाई थी। महात्मा गाँधी भी कृषि को “भारत की आत्मा” मानते थे। नेहरू जी ने भी इसलिए कहा था, “कृषि को सर्वाधिक प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।” डॉ० वी०के०वी० राव ने कृषि के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा था, “यदि पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत विकास के विशाल पहाड़ को लांघना है तो कृषि के लिए निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करना आवश्यक है।” प्रसिद्ध अर्थशास्त्री विद्वान् दांते वाला के अनुसार, “भारतीय अर्थव्यवस्था के आर्थिक विकास में कृषि क्षेत्र की सफलता देश को आर्थिक प्रगति के मार्ग की तरफ अग्रसर करती है।”
(a) कृषि से क्या अभिप्राय है?
(b) भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्त्व का वर्णन करें।
उत्तर-
(a) अंग्रेजी भाषा का एग्रीकल्चर शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों एग्री (Agri), खेत (Field) तथा कल्चर (Culture) (खेती) (Cultivation) से लिया गया है। दूसरे शब्दों में, एक खेत में पशुओं तथा फसलों के उत्पादन सम्बन्धी कला व विज्ञान को कृषि कहते हैं। अर्थशास्त्र में इस शब्द का प्रयोग खेती की क्रिया में सम्बन्धित प्रत्येक विषय में किया जाता है। कृषि का मुख्य उद्देश्य मज़दूरी पदार्थों जैसे अनाज, दूध, सब्जियाँ, दालों तथा उद्योगों के लिए कच्चे माल का उत्पादन करना है।
(b) भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्त्व निम्नलिखित है.

  1. राष्ट्रीय आय (National Income) — भारत की राष्ट्रीय आय का लगभग एक चौथाई भाग कृषि, वन आदि प्राथमिक क्रियाओं से प्राप्त होता है। योजनाकाल में राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का योगदान विभिन्न वर्षों में 14.2 प्रतिशत से 51 प्रतिशत तक रहा है। .
  2. कृषि तथा रोज़गार (Agriculture and Employments) — भारत में कृषि रोज़गार का मुख्य स्रोत है। भारत में 70 प्रतिशत से भी ज्यादा कार्यशील जनसंख्या कृषि क्षेत्र में लगी हुई है। भारत में लगभग दो तिहाई जनसंख्या कृषि क्षेत्र पर निर्भर रहती है।
  3. कृषि तथा उद्योग (Agriculture and Industry) — कृषि क्षेत्र के द्वारा कई उद्योगों को कच्चा माल जैसेकपास, जूट, गन्ना तिलहन आदि प्राप्त होते हैं। कृषि के विकास के कारण लोगों की आय में वृद्धि होती है इसलिए वे उद्योगों द्वारा निर्मित वस्तुओं की अधिक मांग करते हैं। इसके फलस्वरूप उद्योगों के बाजार का विस्तार होता है।
  4. यातायात (Transport) — यातायात के साधनों जैसे रेलों, मोटरों, बैलगाड़ियों की आय का एक मुख्य साधन अनाज तथा अन्य कृषि पदार्थों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाना ले जाना है।
  5. सरकार की आय (Government Income) — राज्य सरकारें अपनी आय का काफी भाग मालगुजारी से प्राप्त करती है। मालगुजारी राज्य सरकारों की आय का परम्परागत साधन है।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(7)

हरित क्रान्ति दो शब्दों से मिलकर बना है-हरित + क्रान्ति। हरित शब्द का अर्थ है हरियाली तथा क्रान्ति शब्द का अर्थ है इतनी तेजी से होने वाला परिवर्तन कि सभी उसकी ओर आश्चर्य से देखते रह जाएं। इस शब्द का प्रयोग कृषि के उत्पादन के लिए किया गया है। भारत में पहली तीन योजनाओं की अवधि में अपनाए गए कृषि सुधारों के कारण 1967-68 में अनाज के उत्पादन में पिछले वर्ष (1966-67) की तुलना में लगभग 25% की वृद्धि हुई। किसी एक वर्ष में अनाज के उत्पादन में इतनी अधिक वृद्धि होना एक क्रान्ति के समान था। इस कारण अर्थशास्त्रियों ने अमाज के उत्पादन में होने वाली इस वृद्धि को हरित क्रान्ति का नाम दिया है।
(a) हरित क्रान्ति के प्रभाव बताएं।
(b) हरित क्रान्ति क्या है? इसकी विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
(a) हरित क्रान्ति के प्रभाव निम्नलिखित रहे हैं-

  1. उत्पादन में वृद्धि (Increase in Production) — हरित क्रान्ति के फलस्वरूप 1967-68 और उसके बाद के वर्षों में फसलों के उत्पादन में बड़ी तीव्र गति से वृद्धि हुई है। 1967-68 के वर्ष जिसे हरित क्रान्ति का वर्ष कहा जाता है, में अनाज का उत्पादन बढ़कर 950 लाख टन हो गया।
  2. पूंजीवादी खेती (Capitalistic Farming) — हरित क्रान्ति का लाभ उठाने के लिए धन की बहुत अधिक आवश्यकता है। इतना धन केवल वे ही किसान खर्च कर सकते हैं जिनके पास कम-से-कम 10 हेक्टेयर से अधिक भूमि हो। अतएव हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश में पूंजीवादी खेती को प्रोत्साहन मिला है।
  3. किसानों की समृद्धि (Prosperity of the Farmers) — हरित क्रान्ति के फलस्वरूप किसानों की अवस्था में काफी सुधार हुआ है। उनका जीवन स्तर पहले से बहुत ऊँचा हो गया है। कृषि का व्यवसाय एक लाभदायक व्यवसाय माना जाने लगा है। कई व्यवसायी इस ओर आकर्षित होने लगे हैं। देश में उपभोक्ता, वस्तुओं की मांग में वृद्धि हुई है। आवश्यकता की उच्चकोटि की वस्तुओं तथा विलासिता के पदार्थों की मांग बढ़ गई है। इसका औद्योगिक विकास पर भी उचित प्रभाव पड़ा है।
  4. खाद्यान्न के आयातों में कमी (Reduction in Imports of Food Grains) — हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में खाद्यान्न के आयात पहले की अपेक्षा कम होने लगे हैं।

(b) हरित क्रान्ति से अभिप्राय कृषि उत्पादन विशेष रूप से गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि में अधिक उपज वाले बीजों के प्रयोग की नई तकनीक अपनाने के कारण सम्भव हुई।
विशेषताएं-

  1. भारत में 1968 का वर्ष हरित क्रान्ति का वर्ष था।
  2. इसमें “पंत” कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर ने कई किस्मों के बीजों के माध्यम से एक सराहनीय सहयोग दिया।
  3. हरित क्रान्ति लाने में भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान नई दिल्ली का भी सहयोग सराहनीय है।
  4. भारत में इस क्रान्ति को लाने का श्रेय डॉ० नोरमान वरलोग तथा एम०एन० स्वामीनाथन को जाता है।

(8)

भारत जैसे अल्पविकसित देशों की आर्थिक प्रगति के लिए औद्योगीकरण एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उद्योगों के विकास द्वारा ही आय, उत्पादन तथा रोजगार की मात्रा को बढ़ाकर भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर में वृद्धि की जा सकती है। स्वतन्त्रता से पहले भारत में उद्योगों का बहुत ही कम विकास हुआ था, परन्तु आजादी के बाद सरकार ने देश के औद्योगिक विकास को बहुत अधिक महत्त्व दिया। इसके फलस्वरूप देश में कई उद्योग स्थापित किए गए तथा पुराने उद्योगों की उत्पादन क्षमता तथा कुशलता में भी वृद्धि की गई। भारतीय पंचवर्षीय योजनाओं में भी उद्योगों के विकास को काफी महत्त्व दिया गया है।
(a) औद्योगिक विकास का महत्त्व स्पष्ट करें।
(b) उद्योग किस प्रकार सन्तुलित अर्थव्यवस्था के निर्माण में सहायक है?
उत्तर-
(a)

  1. रोज़गार (Employment) — औद्योगीकरण के फलस्वरूप नए-नए उद्योगों का निर्माण होता है। देश के लाखों बेरोजगारों को इन उद्योगों में काम मिलने लगता है। इससे बेरोज़गारी कम होती है।
  2. आत्म निर्भरता (Self Sufficiency) — उद्योगों के विकास से देश की आवश्यक वस्तुएं देश में ही उत्पन्न होने लगेंगी। उनके लिए विदेशों पर निर्भरता कम हो जाएगी। इस प्रकार भारत कई वस्तुओं व सामान में आत्म निर्भर हो जाएगा। .
  3. राष्ट्रीय आय में वृद्धि (Increase in National Income) — भारत में औद्योगीकरण से प्राकृतिक साधनों का उचित प्रयोग हो सकेगा। इससे उत्पादन तथा व्यापार बढ़ेगा, राष्ट्रीय आय में वृद्धि होगी तथा लोगों की प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ेगी।
  4. राष्ट्रीय प्रतिरक्षा के लिए जरूरी (Essential for National Defence) — औद्योगीकरण से देश में लोहा, इस्पात, रसायन, हवाई जहाज़, सुरक्षा आदि कई उद्योगों की स्थापना हो जाएगी। इन उद्योगों का देश की प्रतिरक्षा के लिए बहुत महत्त्व है, क्योंकि इन उद्योगों से युद्ध के लिए बहुत सामान तैयार किया जाता है।
  5. भूमि पर जनसंख्या के दबाव में कमी (Less pressure of population on Land) — भारत की 70 प्रतिशत जनसंख्या खेती पर निर्भर करती है। इसके फलस्वरूप खेती काफी पिछड़ी हुई है। उद्योगों के विकास के कारण कृषि पर जनसंख्या का दबाव कम हो जाएगा। इससे कृषि जोतों का आकार बढ़ेगा व खेती की अधिक उन्नति हो सकेगी।

(b) भारत की अर्थव्यवस्था असन्तुलित है, क्योंकि देश की अधिकतर जनसंख्या व पूंजी कृषि में लगी हुई है। कृषि में अनिश्चितता है। औद्योगीकरण से अर्थव्यवस्था सन्तुलित होगी तथा कृषि की अनिश्चितता कम हो जाएगी।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(9)

“कुटीर उद्योग वह उद्योग हैं जो पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से परिवार के सदस्यों की सहायता से एक पूर्णकालीन या अंशकालीन व्यवसाय के रूप में चलाया जा सकता है।” इस प्रकार के उद्योग, अधिकतर कारीगर अपने घरों में ही चलाते हैं। मशीनों का प्रयोग बहुत कम किया जाता है। ये उद्योग प्रायः स्थानीय आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। इन उद्योगों को परिवारों के सदस्य ही चलाते हैं। मज़दूरी पर लगाए गए श्रमिकों का प्रयोग बहुत कम होता है। इनमें पूंजी बहुत कम लगती है। इन उद्योगों के अधिकतर गाँवों में स्थित होने से उन्हें ग्रामीण उद्योग भी कहा जाता है।
(a) कुटीर व लघु उद्योगों में क्या अन्तर है?
(b) कुटीर उद्योगों की समस्याएं क्या होती हैं?
उत्तर-
(a)

  1. कुटीर उद्योग प्रायः गाँवों में होते हैं जबकि लघु उद्योग अधिकतर शहरों में होते हैं।
  2. कुटीर उद्योग सामान्यत: स्थानीय माँग की पूर्ति करते हैं जबकि लघु उद्योग शहरी एवं अर्द्ध शहरी क्षेत्रों के लिए माल पैदा करते हैं। अत: उत्पादन का बाजार विस्तृत होता है।
  3. कुटीर उद्योग में परिवार के व्यक्ति ही काम करते हैं जबकि लघु उद्योग में भाड़े के श्रमिकों से काम लिया जाता है।
  4. कुटीर उद्योगों में सामान्य औज़ारों से उत्पादन होता है तथा पूंजी बहुत कम खर्च होती है जबकि लघु उद्योग शक्ति से चलते हैं तथा नियोजित पूंजी भी अधिक खर्च होती है।
  5. कुटीर उद्योग में परम्परागत वस्तुओं का उत्पादन जैसे चटाई, जूते आदि बनाए जाते हैं जबकि लघु उद्योग में आधुनिक वस्तुओं जैसे-रेडियो, टेलीविज़न और इलैक्ट्रॉनिक सामान आदि का उत्पादन किया जाता है।

(b)

  1. कच्चे माल तथा शक्ति की समस्या (Problem of Raw Material and Power) — इन उद्योग धन्धों को कच्चा माल उचित मात्रा में नहीं मिल पाता तथा जो माल मिलता है उसकी किस्म बहुत घटिया होती है और उसका मूल्य भी बहुत अधिक देना पड़ता है। इससे उत्पादन लागत बढ़ जाती है। इन उद्योगों को बिजली तथा कोयले की कमी रहती है।
  2. वित्त की समस्या (Problem of Finance) — भारत में इन उद्योगों को ऋण उचित मात्रा में नहीं मिल पाता है। उन्हें वित्त के लिए साहूकारों पर निर्भर रहना पड़ता है जो ब्याज की ऊँची दर लेते हैं।
  3. बिक्री सम्बन्धी कठिनाई (Problems of Marketing) — इन उद्योगों को अपनामाल उचित मूल्य एवं मात्रा में बेचने के लिए काफी कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं। जैसे इन उद्योगों द्वारा उत्पादित वस्तुओं की बाहरी दिखावट अच्छी नहीं होती है।
  4. उत्पादन के पुराने तरीके (Old Methods of Production) — इन उद्योगों में अधिकतर उत्पादन के पुराने ढंग भी अपनाए जाते हैं। पुराने औज़ार जैसे-तेल निकालने की हानियाँ अथवा कपड़ा बुनने के लिए हथकरघा ही प्रयोग में लाया जाता है। इसके फलस्वरूप उत्पादन की मात्रा में कमी होती है तथा वस्तु घटिया किस्म की तैयार होती है। इन वस्तुओं की बाजार में मांग कम हो जाती है।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics उद्धरण संबंधी प्रश्न

(10)

भारत के आर्थिक विकास में बड़े पैमाने के उद्योगों का बहुत महत्त्व है। उद्योगों में निवेश की गई स्थायी पूँजी का अधिकतर भाग बड़े उद्योगों में ही निवेश किया गया है। देश के औद्योगिक उत्पादन का बड़ा भाग इन्हीं उद्योगों से प्राप्त होता है।
(a) बड़े उद्योगों का वर्गीकरण कीजिए।
(b) बड़े उद्योगों का देश के औद्योगिकीकरण में महत्त्व बताएं।
उत्तर-
(a)

  1. आधारभूत उद्योग (Basic Industries) — आधारभूत उद्योग वे उद्योग हैं, जो कृषि तथा उद्योगों को आवश्यक इन्पुट्स प्रदान करते हैं। इनके उदाहरण हैं-स्टील, लोहा, कोयला, उर्वरक तथा बिजली।।
  2. पूंजीगत वस्तु उद्योग (Capital Goods Industries) — पूंजीगत उद्योग वे उद्योग हैं जो कृषि तथा उद्योग के लिए मशीनरी और यन्त्रों का उत्पादन करते हैं। इनमें मशीनें, मशीनी औजार, ट्रैक्टर, ट्रक आदि शामिल किए जाते हैं।
  3. मध्यवर्ती वस्तु उद्योग (Intermediate Goods Industries) — मध्यवर्ती वस्तु उद्योग वे उद्योग हैं जो उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं जिनका दूसरी वस्तु के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। इनके उदाहरण हैं टायर्स, मोबिल ऑयल आदि।
  4. उपभोक्ता वस्तु उद्योग (Consumer Goods Industries) — उपभोक्ता वस्तु उद्योग वे उद्योग हैं जो उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन, करते हैं। इनमें शामिल हैं चीनी, कपड़ा, कागज़ उद्योग आदि।

(b)

  1. पूंजीगत तथा आधारभूत वस्तुओं का उत्पादन (Production of Capitalistic and Basic Goods) — देश के औद्योगिकीकरण के लिए पूंजीगत वस्तुओं जैसे मशीनों, यन्त्रों तथा आधारभूत वस्तुओं जैसे इस्पात, लोहे, रासायनिक पदार्थों आदि का बहुत अधिक महत्त्व है। इन पूंजीगत तथा आधारभूत वस्तुओं का उत्पादन बड़े उद्योगों द्वारा ही सम्भव है।
  2. आर्थिक आधारित संरचना (Economic Infrastructure) — औद्योगिकीकरण के लिए आर्थिक संरचना अर्थात् यातायात के साधन, बिजली, संचार व्यवस्था आदि की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। यातायात के साधनों जैसे रेलवे के इन्जनों तथा डिब्बों, ट्रकों, मोटरों, जहाजों आदि का उत्पादन बड़े पैमाने के उद्योगों द्वारा ही किया जा सकता है।
  3. अनुसन्धान तथा उच्च तकनीक (Research and High Techniques) — किसी देश के औद्योगिकीकरण के लिए अनुसन्धान तथा उच्च तकनीक का बहुत महत्त्व है। इनके लिए बहुत अधिक मात्रा में धन तथा योग्य अनुसन्धानकर्ताओं की आवश्यकता होती है। बड़े पैमाने के उद्योग ही अनुसन्धान तथा योग्य अनुसन्धानकर्ताओं के लिए आवश्यक धन का प्रबन्ध कर सकते हैं।
  4. उत्पादकता में वृद्धि (Increase in Productivity) — बड़े पैमाने के उद्योगों में निवेश बहुत मात्रा में होने के कारण प्रति इकाई पूंजी बहुत अधिक होती है। इससे प्रति इकाई उत्पादकता में भारी वृद्धि होती है।

PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Practical सादा बुनाई Notes.

PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
घर पर बुनाई करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर-
वस्त्र अधिक सुन्दर, मज़बूत व कम कीमत पर बनते हैं।

प्रश्न 2.
फंदों के खिंचाव में किस बात का महत्त्व है?
उत्तर-
फंदों के खिंचाव में सलाई के नम्बर का बहुत महत्त्व है।

प्रश्न 3.
बुनाई में सबसे पहला कार्य क्या होता है ?
उत्तर-
फंदे डालना।

PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई

प्रश्न 4.
बुनाई करते समय ऊन को अधिक कसकर पकड़ने से क्या हानि होती
उत्तर-
बुनाई कस जाती है तथा ऊन की स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है।

प्रश्न 5.
फंदे कितने प्रकार से डाले जाते हैं?
उत्तर-
फंदे दो प्रकार से डाले जाते हैं-

  1. एक सलाई द्वारा हाथ की सहायता से तथा
  2. दो सलाई द्वारा।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सादी बुनाई की विधि बताइए।
उत्तर-
पहले सलाई पर आवश्यकतानुसार फंदे डाल लेने चाहिएं। पहली पंक्ति में सव फंदे सीधी बुनाई के बुनने चाहिएं। दूसरी पंक्ति में पहला फंदा सीधा फिर सब उल्टे और आखिरी फंटा फिर सीधा बुनना चाहिए। इसी तरह जितना चौड़ा बुनना हो उतना इन्हीं दो तरह की पंक्ति को बार-बार बुनकर बना सादी बुनाई लेना चाहिए।
PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई 1
चित्र 7.1.1.

PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई

प्रश्न 2.
मोतीदाने या साबूदाने की बुनाई की विधि बताएं।
उत्तर-
आवश्यकतानुसार फंदे सलाई पर डाल लेने के बाद पहली पंक्ति (सलाई) में एक सीधा, एक उल्टा, एक सीधा, एक उल्टा बुनते हुए इसी प्रकार सलाई बुन डालो।

दूसरी पंक्ति में जो फंदा उल्टा हो, उस पर सीधा व सीधे पर उल्टा फंदा बुनना चाहिए। इस प्रकार दूसरी पंक्ति सीधे से शुरू न होकर एक उल्टा दो सीधे के क्रम से बुनी जाएगी। इस बुनाई को धनिए या छोटी गांठ की बुनाई भी कहते हैं।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
बुनाई करते समय कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिएं?
उत्तर-
बुनाई करते समय निम्नलिखित सावधानियां बरतनी चाहिएं

  1. फंदों के खिंचाव में सलाई के नम्बर का बहुत बड़ा हाथ होता है, इसलिए सदैव ठीक नम्बर की सलाइयों का प्रयोग करना चाहिए।
  2. मोटी ऊन के लिए मोटी सलाइयों तथा बारीक ऊन के लिए पतली सलाइयों का प्रयोग करना चाहिए।
  3. हाथ गीले न हों तथा फुर्ती और सफ़ाई के साथ चलाने चाहिएं।
  4. ऊन को इस प्रकार पकड़ना चाहिए कि हर जगह खिंचाव एक-सा रहे। यदि ऊन का खिंचाव अधिक रखा जाएगा तो कपड़े का स्वाभाविक लचीलापन कुछ सीमा तक समाप्त हो जाएगा।
  5. पंक्ति अधूरी छोड़कर बुनाई बन्द नहीं करनी चाहिए।
  6. जोड़ किसी पंक्ति के सिरे पर ही लगाना चाहिए, बीच में नहीं।
  7. वस्त्रों को नाम के अनुसार ही बुनना चाहिए। आस्तीनों व अगले पिछले भाग की लम्बाई मिलाने के लिए पंक्तियाँ ही गिननी चाहिएं।
  8. वस्त्र की सिलाई सावधानीपूर्वक करनी चाहिए।

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प्रश्न 2.
फंदे कितने प्रकार के डाले जा सकते हैं ? विधिपूर्वक लिखो।
उत्तर-
फंदे दो प्रकार से डाले जा सकते हैं

  1. सलाई की सहायता से,
  2. हाथ से।

1. सलाई की सहायता से (दो सलाई के फंदे)-ऊन के सिरे के पास एक लूप (सरफंदा) बनाकर सलाई पर चढ़ा लो। इस सलाई को बाएँ हाथ में पकड़ो। दूसरी सलाई व गोले की तरफ की ऊन दाहिने हाथ में लेकर दाहिनी तरफ की ऊन इस नोंक पर लपेटो और उसको फंदे से बाहर निकालो तो दाहिनी सलाई पर भी एक फंदा बन जाएगा। इस फंदे को बाईं सलाई पर चढ़ा लो। इसी प्रकार जितने फंदे डालने की ज़रूरत हो, डाले जा सकते हैं।
PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई 2
चित्र 7.1.2. दो सलाई की सहायता से फंदे डालना

2. हाथ से (एक सलाई द्वारा फंदे डालना)-जितने फंदे डालने हों उनके काफ़ी ऊन सिरे से लेकर छोड़ देनी चाहिए। बाएँ हाथ के अंगूठे व पहली उंगली के बीच में सिरा नीचे छोड़ कर ऊन पकड़ो, फिर दाहिने हाथ से ऊन बाएँ हाथ की दो उंगलियों पर लपेटकर फिर अंगूठा व पहली उंगली के बीच लगाकर पहले धागे के ऊपर से लेकर पीछे छोड़ दो। इससे धागे की एक अंगूठी-सी बन जाएगी।
PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई 3
चित्र 7.1.3. एक सलाई द्वारा फंदे डालना।
इस धागे की अंगूठी के अन्दर से एक सलाई डालो और पीछे हुए धागे की गोलाई में से निकाल लो। इसके बाद हल्के हाथ से दोनों ओर के धागे को खींचकर सलाई पर फंदा जमा लो। सलाई और ऊन (गोले की ओर का) दाहिने हाथ में पकड़ने चाहिएं। बाएँ हाथ से खाली सिरा पकड़ना चाहिए। इस सिरे को अंगूठे पर लपेटकर फंदा-सा बना लो। इस फंदे के नीचे से सलाई की नोक अन्दर डालो। अब दाहिने हाथ से ऊन सलाई के पीछे से सामने को ले जाओ। इस धागे को बाएँ अंगूठे से अन्दर से बाहर निकालो और बाएँ हाथ से धीरे से खींचकर धागा कस देना चाहिए। इसी प्रकार जितने फंदे डालने हों सलाई पर जमा देने चाहिएं।

PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई

प्रश्न 3.
सीधे और उल्टे फंदे बुनने की विधि बताइएं।
उत्तर-
सीधे फन्दे बुनना (सीधी बुनाई)-सीधी बुनाई के किनारे बहुत ही साफ़ व टिकाऊ बनते हैं। सीधा बुनने के लिए आवश्यकतानुसार फंदे डालो।
PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई 4
चित्र 7.1.4. सीधी बुनाई
पहली पंक्ति-फंदे वाली सलाई बाएँ हाथ में लो। दाहिनी सलाई पहले फंदे में । बाईं ओर से दाहिनी ओर डालो। इसकी नोंक पर ऊन का धागा चढ़ाओ और इसे उस फंदे में से निकाल लो। इस फंदे को दाहिनी ही सलाई पर रहने दो और बाईं सलाई के उस फंदे को जिसमें से इसको निकाला था, सलाई पर से नीचे गिरा लो। इसी प्रकार हर फंदे में से बुनते जाना चाहिए। जब बाईं सलाई से सब फंदे बुनकर दाहिनी सलाई पर आ जाएँ, तब खाली सलाई को दाहिने हाथ में बदलकर उसी प्रकार आगे की पंक्ति बुनी जाएगी, जैसे पहली पंक्ति में बुनी गई थी। पहली पंक्ति के बाद हर पंक्ति में पहला फंदा बिना बुना ही उतार लेने से बुनाई में किनारों पर सलाई आती है।
उल्टे फंदे बुनना (उल्टी बुनाई)-उल्टी बुनाई के लिए भी पहले अपनी आवश्यकतानुसार फंदे डाल लेने चाहिएं।
PSEB 7th Class Home Science Practical सादा बुनाई 5
चित्र 7.1.5. उल्टी बुनाई
पहली पंक्ति-ऊन सामने लाकर दाहिनी सलाई पहले फंदे में दाहिनी ओर से बाईं ओर को डालो। उस पर से ऊन एक बार लपेट कर फंदे में से निकाल लो। इसी प्रकार सब फंदों की बुनाई की जाएगी। पहली हर पंक्ति उल्टी ही बुनी जाए तो वैसा ही नमूना बनेगा जैसा कि हर पंक्ति को सीधी बुनाई से बुनने पर बनना है। सीधे ओर उल्टे फंदे मिलाकर बुनने से बहुत सुन्दर नमूने बन सकते हैं।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 21 शहरी विकास और स्थानीय सरकार

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 21 शहरी विकास और स्थानीय सरकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science Civics Chapter 21 शहरी विकास और स्थानीय सरकार

SST Guide for Class 6 PSEB शहरी विकास और स्थानीय सरकार Textbook Questions and Answers

बह-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शहरी स्थानीय सरकार की प्रारंभिक संस्था का क्या नाम है?
(क) नगर निगम
(ख) ग्राम पंचायत
(ग) नगर पंचायत।
उत्तर-
नगर पंचायत।

प्रश्न 2.
नगर निगम के मुखिया को क्या कहते हैं?
(क) प्रधान
(ख) मेयर
(ग) सरपंच।
उत्तर-
मेयर।

प्रश्न 3.
नगर निगम के कार्यकारी अधिकारी को क्या कहते हैं?
(क) अधीक्षक (सुपरिन्टेंडेंट)
(ख) उपनिदेशक (डिप्टी क्लेक्टर)
(ग) आयुक्त (कमिश्नर)।
उत्तर-
आयुक्त (कमिश्नर)।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 21 शहरी विकास और स्थानीय सरकार

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से पंजाब के किस शहर में नगर निगम नहीं है?
(क) अमृतसर
(ख) पटियाला
(ग) रोपड़
(घ) लुधियाना
(ङ) बठिण्डा
(च) जालंधर।
उत्तर-
रोपड़।

प्रश्न 5.
जिला प्रबंध के सर्वोच्च अधिकारी को क्या कहते हैं?
(क) डी०ई०ओ०
(ख) एस०एम०पी०
(ग) डी०पी०आर०ओ०
(घ) उप-आयुक्त (डिप्टी कमिश्नर)
उत्तर-
उप-आयुक्त (डिप्टी कमिश्नर)।

प्रश्न 6.
बड़े शहरों में अधिक भीड़ वाली सड़क की भीड़ कम कराने के लिए सड़क के ऊपर एक अन्य सड़क बनाई जाती है, उस सड़क को क्या कहते हैं?
(क) साइकिल-रिक्शा ट्रैक
(ख) बाईपास
(ग) भूमिगत मार्ग
(घ) फ़्लाई ओवर
(ङ) लिंक रोड।
उत्तर-
फ्लाई ओवर।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 21 शहरी विकास और स्थानीय सरकार

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
आज़ादी के बाद हुए शहरी विकास के बारे में संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
स्वतन्त्रता के बाद अनेक गांवों ने धीरे-धीरे कस्बों का रूप धारण कर लिया और फिर शहरों में बदल गए। शहरी विकास की यह प्रक्रिया आज भी जारी है। शहरी विकास में मुख्य रूप से मशीनी उद्योगों की भूमिका रही है। गांवों की जनसंख्या बढ़ने से माल की मांग बढ़ गई। इसकी पूर्ति के लिए हाथों का काम मशीनों से होने लगा। बड़े-बड़े कारखाने स्थापित किए गए जिनके आस-पास बड़े-बड़े शहर बस गए। आज गांवों से भी बड़ी संख्या में लोग रोज़गार की तलाश में शहरों में आ रहे हैं। फलस्वरूप शहरों और कस्बों का विस्तार हो रहा है।

प्रश्न 2.
शहरी स्थानीय सरकार की संस्थाएं कौन-कौन सी हैं?
उत्तर-
शहरी स्थानीय सरकार की तीन संस्थाएँ हैं –

  1. नगर पंचायत
  2. नगरपालिका
  3. नगर निगम।

प्रश्न 3.
शहर को जनसंख्या के आधार पर वार्डों में क्यों बांटा जाता है?
उत्तर-
शहर को शहरी स्थानीय शासन के चुनाव के लिए वार्डों में बांटा जाता है। प्रत्येक वार्ड से एक सदस्य चुना जाता है, जो अपने वार्ड के लिए विकास कार्य करता है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 21 शहरी विकास और स्थानीय सरकार

प्रश्न 4.
नगर-निगम और नगरपालिका का चुनाव लड़ने के लिए कितनी आयु होनी चाहिए?
उत्तर-
25 वर्ष या इससे अधिक।

प्रश्न 5.
कस्बे की स्थानीय सरकार को क्या कहा जाता है?
उत्तर-
कस्बे की स्थानीय सरकार को नगर पंचायत कहा जाता है।

प्रश्न 6.
नगर-निगम के चार सरकारी कर्मचारियों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. कमिश्नर
  2. स्वास्थ्य अधिकारी
  3. इंजीनियर
  4. सफ़ाई अधिकारी।

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प्रश्न 7.
शहरी स्थानीय सरकार की आय के कोई चार (मुख्य) साधन लिखो।
उत्तर-
शहरी स्थानीय सरकार की आय के मुख्य साधन निम्नलिखित हैं –
1. कर-यह कई प्रकार के कर लगा सकती है। इनमें चुंगी कर, न्याय-कर, मार्ग-कर, गृह-कर, व्यवसाय कर, मनोरंजन कर आदि प्रमुख हैं।

2. फीस और जुर्माने-यह पानी और बिजली की आपूर्ति पर फीस लगाती है। यह नगर में चलने वाले वाहनों-रिक्शाओं, ठेलों, तांगों आदि पर फीस (टैक्स) लगाती है। इसके अतिरिक्त यह अपने नियमों का उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना करती है।

3. सरकारी सहायता-नई योजनाएं लागू करने, सार्वजनिक स्वास्थ्य और चिकित्सा सम्बन्धी कार्यों के लिए सरकार इसकी सहायता करती है।

4. ऋण- यह आवश्यकतानुसार सरकार से ऋण ले सकती है। (कोई दो लिखें।)

प्रश्न 8.
जिला-प्रबन्ध का सर्वोच्च अधिकारी कौन होता है?
उत्तर-
ज़िला प्रबन्ध का सर्वोच्च अधिकारी डिप्टी कमिश्नर होता है। उसे उपआयुक्त भी कहते हैं। उसका चुनाव भारतीय प्रशासनिक सेवा (I.A.S.) द्वारा होता है।

प्रश्न 9.
शहरी स्थानीय सरकार के प्रति आपके क्या कर्त्तव्य हैं?
उत्तर-
शहरी स्थानीय सरकार के प्रति हमारे निम्नलिखित कर्त्तव्य हैं –

  1. हमें योग्य तथा ईमानदार सदस्यों का चुनाव करना चाहिए।
  2. हमें नगर को साफ-सुथरा रखना चाहिए।
  3. हमें सड़कों पर तथा गलियों में तोड़-फोड़ नहीं करनी चाहिए।
  4. हमें अपने कर ईमानदारी से चुकाने चाहिए, ताकि विकास कार्यों में बाधा न पड़े।

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प्रश्न 10.
नगरपालिका / नगर-निगम के कोई दो कार्य लिखो।
उत्तर-
नगरपालिका / नगर-निगम नगर के प्रबन्ध के लिए निम्नलिखित कार्य करती है –

  1. नगर में पानी, सफ़ाई तथा प्रकाश का प्रबन्ध करना।
  2. बीमारियों की रोकथाम के लिए टीके लगाना, मक्खियों, मच्छरों को नष्ट करना और खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट को रोकना।
  3. गलियां, सड़कें, पुल तथा नालियां बनवाना और उनकी मुरम्मत करवाना।
  4. अस्पताल, स्वास्थ्य केन्द्र, बाल-कल्याण केन्द्र, चिड़िया घर, पार्क आदि बनवाना।
  5. जन्म-मरण का रिकार्ड रखना। (कोई दो लिखें।)

प्रश्न 11.
शहरी स्थानीय सरकार के कोई दो आवश्यक कार्य लिखो।
उत्तर-
शहरी स्थानीय सरकार के दो आवश्यक कार्य निम्नलिखित हैं –

  1. नगर में बिजली, पानी, स्वास्थ्य केन्द्रों तथा सफ़ाई का प्रबंध करना।
  2. सड़कों तथा पुलों का निर्माण करना और उनकी देखभाल करना।

प्रश्न 12.
भूमिगत रास्ता, साइकिल ट्रैक और बाईपास सड़कें सड़क सुरक्षा के लिए कैसे उपयोगी हैं?
उत्तर-

  1. भूमिगत रास्ता, साइकिल ट्रैक तथा बाईपास हमें सुरक्षित रास्ता जुटाते हैं।
  2. इन मार्गों के कारण बड़े वाहनों के यातायात में बाधा नहीं पड़ती।

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प्रश्न 13.
क्या सड़क पर साइकिल चलाते समय हमें हैल्मेट पहनना चाहिए?
उत्तर-
हमारे देश में साइकिल चलाते समय हैल्मेट पहनना ज़रूरी नहीं है। फिर भी सुरक्षा की दृष्टि से हमें हैल्मेट अवश्य पहनना चाहिए। इससे साइकिल से नीचे गिरमे पर गम्भीर चोट अथवा मृत्यु से बचा जा सकता है।

II. निम्नलिखित खाली स्थान भरो

  1. नगर पंचायत ……….. में बनाई जाती है।
  2. शहरी स्थानीय सरकार के कार्यों की देखभाल …….. सरकार करती है।
  3. नगरपालिका या नगर-निगम के चुनाव के लिए कम-से-कम ……… आयु तथा वोट डालने के लिए……….. वर्ष की आयु होनी चाहिए।
  4. प्रत्येक जिले में …… और ……….. अदालतें होती हैं।
  5. गांव से शहर में परिवर्तित होते क्षेत्र को ……………. कहा जाता है।

उत्तर-

  1. कस्बे,
  2. राज्य,
  3. 25 वर्ष की, 18,
  4. दीवानी, फ़ौजदारी,
  5. कस्बा।

III. निम्नलिखित वाक्यों पर सही (✓) या ग़लत (✗) का निशान लगाओ

  1. कोई विदेशी नागरिक स्थानीय सरकार के चुनाव में वोट डाल सकता है।
  2. पंजाब में इस समय नौ नगरों में नगर-निगम हैं।
  3. पंजाब में नगर-निगम के प्रधान को मेयर कहा जाता है।
  4. स्थानीय सरकार के चुनाव के लिए वोटर की आयु 17 वर्ष होती है।
  5. उप-आयुक्त (डिप्टी कमिश्नर) जिले के प्रबन्ध का मुख्य सरकारी अधिकारी होता है।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✗)
  5. (✓)

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PSEB 6th Class Social Science Guide शहरी विकास और स्थानीय सरकार Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मान लीजिए आपकी आयु 13 वर्ष है। आपको कितने साल बाद स्थानीय . सरकार के चुनाव में वोट डालने का अधिकार मिल सकेगा?
उत्तर-
5 साल बाद, 18 वर्ष की आयु में।

प्रश्न 2.
नगर निगम का मुख्य कार्यकारी अधिकारी क्या कहलाता है?
उत्तर-
कमिश्नर।

प्रश्न 3.
रास्ते तथा भीड़ को कम करने के लिए एक शहर से दूसरे शहर तक पहुंचने के लिए प्रायः शहर के बाहर की ओर एक विशेष सड़क बना दी जाती है। ऐसी सड़क क्या कहलाती है?
उत्तर-
बाई-पास।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नगर-पंचायत का मुखिया कौन होता है?
उत्तर-
नगर-पंचायत का मुखिया नगर अध्यक्ष होता है।

प्रश्न 2.
नगरपालिका तथा नगर परिषद् किसे कहते हैं?
उत्तर-
शहरों की स्थानीय शासन संस्थाओं को नगरपालिका कहते हैं। यह शहरों की स्थानीय समस्याओं का समाधान करती है।

प्रश्न 3.
नगर-निगम से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
बड़े-बड़े नगरों की स्थानीय शासन संस्थाओं को नगर-निगम कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
नगर-पंचायत की स्थापना कहां की जाती है?
उत्तर-
नगर-पंचायत गांव से शहर में बदलते हुए कस्बे में स्थापित की जाती है। परन्तु यह आवश्यक है कि उस क्षेत्र की जनसंख्या 20,000 से कम हो।

प्रश्न 5.
जिला प्रशासन का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
जिला प्रशासन राज्य की बहुत ही महत्त्वपूर्ण इकाई है। पूरे राज्य की उन्नति जिले के कुशल प्रशासन पर ही निर्भर करती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नगरपालिकाओं को राज्य सरकार अनुदान क्यों देती है?
उत्तर-
नगरों की जनसंख्या अधिक होने के कारण नगरों की आवश्यकताएं अधिक होती हैं। इसलिए नगरपालिकाओं को अनेक कार्य करने पड़ते हैं। इसके लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है। परन्तु नगरपालिकाओं की आय के साधन सीमित होते हैं। इसलिए सरकार इन्हें अनुदान देती है। अनुदान का अर्थ है-आर्थिक सहायता देना।

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प्रश्न 2.
बड़े शहरों में पार्क और भूमिगत नालियाँ क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर-
बड़े शहरों में प्रदूषण की समस्या अधिक है। प्रदूषण कई प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है। पार्क लोगों और वातावरण को स्वच्छ रखते हैं। यहाँ आकर लोग खुली हवा में अपना मनोरंजन भी करते हैं। इसलिए बड़े शहरों में पार्कों का होना आवश्यक है। __ भूमिगत नालियां गंदे पानी की निकासी के लिए अति आवश्यक हैं। इनके बिना गंदा जल गलियों तथा सड़कों पर फैल जाएगा और वातावरण दूषित हो जाएगा।

प्रश्न 3.
नगरपरिषद् के किन्हीं पाँच कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
नगरपरिषद् के पाँच मुख्य कार्यों का वर्णन इस प्रकार है –

  1. सड़कों तथा पुलों का निर्माण करना।
  2. जन-स्वास्थ्य तथा सफ़ाई की व्यवस्था करना।
  3. अग्निशमक (आग बुझाना) सेवाओं का प्रबन्ध करना।
  4. नगर की सुख-सुविधा के लिए पार्क, उद्यान तथा खेल के मैदान का प्रबन्ध करना।
  5. पीने के लिए साफ पानी की व्यवस्था करना।

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प्रश्न 4.
नगर-निगम की आय के मुख्य साधन कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
नगर-निगम की आय के मुख्य साधन निम्नलिखित हैं –

  1. भूमि तथा भवनों पर कर
  2. पशुओं तथा वाहनों पर कर
  3. चुंगी कर
  4. व्यवसाय कर
  5. राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान।

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प्रश्न 5.
नगर पंचायत के सदस्यों का चुनाव कैसे और कितने वर्ष के लिए होता है?
उत्तर-
नगर पंचायत के सदस्यों का चुनाव वयस्क नागरिकों अर्थात् 18 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले व्यक्तियों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से होता है। इनका चुनाव पाँच वर्ष के लिए किया जाता है।

प्रश्न 6.
क्या नगरपालिका से नगर-निगम अधिक शक्तिशाली है? क्यों?
उत्तर-
नगर-निगम नगरपालिका से अधिक शक्तिशाली होती है। नगर-निगम की शक्तियां नगरपालिका की अपेक्षा अधिक होती हैं। नगर-निगम की जिम्मेवारी भी अधिक होती है। इसका कारण यह है कि बड़े तथा छोटे नगरों की जनसंख्या तथा नागरिकों को दी जाने वाली सुविधाओं में पर्याप्त अन्तर होता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जिलाधीश के प्रमुख कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
जिलाधीश के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –
1. शान्ति तथा कानून-व्यवस्था की स्थापना करना-ज़िलाधीश का प्रमुख कार्य जिले में शान्ति तथा कानून-व्यवस्था बनाए रखना है। इस कार्य में वह समस्त ज़िले की पुलिस की सहायता लेता है।

2. भूमि सम्बन्धी रिकार्डों की देखभाल और भूमि-कर की वसूली करना-हमारा देश कृषि प्रधान देश है। कृषि योग्य भूमि का वर्गीकरण, उसका नाप, उसमें पैदा होने वाली उपज और भूमि-कर की वसूली करना तथा उसका ब्योरा रखने का काम भी जिलाधीश द्वारा किया जाता है।

3. नागरिक सुविधाएँ और सेवाएं प्रदान करना-ज़िलाधीश जिले के लोगों को अनेक प्रकार की सुविधाएँ और सेवाएँ प्रदान करवाता है, ताकि उनका चहुँमुखी विकास हो सके। इन सुविधाओं में स्वास्थ्य, शिक्षा, यातायात का प्रबन्ध, सरकारी इमारतों और सड़कों की देखभाल आदि शामिल हैं।

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प्रश्न 2.
नगरपालिका की संरचना, कार्यों तथा आय के साधनों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
नगरपालिका की संरचना-नगरपालिका 20,000 से अधिक जनसंख्या वाले शहरों में बनाई जाती है। इसके सदस्य दो प्रकार के होते हैं –
1. निर्वाचित सदस्य-ये सदस्य प्रत्यक्ष रूप से वयस्क नागरिकों द्वारा निर्वाचित होते हैं। पंजाब में इनकी संख्या 9 से 29 तक हो सकती है।

2. पदेन सदस्य-नगर के निर्वाचित क्षेत्र से चुने गए लोक सभा, राज्य सभा अथवा राज्य विधान मण्डल के सदस्य नगरपालिका के पदेन सदस्य होते हैं।
कार्यकाल-नगरपालिका का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
कार्य-नगरपालिका नगर के प्रबन्ध के लिए निम्नलिखित कार्य करती है –

  1. नगर में पानी, सफ़ाई तथा प्रकाश का प्रबन्ध करना।
  2. बीमारियों की रोकथाम के लिए टीके लगाना, मक्खियों, मच्छरों को नष्ट करना और खाने-पीने की वस्तुओं में मिलावट को रोकना।
  3. गलियां, सड़कें, पुल तथा नालियां बनवाना और उनकी मुरम्मत करवाना।
  4. अस्पताल, स्वास्थ्य केन्द्र, बाल-कल्याण केन्द्र, चिड़िया घर, पार्क आदि बनवाना।
  5. जन्म तथा मृत्यु का रिकार्ड रखना।
  6. आग बुझाने के लिए फायर-ब्रिगेड का प्रबन्ध करना तथा बसें, ट्राम आदि चलाना।
  7. अपने क्षेत्र में स्कूलों तथा पुस्तकालयों की व्यवस्था करना।
  8. पशु मेले लगवाना और नगरवासियों की सुविधा के लिए बसें चलाना।

प्रश्न 3.
नगर-निगम की संरचना, कार्यों तथा आय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
नगर-निगम की संरचना, कार्यों तथा आय के साधनों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
संरचना-पंजाब में अमृतसर, जालन्धर, लुधियाना, पटियाला आदि दस नगरों में नगर-निगम की स्थापना की गई है। नगर-निगम के सदस्यों को पार्षद कहते हैं। इनका चुनाव नगर के वयस्क नागरिक करते हैं। नगर-निगम क्षेत्र से निर्वाचित लोक सभा, राज्य सभा तथा विधानसभा के सदस्य भी इसके सदस्य होते हैं। नगर-निगम के प्रधान को मेयर कहते हैं।

कार्य-नगर-निगम स्थानीय शासन की शेष सभी संस्थाओं से अधिक शक्तिशाली होती है। इसके कार्यों को दो भागों में बांटा गया है – अनिवार्य तथा ऐच्छिक कार्य।
अनिवार्य कार्य –

  1. स्वच्छ पानी का प्रबन्ध करना।
  2. सड़कों, पुलों तथा नालियों का निर्माण करना।
  3. नगर में सफाई का प्रबन्ध करना।
  4. फायर ब्रिगेड का प्रबन्ध करना।
  5. श्मशान भूमि का उचित प्रबन्ध करना।
  6. नगर-निगम की सम्पत्ति की देखभाल करना।

ऐच्छिक कार्य –

  1. अस्पताल बनवाना।
  2. संस्कृति तथा शिक्षा का विकास करना।
  3. पुस्तकालय, अजायबघर, कला भवन आदि बनवाना।

आय के साधन-नगर-निगम की आय के मुख्य साधन निम्नलिखित हैं –
1. कर-नगर-निगम नागरिकों पर कई प्रकार के कर लगाता है। इनमें पानी कर, सफ़ाई कर, मकान कर, मनोरंजन कर और चुंगी कर प्रमुख हैं।

2. फीस और जुर्माने-नगर-निगम को मकानों के नक्शे पास करने से प्राप्त फीस तथा तांगा, रिक्शा तथा ठेला आदि की लाइसेंस फीस से आय होती है। इसे नगर-निगम के नियमों का उल्लंघन करने वालों पर किए गए जुर्माने से भी पर्याप्त आय हो जाती है।

3. सरकारी अनुदान तथा अन्य साधन-नगर-निगम की अपनी सम्पत्ति होती है। इसके किराए से नगर-निगम को काफ़ी आय हो जाती है। इसके अतिरिक्त सरकार भी इसे आर्थिक सहायता देती है। इसे सरकारी अनुदान कहते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 11 मुग़ल साम्राज्य

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 11 मुग़ल साम्राज्य Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 11 मुग़ल साम्राज्य

SST Guide for Class 7 PSEB मुग़ल साम्राज्य Textbook Questions and Answers

(क) निम्न प्रश्नों के उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
दौलत खां लोधी तथा राणा सांगा ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण क्यों दिया था ?
उत्तर-
दिल्ली के अंतिम सुल्तान इब्राहिम लोधी ने पंजाब के सूबेदार दौलत खां लोधी के साथ बुरा व्यवहार किया था और उसके पुत्र का अपमान किया था। इस कारण दौलत खां लोधी और मेवाड़ का शासक राणा सांगा मिलकर लोधी राज्य का अन्त करना चाहते थे। इसलिए उन्होंने काबुल के शासक बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमन्त्रित किया।

प्रश्न 2.
बाबर की विजयों के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
बाबर मुग़ल साम्राज्य का प्रथम शासक था। वह दौलत खां लोधी और राणा सांगा के बुलाने पर मध्य एशिया से भारत आया था।
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बाबर की विजयें :

  1. 1526 ई० में बाबर ने इब्राहिम लोधी को पानीपत की प्रथम लड़ाई में पराजित करके दिल्ली और आगरा पर अधिकार कर लिया।
  2. बाबर द्वारा ऐसा करने पर राणा सांगा बाबर से नाराज़ हो गया। उसने बाबर के विरुद्ध एक विशाल सेना भेजी। बाबर ने राणा सांगा को 1527 ई० में कन्वाहा की लड़ाई में हरा दिया। इस प्रकार बाबर ने उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया।
  3. उसने घाघरा की लड़ाई में अफ़गानों को भी बुरी तरह से हराया।
    इन विजयों के कारण बाबर की भारत में स्थिति काफ़ी मज़बूत हो गई।

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प्रश्न 3.
मनसबदारी प्रणाली से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
‘मनसब’ शब्द का अर्थ पद है। मनसबदारी प्रणाली के अनुसार मुग़ल कर्मचारियों का पद, आय और दरबार में स्थान निश्चित किये जाते थे। मनसबदार देश के सिविल और सैनिक विभागों से सम्बन्ध रखते थे।

मुग़ल बादशाह मीर बख्शी की सिफ़ारिश पर मनसबदारों की योग्यता अनुसार नियुक्ति करता था। मनसबदार निचले पद से उच्च पद तक तरक्की पाता था। परन्तु बादशाह ठीक काम न करने वाले मनसबदार का पद कम भी कर सकता था या उसे पद से हटा सकता था।

अकबर के राज्यकाल में मनसबदारों की 33 श्रेणियां थीं। सबसे छोटे मनसबदार के अधीन 10 सिपाही और सबसे बड़े मनसबदार के अधीन 10,000 सिपाही होते थे।

बादशाह मनसबदारों को किसी भी काम पर लगा सकता था। उनको शासन प्रबन्ध के किसी भी विभाग में या दरबार में उपस्थित रहने के लिए कहा जा सकता था।

मनसबदारों को वेतन उनकी श्रेणी के पद के अनुसार दिया जाता था। वेतन में वृद्धि या कटौती भी की जा सकती थी।

प्रश्न 4.
अकबर की विजयों का वर्णन करो।
उत्तर-
अकबर ने राजगद्दी पर बैठने के शीघ्र बाद दिल्ली और आगरा पर पुनः अधिकार करने का निर्णय लिया। बैरम खां के नेतृत्व में मुग़ल सेना ने दिल्ली की ओर कूच किया। 1556 ई० में उनका अफ़गान सेनापति हेमू के साथ – पानीपत के मैदान में मुकाबला हुआ। अकबर इस लड़ाई में जीत गया और हेमू की मौत हो गई। परिणामस्वरूप अकबर ने दिल्ली और आगरा पर पुनः अधिकार कर लिया।

1560 ई० में अकबर ने बैरम खां को हटाकर शासन की बागडोर स्वयं सम्भाल ली। इसके बाद अकबर की मुख्य विजयों का वर्णन इस प्रकार है :–
(क) उत्तरी भारत की विजय-अकबर ने आरम्भ में अफ़गानिस्तान में स्थित काबुल, कन्धार के क्षेत्र तथा पंजाब से दिल्ली तक का मैदानी प्रदेश जीता। ये विजयें उसने बैरम खां के अधीन प्राप्त की थीं। उसने 1560 ई० में शासन प्रबन्ध अपने हाथों में ले लिया और निम्नलिखित विजयें प्राप्त की –
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  1. राजपूताना की विजय-1562 ई० में अकबर ने राजपूताना पर आक्रमण कर दिया। अम्बर के राजा बिहारी मल ने शीघ्र ही अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली तथा अपनी बेटी का विवाह भी अकबर से कर दिया। इसके अतिरिक्त कई अन्य राजपूत शासकों ने भी अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली, जैसे-कालिंजर, मारवाड़, जैसलमेर, बीकानेर आदि।
  2. मेवाड़ का संघर्ष- मेवाड़ का शासक महाराणा प्रताप अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं करना चाहता था। 1569 ई० में अकबर ने मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया। फिर भी महाराणा प्रताप ने उसकी अधीनता स्वीकार नहीं की। वह अन्त तक मुग़लों से संघर्ष करता रहा।
  3. गुजरात पर विजय-1572-73 ई० में अकबर ने गुजरात पर विजय प्राप्त कर ली।
  4. बिहार-बंगाल की विजय-1574-76 ई० में अकबर ने अफ़गानों को पराजित करके बिहार तथा बंगाल पर भी विजय प्राप्त कर ली।
  5. अन्य विजयें-अकबर ने धीरे-धीरे कश्मीर, सिन्ध, उड़ीसा, बलोचिस्तान तथा कन्धार को भी विजय कर लिया।

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(ख) दक्षिणी भारत की विजयें-उत्तरी भारत में अपनी शक्ति संगठित करके अकबर ने दक्षिणी भारत की ओर ध्यान दिया। फिर दक्षिण में उसने निम्नलिखित विजयें प्राप्त की –

  1. बीजापुर तथा गोलकुण्डा की विजय-1591 ई० में अकबर ने बीजापुर तथा गोलकुण्डा पर विजय प्राप्त कर ली।
  2. खानदेश पर विजय-1601 ई० में खानदेश के सुल्तान अली खाँ ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
  3. अहमद नगर पर अधिकार-1601 ई० में अकबर की सेनाओं ने अहमद नगर की संरक्षिका चाँद बीबी को पराजित कर दिया तथा अहमद नगर पर अधिकार कर लिया।
  4.  बरार पर अधिकार-अकबर ने दक्षिणी भारत के बरार प्रदेश पर भी अधिकार कर लिया।

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प्रश्न 5.
मुग़लों की भूमि लगान प्रणाली से क्या भाव है?
उत्तर-
भूमि का लगान मुग़ल साम्राज्य की आय का मुख्य स्रोत था। अकबर ने लगान मंत्री राजा टोडर मल की सहायता से लगान विभाग में बहुत सुधार किये। इन सुधारों के मुख्य पक्ष निम्नलिखित थे : –
1. भूमि का माप- भूमि का बीघों में माप किया गया।
2. भूमि की दर्जा बन्दी-अकबर ने सारी भूमि को आगे लिखे चार भागों में बांटा :–
(क) पोलज़ भूमि-यह बहुत ही उपजाऊ भूमि थी। इसमें किसी भी समय कोई भी फसल बोई जा सकती थी।
(ख) परौती भूमि-इस भूमि में एक या दो सालों बाद फसल बोई जाती थी।
(ग) छच्छर भूमि-इस भूमि में तीन या चार साल बाद फसल बोई जाती थी।
(घ) बंजर भूमि-इस भूमि में पांच या छः सालों बाद फसल बोई जाती थी।

3. भूमि-कर-पोलज़ और परौती प्रकार की भूमि से सरकार उपज का 1/3 भाग लगान के रूप में लेती थी। छच्छर और बंजर भूमि से उपज का बहुत कम भाग लगान के रूप में लिया जाता था। भूमि कर की मुख्य प्रणालियां निम्नलिखित थीं –

(क) कनकूत प्रणाली-कनकूत प्रणाली के अनुसार सरकार खड़ी फसल का अनुमान लगाकर लगान निश्चित कर देती थी।

(ख) बटाई प्रणाली-इस प्रणाली के अनुसार जब फसल काट ली जाती थी, तो उसे तीन भागों में बांट दिया जाता था। एक भाग सरकार लगान के रूप में ले लेती थी और शेष दो भाग किसानों को मिल जाते थे।

(ग) नसक प्रणाली-इस प्रणाली के अनुसार सारे गांव की फसल का इकट्ठा अनुमान लगाकर लगान निश्चित किया जाता था।
मुग़ल सरकार ने किसानों को अधिक-से-अधिक भूमि को कृषि-योग्य बनाने के लिए कर्जे दिये। सूखा पड़ने पर या उपज नष्ट हो जाने की स्थिति में उनका लगान माफ कर दिया जाता था।

(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थान की पूर्ति करो

  1. तुज़क-ए-बाबरी …………………….. की आत्म जीवनी है।
  2. कन्वाहा की लड़ाई बाबर तथा ……………………… के बीच लड़ी गई थी।
  3. अकबर ने हेमू को …. …… में पराजित किया था।
  4. बाबर ने ……………………. लिखा था।
  5. 5. अबुल फ़ज़ल ने ………… …. लिखा था।

उत्तर-

  1. बाबर
  2. राणा सांगा
  3. 1556 ई० में पानीपत के मैदान
  4. बाबरनामा (तुज़क-ए-बाबरी)
  5. अकबरनामा।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 11 मुग़ल साम्राज्य

(ग) निम्नलिखित प्रत्येक कथन के आगे ठीक (✓) अथवा गलत (✗) का चिह्न लगाएं

  1. मुग़ल भारत में 1525 ई० में आये।
  2. दौलत खां लोधी तथा राणा सांगा ने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए निमन्त्रण दिया।
  3. शेरशाह सूरी एक मुग़ल शासक था।
  4. औरंगजेब के शासनकाल में राजपूतों से अच्छा व्यवहार किया गया।
  5. औरंगज़ेब की दक्षिण नीति ने मुग़ल साम्राज्य को मज़बूत किया।
    उत्तर-1. (✓), 2. (✓), 3. (✗), 4. (✗), 5. (✗)

PSEB 7th Class Social Science Guide मुग़ल साम्राज्य Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पानीपत की पहली लड़ाई कब और किस-किस के बीच हुई ? इसमें किसकी पराजय हुई ?
उत्तर-
पानीपत की पहली लड़ाई 1526 ई० में बाबर तथा इब्राहिम लोधी के बीच हुई। इसमें इब्राहिम लोधी की पराजय हुई।

प्रश्न 2.
बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक स्थिति का वर्णन करो।
उत्तर-
बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक दशा बड़ी शोचनीय थी। देश छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। ये राज्य सदा एक-दूसरे से ही लड़ते-झगड़ते रहते थे। देश में कोई केन्द्रीय सत्ता नहीं थी।

  1. दिल्ली सल्तनत का वैभव समाप्त हो चुका था। इसका विस्तार अब दिल्ली के आस-पास के प्रदेशों तक ही सीमित था।
  2. मेवाड़ में राणा सांगा काफ़ी शक्तिशाली हो रहा था।
  3. पंजाब में दौलत खां लोधी दिल्ली के सुल्तान से बदला लेने की सोच रहा था।
  4. बंगाल तथा बिहार के शासक भी कम शक्तिशाली नहीं थे।
  5. दक्षिण भारत में भी कई राज्य थे। इनमें से विजय नगर राज्य प्रमुख था। बहमनी राज्य कई भागों में बंट चुका था।

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प्रश्न 3.
हुमायूं को कब और किसने भारत से बाहर निकाला ? उसने पुनः अपना राज्य कब प्राप्त किया ?
उत्तर-
हुमायूं को 1540 ई० में शेरशाह सूरी ने भारत से निकाला। परन्तु 1555 ई० में हुमायूं ने शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी सिकन्दर सूरी को हराकर पुनः दिल्ली पर अधिकार कर लिया। 1556 ई० में हुमायूं की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 4.
शेरशाह सूरी ( 1540-1545 ई०) कौन था ? उसने भारत का शासन किस प्रकार प्राप्त किया ?
उत्तर-
शेरशाह सूरी बिहार के जागीरदार हुसैन खां का पुत्र था। उसका असली नाम फरीद खां था। परन्तु एक शेर को मार देने पर उसे शेर खां की उपाधि दी गई। वह बिहार में अफ़गान सरदारों का नेता बन गया और जल्दी ही बिहार का शासक बन गया। उसने मुग़ल सम्राट् हुमायूं को चौसा और कन्नौज में हराया। 1540 ई० में उसने दिल्ली पर अधिकार कर लिया। उसने 1540 ई० से 1545 ई० तक शासन किया। 1545 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 5.
शेरशाह सूरी के शासन-प्रबन्ध की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. शेरशाह सूरी ने अपने राज्य को 66 सरकारों में बांटा हुआ था। सरकारों को आगे परगनों में बांटा गया था। सरकारों के समान परगनों के भी दो प्रमुख अधिकारी होते थे।
  2. शेरशाह सूरी ने वाणिज्य-व्यापार के विकास के लिए हर ढंग अपनाया। उसने रूपा (रुपया) नाम के चांदी के सिक्के चलाए।
  3. शेरशाह सूरी ने देश में बहुत-सी महत्त्वपूर्ण सड़कें बनवाईं। उनमें से शेरशाह सूरी मार्ग (जी० टी० रोड) अति महत्त्वपूर्ण थी। सड़कों के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगाए गए। यात्रियों के लिए आराम घर बनाए गये।
  4. वह निर्धनों, विधवाओं, शिक्षण संस्थाओं और विद्वानों को दान देता था।

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प्रश्न 6.
अकबर को राजगद्दी पर कब और किसने बिठाया ?
उत्तर-
अकबर को 1556 ई० में बैरम खां ने राजगद्दी पर बिठाया।

प्रश्न 7.
बैरम खां कौन था ? अकबर ने उसे पद से कब हटाया ?
उत्तर-
बैरम खां अकबर का संरक्षक था। अकबर ने उसे 1560 ई० में पद से हटाया।

प्रश्न 8.
व्याख्या करो कि अकबरनामा तथा आईने-अकबरी इतिहास रचने में किस प्रकार सहायक हैं ?
उत्तर-
अकबरनामा और आइन-ए-अकबरी अबुल फ़ज़ल द्वारा लिखी गई दो प्रसिद्ध रचनाएं हैं। इनसे हमें अकबर के दरबार, विजयों, शासन-प्रबन्ध, सामाजिक-आर्थिक-धार्मिक नीति, कला और भवन निर्माण के क्षेत्रों में हुए विकास के बारे में जानकारी मिलती है।

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प्रश्न 9.
अकबर की राजपूत नीति की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
अकबर राजपूतों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध बनाना चाहता था। अतः उसने राजपूत राजकुमारियों से विवाह किये। इन वैवाहिक सम्बन्धों ने उसकी स्थिति को मज़बूत बनाया। उसने अपने शासन में राजपूतों को उच्च पद दिये। कई राजपूत उसके महत्त्वपूर्ण और विश्वस्त अधिकारी थे, जैसे राजा मान सिंह। परन्तु वह उन राजपूतों के विरुद्ध लड़ा भी, जिन्होंने उसका विरोध किया, जैसे मेवाड़ के राणा प्रताप सिंह।

प्रश्न 10.
निम्न पर नोट लिखिए –
(i) हुमायूं
(ii) जहांगीर
(iii) शाहजहां।
उत्तर-
(i) हुमायूं-हुमायूं बाबर का सबसे बड़ा पुत्र था। वह अपने पिता की मृत्यु के बाद 1530 ई० में राजगद्दी पर बैठा। उसे अपने जीवन काल में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसका सबसे कड़ा संघर्ष अफ़गान नेता शेरशाह सूरी से हुआ। वह 1540 ई० में चौसा तथा कन्नौज के युद्धों में शेरशाह के हाथों पराजित हुआ। फलस्वरूप उसे भारत छोड़ना पड़ा। उसने लगभग 15 साल फ़ारस में व्यतीत किये। 1555 ई० में वह अपनी राजगद्दी पुनः प्राप्त करने में सफल रहा। परन्तु अगले ही वर्ष उसकी मृत्यु हो गई।

(ii) जहांगीर-जहांगीर अकबर का पुत्र था। अकबर की मृत्यु के पश्चात् वह 1605 ई० में राजगद्दी पर बैठा। उसने महाराणा प्रताप के पुत्र राणा अमर सिंह के विरुद्ध एक सैनिक अभियान भेजा। परन्तु बाद में बहुत ही उदार शर्तों पर उसने उसके साथ सन्धि कर ली। इस प्रकार मुग़लों और मेवाड़ के बीच चले आ रहे लम्बे संघर्ष का अन्त हो गया।
उसके शासनकाल की अन्य मुख्य घटनाएं निम्नलिखित हैं –

  1. राजगद्दी पर बैठते ही जहांगीर को अपने पुत्र खुसरो के विद्रोह का सामना करना पड़ा। जहांगीर ने इस विद्रोह का दमन कर दिया।
  2. जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव जी को एक झूठे आरोप में मृत्यु दण्ड दिया। उन्हें पांच दिन तक यातना देकर 1606 ई० में शहीद करवा दिया गया।
  3. जहांगीर के शासनकाल की एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटना नूरजहां से उसका विवाह था, नूरजहां को उसने ‘नूर महल’ (महल का प्रकाश) की उपाधि दी। .
  4. जहांगीर के दरबार में इंग्लैण्ड के दो राजदूत कैप्टन हॉकिन्स तथा सर टॉमस रो आए। ये दूत भारत में व्यापारिक सुविधाएं प्राप्त करने के उद्देश्य से आये थे।

(iii) शाहजहां-शाहजहां मुग़ल सम्राट जहांगीर का पुत्र था। उसका वास्तविक नाम खुर्रम था। वह 1628 ई० में जहांगीर की मृत्यु के बाद राजगद्दी पर बैठा। उसने लगभग 31 वर्ष तक शासन किया। उसके शासन काल की कुछ मुख्य घटनाएं अग्रलिखित हैं –

  1. शाहजहां के गद्दी पर बैठते ही पहाड़ी प्रदेश के बुन्देलों ने विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को कुचलने के लिए शाहजहां ने एक विशाल सेना भेजी और जुझार सिंह को मुग़लों के साथ सन्धि करने पर विवश कर दिया।
  2. 1628 ई० में शाहजहां ने नौरोज का मेला मनाया। इस अवसर पर मुग़ल सम्राट ने एक विशाल भोज का आयोजन किया।
  3. अपनी पत्नी मुमताज महल से शाहजहां को बहुत प्रेम था। 7 जून, 1631 ई० को उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई। शाहजहां को उसकी मृत्यु से भारी दुःख पहुंचा।
    शाहजहां का शासनकाल ताजमहल, मयूर सिंहासन तथा कोहिनूर हीरे के लिए याद किया जाता है।

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प्रश्न 11.
अकबर अथवा मुगलों के केन्द्रीय शासन-प्रबन्ध के बारे में लिखो।
उत्तर-
अकबर अथवा मुग़लों के केन्द्रीय शासन-प्रबन्ध का वर्णन इस प्रकार है :–

  1. राजा-राजा शासन प्रबन्ध का प्रमुख था। उसकी सहायता के लिए अनेक मन्त्री होते थे। उनमें प्रमुख मन्त्री वकील, दीवान-ए-आला, मीर बख्शी, सदर-उस-सदूर, काज़ी-उल-कज़ात और मीर समन थे।
  2. वकील-वह राज्य का प्रधानमन्त्री था। वह बादशाह को देश में होने वाली सभी घटनाओं की जानकारी देता था और बादशाह के आदेशों का पालन कराता था।
  3. दीवान-ए-आला-वह वित्त मन्त्री होता था। वह राज्य के आय-व्यय का हिसाब रखता था। वह कर संग्रह सम्बन्धी नियम भी बनाता था।
  4. मीर-बख्शी-मीर बख्शी मनसबदारों का रिकार्ड रखता था। वह उनको वेतन बांटता था और सैनिक संस्थाओं की देखभाल करता था।
  5. सदर-उस-सदूर-वह धार्मिक विभाग का प्रमुख था। वह पीरों-फकीरों, सन्तों-महात्माओं और. शिक्षणसंस्थाओं का हिसाब रखता था।
  6. काज़ी-उल-कज़ात-वह इस्लामी कानूनों के अनुसार न्याय बारे बादशाह को सलाह देता था।
  7. खान-ए-सामा-वह शाही परिवार और कारखानों की देखभाल करता था।

प्रश्न 12.
अकबर अथवा मुग़लों के प्रान्तीय शासन प्रबन्ध का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
अकबर ने अपने प्रशासन को ठीक ढंग से चलाने के लिए साम्राज्य को 15 प्रान्तों या सूबों में बांटा हुआ था। प्रान्तों के मुख्य अधिकारी निम्नलिखित थे :–

  1. सूबेदार-सूबेदार प्रान्त का सबसे बड़ा अधिकारी था। उसका प्रमुख कार्य प्रान्त में शान्ति स्थापित करना और कानून व्यवस्था बनाये रखना था।
  2. दीवान-वह प्रान्त के वित्त विभाग का प्रमुख था। वह प्रान्त के आय व्यय का हिसाब रखता था।
  3. बख्शी-वह प्रान्त के सैनिक प्रबन्ध की देखभाल करता था। वह घोड़ों को दागने का प्रबन्ध भी करता था।
  4. सदर-वह प्रान्त के सन्तों, महात्माओं और पीरों-फ़कीरों का ब्योरा तैयार करता था।
  5. वाक्या नवीस-वह जासूसी विभाग का प्रमुख था। वह प्रान्त में होने वाली घटनाओं का ब्योरा रखता था।
  6. कोतवाल-वह पुलिस अधिकारी था। उसका मुख्य कार्य शहर में शान्ति स्थापित करना और शहर की पहरेदारी करना था।

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प्रश्न 13.
अकबर अथवा मुग़लों के स्थानीय प्रबन्ध पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
अकबर ने मुग़ल साम्राज्य के स्थानीय प्रबन्ध को सुचारू रूप से चलाने के लिए प्रान्तों को सरकारों या ज़िलों, परगनों और ग्रामों में बांटा हुआ था –
(I) सरकार का प्रबन्ध –
1. फ़ौजदार-फ़ौजदार सरकार या ज़िलों का मुख्य प्रबन्धक था। उसका मुख्य कार्य सरकार या जिले में शान्ति स्थापित करना था। वह बादशाह के आदेशों का पालन भी करवाता था।
2. आमिल-गुजार-उसका मुख्य कार्य कर इकट्ठा करना था।
3. बितिक्ची और खजांची-ये दोनों अधिकारी आमिल गुज़ार की सहायता करते थे।

(II) परगने का प्रबन्ध –
1. शिकदार-उसका मुख्य कार्य परगने में शान्ति स्थापित करना था।
2. आमिल-वह भूमि का लगान इकट्ठा करता था।
3. पोतदार और कानूनगो-ये दोनों अधिकारी आमिल की सहायता करते थे।

(III) ग्रामों का प्रबन्ध-ग्रामों का प्रबन्ध पंचायतों द्वारा किया जाता था। वे ग्रामों का विकास करती थीं और गांव में आम झगड़ों का निपटारा करती थीं। उनकी सहायता के लिए चौधरी, मुकद्दम और पटवारी होते थे।

प्रश्न 14.
शाहजहां तथा जहांगीर के राज्य का वर्णन करो।
उत्तर-
I. शाहजहां ( 1628-1657 ई०)
शाहजहां 1628 ई० में अपने पिता जहांगीर की मृत्यु के बाद राजसिंहासन पर बैठा।
1. उसे बुन्देलखण्ड में और दक्षिण में बहुत से विद्रोहों का सामना करना पड़ा। 1628 ई० में बुन्देलखण्ड के शासक राजा ार सिंह ने शाहजहां के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। परन्तु वह हार गया। उसने 1635 ई० में पुनः विद्रोह कर दिया और मुग़लों के हाथों मारा गया।

2. 1633 ई० में शाहजहां ने दक्षिण पर आक्रमण कर दिया और अहमद नगर को मुग़ल साम्राज्य में मिला लिया। बीजापुर और गोलकुण्डा के स्वतन्त्र राज्यों ने भी मुग़लों की अधीनता स्वीकार कर ली।

3. शाहजहां ने अपने पुत्र औरंगज़ेब को दक्षिणी भारत का वायसराय नियुक्त किया परन्तु औरंगज़ेब बीजापुर और गोलकुण्डा राज्यों को अपने साम्राज्य में मिलाने में असफल रहा।

4. शाहजहां ने दक्षिण में अपनी स्थिति मज़बूत करने के बाद मध्य एशिया में बलख़ और बदख़शां पर अधिकार करने के लिए अपनी सेना भेजी, परन्तु वह सफल न हो सका।

5. वह ईरानियों से कन्धार छीनने में भी सफल न हो सका।

6. शाहजहां पुर्तगालियों से भी बहुत दुःखी था, क्योंकि उन्होंने हुगली में अपनी बस्ती स्थापित कर ली थी। वे इसका प्रयोग बंगाल की खाड़ी में समुद्री डकैती करने के लिए करते थे। अतः मुग़ल सेना ने उन्हें हुगली से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद सेना उत्तर-पूर्व दिशा में बढ़ी और उसने कामरूप के क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया।

7. शाहजहां ने आगरा में ताजमहल बनवाया। उसने शाहजहांनाबाद नामक एक नया शहर भी स्थापित किया और उसे अपनी राजधानी बनाया। 1657 ई० में शाहजहां बीमार पड़ गया और उसके पुत्रों में राजगद्दी के लिए संघर्ष आरम्भ हो गया। औरंगज़ेब ने शाहजहां को आगरे के किले में कैद कर लिया और स्वयं बादशाह बन बैठा।

II. जहांगीर (1605-1627 ई०)
जहांगीर अकबर का पुत्र था। वह 1605 ई० में अकबर की मृत्यु के बाद मुग़ल सिंहासन पर बैठा।
1. जहांगीर ने मुग़ल साम्राज्य को शक्तिशाली बनाने के लिए सबसे पहले अपने पुत्र खुसरो के विद्रोह का दमन किया। इसके बाद उसने बंगाल और अवध को अपने अधिकार में लिया।

2. 1614 ई० में उसने मेवाड़ के शासक राणा अमर सिंह को हराया। परन्तु उसने राणा अमर सिंह को इस शर्त पर अपने क्षेत्रों पर राज्य करने का अधिकार दिया कि वह मुग़ल बादशाह के प्रति वफादार रहेगा।

3. 1620 ई० में जहांगीर ने कांगड़ा पर अधिकार कर लिया। .

4. जहांगीर ने दक्षिण भारत में मुग़लों के प्रभाव का विस्तार करने के लिए अहमदनगर के किले को जीत लिया। परन्तु अहमदनगर के सेनापति मलिक अम्बर ने मुग़लों का जबरदस्त विरोध किया। । ।

5. अफ़गानिस्तान में ईरानियों ने कन्धार का प्रदेश जहांगीर से छीन लिया। इससे मुग़ल साम्राज्य को बहुत क्षति पहंची, क्योंकि पश्चिमी एशिया से भारत के व्यापार के लिए कन्धार शहर बहुत महत्त्वपूर्ण था।

6. जहांगीर के शासनकाल में कई यूरोपीय भी भारत आये।

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प्रश्न 15.
नूरजहां पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
नूरजहां मुग़ल सम्राट जहांगीर की पत्नी थी। जहांगीर ने 1611 ई० में उससे विवाह किया। वह बहुत ही सुन्दर और बुद्धिमती महिला थी। वह बड़ी महत्त्वाकांक्षी थी और राज्य के शासन-प्रबन्ध में बहुत रुचि लेती थी। जहांगीर महत्त्वपूर्ण राज्य कार्यों में उसकी सलाह लेता था। एक बार जहांगीर लम्बे समय के लिए बीमार हो गया, तो राज्य का शासन प्रबन्ध नूरजहां ने ही चलाया था। उसके नाम से शाही आदेश जारी किये गए। यहां तक कि जहांगीर और नूरजहां के नाम के साझे सिक्के भी चलाए गए।

प्रश्न 16.
औरंगजेब ( 1658-1707 ई०) का राज्यकाल संकटों से भरा था। उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
औरंगज़ेब मुग़ल साम्राज्य का अन्तिम प्रसिद्ध शासक था। उसने 1658 ई० से 1707 ई० तक शासन किया। उसके साम्राज्य में लगभग सारा भारत सम्मिलित था। परन्तु उसका राज्यकाल संकटों से भरा हुआ था।

  1. 1669 ई० में मथुरा के जाटों ने औरंगज़ेब के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। उसने विद्रोह को तो कुचल दिया, परन्तु । जाटों ने मुग़लों के विरुद्ध लड़ाई जारी रखी।
  2. नारनौल और मेवाड़ में सतनामी हिन्दू साधुओं का एक सम्प्रदाय रहता था। मुग़ल अत्याचारों ने सतनामियों को मुग़लों के विरुद्ध विद्रोह करने के लिए विवश कर दिया। परन्तु मुग़लों ने उनके विद्रोह को कुचल दिया।
  3. औरंगजेब की कठोर भूमि-सुधार नीति के कारण बुन्देलों ने बुन्देलखण्ड में विद्रोह कर दिया। औरंगज़ेब ने इस विद्रोह को भी कुचल दिया।
  4. औरंगजेब के विरुद्ध राजपूतों, मराठों और सिखों ने शक्तिशाली विद्रोह किये, जिन्हें कुचलने में बहुत समय लगा।

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प्रश्न 17.
औरंगजेब के शासनकाल तथा बाद में मुग़लों के विरुद्ध सिखों के संघर्ष का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
गुरु तेग बहादुर जी का संघर्ष- श्री गुरु हरि कृष्ण जी के बाद श्री गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नवम् गुरु बने। उन्होंने औरंगजेब की हिन्दू-विरोधी नीति का विरोध किया। इस कारण औरंगज़ेब गुरु जी के साथ नाराज़ हो गया। गुरु जी ने औरंगजेब द्वारा गुरुद्वारों के विनाश करने और उनके लिए दसवंध और भेटें एकत्रित करने वाले श्रद्धालुओं को शहरों से बाहर निकालने का विरोध किया। गुरु जी को दिल्ली लाया गया और मुसलमान बन जाने के लिए कहा गया। उन्होंने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। इस कारण उन्हें बहुत कष्ट दिये गए और 1675 ई० में उन्हें दिल्ली के चांदनी चौक में शहीद करवा दिया गया।

श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का संघर्ष- श्री गुरु तेग बहादुर जी के बाद उनके पुत्र गुरु गोबिन्द सिंह जी सिखों के दसवें गुरु बने। उन्होंने भी मुग़ल अत्याचारों के विरुद्ध अपना संघर्ष जारी रखा। 1699 ई० में श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने ‘खालसा’ की स्थापना की। इस कारण सिखों और मुग़लों में युद्ध आरम्भ हो गया। इस भयानक युद्ध में गुरु जी के दो पुत्र साहिबज़ादा अजीत सिंह और साहिबज़ादा जुझार सिंह जी शहीद हो गए। गुरु साहिब के अन्य दो पुत्र साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह जी को अत्याचारियों ने जीवित ही सरहिन्द में दीवार में चिनवा दिया।

औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद सिखों का संघर्ष-1707 ई० में औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी बहादुर शाह ने सिखों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित किये। परन्तु सरहिन्द के फ़ौजदार वज़ीर खां के कहने पर एक पठान ने गुरु जी के पेट में छुरा घोंप दिया, जिस कारण 1708 ई० में गुरु जी ज्योति जोत समा गए। गुरु साहिब के बाद बन्दा बहादुर ने मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष जारी रखा।

प्रश्न 18.
औरंगजेब की दक्कन नीति पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
औरंगज़ेब ने अपने जीवन के लगभग 25 साल दक्षिण में व्यतीत किए। वह सुन्नी मुसलमान था। इस कारण वह दक्षिण के बीजापुर और गोलकुण्डा के स्वतन्त्र शिया राज्यों को कुचलना चाहता था। ये राज्य मुग़लों के विरुद्ध मराठों को सहयोग देते थे। वह दक्षिण में मराठों की शक्ति का भी दमन करना चाहता था।

1686 ई० में औरंगज़ेब ने बीजापुर और 1687 ई० में गोलकुण्डा पर अधिकार कर लिया। इस समय तक भले ही शिवा जी की मृत्यु हो चुकी थी, तो भी मराठों ने मुग़लों के विरोध में अपना संघर्ष जारी रखा। औरंगजेब मराठों का दमन करने में असफल रहा। 1707 ई० में उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 19.
औरंगज़ेब के उत्तराधिकारियों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
अथवा
मुग़ल साम्राज्य का पतन किस प्रकार हुआ ?
उत्तर-
औरंगज़ेब के उत्तराधिकारी शासन प्रबन्ध चलाने के लिए अयोग्य और शक्तिहीन थे। परिणामस्वरूप 1739 ई० में ईरान के शासक नादिर शाह ने भारत पर आक्रमण कर दिया। यह आक्रमण मुग़लों के लिए बहुत घातक सिद्ध हुआ। इसके बाद अफ़गानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली ने भी भारत पर आक्रमण किया। इन आक्रमणों से मुग़ल साम्राज्य का पतन हो गया।

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प्रश्न 20.
भारत में यूरोपीयों के आगमन के बारे में लिखो।
उत्तर-
जहांगीर के राज्यकाल में बहुत से यूरोपीय व्यापारी भारत में आए। उनमें से विलियम हॉकिन्ज़ और सर टॉमस रो प्रमुख थे। विलियम हॉकिन्ज़ भारत में तीन साल (1608-1611 ई०) तक रहा। 1612 ई० में ब्रिटिश सरकार ने भारत में सूरत में एक फैक्टरी लगाई।

सर टॉमस रो इंग्लैण्ड के राजा का राजदूत था। वह 1615 ई० में जहांगीर के दरबार में आया। वह ब्रिटिश व्यापारियों के लिए भारत से व्यापार करने सम्बन्धी सुविधाएं प्राप्त करने में सफल रहा।

(क) सही जोड़े बनाइए :

  1. सिक्खों के नौवें गुरु – श्री गुरु गोबिंद सिंह जी
  2. खालसा पंथ की स्थापना – बंदा बहादुर
  3. मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष – श्री गुरु तेग़ बहादुर जी
  4. आगरा के किले में कैद – शाहजहां

उत्तर-

  1. सिक्खों के नौवें गुरु – श्री गुरु तेग़ बहादुर जी
  2. खालसा पंथ की स्थापना – श्री गुरु गोबिंद सिंह जी
  3. मुग़लों के विरुद्ध संघर्ष – बंदा बहादुर
  4. आगरा के किले में कैद – शाहजहां।

(ख) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
मुग़ल साम्राज्य के प्रथम शासक ने कनवाहा की लड़ाई में राणा सांगा को हराया था? यह लड़ाई कब हुई थी?
(i) 1527 ई०
(ii) 1529 ई०
(iii) 1556 ई।
उत्तर-
(i) 1527 ई०।

प्रश्न 2.
राजा मानसिंह किस मुग़ल शासक का वफ़ादार अधिकारी था?
(i) बाबर
(ii) हुमायूं
(iii) अकबर।
उत्तर-
(iii) अकबर।

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प्रश्न 3.
चित्र में दिखाए गए मुग़ल शासक को उसके पुत्र ने आगरे के किले में कैद कर दिया था। उसके पुत्र का क्या नाम था?
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(i) शाहजहां
(ii) औरंगजेब
(iii) जहांगीर।
उत्तर-
(ii) औरंगज़ेब।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics Chapter 4 भारत में औद्योगिक विकास

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 4 भारत में औद्योगिक विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Economics Chapter 4 भारत में औद्योगिक विकास

SST Guide for Class 10 PSEB भारत में औद्योगिक विकास Textbook Questions and Answers

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दें

प्रश्न 1.
आधारभूत उद्योगों के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
(i) लोहा व इस्पात उद्योग
(ii) सीमेन्ट उद्योग।

प्रश्न 2.
कुटीर उद्योगों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
कुटीर उद्योग से अभिप्राय उस उद्योग से है जो एक परिवार के सदस्यों द्वारा एक ही छत के नीचे पूर्णतः या आंशिक रूप से चलाया जाता है।

प्रश्न 3.
लघु उद्योगों की एक समस्या पर प्रकाश डालिये।
उत्तर-
कच्चे माल तथा शक्ति की समस्या।

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प्रश्न 4.
लघु उद्योगों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
लघु उद्योग वे उद्योग होते हैं जिनमें 3 करोड़ तक बंधी पूंजी का निवेश हुआ हो।

II. लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें

प्रश्न 1.
भारत के तीव्र तथा सन्तुलित औद्योगिकीकरण की आवश्यकता के कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-

  1. उद्योगों के विकास से राष्ट्रीय आय में बड़ी तीव्र वृद्धि होती है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि उद्योगों के विकास ने देशों की आय में वृद्धि करके निर्धनता की जंजीरों को काटा है।
  2. उद्योगों के विकास से राष्ट्रीय आय के बढ़ने से बचतों में भी वृद्धि होती है तथा बचतें पूंजी निर्माण के लिए आवश्यक हैं। परिणामस्वरूप देश का आर्थिक विकास और तीव्र होता है।
  3. उद्योगों के विकास से रोज़गार अवसरों में वृद्धि होती है। इससे भूमि पर जनसंख्या के दबाव को कम किया जा सकता है।
  4. औद्योगिकीकरण कृषि विकास में सहायक सिद्ध होता है। वास्तव में, तीव्र औद्योगिकीकरण तीव्र कृषि विकास के लिए आवश्यक है।

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प्रश्न 2.
भारत में लघु तथा कुटीर उद्योगों से क्या अभिप्राय है ? इनकी समस्याओं का वर्णन,करें।
उत्तर-
लघु तथा कुटीर उद्योग-कुटीर उद्योग से आशय उसं उद्योग से है जो एक परिवार के सदस्यों द्वारा एक ही छत के नीचे एक पूर्णकालीन या अंशकालीन व्यवसाय के रूप में चलाया जाता है। चूंकि ये उद्योग मुख्यतः गांवों में चलाए जाते हैं, इसलिए इन्हें ग्रामीण उद्योग भी कहा जाता है।
नवीन परिभाषा (1999) के अनुसार, लघु उद्योगों में उन सब कारखानों को शामिल किया गया है जिनमें 1 करोड़ रुपए तक बन्धी पूंजी का निवेश हुआ हो।
लघु तथा कुटीर उद्योगों की समस्याएं-लघु तथा कुटीर उद्योगों की मुख्य समस्याएं निम्नलिखित हैं —

  1. कच्चे माल तथा शक्ति की समस्या-इन उद्योग-धन्धों को कच्चा माल उचित मात्रा में नहीं मिल पाता तथा जो माल मिलता है  उसकी किस्म बहुत घटिया होती है और उसका मूल्य भी बहुत अधिक देना पड़ता है।
  2. वित्त की समस्या-भारत में इन उद्योगों को पर्याप्त मात्रा में ऋण नहीं मिल पाता है।
  3. उत्पादन के पुराने ढंग-इन उद्योगों में अधिकतर उत्पादन के पुराने ढंग ही अपनाए जाते हैं जिसके कारण इन उद्योगों की उत्पादकता निम्न है व प्रति इकाई लागत अधिक।
  4. बिक्री सम्बन्धी कठिनाइयां-इन उद्योगों को अपना माल उचित मात्रा में बेचने के लिए काफ़ी कठिनाइयां उठानी पड़ती हैं।
  5. बड़े उद्योगों से प्रतियोगिता-इन उद्योगों की एक बड़ी समस्या यह भी है कि इनको बड़े उद्योगों से मुकाबला करना पड़ता है। अत: छोटे उद्योगों का माल बड़े उद्योगों के माल के सामने टिक नहीं पाता।

प्रश्न 3.
भारत में लघु तथा कुटीर उद्योगों का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
भारत में लघु तथा कुटीर उद्योगों का महत्त्व निम्नलिखित तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है —

  1. बेरोज़गारी की समस्या का हल-भारत में बढ़ती हुई बेरोज़गारी की समस्या का हल लघु तथा कुटीर उद्योगों का विकास करके ही हो सकता है।
  2. उत्पादन में शीघ्र वृद्धि-लघु तथा कुटीर उद्योगों को स्थापित करने तथा उनमें उत्पादन कार्य करने में कम समय लगता है।
  3. ग्रामों का विकास-भारत में अधिकांश जनसंख्या गांवों में रहती है। घरेलू उद्योगों की प्रगति से गांवों की आर्थिक दशा सुधरेगी। ग्रामीणों का जीवन-स्तर ऊंचा होगा तथा उनके जीवन का सर्वांगीण विकास होगा।
  4. वितरण-विषमता में कमी-बड़े-बड़े कारखानों के स्थापित होने से देश में एक ओर अति धनी और दूसरी ओर अति निर्धन लोग दिखाई देने लगते हैं। अधिक धन कुछ ही हाथों में केन्द्रित हो जाता है। समाज में अमीरग़रीब के बीच खाई और चौड़ी होने से शान्ति तथा सुख नष्ट हो जाता है। अत: इस समस्या को दूर करने के लिए घरेलू उद्योग-धन्धों का विकास करना चाहिए।

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प्रश्न 4.
भारत के लघु तथा कुटीर उद्योगों में अन्तर बताएं तथा सभी समस्याओं के समाधान के लिये सुझाव दें।
उत्तर-
कुटीर व लघु उद्योगों में अन्तर —

  1. कुटीर उद्योग प्रायः गांवों में होते हैं, जबकि लघु उद्योग अधिकतर शहरों में होते हैं।
  2. कुटीर उद्योगों में परिवार के सदस्यों से ही काम चल जाता है, जबकि लघु उद्योगों को चलाने के लिए भाड़े के मज़दूर लगाने पड़ते हैं।

लघु एवं कुटीर उद्योगों की समस्याओं के समाधान के लिए सुझाव

  1. इन उद्योगों को कच्चा माल उचित मात्रा व उचित कीमत पर उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
  2. इन उद्योगों को ऋण उचित मात्रा व उचित ब्याज दर पर उपलब्ध करवाया जाना चाहिए।
  3. इन उद्योगों को विक्रय सम्बन्धी सुविधाएं भी उपलब्ध करवाई जानी चाहिए ताकि इनको अपने माल की उचित कीमत मिल सके।
  4. इन उद्योगों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले उत्पादन के तरीकों में सुधार किया जाना चाहिए। इससे इनकी उत्पादकता में वृद्धि होगी व प्रति इकाई लागत कम होगी।

प्रश्न 5.
बड़े उद्योगों के महत्त्व की विवेचना करें।
उत्तर-
किसी भी देश के आर्थिक विकास में बड़े पैमाने के उद्योगों का बहुत महत्त्व होता है। तीव्र औद्योगिकीकरण देश के आर्थिक विकास के लिए अत्यन्त आवश्यक होता है और तीव्र औद्योगिकीकरण बड़े उद्योगों को विकसित किए बिना सम्भव नहीं। औद्योगिकीकरण के लिए आवश्यक पूंजीगत वस्तुएं व आर्थिक आधारिक संरचनाएं जैसे यातायात के साधन, बिजली, संचार व्यवस्था इत्यादि बड़े पैमाने के उद्योगों द्वारा ही उपलब्ध करवाई जा सकती हैं। बड़े पैमाने के उद्योग ही औद्योगिकीकरण के लिए आवश्यक अनुसंधान तथा उच्च तकनीक के लिए आवश्यक धन का प्रबन्ध कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त बड़े उद्योगों को स्थापित करने से उत्पादकता में वृद्धि होती है, बचतें प्रोत्साहित होती हैं और कई प्रकार के सहायक उद्योगों की स्थापना को बल मिलता है। वास्तव में, बड़े उद्योगों के विकास के बिना अर्थ-व्यवस्था को सुदृढ़ अथवा मजबूत आधार प्रदान नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 6.
भारत में औद्योगिकीकरण की धीमी गति के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
भारत में औद्योगिक विकास की गति निम्नलिखित कारणों से धीमी एवं कम रही है

  1. उद्योगों के विकास के लिए पूंजी की बहुत आवश्यकता होती है। भारत में अधिकतर लोग निर्धन हैं। अतः पूंजी की कमी भारत में औद्योगिकीकरण की धीमी गति के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारक है।
  2. भारत में कुशल श्रमिकों की कमी है। वास्तव में, आधुनिक उद्योगों को उचित प्रकार से चलाने के लिए कुशल मजदूरों की अत्यन्त आवश्यकता होती है।
  3. उद्योगों को चलाने के लिए सस्ती शक्ति की आवश्यकता होती है, परन्तु भारत में सस्ते शक्ति साधनों की कमी है।
  4. भारत में कुशल प्रबन्धकों की कमी भी औद्योगिकीकरण की धीमी गति के लिए उत्तरदायी रही है।
  5. भारत में उद्योगों के लिए कच्चा माल बहुत कम मात्रा में और घटिया किस्म का प्राप्त होता है।
  6. भारत एक निर्धन देश है। निर्धनता के कारण बचत कम होती है तथा निवेश भी कम होता है।
  7. देश में यातायात व संचार-साधनों के कम विकास के कारण भी औद्योगिकीकरण की गति धीमी रही है।

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प्रश्न 7.
भारत में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार के योगदान के बारे में संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
भारतीय अर्थ-व्यवस्था की आर्थिक गति को तीव्र करने के लिए, आत्म-निर्भरता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए और रोज़गार तथा आय के साधनों में वृद्धि करने के लिए भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं के अधीन उद्योगों के विकास हेतु निम्नलिखित पग उठाए हैं —

  1. ऋण सुविधाएं प्रदान करना-देश में औद्योगिक विकास को तीव्र करने के लिए सरकार ने कई प्रकार की ऋण प्रदान करने वाली संस्थाओं का गठन किया है, जैसे-औद्योगिक वित्त निगम, राष्ट्रीय औद्योगिक विकास निगम, पुनर्वित्त निगम, औद्योगिक विकास बैंक, यू० टी० आई०।
  2. आधारभूत उद्योगों की स्थापना
  3. यातायात तथा परिवहन साधनों का विकास
  4. बिजली क्षेत्र का विकास
  5. आविष्कारों का विकास
  6. निर्यात प्रोत्साहन तथा आयात प्रतिस्थापन सुविधाएं
  7. पिछड़े क्षेत्रों का औद्योगीकरण
  8. बीमार औद्योगिक इकाइयों का पुनः स्वास्थ्यकरण
  9. तकनीकी विकास बोर्ड की स्थापना
  10. नवीन औद्योगिक नीति।

PSEB 10th Class Social Science Guide भारत में कृषि विकास Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
भारत में औद्योगीकरण के तीव्र विकास के लिए उत्तरदायी एक कारण लिखें।
उत्तर-
आधुनिकीकरण।

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प्रश्न 2.
आधारभूत उद्योगों का उदाहरण दें।
उत्तर-
रासायनिक उद्योग।

प्रश्न 3.
लघु उद्योगों में निवेश की सीमा कितनी है?
उत्तर-
5 करोड़ रुपए।

प्रश्न 4.
लघु उद्योगों की एक समस्या बताएं।
उत्तर-
वित्त की समस्या।

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प्रश्न 5.
लघु उद्योगों का एक लाभ बताएं।
उत्तर-
उत्पादन में तीव्र वृद्धि।

प्रश्न 6.
बड़े उद्योगों का एक लाभ बताएं।
उत्तर-
पूंजीगत व आधारभूत वस्तुओं का उत्पादन।

प्रश्न 7.
औद्योगीकरण की निम्न प्रगति का क्या कारण है?
उत्तर-
पूंजी की कमी।

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प्रश्न 8.
भारत के जी० डी० पी० में उद्योगों का योगदान कितने प्रतिशत है?
उत्तर-
लगभग 26.1 प्रतिशत।

प्रश्न 9.
औद्योगीकरण क्या है?
उत्तर-
देश के सभी उद्योगों का विकास।

प्रश्न 10.
एक कारण बताएं कि क्यों लघु उद्योगों का विकास किया जाना आवश्यक है?
उत्तर-
रोज़गार तथा धन व आय के समान वितरण के लिए।

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प्रश्न 11.
नई औद्योगिक नीति कब लागू की गई थी ?
उत्तर-
1991 में।

प्रश्न 12.
भारत की किन्हीं दो औद्योगिक नीतियों का नाम बताएं।
उत्तर-
(i) औद्योगिक नीति 1956
(ii) औद्योगिक नीति 1948.

प्रश्न 13.
1956 की औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत कितने उद्योग आरक्षित थे?
उत्तर-
17 उद्योग।

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प्रश्न 14.
भारत के किसी एक बड़े उद्योग का नाम लिखें।
उत्तर-
कपड़ा उद्योग।

प्रश्न 15.
औद्योगीकरण की एक विशेषता बताएं।
उत्तर-
पूंजी का अधिकतम प्रयोग।

प्रश्न 16.
बड़े उद्योगों की एक समस्या बताएं।
उत्तर-
मालिक-मज़दूर का झगड़ा।

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प्रश्न 17.
नई औद्योगिक नीति की विशेषता बताएं।
उत्तर-
सार्वजनिक क्षेत्र का संकुचन।

प्रश्न 18.
पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान औद्योगिक उत्पादन में हुई वृद्धि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
योजनाओं के लागू होने से पूर्व देश में कई वस्तुओं जैसे-मशीनरी, ट्रैक्टर्स, स्कूटर्स आदि का बिल्कुल ही उत्पादन नहीं होता था, परन्तु अब इन सभी वस्तुओं का उत्पादन देश में पर्याप्त मात्रा में होने लगा है।

प्रश्न 19.
सार्वजनिक उद्यम, संयुक्त उद्यम तथा निजी उद्यम से क्या आशय है?
उत्तर-
सार्वजनिक उद्यम वे उद्यम हैं जिनकी स्वामी सरकार होती है। संयुक्त उद्यम वे उद्यम हैं जिन पर सरकार तथा निजी क्षेत्र दोनों का सांझा स्वामित्व होता है। निजी उद्यम वे उद्यम हैं जिनके स्वामी निजी व्यक्ति होते हैं।

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प्रश्न 20.
भारत के कुटीर उद्योगों के पतन के मुख्य कारण कौन-से हैं?
उत्तर-

  1. आधुनिक उद्योगों के सस्ते तथा बढ़िया उत्पादन का मुकाबला करने में असमर्थता।
  2. उचित मात्रा में सस्ता वित्त न मिल पाना।

प्रश्न 21.
कुटीर उद्योगों के विकास के लिए क्या कुछ किया गया है?
उत्तर-

  1. खादी तथा ग्रामोद्योग कमीशन की स्थापना की गई है जो इन उद्योगों की विशिष्ट आवश्यकताओं की देखभाल करता है।
  2. इनकी बिक्री को प्रोत्साहन देने के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है।

प्रश्न 22.
भारत में लघु तथा कुटीर उद्योगों के पक्ष में कोई एक तर्क दीजिए।
उत्तर-
ये उद्योग श्रम प्रधान होते हैं, इसलिए इनके विकास के फलस्वरूप रोज़गार बढ़ने की अधिक सम्भावना होती है।

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प्रश्न 23.
आधारभूत उद्योगों से क्या आशय है?
उत्तर-
आधारभूत उद्योग वे उद्योग हैं, जो कृषि तथा उद्योगों को आवश्यक इन्पुट्स प्रदान करते हैं। इनके उदाहरण हैं-स्टील, लोहा, कोयला, उर्वरक तथा बिजली।

प्रश्न 24.
पूंजीगत वस्तु उद्योगों से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
वे उद्योग जो कृषि तथा उद्योगों के लिए मशीनरी तथा यन्त्रों का उत्पादन करते हैं। इनमें मशीनें, मशीनी औज़ार, ट्रैक्टर, ट्रक आदि शामिल किए जाते हैं।

प्रश्न 25.
मध्यवर्ती वस्तु उद्योगों से क्या आशय है ?
उत्तर-
वे उद्योग जो उन वस्तुओं का उत्पादन करते हैं जिनका दूसरी वस्तुओं के उत्पादन के लिए प्रयोग किया जाता है। इनके उदाहरण हैं-टायर्स, मॉबिल ऑयल आदि।

प्रश्न 26.
उपभोक्ता वस्तु उद्योगों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
उपभोक्ता वस्तु उद्योग वे उद्योग हैं जो उपभोक्ता वस्तुओं का उत्पादन करते हैं। जैसे-चीनी, कपड़ा, कागज उद्योग आदि।

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प्रश्न 27.
भारत में बड़े उद्योगों के कोई चार नाम बताइए।
उत्तर-

  1. लोहा व इस्पात
  2. कपड़ा उद्योग
  3. जूट उद्योग
  4. सीमेंट उद्योग।

प्रश्न 28.
भारत में बड़े उद्योगों की चार समस्याएं लिखिए।
उत्तर-

  1. औद्योगिक अशान्ति
  2. प्रस्थापित क्षमता का अपूर्ण प्रयोग
  3. शक्ति एवं ईंधन साधनों की कमी
  4. संस्थागत वित्तीय सुविधाओं का अभाव।

प्रश्न 29.
कुटीर उद्योग की परिभाषा दें।
उत्तर-
कुटीर उद्योग वह उद्योग होता है जो एक परिवार के सदस्यों द्वारा एक ही छत के नीचे एक पूर्णकालीन या अंशकालीन व्यवसाय के रूप में चलाया जाता है।

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प्रश्न 30.
लघु उद्योग की परिभाषा दें।
उत्तर-
लघु उद्योग वह उद्योग है जिसमें तीन करोड़ की पूंजी का निवेश किया जा सकता है।

प्रश्न 31.
बड़े उद्योगों को परिभाषित करें।
उत्तर-
बड़े उद्योग वह उद्योग होते हैं जिनमें निवेश की मात्रा बहुत ज्यादा होती है।

प्रश्न 32.
संयुक्त क्षेत्र क्या होता है?
उत्तर-
संयुक्त क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जिस पर सरकार तथा निजी लोगों का स्वामित्व होता है।

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प्रश्न 33.
औद्योगिक विकास क्या है?
उत्तर-
वर्तमान उद्योगों की कुशलता बढ़ाना, उनके उत्पादन में वृद्धि करना तथा नए, उद्योगों की स्थापना करना औद्योगिक विकास कहलाता है।

प्रश्न 34.
निजी क्षेत्र क्या है?
उत्तर-
निजी क्षेत्र वह क्षेत्र होता है जिस पर निजी लोगों का स्वामित्व होता है।

प्रश्न 35.
औद्योगिकीकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
औद्योगिकीकरण से अभिप्राय देश की उत्पादन इकाई का सम्पूर्ण विकास करने से है।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. ……….. मूलभूत उद्योग का उदाहरण है। (लोहा उद्योग/रासायनिक उद्योग)
  2. नई औद्योगिक नीति वर्ष ……….. में शुरू हुई। (1956/1991)
  3. ………. क्षेत्र वह होता है जिस पर निजी लोगों का स्वामित्व होता है। (निजी/सार्वजनिक)
  4. ………. क्षेत्र वह होता है जिस पर सरकार तथा निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है। (संयुक्त/निजी)
  5. ………. उद्योग वह होता है जिस पर 3 करोड़ तक की पूंजी लगी होती है। (लघु कुटीर)
  6. ICICI की स्थापना ……….. में हुई। (1945/1955)

उत्तर-

  1. रासायनिक उद्योग,
  2. 1991,
  3. निजी,
  4. संयुक्त,
  5. लघु,
  6. 1955

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
………… क्षेत्र वह होता है जिसका संचालन सरकार द्वारा किया जाता है।
(A) सार्वजनिक
(B) निजी
(C) संयुक्त
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(A) सार्वजनिक

प्रश्न 2.
………….. क्षेत्र वह होता है जिसका संचालन निजी लोगों द्वारा किया जाता है।
(A) सार्वजनिक
(B) निजी
(C) संयुक्त
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(B) निजी

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प्रश्न 3.
………. क्षेत्र वह होता है जिस पर सरकार तथा निजी दोनों क्षेत्रों का स्वामित्व होता है।
(A) सार्वजनिक
(B) निजी
(C) संयुक्त
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(C) संयुक्त

प्रश्न 4.
लघु उद्योगों में निवेश की सीमा क्या है?
(A) 2 करोड़
(B) 3 करोड़
(C) 4 करोड़
(D) 10 करोड़।
उत्तर-
(B) 3 करोड़

प्रश्न 5.
GDP में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान कितना है?
(A) 14.8
(B) 27.9
(C) 29.6
(D) 26.1
उत्तर-
(D) 26.1

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प्रश्न 6.
नई औद्योगिक नीति कब लागू हुई?
(A) 1956
(B) 1971
(C) 1991
(D) 2003
उत्तर-
(C) 1991

प्रश्न 7.
लघु उद्योगों की एक समस्या बताइए।
(A) वित्त की समस्या
(B) उत्पादन की पुरानी तकनीक
(C) कच्चे माल की समस्या
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

IV. सही/गलत

  1. नई औद्योगिक नीति 2001 में लागू हुई।
  2. निजी क्षेत्र का संचालन सरकार द्वारा किया जाता है।
  3. संयुक्त क्षेत्र में निजी व सार्वजनिक क्षेत्रों का सहअस्तित्व पाया जाता है।’
  4. ICICI की स्थापना 1955 में हुई।

उत्तर-

  1. गलत
  2. गलत
  3. सही
  4. सही।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer type Questions)

प्रश्न 1.
आर्थिक विकास के लिए औद्योगिकीकरण का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
आर्थिक विकास के निम्नलिखित कारणों से औद्योगिकीकरण का महत्त्व है —

  1. औद्योगिकीकरण से सन्तुलित आर्थिक विकास सम्भव होता है तथा आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है।
  2. इससे अविकसित देशों में कुल राष्ट्रीय उत्पाद में तेजी से वृद्धि की जा सकती है।
  3. औद्योगिकीकरण के द्वारा अविकसित देशों में प्रति व्यक्ति उत्पादन एवं आय में भी वृद्धि की जा सकती है।
  4. औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप अधिक रोजगार के अवसरों का सृजन किया जा सकता हैं।
  5. औद्योगिकीकरण के द्वारा अविकसित देशों में कृषि के क्षेत्र में पायी जाने वाली छिपी हुई, बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेरोज़गारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है।
  6. औद्योगिकीकरण के फलस्वरूप अर्थ-व्यवस्था में विविधता आती है।

प्रश्न 2.
भारतीय अर्थ-व्यवस्था में किन तीन अर्थों में सन्तुलित औद्योगिक ढांचे की आवश्यकता है?
उत्तर-
भारतीय अर्थ-व्यवस्था को तीव्र औद्योगिकीकरण की आवश्यकता है, किन्तु इसे कम-से-कम तीन अर्थों में सन्तुलित औद्योगिक ढांचे की आवश्यकता है —

  1. तीव्र विकास के लिए विभिन्न उद्योगों का चुनाव इस प्रकार किया जाए जिससे कुल मिलाकर रोजगार अवसरों में भी तेजी से वृद्धि हो।
  2. इस प्रकार से चुने गए विभिन्न उद्योगों का देश के विभिन्न प्रदेशों में उचित प्रकार से वितरण हो अर्थात् एक ऐसी औद्योगिक नीति हो जो विशेष रूप से विकास के लिए पिछड़े प्रदेशों के पक्ष में हो।
  3. देश के छोटे से ही वर्ग की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विलासितापूर्ण वस्तुओं का उत्पादन करने वाले उद्योगों की तुलना में सामाजिक प्राथमिकता वाली वस्तुओं (उदाहरण के लिए “मजदूरी वस्तुएं” जिनका मजदूरों द्वारा प्रयोग किया जाता है) का उत्पादन करने वाले उद्योगों का चुनाव हो।

प्रश्न 3.
औद्योगिकीकरण से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
औद्योगिकीकरण-औद्योगिकीकरण से आशय राष्ट्र के सर्वांगीण औद्योगिक विकास से है। संकुचित अर्थ में औद्योगिकीकरण से आशय निर्माण उद्योगों की स्थापना से है जबकि विस्तृत अर्थ में औद्योगिकीकरण के अन्तर्गत किसी देश की सम्पूर्ण अर्थ-व्यवस्था को परिवर्तित करने की प्रक्रिया को शामिल किया जाता है।
औद्योगिकीकरण की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. औद्योगिकीकरण आर्थिक विकास का पर्यायवाची है।
  2. इसमें पूंजी का गहन एवं व्यापक रूप में प्रयोग किया जाता है।
  3. इसका उद्देश्य अर्थ-व्यवस्था की संरचना में आमूल-चूल परिवर्तन करना होता है।
  4. इसमें सभी क्षेत्रों का सामयिक एवं तीव्र विकास होता है।
  5. नए बाजारों की खोज की जाती है तथा नए क्षेत्रों का विदोहन किया जाता है।

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प्रश्न 4.
लघु तथा कुटीर उद्योगों के विकास के उपाय लिखिए।
उत्तर-

  1. कच्चे माल की व्यवस्था करनी होगी,
  2. पूंजी की व्यवस्था करनी होगी,
  3. उत्पादन की विधि में सुधार की आवश्यकता,
  4. शिक्षा का प्रसार,
  5. बाजार की व्यवस्था करनी होगी,
  6. निर्मित वस्तुओं का प्रचार होना चाहिए,
  7. बड़े उद्योगों की प्रतियोगिता से इसे सुरक्षा प्रदान करनी होगी।

प्रश्न 5.
कुटीर तथा लघु उद्योगों का नैतिक एवं सामाजिक महत्त्व क्या है?
उत्तर-
बड़े पैमाने के उद्योगों में श्रमिक अपना व्यक्तित्व खो देता है। वह स्वयं मशीन का एक भाग बन जाता है। उसकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का अन्त हो जाता है। लेकिन कुटीर एवं लघु उद्योग के अन्तर्गत श्रमिक बहुधा उद्योग का मालिक होता है, इससे उसमें आत्म-गौरव की भावना जागती है। साथ ही, बड़े उद्योगों में शोषण की प्रवृत्ति होती है, उससे उसे मुक्ति मिल जाती है। इस प्रकार, कुटीर उद्योगों का सामाजिक एवं नैतिक दृष्टि से भी महत्त्व है। इसके द्वारा ही शोषण रहित समाज की स्थापना हो जाती है।

प्रश्न 6.
कुटीर व लघु उद्योगों के विकास के लिए सुझाव दीजिए।
उत्तर-

  1. इन उद्योगों की उत्पादन तकनीक में सुधार किया जाना चाहिए।
  2. लघु उद्योगों की स्थापना के लिए पर्याप्त सलाहकार सेवाओं की व्यवस्था होनी चाहिए।
  3. लघु उद्योग सहकारी समितियों का अधिक-से-अधिक विकास किया जाना चाहिए।
  4. विशाल एवं लघु उद्योगों में समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए। कुटीर व लघु उद्योगों की उत्पादकता तथा उत्पादन क्षमता बढ़ाने तथा उत्पादों की किस्म सुधारने के लिए अनुसन्धान कार्यक्रमों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  5. लघु उद्योग प्रदर्शनियों का अधिकाधिक आयोजन किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 7.
भारत में (अ) छोटे पैमाने के उद्योगों एवं (ब) बड़े पैमाने के उद्योगों को विकसित करने के लिए क्या कदम उठाये गए हैं?
उत्तर-
(अ) छोटे पैमाने के उद्योगों को विकसित करने के लिए उठाए गए कदम

  1. कई वस्तुओं के उत्पादन को विशेष रूप से लघु पैमाने की इकाइयों के लिए ही सुरक्षित कर दिया गया है। इस सुरक्षित सूची में आयी वस्तुओं के उत्पादन के लिए बड़े उद्योगों को नये लाइसेंस नहीं दिए गए हैं।
  2. सरकारी संस्थाओं की क्रय नीति में बड़े पैमाने के उद्योगों की वस्तुओं की तुलना में छोटे पैमाने की बस्तुओं को प्राथमिकता दी गयी है।

(ब) बड़े पैमाने के उद्योगों को प्रोत्साहन करने के लिए उठाए गए कदम
(क) जुलाई, 1991 से बड़े पैमाने के उद्योगों के क्षेत्र में उदारीकरण की नीति को अपनाया गया है, जिसके तीन उद्देश्य हैं —

  1. उद्योगों को प्रौद्योगिकी के सुधार के लिए प्रोत्साहन दिया गया है। जहां कहीं सम्भव हो वहां आधुनिक औद्योगिक टेक्नोलॉजी को अपनाने के लिए कई प्रकार की राजकोषीय और वित्तीय प्रेरणाएं दी गई हैं।
  2. उद्योगों को लागत-कुशलता प्राप्त करने के लिए सब प्रकार की सहायता दी गयी है। जो नियम कार्य-कुशलता में बाधक हैं और जिसके परिणामस्वरूप उद्योग की लागत को बढ़ाने की प्रवृत्ति रखते हैं, उन्हें बदला अथवा हटाया गया है।

प्रश्न 8.
भारत में कुटीर उद्योगों की समस्याएं बताइए।
उत्तर-
भारत में कुटीर उद्योगों की समस्याएं निम्नलिखित हैं —

  1. इन उद्योगों में प्राय: कच्चे माल तथा शक्ति सम्बन्धी साधनों जैसे कोयला, बिजली आदि की कमी पाई जाती है।
  2. इन उद्योगों को ऋण भी उचित मात्रा में नहीं मिल पाता। इसलिए उन्हें अधिकतर साहूकारों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  3. इनके उत्पादन के तरीके पुराने होते हैं जिससे उत्पादन कम रहता है।
  4. इन्हें कच्चा माल महंगा मिलता है जिससे इनके उत्पादन की लागत ऊँची आती है।

प्रश्न 9.
सन् 1956 की औद्योगिक नीति की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
सन् 1956 की औद्योगिक नीति की विशेषताएं निम्न हैं —

  1. इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के पहले वर्ग में 17 उद्योग सम्मिलित किए गए। इन उद्योगों पर मुख्य रूप से केवल राज्य को एकाधिकार प्राप्त हो।
  2. दूसरे वर्ग में 12 उद्योग शामिल हैं। इन उद्योगों का स्वामित्व अधिकतर सरकार के हाथों में रहेगा तथा नई इकाइयों में लगाने में सामान्यतः सरकार पहल करेगी।
  3. तीसरे वर्ग में वह सभी उद्योग जो पहले वर्ग और दूसरे वर्ग में दिए गए हैं, को छोड़कर बाकी सभी उद्योग निजी क्षेत्र को सौंप दिए गए।
  4. कुटीर तथा लघु उद्योगों को पर्याप्त महत्त्व दिया गया।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
भारत में लघु एवं कुटीर उद्योगों के क्या महत्त्व हैं?
उत्तर-
लघु एवं कुटीर उद्योग (Small Scale and Cottage Industries) भारतीय अर्थव्यवस्था में लघु एवं कुटीर उद्योगों का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है।
लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्त्व (Importance of Cottage and Small Scale Industries) इस उद्योग के निम्न महत्त्व हैं —

  1. रोजगार (Employment) — कुटीर तथा लघु उद्योग श्रम प्रधान उद्योग है अर्थात् इन उद्योगों में कम पूंजी का निवेश करके अधिक व्यक्तियों को रोजगार दिया जा सकता है।
  2. धन का समान वितरण (Equal Distribution of Wealth) — इन उद्योगों के कारण आय व धन का वितरण अधिक समान होता है। इसका कारण यह है कि इन उद्योगों में पूंजी कुछ लोगों के पास ही केंद्रित नहीं होती वह थोडीथोड़ी मात्रा में बंटी होती है। इसलिए इन उद्योगों से जो आय प्राप्त होती है उसका लाभ अधिक लोगों को मिलता है।
  3. विकेंद्रीकरण (Decentralisation) — कुटीर व लघु उद्योग सारे देश में गांवों व कस्बों में फैले होते हैं। युद्ध के दिनों में इनके नष्ट होने का डर भी नहीं रहता। इसके फलस्वरूप शहरीकरण के दोषों जैसे शहरों में मकानों की कमी, कीमतों का अधिक होना, स्त्रियों तथा बच्चों का शोषण आदि से बचाव हो सकेगा। इसके फलस्वरूप प्रादेशिक असमानता कम होगी।
  4. कृषि पर जनसंख्या का कम दबाव (Less Pressure an Agriculture) — एक कृषि प्रधान देश होने के कारण भारत में कुटीर उद्योगों का बहुत महत्त्व है। प्रतिवर्ष 30 लाख व्यक्ति खेती पर आश्रित होने के लिए बढ़ जाते हैं। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि भूमि पर बढ़ते हुए भार को कम किया जाए। ऐसा तभी हो सकता है जब लोग कुटीर उद्योग-धंधों की स्थापना करे और उनमें कार्य करने लगे।
  5. कम पूंजी की आवश्यकता (Needs of Less Capital) — कुटीर एवं लघु उद्योग कम पूंजी से आरंभ किए . जा सकते हैं। भारत जैसे देश में अधिकतर इस उद्योग पर ही ज़ोर देना चाहिए क्योंकि साधारणतया कम पूंजी के स्वामी छोटे उद्योगों की स्थापना कर सकते हैं।
  6. उत्पादन में शीघ्र वृद्धि (Immediate Increase in Production) — लघु उद्योगों का उत्पादन निवेश अंतराल बड़े उद्योगों की अवधि की तुलना में कम होता है। इसका अभिप्राय यह है कि इन उद्योगों में निवेश करने के तुरंत बाद ही उत्पादन आरंभ हो जाता है। देश की कुल औद्योगिक उत्पादन का 40 प्रतिशत भाग लधु एवं कुटीर उद्योगों द्वारा उत्पादित किया जाता है।

प्रश्न 2.
नई औद्योगिक नीति की मुख्य विशेषताओं को बताइए।
उत्तर-
नई औद्योगिक नीति की विशेषताएं निम्नलिखित हैं —

  1. सार्वजनिक क्षेत्र का संकुचन (Contraction of Public Sector) — नई नीति के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित 17 उद्योगों में से अब केवल 6 उद्योग सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित रहेंगे। बाकी उद्योग निजी क्षेत्र के लिए खोल दिए जाएंगे। यह छ: उद्योग
    1. सैनिक सामग्री
    2. परमाणु ऊर्जा
    3. कोयला
    4. खनिज तेल
    5. परमाणु ऊर्जा उत्पादन एवं उपयोग का नियंत्रण
    6. रेल यातायात।
  2. सार्वजनिक क्षेत्र का निजीकरण (Privatisation of Public Sector) — सार्वजनिक क्षेत्र के गाटे वाले कारखानों को या तो बंद कर दिया जाएगा या निजी क्षेत्र को सौंप दिया जाएगा। बाकी उद्यमों के 20 प्रतिशत तक के शेयर सरकारी वित्तीय संस्थाओं को बेचे गए हैं।
  3. औद्योगिक लाइसेंस नीति (Industrial Licensing Policy) — नई नीति के अनुसार 14 उद्योगों को छोड़कर शेष पर से लाइसेंस प्रणाली समाप्त कर दी गई।
  4. विदेशी पूंजी (Foreign Capital) — नई नीति के अनुसार विदेशी पूंजी निवेश की सीमा 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 51 प्रतिशत कर दी गई है।
  5. एकाधिकार कानून से छूट (Concession from MRTP Act) — एकाधिकार कानून के अंतर्गत आने वाली कंपनियों को भारी छूट दी गई है।

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Practical जाँघिया Notes.

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया 1
चित्र 6.1

माप-आयु – 2-3 वर्ष ।
लम्बाई – 11′
चौड़ाई – 16” ( चौड़ाई)
कागज़ का माप-लम्बाई 22″, चौड़ाई 16”

  1. चौड़ाई की ओर से कागज़ को दोहरा करते हैं।
  2. लम्बाई की ओर से कागज़ को दोहरा करते हैं।

दो बार दोहरे वाले भाग को बाईं ओर तथा एक बार दोहरे किए भाग को निचली ओर रखते हैं। चारों कोनों पर उ, अ, इ, स के चिन्ह लगाते हैं। उ, अ को दो बराबर भागों में बांटकर ह का चिन्ह लगाते हैं।

  • इ, स को दो बराबर भागों में बांटकर क का चिन्ह लगाते हैं।
  • ह तथा क को सीधी रेखा से मिलाते हैं।
  • उ, इ तथा अ, स को तीन बराबर भागों में बाँटकर रेखा लगाते हैं।
  • उ से 1″ नीचे को चिन्ह लगाकर ख का नाम देते हैं।
  • अ से 1” अन्दर की ओर लेकर ग का चिन्ह लगाते हैं।
  • ख तथा ग को थोड़ी सी गोलाई वाली रेखा से मिलाते हैं।
  • क से 1, स, इ वाली रेखा लेकर घ का चिन्ह लगाते हैं।
  • स से 1 खाना + 1” ऊपर लेकर झ का चिन्ह लगाते हैं।
  • झ ग को सीधी रेखा से मिलाते हैं।
  • फिर घ झ को सीधी रेखा से मिलाते हैं।
  • घ झ को दो भागों में बाँटकर च का निशान लगाते हैं।
  • च से ऊपर आधा इंच लेकर छ का निशान लगाते हैं और एक इंच ऊपर ज का निशान लगाते हैं।
  • घ, छ और झ को पिछली टाँग की गोलाई के लिए गोलाई में मिलाते हैं।
  • घ, छ और झ को टाँग की आगे की गोलाई के लिए गोलाई में मिलाते हैं।
  • घ, ज और झ को टाँग की आगे की गोलाई के लिए गोलाई में मिलाते हैं।

PSEB 7th Class Home Science Practical जाँघिया

कपड़ा-36” चौड़ाई की 26” लम्बी सफ़ेद या अन्य किसी हल्के रंग की पापलीन या कैम्बिक लगाई जा सकती है।
सिलाई-छोरों पर रन एण्ड फैल सिलाई करते हैं। टाँग वाली गोलाई को अन्दर थोड़ा-सा मोड़कर लेस लगाते हैं।
कमर-3/4” अन्दर की ओर मोड़कर तुरपाई कर लेते हैं तथा ” चौड़ा तथा 12” लम्बा इलास्टिक डाल देते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions स्रोत आधारित प्रश्न.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित स्रोत को पढ़ें तथा साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
19वीं सदी में प्राकृतिक विज्ञानों ने बहुत प्रगति की। प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों द्वारा प्राप्त सफलता ने बड़ी संख्या में समाज, विचारकों को उनका अनुकरण करने के लिए प्रेरित किया। उनका मानना था कि यदि प्राकतिक विज्ञान की पद्धतियों से भौतिक विश्व में भौतिक या प्राकृतिक प्रघटनाओं को सफलतापूर्वक समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों को सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को समझने में भी सफलतापूर्वक प्रयुक्त किया जा सकता है। अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे विद्वानों तथा अन्य समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन विज्ञान की पद्धतियों से करने का समर्थन किया क्योंकि वे प्राकृतिक वैज्ञानिकों की खोजों से प्रेरित थे और समान तरीके से ही समाज का अध्ययन करना चाहते थे।

(i) किस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए ?
(ii) किन समाजशास्त्रियों ने समाज का अध्ययन किया ?
(ii) समाजशास्त्रियों का प्राकृतिक विज्ञानों की पद्धतियों के बारे में क्या विचार था ?
उत्तर-
(i) 19वीं शताब्दी में प्राकृतिक विज्ञानों के क्षेत्र में कार्य कर रहे लोगों को काफी सफलता प्राप्त हुई। इस कारण सामाजिक विचारक प्राकृतिक विज्ञानों का अनुकरण करने के लिए प्रेरित हुए।
(ii) अगस्त कोंत, हरबर्ट स्पेंसर, एमिल दुर्खाइम, मैक्स वेबर जैसे समाजशास्त्रियों ने समाज का गहनता से अध्ययन किया।
(iii) समाजशास्त्रियों का मानना था कि जैसे प्राकृतिक विज्ञान की पद्धतियों से प्राकृतिक घटनाओं को आसानी से समझा जा सकता है तो उन्हीं पद्धतियों की सहायता से सामाजिक विश्व की सामाजिक प्रघटनाओं को भी सफलतापूर्वक समझा जा सकता है।

प्रश्न 2.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यूरोप और अमेरिका में, 19वीं सदी के बाद समाजशास्त्र एक विषय के रूप में विकसित हुआ। हालांकि, भारत में, यह न केवल थोड़ी देर से उभरा अपितु अध्ययन के एक विषय के रूप में इसे कम महत्त्व दिया गया। तथापि, स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारत में समाजशास्त्र के महत्त्व में वृद्धि हुई और देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम मे एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थान प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए एक विषय के रूप मे भी पहचान बनायी। राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० धुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाडिया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई इत्यादि कुछ महत्त्पूर्ण विद्वान हैं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।

(i) एक विषय के रूप में समाजशास्त्र यूरोप में कब विकसित हुआ ?
(ii) कुछ भारतीय समाजशास्त्रियों के नाम बताएं जिन्होंने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में योगदान दिया।
(iii) भारत में समाजशास्त्र कैसे विकसित हुआ ?
उत्तर-
(i) यूरोप तथा अमेरिका में समाजशास्त्र एक विषय के रूप में 19वीं शताब्दी के पश्चात् काफी तेज़ी से विकसित हुआ।
(ii) राधा कमल मुखर्जी, जी० एस० घुर्ये, डी० पी० मुखर्जी, डी० एन० मजूमदार, के० एम० कपाड़िया, एम० एन० श्रीनिवास, पी० एन० प्रभु, ए० आर० देसाई जैसे भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाजशास्त्र के विकास में काफी योगदान दिया।
(iii) 1947 से पहले भारत में समाजशास्त्र का विकास तेज़ी से न हो पाया क्योंकि भारत पराधीन था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् भारत में समाजशास्त्र तेजी से विकसित हुआ तथा देश के लगभग सभी विश्वविद्यालयों में इसे एक स्वतन्त्र विषय के रूप में पढ़ाया जाने लगा। इसके अतिरिक्त, इसे विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी प्रयोग किया जाने लगा जिस कारण यह तेजी से विकसित हुआ।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 3.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार, ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति तथा इतिहास के दर्शन में हैं। इस कारण से समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर करता है। प्रत्येक सामाजिक समस्या का एक राजनीतिक कारण है। राजनीतिक व्यवस्था या शक्ति संरचना की प्रकृति में किसी भी प्रकार का परिवर्तन समाज में भी परिवर्तन लाता है। विभिन्न राजनीतिक घटनाओं को समझने के लिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान से मदद लेता है। इसी तरह, राजनीति विज्ञान भी समाजशास्त्र पर पर निर्भर करता है। राज्य अपने नियमों, अधिनियमों और कानूनों का निर्माण सामाजिक प्रथाओं, परम्पराओं तथा मूल्यों के आधार पर करता है। अतः बिना समाजशास्त्रियों पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा होगा। लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति सामाजिक है तथा इन राजनीतिक समस्याओं के समाधान के लिए राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है।

(i) मॉरिस गिंसबर्ग के अनुसार समाजशास्त्र राजनीति पर क्यों निर्भर है ?
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन क्यों अधूरा है ?
(ii) किस प्रकार राजनीति विज्ञान समाजशास्त्र की सहायता लेता है ?
उत्तर-
(i) गिंसबर्ग के अनुसार ऐतिहासिक रूप से समाजशास्त्र की जड़ें राजनीति व इतिहास के दर्शन में हैं। इसलिए समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान पर निर्भर है।
(ii) गिंसबर्ग के अनुसार राज्य जब भी अपने नियम अथवा कानून बनाता है, उसे सामाजिक मूल्यों, प्रथाओं, परम्पराओं का ध्यान रखना पड़ता है। इस कारण बिना समाजशास्त्रीय पृष्ठभूमि के राजनीति विज्ञान का अध्ययन अधूरा है।
(iii) गिंसबर्ग के अनुसार लगभग सभी राजनीतिक समस्याओं की उत्पत्ति समाज में से ही होती है तथा समाज का अध्ययन समाजशास्त्र करता है। इस लिए जब भी राजनीति विज्ञान को समाज का अध्ययन करना होता है, उसे समाजशास्त्र की सहायता लेनी ही पड़ती है।

प्रश्न 4.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
विभिन्न समाज विज्ञानों में समाज का भिन्न अर्थ लगाया जाता है, परन्तु समाजशास्त्र में इसका प्रयोग विभिन्न प्रकार की सामाजिक इकाइयों के संदर्भ में होता है। समाजशास्त्र का मुख्य ध्यान मानव समाज पर तथा इसमें पाये जाने वाले सम्बन्धों के नेटवर्क/जाल पर होता है। एक समाज में समाजशास्त्री सामाजिक प्राणियों के अन्तः सम्बन्धों का अध्ययन करते हैं तथा यह ज्ञात करते हैं कि एक विशिष्ट स्थिति में एक व्यक्ति कैसे व्यवहार करता है, उसे दूसरों से क्या उम्मीद करनी चाहिए तथा दूसरे उससे क्या उम्मीदें/अपेक्षाएं करते हैं।

(i) समाज शब्द का प्रयोग अलग-अलग समाज विज्ञानों में अलग-अलग क्यों है ?
(ii) समाजशास्त्र में समाज का क्या अर्थ है ?
(iii) समाज व एक समाज में क्या अंतर है ?
उत्तर-
(i) अलग-अलग समाज विज्ञान समाज के एक विशेष भाग का अध्ययन करते हैं। जैसे अर्थशास्त्र पैसे से संबंधित विषय का अध्ययन करता है। इस कारण वह समाज शब्द का अर्थ भी अलग-अलग ही लेते हैं।
(ii) समाजशास्त्र में सम्बन्धों के जाल को समाज कहा जाता है। जब लोगों के बीच सम्बन्ध स्थापित हो जाते हैं तो समाज का निर्माण होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों के जाल को समाज कहते हैं।
(iii) जब हम समाज की बात करते हैं तो यह सभी समाजों को इक्ट्ठे लेते हैं तथा अमूर्त रूप से उसका अध्ययन करते हैं परन्तु एक समाज में हम किसी विशेष समाज की बात कर रहे होते हैं जैसे कि भारतीय समाज या अमेरिकी समाज। इस कारण यह मूर्त समाज हो जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 5.
निम्न दिए स्त्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं। समुदाय से अभिप्राय लोगों के एक समुच्चय से भी लिया जाता है जो समान प्रकार के कार्य या गतिविधियों में संलग्न रहते हैं जैसे प्रजातीय समुदाय, धार्मिक समुदाय, एक राष्ट्रीय समुदाय, एक जाति समुदाय या एक भाषायी समुदाय इत्यादि। इस अर्थ में यह समान विशेषताओं या पक्षों वाले एक सामाजिक, धार्मिक या व्यावसायिक समूह का प्रतिनिधित्व करता है तथा वहद समाज जिसमें यह रहता है, से स्वयं को कुछ अर्थों में भिन्न प्रदर्शित करता है। अत: समुदाय का अभिप्राय एक विशाल क्षेत्र में फैले लोगों से है जो एक या अन्य किसी प्रकार से समानताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘अन्तर्राष्ट्रीय समदाय’ या ‘एन० आर० आई० समुदाय’ जैसे शब्द समान विशेषताओं से निर्मित कुछ सुसंगत समूहों के रूप में साहित्य में प्रयुक्त किये जाते हैं।

(i) समुदाय का क्या अर्थ है ?
(ii) समुदाय की कुछ उदाहरण दीजिए।
(iii) समुदाय तथा समिति में दो अंतर बताएं।
उत्तर-
(i) समुदाय किसी भी आकार का एक सामाजिक समूह है जिसके सदस्य एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं, अक्सर एक सरकार तथा एक सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक विरासत को सांझा करते हैं।
(ii) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, भारतीय समुदाय, पंजाबी समुदाय इत्यादि समुदाय के कुछ उदाहरण हैं।
(iii) (a) समुदाय स्वयं ही निर्मित हो जाता है परन्तु समिति को जानबूझ कर किसी विशेष उद्देश्य से निर्मित किया जाता है।
(b) सभी लोग स्वत: ही किसी न किसी समुदाय का सदस्य बन जाते हैं परन्तु समिति की सदस्यता ऐच्छिक होती है अर्थात् व्यक्ति जब चाहे किसी समिति की सदस्यता ले तथा छोड़ सकता है।

प्रश्न 6.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
सामाजिक समूह व्यक्तियों का संगठन है जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों के मध्य अंतः क्रियाएँ पाई जाती हैं। इसमें वे व्यक्ति आते हैं, जो एक दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं, और अपने को अलग सामाजिक इकाई मानते हैं। समूह में सदस्यों की संख्या को दो से सौ व्यक्तियों की श्रेणी में रखा जा सकता है। इसके साथ, सामाजिक समूह की प्रकृति गतिशील होती है, इसकी गतिविधियों में समय-समय पर परिवर्तन आता रहता है। सामाजिक समूह के अन्तर्गत व्यक्तियों में अंतक्रियाएँ व्यक्तियों को अन्यों से पहचान के लिए भी प्रेरित करती हैं। समूह, आमतौर पर स्थिर तथा सामाजिक इकाई है। उदाहरण के लिए, परिवार, समुदाय, गाँव आदि, समूह विभिन्न संगठित क्रियाएँ करते हैं, जोकि समाज के लिए महत्त्वपूर्ण हैं।

(i) सामाजिक समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या भीड़ को समूह कहा जा सकता है ? यदि नहीं तो क्यों ?
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
(i) व्यक्तियों के उस संगठन को सामाजिक समूह कहा जाता है, जिसमें व्यक्तियों के बीच अन्तक्रियाएँ पाई जाती हैं। जब लोग एक-दूसरे के साथ अन्तक्रियाएं करते हैं तो उनके बीच समूह का निर्माण होता है।
(ii) जी नहीं, भीड़ को समूह नहीं कहा जा सकता क्योंकि भीड में लोगों के बीच अन्तक्रिया नहीं होगी।
अगर अन्तक्रिया नहीं होगी तो उनमें संबंध नहीं बन पाएंगे। जिस कारण समूह का निर्माण नहीं हो पाएगा।
(iii) प्राथमिक समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा सीधा, प्रत्यक्ष ब रोज़ाना का संबंध होता है उसे हम प्राथमिक समूह कहते हैं। जैसे-परिवार, मित्र समूह, स्कूल इत्यादि। द्वितीय समूह-वह समूह जिसके साथ हमारा प्रत्यक्ष व रोज़ाना का संबंध नहीं होता उसे हम द्वितीय
समूह कहते हैं। जैसे कि मेरे पिता का ऑफिस।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 7.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर देंद्वितीय समूह लगभग प्राथमिक समूह के विपरीत होते हैं। कूले ने द्वितीय समूह के बारे में नहीं बताया, जब वह प्राथमिक समूह के सम्बन्ध में बता रहे थे। बाद में, विचारकों ने प्राथमिक समूह से द्वितीय समूह के विचार को समझा। द्वितीय समूह वे समूह हैं, जो आकार में बड़े होते हैं तथा थोड़े समय के लिए होते हैं। सदस्यों में विचारों का आदान-प्रदान औपचारिक, उपयोग-आधारित, विशेष तथा अस्थायी होता है। क्योंकि इसके सदस्य अपनी-अपनी, भूमिकाओं तथा किये जाने वाले कार्यों के कारण ही आपस में जुड़ें होते हैं। दुकान के मालिक एवं ग्राहक, क्रिकेट मैच में इकट्टे हुए लोग तथा औद्योगिक संगठन इसके उत्तम उदाहरण हैं। कारखाने के मजदूर, सेना, कॉलेज का विद्यार्थी-संगठन-विश्व-विद्यालय के विद्यार्थी, एक राजनैतिक दल आदि भी द्वितीय समूह के अन्रा उदाहरण हैं।

(i) द्वितीय समूह का क्या अर्थ है ?
(ii) द्वितीय समूह की कुछ उदाहरण दें।
(iii) प्राथमिक व द्वितीय समूहों में दो अंतर दें।
उत्तर-
(i) वह समूह जिनके साथ हमारा सीधा व प्रत्यक्ष संबंध नहीं होता, जिनकी सदस्यता हम अपनी इच्छा से ग्रहण करके कभी भी छोड़ सकते हैं, उसे द्वितीय समूह कहा जा सकता है।
(ii) पिता का दफ़तर, माता का ऑफिस, पिता का मित्र समूह, राजनीतिक दल, कारखाने के मजदूर इत्यादि द्वितीय समूह की उदाहरण हैं।
(iii) (a) प्राथमिक समूह आकार में काफ़ी छोटे होते हैं परन्तु द्वितीय समूह आकार में काफी बड़े होते हैं।
(b) प्राथमिक समूह के सदस्यों के बीच अनौपचारिक व प्रत्यक्ष संबंध होते हैं परन्तु द्वितीय समूह के सदस्यों के बीच औपचारिक व अप्रत्यक्ष संबंध होते हैं।

प्रश्न 8.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
संस्कृतियां एक समाज से दूसरे समाज तक भिन्नता रखती हैं तथा हर एक संस्कृति के अपने मूल्य तथा मापदण्ड होते हैं। सामाजिक मूल्य समाज द्वारा मान्यता प्राप्त व्यवहारों के नियम हैं जबकि मूल्य से अभिप्राय, उस सामान्य पक्ष से है कि “क्या ठीक है या अभिलाषित व्यवहार है” तथा “क्या नहीं होना चाहिए”मान्य से संबंधित है। उदाहरण के लिए किसी एक संस्कृति में सत्कार को उच्च सामाजिक मूल्य माना जाता है जबकि अन्य समाज मे ऐसा नहीं होता। सामान्यतः कुछ समाजों में बहुपत्नी प्रथा को एक पारम्परिक रूप का विवाह माना जाता है जबकि अन्य समाजों में इसे एक उपयुक्त प्रथा नहीं माना जाता।

(i) संस्कृति का क्या अर्थ है ?
(ii) क्या दो देशों की संस्कृति एक सी हो सकती है?
(iii) संस्कृति के प्रकार बताएं।
उत्तर-
(i) आदिकाल से लेकर आज तक जो कुछ भी मनुष्य ने अपने अनुभव से प्राप्त किया है, उसे संस्कृति कहते हैं। हमारे विचार अनुभव, विज्ञान, तकनीक, वस्तुएं, मूल्य, परंपराएं इत्यादि सब कुछ संस्कृति का ही हिस्सा हैं।
(ii) जी नहीं, दो देशों की संस्कृति एक सी नहीं हो सकती। चाहे दोनों देशों के लोग एक ही धर्म से क्यों न संबंध रखते हों, उनके विचारों, आदर्शों, मूल्यों इत्यादि में कुछ न कुछ अंतर अवश्य रहता है। इस कारण उनकी संस्कृति भी अलग होती है।
(iii) संस्कृति के दो प्रकार होते हैं-
(a) भौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख व स्पर्श कर सकते हैं, भौतिक संस्कृति कहलाता है। उदाहरण के लिए कार, मेज़, कुर्सी, पुस्तकें, पैन, इमारतें इत्यादि। (b) अभौतिक संस्कृति-संस्कृति का वह भाग जिसे हम देख या स्पर्श नहीं कर सकते, उसे अभौतिक संस्कृति कहते हैं। उदाहरण के लिए हमारे मूल्य, परंपराएं, विचार, आदर्श इत्यादि।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 9.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
जीवन के विभिन्न स्तरों के दौरान व्यक्ति भिन्न-भिन्न संस्थाओं, समुदायों तथा व्यक्तियों के संपर्क में आता है। अपने संपूर्ण जीवन के दौरान वे बहुत कुछ सीखता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में विभिन्न अभिकरण तथा संगठन महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं तथा संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का संस्थापन करते हैं। प्रत्येक समाज के समाजीकरण के अभिकरण होते हैं जैसे व्यक्ति, समूह, संगठन तथा संस्थाएं जो कि जीवन क्रम के समाजीकरण के लिए पर्याप्त मात्रा प्रदान करते हैं। अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसके द्वारा स्वयं विचारों, विश्वासों एवं संस्कृति के व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेक स्थानों को ढूंढ़ने में सहायता करते हैं उसी प्रकार जैसे वे समाज के वृद्धावस्था को नई जिम्मेदारियों के लिए तैयार करते हैं।

(i) समाजीकरण का क्या अर्थ है ?
(ii) समाजीकरण के साधनों के नाम बताएं।
(iii) अभिकरण क्या है ?
उत्तर-
(i) समाजीकरण एक सीखने की प्रक्रिया है। पैदा होने से लेकर जीवन के अंत तक मनुष्य कुछ न कुछ सीखता रहता है जिसमें जीवन जीने व व्यवहार करने के तरीके शामिल होते हैं। इस सीखने की प्रक्रिया को हम समाजीकरण कहते हैं।
(ii) परिवार, स्कूल, खेल समूह, राजनीतिक संस्थाएं, मूल्य, परम्पराएं इत्यादि समाजीकरण के साधन अथवा अभिकरण के रूप में कार्य करती हैं।
(iii) अभिकरण वह क्रिया विधि है जिसकी सहायता से व्यक्ति विचारों विश्वास व संस्कृति में व्यावहारिक प्रारूपों को सीखता है। अभिकरण नए सदस्यों को समाजीकरण की सहायता से अनेकों स्थानों को ढूंढने में सहायता करते हैं। इस प्रकार वृद्धावस्था में नए उत्तरदायित्वों को संभालने को तैयार होता है।

प्रश्न 10.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
यद्यपि धर्म की महत्ता लोगों में अब कम हो गई है जबकि कुछ पीढ़ियां पहले, यह हमारे विचारों, मूल्यों और व्यवहारों को भी काफी प्रभावित करती थीं। भारत जैसे देश में धर्म हमारे जीवन के हर पक्ष को नियंत्रित करता है और यह समाजीकरण का एक शक्तिशाली अभिकर्ता (एजेंट) होता है।
कई प्रकार के धार्मिक संस्कार एवं कर्मकाण्ड, विश्वास एवं श्रद्धा, मूल्य एवं मापदण्ड धर्म के अनुसार ही एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होते हैं। धार्मिक त्योहार आमतौर पर सामूहिक रूप से निभाये जाते हैं जोकि समाजीकरण की प्रक्रिया में सहायता करते हैं। धर्म के सहारे ही एक बच्चा एक अलौकिक शक्ति (भगवान) के बारे में सीखता है कि यह हमें बुरी आत्माओं तथा बुराई से बचाती है। यह देखा जाता है कि अगर एक व्यक्ति के माता-पिता धार्मिक होते हैं तो जब एक बच्चा बड़ा होगा वो भी धार्मिक बनता जाएगा।

(i) धर्म क्या है ?
(ii) धर्म की समाजीकरण में क्या भूमिका है ?
(iii) क्या आज धर्म का महत्त्व कम हो रहा है ? यदि हाँ तो क्यों ?
उत्तर-
(i) धर्म और कुछ नहीं बल्कि एक अलौकिक शक्ति में विश्वास है जो हमारी पहुँच से बहुत दूर है। यह विश्वासों, मूल्यों, परंपराओं इत्यादि की व्यवस्था है जिसमें इस धर्म के अनुयायी विश्वास करते हैं।
(ii) धर्म का समाजीकरण में काफी महत्त्व है क्योंकि व्यक्ति धर्म के मूल्यों, परंपराओं के विरुद्ध कोई कार्य नहीं करता । बचपन से ही बच्चों को धार्मिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है जिस कारण व्यक्ति शुरू से ही अपने धर्म से जुड़ जाता है। वह कोई ऐसा कार्य नहीं करता जो धार्मिक परंपराओं के विरुद्ध हो। इस प्रकार धर्म व्यक्ति पर नियन्त्रण भी रखता है और उसका समाजीकरण भी करता है।
(iii) यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। लोग आजकल अधिक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं व विज्ञान की तरफ उनका झुकाव काफी बढ़ रहा है। परन्तु धर्म में तर्क का कोई स्थान नहीं होता जो विज्ञान में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इस प्रकार लोग अब धर्म के स्थान पर विज्ञान को महत्त्व दे रहे हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions स्रोत आधारित प्रश्न

प्रश्न 11.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें-
विवाह महिलाओं एवं पुरुषों की शारीरिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करने के लिए निर्मित एक संस्था है। यह पुरुष एवं महिला को परिवार निर्मित करने हेतु एक दूसरे से सम्बन्ध स्थापित करने की अनुमति देता है। विवाह का प्राथमिक उद्देश्य स्थायी सम्बन्धों के द्वारा यौनिक क्रियाओं को नियन्त्रित करना है। सरल शब्दों में, विवाह को एक ऐसी संस्था के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो पुरुषों एवं महिलाओं को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देने तथा पति, पत्नी तथा बच्चों से सम्बन्धित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है। समाज एक पुरुष एवं महिला के मध्य वैवाहिक सम्बन्धों को एक धार्मिक संस्कार के रूप में अपनी अनुमति प्रदान करता है। विवाहित दंपति एक दूसरे के प्रति तथा सामान्य तौर पर समाज के प्रति अनेक दायित्वों का निर्वाह करते हैं। विवाह एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक उद्देश्य को भी पूरा करता है यह उत्तराधिकार से सम्बद्ध सम्पत्ति अधिकार को परिभाषित करता है। इस प्रकार, हम समझ सकते हैं कि विवाह एक पुरुष और महिला के बीच बहु-आयामी सम्बन्धों को व्यक्त करता है।

(i) विवाह का क्या अर्थ है ?
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को क्या कहते हैं ?
(iii) क्या आजकल विवाह का महत्त्व कम हो रहा है ?
उत्तर-
(i) विवाह एक ऐसी संस्था है जो पुरुष-स्त्री को पारिवारिक जीवन में प्रवेश करने, बच्चों को जन्म देना तथा पति-पत्नी व बच्चों से संबंधित विभिन्न अधिकारों और दायित्वों का निर्वाह करने की अनुमति प्रदान करता है।
(ii) हिन्दू धर्म में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है क्योंकि विवाह बहुत से धार्मिक अनुष्ठान करके पूर्ण किया जाता है।
(iii) जी हाँ, यह सत्य है कि आजकल धर्म का महत्त्व कम हो रहा है। आजकल विवाह को धार्मिक
संस्कार न मानकर समझौता माना जाता है जिसे कभी भी तोड़ा जा सकता है। आजकल तो बहुत से युवक व युवतियों ने बिना विवाह किए इक्ट्ठे रहना शुरू कर दिया है जिससे विवाह का महत्त्व कम हो रहा है।

प्रश्न 12.
निम्न दिए स्रोत को पढ़ें व साथ दिए प्रश्नों के उत्तर दें
परिवार का अध्ययन इसलिये महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुषों और स्त्रियों तथा बच्चों को एक स्थाई सम्बन्धों में बांधकर मानव समाज के निर्माण में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। संस्कृति का हस्तान्तरण परिवारों के भीतर होता है। सामाजिक प्रतिमानों, प्रथाओं तथा मूल्यों के विषय में सांस्कृतिक समझ तथा ज्ञान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होते हैं। एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में, ऐसे परिवार को समरक्त परिवार कहते हैं जिसके सदस्य रक्त सम्बन्धों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े होते हैं जैसे भाई एवं बहिन तथा पिता और पुत्र इत्यादि।वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है उसे ‘प्रजनन का परिवार’ या दापत्यमूलक परिवार कहते हैं जो ऐसे व्यस्क सदस्यों से निर्मित होता है जिनके बीच यौनिक सम्बन्ध होते हैं।

(i) परिवार किसे कहते हैं ?
(ii) जन्म का परिवार व दापत्यमूलक परिवार किसे कहते हैं ? ।
(ii) परिवार का अध्ययन क्यों महत्त्वपूर्ण है ?
उत्तर-
(i) परिवार पुरुष व स्त्री के मेल से बनी ऐसी संस्था है जिसमें उन्हें लैंगिक संबंध स्थापित करने, संतान उत्पन्न करने व उनका भरण पोषण करने की आज्ञा होती है।
(ii) एक परिवार जिसमें बच्चा जन्म लेता है उसे जन्म का परिवार कहते हैं। वह परिवार जो विवाह के बाद निर्मित होता है इसे दापत्यमूलक अथवा प्रजनन परिवार कहते हैं।
(iii) परिवार का अध्ययन काफी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह पुरुष, स्त्री व बच्चों को एक स्थायी बंधन में बाँधकर रखता है। इससे परिवार समाज निर्माण मे महत्त्वपूर्ण योगदान देता है। परिवार ही संस्कृति के हस्तांतरण में सहायता करता है। सामाजिक प्रथाओं, प्रतिमानों, व्यवहार करने के तरीकों में हस्तांतरण में भी परिवार समाज की सहायता करता है। इस प्रकार परिवार हमारे जीवन में व समाज निर्माण में सहायक होता है।