PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science Civics Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार

SST Guide for Class 6 PSEB ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार Textbook Questions and Answers

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न I.
ग्रामीण स्थानीय सरकार की इकाइयों का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम कितनी आयु होनी चाहिए?
(क) 20 साल
(ख) 22 साल
(ग) 21 साल।
उत्तर-
21 साल।

प्रश्न II.
मतदाताओं (वोटरों) द्वारा पंचायत समिति में सीधे चुने जाने वाले सदस्यों की कम से कम तथा अधिक से अधिक संख्या कितनी हो सकती है?
(क) 9 से 25
(ख) 15 से 25
(ग) 6 से 29।
उत्तर-
15 से 251

प्रश्न III.
मतदाताओं (वोटरों) द्वारा जिला परिषद् में सीधे चुने जाने वाले सदस्यों की कम से कम तथा अधिक से अधिक संख्या कितनी हो सकती है?
(क) 10 से 25
(ख) 12 से 25
(ग) 14 से 25।
उत्तर-
10 से 25।

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प्रश्न IV.
पंचायत की आय-व्यय का हिसाब रखने वाले कर्मचारी को क्या कहते हैं?
(क) अधीक्षक (सुपरिन्टेंडेंट)
(ख) सचिव।
उत्तर-
सचिव।

I. नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखो

प्रश्न 1.
भारत में गाँवों की संख्या कितनी है?
उत्तर-
लगभग 6 लाख।

प्रश्न 2.
पंचायती राज्य का क्या अर्थ है?
उत्तर-
गाँवों की तीन स्तरों वाली स्थानीय शासन व्यवस्था को पंचायत राज्य अथवा पंचायती राज कहते हैं। सबसे निचले स्तर पर ग्राम पंचायत होती है। यह गाँव की स्थानीय सरकार है। इससे ऊपर पंचायत समिति और सबसे ऊपर जिला परिषद् होती है। पंचायत समिति जिला परिषद् तथा ग्राम पंचायत के बीच कड़ी का काम करती है।

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प्रश्न 3.
पंचायती राज्य की प्रारम्भिक तथा उच्च संस्था के नाम लिखो।
उत्तर-
पंचायती राज की प्रारम्भिक संस्था ग्राम पंचायत है। इसकी उच्च संस्था ज़िला परिषद् है।

प्रश्न 4.
पंजाब में ग्राम पंचायत के सदस्यों की (कम-से-कम और अधिक-सेअधिक) संख्या कितनी होती है?
उत्तर-
कम-से-कम 5 और अधिक-से-अधिक 13

प्रश्न 5.
ज़िला परिषद् के दो कार्य लिखो।
उत्तर-
जिला परिषद् की स्थापना ग्राम विकास के लिए की जाती है।

  1. इसका मुख्य कार्य पंचायत समितियों की देखभाल करना तथा उनमें तालमेल बनाए रखना है। यह सरकार तथा पंचायत समितियों के बीच कड़ी का काम करती है।
  2. यह सरकार को विकास कार्यों के बारे में राय देती है।

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प्रश्न 6.
वर्तमान समय में गांवों में कौन-कौन सी सुविधाएं उपलब्ध हैं?
उत्तर-
वर्तमान समय में भारत सरकार के प्रयत्नों से गाँवों में निम्नलिखित अनेक सुविधाएं उपलब्ध हैं –

1. शिक्षा का प्रसार-शिक्षा के प्रसार के लिए स्कूल और कॉलेज खोले गए हैं। 14 वर्ष तक की आयु के बच्चों के लिए निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है। अशिक्षित प्रौढ़ों के लिए ‘प्रौढ़ शिक्षा केन्द्र’ स्थापित किए गए हैं।

2. कृषि का विकास-ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। आजादी के बाद कृषि के विकास के लिए कृषि विश्वविद्यालय की स्थापना की गई । यहाँ कृषि के लिए उत्तम बीजों की खोज की जाती है। कृषकों के लिए वर्ष में एक बार प्रदर्शनी लगाई जाती है। इसमें कृषि वैज्ञानिक किसानों को उन्नत कृषि के लिए परामर्श देते हैं। किसानों को उत्तम किस्म के बीजों और फ़सलों के लिए आवश्यक कीटनाशक दवाइयों का वितरण किया जाता है। इससे उपज में वृद्धि हुई है।
भारत सरकार ने भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करके चकबन्दी भी कर दी है ताकि मशीनों द्वारा कृषि की जा सके।

3. स्त्री शिक्षा तथा स्वास्थ्य-गाँवों में स्त्री शिक्षा में विस्तार के लिए लड़कियों को विशेष सुविधाएं दी जा रही हैं। लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए प्राइमरी स्वास्थ्य केन्द्र खोले गए हैं। इन केन्द्रों में ग्रामीण लोगों को हर प्रकार की डॉक्टरी सहायता दी जाती है।

4. अन्य परिवर्तन –
(i) फ़सलों के मंडीकरण के लिए देश के लगभग सभी गाँवों को पहुँच मार्ग द्वारा राजमार्गों से जोड़ने के प्रयत्न किए गए हैं।
(ii) केन्द्र और राज्य सरकार द्वारा गाँवों की आर्थिक स्थिति सुधारने के उद्देश्य से ग्रामीणों को लघु उद्योग लगाने के लिए सस्ते दर पर ऋण दिए जाते हैं।
(iii) गांवों में पीने के पानी का प्रबन्ध और विद्युतीकरण करने के हर सम्भव प्रयत्न किए जा रहे हैं।
(iv) सहकारी कृषि और सरकारी बैंकों के खुलने से भी कई गाँवों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है।

प्रश्न 7.
पंचायत की बनावट के बारे में संक्षेप नोट लिखो।
उत्तर-
ग्राम पंचायत 200 से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक गांव में बनाई जाती है। पंजाब में ग्राम पंचायत के सदस्यों की संख्या 5 से 13 तक हो सकती है।
पंचों का चुनाव-ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव ग्राम सभा के सदस्यों (जिनकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो) द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। प्रत्येक ग्राम पंचायत में स्त्रियों के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित रखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त पिछड़ी जातियों तथा कबीलों के सदस्यों की संख्या उनकी जनसंख्या तथा गांव की कुल जनसंख्या के अनुपात के अनुसार निश्चित की जाती है।

सरपंच – प्रत्येक ग्राम पंचायत में एक सरपंच होता है। उसका चुनाव भी ग्राम सभा के सदस्य प्रत्यक्ष रूप से करते हैं।
पंचायत सचिव-पंचायत के कार्यों में सहायता के लिए एक सरकारी कर्मचारी भी होता है जिसे पंचायत सचिव कहते हैं। वह पंचायत के आय व्यय का हिसाब रखता है। वह पंचायत के कार्यों की रिपोर्ट तैयार करके ब्लॉक पंचायत के अधिकारी को देता है।

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प्रश्न 8.
ग्राम सभा से क्या तात्पर्य है? ग्राम सभा और ग्राम पंचायत में क्या अंतर है?
उत्तर-
ग्राम सभा ग्राम पंचायत का चुनाव करने वाली एक सभा होती है। 18 वर्ष या इससे अधिक आयु वाले सभी ग्रामीण इसके सदस्य होते हैं। इसके सदस्य ही मतदान द्वारा ग्राम पंचायत के सदस्यों का चुनाव करते हैं। इसके विपरीत ग्राम पंचायत, ग्राम सभा द्वारा चुनी गई एक समिति होती है। यह गाँव की उन्नति के लिए कार्य करती है। इसे अपने हिसाब-किताब को हर साल ग्राम सभा के सामने रखना पड़ता है।

प्रश्न 9.
पंचायत समिति का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कौन-सा है?
उत्तर-
पंचायत समिति का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य सम्बन्धित ग्राम पंचायतों के लिए आवश्यक नियम बनाना और गांवों में नागरिक सुविधाएं प्रदान करना है।

प्रश्न 10.
आपके क्षेत्र की पंचायत समिति अपने ब्लॉक के वातावरण को सुधारने के लिए क्या करती है?
उत्तर-
पंचायत समिति अपने ब्लॉक की पंचायतों के विकास तथा ब्लॉक के वातावरण को सुधारने के लिए कई प्रकार के कार्य करती है। इसके मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं –

1. कृषि का विकास-(i) पंचायत समिति अपने क्षेत्र में कृषि की उपज बढ़ाने के लिए उत्तम बीजों और खाद वितरण का कार्य करती है। (ii) इसके अतिरिक्त यह कृषि कार्यों के लिए ऋण देने, अधिक भूमि को सिंचाई योग्य बनाने तथा कृषि के लिए अधिक बिजली देने के कार्य भी करती है।

2. पशु एवं मत्स्य पालन-पंचायत समिति अपने क्षेत्र में पशु एवं मत्स्य पालन को बढ़ावा देती है। इसका उद्देश्य दूध, अण्डे, मांस आदि की आपूर्ति को बढ़ाना है।

3. यातायात-पंचायत समिति सड़कों तथा पुलियों को बनवाने तथा उनकी मुरम्मत , कार्य करती है।

4. स्वास्थ्य तथा सफ़ाई-पंचायत समिति गांवों में स्वास्थ्य तथा स्वच्छता के कार्य ती है। यह ग्रामीणों को पीने के लिए स्वच्छ जल की सुविधाएं प्रदान करती है और उन्हें स्थ्य सम्बन्धी शिक्षा देती है।
(1) इसके अतिरिक्त यह हानिकारक कीटों को नष्ट करती है।
(2) यह ग्रामीणों को धुआं रहित चूल्हों का प्रयोग करने के लिए भी प्रेरित करती है।

5. सामाजिक शिक्षा-पंचायत समिति लोगों को नागरिक शिक्षा देने के लिए मनोरंजन न्द्रों तथा पुस्तकालयों की व्यवस्था करती है। यह शारीरिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रोत्साहन देती है।

6. ग्रामीण एवं लघु उद्योग-इनमें हथकरघा, विद्युत् करघा, खादी, रेशम के कीड़े लना आदि लघु उद्योग आते हैं। पंचायत समिति इन उद्योगों को उन्नत बनाने का प्रयास रती है।

7. प्रशासनिक कार्य-पंचायत समिति अपने क्षेत्र की पंचायतों के कार्यों की ख-रेख करती है। ये उन्हें आदेश भी दे सकती है और सलाह भी दे सकती है।

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I. नीचे लिखे रिक्त स्थान भरो

  1. भारत में ……… राज्य और ……… केन्द्र प्रशासित क्षेत्र हैं।
  2. पंचायत समिति पंचायती राज्य की ……… संस्था है।
  3. ग्राम पंचायत और पंचायत समिति का कार्यकाल ……… साल होता है।
  4. पंजाब में ……… जिला परिषद् हैं।
  5. पंचायती राज्य की सबसे ऊंची संस्था ……… है।

उत्तर-

  1. 28, 8
  2. मध्य की
  3. 5
  4. 22
  5. जिला परिषद्।

II. निम्नलिखित वाक्यों पर सही (✓) या ग़लत (✗) का निशान लगाओ

  1. अंग्रेज़ी राज्य के समय गांवों की आर्थिक दशा बहुत खराब थी।
  2. ग्राम पंचायत में स्त्रियों के लिए सीटें आरक्षित नहीं होती।
  3. जिला प्रबन्ध को ठीक प्रकार से चलाने के लिए अलग-अलग विभागों के जिला अधिकारी होते हैं।
  4. जिला परिषद् को जिला पंचायत भी कहा जाता है।
  5. पंचायत/ब्लॉक समिति 100 गांवों के लिए बनाई जाती है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✓)
  5. (✓)

PSEB 6th Class Social Science Guide ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज का क्या उद्देश्य है?
उत्तर-
ग्रामीण विकास।

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प्रश्न 2.
भारत में अक्तूबर 2019 में एक राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदिया गया है। उस राज्य का क्या नाम था?
उत्तर-
जम्मू कश्मीर।

प्रश्न 3.
ग्राम पंचायत का मुखिया सरपंच कहलाता है। उसका चुनाव कौन कर है?
उत्तर-
मतदाता (वोटर)।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचायती राज के अन्तर्गत महिलाओं के लिए आरक्षित अंश कितना है
उत्तर-
पंचायती राज के अन्तर्गत महिलाओं के लिए कम-से-कम एक तिहाई (1/3 4 स्थान आरक्षित होते हैं।

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प्रश्न 2.
पंचायतों की आय के दो प्रमुख साधन बताओ।
उत्तर-
सरकारी अनुदान और सार्वजनिक सम्पत्ति की बिक्री से प्राप्त आय।

प्रश्न 3.
गांवों में छोटे-छोटे झगड़ों का फैसला किस संस्था द्वारा किया जाता है ।
उत्तर-
गांवों में छोटे-छोटे झगड़ों का फैसला न्याय पंचायत द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 4.
ग्राम पंचायत के प्रधान को क्या कहते हैं?
उत्तर-
सरपंच।

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प्रश्न 5.
पंचायत समिति के अध्यक्ष का चनाव कौन करता है?
उत्तर-
पंचायत समिति के सभी सदस्य मिलकर एक अध्यक्ष का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 6.
सामुदायिक विकास का सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकारी किसे माना जातः ।
उत्तर-
खण्ड विकास अधिकारी (बी० डी० ओ०) सामुदायिक विकास का सब महत्त्वपूर्ण अधिकारी होता है।

प्रश्न 7.
जिला परिषद् के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को उनके कार्यकाल के दौरा किस प्रकार हटाया जा सकता है?
उत्तर-
जिला परिषद् के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।

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प्रश्न 8.
अंग्रेज़ी राज्य में गांवों की अवस्था कैसी थी?
उत्तर-
अंग्रेजी राज्य में भारत के गांवों की दशा दयनीय थी। सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण गांवों की आत्मनिर्भरता भंग हो गई और गांव पिछड़ गए। उनकी आर्थिक स्थिति डावांडोल हो गई। किसान ऋण से घिर गया।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्राम पंचायत के प्रधान का चुनाव कैसे होता है? उसके दो प्रमुख कार्यों “का उल्लेख करो।
उत्तर-
पंचायतों के प्रधान को कुछ राज्यों में गांव की वयस्क जनता चुनती है। परन्तु कुछ स्थानों पर इसका चुनाव ग्राम पंचायत द्वारा किया जाता है। उसे प्रायः सरपंच कहा जाता है। पंचायत का प्रधान मुख्य रूप से दो कार्य करता है –

  1. वह पंचायत की बैठकें बुलाता है।
  2. वह पंचायत की बैठकों का सभापतित्व करता है।

प्रश्न 2.
ग्राम पंचायतों की आय के साधन कौन-कौन से हैं? वे इस धन को किस प्रकार खर्च करती हैं?
उत्तर-
आय के साधन-पंचायतों की आय के अनेक साधन हैं –

  1. मेलों और दुकानों से प्राप्त कर।
  2. पशु-मेलों में पशुओं के क्रय-विक्रय की रजिस्ट्री फीस।
  3. गांव के मकानों पर कर।
  4. सरकार से प्राप्त अनुदान।
  5. सार्वजनिक सम्पत्ति का विक्रय।
    धन का व्यय-ग्राम पंचायतें अपनी आय को गांवों के विकास कार्यों पर खर्च करती हैं।

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प्रश्न 3.
न्याय पंचायत में किस प्रकार के मुकद्दमों की सुनवाई होती है?
उत्तर-
न्याय पंचायत में केवल निम्न स्तर के दीवानी और फौजदारी मुकद्दमों की सुनवाई होती है। न्याय पंचायतों को जुर्माना करने का अधिकार है परन्तु जेल भेजने का अधिकार नहीं है। न्याय पंचायतों में वकील आदि की आवश्यकता नहीं होती। यदि कोई व्यक्ति न्याय पंचायत के फैसले से सन्तुष्ट न हो तो वह ऊपरी अदालतों में जा सकता है।

प्रश्न 4.
पंचायतें गांव की भलाई के लिए कौन-कौन से कार्य करती हैं?
उत्तर-
पंचायतें मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करती हैं –
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 20 ग्रामीण विकास और स्थानीय सरकार 1

  1. गांव की गलियां पक्की करवाना तथा उनकी मरम्मत करवाना।
  2. पीने के पानी का प्रबन्ध करना।
  3. गांव में सफ़ाई का प्रबन्ध करना तथा बीमारियों की रोकथाम करना।
  4. गांव में प्रकाश का प्रबन्ध करना।
  5. गांव के छोटे-छोटे झगड़ों का निपटारा करना।

प्रश्न 5.
खण्ड विकास एवं पंचायत अधिकारी (बी० डी० पी० ओ०) की ग्राम विकास में क्या भूमिका है?
उत्तर-
खण्ड विकास एवं पंचायत अधिकारी निम्नलिखित कार्य करता है –

  1. वह पंचायत समिति के निर्णयों को लागू करता है।
  2. वह विकास योजनाओं को कार्य रूप देता है।
  3. वह ग्रामीण विकास कार्यों में मार्ग-दर्शन करता है।

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प्रश्न 6.
जिला परिषद् के कार्यों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
ज़िला-परिषद् की स्थापना ग्राम विकास के लिए की जाती है। इसका मुख्य कार्य पंचायत समितियों की देखभाल करना तथा उनमें तालमेल बनाए रखना है। यह सरकार तथा पंचायत समितियों के बीच कड़ी का काम करती है। यह सरकार को विकास कार्यों के बारे में राय देती है।

प्रश्न 7.
ग्राम सभा से क्या अभिप्राय है? यह कौन-कौन से कार्य करती है?
उत्तर-
ग्राम सभा में गांव के 18 वर्ष या इससे अधिक आयु के सदस्य शामिल होते हैं। इन सभी सदस्यों के नाम पंचायत क्षेत्र की मतदाता सूची में दर्ज होते हैं। गांव की सभी स्त्रियां तथा पुरुष जिनकी आयु 18 वर्ष अथवा इस से अधिक हो, ग्राम सभा के सदस्य होते हैं।
ग्राम सभा के कार्य –

  1. गाँव का बजट तैयार करना।
  2. पंचायत की वार्षिक रिपोर्ट की समीक्षा करना।
  3. आगामी वर्ष के लिए विकास योजनाएं बनाना।

प्रश्न 8.
पंचायत को विशेष अनुदान क्यों मिलता है?
उत्तर-
पंचायतों को ग्रामीण विकास के लिए अनेक कार्य करने पड़ते हैं। परन्तु उनकी आय के स्रोत कम हैं। इसलिए पंचायत को राज्य सरकार की ओर से विशेष अनुदान दिया जाता है।

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प्रश्न 9.
पंचायती राज प्रणाली में राज्य सरकार क्या भूमिका निभाती है?
उत्तर-
राज्य सरकारें पंचायतों तथा पंचायती राज को शक्तिशाली बनाने के लिए हर प्रकार की सहायता करती हैं। हमारे गांवों में अधिकतर लोग निर्धन तथा अशिक्षित हैं। अतः राज्य सरकार को पंचायती राज पर अधिक कठोरता से नियन्त्रण रखना पड़ता है। वह इसके कार्यों पर कड़ी निगरानी रखती है।

प्रश्न 10.
जिला परिषद् की रचना पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
ज़िला परिषद् की रचना इस प्रकार होती है –

1. सदस्यता-(1) ज़िला परिषद् के क्षेत्र में आने वाली सभी पंचायत समिति के अध्यक्ष जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। (2) सम्बन्धित जिले में पड़ने वाली विधान सभा, विधान परिषद् तथा संसद् के सदस्य भी जिला परिषद् के सदस्य होते हैं। (3) अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जन-जातियों तथा इनसे सम्बन्धित महिलाओं के लिए जिला परिषद में कुछ स्थान आरक्षित होते हैं।

2. अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष-ज़िला परिषद् के सदस्य निर्वाचित सदस्यों में से एक अध्यक्ष तथा एक उपाध्यक्ष का चुनाव करते हैं। जिला परिषद् उनके विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उन्हें पदच्युत भी कर सकती है।

3. जिला परिषद की कार्यावधि-ज़िला परिषद् की कार्यावधि 5 वर्ष की होती है। परन्तु यदि जिला परिषद् शक्तियों का दुरुपयोग करे अथवा राज्य सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों का उल्लंघन करे तो राज्य सरकार उसे समय से पूर्व भी भंग कर सकती है।

प्रश्न 11.
जिला परिषद् की आय के स्रोत कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
जिला परिषद् की आय के मुख्य स्रोत निम्नलिखित हैं –

  1. कर तथा अनुदान-पंचायत समितियों की भान्ति जिला परिषद् की आय भी करों तथा राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अनुदान पर निर्भर करती है।
  2. प्रशासन न्यास तथा दान-जिला परिषदों को प्रशासन न्यासों अथवा दान से आय होती है।
  3. किराए-ज़िला परिषदों को घरों अथवा दुकानों से किराए के रूप में कुछ आय प्राप्त हो जाती है।
  4. उद्योग चलाने के लिए अनुदान-ज़िला परिषदों को घरेलू, ग्रामीण तथा छोटे पैमाने के उद्योग चलाने के लिए सर्व भारतीय संस्थाओं से अनुदान मिल जाते हैं।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास

SST Guide for Class 10 PSEB भारत में कृषि विकास Textbook Questions and Answers

I. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दो

प्रश्न 1.
“भारत में कृषि रोजगार का मुख्य साधन है।” इस पर एक नोट लिखिए।
उत्तर-
हमारी अर्थ-व्यवस्था में कृषि रोज़गार का मुख्य स्रोत है। 2014-15 में कार्यशील जनसंख्या का 46.2% भाग कृषि कार्यों में लगा हुआ है।

प्रश्न 2.
भारत के मुख्य भूमि सुधार कौन-से हैं ? कोई एक लिखो।
उत्तर-

  1. ज़मींदारी प्रथा को समाप्त कन्ना।
  2. काश्तकारी प्रथा में सुधार
  3. भूमि की जोतों पर उच्चतम सीमा का निर्धारण
  4. भूमि की पूरे देश में चकबंदी की गई है।
  5. सहकारी खेती
  6. भूदान यज्ञ का आरम्भ।

प्रश्न 3.
हरित क्रान्ति से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति से आशय कृषि उत्पादन विशेष रूप से गेहूँ तथा चावल के उत्पादन में होने वाली उस भारी वृद्धि से है जो कृषि में अधिक उपज वाले 4 जों के प्रयोग की नई तकनीक अपनाने के कारण सम्भव हुई।

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प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति भारत की खाद्य समस्या के समाधान में किस प्रकार सहायक हुई है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के कारण 1967-68 और उसके बाद के वर्षों में फसलों के उत्पादन में बड़ी तीव्र गति से वृद्धि हुई। वर्ष 1967-68 में, जिसे हरित क्रान्ति का वर्ष माना जाता है, अनाज का उत्पादन बढ़कर 950 लाख टन हो गया था। 2017-18 में अनाज का उत्पादन 2775 लाख टन था।

II. लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

इन प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दें

प्रश्न 1.
भारतीय अर्थ-व्यवस्था में कृषि के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
भारतीय अर्थ-व्यवस्था के लिए कृषि का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है —

  1. आजीविका का प्रमुख स्त्रोत — इस व्यवसाय में भारत की कुल जनसंख्या का 46.2% भाग प्रत्यक्ष रूप से संलग्न है। अतः कृषि भारतीयों की आजीविका का प्रमुख साधन है।
  2. राष्ट्रीय आय में कृषि का योगदान — कृषि राष्ट्रीय आय में एक बड़ा भाग प्रदान करती है। राष्ट्रीय आय का लगभग 15.3% भाग कृषि से ही प्राप्त होता है।
  3. रोज़गार का साधन — भारतीय कृषि भारत की श्रम संख्या के सर्वाधिक भाग को रोज़गार प्रदान करती है और करती रहेगी।
  4. उद्योगों का योगदान — भारत के अनेक उद्योग कच्चे माल के लिए कृषि पर ही आधारित हैं, जैसे-सूती वस्त्र, जूट, चीनी, तिलहन, हथकरघा, वनस्पति घी इत्यादि सभी उद्योग कृषि पर ही तो आधारित हैं।
  5. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में योगदान — भारत अपने कुल निर्यात का प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से 18% भाग कृषि उपजों से बने पदार्थों के रूप में निर्यात करता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास

PSEB 10th Class Social Science Guide भारत में कृषि विकास Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
कृषि क्या है?
उत्तर-
फसलों को उगाने की कला व विज्ञान है।

प्रश्न 2.
भारत का कोई एक भूमि पुधार बताएं।
उत्तर-
काश्तकारी प्रथा में सुधार।

प्रश्न 3.
दालों का अधिकतम उत्पादक देश कौन-सा है?
उत्तर-
भारत।

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प्रश्न 4.
व्यावसायिक कृषि का एक उपकरण बताएं।
उत्तर-
आधुनिक तकनीक।

प्रश्न 5.
भारतीय कृषि विकास के लिए एक उपाय बताएं।
उत्तर-
सिंचाई सुविधाओं में वृद्धि।

प्रश्न 6.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन का कारण बताएं।
उत्तर-
खेतों का छोटा आकार।

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प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति का श्रेय किसे दिया जाता है?
उत्तर-
डॉ० नॉरमेन वेरलोग तथा डॉ० एम० एन० स्वामीनाथन।

प्रश्न 8.
भारत में हरित क्रान्ति के लिए उत्तरदायी एक तत्त्व बताएं।
उत्तर-
आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग।

प्रश्न 9.
हरित क्रान्ति का एक लाभ बताएं।
उत्तर-
खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि।

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प्रश्न 10.
हरित क्रान्ति का एक दोष बताएं।
उत्तर-
कुछ फसलों तक सीमित।

प्रश्न 11.
हरित क्रान्ति कब आई थी?
उत्तर-
1967-68 में।

प्रश्न 12.
भारत में सिंचाई का मुख्य साधन क्या है?
उत्तर-
भूमिगत जल।

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प्रश्न 13.
भारतीय राष्ट्रीय आय में कृषि का मुख्य अंश कितना है?
उत्तर-
17.4 प्रतिशत।

प्रश्न 14.
2007-08 में जी० डी० पी० में कृषि का योगदान कितना था?
उत्तर-
15.3 प्रतिशत।

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति क्या है?
उत्तर-
एक कृषि नीति जिसका उपयोग फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

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प्रश्न 16.
भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या अब जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है?
उत्तर-
लगभग 49 प्रतिशत।

प्रश्न 17.
भारत में हरित क्रान्ति का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
किसानों की दशा में सुधार।

प्रश्न 18.
औद्योगिक विकास में कृषि के योगदान को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उद्योगों को कच्चा माल कृषि क्षेत्र से प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त कृषि बहुत-सी औद्योगिक वस्तुओं के लिए बाजार का स्रोत है।

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प्रश्न 19.
भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
भूमि पर जनसंख्या के बढ़ते दबाव से तात्पर्य है कि प्रति वर्ष आने वाली नई श्रम शक्ति को रोजगार प्राप्त नहीं हो पाता है जिससे वे कृषि पर निर्भर हो जाते हैं।

प्रश्न 20.
आधुनिक कृषि तकनीक से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
आधुनिक कृषि तकनीक से अभिप्राय रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशक दवाइयों, उत्तम बीजों व समय पर सिंचाई के उपयोग से सम्बन्धित है।

प्रश्न 21.
भारत में कृषि के पिछड़ेपन के दो कारण लिखिए।
उत्तर-

  1. सिंचाई सुविधाओं की कमी
  2. अच्छे बीजों और रासायनिक उर्वरकों की कमी।

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प्रश्न 22.
भारतीय कृषि के पिछड़ेपन को दूर करने के दो उपाय बताइए।
उत्तर-

  1. वैज्ञानिक कृषि का प्रसार ।
  2. भूमि सुधार।

प्रश्न 23.
चकबन्दी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
चकबन्दी वह क्रिया है जिसके द्वारा किसानों को इस बात के लिए मनाया जाता है कि वे अपने इधर-उधर बिखरे हुए खेतों के बदले में उसी किस्म और कुल उतने ही आकार के एक या दो खेत ले लें।

प्रश्न 24.
भारत में किए गए तीन भूमि सुधारों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. मध्यस्थों का उन्मूलन
  2. भूमि की चकबन्दी
  3. भूमि की अधिकतम हदबन्दी।

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प्रश्न 25.
जोतों की उच्चतम सीमा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
जोतों की उच्चतम सीमा से अभिप्राय यह है कि भूमि-क्षेत्र की एक ऐसी सीमा निश्चित करना जिससे अधिक भूमि पर किसी व्यक्ति अथवा परिवार का अधिकार न रहे।

प्रश्न 26.
कृषि क्षेत्र को पर्याप्त साख-सुविधाएं उपलब्ध कराने की दृष्टि से भारत सरकार की भूमिका स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
कृषि के विकास के लिए किसानों को कम ब्याज पर उचित मात्रा में कर्ज दिलाने के लिए सहकारी साख समितियों का विकास किया गया है।

प्रश्न 27.
भारत में हरित क्रान्ति लाने का श्रेय किन व्यक्तियों को जाता है?
उत्तर-
भारत में हरित क्रान्ति लाने का श्रेय डॉ० नोरमान वरलोग तथा डॉ० एम० एन० स्वामीनाथन को जाता है।

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प्रश्न 28.
भारत में हरित क्रान्ति के लिए उत्तरदायी किन्हीं दो कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर-

  1. उन्नत बीजों का प्रयोग
  2. रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग।

प्रश्न 29.
हरित क्रान्ति के कोई दो लाभ बताइए।
उत्तर-

  1. खाद्यान्न के उत्पादन में वृद्धि
  2. किसानों के जीवन स्तर में वृद्धि।

प्रश्न 30.
हरित क्रान्ति के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर-

  1. क्षेत्रीय असमानताओं में वृद्धि
  2. केवल बड़े कृषकों को लाभ।

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प्रश्न 31.
हरित क्रान्ति किसे कहते हैं?
उत्तर-
हरित क्रान्ति एक कृषि नीति है जिसका प्रयोग फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 32.
HYV का विस्तार रूप बताएँ।
उत्तर-
High Yielding Variety Seeds.

प्रश्न 33.
कौन-सा देश दालों का सबसे अधिक उत्पादक है?
उत्तर-
भारत।

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प्रश्न 34.
व्यावसायिक खेती के आगतों के नाम बताएं।
उत्तर-
आधुनिक तकनीकी, HYV बीज।

प्रश्न 35.
कृषि में निम्न भूमि उत्पादकता क्यों है?
उत्तर-
क्योंकि इसमें उर्वरकों का प्रयोग नहीं किया जाता है।

प्रश्न 36.
पुरातन कृषि की निर्भरता के दो तत्त्व बताएं।
उत्तर-
मानसून और प्राकृतिक उत्पादकता।

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प्रश्न 37.
भारत में कितने प्रतिशत संख्या अपनी जीविका के लिए कृषि पर निर्भर है?
उत्तर-
लगभग 48.9 प्रतिशत।

प्रश्न 38.
तीन क्रियाओं के नाम बताइए जो कृषि सेवक से सम्बन्धित हैं।
उत्तर-

  1. पशुपालन,
  2. वानिकी,
  3. मत्स्यपालन।

प्रश्न 39.
वर्ष 2011-12 में कृषि का GDP में कितना हिस्सा था?
उत्तर-
लगभग 13.9 प्रतिशत।

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II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. फसलों को उगाने की कला व विज्ञान ……….. है। (कृषि/विनिर्माण)
  2. भारत में हरित क्रान्ति का उद्भव ………… में हुआ। (1948-49/1966-67)
  3. वर्ष 1950-51 में कृषि का भारत की राष्ट्रीय आय में योगदान ………… प्रतिशत था। (48/59)
  4. ……….. दालों का उत्पादक सबसे बड़ा देश है। (पाकिस्तान/भारत)
  5. ………… भारत में सिंचाई का मुख्य साधन है। (भूमिगत जल/ट्यूबवैल)
  6. भारत में हरित क्रान्ति का श्रेय ……….. को दिया जाता है। (जवाहर लाल नेहरू/डॉ० नारमन वरलोग)
  7. वर्तमान में कृषि भारत की राष्ट्रीय आय में ……….. प्रतिशत का योगदान दे रही है। (14.6 / 15.3)

उत्तर-

  1. कृषि,
  2. 1966-67,
  3. 59,
  4. भारत,
  5. भूमिगत जल,
  6. डॉ० नारमन वरलोग,
  7. 15.3.

III. बहुविकल्पीय प्रश्न 

प्रश्न 1.
भारत का एक भूमि सुधार बताएं।
(A) चकबन्दी
(B) मध्यस्थों का उन्मूलन
(C) भूमि की उच्चतम सीमा
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 2.
वर्ष 2007-08 के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का क्या योगदान था?
(A) 14.6
(B) 15.9
(C) 17.1
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(A) 14.6

प्रश्न 3.
कौन-सा देश दालों का अधिकतम उत्पादक देश है?
(A) भारत
(B) पाकिस्तान
(C) श्रीलंका
(D) नेपाल।
उत्तर-
(A) भारत

प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति का उद्भव कब हुआ?
(A) 1966-67
(B) 1969-70
(C) 1985-86
(D) 1999-2000
उत्तर-
(A) 1966-67

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प्रश्न 5.
वर्तमान में कषि का भारत की राष्ट्रीय आय में क्या योगदान है?
(A) 12.6
(B) 15.3
(C) 14.2
(D) 15.8.
उत्तर-
(B) 15.3

प्रश्न 6.
HYV का अर्थ है
(A) Haryana Youth Variety
(B) Huge Yeild Variety
(C) High Yeilding Variety
(D) इनमें कोई नहीं।
उत्तर-
(C) High Yeilding Variety

IV. सही/गलत

  1. हरित क्रान्ति भारत में वर्ष 1947 में आई।
  2. भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है।
  3. भारत में हरित क्रान्ति का जनक डा० नारमन बरलोग है।
  4. चकबन्दी भूमि सुधार का एक प्रकार है।

उत्तर-

  1. गलत
  2. सही
  3. सही
  4. सही।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
“कृषि भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है।” इस कथन का स्पष्टीकरण कीजिए।
उत्तर-
कृषि का भारतीय अर्थ-व्यवस्था में एक केन्द्रीय स्थान हैं। कृषि भारतीय अर्थ-व्यवस्था में रोजगार की दृष्टि से सबसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है। इससे राष्ट्रीय आय में 15.3% की प्राप्ति होती है। कृषि क्षेत्र में कार्यशील जनसंख्या का 46.2% भाग प्रत्यक्ष रूप से लगा हुआ है। इसके अतिरिक्त बहुत-से व्यक्ति कृषि पर निर्भर व्यवसायों में कार्य करके जीविका प्राप्त करते हैं। यह औद्योगिक विकास में भी सहायक है। कृषि जनसंख्या की भोजन आवश्यकताओं को पूरा करती है। यह व्यापार, यातायात व अन्य सेवाओं के विकास में भी सहायक है। वास्तव में, हमारी अर्थ-व्यवस्था की सम्पन्नता कृषि की सम्पन्नता पर निर्भर करती है। अत: यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कृषि भारतीय अर्थ-व्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है।

प्रश्न 2.
भारत में निम्न कृषि उत्पादकता के लिए उत्तरदायी किन्हीं तीन प्रमुख कारकों की व्याख्या करें।
उत्तर-

  1. भूमि पर जनसंख्या के दबाव में वृद्धि-भूमि पर जनसंख्या दबाव में वृद्धि के फलस्वरूप प्रति व्यक्ति भू-उपलब्धता में कमी हुई है, जिससे कृषि में आधुनिक तरीकों को अपनाने में कठिनाई आती है।
  2. कृषकों का अशिक्षित होना-भारत में अधिकांश कृषक अशिक्षित हैं। अत: उन्हें कृषि के उन्नत तरीके सिखाने में समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
  3. साख, विपणन, भण्डारण आदि सेवाओं की कमी-इन सेवाओं की कमी के कारण किसानों को बाध्य होकर अपनी फसल को कम कीमत पर बेचना पड़ता है।

प्रश्न 3.
“कृषि और उद्योग एक-दूसरे के पूरक हैं न कि प्रतिद्वन्द्वी।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
कृषि और उद्योग एक-दूसरे के प्रतिद्वन्द्वी नहीं बल्कि पूरक हैं । कृषि द्वारा उद्योगों की आवश्यकताओं की पूर्ति की जाती है। उद्योग श्रमिकों की पूर्ति करते हैं। कई प्रकार के अनेक उद्योगों को कच्चे माल की पूर्ति कृषि द्वारा ही की जाती है, जैसे-कच्ची कपास, जूट, तिलहन, गन्ना ऐसे ही कृषि उत्पाद हैं जो उद्योगों को कच्चे माल के रूप में दिए जाते हैं। दूसरी ओर भारतीय कृषि हमारे औद्योगिक उत्पादन का एक महत्त्वपूर्ण खरीददार है, कृषि के लिए कृषि उपकरण जैसे-ट्रैक्टर, कम्बाइन, ड्रिल, हार्वेस्टर इत्यादि उद्योगों से प्राप्त होते हैं। कृषि को डीज़ल, बिजली, पेट्रोल उद्योगों से ही तो प्राप्त होते हैं। अतः हम देखते हैं कि कृषि तथा उद्योग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।

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प्रश्न 4.
हरित क्रान्ति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति का अभिप्राय कृषि उत्पादन में उस तेज़ वृद्धि से है जो थोड़े समय में उन्नत किस्म के बीजों तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग के फलस्वरूप हुई है। हरित क्रान्ति योजना को कृषि की नई नीति भी कहा जाता है। इसे 1966 में शुरू किया गया। इस योजना का मुख्य उद्देश्य अनाज का उत्पादन बढ़ाकर आत्म-निर्भर होना है। भारत जैसी घनी जनसंख्या और समय-समय पर अनाज की कमी वाले देश में इस योजना का बहुत ही अधिक महत्त्व है।
इस योजना के अधीन विभिन्न राज्यों में कुल बोए जाने वाले क्षेत्र के चुने हुए भागों में गेहूँ तथा चावल की नई , किस्में तथा देश में विकसित अधिक उपज देने वाली मक्का, ज्वार, बाजरा की किस्मों का प्रयोग किया गया है। इसके साथ ही बहु-फसली कार्यक्रम, सिंचाई की व्यवस्था व पानी का ठीक प्रबन्ध तथा सूखे क्षेत्रों का योजनाबद्ध विकास किया गया जिससे अनेक फसलों का उत्पादन बढ़ा।
यह क्रान्ति पंजाब और हरियाणा में आश्चर्यजनक रूप से सफल हुई।

प्रश्न 5.
भारत में जोतों की चकबन्दी के लाभ बताइए।
उत्तर-
भारत में चकबन्दी के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

  1. चकबन्दी के पश्चात् वैज्ञानिक ढंग से खेती की जा सकती है।
  2. एक खेत से दूसरे खेत में जाने से जो समय नष्ट होता है वह बच जाता है।
  3. किसान को अपनी भूमि की उन्नति के लिए कुछ रुपया व्यय करने का साहस हो जाता है।
  4. चकबन्दी के कारण खेती की मुंडेर बनाने के लिए भूमि बेकार नहीं करनी पड़ती है।
  5. सिंचाई अच्छी प्रकार से की जाती है।
  6. नई प्रकार की खेती करने से व्यय कम होता है और आय बढ़ जाती है।
  7. गांव में मुकद्दमेबाज़ी कम हो जाती है।
  8. चकबन्दी के बाद जो फालतू भूमि निकलती है, उसमें बगीचे, पंचायत, घर, सड़कें, खेल के मैदान बनाए जा सकते हैं।

संक्षेप में चकबन्दी के द्वारा विखण्डन की समस्या सुलझ जाती है। खेतों का आकार बड़ा हो जाता है। इससे कृषि उपज बढ़ाने में बहुत अधिक सहायता मिलती है।

प्रश्न 6.
हरित क्रान्ति को सफल बनाने के लिए सुझाव दें।
उत्तर-

  1. सहकारी साख समितियों को सुदृढ़ बनाना चाहिए तथा कृषकों को साख उत्पादन क्षमता के आधार पर प्रदान करनी चाहिएं।
  2. सेवा सहकारिताओं द्वारा उर्वरक, दवाइयां, उन्नत बीज, सुधरे हुए कृषि यन्त्र तथा अन्य उत्पादन की आवश्यकताएं उपलब्ध करानी चाहिएं। साख कृषकों को सरलता से प्राप्त होनी चाहिए।
  3. चावल, गेहूं और मोटे अनाजों के लिए प्रेरणादायक मूल्य दो वर्ष पूर्व घोषित किए जाने चाहिएं।
  4. कृषि उपज के विपणन की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
  5. प्रत्येक गांव को सघन कृषि के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए तथा उनकी शैक्षणिक, तकनीकी और फार्म प्रबन्ध से सम्बन्धित सहायता करनी चाहिए।

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प्रश्न 7.
सिंचाई किसे कहते हैं? यह आवश्यक क्यों है?
उत्तर-
सिंचाई से अभिप्राय प्रायः मानवकृत स्रोतों के उपयोग से है, जिससे भूमि को जल प्रदान किया जाता है। सिंचाई के साधनों का कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में महत्त्वपूर्ण योगदान है। कृषि की नई नीति के अनुसार खाद, उन्नत बीजों का प्रयोग तभी सम्भव हो सकता है जब सिंचाई की व्यवस्था हो। भारत में अभी तक केवल 35% कृषि क्षेत्रफल पर सिंचाई की व्यवस्था है। इसे बढ़ाने के लिए प्रत्येक योजना में विशेष रूप से प्रयत्न किया गया है। सिंचाई के फलस्वरूप देश में बहुफसली खेती सम्भव होगी।

प्रश्न 8.
भारत में सिंचाई के प्रमुख स्रोत लिखें।
उत्तर-
सिंचाई के स्रोत-सिंचाई के लिए जल दो मुख्य साधनों से प्राप्त होता है —

  1. भूमि के ऊपर का जलयह जल नदियों, नहरों, तालाबों, झीलों आदि से प्राप्त होता है।
  2. भूमिगत जल-यह जल भूमि के अन्दर से कुएं या ट्यूबवैल आदि खोद कर प्राप्त होता है। अतएव कुएं, तालाब, नहरें आदि सिंचाई के साधन कहलाते हैं। भारत में सिंचाई के साधनों को तीन भागों में बांटा गया है —
    1. बड़ी सिंचाई योजनाएं-बड़ी योजनाएं उन योजनाओं को कहा जाता है जिनके द्वारा 10 हज़ार हैक्टेयर से अधिक कृषि योग्य व्यापक क्षेत्र में सिंचाई की जाती है।
    2. मध्यम सिंचाई योजनाएं-मध्यम योजनाएं उन योजनाओं को कहा जाता है जिनके द्वारा 2 हज़ार से 10 हज़ार हैक्टेयर तक भूमि पर सिंचाई की जाती है।
    3. लघु सिंचाई योजनाएं-अब लघु योजनाएं उन योजनाओं को कहा जाता है जिनके द्वारा 2 हज़ार हैक्टेयर से कम भूमि पर सिंचाई की जाती है।

प्रश्न 9.
क्या हम उत्पादन को अधिकतम करने में सफल हुए हैं विशेषकर खाद्यान्न के उत्पादन को?
उत्तर-
कृषि के विकास में योजनाओं का योगदान दो प्रकार का है, एक तो कृषि में भूमि सुधार किए गए हैं। इन भूमि सुधारों ने उन्नत खेती के लिए वातावरण तैयार किया है। दूसरे 1966 से कृषि के तकनीकी विकास पर जोर दिया गया है। इसके फलस्वरूप हरित क्रान्ति हो चुकी है। योजनाओं की अवधि में खाद्यान्न का उत्पादन तिगुना बढ़ा है। 1951-52 में अनाज का उत्पादन 550 लाख टन हुआ था जबकि 1995-96 में यह खाद्यान्न का उत्पादन बढ़कर 1851 लाख टन हो गया और 2017-18 में यह उत्पादन बढ़कर 2775 लाख टन हो गया। अतः हम कह सकते हैं कि हम उत्पादन को बढ़ाने में काफ़ी हद तक सफल हुए हैं।

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प्रश्न 10.
हरित क्रान्ति के बाद भी 1990 तक हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र में ही क्यों लगी रही?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद भी 1990 तक हमारी 65 प्रतिशत जनसंख्या कृषि क्षेत्र में ही इसलिए लगी रही क्योंकि उद्योग क्षेत्र और सेवा क्षेत्र, कृषि क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की अत्यधिक मात्रा को नहीं खपा सके। बहुत से अर्थशास्त्री इसे 1950-1990 के दौरान अपनाई गई नीतियों की असफलता मानते हैं।

प्रश्न 11.
विक्रय अधिशेष क्या है?
उत्तर-
एक देश में किसान अगर अपने उत्पादन को बाज़ार में बेचने के स्थान पर स्वयं ही उपभोग कर लेता है तो उसका अर्थव्यवस्था पर कोई फर्क नहीं पड़ता है और अगर किसान पर्याप्त मात्रा में अपना उत्पादन बाजार में बेच देता है तो अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है। किसानों द्वारा उत्पादन का बाज़ार में बेचा गया अंश ही ‘विक्रय अधिशेष’ कहलाता है।

प्रश्न 12.
कृषि क्षेत्रक में लागू किए गए भूमि सुधारों की आवश्यकता और उनके प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण पद्धति में ज़मींदार-जागीरदार आदि का स्वामित्व था। यह खेतों में बिना कोई कार्य किए केवल लगान वसूलते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को यू० एस० ए० से अनाज आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू-सुधारों की आवश्यकता हुई जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना था।
भूमि सुधारों के प्रकार —

  1. ज़मींदारी उन्मूलन
  2. काश्तकारी खेती
  3. भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारण
  4. चकबंदी इत्यादि।

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प्रश्न 13.
हरित क्रान्ति क्या है ? इसे क्यों लागू किया गया और इससे किसानों को कैसे लाभ पहुँचा? संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
हरित क्रान्ति-भारत में यन्त्रीकरण के फलस्वरूप सन् 1967-68 में अनाज के उत्पादन में 1966-67 की तुलना में लगभग 25 प्रतिशत वृद्धि हुई। किसी एक वर्ष में अनाज के उत्पादन में इतनी वृद्धि किसी क्रान्ति से कम नहीं थी। इसलिए अर्थशास्त्रियों ने इसे हरित क्रान्ति का नाम दिया।
कारण-इसे लागू करने का मुख्य कारण कृषि क्षेत्र में अच्छे किस्म के बीज, रासायनिक खाद, आधुनिक यन्त्रों का प्रयोग करने कृषि उत्पादन को बढ़ाना था ताकि देश को खाद्यान्न पदार्थों के लिए विदेशों के आयात पर निर्भर न रहना पड़े।
लाभ-

  1. इससे उत्पादन में भारी वृद्धि हुई और किसानों का जीवन स्तर ऊँचा उठा।
  2. किसानों को आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई।
  3. हरित क्रान्ति के कारण सरकार, पर्याप्त खाद्यान्न प्राप्त कर सुरक्षित स्टॉक बन सकी।
  4. इसमें किताबों को अच्छे किस्म के बीज, खाद आदि का प्रयोग करने की प्रेरणा दी गई।

प्रश्न 14.
भूमि की उच्चतम सीमा क्या है?
उत्तर-
भूमि की उच्चतम सीमा (Ceiling on Land Holding)-भूमि की उच्चतम सीमा का अर्थ है, “एक व्यक्ति या परिवार अधिक-से-अधिक कितनी खेती योग्य भूमि का स्वामी हो सकता है। उच्चतम सीमा से अधिक भूमि भू-स्वामियों से ले ली जाएगी। उन्हें इसके बदले मुआवजा दिया जाएगा।” इस प्रकार जो भूमि ली जाएगी उसे छोटे किसानों, काश्तकारों या भूमिहीन कृषि मजदूरों में बांट दिया जाएगा। भूमि की उच्चतम सीमा का उद्देश्य भूमि के समान तथा उचित प्रयोग को प्रोत्साहन देना है।

प्रश्न 15.
हरित क्रान्ति भारत की खाद्य समस्या के समाधान में किस प्रकार सहायक हुई है?
उत्तर-
इसके मुख्य कारण हैं —

  1. उत्पादन में वृद्धि-हरित क्रान्ति के फलस्वरूप 1967-68 और उसके बाद के वर्षों में फसलों में बड़ी तीव्र गति से वृद्धि हुई है।
  2. फसलों के आयात में कमी-हरित क्रान्ति के परिणामस्वरूप भारत में खाद्यान्न के आयात पहले की अपेक्षा कम होने लगे हैं।

इसका मुख्य कारण देश में उत्पादन का अधिक होना है। – (ii) व्यापार में वृद्धि-हरित क्रान्ति के फलस्वरूप उत्पादन में काफ़ी वृद्धि हुई है। इससे कृषि उत्पादों को बाज़ार पूर्ति में वृद्धि हुई है, इससे घरेलू व विदेशी व्यापार बढ़ा है। बढ़ा हुआ कृषि उत्पादन निर्यात भी किया जाने लगा है।

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प्रश्न 16.
भारतीय कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिये सरकार का क्या योगदान रहा है?
उत्तर-
भारतीय कृषि की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए सरकार ने निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं —

  1. भूमि सुधार
  2. सिंचाई सुविधाओं का विस्तार
  3. वितरण प्रणाली में सुधार
  4. कृषि अनुसंधान एवं विकास
  5. कृषि योग्य भूमि का विकास
  6. कृषि विपणन में सुधार
  7. साख सुविधाओं का विस्तार आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
कृषि क्षेत्र की क्या समस्याएं हैं?
उत्तर-
कृषि क्षेत्र की निम्न समस्याएं हैं —

  1. विपणन की समस्या (Problem of Marketing) — भारत में कृषि उत्पादन की बिक्री व्यवस्था ठीक नहीं है जिसके कारण किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती। यातायात के साधन विकसित न होने के कारण किसानों को अपनी फसल गांवों में ही कम कीमत पर बेचनी पड़ती है।
  2. वित्त सुविधाओं की समस्या (Problem of Credit Facilities) — भारत के किसानों के सामने वित्त की समस्या भी एक मुख्य समस्या है। उन्हें बैंकों तथा अन्य सहायक समितियों से समय पर साख उपलब्ध नहीं हो पाती है जिससे उन्हें महाजनों से अत्यधिक ब्याज पर ऋण लेना पड़ता है। अतः वित्त की समस्या भारतीय कृषि की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
  3. ग्रामीण ऋणग्रस्तता की समस्या (Problem of Rural Indebtness) — भारतीय कृषि में ऋणग्रस्तता भी एक महत्त्वपूर्ण समस्या है। भारतीय किसान जन्म से ही ऋण में दबा होता है। एम० एस० डार्लिंग के अनुसार, “भारतीय किसान कर्ज़ में जन्म लेता है, उसमें ही रहता है तथा उसमें ही मर जाता है।”
  4. कीमत अस्थिरता की समस्या (Problem of Price Instability) — हरित क्रांति के फलस्वरूप एक और समस्या कृषि क्षेत्र में आ गई है जिससे अधिक उत्पादन होने के फलस्वरूप कीमतों में कमी आने की समस्या आ गई है। जिससे किसानों को अधिक उत्पादन करने के लिए प्रेरणा कम मिलती है। कीमतों में आने वाले उतार चढ़ाव भी कृषि क्षेत्र की एक महत्त्वपूर्ण समस्या है।
  5. सिंचाई व्यवस्था की समस्या (Problem of Irrigation Facility) — भारतीय कृषि में सिंचाई की व्यवस्था भी एक समस्या है। भारत में केवल 20 प्रतिशत कृषि पर ही सिंचाई की उचित सुविधा है। बाकी कृषि मानसून के भरोसे होती है। अगर मानसून सही समय पर आए और बारिश हो तो फसल अच्छी होगी अन्यथा नहीं।
  6. छोटे जोतों की समस्या (Problem of small holding) — भारतीय कृषि में जोतों का आकार बहुत छोटा है और यह छोटे-छोटे जोत बिखरे पड़े हुए हैं। इनका आकार छोटा होने के कारण इन पर आधुनिक मशीनों का प्रयोग संभव नहीं हो पाता है जिससे कि उत्पादकता कम रहती है।

PSEB 10th Class SST Solutions Economics Chapter 3 भारत में कृषि विकास

प्रश्न 2.
कृषि क्षेत्र में लागू किए गए भूमि सुधारों की आवश्यकता और उनके प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश की भू-धारण पद्धति में ज़मींदार-जागीरदार आदि का स्वामित्व था। यह खेतों में बिना कोई कार्य किए केवल लगान वसूलते थे। भारतीय कृषि क्षेत्र की निम्न उत्पादकता के कारण भारत को यू० एस० ए० से अनाज आयात करना पड़ता था। कृषि में समानता लाने के लिए भू-सुधारों की आवश्यकता हुई जिसका मुख्य उद्देश्य जोतों के स्वामित्व में परिवर्तन करना था।
भूमि सुधारों के प्रकार —

  1. ज़मींदारी उन्मूलन
  2. काश्तकारी खेती
  3. भूमि की उच्चतम सीमा निर्धारण
  4. चकबंदी इत्यादि।

बिचौलियों के उन्मूलन का नतीजा यह था कि लगभग 200 लाख किसानों का सरकार से सीधा संपर्क हो गया तथा वे ज़मींदारों के द्वारा किए गये शोषण से मुक्त हो गये।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

प्रश्न 1.
मौसम यंत्रों की बनावट, कार्य-विधि और प्रयोग का वर्णन करें।
उत्तर-
1. सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम तापमापी यंत्र (Six’s Maximum and Minimum Thermometer) यह दिन का उच्चतम और न्यूनतम तापमान मापने का यंत्र है। इसकी खोज (Invention) जे. सिक्स (J. Six) नामक वैज्ञानिक ने की थी। उसके नाम पर ही इसे ‘सिक्स का उच्चतम और न्यूनतम थर्मामीटर’ (Six’s Maximum and Minimum Termometer) कहते हैं।

बनावट (Construction)-इस तापमापी यंत्र में ‘यू’ आकार की शीशे की एक नली होती हैं। इस नली के दोनों सिरों पर बल्ब लगे होते हैं, जिनमें अल्कोहल भरी होती हैं। एक बल्ब अल्कोहल से पूरा और दूसरा आधा भरा होता है। नली के निचले हिस्से में पारा (Mercury) भरा होता है। दोनों नलियों में एक-एक सूचक (Index) लगा होता है। यह सूचक चुंबक के द्वारा नीचे किए जाते हैं। नली के आधे खाली बल्ब के नीचे नली में अंक नीचे से ऊपर की ओर लिखे होते हैं। नली का यह भाग उच्चतम तापमान दर्शाता है। नली के दूसरे हिस्से में अंक ऊपर से नीचे की ओर दिए होते हैं, इसलिए यह भाग न्यूनतम तापमान दर्शाता है।

कार्य-विधि और प्रयोग (Working and Use)—सबसे पहले सूचकों को चुंबक के द्वारा पारे के तल पर लाया जाता है। तापमान के ऊँचा होने पर अल्कोहल फैलता है और उच्चतम तापमान दर्शाने वाली नली में पारा ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है और इस भाग में सूचक को ऊपर की ओर धकेलता है। पूरे भरे हुए भाग में अल्कोहल पारे को ऊपर नहीं चढ़ने देती।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 1

तापमान कम होने पर अल्कोहल सिकुड़ती है; जिसके परिणामस्वरूप उच्चतम तापमान वाली नली में पारा नीचे की ओर गिरने लग जाता है और न्यूनतम तापमान वाली नली में ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। इसके साथ-साथ न्यूनतम नली का सूचक भी ऊपर की ओर चढ़ने लग जाता है। उच्चतम तापमान वाली नली का सूचक कमानी के कारण नीचे नहीं गिरता। इस प्रकार 24 घंटों अर्थात् एक दिन में उच्चतम तापमान वाली नली के सूचक का निचला सिरा उच्चतम तापमान और न्यूनतम तापमान नली के सूचक का निचला सिरा न्यूनतम तापमान दर्शाएगा।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

2. निद्भव हवा-दबाव मापक यंत्र (Aneroid Barometer)-इस यंत्र से हवा-दबाव मापते हैं। इसमें किसी द्रव (Liquid) का प्रयोग न करने के कारण इसे Aneroid कहते हैं। Aneroid शब्द का अर्थ है-द्रव रहित (A = without, neroid = Liquid)।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र 2

बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)—यह यंत्र घड़ी जैसा होता है। पतली धातु से एक गोल खोखले डिब्बे (Shallow Metallic Box) को बनाकर उसमें से हवा निकाल ली जाती है। इसके ऊपर एक पतला लचकीला ढक्कन (Flexible Lid) लगा होता है, जो हवा के दबाव से ऊपर-नीचे होता रहता है। इस ढक्कन के ऊपरी हिस्से में एक लीवर (Lever) के द्वारा एक सूचक सूई लगी होती है, जोकि हवा के दबाव के बढ़ने से घड़ी की सुइयों की दिशा में (Clockwise) एक गोलाकार पैमाने पर घूमती है। हवा के दबाव के कम होने पर यह सूचक सुई घड़ी की सुइयों की उल्टी दिशा (Anti-Clockwise) में घूमती है। गोलाकार पैमाने पर हवा का दबाव इंच, सैंटीमीटर और मिलीबार में लिखा होता है। इस पैमाने पर मौसम की दशा बताने वाले शब्द अर्थात् वर्षा, (Rain), साफ (Clear), तूफानी (Stormy), बादल (Cloudy) और शुष्क (Dry) लिखे होते हैं। इनसे हमें मौसम अवस्था का ज्ञान होता है।

प्रयोग (Use)-इसे किसी स्थान के हवा के दबाव को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसकी सहायता से किसी स्थान की ऊँचाई मापी जा सकती है। घड़ी के समान आकार में छोटा होने के कारण इसे आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है।

3. हवा-दिशा सूचक यंत्र (Wind-vane)—इस यंत्र से हम हवा की दिशा के बारे में पता लगाते हैं। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)-लोहे की एक लंबवत छड़ी (Rod) पर लोहे की पतली चादर से बना एक मुर्गा (Weather Cock) या तीर लगा होता है। यह लोहे की छड़ी इस मुर्गे या तीर के लिए धुरी का काम करती है। हवा के वेग से यह मुर्गा या तीर घूमता है और हवा की दिशा का संकेत देता है। पवनमुख (Wind Ward Side) की ओर तीर या मुर्गे की पूँछ होती है। पवन विमुख की ओर (Leeward Side) मुर्गे का मुँह या तीर की नोक होती है। मुर्गे या तीर के नीचे चार मुख्य दिशाएँ-उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम दर्शायी होती हैं। इस यंत्र को किसी ऊँचे स्थान पर रखते हैं, जहाँ हवा के चलने में कोई रुकावट न हो।

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4. शुष्क व नम बल्ब थर्मामीटर (Wet and Dry Bulb Thermometer)-इसे मेसन हाईग्रोमीटर (Mason Hygrometer) भी कहते हैं। इस यंत्र के द्वारा हवा की सापेक्ष नमी (Relative Humidity) मापी जाती है। बनावट और कार्यविधि (Construction and Working)लकड़ी से बने एक तख्ते पर तापमापी यंत्र (Thermometer) लटके होते हैं। एक थर्मामीटर (तापमापी यंत्र) के बल्ब पर बारीक मलमल का कपड़ा (Muslin Cloth) लपेटा होता है, जिसका एक सिरा साफ पानी में भरे एक छोटे-से बर्तन में डूबा रहता है। एक को गीला (नम) थर्मामीटर और दूसरे को शुष्क थर्मामीटर कहते हैं। कोशिकाक्रिया (Capillary Action) से पानी मलमल के कपड़े के द्वारा बल्ब को आर्द्रता प्रदान करता है, जिसके फलस्वरूप इस थर्मामीटर में वाष्पीकरण (Evaporation) होता रहता है, जिसके कारण इस यंत्र का तापमान निम्न रहता है। शुष्क थर्मामीटर में पानी की मात्रा न होने के कारण उसका तापमान उच्च होता है। इस प्रकार दोनों थर्मामीटरों के तापमान में अंतर हो जाता है। इस अंतर के द्वारा एक तालिका की सहायता से सापेक्ष आर्द्रता निकाल ली जाती है। दोनों थर्मामीटरों में तापमान में कम अंतर होने पर सापेक्ष नमी अधिक और अधिक अंतर होने पर सापेक्ष नमी कम होती है।

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5. वर्षामापी यंत्र (Rain Gauge)-यह यंत्र वर्षा की मात्रा मापने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
बनावट (Construction)—इसमें नीचे लिखी अलग-अलग चीजें होती हैं-

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 7 मौसम यंत्र

(i) बेलनाकार बर्तन (Cylinderical Pot) तांबे का बना हुआ एक 12.5 सैं०मी० (5 इंच) या 20 सैं०मी० (8 इंच) व्यास का एक बेलनाकार बर्तन होता है। तांबा हर प्रकार के मौसमी प्रभाव को सहन करने की योग्यता रखता है, इसलिए आमतौर पर यह बर्तन तांबे का ही बना होता है।

(ii) कीप (Funnel)—एक बेलनाकार बर्तन के मुख पर तांबे से बनी उतने ही व्यास की एक कीप होती है। इस कीप के ऊपरी सिरे पर 1.2 सैं०मी० ( इंच) ऊँचा किनारा (Rim) लगा होता है, ताकि वर्षा के पानी की.छीटें बाहर न जाएँ।

(iii) शीशे का बर्तन या बोतल (Glass Container or Bottle)-तांबे के बेलनाकार बर्तन के अंदर एक तंग मुँह वाला शीशे का बर्तन या बोतल होती है, जिसमें कीप के द्वारा पानी जाता है। इसका तंग मुँह पानी का वाष्पीकरण रोकने के लिए होता है।

(iv) चिन्हित शीशे का बेलन (Graduated Glass Cylinder)-इससे वर्षा की मात्रा मापते हैं। यह शीशे का एक बेलन होता है, जिसके बाहर वर्षा को मापने के लिए पैमाना अंकित होता है। कार्य-विधि (Working)-वर्षा का पानी कीप के द्वारा बर्तन या बोतलों में एकत्र हो जाता है। इसी पानी को चिन्हित शीशे के बेलन में डालकर माप लिया जाता है। कीप के क्षेत्रफल और चिन्हित बेलन के मुख के क्षेत्रफल में एक निर्धारित अनुपात रखा जाता है। इस अनुपात पर चिन्हित बेलन का पैमाना आधारित होता है। तांबे के बेलनाकार बर्तन में 2.5 सैं०मी० (1 इंच) पानी की ऊँचाई चिन्हित बेलन में 25.4 सैं०मी० (10 इंच) दिखाई जाती है। इस यंत्र में 1/10 सैं०मी० (1/100 इंच) तक की वर्षा मापने की व्यवस्था होती है।

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बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules.

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. रिंग का आकार = वर्गाकार
  2. एक भुजा की लम्बाई = 20 फुट
  3. रस्सों की संख्या = तीन अथवा पांच
  4. भारों की संख्या = 11
  5. पट्टी की लम्बाई = 8′ 4″
  6. पट्टी की चौड़ाई = \(1 \frac{1}{4}\)“
  7. रिंग की फर्श से ऊंचाई = 3′ 4″
  8. सीनियर प्रतियोगिता का समय = 3-1-3-1-3
  9. जुनियर के लिए समय = 2-1-2-2
  10. अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए समय = 2-1-2-1-2-1-2-1-2
  11. अधिकारी = जज (अधिकतम 5 या 3), टाइम कीपर-1, रेफरी-1, घंटा ऑपरेटर-1, प्रर्यवेक्षक-1 उद्घोषक 1, रिकार्डर 1
  12. मुक्केबाजी दस्तानों का भार = 10 औंस, 12 औंस
  13. रिंग के कोनों का रंग = 1 लाल, 1 नीला, 2 सफेद
  14. राऊंड टाइम = 3 राउंड (प्रत्येक 3 मिनट)
  15. रस्सियों के पारस्परिक अंतर = रिंग के फर्श से (1) 40 सेंटीमीटर (2) 70 सेंटीमीटर, (3) 100 सेंटीमीटर, (4) 130 सेंटीमीटर।
  16. सलाखों की लम्बाई = = 2.5 मी.
  17. पट्टियों की चौड़ाई = 5 सेंटीमीटर
  18. बॉक्सर का तकनीकी नाम = पुगिलिटश
  19. अंडर 17 वर्ष के लड़कों के लिये प्रतियोगिताओं में कुल भार = 13

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

खेल सम्बन्धी महत्वपूर्ण जानकारी

  1. बाक्सिग में रिंग का आकार वर्गाकार और एक भुजा की लम्बाई 20 फुट होती है।
  2. रिंग में रस्सों की गिनती तीन होती है और साइडों का रंग एक नीला तथा दूसरा लाल होता है।
  3. बाक्सिग के लिए भार के वर्गों की गिनती 12 होती है।
  4. दस्तानों का भार 10 औंस से अधिक नहीं होना चाहिए।
  5. पट्टी की लम्बाई 8 फुट 4 इंच और चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच 4.4 सैं० मी० होनी चाहिए।
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PSEB 11th Class Physical Education Guide बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
मुक्केबाज़ का तकनीकी नाम लिखें।
उत्तर-
पुगिलिटस।

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प्रश्न 2.
मुक्केबाज़ (लड़के) अंडर-17 मुकाबले में कुल कितने भार वर्ग होते हैं ?
उत्तर-
कुल 13 भार वर्ग।

प्रश्न 3.
मुक्केबाज़ के मैच में RSC से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
रैफरी के द्वारा मुक्केबाज़ को चोट लगने पर बाऊट को रोक दिया जाना।

प्रश्न 4.
मुक्केबाजी के मैच में DSO से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब मुक्केबाज़ बार-बार किसी नियम की उल्लंघना करता है तो उस समय रैफरी द्वारा उसे अयोग्य घोषित कर देना।

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प्रश्न 5.
मुक्केबाज़ी के मैच में wo क्या होता है ?
उत्तर-
जब किसी खिलाड़ी को बाऊट के बिना ही विजयी घोषित कर दिया जाए।

प्रश्न 6.
मुक्केबाज़ी मुकाबले में एक राऊंड कितने समय का होता है ?
उत्तर-
4 मिनट का (प्रत्येक राऊंड के लिए)।

प्रश्न 7.
मुक्केबाज़ी रिंग के कोनों का रंग लिखें।
उत्तर-
लाल, नीला और सफेद।

बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB बाक्सिग (मुक्केबाजी) (Boxing) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
बाक्सिंग में भार अनुसार कितने प्रकार की प्रतियोगिताएं होती हैं ?
उत्तर-
मुक्केबाज़ी के भारों का वर्गीकरण
(Weight Categories in Boxing)

  1. लाइट फलाई वेट (Light Fly Weight) = 48 kg
  2. फलाई वेट (Fly Weight) = 51 kg
  3. बैनटम वेट (Bentum Weight) = 54 kg
  4. फ़ैदर वेट (Feather Weight) = 57 kg
  5. लाइट वेट (Light Weight) = 60 kg
  6. लाइट वैल्टर वेट (Light Welter Weight) = 63.5 kg
  7. वैल्टर वेट (Welter Weight) = 67 kg
  8. लाइट मिडल वेट (Light Middle Weight) = 71 kg
  9. मिडल वेट (Middle Weight) = 75 kg
  10. लाइट हैवी वेट (Light Heavy Weight) = 81 kg से 91 kg तक
  11. हैवी वेट (Heavy Weight) = 91 kg से अधिक 100 kg तक
  12. सुपर हैवी वेट (Super Heavy Weight) = 100 kg से ऊपर

प्रश्न 2.
बाक्सिग में रिंग, रस्सा, प्लेटफ़ार्म, अंडर-कवर, पोशाक और पट्टियों के बारे में लिखें।
उत्तर-
रिंग (Ring)—सभी प्रतियोगिताओं में रिंग का आन्तरिक माप 12 फुट से 20 फुट (3 मी० 66 सैं० मी० से 6 मी० 10 सैं० मी०) वर्ग में होगा। रिंग की सतह से सबसे ऊपरी रस्से की ऊंचाई 16”, 28”, 40”, 50” होगी।
रस्सा (Rope)—रिंग चार रस्सों के सैट से बना होगा जोकि लिनन या किसी नर्म पदार्थ से ढका होगा।
प्लेटफ़ार्म (Platform)-प्लेटफार्म सुरक्षित रूप में बना होगा। यह समतल तथा बिना किसी रुकावटी प्रक्षेप के होगा। यह कम-से-कम 18 इंच रस्सों की लाइन से बना रहेगा उस पर चार कार्नर पोस्ट लगे होंगे जो इस प्रकार बनाए जाएंगे कि कहीं चोट न लगे।

अंडर-कवर (Under-cover)-फर्श एक अण्डर-कवर से ढका होगा जिस पर कैनवस बिछाई जाएगी।
पोशाक (Costumes)-प्रतियोगी एक बनियान (Vest) पहन कर बाक्सिंग करेंगे जोकि पूरी तरह से छाती और पीठ ढकी रखेगी। शार्ट्स उचित लम्बाइयों की होगी जोकि जांघ के आधे भाग तक जाएगी। बूट या जूते हल्के होंगे। तैराकी वाली पोशाक पहनने की आज्ञा नहीं दी जाएगी। प्रतियोगी उन्हें भिन्न-भिन्न दर्शाने वाले रंग धारण करेंगे जैसे कि कमर के गिर्द लाल या नीले कमर-बन्द, दस्ताने (Gloves) स्टैंडर्ड भार के होंगे। प्रत्येक दस्ताना 8 औंस (227 ग्राम) भारी होगा।

पट्टियां (Bandages)-एक नर्म सर्जिकल पट्टी जिसकी लम्बाई 8 फुट 4 इंच (2.5 मी०) से अधिक तथा चौड़ाई \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक न हो या एक वैल्यियन टाइप पट्टी जो 6 फुट 6 इंच से अधिक लम्बी तथा \(1 \frac{1}{3}\) इंच (4.4 सैं० मी०) से अधिक चौड़ी नहीं होगी, प्रत्येक हाथ पर पहनी जा सकती है।
अवधि (Duration)—सीनियर मुकाबलों तथा प्रतियोगिताओं के लिए खेल की अवधि निम्नलिखित होगी—
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प्रतियोगिताएं (Competitions)—
Senior National Level
3-1-3-1-3 तीन-तीन मिनट के तीन राऊण्ड
Junior National Level 2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के तीन राऊण्ड
International Level 2-1-2-1-2-1-2
दो-दो मिनट के पांच राऊण्ड

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प्रश्न 3.
बाक्सिग में ड्रा, बाई, वाक ओवर के बारे में लिखें।
उत्तर-
ड्रा, बाई, वाक ओवर (The Draw, Byes and Walk-over)

  1. सभी प्रतियोगिताओं के लिए भार तोलने तथा डॉक्टरी निरीक्षण के बाद ड्रा किया जाएगा।
  2. वे प्रतियोगिताओं में जिनसे चार से अधिक प्रतियोगी हैं, पहली सीरीज़ में बहुत-सी बाई निकाली जाएंगी ताकि दूसरी सीरीज़ में प्रतियोगियों की संख्या कम रह जाए।
  3. पहली सीरीज़ में जो मुक्केबाज़ (Boxer) बाई में आते हैं वे दूसरी सीरीज़ में पहले बाक्सिग करेंगे। यदि बाइयों की संख्या विषय हो तो अन्तिम बाई का बाक्सर दूसरी सीरीज़ में पहले मुकाबले के विजेता के साथ मुकाबला करेगा।
  4. कोई भी प्रतियोगी पहली सीरीज़ में बाई ओर दूसरी सीरीज़ में वाक ओवर नहीं प्राप्त कर सकता या दो प्रतियोगियों के नाम ड्रा निकाला जाएगा जोकि अब भी मुकाबले में हों। इसका अर्थ इन प्रतियोगियों के लिए विरोधी प्रदान करना है जोकि पहली सीरीज़ में पहले ही वाक ओवर ले चुके हैं।

सारणी-बाऊट से बाइयां निकालना
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प्रतियोगिता की सीमा (Limitation of Competitors)-किसी भी प्रतियोगिता में 4 से लेकर 8 प्रतियोगियों को भाग लेने की आज्ञा है। यह नियम किसी ऐसोसिएशन द्वारा आयोजित किसी चैम्पियनशिप पर लागू नहीं होता। प्रतियोगिता का आयोजन करने वाली क्लब को अपना एक सदस्य प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए मनोनीत करने का अधिकार है, परन्तु शर्त यह है कि वह सदस्य प्रतियोगिता में सम्मिलित न हो।
नया ड्रा (Fresh Draw) यदि किसी एक ही क्लब के दो सदस्यों का पहली सीरीज़ में ड्रा निकल जाए तो उनमें एक-दूसरे के पक्ष में प्रतियोगिता से निकलना चाहे तो नया ड्रा किया जाएगा।

वापसी (Withdrawl)-ड्रा किए जाने के बाद यदि प्रतियोगी बिना किसी सन्तोषजनक कारण के प्रतियोगिता से हटना चाहे तो इन्चार्ज अधिकारी इन दशाओं में एसोसिएशन को रिपोर्ट करेगा।

रिटायर होना (Retirement) यदि कोई प्रतियोगी किसी कारण प्रतियोगिता से रिटायर होना चाहता है तो उसे इन्चार्ज अधिकारी को सूचित करना होगा।
बाई (Byes)—पहली सीरीज़ के बाद उत्पन्न होने वाली बाइयों के लिए निश्चित समय के लिए वह विरोधी छोड़ दिया जाता है जिससे इन्चार्ज अधिकारी सहमत हो। सैकिण्ड (Second)—प्रत्येक प्रतियोगी के साथ एक सैकिण्ड (सहयोगी) होगा तथा राऊंड के दौरान वह सैकिण्ड प्रतियोगी को कोई निर्देश या कोचिंग नहीं दे सकता।

केवल पानी की आज्ञा (Only water allowed) बाक्सर को बाऊट से बिल्कुल पहले या मध्य में पानी के अतिरिक्त कोई अन्य पीने वाली चीज़ नहीं दी जा सकती।

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प्रश्न 4.
बाक्सिंग में बाऊट को नियन्त्रण कैसे किया जाता है ?
उत्तर-
बाऊट का नियन्त्रण
(Bout’s Control)
1. सभी प्रतियोगिताओं के मुकाबले एक रैफ़री, तीन जजों, एक टाइम कीपर द्वारा निश्चित किए जाएंगे। रैफ़री रिंग में होगा। जब तीन से कम जज होंगे तो रैफ़री स्कोरिंग पेपर को पूरा करेगा। प्रदर्शनी बाऊट एक रैफ़री द्वारा कण्ट्रोल किए जाएंगे।

2. रैफ़री एक स्कोर पैड या जानकारी सलिप का प्रयोग बाक्सरों के नाम तथा रंगों का रिकार्ड रखने के लिए करेगा। इन सब स्थितियों को जब बाऊट चोट लगने के कारण या किसी अन्य कारणवश स्थगित हो जाए तो रैफ़री इस पर कारण रिपोर्ट करके इंचार्ज अधिकारी को देगा।

3. टाइम कीपर रिंग के एक ओर बैठेगा तथा जज अन्य तीन ओर बैठेंगे। सीटें इस प्रकार की होंगी कि वे बाक्सिग को सन्तोषजनक ढंग से देख सकें। ये दर्शकों से अलग होंगी। रैफ़री बाऊट को नियमानुसार कण्ट्रोल करने के लिए अकेला ही उत्तरदायी होगा तथा जज स्वतन्त्रतापूर्वक प्वाइंट देंगे।

4. प्रमुख टूर्नामेंट में रैफ़री सफेद कपड़े धारण करेगा।

प्वाईंट देना (Awarding of Points)—

  1. सभी प्रतियोगिताओं में जज प्वाईंट देगा।
  2. प्रत्येक राऊंड के अन्त में प्वाईंट स्कोरिंग पेपर पर लिखे जाएंगे तथा बाऊट के अन्त में जमा किए जाएंगे, भिन्नों का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
  3. प्रत्येक जज को विजेता मनोनीत करना होगा या उसे अपने स्कोरिंग पेपर पर हस्ताक्षर करने होंगे। जज का नाम बड़े अक्षरों (Block Letters) में लिखा जाएगा। उसे स्कोरिंग स्लिपों पर हस्ताक्षर करने होंगे।

प्रश्न 5.
बाक्सिग में स्कोर कैसे मिलते हैं ?
उत्तर-
स्कोरिंग (Scoring)
1. जो बाक्सर अपने विरोधी को सबसे अधिक मुक्के मारेगा उसे प्रत्येक राऊंड के अन्त में 20 प्वाईंट दिए जाएंगे। दूसरे बाक्सर को उसी अनुपात में अपने स्कोरिंग मुक्कों में कम प्वाईंट मिलेंगे।

2. जब जज यह देखता है कि दोनों बाक्सरों ने एक जितने मुक्के मारे हैं तो प्रत्येक प्रतियोगी को 20 प्वाईंट दिए जाएंगे।

3. यदि बाक्सरों को मिले प्वाईंट बाऊट के अन्त में बराबर हों तो जज अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अधिक पहल दिखाई हो, परन्तु यदि समान हो उस बाक्सर के पक्ष में जिसने बेहतर स्टाइल दिखाया हो। यदि वह सोचे कि वह इन दोनों पक्षों में बराबर हैं तो वह अपना निर्णय उस बाक्सर के पक्ष में देगा जिसने अच्छी सुरक्षा (Defence) का प्रदर्शन किया हो।

परिभाषाएं (Definitions)-उपर्युक्त नियम निम्नलिखित परिभाषाओं द्वारा लागू होता है—
(A) स्कोरिंग मुक्के या प्रहार (Scoring Blows)—वे मुक्के जो किसी भी दस्ताने के नक्कल से रिंग के सामने या साइड की ओर या शरीर के बैल्ट के ऊपर मारे जाएं।
(B) नान-स्कोरिंग मुक्के (Non-Scoring Blows)—

  • नियम का उल्लंघन करके मारे गए मुक्के।
  • भुजाओं या पीठ पर मारे गए मुक्के।
  • हल्के मुक्के या बिना ज़ोर की थपकियां।

(C) पहल करना (Leading Off)-पहला मुक्का मारना या पहला मुक्का मारने की कोशिश करना। नियमों का उल्लंघन पहल करने के स्कोरिंग मूल्य को समाप्त कर देता है।
(D) सुरक्षा (Defence)–बाक्सिग, पैरिंग, डकिंग, गार्डिंग, साइड स्टैपिंग द्वारा प्रहरों से बचाव करना।

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प्रश्न 6.
बाक्सिग में कोई दस त्रुटियां लिखें।
उत्तर-
त्रुटियां (Fouls)-जजों या रैफ़री का फ़ैसला अन्तिम होगा। रैफ़री को निम्नलिखित कार्य करने पर बाक्सर को चेतावनी देने या अयोग्य घोषित करने का अधिकार है—

  1. खुले दस्ताने से चोट करना, हाथ के आन्तरिक भाग या बट के साथ चोट करना, कलाइयों से चोट करना या बन्द दस्ताने के नक्कल वाले भाग को छोड़कर किसी अन्य भाग से चोट करना।
  2. कुलनी से मारना।
  3. बैल्ट के नीचे मारना।
  4. किडनी पंच (Kidney Punch) का प्रयोग करना।
  5. पिवट ब्लो (Pivot Blow) का प्रयोग करना।
  6. गर्दन या सिर के नीचे जानबूझ कर चोट करना।
  7. नीचे पड़े प्रतियोगी को मारना।
  8. पकड़ना।
  9. सिर या शरीर के भार लेटना।
  10. बैल्ट के नीचे किसी ढंग से डकिंग (Ducking) करना जोकि विरोधी के लिए खतरनाक हो।
  11. बाक्सिग का सिर पर खतरनाक प्रयोग।
  12. रफिंग (Roughing)
  13. कन्धे मारना।
  14. कुश्ती करना।
  15. बिना मुक्का लगे जान-बूझ कर गिरना।
  16. निरन्तर ढक कर रखना।
  17. रस्सों का अनुचित प्रयोग करना।
  18. कानों पर दोहरी चोट करना।

ब्रेक (Break)-जब रैफ़री दोनों प्रतियोगियों को ब्रेक (To Break) की आज्ञा देता है तो दोनों बाक्सरों को पुनः बाक्सिग शुरू करने से पहले एक कदम पीछे हटना ज़रूरी है। ‘ब्रेक’ के समय एक बाक्सर को विरोधी को मारने की आज्ञा नहीं होती।

डाऊन तथा गिनती (Doun and Count)-एक बाक्सर को डाऊन (Doun) समझा जाता है जब शरीर का कोई भाग सिवाए उसके पैरों के फर्श पर लग जाता है या जब वह रस्सों से बाहर या आंशिक रूप में बाहर होता है या वह रस्सी पर लाचार लटकता है।
बाऊट रोकना (Stopping the Bout)—

  1. यदि रैफ़री के मतानुसार एक बाक्सर चोट लगने के कारण खेल जारी नहीं रख सकता या वह बाऊट बन्द कर देता है तो उसके विरोधी को विजेता घोषित कर दिया जाता है। यह निर्णय करने का अधिकार रैफ़री को होता है जोकि डॉक्टर का परामर्श ले सकता है।
  2. रैफ़री को बाऊट रोकने का अधिकार है यदि उसकी राय में प्रतियोगी को मात हो गई है या वह बाऊट जारी रखने के योग्य नहीं है।

बाऊट पुनः शुरू करने में असफल होना (Failure to resume Bout) सभी बाऊटों में यदि कोई प्रतियोगी समय कहे जाने पर बाऊट को पुनः शुरू करने में असमर्थ होता है तो वह बाऊट हार जाएगा।

नियमों का उल्लंघन (Breach of Rules) बाक्सर या उसके सैकिण्ड (Second) द्वारा इन नियमों के किसी भी उल्लंघन से उसे अयोग्य घोषित किया जाएगा। एक प्रतियोगी जो अयोग्य घोषित किया गया हो उसे कोई ईनाम नहीं मिलेगा।

शंकित फाऊल (Suspected Foul) -यदि रैफ़री को किसी फ़ाऊल का सन्देह हो जाए जिसे उसने स्वयं साफ नहीं देखा, वह जजों की सलाह ले सकता है तथा उसके अनुसार अपना फैसला दे सकता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 5 मौसम संबंधी नक्शे

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PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 5 मौसम संबंधी नक्शे

प्रश्न 1.
मौसम संबंधी नक्शे क्या होते हैं ? इनमें प्रयोग किए जाने वाले चिन्हों का वर्णन करें।
उत्तर-
मौसम संबंधी नक्शे-किसी स्थान पर किसी विशेष समय की वायुमंडलीय दशाओं के अध्ययन को मौसम कहते हैं।
जो नक्शे किसी विशेष समय के मौसम के तत्त्वों, जैसे-तापमान, वायु, दबाव, पवनों, बादल और वर्षा आदि को दर्शाते हैं, उन्हें मौसमी नक्शे (Weather Maps) कहते हैं। भारत में ये नक्शे मौसम विज्ञान विभाग की ओर से प्रकाशित किए जाते हैं। इसका प्रमुख कार्यालय पुणे (Pune) शहर में है। ये नक्शे प्रतिदिन प्रातः के 8.30 बजे और संध्या के 5.30 बजे के मौसम को प्रकट करते हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन से भी मौसम संबंधी समाचार और भविष्यवाणी (Forecasting) की जाती है।

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मौसमी नक्शों का महत्त्व-मौसमी नक्शों का आर्थिक और वैज्ञानिक महत्त्व होता है-

  1. इनके आधार पर मौसम की भविष्यवाणी की जाती है।
  2. ये नक्शे कृषि, व्यापार और ढोने-ढुलाने के क्षेत्र के लिए उपयोगी होते हैं।
  3. ये नक्शे सैनिकों तथा जहाज़-चालकों के लिए लाभदायक होते हैं।
  4. हवाई जहाज़ों की उड़ानों पर इनकी सहायता से कंट्रोल किया जाता है।
  5. इनकी मदद से व्यापारी अपने कृषि-पदार्थों के भाव निश्चित करते हैं।
  6. मौसम के पूर्वानुमान से कई दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है।
  7. भारत में इनसैट B-1 की मदद से मौसम की भविष्यवाणी की जाती है।

ऋतु चिन्ह-रूढ़ चिन्हों के समान ही मौसमी नक्शों से वायुमंडलीय दशाएँ दर्शाने के लिए कुछ चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, जिन्हें ऋतु चिन्ह (Weather Symbols) कहते हैं। इनके अभ्यास से मौसम के अलग-अलग तत्त्वों का ज्ञान हो जाता है।

  1. वायु दबाव (Pressure)—वायु दबाव को दर्शाने के लिए समदाब रेखाओं का प्रयोग किया जाता है।
  2. तापमान (Temperature) तापमान दर्शाने के लिए समताप रेखाओं का प्रयोग किया जाता है।
  3. पवनें (Winds)-पवनों की दिशा और गति तीरों की सहायता से दिखाई जाती है। इसके लिए ब्यूफोर्ट पैमाने का प्रयोग किया जाता है।
  4. बादल (Clouds)—बादलों की मात्रा और प्रकार दिखाने के लिए गोल चक्रों का प्रयोग किया जाता है।
  5. वर्षा (Rainfall)-वर्षा और दूसरे मौसमी तत्त्व दिखाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर के चिन्ह प्रयोग किए जाते हैं।

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सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules.

सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें (TIPS TO REMEMBER)

  1. खिलाड़ियों की संख्या = कुल 14 खिलाड़ी
  2. मैच खेलने वाले खिलाड़ी = 8 खिलाड़ी 6 वैकल्पिक
  3. मैच का समय = 20-20 मिनट की दो मियादें (अवधियाँ)
  4. विश्राम का समय = 5 मिनट
  5. टाइम आऊट = एक हाफ में 2 टाइम आऊट
  6. टाइम आऊट का समय = 30 सेकंड

पंजाब स्टाइल अथवा वृत कबड्डी खेल की संक्षेप रूप-रेखा :
(Brief outline of Punjab Style or Circle Kabaddi Game)

  1. यह खेल दो टीमों के मध्य होती है। प्रत्येक टीम में 10 खिलाड़ी खेलते हैं तथा दो खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. खेल के दौरान किसी भी खिलाड़ी को चोट लग जाने पर उसका स्थान अतिरिक्त खिलाड़ी ग्रहण कर लेता है।
  3. खिलाड़ी केवल नंगे पांव खेल सकता है।
  4. खिलाड़ी कड़ा, अंगूठी आदि पहनकर नहीं खेल सकता।
  5. कोई भी खिलाड़ी निरन्तर दो से अधिक बार आक्रमण नहीं कर सकता।
  6. ऐसा स्पर्श या आक्रमण मना है जिससे खिलाड़ी के जीवन को भय उत्पन्न हो।
  7. मैदान के बाहर से कोचिंग देना मना है।
  8. विपक्षी खिलाड़ी आक्रामक खिलाड़ी के मुंह पर हाथ रख कर कबड्डी बोलने से नहीं रोक सकता।
  9. कोई भी खिलाड़ी तेल मल कर नहीं खेल सकता।
  10. यदि कोई खिलाड़ी दम भरते समय मार्ग में सांस तोड़े तो रैफरी दुबारा दम भरने के लिए कहता है।

सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

PSEB 11th Class Physical Education Guide सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
कबड्डी तथा सर्कल स्टाइल कबड्डी में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
कबड्डी

  1. कबड्डी के मैदान का आकार पुरुषों के लिये 13 मीटर ! 10 मीटर होता है और स्त्रियों के लिये मैदान का माप 11 मीटर ! 8 मीटर होता है।
  2. इसमें खिलाड़ियों की कुल संख्या 12 होती है।
  3. इसमें लॉबी अथवा बोनस लाइनें होती हैं।

सर्कल स्टाइल कबड्डी—

  1. सर्कल सटाइल कबड्डी में मैदान का आकार वृत्ताकार होता है जिसका अर्द्वव्यास 22 मीटर पुरुषों के लिये तथा 16 मीटर स्त्रियों के लिये होता है।
  2. इसमें खिलाड़ियों की कुल संख्या 14 (8 खिलाड़ी + 6 वैकल्पिक) होती है।
  3. इसमें कोई लॉबी अथवा बोनस लाइनें नहीं होती।

प्रश्न 2.
सर्कल स्टाइल कबड्डी में खिलाड़ियों की संख्या कितनी होती है ?
उत्तर-
कुल 14 खिलाड़ी।

सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 3.
सर्कल कबड्डी के मैच में विश्राम का समय कितना होता है ?
उत्तर-
5 मिनट।

प्रश्न 4.
सर्कल कबड्डी के मैच में टाइम आऊट का कितना समय होता है ?
उत्तर-
30 सैकिण्ड।

प्रश्न 5.
सर्कल कबड्डी के मैच का समय लिखें।
उत्तर-
20-20 मिनट की दो अवधियां।

सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 6.
सर्कल कबड्डी के मैच में लाल कार्ड से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
लाल कार्ड होने पर खिलाडी को मैच से बाहर निकाल दिया जाता है। यदि एक खिलाड़ी को दो बार लाल कार्ड दिखाया जाता है तो खिलाड़ी को पूरे टूर्नामैंट में से बाहर कर दिया जाता है। खिलाड़ी कोई भी मैच नहीं खेल सकता।

प्रश्न 7.
सर्कल कबड्डी के मैच में चेतावनी कार्ड कौन-कौन से होते हैं ?
उत्तर-
कबड्डी खेल में तीन प्रकार के चेतावनी कार्ड होते हैं—

  1. हरा कार्ड-यह एक चेतावनी कार्ड है। यदि एक खिलाड़ी को दूसरी बार हरा कार्ड दिखाया जाता है तो वह पीले कार्ड में से बदल जाता है।
  2. पीला कार्ड-पीले कार्ड होने पर 2 मिनट के लिए खिलाड़ी को मैच में से बाहर निकाला जाता है। यदि एक मैच में एक खिलाड़ी को दो बार पीला कार्ड दिखाया जाता है तो वह लाल कार्ड में बदल जाता है।
  3. लाल कार्ड-लाल कार्ड होने पर खिलाडी को मैच से बाहर निकाल दिया जाता यदि एक खिलाड़ी को दो बार लाल कार्ड दिखाया जाता है तो खिलाड़ी को पूरे टूर्नामेंट में से बाहर कर दिया जाता है। खिलाड़ी कोई भी मैच नहीं खेल सकता।

सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पंजाब स्टाइल कबड्डी के खेल के मैदान, खेल की अवधि, टीमें, अधिकारी और खिलाडियों को पोशाक के विषय में लिखें।
उत्तर-
खेल का मैदान (Play Ground) खेल का मैदान वृत्ताकार (Circular) होता है। वृत्त का अर्द्धव्यास 22 मीटर (लगभग 72 फुट) पुरुषों के लिये तथा 16 मीटर (लगभग 52 फुट) स्त्रियों के लिये होता है। केन्द्रीय रेखा इसे दो बराबर भागों में बांटती है। केन्द्रीय रेखा के मध्य में 20 फुट का गेट होता है। गेट के दोनों सिरों पर मिट्टी की ढेरियां बनाई जाती हैं। इन्हें पाला कहते हैं। प्रत्येक पाले का व्यास 6 इंच होता है। इनकी धरती से ऊंचाई एक फुट तक होती है। मध्य रेखा के दोनों ओर 20 फुट लम्बी रेखा के साथ ही डी-क्षेत्र लगाया जाता है। यह पालों से साइडों की ओर 15 फुट दूर होता है। यह मध्य रेखा को जा स्पर्श करता है तथा पाले इसके मध्य में आ जाते हैं।
खेल की अवधि (Duration of Play) खेल 20-20 मिनट की दो अवधियों में खेला जाता है। पहले 20 मिनट की खेल के पश्चात् 5 मिनट का अवकाश होता है। अवकाश के पश्चात् दोनों टीमें पक्ष बदल लेती हैं।

टीम (Teams)-प्रत्येक टीम में 8 खिलाड़ी होते हैं। इनके अतिरिक्त छ: खिलाड़ी वैकल्पिक होते हैं। मैच के अन्त में एक टीम में 8 खिलाड़ियों की संख्या बनी रहनी चाहिए। यदि कोई टीम 8 खिलाड़ियों से कम खिलाड़ियों से खेल रही है तो विरोधी टीम में उतने ही खिलाड़ी कम किए जाएंगे जितनी कि दूसरे खिलाड़ियों की संख्या 8 से कम है। जो भी टीम कम खिलाड़ियों के साथ खेल रही है उसका कोई खिलाड़ी रैफरी को सूचित करके खेल में सम्मिलित हो सकता है। यदि किसी खिलाड़ी को खेल के दौरान चोट लग जाती है तो उसे रिजर्व खिलाड़ी से बदल लिया जाता है। ‘ निर्णय (Decision) मैच में जो टीम अधिक अंक प्राप्त करती है उसे विजयी घोषित कर दिया जाता है। मैच बराबर रहने की दशा में 5-5 मिनट का अतिरिक्त समय दिया जाता है।
अधिकारी (Officials) मैच के निम्नलिखित अधिकारी होते हैं—
अम्पायर (1), रैफरी (1), स्कोरर (2), टाइम-कीपर (1)
सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
अपने-अपने अर्द्धकों में दोनों अम्पायर निर्णय देने का काम करते हैं। किसी विवाद की स्थिति में रैफरी का निर्णय अन्तिम माना जाता है।
टॉस (Toss)—दोनों टीमों के कप्तान साइड के चुनाव के लिए या पहले खिलाड़ी भेजने के लिए टॉस करते हैं।
पोशाक (Dress)—खिलाड़ी जांघिए पहन सकते हैं। जांघिए का रंग टीम के अनुसार होता है। खिलाड़ी नंगे पांव या फिर पतले रबड़ के तलों वाले टैनिस शू पहनकर खेल सकते हैं। खिलाड़ी अंगूठी (Rings), कड़े आदि धारण नहीं कर सकते क्योंकि इनसे विरोधी खिलाड़ी को चोट पहुंचने की सम्भावना होती है।

सर्कल स्टाइल कबड्डी (Circle Style Kabaddi) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
पंजाब स्टाइल कबड्डी के नियमों का वर्णन करो।
उत्तर-
खेल के साधारण नियम
(General Rules of Play)
1. खिलाड़ी बारी-बारी से ‘कबड्डी’ शब्द का उच्चारण करते हुए विरोधी पक्ष की ओर जाएगा। ‘कबड्डी’ पालों से शुरू करनी चाहिए तथा सभी को सुनाई देनी चाहिए। रास्ते में सांस न टूटे और वापिस मुड़ते समय पालों तक सांस कायम रहना चाहिए।

2. कोई भी खिलाड़ी दो बार कबड्डी डाल सकता है।

3. ‘कबड्डी’ डालने वाला खिलाड़ी कम-से-कम आवश्यक सीमा को स्पर्श करे। यदि वह ऐसा नहीं करता तो अम्पायर उसे दोबारा कबड्डी डालने के लिए कह सकता है।

4. प्रत्येक खिलाड़ी को कई बार कबड्डी डालनी चाहिए। ऐसा न हो कि खेल पर एक दो प्रमुख खिलाड़ी एकाधिकार जमा लें।

5. जब कोई खिलाड़ी किसी विरोधी खिलाड़ी को स्पर्श करके वापस मुड़ रहा है तो उसका पीछा उस समय तक नहीं किया जा सकता जब तक वह अपने पक्ष की आवश्यक रेखा पार नहीं कर लेता।

6. यदि कबड़ी डालने वाला खिलाड़ी किसी विरोधी खिलाड़ी को छु लेता है तथा फिर अपने कोर्ट में वापिस आ जाता है तो कबड्डी डालने वाली टीम को एक अंक मिल जाता है।

7. कबड्डी डालने वाला तथा विरोधी पक्ष के खिलाड़ी छूने या पकड़ने के समय शेष सभी खिलाड़ी प्वाईंट का फैसला दिए जाने तक अस्थाई रूप में आऊट माने जाते हैं।

8. अस्थाई रूप में खिलाड़ी दूर रहते हैं। रक्षक टीम के खिलाड़ी द्वारा किसी बाधा उत्पन्न करने की दशा में आक्रामक टीम को प्वाईंट मिल जाता है।

9. आक्रमण के समय ‘छू’ या पकड़ हो जाए तथा यदि कबड्डी डालने वाला या विरोधी खिलाड़ी सीमा रेखा से बाहर चला जाए तो विरोधी टीम को 1 अंक मिलेगा। यदि दोनों खिलाड़ी बाहर निकल जाएं तो किसी को कोई प्वाइंट नहीं मिलेगा।

10. कोई भी ऐसी पकड़ या आक्रमण अयोग्य है जिसमें खिलाड़ी के जीवन को खतरा है। ठोकर मारना, दांतों से काटना, जांघिये को पकड़ना वर्जित है।

11. शरीर पर तेल या चिकनाहट वाली वस्तुओं का लेप करना मना है।

12. मैदान के बाहर से कोचिंग वर्जित है, यदि चेतावनी देने के बाद कोचिंग जारी रहती है तो जिस टीम को कोचिंग दी जा रही हो उसका एक अंक काट दिया जाए।

13. कोई भी रेडर 30 सैकिण्ड के अन्दर-अन्दर रेड डाल कर बिना किसी को हाथ लगाए वापिस आ सकता है। यदि तीस सैकिण्ड के समय में किसी विरोधी को हाथ नहीं लगता और वापिस अपने पाले में नहीं आता हो विरोधी टीम को एक अंक मिल जाता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

SST Guide for Class 10 PSEB भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में दो

प्रश्न 1.
लोकतन्त्र से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
लिंकन के अनुसार, लोकतन्त्र लोगों का, लोगों के लिए, लोगों द्वारा शासन होता है।

प्रश्न 2.
भारतीय लोकतन्त्र की एक विशेषता बताओ।
उत्तर-

  1. लोकतान्त्रिक संविधान
  2. नागरिकों के अधिकार
  3. वयस्क मताधिकार
  4. संयुक्त चुनाव प्रणाली की व्यवस्था। (कोई एक लिखें)

प्रश्न 3.
चुनाव विधियां कितने प्रकार की होती हैं?
उत्तर-
चुनाव विधियां दो प्रकार की होती हैं-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली तथा अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

प्रश्न 4.
लोकमत से आपका क्या भाव है?
उत्तर-
लोकमत से हमारा अभिप्राय जनता की राय अथवा मत से है।

प्रश्न 5.
स्वस्थ लोकमत के निर्माण में किसी एक बाधा का नाम लिखें।
उत्तर-
निरक्षर नागरिक।

प्रश्न 6.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म कब तथा किन नेताओं के नेतृत्व में हुआ?
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का जन्म 1885 ई० में एक अंग्रेज़ अधिकारी मि० ए० ओ० ह्यम तथा अन्य देशभक्त नेताओं के नेतृत्व में हुआ।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

(ख) निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखें

  1. भारत में धर्म-निरपेक्षता
  2. शिरोमणि अकाली दल की प्रमुख विचारधारा
  3. भारत के किसी एक राष्ट्रीय दल पर संक्षिप्त नोट लिखें।
  4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विचारधारा
  5. भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा

उत्तर-

  1. भारत में धर्म-निरपेक्षता-भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है क्योंकि भारत में किसी धर्म को राज्य धर्म स्वीकार नहीं किया गया।
  2. शिरोमणि अकाली दल की प्रमुख विचारधारा
    1. निर्धनता, अभाव तथा भुखमरी को दूर करना।
    2. अनपढ़ता, छुआछूत तथा जातीय भेदभाव को दूर करना।
    3. शारीरिक आरोग्यता के उपाय।
  3. भारत का एक राष्ट्रीय दल-बहुजन समाज पार्टी की स्थापना 1948 में कासी राम ने की थी। यह पार्टी जिसमें दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियां और धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल है, उनके लिए राजनीतिक सत्ता पाने का प्रयास करती है तथा उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा करती है। यह दलितों और कमजोर वर्ग के लोगों के कल्याण और उनके हितों की रक्षा के मुद्दे उठाती है।
  4. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विचारधारा-
    1. धर्म-निरपेक्ष और समाजवादी राष्ट्र की स्थापना।
    2. गुट-निरपेक्षता।
    3. औद्योगिक क्षेत्र में सुधार।
    4. कृषि का आधुनिकीकरण।
  5. भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा-
    1. समान सिविल कोड
    2. धारा 370 की समाप्ति
    3. निर्धनता तथा बेरोज़गारी की समाप्ति
    4. गुट-निरपेक्ष विदेश नीति।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
भारतीय लोकतन्त्र की चुनाव प्रक्रिया का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
चुनाव प्रक्रिया के विभिन्न सोपानों का वर्णन इस प्रकार है

  1. उम्मीदवार का चयन-निर्वाचन के कुछ दिन पूर्व विभिन्न राजनीतिक दल अपने-अपने उम्मीदवारों का चयन करते हैं।
  2. नामांकन-पत्र दाखिल करना-उम्मीदवारों के चयन के बाद उन्हें अपना नामांकन-पत्र दाखिल करना पड़ता है। नामांकन-पत्र दाखिल करने की अन्तिम तिथि घोषित कर दी जाती है। इसके बाद नामांकन-पत्रों की जाँच की जाती है। यदि कोई उम्मीदवार अपना नाम वापस लेना चाहे तो वह निश्चित तिथि तक ऐसा कर सकता है।
  3. चुनाव अभियान-निर्वाचन प्रक्रिया का आगामी चरण चुनाव अभियान है। इसके लिए पोस्टर लगाना, सभाएं करना, भाषण देना, जुलूस निकालना आदि कार्य किये जाते हैं।
  4. मतदान-निश्चित तिथि को मतदान होता है। मतदाता मतदान कक्ष में जाते हैं और गुप्त मतदान द्वारा अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं।
  5. मतगणना-मतदान समाप्त होने पर मतों की गिनती की जाती है। जिस उम्मीदवार को सबसे अधिक मत प्राप्त होते हैं, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। इस प्रकार चुनाव प्रक्रिया समाप्त हो जाती है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

प्रश्न 2.
लोकमत की भूमिका बताओ।
उत्तर-
लोकमत अथवा जनमत लोकतान्त्रिक सरकार की आत्मा होता है, क्योंकि लोकतान्त्रिक सरकार अपनी शक्ति लोकमत से ही प्राप्त करती है। ऐसी सरकार का सदा यह प्रयत्न रहता है कि लोकमत उनके पक्ष में रहे। इसके अतिरिक्त लोकतन्त्र लोगों का राज्य होता है। ऐसी सरकार जनता की इच्छाओं और आदेशों के अनुसार कार्य करती है। प्राय: यह देखा गया है कि आम चुनाव काफ़ी लम्बे समय के पश्चात् होते हैं जिसके फलस्वरूप जनता का सरकार से भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप सम्पर्क टूट जाता है और सरकार के निरंकुश बन जाने की सम्भावना उत्पन्न हो जाती है। इससे लोकतन्त्र का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। ऐसी अवस्था में जनमत लोकतान्त्रिक सरकार की सफलता का मूल आधार बन जाता है।

(घ) निम्नलिखित पर संक्षिप्त नोट लिखो

प्रश्न 1.
शिरोमणि अकाली दल के मूल उद्देश्य।
उत्तर-
शिरोमणि अकाली दल की स्थापना 1920 में हुई थी। 2 सितम्बर, 1974 को शिरोमणि अकाली दल की कार्य समिति ने इस दल का एक विधान स्वीकार किया। इस विधान में निम्नलिखित उद्देश्यों का वर्णन है

  1. गुरुद्वारों के प्रबन्ध में सुधार और उनकी सेवा सम्भाल के लिए प्रयत्न करना।
  2. सिक्खों में यह विश्वास बनाए रखना कि उनके पंथ का आज़ाद अस्तित्व है।
  3. निर्धनता, अभाव तथा भुखमरी को दूर करना, आर्थिक प्रबन्ध को अधिक न्यायकारी बनाना और निर्धन तथा धनी के अन्तर को दूर करना।
  4. निरक्षरता, छुआछूत तथा जातीय भेदभाव को दूर करना।
  5. शारीरिक आरोग्यता तथा स्वारशः रक्षा के लिए उपाय करना।

प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विदेश नीति पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई थी। यह दल आज भी भारतीय राजनीति में सक्रिय है। इस दल की नीतियों और प्रोग्रामों का वर्णन इस प्रकार है

  1. लोकतन्त्र और धर्म-निरपेक्षता में दृढ़ विश्वास।
  2. समाजवाद के साथ-साथ आर्थिक उदारवाद को बढ़ावा।
  3. कृषि को उद्योग का दर्जा देना, किसानों को कम ब्याज पर ऋण देना, उत्पादन का उचित मूल्य दिलवाना इत्यादि।
  4. उद्योगों को लाइसेंस प्रणाली से मुक्त करना और इन्स्पेक्टरी राज को समाप्त करना तथा पूंजी निवेश को प्रोत्साहन देना।
  5. निर्धनता को कम करने के लिए बेरोज़गारों को रोज़गार देना, मज़दूरों की स्थिति में सुधार करना तथा पिछड़े और कमजोर वर्गों की धन से सहायता करना।
  6. अल्पसंख्यकों तथा स्त्रियों की दशा में सुधार।
  7. गुट-निरपेक्षता के आधार पर विदेश नीति। सच तो यह है कि कांग्रेस पार्टी आर्थिक उत्थान तथा विश्व शान्ति की पक्षधर है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

प्रश्न 3.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना पर नोट लिखो।
उत्तर-
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी 1925 में गठित हुई थी। इस पार्टी की मार्क्सवाद-लेनिनवाद, धर्म-निरपेक्षता और लोकतंत्र में आस्था है। 1964 में इसमें फूट पड़ गई तथा माकपा इससे अलग हो गई। इसका आधार केरल, पश्चिमबंगाल, पंजाब, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में है। यह अलगाववादी और सांप्रदायिक ताकतों की विरोधी है।

प्रश्न 4.
जनता दल की नीतियां एवं प्रोग्राम।
उत्तर-

  1. कृषि श्रमिकों और निर्माण कार्य में लगे मजदूरों के कल्याण के लिए उचित कदम उठाना।
  2. खेती और ग्रामीण विकास को प्राथमिकता।
  3. कृषि और उद्योगों के उत्पादों के मूल्यों में न्यायपूर्ण सन्तुलन।
  4. कृषि कार्य के दौरान मृत्यु होने पर किसान के परिवार को पचास हजार रुपये क्षति पूर्ति देने का प्रावधान करेगी।
  5. पंचायती राज प्रणाली को सुदृढ़ करना।
  6. लघु, कुटीर तथा कृषि पर आधारित उद्योगों को प्राथमिकता देना।
  7. उदारीकरण की नीति।
  8. सार्वजनिक क्षेत्र में सुधार।
  9. देश के लिए आत्म-निर्भरता।
  10. शहरी पुनरुत्थान और विकास।
  11. पर्यावरण का उचित ध्यान।
  12. रोज़गार के अवसरों का विस्तार।

प्रश्न 5.
विरोधी दल की भूमिका।
उत्तर-
लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में विरोधी-दल की बड़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। इसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है

  1. विरोधी दल सदन के भीतर तथा बाहर सरकार की नीतियों की आलोचना करता है।
  2. विरोधी दल महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय मामलों तथा रचनात्मक कार्यों में सरकार को सहयोग देता है।
  3. विरोधी दल भाषणों, गोष्ठियों तथा समाचार-पत्रों के माध्यम से लोगों को सार्वजनिक मामलों की जानकारी देता है और उनमें राजनीतिक चेतना जागृत करता है।
  4. विरोधी दल स्वस्थ लोकमत का निर्माण करता है।
  5. विरोधी दल सरकार को सत्ता का दुरुपयोग नहीं करने देता और इस प्रकार उसे निरंकुश होने से रोकता है।
  6. यह जनता की शिकायतों को सरकार तक पहुंचाता है।
  7. समय आने पर विरोधी दल स्वयं सरकार का गठन करता है और सरकार की बागडोर सम्भालता है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

प्रश्न 6.
लोकतन्त्र को सफल बनाने की शर्ते।
उत्तर-
हमारे देश में लोकतन्त्र को सफल बनाने के लिए हमें निम्नलिखित उपाय करने चाहिएं

  1. शिक्षा का प्रसार-सरकार को शिक्षा के प्रसार के लिए उचित कदम उठाने चाहिएं। गांव-गांव में स्कूल खोलने चाहिए, स्त्री शिक्षा का उचित प्रबन्ध किया जाना चाहिए तथा प्रौढ़ शिक्षा को प्रोत्साहन देना चाहिए।
  2. पाठ्यक्रमों में परिवर्तन-देश के स्कूलों तथा कॉलेजों के पाठ्यक्रमों में परिवर्तन लाना चाहिए। बच्चों को राजनीति शास्त्र से अवगत कराना चाहिए। शिक्षा केन्द्रों में प्रजातान्त्रिक सभाओं का निर्माण करना चाहिए जिनमें बच्चों को चुनाव तथा शासन चलाने का प्रशिक्षण मिल सके।
  3. चुनाव-प्रणाली में सुधार-देश में ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए कि चुनाव एक ही दिन में सम्पन्न हो जाएं और उनके परिणाम भी. उसी दिन घोषित हो जाएं।
  4. न्याय-प्रणाली में सुधार-देश में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की जानी चाहिए ताकि मुकद्दमों का निपटारा जल्दी हो सके। निर्धन व्यक्तियों के लिए सरकार की ओर से वकीलों की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  5. समाचार-पत्रों की स्वतन्त्रता-देश में समाचार-पत्रों को निष्पक्ष विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए।
  6. आर्थिक विकास-सरकार को नये-नये उद्योगों की स्थापना करनी चाहिए। उसे लोगों के लिए अधिक-सेअधिक रोजगार जुटाने चाहिएं। ग्रामों में कृषि के उत्थान के लिए उचित पग उठाने चाहिएं।

प्रश्न 7.
भारतीय लोकतन्त्र की महत्त्वपूर्ण विशेषताएं।
उत्तर-
भारतीय लोकतन्त्र की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं

  1. भारत का संविधान लोकतान्त्रिक है। यहां संसदीय प्रणाली अपनाई गई है। देश का मुखिया राष्ट्रपति है। परन्तु उसकी शक्तियों का प्रयोग प्रधानमन्त्री करता है।
  2. समानता का मूल अधिकार भारतीय संविधान की एक विशेषता है। यह सिद्धान्त लोकतन्त्र की आत्मा है।
  3. स्वतन्त्रता भी लोकतन्त्र का मूल सिद्धान्त है। भारतीय संविधान में नागरिकों को अनेक प्रकार की स्वतन्त्रताएं प्रदान की गई हैं।
  4. लोकतन्त्र में बन्धुत्व की भावना संविधान की प्रस्तावना में स्पष्ट झलकती है।
  5. भारतीय संविधान में वयस्क मताधिकार का प्रावधान लोकतन्त्र की आत्मा है।
  6. भारत की संयुक्त चुनाव प्रणाली सभी धर्मों, नस्लों, भाषाओं के लोगों को चुनाव में समानता प्रदान करती है।
  7. भारत द्वारा स्थापित स्वतन्त्र न्यायपालिका, धर्म-निरपेक्षता और गणराज्य प्रणाली लोकतन्त्र की नींव को दृढ़ करते हैं।

PSEB 10th Class Social Science Guide भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
आधुनिक लोकतन्त्र प्रतिनिधि लोकतन्त्र (या अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र) क्यों है?
उत्तर-
इसका कारण यह है कि आधुनिक राज्य की जनसंख्या इतनी अधिक है कि देश के सभी नागरिक शासन में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

प्रश्न 2.
चुनाव घोषणा-पत्र क्या होता है?
उत्तर-
चुनाव के समय किसी राजनीतिक दल के लिखित कार्यक्रम को चुनाव घोषणा-पत्र कहते हैं।

प्रश्न 3.
भारत में राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न क्यों प्रदान किए जाते हैं?
उत्तर-
भारत में राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न इसलिए प्रदान किए जाते हैं ताकि अशिक्षित व्यक्ति भी चुनाव चिह्न को देखकर अपनी इच्छा से उम्मीदवार का चुनाव कर सकें।

प्रश्न 4.
गुप्त मतदान का क्या अर्थ है?
उत्तर-
गुप्त मतदान से अभिप्राय नागरिक द्वारा अपने मत का प्रयोग गुप्त रूप से करने से है ताकि किसी दूसरे व्यक्ति को इस बात का पता न चल सके कि उसने अपना मत किस उम्मीदवार को दिया है।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

प्रश्न 5.
कानून का शासन क्या है?
उत्तर-
‘कानून का शासन’ से अभिप्राय ऐसे शासन से है जिसमें शासक अपनी इच्छानुसार नहीं बल्कि एक निश्चित संविधान के अनुसार शासन करता है।

प्रश्न 6.
साम्प्रदायिकता का क्या अर्थ है?
उत्तर-
साम्प्रदायिकता का अर्थ है-संकीर्ण धार्मिक विचार रखना।

प्रश्न 7.
लोकतन्त्र के मार्ग में आने वाली किन्हीं दो बाधाओं के नाम बताइए।
उत्तर-
लोकतन्त्र के मार्ग में आने वाली दो बाधाएं हैं-निरक्षरता तथा निर्धनता।

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 4 भारतीय लोकतन्त्र का स्वरूप

प्रश्न 8.
राजनीतिक दलों का कोई एक कार्य बताओ।
उत्तर-
बहुमत प्राप्त राजनीतिक दल देश का शासन चलाता है।

प्रश्न 9.
सत्ता प्राप्त करने के पश्चात् भी सरकार जनमत की अवहेलना क्यों नहीं कर सकती?
उत्तर-
यदि सरकार जनमत की अवहेलना करेगी तो अगले चुनाव में उसे सत्ता से भी वंचित होना पड़ सकता है।

प्रश्न 10.
मताधिकार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
लोगों द्वारा मतदान करने तथा अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार को मताधिकार कहते हैं।

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प्रश्न 11.
लोकतन्त्र में स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनावों का क्या महत्त्व है? कोई एक बिंदु।
उत्तर-
स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनावों से ही जनता की पसन्द के प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं।

प्रश्न 12.
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार से हमारा अभिप्राय है बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक वयस्क नागरिक को मत देने का अधिकार प्राप्त हो।

प्रश्न 13.
‘डैमोक्रेसी’ (लोकतंत्र) शब्द कौन-से दो शब्दों के मेल से बना है?
उत्तर-
‘डैमोक्रेसी’ शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों ‘डिमोस’ तथा ‘क्रेतिया’ से मिलकर बना है।

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प्रश्न 14.
‘डैमोक्रेसी’ का शाब्दिक अर्थ क्या है?
उत्तर-
डैमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ है-लोगों का शासन।

प्रश्न 15.
लिंकन के अनुसार लोकतन्त्र क्या होता है?
उत्तर-
लिंकन के अनुसार लोकतन्त्र लोगों का लोगों के लिए लोगों द्वारा शासन होता है।

प्रश्न 16.
किस प्रकार के लोकतन्त्र को प्रतिनिधि लोकतान्त्रिक सरकार कहा जाता है?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र को प्रतिनिधि लोकतान्त्रिक सरकार कहा जाता है।

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प्रश्न 17.
लोकतन्त्र के दो मूल सिद्धांत कौन-से हैं?
उत्तर-
लोकतन्त्र के दो मूल सिद्धान्त समानता तथा स्वतन्त्रता है।

प्रश्न 18.
भारत में कम-से-कम कितनी आयु के नागरिक को मताधिकार प्राप्त है?
उत्तर-
18 वर्ष।

प्रश्न 19.
कौन-से अधिकार लोकतन्त्र का प्राण माने जाते हैं?
उत्तर-
राजनीतिक अधिकार।

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प्रश्न 20.
ग्राम पंचायत से लेकर संसद् तक चुनाव लड़ने वाले नागरिक की आयु कम-से-कम कितनी होनी चाहिए?
उत्तर-
25 वर्ष।

प्रश्न 21.
संविधान विरोधी कानूनों को रद्द करने का अधिकार किसे प्राप्त है?
उत्तर-
संविधान विरोधी कानूनों को रद्द करने का अधिकार उच्चतम न्यायालय तथा राज्यों के उच्च न्यायालयों को प्राप्त है।

प्रश्न 22.
भारत में प्रथम आम चुनाव कब हुए थे?
उत्तर-
1952 ई० में।

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प्रश्न 23.
भारत में विधानमंडलों का चुनाव किस चुनाव प्रणाली द्वारा होता है?
उत्तर-
प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली।

प्रश्न 24.
भारत में राष्ट्रपति का चुनाव किस विधि द्वारा होता है?
उत्तर-
भारत में राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव विधि द्वारा होता है।

प्रश्न 25.
भारत में स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनावों (निर्वाचन) की ज़िम्मेदारी किस की है?
उत्तर-
चुनाव आयोग की।

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प्रश्न 26.
चुनाव अभियान के किन्हीं दो साधनों के नाम बताइए।
उत्तर-
पोस्टर लगाना तथा सभाएं करना।

प्रश्न 27.
चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है?
उत्तर-
राष्ट्रपति द्वारा।

प्रश्न 28.
चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति कितने वर्षों के लिए की जाती है?
उत्तर-
6 वर्ष।

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प्रश्न 29.
“जनता की आवाज़ परमात्मा की आवाज़ है। इसे अनसुना करना खतरे से खाली नहीं।” ये शब्द किसके हैं?
उत्तर-
रूसो।

प्रश्न 30.
लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में लोकमत के निर्माण एवं अभिव्यक्ति का कोई एक साधन बताओ।
उत्तर-
सार्वजनिक सभाएं/चुनाव/राजनीतिक दल।

प्रश्न 31.
लोकमत के निर्माण एवं अभिव्यक्ति का कोई एक विद्युत्-चालित साधन बताओ।
उत्तर-
रेडियो/दूरदर्शन।

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प्रश्न 32.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना कब और किसके द्वारा की गई?
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 में एक अंग्रेज अधिकारी ए० ओ० ह्यूम द्वारा की गई।

प्रश्न 33.
मुस्लिम लीग की स्थापना कब और किसके नेतृत्व में हुई?
उत्तर-
मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में सर सैयद अहमद तथा आगा खां के नेतृत्व में हुई।

प्रश्न 34.
हिन्दू महासभा की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1907 में।

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प्रश्न 35.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1924 में।

प्रश्न 36.
भारतीय समाजवादी पार्टी की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1934 में।

प्रश्न 37.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दो टुकड़े कब हुए?
अथवा
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी कब अस्तित्व में आई?
उत्तर-
1964 में।

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प्रश्न 38.
(i) भारतीय जनता पार्टी का गठन कब हुआ?
(ii) इसका पहला प्रधान किसे चुना गया?
उत्तर-
(i) 6 अप्रैल, 1980 को
(ii) श्री अटल बिहारी वाजपेयी को।

प्रश्न 39.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना किसके नेतृत्व में हुई?
उत्तर-
श्री मनविंद्र नाथ राज के।

प्रश्न 40.
रूस की क्रांति कब और किसके नेतृत्व में हुई?
उत्तर-
रूस की क्रांति 1917 में लेनिन के नेतृत्व में हुई।

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प्रश्न 41.
जनसंघ पार्टी के जनक कौन थे?
उत्तर-
डॉ० श्यामा प्रसाद मुकर्जी।

प्रश्न 42.
गुरुद्वारों की पवित्रता तथा श्री गुरु ग्रंथ साहिब के सम्मान को बनाए रखने के लिए किस राजनीतिक दल ने विशाल आंदोलन चलाया?
उत्तर-
शिरोमणि अकाली दल ने।

प्रश्न 43.
गुरुद्वारों के प्रबंध के लिए शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की स्थापना कब हुई?
उत्तर-
1926 में।

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प्रश्न 44.
भाषा के आधार पर पंजाब राज्य का पुनर्गठन कब हुआ?
उत्तर-
नवंबर 1966 में।

प्रश्न 45.
जिस राजनीतिक दल का शासन पर नियन्त्रण होता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
सत्तारूढ़ दल।

प्रश्न 46.
जो राजनैतिक दल सत्ता में नहीं होता है, उसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
विरोधी दल।

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प्रश्न 47.
राजनीतिक दल क्या होता है?
उत्तर-
लोगों का वह समूह जो एक समान राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए बनाया जाता है, उसे राजनीतिक दल कहते हैं।

प्रश्न 48.
एकदलीय प्रणाली, द्विदलीय प्रणाली और बहुदलीय प्रणाली से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
एकदलीय प्रणाली में केवल एक ही राजनीतिक दल का प्रभुत्व होता है। द्विदलीय प्रणाली के अन्तर्गत देश में दो प्रमुख राजनीतिक दल होते हैं जैसे-इंग्लैण्ड और संयुक्त राज्य अमेरिका में। बहुदलीय प्रणाली के अन्तर्गत किसी देश में दो से अधिक राजनीतिक दल सक्रिय होते हैं, जैसे-भारत में।

प्रश्न 49.
भारत में किस प्रकार की दल प्रणाली है?
उत्तर-
बहुदलीय।

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प्रश्न 50.
क्षेत्रीय दल किसे कहते हैं?
उत्तर-
क्षेत्रीय दल वे होते हैं जिनका प्रभाव पूरे देश में न होकर कुछ निश्चित क्षेत्रों में होता है।

प्रश्न 51.
क्षेत्रीय दलों के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर-
अकाली दल तथा तेलगू देशम्।

प्रश्न 52.
चुनाव चिह्न से क्या भाव है?
उत्तर-
चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक विशेष चिह्न निश्चित होता है जिसे चुनाव चिह्न कहते हैं।

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प्रश्न 53.
साधारण बहुमत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
साधारण बहुमत वह व्यवस्था है जिसमें सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी (उम्मीदवार) को विजयी घोषित किया जाता है।

प्रश्न 54.
कांग्रेस पार्टी का चुनाव चिन्ह क्या है?
उत्तर-
हाथ।

प्रश्न 55.
भारतीय जनता पार्टी का चुनाव चिन्ह क्या है?
उत्तर-
कमल का फूल।

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प्रश्न 56.
बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह क्या है?
उत्तर-
हाथी।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. साम्प्रदायिकता का अर्थ है, संकीर्ण ………… विचार रखना।
  2. समानता तथा स्वतंत्रता ………… के दो मूल सिद्धांत हैं।
  3. डेमोक्रेसी का शाब्दिक अर्थ है ………… का शासन है।
  4. भारत में कम-से-कम ……….. वर्ष की आयु के नागरिक को मताधिकार प्राप्त होता है।
  5. चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति …………… वर्ष के लिए होती है।
  6. भारत में प्रथम आम चुनाव ………….. में हुए थे।
  7. भाषा के आधार पर पंजाब का पुनर्गठन …………….. में हुआ था।
  8. चुनावों में विजयी वह दल जो सत्ता में नहीं आता ………….. दल कहलाता है।
  9. संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ………….. में द्वि-दलीय राजनीतिक प्रणाली है।
  10. पंजाब का ………….. क्षेत्रीय राजनीतिक दल है।

उत्तर-

  1. धार्मिक,
  2. लोकतंत्र,
  3. लोगों,
  4. 18,
  5. छः,
  6. 1952,
  7. 1966,
  8. विपक्षी,
  9. इंग्लैंड,
  10. अकाली दल।

III. बहुविकल्पीय

प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सा बिंदु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की विचारधारा का नहीं है?
(A) धर्म निरपेक्ष राज्य की स्थापना
(B) धारा 370 की समाप्ति
(C) गुट निरपेक्षता
(D) औद्योगिक क्षेत्र में सुधार ।
उत्तर-
(B) धारा 370 की समाप्ति

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प्रश्न 2.
लोकमत के निर्माण में बाधक है
(A) निरक्षरता
(B) पक्षपाती समाचार-पत्र
(C) भ्रष्ट राजनीति
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
भारत में किस प्रकार की दल प्रणाली है?
(A) बहुदलीय
(B) द्वि-दलीय
(C) एकदलीय
(D) इनमें से कोई नहीं
उत्तर-
(A) बहुदलीय

प्रश्न 4.
राष्ट्रपति का चुनाव किस चुनाव विधि द्वारा होता है?
(A) प्रत्यक्ष
(B) अप्रत्यक्ष
(C) हाथ उठा कर
(D) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(B) अप्रत्यक्ष

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प्रश्न 5.
निम्न राजनीतिक दल राष्ट्रीय दल है
(A) इंडियन नेशनल कांग्रेस
(B) भारतीय जनता पार्टी
(C) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. भारत में प्रत्यक्ष लोकतंत्र है।
  2. भारत गुट-निरपेक्षता का विरोधी है।
  3. चुनाव के समय किसी राजनीतिक दल के लिखित कार्यक्रम को चुनाव घोषणा-पत्र कहते हैं।
  4. भारत में स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनावों की जिम्मेवारी प्रधानमंत्री तथा राष्ट्रपति की होती है।
  5. भाषा के आधार पर पंजाब का पुनर्गठन नवम्बर 1966 में हुआ।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✗),
  5. (✓).

V. उचित मिलान

1. लोकतंत्र — राष्ट्रीय दल
2. स्वस्थ लोकमत — सरकार की निरंकुशता पर रोक
3. भारतीय जनता पार्टी — साक्षर नागरिक
4. विरोधी दल लोगों का अपना शासन।

उत्तर-

1. लोकतंत्र — लोगों का अपना शासन,
2. स्वस्थ लोकमत — साक्षर नागरिक,
3. भारतीय जनता पार्टी — राष्ट्रीय दल,
4. विरोधी दल — सरकार की निरंकुशता पर रोक।

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छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
आधुनिक काल में लोकतन्त्र (प्रजातन्त्र) का क्या अर्थ है?
अथवा
आधुनिक लोकतन्त्र में शासन की सर्वोच्च शक्ति किसके हाथ में होती है? ऐसे शासन में कानून कौन बनाता है?
उत्तर-
आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है। लोकतन्त्र से हमारा अभिप्राय उस शासन से है जिसमें शासन की सर्वोच्च शक्ति जनता के हाथ में होती है। जनता प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से शासन के कार्यों में भाग लेती है। जनता के प्रतिनिधि विधानमण्डलों में कानूनों का निर्माण करते हैं। वे पूर्ण रूप से जनता के कल्याण तथा हित का ध्यान रखते हैं। यदि कोई प्रतिनिधि ठीक कार्य न करे तो जनता ऐसे प्रतिनिधि को उसके पद से हटा सकती है।

प्रश्न 2.
राजनीतिक समता के सिद्धान्त से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
राजनीतिक समता से अभिप्राय यह है कि सभी लोकतान्त्रिक अधिकार कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित रहने की बजाय सभी को समान रूप से उपलब्ध होने चाहिएं। इस सिद्धान्त के अनुसार हम नागरिकों को प्रथम तथा द्वितीय श्रेणी में नहीं बांट सकते। अर्थात् ऐसा नहीं हो सकता कि कुछ व्यक्ति अधिकारयुक्त हों और कुछ अधिकारहीन हों। अतः स्पष्ट है कि राजनीतिक समता का यह अर्थ है कि सभी नागरिक कानून की दृष्टि में समान हैं और वे अपनी योग्यता के आधार पर उच्च से उच्च पद पर पहुंच सकते हैं। धर्म, जाति, रंग और लिंग-भेद को कानून द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होती।

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प्रश्न 3.
प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में क्या अन्तर है?
उत्तर-
लोकतन्त्र दो प्रकार का हो सकता है

  1. प्रत्यक्ष लोकतन्त्र
  2. अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र।

1. प्रत्यक्ष लोकतन्त्र–प्रत्यक्ष लोकतन्त्र वह शासन है जिसमें सभी नागरिक प्रत्यक्ष रूप से शासन के कार्यों में भाग लेते हैं। प्रत्येक नागरिक कानून बनाने, बजट बनाने, नया टैक्स लगाने, सार्वजनिक नीतियों आदि का निर्धारण करने में भाग लेते हैं। यहां तक कि जनता उन प्रतिनिधियों को भी पदमुक्त कर सकती है जो ठीक रूप से कार्य नहीं करते।
2. अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र-अप्रत्यक्ष लोकतन्त्र में जनता प्रत्यक्ष रूप से शासन कार्यों में भाग नहीं लेती अपितु वह कुछ प्रतिनिधि चुनती है। ये निर्वाचित प्रतिनिधि जनता की ओर से शासन-कार्य को चलाते हैं।

प्रश्न 4.
लोकमत का निर्माण व उसकी अभिव्यक्ति किस प्रकार होती है?
अथवा
लोकमत के निर्माण एवं अभिव्यक्ति के तीन साधनों का वर्णन करो।
उत्तर-
आधुनिक युग प्रजातन्त्र का युग है। प्रजातन्त्र का मूल आधार जनमत है। एक दृढ़ एवं प्रभावशाली जनमत का निर्माण अपने-आप नहीं होता है बल्कि इस उद्देश्य के लिए राजनीतिक दलों, शासकों एवं जन-नेताओं को प्रयत्न करने पड़ते हैं। जनमत के निर्माण तथा अभिव्यक्ति के लिए अग्रलिखित साधनों का प्रयोग किया जाता है-

  1. सार्वजनिक सभाओं में राजनीतिक दलों के नेता अपने विचार प्रकट करते हैं। वे अपने दल की नीतियां स्पष्ट करते हैं। इससे अधिक लोग देश की समस्याओं से परिचित होते हैं।
  2. प्रेस जनमत की अभिव्यक्ति का मुख्य साधन है। समाचार-पत्रों द्वारा लोग अपने निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र विचार प्रस्तुत कर सकते हैं।
  3. आकाशवाणी, दूरदर्शन, साहित्य, सिनेमा, शिक्षा संस्थाएं, धार्मिक संस्थाएं आदि जनमत का निर्माण करने में सहायता देते हैं।

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प्रश्न 5.
क्या ‘लोकमत’ वास्तव में ‘लोकमत’ होता है?
उत्तर-
‘लोकमत’ को प्रायः निर्वाचन के परिणामों से आंका जाता है। जिस दल को बहुमत प्राप्त होता है, लोकमत उसी के पक्ष में जाता है। यदि ध्यान से देखा जाए तो लोकमत वास्तव में लोकमत नहीं होता। चुनाव में बहुमत दल को कई बार 40% से भी कम मत प्राप्त होते हैं जबकि अन्य 60% मत अन्य दलों में बंट जाते हैं। इस प्रकार वास्तव में ‘लोकमत’ विरोधी दलों के पक्ष में होता है। परन्तु विरोधी दलों में मतों का विभाजन हो जाने के कारण वे अपनी सरकार बनाने के अधिकारी नहीं होते।

प्रश्न 6.
लोकतन्त्र के मार्ग में आने वाली बाधाओं को कैसे दूर किया जा सकता है? किन्हीं दो उपायों का वर्णन करो।
उत्तर-
लोकतन्त्र के मार्ग में आने वाली बाधाओं को अग्रलिखित उपायों द्वारा दूर किया जा सकता है —

  1. शिक्षा का प्रसार-शिक्षित तथा योग्य नागरिक ही प्रजातन्त्र को सफल बना सकते हैं। अत: सरकार को शिक्षा का अधिक-से-अधिक प्रसार करना चाहिए। प्राइमरी तक शिक्षा निःशुल्क होनी चाहिए ताकि अधिक-से-अधिक जनता शिक्षा प्राप्त कर सके।
  2. स्वतन्त्र एवं ईमानदार प्रेस-प्रजातन्त्र जनमत पर आधारित है। जनमत को बनाने तथा व्यक्त करने के लिए समाचार-पत्र एक अच्छा साधन है। इसलिए ईमानदार और निष्पक्ष प्रेस का होना प्रजातन्त्र की सफलता के लिए आवश्यक है। सरकार को प्रेस पर अंकुश नहीं लगाना चाहिए।

प्रश्न 7.
आधुनिक लोकतन्त्र अप्रत्यक्ष क्यों होते हैं?
उत्तर-
आधुनिक राज्य बड़े विशाल हैं जिनमें मतदाताओं की संख्या करोड़ों में है। इन सभी मतदाताओं द्वारा किसी देश का शासन चलाना सम्भव नहीं हो सकता। शासन चलाने के लिए किसी भीड़ की नहीं अपितु एक व्यवस्थित संस्था की आवश्यकता होती है। अत: शासन को व्यवस्थित करने के लिए ऐसी व्यवस्था की गई है जिसके अनुसार जनता अपने प्रतिनिधि चुनकर लोकसभा एवं विधानसभाओं में भेजे। इन प्रतिनिधियों की संख्या अधिक नहीं होती। अतः उनके लिए शासन चलाना सुगम होता है। यही कारण है कि आधुनिक लोकतन्त्र प्रत्यक्ष न होकर अप्रत्यक्ष है।

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प्रश्न 8.
लोकतन्त्र में प्रतिनिधित्व का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
आज के युग में लोकतन्त्रीय सरकारों का मुख्य कार्य प्रतिनिधित्व करना है। वास्तव में आज प्रतिनिधित्व पर ही सब कुछ निर्भर है। आज संसार के सभी देशों में जनसंख्या बहुत अधिक बढ़ गई है। अतः आधुनिक लोकतन्त्र में सभी नागरिक शासन में प्रत्यक्ष रूप से भाग नहीं ले सकते। केवल उनके प्रतिनिधि ही शासन कार्यों में भाग लेते हैं। इसके अतिरिक्त प्रतिनिधित्व की विविध प्रणालियों के द्वारा ही सरकार जनता की इच्छाओं के अनुसार कार्य करती है। इस प्रकार हम देखते हैं कि लोकतन्त्र में प्रतिनिधित्व का बहुत अधिक महत्त्व है।

प्रश्न 9.
उत्तरदायी सरकार से क्या तात्पर्य है?
उत्तर-
उत्तरदायी सरकार से तात्पर्य उन सरकारों से है जो इंग्लैण्ड तथा फ्रांस की क्रान्तियों के पश्चात् स्थापित की गई थीं। ये उत्तरदायी सरकारें अपनी मनमानी नहीं कर सकती थीं। इन्हें कुछ निश्चित नियमों का पालन करना पड़ता था। इन सरकारों के विषय में एक विशेष बात यह है कि ये आज की लोकतंत्रीय सरकारों से बिल्कुल भिन्न थीं। आधुनिक लोकतन्त्रीय सरकार में देश के सभी नागरिकों को मत देने का अधिकार होता है, परन्तु उस समय की उत्तरदायी सरकारों के चुनाव में सारी जनता भाग नहीं लेती थी। ये सरकारें कुछ ही लोगों द्वारा चुनी जाती थीं।

प्रश्न 10.
चुनाव घोषणा-पत्र क्या है? उसका क्या उपयोग है?
उत्तर-
चुनाव घोषणा-पत्र से अभिप्राय किसी उम्मीदवार या राजनीतिक दल के लिखित कार्यक्रम से है। यह कार्यक्रम चुनाव के समय मतदाताओं के सामने प्रस्तुत किया जाता है। इसके द्वारा प्रायः निम्नलिखित बातों का स्पष्टीकरण किया जाता है —

  1. देश की आन्तरिक तथा बाह्य नीतियों के विषय में उस दल के क्या विचार हैं।
  2. यदि उस दल की सरकार बनी तो वह लोगों की भलाई के लिए कौन-कौन से कार्य करेगी।
  3. चुनाव लड़ने वाले दल विरोधी दलों से किस प्रकार भिन्न हैं।

इसके विपरीत विरोधी दल वाले अपने घोषणा-पत्र में यह बताते हैं कि वे सरकार से क्यों असहमत हैं। इस प्रकार चुनाव घोषणा-पत्र का बड़ा ही महत्त्व है। वास्तव में दलों की परख भी इसी से होती है।

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प्रश्न 11.
साधारण बहुमत से अन्तर्निहित विरोधाभास को स्पष्ट करो।
उत्तर-
साधारण बहुमत से अभिप्राय ऐसी निर्वाचन पद्धति से है जिसमें सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार (प्रत्याशी) को विजयी घोषित किया जाता है। इस प्रणाली में स्पष्ट बहुमत न मिलने पर भी किसी प्रत्याशी को विजयी घोषित कर दिया जाता है। लोकतन्त्र की भावना के अनुसार किसी प्रत्याशी को आधे से अधिक मतदाताओं का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। परन्तु कई बार आधे से भी कम वोट लेने वाला प्रत्याशी निर्वाचित हो जाता है। ऐसे प्रतिनिधि को हम वास्तविक प्रतिनिधि नहीं कह सकते। कई बार तो अधिक मत प्राप्त करने पर भी कोई दल विधानपालिका में विरोधी दल का स्थान ग्रहण करता है और अल्पमत का प्रतिनिधित्व करने वाला दल सत्ता में आ जाता है।

प्रश्न 12.
चुनाव अभियान का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
लोकतन्त्र में चुनाव अभियान का बड़ा महत्त्व है। इस प्रकार के अभियान द्वारा साधारण जनता को देश अथवा राज्य की विभिन्न समस्याओं का पता चलता है। राजनीतिक दल इन अभियानों द्वारा जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयत्न करते हैं। विरोधी दल जनता को अपने कार्यक्रमों के विषय में सूचित करते हैं। वे यह भी स्पष्ट करते हैं कि सरकार की नीतियों में क्या कमी है। वे जनता को आश्वासन देते हैं कि यदि उनकी सरकार बनती है तो वे जनता की सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखेंगे। इसी प्रकार सरकार जनता को अपनी सफलताओं तथा आगे की योजनाओं के विषय में बताती है। इन सभी बातों से स्पष्ट है कि चुनाव अभियान का बड़ा महत्त्व है।

प्रश्न 13.
लोकतन्त्र में चुनाव का क्या महत्त्व है? चुनावों में राजनीतिक दल क्या भूमिका निभाते हैं?
उत्तर-
लोकतन्त्र में चुनावों का महत्त्व इस प्रकार है

  1. चुनाव द्वारा जनता राज्य तथा केन्द्रीय विधानमण्डलों के सदस्यों का चुनाव करती है।
  2. चुनाव के कारण शासन-प्रणाली में स्थिरता आती है।
  3. चुनाव के द्वारा जनता सरकार पर नियन्त्रण रखती है और उसे निरंकुश बनने से रोकती है।
  4. चुनावों द्वारा जनता सरकार को बदल सकती है।

चुनावों में विभिन्न राजनीतिक दल राष्ट्रीय समस्याओं को जनता के सम्मुख प्रस्तुत करते हैं। वे यह भी बताते हैं कि सत्ता में आने पर वे इन समस्याओं को कैसे हल करेंगे। वे जनता को राजनीतिक शिक्षा देते हैं और उन्हें अपने अधिकारों के प्रति जागृत करते हैं।

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प्रश्न 14.
निर्वाचन में ‘साधारण बहुमत’ के दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक लोकतन्त्र में प्रतिनिधियों का चुनाव साधारण बहुमत द्वारा किया जाता है। साधारण बहुमत से अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति अपने निकटतम प्रतिद्वन्द्वी से अधिक मत प्राप्त कर लेता है, उसे निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। परन्तु यह एक दोषपूर्ण प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया द्वारा निर्वाचित व्यक्ति को उचित प्रतिनिधित्व प्राप्त नहीं होता। इसे समझने के लिए हम एक उदाहरण लेते हैं। मान लीजिए तीन उम्मीदवारों के लिए 100 वैध मत डाले गए हैं। इनमें 25 मत एक उम्मीदवार को, 35 मत दूसरे उम्मीदवार को तथा 40 मत तीसरे उम्मीदवार को मिले हैं। ऐसी अवस्था में तीसरा उम्मीदवार विजयी होगा, जबकि उसे 100 में से आधे मत भी प्राप्त नहीं हुए हैं। इस प्रकार साधारण बहुमत लेकर कोई एक दल सत्ता में आ जाता है, भले ही वह आधे मतदाताओं का प्रतिनिधित्व भी नहीं करता।

प्रश्न 15.
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से आपका क्या अभिप्राय है? इसके लिए कौन-सी दो प्रणालियां अपनाई जाती हैं?
उत्तर-
आनुपातिक प्रतिनिधित्व से हमारा अभिप्राय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति अथवा वर्ग के लोगों को उनके अनुपात में प्रतिनिधित्व प्राप्त हो। आनुपातिक प्रतिनिधित्व को लागू करने के लिए दो प्रणालियां अपनाई जाती हैं

  1. एकल संक्रमणीय मत प्रणाली।
  2. सूची प्रणाली।

भारत के राष्ट्रपति का चुनाव भी आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर एकल संक्रमणीय मत प्रणाली द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 16.
प्रतिनिधियों के चयन के लिए कौन-कौन सी दो चुनाव प्रणालियां अपनाई गई हैं?
उत्तर-
प्रतिनिधियों के चयन के लिए निम्नलिखित चुनाव प्रणालियां अपनाई गई हैं

  1. प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली
  2. अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली।

1. प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली-प्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली में मतदाता स्वयं अपने मत का प्रयोग करके अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं। उदाहरण के लिए भारत में लोकसभा का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से किया जाता है। प्रत्येक स्त्री-पुरुष, जिसकी आयु 18 वर्ष या इससे अधिक हो, मत का प्रयोग कर सकता है।
2. अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली-कुछ प्रतिनिधियों का चुनाव मतदाता प्रत्यक्ष रूप से नहीं करते। इनका चुनाव मतदाताओं द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि करते हैं। इस प्रणाली को अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली कहा जाता है। भारत में राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली द्वारा होता है।

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प्रश्न 17.
गुप्त मतदान प्रणाली का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
गुप्त मतदान प्रणाली निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनाव की दृष्टि से काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। इसमें मतदाता किसी भी उम्मीदवार के दबाव में नहीं आ सकता और न ही उसे अपने मत का प्रयोग करने के बाद इस बात का भय रहता है कि कोई उम्मीदवार उसे विरोधी पक्ष को मत देने के लिए तंग करेगा। वह अपने मत का प्रयोग बिना किसी भय के स्वतन्त्र रूप से कर सकता है। गुप्त मतदान प्रणाली के महत्त्व को देखते हुए आज विश्व के अनेक देशों ने इस प्रणाली को अपनाया है।

प्रश्न 18.
लोकतन्त्रीय सरकार में दलों का इतना अधिक महत्त्व क्यों माना जाता है?
उत्तर-
लोकतन्त्र में राजनीतिक दलों का विशेष महत्त्व है। ये दल निम्नलिखित कार्य करते हैं

  1. सभी राजनीतिक दल अपना राजनीतिक कार्यक्रम तैयार करते हैं। वे अपना-अपना चुनाव घोषणा-पत्र (Manifesto) तैयार करते हैं जिनके द्वारा वे देश की समस्याओं को जनता के सामने रखते हैं। वे इस बात को भी स्पष्ट करते हैं कि वे इन समस्याओं का समाधान कैसे करेंगे ?
  2. जनमत का निर्माण करने में भी ये दल विशेष भूमिका निभाते हैं।
  3. ये दल प्रजातन्त्र के सिद्धान्त के अनुसार चुनाव भी लड़ते हैं।
  4. आम चुनावों के पश्चात् बहुमत प्राप्त करने वाला दल सरकार का निर्माण करता है।
  5. जो दल चुनावों में बहुमत प्राप्त नहीं कर पाता, वह विरोधी दल का निर्माण करता है।
  6. लोगों को राजनीतिक शिक्षा देने में भी राजनीतिक दलों का हाथ होता है।

प्रश्न 19.
द्वि-दलीय प्रणाली के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
द्वि-दलीय प्रणाली के मुख्य लाभ निम्नलिखित हैं

  1. स्थिर सरकार-द्वि-दलीय प्रणाली में स्थिर सरकार का निर्माण होता है। ऐसी सरकार जनमत की इच्छानुसार शासन चलाती है।
  2. स्पष्ट चनाव-इस प्रणाली के अन्तर्गत नवीन चुनावों के बाद घटित होने वाली बात के विषय में अधिक अनिश्चितता नहीं होती। मतदाता यह जानते हैं कि यदि एक दल हटता है तो दूसरा दल ही सत्तारूढ़ होगा।
  3. सुदृढ़ विरोधी दल-इस प्रणाली में विरोधी दल भी बड़ा सुदृढ़ होता है। वह हर समय सक्रिय रहता है एवं सत्तारूढ़ दल की गलत नीतियों की तीव्र आलोचना करता है।
  4. निश्चित उत्तरदायित्व-द्वि-दलीय प्रणाली में बहुमत दल की सरकार होती है। सरकार की बुराइयों के लिए सत्तारूढ़ दल को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं.

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

प्रश्न 1.
समोच्च रेखाओं का सिद्धांत बताएँ। इनके गुण-दोष बताएँ।
उत्तर-
धरातल को दर्शाने वाली विधियाँ-धरातल को नक्शों पर चित्रित करने के लिए नीचे लिखी विधियों का प्रयोग किया जाता है

  1. हैशओर (Hachures)
  2. आकार रेखाएँ (Form-lines)
  3. समोच्च रेखाएँ (Contours)
  4. ऊँचाई दर्शक बिंदु (Spot Heights)
  5. निर्देश चिन्ह (Bench Marks) और तिकोने स्टेशन (Trignometrical Stations)
  6. पर्वतीय छायाकरण (Hill Shading)
  7. रंग-चित्रण (Layer tints)

समोच्च रेखा-समोच्च वह कल्पित रेखा है, जो औसत समुद्री सतह से समान ऊँचाई वाले स्थानों को आपस में मिलाकर खींची जाती है। (A contour is an imaginary line which joins the places of equal height above mean sea land.) यदि किसी पहाड़ी की परिक्रमा की जाए (बिना ऊपर-नीचे गए ताकि एक ही ऊँचाई पर परिक्रमा हो), तो यह रास्ता एक समोच्च रेखा होगी।

लंबात्मक अंतर और क्षितिज अंतर-

1. लंबात्मक अंतर (Vertical Interval) की क्रमिक (Successive) समोच्च रेखाओं के बीच की ऊँचाई को लंबात्मक अंतर कहा जाता है। इसे संक्षेप में VI भी लिखा जाता है। यह किसी एक नक्शे पर स्थित (Constant) होता है। यदि समोच्च रेखाएं 50, 100, 150, 200, 250 आदि खींची जाएँ, तो लंबात्मक अंतर 50 मीटर होगा।

2. क्षितिज अंतर (Horizontal Equivalent) की क्रमिक (Successive) समोच्च रेखाओं के बीच की क्षितिज दूरी को क्षितिज अंतर कहते हैं। इसे संक्षेप में H.E. भी लिखा जाता है। यह ढलान के अनुसार बदलता रहता है। हल्की ढलान के लिए H.E. अधिक होता है, पर तीखी ढलान के लिए कम होता है।

PSEB 11th Class Practical Geography Chapter 6 समोच्च रेखाएं

समोच्च रेखाओं की प्रमुख विशेषताएँ–समोच्च रेखाओं की विशेषताएँ नीचे लिखी हैं-

  1. ये कल्पित रेखाएँ होती हैं।
  2. ये रेखाएँ आम तौर पर भूरे (Brown) रंग से दिखाई जाती हैं।
  3. इनकी ऊँचाई समोच्च रेखाओं पर लिखी जाती हैं।
  4. ये रेखाएँ एक बंद चक्र बनाती हैं, ये एकदम शुरू या समाप्त नहीं होती।
  5. समोच्च रेखाएँ सदा एक निश्चित लंबात्मक अंतर पर खींची जाती हैं।
  6. जब समोच्च रेखाएँ एक-दूसरे के निकट होती हैं, तो तीखी ढलान प्रकट करती हैं, पर जब समोच्च रेखाएँ दूर – दूर होती हैं, तो हल्की ढलान प्रकट करती हैं।

गुण (Merits)

  1. धरातल को दिखाने के लिए यह सबसे बेहतर विधि है।
  2. इस विधि से अलग-अलग भू-आकारों को आसानी से दर्शाया जा सकता है।
  3. इस विधि से किसी क्षेत्र की ऊँचाई और ढलान पता लगाई जा सकती है।
  4. यह विधि गणित पर आधारित है और उचित है।

दोष (Demerits)-

1. जब लंबात्मक अंतर बड़ा हो, तो छोटे-छोटे भू-आकार नक्शे पर नहीं दिखाए जा सकते। 2. जब नक्शे पर पर्वतीय और मैदानी धरातल साथ-साथ दिखाना हो, तो कई मुश्किलें आती हैं। अलग-अलग भू-आकृतियों को समोच्च रेखाओं द्वारा दिखाना1. समतल ढलान (Uniform Slope)—यह ढलान एक समान होती है, इसलिए समोच्च रेखाएँ समान दूरी पर
खींची जाती हैं।

2. उत्तल ढलान (Convex Slope)—यह ढलान निचले भाग में तीखी होती है, पर ऊँचाई पर ऊपरी भाग में हल्की होती है। शुरू में समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं और ऊँचाई बढ़ने से दूर-दूर होती जाती हैं।

3. अवतल ढलान (Concave Slope)—यह ढलान निचले भाग में हल्की और ऊपरी भाग में तीखी होती है। इसमें शुरू में समोच्च रेखाएँ दूर-दूर होती हैं, परंतु ऊँचाई पर पास-पास होती जाती हैं।

4. सीढ़ीदार ढलान (Terraced Slope)—यह ढलान सीढ़ी की तरह आगे बढ़ती जाती है। इसमें समोच्च रेखाएँ जोड़ों में होती हैं। दो रेखाएँ पास-पास और कुछ दूरी पर फिर दो रेखाएँ पास-पास होती हैं।

5. शंकु आकार की पहाड़ी (Conical Hill)—यह पहाड़ी दो आकार की होती है। इसकी ढलान चारों तरफ एक जैसी होती है। इसकी समोच्च रेखाएँ समकेंद्रीय चक्रों (Concentric Circles) जैसी होती हैं। केंद्र में पहाड़ी के शिखर को दिखाया जाता है।

6. पठार (Plateau)—पठार ऐसे प्रदेश को कहते हैं, जिसका शिखर समतल चौड़ा (Flat) हो और उसके किनारे पर तीखी ढलान हो। इसके किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं, पर बीच में समतल स्थान होने के कारण कोई समोच्च रेखा नहीं होती।

7. कटक (Ridge) कम ऊँची और लंबी पहाड़ियों की श्रृंखला को कटक कहते हैं। इसके Contour लंबे और कम चौड़े होते हैं।

8. काठी (Saddle)-दो पर्वतीय शिखरों के बीच स्थित निचले भाग को काठी कहते हैं। इसका आकार घोड़े की काठी जैसा होता है।

9. टीला (Knoll) कम ऊँची और छोटी-सी कोण आकार की पहाड़ी को टीला कहते हैं। यह एक प्रकार का अलग टीला होता है। इसे एक या दो गोल आकार की समोच्च रेखाओं से दिखाया जाता है।

10. ‘वी’-आकार की घाटी (V-Shaped Valley) नदी अपने गहरे कटाव से V-आकार की घाटी बनाती है। इसमें समोच्च रेखाएँ अंग्रेज़ी के अक्षर ‘V’ जैसी होती हैं। इसके अंदर ऊँचाई कम होती है और V के शिखर की ओर अधिक ऊँचाई होती है।

11. ‘U’ आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-यह घाटी हिम नदी के कटाव से बनती है और इसका आकार ‘U’ अक्षर के समान होता है। इसकी समोच्च रेखाएँ भी ‘U’ अक्षर के समान होती हैं। दोनों किनारों पर समोच्च रेखाएँ पास-पास होती हैं और तीखी ढलान होती हैं। इसके भीतरी भाग में कम ऊँचाई और बाहर की ओर अधिक ऊँचाई होती है।

12. पर्वत-स्कंध (Spur)—किसी ऊँचे प्रदेश से निचले प्रदेश की ओर जीभ की तरह आगे बढ़े हुए भू-भाग को पर्वत-स्कंध कहते हैं। इसमें समोच्च रेखाएँ उल्टे ‘V’ अक्षर के समान होती हैं। इसके भीतरी भाग में अधिव ऊँचाई होती है और बाहर की ओर कम।

13. कांधी (Cliff)—समुद्री तट रेखा पर एक ऊँची और खड़ी ढलान वाली चट्टान को कांधी कहते हैं। इस समोच्च रेखाएँ आपस में मिल जाती हैं, जो खड़ी ढलान प्रकट करती हैं। ऊँचे भाग की समोच्च रेखाएँ । दूर होती हैं और हल्की ढलान प्रकट करती हैं।

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PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
जन-सहभागिता का अर्थ बताएं। भारत में कम तथा नीचे दर्जे की जन-सहभागिता के चार कारणों का वर्णन करें।
(What is the meaning of people’s participation ? Explain four reasons of low and poor people’s participation in India.)
अथवा
जन सहभागिता का क्या अर्थ है ? भारत में कम जन सहभागिता के कारणों का वर्णन करो।
(What is meant by People’s Participation ? What are the reasons of Peoples low participation in India ?)
उत्तर-
जन-सहभागिता का अर्थ-जन-सहभागिता लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का महत्त्वपूर्ण आधार है। जनसहभागिता का अर्थ है राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना। जन-सहभागिता का स्तर सभी शासन प्रणालियों और सभी देशों में एक समान नहीं होता। अधिनायकवाद और निरंकुशतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत कम होता है जबकि लोकतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत ऊंचा होता है। लोकतन्त्र में जन-सहभागिता के द्वारा ही लोग शासन में भाग लेते हैं। हरबर्ट मैक्कलॉस्की के अनुसार, “सहभागिता वह मुख्य साधन है जिसके द्वारा लोकतन्त्र में सहमति प्रदान की जाती है और वापस ली जाती है तथा शासकों को शासितों के प्रति उत्तरदायी बनाया जाता है।”

भारत में जनसहभागिता की धारणा-भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है। किसी लोकतान्त्रिक देश की जनसंख्या इतनी नहीं है जितनी कि भारत में मतदाताओं की संख्या है। 1991 में दसवीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर मतदाताओं की संख्या 52 करोड़ से अधिक है जबकि 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा के चुनाव के अवसर पर मतदाताओं की संख्या 58 करोड़ से अधिक थी। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में मतदाताओं की संख्या 81 करोड़ 40 लाख थी। आम चुनावों के समय जितने लोग राजनीतिक प्रक्रिया में भाग लेते हैं, उतने अन्य किसी राष्ट्रीय उत्सव या पर्व में नहीं लेते हैं। चुनाव एक माध्यम है जिसके द्वारा मतदाता अपनी प्रभुसत्ता का प्रयोग करते हैं।

चुनाव के द्वारा ही मतदाताओं और राजनीतिक नेताओं में सीधा सम्पर्क स्थापित होता है। यद्यपि भारत के अधिकांश मतदाता अनपढ़ हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनमें राजनीतिक जागरूकता बढ़ती जा रही है। 1952 के मतदाता और अब के मतदाता में बहुत अन्तर है। पहले मतदाता न तो राजनीतिक प्रश्नों पर विचार करते थे और न ही राजनीतिक दलों के कार्यक्रमों पर। वे पं० जवाहरलाल नेहरू और कुछ अन्य नेताओं के नाम पर मतदान करते थे या फिर जाति, धर्म एवं बिरादरी के उम्मीदवार को वोट डालते थे। इसलिए प्रायः सभी राजनीतिक दल उम्मीदवारों का चयन करते समय जाति एवं धर्म का ध्यान रखते रहे हैं और जिस चुनाव क्षेत्र में जिस जाति के मतदाताओं की संख्या अधिक होती है, उस क्षेत्र में प्रायः उस जाति का उम्मीदवार खड़ा किया जाता रहा है। परन्तु पिछले कुछ सालों के चुनावों में मतदाताओं ने जाति से ऊपर उठकर मतदान किया।

इन चुनावों के परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारतीय मतदाता राष्ट्रीय समस्याओं पर सोचने-विचारने लगे हैं और उनमें राजनीतिक सूझ-बूझ है, चाहे वे अधिकतर पढ़े-लिखे नहीं हैं। मतदाता दल की पिछली सफलताओं में रुचि न लेकर समकालीन घटनाओं तथा समस्याओं में अधिक रुचि रखते हैं। 1977 में मतदाताओं ने कांग्रेस के विरुद्ध मतदान किया क्योंकि मतदाता कांग्रेस सरकार के आपात्काल के अत्याचारों से बहुत भयभीत हो गए थे। यहां तक कि श्रीमती इन्दिरा गांधी स्वयं भी चुनाव हार गईं। 1980 में मतदाताओं ने जनता पार्टी के विरुद्ध मतदान किया क्योंकि जनता पार्टी के नेता सत्ता में आने के बाद परस्पर लड़ते रहे और अधिक समय तक सत्ता में न रह सके। मतदाताओं ने श्रीमती गांधी को पुनः सत्ता सौंप दी क्योंकि श्रीमती इन्दिरा गांधी ने शासन में स्थायित्व और कीमतों को कम करने का आश्वासन दिया था।

भारतीय महिलाएं चुनाव में पुरुषों के समान ही हिस्सा लेती हैं। लोकसभा के लिए हुए विभिन्न चुनावों में कई क्षेत्रों में महिला मतदाताओं ने पुरुषों से अधिक मतदान किया। महिलाओं की राजनीति में रुचि बढ़ती जा रही है जो कि प्रजातन्त्र के लिए अच्छी बात है, परन्तु महिलाओं का प्रतिनिधित्व संसद् में कम होता जा रहा है। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में केवल 61 महिलाएं लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं।

सहभागिता का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष यह है कि अधिकतर भारतीय मतदाता राजनीति में रुचि नहीं रखते या राजनीति के प्रति उदासीन हैं, विशेषकर शिक्षित मतदाता बहुत कम वोट डालने जाते हैं। आम चुनावों से स्पष्ट हो जाता है कि लगभग 60 प्रतिशत मतदाता ही मतदान करने जाते हैं। यह उदासीनता लोकतन्त्र के लिए अच्छी नहीं है। फरवरी, 1992 में पंजाब विधानसभा का चुनाव हुआ. जिसका अकाली दल (मान), अकाली दल (बादल) तथा अन्य अकाली दलों ने बहिष्कार किया, मतदान केवल 28 प्रतिशत रहा।

भारतीय नागरिकों की न केवल चुनाव में सहभागिता कम है बल्कि अन्य राजनीतिक गतिविधियों में भी कम लोग भाग लेते हैं। अधिकांश नागरिक राजनीतिक दलों के सदस्य बनना पसन्द नहीं करते और राजनीतिक दल भी निरन्तर सक्रिय नहीं रहते। केवल चुनाव के समय ही राजनीतिक दल सक्रिय होते हैं और चुनावों के समाप्त होने के साथ ही सो जाते हैं। आम जनता सार्वजनिक मामलों और राजनीतिक गतिविधियों में रुचि नहीं लेती। बहुत कम नागरिक चुनाव के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों से मिलते रहते हैं और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराते हैं। इस प्रकार भारत में जन-सहभागिता का स्तर निम्न है।

भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता के कारण (CAUSES OF LOW LEVEL OF PEOPLE’S PARTICIPATION IN INDIA)

भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता के निम्नलिखित कारण हैं-
1. अनपढ़ता (mliteracy)—स्वतन्त्रता के इतने वर्ष बाद भी भारत में बहुत अनपढ़ता पाई जाती है। अशिक्षित व्यक्तियों में आत्म-विश्वास की कमी होती है और वे देश की समस्याओं को समझने की स्थिति में भी नहीं होते। अशिक्षित व्यक्ति को न तो अपने अधिकारों का ज्ञान होता है और न ही अपने कर्तव्यों का। अशिक्षित व्यक्ति का मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और न ही अधिकांश अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार का प्रयोग करना आता है। चुनाव के समय लाखों मत-पत्र का अवैध घोषित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि लोगों को मत का प्रयोग करना नहीं आता।

2. ग़रीबी (Poverty)-भारत की अधिकांश जनता ग़रीब है। ग़रीब नागरिक को पेट भर कर भोजन न मिल सकने के कारण उनका शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो सकता। वह सदा अपना पेट भरने की चिन्ता में लगा रहता है और उसके पास समाज और देश की समस्याओं पर विचार करने का न तो समय होता है और न ही इच्छा। ग़रीब व्यक्ति चुनाव लड़ना तो दूर की बात वह चुनाव की बात भी नहीं सोच सकता। ग़रीब व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और अपनी वोट को बेचने के लिए तैयार हो जाता है।

3. बेकारी (Unemployment)-भारत में जन-सहभागिता के निम्न स्तर के होने का एक कारण बेकारी है। भारत में करोड़ों लोग बेकार हैं। भारत में बेकारी अशिक्षित तथा शिक्षित दोनों प्रकार के लोगों में पाई जाती है। बेकार व्यक्ति में हीन भावना आ जाती है और वह अपने आपको समाज पर बोझ समझने लगता है। बेकार व्यक्ति अपनी समस्याओं में ही उलझा रहता है और उसे समाज एवं देश की समस्याओं का कोई ज्ञान नहीं होता। बेकारी के कारण नागरिकों का प्रशासनिक स्वरूप तथा राजनीतिक दलों की क्षमता में विश्वास कम होता जा रहा है। बेकार व्यक्ति मताधिकार को कोई महत्त्व नहीं देता और अपना वोट बेचने के लिए तैयार रहता है।

4. शिक्षित लोगों में राजनीतिक उदासीनता (Political apathy among educated people)-भारत में शिक्षित लोगों में राजनीतिक उदासीनता पाई जाती है। पढ़े-लिखे लोग राजनीति में रुचि नहीं रखते और राजनीतिक दलों का सदस्य बनना पसन्द नहीं करते। चुनाव में अधिकांश शिक्षित लोग वोट डालने नहीं जाते क्योंकि वे यह समझते हैं कि उनके मतों से चुनाव के परिणाम पर कोई असर पड़ने वाला नहीं है क्योंकि अधिकांश जनता अनपढ़ है और उनके मतदान से ही परिणाम निर्धारित होते हैं।

5. भ्रष्टाचार (Corruption)-भारत में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। भ्रष्टाचार राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर दोनों पर पाया जाता है। राजनीति में सत्य, नैतिकता और ईमानदारी का कोई स्थान नहीं है। चुनाव के लिए सभी तरह के भ्रष्ट तरीके अपनाए जाते हैं। अतः ईमानदार और नैतिक व्यक्ति राजनीतिक से दूर रहना पसन्द करता है क्योंकि भारत में यह आम धारणा है कि राजनीति भ्रष्ट लोगों का खेल है। इसलिए ईमानदार व्यक्ति न तो चुनाव में खड़े होते हैं और न ही राजनीतिक कार्यों में दिलचस्पी लेते हैं।

6. राजनीतिक दलों में विश्वास की कमी (Lack of faith in Political Parties)-भारत की अधिकांश जनता को राजनीतिक दलों पर विश्वास नहीं है। आम धारणा यह है कि राजनीतिक दलों का उद्देश्य जनता की सेवा करना नहीं है बल्कि ये दल अपने हितों की रक्षा के लिए सत्ता करना चाहते हैं। दल-बदल ने जनता का राजनीतिक दलों से विश्वास बिल्कुल उठा दिया है। लोगों का विचार है कि राजनीतिक नेता अपनी कुर्सी के चक्कर में रहते हैं और उन्हें जनता के हितों की कोई परवाह नहीं होती। इसलिए आम जनता की चुनावों और अन्य राजनीतिक गतिविधियों में सहभागिता कम होती जा रही है।

7. अज्ञानता (Ignorance)-भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता का एक कारण लोगों की अज्ञानता है। भारत में प्राय: शिक्षित लोग भी कई प्रकार की राजनीतिक समस्याओं से अनभिज्ञ रहते हैं। वे राजनीति में होने वाली महत्त्वपूर्ण गतिविधियों को समझ नहीं पाते तथा राजनीति में कम रुचि लेते हैं।

8. राजनीति व्यवसाय के रूप में (Politics As a Profession)-भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता का एक प्रमुख कारण यह है, कि राजनीति एक पारिवारिक व्यवसाय बन चुकी है। यदि एक व्यक्ति किसी निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ता है, तो वह यह कोशिश करता है कि आगे समय में उसके परिवार के ही किसी सदस्य को टिकट मिले। इस कारण राजनीति केवल कुछ लोगों के मध्य सीमित होकर रह गई हैं। जिससे आम नागरिक राजनीति में रुचि नहीं लेता।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 2.
मतदान व्यवहार से क्या भाव है ? मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तथ्यों का वर्णन करें।
(What is meant by Voting Behaviour ? Write main determinants of Voting Behaviour in India.)
अथवा
मतदान व्यवहार से क्या भाव है ? भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तथ्यों का वर्णन करो।
(What is meant by Voting Behaviour ? Write the factors which determine the Voting Behaviour in India.)
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक नागरिक को जो एक निश्चित तिथि को 18 वर्ष की आयु को प्राप्त कर चुका हो मताधिकार दिया गया है। नागरिक मताधिकार का प्रयोग करते समय अनेक कारकों से प्रेरित होता है। जिन कारणों अथवा स्थितियों से प्रभावित होकर मतदाता किसी उम्मीदवार को वोट डालने का निर्णय करता है, उन तथ्यों तथा स्थितियों के अध्ययन को ही मतदान व्यवहार का अध्ययन कहा जाता है। जे० सी० प्लेनो और रिगस (J. C. Plano and Riggs) के अनुसार, “मतदान व्यवहार अध्ययन के उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उन विधियों से सम्बन्धित है जिन विधियों द्वारा लोग सार्वजनिक चुनाव में अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान व्यवहार उन कारणों से सम्बन्धित है जो कारण मतदाताओं को किसी विशेष रूप से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

(“Voting behaviour is a field study of concerned with the ways in which people tend to vote in public elections and the reasons why they vote or they do.”) साधारण शब्दों में मतदान व्यवहार का अर्थ है कि मतदाता अपने मत का प्रयोग क्यों करते हैं और किस प्रकार करते हैं। निष्पक्ष चुनाव के लिए यह आवश्यक है कि मतदाता अपने इस अधिकार का प्रयोग ईमानदारी और समझदारी से करें। विख्यात विचारक काका कालेलकर का कहना है कि मतदाताओं को यह चाहिए कि “प्रतिनिधि को उसी दृष्टि से चुने जिस दृष्टि से हम मरीज़ के लिए डॉक्टर को चुनते हैं। देश का मामला बिगड़ गया है। उनको सुलझा सकें, उसी दल को अपना वोट दो और उस दल का बहुमत बनाने के लिए उसके छांटे हुए उम्मीदवारों को वोट दो। वोट देने वाले को दो बातें देखनी चाहिएं-एक यह कि किन नेताओं के द्वारा देश-हित हो सकता है, दूसरा यह कि ऐसे नेताओं के पृष्ठ-पोषण करने वाले प्रतिनिधि सार्वजनिक चरित्र के बारे में शुद्ध हैं या नहीं। जो नेता स्वयं उच्च चरित्र के हों, वे अपने पक्ष में हीन चरित्र के लोगों को लेकर बहुमत लाना चाहें, उन्हें पसन्द न करना जनता का कर्तव्य हो जाता है।”

परन्तु अफसोस यह है कि भारतीय मतदाता ईमानदारी और समझदारी से वोट न डालकर धार्मिक, जात-पात, क्षेत्रीय तथा अन्य सामाजिक भावनाओं के ओत-प्रोत होकर मतदान करता है। भारतीय मतदान व्यवहार को अनेक तत्त्व प्रभावित करते हैं जिनमें प्रमुख निम्नलिखित हैं

1. जाति का मतदान व्यवहार पर प्रभाव (Influence of Caste on the Voting behaviour) जाति सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जिसका आरम्भ से ही मतदान व्यवहार पर बड़ा प्रभाव रहा है। स्वतन्त्रता से पूर्व भी जब अभी वयस्क मताधिकार प्रचलित नहीं हुआ था, जाति का मतदान पर बहुत प्रभाव था। स्वतन्त्रता के पश्चात् यह प्रभाव कम होता दिखाई नहीं देता, इसके बावजूद भी कि शिक्षकों और सामाजिक नेताओं ने जाति की बुराइयों के विरुद्ध स्वतन्त्रता के पश्चात् काफ़ी प्रचार किया है। प्रो० श्रीनिवास (Shrinivas) ने ठीक ही कहा है कि, “शिक्षित भारतीयों में यह साधारण विश्वास है कि जाति अब अपनी आखिरी मंजिल पर है और शहर के शिक्षित तथा पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित उच्च वर्ग के लोग अब इस बुराई के चंगुल से बाहर निकल चुके हैं।

परन्तु उनका ऐसा सोचना ग़लत है। ये लोग चाहे जाति के बन्धनों को कम मानते हैं और जाति के बाहर भी शादी कर लेते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह नहीं कि जाति का प्रभाव बिल्कुल समाप्त हो गया है।” प्रो० रूडाल्फ (Prof. Rudolph) के विचारानुसार, “इसके अतिरिक्त भी कि भारतीय समाज लोकतान्त्रिक नीति के मूल्यों और विधियों को अपना रहा है, जाति भारतीय समाज की धुरी है। वास्तव में जाति एक मुख्य साधन है जिसके द्वारा भारतीय जनता लोकतन्त्रात्मक राजनीति से बंधी हुई है।” प्रो० मौरिस जॉन्स के मतानुसार, “राजनीति जाति से अधिक महत्त्वपूर्ण है और जाति पहले से राजनीति से अधिक महत्त्वपूर्ण है।”

इन सब विद्वानों ने ठीक ही विचार दिए हैं कि भारतीय राजनीति में जाति का बहुत महत्त्व है और भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है। कुछ राज्यों में तो यह तत्त्व वह बहत निर्णायक है क्योंकि मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देना अपना कर्त्तव्य मानते हैं। उदाहरण के लिए, हरियाणा में अनुसूचित जातियों में हरिजनों की संख्या सबसे अधिक है और राजनीति तथा मतदान के क्षेत्र में उनकी दूसरी जातियों की अपेक्षा अधिक चलती है। गुड़गांव, महेन्द्रगढ़ में अहीर जाति के जाट केवल अहीर उम्मीदवार को ही वोट देते हैं। चुनाव के दिनों में यह नारा बहुत लोकप्रिय होता है, “जाट की बेटी जाट को, जाट का वोट जाट को।” मियू (Meo) जाति के मुसलमान भी जाति के आधार पर वोट डालते हैं। बिहार, गुजरात, पंजाब तथा केरल आदि राज्यों में भी मतदाता जाति के आधार पर ही अधिकतर वोट डालते हैं। अनेक दल तो जातियों के आधार पर ही बने हुए हैं और उन्हें विशेष जातियों का समर्थन प्राप्त है-जैसे लोकदल जाट जाति पर नाज करता है, अकाली दल कट्टर सिक्खों के सहारे जिन्दा है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों के लोकसभा के चुनावों में जाति ने पहले की अपेक्षा बहुत कम प्रभावित किया है।

2. धर्म का प्रभाव (Influence of Religion)-भारतीय मतदाता धर्म के प्रभाव में आकर भी वोट डालते हैं। टिकट बांटते समय निर्वाचित क्षेत्र की रचना को ध्यान में रखा जाता है और प्रायः उसी धर्म के व्यक्ति को टिकट दी जाती है जिस धर्म के लोगों की वोटें उस निर्वाचन क्षेत्र में अधिकतम होती हैं। अधिकतर भारतीय अनपढ़ हैं और वे धर्म के नाम पर सब कुछ करने के लिए तैयार हो जाते हैं। मई-जून, 1991 के लोकसभा के चुनाव में राम जन्मभूमिबाबरी मस्जिद विवाद ने मतदाताओं को काफी प्रभावित किया। भारतीय जनता पार्टी को श्री राम मन्दिर बनाने के लिए राम भक्तों ने मत डाले।

3. क्षेत्रीयवाद अथवा स्थानीयवाद (Regionalism or Localism) भारत में मतदाता स्थानीयवाद तथा क्षेत्रीयवाद की भावनाओं से ओत-प्रोत होकर भी मतदान करते हैं। साधारणत: मतदाता उसी उम्मीदवार को वोट डालते हैं जो उनके क्षेत्र का रहने वाला है। यदि कोई उम्मीदवार किसी दूसरे राज्य से आ कर चुनाव लड़ता है तो उसका चुनाव जीतना यदि असम्भव नहीं तो मुश्किल अवश्य होता है।

4. धन (Money)-भारतीय जनता अधिकतर गरीब तथा अनपढ़ है, लाखों क्या करोड़ों मतदाता ऐसे हैं, जिन्हें दिन-रात रोटी की चिन्ता लगी रहती है। ऐसे मतदाता पैसे लेकर अपने वोट बेचने को सदैव तैयार रहते हैं। इसलिए ग्रायः वही उम्मीदवार चुनाव जीतता है जो अधिक धन खर्च करता है।

5. दलों की विचारधारा (Ideology of the Parties)-राजनीतिक दलों की विचारधारा भी विशेषकर शिक्षित मतदाताओं को काफ़ी प्रभावित करती है। हमें ऐसे मतदाता भी मिलते हैं जो धर्म, जाति, क्षेत्रीयवाद आदि बन्धनों से मुक्त होकर राजनीतिक दलों के प्रोग्राम को वोट डालते हैं।

6. उम्मीदवार का व्यक्तित्व (Personality of the Candidate)-उम्मीदवारों के अपने विचार तथा व्यक्तित्व भी मतदाता को काफ़ी प्रभावित करते हैं। वे राष्ट्रीय दलों की अपेक्षा उम्मीदवार को महत्ता देते हैं। मतदाता राष्ट्रीय स्तर के चुनावों में मतदान करते समय दल के बाद उम्मीदवार को महत्ता देता है जबकि क्षेत्रीय चुनाव दलों की अपेक्षा उम्मीदवार को महत्ता दी जाती है। भारत के मतदाता उम्मीदवार में प्रायः दो बातें देखता है, एक तो ईमानदारी और दूसरा जनता के कल्याण से उसका सम्बन्ध। ऐसे मतदाताओं की कमी है जो उम्मीदवार को देखकर मतदान करते हैं।

7. वैचारिक प्रतिबद्धता (Ideological Committment)—वैचारिक प्रतिबद्धता भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है। कई मतदाता किसी-न-किसी विचारधारा में विश्वास रखते हैं। ऐसे मतदाता उस विचारधारा के समर्थक उम्मीदवार को न केवल अपना वोट डालते हैं बल्कि अन्य मतदाताओं को भी उसी उम्मीदवार को वोट डालने के लिए प्रेरित करते हैं। भारत के पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा आदि राज्यों में काफ़ी मतदाता साम्यवादी विचारधारा में विश्वास रखते हैं और ये मतदाता मार्क्सवादी साम्यवादी दल को वोट डालते हैं। इसलिए 35 वर्षों तक पश्चिम बंगाल में मार्क्ससाम्यवादी दल की सरकार थी।

8. वर्ग-चेतना (Class Consciousness) वर्ग चेतना भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है। यह प्रायः देखने में आया है कि भूमिहीन किसान और श्रमिक वामपंथी दलों को वोट डालते हैं जबकि पूंजीपति, उद्योगपति, ज़मींदार तथा व्यापारी प्रायः दक्षिण पंथी दलों को मत देते हैं। गरीब, मजदूर और भूमिहीन किसान साम्यवादी दलों के मुख्य समर्थक हैं।

9. आयु (Age) आयु का भी मतदान व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। नवयुवकों में अधिक जोश और उत्साह होता है और वे नेताओं के जोशीले भाषणों से प्रभावित होकर मतदान करते हैं। प्रौढ़ आयु के व्यक्ति नेताओं के जोशीले भाषणों से प्रभावित नहीं होते बल्कि सोच-विचार कर वोट डालते हैं।

10. लिंग (Sex)-प्रायः भारतीय स्त्रियां अपनी इच्छा से मतदान न करके पति की इच्छानुसार मतदान करती हैं। अविवाहित स्त्रियां अपनी पिता या भाई की इच्छानुसार मतदान करती हैं।

11. विशेषाधिकार (Privileges)-भारत में कुछ जातियां जैसे कि अनुसूचित जातियां तथा पिछड़े वर्ग के लोग हैं जिन्हें कुछ विशेषाधिकार प्राप्त हैं। इन जातियों के लोग अधिकतर कांग्रेस को ही वोट डालते हैं क्योंकि उनको यह विशेषाधिकार कांग्रेस ने ही दिए हैं और उन्हें यह डर भी है कि यदि कोई अन्य पार्टी सत्ता में आ गई तो उनके विशेषाधिकार समाप्त कर दिए जाएंगे। लेकिन 1977 में जनता पार्टी सरकार ने भी इनको विशेषाधिकार से वंचित नहीं किया।

12. राजनीतिक स्थिरता की अभिलाषा-राजनीतिक स्थिरता की अभिलाषा भी मतदाता के व्यवहार को प्रभावित करती है। 1967 के आम चुनाव के पश्चात् राजनीतिक अस्थिरता बहुत बढ़ गई थी क्योंकि इस चुनाव के पश्चात् कांग्रेस को आठ राज्यों में बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था। अतः जब 1971 में चुनाव हुए तो लोगों ने राजनीतिक स्थिरता की अभिलाषा से प्रभावित होकर कांग्रेस को मत डाले जिस कारण कांग्रेस को लोकसभा में भारी बहुमत प्राप्त हुआ। जनवरी, 1980 के लोकसभा के चुनाव में राजनीतिक स्थिरता की लालसा ने ही लोगों को कांग्रेस (इ) को मत डालने के लिए विवश किया। राजनीति स्थिरता की अभिलाषा के कारण ही भारतीय मतदाताओं ने 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में भाजपा को पूर्ण बहुमत प्रदान किया था।

13. देश की आर्थिक स्थिति-मतदान व्यवहार को देश की आर्थिक स्थिति भी प्रभावित करती है। 1977 के चुनावों में मतदाताओं ने कांग्रेस के विरुद्ध मतदान किया क्योंकि देश की आर्थिक दशा बहुत खराब हो गई थी। परन्तु जब श्रीमती इन्दिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगाया तो 1980 में जनता ने कांग्रेस को भारी बहुमत में मत डाले।

14. नेतृत्व-मतदान व्यवहार को नेतृत्व के तत्त्व भी प्रभावित करते हैं। श्री जवाहरलाल नेहरू का महान् व्यक्तित्व एवं नेतृत्व मतदान व्यवहार को बहुत प्रभावित करता था। 1977 के चुनाव में श्री जय प्रकाश नारायण ने मतदाताओं को बहुत प्रभावित किया जिससे जनता पार्टी सत्ता में आई। 1980 के चुनाव में कांग्रेस (इ) को श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व के कारण ही महान् सफलता मिली। दिसम्बर, 1984 के लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस (इ) की महान् सफलता का कारण यह था कि मतदाता युवा प्रधानमन्त्री राजीव गांधी के व्यक्तित्व तथा नेतृत्व से बहुत प्रभावित हुए थे। –

15. चुनाव प्रचार-चुनाव प्रचार भी मतदाता व्यवहार को प्रभावित करता है परन्तु यह उन मतदाताओं को अधिक प्रभावित कर पाता है जो किसी राजनीतिक दल से सम्बन्धित नहीं होते हैं।

16. सामन्तशाही व्यवस्था-सामन्तशाही व्यवस्था ने भी मतदाता व्यवहार को प्रभावित किया है। यह प्रभाव नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों प्रकार का रहा है। सन् 1971 के पांचवें लोकसभा के चुनाव से पूर्व सामन्तशाही व्यवस्था ने मतदान व्यवस्था को सकारात्मक रूप से प्रभावित किया, परन्तु 1971 के चुनाव में नकारात्मक रूप से प्रभावित किया।

17. भाषायी विवाद (Language Controversies)-भारत में समय-समय पर भाषायी विवाद और भाषायी आन्दोलन होते रहते हैं और इनका भी मतदान व्यवहार पर काफ़ी प्रभाव पड़ता है। तमिलनाडु में डी० एम० के० पार्टी ने 1967 और 1971 के चुनावों में हिन्दी विरोधी प्रचार द्वारा मतदाताओं के मत प्राप्त किए। अब भी तमिलनाडु में अन्ना डी० एम० के० और डी० एम० के० हिन्दी विरोधी प्रचार द्वारा मतदाताओं का समर्थन प्राप्त करने का प्रयास करते रहते

18. तत्कालीन मामले (Immediate Issues)-चुनाव के अवसर पर जो महत्त्वपूर्ण मामले होते हैं, उनका मतदान पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए 1977 के चुनाव के समय आपात्कालीन घोषणा एक महत्त्वपूर्ण मामला था और इसका मतदान पर बड़ा प्रभाव पड़ा। दिसम्बर, 1984 में लोकसभा के चुनावों के समय श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या का मतदान पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा और मतदाताओं ने राजीव गांधी को वोट दिए। 1989 के लोकसभा के चुनावों में बोफोर्स के मामले ने मतदाताओं को प्रभावित किया और कांग्रेस (इ) की पराजय हुई। अप्रैलमई, 1996 के आम चुनावों को हवाला मामले और इस काल में हुए अन्य घोटालों ने प्रभावित किया है। इसी प्रकार अप्रैल-मई 2014 में हुए चुनावों में कालेधन, स्थिरता एवं भ्रष्टाचार के मुद्दों ने मतदान को प्रभावित किया।

19. लोकवादी नारे (Populist Slogans) राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा दिए गए लोकवादी नारे भी मतदान को प्रभावित करते हैं। 1971 में श्रीमती इन्दिरा गांधी ने ‘गरीबी हटाओ’ का नारा लगाकर लोगों का भारी समर्थन प्राप्त किया। 1977 में जनता पार्टी ने लोकसभा के चुनाव के अवसर पर ‘लोकतन्त्र बनाम तानाशाही’ का नारा लगाया जिसका जनता पर बड़ा प्रभाव पड़ा और जनता पार्टी सत्ता में आई। 1980 के चुनाव में कांग्रेस (इ) ने ‘सरकार जो काम करती है’ का नारा दिया और कांग्रेस (इ) सत्ता में आई।

1967 के आम चुनाव में धर्म, भाषा, जाति, क्षेत्रीयवाद आदि तत्त्वों ने मतदान को काफ़ी प्रभावित किया, परन्तु 1980 में जब लोकसभा के लिए चुनाव हुए तब इन तत्त्वों का प्रभाव काफ़ी कम था क्योंकि मतदाताओं में केन्द्र में स्थायी सरकार बनाने की लालसा थी। अतः मतदाताओं ने स्थायी सरकार को स्थापित करने की लालसा को पूरा करने के लिए इन्दिरा कांग्रेस को वोट डाले। इसी प्रकार पंजाब और हरियाणा में जब मध्यवर्ती चुनाव हुए तब लोगों ने धर्म और जाति के बन्धनों से मुक्त होकर कांग्रेस को वोट दिए। परन्तु इसका अर्थ यह न लिया जाए कि ये तत्त्व अब बिल्कुल प्रभावहीन हो गए हैं। अब भी इन तत्त्वों का मतदान व्यवहार पर बहुत प्रभाव है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 3.
चुनाव आयोग का संगठन बताते हुए, राष्ट्रीय चुनाव आयोग के चार कार्यों का वर्णन करें।
(Explain the composition of the Election Commission and explain four functions of National Election Commission in India.)
अथवा
भारत में चुनाव आयोग के गठन और कार्यों का वर्णन कीजिए। (Discuss the compositions and functions of Election Commission in India.)
अथवा
भारतीय चुनाव आयोग के कोई छः कार्यों का वर्णन कीजिए। (Discuss any six functions of Election Commission of India.)
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुसार भारत को एक प्रभुसत्ता सम्पन्न लोकतन्त्रीय गणराज्य घोषित किया गया है। भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतन्त्रीय राज्य है। प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष है, बिना किसी भेदभाव के मताधिकार दिया गया है। नागरिक मताधिकार का प्रयोग चुनाव के माध्यम से करते हैं। भारत में लोकतन्त्र की सफलता के लिए यह आवश्यक है कि संसद् के दोनों सदनों, राज्य विधानसभाओं व अन्य संस्थाओं का स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव हो।

भारतीय संविधान के निर्माता स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव के महत्त्व को अच्छी तरह समझते थे अतः स्वतन्त्र तथा निष्पक्ष चुनाव करवाने का उत्तरदायित्व भारत में एक स्वतन्त्र चुनाव आयोग को सौंपा गया है जो अपने कार्य में स्वतन्त्र है और जो एक मुख्य चुनाव आयुक्त के अधीन कार्य करता है।

संविधान के अनुच्छेद 324 के अन्तर्गत एक चुनाव आयोग की व्यवस्था की गई है कि जो संसद् तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव सम्बन्धी सभी मामलों पर नियन्त्रण और निर्देशन के अधिकार रखता है। यह आयोग विभिन्न चुनावों का प्रबन्ध करता है और यह देखना इसका कर्तव्य है कि सभी व्यक्ति स्वतन्त्रतापूर्वक अपने मतों का प्रयोग करें तथा चुनावों में किसी प्रकार की गड़बड़ न हो।

चुनाव आयोग की रचना (Composition of Election Commission)-चुनाव आयोग की रचना का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 324 में किया गया है। अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) तथा कुछ चुनाव आयुक्त (Election Commissioners) होंगे। चुनाव आयुक्तों की संख्या समय-समय पर राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएगी। चुनाव आयोग को सहायता देने के लिए लोकसभा व राज्य विधानमण्डलों के चुनाव से पूर्व राष्ट्रपति को क्षेत्रीय चुनाव आयुक्त (Regional Election Commissioners) नियुक्त करने का अधिकार है। चुनाव आयुक्तों और क्षेत्रीय आयुक्तों के कार्यकाल तथा सेवाकाल सम्बन्धी शर्तों और कार्यविधि संसद् द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा निश्चित की जाती है।

1989 से पूर्व चुनाव आयोग में केवल एक मुख्य चुनाव आयुक्त (Chief Election Commissioner) ही होता था। अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की गई थी। यदि अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की जाती तो मुख्य चुनाव आयुक्त चुनाव आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करता। 1989 में कांग्रेस सरकार ने पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए परन्तु राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने दो अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को रद्द कर दिया। 1 अक्तूबर, 1993 को केन्द्र सरकार ने दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बनाने का महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। राष्ट्रपति ने अध्यादेश जारी करके कृषि सचिव एम० एस० गिल और . विधि आयोग के सदस्य जी० वी० जी० कृष्णामूर्ति को चुनाव आयुक्त नियुक्त किया। चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय बनाने सम्बन्धी विधेयक को संसद् ने 20 दिसम्बर, 1993 को पास कर दिया। 14 जुलाई, 1995 को सर्वोच्च न्यायालय ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए तीनों चुनाव आयुक्तों को एक समान दर्जा देने की व्यवस्था की। वर्तमान समय में चुनाव आयोग तीन सदस्यीय है।

नियुक्ति (Appointment)-अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त, अन्य चुनाव आयुक्त तथा क्षेत्रीय आयुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति संसद् द्वारा निर्मित कानून की धाराओं के अनुसार करेगा। यदि संसद् ने इस सम्बन्ध में कोई कानून न बनाया हो तब नियुक्ति की विधि, सेवा की शर्ते आदि राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएंगी। व्यवहार में मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की सलाह से करता है।

योग्यताएं (Qualifications)-संविधान में मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों की योग्यताओं का वर्णन नहीं किया गया है और न ही संसद् ने इस सम्बन्ध में कोई कानून बनाया है। इसीलिए आज तक जितने भी मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए गए हैं वे सभी भारत सरकार के उच्च अधिकारी रहे हैं।

कार्यकाल (Tenure)-संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार आयुक्तों का कार्यकाल संसद् द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा निश्चित किया जाएगा। 1972 से पूर्व मुख्य चुनाव आयोग के कार्यकाल और सेवा सम्बन्धी शर्तों के बारे में कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी। इसीलिए पहले दो मुख्य चुनाव आयुक्त आठ वर्ष तक इस पद पर रहे। 20 दिसम्बर, 1993 को पास किए गए एक कानून के अन्तर्गत मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष तथा 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक (जो भी इनमें से पहले पूरा हो जाए) निश्चित किया गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्त 6 वर्ष की अवधि से पूर्व त्याग-पत्र भी दे सकता है और राष्ट्रपति भी 6 से पूर्व वर्ष निश्चित विधि के अनुसार उन्हें हटा सकता है।

पद से हटाने की विधि (Method of Removal)-संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी प्रकार हटाया जा सकता है जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को। मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति तभी हटा सकता है जब उसके विरुद्ध दुराचार (Misbehaviour) तथा अक्षमता (Incapacity) का आरोप सिद्ध हो जाए और संसद् के दोनों सदनों ने इस सम्बन्ध में अलग-अलग अपने सदन के सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास किया हो। अभी तक किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को समय से पहले नहीं हटाया गया है।

सेवा शर्ते (Conditions of Service)-संविधान के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त, अन्य चुनाव आयुक्तों तथा क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों का वेतन तथा अन्य सेवा सम्बन्धी शर्ते राष्ट्रपति द्वारा संसद् द्वारा इस सम्बन्ध में बनाए गए कानून के अनुसार निश्चित की जाती हैं। परन्तु संविधान में यह व्यवस्था भी की गई है कि मुख्य चुनाव आयुक्त, अन्य चुनाव आयुक्तों तथा क्षेत्रीय चुनाव आयुक्तों के वेतन तथा सेवा शर्तों में उनकी नियुक्ति के पश्चात् कोई ऐसा परिवर्तन नहीं किया जा सकता जिससे उनको कोई हानि होती है।

चुनाव आयोग के कर्मचारी (Staff of Election Commission)-संविधान में चुनाव आयोग के कर्मचारियों
की भी व्यवस्था की गई है ताकि चुनाव आयोग अपने कार्यों को अच्छी तरह कर सके। संविधान के अनुच्छेद 324 (6) के अनुसार चुनाव आयुक्त अपने कार्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति तथा राज्य के राज्यपालों से आवश्यक कर्मचारियों की मांग कर सकता है और उन कर्मचारियों की व्यवस्था करना राष्ट्रपति तथा राज्यपालों का काम है। चुनावों इत्यादि का प्रबन्ध करने के लिए आवश्यक कर्मचारियों की व्यवस्था सामान्यतः राज्य सरकारों द्वारा की जाती है, परन्तु ये कर्मचारी चुनाव आयोग के निर्देशों पर कार्य करते हैं।

चुनाव आयोग के कार्य (FUNCTIONS OF ELECTION COMMISSION)-

चुनाव आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

1. चुनावों का निरीक्षण, निर्देशन तथा नियन्त्रण (Superintendence, Direction and Control)-चुनाव आयोग को चुनाव सम्बन्धी सभी मामलों पर निरीक्षण, निर्देशन तथा नियन्त्रण का अधिकार प्राप्त है। चुनाव आयोग चुनाव सम्बन्धी सभी समस्याओं को हल करता है। स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव करवाना चुनाव आयोग का कर्तव्य है।

2. मतदाता सूचियों को तैयार करना (Preparation of Electoral Roll)-चुनाव आयोग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य संसद् तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करवाना है। प्रत्येक जनगणना के पश्चात् और आम चुनाव से पहले मतदाताओं की सूची में संशोधन किए जाते हैं। इन सूचियों में नए मतदाताओं के नाम लिखे जाते हैं और जो नागरिक मर चुके होते हैं उनके नाम मतदाता सूची से निकाले जाते हैं। यदि किसी नागरिक का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जाता तो वह व्यक्ति एक निश्चित तिथि तक आवेदन-पत्र देकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा सकता है। मतदाता सूची के तैयार होने पर चुनाव आयोग द्वारा निश्चित तिथि तक आपत्तियां मांगी जाती हैं और कोई भी आपत्ति कर सकता है। नागरिकों द्वारा एवं राजनीतिक दलों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को चुनाव आयोग के कर्मचारियों द्वारा दूर किया जाता है।

3. चुनाव के लिए तिथि निश्चित करना (To decide Date of Election)-चुनाव आयोग विभिन्न क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है। चुनाव आयोग नामांकन पत्रों के दाखले (Submission of Nomination Papers) की अन्तिम तिथि निश्चित करता है। चुनाव आयोग उम्मीदवारों के नाम वापस लेने की तिथि घोषित करता है। यदि किसी उम्मीदवार के नामांकन-पत्र में कोई त्रुटि पाई जाती है तो उस नामांकन-पत्र को अस्वीकार कर दिया जाता

4. राज्य विधानमण्डलों के लिए चुनाव कराना (Conduct of Elections of State Legislatures)-चुनाव
आयोग सभी राज्यों के विधानमण्डलों के चुनाव की व्यवस्था करता है। भारत में आजकल 29 राज्य और 7 संघीय क्षेत्र हैं। चुनाव आयोग विधानसभाओं एवं विधानपरिषदों के चुनाव तथा उप-चुनावों की व्यवस्था करता है। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों के साथ ही चुनाव आयोग ने आन्ध्र-प्रदेश, सिक्किम और उड़ीसा की विधानसभा के भी चुनाव करवाए थे।

5. संसद् के चुनाव कराना (To Conduct Elections of Parliament)-चुनाव आयोग संसद् के दोनों सदनों-लोकसभा तथा राज्यसभा के चुनावों की व्यवस्था करता है। लोकसभा का सामान्य स्थिति में कार्यकाल 5 वर्ष है। अतएव लोकसभा के साधारणतः पांच 5 वर्ष के बाद चुनाव कराए जाते हैं। यदि लोकसभा को पांच वर्ष से पहले भंग कर दिया जाए जैसा कि सन् 1979, 1991, 1998 तथा 1999 में किया गया था तब चुनाव आयोग लोकसभा के मध्यावधि चुनाव कराता है। सन् 1996 में चुनाव आयोग ने लोकसभा के चुनाव कराए। राज्यसभा के सदस्यों की अवधि 6 वर्ष है और एक-तिहाई सदस्य प्रति दो वर्ष के पश्चात् रिटायर होते हैं। इसलिए राज्य सभा के एक-तिहाई सदस्यों का चुनाव आयोग द्वारा प्रत्येक दो वर्ष के पश्चात् करवाया जाता है। संसद् के दोनों सदनों के रिक्त स्थानों की पूर्ति के लिए चुनाव आयोग उप-चुनाव करवाता है। अब तक चुनाव आयोग ने लोकसभा के 16 बार चुनाव करवाए हैं।

6. राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के लिए चुनाव कराना (To conduct Elections of President and VicePresident)-चुनाव आयोग राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के चुनाव कराता है। राष्ट्रपति के चुनाव में संसद् तथा राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं जबकि उप-राष्ट्रपति के चुनाव में संसद् के दोनों सदनों के सदस्य भाग लेते हैं। चुनाव आयोग राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति का चुनाव कराने के लिए मतदाता सूची तैयार करवाता है, चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करता है, नामांकन-पत्र भरने, नामांकन-पत्रों की जांच करने तथा नाम वापस लेने की तिथि निश्चित करता है। चुनाव आयोग चुनाव कराने के लिए एक निर्वाचन अधिकारी दिल्ली के लिए और सहायक निर्वाचन अधिकारी विभिन्न राज्यों की राजधानी के लिए नियुक्त करता है। मतदान के पश्चात् निर्वाचन अधिकारी सफल उम्मीदवारों के नामों की घोषणा करता है। अब तक चुनाव आयोग ने राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के लिए 15 बार चुनाव करवाए हैं।

7. राजनीतिक दलों को मान्यता देना है (To give recognition to Political Parties)-भारत में अनेक राजनीतिक दल पाए जाते हैं-कुछ राष्ट्रीय स्तर के और कुछ प्रादेशिक दल। पर कौन-सा दल राष्ट्रीय स्तर का है और कौन-सा दल प्रादेशिक दल है, इसका निर्णय चुनाव आयोग द्वारा किया जाता है। चुनाव आयोग ही राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय दल अथवा प्रादेशिक दल के रूप में मान्यता देता है। उस राजनीतिक दल को राष्ट्रीय स्तर के दल के रूप में मान्यता दी जाती है, जिसने लोकसभा अथवा विधानसभा चुनाव में चार अथवा इससे अधिक राज्यों में कम से कम 6 प्रतिशत वैध मत हासिल करने के साथ-साथ लोकसभा की कम से कम 4 सीटें जीती हों अथवा कम से कम 3 राज्यों से लोकसभा में प्रतिनिधित्व कुल सीटों का दो प्रतिशत (वर्तमान 543 सीटों में से कम से कम 11 सीटें) प्राप्त किया हो। इसी तरह इस राजनीतिक दल को राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता दी जाती है, जिसने लोकसभा अथवा राज्य विधानसभा चुनाव में कुल पड़े वैध मतों का कम से कम 6 प्रतिशत प्राप्त किया हो और विधानसभा चुनाव में कम से कम दो सीटें जीती हों, अथवा राज्य विधानसभा में कुल सीटों की कम से कम 3 प्रतिशत सीटें या कम से कम तीन सीटें (इनमें से जो भी अधिक हो) प्राप्त की हों। चुनाव आयोग ने 7 राजनीतिक दलों को राष्ट्रीय स्तर पर एवं 58 राजनीतिक दलों को राज्य स्तरीय दल के रूप में मान्यता प्रदान की हुई है।

8. चुनाव चिह्न देना (To Allot Election Symbols) विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनाव चिह्न चुनाव आयोग द्वारा दिए जाते हैं। जो उम्मीदवार स्वतन्त्र रूप से चुनाव में खड़े होते हैं उनको भी चुनाव आयोग चिह्न प्रदान करता है। राष्ट्रीय स्तर और प्रादेशिक स्तर के मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों के चुनाव चिह्न सुरक्षित और स्थायी होते हैं। सभी चुनावों में राष्ट्रीय स्तर और प्रादेशिक स्तर के दल अपने-अपने चुनाव चिह्नों का प्रयोग करते हैं। जब किसी दल का विभाजन हो जाता है। तब चुनाव आयोग यह निश्चित करता है कि उस राजनीतिक दल का चुनाव चिह्न किस विभाजित गुट को मिलना चाहिए। चुनाव चिह्नों से सम्बन्धित सभी तरह के विवादों का हल चुनाव आयोग द्वारा किया जाता है।

9. चुनाव कर्मचारियों पर नियन्त्रण (Control over Election Staffs)-संविधान के अनुसार चुनाव आयोग चुनाव करवाने के लिए राष्ट्रपति और राज्यों के राज्यपालों से कर्मचारी मांग सकता है। केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा चुनाव कार्य के लिए दिए गए कर्मचारियों पर चुनाव आयोग का नियन्त्रण होता है। ये कर्मचारी चुनाव आयोग के आदेशों के अनुसार कार्य करते हैं।

10. चुनाव सम्बन्धी व्यवहार संहिता निर्धारित करना (Determination of Code of Conduct for Election)—चुनाव आयोग स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव व्यवहार संहिता निर्धारित करता है। चुनाव व्यवहार संहिता का राजनीतिक दलों, स्वतन्त्र उम्मीदवारों और सरकार द्वारा पालन किए जाने के लिए चुनाव आयोग आवश्यक निर्देश जारी करता है। यदि कोई राजनीतिक दल, स्वतन्त्र उम्मीदवार या सरकार चुनाव कानून या चुनाव व्यवहार संहिता का उल्लंघन करता है तो उल्लंघन के आरोपों की जांच चुनाव आयोग करता है। उदाहरण के लिए नवम्बर, 1984 में लोकसभा के चुनाव की घोषणा होने के बाद जब मध्य प्रदेश और गुजरात की सरकारों पर कुछ वर्गों को रियायतें देने का आरोप लगाया गया तब चुनाव आयोग ने इसकी जांच के लिए शीघ्र कदम उठाया था। फरवरी, 1995 में छः विधानसभाओं के चुनाव करवाए जाने की घोषणा के बाद जब बिहार की सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के तबादले किए तब मुख्य चुनाव आयुक्त ने बिहार सरकार को तबादले से दूर रहने का निर्देश दिया।

11. मतदान केन्द्र स्थापित करना (To Establish Polling Station)-चुनाव के समय कितने मतदान केन्द्रों की स्थापना की आवश्यकता है, इसका निर्णय चुनाव आयोग ही करता है। चुनाव आयोग द्वारा मतदान केन्द्रों की स्थापना करते समय इस बात को अवश्य ध्यान में रखा जाता है कि नागरिकों को बहुत दूर मतदान करने के लिए नहीं जाना पड़े।

12. सदस्यों की अयोग्यता सम्बन्धी विवादों के सम्बन्ध में सलाह देना (To give advice on the disqualifications of members)-भारतीय संविधान में संसद् तथा राज्य विधानमण्डल के सदस्यों सम्बन्धी कुछ अयोग्यताएं निश्चित की गई हैं। जब संसद् के लिए निर्वाचित किसी सदस्य की योग्यता के सम्बन्ध में कोई विवाद उत्पन्न हो जाए तो उस विवाद का निर्णय राष्ट्रपति चुनाव आयोग की सलाह से करता है। इसी तरह यदि राज्य विधानमण्डल के लिए चुने गए किसी सदस्य की योग्यता के सम्बन्ध में विवाद उत्पन्न हो जाए तो उसका फैसला राज्यपाल चुनाव आयोग की सलाह से करता है। अतः चुनाव आयोग संसद् और राज्य विधानमण्डलों के सदस्यों की अयोग्यता सम्बन्धी विवादों के सम्बन्ध में राष्ट्रपति और राज्यपाल को परामर्श देता है।

13. चुनाव क्षेत्र में पुनः मतदान (Order of Re-Polling)—यदि किसी चुनाव क्षेत्र में या किसी विशेष मतदान केन्द्र पर भ्रष्ट तरीकों द्वारा कोई गड़बड़ी होती है, तब चुनाव आयोग उस चुनाव क्षेत्र या विशेष मतदान केन्द्र पर पुनः मतदान के आदेश दे सकता है। अप्रैल-मई, 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनावों में चुनाव आयोग ने कई मतदान केन्द्रों पर पुनः मतदान के आदेश दिए थे।

14. पर्यवेक्षकों की नियुक्ति-चुनाव आयोग निष्पक्ष और स्वतन्त्र मतदान करवाने के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति करता है। फरवरी, 1995 में छः विधानसभाओं के चुनाव के अवसर पर चुनाव आयोग ने 100 से अधिक पर्यवेक्षक नियुक्त किए। अप्रैल-मई, 1996 के लोकसभा के चुनाव और विधानसभाओं के चुनाव के अवसर पर चुनाव आयोग ने 600 पर्यवेक्षक नियुक्त किए।

15. चुनाव सुधारों के सुझाव (Recommendations of Election Reforms)—चुनाव आयोग समय-समय पर चुनाव सुधारों की सिफ़ारिशें करता रहता है। मार्च, 1988 में चुनाव आयोग ने सरकार से कहा कि वह इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीन, मतदाता आयु 18 वर्ष करने और चुनाव क्षेत्रों का पुनर्गठन करने, मतदाताओं को पहचान पत्र, चुनावी खर्चे में वृद्धि, जैसे चुनाव सुधारों को जितनी जल्दी सम्भव हो लागू करे। चुनाव आयोग ने बहु-उद्देशीय पहचान-पत्र और चुनाव याचिकाओं को शीघ्र निपटाने के लिए तदर्थ न्यायाधीशों की नियुक्ति की भी सिफ़ारिश की है। चुनाव आयोग का विचार है कि बहु-उद्देशीय परिचय-पत्र लागू करने से न केवल फर्जी मतदान रुक जाएगा बल्कि आर्थिक और सामाजिक योजना की दिशा में भी यह महत्त्वपूर्ण कदम होगा।

चुनाव आयोग का महत्त्व-भारत का चुनाव भारत की जनता के लिए एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण संस्था है। यह संसद् और विधानमण्डलों के चुनावों का प्रबन्ध करती है। भारत जैसे बड़े देश में चुनावों का प्रबन्ध करना कोई मामूली बात नहीं है। चुनाव आयोग ने अब तक 16 आम चुनाव करवाए हैं और इनके लिए वही प्रशंसा का पात्र है। भारत में लोकतन्त्र की सफलता स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनावों पर बहुत कुछ आधारित है और इसके लिए चुनाव आयोग ही बधाई का पात्र कहा जा सकता है। चुनाव आयोग की देखभाल में अब तक निष्पक्ष और स्वतन्त्र चुनाव होते आए हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 4.
भारत में चुनाव प्रक्रिया के प्रमुख चरणों की व्याख्या कीजिए। (Explain the main stages of Electoral Process in India.)
अथवा
चुनावी प्रक्रिया क्या होती है ? भारतीय चुनाव प्रक्रिया के सारे महत्त्वपूर्ण पड़ावों के नाम लिखो। (What is Election Process ? Name all the important stages of Indian Election Process.)
उत्तर-
भारत में प्रजातन्त्र की व्यवस्था की गई है। प्रजातन्त्र में शासन जनता द्वारा चलाया जाता है, परन्तु भारत जैसे बड़े देश में प्रत्यक्ष प्रजातन्त्र को अपनाना कठिन ही नहीं, बल्कि असम्भव भी है। अतः संविधान निर्माताओं ने अप्रत्यक्ष प्रजातन्त्र की व्यवस्था की है। शासन जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है जो निश्चित अवधि के लिए चुने जाते हैं। अतः निश्चित अवधि के बाद चुनाव कराए जाते हैं। इस सारी चुनाव प्रणाली को चुनाव प्रक्रिया कहा जाता है। संसद् ने चुनाव से सम्बन्धित दो महत्त्वपूर्ण एक्ट पास किए हैं- जन प्रतिनिधित्व एक्ट, 1950 तथा जन प्रतिनिधित्व एक्ट, 1951 । पहले एक्ट में मतदाताओं की योग्यताओं और मतदाताओं की सूची बनाने के सम्बन्ध में और दूसरे एक्ट चुनाव प्रक्रिया का विस्तार से वर्णन किया गया है। इन दोनों एक्टों के आधार पर केन्द्रीय सरकार ने चुनाव सम्बन्धी अनेक कानून पास किए हैं। भारत में चुनाव प्रक्रिया की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं-

1. चुनाव क्षेत्र निश्चित करना (To fix Constituencies)—चुनाव प्रबन्ध में सर्वप्रथम कार्य चुनाव-क्षेत्र को निश्चित करना है। लोकसभा में जितने सदस्य चुने जाते हों, लगभग समान जनसंख्या वाले उतने ही क्षेत्रों में सारे भारत को बांट दिया जाता है। इसी प्रकार विधान सभाओं के चुनाव में राज्य को समान जनसंख्या वाले चनाव क्षेत्र में बांट दिया जाता है और प्रत्येक चुनाव-क्षेत्र से एक सदस्य चुना जाता है। प्रत्येक जनगणना के पश्चात् चुनाव क्षेत्रों की सीमाएं पुनः निर्धारित की जाती हैं। सीमा निर्धारक का यह कार्य एक आयोग करता है जिसे परिसीमन आयोग (Delimilation Commission) कहा जाता है।

2. मतदाताओं की सूची (List of Voters)-मतदाता सूचियां तैयार करना चुनाव प्रक्रिया की दूसरी अवस्था है। संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के लिए एक साधारण मतदाता सूची तैयार की जाएंगी। धर्म, जाति, वंश, भाषा, लिंग आदि के आधार पर किसी को मताधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। सबसे पहले मतदाताओं की अस्थायी (Temporary) सूची तैयार की जाती है। इन सूचियों को कुछेक विशेष स्थानों पर जनता के देखने के लिए रख दिया जाता है। यदि उस सूची में किसी का नाम लिखने से रह गया हो अथवा किसी का नाम भूल से ग़लत लिख दिया हो तो उसको एक निश्चित तिथि तक संशोधन करवाने के लिए प्रार्थना-पत्र देना होता है। फिर संशोधित सूचियां तैयार की जाती हैं।

3. चुनाव तिथि की घोषणा (Announcement of Election Date)-चुनाव आयोग चुनाव की तिथि की घोषणा करता है। पर चुनाव की तिथि निश्चित करने से पहले चुनाव आयोग केन्द्रीय सरकार और सम्बन्धित राज्य सरकारों से विचार-विमर्श करता है। चुनाव आयोग नामांकन-पत्र भरने की तिथि, नाम वापस लेने की तिथि, नामांकनपत्रों की जांच-पड़ताल की तिथि तथा मतदान की तिथि निश्चित करता है।

4. चुनाव अधिकारियों की नियुक्ति (Appointment of Electoral Staff)—चुनाव करवाने के लिए प्रत्येक राज्य में मुख्य चुनाव अधिकारी (Chief Electoral Officer) और प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के लिए चुनाव अधिकारी (Returning Officer) व अन्य कई कर्मचारी नियुक्त किए जाते हैं।

5. मतदान केन्द्र स्थापित करना (To establish Polling Stations)—चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं की सुविधा के लिए अनेक मतदान केन्द्र स्थापित किए जाते हैं। मतदान केन्द्र इस ढंग से स्थापित किए जाते हैं कि नागरिकों को वोट डालने के लिए बहुत दूर न जाना पड़े। प्रत्येक मतदान केन्द्र में निश्चित संख्या तक मतदाता रखे जाते हैं और उस मतदान केन्द्र में आने वाले नागरिक उसी मतदान केन्द्र पर मत डालते हैं।

6. नामांकन दाखिल करना (Filling of the Nomination Papers)-इसके बाद मैम्बर बनने के इच्छुक व्यक्ति के नाम का प्रस्ताव एक निश्चित तिथि के अन्दर छपे फ़ार्म पर, जिसका नाम नामांकन पत्र (Nomination Paper) है, किसी एक मतदाता द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। दूसरा मतदाता उसका अनुमोदन करता है। इच्छुक व्यक्ति (उम्मीदवार) भी उस पर अपनी स्वीकृति देता है। प्रार्थना-पत्र के साथ जमानत की निश्चित राशि जमा करवानी पड़ती है।

7. नाम की वापसी (Withdrawal of Nomination)-यदि उम्मीदवार किसी कारण से अपना नाम वापस लेना चाहे तो एक निश्चित तिथि तक उनको ऐसा करने का अधिकार होता है। वह अपना नाम वापस ले सकता है। जमानत की राशि भी उसे वापस मिल जाती है।

8. जांच और आक्षेप (Scrutiny and Objections)-एक निश्चित तिथि को प्रार्थना-पत्रों की जांच की जाती है। यदि किसी में कोई अशुद्धि रह गई हो तो उसे अस्वीकार कर दिया जाता है। यदि कोई दूसरा व्यक्ति उसके प्रार्थनापत्र के सम्बन्ध में आक्षेप करना चाहे तो उसे ऐसा करने का अधिकार दिया जाता है। यदि आपेक्ष उचित सिद्ध हो जाए तो वह प्रार्थना-पत्र अस्वीकार कर दिया जाता है।

9. चुनाव अभियान (Election Compaign)-वैसे तो चुनाव की तिथि की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दल चुनाव प्रचार शुरू कर देते हैं पर चुनाव प्रचार सही ढंग से तब शुरू होता है जब नामांकन-पत्रों की जांच-पड़ताल के बाद उम्मीदवारों की अन्तिम सूची.घोषित की जाती है। 19 जनवरी, 1992 को राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी कर लोकसभा व विधानसभा चुनावों में नामांकन वापस लेने की अन्तिम तारीख के बाद मतदान कराने की न्यूनतम समय सीमा को 20 दिन से घटा कर 14 दिन कर दिया है। राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए अपनेअपने चुनाव घोषणा-पत्र (Election Manifesto) घोषित करते हैं, जिसमें दल की नीतियां एवं कार्यक्रम घोषित किया जाता है। राजनीतिक दल पोस्टरों द्वारा, जलसों द्वारा रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा अपने कार्यक्रम का प्रचार करते हैं। उम्मीदवारों के समर्थक घर-घर जाकर अपने उम्मीदवारों का प्रचार करते हैं और उम्मीदवार भी जहां तक हो सके सभी घरों में वोट मांगने जाते हैं। गलियों और सड़कों के चौराहों पर छोटी-छोटी सार्वजनिक सभाएं की जाती हैं।

10. मतदान (Voting) सदस्यता के प्रत्येक स्थान के लिए जितने भी उम्मीदवारों के प्रार्थना-पत्र स्वीकार होते हैं, उनके लिए निश्चित तिथि को निश्चित स्थान पर मतदाताओं की वोट ली जाती है। प्रत्येक मतदाता को एक पर्ची (Ballot Paper) दे दी जाती है जिस पर वह अपनी मर्जी से जिसे वोट देना चाहता है, मोहर लगाकर बॉक्स में डाल देता है।

11. मतगणना (Counting of Votes)—प्रत्येक निर्वाचन-बॉक्स उस क्षेत्र के सभी उम्मीदवारों या उनके प्रतिनिधियों के सामने खोलकर प्रत्येक उम्मीदवार के पक्ष में डाली गई पर्चियों को गिन लिया जाता है। जिसके पक्ष में अधिक मत पड़े हैं उसका नाम सरकारी गज़ट में सफल प्रतिनिधियों की सूची में प्रकाशित कर दिया जाता है। यदि कोई उम्मीदवार कुल मतों का 1/6 भाग लेने में असमर्थ होता है, तो उस उम्मीदवार की जमानत की राशि जब्त हो जाती है।

12. चुनाव खर्च का ब्योरा (Election Expenses)—प्रत्येक उम्मीदवार को चुनाव समाप्त होने के 90 दिन के अन्दर-अन्दर चुनाव में खर्च किए जाने वाले धन का ब्योरा चुनाव आयोग को भेजना पड़ता है। चुनाव में खर्च किए जाने के लिए धन-राशि निश्चित है ताकि धनी व्यक्ति पैसे को पानी की तरह बहाकर ग़रीब व्यक्तियों के लिए चुनाव लड़ना कठिन न बना दे।

13. निर्वाचन के विरुद्ध प्रार्थना (Election Petition) यदि कोई उम्मीदवार निर्वाचन की निष्पक्षता या किसी और कारण से सन्तुष्ट न हो तो वह निर्वाचन के विरुद्ध उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकते है। सर्वोच्च न्यायालय का फैसला अन्तिम होता है।

14. उप-चुनाव (By-election)-यदि किसी प्रतिनिधि का चुनाव रद्द घोषित कर दिया जाए या वह स्वयं त्यागपत्र दे दे, या किसी प्रतिनिधि की मृत्यु के कारण स्थान खाली हो जाए तो अगले चुनाव तक उस स्थान को खाली नहीं रखा जाता बल्कि शीघ्र ही उस चुनाव क्षेत्र में चुनाव की व्यवस्था की जाती है, इसे उप-चुनाव कहते हैं। उप-चुनाव में चुना गरिलिधि पांच वर्ष के लिए नहीं चुना जाता बरि, अगले चुनाव तक ही अपने पद पर रहता है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 5.
सरकार द्वारा किए गए चुनाव सुधारों की व्याख्या करो। (Explain briefly reforms made by the Government.)
उत्तर-
पिछले कुछ वर्षों से चुनाव व्यवस्था में सुधार करने की मांग ज़ोर पकड़ती रही है। विपक्षी दलों ने चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए कई बार संसद् से भी मांग की। चुनाव आयोग ने भी चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए अनेक सुझाव दिए। राजीव गांधी की सरकार ने चुनाव व्यवस्था में सुधार करने के लिए 13 दिसम्बर, 1988 को लोकसभा में दो बिल पेश किए। इन बिलों में एक बिल 62वां संविधान संशोधन बिल था जो संसद् द्वारा पास होने और आधे राज्यों की विधानसभाओं की स्वीकृति मिलने के बाद 61वां संशोधन एक्ट बना है। दूसरे बिल द्वारा जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन किया गया है। इन दोनों द्वारा चुनाव व्यवस्था में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं

1. मताधिकार की आयु 18 वर्ष-बहुत समय से राजनीतिक दलों और युवा वर्ग की यह मांग थी कि मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटा कर 18 वर्ष की जाए। 61वें संविधान संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटा कर 18 वर्ष कर दी गई है। यह संशोधन संसद् ने सर्वसम्मति से पास किया था। श्री राजीव गांधी ने कहा कि मतदान की आयु 21 वर्ष से 18 वर्ष करने से पांच करोड़ नए मतदाता चुनाव प्रक्रिया से जुड़ेंगे।

2. चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन करना-अब प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके सारी चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन कर दिया गया है। चुनाव के दौरान चुनाव का काम करने वाले राज्य सरकारों के अधिकारियों की सेवाओं को चुनाव आयोग के अधीन किया गया है ताकि अधिकारी चुनाव की ज़िम्मेवारी निष्पक्ष और अनुशासनबद्ध तरीके से निभा सकें।

3. इलेक्ट्रॉनिक मशीन-जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन करके चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों के इस्तेमाल की भी व्यवस्था की गई है।

4. मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने पर कड़ी सज़ा-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने पर पहले से ज्यादा कड़ी सज़ा देने की व्यवस्था की गई हैं। मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने वाले को कम-से-कम 6 महीने और अधिक-से-अधिक दो वर्ष की कैद की सजा व जुर्माने से दंडित करने का प्रावधान है। यदि मतदान केन्द्र पर कब्जा करने में सरकारी अधिकारी या कर्मचारी सहायता देते पकड़े जाते हैं तो उन्हें अधिक सज़ा देने का प्रावधान किया गया है। ऐसे मामलों में न्यूनतम एक वर्ष और अधिकतम तीन वर्ष की सजा व जुर्माना करने का प्रावधान किया गया है।

5. चुनाव बैठकों में बाधा डालने की सज़ा-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके चुनाव बैठकों में बाधा डालने वाले को एक हज़ार रुपए के जुर्माने और तीन महीने की सजा देने की व्यवस्था की गई है जबकि पहले ऐसा करने पर सिर्फ 250 रुपए जुर्माने की सजा का प्रावधान था। यह संशोधन चुनाव में गुण्डागर्दी रोकने के लिए किया गया है।

6. अपराधियों को चुनाव में खड़ा होने से रोकने का आधार विस्तृत किया-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके अपराधी व्यक्तियों के चुनाव में भाग लेने पर रोक के आधार को विस्तृत किया गया है। उन लोगों को चुनाव लड़ने के लिए 6 वर्ष तक अयोग्य घोषित करने की व्यवस्था की गई है जो मुनाफाखोरी व जमाखोरी करने, खाद्य वस्तुओं व दवाओं में मिलावट करने, दहेज विरोधी कानून, सती कानून, आतंकवाद या नशीली दवाओं के कानून का उल्लंघन करते पकड़े गए हों और उन्होंने इन अपराधों के लिए कम-से-कम 6 महीने की सज़ा भुगती हो।

7. उम्मीदवारों को कम करने के लिए व्यवस्था-31 जुलाई, 1996 को चुनाव में उम्मीदवारों की भीड़ कम करने के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को अपनी नामजदगी की दस फीसदी मतदाताओं या दस प्रस्तावकों जो भी कम हो, से पुष्टि करवाने की व्यवस्था की गई है।

8. राजनीतिक दलों का पंजीकरण-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके दलों के पंजीकरण और पंजीकरण के नियमों की भी व्यवस्था की गई है। राजनीतिक दलों के पंजीकरण के लिए अनिवार्य शर्तों में धर्म-निरपेक्षता और समाजवाद के प्रति आस्था व्यक्त करने की व्यवस्था की गई है। चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों के रजिस्ट्रेशन का अधिकार दिया गया है।

9. स्वतन्त्र उम्मीदवारों की मृत्यु होने पर चुनाव रद्द नहीं-मार्च, 1992 में संसद् ने लोक प्रतिनिधि (संशोधन) विधेयक पास किया। विधेयक में किसी निर्दलीय उम्मीदवार के निधन की स्थिति में चुनाव रद्द न करने का प्रावधान है।

10. चुनाव प्रचार अभियान के समय में कमी-राष्ट्रपति ने जनवरी, 1992 में एक अध्यादेश जारी कर लोकसभा व विधानसभा चुनावों में नामांकन वापस लेने की अन्तिम तारीख के बाद मतदान कराने की न्यूनतम समय सीमा को 20 दिन से घटा कर 14 दिन कर दिया है।

11. पहचान पत्र अनिवार्य-15 दिसम्बर, 1993 को चुनाव आयोग ने आदेश जारी किया कि 30 नवम्बर, 1994 तक जम्मू-कश्मीर को छोड़कर देश के सभी संसदीय चुनाव क्षेत्रों में चुनाव पहचान पत्र जारी कर दिए जाएंगे। 18 अप्रैल, 2000 को चुनाव आयोग ने सभी राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया कि आगामी सभी चुनावों तथा उपचुनावों में उन सभी मतदाताओं के लिए फोटो पहचान पत्र दिखाये जाने पर जोर देगा, जिनके फोटो परिचय पत्र बन चुके हैं।

12. मन्त्रियों के कार काफ़िले पर रोक-चुनाव आयोग ने 12 फरवरी, 1994 को आदेश जारी करके चुनाव प्रचार के दिनों में राज्यों या केन्द्र के मन्त्री के साथ तीन से अधिक कारों के काफिले पर रोक लगा दी है। आदेश में चेतावनी दी गई है कि यदि इस आदेश का सख्ती से पालन न किया गया तो मतदान या चुनाव भी रद्द किया जा सकता है।

13. चुनावी खर्चे में वृद्धि-चुनाव में काले धन के महत्त्व को कम करने के लिए 2014 में सरकार ने लोकसभा की सीट के लिए अधिकतम चुनावी खर्चा बढ़ाकर 70 लाख कर दिया और विधानसभा सीट के लिए अधिकतम चुनावी खर्चा बढ़ाकर 28 लाख कर दिया। इससे अधिक कोई भी उम्मीदवार खर्च नहीं कर सकता है।

14. साम्प्रदायिकता को नियन्त्रित करना-चुनाव आयोग ने दिसम्बर, 1994 में एक अधिसूचना जारी करके चुनावों के दौरान धर्म व जाति का प्रयोग न करने के आदेश जारी किए। इन आदेशों की पालना के लिए चुनाव आयोग ने धर्म-निरपेक्ष पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की है।

15. चुनाव आयोग को बहु-सदस्यीय बनाना-अक्तूबर, 1993 में राष्ट्रपति ने एक अध्यादेश जारी करके चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया, जिसके अन्तर्गत चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। दिसम्बर, 1993 में इस अध्यादेश पर संसद् की स्वीकृति मिल गई।

16. जमानत राशि में वृद्धि-1998 में सरकार ने जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करके लोकसभा तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव लड़ने के लिए जमानत की राशि को बढ़ा दिया जिसके अन्तर्गत सामान्य वर्ग के उम्मीदवार के लिए दस हज़ार तथा अनुसूचित जाति एवं जन-जाति के उम्मीदवारों के लिए जमानत राशि पांच हजार रुपये कर दी गई। 2010 में जमानत राशि में पुनः वृद्धि की गई। लोकसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए 25 हजार रुपये तथा विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों के लिए 10 हज़ार रुपये जमानत राशि के रूप में निर्धारित किये गए। अनुसूचित जाति एवं जनजाति के उम्मीदवारों के लिए में यह राशि आधी होगी।

यद्यपि सरकार द्वारा किए गए चुनाव सुधार काफ़ी महत्त्वपूर्ण हैं। फिर भी चुनाव-सुधार एक तरफा तथा अधूरे हैं। चुनाव सुधार में चुनाव में धन की बढ़ती भूमिका पर अंकुश की कोई व्यवस्था नहीं की गई है, न सरकारी प्रचार तन्त्र और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर ही रोक लगाने की व्यवस्था की गई है। सरकार ने चुनाव आयोग द्वारा दी गई चुनाव सुधार की 90 प्रतिशत सिफ़ारिशों को मान लिया है। 29 अप्रैल, 2000 को चुनाव प्रणाली की समीक्षा तथा चुनाव सुधार के लिए एक सर्वदलीय बैठक हुई, परन्तु इस बैठक में आम सहमति न होने के कारण कोई निर्णय नहीं हो सका। सभी दल चुनाव प्रणाली में सुधार करने के पक्ष में हैं ताकि धन और भुज-बल के प्रयोग को रोका जा सके। आवश्यकता इस बात की है कि चुनाव व्यवस्था में व्यापक सुधार किए जाएं ताकि चुनाव निष्पक्ष और स्वतन्त्रता के वातावरण में हो।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल लिखें।
उत्तर-
संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुसार आयुक्तों का कार्यकाल संसद् द्वारा बनाए गए कानूनों के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा निश्चित किया जाएगा। 1972 से पूर्व मुख्य चुनाव आयोग के कार्यकाल और सेवा सम्बन्धी शर्तों के बारे में कोई विशेष व्यवस्था नहीं थी। इसीलिए पहले दो मुख्य चुनाव आयुक्त आठ वर्ष तक इस पद पर रहे। 20 दिसम्बर, 1993 को पास किए गए कानून के अन्तर्गत मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों का कार्यकाल 6 वर्ष तथा 65 वर्ष की आयु पूरी करने तक (जो भी इनमें से पहले पूरा हो जाए) निश्चित किया गया है। मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्त 6 वर्ष की अवधि से पूर्व त्याग-पत्र भी दे सकता है और राष्ट्रपति भी 6 वर्ष से पूर्व निश्चित विधि के अनुसार उन्हें हटा सकता है।

प्रश्न 2.
मुख्य चुनाव आयुक्त को पद से अलग करने की विधि लिखो।
उत्तर-
संविधान के अनुच्छेद 324 (5) के अनुसार मुख्य चुनाव आयुक्त को उसी प्रकार हटाया जा सकता है जिस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को। मुख्य चुनाव आयुक्त को राष्ट्रपति तभी हटा सकता है जब उसके विरुद्ध दुराचार (Misbehaviour) तथा अक्षमता (Incapacity) का आरोप सिद्ध हो जाए और संसद् के दोनों सदनों ने इस सम्बन्ध में अलग-अलग अपने सदन के सदस्यों के पूर्ण बहुमत तथा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास किया हो। अभी तक किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त को समय से पहले नहीं हटाया गया है।

प्रश्न 3.
भारत में जन-सहभागिता की क्या स्थिति है ? .
उत्तर-
भारत में जन-सहभागिता की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। अधिकतर भारतीय मतदाता राजनीति में रुचि नहीं रखते या राजनीति के प्रति उदासीन हैं। आम चुनावों से स्पष्ट हो जाता है कि लगभग 60 प्रतिशत मतदाता ही मतदान करने जाते हैं। भारतीय नागरिकों की न केवल चुनाव में सहभागिता कम है बल्कि अन्य राजनीतिक गतिविधियों में भी कम लोग भाग लेते हैं। आम जनता सार्वजनिक मामलों और राजनीतिक गतिविधियों में रुचि नहीं लेती। बहुत कम नागरिक चुनाव के पश्चात् अपने प्रतिनिधियों से मिलते हैं और उन्हें अपनी समस्याओं से अवगत कराते हैं। इसी कारण भारत में जन-सहभागिता का स्तर कम है।

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प्रश्न 4.
भारत में निम्न स्तर की जन-सहभागिता के लिए कोई चार कारण लिखो।
अथवा
भारत में जन-सहभागिता का स्तर इतना नीचे क्यों है ?
अथवा
भारत के चुनावों में लोगों की कम सहभागिता के लिए उत्तरदायी कोई चार तथ्यों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • अनपढ़ता–भारत की अधिकांश जनता अनपढ़ है। अशिक्षित व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और न ही अधिकांश अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार का प्रयोग करना आता है। चुनाव के समय लाखों मत पत्रों को अवैध घोषित किया जाना इस बात का प्रमाण है कि लोगों को मत का प्रयोग करना नहीं आता।
  • ग़रीबी-ग़रीब व्यक्ति चुनाव लड़ना तो दूर की बात वह ऐसा सोच भी नहीं सकता। ग़रीब व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और अपनी वोट को बेचने के लिए तैयार हो जाता है।
  • बेकारी-भारत में जन-सहभागिता के निम्न स्तर के होने का एक कारण बेकारी है। भारत में करोड़ों लोग बेकार हैं। बेकारी के कारण नागरिकों का प्रशासनिक स्वरूप तथा राजनीतिक दलों की क्षमता में विश्वास कम होता चला जा रहा है। बेकार व्यक्ति मताधिकार को कोई महत्त्व नहीं देता और अपना वोट बेचने के लिए तैयार रहता है।
  • राजनीतिक उदासीनता- भारत में अधिकांश लोग राजनीति के प्रति उदासीन रहते हैं और वे वोट डालने नहीं जाते।

प्रश्न 5.
मतदान व्यवहार से क्या भाव है ?
उत्तर-
भारत में प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष हो मताधिकार प्राप्त है, परन्तु भारतीय मतदाता ईमानदारी से वोट न डालकर, धर्म, जाति तथा अन्य सामाजिक भावनाओं से प्रेरित होकर मतदान करता है। प्रो० जे० सी० प्लेनो और रिग्स के अनुसार, “मतदान व्यवहार अध्ययन के उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उन विधियों से सम्बन्धित है जिन विधियों द्वारा लोग सार्वजनिक चुनाव में अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान व्यवहार उन कारणों से सम्बन्धित है जो कारण मतदाताओं को किसी विशेष रूप से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

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प्रश्न 6.
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले तत्त्व लिखिए।
अथवा
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कोई चार तत्व लिखो।
उत्तर-
भारतीय मतदान व्यवहार को अनेक तत्त्व प्रभावित करते हैं जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं

  • जाति का मतदान व्यवहार पर प्रभाव-भारतीय राजनीति में जाति का बहुत महत्त्व है और भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है।
  • धर्म का प्रभाव-भारतीय मतदाता धर्म के प्रभाव में आकर भी वोट डालते हैं। टिकट बांटते समय निर्वाचित क्षेत्र की रचना को ध्यान में रखा जाता है और प्रायः उसी धर्म के व्यक्ति को टिकट दी जाती है जिस धर्म के लोगों की वोटें उस निर्वाचन क्षेत्र में अधिकतम होती हैं।
  • क्षेत्रीयवाद और स्थानीयवाद- भारत में मतदाता स्थानीयवाद तथा क्षेत्रीयवाद की भावनाओं से ओत-प्रोत होकर मतदान करते हैं।
  • वैचारिक प्रतिबद्धता-वैचारिक प्रतिबद्धता भी मतदान व्यवहार को प्रभावित करती है।

प्रश्न 7.
चुनाव आयोग के चार कार्यों का वर्णन करें।
अथवा
चुनाव आयोग के कोई चार कार्य लिखो।
उत्तर-
चुनाव आयोग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • चुनाव आयोग का मुख्य कार्य संसद् तथा विधानमण्डलों के चुनावों के लिए मतदाता सूची तैयार करवाना है।
  • चुनाव आयोग को चुनाव सम्बन्धी सभी मामलों पर निरीक्षण, निर्देश तथा नियन्त्रण का अधिकार प्राप्त है।
  • यह आयोग विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है।
  • राष्ट्रपति तथा उप-राष्ट्रपति के पदों पर चुनाव करवाने का काम भी चुनाव आयोग को सौंपा गया है।

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प्रश्न 8.
भारतीय चुनाव प्रणाली में किए जाने वाले सुधारों से सम्बन्धित कोई चार सुझाव दें।
उत्तर-
चुनाव प्रणाली के दोषों को निम्नलिखित ढंगों से दूर किया जा सकता है

  • निष्पक्षता-चुनाव निष्पक्ष ढंग से होने चाहिए। सत्तारूढ़ दल को चुनाव में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए और न ही अपने दल के हित में सरकारी मशीनरी का प्रयोग करना चाहिए।
  • धन के प्रभाव को कम करना-इसके लिए पब्लिक फण्ड बनाना चाहिए और उम्मीदवारों की धन से सहायता करनी चाहिए। चुनाव का खर्च शासन को ही करना चाहिए।
  • आनुपातिक चुनाव प्रणाली-प्रायः सभी विपक्षी दल वर्तमान में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र की प्रणाली से सन्तुष्ट नहीं हैं। कांग्रेस को अल्पसंख्या में मत मिलते हैं पर संसद् में सीटें बहुत अधिक मिलती हैं। आम तौर पर सभी विरोधी दल आनुपातिक चुनाव प्रणाली के पक्ष में हैं।
  • भारत में फर्जी मतदान को रोकना चाहिए।

प्रश्न 9.
भारतीय चुनाव प्रणाली की चार विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
भारतीय चुनाव प्रणाली की निम्नलिखित विशेषताएं हैं

  • वयस्क मताधिकार-भारतीय चुनाव प्रणाली की प्रथम विशेषता वयस्क मताधिकार है। वयस्क मताधिकार की व्यवस्था देते हुए संविधान में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जो कानून के अन्तर्गत किसी निश्चित तिथि पर 18 वर्ष का है तथा संविधान अथवा कानून के अन्तर्गत चुनाव के लिए किसी भी दृष्टि से अयोग्य नहीं है तो उसे चुनावों में मतदाता के रूप में भाग लेने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है।
  • संयुक्त चुनाव पद्धति-भारतीय चुनाव प्रणाली की दूसरी मुख्य विशेषता संयुक्त चुनाव पद्धति है।
  • अनुसूचित जातियों तथा पिछड़े वर्गों के लिए सुरक्षित स्थान-संयुक्त चुनाव प्रणाली के बावजूद भी हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुसूचित तथा पिछड़े लोगों के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए हैं।
  • भारतीय चुनाव प्रणाली की एक अन्य विशेषता यह है कि मतदान गुप्त होता है।

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प्रश्न 10.
भारत में चुनाव प्रक्रिया के किन्हीं चार पड़ावों के बारे में लिखो।
अथवा
भारत में चुनाव विधि के कोई चार पड़ावों का वर्णन करें।
उत्तर-
भारत में चुनाव प्रक्रिया की निम्नलिखित अवस्थाएं हैं
1. चुनाव क्षेत्र निश्चित करना-चुनाव प्रबन्ध में सर्वप्रथम कार्य चुनाव क्षेत्र को निश्चित करना है। लोकसभा में जितने सदस्य चुने जाते हैं, लगभग समान जनसंख्या वाले उतने ही क्षेत्रों में सारे भारत को बांट दिया जाता है। इसी प्रकार विधानसभाओं के चुनाव में राज्य को समान जनसंख्या वाले चुनाव क्षेत्र में बांट दिया जाता है और प्रत्येक क्षेत्र से एक सदस्य चुना जाता है।

2. मतदाताओं की सूची-मतदाता सूचियां तैयार करना चुनाव प्रक्रिया की दूसरी अवस्था है। सबसे पहले मतदाताओं की अस्थायी सूची तैयार की जाती है। इन सूचियों को कुछ एक विशेष स्थानों पर जनता को देखने के लिए रख दिया जाता है। यदि उस सूची में किसी का नाम लिखने से रह गया हो या किसी का नाम ग़लत लिख दिया गया हो तो उसको एक निश्चित तिथि तक संशोधन करवाने के लिए प्रार्थना-पत्र देना होता है। फिर संशोधित सूचियां तैयार की जाती हैं।

3. चुनाव तिथि की घोषणा-चुनाव आयोग चुनाव की तिथि की घोषणा करता है। चुनाव आयोग नामांकन-पत्र भरने की तिथि, नाम वापस लेने की तिथि, नामांकन-पत्रों की जांच-पड़ताल की तिथि निश्चित करता है।

4. उम्मीदवारों का नामांकन-चुनाव कमिशन द्वारा की गई चुनाव घोषणा के पश्चात् विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार अपने नामांकन पत्र दाखिल करते हैं। राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के अतिरिक्त स्वतन्त्र उम्मीदवार भी अपने नामांकन-पत्र प्रस्तुत करते हैं।

प्रश्न 11.
चुनाव आयोग की रचना लिखो।
अथवा
भारत में चुनाव आयोग की रचना की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त होंगे। चुनाव आयुक्तों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएगी। संविधान के लागू होने से लेकर 1988 तक चुनाव आयोग में केवल मुख्य चुनाव आयुक्त ही था और अन्य सदस्यों की नियुक्ति नहीं की गई थी। 1989 में कांग्रेस सरकार ने पहली बार मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किए, परन्तु राष्ट्रीय मोर्चा की सरकार ने दो अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को रद्द कर दिया। 1 अक्तूबर, 1993 को केन्द्र सरकार ने दो नए चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति कर चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बनाने का महत्त्वपूर्ण कदम उठाया। दिसम्बर, 1993 में संसद् ने विधेयक पास करके चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया। अतः आजकल चुनाव आयोम में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य सदस्य हैं। चुनाव आयोग के तीनों सदस्यों को समानाधिकार प्राप्त हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 16 चुनाव व्यवस्था

प्रश्न 12.
भारतीय चुनाव प्रणाली के चार दोष लिखें।
उत्तर-
भारत में चुनाव प्रणाली तथा चुनावों में कई दोष हैं जो मुख्य रूप से निम्नलिखित हैं

  • एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र-भारत में एक सदस्यीय चुनाव क्षेत्र है और एक स्थान के लिए बहुत-से उम्मीदवार खड़े हो जाते हैं। कई बार थोड़े से मत प्राप्त करने वाला उम्मीदवार भी चुना जाता है।
  • जाति और धर्म के नाम पर वोट-भारत में साम्प्रदायिकता का बड़ा प्रभाव है और इसने हमारी प्रगति में सदैव बाधा उत्पन्न की है। जाति और धर्म के आधार पर खुले रूप से मत मांगे और डाले जाते हैं। राजनीतिक दल भी अपने उम्मीदवार खड़े करते समय इस बात का ध्यान रखते हैं और उसी जाति का उम्मीदवार खड़ा करने का प्रयत्न करते हैं जिस जाति का उस क्षेत्र में बहुमत हो।
  • धन का अधिक खर्च- भारत में चुनाव में धन का अधिक खर्च होता है, जिसे देखकर साधारण व्यक्ति तो चुनाव लड़ने की कल्पना भी नहीं कर सकता।
  • भारत में फर्जी मतदान एक बहुत बड़ी समस्या है।

प्रश्न 13.
भारत सरकार द्वारा चुनाव व्यवस्था में किए गए कोई चार सुधार लिखें।
उत्तर-
भारत सरकार द्वारा चुनाव व्यवस्था में निम्नलिखित सुधार किए गए हैं-

  • मताधिकार की आयु 18 वर्ष-बहुत समय से राजनीतिक दलों और युवा वर्गों की मांग यह थी कि मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की जाए। 61वें संविधान संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दी गई है।
  • चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन करना-जन प्रतिनिधि कानून 1951 में संशोधन करके सारी चुनाव मशीनरी को चुनाव आयोग के अधीन कर दिया गया है।
  • इलेक्ट्रॉनिक मशीन-जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 में संशोधन करके चुनाव में इलेक्ट्रॉनिक मतदान मशीनों के इस्तेमाल की भी व्यवस्था की गई है।
  • मतदान केन्द्रों पर कब्जा करने पर कड़ी सजा की व्यवस्था की गई है।

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प्रश्न 14.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का महत्त्वपूर्ण आधार है। जन-सहभागिता का अर्थ है राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना। जन-सहभागिता का स्तर सभी शासन प्रणालियों और सभी देशों में एक समान नहीं होता। अधिनायकवाद और निरंकुशतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत कम होता है जबकि लोकतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत ऊंचा होता है। लोकतन्त्र में जन-सहभागिता के द्वारा ही लोग शासन में भाग लेते हैं। हरबर्ट मैक्कलॉस्की के अनुसार, “सहभागिता वह मुख्य साधन है, जिसके द्वारा लोकतन्त्र में सहमति प्रदान की जाती है और वापस ली जाती है तथा शासकों को शासितों के प्रति उत्तरदायी बनाया जाता है।

प्रश्न 15.
भारत में सूचियों को कौन बनाता है ?
अथवा
भारत में मतदाता सूचियां कौन तैयार करता है ?
उत्तर-
भारत में मतदाता सूचियां तैयार करने का काम चुनाव आयोग करता है। प्रत्येक जनगणना के पश्चात् और आम चुनाव से पहले मतदाताओं की सूची में संशोधन किए जाते हैं। इन सूचियों में नए मतदाताओं के नाम लिखे जाते हैं जो नागरिक मर चुके होते हैं उनके नाम मतदाता सूची में से निकाले जाते हैं। यदि किसी नागरिक का नाम मतदाता सूची में नहीं लिखा जाता तो वह व्यक्ति एक निश्चित तिथि तक आवेदन-पत्र देकर मतदाता सूची में अपना नाम दर्ज करवा सकता है। मतदाता सूची के तैयार होने पर चुनाव आयोग द्वारा निश्चित तिथि तक आपत्तियां मांगी जाती हैं और कोई भी आपत्ति कर सकता है। नागरिकों द्वारा एवं राजनीतिक दलों द्वारा उठाई गई आपत्तियों को चुनाव आयोग के कर्मचारियों द्वारा दूर किया जाता है।

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प्रश्न 16.
चुनाव मुहिम से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
चुनाव की तिथि की घोषणा के साथ ही राजनीतिक दल चुनाव प्रचार शुरू कर देते हैं पर चुनाव प्रचार सही ढंग से तब शुरू होता है जब नामांकन-पत्रों की जांच-पड़ताल के बाद उम्मीदवारों की अन्तिम सूची घोषित की जाती है। राजनीतिक दल मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए अपने-अपने चुनाव घोषणा-पत्र (Election Manifesto) घोषित करते हैं, जिसमें दल की नीतियां एवं कार्यक्रम घोषित किया जाता है। राजनीतिक दल, पोस्टरों द्वारा, जलसों द्वारा, रेडियो तथा दूरदर्शन द्वारा अपने कार्यक्रम का प्रचार करते हैं। उम्मीदवारों के समर्थक घर-घर जाकर अपने उम्मीदवारों का प्रचार करते हैं और उम्मीदवार भी जहां तक हो सके सभी घरों में वोट मांगने जाते हैं। गलियों और सड़कों के चौराहों पर छोटी-छोटी सार्वजनिक सभाएं की जाती हैं।

प्रश्न 17.
भारत में जातिवाद मतदान व्यवहार को कैसे प्रभावित करता है ?
उत्तर-
जाति सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व है जिसका आरम्भ से ही मतदान व्यवहार पर बड़ा प्रभाव रहा है। स्वतन्त्रता से पूर्व भी जब अभी वयस्क मताधिकार प्रचलित नहीं हुआ था, जाति का मतदान पर बहुत प्रभाव था। स्वतन्त्रता के पश्चात् यह प्रभाव कम होता दिखाई नहीं देता। भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है। कुछ राज्यों में तो यह तत्त्व बहुत निर्णायक है क्योंकि मतदाता अपनी जाति के उम्मीदवार को वोट देना अपना कर्त्तव्य मानते हैं। उदाहरण के लिए हरियाणा में अनुसूचित जातियों में हरिजनों की संख्या सबसे अधिक है और राजनीति तथा मतदान के क्षेत्र में उनकी दूसरी जातियों की अपेक्षा अधिक चलती है। अनेक दल तो जातियों के आधार पर ही बने हुए हैं और उन्हें विशेष जातियों का समर्थन प्राप्त है।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में जन-सहभागिता का स्तर इतना कम क्यों हैं ?
उत्तर-

  • अनपढ़ता- भारत की अधिकांश जनता अनपढ़ है। अशिक्षित व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और न ही अधिकांश अशिक्षित व्यक्तियों को मताधिकार का प्रयोग करना आता है।
  • ग़रीबी-गरीब व्यक्ति चुनाव लड़ना तो दूर की बात वह ऐसा सोच भी नहीं सकता। ग़रीब व्यक्ति मताधिकार का महत्त्व नहीं समझता और अपनी वोट को बेचने के लिए तैयार हो जाता है।

प्रश्न 2.
मतदान व्यवहार से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारत में प्रत्येक नागरिक को जिसकी आयु 18 वर्ष हो मताधिकार प्राप्त है, परन्तु भारतीय मतदाता ईमानदारी से वोट न डालकर, धर्म, जाति तथा अन्य सामाजिक भावनाओं से प्रेरित होकर मतदान करता है। प्रो० जे० सी० प्लेनो और रिग्स के अनुसार, “मतदान व्यवहार अध्ययन के उस क्षेत्र को कहा जाता है जो उन विधियों से सम्बन्धित है जिन विधियों द्वारा लोग सार्वजनिक चुनाव में अपने मत का प्रयोग करते हैं। मतदान व्यवहार उन कारणों से सम्बन्धित है जो कारण मतदाताओं को किसी विशेष रूप से मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

प्रश्न 3.
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले दो तत्त्व लिखो।
उत्तर-

  • जाति का मतदान व्यवहार पर प्रभाव-भारतीय राजनीति में जाति का बहुत महत्त्व है और भारतीय जनता अधिकतर जाति के प्रभाव में ही आकर मतदान करती है। .
  • धर्म का प्रभाव-भारतीय मतदाता धर्म के प्रभाव में आकर भी वोट डालते हैं।

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प्रश्न 4.
चुनाव आयोग के कोई दो कार्य लिखो।
उत्तर-

  • मतदाता सूचियों को तैयार करना-चुनाव आयोग का एक महत्त्वपूर्ण कार्य संसद् तथा राज्य विधानमण्डलों के चुनाव के लिए मतदाता सूची तैयार करना होता है।
  • चुनाव के लिए तिथि निश्चित करना-चुनाव आयोग विभिन्न चुनाव क्षेत्रों में चुनाव करवाने की तिथि निश्चित करता है।

प्रश्न 5.
चुनाव आयोग की रचना लिखो।
उत्तर-
अनुच्छेद 324 के अनुसार चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त होंगे। चुनाव आयुक्तों की संख्या राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित की जाएगी। दिसम्बर, 1993 में संसद् ने विधेयक पास करके चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया। अत: आजकल चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा दो अन्य सदस्य हैं। चुनाव आयोग के तीनों सदस्यों को समानाधिकार प्राप्त हैं।

प्रश्न 6.
जन-सहभागिता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जन-सहभागिता लोकतन्त्रीय शासन प्रणाली का महत्त्वपूर्ण आधार है। जन-सहभागिता का अर्थ है राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना। जन सहभागिता का स्तर सभी शासन प्रणालियों और सभी देशों में एक समान नहीं होता। अधिनायकवाद और निरंकुशतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहत कम होता है जबकि लोकतन्त्र में जन-सहभागिता का स्तर बहुत ऊंचा होता है। लोकतन्त्र में जन-सहभागिता के द्वारा ही लोग शासन में भाग लेते हैं।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
भारत में मतदाता कौन हो सकता है ?
उत्तर-
भारत में 18 वर्ष के व्यक्ति को मताधिकार प्राप्त है।

प्रश्न 2.
भारत में किस प्रकार की चुनाव प्रणाली अपनाई गई है ?
उत्तर-
भारत में वयस्क मताधिकार पर आधारित संयुक्त चुनाव प्रणाली अपनाई गई है।

प्रश्न 3.
चुनाव आयोग के कितने सदस्य हैं ?
उत्तर-
चुनाव आयोग के तीन सदस्य हैं।

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प्रश्न 4.
भारतीय चुनाव आयोग की रचना का वर्णन करें।
उत्तर-
चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा कुछ अन्य चुनाव आयुक्त हो सकते हैं। आजकल चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त व दो अन्य चुनाव आयुक्त हैं।

प्रश्न 5.
चुनाव आयोग की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
चुनाव आयोग की नियुक्ति संविधान के अनुसार राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है।

प्रश्न 6.
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति कौन करता है ?
उत्तर-
मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।

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प्रश्न 7.
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल बताइए।
उत्तर-
चुनाव आयोग के सदस्यों का कार्यकाल राष्ट्रपति नियम बना कर निश्चित करता है। प्रायः यह अवधि 6 वर्ष होती है।

प्रश्न 8.
भारतीय चुनाव आयोग का एक कार्य लिखो।
उत्तर-
चुनाव आयोग का मुख्य कार्य संसद् तथा राज्य विधान सभाओं के चुनाव करवाना तथा उनकी मतदाता सूची तैयार करवाना है।

प्रश्न 9.
भारत में मताधिकार सम्बन्धी कौन-सा सिद्धान्त अपनाया गया है ?
उत्तर-
भारत में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाया गया है।

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प्रश्न 10.
संयुक्त निर्वाचन प्रणाली से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 325 के अनुसार संयुक्त निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की गई है, जिसके अन्तर्गत एक निर्वाचन क्षेत्र के सभी मतदाता, चाहे वे किसी भी धर्म, जाति या सम्प्रदाय से सम्बन्धित हो, उनके नाम एक ही मतदाता सूची में शामिल किये जाते हैं तथा वे मिलकर अपने प्रतिनिधि का चुनाव करते हैं।

प्रश्न 11.
भारत में चुनाव प्रक्रिया की दो अवस्थाओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. चुनाव क्षेत्र निश्चित करना
  2. मतदाता सूची बनाना।।

प्रश्न 12.
चुनाव आयोग का अध्यक्ष कौन होता है ?
उत्तर-
चुनाव आयोग का अध्यक्ष मुख्य चुनाव आयुक्त होता है।

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प्रश्न 13.
भारत में कौन-कौन से दो चुनाव अप्रत्यक्ष ढंग से करवाए जाते हैं ? ।
उत्तर-

  1. राष्ट्रपति का चुनाव
  2. उप-राष्ट्रपति का चुनाव।

प्रश्न 14.
भारत में मतदान व्यवहार का आधार क्या है ? वोट कौन डाल सकता है ?
उत्तर-
भारत में सार्वभौमिक मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाया गया है। भारत का प्रत्येक 18 वर्ष का नागरिक बिना किसी भेदभाव के मतदान कर सकता है।

प्रश्न 15.
भारत में कौन-से दो चुनाव प्रत्यक्ष चुनाव ढंग द्वारा करवाए जाते हैं ?
उत्तर-

  • लोकसभा का चुनाव
  • विधान सभा का चुनाव।

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प्रश्न 16.
जन सहभागिता से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जन सहभागिता का अर्थ है, राजनीतिक प्रक्रिया में लोगों द्वारा भाग लेना।

प्रश्न 17.
जन सहभागिता की क्या महत्ता है ?
उत्तर-
जन सहभागिता शासन को वैधता प्रदान करती है, उसे उत्तरदायी बनाती है तथा स्थिरता प्रदान करती है।

प्रश्न 18.
चुनाव आयोग के सदस्यों को किस प्रकार पद से हटाया जा सकता है ?
उत्तर-
चुनाव आयोग के सदस्यों को संसद् द्वारा महाभियोग प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है।

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प्रश्न 19.
मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाले कोई दो तत्त्व लिखिए।
अथवा
भारत में मतदान व्यवहार को प्रभावित करने वाला कोई एक तत्त्व लिखें।
उत्तर-

  • जाति
  • धर्म।

प्रश्न 20.
चुनाव अभियान से आपका क्या अभिप्राय है ? .
उत्तर-
चुनावों के समय राजनीतिक दलों, उम्मीदवारों तथा उनके समर्थकों द्वारा किया गया चुनाव प्रचार, चुनाव अभियान कहलाता है।

प्रश्न 21.
निर्वाचन मंडल से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुल जनसंख्या का वह भाग जो प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेता है, सामूहिक रूप से निर्वाचन मंडल कहलाता है।

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प्रश्न 22.
निर्वाचन क्षेत्र किसे कहते हैं ?
उत्तर-
निर्वाचन क्षेत्र उस निश्चित क्षेत्र या इलाके को कहा जाता है, जहां से मतदाता अपना प्रतिनिधि चुनते हैं।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. भारत में प्रत्येक ……………… के नागरिक को मताधिकार प्राप्त है।
2. भारत में अब तक ……………. लोक सभा के चुनाव करवाए जा चुके हैं।
3. भारत में ………….. मताधिकार को अपनाया गया है।
4. भारत में पहला आम चुनाव …………. में हुआ।
5. लोकसभा के चुनाव के लिए एक प्रत्याशी का अधिकतम चुनाव खर्च ………… रु० निर्धारित किया गया है।
उत्तर-

  1. 18
  2. 16
  3. सार्वभौमिक वयस्क
  4. 1952
  5. 70 लाख।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही या ग़लत का चुनाव करें

1. भारत विश्व का सबसे बड़ा तानाशाही राज्य है। यहां पर अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है।
2. 61वें संशोधन द्वारा मताधिकार की आयु घटाकर 18 वर्ष कर दी गई।
3. भारत में प्रथम आम चुनाव 1950 में हुए, जबकि 16वीं लोकसभा के चुनाव अप्रैल-मई, 2004 में हुए।
4. भारत में महिलाओं को मताधिकार प्राप्त है।
5. भारतीय चुनाव प्रणाली के महत्त्वपूर्ण दोष वयस्क मताधिकार, संयुक्त निर्वाचन तथा गुप्त मतदान है।
उत्तर-

  1. ग़लत
  2. सही
  3. ग़लत
  4. सही
  5. ग़लत।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारतीय संविधान के किस अध्याय में चुनाव प्रणाली का वर्णन किया गया है ?
(क) अध्याय-3
(ख) अध्याय-4
(ग) अध्याय-15
(घ) अध्याय-18.
उत्तर-
(ग) अध्याय-15

प्रश्न 2.
भारत में मताधिकार प्राप्त है
(क) जिस नागरिक की आयु 21 वर्ष से अधिक हो
(ख) जिस नागरिक की आयु 25 वर्ष से अधिक हो
(ग) जिस नागरिक की आयु 20 वर्ष से अधिक हो
(घ) जिस नागरिक की आयु 18 वर्ष हो।
उत्तर-
(घ) जिस नागरिक की आयु 18 वर्ष हो।

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प्रश्न 3.
चुनाव आयोग में एक मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य-
(क) तीन सदस्य होते हैं
(ख) दो सदस्य होते हैं
(ग) पांच सदस्य होते हैं
(घ) चार सदस्य होते हैं।
उत्तर-
(ख) दो सदस्य होते हैं

प्रश्न 4.
मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य सदस्यों की अवधि है-
(क) पांच वर्ष
(ख) चार वर्ष
(ग) आठ वर्ष
(घ) छ: वर्ष।
उत्तर-
(घ) छ: वर्ष।

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प्रश्न 5.
भारत में पहला आम चुनाव किस वर्ष में हुआ?
(क) सन् 1950 में
(ख) सन् 1952 में
(ग) सन् 1960 में
(घ) सन् 1962 में।
उत्तर-
(ख) सन् 1952 में

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 6 वन्य खेती

Punjab State Board PSEB 10th Class Agriculture Book Solutions Chapter 6 वन्य खेती Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Agriculture Chapter 6 वन्य खेती

PSEB 10th Class Agriculture Guide वन्य खेती Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के एक-दो शब्दों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
पंजाब में राष्ट्रीय वन्य नीति 1988 के अनुसार कितने प्रतिशत क्षेत्रफल वनों के अन्तर्गत होना चाहिए ?
उत्तर-
20%.

प्रश्न 2.
पंजाब में वन और वृक्षों के अन्तर्गत कितने प्रतिशत क्षेत्रफल है ?
उत्तर-
6.49%.

प्रश्न 3.
पंजाब को जलवायु के आधार पर कितने क्षेत्रों में बांटा गया है ?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 4.
तटीय क्षेत्र में कौन से मौसम में चारे की कमी पाई जाती है ?
उत्तर-
सर्दी में।

प्रश्न 5.
पॉप्लर के वृक्ष खेत की सीमा पर कितने अन्तर पर लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
3 मीटर।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 6 वन्य खेती

प्रश्न 6.
तटीय क्षेत्र में ज़मीनें कैसी होनी चाहिए?
उत्तर-
भूमि ऊँची-नीची।

प्रश्न 7.
तटीय क्षेत्र में चारे के लिए प्रयुक्त होने वाले दो वृक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर-
ढाक, बेरी, सुबाबुल, कचनार आदि।

प्रश्न 8.
पॉप्लर की खेती के लिए जमीन की पी० एच० कितनी होनी चाहिए ?
उत्तर-
6.5 से 8.0 तक।

प्रश्न 9.
पंजाब के दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में धरती के नीचे का पानी कैसा है ?
उत्तर-
खारा पानी।

प्रश्न 10.
सारे खेत में पॉप्लर के कितने वृक्ष प्रति एकड़ लगते हैं ?
उत्तर-
200 वृक्ष प्रति एकड़।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के एक -दो वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
पंजाब में पॉप्लर खेतों में कौन-से महीनों में लगाया जाता है ?
उत्तर-
पंजाब में पॉप्लर लगने का उचित समय जनवरी/फरवरी का महीना है।

प्रश्न 2.
वन्य खेती की परिभाषा दीजिए।
उत्तर-
वन्य खेती में एक ही खेत में वृक्ष तथा फसलों को एक साथ उगाया जाता है।

प्रश्न 3.
केन्द्रीय मैदानी क्षेत्रों में भूमि तथा सिंचाई सुविधाएं कैसी होनी चाहिए तथा किसानों द्वारा कौन-सा फसली चक्र अपनाया जाता है ?
उत्तर-
यहां की भूमि रेतीली भल्ल से चिकनी है। सिंचाई सुविधाएं ठीक हैं तथा फसली चक्र धान-गेहूँ है।

प्रश्न 4.
दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्र में कौन-कौन से वृक्ष पाए जाते हैं ?
उत्तर-
कीकर, शीशम (टाहली), आम, डेक, नीम, जामुन, शहतूत आदि।

प्रश्न 5.
सफेदे के पौधे लगाने की विधि तथा पौधे से पौधे के बीच का अन्तर लिखें।
उत्तर-
कलमों से तैयार किए पौधे लगाने चाहिए। सफेदा खेत के किनारों पर या सारे खेत में लगाया जा सकता है। किनारे पर वृक्षों का आपसी फासला 2 मीटर तथा सारे खेत में 4 × 2 मीटर के फासले पर वृक्ष लगाने चाहिए।

प्रश्न 6.
पॉप्लर की उन्नत किस्मों के नाम लिखिए।
उत्तर-
PL-1, PL-2, PL-3, PL-4, PL-5, L-47/88, L-48/89 पॉप्लर की कुछ उन्नत किस्में हैं।

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प्रश्न 7.
सफेदे के पौधे खेतों में कौन-कौन से महीनों में लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
सफेदे के पौधे मार्च-अप्रैल या जुलाई-अगस्त में लगाए जाते हैं।

प्रश्न 8.
पॉप्लर की लकड़ी का प्रयोग कौन-कौन से उद्योगों में होता है ?
उत्तर-
पॉप्लर की लकड़ी का प्रयोग दियासिलाई उद्योग, प्लाई, पैकिंग वाले डिब्बे बनाने में होता है।

प्रश्न 9.
सफेदे के पौधे लगाने के लिए अन्तर लिखिए।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के पांच – छः वाक्यों में उत्तर दीजिए-

प्रश्न 1.
वन्य खेती की व्याख्या करें।
उत्तर-
राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार लकड़ी की आवश्यकता की पूर्ति तथा वातावरण को अनुकूल रखने के लिए लगभग 20% क्षेत्र जंगलों के अधीन आना चाहिए। परन्तु जंगलों के अधीन और क्षेत्रफल लाने की संभावना कम होने के कारण वन्य कृषि द्वारा यह कार्य किया जा सकता है।

वन्य कृषि से भाव है कि एक ही खेत में वृक्ष तथा फ़सलें एक साथ उगाए जाते हैं। इस खेती का उद्देश्य यह है कि किसान अपनी आवश्यकताएं भी पूरी कर लें, जैसे अनाज, लकड़, ईंधन, चारा तथा प्राकृतिक स्रोतों की भी संभाल हो जाए, जैसे- भूमि पानी तथा हवा आदि। इस ढंग से किसान की आय में भी वृद्धि होती है।

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प्रश्न 2.
पॉप्लर की खेती के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा कौन-कौन सी किस्मों की सिफ़ारिश की जाती है तथा कितने-कितने अन्तर पर वृक्ष लगाने चाहिए ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय द्वारा पॉप्लर की PL-1, PL-2, PL-3, PL-4, PL-5, PL-6, PL-7, L-47/88 तथा L-48/89 किस्मों की सिफ़ारिश भी की जाती है। पॉप्लर को यदि किनारों पर बोना हो तो फासला वृक्ष से वृक्ष 3 मीटर तथा यदि सारे खेत में बोना हो तो 8 x 2.5 मी० या 5 x 4 मी० भी रखना चाहिए।
सारे खेत में 200 के लगभग वृक्ष प्रति एकड़ लगाए जा सकते हैं।

प्रश्न 3.
कलमों से तैयार किए सफेदे के पौधे कहां से मिल सकते हैं ?
उत्तर-
वन्य कृषि में सफेदे की कलमों से तैयार किए पौधे लगाने चाहिए, यह सभी एक जैसे बढ़ते हैं। सफेदे के पौधे किसी भी जंगलात विभाग की नर्सरी या प्राइवेट रजिस्टर्ड नर्सरी से प्राप्त किए जा सकते हैं।

प्रश्न 4.
पॉप्लर के पौधे लगाने के लिए विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
पॉप्लर के पौधे लगाने के लिए 3 फुट गहरा तथा 15-20 सैं० मी० व्यास वाला गड्ढा खोदना चाहिए। पौधों को दीमक तथा रोगों से बचाने के लिए क्लोरोपाईरीफास तथा एमीसान-6 का प्रयोग किया जाता है। पॉप्लर के पौधों को जनवरी-फरवरी के माह में लगाना ठीक. रहता है। गड्ढे में पौधे लगाने के तुरन्त बाद पानी लगा देना चाहिए। यदि पॉप्लर को खेत के किनारे पर लगाना हो तो पौधों में आपसी फासला 3 मी० होना चाहिए तथा यदि सारे खेत में लगाना हो तो 8 x 2.5 मी० या 5 x 4 मी० फासला रखना चाहिए। इस प्रकार खेत में लगभग 200 पौधे प्रति एकड़ अधिक लगाए जाते हैं।

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 6 वन्य खेती

प्रश्न 5.
पॉप्लर की लकड़ी का प्रयोग कहां-कहां किया जाता है ?
उत्तर-
पॉप्लर की कृषि छोटे स्तर पर लकड़ी उद्योग तथा रोजगार पैदा करने के समर्थ है। पॉप्लर की लकड़ी कई उद्योगों में प्रयोग होती है। जैसे इससे दियासिलाइयां बनती हैं, प्लाई बनती है तथा पैकिंग के लिए डिब्बे बनते हैं। इस तरह पॉप्लर की कृषि करके लाभ लिया जा सकता है। सर्दियों में इसके पत्ते झड़ जाते हैं। इसलिए आषाढ़ी की फसलों को भी हानि नहीं होती।

Agriculture Guide for Class 10 PSEB वन्य खेती Important Questions and Answers

वस्तनिष्ठ प्रश्न

I. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राष्ट्रीय वन्य नीति 1988 के अनुसार लगभग कितना क्षेत्रफल वनों के अंतर्गत होना चाहिए ?
(क) 5%
(ख) 20%
(ग) 50%
(घ) 29%
उत्तर-
(ख) 20%

प्रश्न 2.
केन्द्रीय मैदानी क्षेत्रों में ………….. वृक्ष लगाए जाते हैं।
(क) पॉप्लर
(ख) सफेदा
(ग) डेक
(घ) सभी।
उत्तर-
(घ) सभी।

प्रश्न 3.
पॉप्लर की किस्म नहीं है-
(क) PL-5
(ख) PL-47/88
(ग) PL-858
(घ) PL-48/89.
उत्तर-
(ग) PL-858

PSEB 10th Class Agriculture Solutions Chapter 6 वन्य खेती

प्रश्न 4.
पॉप्लर के वृक्ष ………. वर्षों में तैयार हो जाते हैं.
(क) 5 से 7
(ख) 1 से 2
(ग) 10 से 12
(घ) 15 से 25.
उत्तर-
(क) 5 से 7

प्रश्न 5.
पॉप्लर की कृषि के लिए भूमि की पी० एच० कितनी होनी चाहिए?
(क) 10
(ख) 6.5 से 8.0
(ग) 3 से 4
(घ) 4 से 5.5
उत्तर-
(ख) 6.5 से 8.0

प्रश्न 6.
वन कृषि में खेत की मेढ़ों पर वृक्षों को किस दिशा में लगाना चाहिए?
(क) उत्तर-दक्षिण
(ख) पूर्व-पश्चिम
(ग) दक्षिण-पूर्व
(घ) उत्तर-पूर्व।
उत्तर-
(क) उत्तर-दक्षिण

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प्रश्न 7.
कागज़ की लुगदी (पेपर पल्प) तैयार करने के लिए सफेदे को कितने वर्षों के बाद काटा जाता है ?
(क) 13 से 15 साल
(ख) 6 से 8 साल
(ग) 4 से 6 साल
(घ) 2 से 4 साल।
उत्तर-
(ख) 6 से 8 साल

प्रश्न 8.
तख्तियां (बल्लियां) बनाने के लिए सफेदे को कितने वर्षों के बाद काटा जाता है ?
(क) 13 से 15 साल
(ख) 6 से 8 साल
(ग) 4 से 6 साल
(घ) 2 से 4 साल।
उत्तर-
(ग) 4 से 6 साल

प्रश्न 9.
इमारती लकड़ी पैदा करने के लिए सफेदे को कितने वर्षों के बाद काटा जाता है ?
(क) 13 से 15 साल
(ख) 6 से 8 साल
(ग) 4 से 6 साल
(घ) 2 से 4 साल।
उत्तर-
(क) 13 से 15 साल

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II. ठीक/गलत बताएँ-

1. पॉप्लर, वेट क्षेत्र में सफल है।
2. पॉप्लर के वृक्ष 5 से 7 वर्षों में तैयार हो जाते हैं।
3. जैटरोफा को बागों को बचाने के लिए लगाया जाता है।
4. कल्लर तथा सेम वाली भूमि पॉप्लर के लिए ठीक है।
5. सफेदे को कलमों से तैयार पौधे लगाने चाहिए।
उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. गलत
  5. ठीक।

III. रिक्त स्थान भरें-

1. पॉप्लर की लकड़ी का प्रयोग …………… बनाने में होता है।
2. पॉप्लर के वृक्ष किनारों पर …………… के अंतर पर लगाए जाते हैं।
3. कंडी क्षेत्र में ………… क्षरण की समस्या है।
4. PL-3 …………… की किस्म है।
5. कंडी क्षेत्र में सर्दियों के मौसम में ………….. की कमी हो जाती है।
उत्तर-

  1. माचिस की तीलियां
  2. 3 मीटर
  3. भूमि
  4. पॉप्लर
  5. चारे।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंजाब में वन कृषि एक उचित कृषि प्रबंध क्यों है ?
उत्तर-
क्योंकि वन्य कृषि के अधीन और क्षेत्रफल लाने की संभावना नहीं है।

प्रश्न 2.
क्या वन्य कृषि से भी कमाई होती है ?
उत्तर-
पारंपरिक कृषि से अधिक।

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प्रश्न 3.
खेतों के किनारों पर वृक्षों को कौन-सी दिशा में लगाना चाहिए ?
उत्तर-
उत्तर-दक्षिण दिशा वाले किनारों पर।

प्रश्न 4.
जलवायु के आधार पर पंजाब को कितने क्षेत्रों में बांटा जा सकता है ?
उत्तर-
तीन क्षेत्रों में।

प्रश्न 5.
तटीय क्षेत्र में किसान किस पर आधारित कृषि करते हैं ?
उत्तर-
वर्षा पर आधारित।

प्रश्न 6.
बागों को बचाने के लिए कौन-से वृक्ष लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
जटरोफा, करौंदा, इपोमिया।

प्रश्न 7.
दक्षिणी-पश्चिमी जोन (क्षेत्र) की मिट्टी की ऊपर वाली सतह कैसी है ?
उत्तर-
खारेपन वाली।

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प्रश्न 8.
पॉप्लर आषाढ़ी की फसलों को कम हानि पहुंचाता है, कैसे ?
उत्तर-
इसके पत्ते सर्दियों में झड़ जाते हैं।

प्रश्न 9.
कैसी भूमि पॉप्लर के लिए ठीक नहीं ?
उत्तर-
कल्लर तथा सेम वाली।

प्रश्न 10.
पॉप्लर कौन-से क्षेत्रों में बहुत सफल है ?
उत्तर-
बेट के।

प्रश्न 11.
सारे खेत में पॉप्लर के कितने वृक्ष लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
200 वृक्ष प्रति एकड़।

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प्रश्न 12.
पॉप्लर के वृक्ष कितने वर्षों में तैयार हो जाते हैं ?
उत्तर-
5 से 7 वर्षों में।

प्रश्न 13.
सफेदे के कैसे पौधे लगाने चाहिए ?
उत्तर-
कलमों से तैयार।

प्रश्न 14.
सारे खेत में सफेदे के कितने वृक्ष लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
500 वृक्ष प्रति एकड़।

प्रश्न 15.
यदि लम्बे समय तक सफेदे की कृषि करनी हो तो पंक्तियों में कितना फासला होना चाहिए ?
उत्तर-8
मी०।

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प्रश्न 16.
सफेदे से इमारती लकड़ी लेनी हो तो कितने वर्ष का समय लगता है ?
उत्तर-
13 से 15 वर्ष।

प्रश्न 17.
सफेदा, पेपर पल्प के लिए कितने वर्षों में तैयार हो जाता है ?
उत्तर-
6 से 8 वर्ष।

प्रश्न 18.
सफेदे से बल्लियां बनाने के लिए कितने वर्ष बाद काटा जा सकता है ?
उत्तर-
4 से 6 वर्ष।

प्रश्न 19.
पंजाब में व्यावसायिक वन कृषि के लिए मुख्य रूप से कौन से दो वृक्षों की खेती की जाती है ?
उत्तर-
पॉप्लर, सफेदा।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
वन्य कृषि के कौन-कौन से मॉडल हैं ?
उत्तर-
वन्य कृषि के मुख्य दो मॉडल हैं-खेतों में किनारों पर वृक्ष लगाना, वृक्ष तथा फसलों को मिलाकर कृषि करना।

प्रश्न 2.
किनारों पर वृक्ष लगाने वाले मॉडल में किसान वृक्ष कहां लगाता है ?
उत्तर-
इस विधि में किसान वृक्षों को किनारों पर या खालों में एक या दो पंक्तियों में लगाता है।

प्रश्न 3.
खेत के किनारों पर कौन-से वृक्ष लगाए जा सकते हैं ?
उत्तर-
सुवाल, डेक, शहतूत, सफेदा, पॉप्लर, सरींह, लसूड़ा, सुहांजना, शीशम आदि।

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प्रश्न 4.
वृक्ष तथा फसलों की एक साथ कृषि कौन-से किसान करते हैं ?
उत्तर-
ऐसी कृषि अधिक भूमि वाले किसान करते हैं।

प्रश्न 5.
सारे खेत में लगाने के लिए कौन-से वृक्ष बेहतर हैं ?
उत्तर-
सारे खेत में लगाने के लिए पॉप्लर, सफेदा, डेक तथा शहतूत अच्छे वृक्ष हैं।

प्रश्न 6.
भूमि कटाव की समस्या कौन-से जोन में है ?
उत्तर-
तटीय क्षेत्र में भूमि ऊँची-नीची होने के कारण भूमि कटाव की समस्या बहुत है।

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प्रश्न 7.
पॉप्लर के लिए कैसी भूमि ठीक है ?
उत्तर-
अच्छे जल निकास वाली, मैरा से रेतली मैरा उपजाऊ भूमि तथा जिसकी पी० एच० 6.5 से 8.0 तक हो पॉप्लर के लिए उचित है।

प्रश्न 8.
पॉप्लर के पौधे लगाने के लिए फासला लिखें।
उत्तर-
पॉप्लर को यदि किनारों पर लगाया जाए तो फासला वृक्ष से वृक्ष 3 मीटर तथा यदि सारे खेतों में लगाया जाए तो 8 × 2.5 मी० या 5 × 4 मी० रखना चाहिए।

प्रश्न 9.
तटीय क्षेत्र में कौन-कौन से वृक्ष लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
शहतूत, नीम, शीशम, कीकर, बिल्व, कचनार, आम, सुवाबुल, अर्जन, हरड़, बहेड़ा, फलाही, ढाक, डेक, सुआंजना आदि वृक्ष लगाए जाते हैं।

प्रश्न 10.
सफेदे की लकड़ी का उपयोग कहां-कहां किया जाता है ?
उत्तर-
इसकी लकड़ी से इमारती लकड़ी, पेपर पल्प तथा बलियाँ आदि प्राप्त होती हैं।

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प्रश्न 11.
संपूर्ण खेत में वन कृषि करने के लगाए जाने वाले चार वृक्षों के नाम लिखो।
उत्तर-
पॉप्लर, सफेदा, डेक, सुहांजना।

प्रश्न 12.
पंजाब में व्यापारिक वन्य कृषि के लिए मुख्य रूप से कौन-से दो वृक्षों की कृषि की जाती है ?
उत्तर-
पाप्लर, सफेदा।

प्रश्न 13.
दक्षिण-पश्चिमी अंचल (जोन) में मिट्टी की ऊपरी सतह में खारापन क्यों पाया जाता है ?
उत्तर-
इस ज़ोन में धरती के नीचे पानी खारा है जिस कारण मिट्टी की ऊपरी सतह में खारापन आ जाता है।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पॉप्लर की कांट-छांट बारे बताओ।
अथवा
पॉप्लर के वृक्षों की सही समय और सही कांट-छांट करने से क्या लाभ होता है ?
उत्तर-
पॉप्लर को पहले वर्ष कांट-छांट की आवश्यकता नहीं होती परन्तु दूसरे वर्ष पत्ते झड़ने के बाद कांट-छांट कर देनी चाहिए। समय-समय पर कांट-छांट के कारण मुख्य तना सीधा तथा गांठों रहित रहता है।

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प्रश्न 2.
सफेदे के किन गुणों के कारण इसकी वन कृषि में कृषि हो रही है ?
उत्तर-
सफेदे की तेज़ वृद्धि, सीधा तना, स्वयं टहनियों का टूटना तथा इसकी लकडी का प्रयोग इमारती लकड़ी, पेपर पल्प, बल्लियां आदि प्राप्त करने में होता है। इसकी कृषि वन्य कृषि में की जाती है।

प्रश्न 3.
पंजाब में व्यावसायिक वन कृषि के लिए सफेदा और पॉप्लर की खेती ही क्यों की जाती है?
उत्तर-
देखें प्रश्न 2 (सफेदे की कृषि)
पॉप्लर की कृषि रोज़गार का अवसर प्रदान करती है इसका प्रयोग छोटे स्तर पर लकड़ी, उद्योग; जैसे प्लाई, दियासलाई, पैकिंग के डिब्बे आदि में होता है। यह आषाढ़ी (रबी) की फसलों को भी कम हानि पहुँचाता है इसलिए पॉप्लर की खेती की जाती है।

प्रश्न 4.
वन्य कृषि से आप क्या समझते हैं ? वन्य कृषि में खेतों की सीमाओं पर वृक्ष लगाने के बारे में विस्तार से लिखें।
उत्तर-
स्वयं करें।