PSEB 10th Class SST Solutions History Chapter 7 रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 7 रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science History Chapter 7 रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध

SST Guide for Class 10 PSEB रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर एक शब्द/एक पंक्ति (1-15 शब्दों) में लिखो

प्रश्न 1.
रणजीत सिंह का जन्म कब हुआ ? उसके पिता का क्या नाम था?
उत्तर-
रणजीत सिंह का जन्म 13 नवम्बर, 1780 को हुआ। उसके पिता का नाम सरदार महा सिंह था।

प्रश्न 2.
महताब कौर कौन थी?
उत्तर-
महताब कौर रणजीत सिंह की पत्नी थी।

प्रश्न 3.
‘तिकड़ी की सरपरस्ती’ का काल किसे कहा जाता है?
उत्तर-
यह वह काल था (1792 ई० से 1797 ई० तक) जब शुकरचकिया मिसल की बागडोर रणजीत सिंह की सास सदा कौर, माता राज कौर तथा दीवान लखपतराय के हाथों में रही।

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प्रश्न 4.
लाहौर के नागरिकों ने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण क्यों दिया?
उत्तर-
क्योंकि लाहौर के निवासी वहां के शासन से तंग आ चुके थे।

प्रश्न 5.
भसीन के युद्ध में रणजीत सिंह के खिलाफ कौन-कौन से सरदार थे?
उत्तर-
भसीन की लड़ाई में रणजीत सिंह के विरुद्ध जस्सा सिंह रामगढ़िया, गुलाब सिंह भंगी, साहब सिंह भंगी तथा जोध सिंह नामक सरदार थे।

प्रश्न 6.
अमृतसर तथा लोहगढ़ पर रणजीत सिंह ने क्यों आक्रमण किया?
उत्तर-
क्योंकि अमृतसर सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन चुका था तथा लोहगढ़ का अपना विशेष सैनिक महत्त्व था।

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प्रश्न 7.
तारा सिंह घेबा कहां का नेता था?
उत्तर-
तारा सिंह घेबा डल्लेवालिया मिसल का नेता था।

(ख) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 30-50 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
रणजीत सिंह के बचपन तथा शिक्षा के बारे में लिखो।
उत्तर-
रणजीत सिंह अपने माता-पिता का इकलौता पुत्र था। उसे बचपन में बड़े लाड-प्यार से पाला गया। पाँच वर्ष की आयु में उसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुजरांवाला में भाई भागू सिंह की धर्मशाला में भेजा गया। परन्तु उसने पढ़ाई-लिखाई में कोई विशेष रुचि न ली। इसलिए वह अनपढ़ ही रहा। वह अपना अधिकतर समय शिकार खेलने, घुड़सवारी करने तथा तलवारबाजी सीखने में ही व्यतीत करता था। अतः वह बचपन में ही एक अच्छा घुड़सवार, तलवारबाज़ तथा कुशल तीरअंदाज़ बन गया था।
बचपन में ही रणजीत सिंह को चेचक के भयंकर रोग ने आ घेरा। इस रोग के कारण उसके चेहरे पर गहरे दाग पड़ गए और उसकी बाईं आँख भी जाती रही।

प्रश्न 2.
रणजीत सिंह के बचपन की बहादुरी की घटनाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
बचपन से ही रणजीत सिंह बड़ा वीर था। वह अभी दस वर्ष का ही था जब वह सोहदरा पर आक्रमण करने के लिए अपने पिता जी के साथ गया। उसने न केवल शत्रु को बुरी तरह पराजित किया अपितु उसका गोला-बारूद आदि भी अपने अधिकार में ले लिया। एक बार रणजीत सिंह अकेला घोड़े पर सवार होकर शिकार से लौट रहा था।
उसके पिता के शत्रु हशमत खां ने उसे देख लिया। वह रणजीत सिंह को मारने के लिए झाड़ी में छुप गया। ज्योंही रणजीत सिंह उस झाड़ी के पास से गुज़रा, हशमत खां ने उस पर तलवार से प्रहार किया। वार रणजीत सिंह पर न लगकर रकाब पर पड़ा जिसके उसी समय दो टुकड़े हो गए। बस फिर क्या था, बालक रणजीत सिंह ने ऐसी सतर्कता से हशमत खां पर वार किया कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।

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प्रश्न 3.
रणजीत सिंह के लाहौर पर कब्जे का वर्णन करो।
उत्तर-
लाहौर विजय रणजीत सिंह की सबसे पहली विजय थी। उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसलिए उन्होंने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का आमन्त्रण भेजा। रणजीत सिंह ने शीघ्र ही विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। आक्रमण का समाचार पाकर मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।

प्रश्न 4.
अमृतसर की जीत (महाराजा रणजीत सिंह द्वारा) का महत्त्व बतलाओ।
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह के लिए अमृतसर की जीत का निम्नलिखित महत्त्व था —

  1. वह सिक्खों की धार्मिक राजधानी अर्थात् सबसे बड़े तीर्थ स्थल का संरक्षक बन गया।
  2. अमृतसर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह की सैनिक शक्ति बढ़ गई। उसके लिए लोहगढ़ का किला बहुमूल्य सिद्ध हुआ। उसे तांबे तथा पीतल से बनी ज़मज़मा तोप भी प्राप्त हुई।
  3. महाराजा को प्रसिद्ध सैनिक अकाली फूला सिंह तथा उसके 2000 निहंग साथियों की सेवाएं प्राप्त हुईं। निहंगों के असाधारण साहस तथा वीरता के बल पर रणजीत सिंह ने शानदार विजय प्राप्त की।
  4. अमृतसर विजय के परिणामस्वरूप रणजीत सिंह की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी की नौकरी करने वाले अनेक भारतीय वहां नौकरी छोड़ महाराजा के पास कार्य करने लगे। कई यूरोपियन सैनिक भी महाराजा की सेवा में भर्ती हो गए।

प्रश्न 5.
महाराजा रणजीत सिंह ने मित्र मिसलों पर कब तथा कैसे अधिकार किया?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह एक चतुर कूटनीतिज्ञ था। आरम्भ में उसने शक्तिशाली मिसलदारों से मित्रता करके कमज़ोर मिसलों पर अधिकार कर लिया। परन्तु उचित अवसर पाकर उसने मित्र मिसलों को भी जीत लिया। इन मिसलों पर महाराजा की विजय का वर्णन इस प्रकार है —

  1. कन्हैया मिसल-कन्हैया मिसल की बागडोर महाराजा रणजीत सिंह की सास सदा कौर के हाथ में थी। 1821 ई० में रणजीत सिंह ने वदनी को छोड़ कर इस मिसल के सभी प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया।
  2. रामगढ़िया मिसल-1815 ई० में रामगढ़िया मिसल के नेता जोध सिंह रामगढ़िया की मृत्यु हो गई। अतः रणजीत सिंह ने इस मिसल को अपने राज्य में विलीन कर लिया।
  3. आहलूवालिया मिसल-1825-26 ई० में महाराजा रणजीत सिंह तथा फतह सिंह आहलूवालिया के सम्बन्ध बिगड़ गए। परिणामस्वरूप महाराजा ने आहलूवालिया मिसल के सतलुज के उत्तर-पश्चिम में स्थित प्रदेशों पर अधिकार जमा लिया। परन्तु 1827 ई० में रणजीत सिंह की फतह सिंह से पुनः मित्रता हो गई।

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प्रश्न 6.
मुलतान की विजय (महाराजा रणजीत सिंह की) के परिणाम लिखो।
उत्तर-
मुलतान की विजय महाराजा रणजीत सिंह के जीवन की एक महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसके निम्नलिखित परिणाम निकले —

  1. अफ़गान शक्ति की समाप्ति-मुलतान विजय के साथ ही पंजाब में अफ़गान शक्ति का प्रभाव सदा के लिए समाप्त हो गया, क्योंकि रणजीत सिंह ने अफ़गानों की शक्ति को बुरी तरह से नष्ट कर दिया था।
  2. व्यापारिक और सामरिक लाभ-मुलतान विजय से भारत का अफ़गानिस्तान और सिन्ध से व्यापार इसी मार्ग से होने लगा। इसके अतिरिक्त मुलतान का प्रदेश हाथ में आ जाने से रणजीत सिंह की सैन्य क्षमता में काफ़ी वृद्धि हो गई।
  3. आय में वृद्धि-मुलतान विजय से रणजीत सिंह की धन-सम्पत्ति में भी वृद्धि हुई। एक अनुमान के अनुसार मुलतान नगर से रणजीत सिंह को सात लाख रुपये वार्षिक आय होने लगी।
  4. रणजीत सिंह के यश में वृद्धि-मुलतान विजय से रणजीत सिंह का यश सारे पंजाब में फैल गया और सभी उसकी शक्ति का लोहा मानने लगे।

प्रश्न 7.
अटक की लड़ाई का वर्णन करो।
उत्तर-
1813 ई० में रणजीत सिंह तथा काबुल के वज़ीर फतह खां के बीच एक समझौता हुआ। इसके अनुसार रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए 12 हज़ार सैनिक फतह खां की सहायता के लिए भेजने और इसके बदले फतह खां ने उसे जीते हुए प्रदेश तथा वहां से प्राप्त किए धन का तीसरा भाग देने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त रणजीत सिंह ने फतह खां को अटक विजय में और फतह खां ने रणजीत सिंह को मुलतान विजय में सहायता देने का वचन भी दिया।
दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने मिलकर कश्मीर पर आसानी से विजय प्राप्त कर ली। परन्तु फतह खां ने अपने वचन का पालन न किया। इसलिए रणजीत सिंह ने अटक के शासक को एक लाख रुपये वार्षिक आय की जागीर देकर अटक का प्रदेश ले लिया। फतह खां इसे सहन न कर सका। उसने शीघ्र ही अटक पर चढ़ाई कर दी। अटक के पास हज़रो के स्थान पर सिक्खों और अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में सिक्ख विजयी रहे।

प्रश्न 8.
सिंध के प्रश्न के बारे में बताओ।
उत्तर-
सिंध पंजाब के दक्षिण-पश्चिम में स्थित अति महत्त्वपूर्ण प्रदेश है। यहां के निकटवर्ती प्रदेशों को विजित करने के पश्चात् 1830-31 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सिंध पर अधिकार करने का निर्णय किया। परन्तु भारत के गवर्नर-जनरल ने महाराजा की इस विजय पर रोक लगाने का प्रयास किया। इस सम्बन्ध में उसने अक्तूबर, 1831 ई० को महाराजा से रोपड़ में भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने कर्नल पेटिंगर (Col-Pottinger) को सिंध के अमीरों के साथ व्यापारिक संधि करने के लिए भेज दिया। जब रणजीत सिंह को इस बात का पता चला तो उसे बड़ा दुःख हुआ। परिणामस्वरूप अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों में तनाव उत्पन्न होने लगा।

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प्रश्न 9.
शिकारपुर का प्रश्न क्या था?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से सिंध के प्रदेश शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लेने के लिए उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे मजारी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किये जाने वाले आक्रमणों से मिला। रणजीत सिंह ने इन आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। शीघ्र ही राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में मजारियों के प्रदेश पर अधिकार कर लिया गया। परन्तु जब महाराजा ने सिन्ध के अमीरों से संधि की शर्तों को पूरा करवाने का प्रयास किया, तो अंग्रेज़ गवर्नर जनरल आकलैंड ने उसे रोक दिया। फलस्वरूप महाराजा तथा अंग्रेजों के सम्बन्ध बिगड़ गए।

प्रश्न 10.
फिरोजपुर का मामला क्या था?
उत्तर-
फिरोजपुर नगर सतलुज तथा ब्यास के संगम पर स्थित बहुत ही महत्त्वपूर्ण नगर है। ब्रिटिश सरकार फिरोजपुर के महत्त्व से भली-भान्ति परिचित थी। यह नगर लाहौर के समीप स्थित होने के कारण अंग्रेज़ यहां से न केवल महाराजा रणजीत सिंह की गतिविधियों पर नज़र रख सकते थे अपितु विदेशी आक्रमणों की रोकथाम भी कर सकते थे। अत: अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोज़पुर पर अपना अधिकार कर लिया और तीन वर्ष बाद इसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना दिया। अंग्रेजों की इस कार्यवाही से महाराजा गुस्से से भर उठा।

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(ग) निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 100-120 शब्दों में दें

प्रश्न 1.
रणजीत सिंह ने कमज़ोर रियासतों को कैसे जीता?
उत्तर-
रणजीत सिंह चतुर राजनीतिज्ञ था। उसने शक्तिशाली मिसलों से मित्रता कर ली। उनकी सहायता से उन्होंने कमज़ोर रियासतों को अपने अधीन कर लिया। 1800 से 1811 ई० तक उसने अग्रलिखित रियासतों पर विजय प्राप्त की-

  1. अकालगढ़ की विजय, 1801 ई०-अकालगढ़ के दल सिंह (रणजीत सिंह के पिता का मामा) तथा गुजरात के साहिब सिंह ने लाहौर पर आक्रमण करने की योजना बनाई। जब इस बात का पता रणजीत सिंह को चला तो उसने अकालगढ़ पर आक्रमण कर दिया और दल सिंह को बंदी बना लिया। बाद में उसे तो छोड़ दिया गया, परन्तु शीघ्र ही उसकी मृत्यु हो गयी। अत: रणजीत सिंह ने अकालगढ़ को अपने राज्य में मिला लिया।
  2. डल्लेवालिया मिसल पर अधिकार, 1807 ई०-डल्लेवालिया मिसल का नेता तारा सिंह घेबा था। जब तक वह जीवित रहा, महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिसल पर अधिकार जमाने का कोई प्रयास न किया। परन्तु 1807 ई० में तारा सिंह घेबा की मृत्यु हो गई। उसकी मृत्यु का समाचार मिलते ही महाराजा ने राहों पर आक्रमण कर दिया। तारा सिंह घेबा की विधवा ने रणजीत सिंह का सामना किया परन्तु वह पराजित हुई और महाराजा ने डल्लेवालिया मिसल के प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।
  3. करोड़सिंधिया मिसल पर अधिकार, 1809 ई०-1809 ई० में करोड़ सिंघिया मिसल के सरदार बघेल सिंह का देहान्त हो गया। उसकी मृत्यु का समाचार मिलते ही महाराजा ने अपनी सेना करोड़सिंघिया मिसल की ओर भेज दी। बघेल सिंह की विधवाएं (राम कौर तथा राज कौर) महाराजा की सेना का अधिक देर तक सामना न कर सकीं। परिणामस्वरूप महाराजा ने इस मिसल के प्रदेशों को अपने राज्य में मिला लिया।
  4. नकई मिसल के प्रदेशों पर विजय, 1810 ई०-1807 ई० में महाराजा की रानी राज कौर का भतीजा काहन सिंह नकई मिसल का सरदार बना। महाराजा ने उसे कई बार अपने दरबार में उपस्थित होने के लिए संदेश भेजा। परन्तु . वह सदैव महाराजा के आदेश की अवहेलना करता रहा। अत: 1810 ई० में महाराजा ने मोहकम चंद के नेतृत्व में उसके विरुद्ध सेना भेज दी। मोहकम चन्द ने जाते ही नकई मिसल के चूनीयां, शक्करपुर, कोट कमालिया आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। काहन सिंह को निर्वाह के लिए 20,000 रु० वार्षिक आय वाली जागीर दे दी गई।
  5. फैजलपुरिया मिसल के इलाकों पर अधिकार, 1811 ई०-1811 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने फैजलपुरिया मिसल के सरदार बुध सिंह को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा। उसके इन्कार करने पर महाराजा ने उसके विरुद्ध अपनी सेना भेज दी। इस सेना का नेतृत्व भी मोहकम चंद ने किया। इस अभियान में फतह सिंह आहलूवालिया तथा जोध सिंह रामगढ़िया ने महाराजा का साथ दिया। बुध सिंह शत्रु का सामना न कर सका और उसने भाग कर अपनी जान बचाई। परिणामस्वरूप फैज़लपुरिया मिसल के जालन्धर, बहरामपुर, पट्टी आदि प्रदेशों पर महाराजा का अधिकार हो गया।

प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की कश्मीर की विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
कश्मीर की घाटी अपनी सुन्दरता के कारण पूर्व का स्वर्ग’ कहलाती थी। महाराजा रणजीत सिंह इसे विजय करके अपने राज्य को स्वर्ग बनाना चाहता था। अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने निम्नलिखित प्रयास किए

  1. काबुल के वजीर फतह खां से समझौता-1811-12 ई० में सिक्खों ने कश्मीर के निकट स्थित भिंबर तथा राजौरी की रियासतों पर अधिकार कर लिया। अब वे कश्मीर घाटी पर अधिकार करना चाहते थे। परन्तु इसी समय काबुल के वज़ीर फतह खां बरकज़ाई ने भी कश्मीर विजय की योजना बनाई। अंतत: 1813 ई० में रोहतास नामक स्थान पर फतह खां तथा रणजीत सिंह के मध्य यह समझौता हुआ कि दोनों पक्षों की सेनाएं मिलकर कश्मीर पर आक्रमण करेंगी। यह भी निश्चित हुआ कि कश्मीर विजय के बाद फतह खां मुलतान की विजय में महाराजा की तथा महाराजा अटक विजय में फतह खां की सहायता करेगा। समझौते के पश्चात् महाराजा ने मोहकम चंद के नेतृत्व में 12,000 सैनिक कश्मीर विजय के लिए फतह खां की सहायता के लिए भेज दिए। परन्तु फतह खां चालाकी से सिक्ख सेनाओं को पीछे ही छोड़ गया और स्वयं कश्मीर घाटी में प्रवेश कर गया। उसने कश्मीर के शासक अत्ता मुहम्मद को सिक्खों की सहायता के बिना ही पराजित कर दिया। इस प्रकार उसने महाराजा के साथ हुए समझौते को तोड़ दिया।
  2. कश्मीर पर आक्रमण-जून, 1814 ई० में सिक्ख सेना ने राम दयाल के नेतृत्व में कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। उस समय कश्मीर का सूबेदार फतह खां का भाई आज़िम खां था। वह एक योग्य सेनापति था। जैसे ही रामदयाल की सेना ने पीर पंजाल दर्रे को पार करके कश्मीर घाटी में प्रवेश किया, आज़िम खां ने थकी हुई सिक्ख सेना पर धावा बोल दिया। फिर भी रामदयाल ने बड़ी वीरता से शत्रु का सामना किया। अन्त में आज़िम खां तथा रामदयाल में समझौता हो गया।
  3. कश्मीर पर अधिकार-1819 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने मौका पाकर मिसर दीवान चन्द के अधीन 12,000 सैनिकों को कश्मीर भेजा। उसकी सहायता के लिए खड़क सिंह के नेतृत्व में एक अन्य सैनिक टुकड़ी भी भेजी गयी। महाराजा स्वयं भी तीसरा दस्ता लेकर वजीराबाद चला गया। मिसर दीवान चन्द ने भिंबर पहुंच कर राजौरी, पुंछ तथा पीर पंजाल पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् सिक्ख सेना ने कश्मीर में प्रवेश किया। वहां के कार्यकारी सूबेदार जबर खां ने सपीन (स्पाधन) नामक स्थान पर सिक्खों का डट कर सामना किया। फिर भी सिक्ख सेना ने 5 जुलाई, 1819 ई० को कश्मीर को सिक्ख राज्य में मिला लिया। दीवान मोती राम को कश्मीर का सूबेदार नियुक्त किया गया। . महत्त्व-महाराजा के लिए कश्मीर विजय बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई-
    1. इस विजय से महाराजा की प्रसिद्धि में वृद्धि हुई।
    2. इस विजय से महाराजा को 36 लाख रुपए की वार्षिक आय होने लगी
    3. इस विजय ने अफ़गानों की शक्ति पर भयंकर प्रहार किया।

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प्रश्न 3.
रणजीत सिंह की मुलतान की विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
मुलतान का प्रदेश आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। इसे प्राप्त करने के लिए महाराजा ने कई आक्रमण किये जिनका संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  1. पहला आक्रमण-1802 ई० में महाराजा ने मुलतान पर पहला आक्रमण किया। परन्तु वहां के शासक नवाब मुजफ्फर खां ने महाराजा को नज़राने के रूप में बड़ी राशि देकर वापस भेज दिया।
  2. दूसरा आक्रमण-मुलतान के नवाब ने अपने वचन के अनुसार महाराजा को वार्षिक कर न भेजा। इसलिए महाराजा रणजीत सिंह ने 1805 ई० में पुनः मुलतान पर आक्रमण कर दिया। परन्तु मराठा सरदार जसवन्त राय होल्कर के अपनी सेना के साथ पंजाब में आने से महाराजा को वापस जाना पड़ा।
  3. तीसरा आक्रमण-1807 में महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर तीसरी बार आक्रमण किया। सिक्ख सेना ने मुलतान के कुछ प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। परन्तु बहावलपुर के नवाब ने महाराजा तथा नवाब मुजफ्फर खान में समझौता करवा दिया।
  4. चौथा आक्रमण-24 फरवरी, 1810 ई० को महाराजा की सेना ने मुलतान के कुछ प्रदेशों पर पुनः अपना अधिकार कर लिया। 25 फरवरी को सिक्खों ने मुलतान के किले को भी घेर लिया। परन्तु सिक्ख सैनिकों को कुछ क्षति उठानी पड़ी। इसके अतिरिक्त मोहकम चन्द भी बीमार हो गया। अत: महाराजा को किले का घेरा उठाना पड़ा।
  5. पांचवां प्रयास-1816 ई० में महाराजा ने अकाली फूला सिंह को सेना सहित मुलतान तथा बहावलपुर के शासकों से कर वसूल करने के लिए भेजा। उसने मुलतान के कुछ बाहरी क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। अतः मुलतान के नवाब ने तुरन्त फूला सिंह से समझौता कर लिया।
  6. अन्य प्रयास-(i) 1817 ई० में भवानी दास के नेतृत्व में सिक्ख सेना ने मुलतान पर आक्रमण किया परन्तु उसे सफलता न मिली।
    (ii) जनवरी, 1818 ई० में 20,000 सैनिकों के साथ मिसर दीवान चन्द ने मुलतान पर आक्रमण कर दिया। नवाब मुजफ्फर खां किले के अन्दर जा छिपा। सिक्ख सैनिकों ने नगर को जीतने के पश्चात् किले को घेर लिया। आखिर मुलतान पर सिक्खों का अधिकार हो गया।
    महत्त्व-

    1. मुलतान की विजय से रणजीत सिंह के सम्मान में वृद्धि हुई
    2. दक्षिण पंजाब में अफ़गानों की शक्ति को आघात पहुंचा।
    3. डेराजात तथा बहावलपुर के दाऊद पुत्र महाराजा के अधीन हो गए।
    4. महाराजा के लिए आर्थिक रूप से भी यह विजय लाभदायक सिद्ध हुई। इससे राज्य के व्यापार में वृद्धि हुई।

सच तो यह है कि मुलतान विजय ने महाराजा को अन्य महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों पर विजय पाने के लिए उत्साहित किया।

प्रश्न 4.
रणजीत सिंह की पेशावर की जीत का वर्णन करो।
उत्तर-
पेशावर पंजाब के उत्तर-पश्चिम में सिंध नदी के पार स्थित था। यह नगर अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण सैनिक दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण था। महाराजा रणजीत सिंह पेशावर के महत्त्व को समझता था। इसलिए वह इस प्रदेश को अपने राज्य में मिलाना चाहता था।

  1. पेशावर पर पहला आक्रमण-15 अक्तूबर 1818 को महाराजा रणजीत सिंह ने अकाली फूला सिंह तथा हरी सिंह नलवा को साथ लेकर लाहौर से पेशावर की ओर कूच किया। खटक कबीले के लोगों ने उनका विरोध किया। परन्तु सिक्खों ने उन्हें पराजित करके खैराबाद तथा जहांगीर नामक किलों पर अधिकार कर लिया। तत्पश्चात् सिक्ख सेना पेशावर की ओर बढ़ी। उस समय पेशावर का शासक यार मुहम्मद खान था। वह पेशावर छोड़ कर भाग गया। इस प्रकार 20 नवम्बर, 1818 ई० को महाराजा ने बिना किसी विरोध के पेशावर पर अधिकार कर लिया।
  2. पेशावर का दूसरा आक्रमण-सिक्ख सेना के पेशावर से लाहौर जाते ही यार मुहम्मद फिर से पेशावर पर अपना अधिकार जमाने में सफल हो गया। इसकी सूचना मिलने पर महाराजा ने राजकुमार खड़क सिंह तथा मिसर दीवान चन्द के नेतृत्व में 12,000 सैनिकों की विशाल सेना पेशावर भेज दी। परन्तु यार मुहम्मद ने महाराजा की अधीनता स्वीकार कर ली।
  3. पेशावर पर तीसरा आक्रमण-इसी बीच काबुल के नये वज़ीर आज़िम खां ने पेशावर पर आक्रमण कर दिया। जनवरी 1823 ई० में उसने यार मुहम्मद खां को पराजित करके पेशावर पर अपना अधिकार कर लिया। इस बात की सूचना मिलते ही महाराजा ने शेर सिंह, दीवान किरपा राम, हरी सिंह नलवा तथा अतर दीवान सिंह के अधीन एक विशाल सेना पेशावर भेजी। आज़िम खान ने सिक्खों के विरुद्ध ‘जेहाद’ का नारा लगा दिया। 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा नामक स्थान पर सिक्खों तथा अफ़गानों के बीच घमासान युद्ध हुआ। इसे ‘टिब्बा टेहरी’ का युद्ध भी कहा जाता है। इस युद्ध में अकाली फूला सिंह मारा गया। अतः सिक्खों का उत्साह बढ़ाने के लिए महाराजा स्वयं आगे बढ़ा। शीघ्र ही सिक्खों ने आज़िम खां को पराजित कर दिया।
  4. सैय्यद अहमद खां को कुचलना-1827 ई० से 1831 ई० तक पेशावर तथा उसके आस-पास के प्रदेशों में सैय्यद अहमद खां नामक व्यक्ति ने विद्रोह किया। 1829 में उसने पेशावर पर आक्रमण कर दिया। यार मुहम्मद, जो महाराजा के अधीन था, उसका सामना न कर सका। उसे जून, 1830 ई० में हरी सिंह नलवा ने सिंध नदी के तट पर हराया। इसी बीच सैय्यद अहमद खां ने फिर से शक्ति प्राप्त कर ली। इस बार उसे मई, 1831 ई० में राजकुमार शेर सिंह ने बालाकोट की लड़ाई में परास्त किया।
  5. पेशावर का लाहौर राज्य में विलय-1831 ई० के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर को लाहौर राज्य में सम्मिलित करने की योजना बनाई। इस उद्देश्य से उसने हरी सिंह नलवा तथा राजकुमार नौनिहाल सिंह के नेतृत्व में 9,000 सैनिकों को पेशावर की ओर भेजा। 6 मई, 1834 को सिक्खों ने पेशावर पर अधिकार कर लिया और महाराजा ने पेशावर की लाहौर राज्य में विलय की घोषणा कर दी। हरी सिंह नलवा को पेशावर का सूबेदार नियुक्त किया गया।
  6. दोस्त मुहम्मद खां का पेशावर को वापस लेने का असफल प्रयास-1834 ई० में काबुल के दोस्त मुहम्मद खां ने शाह शुजा को पराजित करके सिक्खों से पेशावर वापस लेने का निर्णय किया। उसने अपने पुत्र मुहम्मद अकबर खान के नेतृत्व में 18,000 सैनिकों को सिक्खों के विरुद्ध भेजा। दोनों पक्षों में जम कर लड़ाई हुई। अन्त में सिक्ख विजयी रहे।

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प्रश्न 5.
किन-किन मसलों पर रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों की आपस में न बनी?
उत्तर-
रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के सम्बन्धों में विशेष रूप से तीन मसलों ने तनाव उत्पन्न किया। ये मसले थेसिंध का प्रश्न, शिकारपुर का प्रश्न तथा फिरोजपुर का प्रश्न। इनका अलग-अलग वर्णन इस प्रकार है —

  1. सिन्ध का प्रश्न-सिन्ध पंजाब के दक्षिण-पश्चिम में स्थित अति महत्त्वपूर्ण प्रदेश है। यहां के निकटवर्ती प्रदेशों को विजित करने के पश्चात् 1830-31 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने सिन्ध पर अधिकार करने का निर्णय किया। परन्तु भारत के गवर्नर-जनरल विलियम बंटिक ने महाराजा की इस विजय पर रोक लगाने का प्रयास किया। इस सम्बन्ध में उसने अक्तूबर, 1831 ई० को महाराजा से रोपड़ में भेंट की। परन्तु दूसरी ओर उसने कर्नल पोटिंगर (Col. Pottinger) को सिन्ध के अमीरों के साथ व्यापारिक सन्धि करने के लिए भेज दिया। जब रणजीत सिंह को इस बात का पता चला तो उसे बड़ा दुःख हुआ। परिणामस्वरूप अंग्रेज़-सिक्ख सम्बन्धों में तनाव उत्पन्न होने लगा।
  2. शिकारपुर का प्रश्न-महाराजा रणजीत सिंह 1832 ई० से सिंध के प्रदेश शिकारपुर को अपने आधिपत्य में लेने के लिए एक उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा में था। यह अवसर उसे मजारी कबीले के लोगों द्वारा लाहौर राज्य के सीमान्त प्रदेशों पर किए जाने वाले आक्रमणों से मिला। रणजीत सिंह ने इन आक्रमणों के लिए सिन्ध के अमीरों को दोषी ठहरा कर शिकारपुर को हड़पने का प्रयत्न किया। शीघ्र ही सिक्खों ने राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में मजारियों . के प्रदेश पर अधिकार कर लिया। परन्तु जब महाराजा ने सिन्ध के अमीरों से संधि की शर्तों को पूरा करवाने का प्रयास , किया तो अंग्रेज़ गवर्नर जनरल ऑकलैंड ने उसे रोक दिया। फलस्वरूप महाराजा तथा अंग्रेजों के संबंध बिगड़ गए।
  3. फिरोजपुर का प्रश्न-फिरोजपुर नगर सतलुज तथा ब्यास के संगम पर स्थित था। वह बहुत ही महत्त्वपूर्ण नगर था। ब्रिटिश सरकार फिरोजपुर के महत्त्व से भली-भान्ति परिचित थी। यह नगर लाहौर के समीप स्थित होने से अंग्रेज़ : यहां से न केवल महाराजा रणजीत सिंह की गतिविधियों की देख-रेख कर सकते थे अपितु विदेशी आक्रमणों की . रोकथाम भी कर सकते थे। अत: अंग्रेज़ सरकार ने 1835 ई० में फिरोजपुर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया और ; तीन वर्ष बाद इसे अपनी स्थायी सैनिक छावनी बना दिया। अंग्रेजों की इस कार्यवाही से महाराजा गुस्से से भर उठा।

PSEB 10th Class Social Science Guide रणजीत सिंह : प्रारम्भिक जीवन, प्राप्तियां तथा अंग्रेजों से सम्बन्ध Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

I. उत्तर एक शब्द अथवा एक लाइन में

प्रश्न 1.
(i) रणजीत सिंह ने लाहौर पर विजय कब पाई?
(ii) उस समय लाहौर पर किसका अधिकार था?
उत्तर-
(i) रणजीत सिंह ने जुलाई, 1799 ई० में लाहौर पर विजय पाई।
(ii) उस समय लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था।

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प्रश्न 2.
1812 ई० से पूर्व रणजीत सिंह द्वारा जीते गए किन्हीं चार प्रदेशों के नाम बताओ।
उत्तर-
लाहौर, अमृतसर, स्यालकोट, जालन्धर।

प्रश्न 3.
रणजीत सिंह ने
(i) मुलतान
(i) कश्मीर तथा
(ii) पेशावर पर कब-कब अधिकार किया?
उत्तर-
रणजीत सिंह ने मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर पर क्रमशः
(i) 1818 ई०,
(ii) 1819 ई० तथा
(iii) 1834 ई० में अधिकार किया।

प्रश्न 4.
रणजीत सिंह की लाहौर विजय का क्या महत्त्व था?
उत्तर-
लाहौर की विजय ने रणजीत सिंह को पूरे पंजाब का शासक बनाने में सहायता दी।

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प्रश्न 5.
रणजीत सिंह की माता का क्या नाम था?
उत्तर-
राजकौर।

प्रश्न 6.
चेचक का रणजीत सिंह के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर-
उसके चेहरे पर चेचक के दाग पड़ गए और उसकी बाईं आंख जाती रही।

प्रश्न 7.
बाल रणजीत सिंह ने किस चट्ठा सरदार को मार गिराया था?
उत्तर-
हशमत खां को।

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प्रश्न 8.
सदा कौर कौन थी?
उत्तर-
सदा कौर रणजीत सिंह की सास थी।

प्रश्न 9.
रणजीत सिंह के बड़े बेटे का क्या नाम था?
उत्तर-
खड़क सिंह।

प्रश्न 10.
रणजीत सिंह के पिता महासिंह का देहान्त कब हुआ?
उत्तर-
1792 ई० में।

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प्रश्न 11.
रणजीत सिंह ने सुकरचकिया मिसल की बागडोर कब संभाली?
उत्तर-
1797 ई० में।

प्रश्न 12.
रणजीत सिंह महाराजा कब बने?
उत्तर-
1801 ई० में।

प्रश्न 13.
महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी सरकार को क्या नाम दिया?
उत्तर-
सरकार-ए-खालसा ।

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प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
लाहौर।

प्रश्न 15.
महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सिक्के किसके नाम पर जारी किए?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सिक्के श्री गुरु नानक देव जी तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के नाम पर जारी किए।

प्रश्न 16.
अमृतसर की विजय के परिणामस्वरूप महाराजा रणजीत सिंह को कौन-सी बहुमूल्य तोप प्राप्त हुई?
उत्तर-
जम-जमा तोप।

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प्रश्न 17.
महाराजा रणजीत सिंह को किस विजय के परिणामस्वरूप अकाली फूला सिंह की सेवाएं – प्राप्त हुई?
उत्तर-
अमृतसर की विजय।

प्रश्न 18.
महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात विजय किसके नेतृत्व में प्राप्त की?
उत्तर-
फ़कीर अजीजुद्दीन के।

प्रश्न 19.
जम्मू विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने वहां का गवर्नर किसे बनाया?
उत्तर-
जमादार खुशहाल सिंह को।

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प्रश्न 20.
संसार चन्द कटोच कहां का राजा था?
उत्तर-
कांगड़ा का।

प्रश्न 21.
महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा का गवर्नर किसे बनाया?
उत्तर-
देसा सिंह मजीठिया को।

प्रश्न 22.
महाराजा रणजीत सिंह की अन्तिम विजय कौन-सी थी?
उत्तर-
पेशावर की विजय।

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प्रश्न 23.
किस स्थान के युद्ध को ‘टिब्बा-टेहरी’ का युद्ध कहा जाता है?
उत्तर-
नौशहरा के युद्ध को।

प्रश्न 24.
महाराजा रणजीत सिंह का सेनानायक अंकाली फूला सिंह किस युद्ध में मारा गया?
उत्तर-
नौशहरा के युद्ध में।

प्रश्न 25.
हरी सिंह नलवा कौन था?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा महाराजा रणजीत सिंह का प्रसिद्ध सेनानायक था।

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प्रश्न 26.
महाराजा रणजीत सिंह ने पेशावर का सूबेदार किसे बनाया?
उत्तर-
हरी सिंह नलवा को।

प्रश्न 27.
अमृतसर की संधि कब हुई?
उत्तर-
1809 ई० में।

प्रश्न 28.
अंग्रेजों, रणजीत सिंह तथा शाहशुजा के बीच त्रिपक्षीय सन्धि कब हुई?
उत्तर-
1838 ई० में।

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प्रश्न 29.
महाराजा रणजीत सिंह का देहान्त कब हुआ?
उत्तर-
जून, 1839 ई० में।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति

  1. रणजीत सिंह के पिता का नाम ………….. था।
  2. महाराजा रणजीत सिंह ने गुजरात विजय ………… के नेतृत्व में प्राप्त की।
  3. जम्मू विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने …………… को वहां का गवर्नर बनाया।
  4. महाराजा रणजीत सिंह ने अंतिम विजय ………… पर की थी।
  5. ………. के युद्ध को टिब्बा-टेहरी का युद्ध भी कहा जाता है।
  6. ……….. महाराजा रणजीत सिंह का प्रसिद्ध सेनानायक था।
  7. ……….. ई० में अमृतसर की संधि हुई।

उत्तर-

  1. सरदार महा सिंह,
  2. फ़कीर अजीजुद्दीन,
  3. जमादार खुशहाल सिंह,
  4. पेशावर,
  5. नौशहरा,
  6. हरी सिंह नलवा,
  7. 1809.

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रणजीत सिंह का जन्म हुआ
उत्तर-
(A) 13 नवंबर, 1780 ई० को
(B) 23 नवंबर, 1780 ई० को
(C) 13 नवंबर, 1870 ई० कों
(D) 23 नवंबर, 1870 ई० को।
उत्तर-
(A) 13 नवंबर, 1780 ई० को

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प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की पत्नी थी
(A) प्रकाश कौर
(B) सदा कौर
(C) दया कौर
(D) महताब कौर।
उत्तर-
(D) महताब कौर।

प्रश्न 3.
डल्लेवालिया मिसल का नेता था
(A) विनोद सिंह
(B) तारा सिंह घेबा
(C) अब्दुससमद
(D) नवाब कपूर सिंह।
उत्तर-
(B) तारा सिंह घेबा

प्रश्न 4.
रणजीत सिंह ने लाहौर पर विजय प्राप्त की
(A) 1801 ई० में
(B) 1812 ई० में
(C) 1799 ई० में
(D) 1780 ई० में।
उत्तर-
(C) 1799 ई० में

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प्रश्न 5.
बाल रणजीत सिंह ने किस चट्ठा सरकार को मार गिराया?
(A) चेत सिंह को
(B) हशमत खां को
(C) मोहर सिंह को
(D) मुहम्मद खां को।
उत्तर-
(B) हशमत खां को

प्रश्न 6.
महाराजा रणजीत सिंह के समय पंजाब की राजधानी थी
(A) इस्लामाबाद
(B) अमृतसर
(C) सियालकोट
(D) लाहौर।
उत्तर-
(D) लाहौर।

IV. सत्य-असत्य कथन

प्रश्न-सत्य/सही कथनों पर (✓) तथा असत्य/ग़लत कथनों पर (✗) का निशान लगाएं

  1. महा सिंह कन्हैया मिसल का सरदार था।
  2. रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर 1792 ई० में सम्भाली।
  3. तारा सिंह घेबा डल्लेवालिया मिसल का नेता था।
  4. हरि सिंह नलवा पेशावर का सूबेदार था।
  5. महाराजा रणजीत सिंह तथा विलियम बैंटिक के बीच भेंट कपूरथला में हुई।

उत्तर-

  1. (✗),
  2. (✓),
  3. (✓),
  4. (✓),
  5. (✗).

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V. उचित मिलान

  1. सरकार-ए-खालसा कांगड़ा का राजा
  2. गुजरात (पंजाब) विजय – कांगड़ा का गवर्नर
  3. संसार चन्द कटोच – महाराजा रणजीत सिंह
  4. ढेसा सिंह मजीठिया – फ़कीर अजीजुद्दीन।

उत्तर-

  1. सरकार-ए-खालसा-महाराजा रणजीत सिंह,
  2. गुजरात (पंजाब) विजय-फकीर अजीजुद्दीन,
  3. संसार चन्द कटोच-कांगड़ा का राजा,
  4. ढेसा सिंह मजीठिया-कांगड़ा का गवर्नर।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
रणजीत सिंह का महाराजा बनना’ इस पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
12 अप्रैल, 1801 ई० को वैशाखी के शुभ अवसर पर लाहौर में रणजीत सिंह के महाराजा बनने की रस्म बड़ी धूमधाम से मनाई गई। उसने अपनी सरकार को ‘सरकार-ए-खालसा’ का नाम दिया। महाराजा बनने पर भी रणजीत सिंह ने ताज ग्रहण न किया। उसने अपने सिक्के गुरु नानक साहिब तथा गुरु गोबिन्द सिंह जी के नाम पर जारी किये। इस प्रकार से रणजीत सिंह ने खालसा को ही सर्वोच्च शक्ति माना। इमाम बख्श को लाहौर का कोतवाल नियुक्त किया गया।

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प्रश्न 2.
महाराजा रणजीत सिंह द्वारा डेराजात की विजय का वर्णन करो।
उत्तर-
मुलतान तथा कश्मीर की विजयों के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने डेरा गाजी खान को विजय करने का निर्णय किया। उस समय वहां का शासक ज़मान खान था। महाराजा ने जमादार खुशहाल सिंह के नेतृत्व में ज़मान खान के विरुद्ध सेना भेजी। इस सेना ने ज़मान खान को परास्त करके डेरा गाज़ी खान पर अपना अधिकार कर लिया।
डेरा गाजी खां की विजय के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह डेरा इस्मायल खान तथा मानकेरा की ओर बढ़ा। उसने इन क्षेत्रों पर अधिकार करने के लिए 1821 ई० में मिसर दीवान चंद को भेजा। वहां के शासक अहमद खां ने महाराजा को नज़राना देकर टालना चाहा। परन्तु मिसर दीवान चंद ने नज़राना लेने से इन्कार कर दिया और आगे बढ़ कर मानकेरा पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 3.
रणजीत सिंह की किन्हीं चार आरम्भिक विजयों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
रणजीत सिंह की चार आरम्भिक विजयों का वर्णन इस प्रकार है

  1. लाहौर की विजय-रणजीत सिंह ने सबसे पहले लाहौर पर विजय प्राप्त की। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। रणजीत सिंह ने चेत सिंह को पराजित कर जुलाई, 1799 ई० में लाहौर पर अधिकार कर लिया।
  2. सिक्ख-मुस्लिम संघ की पराजय-रणजीत सिंह की लाहौर विजय को देख कर आस-पास के सिक्ख तथा मुस्लिम शासकों ने संगठित होकर उससे लड़ने का निश्चय किया। 1800 ई० में भसीन नामक स्थान पर युद्ध हुआ। इस युद्ध में बिना किसी खून-खराबे के रणजीत सिंह विजयी रहा।
  3. अमृतसर की विजय-अमृतसर पर रणजीत सिंह के आक्रमण के समय वहां के शासन की बागडोर माई सुक्खां के हाथों में थी। माई सुक्खां ने कुछ समय तक विरोध करने के बाद हथियार डाल दिए और अमृतसर पर रणजीत सिंह का अधिकार हो गया।
  4. सिक्ख मिसलों पर विजय-रणजीत सिंह ने अब स्वतन्त्र सिक्ख मिसलों के नेताओं के साथ मित्रता स्थापित की। उनके सहयोग से उसने छोटी-छोटी मिसलों पर अधिकार कर लिया।

प्रश्न 4.
किन्हीं चार सिक्ख मिसलों पर रणजीत सिंह की विजय का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. 1802 ई० रणजीत सिंह ने अकालगढ़ के दल सिंह को पराजित करके उसके प्रदेश को अपने राज्य में मिला लिया।
  2. 1807 ई० में डल्लेवालिया मिसल के नेता सरदार तारा सिंह घेबा की मृत्यु पर रणजीत सिंह ने इस मिसल के कई प्रदेशों को जीत लिया।
  3. अगले ही वर्ष उसने स्यालकोट के जीवन सिंह को हरा कर उसके अधीनस्थ प्रदेशों को अपने राज्यों में मिला लिया।
  4. 1810 ई० में उसने नक्कई मिसल के सरदार काहन सिंह तथा गुजरात के सरदार साहिब सिंह के प्रदेशों को अपने अधिकार में ले लिया।

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प्रश्न 5.
अमृतसर की सन्धि की क्या शतें थीं?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि पर 25 अप्रैल, 1809 ई० को हस्ताक्षर हुए। इस सन्धि की प्रमुख शर्ते इस प्रकार थीं

  1. दोनों सरकारें एक-दूसरे के प्रति मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए रखेंगी।
  2. अंग्रेज़ सतलुज नदी के उत्तरी क्षेत्र के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे जब कि रणजीत सिंह इसके दक्षिणी क्षेत्रों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करेंगे।
  3. ब्रिटिश सरकार ने रणजीत सिंह को सबसे प्यारा राजा मान लिया। उसे विश्वास दिलाया गया कि वे उसके राज्य अथवा प्रजा से कोई सम्बन्ध नहीं रखेंगे। दोनों में से कोई आवश्यकता से अधिक सेना नहीं रखेगा।
  4. सतलुज के दक्षिण में रणजीत सिंह उतनी ही सेना रख सकेगा जितनी उस प्रदेश में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक होगी।
  5. यदि कोई भी पक्ष इस सन्धि के विरुद्ध कोई कार्य करेगा तो सन्धि को भंग समझा जाएगा।

प्रश्न 6.
अमृतसर की सन्धि ( 1809) का क्या महत्त्व था?
उत्तर-
अमृतसर की सन्धि ने महाराजा रणजीत सिंह के समस्त पंजाब पर अधिकार करने के स्वप्न को भंग कर दिया। सतलुज नदी उसके राज्य की सीमा बन कर रह गई। यही नहीं इससे रणजीत सिंह की प्रतिष्ठा को भी भारी धक्का लगा। अपने राज्य में उसका दबदबा कम होने लगा, फिर भी इस संधि से उसे कुछ लाभ भी हए। इस सन्धि के द्वारा उसने पंजाब को अंग्रेजों के आक्रमण से बचा लिया। जब तक वह जीवित रहा, अंग्रेजों ने पंजाब की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखा। इस प्रकार रणजीत सिंह को उत्तर-पश्चिम की ओर अपने राज्य को विस्तृत करने का समय मिला। उसने मुलतान, अटक, कश्मीर, पेशावर तथा डेराजात के प्रदेशों को जीत कर अपनी शक्ति में खूब वृद्धि की।

प्रश्न 7.
किन्हीं चार बिन्दुओं के आधार पर नौशहरा की लड़ाई के महत्त्व को समझाए।
उत्तर-

  1. नौशहरा की लड़ाई में आज़िम खां पराजित हुआ था और मरने से पहले वह अपने पुत्रों को इस अपमान का बदल लेने की शपथ दिला गया। इस प्रकार अफ़गानों तथा सिक्खों के बीच चिरस्थायी शत्रुता आरम्भ हो गई।
  2. इस विजय से सिक्खों की वीरता की धाक जम गई। सिक्खों में आत्म-विश्वास का संचार हुआ और उन्होंने अफ़गानों के प्रति और भी उग्र नीति को अपना लिया।
  3. इस लड़ाई के परिणामस्वरूप सारे पंजाब में रणजीत सिंह की शक्ति का लोहा माना जाने लगा। इसके अतिरिक्त नौशहरा की लड़ाई के कारण सिन्ध तथा पेशावर के बीच स्थित अफ़गान प्रदेशों पर महाराजा रणजीत सिंह की सत्ता दृढ़ हो गई।
  4. इस युद्ध के पश्चात् उत्तर-पश्चिमी भारत में अफ़गानों की शक्ति पूरी तरह समाप्त हो गई।

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प्रश्न 8.
अंग्रेजों, शाहशुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के बीच होने वाली त्रिदलीय संधि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर-
1837 ई० में रूस, एशिया की ओर बढ़ने लगा था। अंग्रेजों को यह भय हो गया कि कहीं रूस अफ़गानिस्तान द्वारा भारत पर आक्रमण न कर दे। अतः उन्होंने अफ़गानिस्तान के साथ मित्रता स्थापित करनी चाही। इस उद्देश्य से कैप्टन बन्ज (Burnes) को काबुल भेजा गया। परन्तु वहां के शासक दोस्त मुहम्मद ने इस शर्त पर समझौता करना स्वीकार किया कि अंग्रेज़ उसे रणजीत सिंह से पेशावर का प्रदेश लेकर दें। अंग्रेजों के लिए रणजीत सिंह की मित्रता भी महत्त्वपूर्ण थी। इसलिए उन्होंने इस शर्त को न माना और अफ़गानिस्तान के भूतपूर्व शासक शाह शुजा के साथ एक समझौता कर लिया। इस समझौते में रणजीत सिंह को भी शामिल किया गया। यही समझौता त्रिदलीय संधि के नाम से प्रसिद्ध है।

बड़े उत्तर वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुलतान तथा कश्मीर की विजयों का वर्णन कीजिए।
अथवा
महाराजा रणजीत सिंह की प्रमुख विजयों का वर्णन करें।
उत्तर-
रणजीत सिंह की लाहौर, अमृतसर, अटक, मुलतान तथा कश्मीर की प्रमुख विजयों का वर्णन इस प्रकार है

  1. लाहौर की विजय-लाहौर पर भंगी मिसल के सरदार चेत सिंह, मोहर सिंह और साहिब सिंह का अधिकार था। लाहौर के निवासी इन सरदारों के शासन से तंग आ चुके थे। इसीलिए उन्होंने रणजीत सिंह को लाहौर पर आक्रमण करने का निमन्त्रण भेजा। रणजीत सिंह ने एक विशाल सेना लेकर लाहौर पर धावा बोल दिया। मोहर सिंह और साहिब सिंह लाहौर छोड़ कर भाग निकले। अकेला चेत सिंह ही रणजीत सिंह का सामना करता रहा, परन्तु वह भी पराजित हुआ। इस प्रकार 7 जुलाई, 1799 ई० को लाहौर रणजीत सिंह के अधिकार में आ गया।
  2. अमृतसर की विजय-अमृतसर के शासन की बागडोर गुलाब सिंह की विधवा माई सुक्खां के हाथ में थी। रणजीत सिंह ने माई सुक्खां को सन्देश भेजा कि वह अमृतसर स्थित लोहगढ़ का दुर्ग तथा प्रसिद्ध ज़मज़मा तोप उसके हवाले कर दे। परन्तु माई सुक्खां ने उसकी यह मांग ठुकरा दी। इसलिए रणजीत सिंह ने अमृतसर पर आक्रमण कर दिया और माई सुक्खां को पराजित करके अमृतसर को अपने राज्य में मिला लिया।
  3. मुलतान विजय-मुलतान उस समय व्यापारिक और सैनिक दृष्टि से एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। 1818 ई० तक रणजीत सिंह ने मुलतान पर छ: आक्रमण किए, परन्तु हर बार वहां का पठान शासक मुजफ्फर खां रणजीत सिंह को भारी नज़राना देकर पीछा छुड़ा लेता था। 1818 ई० में रणजीत सिंह ने मुलतान को सिक्ख राज्य में मिलाने का दृढ़ निश्चय कर लिया। उसने मिसर दीवान चन्द तथा अपने पुत्र खड़क सिंह के अधीन 25 हज़ार सैनिक भेजे। सिक्ख सेना ने मुलतान के किले पर घेरा डाल दिया। मुजफ्फर खां ने किले से सिक्ख सेना का सामना किया, परन्तु अन्त में वह मारा गया और मुलतान सिक्खों के अधिकार में आ गया।
  4. कश्मीर विजय-अफ़गानिस्तान के वज़ीर फतह खां ने कश्मीर विजय के बाद रणजीत सिंह को उसका हिस्सा नहीं दिया था। अत: अब रणजीत सिंह ने कश्मीर विजय के लिए रामदयाल के अधीन एक सेना भेजी। इस युद्ध में रणजीत सिंह स्वयं भी रामदयाल के साथ गया, परन्तु सिक्खों को सफलता न मिल सकी। 1819 ई० में उसने मिसर दीवान चन्द तथा राजकुमार खड़क सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सेना भेजी। कश्मीर का नया गवर्नर जाबर खां सिक्खों का सामना करने के लिए आगे बढ़ा परन्तु सुपान के स्थान पर उसकी करारी हार हुई।

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प्रश्न 2.
रणजीत सिंह की अमृतसर विजय का वर्णन करते हुए इसका महत्त्व बताएं।
उत्तर-
गुलाब सिंह भंगी की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र गुरदित्त सिंह अमृतसर का शासक बना। उस समय वह नाबालिग. था। इसीलिए राज्य की सारी शक्ति उसकी मां माई सुक्खां के हाथ में थी। महाराजा रणजीत सिंह अमृतसर पर अपना अधिकार करने का अवसर ढूंढ रहा था।
1805 ई० को उसे यह अवसर मिल गया। उसने माई सुक्खां को संदेश भेजा कि वह जमजमा तोप उसके हवाले कर दे। उसने उससे लोहगढ़ के किले की मांग भी की। परन्तु माई सुक्खां ने महाराजा की मांगों को अस्वीकार कर दिया। महाराजा पहले ही युद्ध के लिए तैयार बैठा था। उसने तुरन्त अमृतसर पर आक्रमण करके लोहगढ़ के किले को घेर लिया। इस अभियान में सदा कौर तथा फतह सिंह आहलूवालिया ने रणजीत सिंह का साथ दिया। महाराजा विजयी रहा और उसने अमृतसर तथा लोहगढ़ के किले पर अधिकार कर लिया। माई सुक्खां तथा गुरदित्त सिंह को जीवन-निर्वाह के लिए जागीर दे दी गई। अमृतसर का अकाली फूला सिंह अपने 2000 निहंग साथियों के साथ रणजीत सिंह की सेना में शामिल हो गया। – अमृतसर की विजय का महत्त्व-

  1. अमृतसर की विजय लाहौर की विजय के बाद महाराजा रणजीत सिंह की सबसे महत्त्वपूर्ण विजय थी। इसका कारण यह था कि जहां लाहौर पंजाब की राजधानी था, वहीं अमृतसर अब सिक्खों की धार्मिक राजधानी बन गया था।
  2. अमृतसर की विजय से महाराजा रणजीत सिंह की सैनिक शक्ति बढ़ गई। उसके लिए लोहगढ़ का किला बहुमूल्य सिद्ध हुआ। उसे तांबे तथा पीतल से बनी ज़मज़मा तोप भी प्राप्त हुई।
  3. महाराजा को प्रसिद्ध सैनिक अकाली फूला सिंह तथा उसके 2000 निहंग साथियों की सेवाएं प्राप्त हुईं। निहंगों के असाधारण साहस तथा वीरता के बल पर रणजीत सिंह को कई शानदार विजय प्राप्त हुईं।
  4. अमृतसर विजयं के परिणामस्वरूप रणजीत सिंह की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई। फलस्वरूप बहुत-से भारतीय उसके राज्य में नौकरी करने के लिए आने लगे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नौकरी करने वाले अनेक भारतीय वहां की नौकरी छोड़ कर महाराजा के पास कार्य करने लगे। कई यूरोपियन सैनिक भी महाराजा की सेना में भर्ती हो गए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 11 कुछ नए कृषि विषय

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 11 कुछ नए कृषि विषय Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 11 कुछ नए कृषि विषय

PSEB 11th Class Agriculture Guide कुछ नए कृषि विषय Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
जी० एम० का पूरा नाम लिखो।
उत्तर-
जनैटिकली मोडीफाइड फसलें।

प्रश्न 2.
बी०टी० का पूरा नाम लिखो।
उत्तर-
बैसिलस थुरिजैनिसस।

प्रश्न 3.
बी० टी० कपास में कौन-सा कीटनाशक पदार्थ पैदा होता है ?
उत्तर-
रवेदार प्रोटीन पैदा होता है जिसको खाकर सूंडी मर जाती है।

प्रश्न 4.
पी० पी० वी० और एफ० आर० का पूरा नाम लिखो।
उत्तर-
पौध किस्म और किसान अधिकार सुरक्षा एक्ट (Protection of Plant Variety and Farmers Rights)।

प्रश्न 5.
पौध प्रकार एवं किसान अधिकार सुरक्षा अधिनियम किस वर्ष पास किया गया ?
उत्तर-
वर्ष 2001 में।

प्रश्न 6.
खेत को समतल करने वाली नवीनतम मशीनों का नाम लिखें।
उत्तर-
लेजर कराहा।

प्रश्न 7.
धान में पानी की बचत करने वाले यंत्र का नाम लिखें।
उत्तर-
टैंशीओमीटर।

प्रश्न 8.
गत एक शताब्दी में धरती की सतह के तापमान में कितनी वृद्धि हो चुकी है ?
उत्तर-
0.5 डिग्री सैंटीग्रेड।

प्रश्न 9.
प्रमुख ग्रीन हाऊस गैसों के नाम लिखो।
उत्तर-
कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मीथेन आदि।

प्रश्न 10.
सी० एफ० सी० का पूरा नाम लिखें।
उत्तर-
क्लोरो-फ्लोरो कार्बन (Chlorofloro Carbon)।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
जी० एम० फसल की परिभाषा लिखें।
उत्तर-
जी० एम० फसल का अर्थ है ऐसी फ़सलें जिनमें किसी ओर फ़सल या जीवजंतु का जीन डाल कर सुधार किया गया हो। जी० जैम० का पूरा नाम है जनेटिकली मोडीफाइड फ़सलें।

प्रश्न 2.
बी०टी०-1 और बी० टी०-2 प्रकार में क्या अंतर है ?
उत्तर-
बी० टी०-1 और बी० टी०-2 से अर्थ है बालगार्ड-1 और बालगार्ड-2 किस्में, ये कपास की किस्में हैं। बी० टी०-1 में सिर्फ एक बी० टी० जीन डाला गया है जबकि बी० टी०-2 में दो बी० टी० जीन डाले गए हैं। बी० टी०-1 सिर्फ़ अमरीकन सूंडी का मुकाबला कर सकती थी जबकि बी० टी०-2 अमरीकन सूंडी के अलावा अन्य इंडियों का भी मुकाबला कर सकती है।

प्रश्न 3.
बी० टी० कपास की टिंडे की सुंडियां हानि क्यों नहीं पहुंचाती ?
उत्तर-
बी० टी० कपास में वैसिलस थरिजैनिसस नाम के बैक्टीरिया के जीन डाले जाते हैं। यह जीन कपास के पौधे में रवेदार प्रोटीन पैदा करता है। यह प्रोटीन टिंडे की सुंडियों के लिए विषैला होता है, इसे खाकर सुंडियां मर जाती हैं तथा कपास को हानि नहीं पहुंचातीं।

प्रश्न 4.
बारीकी की कृषि से क्या अभिप्राय है? इसके क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
बारीकी की कृषि से भाव है प्राकृतिक स्रोतों का उचित प्रयोग करना तथा कृषि में प्रयोग होने वाली वस्तुओं जैसे कीटनाशक, खादें, नदीननाशक आदि का भी उचित प्रयोग करना। खेत को एक जैसा न समझ कर उपरोक्त वस्तुओं की कुछ स्थानों पर अधिक तथा कुछ स्थानों पर कम प्रयोग की आवश्यकता होती है। इस प्रकार एक ही खेत में भिन्नभिन्न स्थानों पर आवश्यकता अनुसार कीड़े-मकौड़े तथा रोगों से प्रभावित भाग में स्प्रे, खादों का प्रयोग करके वातावरण भी दूषित नहीं होता तथा पैदावार भी बढ़ती है तथा दवाइयां, खादों पर अनावश्यक खर्चा भी नहीं होता।

प्रश्न 5.
पानी की बचत करने के लिए क्या पद्धति अपनाओगे ?
उत्तर-
लेज़र कराहे का प्रयोग करके खेत को समतल किया जाए तो पानी की काफ़ी बचत की जा सकती है। इस प्रकार धान की फसल में टैंशीयोमीटर का प्रयोग करके भी पानी की बचत की जा सकती है।

प्रश्न 6.
मौसमी (ऋतु) परिवर्तन का गेहूँ की कृषि पर क्या प्रभाव हो सकता है ?
उत्तर-
मौसमी (ऋतु) परिवर्तन के कारण फरवरी-मार्च में तापमान में वृद्धि होने के कारण पैदावार पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ सकता है।

प्रश्न 7.
ग्रीन हाऊस के भीतर तापमान में क्यों वृद्धि होती है ?
उत्तर-
शीशे या प्लास्टिक के बने घरों में जिनके अन्दर पौधे उगाए जाते हैं ; इनको हरे घर कहा जाता है। शीशे या प्लास्टिक में सूर्य की किरणें अन्दर प्रवेश कर सकती हैं परन्तु अन्दर से इनफ्रारेड किरणें बाहर नहीं निकल सकी। इस प्रकार शीशे या प्लास्टिक के घर के अन्दर गर्मी बढ़ जाती है तथा तापमान बढ़ जाता है।

प्रश्न 8.
ग्रीन हाऊस गैसों के नाम लिखो।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 9.
बी० टी० किस्मों ने पंजाब में कपास उत्पादन को किस प्रकार प्रभावित किया है ?
उत्तर-
बी० टी० किस्मों को पंजाब में वर्ष 2006 से बोना शुरू किया गया। इस फ़सल से पहले पंजाब में नरमे की फसल लगभग तबाह हो गई थी। अमरीकन सूंडी के हमले के कारण नरमे की पैदावार सिर्फ 2-3 क्विटल रुई प्रति एकड़ रह गई थी परन्तु बी० टी० नरमा बोने के बाद पैदावार 5 क्विटल रुई प्रति एकड़ से भी बढ़ गया है। कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग भी कम हो गया है जिस कारण वातावरण भी प्रदूषित नहीं होता तथा किसानों का अधिक खर्चा भी नहीं होता है।

प्रश्न 10.
सूक्ष्म कृषि में कौन सी उच्च तकनीकें प्रयोग में लाई जाती हैं ?
उत्तर-
सूक्ष्म कृषि में कई उच्च तकनीकों का प्रयोग किया जाता है ; जैसे-सैंसर्स, जी० पी० एस० अन्तरिक्ष तकनीक आदि।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
पंजाब में कौन-सी जी० एम० फसल बोई जाती है और इसके क्या लाभ
उत्तर-
पंजाब में जी० एम० फसलों में नरमे की फसल बोई जाती है। इस को बी० टी० नरमा कहा जाता है। अब कई अन्य जी० एम० फसल ; जैसे बैंगन, मक्की, सोयाबीन तथा धान आदि भी तैयार कर लिया जाता है। बी० टी० फसलों में बैसीलस थुरैजीनिसेंस नामक बैक्टीरिया का जीन डाला जाता है। इस कारण फसल में रवेदार प्रोटीन पैदा होता है जो कि सूंडियों के लिए ज़हर का काम करता है तथा सूंडिया इसको खा कर 3-4 दिन में मर जाती हैं। बी० टी० किस्में अमेरिकन सूंडी, गुलाबी सूंडी और तंबाकू की सूंडी का मुकाबला कर सकती है। पर कोई ओर सूंडी का नहीं। इसलिए बालगार्ड-1 किस्म जिसमें एक बी० टी० जीन था। इसकी जगह पर बालगार्ड-2 किस्म तैयार की गई है जिसमें बी० टी० जीन की दो किस्में हैं। ये किस्म अमेरिकन सूंडी और अन्य अन्य सूंडियों का मुकाबला कर सकती हैं। . बी० टी० नरमे को कृषि पंजाब में 2006 में शुरू की गई है। इस की कृषि से पहले नरमे की पैदावार 2-3 क्विटल रुई प्रति एकड़ रह गई थी। बी० टी० किस्म का प्रयोग करने के कारण कीटनाशक की ज़रूरत कम हो गई है जिसके साथ वातावरण शुद्ध रहता है।

प्रश्न 2.
जी० एम० फसलों से होने वाली संभावित संकट कौन-से हैं ?
उत्तर-
जी० एम० फसलों की जब से खोज हुई तब से ही बहुत सारी संस्थाओं ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। ये संस्थाएं वातावरण भलाई, सामाजिक, मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ संबंधित संस्थाएं और कई वैज्ञानिक भी इसके विरोध में हैं। उनके अनुसार जी० एम० मनुष्य की स्वास्थ्य, वातावरण, फ़सलों की प्रजातियाँ और अन्य पौधों के लिए हानिकारक हैं और उन पर बुरा असर पड़ता है। कई देशों में इन फ़सलों की पैदावार पर रोक लगाई गई है। पर इनके बुरे असर का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।

प्रश्न 3.
पौध प्रकार एवं किसान अधिकार सुरक्षा अधिनियम के मुख्य उद्देश्य क्या
उत्तर-
पौध प्रकार एवं किसान अधिकार सुरक्षा अधिनयम के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित-

  • प्लांट ब्रीडर द्वारा पैदा की गई नई पौध किस्म के ऊपर अधिकार स्थापित करना।
  • किसान का कई सालों से संभाली और सुधारी पौध किस्म पर उसका अधिकार स्थापित करना।
  • किसान को सुधरी किस्मों का अच्छा बीज और पौध सामग्री की प्राप्ति करवाना।

प्रश्न 4.
ग्रीन हाऊस गैसों का वातावरण पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
ग्रीन हाऊस गैसों का वातावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ग्रीन हाऊस गैसों के बढ़ने के कारण धरती की सतह का तापमान बढ़ रहा है, पिछले 100 सालों में इसके तापमान में 0.5°C की बढ़ोत्तरी हुई है और साल 2050 तक इसमें 3.2°C की बढ़ोत्तरी होने की संभावना है। इस तरह तापमान में वृद्धि के कारण आगे लिखे बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं। बाढ़, अकाल पढ़ना, ग्लेशियर पिघलना, जिसके साथ समुद्री पानी के स्तर का बढ़ना, मानसून वर्षा में उतार-चढ़ाव तथा अनिश्चितता का बढ़ना, समुद्री तूफ़ान और चक्रवात आदि में वृद्धि होना।

प्रश्न 5.
मौसमी (ऋतु) परिवर्तन के कृषि पर क्या प्रभाव पड़ सकते हैं ?
उत्तर-
मौसमी बदलाव के कारण खेतीबाड़ी में कई तरह के बुरे प्रभाव पड़ सकते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण धरती की सतह का तापमान बढ़ रहा है जिस कारण कई तरह के प्रभाव पड़ सकते हैं।

  • तापमान में वृद्धि के कारण फसलों का जीवन काल, फसली चक्कर और फ़सलों की कृषि के समय पर प्रभाव पड़ सकता है।
  • तापमान और हवा में नमी के बढ़ने के कारण कई तरह की नई बीमारियाँ और नए कीड़े-मकौड़े फसलों की हानि कर सकते हैं।
  • गेहूँ की पैदावार को फरवरी-मार्च में तापमान में हुई वृद्धि कम कर सकती है।
  • मानसून की अनिश्चितता के कारण खेती पैदावार कम हो सकती है।
  • रात के तापमान में वृद्धि के कारण खेती पैदावार कम हो सकता है।
  • कई देशों में तापमान में वृद्धि के कारण फसल की पैदावार पर अच्छे-प्रभाव भी हो सकते हैं।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB कुछ नए कृषि विषय Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जी० एम० फसलों को ओर क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
ट्रांसजेनिक फसलें।

प्रश्न 2.
फसलों में अन्य किसी फसल या जीव के जीन को किस तकनीक के द्वारा डाला जाता है ?
उत्तर-
जैनेटिक इंजीनियरिंग तकनीक द्वारा।

प्रश्न 3.
बी० टी० का पूरा नाम बताओ।
उत्तर-
बैसिलस थुरिजैनिसस।

प्रश्न 4.
बी० टी० क्या है ?
उत्तर-
ज़मीन में मिलने वाला एक बैक्टीरिया।

प्रश्न 5.
बी० टी० नरमे (कपास) के अलावा और कौन-सी फसलें तैयार की गई हैं ?
उत्तर-
बैंगन, मक्की, सोयाबीन, धान आदि।

प्रश्न 6.
किस तकनीक का प्रयोग करने के बाद कौन-सी किस्म को रजिस्टर नहीं कर सकते ? …
उत्तर-
टर्मीनेटर,तकनीक वाली फसल को।

प्रश्न 7.
फसली किसम की रजिस्ट्रेशन कितने समय के लिए करवाई जा सकती है ?
उत्तर-
6 साल के लिए जिसको 15 साल तक बढ़ाया जा सकता है।

प्रश्न 8.
फसल की किस्म को रजिस्टर कराने के लिए जानकारी प्राप्त करने के लिए वैबसाइट बताओ।
उत्तर-
www. plantauthority. gov.in

प्रश्न 9.
सूक्ष्म कृषि का सिद्धान्त कौन-से किसानों के लिए लागू होता है ?
उत्तर-
छोटे और बड़े किसानों दोनों के लिए।

प्रश्न 10.
विकसित देशों में कौन-से यंत्र की सहायता से सही मात्रा में खाद डाली जाती है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन सैंसर यंत्र।

प्रश्न 11.
विकसित देशों में किस तकनीक की सहायता से खेतों को मापा जाता
उत्तर-
जी० पी० एस० तकनीक के साथ।

प्रश्न 12.
धान के खेत में लंबे समय तक पानी खड़ा रहने से कौन-सी गैस पैदा होती है ?
उत्तर-
मीथेन गैस।

प्रश्न 13.
नाइट्रोजन की खाद के अधिक प्रयोग के कारण कौन-सी ग्रीन हाऊस गैस पैदा होती है ?
उत्तर-
नाइट्रोजन ऑक्साइड।

प्रश्न 14.
रात के तापमान में वृद्धि के कारण फ़सलों की पैदावार पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
पैदावार कम हो सकती है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बालगार्ड-2 की कौन-सी किस्में हैं ?
उत्तर-
एम० आर० सी० 7017, एम० आर० सी०-7031, आर० सी० एच०-650, एन० सी० एस०-855 आदि बालगार्ड-2 की किस्में हैं।

प्रश्न 2.
PPV तथा FR एक्ट के अनुसार कौन-सी फसलों को रजिस्टार करवाया जा सकता है ?
उत्तर-
इस एक्ट के अनुसार ज्वार, मक्की , बाजरा, गेहूं, धान, गन्ना, कपास, मटर, अरहर, मसर, हल्दी, चने आदि फ़सलों को रजिस्टर करवाया जा सकता है।

प्रश्न 3.
PPV तथा FR एक्ट के अनुसार कौन-सी फसलों की रजिस्ट्रेशन नहीं हो सकती ?
उत्तर-
ऐसी कोई भी किस्म जो मनुष्य के स्वास्थ्य, वातावरण या पौधों के लिए हानिकारक हो। टर्मीनेटर तकनीक वाली किस्मों को भी रजिस्टर नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 4.
टर्मीनेटर तकनीक किस्मों द्वारा पैदा की गई किस्मों को रजिस्टर क्यों नहीं करवाया जा सकता ?
उत्तर-
टर्मीनेटर तकनीक के साथ तैयार की गई बीजों की फसल के बीज में उगने की शक्ति नहीं होती है।

प्रश्न 5.
PPV तथा FR एक्ट के उल्लंघन की सजा के बारे में बताओ।
उत्तर-
गलत जानकारी देना जैसे रजिस्ट्रर्ड किस्म का गलत नाम, देश का गलत नाम या प्रजनन करता का गलत नाम और पता देने से एक्ट का उल्लंघन होता है। इसकी सजा के तौर पर जेल, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

प्रश्न 6.
सूक्ष्म कृषि का स्पष्ट संदेश क्या है ?
उत्तर-
सूक्ष्म कृषि का स्पष्ट संदेश यह है कि खेत के किसी भाग में क्या कमी है, इसको जाने बगैर केवल अधिक खादों का प्रयोग करके इन कमियों को पूरा नहीं किया जा सकता।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न-
ग्रीन हाऊस गैसों और ग्रीन हाऊस के सिद्धांत के बारे में बताओ। धरती के लिए इसका संबंध बताओ।
उत्तर-
ग्रीन हाऊस गैसें हैं-कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रस डाइऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मीथेन आदि।
शीशे या प्लास्टिक के बने घरों को जिनके अंदर पौधे उगाए जाते हैं, इनको हरे घर कहा जाता है। शीशे या प्लास्टिक में सूरज की किरणें अंदर तो आ जाती हैं पर अंदर से इनफ्रारेड किरणे बाहर नहीं निकल सकतीं, इस तरह शीशे या प्लास्टिक के घर में गर्मी बढ़ जाती है और तापमान अधिक हो जाता है।
ग्रीन हाऊस गैसों ने शीशे की तरह धरती को सभी तरफ से घेरा हुआ है और सूरज की गर्मी को धरती पर आने देती हैं पर धरती से बाहर नहीं जाने देती जिससे धरती का तापमान बढ़ जाता है जिसको ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। धरती का तापमान बढ़ने के कारण कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं, जैसे-बाढ़ों में वृद्धि, सूखा पड़ना, मानसून के समय में अंतर आना आदि।

कुछ नए कृषि विषय PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • आदिकाल से ही मनुष्य कृषि का व्यवसाय करता आ रहा है।
  • नई तकनीकों का प्रयोग करके किसी ओर फ़सल या जीव जंतु का जीन किसी फ़सल में डाल कर इसको संशोधित जाता है।
  • जीन डाल कर संशोधित फ़सल को जी० एम० या ट्रांसजीनक फ़सलें कहा जाता है।
  • बी० टी० का अर्थ बैसिलस थुरिजैनिसस नाम के बैक्टीरिया से है।
  • बी० टी० नरमे (कपास) में एक रवेदार प्रोटीन पैदा होता है जिसको खाकर – सुंडियां मर जाती हैं।
  • बी० टी० नरमे (कपास) की बोलगार्ड-1 किस्म में सिर्फ एक बी० टी० जीन डाला गया था पर बोलगार्ड-2 में दो बी० टी० जीन डाले गए हैं।
  • बी० टी० नरमे की किस्म से पैदावार पाँच क्विंटल कपास प्रति एकड़ से भी ज्यादा मिलता है।
  • बी० टी० किस्मों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों के प्रयोग पर भी रोक लगी
  • बैंगन, सोयाबीन, मक्की, चावल आदि की भी जी० एम० फ़सलें तैयार की जा चुकी हैं।
  • कई संस्थाएं जी० एम० फसलों को मनुष्यों के स्वास्थ्य, वातावरण, फ़सलों की । प्रजातियाँ तथा अन्य पौधों के लिए हानिकारक मानते है और इसका विरोध करते हैं।
  • किसानों के अधिकार और पौधे किस्मों के संबंध में 2001 में भारत सरकार ने पौध किस्म और किसान अधिकार सुरक्षा एक्ट पास किया।
  • फ़सली किस्मों की रजिस्ट्रेशन की सीमा शुरू में 6 वर्ष और बाद में अर्जी दे कर सीमा ज्यादा-से-ज्यादा 15 साल तक बढ़ायी जा सकती है।
  • वृक्ष और बेलदार वाली फ़सलों का समय पहले 9 साल तथा बढ़ा कर 18 साल तक हो सकता है।
  • रजिस्ट्रेशन की जानकारी वैबसाइट www. plantauthority. gov.in से प्राप्त हो सकती है।
  • विकसित देशों में सूक्ष्म कृषि के लिए सैंसरज, जी० पी० एस०, अंतरिक्ष ) तकनीकों आदि का प्रयोग किया जाता है।
  • विकसित देशों में नाइट्रोजन सैंसर यंत्रों के प्रयोग से खाद की सही मात्रा का प्रयोग किया जाता है।
  • लेज़र कराहा और टैंशीयोमीटर के प्रयोग से हम पानी की बचत कर सकते हैं।
  • कई विकसित देशों में जी० पी० एस० तकनीक के प्रयोग से खेतों को नापा जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण पिछले सौ सालों में ग्लोबल वार्मिंग हुई है और धरती की सतह पर तापमान 0.5°C बढ़ गया है।
  • ग्रीन हाऊस गैसें हैं-कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रसऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन, मिथेन आदि।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules.

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules – PSEB 11th Class Physical Education

खेल सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी: (Important Information Related Athletics)

  1. ऐथलैटिक्स प्रतियोगिताओं में कोई भी खिलाड़ी नशीली चीज़ों या दवाइयों का प्रयोग करके भाग नहीं ले सकता।
  2. जो खिलाड़ी अन्य खिलाड़ियों के लिए किसी प्रकार की बाधा प्रस्तुत करे, उसे अयोग्य घोषित किया जाता है। जो खिलाड़ी दौड़ते हुए अपनी इच्छा से ट्रैक को छोड़ता है, वह पुन: दौड़ जारी नहीं कर सकता।
  3. फील्ड इवेंट्स में दो तरह के इवेंट्स आते हैं-जम्पिंग इवेंट्स और थ्रो इवैंट्स। ट्रैक इवेंट्स में वह दौड़ आती हैं जो ट्रैक में दौड़ी जाती हैं।
  4. 200 मीटर ट्रैक की लम्बाई 40 मीटर तथा चौड़ाई 38.18 मीटर होती है, 400 मीटर ट्रैक की लम्बाई 77 मीटर तथा चौड़ाई 67 मीटर होती है।
  5. जैवलिन थ्रो का भार 805 से 825 ग्राम होता है और लड़कियों के लिए चौड़ाई 605 से 620 ग्राम तक होता है। डिसक्स का भार लड़कों के लिए 2 कि० ग्राम होता है। गोला, हैमर या डिसक्स थ्रो के समय यह आवश्यक है कि 40° के सैक्टर में लैंड करे। गोला फेंकने का भार 7 किलोग्राम निश्चित किया गया है।

PSEB 11th Class Physical Education Guide ऐथलैटिक्स (Athletics) Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
ऐथलैटिक्स इवेंटस को कितने भागों में बांटा गया है ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स इवेंटस को दो भागों में बांटा जाता है-ट्रेक इवेंटस और फील्ड इवैंटस।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 2.
ऐथलैटिक्स में ट्रैक इवेंटस कौन-कौन से होते हैं ?
उत्तर-

  1. छोटी दूरी वाली दौड़ें,
  2. बीच की दूरी वाली दौड़ें,
  3. लम्बी दूरी वाली दौड़ें।

प्रश्न 3.
ऐथलैटिक्स में पुरुषों के लिये जैवलिन का भार कितना होता है ?
उत्तर-
800 ग्राम।

प्रश्न 4.
ऐथलैटिक्स में पुरुषों के लिए डिसकस का घेरा लिखें।
उत्तर-
219 से 221 मिलीमीटर।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 5.
ऐथलैटिक्स में हैमर थ्रो के कोई पांच नियम लिखें।
उत्तर-

  1. हैमर थ्रो में एथलीट को थ्रो के लिये तीन अवसर दिए जाते हैं।
  2. सबसे अधिक दूरी पर फैंकने वाले को विजयी घोषित किया जाता है।
  3. हैमर थ्रो में हैमर थ्रो पूरा करने के लिए 1.30 मिनट का समय दिया जाता है।
  4. हैमर मार्क सेक्टर में ही गिरना चाहिए अन्यथा थ्रो अयोग्य मानी जाएगी।
  5. हैमर को फेंकते हुए हैमर को चक्कर के अन्दर ही रखा जा सकता है।

प्रश्न 6.
ऐथलैटिक्स में थ्रोइंग इवेंटस कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-

  1. गोला फेंकना,
  2. हैमर थ्रो,
  3. जैवलिन थ्रो,
  4. डिस्कस थ्रो।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

Physical Education Guide for Class 11 PSEB ऐथलैटिक्स (Athletics) Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
ऐथलैटिक्स प्रतियोगिता करवाने के लिए कौन-कौन से अधिकारियों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स प्रतियोगिता करवाने के लिए आगे लिखे अधिकारियों की आवश्यकता होती है—
ऐथलैटिक्स के लिए अधिकारी
(Officials for the meet)

  1. रैफ़री ट्रैक के लिए (Referee for Track Events)
  2. रैफ़री फील्ड इवेंट्स के लिए (Referee for Field Events)
  3. रैफ़री वाकिंग इवेंट्स (Referee for Walking Events)
  4. जज ट्रैक इवेंट्स (Judge for Track Events)
  5. जज फील्ड इवैंट्स (Judge for Field Events)
  6. जज वाकिंग इवेंट्स (Judge for Events)
  7. अम्पायर (Umpire)
  8. टाइम कीपर (Time Keeper)
  9. स्टार्टर (Starter)
  10. सहायक र्टाटर (Asst. Starter)
  11. मार्क मैन (Markman)
  12. लैप स्कोरर (Lap Scorer)
  13. रिकॉर्डर (Recorder)
  14. मार्शल (Marshall)

दूसरे अधिकारी
(Additional Officials)

  1. अनाउंसर (Announcer)
  2. आफिशल सर्वेयर (Official Surveyer)
  3. डॉक्टर (Doctor)
  4. सटुअरडज़ (Stewards)

ट्रैक इवेंट्स पुरुषों के लिए

  • 100 — मीटर रेस
  • 200 — मीटर रेस
  • 400 — मीटर रेस
  • 800 — मीटर रेस
  • 1500 — मीटर रेस
  • 3,000 — मीटर दौड़
  • 5,000 — मीटर दौड़
  • 10,000 — मीटर दौड़
  • 42,195 — मीटर या 26 मील दौड
  • 3,000 — मीटर स्टीपल चेज़
  • 20,000 — मीटर वाकिंग
  • 30,000 — मीटर वाकिंग
  • 50,000 — मीटर वाकिंग

महिलाओं के लिए ट्रैक इवेंट्स

  • 100 — मीटर रेस
  • 200 — मीटर रेस
  • 400 — मीटर रेस
  • 800 — मीटर रेस
  • 1500 — मीटर रेस

हर्डल दौड़ें पुरुषों के लिए

  • 110 — मीटर हर्डल दौड़
  • 200 — मीटर हर्डल दौड़
  • 400 — मीटर हर्डल दौड़

महिलाओं के लिए हर्डल दौड़

  • 100 — मीटर हर्डल दौड़
  • 200 — मीटर हर्डल दौड़

रीले दौड़ें पुरुषों के लिए

  • 4 × 100 — मीटर
  • 4 × 200 — मीटर
  • 4 × 400 — मीटर
  • 4 × 800 — मीटर
  • 4 × 1500 — मीटर

महिलाओं के लिए रिले दौड़

  • 4 × 100 — मीटर
  • 4 × 200 — मीटर
  • 4 × 400 मीटर

मैडल रिले रेस

  • 800 × 200 × 200 × 400

6. 110 मीटर हर्डल्ज लड़कों के लिए हर्डलों की ऊंचाई 1.06 मीटर होती है। जूनियर लड़कियों के लिए 1.00 मीटर हर्डल्ज़ की ऊंचाई, 0.76 मीटर और सीनियर लड़कियों के लिए 0.89 मीटर होती है।

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प्रश्न 2.
ट्रैक इवेंट्स के लिए एथलीटों के लिए निर्धारित नियमों के बारे लिखें।
उत्तर-
ट्रैक इवेंटस के लिये एथलीटों के लिए निर्धारित नियम इस प्रकार हैं—

  1. एथलीट ऐसे वस्त्र पहने जो किसी किस्म के आपत्तिजनक न हों और वह साफ-सुथरे भी हों।
  2. कोई भी एथलीट नंगे पांव नहीं दौड़ सकता।
  3. यदि कोई खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी के लिये किसी तरह की रुकावट पैदा करता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  4. प्रत्येक खिलाड़ी को अपने आगे तथा पीछे स्पष्ट रूप में नम्बर लगाने चाहिए।
  5. लाइनों (Lines) में दौड़ी जाने वाली दौड़ों में खिलाड़ी को शुरू से अंत तक अपनी लाइन में ही रहना होगा।
  6. यदि कोई खिलाड़ी जान-बूझ कर अपनी लेन में से बाहर दौड़ता है तो उसे अयोग्य घोषित किया जाता है।
  7. यदि खिलाड़ी अपनी मर्जी से ट्रैक को छोड़ता है तो उसको दोबारा दौड़ जारी रखने का अधिकार नहीं।
  8. खिलाड़ी को नशीली वस्तुओं तथा दवाइयों का प्रयोग करने की आज्ञा नहीं होगी और न ही खेलते समय इसको अपने पास रख सकता है।
  9. यदि ट्रैक तथा फील्ड दोनों इटस एक ही साथ शुरू हो चुके हों तो जज इसको अलग-अलग ढंगों से भाग लेने की आज्ञा दे सकता है।
  10. 800 मीटर दौड़ का स्टार्टर अपनी भाषा में कहेगा “On your marks” पिस्तौल चला दिया जाता है तथा खिलाड़ी दौड़ पड़ते हैं। 800 मीटर से अधिक दौड़ों में केवल “On your marks’शब्द कहे जाएंगे तथा फिर तैयार होने पर पिस्तौल चला दिया जाएगा।
  11. खिलाड़ी को “On your marks” की स्थिति में अपने सामने वाली ग्राऊंड पर आरम्भ रेखा (Start Line) को हाथों अथवा पैरों द्वारा छूना नहीं चाहिए।
  12. यदि कोई एथलीट दो बार फाऊल स्टार्ट लेता है तो उसको दौड़ से बाहर निकाल दिया जाता है।

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प्रश्न 3.
ट्रैक इवेंट्स में कितने इवेंट्स होते हैं ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स दो प्रकार की होती है-Track Events और Field Events । भाव कुछ एथलीट Track Events में भाग लेते हैं और कुछ Field Events में।
ट्रैक इवेंट्स में छोटी दौड़ें (Sprint or Short Distance Races), मध्य दूरी वाली दौड़ें (Middle Distance Races) और लम्बी दौड़ें (Long Distance Races) आती हैं। फील्ड इवेंट्स में कूदने वाली इवेंट्स जैसे लम्बी छलांग (Long Jump), ऊंची छलांग (High Jump), पोल वाल्ट जम्प (Pole Vault Jump) और ट्रिपल्ल जम्प (Triple Jump) और फेंकने वाले इवेंट्स जैसे गोला फेंकना (Short put or Putting the Shot), पाथी फेंकना (Discuss : Throw), भाला फेंकना (Javelin Throw) और हैमर फैंकना (Hammer Throw) आदि सम्मिलित हैं।

ट्रैक
(TRACK)
ट्रैक दो प्रकार के होते हैं-एक 400 मीटर वाला ट्रैक और दूसरा 200 मीटर का ट्रैक। Standard ट्रैक का नाम 400 मीटर वाले ट्रैक को ही दिया जा सकता है। इस ट्रैक में कम-से-कम 6 लेन (Lanes) और अधिक-से-अधिक 8 लेन (Lanes) होती हैं।
Track Events Races : Short Middle and Long
SPRINTING
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 1
स्प्रिंटिंग (Sprinting) स्प्रिंट वह रेस होती है जो प्रायः पूरी शक्ति और पूरी गति से दौड़ी जाती है। इसमें 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ें आती हैं। आजकल तो 400 मीटर रेस को भी इसमें गिना जाने लगा है। इस प्रकार की दौड़ों में प्रतिक्रिया (Reaction), टाइम और गति (Speed) का बहुत महत्त्व है।
(1) स्टार्ट्स (Starts) कम दूरी की दौड़ों में प्राय: निम्नलिखित प्रकार के तीन स्टार्ट लिये जाते हैं—

  1. बंच स्टार्ट (Bunch Start)
  2. मीडियम स्टार्ट (Medium Start)
  3. इलोंगेटेड स्टार्ट (Elongated Start)

बंच स्टार्ट (Bunch Start)-इस प्रकार के स्टार्ट के लिए ब्लाकों के बीच दूरी 8 इंच से 10 इंच के बीच होनी चाहिए और आगे वाला स्टार्ट स्टार्टिंग लाइन से लगभग 19 इंच के करीब होना चाहिए। एथलीट इस प्रकार ब्लाक में आगे को झुकता है कि पिछले पांव की टो और अगले पांव की एड़ी एक-दूसरे के समान स्थित हों। हाथ स्टार्टिंग लाइन पर ब्रिज बनाए हुए हों और स्टार्टिंग लाइन से पीछे हों। इस प्रकार के स्टार्ट में जब Set Position का आदेश होता है, Hips को ऊंचा ले जाया जाता है। यह स्टार्ट सबसे अधिक अस्थिर होता है।

मीडियम स्टार्ट (Medium Start) इस प्रकार के स्टार्ट में ब्लाकों के बीच की दूरी 10 से 13 इंच के बीच होती है और स्टार्टिंग लाइन से पहले ब्लाक की दूरी लगभग 15 इंच के बीच होती है। प्रायः एथलीट इस प्रकार के स्टार्ट का प्रयोग करते हैं। इसमें पिछले पांव का घुटना और अगले पांव का बीच वाला भाग एक सीध में होते हैं और Set Position पर Hips तथा कंधे लगभग एक-सी ऊंचाई पर ही होते हैं।

इलोंगेटेड स्टार्ट (Elongated Start)-इस प्रकार का स्टार्ट बहुत कम लोग लेते हैं। इसमें ब्लाकों (Starting Block) के बीच की दूरी 25 से 28 इंच के बीच होती है। पिछले पांव का घुटना लगभग अगले पांव की एड़ी के सामने होता है।
स्टार्ट लेना (Start)—जब किसी भी रेस के लिए स्टार्ट लिया जाता है तो तीन प्रकार के आदेशों पर कार्य करना पड़ता है।

  1. आन यूअर मार्क (On Your Mark)
  2. सैट पोजीशन (Set Position)
  3. पिस्तौल की आवाज़ पर जाना (Go)

दौड़ का अन्त (Finish of the Race)-दौड़ का अन्त बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। आमतौर पर खिलाड़ी तीन प्रकार से दौड़ को समाप्त करते हैं। ये इस प्रकार हैं—

  1. दौड़ कर सीधा आगे निकल जाना (Run Through)
  2. आगे को झुकना (Lunge)
  3. कन्धा आगे करना (The shoulders String)

मध्यम दूरी की दौड़ें (Middle Distance Races)—ट्रैक इवेंटों में कुछ दौड़ें मध्यम दूरी की होती हैं। आमतौर पर उन दौड़ों को, जो 400 गज़ के ऊपर और 1000 गज़ से नीचे की होती हैं, इस श्रेणी में गिना जाता है। ये दौडें 400 मीटर और 800 मीटर की होती हैं। इन दौड़ों में गति और सहनशीलता दोनों की आवश्यकता होती है, और वही एथलीट इसमें सफल होता है जिसके पास ये दोनों चीजें हों। इस प्रकार की दौड़ों में आमतौर पर एक-जैसी गति बनाए रखी जाती है और अन्त में पूरा जोर लगा कर दौड़ को जीता जाता है। 400 मीटर का स्टार्ट तो स्प्रिंग की तरह ही लिया जाता है जबकि 800 मीटर का स्टार्ट केवल खड़े होकर ही लिया जा सकता है। जहां तक हो सके इस दौड़ में कदम (Strides) बड़े होने चाहिएं।

लम्बी दूरी की दौड़ें (Long Distance Races)-लम्बी दूरी की दौड़ों जैसे कि नाम से ही मालूम होता है, दूरी बहुत अधिक होती है और प्रायः ये दौड़ें एक मील से ऊपर की होती हैं। 1500 मीटर, 3000 मीटर और 5000 मीटर दूरी वाली दौड़ें लम्बी दूरी वाली रेसें हैं। इनमें एथलीट की सहनशीलता (Endurance) का अधिक योगदान है। लम्बी दूरी की दौड़ों में एथलीट को अपनी शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोग एक योजनाबद्ध ढंग से करना होता है और जो एथलीट इस कला को प्राप्त कर जाते हैं वे लम्बी दूरी की दौड़ों में सफल हो जाते हैं।

इस प्रकार की दौड़ों में दौड़ के आरम्भ को छोड़ कर सारी दौड़ में एथलीट का शरीर सीधा और आगे की और कुछ झुका रहता है तथा सिर सीधा रखते हुए ध्यान ट्रैक की ओर रखा जाता है। बाजू ढीली सी आगे की ओर लटकी होती है जबकि कोहनियों के पास से बाजू मुड़े होते हैं और हाथ बिना किसी तनाव के थोड़े से बन्द होते हैं। बाजू और टांगों के एक्शन जहां तक हो सके बिना किसी अधिक शक्ति व प्रयत्न के होने चाहिएं। दौड़ते समय पांव का आगे वाला भाग धरती पर आना चाहिए और एड़ी भी मैदान को छूती है, परन्तु अधिक पुश (Push) टो से ही ली जाती है। इस प्रकार की दौड़ों में कदम (Strides) छोटे और अपने आप बिना अधिक बढ़ाए होने चाहिएं। सारी दौड़ में शरीर बहुत Relaxed होना चाहिए।
इस प्रकार की दौड़ को समाप्त करते समय शरीर में इतना बल (Stamina) और गति होनी चाहिए कि एथलीट अपनी रेस को लगभग फिनिश लाइन से पांच-सात गज़ आगे तक समाप्त करने का इरादा रखे तो ही अच्छे परिणामों की आशा की जा सकती है।
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ट्रैक इवेंट्स में 100, 200, 400 तथा 800 मीटर तक की दौड़ आती है।

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प्रश्न 4.
200 मीटर और 400 मीटर के ट्रैक की चित्र के साथ बनावट लिखें।
उत्तर-
200 मीटर के ट्रैक की बनावट
(Track for 200 Metre)
200 मीटर के ट्रैक की लम्बाई 94 मीटर तथा चौड़ाई 53 मीटर होती है। इसकी बनावट का विवरण नीचे दिया गया है—
ट्रैक की कुल दूरी = 200 मीटर
दिशाओं की लम्बाई = 40 मीटर दिशाओं
द्वारा रोकी गई दूरी = 40 × 2 = 80 मीटर
कोनों में रोकी जाने वाली दूरी = 120 मीटर
व्यास 120 मीटर ÷ 2r = 19.09 मीटर
दौड़ने वाली दूरी का व्यास = 19.09 मीटर
प्रतिफल मार्किंग व्यास = 18.79 मीटर
1.22 मीटर (4 फुट) चौड़ी लाइनों के लिए स्टैगर्ज
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लेन मीटर
पहली 0.00
दूसरी 3.52
तीसरी 7.35
चौथी 11.19
पांचवीं 15.02
छठी 18.86
सातवीं 26.52
आठवीं 26.52

400 मीटर ट्रैक की बनावट

कम-से-कम माप = 170.40 × 90.40 मीटर
ट्रैक की कुल दूरी = 600 मीटर
सीधी लम्बाई = 80 मीटर
दोनों दिशाओं की दूरी = 80 × 2 = 160 मीटर
वक्रों (Curves) की दूरी = 240 मीटर
व्यास 240 मीटर : 2r = 38.18 मीटर
छोड़ने वाली दूरी का अर्द्धव्यास = 38.18 मीटर
मार्किंग अर्द्धव्यास = 37.88 मीटर
(i) 400 मीटर लेन [चौड़ाई 1.22 (4 फुट)] के लिए स्टैगर्ज

लेन मीटर
पहली 0.00
दूसरी 7.04
तीसरी 14.71
चौथी 22.38
पांचवीं 30.05
छठी 37.72
सातवीं 45.39
आठवीं 53.06

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प्रश्न 5.
हर्डल दौड़ों के विषय में आप संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
100 मीटर बाधा महिला दौड़
(100 Metre Women Hurdle)
100 मी० बाधा दौड 1968 से प्रारम्भ की गई है। सामान्यतः महिला धाविका 13 मीटर दूर स्थित प्रथम बाधा तक की दूरी 8 डगों में पूरी कर लेती है। उछाल 1.95 मीटर से लेकर बाधा को पार कर 11 मीटर की दूरी पर उनके ये डग पूरे होते हैं। बाधा के बीच तीन डग पूरे करने पर पुनः उछाल 200 मी० की दूरी से लिया जाता है। इस प्रकार वे 8.50 मी० की दूरी तय करती है।

बाधा पार करते समय महिला धाविकाओं को अपने शरीर के ऊपरी भाग को आगे की ओर अधिक नहीं झुकाना चाहिए और न ही उछाल के समय अपने घुटने को अधिक ऊंचा उठाना चाहिए। बाधा को पार करने की विधि वही अपनानी चाहिए जो 400 मी० हर्डल में अपनायी जाती है।
भिन्न-भिन्न प्रतियोगिता के लिए हर्डल की गिनती, ऊंचाई और दूरी निम्नलिखित हैं—
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110 मीटर बाधा दौड़
(110 Metre Hurdle Race)
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सामान्यत: बाधा दौड़ के धावक (Runner) पहली बाधा तक पहुंचने में 8 कदम लेते हैं। प्रारम्भ स्थल (Starting Block) पर बैठते समय अधिक शक्ति वाले पैर (Take off Foot) को आगे रखा जाता है। धावक यदि लम्बा है और अधिक तेज़ दौड़ सकने की क्षमता रखता है तो उस स्थिति में यह दूरी उसके लिए कम पड़ सकती है। उस दशा में थोड़ा अन्तर होने पर प्रारम्भ स्थल की दूरी के बीच की दूरी कम करके तालमेल बैठाने का प्रयास होना चाहिए, किन्तु ऐसा करने पर | यदि धावक असुविधा अनुभव करता है तो बाधा को मात्र कदमों में ही पार कर लेना चाहिए। ऐसी स्थिति में शक्तिशाली पैर पीछे के स्थल (Block) पर रख कर धावक दौड़ेगा। अत: शक्तिशाली पैर बाधा से लगभग 2 मीटर पीछे आयेगा। आरम्भ में धावक को उसे 5 कदम तक अपनी दृष्टि नीचे रखनी चाहिए और बाद में हर्डल पर ही दृष्टि केन्द्रित होनी चाहिए। आरम्भ से अन्त तक कदमों के बीच का अन्तर निरन्तर बढ़ता ही जायेगा। किन्तु अन्तिम कदम उछाल कदम से लगभग 6 इंच (10 सैं० मी०) छोटा ही रहेगा। सामान्य दौड़ों की तुलना में बाधा दौड़ में दौड़ते समय धावक के घुटने अपेक्षाकृत अधिक ऊपर आयेंगे और जमीन पर पूरा पैर न रख कर केवल पैर के अगले भाग (पंजों) को ही रखना चाहिए।
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बाधा को पार करते समय उछाल पैर को सीधा रखना चाहिए तथा आगे के पैर को घुटने से ऊपर उठाना चाहिए। पैर का पंजा जमीन की ओर नीचे की ओर झुका हुआ रखना चाहिए, आगे के पैर को एक साथ सीधा करते हुए बाधा के ऊपर से लाना चाहिए, और शरीर का ऊपर का भाग आगे की ओर झुका हुआ रखना चाहिए। हर्डिल को पार करते ही अगले पैर की जांघ को नीचे दबाते रहना चाहिए कि जिस से बाधा पार हो जाने के बाद पंजा बाधा से अधिक दूरी पर न पड़ कर उसके पास ही ज़मीन पर पड़े। इसके साथ ही पीछे के पैर को घुटने से झुका कर बाधा के ऊपर से ज़मीन के समानान्तर रख कर घुटने को सीने के पास से आगे लाना चाहिए। इस प्रकार पैर आगे आते ही धावक तेज़ दौड़ने के लिए तत्पर रहेगा।

बाधा पार करने के उपरान्त पहला डग (कदम) 1.55 से 1.60 मीटर की दूरी पर, दूसरा 2.10 मीटर का तथा तीसरा . लगभग 2.20 मीटर के अन्तर पर पड़ना चाहिए। (13.72 मी०, 9.14 मी०, 14.20 मी०)
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400 मीटर बाधा (परुष तथा महिला)
(400 Metres Hurdles Men and Women)
सामान्यतः धावक को इस दौड़ में सर्वाधिक असुविधा अपने डगों के बीच तालमेल बैठाने में होती है। प्रारम्भ में प्रथम बाधा के बीच की दूरी को लोग सामान्यतः 21 से 23 डगों में पूरा कर लेते हैं और बाधा के बीच में 13-15 अथवा 17 डग रखते हैं। कुछ धावक प्रारम्भ में 14 और बाद में 16 कदमों में इस दूरी को पूरा कर लेते हैं। दाहिने पैर से उछाल लेने से लाभ होने की अधिक सम्भावना होती है। सामान्यतः उछाल 2.00 मीटर से लिया जाता है और पहला डग बाधा को पार कर जो ज़मीन पर पड़ता है, वह 1.20 मीटर का होता है। इसकी तकनीक 110 व 100 मीटर बाधाओं की ही भान्ति होती है। 400 मीटर दौड़ के समय से (सैकण्ड) 2-5 से 3-5 से 400 मीटर बाधा का समय अधिक आता है। 200 मीटर तथा प्रथम (220-2-5 से) = 25-5 से हर्डिल का समय।
200 मीटर दूसरा भाग (24-5-3-0 से) – 27-5 से = 52-00 में 400 मीटर हिडिल का समय।
अभ्यास के समय प्रत्येक हर्डिल पर समय लेकर पूरी दौड़ का समय निकालने की विधि।

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प्रश्न 6.
फील्ड इवेंट्स में कौन-कौन से इवेंट्स होते हैं ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
लम्बी कूद
(Long Jump)

  1. रनवे की लम्बाई = 40 मीटर से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. पिट की लम्बाई = 10 मीटर
  4. पिट की चौड़ाई = 2.75 से 3 मीटर
  5. टेक ऑफ बोर्ड की लम्बाई = 1.22 मीटर
  6. टेक ऑफ बोर्ड की चौड़ाई = 20 सैंटी मीटर
  7. टेक ऑफ बोर्ड की गहराई = 10 सैंटी मीटर।

लम्बी कूद की विधि
(Method of Long Jump)
1. कूदने वाले पैर को मालूम करने के लिए लम्बी कूद में उसी प्रकार से करेंगे जैसे ऊंची कूद में किया गया था।
सर्वप्रथम कूदने वाले पैर को आगे सीधा रखेंगे और स्वतन्त्र पैर को इसके पीछे। यदि आप का कूदने वाला पैर बायां है तो बाएं पैर को आगे और दायें पैर को पीछे रख कर दायें घुटने से झुका कर ऊपर की ओर ले जायेंगे। और इसके साथ ही दायें हाथ को कुहनी से झुका कर रखेंगे। विधि उसी प्रकार से होगी जैसे कि तेज दौड़ने वाले करते हैं।
इस क्रिया को पहले खड़े होकर और बाद में चार-पांच कदम चल कर करेंगे। जब यह क्रिया ठीक प्रकार से होने लगे तब थोड़ा दौड़ते हुए यही क्रिया करनी चाहिए। इस समय ऊपर जाते समय ज़मीन को छोड़ देना चाहिए।
Long Jump
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2. छः या सात कदम दौड़ कर आगे आयेंगे और ऊपर जा कर कूदने वाले पैर पर ही नीचे ज़मीन पर आयेंगे। इसमें शरीर का भाग सीधा रहेगा जैसे कि ऊंची कूद में रहता है।
अगले स्वतन्त्र पैर जमीन पर आयेंगे। इस क्रिया को कई बार दुहराने के बाद ज़मीन पर आते समय कूदने वाले पैर को भी स्वतन्त्र पैर के साथ ही ज़मीन पर ले आएंगे।

3. ऊपर की क्रिया को कई बार करने के पश्चात् एक रूमाल लकड़ी में बांध कर कूदने वाले स्थान से थोड़ी ऊंचाई पर लगाएंगे और कूदने वाले बालकों को रूमाल को छूने को कहेंगे। ऐसा करने से एथलीट (Athlete) ऊपर जाना तथा शरीर के ऊपरी भाग को सीधा रखना सीख जाएगा।

अखाड़े में गिरने की विधि (लैंडिंग)
(Method of Landing)
1. दोनों पैरों को एक साथ करके एथलीट पिट (Pit) के किनारे पर खड़े हो जाएंगे। भुजाओं को आगे-पीछे की ओर हिलाएंगे और (Swing) करेंगे। साथ में घुटने भी झुकाएंगे और भुजाओं को एक साथ पीछे ले जाएंगे।

इसके पश्चात् घुटने को थोड़ा अधिक झुका कर भुजाओं को तेजी के साथ आगे और ऊपर की ओर ले जाएंगे और दोनों पैरों के साथ अखाड़े (Pit) में जम्प करेंगे। इस समय इस बात का ध्यान रहे कि पैर गिरते समय जहां तक सम्भव हो, सीधे रखने चाहिएं और इसके साथ ही पुट्ठों को आगे धकेलना चाहिए जिससे कि शरीर में पीछे झुकाव (Arc) बन सके जो कि हैंग स्टाइल (Hang Style) के लिए बहुत ही आवश्यक है।

2. एथलीट्स (Athletes) को सात कदम कूदने को कहेंगे। कूदते समय स्वतन्त्र पैर के घुटने को हिप (Hip) के बराबर लाएंगे। जैसे ही एथलीट (Athlete) हवा में थोड़ी ऊंचाई लेगा, स्वतन्त्र पैर को पीछे की ओर तथा नीचे की ओर लाएंगे जिससे वह कूदने वाले पैर के साथ मिल सके। कूदने वाला पैर घुटने से जुड़ा होगा और शरीर का ऊपरी भाग सीधा होगा। दोनों भुजाओं को पीछे की और तथा ऊपर की ओर गोलाई में ले जाएंगे। जब खिलाड़ी हवा में ऊंचाई लेता है, उस समय उसके दोनों घुटनों से झुके हुए पैर जांघ की सीध में होंगे। दोनों भुजाएं सिर की बगल में ओर ऊपर की ओर होंगी। शरीर पीछे की ओर गिरती हुई दशा में होगा तथा जैसे ही एथलीट्स (Athletes) अखाड़े (Pit) में गिरने को होंगे, वे स्वतन्त्र पैर घुटने से झुका कर आगे को तथा ऊपर को ले जाएंगे, पेट के नीचे की ओर लाएंगे तथा पैरों को,सीधा करके ऊपर की दशा में हवा में रोकने का प्रयास करेंगे।
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हिच किक की विधि
(Method of Hitch Kick)
1. जम्प करने के पश्चात् Split हवा में, पैरों को आगे-पीछे करके, स्वतन्त्र पैर पर लैंडिंग (Landing) करना, परन्तु ऊपरी भाग तथा सिर सीधा रहेगा, पीछे की ओर नहीं आएगा।

2. इस बार हवा में स्वतन्त्र पैर को रखेंगे और कूदने वाले पैर को आगे ले जाकर लैंडिंग (Landing) करेंगे।

3. अन्य सभी विधियां उसी प्रकार से होंगी जैसे कि ऊपर बताया गया है। केवल स्वतन्त्र पैर को लैंडिंग (Landing) करते समय टेक ऑफ पैर के साथ ले जाएंगे और दोनों पैरों पर एक साथ ज़मीन पर आएंगे। अन्य सभी शेष विधियां उसी प्रकार से होंगी जैसे कि हैंग (Hang) में दर्शाया गया है। एथलीट्स (Athletes) को दौड़ने का पथ (Approach run) धीरे-धीरे बढ़ाते रहना चाहिए।

4. ऊपर की क्रिया को कई बार करने के पश्चात् इस क्रिया को स्प्रिंग बोर्ड (Spring Board) की सहायता से करना चाहिए जैसा कि जिमनास्टिक (Gymnastic) वाले करते हैं। स्प्रिंग बोर्ड (Spring-Board) के अभाव में इस क्रिया को किसी अन्य ऊंचे स्थान से भी किया जा सकता है जिससे एथलीट्स को हवा में सही क्रिया विधि करने का अभ्यास हो जाए।

ट्रिपल जम्प
(Triple Jump)
अप्रोच रन (Approach Run) लम्बी कूद की भान्ति इसमें भी अप्रोच रन लिया जाएगा, परन्तु स्पीड (Speed) न अधिक तेज़ और न अधिक धीमी होगी।
अप्रोच रन की लम्बाई (Length of Approach Run) ट्रिपल जम्प में 18 से 22 कदम या 40 से 45 मीटर के लगभग अप्रोच रन लिया जाता है। यह कूदने वाले पर निर्भर करता है कि उसके दौड़ने की गति कैसी है। धीमी गति वाला लम्बा अप्रोच लेगा जबकि अधिक गति वाला छोटा अप्रोच लेगा। दोनों पैरों को एक साथ रखकर दौड़ना प्रारम्भ करेंगे तथा दौड़ने की गति को सामान्य रखेंगे। शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहेगा।

  1. रनवे की लम्बाई = 40 मी० से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. पिट की लम्बाई = टेक आफ बोर्ड से पिट समेत 21 मीटर
  4. पिट की चौड़ाई = 2.75 मीटर से 3 मीटर
  5. टेक ऑफ बोर्ड से पिट तक लम्बाई = 11 मीटर से 13 मीटर
  6. टेक ऑफ बोर्ड की लम्बाई = 1.22 मीटर
  7. टेक ऑफ बोर्ड की चौड़ाई = 20 सैंटी मीटर
  8. टेक ऑफ बोर्ड की गहराई = 10 सैंटी मीटर।

TRIPLE JUMP
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टेक ऑफ (Take off) लेते समय घुटना लम्बी कूद की अपेक्षा इसमें कम झुका होगा। शरीर का भार टेक ऑफ एवं होप स्टेप (Hop, Step) लेते समय पीछे रहेगा तथा दोनों बाजू भी पीछे रहेंगे। दूसरी टांग तेज़ी से हवा में आकर सप्लिट पोजीशन (Split Position) बनाएगी।
ट्रिपल जम्प में मुख्यतया तीन प्रकार की तकनीक (Technique) प्रचलित है—

  1. फ्लैट तकनीक
  2. स्टीप तकनीक
  3. मिक्सड तकनीक

ऊंची कूद
(High Jump)

  1. रनवे की लम्बाई = 15 मी० से 25 मी०
  2. तिकोनी क्रॉस बार की प्रत्येक भुजा = 30 मि०मी०
  3. क्रॉस बार की लम्बाई = 3.98 मी० से 4.02 मी०
  4. क्रॉस बार का वज़न = 2 कि० ग्राम०
  5. पिट की लम्बाई = 5 मी०
  6. पिट की चौड़ाई = 4 मी०
  7. पिट की ऊंचाई = 60 सैं०मी०

(1) समस्त प्रतियोगियों को पहले दोनों पैरों पर एक साथ अपने स्थान पर ही कूदने को कहेंगे। कुछ समय उपरान्त एक पैर पर कूदने के आदेश देंगे। ऊपर उछलते समय यह ध्यान रहे कि शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहे एवं दस बार ही कूदा जाए। इस तरह जिस पैर पर कूदने पर आसानी प्रतीत हो उसी को उछाल (उठना) पैर (Take off foot) मान कर प्रशिक्षक को निम्नलिखित दो भागों में बांट देना चाहिए

  • बायें पैर पर कूदने वाले तथा
  • दायें पैर पर कूदने वाले।

(2) दो रेखाओं में प्रतियोगी अपने उछाल पैर (Take off Foot) को आगे रख कर दूसरे पैर को पीछे रखेंगे। दोनों भुजाओं को एक साथ पीछे से आगे, कुहनियों से मोड़ करके आगे, ऊपर की ओर तेजी से जाएंगे। इसके साथ ही पीछे रखे पैर को भी ऊपर किक (Kick) करेंगे, और ज़मीन से उछाल कर पुनः अपने स्थान पर वापस उसी पैर पर आएंगे। इस समय उछाल पैर (Take off Foot) वाले पैर का घुटना भी ऊपर उठते समय थोड़ा मुड़ा होगा। परन्तु शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहेगा, एवं आगे न जा कर ऊपर उठेगा तथा उसी स्थान पर वापस आयेगा। ऊपर जाते समय कमर । तथा आगे का पैर सीधा रखने का प्रयास किया जाए।

(3) प्रतियोगियों को 45° पर बायें पैर वाले बाएं और दायें पैर से कूदने वाले दायीं ओर खड़े होकर क्रॉस छड़ (Cross bar) को लगभग दो फुट (60 सम) की ऊंचाई पर रख कर आगे चलते हुए ऊपर की भान्ति ही उछाल कर क्रॉस छड़ (Cross bar) को पार करेंगे और ऊपर जाकर नीचे आते समय उसी उछाल पैर (Take off Foot) पर वापिस आएंगे। केवल भिन्नता इतनी होगी कि अपने स्थान पर वापस न आकर आगे क्रॉस छड़ को पार करके गिरेंगे तथा दूसरा पैर पहले पैर के आने के उपरान्त आगे 10 या 12 इंच (25 सम) पर आएगा तथा आगे चलते जाएंगे, परन्तु यह ध्यान रखा जाए कि किक करते समय घुटना झुका हो। शरीर का ऊपरी भाग सीधा रखने का प्रयास किया जाए तथा दोनों भुजाओं को तेजी से ऊपर ले जाएंगे, परन्तु जब दोनों हाथ कंधों की सीध में पहुंचेंगे तो उसी स्थान पर वापिस गिरना होगा।
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HIGH JUMP
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(4) क्रॉस बार (Cross Bar) की ऊंचाई को बढ़ाएंगे तथा प्रशिक्षकों को टेक ऑफ़ (take off) पर आते समय टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को लम्बा करने को कहेंगे, परन्तु यह ध्यान में रखेंगे कि इस समय एड़ी पहले ज़मीन पर आये। दोनों भुजाएं कुहनियों से मुड़ी हुई हों।
कूदते समय ध्यान क्रॉस बार (Cross Bar) पर होगा। सिर शरीर से कुछ पीछे की ओर झुका होगा तथा पीछे के पैर को ऊपर करते समय पैर का पंजा ऊपर की ओर कर सीधा होगा।

इस समय क्रॉस बार (Cross Bar) को प्रशिक्षक के सिर से दो फुट (60 से०मी०) ऊंचा रखेंगे तथा प्रत्येक को ऊपर बताई गई क्रिया के अनुसार क्रॉस बार को अपनी फ्री लैग (Free Leg) से किक (Kick) करने को कहेंगे।
इसमें निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेंगे—

  • दोनों भुजाओं को एक साथ तेज़ी से ऊपर ले जाएगा।
  • टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) उस समय ज़मीन छोड़ेगा जबकि फ्री लैग अपनी पूर्ण ऊंचाई तक पहुंच जाएगी।
  • ऊपर बताई गई प्रक्रिया को जोगिंग (Jogging) के साथ भी किया जाएगा।

(5) क्रॉस बार (Cross bar) को दो फुट (60 सेमी०) के ऊपर रख कर खिलाड़ी को नं० 3 की भान्ति क्रॉस छड (Cross bar) पार करने को कहेंगे। केवल इतना अन्तर होगा कि क्रॉस बार पार करने के उपरान्त अखाड़े में आते समय हवा में 90 डिग्री पर घूमेंगे। बायें पैर से टेक ऑफ़ (Take off) लेने वाले बायीं तरफ घूमेंगे तथा दायें पैर पर टेक ऑफ़ (Take off) लेने वाले दायीं तरफ घूमेंगे।
इसमें निम्नलिखित दो बातों का विशेष ध्यान रखा जाएगा—

  1. खिलाड़ी उछाल (Take Off) लेते समय ही न घूमें तथा
  2. पूर्ण ऊंचाई प्राप्त करने से पहले घूमें।

स्टैडल रोल
(Straddle Roll)
(6) टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को आगे रख कर खड़े होंगे, पर यह ध्यान रहे कि शरीर का भार एड़ी पर होना चाहिए तथा फ्री लैग को पीछे रखेंगे। दोनों हाथों को एक साथ तेज़ी से आगे लायेंगे और फ्री लैग (Free Leg) को ऊपर की ओर किक (Kick) करेंगे जिससे शरीर का समस्त भाग ज़मीन से ऊपर उठ जाये।

(7) ज़मीन पर चूने की समानान्तर रेखा डालेंगे। एथलीट इस चूने की रेखा के दाहिनी ओर खड़े होकर उपर्युक्त प्रक्रिया को करेंगे। ऊपर हवा में पहुंचते ही बायीं ओर टेक ऑफ़ (Take off) को घुमायेंगे, चेहरा नीचे करेंगे तथा पिछले पैर को किक (Kick) पर उठायेंगे।

इसमें मुख्यत: यह ध्यान रखा जाए कि फ्री लैग (Free Leg) को सीधी किक (kick) किया जाए। टेक ऑफ़ लैग (Take off Leg) को सीधा किक करके घुटना मोड़ (Bend) पर ऊपर ले जायेंगे। खिलाड़ी क्रॉस बार (Cross bar) पार करने के उपरान्त अखाड़े में रोज़ अभ्यास कर सकते हैं क्योंकि टेक ऑफ़ किक (Take off Kick) तेज़ होने के कारण सन्तुलन भी बिगड़ सकता है।

(8) तीन कदम आगे आ कर जम्प करना (Jumping from Three Steps) क्रॉस बार के समानान्तर डेढ़ फुट से 2 फुट (45 सम से 60 सम) की दूरी पर रेखा खींचेंगे। इस रेखा से 30° पर दोनों पैर रख कर खड़े होंगे तथा टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को आगे निकालते हुए मध्यम गति से आगे को भागेंगे। जहां पर तीसरा पैर आये वहां निशान लगा दें और अब उस स्थान पर दोनों पैर रख कर क्रॉस बार (Cross bar) की ओर चलेंगे और ऊपर बताई गई प्रक्रिया को दोहरायेंगे। क्रॉस बार की ऊंचाई एथलीट की सुविधा के अनुसार बढ़ाते जायेंगे।

बांस कूद
(Pole Vault)

  1. रनवे की लम्बाई = 40 से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. लैडिंग ऐरिया = 5 × 5 मी०
  4. तिकोनी क्रास बार की लम्बाई = 4.48 मीटर से 4.52 मीटर
  5. तिकोनी क्रास बार प्रत्येक भुजा = 3.14 मीटर
  6. क्रास बार का वजन = 2.25 किलो ग्राम
  7. लैडिंग एरिया की ऊचाई = 6 सैं०मी० से 9 सैं०मी०
  8. बाक्स की लम्बाई = 1.08 मी०
  9. बाक्स की चौड़ाई रनवे की तरफ से = 60 सैं०मी०

ऐथलैटिक्स में बांस कूद (Pole Vault) बहुत ही उलझा हुआ इवेंट है। किसी भी इवेंट में टेक ऑफ़ (Take off) से अखाड़े में आते समय तक इतनी क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती, जितनी कि पोल वाल्ट में। इसलिए इस इवेंट को पढ़ाने तथा सिखाने दोनों में ही परेशानी होती है।

बांस कूद के लिए एथलीट का चयन
(Selection of Athlete for Pole Vault)
अच्छा बांस कूदक एक सर्वांग (आल राऊण्डर) खिलाड़ी ही हो सकता है। क्योंकि यह ऐसी स्पर्धा (Event) है जोकि सभी प्रकार से शरीर की क्षमता को बनाये रखती है, जैसे कि गति (Speed), शक्ति (Strength), सहनशीलता (Endurance) तथा तालमेल (Coordination) । अच्छे बांस कूदक का एक अच्छा जिमनास्ट भी होना आवश्यक है। जिससे वह सभी क्रियाओं को एक साथ कर सके।

पोल की पकड़ तथा लेकर चलना
(Holding.and Carrying the Pole)
बहुधा बायें हाथ से शरीर के सामने हथेली को ज़मीन की ओर रखते हुए पोल को पकड़ते हैं। दायां हाथ शरीर के पीछे पुढे (Hip) के पास दायीं ओर बांस (pole) के अन्तिम सिरे की ओर होता है।

बांस को पकड़ते समय बायां बाजू कुहनी से 100 अंश का कोण बनाता है तथा शरीर से दूर कलाई को सीधा रखते हुए बांस को पकड़ते हैं। दायां हाथ, जो कि बांस के अन्तिम सिरे की ओर होता है, बांस को अंगूठे के अन्दरूनी भाग और तर्जनी अंगुली के बीच में ऊपर से नीचे को दबाते हुए पकड़ते हैं। दोनों कुहनियां 100 अंश के कोण बनाए हुई होती हैं। हाथों के बीच की दूरी 24 इंच (60 सैं० मी०) से 36 इंच (80 सैं० मी०) तक होती है। यह बांस कूदक के शरीर की बनावट पर और पोल को लेकर दौड़ते समय जिसमें उसको आराम अनुभव हो, उस पर निर्भर करता है।

पोल के साथ दौड़ने की विधियां
(Running with the Pole)
1. बांस को सिर के ऊपर रख कर चलना (Walking with Pole keeping over head)-इसमें बांस को बाक्स के पास लाते समय अधिक समय लगता है। इसलिए यह विधि अधिक उपयुक्त नहीं है।

2. बांस को सिर के बराबर रख कर चलना (Walking with pole keeping at the level of head)विश्व के अधिकतर बांस कूदक इसी विधि को अपनाते हैं। इसमें चलते समय बांस का सिरा सिर के बराबर और बायें कंधे की सीध में होता है।
दायें से बायें-इसमें कंधे तथा बाजू साधारण अवस्था में रहते हैं।

3. बांस को सिर से नीचे लेकर चलना (Walking with pole keeping below the head)—इस अवस्था में बाजुओं पर अधिक ताकत पड़ती है, जिसके कारण बाक्स तक आते समय शरीर थक जाता है। बहुत ही कम संख्या में लोग इसको काम में लाते हैं। अप्रोच रन (Approach run) एथलीट को अपने ऊपर विश्वास तब होता है जबकि उस का अप्रोच रन सही आना शुरू होता है। आगे की क्रिया पर इसके बाद ही विचार किया जा सकता है। इसके लिए सबसे अच्छी विधि (The best method) यह है कि एक चूने की लाइन लगा कर एथलीट को पोल के साथ लगभग 150 फुट (50 मी०) तक भागने को कहना। इस क्रिया को कई दिन तक करने से एथलीट का पैर एक स्थान पर ठीक आने लगेगा। उस समय आप उस दूरी को फीते से नाप लें, फिर बांस कूद के रन-वे (Run-way) पर काम करें। पैरों को तेजी के साथ अप्रोच रन को भी घटाना बढ़ाना पड़ता है।

बांस कूद के अप्रोच रन में केवल एक ही चिह्न होना चाहिए। अधिक चिह्न होने से कूदने वाला अपने स्टाइल (Style) को न सोच कर चेक मार्क (Check Mark) को सोचता रहता है। अप्रोच रन (Approach Run) की लम्बाई 40 से 45 मी० के लगभग होनी चाहिए और अन्तिम 4 या 6 कदम में अधिक तेजी होनी चाहिए।

पोल प्लाण्ट
(Pole Plant)
यह सम्भव नहीं कि आप पूरी तेजी के साथ पोल (Pole) को प्लांट (Plant) कर सकें उसके लिए गति को सीमित करना पड़ता है। स्टील पोल (Steel Pole) में प्लांट जल्दी होना चाहिए तथा फाइबर ग्लास (Fibre Glass) में देरी से।’ स्टील पोल में प्लांट करते समय एथलीट को “एक और दो” गिनना चाहिए। एक के कहने पर बायां पैर आगे टेक ऑफ़ के लिए आयेगा और दायें पैर का घुटना ऊपर की ओर जायेगा। दो कहने पर शरीर की स्विग (Swing) शुरू हो जाती है। इस समय वाल्टर (Vaulter) को अपनी दायीं टांग को स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिए जिससे कि वह बायीं टांग के साथ मिल सके। इस विधि से अच्छी स्विग लेने में सुविधा होती है।

टेक ऑफ़
(Take Off)
टेक ऑफ़ के समय दायां घुटना आगे आना चाहिए। इससे शरीर को ऊपर पोल की ओर ले जाते हैं तथा सीने को । . पोल की ओर खींचते हैं। पोल को सीने के सामने रखते हैं। स्विंग (Swing) के समय दायीं टांग शरीर के आगे ऊपर की ओर उठेगी।

नोट-पोल करते समय एथलीट अपने हिप को ऊंचा ले जाते हैं, जबकि टांगों को ऊपर आना चाहिए व हिप को नीचे रखना चाहिए। पोल वाल्टरों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब तक पोल सीधा नहीं होता, उनको पोल के साथ ही रहना चाहिए। पोल छोड़ते समय नीचे का हाथ पहले छोड़ना चाहिए। यह देखा गया है कि बहुत ही नये पोल वाल्टर . अपनी पीठ को क्रास बार के ऊपर से ले जाते हैं। यह केवल ऊपर के हाथ को पहले छोड़ने से होता है।
POLE VAULT
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प्रश्न 7.
श्री इवेंट्स कौन-कौन से होते हैं ? इनकी तकनीक और नियमों के बारे में लिखें।
उत्तर-

  1. गोले का भार = 7.260 कि०ग्राम + 5 ग्राम पुरुषों के लिए 4 कि० + 5 ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. थरोईंग सैक्टर का कोना = 34.92°
  3. सर्कल का व्यास = 2.135 मी० + 5 मि०मी०
  4. स्टॉप बोर्ड की लम्बाई = 1.21 मी० से 1.23 मी०
  5. स्टॉप बोर्ड की चौड़ाई = 112 मि०मी० से 200 मि०मी०
  6. स्टॉप बोर्ड की ऊँचाई = 98 मि०मी० से 102 मि०मी०
  7. गोले का व्यास = 110 मि०मी० से 130 मि०मी०
  8. गोले का व्यास स्त्रियों के लिए = 95 मि०मी० से 110 मि०मी०।

शाट पुट-पैरी ओवरेइन विधि
(Shot Put-Peri Oberrain Method)
1. प्रारम्भिक स्थिति (Initial Position)-थ्रोअर गोला फेंकने की दशा में अपनी पीठ करके खड़ा होगा। शरीर
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का भार दायें पैर पर होगा। शरीर के ऊपरी भाग को नीचे लाते समय दायें पैर की एड़ी ऊपर उठेगी तथा बाएं पैर को घुटने से मुड़ी दशा में पीछे ऊपर जाकर तुरन्त पैर के पास पुनः लायेंगे। दोनों पैर मुड़े होंगे तथा ऊपरी भाग आगे को झुका होगा।

2. ग्लाइड (Glide)-दायां पैर सीधा करेंगे तथा दायें पैर के पंजे बाईं एड़ी से पीछे आयेंगे। बायां पैर स्टॉप बोर्ड (Stop Board) की ओर तेजी से किक करेंगे। बैठी हुई अवस्था में पुट्ठों को पीछे व नीचे की ओर गिरायेंगे। दायां पैर जमीन से ऊपर उठेगा तथा शरीर के नीचे ला कर बायीं ओर को पंजा मोड़ कर रखेंगे। बायां पैर इसी के लगभग साथ ही स्टॉप बोर्ड (Stop Board) पर थोड़ा दायीं ओर ज़मीन पर लगेगा। दोनों पैरों के पंजों को ज़मीन पर गोली दोनों कन्धे पीछे की ओर झुके होंगे। शरीर का समस्त भार दायें पैर पर होगा।

3. अन्तिम चरण (Final Phase)-दायें पैर के पंजे एवं घुटने को एक साथ बायीं ओर घुमायेंगे तथा दोनों पैरों को सीधा करेंगे। पुट्ठों को भी आगे बढ़ायेंगे। शरीर का भार दोनों पैरों पर होगा। बायां कन्धा सामने को खुलेगा। दायां कन्धा दायीं तरफ को ऊपर उठेगा तथा घूमेगा। पेट की स्थिति धनुष के आकार की तरह पीछे को झुकी हुई होगी।
SHOT PUT
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4. गोला फेंकना/थो करना (Putting throwing the Shot)-दायां कन्धा एवं दायीं भुजा को गोले के आगे की ओर ले जायेंगे। बायां कन्धा आगे को बढ़ता रहेगा। शरीर का समस्त भार बायें पैर पर होगा जोकि पूर्ण रूप से सीधा होगा। जैसे ही दाहिने हाथ द्वारा गोले को आगे फेंका जायेगा, दोनों पैरों की स्थिति भी बदलेगी। बायां पैर पीछे आयेगा तथा दायां पैर आगे आयेगा। शरीर का भार दायें पैर पर होगा। ऊपरी भाग एवं दायां पैर दोनों आगे को झुके होंगे।
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घूम कर गोला फेंकना या चक्के की भान्ति फेंकना
(Throwing the Shot by rotating or like a Discus)
1. प्रारम्भिक स्थिति (Initial Position)—प्रारम्भ करने के लिए गोले के दूसरे भाग पर गोला फेंकने की दशा में पीठ करके खड़े होंगे। बायां पैर मध्य रेखा पर तथा दायां भाग दायीं ओर होगा। दायां पैर लोहे की रिम (Rim) से 5 से 8 से०मी० पीछे रखेंगे जिससे कि वे घूमते समय फाउल (Foul) न हो। गोला गर्दन के नीचे भाग में होगा, कोहनी ऊपर उठी होगी। प्रारम्भ करने से पहले कन्धा, पेट, बायां बाजू, गोला सभी पहले बायीं तरफ को घूमेंगे तथा बाद में दायीं तरफ जायेगा। ऐसा करते समय दोनों घुटने झुके होंगे।

2. घूमना (Rotation)—दोनों पैरों पर शरीर का भार होगा तथा ऊपर की स्थिति से केवल एक स्विंग लेने के उपरान्त घूमना प्रारम्भ हो जायेगा। कन्धा एवं धड़ दायें को पूर्ण रूप से घूमते शरीर का भाग भी दायें पैर पर चला जायेगा। इस स्थिति में बायीं तरफ भुजा को ज़मीन के समानान्तर रखते हुए बायें पैर के पंजे पर शरीर का भार लाते हुए दोनों घुटने घूमेंगे। दायें पैर के पंजे पर भी 90 अंश तक घूमेंगे। दायें पैर को घुटने से झुकी हुई अवस्था में बायें पैर के टखने के ऊपर से गोले के बीच में पहुंचने पर लायेंगे।
बायें पैर पर घूमते समय चक्र समाप्त होने पर हवा में दोनों पैर होंगे तथा कमर को घुमाएंगे। दायां पैर केन्द्र में दाएं पैर के पंजे पर आएगा। दाएं पैर के पंजे की स्थिति उसी प्रकार से होगी जैसी कि घड़ी में 2 बजे की दशा में सुई होती है। बहादुर सिंह का पैर 10 बजे की स्थिति में आता है। वह हवा में ही कमर को मोड़ लेता है। 2 बजे की स्थिति में बायां पैर टो बोर्ड पर कुछ विलम्ब से आयेगा। परन्तु ऊपरी भाग को केन्द्र में रखा जा सकता है। 10 बजे की स्थिति में बायां पैर ज़मीन पर तेजी से आयेगा तथा अधिकतर यह सम्भावना रहती है कि शरीर का ऊपरी भाग शीघ्र ऊपर आ जाता है।
निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेंगे—

  • प्रारम्भ में सन्तुलन ठीक बनाकर चलेंगे, बायां पैर नीचे रखेंगे।
  • दाएं पैर से पूरी ग्लाइड (Glide) लेंगे, जम्प नहीं करेंगे। शरीर के ऊपरी भाग को ऊपर नहीं उठायेंगे।
  • दायां पैर केन्द्र में आते समय अन्दर को घूम जाएगा।
  • बायें कन्धे एवं पुढे को जल्दी ऊपर नहीं लाना है।
  • बायीं भुजा को शरीर के पास रखेंगे।
  • बायां पैर ज़मीन पर न शीघ्र लगेगा और न अधिक विलम्ब से।

सामान्य नियम
(General Rules)
1. पुरुष वर्ग में 7.26 किग्रा०, महिला में 4.00 कि०ग्रा० । गोले के व्यास पुरुष वर्ग में 110 से 130 व महिलाओं में 95 से 110 सैंटीमीटर।

2. गोला व तारगोला को 2.135 मीटर के चक्र से फेंका जाता है। अन्दर का भाग पक्का होगा, बाहरी मैदान से 25 मिलीमीटर नीचा होगा। स्टॉप बोर्ड (Stop Board) 1.22 मीटर लम्बा, 114 मिलीमीटर चौड़ा और 100 मिलीमीटर ऊंचा होगा।
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3. सैक्टर 40 अंश का गोला, तार गोला एवं चक्का होगा। केन्द्र से एक रेखा सीधी 20 मीटर की खींचेंगे। इस रेखा के 18.84 पर एक बिन्दु लगाएंगे, इस बिन्दु से दोनों ओर 6.84 की दूरी पर दो बिन्दु डाल देंगे तथा इन्हीं दो बिन्दुओं से सीधी रेखायें खींचने पर 40 अंश का कोण बनेगा।

4. गोला फेंकते समय शरीर का सन्तुलन होना चाहिए, गोला फेंक कर गोला ज़मीन पर गिरने के उपरान्त 75 सैंटीमीटर की दोनों रेखायें जो कि गोला फेंकने के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित करती हैं, उसके पीछे के भाग से बाहर आयेंगे। गोला एक हाथ से फेंक दिया जाएगा। गोला कन्धे के पीछे नहीं आयेगा, केवल गर्दन के पास रहेगा। सही पुट उसी को मानेंगे जो कि सैक्टर के अन्दर हो। सैक्टर की रेखाओं को काटने पर फाऊल (Foul) माना जायेगा। यदि आठ प्रतियोगी (Competitors) हैं, तब सभी को 6 अवसर देंगे अन्यथा टाई पड़ने पर 9 भी हो सकते हैं।

चक्का फेंकने का प्रारम्भ
(Initial Stance of Discus Throw)

  1. चक्के का वजन = 2 कि० ग्राम पुरुषों के लिए 1 कि० ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. सर्कल का व्यास _ = 2.5 मी० ± 5 मि०मी०
  3. थ्रोईंग सैक्टर का कोण = 34.92° चक्के का ऊपर का व्यास = 219 मि०मी० से 2.21 मि० मी० पुरुषों के लिए 180 से 182 स्त्रियों के लिए

चक्का फेंकने की दिशा के विरुद्ध पीठ करके छल्ले (Ring) के पास चक्र में खड़े होंगे। दायीं भुजा को घुमाते हुए एक या दो स्विग (Swing) भुजा तथा धड़ को भी साथ में घुमाते हुए लेंगे। ऐसा करते समय शरीर का भार भी एक पैर से दूसरे पैर पर जायेगा जिस से पैरों की एड़ियां मैदान के ऊपर उठेंगी। जब चक्का दाईं ओर होगा तथा शरीर का ऊपरी भाग भी दाईं ओर मुड़ा होगा यहां से चक्र का प्रारम्भ होगा। चक्र का प्रारम्भ शरीर के नीचे के भाग से होगा, बायें पैर को बायीं ओर झुकाएंगे। शरीर का भार इसी के ऊपर आयेगा। दायां घुटना भी साथ ही घूमेगा, दायां पैर भी घूमेगा, साथ ही कमर, पेट भी घूमेगा जाकि दायीं बाजू एवं चक्के को भी साथ में लायेगा।

इस स्थिति में गोले को पार करने की क्रिया प्रारम्भ होगी। सबसे पहले बायां पैर ज़मीन को छोड़ेगा। इसके उपरान्त बायां पैर चक्का फेंकने की दशा में आगे बढ़ेगा। दायां पैर घुटने से मुड़ा हुआ अर्ध चक्र की दशा में बायीं से दायीं ओर आगे को चलेगा। घूमते समय दोनों पुढे कन्धों से आगे होंगे जिससे शरीर के ऊपरी भाग तथा नीचे के भाग में मोड़ उत्पन्न होगा। दायीं भुजा जिसमें चक्का होगा, सिर कोहनी से सीधा होगा, बायीं भुजा कोहनी से मुड़ी हुई सीने के सम्मुख होगी। सिर सीधा रहेगा। दायें पैर के पंजे पर ज़मीन से थोड़ा ऊपर रख कर गोले को पार करेंगे तथा दायें पैर के पंजे ज़मीन पर आयेंगे। यह पैर लगभग केन्द्र में आयेगा। पंजा बाईं ओर को मुड़ा होगा।
विधियां
(Methods)
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इसमें मुख्यतः निम्नलिखित तीन प्रकार की विधियां हैं—

  1. प्रारम्भ करते समय भी जो नये फेंकने वाले होते हैं वे अपना दायां पैर केन्द्र की रेखा पर एवं बायां पैर 10 से०मी० छल्ले (Ring) के पीछे रखते हैं।
  2. दूसरी विधि जिसमें सामान्य फेंकने वाले केन्द्रीय रेखा को दोनों पैरों के मध्य रखते हैं।
  3. तीसरे वे फेंकने वाले हैं जो बायें पैर को केन्द्रीय रेखा पर रखते हैं।

इसी प्रकार गोले के मध्य में आते समय तीन प्रकार से पैर को रखते हैं। पहले 3 बजे की स्थिति में, दूसरे 10 बजे की स्थिति में, तीसरे 12 बजे की स्थिति में, जिसमें 12 बजे की स्थिति सर्वोत्तम मानी गयी है क्योंकि इसमें दायें पैर पर कम घूमना पड़ता है तथा बायें कन्धे को खुलने से रोका जा सकता है।
दायां पैर ज़मीन पर आने के उपरान्त भी निरन्तर घूमता रहेगा और बायां पैर गोले के केन्द्र की रेखा से थोड़ा बायीं ओर पंजे एवं अन्दर के भाग को ज़मीन पर लगा देगा।
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अन्तिम चरण (Last Step)
इस समय पैर ज़मीन पर होंगे, कमर घूमती हुई दिशा में पीछे को झुकी होगी, बायां पैर सीधा होगा, दायां पैर घुटने से मुड़ा हुआ, दायां घुटना एवं पुढे बायीं ओर घूमते हुए होंगे.। बायीं भुजा ऊपर की ओर खुलेगी, दायीं भुजा को शरीर से दूर रखते हुए आगे एवं ऊपर की दशा में लायेंगे।

फेंकना (Throwing)
दोनों पैर जो कि घूम कर आगे आ रहे थे, इस समय घुटने से सीधे होंगे। पुढे आगे को बढ़ेंगे, कन्धे तथा धड़ अपना घूमना आगे की दशा में समाप्त कर चुके होंगे। बायीं भुजा तथा कन्धा आगे घूमना बन्द करके एक स्थान पर रुक जायेंगे। दायीं भुजा एवं कन्धा आगे तथा ऊपर बढ़ेगा। दोनों पैरों के पंजों पर शरीर का भार होगा तथा दोनों पैर सीधे होंगे। अन्त में बायां पैर पीछे आयेगा तथा दायां पैर आगे जा कर घुटने से मुड़ेगा। शरीर का ऊपरी भाग भी आगे को झुका होगा। ऐसा शरीर का सन्तुलन बनाये रखने के लिए किया जाता है।
साधारण नियम (General Rules)
चक्के (Discus) का भार पुरुष वर्ग हेतु 2 किग्रा०, महिला वर्ग हेतु 1 कि०ग्रा० होता है। वृत्त का व्यास 2.50 होता
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LAY OUT OF DISCUS CIRCLE
है। वर्तमान समय के चक्के के गोले के बाहर लोहे की केज (Cage) बनाई जाती है ताकि चक्के से किसी को चोट न पहुंचे। सम्मुख 6 मीटर, अन्य 7 मीटर अंग्रेज़ी के ‘E’ के आकार की होती है। इसकी ऊंचाई 3.35 मीटर होती है।
सैक्टर-40° का इसी प्रकार बनायेंगे जैसे गोले के लिए, अन्य समस्त नियम गोले की भान्ति ही इसमें काम आयेंगे।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 8.
जैवलिन थ्रो और उसके नियम लिखें।
उत्तर-

  1. जैवलिन का भार = 800 ग्राम पुरुषों के लिए 600 ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. रनवे की लम्बाई = 30 मी० 36.5 मी०
  3. रनवे की चौड़ाई = 4 मीटर
    जैवलिन की लम्बाई = 260 सें.मी० से 270 सें०मी० पुरुषों के लिए 220 सें०मी० के 230 सें०मी० स्त्रियों के लिए
  4. जैवलिन के थ्रोईंग सैक्टर का कोण = 28.950

भाला फेंकना (Javelin Throw) भाले की सिर के बराबर ऊंचाई पर कान के पास, भुजा को कोहनी से झकी हुई, कोहनी एवं जैवलिन दोनों का
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मुख सामने की ओर होगा। हाथ की हथेली का रुख ऊपर की ओर होगा-ज़मीन के समानान्तर। सम्पूर्ण लम्बाई 30 से 35 मी० होगी। 3/4 दौड़ पथ में सीधे दौड़ेंगे। 1/3 अन्तिम के पांच कदम के लगभग क्रॉस स्टैप (Cross Step) लेंगे। अन्तिम चरण में जब बायां पैर जांच चिह्न (Check Mark) पर आएगा दायां कन्धा धीमी गति से दायीं ओर मुड़ना प्रारम्भ करेगा तथा दायीं भुजा भी पीछे आना प्रारम्भ करेगी। कदमों के बीच की दूरी बढ़ने लगेगी। दायां हाथ एवं कन्धा बराबर पीछे को आयेंगे एवं दाईं तरफ खुलते जायेंगे। कमर एवं शरीर का ऊपरी भाग पीछे को झुकता जायेगा। ऊपरी एवं नीचे
JAVELIN THROW
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 25
के भाग में मोड़ उत्पन्न होगा, क्योंकि ऊपरी भाग दायीं ओर खुलेगा तथा नीचे का भाग सीधा आगे को चलेगा। आंखें आगे की ओर देखती हुई होंगी।

अन्त में दायां पैर घुटने से झुकी दशा में जमीन पर क्रॉस स्टैप (Cross Step) के अन्त में आयेगा। जैसे ही घुटना आगे बढ़ेगा, दायें पैर की एड़ी जमीन से ऊपर उठना प्रारम्भ हो जायेगी। इस प्रकार यह बायें पैर को अधिक दूरी पर जाने में सहायता करती है, जिससे कि दोनों पैरों के बीच अधिक-से-अधिक दूरी हो सके। बायां पैर थोड़ा बायीं ओर ज़मीन पर आएगा। कन्धे दायीं ओर को होंगे। भाला कन्धे की सीध में होगा। मुट्ठी बन्द तथा हथेली ऊपर की ओर, कलाई सीधी, कलाई नीचे की ओर होने से भाले का अन्तिम सिरा ज़मीन पर लगेगा। इस स्थिति के समय बाईं भुजा मुड़ी हुई सीने के ऊपर होगी।

अन्तिम फेस (Last Phase)-थ्रो करने की स्थिति में जब बायां पैर ज़मीन पर आयेगा, कूल्हा (Hip) आगे बढ़ना प्रारम्भ कर देगा। दायां पैर एवं घुटना अन्दर को घूमेगा तथा सीधा होकर टांग को सीधा करेगा। बायां कन्धा भी साथ में खुलेगा, दायीं कुहनी बाहर की ओर घूमेगी एवं ऊपर को भाला कन्धा एवं भुजा के ऊपर सीध में होगा। बायें पैर का रुकना, दायें पैर को अन्दर घुमाना तथा सीधा करना इन सबसे शरीर का ऊपरी भाग धनुष की भान्ति पीछे को झुकेगा तथा सीना एवं पेट की मांसपेशियों में तनाव उत्पन्न होगा।

फेंकने के बाद फाऊल (Foul) बचाने के लिए तथा शरीर के भार को नियन्त्रण में रखने के लिए कदमों में परिवर्तन लायेंगे। दायां पैर आगे आकर घुटने से मुड़ेगा तथा पंजा बायीं ओर को झुकेगा। शरीर का ऊपरी भाग दायें पैर पर आगे को झुक कर सन्तुलन बनाएगा। दायां पैर अपने स्थान से उठ कर कुछ आगे भी जा सकता है।

साधारण नियम
(General Rules)
1. पुरुष भाले की लम्बाई 2.60 मी० से 2.70 मी०, महिला 2.20 मी० से2.30 मी०

2. भाला फेंकने के लिए कम-से-कम 30 मी०, अधिकतम 36.50 मी० लम्बा एवं 4 मी० चौड़ा मार्ग चाहिए। सामने 70 मि०मी० की चाप वक्राकार सफेद लोहे की पट्टी होगी जो कि दोनों ओर 75 सें०मी० निकली होगी। इसको सफेद लेन से भी बनाया जा सकता है। यह रेखा 8 मी० सेण्टर से खींची जा सकती है।

3. भाले का सैक्टर 29° का होता है जहां वक्राकार रेखा मिलती है वहीं निशान लगा देते हैं। पूर्ण रूप से सही कोण के लिए 40 मी० की दूरी पर दोनों भुजाओं के बीच की दूरी 20 मीटर होगी, 60 मी० की दूरी पर 30 मी० होगी।
JAVELIN RUNWAY THROWING
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 26

4. भाला केवल बीच में पकड़ने के स्थान (Grip) से ही पकड़ कर फेंकेंगे। भाले का अगला भाग ज़मीन पर पहले लगना चाहिए। शरीर के किसी भी भाग से 50 सें०मी० चौड़ी दोनों ओर की रेखाओं को या आगे 70 सें.मी. चौड़ी रेखा को स्पर्श करने को फाऊल थ्रो (Foul Throw) मानेंगे।

5. प्रारम्भ करने से अन्त तक भाला फेंकने की दशा में रहेगा। भाले को चक्र काट कर नहीं फेंकेंगे, केवल कन्धे के ऊपर से फेंक सकते हैं।

6. 3 + 3 गोला एवं चक्के की भान्ति अवसर मिलेंगे।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education

प्रश्न 9.
रिले दौड़ों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
रिले दौड़ें (Relay Races)

पुरुष (Men) महिला (Women)
4 x 100 मीटर 4 x 100 मीटर
4 x 200 मीटर 4 x 400 मीटर
4 x 400 मीटर
4 x 800 मीटर

मेडले रिले दौड़ (Medley Relay Race)—
800 × 200 × 200 × 400 मीटर
बैटन (Baton)-सभी वृत्ताकार रिले दौड़ों में बैटन को ले जाना होता है। बैटन एक खोखली नली का होना चाहिए और इसकी लम्बाई 30 सें०मी० से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसकी परिधि 12 सेंटीमीटर होनी चाहिए और भार 40 ग्राम होना चाहिए।
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 27
रिले धावन पथ (Relay Race Track) रिले धावन पथ परे चक्र के लिए, गलियारों में विभाजित या अंकित होना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं है, तो कम-से-कम बैटन विनिमय क्षेत्र गलियारों में होना चाहिए।

रिले दौड़ का प्रारम्भ (Start of Relay Race)-दौड़ के प्रारम्भ में बैटन का कोई भी भाग रेखा से आगे निकल सकता है, किन्तु बैटन रेखा या आगे की ज़मीन को स्पर्श नहीं करना चाहिए।

बैटन लेना (Taking the Baton) बैटन लेने के लिए भी क्षेत्र निर्धारित होता है। यह क्षेत्र दौड की निर्धारित दूरी रेखा के दोनों ओर 10 मीटर लम्बी प्रतिबन्ध रेखा खींच कर चिह्नित किया जाता है। 4 x 200 मीटर तक की रिले दौड़ों में पहले धावक के अतिरिक्त टीम के अन्य सदस्य बैटन लेने के लिए निर्धारित क्षेत्र के बाहर, किन्तु 10 मीटर से कम दूरी से दौड़ना आरम्भ करते हैं।
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 11th Class Physical Education 28
बैटन विनिमय (Exchange of Baton)-बैटन विनिमय निर्धारित क्षेत्र के अन्दर ही होना चाहिए। धकेलने या किसी प्रकार से सहायता करने की अनुमति नहीं है। धावक एक-दूसरे को बैटन नहीं फेंक सकते यदि बैटन गिर जाता है, तो गिराने वाला धावक ही उठाएगा।
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PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Geography Chapter 4 महासागर

SST Guide for Class 7 PSEB प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 1-15 शब्दों में दो।

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति से क्या भाव है?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से भाव उन जड़ी-बूटियों तथा पेड़-पौधों से है, जो अपने आप उग आते हैं। इसमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता। किसी प्रदेश की प्राकृतिक वनस्पति वहां के धरातल, मिट्टी के प्रकार, जलवायु आदि पर निर्भर करती है।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक वनस्पति को प्रमुख कितने भागों में बांटा गया है?
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा गया है –

  1. वन
  2. घास के मैदान तथा
  3. मरुस्थलीय झाड़ियां।

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प्रश्न 3.
जंगलों से कौन-सी वस्तुएं प्राप्त होती हैं ?
उत्तर-
जंगलों से हमें कई प्रकार की लकड़ी, बांस, कागज़ बनाने वाले घास, गूद, गन्दा बरोज़ा, तारपीन, लाख, चमड़ा रंगने का छिलका, दवाइयों के लिए जड़ी-बूटियां आदि वस्तुएं प्राप्त होती हैं।

प्रश्न 4.
जंगल अप्रत्यक्ष रूप में हमारी क्या सहायता करते हैं ?
उत्तर-
वन परोक्ष रूप से हमारी बहुत सहायता करते हैं।

  1. ये वातावरण से कार्बन-डाइऑक्साइड लेकर ऑक्सीजन छोड़ते हैं।
  2. ये वर्षा लाने में सहायक होते हैं और तापमान को अधिक नहीं बढ़ने देते।
  3. ये बाढ़ और भू-क्षरण को रोकते हैं।
  4. ये भूमि के अन्दर पानी के रिसाव में सहायता करते हैं।
  5. वन मरुस्थलों के विस्तार को रोकते हैं और वन्य-जीवों तथा पक्षियों को आवास (Habitat) प्रदान करते हैं।

प्रश्न 5.
जंगलों के विकास का क्या प्रभाव पड़ेगा ?
उत्तर-
जंगल (वन) हमारे लिए वरदान हैं। इनके विकास का निम्नलिखित प्रभाव पड़ेगा –

  1. देश की आर्थिक प्रगति होगी।
  2. पर्यावरण शुद्ध होगा।
  3. वन्य जीवन की सुरक्षा होगी।

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प्रश्न 6.
मानव परिस्थिति (पारिस्थितिक) सन्तुलन को कैसे बिगाड़ रहा है?
उत्तर-
मनुष्य आवास तथा कृषि योग्य भूमि प्राप्त करने के लिए वनों की अन्धाधुन्ध कटाई कर रहा है। इससे पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ रहा है।

प्रश्न 7.
उष्ण घास के मैदानों के स्थानीय नाम बताएं।
उत्तर-
उष्ण घास के मैदानों को अफ्रीका में पार्कलैण्ड, वेंजुएला में लानोज तथा ब्राज़ील में कैंपोज़ कहते हैं।

प्रश्न 8.
ठण्डे मरुस्थलों की वनस्पति के बारे में लिखो।
उत्तर-
ठण्डे मरुस्थलों में जब थोड़े समय के लिए बर्फ पिघलती है, तो विभिन्न रंगों के फलों वाले छोटे-छोटे पौधे उग जाते हैं। उत्तरी भागों में छोटी-छोटी घास जैसे काई और लिचन (लाइकन) उग जाती है।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दें।

प्रश्न 1.
भूमध्य रेखी जंगलों के बारे में लिखो।
उत्तर-
भूमध्य रेखी जंगल भू-मध्य रेखा से 10° उत्तर और 10° दक्षिणी अक्षांशों में फैले हुए हैं। इन वनों को सदाबहार घने जंगल कहते हैं। भू-मध्य रेखा पर सारा साल उच्च तापमान रहता है और वर्षा भी अधिक होती है। इसी कारण यहां घने वन पाए जाते हैं। इन वनों की ऊपर वाली शाखाएं आपस में इस प्रकार मिली होती हैं कि वे एक छतरी के समान दिखाई देती हैं। इसलिए सूर्य का प्रकाश भी धरती पर नहीं पहुंच पाता। इन वनों में कई प्रकार के वृक्ष होते हैं; फिर भी ये वृक्ष आर्थिक रूप से लाभदायक नहीं होते। इसका मुख्य कारण यह है कि ये इतने सघन होते हैं कि इनमें से गुज़रना कठिन होता है। इस कारण इनकी कटाई नहीं हो सकती।

दक्षिणी अमेरिका, मध्य अफ्रीका, दक्षिण-पूर्वी एशिया, मैडागास्कर में इन वनों के बहुत बड़े क्षेत्र हैं। ऑस्ट्रेलिया, मध्य-अमेरिका में इन वनों ने थोड़ा-थोड़ा क्षेत्र घेरा हुआ है।

प्रश्न 2.
आर्थिक पक्ष से कौन-से जंगल सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हैं ?
उत्तर-
आर्थिक दृष्टि से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तथा मूल्यवान वन नुकीले पत्तों वाले वन हैं। इन वनों को सदाबहार वन भी कहते हैं। यूरेशिया में इन्हें टैगा (Taiga) वन कहा जाता है। इन वनों में चीड़, फ़र और स्यूस के वृक्ष मिलते हैं। इन वृक्षों से नर्म लकड़ी प्राप्त होती है जिससे गूदा और कागज़ बनाया जाता है।

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प्रश्न 3.
मानसूनी जंगलों (वनों) को पतझड़ी जंगलों (वनों) के नाम से क्यों पुकारा जाता है?
उत्तर-
मानसूनी वन कम उष्ण अर्थात् उपोष्ण अक्षांशों पर पाये जाते हैं। जिन क्षेत्रों में किसी एक मौसम में वर्षा अधिक मात्रा में होती है वहां इनके पत्ते चौड़े होते हैं। ये वन उन क्षेत्रों में अधिक होते हैं जहां मानसून पवनों के कारण अधिक वर्षा होती है। इस कारण इन्हें मानसूनी वन कहते हैं। जिस मौसम में वर्षा नहीं होती; ये वन अपने पत्ते गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ी वन भी कहा जाता है। ये वन आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये वन भू-मध्यरेखीय वनों से कम सघन हैं और मनुष्य की पहुंच में हैं। इनसे इमारती तथा ईंधन की लकड़ी मिलती है। परन्तु अधिकतर मानसूनी वन काट दिए गए हैं और प्राप्त भूमि पर कृषि की जाने लगी है।

प्रश्न 4.
शीत ऊष्ण घास के मैदानों के बारे में लिखो। इनके भिन्न-भिन्न महाद्वीपों में कौन-कौन से नाम हैं ?
उत्तर-
शीतोष्ण घास के मैदान कम वर्षा वाले शीतोष्ण क्षेत्रों में पाये जाते हैं। यहां घास अधिक ऊंची तो नहीं होती, परन्तु यह कोमल तथा सघन होती है। अतः यह पशुओं के चारे के लिए बहुत उपयोगी होती है। इन घास के मैदानों को विभिन्न महाद्वीपों में भिन्न-भिन्न नाम दिये गये हैं। इन्हें यूरेशिया में स्टैपीज़, उत्तरी अमेरिका में प्रेयरीज़, दक्षिणी अमेरिका में पम्पाज़, दक्षिणी अफ्रीका में वैल्ड तथा ऑस्ट्रेलिया में डाउन्ज के नाम से पुकारा जाता है।

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प्रश्न 5.
गर्म मरुस्थलीय वनस्पति के बारे में लिखो।
उत्तर-
संसार के प्रमुख गर्म मरुस्थल अफ्रीका में सहारा और कालाहारी, अरब-ईरान का मरुस्थल, भारतपाकिस्तान का थार मरुस्थल, दक्षिणी अमेरिका में ऐटोकामा, उत्तरी अमेरिका में दक्षिणी कैलेकैनिया और उत्तरी मैक्सिको तथा ऑस्ट्रेलिया में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के मरुस्थल हैं। इन मरुस्थलों में अधिक गर्मी तथा कम वर्षा के कारण बहत कम वनस्पति मिलती है। यहां केवल कांटेदार झाड़ियां, थोहर, छोटी-छोटी जड़ी-बूटियां और घास आदि ही पैदा होते हैं। प्रकृति ने इस वनस्पति को इस प्रकार का बनाया है कि यह अत्यधिक गर्मी और शुष्कता को सहन कर सके। इनकी जड़ें लम्बी और मोटी होती हैं ताकि पौधे गहराई से नमी प्राप्त कर सकें। पौधों का छिलका मोटा होता है तथा पत्ते मोटे और चिकने होते हैं, ताकि वाष्पीकरण से अधिक पानी नष्ट न हो।

प्रश्न 6.
जंगलों (वनों) की सम्भाल क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
वनों का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्त्व है। ये हमारी बहुत-सी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं । वनों से प्राप्त लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में, मकान बनाने में तथा कई अन्य कामों, जैसे कागज़ बनाने, रेलों के डिब्बे, स्लीपर, रेयन (कपड़ा बनाने के लिए) आदि बनाने के लिए होता है। वनों से हमें लकड़ी के अतिरिक्त अन्य कई उपयोगी पदार्थ भी प्राप्त होते हैं। सबसे बढ़कर वन वर्षा लाने में सहायता करते हैं, बाढ़ों पर नियन्त्रण करते हैं तथा भूक्षरण को रोकते हैं। परन्तु जनसंख्या की वृद्धि के साथ वनों का उपभोग बढ़ रहा है। जिससे वन-क्षेत्र कम हो रहा है। अतः वनों की सम्भाल और नये वृक्ष लगाने की ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

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(ग) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125-130 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति के बारे में विसृत रूप में लिखो।
उत्तर-
प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उन जड़ी-बूटियों तथा पेड़-पौधों से है, जो मनुष्य के प्रयत्न के बिना अपने आप उग आते हैं। इसमें मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता। किसी प्रदेश की प्राकृतिक वनस्पति वहां के धरातल, मिट्टी के प्रकार, जलवायु आदि पर निर्भर करती है।
प्राकृतिक वनस्पति के भाग-प्राकृतिक वनस्पति को निम्नलिखित तीन भागों में बांटा गया है –
(1) वन
(2) घास के मैदान तथा
(3) मरुस्थलीय झाड़ियां।
I. वन-वनों को वर्षा की मात्रा, मौसमी बांट, तापमान आदि कारक प्रभावित करते हैं। इस आधार पर वनस्पति तीन प्रकार की है –
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव 1

(1) भू-मध्य रेखीय वन (2) मानसूनी अथवा पतझड़ी वन (3) नुकीली पत्ती वाले वन।
1. भू-मध्य रेखीय वन-ये वन भू-मध्य रेखा से 10° उत्तर और 10° दक्षिण अक्षांशों में फैले हुए हैं। इन वनों को सदाबहार घने वन कहते हैं। भू-मध्य रेखा पर सारा साल निरन्तर उच्च तापमान रहता है और वर्षा भी अधिक होती है। इसी कारण यहां घने वन पाए जाते हैं। इन वनों की ऊपर वाली शाखाएं आपस में इस प्रकार मिली होती हैं कि वे एक छतरी के समान दिखाई देती हैं। इसलिए सूर्य का प्रकाश भी धरती पर नहीं पहुंच पाता। इन वनों में कई प्रकार के वृक्ष होते हैं; फिर भी ये वृक्ष आर्थिक रूप से लाभदायक नहीं होते। इसका मुख्य कारण यह है कि ये इतने सघन होते हैं कि इनमें से गुज़रना कठिन होता है। इस कारण इनकी कटाई नहीं हो सकती।

दक्षिणी अमेरिका, मध्य अफ्रीका, दक्षिण-पूर्वी एशिया, मैडागास्कर में इन वनों के बहुत बड़े क्षेत्र हैं। ऑस्ट्रेलिया, मध्य-अमेरिका में इन वनों ने थोड़ा-थोड़ा क्षेत्र घेरा हुआ है।

2. मानसूनी अथवा पतझड़ी वन-मानसूनी वन कम उष्ण अर्थात् उपोष्ण अक्षांशों पर पाये जाते हैं। जिन क्षेत्रों में किसी एक मौसम में अधिक वर्षा होती है, वहां इनके पत्ते चौड़े होते हैं। ये वन उन क्षेत्रों में अधिक होते हैं जहां मानसून पवनों के कारण अधिक वर्षा होती है। इस कारण इन्हें मानसूनी वन कहते हैं। जिस मौसम में वर्षा नहीं होती; ये वन अपने पत्ते गिरा देते हैं। इसलिए इन्हें पतझड़ी वन भी कहा जाता है। ये वन आर्थिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये वन भू-मध्य रेखीय वनों से कम सघन हैं और मनुष्य की पहुंच में हैं। इनसे इमारती तथा ईंधन की लकड़ी मिलती है। परन्तु अधिकतर मानसूनी वन काट दिए गए हैं और प्राप्त भूमि पर कृषि की जाने लगी है।

3. नुकीली पत्ती वाले वन-ये वन आर्थिक दृष्टि से सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण तथा मूल्यवान हैं। इन वनों को सदाबहार वन भी कहते हैं। यूरेशिया में इन्हें टेगा (Taiga) वन कहा जाता है। इन वनों में चीड़, फ़र और स्पूस के वृक्ष मिलते हैं। इन वृक्षों से नर्म लकड़ी प्राप्त होती है जिससे गूदा और कागज़ बनाया जाता है।

II. घास के मैदान-घास के मैदान मुख्य रूप से दो प्रकार के हैं-उष्ण घास के मैदान तथा शीतोष्ण घास के मैदान।
1. उष्ण घास के मैदान-घास के ये मैदान 10°-30° अक्षांशों पर उत्तरी तथा दक्षिणी गोलाद्धों में पाये जाते हैं। इन घास के मैदानों को ‘सवाना घास के मैदान’ कहा जाता है। परन्तु अलग-अलग क्षेत्रों में इन्हें अलग-अलग नाम दिये गए हैं। अफ्रीका में इन्हें पार्कलैण्ड, जुएला में लानोज़ और ब्राज़ील में कैम्पोज़ कहते हैं।

इन मैदानों की घास पांच मीटर तक ऊंची हो जाती है और सूखकर बहुत कठोर हो जाती है। यहां पर कहीं-कहीं छोटे कद के वृक्ष भी मिलते हैं। इन घास के मैदानों में घास खाने वाले और मांसाहारी पशु बहुत अधिक पाये जाते हैं।

2. शीतोष्ण घास के मैदान-शीतोष्ण घास के मैदान कम वर्षा वाले शीतोष्ण क्षेत्रों में पाये जाते हैं। यहां घास अधिक ऊंची तो नहीं होती, परन्तु यह कोमल तथा सघन होती है। अतः यह पशुओं के चारे के लिए बहुत उपयोगी होती है। इन घास के मैदानों को भी विभिन्न महाद्वीपों में भिन्न-भिन्न नाम दिये गये हैं। इन्हें यूरेशिया में स्टैपीज़, उत्तरी अमेरिका में प्रेयरीज़, दक्षिणी अमेरिका में पम्पाज़, दक्षिणी अफ्रीका में वैल्ड तथा ऑस्ट्रेलिया में डाउन्ज़ के नाम से पुकारा जाता है।

III. मरुस्थलीय झाड़ियां-संसार में दो प्रकार के मरुस्थल पाये जाते हैं-गर्म मरुस्थल तथा ठण्डे मरुस्थल।
1. गर्म मरुस्थल-संसार के प्रमुख गर्म मरुस्थल अफ्रीका में सहारा और कालाहारी, अरब-ईरान का मरुस्थल, भारत-पाकिस्तान का थार मरुस्थल, दक्षिणी अमेरिका में ऐटोकामा, उत्तरी अमेरिका में दक्षिणी कैलिफ्रेनिया और उत्तरी मैक्सिको तथा ऑस्ट्रेलिया में पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया का मरुस्थल हैं। इन मरुस्थलों में अधिक गर्मी तथा कम वर्षा के कारण बहुत कम वनस्पति मिलती है। यहां केवल कांटेदार झाड़ियां, थोहर, छोटी-छोटी जड़ी-बूटियां और घास आदि ही पैदा होते हैं। प्रकृति ने इस वनस्पति को इस प्रकार का बनाया है कि यह अत्यधिक गर्मी और शुष्कता को सहन कर सके। इनकी जड़ें लम्बी और मोटी होती हैं ताकि पौधे गहराई से नमी प्राप्त कर सकें। पौधों का छिलका मोटा होता है तथा पत्ते मोटे और चिकने होते हैं, ताकि वाष्पीकरण से अधिक पानी नष्ट न हो।

2. ठण्डे मरुस्थल-ठण्डे मरुस्थल कनाडा तथा यूरेशिया के सुदूर उत्तरी अक्षांशों में स्थित हैं। यहां वर्ष में अधिकतर समय बर्फ जमी रहती है। जब थोड़े समय के लिए बर्फ पिघलती है, तो विभिन्न प्रकार के रंगों के फूलों वाले छोटे-छोटे पौधे उग आते हैं। उत्तरी भागों में छोटी-छोटी घास जैसे काई और लिचन (लाइकन) उग जाती है।

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प्रश्न 2.
संसार में जंगली जीवों की सुरक्षा तथा सम्भाल के बारे में लिखो। पारिस्थिति (पारिस्थितिक) सन्तुलन को बनाये रखने के लिए जंगली जीवों की भूमिका के बारे में लिखो।
उत्तर-
जंगली जीव हमारी अमूल्य सम्पत्ति हैं। परन्तु जंगलों के विनाश के साथ-साथ जंगली जीवों की संख्या बहुत कम होती जा रही है। मनुष्य जंगल काटने के साथ-साथ जंगली जीवों का शिकार भी करता रहा है। मांस, खाल तथा अन्य अंगों के लिए मनुष्य अन्धा-धुन्ध पशुओं का शिकार करता रहा है। परिणामस्वरूप जंगली जीवों की कई जातियां लुप्त हो गई हैं और कई जातियों की संख्या इतनी कम हो गई है कि उनके लुप्त हो जाने का खतरा पैदा हो गया है। उदाहरण के लिए भारत में गेंडा, चीता, शेर आदि जीव लुप्त होने की कगार पर हैं।

पारिस्थितिक सन्तुलन को बनाए रखने में जंगली जीवों की भूमिका-पारिस्थितिक सन्तुलन को बनाये रखने में वन्य जीवों का बहुत अधिक योगदान है। प्रकृति ने जीव-मण्डल की रचना इस प्रकार की है कि एक जीव भोजन के लिए दूसरे जीव पर निर्भर है। छोटे जीव बडे जीवों का भोजन हैं। मांसाहारी जीव घास खाने वाले जीवों पर निर्भर हैं। अतः किसी एक जीव-जाति का अस्तित्व समाप्त हो जाने पर पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। उदाहरण के लिए यदि शेर, चीते आदि मांसाहारी जीवों की संख्या बढ़ जाये या घास खाने वाले जीव कम हो जायें तो शेर तथा चीते भूखे मर जाएंगे या फिर मांसाहारी जीव मनुष्य को खाना आरम्भ कर देंगे। यदि स्थिति उलट हो जाए तो शेर और चीतों की संख्या कम हो जाये तो घास खाने वाले जीवों की संख्या बढ़ जायेगी। अत: वे सारी धरती की घास खा जायेंगे, जिससे लहलहाते हरे-भरे मैदान मरुस्थलों में बदल जायेंगे। भू-क्षरण भी बढ़ जायेगा। इस प्रकार पारिस्थितिक सन्तुलन बिगड़ जायेगा। अतः पारिस्थितिक सन्तुलन को बनाए रखने के लिए उपाय किये जाने चाहिएं। इसलिए बहुत से देशों में शिकार पर पाबन्दी लगा दी गई है। भारत में भी शिकार करना अपराध है और शिकार करने वाला व्यक्ति दण्ड का भागी हो सकता है।
PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव 2
जंगली जीवों की सुरक्षा के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत तथा कई अन्य देशों में राष्ट्रीय पार्क भी स्थापित किये गये हैं। इन पार्कों में वन्य जीवों को सुरक्षित रखने के लिए प्राकृतिक वातावरण प्रदान किया गया है। भारत के विभिन्न भागों में लगभग 20 राष्ट्रीय पार्क हैं। इनमें कॉर्बेट, शिवपुरी, कनेरी, राजदेवगा, गीर आदि के नाम लिए जा सकते हैं। इनके अतिरिक्त जीवों और मछलियों के लिए अलग-अलग आरक्षित केन्द्र हैं। छत्तबीड़ पंजाब में ऐसा ही एक केन्द्र है। अफ्रीका का सवाना घास-क्षेत्र वन्य जीवों का विशाल घर है। इस क्षेत्र में जेबरा, जिरोफ, बारहसिंगा, हिरण, बाघ, शेर, चीता, हाथी, जंगली भैंसे, गैंडे और अनेक प्रकार के कीड़े-मकौड़े पाये जाते हैं। (घ) संसार के नक्शे में निम्नलिखित क्षेत्र दिखाएं –
(1) सहारा मरुस्थलीय वनस्पति।
(2) लानोज़ घास-क्षेत्र।
(3) पंपास के घास-क्षेत्र।
(4) सैलवास जंगल।
नोट-MBD मानचित्रावली की सहायता से विद्यार्थी स्वयं करें।

PSEB 7th Class Social Science Guide प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
वनों की लकड़ी पर कौन-कौन से उद्योग निर्भर हैं?
उत्तर-
वनों की लकड़ी पर कई उद्योग निर्भर करते हैं। इन उद्योगों में फर्नीचर, खेलों का सामान, समुद्री बेड़े, रेलों के डिब्बे और स्लीपर, कागज़, प्लाईवुड, सामान पैक करने के लिए पेटियां बनाना आदि उद्योग शामिल हैं। इमारती लकड़ी भवन निर्माण में काम आती है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव

प्रश्न 2.
वनों की विभिन्नता को प्रभावित करने वाले तीन कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर-

  1. वर्षा की वार्षिक मात्रा
  2. मौसमी बांट तथा
  3. तापमान।

प्रश्न 3.
यूरेशिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
यूरोप तथा एशिया महाद्वीपों को सामूहिक रूप से यूरेशिया कहते हैं।

प्रश्न 4.
वनों की लकड़ी का प्रयोग मुख्यतः किन-किन कार्यों के लिए होता है?
उत्तर-
वनों की लकड़ी का प्रयोग मुख्य रूप से जलाने में होता है। वनों से प्राप्त कुल लकड़ी का 50% इसी काम आता है। 33% लकड़ी भवन निर्माण में तथा शेष लकड़ी अन्य कार्यों के लिए प्रयोग में लाई जाती है।

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प्रश्न 5.
वृक्षों की सुरक्षा एवं सम्भाल के कुछ उपाय बताइए।
उत्तर-

  1. कई बार आग लग जाने से वनों की भारी हानि होती है। इस ओर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है।
  2. वृक्षों की कटाई नियमों की सीमा में रहते हुए करनी चाहिए। साथ ही साथ नये वृक्ष भी लगाने चाहिए।
  3. इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि कीड़े-मकोड़ों और बीमारियों से वृक्ष नष्ट न हों।
  4. नहरों, नदियों, सड़कों, रेल-पटरियों के साथ-साथ खाली पड़ी भूमि पर अधिक-से-अधिक वृक्ष उगाए जाने चाहिए।
  5. ईंधन के लिए लकड़ी का प्रयोग कम किया जाना चाहिए। इसके स्थान पर गैस, सौर-शक्ति, गोबर-गैस आदि का प्रयोग करना चाहिए।
  6. भवन-निर्माण में भी लकड़ी के स्थान पर अन्य पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 6.
भू-मध्य रेखीय वनों को आकाश को छूने वाली एक इमारत (Sky Scraper) क्यों माना जाता है?
उत्तर-
आकाश को छूने वाली इमारत से अभिप्राय एक बहुत ऊंची अथवा अनेक मंज़िलों वाली इमारतों से है। भूमध्य रेखीय वन भी इसी प्रकार का दृश्य प्रस्तुत करते हैं। इसलिए इन्हें आकाश को छूने वाली इमारत माना जाता है।
1. इस वन-इमारत में सबसे ऊपर वाली मंज़िल 70 मीटर ऊंचे वृक्षों से बनती है। यहां धूप और हवा दोनों मिलते । हैं। यहां फल भी होते हैं और फूल भी।

2. इससे नीचे की मंज़िल छतरी नुमा होती है। वृक्षों की शाखाओं के परस्पर उलझ जाने के कारण यहां छतरी जैसी छत बन जाती है। यहां सूर्य का प्रकाश कम पहुँचता है जो फलों और फूलों के लिए लाभदायक है।

3. इससे नीचे वाली मंजिल परछाईं वाली होती है। यहां लताएं वृक्षों पर चढ़ जाती हैं और आपस में लिपटी हुई होती हैं। जो लताएं सूर्य के प्रकाश के बिना नहीं रह सकतीं, वे सूर्य का प्रकाश पाने के लिए ऊपर बढ़ जाती हैं।

4. सबसे नीचे वाली मंजिल पर बहुत अन्धेरा होता है। सूर्य का प्रकाश यहां बिल्कुल भी नहीं पहुंचता। इसका फर्श गले-सड़े पत्तों और कीड़े-मकौड़ों से ढका रहता है।

(क) रिक्त स्थान भरो :

  1. संसार का लगभग ……….. प्रतिशत स्थल क्षेत्र वनों से घिरा हुआ है।
  2. …………….. जंगलों को सदाबहार घने जंगल भी कहा जाता है।
  3. शीत उष्ण घास के मैदान ……………. वर्षा वाले क्षेत्रों में पाये जाते हैं।
  4. अफ्रीका का …………….. घास प्रदेश जंगली जीवों का विशाल घर है।

उत्तर-

  1. 30,
  2. भूमध्य-रेखी,
  3. कम,
  4. सवाना।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव

(ख) सही कथनों पर (✓) तथा गलत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. भूमध्य-रेखी जंगल आर्थिक दृष्टि से लाभदायक नहीं होते।
  2. मानसूनी वनों को सदाबहार वन भी कहा जाता है।
  3. भारत का थार मरुस्थल एक गर्म मरुस्थल है।
  4. भारत में जंगली जीवों की सुरक्षा के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)
  4. (✗)

(ग) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति की सघनता तथा आकार को कई तत्त्व प्रभावित करते हैं। इनमें से एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व कौन-सा है?
(i) समुद्री धाराएँ
(ii) जलवायु
(iii) प्रचलित पवनें।
उत्तर-
(ii) जलवायु।

प्रश्न 2.
ब्राजील में उष्ण घास के मैदान किस नाम से जाने जाते हैं ?
(i) पंपास
(ii) वेल्ड
(iii) कैंपोज़।
उत्तर-
(iii) कैंपोज़।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 5 प्राकृतिक वनस्पति तथा वन्य जीव

प्रश्न 3.
पंजाब का कौन-सा केन्द्र जीवों तथा पक्षियों से जुड़ा है?
(i) छत्तीसगड़
(ii) छत्तबीड़
(ii) राजदेवगा।
उत्तर-
(ii) छत्तबीड़।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

Punjab State Board PSEB 11th Class Sociology Book Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Sociology Chapter 9 सामाजिक संरचना

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (Textual Questions)

I. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना की अवधारणा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
समाज के अलग-अलग अन्तर्सम्बन्धित भागों के व्यवस्थित रूप को सामाजिक संरचना कहा जाता है।

प्रश्न 2.
वह कौन-सा पहला समाजशास्त्री है जिसने सबसे पहले सामाजिक संरचना शब्द का प्रयोग किया ?
उत्तर-
हरबर्ट स्पैंसर (Herbert Spencer) ने सबसे पहले शब्द सामाजिक संरचना का प्रयोग किया।

प्रश्न 3.
शब्द संरचना कहाँ से लिया गया है ?
उत्तर-
संरचना (Structure) शब्द लातिनी भाषा के शब्द ‘Staruer’ से निकला है जिसका अर्थ है ‘इमारत’।

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना के सामाजिक तत्त्वों के नाम लिखो।
उत्तर-
प्रस्थिति तथा भूमिका सामाजिक संरचना के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 5.
‘समाजशास्त्र के सिद्धान्त’ पुस्तक किसने लिखी है ?
उत्तर-
पुस्तक ‘The Principal of Sociology’ हरबर्ट स्पैंसर ने लिखी थी।

प्रश्न 6.
प्रस्थिति क्या है ?
उत्तर-
प्रस्थिति वह रूतबा है जो व्यक्ति को समाज में रहते हुए मिलता है।

प्रश्न 7.
सामाजिक प्रस्थिति के दो प्रकारों के नाम बताओ।
उत्तर-
प्रदत्त प्रस्थिति तथा अर्जित प्रस्थिति दो प्रकार की सामाजिक परिस्थितियां हैं।

प्रश्न 8.
आरोपित तथा अर्जित प्रस्थिति की अवधारणा किसने दी है ?
उत्तर-
यह शब्द राल्फ लिंटन (Ralph Linton) ने दिए थे।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 9.
आरोपित प्रस्थिति के कुछ उदाहरण लिखो।
उत्तर-
पिता की परिस्थिति तथा ब्राह्मण की परिस्थिति प्रदत्त परिस्थिति की दो उदाहरण हैं।

प्रश्न 10.
अर्जित प्रस्थिति के कुछ उदाहरण लिखो।
उत्तर-
डिप्टी कमिश्नर तथा प्रधानमन्त्री की परिस्थिति अर्जित परिस्थिति है।

प्रश्न 11.
भूमिका को परिभाषित करो।।
उत्तर-
लुण्डबर्ग के अनुसार, भूमिका व्यक्ति का किसी समूह या अवस्था में आशा किया गया व्यावहारिक तरीका है।

प्रश्न 12.
भूमिका की कोई दो विशेषताओं को बताइए।
उत्तर-

  1. भूमिका प्रस्थिति अथवा पद का कार्यात्मक पक्ष होती है।
  2. भूमिका को सामाजिक मान्यता प्राप्त होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 30-35 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
टालक्ट पारसन्ज़ (Talcott Parsons) के अनुसार, सामाजिक संरचना शब्द को परस्पर सम्बन्धित संस्थाओं, एजेन्सियों तथा सामाजिक प्रतिमानों व साथ ही समूह में प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों तथा परिस्थितियों की विशेष क्रमबद्धता के लिए प्रयोग किया जाता है।

प्रश्न 2.
प्रस्थिति तथा भूमिकाओं के मध्य दो समानताओं को लिखिए।
उत्तर-

  1. प्रस्थिति तथा भूमिका एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिन्हें कभी भी अलग नहीं किया जा सकता।
  2. प्रस्थिति समाज में व्यक्ति की स्थिति होती है तथा भूमिका प्रस्थिति का व्यावहारिक पक्ष है।
  3.  दोनों प्रस्थिति तथा भूमिका परिवर्तनशील है तथा बदलती रहती हैं।

प्रश्न 3.
परिवार की संरचना का चित्रणात्मक वर्णन करो।
उत्तर-
PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना 1

प्रश्न 4.
आरोपित तथा अर्जित प्रस्थिति के मध्य अंतर बताइए।
उत्तर-

  • आरोपित प्रस्थिति व्यक्तियों को जन्म के अनुसार प्राप्त होती है जबकि अर्जित प्रस्थिति हमेशा व्यक्ति अपने परिश्रम से प्राप्त करता है।
  • आरोपित प्रस्थितियों के कई आधार होते हैं जबकि अर्जित प्रस्थिति का आधार केवल व्यक्ति का परिश्रम होता है।

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प्रश्न 5.
किस प्रकार भूमिका एक सीखा हुआ व्यवहार है ?
उत्तर-
यह सब सत्य है कि भूमिकाएं सीखा हुआ व्यवहार है क्योंकि भूमिकाएं व्यवहारों का वह गुच्छा है जिन्हें या तो समाजीकरण या फिर निरीक्षण से सीखा जाता है। इसके साथ व्यक्ति सीखे हुए व्यवहार को जो अर्थ देता है, वह ही सामाजिक भूमिका है।

प्रश्न 6.
प्रस्थिति तथा भूमिका को संक्षिप्त रूप में लिखो।
उत्तर-
देखें पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न I (6, 11)

प्रश्न 7.
प्रस्थिति क्या है ?
उत्तर-
व्यक्ति की समूह में पाई गई स्थिति को सामाजिक प्रस्थिति का नाम दिया जाता है। यह स्थिति वह है जो व्यक्ति को अपने लिंग, अंतर, आयु, जन्म, कार्य इत्यादि की पहचान विशेषाधिकारों के संकेतों तथा कार्य के प्रतिमानों द्वारा प्राप्त होती है।

प्रश्न 8.
भूमिका प्रतिमान (Role Set) क्या है ?
उत्तर-
एक व्यक्ति को समाज में रहते हुए कई पद या प्रस्थितियां प्राप्त होती हैं। इन सभी पदों से सम्बन्धित भूमिकाओं के एकत्र को भूमिका सैट कहा जाता है। उदाहरण के लिए किसी समूह के 11वीं कक्षा के विद्यार्थी को बहुत से व्यक्तियों से मिलना पड़ता है तथा वह प्रत्येक से अलग ढंग से बात करता है। प्रत्येक से सम्बन्धित अलगअलग भूमिकाओं के एकत्र को भूमिका सैट कहते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 9.
भूमिका संघर्ष से आप क्या समझते हैं ? उदाहरण सहित बताओ।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति के पास बहुत से पद होते हैं तथा प्रत्येक पद के साथ अलग-अलग भूमिका जुड़ी होती है। व्यक्ति को इन भूमिकाओं को निभाना पड़ता है। जब वह इन सभी भूमिकाओं से तालमेल नहीं बिठा पाता तथा सभी को ठीक ढंग से नहीं निभा सकता तो इसे भूमिका संघर्ष कहा जाता है।

III. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 75-85 शब्दों में दीजिए :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना की तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
1. प्रत्येक समाज की संरचना अलग-अलग होती है क्योंकि समाज में पाए जाने वाले अंगों का सामाजिक जीवन में अलग-अलग ढंग होता है। प्रत्येक समाज के संस्थागत नियम अलग-अलग होते हैं जिस कारण संरचना अलग होती है।

2. सामाजिक संरचना अमूर्त होती है क्योंकि इसका निर्माण जिन इकाइयों से होता है वह सब अमूर्त होती है। इनका कोई ठोस रूप नहीं होता। हम इन्हें केवल महसूस कर सकते हैं जिस कारण यह अमूर्त होती है।

3. सामाजिक संरचना में संस्थाओं, सभाओं, परिमापों को एक विशेष व्यवस्था से बताने की कोई योजना नहीं बनाई जाती बल्कि इसका विकास सामाजिक अन्तक्रियाओं के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 2.
आरोपित प्रस्थिति क्या है ? इसके कुछ उदाहरण लिखो।
उत्तर-
प्रदत्त पद वह पद होता है जिसे व्यक्ति बिना परिश्रम किए प्राप्त कर लेता है। वह जिस परिवार या समाज में पैदा होता है, उसे उसके अनुसार ही पद प्राप्त हो जाता है। जैसे प्राचीन हिन्दू समाज में जाति प्रथा में ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। जो व्यक्ति जाति में पैदा होता था उसका समाज में उच्च स्थान होता था। लिंग, जाति, जन्म, आयु, रिश्तेदारी (Sex, Caste, Birth, Age, Kinship etc.) इत्यादि के आधार पर प्रदत्त पद बिना किसी प्रयत्न से प्राप्त किए जाते हैं। इस प्रकार का पद बिना किसी परिश्रम के प्राप्त हो जाता है तथा इस पद को कोई भी छीन नहीं सकता।

प्रश्न 3.
‘भूमिका सामाजिक संरचना का एक तत्त्व है।’ संक्षिप्त रूप में लिखिए।
उत्तर–
सामाजिक संरचना की इकाइयों के उप-समूह होते हैं तथा इन समूहों में सदस्यों की निश्चित नियमों के अनुसार भूमिकाएं दी जाती हैं। व्यक्तियों के बीच अन्तक्रियाएं होती हैं तथा अन्तक्रियाओं को स्पष्ट करने के लिए व्यक्तियों को भूमिकाएं दी जाती हैं। भूमिका व्यक्ति का विशेष स्थिति में व्यवहार होता है जो उसके पद से सम्बन्धित होता है। अगर सामाजिक संरचना में कोई परिवर्तन आता है तो व्यक्तियों के पदों तथा भूमिकाओं में भी परिवर्तन आ जाता है। इन भूमिकाओं के कारण ही लोगों के बीच सम्बन्ध स्थापित रहते हैं तथा सामाजिक संरचना

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 4.
‘प्रस्थिति सामाजिक संरचना का एक तत्त्व है।’ संक्षिप्त रूप में चर्चा कीजिए।
उत्तर-
इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रस्थिति सामाजिक संरचना का एक तत्व है। उप-समूह सामाजिक संरचना की इकाइयां होते हैं तथा इन समूहों में प्रत्येक व्यक्ति को कई स्थितियाँ प्राप्त होती हैं। लोगों के बीच अन्तक्रियाएं होती रहती हैं तथा इन अन्तक्रियाओं को स्पष्ट करने के लिए व्यक्तियों को कई स्थितियाँ दे दी जाती हैं। जब व्यक्ति को स्थिति प्राप्त होती है तो उसे अलग-अलग स्थितियों के अनुसार व्यवहार करना पड़ता है। अगर सामाजिक संरचना में कोई परिवर्तन आता है तो निश्चित तौर पर लोगों की स्थितियों के बीच भी परिवर्तन आ जाता है। इन स्थितियों के कारण ही लोगों के बीच संबंध स्थापित होते हैं तथा सामाजिक संरचना कायम रहती है।

प्रश्न 5.
प्रस्थिति तथा भूमिका किस प्रकार अन्तर्सम्बन्धित हैं ? व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
यह सत्य है कि पद तथा भूमिका अंतर्संबंधित है। वास्तव में दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अगर दोनों में से एक चीज़ दी जाएगी तथा दूसरी नहीं तो इन दोनों का कोई मूल्य नहीं रह जाएगा। दूसरा तो यह अर्थ है कि अधिकार दे दिए परन्तु ज़िम्मेदारी नहीं दी अथवा ज़िम्मेदारी दे दी परन्तु अधिकार नहीं। एक के न होने की स्थिति में दूसरा ठीक ढंग से कार्य नहीं कर सकता। अगर किसी के पास अधिकारी का पद है परन्तु ज़िम्मेदारी नहीं दी गई तो उस अधिकारी का समाज को कोई फायदा नहीं है। इस प्रकार अगर किसी को कोई भूमिका या जिम्मेदारी दे दी जाती है परन्तु कोई अधिकार या पद नहीं दिया जाता तो भी वह भूमिका ठीक ढंग से नहीं निभा सकेगा। इस प्रकार यह दोनों ही एक-दूसरे के साथ गहरे रूप से अन्तर्सम्बन्धित है।

IV. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 250-300 शब्दों में दें :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना को परिभाषित कीजिए। इसकी विशेषताओं पर विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर-
समाज कोई अखण्ड व्यवस्था नहीं है जो टूट न सके। समाज कई भागों से मिलकर बनता है। समाज को बनाने वाले अलग-अलग भाग या इकाइयां अपने निर्धारित कार्य करते हुए आपस में अन्तर्सम्बन्धित रहती हैं तथा एक प्रकार का सन्तुलन पैदा करते हैं। समाज शास्त्र की भाषा में इस सन्तुलन को सामाजिक व्यवस्था कहते हैं। इसके विपरीत जब समाज के यह अलग-अलग अन्तर्सम्बन्धित भाग जब एक-दूसरे से मिल कर ढांचे का निर्माण करते हैं तो इस ढांचे को सामाजिक संरचना कहा जाता है। संक्षेप में, संरचना का अर्थ उन इकाइयों के जोड़ से हैं जो आपस में अन्तर्सम्बन्धित है।

हैरी एम० जानसन (Harry M. Johnson) के अनुसार, “सामाजिक ढांचे का निर्माण अलग-अलग अंगों के परस्पर सम्बन्धों से होता है। चाहे सामाजिक संरचना में इन हिस्सों में परिवर्तन होता रहता है परन्तु फिर भी इसमें स्थिरता बनी रहती है। जानसन के अनुसार, “किसी भी चीज़ की संरचना उसके अंगों में पाए जाने वाले सापेक्ष तौर पर स्थायी अन्तर्सम्बन्धों को कहते हैं। साथ ही अंग शब्द में कुछ न कुछ स्थिरता की मात्रा लुप्त रहती है क्योंकि सामाजिक व्यवस्था लोगों की संरचना को इन क्रियाओं में पाई जाने वाली नियमितता की मात्रा या दोबारा आवर्तन में ढूंढा जाना चाहिए।”

मैकाइवर के विचार (Views of MacIver)-मैकाइवर ने भी सामाजिक संरचना को अमूर्त कहा है जिसमें कई समूह जैसे कि परिवार, श्रेणी, समुदाय, जाति इत्यादि आ जाते हैं।
इस समाजशास्त्री ने सामाजिक संरचना की स्थिरता तथा परिवर्तनशील प्रवृत्ति को स्वीकार किया है। मैकाइवर तथा पेज के अनुसार, “सामाजिक संरचना अपने आप में अस्थित तथा परिवर्तनशील है। इसका हरेक अवस्था में निश्चित स्थान होता है तथा इसके कई मुख्य तत्त्व ऐसे होते हैं जिनमें ज़्यादा परिवर्तन पाया जाता है।”

सामाजिक संरचना की विशेषताएं (Characteristics of Social Structure) –

1. अलग-अलग समाजों में अलग-अलग संरचना होती है (Different Societies have different Social Structures)-प्रत्येक समाज के अपने अलग नियम होते हैं क्योंकि समाज के अलग-अलग अंगों में पाए जाने वाले सम्बन्धों का सामाजिक जीवन के बीच अलग ही स्थान होता है। इसके अतिरिक्त अलग-अलग समय में भी सामाजिक संरचना अलग होती है। यह अन्तर इसलिए होता है क्योंकि समाज की इकाइयों में जो व्यवस्थित क्रम या सम्बन्ध पाए जाते हैं, वह अलग-अलग समाजों में अलग-अलग होते हैं।

2. समाज के बाहरी रूप को दिखाना (It shows the external aspect of society) सामाजिक संरचना का सम्बन्ध समाज की अन्दरूनी व्यवस्था से नहीं बल्कि बाहरी रूप को दिखाने से है। उदाहरण के लिए जैसे मनुष्य के शरीर के अलग-अलग अंग मिलकर इसका निर्माण करते हैं तथा शरीर का बाहरी ढांचा बनाते हैं, उसी तरह समाज के अलग-अलग हिस्से जुड़ कर समाज के बाहरी ढांचे का निर्माण करते हैं। जैसे मनुष्य के शरीर की बनावट के बारे में हम हाथों, टांगों, बांहों, पेट, सिर, गर्दन इत्यादि को लेकर बताते हैं। परन्तु यहां इनके कार्यों के बारे में नहीं बताते। सिर्फ शारीरिक ढांचे के बाहरी हिस्से को बताते हैं।

3. सामाजिक संरचना अमूर्त होती है (Social Structure is abstract)-सामाजिक संरचना समाज की अलग-अलग इकाइयों के अन्तर्सम्बन्धों की क्रमबद्धता को कहते हैं। सामाजिक ढांचे की इस क्रमबद्धता का कोई मूर्त रूप या आकार नहीं होता। इनको न तो पकड़ा जा सकता है न ही देखा जा सकता है। इसको केवल महसूस किया जा सकता है या इसके बारे में सोचा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर, जैसे सूर्य की तेज़ रोशनी के रंग, आकार का वर्णन नहीं किया जा सकता तथा न ही पकड़ा जा सकता है। इसको केवल हम महसूस कर सकते हैं कि धूप कम है या ज्यादा। इस तरह हम सम्बन्धों को सिर्फ महसूस कर सकते हैं तथा यह कह सकते हैं कि हमारी सामाजिक संरचना अमूर्त होती है।

4. संरचना के अन्दर उप-संरचनाओं का पाया जाना (Hierarchy of Sub-structure ina Structure)हमारे शारीरिक ढांचे का निर्माण कई छोटे-छोटे ढांचों से मिलकर बनता है। जैसे रीढ़ की हड्डी का ढांचा, गर्दन का ढांचा, हाथ, पैर इत्यादि का ढांचा। इस तरह किसी शैक्षिक संस्था का ढांचा ले लो तो स्टाफ, प्रिंसीपल, दफ़्तर इत्यादि के उप ढांचे मिलकर सम्पूर्ण शैक्षिक संस्था के ढांचे का निर्माण करते हैं। इन उप-ढांचों में कई और उपढांचे होते हैं। उसी तरह समाज एक स्तर में नहीं बल्कि अलग-अलग स्तरों में विभाजित होता है तथा इन सभी से मिलकर ही सामाजिक संरचना बनती है।

5. सामाजिक संरचना परिवर्तनशील होती है (Social Structure is Changeable)-रैडक्लिफ ब्राऊन के अनुसार, सामाजिक संरचना में गतिशील निरन्तरता रहती है। यह स्थिर नहीं होती। जैसे मनुष्य के ढांचे में परिवर्तन आते रहते हैं। उसी तरह समाज की संरचना में भी परिवर्तन आते रहते हैं। परन्तु परिवर्तन का यह अर्थ नहीं कि सामाजिक संरचना के मुख्य तत्त्व बदल जाते हैं। जैसे शारीरिक परिवर्तन से मुख्य तत्त्वों में परिवर्तन नहीं आता उसी तरह सामाजिक संरचना का निर्माण करने वाले अंग बदलते रहते हैं परन्तु इसके मुख्य तत्त्वों में कोई अन्तर नहीं आता है।

6. सामाजिक संरचना की हरेक इकाई का निश्चित स्थान होता है (Every unit of social structure has a definite position)-हमारी सामाजिक संरचना जिन अलग-अलग इकाइयों से मिल कर बनती है उन सब की स्थिति निश्चित तथा सीमित होती है। कोई भी इकाई दूसरी इकाई का स्थान नहीं ले सकती तथा न ही अपनी सीमा से बाहर जाती है।

7. सामाजिक संरचना के कुछ तत्त्व सर्वव्यापक होते हैं (Some elements of Social Structure are universal)—प्रत्येक समाज में सामाजिक संरचना के कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं जो सर्वव्यापक होते हैं। उदाहरण के तौर पर सामाजिक सम्बन्धों को ले लो। कोई भी समाज सामाजिक सम्बन्धों के बिना विकसित नहीं हो सकता। इस वजह से यह हरेक समाज में कायम होते हैं। कहने का अर्थ यह है कि सामाजिक संरचना में कुछ तत्त्व तो हरेक समाज में मौजूद होते हैं तथा कुछ तत्त्व ऐसे होते हैं जो प्रत्येक समाज में अलग-अलग होते हैं तथा इनके आधार पर ही हम एक समाज की सामाजिक संरचना को दूसरे समाज की सामाजिक संरचना से अलग कर सकते हैं।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचनाओं को बनाए रखने के लिए कौन सी व्यवस्था सहायक है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना में लगभग सभी मनुष्यों ने स्वयं को अलग-अलग सभाओं में संगठित किया होता . है ताकि कुछ समाज उद्देश्यों की प्राप्ति की जा सके। परन्तु इन उद्देश्यों की पूर्ति तब ही की जा सकती है जब सामाजिक संरचना कुछ प्रचालन व्यवस्थाओं (Operational systems) पर निर्भर हो तथा जो इसे बनाए रखने में सहायता कर सकें। इसका अर्थ है कि कुछ प्रचालन व्यवस्थाएं ऐसी होनी चाहिए जिनकी सहायता से सामाजिक संरचना को बना कर रखा जा सके। कुछेक व्यवस्थाओं का वर्णन इस प्रकार है

1. मानक व्यवस्थाएं (Normative Systems)-मानक व्यवस्थाएं समाज के सदस्यों के सामने कुछ आदर्श तथा कीमतें रखती हैं। समाज के सदस्य सामाजिक कीमतों तथा आदर्शों के साथ भावात्मक महत्त्व (Emotional importance) जोड़ देते हैं। अलग-अलग समूह, सभाएं, संस्थाएं, समुदाय इत्यादि इन नियमों परिभाषों के अनुसार एक-दूसरे के साथ अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। समाज के अलग-अलग सदस्य इन नियमों परिमापों के अनुसार अपनी भूमिकाएं निभाते रहते हैं।

2. स्थिति व्यवस्था (Position System)-स्थिति व्यवस्था का अर्थ उन परिस्थितियों तथा भूमिकाओं से है जो अलग-अलग व्यक्तियों को दिए जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की इच्छाएं तथा आशाएँ अलग-अलग तथा असीमित होती हैं। प्रत्येक समाज में प्रत्येक व्यक्ति के पास अलग-अलग तथा बहुत-सी स्थितियाँ या पद होते हैं। उदाहरण के लिए एक परिवार में ही व्यक्ति एक समय पर पुत्र, पिता, भाई, जेठ, देवर, जीजा, साला इत्यादि सब कुछ है। जब वह अपनी पत्नी के साथ बात कर रहा होता है तो वह पति की भूमिका निभा रहा होता है। इस समय वह पिता या पुत्र की भूमिका के बारे में सोच रहा होता है। दूसरे शब्दों में सामाजिक संरचना के ठीक ढंग से कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि स्थितियाँ तथा भूमिकाओं का भी ठीक ढंग से विभाजन किया जाए।

3. स्वीकृत व्यवस्था (Sanction System)-नियमों को ठीक ढंग से लागू करने के लिए समाज एक स्वीकृत व्यवस्था प्रदान करता है। अलग-अलग भागों के बीच तालमेल बिठाने के लिए यह आवश्यक है कि नियमों, परिमापों को ठीक ढंग से लागू किया जाए। स्वीकृत सकारात्मक भी हो सकती तथा नकारात्मक भी। जो लोग सामाजिक नियमों, परिमापों को मानते हैं उन्हें समाज की तरफ से इनाम मिलता है। जो लोग समाज के नियमों को नहीं मानते हैं, उन्हें समाज की तरफ से सज़ा मिलती है। सामाजिक संरचना की स्थिरता स्वीकृत व्यवस्था की प्रभावशीलता पर निर्भर करती है।

4. पूर्वानुमानित प्रक्रियाओं की व्यवस्था (System of Ahticipated Responses)-पूर्वानुमानित प्रक्रियाओं की व्यवस्था व्यक्तियों से आशा करती है कि वह सामाजिक व्यवस्था में भाग ले। समाज के सदस्यों के भाग लेने से ही सामाजिक संरचना चलती रहती है। सामाजिक संरचना के सफलतापूर्वक कार्य करने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्तियों को अपने उत्तरदायित्वों के बारे में पता हो। समाज के सदस्य प्रमाणित व्यवहार को समाजीकरण की प्रक्रिया की सहायता से ग्रहण करते हैं जिससे वह अन्य व्यक्तियों के व्यवहार का पूर्वानुमान लगा लेते हैं तथा उस प्रकार व्यवहार करते हैं। इस प्रकार पूर्व अनुमानित प्रक्रियाओं की व्यवस्था भी सामाजिक संरचना की स्थिरता का कारण बनती है।

5. कार्यात्मक व्यवस्था (Action System)-टालग्र पारसन्ज ने सामाजिक कार्य (Social Action) के संकल्प पर काफी बल दिया है। उसके अनुसार सामाजिक सम्बन्धों का जाल (समाज) व्यक्तियों के बीच होने वाली क्रियाओं तथा अन्तक्रियाओं में से निकला है। इस प्रकार कार्य व्यवस्था एक प्रमुख तत्त्व बन जाता है। जिससे समाज क्रियात्मक (Active) रहता है तथा सामाजिक संरचना चलती रहती है।

प्रश्न 3.
सामाजिक संरचना क्या है ? सामाजिक संरचना के तत्त्व क्या हैं ?
उत्तर-
हमारा समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। इस की अलग-अलग इकाइयां हैं जो एक-दूसरे से जुड़ी होने के साथ-साथ एक-दूसरे से सम्बन्धित भी हैं। कोई भी कार्य वह एक-दूसरे की मदद के बगैर नहीं कर सकती हैं अर्थात् उनमें एक सहयोग पाया जाता है। इसकी इकाइयां-समूह, संस्थाएं, सभाएं, संगठन इत्यादि हैं। इन इकाइयों का अकेले कोई अस्तित्व नहीं है बल्कि जब यह इकाइयां एक-दूसरे से सम्बन्धित हो जाती हैं तो एक ढांचे का रूप लेती हैं। इनकी सम्बन्धता में व्यवस्था तथा क्रम पाया जाता है तो ही हमारा समाज ठीक तरीके से कार्य करता है। क्रम तथा व्यवस्था को हम एक उदाहरण से सरल बना सकते हैं। जैसे डैस्क, बैंच, टीचर, प्रिंसीपल, चौकीदार, विद्यार्थी, इमारत इत्यादि एक जगह रखने से स्कूल का निर्माण नहीं होता। स्कूल का निर्माण उस समय होगा जब अलग-अलग इकाइयों एक व्यवस्थित तरीके से अपने-अपने निश्चित स्थान पर कार्य कर रही हों तो हम उसे स्कूल का नाम दे सकते हैं। प्रत्येक समाज की सामाजिक संरचना अलग-अलग होती है क्योंकि उसकी निर्माण करने वाली इकाइयों का क्रम अलग-अलग होता है।

हमारा समाज भी परिवर्तनशील है। समय-समय पर इस में प्राकृतिक शक्तियों या व्यक्तियों के आविष्कारों से परिवर्तन आता रहता है। इस वजह से सामाजिक ढांचा भी बदलता रहता है। इसकी इकाइयां भी मूर्त नहीं होती हैं क्योंकि हम इन्हें पकड़ नहीं सकते हैं। चाहे सामाजिक ढांचे के हिस्से जैसे परिवार, धर्म, संस्था, सभा, आर्थिकता इत्यादि एक जैसे होते हैं परन्तु इन के प्रकारों में अन्तर होता है। जैसे किसी समाज में पिता प्रधान परिवार हैं तथा किसी समाज में माता प्रधान परिवार अर्थात् हिस्सों में चाहे समानता होती है परन्तु इनके विशेष प्रकार अलग-अलग होते हैं। संक्षेप में, हम कह सकते हैं कि सामाजिक ढांचा वह व्यवस्थित प्रबन्ध है जिसके द्वारा सामाजिक सम्बन्धों को एक धागे में बांधा जा सकता है।

सामाजिक संरचना के तत्त्व (Elements of Social Structure)-

हैरी एम० जानसन तथा पारसन्ज़ के अनुसार सामाजिक संरचना में चार निम्नलिखित तत्त्व हैं-

  1. उप समूह (Sub groups)
  2. भूमिकाएं (Roles)
  3. सामाजिक परिमाप (Social Norms)
  4. सामाजिक कीमतें (Social Values)

1. उप समूह (Sub Groups)-जानसन तथा पारसन्ज़ के अनुसार सामाजिक संरचना को बनाने वाली इकाइयां या उप समूह होते हैं। हरेक बड़ा समूह उप-समूहों से मिलकर बनता है। उदाहरण के तौर पर, शैक्षिक समूह के अन्तर्गत स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, परिवार, धर्म इत्यादि वह सभी उप-समूह शामिल किए जाते हैं जो शैक्षिक समूह से किसी न किसी रूप में जुड़े होते हैं। व्यक्तियों को इन समूहों तथा उप-समूहों से भूमिकाएं तथा पद प्राप्त होते हैं। पद तथा भूमिका का स्थान समाज में निश्चित होता है। समाज में व्यक्ति जन्म लेते तथा मरते हैं परन्तु यह पद तथा भूमिका उसी तरह निश्चित रहते हैं। जन्म लेने वाला व्यक्ति इन्हें ग्रहण कर लेता है तथा एक व्यक्ति के मरने के बाद दूसरा व्यक्ति उसी पद तथा भूमिका को ग्रहण कर लेता है। उदाहरण के लिए अगर देश का प्रधानमन्त्री मर जाए तो दूसरा व्यक्ति प्रधानमन्त्री बन कर पद तथा भूमिका को उसी तरह सुचारु कर देता है। कहने का अर्थ यह है कि उप-समूह संक्षेप तथा स्थाई होते हैं। यह कभी भी ख़त्म नहीं होते। इनके सदस्य चाहे बदलते रहते हैं। उदाहरण के लिए परिवार, स्कूल, कॉलेज उसी तरह अपने स्थान पर कायम रहते हैं जैसे कि पुराने समय में थे। अंतर केवल यह होता है कि इन में कार्य करने वाले व्यक्ति बदलते रहते हैं।।

2. भूमिकाएं (Roles)—सामाजिक संरचना के उप-समूह में व्यक्ति को निश्चित प्रतिमान के द्वारा भूमिका से सम्बन्धित किया जाता है। समाज सामाजिक सम्बन्धों का जाल है। इन सम्बन्धों के विकास के लिए व्यक्तियों तथा समूहों के बीच अन्तक्रियाएं होती हैं। इन अन्तक्रियाओं में क्रियाशीलता को स्पष्ट करने के लिए भूमिका तथा पद को परिभाषित किया जाता है। भूमिका व्यक्ति के उस व्यवहार से सम्बन्धित होती है जो व्यक्ति किसी विशेष स्थिति में करता है तथा विशेष पद से सम्बन्धित जो कार्य व्यक्ति ने करने होते हैं उनको सामाजिक मान्यता द्वारा निर्धारित किया जाता है। सामाजिक संरचना में परिवर्तन होने से समाज में सदस्यों के पदों तथा भूमिकाओं में परिवर्तन होता है। इन भूमिकाओं के ही निश्चित तथा स्थायी सम्बन्धों से सामाजिक संरचना जुड़ी होती है तथा काम करती रहती है।

3. सामाजिक परिमाप (Social Norms) भूमिकाएं तथा उप-समूह सामाजिक परिमापों से सम्बन्धित होते हैं क्योंकि इन परिमापों के द्वारा व्यक्ति के कार्यों का मूल्यांकन किया जाता है। इसी वजह से भूमिकाएं तथा उपसमूह स्थिर होते हैं।

सामाजिक परिमापों में कई नियम तथा उपनियम होते हैं। यह व्यक्तिगत व्यवहार में वह मान्यता प्राप्त तरीके होते हैं जिनके साथ सामाजिक संरचना का निर्माण होता है। सामाजिक आदर्श उन परिमापों से जुड़े होते हैं। अगर यह परिमाप न हो तो व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी नहीं जान सकता तथा न ही हमारी सामाजिक संरचना कायम रह सकती है। उदाहरण के तौर पर पिता-पुत्र, मां-बेटी, भाई-बहन, अध्यापक-विद्यार्थी इत्यादि की भूमिकाओं को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की आपसी ज़िम्मेदारियों को सामाजिक परिमापों के द्वारा ही बनाया जाता है। सामाजिक संरचना के लिए यह बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं।

सामाजिक परिमाप के द्वारा विशेष स्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार को संचालित तथा निर्देशित किया जाता है जिससे भूमिकाएं तथा उप समूह कायम रहते हैं। यह सामाजिक संरचना का तीसरा मुख्य तत्त्व है।

4. सामाजिक कीमतें (Social Values)-जानसन के अनुसार कीमतें मापदण्ड होती हैं क्योंकि इनके द्वारा सामाजिक परिमापों का मूल्यांकन किया जाता है। यह समाज के सदस्यों की भावनाओं को प्रभावित करती है। व्यक्ति जब किसी चीज़ के बारे में बात करता है या फ़ैसला लेता है तो उसके ऊपर भावनाओं का प्रभाव ज़रूर रहता है।

परिमाप शब्द का प्रयोग विशेष व्यावहारिक प्रतिमान के लिए किया जाता है जबकि कीमतें साधारण मापदण्ड होती हैं। इनको हम उच्च स्तर के परिमाप भी कह सकते हैं। सामाजिक विघटन को रोकने के लिए तथा सामाजिक व्यवस्था के लिए सामाजिक कीमतों का अपना महत्त्व होता है। समूह की भावनाएं भी इन कीमतों से ही सम्बन्धित होती हैं। इनमें कार्यात्मक सम्बन्ध भी पाया जाता है जिससे सामाजिक सम्बन्धों का जाल नहीं टूटता तथा इन सम्बन्धों में तालमेल बना रहता है। व्यक्ति तथा समूह में भावनाओं का तालमेल स्थापित हो जाता है जिससे व्यवहारों का चुनाव तथा मूल्यांकन करने के लिए कीमतों का प्रयोग मापदण्ड के रूप में किया जाता है। सामाजिक कीमतों के द्वारा व्यक्तियों या समूहों की क्रियाओं की जांच करके उनको अच्छे या बुरे, उच्च या निम्न वर्ग में भी बांटा जा सकता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 4.
प्रस्थिति को परिभाषित कीजिए। इनकी विशेषताओं को विस्तृत रूप में लिखिए।
उत्तर-
पद या प्रस्थिति का अर्थ (Meaning of Status)-समाज में स्थिति सामाजिक कीमतों से सम्बन्धित होती है। उदाहरण के लिए भारतीय समाज में पुरुषों की स्थिति औरतों से उच्च होती है। स्थिति से अर्थ व्यक्ति का समूह में पाया गया स्थान होता है। यह स्थान व्यक्ति को विशेष प्रकार के अधिकारों द्वारा प्राप्त होता है जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। आमतौर पर एक व्यक्ति समाज में रहते हुए कई प्रकार के पदों को अदा कर रहा होता है अर्थात् व्यक्ति जितने भी समूहों या संस्थाओं का सदस्य होता है उतने ही उस के पद होते हैं। इस पद के द्वारा ही व्यक्ति समाज में उच्च या निम्न नज़र से देखा जाता है।

पद वह सामाजिक स्थिति होती है जिसको व्यक्ति समाज में रह कर समाज के सदस्यों द्वारा स्वीकार करने पर प्राप्त करता है। समाज में हरेक व्यक्ति का कोई न कोई पद होता है। यह समाज में किसी व्यक्ति की सम्पूर्ण सामाजिक स्थिति का एक हिस्सा होता है। इसी वजह से इसको सामाजिक व्यवस्था का आधार माना जाता है। पद का बाहरी चित्र व्यक्ति अपने कार्यों से प्रकट करता है तथा इस का महत्त्व हमें दूसरे के पद से तुलना करके ही पता चला सकता है। इससे एक तरह समाज के लोगों के अलग-अलग श्रेणियों में विभाजित किया जाता है जिससे व्यक्ति की समाज में रहते हुए एक पहचान स्थापित हो जाती है।

प्रस्थिति या पद की परिभाषाएं (Definitions of Status)-
1. सेकार्ड तथा बरकमैन (Secard and Berkman) के अनुसार, “पद समूह तथा व्यक्तियों के वर्ग द्वारा अनुमानित किसी व्यक्ति का मूल्य होता है।”

2. किंगस्ले डेविस (Kingsley Davis) के अनुसार, “पद आम सामाजिक व्यवस्था में समाज द्वारा मान्यता प्राप्त तथा प्रदान की गई स्थितियां हैं जो विचारपूर्वक नियमित न होकर अपने आप विकसित होती हैं तथा लोगों के विचारों तथा लोगों की रीतियों पर आधारित होती है।”

3. लिंटन (Linton) के अनुसार, “किसी व्यवस्था विशेष में किसी समय विशेष में एक व्यक्ति को जो स्थान प्राप्त होता है, वह ही उस की व्यवस्था के बीच उस व्यक्ति का पद या स्थिति होती है। अपनी स्थिति को वैध सिद्ध करने के लिए व्यक्ति को जो कुछ करना पड़ता है, उस को पद कहते हैं।”

4. मैकाइवर तथा पेज (MacIver and Page) के अनुसार, “पद वह सामाजिक स्थान है जो उस को ग्रहण करने वाले के लिए उस से व्यक्तिगत गुणों तथा सामाजिक सेवा के अतिरिक्त आदर, प्रतिष्ठा तथा प्रभाव की मात्रा निश्चित करता है।”

इस तरह इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि समूह के बीच एक निश्चित समय में व्यक्ति को जो दर्जा या स्थान प्राप्त होता है वह उस का सामाजिक पद होता है। पद समूह में होता है इसलिए वह जितने समूहों का सदस्य होता है उस को उतने पद प्राप्त होते हैं।

सामाजिक प्रस्थिति अथवा पद की विशेषताएं (Features of Social Status)-

1. व्यक्ति का पद समाज की संस्कृति द्वारा निश्चित होता है (Status of a man is determined by the culture of society)-व्यक्ति का पद समाज की सांस्कृतिक कीमतों द्वारा निर्धारित होता है। कौन-सा व्यक्ति किस पद पर बैठेगा, उस पद के कौन-से अधिकार तथा कर्त्तव्य हैं ? इस का फैसला समाज के लोग करेंगे। जो स्थिति व्यक्ति समाज में रह कर प्राप्त करता है उससे सम्बन्धित उस के कार्य भी होते हैं। उदाहरण के लिए मातृ प्रधान परिवार के बीच माता का पद ऊँचा होता है तथा माता ही घर के फैसले लेती है तथा घर के सदस्यों की ज़िम्मेदारी उठाती है। पिता प्रधान परिवार के बीच पिता का पद ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है तथा जायदाद भी पिता के नाम ही होती है, घर के सदस्यों की ज़िम्मेदारी भी पिता की ही होती है।

2. समाज में व्यक्ति के पद को समझने के लिए दूसरे व्यक्ति के पद से तुलना करके ही समझा जा सकता है (Status of a person is determined by comparing it with status of other person) हम किसी व्यक्ति के पद को दूसरे व्यक्ति के पद के साथ तुलना करके ही समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए मुख्याध्यापक के पद के बिना अध्यापक की स्थिति को समझना असम्भव होता है। कहने का अर्थ यह है कि पद तुलनात्मक शब्द होता है। इसके अर्थ को दूसरे सदस्य के सन्दर्भ में ही समझा जा सकता है। .

3. हरेक प्रस्थिति का समाज में एक स्थान होता है (Every status has a place in society)-प्रत्येक पद समाज के आदर तथा विशेषाधिकारों के संकेतों तथा कार्यों के परिमापों द्वारा ही पहचाना जाता है। उदाहरण के लिए दफ़्तर में एक बड़े अफसर तथा क्लर्क का पद अलग-अलग होता है। इनको सामूहिकता के आधार पर ही बताया जाता है।

4. भूमिका निश्चित होना (Determination of Roles)—पद तथा उससे सम्बन्धित भूमिका भी निश्चित हो जाती है। यह भूमिका भी सामाजिक कीमतों के आधार पर निर्धारित की जाती है। व्यक्ति पद द्वारा प्राप्त की गई भूमिका को निभाता है। समाज में कुछ भूमिकाएं विशेष होती हैं क्योंकि वह समाज के महत्त्वपूर्ण तथा ज़रूरी कार्यों से सम्बन्धित होती हैं।

5. एक व्यक्ति कई पदों पर हो सकता है (One person can be on many Status)-व्यक्ति केवल एक ही पद प्राप्त नहीं करता है बल्कि अलग-अलग सामाजिक हालातों में वह अलग-अलग पदों पर बैठता है। एक ही व्यक्ति किसी क्लब का प्रधान, स्कूल में टीचर, परिवार में पिता, पुत्र, चाचा, मामा इत्यादि कई पद प्राप्त कर सकता है। इस तरह व्यक्ति अपनी शिक्षा, योग्यता के अनुसार सारे पदों के बीच सम्बन्ध तथा सन्तुलन बनाए रखता है या रखने की कोशिश करता है।

6. पद के आधार पर समाज में स्तरीकरण हो जाता है (Stratification in Society based on Statuses)-इस का अर्थ है कि समाज में व्यक्तियों को अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। इससे सामाजिक गतिशीलता भी बढ़ती है। अलग-अलग वर्गों में बाँटे जाने के कारण समाज में अलग-अलग स्तर बन जाते हैं जिससे समाज अपने आप ही स्तरीकृत हो जाता है।

7. पद का मनोवैज्ञानिक आधार भी होता है (Status has psychological base)-क्योंकि समाज में रहते हुए व्यक्ति लगातार उच्च पद की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करता रहता है इसलिए व्यक्ति में भावनाओं का निर्माण हो जाता है। क्योंकि इसके साथ इज्ज़त तथा बेइज्जती भी जुड़ी होती है इसी लिए यह व्यक्ति के मानसिक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। व्यक्ति को जब उसकी योग्यता के अनुसार पद पर लगाया जाता है तो वह मानसिक तौर पर सन्तुष्ट हो जाता है।

प्रश्न 5.
भूमिका को परिभाषित कीजिए। इसकी विशेषताओं को विस्तृत रूप में लिखिए।
उत्तर-
हरेक स्थिति के साथ कुछ मांगें (Demands) जुड़ी होती हैं जो यह बताती हैं कि किस समय व्यक्ति से किस प्रकार के कार्य की उम्मीद की जाती है। यह भूमिका का क्रियात्मक पक्ष है । इस में व्यक्ति अपनी योग्यता, लिंग, पेशे, पैसे इत्यादि के आधार पर कोई पद प्राप्त करता है तथा उस को उस पद के सन्दर्भ में परम्परा, कानून या नियम के अनुसार जो भी भूमिका निभानी पड़ती है वह उसका कार्य है। इस तरह यह स्पष्ट है कि कार्य की धारणा में दो तत्त्व हैं-उम्मीद तथा क्रियाएं। उम्मीद से अर्थ है कि वह किसी विशेष समय में विशेष प्रकार का व्यवहार करे तथा क्रिया या भूमिका उस विशेष स्थिति का कार्य होगा। इस तरह उसकी भूमिका बंधी हई होगी।

समाज की सामाजिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए सामाजिक पद का महत्त्व उस समय तक नहीं हो सकता जब तक व्यक्ति को उस से सम्बन्धित रोल प्राप्त न हो। पद तथा भूमिका एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जो एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। समाज में व्यक्तियों को उनके कार्यों के आधार पर भी अलग किया जाता है। कुछ व्यक्ति डॉक्टर, वकील, इंजीनियर, क्लर्क, अफसर इत्यादि होते हैं जो अपने कार्यों के आधार पर एक-दूसरे से जुड़े हुए होते हैं क्योंकि एक व्यक्ति सभी कार्यों में माहिर नहीं हो सकता।

इस तरह हम कह सकते हैं कि हरेक पद के साथ सम्बन्धित कार्यों का सैट होता है। इन कार्यों के सैट को रोल या भूमिका कहा जाता है। इस तरह व्यक्ति किसी-न-किसी पद के ऊपर होता है तथा उस पद से सम्बन्धित उस को कोई न कोई कार्य करने पड़ते हैं। इन कार्यों के सैट को भूमिका कहा जाता है। इस तरह स्पष्ट है कि अलगअलग पदों के लिए अलग-अलग भूमिकाएं होती हैं। भूमिका उस व्यवहार का प्रतिनिधित्व करती है जो किसी पद को प्राप्त करने वाले व्यक्ति से करने की आशा की जाती है। भूमिका तथा पद एक-दूसरे से अलग नहीं हो सकते। भूमिका पूर्ण रूप से पद के ऊपर निर्भर करती है। इस वजह से अलग-अलग पदों पर व्यक्ति अलग-अलग कार्य करता है

परिभाषाएं (Definitions)-
1. लिंटन (Linton) के अनुसार, “भूमिका का अर्थ सांस्कृतिक प्रतिमानों के योग से है जो किसी विशेष पद से सम्बन्धित होता है। इस प्रकार इस में वह सभी कीमतें तथा व्यवहार शामिल हैं जो समाज किसी पद को ग्रहण करने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों को प्रदान करता है।”

2. सार्जेंट (Sargent) के अनुसार, “किसी भी व्यक्ति की भूमिका उसके सामाजिक व्यवहार का एक प्रतिमान या प्रकार है जो उस समूह की ज़रूरतों, उम्मीदों तथा हालातों के अनुसार उचित प्रतीत होता है।”

3. लुण्डबर्ग (Lundberg) के अनुसार, “भूमिका व्यक्ति का किसी समूह या अवस्था में उम्मीद किया हुआ व्यावहारिक तरीका होता है।”
इस तरह इन परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि भूमिका का अर्थ व्यक्ति के पूर्ण व्यवहार से नहीं बल्कि उस विशेष व्यवहार से है जो वह किसी विशेष हालात में करता है। भूमिका वह तरीका है जिसमें व्यक्ति अपनी स्थिति से सम्बन्धित कर्तव्यों को पूरा करता है।

भूमिका की विशेषताएं (Characteristics of Social Role) –

1. भूमिका कार्यात्मक होती है (Role is functional)—पारसन्ज़ के अनुसार कर्ता अन्य कर्ताओं के साथ सम्बन्धित होते हुए भी कार्य करता है। व्यक्ति को अपनी स्थिति के अनुसार कार्य करने पड़ते हैं क्योंकि उससे अपनी स्थिति के अनुरूप कार्य करने की अपेक्षा की जाती है। इसलिए हम कह सकते हैं कि भूमिका कार्यात्मक होती है।

2. भूमिका संस्कृति द्वारा नियमित होती है (Role is determined by culture)-हरेक व्यक्ति को सामाजिक परम्पराओं, नियमों या संस्कृति के अनुसार कोई न कोई स्थिति प्राप्त होती है। यह स्थिति संस्कृति द्वारा दी जाती है। हरेक स्थिति से सम्बन्धित भूमिका भी होती है तथा उस स्थिति पर बैठे व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह अपना कार्य तथा भूमिका को निभाए। उसको अपनी भूमिका सामाजिक नियमों तथा संस्कृति के अनुसार ही निभानी पड़ती है। इसलिए यह संस्कृति द्वारा नियमित होती है।

3. एक व्यक्ति कई भूमिकाओं से सम्बन्धित होता है (One individual is related with many roles)—एक ही व्यक्ति कई कार्य करने के योग्य होता है जिस वजह से उसको कई स्थितियां तथा उनसे सम्बन्धित भूमिकाएं भी प्राप्त हो जाती हैं। उदाहरण के तौर पर एक व्यक्ति बच्चे का पिता, स्कूल का अध्यापक, क्लब का सदस्य, धार्मिक सभा का नेता इत्यादि भूमिकाएं निभाता है। उस तरह अकेला व्यक्ति कई प्रकार की भूमिकाएं निभाने के योग्य होता है।

4. एक भूमिका को दूसरी भूमिका के सन्दर्भ में समझा जा सकता है (One Role can be understandable only within the context of other roles)-अगर हमें किसी भूमिका के महत्त्व को समझना है तो उसे हम किसी और सम्बन्धित भूमिका के सन्दर्भ में रख कर ही समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए एक परिवार में पति, पत्नियां तथा बच्चों की भूमिका को अगर समझना है तो इन को एक-दूसरे के सन्दर्भ में ही समझ सकते हैं। पत्नी तथा बच्चों के बिना पति की भूमिका अर्थहीन हो जाएगी।

5. भूमिका का निर्धारण सामाजिक मान्यता द्वारा होता है (Role are determined by social sanctious)—दो व्यक्तियों का स्वभाव एक जैसा नहीं होता है। अगर समाज के सदस्यों को उन की इच्छा के अनुसार भूमिका न दी जाए तो कोई भी कार्य ठीक तरह से नहीं हो सकेगा तथा कुछ व्यक्ति सामाजिक कीमतें के विरुद्ध कार्य करने लगेंगे। इसलिए समाज में सिर्फ उन भूमिकाओं को स्वीकार किया जाता है जिन को समाज की मान्यता प्राप्त होती है। यह हमारी सामाजिक संस्कृति ही निर्धारित करती है कि कौन सी भूमिकाएं, किन व्यक्तियों के द्वारा तथा कैसे निभायी जाएंगी।

6. व्यक्ति की योग्यता का महत्त्व (Importance of individuals ability)- जब एक व्यक्ति कई प्रकार की भूमिकाएं निभा रहा होता है तो यह ज़रूरी नहीं कि वह इन सब भूमिकाओं को निभाने के योग्य हो क्योंकि कई बार व्यक्ति किसी विशेष भूमिका को निभाने में सफल होता है तो दूसरी भूमिका निभाने में असफल भी हो जाता है। कहने का अर्थ यह है कि व्यक्ति अपनी योग्यता के अनुसार हर भूमिका को अच्छे, ज्यादा अच्छे या गलत तरीके से भी निभा. सकता है।

7. अलग-अलग भूमिकाओं का अलग-अलग महत्त्व (Different importance of different roles)इस का अर्थ है कि समाज में कुछ भूमिकाएं महत्त्वपूर्ण हिस्सों से सम्बन्धित होती हैं, उन का महत्त्व ज्यादा होता है क्योंकि इस प्रकार की भूमिकाओं को अदा करने के लिए व्यक्ति को ज्यादा परिश्रम तथा प्रशिक्षण प्राप्त करना पड़ता है। इस तरह की भूमिकाओं को महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं कहा जाता हैं। उदाहरण के तौर पर I.A.S. से सम्बन्धित भूमिकाएं समाज के लिए महत्त्वपूर्ण होती हैं क्योंकि यह समाज की सुरक्षा के लिए होती है।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. बहुविकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions):

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सी सामाजिक संरचना की विशेषता है ?
(A) संरचना किसी चीज़ के बाहरी ढांचे का बोध करवाती है
(B) सामाजिक संरचना के कई तत्त्व होते हैं।
(C) भिन्न-भिन्न समाजों की भिन्न-भिन्न संरचना होती है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना एक…….
(A) स्थायी धारणा है
(B) अस्थायी धारणा है
(C) टूटने वाली धारणा है।
(D) बदलने वाली धारणा है।
उत्तर-
(A) स्थायी धारणा है।

प्रश्न 3.
सबसे पहले सामाजिक संरचना शब्द का प्रयोग किस समाज शास्त्रीय ने किया था ?
(A) नैडल
(B) हरबर्ट स्पैंसर
(C) टालक्ट पारसन्ज
(D) मैलिनोवस्की।
उत्तर-
(B) हरबर्ट स्पैंसर।

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना का निर्माण कौन करता है ?
(A) समुदाय
(B) धर्म
(C) मूल्य
(D) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपर्युक्त सभी।

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प्रश्न 5.
अलग-अलग इकाइयों के क्रमबद्ध रूप को क्या कहते हैं ?
(A) अन्तक्रिया
(B) व्यवस्था
(C) संरचना
(D) कोई नहीं।
उत्तर-
(C) संरचना।

प्रश्न 6.
आधुनिक समाजों की संरचना किस प्रकार की होती है ?
(A) साधारण
(B) जटिल
(C) व्यवस्थित
(D) आधुनिक।
उत्तर-
(B) जटिल।

प्रश्न 7.
भूमिका किसके द्वारा नियमित होती है ?
(A) समाज
(B) समूह
(C) संस्कृति
(D) देश।
उत्तर-
(C) संस्कृति।

प्रश्न 8.
भूमिका की कोई विशेषता बताएं।
(A) एक व्यक्ति की कई भूमिकाएं होती हैं।
(B) भूमिका हमारी संस्कृति द्वारा नियमित होती है।
(C) भूमिका कार्यात्मक होती है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 9.
किसके कारण समाज अलग-अलग वर्गों में बांटा जाता है ?
(A) भूमिका
(B) प्रस्थिति
(C) प्रतिष्ठा
(D) रोल।
उत्तर-
(B) प्रस्थिति।

प्रश्न 10.
सामाजिक पद की विशेषता बताएं।
(A) प्रत्येक पद का समाज में स्थान होता है।
(B) पद के कारण भूमिका निश्चित होती है।
(C) पद समाज की संस्कृति द्वारा निर्धारित होता है।
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
व्यक्ति को समाज में रहकर मिली प्रस्थिति को क्या कहते हैं ?
(A) पद
(B) रोल
(C) भूमिका
(D) जिम्मेदारी।
उत्तर-
(A) पद।

प्रश्न 12.
जो पद व्यक्ति को जन्म के आधार पर प्राप्त होता है उसे क्या कहते हैं ?
(A) अर्जित पद
(B) प्राप्त पद
(C) प्रदत्त पद
(D) भूमिका पद।
उत्तर-
(C) प्रदत्त पद।

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प्रश्न 13.
जो पद व्यक्ति अपनी योग्यता के आधार पर प्राप्त करता है उसे क्या कहते हैं ?
(A) प्राप्त पद
(B) भूमिका पद
(C) प्रदत्त पद
(D) अर्जित पद।
उत्तर-
(D) अर्जित पद।

प्रश्न 14.
प्रदत्त पद का आधार क्या होता है ?
(A) जन्म
(B) आयु
(C) लिंग
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 15.
अर्जित पद का आधार क्या होता है ?
(A) शिक्षा
(B) पैसा
(C) व्यक्तिगत योग्यता
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

II. रिक्त स्थान भरें (Fill in the blanks) :

1. समाज के अलग अलग अन्तर्सम्बन्धित भागों के व्यवस्थित रूप को …………….. कहते हैं।
2. जब एक व्यक्ति को बहुत सी भूमिकाएं प्राप्त हो जाएं तो इसे …………… कहते हैं।
3. ……….. वह स्थिति है जो व्यक्ति को मिलती है तथा निभानी पड़ती है।
4. ………….. प्रस्थिति जन्म के आधार पर प्राप्त होती है।
5. ………….. प्रस्थिति व्यक्ति अपने परिश्रम से प्राप्त करता है।
6. तथा …………….. एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
उत्तर-

  1. सामाजिक संरचना,
  2. भूमिका प्रतिमान,
  3. प्रस्थिति,
  4. प्रदत्त,
  5. अर्जित,
  6. प्रस्थिति व भूमिका।

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III. सही/गलत (True/False) :

1. सर्वप्रथम शब्द सामाजिक संरचना का प्रयोग हरबर्ट स्पैंसर ने दिया था।
2. समाज के सभी भाग अन्तर्सम्बन्धित होते हैं।
3. स्पैंसर ने पुस्तक The Principle of Sociology लिखी थी।
4. प्रस्थिति तीन प्रकार की होती है।।
5. प्रदत्त प्रस्थिति व्यक्ति परिश्रम से प्राप्त करता है।
6. अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त हो जाती है।
उत्तर-

  1. सही,
  2. सही,
  3. सही,
  4. गलत,
  5. गलत,
  6. गलत।

IV. एक शब्द/पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर (One Wordline Question Answers) :

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना समाज के किस भाग के बारे में बताती है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना समाज के बाहरी भाग के बारे में बताती है।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना का निर्माण कौन-सी इकाइयां करती हैं ?
उत्तर-
समाज की महत्त्वपूर्ण इकाइयां जैसे कि संस्थाएं, समूह, व्यक्ति इत्यादि सामाजिक संरचना का निर्माण करती है।

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प्रश्न 3.
संरचना की इकाइयों से हमें क्या मिलता है ?
उत्तर-
संरचना की इकाईयों से हमें क्रमबद्धता मिलती है।

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना किस प्रकार की धारणा है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना एक स्थायी धारणा है जो हमेशा मौजूद रहती है।

प्रश्न 5.
सामाजिक संरचना का मूल आधार क्या है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना का मूल आधार आदर्श व्यवस्था है।

प्रश्न 6.
टालक्ट पारसन्ज़ ने कितने प्रकार की सामजिक संरचनाओं के बारे में बताया है ?
उत्तर-
पारसन्ज़ ने चार प्रकार की सामाजिक संरचनाओं के बारे में बताया है।

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प्रश्न 7.
किन समाजशास्त्री ने सामाजिक संरचना को मानवीय शरीर के आधार पर समझाया है ?
उत्तर-
हरबर्ट स्पैंसर ने सामाजिक संरचना को मानवीय शरीर के आधार पर समझाया है।

प्रश्न 8.
क्या सभी समाजों की संरचना एक जैसी होती है ?
उत्तर-
जी नहीं, अलग-अलग समाजों की संरचना अलग-अलग होती है।

प्रश्न 9.
सामाजिक संरचना के कौन-से दो तत्त्व होते हैं ?
उत्तर–
सामाजिक संरचना के दो प्रमुख तत्त्व आदर्शात्मक व्यवस्था तथा पद व्यवस्था होते हैं।

प्रश्न 10.
आधुनिक समाजों की संरचना किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
आधुनिक समाजों की संरचना जटिल होती है।

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प्रश्न 11.
प्राचीन समाजों की संरचना किस प्रकार की होती है ?
उत्तर-
प्राचीन समाजों की संरचना साधारण तथा सरल थी।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संरचना क्या होती है ?
उत्तर-
अलग-अलग इकाइयों के क्रमबद्ध रूप को संरचना कहा जाता है। इसका अर्थ है कि अगर अलगअलग इकाइयों को एक क्रम में लगा दिया जाए तो एक व्यवस्थित रूप हमारे सामने आता है जिसे हम संरचना कहते हैं।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना का निर्माण कौन करता है ?
उत्तर-
सामाजिक संरचना का निर्माण परिवार, धर्म, समुदाय, संगठन, समूह मूल्य, पद इत्यादि जैसी सामाजिक इकाइयां तथा प्रतिमान करते हैं। इनके अतिरिक्त आदर्श व्यवस्था, कार्यात्मक व्यवस्था, स्वीकृति व्यवस्था भी इसमें महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।

प्रश्न 3.
क्या सामाजिक संरचना अमूर्त होती है ?
उत्तर-
जी हाँ, सामाजिक संरचना अमूर्त होती है क्योंकि सामाजिक संरचना का निर्माण करने वाली संस्थाएँ, प्रतिमान, आदर्श इत्यादि अमूर्त होते हैं तथा हम इन्हें देख नहीं सकते। इस कारण सामाजिक संरचना भी अमूर्त होती

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प्रश्न 4.
टालक्ट पारसन्ज़ ने सामाजिक संरचना के कौन-से प्रकार दिए हैं ?
उत्तर-
पारसन्ज़ ने सामाजिक संरचना के चार प्रकार दिए हैं तथा वे हैं

  1. सर्वव्यापक अर्जित प्रतिमान
  2. सर्वव्यापक प्रदत्त प्रतिमान
  3. विशेष अर्जित प्रतिमान
  4. विशेष प्रदत्त प्रतिमान।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना।
उत्तर-
हमारा समाज कई इकाइयों के सहयोग की वजह से पाया जाता है। ये इकाइयां संस्थाएं, सभाएं, समूह, पद, भूमिका इत्यादि होते हैं। इन इकाइयों के मिश्रण से ही ‘समाज’ का निर्माण नहीं होता बल्कि इन इकाइयों में पाई गई तरतीब के व्यवस्थित होने से होता है। उदाहरण के तौर पर लकड़ी, फैवीकोल, कीलें, पालिश इत्यादि को एक जगह पर रख दिया जाए तो हम उसे मेज़ नहीं कह सकते। बल्कि जब इन सभी को एक विशेष तरतीब में रख दिया जाए तथा उन को तरतीब में जोड़ दिया जाए तो हम मेज का ढांचा तैयार कर सकते हैं। इस तरह हमारे समाज की इकाइयों का निश्चित तरीके से व्यवस्था में पाया जाना सामाजिक संरचना कहलाता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना के चार मुख्य तत्त्व।
उत्तर-
टालक्ट पारसंज़ तथा हैरी० एम० जानसन के अनुसार सामाजिक संरचना के चार मुख्य तत्त्व निम्नलिखित हैं-

  • उप समूह (Sub groups)
  • भूमिकाएं (Roles)
  • सामाजिक परिमाप (Social Norms)
  • सामाजिक कीमतें (Social Values)।

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प्रश्न 3.
टालक्ट पारसंज़ द्वारा दी सामाजिक संरचना की परिभाषा।
उत्तर-
टालक्ट पारसंज़ के अनुसार, “सामाजिक संरचना शब्द को अन्तः सम्बन्धित एजेंसियों तथा सामाजिक प्रतिमानों तथा साथ ही समूह में प्रत्येक सदस्य द्वारा ग्रहण किए पदों तथा भूमिकाओं की विशेष क्रमबद्धता के लिए प्रयोग किया जाता है।”

प्रश्न 4.
सामाजिक संरचना की दो विशेषताएं।
उत्तर-
1. प्रत्येक समाज की संरचना अलग होती है-प्रत्येक समाज की संरचना अलग-अलग होती है क्योंकि समाज में पाए जाने वाले अंगों का सामाजिक जीवन अलग-अलग होता है। प्रत्येक समाज के संस्थागत नियम अलग-अलग होते हैं। इसलिए दो समाजों की संरचना एक सी नहीं होती।

2. सामाजिक संरचना अमूर्त होती है-सामाजिक संरचना अमूर्त होती है क्योंकि इसका निर्माण जिन इकाइयों से होता है जैसे संस्था, सभा, परिमाप इत्यादि सभी अमूर्त होती हैं। इनका कोई ठोस रूप नहीं होता हम केवल इन्हें महसूस कर सकते हैं। इसलिए यह अमूर्त होती हैं।

प्रश्न 5.
सामाजिक संरचना अंतः क्रियाओं की उपज है।
उत्तर-
सामाजिक संरचना में संस्थाओं, सभाओं, परिमापों इत्यादि को एक विशेष तरीके से बताने के लिए कोई योजना नहीं बनाई जाती बल्कि इसका विकास अंतः क्रियाओं के नतीजे के फलस्वरूप पाया जाता है। इसलिए इस सम्बन्ध में चेतन रूप में प्रयत्न करने की आवश्यकता नहीं होती।

प्रश्न 6.
सामाजिक पद या प्रस्थिति।
उत्तर-
व्यक्ति की समूह में पाई गई स्थिति को सामाजिक पद का नाम दिया जाता है। यह स्थिति वह है जिस को व्यक्ति लिंग, भेद, उम्र, जन्म, कार्य इत्यादि की पहचान के विशेष अधिकारों द्वारा प्राप्त करता है तथा अधिकारों के संकेत तथा काम में प्रतिमान द्वारा प्रकट किया जाता है। जैसे कोई बड़ा अफसर आता है तो सभी खड़े हो जाते हैं, यह इज्जत उसके सम्बन्धित पद की वजह से प्राप्त होती है। उसके कामों के साथ सम्बन्धित विशेष प्रतिमानों को ही सामाजिक पद का नाम दिया जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 7.
प्रदत्त पद।
उत्तर-
प्रदत्त पद वह पद होता है जिसको व्यक्ति बिना परिश्रम किए प्राप्त करता है। जैसे प्राचीन हिन्दू समाज में जाति प्रथा में ब्राह्मणों को ऊँचा स्थान प्राप्त था। व्यक्ति जिस जाति में पैदा होता था उसका स्थान उस जाति के सामाजिक स्थान के अनुसार होता था। लिंग, जाति, उम्र, रिश्तेदारी इत्यादि प्रदत्त पद के आधार हैं जो बिना किसी प्रयत्न के प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 8.
सामाजिक भूमिका।
उत्तर-
हरेक सामाजिक पद के साथ सम्बन्धित कार्य निश्चित होते हैं। इसमें व्यक्ति अपनी स्थिति से सम्बन्धित कार्यों को पूरा करता है तथा अपने अधिकारों का प्रयोग करता है। डेविस के अनुसार व्यक्ति अपने पद की ज़रूरतों को पूरा करने के तरीके अपनाता है। इसको भूमिका कहा जाता है। इस तरह भूमिका से अर्थ व्यक्ति का सम्पूर्ण व्यवहार नहीं बल्कि विशेष स्थिति में करने वाले व्यवहार तक ही सीमित है।

प्रश्न 9.
भूमिका की दो विशेषताएं लिखो।
उत्तर-
1. यह सामाजिक मान्यता द्वारा निर्धारित होते हैं क्योंकि यह संस्कृति का आधार है। सामाजिक कीमतों के विरुद्ध किए जाने वाली भूमिका को स्वीकार नहीं किया जाता।

2. समाज के बीच परिमाप तथा कीमतें परिवर्तनशील होती हैं जिसके फलस्वरूप भूमिका बदल जाती है। अलग-अलग स्कूलों में अलग-अलग भूमिका की महत्ता होती है।

प्रश्न 10.
सामाजिक पद की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. हरेक पद का समाज में स्थान होता है।
  2. पद समाज की संस्कृति द्वारा निर्धारित होता है।
  3. पद हमेशा तुलनात्मक होता है।
  4. पद का मनोवैज्ञानिक आधार होता है।
  5. पद के कारण भूमिका निश्चित होती है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 11.
भूमिका की विशेषताएं।
उत्तर-

  1. एक व्यक्ति की कई भूमिकाएं होती हैं।
  2. भूमिका हमारी संस्कृति द्वारा नियमित होती है।
  3. भूमिका कार्यात्मक होती है।
  4. भूमिका परिवर्तनशील होती है।
  5. अलग-अलग भूमिकाओं की अलग-अलग महत्ता होती है।

प्रश्न 12.
भूमिका का महत्त्व।
उत्तर-

  1. भूमिका सामाजिक व्यवस्था तथा संतुलन बनाए रखती है।
  2. भूमिका व्यक्ति की क्रियाओं को संचालित करती है।
  3. भूमिका समाज में कार्यों को बांटती है।
  4. भूमिका अंतः क्रियाओं को नियमित करती है।
  5. भूमिका व्यक्ति को क्रियाशील बनाकर उसके व्यवहार को प्रभावित करती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना के बारे में अलग-अलग समाजशास्त्रियों द्वारा दिए विचारों का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर-
अलग-अलग समाज शास्त्रियों तथा मानव वैज्ञानिकों ने सामाजिक संरचना की परिभाषाएं दी हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. हरबर्ट स्पैंसर के विचार (Views of Herbert Spencer) हरबर्ट स्पैंसर पहला समाजशास्त्री था जिसने समाज की संरचना पर प्रकाश डाला, परन्तु वह स्पष्ट परिभाषा देने में असमर्थ रहा। उसने अपनी किताब Principles of Socioldgy में सामाजिक संरचना के अर्थ को जैविक आधार द्वारा बताया। स्पैंसर ने शारीरिक ढांचे (Organic structure) के आधार पर सामाजिक ढांचे के अर्थों को स्पष्ट करना चाहा।

स्पैंसर के अनुसार शरीर के ढांचे में कई भाग होते हैं जैसे टांगे, बाहें, नाक, कान, मुंह, हाथ इत्यादि। इन सभी भागों में एक संगठित तरीका पाया जाता है जिसके आधार पर यह सारे हिस्से मिल कर शरीर के लिए कार्य करते हैं अर्थात् हमारा शरीर इन अलग-अलग हिस्सों की अन्तर्निर्भरता तथा अन्तर्सम्बन्धता की वजह से ही कार्य करने योग्य होता है। चाहे शारीरिक ढांचे के सभी हिस्से हरेक मनुष्य के ढांचे में एक जैसे होते हैं परन्तु इनकी प्रकार अलग-अलग होती है। इसी वजह से कुछ व्यक्ति लम्बे, छोटे, मोटे, पतले होते हैं। यही हाल सामाजिक ढांचे का है। चाहे इसके सभी हिस्से सभी समाजों में एक जैसे होते हैं परन्तु इनके प्रकार में परिवर्तन होता है। इसी वजह से एक समाज का ढांचा दूसरे समाज से अलग होता है। इस तरह स्पैंसर ने सिर्फ अलग-अलग अंगों के कार्य करने के आधार पर इसको सम्बन्धित रखा परन्तु कार्य के साथ इनकी आपसी सम्बन्धता भी ज़रूरी होती है। स्पैंसर ने बहुत ही सरल अर्थों में सामाजिक संरचना के बारे में अपने विचार दिए जिस वजह से सामाजिक संरचना का.अर्थ काफ़ी अस्पष्ट रह गया है।

2. एस० एफ० नैडल के विचार (Views of S. F. Nadal) नैडल के अनुसार, “मूर्त जनसंख्या हमारे समाज के सदस्यों के बीच एक-दूसरे के प्रति अपने रोल निभाते हुए सम्बन्धों के जो व्यावहारिक प्रतिबन्धित तरीके या व्यवस्था अस्तित्व में आती है उसे समाज की संरचना कहते हैं।”

नैडल के अनुसार संरचना अलग-अलग हिस्सों का व्यवस्थित प्रबन्ध है। यह समाज के सिर्फ बाहरी हिस्से से सम्बन्धित है तथा समाज के कार्यात्मक हिस्से से बिल्कुल ही अलग है। नैडल के संरचना के संकल्प को समझने के लिए उसके एक समाज के संकल्प की व्याख्या को समझना ज़रूरी है। नैडल के अनुसार एक समाज का अर्थ व्यक्तियों के उस समूह से है जिसमें अलग-अलग व्यक्ति संस्थागत सामाजिक आधार पर एक-दूसरे से इस तरह सम्बन्धित रहते हैं कि सामाजिक नियम लोगों के व्यवहारों को निर्देशित तथा नियन्त्रित करते हैं। इस तरह नैडल के एक समाज के अनुसार इसमें तीन तत्त्व हैं तथा वे तत्त्व हैं व्यक्ति, उनमें होने वाली अन्तक्रियाएं तथा अन्तक्रियाओं के कारण उत्पन्न होने वाले सामाजिक सम्बन्ध।

नैडल के अनुसार व्यवस्थित व्यवस्था का सम्बन्ध किसी भी वस्तु की रचना से होता है न कि उसके कार्यात्मक पक्ष से। उदाहरण के तौर पर सितार के कार्यात्मक पक्ष का ध्यान किए बगैर भी अर्थात् इसके सुरों की तरतीब को समझे बगैर भी हम उसकी संरचना या ढांचे का पता कर सकते हैं। इस तरह कई और समाज जिनके कार्यात्मक पक्ष के बारे में हमें बिल्कुल ज्ञान नहीं होता पर फिर भी हम उसकी बाहरी रचना को समझ सकते हैं। इस तरह नैडल के अनुसार समाज का अर्थ व्यक्तियों का वह समूह होता है जिसमें व्यक्ति संस्थात्मक सामाजिक नियम, उनके व्यवहारों को निर्देशित तथा नियमित करते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समाज के अलग-अलग अंगों में पाए जाने वाले अंगों की आपसी सम्बन्धता की व्यवस्थित या नियमित क्रमबद्धता को ही सामाजिक संरचना कहते हैं।

3. रैडक्लिफ़ ब्राऊन के विचार (Views of Redcliff Brown)-ब्राऊन समाज शास्त्र के संरचनात्मक कार्यात्मक स्कूल से सम्बन्ध रखता था। उसके अनुसार, “सामाजिक संरचना के तत्त्व मनुष्य हैं, संरचना अपने आप में व्यक्तियों में संस्थात्मक, परिभाषित तथा नियमित सम्बन्धों के प्रबन्धों की व्यवस्था है।” ब्राऊन के अनुसार सामाजिक संरचना स्थिर नहीं होती बल्कि एक गतिशील निरन्तरता है। सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन आते रहते हैं परन्तु मौलिक तत्त्व नहीं बदलते। संरचना तो बनी रहती है परन्तु कई बार आम संरचना के स्वरूप में परिवर्तन आ जाते हैं।

4. टालक्ट पारसन्ज़ के विचार (Views of Talcott Parsons)-पारसन्ज़ ने भी सामाजिक संरचना को अमूर्त बताया है। पारसन्ज़ के अनुसार, “सामाजिक संरचना शब्द को परस्पर सम्बन्धित संस्थाओं, ऐजंसियों तथा सामाजिक प्रतिमानों तथा साथ ही समूह में हरके सदस्य द्वारा ग्रहण किए गए पदों तथा भूमिकाओं की विशेष तरतीब ‘या क्रमबद्धता के लिए प्रयोग किया जाता है।”

इस समाजशास्त्री के अनुसार जैसे शरीर के अलग-अलग अंगों में परस्पर सम्बन्ध होता है उसी तरह सामाजिक संरचना की अलग-अलग इकाइयों में भी आपसी सम्बन्ध होता है जिस के साथ एक विशेष व्यवस्था कायम होती है तथा इस व्यवस्था के अधीन ही हरेक व्यक्ति समाज में अपनी भूमिका तथा पद को अदा करता है। इन पदों से ही अलग-अलग संस्थाओं का जन्म होता है। जब यह सभी एक विशेष व्यवस्था के साथ संगठित तथा परस्पर ‘सम्बन्धित हो जाते हैं तो ही सामाजिक ढांचा कायम होता है।

इन समाजशास्त्रियों ने सामाजिक संरचना के लिए संस्थाओं, सभाओं, समूहों तथा कार्यात्मक व्यवस्थाओं इत्यादि के अध्ययन को भी शामिल किया है।

उपरोक्त लिखी सामाजिक संरचना की परिभाषाओं के आधार पर हम इसके अर्थों को संक्षेप रूप में इस तरह बता सकते हैं-

  1. सामाजिक संरचना एक अमूर्त संकल्प है।
  2. समाज के व्यक्ति समाज की अलग-अलग इकाइयों जैसे संस्थाएं, सभाएं, समूहों इत्यादि से सम्बन्धित होते हैं। इस वजह से ये संस्थाएं, सभाएं इत्यादि सामाजिक संरचना की इकाइयां हैं।
  3. ये संस्थाएं, समूह इत्यादि एक विशेष तरतीब से एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं जिससे सामाजिक संरचना में क्रम पैदा होता है।
  4. यह समाज के बाहरी हिस्से से सम्बन्धित होते हैं।
  5. सामाजिक संरचना समय तथा परिवर्तनों से बनती है।
  6. इसमें निरन्तरता तथा गतिशीलता पाई जाती है।

इस तरह हम देखते हैं कि समाज में परिवर्तन आने से इसके अंगों में भी परिवर्तन आ जाता है तथा यह अलगअलग समाजों में अलग-अलग होते हैं। संक्षेप में हम कह सकते हैं कि समाज के अलग-अलग अंग होते हैं। जब यह एक निश्चित तरीके से व्यवस्थित होते हैं तो समाज का एक स्वरूप पैदा होता है जिसे सामाजिक संरचना कहा जाता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

प्रश्न 2.
सामाजिक पद या परिस्थिति के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
पदों के वर्गीकरण के बारे में राल्फ लिंटन ने अपने विचार प्रकट किए हैं तथा उसने पदों को दो भागों में बाँटा है जो कि इस प्रकार हैं

  1. प्रदत्त पद (Ascribd Status)
  2. अर्जित पद (Achieved Status)

प्रत्येक समाज में इन दोनों प्रकारों का प्रयोग किया जाता है जिससे समाज सन्तुलित रहता है। प्रदत्त पद वह होते हैं जो व्यक्ति को जन्म से ही प्राप्त हो जाते हैं तथा व्यक्ति को इनको प्राप्त करने के लिए कोई परिश्रम नहीं करना पड़ता। उदाहरण के लिए किसी अमीर व्यक्ति के घर पैदा हुए बच्चे को जन्म से ही अमीर का पद प्राप्त हो जाता है जिसके लिए उसने कोई परिश्रम नहीं किया होता है।

अर्जित पद वह होता है जो व्यक्ति अपने सख्त परिश्रम से प्राप्त करता है। इसमें व्यक्ति का जन्म नहीं बल्कि इसकी योग्यता तथा परिश्रम प्रमुख होते हैं। अतः समाज में व्यक्ति अपने गुणों के आधार पर स्थिति प्राप्त करता है। उदाहरण के लिए एक I.A.S. अफ़सर जो सख्त परिश्रम करके इस स्थिति तक पहुँचा है। इसे हम अर्जित पद कह सकते हैं।

प्रदत्त पद (Ascribed Status)-व्यक्ति को जो पद बिना किसी निजी परिश्रम के प्राप्त होता है उसे प्रदत्त पद का नाम दिया जाता है। यह पद हमें हमारे समाज की परम्पराओं, प्रथाओं इत्यादि से अपने आप ही प्राप्त हो जाता है। प्राचीन समाज में व्यक्ति प्रदत्त पद तक ही सीमित रहता था। जन्म के बाद ही व्यक्ति को इस पद की प्राप्ति हो जाती थी। सबसे पहले वह उस परिवार से सम्बन्धित हो जाता है जहाँ वह पैदा हुआ है। उसके बाद उस का लिंग उसको पद प्रदान करता है। फिर रिश्तेदारी उससे सम्बन्धित हो जाती है। यह स्थिति व्यक्ति को उस समय प्राप्त होती है जब समाज को उसके गुणों का पता नहीं होता। समाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा उसको समाज में पद प्राप्त होते हैं। समाज व्यक्ति को कुछ नियमों के आधार पर बिना उसके परिश्रम किए कुछ पद प्रदान करता है तथा वह आधार निम्नलिखित हैं-

1. लिंग (Sex)-समाज में व्यक्ति को लिंग के आधार पर अलग किया जाता है जिसके लिए लड़का-लड़की, औरत-आदमी जैसे शब्दों का प्रयोग किया जाता है। जैविक पक्ष से भी इन दोनों लिंगों में कुछ भिन्नताएं पायी जाती हैं। अगर हम प्राचीन समय को देखें तो पता चलता है कि उन समाजों में कार्यों को लिंग के आधार पर बाँटा जाता था। इसलिए स्त्रियों का कार्य घर की देखभाल करना होता था तथा पुरुषो का कार्य घर से बाहर जाकर शिकार करना, कन्दमूल इकट्ठे करना था। शारीरिक तौर पर इन दोनों लिंगों में भिन्नताएं होती थीं। कुछ कार्य तो जैविक तौर पर ही सीमित रहते थे।

चाहे आजकल के समाजों में स्त्रियों तथा पुरुषों की योग्यताओं में काफ़ी समानता होती है परन्तु लिंग के आधार पर पायी गयी स्थिति अभी भी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। इस वजह से कई समाजों में तो आज भी औरत तथा मर्द के पद में काफ़ी भिन्नता पायी जाती है। उसका दर्जा आदमी से काफ़ी निम्न था। भारतीय जाति प्रथा में औरतें शिक्षा नहीं ले सकती थीं। जन्म के बाद वह सीधे ही ब्रह्मचार्य आश्रम की बजाय गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करती थीं। यहां तक कि कई क्षेत्रों में लड़की को पैदा होने के साथ ही मार दिया जाता था। हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार घर में पुत्र होना ज़रूरी है वरना मुक्ति प्राप्त नहीं हो सकती।

2. आयु के आधार पर स्थिति (Status on the basis of age) आयु भी अलग-अलग समाजों में पद बताने का महत्त्वपूर्ण आधार रही है। यह एक जैविक आधार है जिसको व्यक्ति बिना परिश्रम के प्राप्त करता है। हैरी एम० जानसन ने भी आयु के आधार पर व्यक्ति की अलग-अलग अवस्थाओं को बताया है-

आयु के आधार पर पायी गई अलग-अलग अवस्थाओं में व्यक्ति के पद क्रम में भी परिवर्तन आ जाता है। इन अवस्थाओं के साथ ही समाज की संस्कृतियां भी जुड़ी होती हैं। प्राचीन समाज में सबसे बड़ी आयु के व्यक्ति द्वारा समाज पर नियन्त्रण होता था। भारत में भी विवाह के लिए उम्र सीमा, वोट देने के लिए भी आयु एक कारक है। आयु के अनुसार व्यक्ति को समाज में स्थिति भी अलग-अलग तरीके से प्राप्त होती है। परिवार की उदाहरण ही ले लो। आयु के मुताबिक ही परिवार में बच्चे को उच्च या निम्न समझा जाता है। छोटी आयु वाले की हरेक बात को मज़ाक में लिया जाता है। जब वह जवान हो जाता है तो पहले उस की आदतों का ध्यान रखा जाता है तथा उससे अच्छे कार्य करने की उम्मीद की जाती है। आमतौर पर यह शब्द प्रयोग किए जाते हैं कि, “अब तू बड़ा हो गया है, तेरी आयु कम नहीं है, ध्यान से बोला कर” इत्यादि। आयु के मुताबिक ही समाज में भी व्यक्ति को सज़ा अलग-अलग तरीकों से दी जाती है। आधुनिक समाज में आयु के आधार पर पाए गए पद क्रम में भी परिवर्तन आ गया है क्योंकि कई बच्चे, जो अपनी उम्र से ज्यादा प्रतिभाशाली होते हैं, उनका समाज में ज्यादा सम्मान होता

3. रिश्तेदारी (Kinship)—प्राचीन समाज में भी रिश्तेदारी इतनी महत्त्वपूर्ण होती थी कि व्यक्ति को उसी आधार पर उच्च या निम्न जाना जाता था। एक राजा का बेटा राजकुमार कहलाता था। उसकी समाज में इज्जत राजा के बराबर ही होती थी। बच्चे की पहचान ही परिवार या रिश्तेदारी के आधार पर होती थी। बच्चे तथा परिवार का विशेष सम्बन्ध होता था। जाति प्रथा में तो बच्चे को जन्म से ही जाति प्राप्त होती थी जिससे सम्बन्धित उसकी रिश्तेदारी थी। इसका अर्थ है कि जाति प्रथा में उसको पारिवारिक स्थिति ही प्राप्त होती थी। परिवार के द्वारा ही समाज में व्यक्ति की पहचान होती थी। राजा अपने बच्चे को शुरू से ही घुड़सवारी, हथियारों का प्रयोग करने की शिक्षा दिलाते थे क्योंकि उनको अपने बच्चों को इस प्रकार की योग्यताएं देनी होती थीं। बड़ा होकर हरेक बच्चे को अपने परिवार का कार्य आगे बढ़ाना होता था। बच्चा, यहां तक कि आज भी, अपनी पारिवारिक योग्यता लेकर आगे बढ़ता है। टाटा, बिड़ला के बच्चों की स्थिति निश्चित तौर पर आम आदमी के बच्चों से उच्च होगी।

4. सामाजिक कारक (Social Factors)-कई समाजों में व्यक्तियों को अलग-अलग समूहों में वर्गीकृत किया होता था तथा इन समूहों के बीच पदक्रम की व्यवस्था होती थी अर्थात् इनको उच्च या निम्न समझा जाता था। इन समूहों का वर्गीकरण अलग-अलग कार्यों के आधार पर या योग्यता इत्यादि के आधार पर किया होता था। जैसे कि अध्यापक, अफसर इत्यादि। इस में अपने समूह से सम्बन्धित लोगों में मेल जोल होता था।

अर्जित पद (Achieved Status)—समाज में बच्चे के समाजीकरण की प्रक्रिया के लिए प्रदत्त पद की अपनी ही महत्ता होती है। परन्तु समाज आधुनिक समय में इतने ज्यादा जटिल हो गए हैं कि केवल प्रदत्त पद के आधार पर व्यक्ति के पदक्रम को हम सीमित नहीं कर सकते क्योंकि अगर समाज के व्यक्तियों को खुलकर योग्यता प्रकट करने न दें तो कभी भी समाज प्रगति नहीं कर सकता। हरेक व्यक्ति अलग क्षेत्र में प्रगतिशील होता है क्योंकि कोई भी दो व्यक्तियों की योग्यता एक जैसी नहीं होती है। व्यक्तियों की योग्यताओं की पहचान के लिए हम उनको आगे बढ़ने का मौका देते हैं तथा इसके आधार पर उसको समाज में स्थिति प्रदान करते हैं।

प्राचीन समाजों में सिर्फ प्रदत्त पद ही महत्त्वपूर्ण होता था क्योंकि वह समाज साधारण होते थे तथा श्रेणी रहित होते थे। उनका कार्य सिर्फ जीवित रहने तक ही सीमित होता था। परन्तु जैसे-जैसे समाज जटिल होते गए उसी तरह व्यक्ति की योग्यता पर ज्यादा जोर दिया जाने लग गया। अर्जित पद के आधार पर व्यक्ति को समाज में स्थान प्राप्त हुआ। आधुनिक समाज ने तो व्यक्ति को पूर्ण मौके भी प्रदान किए हुए हैं ताकि उसकी योग्यता उसको परिणाम भी दे।

अर्जित पद में व्यक्ति की योग्यताओं की परख सामाजिक कीमतों के आधार पर होती है। आधुनिक समाज में जैसे-जैसे समाज में परिवर्तन आ रहे हैं उसी तरह अर्जित पद में भी परिवर्तन आ रहे हैं। समाज की ज़रूरतों के मुताबिक इन को सीमित किया होता है। जैसे किसी देश में राष्ट्रपति के पद के लिए समय निश्चित किया होता है। उस समय के बाद कोई भी व्यक्ति उस पद को प्राप्त कर सकता है। श्रम विभाजन तथा विशेषीकरण व्यक्ति को स्थिति परिवर्तन के कई मौके प्रदान करते हैं। आधुनिक पूँजीवादी समाज में धन की महत्ता ज्यादा होती है क्योंकि इसके आधार पर व्यक्ति को उच्च या निम्न जाना जाता है। औद्योगीकरण के कारण कई पेशे तकनीकी प्रकृति के हैं, जिनको प्रदत्त पद के आधार पर नहीं बाँटा जा सकता।

अर्जित पद व्यक्ति के अपने यत्नों या परिश्रम से प्राप्त होता है जिसको शिक्षा, धन, कुशलता, पेशे इत्यादि के आधार के साथ सम्बन्धित रखा जाता है। इस पद के द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का पूर्ण विकास कर सकता है। इसमें व्यक्तिवादी प्रवृत्ति को पूर्ण प्रोत्साहन मिलता है।

PSEB 11th Class Sociology Solutions Chapter 9 सामाजिक संरचना

सामाजिक संरचना PSEB 11th Class Sociology Notes

  • समाजशास्त्र के बहुत से मूल संकल्प हैं तथा सामाजिक संरचना उनमें से एक है। सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग प्रसिद्ध समाजशास्त्री हरबर्ट स्पैंसर ने किया था। उनके बाद बहुत से समाजशास्त्रियों जैसे कि टालक्ट पारसन्ज, रैडक्लिफ ब्राऊन, मैकाइवर इत्यादि ने भी इसके बारे में काफ़ी कुछ लिखा।
  • हमारे समाज के बहुत से अंग होते हैं जो एक-दूसरे के साथ किसी न किसी रूप से जुड़े होते हैं। यह सभी अंग अन्तर्सम्बन्धित होते हैं। इस सभी भागों के व्यवस्थित रूप को सामाजिक संरचना का नाम दिया जाता है। यह चाहे अमूर्त होते हैं परन्तु हमारे जीवन को निर्देशित करते रहते हैं।
  • सामाजिक संरचना की बहुत सी विशेषताएँ होती हैं जैसे कि यह अमूर्त होती है, इसके बहुत से अत : सम्बन्धित अंग होते हैं, इन सभी अंगों में एक व्यवस्था पाई जाती है, यह सभी व्यवहार को निर्देशित करते हैं, यह सर्वव्यापक होते हैं, यह समाज के बाहरी रूप को दर्शाते हैं।
  • हरबर्ट स्पैंसर ने एक पुस्तक लिखी ‘The Principal of Sociology’ जिसमें उन्होंने सामाजिक संरचना शब्द का जिक्र किया तथा उसकी तुलना जीवित शरीर से की। उसने कहा जैसे शरीर के अलग-अलग अंग शरीर को ठीक ढंग से चलाने के लिए आवश्यक होते हैं, उस प्रकार से सामाजिक संरचना के अलग-अलग अंग भी संरचना को चलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
  • सामाजिक संरचना के बहुत से तत्त्व होते हैं जिनमें प्रस्थिति तथा भूमिका काफ़ी महत्त्वपूर्ण है। प्रस्थिति का अर्थ वह रूतबा या स्थिति है जो व्यक्ति को समाज में रहते हुए दी जाती है। एक व्यक्ति की बहुत सी प्रस्थितियां होती हैं जैसे कि अफसर, पिता, पुत्र, क्लब का प्रधान इत्यादि।
  • प्रस्थितियां दो प्रकार की होती हैं-प्रदत्त तथा अर्जित। प्रदत्त प्रस्थिति वह होती है जो व्यक्ति को बिना किसी परिश्रम में स्वयं ही प्राप्त हो जाती है। अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति को स्वयं ही प्राप्त नहीं होती बल्कि वह अपने परिश्रम से इन्हें प्राप्त करता है।
  • भूमिका उम्मीदों का वह गुच्छा है जिसकी व्यक्ति से पूर्ण करने की आशा की जाती है। प्रत्येक प्रस्थिति के साथ कुछ भूमिकाएं भी लगा दी जाती हैं। भूमिका से ही पता चलता है कि हम किस प्रकार एक प्रस्थिा पर रहते हुए किसी विशेष समय व्यवहार करेंगे।
  • भूमिका की कई विशेषताएं होती हैं जैसे कि भूमिका सीखी जाती है, भूमिका प्रस्थिति का कार्यात्मक पक्ष है, भूमिका के मनोवैज्ञानिक आधार हैं इत्यादि।
  • प्रस्थिति तथा भूमिका के बीच गहरा संबंध है क्योंकि यह दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। अगर किसी व्यक्ति को कोई प्रस्थिति प्राप्त होगी तो उससे सम्बन्धित भूमिकाएं भी स्वयं ही मिल जाएंगी। बिना भूमिका के प्रस्थिति का कोई लाभ नहीं है तथा बिना प्रस्थिति के भूमिका नहीं निभाई जा सकती।
  • सामाजिक संरचना (Social Structure)-अलग-अलग व्यवस्था के क्रमवार रूप को व्यवस्थित करना।
  • भूमिका सैट (Role Set)-जब एक व्यक्ति को बहुत-सी भूमिकाएं प्राप्त हो जाएं।
  • भूमिका संघर्ष (Role Conflict)—जब एक व्यक्ति को बहुत-सी भूमिकाएं प्राप्त हों तथा उन भूमिकाओं में संघर्ष उत्पन्न हो जाए।
  • भूमिका (Role) विशेष परिस्थिति को संभालने वाले व्यक्ति से विशेष प्रकार की आशा करना।
  • प्रस्थिति (Status)—वह स्थिति जो व्यक्ति को मिलती है तथा निभानी पड़ती है।
  • प्रदत्त प्रस्थिति (Ascribed Status)—वह स्थिति किसी व्यक्ति को जन्म या किसी अन्य आधार पर दी जाए।
  • अर्जित प्रस्थिति (Achieved Status)—वह स्थिति जो व्यक्ति अपने परिश्रम से प्राप्त करता है।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

Punjab State Board PSEB 7th Class Home Science Book Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Home Science Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

PSEB 7th Class Home Science Guide मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मकान बनाने के लिए सबसे पहले किस चीज़ का अनुमान लगाना चाहिए?
उत्तर-
आर्थिक स्थिति का।

प्रश्न 2.
मकान बनाने के लिए धन के अतिरिक्त और किस चीज़ की ज़रूरत है?
उत्तर-
बुद्धि की।

प्रश्न 3.
घर कैसी जगहों के पास और कैसी जगहों से दूर होना चाहिए?
उत्तर-
स्टेशन, शमशान घाट, गंदी बस्तियां, कूड़ा-कर्कट के ढेर आदि से दूर होना चाहिए।
काम का स्थान, बैंक डाक्टर, स्कूल, बाज़ार आदि घर के पास होना चाहिए।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकार, बैंक या बीमा कम्पनियाँ मकान बनाने में कैसे मदद करती है?
उत्तर-
सरकार, बैंक या बीमा कम्पनियाँ मकान बनाने में सस्ते ब्याज पर कर्ज देकर मदद करती हैं।

प्रश्न 2.
गन्दी बस्तियों का बच्चों के विकास पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर-
गन्दी बस्तियों में रहने वाले बच्चों की न केवल सेहत ही खराब होती है, बल्कि उनके आचरण पर भी खराब असर पड़ता है। उसमें अपराध की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 3.
बहुत अमीर पड़ोस में रहने से बच्चों की मानसिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है?
उत्तर-
जिस गली या मुहल्ले में बच्चों को रहना हो, वहाँ के निवासियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति बच्चों के आर्थिक और सामाजिक स्थिति के अनुसार होनी चाहिए। अगर बाकी लोग अमीर हों तो बच्चों के मन में ईर्ष्या की भावना जाग जाती है और अपने को छोटा महसूस करने की भावना आ जाती है जिससे बच्चों की मानसिक स्थिति पर खराब असर पड़ता है।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
हरित क्रान्ति और जमींदारों का ज़मीनों की कीमतों और मकानों के किराये पर क्या असर पड़ा है?
उत्तर-
हरित क्रान्ति के बाद कुछ ज़मींदार परिवारों के पास बहुत पैसा आ गया है। इन्होंने घरों पर बहुत पैसे खर्च किए हैं। आलीशान बंगले बनाए हैं। इससे दूसरे लोगों में ईर्ष्या और रोष की भावना जागी है। नकल करके कुछ लोगों ने जिनके पास बहुत धन नहीं है उन्होंने भी मकानों पर बहुत धन खर्च करके अपने आर्थिक सन्तुलन को खराब किया है। अब शहरों में मकान बनाने के लिए जमीन बहुत महंगी हो गई है। बड़े शहरों में मकान बनाना केवल अमीर लोगों के बस की बात है। किराये भी बहुत बढ़ गए हैं जिससे आम आदमी पर खराब असर पड़ा है।

प्रश्न 2.
मकान बनाते समय अपनी अर्थिक स्थिति का जायज़ा लेना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
मकान बनाने के लिए सबसे पहले अपनी आर्थिक स्थिति का जायजा लेना चाहिए। बहुत बार ऐसा होता है कि मकान बनाने की धुन में कई परिवार अपनी दूसरी ज़िम्मेदारियों को भूल जाते हैं, और वे सरकार, बैंक या बीमा कम्पनियों से कर्ज़ लेकर मकान बनाना शुरू कर देते हैं, लेकिन पैसे की कमी के कारण घर की खुराक, बच्चों की पढ़ाई और परिवार के सारे विकास पर बुरा असर पड़ता है।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

प्रश्न 3.
मकान बनाते समय या किराये पर लेते समय किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-
मकान बनाते समय या किराये पर लेते समय निम्नलिखित बातों पर ध्यान रखना चाहिए

  1. मकान परिवार की जरूरतों के अनुसार ही बनाना चाहिए।
  2. मकान ऐसी जगह बनाना चाहिए जहाँ दैनिक प्रयोग में आने वाली वस्तुएँ शीघ्र तथा सुगमता से प्राप्त हो सकती हों।।
  3. नौकरी वाले लोगों के लिए नौकरी का स्थान तथा दकान समीप होनी चाहिए।
  4. अस्पताल तथा बाजार भी घर से बहत दूर नहीं होने चाहिएं।
  5. बच्चों के लिए स्कूल और कॉलेज नज़दीक होना चाहिए।
  6. डाकघर तथा बैंक भी नज़दीक होना चाहिए।

Home Science Guide for Class 7 PSEB मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मकान की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-
वर्षा, धूप, ठण्ड, आँधी-तूफान, जीव-जन्तु व आकस्मिक घटनाओं आदि से बचने के लिए।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

प्रश्न 2.
आदि काल में मनुष्य कहाँ रहते थे?
उत्तर-
गुफ़ाओं में।

प्रश्न 3.
प्राणी में जन्मजात चेतना क्या होती है?
उत्तर-
प्राणी अपने विकास के लिए ऐसे ठौर का निर्माण करना चाहता है जहाँ उसे सुख-शान्ति प्राप्त हो सके। यही जन्मजात चेतना होती है।

प्रश्न 4.
समय, श्रम व धन की बचत के लिए मकान कहाँ होना चाहिए?
उत्तर-
समय, श्रम व धन की बचत के लिए मकान, स्कूल, कॉलेज, अस्पताल, दफ्तर, बाजार आदि के निकट होना चाहिए।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मकान में व्यक्ति को कौन-कौन सी सुविधाएँ मिलती हैं?
उत्तर-
मकान में व्यक्ति को निम्न सुविधाएँ मिलती हैं

  1. सुरक्षात्मक सुविधाएँ
  2. कार्य करने की सुविधा
  3. शारीरिक सुख
  4. मानसिक शान्ति
  5. विकास एवं वृद्धि की सुविधा।

प्रश्न 2.
हमारा मकान कैसा होना चाहिए?
उत्तर-
हमारा मकान ऐसा होना चाहिए जहाँ

  1. परिवार के सभी सदस्यों के पूर्ण विकास व वृद्धि का ध्यान रखा जाए।
  2. सदा प्रत्येक सदस्य की कार्य क्षमता को प्रोत्साहन दिया जाए।
  3. एक-दूसरे के प्रति सद्भावना व प्रेम से व्यवहार किया जाए।
  4. परिवार की आर्थिक स्थिति में पूर्ण योगदान दिया जाए।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

प्रश्न 3.
मकान की आवश्यकता क्यों होती है?
उत्तर-

  1. वर्षा, धूप, ठण्ड, आँधी, तूफ़ान आदि से बचने के लिए।
  2. जीव-जन्तुओं, चोरों तथा आकस्मिक घटनाओं से अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए।
  3. शान्तिपूर्वक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्यप्रद जीवन व्यतीत करने के लिए।
  4. अपना तथा बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए।

प्रश्न 4.
घर की दिशा के सम्बन्ध में आप क्या जानते हो ?
उत्तर-
घर का मुख पूर्व की तरफ होना चाहिए। इस प्रकार सूर्य का प्रकाश तथा ताज़ा हवा सरलता से आ जा सकती है।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सुन्दर, सुरक्षाजनक व सुदृढ़ मकान बनाने के लिए कौन-कौन सी बातें ध्यान में रखनी चाहिएं?
उत्तर-
मकान बनाने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए
1. स्थिति (वातावरण)-स्वास्थ्यकर मकान के चुनाव में वातावरण का विशेष महत्त्व है। वातावरण पर ही घर का स्वास्थ्य निर्भर करता है। गन्दे और दूषित वातावरण में बने अच्छे से अच्छे मकान भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। वातावरण की दृष्टि से निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

2. रेलवे स्टेशन, कारखाने, भीड़ वाले बाज़ार, शमशान घाट, कसाईखाना, तालाब, नदी, गन्दे नाले, सार्वजनिक शौचालय आदि के पास मकान नहीं बनवाना चाहिए।

  1. मकान सीलन भरी अंधेरी और तंग गलियों में नहीं बनवाना या लेना चाहिए।
  2. मकान अन्य घरों से बिल्कुल लगा हुआ नहीं होना चाहिए। मकानों में आपस में उचित दूरी होनी चाहिए।
  3. मकान ऊँचे स्थान पर होना चाहिए। पास के मकान बहुत ऊंचे नहीं होने चाहिएं।
  4. मकान खुली जगह पर होना चाहिए जिससे शुद्ध वायु एवं सूर्य का प्रकाश उचित मात्रा में मिल सकें।
  5. मकान जहाँ बनाया जाए वहाँ शुद्ध पेयजल सुगमता से प्राप्त हो सकें।
  6. घर से थोड़ी दूर पर कुछ वृक्ष हों तो वे लाभप्रद होते हैं। वे भूमि को सुखी रखते हैं तथा उनसे शुद्ध व ताजी वायु भी प्राप्त होती है।
  7. भूमि-भूमि इस प्रकार की होनी चाहिए कि वह पानी सोख सके। चिकनी मिट्टी मकान के लिए उपयुक्त नहीं होती क्योंकि उसमें पानी सोखने की क्षमता नहीं होती और उस पर बनाए गए मकान में सदैव सीलन बनी रहती है। ऐसी भूमि में कई प्रकार के रोग होने का भय रहता है। इसके अतिरिक्त मकान के चारों ओर पानी एकत्र हो जाने से उसकी नींव कमजोर पड़ जाती है। रेतीली भूमि गर्मियों में गर्म तथा सर्दियों में ठण्डी होती है। इसके साथ ही ऐसी भूमि पर बना हुआ मकान मज़बूत नहीं होता। कंकरीली भूमि मकान के लिए सबसे उत्तम रहती है क्योंकि ऐसी भूमि में नीव अधिक दृढ़ रहती है।

3. घर की दिशा-घर का मुख पूरब की ओर होना चाहिए। इससे सूर्य का प्रकाश व ताज़ी हवा आसानी से आ जा सकती है।

4. नींव-मकान को बनवाते समय यह भी अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि मकान की नींव गहरी हो। इसकी गहराई मकान की ऊँचाई पर निर्भर करती है। जितना मंजली व ऊँचा मकान होगा उतना ही अधिक भार नींव के ऊपर पड़ेगा, अत: उसी के अनुसार उसकी गहराई रखी जानी चाहिए। नींव के लिए जमीन को प्रायः तीन फुट गहरा खोदना चाहिए। इस नींव को दृढ़ बनाने के लिए इसको काफ़ी ऊँचाई तक कंकरीट और सीमेंट से भरा जाना चाहिए। मज़बूत नींव पर ही एक अच्छे मकान का निर्माण सम्भव है।

5. बनावट-मकान बनाने के लिए नक्शे व योग्य कारीगर का चयन करना चाहिए, जिससे मकान सुन्दर, सुविधाजनक व सुदृढ़ बने। मकान बनाते समय नींव के अलावा दीवारों, खिड़कियों, रोशनदानों, अलमारियों व छत आदि पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिससे उचित व टिकाऊ मकान बने। मकान के फर्श पर भी अत्यधिक ध्यान देना चाहिए ताकि समय-समय पर उसे साफ़ करने व धोने में कोई कठिनाई न हो।

6. वायु आवागमन का प्रबन्ध-दूषित वायु की हानियों से बचने तथा शुद्ध वायु प्राप्त करने के लिए कमरों में वायु के आवागमन का उचित प्रबन्ध होना अत्यन्त आवश्यक है। कमरों में वायु के आवागमन के लिए यह उचित है कि दरवाज़े और खिड़कियों की संख्या अधिक हो और वे आमने-सामने हों जिससे कमरों में दूषित वायु रुकने न पाये। छत के समीप दीवार में रोशनदान का होना ज़रूरी है।

7. प्रकाश का प्रबन्ध-हवा के साथ घर में प्रकाश का भी उचित प्रबन्ध होना चाहिए। दिन के समय सूर्य के प्रकाश का कमरों में आना अत्यन्त आवश्यक है। सूर्य का प्रकाश अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। धूप हानिकारक कीटाणुओं का नाश करके वायु को शुद्ध करती है। यदि अन्धेरे कमरों में बहुत से लोग इकट्ठे रहते हों तो छूत के रोग, जैसे-खाँसी, जुकाम, निमोनिया, तपेदिक आदि होने की सम्भावना बढ़ जाती है। अतः मकानों में वायु के आवागमन, प्रकाश और धूप का उचित प्रबन्ध होना चाहिए।
सूर्य के प्रकाश के साथ-साथ हमें रात्रि के लिए भी प्रकाश का प्रबन्ध करना चाहिए। इसके लिए उस इलाके में बिजली की उपलब्धि भी होनी चाहिए।

आवश्यकताओं के साधन केन्द्र-मकान ऐसे स्थान पर होना चाहिए कि जीवन की दैनिक आवश्यकताओं के साधन-केन्द्र उस स्थान से अधिक दूरी पर न हों। विद्यालय, भी बैंक, कॉलेज, बाजार, डाकघर, अस्पताल अथवा डॉक्टर आदि अधिक दूर होने से समय तथा धन दोनों को अधिक व्यय होता है। मकान ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचने में सुविधा हो। मलमूत्र तथा गन्दे पानी का निकास-घरों में कमरों के धोने पर पानी के बाहर निकलने का उचित प्रबन्ध होना चाहिए, विशेषकर रसोई, स्नानागार तथा शौचालय में तो नालियों का प्रबन्ध होना अनिवार्य ही है। नालियाँ पक्की हों तथा ढलवी हो जिससे पानी आसानी से बह जाए। ये नालियाँ ढकी हुई होनी चाहिएं तथा उनमें फिनायल आदि डालते रहना चाहिए। नालियों में और दीवार पर कुछ ऊँचाई तक सीमेंट का प्रयोग अति आवश्यक है।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
सरकार अपने कर्मचारियों को उनके वेतन का कितने प्रतिशत किराए के लिए भत्ते के रूप में देती है?
उत्तर-
10-15%

प्रश्न 2.
मित्र ……………. करके नहीं बनाए जा सकते।
उत्तर-
फैसला।

प्रश्न 3.
अच्छा पड़ोस जीवन में ……………….. के लिए आवश्यक है।
उत्तर-
खुशी!

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प्रश्न 4.
…………. के बाद कुछ ज़मींदार परिवारों के पास बहुत पैसा आ गया है।
उत्तर-
हरित क्रान्ति।

प्रश्न 5.
घर का मुख किस तरफ होना चाहिए?
उत्तर-
पूर्व की तरफ।

प्रश्न 6.
………….. भूमि मकान के लिए उत्तम रहती है।
उत्तर-
पथरीली।

PSEB 7th Class Home Science Solutions Chapter 6 मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व

मकान सम्बन्धी सामाजिक और आर्थिक तत्त्व PSEB 7th Class Home Science Notes

  • मकान बनाने के लिए सबसे पहले अपनी आर्थिक स्थिति का जायजा लेना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी आमदनी से बचत करना ज़रूरी है।
  • बड़े शहरों में आमदनी का बहुत बड़ा भाग किराये पर खर्च हो जाता है।
  • मकान अपनी सामर्थ्य और सामाजिक स्तर के अनुसार बनाना चाहिए।
  • जिस गली या मुहल्ले में रहना हो, वहाँ के निवासियों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति आपकी स्थिति के अनुसार होनी चाहिए।
  • अच्छा पड़ोस न केवल आपके जीवन की खुशी के लिए ज़रूरी है बल्कि आजकल के जीवन में आपकी सुरक्षा के लिए भी ज़रूरी है।
  • अच्छा मकान बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि मकान परिवार की जरूरतों के अनुसार ही बने।
  • अधिक भीड़ वाले इलाकों, गन्दी बस्तियों में रह रहे लोगों की न केवल सेहत . ही खराब होगी बल्कि उसके आचरण पर भी खराब असर पड़ेगा।
  • उनमें अपराध की प्रवृत्ति भी बढ़ेगी।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 7 पौष्टिक घरेलू बगीचा

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 7 पौष्टिक घरेलू बगीचा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 7 पौष्टिक घरेलू बगीचा

PSEB 7th Class Agriculture Guide पौष्टिक घरेलू बगीचा Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान के अनुसार सेहतमंद व्यक्ति को प्रतिदिन कितनी सब्जी खानी चाहिए ?
उत्तर-
280-300 ग्राम सब्जी।

प्रश्न 2.
भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन कितने फलों का सेवन करना चाहिए ?
उत्तर-
50 ग्राम फल।

प्रश्न 3.
विटामिन ए की कमी से होने वाले रोग का नाम बताएं।
उत्तर-
अन्धराता।

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प्रश्न 4.
मानव शरीर में लोहे की कमी के कारण होने वाले रोग का नाम बताएं।
उत्तर-
अनीमिया।

प्रश्न 5.
घरेलू बगीचे का मॉडल किस कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया है ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना।

प्रश्न 6.
कद जाति की कोई दो सब्जियों के नाम लिखो।
उत्तर-
कद्, तोरी, करेला, टिंडा।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 7 पौष्टिक घरेलू बगीचा

प्रश्न 7.
घरेलू बगीचे में उगाए जा सकने वाले कोई दो फलदार पौधों के नाम लिखो।
उत्तर-
अमरूद, पपीता, नाशपाती, अंगूर।

प्रश्न 8.
घरेलू बगीचे में उगाए जा सकने वाले कोई दो जड़ी-बूटियों वाले पौधों के नाम लिखो।
उत्तर-
पुदीना, तुलसी, सौंफ, अजवायन।

प्रश्न 9.
संतुलित भोजन की पूर्ति के लिए आठ पारिवारिक सदस्यों को कितने क्षेत्र पर घरेलू बगीचा बनाना चाहिए ?
उत्तर-
तीन कनाल।

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प्रश्न 10.
घरेलू बगीचा कहाँ बनाना चाहिए ?
उत्तर-
घर के नज़दीक।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
संतुलित भोजन में कौन-कौन से पौष्टिक तत्त्व विद्यमान होते हैं ?
उत्तर-
संतुलित भोजन में सारे आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में होते हैं; जैसेकार्बोहाइड्रेट्स, खनिज, प्रोटीन, वसा, विटामिन, धातुएं आदि।

प्रश्न 2.
भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान की स्वस्थ मनुष्य के लिए भोजन संबंधी सिफ़ारिशें क्या हैं ?
उत्तर-
भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान के द्वारा स्वस्थ मनुष्य के लिए प्रतिदिन के आहार में 280-300 ग्राम सब्जियां, 50 ग्राम फल तथा 80 ग्राम दालों की सिफ़ारिश की गई है।

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प्रश्न 3.
घरेलू बगीचा घर के निकट क्यों बनाना चाहिए ?
उत्तर-
घरेलू बगीचा घर के निकट इसलिए बनाना चाहिए ताकि खाली समय में घर का कोई भी सदस्य बगीचे में काम कर सकता है।

प्रश्न 4.
मानव के भोजन में सब्जियों और फलों की क्या महत्ता है ?
उत्तर-
मानव के भोजन में सब्जियों तथा फलों का बहुत महत्त्व है क्योंकि इनमें कुछ ऐसे पोषक तत्त्व पाए जाते हैं जो अन्य भोजन पदार्थों में नहीं मिलते।

प्रश्न 5.
घरेलू बगीचे में कीड़े-मकौड़ों की रोकथाम के लिए कौन-से तरीके अपनाने चाहिएं ?
उत्तर-
गैर-रासायनिक तरीकों का उपयोग करके कीड़े-मकौड़ों की रोकथाम की जाती है।

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प्रश्न 6.
घरेलू बगीचे में किस प्रकार की खाद का प्रयोग करना चाहिए ?
उत्तर-
घरेलू बगीचे में रूड़ी खाद तथा घर के अपशिष्ट से तैयार कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए।

प्रश्न 7.
घरेलू बगीचे में उगाई जा सकने वाली दालों के नाम लिखो।
उत्तर-
चने, मसूर, मूंगी, उड़द आदि।

प्रश्न 8.
फल-सब्जियों की बहुलता होने पर उनसे कौन-कौन से पदार्थ बनाए जा सकते हैं ?
उत्तर-
फलों, सब्जियों की बहुलता होने पर शर्बत, जैम, आचार, मुरब्बे आदि बनाए जा सकते हैं।

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प्रश्न 9.
घरेलू बगीचे के लिए स्थान के चुनाव के समय कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
स्थान का चुनाव, सब्जियों का चयन तथा योजना, खादों का प्रयोग, खरपतवार, कीटों तथा बीमारियों से रोकथाम, सब्जियों की तुड़ाई, जड़ी-बूटियां उगाना आदि को ध्यान में रखना चाहिए।

प्रश्न 10.
सब्जियों से मिलने वाले रेशे मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार लाभदायक हैं ?
उत्तर-
सब्जियों से मिलने वाले रेशे मनुष्य की पाचन क्रिया को ठीक रखते हैं।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
संतुलित भोजन से क्या अभिप्रायः है ?
उत्तर-
संतुलित भोजन में भिन्न-भिन्न आहारीय तत्त्व उचित मात्रा में होने चाहिएं, ताकि सभी पोषक तत्त्व; जैसे-कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन, चर्बी, विटामिन, खनिज उचित मात्रा में मनुष्य को मिल सकें। इसलिए संतुलित आहार में अनाज, सब्जियां, दालें, दूध, फल, अण्डे, मीट, मछली आदि सारे आहारीय पदार्थ उचित मात्रा में होने चाहिएं। भारतीय स्वास्थ्य अनुसंधान संस्थान की सिफारिशों के अनुसार स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन अपने भोजन में 280-300 ग्राम सब्जियां, 50 ग्राम फल तथा 80 ग्राम दालें शामिल करना आवश्यक है।

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प्रश्न 2.
घरेलू बगीचे का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
घरेलू बगीचे की महत्ता तथा लाभ इस प्रकार हैं—

  1. संतुलित आहार की पूर्ति-घरेलू बगीचे में से आवश्यकता अनुसार सब्जियां, फल तथा दालों की पूर्ति हो जाती है।
  2. रसायनों से मुक्त आहार की प्राप्ति-घरेलू बगीचे में जो भी फसल उगाई जाती है उसमें रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों का प्रयोग नहीं किया जाता। इस तरह रसायनों से मुक्त आहार की प्राप्ति होती है।
  3. समय का उचित प्रयोग-घर के सदस्य जब भी खाली समय मिले, अपने समय का उचित प्रयोग कर सकते हैं।
  4. खर्च में कमी-घरेलू बगीचे में से प्राप्त फल, सब्जियां आदि बाज़ार से सस्ती पड़ती हैं।

प्रश्न 3.
घरेलू बगीचे में कीट और बीमारियों की रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
घरेलू बगीचे में खरपतवारनाशक तथा कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग बहुत ही कम किया जाता है तथा कम ही करना चाहिए। खरपतवारों की रोकथाम गुडाई द्वारा करनी चाहिए। कीड़े-मकौड़ों को पैदा होते ही हाथ से ही पकड़ कर मार देना चाहिए। बीज प्रमाणित किस्म के होने चाहिएं। यदि कीड़ों या बीमारी का हमला हो तो कृषि विशेषज्ञों की सिफ़ारिश के अनुसार उचित मात्रा में रसायनों का प्रयोग करें। सुरक्षित रसायनों का ही प्रयोग करना चाहिए जो कोई अपशिष्ट न छोड़ें। यदि रसायनों का प्रयोग किया हो तो तुड़ाई इसका प्रभाव समाप्त होने पर ही करें।

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प्रश्न 4.
घरेलू बगीचा बनाते समय किस प्रकार की ज़रूरी बातें ध्यान में रखनी चाहिएं ?
उत्तर-
घरेलू बगीचा बनाते समय आवश्यक बातें :
1. स्थान का चयन-घरेलू बगीचा घर के निकट ही होना चाहिए ताकि घर का कोई भी सदस्य जब खाली समय मिले बगीचे में काम कर सके। इस तरह घर के फालतू पानी का निकास भी बगीचे में किया जा सकता है।

2. सब्जियों का चयन तथा योजनाबंदी-घरेलू बगीचे में परिवार द्वारा पसंद की जाने वाली सब्जियों को पहल देनी चाहिए। कद्दू जाति की सब्जियों को बगीचे की बाहरी पंक्तियों में लगाया जाना चाहिए ताकि इनको वृक्षों या झाड़ियों पर चढ़ाया जा सके। ताज़ा प्रयोग होने वाली सब्जियां; जैसे—मूली, शलगम आदि को 15-15 दिनों के अंतर पर बोना चाहिए।

3. खादों का प्रयोग–रूड़ी खाद तथा घर में अपशिष्ट से बनी कम्पोस्ट खाद का प्रयोग करना चाहिए।

4. खरपतवार, कीट तथा बीमारियों की रोकथाम-घरेलू बगीचे में रसायनों का प्रयोग न के बराबर ही करना चाहिए। शुरू में कीटों को हाथ से पकड़ कर ही मार दें।
खरपतवार समाप्त करने के लिए गुडाई करें तथा प्रमाणित किस्म के बीज ही बोने चाहिएं। आवश्यकतानुसार विशेषज्ञों द्वारा सिफ़ारिश किए रसायन ही उचित मात्रा में प्रयोग करें।

5. सब्जियों की तुड़ाई-सब्जियों की तुड़ाई समय पर करते रहना चाहिए। अधिक मात्रा में होने पर जैम, आचार, मुरब्बे आदि बना लेने चाहिएं।

6. जड़ी-बूटियां लगाना-घरेलू बगीचे में तुलसी, पुदीना, अजवायन, सौंफ, नीम, कड़ी पत्ता आदि भी लगाने चाहिएं।

प्रश्न 5.
संतुलित भोजन की पूर्ति के लिए तीन कनाल पर विकसित किये गये घरेलू बगीचे के मॉडल का रेखाचित्र तैयार करो।
उत्तर-
स्वयं करें।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 7 पौष्टिक घरेलू बगीचा

Agriculture Guide for Class 7 PSEB पौष्टिक घरेलू बगीचा Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
तीन कनाल में कितने वर्ग मीटर होते हैं ?
उत्तर-
1500 वर्ग मीटर।

प्रश्न 2.
फरवरी माह में बोई जाने वाली कोई सब्जी बताओ।
उत्तर-
करेला, घीया, तोरी।

प्रश्न 3.
अगस्त में बोई जाने वाली कोई सब्जी बताओ।
उत्तर-
धनिया, छोटे बैंगन।

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प्रश्न 4.
तीन कनाल घरेलू बगीचे में एक कनाल किस काम के लिए है ?
उत्तर-
एक कनाल सब्जी बोने के लिए है।

प्रश्न 5.
घरेलू बगीचे में कौन-सी दिशा में फलदार पौधे लगाने चाहिएं।
उत्तर-
उत्तर-दिशा की तरफ।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
घरेलू बगीचे में फलदार पौधे उत्तर दिशा में क्यों लगाए जाने चाहिएं ?
उत्तर-
इस तरह करने से उनकी छाया का बुरा प्रभाव सब्जियों की पैदावार पर नहीं पड़ता।

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प्रश्न 2.
घरेलू बगीचे में कौन-सी सब्जियों को पहल देनी चाहिए ?
उत्तर-
घरेलू बगीचे में परिवार द्वारा पसंद की जाने वाली सब्जियों को पहल देनी चाहिए।

प्रश्न 3.
कम समय लेने वाली सब्जियों को घरेलू बगीचे में कहां बोना चाहिए ?
उत्तर-
कम समय लेने वाली सब्जियों को लम्बा समय लेने वाली सब्जियों के बीच खाली जगह पर बोना चाहिए।

प्रश्न 4.
कम समय लेने वाली सब्ज़ियां तथा लम्बा समय लेने वाली सब्जियां जो घरेलू बगीचे में होती हैं। कौन सी हैं ?
उत्तर-
कम समय वाली सब्जियां हैं-मूली, पालक, शलगम आदि तथा लम्बा समय लेने वाली सब्जियां हैं-टमाटर, बैंगन, भिंडी आदि।

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बड़े उत्तर वाला प्रश्न

प्रश्न-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा तैयार घरेलू बगीचे के मॉडल की जानकारी दें।
उत्तर-
यह मॉडल पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना द्वारा तीन कनाल स्थान के लिए तैयार किया गया है। इस मॉडल के अनुसार एक परिवार के आठ सदस्यों के लिए आवश्यक दालें, सब्जियां तथा फल पैदा किए जा सकते हैं। इस मॉडल के अनुसार एक कनाल क्षेत्रफल में सब्जियां तथा दो कनाल में दालों की पैदावार की जाती है। घरेलू बगीचे में बिना ज़हर वाली ताज़ी पैदावार मिल जाती है। रबी (आषाढ़ी) में चने, मसूर तथा खरीफ (सावनी) में मूंगी, उड़द आदि की कृषि की जा सकती है। बगीचे में उत्तर दिशा की तरफ दो पंक्तियों में फलदार पौधे लगा कर फलों की आवश्यकता पूरी की जा सकती है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 7 पौष्टिक घरेलू बगीचा 1
चित्र-घरेलू बगीचा

पौष्टिक घरेलू बगीचा PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • अच्छी सेहत के लिए संतुलित आहार बहुत आवश्यक है।
  • फलों तथा सब्जियों में ऐसे पौष्टिक तत्त्व होते हैं जो अन्य भोजन पदार्थों में नहीं होते।
  • स्वस्थ व्यक्ति को प्रतिदिन 280-300 ग्राम सब्जियां, 50 ग्राम फल तथा 80 ग्राम दालों की आवश्यकता होती है।
  • वर्तमान समय में सब्जियों तथा फलों के ऊपर आवश्यकता से अधिक कीटनाशकों का प्रयोग किया जा रहा है।
  • घरेलू बगीचा मनोरंजन का साधन भी बन सकता है।
  • घरेलू बगीचे में पैदा सब्जियां तथा फल बाज़ार से सस्ते पड़ते हैं।
  • पी०ए०यू० लुधियाना द्वारा घरेलू बगीचे का मॉडल तैयार किया गया है जिस के अनुसार एक परिवार के आठ सदस्यों के लिए तीन कनाल क्षेत्रफल में से दालें, सब्जियां तथा फल पैदा किए जा सकते हैं।
  • घरेलू बगीचा घर के पास ही होना चाहिए।
  • कदू जाति की सब्जियां हैं-घीया कद्दू, तोरी, करेले, टिंडे, खरबूजे आदि।
  • मूली, पालक, शलगम आदि कम समय में तैयार होने वाली सब्जियां हैं।
  • घरेलू बगीचे में रूड़ी की खाद का प्रयोग किया जाता है।
  • घरेलू बगीचे में खरपतवार की रोकथाम गुडाई करके करनी चाहिए।
  • सब्जियों की तुड़ाई समय पर करते रहना चाहिए।
  • घरेलू बगीचे में जड़ी-बूटी; जैसे-पुदीना, सौंफ, अजवायन, तुलसी, कड़ी-पत्ता – आदि बोई जा सकती हैं।

PSEB 6th Class Home Science Practical अण्डा उबालना

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Practical अण्डा उबालना Notes.

PSEB 6th Class Home Science Practical अण्डा उबालना

पूरा अण्डा उबालना—

सामग्री—

  1. पानी — 2 कप
  2. अण्डा —एक

विधि—पानी को साफ़ बर्तन में उबाले। जब पानी उबलने लग जाए तो पानी में अण्डा रख दें और तीन से चार मिनट तक उबालें।
उबालने के पश्चात् 15 सेकिण्ड के लिए ठण्डे पानी में रख दें। ठण्डे पानी से अण्डा निकालकर इसे छील लें। लम्बाई की तरफ़ से काटकर नमक तथा काली मिर्च लगाकर परोसें।

PSEB 6th Class Home Science Practical अण्डा उबालना

2. आधा उबला अण्डा—

उपरोक्त विधि में सिर्फ उबालने का समय एक से डेढ मिन्ट तक का रखा जाता है। उबले अण्डे को पूरा न छील कर कम छीला जाता है तथा इसमें नमक, काली मिर्च डाल कर चम्मच से खाया जाता है।
नोट-

  1.  बहुत हल्का उबालने के लिए एक मिनट उबालना ठीक रहता है।
  2. बर्तन में इतना पानी लें कि अण्डा डूब जाए।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 नौकरशाही

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 8 नौकरशाही Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 8 नौकरशाही

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
नौकरशाही की परिभाषा लिखो। इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करो।
(Define Bureaucracy.-Write main characteristics of Bureaucracy.)
अथवा
नौकरशाही की विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Explain the characteristics of Bureaucracy.)
उत्तर-
नौकरशाही अथवा ब्यूरोक्रेसी (Bureaucracy) फ्रांसीसी भाषा के शब्द ‘ब्यूरो’ (Bureau) से बना है जिसका अर्थ है डैस्क या लिखने की मेज़। अतः इस शब्द का अर्थ हुआ ‘डैस्क सरकार।’ इस प्रकार नौकरशाही (Bureaucracy) का अर्थ है-डैस्क पर बैठ कर काम करने वाले अधिकारियों के शासन से है। दूसरे शब्दों में, नौकरशाही का अर्थ है प्रशासनिक अधिकारियों का शासन। इस शब्द का अर्थ कालान्तर में बदलता रहता है। यह शब्द काफ़ी बदनाम हो गया है तथा इस शब्द का अर्थ स्वेच्छाचारिता (Arbitrariness), अपव्यय (Wastefulness), कार्यालय की कार्यवाही (Officiousness) तथा तानाशाही (Regimentation) आदि के रूप में किया जाता है।।

नौकरशाही की बदनामी के बावजूद प्रजातन्त्र तथा लोक हितकारी राज्य में इनका महत्त्व बहुत अधिक हो गया है। नौकरशाही शब्द का अधिकाधिक प्रयोग लोक सेवा के प्रभाव को जताने के लिए किया जाता है। प्रायः सभी आधुनिक राज्यों में सरकार का कार्य उन अधिकारियों द्वारा किया जाता है जिन्हें प्रशासनिक समस्याओं की पूरी जानकारी तथा क्षमता रहती है। अधिकारियों के ऐसे निकाय को नौकरशाही के रूप में जाना जाता है। नौकरशाही सरकारी गतिविधियों के समूह द्वारा उत्पन्न गतिविधि है। नौकरशाही की विभिन्न परिभाषाएं इस प्रकार हैं-

1. विलोबी (Willoughby) के अनुसार, “नौकरशाही के दो अर्थ हैं, विस्तृत अर्थों में यह एक सेवी वर्ग प्रणाली है जिसके द्वारा कर्मचारियों को विभिन्न वर्गीय पद सोपानों जैसे सैक्शन, डिवीजन, ब्यूरो तथा डिपार्टमैण्ट में बांटा जाता (“It is to describe any personnel system of administration composed of a hierarchy of sections, divisions, bureaus and departments.”)

संकुचित अर्थ में “यह सरकारी कर्मचारियों के संगठन की पद-सोपान प्रणाली है जिस पर बाहरी प्रभावी लोक नियन्त्रण सम्भव नहीं।”
(“A body of public servants organised in a hierarchical system which stands outside the sphere of effective public control.”)

2. मार्शल ई० डीमॉक (Marshall E. Dimock) के अनुसार, “नौकरशाही का अर्थ है विशेषीकृत पद सोपान एवं संचार की लम्बी रेखाएं।”
(“Bureaucracy means specialised hierarchies and long lines of communication.”)

3. फाइनर (Finer) के अनुसार, “नौकरशाही ऐसा शासन है जिसे मुख्यतः ऐसे कार्यालयों द्वारा चलाया जाता है जिसकी अध्यक्षता अधिकारियों के प्रशिक्षित वर्ग के पास होती है। ये अधिकारीगण स्थायी, वेतन-भोगी एवं कुशल होते हैं।

4. मैक्स वैबर (Max Weber) के अनुसार, “नौकरशाही प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है, जिसकी विशेषताविशेषज्ञता, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।”
(“A System of administration characterized by expertness, impartiality and the absence of humanity.”)

5. ग्लैडन (Gladden) के अनुसार, “नौकरशाही का अर्थ अन्तर्सम्बन्धित कार्यालयों का नियमित प्रशासनिक व्यवस्था में संगठन है।”
(“The term Bureaucracy means of regulated administrative system organised as a series of inter-related offices.”)

6. पाल एप्लबी (Paul Appleby) के अनुसार, “यह तकनीकी दृष्टि से कुशल व्यक्तियों का एक व्यावसायिक वर्ग है जो क्रमबद्ध संगठित होते हैं और निष्पक्ष रूप से राज्य की सेवा करते हैं।”
(“It is a professional class of technically skilled persons who are organised in an hierarchical way and serve the state in and impartial manner.”).

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 नौकरशाही

प्रश्न 2.
आधुनिक लोकतन्त्रीय राज्य में नौकरशाही के महत्त्व का वर्णन करें। (Explain the importance of Bureaucracy in a Modern Democratic State.)
उत्तर-
आधुनिक लोकतन्त्रात्मक राज्य में नौकरशाही का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। आधुनिक राज्य में नौकरशाही का होना अनिवार्य है। प्रशासन की कार्यकुशलता और सफलता योग्य, निष्पक्ष और ईमानदारी नौकरशाही पर निर्भर करती है। किसी भी तरह की शासन प्रणाली क्यों न हो, नौकरशाही एक ऐसी धुरी है जिसके इर्द-गिर्द प्रशासन घूमता रहता है। वास्तव में शासन नौकरशाही द्वारा ही चलाया जाता है और इसीलिए कई बार कहा जाता है कि आजकल नौकरशाही की सरकार स्थापित हो चुकी है। नौकरशाही का महत्त्व अग्रलिखित है-

1. शासन व्यवस्था का आधार (Basis of Government)-आधुनिक युग में शासन के कार्य बहुत विस्तृत हो गए हैं। शासन के कार्य पहले की अपेक्षा अधिक जटिल हैं। शासन के जटिल कार्यों को राजनीतिक कार्यपालिका नहीं कर पाती क्योंकि मन्त्रियों की नियुक्ति राजनीतिक आधार पर होती है। मन्त्री के लिए यह आवश्यक नहीं होता है कि व जिस विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है, उसके बारे में उसे पूरी जानकारी प्राप्त हो। परन्तु असैनिक अधिकारी योग्यता के आधार पर नियुक्त किए जाते हैं और उन्हें प्रशिक्षण भी दिया जाता है। अत: शासन के जटिल कार्यों को योग्य कर्मचारी ही करते हैं। शासन की नीतियों को वास्तव में असैनिक अधिकारियों के द्वारा ही लागू किया जाता है। इसलिए नौकरशाही को शासन का आधार माना जाता है।

2. मन्त्री शासन चलाने के लिए नौकरशाही पर निर्भर करते हैं (Ministers depend upon bureaucracy for administration)—सभी लोकतन्त्रीय देशों में मन्त्री बनने के लिए कोई शैक्षिक योग्यताएं निश्चित नहीं की जातीं। मन्त्रियों की नियुक्ति राजनीतिक आधार पर होती है। किसी भी व्यक्ति को मन्त्री बनाया जा सकता है, चाहे वह अनपढ़ क्यों न हो। अतः मन्त्री प्रशासन चलाने के लिए असैनिक अधिकारियों पर निर्भर करते हैं क्योंकि वे शासन में योग्य होते हैं।
असैनिक कर्मचारी विशेषज्ञ होते हैं जिसके कारण मन्त्री उन पर निर्भर रहते हैं और विभाग का प्रशासन लोक सेवकों द्वारा ही चलाया जाता है।

3. शासन प्रबन्ध में निरन्तरता प्रदान करते हैं (Provide Continuity of Administration)-सरकारों का निर्माण राजनीतिक आधार पर किया जाता है, जिस कारण सरकारों में परिवर्तन होते रहते हैं। सरकारें बनती और टूटती रहती हैं। कभी किसी दल की सरकार होती है, तो कभी किसी दल की। मन्त्री आते और जाते रहते हैं, परन्तु असैनिक अधिकारी अपने पदों पर बने रहते हैं और सरकार में परिवर्तन होने पर प्रशासकीय अधिकारी त्याग-पत्र नहीं देते। प्रशासकीय अधिकारी स्थायी होते हैं। कई बार सरकार बनाने में कुछ समय भी लग जाता है। इन सब परिस्थितियों में असैनिक अधिकारी प्रशासन चलाते रहते हैं और इस तरह वे शासन प्रबन्ध में निरन्तरता प्रदान करते हैं।

4. मन्त्रियों के पास समय का अभाव (Lack of time with Ministers)-मन्त्री केवल अपने विभाग का अध्यक्ष नहीं होता है, बल्कि वह संसद् का सदस्य तथा अपने दल का महत्त्वपूर्ण सदस्य होता है और वह अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधि होता है। अतः मन्त्री को अपने विभाग की देखभाल करने के साथ और भी बहुत से काम करने पड़ते हैं जैसे कि संसद् की बैठकों में भाग लेना, बिलों को पास करवाना, विरोधी दल की आलोचना का उत्तर देना तथा जनता के साथ सम्पर्क बनाए रखना। इसलिए किसी भी मन्त्री के पास इतना समय नहीं रहता कि वह अपने विभाग की पूरी जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न करे और केवल स्थायी कर्मचारियों की सलाह पर निर्भर न रहकर अपनी इच्छानुसार स्थायी कर्मचारियों से काम ले सके। अतः असैनिक अधिकारियों की सहायता के बिना मन्त्री कार्यों को पूरा नहीं कर सकते।

5. शासन प्रबन्ध को गतिशीलता प्रदान करते हैं (Provide dynamism to administration) राजनीतिक कार्यपालिका जब शासन सम्बन्धी नीतियों का निर्माण करती है तो समस्त शासन की एक ही नीति बनाई जाती है। परन्तु कई बार शासन की नीतियां सभी स्थानों और सभी परिस्थितियों के लिए अनुकूल नहीं होती। असैनिक अधिकारी इन नीतियों को लागू करते समय परिस्थितियों के अनुसार इनमें थोड़ा-बहुत परिवर्तन कर लेते हैं और इस तरह शासन प्रबन्ध को गतिशीलता प्रदान करते हैं।

6. लोगों की शिकायतों को दूर करते हैं (Redress the grievances of the peoples)-लोगों की सरकार से अनेक प्रकार की शिकायतें होती हैं, परन्तु आम जनता के लिए मन्त्रियों से मिल पाना आसान नहीं होता है। अतः जनता अपनी शिकायतें लोक सेवकों तक पहुंचाती है और कई बार लोक सेवकों को जनता के रोष का भी सामना करना पड़ता है। असैनिक अधिकारी जनता की शिकायतों को सुनते हैं और उन्हें दूर करने का प्रयास करते हैं। जो शिकायतें उनके स्तर पर दूर नहीं हो सकतीं, उनको मन्त्रियों के पास भेजते हैं।

7. संसदीय शासन में महत्त्व (Importance in Parliamentary Govt.) संसदीय शासन प्रणाली में नौकरशाही का अत्यधिक महत्त्व है। संसदीय शासन प्रणाली में राजनीतिक कार्यपालिका तथा असैनिक अधिकारियों में बहुत समीप का सम्बन्ध पाया जाता है और असैनिक अधिकारी बहुत महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। देश का समस्त शासन मन्त्रिमण्डल के द्वारा चलाया जाता है और प्रत्येक मन्त्री किसी-न-किसी विभाग का अध्यक्ष होता है। मन्त्रियों को अपने विभाग के बारे में बहुत कम ज्ञान होता है। कई बार मन्त्रियों को ऐसे विभाग भी मिल जाते हैं जिनके बारे में उन्हें बिल्कुल ज्ञान नहीं होता। अनुभवहीन होने के कारण मन्त्री नौकरशाही के सदस्यों पर निर्भर करते हैं और उनकी इच्छानुसार कार्य करते हैं।

संसदीय शासन प्रणाली में मन्त्रियों को अपने समस्त कार्यों के लिए संसद् के प्रति उतरदायी रहना पड़ता है। संसद् के सदस्य मन्त्रियों से कोई भी प्रश्न पूछ सकते हैं। मन्त्रियों को इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए स्थायी कर्मचारियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। वास्तविकता तो यह है कि मन्त्रियों के प्रश्न के उत्तर स्थायी कर्मचारियों द्वारा तैयार किए जाते हैं जिनको मन्त्री संसद् में पढ़ देते हैं।

संसदीय शासन प्रणाली में जैसे कि भारत में 90 प्रतिशत से अधिक बिल मन्त्रियों द्वारा संसद् में पेश किए जाते हैं परन्तु इन बिलों को स्थायी कर्मचारी ही तैयार करते हैं। वास्तव में मन्त्री नौकरशाही पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं। हरबर्ट मौरिसन (Herbert Morrison) के शब्दों में, “नौकरशाही संसदीय लोकतन्त्र की कीमत है।” (Bureaucracy is the price of parliamentary democracy.”) लॉस्की (Laski) ने तो यहां तक कह दिया है, “संसद्, मन्त्रियों के हाथ में तथा मन्त्री नौकरशाही के हाथ में खिलौना होते हैं।”

8. कल्याणकारी राज्य में महत्त्व (Importance in a Welfare State)-आधुनिक राज्य कल्याणकारी राज्य है, जिस कारण राज्य के कार्यों में बहुत वृद्धि हो गई है। राज्य को लोगों के कल्याण के लिए सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक कार्य करने पड़ते हैं। कल्याणकारी राज्य में ऐसा कोई कार्य नहीं है जो राज्य द्वारा नहीं किया जाता और कल्याणकारी राज्य में सभी कार्यों को कुशलता और ईमानदारी से लागू करना नौकरशाही पर निर्भर करता है। अतः कल्याणकारी राज्य में नौकरशाही का महत्त्व बहुत अधिक हो गया है।

9. निष्पक्षता (Neutrality)-नौकरशाही का महत्त्व इसलिए भी है क्योंकि यह निष्पक्ष होकर कार्य करती है जबकि मन्त्री अपने दलों के प्रति वफ़दार होते हैं तथा उसी के हितों के लिए अधिकतर कार्य करते हैं। इसके लिए वे प्रशासनिक नियमों-विनियमों की भी परवाह न करते हुए उसमें हस्तक्षेप करते हैं। जबकि असैनिक अधिकारी किसी दल के प्रति वफादार न होकर निष्पक्ष रहते हैं तथा मन्त्रियों को कोई ऐसा कार्य नहीं करने देते जो राजनीति से प्रेरित हो। नौकरशाही में बिना भेदभाव तथा निष्पक्ष व्यवहार के कारण ही प्रशासन को कुशलता से चलाया जा सकता है। इसीलिए प्रशासन के संचालन में नौकरशाही अधिक महत्त्वपूर्ण है।

असैनिक कर्मचारियों के महत्त्व का वर्णन करते हुए जौसेफ चैम्बरलेन (Joseph Chamberlain) ने लिखा है, “मुझे सन्देह है कि आप लोग (Civil Servants) हम लोगों (Ministers) के बिना विभाग का प्रशासन कर सकते हैं। किन्तु मुझे इस बात का पूर्ण विश्वास है कि हम लोग आप लोगों के बिना विभाग का कार्य नहीं कर सकेंगे।” निःसन्देह असैनिक अधिकारियों का महत्त्व बहुत अधिक है।

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प्रश्न 3.
लोक सेवाओं की भर्ती पर लेख लिखो। (Write an essay on the Recruitment of Civil Services.)
उत्तर-
प्रशासन की सफलता एवं कार्य-कुशलता लोक सेवाओं पर निर्भर करती है। कुशल तथा योग्य कर्मचारी के बिना अच्छे शासन की कल्पना नहीं की जा सकती। परन्तु ईमानदार, योग्य, परिश्रमी और कुशल कर्मचारी प्राप्त करना आसान नहीं है। इसीलिए प्रायः सभी देशों में उचित भर्ती एक समस्या बना चुकी है।

भर्ती का अर्थ- भर्ती का अर्थ केवल रिक्त स्थानों की पूर्ति करना नहीं है बल्कि यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा योग्य व्यक्तियों को रिक्त स्थानों के लिए आकर्षित करना होता है। डॉ० एम० पी० शर्मा के अनुसार, “भर्ती शब्द का अर्थ किसी पद के लिए योग्य तथा उपयुक्त परिवार के उम्मीदवारों को रिक्त स्थानों के लिए आकर्षित करना है।”

किंग्सले (Kingsley) के अनुसार, “सार्वजनिक भर्ती की व्याख्या यह है कि यह वह परीक्षा है जिसके द्वारा लोक सेवाओं के लिए प्रार्थियों को प्रतियोगितात्मक रूप में आकर्षित किया जा सकता है। यह व्यापक प्रक्रिया का आन्तरिक भाग है। नियुक्ति में प्रक्रिया एवं प्रमाण सम्बन्धी प्रक्रियाएं भी सम्मिलित हैं।”

नकारात्मक तथा सकारात्मक भर्ती (Negative and Positive Recruitment)-लोक सेवाओं की भर्ती को मोटे रूप में दो भागों में बांट सकते हैं-नकारात्मक तथा सकारात्मक।

नकारात्मक भर्ती का उद्देश्य सरकारी पदों से अयोग्य एवं चालाक व्यक्तियों को दूर रखना होता है। इस प्रक्रिया में भर्तीकर्ता कुछ ऐसे नियम बना देता है जिनके आधार पर केवल योग्य व्यक्तियों को ही उम्मीदवार बनने का अवसर प्राप्त हो सके और चालाक तथा बेईमान व्यक्तियों को लोक सेवाओं से बाहर रखा जा सके।

सकारात्मक भर्ती का उद्देश्य विभिन्न सरकारी पदों के लिए उचित और योग्य व्यक्तियों को आकर्षित करना है।

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प्रश्न 4.
नौकरशाही के शाब्दिक अर्थ की व्याख्या करते हुए लोकतंत्र में नौकरशाही की भूमिका/कार्यों का चार पक्षों में वर्णन करें।
(Explain the verbal meaning of word ‘Bureaucracy’ ? Explain its role/functions from four aspects in democracy.)
अथवा
नौकरशाही की परिभाषा दें, तथा इसकी भूमिका की चर्चा करें। (Define Bureaucracy and discuss its role.)
उत्तर-
नौकरशाही का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें।
नौकरशाही की भूमिका एवं कार्य-नौकरशाही का शासन पर बहुत प्रभाव बढ़ गया है। बिना नौकरशाही के शासन चलाना और देश का विकास करना अति कठिन कार्य है। नौकरशाही का महत्त्व इसलिए बढ़ गया है कि आधुनिक राज्य एक कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य होने के कारण राज्य के कार्य इतने बढ़ गए हैं कि सब कार्य मन्त्री नहीं कर सकते। मन्त्रियों को कार्य चलाने के लिए स्थायी कर्मचारियों अर्थात् नौकरशाही की आवश्यकता पड़ती है। इसके अतिरिक्त मन्त्रियों के पास वैसे भी समय कम होता है, जिसके कारण वे प्रत्येक सूचना स्वयं प्राप्त नहीं कर पाते। आधुनिक राज्य में नौकरशाही की भूमिका का वर्णन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-

1. प्रशासकीय कार्य (Administrative Functions or Role)-प्रशासकीय कार्य नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण कार्य है। मन्त्री का कार्य नीति बनाना है और नीति को लागू करने की जिम्मेदारी नौकरशाही की है। नौकरशाही के सदस्य चाहे किसी नीति से सहमत हो या न हों, उनका महत्त्वपूर्ण कार्य नीतियों को लागू करना है। पर एक अच्छी नीति भी बेकार साबित हो जाती है, यदि उसे प्रभावशाली ढंग से लागू न किया जाए और यह कार्य नौकरशाही का ही है।

2. नीति को प्रभावित करना (To Influence Policy)-नि:सन्देह नीति-निर्माण राजनीतिक कार्यपालिका का कार्य है। परन्तु प्रशासनिक योग्यता के कारण नीति-निर्माण में नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण योगदान है। नीति-निर्माण के लिए मन्त्रियों को आंकड़ों की आवश्यकता होती है और ये आंकड़े स्थायी कर्मचारी मन्त्रियों को देते हैं। इसके अतिरिक्त नौकरशाही नीति को लागू करते समय नीति को एक नया मोड़ दे देती है।

3. सलाहकारी कार्य (Advisory Functions or Role)–नौकरशाही राजनीतिक कार्यपालिका को सलाह देने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मन्त्री नीतियों को निर्धारित करते समय काफ़ी हद तक असैनिक कर्मचारियों के परामर्श पर निर्भर करते हैं क्योंकि जनता के सम्बन्ध में कर्मचारियों को काफ़ी अनुभव होता है। मन्त्री योग्यता के आधार पर नियुक्त न होकर राजनीति के आधार पर नियुक्त किए जाते हैं। मन्त्रियों को प्रायः अपने विभाग की तकनीकी बारीकियों का कोई ज्ञान नहीं होता। अतः मन्त्रियों को विभाग का प्रशासन चलाने के लिए स्थायी कर्मचारियों पर निर्भर रहना पड़ता है। सर जोसुआ स्टेम्प ने कहा, “मैं अपने मस्तिष्क में बिल्कुल स्पष्ट हूँ कि पदाधिकारी को नवीन समाज का मूल स्रोत होना चाहिए और उसे सोपान पर सलाह, उन्नति की बात कहनी चाहिए।”

4. वैधानिक कार्य (Legislative Functions or Role)-नौकरशाही कानून निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसदीय शासन प्रणाली वाले देशों में जैसे कि भारत और इंग्लैण्ड में संसद् में अधिकांश बिल मन्त्रियों द्वारा ही प्रस्तुत किए जाते हैं। मन्त्रियों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले बिलों की रूप रेखा स्थायी कर्मचारियों द्वारा ही तैयार की जाती है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक समस्याओं का हल करने के लिए किस प्रकार के नए कानूनों की आवश्यकता है इसका सुझाव भी स्थायी कर्मचारियों द्वारा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त संसद् कानून का ढांचा तैयार कर देती है और कानून का विस्तार करने के लिए नौकरशाही को नियम उप-नियम बनाने की शक्ति प्रदान कर देती है। नियम व उप-नियम बनाने को प्रदत्त व्यवस्थापन (Delegated Legislation) कहा जाता है।

मन्त्रियों को संसद् के सदस्यों द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देना होता है, परन्तु इन प्रश्नों के उत्तर स्थायी कर्मचारियों द्वारा तैयार किए जाते हैं। स्थायी कर्मचारी संसद् में पूछे जा सकने वाले पूरक प्रश्नों (Supplementary Questions) का पूर्वानुमान करके उनके उत्तर भी तैयार करके मन्त्री को देते हैं।

5. नियोजन (Planning)-व्यापक रूप से नियोजन का कार्यक्रम तैयार करना राजनीतिक कार्यपालिका की जिम्मेवारी है, परन्तु नियोजन की सफलता काफ़ी हद तक लोक सेवकों पर निर्भर करती है। राजनीतिक कार्यपालिका को नियोजन बनाने के लिए तथ्यों एवं आंकड़ों की आवश्यकता होती है, जिनकी पूर्ति स्थायी कर्मचारियों द्वारा की जाती है। मन्त्रिमण्डल के विभिन्न लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए योजनाएं देने तथा कार्यक्रम और उचित साधनों की खोज करने की जिम्मेवारी कर्मचारियों की होती है। ए० डी० गोरवाला (A.D. Gorwala) के शब्दों में, “लोकतन्त्र में स्वच्छ, कुशल और निष्पक्ष प्रशासन के बिना कोई भी योजना सफल नहीं हो सकती।”

6. वित्तीय कार्य (Financial Functions or Role) शासन के वित्तीय क्षेत्र में भी नौकरशाही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। संसद् प्रतिवर्ष बजट पास करती है और संसदीय शासन प्रणाली वाले देशों में बजट वित्तमन्त्री संसद् में पेश करता है। यद्यपि बजट तैयारी के सम्बन्ध में नीति मन्त्रिमण्डल द्वारा बनाई जाती है तथापि बजट की रूप-रेखा तैयार करना और सरकार की आर्थिक स्थिति का विवरण पेश करना नौकरशाही का कार्य है। करों को इकट्ठा करना, बजट के अनुसार खर्च करना, इन सबका लेखा-परीक्षण आदि करना स्थायी कर्मचारियों का कार्य है।

7. समन्वय करना (Co-ordination)-शासन की कुशलता विभिन्न विभागों के समन्वय पर निर्भर करती है। विभिन्न विभागों के बीच तथा सरकारी कर्मचारियों के बीच समन्वय स्थापित करना प्रशासनिक अधिकारियों का कार्य है।

8. न्यायिक कार्य (Judicial Functions or Role)-आधुनिक युग में न्याय सम्बन्धी कार्य न्यायपालिका के द्वारा ही नहीं किए जाते बल्कि कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य प्रशासकीय न्यायाधिकरणों (Administrative Tribunals) के द्वारा भी किए जाते हैं। इसका कारण यह है कि वर्तमान समय में प्रशासकीय कानून तथा प्रशासकीय अधिनिर्णय (Administrative Laws and Administrative Adjudication) की संख्या काफ़ी बढ़ गई है। अतः प्रशासक न केवल शासन करते हैं बल्कि न्याय भी करते हैं।

9. जन-सम्बन्धी कार्य (Public Relation Functions)-नौकरशाही अपनी नीतियों की सफलता के लिए जनता से सहयोग प्राप्त करने हेतु वर्तमान युग में कई तरीकों से लोक सम्बन्ध बनाए रखते हैं।

10. विदेशी सम्बन्धों में स्थायित्व (Stability in Foreign Relations) विदेशी सम्बन्धों में नौकरशाही की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है। नौकरशाही के कारण विदेशी सम्बन्धों एवं नीतियों में स्थिरता आती है।

11. लोगों की शिकायतों को दूर करना (To redress the grievances of the people)-लोगों को प्रशासन से कई तरह की शिकायतें होती हैं। लोग अपनी शिकायतें असैनिक अधिकारियों के सामने प्रस्तुत करते हैं। असैनिक अधिकारी इन शिकायतों को दूर करने का प्रयास करते हैं। जनता अपनी शिकायतें मन्त्रियों को भी भेजती है और मन्त्री ऐसी शिकायतों को दूर करने के लिए असैनिक अधिकारियों को आदेश देते हैं।

12. उत्पादन सम्बन्धी कार्य (Productive Functions)-लोक सेवाओं का मुख्य कार्य सेवा करना है और उत्पादन उसी का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। सड़क-निर्माण, भवन-निर्माण तथा अन्य इस प्रकार के कार्य उत्पादन से सम्बन्धित हैं। उत्पादन की मात्रा से स्थायी कर्मचारियों की कार्य-कुशलता का अन्दाज़ा लगाया जा सकता है। उत्पादन के आधार पर ही उसे राजनीतिक कार्यपालिका तथा जनता दोनों से प्रशंसा या घृणा प्राप्त होती है। प्रत्येक कर्मचारी किसी-न-किसी बात अथवा वस्तु के उत्पादन के लिए उत्तरदायी होता है। यदि यातायात के साधनों से जनता की सुखसुविधाओं में वृद्धि होती है तो जनता स्थायी कर्मचारियों की प्रशंसा करती है। इसी प्रकार यदि शिक्षा का स्तर गिरता है तो उसके लिए भी शिक्षकों को उत्तरदायी ठहराया जाता है। यदि प्रशासन का स्तर गिरता है, तो उसके लिए असैनिक अधिकारियों को जिम्मेवार ठहराया जाता है।

13. नौकरशाही विवेकहीन प्रयोगों को प्रोत्साहित नहीं करती (Bureaucracy does not courage rash experiments)—नौकरशाही सरकारी सेवाओं में विवेकहीन कार्यों को प्रोत्साहित नहीं करती। मन्त्रियों द्वारा कई बार लोगों को प्रसन्न करने के लिए जल्दबाज़ी में विवेकहीन कार्य किये जाते हैं, परन्तु नौकरशाही इस प्रकार के कार्यों को प्रोत्साहित नहीं करती तथा देश हित को ध्यान में रख कर ही निर्णय लेती है। नौकरशाही अधिकांशतः गम्भीर एवं रूढ़िवादी होती है, तथा जल्दबाजी में लिए गए निर्णयों को काफ़ी सोच-विचार कर ही लागू करती है।

संक्षेप में, आधुनिक कल्याणकारी राज्य में नौकरशाही का महत्त्व बहुत बढ़ गया है। सभी क्षेत्रों में नौकरशाही का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है। राज्य को लोक हित के अनेक कार्य करने पड़ते हैं और इन कार्यों का सफ़ल होना या न होना नौकरशाही की कुशलता पर निर्भर करता है।

नौकरशाही की भूमिका के सम्बन्ध में डॉ० जेनिंग्स (Dr. Jennings) ने ठीक ही लिखा है, “असैनिक कर्मचारियों का कार्य है कि सलाह दें, चेतावनी दें, स्मृति-पत्र लिखें तथा भाषण तैयार करें जिनमें सरकार की नीति निर्देशित हो फिर उस नीति के फलस्वरूप निर्णय करें। साथ ही उन कठिनाइयों की ओर ध्यान आकर्षित करें जो निर्धारित नीति पर चलने में आ सकती है। साधारणतया असैनिक कर्मचारियों का कर्त्तव्य हो जाता है कि वे शासन का कार्य उसी प्रकार चलाएं जिस प्रकार मन्त्री द्वारा नीति निर्धारित की गई है।”.

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प्रश्न 5.
राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी कार्यपालिका का अर्थ स्पष्ट करते हुए विस्तारपूर्वक दोनों में अन्तर बताएं।
(Write down the meaning of Political Executive and Permanent Executive and explain in detail the differences between the two.)
अथवा
राजनीतिक कार्यपालिका और स्थाई कार्यपालिका में मुख्य अन्तर लिखो।
(Describe main differences between Political Executive and Permanent Executive.)
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका का अर्थ (Meaning of Political Executive)-कार्यपालिका के अनेक रूपों में से एक को राजनीतिक कार्यपालिका कहा जाता है। कार्यपालिका के साथ राजनीतिक शब्द के प्रयोग से यह स्पष्ट है कि ऐसी कार्यपालिका की नियुक्ति राजनीतिक आधार पर होती है। राजनीतिक कार्यपालिका का गठन करने में राजनीतिक दलों की विशेष भूमिका होती है। राजनीतिक कार्यपालिका की एक अन्य विशेषता यह है कि कुछ वर्षों के लिए निश्चित कार्य काल से पूर्व भी इसको हटाने की व्यवस्था की जाती है। संसदीय प्रणाली में राजनीतिक कार्यपालिका को विधानमण्डल के प्रति उत्तरदायी बनाया जाता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि राजनीतिक कार्यपालिका की नियुक्ति राजनीतिक आधारों पर कुछ वर्षों के निश्चित कार्य-काल के लिए की जाती है तथा ऐसी कार्यपालिका राजनीतिक स्वरूप की होती है तथा इसका गठन करने में राजनीतिक दलों की विशेष भूमिका होती है।

(Meaning of Permanent Executive or Administrator)-अधिकारी वर्ग अथवा नौकरशाही का दूसरा नाम स्थायी कार्यपालिका अथवा प्रशासक है। स्थायी कार्यपालिका में नौकरशाही अथवा असैनिक अधिकारी सम्मिलित हैं। स्थायी कार्यपालिका की नियुक्ति राजनीतिक अधिकारों से मुक्त अर्थात् स्वतन्त्र होती है। स्थायी कार्यपालिका का चुनाव अथवा नियुक्ति सम्बन्धी राजनीतिक दलों की कोई भूमिका नहीं होती। स्थायी कार्यपालिका के सदस्यों की नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है। इस कार्यपालिका को इस कारण स्थायी कहा जाता है, क्योंकि इसके सदस्यों का कार्य काल सेवा निवृत्त होने की निश्चित आयु तक स्थायी होता है। राजनीतिक कार्यपालिका में परिवर्तन आने के बावजूद भी स्थायी कार्यपालिका में कोई परिवर्तन नहीं आता। स्थायी कार्यपालिका का मुख्य कार्य राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा निर्धारित की गई नीतियों के अनुसार निष्पक्ष रूप से प्रशासन का प्रबन्ध करना है।

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
नौकरशाही का अर्थ लिखें।
अथवा
नौकरशाही’ शब्द के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
नौकरशाही अथवा ब्यूरोक्रेसी फ्रांसीसी भाषा के शब्द ब्यूरो से बना है जिसका अर्थ है-डेस्क या लिखने की मेज़। अब इस शब्द का अर्थ हुआ डेस्क सरकार। इस प्रकार नौकरशाही का अर्थ डेस्क पर बैठकर काम करने वाले अधिकारियों के शासन से है। दूसरे शब्दों में, नौकरशाही का अर्थ है प्रशासनिक अधिकारियों का शासन । नौकरशाही शब्द का अधिकाधिक प्रयोग लोक सेवा के प्रभाव को जताने के लिए किया जाता है। प्रायः सभी आधुनिक राज्यों में सरकार का कार्य उन अधिकारियों द्वारा किया जाता है जिन्हें प्रशासनिक समस्याओं की पूरी जानकारी तथा क्षमता रहती है। अधिकारियों के ऐसे निकाय को नौकरशाही के रूप में जाना जाता है। नौकरशाही सरकारी गतिविधियों के समूह द्वारा सम्पन्न गतिविधि है। नौकरशाही की विभिन्न परिभाषाएं अग्रलिखित हैं

  • मार्शल ई० डीमॉक के अनुसार, “नौकरशाही का अर्थ है विशेषीकृत पद सोपान एवं संचार की लम्बी रेखाएं।”
  • फाइनर के अनुसार, “नौकरशाही ऐसा शासन है जिसे मुख्यतः ऐसे कार्यालयों द्वारा चलाया जाता है जिनकी अध्यक्षता अधिकारियों के प्रशिक्षित वर्ग के पास होती है। ये अधिकारीगण स्थायी, वेतन-भोगी एवं कुशल होते हैं।”
  • मैक्स वेबर के अनुसार, “नौकरशाही प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है जिसकी विशेषता-विशेषज्ञ, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 8 नौकरशाही

प्रश्न 2.
नौकरशाही की चार मुख्य विशेषताओं को लिखें।
अथवा
नौकरशाही की मुख्य विशेषताएं कौन-सी हैं ?
उत्तर-
नौकरशाही की मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
1. निश्चित अवधि-नौकरशाही का कार्यकाल निश्चित होता है। सरकार के बदलने पर नौकरशाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। मन्त्री आते हैं और चले जाते हैं परन्तु नौकरशाही के सदस्य अपने पद पर बने रहते हैं। लोक सेवक निश्चित आयु तक पहुंचने पर ही रिटायर होते हैं। रिटायर होने की आयु से पूर्व भी लोक सेवकों को भ्रष्टाचार, अकुशलता आदि आरोपों के आधार पर निश्चित कानूनी विधि के अनुसार हटाया जा सकता है।

2. निर्धारित वेतन तथा भत्ते-नौकरशाही के सदस्यों को निर्धारित वेतन तथा भत्ते दिए जाते हैं। पदोन्नति के साथ उनके वेतन में भी वृद्धि होती रहती है। अवकाश की प्राप्ति के पश्चात् नौकरशाही के सदस्यों को पेंशन मिलती है।

3. राजनीतिक तटस्थता, नौकरशाही में कर्मचारी के व्यक्तिगत या राजनीतिक विचारों का कोई स्थान नहीं है। नौकरशाही को राजनीतिक दृष्टि से तटस्थ रहना पड़ता है। वे न तो किसी राजनीतिक दल के सदस्य होते हैं और न ही इनका राजनीतिक दलों से सम्बन्ध होता है। सरकार किसी भी दल की क्यों न बने, उनका कार्य अपनी योग्यतानुसार प्रशासन की सेवा करना है।

4. तकनीकी विशेषता-तकनीकी विशेषता नौकरशाही की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता है।

प्रश्न 3.
अच्छी नौकरशाही के चार कार्य लिखो।
अथवा
नौकरशाही के किन्हीं चार कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आधुनिक राज्य में नौकरशाही की भूमिका का वर्णन हम निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत कर सकते हैं-
1. प्रशासकीय कार्य-प्रशासकीय कार्य नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण कार्य है। मन्त्री का कार्य नीति बनाना है और नीति को लागू करने की ज़िम्मेदारी नौकरशाही की है। नौकरशाही के सदस्य चाहे किसी नीति से सहमत हों अथवा न हों, उनका महत्त्वपूर्ण कार्य नीतियों को लागू करना है। एक अच्छी नीति भी बेकार साबित हो जाती है यदि उसे प्रभावशाली ढंग से लागू न किया जाए।

2. नीति को प्रभावित करना-नि:सन्देह नीति निर्माण राजनीतिक कार्यपालिका का कार्य है। परन्तु प्रशासनिक योग्यता के कारण नीति निर्माण में नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण योगदान है। नीति निर्माण के लिए मन्त्रियों को आंकड़ों की आवश्यकता होती है और ये आंकड़े स्थायी कर्मचारी मन्त्रियों को देते हैं। इसके अतिरिक्त नौकरशाही नीति को लागू करते समय नीति को एक नया मोड़ दे देते हैं।

3. सलाहकारी कार्य-नौकरशाही राजनीतिक कार्यपालिका को सलाह देने की महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मन्त्री नीतियों को निर्धारित करते समय काफ़ी हद तक असैनिक कर्मचारियों के परामर्श पर निर्भर करते हैं, क्योंकि जनता के सम्बन्ध में कर्मचारियों को काफ़ी अनुभव होता है।

4. वैधानिक कार्य-नौकरशाही कानून निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मंत्रियों द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले बिलों की रूप रेखा नौकरशाही द्वारा ही तैयार की जाती है।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक कार्यपालिका किसे कहते हैं ?
अथवा
राजनीतिक कार्यपालिका का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका में राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मन्त्री, उपमन्त्री, संसदीय सचिव आदि सम्मिलित होते हैं और ये एक निश्चित विधि द्वारा निश्चित अवधि के लिए चुने जाते हैं। राजनीतिक कार्यपालिका का चयन राजनीति के आधार पर किया जाता है। राजनीतिक कार्यपालिका असैनिक सेवाओं अथवा नौकरशाही की सहायता से कार्य करती है। इसका प्रमुख कार्य जनता की इच्छाओं के अनुरूप नीति निर्माण करना होता है। राजनीतिक कार्यपालिका अपने समस्त कार्यों के लिए संसद् और जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

प्रश्न 5.
स्थायी कार्यपालिका से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
असैनिक सेवाओं अथवा नौकरशाही को ही स्थायी कार्यपालिका कहा जाता है। इनकी नियुक्ति राजनीतिक कार्यपालिका की नियुक्ति की अपेक्षा योग्यताओं के आधार पर प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर की जाती है। इनका वेतन, भत्ते तथा कार्यकाल निश्चित होता है। इनका मुख्य कार्य नीति-निर्माण में मदद तथा उसे लागू करना होता है। लोक सेवक राजनीति में भाग नहीं लेते। वे दलगत राजनीति से दूर रहते हैं। राजनीतिक परिवर्तन होने से स्थायी कार्यपालिका में परिवर्तन नहीं होता।

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प्रश्न 6.
राजनीतिक कार्यपालिका और स्थायी कार्यपालिका में चार अन्तर लिखो।
अथवा
राजनीतिक और स्थायी कार्यपालिका में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका तथा स्थायी कार्यपालिका में निम्नलिखित अन्तर पाए जाते हैं
1. दोनों की नियुक्ति में अन्तर-राजनीतिक कार्यपालिका की नियुक्ति का चयन जनता द्वारा होता है। स्थायी कार्यपालिका को प्रशासकीय सेवा या लोक सेवा भी कहा जाता है और इसका चयन योग्यता के आधार पर किया जाता है। योग्यता की जांच करने के लिए प्रतियोगिता परीक्षा ली जाती है।

2. राजनीति के आधार पर अन्तर-राजनीतिक कार्यपालिका का चयन ही राजनीति के आधार पर होता है। संसदीय शासन प्रणाली में मन्त्रिमण्डल बहुमत दल का होता है और मन्त्रिमण्डल में राजनीतिक एकरूपता पाई जाती है। राजनीतिक कार्यपालिका प्रायः सभी समस्याओं को राजनीतिक दृष्टि से देखती है। राजनीतिक कार्यपालिका के विपरीत लोक सेवक राजनीति में भाग नहीं लेते। वे दलगत राजनीति से दूर रहते हैं।

3. अवधि के आधार पर अन्तर-राजनीतिक कार्यपालिका में राजनीतिक परिवर्तन के साथ-साथ परिवर्तन होता रहता है। राजनीतिक कार्यपालिका के विपरीत लोक सेवक एक निश्चित आयु तक अपने पद पर बने रहते हैं। राजनीतिक कार्यपालिका में परिवर्तन होने पर प्रशासकीय कर्मचारियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।

4. आकार से सम्बन्धित अन्तर-राजनीतिक कार्यपालिका का आकार छोटा होता है, जबकि स्थायी कार्यपालिका का आकार बड़ा होता है।

प्रश्न 7.
अच्छी नौकरशाही के गुण लिखिए।
अथवा
अच्छी नौकरशाही के कोई चार गुण लिखें।
उत्तर-
अच्छी नौकरशाही के मुख्य गुण निम्नलिखित होते हैं-

  • नौकरशाही की नियुक्ति योग्यता के आधार पर होनी चाहिए। अतः अच्छी नौकरशाही योग्य तथा अनुभवी होनी चाहिए।
  • अच्छी नौकरशाही का एक महत्त्वपूर्ण गुण ईमानदारी है। अत: नौकरशाही ईमानदार होनी चाहिए।
  • नौकरशाही कुशल होनी चाहिए। लोक सेवक अपने कार्यों में कुशल होने चाहिए और उन्हें शासन चलाने की आधुनिक तकनीकों की जानकारी होनी चाहिए।
  • राजनीतिक निष्पक्षता अच्छी नौकरशाही का एक महत्त्वपूर्ण गुण है।

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प्रश्न 8.
राजनीतिक कार्यपालिका से आपका क्या तात्पर्य है ? इसके चार कार्यों का विवरण कीजिए।
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका का अर्थ- इसके लिए प्रश्न नं० 4 देखें।
राजनीतिक कार्यपालिका के कार्य-आधुनिक राज्य, पुलिस राज्य न होकर कल्याणकारी राज्य है। आधुनिक राज्य में राजनीतिक कार्यपालिका के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-
1. कानून लागू करना और शान्ति व्यवस्था बनाए रखना-राजनीतिक कार्यपालिका का प्रथम कार्य विधानमण्डल के बनाए कानूनों को लागू करना तथा देश में शान्ति व्यवस्था को बनाए रखना होता है। पुलिस उन व्यक्तियों को, जो कानून तोड़ते हैं गिरफ्तार करती है और उन पर मुकद्दमा चलाती है।

2. नीति निर्धारण-राजनीतिक कार्यपालिका का महत्त्वपूर्ण कार्य नीति निर्धारण करना है। राजनीतिक कार्यपालिका ही देश की आन्तरिक तथा विदेश नीति को निर्धारित करती है और उस नीति के आधार पर ही अपना शासन चलाती है। नीतियों को लागू करने के लिए शासन को कई विभागों में बांटा जाता है और प्रत्येक विभाग का एक अध्यक्ष होता है।

3. नियुक्ति करने और हटाने की शक्ति-राजनीतिक कार्यपालिका को देश का शासन चलाने के लिए अनेक कर्मचारियों की नियुक्ति करनी पड़ती है। जो अधिकारी राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा नियुक्त किए जाते हैं, उनको राजनीतिक कार्यपालिका हटा भी सकती है।

4. विदेश सम्बन्धी कार्य-देश की विदेश नीति को कार्यपालिका निश्चित करती है। दूसरे देशों से जैसे सम्बन्ध होंगे, यह राजनीतिक कार्यपालिका ही निश्चित करती है। राजनीतिक कार्यपालिका अपने देश के राजदूतों को दूसरे देश में भेजती है और दूसरे देश के राजदूतों को अपने देश में रहने की अनुमति देती है।

प्रश्न 9.
नौकरशाही के पदों के क्रम के संगठन का क्या अर्थ है ?
अथवा
नौकरशाही के तरतीबवार संगठन से क्या भाव है ?
उत्तर-
सम्पूर्ण नौकरशाही व्यवस्था पदसोपान (Hierarchy) के आधार पर निर्मित होती है। एम०पी० शर्मा के अनुसार, “पदसोपान का अभिप्राय एक ऐसे संगठन से होता है, जो पदों के लिए उत्तरोत्तर क्रम अनुसार अथवा सीढ़ी की भान्ति संगठित किया जाए। इस उत्तरोत्तर क्रम में प्रत्येक निचला पद अथवा स्तर ऊपर के पद के तथा उस पद के माध्यम से उससे ऊपर के तथा इसी प्रकार सबसे ऊपर के पद अथवा पदों के अधीन होता है।” इसमें नौकरशाही का आधार विस्तृत होता है और शीर्ष संकुचित होता है। विभिन्न स्तरों पर सदस्यों के बीच उच्च व अधीनस्थ (Senior and Subordinate) का सम्बन्ध होता है। आदेश के सूत्र ऊपर से नीचे और उत्तरदायित्व नीचे से ऊपर जाता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक कार्य उचित मार्ग द्वारा (Through Proper Channel) ही होता है। इस व्यवस्था में नौकरशाही के प्रत्येक स्तर पर नियुक्त सदस्य को अपने कार्यों व उत्तरदायित्व का स्पष्ट रूप से पता होता है। इस प्रकार यदि नौकरशाही व्यवस्था में श्रेणीवार या पदसोपान के सिद्धान्त को न अपनाया जाए तो संगठन बिखर जाता है।

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प्रश्न 10.
लोकतन्त्रीय राज्य में नौकरशाही की महत्ता बताइए।
अथवा
नौकरशाही को प्रशासन की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है ? क्यों ?
उत्तर-
प्रजातन्त्रीय राज्य में प्रशासन चलाने में नौकरशाही का विशेष महत्त्व है। इस कथन में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि नौकरशाही के बिना राजनीतिज्ञ शासन का संचालन कर ही नहीं सकते। मन्त्रियों के लिए कोई शैक्षणिक योग्यता निश्चित नहीं होती। उन्हें अपने विभाग की बारीकियों का कम ही ज्ञान होता है। मन्त्री राजनीतिज्ञ होते हैं और राजनीति का खेल उनका पर्याप्त समय ले लेता है। अतः मन्त्रियों के पास समय का अभाव भी रहता है। असैनिक अधिकारी राजनीतिक रूप में निष्पक्ष होते हैं । राजनीतिक दलों की सरकारें बदलती रहती हैं, परन्तु ये अधिकारी अपने पदों पर स्थिर रहते हैं। इस प्रकार असैनिक अधिकारी जहां प्रशासन को राजनीतिक प्रभावों से मुक्त रखने में सहायक सिद्ध होते हैं, वहां उनका स्थायी कार्यकाल प्रशासन को निरन्तरता प्रदान करने का कार्य भी करता है। प्रदत्त विधि विधान की प्रथा ने नौकरशाही के महत्त्व में और वृद्धि कर दी है, क्योंकि असैनिक अधिकारियों के बिना प्रदत्त विधि विधान का कार्य उचित रूप में पूर्ण नहीं हो सकता।
नौकरशाही के महत्त्व को देखते हुए यह उचित ही कहा गया है कि नौकरशाही प्रशासन की रीढ़ की हड्डी है।

प्रश्न 11.
नौकरशाही की निष्पक्षता से आपका क्या भाव है ?
उत्तर-
लोक सेवक का परम्परागत गुण तटस्थता रहा है। तटस्थता का अर्थ है लोक सेवकों को भी राजनीतिक गतिविधियों से दूर करना चाहिए और उन्हें निष्पक्षता से सरकार की नीतियों को लागू करना चाहिए। लोक सेवकों को सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर कार्य करना चाहिए। अमेरिका में संघीय कानून के अनुसार संघीय कर्मचारी राजनीतिक अभियानों में सक्रिय भाग नहीं ले सकते हैं। भारत में लोक सेवक के आचरण नियमों के अनुसार किसी भी सरकारी कर्मचारी को किसी भी राजनीतिक संगठन का सदस्य होने अथवा किसी भी राजनीतिक आन्दोलन या कार्य में भाग लेने या उसके लिए चन्दा देने या उसे किसी भी प्रकार की सहायता देने का अधिकार प्राप्त नहीं है। सरकारी कर्मचारी संसद् और विधान मण्डलों के चुनाव नहीं लड़ सकते। उन्हें केवल वोट देने का अधिकार प्राप्त है। इंग्लैण्ड में उच्च अधिकारियों को केवल वोट डालने तथा दल का सदस्य बनने का अधिकार प्राप्त है, परन्तु उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेने का अधिकार नहीं।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
‘नौकरशाही, शब्द के अर्थ की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
नौकरशाही अथवा ब्यूरोक्रेसी फ्रांसीसी भाषा के शब्द ब्यूरो से बना है जिसका अर्थ है-डेस्क या लिखने की मेज़। अतः इस शब्द का अर्थ हुआ डेस्क सरकार। इस प्रकार नौकरशाही का अर्थ डेस्क पर बैठकर काम करने वाले अधिकारियों के शासन से है। दूसरे शब्दों में, नौकरशाही का अर्थ है प्रशासनिक अधिकारियों का शासन। नौकरशाही शब्द का अधिकाधिक प्रयोग लोक सेवा के प्रभाव को जताने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 2.
नौकरशाही की दो परिभाषाएं दें।
उत्तर-

  1. मार्शल ई० डीमॉक (Marshall E. Dimock) के अनुसार, “नौकरशाही का अर्थ है विशेषीकृत पद सोपान एवं संचार की लम्बी रेखाएं।”
  2. मैक्स वेबर (Max Weber) के अनुसार, “नौकरशाही प्रशासन की ऐसी व्यवस्था है जिसकी विशेषताविशेषज्ञ, निष्पक्षता तथा मानवता का अभाव होता है।”

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प्रश्न 3.
नौकरशाही के कोई दो और नाम बताएं।
उत्तर-

  1. दफ्तरशाही
  2. अफसरशाही।

प्रश्न 4.
नौकरशाही की दो मुख्य विशेषताओं को लिखो।
उत्तर-

  1. निश्चित अवधि-नौकरशाही का कार्यकाल निश्चित होता है। सरकार के बदलने पर नौकरशाही पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। मन्त्री आते हैं और चले जाते हैं, परन्तु नौकरशाही के सदस्य अपने पद पर बने रहते हैं। लोक सेवक निश्चित आयु पर पहुंचने पर ही रिटायर होते हैं।
  2. निर्धारित वेतन तथा भत्ते-नौकरशाही के सदस्यों को निर्धारित वेतन तथा भत्ते दिए जाते हैं। पदोन्नति के साथ उनके वेतन में भी वृद्धि होती रहती है। अवकाश की प्राप्ति के पश्चात् नौकरशाही के सदस्यों को पेन्शन मिलती है।

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प्रश्न 5.
नौकरशाही के किन्हीं दो कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. प्रशासकीय कार्य (Administrative Functions)—प्रशासकीय कार्य नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण कार्य है। मन्त्री का कार्य नीति बनाना है और नीति को लागू करने की ज़िम्मेदारी नौकरशाही की है। .
  2. नीति को प्रभावित करना (To Influence the Policy)—प्रशासनिक योग्यता के कारण नीति निर्माण में नौकरशाही का महत्त्वपूर्ण योगदान है। .

प्रश्न 6.
राजनीतिक कार्यपालिका किसे कहते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका में राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, मन्त्री, उपमन्त्री, संसदीय सचिव आदि सम्मिलित होते हैं और ये एक निश्चित विधि द्वारा निश्चित अवधि के लिए चुने जाते हैं। राजनीतिक कार्यपालिका का चयन राजनीति के आधार पर किया जाता है। राजनीतिक कार्यपालिका अपने समस्त कार्यों के लिए संसद् और जनता के प्रति उत्तरदायी होती है।

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प्रश्न 7.
स्थायी कार्यपालिका से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
असैनिक सेवाओं अथवा नौकरशाही को ही स्थायी कार्यपालिका कहा जाता है। इनकी नियुक्ति राजनीतिक कार्यपालिका की नियुक्ति की अपेक्षा योग्यताओं के आधार पर प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर की जाती है। इनका वेतन, भत्ते तथा कार्यकाल निश्चित होता है। इनका मुख्य कार्य नीति-निर्माण में मदद तथा उसे लागू करना होता है।

प्रश्न 8.
राजनीतिक कार्यपालिका और स्थाई कार्यपालिका में दो अन्तर लिखो।
उत्तर-

  1. दोनों की नियुक्ति में अन्तर-राजनीतिक कार्यपालिका की नियुक्ति या चयन जनता द्वारा होता है। स्थायी कार्यपालिका को प्रशासकीय सेवा या लोक सेवा भी कहा जाता है और इसका चयन योग्यता के आधार पर किया जाता है। योग्यता की जांच करने के लिए प्रतियोगिता परीक्षा ली जाती है।
  2. राजनीति के आधार पर अन्तर-राजनीतिक कार्यपालिका का चयन ही राजनीति के आधार पर होता है। राजनीतिक कार्यपालिका के विपरीत लोक सेवक राजनीति में भाग नहीं लेते। वे दलगत राजनीति से दूर रहते हैं।

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प्रश्न 9.
अच्छी व शिक्षित नौकरशाही की कोई दो विशेषताएं अथवा गुण लिखें।
उत्तर-

  1. अच्छी नौकरशाही का एक महत्त्वपूर्ण गुण ईमानदारी है। अत: नौकरशाही ईमानदार होनी चाहिए।
  2. राजनीतिक निष्पक्षता अच्छी नौकरशाही का एक महत्त्वपूर्ण गुण है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1.
नौकरशाही का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
नौकरशाही शासन के उस रूप को कहा जाता है, जिसमें प्रशासन के कार्य-कुर्सी मेज़ पर कार्य करने वाले असैनिक अथवा प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा किए जाते हैं।

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प्रश्न 2.
नौकरशाही की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
ऐप्लबी के अनुसार, “नौकरशाही तकनीकी पक्ष से शिक्षित उन व्यक्तियों का पेशेवर वर्ग है, जो क्रमानुसार संगठित होते हैं और निष्पक्ष रूप में राज्य की सेवा करते हैं।”

प्रश्न 3.
नौकरशाही की एक विशेषता लिखें।
अथवा
नौकरशाही की कोई दो विशेषताएं लिखिए।
उत्तर-

  1. नौकरशाही पदसोपान के आधार पर संगठित होती है।
  2. नौकरशाही में तकनीकी विशेषता पाई जाती है।

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प्रश्न 4.
नौकरशाही के कोई दो कार्य लिखिए।
अथवा
आदर्श नौकरशाही का एक मुख्य कार्य लिखें।
उत्तर-

  1. मन्त्रियों को सहयोग देना।
  2. नीतियों को लागू करना।

प्रश्न 5.
राजनीतिक कार्यपालिका के अर्थ लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका का चुनाव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में लोगों द्वारा होता है।

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प्रश्न 6.
स्थायी कार्यपालिका के अर्थ लिखें।
उत्तर-
स्थायी कार्यपालिका को राजनीतिक आधार पर निर्वाचित नहीं किया जाता, बल्कि योग्यता के आधार पर नियुक्ति की जाती है।

प्रश्न 7.
राजनीतिक कार्यपालिका एवं स्थायी कार्यपालिका में कोई एक अन्तर बताएं।
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका का मूल आधार राजनीतिक होता है, जबकि राजनीतिक निरपेक्षता स्थायी कार्यपालिका की मुख्य विशेषता होती है।

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प्रश्न 8.
नौकरशाही के दो गुणों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. अच्छी नौकरशाही का प्रथम गुण यह है, कि उनकी नियुक्ति योग्यता के आधार पर की जाती है।
  2. नौकरशाही प्रशासन में स्थिरता पैदा करती है।

प्रश्न 9.
वास्तविक कार्यपालिका से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
संविधान में दी गई शक्तियों का जो वास्तव में प्रयोग करता है, उसे वास्तविक कार्यपालिका कहते हैं। उदाहरण के लिए भारत में मंत्रिमण्डल (प्रधानमंत्री) एवं अमेरिका में राष्ट्रपति वास्तविक कार्यपालिका हैं।

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प्रश्न 10.
नौकरशाही की किस प्रकार की भर्ती को खराब ढांचा (Spoil System) कहा जाता है ?
उत्तर-
राजनीतिक आधार पर की जाने वाली भर्ती को खराब ढांचा कहा जाता है।

प्रश्न 11.
लोक सेवा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
लोक सेवा का अर्थ असैनिक सेवा है।

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प्रश्न 12.
प्रत्यक्ष भर्ती का एक गुण लिखो।
अथवा
नौकरशाही की सीधी भर्ती का कोई एक गुण बताएं।
उत्तर-
इस पद्धति से नवयुवकों को लोक सेवाओं में प्रवेश करने का अवसर मिलता है।

प्रश्न 13.
प्रत्यक्ष भर्ती का कोई एक अवगुण लिखें।
उत्तर-
प्रत्यक्ष भर्ती से प्रशासन में अनुभवहीन व्यक्ति आ जाते हैं।

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प्रश्न 14.
प्रत्यक्ष भर्ती से क्या अभिप्राय है ? ।
उत्तर-
प्रत्यक्ष भर्ती के अन्तर्गत उम्मीदवारों का चयन खुले तौर पर किया जाता है।

प्रश्न 15.
राजनीतिक कार्यपालिका की कोई एक विशेषता लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक कार्यपालिका की नियुक्ति निर्वाचन द्वारा होती है।

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प्रश्न 16.
भर्ती के अर्थ लिखो।
उत्तर-
भर्ती एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके द्वारा योग्य व्यक्तियों को रिक्त स्थानों के लिए आकर्षित किया जाता है।

प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. नौकरशाही शब्द को अंग्रेज़ी में ……….. कहा जाता है।
2. Bureaucracy शब्द फ्रांसीसी भाषा के शब्द ………… से बना है।
3. ब्यूरो का अर्थ है ………. या लिखने की मेज़।
4. मार्शल ई० डीमॉक के अनुसार नौकरशाही का अर्थ है विशेषीकृत ……….. एवं संचार की लम्बी रेखाएं।
5. नौकरशाही की मुख्य विशेषता कार्यों का तर्कपूर्ण . …….. है।
उत्तर-

  1. Bureaucracy
  2. ब्यूरो
  3. डेस्क
  4. पदसोपान
  5. विभाजन।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. लोक सेवाओं की भर्ती को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है-नकारात्मक एवं सकारात्मक।
2. नकारात्मक भर्ती का उद्देश्य सरकारी पदों से योग्य व्यक्तियों को दूर रखना है।
3. लोक सेवा का परम्परागत गुण तटस्थता है।
4. तटस्थता का अर्थ है, कि लोक सेवाओं को राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना है।
5. नौकरशाही नीति-निर्माण का कार्य करती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. ग़लत
  5. ग़लत।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नौकरशाही का दोष है-
(क) कागजों की हेरा-फेरी
(ख) लाल फीताशाही
(ग) जन साधारण की मांगों की उपेक्षा
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
लूट प्रणाली (Spoils System) पाई जाती थी-
(क) भारत में
(ख) इंग्लैण्ड में
(ग) अमेरिका में
(घ) जापान में।
उत्तर-
(ग) अमेरिका में

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प्रश्न 3.
राजनीतिक तथा स्थायी कार्यपालिका में क्या अन्तर पाया जाता है ?
(क) नियुक्ति के आधार पर अन्तर
(ख) योग्यता के आधार पर अन्तर
(ग) कार्यकाल के आधार पर अन्तर
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
“नौकरशाही” शब्द की उत्पत्ति निम्नलिखित में से किस वर्ष हुई ?
(क) 1888
(ख) 1940
(ग) 1745
(घ) 1668.
उत्तर-
(ग) 1745

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प्रश्न 5.
किस भाषा से ‘ब्यूरोक्रेसी’ शब्द लिया गया है ?
(क) ब्यूरो से
(ख) पोलिस से
(ग) स्टेटस से
(घ) सावरेनिटी से।
उत्तर-
(क) ब्यूरो से

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 21 राजनीतिक जागृति तथा अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध राजनीतिक आन्दोलन

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 21 राजनीतिक जागृति तथा अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध राजनीतिक आन्दोलन Textbook Exercise Questions and Answers.

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अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
1885 से 1916 ई० तक स्वतन्त्रता आन्दोलन की मुख्य घटनाओं की चर्चा करें।
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 ई० में हुई। इसके संस्थापक एक सेवा-मुक्त अंग्रेज अधिकारी श्री ए० ओ० ह्यूम थे। कांग्रेस का पहला अधिवेशन बम्बई (मुम्बई) में हुआ। जिसका सभापतित्व श्री वोमेश चन्द्र जी ने किया। अगले वर्ष यह सौभाग्य दादा भाई नौरोजी को प्राप्त हुआ। आरम्भ में अंग्रेजों ने इस संस्था का स्वागत किया। तत्कालीन वायसराय लॉर्ड डफरिन ने इसके सदस्यों को भोज भी दिया। उन्होंने यह विचार व्यक्त किए कि कांग्रेस की स्थापना से सरकार तथा जनता का आपसी मेल बढ़ेगा और सरकार को अपनी नीति निर्धारित करने में आसानी रहेगी। वास्तव में कांग्रेस का आरम्भिक उद्देश्य भी सरकार तथा जनता को निकट लाना था। अतः शुरू-शुरू में कांग्रेस प्रस्ताव पास करके सरकार के सामने प्रस्तुत करती थी। कांग्रेस हर वर्ष यह मांग करती कि भारत में संवैधानिक सुधार किए जाएं, भारतीयों को उच्च पदों पर नियुक्त किया जाए, कर कम किए जाएं तथा शिक्षा के लिए उचित पग उठाए जाएं। उसके प्रस्तावों की भाषा में विनम्रता होती थी और ये सदा एक प्रार्थना के रूप में सरकार के सम्मुख रखे जाते थे। अपने अधिवेशनों में भी कांग्रेसी नेता सरकार की निन्दा नहीं करते थे।

सरकार द्वारा कांग्रेस का विरोध-धीरे-धीरे ब्रिटिश सरकार और कांग्रेस एक-दूसरे से दूर होने लगे। आरम्भ में जिस संस्था को अंग्रेज़ लोग भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के लिए रक्षा नली (Safety Valve) कहा करते थे, अब उसी संस्था को सन्देह की दृष्टि से देखा जाने लगा। अंग्रेजों को यह विश्वास होने लगा कि कांग्रेस के विकास से राष्ट्रीय भावना तेजी से फैल रही है। अत: लॉर्ड डफरिन ने एक भोज के अवसर पर कहा-“अब कांग्रेस राजद्रोह की ओर झुक रही है।” अंग्रेज़ी समाचारपत्रों ने खुलेआम कांग्रेस की निन्दा करनी शुरू कर दी। 1892 ई० में सरकार ने एक अधिनियम पास किया। इस अधिनियम से कांग्रेस सन्तुष्ट नहीं थी। अतः इसके रवैये में परिवर्तन आया और इसके नेताओं ने सरकार की गलत नीतियों की निन्दा करनी शुरू कर दी। परन्तु अभी भी उनके प्रस्तावों की भाषा में नम्रता बनी रही। 1897-98 ई० में भारत अकाल तथा प्लेग की लपेट में आ गया। हजारों लोग मरने लगे, परन्तु सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही। सरकार की इस उदासीनता ने जनता के दिल में रोष पैदा कर दिया। जनता को विश्वास हो गया कि उनके कष्टों का अन्त केवल स्वतन्त्रता प्राप्ति में ही है। लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय जैसे नेताओं ने कांग्रेस की नर्म नीति की निन्दा की।

बंगाल का विभाजन-1905 ई० में लॉर्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन कर दिया। यह कदम हिन्दू तथा मुसलमान जनता में फूट डालने के लिए उठाया गया था। सारे भारत में रोष की लहर दौड़ गई। इससे लोकमान्य तिलक के विचारों को बहुत बल मिला। कांग्रेस में भी दो विचारधाराएं बन गईं। उस समय मुख्य नेता थे-गोपाल कृष्ण गोखले, दादा भाई नौरोजी, फिरोज़शाह मेहता, लाला लाजपतराय, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक तथा विपिन चन्द्र पाल। आखिरी तीन नेता लाल, बाल तथा पाल के नाम से प्रसिद्ध थे। ये तीनों नेता सरकार की ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहते थे। उनके विचार थे कि अंग्रेज़ी सरकार प्यार की भाषा नहीं समझती। अतः केवल उग्रवादी कदम ही उसे झुकने के लिए विवश कर सकते हैं। इसके विपरीत गोखले आदि का विचार था कि अंग्रेजों के साथ संवैधानिक साधनों से ही निपटना चाहिए। कांग्रेस में यह आपसी भेद-भाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता गया। ऐसा लगता था कि यह दो दल शीघ्र ही अलग-अलग हो जाएंगे।

सूरत की फूट-कांग्रेस ने अपने 1906 ई० के कलकत्ता (कोलकाता) अधिवेशन में ‘स्वराज्य’ की मांग की। दोनों दलों ने स्वराज्य शब्द की व्याख्या अपने-अपने ढंग से की। तिलक स्वराज्य का अर्थ पूर्ण स्वतन्त्रता से लेते थे। उनके अनुसार आज़ादी को प्राप्त करने के लिए केवल संवैधानिक ढंग काम नहीं दे सकता। तिलक का मूलमन्त्र था-‘Militancy, not Mendicancy’ । इसके विपरीत गोखले के अनुसार स्वराज्य का अभिप्रायः ‘उत्तरदायी सरकार’ से था और वे इसे शान्तिपूर्ण तथा संवैधानिक साधनों से प्राप्त करना चाहते थे। आखिर 1907 में सूरत के कांग्रेस अधिवेशन में दोनों दलों में खूब झगड़ा हुआ। तिलक अपने विचारों पर दृढ़ रहे। इस तरह कांग्रेस में दो दल बन गए। तिलक तथा उनके साथियों को गर्म दल का नाम दिया और गोखले के अनुयायियों को नर्म दल कहा जाने लगा।

क्रान्तिकारी आन्दोलन-गर्म दल के समर्थकों में से ही बाद में कुछ क्रान्तिकारी बन गए। उन्होंने देश में आतंक का वातावरण उत्पन्न कर दिया। पूना के कलैक्टर तथा प्लेग कमिश्नर मि० रैण्ड का चापेकर बन्धुओं ने वध कर दिया। इसके अतिरिक्त बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर मि० कैनेडी पर खुदी राम बोस और उसके एक साथी ने बम फेंका किन्तु उसकी जगह उनकी पत्नी मारी गई। सरकार ने क्रान्तिकारियों को दबाने के लिए सख्ती से काम लिया। कई क्रान्तिकारी फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिए गए। खुदीराम बोस को भी फांसी दी गई। कुछ लोगों को काले पानी का दण्ड मिला। तिलक को 15 मास के लिए जेल में डाल दिया गया। लाला लाजपत राय तथा सरदार अजीत सिंह को देश से निर्वासित कर दिया गया। सरकार ने क्रान्तिकारियों का प्रभुत्व समाप्त करने के लिए नर्म दल वालों का समर्थन भी प्राप्त किया।

मुस्लिम लीग की स्थापना-मुस्लिम लीग की स्थापना ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को तीव्र किया। इस संस्था की स्थापना 1906 में हुई। मुस्लिम नेता कांग्रेस को हिन्दुओं की संस्था समझते थे। उनका विश्वास था कि मुसलमानों के हितों की रक्षा कांग्रेस नहीं बल्कि मुस्लिम लीग ही कर सकती है। अंग्रेज़ी सरकार ने भी मुस्लिम लीग को खूब प्रोत्साहन दिया क्योंकि वे इस संस्था की सहायता करके हिन्दुओं तथा मुसलमानों में फूट डाल सकते थे। मुस्लिम लीग के नेता कई बार वायसराय से मिले और उन्होंने मुसलमानों के हितों की रक्षा की मांग की। अंग्रेज़ी सरकार तो पहले ही उन्हें खुश करना चाहती थी। अतः 1909 ई० के सुधार कानून में उन्होंने मुसलमानों के लिए ‘पृथक् प्रतिनिधित्व’ की मांग को स्वीकार कर लिया।

मिण्टो-मार्ले सुधार-मिण्टो-मार्ले सुधार अथवा 1909 ई० के अधिनियम के अनुसार कार्यकारिणी तथा विधानमण्डलों के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। इसके अतिरिक्त मुसलमानों को पृथक् प्रतिनिधित्व दिया गया। पृथक् प्रतिनिधित्व के सिद्धान्त ने दो राष्ट्रों के सिद्धान्त को जन्म दिया जिसके कारण आगे चलकर पाकिस्तान का निर्माण हुआ। 1909 के एक्ट के अनुसार अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव होने लगे। परन्तु इन सब सुधारों से भारतीय सन्तुष्ट न हुए। वे समझ गए कि अंग्रेज़ लोग हिन्दुओं तथा मुसलमानों में फूट डालना चाहते हैं। कांग्रेस के गर्म दल तथा नर्म दल दोनों ने सरकार का विरोध किया। सरकार ने नर्म दल वालों को प्रसन्न करने के लिए 1911 ई० में बंगाल विभाजन रद्द कर दिया।

लखनऊ पैक्ट-लोकमान्य तिलक माण्डले जेल से छूट कर आ चुके थे। 1915 ई० में उन्होंने स्वराज्य की मांग को पुनः सरकार के सामने रखा। उन्होंने कहा, “स्वराज्य हमारा जन्म-सिद्ध अधिकार है और हम इसे लेकर ही रहेंगे।” इधर नर्म दल के प्रमुख नेता मर चुके थे। अतः दोनों दलों के पुनः एक हो जाने की सम्भावनाएं बढ़ गईं। आखिर 1915 ई० में दोनों दल मिल गए। उसी समय यूरोप में युद्ध चल रहा था। टर्की पर आक्रमण करने के कारण मुसलमान भी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए थे। अतः 1916 ई० के लखनऊ पैक्ट के अनुसार कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग ने मिलकर सरकार का विरोध करने का निर्णय किया।

होमरूल आन्दोलन-लखनऊ पैक्ट के बाद कांग्रेस के दोनों दलों तथा मुस्लिम लीग ने मिलकर भारत के लिए ‘होमरूल’ की मांग की। लोकमान्य तिलक तथा श्रीमती ऐनी बेसेन्ट ने ‘होमरूल लीग’ की स्थापना की। सारे देश में लोगों ने सरकार के विरुद्ध सभाएं कीं और होमरूल को प्राप्त करने के लिए प्रतिज्ञा की। श्रीमती ऐनी बेसेन्ट को मद्रास सरकार ने बन्दी बना लिया जिससे सारे देश में हाहाकार मच गया। सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा। इसी बीच प्रथम महायुद्ध में सरकार को भारतीयों के सहयोग की आवश्यकता पड़ी। अतः भारत सचिव माण्टेग्यू ने घोषणा की कि सरकार भारत में उत्तरदायी शासन स्थापित करने के लिए उचित पग उठाएगी। फलस्वरूप होमरूल आन्दोलन समाप्त हो गया। इस प्रकार 1885 में डाले गए बीज (कांग्रेस) ने 1919 तक एक महान् वृक्ष का रूप धारण कर लिया। कांग्रेस को शक्तिशाली रूप देने का श्रेय श्री गोपालकृष्ण गोखले, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय आदि अनेक नेताओं को प्राप्त है।

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प्रश्न 2.
महात्मा गांधी के योगदान के संदर्भ में 1919 से 1922 तक के स्वतन्त्रता आन्दोलन की मुख्य घटनाओं की चर्चा करें।
उत्तर-
भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की वास्तविक कहानी 1919 ई० से आरम्भ होती है। यही वह वर्ष था जब भारत की राजनीति में महात्मा गांधी ने प्रवेश किया। वे 1915 में दक्षिणी अफ्रीका से भारत वापस आए। तीन वर्ष तक उन्होंने इस देश के राजनीतिक वातावरण का अध्ययन किया। उन्होंने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेज़ी सरकार को नैतिक समर्थन भी प्रदान किया। परन्तु 1919 में सारी स्थिति बदल गई। इस संकट के समय में महात्मा गांधी स्वतन्त्रता सेनानी बनकर हमारे सामने आए और उन्होंने सत्य और अहिंसा के बल पर अंग्रेज़ी साम्राज्य की जड़ें खोखली कर दीं। 1919 से 1922 तक महात्मा गांधी जी खूब सक्रिय रहे। इस समय की प्रमुख घटनाएं इस प्रकार हैं :-

रौलेट एक्ट तथा जलियांवाला बाग की दुर्घटना-प्रथम महायुद्ध के समाप्त होने पर भारतीयों को प्रसन्न करने के लिए माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड रिपोर्ट प्रकाशित की गई। भारतीयों ने युद्ध में अंग्रेजों की सहायता की थी। उन्हें विश्वास था कि युद्ध में विजयी होने के पश्चात् सरकार उन्हें पर्याप्त अधिकार देगी। परन्तु इस रिपोर्ट से भारतीय निराश हो गए। सरकार भी भयभीत हो गई कि अवश्य कोई नया आन्दोलन आरम्भ होने वाला है। अतः स्थिति पर नियन्त्रण पाने के लिए सरकार ने रौलेट एक्ट पास कर दिया। इस एक्ट के अनुसार वह किसी भी व्यक्ति को बिना वकील, बिना दलील, बिना अपील बन्दी बना सकती थी। इस काले कानून का विरोध करने के लिए महात्मा गांधी आगे बढ़े। उन्होंने जनता को शान्तिमय ढंग से इसका विरोध करने के लिए कहा। इस शान्तिमय विरोध को उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया। स्थान-स्थान पर सभाएं बुलाई गईं और जलूस निकाले गए। कांग्रेस का आन्दोलन जनता. का आन्दोलन बन गया। पहली बार भारत की जनता ने संगठित होकर अंग्रेज़ों का विरोध किया। 6 अगस्त, 1919 ई० को सारे भारत में हड़ताल की गई। महात्मा गांधी ने लोगों को शान्तिमय विरोध करने के लिए कहा था। फिर भी कहीं-कहीं अप्रिय घटनाएं हुईं।

13 अप्रैल, 1919 ई० को जलियांवाला बाग की दुःखद घटना से भारतीय राजनीति में एक नया मोड़ आया। पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉ० सत्यपाल तथा डॉ० किचलू को सरकार ने बन्दी बना लिया था। अमृतसर की जनता विरोध प्रकट करने के लिए बैसाखी के दिन जलियांवाला बाग में एकत्रित हुई। नगर में मार्शल-ला लगा हुआ था। जनरल डायर ने लोगों को चेतावनी दिए बिना ही एकत्रित लोगों पर गोली चलाने का आदेश दिया। हज़ारों निर्दोष स्त्री-पुरुष मारे गए। इससे सारे भारत में रोष की लहर दौड़ गई।

असहयोग आन्दोलन-इन्हीं दिनों मुसलमानों ने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध खिलाफ़त आन्दोलन छेड़ा हुआ था। जनता पहले से ही भड़की हुई थी। गांधी जी ने इस अवसर का लाभ उठाया और असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया। इस प्रकार हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने मिल कर अंग्रेजी सरकार का विरोध किया। छात्रों ने सरकारी स्कूलों तथा कॉलेजों का बहिष्कार कर दिया। वकीलों ने अदालतों में जाना बन्द कर दिया। कई लोगों ने अंग्रेजी सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों को त्याग दिया। लोगों ने अंग्रेज़ी कपड़े का बहिष्कार किया तथा हाथ का बुना कपड़ा पहनना आरम्भ कर दिया। गांधी जी इस आन्दोलन को शान्तिमय ढंग से चलाना चाहते थे, परन्तु 1922 में उत्तर प्रदेश के एक गांव चौरी-चौरा में एक पुलिस चौकी को सिपाहियों सहित जला दिया गया। गांधी जी को इस घटना से बड़ा दुःख हुआ और उन्होंने असहयोग आन्दोलन की समाप्ति की घोषणा कर दी। उनके इस कार्य से अनेक नेता गांधी जी से रुष्ट हो गए तथा उन्होंने ‘स्वराज्य पार्टी’ नामक एक नये दल की स्थापना की। अंग्रेज़ सरकार ने गांधी जी को बन्दी बना लिया और छः वर्ष के कारावास का दण्ड दिया।
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महात्मा गांधी महात्मा गांधी जी ने कुछ देर शांत रहने के बाद 1927 में एक बार फिर भारतीय राजनीति को गरिमा प्रदान की।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

1. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
1857 की क्रांति में किस महिला शासक ने महत्त्वपूर्ण भाग लिया?
उत्तर-
रानी लक्ष्मी बाई ने।

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प्रश्न 2.
कांग्रेस की स्थापना किसने की?
उत्तर-
कांग्रेस की स्थापना मिस्टर ए० ओ० ह्यूम ने की।

प्रश्न 3.
गरम दल के प्रतिष्ठाता कौन थे?
उत्तर-
बाल गंगाधर तिलक।

प्रश्न 4.
गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन स्थगित करने का निश्चय क्यों किया?
उत्तर-
चौरी-चौरा की हिंसात्मक घटना के कारण।

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प्रश्न 5.
आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना किसने की ?
उत्तर-
आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना सुभाषचन्द्र बोस ने की।

प्रश्न 6.
1947 ई० क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर-
इस वर्ष (15 अगस्त, 1947 को) भारत को स्वतन्त्रता मिली थी।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) जलियांवाला बाग में अंग्रेज़ कमाण्डर ……………. ने गोली चलाई थी।
(ii) साईमन कमीशन …………………. में भारत आया।
(iii) सिविल अवज्ञा आन्दोलन …………… ई० में चला।
(iv) पूर्ण स्वराज्य की घोषणा 1929 ई० में कांग्रेस के ………. अधिवेशन में हुई।
(v) गांधी-इर्विन समझौता ………………. ई० में हुआ।
उत्तर-
(i) जनरल डायर
(ii) 1928
(iii) 1929
(iv) लाहौर
(v) 1931.

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3. सही/ग़लत कथन

(i) सन् 1905 ई० में बंगाल का विभाजन हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच फूट डालने के लिए किया गया। — (√)
(ii) स्वदेशी आन्दोलन की शुरुआत गांधी जी ने सन् 1905 ई० में की। — (×)
(iii) सन् 1909 ई० के एक्ट से भारतीयों की आशाएं पूरी नहीं हुई। — (√)
(iv) मुस्लिम लीग की स्थापना सन् 1906 ई० में हुई। — (√)
(v) होम रूल लीगों की स्थापना प्रथम महायुद्ध के दौरान हुई। — (√)
(vi) पहली बार सन् 1910 ई० में कांग्रेस ने स्वराज्य को अपना लक्ष्य बनाया। — (×)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मध्य लखनऊ समझौता कब हुआ?
(A) 1916 ई० में
(B) 1906 ई० में
(C) 1917 ई० में
(D) 1915 ई० में।
उत्तर-
(A) 1916 ई० में

प्रश्न (ii)
गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन कब चलाया ?
(A) 1921 ई० में
(B) 1927 ई० में
(C) 1920 ई० में
(D) 1922 ई० में।
उत्तर-
(C) 1920 ई० में

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प्रश्न (iii)
अंग्रेजों ने दिल्ली को भारत की राजधानी कब बनाया?
(A) 1911 ई० में
(B) 1907 ई० में
(C) 1890 ई० में
(D) 1892 ई० में।
उत्तर-
(A) 1911 ई० में

प्रश्न (iv)
कानपुर में 1857 ई० के विद्रोह का नेतृत्व किया-
(A) कुंवर सिंह
(B) नाना साहिब
(C) बेग़म हज़रत महल
(D) बहादुर शाह।
उत्तर-
(B) नाना साहिब

प्रश्न (v)
बाल गंगाधर तिलक ने कौन-सा पत्र निकाला?
(A) पंजाब केसरी
(B) केसरी
(C) हिन्दू
(D) नवभारत।
उत्तर-
(B) केसरी

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II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष के इतिहास के स्रोतों के चार प्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत के स्वतन्त्रता संघर्ष के इतिहास की जानकारी के चार प्रकार के स्रोत हैं : अंग्रेज़ अधिकारियों की रिपोर्ट, लैजिस्लेटिव असैम्बली बहस के रिकार्ड, ब्रिटिश संसद् के रिकार्ड तथा भारतीय समाचार-पत्र।

प्रश्न 2.
बाल गंगाधर तिलक तथा महात्मा गांधी ने कौन-से अखबार निकाले ?
उत्तर-
बाल गंगाधर तिलक ने केसरी तथा मराठा अखबार निकाले। महात्मा गांधी ने ‘हरिजन’ नामक अखबार निकाली।

प्रश्न 3.
सरदार दयाल सिंह मजीठिया तथा लाला लाजपत राय ने कौन-से अखबार निकाले ?
उत्तर-
सरदार दयाल सिंह मजीठिया ने ‘ट्रिब्यून’ तथा लाला लाजपत राय ने ‘पंजाबी’ नामक अखबार निकाले।

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प्रश्न 4.
भारतीयों के आरम्भिक राजनीतिक संगठनों में सबसे महत्त्वपूर्ण कौन-सा संगठन था तथा इसको किसने, कब और कहां स्थापित किया ?
उत्तर-
भारतीयों के आरम्भिक राजनीतिक संगठनों में सबसे महत्त्वपूर्ण संगठन ‘इण्डियन एसोसिएशन’ था। इसे 1876 में सुरेन्द्र नाथ बनर्जी ने कलकत्ता (कोलकाता) में स्थापित किया।

प्रश्न 5.
इण्डियन एसोसिएशन की दो मांगें कौन-सी थीं ?
उत्तर-
इण्डियन एसोसिएशन की दो मांगें थीं : इण्डियन सिविल सर्विस के नियमों को बदलना और प्रेस को स्वतन्त्रता देना।

प्रश्न 6.
इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना कब हुई तथा इसमें किस अंग्रेज अफसर का काफी हाथ था ?
उत्तर-
इण्डियन नेशनल कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई। कांग्रेस की स्थापना में अंग्रेज़ अफसर ह्यूम का काफी हाथ था।

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प्रश्न 7.
कांग्रेस का पहला अधिवेशन कहां और किसके सभापतित्व में हुआ तथा इसमें कितने प्रतिनिधियों ने भाग लिया ?
उत्तर-
कांग्रेस का पहला अधिवेशन बम्बई (मुम्बई) में वोमेशचन्द्र बैनर्जी के सभापतित्व में हुआ। इसमें 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रश्न 8.
कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन किसके सभापतित्व में तथा कहां हुआ तथा इसमें कितने प्रतिनिधियों ने भाग लिया?
उत्तर-
कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन दादा भाई नौरोजी के सभापतित्व में कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ। इसमें 400 से भी अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।

प्रश्न 9.
आरम्भ में कांग्रेस के सदस्य अधिकतर कौन-से चार व्यवसायों से सम्बन्धित थे ?
उत्तर-
आरम्भ में कांग्रेसी सदस्य मुख्यतया कारखानेदार, व्यापारी, मध्यवर्गीय शिक्षित, डॉक्टर और वकील थे।

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प्रश्न 10.
1905 तक कांग्रेस के तीन पुराने नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
1905 तक कांग्रेस के तीन पुराने नेता सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी, गोपाल कृष्ण गोखले और फिरोज़शाह मेहता थे।

प्रश्न 11.
1905 तक कांग्रेस के तीन नये नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
1905 तक कांग्रेस के तीन नये नेता बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र पाल और लाला लाजपत राय थे।

प्रश्न 12.
रूस को किस एशियाई देश ने तथा कब हराया था ?
उत्तर-
रूस को एशिया के देश जापान ने 1905 ई० में हराया था।

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प्रश्न 13.
बंगाल का विभाजन कब तथा किस वायसराय के समय हुआ तथा इस समय बंगाल प्रान्त में कौन-से तीन प्रदेश शामिल थे ?
उत्तर-
बंगाल का विभाजन 1905 में वायसराय लॉर्ड कर्जन के समय हुआ। इस समय बंगाल प्रान्त में बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा के प्रदेश शामिल थे।

प्रश्न 14.
बंगाल के विभाजन के सिलसिले में कौन-सा आन्दोलन चलाया गया तथा इसमें किन वस्तुओं के बहिष्कार पर बल दिया गया ?
उत्तर-
बंगाल के विभाजन के सिलसिले में स्वदेशी आन्दोलन चलाया गया। इसमें इंग्लैण्ड में निर्मित कपड़े और चीनी के बहिष्कार पर बल दिया गया।

प्रश्न 15.
1906 में कांग्रेस अधिवेशन कहां हुआ तथा इसमें पास होने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव कौन-सा था ?
उत्तर-
1906 में कांग्रेस का अधिवेशन कलकत्ता (कोलकाता) में हुआ। इसमें ‘स्वदेशी और बायकॉट’ का अति महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव पास हुआ।

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प्रश्न 16.
1907 में कांग्रेस का अधिवेशन कहां हुआ तथा इसमें कांग्रेस किन दो दलों में बंट गई ?
उत्तर-
1907 में कांग्रेस का अधिवेशन सूरत में हुआ। इसमें कांग्रेस नर्म दल और गर्म दल नामक दो दलों में बंट गई।

प्रश्न 17.
बंगाल तथा महाराष्ट्र में कौन-कौन-से तीन आतंकवादी संगठन स्थापित किए गए ?
उत्तर-
बंगाल में अनुशीलन समितियां तथा युगान्तर ग्रुप और महाराष्ट्र में अभिनव भारत नामक आतंकवादी संगठन स्थापित किए गए।

प्रश्न 18.
आतंकवादी संगठनों पर किन तीन व्यक्तियों की विचारधारा का प्रभाव था ?
उत्तर-
आतंकवादी संगठनों पर बंकिम चन्द्र चैटर्जी, अरविंद घोष और वी० डी० सावरकर की विचारधारा का प्रभाव था।

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प्रश्न 19.
बीसवीं सदी के पहले दशक के तीन क्रान्तिकारी आतंकवादियों के नाम बताएं।
उत्तर-
बीसवीं सदी के पहले दशक के तीन क्रान्तिकारी आतंकवादी थे : खुदी राम बोस, प्रफुल्ल चाकी और मदन लाल ढींगरा।

प्रश्न 20.
मदन लाल ढींगरा कहां का रहने वाला था तथा इसने कब और कहां किस अंग्रेज़ अफसर को गोली मारी थी ?
उत्तर-
मदन लाल ढींगरा अमृतसर जिले का रहने वाला था। उसने 1909 में लंदन में कर्जन वायली नामक अंग्रेज़ अफसर को गोली मारी थी।

प्रश्न 21.
1907 में पंजाब में 1857 की पचासवीं वर्षगांठ पर विद्रोह करने का प्रचार किसने किया तथा इनको क्या सज़ा मिली थी ?
उत्तर-
1907 में पंजाब में 1857 की पचासवीं वर्षगांठ पर अजीत सिंह ने सरकार के खिलाफ विद्रोह का प्रचार किया। इन्हें देश निकाला की सज़ा मिली थी।

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प्रश्न 22.
मुस्लिम लीग की स्थापना कब हुई तथा उसका उद्देश्य क्या था ?
उत्तर-
मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई। इसका उद्देश्य सरकार के साथ सहयोग करके मुसलमानों के लाभ के लिए काम करना था।

प्रश्न 23.
पृथक् प्रतिनिधित्व की मांग किस राजनीतिक दल ने किस गवर्नर-जनरल के समय में की तथा 1947 तक इसका सबसे महत्त्वपूर्ण नेता कौन था ?
उत्तर-
पृथक् प्रतिनिधित्व की मांग मुस्लिम लीग ने गवर्नर-जनरल मिण्टो के समय में की। 1947 तक इस दल का सबसे महत्त्वपूर्ण नेता मुहम्मद अली जिन्नाह था।

प्रश्न 24.
कौन-से दो मुस्लिम संगठन अंग्रेज़ सरकार के विरुद्ध रहे ?
उत्तर-
अहरार तथा देवबंदी उलेमा के संगठन सरकार के विरुद्ध रहे।

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प्रश्न 25.
चार मुस्लिम नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
चार मुस्लिम नेताओं के नाम हैं-मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, हकीम अजमल खां, डॉ० अंसारी और शौकत अली।

प्रश्न 26.
पंजाब के दो राष्ट्रवादी मुस्लिम कांग्रेसी नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
पंजाब के दो राष्ट्रवादी मुस्लिम कांग्रेसी नेता डॉ० सैफुद्दीन किचलू तथा डॉ० मुहम्मद आलम थे।

प्रश्न 27.
1909 के एक्ट को किस नाम से जाना जाता है तथा इसमें मुसलमानों की कौन-सी मांग शामिल कर ली गई थी ?
उत्तर-
1909 के एक्ट को मिन्टो मार्ले सुधार के नाम से जाना जाता है। इसमें मुसलमानों की पृथक् प्रतिनिधित्व की मांग शामिल कर ली गई थी।

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प्रश्न 28.
1909 के एक्ट में लैजिस्लेटिव कौंसिल में कितने सदस्य बना दिए गए तथा इसमें कितने निर्वाचित सदस्य थे ?
उत्तर-
1909 के एक्ट में लैजिस्लेटिव कौंसिल में 60 सदस्य बना दिए गए। इनमें से 27 निर्वाचित सदस्य थे।

प्रश्न 29.
हिन्दुस्तान गदर पार्टी की स्थापना कब हुई तथा इसके अखबार और संस्थापक का नाम क्या था ?
उत्तर-
‘हिन्दुस्तान गदर पार्टी’ की स्थापना 1913 में हुई। इसके अखबार का नाम ‘गदर’ और संस्थापक का नाम लाला हरदयाल था।

प्रश्न 30.
गदर पार्टी की शाखाएं भारत से बाहर कौन-से चार देशों अथवा क्षेत्रों में थीं ?
उत्तर-
गदर पार्टी की शाखाएं भारत से बाहर कनाडा, अमेरिका, यूरोप तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के देशों में थीं।

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प्रश्न 31.
गदर पार्टी के चार कार्यकर्ताओं तथा नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
गदर पार्टी के चार कार्यकर्ता तथा नेता सोहन सिंह भकना, मुहम्मद बरकत उल्ला, करतार सिंह सराभा तथा भाई परमानन्द थे।

प्रश्न 32.
होमरूल आन्दोलन किस लिए चलाया गया तथा इसके दो नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
होमरूल आन्दोलन स्वराज्य की मांग के लिए चलाया गया। इसके दो मुख्य नेता श्रीमती एनी बेसेन्ट तथा बाल गंगाधर तिलक थे।

प्रश्न 33.
कांग्रेस में नर्म दल तथा गर्म दल किसके यत्नों से तथा कब फिर से इकट्ठे हो गए ?
उत्तर-
नर्म दल तथा गर्म दल श्रीमती एनी बेसेन्ट के यत्नों से 1915 में फिर से इकट्ठे हो गए।

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प्रश्न 34.
‘लखनऊ पैक्ट’ कब और किन दो राजनीतिक दलों के बीच में हुआ ?
उत्तर-
लखनऊ पैक्ट’ 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच में हुआ।

प्रश्न 35.
कांग्रेस ने धर्म के आधार पर पृथक् प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त कब और किस समझौते के द्वारा स्वीकार कर लिया ?
उत्तर-
कांग्रेस ने धर्म के आधार पर पृथक् प्रतिनिधित्व का सिद्धान्त 1916 में लखनऊ समझौते के अनुसार स्वीकार किया।

प्रश्न 36.
रौलेट एक्ट कब कानून बना तथा इसको इस नाम से क्यों जाना जाता है ?
उत्तर-
रौलेट एक्ट 1919 में कानून बना। यह एक्ट जस्टिस रौलेट के सुझाव पर बना होने के कारण रौलेट एक्ट के नाम से जाना जाता है।

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प्रश्न 37.
मोती लाल नेहरू ने रौलेट एक्ट की व्याख्या किन शब्दों में की ?
उत्तर-
मोती लाल नेहरू ने रौलेट एक्ट की व्याख्या इन शब्दों में की-‘न वकीर दलील, न अपील’।

प्रश्न 38.
महात्मा गांधी किस देश से तथा कब भारत लौटे तथा विदेश में उन्होंने किस नीति के विरुद्ध सत्याग्रह किया था ?
उत्तर-
महात्मा गांधी 1915 में अफ्रीका से लौटे। विदेश (अफ्रीका) में उन्होंने रंगभेद की नीति के विरुद्ध सत्याग्रह किया था।

प्रश्न 39.
महात्मा गांधी ने भारत वापस आ कर किस इलाके के कौन-से किसानों की सहायता की ?
उत्तर-
महात्मा गांधी ने भारत वापस आ कर, बिहार में चम्पारन के इलाके में नील की खेती करने वाले किसानों की सहायता की।

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प्रश्न 40.
जलियांवाला बाग कांड कब और कहां हुआ तथा इसके लिए उत्तरदायी अंग्रेज़ अफसर का नाम बताएं।
उत्तर-
जलियांवाला बाग का कांड 13 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में हुआ। इसके लिए जनरल डायर उत्तरदायी था।

प्रश्न 41.
जलियांवाला बाग में कितने लोग मारे गए तथा कितने घायल हुए ?
उत्तर-
जलियांवाला बाग में 500 से अधिक लोग मारे गए और 1500 से अधिक लोग घायल हुए।

प्रश्न 42.
‘मांटेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार’ का विधान कब पास हुआ तथा कब लागू किया गया ?
उत्तर-
मांटेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार 1918-19 में पास हुआ तथा मार्च, 1920 में लागू किया गया।

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प्रश्न 43.
1919 के विधान में केन्द्र के पास कौन-से विभाग थे ?
उत्तर-
1919 के विधान में केन्द्र के पास सेना, विदेशी मामले, संचार के साधन, व्यापार तथा चुंगी के विभाग थे।

प्रश्न 44.
1919 के विधान के अनुसार प्रान्तीय प्रशासन को किन दो भागों में बांटा गया ?
उत्तर-
इस विधान के अनुसार प्रान्तीय प्रशासन को इन दो भागों में बांटा गया :

  1. गवर्नर एवं उसकी परिषद् और
  2. निर्वाचित मंत्री।

प्रश्न 45.
1919 के विधान में प्रान्तीय गवर्नर के पास कौन-से विभाग थे ?
उत्तर-
1919 के विधान में प्रान्तीय गवर्नर के पास लगान, कानून, न्याय, पुलिस, सिंचाई और मजदूरों के मामलों से सम्बन्धित विभाग थे।

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प्रश्न 46.
1919 के विधान में निर्वाचित मन्त्रियों के पास कौन-से विभाग थे ?
उत्तर-
1919 के विधान के अनुसार निर्वाचित मन्त्रियों के पास नगरपालिकाएं, ज़िला बोर्ड, शिक्षा, पब्लिक हैल्थ, पब्लिक वर्क्स, कृषि तथा सहकारी संस्थाओं के विभाग थे।

प्रश्न 47.
‘डायारकी’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
‘डायारकी’ से अभिप्राय उस दोहरे शासन से है जो मांटेग्यू चैम्सफोर्ड विधान के अन्तर्गत प्रान्तों में स्थापित किया गया। इसके अनुसार शासन के दो भाग कर दिए गए जिनमें से एक भाग पर गवर्नर और उसकी परिषद् का अधिकार रहा, जबकि दूसरा भाग निर्वाचित मन्त्रियों को सौंप दिया गया।

प्रश्न 48.
1919 मे किन चार प्रदेशों को ‘प्रान्तों’ का दर्जा दे दिया गया ?
उत्तर-
1919 में यू० पी०, पंजाब, बिहार और उड़ीसा को प्रान्त का दर्जा दिया गया।

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प्रश्न 49.
1919 के विधान अनुसार आम मतदाताओं के प्रतिनिधि किस आधार पर चुने जाते थे ?
उत्तर-
इस विधान के अनुसार आम मतदाताओं के प्रतिनिधि साम्प्रदायिक विभाजन के आधार पर चुने जाते थे।

प्रश्न 50.
भारतीय नेताओं की 1919 के विधान पर कौन-सी दो मुख्य आपत्तियाँ थीं ?
उत्तर-
भारतीय नेताओं की दो मुख्य आपत्तियां थीं-धर्म के आधार पर पृथक् प्रतिनिधित्व दिया जाना और इसका ‘स्वराज्य’ के अधिकार से दूर होना।

प्रश्न 51.
खिलाफत आन्दोलन से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
खिलाफत आन्दोलन से अभिप्राय उस आन्दोलन से है जो भारतीय मुसलमानों ने अपने खलीफा अर्थात् तुर्की के सुल्तान के पक्ष में अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध चलाया।

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प्रश्न 52.
खिलाफत आन्दोलन के चार नेताओं के नाम बताएं।
उत्तर-
खिलाफत आन्दोलन के चार नेता मुहम्मद अली, शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद तथा हकीम अजमल खां थे।

प्रश्न 53.
खिलाफत कमेटी ने असहयोग आन्दोलन शुरू करने की घोषणा कब की तथा इसमें सबसे पहले कौन शामिल हुए ?
उत्तर-
खिलाफत कमेटी ने असहयोग आन्दोलन शुरू करने की घोषणा 31 अगस्त, 1920 को की। महात्मा गांधी इसमें सबसे पहले शामिल हुए।

प्रश्न 54.
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम में किन चीज़ों का बहिष्कार शामिल था ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम में छुआछूत तथा शराब का बहिष्कार शामिल था।

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प्रश्न 55.
असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक पक्ष कौन-से थे ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के रचनात्मक पक्ष थे-पंचायतों, राष्ट्रीय स्कूलों तथा कॉलेजों की स्थापना करना और स्वदेशी वस्तुओं (विशेषकर खादी) का प्रचार करना।

प्रश्न 56.
असहयोग आन्दोलन किस पर आधारित था तथा इसके कौन-से दो प्रतीक बन गए ?
उत्तर-
यह आन्दोलन पूर्ण रूप से अहिंसा पर आधारित था। चर्खा तथा खद्दर इस आन्दोलन के प्रतीक बन गए।

प्रश्न 57.
असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत वकालत छोड़ने वाले तीन व्यक्तियों के नाम बताएं।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन के अन्तर्गत वकालत छोड़ने वालों में पंडित मोती लाल नेहरू, डॉ० राजेन्द्र प्रसाद तथा लाला लाजपत राय शामिल थे।

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प्रश्न 58.
असहयोग आन्दोलन द्वारा पहली बार समाज के कौन-से दो हिस्से राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हुए ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन द्वारा पहली बार समाज के साधारण लोग तथा स्त्रियां राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हुईं।

प्रश्न 59.
असहयोग आन्दोलन कब वापिस लिया गया तथा इसका क्या कारण था ?
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन 1922 में वापस लिया गया। इसका कारण था-उत्तर प्रदेश में चौरी-चौरा के स्थान पर हुई हिंसात्मक घटना।

प्रश्न 60.
भारत से बाहर कब व किस घटना के बाद खिलाफत प्रश्न समाप्त हो गया ?
उत्तर-
भारत से बाहर 1929 में खिलाफत प्रश्न समाप्त हुआ। यह प्रश्न तुर्की के सुल्तान के बहाल होने के बाद समाप्त हुआ।

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III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
1857 की क्रान्ति के सामाजिक कारणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का मुख्य कारण सामाजिक असन्तोष था। निम्नलिखित चार बातों से यह तथ्य प्रमाणित हो जाता है:
1. अंग्रेज़ भारत में सती-प्रथा को समाप्त करना तथा कुछ अन्य सामाजिक परिवर्तन लाना चाहते थे। भारतीयों ने इन सभी परिवर्तनों को हिन्दू धर्म के विरुद्ध समझा और वे अंग्रेजों के घोर विरोधी हो गये।

2. अंग्रेज़ शिक्षा संस्थाओं में ईसाई धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार करते थे जिसके कारण भी भारतीय अंग्रेजों से नाराज़ थे।

3. ईसाई पादरी भारतीय रीति-रिवाजों की कड़ी निन्दा करते थे। भारतीय इसे सहन न कर सके और वे अंग्रेजों को भारत से निकालने के लिये तैयार हो गये।

4. रेलों के आरम्भ होने से लोगों को विश्वास हो गया कि वे शीघ्रता से भारतीयों को अपने प्रभाव में लेना चाहते थे। इस असन्तोष के कारण भारतीय जनता ने अपने राजाओं को सहयोग दिया और वे क्रान्ति के लिये तैयार हो गये।

प्रश्न 2.
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के धार्मिक कारणों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के धार्मिक कारण निम्नलिखित थे :
1. धर्म परिवर्तन-ईसाई पादरी भारतीयों को लालच देकर उन्हें ईसाई बना रहे थे। इस कारण भारतवासी अंग्रेज़ों के विरुद्ध हो गये।

2. विलियम बैंटिंक के सुधार-विलियम बैंटिंक ने अनेक समाज सुधार किये थे। कुछ हिन्दुओं ने इन सुधारों को अपने धर्म में हस्तक्षेप समझा।

3. अंग्रेज़ी शिक्षा-अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रसार के कारण भी भारतवासियों में असन्तोष फैल गया।

4. हिन्दू ग्रन्थों की निन्दा-ईसाई प्रचारक अपने धर्म का प्रचार करने के साथ-साथ हिन्दू धर्म के ग्रन्थों की घोर निन्दा करते थे। इस बात से भी भारतवासी भड़क उठे।

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प्रश्न 3.
सन् 1857 की क्रान्ति के लिए भारतीयों का आर्थिक शोषण कहाँ तक उत्तरदायी था ?
अथवा
स्वतन्त्रता संग्राम के आर्थिक कारण कौन-कौन से थे ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता संग्राम के आर्थिक कारण निम्नलिखित थे :
1. औद्योगिक क्रान्ति के कारण इंग्लैण्ड का बना मशीनी माल सस्ता हो गया। परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी माल अधिक बिकने लगा और भारतीय उद्योग लगभग ठप्प हो गये।

2. भारतीय माल को इंग्लैण्ड पहुँचने पर भारी शुल्क देना पड़ता था। इस तरह भारतीय माल काफी महंगा पड़ता था। परिणामस्वरूप भारतीय माल की विदेशों में मांग घटने लगी और भारतीय व्यापार लगभग ठप्प हो गया।

3. अंग्रेजों के शासनकाल में कृषि और कृषक् की दशा भी खराब हो गई थी। ज़मींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया था। वे एक निश्चित कर सरकारी खज़ाने में जमा कराते थे और किसानों से मनचाहा कर वसूल करते थे। किसान इन अत्याचारों से मुक्ति पाना चाहते थे।

4. भारतीय जनता पर भारी कर लगा दिये गये थे। तंग आकर उन्होंने विद्रोह का मार्ग अपनाया।

प्रश्न 4.
सन् 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर-
1857 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण चर्बी वाले कारतूस थे। 1856 ई० में सरकार ने सैनिकों से पुरानी बन्दूकें वापस लेकर उन्हें ‘एन्फील्ड राइफलें’ दीं। इन राइफलों में गाय और सूअर की चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग होता था और कारतूसों को राइफलों में भरने के लिए इन्हें मुंह से छीलना पड़ता था। कारतूसों में गाय और सूअर की चर्बी की बात सुनकर भारतीय सैनिक भड़क उठे और इन कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार करने लगे। यही क्रान्ति का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ। कारतूसों के प्रयोग से इंकार करते हुए, बंगाल की छावनी बैरकपुर में मंगल पाण्डे नामक एक सैनिक ने क्रान्ति का झंडा फहराया और दो बड़े अंग्रेज़ अधिकारियों को गोली से उड़ा दिया। उसे फांसी दे दी गई। इस घटना के कुछ दिन बाद मेरठ में क्रान्ति की आग भड़क उठी।

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प्रश्न 5.
प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम क्यों असफल रहा ?
उत्तर-
प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम (1857 ई०) अनेक बातों के कारण असफल रहा : –
1. संग्राम 31 मई को आरम्भ किया जाना था। परन्तु मेरठ के सैनिकों ने इसे समय से पहले ही आरम्भ कर दिया। . फलस्वरूप भारतीयों में एकता न रह सकी।

2. सभी क्रान्तिकारी स्वतन्त्रता प्राप्ति के उद्देश्य से नहीं लड़े।

3. अंग्रेजों के अत्याचार के भय से साधारण जनता ने क्रान्ति में भाग लेना छोड़ दिया।

4. क्रान्तिकारी प्रशिक्षित सैनिक नहीं थे। उनके पास अच्छे शस्त्रों का भी अभाव था।

5. यह संग्राम केवल उत्तरी भारत में ही फैला। दक्षिण के लोगों ने इसमें कोई भाग न लिया। अतः एकता के अभाव में यह संग्राम असफल रहा।

प्रश्न 6.
भारत में राष्ट्रीयता के उदय के चार कारण बताएं।
उत्तर-
भारत में राष्ट्रीयता के उदय के निम्नलिखित कारण थे :
1. अंग्रेज़ भारत से अधिक-से-अधिक धन कमाना चाहते थे। अत: उन्होंने भारत का खूब आर्थिक शोषण किया। इसके परिणामस्वरूप भारतीय उद्योग ठप्प पड़ गये। देश में बेरोज़गारी बढ़ने लगी और लोगों में असन्तोष फैल गया।

2. देश में डाक-तार व्यवस्था आरम्भ होने से लोगों में आपसी मेल-जोल बढ़ने लगा। इससे लोगों में एकता आई जो राष्ट्रीयता के उदय में सहायक सिद्ध हुई।

3. अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारतीय एक-दूसरे के निकट आ गए। पश्चिमी साहित्य के अध्ययन के कारण उनमें राष्ट्रीयता की भावना प्रबल हो गई।

4. भारतीय समाचार-पत्रों ने भी लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को जागृत किया।

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प्रश्न 7.
1857 ई० के विद्रोह के राजनीतिक कारणों का वर्णन करें।
उत्तर-
1857 के विद्रोह के मुख्य राजनीतिक कारण निम्नलिखित थे :-

  • लॉर्ड वैलेज़ली की सहायक सन्धि और डल्हौज़ी की लैप्स की नीति से भारतीय शासकों में असन्तोष फैला हुआ था।
  • नाना साहब की पेन्शन बन्द कर दी गई थी। इसलिए वह अंग्रेजों के विरुद्ध था।
  • अवध, सतारा तथा नागपुर की रियासतें अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला ली गई थीं। इसलिए वहां के शासक अंग्रेजों के शत्रु बन गए।
  • ज़मींदार तथा सरदार भी अंग्रेजों के विरुद्ध थे क्योंकि उनकी भूमि छीन ली गई थी।
  • अंग्रेजों ने मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह का निरादर किया। उन्होंने उसके राजमहल तथा उसकी पदवी छीनने की योजना बनाई। इससे जनता भड़क उठी।
  • ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाए गए देशी राज्यों के बहुत-से सैनिक तथा कर्मचारी बेरोज़गार हो गए। अत: उनमें असन्तोष व्याप्त था।

प्रश्न 8.
1857 के विद्रोह की मुख्य घटनाओं का वर्णन करो।
उत्तर-
1857 के विद्रोह की मुख्य घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है-
1. 1857 के विद्रोह का आरम्भ बैरकपुर (बंगाल) से 29 मार्च को हुआ। वहां भारतीय सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इन्कार कर दिया।

2. 9 मई, 1857 ई० को मेरठ में विद्रोह हो गया और सैनिकों को बन्दी बना लिया गया। परन्तु अगले ही दिन क्रान्तिकारी उन्हें रिहा करा कर दिल्ली की ओर चल पड़े।

3. 12 मई, 1857 को क्रान्तिकारियों ने दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह को भारत सम्राट घोषित कर दिया।

4. कानपुर में नाना साहिब ने अपने आपको पेशवा घोषित कर दिया। परन्तु वह अंग्रेजों द्वारा पराजित हुआ। तात्या टोपे ने वहाँ पुनः अपना अधिकार स्थापित करने का प्रयास किया, परन्तु वह सफल न हो सका।

5. जून 1857 में लखनऊ, बनारस तथा इलाहाबाद में विद्रोह हुआ।

6. झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई ने क्रान्ति का नेतृत्व किया। तात्या टोपे भी उसके साथ आ मिला। परन्तु वह लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हुई।
इस प्रकार क्रान्ति की ज्वाला शान्त हो गयी और प्रत्येक स्थान पर फिर से अंग्रेज़ी झण्डा फहराने लगा।

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प्रश्न 9.
1857 ई० के विद्रोह के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
1857 के विद्रोह के मुख्य प्रभाव निम्नलिखित थे-
1. कम्पनी के शासन का अन्त-1857 ई० के विद्रोह के परिणामस्वरूप भारत में कम्पनी का शासन समाप्त हो गया। भारत का शासन अब सीधा इंग्लैण्ड की सरकार के अधीन हो गया।

2. देशी राज्यों के प्रति नई नीति-1857 ई० के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेजों ने देशी रियासतों को अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाने की नीति छोड़ दी और उन्हें पुत्र गोद लेने का अधिकार भी दे दिया।

3. सेना में यूरोपियन सैनिकों की वृद्धि-सेना में भारतीयों की संख्या घटा दी गई और युरोपियन सैनिकों की संख्या बढा दी गई। तोपखाना, गोला-बारूद आदि सारी युद्ध-सामग्री यूरोपियनों के हाथों में सौंप दी गई।

4. भारतीय सेना का पुनर्गठन-विद्रोह के पश्चात् भारतीय सेना का पुनर्गठन किया गया। अब सभी जातियों तथा धर्मों के सैनिकों को अलग-अलग रखा जाने लगा। इस प्रकार राष्ट्रीयता की भावना को पनपने से रोका गया।

प्रश्न 10.
1857 ई० की क्रान्ति के स्वरूप का वर्णन करो।
अथवा
क्या 1857 ई० की क्रान्ति एक सैनिक विद्रोह था या प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम ?
उत्तर-
1857 ई० का विद्रोह कोरा सैनिक विद्रोह नहीं था। यह निश्चित रूप से ही भारतीयों द्वारा स्वतन्त्रता के लिए लड़ा गया प्रथम संग्राम था। इन तथ्यों से यह बात स्पष्ट हो जाएगी-
1. 1857 की क्रान्ति में जनता ने भाग लिया, चाहे इन लोगों की संख्या कम ही थी।

2. जनता तथा शासक अंग्रेजों के विरुद्ध थे और वे उनसे छुटकारा पाना चाहते थे।

3. सैनिकों ने विद्रोह अवश्य किया, परन्तु उनका निशाना भी रियायतें लेना नहीं, बल्कि अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालना था।

4. देश के कुछ भागों में क्रान्ति नहीं हुई। वे शान्त रहे। उनके शान्त रहने का अर्थ यह नहीं लिया जा सकता कि उन्हें आजादी पसन्द नहीं थी। वे किसी बात के कारण खामोश अवश्य थे, परन्तु अंग्रेजी शासन उन्हें भी पसन्द नहीं था।

5. इसमें हिन्दुओं तथा मुसलमानों ने मिल कर संघर्ष किया। अतः स्पष्ट है कि लोग अंग्रेजी सत्ता से तंग थे और उन्होंने इस सत्ता को भारत में समाप्त करने के लिए शस्त्र उठाए। ऐसा महान् कार्य स्वतन्त्रता संग्राम के लिए ही हो सकता है। अतः यह सैनिक विद्रोह नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय आन्दोलन था।

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प्रश्न 11.
पहले दो दशकों में इण्डियन नेशनल कांग्रेस की मांगें क्या थी ?
उत्तर-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस 1885 में स्थापित की गई। 1905 ई० तक यह संस्था उदार विचारों से प्रभावित रही। अतः इसकी मांगें भी साधारण ही थीं। इसकी ये मांगें थीं-

  • विधान परिषदों के अधिकार बढ़ाये जाएं।
  • इनमें चुने हुए सदस्यों की संख्या बढ़ाई जाए।
  • प्रशासन में भारतीयों को उच्च पद दिए जाएं।
  • सेना तथा प्रशासन का खर्च कम किया जाए।
  • बोलने और लिखने की स्वतन्त्रता से प्रतिबन्ध हटाया जाए।
  • शिक्षा तथा लोक भलाई के कार्यक्रमों का विस्तार किया जाए। कांग्रेस के नेता यह समझते थे कि उनकी मांगें उचित भी हैं और बहुत बड़ी भी नहीं हैं। इसलिए उनका विचार था कि सरकार इन्हें आसानी से मान लेगी। परन्तु सरकार ने उनकी मांगों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। इसीलिए बाद में अनुदार विचारों के नेताओं का कांग्रेस पर प्रभुत्व बढ़ गया।

प्रश्न 12.
सरकार के प्रति कांग्रेस के रवैये में परिवर्तन किन कारणों से हुआ ?
उत्तर-
कांग्रेस की स्थापना 1885 में हुई। सरकार ने इस संस्था का स्वागत किया। परन्तु आरम्भ में सरकार का रुख दिखावे के लिए मैत्रीपूर्ण था। शीघ्र ही सरकार ने कांग्रेस के कार्यक्रमों का खुले रूप में विरोध करना आरम्भ कर दिया। सरकारी कर्मचारियों को अधिवेशनों में भाग लेने से रोक दिया गया। उच्च वर्ग के मुसलमानों को भी सुझाव देना आरम्भ कर दिया कि वे कांग्रेस के साथ सम्बन्ध न रखें। सरकार का तर्क यह था कि कांग्रेस लोगों की प्रतिनिधि संस्था नहीं थी। दूसरे, सरकार को विश्वास था कि कांग्रेस सरकार की नीतियों का समर्थन करेगी। परन्तु कांग्रेस के नर्म विचार भी सरकार को अखरने लगे। हर वर्ष कांग्रेस के द्वारा पास प्रस्ताव सरकार के पास पहुंचते। सरकार इन्हें पूरा करने में असमर्थ होती। अतः धीरे-धीरे सरकार का रवैया कांग्रेस के विरुद्ध हो गया।

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प्रश्न 13.
स्वतन्त्रता आन्दोलन पर बंगाल के विभाजन का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता आन्दोलन को उदार रूप से उग्र रूप देने में सबसे अधिक योगदान बंगाल के विभाजन का था। जुलाई, 1905 में वायसराय कर्जन ने पूर्वी बंगाल और आसाम को जोड़ कर एक नया प्रान्त बनाने की घोषणा कर दी। अक्तूबर में यह प्रान्त अस्तित्व में आ गया। इस निर्णय के विरुद्ध स्थान-स्थान पर सभायें हुईं। इनमें नर्म दल वाले भी थे और गर्म दल वाले भी थे। सब की मांग अब एक ही थी कि बंगाल का विभाजन न किया जाये। इस सम्बन्ध में उन्होंने स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ कर दिया। इसके अन्तर्गत विदेशी वस्तुओं के ‘बॉयकाट’ अथवा बहिष्कार पर बल दिया गया। इसका उद्देश्य यह था कि विदेशी कपड़ा और चीनी आदि न खरीदने से अंग्रेजों को आर्थिक हानि होगी और सरकार नेताओं की मांग को स्वीकार कर लेगी। इस आन्दोलन का प्रभाव कांग्रेस की नीति पर भी पड़ा। नर्म दल वाले यह चाहते थे कि ‘स्वदेशी’ और ‘बॉयकाट’. का ढंग सीमित उद्देश्यों के लिए काम में लिया जाये। गर्म दल वाले इस शस्त्र का प्रयोग विस्तार से करना चाहते थे। सरकारी स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का ‘बायकाट’ भी उनके कार्यक्रम में सम्मिलित था। सच तो यह है कि बंगाल विभाजन के कारण स्वतन्त्रता आन्दोलन में गर्म दल की नीतियां आरम्भ हुईं।

प्रश्न 14.
मुस्लिम लीग की स्थापना के क्या कारण थे ?
उत्तर-
मुस्लिम लीग की स्थापना 1906 में हुई थी। इसकी स्थापना के कारण ये थे :-

  • अरब राष्ट्रों में ‘वहाबी आन्दोलन’ आरम्भ होने के कारण भारत में साम्प्रदायिकता की भावना को बढ़ावा मिला।
  • अंग्रेजों की ‘फूट डालो और शासन करो’ की नीति भी मुस्लिम लीग की स्थापना का एक कारण थी।
  • सर सैय्यद अहमद खां ने भारत में साम्प्रदायिकता का प्रचार किया।
  • प्रिंसिपल बेक ने साम्प्रदायिकता की आग को भड़काने वाले लेख लिखे।
  • प्रिंसिपल बेक ने कांग्रेस को हिन्दुओं की संस्था के नाम से पुकारा। इस से भी साम्प्रदायिकता को काफी बल मिला।
  • लॉर्ड कर्जन द्वारा बंगाल के विभाजन ने साम्प्रदायिकता की भावना को और भी अधिक भड़का दिया।
  • लॉर्ड मिण्टो ने साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व के लिए प्रोत्साहन दिया। वास्तव में ये सभी कारण मुस्लिम लीग की स्थापना के कारण बने।

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प्रश्न 15.
गदर आन्दोलन का क्या उद्देश्य था तथा भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन में इसका क्या महत्व था ?
उत्तर-
गदर आन्दोलन 1915 ई० में पंजाब में आरम्भ हुआ। इस आन्दोलन के सदस्यों का उद्देश्य 1857 ई० के गदर के ढंग पर सशस्त्र विद्रोह करना था। इस आन्दोलन ने सरकार के प्रति सिक्खों का रवैया बदल दिया। गदर पार्टी के सदस्यों में से कुछ बाद में गुरुद्वारा सुधार आन्दोलन तथा बब्बर अकालियों में शामिल हो गए। कुछ ने किसान मज़दूरों की ‘कीर्ति-किसान पार्टी’ स्थापित करने में बड़ा महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। वास्तव में गदर आन्दोलन भारतीयों का एक धर्म-निरपेक्ष क्रान्तिकारी आन्दोलन था।

प्रश्न 16.
स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में ‘रौलेट एक्ट’ तथा ‘जलियांवाला बाग’ का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
स्वतन्त्रता आन्दोलन के इतिहास में रौलेट एक्ट तथा जलियांवाला बाग का विशेष महत्त्व है। रौलेट एक्ट के अनुसार किसी भी मुकद्दमे का फैसला बिना ‘ज्यूरी’ के किया जा सकता था तथा किसी भी व्यक्ति को मुकद्दमा चलाये बिना नज़रबन्द रखा जा सकता था। इस एक्ट के कारण भारतीय लोग भड़क उठे। उन्होंने इस का कड़ा विरोध किया और स्वतन्त्रता आन्दोलन में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। गांधी जी ने इस एक्ट के विरुद्ध अहिंसात्मक हड़ताल की घोषणा कर दी। स्थान-स्थान पर दंगे-फसाद हुए। जलियांवाला बाग में शहर के लोगों ने एक सभा का प्रबन्ध किया। स्वतन्त्रता आन्दोलन को दबाने के लिए जनरल डायर ने सभा में एकत्रित लोगों पर गोली चला दी जिसके कारण बहुत-से लोग मारे गए अथवा घायल हो गए। इस घटना से भारत के लोग और भी अधिक भड़क उठे। उन्होंने अंग्रेजों से स्वतन्त्रता प्राप्त करने का दृढ़ निश्चय कर लिया। इस घटना से अंग्रेज़ शासकों तथा भारतीय नेताओं के बीच एक अमिट दरार पड़ गई।

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प्रश्न 17.
असहयोग आन्दोलन के उद्देश्य व कार्यक्रम के बारे में बताएं।
उत्तर-
असहयोग आन्दोलन गांधी जी ने 1920 ई० में अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध चलाया। इसका उद्देश्य यह था कि हमें सरकार से किसी प्रकार का कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। इस आन्दोलन की घोषणा कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन में की गई। गांधी जी ने जनता से अपील की कि वह किसी भी तरह सरकार को सहयोग न दें। एक निश्चित कार्यक्रम भी तैयार किया गया जिस में कहा गया कि विदेशी माल का बहिष्कार करके स्वदेशी माल का प्रयोग किया जाए। ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियों तथा अवैतनिक पद छोड़ दिए जाएं । स्थानीय संस्थाओं में मनोनीत भारतीय सदस्यों द्वारा त्याग-पत्र दे दिए जाएं। सरकारी स्कूलों तथा सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए न भेजा जाए। ब्रिटिश अदालतों तथा वकीलों का धीरे-धीरे बहिष्कार किया जाए। सैनिक, क्लर्क तथा श्रमिक विदेशों में अपनी सेवाएं अर्पित करने से इन्कार कर दें।

प्रश्न 18.
तुम बाल, पाल, लाल के बारे में जो जानते हो, लिखो।
उत्तर-
बाल, पाल, लाल’ भारत के तीन महान् व्यक्तियों के नामों का छोटा रूप है। बाल से अभिप्राय बाल गंगाधर तिलक, पाल से अभिप्राय विपिन चन्द्र पाल और लाल से अभिप्राय लाला लाजपत राय से है। ये तीनों नेता कांग्रेस में ऐसी विचारधारा के समर्थक थे जो इतिहास में उग्रवाद के नाम से प्रसिद्ध है। ये तीनों स्वराज्य की प्राप्ति के पक्ष में थे और अंग्रेजों से संवैधानिक साधनों द्वारा न्याय पाने की आशा नहीं रखते थे। वे न तो अंग्रेजों से प्रार्थना करने के पक्ष में थे और न ही इस बात के पक्ष में थे कि अंग्रेजों के पास शिष्टमण्डल भेजे जाएं। ये अंग्रेजों से संघर्ष करना चाहते थे और संघर्ष द्वारा स्वराज्य प्राप्त करना चाहते थे। देश की जनता ने इनकी विचारधारा का समर्थन किया और ये तीनों नेता देश में अत्यन्त लोकप्रिय हुए।

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प्रश्न 19.
मिण्टो-मार्ले सुधार की मुख्य धाराएं बताओ।
उत्तर-
मिण्टो-मार्ले सुधार 1909 ई० में पास हुआ। इन सुधारों की मुख्य धाराएं ये थीं-
1. केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधान परिषदों के सदस्यों की संख्या बढ़ा दी गई। केन्द्रीय विधान परिषद् के सदस्यों की संख्या 16 से बढ़ा कर 60 कर दी गई। इसी तरह मद्रास (चेन्नई), बम्बई (मुम्बई) तथा बंगाल की विधान परिषदों के सदस्यों की संख्या 20 से बढ़ा कर 50 और उत्तर प्रदेश में 15 से बढ़ा कर 60 कर दी गई।

2. केन्द्रीय विधान परिषद् में सरकारी सदस्यों का बहुमत रहा। इसमें 69 सदस्य होते थे जिनमें से 36 सदस्य सरकारी होते थे।

3. प्रान्तीय विधान परिषदों के सदस्यों का चुनाव मुसलमानों, ज़मींदारों, व्यापार-मण्डलों, नगर पालिकाओं तथा ज़िला बोर्डों द्वारा किया जाने लगा।

4. इसके अनुसार पृथक् निर्वाचन प्रणाली की व्यवस्था की गई। हिन्दू प्रतिनिधियों का चुनाव हिन्दू तथा मुस्लिम प्रतिनिधियों का चुनाव मुसलमान ही करते थे।

प्रश्न 20.
होमरूल आन्दोलन के विषय में अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर-
होमरूल आन्दोलन 1916 ई० में आरम्भ हुआ। इसे आरम्भ करने का श्रेय श्रीमती ऐनी बेसेन्ट तथा लोकमान्य तिलक को जाता है। इस आन्दोलन का उद्देश्य भारतवासियों के लिए स्वराज्य प्राप्त करना था। लगभग सारे देश में होमरूल लीग की शाखाएं खोली गईं। यह आन्दोलन इतना लोकप्रिय हुआ कि सरकार घबरा गई। सरकार ने श्रीमती ऐनी बेसेन्ट को नजरबन्द कर दिया। परिणामस्वरूप जनता में असन्तोष फैल गया और यह आन्दोलन पहले से भी अधिक तीव्र हो गया। होमरूल आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य ये थे-

  • शान्तिमय उपायों द्वारा भारत के लिए स्वराज्य प्राप्त करना
  • अंग्रेज़ों को सन्तुष्ट करके ऐसी परिस्थितियों को जन्म देना जिससे प्रभावित होकर वह स्वयं ही भारत को स्वराज्य प्रदान करने का तैयार हो जाएं।
  • उग्रवादियों (Extremists) तथा उदारवादियों (Moderates) का परस्पर मेल करवाकर उग्रवादियों को क्रान्तिकारियों के साथ मिल जाने से रोकना।
  • ग्राम पंचायतों, नगरपालिकाओं आदि में स्वराज्य की स्थापना करना।
  • ब्रिटिश पार्लियामैंट में अन्य ब्रिटिश स्वशासित उपनिवेशों की भान्ति भारत से भी प्रतिनिधि भेजने का अधिकार प्राप्त करना।

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प्रश्न 21.
खिलाफत आन्दोलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
प्रथम विश्व-युद्ध के समाप्त होने पर ब्रिटिश सरकार तथा कुछ अन्य शक्तियों ने तुर्की के कुछ क्षेत्र इसके सुल्तान से ले लेने का निर्णय कर लिया था। तुर्की के सुल्तान को मुसलमानों का खलीफा अथवा धार्मिक नेता माना जाता था। इसलिए भारत के मुसलमानों में भी सुल्तान के समर्थन में गतिविधियां आरम्भ हुई। इसके खिलाफत आन्दोलन’ का नाम दिया गया। इसके नेता थे मुहम्मद अली और शौकत अली, मौलाना अबुल कलाम आजाद, हसरत मोहानी तथा हकीम अजमल खां। इन्होंने इसके नेतृत्व के लिए खिलाफ़त कमेटी बनाई तथा नवम्बर 1919 में आल इंडिया कान्फ्रेंस बुलाई। महात्मा गांधी खिलाफत के प्रश्न पर भारतीय मुसलमानों को अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध सक्रिय करना चाहते थे। उन्होंने इस सम्बन्ध में असहयोग आन्दोलन चलाने का प्रस्ताव रखा। 31 अगस्त, 1920 को खिलाफत कमेटी ने असहयोग आन्दोलन आरम्भ करने की घोषणा की। इसमें सम्मिलित होने वालों में महात्मा गांधी सबसे पहले व्यक्ति थे। उन्होंने अंग्रेज़-सरकार से प्राप्त ‘केसरेहिन्द’ की पदवी वापिस कर दी। इस तरह खिलाफत आन्दोलन असहयोग आन्दोलन का भाग बन कर उभरा।

प्रश्न 22.
1919 ई० के एक्ट के अनुसार कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किए गए ?
उत्तर-
भारतीय 1909 ई० के अधिनियम से सन्तुष्ट नहीं थे। अतः ब्रिटिश पार्लियामैंट ने प्रथम महायुद्ध के पश्चात् एक एक्ट पास किया जिसे 1919 ई० का गवर्नमेंट ऑफ इण्डिया एक्ट अथवा मांटेग्यू चैम्सफोर्ड सुधार कहा जाता है। इस एक्ट के अनुसार ये परिवर्तन किए गए-

  • वायसराय की विधान परिषद् के दो सदन बना दिए गए-राज्य परिषद् तथा विधान सभा।
  • राज्य परिषद् के सदस्यों की संख्या 60 रखी गई, जिनमें 33 सदस्यों का चुनाव किया जाता था और शेष सदस्य मनोनीत किए जाते थे। विधान सभा की सदस्य संख्या 140 निश्चित की गई जिसे बाद में बढ़ा कर 145 कर दिया गया। इनमें से 105 सदस्यों का निर्वाचन होता था और 40 सदस्य मनोनीत किए जाते थे।
  • वायसराय को दोनों सदनों को बुलाने, संगठित करने, विघटित करने तथा सम्बोधित करने का अधिकार दिया गया।
  • प्रान्तीय विधान परिषदों का एक ही सदन होता था जिसे विधान सभा कहते थे। इसके सदस्यों की संख्या प्रत्येक प्रान्त में भिन्न-भिन्न थी। इसकी अवधि तीन वर्ष थी।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
1857 ई० की भारतीय क्रान्ति के प्रमुख कारणों पर एक विस्तारपूर्वक प्रस्ताव लिखो। (M. Imp.)
अथवा
1857 की भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के राजनीतिक तथा सैनिक कारणों का वर्णन कीजिए।
अथवा
1857 की क्रांति के सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक कारणों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
1857 ई० में भारतीयों ने पहली बार अंग्रेज़ों का विरोध किया। वे उन्हें अपने देश से बाहर निकालना चाहते थे। इस संघर्ष को प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का नाम दिया जाता है।
कारण-

1. राजनीतिक कारण-

  • लॉर्ड वैल्ज़ली की सहायक सन्धि और डल्हौज़ी की लैप्स नीति से भारतीय शासकों में असन्तोष फैला हुआ था।
  • नाना साहिब की पेंशन बन्द कर दी गई थी। इसलिए वह अंग्रेजों के विरुद्ध थे।
  • झांसी की रानी को पुत्र गोद लेने की आज्ञा न मिली। अत: वह अंग्रेजों के विरुद्ध थी।
  • सतारा तथा नागपुर की रियासतें अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला ली गई थीं। इसलिए वहां के शासक अंग्रेजों के शत्रु बन गए।
  • ज़मींदार तथा सरदार भी अंग्रेजों के विरुद्ध थे क्योंकि उनकी जागीरें छीन ली गई थीं। इस प्रकार अनेक शासक, ज़मींदार तथा सरदार अंग्रेजों के रुष्ट थे और उनसे बदला लेने के लिए किसी अवसर की खोज में थे।

2. आर्थिक कारण-
1. औद्योगिक क्रान्ति के कारण इंग्लैण्ड का बना मशीनी माल सस्ता हो गया। परिणाम यह हुआ कि भारत में अंग्रेजी माल अधिक बिकने लगा और भारतीय उद्योग लगभग ठप्प हो गए। भारतीय कारीगरों की रोज़ी का साधन छिन गया और वे अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए।

2. अंग्रेजों की व्यापारिक नीति के कारण भारत का व्यापार भी लगभग समाप्त हो गया। भारत के माल पर इंग्लैण्ड पहुंचने पर भारतीय शुल्क देना पड़ता था जिससे भारतीय माल काफी महंगा पड़ता था। परिणामस्वरूप विदेशों में भारतीय माल की मांग घटने लगी और भारतीय व्यापार लगभग ठप्प हो गया।

3. अंग्रेजों के शासनकाल में कृषि और कृषक की दशा भी खराब हो गई थी। ज़मींदारों को भूमि का स्वामी मान लिया गया था। वे एक निश्चित कर सरकारी खजाने में जमा कराते थे और किसानों से मन चाहा कर वसूल करते थे। परिणामस्वरूप किसान लगातार पिस रहे थे। वे भी इस अत्याचार से मुक्ति पाना चाहते थे।

4. भारतीय जनता पर भारी कर लगा दिए गए थे। कर इतने अधिक थे कि लोगों के लिए जीवन-निर्वाह करना भी कठिन हो गया था। तंग आकर लोगों ने विद्रोह का मार्ग अपनाया।

3. सामाजिक तथा धार्मिक कारण-
1. ईसाई पादरी भारतवासियों को लालच देकर इन्हें ईसाई बना रहे थे। इस कारण भारतवासी अंग्रेज़ों के विरुद्ध हो गए।

2. विलियम बैंटिंक ने अनेक सामाजिक सुधार किए थे। उसने सती-प्रथा और बालविवाह पर रोक लगा दी थी। हिन्दुओं ने इन सब बातों को अपने धर्म के विरुद्ध समझा

3. अंग्रेज़ी शिक्षा के प्रसार के कारण भी भारतवासियों में असन्तोष फैल गया। उन्हें विश्वास हो गया कि अंग्रेज़ उन्हें अवश्य ही ईसाई बनाना चाहते हैं।

4. ईसाई प्रचारक अपने धर्म का प्रचार करने के साथ हिन्दू धर्म का प्रचार करने के साथ हिन्दू धर्म के ग्रन्थों की घोर निन्दा करते थे। इस बात से भारतवासी भड़क उठे।

4. सैनिक कारण-
1. 1856 ई० में एक ऐसा सैनिक कानून पास किया गया जिसके अनुसार सैनिकों को लड़ने के लिए समुद्र पार भेजा जा सकता था, परन्तु हिन्दू सैनिक समुद्र पार जाना अपने धर्म के विरुद्ध समझते थे।

2. परेड के समय भारतीय सैनिकों के साथ अभद्र व्यवहार किया जाता था। भारतीय सैनिक इस अपमान को अधिक देर तक सहन नहीं कर सकते थे।

3. भारतीय सैनिकों को अंग्रेज़ सैनिकों की अपेक्षा बहुत कम वेतन दिया जाता था। इस कारण उनमें असन्तोष फैला हुआ था।

4. अंग्रेज़ अधिकारी भारतीय सैनिकों के सामने ही उनकी सभ्यता तथा संस्कृति का मज़ाक उड़ाया करते थे। भारतीय सैनिक अंग्रेजों से इस अपमान का बदला लेना चाहते थे।

5. सैनिकों को नए कारतूस प्रयोग करने के लिए दिए गए। इन कारतूसों पर सूअर या गाय की चर्बी लगी हुई थी। अतः बैरकपुर छावनी के कुछ सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इन्कार कर दिया। मंगल पाण्डे नामक एक सैनिक ने तो क्रोध में आकर तीन अंग्रेज़ अधिकारियों की हत्या कर दी। इस आरोप में उसे फांसी दे दी गई। अन्य भारतीय सैनिक इस घटना से क्रोधित हो उठे और उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया।

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प्रश्न 2.
1857 ई० की क्रान्ति के राजनीतिक तथा संवैधानिक प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-
1857 की क्रान्ति असफल रही। फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह क्रान्ति असफल हुई, परन्तु निष्फल नहीं हुई। इसके परिणामस्वरूप लोगों में एक ऐसी राजनीतिक जागृति आई जिसने राष्ट्रीय आन्दोलन का रूप धारण कर लिया। इस क्रान्ति के प्रमुख राजनीतिक तथा संवैधानिक प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है-

1. कम्पनी राज्य की समाप्ति-1857 ई० की क्रान्ति का सबसे बड़ा परिणाम भारत में कम्पनी राज्य की समाप्ति था। भारत का सारा प्रशासन सीधा ब्रिटिश राज्य के अधीन हो गया। 1 नवम्बर, 1858 ई० को महारानी विक्टोरिया की घोषणा अनुसार कम्पनी की सरकार समाप्त हो गई तथा बोर्ड ऑफ़ कन्ट्रोल एवं बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्ज़ तोड़ दिए गए। उनके स्थान पर एक भारतीय मन्त्री (Secretary of State for India) की नियुक्ति कर दी गई। यह बर्तानिया की संसद् का सदस्य होता था। उसकी सहायता के लिए 15 सदस्यों की एक कौंसिल बनाई गई। ब्रिटिश संसद् ने प्रशासन के काम पर नियन्त्रण रखने के लिए भारत मन्त्री को यह कहा कि वह प्रति वर्ष भारत की आय-व्यय का ब्यौरा संसद् के सामने रखे।

2. गवर्नर जनरल की उपाधि में परिवर्तन-कम्पनी राज्य की समाप्ति के साथ ही गवर्नर-जनरल की पदवी में भी परिवर्तन किया गया। अब वह ब्रिटिश ताज का प्रतिनिधि था। उसकी इस स्थिति का ध्यान रखते हुए उसे वायसराय की उपाधि दी गई।

3. भारतीय राजाओं के प्रतिनिधि-भारतीय राजाओं को प्रसन्न करने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने उदार नीति को अपनाया। उन्हें विश्वास दिलाया गया कि उनके राज्यों को कभी भी अंग्रेज़ साम्राज्य में मिलाया नहीं जाएगा। लैप्स के सिद्धान्त के अनुसार किसी भी रियासत को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाने की नीति को त्याग दिया गया। भारतीय राजाओं को सन्तान न होने पर, बच्चा गोद लेने तथा उसे अपना उत्तराधिकारी निश्चित करने का अधिकार भी दे दिया गया। जिन राजाओं ने विद्रोह दबाने के लिए अंग्रेजों की सहायता की, उनको पारितोषिक तथा उपाधियां दी गईं। इसके साथ-साथ राजाओं पर कुछ प्रतिबन्ध भी लगाए गए। वे अंग्रेज़ी सरकार की आज्ञा के बिना किसी देशी अथवा विदेशी शक्ति के साथ सम्बन्ध स्थापित नहीं कर सकते थे। शासन व्यवस्था खराब होने की दशा में उनके राज्य में हस्तक्षेप करने का अधिकार भी अंग्रेज़ सरकार के पास था।

4. मुगल सम्राट् तथा पेशवा की उपाधि की समाप्ति-नाना साहब ने विद्रोह में बढ़-चढ़ कर भाग लिया। जब नाना साहब को विजय की आशा न रही, तो वह नेपाल की ओर भाग गया। अब भारत में पेशवा पद के लिए कोई उत्तरदायी नहीं रहा था। इसलिए अंग्रेजों ने पेशवा की उपाधि समाप्त कर दी। मुग़ल सम्राट् बहादुरशाह ने भी विद्रोह में अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया था। उनको आजन्म कारावास का दण्ड तथा देश निकाला देकर रंगून भेज दिया गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् मुग़ल सम्राट् की पदवी भी समाप्त कर दी गई।

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय चेतना के जागृत होने के क्या कारण थे ?
अथवा
19वीं शताब्दी में भारत में राजनीतिक चेतना की उत्पत्ति के कोई पांच कारण लिखिए।
उत्तर-
भारत की राष्ट्रीय चेतना का उदय 19वीं शताब्दी में हुआ। इस चेतना के उत्पन्न होने के निम्नलिखित प्रमुख कारण थे :-

1. भारत तथा यूरोप का सम्पर्क-19वीं शताब्दी यूरोप के इतिहास में राष्ट्रवाद का युग मानी जाती है। 1789 ई० की फ्रांसीसी क्रान्ति और नेपोलियन बोनापार्ट की शक्तिशाली प्रचार लहरों के कारण राष्ट्रीयता के सिद्धान्त को बड़ा बल मिला। इस सिद्धान्त से यूरोप के लगभग सभी देश प्रभावित हुए और वहां राष्ट्रीयता का एक आन्दोलन-सा चल पड़ा। उस समय भारत अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन था, इसलिए यूरोप के राष्ट्रवाद का भारत पर भी प्रभाव पड़ा।

2. पश्चिमी विद्वानों के प्रयत्न-कुछ पश्चिमी विद्वानों ने भारत के प्राचीन साहित्य का अध्ययन किया। इन विद्वानों में मैक्समूलर, विलियम जोन्स, विल्सन, कोलब्रुक, कीथ आदि प्रमुख थे। इनके प्रयत्नों से भारत की प्राचीन सभ्यता प्रकाश में आई और लोगों को पता चला कि उनकी पुरानी सभ्यता कितनी महान् थी। परिणामस्वरूप लोगों के मन में स्वाभिमान जागा जिससे राजनीतिक चेतना जागृत हुई।

3. अंग्रेजी भाषा-अंग्रेज़ी सरकार ने कुछ कारणों से अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बना दिया था। इस भाषा के प्रचार से लोगों को एक सांझी भाषा मिल गई। फलस्वरूप यह सम्भव हो गया कि देश के अलग-अलग तथा दूर-दूर स्थित क्षेत्रों के नेता आपस में इकट्ठे हो कर आवश्यक समस्याओं पर विचार-विमर्श कर सकें।

4. अंग्रेजों तथा भारतीयों में अविश्वास-1857 ई० के आन्दोलन के कारण अंग्रेज़ों का भारत के लोगों पर विश्वास न रहा। वे प्रत्येक भारतीय को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे। दूसरी ओर भारतीय भी अंग्रेजों को अत्याचारी और दमनकारी समझने लगे। धीरे-धीरे भारतीयों के मन में यह बात बैठ गई कि उन्हें अंग्रेज़ों से न्याय नहीं मिल सकता। इन बातों ने लोगों में राष्ट्रीयता की भावना को जागृत किया।

5. भारतीयों के साथ अन्याय-अंग्रेज़ किसी भी दशा में भारतीयों को समान अधिकार देने को तैयार नहीं थे। सभी बड़े-बड़े सरकारी पदों पर यूरोपियनों को ही नियुक्त किया जाता था। परन्तु देश में शिक्षित भारतीयों की संख्या बढ़ती जा रही थी। जब उनको किसी ओर से नौकरी की आशा न रही तो उन्होंने सरकार की आलोचना करनी आरम्भ कर दी। फलस्वरूप राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।

6. समाचार-पत्रों का योगदान-भारतीयों में राष्ट्रीय भावना जागृत करने में भारतीय समाचार-पत्रों ने भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। अंग्रेजी समाचार-पत्र प्रायः सरकार की नीतियों के समर्थक ही थे। इसके विपरीत भारतीय भाषाओं में निकलने वाले सामचार-पत्र जनता का पक्ष लेते थे और सरकार की ग़लत नीतियों का विरोध करते थे। अंग्रेज़ी सरकार ने भारतीय समाचार-पत्रों को कुचलने के लिए कानून पास किया। भारतीयों ने इसका कड़ा विरोध किया। अतः सरकार को यह कानून रद्द करना पड़ा। इसके फलस्वरूप समाचार-पत्रों का उत्साह बढ़ गया तथा वे फिर से सरकार की ग़लत नीतियों की आलोचना करने लगे। इन समाचार-पत्रों ने बढ़ रही बेकारी की ओर भी सरकार का ध्यान दिलाने का प्रयत्न किया। इन समाचार-पत्रों को पढ़ कर भारतीयों के मन में राष्ट्रीय भाव जागृत हुए।

7. भारत की आर्थिक दशा-अंग्रेज़ी सरकार ने भारत में ऐसी नीतियां अपनाईं जिनके कारण भारत की आर्थिक दशा बिल्कुल खराब हो गई और लोग निर्धन हो गए। वे जानते थे कि उनकी निर्धनता का एकमात्र कारण अंग्रेज़ी राज्य है। फलस्वरूप वे अंग्रेज़ी राज्य को समाप्त करना चारते थे। यह बात राजनीतिक चेतना की ही प्रतीक थी।

8. देश का एकीकरण-भारतीय राष्ट्रीयता के विकास में देश के एकीकरण ने काफी योगदान दिया। सारे देश में एक ही कानून प्रणाली प्रचलित की गई जिससे सारा देश एक ही प्रबन्धकीय ढांचे के अधीन आ गया। इससे जहां देश का एकीकरण हुआ, वहां भारतीयों में भाईचारे की भावना भी बढ़ी। टेलीफोन, टेलीग्राफ, डाक-प्रबन्ध तथा रेलों के प्रसार से भारतीयों की एक अन्य बड़ी कठिनाई दूर हो गई। अब वे इकट्ठे होकर बैठ सकते थे और एक-दूसरे के दुःख दर्द समझ सकते थे। इन बातों के कारण भी देश में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ।

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प्रश्न 4.
कांग्रेस की स्थापना, आरंभिक उद्देश्यों तथा नीतियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
कांग्रेस की स्थापना 1885 ई० में एक रिटायर्ड अंग्रेज़ अधिकारी श्री ए० ओ० हयूम के प्रयत्नों से हुई थी। उन्होंने कांग्रेस की स्थापना इसलिए की थी ताकि भारतीय नेताओं का असन्तोष विचारों के रूप में बाहर निकलता रहे और वह किसी भयंकर विद्रोह का रूप धारण न करे। मि० ह्यूम काफी सीमा तक अपने उद्देश्यों में सफल भी रहे, परन्तु धीरे-धीरे यह संस्था जनता में काफी लोकप्रिय होने लगी और भारतीय नेताओं की मांगें बढ़ने लगीं। इस संस्था के आरम्भिक उद्देश्यों तथा नीतियों का वर्णन इस प्रकार है :

उद्देश्य-आरम्भ में (1905 ई० तक) कांग्रेस के सभी नेता उदारवादी विचारों के थे। इनके मुख्य उद्देश्य ये थे:

  • देश के हित के लिए काम करने वालों में मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना।
  • देशवासियों में जातीयता, प्रान्तीयता तथा धार्मिक भेद-भाव की भावना समाप्त करके राष्ट्रीयता का बीज बोना।
  • सामाजिक समस्याओं सम्बन्धी सुलझे विचारों को इकट्ठा करके अंकित करना।
  • आने वाले 12 महीनों में यह कार्यक्रम तैयार करना कि देश सेवा किस प्रकार की जाए।

नीतियां-कांग्रेस की आरम्भिक नीति देश को स्वतन्त्रता दिलाना नहीं थी। इस समय तक उसकी नीतियां बड़ी साधारण थीं, जिनका वर्णन इस प्रकार है:-

  • भारतीयों को उनकी योग्यता के अनुसार ऊंचे पदों पर नौकरियां दिलवाना।
  • सरकार का ध्यान देश में जन-कल्याण के कार्यों की ओर दिलाना।
  • कृषि की उन्नति के लिए सरकार को प्रेरित करना।
  • किसानों की दशा में सुधार लाना।
  • देश में करों की कमी करवाना।
  • लोगों का आर्थिक स्तर ऊंचा करना।
  • लोगों का नैतिक उत्थान करना।
  • देश में प्राइमरी तथा तकनीकी शिक्षा का प्रसार करना।

प्रश्न 5.
गर्म पन्थ का उदय क्यों हुआ तथा उन्होंने किस प्रणाली को अपनाया ?
उत्तर-
भारतीय राजनीति में गर्म दल के उदय के निम्नलिखित कारण थे :

  • उदारवादी नेता उस गति से नहीं चल रहे थे, जिस गति से देश में राजनीतिक चेतना बढ़ रही थी।
  • अंग्रेजी सरकार राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति संतोषजनक रुख नहीं अपना रही थी।
  • बंगाल के विभाजन ने सारे देश में राष्ट्रीय जागृति पैदा कर दी। पूरे देश में इसका विरोध हुआ, जिसके कारण उग्रवादी भावना को बढ़ावा मिला।
  • भारत से बाहर की घटनाओं ने भी लोगों का झुकाव उग्रवाद की ओर किया। 1896 में इटली को इथोपिया ने और 1905 में रूस को जापान ने हराया था। इससे भी भारतीयों का मनोबल बढ़ा। 1905 की रूसी क्रान्ति और आयरलैण्ड में चल रहे स्वतन्त्रता आन्दोलन ने भी भारतीयों को प्रेरित किया।

गर्म दल की उन्नति-गर्म दल की सही उन्नति 1905 ई० से आरम्भ हुई। लाल-बाल-पाल अर्थात् लाला लाजपतराय, बाल गंगाधर तिलक एवं विपिन चन्द्र पाल ने गर्म दल का नेतृत्व सम्भाला। तिलक ने नारा दिया “स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।” सारा देश ‘वन्दे मातरम्’ के नारों से गूंज उठा। स्वदेशी आन्दोलन का सूत्रपात भी हुआ। लोगों ने विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार किया और उनकी होली जलाई।

1907 तक उदारवाद तथा उग्रवाद की विचारधारा में स्पष्ट अन्तर दिखाई देने लगा। इसी वर्ष कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में दोनों गुटों में खुला झगड़ा हुआ। अधिवेशन में जूते और लाठियां तक चलीं। सरकार ने उदारवादियों को खुश करने के लिए 1909 का एक्ट पास किया परन्तु इससे उदारवादी तथा उग्रवादी दोनों ही असन्तुष्ट हुए।

गर्म दल की कार्य-प्रणाली-गर्म दल की कार्य-प्रणाली क्हणी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं :

  • गरमपंथी ब्रिटिश शासन में कोई विश्वास नहीं रखते थे। इस सम्बन्ध में ये नरमपंथियों की आलोचना करते थे।
  • गरमपंथी पश्चिमी संस्कृति के आलोचक थे। उनका उद्देश्य लोगों को भारतीय संस्कृति पर गर्व करना सिखाना था।
  • गरमपंथियों का मानना था कि राजनीतिक अधिकार प्राप्त करने के लिए लड़ना पड़ता है और भारी दबाव डालकर ही इन्हें प्राप्त किया जा सकता है।
  • गरमपंथियों द्वारा पेश की गई मांगें राष्ट्रीय थीं और जनसाधारण से सम्बन्ध रखती थीं।

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प्रश्न 6.
(क) बंगाल को विभाजित करने के पीछे ब्रिटिश लोगों के क्या उद्देश्य थे ?
(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन पर इसका क्या प्रभाव पड़ा ? स्वदेशी तथा बहिष्कार आन्दोलनों का बंगाल-विभाजन से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
(क) बंगाल का विभाजन 1905 ई० में लॉर्ड कर्जन ने किया था। उसने बंगाल और असम को साथ मिलाकर इस सारे प्रदेश के दो भाग कर दिये। उसका कहना था कि बंगाल एक बहुत बड़ा प्रान्त है और सरकार को इसका शासन चलाने में कठिनाई आती है, परन्तु यह अंग्रेजों का एक बहाना मात्र था। वास्तव में बंगाल के विभाजन से उनके कुछ और भी उद्देश्य थे।

उद्देश्य-अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन निम्नलिखित उद्देश्यों से किया :
1. राष्ट्रीयता को आघात पहुंचाना-बंगाल भारत में एक ऐसा प्रान्त था जहां के लोगों में देश के अन्य प्रान्तों की अपेक्षा राष्ट्रीयता की भावना अधिक थी। देश में उठने वाली प्रत्येक राष्ट्रीय लहर का प्रारम्भ इसी प्रान्त से होता था। इस बात से अंग्रेजों को चिन्ता हुई। उन्होंने यहां की राष्ट्रीय भावना को आघात पहुंचाने के लिए इस प्रान्त का विभाजन कर दिया।

2. बंगाल के नेताओं के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकना-बंगाल के नेताओं का देश में प्रभाव बढ़ रहा था। वे देश की जनता को अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित कर रहे थे और उग्रवादी साधनों पर बल दे रहे थे। सरकार बंगाल का विभाजन करके उनके बढ़ते हुए प्रभाव को समाप्त कर देना चाहती थी।

3. मुसलमानों का समर्थन-अंग्रेजी सरकार मुसलमानों का समर्थन प्राप्त करना चाहती थी और उन्हें हिन्दुओं के विरुद्ध भड़काना चाहती थी। इसी उद्देश्य से उसने बंगाल का विभाजन कर दिया और पूर्वी बंगाल नामक एक प्रान्त बना दिया। उस प्रान्त में मुसलमानों का बहुमत था।

(ख) राष्ट्रीय आन्दोलन पर प्रभाव-
1. बंगाल विभाजन से भारतीयों में असन्तोष फैल गया। फलस्वरूप देश में बंगभंग के विरुद्ध एक जबरदस्त आन्दोलन छिड़ गया। 16 अक्तबूर का दिन सारे देश में शोक-दिवस के रूप में मनाया गया।

2. आन्दोलन के कार्यक्रम के अनुसार लोगों ने स्थान-स्थान पर विदेशी माल की होली जलायी और स्वयं स्वदेशी माल का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया। स्वदेशी के प्रचार से भारत के देशी उद्योग फिर से उन्नति करने लगे।

3. भारतीयों ने बहिष्कार की नीति अपनायी। उन्होंने सरकारी नौकरियों तथा पदवियों का त्याग कर दिया। यहां तक कि विद्यार्थियों ने भी सरकारी स्कूलों में जाना छोड़ दिया।

4. सरकार ने इस आन्दोलन के दमन के लिए लोगों पर जितने अधिक अत्याचार किये, उनके विचार उतने ही अधिक गर्म होते गये। इस प्रकार देश में गर्म दल का उदय हुआ।

5. कुछ समय के पश्चात् भारतीयों ने सरकारी अत्याचारों का सामना करने के लिए हिंसात्मक और क्रान्तिकारी साधन अपनाने आरम्भ कर दिये। परिणामस्वरूप देश में एक जबरदस्त क्रान्तिकारी आन्दोलन आरम्भ हो गया। क्रान्तिकारी युवकों ने अनेक अंग्रेजों का वध कर दिया।

6. बंगाल विभाजन का देशव्यापी प्रभाव पड़ा। लगभग पूरा भारत इस विभाजन के विरुद्ध उठ खड़ा हुआ था। फलस्वरूप राष्ट्रीय एकता को बल मिला।

स्वदेशी तथा बहिष्कार (बॉयकाट) आन्दोलन-स्वदेशी तथा बॉयकाट अथवा बहिष्कार आन्दोलन बंगाल-विभाजन के विरुद्ध रोष प्रकट करने के लिए चलाए गए। इनके अनुसार स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग पर बल दिया गया और अंग्रेज़ी माल का बहिष्कार कर दिया गया। अनेक नेताओं ने स्थान-स्थान पर जाकर इस आन्दोलन का प्रचार किया। अत: लोगों ने अधिक से अधिक भारतीय माल का प्रयोग करना आरम्भ कर दिया और विदेशी माल खरीदना बन्द कर दिया। परिणामस्वरूप भारतीय उद्योगों को काफी प्रोत्साहन मिला। इस आन्दोलन में विद्यार्थियों तथा महिलाओं ने भी प्रशंसनीय काम किया। कुछ मुसलमान नेता भी इसमें शामिल हुए। बम्बई, मद्रास तथा उत्तरी भारत के अनेक भागों में इस आन्दोलन का बड़े पैमाने पर प्रचार हुआ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 21 राजनीतिक जागृति तथा अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध राजनीतिक आन्दोलन

प्रश्न 7.
असहयोग आन्दोलन के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
अथवा
असहयोग आन्दोलन क्यों चलाया गया ? इसके कार्यक्रम एवं उद्देश्य का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
महात्मा गांधी आरम्भ में अंग्रेज़ी शासन के पक्ष में थे। परन्तु प्रथम महायुद्ध की समाप्ति पर वह अंग्रेजी शासन के विरोधी बन गए और उन्होंने इसके विरुद्ध असहयोग आन्दोलन आरम्भ कर दिया।

कारण-
1. भारतीयों ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेज़ों को पूरा सहयोग दिया था, परन्तु महायुद्ध की समाप्ति पर अंग्रेज़ों ने भारतीय जनता का खूब शोषण किया।

2. प्रथम महायुद्ध के दौरान भारत में प्लेग आदि महामारियां फूट पड़ीं। परन्तु अंग्रेज़ी सरकार ने उसकी ओर कोई ध्यान न दिया।

3. गांधी जी ने प्रथम महायुद्ध में अंग्रेजों की सहायता करने का प्रचार इस आशा से किया था कि वे भारत को स्वराज्य प्रदान करेंगे। परन्तु  युद्ध की समाप्ति पर ब्रिटिश सरकार ने गांधी जी की आशाओं पर पानी फेर दिया।

4. 1919 ई० में ब्रिटिश सरकार ने रौलेट एक्ट पास कर दिया। इस काले कानून के कारण जनता में रोष फैल गया।

5. रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक विशाल जनसभा हुई। अंग्रेजों ने एकत्रित भीड़ पर गोली चलाई जिससे सैंकड़ों लोग मारे गए।

6. सितम्बर, 1920 ई० में कांग्रेस ने अपना अधिवेशन कलकत्ता (कोलकाता) में बुलाया। इस अधिवेशन में ‘असहयोग आन्दोलन’ का प्रस्ताव रखा गया, जिसे बहुमत से पास कर दिया गया।

असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम अथवा उद्देश्य-असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम की रूपरेखा इस प्रकार है-

  • विदेशी माल का बहिष्कार करके स्वदेशी माल का प्रयोग किया जाए।
  • ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान की गई उपाधियां तथा अवैतनिक पद छोड़ दिये जाएं।
  • स्थानीय संस्थानों में मनोनीत भारतीय सदस्यों द्वारा त्याग-पत्र दे दिए जाएं।
  • सरकारी स्कूलों तथा सरकार से अनुदान प्राप्त स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए न भेजा जाए।
  • ब्रिटिश अदालतों तथा वकीलों का धीरे-धीरे बहिष्कार किया जाए।
  • सैनिक, क्लर्क तथा श्रमिक विदेशों में अपनी सेवाएं अर्पित करने से इन्कार कर दें।

आन्दोलन की प्रगति तथा अन्त-असहयोग आन्दोलन के कार्यक्रम को जनता तक पहुंचाने के लिए महात्मा गांधी तथा मुस्लिम नेता डॉ० अंसारी, मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद तथा अली बन्धुओं ने सारे देश का भ्रमण किया। परिणामस्वरूप शीघ्र ही यह आन्दोलन बल पकड़ गया। जनता ने सरकारी विद्यालयों का बहिष्कार कर दिया। बीच चौराहों पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने ‘सर’ की उपाधि तथा गांधी जी ने ‘केसरे हिन्द’ की उपाधि का त्याग कर दिया। इसी बीच उत्तर प्रदेश के चौरी-चौरा नामक स्थान पर उत्तेजित भीड़ ने एक पुलिस थाने को आग लगा दी। इस हिंसात्मक घटना के कारण गांधी जी ने असहयोग आन्दोलन की समाप्ति की घोषणा कर दी।

महत्व-

  • असहयोग आन्दोलन के कारण कांग्रेस ने सरकार से सीधी टक्कर ली।
  • भारत के इतिहास में पहली बार जनता ने इस आन्दोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
  • असहयोग आन्दोलन में ‘स्वदेशी’ का खूब प्रचार किया गया था। फलस्वरूप देश में उद्योग-धन्धों का विकास हुआ।

सच तो यह है कि गांधी जी द्वारा चलाये गये असहयोग आन्दोलन ने भारत के स्वतन्त्रता संग्राम को एक नई दिशा प्रदान की।