PSEB 11th Class History Solutions Chapter 7 राजपूत और उनका काल

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 7 राजपूत और उनका काल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 7 राजपूत और उनका काल

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
कन्नौज के लिए संघर्ष तथा दक्षिण में राजनीतिक परिवर्तनों से सम्बन्धित घटनाओं की रूपरेखा बताएं।
उत्तर-
आठवीं और नौवीं शताब्दी में उत्तरी भारत में होने वाला संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष के नाम से प्रसिद्ध है। यह संघर्ष राष्ट्रकूटों, प्रतिहारों तथा पालों के बीच कन्नौज को प्राप्त करने के लिए ही हुआ। कन्नौज उत्तरी भारत का प्रसिद्ध नगर था। यह नगर हर्षवर्धन की राजधानी था। उत्तरी भारत में इस नगर की स्थिति बहुत अच्छी थी। क्योंकि इस नगर पर अधिकार करने वाला शासक गंगा के मैदान पर अधिकार कर सकता था, इसलिए इस पर अधिकार करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी गईं। इस संघर्ष में राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल नामक तीन प्रमुख राजवंश भाग ले रहे थे। इन राजवंशों ने बारी-बारी कन्नौज पर अधिकार किया। राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल तीनों राज्यों के लिए संघर्ष के घातक परिणाम निकले। वे काफी समय तक युद्धों में उलझे रहे। धीरे-धीरे उनकी सैन्य शक्ति कम हो गई और राजनीतिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया। फलस्वरूप सौ वर्षों के अन्दर तीनों राज्यों का पतन हो गया। राष्ट्रकूटों पर उत्तरकालीन चालुक्यों ने अधिकार कर लिया। प्रतिहार राज्य छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया और पाल वंश की शक्ति को चोलों ने समाप्त कर दिया।

दक्षिण में राजनीतिक परिवर्तन-

दक्षिण में 10वीं , 11वीं तथा 12वीं शताब्दी के दो महत्त्वपूर्ण राज्य उत्तरकालीन चालुक्य तथा चोल थे। इन दोनों राजवंशों के आपसी सम्बन्ध बड़े ही संघर्षमय थे। इन राज्यों का अलग-अलग अध्ययन करने से इनके आपसी सम्बन्ध स्पष्ट हो जायेंगे। उत्तरकालीन चालुक्यों की दो शाखाएं थीं-कल्याणी के पश्चिमी चालुक्य तथा मैगी के पूर्वी चालुक्य । कल्याणी के चालुक्य की शाखा की स्थापना तैलप द्वितीय ने की थी। उसने चोलों, गुर्जर, जाटों आदि के विरुद्ध अनेक विजयें प्राप्त की। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र सत्याश्रय ने उत्तरी कोंकण के राजा तथा गुर्जर को पराजित किया, परन्तु उस समय राजेन्द्र चोल ने चालुक्य शक्ति को काफी हानि पहंचाई। बैंगी के पूर्वी चालुक्यों की शाखा का संस्थापक पुलकेशिन द्वितीय का भाई विष्णुवर्धन द्वितीय था।

पुलकेशिन ने उसे 621 ई० में चालुक्य राज्य का गवर्नर नियुक्त किया था । परन्तु कुछ ही समय पश्चात् उसने अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा कर दी। उसके द्वारा स्थापित राजवंश ने लगभग 500 वर्ष तक राज्य किया। जयसिंह प्रथम, इन्द्रवर्मन और विष्णुवर्मन तृतीय, विजयादित्य प्रथम द्वितीय, भीम प्रथम, कुल्लोतुंग प्रथम विजयादित्य इस वंश के प्रतापी राजा थे। इन राजाओं ने पल्लवों तथा राष्ट्रकूटों के साथ संघर्ष किया। अन्त में कुल्लोतुंग प्रथम ने चोल तथा चालुक्य राज्यों को एक संगठित राज्य घोषित कर दिया। उसने अपने चाचा विजयादित्य सप्तम को बैंगी का गर्वनर नियुक्त किया।

चोल दक्षिण भारत की प्रसिद्ध जाति थी। प्राचीन काल में वे दक्षिण भारत की सभ्य जातियों में गिने जाते थे। अशोक के राज्यादेशों तथा मैगस्थनीज़ के लेखों में उनका उल्लेख आता है। चीनी लेखकों, अरब यात्रियों तथा मुस्लिम इतिहासकारों ने भी उनका वर्णन किया है। काफी समय तक आन्ध्र और पल्लव जातियां उन पर शासन करती रहीं। परन्तु नौवीं शताब्दी में वे अपना स्वतन्त्र राज्य स्थापित करने में सफल हुए। इस वंश के शासकों ने लगभग चार शताब्दियों तक दक्षिणी भारत में राज्य किया। उनके राज्य में आधुनिक तमिलनाडु, आधुनिक कर्नाटक तथा कोरोमण्डल के प्रदेश सम्मिलित थे। चोल राज्य का संस्थापक कारीकल था। परन्तु इस वंश का पहला प्रसिद्ध राजा विजयालय था। उसने पल्लवों को पराजित किया था। इस वंश के अन्य प्रसिद्ध राजा आदित्य प्रथम प्रान्तक (907-957 ई०), राजराजा महान् (985-1014 ई०), राजेन्द्र चोल (10141044 ई०), कुल्लोतुंग इत्यादि थे। इनमें से राजराजा महान् तथा राजेन्द्र चोल ने शक्ति को बढ़ाने में विशेष योगदान दिया। उन्होंने कला और साहित्य के विकास में भी योगदान दिया।

चोल वंश का पतन और दक्षिण में नई शक्तियों का उदय-राजेन्द्र चोल के उत्तराधिकारियों को बैंगी के चालक्यों तथा कल्याणी के विरुद्ध एक लम्बा संघर्ष करना पड़ा। चोल राजा कुल्लोतुंग के शासन काल (1070-1118 ई०) में वैंगी के चालुक्यों का राज्य चोलों के अधिकार में आ गया। परन्तु कल्याणी के चालुक्यों के साथ उनका संघर्ष कुछ धीमा हो गया। इसका कारण यह था कि कुल्लोतुंग की मां एक चालुक्य राजकुमारी थी। 12वीं शताब्दी के अन्तिम वर्षों में चोल शक्ति का पतन होने लगा जो मुख्यतः उनके चालुक्यों के साथ संघर्ष का ही परिणाम था। इस संघर्ष के कारण चोल शक्ति काफी क्षीण हो गई और उनके सामन्त शक्तिशाली हो गए। अन्ततः उनके होयसाल सामन्तों ने उनकी सत्ता का अन्त कर दिया। इस प्रकार 13वीं शताब्दी के आरम्भ में दक्षिण में चालुक्य तथा चोल, राज्यों के स्थान पर कुछ नवीन शक्तियों का उदय हुआ। इन शक्तियों में देवगिरी के यादव, वारंगल के काकतीय, द्वारसमुद्र के होयसाल तथा मदुराई के पाण्डेय प्रमुख थे।

प्रश्न 2.
राजपूत काल में धर्म, कला तथा साहित्य के क्षेत्र में हुए महत्त्वपूर्ण परिवर्तनों की चर्चा करें।
उत्तर-
राजपूत काल 7वीं तथा 13वीं शताब्दी का मध्यकाल है। इस काल में धार्मिक परिवर्तन हुए तथा कला एवं साहित्य के क्षेत्र में बड़ा विकास हुआ। इन सबका वर्णन इस प्रकार है-

I. धर्म-

(1) 7वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक धर्म का आधार वही देवी-देवता व रीति-रिवाज ही रहे, जो काफी समय से चले आ रहे थे। परन्तु धार्मिक परम्पराओं को अब नया रूप दिया गया। इस काल में बौद्ध धर्म का पतन बहुत तेजी से होने लगा। जैन धर्म को कुछ राजपूत शासकों ने समर्थन अवश्य प्रदान किया परन्तु यह धर्म अधिक लोकप्रिय न हो सका। केवल हिन्दू धर्म ही ऐसा धर्म था जिसमें कुछ परिवर्तन आये। अब अवतारवाद को अधिक शक्ति मिली तथा विशेष रूप से कृष्णवासुदेव का अवतार रूप में पूजन होने लगा। देवी-माता की भी कात्यायनी, भवानी, चंडिका, अम्बिका आदि भिन्न-भिन्न रूपों में पूजा प्रचलित थी। इस काल के सभी मतों के अनुयायियों ने अपने-अपने इष्ट देव के लिए मन्दिर बनवाए जो इस काल के धर्मों की बहुत बड़ी विशेषता है।

(2) हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से दो विचारधाराएं ही अधिक प्रचलित हुईं-वैष्णव मत तथा शैवमत। शैवमत के कई रूप थे तथा यह दक्षिणी भारत में अधिक प्रचलित था। कुछ शैव सम्प्रदाय सामाजिक दृष्टि से परस्पर विरोधी भी थे। जैसे कि कपालिक, कालमुख तथा पशुपति। लोगों का जादू-टोनों में विश्वास पहले से अधिक बढ़ने लगा। 12वीं शताब्दी में वासवराज ने शैवमत की एक नवीन लहर चलाई । इसके अनुयायी लिंगायत या वीर शैव कहलाए। वे लोग शिव की लिंग रूप में पूजा करते थे तथा पूर्ण विश्वास के साथ प्रभु-भक्ति में आस्था रखते थे। इन लोगों ने बाल-विवाह का विरोध करके और विधवाविवाह का सर्मथन करके बाह्मण रूढ़िवाद पर गम्भीर चोट की। दक्षिणी भारत में शिव की लिंग रूप के साथ-साथ नटराज के रूप में भी पूजा काफी प्रचलित थी। उन्होंने शिव के नटराज रूप को धातु की सुन्दर मूर्तियों के रूप में ढाला । इन मूर्तियों में चोल शासकों के काल में बनी कांसे की नटराज की मूर्ति प्रमुख है।

(3) राजपूत काल के धर्म की एक अन्य विशेषता वैष्णव मत में भक्ति तथा श्रद्धा का सम्मिश्रण था। इस विचारधारा के मुख्य प्रवर्तक रामानुज थे। उसका जन्म तिरुपति में हुआ था। 12वीं शताब्दी में उसने श्रीरंगम में कई वर्षों तक लोगों को धर्म की शिक्षा दी। उनके विचार प्रसिद्ध हिन्दू प्रचारक शंकराचार्य से बिल्कुल भिन्न थे। वह अद्धैतवाद में बिल्कुल विश्वास नहीं रखता था। वह विष्णु को सर्वोच्च इष्ट मानता था। उसका कहना था कि विष्णु एक मानवीय देवता है। उसने मुक्ति के तीन मार्ग-ज्ञान, धर्म तथा भक्ति में से भक्ति पर अधिक बल दिया। इसी कारण उसे सामान्यतः भक्ति लहर का प्रवर्तक माना जाता है। परन्तु उसने भक्ति की प्रचलित लहर को वैष्णव धर्मशास्त्र के साथ जोड़ने का प्रयत्न किया।

(4) राजपूतकालीन धर्म में लहर की स्थिति अत्यधिक महत्त्वपूर्ण थी। रामानुज का भक्ति मार्ग जनता में काफी लोकप्रिय हुआ। शैव सम्प्रदाय में भी भक्ति को काफी महत्त्व दिया जाता था। लोगों में यह विश्वास बढ़ गया कि मुक्ति का एकमात्र मार्ग सच्चे मन से की गई प्रभु भक्ति ही है। वे अपना सब कुछ प्रभु के भरोसे छोड़कर उसकी भक्ति के पक्ष में थे।

II. कला-

राजपूत काल में भवन निर्माण का बड़ा विकास हुआ। उन्होंने भव्य महलों तथा दुर्गों का निर्माण किया। जयपुर तथा उदयपुर केराजमहल, चितौड़ तथा ग्वालियर के दुर्ग राजपूती भवन निर्माण कला के शानदार नमूने हैं। इसके अतिरिक्त पर्वत की चोटी पर बने जोधपुर के दुर्ग की अपनी ही सुन्दरता है। कहा जाता है कि उसकी सुन्दरता देखकर बाबर भी आश्चर्य में पड़ गया था।

राजपूत काल मन्दिरों के निर्माण का सर्वोत्कृष्ट समय था। इस वास्तुकला के प्रभावशाली नमूने आज भी देश के कई भागों में सुरक्षित हैं। मन्दिरों का निर्माण केवल शैवमत या वैष्णव मत तक ही सीमित नहीं था। माऊंट आबू में जैन मन्दिर भी मिलते हैं। ये मन्दिर सफेद संगमरमर तथा अन्य पत्थरों के बने हुए हैं। ये मन्दिर उत्कृष्ट मूर्तियों से सजे हुए हैं। अतः ये वास्तुकला और मूर्तिकला के मेल के बहुत सुन्दर नमूने हैं।

राजपूत काल में बने सूर्य मन्दिर बहुत प्रसिद्ध हैं। परन्तु सर्वाधिक प्रसिद्ध उड़ीसा में कोणार्क का सूर्य मन्दिर है। आधुनिक मध्य प्रदेश के बुन्देलखण्ड के इलाके में स्थित खजुराहो के अधिकतर मन्दिर शिव को समर्पित हैं।

इस समय शिव को समर्पित बड़े-बड़े शानदार मन्दिरों के अतिरिक्त शिव के नटराज रूप को भी धातु की अनेकों मूर्तियों में ढाला गया। इन मूर्तियों के कई छोटे और बड़े नमूने देखे जा सकते हैं। इनमें चोल शासकों के समय का बना सुप्रसिद्ध कांसे का नटराज एक महान् कला कृति है।

III. साहित्य तथा शिक्षा-

राजपूत काल में साहित्य का भी पर्याप्त विकास हुआ। पृथ्वीराज चौहान तथा राजा भोज स्वयं उच्चकोटि के विद्वान् थे। राजपूत राजाओं ने अपने दरबार में साहित्यकारों को संरक्षण प्रदान किया हुआ था। कल्हण ने ‘राजतरंगिणी’ नामक ग्रन्थ की रचना की। चन्दर बरदाई पृथ्वीराज का राजकवि था। उसने ‘पृथ्वी रासो’ नामक ग्रन्थ की रचना की। जयदेव बंगाल का राजकवि था। उसने ‘गीत गोबिन्द’ नामक ग्रन्थ की रचना की। राजशेखर भी इसी काल का एक माना हुआ विद्वान् था। राजपूतों ने शिक्षा के प्रसार को ओर काफी ध्यान दिया। आरम्भिक शिक्षा का प्रबन्ध मन्दिरों तथा पाठशालाओं में किया जाता था। उच्च शिक्षा के लिए नालन्दा, काशी, तक्षशिला, उज्जैन, विक्रमशिला आदि अनेक विश्वविद्यालय थे।
सच तो यह है कि राजपूत काल में धर्म के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए और कला तथा साहित्य के क्षेत्र में बड़ा विकास हुआ। इस काल की कृतियों तथा साहित्यिक रचनाओं पर आज भी देश को गर्व है।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक-

प्रश्न 1.
कन्नौज की त्रिपक्षीय लड़ाई के समय बंगाल-बिहार का राजा कौन था ?
उत्तर-
धर्मपाल।

प्रश्न 2.
हर्षवर्धन के बाद कन्नौज का राजा कौन बना ?
उत्तर-
यशोवर्मन।

प्रश्न 3.
पृथ्वीराज चौहान की जानकारी हमें किस स्त्रोत से मिलती है तथा
(ii) उसका लेखक कौन है ?
उत्तर-
(i) पृथ्वीराज रासो नामक ग्रन्थ से
(ii) चन्दरबरदाई।

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प्रश्न 4.
महमूद गज़नवी ने भारत पर कितनी बार आक्रमण किया?
उत्तर-
महमूद गज़नवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किये।

प्रश्न 5.
(i) महमूद गज़नवी के साथ कौन-सा इतिहासकार भारत आया तथा
(ii) उसने कौन-सी पुस्तक की रचना की ?
उत्तर-
(i) अल्बरूनी
(ii) ‘किताब-उल-हिन्द’।

प्रश्न 6.
(i) तन्जौर के शिव मन्दिर का निर्माण किसने करवाया तथा
(ii) इस मन्दिर का क्या नाम था ?
उत्तर-
(i) तन्जौर के शिव मन्दिर का निर्माण चोल शासक राजराजा प्रथम ने करवाया।
(ii) इस मन्दिर का नाम राजराजेश्वर मन्दिर था।

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प्रश्न 7.
चोल शासन प्रबन्ध में प्रांतों को किस नाम से पुकारा जाता था ?
उत्तर-
‘मंडलम’।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) राजपूतों का प्रमुख देवता ……………. था।
(ii) ………… पृथ्वीराज चौहान का दरबारी कवि था।
(iii) ‘कर्पूरमंजरी’ का लेखक ……………. था।
(iv) परमार वंश की राजधानी ……………… थी।
(v) चंदेल वंश का प्रथम प्रतापी राजा ………….. था।
उत्तर-
(i) शिव
(ii) चन्द्रबरदाई
(iii) राजशेखर
(iv) धारा नगरी
(v) यशोवर्मन।

3. सही/ग़लत कथन-

(i) अरबों ने 712 ई० में सिंध पर आक्रमण किया। — (√)
(ii) तराइन की पहली लड़ाई (1191) में मुहम्मद गौरी की विजय हुई। — (×)
(iii) तराइन की दूसरी लड़ाई महमूद ग़जनवी तथा मुहम्मद गौरी के बीच हुई। — (×)
(iv) परमार वंश का प्रथम महान् शासक मुंज था। — (√)
(v) जयचंद राठौर की राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान से शत्रुता थी। — (√)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
मुहम्मद गौरी ने किसे हरा कर दिल्ली पर अधिकार किया ?
(A) जयचंद राठौर
(B) पृथ्वीराज चौहान
(C) अनंगपाल
(D) जयपाल।
उत्तर-
(B) पृथ्वीराज चौहान

प्रश्न (ii)
राजपूत काल का सबसे सुंदर दुर्ग है-
(A) जयपुर का
(B) बीकानेर का
(C) जोधपुर का
(D) दिल्ली का।
उत्तर-
(C) जोधपुर का

प्रश्न (iii)
‘जौहर’ की प्रथा प्रचलित थी-
(A) राजपूतों में
(B) सिक्खों में
(C) मुसलमानों में
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(A) राजपूतों में

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प्रश्न (iv)
मुहम्मद गौरी ने अपने भारतीय प्रदेश का वायसराय किसे नियुक्त किया ?
(A) जलालुद्दीन खलजी
(B) महमूद ग़जनवी
(C) नासिरुद्दीन कुबाचा
(D) कुतुबुद्दीन ऐबक।
उत्तर-
(D) कुतुबुद्दीन ऐबक।

प्रश्न (v)
धारानगरी में संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना किसने की ?
(A) धर्मपाल
(B) राजा भोज
(C) हर्षवर्धन
(D) गोपाल।
उत्तर-
(B) राजा भोज

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजपूत काल में पंजाब की पहाड़ियों में किन नये राज्यों का उदय हुआ ?
उत्तर-
राजपूत काल में पंजाब की पहाड़ियों में जम्मू, चम्बा, कुल्लू तथा कांगड़ा नामक राज्यों का उदय हुआ।

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प्रश्न 2.
राजपूत काल में कामरूप किन तीन देशों के बीच व्यापार की कड़ी था ?
उत्तर-
इस काल में कामरूप पूर्वी भारत, तिब्बत तथा चीन के मध्य व्यापार की कड़ी था।

प्रश्न 3.
सिन्ध पर अरबों के आक्रमण का तात्कालिक कारण क्या था ?
उत्तर-
सिन्ध पर अरबों के आक्रमण का तात्कालिक कारण सिन्ध में स्थित कराची के निकट देवल की बंदरगाह पर खलीफा के लिए उपहार ले जाते हुए जहाज़ का लूटा जाना था।

प्रश्न 4.
अरबों के आक्रमण के समय सिन्ध के शासक का नाम क्या था और यह आक्रमण कब हुआ ?
उत्तर-
अरबों ने सिन्ध पर 711 ई० में आक्रमण किया। उस समय सिन्ध में राजा दाहिर का राज्य था।

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प्रश्न 5.
अरबों द्वारा जीता हुआ क्षेत्र कौन-से दो राज्यों में बंट गया ?
उत्तर-
अरबों द्वारा जीता हुआ क्षेत्र मंसूरा तथा मुलतान नामक दो राज्यों में बंट गया।

प्रश्न 6.
हिन्दूशाही वंश के चार शासकों के नाम बताएं।
उत्तर-
हिन्दूशाही वंश के चार शासक थे-कल्लार, भीमदेव, जयपाल, आनन्दपाल ।

प्रश्न 7.
गज़नी के राज्य के तीन शासकों के नाम बतायें।
उत्तर-
गज़नी राज्य के तीन शासक थे- अल्पतगीन, सुबुक्तगीन तथा महमूद गज़नवी।

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प्रश्न 8.
गज़नी और हिन्दूशाही वंश के शासकों में संघर्ष का आरम्भ किस वर्ष में हुआ और यह कब तक चला ?
उत्तर-
गज़नी और हिन्दूशाही वंश के शासकों में आपसी संघर्ष 960 ई० से 1021 ई० तक चला।

प्रश्न 9.
1008-09 में महमूद गजनवी के विरुद्ध सैनिक गठजोड़ में भाग लेने वाले उत्तर भारत के किन्हीं चार राज्यों के नाम बताएं ।
उत्तर-
महमूद गज़नवी के विरुद्ध सैनिक गठजोड़ (1008-09) में उज्जैन, ग्वालियर, कालिंजर तथा कन्नौज राज्य शामिल थे।

प्रश्न 10.
शाही राजाओं के विरुद्ध गज़नी के शासकों की विजय का मुख्य कारण क्या था?
उत्तर-
शाही राजाओं के विरुद्ध गज़नी के शासकों की विजय का मुख्य कारण उनका विशिष्ट सेनापतित्व था।

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प्रश्न 11.
महमूद गजनवी ने धन प्राप्त करने के लिए उत्तर भारत के किन चार नगरों पर आक्रमण किये ?
उत्तर-
महमूद गजनवी ने धन प्राप्त करने के लिए उत्तरी भारत के नगरकोट, थानेश्वर, मथुरा तथा कन्नौज के नगरों पर आक्रमण किये।

प्रश्न 12.
महमूद गज़नवी के भारतीय आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य अब क्या समझा जाता है?
उत्तर-
महमूद गज़नवी के भारतीय आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य अब यह समझा जाता है कि उसे अपने मध्य एशिया साम्राज्य का विस्तार करना और इसके लिए धन प्राप्त करना था।

प्रश्न 13.
महमूद गजनवी के साथ भारत आये विद्वान् तथा उसकी पुस्तक का नाम बताएँ।
उत्तर-
महमूद गज़नवी के साथ भारत में जो विद्वान् आया, उसका नाम अलबेरूनी था। उसके द्वारा लिखी पुस्तक का नाम ‘किताब-उल-हिन्द’ था ।

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प्रश्न 14.
महमूद गज़नवी के भारतीय आक्रमणों का मुख्य परिणाम क्या हुआ?
उत्तर-
महमूद गजनवी के भारतीय आक्रमणों का मुख्य परिणाम यह हुआ कि पंजाब को गजनी साम्राज्य में मिला लिया।

प्रश्न 15.
कन्नौज के लिए संघर्ष करने वाले तीन प्रमुख राजवंशों के नाम बताएं।
उत्तर-
कन्नौज के लिए संघर्ष करने वाले तीन प्रमुख राजवंशों के नाम थे-पालवंश, प्रतिहार वंश तथा राष्ट्रकूट वंश।

प्रश्न 16.
प्रतिहार वंश के राजाओं को गुर्जर-प्रतिहार क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
प्रतिहार पश्चिमी राजस्थान के गुर्जरों में से थे। इसीलिए उन्हें गुर्जर प्रतिहार भी कहा जाता है।

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प्रश्न 17.
प्रतिहार वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कौन था तथा उसका राज्यकाल क्या था ?
उत्तर-
प्रतिहार वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक राजा भोज था। उसका राज्यकाल 836 ई० से 885 ई० तक था।

प्रश्न 18.
प्रतिहार वंश के सबसे प्रसिद्ध चार शासक कौन थे ?
उत्तर-
नागभट्ट, वत्सराज, मिहिरभोज तथा महेन्द्रपाल प्रतिहार वंश के सबसे प्रसिद्ध चार शासक थे।

प्रश्न 19.
राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक कौन था और राष्ट्रकूट राज्य का साम्राज्य में परिवर्तन किस शासक के समय में हुआ?
उत्तर-
राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक दन्तीदुर्ग था। राष्ट्रकूट राज्य का साम्राज्य में परिवर्तन ध्रुव के समय में हुआ।

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प्रश्न 20.
राष्ट्रकूट राज्य की राजधानी कौन-सी थी और इस वंश के दो सबसे शक्तिशाली शासक कौन थे ?
उत्तर-
राष्ट्रकूट राज्य की राजधानी मालखेद या मान्यखेत थी। इन्द्र तृतीय तथा कृष्णा तृतीय इस वंश के सबसे शक्तिशाली शासक थे।

प्रश्न 21.
पाल वंश का सबसे शक्तिशाली राजा कौन था और बंगाल में पाल राजाओं का स्थान किस वंश ने लिया ?
उत्तर-
धर्मपाल पाल वंश का सब से शक्तिशाली शासक था। बंगाल में पाल राजाओं का स्थान सेन वंश ने लिया।

प्रश्न 22.
अग्निकुल राजपूतों से क्या भाव है एवं इनके चार कुलों के नाम बताएं।
उत्तर-
अग्निकुल राजपूतों से भाव उन चार वंशों से है जिनकी उत्त्पति आबू पर्वत पर हुए यज्ञ की अग्नि से हुई । ये वंश थे-परिहार, परमार, चौहान तथा चालुक्य।

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प्रश्न 23.
राजपूत काल में गुजरात में कौन-से वंश का राज्य था तथा इनकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
राजपूत काल में गुजरात में सोलंकी वंश का राज्य था। इनकी राजधानी अनहिलवाड़ा में थी ।

प्रश्न 24.
मालवा में किस वंश का राज्य था ?
उत्तर-
मालवा में परमार वंश का राज्य था।

प्रश्न 25.
परिहार राजा आरम्भ में किन के सामन्त थे तथा ये किस प्रदेश में शासन कर रहे थे ?
उत्तर-
परिहार राजा आरम्भ में प्रतिहारों के सामान्त थे। वे मालवा में शासन करते थे।

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प्रश्न 26.
अग्निकुल राजपूतों में सबसे प्रसिद्ध वंश कौन-सा था और इनका राज्य किन दो प्रदेशों पर था ?
उत्तर-
अग्निकुल राजपूतों में सब से प्रसिद्ध वंश चौहान वंश था। इनका राज्य गुजरात और राजस्थान में था ।

प्रश्न 27.
तराइन की लड़ाइयाँ कौन-से वर्षों में हुईं और इनमें लड़ने वाला राजपूत शासक कौन था ?
उत्तर-
तराइन की लड़ाइयाँ 1191 ई० तथा 1192 ई० में हुईं । इनमें लड़ने वाला राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान था।

प्रश्न 28.
कन्नौज में प्रतिहारों के बाद किस वंश का राज्य स्थापित हुआ तथा इसका अन्तिम शासक कौन था ?
उत्तर-
कन्नौज में प्रतिहारों के बाद राठौर वंश का राज्य स्थापित हुआ। इस वंश का अन्तिम शासक जयचन्द था।

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प्रश्न 29.
दिल्ली का आरम्भिक नाम क्या था और इसकी नींव कब रखी गई ?
उत्तर-
दिल्ली का आरम्भिक नाम ढिल्लीका था। इसकी नींव 736 ई० में रखी गई थी ।

प्रश्न 30.
राजपूतों का सबसे पुराना कुल कौन-सा था तथा इसकी राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
राजपूतों का सबसे पुराना कुल गुहिला था। इसकी राजधानी चित्तौड़ थी।

प्रश्न 31.
कछवाहा तथा कलचुरी राजवंशों की राजधानियों के नाम बताएं ।
उत्तर-
कछवाहा तथा कलचुरी राजवंशों की राजधानियों के नाम थे-गोपगिरी तथा त्रिपुरी।

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प्रश्न 32.
चंदेलों ने किस प्रदेश में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की तथा उनकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
चंदेलों ने जैजाक भुक्ति में स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की। खजुराहो उनकी राजधानी थी।

प्रश्न 33.
बंगाल में सेन वंश की स्थापना किसने की तथा इस वंश का अन्तिम राजा कौन था ?
उत्तर-
बंगाल में सेन वंश की स्थापना विद्यासेन ने की थी। इस वंश का अन्तिम राजा लक्ष्मण सेन था।

प्रश्न 34.
उड़ीसा में पूर्वी गंग राजवंश का सबसे महत्त्वपूर्ण राजा कौन था तथा इसने कौन-सा प्रसिद्ध मंदिर बनवाया था?
उत्तर-
गंग राजवंश का सबसे महत्त्वपूर्ण राजा अनन्तवर्मन था। उसने जगन्नाथपुरी का प्रसिद्ध मन्दिर बनवाया था।

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प्रश्न 35.
दक्कन में परवर्ती चालुक्यों के राज्य का संस्थापक कौन था तथा इनकी राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
दक्कन में परवर्ती चालुक्यों के राज्य का संस्थापक तैल था। इनकी राजधानी कल्याणी थी।

प्रश्न 36.
11वीं सदी में परवर्ती चालक्यों की किन चार पड़ोसी राज्यों के साथ लड़ाई रही ?
उत्तर-
11वीं सदी में परवर्ती चालुक्यों की सोलंकी, चोल, परमार, कलचुरी राज्यों के साथ लड़ाई रही।

प्रश्न 37.
परवर्ती चालुक्य वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कौन था ? उसके बारे में किस लेखक की कौन-सी रचना से पता चलता है।
उत्तर-
परवर्ती चालुक्य वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा विक्रमादित्य छठा था। उसके बारे में हमें बिल्हण की रचना – ‘विक्रमंकदेवचरित्’, से पता चलता है ।

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प्रश्न 38.
परवर्ती चालुक्यों की सबसे भयंकर टक्कर किस राजवंश से हुई और इस झगड़े का कारण कौन- सा । प्रदेश था?
उत्तर-
परवर्ती चालुक्य की सब से भयंकर टक्कर चोल राजवंश से हुई। उनके झगड़े का कारण गी प्रदेश था ।

प्रश्न 39.
चोल वंश के सबसे प्रसिद्ध दो शासकों के नाम तथा उनका राज्यकाल बताएं ।
उत्तर-
चोलवंश के दो प्रसिद्ध शासक राजराजा और राजेन्द्र थे। राजराजा ने 985 ई० से 1014 ई० तक तथा राजेन्द्र ने 1014 ई० से 1044 ई० तक राज्य किया ।

प्रश्न 40.
किस चोल शासक का समय चीन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के साथ व्यापार की वृद्धि के लिए प्रसिद्ध है? उस शासक का राज्यकाल भी बताएं ।
उत्तर-
कुलोतुंग का राज्यकाल चीन तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के साथ व्यापार की वृद्धि के लिए प्रसिद्ध है। उसने 1070 ई० से 1118 ई० तक राज्य किया ।

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प्रश्न 41.
चोल राज्य के पतन के बाद दक्षिण में किन चार स्वतन्त्र राज्यों का उदय हुआ ?
उत्तर-
चोल राज्य के पतन का पश्चात् दक्षिण में देवगिरी के यादव, वारंगल के काकतीय, द्वारसमुद्र के होयसाल और मुदराई के पाण्डेय नामक स्वतन्त्र राज्यों का उदय हुआ ।

प्रश्न 42.
अधीन राजाओं के लिए सामन्त शब्द का प्रयोग किस काल में आरम्भ हुआ और किस काल में यह प्रवृत्ति अपने शिखर पर पहुँची?
उत्तर-
‘सामान्त’ शब्द का प्रयोग कनिष्क के काल में अधीन राजाओं के लिए किया जाता था। यह प्रवृत्ति राजपूतों के काल में अपनी चरम-सीमा पर पहुंची।

प्रश्न 43.
राजपूत काल में पारस्परिक झगड़े किस आदर्श से प्रेरित थे और यह कब से चला आ रहा था ?
उत्तर-
राजपूत काल में पारस्परिक झगड़े चक्रवर्तिन के आदर्श से प्रेरित थे। यह झगड़ा सातवीं शताब्दी के आरम्भ से चला आ रहा था।

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प्रश्न 44.
धार्मिक अनुदान लेने वालों को क्या अधिकार प्राप्त था ?
उत्तर-
धार्मिक अनुदान लेने वालों को केवल लगान इकट्ठा करने का ही नहीं बल्कि कई अन्य कर तथा जुर्माने वसूल करने का भी अधिकार प्राप्त था ।

प्रश्न 45.
राजपूत काल में गांव में बिरादरी का स्थान किस संस्था ने लिया तथा इसका क्या कार्य था ?
उत्तर-
राजपूत काल में गाँव में बिरादरी का स्थान गाँव के प्रतिनिधियों की एक छोटी संस्था ने ले लिया ।

प्रश्न 46.
प्रादेशिक अभिव्यक्ति के उदाहरण में दो ऐतिहासिक रचनाओं तथा उनके लेखकों के नाम बताएँ ।
उत्तर-
प्रादेशिक अभिव्यक्ति के उदाहरण में दो ऐतिहासिक रचनाओं तथा उनके लेखकों के नाम हैं-बिल्हण की रचना विक्रमंकदेवचरित् तथा चन्दरबरदाई की रचना पृथ्वीराजरासो ।

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प्रश्न 47.
राजपूत काल में उत्तर भारत में कौन से चार प्रदेशों में प्रादेशिक भाषाओं में साहित्य रचना आरम्भ हो गई थी ?
उत्तर-
राजपूत काल में उत्तर भारत में गुजरात, बंगाल, राजस्थान तथा उत्तर प्रदेश में प्रादेशिक भाषाओं में साहित्य रचना आरम्भ हो गई थी।

प्रश्न 48.
राजपूत काल में नई भाषाओं के लिए कौन-से शब्द का प्रयोग किया जाता था और इसका क्या अर्थ था ?
उत्तर-
राजपूत काल में नई भाषाओं के लिए ‘अपभ्रंश’ शब्द का प्रयोग किया जाता था । इस का अर्थ ‘भ्रष्ट होना’ हैं ।

प्रश्न 49.
राजस्थान में किन चार देवताओं के समर्पित मन्दिर मिलते हैं ?
उत्तर-
राजस्थान में ब्रह्मा, सूर्य, हरिहर और त्रिपुरुष देवताओं के समर्पित मन्दिर मिलते हैं।

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प्रश्न 50.
मातृदेवी की पूजा से सम्बन्धित चार देवियों के नाम बताएं ।
उत्तर-
भवानी, चण्डिका, अम्बिका और कौशिकी।

प्रश्न 51.
शैवमत से सम्बन्धित चार सम्प्रदायों के नाम बताएं ।
उत्तर-
कापालिका, कालमुख, पशुपति तथा लिंगायत नामक शैवमत से सम्बन्धित चार सम्प्रदाय थे।

प्रश्न 52.
रामानुज किस प्रदेश के रहने वाले थे और इनका जन्म किस स्थान पर हुआ ?
उत्तर-
रामानुज तनिलनाडु के रहने वाले थे। इनका जन्म तिरुपति में हुआ था ।

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प्रश्न 53.
राजपूत काल में प्रचलित विश्वास के अनुसार मुक्ति प्राप्त करने के कौन-से तीन मुख्य साधन थे ?
उत्तर-
राजपूत काल में प्रचलित विश्वास के अनुसार मुक्ति प्राप्त करने के तीन साधन ज्ञान, कर्म और भक्ति थे।

प्रश्न 54.
शंकराचार्य के विपरीत रामानुज ने सबसे अधिक महत्त्व किसको दिया और इनका इष्ट कौन था ?
उत्तर-
शंकराचार्य के विपरीत रामानुज ने सब से अधिक महत्त्व भक्ति को दिया। उन का इष्ट विष्णु था ।

प्रश्न 55.
किन चार प्रकार के लोग तंजौर के मन्दिर से सम्बन्धित थे ?
उत्तर-
तंजौर के मन्दिर से ब्राह्मण पुजारी, देव दासियाँ, संगीतकार तथा सेवक सम्बन्धित थे।

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प्रश्न 56.
राजस्थान में सबसे सुन्दर जैन मन्दिर किस स्थान पर मिलते हैं तथा इनमें से किसी एक मन्दिर का नाम बताएँ।
उत्तर-
राजस्थान में सब से सुन्दर जैन मन्दिर माऊंट आबू में मिलते हैं । इन में से एक मन्दिर का नाम सूर्य मन्दिर है।

प्रश्न 57.
कोणार्क का मन्दिर वर्तमान भारत के किस राज्य में है तथा यह किस देवता को समर्पित है ?
उत्तर-
कोणार्क का मन्दिर उड़ीसा राज्य में है । यह सूर्य देवता को समर्पित है।

प्रश्न 58.
खजुराहो के अधिकांश मन्दिर किस देवता को समर्पित हैं तथा इनमें से प्रसिद्ध एक मन्दिर का नाम बताएं।
उत्तर-
खजुराहो के अधिकांश मन्दिर शिव को समर्पित हैं। इन में नटराज मन्दिर सब से प्रसिद्ध है।

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प्रश्न 59.
भुवनेश्वर वर्तमान भारत के किस राज्य में है तथा इसके सबसे प्रसिद्ध मन्दिर का नाम बताएं ।
उत्तर-
भुवनेश्वर वर्तमान भारत के उड़ीसा राज्य में है। इसका सबसे अधिक प्रसिद्ध मन्दिर नटराज मन्दिर है ।

प्रश्न 60.
शिव के नटराज रूप की मूर्तियां किस राजवंश के समय में बनाई जाती थीं और ये किस धातु में हैं ?
उत्तर-
शिव के नटराज रूप की मूर्तियां चोल राजवंश के समय में बनाई जाती थीं। ये कांसे से बनी हुई हैं।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिन्ध और मुल्तान में अरब शासन के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
अरबों ने 711-12 ई० में सिन्ध पर आक्रमण किया। मुहमद-बिन-कासिम 712 ई० में देवल पहुँचा। सिन्ध के शासक दाहिर के भतीजे ने उसका सामना किया, परन्तु वह पराजित हुआ। इसके पश्चात् कासिम ने निसन और सहवान पर विजय प्राप्त की। अब वह सिन्ध के सबसे बड़े दुर्ग ब्रह्मणाबाद की विजय के लिए चल पड़ा। रावर के स्थान पर राजा दाहिर ने उससे ज़ोरदार टक्कर ली, परन्तु कासिम विजयी रहा। कुछ ही समय पश्चात् कासिम ब्रह्मणाबाद जा पहुंचा। यहां दाहिर के पुत्र जयसिंह ने उसका सामना किया। एक भयंकर युद्ध के पश्चात् कासिम को विजय प्राप्त हुई। उसने राजा दाहिर की दो सुन्दर कन्याओं को पकड़ लिया और उन्हें भेंट के रूप में खलीफा के पास भेज दिया। इस विजय के पश्चात् कासिम ने एलौर पर भी अपना अधिकार कर लिया। इस प्रकार 712 ई० तक लगभग सारा सिन्ध अरबों के अधिकार में आ गया।

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प्रश्न 2.
भारत के उत्तर-पश्चिमी में 8वीं से 12वीं शताब्दी तक कौन-कौन से महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए ?
उत्तर-
8वीं से 12वीं शताब्दी तक उत्तर-पश्चिमी भारत में हुए कुछ मुख्य परिवर्तन ये थे :
(1) उत्तर-पश्चिमी भारत में अनेक छोटे-बड़े राजपूत राज्य स्थापित हो गए। इनमें केन्द्रीय सत्ता का अभाव था।

(2) 8वीं शताब्दी के आरम्भ में ही अरबों ने सिन्ध और मुल्तान पर आक्रमण किया। उन्होंने वहां के राजा दाहिर को पराजित करके इन प्रदेशों में अरब शासन की स्थापना की।

(3) 9वीं शताब्दी के आरम्भ में कल्लार नामक एक ब्राह्मण ने गान्धार में साही वंश की नींव रखी। यह राज्य धीरे-धीरे पंजाब के बहुत बड़े भाग पर फैल गया। इस राज्य के अन्तिम शासकों को पहले सुबुक्तगीन और फिर महमूद गज़नवी के आक्रमणों का सामना करना पड़ा। फलस्वरूप पंजाब गज़नी साम्राज्य का अंग बन गया।

(4) बारहवीं शताब्दी में मुहम्मद गौरी ने राजपूतों को पराजित करके भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना की।

प्रश्न 3.
आठवीं और नौवीं शताब्दियों में उत्तरी भारत में अपना प्रभुत्व स्थापित करने लिए जिन तीन राज्यों के बीच संघर्ष हुआ, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर-
आठवीं और नौवीं शताब्दी में उत्तरी भारत में होने वाला संघर्ष त्रिदलीय संघर्ष के नाम से प्रसिद्ध है। यह संघर्ष राष्ट्रकूटों, प्रतिहारों तथा पालों के बीच कन्नौज को प्राप्त करने के लिए ही हुआ। कन्नौज उत्तरी भारत का प्रसिद्ध नगर था। इस नगर पर अधिकार करने वाला शासक गंगा पर अधिकार कर सकता था, इसलिए इस पर अधिकार करने के लिए कई लड़ाइयां लड़ी गईं। इस संघर्ष में राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल नामक तीन प्रमुख राजवंश भाग ले रहे थे । इन राजवशों ने बारीबारी कन्नौज पर अधिकार किया। राष्ट्रकूट, प्रतिहार तथा पाल तीनों राज्यों के लिए इस संघर्ष के घातक परिणाम निकले। वे काफ़ी समय तक युद्धों में उलझे रहे। धीरे-धीरे उनकी सैनिक शक्ति कम हो गई और राजनीतिक ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया। फलस्वरूप सौ वर्षों के अन्दर इन तीन राज्यों का पतन हो गया।

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प्रश्न 4.
राष्ट्रकूट शासकों की सफलताओं का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
राष्ट्रकूट वंश की मुख्य शाखा को मानरवेट के नाम से जाना जाता है। इस शाखा का पहला शासक इन्द्र प्रथम था। उसने इस वंश की सत्ता को काफ़ी दृढ़ बनाया। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र दंती दुर्ग सिंहासन पर बैठा। दंती दुर्ग की मृत्यु के पश्चात् उसका चाचा कृष्ण प्रथम सिंहासन पर बैठा। उसने 758 ई० में कीर्तिवर्मन को परास्त करके चालुक्य राज्य को अपने साम्राज्य में मिला लिया। कृष्ण प्रथम बड़ा कला प्रेमी था। 773 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। कृष्ण प्रथम के पश्चात् क्रमशः गोविन्द द्वितीय और ध्रुव सिंहासन पर बैठे। ध्रुव ने गंगवती के शासक को परास्त करके गंगवती को अपने साम्राज्य में मिला लिया। उसने उज्जैन पर भी आक्रमण किया। 793 ई० में उसकी मृत्यु हो गई। ध्रुव के बाद गोविन्द तृतीय सिंहासन पर बैठा। उसने उत्तरी भारत में कई शासकों को अपने अधीन कर लिया। गोविन्द तृतीय के पश्चात् उसका पुत्र अमोघवर्ष गद्दी पर बैठा। 973 ई० में राष्ट्रकूट वंश का अन्त हो गया।

प्रश्न 5.
प्रतिहार शासकों की प्रमुख सफलताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रतिहार वंश की नींव नौवीं शताब्दी में नागभट्ट प्रथम ने रखी थी। इस वंश का प्रथम शक्तिशाली शासक मिहिर भोज था। उसने 836 ई० से 885 ई० तक राज्य किया। उसने अनेक विजयें प्राप्त की। पंजाब, आगरा, ग्वालियर, अवध, अयोध्या, कन्नौज, मालवा तथा राजपूताना का अधिकांश भाग उसके राज्य में सम्मिलित था। मिहिर भोज के पश्चात् उसका पुत्र महेन्द्रपाल राजगद्दी पर बैठा। उसने अपने पिता द्वारा स्थापित सदृढ़ साम्राज्य को स्थिर रखा। उसने लगभग 20 वर्षों तक राज्य किया। महेन्द्रपाल के पश्चात् इस वंश के कर्णधार महिपाल, देवपाल, विजयपाल तथा राज्यपाल बने। इन शासकों की अयोग्यता तथा दुर्बलता के कारण प्रतिहार वंश पतनोन्मुख हुआ। राज्यपाल ने महमूद गज़नवी की अधीनता स्वीकार कर ली। इससे क्रोधित होकर बाद में आस-पास के राजाओं ने उस पर आक्रमण कर दिया और उसे मार डाला। इस तरह प्रतिहार वंश का अन्त हो गया।

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प्रश्न 6.
परमार शासकों की उपलब्धियों का विवेचन करो।
अथवा
परमार वंश के राजा भोज की प्रमुख उपलब्धियां बताइये।
उत्तर-
परमारों ने मालवा में 10वीं शताब्दी में अपनी सत्ता स्थापित की। इस वंश का संस्थापक कृष्णराज था। धारा नगरी इस राज्य की राजधानी थी। परमार वंश का प्रथम महान् शासक मुंज था। उसने 974 ई० से 995 ई० तक राज्य किया। वह वास्तुकला का बड़ा प्रेमी था। धनंजय तथा धनिक नामक दो विद्वान् उसके दरबार की महान् विभूतियां थीं। इस वंश का सबसे प्रतापी राजा भोज था। वह संस्कृत का महान पण्डित था। उसने धारा नगरी में एक संस्कृत विश्वविद्यालय की नींव रखी। उसके शासन काल में अनेक सुन्दर मन्दिरों का निर्माण हुआ। भोपाल के समीप भोजपुर’ नामक झील का निर्माण भी उसी ने करवाया था। उसने शिक्षा और साहित्य को भी संरक्षण प्रदान किया। 1018 ई० से 1060 ई० तक मालवा राज्य की बागडोर उसी के हाथ में रही। उसकी मृत्यु के पश्चात् कुछ ही वर्षों में परमार वंश का पतन हो गया।

प्रश्न 7.
राजपूतों के शासन काल में भारतीय समाज में क्या कमियां थीं ?
उत्तर-
राजपूतों के शासन काल में भारतीय समाज में ये कमियां थी-

  • राजपूतों में आपसी ईष्या और द्वेष बहुत अधिक था। इसी कारण वे सदा आपस में लड़ते रहे। विदेशी आक्रमणकारियों का सामना करते हुए उन्होंने कभी एकता का प्रदर्शन नहीं किया।
  • राजपूतों को सुरा, सुन्दरी तथा संगीत का बड़ा चाव था। किसी भी युद्ध के पश्चात् राजपूत रास-रंग में डूब जाते थे।
  • राजपूत समय में संकीर्णता का बोल-बाला था। उनमें सती-प्रथा, बाल-विवाह तथा पर्दा प्रथा प्रचलित थी। वे तन्त्रवाद में विश्वास रखते थे जिनके कारण वे अन्ध-विश्वासी हो गये थे।
  • राजपूत समाज एक सामन्ती समाज था। सामन्त लोग अपने-अपने प्रदेश के शासक थे। अतः लोग अपने सामन्त या सरदार के लिए लड़ते थे; देश के लिए नहीं।

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प्रश्न 8.
चौहान वंश के उत्थान-पतन की कहानी का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चौहान वंश की नींव गुवक्त ने रखी। 11वीं शताब्दी में इस वंश के शासक अजयदेव ने अजमेर और फिर 12वीं शताब्दी में बीसलदेव ने दिल्ली को जीत लिया। इस प्रकार दिल्ली तथा अजमेर चौहान वंश के अधीन हो गए। चौहान वंश का राजा बीसलदेव बड़ा ही साहित्य-प्रेमी था। परन्तु इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा पृथ्वीराज चौहान था। उसकी कन्नौज के राजा जयचन्द से भारी शत्रुता थी। इसका कारण यह था कि उसने बलपूर्वक जयचन्द की पुत्री संयोगिता से विवाह कर लिया था। पृथ्वीराज बड़ा ही वीर तथा पराक्रमी शासक था। 1191 ई० में उसने मुहम्मद गौरी को तराइन के प्रथम युद्ध में हराया। 1192 ई० में मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज पर फिर आक्रमण किया। इस बार पृथ्वीराज पराजित हुआ। इस प्रकार चौहान राज्य का अन्त हो गया।

प्रश्न 9.
चन्देल शासकों के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
चन्देलों ने 9वीं शताब्दी में गंगा तथा नर्मदा के बीच के प्रदेश पर अपना शासन स्थापित किया। इसका संस्थापक सम्भवत: नानक चन्देल था। इस वंश का प्रथम प्रतापी राजा यशोवर्मन था। उसने चेदियों को पराजित करके कालिंजर के किले पर विजय प्राप्त की। ऐसा विश्वास किया जाता है कि उसने प्रतिहार वंश के शासक देवपाल को भी परास्त किया। यशोवर्मन के पश्चात् इस राज्य के कर्णदार धंग, गंड तथा कीर्तिवर्मन बने। धंग नामक शासक ने खजुराहो में एक मन्दिर बनवाया। गंड ने कन्नौज के शासक राज्यपाल का वध किया। उसने महमूद गज़नवी के साथ भी युद्ध किया। ‘कीरत सागर’ नामक तालाब बनवाने का श्रेय इसी वंश के राजा कीर्तिवर्मन को प्राप्त है। इस वंश का अन्तिम शासक परमाल था। उसे कुतुबद्दीन ऐबक से युद्ध करना पड़ा। युद्ध में परमाल पराजित हुआ। इस प्रकार बुन्देलखण्ड मुस्लिम साम्राज्य का अंग बन गया।

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प्रश्न 10.
सामन्तवाद के अधीन किस प्रकार की राज्य व्यवस्था थी ?
उत्तर-
सामन्तवादी व्यवस्था का प्रारम्भ राजपूत शासकों ने किया था। उन्होंने कुछ भूमि का प्रबन्ध सीधे, अपने हाथों में रख कर शेष भूमि सामन्तों में बांट दी। ये सामन्त शासकों को अपना स्वामी मानते थे तथा युद्ध के समय उन्हें सैनिक सहायता देते थे। सामन्त अपने-अपने प्रदेशों में लगभग राजाओं के समान ही रहते थे। कछ सामन्त अपने-आप को महासामन्त अथवा महाराजा भी कहते थे। वे अपने कर्मचारियों को सेवाओं के बदले उसी प्रकार कर-मुक्त भूमि देते थे जिस प्रकार शासक अपने सामन्तों को देते थे। नकद वेतन देने की व्यवस्था लगभग समाप्त हो गई थी। इसलिए शायद ही किसी राजपूत राजवंश ने सिक्के (मुद्रा) जारी किए हों। ये तथ्य सामन्तवाद की मुख्य विशेषताएं थीं।

प्रश्न 11.
महमूद गज़नवी के आक्रमणों के क्या कारण थे ?
उत्तर-
महमूद गज़नवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया और बार-बार विजय प्राप्त की। उसके भारत पर आक्रमण के मुख्य कारण ये थे-

  • उन दिनों भारत एक धनी देश था। महमूद भारत का धन लूटना चाहता था।
  • कुछ विद्वानों के अनुसार महमूद भारत में इस्लाम धर्म फैलाना चाहता था।
  • कुछ विद्वानों का यह भी कहना है कि महमूद एक महान् योद्धा था और उसे युद्ध में वीरता दिखाने में आनन्द आता था। उसने अपनी युद्ध-पिपासा को बुझाने के लिए ही भारत पर आक्रमण किया। परन्तु यदि इन उद्देश्यों का आलोचनात्मक अध्ययन किया जाए तो हमें पता चलेगा कि उसने केवल धन लूटने के उद्देश्य से ही भारत पर आक्रमण किये और अपने इस उद्देश्य में वह पूरी तरह सफल रहा।

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प्रश्न 12.
भारत पर महमूद गज़नवी के आक्रमणों के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
1. महमूद के आक्रमणों से संसार को पता चल गया कि भारतीय राजाओं में आपसी फूट है। अतः भारत को विजय करना कठिन नहीं है। इसी बात से प्रेरित होकर बाद में मुहम्मद गौरी ने भारत पर आक्रमण किए और यहां मुस्लिम राज्य की स्थापना की।

2. महमूद के आक्रमणों के कारण पंजाब गज़नी साम्राज्य का अंग बन गया। उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारियों ने पंजाब को 150 वर्षों तक अपने अधीन रखा।

3. महमूद के आक्रमणों के कारण भारत को जनधन की भारी हानि उठानी पड़ी। वह भारत का काफ़ी सारा धन लूटकर गज़नी ले गया। इसके अतिरिक्त उसके आक्रमणों में अनेक लोगों की जानें गईं।

4. महमूद के आक्रमण के समय उसके साथ अनेक सूफी सन्त भारत आए। उनके उच्च चरित्र से अनेक भारतीय प्रभावित हुए। इससे इस्लाम के प्रसार को काफ़ी प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 13.
हिन्दूशाही शासकों के साथ महमूद गज़नवी के संघर्ष में उसकी विजय के क्या कारण थे ?
उत्तर-
हिन्दूशाही शासकों के विरुद्ध संघर्ष में महमूद गज़नवी की विजय के मुख्य कारण ये थे-

  • मुसलमान सैनिकों में धार्मिक जोश था। परन्तु राजपूतों में ऐसे उत्साह का अभाव था।
  • हिन्दूशाही शासकों को अकेले ही महमूद का सामना करना पड़ा। आपसी फूट के कारण अन्य राजपूत शासकों ने उनका साथ न दिया।
  • महमूद गज़नवी में हिन्दूशाही राजपूतों की अपेक्षा कहीं अधिक सैनिक गुण थे।
  • हिन्दूशाही शासक युद्ध में हाथियों पर अधिक निर्भर रहते थे। भयभीत हो जाने पर हाथी कभी-कभी अपने ही सैनिकों को कुचल डालते थे।
  • राजपूत बड़े आदर्शवादी थे। वे घायल अथवा पीछे मुड़ते हुए शत्रु पर वार नहीं करते थे। इसके विपरीत महमूद का उद्देश्य केवल विजय प्राप्त करना था, भले ही अनुचित ढंग से ही क्यों न हो।

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प्रश्न 14.
राजराजा की मुख्य उपलब्धियां क्या थी ?
उत्तर-
राजराजा ने 985 ई० से 1014 ई० तक शासन किया। अपने शासन काल में उसने अनेक सफलताएं प्राप्त की। उसने केरल नरेश तथा पाण्डेय नरेश को पराजित किया। उसने लंका के उत्तरी भाग पर विजय प्राप्त की और यह प्रदेश अपने राज्य में मिला लिया। उसने लंका के प्रसिद्ध नगर अनुराधापुर को भी लूटा। उसने पश्चिमी चालुक्यों और गी के पूर्वी चालुक्यों का सफलतापूर्वक विरोध किया। राजराजा ने मालदीव पर भी विजय प्राप्त की। राजराजा एक कला प्रेमी सम्राट् था। उसे मन्दिर बनवाने का बड़ा चाव था। तंजौर का प्रसिद्ध राजेश्वर मन्दिर उसने ही बनवाया था। यह मन्दिर भवन-निर्माण कला का उत्तम नमूना है।

प्रश्न 15.
राजेन्द्र चोल की सफलताओं की संक्षिप्त व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
राजेन्द्र चोल एक शक्तिशाली राजा था। उसने 1014 ई० से 1044 ई० तक राज्य किया। वह अपने पिता के साथ अनेक युद्धों में गया था, इसलिए वह युद्ध कला में विशेष रूप से निपुण था। वह भी एक साम्राज्यवादी शासक था। उसने मैसूर के गंग लोगों को और पाण्डयों को परास्त किया। उसने अपनी विजय पताका गोंडवाना राज्य की दीवारों पर फहरा दी! उसने बंगाल, बिहार और उड़ीसा के शासकों के विरुद्ध भी संघर्ष किए और सफलता प्राप्त की। उसकी अति महत्त्वपूर्ण विजयें अण्डमान निकोबार तथा मलाया की विजयें थीं। महान् विजेता होने के साथ-साथ वह कुशल शासन प्रबन्धक भी था। उसने कला और साहित्य को भी प्रोत्साहन दिया। उसने गंगइकोंड चोलपुरम् में अपनी नई राजधानी की स्थापना की। इस नगर को उसने अनेक भवनों तथा मन्दिरों से सुसज्जित करवाया। शिक्षा के प्रचार के लिए उसने एक वैदिक कॉलेज की स्थापना की। उसकी इन महान् सफलताओं के कारण उसके शासन को चोल वंश का स्वर्ण युग माना जाता है।

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प्रश्न 16.
राजपूत काल में शैव मत किन रूपों में लोकप्रिय था ?
उत्तर-
राजपूत काल में हिन्दू धर्म में मुख्य रूप से दो विचारधाराएं ही अधिक प्रचलित हुईं-वैष्णव मत तथा शैवमत। शैवमत के कई रूप थे तथा यह दक्षिणी भारत में अधिक प्रचलित था। कुछ शैव सम्प्रदाय सामाजिक दृष्टि से परस्पर विरोधी भी थे, जैसे कि कपालिक, कालमुख तथा पशुपति। 12वीं शताब्दी में वासवराज ने शैवमत की एक नवीन लहर चलाई। इसके अनुयायी लिंगायत या वीर शैव कहलाए। ये लोग शिव की लिंग रूप में पूजा करते थे तथा पूर्ण विश्वास के साथ प्रभु-भक्ति में आस्था रखते थे। इन लोगों ने बाल-विवाह का विरोध करके और विधवा-विवाह का समर्थन करके ब्राह्मण रूढ़िवाद पर गम्भीर चोट की। दक्षिणी भारत में शिव के लिंग रूप के साथ-साथ नटराज के रूप में भी पूजा काफ़ी प्रचलित थी। वहां के लोगों ने शिव के नटराज रूप को धातु की सुन्दर मूर्तियों में ढाला।

प्रश्न 17.
राजपूत काल में मन्दिरों का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
राजपूत काल में मन्दिरों का महत्त्व बढ़ गया था। दक्षिणी भारत में इनका महत्त्व उत्तरी भारत की अपेक्षा अधिक था। वह उस समय के सामाजिक तथा सांस्कृतिक जीवन के मुख्य केन्द्र थे। राजाओं से लेकर व्यापारियों तक सभी ने मन्दिरों के निर्माण में रुचि ली। राजाओं ने अनेक विशाल मन्दिर बनवाए। ऐसे मन्दिरों की देख-रेख का कार्य भी बड़े स्तर पर होता था। उदाहरणार्थ तंजौर के मन्दिर में 400 देवदासियां, 57 संगीतकार, 212 सेवादार तथा सैंकड़ों ब्राह्मण पुजारी थे। राजा तथा अधीनस्थ लोग मन्दिरों को दिल खोल कर दान देते थे, जिनकी समस्त आय मन्दिरों में जाती थी। इस प्रकार लगभग सभी मन्दिर बहुत धनी थे। तंजौर के मन्दिर में सैंकड़ों मन सोना, चांदी तथा बहुमूल्य पत्थर जड़े हुए थे।

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प्रश्न 18.
क्या राजपूत काल को अन्धकाल कहना उचित होगा ?
उत्तर-
कुछ इतिहासकार राजपूत काल को ‘अन्धकाल’ कहते हैं। वास्तव में इस काल में कुछ ऐसे तथ्य विद्यमान थे जो ‘अन्धकाल’ के सूचक हैं। उदारहण के लिए यह राजनीतिक विघटन का युग था। देश में राजनीतिक एकता बिल्कुल समाप्त हो गई थी। देश छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हआ था। यहां के सरदार स्वतन्त्र शासक थे। इसके अतिरिक्त राजपूत काल में विज्ञान तथा व्यापार को भी क्षति पहुंची। इन सभी बातों के आधार पर ही इतिहासकार राजपूत काल को ‘अन्धकाल’ कहते हैं। परन्तु राजपूत काल की उपलब्धियों की अवहेलना भी नहीं की जा सकती। इस काल में देश में अनेक सुन्दर मन्दिर बने, जिन्हें आकर्षक मूर्तियों से सजाया गया। इसके अतिरिक्त देश के भिन्न-भिन्न राज्यों में भारतीय संस्कृति पुनः फैलने लगी। सबसे बड़ी बात यह थी कि राजपूत बड़े वीर तथा साहसी थे। इस प्रकार राजपूत युग की उपलब्धियां इस काल में कमजोर पक्ष से अधिक महान् थों। इसलिए इस युग को ‘अन्धकाल’ कहना उचित नहीं है।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजपूत कौन थे ? उनकी उत्पत्ति के विषय में अपने विचार लिखिए।
उत्तर-
राजपूत लोग कौन थे ? इस विषय में इतिहासकारों में बड़ा मतभेद है। वे उनकी उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धान्त प्रस्तुत करते हैं। इनमें से कुछ मुख्य सिद्धान्त ये हैं-

1. विदेशियों से उत्पत्ति का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त को कर्नल टॉड ने प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार राजपूत हूण, शक तथा कुषाण आदि विदेशी जातियों के वंशज हैं। इन विदेशी जातियों के लोगों ने भारतीयों के साथ विवाह-सम्बन्ध जोड़े और स्वयं भारत में बस गए। इन्हीं लोगों की सन्तान राजपूत कहलाई। कर्नल टॉड का कहना है कि प्राचीन इतिहास में ‘राजपूत’ नाम के शब्द का प्रयोग कही नहीं मिलता। अत: वे अवश्य ही विदेशियों के वंशज हैं।

2. क्षत्रियों से उत्पत्ति का सिद्धान्त-यह सिद्धान्त वेद व्यास ने प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि राजपूत क्षत्रियों के वंशज हैं और ‘राजपूत’ शब्द ‘राजपुत्र’ (क्षत्रिय) का बिगड़ा हुआ रूप है। इसके अतिरिक्त राजपूतों के रीति-रिवाज वैदिक क्षत्रियों से मेल खाते हैं।

3. मूल निवासियों से उत्पत्ति का सिद्धान्त-कुछ इतिहासकारों का मत है कि राजपूत विदेशी न होकर भारत के मूल निवासियों के वंशज हैं। इस सिद्धान्त के पक्ष में कहा जाता है कि चन्देल राजपूतों का सम्बन्ध भारत की गौंड जाति से है। परन्तु अधिकतर इतिहासकार इस सिद्धान्त को सत्य नहीं मानते।

4. अग्निकुण्ड का सिद्धान्त-इस सिद्धान्त का वर्णन चन्दबरदाई ने अपनी पुस्तक ‘पृथ्वी-राजरासो’ में किया है। इस सिद्धान्त के अनुसार राजपूत यज्ञ की अग्नि से जन्मे थे। कहा जाता है कि परशुराम ने सभी क्षत्रियों का नाश कर दिया था जिसके कारण क्षत्रियों की रक्षा करने वाला कोई वीर धरती पर न रहा था। अत: उन्होंने मिल कर आबू पर्वत पर यज्ञ किया। यज्ञ की अग्नि से चार वीर पुरुष निकले, जिन्होंने चार महान् राजपूत वंशों-परिहार, परमार, चौहान तथा चालुक्य की नींव रखी। परन्तु अधिकतर इतिहासकार इस सिद्धान्त को कल्पना मात्र मानते हैं।

5. मिश्रित उत्पत्ति का सिद्धान्त-यह सिद्धान्त डॉ० वी० ए० स्मिथ (Dr. V.A. Smith) ने प्रस्तुत किया है। उनका कहना है कि राजपूत न तो पूर्णतया विदेशियों की सन्तान हैं और न ही भारतीयों की। राजपूत वास्तव में एक मिली-जुली जाति है। उनके अनुसार कुछ राजपूतों की उत्पत्ति शक, हूण, कुषाण आदि विदेशी जातियों से हुई थी और कुछ राजपूत भारत के मूल निवासियों तथा प्राचीन क्षत्रियों से उत्पन्न हुए थे।

6. उनका विचार है कि आबू पर्वत पर किया गया यज्ञ राजपूतों की शुद्धि के लिए किया गया था न कि वहां से राजपूतों की उत्पत्ति हुई थी। इन सभी सिद्धान्तों में हमें डॉ० स्मिथ का ‘मिश्रित उत्पत्ति’ का सिद्धान्त काफ़ी सीमा तक ठीक जान पड़ता है। उनके इस सिद्धान्त को अन्य अनेक विद्वानों ने भी स्वीकार कर लिया है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 7 राजपूत और उनका काल

प्रश्न 2.
राजपूतों (उत्तर भारत) के सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन का विवरण दीजिए।
अथवा
राजपूतों के अधीन उत्तर भारत के राजनीतिक जीवन की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर-
647 ई० से लेकर 1192 ई० तक उत्तरी भारत में अनेक छोटे-छोटे राज्य थे। इन राज्यों के शासक ‘राजपूत’ थे। इसलिए भारतीय इतिहास में यह युग ‘राजपूत काल’ के नाम से जाना जाता है। इस समय में उत्तरी भारत में राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक तथा सांस्कृतिक जीवन का वर्णन इस प्रकार है

1. राजनीतिक जीवन-राजपूतों में राजनीतिक एकता का अभाव था। सभी राजपूत राजा अलग-अलग राज्यों पर शासन करते थे। वे अपने-अपने प्रदेश के शासक थे। उन्होंने किसी प्रकार की केन्द्रीय व्यवस्था नहीं की हुई थी। राजपूत राज्य का मुखिया राजा होता था। राज्य की सभी शक्तियाँ उसी के हाथ में थीं। वह मुख्य सेनापति था। न्याय का मुख्य स्रोत भी वह स्वयं था। कुछ राजपूत राज्यों में युवराज और पटरानियाँ भी शासन कार्यों में राजा की सहायता करती थीं। राजा की सहायता के लिए मन्त्री होते थे। इनकी नियुक्ति राजा द्वारा होती थी। इन मन्त्रियों का मुखिया महामन्त्री अथवा महामात्यं कहलाता था। सेनापति को दण्डनायक कहते थे। राजपूतों की राजनीतिक प्रणाली की आधारशिला सामन्त प्रथा थी। राजा बड़ी-बड़ी जागीरें सामन्तों में बाँट देता था। इसके बदले में सामन्त राजा को सैनिक सेवाएँ प्रदान करता था। राज्य की आय के मुख्य साधन भूमिकर, चुंगी-कर, युद्ध-कर, उपहार तथा जुर्माने आदि थे। राजा स्वयं न्याय का सर्वोच्च अधिकारी था। वह स्मृति के नियमों के अनुसार न्याय करता था। दण्ड कठोर थे। राजपूतों का सैनिक संगठन अच्छा था। उनकी सेना में पैदल, घुड़सवार तथा हाथी होते थे। युद्ध में भालों, तलवारों आदि का प्रयोग होता था। किलों की विशेष व्यवस्था की जाती थी।

2. सामाजिक जीवन-राजपूतों में जाति बन्धन बड़े कठोर थे। उनके यहाँ ऊंचे गोत्र वाले नीचे गोत्र में विवाह नहीं करते थे। राजपूत समाज में स्त्री का मान था। स्त्रियां युद्ध में भाग लेती थीं। उनमें पर्दे की प्रथा नहीं थी। वे शिक्षित थीं। उच्च कुल की कन्याएँ स्वयंवर द्वारा अपना वर चुनती थीं। राजपूत बड़े वीर तथा साहसी थे। वे कायरों से घृणा करते थे। परन्तु उनमें कुछ अवगुण थी थे। वे भाँग, शराब तथा अफीम का सेवन करते थे। वे नाच-गाने का भी बड़ा चाव रखते थे।

3. धार्मिक जीवन-राजपूत हिन्दू देवी-देवताओं में विश्वास रखते थे। वे राम तथा कृष्ण को अवतार मानकर उनकी पूजा करते थे। उनमें शिव की पूजा सबसे अधिक प्रचलित थी। राजपूतों में मूर्ति पूजा भी प्रचलित थी। उन्होंने अपने देवताओं के मन्दिर बनवाए हुए थे। इनमें अनेक देवी-देवताओं की मूतियाँ स्थापित की जाती थीं। वेद, रामायण तथा महाभारत उनके प्रिय ग्रन्थ थे। वे प्रतिदिन इनका पाठ करते थे। राजपूत बड़े अन्धविश्वासी थे। वे जादू-टोनों में बड़ा विश्वास रखते थे।

4. सांस्कृतिक जीवन-राजपूतों ने विशाल दुर्ग तथा सुन्दर महल बनवाये। चित्तौड़ का किला राजपूत भवन-निर्माण कला का एक सुन्दर उदाहरण है। जयपुर और उदयपुर के राजमहल भी कला की दृष्टि से उत्तम माने जाते हैं। उनके द्वारा बनवाये गए भुवनेश्वर तथा खजुराहो के मन्दिर उनकी भवन-निर्माण कला के उत्कृष्ट नमूने हैं।

राजपूत युग में साहित्य ने भी बड़ी उन्नति की। मुंज, भोज तथा पृथ्वीराज आदि राजपूत राजा बहुत विद्वान् थे। उन्होंने साहित्य के विकास की ओर विशेष ध्यान दिया। कल्हण की ‘राजतरंगिणी’ तथा जयदेव की ‘गीत गोविन्द’ इस काल की महत्त्वपूर्ण साहित्यिक रचनाएँ हैं।

प्रश्न 3.
महमूद गज़नवी के प्रमुख आक्रमणों का वर्णन करो।
उत्तर-
महमूद गज़नवी गज़नी के शासक सुबुक्तगीन का पुत्र था। 997 ई० में उसके पिता की मृत्यु हो गई और वह गज़नी का शासक बना। वह एक वीर योद्धा तथा कुशल सेनानायक था। उसने 1000 ई० से लेकर 1027 ई० तक भारत पर 17 आक्रमण किए और प्रत्येक आक्रमण में विजय प्राप्त की।
महमूद गज़नवी के प्रमुख आक्रमण-महमूद गज़नवी के कुछ प्रमुख आक्रमणों का वर्णन इस प्रकार हैं-

1. जयपाल से युद्ध-महमूद गज़नवी ने 1001 ई० में पंजाब के शासक जयपाल से युद्ध किया। यह युद्ध पेशावर के निकट हुआ। इसमें जयपाल की हार हुई और और उसने महमूद को 25 हज़ार सोने की मोहरें देकर अपनी जान बचाई। परन्तु जयपाल की प्रजा ने इसे अपना अपमान समझा और उसे अपना राजा मानने से इन्कार कर दिया। अत: जयपाल जीवित जल मरा।।

2. आनन्दपाल से युद्ध-आनन्दपाल जयपाल का पुत्र था। महमूद गजनवी ने 1008 ई० में उसके साथ युद्ध किया। यह युद्ध भी पेशावर के निकट हुआ। इस युद्ध में अनेक राजपूतों ने आनन्दपाल की सहायता की। उसकी सेना ने बड़ी वीरता से महमूद का सामना किया। परन्तु अचानक बारूद फट जाने से आनन्दपाल का हाथी युद्ध क्षेत्र से भाग निकला और उसकी जीत हार में बदल गई। इस प्रकार पंजाब पर महमूद गज़नवी का अधिकार हो गया।

3. नगरकोट पर आक्रमण-1009 ई० में महमूद गजनवी ने नगरकोट (कांगड़ा) पर आक्रमण किया। यहां के विशाल मन्दिरों में अपार धन-सम्पदा थी। महमूद ने यहां के धन को खूब लूटा। फरिश्ता के अनुसार, यहां से 7 लाख स्वर्ण दीनार, 700 मन सोने-चांदी के बर्तन तथा 20 मन हीरे-जवाहरात महमूद के हाथ लगे। इसके कुछ समय पश्चात् महमूद ने थानेश्वर और मथुरा के मन्दिरों का भी बहुत सारा धन लूट लिया और मन्दिरों को तोड़फोड़ डाला।

4. कालिंजर के चन्देलों से युद्ध-राजपूत शासक राज्यपाल ने 1019 ई० में महमूद गज़नवी की अधीनता स्वीकार कर ली थी। यह बात अन्य राजपूत शासकों को अच्छी न लगी। अतः कालिंजर के चन्देल शासक ने राज्यपाल पर आक्रमण कर दिया और उसे मार डाला। महमूद गज़नवी ने राज्यपाल की हार को अपनी हार समझा और इसका बदला लेने के लिए 1021 ई० में उसने कालिंजर पर आक्रमण कर दिया। चन्देल शासक डर के मारे भाग निकला। इस विजय से भी महमूद के हाथ काफी सारा धन लगा।

5. सोमनाथ पर आक्रमण-सोमनाथ का मन्दिर भारत का एक विशाल मन्दिर था। इस मन्दिर में अपार धन भरा पड़ा था। इस मन्दिर की छत जिन स्तम्भों के सहारे खड़ी थी, उनमें 56 रत्न जड़े हुए थे। इस मन्दिर की सबसे बड़ी विशेषता सोमनाथ की मूर्ति थी। यहाँ का धन लूटने के लिए महमूद गजनवी ने 1025 में सोमनाथ पर आक्रमण कर दिया। कुछ ही समय में वह इस मन्दिर की सारी सम्पत्ति लूट कर चलता बना।
सोमनाथ के आक्रमण के पांच वर्ष पश्चात् 1030 ई० में महमूद की मृत्यु हो गई।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 7 राजपूत और उनका काल

प्रश्न 4.
महमूद गज़नवी के आक्रमणों के उद्देश्यों और प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
महमूद गज़नवी एक महान् योद्धा था। उसने 17 बार भारत पर आक्रमण किया। उसने अनेक राज्यों में भयंकर लूटमार की। मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। संक्षेप में उसके आक्रमणों के उद्देश्यों और प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है
उद्देश्य-

1. धन सम्पत्ति को लूटना-महमूद के आक्रमणों का मुख्य उद्देश्य भारत का धन लूटना था। भारत के मन्दिरों में अपार धन राशि थी। महमूद की आँखें इस धन पर लगी हुई थीं। यही कारण था कि उसने केवल उन्हीं स्थानों पर आक्रमण किया जहां से उसे अधिक-से-अधिक धन प्राप्त हो सकता था।

2. इस्लाम धर्म का प्रचार-कुछ इतिहासकारों का कहना है कि महमूद भारत में इस्लाम धर्म का प्रसार करना चाहता था। भारत के हिन्दू मन्दिरों और उनकी मूर्तियों को तोड़ना महमूद की धार्मिक कट्टरता का प्रमाण है। उसने इस्लाम धर्म स्वीकार न करने वाले अनेक लोगों की हत्या कर दी।

3. युद्ध लिप्सा-महमूद एक महान् सैनिक योद्धा था। उसे युद्ध करके अपना शौर्य दिखाने में आनन्द आता था। अतः कुछ विद्वानों का कहना है कि उसने अपनी युद्ध लिप्सा के कारण ही भारत पर आक्रमण किये।

प्रभाव-
1. भारत की राजनीतिक दुर्बलता का भेद खुलना-भारतीय राजाओं को महमूद ने बुरी तरह परास्त किया। इससे भारत की राजनीतिक दुर्बलता का पर्दा उठ गया। महमूद के बाद आक्रमणकारियों ने भारतीय राजाओं की फूट का भरपूर लाभ उठाया। उन्होंने भारत पर अनेक आक्रमण किए। उन्हें इन आक्रमणों में भारी सफलता मिली।

2. मुस्लिम राज्य की स्थापना में सुगमता-महमूद के आक्रमणों के बाद मुस्लिम आक्रमणकारियों का रास्ता साफ हो गया। उन्हें भारतीय राजाओं को हराकर भारत में मुस्लिम राज्य स्थापित करने में किसी विशेष बाधा का सामना नहीं करना पड़ा।

3. जन-धन की अपार हानि-महमूद ने भारत में खूब रक्तपात किया। उसने मन्दिरों को लूटा और बहुत-सा सोना-चांदी तथा हीरे-जवाहरात ऊंटों पर लाद कर अपने साथ ले गया। इस तरह भारत को जन-धन की भारी हानि उठानी पड़ी।

4. इस्लाम धर्म का प्रसार-महमूद ने इस्लाम धर्म स्वीकार न करने वालों की हत्या कर दी। इससे भयभीत होकर भारत के हज़ारों लोगों ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।

5. भारतीय संस्कृति को आघात-महमूद ने अनेक भारतीय मन्दिरों को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। इस तरह भारतीय कला की अनेक सुन्दर इमारतें नष्ट हो गईं। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति को काफी आघात पहुंचा।

6. पंजाब को गज़नवी साम्राज्य में मिलना-महमूद ने भारत पर कई आक्रमण किये परन्तु उसने केवल पंजाब को ही गज़नी राज्य में मिलाया। वह इसी प्रदेश को आधार बनाकर भारत में अन्य प्रदेशों पर आक्रमण करना चाहता था और वहां के धन को लूटना चाहता था। सच तो यह है कि महमूद के आक्रमणों के कारण इस देश में धन-जन की हानि हुई, इस्लाम धर्म फैला तथा हमारी संस्कृति को हानि पहुंची। किसी ने सच ही कहा है, “महमूद एक अमानवीय अत्याचारी था जिसने हमारे धार्मिक स्थानों को ध्वस्त किया।

प्रश्न 5.
राजूपतों की सामन्त व्यवस्था के मुख्य पहलुओं पर प्रकाश डालिए। विशेष रूप से इसके सामाजिक तथा आर्थिक परिणामों की चर्चा कीजिए।
अथवा
राजूपतों की सामंतवादी प्रथा का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
सामन्तवादी व्यवस्था वह व्यवस्था थी जिसका प्रारम्भ राजपूत शासकों ने किया था। उन्होंने कुछ भूमि का प्रबन्ध सीधे अपने हाथों में रख कर शेष भूमि सामन्तों में बांट दी। ये सामन्त शासकों को अपना स्वामी मानते थे तथा युद्ध के समय उसे सैनिक सहायता देते थे। सामन्त अपने-अपने प्रदेशों में लगभग राजाओं के समान ही रहते थे। कुछ सामन्त अपने-आप को महासामन्त अथवा महाराजा भी कहते थे। वे अपने कर्मचारियों को सेवाओं के बदले उसी प्रकार कर-मुक्त भूमि देते थे, जिस प्रकार शासक अपने सामन्तों को देते थे। नकद वेतन देने की व्यवस्था लगभग समाप्त हो गई थी। इसलिए शायद ही किसी राजपूत राजवंश ने सिक्के (मुद्रा) जारी किए हों।

सामाजिक तथा आर्थिक परिणाम-सामन्तवादी व्यवस्था के कुछ महत्त्वपूर्ण सामाजिक तथा आर्थिक परिणाम निकले-
1. राज्य का किसानों से कोई सीधा सम्पर्क नहीं था। उनके मध्य दावेदारों की संख्या काफ़ी बढ़ गई थी।

2. किसानों की दशा पहले की अपेक्षा अधिक खराब हो गई। उन्हें भूमि से किसी भी समय बेदखल किया जा सकता था। उनसे बेगार ली जाती थी।

3. इस व्यवस्था के कारण स्थानीय आत्म-निर्भरता पर आधारित अर्थव्यवस्था आरम्भ हुई। इसका अर्थ यह था कि प्रत्येक राज्य केवल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही वस्तुओं का उत्पादन करता था। परिणामस्वरूप व्यापार को बहुत चोट पहुंची।

4. इस व्यवस्था के कारण भूमि के निजी स्वामित्व की प्रथा आरम्भ हई। इससे सामन्तों तथा राजाओं को काफ़ी लाभ पहुंचा क्योंकि समस्त भूमि के मालिक वे स्वयं थे।

5. भूमि का स्वामित्व मिलने पर राजाओं ने सरकारी कर्मचारियों तथा पूरोहितों को बड़ी-बड़ी जागीरें दान में देनी शुरू कर दीं।

6. भूमि के विभाजन से राज्यों की शक्ति घटने लगी जब कि जागीरदार दिन-प्रतिदिन शक्तिशाली होते गए। ये बात राजा के हितों के विरुद्ध थी।

सामन्तवाद का महत्त्व-सामन्तवाद प्रथा का बड़ा महत्त्व है जिसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-
1. भूमि के स्वामित्व से सामाजिक सद्भाव को ठेस पहुंची। इससे ग्राम सभा की स्थिति महत्त्वपूर्ण हो गई तथा उसका स्थान पंचायत ने ले लिया। इसमें सरकार द्वारा मनोनीत व्यक्ति होते थे तथा वे गांव के विवादों में सरकारी कर्मचारियों की सहायता करते थे।

2. युद्ध को आवश्यक समझा जाने लगा। इसके फलस्वरूप लोगों में सैन्य गुणों का विकास हुआ और वीर सैनिकों का महत्त्व बढ़ने लगा। महिलाएं भी वीरांगनाओं के रूप में उभरने लगीं। जौहर की प्रथा उनकी वीरता का बहुत बड़ा प्रमाण है।

3. सामन्तवादी व्यवस्था के कारण कृषि का विकास हुआ। भूमि अनुदान देने वाले लोगों ने अपने अधीनस्थ किसानों की सहायता से बहुत-सी वीरान भूमि को कृषि योग्य बना लिया।

4. कई नए कबीलों को भी कृषि-कार्य सिखाया गया। इन नए किसानों ने धीरे-धीरे ब्राह्मण संस्कृति को अपना लिया प्रससे हिन्दुओं की संख्या में वृद्धि हुई।

5. सामन्तवादी व्यवस्था की एक अन्य उपलब्धि यह थी कि इससे लोगों में प्रादेशिक रुचि बढ़ी। फलस्वरूप प्रादेशिक
तथा प्रादेशिक भाषाओं का विकास हुआ। बिल्हण ने ‘विक्रमंकदेवचरित्’ की रचना की। इस पुस्तक में चालुक्य राजा “दत्य चतुर्थ का जीवन वृत्तान्त है। चन्दरबरदाई ने ‘पृथ्वीराजरासो’ में पृथ्वीराज चौहान की सफलताओं का वर्णन किया हण ने ‘राजतरंगिणी’ में कश्मीर का इतिहास लिखा।

6. इसी प्रकार कुछ नई भाषाओं का भी उदय हुआ। इन भाषाओं का विकास मुख्यत: गुजरात, बंगाल, महाराष्ट्र तथा संस्कृति में ” श में हुआ। कन्नड़ तथा तमिल भाषाओं का विकास पहले ही हो गया था। इन भाषाओं के आधार पर बाद में प्रादेशिक का विकास हुआ। जो यह है कि सामन्तवाद जहां राजाओं के हितों के विरुद्ध था, वहां समाज तथा संस्कृति के लिए एक अदृश्य वरदान सिद्ध हुआ |

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 7 राजपूत और उनका काल

प्रश्न 6.
राजपूतों के विरुद्ध तुर्की सफलता के कारणों का विवेचन कीजिए। कोई पांच कारण लिखिए।
उत्तर-
राजपूतों की हार का कोई एक कारण नहीं था। उनकी असफलता का कारण उनके अपने अवगुण तथा मुसलमानों के गुण थे। तुर्क (मुस्लिम आक्रमणकारी) धार्मिक जोश से लड़े। उनमें धार्मिक एकता थी। राजपूतों में बहुत मतभेद थे। राजपूतों के लड़ने का ढंग मुसलमानों के मुकाबले में बहुत अच्छा नहीं था। इस तरह की अनेक बातों के कारण राजपूतों को असफलता का मुंह देखना पड़ा और मुस्लिम आक्रमणकारी सफल हुए। इन कारणों का वर्णन इस प्रकार है-

1. राजनीतिक एकता का अभाव-ग्यारहवीं तथा बारहवीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक एकता छिन्न-भिन्न हो गई थी। उस समय देश छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। इन राज्यों के शासक प्रायः आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। मुहम्मद गौरी ने जब पृथ्वीराज पर आक्रमण किया तो जयचन्द ने पृथ्वीराज की कोई सहायता नहीं की। यही दशा शेष राजाओं की थी। ऐसी स्थिति में राजपूतों का पराजित होना निश्चित ही था। सी० बी० वैद्य के शब्दों में, “चौहान, चन्देल, राठौर तथा चालुक्य वंश के राजा राजनीतिक एकता के आदर्श को भूल कर पृथक्-पृथक् लड़े और मुसलमानों के हाथों मार खा गए।”

2. राजपूत शासकों में दूरदर्शिता की कमी-राजपूत शासक वीर और साहसी तो थे, परन्तु उनमें दूरदर्शिता की कमी थी। उन्होंने भारतीय सीमाओं को सुदृढ़ करने का कभी प्रयास न किया और न ही शत्रु को सीमा पर रोकने के लिए कोई उचित पग उठाया। अतः राजपूतों में दूरदर्शिता की कमी उनकी पराजय का एक प्रमुख कारण बनी।

3. स्थायी सेना का अभाव-राजपूत शासकों के पास कोई स्थायी सेना नहीं थी। वे आक्रमण के समय अपने जागीरदारों (सामन्तों) से सैनिक सहायता लिया करते थे। इसमें सबसे बड़ा दोष यह था कि भिन्न-भिन्न जागीरदारों द्वारा भेजे गए सैनिकों का लड़ने का ढंग भी भिन्न होता था। ऐसी दशा में सैनिकों में अनुशासन नहीं रह सकता था। अनुशासनहीन सेना की पराजय . निश्चित थी।

4. युद्ध-प्रणाली में अन्तर-राजपूतों की युद्ध-प्रणाली पुरानी तथा घटिया किस्म की थी। उन्हें अपने हाथियों पर बड़ा विश्वास था, परन्तु मुस्लिम घुड़सवारों के सामने उनके हाथी टिक न सके। घोड़े युद्ध में हाथियों की अपेक्षा काफ़ी तेज़ गति से दौड़ते थे।

5. मुसलमानों का कुशल सैनिक संगठन-राजपूत राजा युद्ध करते समय अपनी सेना को तीन भागों में बांटते थे जबकि मुसलमानों की सेना पांच भागों में बंटी होती थी। इनमें से ‘अंगरक्षक’ तथा ‘पृथक् रक्षित’ सैनिक बहुत महत्त्वपूर्ण थे। ये टुकड़ियां पहले तो युद्ध से अलग रहती थीं, परन्तु जब शत्रु सैनिक थक जाते थे तो ये अचानक ही उन पर टूट पड़ती थीं। इस प्रकार थकी हुई राजपूत सेना के लिए उनका सामना करना कठिन हो जाता था।

6. राजपूतों के घातक आदर्श-राजपूत युद्ध में निहत्थे शत्रु पर वार करना कायरता समझते थे। वे युद्ध में छल-कपट में विश्वास नहीं करते थे। उनके ये घातक आदर्श उनकी पराजय का कारण बने।

7. हिन्दुओं में जाति-पाति का भेदभाव-हिन्दू समाज अनेक जातियों में विभक्त था। सभी जातियों को अपना पैतृक धन्धा ही अपनाना पड़ता था। रक्षा का भार केवल क्षत्रियों के कन्धों पर था। अन्य जातियों के लोग विदेशी आक्रमणों के समय भी अपने-अपने कार्यों में लगे रहते थे। दूसरी ओर मुसलमानों की सेना में सभी जातियों के लोग शामिल होते थे। इन परिस्थितियों में राजपूतों का पराजित होना निश्चित था।

8. मुसलमानों में धार्मिक जोश-मुसलमान सैनिकों में धार्मिक जोश था। वे हिन्दुओं से लड़ना अपना परम कर्तव्य मानते थे। हिन्दुओं के विरुद्ध वे अपने युद्धों को धर्म-युद्ध अथवा ‘जिहाद’ का नाम देते थे। जीतना या मर मिटना उनका एकमात्र उद्देश्य था। ऐसी दशा में हिन्दुओं का पराजित होना निश्चित ही था। .. सच तो यह है कि मुसलमान अनेक बातों में राजपूतों से आगे थे। उनके कुशल सैनिक संगठन तथा उनकी ‘ भावनाओं का सामना करना राजपूतों के लिए बड़ा कठिन था। यहां तक कि राजपूतों को उनकी अपनी जनता का सहर न मिला। एक इतिहासकार के शब्दों में, “जनता ने अपने सरदारों तथा सैनिकों को सहयोग न दिया जिसके परिणाम राजपूत पराजित हुए।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच

Punjab State Board PSEB 10th Class Welcome Life Book Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Welcome Life Chapter 5 रचनात्मक सोच

PSEB 10th Class Welcome Life Guide रचनात्मक सोच Textbook Questions and Answers

नोट-इस अध्याय के पाठ संबंधी प्रश्न नहीं हैं।

पाठ पर आधारित प्रश्न

प्रश्न 1.
स्कूल के पेड़ के हिस्से कौन हैं?
उत्तर-
प्रिंसीपल, शिक्षक, चपरासी, क्लर्क, छात्र, प्रबंधन सभी स्कूल के पेड़ के हिस्से हैं।

प्रश्न 2.
इस परिवार रूपी वृक्ष के फूल कौन होते हैं?
उत्तर-
इस परिवार रूपी वृक्ष के फूल विद्यार्थी होते हैं, जिनसे स्कूल रूपी वृक्ष सुंदर लगता है।

प्रश्न 3.
स्कूल के पेड़ के फूल दुनिया में अपनी खुशबू कैसे फैलाते हैं?
उत्तर-
यह फूल अच्छी शिक्षा प्राप्त करके, व्यक्तिगत प्रगति कर, अच्छे अंक प्राप्त कर इत्यादि से पूरी दुनिया में अपनी खुशबू फैला सकते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच

प्रश्न 4.
क्या आप अपने परिवार के पेड़ को प्यार, सम्मान, समय और सहयोग से खींचते हैं? यदि हाँ तो कैसे सहयोग देते हो?
हाँ PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच 1 नहीं PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच 1 यदि हाँ, तो कैसे ………….

उत्तर-
हाँ, हम अपने परिवार के पेड़ को प्यार, सम्मान, समय और सहयोग के साथ खींचते हैं। हम परिवार के सदस्यों को प्यार देते हैं और लेते हैं। हम बड़ों का सम्मान करते हैं और छोटों को भी सम्मान देते हैं। हमने एक-दूसरे के साथ समय बिताया, उनकी समस्याओं को सुना, ऐसी समस्याओं से छुटकारा पाया। हम हमेशा अपना काम करने के लिए माता-पिता का सहयोग करते हैं। जिसमें सभी कार्य जल्दी पूर्ण हो जाते हैं। एकल परिवार, संयुक्त परिवार को दिए गए और लिए गए सहयोग का विस्तार।
PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच 2
नोट- यह विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 5.
क्या आप ‘स्कूल परिवार’ के साथ सहयोग देते हो?
हाँ PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच 1 नहीं PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच 1 यदि हाँ, तो विस्तार से बताएं ……..
PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच 3
उत्तर-
यह विद्यार्थी स्वयं करें।

प्रश्न 6.
जब ज़रूरत पड़ने पर आपकी कोई मदद करता है तो आप कैसा महसूस करते हो?
उत्तर-
बहुत अच्छा लगता है जब कोई हमारी संकट में मदद करता है क्योंकि उस समय हमारी हालत अच्छी नहीं होती। उस समय तिनके का सहारा बहुत होता है। उस व्यक्ति ने तो हमारी बहुत मदद की होती है क्योंकि उसकी मदद से हम मुसीबत से बाहर निकल आते हैं इसलिए हमें बहुत अच्छा लगता है और हम इस बात को भूलते नहीं।

इनके लिए आप कैसे सहयोग करेंगे इनके लिए आप कैसे काम करेंगे
परिवार कक्षा
बुजुर्गों स्कूल
युवाओं सहपाठियों से
समाज ज़रूरतमंद

उत्तर-विद्यार्थी स्वयं करें।

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आइए ! आनन्द मान

  1. सहयोगी बनें सबके, सहयोगी बनें सबके,
    ज़रूरतमंद की ताकत बनो, यदि बंदे हो रब्ब के।
  2. ताकत किसी की यदि है अपूर्ण, ताकत किसी की यदि है अपूर्ण,
    साथ खड़े हो जाओ आप, फिर हो जाएगी संपूर्ण ।
  3. रीत वैर की पाओ न, रीत वैर की पाओ ना,
    मिल-जुल कर रहो सदा, बुरा किसी का चाहो ना।
  4. अलग से चूल्हा यदि जलाएंगा, अलग से चूल्हा यदि जलाएंगा,
    हाथ में कुछ नहीं आना, अपनी जिंदगी गलाएंगा।
  5. यदि अलग से बीन बजाएंगा, यदि अलग से बीन बजाएंगा,
    वैरी हल्ला बोलेगा, फिर पीछे पछताएंगा।
  6. काम आओ! वारो वारी जी, काम आओ! वारो वारी जी,
    आपसी सहयोग हो तो, कभी बाज़ी नहीं हारी जी।
  7. गाड़ी चले जैसे तारों से, गाड़ी चले जैसे तारों से,
    वैसे ही समाज चले, सहयोगी परिवारों से।
  8. मुट्ठी की ताकत सदैव जीतती, मुट्ठी की ताकत सदैव जीतती,
    कर लीजिए एकता सारे, सारी दुनिया यही बताती।

आओ! देखें हमने क्या पड़ा? इससे क्या सीखा?

प्रश्न 1.
यह काव्य पंक्तियाँ हमें क्या बताती हैं?
उत्तर-
यह काव्य पंक्तियाँ हमें सहयोग के महत्त्व को बताती हैं कि सहयोग के बिना समाज में कुछ भी संभव नहीं है। यदि सभी एक-दूसरे का सहयोग नहीं करेंगे तो परिवार और समाज आसानी से नहीं चल सकते। एक व्यक्ति . अकेले कुछ नहीं कर सकता उसे हर प्रकार के कार्य करने के लिए दूसरों के सहयोग की आवश्यकता होती है।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच

प्रश्न 2.
हम उनके अभाव को दो गुना कैसे करते हैं?
उत्तर-
यदि हम एक अकेले व्यक्ति के साथ खड़े होते हैं, तो उसकी ताकत दोगुनी हो जाती है। इसका अर्थ है कि यदि हम किसी भी तरह से किसी की मदद या सहयोग करते हैं तो किसी व्यक्ति की ताकत दोगुनी हो जाती है।

प्रश्न 3.
यदि हम मिल-जुल कर नहीं रहेंगे तो हमारे क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं?
उत्तर-

  1. यदि हम एक साथ नहीं रहते हैं, तो किसी के हाथ में कुछ भी नहीं आएगा।
  2. हर कोई अपना काम करेगा, दूसरों का सहयोग नहीं करेगा और अंत में समाज प्रगति नहीं करेगा।
  3. हो सकता है कि दुश्मन उस अकेले पर हमला करेगा और उसे बाद में पछताना पड़ेगा।

प्रश्न 4.
समाज को कौन चलाता है?
उत्तर-
समाज सहयोग और सहयोगी परिवारों के साथ चलता है। यदि सहयोगी परिवार नहीं होंगे, तो समाज सुचारु रूप से नहीं चलेगा।

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प्रश्न 5.
किसने शर्त कभी नहीं हारी?
उत्तर-
दूसरों का सहयोग करने वालों की कभी हार नहीं होती।

Welcome Life Guide for Class 10 PSEB रचनात्मक सोच Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुनिया की सुंदरता देखने के लिए
(a) दुनिया पर निर्भर करता है
(b) व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है
(c) समाज पर निर्भर करता है
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है।

प्रश्न 2.
हम दूसरों से क्या उम्मीद करते हैं?
(a) उन्हें हमारा सम्मान करना चाहिए।
(b) उन्हें हमारी दोस्ती को स्वीकार करना चाहिए
(c) उन्हें मुझसे बात करने को तैयार होना चाहिए
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

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प्रश्न 3.
हम परिवार के पेड़ को कैसे बढ़ा सकते हैं?
(a) सहयोग द्वारा
(b) सम्मान देकर
(c) समय देकर
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 4.
स्कूल का प्रमुख कौन होता है?
(a) प्रबंधन
(b) प्रिंसीपल
(c) एच० ओ० डी०
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(b) प्रिंसीपल।

प्रश्न 5.
……. के बिना जीवन अधूरा है।
(a) समझदारी
(b) लालच
(c) ईर्ष्या
(d) द्वेष।
उत्तर-
(a) समझदारी।

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प्रश्न 6.
रचनात्मक प्रकृति का अर्थ है
(a) कुछ नया करने के लिए
(b) कुछ विशेष बनाने के लिए
(c) कुछ बुनियादी करने के लिए
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

(ख) खाली स्थान भरें

  1. एक रचनात्मक दिमाग वाला व्यक्ति …………. करता है।
  2. जीवन …………. के बिना अधूरा है।
  3. …………. के बिना समाज आगे नहीं बढ़ सकता।
  4. हमें अपने बुजुर्गों को ………. और …………. देना चाहिए।
  5. हम दूसरों से कुछ …………….. रखते हैं।

उत्तर-

  1. आत्म विकास,
  2. समझ,
  3. सहयोग,
  4. सम्मान, समय
  5. अपेक्षाएँ।

(ग) सही/ग़लत चुनें

  1. हमें दूसरों से अपेक्षाएं नहीं रखनी चाहिए।
  2. मैं चाहता हूँ कि सभी मेरा सम्मान करें।
  3. शिक्षक छात्रों को प्रेरित करते हैं।
  4. हमें अपने आप को झगड़े से दूर रखना चाहिए।
  5. हमें पसंद नहीं है जब कोई हमारी मदद करता है।

उत्तर-

  1. ग़लत,
  2. सही,
  3. सही,
  4. सही,
  5. ग़लत।

(घ) कॉलम से मेल करें

कॉलम-I — कॉलम-II
(a) एक जुट रहना — (i) नए बनाने की गुणवत्ता
(b) गुस्सा — (ii) मूड
(c) कल्पना — (iii) इकट्ठे रहना
(d) रचनात्मक सोच — (iv) डांटना
(e) फीलिंग उत्तर — (v) किसी के बारे में सोचना।
उत्तर-
कॉलम-I — कॉलम-II
(a) एक जुट रहना — (iii) इकट्ठे रहना
(b) गुस्सा — (iv) डांटना
(c) कल्पना — (v) किसी के बारे में सोचना
(d) रचनात्मक सोच — (i) नए बनाने की गुणवत्ता
(e) फीलिंग उत्तर — (ii) मूड।

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुनिया की सुंदरता देखना किस पर निर्भर करता है?
उत्तर-
यह किसी के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।

प्रश्न 2.
हम दुनिया में सब कुछ अच्छा कब पा सकते हैं?
उत्तर-
जब हम अच्छाई की तलाश शुरू करते हैं तो हम दुनिया में सब कुछ अच्छा पाते हैं।

प्रश्न 3.
आदमी को किस तरह की सोच रखनी चाहिए?
उत्तर-
उनकी सोच रचनात्मक प्रकृति की होनी चाहिए।

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प्रश्न 4.
हमें क्या करना चाहिए ताकि हम पूरी दुनिया को पसंद करें?
उत्तर-
हमें हर चीज़ में खुशी और सुंदरता खोजने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रश्न 5.
एक अपेक्षा बताइए जो मैं दूसरों से रखता हूँ।
उत्तर-
हम चाहते हैं कि वे हमारी बात मानें और हमें इंकार न करें।

प्रश्न 6.
क्या आप दूसरों की अपेक्षाओं पर खरा उतरते हैं?
उत्तर-
हाँ, जब भी उन्हें आवश्यकता होती है, हम उनकी मदद करते हैं।

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प्रश्न 7.
हम दुनिया में कैसे बेहतर हो सकते हैं?
उत्तर-
यदि हम दूसरों की अपेक्षाओं को पूरा करते हैं, तो हम निश्चित रूप से दुनिया में बेहतर होंगे।

प्रश्न 8.
हमें दूसरों में क्या देखना चाहिए?
उत्तर-
हमें दूसरों में अच्छे गुणों की तलाश करनी चाहिए।

प्रश्न 9.
एक परिवार कैसे प्रगति कर सकता है?
उत्तर-
परिवार के सदस्यों को समय, सहयोग और प्यार देकर परिवार उन्नति कर सकता है।

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प्रश्न 10.
हम बड़ों को कैसे खुश रख सकते हैं?
उत्तर-
उनके साथ समय बिताकर और सम्मान देकर हम अपने बड़ों को खुश रख सकते हैं।

प्रश्न 11.
कौन-सी वस्तु के बिना जीवन अधूरा है?
उत्तर-
समझ के बिना जीवन अधूरा है।

प्रश्न 12.
मंगत को कैसे चोट लगी?
उत्तर-
मंगत को एक सड़क दुर्घटना में चोट लगी।

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प्रश्न 13.
रचनात्मक सोच से क्या मतलब है?
उत्तर-
रचनात्मक सोच का अर्थ कुछ नया या विशेष बनाने की जिज्ञासा होना है।

प्रश्न 14.
एक रचनात्मक दिमाग को सामाजिक सम्मान कब मिल सकता है?
उत्तर-
जब वह कुछ नया बनाता है और आत्म प्रगति करता है तो उसे सामाजिक सम्मान मिलता है।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दुनिया कैसे अच्छी लगती है?
उत्तर-
यह दुनिया काफी खूबसूरत है और यह किसी के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है कि वह इस सुंदरता को कैसे देखता है। यदि हम दुनिया में अच्छी चीज़ों की तलाश करते हैं, तो हम उन्हें ज़रूर खोज लेंगे, लेकिन यदि हम बुरे की तलाश करेंगे तो हमें बुरा ही नज़र आएगा। इसीलिए यदि हमें अच्छा करना है, वो हमें हर चीज़ में सुंदरता और खुशी खोजने की ज़रूरत है। इससे सब कुछ अच्छा लगता है।

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प्रश्न 2.
एक छात्र दूसरों से क्या उम्मीद करता है?
उत्तर-

  1. वह अपेक्षा करता है कि दूसरों को उसका सम्मान करना चाहिए।
  2. वह चाहता है कि सभी में उससे बात करने की इच्छा हो।
  3. वह चाहता है कि उसके दोस्त उसकी बात माने।
  4. वह अच्छे अंक प्राप्त करना चाहता है।
  5. वह अपने दोस्तों के साथ घूमना चाहता है।

प्रश्न 3.
हमारे जीवन में अपेक्षाओं की क्या भूमिका है?
उत्तर-
हमारे जीवन में अपेक्षाओं की बड़ी भूमिका है। हम दूसरों से बहुत-सी अपेक्षाएं रखते हैं और उन अपेक्षाओं को पूरा करने की अपेक्षा भी करते हैं। यदि वे इन अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर रहे हैं, तो हमारा रिश्ता खतरे में है। इसलिए, हमें यह समझना चाहिए कि यदि हम अपनी अपेक्षाओं को पूरा करना चाहते हैं, तो यह हमारे लिए भी ज़रूरी है कि हम औरों की अपेक्षाओं को भी पूरा करें। इस तरह एक-दूसरे की अपेक्षाओं को पूरा करके, हम दुनिया में खुशी पा सकते हैं और इसे रहने के लिए एक खुशहाल जगह बना सकते हैं।

प्रश्न 4.
हमारे जीवन में सहयोग का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
इस तथ्य से कोई इंकार नहीं है कि जीवन दूसरों के सहयोग के बिना एक दिन भी नहीं चला सकता। जीवन में हम दूसरों का सहयोग करते हैं और वे हमारा भी सहयोग करते हैं। माता-पिता अपने बच्चों को पालने के लिए परिवार में सहयोग करते हैं। सभी शिक्षक और छात्र बेहतर शिक्षा प्रदान करने के लिए स्कूल में सहयोग करते हैं। इस तरह हमारे जीवन के हर हिस्से में सहयोग मौजूद है। इसके अभाव में जीवन एक दिन भी नहीं चल सकता। इस तरह दूसरों के साथ सहयोग एक अच्छे जीवन के लिए होना चाहिए।

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प्रश्न 5.
समझ की कला क्या है?
उत्तर-
समझ के बिना जीवन पूरा नहीं हो सकता। किसी भी काम को पूरा करने के लिए बेहतर समझ की कला होनी चाहिए। जीवन जीने के लिए अपने आप को समझना, खेल खेलने के नियमों को समझना, माता-पिता के क्रोध से पहले उनके प्यार को समझना, दोस्तों के व्यवहार को समझना आदि कुछ ऐसे पहलू हैं, जिनका हम जीवन में पालन कर सकते हैं। यदि हमारे जीवन में समझ का कोई पहलू नहीं होगा तो हम जीवन में कुछ भी नहीं कर पाएंगे। जिन्हें हम समझने की क्षमता नहीं रखते, वे जीवन में कुछ नहीं कर सकते। दूसरी ओर समझ क्षमता वाले लोग जीवन में बहुत प्रगति करते हैं। इस को सभी के जीवन में समझने की कला कहते हैं।

प्रश्न 6.
रचनात्मकता के विकास की व्याख्या करो।
उत्तर-
रचनात्मकता का अर्थ कुछ नया, अनोखा और मौलिक बनाना या करना है। रचनात्मकता दिमाग वाले लोग, हमेशा नए विचारों के बारे में सोचते हैं और वे हमेशा ऐसे विचारों को अनोखे तरीके से व्यक्त करने की कोशिश करते हैं। विभिन्न व्यक्तियों के अलग-अलग गुण और लक्षण होते हैं। रचनात्मक दिमाग वाला व्यक्ति इस गुण का इस्तेमाल खुद को विकसित करने के लिए करता है और इसीलिए उसे सामाजिक सम्मान प्राप्त होता है। इस प्रकार की सोच किसी भी क्षेत्र यानि कला, साहित्य, विज्ञान इत्यादि से जुड़ी हो सकती है। यदि छात्रों में इस तरह की सक्रियता विकसित की जाएगी, तो हम नए विचारों को बनाने के लिए उनकी ऊर्जा का सही उपयोग कर सकते हैं।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अध्याय में दी गई कहानी का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर-
एक बार मंगत नाम का एक व्यक्ति एक दुर्घटना में बुरी तरह से घायल हो गए। उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। वह न तो दाएं-बाएं देख सकता था और न ही हिल-जुल सकता था। अस्पताल में अगले बिस्तर पर विशाल नाम का एक और मरीज था। मंगत रोज़ विशाल की बातें सुनने लगा। वह मंगत को इसके अलावा खिड़की के माध्यम से देखा जाने वाला प्रकृति का सौंदर्य बताता था। मंगत ने उसकी बात सुनी और खिड़की से परे प्रकृति की सुंदरता की कल्पना करना शुरू कर दिया। जल्द ही, वह एक महीने में दुर्घटना से उबरने लगा। अंत में उसे थोड़ा हिलने दिया गया और उसे दूसरे बिस्तर पर ले जाया गया, जिस पर विशाल लेटा हुआ था। अब वह खिड़की से देखने की स्थिति में था। अस्पताल के अधिकारियों ने उन्हें बताया कि विशाल का कल रात निधन हो गया। जब उसने खिडकी से देखने की कोशिश की, तो उस दीवार पर कोई खिडकी नहीं थी। अधिकारियों ने उन्हें यह भी बताया कि विशाल अंधा था। उन्होंने हमेशा मंगत को उम्मीद दी कि वह जल्द ही ठीक हो जाएगा। इसके बाद मंगत ने महसूस किया कि मददगार व्यक्ति उनकी मदद करने और उन्हें बेहतर बनाने के लिए दूसरों का समर्थन करते हैं। अपने स्वयं के दुखों के बावजूद वे खुशी फैलाने की कोशिश करते हैं।

PSEB 10th Class Welcome Life Solutions Chapter 5 रचनात्मक सोच

रचनात्मक सोच PSEB 10th Class Welcome Life Notes

  • यह दुनिया बहुत सुंदर है, लेकिन यह देखने वाले पर निर्भर करता है कि वह किसी विशेष चीज़ को कैसे देखता है। यदि हम अच्छाई खोजना चाहते हैं, तो सब कुछ अच्छा है या यदि हम बुरा खोजना चाहते हैं, तो सब कुछ बुरा है।
  • हम दूसरों से बहुत उम्मीदें रखते हैं और सोचते हैं कि हमारी उम्मीदों को पूरा करेंगे। यदि उम्मीद अच्छी है, तो यह निश्चित रूप से पूरी होगी। इस तरह हम एक-दूसरे की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे और खुश रहेंगे।
  • हमें एक-दूसरे का सहयोग करना चाहिए। हमें दूसरों के साथ अच्छा समय बिताना चाहिए और हर संभव तरीके से सहयोग करना चाहिए। इससे प्यार और सहयोग बढ़ेगा और हम खुशी से काम कर सकते हैं।
  • परिवार, स्कूल और समाज सदैव सदस्यों के आपसी सहयोग से आगे बढ़ते हैं। यदि उनके सदस्य एक दूसरे की मदद नहीं करेंगे तो वे प्रगति नहीं करेंगे और विनाश के रास्ते पर आगे बढ़ेंगे।
  • हमें अपने बड़ों का सम्मान करना चाहिए और उन्हें समय देना चाहिए। इससे वह अकेलापन महसूस नहीं करेंगे। हमें उनके पिछले अनुभवों को सुनना चाहिए ताकि हम उन गलतियों को न दोहराएं जो उन्होंने शायद की थीं।
  • हर किसी में चीज़ों को समझने की क्षमता होती है। समझ के बिना जीवन पूरा नहीं हो सकता। खेल खेलने के लिए दूसरों के साथ संवाद करने के लिए समाज में रहने के लिए, हमें समझ की आवश्यकता है।
  • रचनात्मक मानसिकता होना भी ज़रूरी है। इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति के भीतर कुछ नया करने की इच्छा। जिनके पास ऐसी क्षमता है, वे सामाजिक प्रगति में योगदान करते हैं। यह स्वयं के विकास में मदद करता है और व्यक्ति के लिए सामाजिक प्रतिष्ठा भी लाता है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

निबंधात्मक प्रश्न – (Essay Type Questions)

गुरु हरगोबिंद जी का जीवन (Life of Guru Hargobind Ji)

प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन के बारे में विस्तृत नोट लिखो। (Write a detailed note on the life of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के जीवन का वर्णन करें।
(Describe the life of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु थे। वे 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे। इस काल का सिख पंथ के इतिहास में विशेष महत्त्व है। गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपना कर न केवल सिख लहर के स्वरूप को ही बदला अपितु सिखों में स्वाभिमान की भावना भी उत्पन्न की। परिणामस्वरूप उनके समय में सिख पंथ का न केवल रूपांतरण ही हुआ अपितु इसका अद्वितीय विकास भी हुआ। उनके जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—
1. जन्म तथा माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 14 जून, 1595 ई० को जिला अमृतसर के गाँव वडाली में हुआ था। वह गुरु अर्जन देव जी के एक मात्र पुत्र थे। आप की माता जी का नाम गंगा देवी था।

2. बाल्यकाल तथा विवाह (Childhood and Marriage)-गुरु हरगोबिंद जी बाल्यकाल से ही बहुत होनहार थे। आप ने पंजाबी, संस्कृत तथा प्राकृत भाषाओं के साहित्य का गहन अध्ययन किया था। बाबा बुड्डा जी ने आपको न केवल धार्मिक शिक्षाएँ ही दीं अपितु घुड़सवारी तथा शस्त्र-विद्या में भी प्रवीण कर दिया। इतिहासकारों का विचार है कि हरगोबिंद जी के तीन विवाह हुए थे। आप के घर पाँच पुत्रों-गुरदित्ता, अणि राय, सूरज मल, अटल राय तथा तेग बहादुर जी और एक पुत्री बीबी वीरो ने जन्म लिया।

3. गुरुगद्दी की प्राप्ति (Assumption of Guruship)-1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी ने लाहौर जाने से पूर्व, जहाँ उन्होंने अपना बलिदान दिया था, हरगोबिंद जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उस समय हरगोबिंद जी की आयु केवल 11 वर्ष थी। इस प्रकार हरगोबिंद जी सिखों के छठे गुरु बने। वह 1606 ई० से लेकर 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर विराजमान रहे।

4. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 2 का उत्तर देखें।

5. गुरु हरगोबिंद जी के मुगलों के साथ संबंध (Relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals)-नोट-इस भाग के उत्तर के लिए विद्यार्थी कृपया प्रश्न नं० 3 का उत्तर देखें।

गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का निरीक्षण करें।
(Examine the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की न वीन नीति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं तथा इसके सिख धर्म के रूपांतरण संबंधी महत्त्व का वर्णन करें।
(What do you know about the New Policy of Guru Hargobind ? Describe its main features and significance of the transformation of Sikhism.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के बारे में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you know about New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain in brief its main features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिए। (Write a critical note on the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
उन परिस्थितियों का उल्लेख करें जिनके कारण गुरु हरगोबिंद जी को नई नीति धारण करनी पड़ी। इस नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
(Describe the circumstances leading to the adoptation of New Policy by Guru Hargobind. What were the main features of this policy ?)
अथवा
मीरी और पीरी से आपका क्या तात्पर्य है ? इस नीति की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you understand by Miri and Piri ? Explain its main features.)
अथवा
मीरी तथा पीरी की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Explain the main features of Miri and Piri.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की ‘मीरी’ और ‘पीरी’ की नीति की चर्चा करो। (Discuss the policy of ‘Miri’ and ‘Piri’ of Guru Hargobind Ji.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की क्या विशेषताएँ थीं ? (What were the features of New Policy of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या अभिप्राय है? इसकी क्या विशेषताएँ थीं? (What is meant by Miri and Piri ? What was its importance ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही के रूप में कैसे बदला ? (How Guru Hargobind Ji changed the Sikhs into Sant Sipahis ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बैठने के साथ ही सिख पंथ में एक नए युग का सूत्रपात हुआ। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान के कारण सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंध तनावपूर्ण हो गए थे। ऐसी स्थिति में गुरु हरगोबिंद जी ने यह निष्कर्ष निकाला कि सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करने तथा अपने धर्म की रक्षा के लिए सिखों को शस्त्र उठाने होंगे। अतः गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बनाने की नवीन नीति धारण की। इस नीति को अपनाने के प्रमुख कारण निम्न प्रकार थे—
1. मुग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन (Change in the Religious Policy of the Mughals)जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने राज-गद्दी की. पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।

2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान (Martyrdom of Guru Arjan Dev Ji)-जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुग़लों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफी सीमा तक उत्तरदायी था।

3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश (Last Message of Guru Arjan Dev Ji)-गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।
PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण 1
AKAL TAKHT SAHIB : AMRITSAR

नई नीति की मुख्य विशेषताएँ (Main Features of the New Policy)
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना (Wearing of Miri and Piri Swords)-गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद जी ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई इस मीरी तथा पीरी नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा।

2. सेना का संगठन (Organisation of Army)-गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। इन सैनिकों को सौ-सौ के पाँच जत्थों में विभाजित किया मया। प्रत्येक जत्था एक जत्थेदार के अधीन रखा गया था। इनके अतिरिक्त गुरु साहिब ने 52 अंगरक्षक भी भर्ती किए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग रैजमैंट बनाई गई। इसका सेनापति पँदा खाँ को नियुक्त किया गया।

3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना (Collection of Arms and Horses)—गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।

4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण (Construction of Akal Takhat Sahib)-गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बख्शी के अनुसार,
“अकाल तख्त सिखों की सबसे पवित्र संस्था है। इसने सिख समुदाय के सामाजिक-राजनीतिक परिवर्तन में ऐतिहासिक भूमिका निभाई।”1

5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना (Adoption of Royal Symbols)—गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठ से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कल्गी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की। गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अब बहुमूल्य वस्त्र धारण करने आरंभ कर दिए। वे अपने अंगरक्षकों के साथ चलते थे।

6. अमृतसर की किलाबंदी (Fortification of Amritsar)-अमृतसर न केवल सिखों का सर्वाधिक पावन धार्मिक स्थान ही था, अपितु यह उनका विख्यात सैनिक प्रशिक्षण केंद्र भी था। इसलिए गुरु जी ने इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया।

7. गुरु जी के प्रतिदिन के जीवन में परिवर्तन (Changes in the daily life of the Guru)—अपनी नवीन नीति के कारण गुरु हरगोबिंद जी के प्रतिदिन के जीवन में भी कई परिवर्तन आ गए थे। उन्होंने अपने दरबार में अब्दुला तथा नत्था मल को वीर-रस से परिपूर्ण वारें गाने के लिए भर्ती किया। एक विशेष संगीत मंडली की स्थापना की गई जो रात्रि को ऊँची आवाज़ में जोशीले शब्द माती हुई हरिमंदिर साहिब की परिक्रमा करती थी। गुरु साहिब ने अपने जीवन में ये परिवर्तन केवल सिखों में वीरता की भावना उत्पन्न करने के लिए किए थे।

1. “Sri Akal Takhat is one of the most sacred institutions of Sikhism. It has played historic role in the socio-political transformation of the Sikh community.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi, Encyclopaedic History of the Sikhs and Sikhism (New Delhi : 1999) Vol. 1, p. 140.

नई नीति का आलोचनात्मक मूल्याँकन (Critical Estimate of the New Policy)

आरंभ में जब गरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अपनाई तो इस नीति ने कई संदेह उत्पन्न कर दिए। वास्तव में गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति का गलत आँकलन किया गया है। गुरु साहिब ने पुरानी सिख परंपरा का त्याग नहीं किया था। उन्होंने सिख धर्म के प्रचार के लिए पंजाब के भिन्न-भिन्न स्थानों में अपने प्रचारक भेजे। यदि गुरु साहिब ने अपने प्रतिदिन के जीवन में कुछ परिवर्तन किए तो उसका उद्देश्य केवल सिखों में एक नया जोश उत्पन्न करना था। समय के साथ-साथ गुरु साहिब की सिखों की नई नीति के संबंध में उत्पन्न हुई शंकाएँ दूर होनी आरंभ हो गई थीं। भाई गुरदास जी गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की प्रशंसा करते हैं। उनका कथन है कि जिस प्रकार मणि को प्राप्त करने के लिए साँप को मारना आवश्यक है। कस्तूरी प्राप्त करने के लिए हिरन को मारना ज़रूरी है। गिरी को प्राप्त करने के लिए नारियल को तोड़ना पड़ता है। बाग़ की सुरक्षा के लिए काँटेदार झाड़ियाँ लगाने की आवश्यकता होती है। ठीक इसी प्रकार गुरु नानक देव जी द्वारा स्थापित सिख पंथ की सुरक्षा के लिए गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति को अपनाना बहुत जरूरी था। वास्तव में गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक देव जी के उपदेशों को ही वास्तविक रूप दिया। प्रसिद्ध इतिहासकार एच० एस० भाटिया एवं एस० आर० बक्शी के शब्दों में,
“यद्यपि बाहरी रूप में ऐसा लगता था कि गुरु हरगोबिंद जी ने गुरु नानक जी के उद्देश्यों को परिपूर्ण करने में भिन्न मार्ग अपनाया, किंतु यह मुख्य तौर पर गुरु नानक जी के आदर्शों पर ही आधारित था।”2

नई नीति का महत्त्व (Importance of the New Policy).
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के महत्त्वपूर्ण परिणाम निकले। सिख अब संत सिपाही बन गए। वे ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ शस्त्रों का भी प्रयोग करने लग पड़े। इस नीति के अभाव में सिखों का पावन भ्रातृत्व समाप्त हो गया होता अथवा फिर वे फकीरों और संतों की एक श्रेणी बनकर रह जाते। गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के परिणामस्वरूप पंजाब के जाट अधिक संख्या में सिख पंथ में सम्मिलित हुए। इस नई नीति के कारण सिखों एवं मुग़लों के संबंधों में आपसी तनाव और बढ़ गया। शाहजहाँ के समय गुरु साहिब को मुग़लों के साथ चार युद्ध लड़ने पड़े। इन युद्धों में सिखों की विजय से मुग़ल साम्राज्य के गौरव को धक्का लगा। अंत में हम के० एस० दुग्गल के इन शब्दों से सहमत हैं,
“गुरु हरगोबिंद जी का सबसे महान् योगदान सिखों के जीवन मार्ग को एक नई दिशा देना था। उसने संतों को सिपाही बना दिया किंतु फिर भी परमात्मा के भक्त रहे।”3

2. “Though outwardly, it may appear that Guru Hargobind persued a slightly different course for fulfilling the mission of Guru Nanak, yet basically, it was Guru Nanak’s ideals that he preached.” H.S. Bhatia and S.R. Bakshi op. cit. Vol. 1, p. 24.
3. “Guru Hargobind’s greatest contribution is that he gave a new turn to the Sikh way of life. He turned saints into soldiers and yet remained a man of God.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 164.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

गुरु हरगोबिंद जी के मुग़लों के साथ संबंध (Guru Hargobind Ji’s Relations with the Mughals)

प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के जहाँगीर तथा शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त विवरण दें।
(Describe briefly the relationship of Guru Hargobind Ji with Jahangir and Shah Jahan.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी एवं मुगलों के संबंधों पर एक विस्तृत लेख लिखो। (Write a detailed note on relations between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के मुग़लों के साथ संबंधों की चर्चा करें। (Explain the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर रहे। उनके गुरुगद्दी के काल के दौरान उनके मुग़लों के साथ संबंधों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है

I. प्रथम काल 1606-27 ई०
(First Period 1606—27 A.D.)
1. गरु हरगोबिंद जी ग्वालियर में बंदी (Imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior)गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुनः इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु साहिब के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं।

2. कारावास की अवधि (Period of Imprisonment)—इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं कि गुरु हरगोबिंद जी ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। दाबिस्तान-ए-मजाहिब के लेखक के अनुसार गुरु साहिब 12 वर्ष कारागृह में रहे। डॉक्टर इंदू भूषण बैनर्जी यह समय पाँच वर्ष, तेजा सिंह एवं गंडा सिंह दो वर्ष और सिख साखीकार यह समय चालीस दिन बताते हैं। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

3. गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई (Release of the Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की रिहाई के संबंध में भी इतिहासकारों ने कई मत प्रकट किए हैं। सिख साखीकारों का कहना है कि गुरु जी को बंदी बनाने के बाद जहाँगीर बहुत बेचैन रहने लग पड़ा था। भाई जेठा जी ने जहाँगीर को पूर्णतः ठीक कर दिया। उनके ही निवेदन पर जहाँगीर ने गुरु साहिब को रिहा कर दिया। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि जहाँगीर ने यह निर्णय सूफी संत मीयाँ मीर के निवेदन पर लिया था। कुछ अन्य इतिहासकारों के विचारानुसार जहाँगीर गुरु साहिब के बंदी काल के दौरान सिखों की गुरु जी के प्रति श्रद्धा देखकर बहुत प्रभावित हुआ। फलस्वरूप जहाँगीर ने गुरु साहिब की रिहाई का आदेश दिया। गुरु जी की जिद्द पर ग्वालियर के दुर्ग में ही बंदी 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करना पड़ा। इसके कारण गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ भी कहा जाने लगा।

4. जहाँगीर के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध (Friendly Relations with Jahangir)-शीघ्र ही जहाँगीर को यह विश्वास हो गया था कि गुरु साहिब निर्दोष थे और गुरु साहिब के कष्टों के पीछे चंदू शाह का बड़ा हाथ था। इसलिए जहाँगीर ने चंदू शाह को दंड देने के लिए सिखों के सुपुर्द कर दिया। यहाँ तक कि जहाँगीर ने अकाल तख्त साहिब के निर्माण कार्य के लिए सारा खर्चा देने की पेशकश की, परंतु गुरु जी ने इंकार कर दिया। इस प्रकार गुरु जी की ग्वालियर की रिहाई के पश्चात् तथा जहाँगीर की मृत्यु तक जहाँगीर एवं गुरु जी के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध रहे।

II. द्वितीय काल 1628-35 ई०
(Second Period 1628-35 A.D.)

1628 ई० में शाहजहाँ मग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासनकाल में एक बार फिर सिखों और मुग़लों में निम्नलिखित कारणों से संबंध बिगड़ गए—
1. शाहजहाँ की धार्मिक कट्टरता (Shah Jahan’s Fanaticism)—शाहजहाँ बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने हिंदुओं के कई मंदिरों को नष्ट करवा दिया। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली के स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवा दिया था। फलस्वरूप सिखों में उसके प्रति अत्यधिक रोष उत्पन्न हो गया था।

2. नक्शबंदियों का विरोध (Opposition of Naqashbandis)-नक्शबंदी कट्टर सुन्नी मुसलमानों का एक संप्रदाय था। गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवाने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। शाहजहाँ के सिंहासन पर बैठने के पश्चात् एक बार फिर नक्शबंदियों ने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ गुरु साहिब के विरुद्ध हो गया।

3. गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति (New Policy of Guru Hargobind Ji)-गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति भी सिखों तथा मुग़लों के मध्य संबंधों को बिगाड़ने का एक प्रमुख कारण बनी। इस नीति के कारण गुरु साहिब ने सैन्य शक्ति का संगठन कर लिया था। सिख श्रद्धालुओं ने उन्हें ‘सच्चा.पातशाह’ कहकर संबोधित करना आरंभ कर दिया था। शाहजहाँ इस नीति को मुग़ल साम्राज्य के लिए गंभीर खतरा समझता था। इसलिए उसने गुरु साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।

4. कौलाँ का मामला (Kaulan’s Affair)-गुरु साहिब और शाहजहाँ के बीच कौलाँ के मामले के कारण तनाव में और वृद्धि हुई। कौलाँ लाहौर के काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री थी। वह गुरु अर्जन देव जी की वाणी को बहुत चाव से पढ़ती थी। काज़ी भला यह कैसे सहन कर सकता था। फलस्वरूप उसने अपनी बेटी पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए। कौला तंग आकर गुरु साहिब की शरण में चली गई। जब काजी को इस संबंध में ज्ञात हुआ तो उसने गुरु साहिब के विरुद्ध शाहजहाँ के खूब कान भरे।

सिखों और मुग़लों की लड़ाइयाँ
(Battles Between the Sikhs and Mughals)
मुग़लों और सिखों के बीच 1634-35 ई० में हुई चार लड़ाइयों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है—
1. अमृतसर की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Amritsar 1634 A.D.)-1634 ई० में अमृतसर में मुग़लों और सिखों के बीच प्रथम लड़ाई हुई। शाहजहाँ अपने सैनिकों सहित अमृतसर के निकट शिकार खेल रहा था। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने इस बाज़ को पकड़ लिया। मुग़ल सैनिकों ने बाज़ वापस करने की माँग की। सिखों के इंकार करने पर दोनों पक्षों में लड़ाई हो गई। इसमें कुछ मुग़ल सैनिक मारे गए। क्रोधित होकर शाहजहाँ ने लाहौर से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7,000 सैनिकों की एक टुकड़ी अमृतसर भेजी। इस लड़ाई में गुरु साहिब के अतिरिक्त पैंदे खाँ ने अपनी वीरता प्रदर्शित की। मुखलिस खाँ गुरु साहिब से लड़ता हुआ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस लड़ाई में विजय के कारण सिख सेनाओं का साहस बहुत बढ़ गया। इस लड़ाई के संबंध में लिखते हुए प्रो० हरबंस सिंह का कहना है,
“अमृतसर की लड़ाई यद्यपि एक छोटी घटना थी किंतु इसके दूरगामी परिणाम निकले।”4

2. लहरा की लड़ाई 1634 ई० (Battle of Lahira 1634 A.D.)-शीघ्र ही मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई के कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेंट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए। गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद भेष बदलकर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया। शाहजहाँ ने क्रोधित होकर तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों के दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। अंत में सिख विजयी रहे।

3. करतारपुर की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Kartarpur 1635 A.D.)-मुग़लों तथा सिखों के मध्य तीसरी लड़ाई 1635 ई० में करतारपुर में हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया। जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। पैंदा खाँ के उकसाने पर शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना सिखों के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में तेग़ बहादुर जी ने अपने शौर्य का खूब प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। इस प्रकार गुरु जी को एक शानदार विजय प्राप्त हुई।

4. फगवाड़ा की लड़ाई 1635 ई० (Battle of Phagwara 1635 A.D.)-करतारपुर की लड़ाई के पश्चात् गुरु हरगोबिंद जी कुछ समय के लिए फगवाड़ा आ गए। यहाँ अहमद खाँ के नेतृत्व में कुछ मुग़ल सैनिकों ने गुरु जी पर आक्रमण कर दिया। चूंकि मुग़ल सैनिकों की संख्या बहुत कम थी इसलिए फगवाड़ा में दोनों सेनाओं में मामूली झड़प हुई। फगवाड़ा की लड़ाई गुरु हरगोबिंद जी के समय में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई अंतिम लड़ाई थी।

III. लड़ाइयों का महत्त्व (Importance of the Battles)
गुरु हरगोबिंद जी के काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य लड़ी गई विभिन्न लड़ाइयों का सिख इतिहास में विशेष महत्त्व है। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे थे। इन लड़ाइयों में विजय के कारण सिखों का साहस बहुत बढ़ गया था। सिखों ने अपने सीमित साधनों के बलबूते पर इन लड़ाइयों में विजय प्राप्त की थी। अतः गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। बहुत-से लोग सिख धर्म में सम्मिलित हो गए। परिणामस्वरूप सिख पंथ का बड़ी तीव्रता से विकास होने लगा। प्रसिद्ध इतिहासकार पतवंत सिंह के अनुसार__ “इन लड़ाइयों का ऐतिहासिक महत्त्व इस बात में नहीं था कि ये कितनी बड़ी थीं अपितु इस बात में था कि इन्होंने आक्रमणकारियों के वेग को रोका तथा उनकी शक्ति को चुनौती दी। इसने मुग़लों के विरुद्ध चेतना का संचार किया तथा दूसरों के लिए एक उदाहरण प्रस्तुत की।”5

4. “This Amritsar action was a small incident but its implications were Far-reaching.” Prof. Harbans Singh, The Heritage of the Sikhs (Delhi : 1994)p.49.
5. “The historical importance of these battles did not lie in their scale, but in the fact that the aggressor’s writ was rejected and his power scorned. A mood of defience was generated agains the Mughals and an example set for others.” Patwant Singh, The Sikhs (New Delhi : 1999) p. 42.

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद साहिब ने क्या योगदान दिया ?
(What contribution was made by Guru Hargobind Sahib in transformation of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के गुरु काल की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। उन्होंने मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की। गुरु जी ने मुग़ल अत्याचारियों का सामना करने के लिए एक सेना का गठन किया। उन्होंने अमृतसर की रक्षा के लिए लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ करवाया। गुरु हरगोबिंद जी ने शाहजहाँ के समय में मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ लड़ी जिनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति क्यों धारण की ? (Why did Guru Hargobind Ji adopt the ‘New Policy’ ?) ।
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति क्यों धारण की ? कोई तीन कारण बताएँ। (Why did Guru Hargobind Ji adopt the New Policy ? Give any three reasons.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति अपनाने के कोई तीन कारण बताओ। (Describe any three causes of adoption of New Policy by Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-

  1. मुग़ल बादशाह जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म को नहीं देख सकता था। इस बदली हुई स्थिति में गुरु साहिब को नई नीति अपनानी पड़ी।
  2. 1606 ई० में जहाँगीर ने गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद कर दिया। गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़लों के अत्याचारों का सामना करने के उद्देश्य से सिखों को हथियार-बंद करने का फैसला किया।
  3. गुरु अर्जन देव जी ने अपनी शहीदी से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि वह हथियारों से सुसज्जित होकर गुरुगद्दी पर बैठे तथा अपनी योग्यता के अनुसार सेना भी रखे।

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प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की मुख्य विशेषताएँ क्या थीं ?
(What were the main features of Guru Hargobind Ji’s New Policy ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the New Policy or Miri and Piri of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की ‘नई नीति’ क्या थी ? इसकी मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(What was the ‘New Policy’ of Guru Hargobind Ji ? Explain its main features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की कोई तीन विशेषताएँ बताएँ। (Mention any three features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु हरगोबिंद जी बहुत शान-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की।
  2. सिख पंथ की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने एक सेना का गठन किया।
  3. गुरु साहिब ने यह घोषणा की कि सिख उन्हें धन के स्थान पर शस्त्र और घोड़ें भेंट करें।

प्रश्न 4.
मीरी और पीरी के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ।
(What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ?
(What is meant by Miri and Piri ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें।
(Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर विराजमान होने के समय मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण कीं। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। इसके कारण प्रथम, सिखों में जोशीली भावना का संचार हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
अथवा
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी क्यों बनाया ?
(Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नीति के कारण बंदी बनाया। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

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प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। इसके बाद गुरु हरगोबिंद जी तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ?
(What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी और मुगलों के बीच लड़ाइयों के कोई तीन कारण लिखो। (Write any three causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-

  1. मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था।
  2. शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
  3. गुरु हरगोबिंद जी ने अपनी सेना में बहुत-से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था।
  4. सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पातशाह’ कहने लगे थे।
  5. लाहौर के काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री कौलां के गुरु जी का शिष्य बनने को शाहजहाँ सहन करने को तैयार नहीं था।

प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी और मुग़लों के मध्य अमृतसर में प्रथम लड़ाई 1634 ई० में हुई। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ एक विशेष बाज़ उड़ गया। सिखों ने उसको पकड़ लिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के लिए मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिखों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर मुकाबला किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। परिणामस्वरूप मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुग़लों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे।

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प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। गुरु हरगोबिंद जी ने उसके अहंकारी होने के कारण उसे अपनी फ़ौज में से निकाल दिया था। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने के लिए शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने एक सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़ल सेना को अंत में पराजय का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों का वर्णन करें तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व भी बताएँ।
(Write briefly Guru Hargobind Ji’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों (शाहजहाँ के समय) के साथ 1634-35 ई० में चार लड़ाइयाँ हुईं। प्रथम लड़ाई 1634 ई० में अमृतसर में हुई। इसी वर्ष मुग़लों एवं सिखों में लहरा नामक लड़ाई हुई। 1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य तीसरी लड़ाई करतारपुर में हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब के दो पुत्रों गुरुदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने वीरता के जौहर दिखाए। इसी वर्ष फगवाड़ा में मुग़लों तथा गुरु हरगोबिंद जी के मध्य अंतिम लड़ाई हुई। इन लड़ाइयों में सिख अपने सीमित साधनों के बावजूद सफल रहे।

प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ?
(Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बनाकर उन्हें ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। उस समय इस दुर्ग में 52 अन्य राजा भी बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के विचारों से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने कष्ट भूल गए। जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा करने का निर्देश दिया तो गुरु जी ने कहा कि वे तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक 52 राजाओं को नहीं छोड़ा जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं को भी रिहा कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

प्रश्न 12.
अकाल तख्त साहिब पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Akal Takht Sahib.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण एवं महत्त्व के बारे में लिखें।
Explain briefly about the construction and importance of Akal Takht Sahib.)
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद जी का महान् कार्य था। सिखों के राजनीतिक तथा सांसारिक पथ-प्रदर्शन के लिए उन्होंने अकाल तख्त साहिब की नींव रखी। अकाल तख्त साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण .. हुआ। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सैनिक मामलों का नेतृत्व करते थे। यहाँ वह सैनिकों को प्रशिक्षण भी देते थे।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी के मुगल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। दूसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सैना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पातशाह’ कह कर संबोधन करना एक आँख नहीं भाता था। 1634-35 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुसलमानों के मध्य अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा।

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राटों के संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Write a brief note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal Emperors.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के दो समकालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ थे। ये दोनों बादशाह बहुत कट्टर विचारों के थे। इस कारण गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मीरी तथा पीरी की नीति धारण की। कुछ समय के लिए जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। बाद में जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी से मित्रता स्थापित कर ली। 1634-35 ई० के समय में शाहजहाँ के शासन काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा-लड़ी गईं। इनमें गुरु हरगोबिंद साहिब विजयी रहे।

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प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर में निवास करने का निर्णय क्यों किया? (Why did Guru Hargobind Ji Choose to settle down at Kiratpur ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर में निवास करने का निर्णय निम्नलिखित कारणों में किया।

  1. यह प्रदेश मुग़ल अधिकारियों के सीधे अधिकार क्षेत्र में नहीं था।
  2. यह प्रदेश शिवालिक की पहाड़ियों से घिरा होने के कारण अधिक सुरक्षित था।
  3. इस प्रदेश में गुरु साहिब शांति के साथ रह सकते थे तथा वह अपना समय सिख धर्म के प्रचार में व्यतीत कर सकते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिखों के छठे गुरु कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी।

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का गुरुकाल बताएँ।
उत्तर-
1606 ई० से 1645 ई०।

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प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी कब गरुगद्दी पर बैठे थे ?
उत्तर-
1606 ई०।

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी।

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
गँगा देवी जी।

प्रश्न 6.
बीबी वीरो जी कौन थी ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की सुपुत्री।

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प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी के सबसे बड़े पुत्र का क्या नाम था ?
उत्तर-
बाबा गुरदित्ता जी।।

प्रश्न 8.
बाबा गुरदित्ता जी किसके पुत्र थे ?
अथवा
सूरज मल जी किसके पुत्र थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के।

प्रश्न 9.
बाबा अटल राय जी किसके पुत्र थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के।

प्रश्न 10.
बाबा अटल राय जी का गुरुद्वारा कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
अमृतसर में।

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प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति अपनाने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
गुरु अर्जन देव जी की शहीदी।

प्रश्न 12.
मीरी और पीरी की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की ?
अथवा
किस गुरु साहिब ने दो तलवारें धारण की ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब।

प्रश्न 13.
‘मीरी’ और ‘पीरी’ से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
मीरी सांसारिक सत्ता तथा पीरी आध्यात्मिक सत्ता की प्रतीक थी।

प्रश्न 14.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण कहाँ किया गया?
उत्तर-
अमृतसर।

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प्रश्न 15.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी।

प्रश्न 16.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने कब आरंभ किया था ?
उत्तर-
1606 ई०।

प्रश्न 17.
अकाल तख्त साहिब से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
ईश्वर की गद्दी।

प्रश्न 18.
अकाल तख्त साहिब किस ऐतिहासिक तथ्य पर प्रकाश डालता है ?
उत्तर-
सिख धर्म तथा सिख राजनीति का समावेश।

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प्रश्न 19.
लोहगढ़ का किला किसने बनवाया ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने।

प्रश्न 20.
गुरु हरगोबिंद जी ने लोहगढ़ किले का निर्माण कहां किया था ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 21.
गुरु हरगोबिंद जी की पठानों की सैनिक टुकड़ी का सेनानायक कौन था?
उत्तर-
पैंदा खाँ।

प्रश्न 22.
गुरु हरगोबिंद जी को किस मुग़ल सम्राट् ने बंदी बनाया ?
उत्तर-
जहाँगीर ने।

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प्रश्न 23.
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को कहाँ बंदी बनाया था ?
उत्तर-
ग्वालियर के दुर्ग में।

प्रश्न 24.
‘बंदी छोड़ बाबा’ किसे कहा जाता है ?
अथवा
सिखों के किस गुरु को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी।

प्रश्न 25.
शाहजहाँ तथा सिखों में संबंध बिगड़ने का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
शाहजहाँ का धार्मिक कट्टरपन।

प्रश्न 26.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य प्रथम लड़ाई कहाँ हुई ?
उत्तर-
अमृतसर।

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प्रश्न 27.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों में अमृतसर की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1634 ई०।

प्रश्न 28.
उन दो घोड़ों के नाम बताओ जो लहरा के युद्ध का कारण बने।
उत्तर-
दिलबाग तथा गुलबाग।

प्रश्न 29.
गुलबाग किसका नाम था ?
उत्तर-
गुलबाग गुरु हरगोबिंद जी को भेंट किए गए एक प्रसिद्ध घोड़े का नाम था।

प्रश्न 30.
दिलबाग किसका नाम था ?
उत्तर-
दिलबाग गुरु हरगोबिंद जी को भेंट किए गए एक प्रसिद्ध घोड़े का नाम था।

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प्रश्न 31.
बिधि चंद जी कौन थे ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के एक अनुयायी।

प्रश्न 32.
कौलां कौन थी ?
उत्तर-
काज़ी रुस्तम खाँ की पुत्री।

प्रश्न 33.
दल भंजन गुर सूरमा किस गुरु साहिब को कहा जाता है ?
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी को।

प्रश्न 34.
करतारपुर की लड़ाई कब हुई ?
उत्तर-
1635 ई०।

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प्रश्न 35.
करतारपुर की लड़ाई में किस गुरु साहिब ने बहादुरी के जौहर दिखाए ?
उत्तर-
गुरु तेग़ बहादुर जी।

प्रश्न 36.
गुरु हरगोबिंद जी ने किस नगर की स्थापना की थी ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

प्रश्न 37.
गुरु हरगोबिंद जी ने अपने अंतिम दस वर्ष कहाँ व्यतीत किए ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

प्रश्न 38.
गुरु हरगोबिंद जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
1645 ई०।

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प्रश्न 39.
गुरु हरगोबिंद जी कहाँ ज्योति-जोत समाए थे ?
उत्तर-
कीरतपुर साहिब।

(ii) रिक्त स्थान भरें – (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म …………… में हुआ।
उत्तर-
(1595 ई०)

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का नाम…………था।
उत्तर-
(गुरु अर्जन देव जी)

प्रश्न 3.
बाबा गुरदित्ता जी के पिता जी का नाम ………….. था।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद जी)

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प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी …………….. में गुरुगद्दी पर बैठे।
उत्तर-
(1606 ई०)

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की पुत्री का नाम ……….. था।
उत्तर-
(बीबी वीरो जी)

प्रश्न 6.
गुरुगद्दी पर बैठते समय गुरु हरगोबिंद जी की आयु ………….. वर्ष की थी।
उत्तर-
(11)

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी ने ………. तलवारें धारण की।
उत्तर-
(मीरी एवं पीरी)

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प्रश्न 8.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण …………… ने करवाया था।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद जी)

प्रश्न 8.
………. में अकाल तख्त साहिब का निर्माण आरंभ किया गया था।
उत्तर-
(1606 ई०)

प्रश्न 10.
जहाँगीर की मृत्यु के बाद मुग़ल बादशाह ……. बना था।
उत्तर-
(शाहजहाँ)

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प्रश्न 11.
……………..को बंदी छोड़ बाबा कहा जाता है।
उत्तर-
(गुरु हरगोबिंद साहिब)

प्रश्न 12.
अमृतसर की लड़ाई ………….. में हुई।
उत्तर-
(1634 ई०)

प्रश्न 13.
लहरा की लड़ाई का मुख्य कारण …………और …………. नामक दो घोड़े थे।
उत्तर-
(दिलबाग, गुलबाग)

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने ………….. नामक नगर की स्थापना की।
उत्तर-
(कीरतपुर साहिब)

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प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने …………….. को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-
(गुरु हर राय जी)

प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी ……. में ज्योति-जोत समाये।
उत्तर-
(1645 ई०)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चनें—

प्रश्न 1.
गुरु हरगोबिंद जी सिखों के सातवें गुरु थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म 1595 ई० में हुआ था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का नाम गुरु अर्जन देव जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी के सबसे बड़े पुत्र का नाम बाबा गुरुदित्ता जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 5.
गुरु हरगोबिंद जी की पुत्री का नाम बीबी वीरो था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बिराजमान हुए।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति का प्रचलन किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी ने मीरी और पीरी नीति का प्रचलन किया।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
गुरु अर्जन देव जी ने अकाल तख्त के निर्माण का कार्य किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 10.
मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को ग्वालियर के किले में बंदी बना लिया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाता है।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
शाहजहाँ 1628 ई० में मुगलों का नया बादशाह बना।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 13.
सिखों और मुग़लों के मध्य पहली लड़ाई अमृतसर में 1634 ई० में हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नगर की स्थापना की थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी 1635 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
गलत

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
सिखों के छठे गुरु कौन थे ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु हर कृष्ण जी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1590 ई० में
(ii) 1593 ई० में
(iii) 1595 ई० में
(iv) 1597 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) गुरु अर्जन देव जी
(ii) गुरु रामदास जी
(iii) गुरु हर राय जी
(iv) गुरु अमरदास जी।’
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) लक्ष्मी देवी जी
(ii) गंगा देवी जी
(ii) सुलक्खनी जी
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 5.
बीबी वीरो जी कौन थी ?
(i) गुरु हरगोबिंद जी की पत्नी
(ii) गुरु हरगोबिंद जी की सुपुत्री
(iii) गुरु हर राय जी की सुपुत्री
(iv) बाबा गुरदित्ता जी की पत्नी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर कब बैठे ?
(i) 1506 ई० में
(ii) 1556 ई० में
(iii) 1605 ई० में
(iv) 1606 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 7.
मीरी और पीरी की प्रथा किस गुरु साहिब ने आरंभ की ?
(i) गुरु अर्जन देव जी ने
(ii) गुरु हरगोबिंद जी ने
(iii) गुरु तेग़ बहादुर जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 8.
अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस गुरु साहिब ने करवाया था ?
(i) गुरु अमरदास जी ने
(ii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iii) गुरु हरगोबिंद जी ने
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी ने।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 9.
अकाल तख्त का निर्माण कब संपूर्ण हुआ था ?
(i) 1606 ई० में
(ii) 1607 ई० में
(iii) 1609 ई० में
(iv) 1611 ई० में।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 10.
‘बंदी छोड़ बाबा’ किसको कहा जाता है ?
(i) बंदा सिंह बहादुर को
(ii) भाई मनी सिंह जी को
(iii) गुरु हरगोबिंद जी को
(iv) गुरु तेग़ बहादुर जी को।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी और मुगलों में लड़ी गई पहली लड़ाई कौन-सी थी ?
(i) फगवाड़ा
(ii) अमृतसर
(iii) करतारपुर
(iv) लहरा।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद जी और मुग़लों में लड़ी गई अमृतसर की लड़ाई कब हुई थी ?
(i) 1606 ई० में
(i) 1624 ई० में
(ii) 1630 ई० में
(iv) 1634 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 13.
गुरु तेग़ बहादुर जी ने निम्नलिखित में से किस लड़ाई में वीरता का प्रदर्शन किया ?
(i) अमृतसर
(ii) लहरा
(iii) करतारपुर
(iv) फगवाड़ा।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 14.
गुरु हरगोबिंद जी ने किस नगर की स्थापना की थी ?
(i) करतारपुर
(ii) कीरतपुर साहिब
(iii) अमृतसर
(iv) तरन तारन।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी ने अपना उत्तराधिकारी किसको नियुक्त किया ?
(i) हर राय जी को
(ii) हर कृष्ण जी को
(iii) तेग़ बहादुर जी को
(iv) गोबिंद राय जी को।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1628 ई० में
(ii) 1635 ई० में
(iii) 1638 ई० में
(iv) 1645 ई० में।
उत्तर-
(iv)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद जी ने क्या योगदान दिया ?.
(What contribution was made by Guru Hargobind Ji in transformation of Sikhism ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी के गुरु काल की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe the achievements of Guru Hargobind Ji’s pontificate.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० से 1645 ई० तक गुरुगद्दी पर आसीन रहे। सिख पंथ के रूपांतरण में गुरु हरगोबिंद जी ने उल्लेखनीय योगदान दिया। वह बहुत शानो-शौकत से गुरुगद्दी पर बैठे। उन्होंने सच्चा पातशाह की उपाधि तथा मीरी और पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की और पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु जी ने मुग़लों से सिख पंथ की सुरक्षा के लिए सेना का गठन करने का निर्णय किया। उन्होंने सिखों को सिख सेना में भर्ती होने, घोड़े और शस्त्र भेट करने के लिए हुक्मनामे जारी किए। अमृतसर की रक्षा के लिए गुरु साहिब ने लोहगढ़ नामक एक दुर्ग का निर्माण करवाया। सिखों का सांसारिक मामलों में निर्देशन करने के लिए गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करवाया। गुरु साहिब के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर जहाँगीर ने उन्हें कुछ समय के लिए ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बना लिया था। बाद में जहाँगीर ने गुरु साहिब की रिहाई का आदेश दिया। गुरु साहिब ने तब तक रिहा होने से इंकार कर दिया जब तक ग्वालियर के दुर्ग में बन्दी अन्य राजाओं को भी रिहा नहीं कर दिया जाता। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने इन 52 राजाओं को भी रिहा कर दिया। इस कारण गुरु हरगोबिंद जी को बंदी छोड़ बाबा कहा जाने लगा। 1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। वह बहुत कट्टर विचारों का था। शाहजहाँ के समय में गुरु हरगोबिंद जी ने मुग़लों के साथ चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर एवं फगवाड़ा में लड़ीं। इनमें गुरु साहिब को विजय प्राप्त हुई। गुरु जी ने कीरतपुर साहिब नामक एक नए नगर की स्थापना की। यहाँ रहते हुए गुरु हरगोबिंद जी ने सिख धर्म के प्रचार के लिए उल्लेखनीय कदम उठाए।

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प्रश्न 2.
गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी नीति को क्यों धारण किया ?
(What were the main causes of the adoption of New Policy or Miri and Piri by Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
1. मग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन–जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने सिंहासन की पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।

2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान–जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुगलों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी था।

3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश—गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।

प्रश्न 3.
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति की विशेषताओं की व्याख्या करें।
(Explain the features of New Policy adopted by Guru Hargobind Ji)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति कौन-सी थी ? उसकी विशेषताओं के बारे में जानकारी दें।
(WŁ t do you know about the New Policy of Guru Hargobind Ji ? Explain its features.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति अथवा मीरी एवं पीरी के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the New Policy or Miri and Piri of Guru Hargobind Ji ?)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति की विशेषताएँ बताएँ। (Tell the features of New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना—गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।

2. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद साहिब द्वास सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी बनाई गई। इसका सेनापति पैंदा खाँ को नियुक्त किया गया।

3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना-गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।

4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।

5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना-गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठं से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कलगी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की।

6. अमृतसर की किलाबंदी-गुरु हरगोबिंद जी अमृतसर के महत्त्व से भली-भाँति परिचित थे। इसलिए इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर 1609 ई० में एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया। जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया। इस दुर्ग के निर्माण से सिखों का साहस बहुत बढ़ गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

प्रश्न 4.
गुरु हरगोबिंद साहिब जी की नई नीति क्या थी ? इस नई नीति को धारण करने के क्या कारण थे ?
(What was the New Policy of Guru Hargobind Sahib Ji ? What were the causes of adoption of New Policy ?)
उत्तर-
(i) गुरु हरगोबिंद साहिब जी की नई नीति—
1. मीरी तथा पीरी तलवारें धारण करना—गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर विराजमान होते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण की। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने तथा दूसरी ओर शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।

2. सेना का संगठन-गुरु हरगोबिंद साहिब द्वास सिख पंथ की रक्षा के लिए सेना का संगठन करने का भी निर्णय किया गया। उन्होंने सिखों को यह आदेश दिया कि वे गुरु साहिब की सेना में भर्ती हों। फलस्वरूप 500 योद्धा आपकी सेना में भर्ती हुए। धीरे-धीरे गुरु साहिब की सेना की संख्या बढ़कर 2500 हो गई। गुरु जी की सेना में पठानों की एक अलग सैनिक टुकड़ी बनाई गई। इसका सेनापति पैंदा खाँ को नियुक्त किया गया।

3. शस्त्र तथा घोड़े एकत्र करना-गुरु हरगोबिंद जी ने मसंदों को यह आदेश दिया कि वे सिखों से धन की अपेक्षा शस्त्र एवं घोड़े एकत्रित करें। सिखों से भी कहा कि वे मसंदों को शस्त्र एवं घोड़े भेंट करें। गुरु जी के इस आदेश का मसंदों और सिखों ने बड़े उत्साह से स्वागत किया। फलस्वरूप गुरु जी की सैन्य-शक्ति अधिक दृढ़ हो गई।

4. अकाल तख्त साहिब का निर्माण—गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अकाल तख्त साहिब का निर्माण उनकी नई नीति का ही महत्त्वपूर्ण भाग था। अकाल तख्त साहिब का निर्माण गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने करवाया था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते, उनके सैनिक कारनामे देखते, मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते, ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते तथा सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।

5. राजनीतिक प्रतीकों को अपनाना-गुरु हरगोबिंद जी अपनी नई नीति के अंतर्गत राजसी ठाठ-बाठं से रहने लगे। उन्होंने अब सेली (ऊन की माला) के स्थान पर कमर में दो तलवारें धारण कीं। एक शानदार दरबार की स्थापना की गई। उन्होंने अब राजाओं की भाँति दस्तार के ऊपर कलगी सुशोभित करनी आरंभ कर दी। उन्होंने ‘सच्चा पातशाह’ की उपाधि धारण की।

6. अमृतसर की किलाबंदी-गुरु हरगोबिंद जी अमृतसर के महत्त्व से भली-भाँति परिचित थे। इसलिए इस महत्त्वपूर्ण स्थान की सुरक्षा के लिए अमृतसर शहर के चारों ओर एक दीवार बनवा दी। इसके अतिरिक्त यहाँ पर 1609 ई० में एक दुर्ग का निर्माण भी करवाया गया। जिसका नाम लोहगढ़ रखा गया। इस दुर्ग के निर्माण से सिखों
का साहस बहुत बढ़ गया।

(ii) नई नीति को धारण करने के कारण—
1. मग़लों की धार्मिक नीति में परिवर्तन–जहाँगीर से पूर्व के शासकों के साथ सिखों के संबंध मधुर थे। बाबर ने गुरु नानक देव जी के प्रति सम्मान प्रकट किया था। हुमायूँ ने सिंहासन की पुनः प्राप्ति के लिए गुरु अंगद देव जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मुग़ल बादशाह अकबर ने गुरु अमरदास जी के समय स्वयं गोइंदवाल साहिब में आकर लंगर छका था। उसने गुरु रामदास जी को 500 बीघे भूमि दान में दी तथा पंजाब के किसानों का एक वर्ष का लगान माफ कर दिया था। परंतु 1605 ई० में बादशाह बना जहाँगीर बहुत कट्टर सुन्नी मुसलमान था। वह इस्लाम के सिवाय किसी अन्य धर्म को विकसित होते नहीं देख सकता था। अतः इन बदली हुई परिस्थितियों में गुरु साहिब को भी नई नीति अपनानी पड़ी।

2. गुरु अर्जन देव जी का बलिदान–जहाँगीर के लिए सिखों की बढ़ती लोकप्रियता असहनीय थी। इस लहर के दमन के लिए उसने 1606 ई० में गुरु अर्जन देव जी को शहीद कर दिया। गुरु अर्जन देव जी के बलिदान ने सिखों को स्पष्ट कर दिया था यदि वे जीवित रहना चाहते हैं तो उन्हें शस्त्रधारी बनकर मुगलों से टक्कर लेनी होगी। इस प्रकार गुरु अर्जन देव जी का बलिदान गुरु हरगोबिंद जी द्वारा नई नीति धारण करने के लिए काफ़ी सीमा तक उत्तरदायी था।

3. गुरु अर्जन देव जी का अंतिम संदेश—गुरु अर्जन देव जी ने अपने बलिदान से पूर्व अपने पुत्र हरगोबिंद जी को यह संदेश भेजा कि, “उसे पूरी तरह शस्त्रों से सुसज्जित होकर गद्दी पर बैठना चाहिए। अपनी पूर्ण योग्यता के अनुसार सेना रखनी चाहिए।” अतः गुरु साहिब के इन शब्दों को व्यावहारिक रूप देने का गुरु हरगोबिंद जी ने निश्चय किया।

प्रश्न 5.
मीरी और पीरी के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Miri and Piri ?)
अथवा
मीरी और पीरी से क्या भाव है ? इसकी ऐतिहासिक महत्ता बताएँ। (What is Miri and Piri ? Describe its historical importance.)
अथवा
गुरु हरगोबिंद जी की नई नीति के महत्त्व का संक्षेप में वर्णन करें। (Briefly describe the importance of the New Policy of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी ने गुरुगद्दी पर बैठने के समय बदली हुई परिस्थितियों को देखते हुए मीरी एवं पीरी नामक दो तलवारें धारण करने का निर्णय किया। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी जबकि पीरी तलवार धार्मिक सत्ता की प्रतीक थी। गुरु साहिब द्वारा ये दोनों तलवारें धारण करने से अभिप्राय यह था कि आगे से वे अपने अनुयायियों का धार्मिक नेतृत्व करने के अतिरिक्त सांसारिक मामलों में भी नेतृत्व करेंगे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने और दूसरी ओर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने का आदेश दिया। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई इस मीरी और पीरी की नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। इसके कारण सर्वप्रथम सिखों में एक नया जोश उत्पन्न हुआ। दूसरा, अब उन्होंने धर्म की रक्षा के लिए शस्त्र उठाने का निर्णय किया। तीसरा, गुरु गोबिंद सिंह जी ने इस नीति का अनुसरण करते हुए खालसा पंथ का सृजन किया। चौथा, इस नीति के कारण सिखों और मुग़लों और अफ़गानों के बीच एक लंबा संघर्ष आरंभ हुआ जिसमें अंततः सिख विजयी रहे।

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प्रश्न 6.
गुरु हरगोबिंद जी के ग्वालियर में बंदी बनाए जाने पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the imprisonment of Guru Hargobind Ji at Gwalior.)
अथवा
जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी क्यों बनाया ? (Why did Jahangir arrest Guru Hargobind Ji ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के गुरुगद्दी पर बैठने के कुछ समय बाद ही वह मुग़ल सम्राट् जहाँगीर द्वारा बंदी बनाकर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिए गए। गुरु साहिब को बंदी क्यों बनाया गया, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। कुछ इतिहासकारों का विचार है कि इसके लिए चंदू शाह का षड्यंत्र उत्तरदायी था। गुरु जी द्वारा उसकी पुत्री के साथ विवाह करने से पुनः इंकार करने पर उसने जहाँगीर को गुरु साहिब के विरुद्ध भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने उन्हें बंदी बना लिया। दूसरी ओर अधिकाँश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं कि जहाँगीर ने गुरु साहिब को उनके द्वारा अपनाई गई नई नीति के कारण बंदी बनाया। इस नीति से उसके मन में अनेक शंकाएँ उत्पन्न हो गई थीं तथा गुरु साहिब के विरोधियों ने भी जहाँगीर के कान भरे कि गुरु जी विद्रोह करने की तैयारियाँ कर रहे हैं। इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है कि गुरु हरगोबिंद साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे। अधिकाँश इतिहासकारों का कहना है कि गुरु साहिब 1606 ई० से 1608 ई० तक दो वर्ष ग्वालियर में बंदी रहे।

प्रश्न 7.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के संबंधों पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on relations between Guru Hargobind Ji and Mughal emperor Jahangir.)
उत्तर-
1606 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। सिंहासन पर बैठने के तुरंत पश्चात् उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। इस कारण मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। मुगल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। उन्होंने अपनी योग्यता के अनुसार कुछ सेना भी रखी। जहाँगीर यह सहन करने के लिए तैयार न था। चंदू शाह ने भी गुरु हरगोबिंद साहिब के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिए जहाँगीर को भड़काया। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। गुरु साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। भाई जेठा जी तथा सफ़ी संत मीयाँ मीर के कहने पर जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। गुरु जी के कहने पर जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में बंदी बनाए 52 अन्य राजाओं को भी रिहा करने का आदेश दिया। इस कारण गुरु हरगोबिंद साहिब को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा। इसके बाद गुरु हरगोबिंद साहिब तथा जहाँगीर के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित हो गए।

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प्रश्न 8.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के बीच लड़ाइयों के क्या कारण थे ? (What were the causes of battles between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों (शाहजहाँ) के मध्य लड़ाइयों के मुख्य कारण निम्नलिखित थे—

  1. मुग़ल सम्राट शाहजहाँ एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनवाई गई बाऊली को गंदगी से भरवा दिया था। सिख इस अपमान को किसी हालत में सहन करने को तैयार नहीं थे।
  2. शाहजहाँ के समय नक्शबंदियों के नेता शेख मासूम ने सम्राट को सिखों के विरुद्ध कड़ी-से-कड़ी कार्यवाही करने के लिए भड़काया।
  3. गुरु जी ने अपनी सेना में बहुत-से मुग़ल सेना के भगौड़ों को भर्ती कर लिया था। इसके अतिरिक्त गुरु जी ने कई राजसी चिह्नों को धारण कर लिया था। सिख श्रद्धालु गुरु जी को ‘सच्चा पादशाह’ कहने लगे थे। निस्संदेह शाहजहाँ भला यह कैसे सहन करता।
  4. कौलाँ लाहौर के काजी रुस्तम खाँ की बेटी थी। वह गुरु अर्जन देव जी की वाणी से प्रभावित होकर गुरु जी की शरण में चली गई थी। इस काजी द्वारा भड़काने पर शाहजहाँ ने गुरु जी के विरुद्ध कार्यवाही करने का निर्णय किया।

प्रश्न 9.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य हुई अमृतसर की लड़ाई का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
(Give a brief account of the battle of Amritsar fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद साहिब जी के समय में मुग़लों और सिखों के मध्य अमृतसर में 1634 ई० में प्रथम लड़ाई हुई थी। इस लड़ाई का मुख्य कारण एक बाज़ था। कहा जाता है कि उस समय मुग़ल बादशाह शाहजहाँ अपने कुछ सैनिकों सहित अमृतसर के निकट एक वन में शिकार खेल रहा था। दूसरी ओर गुरु हरगोबिंद साहिब और उनके कुछ सिख भी उसी वन में शिकार खेल रहे थे। शिकार खेलते समय शाहजहाँ का एक विशेष बाज़ जो उसे ईरान के सम्राट ने भेट किया था, उड़ गया। सिखों ने इस को पकड़ लिया। उन्होंने यह बाज़ मुग़लों को लौटाने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप शाहजहाँ ने सिखों को सबक सिखाने के उद्देश्य से मुखलिस खाँ के नेतृत्व में 7000 सैनिक भेजे। सिख सैनिकों ने मुग़ल सैनिकों का डटकर सामना किया। इस लड़ाई में मुखलिस खाँ मारा गया। इस कारण मुग़ल सैनिकों में भगदड़ मच गई। इस प्रकार मुगलों और सिखों के मध्य हुई इस प्रथम लड़ाई में सिख विजयी रहे। इस विजय के कारण सिखों के हौसले बुलंद हो गए।

प्रश्न 10.
गुरु हरगोबिंद जी के समय हुई लहरा की लड़ाई पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the battle of Lahira fought in the times of Guru Hargobind Ji.)
उत्तर-
अमृतसर की लड़ाई के शीघ्र पश्चात् मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को, जो कि बहुत बढ़िया नस्ल के थे बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए और उन्हें शाही घुड़साल में पहुँचा दिया। यह बात गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद सहन न कर सका। वह भेष बदल कर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया और गुरु साहिब के पास पहुँचा दिया। जब शाहजहाँ को यह सूचना मिली तो वह क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर मुग़लों तथा सिखों के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों की भारी प्राण हानि हुई और उनके दोनों सेनापति लल्ला बेग तथा कमर बेग भी मारे गए। इस लड़ाई में भाई जेठा जी भी शहीद हो गए। इस लड़ाई में सिख विजयी रहे।

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प्रश्न 11.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के बीच हुई करतारपुर की लड़ाई के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the battle of Kartarpur fought between Guru Hargobind Ji and the Mughals ?)
उत्तर-
1635 ई० में मुग़लों तथा सिखों के मध्य करतारपुर में तीसरी लड़ाई हुई। यह लड़ाई पैंदा खाँ के कारण हुई। वह गुरु हरगोबिंद जी की सेना में पठान टुकड़ी का सेनापति था। अमृतसर की लड़ाई में उसने वीरता का प्रमाण दिया, परंतु अब वह बहुत अहंकारी हो गया था। उसने गुरु साहिब का एक बाज़ चोरी करके अपने दामाद को दे दिया। गुरु साहिब के पूछने पर उसने इस बात से इंकार कर दिया कि उसे बाज़ के संबंध में कुछ पता है। तत्पश्चात् जब गुरु जी को पैंदा खाँ के झूठ का पता चला तो उन्होंने उसे नौकरी से निकाल दिया। पैंदा खाँ ने इस अपमान का बदला लेने का निर्णय किया। वह मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की शरण में चला गया। उसने शाहजहाँ को गुरु जी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही करने के लिए खूब भड़काया। परिणामस्वरूप शाहजहाँ ने पैंदा खाँ और काले खाँ के नेतृत्व में एक विशाल सेना गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध भेजी। करतारपुर में दोनों सेनाओं के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में गुरु जी के दो पुत्रों भाई गुरदित्ता तथा तेग़ बहादुर जी ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। इस लड़ाई में गुरु साहिब से लड़ते हुए काले खाँ, पैंदा खाँ और उसका पुत्र कुतब खाँ मारे गए। मुग़ल सेना को भारी जन हानि हुई। इस प्रकार गुरु जी को एक और शानदार विजय प्राप्त हुई।

प्रश्न 12.
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों के साथ हुई लड़ाइयों का वर्णन करें तथा उनका ऐतिहासिक महत्त्व भी बताएँ।
(Write briefly Guru Hargobind’s battles with the Mughals. What is their significance in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी की मुग़लों (शाहजहाँ के समय) के साथ 1634-35 ई० में चार लड़ाइयां हुईं। प्रथम लड़ाई 1634 ई० में अमृतसर में हुई। एक शाही बाज़ इस लड़ाई का तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ। इस बाज़ को सिखों ने पकड़ लिया था तथा उसे मुग़लों को वापस करने से इंकार कर दिया था। शाहजहाँ ने मुखलिस खाँ के अधीन एक विशाल सेना सिखों को सबक सिखाने के लिए अमृतसर भेजी। इस लड़ाई में सिख बहुत बहादुरी से लड़े तथा अंत में विजयी रहे। दूसरी लड़ाई 1634 ई० में लहरा में हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे, जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इस लड़ाई में मुग़लों का जान-माल का बहुत नुकसान हुआ। 1635 ई० में गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य तीसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई में गुरु साहिब के दो पुत्रों गुरुदित्ता जी तथा तेग़ बहादुर जी ने वीरता के जौहर दिखाए। इसी वर्ष फगवाड़ा में मुग़लों तथा गुरु हरगोबिंद जी के मध्य अंतिम लड़ाई हुई। इन लड़ाइयों में सिख अपने सीमित साधनों के बावजूद सफल रहे जिस कारण उनकी प्रसिद्धि बहुत बढ़ गई। बड़ी संख्या में लोग सिख धर्म में सम्मिलित होने आरंभ हो गए।

प्रश्न 13.
गुरु हरगोबिंद जी को बंदी छोड़ बाबा’ क्यों कहा जाता है ? (Why is Guru Hargobind Ji known as ‘Bandi Chhor Baba’ ?)
उत्तर-
1605 ई० में मुग़ल सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठने के साथ ही मुग़ल-सिख संबंधों में एक नया मोड़ आया। जहाँगीर बड़ा कट्टर सुन्नी मुसलमान था। सिंहासन पर बैठने के तुरंत पश्चात् उसने गुरु अर्जन देव जी को शहीद करवा दिया था। इस कारण मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। मुग़ल अत्याचारों का मुकाबला करने के उद्देश्य के साथ गुरु हरगोबिंद जी ने नई नीति धारण की। उन्होंने अपनी योग्यता के अनुसार कुछ सेना भी रखी। जहाँगीर भला इसे कैसे सहन करता। इसके अतिरिक्त चंदू शाह ने भी गुरु हरगोबिंद जी के विरुद्ध कार्यवाई करने के लिए जहाँगीर के कानों में विष घोला। परिणामस्वरूप जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को बंदी बना कर ग्वालियर के दुर्ग में भेज दिया। गुरु साहिब ग्वालियर के दुर्ग में कितना समय बंदी रहे इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है। भाई जेठा जी तथा सफ़ी संत मियाँ मीर जी के कहने पर जहाँगीर ने गुरु जी को रिहा करने का आदेश दिया। मुग़ल बादशाह जहाँगीर ने ग्वालियर के दुर्ग में 52 राजा राजनैतिक कारणों से बंदी बनाए हुए थे। ये सभी राजा गुरु जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब की मौजूदगी में वे अपने सभी कष्ट भूल गए। पर जब जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा करने का निर्देश दिया तो दुर्ग में बंदी दूसरे राजाओं को बहुत निराशा हुई। क्योंकि गुरु साहिब को इन राजाओं से काफ़ी हमदर्दी हो गई थी इसलिए गुरु साहिब ने जहाँगीर को यह संदेश भेजा कि वह तब तक रिहा नहीं होंगे जब तक उनके साथ बंदी 52 राजाओं को भी रिहा नहीं कर दिया जाता। अंततः मजबूर होकर जहाँगीर ने इन राजाओं की रिहाई का निर्देश जारी कर दिया। इसी कारण गुरु हरगोबिंद जी को ‘बंदी छोड़ बाबा’ कहा जाने लगा।

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प्रश्न 14.
अकाल तख्त साहिब के बारे में संक्षिप्त लिखें।
(Write a short note on Akal Takht Sahib.)
अथवा
अकाल तख्त साहिब के निर्माण का सिख इतिहास में क्या महत्त्व है ? (What is the importance of building Sri Akal Takht Sahib in Sikh History ?)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी द्वारा अपनाई गई नई नीति के विकास में अकाल तख्त साहिब का निर्माण बहुत सहायक सिद्ध हुआ। वास्तव में यह गुरु साहिब का एक महान् कार्य था। अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद जी ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरम्भ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ। इसकी नींव गुरु हरगोबिंद जी ने रखी थी। इसके निर्माण कार्य में बाबा बुड्वा जी एवं भाई गुरदास जी ने गुरु हरगोबिंद जी को सहयोग दिया। इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया गया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद जी सिखों के राजनीतिक एवं सांसारिक मामलों का नेतृत्व करते थे। यहाँ वे सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते थे तथा उनके मल्ल युद्ध तथा अन्य सैनिक कारनामे देखते थे। यहीं पर वे मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते थे। सिखों में जोश उत्पन्न करने के लिए यहाँ ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु हरगोबिंद जी सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु जी सिखों को ईनाम भी देते थे तथा दंड भी। यहाँ से ही गुरु जी ने सिख संगत के नाम अपना प्रथम हुक्मनामा जारी किया था। इसमें गुरु जी ने सिखों को घोड़े एवं शस्त्र भेंट करने के लिए कहा था। बाद में यहाँ से हुक्मनामे जारी करने की प्रथा आरंभ हो गई। इस प्रकार गुरु हरगोबिंद जी ने अकाल तख्त साहिब का निर्माण करके सिखों की जीवन शैली में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किया। शीघ्र ही अकाल तख्त साहिब सिखों की राजनीतिक गतिविधियों का एक प्रसिद्ध केंद्र बन गया।

प्रश्न 15.
गुरु हरगोबिंद जी के मुगल बादशाह शाहजहाँ के साथ संबंध कैसे थे ? संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the relations of Guru Hargobind Ji with the Mughal Emperor Shah Jahan.)
उत्तर-
शाहजहाँ 1628 ई० में मुग़लों का नया बादशाह बना। उसके शासन काल में कई कारणों से मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव पैदा हो गया। प्रथम, शाहजहाँ बहुत कट्टर सुन्नी बादशाह था। उसने गुरु अर्जन देव जी द्वारा लाहौर में बनाई गई बावली को गंदगी से भरवा दिया था तथा लंगर के लिए बनाए गए भवन को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था। दूसरा, नक्शबंदियों ने सिखों के विरुद्ध शाहजहाँ को भड़काने में कोई प्रयास शेष न छोड़ा। तीसरा, गुरु हरगोबिंद जी द्वारा सेना तैयार किए जाने तथा उनके अनुयायियों द्वारा उन्हें ‘सच्चा पादशाह’ कह कर संबोधन करना एक आँख नहीं भाता था। चौथा, लाहौर के एक काज़ी की लड़की जिसका नाम कौलाँ था, गुरु जी की शिष्या बन गई थी। इस कारण उस काज़ी ने शाहजहाँ को सिखों के विरुद्ध सख्त कदम उठाने के लिए उत्तेजित किया। 163435 ई० के समय के दौरान सिखों तथा मुग़लों के मध्य अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा नामक लड़ाइयाँ हुईं। इन लड़ाइयों में सिख विजयी रहे तथा मुग़लों को पराजय का सामना करना पड़ा। परिणामस्वरूप गुरु जी की ख्याति दूर-दूर तक फैल गई।

प्रश्न 16.
गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़ल सम्राटों के संबंधों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Write a brief note on the relations between Guru Hargobind Ji and the Mughal Emperors.)
उत्तर-
गुरु हरगोबिंद जी के दो समकालीन मुग़ल बादशाह जहाँगीर तथा शाहजहाँ थे। ये दोनों बादशाह बहुत कट्टर विचारों के थे। 1606 ई० में जहाँगीर द्वारा गुरु हरगोबिंद जी के पिता गुरु अर्जन देव जी को लाहौर में शहीद करवा दिया गया था। अत: मुग़लों तथा सिखों के संबंधों में एक दरार आ गई थी। गुरु हरगोबिंद साहिब ने मुगल अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए मीरी तथा पीरी की नीति धारण की। बहुत जल्द जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के दुर्ग में कैद कर लिया। गुरु जी को क्यों कैद किया गया तथा कितनी अवधि के लिए कारावास में रखा गया इन विषयों पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। बाद में जहाँगीर ने गुरु हरगोबिंद जी को रिहा कर दिया तथा उनसे मित्रता स्थापित कर ली। 1628 ई० में शाहजहाँ मुग़लों का नया बादशाह बना। क्योंकि वह बहुत कट्टर विचारों का था इसलिए एक बार पुनः मुगलों तथा सिखों के संबंधों के मध्य दरार बढ़ गई। परिणामस्वरूप शाहजहाँ के शासन काल में मुग़लों तथा सिखों के मध्य चार लड़ाइयाँ-अमृतसर, लहरा, करतारपुर तथा फगवाड़ा-लड़ी गईं। इनमें गुरु हरगोबिंद जी विजयी रहे। इन विजयों के कारण सिखों का उत्साह बहुत बढ़ गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
गुरु हरगोबिंद साहिब ने गुरुगद्दी पर बैठते समय मीरी तथा पीरी नामक दो तलवारें धारण करने का निर्णय किया। मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी और पीरी तलवार धार्मिक नेतृत्व की प्रतीक थी। इससे अभिप्राय यह था कि आगे से गुरु साहिब अपने श्रद्धालुओं का धार्मिक नेतृत्व करने के अतिरिक्त सांसारिक मामलों में भी पथ प्रदर्शन करेंगे। गुरु हरगोबिंद साहिब ने एक ओर सिखों को सतनाम का जाप करने और दूसरी ओर अपनी रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने का संदेश दिया। उनका कथन था कि जहाँ दीन-दुःखियों की सहायता के लिए ‘देग’ होगी वहीं अत्याचारियों को यमलोक पहुँचाने के लिए तेग’ भी होगी। इस प्रकार गुरु साहिब ने सिखों को संत सिपाही बना दिया। गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई इस मीरी तथा पीरी नीति का सिख इतिहास पर बहुत गहन प्रभाव पड़ा।

  1. गुरु हरगोबिंद जी गुरुगद्दी पर कब बैठे थे ?
  2. गुरु हरगोबिंद जी ने कौन-सी उपाधि धारण की थी ?
  3. मीरी तलवार किस सत्ता की प्रतीक थी ?
  4. पीरी तलवार …………….. सत्ता की प्रतीक थी।
  5. किस गुरु साहिबान ने सिखों को संत सिपाही बना दिया ?

उत्तर-

  1. गुरु हरगोबिंद जी 1606 ई० में गुरुगद्दी पर बैठे थे।
  2. गुरु हरगोबिंद जी ने सच्चा पातशाह की उपाधि धारण की।
  3. मीरी तलवार सांसारिक सत्ता की प्रतीक थी।
  4. धार्मिक सत्ता।
  5. गुरु हरगोबिंद जी ने सिखों को संत सिपाही बना दिया।

2
गुरु हरगोबिंद साहिब द्वारा अपनाई गई नई नीति के विकास में अकाल तख्त साहिब का निर्माण बहुत सहायक सिद्ध हुआ। वास्तव में यह गुरु साहिब का महान् कार्य था। अकाल तख्त (ईश्वर की गद्दी) साहिब का निर्माण कार्य गुरु हरगोबिंद साहिब ने हरिमंदिर साहिब के सामने 1606 ई० में आरंभ करवाया था। यह कार्य 1609 ई० में संपूर्ण हुआ।
इसके भीतर एक 12 फीट ऊँचे चबूतरे का निर्माण किया गया जो एक तख्त के समान था। इस तख्त पर बैठकर गुरु हरगोबिंद साहिब जी सिखों के राजनीतिक एवं सांसारिक मामलों का नेतृत्व करते थे। वहाँ वे सिखों को सैनिक प्रशिक्षण देते थे तथा उनके मल्ल युद्ध तथा अन्य सैनिक कारनामे देखते थे। यहीं पर वे मसंदों से घोड़े और शस्त्र स्वीकार करते थे। सिखों में जोश उत्पन्न करने के लिए यहाँ ढाडी वीर-रस की वारें सुनाते थे। यहाँ पर बैठकर ही गुरु हरगोबिंद जी सिखों के परस्पर झगड़ों का भी निपटारा करते थे।

  1. अकाल तख्त से क्या भाव है ?
  2. अकाल तख्त साहिब का निर्माण किस शहर में किया गया था ?
  3. अकाल तख्त साहिब का निर्माण क्यों किया गया था ?
  4. गुरु हरगोबिंद जी अकाल तख्त साहिब में कौन-से कार्य करते थे ?
  5. अकाल तख्त साहिब का निर्माण कब आरंभ किया गया था ?
    • 1605 ई०
    • 1606 ई०
    • 1607 ई०
    • 1609 ई०।

उत्तर-

  1. अकाल तख्त से भाव है-परमात्मा की गद्दी।
  2. अकाल तख्त साहिब का निर्माण अमृतसर में किया गया था।
  3. अकाल तख्त साहिब का निर्माण सिखो के राजनीतिक तथा संसारिक मामलों के नेतृत्व के लिए किया गया था।
  4. गुरु हरगोबिंद जी यहाँ सिखों को सैनिक शिक्षा देते थे।
  5. 1606 ई०

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 7 गुरु हरगोबिंद जी और सिख पंथ का रूपांतरण

3
अमृतसर की लड़ाई के शीघ्र पश्चात् मुग़लों तथा सिखों के मध्य लहरा (भटिंडा के निकट) नामक स्थान पर दूसरी लड़ाई हुई। इस लड़ाई का कारण दो घोड़े थे जिनके नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे। इन दोनों घोड़ों को, जो कि बहुत बढ़िया नस्ल के थे बखत मल और तारा चंद नामक दो मसंद काबुल से गुरु साहिब को भेट करने के लिए ला रहे थे। मार्ग में ये दोनों घोड़े मुग़लों ने छीन लिए और उन्हें शाही घुड़साल में पहुँचा दिया। यह बात गुरु साहिब का एक सिख भाई बिधी चंद जी सहन न कर सका। वह भेष बदल कर दोनों घोड़े शाही घुड़साल से निकाल लाया और गुरु साहिब के पास पहुँचा दिया। जब शाहजहाँ को यह सूचना मिली तो वह क्रोधित हो उठा। उसने तुरंत लल्ला बेग तथा कमर बेग के नेतृत्व में एक भारी सेना सिखों के दमन के लिए भेजी। लहरा नामक स्थान पर मुग़लों तथा सिखों के मध्य भयंकर लड़ाई हुई। इस लड़ाई में मुग़लों का बहुत नुकसान हुआ।

  1. गुरु हरगोबिंद जी तथा मुगलों के मध्य लहरा की लड़ाई कब हुई थी ?
  2. उन दो घोड़ों के नाम लिखें जिस कारण लहरा की लड़ाई हुई थी ?
  3. कौन-सा सिख श्रद्धालु शाही अस्तबल में से घोड़ों को निकाल कर लाया था ?
  4. लहरा की लड़ाई में मुगलों के कौन-से सेनापति मारे गए थे ?
  5. लहरा की लड़ाई में मुग़लों का बहुत ……….. हुआ।

उत्तर-

  1. गुरु हरगोबिंद जी तथा मुग़लों के मध्य लहरा की लड़ाई 1634 ई० में हुई थी।
  2. उन दो घोड़ों के नाम दिलबाग तथा गुलबाग थे जिस कारण लहरा की लड़ाई हुई थी।
  3. भाई बिधी चंद जी वह सिख श्रद्धालु थे जो शाही अस्तबल में से घोड़ों को निकाल कर लाए थे।
  4. लहरा की लड़ाई में मुग़लों के मारे गए दो सेनापतियों के नाम लल्ला बेग तथा कमर बेग थे।
  5. नुकसान।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 21 जनसंचार माध्यम तथा लोकतन्त्र

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 21 जनसंचार माध्यम तथा लोकतन्त्र Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Civics Chapter 21 जनसंचार माध्यम तथा लोकतन्त्र

SST Guide for Class 7 PSEB जनसंचार माध्यम तथा लोकतन्त्र Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
जन संचार माध्यमों (मीडिया) तथा लोकतन्त्र में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
जन संचार माध्यमों (मीडिया) और लोकतन्त्र में गहरा सम्बन्ध है। यह लोगों को लोकतान्त्रिक देश में हो रही घटनाओं की जानकारी देता है। यह उन्हें सरकार के कार्यों के प्रति सचेत करता है। यह लोकतन्त्र को आगे बढ़ाता है जो लोकतन्त्र की आत्मा है। इसलिए मीडिया को लोकतन्त्र का प्रकाश स्तम्भ भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
जन संचार के आधुनिक साधनों के नाम लिखो।
उत्तर-
समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज़न तथा कम्प्यूटर जनसंचार के मुख्य आधुनिक साधन हैं। इनसे अशिक्षित लोगों को भी सरकार की गतिविधियों की जानकारी मिलती रहती है जिसके आधार पर वे अपने मत का निर्माण कर सकते हैं।

प्रश्न 3.
सूचना/जानकारी प्राप्त करने सम्बन्धी अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
सूचना के अधिकार के अनुसार लोग कोई भी ऐसी सूचना प्राप्त कर सकते हैं जिसका उन पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है। यह किसी भी अधिकारी के ग़लत कार्यों पर रोक लगाने अथवा निजी स्तर पर पूछताछ करने का अधिकार है।

प्रश्न 4.
विज्ञापन से आपका क्या भाव है?
उत्तर-
प्रत्येक उत्पादक अपनी वस्तु को अधिक-से-अधिक बेचना चाहता है। इसलिए वह लोगों का ध्यान अपने उत्पाद की ओर आकर्षित करने का प्रयास करता है। इसके लिए वह जो साधन अपनाता है, उसे विज्ञापन कहते हैं।

प्रश्न 5.
विज्ञापन कितनी प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
विज्ञापन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं –

  1. व्यापारिक विज्ञापन
  2. सामाजिक विज्ञापन

व्यापारिक विज्ञापन किसी वस्तु की मांग को बढ़ाते हैं, जबकि सामाजिक विज्ञापन समाज-सेवा को प्रोत्साहन देते हैं और सामाजिक बुराइयों को दूर करने में सहायता पहुंचाते हैं।

प्रश्न 6.
विज्ञापन के मुख्य उद्देश्य कौन-से हैं?
उत्तर-
विज्ञापन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. किसी विशेष वस्तु बारे सूचना देना अर्थात् यह जानकारी देना कि किसी वस्तु को कहां से खरीदना है और कैसे उपयोग में लाना है।
  2. लोगों को उत्पाद खरीदने के लिए प्रेरित करना।
  3. सम्बन्धित संस्था को लोगों की नज़रों में लाना।

प्रश्न 7.
सामाजिक विज्ञापन से क्या भाव है?
उत्तर-
सामाजिक विज्ञापन उस विज्ञापन को कहा जाता है जिसके द्वारा समाज-कल्याण के लिए प्रयोग होने वाली सेवाओं का विज्ञापन किया जाता है। ऐसे विज्ञापन लोगों को विभिन्न बीमारियों, आपदाओं तथा सामाजिक बुराइयों के प्रति सचेत करते हैं और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देते हैं। दूसरे शब्दों में सामाजिक विज्ञापनों से भाव समाज-कल्याण के विज्ञापनों से है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
व्यापारिक विज्ञापन में क्या कुछ होता है?
उत्तर-
व्यापारिक विज्ञापन खरीददार या उपभोक्ता से जुड़ा हुआ होता है। उपभोक्ताओं में अधिकतर उपभोग की वस्तुओं के खरीदार शामिल हैं। वे अपने उपयोग के लिए या घर के लिए वस्तुएं खरीदते हैं। इन वस्तुओं में मुख्यतः खाद्य पदार्थ, राशन-पानी, कपड़े और विद्युत् से चलने वाली वस्तुएं (रेडियो, टी०वी०, फ्रिज़ आदि) शामिल हैं। लाखों की संख्या में खरीदारों को आकृष्ट करने के लिए विक्रेता कई प्रकार के ढंग अपनाते हैं। वे समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं (मैगजीनों) टेलीविज़न, रेडियो द्वारा अपने सामान का विज्ञापन करते हैं। वस्तुओं को बेचने का सबसे पुराना ढंग गलियों में आवाज़ देकर फेरी करना है। यह ढंग आज भी सब्जियां, फल तथा अन्य कई वस्तुएं बेचने वाले करते हैं। ये विज्ञापन खरीदारों से सीधी अपील करके वस्तुओं की बिक्री में वृद्धि करते हैं। ऐसे विज्ञापन को उपभोक्ता विज्ञापन भी कहा जाता है।

प्रश्न 2.
विज्ञापनकर्ता अपनी वस्तुओं के प्रति लोगों का व्यवहार परिवर्तित करने के लिए कौन-से ढंग अपनाते हैं ?
उत्तर-
विज्ञापनकर्ता अपनी वस्तुओं के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदलने के लिए निम्नलिखित माध्यमों से विज्ञापन करते हैं –

  1. गलियों में फेरी लगाकर
  2. अखबारों, पत्रिकाओं आदि में अपने इश्तिहार देकर
  3. रेडियो, टेलीविज़न पर अपने विज्ञापन देकर।

प्रश्न 3.
सार्वजनिक सेवाओं के साथ सम्बन्धित दो विज्ञापनों के नाम बताओ ।
उत्तर-
सार्वजनिक सेवाओं के मुख्य विज्ञापन निम्नलिखित विषयों से सम्बन्धित होते हैं –

  1. सामाजिक मुद्दे
  2. परिवार नियोजन
  3. पोलियो उन्मूलन
  4. कैंसर से बचाव
  5. एड्स के प्रति जागरूकता
  6. भ्रूण हत्या को रोकना
  7. सामुदायिक मेल-मिलाप
  8. राष्ट्रीय एकता
  9. प्राकृतिक आपदाएं
  10. रक्तदान
  11. सड़क सुरक्षा इत्यादि।

प्रश्न 4.
विज्ञापन सम्बन्धी अधिनियमों की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर-
विज्ञापन अपने आप में न अच्छा है न बुरा, परन्तु यह एक ऐसा साधन है जिसका प्रयोग अच्छे या बुरे ढंग से किया जाता है क्योंकि इसका समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है, इसलिए बुरी वस्तु को बढ़ावा देने वाली वस्तुओं के विज्ञापनों पर रोक लगाना ज़रूरी है। इन पर विशेष अधिनियम बनाकर ही रोक लगाई जा सकती है। उदाहरण के लिए अमेरिका में तम्बाकू के विज्ञापन पर कानूनी रोक लगा दी गई है। अतः हम कह सकते हैं कि विज्ञापन सम्बन्धी अधिनियम बहुत ज़रूरी हैं, ताकि बुरी वस्तुओं से बचा जा सके।

प्रश्न 5.
उन नैतिक नियमों का विवरण दो जिन्हें जन संचार माध्यमों (मीडिया) द्वारा अपनाना आवश्यक है।
उत्तर-
मीडिया द्वारा निम्नलिखित नैतिक नियमों का अपनाया जाना ज़रूरी है –

  1. स्वतन्त्र रहकर लोगों तक सही एवं सच्ची सूचना पहुंचाना।
  2. लोक कल्याण को बढ़ावा देना।
  3. लोगों में जागरूकता पैदा करना ताकि वे स्वशासन चलाने योग्य नागरिक बन सकें।
  4. साम्प्रदायिक तनाव पैदा न होने देना।
  5. लोकतन्त्र को मज़बूत बनाने वाली सूचना का संचार करना।
  6. सामाजिक उत्तरदायित्व को सही ढंग से निभाना।

(ग) खाली स्थान भरो

  1. जन संचार माध्यम (मीडिया) आधुनिक शासन प्रणाली की कमियां बताने के लिए एक ………….. साधन है।
  2. जन संचार माध्यमों (मीडिया) की मुख्य भूमिका …………… प्रदान करना है।
  3. …………….. से भाव है कि अपने दायित्वों को ठीक ढंग से निभाना।
  4. विज्ञापन अपने …………….. के आधार पर अलग-अलग हैं।
  5. किसी वस्तु की ………………. को बढ़ाना विज्ञापन का मुख्य उद्देश्य है।
  6. प्रत्याशियों तथा राजनीतिक दलों के पक्ष में …………….. विज्ञापन होता है।

उत्तर-

  1. शक्तिशाली एवं सीधा
  2. सही सूचना
  3. सदाचार
  4. उद्देश्य
  5. बिक्री अथवा मांग
  6. राजनीतिक।

(घ) निम्नलिखित वाक्यों में ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ

  1. लोगों के समूह के साथ सम्पर्क करने को जनसंचार माध्यम कहा जाता है।
  2. प्रकाशन के साधन को लोकतन्त्र का प्रकाश स्तम्भ कहा जाता है।
  3. विज्ञापन के मुख्य प्रकार-व्यापारिक विज्ञापन व सामाजिक विज्ञापन हैं।

संकेत-

  1. (✓)
  2. (✓)
  3. (✓)

(ङ) बहु-वैकल्पिक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जनसंचार के इलेक्ट्रॉनिक साधन का नाम लिखें।
(क) अखबार
(ख) मैगज़ीन
(ग) टेलीविज़न।
उत्तर-
(ग) टेलीविज़न

प्रश्न 2.
विज्ञापन की मुख्य किस्में कितनी हैं ?
(क) दो
(ख) चार
(ग) छः।
उत्तर-
(क) दो

प्रश्न 3.
किस देश में प्रेस या छपाई के साधनों को लोकतन्त्र का प्रकाश स्तम्भ कहा जाता है?
(क) अफगानिस्तान
(ख) भारत
(ग) चीन।
उत्तर-
(ख) भारत

PSEB 7th Class Social Science Guide जनसंचार माध्यम तथा लोकतन्त्र Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मीडिया किसे कहते हैं?
उत्तर-
लोगों के समूह के साथ-साथ सम्पर्क करने के अलग-अलग ढंगों को मीडिया कहते हैं।

प्रश्न 2.
मीडिया के कुछ उदाहरण दो।
उत्तर-
समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, प्रैस, राजनीतिक दल, चुनाव आदि।

प्रश्न 3.
सबसे महत्त्वपूर्ण मीडिया कौन-सा है?
उत्तर-
प्रैस जिसमें समाचार-पत्र, मैगजीन, पुस्तकें आदि शामिल हैं।

प्रश्न 4.
प्रेस का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
प्रैस लोकतान्त्रिक राज्य में लोकमत का निर्माण करने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण माध्यम है। इसमें समाचारपत्र, मैगज़ीन (पत्रिकाएं) आदि शामिल हैं। दैनिक समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएं लोगों को राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की सूचनाएं प्रदान करती हैं। ये लोगों को विभिन्न राजनीतिक दलों की विचारधारा, संगठन-जातियों एवं सरकारी कार्यक्रमों के बारे में भी जानकारी देती हैं।

प्रश्न 5.
मीडिया के रूप में राजनीतिक दलों का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
राजनीतिक दल मीटिंगों, धरनों और चुनाव घोषणा-पत्रों द्वारा देश के नागरिकों को सरकार के कार्यों और कमजोरियों के सम्बन्ध में शिक्षित करते हैं। वे लोगों को सामाजिक समस्याओं की जानकारी देते हैं। इस प्रकार राजनीतिक दल लोकमत का निर्माण करने तथा उसे व्यक्त करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

प्रश्न 6.
चुनाव सन्तुलित लोकमत बनाने में कैसे सहायता करते हैं ?
उत्तर-
चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए लोगों को अपनी सफलताओं और अन्य दलों की विफलताओं के बारे में बता कर शिक्षित करते हैं। अतः लोग विभिन्न दलों के विचार सुनकर अपना सन्तुलित मत बनाते हैं।

प्रश्न 7.
सूचना अधिकार सम्बन्धी अधिनियम किन-किन राज्यों में बनाए गए हैं?
उत्तर-
सूचना अधिकार सम्बन्धी नियम कई राज्यों ने बनाया है। सबसे पहले ऐसा अधिनियम राजस्थान सरकार द्वारा 2000 में पास किया गया था। इसके अधीन जनता सरकार के शासन सम्बन्धी हर तथ्य के बारे में सूचना प्राप्त कर सकती है। 2000 के बाद ऐसे अधिनियम महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, गोआ तथा पंजाब राज्यों द्वारा भी पास किये गये हैं।

प्रश्न 8.
सूचना अधिकार नियम का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
सूचना अधिकार नियम भ्रष्ट अधिकारियों के ग़लत कार्यों पर रोक लगाने का महत्त्वपूर्ण हथियार है। अत: इससे भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी।

प्रश्न 9.
मानव विकास की प्रक्रिया में विज्ञापन के योगदान के बारे में लिखें।
उत्तर-
मानव विकास की प्रक्रिया में विज्ञापन अति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। समाज-कल्याण और समाजसुधार के क्षेत्र में विज्ञापन का बड़ा योगदान है। यह लोगों को ऐसे कामों के लिए उत्साहित और प्रेरित करता है जिनसे उनका अपना तथा पूरे समाज का भला होता है।

सही जोड़े बनाइए:

  1. पत्रकारिता (प्रेस) – बिजली का जनसंचार माध्यम
  2. टेलिविज़न – खरीददारों को आकर्षित करना
  3. व्यापारिक विज्ञापन – सड़क सुरक्षा, रक्तदान आदि के विज्ञापन।
  4. सामाजिक विज्ञापन – मुद्रित जनसंचार माध्यम

उत्तर-

  1. पत्रकारिता (प्रेस) – मुद्रित जनसंचार माध्यम
  2. टेलिविज़न – बिजली का जनसंचार माध्यम
  3. व्यापारिक विज्ञापन – खरीददारों को आकर्षित करना
  4. सामाजिक विज्ञापन – सड़क सुरक्षा, रक्तदान आदि के विज्ञापन।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

Punjab State Board PSEB 7th Class Agriculture Book Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Agriculture Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

PSEB 7th Class Agriculture Guide फसलों के कीट और बीमारियाँ Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दें:

प्रश्न 1.
धान की फसल की किस बीमारी से बंगाल में अकाल पड़ा ?
उत्तर-
भूरी चित्ती की बीमारी।

प्रश्न 2.
पंजाब में कपास की फसल का 1996-2002 तक किस कीट ने सबसे अधिक नुकसान किया ?
उत्तर-
अमरीकन सुंडी।

प्रश्न 3.
उन फसलों को क्या कहते हैं, जिनमें किसी अन्य जीव/जंतु के जीन जाते हैं ?
उत्तर-
ट्रांसजेनिक।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 4.
क्या रासायनिक दवाइयाँ मनुष्य के लिए हानिकारक हैं ?
उत्तर-
रासायनिक दवाइयां मनुष्य के लिए हानिकारक हैं क्योंकि यह ज़हर होती हैं।

प्रश्न 5.
किसी एक फसल के जीवाणु रोग का नाम लिखो।
उत्तर-
तने का गलना।

प्रश्न 6.
किसी एक फसल के विषाणु रोग का नाम लिखो।
उत्तर-
ठुठ्ठी रोग।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 7.
कोई दो रस चूसने वाले कीटों के नाम लिखो।
उत्तर-
तेला, चेपा।

प्रश्न 8.
कोई दो फल और तना छेदक कीटों के नाम लिखो।
उत्तर-
गन्ने का कीट, चितकबरी सुंडी, बैंगन की सुंडी, मक्की की फसल की शाख की मक्खी ।

प्रश्न 9.
पौधों की बीमारियों का फैलाव कैसे होता है ?
उत्तर-
बीमारी वाले बीज, बामारी वाले खेत, वर्षा तथा तेज़ हवा के कारण।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 10.
क्या एक कीट कई फसलों का नुकसान कर सकता है ? उदाहरण दें।
उत्तर-
हां, कर सकता है, जैसे-तेला, कपास, मक्की, धान आदि को हानि पहुंचाता

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
पौध-संरक्षण के कौन-कौन से ढंग हैं ?
उत्तर-
पौध संरक्षण के ढंग हैं-रासायनिक दवाइयां, रोग सहन करने वाली किस्में, भिन्न कीटनाशकों का प्रयोग, फसल की काश्त संबंधी व्यवस्थित तरीके; जैसे-बिजाई का समय, सिंचाई और खाद प्रबन्धन आदि कई मकैनिकल तरीके।

प्रश्न 2.
ट्रांसजेनिक विधि क्या होती है ?
उत्तर-
यह पौध संरक्षण का आधुनिक ढंग है। इस विधि में किसी भी जीव-जंतु से आवश्यक जीन फसलों में डाल कर पौध संरक्षण किया जा सकता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 3.
पौध-संरक्षण के असफल होने से कैसी स्थिति पैदा हो जाती है ?
उत्तर-
पौध संरक्षण के फेल होने से अकाल जैसी स्थिति पैदा हो जाती है।

प्रश्न 4.
अलग-अलग फसलों के रस चूसने वाले कीट कौन-से हैं ?
उत्तर-

रस चूसने वाला कीट फसल का नाम
1. तेला कपास, भिंडी, आम आदि
2. चेपा तेल बीज, गेहूँ, आड़ आदि
3. सफेद मक्खी कपास, टमाटर, पपीता आदि
4. मिली बग्ग कपास, आम, नींबू जाति के फल आदि।।

 

प्रश्न 5.
विषाणु रोग का फैलाव कैसे होता है और रोकथाम कैसे की जा सकती है ?
उत्तर-
पौधों में कीड़े-मकौड़ों द्वारा विषाणु रोग फैलते हैं। इनकी प्रभावशाली तरीके से रोकथाम मुश्किल है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 6.
फंगस से होने वाली फसलों की मुख्य बीमारियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-
फंगस या फंफूद से होने वाली बीमारियां हैं-झुलस रोग, बीज गलन रोग, कंगियारी, चिटों रोग।

प्रश्न 7.
कीड़े-मकौड़ों की कौन-सी मुख्य विशेषताएं हैं, जिनके कारण वह धरती पर अधिक संख्या में विद्यमान हैं ?
उत्तर-
शारीरिक बनावट, फलने-फूलने का ढंग, भिन्न-भिन्न भोजन पदार्थों की खाने की समर्था, फुर्तीलापन आदि ऐसे गुण हैं।

प्रश्न 8.
तना छेदक और फल छेदक कीट फसल का कैसे नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
ये कीट पौधे के भिन्न-भिन्न भागों के अन्दर जाकर नुकसान करते हैं; जैसेतने में छेद करते हैं, सब्जियों तथा फलों के अन्दर जाते हैं।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 9.
पत्ते खाने वाले कीट फसल का कैसे नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
यह कीट पत्तों को खाकर पौधे की प्रकाश संश्लेषण की समर्था को कम कर देते हैं।

प्रश्न 10.
रासायनिक दवाइयों के प्रयोग के लिए किन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है ?
उत्तर-
रासायनिक दवाइयों को बच्चों की पहुंच से दूर रखना चाहिए। प्रयोग के समय पूरी सावधानी रखनी चाहिए, यदि ये जहर चढ़ जाए तो तुरंत डॉक्टर को बुला लेना चाहिए।

(ग) पाँच-छ: वाक्यों में उत्तर दें :

प्रश्न 1.
हानिकारक कीट फसलों को किन-किन तरीकों से नुकसान पहुँचाते
उत्तर-
हानिकारक कीट फसलों को अलग-अलग ढंग से हानि पहुंचाते हैं—
1. कई कीट ; जैसे-तेला, चेपा, सफेद मक्खी , मिली बग्ग आदि पत्तों में से रस चूस कर इनमें से हरा मादा तथा खनिज पदार्थों की कमी कर देते हैं। इस तरह पत्ते पीले पड़ जाते हैं तथा पौधे की वृद्धि रुक जाती है।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 1
चित्र-फसल रस चूसने वाले कीट
चित्र-रस चूसने वाले कीट
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 2
चित्र-कपास की फसल पर टींडे की सुंडी का हमला
चित्र-तना छेदक कीट का हमला
चित्र-पत्ते को काट कर खाने वाली स्लेटी सुंडी

2. कुछ कीट पौधों के फलों तथा तनों आदि में जाकर नुकसान करते हैं; जैसे-गन्ने का कीट, मक्की की फसल में शाख की मक्खी, कपास की अमरीकन सुंडी आदि।

3. कुछ कीट पत्तों को खाकर प्रकाश संश्लेषण की समर्था कम कर देते हैं। यह या तो पत्तों को किनारों से मुख्य नाड़ी की तरफ खा जाते हैं या पत्तों का हरा मादा खा जाते हैं तथा पत्ते को छननी जैसा बना देते हैं। यह हैं-टिड्डे, सैनिक सुंडी, कंबल कीड़ा, हड्डा भंग आदि।

4. कुछ कीट जैसे दीमक, सफेद सुंडी ज़मीन के नीचे वाले भाग, जैसे-जडें, तना आदि को खा जाते हैं तथा पौधा मर जाता है।

PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ

प्रश्न 2.
फसलों की बीमारियों के मुख्य रूप से क्या-क्या कारण हैं ?
उत्तर-
फसलों को भिन्न-भिन्न अवस्था में फंगस, जीवाणु, विषाणु आदि से कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। पौधे की बीमारियां मुख्य रूप से बीमारी वाले बीजों, बीमारी वाले खेतों, वर्षा तथा तेज़ हवा के कारण एक खेत से दूसरे खेत में फैलती हैं।
फंगस से होने वाली बीमारियां—
फफूंद से होने वाली बीमारियां हैं—
झुलस रोग, बीज गलन रोग, कंगियारी, चिंटो रोग।
जीवाणुओं से होने वाली बीमारियां-तने का गलना, पत्तों का धब्बा रोग आदि। विषाणुओं से होने वाले रोग-जैसे ठुठ्ठी रोग, चितकबरा रोग।
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 3
चित्र-बीज गलन रोग
चित्र-मूंगी का चितकबरा रोग
PSEB 7th Class Agriculture Solutions Chapter 6 फसलों के कीट और बीमारियाँ 4
चित्र-कपास का ठूठी रोग

प्रश्न 3.
फसल-संरक्षण की क्या महत्ता है ?
उत्तर-
कृषि के क्षेत्र में बहुत उन्नति हुई है। बहुत उन्नत किस्में तथा नई तकनीकें खोज ली गई हैं परन्तु अधिक पैदावार लेने के लिए कीटों तथा रोगों से फसल का बचाव करना भी बहुत आवश्यक है। प्रत्येक वर्ष कीटों तथा रोगों के कारण एक तिहाई पैदावार का नुकसान हो जाता है। यह बचाव ही पौध संरक्षण है या फसल सुरक्षा है। यदि फसल की रोगों तथा कीटों के हमले से सुरक्षा नहीं की जाएगी तो अकाल पड़ सकता है, जैसे कि 1943 में बंगाल में धान को भूरी चित्ती के रोग के कारण हुआ था तथा 1996-2002 के दौरान पंजाब में कपास पर अमरीकन सुंडी के हमले के कारण सारी फसल ही नष्ट होने की कगार पर पहुंच गई थी। इसलिए फसल को सुरक्षित रख कर ही अधिक पैदावार तथा अधिक लाभ लिया जा सकता है।

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प्रश्न 4.
बीमारी या कीट के हमले से पहले पौध-संरक्षण के लिए कौन-से ढंग और सावधानियां अपनानी चाहिएं ?
उत्तर-
बीमारी या कीट के हमले से पहले अपनाए जाने वाले ढंग और सावधानियां इस प्रकार हैं—

  1. ऐसी किस्मों का चयन करें जो रोग सहने की समर्था रखती हों।
  2. बीजों की सुधाई करके बोना चाहिए।
  3. कुछ बीमारियों तथा कीटों से बचाव, खेतों को धूप में खुला रख कर किया जा सकता है।
  4. सिंचाई, खादें तथा दवाइयों का प्रयोग सही मात्रा में करना चाहिए, अनावश्यक नहीं ।
  5. खेतों के आस-पास मेडों पर खरपतवार को समाप्त करने से कीटों का हमला कम होता है।

प्रश्न 5.
बीमारी या कीट के हमले के बाद पौध-संरक्षण के लिए कौन-से ढंग और सावधानियां अपनानी चाहिएं ?
उत्तर-
बीमारी या कीटों का हमला होने के बाद प्रयोग किए जाने वाले ढंग इस प्रकार

  1. सबसे पहले बीमारी कौन-सी है, इसका कारण क्या है पता लगाएं। इसी प्रकार कीटों की पहचान करना भी आवश्यक है। इसके बाद इनकी रोकथाम की योजना तैयार करनी चाहिए। जैसे विषाणु रोग में इसको फैलाने वाले कीटों की रोकथाम करनी आवश्यक है।
  2. शुरू में ही जब बीमारी या कीटों का हमला कम होता है। ऐसे पौधों को उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए।
  3. कीट या बीमारी के कारण हुए नुकसान के लिए दिए गए चेतावनी वाले स्तर पर ही रासायनिक कीटनाशकों/फंफूदी नाशकों का प्रयोग करना चाहिए।
  4. रासायनिक दवाइयों का चुनाव कीट के स्वभाव, हमले की निशानियां तथा बीमारी के कारण के अनुसार ही करना चाहिए।
  5. रासायनिक दवाइयों का सही मात्रा तथा सही समय का ध्यान रख कर ही प्रयोग करना चाहिए।

योग्यता विस्तार–अलग-अलग फसलों/सब्जियों पर बीमारियों के हमले वाले नमूने इकट्ठे करके एक फाइल तैयार करो।

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Agriculture Guide for Class 7 PSEB फसलों के कीट और बीमारियाँ Important Questions and Answers

बहुत छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
तेला कौन-सी फसलों को नुकसान पहुंचाता है ?
उत्तर-
कपास, भिण्डी, मक्का, आम आदि।

प्रश्न 2.
चेपा कौन-सी फसलों को हानि करता है ?
उत्तर-
गेहूं, तेल बीज, गाजरी पौधे, आडू

प्रश्न 3.
सफेद मक्खी कौन-सी फसलों को हानि पहुंचाती है ?
उत्तर-
नरमा, दालें, टमाटर, पपीता आदि।

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प्रश्न 4.
मिली बग्ग कौन-सी फसलों को हानि पहुंचाता है ?
उत्तर-
नरमा, आम, नींबू जाति के फल, पपीता आदि।

प्रश्न 5.
किसी तना छेदक कीट का नाम बताएं।
उत्तर-
मक्की की फसल में शाख की मक्खी, कमाद का कीट।

प्रश्न 6.
फल छेदक कीट की पहचान कैसे की जाती है ?
उत्तर-
कीट द्वारा छोड़े गए मल-मूत्र से।

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प्रश्न 7.
फल छेदक कीट का उदाहरण दें।
उत्तर-
अमरीकन सुंडी, बैंगन की सुंडी।

प्रश्न 8.
पत्तों को काटकर खाने वाले कीट पत्ते को कैसे खाते हैं ?
उत्तर-
यह पत्तों को किनारों से मुख्य नाड़ी की तरफ खाते हैं।

प्रश्न 9.
पत्तों को काट कर खाने वाले कीटों का उदाहरण दें।
उत्तर-
टिड्डे, सैनिक सुंडी, स्लेटी सुंडी, लाल सुंडी, भुंग आदि।

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प्रश्न 10.
पत्तों को छननी बनाने वाले कीट पत्तों का कैसे नुकसान करते हैं ?
उत्तर-
यह पत्तों का हरा मादा खा जाते हैं परन्तु पत्तों की नाड़ियों को नुकसान नहीं करते जिस कारण पत्ते छननी जैसे हो जाते हैं।

प्रश्न 11.
पत्तों को छननी जैसा बनाने वाले कीटों के नाम बताओ।
उत्तर-
हड्डा भुंग, कंबल कीड़ा, गोभी की तितली।

प्रश्न 12.
जड़ को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों के नाम बताओ।
उत्तर-
दीमक, सफेद सुंडी।

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प्रश्न 13.
झुलस रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
पानी रिसते धब्बे पत्तों तथा तनों पर बनते हैं। सफेद फंफूद पत्तों के निचली ओर दिखाई देती है।

प्रश्न 14.
बीज गलन रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
ज़मीन के अन्दर ही बीज गल जाता है।

प्रश्न 15.
कंगियारी के लक्षण बताओ।
उत्तर-
इसमें दानों के स्थान पर काला धुड़ा बन जाता है।

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प्रश्न 16.
चिटों रोग कौन-सी फसल को लगते हैं ?
उत्तर-
बेर, मटर, आदि।

प्रश्न 17.
विषाणु रोग कैसे फैलते हैं ?
उत्तर-
विषाणु रोग कीड़े-मकौड़ों द्वारा फैलते हैं।

प्रश्न 18.
नरमे (कपास) में सफेद मक्खी कौन-सा रोग फैलाती है ?
उत्तर-
ठुठ्ठी रोग।

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प्रश्न 19.
क्या विषाणु रोगों की रोकथाम आसानी से हो जाती है ?
उत्तर-
नहीं, इनकी रोकथाम मुश्किल है।

प्रश्न 20.
ठुठ्ठी रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
पत्ते किनारों से अन्दर की ओर मुड जाते हैं।

प्रश्न 21.
चितकबरा रोग के लक्षण बताओ।
उत्तर-
पत्तों पर बिना क्रम के पीले तथा हरे धब्बे पड़ जाते हैं।

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प्रश्न 22.
पपीते को लगने वाला एक विषाणु रोग बताओ।
उत्तर-
ठुठ्ठी रोग।

प्रश्न 23.
मूंगी को लगने वाला एक विषाणु रोग बताओ।
उत्तर-
चितकबरा रोग।

प्रश्न 24.
कीटों तथा बीमारियों की उचित रोकथाम को कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
दो भागों में।

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प्रश्न 25.
कीटों या बीमारियों को समाप्त करने के लिए रसायनों का चुनाव किस अनुसार करना चाहिए ?
उत्तर-
कीट के स्वभाव, हमले की निशानियां तथा बीमारी के कारण के अनुसार।

प्रश्न 26.
यदि किसी को जहर चढ़ जाए तो क्या पिला कर उल्टी करवानी चाहिए ?
उत्तर-
नमक वाला पानी पिला कर।

प्रश्न 27.
उल्टी किस स्थिति में नहीं करवानी चाहिए ?
उत्तर-
जब मरीज़ बेहोश हो जाए।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
यदि कीटनाशक दवाइयां किसी की आंखों में पड़ जाएं तो क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
आंखों की पलकें खुली रखें और डॉक्टर के आने तक पानी से धोते रहें। डॉक्टर के बिना बताए कोई भी दवाई आँखों में न डालें।

प्रश्न 2.
कीटों का फसलों के विकास से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
कई कीट फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं जिससे उपज कम हो जाती है। कुछ कीट लाभकारी होते हैं; जैसे-मधुमक्खियां जो परागण क्रिया द्वारा फसलों की उपज बढ़ाने में सहायता करती हैं।

प्रश्न 3.
कीटनाशक दवाइयों की खाली बोतलों और डिब्बों को क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
खाली बोतलों और डिब्बों को जलाने की बजाय भूमि में दबा देना चाहिए।

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प्रश्न 4.
कृषि ज़हर छिड़काव करने वाले के खाने-पीने के बारे में बताएं।
उत्तर-
भूखे पेट छिड़काव न करें तथा छिड़काव के दौरान कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए। पहले ही पेट भरकर खाना खा लेना चाहिए।

प्रश्न 5.
सांस द्वारा अंदर गए जहर से बचाव के बारे में बताएं।
उत्तर-
रोगी को शीघ्र खुली हवा में ले जाएं तथा बंद कमरे की सभी खिड़कियां तथा दरवाजे खोल दें। रोगी के कपड़ों को ढीला कर दें। यदि सांस बंद हो रही हो या चाल में परिवर्तन नज़र आए तो उसे बनावटी सांस दें, परन्तु छाती पर भार न डालें। रोगी को सर्दी न लगने दें उसे कंबल आदि दें। रोगी को बोलने न दें। रोगी को घबराहट हो तो उसे अन्धेरे कमरे में रखें। वहां शोर आदि न करें।

प्रश्न 6.
रोमों द्वारा अंदर गए जहर से बचाव के बारे में बताएं।
उत्तर–
पानी से शरीर को गीला करें तथा रोगी के सारे कपड़े उतारकर शरीर पर लगातार पानी डालें। शरीर को पानी से लगातार साफ़ करें। शरीर को जल्दी धो लें, क्योंकि इससे काफ़ी फर्क पड़ता है।

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प्रश्न 7.
जहरीली दवाई आंख में पड़ जाने पर क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
ऐसी हालत में निम्नलिखित बातों का पालन करना चाहिए—

  1. आंखों की पलकें खुली रखें।
  2. बहते पानी से जितनी जल्दी हो आंखों को धीरे-धीरे धोएं।
  3. डॉक्टर के आने तक आंखों को धोते रहें।
  4. किसी दवाई का प्रयोग डॉक्टर की सलाह के बिना न करें। ग़लत दवाई हानिकारक हो सकती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि जहर से बचाव के आम साधन बताएं।
उत्तर-
रोगी को ठंड से बचाने के लिए हल्के कंबल का प्रयोग करें। इस काम के लिए गर्म पानी वाली बोतल का प्रयोग न करें। रोगी का बिस्तर पांव की तरफ से ऊंचा रखें तथा टांग और बाजुओं को फीतों से बांध दें। रोगी को चुस्ती के लिए हाइपोडरमिक टीके जैसे कैफीन तथा एपाइनाफ्रिन लगाएं। डेक्सटरोज 5% का घोल नाड़ी से शरीर में भेजें। रोगी को खून या प्लाज़मा भी दें। रोगी को तेज़ तथा ज्यादा दवाइयां देकर न थकाएं।

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प्रश्न 2.
कृषि ज़हरों के उचित प्रयोग का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
कृषि ज़हरों के उचित प्रयोग के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है, जो इस प्रकार हैं—

  1. पहले कीड़े, बीमारी तथा नदीनों की पहचान करके ही बताए गए ज़हर को उचित मात्रा में प्रयोग करें। हर कीड़े, बीमारी तथा नदीन के लिए अलग-अलग ज़हर अलग-अलग मात्रा में प्रयोग किया जाता है।
  2. दुकानदार की ग़लत राय न मानें बल्कि कृषि विशेषज्ञों से विचार-विमर्श करें।
  3. कभी भी कीटनाशक और नदीननाशकों को कृषि विशेषज्ञों से विचार-विमर्श किए बगैर मिलाकर न छिड़कें।
  4. कृषि ज़हरों का छिड़काव जिस दिन हवा न चल रही हो या कम हवा चलने के दौरान ही किया जाना चाहिए। छिड़काव करने वाले व्यक्ति का मुँह भी हवा की दिशा से उल्टा होना चाहिए।
  5. यदि छिड़काव करने के 24 घंटे के भीतर वर्षा हो जाए तो दोबारा छिड़काव करें।

प्रश्न 3.
कृषि ज़हरों के सुरक्षित प्रयोग के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
इनके सुरक्षित प्रयोग के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए—

  1. घरों में इन कीटनाशकों को खाने-पीने की वस्तुओं तथा दवाइयों से दूर रखें।
  2. कृषि ज़हर की शीशी या डिब्बे पर लिखे निर्देशों को ध्यान से पढ़कर ही उसे प्रयोग में लाएं।
  3. कीटनाशक दवाइयों वाली बोतलों और डिब्बों का दोबारा प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  4. कृषि ज़हरों को घर में हमेशा बच्चों की पहुंच से दूर रखें।
  5. यदि छिड़काव करते समय नोजल बंद हो जाए तो कभी भी मुँह से फूंक मारकर इसे खोलने की कोशिश न करें।
  6. छिड़काव करने से पहले ही पेट भर खाना खा लेना चाहिए। कभी भी खाली पेट छिड़काव न करें। खाने-पीने से पहले अच्छी तरह साबुन से हाथ धो लें।
  7. छिड़काव करने वाले व्यक्ति को दिन में 8 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए।
  8. कीटनाशक दवाइयों को पानी में घोलते समय छींटा वगैरह नहीं पड़ने देना चाहिए।
  9. तेज़ हवा वाले दिन छिड़काव न करें।
  10. छिड़काव का काम खत्म करके पहने हुए कपड़े बदलकर साबुन से अच्छी तरह धो लें।
  11. दवाई वाले खाली डिब्बों को न जलाएं बल्कि इन्हें भूमि में दबा दें।

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प्रश्न 4.
निगली हुई कीटनाशक दवाई से बचाव के लिए क्या करना चाहिए ?
उत्तर-
यदि कृषि ज़हर निगल लिया हो तो उल्टी करवानी चाहिए। इसके लिए एक चम्मच नमक गर्म पानी में घोलकर रोगी को दें तथा तब तक देते रहें जब तक उल्टी न हो जाए। गले को उंगली से धीरे-धीरे टटोलें या चम्मच की पिछली तरफ को गले में रखने से जब पेट नमकीन पानी से भर जाए तो उल्टी आसानी से होगी।

यदि रोगी पहले ही उल्टी कर दे तो उसे बिना नमक के गर्म पानी ज्यादा मात्रा में दें। साथ बताए गए निर्देशों का पालन करें। यदि रोगी बेहोश हो जाए तो उल्टी की दवाई न दें।

फसलों के कीट और बीमारियाँ PSEB 7th Class Agriculture Notes

  • फसलों की अधिक पैदावार के लिए फसलों की कीटों तथा बीमारियों से सुरक्षा बहुत आवश्यक है।
  • प्रत्येक वर्ष बीमारियों तथा कीटों के कारण एक तिहाई पैदावार का नुकसान हो जाता है।
  • बंगाल में 1943 में धान में भूरी चित्ती की बीमारी के कारण अकाल पड़ गया था।
  • पंजाब में 1996 से 2002 तक अमरीकन सुंडी के हमले के कारण कपास की फसल तबाह हो गई थी।
  • कीड़े-मकौड़ों की जातियां अन्य सभी प्राणियों से अधिक हैं। ये अपने आप को प्रत्येक वातावरण में ढाल लेते हैं।
  • फसल को मुख्य रूप से चार प्रकार के कीट नुकसान पहुँचाते हैं।
  • रस चूसने वाले कीट हैं-तेला, चेपा, सफेद मक्खी आदि।
  • फल और तना छेदक कीट हैं-गन्ने का कीट, गुलाबी सुंडी, शाख की मक्खी, अमरीकन तथा चितकबरी सुंडी, बैंगन की सुंडी आदि।
  • पत्तों को खाने वाले कीट-टिड्डे, सैनिक सुंडी, लाल भंग, स्लेटी भंग आदि।
  • पत्तों को छननी बनाने वाले कीट हैं-हड्डा भंग, कंबल कीड़ा, गोभी की तितली आदि।
  • जड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट-दीमक, सफेद सुंडी आदि।
  • फसलों को बीमारियां, फंगस, जीवाणु, विषाणु आदि से लगती हैं।
  • फफूंद से लगने वाली बीमारियां हैं-झुलस रोग, बीज गलन रोग, कंगियारी, चिंटो रोग।
  • विषाणुओं से लगने वाले रोग हैं-ठुठ्ठी रोग, चितकबरा रोग।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

मिसलों की उत्पत्ति तथा विकास (Origin and Development of Misls)

प्रश्न 1.
पंजाब में सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास का विवरण दीजिए।
(Trace the origin and development of Sikh Misls in the Punjab)
अथवा
‘मिसल’ शब्द का आप क्या अर्थ समझते हैं ? सिख मिसलों की उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
(What do you understand by the term ‘Misl? ? Describe the origin of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसल की परिभाषा दीजिए। आप सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास के विषय में क्या जानते हैं ?
(Define Misl. What do you know about the origin and growth of Sikh Misls ?)
अथवा
‘मिसल’ शब्द से आपका क्या अभिप्राय है ? प्रमुख सिख मिसलों के इतिहास का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
(What do you understand by the term ‘Misl’ ? Give an account of the history of the important Sikh Misls.)
अथवा
‘मिसल’ शब्द से क्या भाव है ? सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास का वर्णन करें।
(What do you mean by word Misl ? Describe the origin and growth of Sikh Misls.)
उत्तर-
शताब्दी में पंजाब में सिख मिसलों की स्थापना यहाँ के इतिहास के लिए एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।
(क) सिख मिसल से अभिप्राय (The Meaning of the Sikh Misl)-मिसल अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है एक समान या बराबर। 18वीं शताब्दी के दूसरे मध्य में पंजाब में सिखों ने 12 मिसलें स्थापित कर ली थीं। प्रत्येक मिसल का सरदार दूसरी मिसल के सरदारों के साथ एक जैसा व्यवहार करता था परंतु वे अपना आंतरिक शासन चलाने में पूर्ण रूप से स्वतंत्र थे। सिख जत्थों की इस सामान्य विशेषता के कारण उनको मिसलें कहा जाता था।

(ख) सिख मिसलों की उत्पत्ति (Origin of the Sikh Misls)—मुग़लों के सिखों पर बढ़ रहे अत्याचारों और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमण को देखते हुए नवाब कपूर सिंह ने सिखों में एकता की कमी अनुभव की। इस उद्देश्य से 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में वैशाखी के दिन दल खालसा की स्थापना की गई। दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए। प्रत्येक जत्थे का अपना अलग सरदार और झंडा था। इन जत्थों को ही मिसल कहा जाता था। इन मिसलों ने सन् 1767 ई० से 1799 ई० के दौरान पंजाब के विभिन्न भागों में अपने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिए थे।

(ग) सिख मिसलों का विकास (Growth of the Sikh Misls)-1767 ई० से लेकर 1799 ई० के दौरान जमुना और सिंध नदियों के बीच के क्षेत्रों में सिखों ने 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित की। इन मिसलों के विकास और उनके इतिहास संबंधी संक्षेप जानकारी निम्नलिखित अनुसार है—
1. फैजलपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-इस मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सर्वप्रथम अमृतसर के समीप फैज़लपुर नामक गाँव पर अधिकार किया था। इसलिए इस मिसल का नाम फैज़लपुरिया मिसल पड़ गया था। नवाब कपूर सिंह अपनी वीरता के कारण सिखों में बहुत प्रख्यात था। फैजलपुरिया मिसल के अधीन जालंधर, लुधियाना, पट्टी, नूरपुर तथा बहिरामपुर आदि प्रदेश सम्मिलित थे। 1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु के उपरांत खुशहाल सिंह तथा बुद्ध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

2. भंगी मिसल (Bhangi Misl) भंगी मिसल की स्थापना यद्यपि सरदार छज्जा सिंह ने की थी परंतु सरदार हरी सिंह को इस मिसल का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। झंडा सिंह एवं गंडा सिंह इस मिसल के अन्य प्रसिद्ध नेता थे। इस मिसल का लाहौर, अमृतसर, गुजरात एवं स्यालकोट आदि प्रदेशों पर अधिकार था। क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भंग पीने की बहुत आदत थी इसलिए इस मिसल का नाम भंगी मिसल पड़ा। .

3. आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl) आहलूवालिया मिसल की स्थापना सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने की थी। क्योंकि वह लाहौर के निकट आहलू गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम आलहूवालिया पड़ा। वह एक महान् नेता था। उसे 1748 ई० में दल खालसा का प्रधान सेनापति बनाया गया था। उसने लाहौर, कसूर एवं सरहिंद पर अधिकार करके अपनी वीरता का प्रमाण दिया। उसे सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया था। आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम कपूरथला था। 1783 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया की मृत्यु के पश्चात् भाग सिंह तथा फतेह सिंह आहलूवालिया ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

4. रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)-रामगढ़िया मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था। इस मिसल का सबसे प्रख्यात नेता सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया था। उसने दीपालपुर, कलानौर, बटाला, उड़मुड़ टांडा, हरिपुर एवं करतारपुर नामक प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया था। इस मिसल की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया की मृत्यु के उपरांत सरदार जोध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया। .

5. शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl)-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक सरदार चढ़त सिंह था। क्योंकि उसके पुरखे शुकरचक गाँव से संबंधित थे इसलिए इस मिसल का नाम शुकरचकिया मिसल पड़ा। वह एक साहसी योद्धा था। उसने ऐमनाबाद, गुजराँवाला, स्यालकोट, वजीराबाद, चकवाल, जलालपुर तथा रसूलपुर
आदि प्रदेशों पर अपना अधिकार कर लिया था। शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम गुजराँवाला था। चढ़त सिंह के पश्चात् महा सिंह तथा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल का कार्यभार संभाला। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था तथा यह विजय पंजाब के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।

6. कन्हैया मिसल (Kanahiya Misl) कन्हैया मिसल का संस्थापक जय सिंह था। क्योंकि वह कान्हा गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम कन्हैया मिसल पड़ा। जय सिंह काफी बहादुर था। उसने मुकेरियाँ, गुरदासपुर, पठानकोट तथा काँगड़ा के क्षेत्रों पर अपना अधिकार कर लिया था। 1798 ई० में जय सिंह की मृत्यु के पश्चात् सदा कौर इस मिसल की नेता बनी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सास थी तथा बहुत महत्त्वाकांक्षी थी।

7. फूलकियाँ मिसल (Phulkian Misl)-फूलकियाँ मिसल की स्थापना चौधरी फूल नामक एक जाट ने की थी। इसमें पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेश शामिल थे। पटियाला के प्रख्यात फूलकियाँ सरदार बाबा आला सिंह, अमर सिंह तथा साहिब सिंह, नाभा के हमीर सिंह एवं जसवंत सिंह तथा जींद के गजपत सिंह एवं भाग सिंह थे।

8. डल्लेवालिया मिसल (Dallewalia Misl)–डल्लेवालिया मिसल का संस्थापक गुलाब सिंह था। तारा सिंह घेबा इस मिसल का प्रख्यात सरदार था। इस मिसल का फिल्लौर, राहों, नकोदर, बद्दोवाल आदि प्रदेशों पर अधिकार था।

9. नकई मिसल (Nakkai Misl)—नकई मिसल का संस्थापक सरदार हीरा सिंह था। उसने नक्का, चुनियाँ, दीपालपुर, कंगनपुर, शेरगढ़, फरीदाबाद आदि प्रदेशों पर अधिकार करके नकई मिसल का विस्तार किया। रण सिंह नकई सरदारों में से सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसने कोट कमालिया तथा शकरपुर के प्रदेशों पर अधिकार करके नकई मिसल में शामिल किया।

10. निशानवालिया मिसल (Nishanwalia Misl)-इस मिसल का संस्थापक सरदार संगत सिंह था। इस मिसल के सरदार दल खालसा का झंडा या निशान उठाकर चलते थे, जिस कारण इस मिसल का नाम निशानवालिया मिसल पड़ गया। संगत सिंह ने अंबाला, शाहबाद, सिंघवाला, साहनेवाल, दोराहा आदि प्रदेशों पर कब्जा करके अपनी मिसंल का विस्तार किया। उसने सिंघवाला को अपनी राजधानी बनाया। 1774 ई० में संगत सिंह की मृत्यु के बाद उसका भाई मोहन सिंह इस मिसल का सरदार बना।

11. शहीद मिसल (Shahid Misl) शहीद मिसल का संस्थापक सरदार सुधा सिंह था। क्योंकि इस मिसल के सरदार अफ़गानों के साथ हुई लड़ाइयों में शहीद हो गए थे इस कारण इस मिसल को शहीद मिसल कहा जाने लगा। बाबा दीप सिंह जी, इस मिसल के सबसे लोकप्रिय नेता थे। उन्होंने 1757 ई० में अमृतसर में अफ़गानों से लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की थी। कर्म सिंह और गुरबख्श सिंह इस मिसल के दो अन्य दो अन्य ख्याति प्राप्त नेता थे। इस मिसल में सहारनपुर, शहजादपुर और केसनी नाम के क्षेत्र शामिल थे। इस मिसल के अधिकतर लोग निहंग थे जो नीले वस्त्र पहनते थे। इसलिए शहीद मिसल को निहंग मिसल भी कहा जाता है।

12. करोड़सिंधिया मिसल (Krorsinghia Misl)—इस मिसल का संस्थापक करोड़ा सिंह था जिस कारण इसका नाम करोड़सिंघिया मिसल पड़ गया। क्योंकि करोड़ा सिंह पंजगड़िया गाँव का रहने वाला था इसलिए इस मिसल को पंजगड़िया मिसल भी कहा जाता है। 1764 ई० में करोड़ा सिंह की मृत्यु के पश्चात् बघेल सिंह इस मिसल का मुखिया बना। वह करोड़सिंघिया मिसल के मुखियों में से सबसे अधिक प्रसिद्ध था। उसने करनाल के निकट स्थित चलोदी को अपनी राजधानी बनाया। उसने नवांशहर और बंगा के क्षेत्रों को अपनी मिसल में सम्मिलित किया। बघेल सिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र जोध सिंह मिसल का सरदार बना। उसने मालवा के कई प्रदेशों पर कब्जा कर लिया था।

सिख मिसलों के शासक अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप में शासन करते थे, परंत उनकी विशेष बात यह थी कि वे समस्त सिख जाति के साथ संबंधित मामलों पर विचार करने के लिए विशेष अवसरों पर अकाल तख्त साहिब अमृतसर में एकत्र होते थे। यहाँ वे गुरु ग्रंथ साहिब की उपस्थिति में प्रस्ताव पास करते थे। इन्हें गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सभी सिख सम्मान करते थे। इस कारण उनमें आपसी संबंध बने रहे।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

मिसल का राज्य प्रबंध (Administration of the Misls)

प्रश्न 2.
सिख मिसलों के संगठन पर एक नोट लिखें। (Write a note on the Organisation of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसलों के संगठन की प्रकृति का वर्णन कीजिए। (Discuss the nature of the Organisation of Misls.)
अथवा
सिख मिसलों के राज प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ लिखिए। (Bring out the main features of the Administration of the Sikh Misls.)
अथवा
मिसलों के नागरिक तथा सैनिक प्रबंध का विवरण दें। (Give an account of Civil and Military Administration of the Misls.)
अथवा
सिख मिसलों की उत्पत्ति और विकास के विषय में आप क्या जानते हो ? (What do you know about the origin and growth of the Sikh Misls ?)
अथवा
मिसलों के अंदरूनी शासन प्रबन्ध की व्याख्या करो।
(Describe the internal administration system of the Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के संगठन का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
I. गुरमता (Gurmata)
गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। इसका शाब्दिक अर्थ है, “गुरु का मत या निर्णय”। दूसरे शब्दों में गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय स्वीकार किए जाते हैं उनको गुरमता कहते हैं। सरबत खालसा के सम्मेलनों में सिख पंथ के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक मामलों से संबंधित गुरमते पास किए जाते थे। सभी सिख इन गुरमतों को गुरु की आज्ञा मान कर पालना करते थे।

II. मिसलों का आंतरिक संगठन (Internal Organisation of the Misls)
1. सरदार और मिसलदार (Sardar and Misldar)-प्रत्येक मिसल के मुखिया को सरदार कहा जाता था और प्रत्येक सरदार के अधीन कई मिसलदार होते थे। सरदार की तरह मिसलदारों के पास भी अपनी सेना होती थी। सरदार जीते हुए क्षेत्रों में से कुछ भाग अपने अधीन मिसलदारों को दे देता था। प्रारंभ में सरदार का पद पैतृक नहीं होता था। धीरे-धीरे सरदार का पद पैतृक हो गया। चाहे सरदार निरंकुश थे पर वे अत्याचारी नहीं थे। वे प्रजा से अपने परिवार की तरह प्यार करते थे।

2. जिले (Districts) मिसलों को कई जिलों में बाँटा गया था। प्रत्येक जिले के मुखिया को कारदार कहा जाता था। वह ज़िले का शासन प्रबंध चलाने के लिए ज़िम्मेदार होता था।

3. गाँव (Villages)-मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में होता था। गाँव के लगभग सारे मामले पंचायत द्वारा ही हल कर लिए जाते थे। लंबरदार, पटवारी और चौकीदार गाँव के महत्त्वपूर्ण कर्मचारी थे।

III. मिसलों का आर्थिक प्रबंध (Financial Administration of the Misls)
1. लगान प्रबंध (Land Revenue Administration) मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। इसकी दर भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होती थी। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार रबी और खरीफ फसलों के तैयार होने के समय लिया जाता था। लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली प्रचलित थी। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था। मिसल काल में भूमि अधिकार संबंधी चार प्रथाएँ–पट्टीदारी, मिसलदारी, जागीरदारी तथा ताबेदारी प्रचलित थीं।

2. राखी प्रथा (Rakhi System)-पंजाब के लोगों को विदेशी हमलावरों तथा सरकारी कर्मचारियों से सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए अनेक गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। मिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूट-पाट से बचाते थे। इस रक्षा के बदले उस गाँव के लोग अपनी उपज का पाँचवां भाग वर्ष में दो बार मिसल के सरदार को देते थे। इस तरह यह राखी कर मिसलों की आय का एक अच्छा साधन था।

3. आय के अन्य साधन (Other Sources of Income)—इसके अतिरिक्त मिसल सरदारों को चुंगी कर, _ भेंटों और युद्ध के समय की गई लूटमार से भी कुछ आय प्राप्त हो जाती थी।

4. व्यय (Expenditure)-मिसल सरदार अपनी आय का एक बड़ा भाग सेना, घोड़े, शस्त्रों, नए किलों के निर्माण और पुराने किलों की मुरम्मत पर व्यय करता था। इसके अतिरिक्त मिसल सरदार गुरुद्वारों और मंदिरों को दान भी देते थे और निर्धन लोगों के लिए लंगर भी लगाते थे।

IV. न्याय प्रबंध (Judicial Administration)
1. पंचायत (Panchayat) मिसलों के समय पंचायत न्याय प्रबंध की सबसे छोटी अदालत होती थी। पंचायत प्रत्येक गाँव में होती थी। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर का रूप समझकर उसका फैसला स्वीकार कर लेते थे।

2. सरदार की अदालत (Sardar’s Court)—प्रत्येक मिसल का सरदार अपनी अलग अदालत लगाता था। इसमें वह दीवानी और फौजदारी दोनों तरह के मुकद्दमों का निर्णय करता था। वह किसी भी अपराधी को मृत्यु का दंड देने का भी अधिकार रखता था परंतु वे आम तौर पर अपराधियों को नर्म सज़ाएँ ही देते थे।

3. सरबत खालसा (Sarbat Khalsa)-सरबत खालसा को सिखों की सर्वोच्च अदालत माना जाता था। मिसलदारों के आपसी झगड़ों और सिख कौम से संबंधित मामलों की सुनवाई सरबत खालसा द्वारा की जाती थी। सरबत खालसा मुकद्दमों का फैसला करने के लिए अकाल तख्त अमृतसर में एकत्रित होता था। उस द्वारा पास किए गए गुरमत्तों की सभी सिख पालना करते थे।

4. कानून और सजाएँ (Laws and Punishments) सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं था। मुकद्दमों के फैसले प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किये जाते थे। उस काल की सज़ाएँ कड़ी नहीं थीं। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था।

V. सैनिक प्रबंध (Military Administration)
1. घुड़सवार सेना (Cavalry)-घुड़सवार सेना मिसलों की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग था। सिख बहुत निपुण घुड़सवार थे। सिखों के तीव्र गति से दौड़ने वाले घोड़े उनकी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के संचालन में बहुत सहायक सिद्ध हुए।

2. पैदल सैनिक (Infantry)-मिसलों के समय पैदल सेना को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। पैदल सैनिक किलों में पहरा देते, संदेश पहुँचाते और स्त्रियों और बच्चों की देखभाल करते थे।

3. भर्ती (Recruitment)-मिसल सेना में भर्ती होने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जाता था। सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता था। उनको नकद वेतन के स्थान पर युद्ध के दौरान की गई लूटमार से हिस्सा मिलता था।

4. सैनिकों के शस्त्र और सामान (Weapons and Equipment of the Soldiers)-सिख सैनिक युद्ध के समय तलवारों, तीर-कमानों, खंजरों, ढालों और बौँ का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त वे बंदूकों का प्रयोग भी करते थे।

5. लड़ाई का ढंग (Mode of Fighting)–मिसलों के समय सैनिक छापामार ढंग से अपने शत्रुओं का मुकाबला करते थे। इसका कारण यह था कि दुश्मनों के मुकाबले सिख सैनिकों के साधन बहुत सीमित थे। मारो और भागो इस युद्ध नीति का प्रमुख आधार था। सिखों की लड़ाई का यह ढंग उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण बना।

6. मिसलों की कुल सेना (Total Strength of the Misls)-मिसल सैनिकों की कुल संख्या के संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। बी० सी० ह्यगल के अनुसार मिसलों के समय सिख सैनिकों की संख्या 69,500 थी। फ्रोस्टर के अनुसार मिसल सैनिकों की कुल संख्या दो लाख के लगभग थी। आधुनिक इतिहासकारों डॉ० हरी राम गुप्ता और एस० एस० गाँधी आदि के अनुसार यह संख्या लगभग एक लाख थी।
अंत में हम एस० एस० गाँधी के इन शब्दों से सहमत हैं,
“मिसल संगठन बिना शक बेढंगा था, परंतु यह उस समय के अनुरूप था। इसकी अपनी ही सफलताएँ और महान् प्राप्तियाँ थीं।”1

1. “The Misl organisation was undoubtedly. crude but it suited the times. It had its triumphs and grand achievements to its credit.” S.S. Gandhi, Struggle of the Sikhs for Sovereignty (Delhi : 1980) p. 300.

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संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मिसल शब्द से क्या अभिप्राय है ? मिसलों की उत्पत्ति कैसे हुई ? (What do you mean by the word Misl ? How did the Misls originate ?)
अथवा
मिसलों की उत्पत्ति का संक्षिप्त वर्णन करें। (Explain in brief about the origin of Misls.) (P.S.E.B. Mar. 2007, July 09)
अथवा
मिसलों से आपका क्या अभिप्राय है ? संक्षेप में उनकी उत्पत्ति के बारे में लिखें। (What do you understand by Misls ? Describe in brief about their origin.)
उत्तर-
मिसल से अभिप्राय फाइल से है जिसमें मिसलों के विवरण दर्ज किए जाते थे। बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् पंजाब के मुग़ल सूबेदारों ने सिखों पर घोर अत्याचार किए। परिणामस्वरूप सिखों ने पहाड़ों और जंगलों में जाकर शरण ली। मुग़लों और अहमद शाह अब्दाली के आक्रमणों का मुकाबला करने के लिए 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की गई। दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए। कालांतर में इन जत्थों ने पंजाब में 12 स्वतंत्र सिख मिसलें स्थापित की।

प्रश्न 2.
मिसलों के संगठन के स्वरूप पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on the nature of Misl organisation.)
उत्तर-
सिख मिसलों के संगठन के स्वरूप के बारे में इतिहासकारों ने भिन्न-भिन्न मत प्रकट किए हैं। इसका कारण यह था कि मिसलों का राज्य प्रबंध किसी निश्चित शासन प्रणाली के अनुसार नहीं चलाया जाता था। अलगअलग सरदारों ने शासन प्रबंध चलाने के लिए आवश्यकतानुसार अपने-अपने नियम बना लिए थे। जे० डी० कनिंघम के विचारानुसार, सिख मिसलों के संगठन का स्वरूप धर्मतांत्रिक, संघात्मक और सामंतवादी.था। डॉ० ए० सी० बैनर्जी के विचारानुसार, “मिसलों का संगठन बनावट में प्रजातंत्रीय और एकता प्रदान करने वाले सिद्धांतों में धार्मिक था।”

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प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कूपर सिंह के जीवन का संक्षिप्त में वर्णन करें।
(Give a brief account of the life of Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कूपर सिंह कौन थे। उनकी सफलताओं का वर्णन करो। (Who was Nawab Kapoor Singh ? Describe his achievements.)
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह फैज़लपुरिया मिसल के संस्थापक थे। 1733 ई० में पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ ने उन्हें नवाब का पद तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर दी। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिखों को दो जत्थों-बुड्डा दल और तरुणा दल में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना की। उन्होंने सिख पंथ का घोर कठिनाइयों के समय नेतृत्व किया। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 4.
जस्सा सिंह आहलूवालिया की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the achievements of Jassa Singh Ahluwalia.)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया के विषय में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ahluwalia ?)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया पर एक नोट लिखें।
(Write a note on Jassa Singh Ahluwalia.)
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया मिसल के संस्थापक थे। 1748 ई० में दल खालसा की स्थापना के समय जस्सा सिंह आहलूवालिया को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। 1761 ई० में जस्सा सिंह ने लाहौर पर विजय प्राप्त की। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे के समय जस्सा सिंह ने अहमद शाह अब्दाली की सेना से डट कर मुकाबला किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया। जस्सा सिंह ने कपूरथला पर कब्जा कर उसे आहलूवालिया मिसल की राजधानी घोषित किया। 1783 ई० में वह हम से सदा के लिए बिछुड़ गए।

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प्रश्न 5.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ? उसकी सफ़लताओं का संक्षेप वर्णन करें। (Who was Jassa Singh Ramgarhia ? Write a short note on his achievements.)
अथवा
जस्सा सिंह रामगढ़िया के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ramgarhia ?)
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता था। मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् पंजाब में फैली अराजकता का लाभ उठाकर जस्सा सिंह ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, टाँडा, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसके नेतृत्व में यह मिसल उन्नति के शिखर पर पहुँच गई थी। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह की 1803 ई० में मृत्यु हो गई।

प्रश्न 6.
महा सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Mahan Singh.)
उत्तर-
1774 ई० में महा सिंह शुकरचकिया मिसल का नया मुखिया बना। महा सिंह ने शुकरचकिया मिसल के प्रदेशों का विस्तार प्रारंभ किया। उसने सबसे पहले रोहतास पर अधिकार किया। इसके पश्चात् रसूल नगर और अलीपुर प्रदेशों पर अधिकार किया। महां सिंह ने सभी सरदारों से मुलतान, बहावलपुर, साहीवाल आदि प्रदेशों को भी जीत लिया। बटाला के निकट हुए युद्ध में जय सिंह का पुत्र गुरबख्श सिंह मारा गया। कुछ समय पश्चात् शुकरचकिया और कन्हैया मिसलों में मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित हो गए। 1792 ई० में महा सिंह की मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 7.
फुलकियाँ मिसल पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Wrie a short note on Phulkian Misl.)
उत्तर-
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक चौधरी फूल था। उसके वंश ने पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेशों पर अपना राज्य स्थापित किया। पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बहुत बहादुर था। उसने अनेकों प्रदेशों पर कब्जा किया तथा बरनाला को अपनी राजधानी बनाया। उसने 1765 ई० में अहमद शाह
अब्दाली से समझौता किया। नाभा में फुलकियाँ मिसल की स्थापना हमीर सिंह ने की थी। उसने 1755 ई० से 1783 ई० तक शासन किया। जींद में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक गजपत सिंह था। उसने अपनी सुपुत्री राज कौर की शादी महा सिंह से की। 1809 ई० में फुलकियाँ मिसल अंग्रेजों के संरक्षण में चली गई थी।

प्रश्न 8.
आला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Ala Singh.)
उत्तर-
आला सिंह पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक था। उसने 1748 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान मुग़लों की सहायता की। शीघ्र ही आला सिंह ने बुढलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1765 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली के साथ समझौते के कारण दल खालसा के सदस्यों ने आला सिंह को अब्दाली से अपने संबंध तोड़ने का निर्देश दिया, परंतु शीघ्र ही वह इस संसार से कूच कर गए।

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प्रश्न 9.
खालसा के विषय में आप क्या जानते हैं ? (What do you understand by Sarbat Khalsa ?)
अथवा
सरबत खालसा के बारे में नोट लिखें। (Write a note on Sarbat Khalsa.)
उत्तर-
सरबत खालसा का आयोजन सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार के लिए हर वर्ष दीवाली और बैसाखी के अवसर पर अकाल तख्त साहिब अमृतसर में किया जाता था। सारे सिख गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा टेक कर बैठ जाते थे। इसके पश्चात् कीर्तन होता था फिर अरदास की जाती थी। इसके बाद कोई एक सिख खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे सरबत खालसा को बताता था। निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता था।

प्रश्न 10.
गुरमता से क्या अभिप्राय है ? गुरमता के कार्यों की संक्षेप जानकारी दें।
(What is meant by Gurmata ? Give a brief account of its functions.)
अथवा
गुरमता पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on Gurmata.)
अथवा
गुरमता के बारे में आप क्या जानते हो?
(What do you know about Gurmata ?)
अथवा
गुरमता से क्या भाव है ? गुरमता के तीन विशेष कार्य बताएँ। (What is meant by Gurmata ? Discuss about the three main works of Gurmata.)
उत्तर-
गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। गुरमता गुरु और मता के मेल से बना है-जिसके शाब्दिक अर्थ हैं, ‘गुर का मत या निर्णय’। दूसरे शब्दों में, गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय लिए जाते थे उनको गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सभी सिख पालन करते थे। गुरमता के महत्त्वपूर्ण कार्य थे-सिखों की नीति तैयार करना, दल खालसा के नेता का चुनाव करना, शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक योजनाओं को अंतिम रूप देना, सिख सरदारों के झगड़ों का निपटारा करना और सिख धर्म का प्रचार का प्रबंध करना।

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प्रश्न 11.
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई तीन विशेषताएँ बताओ। (Mention any three features of internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों का अंदरूनी संगठन कैसा था ? व्याख्या करें।
(Describe the internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
मिसल प्रबंध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें।
(Describe the main features of Misl Administration.)
अथवा
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई पाँच विशेषताएँ बताएँ। (Write five features of internal organisation of the Sikh Misls.)
उत्तर-
मिसल का प्रधान सरदार कहलाता था। सरदार अपनी प्रजा से स्नेह रखते थे। मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में था। मिसलों का न्याय प्रबंध साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों का फैसला प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किया जाता था। सज़ाएँ अधिक सख्त नहीं थीं। आमतौर पर जुर्माना ही वसूल किया जाता था। मिसलों की आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। सरदार गाँव के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते थे।

प्रश्न 12.
राखी प्रणाली पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Rakhi system.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? संक्षिप्त व्याख्या करें। (What is Rakhi system ? Explain in brief.)
अथवा
‘राखी व्यवस्था’ के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए।
(What do you know about Rakhi system ? Write in brief.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? इसका आरंभ कैसे हुआ ? (What is Rakhi system ? Explain its origin.)
अथवा
राखी व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about ‘Rakhi system’ ?)
उत्तर-
बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के पश्चात् पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता का वातावरण बन गया। लोगों को सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए बहुत-से गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। सिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूटपाट से बचाते थे। इसके अतिरिक्त वे स्वयं भी इन गाँवों पर कभी आक्रमण नहीं करते थे। राखी प्रणाली से लोगों का जीवन सुरक्षित हुआ।

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प्रश्न 13.
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the financial administration of Misl period ?)
अथवा
मिसल शासन की अर्थ-व्यवस्था पर नोट लिखें। (Write a short note on economy under the Misls.)
उत्तर-
मिसल काल में मिसलों की आय का मुख्य स्रोत भू-राजस्व था। यह भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होता था। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग तक होता था। भू-राजस्व के बाद मिसलों की आय का दूसरा मुख्य साधन राखी प्रथा था। मिसल सरदार अपनी आय का एक बड़ा भाग सेना, घोड़ों तथा हथियारों पर खर्च करते थे। वे गुरुद्वारों तथा मंदिरों को दान भी देते थे।

प्रश्न 14.
मिसलों की न्याय व्यवस्था पर नोट लिखें।
(Write a note on the Judicial system of Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों के फैसले उस समय के प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किए जाते थे। उस समय सजाएँ सख्त नहीं थीं। किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया जाता था। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर समझ कर उसका फैसला स्वीकार करते थे। प्रत्येक मिसल के सरदार की अपनी अलग अदालत होती थी।

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प्रश्न 15.
सिख मिसलों के सैनिकों प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
(Describe the main features of military administratidn of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों के सैनिक प्रबंध की मुख्य तीन विशेषताएँ लिखिए। (Write three main features of military administration of Sikh Misls.)
उत्तर-

  1. मिसलों के काल में घुड़सवार सेना को सेना का महत्त्वपूर्ण अंग माना जाता था।
  2. लोग अपनी इच्छा से सेना में भर्ती होते थे।
  3. इन सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण नहीं दिया जाता था तथा उन्हें नकद वेतन भी नहीं दिया जाता था।
  4. उस समय सैनिकों का कोई विवरण नहीं रखा जाता था।
  5. सिख सैनिक सीमित साधनों के कारण छापामार ढंग से दुश्मन का मुकाबला करते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
मिसल शब्द से क्या अभिप्राय है ?
अथवा
मिसल शब्द का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
समान।

प्रश्न 2.
मिसल किस भाषा का शब्द है ?
उत्तर-
अरबी।

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प्रश्न 3.
मिसलों की कुल संख्या कितनी थी ?
उत्तर-
12.

प्रश्न 4.
पंजाब में सिख मिसलें किस शताब्दी में स्थापित हुईं ?
उत्तर-
18वीं शताब्दी।

प्रश्न 5.
किसी एक प्रमुख मिसल का नाम लिखें।
उत्तर-
आहलूवालिया मिसल।

प्रश्न 6.
फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

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प्रश्न 7.
फैज़लपुरिया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता का नाम बताएँ।
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

प्रश्न 8.
नवाब कपूर सिंह कौन था ?
उत्तर-
फैज़लपुरिया मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 9.
नवाब कपूर सिंह ने किस मिसल की स्थापना की?
उत्तर-
फैज़लपुरिया मिसल।

प्रश्न 10.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया।

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प्रश्न 11.
आहलूवालिया मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
क्योंकि जस्सा सिंद्र लाहौर के नज़दीक स्थित आहलू गाँव से संबंधित था।

प्रश्न 12.
आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
कपूरथला।

प्रश्न 13.
जस्सा सिंह आहलूवालिया कौन था ?
उत्तर-
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 14.
रामगढ़िया मिसल की राजधानी कौन-सी थी ?
उत्तर-
श्री हरगोबिंदपुर।

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प्रश्न 15.
रामगढ़िया मिसल के किसी एक सर्वाधिक प्रसिद्ध नेता का नाम बताएँ ।
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया।

प्रश्न 16.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ?
उत्तर-
रामगढ़िया मिसल का सबसे शक्तिशाली सरदार।

प्रश्न 17.
भंगी मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
छज्जा सिंह।

प्रश्न 18.
भंगी मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भांग पीने की बहुत आदत थी।

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प्रश्न 19.
सिख मिसलों में सबसे शक्तिशाली मिसल कौन-सी थी ?
उत्तर-
शुकरचकिया मिसल।

प्रश्न 20.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
चढ़त सिंह।

प्रश्न 21.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम बताएँ।
उत्तर-
गुजराँवाला।

प्रश्न 22.
महा सिंह कौन था ?
उत्तर-
महा सिंह 1774 ई० में शुकरचकिया मिसल का नेता बना।

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प्रश्न 23.
कन्हैया मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
जय सिंह।

प्रश्न 24.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
चौधरी फूल।

प्रश्न 25.
बाबा आला सिंह कौन था ?
उत्तर-
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक।

प्रश्न 26.
बाबा आला सिंह की राजधानी का नाम क्या था ?
उत्तर-
बरनाला।

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प्रश्न 27.
अहमद शाह अब्दाली ने किसे राजा की उपाधि से सम्मानित किया था ?
उत्तर-
बाबा आला सिंह को।

प्रश्न 28.
डल्लेवालिया मिसल का सबसे योग्य नेता कौन था ?
उत्तर-
तारा सिंह घेबा।

प्रश्न 29.
शहीद मिसल का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
सरदार सुधा सिंह।

प्रश्न 30.
शहीद मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
उत्तर-
इस मिसल के नेताओं द्वारा दी गई शहीदियों के कारण ।

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प्रश्न 31.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था कौन-सी थी ?
अथवा
सिखों की केंद्रीय संस्था का क्या नाम था ?
उत्तर-
गुरमता।

प्रश्न 32.
गुरमता से क्या भाव है ?
उत्तर-
गुरु का फैसला।

प्रश्न 33.
गुरुमता के पीछे कौन-सी शक्ति काम करती थी ?
उत्तर-
धार्मिक।

प्रश्न 34.
सरबत खालसा से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
अकाल तख्त साहिब, अमृतसर में आयोजित किया जाने वाला सिख सम्मेलन।।

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प्रश्न 35.
सरबत खालसा की सभाएँ कहाँ बुलाई जाती थीं ?
उत्तर-
अमृतसर।

प्रश्न 36.
सिख मिसलों के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
उत्तर-
सरदार।

प्रश्न 37.
सिख मिसलों के प्रशासन की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-
सिख मिसलों के सरदार अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे।

प्रश्न 38.
राखी प्रणाली से क्या भाव है ?
अथवा
राखी प्रथा क्या है ?
उत्तर-
राखी प्रणाली के अंतर्गत आने वाले गाँवों को सिख सुरक्षा प्रदान करते थे।

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प्रश्न 39.
मिसल सेना की लड़ने की विधि कौन सी थी ?
उत्तर-
गुरिल्ला विधि।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
18वीं शताब्दी में पंजाब में…….स्वतंत्र सिख मिसलें स्थापित हुईं।
उत्तर-
(12)

प्रश्न 2.
नवाब कपूर सिंह……मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
(फैजलपुरिया)

प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह ने…….में दल खालसा की स्थापना की थी।
उत्तर-
(1748 ई०)

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प्रश्न 4.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक……..था।
उत्तर-
(जस्सा सिंह आहलूवालिया)

प्रश्न 5.
जस्सा सिंह आहलूवालिया ने ………….को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
(कपूरथला)

प्रश्न 6.
रामगढ़िया मिसल का संस्थापक……….था।
उत्तर-
(खुशहाल सिंह)

प्रश्न 7.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता………था।
उत्तर-
(जस्सा सिंह रामगढ़िया)

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प्रश्न 8.
जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम………था।
उत्तर-
(श्री हरिगोबिंद पुर)

प्रश्न 9.
झंडा सिंह……….मिसल का एक प्रसिद्ध नेता था।
उत्तर-
(भंगी)

प्रश्न 10.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक………था।
उत्तर-
(चढ़त सिंह)

प्रश्न 11.
1774 ई० में………शुकरचकिया मिसल का नया नेता बना।
उत्तर-
(महा सिंह)

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प्रश्न 12.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम……….था।
उत्तर-
(गुजराँवाला)

प्रश्न 13.
बाबा दीप सिंह जी …………. मिसल के साथ संबंध रखते थे।
उत्तर-
(शहीद)

प्रश्न 14.
महाराजा रणजीत सिंह ने………में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली।
उत्तर-
(1792 ई०)

प्रश्न 15.
कन्हैया मिसल का संस्थापक………….था।
उत्तर-
(जय सिंह)

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प्रश्न 16.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक………था।
उत्तर-
(चौधरी फूल)

प्रश्न 17.
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक……….था।
उत्तर
(बाबा आला सिंह)

प्रश्न 18.
बाबा आला सिंह ने…………को अपनी राजधानी बनाया। .
उत्तर-
(बरनाला)

प्रश्न 19.
डल्लेवालिया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता का नाम……….था।
उत्तर
(तारा सिंह घेबा)

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प्रश्न 20.
शहीद मिसल का संस्थापक………….था।
उत्तर-
(सुधा सिंह)

प्रश्न 21.
बाबा दीप सिंह जी का संबंध………मिसल के साथ था।
उत्तर-
(शहीद)

प्रश्न 22.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था का नाम……….था।
उत्तर-
(गुरमता)

प्रश्न 23.
मिसल काल में मिसल के मुखिया को…………..कहा जाता था। .
उत्तर-
(सरदार)

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प्रश्न 24.
सिख मिसलों के समय आमदन का मुख्य स्रोत………..था।
उत्तर-
(भूमि लगान)

प्रश्न 25.
राखी प्रथा पंजाब में………….शताब्दी में प्रचलित हुई।
उत्तर-
(18वीं)

प्रश्न 26.
मिसल काल में अपराधियों से अधिकतर………….वसूल किया जाता था।
उत्तर-
(जुर्माना)

प्रश्न 27.
सिख मिसलों के समय सैनिक……….से अपने दुश्मनों का सामना करते थे।
उत्तर-
(छापामार ढंग)

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(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
18वीं सदी में पंजाब में 12 स्वतंत्र सिख मिसलों की स्थापना हुई।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है बराबर।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 3.
नवाब कपूर सिंह फैज़लपुरिया मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 4.
फैजलपुरिया मिसल को आहलूवालिया मिसल भी कहा जाता है। .
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 5.
नवाब कपूर सिंह ने 1734 ई० में दल खालसा की स्थापना की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 6.
नवाब कपूर सिंह दल खालसा का प्रधान सेनापति था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 7.
नवाब कपूर सिंह की मृत्य 1753 ई० में हुई थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह रामगढ़िया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 9.
1748 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया को दल खालसा का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया। गया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
जस्सा सिंह आहलूवालिया को सुल्तान-उल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया था ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 11.
जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला को अपनी राजधानी बनाया था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता जस्सा सिंह रामगढ़िया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 13.
जस्सा सिंह रामगढ़िया ने करतारपुर को अपनी राजधानी बनाया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 14.
भंगी मिसल का यह नाम इसके नेताओं द्वारा भांग पीने के कारण पड़ा।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक महाराजा रणजीत सिंह था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 16.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम लाहौर था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 17.
1792 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
जय सिंह कन्हैया मिसल का संस्थापक था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 19.
रानी जिंदा कन्हैया मिसल की आगू थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 20.
डल्लेवालिया मिसल के सब से प्रसिद्ध नेता बाबा दीप सिंह जी थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 21.
बाबा आला सिंह ने बरनाला को अपनी राजधानी बनाया था। .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
बाबा आला सिंह की मृत्यु 1762 ई० में हुई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 23.
1765 ई० में अहमद सिंह पटियाला की गद्दी पर बैठा था। . .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 24.
अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को ‘राजा-ए-राजगान बहादुर’ की उपाधि से सम्मानित किया था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 25.
निशानवालिया मिसल का संस्थापक हमीर सिंह था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 26.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था का नाम गुरमता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 27.
मिसल के मुखिया को मिसलदार कहा जाता था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 28.
18वीं सदी में पंजाब में राखी प्रथा का प्रचलन हुआ।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 29.
मिसल काल में सरबत खालसा को सिखों की सर्वोच्च अदालत कहा जाता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 30.
सिख मिसलों के सैनिक अपने दुश्मनों का मुकाबला छापामार ढंग से करते थे।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
पंजाब में स्थापित मिसलों की कुल संख्या कितनी थी ?
(i) 5
(ii) 10
(iii) 12
(iv) 15
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 2.
नवाब कपूर सिंह कौन था ?
(i) फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक
(ii) जालंधर का फ़ौजदार
(iii) पंजाब का सूबेदार
(iv) आहलूवालिया मिसल का नेता।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जस्सा सिंह
(ii) भाग सिंह
(iii) फ़तह सिंह
(iv) खुशहाल सिंह।
उत्तर-(i)

प्रश्न 4.
आहलूवालिया मिसल की राजधानी कौन-सी थी ?
(i) अमृतसर
(ii) कपूरथला
(iii) लाहौर
(iv) श्री हरगोबिंदपुर।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 5.
रामगढ़िया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जस्सा सिंह रामगढ़िया
(ii) खुशहाल सिंह
(iii) जोध सिंह
(iv) भाग सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 6.
रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) जस्सा सिंह रामगढ़िया
(ii) नंद सिंह
(iii) खुशहाल सिंह
(iv) जोध सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
रामगढ़िया मिसल की राजधानी का क्या नाम था ?
(i) कपूरथला
(ii) श्री हरगोबिंदपुर
(iii) लाहौर
(iv) बरनाला।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 8.
भंगी मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) हरी सिंह
(ii) छज्जा सिंह
(iii) गुलाब सिंह
(iv) भीम सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 9.
भंगी मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) हरी सिंह
(ii) झंडा सिंह
(iii) गंडा सिंह
(iv) भीम सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 10.
सिख मिसलों में सबसे शक्तिशाली मिसल कौन-सी थी ?
(i) शुकरचकिया मिसल
(ii) भंगी मिसल
(iii) कन्हैया मिसल
(iv) फुलकियाँ मिसल।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 11.
शुकरचकिया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) खुशहाल सिंह
(ii) नवाब कपूर सिंह
(iii) छज्जा सिंह
(iv) चढ़त सिंह।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 12.
शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम बताएँ ।
(i) अमृतसर
(ii) लाहौर
(iii) गुजराँवाला
(iv) बरनाला।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से किस नगर पर चढ़त सिंह ने अधिकार नहीं किया था ?
(i) स्यालकोट
(ii) चकवाल
(iii) गुजराँवाला
(iv) अलीपुर
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 14.
महा सिंह की मृत्यु कब हुई ?
अथवा
रणजीत सिंह कब शुकरचकिया मिसल का नेता बना ?
(i) 1770 ई० में
(ii) 1780 ई० में
(iii) 1782 ई० में
(iv) 1792 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 15.
कन्हैया मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) जय सिंह
(ii) सदा कौर
(iii) बाबा आला सिंह
(iv) जस्सा सिंह आहलूवालिया।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 16.
सदा कौर कौन थी ?
(i) कन्हैया मिसल की नेता
(i) महा सिंह की सास
(iii) भंगी मिसल की नेता
(iv) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 17.
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक कौन था ?
(i) चौधरी फूल
(ii) छज्जा सिंह
(iii) नवाब कपूर सिंह
(iv) गंडा सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 18.
पटियाला रियासत का संस्थापक कौन था ?
(i) अमर सिंह
(ii) बाबा आला सिंह
(ii) हमीर सिंह
(iv) गजपत सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 19.
बाबा आला सिंह ने किसको पटियाला रियासत की राजधानी बनाया ?
(i) कपूरथला
(ii) श्री हरगोबिंदपुर
(iii) बरनाला
(iv) गुजरांवाला।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 20.
डल्लेवालिया मिसल का सबसे प्रसिद्ध सरदार कौन था ?
(i) गुलाब सिंह
(ii) तारा सिंह घेबा
(iii) जय सिंह
(iv) बाबा आला सिंह।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 21.
शहीद मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता कौन था ?
(i) सुधा सिंह
(ii) बाबा दीप सिंह जी
(iii) कर्म सिंह
(iv) गुरबख्श सिंह।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 22.
नकई मिसल का संस्थापक कौन था?
(i) नाहर सिंह
(ii) हीरा सिंह
(iii) राम सिंह
(iv) काहन सिंह ।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 23.
सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था कौन-सी थी ?
(i) राखी प्रथा
(ii) जागीरदारी
(iii) गुरमता
(iv) मिसल।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 24.
मिसल काल में जिले के मुखिया को क्या कहा जाता था ?
(i) ज़िलेदार
(ii) कारदार
(iii) थानेदार
(iv) सरदार।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 25.
राखी प्रथा क्या थी ?
(i) विदेशी आक्रमणकारियों से गाँव की रक्षा करनी
(ii) फसलों की देखभाल करनी
(iii) स्त्रियों की रक्षा करनी
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 26.
मिसल काल में सबसे महत्त्वपूर्ण किस सेना को माना जाता था ?
(i) घुड़सवार सेना को
(ii) पैदल सेना को
(iii) रथ सेना को
(iv) नौसेना को।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 3.
पंजाब की किन्हीं छ: मिसलों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Explain briefly any six Misls of Punjab.) a
उत्तर-
1. फैजलपुरिया मिसल-इस मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था। उसने सर्वप्रथम अमृतसर के समीप फैजलपुर नामक गाँव पर अधिकार किया था। इसलिए इस मिसल का नाम फैजलपुरिया मिसल पड़ गया था। नवाब कपूर सिंह अपनी वीरता के कारण सिखों में बहुत प्रख्यात था। 1753 ई० में नवाब कपूर सिंह की मृत्यु के उपरांत खुशहाल सिंह तथा बुद्ध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

2. भंगी मिसल-भंगी मिसल की स्थापना यद्यपि सरदार छज्जा सिंह ने की थी परंतु सरदार हरी सिंह को इस मिसल का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। झंडा सिंह एवं गंडा सिंह इस मिसल के अन्य प्रसिद्ध नेता थे। क्योंकि इस मिसल के नेताओं को भंग पीने की बहुत आदत थी इसलिए इस मिसल का नाम भंगी मिसल पड़ा।

3. रामगढ़िया मिसल-रामगढ़िया मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था। इस मिसल का सबसे प्रख्यात नेता सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया था। इस मिसल की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया की मृत्यु के उपरांत सरदार जोध सिंह ने इस मिसल का नेतृत्व किया।

4. शुकरचकिया मिसल-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक सरदार चढ़त सिंह था। क्योंकि उसके पुरखे शुकरचक गाँव से संबंधित थे इसलिए इस मिसल का नाम शुकरचकिया मिसल पड़ा। वह एक साहसी योद्धा था। शुकरचकिया मिसल की राजधानी का नाम गुजराँवाला था। चढ़त सिंह के पश्चात् महा सिंह तथा रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल का कार्यभार संभाला। 1799 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था तथा यह विजय पंजाब के इतिहास में एक नया मोड़ प्रमाणित हुई।

5. कन्हैया मिसल-कन्हैया मिसल का संस्थापक जय सिंह था। क्योंकि वह कान्हा गाँव का निवासी था इसलिए इस मिसल का नाम कन्हैया मिसल पड़ा। जय सिंह काफ़ी बहादुर था। 1798 ई० में जय सिंह की मृत्यु के पश्चात् सदा कौर इस मिसल की नेता बनी। वह महाराजा रणजीत सिंह की सास थी तथा बहुत महत्त्वाकांक्षी थी।

6. आहलूवालिया मिसल-आहलूवालिया मिसल का संस्थापक सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया था। उसने जालंधर दोआब तथा बारी दोआब के इलाकों पर कब्जा करके अपनी वीरता का परिचय दिया। उसे सुल्तानउल-कौम की उपाधि से सम्मानित किया गया। आहलूवालिया मिसल की राजधानी का नाम कपूरथला था। 1783 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया की मृत्यु के पश्चात् भाग सिंह तथा फतेह सिंह ने शासन किया।

प्रश्न 4.
नवाब कपूर सिंह पर एक संक्षेप नोट लिखें।
(Write a short note on Nawab Kapoor Singh.)
अथवा
नवाब कपूर सिंह के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Nawab Kapoor Singh ?)..
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह सिखों के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता थे। वह फैजलपुरिया मिसल के संस्थापक थे। उनका जन्म 1697 ई० में कालोके नामक गाँव में हुआ था। उसके पिता का नाम दलीप सिंह था और वह जाट परिवार से संबंध रखते थे। कपूर सिंह शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध मुखिया बन गए। 1733 ई० में उन्होंने पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का पद. तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर प्राप्त की। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को संगठित करने के उद्देश्य से उनको दो जत्थों बुड्डा दल और तरुणा दल में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। जकरिया खाँ सिखों की बढ़ती हुई शक्ति को सहन करने को तैयार नहीं था। इसलिए उसने 1735 ई० में सिखों को दी गई जागीर को वापस ले लिया। उसने सिखों पर घोर अत्याचार आरंभ कर दिए। नवाब कपूर सिंह के नेतृत्व में खालसा ने इतने भयानक कष्टों को खुशी-खुशी सहन किया किंतु उन्होंने जकरिया खाँ के प्रभुत्व को स्वीकार नहीं किया। नवाब कपूर सिंह ने 1736 ई० में सरहिंद में भयंकर लूटमार की। नवाब कपूर सिंह ने 1739 ई० में नादिरशाह को दिन में तारे दिखा दिए थे। उसने 1748 ई० में अमृतसर को अपने अधीन कर लिया था। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना करके सिख पंथ के लिए महान कार्य किया। नवाब कपूर सिंह न केवल एक वीर योद्धा था अपितु वह सिख पंथ का एक महान् प्रचारक भी था। उसने बड़ी संख्या में लोगों को सिख धर्म में सम्मिलित होने के लिए प्रेरित किया। निस्संदेह सिख पंथ के विकास तथा उसको संगठित करने के लिए नवाब कपूर सिंह ने बहुमूल्य योगदान दिया। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

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प्रश्न 5.
जस्सा सिंह आहलूवालिया की सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Give a brief account of the achievements of Jassa Singh Ahluwalia.)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया के विषय में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ahluwalia ?)
अथवा
जस्सा सिंह आहलूवालिया पर एक नोट लिखें। (Write a note on Jassa Singh Ahluwalia.)
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया 18वीं शताब्दी में सिखों का एक योग्य एवं वीर नेता था। वह आहलूवालिया मिसल का संस्थापक था। उसका जन्म 1718 ई० में लाहौर के निकट स्थित आहलू नामक गाँव में हुआ था। आप के पिता का नाम बदर सिंह था। जस्सा सिंह अभी छोटे ही थे कि उनके पिता का देहांत हो गया। नवाब कपूर सिंह ने जस्सा सिंह आहलूवालिया को अपने पुत्र की तरह पालन-पोषण किया। 1739 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में सिखों ने नादिरशाह की सेना पर आक्रमण करके बहुत-सा धन लूट लिया था। निस्संदेह यह एक अत्यंत साहसी कार्य था। 1746 ई० में छोटे घल्लूघारे के समय इन्होंने वीरता के वे जौहर दिखाए कि उनकी ख्याति दूरदूर तक फैल गई। 1747 ई० में अमृतसर के फ़ौजदार सलाबत खाँ ने दरबार साहिब में सिखों के प्रवेश पर अनेक प्रतिबंध लगा दिए थे। परिणामस्वरूप जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कुछ सिखों को साथ लेकर अमृतसर पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में सलाबत खाँ मारा गया एवं सिखों का अमृतसर पर अधिकार हो गया। जस्सा सिंह आहलूवालिया अपनी वीरता एवं प्रतिभा के कारण शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध नेता बन गए। 1748 ई० में उन्हें दल खालसा का सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। उन्होंने दल खालसा का कुशलतापूर्वक नेतृत्व करके सिख पंथ की महान सेवा की। 1761 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने लाहौर पर विजय प्राप्त की। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे समय भी जस्सा सिंह आहलूवालिया ने अहमदशाह अब्दाली की सेना का बड़ी बहादुरी से सामना किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया। 1778 ई० में जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला पर कब्जा कर लिया और इसको आहलूवालिया मिसल की राजधानी बना दिया। इस प्रकार जस्सा सिंह आहलूवालिया ने सिख पंथ के लिए महान् उपलब्धियाँ प्राप्त की। 1783 ई० में इस महान् नेता की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 6.
जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ? उसकी सफलताओं का संक्षेप वर्णन करें। (Who was Jassa Singh Ramgarhia ? Write a short note on his achievements.)
अथवा
जस्सा सिंह रामगढ़िया के बारे में आप क्या जानते हैं ? लिखें। (Write, what do you know about Jassa Singh Ramgarhia ?)
उत्तर-
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे महान् नेता था। उसने सिख पंथ में बहुत कठिन परिस्थितियों में योग्य नेतृत्व किया था। उनका जन्म 1723 ई० में लाहौर के निकट स्थित गाँव इच्छोगिल में सरदार भगवान सिंह के घर हुआ था। आपको सिख पंथ की सेवा करना विरासत में प्राप्त हुआ था। उनके नेतृत्व में रामगढ़िया मिसल ने अद्वितीय उन्नति की। जस्सा सिंह रामगढ़िया पहले जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग़ के अधीन नौकरी करता था। अक्तूबर, 1748 ई० में मीर मन्नू और अदीना बेग की सेनाओं ने 500 सिखों को अचानक रामरौणी के किले में घेर लिया था। जस्सा सिंह रामगढ़िया इसे सहन न कर सका। वह तुरंत उनकी सहायता के लिए पहुँचा। उसके इस सहयोग के कारण 300 सिखों की जानें बच गईं। इससे प्रसन्न होकर रामरौणी का किला सिखों ने जस्सा सिंह रामगढ़िया के हवाले कर दिया। जस्सा सिंह रामगढ़िया ने इस किले का नाम रामगढ़ रखा। 1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु की पश्चात् पंजाब में अराजकता फैल गई। इस स्वर्ण अवसर का लाभ उठाकर जस्सा सिंह रामगढिया ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, दीपालपुर, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि प्रदेशों पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह रामगढ़िया के आहलूवालिया और शुकरचकिया मिसलों के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। 1803 ई० में जस्सा सिंह रामगढ़िया ने सदैव के लिए हमसे अलविदा ले ली। उनका जीवन आने वाले सिख नेताओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत रहा।

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प्रश्न 7.
महा सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Maha Singh.).
उत्तर-
चढ़त सिंह की मृत्यु के पश्चात् 1774 ई० में उसका पुत्र महा सिंह शुकरचकिया मिसल का नया मुखिया बमा। उस समय महा सिंह की आयु केवल दस वर्ष की थी। इसलिए उसकी माँ देसाँ ने कुछ समय के लिए बड़ी समझदारी से मिसल का नेतृत्व किया। शीघ्र ही महा सिंह ने शुकरचकिया मिसल के प्रदेशों का विस्तार प्रारंभ किया। उसने सबसे पहले रोहतास पर अधिकार किया। इसके पश्चात् रसूल नगर और अलीपुर प्रदेशों पर अधिकार किया। महा सिंह ने रसूलपुर नगर का नाम बदल कर रामनगर और अलीपुर का नाम बदल कर अकालगढ़ रख दिया। महा सिंह ने भंगी सरदारों से मुलतान, बहावलपुर, साहीवाल आदि प्रदेशों को भी जीत लिया। महा सिंह की बढ़ती हुई शक्ति के कारण जय सिंह कन्हैया उससे बड़ी ईर्ष्या करने लग पड़ा। इसलिए उसको सबक सिखाने के लिए महा सिंह ने जस्सा सिंह रामगढ़िया के साथ मिलकर कन्हैया मिसल पर आक्रमण कर दिया। बटाला के निकट हुए युद्ध में जय सिंह का पुत्र गुरबख्श सिंह मारा गया। कुछ समय पश्चात् शुकरचकिया और कन्हैया मिसलों में मित्रतापूर्ण संबंध स्थापित हो गए। जय सिंह ने अपनी पौत्री मेहताब कौर की सगाई महा सिंह के पुत्र रणजीत सिंह के साथ कर दी। 1792 ई० में महा सिंह की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 8.
फुलकियाँ मिसल पर एक संक्षेप नोट लिखें। (Write a short note on Phulkian Misl.)
उत्तर-
फुलकियाँ मिसल का संस्थापक चौधरी फूल था। उसके वंश ने पटियाला, नाभा तथा जींद के प्रदेशों पर अपना राज्य स्थापित किया। पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बहुत बहादुर था। उसने अनेकों प्रदेशों पर कब्जा किया तथा बरनाला को अपनी राजधानी बनाया। 1764 ई० में उसने सरहिंद पर विजय प्राप्त की। 1764 ई० में उसने अहमद शाह अब्दाली से समझौता किया। 1765 ई० में आला सिंह के पश्चात् अमर सिंह तथा साहब सिंह ने शासन किया। नाभा में फुलकियाँ मिसल की स्थापना हमीर सिंह ने की थी। उसने 1755 ई० से 1783 ई० तक शासन किया। उसके पश्चात् उसका बेटा जसवंत सिंह गद्दी पर बैठा। जींद में फलकियाँ मिसल का संस्थापक गजपत सिंह था। उसने पानीपत तथा करनाल के प्रदेशों को विजय किया था। उसने अपनी सुपुत्री राज कौर की शादी महा सिंह से की। 1809 ई० में फुलकियाँ मिसल अंग्रेजों के संरक्षण में चली गई थी।

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प्रश्न 9.
आला सिंह पर एक संक्षिप्त नोट लिखें।
(Write a short note on Ala Singh.)
उत्तर-
पटियाला में फुलकियाँ मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बड़ा बहादुर था। उसने बरनाला को अपनी गतिविधियों का केंद्र बनाया। 1768 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान आला सिंह ने उसके विरुद्ध मुग़लों की सहायता की थी। उसकी सेवाओं के दृष्टिगत मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने एक खिलत भेट की। इससे आला सिंह की प्रसिद्धि बुहत बढ़ गई। शीघ्र ही आला सिंह ने बुडलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1762 ई० में अपने छठे,आक्रमण के दौरान अब्दाली ने बरनाला पर आक्रमण किया और आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया। आला सिंह ने अब्दाली को भारी राशि देकर अपनी जान बचाई। 1765 ई० में अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया। अब्दाली के साथ समझौते के कारण दल खालसा के सदस्य उससे रुष्ट हो गए और उसे अब्दाली से अपने संबंध तोड़ने हेत कहा, परंतु शीघ्र ही आला सिंह की मृत्यु हो गई।

प्रश्न 10.
सरबत खालसा तथा गुरमता के विषय में आप क्या जानते हैं ?, (What do you understand by Sarbat Khalsa and Gurmata ?)
अथवा
‘सरबत खालसा’ और ‘गुरमता’ के बारे में अपने विचार लिखें। (Write your views on ‘Sarbat Khalsa’ and ‘Gurmata’.)
उत्तर-
1. सरबत खालसा-सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए वर्ष में दो बार दीवाली और वैशाखी के अवसर पर सरबत खालसा का समागम अकाल तख्त साहिब अमृतसर में बुलाया जाता था। सारे सिख गुरु ग्रंथ साहिब के समक्ष माथा टेक कर बैठ जाते थे। इसके पश्चात् गुरुवाणी का कीर्तन होता था फिर अरदास की जाती थी। इसके बाद कोई एक सिख खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे सरबत खालसा को जानकारी देता था। इस समस्या के बारे विचार-विमर्श करने के लिए प्रत्येक पुरुष व स्त्री को पूरी छूट होती थी। कोई भी निर्णय सर्वसम्मति से लिया जाता था।

2. गुरमता-गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी। गुरमता पंजाबी के दो शब्दों गुरु और मता के मेल से बना है-जिसके शाब्दिक अर्थ हैं, ‘गुरु का मत या निर्णय’। दूसरे शब्दों में, गुरु ग्रंथ साहिब जी की उपस्थिति में सरबत खालसा द्वारा जो निर्णय स्वीकार किए जाते थे उनको गुरमता कहा जाता था। इन गुरमतों का सारे सिख बड़े सत्कार से पालन करते थे। गुरमता के कुछ महत्त्वपूर्ण कार्य ये थे-दल खालसा के नेता का चुनाव करना, सिखों की विशेष नीति तैयार करना, सांझे शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही के लिए योजनाओं को अंतिम रूप देना, सिख सरदारों के आपसी झगड़ों का निपटारा करना और सिख धर्म के प्रचार के लिए प्रबंध करना।

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प्रश्न 11.
गुरमता से क्या अभिप्राय है ? गुरमता के कार्यों की संक्षेप जानकारी दें। (What is meant by Gurmata ? Give a brief account of its functions.)
अथवा
गुरमता पर एक संक्षिप्त नोट लिखिए। (Write a brief note on Gurmata.)
अथवा
गुरमता बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about Gurmata ?)
उत्तर-
गुरमता एक महत्त्वपूर्ण संस्था थी। इसके द्वारा अनेक राजनीतिक, सैनिक, धार्मिक तथा न्याय संबंधी कार्य किए जाते थे।

  1. इसका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य दल खालसा के सर्वोच्च सेनापति की नियुक्ति करना था।
  2. इसके द्वारा सिखों की विदेश नीति को तैयार किया जाता था।
  3. इसके द्वारा सिखों के सांझे शत्रुओं के विरुद्ध सैनिक कार्रवाई को अंतिम रूप दिया जाता था।
  4. यह सिख मिसलों के सरदारों के आपसी झगड़ों का निपटारा करता था।
  5. इसमें सिख धर्म के प्रचार तथा सिख धर्म से संबंधित अन्य समस्याओं से संबंधित विचार किया जाता था तथा कार्यक्रम तैयार किया जाता था।
  6. इसके द्वारा विभिन्न मिसल सरदारों के अथवा व्यक्तिगत सिखों के झगड़ों का निपटारा किया जाता था। इसके अतिरिक्त इसके द्वारा सिख मिसलों के उत्तराधिकार एवं सीमा संबंधी झगड़ों का निर्णय भी किया जाता था।

सिख पंथ से संबंधित विषयों पर विचार करने के लिए वर्ष में दो बार बैसाखी और दीवाली के अवसरों पर अकाल तख्त में सरबत खालसा का आयोजन किया जाता था। वे अकाल तख्त साहिब के प्रांगण में रखे गए गुरु ग्रंथ साहिब जी को माथा टेक कर स्थान ग्रहण करते थे। उनके पीछे उनके अनुयायी तथा अन्य सिख संगत होती थी। आयोजन का आरंभ कीर्तन द्वारा किया जाता था। इसके पश्चात् अरदास की जाती थी। इसके पश्चात् ग्रंथी खड़ा होकर संबंधित समस्या के बारे में सरबत खालसा को जानकारी देता था। इस समस्या के बारे में विचार-विमर्श करने के लिए सरबत खालसा के सभी सदस्यों को पूर्ण स्वतंत्रता होती थी।

प्रश्न 12.
मिसलों के आंतरिक संगठन की कोई छः विशेषताएँ बताओ। (Mention any six features of internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
सिख मिसलों का अंदरूनी संगठन कैसा था ? व्याख्या करें। (Describe the internal organisation of Sikh Misls.)
अथवा
मिसल प्रबंध की मुख्य विशेषताओं का वर्णन करें। (Describe the main features of Misl Administration.)
उत्तर-
प्रत्येक मिसल के मुखिया को सरदार कहा जाता था और प्रत्येक सरदार के अधीन कई मिसलदार होते थे। सरदार विजित किए हुए क्षेत्रों में से कुछ भाग अपने अधीन मिसलदारों को दे देता था। कई बार मिसलदार सरदार से अलग होकर अपनी स्वतंत्र मिसल स्थापित कर लेते थे। सरदार अपनी प्रजा से अपने परिवार की तरह प्यार करते थे। मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी। गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथों में था। गाँव के लगभग सभी मसले पंचायत द्वारा ही हल कर लिए जाते थे। लोग पंचायत का बड़ा आदर करते थे। सिख मिसलों का न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों का फैसला उस समय के प्रचलित रीतिरिवाजों के अनुसार किया जाता था। अपराधियों को सख्त सज़ाएँ नहीं दी जाती थीं। उनसे आमतौर पर जुर्माना ही वसूल किया जाता था। मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। यह भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न रहता था। यह आमतौर पर 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार वसूल किया जाता था। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था।

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प्रश्न 13.
राखी प्रणाली पर एक संक्षिप्त नोट लिखें। (Write a short note on Rakhi System.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? संक्षिप्त व्याख्या करें। (What is Rakhi System ? Explain in brief.)
अथवा
‘राखी व्यवस्था’ के विषय में आप क्या जानते हैं ? संक्षेप में लिखिए। (What do you know about Rakhi System ? Write in brief.)
अथवा
राखी प्रणाली क्या है ? इसका आरंभ कैसे हुआ ? व्याख्या करें। (What is Rakhi System ? Explain its origin.)
अथवा
राखी व्यवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about ‘Rakhi System’ ?)
अथवा
मिसल प्रशासन में राखी प्रणाली का क्या महत्त्व था? (What was the importance of Rakhi System under the Misl Administration ?)
उत्तर-
18वीं शताब्दी पंजाब में जिन महत्त्वपूर्ण संस्थाओं की स्थापना हुई उनमें से राखी प्रणाली सबसे महत्त्वपूर्ण थी। —
1. राखी प्रणाली से अभिप्राय-राखी शब्द से अभिप्राय है रक्षा करना। वे गाँव जो अपनी इच्छा से सिखों की रक्षा के अधीन आ जाते थे उन्हें बाह्य आक्रमणों के समय तथा सिखों की लूटमार से सुरक्षा की गारंटी दी जाती थी। इस सुरक्षा के बदले उन्हें अपनी उपज का पाँचवां भाग सिखों को देना पड़ता था।

2. राखी प्रणाली का आरंभ-पंजाब में मुग़ल सूबेदारों की दमनकारी नीति, नादिरशाह तथा अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों के कारण पंजाब में अराजकता फैल गई थी। पंजाब में कोई स्थिर सरकार भी नहीं थी। इस वातावरण के कारण पंजाब में कृषि, उद्योग तथा व्यापार को काफ़ी हानि पहुँची। पंजाब के स्थानीय अधिकारी तथा ज़मींदार किसानों का बहुत शोषण करते थे तथा वे जब चाहते तलवार के बल पर लोगों की संपत्ति आदि लूट लेते थे। ऐसे अराजकता के वातावरण में दल खालसा ने राखी प्रणाली का आरंभ किया।

3. राखी प्रणाली की विशेषताएँ-राखी प्रणाली के अनुसार जो गाँव स्वयं को सरकारी अधिकारियों, ज़मींदारों, चोर-डाकुओं तथा विदेशी आक्रमणकारियों से रक्षा करना चाहते थे वे सिखों की शरण में आ जाते थे। सिखों की शरण में आने वाले गाँवों को इन सभी की लूटमार से बचाया जाता था। इस सुरक्षा के कारण प्रत्येक गाँव को वर्ष में दो बार अपनी कुल उपज का 1/5वां भाग दल खालसा को देना पड़ता था।

4. राखी प्रणाली की महत्ता-18वीं शताब्दी में पंजाब में राखी प्रणाली की स्थापना अनेक पक्षों से लाभदायक सिद्ध हुई। प्रथम, इसने पंजाब में सिखों की राजनीतिक शक्ति के उत्थान की ओर प्रथम महान् पग उठाया। दूसरा, इस कारण पंजाब के लोगों को सदियों बाद सुख का साँस मिला। वे अत्याचारी जागीरदारों तथा भ्रष्ट अधिकारियों के अत्याचारों से बच गए। तीसरा, उन्हें विदेशी आक्रमणकारियों की लूटमार का भय भी ने रहा। चौथा, पंजाब में शाँति स्थापित होने के कारण यहाँ की कृषि, उद्योग तथा व्यापार को प्रोत्साहन मिला।

प्रश्न 14.
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the financial administration of Misl period ?)
अथवा
मिसल शासन की अर्थ-व्यवस्था पर एक नोट लिखें। (Write a short note on economy under the Misls.)
उत्तर-
मिसल काल के वित्तीय प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—
1. लगान प्रबंध-मिसलों के समय आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान था। इसकी दर भूमि की उपजाऊ शक्ति के आधार पर भिन्न-भिन्न होती थी। यह प्रायः कुल उपज का 1/3 से 1/4 भाग होता था। यह लगान वर्ष में दो बार रबी और खरीफ फसलों के तैयार होने के समय लिया जाता था। लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली प्रचलित थी। लगान अनाज या नकदी किसी भी रूप में दिया जा सकता था। मिसल काल में भूमि अधिकार संबंधी चार प्रथाएँ-पट्टीदारी, मिसलदारी, जागीरदारी तथा ताबेदारी प्रचलित थीं।

2. राखी प्रथा-पंजाब के लोगों को विदेशी हमलावरों तथा सरकारी कर्मचारियों से सदैव लूटमार का भय लगा रहता था। इसलिए अनेक गाँवों ने अपनी रक्षा के लिए मिसलों की शरण ली। मिसल सरदार उनकी शरण में आने वाले गाँवों को सरकारी कर्मचारियों तथा विदेशी आक्रमणकारियों की लूट-पाट से बचाते थे। इस रक्षा के बदले उस गाँव के लोग अपनी उपज का पाँचवां भाग वर्ष में दो बार मिसल के सरदार को देते थे। इस तरह यह राखी कर मिसलों की आय का एक अच्छा साधन था।

3. आय के अन्य साधन-इसके अतिरिक्त मिसल सरदारों को चुंगी कर, भेंटों से और युद्ध के समय की गई लूटमार से भी कुछ आय प्राप्त हो जाती थी।

4. व्यय-मिसल सरदार अपनी आय का एक बहुत बड़ा भाग सेना, घोड़ों, शस्त्रों, नए किलों के निर्माण और पुराने किलों की मुरम्मत पर व्यय करता था। इसके अतिरिक्त मिसल सरदार गुरुद्वारों और मंदिरों को दान भी देते थे और निर्धन लोगों के लिए लंगर भी लगाते थे।

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प्रश्न 15.
मिसलों की न्याय व्यवस्था पर नोट लिखें। (Write a note on the Judicial system of Misls.)
उत्तर-
सिख मिसलों के समय न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था। कानून लिखित नहीं थे। मुकद्दमों के फैसले उस समय के प्रचलित रीति-रिवाजों के अनुसार किए जाते थे। उस समय सज़ाएँ सख्त नहीं थीं। किसी भी अपराधी को मृत्यु दंड नहीं दिया जाता था। अधिकतर अपराधियों से जुर्माना वसूल किया जाता था। बार-बार अपराध करने वाले अपराधी के शरीर का कोई अंग काट दिया जाता था। मिसलों के समय पंचायत न्याय प्रबंध की सबसे छोटी अदालत होती थी। गाँव में अधिकतर मुकद्दमों का फैसला पंचायतों द्वारा ही किया जाता था। लोग पंचायत को परमेश्वर समझ कर उसका फैसला स्वीकार करते थे। प्रत्येक मिसल के सरदार की अपनी अलग अदालत होती थी। इसमें दीवानी और फ़ौजदारी दोनों तरह के मुकद्दमों का निर्णय किया जाता था। वह पंचायत के फैसलों के विरुद्ध भी अपीलें सुनता था। सरबत खालसा सिखों की सर्वोच्च अदालत थी। इसमें मिसल सरदारों के आपसी झगड़ों तथा सिख कौम से संबंधित मामलों की सुनवाई की जाती थी तथा इनका निर्णय गुरमतों द्वारा किया जाता था।

प्रश्न 16.
सिख मिसलों के सैनिक प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ बताएँ। (Describe the main features of military administration of Sikh Misls.)
उत्तर-
1. घुड़सवार सेना-घुड़सवार सेना मिसलों की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग था। सिख बहुत निपुण घुड़सवार थे। सिखों के तीव्र गति से दौड़ने वाले घोड़े उनकी गुरिल्ला युद्ध प्रणाली के संचालन में बहुत सहायक सिद्ध हुए।

2. पैदल सैनिक–मिसलों के समय पैदल सेना को कोई विशेष महत्त्व नहीं दिया जाता था। पैदल सैनिक किलों में पहरा देते, संदेश पहुँचाते और स्त्रियों और बच्चों की देखभाल करते थे।

3. भर्ती-मिसल सेना में भर्ती होने के लिए किसी को भी विवश नहीं किया जाता था। सैनिकों को कोई नियमित प्रशिक्षण भी नहीं दिया जाता था। उनको नकद वेतन के स्थान पर युद्ध के दौरान की गई लूटमार से हिस्सा मिलता था।

4. सैनिकों के शस्त्र और सामान–सिख सैनिक युद्ध के समय तलवारों, तीर-कमानों, खंजरों, ढालों और बों का प्रयोग करते थे। इसके अतिरिक्त वे बंदूकों का प्रयोग भी करते थे।

5. लड़ाई का ढंग-मिसलों के समय सैनिक छापामार ढंग से अपने शत्रुओं का मुकाबला करते थे। इसका कारण यह था कि दुश्मनों के मुकाबले सिख सैनिकों के साधन बहुत सीमित थे। मारो और भागो इस युद्ध नीति का प्रमुख आधार था। सिखों की लड़ाई का यह ढंग उनकी सफलता का एक प्रमुख कारण बना।

6. मिसलों की कुल सेना–मिसल सैनिकों की कुल संख्या के संबंध में निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। आधुनिक इतिहासकारों डॉ० हरी राम गुप्ता और एस० एस० गाँधी आदि के अनुसार यह संख्या लगभग एक लाख थी।

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Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।
1
नवाब कपूर सिंह फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक था। उसने सबसे पहले अमृतसर के निकट फैजलपुर नामक गाँव पर अधिकार किया। इस गाँव का नाम बदल कर सिंघपुर रखा गया। इसी कारण फैजलपुरिया मिसल को सिंघपुरिया मिसल भी कहा जाता है। सरदार कपूर सिंह का जन्म 1697 ई० में कालोके नामक गाँव में हुआ था। उसके पिता का नाम दलीप सिंह था और वह जाट परिवार से संबंध रखते थे। कपूर सिंह बाल्यकाल से ही अत्यंत वीर और निडर थे। उन्होंने भाई मनी सिंह से अमृत छका था। शीघ्र ही वह सिखों के प्रसिद्ध मुखिया बन गए। 1733 ई० में उन्होंने पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का पद तथा एक लाख वार्षिक आय वाली जागीर प्राप्त की। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को संगठित करने के उद्देश्य से उनको दो जत्थों बुड्डा दल और तरुणा दल के रूप में गठित किया। उन्होंने बड़ी योग्यता और सूझ-बूझ के साथ इन दोनों दलों का नेतृत्व किया। 1748 ई० में उन्होंने दल खालसा की स्थापना करके सिख पंथ के लिए महान् कार्य किया। वास्तव में सिख पंथ के विकास तथा उसको संगठित करने के लिए नवाब कपूर सिंह का योगदान बड़ा प्रशंसनीय था। उनकी 1753 ई० में मृत्यु हो गई।

  1. फैज़लपुरिया मिसल के संस्थापक कौन थे ?
  2. फैज़लपुरिया को अन्य किस नाम से जाना जाता था ?
  3. सरदार कपूर सिंह ने कब तथा किससे नवाब का दर्जा प्राप्त किया था ?
  4. नवाब कपूर सिंह की कोई एक सफलता के बारे में बताएँ।
  5. दल खालसा की स्थापना ……….. में की गई।

उत्तर-

  1. फैजलपुरिया मिसल के संस्थापक नवाव कपूर सिंह थे।
  2. फैज़लपुरिया को सिंघपुरिया मिसल के नाम से जाना जाता था।
  3. सरदार कपूर सिंह ने 1733 ई० में पंजाब के मुग़ल सूबेदार जकरिया खाँ से नवाब का दर्जा प्राप्त किया था।
  4. उन्होंने 1734 ई० में बुड्डा दल तथा तरुणा दल का गठन किया।
  5. 1748 ई०।

2
आहलूवालिया मिसल का संस्थापक सरदार जस्सा सिंह था। वह लाहौर के निकट स्थित गाँव आहलू का निवासी था। इस कारण इस मिसल का नाम आहलूवालिया मिसल पड़ गया। जस्सा सिंह अपने गुणों के कारण शीघ्र ही सिखों के प्रसिद्ध नेता बन गए। 1739 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने नादिर शाह की सेना पर आक्रमण करके बहुत-सा धन लूट लिया था। 1746 ई० में छोटे घल्लूघारे के समय इन्होंने वीरता के बड़े जौहर दिखाए। परिणामस्वरूप उनका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया। 1748 ई० में दल खालसा की स्थापना के समय जस्सा सिंह आहलूवालिया को सर्वोच्च सेनापति नियुक्त किया गया। उन्होंने दल खालसा का नेतृत्व करके सिख पंथ की महान् सेवा की। 1761 ई० में जस्सा सिंह के नेतृत्व में सिखों ने लाहौर पर जीत प्राप्त की। यह सिखों की एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण विजय थी। 1762 ई० में बड़े घल्लूघारे के समय भी जस्सा सिंह ने अहमद शाह अब्दाली की फ़ौजों का बड़ी वीरता के साथ मुकाबला किया। 1764 ई० में जस्सा सिंह ने सरहिंद पर अधिकार कर लिया और इसके शासक जैन खाँ को मौत के घाट उतार दिया। 1778 ई० में जस्सा सिंह ने कपूरथला पर कब्जा कर लिया और इसको आहलूवालिया मिसल की राजधानी बना दिया।

  1. जस्सा सिंह आहलूवालिया कौन था ?
  2. आहलूवालिया मिसल का यह नाम क्यों पड़ा ?
  3. जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी का नाम क्या था ?
  4. जस्सा सिंह आहलूवालिया की कोई एक सफलता लिखें।
  5. जस्सा सिंह आहलूवालिया ने कपूरथला पर कब कब्जा किया ?
    • 1761 ई०
    • 1768 ई०
    • 1778 ई०
    • 1782 ई०।

उत्तर-

  1. जस्सा सिंह आहलूवालिया, आहलूवालिया मिसल के संस्थापक थे।
  2. क्योंकि जस्सा सिंह आहलूवालिया आहलू गाँव का निवासी था।.
  3. जस्सा सिंह आहलूवालिया की राजधानी का नाम कपूरथला था।
  4. उन्होंने 1761 ई० में लाहौर में विजय प्राप्त की।
  5. 1778 ई०।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

3
जस्सा सिंह रामगढ़िया मिसल का सबसे प्रसिद्ध नेता था। उसके नेतृत्व में यह मिसल अपनी उन्नति के शिखर पर पहुँच गई थी। जस्सा सिंह पहले जालंधर के फ़ौजदार अदीना बेग के अधीन नौकरी करता था। अक्तूबर, 1748 ई० में मीर मन्नू और अदीना बेग की सेनाओं ने 500 सिखों को अचानक रामरौणी के किले में घेर लिया था। अपने भाइयों पर आए इस संकट को देखकर जस्सा सिंह के खून ने जोश मारा। वह अदीना बेग की नौकरी छोड़कर सिखों की सहायता के लिए पहुँचा। उसके इस सहयोग के कारण 300 सिखों की जानें बच गईं। इससे प्रसन्न होकर रामरौणी का किला सिखों ने जस्सा सिंह के सुपुर्द कर दिया। जस्सा सिंह ने इस किले का नाम रामगढ़ रखा। इससे ही उसकी मिसल का नाम रामगढ़िया पड़ गया। 1753 ई० में मीर मन्नू की मृत्यु के पश्चात् पंजाब में फैली अराजकता का लाभ उठाकर जस्सा सिंह ने कलानौर, बटाला, हरगोबिंदपुर, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, दीपालपुर, करतारपुर और हरिपुर इत्यादि प्रदेशों पर अधिकार करके रामगढ़िया मिसल का खूब विस्तार किया। उसने श्री हरगोबिंदपुर को रामगढ़िया मिसल की राजधानी घोषित किया। जस्सा सिंह के आहलूवालिया और शुकरचकिया मिसलों के साथ संबंध अच्छे नहीं थे। जस्सा सिंह की 1803 ई० में मृत्यु हो गई।

  1. जस्सा सिंह रामगढ़िया कौन था ?
  2. जस्सा सिंह रामगढ़िया ने रामरौणी किले का क्या नाम रखा ?
  3. जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम क्या था ?
  4. जस्सा सिंह रामगढ़िया की कोई एक सफलता लिखें।
  5. ………. में मीर मन्नू की मृत्यु हुई।

उत्तर-

  1. जस्सा सिंह रामगढ़िया, रामगढ़िया मिसल के सबसे प्रसिद्ध नेता थे।
  2. जस्सा सिंह रामगढ़िया ने रामरौणी किले का नाम बदलकर रामगढ़ रखा।
  3. जस्सा सिंह रामगढ़िया की राजधानी का नाम श्री हरगोबिंदपुर था।
  4. उसने सिखों को रामरौणी किले में मुग़लों के घेरे से बचाया था।
  5. 1753 ई०।

4
पटियाला में फुलकिया मिसल का संस्थापक आला सिंह था। वह बड़ा बहादुर था। उसने 1731 ई० में जालंधर दोआब के और मालेरकोटला के फ़ौजदारों की संयुक्त सेना को करारी हार दी थी। आला सिंह ने बरनाला को अपनी सरगर्मियों का केंद्र बनाया। उसने लौंगोवाल, छजली, दिरबा और शेरों नाम के गाँवों की स्थापना की। 1748 ई० में अहमद शाह अब्दाली के प्रथम आक्रमण के दौरान आला सिंह ने उसके विरुद्ध मुग़लों की सहायता की। उसकी सेवाओं के दृष्टिगत मुग़ल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला ने एक खिलत भेंट की। इससे आला सिंह की प्रसिद्धि बढ़ गई। शीघ्र ही आला सिंह ने भट्टी भाइयों जोकि उसके कट्टर शत्रु थे, को हरा कर बुडलाडा, टोहाना, भटनेर और जैमलपुर के प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। 1761 ई० में आला सिंह ने अहमद शाह अब्दाली के विरुद्ध मराठों की मदद की थी। इसलिए 1762 ई० में अपने छठे आक्रमण के दौरान अब्दाली ने बरनाला पर आक्रमण किया और आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया। आला सिंह ने अब्दाली को भारी राशि देकर अपनी जान बचाई। 1764 ई० में आला सिंह ने दल खालसा के अन्य सरदारों के साथ मिलकर सरहिंद पर आक्रमण कर इसके सूबेदार जैन खाँ को यमलोक पहँचा दिया था। इसी वर्ष अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त कर दिया एवं उसे राजा की उपाधि से सम्मानित किया।

  1. आला सिंह कौन था ?
  2. आला सिंह की राजधानी का क्या नाम था ?
  3. अहमद शाह अब्दाली ने कब आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया था ?
  4. अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को कहाँ का सूबेदार नियुक्त किया था ?
  5. आला सिंह को कब सरहिंद का सूबेदार नियुक्त किया गया ?
    • 1748 ई०
    • 1761 ई०
    • 1762 ई०
    • 1764 ई०।

उत्तर-

  1. आला सिंह पटियाला में फुलकिया मिसल का संस्थापक था।
  2. आला सिंह की राजधानी का नाम बरनाला था।
  3. अहमद शाह अब्दाली ने 1762 ई० में आला सिंह को गिरफ्तार कर लिया था।
  4. अहमद शाह अब्दाली ने आला सिंह को सरहिंद का सूबेदार नियुक्त किया था।
  5. 1764 ई०।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 13 मौर्य और शुंग काल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

SST Guide for Class 6 PSEB मौर्य और शुंग काल Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दें –

प्रश्न 1.
सिकन्दर के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
सिकन्दर मकदूनिया के राजा फिलिप का पुत्र था। वह अपने पिता की मृत्यु के बाद मकदूनिया का शासक बना। उसकी इच्छा सारे संसार को जीतने की थी। इसलिए राज- गद्दी पर बैठते ही उसने संसार को जीतने का कार्य शुरू कर दिया। पहले दो वर्ष उसने मकदूनिया के आस-पास के प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। फिर वह विशाल सेना को लेकर फारस (ईरान) को जीतने के लिए चल पड़ा। उसने एशिया माइनर, सीरिया, मिस्र तथा अफ़गानिस्तान को भी जीत लिया।

326 ई० पू० में सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण किया तथा ब्यास नदी तक पंजाब में उत्तर-पश्चिम के कई राजाओं को हरा दिया। पहले उसने तक्षशिला के राजा अंभी तथा फिर जेहलम तथा चिनाब नदी के मध्य के प्रदेश के शासक पोरस को हराया। पोरस ने सिकन्दर का डट कर मुकाबला किया था। सिकन्दर के सैनिक पंजाब के लोगों की वीरता को देखकर डर गए थे। वे लगातार युद्ध तथा यात्रा करने से भी थक गए थे। इस कारण सिकन्दर को ब्यास नदी से ही वापिस जाना पड़ा। लेकिन वह अपने देश में न पहुंच सका। रास्ते में ही बुखार के कारण उसकी मृत्यु हो गई।

प्रश्न 2.
कौटिल्य के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
कौटिल्य को चाणक्य भी कहा जाता है। वह एक महान् विद्वान् तथा तक्षशिला विश्वविद्यालय में अध्यापक था। चन्द्रगुप्त मौर्य उसे अपना गुरु मानता था। उसकी सहायता से ही चन्द्रगुप्त मौर्य नन्द वंश को समाप्त करके मौर्य साम्राज्य स्थापित करने में सफल हुआ था। चन्द्रगुप्त के सम्राट् बनने के बाद कौटिल्य मौर्य साम्राज्य का प्रधानमन्त्री बन गया। कौटिल्य एक महान् लेखक भी था। उसकी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ मौर्य शासन की जानकारी का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

प्रश्न 3.
अशोक को ‘महान’ क्यों कहा जाता है?
उत्तर-
अशोक को केवल भारत का ही नहीं, बल्कि संसार का एक महान् सम्राट माना जाता है। वह एक शक्तिशाली तथा महान् विजेता होते हुए भी शान्ति का पुजारी, मानवता प्रेमी तथा बेसहारों का मसीहा था। उसकी महानता उसके निम्नलिखित गुणों पर आधारित थी –

1. 261 ई० पू० में अशोक ने कलिंग (उड़ीसा) को जीता। इस लड़ाई में लाखों लोग मारे गए तथा अनेक घायल हुए। बहुत-से लोगों को कैद कर लिया गया। इस खून-खराबे से अशोक को बहुत दुःख हुआ। उसने हमेशा के लिए युद्ध करना छोड़ दिया तथा बौद्ध धर्म को अपना लिया।

2. कलिंग के युद्ध के बाद अशोक ने अपना शेष जीवन मानवता की भलाई में व्यतीत किया। उसने यात्रियों के लिए सड़कें तथा सरायें बनवाईं, कुएं खुदवाए तथा मनुष्यों एवं पशुओं के लिए अस्पताल खोले।

3. उसने शिकार करना छोड़ दिया तथा पशु-पक्षियों के मारने पर रोक लगा दी।

4. उसने अपनी प्रजा को अहिंसा का पालन करने, बड़ों का आदर करने तथा अपने से छोटों, नौकरों और सभी जीव-जन्तुओं के साथ प्रेम करने तथा दया का भाव रखने का सन्देश दिया।

5. उसने अपनी प्रजा को ग़रीबों को दान देने तथा सभी धर्मों का सम्मान करने का सन्देश दिया।

6. उसने अपने सन्देश चट्टानों और पत्थर के स्तम्भों पर खुदवा दिए तथा लोगों को उनका पालन करने के लिए कहा।

7. उसने लोगों में जन-कल्याण का सन्देश फैलाने के लिए विशेष अधिकारियों की नियुक्ति की।

प्रश्न 4.
मौर्य कला के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
मौर्य शासक कला प्रेमी थे तथा उन्होंने कला के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। उनके इस योगदान का वर्णन इस प्रकार है –
(1) चन्द्रगुप्त मौर्य ने एक विशाल राजमहल बनवाया। यह राजमहल बहुत सुन्दर था तथा अनेक स्तम्भों पर खड़ा था। अशोक का महल भी बहुत शानदार था।
(2) चन्द्रगुप्त मौर्य ने गुजरात में सुदर्शन नामक एक विशाल झील का निर्माण करवाया था।
(3) अशोक ने बहुत-से स्तूपों का निर्माण करवाया। मध्य प्रदेश में सांची का स्तूप बहुत प्रसिद्ध है।
(4) अशोक ने श्रीनगर तथा ललित पाटन नामक दो नए नगर बसाए।
(5) अशोक ने भिक्षुओं तथा निर्ग्रन्थों के लिए बिहार के नागार्जुनी तथा बारबरा की पहाड़ियों में सुन्दर गुफ़ाएं बनवाईं।
(6) अशोक ने पत्थर के बड़े-बड़े स्तम्भ बनवाए। ये स्तम्भ 34 फुट ऊंचे हैं। इन पर बहुत बढ़िया पालिश की हुई है, जो शीशे की तरह चमकती है। इन स्तम्भों पर अशोक ने अपने लेख खुदवाए।
7) अशोक ने अपने स्तम्भों पर बैल, हाथी, शेर आदि की मूर्तियां लगवाईं। एक मूर्ति में चार शेर पीठ के साथ पीठ लगाकर बैठे दिखाए गए हैं। यह मूर्ति सारनाथ (उत्तर प्रदेश) से प्राप्त हुई है। यही मूर्ति हमारा राष्ट्रीय चिन्ह है।
(8) मौर्य काल में यक्ष-यक्षियों की सुन्दर मूर्तियां भी बनवाई गईं थीं। ऐसी एक मूर्ति पटना के समीप दीदारगंज से प्राप्त हुई है।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

II. रिक्त स्थानों की पर्ति करें

  1. सिकंदर के सैनिक पंजाब के लोगों की …………… से भयभीत हो गए।
  2. चंद्रगुप्त ने …………… ई० पू० तक राज्य किया।
  3. ……………. सैल्यूकस का यूनानी राजदूत था।
  4. कौटिल्य के ……….. तथा मैगस्थनीज़ की ……….. पुस्तक से हमें मौर्य साम्राज्य के राज्य प्रबंध की जानकारी मिलती है।
  5. मध्य प्रदेश में ……………. का स्तूप बहुत प्रसिद्ध है।

उत्तर-

  1. बहादुरी (वीरता)
  2. 297
  3. मैगस्थनीज़
  4. अर्थशास्त्र, इण्डिका
  5. सांची।

III. सही जोड़े बनायें

(1) मैगस्थनीज़ – (क) अर्थशास्त्र
(2) कौटिल्य – (ख) स्तूप
(3) साँची – (ग) मन्त्री
(4) अमात्य – (घ) इण्डिका।
उत्तर-
सही जोड़े
(1) मैगस्थनीज़ – इण्डिका
(2) कौटिल्य – अर्थशास्त्र
(3) साँची – स्तूप
(4) अमात्य – मन्त्री।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

IV. सही (✓) अथवा ग़लत (✗) बताएं

  1. सैल्यूकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को पराजित किया।
  2. अशोक ने लोहे के विशाल स्तम्भ बनवाए।
  3. महामात्र सिकन्दर के अफ़सर थे।
  4. अशोक ने कलिंग-युद्ध के पश्चात् बौद्ध धर्म अपनाया।
  5. चन्द्रगुप्त ने सुदर्शन झील का निर्माण करवाया।

उत्तर-

  1. (✗)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)
  5. (✓)

PSEB 6th Class Social Science Guide मौर्य और शुंग काल Important Questions and Answers

कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
सिकंदर मकदूनिया का एक महान् यूनानी विजेता था। उसने भारत पर कब आक्रमण किया ?
उत्तर-
326 ई० पू० में।

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प्रश्न 2.
महान् सम्राट अशोक किसका पुत्र था ?
उत्तर-
बिंदुसार का।

प्रश्न 3.
अशोक भारत का पहला सम्राट् था जिसने एक युद्ध के पश्चात् सदा के लिए युद्ध करने का त्याग कर दिया। बताएं कि वह कौन-सा युद्ध था ?
उत्तर-
कलिंग का युद्ध।

बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अंतिम मौर्य सम्राट् बृहद्रथ का वध उसके सेनापति ने किया था। निम्न में से वह सेनापति कौन था ?
(क) पुण्यमित्र शुंग
(ख) शैल्युकस निकातोर
(ग) मिनांडर।
उत्तर-
(क) पुण्यमित्र शुंग

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प्रश्न 2.
किस मौर्य सम्राट् ने लोगों में नैतिक मूल्यों के प्रचार के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए ?
(क) चन्द्रगुप्त मौर्य
(ख) बिंदुसार
(ग) अशोक।
उत्तर-
(ग) अशोक

प्रश्न 3.
नीचे तीन चित्र क, ख, तथा ग दिए गए हैं। इनमें से कौन-सा चित्र हमारा राष्ट्र चिह्न है?
PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 12 मौर्य और शुंग काल 1
उत्तर-
(ग)

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण क्यों किया?
उत्तर-
सिकन्दर सम्पूर्ण संसार का राजा बनना चाहता था। इसलिए उसने कई प्रदेश जीतने के पश्चात् भारत पर आक्रमण कर दिया।

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प्रश्न 2.
तक्षशिला के राजा का क्या नाम था?
उत्तर-
तक्षशिला के राजा का नाम अंभी था।

प्रश्न 3.
कौन-से राजा ने सिकन्दर का डटकर मुकाबला किया?
उत्तर-
पोरस ने सिकन्दर का डटकर मुकाबला किया।

प्रश्न 4.
सिकन्दर के आक्रमण के समय मगध का राजा कौन था?
उत्तर-
सिकन्दर के आक्रमण के समय मगध का राजा महापदमनंद था।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

प्रश्न 5.
मौर्य साम्राज्य की जानकारी देने वाले दो स्रोतों के नाम लिखें।
उत्तर-
यूनानी यात्री मैगस्थनीज़ की इंडिका तथा चाणक्य का अर्थशास्त्र।

प्रश्न 6.
चन्द्रगुप्त द्वारा मगध की विजय के समय नन्द वंश का राजा कौन था?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त द्वारा मगध की विजय के समय नन्द वंश का राजा धनानन्द था।

प्रश्न 7.
चन्द्रगुप्त मौर्य का राजतिलक कब हुआ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य का राजतिलक 321 ई० पू० में हुआ।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

प्रश्न 8.
चन्द्रगुप्त मौर्य को सैल्युकस को पराजित करने के पश्चात् कौन-से चार प्रान्त मिले?
उत्तर-
सैल्युकस को पराजित करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त मौर्य को काबुल, कंधार, हैरात तथा बलुचिस्तान के प्रान्त मिले।

प्रश्न 9.
चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यकाल बताएँ।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्यकाल 321 ई० पूर्व से 297 ई० पू० तक था।

प्रश्न 10.
अशोक का राजतिलक कब हुआ?
उत्तर-
अशोक का राजतिलक 269 ई० पू० में हुआ।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

प्रश्न 11.
अशोक ने कलिंग पर आक्रमण क्यों किया?
उत्तर-
अशोक को विरासत में प्राप्त विशाल साम्राज्य में कलिंग का प्रदेश शामिल नहीं था। इसलिए उसने 261 ई० पू० में कलिंग पर आक्रमण कर दिया।

प्रश्न 12.
अशोक के धर्म के कोई दो सिद्धान्त लिखें।
उत्तर-
अशोक के धर्म के दो सिद्धान्त थे –

  1. बड़ों का आदर तथा छोटों से प्यार करो,
  2. सदा सत्य बोलो।

प्रश्न 13.
अशोक का राज्यकाल बताएं।
उत्तर-
अशोक का राज्यकाल 269 ई० पूर्व से 232 ई० पूर्व तक था।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मौर्य राज्य की जानकारी देने वाले स्त्रोतों के नाम बताएं।
उत्तर-
मौर्य राज्य की जानकारी हमें निम्नलिखित स्रोतों से मिलती है –
(1) यूनानी यात्री मैगस्थनीज़ की इण्डिका,
(2) चाणक्य का अर्थशास्त्र,
(3) विशाखदत्त का नाटक मुद्राराक्षस,
(4) जैन तथा बौद्ध धर्म के ग्रन्थ,
(5) पुराण तथा अभिलेख,
(6) मूर्तियां, स्मारक, खण्डहर तथा सिक्के।

प्रश्न 2.
चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य का जन्म 345 ई० पूर्व में हुआ। उसके जीवन के सम्बन्ध में कई विचारधाराएं हैं। कई इतिहासकारों का विचार है कि चन्द्रगुप्त की माँ मुरा एक शूद्र घराने की थी। उसके नाम पर मौर्य शब्द का प्रयोग किया गया। लेकिन जैन परम्पराओं के अनुसार चन्द्रगुप्त की माँ मोर पालने वाले गांव के मुखिया की बेटी थी। कुछ इतिहासकार चन्द्रगुप्त का सम्बन्ध नन्द वंश के साथ जोड़ते हैं।

प्रश्न 3.
चन्द्रगुप्त मौर्य की पंजाब विजय के समय पंजाब की राजनीतिक दशा कैसी थी?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य की पंजाब विजय से पहले सिकंदर ने भारत पर आक्रमण किया था। इस आक्रमण के कारण पंजाब की राजनीतिक दशा बहुत कमजोर हो चुकी थी। सिकन्दर यहां अपना राज्य स्थापित करके, अपने प्रतिनिधि को गवर्नर बनाकर छोड़ गया था। परन्तु पंजाब के लोग विदेशी राज्य के विरुद्ध थे। परिणामस्वरूप पंजाब में अराजकता फैल गई।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त मौर्य की मगध विजय के बारे में लिखें।
उत्तर-
पंजाब पर विजय प्राप्त करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने चाणक्य की नीति के अनुसार मगध पर आक्रमण कर दिया। मगध का राजा धनानंद अत्याचारी था। इसलिए मगध की जनता उससे घृणा करती थी। चाणक्य भी नन्द राजा से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था। चन्द्रगुप्त को इस स्थिति का बहुत लाभ हुआ। इसलिए उसने 321 ई० पू० में मगध पर अपना अधिकार कर लिया।

प्रश्न 5.
अशोक ने राजगद्दी कैसे प्राप्त की?
उत्तर-
अशोक मौर्य शासक बिन्दुसार का पुत्र था। बिन्दुसार की 273 ई० पू० में मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि अशोक ने अपने 99 भाइयों को मारकर मौर्य साम्राज्य की राजगद्दी प्राप्त की। अशोक का राजतिलक 269 ई० पू० में हुआ। हो सकता है कि 273 ई० पू० से 269 ई० पू० के बीच के समय में राजगद्दी के लिए गृह-युद्ध हुआ हो।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
चन्द्रगुप्त मौर्य की विजयों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य की विजयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है –
1. मगध पर विजय-चन्द्रगुप्त ने मगध पर एक बड़ी सेना सहित आक्रमण कर दिया। उस समय मगध पर धनानन्द राज्य करता था। युद्ध में धनानन्द हार गया तथा मगध के राज्य पर चन्द्रगुप्त मौर्य का अधिकार हो गया। इस प्रकार चन्द्रगुप्त लगभग सारे उत्तरी भारत का मालिक बन गया। मगध की राजधानी पाटलिपुत्र उसके राज्य की राजधानी बनी।

2. सैल्यूकस के साथ युद्ध-सैल्यूकस सिकन्दर का सेनापति था। सिकन्दर की मृत्यु के पश्चात् वह काबुल, कन्धार, बलख तथा बुखारा का शासक बन बैठा था। उसने पंजाब के पश्चिमी भाग पर आक्रमण कर दिया। इन क्षेत्रों पर चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य था। उसने सैल्यूकस को बुरी तरह हराया। सैल्युकस ने चन्द्रगुप्त मौर्य को काबुल, कन्धार तथा बलुचिस्तान के क्षेत्र दे दिए।

3. अन्य विजयें-उत्तरी भारत पर अधिकार करने के पश्चात् चन्द्रगुप्त ने गुजरातकाठियावाड़ पर हमला करके उसे अपने राज्य में मिलाया। दक्षिण के कुछ भागों पर भी चन्द्रगुप्त मौर्य का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

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प्रश्न 2.
चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्य प्रबन्ध की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त मौर्य का राज्य प्रबन्ध उच्चकोटि का था। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित थीं –

1. केन्द्रीय शासन-राजा राज्य का सर्वोच्च अधिकारी था। उसकी शक्तियां असीमित थीं। वह सेना का मुखिया तथा न्याय का अन्तिम न्यायालय था। उसकी सहायता के लिए कई मन्त्री होते थे। उसके कुछ अन्य अधिकारी प्रधान, अमात्य, महामात्र आदि थे।

2. प्रान्त का शासन-सम्पूर्ण साम्राज्य प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त का प्रबन्ध राज परिवार का कोई राजकुमार करता था। उसका कर्तव्य प्रान्त में शान्ति-व्यवस्था बनाए रखना था। प्रान्त जिलों में बंटे हुए थे। जिले के मुखिया को स्थानिक कहते थे।

3. बड़े नगरों का प्रबन्ध-पाटलिपुत्र, तक्षशिला तथा उज्जैन जैसे बड़े-बड़े नगरों के प्रबन्ध के लिए समितियां स्थापित की गई थीं। प्रत्येक समिति में 30 सदस्य होते थे। समितियां पांच-पांच सदस्यों के छ: बोर्डों में बंटी हुई थीं।

4. न्याय-न्याय का सर्वोच्च अधिकारी राजा स्वयं था। न्याय सम्बन्धी सभी अन्तिम अपीलें वह स्वयं ही सुनता था। सभी को उचित न्याय मिलता था। दण्ड काफ़ी कठोर थे। लोग शान्तिप्रिय थे। अपराध काफ़ी कम होते थे।

5. प्रजा की भलाई के कार्य-चन्द्रगुप्त मौर्य प्रजा की भलाई का विशेष ध्यान रखता था। उसने कृषि की उन्नति के लिए सिंचाई की उचित व्यवस्था की हुई थी। यात्रियों की सुविधा तथा व्यापार की उन्नति के लिए सभी राज्यों में सड़कों का जाल बिछा हुआ था। इसके अतिरिक्त उसने सड़क के दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाए, धर्मशालाएं बनवाईं तथा कुएं खुदवाए।

6. आय-सरकार को आय करों से प्राप्त होती थी। भूमि कर आमतौर पर उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। जन्म तथा मृत्यु कर, उत्पादन कर तथा बिक्री कर सरकार की आय के मुख्य साधन थे।

प्रश्न 3.
अशोक की कलिंग विजय का वर्णन करें।
उत्तर-
अशोक के दादा चन्द्रगुप्त मौर्य की दक्षिण विजय अधूरी रह गई थी क्योंकि कलिंग का राज्य अभी तक स्वतन्त्र था। इसलिए अशोक ने कलिंग पर विजय प्राप्त करने का निश्चय किया तथा 261 ई० पू० में एक विशाल सेना के साथ कलिंग पर आक्रमण कर दिया। कलिंग के राजा के पास भी एक विशाल सेना थी। अशोक तथा कलिंग के राजा के बीच बहुत घमासान युद्ध हुआ। इस युद्ध में अशोक की जीत हुई। अशोक के एक अभिलेख से पता चलता है कि इस युद्ध में लगभग एक लाख व्यक्ति मारे गए तथा उससे भी कहीं अधिक घायल हुए थे। कई लोग लापता हो गए। कलिंग युद्ध में हुए रक्तपात को देखकर अशोक का जीवन ही बदल गया। उसने युद्धों का हमेशा के लिए त्याग करके धर्म विजय की नीति अपनाई। इसी कारण वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया।

PSEB 6th Class Social Science Solutions Chapter 13 मौर्य और शुंग काल

प्रश्न 4.
अशोक के धर्म के सिद्धान्तों के बारे में लिखें। उसने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए क्या किया?
उत्तर-
कलिंग के युद्ध के पश्चात् अशोक ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया। परन्तु जो धर्म उसने जनता के सामने रखा, वह बौद्ध धर्म नहीं था। उसने सभी धर्मों की अच्छी बातें अपने धर्म में शामिल की। उसके धर्म की शिक्षाएं इस प्रकार थीं –

  1. बड़ों का आदर करो तथा छोटों से प्रेम करो।
  2. गुरुओं का आदर करो।
  3. पापों से दूर रहो तथा पवित्र जीवन व्यतीत करो।
  4. हमेशा सत्य बोलो। अन्त में सत्य की ही जीत होती है।
  5. अहिंसा में विश्वास रखो तथा किसी जीव की हत्या न करो।
  6. अपने सामर्थ्य के अनुसार साधुओं, विद्वानों तथा ग़रीबों को दान दो।
  7. अपने धर्म का पालन करो, लेकिन किसी दूसरे धर्म की निन्दा न करो।

अशोक द्वारा बौद्ध धर्म का प्रचार-अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए –

  1. उसने बौद्ध धर्म के नियमों को पत्थर के स्तम्भों तथा शिलाओं पर खुदवाया। ये नियम आम बोलचाल की भाषा में खुदवाए गए ताकि साधारण लोग भी इन्हें पढ़ सकें।
  2. उसने अनेक स्तूप तथा विहार बनवाए, जो बौद्ध धर्म के प्रचार का केन्द्र बने।
  3. उसने बौद्ध भिक्षुओं को आर्थिक सहायता दी।
  4. उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए विदेशों में प्रचारक भेजे।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य

Punjab State Board PSEB 11th Class Geography Book Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Exercise Questions and Answers.

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PSEB 11th Class Geography Guide ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य Textbook Questions and Answers

1. उत्तर एक-दो वाक्यों में दें-

प्रश्न (क)
भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर कौन-सा है ?
उत्तर-
भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर सियाचिन है।

प्रश्न (ख)
विश्व का सबसे बड़ा ग्लेशियर कौन-सा है ?
उत्तर-
विश्व का सबसे बड़ा ग्लेशियर हुब्बार्ड ग्लेशियर (अलास्का) है।

प्रश्न (ग)
हिमालय के कुल क्षेत्रफल में से कितना भाग बर्फ से ढका हुआ है ?
उत्तर-
हिमालय के कुल क्षेत्रफल में से 33000 वर्ग कि०मी० भाग बर्फ से ढका है।

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प्रश्न (घ)
इंदिरा कोल/पास कहाँ स्थित है ?
उत्तर-
इंदिरा कोल/पास उत्तर-पश्चिम हिमालय में स्थित है।

प्रश्न (ङ)
अंटार्कटिका का तापमान हर दस साल बाद कितना बढ़ता है ?
उत्तर-
अंटार्कटिका का तापमान हर दस साल बाद 0.12°C बढ़ता है।

2. निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट करो-

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में अन्तर स्पष्ट कीजिए-
(क) बगली मोरेन-प्रतिसारी हिमोढ़/मोरेन
(ख) ड्रमलिन-ऐस्कर
(ग) सिरक-यू-आकार की घाटी।
उत्तर-
(क) बगली मोरेन (Lateral Moraine)-
पिघलती हुई हिमनदी अपने किनारों पर चट्टानों के ढेर बना कर सैंकड़ों फुट ऊँची दीवार बना देती है, इसे बगली मोरेन कहते हैं।

प्रतिसारी हिमोढ़/मोरेन (Recessional Moraine) –
जब हिमनदी पीछे हटती है और पिघलती है, तो उसके अंतिम सिरे पर एक गोल आकार की श्रेणी बन जाती है, जिसे प्रतिसारी मोरेन कहते हैं।

(ख) ड्रमलिन (Drumlin)-
आधे अंडे अथवा उलटी नाव के आकार जैसे टीलों को ड्रमलिन कहते हैं।

ऐस्कर (Eskar)-
हिमनदी के अगले भाग में हिम की एक गुफा बनती है, जिसमें हिमनदी का जल-प्रवाह होता है और एक टेढ़ीमेढ़ी श्रेणी बन जाती है।

(ग) सिरक अथवा बर्फ़ कुंड (Cirque)-
पर्वत की ढलान पर हिम से ढका एक कुंड बन जाता है जिसे सिरक कहते हैं। बर्फ के पिघलने से यहाँ एक झील बन जाती है।

यू-आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-
जब यू-आकार की घाटी में हिम सरकती है, तो उसके दोनों सिरे तीखी ढलान वाले बन जाते हैं। यह घाटी अंग्रेजी भाषा के U-आकार जैसी बन जाती है।

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3. निम्नलिखित का उत्तर विस्तार सहित दो-

प्रश्न (क)
ग्लेशियर किसे कहते हैं ? इसको कितने भागों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर-
जब किसी हिम क्षेत्र में हिम बहुत अधिक बढ़ जाती है, तो यह नीचे की ओर खिसकती है। खिसकते हुए हिम पिंड को हिमनदी कहते है। (A Glacier is a large mass of moving ice.) कई विद्वानों ने हिम नदी को ‘बर्फ की नदी’ माना है। (Glacier are rivers of ice.)

हिम नदी के कारण-हिम नदी हिम क्षेत्रों से जन्म लेती है। लगातार हिमपात के कारण हिमखंडों का भार बढ़ जाता है। यह हिम समूह निचली ढलान की ओर एक जीभ (Tongue) के रूप में खिसकने लगता है। इसे हिम नदी कहते हैं।

हिम नदी के खिसकने के कई कारण हैं –

  1. हिम का अधिक भार (Pressure)
  2. ढलान (Slope)
  3. गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity)

सबसे तेज़ चलने वाली हिम नदियाँ ग्रीनलैंड में मिलती हैं, जो गर्मियों में 18 मीटर प्रतिदिन चलती हैं। हिम नदियाँ तेज़ ढलान पर और अधिक ताप वाले प्रदेशों में अधिक गति से चलती हैं, पर कम ढलान और ठंडे प्रदेशों में धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं। ये हिम नदियाँ हिम क्षेत्रों से सरक कर मैदानों में आकर पिघल जाती हैं और कई नदियों के पानी का स्रोत बनती हैं, जिस प्रकार भारत में गंगा नदी गंगोत्री हिम नदी से जन्म लेती है।

हिम नदी के प्रकार (Types of Glaciers)-स्थिति और आकार के आधार पर हिम नदियाँ तीन प्रकार की होती हैं-

1. घाटी ग्लेशियर (Valley Glaciers)—इसे पर्वतीय हिम नदी (Mountain Glaciers) भी कहते हैं। यह हिम नदी ऊंचे पहाड़ों की चोटियों से उतर कर घाटियों में बहती है। यह हिमनदी एक चौड़े और गहरे बेसिन (Basin) की रचना करती है। सबसे पहले अल्पस (Alps) पहाड़ में मिलने के कारण इसे अल्पाइन (Alpine) हिमनदी भी कहते हैं। हिमालय पर्वत पर इस प्रकार की कई हिम नदियाँ भी हैं, जिस प्रकार गंगोत्री हिम नदी जो कि 25 कि०मी० लंबी है। भारत में सबसे बड़ी हिम नदी काराकोरम पर्वत में सियाचिन (Siachin) है, जोकि 72 कि०मी० लंबी है। अलास्का में संसार की सबसे बड़ी हिम नदी हुब्बार्ड है, जोकि
128 कि०मी० लंबी है।

2. महाद्वीपीय ग्लेशियर (Continental Glaciers)-बड़े क्षेत्रों में फैली हुई हिम नदियों को महाद्वीपीय हिम नदी अथवा हिम चादर (Ice Sheets) कहते हैं। इस प्रकार की हिम चादरें ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar Areas) में मिलती हैं। लगातार हिमपात, निम्न तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण हिम पिघलती नहीं है। संसार की सबसे बड़ी हिम चादर अंटार्कटिका (Antarctica) में 130 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1500 मीटर मोटी है। ग्रीनलैंड (Greenland) में ऐसी ही एक हिम चादर का क्षेत्रफल 17 लाख वर्ग किलोमीटर है। आज से लगभग 25 हज़ार वर्ष पहले हिम युग (Ice Age) में धरती का 1/3 भाग हिम चादरों से ढका हुआ था।

3. पीडमांट ग्लेशियर (Piedmont Glaciers)—ये हिम नदियाँ पर्वतों के निचले भागों में होती हैं। वादी हिम नदियाँ जब पर्वतों के आगे कम ढलान वाली भूमि पर फैल जाती हैं और इनमें अनेक हिम नदियाँ आकर मिल जाती हैं, तो ये एक विशाल रूप बना लेती हैं। ऐसी हिमनदी को पर्वत-धारा हिमनदी या पीडमांट हिमनदी कहते हैं। ऐसी हिम नदियाँ अलास्का में बहुत मिल जाती हैं। यहां की मैलास्पीन (Melaspine) हिमनदी पीडमांट हिमनदी है। हिमाचल प्रदेश की कुल्लू घाटी में मोम (Mom) हिमनदी इसका एक अन्य उदाहरण है।

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प्रश्न (ख)
ग्लेशियर अनावृत्तिकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है, कैसे ?
उत्तर-
ग्लेशियरों द्वारा अनावृत्तिकरण-ग्लेशियर अनावृत्तिकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है
प्राचीन समय से अनावृत्तिकरण-यदि पृथ्वी का इतिहास देखा जाए, तो कई हज़ार साल पहले बर्फ़ युग (Ice Age) में धरती का 20% हिस्सा ग्लेशियरों के अधीन था, परंतु आज यह भाग केवल 10% तक ही सीमित रह गया है। ऐसा वैश्विक जलवायु (Global Climate) में बदलाव आने से हुआ है।

ग्लेशियरों का विस्तार-अंटार्कटिक और ग्रीनलैंड में, विश्व के ग्लेशियरों का 96% भाग है। अंटार्कटिक में तो इस बर्फ की तह की मोटाई (Thickness) कई स्थानों पर 1500 मीटर और कई स्थानों पर 4000 मीटर तक भी है।

ग्लेशियर और तापमान-अमेरिकी अंतरिक्ष खोज एजेंसी (NASA) की एक खोज के अनुसार पिछले 50 वर्षों में अंटार्कटिक का तापमान 0.12° प्रति दशक (Per Decade) गर्म हो रहा है, जिसके फलस्वरूप बर्फ की परतों के तल (Ice Sheets) टूटते जा रहे हैं और समुद्र (Sea Level) 73 मीटर तक ऊँचा उठ गया है।

ग्लेशियर और हिमपात (Snowfall)—ग्लेशियर केवल पहाड़ों, उच्च अक्षांशों अथवा ध्रुवों के पास ही मिलते हैं क्योंकि इन स्थानों पर तापमान हिमांक से भी नीचे होता है। पृथ्वी के इन क्षेत्रों में बर्फ रूपी वर्षा होती है। बर्फ की वर्षा में बर्फ रुई के समान कोमल होती है। लगातार बर्फ की वर्षा होने से और तापमान बहुत ही कम होने के कारण बर्फ की निचली परतें जमती रहती हैं और बर्फ ठोस रूप धारण कर लेती है। इसे ग्लेशियर कहते हैं। बर्फ की वर्षा अधिकांश क्षेत्रों में सर्दी के मौसम में ही होती है, जबकि गर्मी बर्फ को पिघलाने का काम करती है।

ग्लेशियरों का सरकना-धरती की ढलान और गर्मी के कारण जिस समय बर्फ धीरे-धीरे खिसकना शुरू कर देती है, तो इसे ग्लेशियर का सरकना या खिसकना कहा जाता है। 1834 में Lious Agassiz ने सिद्ध किया था कि ग्लेशियर के चलने की दर मध्य में सबसे अधिक और किनारों की ओर कम होती जाती है।

मैदानों की रचना- ग्लेशियर रेत, बजरी आदि के निक्षेप से मैदानों की रचना करते हैं, जो उपजाऊ क्षेत्र होते हैं।
पानी के भंडार-ग्लेशियर पिघलने के बाद पूरा वर्ष पानी प्रदान करते हैं।
झरने-कई स्थानों पर झरने बनते हैं, जो बिजली पैदा करने में मदद करते हैं।
झीलें-ग्लेशियर कई झीलों का निर्माण करते हैं, जैसे-Great Lake.

प्रश्न (ग)
ग्लेशियर के जलोढ़ निक्षेप क्या है ? विस्तार सहित व्याख्या करो।
उत्तर-
ग्लेशियर का निक्षेपण कार्य (Depositional Work of Glacier)-
पर्वतों के निचले भाग में आकर जब हिमनदी पिघलना आरंभ कर देती है, तो इसके द्वारा प्रवाहित चट्टानें, पत्थर, कंकर आदि निक्षेप हो जाते हैं। हिम के पिघलने से बनी जल धाराओं द्वारा भी इन पदार्थों को ढोने में सहायता मिलती है। हिमनदी द्वारा किए गए निक्षेप नीचे लिखे दो प्रकार के होते हैं

  1. ड्रिफ्ट (Drift)
  2. टिल्ल (Till).

हिम नदी द्वारा बहाकर लाए गए पत्थर, चट्टानी टुकड़े, कंकर आदि को हिमनदी ढेर कहा जाता है। यह सामग्री अलग-अलग स्थितियों में कटकों (Ridges) के रूप में जमा हो जाती है। इन कटकों को मोरेन (Moraine) कहा जाता है। मोरेन के अलग-अलग रूप नीचे लिखे हैं –

1. बगली मोरेन (Lateral Moraine) पिघलती हई हिम नदी जो पदार्थ अपने किनारों पर जमा करती है, वे एक कटक के रूप में एकत्र हो जाते हैं। इन्हें बगली मोरेन कहा जाता है। ये लगभग 30 मीटर ऊँचे होते हैं।

2. मध्यवर्ती अथवा सांझे मोरेन (Medial Moraine)-जब दो हिम नदियाँ आपस में मिलती हैं और वे संयुक्त रूप में आगे बढ़ती हैं तो उनके संगम के भीतरी किनारों की तरफ आधे चाँद जैसे मोरेन भी मिलकर आगे बढ़ते हैं। इन्हें मध्यवर्ती या सांझे मोरेन कहते हैं।

3. तल के मोरेन (Ground Moraine)-हिम नदी के तल पर बड़े चट्टानी टुकड़े और भारी पत्थर होते हैं, जो साथ-साथ तल को घिसाते हुए आगे बढ़ते हैं। हिम नदी के पिघलने पर ये भारी चट्टानें तल पर एकत्र होकर कटक का रूप धारण कर लेती हैं। ऐसे कटकों को तल के मोरेन कहते हैं। इस मोरेन में अधिकतर चट्टानी टुकड़े, पत्थर और चिकनी मिट्टी होती है। इसे बोल्डर क्ले या टिल्ल (Boulder Clay or Till) कहते हैं।

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4. अंतिम मोरेन (Terminal Moraine)-हिम नदी द्वारा कुछ पत्थर इसके अगले भाग में धकेल दिए जाते हैं। हिम नदी के पिघलने के बाद यह इसके अगले भाग में ही एकत्र होकर एक चट्टान का रूप धारण कर लेते हैं। इसे अंतिम मोरेन कहते हैं।

5. मोरेन झील (Moraine Lake)-हिम नदी के अगले भाग में कुछ बर्फ पिघल जाती है। यदि वहाँ अंतिम मोरेन हों तो इस जल का बहाव रुक जाता है और वहाँ एक झील बन जाती है, जिसे मोरेन झील कहते हैं।

6. केतलीनुमा सुराख (Kettle Holes)—जब ग्लेशियर चलता है, तो इसके ऊपर पत्थर या चट्टानों के टुकड़े गिर जाते हैं और कुछ समय बाद बर्फ पिघलती है, तो ग्लेशियर के अंदर छोटे-बड़े सुराख बन जाते हैं, जिन्हें केतलीनुमा सुराख कहते हैं। इसे नॉब और बेसिन भू-आकृति (Knob and Basin Topography) कहते हैं।

7. विस्थापित चट्टानी खंड (Erratic Blocks)-हिम नदी बड़े चट्टानी खंडों और भारी पत्थरों को प्रवाहित करके पर्वत के निचले भाग में ले जाती है और पिघलने पर उनका वहाँ निक्षेपण हो जाता है। ये चट्टानी खंड रचना में निकटवर्ती भूमि की चट्टानों के समान नहीं होते। इन्हें विस्थापित चट्टानी खंड कहते हैं।

8. हिमोढ़ी टीले (Drumlins)-हिम नदी तल पर हिमोढ़ को कई बार छोटे-छोटे गोल टीलों (Mounds) के रूप में इस तरह जमाकर देती है कि वे आधे अंडे अथवा उलटी नाव के समान दिखाई देते हैं। इन्हें हिमोढ़ी टीले (Drumlins) कहते हैं। दूर से देखने पर ये अंडे की टोकरी के समान प्रतीत होते हैं, इसलिए इस आकार वाली भूमि को अंडों की टोकरी वाली भू-आकृति (Basket of Eggs Topography) कहते हैं।

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प्रश्न (घ)
ग्लेशियर (हिम नदी) की अपघर्षण की क्रिया से कौन-कौन-सी रूप रेखाएँ बनती हैं, वर्णन करें।
उत्तर-
हिम नदी का अपरदन कार्य (Erosional Work of Glacier)-

पर्वतीय ढलानों से चट्टानी टुकड़े, पत्थर, कंकर आदि गुरुत्वाशक्ति के प्रभाव से घाटी हिम नदी के तल पर गिरते रहते हैं। कुछ समय बाद ये पत्थर आदि दिन के समय गर्म हो जाते हैं और बर्फ़ को पिघलाकर हिम नदी के तल (bed) पर पहुंच जाते हैं और हिम नदी के साथ-साथ चलते हैं। हिम नदी पर ये उपकरण बनकर अपरदन का काम करते हैं।

हिम नदी का अपघर्षण/अपरदन (Glacier Erosion)-

पानी के समान हिम नदी भी अपघर्षण/अपरदन, ढोने और जमा करने के तीन काम करती है। हिम नदी पहाड़ी प्रदेशों में अपघर्षण का काम, मैदानों में जमा करने और पठारों में रक्षात्मक काम करती है।

अपघर्षण (Erosion)-हिम नदी अनेक क्रियाओं द्वारा अपघर्षण का काम करती है-

  1. तोड़ने की क्रिया (Plucking or Quarrying)
  2. खड्डे बनाना (Grooving)
  3. अपघर्षण (Abrasion)
  4. पीसना (Grinding)
  5. चमकाना (Polishing)

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हिम नदी के कार्य हिम नदी अपने रास्ते के बड़े-बड़े पत्थरों को खोदकर खड्डे पैदा कर देती है। हिम-स्खलन (Avalanche) और भू-स्खलन (Land Slide) के कारण कई चट्टानी पत्थर हिम नदी के साथ मिल जाते हैं। ये पत्थर चट्टानों के साथ रगड़ते और घिसते हुए चलते हैं और हिम नदी के तल और किनारों को चिकना बनाते हैं। पहाड़ी प्रदेशों का रूप ही बदल जाता है। घाटी का तल चमकीला और चिकना हो जाता है। हिम नदी का अपघर्षण कई तत्त्वों पर निर्भर करता है

  1. हिम की मोटाई (Amount of Ice)-अधिक हिम के कारण कटाव भी अधिक होता है।
  2. चट्टानों की रचना (Nature of Rocks)-कठोर चट्टानों पर कम और नर्म चट्टानों पर अधिक कटाव होता है।
  3. हिम नदी की गति (Movement of Glaciers)-तेज़ गति वाली हिम नदियाँ शक्तिशाली होती हैं और अधिक कटाव करती हैं।
  4. भूमि की ढलान (Slope of Land)–धरातल की तेज़ ढलान अधिक अपरदन करने में सहायक होती है।

हिम नदी के अपघर्षण द्वारा बनी भू-आकृतियाँ (Land forms Produced by Glacier Erosion) –

हिम नदी के अपरदन क्रिया द्वारा पर्वतों में नीचे लिखी भू-आकृतियाँ बनती हैं-

1. बर्फ कुंड अथवा सिरक (Cirque or Corrie or CWM)-सूर्य-ताप के कारण दिन के समय कुछ मात्रा में हिम पिघल कर जल के रूप में दरारों में प्रवेश कर जाती है। रात के समय अधिक सर्दी होने के कारण यह जल फिर हिम में बदल जाता है और फैल जाता है फलस्वरूप यह चट्टानों पर दबाव डालकर उन्हें तोड़

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देता है। इस क्रिया में नियमित रूप में चलते रहने के फलस्वरूप पर्वत की ढलान पर खड्डा बन जाता है। सामान्य रूप से यह बर्फ से भरा रहता है और धीरे-धीरे तुषारचीरन (Frost Wedging) की क्रिया से एक विशाल कुंड का रूप धारण कर लेता है। इसे हिमगार भी कहा जाता है। इसे फ्रांस में सिरक (Cirque), स्कॉटलैंड में कोरी (Corrie), जर्मनी में कैरन (Karren) और इंग्लैंड में वेल्ज़ (Wales of England) के कूम (CWM) कहते हैं। हिमगार की बर्फ़ जब पिघल जाती है, तो इसमें पानी भरा रहता है, इसे गिरिताल (Tarn Lake) कहते हैं। इसी प्रकार पर्वतीय ढलानों पर अर्धगोले के आकार के खड्डों को हिम कुंड कहते हैं (Cirques are Semi-circular hollow on the side of a mountain)। इनका आकार आरामकुर्सी (Arm chair) अथवा कटोरे के समान होता है।

2. दर्रा अथवा कोल (Pass or Col) कई बार पर्वत की विपरीत ढलानों की एक समान ऊँचाई पर हिमगार कारण पर्वत का वह भाग बाकी भागों की अपेक्षा नीचा हो जाता है। पर्वत के इस निचले भाग को दर्रा (Saddle) कहते हैं। कनाडा का रेल मार्ग कोल क्षेत्रों में से निकलता है।

3. कंघीदार श्रृंखला (Comb Ridge)-कई बार पर्वत माला की एक श्रृंखला (Ridge) के विपरीत ढलानों पर कई हिमगार बन जाते हैं और श्रृंखला कई स्थानों से नीची हो जाती है, जिसके फलस्वरूप श्रृंखला कंघी के आकार की प्रतीत होती है और इसके चट्टानी खंभे (Rock-Pillars) दिखाई देते हैं। कुछ समय के बाद जब ये खंभे नष्ट हो जाते हैं तो श्रृंखला उस्तरे जैसी तीखी धार वाली (Rajor-edged) बन जाती है। तब इस श्रृंखला को एरैटी या तीखी श्रृंखला (Arete) कहते हैं।

4. पर्वत या गिरि श्रृंग (Horn)-कई बार किसी पर्वत के दो-तीन या चारों तरफ एक जैसी ऊँचाई पर हिमगारों का निर्माण हो जाता है। कुछ समय के बाद उनकी पिछली तरफ के शिखर के कटाव के कारण ये अंदर ही अंदर आपस में मिल जाते हैं, जिसके फलस्वरूप इनके मध्य में एक ठोस पिरामिड (Pyramid) आकार का शिखर बाकी रह जाता है।

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इस शिखर को पर्वत-श्रृंग कहते हैं। स्विट्ज़रलैंड (Switzerland) का मैटरहॉर्न (Matterhorn) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। इसके अतिरिक्त कश्मीर घाटी पहलगाम (Pahalgam) से 25 किलोमीटर ऊपर की ओर कोलहाई (Kholhai) हिम नदी के स्रोत पर ऐसा ही एक पर्वत श्रृंग है।

5. भेड़ पहाड़ या रोशे मुताने (Sheep Rocks or Roche Muttonne)-हिम नदी के मार्ग में अनेक छोटी छोटी रुकावटें आती हैं, जिन्हें वह अपने प्रवाह के दबाव के साथ उखाड़ देती है। परंतु कई बार बड़ी रुकावटों जैसे पर्वतीय टीलों आदि को उखाड़ने में वह असमर्थ रहती है। परिणामस्वरूप इसे उन रुकावटों के ऊपर से होकर निकलना पड़ता है। हिम नदी के सामने वाली ढलान हिमनदी संघर्षण क्रिया द्वारा घिसकर

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चिकनी और नर्म (Smooth) हो जाती है। हिमनदी जब टीले की दूसरी तरफ उतरती है, तो यह अपनी उखाड़ने की शक्ति (Plucking) द्वारा चट्टानों को उखाड़ देती है। इससे दूसरी तरफ की ढलान ऊबड़-खाबड़ हो जाती है। ये टीले दूर से ऐसे लगते हैं, जैसे भेड़ की पीठ हो, इसलिए इसे भेड़-पीठ कहते हैं। ‘Roche Muttonne’ फ्रांसीसी (French) भाषा के दो शब्द हैं, जिनका अर्थ भेड़-दुम चट्टान होता है।

6. यू-आकार की घाटी (U-Shaped Valley)-हिमनदी सदा पहले से बनी घाटी में बहती है। जिस घाटी में हिम नदी चलती है, उसे अपनी घर्षण और उखाड़ने की क्रिया द्वारा नीचे से और दोनों तरफ से तीखी ढलान वाली बना देती है, जिसके कारण हिम नदी घाटी अंग्रेजी भाषा के अक्षर ‘U’ आकार की बन जाती है। नदी द्वारा बनी V- आकार की घाटियाँ हिम नदी की अपरदन क्रिया द्वारा U- आकार की हो जाती हैं। इसका तल समतल और चौकोर होता है। इसके किनारे खड़ी ढलान वाले होते हैं। समुद्र में डूबी हुई यू-आकार की घाटियों को फियॉर्ड (Fiord) कहते हैं। उदाहरण-उत्तरी अमेरिका में सेंट लारेंस घाटी।

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7. लटकती घाटी (Hanging Valley)–एक बड़ी हिमनदी में कई छोटी हिम नदियाँ आकर मिलती हैं। ये मुख्य हिम नदी की सहायक (Tributaries) कहलाती हैं। मुख्य हिम नदी सहायक हिम नदियों के मुकाबले में अधिक अपरदन करती है, जिसके कारण मुख्य हिम नदी घाटी का तल, सहायक हिम नदी के तल की तुलना में अधिक नीचा हो जाता है। कुछ समय के बाद, जब हिम नदियाँ पिघल जाती हैं, तो सहायक नदियों की घाटियाँ मुख्य नदी की घाटी पर लटकती हुई दिखाई देती हैं और वहाँ जल झरने बन जाते हैं। इस प्रकार यह लटकती घाटियाँ मुख्य हिम नदी और सहायक हिम नदी की घाटियों में अपरदन की भिन्नता के कारण बनती हैं।

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Geography Guide for Class 11 PSEB ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-4 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
भारत की किसी एक हिमनदी का नाम बताएँ।
उत्तर-
सियाचिन।

प्रश्न 2.
हिमनदी शृंग का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
मैटर हॉर्न।

प्रश्न 3.
विश्व के कितने क्षेत्र में ग्लेशियर हैं ?
उत्तर-
10 प्रतिशत।

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प्रश्न 4.
अंटार्कटिका में हिम की मोटाई बताएँ।
उत्तर-
4000 मीटर।

प्रश्न 5.
उस विद्वान का नाम बताएँ, जिसने पुष्टि की थी कि हिम नदी की गति होती है।
उत्तर-
लुईस अगासीज़।

प्रश्न 6.
हिमालय पर्वत की हिम रेखा की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
5000 मीटर।

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प्रश्न 7.
अलास्का के पीडमांट ग्लेशियर का नाम बताएँ।
उत्तर-
मैलास्पीना।

प्रश्न 8.
सिरक के अन्य नाम बताएँ।
उत्तर-
कोरी, कैरन।

अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 2-3 वाक्यों में दें-

प्रश्न 1.
हिम क्षेत्र से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
हिम क्षेत्र (Snow field) हिम रेखा से ऊपर सदैव बर्फ से ढके प्रदेशों को हिम क्षेत्र कहते हैं।

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प्रश्न 2.
हिम रेखा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
हिम रेखा (Snow line)—यह वह ऊँचाई है, जिसके ऊपर सारा साल हिम जमी रहती है।

प्रश्न 3.
घाटी हिम नदी क्या है ?
उत्तर-
घाटी हिम नदी (Valley Glacier)—पर्वतों से खिसककर घाटी में उतरने वाली हिम नदी को घाटी हिम नदी कहते हैं।

प्रश्न 4.
महाद्वीपीय हिम नदी क्या है ?
उत्तर-
महाद्वीपीय हिम नदी (Continental Glacier) ध्रुवीय क्षेत्रों के बड़े क्षेत्रों पर हिम चादर को महाद्वीपीय नदी कहते हैं।

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प्रश्न 5.
हिमकुंड की परिभाषा दें।
उत्तर-
हिमकुंड (Cirque)-पर्वतीय ढलानों पर अर्धगोले के आकार के गड्ढों को हिमकुंड कहते हैं।

प्रश्न 6.
हिम रेखा की ऊँचाई किन तत्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-

  1. अक्षांश
  2. हिम की मात्रा
  3. पवनों
  4. ढलान।

प्रश्न 7.
हिमालय पर्वत पर हिमरेखा की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
5000 मीटर।

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प्रश्न 8.
ध्रुवों पर हिमरेखा की ऊँचाई बताएँ।
उत्तर-
समुद्र तल।

प्रश्न 9.
हिम नदी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
हिम क्षेत्रों से नीचे की ओर खिसकते हुए हिमकुंड को हिम नदी कहते हैं।

प्रश्न 10.
भारत में सबसे बड़ी हिम नदी कौन-सी है ?
उत्तर-
सियाचिन।

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प्रश्न 11.
गंगा नदी किस हिमनदी से जन्म लेती है ?
उत्तर-
गंगोत्री।

प्रश्न 12.
हिम नदियों के तीन मुख्य प्रकार बताएँ।
उत्तर-
घाटी हिम नदी, पीडमांट हिम नदी, हिम चादर (महाद्वीपीय हिम नदी)

प्रश्न 13.
हिम-स्खलन (Avalanche) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नीचे की ओर खिसकती बर्फ पर्वतीय ढलानों से चट्टानी टुकड़े उखाड़ लेती है, इन्हें हिम-स्खलन (Avalanche) कहते हैं।

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प्रश्न 14.
महाद्वीपीय हिम नदी से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब कोई हिम नदी एक विशाल क्षेत्र को घेर लेती है, जैसे कि एक महाद्वीप, तब उसे हिम चादर या महाद्वीपीय हिम नदी कहते हैं।

प्रश्न 15.
हिम नदी के अपरदन के रूप बताएँ।
उत्तर-

  1. उखाड़ना (Plucking)
  2. खड्डे बनाना (Grooving),
  3. अपघर्षण (Abrasion),
  4. पीसना (Grinding)

प्रश्न 16.
सिरक (Cirque) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पर्वतीय ढलानों पर अर्धगोले के आकार के खड्डों को हिमकुंड या सिरक कहते हैं।

प्रश्न 17.
टार्न झील (गिरिताल) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी सिरक में बर्फ के पिघलने के बाद एक झील बन जाती है, जिसे टार्न झील या गिरिताल कहते हैं।

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प्रश्न 18.
पर्वतश्रृंग (Horn) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
किसी पहाड़ी के पीछे के कटाव के कारण नुकीली चोटियाँ बनती हैं, जिन्हें Horn कहते हैं।

प्रश्न 19.
कोल या दर्रा किसे कहते हैं ?
उत्तर-
किसी-पहाड़ी के दोनों तरफ के सिरक आपस में मिलने से एक दर्रा बनता है, जिसे कोल (Col) या दर्रा (Pass) कहते हैं।

प्रश्न 20.
फियॉर्ड से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
तटों पर डूबी हुई यू-आकार की घाटियों को फियॉर्ड कहते हैं।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 21.
हिमोढ़ किसे कहते हैं ?
उत्तर-
हिम नदी अपने भार को एक टीले के रूप में जमा करती है, जिसे हिमोढ़ कहते हैं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न (Short Answer Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 60-80 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
हिम रेखा किसे कहते हैं ? इसकी ऊँचाई किन तत्त्वों पर निर्भर करती है ?
उत्तर-
हिम रेखा (Snow line) स्थायी हिम क्षेत्रों की निचली सीमा को हिम रेखा कहते हैं। इस स्थल पर सबसे कम ऊँचाई होती है, जहाँ सदा हिम जमी रहती है। यह वह ऊंचाई है, जिसके ऊपर हिम पिघल नहीं सकती और सारा साल हिम रहती है। धरती के अलग-अलग भागों में हिम रेखा की ऊँचाई अलग-अलग होती है, जैसे हिमालय पर 5000 मीटर, अल्पस पहाड़ पर 2000 मीटर है। हिमरेखा की ऊँचाई पर कई तत्त्वों का प्रभाव पड़ता है-

  1. अक्षांश (Latitude)—ऊँचे अक्षांशों पर कम तापमान होने के कारण, हिम रेखा की ऊँचाई कम होती है, परंतु निचले अक्षांशों में हिम रेखा की अधिक ऊँचाई मिलती है। ध्रुवों पर हिम रेखा समुद्री तल पर मिलती है। भूमध्य रेखा पर हिम क्षेत्र 5500 मीटर की ऊँचाई पर मिलते हैं।
  2. हिम की मात्रा (Amount of Snow)-अधिक हिम वाले क्षेत्रों में हिम रेखा नीचे होती है, परंतु कम हिम वाले क्षेत्रों में हिमरेखा ऊँची होती है।
  3. पवनें (Winds)—शुष्क हवा के कारण ऊँची और नम हवा के कारण निचली हिम रेखा मिलती है। 4. ढलान (Slope)-तीव्र ढलान पर ऊँची और मध्यम ढलान पर निचली हिम रेखा मिलती है।

प्रश्न 2.
घाटी हिम नदी पर एक नोट लिखें।
उत्तर-
घाटी हिम नदी (Valley Glaciers)—इन्हें पर्वतीय हिम नदी (Mountain Glaciers) भी कहते हैं। ये हिम नदी ऊँचे पहाड़ों की चोटियों से उतर कर घाटियों में बहती है। यह हिम नदी एक चौड़े और गहरे बेसिन (Basin) की रचना करती है। सबसे पहले अल्पस पहाड़ (Alps) में मिलने के कारण इन्हें एल्पाइन (Alpine) हिम नदी भी कहते हैं। हिमालय पहाड़ पर इस प्रकार की कई हिम नदियाँ भी हैं, जैसे गंगोत्री हिम नदी, जोकि 25 कि०मी० लंबी है। भारत में सबसे बड़ी हिमनदी काराकोरम पर्वत में सियाचिन (Siachin) है, जोकि 72 कि०मी० लंबी है। अलास्का में संसार की सबसे बड़ी हिमनदी हुब्बार्ड है, जोकि 128 कि०मी० लंबी है।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 3.
महाद्वीपीय हिम नदियों का विस्तार बताएँ।
उत्तर-
महाद्वीपीय हिम नदियाँ (Continental) Glaciers)-बड़े क्षेत्रों में फैली हुई हिम नदियों को महाद्वीपीय हिमनदी या हिम चादर (Ice Sheets) कहते हैं। इसी प्रकार की हिम चादरें ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar Areas) में मिलती हैं। लगातार हिमपात, कम तापक्रम और कम वाष्पीकरण के कारण हिम पिघलती नहीं है। संसार की सबसे बड़ी हिम चादर अंटार्कटिका (Antarctica) में 130 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1500 मीटर मोटी है। ग्रीनलैंड (Greenland) में ऐसी ही एक हिमचादर का क्षेत्रफल 17 लाख वर्ग कि०मी० है।

प्रश्न 4.
हिम नदी के अपरदन का कार्य किन कारकों पर निर्भर करता है ?
उत्तर-

  1. हिम की मोटाई (Amount of Ice)-अधिक हिम के कारण अधिक कटाव होता है।
  2. चट्टानों की रचना (Nature of Rocks)-कठोर चट्टानों पर कम और नर्म चट्टानों पर अधिक कटाव होता
  3. हिमनदी की गति (Movement of Glaciers)—तेज़ गति वाली हिम नदियाँ शक्तिशाली होती हैं और अधिक कटाव करती हैं।
  4. भूमि की ढलान (Slope of Land)–धरातल की तेज़ ढलान अधिक अपरदन में सहायक होती है।

प्रश्न 5.
मोरेन (हिमोढ़) कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
निक्षेपण के स्थान के आधार पर मोरेन चार प्रकार के होते हैं-

  1. बगली मोरेन (Lateral Moraines) हिमनदी के किनारों के साथ-साथ बने लंबे और कम चौड़े मोरेन को बगली मोरेन कहते हैं। ये मोरेन एक लंबी श्रेणी (Ridge) के रूप में लगभग 30 मीटर ऊँचे होते हैं।
  2. मध्यवर्ती (सांझे) मोरेन (Medial Moraines)—दो हिम नदियों के संगम के कारण उनके भीतरी किनारे वाले अर्ध-चंद्र के आकार के टीले मिलकर एक हो जाते हैं। इसे मध्यवर्ती या सांझे मोरेन कहते हैं। ये मोरेन नदी के बीच दिखाई देते हैं।
  3. अंतिम मोरेन (Terminal Moraines) हिमनदी के पिघल जाने पर इसके अंतिम किनारे पर बने मोरेन को अंतिम मोरेन कहते हैं। ये मोरेन अर्ध चंद्रमा के आकार जैसे और ऊँचे-नीचे होते हैं।
  4. तल के मोरेन (Ground Moraines)-हिम नदी के तल या आधार पर जमे हुए पदार्थों के ढेर को तल के मोरेन कहते हैं।

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प्रश्न 6.
हिमपात या बर्फबारी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
हिमपात या बर्फबारी (Snowfalls)-उच्च अक्षांशों के प्रदेशों और ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों में बादलों से पानी के स्थान पर बर्फ (Snow) गिरती है। इसे हिमपात या बर्फबारी कहते हैं। इसका मूल कारण वहाँ की अति ठंडी जलवायु है। ये प्रदेश सदा बर्फ से ढके रहते हैं।

ध्रुवीय और ऊँचे पर्वत सदा बर्फ से ढके रहते हैं। इन प्रदेशों में सारा साल वर्षा, बर्फबारी (Snowfall) के रूप में होती है। लगातार बर्फ गिरने के कारण यह जमकर ठोस हो जाती है और हिम (Ice) बन जाती है। ऊंचे पहाड़ों पर गर्मी की ऋतु में ही हिमनदी पिघलती है। ऐसे हिम के साथ सदा ढके रहने वाले क्षेत्रों को हिमक्षेत्र (Snow fields) या नेवे (Neves) कहते हैं। संसार के सबसे ऊँचे क्षेत्रों पर हिम-क्षेत्र मिलते हैं। हिमक्षेत्र हिमरेखा से ऊँचे स्थित होते हैं। हिमक्षेत्र ऑस्ट्रेलिया को छोड़कर सभी महाद्वीपों में मिलते हैं।

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर 150-250 शब्दों में दें-

प्रश्न 1.
हिम नदी किसे कहते हैं ? इसका जन्म कैसे होता है ? इसके प्रमुख प्रकार बताएँ।
उत्तर-
हिम नदी (Glacier) –

जब किसी हिमक्षेत्र में हिम बहुत अधिक बढ़ जाती है, तो यह नीचे को ओर खिसकती है। खिसकते हुए हिमपिंड को हिम नदी कहते हैं। (A Glacier is a large mass of moving ice.) कई विद्वानों ने हिम नदी को ‘बर्फ की नदी’ माना है। (Glaciers are rivers of ice)

हिमनदी के कारण-हिम नदी हिम क्षेत्रों से जन्म लेती है। लगातार हिमपात के कारण हिम खडों का भार बढ़ जाता है। ये हिम समूह निचली ढलान की ओर एक जीभ (Tongue) के रूप में खिसकने लगता है। इसे हिम नदी कहते हैं। हिम नदी के खिसकने के कई कारण हैं

  1. हिम का अधिक भार (Pressure)
  2. ढलान (Slope)
  3. गुरुत्वाकर्षण शक्ति (Gravity)

सबसे तेज़ चलने वाली हिम नदियाँ ग्रीनलैंड में मिलती हैं, जो गर्मियों में 18 मीटर प्रति दिन चलती हैं। हिम नदियाँ तेज़ ढलान पर और अधिक ताप वाले प्रदेशों में अधिक गति के साथ चलती हैं। परंतु कम ढलान और ठंडे प्रदेशों में धीरे-धीरे आगे बढ़ती हैं। ये हिमनदियाँ हिम-क्षेत्रों से सरककर मैदानों में आकर पिघल जाती हैं और कई नदियों के पानी का स्रोत बनती हैं, जैसे भारत में गंगा गंगोत्री हिमनदी से जन्म लेती है।

हिम नदी के प्रकार (Types of Glaciers)-स्थिति और आकार की दृष्टि से हिम नदियाँ दो प्रकार की होती हैं-

1. घाटी हिम नदी (Valley Glaciers)—इन्हें पर्वतीय हिमनदी (Mountain Glaciers) भी कहते हैं। यह हिमनदी ऊँचे पहाड़ों की चोटियों से उतर कर घाटियों में बहती है। यह हिम नदी एक चौड़े और गहरे बेसिन (Basin) की रचना करती है। सबसे पहले अल्पस (Alps) पर्वत में मिलने के कारण इन्हें एल्पाइन (Alpine) हिमनदी भी कहते हैं। हिमालय पर्वत पर इस प्रकार की कई हिम नदियाँ भी हैं, जैसे गंगोत्री हिमनदी, जो कि 25 कि०मी० लंबी है। भारत में सबसे बड़ी हिम नदी काराकोरम पर्वत में सियाचिन (Siachin) है, जोकि 72 कि०मी० लंबी है। अलास्का में संसार की सबसे बड़ी हिमनदी हुब्बार्ड है, जोकि 128 कि०मी० लंबी है।

2. महाद्वीपीय हिमनदी (Continental Glaciers)-बड़े क्षेत्रों में फैली हुई हिमनदियों को महाद्वीपीय हिमनदी या हिमचादर (Ice-Sheets) कहते हैं। इसी प्रकार की हिम-चादरें ध्रुवीय क्षेत्रों (Polar Areas) में मिलती है। लगातार हिमपात, निम्न तापमान और कम वाष्पीकरण के कारण हिम पिघलती नहीं है। संसार की सबसे बड़ी हिम-चादर अंटार्कटिका (Antarctica) में 130 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1500 मीटर मोटी है। ग्रीनलैंड (Greenland) में ऐसी ही एक हिम-चादर का क्षेत्रफल 17 लाख वर्ग कि०मी० है। आज से लगभग 25 हज़ार वर्ष पहले हिम युग (Ice age) में धरती का 1/3 भाग हिम-चादरों से ढका हुआ था।

PSEB 11th Class Geography Solutions Chapter 3(ii) ग्लेशियर के अनावृत्तिकरण कार्य

प्रश्न 2.
हिम नदी जल प्रवाह के निक्षेप से बनने वाले भू-आकारों के बारे में बताएँ।
उत्तर-
हिम नदी जल-प्रवाह के निक्षेप से उत्पन्न भू-आकृतियाँ (Landforms Produced by Glacio-fluvial Deposites)-

जब हिम नदी पिघलती है, तो उसके अगले भाग से पानी की अनेक धाराएँ उत्पन्न हो जाती हैं। ये धाराएँ अपने बारीक पदार्थों-रेत, मिट्टी आदि को बहाकर ले जाती हैं और कुछ दूर जाकर उन्हें एक स्थान पर ढेरी कर देती हैं।
जल प्रवाह का निक्षेप नदी के पिघल जाने के बाद होता है। उससे उत्पन्न भू-आकृतियाँ नीचे लिखी हैं- .

1. एस्कर या हिमोढ़ी टीला (Eskar)-Snout की बारीक सामग्री को जल धाराएँ बहाकर ले जाती हैं और भारी पत्थर, कंकर आदि का ढेर साँप के समान बल खाती एक लंबी श्रृंखला के समान बन जाता है। चिकने पत्थर, कंकर आदि की साँप के समान बल खाती श्रृंखला को हिमोढ़ी टीला या एस्कर कहते हैं। एस्कर आइरिश भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ

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2. कंकड़-पहाड़ या केम (Kame)-हिमनदी के अगले भाग से निकली कुछ धाराएँ रेत और छोटे पत्थर, कंकर आदि को टीलों के रूप में ढेरी कर देती हैं। इन्हें कंकड़-पहाड़ भी कहा जाता है।

3. ग्लेशियर नदी मैदान (Outward Plain or Outwash Plain)-हिम नदी द्वारा उत्पन्न जल धाराओं द्वारा निक्षेप की गई सामग्री से एक मैदान का निर्माण हो जाता है। इसे ग्लेशियर नदी मैदान कहते हैं।

4. घाटी मोरेन (Valley Moraines)-हिम नदी के पिघलने पर जल धाराएं अपने साथ तल के अंतिम मोरेन के नुकीले पदार्थो को निचले भागों में पंक्तियों में निक्षेप कर देती हैं। इन निक्षेपों को घाटी मोरेन कहते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 20 राज्य-सरकार

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 20 राज्य-सरकार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Civics Chapter 20 राज्य-सरकार

SST Guide for Class 7 PSEB राज्य-सरकार Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1-15 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
भारत के उन पांच राज्यों के नाम बताओ जहां दो-सदनीय विधानपालिका है।
उत्तर-
बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश तथा महाराष्ट्र।
नोट-इन राज्यों के अतिरिक्त कुछ अन्य राज्यों में भी दो सदनीय विधानपालिका है।

प्रश्न 2.
विधायक चुने जाने के लिए कौन-सी दो योग्यताएं आवश्यक हैं ?
उत्तर-
विधायक चुने जाने के लिए एक व्यक्ति में निम्नलिखित योग्यताएं होनी चाहिएं –

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 25 वर्ष से कम न हो।

प्रश्न 3.
राज्यपाल चुने जाने के लिए कौन-सी योग्यताएं आवश्यक हैं ?
उत्तर-
किसी भी राज्य का राज्यपाल बनने के लिए आवश्यक है कि वह व्यक्ति –

  1. भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 35 वर्ष या इससे अधिक हो।
  3. वह मानसिक एवं शारीरिक रूप से ठीक हो।
  4. वह राज्य या केंद्रीय विधानपालिका का सदस्य या सरकारी अधिकारी न हो।

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प्रश्न 4.
एक सरकारी विभाग का सरकारी मुखिया कौन होता है ?
उत्तर-
एक सरकारी विभाग का सरकारी मुखिया विभागीय सचिव होता है ।

प्रश्न 5.
आपके राज्य के मुख्यमन्त्री एवं राज्यपाल कौन हैं ?
उत्तर-
अपने अध्यापक महोदय से वर्तमान स्थिति की जानकारी प्राप्त करें।

प्रश्न 6.
राज्य का कार्यकारी मुखिया कौन होता है ?
उत्तर-
राज्य का कार्यकारी मुखिया राज्यपाल होता है।

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(ख) निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर 50-60 शब्दों में दो

प्रश्न 1.
राज्य के राज्यपाल के कार्यों के बारे में बताओ।
उत्तर-
केन्द्र में राष्ट्रपति के समान राज्यपाल राज्य का नाम मात्र मुखिया होता है। राज्य के प्रशासन की वास्तविक शक्ति मुख्यमन्त्री एवं मन्त्रिपरिषद् के पास होती है। राज्यपाल की शक्तियां भी राष्ट्रपति के समान ही हैं। परन्तु जब कभी राज्य की मशीनरी ठीक प्रकार से न चलने के कारण राज्य का शासन राष्ट्रपति अपने हाथ में ले लेता है, तो राज्यपाल राज्य का वास्तविक प्रमुख बन जाता है। राज्यपाल की मुख्य शक्तियां नीचे दी गई हैं –
कार्यकारी शक्तियां –

  1. राज्यपाल राज्य का कार्यकारी मुखिया होता है। राज्य का शासन उसी के नाम पर चलाया जाता है।
  2. वह मुख्यमन्त्री और मन्त्रिपरिषद् के अन्य सभी मन्त्रियों की नियुक्ति करता है।
  3. राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय वह राष्ट्रपति को परामर्श देता है।

वैधानिक शक्तियां –

  1. विधानमण्डल द्वारा पास किए गए कानूनों को राज्यपाल की स्वीकृति मिलना आवश्यक है।
  2. यदि विधानमण्डल का अधिवेशन न चल रहा हो और कानून की आवश्यकता पड़ जाये तो राज्यपाल अध्यादेश जारी कर सकता है।
  3. कोई भी वित्त बिल राज्यपाल की पूर्व स्वीकृति से ही विधानसभा में पेश किया जा सकता है।
  4. वह राज्य विधानमण्डल की बैठक बुलाता है।
  5. प्रत्येक वर्ष विधानमण्डल का पहला अधिवेशन राज्यपाल के भाषण से ही आरम्भ होता है।
  6. जिन राज्यों में विधानमण्डल के दो सदन हैं, वहां राज्यपाल कुछ सदस्यों को विधान परिषद् के लिए मनोनीत करता है।
  7. राज्यपाल मुख्यमन्त्री की सलाह पर विधानसभा को निश्चित अवधि से पहले भी भंग कर सकता है।

ऐच्छिक शक्तियां-राज्यपाल को कुछ ऐसी शक्तियां प्राप्त हैं जिनका प्रयोग करते समय वह अपनी बुद्धि या इच्छा का प्रयोग कर सकता है। ये राज्यपाल की ऐच्छिक शक्तियां कहलाती हैं। ये अग्रलिखित हैं –

  1. जब विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो तो राज्यपाल अपनी सूझ-बूझ से किसी को भी मुख्यमन्त्री नियुक्त कर सकता है।
  2. यदि राज्यपाल यह अनुभव करे कि राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चलाया जा रहा तो वह इसकी रिपोर्ट राष्ट्रपति को देता है। राज्यपाल की रिपोर्ट पर राष्ट्रपति उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करता है।
  3. राज्यपाल स्थिति के अनुसार विधानसभा को भंग करने का निर्णय कर सकता है। इस सम्बन्ध में उसके लिए मुख्यमन्त्री के परामर्श को मानना आवश्यक नहीं है।
  4. राज्यपाल किसी भी बिल (विधेयक) को पुनः विचार के लिए विधानसभा में वापस भेज सकता है। वह किसी भी बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित भी रख सकता है।

प्रश्न 2.
राज्य के मुख्यमन्त्री के कार्यों तथा शक्तियों का वर्णन करो।\
उत्तर-
मुख्यमन्त्री राज्य का वास्तविक प्रमुख होता है। उसके कार्य एवं शक्तियों का वर्णन इस प्रकार है –

  1. मन्त्रिपरिषद् का निर्माण मुख्यमन्त्री के परामर्श से किया जाता है। वह अपने साथियों की सूची तैयार करता है। राज्यपाल उसी सूची में अंकित सभी व्यक्तियों को मन्त्री नियुक्त करता है।
  2. मुख्यमन्त्री मन्त्रियों में विभागों का बंटवारा करता है। वह उनके विभाग बदल भी सकता है।
  3. मुख्यमन्त्री मन्त्रिपरिषद् को भंग करके नया मन्त्रिपरिषद् बना सकता है।
  4. मुख्यमन्त्री मन्त्रिमण्डल की बैठकों की अध्यक्षता करता है।
  5. मुख्यमन्त्री राज्यपाल को राज्य विधानसभा भंग करने का परामर्श दे सकता है।
  6. राज्यपाल राज्य में सभी महत्त्वपूर्ण पदों पर की जाने वाली नियुक्तियां मुख्यमन्त्री के परामर्श से ही करता है।
  7. मुख्यमन्त्री राज्य विधानमण्डल का नेतृत्व करता है।
  8. वह राज्यपाल तथा मन्त्रिपरिषद् के बीच कड़ी का काम करता है।
  9. राज्य विधानपालिका और मन्त्रिपरिषद् का प्रमुख होने के कारण सुख्यमन्त्री राज्य सरकार की ओर से केन्द्रीय सरकार के प्रति उत्तरदायी होता है। वह केन्द्रीय सरकार के साथ अच्छे सम्बन्ध बनाने का और उन्हें दृढ़ बनाने का प्रयत्न करता है।

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प्रश्न 3.
राज्य विधानसभा/विधानपरिषद के चुनाव सम्बन्धी संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
प्रत्येक राज्य की विधानपालिका में एक या दो सदन होते हैं। राज्य विधानपालिका के निचले सदन को विधानसभा और उच्च सदन को विधानपरिषद् कहा जाता है। निचला सदन विधानसभा सभी राज्यों में होता है।

राज्य विधानसभा का चुनाव-राज्य विधानसभा के सदस्यों को एम० एल० ए० कहा जाता है। ये सदस्य सीधे (directly) लोगों द्वारा वयस्क मताधिकार और गुप्त मतदान के माध्यम से चुने जाते हैं। विधानसभा के चुनाव के समय विधानसभा के प्रत्येक चुनावी हलके में से एक-एक सदस्य चुना जाता है। विभिन्न राज्यों में विधानसभाओं के सदस्यों की संख्या कम-से-कम 60 और अधिक-से-अधिक 500 तक हो सकती है।

विधानपरिषद् का चुनाव-विधानपरिषद् के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष (indirect) ढंग से किया जाता है। इसके 5/6 सदस्यों का चुनाव अध्यापकों, स्थानीय संस्थाओं के सदस्यों, विधानसभा के सदस्यों तथा स्नातकों द्वारा किया जाता है। शेष 1/6 सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किये जाते हैं।

प्रश्न 4.
राज्यपाल की स्वैच्छिक शक्तियां कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-
राज्यपाल के पास कुछ ऐच्छिक शक्तियां भी होती हैं। इनका प्रयोग वह बिना मन्त्रिपरिषद् की सलाह के अपनी इच्छानुसार कर सकता है। ये शक्तियां हैं –

  1. राज्य विधानसभा में किसी भी दल को बहुमत न प्राप्त होने पर वह अपनी इच्छानुसार मुख्यमन्त्री की नियुक्ति कर सकता है।
  2. राज्य की मशीनरी ठीक न चलने की स्थिति में वह राज्य की कार्यपालिका को भंग करने के लिए राष्ट्रपति को सलाह दे सकता है।

प्रश्न 5.
राज्य के प्रबन्धकीय कार्य कौन-कौन से सिविल अधिकारी चलाते हैं ?
उत्तर-
राज्य में शिक्षा, सिंचाई, परिवहन, स्वास्थ्य तथा सफ़ाई आदि विभाग होते हैं। सरकारी अधिकारी इन अलग-अलग विभागों के काम सम्बन्धित मन्त्रियों के नेतृत्व में चलाते हैं। प्रत्येक विभाग के सरकारी अधिकारी (अफ़सरशाही) को सचिव कहा जाता है। उसे प्रायः भारतीय प्रशासकीय सेवा विभाग से संघीय सेवा आयोग द्वारा नियुक्त किया जाता है। सचिव अपने विभाग की महत्त्वपूर्ण नीतियों और प्रबन्धकीय मामलों में मन्त्री का मुख्य सलाहकार होता है। विभिन्न विभागों के सचिवों के काम की देखभाल के लिए एक मुख्य सचिव होता है।
सचिव के कार्यालय को सचिवालय कहा जाता है।

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प्रश्न 6.
मन्त्रिपरिषद् तथा राज्य विधानपालिका के कार्यकाल के संबंध में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
मन्त्रिपरिषद्-मन्त्रिपरिषद् का कार्यकाल विधानसभा जितना ही अर्थात् 5 वर्ष होता है। कभी-कभी मुख्यमन्त्री द्वारा त्याग-पत्र देने पर या उसकी मृत्यु हो जाने पर सारी मन्त्रिपरिषद् भंग हो जाती है। मन्त्रिपरिषद् को विधानसभा भी अविश्वास का प्रस्ताव पास करके भंग कर सकती है।

राज्य विधानपालिका-विधानसभा का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। परन्तु कई बार राज्यपाल पहले भी इसे भंग कर सकता है। संकटकाल के समय राष्ट्रपति द्वारा इसके कार्यकाल को 6 मास बढ़ाया भी जा सकता है।

विधानपरिषद् का कार्यकाल 6 वर्ष होता है। प्रत्येक 2 वर्ष के बाद इसके 1/3 सदस्य सेवा-निवृत्त हो जाते हैं और उनके स्थान पर नये सदस्य चुने जाते हैं। परन्तु विधानसभा की भान्ति विधानपरिषद् को भंग नहीं किया जा सकता। यह राज्य-सभा के समान स्थिर है।

प्रश्न 7.
सड़क दुर्घटनाओं के कोई पांच कारण बताओ।
उत्तर-
सड़क दुर्घटनाएं प्रायः सड़कों पर बढ़ती हुई भीड़ तथा वाहन चालकों की लापरवाही से होती हैं। परन्तु इन दुर्घटनाओं के कुछ अन्य कारण भी हैं। सड़क दुर्घटनाओं के पांच मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –

1. तेज़ गति से वाहन चलाना-अधिकतर वाहन चालक प्रायः तेज़ गति से वाहन चलाते हैं। यदि सड़क खराब हो, मौसम खराब हो या सड़क पर वाहनों की भीड़ हो तो किसी भी समय दुर्घटना हो सकती है।

2. एकाएक लेन बदलना-नियम के अनुसार सभी वाहन चालकों को अपनी लेन पर ही चलना पड़ता है। परन्तु कुछ वाहन चालक आगे निकलने के प्रयास में एकाएक लेन बदल लेते हैं और संकेत भी नहीं देते हैं। परिणामस्वरूप दुर्घटना हो जाती है।

3. यातायात बत्तियों की ओर ध्यान न देना-कुछ वाहन चालक यातायात बत्तियों की परवाह नहीं करते। वे लाल .. बत्ती हो जाने के भय से अपना वाहन तेजी से आगे निकाल लेते हैं जिससे दुर्घटना हो जाती है।

4. गलत ढंग से आगे निकलना-कई वाहन चालक किसी अन्य वाहन से ग़लत ढंग से आगे निकलने का प्रयास करते हैं जिससे वाहन आपस में टकरा जाते हैं।

5. शराब पीकर गाड़ी चलाना-कुछ वाहन चालक शराब पीकर गाड़ी चलाते हैं। वे वाहन पर अपना नियंत्रण खो बैठते हैं और दुर्घटना हो जाती है।

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(ग) खाली स्थान भरें

  1. विधानसभा के सदस्यों की अधिक-से-अधिक संख्या ……………. होती है।
  2. विधान परिषद् के सदस्यों की कम-से-कम संख्या …………….. हो सकती है।
  3. पंजाब राज्य के राज्यपाल …………….. हैं।
  4. पंजाब विधानपालिका ………………. है।
  5. वित्तीय बिल राज्य की विधानपालिका के ………….. सदन में प्रस्तुत किया जाता है।
  6. राज्य में किसी भी बिल का कानून बनाने के लिए अन्तिम स्वीकृति ………. द्वारा दी जाती है।
  7. राज्य विधानपालिका के …………… सदन की सभा की अध्यक्षता स्पीकर करता है।
  8. …………… राज्य का संवैधानिक मुखिया है।
  9. मन्त्री परिषद् का कार्यकाल …………….. होता है।
  10. विधान परिषद् के ……………. सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाते हैं।

उत्तर-

  1. 500
  2. 60
  3. कृपया स्वयं करें
  4. एक सदन वाली
  5. नीचे के
  6. राज्यपाल
  7. नीचे के
  8. राज्यपाल
  9. पाँच वर्ष
  10. 1/6

(घ) निम्नलिखित वाक्यों में ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ

  1. भारत में एक केन्द्रीय सरकार, 28 राज्य सरकारें तथा 8 केन्द्रीय शासित क्षेत्र हैं।
  2. राज्य विधानपालिका के नीचे के सदन को विधानपरिषद् कहा जाता है।
  3. पंजाब विधानपालिका दो-सदनीय विधानपालिका है।
  4. राज्य की मुख्य कार्यों की वास्तविक शक्ति राज्यपाल के पास होती है।
  5. सम्पत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार है।

संकेत-

1. (✓)
2. (✗)
3. (✗)
4. (✗)
5. (✗)

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(ङ) बहु-वैकल्पिक प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 1.
भारत में कितने राज्य हैं ?
(क) 21
(ख) 25
(ग) 29
उत्तर-
(ग) 29

प्रश्न 2.
पंजाब विधानसभा के सदस्यों की कुल गिनती बताइये।
(क) 117
(ख) 60
(ग) 105
उत्तर-
(क) 117

प्रश्न 3.
मुख्यमंत्री की नियुक्ति किसके द्वारा की जाती है?
(क) राष्ट्रपति द्वारा
(ख) राज्यपाल द्वारा
(ग) स्पीकर द्वारा।
उत्तर-
(ख) राज्यपाल द्वारा।

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PSEB 7th Class Social Science Guide राज्य-सरकार Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
भारत में कितने राज्य और कितनी राज्य सरकारें हैं ?
उत्तर-
भारत में 29 राज्य तथा 29 राज्य सरकारें हैं।

प्रश्न 2.
केन्द्रीय/राज्य सरकार के कौन-कौन से तीन अंग हैं ?
उत्तर-
विधानपालिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका।

प्रश्न 3.
सरकार के तीन अंगों के मुख्य कार्य क्या हैं ?
उत्तर-

  1. विधानपालिका कानून बनाती है।
  2. कार्यपालिका कानूनों को लागू करती है।
  3. न्यायपालिका कानूनों का उल्लंघन करने वालों को दंड देती है।

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प्रश्न 4.
केन्द्रीय सूची तथा राज्य सूची में क्या अन्तर है ? साझी सूची क्या है ?
उत्तर-
संविधान के अनुसार-केन्द्र तथा राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। देश के सभी महत्त्वपूर्ण विषय केन्द्रीय सूची में तथा राज्य के महत्त्वपूर्ण विषय राज्य सूची में रखे गए हैं। कुछ साझे विषय साझी सूची में दिये गये हैं। राज्य सरकार राज्य-सूची के विषयों पर कानून बनाती है और उन्हें अपने राज्य में लागू करती है। राज्यसूची के मुख्य विषय कृषि, भूमि कर, पुलिस और शिक्षा आदि हैं।

प्रश्न 5.
राज्य में कोई बिल कानून कैसे बनता है ?
उत्तर-
कोई साधारण बिल पास होने के लिए दोनों सदनों में रखा जा सकता है, जबकि बजट (वित्त बिल) केवल विधानसभा में ही रखा जा सकता है। कोई भी बिल दोनों सदनों में पास हो जाने के बाद राज्यपाल की स्वीकृति पर कानून बन जाता है। राज्य विधानपालिका राज्य की आवश्यकताओं के अनुसार राज्य-सूची में दिये गये विषयों पर कानून बनाती है। यह साझी (समवर्ती) सूची पर दिए गए विषयों पर भी कानून बना सकती है।

प्रश्न 6.
राज्य-विधानपालिका की शक्तियों एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
राज्य विधानपालिका निम्नलिखित कार्य करती है –

  1. राज्य-सूची में दिये गए विषयों पर कानून बनाना, परन्तु यदि केन्द्रीय सरकार का कानून इसके विरुद्ध हो तो केन्द्रीय कानून ही लागू होता है।
  2. विधानपालिका के सदस्य विभिन्न विभागों के सदस्यों से प्रश्न पूछ सकते हैं जिन का उत्तर मन्त्रिपरिषद् को देना पड़ता है।
  3. इसके सदस्य सरकार के विरुद्ध अविश्वास का मत भी पास कर सकते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 20 राज्य-सरकार

प्रश्न 7.
विधानसभा के स्पीकर के क्या कार्य होते हैं ?
उत्तर-विधानसभा का स्पीकर सदन की बैठकों की प्रधानता करता है।

  1. वह बिल प्रस्तुत करने की स्वीकृति देता है।
  2. वह सदन में अनुशासन बनाए रखता है और मन्त्रियों को बोलने की आज्ञा देता है।

प्रश्न 8.
राज्यपाल की नियुक्ति किसके द्वारा और कितने समय के लिए होती है ?
उत्तर-
राज्यपाल की नियुक्ति प्रधानमन्त्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। परन्तु वह राष्ट्रपति की इच्छा पर ही अपने पद पर बना रह सकता है। राष्ट्रपति राज्यपाल को उसके कार्यकाल में किसी दूसरे राज्य में भी बदल सकता है।

प्रश्न 9.
मुख्यमन्त्री तथा उसकी मन्त्रिपरिषद की नियुक्ति कैसे होती है ?
उत्तर-
विधानसभा के चुनाव के बाद बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्य का राज्यपाल मुख्यमन्त्री नियुक्त करता है। फिर उसकी सहायता से राज्यपाल शेष मन्त्रियों की सूची तैयार करता है, जिन्हें वह मन्त्री नियुक्ति देता है। कई बार चुनाव में किसी एक दल को बहुमत नहीं मिलता, तब एक से अधिक दलों के सदस्य आपस में मिलकर अपना नेता चुनते हैं जिसे मुख्यमन्त्री बनाया जाता है। ऐसी स्थिति में मन्त्रिपरिषद् कई दलों के सहयोग से बनता है। इस प्रकार की सरकार को मिली-जुली सरकार कहा जाता है। मन्त्रिपरिषद् में कई बार ऐसा भी मन्त्री चुना जाता है जो विधानपालिका का सदस्य नहीं होता, उसे 6 मास के भीतर विधानपालिका के किसी सदन का सदस्य बनना पड़ता है।

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प्रश्न 10.
राज्य की मन्त्रिपरिषद् की बनावट तथा कार्य प्रणाली सम्बन्धी एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
बनावट-राज्य की मन्त्रिपरिषद् में तीन प्रकार के मन्त्री होते हैं –

  1. कैबिनेट मन्त्री,
  2. राज्य-मन्त्री,
  3. उप-मन्त्री

इनमें से कैबिनेट मन्त्री कैबिनेट के सदस्य होते हैं, जिन के समूह को मन्त्रिमण्डल कहा जाता है। कैबिनेट मन्त्रियों के पास अलग-अलग विभाग होते हैं। राज्य मन्त्री एवं उप-मन्त्री कैबिनेट मन्त्रियों की सहायता करते हैं।

कार्य प्रणाली-राज्य मंत्रिपरिषद् एक टीम के रूप में काम करती है। कहा जाता है कि परिषद् के सभी मन्त्री एक साथ डूबते हैं और एक साथ तैरते हैं, इसका कारण यह है कि किसी एक मन्त्री के विरुद्ध अविश्वास मत पास होने पर पूरी मन्त्रि परिषद् को त्याग-पत्र देना पड़ता है। वे अपनी नीतियों के लिए सामूहिक रूप से विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं। यदि मुख्यमन्त्री त्याग-पत्र देता है तो उसे पूरी मन्त्रिपरिषद् का त्याग-पत्र माना जाता है।

सही जोड़े बनाइर:

  1. विधानसभा – राज्य विधानपालिका का ऊपरी सदन
  2. विधान परिषद् – राज्य सरकार का वास्तविक प्रधान
  3. राज्यपाल – राज्य विधानपालिका का निचला सदन
  4. मुख्यमन्त्री – राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति

उत्तर-

  1. विधानसभा – राज्य विधानपालिका का निचला सदन
  2. विधान परिषद् – राज्य विधानपालिका का ऊपरी सदन
  3. राज्यपाल – राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति
  4. मुख्यमन्त्री – राज्य सरकार का वास्तविक प्रधान

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules.

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

खेल सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण जानकारी

  1. ऐथलैटिक्स प्रतियोगिताओं में कोई भी खिलाड़ी नशीली चीज़ों या दवाइयों का प्रयोग करके भाग नहीं ले सकता।
  2. जो खिलाड़ी अन्य खिलाड़ियों के लिए किसी प्रकार की बाधा प्रस्तुत करे, उसे अयोग्य घोषित किया जाता है। जो खिलाड़ी दौड़ते हुए अपनी इच्छा से ट्रैक को छोड़ता है, वह पुनः दौड़ जारी नहीं कर सकता।
  3. फील्ड इवेंट्स में दो तरह के इवेंट्स आते हैं-जम्पिंग इवेंट्स और थ्रो इवेंटस। ट्रैक इवेंट्स में वह दौड़ आती हैं जो ट्रैक में दौड़ी जाती हैं।
  4. 200 मीटर ट्रैक की लम्बाई 40 मीटर तथा चौड़ाई 38.18 मीटर होती है, 400 मीटर ट्रैक की लम्बाई 77 मीटर तथा चौड़ाई 67 मीटर होती है।
  5. जैवलिन थ्रो का भार 805 से 825 ग्राम होता है और लड़कियों के लिए चौड़ाई 605 से 620 ग्राम तक होता है। डिसक्स का भार लड़कों के लिए 2 कि० ग्राम होता है। गोला, हैमर या डिसक्स थ्रो के समय यह आवश्यक है कि 40° के सैक्टर में लैंड करे। गोला फेंकने का भार 7 किलोग्राम निश्चित किया गया है।

प्रश्न 1.
ऐथलैटिक्स प्रतियोगिता करवाने के लिए कौन-कौन से अधिकारियों की आवश्यकता होती है ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स प्रतियोगिता करवाने के लिए आगे लिखे अधिकारियों की आवश्यकता होती है—

ऐथलैटिक्स के लिए अधिकारी
(Officials for the meet)

  1. रैफ़री ट्रैक के लिए (Referee for Track Events)
  2. रैफ़री फील्ड इवेंट्स के लिए (Referee for Field Events)
  3. रैफ़री वाकिंग इवेंट्स (Referee for Walking Events)
  4. जज ट्रैक इवेंट्स (Judge for Track Events)
  5. जज फील्ड इवेंट्स (Judge for Field Events)
  6. जज वाकिंग इवेंट्स (Judge for Walking Events)
  7. अम्पायर (Umpire)
  8. टाइम कीपर (Time Keeper)
  9. स्टार्टर (Starter)
  10. सहायक स्टाटर (Asst. Starter)
  11. मार्क मैन (Markman)
  12. लैप स्कोरर (Lap Scorer)
  13. रिकॉर्डर (Recorder)
  14. मार्शल (Marshall)

दूसरे अधिकारी
(Additional Officials)

  1. अनाउंसर (Announcer)
  2. आफिशल सर्वेयर (Official Surveyer)
  3. डॉक्टर (Doctor)
  4. सटुअरडज (Stewards)

ट्रैक इवेंट्स पुरुषों के लिए

100 — मीटर रेस
200 — मीटर रेस
400 — मीटर रेस
800 — मीटर रेस
1500 — मीटर रेस
3,000 — मीटर दौड़
5,000 — मीटर दौड़
10,000 — मीटर दौड़
42,195 — मीटर या 26 मील दौड़
3,000 — मीटर स्टीपल चेज़
20,000 — मीटर वाकिंग
30,000 — मीटर वाकिंग
50,000 — मीटर वाकिंग

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

महिलाओं के लिए ट्रैक इवेंट्स

100 — मीटर रेस
200 — मीटर रेस
400 — मीटर रेस
800 — मीटर रेस
1500 — मीटर रेस

हरडल दौड़ें पुरुषों के लिए

110 — मीटर हर्डल दौड
200 — मीटर हर्डल दौड़
400 — मीटर हर्डल दौड़

महिलाओं के लिए हरडल दौड़

100 — मीटर हर्डल दौड़
200 — मीटर हर्डल दौड़

रीले दौड़ें पुरुषों के लिए

4 × 100 — मीटर
4 × 200 — मीटर
4 × 400 — मीटर
4 × 800 — मीटर
4 × 1500 — मीटर

महिलाओं के लिए रिले दौड़

4 × 100 — मीटर
4 × 200 — मीटर
4 × 400 — मीटर

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

मैडल रिले रेस

800 × 200 × 200 × 400
6. 110 मीटर हर्डल्ज़ लड़कों के लिए हर्डलों की ऊंचाई 1.06 मीटर होती है। जूनियर लड़कियों के लिए 1.00 मीटर हर्डल्ज़ की ऊंचाई, 0.76, मीटर और सीनियर लड़कियों के लिए 0.89 मीटर होती है।

प्रश्न 2.
ट्रैक इवेंट्स के लिए एथलीटों के लिए निर्धारित नियमों के बारे लिखें।
ऐथलैटिक्स
(Athletics)
ऐथलैटिक्स ऐसी खेलें हैं जिनमें दौड़ना (Running), कूदना (Jumping) और फेंकना (Throwing) आदि इवेंट्स (Events) सम्मिलित होते हैं। एथलीट ऐसा धावक है जो दौडने वाले, कदने वाले और फेंकने वाले इवेंट्स में भाग ले। (An athlete is one who takes part in running events, jumping events and throwing etc. or one who takes part in tracks and field events.)

प्रश्न 3.
ट्रैक इवेंट्स में कितने इवेंट्स होते हैं ?
उत्तर-
ऐथलैटिक्स दो प्रकार की होती है-Track Events और Field Events | भाव कुछ एथलीट Track Events में भाग लेते हैं और कुछ Field Events में। . ट्रैक इवेंट्स में छोटी दौड़ें (Sprint or Short Distance Races), मध्य दूरी वाली दौड़ें (Middle Distance Races) और लम्बी दौड़ें (Long Distance Races) आती हैं। फील्ड इवेंट्स में कूदने वाली इवेंट्स जैसे लम्बी छलांग (Long Jump), ऊंची छलांग (High Jump), पोल वाल्ट जम्प (Pole Vault Jump) और ट्रिपल्ल जम्प (Triple Jump) और फेंकने वाले इवेंट्स जैसे गोला फेंकना (Short put or Putting the Shot), पाथी फेंकना (Discuss Throw), भाला फेंकना (Javelin Throw) और हैमर फैंकना (Hammer Throw) आदि सम्मिलित हैं।

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ट्रैक
(TRACK)

ट्रैक दो प्रकार के होते हैं- एक 400 मीटर वाला ट्रैक और दूसरा 200 मीटर का ट्रैक। Standard ट्रैक का नाम 400 मीटर वाले ट्रैक को ही दिया जा सकता है। इस ट्रैक में कमसे-कम 6 लेन (Lanes) और अधिक-से-अधिक 8 लेन (Lanes) होती हैं।
Track Events Races : Short Middle and Long
SPRINTING
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
स्प्रिंटिंग (Sprinting)–स्प्रिंट वह रेस होती है जो प्रायः पूरी शक्ति और पूरी गति से दौड़ी जाती है। इसमें 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ें आती हैं। आजकल तो 400 मीटर रेस को भी इसमें गिना जाने लगा है। इस प्रकार की दौड़ों में प्रतिक्रिया (Reaction), टाइम और गति (Speed) का बहुत महत्त्व है।

  1. स्टार्ट्स (Starts) कम दूरी की दौड़ों में प्रायः निम्नलिखित प्रकार के तीन स्टार्ट लिये जाते हैं
  2. बंच स्टार्ट (Bunch Start)
  3. मीडियम स्टार्ट (Medium Start)
  4. इलोंगेटेड स्टार्ट (Elongated Start)

बंच स्टार्ट (Bunch Start)-इस प्रकार के स्टार्ट के लिए ब्लाकों के बीच दूरी 8 इंच से 10 इंच के बीच होनी चाहिए और आगे वाला स्टार्ट स्टार्टिंग लाइन से लगभग 19 इंच के करीब होना चाहिए। एथलीट इस प्रकार ब्लाक में आगे को झुकता है कि पिछले पांव की टो और अगले पांव की एड़ी एक-दूसरे के समान स्थित हों। हाथ स्टार्टिंग लाइन पर ब्रिज बनाए हुए हों और स्टार्टिंग लाइन से पीछे हों। इस प्रकार के स्टार्ट में जब Set Position का आदेश होता है, Hips को ऊंचा ले जाया जाता है। यह स्टार्ट सबसे अधिक अस्थिर होता है।

मीडियम स्टार्ट (Medium Start)-इस प्रकार के स्टार्ट में ब्लाकों के बीच की दूरी 10 से 13 इंच के बीच होती है और स्टार्टिंग लाइन से पहले ब्लाक की दूरी लगभग 15 इंच के बीच होती है। प्रायः एथलीट इस प्रकार के स्टार्ट का प्रयोग करते हैं। इसमें पिछले पांव का घुटना और अगले पांव का बीच वाला भाग एक सीध में होते हैं और Set Position पर Hips तथा कंधे लगभग एक-सी ऊंचाई पर ही होते हैं।

इलोंगेटेड स्टार्ट (Elongated Start)-इस प्रकार का स्टार्ट बहुत कम लोग लेते हैं। इसमें ब्लाकों (Starting Block) के बीच की दूरी 25 से 28 इंच के बीच होती है। पिछले पांव का घुटना लगभग अगले पांव की एड़ी के सामने होता है।
स्टार्ट लेना (Start)-जब किसी भी रेस के लिए स्टार्ट लिया जाता है तो तीन प्रकार के आदेशों पर कार्य करना पड़ता है।

  1. आन यूअर मार्क (On Your Mark)
  2. सैट पोजीशन (Set Position)
  3. पिस्तौल की आवाज़ पर जाना (Go)

दौड़ का अन्त (Finish of the Race)-दौड़ का अन्त बहुत ही महत्त्वपूर्ण होता है। आमतौर पर खिलाड़ी तीन प्रकार से दौड़ को समाप्त करते हैं। ये इस प्रकार हैं—

  1. दौड़ कर सीधा आगे निकल जाना (Run Through)
  2. आगे को झुकना (Lunge)
  3. कन्धा आगे करना (The shoulders String)

मध्यम दरी की दौड़ें (Middle Distance Races)-ट्रैक इवेंटों में कुछ दौड़ें मध्यम दूरी की होती हैं। आमतौर पर उन दौड़ों को, जो 400 गज़ के ऊपर और 1000 गज़ से नीचे की होती हैं, इस श्रेणी में गिना जाता है। ये दौड़ें 400 मीटर और 800 मीटर की होती हैं। इन दौड़ों में गति और सहनशीलता दोनों की आवश्यकता होती है, और वही एथलीट इसमें सफल होता है जिसके पास ये दोनों चीजें हों। इस प्रकार की दौड़ों में आमतौर पर एक-जैसी गति बनाए रखी जाती है और अन्त में पूरा जोर लगा कर दौड़ को जीता जाता है। 400 मीटर का स्टार्ट तो स्प्रिंग की तरह ही लिया जाता है जबकि 800 मीटर का स्टार्ट केवल खड़े होकर ही लिया जा सकता है। जहां तक हो सके इस दौड़ में कदम (Strides) बड़े होने चाहिएं।

लम्बी दूरी की दौड़ें (Long Distance Races)-लम्बी दूरी की दौड़ों जैसे कि नाम से ही मालूम होता है, दूरी बहुत अधिक होती है और प्रायः ये दौड़ें एक मील से ऊपर की होती हैं। 1500 मीटर, 3000 मीटर और 5000 मीटर दूरी वाली दौड़ें लम्बी दूरी वाली रेसें हैं। इनमें एथलीट की सहनशीलता (Endurance) का अधिक योगदान है। लम्बी दूरी की दौड़ों में एथलीट को अपनी शक्ति और सामर्थ्य का प्रयोग एक योजनाबद्ध ढंग से करना होता है और जो एथलीट इस कला को प्राप्त कर जाते हैं वे लम्बी दूरी की दौड़ों में सफल हो जाते हैं।

इस प्रकार की दौड़ों में दौड़ के आरम्भ को छोड़ कर सारी दौड़ में एथलीट का शरीर सीधा और आगे की और कुछ झुका रहता है तथा सिर सीधा रखते हुए ध्यान ट्रैक की ओर रखा जाता है। बाजू ढीली सी आगे की ओर लटकी होती है जबकि कोहनियों के पास से बाजू मुड़े होते हैं और हाथ बिना किसी तनाव के थोड़े से बन्द होते हैं। बाजू और टांगों के एक्शन जहां तक हो सके बिना किसी अधिक शक्ति व प्रयत्न के होने चाहिएं। दौड़ते समय पांव का आगे वाला भाग धरती पर आना चाहिए और एड़ी भी मैदान को छूती है, परन्तु अधिक पुश (Push) टो से ही ली जाती है। इस प्रकार की दौड़ों में कदम (Strides) छोटे और अपने आप बिना अधिक बढ़ाए होने चाहिएं। सारी दौड़ में शरीर बहुत Relaxed होना चाहिए।

इस प्रकार की दौड़ को समाप्त करते समय शरीर में इतना बल (Stamina) और गति होनी चाहिए कि एथलीट अपनी रेस को लगभग फिनिश लाइन से पांच-सात गज़ आगे तक समाप्त करने का इरादा रखे तो ही अच्छे परिणामों की आशा की जा सकती है।
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ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

ट्रैक इवेंट्स
(TRACK EVENTS)
ट्रैक इवेंट्स में 100, 200, 400 तथा 800 मीटर तक की दौड़ आती है।

प्रश्न 4.
200 मीटर और 400 मीटर के ट्रैक की चित्र के साथ बनावट लिखें।
उत्तर-
200 मीटर के ट्रैक की बनावट
(Track for 200 Metre)
200 मीटर के ट्रैक की लम्बाई 94 मीटर तथा चौड़ाई 53 मीटर होती है। इसकी बनावट का विवरण नीचे दिया गया है—
ट्रैक की कुल दूरी = 200 मीटर
दिशाओं की लम्बाई = 40 मीटर
दिशाओं द्वारा रोकी गई दूरी = 40 × 2 = 80 मीटर
कोनों में रोकी जाने वाली दूरी = 120 मीटर
व्यास 120 मीटर ÷ 2r = 19.09 मीटर
दौड़ने वाली दूरी का व्यास = 19.09 मीटर
प्रतिफल मार्किंग व्यास. = 18.79 मीटर
1.22 मीटर (4 फुट) चौड़ी लाइनों के लिए स्टैगर्ज
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लेन मीटर
पहली 0.00
दूसरी 3.52
तीसरी 7.35
चौथी 11.19
पांचवीं 15.02
छठी 18.86
सातवीं 26.52
आठवीं 26.52

 

400 मीटर ट्रैक की बनावट
कम-से-कम माप = 170.40 × 90.40 मीटर
ट्रैक की कुल दूरी = 600 मीटर
सीधी लम्बाई = 80 मीटर
दोनों दिशाओं की दूरी = 80 × 2 = 160 मीटर
वक्रों (Curves) की दूरी = 240 मीटर
व्यास 240 मीटर ÷ 2r = 38.18 मीटर
छोड़ने वाली दूरी का अर्द्धव्यास = 38.18 मीटर
मार्किंग अर्द्धव्यास = 37.88 मीटर
(i) 400 मीटर लेन [चौड़ाई 1.22 (4 फुट)] के लिए स्टैगर्ज

लेन मीटर
पहली 0.00
दूसरी 7.04
तीसरी 14.71
चौथी 22.38
पांचवीं 30.05
छठी 37.72
सातवीं 45.39
आठवीं 53.06

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ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 5.
हर्डल दौड़ों के विषय में आप संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
100 मीटर बाधा महिला दौड़
(100 Metre Women Hurdle)
100 मी० बाधा दौड़ 1968 से प्रारम्भ की गई है। सामान्यत: महिला धाविका 13 मीटर दूर स्थित प्रथम बाधा तक की दूरी 8 डगों में पूरी कर लेती है। उछाल 1.95 मीटर से लेकर बाधा को पार कर 11 मीटर की दूरी पर उनके ये डग पूरे होते हैं। बाधा के बीच तीन डग पूरे करने पर पुन: उछाल 200 मी० की दूरी से लिया जाता है। इस प्रकार वे 8.50 मी० की दूरी तय करती है।
बाधा पार करते समय महिला धाविकाओं को अपने शरीर के ऊपरी भाग को आगे की ओर अधिक नहीं झुकाना चाहिए और न ही उछाल के समय अपने घुटने को अधिक ऊंचा उठाना चाहिए। बाधा को पार करने की विधि वही अपनानी चाहिए जो 400 मी० हर्डल में अपनायी जाती है।

भिन्न-भिन्न प्रतियोगिता के लिए हर्डल की गिनती, ऊंचाई और दूरी निम्नलिखित हैं—
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110 मीटर बाधा दौड़
(110 Metre Hurdle Race)
सामान्यत: बाधा दौड़ के धावक (Runner) पहली बाधा तक पहुंचने में 8 कदम लेते हैं। प्रारम्भ स्थल (Starting Block) पर बैठते समय अधिक शक्ति वाले पैर (Take off Foot) को आगे रखा जाता है। धावक यदि लम्बा है और अधिक तेज़ दौड़ सकने की क्षमता रखता है तो उस स्थिति में यह दूरी उसके लिए कम पड़ सकती है। उस दशा में थोड़ा अन्तर होने पर प्रारम्भ स्थल की दूरी के बीच की दूरी कम करके तालमेल बैठाने का प्रयास होना चाहिए, किन्तु ऐसा करने पर यदि धावक असुविधा अनुभव करता है तो बाधा को मात्र कदमों में ही पार कर लेना चाहिए। ऐसी स्थिति में शक्तिशाली पैर पीछे के प्रशल (Block) पर रख कर धावक दौड़ेगा। अतः शक्तिशाली पैर बाधा से लगभग 2 मीटर पाछे आयेगा। आरम्भ में धावक को उसे 5 कदम तक अपनी दृष्टि नीचे रखनी चाहिए और बाद में हर्डिल पर ही दृष्टि केन्द्रित होनी चाहिए। आरम्भ से अन्त तक कदमों के बीच का अन्तर निरन्तर बढ़ता ही जायेगा। किन्तु अन्तिम कदम उछाल कदम से लगभग 6 इंच (10 सैं० मी०) छोटा ही रहेगा।
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सामान्य दौड़ों की तुलना में बाधा दौड़ में दौड़ते समय धावक के घुटने अपेक्षाकृत अधिक ऊपर आयेंगे और ज़मीन पर पूरा पैर न रख कर केवल पैर के
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बाधा को पार करते समय उछाल पैर को सीधा रखना चाहिए तथा आगे के पैर को घुटने से ऊपर उठाना चाहिए। पैर का पंजा ज़मीन की ओर नीचे की ओर झुका हुआ रखना चाहिए, आगे के पैर को एक साथ सीधा करते हुए बाधा के ऊपर से लाना चाहिए, और शरीर का ऊपर का भाग आगे की ओर झुका हुआ रखना चाहिए। हर्डिल को पार करते ही अगले पैर की जांघ को नीचे दबाते रहना चाहिए कि जिस से बाधा पार हो जाने के बाद पंजा बाधा से अधिक दूरी पर न पड़ कर उसके पास ही ज़मीन पर पड़े। इसके साथ ही पीछे के पैर को घुटने से झुका कर बाधा के ऊपर से ज़मीन के समानान्तर रख कर घुटने को सीने के पास से आगे लाना चाहिए। इस प्रकार पैर आगे आते ही धावक तेज़ दौड़ने के लिए तत्पर रहेगा।

बाधा पार करने के उपरान्त पहला डग (कदम) 1.55 से 1.60 मीटर की दूरी पर, दूसरा 2.10 मीटर का तथा तीसरा लगभग 2.20 मीटर के अन्तर पर पड़ना चाहिए। (13.72 मी०, 9.14 मी०, 14.20 मी०)
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400 मीटर बाधा (पुरुष तथा महिला)
(400 Metres Hurdles Men and Women)
सामान्यतः धावक को इस दौड़ में सर्वाधिक असुविधा अपने डगों के बीच तालमेल बैठाने में होती है। प्रारम्भ में प्रथम बाधा के बीच की दूरी को लोग सामान्यत: 21 से 23 डगों में पूरा कर लेते हैं और बाधा के बीच में 13-15 अथवा 17 डग रखते हैं। कुछ धावक प्रारम्भ में 14 और बाद में 16 कदमों में इस दूरी को पूरा कर लेते हैं। दाहिने पैर से उछाल लेने से लाभ होने की अधिक सम्भावना होती है। सामान्यतः उछाल 2.00 मीटर से लिया जाता है और पहला डग बाधा को पार कर जो ज़मीन पर पड़ता है, वह 1.20 मीटर का होता है। इसकी तकनीक 110 व 100 मीटर बाधाओं की ही भान्ति होती है। 400 मीटर दौड़ के समय से (सैकण्ड) 2-5 से 3-5 से 400 मीटर बाधा का समय अधिक आता है। 200 मीटर तथा प्रथम (220-2-5 से) = 25-5 से हर्डिल का समय।
200 मीटर दूसरा भाग (24-5-3-0 से) = 27-5 से = 52-00 में 400 मीटर हिर्डिल का समय।
अभ्यास के समय प्रत्येक हर्डिल पर समय लेकर पूरी दौड़ का समय निकालने की विधि।

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प्रश्न 6.
फील्ड इवेंट्स में कौन-कौन से इवेंट्स होते हैं ? संक्षेप में लिखें।
उत्तर-
लम्बी कूद
(Long Jump)

  1. रनवे की लम्बाई = 40 मीटर से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. पिट की लम्बाई = 10 मीटर
  4. पिट की चौड़ाई = 2.75 से 3 मीटर
  5. टेक ऑफ बोर्ड की लम्बाई = 1.22 मीटर
  6. टेक ऑफ बोर्ड की चौड़ाई = 20 सैंटी मीटर
  7. टेक ऑफ बोर्ड की गहराई = 10 सैंटी मीटर।

लम्बी कूद की विधि
(Method of Long Jump)

  1. कूदने वाले पैर को मालूम करने के लिए लम्बी कूद में उसी प्रकार से करेंगे जैसे ऊंची कूद में किया गया था।
    सर्वप्रथम कूदने वाले पैर को आगे सीधा रखेंगे और स्वतन्त्र पैर को इसके पीछे। यदि आप का कूदने वाला पैर बायां है तो बाएं पैर को आगे और दायें पैर को पीछे रख कर दायें घुटने से झुका कर ऊपर की ओर ले जायेंगे। और इसके साथ ही दायें हाथ को कुहनी से झुका कर रखेंगे। विधि उसी प्रकार से होगी जैसे कि तेज़ दौड़ने वाले करते हैं।
    इस क्रिया को पहले खड़े होकर और बाद में चार-पांच कदम चल कर करेंगे। जब यह क्रिया ठीक प्रकार से होने लगे तब थोड़ा दौड़ते हुए यही क्रिया करनी चाहिए। इस समय ऊपर जाते समय ज़मीन को छोड़ देना चाहिए।
    Long Jump
    ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 9
  2. छ: या सात कदम दौड़ कर आगे आयेंगे और ऊपर जा कर कूदने वाले पैर पर ही नीचे जमीन पर आयेंगे। इसमें शरीर का भाग सीधा रहेगा जैसे कि ऊंची कूद में रहता है। अगले स्वतन्त्र पैर ज़मीन पर आयेंगे। इस क्रिया को कई बार दुहराने के बाद ज़मीन पर आते समय कूदने वाले पैर को भी स्वतन्त्र पैर के साथ ही ज़मीन पर ले आएंगे।
  3. ऊपर की क्रिया को कई बार करने के पश्चात् एक रूमाल लकड़ी में बांध कर कूदने वाले स्थान से थोड़ी ऊंचाई पर लगाएंगे और कूदने वाले बालकों को रूमाल को छूने को कहेंगे। ऐसा करने से एथलीट (Athlete) ऊपर जाना तथा शरीर के ऊपरी भाग को सीधा रखना सीख जाएगा।

अखाड़े में गिरने की विधि (लैंडिंग)
(Method of Landing)

  1. दोनों पैरों को एक साथ करके एथलीट पिट (Pit) के किनारे पर खड़े हो जाएंगे। भुजाओं को आगे-पीछे की ओर हिलाएंगे और (Swing) करेंगे। साथ में घुटने भी झुकाएंगे
    और भुजाओं को एक साथ पीछे ले जाएंगे। इसके पश्चात् घुटने को थोड़ा अधिक झुका कर भुजाओं को तेजी के साथ आगे और ऊपर की ओर ले जाएंगे और दोनों पैरों के साथ अखाड़े (Pit) में जम्प करेंगे। इस समय इस बात का ध्यान रहे कि पैर गिरते समय जहां तक सम्भव हो, सीधे रखने चाहिएं और इसके साथ ही पुट्ठों को आगे धकेलना चाहिए जिससे कि शरीर में पीछे झुकाव (Arc) बन सके जो कि हैंग स्टाइल (Hang Style) के लिए बहुत ही आवश्यक है।
  2. एथलीट्स (Athietes) को सात कदम कूदने को कहेंगे। कूदते समय स्वतन्त्र पैर के घुटने को हिप (Hip) के बराबर लाएंगे। जैसे ही एथलीट (Athlete) हवा में थोड़ी ऊंचाई लेगा, स्वतन्त्र पैर को पीछे की ओर तथा नीचे की ओर लाएंगे जिससे वह कूदने वाले पैर के साथ मिल सके। कूदने वाला पैर घुटने से जुड़ा होगा और शरीर का ऊपरी भाग सीधा होगा। दोनों भुजाओं को पीछे की और तथा ऊपर की ओर गोलाई में ले जाएंगे। जब खिलाड़ी हवा में ऊंचाई लेता है, उस समय उसके दोनों घुटनों से झुके हुए पैर जांघ की सीध में होंगे। दोनों भुजाएं सिर की बगल में ओर ऊपर की ओर होंगी। शरीर पीछे की ओर गिरती हुई दशा में होगा तथा जैसे ही एथलीट्स (Athletes) अखाड़े (Pit) में गिरने को होंगे, वे स्वतन्त्र पैर घुटने से झुका कर आगे को तथा ऊपर को ले जाएंगे, पेट के नीचे की ओर लाएंगे तथा पैरों को सीधा करके ऊपर की दशा में हवा में रोकने का प्रयास करेंगे।
    ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 10

हिच किक की विधि
(Method of Hitch Kick)

  1. जम्प करने के पश्चात् Split हवा में, पैरों को आगे-पीछे करके, स्वतन्त्र पैर पर लैंडिंग (Landing) करना, परन्तु ऊपरी भाग तथा सिर सीधा रहेगा, पीछे की ओर नहीं आएगा।
  2. इस बार हवा में स्वतन्त्र पैर को रखेंगे और कूदने वाले पैर को आगे ले जाकर लैंडिंग (Landing) करेंगे।
  3. अन्य सभी विधियां उसी प्रकार से होंगी जैसे कि ऊपर बताया गया है। केवल स्वतन्त्र पैर को लैंडिंग (Landing) करते समय टेक ऑफ पैर के साथ ले जाएंगे और दोनों पैरों पर एक साथ ज़मीन पर आएंगे। अन्य सभी शेष विधियां उसी प्रकार से होंगी जैसे कि हैंग (Hang) में दर्शाया गया है। एथलीट्स (Athletes) को दौड़ने का पथ (Approach . run) धीरे-धीरे बढ़ाते रहना चाहिए।
  4. ऊपर की क्रिया को कई बार करने के पश्चात् इस क्रिया को स्प्रिंग बोर्ड (Spring Board) की सहायता से करना चाहिए जैसा कि जिमनास्टिक (Gymnastic) वाले करते हैं। स्प्रिंग बोर्ड (Spring-Board) के अभाव में इस क्रिया को किसी अन्य ऊंचे स्थान से भी किया जा सकता है जिससे एथलीट्स को हवा में सही क्रिया विधि करने का अभ्यास हो जाए।

ट्रिपल जम्प
(Triple Jump)
अप्रोच रन (Approach Run)-लम्बी कूद की भान्ति इसमें भी अप्रोच रन लिया जाएगा, परन्तु स्पीड (Speed) न अधिक तेज़ और न अधिक धीमी होगी।
अप्रोच रन की लम्बाई (Length of Approach Run)-ट्रिपल जम्प में 18 से 22 कदम या 40 से 45 मीटर के लगभग अप्रोच रन लिया जाता है। यह कूदने वाले पर निर्भर करता है कि उसके दौड़ने की गति कैसी है। धीमी गति वाला लम्बा अप्रोच लेगा जबकि अधिक गति वाला छोटा अप्रोच लेगा। दोनों पैरों को एक साथ रखकर दौड़ना प्रारम्भ करेंगे तथा दौड़ने की गति को सामान्य रखेंगे। शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहेगा।

  1. रनवे की लम्बाई । = 40 मी० से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. पिट की लम्बाई = टेक आफ बोर्ड से पिट समेत 21 मीटर
  4. पिट की चौड़ाई = 2.75 मीटर से 3 मीटर
  5. टेक ऑफ बोर्ड से पिट तक लम्बाई = 11 मीटर से 13 मीटर
  6. टेक ऑफ बोर्ड की लम्बाई = 1.22 मीटर
  7. टेक ऑफ बोर्ड की चौड़ाई = 20 सैंटी मीटर
  8. टेक ऑफ बोर्ड की गहराई = 10 सैंटी मीटर।

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TRIPLE JUMP
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ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

टेक ऑफ (Take off) लेते समय घुटना लम्बी कूद की अपेक्षा इसमें कम झुका होगा। शरीर का भार टेक ऑफ एवं होप स्टेप (Hop, Step) लेते समय पीछे रहेगा तथा दोनों बाजू भी पीछे रहेंगे। दूसरी टांग तेज़ी से हवा में आकर सप्लिट पोजीशन (Split Position) बनाएगी। ट्रिपल जम्प में मुख्यतया तीन प्रकार की तकनीक (Technique) प्रचलित है—

  1. फ्लैट तकनीक
  2. स्टीप तकनीक
  3. मिक्सड तकनीक।

ऊंची कूद
(High Jump)

  1. रनवे की लम्बाई = 15 मी० से 25 मी०
  2. तिकोनी क्रॉस बार की प्रत्येक भुजा = 130 मि०मी०
  3. क्रॉस बार की लम्बाई = 3.98 मी० से 4.02 मी०
  4. क्रॉस बार का वज़न = 2 कि० ग्राम०
  5. पिट की लम्बाई = 5 मी०
  6. पिट की चौड़ाई = 4 मी०
  7.  पिट की ऊंचाई = 60 सैं०मी०

(1) समस्त प्रतियोगियों को पहले दोनों पैरों पर एक साथ अपने स्थान पर ही कूदने को कहेंगे। कुछ समय उपरान्त एक पैर पर कूदने के आदेश देंगे। ऊपर उछलते समय यह ध्यान रहे कि शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहे एवं दस बार ही कूदा जाए। इस तरह जिस पैर पर कूदने पर आसानी प्रतीत हो उसी को उछाल (उठना) पैर (Take off foot) मान । कर प्रशिक्षक को निम्नलिखित दो भागों में बांट देना चाहिए—

  1. बायें पैर पर कूदने वाले तथा
  2. दायें पैर पर कूदने वाले।

(2) दो रेखाओं में प्रतियोगी अपने उछाल पैर (Take off Foot) को आगे रख कर दूसरे पैर को पीछे रखेंगे। दोनों भुजाओं को एक साथ पीछे से आगे, कुहनियों से मोड़ करके आगे, ऊपर की ओर तेज़ी से जाएंगे। इसके साथ ही पीछे रखे पैर को भी ऊपर किक (Kick) करेंगे, और ज़मीन से उछाल कर पुन: अपने स्थान पर वापस उसी पैर पर आएंगे।
इस समय उछाल पैर (Take off Foot) वाले पैर का घुटना भी ऊपर उठते समय थोड़ा मुड़ा होगा। परन्तु शरीर का ऊपरी भाग सीधा रहेगा, एवं आगे न जा कर ऊपर उठेगा तथा उसी स्थान पर वापस आयेगा। ऊपर जाते समय कमर तथा आगे का पैर सीधा रखने का प्रयास किया जाए।

(3) प्रतियोगियों को 45° पर बायें पैर वाले बाएं और दायें पैर से कूदने वाले दायीं ओर खड़े होकर क्रॉस छड़ (Cross bar) को लगभग दो फुट (60 सम) की ऊंचाई पर रख कर आगे चलते हुए ऊपर की भान्ति ही उछाल कर क्रॉस छड़ (Cross bar) को पार करेंगे और ऊपर जाकर नीचे आते समय उसी उछाल पैर (Take off Foot) पर वापिस आएंगे। केवल भिन्नता इतनी होगी कि अपने स्थान पर वापस न आकर आगे क्रॉस छड़ को पार करके गिरेंगे तथा दूसरा पैर पहले पैर के आने के उपरान्त आगे 10 या 12 इंच (25 सम) पर आएगा तथा आगे चलते जाएंगे, परन्तु यह ध्यान रखा जाए कि किक करते समय घुटना झुका हो। शरीर का ऊपरी भाग सीधा रखने का प्रयास किया जाए तथा दोनों भुजाओं को तेज़ी से ऊपर ले जाएंगे, परन्तु जब दोनों हाथ कंधों की सीध में पहुंचेंगे तो उसी स्थान पर वापिस गिरना होगा।
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HIGH JUMP
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MEASURE TO THE UPPER OF THE BAR

(4) क्रॉस बार (Cross Bar) की ऊंचाई को बढ़ाएंगे तथा प्रशिक्षकों को टेक ऑफ़ (take off) पर आते समय टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को लम्बा करने को कहेंगे, परन्तु यह ध्यान में रखेंगे कि इस समय एड़ी पहले ज़मीन पर आये। दोनों भुजाएं कुहनियों से मुड़ी हुई हों।
कूदते समय ध्यान क्रॉस बार (Cross Bar) पर होगा। सिर शरीर से कुछ पीछे की ओर झुका होगा तथा पीछे के पैर को ऊपर करते समय पैर का पंजा ऊपर की ओर कर सीधा होगा।
इस समय क्रॉस बार (Cross Bar) को प्रशिक्षक के सिर से दो फुट (60 से०मी०) ऊंचा रखेंगे तथा प्रत्येक को ऊपर बताई गई क्रिया के अनुसार क्रॉस बार को अपनी फ्री लैग (Free Leg) से किक (Kick) करने को कहेंगे।
इसमें निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखेंगे—

  1. दोनों भुजाओं को एक साथ तेज़ी से ऊपर ले जाएगा।
  2. टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) उस समय ज़मीन छोड़ेगा जबकि फ्री लैग अपनी पूर्ण ऊंचाई तक पहुंच जाएगी।
  3. ऊपर बताई गई प्रक्रिया को जोगिंग (Jogging) के साथ भी किया जाएगा।

(5) क्रॉस बार (Cross bar) को दो फुट (60 सेमी०) के ऊपर रख कर खिलाड़ी को नं० 3 की भान्ति क्रॉस छड़ (Cross bar) पार करने को कहेंगे। केवल इतना अन्तर होगा कि क्रॉस बार पार करने के उपरान्त अखाड़े में आते समय हवा में 90 डिग्री पर घूमेंगे। बायें पैर से टेक ऑफ़ (Take off) लेने वाले बायीं तरफ घूमेंगे तथा दायें पैर पर टेक ऑफ़ (Take off) लेने वाले दायीं तरफ घूमेंगे।
इसमें निम्नलिखित दो बातों का विशेष ध्यान रखा जाएगा—

  1. खिलाड़ी उछाल (Take Off) लेते समय ही न घूमें तथा
  2. पूर्ण ऊंचाई प्राप्त करने से पहले घूमें।

स्ट्रैडल रोल
(Straddle Roll)
(6) टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को आगे रख कर खड़े होंगे, पर यह ध्यान रहे कि शरीर का भार एड़ी पर होना चाहिए तथा फ्री लैग को पीछे रखेंगे। दोनों हाथों को एक साथ तेज़ी से आगे लायेंगे और फ्री लैग (Free Leg) को ऊपर की ओर किक (Kick) करेंगे जिससे शरीर का समस्त भाग ज़मीन से ऊपर उठ जाये।

(7) ज़मीन पर चूने की समानान्तर रेखा डालेंगे। एथलीट इस चूने की रेखा के दाहिनी ओर खड़े होकर उपर्युक्त प्रक्रिया को करेंगे। ऊपर हवा में पहुंचते ही बायीं ओर टेक ऑफ़ (Take off) को घुमायेंगे, चेहरा नीचे करेंगे तथा पिछले पैर को किक (Kick) पर उठायेंगे।
इसमें मुख्यतः यह ध्यान रखा जाए कि फ्री लैग (Free Leg) को सीधी किक (kick) किया जाए। टेक ऑफ़ लैग (Take off Leg) को सीधा किक करके घुटना मोड़ (Bend) पर ऊपर ले जायेंगे। खिलाड़ी क्रॉस बार (Cross bar) पार करने के उपरान्त अखाड़े में रोज़ अभ्यास कर सकते हैं क्योंकि टेक ऑफ़ किक (Take off Kick) तेज़ होने के कारण सन्तुलन भी बिगड़ सकता है।

(8) तीन कदम आगे आ कर जम्प करना (Jumping from Three Steps) क्रॉस बार के समानान्तर डेढ़ फुट से 2 फुट (45 सम से 60 सम) की दूरी पर रेखा खींचेंगे।
इस रेखा से 30° पर दोनों पैर रख कर खड़े होंगे तथा टेक ऑफ़ फुट (Take off Foot) को आगे निकालते हुए मध्यम गति से आगे को भागेंगे। जहां पर तीसरा पैर आये वहां निशान लगा दें और अब उस स्थान पर दोनों पैर रख कर क्रॉस बार (Cross bar) की ओर चलेंगे और ऊपर बताई गई प्रक्रिया को दोहरायेंगे। क्रॉस बार की ऊंचाई एथलीट की सुविधा के अनुसार बढ़ाते जायेंगे।

बांस कूद
(Pole Vault)

  1. रनवे की लम्बाई = 40 से 45 मीटर
  2. रनवे की चौड़ाई = 1.22 मीटर
  3. लैडिंग ऐरिया = 5 × 5 मी०
  4. तिकोनी क्रास बार की लम्बाई = 4.48 मीटर से 4.52 मीटर
  5. तिकोनी क्रास बार प्रत्येक भुजा = 3.14 मीटर
  6. क्रास बार का वजन = 2.25 किलो ग्राम
  7. लैडिंग एरिया की ऊचाई = 6 सैं०मी० से १ सैं०मी०
  8. बाक्स की लम्बाई = 1.08 मी०
  9. बाक्स की चौडाई रनवे की तरफ से = 60 सैं०मी०

ऐथलैटिक्स में बांस कूद (Pole Vault) बहुत ही उलझा हुआ इवेंट है। किसी भी इवेंट में टेक ऑफ़ (Take off) से अखाड़े में आते समय तक इतनी क्रियाओं की आवश्यकता नहीं होती, जितनी कि पोल वाल्ट में। इसलिए इस इवेंट को पढ़ाने तथा सिखाने दोनों में ही परेशानी होती है।

बांस कूद के लिए एथलीट का चयन
(Selection of Athlete for Pole Vault)
अच्छा बांस कूदक एक सर्वांग (आल राऊण्डर) खिलाड़ी ही हो सकता है। क्योंकि यह . ऐसी स्पर्धा (Event) है जोकि सभी प्रकार से शरीर की क्षमता को बनाये रखती है, जैसे कि गति (Speed), शक्ति (Strength), सहनशीलता (Endurance) तथा तालमेल (Coordination) । अच्छे बांस कूदक का एक अच्छा जिमनास्ट भी होना आवश्यक है। जिससे वह सभी क्रियाओं को एक साथ कर सके।

पोल की पकड़ तथा लेकर चलना
(Holding and Carrying the Pole)
बहुधा बायें हाथ से शरीर के सामने हथेली को जमीन की ओर रखते हुए पोल को पकड़ते हैं । दायां हाथ शरीर के पीछे पुढे (Hip) के पास दायीं ओर बांस (pole) के अन्तिम सिरे की ओर होता है।
बांस को पकड़ते समय बायां बाजू कुहनी से 100 अंश का कोण बनाता है तथा शरीर से दूर कलाई को सीधा रखते हुए बांस को पकड़ते हैं। दायां हाथ, जो कि बांस के अन्तिम सिरे की ओर होता है, बांस को अंगूठे के अन्दरूनी भाग और तर्जनी अंगुली के बीच में ऊपर से नीचे को दबाते हुए पकड़ते हैं। दोनों कुहनियां 100 अंश के कोण बनाए हुई होती हैं। हाथों के बीच की दूरी 24 इंच (60 सैं० मी०) से 36 इंच (80 सें. मी०) तक होती है। यह बांस कूदक के शरीर की बनावट पर और पोल को लेकर दौड़ते समय जिसमें उसको आराम अनुभव हो, उस पर निर्भर करता है।

पोल के साथ दौड़ने की विधियां
(Running with the Pole)

  1. बांस को सिर के ऊपर रख कर चलना (Walking with Pole keeping over head)—इसमें बांस को बाक्स के पास लाते समय अधिक समय लगता है। इसलिए यह विधि अधिक उपयुक्त नहीं है।
  2. बांस को सिर के बराबर रख कर चलना (Walking with pole keeping at the level of head) विश्व के अधिकतर बांस कूदक इसी विधि को अपनाते हैं। इसमें चलते समय बांस का सिरा सिर के बराबर और बायें कंधे की सीध में होता है।
    दायें से बायें-इसमें कंधे तथा बाजू साधारण अवस्था में रहते हैं।
  3. बांस को सिर से नीचे लेकर चलना (Walking with pole keeping below the head)-इस अवस्था में बाजुओं पर अधिक ताकत पड़ती है, जिसके कारण बाक्स तक आते समय शरीर थक जाता है। बहुत ही कम संख्या में लोग इसको काम में लाते हैं। अप्रोच रन (Approach run) एथलीट को अपने ऊपर विश्वास तब होता है जबकि उस का अप्रोच रन सही आना शुरू होता है। आगे की क्रिया पर इसके बाद ही विचार किया जा सकता है। इसके लिए सबसे अच्छी विधि (The best method) यह है कि एक चूने की लाइन लगा कर एथलीट को पोल के साथ लगभग 150 फुट (50 मी०) तक भागने को कहना। इस क्रिया को कई दिन तक करने से एथलीट का पैर एक स्थान पर ठीक आने लगेगा। उस समय आप उस दूरी को फीते से नाप लें, फिर बांस कूद के रन-वे (Runway) पर काम करें। पैरों को तेज़ी के साथ अप्रोच रन को भी घटाना बढ़ाना पड़ता है।
    बांस कूद के अप्रोच रन में केवल एक ही चिह्न होना चाहिए। अधिक चिह्न होने से कूदने वाला अपने स्टाइल (Style) को न सोच कर चेक मार्क (Check Mark) को सोचता रहता है। अप्रोच रन (Approach Run) की लम्बाई 40 से 45 मी० के लगभग होनी चाहिए और अन्तिम 4 या 6 कदम में अधिक तेज़ी होनी चाहिए।

पोल प्लाण्ट
(Pole Plant)
यह सम्भव नहीं कि आप पूरी तेजी के साथ पोल (Pole) को प्लांट (Plant) कर सकें उसके लिए गति को सीमित करना पड़ता है। स्टील पोल (Steel Pole) में प्लांट जल्दी होना चाहिए तथा फाइबर ग्लास (Fibre Glass) में देरी से। स्टील पोल में प्लांट करते समय एथलीट को “एक और दो” गिनना चाहिए। एक के कहने पर बायां पैर आगे टेक ऑफ़ के लिए आयेगा और दायें पैर का घुटना ऊपर की ओर जायेगा। दो कहने पर शरीर की स्विग (Swing) शुरू हो जाती है। इस समय वाल्टर (Vaulter) को अपनी दायीं टांग को स्वतन्त्र छोड़ देना चाहिए जिससे कि वह बायीं टांग के साथ मिल सके। इस विधि से अच्छी स्विग लेने में सुविधा होती है।

टेक ऑफ़
(Take Off)
टेक ऑफ़ के समय दायां घुटना आगे आना चाहिए। इससे शरीर को ऊपर पोल की ओर ले जाते हैं तथा सीने को पोल की ओर खींचते हैं। पोल को सीने के सामने रखते हैं। स्विग (Swing) के समय दायीं टांग शरीर के आगे ऊपर की ओर उठेगी।
नोट-पोल करते समय एथलीट अपने हिप को ऊंचा ले जाते हैं, जबकि टांगों को ऊपर आना चाहिए व हिप को नीचे रखना चाहिए। पोल वाल्टरों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जब तक पोल सीधा नहीं होता, उनको पोल के साथ ही रहना चाहिए। पोल छोड़ते समय नीचे का हाथ पहले छोड़ना चाहिए। यह देखा गया है कि बहुत ही नये पोल वाल्टर अपनी पीठ को क्रास बार के ऊपर से ले जाते हैं। यह केवल ऊपर के हाथ को पहले छोड़ने से होता है।
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POLE VAULT
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ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न-थ्रो इवेंट्स कौन-कौन से होते हैं ? इनकी तकनीक और नियमों के बारे में लिखें।
उत्तर—

  1. गोले का भार = 7.260 कि०ग्राम ± 5 ग्राम पुरुषों के लिए 4 कि० ± 5 ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. थरोईंग सैक्टर का कोना = 34.92°
  3. सर्कल का व्यास = 2.135 मी० ± 5 मि०मी०
  4. स्टॉप बोर्ड की लम्बाई = 1.21 मी० से 1.23 मी०
  5. स्टॉप बोर्ड की चौड़ाई = 112 मि०मी० से 200 मि०मी०
  6. स्टॉप बोर्ड की ऊँचाई = 98 मि०मी० से 102 मि०मी०
  7. गोले का व्यास = 110 मि०मी० से 130 मि०मी०
  8. गोले का व्यास स्त्रियों के लिए = 95 मि०मी० से 110 मि०मी०

शाट पुट-पैरी ओवरेइन विधि
(Shot Put-Peri Oberrain Method)
1. प्रारम्भिक स्थिति (Initial Position)-थ्रोअर गोला फेंकने की दशा में अपनी पीठ करके खड़ा होगा। शरीर का भार दायें पैर पर होगा। शरीर के ऊपरी भाग को नीचे
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लाते समय दायें पैर की एडी ऊपर उठेगी तथा बाएं पैर को घुटने से मुडी दशा में पीछे ऊपर जाकर तुरन्त पैर के पास पुन: लायेंगे। दोनों पैर मुड़े होंगे तथा ऊपरी भाग आगे को झुका होगा।

2. ग्लाइड (Glide)-दायां पैर सीधा करेंगे तथा दायें पैर के पंजे बाईं एड़ी से पीछे आयेंगे। बायां पैर स्टॉप बोर्ड (Stop Board) की ओर तेजी से किक करेंगे। बैठी हुई अवस्था में पुट्ठों को पीछे व नीचे की ओर गिरायेंगे। दायां पैर ज़मीन से ऊपर उठेगा तथा शरीर के नीचे ला कर बायीं ओर को पंजा मोड़ कर रखेंगे। बायां पैर इसी के लगभग साथ ही स्टॉप बोर्ड (Stop Board) पर थोड़ा दायीं ओर ज़मीन पर लगेगा। दोनों पैरों के पंजों को ज़मीन पर गोली दोनों कन्धे पीछे की ओर झुके होंगे। शरीर का समस्त भार दायें पैर पर होगा।

3. अन्तिम चरण (Final Phase)-दायें पैर के पंजे एवं घुटने को एक साथ बायीं ओर घुमायेंगे तथा दोनों पैरों को सीधा करेंगे। पुट्ठों को भी आगे बढ़ायेंगे। शरीर का भार दोनों पैरों पर होगा। बायां कन्धा सामने को खुलेगा। दायां कन्धा दायीं तरफ को ऊपर उठेगा तथा घूमेगा। पेट की स्थिति धनुष के आकार की तरह पीछे को झुकी हुई होगी।
SHOT PUT
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4. गोला फेंकना/थ्रो करना (Putting throwing the Shot)-दायां कन्धा एवं दायीं भुजा को गोले के आगे की ओर ले जायेंगे। बायां कन्धा आगे को बढ़ता रहेगा। शरीर का समस्त भार बायें पैर पर होगा जोकि पूर्ण रूप से सीधा होगा। जैसे ही दाहिने हाथ द्वारा गोले को आगे फेंका जायेगा, दोनों पैरों की स्थिति भी बदलेगी। बायां पैर पीछे आयेगा तथा दायां पैर आगे आयेगा। शरीर का भार दायें पैर पर होगा। ऊपरी भाग एवं दायां पैर दोनों आगे को झुके होंगे।
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घूम कर गोला फेंकना या चक्के की भान्ति फेंकना
(Throwing the Shot by rotating or like a Discus)

1. प्रारम्भिक स्थिति (Initial Position)—प्रारम्भ करने के लिए गोले के दूसरे भाग पर गोला फेंकने की दशा में पीठ करके खड़े होंगे। बायां पैर मध्य रेखा पर तथा दायां भाग दायीं ओर होगा। दायां पैर लोहे की रिम (Rim) से 5 से 8 से०मी० पीछे रखेंगे जिससे कि वे घूमते समय फाउल (Foul) न हो। गोला गर्दन के नीचे भाग में होगा, कोहनी ऊपर उठी होगी। प्रारम्भ करने से पहले कन्धा, पेट, बायां बाजू, गोला सभी पहले बायीं तरफ को घूमेंगे तथा बाद में दायीं तरफ जायेगा। ऐसा करते समय दोनों घुटने झुके होंगे।
2. घूमना (Rotation)-दोनों पैरों पर शरीर का भार होगा तथा ऊपर की स्थिति से केवल एक स्विंग लेने के उपरान्त घूमना प्रारम्भ हो जायेगा। कन्धा एवं धड़ दायें को पूर्ण रूप से घूमते शरीर का भाग भी दायें पैर पर चला जायेगा। इस स्थिति में बायीं तरफ भुजा को ज़मीन के समानान्तर रखते हुए बायें पैर के पंजे पर शरीर का भार लाते हुए दोनों घुटने घूमेंगे। दायें पैर के पंजे पर भी 90 अंश तक घूमेंगे। दायें पैर को घुटने से झुकी हुई अवस्था में बायें पैर के टखने के ऊपर से गोले के बीच में पहुंचने पर लायेंगे।
बायें पैर पर घूमते समय चक्र समाप्त होने पर हवा में दोनों पैर होंगे तथा कमर को घुमाएंगे। दायां पैर केन्द्र में दाएं पैर के पंजे पर आएगा। दाएं पैर के पंजे की स्थिति उसी प्रकार से होगी जैसी कि घड़ी में 2 बजे की दशा में सुई होती है। बहादुर सिंह का पैर 10 बजे की स्थिति में आता है। वह हवा में ही कमर को मोड़ लेता है। 2 बजे की स्थिति में बायां पैर टो बोर्ड पर कुछ विलम्ब से आयेगा। परन्तु ऊपरी भाग को केन्द्र में रखा जा सकता है। 10 बजे की स्थिति में बायां पैर ज़मीन पर तेजी से आयेगा तथा अधिकतर यह सम्भावना रहती है कि शरीर का ऊपरी भाग शीघ्र ऊपर आ जाता है।
निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेंगे—

  1. प्रारम्भ में सन्तुलन ठीक बनाकर चलेंगे, बायां पैर नीचे रखेंगे।
  2. दाएं पैर से पूरी ग्लाइड (Glide) लेंगे, जम्प नहीं करेंगे। शरीर के ऊपरी भाग को ऊपर नहीं उठायेंगे।
  3. दायां पैर केन्द्र में आते समय अन्दर को घूम जाएगा।
  4. बायें कन्धे एवं पुढे को जल्दी ऊपर नहीं लाना है।
  5. बायीं भुजा को शरीर के पास रखेंगे।
  6. बायां पैर ज़मीन पर न शीघ्र लगेगा और न अधिक विलम्ब से।

सामान्य नियम
(General Rules)

  1. पुरुष वर्ग में 7.26 कि०ग्रा०, महिला में 4.00 कि०ग्रा० । गोले के व्यास पुरुष वर्ग में 110 से 130 व महिलाओं में 95 से 110 पैंटीमीटर।
  2. गोला व तारगोला को 2.135 मीटर के चक्र से फेंका जाता है। अन्दर का भाग पक्का होगा, बाहरी मैदान से 25 मिलीमीटर नीचा होगा। स्टॉप बोर्ड (Stop Board) 1.22 मीटर लम्बा, 114 मिलीमीटर चौड़ा और 100 मिलीमीटर ऊंचा होगा।
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  3. सैक्टर 40 अंश का गोला, तार गोला एवं चक्का होगा। केन्द्र से एक रेखा सीधी 20 मीटर की खींचेंगे। इस रेखा के 18.84 पर एक बिन्दु लगाएंगे, इस बिन्दु से दोनों ओर 6.84 की दूरी पर दो बिन्दु डाल देंगे तथा इन्हीं दो बिन्दुओं से सीधी रेखायें खींचने पर 40 अंश का कोण बनेगा।
    गोला फेंकते समय शरीर का सन्तुलन होना चाहिए, गोला फेंक कर गोला जमीन पर गिरने के उपरान्त 75 सेंटीमीटर की दोनों रेखायें जो कि गोला फेंकने के क्षेत्र को दो भागों में विभाजित करती हैं, उसके पीछे के भाग से बाहर आयेंगे। गोला एक हाथ से फेंक दिया जाएगा। गोला कन्धे के पीछे नहीं आयेगा, केवल गर्दन के पास रहेगा। सही पुट उसी को मानेंगे जो कि सैक्टर के अन्दर हो। सैक्टर की रेखाओं को काटने पर फाऊल (Foul) माना जायेगा। यदि आठ प्रतियोगी (Competitors) हैं, तब सभी को 6 अवसर देंगे अन्यथा टाइ पड़ने पर 9 भी हो सकते हैं।

चक्का फेंकने का प्रारम्भ
(Initial Stance of Discus Throw)

  1. चक्के का वजन = 2 कि० ग्राम पुरुषों के लिए 1 कि० ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. सर्कल का व्यास = 2.5 मी० + 5 मि०मी०
  3. थ्रोईंग सैक्टर का कोण = 34.92°
    चक्के का ऊपर का व्यास = 219 मि०मी० से 2.21 मि० मी० पुरुषों के लिए

180 से 182 स्त्रियों के लिए चक्का फेंकने की दिशा के विरुद्ध पीठ करके छल्ले (Ring) के पास चक्र में खड़े होंगे। दायीं भुजा को घुमाते हुए एक या दो स्विग (Swing) भुजा तथा धड़ को भी साथ में घुमाते हुए लेंगे। ऐसा करते समय शरीर का भार भी एक पैर से दूसरे पैर पर जायेगा जिस से पैरों की एड़ियां मैदान के ऊपर उठेगी। जब चक्का दाईं ओर होगा तथा शरीर का ऊपरी भाग भी दाईं ओर मुड़ा होगा यहां से चक्र का प्रारम्भ होगा। चक्र का प्रारम्भ शरीर के नीचे के भाग से होगा, बायें पैर को बायीं ओर झुकाएंगे। शरीर का भार इसी के ऊपर आयेगा। दायां घुटना भी साथ ही घूमेगा, दायां पैर भी घूमेगा, साथ ही कमर, पेट भी घूमेगा जाकि दायीं बाजू एवं चक्के को भी साथ में लायेगा।

इस स्थिति में गोले को पार करने की क्रिया प्रारम्भ होगी। सबसे पहले बायां पैर जमीन को छोड़ेगा। इसके उपरान्त बायां पैर चक्का फेंकने की दशा में आगे बढ़ेगा। दायां पैर घुटने से मुड़ा हुआ अर्ध चक्र की दशा में बायीं से दायीं ओर आगे को चलेगा। घूमते समय दोनों पुढे कन्धों से आगे होंगे जिससे शरीर के ऊपरी भाग तथा नीचे के भाग में मोड़ उत्पन्न होगा। दायीं भुजा जिसमें चक्का होगा, सिर कोहनी से सीधा होगा, बायीं भुजा कोहनी से मुड़ी हुई सीने के सम्मुख होगी। सिर सीधा रहेगा। दायें पैर के पंजे पर ज़मीन से थोड़ा ऊपर रख कर गोले को पार करेंगे तथा दायें पैर के पंजे ज़मीन पर आयेंगे। यह पैर लगभग केन्द्र में आयेगा। पंजा बाईं ओर को मुड़ा होगा।

विधियां
(Methods)
DISCUS THROW
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 22
इसमें मुख्यत: निम्नलिखित तीन प्रकार की विधियां हैं—

  1. प्रारम्भ करते समय भी जो नये फेंकने वाले होते हैं वे अपना दायां पैर केन्द्र की रेखा पर एवं बायां पैर 10 से०मी० छल्ले (Ring) के पीछे रखते हैं।
  2. दूसरी विधि जिसमें सामान्य फेंकने वाले केन्द्रीय रेखा को दोनों पैरों के मध्य रखते हैं।
  3. तीसरे वे फेंकने वाले हैं जो बायें पैर को केन्द्रीय रेखा पर रखते हैं।

इसी प्रकार गोले के मध्य में आते समय तीन प्रकार से पैर को रखते हैं। पहले 3 बजे की स्थिति में, दूसरे 10 बजे की स्थिति में, तीसरे 12 बजे की स्थिति में, जिसमें 12 बजे की स्थिति सर्वोत्तम मानी गयी है क्योंकि इसमें दायें पैर पर कम घूमना पड़ता है तथा बायें कन्धे को खुलने से रोका जा सकता है।
दायां पैर ज़मीन पर आने के उपरान्त भी निरन्तर घूमता रहेगा और बायां पैर गोले के केन्द्र की रेखा से थोड़ा बायीं ओर पंजे एवं अन्दर के भाग को ज़मीन पर लगा देगा।
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अन्तिम चरण (Last Step)
इस समय पैर जमीन पर होंगे, कमर घूमती हई दिशा में पीछे को झकी होगी, बायां पैर सीधा होगा, दायां पैर घुटने से मुड़ा हुआ, दायां घुटना एवं पुढे बायीं ओर घूमते हुए होंगे। बायीं भुजा ऊपर की ओर खुलेगी, दायीं भुजा को शरीर से दूर रखते हुए आगे एवं ऊपर की दशा में लायेंगे।

फेंकना (Throwing)
दोनों पैर जो कि घूम कर आगे आ रहे थे, इस समय घुटने से सीधे होंगे। पुढे आगे को बढ़ेंगे, कन्धे तथा धड़ अपना घूमना आगे की दशा में समाप्त कर चुके होंगे। बायीं भुजा तथा कन्धा आगे घूमना बन्द करके एक स्थान पर रुक जायेंगे। दायीं भुजा एवं कन्धा आगे तथा ऊपर बढ़ेगा। दोनों पैरों के पंजों पर शरीर का भार होगा तथा दोनों पैर सीधे होंगे। अन्त में बायां पैर पीछे आयेगा तथा दायां पैर आगे जा कर घुटने से मुड़ेगा। शरीर का ऊपरी भाग भी आगे को झुका होगा। ऐसा शरीर का सन्तुलन बनाये रखने के लिए किया जाता है।

साधारण नियम (General Rules)
चक्के (Discus) का भार पुरुष वर्ग हेतु 2 कि०ग्रा०, महिला वर्ग हेतु 1 कि०ग्रा० होता है। वृत्त का व्यास 2.50 होता है। वर्तमान समय के चक्के के गोले के बाहर लोहे की केज
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LAY OUT OF DISCUS CIRCLE
(Cage) बनाई जाती है ताकि चक्के से किसी को चोट न पहुंचे। सम्मुख 6 मीटर, अन्य 7 मीटर अंग्रेजी के ‘E’ के आकार की होती है। इसकी ऊंचाई 3.35 मीटर होती है।
सैक्टर-40° का इसी प्रकार बनायेंगे जैसे गोले के लिए, अन्य समस्त नियम गोले की भान्ति ही इसमें काम आयेंगे।

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प्रश्न-जैवलिन थ्रो के नियम लिखें।
उत्तर—

  1. जैवलिन का भार = 800 ग्राम पुरुषों के लिए 600 ग्राम स्त्रियों के लिए
  2. रनवे की लम्बाई = 30 मी० 36.5 मी०
  3. रनवे की चौड़ाई जैवलिन की लम्बाई = 4 मीटर – 250 सें०मी० से 270 सें०मी० पुरुषों के लिए 220 सें०मी० के 230 सें०मी० स्त्रियों के लिए
  4. जैवलिन के थ्रोईंग सैक्टर का कोण = 28.950

भाला फेंकना (Javelin Throw)
भाले की सिर के बराबर ऊंचाई पर कान के पास, भुजा को कोहनी से झुकी हुई,
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कोहनी एवं जैवलिन दोनों का मुख सामने की ओर होगा। हाथ की हथेली का रुख ऊपर की ओर होगा–ज़मीन के समानान्तर । सम्पूर्ण लम्बाई 30 से 35 मी० होगी। 3/4 दौड़ पथ में सीधे दौड़ेंगे। 1/3 अन्तिम के पांच कदम के लगभग क्रॉस स्टैप (Cross Step) लेंगे। अन्तिम चरण में जब बायां पैर जांच चिह्न (Check Mark) पर आएगा दायां कन्धा धीमी
JAVELIN THROW
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गति से दायीं ओर मुड़ना प्रारम्भ करेगा तथा दायीं भुजा भी पीछे आना प्रारम्भ करेगी। कदमों के बीच की दूरी बढ़ने लगेगी। दायां हाथ एवं कन्धा बराबर पीछे को आयेंगे एवं दाईं तरफ खुलते जायेंगे। कमर एवं शरीर का ऊपरी भाग पीछे को झुकता जायेगा। ऊपरी एवं नीचे के भाग में मोड़ उत्पन्न होगा, क्योंकि ऊपरी भाग दायीं ओर खुलेगा तथा नीचे का भाग सीधा आगे को चलेगा। आंखें आगे की ओर देखती हुई होंगी।

अन्त में दायां पैर घुटने से झुकी दशा में ज़मीन पर क्रॉस स्टैप (Cross Step) के अन्त में आयेगा। जैसे ही घुटना आगे बढ़ेगा, दायें पैर की एड़ी ज़मीन से ऊपर उठना प्रारम्भ हो जायेगी। इस प्रकार यह बायें पैर को अधिक दूरी पर जाने में सहायता करती है, जिससे कि दोनों पैरों के बीच अधिक-से-अधिक दूरी हो सके। बायां पैर थोड़ा बायीं ओर ज़मीन पर आएगा। कन्धे दायीं ओर को होंगे। भाला कन्धे की सीध में होगा। मुट्ठी बन्द तथा हथेली ऊपर की ओर, कलाई सीधी, कलाई नीचे की ओर होने से भाले का अन्तिम सिरा ज़मीन पर लगेगा। इस स्थिति के समय बाईं भुजा मुड़ी हुई सीने के ऊपर होगी।

अन्तिम फेस (Last Phase)-थ्रो करने की स्थिति में जब बायां पैर ज़मीन पर आयेगा, कूल्हा (Hip) आगे बढ़ना प्रारम्भ कर देगा। दायां पैर एवं घुटना अन्दर को घूमेगा तथा सीधा होकर टांग को सीधा करेगा। बायां कन्धा भी साथ में खुलेगा, दायीं कुहनी बाहर की ओर घूमेगी एवं ऊपर को भाला कन्धा एवं भुजा के ऊपर सीध में होगा। बायें पैर का रुकना, दायें पैर को अन्दर घुमाना तथा सीधा करना इन सबसे शरीर का ऊपरी भाग धनुष की भान्ति पीछे को झुकेगा तथा सीना एवं पेट की मांसपेशियों में तनाव उत्पन्न होगा।

फेंकने के बाद फाऊल (Foul) बचाने के लिए तथा शरीर के भार को नियन्त्रण में रखने के लिए कदमों में परिवर्तन लायेंगे। दायां पैर आगे आकर घुटने से मुड़ेगा तथा पंजा बायीं ओर को झुकेगा। शरीर का ऊपरी भाग दायें पैर पर आगे को झुक कर सन्तुलन बनाएगा। दायां पैर अपने स्थान से उठ कर कुछ आगे भी जा सकता है।

साधारण नियम (General Rules)

  1. पुरुष भाले की लम्बाई 2.60 मी० से 2.70 मी०, महिला 2.20 मी० से 2.30 मी०।
  2. भाला फेंकने के लिए कम-से-कम 30 मी०, अधिकतम 36.50 मी० लम्बा एवं 4 मी० चौड़ा मार्ग चाहिए। सामने 70 मि०मी० की चाप वक्राकार सफेद लोहे की पट्टी होगी जो कि दोनों ओर 75 सें.मी० निकली होगी। इसको सफेद लेन से भी बनाया जा सकता है। यह रेखा 8 मी० सेण्टर से खींची जा सकती है।
  3. भाले का सैक्टर 29° का होता है जहां वक्राकार रेखा मिलती है वहीं निशान लगा देते हैं। पूर्ण रूप से सही कोण के लिए 40 मी० की दूरी पर दोनों भुजाओं के बीच की दूरी 20 मीटर होगी, 60 मी० की दूरी पर 30 मी० होगी।
    JAVELIN RUNWAY THROWING
    ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 27
  4. भाला केवल बीच में पकड़ने के स्थान (Grip) से ही पकड़ कर फेंकेंगे। भाले का अगला भाग ज़मीन पर पहले लगना चाहिए। शरीर के किसी भी भाग से 50 सें०मी० चौड़ी दोनों ओर की रेखाओं को या आगे 70 सें०मी० चौड़ी रेखा को स्पर्श करने को फाऊल थ्रो (Foul Throw) मानेंगे।
  5. प्रारम्भ करने से अन्त तक भाला फेंकने की दशा में रहेगा। भाले को चक्र काट कर नहीं फेंकेंगे, केवल कन्धे के ऊपर से फेंक सकते हैं।
  6. 3 + 3 गोला एवं चक्के की भान्ति अवसर मिलेंगे।

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प्रश्न-रिले दौड़ों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर—
रिले दौड़ें
(Relay Races)
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पेडले रिले दौड़ (Medley Relay Race)—
800 × 200 × 200 × 400 मीटर
बैटन (Baton)—सभी वृत्ताकार रिले दौड़ों में बैटन को ले जाना होता है। बैटन एक खोखली नली का होना चाहिए और इसकी लम्बाई 30 सें०मी० से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसकी परिधि 12 सेंटीमीटर होनी चाहिए और भार 40 ग्राम होना चाहिए।
ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 29
रिले धावन पथ (Relay. Race Track)-रिले धावन पथ पूरे चक्र के लिए, गलियारों में विभाजित या अंकित होना चाहिए। यदि ऐसा सम्भव नहीं है, तो कम-से-कम बैटन विनिमय क्षेत्र गलियारों में होना चाहिए।
रिले दौड़ का प्रारम्भ (Start of Relay-Race)-दौड़ के प्रारम्भ में बैटन का कोई भी भाग रेखा से आगे निकल सकता है, किन्तु बैटन रेखा या आगे की ज़मीन को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
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बैटन लेना (Taking the Baton)-बैटन लेने के लिए भी क्षेत्र निर्धारित होता है। यह क्षेत्र दौड़ की निर्धारित दूरी रेखा के दोनों ओर 10 मीटर लम्बी प्रतिबन्ध रेखा खींच कर चिह्नित किया जाता है। 4 × 200 मीटर तक की रिले दौड़ों में पहले धावक के अतिरिक्त टीम के अन्य सदस्य बैटन लेने के लिए निर्धारित क्षेत्र के बाहर, किन्तु 10 मीटर से कम दूरी से दौड़ना आरम्भ करते हैं।

वैटन विनिमय (Exchange of Baters)—बैटन विनिमय निर्धारित क्षेत्र के अन्दर ही होना चाहिए। धकेलने या किसी प्रकार से सहायता करने की अनुमति नहीं है। धावक एक-दूसरे को बैटन नहीं फेंक सकते यदि बैटन गिर जाता है, तो गिराने वाला धावक ही उठाएगा।
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PSEB 10th Class Physical Education Practical ऐथलैटिक्स (Athletics)

प्रश्न 1.
एथलैटिक्स संयोगों को मुख्य रूप से कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
एथलैटिक्स संयोगों को हम अग्रलिखित दो भागों में बांट सकते हैं—

  1. ट्रैक संयोग-इनमें सभी दौड़ें आ जाती हैं।
  2. क्षेत्रीय संयोग (फील्ड इवेंट्स)-इसमें सब प्रकार की छलांगें और थ्रोज़ आ जाती

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प्रश्न 2.
सीनियर लड़के और जूनियर लड़कों के कौन-कौन से इवेंट्स होते
उत्तर-
सीनियर लड़के—

  1. 100 मीटर
  2. 200 मीटर
  3. 400 मीटर
  4. 800 मीटर
  5. 1500 मीटर
  6. 5000 मीटर
  7. 110 मीटर हर्डल
  8. लम्बी छलांग
  9. तेहरी छलांग
  10. पोल वाल्ट
  11. शॉटपुट
  12. जैवलिन थ्रो
  13. डिस्कस थ्रो
  14. हैमर थ्रो
  15. ऊंची छलांग
  16. 4 × 100 मीटर रिले दौड़
  17. 4 × 400 मीटर रिले दौड़

जूनियर लड़के—

  1. 100 मीटर
  2. 400 मीटर
  3. 800 मीटर
  4. 3000 मीटर
  5. 100 मीटर
  6. ऊंची छलांग
  7. लम्बी छलांग
  8. शॉट पुट
  9. डिस्कस थ्रो
  10. जैवलिन थ्रो
  11. 4 × 100 मीटर रिले दौड़।

प्रश्न 3.
सीनियर लड़कियों और जूनियर लड़कियों के इवेंट्स के बारे में विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
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प्रश्न 4.
एथलैटिक्स इवेंट्स को हम कितने भागों में बांट सकते हैं ?
उत्तर-
दौड़ें-100, 200, 400, 800, 1500, 5000, 10,000 मीटर दौड़। 4 × 100, 4 × 400 मीटर रिले दौड़। थो-डिस्कस थ्रो, हैमर थ्रो, शॉट पुट, गोला फेंकना। उछलना-हाई जम्प, लम्बी छलांग, ट्रिपल जम्प, पोल वाल्ट।

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प्रश्न 5.
स्परिट्स या तेज़ दौड़ें किसे कहते हैं ?
उत्तर-
स्परिट्स या तेज़ दौड़ें उन्हें कहते हैं जो दौड़ने वाला थोड़ी दूरी को बिजली की तेज़ी से पूरा कर ले। तेज़ दौड़ें इस प्रकार हैं-100, 200, 400, 4 x 100, 4 x 400 मीटर रिले दौड़ें इत्यादि।

प्रश्न 6.
मध्यम दर्जे की दौड़ें कौन-कौन सी होती हैं ?
उत्तर-
मध्यम दर्जे की दौड़ें (Middle Distance Races) उन्हें कहते हैं जिन में धावक तेज़ दौड़ सकता हो और पूरी दूरी के लिए स्पीड या गति को कायम रख सकता हो। जैसे 800, 1500 मीटर की दौड़ आदि।

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प्रश्न 7.
रिले दौड़ें (Relay Races) किसे कहते हैं ?
उत्तर-
रिले दौड़ें (Relay Races)-रिले दौड़ें एक टीम का संयोग है जिनमें टीम का हर मैम्बर एक जैसी दूरी दौड़ता है। छोटी दूरी की रिले दौड़ों में धावकों को स्परिट की तरह दौड़ना पड़ता है। रिले दौड़ों में 4 मैम्बर होते हैं और बैटन (Baton) एक मैम्बर से दूसरे मैम्बर को पकड़ाया जाता है।

प्रश्न 8.
दौड़ों के मुख्य नियम कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-
दौड़ों के लिए आम नियम-

  1. तेज़ दौड़ें (स्परिट्स) 4′ की चौड़ी लेनों में दौड़ी जाती हैं ताकि धावकों को दौड़ने में रुकावट न पड़े।
  2. लेन्ज़ का चुनाव पर्चियों द्वारा किया जाता है।
  3. स्टार्टर के स्थान लो की आज्ञा मिलने पर धावक अपनी-अपनी लेन की आरम्भिक रेखा के पीछे पोजीशन ले लेते हैं। तैयारी की आज्ञा मिलने पर वे तैयार हो जाते हैं। बन्दूक या पिस्तौल चलने के उपरान्त दौड़ पड़ते हैं। यदि कोई धावक बन्दूक की आवाज़ या पिस्तौल चलने से पहले दौड़ पड़ता है तो वह स्टार्ट रद्द कर दिया जाता है। पहले दौड़ने वाले धावक को ताड़ना कर दी जाती है। यदि वह ऐसी ग़लती फिर करता है तो उस धावक को उस दौड़ मुकाबले में भाग लेने के अयोग्य करार दिया जाता है।
  4. जो धावक अपनी लेन को छोड़ कर दूसरी लेन में चला जाता है, वह भी अयोग्य करार दिया जाता है।
  5. लम्बी दौड़ें 1500, 5000 मीटर दौड़ अलग-अलग लेनों में दौड़ी जाती हैं। यदि किसी एथलीट ने अपने से आगे दौड़ रहे धावक को काट कर आगे बढ़ना हो तो वह दाईं ओर से आगे बढ़ेगा।

प्रश्न 9.
थ्रो के लिए क्या-क्या नियम हैं ?
उत्तर-
थ्रो के लिए नियम-

  1. गोला, डिस्कस और हैमर थ्रो चक्करों में खड़े होकर फेंके जाते हैं।
  2. थ्री से पहले या बाद शरीर का कोई भाग चक्कर से बाहर नहीं स्पर्श करना चाहिए।
  3. थ्रो के बाद चक्कर के पिछले आधे भाग में से बाहर जाना आवश्यक है। अगले भाग में से बाहर जाना फाऊल माना जाता है।
  4. निश्चित किए गए सैक्टर में गिरे हुए थ्री ही ठीक माने जाते हैं।
  5. यदि मुकाबलों में भाग लेने वालों की संख्या मे 8 से अधिक है तो इनको तीनतीन चांस दिए जाते हैं। फिर उनमें से अधिक फेंकने वाले 8 एथलीट चुन लिए जाते हैं
    और फिर दोबारा तीन चांस और दिए जाते हैं। जो एथलीट अधिक थ्रो फेंकेगा उसको पहला स्थान दिया जाएगा।
  6. थ्री इवेंट्स में जब हम इम्पलीमैंट (Implement) को चक्कर के अन्दर ले जाते हैं तो उसको दोबारा बैक साइड पर नहीं फेंक सकते।
  7. गोला, हैमर या डिस्कस थ्रो के समय यह ज़रूरी है कि वह 40° के सैंटर में गिरे।
  8. हरेक थ्रो का माप गिरी हुई वस्तु की समीपता दूरी से चक्कर के अन्दर से सीधी रेखा द्वारा लिया जाता है।
  9. माप के समय अंगुलियों का प्रयोग नहीं किया जा सकता।
  10. जब तक गोले, डिस्कस या किसी और वस्तु ने भूमि को स्पर्श न कर लिया हो, खिलाड़ी चक्कर में से बाहर नहीं आ सकता।

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प्रश्न 10.
दौड़ों में चैम्पियनशिप निकालने के लिए अंक कैसे लगाए जाते हैं ?
उत्तर-
दौड़ों के लिए निम्नलिखित ढंग से अंक लगाए जाते हैं—

पोजीशन अंक
(1) पहली पोजीशन 5
(2) दूसरी पोजीशन 3
(3) तीसरी पोजीशन 1
यदि रिले दौड़ें हों तो इस प्रकार हैं
(1) पहली पोजीशन 10
(2) दूसरी पोजीशन 6
(3) तीसरी पोजीशन 2

 

प्रश्न 11.
गोला, डिस्कस, हैमर थ्रो चक्कर के कोण कितने डिग्री के होते हैं ?
उत्तर-
गोला, डिस्कस, हैमर थ्रो चक्कर के कोण 40° के होते हैं।

प्रश्न 12.
100 मीटर, 200 मीटर, 400 मीटर दौड़ की लाइनों की चौड़ाई कितनी होती है ?
उत्तर-
लाइनों की दूरी 1.25 मीटर या 4’—1′ चौड़ाई होती है।

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प्रश्न 13.
स्टैंडर्ड ट्रैक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
स्टैंडर्ड ट्रैक उसे कहते हैं जिसमें 8 लाइनें होती हैं, परन्तु आम तौर पर 6 लाइनों वाला ट्रैक ही प्रयोग में लाया जाता है।

प्रश्न 14.
स्टार्ट कैसे लिया जाता है ?
उत्तर-
स्टार्ट निम्नलिखित ढंग से लिया जाता है—
On Your marks.
Set
Whistle

प्रश्न 15.
ट्रैक इवेंट्स में कौन-कौन सी दौड़ें आती हैं ?
उत्तर-
ट्रैक इवेंट्स में 100, 200, 400, 800, 1500, 5000, 10000 मीटर की दौड़ें आ जाती हैं। (इसका चित्र सहित पूरा वर्णन खेलों वाले भाग में देखो)

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प्रश्न 16.
100, 200, 400 मीटर की दौड़ दौड़ने वाले एथलीटों को कौन-कौन सी बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
उत्तर-
कुछ ज़रूरी बातें (Some Important Tips)—
100, 200, 400 मीटर दौड़ दौड़ने के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए’

  1. सांस प्राकृतिक ढंग से लेनी चाहिए।
  2. तैयार की आज्ञा मिलने पर अपने सांस को रोक लो और पिस्तौल की गोली चलने पर भागना शुरू करो।
  3. दौड़ समाप्त हो जाने के बाद बैठना या रुकना नहीं चाहिए।
  4. दौड़ आरम्भ होने की स्थिति में खिलाड़ी को अपनी स्पर्श स्थिति को ध्यान में रखना चाहिए ताकि वह पहले चार, पांच या छः कदम बिल्कुल सीधी रेखा में दौड सके।
  5. अभ्यास के लिए पहले दो-चार स्टार्ट धीरे-धीरे लेने चाहिएं।
  6. हर पारी आरम्भ होने से पहले 35 मीटर या 40 मीटर तक दौड़ने का अभ्यास करना चाहिए।
  7. स्टार्ट लेने के लिए प्रतिदिन 10-15 स्टार्ट लेने चाहिएं।

प्रश्न 17.
कितने फाऊल स्टार्ट के पश्चात् एथलीट को दौड़ से बाहर निकाला जा सकता है ?
उत्तर-
यदि कोई एथलीट दो फाऊल स्टार्ट ले ले तो उसको दौड़ से बाहर निकाल दिया जाता है। पटैथलोन और डिकैथलिन में तीन फाऊल स्टार्ट ले ले तो उसे बाहर निकाल दिया जाता

प्रश्न 18.
ट्रैक इवेंट्स के लिए खिलाड़ियों के लिए क्या-क्या नियम होने चाहिएं ?
उत्तर-
ट्रैक इवेंट्स के खिलाड़ियों के लिए निम्नलिखित नियम हैं—

  1. खिलाड़ी ऐसे वस्त्र पहने जो किसी प्रकार की आपत्ति योग्य न हों तथा वे साफ़ भी हों।
  2. एथलीट नंगे पांव या जूते पहन कर भाग ले सकता है।
  3. जो खिलाड़ी अन्य खिलाड़ियों के लिए किसी तरह की रुकावट पैदा करता है या प्रगति के मार्ग में रुकावट बनता है, उसको अयोग्य ठहराया जाता है।
  4. हरेक एथलीट अपने आगे और पीछे बड़े स्पष्ट रूप से अंक धारण करेगा।
  5. लेन्ज (Lanes) में दौड़ी जाने वाली दौड़ों में खिलाड़ी को शुरू से अन्त तक अपनी लेन में ही रहना होगा।
  6. यदि कोई खिलाड़ी जानबूझ कर अपनी लेन से बाहर दौड़ता है तो उसे अयोग्य ठहराया जाता है।
  7. यदि कोई एथलीट जानबूझ कर ट्रैक को छोड़ता है तो उसको दोबारा दौड़ जारी रखने का अधिकार नहीं होता।
  8. यदि ट्रैक और फील्ड के इवेंट्स एक बार शुरू हो चुके हों तो जज उसको अलगअलग ढंग से हिस्सा लेने की आज्ञा दे सकता है।
  9. खिलाड़ियों को दवाइयों और नशीली वस्तुओं के सेवन की आज्ञा नहीं है। न ही खेल के समय वह अपने पास रख सकता है। यदि कोई ऐसी वस्तुओं का प्रयोग करता है तो उसे अयोग्य करार दिया जाता है।
  10. 800 मीटर दौड़ (800 Meter Race) का स्टार्टर अपनी ही भाषा में कहेगा “On Your Marks” इस के बाद व्हिसल दे कर स्टार्ट दे दिया जाता है। .
  11. खिलाड़ी को “On Your Marks” की स्थिति में अपने सामने वाली ग्राऊंड को या आरम्भ रेखा (Start Line) को हाथ या पैर द्वारा स्पर्श नहीं करना चाहिए।
  12. दो बार फाऊल स्टार्ट होने पर एथलीट को दौड़ में भाग लेने की आज्ञा नहीं होती।
  13. एथलीट का फैसला पोजीशन की अन्तिम रेखा पर होता है। जिस खिलाड़ी के शरीर का हिस्सा अन्तिम रेखा को पहले स्पर्श कर जाए तो उसको पहले पहुंचा माना जाता है।
  14. हर्डल दौड़ में यदि कोई एथलीट जानबूझ कर हाथों या टांगों को फैलाकर हर्डल फेंकता है या रैफ़री के मतानुसार हर्डल को जानबूझ कर हाथों या पाँवों पर गिराता है तो उसे भी अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  15. यदि Throw Events में भाग लेने वालों की संख्या अधिक हो जाए तो रैफ़री निर्धारित स्थान (Qualifying Marks) रख देता है और अन्त में चान्स दिए जाते हैं।

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प्रश्न 19.
हर्डल दौड़ें कितने प्रकार की होती हैं ? संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर-
हर्डल दौड़ें निम्नलिखित प्रकार की होती हैं जो इस प्रकार हैं—
(1) 110 मीटर हर्डल (110 Metres Hurdle)
(2) 200 मीटर हर्डल (200 Metres Hurdle)
(3) 400 मीटर हर्डल (400 Metres Hurdle)

  1. 110 मीटर हर्डल (110 Metres Hurdle)-इसमें 10 हर्डलें होती हैं। पहली. हर्डल 10.72 मीटर दूरी पर होती हैं। बाकी हर्डलों की दूरी 9.14 और अन्तिम हर्डल 14.02 मीटर दूरी पर होती है। हर्डलों की ऊंचाई लड़कियों के लिए 1.06 सैं० मीटर होती है और सीनियर लड़कियों के लिए 100 मीटर हर्डलज़ की ऊंचाई 89 सैं० मीटर और जूनियर लड़कियों के लिए 76 सैं० मीटर होती है।
  2. 200 मीटर हर्डल (200 Metres Hurdle)-इसमें भी 10 हर्डलें होती हैं। स्टार्ट रेखा से पहली हर्डल 18.29 मीटर और अन्तिम हर्डल 17.10 मीटर होती है।
  3. 400 मीटर हर्डल (400 Metres Hurdle)—इसमें भी 10 हर्डल होती हैं। पहली हर्डल स्टार्ट रेखा से 45 मीटर और बाकी 35 मीटर और अन्तिम 40 मीटर होती है।

प्रश्न 20.
गोला फेंकना, हैमर थ्रो, डिस्कस थ्रो के चक्करों का माप बताओ।
उत्तर-

  1. गोले का चक्कर 2.135 M.
  2. हैमर थ्रो 2.135 M.
  3. डिस्कस थ्रो 2.50 M.M.

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 21.
पटैथलोन और डिकेथलिन इवेंट्स का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. पटैथलोन के इवेंट्स-
    • लम्बी छलांग (Long Jump)
    • जैवलिन थ्रो (Javelin Throw)
    • 200 मीटर दौड़ (200 Metres Race)
    • डिस्कस थ्रो (Discus Throw)
    • 100 मीटर हर्डल (100 Metres Hurdle)
  2. डिकेथलिन इवेंट्स—
    • 100 मीटर दौड़ (100 Metres Race)
    • लम्बी छलांग (Long Jump)
    • पुटिंग शाट (Putting Shot)
    • ऊंची छलांग (High Jump)
    • 400 मीटर दौड़ (400 Metres Race)
    • 110 मीटर हर्डल (110 Metres Hurdle)
    • डिस्कस थ्रो (Discus Throw)
    • पोल वाल्ट (Pole Vault)
    • जैवलिन थ्रो (Javelin Throw)
    • 1500 मीटर दौड़ (1500 Metres Race)

प्रश्न 22.
लड़के और लड़कियों के लिए जैवलिन का भार और लम्बाई बताओ।
उत्तर-

  1. जैवलिन लड़कों के लिए 800 ग्राम। लड़कियों के लिए 605 से 625 ग्राम।
  2. लड़कों के लिए लम्बाई अधिक-से-अधिक 2.30 मीटर और कम-से-कम 2.60 मीटर।
  3. लड़कियों के लिए लम्बाई अधिक-से-अधिक 2.30 मीटर और कम-से-कम 2.20 मीटर होगी।

ऐथलैटिक्स (Athletics) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 23.
गोले का भार लड़कों और लड़कियों के लिए वर्णन करो।
उत्तर-

  1. गोले का भार लड़कों के लिए 6 किलोग्राम होगा।
  2. गोले का भार लड़कियों के लिए 4 किलोग्राम होगा।