PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 2 घर Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 2 घर

PSEB 10th Class Home Science Guide घर Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
घर की आवश्यकता के दो मुख्य कारण बताएं।
अथवा
घर की आवश्यकता किन कारणों से होती है?
उत्तर-

  1. घर सुरक्षा प्रदान करता है-घर की चार दीवारी में रहकर हम धूप, वर्षा, सर्दी, चोरों और जंगली जानवरों से सुरक्षित महसूस करते हैं।
  2. शिक्षा-मानव की शिक्षा घर से आरम्भ होती है। घर में ही हम भाषा और अच्छे सामाजिक गुण हासिल करते हैं।

प्रश्न 2.
आय के हिसाब से भारत में घरों को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
आय के हिसाब से भारत में घरों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है

  1. कम आय वाले घर जिनमें सिर्फ एक या दो कमरे ही होते हैं।
  2. मध्य वर्गीय घर जिनमें कम-से-कम तीन या चार कमरे होते हैं।
  3. अमीर घर, ये घर उच्च वर्ग के लोगों के होते हैं जिनके कमरों की संख्या कई दर्जनों तक हो सकती है। यह घर सभी आधुनिक सुविधाओं से लैस होते हैं।

प्रश्न 3.
घर बनाने के लिए कैसी भूमि अच्छी होती है?
अथवा
मकान बनाने के लिए हमें किस प्रकार की मिट्टी वाली भूमि चाहिए?
उत्तर-
घर बनाने के लिए मैदानी और सख्त भूमि अच्छी होती है। रेतीले, गड्ढों और निचली जगह वाली भूमि पर घर नहीं बनाना चाहिए।

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प्रश्न 4.
घर के लिए क्षेत्र का चुनाव क्यों महत्त्वपूर्ण है?
अथवा
घर का चुनाव करते समय क्षेत्र के चुनाव का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घर के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मकान को बारबार बनाना मुश्किल काम है। इसलिए मकान बनाने के लिए जगह का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. जगह सरकार द्वारा प्रमाणित हो।
  2. साफ़-सुथरी हो और ऊँचाई पर हो।
  3. फैक्टरियों के नज़दीक न हो।
  4. आवश्यक सुविधाएं नज़दीक हों।

प्रश्न 5.
घर में वायु के आवागमन से आप क्या समझते हो?
अथवा
घर में हवा की आवाजाही से आप क्या समझते हो?
उत्तर-
वायु के बिना जीवन सम्भव नहीं है और साफ़-सुथरी हवा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। घर में वायु के आवागमन का अर्थ है कि ताजी वायु घर के अन्दर आ सके और गन्दी वायु घर से बाहर जा सके। घर में खिड़कियां और रोशनदान इस काम के लिए रखे जाते हैं।

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प्रश्न 6.
घर में प्रकाश का उचित प्रबन्ध कैसे किया जा सकता है?
उत्तर-
घर में उचित रोशनी का प्रबन्ध अति आवश्यक है इसलिए घर की दिशा और खिड़कियों, दरवाज़ों का सही दिशा में होना आवश्यक है। यदि हो सके तो घर की दिशा ऐसी होनी चाहिए कि सुबह के समय सूर्य की किरणें घर के अन्दर दाखिल हों और सारा दिन घर में रोशनी रहे।

प्रश्न 7.
घर बनाने के लिए कौन-सी एजेन्सियों से धन/कर्जा लिया जा सकता है? किन्हीं चार के नाम लिखो।
उत्तर-
घर बनाने या खरीदने के लिए कर्जा/पैसा निम्नलिखित एजेन्सियों से लिया जा सकता है

  1. जीवन बीमा कम्पनियां
  2. बैंक
  3. ट्रस्ट
  4. मकान विकास निगम
  5. सहकारी मकान निर्माण- सभाएं
  6. सरकारी और गैर-सरकारी मोर्टगेज कम्पनियां।

प्रश्न 8.
सरकारी कर्मचारी आमतौर पर कहां से कर्जा लेते हैं और क्यों?
उत्तर-
सरकारी कर्मचारी प्राय: सरकार से कर्जा लेते हैं जिस पर उनको बहुत कम ब्याज देना पड़ता है। यह राशि प्रत्येक महीने उनके वेतन में से आसान किश्तों पर काटी जाती है। इसके अतिरिक्त कर्मचारी प्रोविडेण्ट फण्ड में से कर्जा ले लेते हैं जिसको वापिस करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।

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प्रश्न 9.
घर बनाते समय प्रभाव डालने वाले दो कारकों के बारे में बताएं।
उत्तर-
घर बनाते समय निम्नलिखित कारक प्रभाव डालते हैं

  1. आर्थिक स्थिति-पैसा मकान बनाने के मामले में सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। मकान का साइज़, जगह और स्तर पैसे पर ही निर्भर करता है।
  2. पेशा – घर का साइज़ या उसको योजना पर घर के मुखिए के पेशे का भी प्रभाव पड़ता है। यदि घर किसी वकील या डॉक्टर ने बनाना हो तो उसके घर का नक्शा इस तरह का होगा, जिसमें उसका दफ्तर या क्लीनिक भी बन सकें।

प्रश्न 10.
कार्य के आधार पर घर को मुख्य कितने क्षेत्रों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
काम के आधार पर घर को तीन भागों में बांटा जा सकता है-

  1. एकान्त क्षेत्र (Private Area)-जैसे सोने का कमरा, बाथरूम और पूजा का कमरा।
  2. काम करने वाला क्षेत्र (Work Area)-जैसे रसोई, बरामदा, आंगन आदि।
  3. मन बहलावे वाला क्षेत्र वह भाग है जहां परिवार के सदस्य मिल-जुल कर बैठते हैं। गप-शप मारते, टी० वी० देखते हैं। मेहमानों का स्वागत किया जाता है। जैसे लॉबी या ड्राईंग रूम।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 11.
घर के लिए जगह (स्थान) का चुनाव करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
आप घर के स्थान का चुनाव कैसे करेंगे?
उत्तर-
घर की जगह का चुनाव सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मकान बारबार नहीं बनाए जाते। इसलिए घर की जगह का चुनाव करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए

  1. जगह सरकार की इजाजत वाली हो।
  2. घर का इर्द-गिर्द साफ़-सुथरा हो।
  3. मकान की जगह कुछ ऊँची हो।
  4. घर रोशनी और हवा वाली जगह पर हो।
  5. घर रेलवे लाइन और बड़ी सड़क के नज़दीक नहीं होना चाहिए।
  6. रोजाना सुविधाएं नज़दीक होनी चाहिएं।

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प्रश्न 12.
घर के लिए जगह का चुनाव करते समय भूमि की किस्म के बारे में जानना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
घर की जगह का चुनाव करते समय भूमि की किस्म के बारे में जानकारी होनी इसलिए आवश्यक है क्योंकि मकान की सुरक्षा भूमि की किस्म पर निर्भर करती है। यदि भूमि रेतीली या नरम मिट्टी की होगी तो मकान किसी समय भी जमीन में धस सकता है और भूकम्प का थोड़ा-सा झटका नहीं सहार सकता। यदि मकान सख्त, मिट्टी वाली जगह पर बना हो तो वह सुरक्षित रहेगा।

प्रश्न 13.
घर बनाते समय अच्छा क्षेत्र तथा ज़रूरतों का पास होना क्यों ज़रूरी है? घर के लिये क्षेत्र का चुनाव क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
घर की जगह का चुनाव इलाका देखकर करना चाहिए। उस इलाके का चुनाव करना चाहिए जहां अपने सामाजिक स्तर के लोग रहते हों। इससे सामाजिक मेलजोल की कोई मुश्किल नहीं होगी ! इसके अतिरिका हमें रोजाना आवश्यकताओं को पूर्ति नज़दीकी इलाके से होनी चाहिए जैसे बाज़ार, स्कूल, मन्दिर, हस्पताल आदि। इससे समय और शक्ति की बचत होती है।

प्रश्न 14.
स्वास्थ्य का सफ़ाई से तथा सफ़ाई का घर से सीधा सम्बन्ध है, कैसे?
उत्तर-
सफ़ाई का स्वास्थ्य से सीधा सम्बन्ध है इसलिए सफ़ाई का होना अति आवश्यक है और सफ़ाई घर से होनी चाहिए। यदि सभी लोग अपने घर साफ़-सुथरे रखें तो वातावरण साफ़ करने में सहायता मिल सकती है। घर की सफ़ाई का अर्थ घर के अन्दर की सफ़ाई नहीं बल्कि घर के इर्द-गिर्द की सफ़ाई भी है। इससे बहुत-सी बीमारियों जैसे मलेरिया, हैजा, टी० बी० आदि से छुटकारा पाया जा सकता है। इसलिए कहा जा सकता है कि स्वास्थ्य, सफ़ाई और घर एक दूसरे से सम्बन्धित हैं।

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प्रश्न 15.
घर बनाते समय वायु का आवागमन तथा पानी का उचित प्रबन्ध क्यों होना चाहिए?
उत्तर-
हवा और पानी मानव की दो महत्त्वपूर्ण प्रारम्भिक आवश्यकताएं हैं। इनके बिना जीवन सम्भव नहीं है। मानवीय स्वास्थ्य साफ़-सुथरी हवा और पानी पर निर्भर है इसलिए घर में साफ़ पानी और हवा का प्रबन्ध होना चाहिए। इसलिए घर वहां बनाना चाहिए जहां हवा स्वच्छ हो और साफ पानी का प्रबन्ध हो सके। केवल इस स्थिति में ही परिवार के सदस्य तन्दुरुस्त रह सकते हैं। इसलिए गंदे इलाकों में कभी भी घर नहीं बनाना चाहिए।

प्रश्न 16.
वित्तीय प्रबन्ध से आप क्या समझते हो? घर बनाते समय इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
घर बनाने या खरीदने के लिए काफ़ी अधिक धन की आवश्यकता पड़ती है क्योंकि घर बनाने के लिए सामान की कीमत, जगह की कीमत, मजदूरी, आर्कीटैक्ट के लिए काफ़ी पैसा चाहिए। कई बार मकान बनाते समय बजट बढ़ जाता है। इसलिए घर के लिए आवश्यक वित्तीय प्रबन्ध आवश्यक है। यह प्रबन्ध अपनी बचत, प्रोविडेण्ट फण्ड और कर्जे द्वारा किया जा सकता है। आजकल बहुत-सी बैंकों और अन्य संस्थाओं ने मकान बनाने के लिए ब्याज दरें कम कर दी हैं और सरकार भी ऐसे कर्जे पर आय – कर की छूट देती है। इसलिए आजकल मकान बनाने के लिए वित्त का प्रबन्ध पहले से आसान है।

प्रश्न 17.
वित्तीय प्रबन्ध कौन-कौन सी एजेन्सियों से किया जा सकता है?
उत्तर-
घर बनाने या खरीदते समय बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। क्योंकि घर बनाने के लिए जगह की कीमत, इमारत बनाने के लिए सामान की कीमत, मजदूरी और आर्कीटैक्ट आदि के लिए पैसा चाहिए। वैसे भी मकान बनाते समय कई बार कीमतें इतनी बढ़ जाती हैं कि खर्चा बजट से बाहर चला जाता है । यदि यह सारा धन इकट्ठा करके घर खरीदना हो तो हो सकता है आदमी की यह इच्छा कभी भी पूरी न हो, इसलिए धन का प्रबन्ध करने के लिए कर्जा लेना पड़ सकता है। यह कर्जा निम्नलिखित एजेन्सियों से लिया जा सकता है

  1. बैंक
  2. ट्रस्ट
  3. लाइफ इन्श्योरेन्स कम्पनियां
  4. सरकारी सोसायटियां
  5. गैर सरकारी सोसायटियां
  6. सरकारी और गैर सरकारी मोर्टगेज़ कम्पनियां आदि।

प्रश्न 18.
घर बनाते समय कौन-कौन से कारक प्रभाव डालते हैं?
उत्तर-
इसके लिए देखें प्रश्न नं० १ का उत्तर।

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प्रश्न 19.
अपना घर बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
हर कोई अपना घर बनाना चाहता है क्योंकि इसके निम्नलिखित लाभ हैं

  1. अपना घर होना एक सामाजिक गर्व वाली बात है।
  2. हर महीने किराया नहीं देना पड़ता।
  3. घर एक पक्की जायदाद है, इसकी कीमत बढ़ती रहती है।
  4. अपने घर में हम अपनी इच्छा से परिवर्तन कर सकते हैं।
  5. घर आदमी को सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।
  6. मालिक मकान से कभी झगड़ा नहीं होता।

प्रश्न 20.
अपना घर बनाने के क्या नुकसान हैं?
उत्तर-

  1. घर बनाते समय सारी बचत समाप्त हो जाती है और यदि कोई संकट आ जाए तो बहुत मुश्किल होती है।
  2. यदि पड़ोसी अच्छा न हो तो सारी जिंदगी का क्लेश रहता है।
  3. घर की मुरम्मत करवानी पड़ती है।
  4. घर बनाकर आदमी एक जगह से बन्ध जाता है।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 21.
घर के लिए कमरों का आयोजन कैसे करेंगे तथा कौन-कौन से कमरे ज़रूरी हैं?
उत्तर-
घर इन्सान की प्रारम्भिक आवश्यकताओं में एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। घर को मानवीय सभ्यता का आधार भी कहा जा सकता है। घर में परिवार के सदस्य इकट्ठे होकर अपनी-अपनी समस्याओं का हल ढूंढकर जीवन को सुखदायी बनाते हैं और सुरक्षित महसूस करते हैं । घर में ही मानव के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन का आरम्भ होता है। घर को अस्तित्व में लाने के लिए मकान का होना आवश्यक है। मकान में एक छत के नीचे एक घर अस्तित्व में आता है। मकान का ढांचा परिवार की आवश्यकताओं और आर्थिक स्रोतों के अनुसार ही होना चाहिए। एक मध्यवर्गीय परिवार के मकान के लिए कमरों की योजनाबन्दी निम्नलिखित अनुसार होनी चाहिए

1. बैठक (Living Room) — घर जैसे भी हो उसमें एक कमरा ऐसा होना चाहिए जिसमें सभी घर के व्यक्ति आराम से बैठ सकें और अपना-अपना काम जैसे स्वैटर बुनना, पेंटिंग करनी, समाचार-पत्र पढ़ना, टेलीविज़न देखना आदि कार्य कर सकें। बैठक में ही बाहर से आए नज़दीकी मेहमानों को बिठाकर उनकी खातिरदारी की जाती है। इसलिए कमरे में रोशनी और हवा के आने जाने का ठीक प्रबन्ध होना चाहिए। यह कमरा घर के बाहर की ओर होना चाहिए ताकि मेहमानों को इस कमरे तक ले जाने के लिए और कमरों से न गुज़रना पड़े। यह कमरा कम-से-कम 15×15 फुट का होना चाहिए और आवश्यकता अनुसार बढ़ाया घटाया भी जा सकता है।

2. खाना खाने का कमरा (Dining Room) — खाना खाने का कमरा बैठक और रसोई के निकट होना चाहिए ताकि पकाया हुआ खाना वहां आसानी से लाया जा सके
और जूठे बर्तनों को रसोई में ले जाया जा सके। इस कमरे में रसोई सीधी नज़र नहीं आनी चाहिए। रसोई और खाना खाने के कमरे में एक खिड़की (Service Window) भी रखी जा सकती है। इस कमरे के दरवाजे और खिड़कियां जाली वाले होने चाहिएं ताकि मक्खी-मच्छर अन्दर न आ सकें। इस कमरे के निकट यदि कोई बरामदा या रास्ता हो तो वहां हाथ धोने के लिए टूटी (Wash basin) लगानी चाहिए ताकि खाना खाने से पहले और बाद में हाथ धोए जा सकें। कमरे में हवा और धूप का ठीक प्रबन्ध होना चाहिए।

3. सोने का कमरा (Bed Room) — सोने वाले कमरे घर के पीछे होने चाहिएं। यदि इन कमरों का रुख उत्तर-पूर्व (North-East) की ओर हो तो ज्यादा बेहतर है ताकि चढ़ते सूर्य की धूप आ सके और दोपहर के समय कमरे अधिक गरम न हों और गर्मियों में वहां आराम से सोया जा सके । ये कमरे आरामदायक होने – चाहिएं। इनके निकट शोर नहीं होना चाहिए। इन कमरों में धूप, हवा का ठीक प्रबन्ध । होना चाहिए।

4. बच्चों का कमरा (Children’s Room) — यह कमरा माता-पिता के कमरे के । निकट होना चाहिए। इसमें बच्चों के खेलने के लिए खाली जगह होनी चाहिए। दीवारों पर लगे फट्टे (Shelves) नीचे होने चाहिए ताकि बच्चे अपने खिलौने और किताबें वहां से आसानी से उतार सकें। बिजली के प्लग ऊँचे होने चाहिएं। इस कमरे में रोशनी और हवा का योग्य प्रबन्ध होना चाहिए। इस कमरे की दीवारों के ऊपर पेंट करवा दिया जाए तो अच्छा रहता है ताकि बच्चों द्वारा खराब की दीवारों को पानी से धोकर साफ़ किया जा सके। इस कमरे में फ़र्नीचर नीचा होना चाहिए ताकि बच्चे उसको आसानी से प्रयोग कर सकें।

5. पढ़ने का कमरा (Reading Room) -जिस घर में बच्चे स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले हों या घर की मालकिन और मालिक पढ़ने-पढ़ाने का व्यवसाय करते हों वहां पढ़ने वाला कमरा होना आवश्यक है। इसमें हवा और रोशनी का प्रबन्ध होना आवश्यक है। बच्चों की आयु के अनुसार मेज़ और कुर्सियों की ऊँचाई और आकार होना चाहिए। इस कमरे में किताबों की अलमारी का होना भी आवश्यक है। पढ़ने के मेज़ पर रोशनी बाईं ओर से आनी चाहिए।

6. स्टोर (Store) -इस कमरे का आकार 10 x 6 फुट होना चाहिए। इसमें 2 x 2 फुट की चौड़ी सलैब (Shelf) होनी चाहिए जिस पर टरंक आदि टिकाए जा सकें। इसका दरवाज़ा सोने वाले कमरे में खुलना चाहिए। इसमें घर का फालतू और ज़रूरी सामान इस ढंग से रखना चाहिए ताकि उसको निकालने में कोई मुश्किल न हो।

7. रसोई (Kitchen) — एक साधारण गृहिणी अपना अधिकतर समय रसोई में ही गुज़ारती है। इसलिए रसोई साफ़-सुथरी, खूबसूरत और आरामदायक होनी चाहिए। इसमें काम करने के क्षेत्र और हौदी इस प्रकार बनी होनी चाहिए कि गृहिणी को रसोई में कम-से-कम चलना पड़े। रसोई का डिजाइन कई तरह का हो सकता है यू-आकार (U-Shape), एल-आकार (L-Shape), वी-आकार (V-Shape) हो सकता है। आजकल रेडिमेड रसोई का रिवाज भी बढ़ता जा रहा है पर कीमत अधिक होने के कारण इस तरह की रेडिमेड रसोई सिर्फ उच्च आय वर्ग ही बना सकते हैं। साधारण रसोई में काम करने वाले काऊंटर और हौदी की ऊँचाई फ़र्श से 30 से 32 इंच होनी चाहिए ताकि बिना झुके काम आसानी से किया जा सके। इस काऊंटर के नीचे गैस का सिलिण्डर, आटे वाला ड्रम और बर्तन रखने के लिए शैल्फ होने चाहिएं। रसोई के दरवाज़े और खिड़कियों पर जाली लगी होनी चाहिए और रसोई में धूप और हवा का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। इसका आकार कम-से-कम 80 वर्ग फुट होना चाहिए।

8. गुसलखाना (Bathroom) — आजकल बड़े शहरों में जहां फ्लश सिस्टम का प्रबन्ध है। गुसलखाना और पाखाना इकट्ठे ही बनाए जाते हैं। यदि हो सके तो गुसलखाना प्रत्येक सोने वाले कमरे के साथ जुड़ा हुआ होना चाहिए। इसमें नल और फव्वारे का प्रबन्ध होना चाहिए और एक और हौदी (Sink) भी होनी चाहिए। सर्दियों में पानी का प्रबन्ध भी ज़रूरी है। इसका फर्श पक्का और आसानी से साफ़ होने वाला चाहिए। इसकी ढलान नाली की ओर होनी चाहिए ताकि पानी जल्दी निकल सके। गुसलखाने की दीवारें कम-से-कम 3 फुट ऊँचाई तक ऐसी होनी चाहिएं जो आसानी से साफ़ हो सकें, यहां एक शैल्फ का होना आवश्यक है जहां साबुन, तेल और अन्य प्रयोग करने की वस्तु को रखा जा सके।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

प्रश्न 22.
घर में बैठक का क्या महत्त्व है ? बड़े और छोटे घरों में बैठक कैसी होती है?
उत्तर-
घर में बैठक (Living Room) एक महत्त्वपूर्ण जगह होती है। इसको घर का दिल भी कहा जाता है। घर में यह एक ऐसी जगह होती है जिससे घर की धड़कन का पता लगता है। इस जगह में बैठ कर परिवार के सभी सदस्य अपने आप को घर के साथ जुड़ा हुआ महसूस करते हैं और सामूहिक रूप में मेहमानों का स्वागत करते हैं। घर में बैठक (Living Room) का निम्नलिखित महत्त्व होता है —

  1. परिवार की साझी जगह — बैठक सारे परिवार की साझी जगह होती है। इस जगह सभी सदस्य बैठकर अपने आपको परिवार से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। संयुक्त परिवारों में इस जगह का महत्त्व और भी अधिक होता है क्योंकि यह जगह बड़े परिवारों के सदस्यों की एक दूसरे से अपने दुःख साझे करने वाली जगह होती है।
  2. मेहमान का स्वागत करने वाली जगह — बैठक में बाहर से आए मेहमानों को बिठाया जाता है और उनका स्वागत किया जाता है। इस जगह पर परिवार के सभी सदस्य मेहमानों को मिलते हैं और बातचीत करते हैं।
  3. आराम करने वाली जगह — बैठक परिवार के सदस्यों के लिए आराम करने वाली जगह भी होती है। यहाँ बैठकर परिवार के सदस्य अखबार पढ़ते हैं, टी०वी० देखते हैं, स्वैटर बुनते हैं और आपस में छोटी-छोटी बातें करते हुए अपने आपको आराम देते हैं। इससे परिवार का वातावरण स्वस्थ रहता है।
  4. घर की समस्याओं को विचारने वाली जगह — बैठक में परिवार के सभी सदस्य बैठकर परिवार या परिवार के किसी भी सदस्य की समस्या के बारे विचार करते हैं। मिल बैठकर परिवार के सदस्यों में निकटता और हमदर्दी बढ़ती है संचार की भी कोई मुश्किल नहीं आती। इस जगह पर घर के प्रत्येक सदस्य अपनी राय दे सकता है और प्रत्येक सदस्य को सुना जाता है।

उपरोक्त कारणों के कारण बैठक की प्रत्येक घर में एक विशेष जगह और महत्ता होती है। बैठक की रौनक से ही परिवार के सदस्यों के आपसी सम्बन्धों के बारे जानकारी मिल जाती है। एक खुश परिवार की बैठकों में रौनकें ही रहती हैं।

प्रश्न 23.
(A) घर का चयन करते समय हमें कौन-कौन सी बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
घर बनाते समय हमें किन-किन बातों के बारे में सोचना चाहिए? विस्तार से लिखें।
अथवा
घर बनाते समय असर डालने वाले तत्त्वों के बारे में बताएं।
(B) घर का निर्माण करते समय पानी प्रबंधन कैसा होना चाहिए?
उत्तर-
(A) घर बनाना परिवार के लक्ष्यों में से एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य होता है। प्रत्येक गृहिणी के मन में अपने घर का एक सपना होता है जिसकी पूर्ति करके उसको बेमिसास सन्तुष्टि और खुशी प्राप्त होती है। इसलिए घर बनाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों को सलाह और सोच-विचार करनी चाहिए ताकि एक ऐसा घर बनाया जाए जहां परिवार के सभी सदस्यों का बहुपक्षीय विकास हो सके। इसलिए घर बनाते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है — घर के लिए जगह का चुनाव (Selection of Site)—घर के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण काम है क्योंकि घर बार-बार नहीं बनाए जाते और जगह के चुनाव के समय लिया ग़लत फैसला जीवन भर दुःख का कारण बन सकता है। घर बनाते समय यह ध्यान रखना चाहिए

  1. जगह सरकार की ओर से प्रमाणित हो।
  2. घर का आस-पास साफ़-सुथरा हो और वातावरण को गन्दा करने वाली कोई वस्तु न हो जैसे छप्पड़, फैक्टरी आदि।
  3. मकान की जगह थोड़ी ऊंची हो ताकि वर्षा का पानी एक दम बाहर निकल जाए और घर के पानी के निकास की भी कोई समस्या न हो।
  4. भट्ठा, शैलर, बस स्टैंड, फैक्टरियां, रेलवे स्टेशन के निकट घर नहीं बनाना चाहिए।
  5. परिवार के लिए काम आने वाली सुविधाएं भी निकट हों जैसे कि स्कूल, अस्पताल, बाज़ार आदि।
  6. घनी जनसंख्या वाले इलाके में भी घर नहीं बनाना चाहिए।
  7. घर रेलवे लाइन या बड़ी सड़क के निकट भी नहीं होना चाहिए।
  8. जगह का चुनाव अपने आर्थिक और सामाजिक स्तर अनुसार ही करना चाहिए।

घर की जगह का चुनाव अग्रलिखित कारणों पर भी निर्भर करता है —

  1. मिट्टी की किस्म (Kind of Soil) — मकान बनाने के लिए समतल और सख्त भूमि की आवश्यकता होती है। इसलिए रेतीली और पथरीली जगह पर मकान नहीं बनाया जा सकता । गड्ढों को भरकर बराबर की हुई जगह पर भी मकान बनाना ठीक नहीं रहता।
  2. इलाका (Locality) — मकान बनाने के लिए ऐसे इलाके का चुनाव करना चाहिए जहां अपने सामाजिक स्तर के लोग रहते हों। इस तरह से बच्चों और बूढ़ों को ठीक संगति मिल सकेगी और सामाजिक मेल-जोल बढ़ेगा। इस तरह के इलाके में ही व्यक्ति अपना सामाजिक पद प्राप्त कर सकेगा। यदि कोई ग़रीब व्यक्ति किसी अमीर कालोनी पर घर बना ले तो उसका जीवन सुखदायक नहीं हो सकता।
  3. पानी का प्रबन्ध (Water Supply) — पानी हमारी प्रारम्भिक आवश्यकताओं में से एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। घर के काम सुचारू रूप से करने के लिए साफ़-स्वच्छ और खुला पानी बहुत आवश्यक है। घर की जगह का चुनाव करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि साफ़-स्वच्छ पानी की . सप्लाई ठीक हो। पानी न होने की सूरत में घर के सभी कार्य जैसे नहाना, कपड़े धोना, खाना बनाना आदि रुक जाते हैं और साफ़-स्वच्छ पानी की कमी हमारा स्वास्थ्य खराब कर सकती है।
  4. हवा और रोशनी का आना-जाना (Ventilation and Light) — घर की जगह का चुनाव करते समय हवा के आने-जाने और रोशनी का ध्यान रखना अति आवश्यक है। इसलिए घनी जनसंख्या वाले इलाके और बहुमंजिली इमारतों वाली कालोनी में घर नहीं बनाना चाहिए क्योंकि इन इलाकों में ताज़ी और साफ हवा और रोशनी आवश्यकता अनुसार नहीं मिल सकती।
  5. मूल्य (Value of Land) — मकान के लिए खरीदी जाने वाली जमीन का मूल्य अपनी क्षमता अनुसार होना चाहिए। व्यापारिक इलाकों में घर बनाने से गुरेज़ करना चाहिए क्योंकि वहां ज़मीन की कीमत बहुत अधिक होती है और यदि जगह खरीद ली जाए तो मकान बनाने के लिए पैसे नहीं बचते।
    उपरोक्त चर्चा के पश्चात् यह नतीजा निकाला जा सकता है कि मकान के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण फैसला है और यह फैसला ऊपरलिखित बातों को ध्यान में रखकर करना चाहिए।

(B) देखें भाग (A)

प्रश्न 24.
घर बनाने का आर्थिक स्थिति से सीधा सम्बन्ध कैसे है? आप कैसे क्षेत्र में रहना पसन्द करोगे और क्यों?
उत्तर-
घर बनाना परिवार के महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक मुख्य लक्ष्य होता है। प्रत्येक गृहिणी के लिए उसकी मनपसन्द के घर का बनना एक सपना होता है। घर बनाने के लिए कई बातें महत्त्वपूर्ण हैं, जैसे जगह का चुनाव और पैसा। पैसा मकान बनाने की पहली आवश्यकता है क्योंकि पैसे के बिना घर का सपना साकार नहीं हो सकता। पैसे की उपलब्धि घर की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। जगह खरीदने और मकान बनाने के लिए काफ़ी पैसा आवश्यक होता है। बहुत कम लोग होते हैं जो अपनी आय या बचत में से मकान बना सकते हैं शेष लोगों को मकान बनाने के लिए पैसे का प्रबन्ध करना पड़ता है। आजकल के महंगाई के ज़माने में मकान बनाने वाले सामान पर बहुत खर्च होता है। आधुनिक मकान बनाने के लिए उसमें सभी सुविधाओं का होना आवश्यक समझा जाता है। प्रत्येक घर में बिजली, पानी, आधुनिक रसोई, बढ़िया बाथरूम, कूलर, एअर कंडीशनर, फर्नीचर आदि आवश्यक हो गया है। इसलिए मकान बनाने का अर्थ सिर्फ छत बनाना ही नहीं होता बल्कि उसमें सभी आधुनिक सुविधाओं को उपलब्ध करवाना होता है। इसलिए घर बनाने के लिए बहुत-सा पैसा चाहिए इसलिए, घर का स्तर, बनाने वाले की आर्थिक स्थिति से जुड़ा होता है। यद्यपि आज कल बहुतसे सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं से आसान और सस्ता ऋण मिलता है पर उस ऋण को उतारने के लिए घर की आर्थिक स्थिति अच्छी होनी चाहिए।

घर बनाने के लिए उपयुक्त इलाका जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि घर बनाने का फैसला व्यक्ति की ज़िन्दगी का एक महत्त्वपूर्ण फैसला होता है और फैसला बड़ा सोच-विचार कर करना चाहिए।

घर बनाने के लिए जगह या इलाके का चुनाव एक अति महत्त्वपूर्ण फैसला है। हर समझदार व्यक्ति अपने घर के लिए ऐसे इलाके का चुनाव करेगा जिसमें निम्नलिखित विशेषताएं हों

  1. मकान बनाने के लिए जगह सरकार के द्वारा मंजूरशुदा हो-मकान बनाने के लिए ऐसी जगह का चुनाव करना चाहिए जो सरकार द्वारा मंजूरशुदा हो, नहीं तो मकान का नक्शा पास कराने और बिजली कुनैक्शन लेने में मुश्किल आएगी। गैर-मंजूरशुदा इलाके में बना मकान कई बार सरकार तोड़ देती है।
  2. आस-पास साफ़-सुथरा हो-मकान हमेशा ऐसे इलाके में बनाना चाहिए जो साफ़-सुथरा हो क्योंकि इर्द-गिर्द की गन्दगी बीमारियां फैला सकती है। इसलिए कभी भी मकान गन्दगी, स्टोर करने वाली जगह, छप्पड़, कारखानों और हड्डा रेढ़ी के निकट नहीं बनाना चाहिए।
  3. मकान की जगह ऊँची होनी चाहिए-कभी भी मकान नीची जगह में नहीं बनाना चाहिए क्योंकि थोड़ी वर्षा से भी ऐसे इलाकों में पानी भर जाता है जिससे मकान का नुकसान होता है और वातावरण दूषित हो जाता है। इसलिए मकान बनाने के लिए ऊँची जगह का चुनाव करना चाहिए।
  4. रेलवे लाइन या मुख्य सड़क से घर दूर होना चाहिए-मकान बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि रेलवे लाइनों और मुख्य सड़क पास से गुज़रती न हो। क्योंकि इससे शोर प्रदूषण और हवा प्रदूषण बढ़ जाता है।
  5. रोज़ाना सुविधाएं निकट होनी चाहिएं-मकान ऐसी जगह बनाना चाहिए जहाँ बाज़ार, स्कूल, अस्पताल, बस अड्डा निकट पड़ते हों। इससे घर की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए समय और शक्ति दोनों ही बचते हैं। गृहिणी और परिवार के सदस्यों को सुख मिलता है।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर जो व्यक्ति मकान बनाएगा उसको ज़िन्दगी में सुख और सन्तुष्टि प्राप्त होगी।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 2 घर

Home Science Guide for Class 10 PSEB घर Important Questions and Answers

अति लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1.
आय के अनुसार भारतीय घरों को कितने भागों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
तीन भागों में।

प्रश्न 2.
मध्यवर्गीय घरों में कितने कमरे होते हैं?
उत्तर-
ऐसे घरों में कम-से-कम तीन अथवा चार कमरे होते हैं।

प्रश्न 3.
घर में खिड़कियां तथा रोशनदान क्यों रखे जाते हैं?
उत्तर-
ताकि अच्छी वायु आ सके।

प्रश्न 4.
घर बनाने के लिए ऋण लेने के लिए कौन-सी एजेंसियां हैं?
उत्तर-
बैंक, जीवन बीमा कम्पनी, मकान विकास निगम आदि।

प्रश्न 5.
घर बनाते समय प्रभावित करने वाले दो कारकों के नाम बताओ।
उत्तर-
आर्थिक हालात, व्यवसाय।

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प्रश्न 6.
कार्य के आधार पर घर को कौन-कौन से क्षेत्रों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
एकान्त क्षेत्र, कार्य करने वाले क्षेत्र, मनोरंजन वाले क्षेत्र।

प्रश्न 7.
घर बनाने के लिए भूमि रेतीली या नर्म मिट्टी की क्यों नहीं होनी चाहिए?
उत्तर-
ऐसी भूमि पर घर नीचे धंस सकता है।

प्रश्न 8.
अपना घर बनाने का एक लाभ बताओ।
उत्तर-
घर एक पक्की जायदाद है इसकी कीमत बढ़ती रहती है।

प्रश्न 9.
बैठक का आकार कम-से-कम कितना होना चाहिए?
उत्तर-
15 फुट × 15 फुट, परन्तु आवश्यकता अनुसार कम-अधिक हो सकता है।

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प्रश्न 10.
घर बनाने की एक हानि बताओ।
उत्तर-
यदि पड़ोसी अच्छे न हों तो सदा के लिए क्लेश रहता है।

प्रश्न 11.
रसोई का डिजाईन कैसा हो सकता है?
उत्तर-
यू आकार, ऐल आकार आदि।

प्रश्न 12.
जिन इलाकों में घर बनाना है वहां लोगों का सामाजिक स्तर कैसा हो?
उत्तर-
अपने सामाजिक स्तर से मेल खाता हो।

प्रश्न 13.
रसोई का कम-से-कम आकार कितना हो?
उत्तर-
80 वर्ग फुट।

प्रश्न 14.
घर कैसे स्थान के पास नहीं होना चाहिए?
उत्तर-
बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, भट्ठा आदि के पास न हो।

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प्रश्न 15.
वायु का आवागमन और रोशनी के लिए घर में क्या होना चाहिए?
उत्तर-
खिड़कियां तथा रोशनदान।

प्रश्न 16.
आपके अनुसार हस्पताल घर के पास होना चाहिए या नहीं?
उत्तर-
होना चाहिए, इस प्रकार बीमारी की स्थिति में इलाज का प्रबन्ध शीघ्रता से हो जाता है।

लघु उत्तराय प्रश्न

प्रश्न 1.
शिक्षा सम्बन्धी घर की आवश्यकता के बारे में बताएं।
उत्तर-
मनुष्य घर से ही अच्छे गुण, अच्छा व्यवहार, अच्छे संस्कार प्राप्त करता है। शिक्षा घर से ही शुरू होती है। शिक्षा के महत्त्व को समझने वाले घरों में बच्चे अधिक तथा ऊँची शिक्षा प्राप्त कर लेते हैं।

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प्रश्न 2.
घर के लिए स्थान का चयन करते समय आस-पास क्या नहीं होना चाहिए?
उत्तर-
रेलवे लाइन या बड़ी सड़क नहीं होनी चाहिए, बहुत ऊँचे वृक्ष नहीं होने चाहिएं, भट्ठियां, बस स्टैंड, फैक्टरियां आदि भी नहीं होने चाहिएं। घर के आसपास छप्पड़, नाला या वातावरण को हानि पहुंचाने वाला कुछ नहीं होना चाहिए।

प्रश्न 3.
अमीर लोगों के घर के बारे में बताएं।
उत्तर-
अमीर आदमियों के घर बड़े होते हैं तथा इनमें बहुत से कमरे होते हैं। इन घरों के पीछे नौकरों के रहने के लिए कमरे भी होते हैं।

प्रश्न 4.
घर बनाते समय वहां के इलाके और सफ़ाई का ध्यान कैसे रखना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
घर बनाते समय वहां के स्थान और पानी के प्रबन्ध का ध्यान कैसे रखना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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प्रश्न 6.
रसोई और बच्चों के कमरे का आयोजन किस प्रकार करना चाहिए?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 7.
घर के लिए जगह का चुनाव सबसे महत्त्वपूर्ण कैसे है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 8.
घर के लिए स्थान का चयन कैसे महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 9.
घर का चुनाव करते समय पानी का प्रबन्ध और जरूरतों का नज़दीक होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दो या एक कमरे वाले घरों के बारे में आप क्या जानते हो?
उत्तर-
शहरों में जगह कम होती जा रही है तथा इसलिए कई परिवारों को एक या दो कमरों वाले घर में ही गुज़ारा करना पड़ रहा है। कई बार लोग किराये के घर में रहते हैं जो कि एक या दो कमरों वाले होते हैं।

दो कमरों वाले घर में बाहर वाले कमरे का प्रयोग बैठक, खाने तथा पढ़ने वाले कमरे के रूप में होता है। अन्दर वाला कमरा सोने तथा तैयार होने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि घर में अधिक सदस्य हों तो बाहर वाले कमरे को रात के समय सोने के लिए प्रयोग किया जाता है। जब घर एक कमरे वाला हो तो उस कमरे में लकड़ी आदि का प्रयोग करके कमरे के दो भाग कर लिए जाते हैं तथा बाहरी भाग में पढ़ने, बैठने, खाने वाले कार्य किए जाते हैं। अन्दर वाले भाग में खाना पकाया जा सकता है। बैठक की तरफ पुस्तकें तथा सजावट का सामान रखा जाता है तथा सोने वाले भाग की तरफ वस्त्र या अन्य छोटा सजावटी सामान रखा जाता है। स्थान की कमी हो तो पर्दा टांग कर भी भाग किए जाते हैं। यदि कमरा अधिक छोटा हो तो दोहरे मन्तव्य वाला फर्नीचर प्रयोग में लाना चाहिए। जैसे सोफा जो कि रात को खोल कर बैड बन जाता है, दीवान दिन के समय बैठने तथा रात में सोने के काम आ जाता है।

प्रश्न 2.
अपना घर बनाने के क्या लाभ तथा हानियां हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 3.
बैठक तथा खाना खाने वाले कमरों का आयोजन कैसे करोगे?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 4.
व्यक्ति के पेशे के अनुसार घर किस प्रकार का बनाना चाहिए?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

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प्रश्न 5.
घर का चयन करते समय पानी का प्रबन्ध तथा आवश्यकता का नज़दीक होना क्यों ज़रूरी है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
घर बनाते समय प्रभाव डालने वाले तीन तत्वों (कारकों) का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 7.
अपना घर बनाने के क्या नुकसान (हानियाँ) हैं?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. आय के हिसाब से (अनुसार) घरों को …………. भागों में बांटा जा सकता है।
  2. घर बनाने के लिए समतल तथा ………………… भूमि अच्छी रहती है।
  3. बैठक का आकार कम-से-कम ………………. … फुट होना चाहिए।
  4. घर बनाना परिवार के महत्त्वपूर्ण लक्ष्यों में से एक ……………… लक्ष्य है।
  5. रसोई का कम-से-कम आकार ……… वर्ग फुट होना चाहिए।

उत्तर-

  1. तीन,
  2. ठोस,
  3. 15 x 15,
  4. मुख्य,
  5. 80.

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. घर बनाने के लिए समतल भूमि अच्छी होती है।
  2. साफ़-शुद्ध वायु स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
  3. घर, प्रकाशमान तथा वायु वाले स्थान पर हो।
  4. घर बनाने के लिए ऋण नहीं मिल सकता।
  5. मध्यमवर्गीय घरों में तीन या चार कमरे होते हैं।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ग़लत,
  5. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आय के अनुसार भारतीय घरों को कितने भागों में बांटा जा सकता है
(क) दो
(ख) तीन
(ग) पांच
(घ) सात।
उत्तर-
(क) दो

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प्रश्न 2.
निम्नलिखित में ठीक है
(क) अपना घर होना सामाजिक मान का कारक है
(ख) माह के बाद किराया नहीं देना पड़ता
(ग) घर आदमी को सुरक्षा प्रदान करता है
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
घर बनाने के लिए ऋण देने वाली ऐजंसियां हैं
(क) बैंक
(ख) जीवन बीमा कम्पनी
(ग) सरकारी सोसायटियां
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

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घर PSEB 10th Class Home Science Notes

  1. घर के बिना मानव सुरक्षित नहीं रह सकता।
  2. घर मानवीय जीव को इन्सान बनाता है।
  3. आय के हिसाब से समाज में ग़रीब, मध्य वर्ग और अमीर वर्ग के लोग रहते हैं।
  4. घर के लिए बढ़िया सख्त भूमि और अच्छे साफ़-सुथरे इलाके का चुनाव करना चाहिए।
  5. घर में रोशनी, हवा और पानी का प्रबन्ध होना चाहिए।
  6. आ. मकान बनाने के लिए बहुत-सी संस्थाओं से सस्ता ऋण मिल जाता है।
  7. मकान बनाते समय आरकीटैक्ट की सलाह अवश्य लें।
  8. मकान परिवार के सदस्यों की आवश्यकता अनुसार बनाना चाहिए।
  9. अपना मकान बनाने से आदमी का सामाजिक स्तर ऊँचा होता है।
  10. मकान बनाने से उचित धन राशि का प्रबन्ध पहले करना चाहिए।

घर एक ऐसी जगह है जहां इन्सान अपनी मानसिक, भावनात्मक, शारीरिक और आध्यात्मिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। वास्तव में घर ही मनुष्य को एक जीव से इन्सान में परिवर्तित करता है। इसलिए घर को सामाजिक गुणों का पालना भी कहा जाता है।

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Punjab State Board PSEB 6th Class Social Science Book Solutions History Chapter 12 भारत 600 ई. पू. से 400 ई. पू. तक Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Social Science History Chapter 12 भारत 600 ई. पू. से 400 ई. पू. तक

SST Guide for Class 6 PSEB भारत 600 ई. पू. से 400 ई. पू. तक Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर दें

प्रश्न 1.
महाजनपद से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
600 ई० पू० के लगभग भारत में अनेक गणतंत्र तथा राजतंत्र राज्यों की स्थापना हुई। इसमें से जो राज्य अधिक शक्तिशाली थे, उन्हें महाजनपद कहा जाता था। बौद्ध तथा जैन साहित्य के अनुसार इनकी संख्या 16 थी।

प्रश्न 2.
किन्हीं चार महत्त्वपूर्ण जनपदों के बारे में लिखें।
उत्तर-
मगध, कोशल, वत्स तथा अवन्ति चार महत्त्वपूर्ण जनपद थे।
1. मगध-मगध सबसे अधिक शक्तिशाली जनपद था। इसमें बिहार प्रान्त के गया तथा पटना के प्रदेश शामिल थे। इसकी राजधानी राजगृह थी।

2. कोशल-कोशल की राजधानी अयोध्या (साकेत) थी। इसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश का अवध प्रदेश शामिल था।

3. वत्स-वत्स की राजधानी कौशांबी थी। यह जनपद काशी के पश्चिम भाग में प्रयाग के आस-पास के क्षेत्र में फैला हुआ था। इस जनपद का अवन्ति जनपद के साथ संघर्ष चलता रहता था।

4. अवन्ति-अवन्ति जनपद की राजधानी उज्जैन थी। इसमें मालवा तथा मध्य प्रदेश का कुछ भाग शामिल था।

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प्रश्न 3.
हर्यक वंश के अधीन मगध के उत्थान का वर्णन करें।
उत्तर-
मगध राज्य में आरम्भ में केवल बिहार प्रान्त के गया तथा पटना के प्रदेश ही शामिल थे, लेकिन बाद में हर्यक वंश के राजाओं बिम्बिसार तथा अजातशत्रु के अधीन इसका बहुत उत्थान हुआ।

1. बिम्बिसार-बिम्बिसार मगध का सबसे अधिक शक्तिशाली शासक था। उसने 543 ई०पू० से 492 ई०पू० तक शासन किया। उसने गंगा नदी पर अधिकार कर लिया। उसने दक्षिण-पूर्व के अंग राज्य को जीता तथा गंगा तट की मुख्य बन्दरगाह चम्पा पर अधिकार जमाया। उसकी राजधानी नालन्दा के समीप राजगृह थी।

2. अजातशत्रु-अजातशत्रु बिम्बिसार का पुत्र था। उसने 492 ई० पू० से 460 ई० पू० तक राज्य किया। उसने पड़ोसी राज्यों पर हमला करके अपने राज्य का विस्तार किया। उसने काशी, कोशल तथा वैशाली पर विजय प्राप्त करके मगध को उत्तरी भारत का सबसे शक्तिशाली राज्य बना दिया। उसने पाटलिपुत्र (पटना) को अपनी नई राजधानी बनाया।

प्रश्न 4.
इस काल (600 ई० पू० से 400 ई० पू० तक) में जाति-प्रथा एवं चार आश्रमों के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
600 ई० पूर्व से 400 ई० पूर्व तक के भारत में जाति प्रथा समाज की महत्त्वपूर्ण विशेषता थी। जाति प्रथा कठोर थी। समाज मुख्य तौर पर चार जातियों में बंटा हुआ था। ये जातियां ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र थीं। समाज में ब्राह्मणों को बहुत सम्मान दिया जाता था, जबकि शूद्रों की स्थिति बहुत ख़राब थी तथा उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता था। जाति प्रथा जन्म पर आधारित थी।

उपरोक्त चार जातियों के अलावा समाज में व्यवसाय पर आधारित अनेक उपजातियां भी थीं। इन उपजातियों में बढ़ई, लोहार, सुनार, रथकार, कुम्हार तथा तेली आदि शामिल थे।

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प्रश्न 5.
आहत-सिक्कों के बारे में एक नोट लिखें।
उत्तर-
600 ई० पूर्व से 400 ई० पूर्व तक के भारत में वस्तुओं के क्रय-विक्रय के लिए तांबे तथा चांदी के बने सिक्कों का प्रयोग किया जाता था। इन सिक्कों का भार तो निश्चित होता था, लेकिन इनका कोई आकार नहीं होता था। इन पर कई प्रकार की आकृतियों के ठप्पे लगाए जाते थे। इन्हें आहत-सिक्के कहा जाता था।

प्रश्न 6.
जैन धर्म के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
जैन धर्म 600 ई० पूर्व में अस्तित्व में आया था। इस धर्म के 24 गुरु हुए हैं, जिन्हें तीर्थंकर कहते हैं। आदिनाथ (ऋषभ नाथ) पहले तीर्थंकर तथा वर्धमान महावीर 24वें तीर्थंकर थे।
शिक्षाएं-जैन धर्म की शिक्षाएं निम्नलिखित हैं –

  1. अहिंसा-अहिंसा जैन धर्म का मुख्य सिद्धान्त है। इसका अर्थ यह है कि मनुष्य को मन, वचन तथा कर्म से किसी को कष्ट नहीं देना चाहिए।
  2. अस्तय-मनुष्य को सत्य बोलना चाहिए और कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए।
  3. चोरी न करना-चोरी करना पाप है। बिना आज्ञा से किसी की वस्तु लेना अथवा धन लेना चोरी है। इससे दूसरों को कष्ट होता है।
  4. अपरिग्रह-आवश्यकता से अधिक संग्रह न करना। सम्पत्ति इकट्ठी करना उचित नहीं है। इससे जीवन में लगाव पैदा होता है तथा मनुष्य सांसारिक बन्धनों में बंध जाता है।
  5. ब्रह्मचर्य-मनुष्य को संयमपूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहिए।
  6. कठोर तपस्या-कठोर तपस्या करने से मनुष्य को जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिलती है।
  7. त्रिरत्न-त्रिरत्न मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग है। ये त्रिरत्न शुद्ध ज्ञान, शुद्ध दर्शन तथा शुद्ध चरित्र हैं।

जैन धर्म के सम्प्रदाय-श्वेताम्बर तथा दिगम्बर, जैन धर्म के दो सम्प्रदाय हैं।

  1. श्वेताम्बर-जैन धर्म के इस सम्प्रदाय के मुनि सफ़ेद कपड़े पहनते हैं।
  2. दिगम्बर-जैन धर्म के इस सम्प्रदाय के मुनि कोई कपड़ा नहीं पहनते।

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प्रश्न 7.
बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएं कौन-सी हैं?
उत्तर-
बौद्ध धर्म की प्रमुख शिक्षाएं निम्नलिखित हैं –
1. चार महान् सत्य-बौद्ध धर्म के चार महान् सत्य ये हैं –
(i) संसार दुःखों का घर है।
(ii) दुःखों का कारण इच्छाएं (तृष्णा) हैं।
(iii) इच्छाओं (तृष्णा) को नियन्त्रण में करने से दुःखों से छुटकारा मिल सकता है।
(iv) इच्छाओं (तृष्णा) का दमन अष्टमार्ग द्वारा हो सकता है।

2. अष्टांग मार्ग-महात्मा बुद्ध ने दुःखों से छुटकारा पाने तथा निर्वाण प्राप्त करने के लिए अष्टांग मार्ग बताया है। इस मार्ग के आठ सिद्धान्त ये हैं –
(i) सच्ची (सम्यक्) दृष्टि,
(ii) सच्चा संकल्प,
(iii) सत्य वचन,
(iv) सच्चा कर्म,
(v) सच्ची आजीविका,
(vi) सच्चा यत्न,
(vii) सच्ची स्मृति,
(viii) सच्ची समाधि।

3. मध्य मार्ग- महात्मा बुद्ध ने मध्य मार्ग अपनाने की भी शिक्षा दी। उनके अनुसार, मनुष्य को न तो कठोर तपस्या के द्वारा अपने शरीर को अधिक कष्ट देना चाहिए तथा न ही अपने जीवन को व्यर्थ भोग-विलास में डुबोकर रखना चाहिए।

4. नैतिक शिक्षा-बुद्ध धर्म की नैतिक शिक्षाओं में अहिंसा, सत्य बोलना, नशीली वस्तुओं का सेवन न करना, धन से दूर रहना, समय पर भोजन करना तथा किसी की सम्पत्ति पर नज़र न रखना आदि शामिल हैं।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. बिम्बिसार ने …………… से ……………. ई० पू० तक राज्य किया।
  2. मंत्रियों को …………… भी कहा जाता था।
  3. कृषि एवं पशुपालन …………… मुख्य व्यवसाय थे।
  4. जैन धर्म के कुल ……………… तीर्थंकर हुए हैं।
  5. गौतम बुद्ध का वास्तविक नाम ………. था।
  6. भगवान महावीर ने लगभग …………. वर्षों तक गृहस्थ जीवन व्यतीत किया।

उत्तर-

  1. 543, 492
  2. अमात्य
  3. लोगों का
  4. 24.
  5. सिद्धार्थ
  6. 30.

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III. सही जोड़े बनायें –

(1) मगध – (क) गणतन्त्र
(2) अजातशत्रु – (ख) महाजनपद
(3) वज्जि – (ग) निगम (शिल्प संस्था)
(4) श्रेणी – (घ) राजा
(5) पार्श्वनाथ – (ङ) तीर्थंकर।
उत्तर-
सही जोड़े –
(1) मगध – महाजनपद
(2) अजातशत्रु – राजा
(3) वज्जि – गणतन्त्र
(4) श्रेणी – निगम (शिल्प संस्था)
(5) पार्श्वनाथ – तीर्थंकर

IV. निम्नलिखित में से सही (✓) अथवा (✗) ग़लत बतायें –

  1. शोडष जनपदों का उल्लेख बौद्ध साहित्य में है।
  2. बिम्बिसार ने 543 से 492 ई० तक राज्य किया।
  3. मन्त्रियों को चेर के नाम से जाना जाता था।
  4. कृषि-कर प्रायः उपज का 1/4 भाग होता था।
  5. सार्थवाह व्यापारियों का नेता था।
  6. जैनियों का विश्वास है कि 24 तीर्थंकर थे।
  7. गौतम बुद्ध सिद्धार्थ का पुत्र था।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✗)
  5. (✗)
  6. (✓)
  7. (✗)

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कम से कम शब्दों में उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
जैनियों के 24 तीर्थंकर थे? क्या आप 23वें तीर्थंकर का नाम बता सकते
उत्तर-
भगवान पार्श्वनाथ।

प्रश्न 2.
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे। क्या आप ‘बुद्ध’ शब्द का अर्थ बता सकते हैं?
उत्तर-
ज्ञानवान् पुरुष।

प्रश्न 3.
महात्मा बुद्ध के अनुसार दुःखों का कारण क्या है? ।
उत्तर-
तृष्णा।

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बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महात्मा बुद्ध की माता का नाम क्या था?
(क) यशोधरा
(ख) महामाया
(ग) विश्ववारा।
उत्तर-
(ख) महामाया

प्रश्न 2.
महावीर स्वामी को कठोर तप के पश्चात् कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। निम्न में से इसका क्या अर्थ है?
(क) स्वर्ग नरक का ज्ञान
(ख) मानव जाति का सम्पूर्ण ज्ञान
(ग) ब्राह्माण्ड का सम्पूर्ण ज्ञान।
उत्तर-
(ग) ब्राह्माण्ड का सम्पूर्ण ज्ञान

प्रश्न 3.
‘त्रिपिटक’ एक महान पुरुष की शिक्षाओं का संग्रह है। उस महान पुरुष का नाम निम्न में से क्या था?
(क) महावीर स्वामी
(ख) भक्त कबीर
(ग) भगवान बुद्ध।
उत्तर-
(ग) भगवान बुद्ध

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अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मगध राज्य सबसे पहले किस शासक के समय में अत्यधिक शक्तिशाली बना?
उत्तर-
बिंबिसार के समय में।

प्रश्न 2.
बिंबिसार के समय मगध की राजधानी कौन-सी थी?
उत्तर-
बिंबिसार के समय मगध की राजधानी राजगृह थी।

प्रश्न 3.
बिंबिसार ने कौन-से राज्यों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए?
उत्तर-
बिंबिसार ने कोशल, वैशाली तथा मादरा राज्यों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए।

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प्रश्न 4.
नन्द वंश का संस्थापक कौन था?
उत्तर-
नन्द वंश का संस्थापक महापदमनन्द था।

प्रश्न 5.
महावीर स्वामी का आरम्भिक नाम क्या था?
उत्तर-
महावीर स्वामी का आरम्भिक नाम वर्धमान था।

प्रश्न 6.
महावीर स्वामी के माता-पिता का नाम बताएं।
उत्तर-
महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला तथा पिता का नाम सिद्धार्थ था।

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प्रश्न 7.
महावीर स्वामी को किस आयु में ज्ञान की प्राप्ति हुई?
उत्तर-
महावीर स्वामी को 42 वर्ष की आयु में ज्ञान की प्राप्ति हुई।

प्रश्न 8.
जैन धर्म के त्रिरत्नों के बारे में लिखें।
उत्तर-
जैन धर्म के त्रिरत्न सत्य विश्वास, सत्य ज्ञान तथा सत्य कर्म हैं। महावीर स्वामी के अनुसार मनुष्य इनका पालन करके मुक्ति प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 9.
महात्मा बुद्ध का जन्म कब तथा कहां हुआ?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध का जन्म 567 ई० पू० में कपिलवस्तु में हुआ।

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प्रश्न 10.
महात्मा बुद्ध के माता-पिता का नाम बताएँ।
उत्तर-
महात्मा बुद्ध की माता का नाम महामाया तथा पिता का नाम शुद्धोधन था।

प्रश्न 11.
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश कहां दिया? इसे क्या कहते हैं?
उत्तर-
महात्मा बुद्ध ने अपना पहला उपदेश सारनाथ के हिरण पार्क में दिया। इसे “धर्म चक्र परिवर्तन” कहते हैं।

प्रश्न 12.
अष्टमार्ग के आठ सिद्धान्त लिखें।
उत्तर-
सच्ची दृष्टि, सच्चा संकल्प, सच्चा वचन, सच्चा कर्म, सच्चा रहन-सहन, सच्चा यत्न, सच्ची स्मृति, सच्चा ध्यान।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गणराज्य से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
600 ई० पूर्व के महाजनपदों में से कई गणराज्य थे। गणराज्य की राजनीतिक स्थिति राजतन्त्र से अलग थी। इनकी सरकार में कोई राजा नहीं होता था। इनकी सरकार लोगों द्वारा चुने हुए किसी मुखिया के हाथ में होती थी। इनका पद भी पैतृक नहीं होता था। सरकार का सारा काम चुने हुए व्यक्ति आपस में सलाह से करते थे।

प्रश्न 2.
राजतन्त्र की सरकार के बारे में लिखें।
उत्तर-
राजतन्त्र में राजा की सरकार थी। राजा का पद पैतृक था। राजा अपने मन्त्रियों की सहायता से शासन करता था। कानून बनाने, कानून को लागू करने तथा न्याय करने की सभी शक्तियां उसी के हाथों में थीं। वह जनता की समृद्धि, सुख-शान्ति तथा राज्य की उन्नति करने के लिए प्रयत्न करना अपना कर्त्तव्य समझता था। राज्य की आय का मुख्य स्रोत कर थे।

प्रश्न 3.
नन्द वंश का संस्थापक कौन था? उसके बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर-
नन्द वंश का संस्थापक महापदमनन्द था। उसके पास एक शक्तिशाली स्थायी सेना थी। उसकी शक्ति का बहुत अधिक दबदबा था। यहां तक कि यूनानी शासक सिकन्दर भी उससे डर कर ब्यास नदी को पार करने की हिम्मत न कर सका।

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प्रश्न 4.
नंद वंश के शासक धनानन्द पर संक्षिप्त नोट लिखें।
उत्तर-
महापदमनन्द का पुत्र धनानन्द नंद वंश का अन्तिम शासक था। उसके पास एक बहुत बड़ी सेना थी। लेकिन वह आलसी, क्रोधी, विलासी तथा निर्दयी राजा था। वह प्रजा में बदनाम था। उसे चन्द्रगुप्त मौर्य ने हराकर नन्द वंश का अन्त कर दिया।

प्रश्न 5.
वर्धमान महावीर के बचपन तथा विवाह के बारे में लिखें।
उत्तर-
वर्धमान महावीर जैन धर्म के 24वें तथा अन्तिम तीर्थंकर थे। इनका जन्म 599 ई० पूर्व में वर्तमान बिहार के वैशाली के समीप कुण्डग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम सिद्धार्थ तथा माता का नाम त्रिशला था। इनके पिता लिच्छवी कबीले के सरदार थे। राज परिवार से सम्बन्ध होते हुए भी महावीर जी ने बहुत सादा जीवन व्यतीत किया। उनका विवाह यशोदा नाम की राजकुमारी के साथ हुआ तथा इनके घर एक पुत्री का भी जन्म हुआ।

प्रश्न 6.
600 ई० पू० से 400 ई० पू० तक आश्रम व्यवस्था की जानकारी दीजिए।
उत्तर-
इस काल में मनुष्य के जीवन को चार भागों में बांटा गया था। इन भागों को आश्रम कहते थे। ये आश्रम इस प्रकार थे-

  1. ब्रह्मचर्य आश्रम,
  2. गृहस्थ आश्रम,
  3. वानप्रस्थ आश्रम,
  4. संन्यास आश्रम।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बौद्ध धर्म का विकास क्यों हुआ?
उत्तर–
बौद्ध धर्म के विकास के मुख्य कारण निम्नलिखित थे –
(1) बौद्ध धर्म एक सरल धर्म था। इसकी शिक्षाएं बहुत सरल थीं।
(2) महात्मा बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार साधारण लोगों की भाषा में किया।
(3) लोग यज्ञों आदि से तंग आ चुके थे। बौद्ध धर्म ने उन्हें यज्ञों से छुटकारा दिलाया।
(4) बौद्ध धर्म में जाति-पाति का कोई भेदभाव नहीं था। इसलिए शूद्र जाति के लोग बौद्ध धर्म के अनुयायी बन गए।
(5) महात्मा बुद्ध ने मठों की स्थापना की। इन मठों में बौद्ध भिक्षु रहते थे। उनके शुद्ध जीवन से प्रभावित होकर अनेक लोगों ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया।
(6) बौद्ध धर्म को कई राजाओं ने भी अपनाया। अशोक तथा कनिष्क जैसे राजाओं ने बौद्ध धर्म का प्रचार न केवल अपने राज्य में किया, बल्कि उन्होंने इसका प्रचार विदेशों में भी करवाया।
(7) लोग महात्मा बुद्ध के.ऊंचे चरित्र से भी प्रभावित हुए।
इन सभी कारणों से बौद्ध धर्म भारत, चीन, कोरिया, तिब्बत, जापान, श्रीलंका आदि अनेक देशों में फैल गया।

प्रश्न 2.
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म में क्या अन्तर था?
उत्तर-
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म, दोनों 600 ई० पू० के धार्मिक आन्दोलन थे। दोनों धर्मों की उत्पत्ति उस समय हुई जब भारतीय समाज में बहुत-सी बुराइयां आ गई थीं। दोनों धर्म जाति-पाति के विरुद्ध तथा अहिंसा के पक्ष में थे। लेकिन इनमें कई भिन्नताएं भी थीं –

1. दोनों धर्म अहिंसा में विश्वास रखते थे, लेकिन जैन धर्म अहिंसा.पर बौद्ध धर्म से भी अधिक ज़ोर देता था। इसलिए जैन धर्म के अनुयायी पानी छानकर पीते हैं तथा नंगे . पांव चलते हैं।

2. बौद्ध धर्म में मुक्ति का मार्ग अष्टमार्ग है जबकि जैन धर्म में मुक्ति का मार्ग कठोर तपस्या तथा अपने शरीर को घोर कष्ट देने का रास्ता है।

3. बौद्ध धर्म ईश्वर के अस्तित्व के बारे में मौन है। जबकि जैन धर्म तो ईश्वर के अस्तित्व में बिल्कुल विश्वास नहीं रखता।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 6 वर्धन सम्राट् एवं उनका काल

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 6 वर्धन सम्राट् एवं उनका काल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 6 वर्धन सम्राट् एवं उनका काल

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न-
हर्ष के उत्थान व साम्राज्य विस्तार के सन्दर्भ में उसकी राज्य-व्यवस्था व प्रशासन की चर्चा करें।
अथवा
एक विजेता और शासन प्रबन्ध के रूप में हर्ष की प्राप्तियों का उल्लेख करें।
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद भारत की राजनीतिक एकता छिन्न-भिन्न हो गई थी। देश में अनेक छोटे-छोटे स्वतन्त्र राज्य उभर आये थे। इनमें से एक थानेश्वर का वर्धन राज्य भी था। प्रभाकर वर्धन के समय में यह काफ़ी शक्तिशाली था। उसकी मृत्यु के बाद 606 ई० में हर्षवर्धन राजगद्दी पर बैठा। राजगद्दी पर बैठते समय वह चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था। शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए उसे अनेक युद्ध करने पड़े। वैसे भी हर्ष अपने राज्य की सीमाओं में वृद्धि करना चाहता था। इस उद्देश्य से उसने अनेक सैनिक अभियान किए। कुछ ही वर्षों में लगभग सारे उत्तरी भारत पर उसका अधिकार हो गया। इस प्रकार उसने देश में राजनीतिक एकता की स्थापना की और देश को अच्छा शासन प्रदान किया। संक्षेप में, उसके जीवन तथा सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

I. प्रारम्भिक जीवन-

हर्षवर्धन थानेश्वर के राजा प्रभाकर वर्धन का पत्र था। उसकी माता का नाम यशोमती था। हर्ष की जन्म तिथि के विषय में निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। कुछ इतिहासकारों का अनुमान है कि उसका जन्म 589-90 ई० के लगभग हुआ था। बचपन में हर्ष को अच्छी शिक्षा दी गई। उसे घुड़सवारी करना, तीर कमान चलाना तथा तलवार चलाना भी सिखाया गया। कुछ ही वर्षों में वह युद्ध-कला में निपुण हो गया। जब वह केवल 14 वर्ष का था तो हूणों ने थानेश्वर राज्य पर आक्रमण किया। उनका सामना करने के लिए उसके बड़े भाई राज्यवर्धन को भेजा गया। परन्तु हर्ष ने भी युद्ध में उसका साथ दिया, भले ही पिता की बीमारी का समाचार मिलने के कारण उसे मार्ग से ही वापस लौटना पड़ा। उसके राजमहल पहुंचते ही उसका पिता चल बसा और उसकी माता सती हो गई। इसी बीच राज्यवर्धन भी हूणों को पराजित कर वापस अपनी राजधानी लौट आया। उसे अपने पिता की मृत्यु का इतना दुःख हुआ कि उसने राजगद्दी पर बैठने से इन्कार कर दिया और साधु बन जाने की इच्छा प्रकट की। परन्तु हर्ष के प्रयत्नों से उसे राजगद्दी स्वीकार करनी पड़ी।

सिंहासनारोहण तथा विपत्तियां-606 ई० में बंगाल के शासक शशांक ने धोखे से राज्यवर्धन को मरवा डाला। उसकी मृत्यु के पश्चात् हर्षवर्धन थानेश्वर की राजगद्दी पर बैठा। वह चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था। इसलिए उसे अनेक विपत्तियों का सामना करना पड़ा। उसकी सबसे बड़ी समस्या अपने भाई तथा बहनोई के वध का बदला लेना था। उसे अपनी बहन राज्यश्री को भी कारावास से मुक्त करवाना था जिसे मालवा के शासक ने बन्दी बना रखा था। उसने एक विशाल सेना संगठित की और मालवा के राजा के विरुद्ध प्रस्थान किया। परन्तु उसी समय हर्ष को यह समाचार मिला कि उसकी बहन कैद से मुक्त होकर विन्धयाचल के जंगलों में चली गई है। हर्ष ने उसकी खोज आरम्भ कर दी और आखिर जंगली सरदारों की सहायता से उसे खोज निकाला। उसने अपनी बहन को ठीक उस समय बचा लिया जब वह सती होने की तैयारी कर रही थी। तत्पश्चात् हर्ष ने कन्नौज और थानेश्वर के राज्यों को मिलाकर उत्तरी भारत में एक शक्तिशाली राज्य की नींव रखी।

II. विजयें तथा साम्राज्य विस्तार-

राज्य में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के पश्चात् हर्ष ने राज्य विस्तार की ओर ध्यान दिया। उसने अनेक विजयें प्राप्त करके अपने राज्य का विस्तार किया

1. बंगाल विजय-बंगाल का शासक शशांक था। उसने हर्षवर्धन के बड़े भाई को धोखे से मार दिया था। शशांक से बदला लेने के लिए हर्ष ने कामरूप (असम) के राजा भास्करवर्मन से मित्रता कर ली और उसकी सहायता से शशांक को पराजित कर दिया। लेकिन जब तक शशांक जीवित रहा, उसने हर्ष को बंगाल पर अधिकार न करने दिया।

2. पांच प्रदेशों की विजय-बंगाल विजय के पश्चात् हर्ष ने लगातार कई वर्षों तक युद्ध किए। 606 ई० से लेकर 612 ई० तक उसने उत्तरी भारत के पांच प्रदेशों को जीता। ये प्रदेश शायद पंजाब, कन्नौज, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा थे।

3. वल्लभी की विजय-हर्ष के समय वल्लभी (गुजरात) काफ़ी धनी प्रदेश था। हर्ष ने एक विशाल सेना के साथ वल्लभी पर आक्रमण किया और वहां के शासक ध्रुवसेन द्वितीय को हराया। कहते हैं कि बाद में वल्लभी नरेश ने हर्ष के साथ मित्रता कर ली। ध्रुवसेन द्वितीय के व्यवहार से प्रसन्न होकर हर्ष ने उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह भी किया।

4. पुलकेशिन द्वितीय से युद्ध-हर्ष ने उत्तरी भारत को विजय करने के बाद दक्षिणी भारत को जीतने का निश्चय किया। उस समय दक्षिणी भारत में चालुक्य नरेश पुलकेशिन द्वितीय सबसे अधिक शक्तिशाली शासक था। 633 ई० में नर्मदा नदी के किनारे दोनों राजाओं में युद्ध हुआ। इस युद्ध में हर्ष पहली बार पराजित हुआ और उसे वापस लौटना पड़ा।

5. सिन्ध विजय-बाण के अनुसार हर्ष ने सिन्ध पर भी आक्रमण किया और इस प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया। परन्तु ह्यनसांग लिखता है कि उस समय सिन्ध एक स्वतन्त्र प्रदेश था। हर्ष ने इस प्रदेश को विजय नहीं किया था।

6. बफ़र्कीले प्रदेश पर विजय-बाण लिखता है कि हर्ष ने एक बर्फीले प्रदेश को जीता। यह बर्फीला प्रदेश शायद नेपाल था। कहते हैं कि हर्ष ने कश्मीर प्रदेश पर भी विजय प्राप्त की थी।

7. गंजम की विजय-गंजम की विजय हर्ष की अन्तिम विजय थी। उसने गंजम पर कई आक्रमण किए। परन्तु शशांक के विरोध के कारण वह इस प्रदेश को न जीत सका। 620 ई० में शशांक की मृत्यु के बाद उसने गंजम पर एक बार फिर आक्रमण किया और इस प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया।

राज्य-विस्तार-हर्ष लगभग सारे उत्तरी भारत का स्वामी था। उसके राज्य की सीमाएं उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी को छती थीं। पूर्व में उसका राज्य कामरूप से लेकर उत्तर-पश्चिम में पूर्वी पंजाब तक विस्तृत था। पश्चिम में अरब सागर तक का प्रदेश उसके अधीन था। कन्नौज हर्ष के इस विशाल राज्य की राजधानी थी।

III. राज्य व्यवस्था एवं प्रशासन —

1. केन्द्रीय शासन-ह्यूनसांग लिखता है कि हर्ष एक परिश्रमी शासक था। यद्यपि वह अन्य राजाओं की तरह ठाठ-बाठ से रहता था, फिर भी वह अपने कर्तव्य को नहीं भूलता था। जनता की भलाई करने के लिए वह प्रायः खाना, पीना और सोना भी भूल जाता था। यूनसांग के अनुसार हर्ष एक दानी तथा उदार राजा था। वह भिक्षुओं, ब्राह्मणों तथा निर्धनों को खुले मन से दान देता था। कहते हैं कि प्रयाग की सभा में उसने अपना सारा कोष, वस्त्र तथा .. पण दान में दे दिए थे। ह्यूनसांग लिखता है कि हर्ष के शासन का उद्देश्य प्रजा की भलाई करना था। राजा प्रजा के हित को सदा ध्यान में रखता था। जनता के दुःखों की जानकारी प्राप्त करने के लिए वह समय-समय पर राज्य का भ्रमण भी किया करता था।

2. प्रान्तीय शासन-हर्ष ने अपने राज्य को भुक्ति, विषय, ग्राम आदि प्रशासनिक इकाइयों में बांटा हुआ था। भुक्ति के मुख्य अधिकारी को ‘उपारिक’, विषय के अधिकारी को ‘विषयपति’ तथा ग्राम के अधिकारी को ‘ग्रामक’ कहते थे। कहते हैं कि विषय और ग्राम के बीच भी एक प्रशासनिक इकाई थी जिसे ‘पथक’ कहा जाता था।

3. भूमि का विभाजन-ह्यूनसांग लिखता है कि सरकारी भूमि चार भागों में बंटी हुई थी। पहले भाग की आय राजकीय कार्यों पर व्यय की जाती थी। दूसरे भाग की आय से मन्त्रियों तथा अन्य कर्मचारियों को वेतन दिए जाते थे। तीसरे भाग की आय भिक्षुओं तथा ब्राह्मणों में दान के रूप में बांट दी जाती थी। चौथे भाग की आय से विद्वानों को पुरस्कार दिए जाते थे।

4. दण्ड विधान-ह्यूनसांग के अनुसार हर्ष का दण्ड विधान काफ़ी कठोर था। देश निकाला तथा मृत्यु दण्ड भी प्रचलित थे। सामाजिक सिद्धान्तों का उल्लंघन करने वाले अपराधी के नाक, कान आदि काट दिए जाते थे। परन्तु साधारण अपराधों पर केवल जुर्माना ही किया जाता था।

5. सेना-ह्यूनसांग लिखता है कि हर्ष ने एक विशाल सेना का संगठन किया हुआ था। उसकी सेना में 50,000 पैदल, 1 लाख घुड़सवार तथा 60,000 हाथी थे। इसके अतिरिक्त उसकी सेना में कुछ रथ भी सम्मिलित थे।

6. अभिलेख विभाग-ह्यूनसांग के अनुसार हर्ष ने एक अभिलेख विभाग की भी व्यवस्था की हुई थी। यह विभाग उसके शासनकाल की प्रत्येक छोटी-बड़ी घटना का रिकार्ड रखता था।

7. आय के साधन-यूनसांग लिखता है कि सरकार की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। यह कर उपज का 1/ 6 भाग लिया जाता था। प्रजा से अन्य भी कुछ कर वसूल किए जाते थे। । सच तो यह है कि हर्ष एक महान् विजेता था। उसने अपने विजित प्रदेशों को संगठित किया और लोगों को एक अच्छा शासन प्रदान किया। उसके विषय में डॉ० रे चौधरी ने ठीक ही कहा है, “वह प्राचीन भारत के महानतम् राजाओं में से एक था।” (“He was one of the greatest kings of ancient India.”)

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प्रश्न 2.
हर्षवर्धन के समय के सांस्कृतिक विकास की मुख्य विशेषताओं की चर्चा करें।
उत्तर-
हर्ष कालीन संस्कृति काफ़ी सीमा तक गुप्तकालीन संस्कृति का ही रूप थी। फिर भी इस युग में संस्कृति के विकास को नई दिशा मिली। मन्दिरों की संस्था का रूप निखरा। वैदिक परम्परा और शिव का रूप निखरा तथा भक्ति का आरम्भ हुआ। नालन्दा विश्वविद्यालय इस काल की शाखा है। इस काल में बौद्ध धर्म का पतन आरम्भ हुआ। इस सांस्कृतिक विकास की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

1. नालन्दा-

हर्ष स्वयं बौद्ध धर्म का संरक्षक था। उसने सैंकड़ों मठ और स्तूप बनवाये। परन्तु उसके समय में नालन्दा का मठ अपनी चरम सीमा पर था। ह्यनसांग ने भी अपने वृत्तान्त में इस बात की पुष्टि की है। वह लिखता है कि भारत में मठों की संख्या हज़ारों में थी। परन्तु किसी का भी ठाठ-बाठ और गौरव नालन्दा जैसा नहीं था। यहाँ जिज्ञासु और शिक्षकों सहित दस हज़ार भिक्षु रहते थे। वे महायान और हीनयान सम्प्रदायों के सिद्धान्त और शिक्षाओं का अध्ययन करते थे। इसके अतिरिक्त वेदों, ‘क्लासिकी’ रचनाओं, व्याकरण, चिकित्सा और गणित का अध्ययन किया जाता था।

ह्यनसांग के वृत्तान्त से स्पष्ट पता चलता है कि नालन्दा के भिक्षु ऐश्वर्य का जीवन व्यतीत करते थे। उनका जनसामान्य से सम्पर्क टूट चुका था। उनमें प्राचीन बौद्ध धर्म के आदर्शों का प्रचार करने का उत्साह नहीं रहा था। वैसे भी बौद्ध धर्म प्रचार के स्थान पर दर्शन की सूक्ष्मताओं में उलझ गया। जैन मत की स्थिति भी बौद्ध मत जैसी ही थी। इधर समाज में ब्राह्मणों ने अपनी स्थिति में सुधार किया। उन्होंने साधारण गृहस्थी के साथ अटूट सम्पर्क बना लिया था। वे अब परिवार के जन्म, मृत्यु और विवाह जैसे सभी महत्त्वपूर्ण अवसरों से सम्बन्धित संस्कारों में अपनी सेवाएं अर्पित करते थे। ब्राह्मणों ने बौद्ध मत की तरह ही मन्दिर, मूर्ति पूजा और निजी चढ़ावे की प्रथा को भी अपना लिया था। उन्होंने भी अपने विद्यालय स्थापित कर लिए थे। ये मन्दिरों से सम्बन्धित होते थे। समय पाकर ये विद्यालय ब्राह्मणों की बपौती बन गए। उन दिनों का संस्कृत विद्यालय नालन्दा की भान्ति ही प्रसिद्ध था।

2. मन्दिर की संस्था –

इस काल में मन्दिरों का महत्त्व काफ़ी बढ़ गया था। वास्तुकला की दृष्टि से भी मन्दिर का स्वरूप पूर्णतः विकसित हो चुका था।
1. इस काल में चालुक्य, पल्लव और पाण्डेय राजाओं ने भव्य मन्दिर बनवाये।

2. मठ चट्टान को तराश कर भी बनाये जाते थे और स्वतन्त्र नींव पर भी। परन्तु अब स्वतन्त्र मठ भी बनाये गये। मन्दिर अधिक महत्त्वपूर्ण हो गए। इस काल के कई प्रभावशाली मन्दिर आज भी मिलते हैं। ये मन्दिर बादामी, ऐहोल, काँची और महाबलीपुरम् में देखे जा सकते हैं। समुद्र तट पर निर्मित महाबलीपुरम् का मन्दिर इस काल की मन्दिर निर्माण कला का उत्कृष्ट नमूना है।

3. स्वतन्त्र नींव पर निर्मित ऐलोरा का प्रसिद्ध कैलाशनाथ मन्दिर अद्वितीय है। यह एक पहाड़ी को काट कर बनाया हुआ है। इसका निर्माण काल बादामी, ऐहोल, काँची और महाबलीपुरम् के स्वतन्त्र नींव पर बने हुए मन्दिरों से बाद का है।

4. यह मन्दिर आठवीं सदी में राष्ट्रकूट राजाओं के समय में बन कर तैयार हुआ था। यह मन्दिर पहाड़ी के किनारे को काट कर बनाया गया है, किन्तु यह आकाश और धरती के बीच इस प्रकार खड़ा है मानो धरती से ही उभरा हो। इसकी बनावट में स्वतन्त्र नींवों पर बने मन्दिरों के स्वरूप का विशेष ध्यान रखा गया है।

5. इसकी शैली भी दक्षिण के मन्दिरों से मिलती-जुलती है। अनुमान है कि इस मन्दिर निर्माण में काफ़ी संख्या में संगतराशों और मजदूरों ने काम किया होगा। इस पर धन भी काफ़ी खर्च हुआ होगा। हज़ार वर्ष बीतने के बाद भी आज मन्दिर उतना ही सुन्दर तथा शानदार है।

6. धनी सौदागर और राजा मन्दिरों को दान देते थे। कम सामर्थ्य वाले व्यक्ति भी अपनी श्रद्धा के अनुसार मूर्तियाँ, दीपक और तेल आदि वस्तुएँ चढ़ाते थे।

7. मन्दिरों में कई प्रकार के सेवक काम करते थे, परन्तु पूजा का काम केवल ब्राह्मणों के हाथों में था।

8. संगीत अर्थात् गाना-बजाना भी मन्दिर में होने वाले धार्मिक कृत्य का एक आवश्यक अंग था। समय पाकर नृत्य भी मन्दिर के धर्म कार्य से जुड़ गया और भरत-नाट्यम नृत्य एक अत्यन्त उच्चकोटि की कला बन गया। इस प्रकार मन्दिर धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रमुख केन्द्र बन गए। एक बात बड़े खेद की है कि शूद्र और चाण्डालों को मन्दिर में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं थी।

वैदिक परम्परा और दर्शन का पुनर्जागरण-

(i) ब्राह्मणों का प्रभुत्व बढ़ने से वैदिक परम्परा का महत्त्व बढ़ा। ब्राह्मण वैदिक परम्परा के संरक्षक बन गए। वे समझते थे कि वैदिक परम्परा को तत्कालीन आक्रमणकारी अर्थात् शक, कुषाण और हूण भ्रष्ट कर रहे हैं। इसी कारण उन्होंने दक्षिण के दरबारों में शरण लेनी शुरू कर दी। दक्षिण भारत में राजाओं का संरक्षण प्राप्त करने के लिए वैदिक परम्परा के ज्ञान को उच्च योग्यता माना जाता है।

(ii) इस काल में वेदान्त-दर्शन का महत्त्व बढ़ गया। इस दर्शन का सबसे पहला बड़ा व्याख्याता केरल का ब्राह्मण शंकराचार्य था। उनके अनुसार वेद पावन-पुनीत हैं। उसका मत उपनिषदों पर आधारित था। वह अनावश्यक संस्कारों और संस्कार विधियों के विरुद्ध था। इसलिए उसने अपने मठों में सीधी-सादी पूजा की प्रथा आरम्भ की। शंकराचार्य ने भारत के चार कोनों में चार बड़े मठों की स्थापना की। यह मठ थे-हिमालय में बद्रीनाथ, दक्षिण में श्रृंगेरी, उड़ीसा में पुरी और सौराष्ट्र में द्वारका। उसने सारे देश की यात्रा की और सभी प्रकार के दार्शनिक और धार्मिक नेताओं से शास्त्रार्थ किया। उनके दर्शन का मूलभूत आधार एकेश्वरवादी अद्वैत अर्थात् केवल एक ही निर्विशेष सत्य का दर्शन है।

3. भक्ति का आरम्भ-

इस काल में कई शैव और वैष्णव तमिल धार्मिक नेताओं ने एक व्यक्तिगत इष्टदेव के प्रति श्रद्धा भक्ति रखने सम्बन्धी प्रचार आरम्भ कर दिया था। इन शैव भक्तों को नायनार और वैष्णव भक्तों को आलवार कहा जाता था। सातवीं सदी तक शिव और विष्णु की महिमा में लिखे उनके भजन अत्यन्त लोकप्रिय हो चुके थे। उनके प्राप्त भजन संग्रह हैं : शैवों का तिरुमुराए और वैष्णवों का नलियार-प्रबन्धम्।

4. प्रादेशिक भाषाएं-

इस काल में संस्कृत भाषा ने गौरवमयी स्थान प्राप्त कर लिया था। साथ में प्रादेशिक बोलियों और साहित्य का भी खूब विकास हुआ। पल्लव राजाओं ने अपने शिलालेखों में प्राकृत भाषा का प्रयोग आरम्भ कर दिया था। उन्होंने संस्कृत और तमिल भाषा भी अपनाई। उनके शिलालेखों का व्यावहारिक दृष्टि से आवश्यक भाग तमिल में था। सातवीं सदी के एक चालुक्य शिलालेख में कन्नड़ का लोकभाषा के रूप में और संस्कृत का कुलीन वर्ग की भाषा के रूप में स्पष्ट उल्लेख है। इस बात में कोई सन्देह नहीं कि पल्लव काल में साहित्य की भाषा तमिल थी। इस समय का बहुत सारा साहित्य आज भी उपलब्ध . है। निःसन्देह इस काल में तमिल साहित्य का खूब विकास हुआ। सच तो यह है कि इस काल में शिक्षा का स्तर उन्नत था। बौद्ध धर्म अवनति पर और हिन्दू वैदिक धर्म उत्कर्ष की ओर था। मन्दिर परम्परा के कारण ब्राह्मणों का प्रभुत्व बढ़ रहा था। भारतीय दर्शन का प्रचार हुआ और प्रादेशिक भाषाओं का प्रसार हुआ। यह युग वास्तव में संस्कृति का संक्राति-काल था।

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महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
स्थानेश्वर (थानेसर) राज्य की स्थापना किसने की ?
उत्तर-
पुष्यभूति ने।

प्रश्न 2.
प्रभाकरवर्धन कौन था ?
उत्तर-
प्रभाकरवर्धन स्थानेश्वर का एक योग्य शासक था।

प्रश्न 3.
हर्षवर्धन सिंहासन पर कब बैठा ?
उत्तर-
हर्षवर्धन 606 ई० में सिंहासन पर बैठा।

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प्रश्न 4.
असम का पुराना नाम क्या था ?
उत्तर-
असम का पुराना नाम कामरूप था।

प्रश्न 5.
हर्षवर्धन की जानकारी देने वाले चार स्रोतों के नाम लिखें।
उत्तर-

  1. बाणभट्ट के हर्षचरित तथा कादम्बरी
  2. हर्षवर्धन के नाटक रत्नावली, नागानन्द तथा प्रियदर्शिका,
  3. ह्यनसांग का वृत्तांत,
  4. ताम्रलेख।

प्रश्न 6.
हर्षवर्धन ने कौन-कौन से नाटक लिखे ?
उत्तर-
रत्नावली, नागानन्द तथा प्रियदर्शिका।

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प्रश्न 7.
हर्षवर्धन की बहन का नाम लिखें।
उत्तर-
राज्यश्री।

प्रश्न 8.
हर्षवर्धन ने कौन-से चालुक्य राजा के साथ युद्ध किया ?
उत्तर-
हर्षवर्धन ने चालुक्य राजा पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध किया।

प्रश्न 9.
हर्षचरित तथा कादम्बरी के लेखक का नाम लिखें।
उत्तर-
हर्षचरित तथा कादम्बरी के लेखक का नाम बाणभट्ट था।

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प्रश्न 10.
ह्यूनसांग कौन था ? वह भारत किस राजा के समय आया ?
उत्तर-
ह्यूनसांग एक चीनी यात्री था। जो हर्षवर्धन के राज्यकाल में भारत आया।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) हर्ष ने …………. को अपनी नई राजधानी बनाया।
(ii) हर्ष को चालुक्य नरेश …………….. ने हराया।
(iii) हर्ष का दरबारी कवि ……………: था।
(iv) ह्यूनसांग ने …………… एशिया होते हुए भारत की यात्रा की।
(v) हर्ष वर्धन …………….. धर्म का अनुयायी था।
उत्तर-
(i) कन्नौज
(ii) पुलकेशिन द्वितीय
(iii) बाणभट्ट
(iv) मध्य
(v) बौद्ध।

3. सही/ग़लत कथन-

(i) हर्ष के समय में बौद्ध धर्म सारे भारत में लोकप्रिय था।– (×)
(ii) हर्षवर्धन की पहली राजधानी पाटलिपुत्र थी।– (×)
(iii) ह्यूनसांग द्वारा लिखी पुस्तक का नाम ‘सी० यू० की०’ है।– (√)
(iv) 643 ई० में हर्ष ने कन्नौज में धर्म सभा का आयोजन किया।– (√)
(v) हर्ष एक सहनशील तथा दानी राजा था।– (√)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न (i)
हर्ष की जीवनी लिखी है-
(A) फाह्यान ने
(B) कालिदास ने
(C) बाणभट्ट ने
(D) युवान च्वांग ने।
उत्तर-
(C) बाणभट्ट ने

प्रश्न (ii)
महेन्द्र वर्मन नरेश था-
(A) चालुक्य वंश का
(B) शक वंश का
(C) राष्ट्रकूट वंश का
(D) पल्लव वंश का ।
उत्तर-
(D) पल्लव वंश का ।

प्रश्न (iii)
हर्ष के समय का सबसे प्रसिद्ध शिक्षा केंद्र था-
(A) नालंदा
(B) तक्षशिला
(C) प्रयाग
(D) कन्नौज।
उत्तर-
(A) नालंदा

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प्रश्न (iv)
पुष्यभूति वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा था-
(A) राज्य वर्धन
(B) हर्षवर्धन
(C) प्रभाकर वर्धन
(D) स्वयं पुष्य भूति।
उत्तर-
(B) हर्षवर्धन

प्रश्न (v)
हर्ष ने निम्न स्थान पर हुई सभा में दिल खोल कर दान दिया था–
(A) कश्मीर
(B) कन्नौज
(C) प्रयाग
(D) तक्षशिला।
उत्तर-
(C) प्रयाग

III. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
किन्हीं दो हूण शासकों के नाम लिखें।
उत्तर-
तोरमाण तथा मिहिरकुल दो प्रसिद्ध हूण शासक थे।

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प्रश्न 2.
बाणभट्ट की दो रचनाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
बाणभट्ट की दो रचनाओं के नाम हैं-हर्षचरित तथा कादम्बरी।

प्रश्न 3.
हर्षवर्धन के राज्यकाल में आने वाले चीनी यात्री का नाम बताओ और यह कब से कब तक भारत में रहा ?
उत्तर-
हर्षवर्धन के राज्यकाल में आने वाला चीनी यात्री ह्यनसांग था। वह 629 से 645 ई० तक भारत में रहा।

प्रश्न 4.
चार वर्धन शासकों के नाम।
उत्तर-
चार वर्धन शासकों के नाम ये हैं-नरवर्धन, प्रभाकरवर्धन, राज्यवर्धन तथा हर्षवर्धन।

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प्रश्न 5.
हर्ष की बहन का नाम बताओ तथा वह किस राजवंश में ब्याही हुई थी ?
उत्तर-
हर्ष की बहन का नाम राज्यश्री था। वह मौखरी राजवंश में ब्याही हुई थी।

प्रश्न 6.
वर्धन शासकों की आरम्भिक तथा बाद की राजधानी का नाम क्या था ? ।
उत्तर-
वर्धन शासकों की आरम्भिक राजधानी थानेश्वर थी। बाद में उन्होंने कन्नौज को अपनी राजधानी बना लिया।

प्रश्न 7.
शशांक कहां का शासक था और उसने कौन-सा प्रसिद्ध वृक्ष कटवा दिया था ?
उत्तर-
शशांक बंगाल (गौड़) का शासक था। उसने गया का बोधि वृक्ष कटवा दिया था।

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प्रश्न 8.
हर्ष का पुलकेशिन द्वितीय के साथ युद्ध कौन-से वर्ष में हुआ और इसमें किसकी विजय हुई ?
उत्तर-
हर्ष का पुलकेशिन द्वितीय के साथ 633 ई० में युद्ध हुआ। इसमें पुलकेशिन द्वितीय की विजय हुई।

प्रश्न 9.
चालुक्य वंश के शासकों की तीन शाखाओं के नाम बताओ।
उत्तर-
चालुक्य वंश के शासकों की तीन शाखाएं थीं-बैंगी के पूर्वी चालुक्य, बादामी के पश्चिमी चालुक्य और लाट चालुक्य।

प्रश्न 10.
दक्षिण के पल्लव शासकों की राजधानी का नाम तथा उनके शिलालेखों का व्यावहारिक भाग किस भाषा में है ?
उत्तर-
दक्षिण के पल्लव शासकों की राजधानी कांचीपुरम् थी। उनके शिलालेखों का व्यावहारिक भाग तमिल भाषा में है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 6 वर्धन सम्राट् एवं उनका काल

प्रश्न 11.
हर्ष के समकालीन पल्लव शासक का नाम तथा राजकाल।
उत्तर-
हर्ष का समकालीन पल्लव शासक महेन्द्र वर्मन था। उसका राज्यकाल 600 ई० से 630 ई० तक था।

प्रश्न 12.
हर्ष के समय मदुराई में किस वंश का राज्य था और यह कितने वर्षों तक बना रहा ?
उत्तर-
हर्ष के समय मदुराई में पाण्डेय वंश का राज्य था। यह लगभग 200 वर्षों तक बना रहा।

प्रश्न 13.
किस शासक के समय किस विहार को दान में 200 गांवों की उपज अथवा लगान मिला हुआ था ?
उत्तर-
हर्ष के समय में नालन्दा विहार को 200 गांवों की उपज अथवा लगान मिला हुआ था।

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प्रश्न 14.
हर्ष के काल में नालन्दा में रहने वाले भिक्षुओं की संख्या क्या थी तथा यहाँ कौन-से धार्मिक तथा सांसारिक विषय पढ़ाए जाते थे ?
उत्तर-
हर्ष के समय नालन्दा में रहने वाले भिक्षुओं की संख्या 10 हज़ार थी। यहां महायान तथा हीनयान के सिद्धान्त, वेद, क्लासिकी रचनाएं, चिकित्सा, व्याकरण और गणित के विषय पढ़ाए जाते थे।

प्रश्न 15.
दक्षिण के किन चार स्थानों में प्रभावशाली मन्दिर मिले हैं ?
उत्तर-
दक्षिण के जिन चार स्थानों पर प्रभावशाली मन्दिर मिले हैं, वे हैं–बादामी, ऐहोल, कांची तथा महाबलिपुरम्।

प्रश्न 16.
पहाड़ी को काटकर बनाया गया कैलाशनाथ मन्दिर कहां है और यह किस वंश के राज्यकाल में पूरा हुआ था ?
उत्तर-
पहाड़ी को काटकर बनाया गया कैलाशनाथ मन्दिर ऐलोरा में है। यह राष्ट्रकूट वंश के राज्यकाल में पूरा हुआ था।

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प्रश्न 17.
दक्षिण में नायनार तथा आलवार भक्त कौन-से सम्प्रदायों के साथ सम्बन्धित थे ?
उत्तर-
नायनार भक्त शैव सम्प्रदाय से तथा आलवार भक्त वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे।

प्रश्न 18.
नायनार तथा आलवार भक्त कौन-सी भाषा में लिखते थे तथा उनके दो भजन संग्रहों के नाम बताएं।
उत्तर-
नायनार तथा आलवार भक्त तमिल भाषा में लिखते थे। उनके दो भजन संग्रहों के नाम हैं-तिरुमुराए तथा नलियार प्रबन्धम्।

प्रश्न 19.
शंकराचार्य कहां के रहने वाले थे और उन्होंने किन चार प्रमुख मठों की स्थापना कहां की ? .
उत्तर-
शंकराचार्य केरल के रहने वाले थे। उन्होंने हिमालय में केदारनाथ, दक्षिण में शृंगेरी, उड़ीसा में पुरी तथा सौराष्ट्र में द्वारिका में मठ बनवाये।

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प्रश्न 20.
उत्तरी भारत के कौन-से चार प्रदेश हर्ष के साम्राज्य से बाहर थे ? ।
उत्तर-
उत्तरी भारत के जो चार प्रदेश हर्ष के साम्राज्य से बाहर थे, वे थे-कश्मीर, नेपाल, कामरूप (असम) और सौराष्ट्र।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय की विजयों के बारे में बतायें।
उत्तर-
पुलकेशिन द्वितीय बादामी के पूर्वकालीन पश्चिमी चालुक्यों में सबसे शक्तिशाली शासक था। वह एक महान् विजेता था। उसने 610 ई० से 642 ई० तक शासन किया। उसका राज्य दक्षिणी गुजरात से दक्षिणी मैसूर तक फैला हुआ था। उसने अनेक विजयें प्राप्त की-

  • उसने उत्तरी भारत के सबसे शक्तिशाली राजा हर्षवर्धन को पराजित किया। यह उसकी बहुत बड़ी विजय मानी जाती है।
  • उसने पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन प्रथम को पराजित किया और उसके राज्य के कई प्रदेश अपने अधिकार में ले लिए।
  • उसने राष्ट्रकूटों के आक्रमण का बड़ी वीरता से सामना किया। उसने कादम्बों की राजधानी बनवासी को भी लूटा था।

प्रश्न 2.
हर्ष के अधीन राजाओं के साथ किस प्रकार के सम्बन्ध थे ?
उत्तर-
हर्षवर्धन के साम्राज्य का एक बड़ा भाग अधीन राजाओं का था। उन्होंने हर्ष को अपना महाराजाधिराज स्वीकार कर लिया। वे हर्ष को नियमित रूप से नज़राना देते थे और युद्ध के समय सैनिक सहायता भी करते थे। हर्ष का अपने अधीन सभी शासकों पर नियन्त्रण एक-सा नहीं था। इनमें से कुछ ‘सामन्त’ तथा ‘महासामन्त’ कहलाते थे। कुछ शासकों को राजा की पदवी भी प्राप्त थी। उन्हें कई अवसरों पर सम्राट की वन्दना के लिए स्वयं उपस्थित होना पड़ता था। हर्ष को अपनी सेना सहित अनेक राज्यों में से गुजरने का पूरा अधिकार था। कुछ अधीन राजाओं को अपने पुत्र और निकट सम्बन्धियों को हर्ष के दरबार में रहने के लिए भेजना पड़ता था। जब सामन्त अपने प्रदेश में किसी को लगान-मुक्त भूमि देते तो उन्हें दान-पात्र पर हर्ष द्वारा चलाये गये सम्वत् का प्रयोग करना पड़ता था। कुछ राजाओं को तो लगान-मुक्त भूमि देने के लिए भी सम्राट की आज्ञा लेनी पड़ती थी।

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प्रश्न 3.
हर्ष के राज्य की प्रशासनिक इकाइयों तथा उनके कर्मचारियों के बारे में बताएं।
उत्तर-
हर्ष ने अपने साम्राज्य को भिन्न-भिन्न प्रशासनिक इकाइयों में बांटा हुआ था। बंस-खेड़ा के शिलालेख में उसके साम्राज्य के चार प्रादेशिक भागों का वर्णन है। ये थे-विषय, भुक्ति, पथक और ग्राम। परन्तु मधुबन के शिलालेख में इनमें से केवल पहले, दूसरे और चौथे भागों का उल्लेख है। साम्राज्य का आरम्भिक विभाजन भुक्ति था, जिन्हें प्रान्त समझा जा सकता था। भुक्ति में कई ‘विषय’ होते थे। प्रत्येक विषय में बहुत से ग्राम होते थे। कई प्रदेशों में विषय और ग्राम के बीच एक और प्रशासनिक इकाई होती थी जिसे ‘पथक’ कहते थे।

भुक्ति के अधिकारी को उपरिक कहा जाता था। विषय का सबसे बड़ा अधिकारी विषयपति कहलाता था! ग्राम के प्रमुख अधिकारी को ग्रामक कहते थे। वह अपना कार्य ग्राम के बड़े-बूढ़ों की सभा की सहायता द्वारा करता था।

प्रश्न 4.
हर्ष के अधीन लगान व्यवस्था तथा लगान-मुक्त भूमि के बारे में बताएं।
उत्तर-
हर्षवर्धन के अधीन राज्य की आय का मुख्य साधन लगान (भूमिकर) था। यूनसांग के अनुसार लगान को ‘भाग’, ‘कर’ या ‘उद्रंग’ कहा जाता था। किसानों को कई अन्य कर भी देने पड़ते थे। कहने को तो उन्हें सरकार को भूमि की उपज का छठा भाग ही देना पड़ता था, परन्तु वास्तव में यह दर अधिक थी। कभी-कभी सरकार उनसे छठे भाग से भी अधिक भूमि कर की मांग करती थी। हर्ष ने लगान-मुक्त भूमि के प्रबन्ध को भी विशेष महत्त्व दिया। इसके अनुसार प्रबन्धक कर्मचारियों को सरकार द्वारा वेतन के स्थान पर कुछ भूमि से कर वसूल करने का अधिकार दे दिया जाता था। लगान-मुक्त भूमि का पूरापूरा लिखित हिसाब-किताब रखा जाता था। इसके लिए एक पृथक् विभाग बना दिया गया था। प्रत्येक कर्मचारी को कर-मुक्त भूमि से सम्बन्धित एक ‘आदेश-पत्र’ दिया जाता था जो सामान्यतः ताम्रपत्र पर लिखा होता था।

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प्रश्न 5.
शंकराचार्य के दर्शन तथा कार्य के बारे में बतायें।
उत्तर-
शंकराचार्य 9वीं शताब्दी के महान् विद्वान् तथा दार्शनिक हुए हैं। उन्होंने सभी हिन्दू ग्रन्थों का अध्ययन किया। उनकी योग्यता से प्रभावित होकर उनके गुरु ने उन्हें ‘धर्महंस’ की उपाधि प्रदान की थी। उन्होंने बौध धर्म के दार्शनिकों तथा प्रचारकों को चुनौती दी और उन्हें वाद-विवाद में अनेक बार पराजित किया। उन्होंने भारत की चारों दिशाओं में एक-एक मठ बनवाया। ये मठ थे-जोशी मठ, शृंगेरी मठ, पुरी मठ तथा द्वारिका मठ। यही मठ आगे चलकर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध केन्द्र बने। उन्होंने साधु-संन्यासियों के कुछ संघ भी स्थापित किए। शंकराचार्य के प्रभाव से बौद्ध-दर्शन की शिक्षा बन्द कर दी गई और उसका स्थान हिन्दू दर्शन ने ले लिया। शंकराचार्य ने लोगों में ‘अद्वैत दर्शन’ का प्रचार किया। उन्होंने लोगों को बताया कि ब्रह्म और संसार में कोई अन्तर नहीं है। सभी जीवों की उत्पत्ति ब्रह्म से होती है और अन्त में वे ब्रह्म में ही लीन हो जाते हैं।

प्रश्न 6.
वर्धन काल में दक्षिण में प्रादेशिक अभिव्यक्ति के बारे में बताओ।
उत्तर-
वर्धन काल में देश के दक्षिणी भाग में प्रादेशिक अभिव्यक्ति के प्रमाण मिलते हैं। इस समय तक संस्कृत भाषा का महत्त्व पुनः बढ़ गया था। दक्षिण में तो इसे और भी अधिक महत्त्व दिया जाने लगा। यह वहां के सामाजिक तथा धार्मिक उच्च वर्ग की भाषा बन गई। ऐसा होने पर भी ‘प्राकृत’ भाषा के विकास में कोई अन्तर नहीं आया। इस दृष्टि से ‘तमिल’ भाषा ने भी विशेष उन्नति की। उदाहरणार्थ पल्लव शासकों ने अपने शिलालेखों में संस्कृत का प्रयोग किया। परन्तु उसके शिलालेखों का व्यावहारिक दृष्टि से आवश्यक भाग ‘तमिल’ में ही होता था। इसी प्रकार चालुक्यों के शिलालेखों में ‘कन्नड़’ भाषा तथा कन्नड़ साहित्य का वर्णन मिलता है। इससे भी बढ़ कर पल्लव शासकों का सारा साहित्य तमिल भाषा में ही मिलता है। तमिल देश में तमिल साहित्य का विकास स्पष्ट रूप से प्रादेशिक अभिव्यक्ति की ओर संकेत करता है।

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प्रश्न 7.
हर्ष के समय में नालन्दा के विहार की स्थिति क्या थी ?
उत्तर-
हर्षवर्धन के समय में नालन्दा का मठ अपने चरम शिखर पर था। यूनसांग ने भी अपने विवरण में नालन्दा का बड़ा रोचक वर्णन किया है। यह वर्णन भी नालन्दा के तत्कालीन गौरव की पुष्टि करता है। यूनसांग लिखता है कि भारत में मठों की संख्या हजारों में थी। परन्तु किसी का भी ठाठबाठ और बड़प्पन नालन्दा जैसा नहीं था। नालन्दा के विहार में जिज्ञासु और शिक्षकों सहित दस हज़ार भिक्षु रहते थे। वे महायान और हीनयान सम्प्रदायों के सिद्धान्तों और शिक्षाओं का अध्ययन करते थे। इसके अतिरिक्त यहां वेदों, ‘क्लासिकी रचनाओं, व्याकरण, चिकित्सा और गणित की पढ़ाई भी होती थी। नालन्दा के खण्डहर आज भी बड़े प्रभावशाली हैं।

प्रश्न 8.
वर्धन काल में मन्दिर की संस्था का सामाजिक महत्त्व क्या था ?
उत्तर-
वर्धनकाल में मन्दिर की संस्था को बहुत अधिक सामाजिक महत्त्व दिया जाने लगा था। विद्यालय प्रायः महत्त्वपूर्ण मन्दिरों से ही सम्बन्धित होते थे। लोगों की मन्दिरों में बड़ी श्रद्धा थी। धनी तथा राजा लोग दिल खोल कर मन्दिरों को दान देते थे। साधारण लोग भी मन्दिरों में जाकर मूर्तियां, दीपक, तेल आदि चढ़ाते थे। मन्दिरों में संगीत और नृत्य भी होता था जिसे धर्म का अंग माना जाने लगा था। कई प्रकार के सेवक मन्दिरों में काम करते थे, पर मन्दिर के भीतर पूजा केवल ब्राह्मणों के हाथों में थी। भरत-नाट्यम नृत्यु एक अत्यन्त उच्च कोटि की कला बन गया। इस प्रकार मन्दिर धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन का प्रमुख केन्द्र बन गये। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि शूद्रों और चाण्डालों को मन्दिर में प्रवेश करने की आज्ञा नहीं थी।

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प्रश्न 9.
दक्षिण में नायनार तथा आलवार भक्तों के बारे में बतायें।
उत्तर-
वर्धन काल में कछ शैव और वैष्णव प्रचारकों ने मानवीय देवताओं के प्रति श्रद्धाभक्ति का प्रचार करना आरम्भ कर दिया था। इसका प्रचार करने वाले शैव नेता नायनार तथा वैष्णव नेता आलवार कहलाते थे। उन्होंने शिव तथा विष्णु की आराधना में अनेक भजनों की रचना की जो दिन-प्रतिदिन लोकप्रिय होने लगे। उनके भजनों के संग्रह आज भी उपलब्ध हैं। शैवों के भजन संग्रह ‘तिरुमुराए’ तथा वैष्णवों का भजन संग्रह ‘नलिआर प्रबन्धम्’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होंने भक्त और भगवान् (विष्णु अथवा शिव) के आपसी सम्बन्धों को बहुत अधिक महत्त्व दिया। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि नायनारों तथा आलवारों का सम्बन्ध उच्च वर्गों से नहीं था। वे प्रायः कारीगरों तथा कृषक श्रेणियों से सम्बन्ध रखते थे। उनमें कुछ स्त्रियां भी सम्मिलित थीं। उन्होंने अपना प्रचार साधारण बोलचाल की (तमिल) भाषा में किया और इसी भाषा में अपने भजन लिखे।

प्रश्न 10.
भारत के इतिहास में हूणों ने क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
हूण मध्य एशिया की एक जंगली तथा असभ्य जाति थी। इन लोगों ने छठी शताब्दी के आरम्भ तक उत्तर-पश्चिम भारत के एक बहुत बड़े भाग पर अपना अधिकार जमा लिया। भारत में हूणों के दो प्रसिद्ध शासक तोरमाण तथा मिहिरकुल हुए हैं। तोरमाण ने 500 ई० के लगभग मालवा पर अधिकार कर लिया था। उसने “महाराजाधिराज” की उपाधि भी धारण की। तोरमाण की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र मिहिरकुल अथवा मिहिरगुल ने शाकल (Sakala) को अपनी राजधानी बनाया। उत्तरी भारत के राजाओं के साथ युद्ध में मिहिरकुल पकड़ा गया। बालादित्य उसका वध करना चाहता था, परन्तु उसने अपनी मां के कहने पर उसे छोड़ दिया। इसके पश्चात् उसने गान्धार को विजय किया। कहते हैं कि उसने लंका पर भी विजय प्राप्त कर ली। 542 ई० में मिहिरकुल की मृत्यु हो गई और भारत में हूणों का प्रभाव कम हो गया।

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प्रश्न 11.
मैत्रक कौन थे ? उनके सबसे महत्त्वपूर्ण शासकों का वर्णन करो।
उत्तर-
मैत्रक लोग वल्लभी के शासक थे। ये पहले गुप्त शासकों के अधीन थे। उनकी स्वतन्त्रता की क्रिया बुद्धगुप्त (477-500) के समय में आरम्भ हुई। उसके समय में भ्रात्रक नामक एक मैत्रक सौराष्ट्र के सीमावर्ती प्रान्त का गवर्नर था। भ्रात्रक के बाद उसके पुत्र द्रोण सिंह ने ‘महाराजा’ की उपाधि धारण की और एक प्रकार से अपनी स्वतन्त्रता की घोषणा की।

गुप्त सम्राट् नरसिंह ने भी उसकी इस स्थिति को स्वीकार कर लिया। इस प्रकार स्वतन्त्र मैत्रक राज्य की स्थापना हुई। छठी शताब्दी तक उन्होंने अपनी शक्ति काफ़ी मज़बूत कर ली। यहां तक कि सम्राट हर्षवर्धन ने सातवीं शताब्दी में अपनी पुत्री का विवाह भी वल्लभी के प्रसिद्ध शासक ध्रुवसेन द्वितीय के साथ किया था। हर्ष की मृत्यु के पश्चात् एक मैत्रक शासक धारसेन चतुर्थ ने ‘महाराजाधिराज’ तथा ‘चक्रवर्ती’ की उपाधियां धारण की। 8वीं शताब्दी में वल्लभी राज्य पर अरबों का अधिकार हो गया।

प्रश्न 12.
आप मौखरियों के विषय में क्या जानते हैं ?
उत्तर-
गुप्त वंश के पतन के पश्चात् कन्नौज (कान्यकुब्ज) में मौखरी वंश की नींव पड़ी। इस वंश का प्रथम शासक हरिवर्मन था। उसके उत्तरकालीन गुप्त सम्राटों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध थे। मौखरी वंश का दूसरा प्रसिद्ध शासक ईशान वर्मन (Ishana Varman) था। उसने आन्ध्र एवं शूलिक राज्यों पर विजय प्राप्त की। उसकी मृत्यु पर उसका पुत्र गृहवर्मन उसका उत्तराधिकारी बना। वह मौखरी वंश का अन्तिम सम्राट् था। उसका विवाह हर्ष की बहन राज्यश्री से हुआ था। मालवा के गुप्त सम्राट् देवगुप्त से उसकी शत्रुता थी। देवगुप्त ने गृहवर्मन को पराजित किया और उसे मार डाला। उसने उसकी पत्नी राज्यश्री को भी कारावास में डाल दिया। बाद में अपनी बहन को छुड़ाने के लिए हर्ष के बड़े भाई राज्यवर्धन ने देवगुप्त पर आक्रमण किया और उसका वध कर दिया। अन्त में कन्नौज हर्षवर्धन के साम्राज्य का अंग बन गया।

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प्रश्न 13.
मदुराई के पाण्डेय शासकों के विषय में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर–
पाण्डेय वंश दक्षिणी भारत का एक प्रसिद्ध वंश था। इस वंश द्वारा स्थापित राज्य में मदुरा, तिन्नेवली और ट्रावनकोर के कुछ प्रदेश सम्मिलित थे। मदुरा इस राज्य की राजधानी थी। पाण्डेय वंश का आरम्भिक इतिहास अधिक स्पष्ट नहीं है। सातवीं और आठवीं शताब्दी में पाण्डेय शक्ति में वृद्धि हुई, परन्तु दसवीं शताब्दी में वे चोल राजाओं से पराजित हुए। हारने के बाद वे 12वीं शताब्दी तक चोल नरेशों के अधीन सामन्तों के रूप में प्रशासन करते रहे। 13वीं शताब्दी में उन्होंने पाण्डेय राज्य की फिर से नींव रखी। 14वीं शताब्दी में वे गृह-युद्ध में उलझ गए। तब पाण्डेय वंश के दो भाइयों में सिंहासन प्राप्ति के लिए युद्ध छिड़ गया। इन परिस्थितियों में अलाउद्दीन खिलजी के प्रतिनिधि मलिक काफूर ने पाण्डेय राज्य पर आक्रमण कर दिया। उसने इस राज्य को खूब लूटा। अन्त में द्वारसमुद्र के होयसालों ने पाण्डेय राज्य पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया।

प्रश्न 14.
ह्यूनसांग के विवरण से भारतीय जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है ?
अथवा
‘सी-यू-की’ पुस्तक का लेखक कौन था ? इसका ऐतिहासिक महत्त्व संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
यूनसांग एक चीनी यात्री था। वह बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करने तथा बौद्ध साहित्य का अध्ययन करने के लिए भारत आया था। वह 8 वर्ष तक हर्ष की राजधानी कन्नौज में रहा। उसने ‘सी-यू-की’ नामक पुस्तक में अपनी भारत यात्रा का वर्णन किया है। वह लिखता है कि हर्ष बड़ा परिश्रमी, कर्तव्यपरायण और प्रजाहितैषी शासक था। उस समय का समाज चार जातियों में बंटा हुआ था। शूद्रों से बहुतं घृणा की जाती थी। लोगों का नैतिक जीवन काफ़ी ऊंचा था। लोग चोरी करना, मांस खाना, नशीली वस्तुओं का सेवन करना बुरी बात समझते थे। लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। देश में ब्राह्मण धर्म उन्नति पर था, परन्तु बौद्ध धर्म भी कम लोकप्रिय नहीं था।

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प्रश्न 15.
हर्षवर्धन के चरित्र की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
उत्तर-
हर्षवर्धन एक महान् चरित्र का स्वामी था। उसे अपने परिवार से बड़ा प्रेम था। अपनी बहन राज्यश्री को मुक्त करवाने और उसे ढूंढने के लिए वह जंगलों की खाक छानता फिर । वह एक सफल विजेता तथा कुशल प्रशासक था। उसने थानेश्वर के छोटे से राज्य को उत्तरी भारत के विशाल राज्य का रूप दिया। वह प्रजाहितैषी और कर्तव्यपरायण शासक था।

यूनसांग ने उसके शासन प्रबन्ध की बड़ी प्रशंसा की है। उसके अधीन प्रजा सुखी और समृद्ध थी। हर्ष धर्म-परायण और सहनशील भी था। उसने बौद्ध धर्म को अपनाया और सच्चे मन से इसकी सेवा की। उसने अन्य धर्मों का समान आदर किया। दानशीलता उसका एक अन्य बड़ा गुण था। वह इतना दानी था कि प्रयाग की एक सभा में उसने अपने वस्त्र भी दान में दे दिए थे और अपना तन ढांपने के लिए अपनी बहन से एक वस्त्र लिया था। हर्ष स्वयं एक उच्चकोटि का विद्वान् था और उसने कला और विद्या को संरक्षण प्रदान किया।

प्रश्न 16.
हर्षकालीन भारत में शिक्षा-प्रणाली का वर्णन करो।
उत्तर-
हर्षवर्धन स्वयं एक उच्चकोटि का विद्वान् था। अतः उसके समय में शिक्षा का खूब प्रसार हुआ। आरम्भिक शिक्षा के केन्द्र ब्राह्मणों के घर अथवा छोटे-छोटे मन्दिर थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों को मठों में जाना पड़ता था। उच्च शिक्षा के लिए देश में विश्वविद्यालय भी थे। तक्षशिला का विश्वविद्यालय चिकित्सा-विज्ञान तथा गया का विश्वविद्यालय धर्म शिक्षा के लिए प्रसिद्ध था। ह्यूनसांग ने नालन्दा विश्वविद्यालय को शिक्षा का सबसे बड़ा केन्द्र बताया है। यह पटना से लगभग 65 किलोमीटर दूर नालन्दा नामक गांव में स्थित था। इसमें 8,500 विद्यार्थी तथा 1500 अध्यापक थे। नालन्दा विश्वविद्यालय में प्रवेश पाना कोई सरल कार्य नहीं था। यहां गणित, ज्योतिषशास्त्र, व्याकरण तथा चिकित्सा-विज्ञान आदि विषय भी पढ़ाए जाते थे।

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प्रश्न 17.
पल्लव राज्य की नींव किसने रखी ? इस वंश का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण शासक कौन था ?
उत्तर-
पल्लव राज्य दक्षिण भारत का एक शक्तिशाली राज्य था। हर्षवर्धन के समय इस राज्य में मद्रास, त्रिचनापल्ली, तंजौर तथा अर्काट के प्रदेश शामिल थे। कांची उसकी राजधानी थी। इस राज्य की नींव 550 ई० में सिंह वर्मन ने रखी थी। उसके एक उत्तराधिकारी सिंह विष्णु ने 30 वर्ष तक शासन किया तथा पल्लव राज्य को सुदृढ़ किया। महेन्द्र वर्मन पल्लव वंश का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक था। उसने 600 ई० से 630 ई० तक शासन किया। वह हर्षवर्धन का समकालीन था तथा उसी की भान्ति एक उच्चकोटि का नाटककार तथा कवि था। ‘मत्तविलास प्रहसन’ (शराबियों की मौज) उसकी एक सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है। महेन्द्र वर्मन पहले जैन मत में विश्वास रखता था। परन्तु बाद में वह शैवमत को मानने लगा। उसके समय में महाबलिपुरम में अनेक सुन्दर मन्दिर बने।

प्रश्न 18.
पल्लवों और चालुक्यों के शासनकाल की मन्दिर वास्तुकला का वर्णन करो।
उत्तर-
पल्लव और चालुक्य दोनों ही कला-प्रेमी थे। उन्होंने वैदिक देवी-देवताओं के अनेक मन्दिर बनवाए। ये मन्दिर पत्थरों को काटकर बनाये जाते थे। पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन द्वारा महाबलिपुरम में बनवाये गये सात रथ-मन्दिर सबसे प्रसिद्ध हैं। यह नगर अपने समुद्र तट मन्दिर के लिए भी प्रसिद्ध है। पल्लवों ने अपनी राजधानी कांची में अनेक मन्दिरों का निर्माण करवाया, जिनमें से कैलाश मन्दिर सबसे प्रसिद्ध है। कहते हैं कि ऐहोल में उनके द्वारा बनवाये गए 70 मन्दिर विद्यमान हैं। चालुक्य राजा भी इस क्षेत्र में पीछे नहीं रहे। उन्होंने बादामी और पट्टकदल नगरों में मन्दिरों का निर्माण करवाया। पापनाथ मन्दिर तथा वीरुपाक्ष मन्दिर इनमें से काफ़ी प्रसिद्ध हैं। पापनाथ मन्दिर का बुर्ज उत्तर भारतीय शैली में और वीरुपाक्ष मन्दिर विशुद्ध दक्षिणी भारतीय शैली में बनवाया गया है।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
यूनसांग कौन था ? उसने हर्षकालीन भारत की राजनीतिक, आर्थिक तथा धार्मिक अवस्था के बारे में क्या लिखा है ?
अथवा
यूनसांग हर्ष के शासन-प्रबन्ध के विषय में क्या बताता है ?
उत्तर-
यूनसांग एक प्रसिद्ध चीनी यात्री था। वह हर्ष के शासनकाल में भारत आया। उसे यात्रियों का ‘राजा’ भी कहा जाता है। वह बौद्ध धर्म का अनुयायी था और बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करना चाहता था। इसलिए 629 ई० में वह भारत की ओर चल पड़ा। वह चीन से 629 ई० में चला और ताशकन्द, समरकन्द और बलख से होता हुआ 630 ई० में गान्धार पहुंचा। गान्धार में कुछ समय ठहरने के बाद वह भारत में आ गया। उसने कई वर्षों तक बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा की। वह हर्ष की राजधानी कन्नौज में भी 8 वर्ष तक रहा। अन्त में 644 ई० में वह वापिस चीन लौटा। उसने अपनी भारत यात्रा का वर्णन ‘सीयू-की’ नामक पुस्तक में किया है। इस ग्रन्थ में उसने शासन प्रबन्ध तथा भारत के विषय में अनेक बातें लिखी हैं, जिनका वर्णन इस प्रकार है-

I. हर्ष और उसके शासन-प्रबन्ध के विषय में-यूनसांग ने लिखा है कि राजा हर्ष एक परिश्रमी तथा कर्तव्यपरायण शासक था। वह अपने कर्त्तव्य को कभी नहीं भूलता था। जनता की भलाई करने के लिए वह सदा तैयार रहता था। हर्ष एक बहुत बड़ा दानी भी था। प्रयाग की सभा में उसने अपना सारा धन और आभूषण दान में दे दिये थे। सरकारी भूमि चार भागों में बँटी हुई थी-पहले भाग की आय शासन-कार्यों में, दूसरे भाग की आय मन्त्रियों तथा अन्य कर्मचारियों को वेतन देने में, तीसरे भाग की आय दान में और चौथे भाग की आय विद्वानों आदि को इनाम देने में खर्च की जाती थी। हर्ष का दण्ड विधान काफ़ी कठोर था। कई अपराधों पर अपराधी के नाक-कान काट लिए जाते थे। हर्ष के पास एक शक्तिशाली सेना थी जिसमें पच्चीस हज़ार पैदल, एक लाख घुड़सवार तथा लगभग साठ हजार हाथी थे। सेना में रथ भी थे। सरकार की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। यह कर उपज का 1/6 भाग लिया जाता था। प्रजा से कुछ अन्य कर भी लिये जाते थे, परन्तु ये सभी कर हल्के थे। हर्ष ने एक अभिलेख विभाग की व्यवस्था की हुई थी। यह विभाग उसके शासन-काल की प्रत्येक छोटी-बड़ी घटना का रिकार्ड रखता था।

II. सामाजिक तथा आर्थिक जीवन के विषय में-ह्यूनसांग ने चार जातियों का वर्णन किया है। ये जातियाँ थींब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र । उसके अनुसार शूद्रों से दासों जैसा व्यवहार किया जाता था। इस समय के लोग सादे वस्त्र पहनते थे। पुरुष अपनी कमर के चारों ओर कपड़ा लपेट लेते थे। स्त्रियाँ अपने शरीर को एक लम्बे वस्त्र से ढक लेती थीं। वे श्रृंगार भी करती थीं। लोग चोरी से डरते थे। वे किसी की वस्तु नहीं उठाते थे। माँस खाना और नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना बुरी बात मानी जाती थी। देश की आर्थिक स्थिति अच्छी थी। ग्रामों में खेती-बाड़ी मुख्य व्यवसाय था। नगरों में व्यापार उन्नति पर था। मकान ईंटों और लकड़ी के बनाये जाते थे।

III. धार्मिक जीवन के बारे में-हयूनसांग ने भारत को ‘ब्राह्मणों का देश’ कहा है। वह लिखता है कि देश में ब्राह्मणों का धर्म उन्नति पर था, परन्तु बौद्ध धर्म भी अभी तक काफी लोकप्रिय था। हर्ष प्रत्येक वर्ष प्रयाग में एक सभा बुलाता था। इस सभा में वह विद्वानों तथा ब्राह्मणों को दान दिया करता था।

प्रश्न 2.
हर्षवर्धन की प्रमुख विजयों का वर्णन कीजिए।
अथवा
हर्षवर्धन की किन्हीं पांच सैनिक सफलताओं की व्याख्या कीजिए। विदेशों के साथ उसके कैसे संबंध थे ?
उत्तर-
हर्षवर्धन 606 ई० में राजगद्दी पर बैठा। राजगद्दी पर बैठते समय वह चारों ओर से शत्रुओं से घिरा हुआ था। शत्रुओं से छुटकारा पाने के लिए उसे अनेक युद्ध करने पड़े। कुछ ही वर्षों में लगभग सारे उत्तरी भारत पर उसका अधिकार हो गया। उसकी प्रमुख विजयों का वर्णन इस प्रकार है-

1. बंगाल विजय-बंगाल का शासक शशांक था। उसने हर्षवर्धन के बड़े भाई का धोखे से वध कर दिया था। उससे बदला लेने के लिए हर्ष ने कामरूप (असम) के राजा भास्करवर्मन से मित्रता की। दोनों की सम्मिलित सेनाओं ने शशांक को पराजित कर दिया। परन्तु शशांक जब तक जीवित रहा, उसने हर्ष को बंगाल पर अधिकार न करने दिया। उसकी मृत्यु के पश्चात् ही हर्ष बंगाल को अपने राज्य में मिला सका।

2. पांच प्रदेशों की विजय-बंगाल विजय के पश्चात् हर्ष ने निरन्तर कई वर्षों तक युद्ध किए। 606 ई० से लेकर 612 ई० तक उसने उत्तरी भारत के पांच प्रदेशों पर विजय प्राप्त की। ये प्रदेश सम्भवतः पंजाब, कन्नौज़, बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा थे।

3. वल्लभी की विजय-हर्ष के समय वल्लभी (गुजरात) काफ़ी धनी प्रदेश था। हर्ष ने एक विशाल सेना के साथ वल्लभी पर आक्रमण किया और वहां के शासक ध्रुवसेन को परास्त किया। कहते हैं कि वल्लभी नरेश ने बाद में हर्ष के साथ मित्रता कर ली। ध्रुवसेन के व्यवहार से प्रसन्न होकर हर्ष ने उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया।

4. पुलकेशिन द्वितीय से युद्ध-हर्ष ने उत्तरी भारत की विजय के पश्चात् दक्षिणी भारत को जीतने का निश्चय किया। उस समय दक्षिणी भारत में पुलकेशिन द्वितीय सबसे अधिक शक्तिशाली शासक था। 620 ई० के लगभग नर्मदा नदी के पास दोनों राजाओं में युद्ध हुआ। इस युद्ध में हर्ष को पहली बार पराजय का मुंह देखना पड़ा। अत: वह वापस लौट आया। इस प्रकार दक्षिण में नर्मदा नदी उसके राज्य की सीमा बन गई।

5. सिन्ध विजय-बाण के अनुसार हर्ष ने सिन्ध पर भी आक्रमण किया और वहां अपना अधिकार कर लिया। परन्तु यूनसांग लिखता है कि उस समय सिन्ध एक स्वतन्त्र प्रदेश था। हर्ष ने इस प्रदेश को विजित नहीं किया था।

6. बर्फीले प्रदेश पर विजय-बाण लिखता है कि हर्ष ने एक बर्फीले प्रदेश को विजय किया। यह बर्फीला प्रदेश सम्भवतः नेपाल था। कहते हैं कि हर्ष ने कश्मीर प्रदेश पर भी विजय प्राप्त की थी।

7. गंजम की विजय-गंजम की विजय हर्ष की अन्तिम विजय थी। उसने गंजम पर कई आक्रमण किए, परन्तु शशांक के विरोध के कारण वह इस प्रदेश को विजित करने में सफल न हो सका। 643 ई० में शशांक की मृत्यु के पश्चात् उसने गंजम पर फिर एक बार आक्रमण किया और इस प्रदेश पर अपना अधिकार कर लिया। .

8. राज्य विस्तार-हर्ष लगभग सारे उत्तरी भारत का स्वामी था। उसके राज्य की सीमाएं उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी को छूती थीं। पूर्व में उसका राज्य कामरूप से लेकर उत्तर-पश्चिम में पूर्वी पंजाब तक विस्तृत था। पश्चिम में अरब सागर तक का प्रदेश उसके अधीन था। हर्ष के इस विशाल राज्य की राजधानी कन्नौज़ थी।

9. विदेशों से सम्बन्ध-हर्ष ने चीन और फारस आदि कई देशों के साथ मित्रता स्थापित की। कहते हैं कि हर्ष तथा फारस का शासक समय-समय पर एक-दूसरे को उपहार भेजते रहते थे।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 6 वर्धन सम्राट् एवं उनका काल

प्रश्न 3.
(क) हर्ष के शासन प्रबन्ध की प्रमुख विशेषताएं बताओ। (ख) उसके चरित्र पर भी प्रकाश डालिए।
उत्तर-
(क) यूनसांग के लेखों से हमें हर्ष के राज्य प्रबन्ध के विषय में अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। उसे हर्ष का शासन प्रबन्ध देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई थी। उसने हर्ष के शासन प्रबन्ध के बारे में निम्नलिखित बातें लिखी हैं-

राजा-हर्ष एक प्रजापालक शासक था। वह सदा प्रजा की भलाई में जुटा रहता था। यूनसांग लिखता है कि हर्ष प्रजाहितार्थ कार्य करते समय खाना-पीना और सोना भी भूल जाता था। समय-समय पर वह अपने राज्य में भ्रमण भी करता था। वह बुराई करने वालों को दण्ड देता था तथा नेक काम करने वालों को पुरस्कार देता था।

मन्त्री-राजा की सहायता के लिए मन्त्री होते थे। मन्त्रियों के अतिरिक्त अनेक कर्मचारी थे जो मन्त्रियों की सहायता करते थे।

प्रशासनिक विभाजन-प्रशासनिक कार्य को ठीक ढंग से चलाने के लिए उसने अपने सारे प्रदेश को प्रान्तों, जिलों और ग्रामों में बांटा हुआ था। प्रान्तों का प्रबन्ध ‘उपारिक’ नामक अधिकारी के अधीन होता था। जिले का प्रबन्ध ‘विषयपति’ तथा ग्रामों का प्रबन्ध पंचायतें करती थीं।

आय के साधन-यूनसांग लिखता है कि हर्ष की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। यह कर उपज का 1/6 भाग होता था। इसके अतिरिक्त कई अन्य कर भी थे। कर इतने साधारण थे कि प्रजा उन्हें सरलतापूर्वक चुका सकती थी।

दण्ड विधान-दण्ड बड़े कठोर थे। अपराधी के नाक-कान आदि काट दिए जाते थे।
सेना-हर्ष के पास एक विशाल सेना थी। इस सेना में लगभग दो लाख सैनिक थे। सेना में घोड़े, हाथी तथा रथ का भी प्रयोग किया जाता था।
अभिलेख विभाग-सरकारी काम-काजों का लेखा-जोखा रखने के लिए एक अलग विभाग था।

(ख) हर्ष का चरित्र-हर्षवर्धन एक उच्च कोटि के चरित्र का स्वामी था। उसे अपने भाई-बहन से बड़ा प्रेम था। अपनी बहन राज्यश्री को ढूंढ़ने के लिए वह जंगलों की खाक छानता फिरा। अपने भाई राज्यवर्धन के वध का बदला लेने के लिए हर्ष ने उसके हत्यारे शशांक से टक्कर ली और उसे पराजित किया। इसी प्रकार अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् उसने तब तक राजगद्दी स्वीकार न की, जब तक उसका बड़ा भाई जीवित रहा।

हर्षवर्धन एक वीर योद्धा और सफल विजेता था। विजेता के रूप में उसकी तुलना महान् गुप्त सम्राट् समुद्रगुप्त से की जाती है। उसमें अशोक के गुण भी विद्यमान थे। अशोक की भान्ति वह भी शान्तिप्रिय और धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति था। उसने बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए अनेक कार्य किए और अन्य धर्मों के प्रति सहनशीलता की नीति अपनाई। हर्ष उदार और दानी भी था। उसकी गणना इतिहास में सबसे अधिक दानी राजाओं में की जाती है। कहते हैं कि वह प्रतिदिन 500 ब्राह्मणों और 100 बौद्ध भिक्षुओं को भोजन तथा वस्त्र देता था। प्रयाग की एक सभा में तो उसने अपना सब कुछ दान में दे दिया। यहां तक कि उसने अपने वस्त्र भी दान में दिये और स्वयं अपनी बहन राज्यश्री से एक चादर मांग कर शरीर पर धारण की।

हर्षवर्धन एक उच्चकोटि का विद्वान् था और विद्वानों का आदर करता था। संस्कृत का प्रसिद्ध विद्वान् बाणभट्ट उसी के समय में हुआ था जिसने ‘हर्षचरित’ और ‘कादम्बरी’ जैसे महान् ग्रन्थों की रचना की। हर्ष ने स्वयं भी ‘नागानन्द’, ‘रत्नावली’ तथा ‘प्रिय-दर्शिका’ नामक तीन नाटक लिखे जिन्हें साहित्य के क्षेत्र में उच्च स्थान प्राप्त है। साहित्य में उसकी प्रशंसा करते हुए ई० वी० हवेल ने ठीक ही लिखा है, “हर्ष की कलम में भी वही तीव्रता थी जैसी उसकी तलवार में थी।”

हर्षवर्धन एक उच्च कोटि का शासन प्रबन्धक था। उसने ऐसे शासन प्रबन्ध की नींव रखी जिसका उद्देश्य जनता को सुखी और समृद्ध बनाना था। वह अपने राज्य की आय का पूरा हिसाब रखता था और इसका व्यय बड़ी सूझ-बूझ से करता था। उसका सैनिक संगठन भी काफ़ी दृढ़ था। यह सच है कि उसके समय में सड़कें सुरक्षित नहीं थीं, तो भी उसके कठोर दण्डविधान के कारण राज्य में शान्ति बनी रही। निःसन्देह हर्ष एक सफल शासक था। डॉ० वैजनाथ शर्मा के शब्दों में, “हर्ष एक आदर्श शासक था जिसमें दया, सहानुभूति, प्रेम, भाई-चारा आदि सभी गुण एक साथ विद्यमान थे।”

सच तो यह है कि हर्ष एक महान् विजेता था। उसने अपने विजित प्रदेशों को संगठित किया और लोगों को एक अच्छा शासन प्रदान किया। उसके विषय में डॉ० रे चौधरी ने ठीक कहा है, “वह प्राचीन भारत के महानतम राजाओं में से एक था।”

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 7 दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 7 दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 7 दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ

PSEB 11th Class Agriculture Guide दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
प्रायः गाय के दूध से कितना खोया तैयार हो सकता है ?
उत्तर-
एक किलो दूध से लगभग 200 ग्राम खोया तैयार हो जाता है।

प्रश्न 2.
भंस के दूध से आमतौर पर कितना खोया तैयार हो सकता है ?
उत्तर-
एक किलो दूध से लगभग 250 ग्राम खोया तैयार हो जाता है।

प्रश्न 3.
गाय के एक किलोग्राम दूध में से कितना पनीर तैयार हो सकता है ?
उत्तर-
180 ग्राम।

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प्रश्न 4.
भैंस के एक किलोग्राम दूध में से कितना पनीर तैयार हो सकता है ?
उत्तर-
250 ग्राम।

प्रश्न 5.
जाग लगा कर दूध से बनाए जाने वाले पदार्थ लिखो।
उत्तर-
दही, लस्सी।

प्रश्न 6.
गाय के दूध में कितने प्रतिशत फैट होती है ?
उत्तर-
कम से कम 4%1

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प्रश्न 7.
गाय के दूध में कितने प्रतिशत एस०एन०एफ० होती है ?
उत्तर-
8.5% एस०एन०एफ० होती है।

प्रश्न 8.
भैंस के दूध में कितने प्रतिशत फैट होती है ?
उत्तर-
6% फैट होती है।

प्रश्न 9.
भैंस के दूध में कितने प्रतिशत एस०एन०एफ० होती है ?
उत्तर-
9% एस०एन०एफ० ।

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प्रश्न 10.
टोन्ड दूध में कितनी फैट होती है ?
उत्तर-
टोन्ड दूध में 3% फैट होती है।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो –

प्रश्न 1.
मनुष्य के खाद्य में दूध का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
दूध में सरलता से पचने वाले पौष्टिक तत्व होते हैं। दूध एक संतुलित आहार है तथा शाकाहारी प्राणियों के आहार का अनिवार्य भाग है। मनुष्य दूध का प्रयोग जन्म से लेकर सारी ज़िन्दगी किसी न किसी रूप में करता रहता है। दूध में फैट, प्रोटीन, धातु, विटामिन आदि आहारीय तत्व होते हैं।

प्रश्न 2.
दूध में कौन-कौन से खाद्य तत्त्व पाए जाते हैं ?
उत्तर-
दूध में हड्डियों की बनावट तथा मज़बूती के लिए धातु जैसे-कैल्शियम आदि होता है, प्रोटीन, फैट, विटामिन आदि लगभग सभी पौष्टिक तत्त्व होते हैं।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 7 दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ

प्रश्न 3.
व्यापारिक स्तर पर दूध से कौन-कौन से पदार्थ बनाए जाते हैं ?
उत्तर-
खोया, पनीर, दहीं आदि तथा खोया तथा पनीर के प्रयोग से कई तरह की मिठाइयां बनाई जाती हैं।

प्रश्न 4.
खोये को कितने डिग्री तापमान पर कितने दिन तक रखा जा सकता है ?
उत्तर-
खोए को आम तापमान पर 13 दिनों के लिए तथा कोल्ड स्टोर में ढाई माह तक आसानी से संभाल कर रख सकते हैं।

प्रश्न 5.
घी को ज्यादा समय के लिए किस तरह संभाल कर रखा जा सकता है ?
उत्तर-
घी में पानी की मात्रा बहुत कम होनी चाहिए तथा टीन के सील बंद डिब्बे के अंदर घी को 21°C पर छः माह के लिए संभाला जा सकता है।

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प्रश्न 6.
पनीर को कितने डिग्री तापमान पर कितने दिन तक रखा जा सकता है ?
उत्तर-
पनीर को ठीक ढंग से बनाया गया हो तो दो सप्ताह के लिए फ्रीज में स्टोर किया जा सकता है। पनीर बनाने के भिन्न-भिन्न तरीकों के अनुसार पनीर को 2-4 दिनों से 5-6 माह तक स्टोर किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
दूध के पदार्थ बनाने के लिए प्रशिक्षण कहां से लिया जा सकता है ?
उत्तर-
पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना, गडवासु लुधियाना तथा नैशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीच्यूट करनाल से ली जा सकती है।

प्रश्न 8.
उब्ल टोन्ड और स्टैंडर्ड दूध के स्तर लिखो।
उत्तर-
PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 7 दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ 1

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प्रश्न 9.
खोये को सुरक्षित रखने का तरीका लिखो।
उत्तर-
खोये को संभालने के लिए पोलीथीन कागज़ में लपेट कर ठंडे स्थान पर रखा जाता है। खोये को आम तापमान पर 13 दिन तक तथा कोल्ड स्टोर में अढाई माह तक रखा जा सकता है।

प्रश्न 10.
खोये से बनने वाली मिठाइयों के नाम लिखो।
उत्तर-
खोये से बनने वाली मिठाइयां हैं-पेड़े, गुलाब जामुन, कलाकंद, बर्फी आदि।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो –

प्रश्न 1.
दूध के पदार्थ बनाकर बेचने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
कच्चा दूध जल्दी ही खराब हो जाता है। इसलिए दूध से दूध की वस्तुएं बनाई जाती हैं ताकि दूध को लम्बे समय तक संभाल कर रखा जा सके। दूध की तुलना में दूध से बने पदार्थ महंगे भाव के बिकते हैं तथा दूध उत्पादक को अच्छा लाभ मिल जाता है। दूध के पदार्थ दूध से भार तथा आकार में कम होते हैं तथा इनको लाने ले जाने का खर्चा भी कम होता है तथा आसान भी रहता है। इनके मण्डीकरण में बिचोले नहीं होते। इसलिए आमदन भी अधिक होती है। घर के सदस्यों को घर में ही रोजगार मिल जाता है।

प्रश्न 2.
पनीर बनाने की विधि लिखो।
उत्तर-
उबलते दूध में तेज़ाबी घोल, सिट्रिक तेज़ाब (नींबू का सत्) या लैक्टिक तेज़ाब डाल कर फटाया जाता है। फ़टे दूध पदार्थ को मलमल के कपड़े में डाल कर इसमें से पिच्छ को अलग कर दिया जाता है। फिर ठण्डा करके इसको पैक करके संभाल लिया जाता है या प्रयोग कर लिया जाता है। इसको दो सप्ताह तक फ्रीज में रखा जा सकता है।

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प्रश्न 3.
खोया बनाने की विधि लिखो।
उत्तर-
दूध को कड़ाही में डाल कर गर्म किया जाता है तथा बहुत संघन होने तक इसे खुरचने से हिलाते रहते हैं तथा कड़ाही को खुरचते रहते हैं। इसके बाद कड़ाही को आग से उतार कर संघन पदार्थ को ठंडा करके खोए का पेड़ा बना लिया जाता है। गाय के एक किलो दूध में 200 ग्राम तथा भैंस के एक किलोग्राम दूध से 250 ग्राम खोया तैयार हो जाता है।

प्रश्न 4.
अलग-अलग श्रेणियों के दूध के क्या कानूनी स्तर हैं ?
उत्तर-
दूध के पदार्थों का मण्डीकरण करने के लिए कुछ कानूनी स्तरों को ध्यान में रखना चाहिए। यह स्तर हैं-

  • पदार्थ बनाते समय सफाई का पूरा ध्यान रखना चाहिए।
  • पदार्थ को बेचने के लिए पैक करके इसके ऊपर लेबल लगा कर पूरी जानकारी लिखनी चाहिए।
  • पदार्थ संबंधी मशहूरी या इश्तिहार में ठीक-ठीक सूचना देनी चाहिए।
  • पदार्थों में मानकीय गुणवत्ता बनाए रखनी चाहिए।

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प्रश्न 5.
दूध के पदार्थ बनाकर बेचते समय मण्डीकरण के कौन-कौन से तथ्यों की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है ?
उत्तर-

  • शहरी मण्डी तथा गांव के उत्पादकों में दूरी को समाप्त करना चाहिए।
  • दूध की प्रोसेसिंग तथा जीवाणु रहित डिब्बाबंदी की आधुनिक तकनीकों को अपनाना चाहिए।
  • उत्पादकों को अपने क्षेत्र में आसानी से बिकने वाले पदार्थ बनाने चाहिए।
  • दूध उत्पादकों को इकट्ठे होकर सहकारी सभाएं बना कर उत्पाद बेचने चाहिए।
  • दूध उत्पादकों को व्यापारिक स्तर पर आधुनिक तकनीकों का प्रयोग करके पदार्थ बनाने चाहिए।
  • कानूनी स्तरों का ध्यान रखना चाहिए।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दूध से तैयार पदार्थों की ढुलाई आसान क्यों हो जाती है ?
उत्तर-
क्योंकि दूध पदार्थों का भार कम हो जाता है।

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प्रश्न 2.
खोए को साधारण तापमान पर कितने दिनों के लिए संभाल कर रख सकते हैं ?
उत्तर-
13 दिनों तक।

प्रश्न 3.
दूध से पनीर बनाने के लिए गर्म दूध में क्या मिलाया जाता है ?
उत्तर-
नींबू का सत् (सिट्रिक एसिड)।

प्रश्न 4.
घी जल्दी खराब होने के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
आवश्यकता से अधिक पानी की मात्रा, प्रकाश तथा हवा।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 7 दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ

प्रश्न 5.
पनीर से तैयार होने वाली मिठाइयां कौन-सी हैं ?
उत्तर-
रसगुल्ला, छैना मुर्गी।

प्रश्न 6.
नैशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीच्यूिट कहां है ?
उत्तर-
करनाल में।

प्रश्न 8.
टोन्ड दूध में कितनी फैट होती है ?
उत्तर-
3.0%.

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प्रश्न 9.
टोन्ड दूध में एस०एन०एफ० की मात्रा बताओ।
उत्तर-
8.5%.

लघु उत्तरीय प्रश्न –

प्रश्न 1.
दूध किनके खाद्य का महत्त्वपूर्ण अंग है ?
उत्तर–
गर्भवती औरतों, बच्चों, नौजवानों, बड़ी आयु के इन्सानों तथा रोगियों के खाद्य का महत्त्वपूर्ण अंग है।

प्रश्न 2.
दूध के पदार्थ बना कर बेचने का एक लाभ बताओ।
उत्तर-
दूध के पदार्थ बना कर बेचने से दूध की तुलना में अधिक लाभ मिल जाता है।

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प्रश्न 3.
दूध का आधा हिस्सा किस तरह खपत हो जाता है ?
उत्तर-
दूध की कुल पैदावार का लगभग आधा हिस्सा आम प्रचलित दूध पदार्थों को बनाने में खपत हो जाता है।

प्रश्न 4.
दूध से कौन-कौन से पदार्थ बनाए जाते हैं ?
उत्तर-
खोए की मिठाई, छैने की मिठाई, खीर, रबड़ी, कुलफी, आईसक्रीम, टोन्ड दूध, स्परेटा दूध, दही, गाढ़ा दूध, दूध का पाऊडर, मक्खन, बच्चों के लिए दूध का पाऊडर आदि।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न-
घी बनाने तथा संभालने का ढंग बताओ।
उत्तर-
दूध में से मक्खन या क्रीम निकाल कर गर्म करके घी बनाया जाता है। घी को संभालने के लिए इसको अच्छी तरह बंद कर के रखा जाता है। प्रकाश तथा हवा से घी जल्दी खराब हो जाता है। इसलिए इसको सील बंद डिब्बे में रखना चाहिए। घी में पानी की अधिक मात्रा होने से यह जल्दी खराब हो जाता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 7 दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ

दूध और दूध से बनने वाले पदार्थ PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • मानवता के लिए दूध का वरदान मिला है। दूध एक अनमोल (बहुमूल्य) तथा बहुत बढ़िया पौष्टिक पदार्थ है।
  • दूध में कई आहारीय तत्व जैसे-प्रोटीन, हड्डियों के लिए कैल्शियम, अन्य धातुएं आदि होते हैं।
  • दूध के मण्डीकरण में सहकारी सभाओं का बहुत योगदान है।
  • गाय के दूध में कम-से-कम फैट की मात्रा 4% होनी चाहिए तथा एस०एन०एफ० (Solid not fat S.N.F.) की मात्रा 8.5% होनी चाहिए।
  • भैंस के दूध में फैट की मात्रा 6% तथा एस०एन०एफ० की मात्रा 9% होनी चाहिए।
  • दूध की श्रेणियां हैं-टोन्ड दूध, डबल टोन्ड दूध, स्टैंडर्ड दूध।
  • कच्चा दूध जल्दी खराब हो जाता है। इसलिए दूध के पदार्थ बनाकर इसको लम्बे समय तक संभाला जा सकता है।
  • दूध के पदार्थों से दूध की तुलना में अधिक कमाई की जा सकती है।
  • दूध से बनाए जाने वाले पदार्थ हैं-खोया, पनीर, घी, दही आदि।
  • गाय के एक किलोग्राम दूध में से 200 ग्राम खोया तथा 180 ग्राम पनीर मिल जाता है।
  • भैंस के एक किलोग्राम दूध में 250 ग्राम खोया तथा 250 ग्राम पनीर मिल जाता
  • आधुनिक तकनीकों से दूध पदार्थ बनाने की जानकारी पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना, गुरु अंगद देव वैटरनरी तथा एनीमल साईंसज़ विश्वविद्यालय, लुधियाना तथा नैशनल डेयरी रिसर्च ईस्टीच्यूट, करनाल से भी प्राप्त की जा सकती है।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

Punjab State Board PSEB 12th Class Political Science Book Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Political Science Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

दीर्घ उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक समाजीकरण से आप क्या समझते हैं? राजनीतिक समाजीकरण की विशेषताओं का वर्णन करें।
(What do you understand by Political Socialization ? Explain the features of Political Socialization.)
उत्तर-
आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण की एक महत्त्वपूर्ण धारणा राजनीतिक समाजीकरण है, जिसका महत्त्व बहुत बढ़ गया है, क्योंकि यह राजनीतिक संस्कृति और अन्त में राजनीतिक प्रणाली का आधार है।

ऑल्मण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) के अनुसार, “राजनीतिक स्थायित्व और विकास को समझने के लिए राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन एक महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण है। आधुनिक विश्व में इसका विशेष महत्त्व महान् परिवर्तनों के कारण है जो आधुनिक समाजों को प्रभावित कर रहे हैं।” व्यक्ति राजनीति में भाग लेता है या नहीं, यदि वह लेता है तो किस रूप में, यदि नहीं, तो क्यों ? ये सब बातें राजनीतिक समाजीकरण से सम्बन्धित हैं।

इसका क्रमबद्ध अध्ययन 1959 में हरबर्ट हीमैन (Herbert Hyman) की पुस्तक ‘राजनीतिक समाजीकरण’ (Political Socialization) के प्रकाशित होने के बाद प्रारम्भ हुआ। आधुनिक युग में राजनीतिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए शिक्षा पर विशेष बल दिया जाता है। सर्व साम्यवादी समाज की स्थापना करने के लिए उनको राजनीतिक प्रशिक्षण देना अनिवार्य है।

परिभाषाएं (Definitions)-राजनीतिक समाजीकरण की विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न परिभाषाएं की हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं
ऑल्मण्ड तथा पॉवेल (Almond and Powell) का कथन है, “राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों को बनाए रखा या बदला जाता है।”

एस० एन० इजेन्स्टेड (S.N. Essenstadt) के अनुसार, “जिनके साथ व्यक्ति धीरे-धीरे सामान्य सम्बन्ध स्थापित करता है, उनसे सीखने एवं उनके साथ संचार को ही राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं।”

आस्टिन रेनी (Austin Ranney) के अनुसार, “राजनीतिक समाजीकरण का साधारणतया अर्थ जनता का समाजीकरण है, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा आम लोग अपनी राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अपना व्यवहार विकसित करते हैं।”

ऐलन आर० बाल (Allan R. Ball) के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यवहार और विचारों का विकास एवं स्थायित्व ही राजनीतिक समाजीकरण है।
इन परिभाषाओं से स्पष्ट है कि जो बातें व्यक्ति को राजनीतिक संस्कृति से परिचित करवाती हैं या उसमें राजनीतिक अनुकूलन (Political orientation) की उत्पत्ति व विकास करती हैं, उन्हें हम राजनीतिक समाजीकरण का नाम दे सकते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 2.
राजनीतिक समाजीकरण का क्या भाव है ? इसके साधनों की चर्चा करें।
(What do you understand by Political Socialization ? Discuss its various Agencies.)
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण से क्या अभिप्राय है ? राजनीतिक समाजीकरण के निर्माण व प्रगटावे के चार साधनों का वर्णन करें।
(What is Political Socialization ? Explain four Agents and Agencies of formation and expression of Political Socialization.)
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ? राजनीतिक समाजीकरण प्रकट करने वाले चार साधनों का वर्णन करें।
(What do you mean by the term Political Socialization ? Describe four agents to reveal Political Socialization.)
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ-इसके लिए प्रश्न नं० 1 देखें।
राजनीतिक समाजीकरण के साधन-राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया में बहुत-से तत्त्व हैं, जिनमें मुख्य निम्नलिखित हैं-

1. परिवार (Family) परिवार को नागरिक गुणों की प्रथम पाठशाला कहा गया है। परिवार से बच्चा बहुत कुछ सीखता है, राजनीतिक अनुकूलन भी सीखता है। सत्ता के प्रति आदर की भावना व्यक्ति परिवार से ही सीखता है। बटलर तथा स्टोक (Butler and Stoke) ने लिखा है, “परिवार को बच्चे के लिए बाहर की दुनिया पर खुलने वाली पहली खिड़की कहना चाहिए, यह बच्चे का सत्ता के साथ पहला सम्पर्क है……।” परिवार से ही बच्चे में यह भावना उत्पन्न होती है कि कार्य करते हुए उसे अपना समझकर करे और यह भागीदारी संस्कृति को जन्म देती है। निर्णय करने में भाग लेने से बच्चे में राजनीतिक व्यवस्था में सक्रिय भाग लेने की इच्छा उत्पन्न होती है और उसका राजनीतिक अनुकूलन विकसित होता जाता है।

2. शिक्षा संस्थाएं (Educational Institutions)-आल्मण्ड तथा पावेल (Almond and Powell) के अनुसार, “स्कूल ढांचा राजनीतिक समाजीकरण को प्रभावित करने वाला दूसरा शक्तिशाली तत्त्व है।”
स्कूलों-कॉलेजों में राजनीतिक समस्याओं पर विचारों का आदान-प्रदान होता है, राजनीतिक ढांचों के बारे में जानकारी दी जाती है और राजनीतिक घटनाओं पर टीका-टिप्पणी भी होती है। मॉडर्न या पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में दूसरे स्कूलों के बच्चों की अपेक्षा अधिक अनुशासन पाया जाता है।

3. विशिष्ट समूह (Peer Groups) विशिष्ट समूह राजनीतिक अनुकूलन उत्पन्न करने तथा विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, विशेषकर औद्योगिक समाज में जहां पारिवारिक बन्धन ढीले होते हैं। विशिष्ट समूह से हमारा अभिप्राय ऐसे समूहों से है जिनमें लगभग एक समान आयु के व्यक्ति सम्मिलित हों और उनकी स्थिति भी लगभग एक समान हो। विशिष्ट समूह ही व्यक्तियों में आज्ञापालन तथा मिल-जुलकर काम करने की भावना पैदा करते हैं।

4. रोज़गार के अनुभव (Experience in Employment) रोज़गार के अनुभव भी व्यक्ति में राजनीतिक अनुकूलन पैदा करते हैं। आल्मण्ड तथा पावेल के अनुसार, “रोज़गार के अनुभव भी राजनीतिक अनुकूलन का निर्माण करते हैं।” व्यक्ति अपने सम्बन्धित रोज़गार संघ का सदस्य बनता है, कई बार संघ का सदस्य होने के नाते सरकार के विरुद्ध संघर्ष भी करता है, जिससे उसमें सामूहिक रूप से काम करने की भावना उत्पन्न होती है। इस प्रकार रोज़गार के अनुभव व्यक्ति में राजनीतिक अनुकूलन का विकास करते हैं।

5. धर्म (Religion)-धर्म भी राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है। धार्मिक संस्थाएं राजनीतिक समाजीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान देती हैं।

6. राजनीतिक दल (Political Parties)-लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था में राजनीतिक दलों का होना अनिवार्य है। राजनीतिक दलों में लोगों की एक बहुत बड़ी संख्या एक लम्बे समय तक निरन्तर भाग लेती है। राजनीतिक दल अपनी गतिविधियों द्वारा राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया को निरन्तर चलाए रखते हैं।

7. मताधिकार (Franchise), मताधिकार राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्वपूर्ण साधन है, प्रायः सभी लोकतान्त्रिक देशों में नागरिकों को वयस्क मताधिकार प्राप्त हैं। निश्चित अवधि के पश्चात् विधानमण्डल के चुनाव होते हैं और मतदान वाले दिन नागरिक अपना वोट डालने मतदान केन्द्र पर जाते हैं और अपनी राजनीतिक सूझबूझ से मत का प्रयोग करते हैं। मतदान से पूर्व जब दलों के नेता और उम्मीदवार मतदाता के पास जाते हैं तब उनका राजनीतिक विकास होता है।

8. सरकार की गतिविधियां (Activities of Government) सरकार की गतिविधियां राजनीतिक समाजीकरण का साधन हैं। सरकार सार्वजनिक नीतियां, योजनाएं एवं कानून बनाती है। सरकार की नीतियां एवं कानून अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। कुछ लोग सरकार की नीतियों से सन्तुष्ट होते हैं और कुछ असन्तुष्ट हो सकते हैं। जो लोग सरकार की नीतियों से सन्तुष्ट होते हैं, वे राजनीतिक व्यवस्था के प्रतिनिष्ठा रखते हैं। जो लोग सरकार की गतिविधियों से सन्तुष्ट नहीं होते, वे राजनीतिक व्यवस्था से दूर रहते हैं और विरोध करते हैं। अतः ऐसे लोग राजनीतिक व्यवस्था के स्थायित्व के लिए चुनौती बन जाते हैं।

9. प्रचार साधन (Mass Media)-सूचना तथा प्रसार के साधन जैसे कि प्रेस, समाचार-पत्र, रेडियो, टेलीविज़न आदि भी राजनीतिक समाजीकरण के महत्त्वपूर्ण तत्त्व हैं। इनके द्वारा लोगों को राजनीतिक सूचना मिलती है, विभिन्न घटनाओं पर लोगों के विचार पढ़ने व सुनने को मिलते हैं।

10. प्रतीक (Symbols)-राजनीतिक और सामाजिक प्रतीक भी राजनीतिक समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है और राजनीतिक अनुकूलन के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन प्रतीकों में देशभक्तों के जन्मदिन शहीदी दिवस, राष्ट्रीय महत्त्व की घटनाओं को उत्सव के रूप में मनाना आदि सम्मिलित है।

11. साहित्य (Literature) साहित्य भी राजनीतिक समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है। व्यक्ति जिस प्रकार के साहित्य का अध्ययन करता है, उसके अनुरूप ही उसके विचारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जैसे श्री भगवद्गीता ने महात्मा गांधी की राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित किया था।

12. महान् राष्ट्रीय नेताओं के भाषण और लेख (Speeches and Writings of Great National Leaders)-महान् राष्ट्रीय नेताओं के भाषण और लेख एक महत्त्वपूर्ण साधन हैं। विकासशील देशों में करिश्माई व्यक्तित्व व राष्ट्रीय नेताओं के विचारों एवं आदर्शों का विशेष महत्त्व होता है। राष्ट्रीय नेता जब लोगों के सामने अपने राजनीतिक विचार एवं आदर्श रखते हैं तो जनता साधारणतया उनको मान लेती है और लोग उनके विचारानुसार ही अपने राजनीतिक विचार बनाने लग जाते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनैतिक समाजीकरण से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण की एक महत्त्वपूर्ण धारणा राजनीतिक समाजीकरण है, जिसका महत्त्व बढ़ गया है, क्योंकि यह राजनीतिक संस्कृति और अन्त में राजनीतिक प्रणाली का आधार है। राजनीतिक समाजीकरण राजनीतिक तथा सामाजिक व्यवस्थाओं को जोड़ने वाली एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है। राजनीतिक समाजीकरण का महत्त्व उस समय अधिक बढ़ जाता है जब हम राजनीतिक सहभागिता (Political Participation) का अध्ययन करते हैं। व्यक्ति राजनीति में भाग लेता है या नहीं, यदि वह भाग लेता है तो किस रूप में, यदि नहीं, तो क्यों ? ये सब बातें राजनीतिक समाजीकरण से सम्बन्धित हैं। जो बातें व्यक्ति को राजनीतिक गतिविधियां, राजनीतिक ढांचे तथा राजनीतिक व्यवस्था से परिचित करती हैं, उन्हें हम राजनीतिक समाजीकरण का नाम देते हैं।

प्रश्न 2.
राजनीतिक समाजीकरण की चार परिभाषाएं लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  • आल्मण्ड तथा पॉवेल का कथन है, “राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृति को बनाए रखा या बदला जाता है।”
  • डेनिस कावनाग ने लिखा है, “राजनीतिक समाजीकरण की शब्दावली उस प्रक्रिया का वर्णन करने के लिए प्रयोग की जाती है जिसके द्वारा व्यक्ति राजनीति के प्रति अनुकूलन सीखता और विकसित करता है।”
  • ऑस्टिन रेनी के अनुसार, “राजनीतिक समाजीकरण का साधारणतया अर्थ जनता का समाजीकरण है, वह प्रक्रिया जिसके द्वारा आम लोग अपनी राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अपना व्यवहार विकसित करते हैं।”
  • एलन आर० बाल के अनुसार, “राजनीतिक व्यवस्था के प्रति व्यवहार और विचारों का विकास एवं स्थायित्व ही राजनीतिक समाजीकरण।”

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 3.
राजनीतिक समाजीकरण की कोई तीन विशेषताएं लिखिए।
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण की कोई चार विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है-राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया किसी विशेष समाज में ही नहीं होती बल्कि राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है। राजनीतिक प्रणाली चाहे लोकतान्त्रिक हो या सर्वाधिकारवादी, राजनीतिक समाजीकरण का पाया जाना अनिवार्य है।
  • सीखने की प्रक्रिया-राजनीतिक समाजीकरण मूलतः सीखने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रियाओं का एक प्रतिरूप
  • राजनीतिक समाजीकरण का सम्बन्ध समस्त राजनीतिक जीवन से-राजनीतिक समाजीकरण में केवल राजनीतिक अध्ययन ही शामिल नहीं होता, बल्कि इसका सम्बन्ध, समस्त अध्ययन जो राजनीतिक जीवन से सम्बन्ध रखता है, से होता है।
  • राजनीतिक समाजीकरण में औपचारिक और अनौपचारिक दोनों प्रकार की राजनीतिक शिक्षा शामिल है।

अति लघु उत्तरीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
राजनीतिक समाजीकरण का अर्थ लिखें।
उत्तर-
आधुनिक राजनीतिक विश्लेषण की एक महत्त्वपूर्ण धारणा राजनीतिक समाजीकरण है, जिसका महत्त्व बढ़ गया है, क्योंकि यह राजनीतिक संस्कृति और अन्त में राजनीतिक प्रणाली का आधार है। जो बातें व्यक्ति को राजनीतिक गतिविधियां, राजनीतिक ढांचे तथा राजनीतिक व्यवस्था से परिचित करती हैं, उन्हें हम राजनीतिक समाजीकरण का नाम देते हैं।

PSEB 12th Class Political Science Solutions Chapter 4 राजनीतिक समाजीकरण

प्रश्न 2.
राजनीतिक समाजीकरण की कोई दो विशेषताएं लिखें।
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं

  • राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है-राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया किसी विशेष समाज में ही नहीं होती बल्कि राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया सभी समाजों में पाई जाती है।
  • सीखने की प्रक्रिया-राजनीतिक समाजीकरण मूलतः सीखने की प्रक्रिया है। यह प्रक्रियाओं का एक प्रतिरूप है।

प्रश्न 3.
राजनीतिक समाजीकरण के दो प्रकार लिखें।
उत्तर-

  • प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण-जब व्यक्ति प्रकट अथवा प्रत्यक्ष साधनों द्वारा राजनीतिक प्रणाली के प्रति अनुकूलन ग्रहण करता है तो उसे प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण कहा जाता है।
  • लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष समाजीकरण-जब व्यक्ति अप्रत्यक्ष साधनों द्वारा राजनीतिक संस्कृति के मूल्यों को ग्रहण करता है तब उसे लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष समाजीकरण कहा जाता है।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक समाजीकरण के दो साधन लिखिए।
उत्तर-

  • परिवार-परिवार को नागरिक गुणों की प्रथम पाठशाला कहा गया है। परिवार से बच्चा बहुत कुछ सीखता है, राजनीतिक अनुकूलन भी सीखता है। सत्ता के प्रति आदर की भावना व्यक्ति परिवार से ही सीखता है।
  • शिक्षा संस्थाएं-स्कूलों-कॉलेजों में राजनीतिक समस्याओं पर विचारों का आदान-प्रदान होता है, राजनीतिक ढांचों के बारे में जानकारी दी जाती है और राजनीतिक घटनाओं पर टीका-टिप्पणी भी होती है। मॉडर्न या पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों में दूसरे स्कूलों के बच्चों की अपेक्षा अधिक अनुशासन पाया जाता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न-

प्रश्न I. एक शब्द/वाक्य वाले प्रश्न-उत्तर-

प्रश्न 1.
राजनीतिक समाजीकरण के कोई दो साधनों के नाम लिखें।
अथवा
राजनीतिक समाजीकरण के दो साधन बताइए।
उत्तर-

  1. परिवार
  2. शिक्षण संस्थाएं।

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प्रश्न 2.
मानव जीवन के किस स्तर पर राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया होती है ?
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण की क्रिया जीवन भर होती रहती है।

प्रश्न 3.
राजनीतिक समाजीकरण से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
राजनीतिक समाजीकरण उस विधि का नाम है जिस द्वारा व्यक्ति राजनीतिक प्रणाली के प्रति आचारव्यवहार सीखता है।

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प्रश्न 4.
राजनीतिक समाजीकरण की कोई एक परिभाषा लिखें।
उत्तर-
आलमण्ड तथा पॉवेल के अनुसार, “राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों को बनाए रखा या बदला जाता है।”

प्रश्न 5.
राजनीतिक समाजीकरण का राजनीतिक संस्कृति से क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर-
राजनीतिक संस्कृति को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को देने की प्रक्रिया को ही राजनीतिक समाजीकरण का नाम दिया जाता है।

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प्रश्न 6.
राजनीतिक समाजीकरण की दो किस्मों के नाम बताएं।
उत्तर-

  1. प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण।
  2. लुप्त अथवा अप्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण।

प्रश्न 7.
राजनीतिक दल राजनीतिक समाजीकरण में क्या भूमिका निभाते हैं ?
उत्तर-
राजनीतिक दल अपनी नीतियों और कार्यक्रम लोगों के समक्ष रखते हैं। सरकारी नीतियों की विपक्षी दलों द्वारा आलोचना और शासक दल द्वारा विपक्षी दलों की आलोचना की जाती है। यह सब कुछ राजनीतिक समाजीकरण कहलाता है।

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प्रश्न 8.
प्रकट राजनीतिक समाजीकरण (प्रयत्न) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
जब व्यक्ति प्रकट अथवा प्रत्यक्ष साधनों द्वारा राजनीतिक प्रणाली के प्रति अनुकूलन ग्रहण करता है तो उसे प्रकट अथवा प्रत्यक्ष राजनीतिक समाजीकरण कहा जाता है।

प्रश्न 9.
राजनीतिक समाजीकरण की प्रक्रिया में संचार के साधनों का महत्त्व बताएं।
उत्तर-
आकाशवाणी और दूरदर्शन संचार के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण साधन हैं। इन साधनों द्वारा अशिक्षित, अविकसित और अन्य समस्त लोगों के दृष्टिकोण को प्रभावित किया जा सकता है।

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प्रश्न 10.
परिवार राजनीतिक समाजीकरण में क्या भूमिका निभाते हैं।
उत्तर-
परिवार में बच्चा आज्ञा-पालन, सहनशीलता, अनुशासन आदि के गुण सीखता है।

प्रश्न 11.
प्रेस राजनीतिक समाजीकरण में क्या भूमिका निभाता है ?
उत्तर-
प्रेस द्वारा लोगों को राजनीतिक घटनाओं एवं सूचनाओं के विषय में जानकारी मिलती है जिससे वे किसी राजनीतिक विषय पर अपना मत कायम करते हैं।

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प्रश्न II. खाली स्थान भरें-

1. राजनीतिक समाजीकरण नामक पुस्तक ………… ने लिखी।
2. राजनीतिक समाजीकरण नामक पुस्तक सन् ……….. में प्रकाशित हुई।
3. ……….. के अनुसार राजनीतिक समाजीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों को बनाए रखा या बदला जाता है।
4. परिवार राजनीतिक समाजीकरण की एक महत्त्वपूर्ण ………… है।
5. “रोज़गार के अनुभव भी राजनीतिक अनुकूलन का निर्माण करते हैं।” यह कथन ………… का है।
उत्तर-

  1. हरबर्ट हीमैन
  2. 1959
  3. आल्मण्ड तथा पॉवेल
  4. एजेन्सी
  5. आल्मण्ड तथा पॉवेल।

प्रश्न III. निम्नलिखित वाक्यों में से सही एवं ग़लत का चुनाव करें-

1. महान् राष्ट्रीय नेताओं के भाषण और लेख राजनीतिक समाजीकरण के महत्त्वपूर्ण साधन माने जाते हैं।
2. साहित्य राजनीतिक समाजीकरण का एक साधन नहीं माना जाता।
3. मताधिकार से भी लोगों में राजनीतिक समाजीकरण पैदा होता है।
4. जो लोग सरकार की गतिविधियों से सन्तुष्ट नहीं होते, वे राजनीतिक व्यवस्था से दूर रहते हैं।
5. धर्म भी राजनीतिक समाजीकरण का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. सही।

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प्रश्न IV. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किस विद्वान् ने राजनीतिक समाजीकरण की विस्तृत व्याख्या की है ?
(क) लॉस्की
(ख) ब्राइस
(ग) गिलक्राइस्ट
(घ) डेविड ईस्टन।
उत्तर-
(घ) डेविड ईस्टन।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा राजनीतिक समाजीकरण का तत्त्व (साधन) नहीं है ?
(क) परिवार
(ख) शिक्षा संस्थाएं
(ग) राजनीतिक दल
(घ) बेरोज़गारी।
उत्तर-
(घ) बेरोज़गारी।

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प्रश्न 3.
यह किसने कहा है-“स्कूल ढांचा राजनीतिक समाजीकरण को प्रभावित करने वाला दूसरा शक्तिशाली तत्त्व है।”
(क) आल्मण्ड तथा पॉवेल
(ख) डेविड ईस्टन
(ग) लॉस्की
(घ) ब्राइस।
उत्तर-
(क) आल्मण्ड तथा पॉवेल

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौन राजनीतिक समाजीकरण का समर्थक नहीं है ?
(क) डॉ० लॉस्की
(ख) सिडनी वर्बा
(ग) डेविड ईस्टन
(घ) आस्टिन।
उत्तर-
(घ) आस्टिन।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय-सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न-
अंग्रेजी साम्राज्य के समय राज प्रबन्ध एवं सिविल सर्विस की व्याख्या करो।
उत्तर-
अंग्रेज़ी प्रशासन की चार मुख्य शाखाएं थीं :
(1) सिविल सर्विस
(2) सेना
(3) पुलिस
(4) न्याय एवं कानून व्यवस्था। भारत में अंग्रेज़ी सरकार ने प्रशासन की इन चार शाखाओं की ओर विशेष ध्यान दिया। इन शाखाओं के संगठन एवं कार्यों का वर्णन इस प्रकार है :

I. सिविल सर्विस-

18वीं शताब्दी तक अंग्रेज़ी कम्पनी केवल व्यापारिक कम्पनी नहीं रह गई थी। इसके राजनीति में आ जाने के कारण इसे अनेक प्रशासनिक कार्य भी करने पड़ते थे। कम्पनी के कर्मचारी ये दोनों काम साथ-साथ ठीक ढंग से नहीं कर सकते थे। अतः कार्नवालिस ने कम्पनी के सिविल प्रशासन को व्यापारिक कारोबार से पृथक् कर दिया। उसने प्रशासनिक कर्मचारियों की भर्ती तथा वेतन सम्बन्धी कुछ विशेष नियम भी निर्धारित किए। उसने कर्मचारियों द्वारा व्यक्तिगत व्यापार करने और भेटे तथा रिश्वत लेने पर रोक लगा दी। उसने कर्मचारियों के वेतन बढ़ा दिए ताकि वे रिश्वत न लें। उसने कर्मचारियों को वरिष्ठता के आधार पर तरक्की देने की व्यवस्था भी की। इस क्षेत्र में अन्य भी कई कार्य किए गए। इंग्लैण्ड से भारत आने वाले कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के लिए 1806 ई० में हेलिबरी के स्थान पर एक कॉलेज खोला गया। इसी प्रकार कम्पनी के कर्मचारियों की नियुक्ति प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर की जाने लगी।

सिविल सर्विस में भर्ती के लिए भारतीयों को भी छूट दी गई थी। परन्तु इस सम्बन्ध में उनके मार्ग में अनेक कठिनाइयां थीं। प्रथम, यह परीक्षा इंग्लैण्ड में होती थी और वह भी अंग्रेजी में। दूसरे, उन सब विषयों की परीक्षा देनी पड़ती थी जो उस समय इंग्लैण्ड में पढ़ाए जाते थे। तीसरे, इसके लिए अधिकतम आयु केवल 19 वर्ष थी। अतः 1863 तक केवल एक ही भारतीय यह परीक्षा पास कर सका। इसी कारण पढ़े-लिखे भारतीय यह मांग करने लगे कि सिविल सर्विस की प्रतियोगी परीक्षा एक ही समय इंग्लैण्ड के साथ-साथ भारत में भी हो और परीक्षा में बैठने के लिए अधिकतम आयु 19 वर्ष के स्थान पर 21 वर्ष होनी चाहिए।

1886 में तीन प्रकार की सिविल सर्विस बनाई मई— ‘इण्डियन सिविल सर्विस’, ‘प्रोविंशीयल सिविल सर्विस’ ‘और प्रोफेशनल सर्विस ‘ इनमें से प्रोफेशनल सर्विस का सम्बन्ध, पब्लिक वर्क्स, इन्जीनियरिंग, डॉक्टरी, वन, जंगलात, चुंगी, रेलवे और डाक-तार से था। परन्तु इस बदली के साथ अब भी भारतीय अफसरों की संख्या में कोई विशेष वृद्धि न हुई। इसके विपरीत इस समय तक अंग्रेज़ कर्मचारियों की संख्या लगभग एक हज़ार थी और सभी जिलों और दफ्तरों के महत्त्वपूर्ण कार्य उन्हीं के हाथ में थे। अपनी ईमानदारी और परिश्रम के कारण यह नौकरशाही अंग्रेजी साम्राज्य के लिए वरदान सिद्ध हुई। इसी कारण इसे साम्राज्य का ‘स्टील फ्रेम’ कहा जाता था। परन्तु इसके साथ-साथ यह अंग्रेज़ वर्ग न तो भारतीयों के प्रति कोई सहानुभूति रखता था और न ही उनके विचारों को अच्छी प्रकार समझता था। अतः यह नौकरशाही धीरे-धीरे ब्रिटिश साम्राज्य की नींव को खोखला करने का काम करने लगी।

II. सेना

भारत में अंग्रेजी प्रशासन का मुख्य स्तम्भ सेना थी। सेना के द्वारा ही अंग्रेज़ों ने भारतीय राजाओं को विजित किया, भारत ने अपने साम्राज्य की विदेशी शत्रुओं से रक्षा की तथा आन्तरिक विद्रोहों को दबाया। कम्पनी की सेना में अधिकांश सिपाही भारतीय थे। 1857 ई० में अंग्रेज़ी सेना में सैनिकों की कुल संख्या 311,400 थी जिनमें से 265,900 भारतीय थे। परन्तु कार्नवालिस के दिनों में कोई भी भारतीय सेना में अधिकारी के पद पर न था। 1856 ई० में केवल तीन भारतीय सैनिकों को 300 रु० प्रति मास का वेतन मिलता था। कम्पनी की सेना में भारतीयों की इतनी अधिक संख्या होने के दो कारण थे। पहला कारण था कि भारतीय कम वेतन पर ही मिल जाते थे। दूसरा कारण यह था कि इंग्लैण्ड की जनसंख्या इतनी कम थी कि भारत विजय के लिए वहां से इतने अधिक सैनिक जुटाना सम्भव न था।

III. पुलिस

पुलिस भी भारत में कम्पनी राज्य का मुख्य आधार थी। यह कार्य कार्नवालिस ने आरम्भ किया। उसने जमींदारों से पुलिस सम्बन्धी ज़िम्मेदारियां छीन ली और एक नियमित पुलिस व्यवस्था की नींव रखी। अंग्रेज़ी प्रदेश को विभिन्न क्षेत्रों अथवा थानों में बांट दिया गया जिसका मुखिया दारोगा कहलाता था। दारोगा किसी भारतीय को ही नियुक्त किया जाता था। बाद में प्रत्येक जिले में एक पुलिस सुपरिटेण्डेण्ट की नियुक्ति की गई। अन्य विभागों की भान्ति पुलिस विभाग में भी भारतीयों को बड़े-बड़े पदों से वंचित रखा गया। गांव में चौकीदार ने ही पुलिस की ज़िम्मेदारी निभानी जारी रखी। पुलिस ने धीरे-धीरे अपने पैर फैलाए और अपनी शक्ति का विस्तार किया। वह डकैती आदि की घटनाओं की संख्या घटाने में सफल रही। परन्तु भारतीय जनता के साथ अंग्रेज़ी पुलिस कोई सहानुभूति नहीं रखती थी और भारतीयों के प्रति उसका व्यवहार अमानवीय था।

IV. न्याय व्यवस्था एवं कानून-

वारेन हेस्टिंग्ज तथा लॉर्ड डल्हौज़ी ने भारत में नई न्याय-व्यवस्था की नींव रखी। प्रत्येक जिले में एक दीवानी अदालत होती थी। इसका न्यायाधीश सिविल सर्विस में से लिया जाता था। दीवानी अदालत के अधीन रजिस्ट्रार की अदालतें होती थीं। इन अदालतों के अतिरिक्त ‘मुन्सिफ’ ‘अमीन’ नामक भारतीय न्यायाधीशों की अदालतें भी होती थीं। ज़िलों के न्यायालयों के विरुद्ध अपील सुनने के लिए प्रांतीय अदालतें थीं। सबसे ऊपर एक सदर दीवानी अदालत थी। इस समय भी न्याय-व्यवस्था में 1833 ई० में और नया परिवर्तन आया। इस वर्ष के चार्टर एक्ट द्वारा कानून बनाने का अधिकार गवर्नर-जनरल तथा उसकी परिषद् को दे दिया गया। कानूनों का संग्रह किया गया और भारतीय दण्ड संहिता’ बनाई गई। कुछ अन्य संहिताओं का निर्माण हुआ। इस तरह सारे देश में समान कानून लागू किए गए।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से लेकर एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
सहायक सन्धि किसने चलाई ?
उत्तर-
लॉर्ड वैलजली ने।

प्रश्न 2.
लॉर्ड वैलजली द्वारा सहायक सन्धि चलाने का मुख्य कारण क्या था ?
उत्तर-
लॉर्ड वैलजली द्वारा सहायक सन्धि चलाने का मुख्य कारण कम्पनी का विस्तार करना था।

प्रश्न 3.
सहायक सन्धि को सबसे पहले किस शासक ने स्वीकार किया ?
उत्तर-
सहायक सन्धि को सबसे पहले हैदराबाद के निज़ाम ने स्वीकार किया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

प्रश्न 4.
लैप्स की नीति किसने चलाई थी ?
उत्तर-
लॉर्ड डलहौजी ने।

प्रश्न 5.
दो ऐसे राज्यों के नाम बताओ, जिन्हें लैप्स की नीति के अनुसार अंग्रेजी साम्राज्य में शामिल किया गया।
उत्तर-
सतारा तथा नागपुर।

प्रश्न 6.
लॉर्ड डलहौजी कब से कब तक भारत का गवर्नर जनरल रहा ?
उत्तर-
लॉर्ड डलहौजी 1848 से 1856 तक भारत का गवर्नर जनरल रहा।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

प्रश्न 7.
अवध को अंग्रेज़ी राज्य में कब मिलाया गया ? .
उत्तर-
1856 ई० में।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति

(i) टीपू सुल्तान ने मंगलौर की सन्धि द्वारा ………… से समझौता किया।
(ii) तीसरा अंग्रेज़-मैसूर युद्ध लॉर्ड ………….. के समय में हुआ।
(iii) अवध को लॉर्ड …………… ने अंग्रेज़ी राज्य में मिलाया।
(iv) बसीन (भसीन) की सन्धि लॉर्ड ……………. के समय में हुई।
(v) इंडियन लॉ कमीशन …………. ई० में बनाया गया।
उत्तर-
(i) अंग्रेजों
(ii) कार्नवालिस
(iii) डल्हौज़ी
(iv) वैलेज़ली
(v) 1833.

3. सही/ग़लत कथन

(i) पंजाब को 1856 में अंग्रेज़ी राज्य में मिलाया गया। — (×)
(ii) नागपुर भौंसले सरदारों का केन्द्र था। — (√)
(iii) गायकवाड़ सरदारों का केन्द्र बड़ौदा था। — (√)
(iv) लॉर्ड हेस्टिंग्ज़ ने पंजाब की सिक्ख शक्ति को चोट पहुंचाई। — (×)
(v) इण्डियन पीनल कोड 1861 ई० में बनाया गया। — (√)

4. बहु-विकल्पीय प्रश्न

प्रश्न (i)
1888 में किस प्रकार की सिविल सर्विस बनाई गई ?
(A) इंडियन सिविल सर्विस
(B) प्रोविंशियल सिविल सर्विस
(C) प्रोफैशनल सिविल सर्विस
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

प्रश्न (ii)
भारतीयों के लिए सिविल से संबंधित अड़चन थी
(A) परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी
(B) हिन्दी में परीक्षा
(C) आयु सीमा अधिक होना
(D) प्रवेश फीस एक लाख रुपये।
उत्तर-
(A) परीक्षा का माध्यम अंग्रेजी

प्रश्न (iii)
ब्रिटिश सरकार ने सर्वप्रथम निम्न एक्ट द्वारा ईस्ट इंडिया कंपनी पर नियन्त्रण बढ़ाना शुरू किया-
(A) पिट्स इंडिया एक्ट
(B) रेगूलेटिंग एक्ट
(C) भारत सरकार अधिनियम, 1935
(D) इंडियन कौंसिल एक्ट, 1919 ।
उत्तर-
(B) रेगूलेटिंग एक्ट

प्रश्न (iv)
सबसे पहले किस शहर में कार्पोरेशन स्थापित की गई ?
(A) बम्बई
(B) कलकत्ता
(C) मद्रास
(D) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(D) उपरोक्त सभी।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

प्रश्न (v)
सिविल सर्विस की परीक्षा में पास होने वाला पहला भारतीय था-
(A) अवींद्र नाथ टैगोर
(B) सतिन्द्र नाथ टैगोर
(C) रवींद्र नाथ टैगोर
(D) बजेंद्र नाथ टैगोर ।
उत्तर-
(B) सतिन्द्र नाथ टैगोर

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विकास और संगठन के बारे में जानकारी के स्रोतों के चार प्रकारों के नाम बताएं।
उत्तर-
भारत में अंग्रेज़ी साम्राज्य के विकास और संगठन के बारे में जानकारी के स्रोत है- (i) ईस्ट इण्डिया कम्पनी व 1858 के बाद अंग्रेज़ी सरकार के प्रशासनिक रिकार्ड, गवर्नर जनरलों तथा अंग्रेज़ अधिकारियों के द्वारा छोड़ी गई महत्त्वपूर्ण डायरियां, दस्तावेज तथा चिट्ठियां।

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प्रश्न 2.
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए कौन-से तीन गवर्नर जनरलों ने विशेष योगदान दिया ?
उत्तर-
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिये वैल्जली, हेस्टिंग्ज तथा डल्हौजी ने विशेष योगदान दिया।

प्रश्न 3.
हेस्टिग्ज़ व डल्हौज़ी के नाम किन दो भारतीय शक्तियों पर विजय पाने के लिए माने जाते हैं ?
उत्तर-
हेस्टिंग्ज़ व डल्हौजी के नाम मराठों तथा पंजाब पर विजय प्राप्त करने के लिए माने जाते हैं।

प्रश्न 4.
वैल्जली का कार्यकाल क्या था ?
उत्तर-
वैल्जली 1798 से 1805 तक ईस्ट इण्डिया कम्पनी का गवर्नर जनरल रहा।

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प्रश्न 5.
वैल्जली ने कम्पनी का प्रभाव बढ़ाने के लिए जिस विशेष ढंग को अपनाया उसका नाम बताएं तथा इसके अन्तर्गत आने वाला पहला भारतीय राज्य कौन-सा था ?
उत्तर-
वैल्जली ने कम्पनी का प्रभाव बढ़ाने के लिए ‘सबसिडरी सिस्टम’ अपनाया। इसके अन्तर्गत आने वाला भारतीय राज्य हैदराबाद का राज्य था।

प्रश्न 6.
हैदरअली के अंग्रेजों से दो युद्ध कब हुए तथा टीपू सुल्तान ने किस सन्धि द्वारा अंग्रेजों से समझौता कर लिया ?
उत्तर-
हैदरअली के अंग्रेजों से दो युद्ध 1767-69 तथा 1780-84 में हुए। टीपू सुल्तान में मंगलौर की सन्धि के द्वारा अंग्रेज़ों से समझौता किया।

प्रश्न 7.
अंग्रेज़ों तथा मैसूर में तीसरी लड़ाई कब हुई तथा टीपू सुल्तान अंग्रेजों के साथ युद्ध में कब मारा गया ?
उत्तर-
अंग्रेज़ों तथा मैसूर राज्य के बीच तीसरी लड़ाई 1790-92 में हुई। टीपू सुल्तान अंग्रेजों के साथ युद्ध में 1799 में मारा गया।

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प्रश्न 8.
मराठा सरदारों के चार केन्द्र कौन-से थे ?
उत्तर-
मराठा सरदारों के चार केन्द्र थे—ग्वालियर, इन्दौर, नागपुर तथा बड़ौदा।

प्रश्न 9.
बसीन की सन्धि कब और किनके बीच हुई ?
उत्तर-
बसीन की सन्धि 1802 ई० में अंग्रेज़ों तथा बड़ौदा के गायकवाड़ और पेशवा बाजीराव द्वितीय के बीच हुई।

प्रश्न 10.
1803 के युद्ध के बाद अंग्रेज़ों की भौंसले तथा शिण्डे सरदारों के साथ कौन-सी सन्धियां हुई ?
उत्तर-
1803 के युद्ध के बाद अंग्रेजों की भौंसले के साथ देवगांव की सन्धि तथा शिण्डे के साथ सुरजी अर्जुन गांव की सन्धि हुई।

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प्रश्न 11.
1803 की सन्धियों द्वारा कौन-से इलाकों पर अंग्रेज़ों का अधिकार स्थापित हो गया ?
उत्तर-
1803 की सन्धियों द्वारा गंगा यमुना दोआब, दिल्ली तथा आगरा पर अंग्रेज़ों का अधिकार स्थापित हो गया।

प्रश्न 12.
मराठों की शक्ति का अन्त पूरी तरह किस गवर्नर-जनरल के समय में हुआ तथा इसका कार्याकाल क्या
उत्तर-
मराठों की शक्ति का अन्त पूरी तरह हेस्टिग्ज़ के काल में हुआ। उस का कार्यकाल 1813 से 1823 ई० तक था।

प्रश्न 13.
पेशवा का राज्य किस वर्ष में समाप्त हुआ ?
उत्तर-
पेशवा का राज्य 1818 ई० में समाप्त हुआ।

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प्रश्न 14.
पिण्डारियों को लूटमार की कार्यवाही में किसका प्रोत्साहन प्राप्त था तथा इनका खात्मा किस गवर्नरजनरल के समय में किया गया ?
उत्तर-
पिण्डारियों को लूटमार की कार्यवाही में मराठा सरदारों का प्रोत्साहन प्राप्त था। इन का खात्मा हेस्टिंग्ज़ के समय में हुआ।

प्रश्न 15.
1819 में राजस्थान की कितनी रियासतें अंग्रेजों के अधीन हो गईं तथा इन में से तीन प्रमुख रियासतों के नाम बताएं।
उत्तर-
1819 में राजस्थान की 19 रियासतें अंग्रेजों के अधीन हो गईं। इनमें से प्रमुख रियासतें जयपुर, जोधपुर और उदयपुर थीं।

प्रश्न 16.
नेपाल के साथ युद्ध कब हुआ तथा किस सन्धि के द्वारा कौन-से तीन पहाड़ी इलाके अंग्रेजों के प्रभाव अधीन आ गए ?
उत्तर-
अंग्रेज़ों का 1814-16 में नेपाल के साथ युद्ध हुआ। सुगौली की सन्धि के द्वारा तीन पहाड़ी इलाके कुमायूं, गढ़वाल तथा शिमला अंग्रेजों के अधीन आ गए। .

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प्रश्न 17.
बर्मा के साथ युद्ध कब हुआ तथा इसके परिणामस्वरूप भारत का कौन-सा इलाका अंग्रेजों के अधीन हो गया।
उत्तर-
बर्मा के साथ युद्ध (1823-26) में हुआ। इसके परिणामस्वरूप असम का इलाका अंग्रेजों के प्रभाव अधीन हो गया।

प्रश्न 18.
सिन्ध को अंग्रेजी साम्राज्य में कब मिलाया गया तथा इसके बाद भारत का कौन-सा राज्य स्वतन्त्र रह गया ?
उत्तर-
1843 में सिन्ध को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया। इसके बाद भारत का लाहौर राज्य स्वतन्त्र रह गया।

प्रश्न 19.
महाराजा रणजीत सिंह का सबसे छोटा पुत्र कौन था तथा वह कब गद्दी पर बैठा एवं उसकी संरक्षिका कौन बनी ?
उत्तर-
महाराजा रणजीत सिंह का सबसे छोटा पुत्र दलीप सिंह था। वह 1844 में गद्दी पर बैठा और महारानी जिंदा उसकी संरक्षिका बनी।

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प्रश्न 20.
हार्डिंग ने खालसा फौज के विरुद्ध एक युद्ध का एलान कब किया तथा इस युद्ध की तीन महत्त्वपूर्ण लड़ाइयां कौन-सी थीं ?
उत्तर-
हार्डिंग ने 1845 में खालसा फौज के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की थी। इस युद्ध की तीन महत्त्वपूर्ण लड़ाइयां मुदकी, फेरूशहर तथा सबरांओ की लड़ाइयां थीं।

प्रश्न 21.
अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच में दोनों युद्धों की कौन-सी दो लड़ाइयों में अंग्रेज़ों को मार खानी पड़ी।
उत्तर-
अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच दोनों युद्धों में फेरूशहर और चिल्लियांवाला की लड़ाइयों में अंग्रेजों को भारी हार खानी पड़ी थी।

प्रश्न 22.
अंग्रेजों के साथ पहला युद्ध कब हुआ तथा खालसा सेना का अंग्रेजों से हारने का मुख्य कारण कौनसा था ?
उत्तर-
अंग्रेजों के साथ पहला सिक्ख युद्ध 1846 में समाप्त हो गया। खालसा सेना का हारने का मुख्य कारण सेनापतियों द्वारा धोखा देना था।

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प्रश्न 23.
अंग्रेज़ों और सिक्खों के बीच पहले युद्ध के बाद कौन-सी सन्धि हुई ?
उत्तर-
अंग्रेज़ों और सिक्खों के बीच पहले युद्ध के बाद 1846 में लाहौर की सन्धि हुई।

प्रश्न 24.
पहले युद्ध के बाद अंग्रेजों ने कौन-से तीन इलाके लाहौर दरबार से ले लिए ?
उत्तर-
पहले युद्ध के बाद अंग्रेजों ने जालन्धर दोआब, कांगड़ा तथा कश्मीर के इलाके लाहौर दरबार से ले लिये।

प्रश्न 25.
अंग्रेजों ने कश्मीर किसको दिया तथा वह पहले कहां का राजा था ?
उत्तर-
अंग्रेजों ने कश्मीर राजा गुलाब सिंह को दिया। वह पहले जम्मू का राजा था।

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प्रश्न 26.
दिसम्बर 1846 में कौन-सी सन्धि हुई तथा इसके द्वारा किसको लाहौर में कम्पनी का रेजीडेन्ट नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
दिसम्बर, 1846 में भैंरोवाल की सन्धि हुई। इसके द्वारा हैनरी लारेंस को लाहौर में कम्पनी का रेजीडेन्ट नियुक्त किया गया।

प्रश्न 27.
1846 के बाद अंग्रेजों के अधीन लाहौर दरबार के विरुद्ध विद्रोह करने वाले कौन-से प्रमुख व्यक्ति थे ?
उत्तर-
1846 के बाद अंग्रेज़ों के अधीन लाहौर दरबार के विरुद्ध विद्रोह करने वाले सरदार चत्तर सिंह अटारीवाला तथा मुल्तान का दीवान मूलराज थे।

प्रश्न 28.
अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच में दो प्रमुख लड़ाइयां कौन-सी थीं ?
उत्तर-
अंग्रेज़ों तथा सिक्खों के बीच दो प्रमुख लड़ाइयां चिल्लियांवाला तथा गुजरात की लड़ाइयां थीं।

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प्रश्न 29.
पंजाब को कब और किस गवर्नर-जनरल ने अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया ?
उत्तर-
पंजाब को लॉर्ड डल्हौज़ी ने 1849 में अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।

प्रश्न 30.
‘लैप्स के सिद्धान्त’ से क्या अभिप्राय था ?
उत्तर-
लैप्स के सिद्धान्त से अभिप्राय डल्हौज़ी के उस सिद्धान्त से था जिस के अन्तर्गत सन्तानहीन शासकों के राज्य अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिए जाते थे। वे पुत्र गोद लेकर अंग्रेजों की अनुमति के बिना उसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त नहीं कर सकते थे।

प्रश्न 31.
‘लैप्स के सिद्धान्त’ के अन्तर्गत कौन-सी चार रियासतें समाप्त कर दी गईं ?
उत्तर-
लैप्स के सिद्धान्त के अन्तर्गत सतारा, उदयपुर नागपुर तथा झांसी की रियासतें समाप्त कर दी गईं।

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प्रश्न 32.
1856 में अवध को किस दलील के आधार पर अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया गया तथा उस समय वहां का शासक कौन था ?
उत्तर-
1856 में अवध को कुशासन के आरोप में अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला लिया गया। उस समय वहां का शासक नवाब वाजिद अलीशाह था।

प्रश्न 33.
डल्हौज़ी के समय कौन-से चार अधीन शासकों की पेंशन बन्द कर दी गई ?
उत्तर-
डल्हौज़ी के समय नाना साहिब, कर्नाटक के नवाब तथा सूरत और तंजौर के राजाओं की पेंशन बन्द कर दी gayi

प्रश्न 34.
1857 का विद्रोह कौन-सी तारीख को तथा किस स्थान पर आरम्भ हुआ ?
उत्तर-
1857 का विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ में आरम्भ हुआ।

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प्रश्न 35.
भारतीय सैनिकों ने किसको अपना बादशाह घोषित किया तथा वह इस समय किस शहर में था ?
उत्तर-
भारतीय सैनिकों ने बहादुरशाह ज़फर को अपना बादशाह घोषित किया। वह उस समय दिल्ली शहर में था।

प्रश्न 36.
जिन स्थानों पर भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया था उनमें से चार के नाम बताएं।
उत्तर-
भारतीय सैनिकों ने नसीराबाद, ग्वालियर, लखनऊ तथा कानपुर मे विद्रोह कर दिया था।

प्रश्न 37.
1857-58 के विद्रोह के प्रमुख नेताओं में से चार के नाम बताएं।
उत्तर-
1857-58 के विद्रोह के प्रमुख नेताओं में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहिब, तात्या टोपे तथा कुंवर सिंह थे ।

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प्रश्न 38.
1857-58 के विद्रोह में किन चार वर्गों ने भाग नहीं लिया ?
उत्तर-
1857-58 के विद्रोह में व्यापारियों, साहूकारों, पढ़े-लिखे मध्य वर्ग तथा ज़मींदारों ने भाग नहीं लिया।

प्रश्न 39.
बर्तानिया की सरकार ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर कब तथा किस एक्ट द्वारा नियन्त्रण बढ़ाना शुरू किया ?
उत्तर-
बर्तानिया की सरकार ने ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर 1773 में रेग्यूलेटिंग एक्ट के द्वारा नियंत्रण बढ़ाना शुरू किया।

प्रश्न 40.
कब तथा किस एक्ट द्वारा बंगाल में गर्वनर जनरल नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
1773 के रेग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा बंगाल में गवर्नर-जनरल नियुक्त किया गया।

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प्रश्न 41.
“बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल’ कब तथा किस एक्ट के अन्तर्गत बना एवं इसके कितने सदस्य थे ?
उत्तर-
‘बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल’ 1784 के पिट्स इण्डिया एक्ट के द्वारा बनाया गया। इसके छः सदस्य थे।

प्रश्न 42.
1858 में गवर्नर जनरल को कौन-सी उपाधि दी गई तथा इसके द्वारा उसे किसके प्रतिनिधि के रूप में देशी रियासतों से निपटने का अधिकार मिला ?
उत्तर-
1858 में गवर्नर जनरल को वायसराय की उपाधि दी गई। इसके द्वारा उसे साम्राज्ञी के निजी प्रतिनिधि के रूप में देशी रियासतों से निपटने का अधिकार मिला।

प्रश्न 43.
1858 तथा 1861 में गर्वनर जनरल की सहायता के लिए कौन-सी दो कौंसिलें बनाई गईं ?
उत्तर-
1858 तथा 1861 में गवर्नर जनरल की सहायता के लिए “एग्जेक्टिव कौंसिल’ तथा ‘लैजिस्लेटिव कौंसिलें’ बनाई गईं।

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प्रश्न 44.
कौन-सी दो प्रेजीडेंसियों अथवा मुख्य प्रान्तों में गवर्नरों की सहायता के लिए ‘लैजिस्लेटिव कौंसिल’ बनाई गई ?
उत्तर-
बम्बई (मुम्बई) तथा बंगाल की प्रेजीडेंसियों (अथवा मुख्य प्रान्तों) में गवर्नर की सहायता के लिए लैजिस्लेटिव कौंसिल बनाई गई।

प्रश्न 45.
1858 में भारत में बर्तानवी साम्राज्य की देख-रेख किस मन्त्री को सौंपी गई तथा उसकी सहायता के लिए कौन-सी कौंसिल बनाई गई ?
उत्तर-
1858 में भारत में बर्तानवी साम्राज्य की देख-रेख ‘सैक्ट्री ऑफ स्टेट’ को सौंपी गई। उसकी सहायता के लिए ‘इण्डिया कौंसिल’ बनाई गई।

प्रश्न 46.
किस वर्ष में सिविल सर्विस की परीक्षा में पहला भारतीय कामयाब हुआ तथा उसका क्या नाम था ?
उत्तर-
1863 में सिविल सर्विस की परीक्षा में पहला भारतीय कामयाब हुआ था। उसका नाम सतिन्द्र नाथ टैगोर था।

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प्रश्न 47.
सिविल सर्विस में भारतीयों के आने में दो मुख्य अड़चनें कौन-सी थीं ?
उत्तर-
पहली अड़चन यह थी कि परीक्षा इंग्लैण्ड में होती थी । दूसरी अड़चन उसका माध्यम अंग्रेज़ी था।

प्रश्न 48.
1888 में किस प्रकार की तीन सिविल सर्विस बनाई गई ?
उत्तर-
1888 में बनाई गई तीन प्राकर की सिविल सर्विस इण्डियन सिविल सर्विस, प्रोविंशियल सिविल सर्विस और प्रोफैशनल सर्विस थी।

प्रश्न 49.
प्रोफैशनल सर्विस का सम्बन्ध किन चार विभागों से था ?
उत्तर-
प्रोफैशनल सर्विस का सम्बन्ध पब्लिक वर्कस, इंजीनियरिंग, डॉक्टरी, जंगल, महसूल, रेलवे और डाक-तार विभाग से था।

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प्रश्न 50.
1856 में सेना में भारतीयों को दिया जाने वाला अधिकतम वेतन कितना था तथा उसे पाने वालों की संख्या क्या थी ?
उत्तर-
1856 में सेना में भारतीयों को दिया जाने वाला अधिकतम वेतन 300 रु० था। केवल तीन ही भारतीय सैनिक यह वेतन प्राप्त करते थे।

प्रश्न 51.
भारतीयों को कमीशन किस वर्ष के बाद मिलना शुरू हुआ तथा इस समय तक भारतीयों को दिया जाने वाला सबसे बड़ा सैनिक पद कौन-सा था ?
उत्तर-
1914 में भारतीयों को कमीशन मिलना शुरू हुआ। उस समय सूबेदार का पद सबसे बड़ा था जो भारतीयों को दिया जाता था।

प्रश्न 52.
1857-58 के बाद भारतीयों को सेना में नौकरी के दृष्टिगत कौन-सी दो जातियों में बांट दिया गया ?
उत्तर-
1857-58 के बाद भारतीयों को योद्धा और अयोद्धा नामक दो जातियों में बांट दिया गया।

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प्रश्न 53.
1858 के बाद सेना में किन तीन इलाकों के लोगों की संख्या बढ़ गई ?
उत्तर-
1858 के बाद सेना में गोरखों,पठानों तथा पंजाबियों की संख्या बढ़ गई।

प्रश्न 54.
पुलिस का प्रबन्ध कौन-से गवर्नर जनरल ने आरम्भ किया तथा जिला स्तर पर पुलिस अधिकारी कौनसा था ?
उत्तर-
पुलिस का प्रबन्ध कार्नवालिस ने आरम्भ किया। जिला स्तर का पुलिस अधिकारी सुपरिन्टेंडेन्ट था।

प्रश्न 55.
सदर दीवानी तथा सदर निज़ामत अदालतें कौन-से गवर्नर जनरल के कार्यकाल में स्थापित की गई और बाद में इनका स्थान किन अदालतों ने ले लिया ?
उत्तर-
सदर दीवानी तथा सदर निज़ामत अदालतें कार्नवालिस के कार्यकाल में स्थापित हुईं। बाद में इनका स्थान हाई कोर्ट ने ले लिया।

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प्रश्न 56.
‘इण्डियन लॉ कमीशन’ कब बनाया गया तथा ‘इण्डियन पैनल कोड कब बनाया गया ?
उत्तर-
इण्डियन लॉ कमीशन 1833 में बनाया गया तथा इण्डियन पैनल कोड 1861 में बनाया गया।

प्रश्न 57.
कानून के शासक (रूल ऑफ लॉ) से क्या अभिप्राय था ?
उत्तर-
कानून के शासक से अभिप्राय यह था कि सभी व्यक्ति कानून के सामने समान हैं।

प्रश्न 58.
अंग्रेजी साम्राज्य के समय भारत में कौन-सी दो संस्थाएं बनाई गई तथा इससे सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण नाम कौन-से गवर्नर जनरल का है ?
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य के समय नगरपालिका तथा ज़िला बोर्ड स्थापित किए गए। इन संस्थाओं से सम्बन्धित सबसे महत्त्वपूर्ण नाम लॉर्ड रिपन का है।

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प्रश्न 59.
सबसे पहले किन तीन शहरों में कार्पोरेशन या बड़ी नगरपालिकाएं स्थापित की गई ?
उत्तर-
सब से पहले बम्बई (मुम्बई), कलकत्ता (कोलकाता) तथा मद्रास (चेन्नई) में कार्पोरेशन या बड़ी नगरपालिकाएं स्थापित की गईं।

प्रश्न 60.
न्याय प्रबन्ध में जिला स्तर पर एक अफसर किन दो नामों में सिविल तथा फौजदारी मुकद्दमों का फैसला देता था ?
उत्तर-
न्याय प्रबन्ध में जिला स्तर पर एक अफसर जज और मैजिस्ट्रेट के रूप में सिविल और फौजदारी मुकद्दमों का फैसला देता था।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लॉर्ड हेस्टिग्ज़ ने भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार में क्या योगदान दिया ?
उत्तर-
लॉर्ड हेस्टिंग्ज़ ने अंग्रेज़ी साम्राज्य के विस्तार में अनेक प्रकार से योगदान किया।

  • उसने कुमायूं , गढ़वाल, शिमला, अल्मोड़ा, नैनीताल, मसूरी आदि के क्षेत्र अंग्रेजी राज्य में मिलाए।
  • उसने पेशवा, भौंसले तथा होल्कर की संयुक्त सेनाओं को हराया। उसने पेशवा को पेंशन देकर उसकी पदवी समाप्त कर दी और उसके राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया।
  • उसने राजस्थान की जयपुर, उदयपुर, जोधपुर, बूंदी आदि 19 राजपूती रियासतों को सहायक सन्धि द्वारा कम्पनी राज्य के अधीन कर लिया।
  • उसने भोपाल, मालवा और कछार के राज्य भी अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिये।

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प्रश्न 2.
सिन्ध को अंग्रेज़ों ने किस प्रकार अपने अधीन किया ? क्या सिन्ध को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाना अंग्रेज़ों का अच्छा कार्य था ?
उत्तर-
यूरोप तथा एशिया में रूस का प्रभाव बढ़ रहा था। एशिया में रूस के बढ़ते हुए प्रभाव को रोकने के लिए अंग्रेज़ अफ़गानिस्तान में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहते थे। इसके अतिरिक्त अंग्रेज़ों को यह भी भय था कि पंजाब का शासक महाराजा रणजीत सिंह सिन्ध पर अधिकार कर लेगा। इसलिए अंग्रेजों ने 1832 ई० में सिन्ध के साथ व्यापारिक सन्धि की। 1839 ई० में उन्होंने वहां के अमीरों को सहायक सन्धि स्वीकार करने के लिए विवश किया। आखिर 1843 ई० में चार्ल्स नेपियर ने सिन्ध को अंग्रेजी में मिला लिया। सिन्ध को अंग्रेजी राज्य में मिलाना अंग्रेजों का अच्छा कार्य नहीं था, क्योंकि सिन्ध के लोग निर्दोष थे। उन्होंने कभी भी अंग्रेजों के साथ छेड़खानी नहीं की थी। चार्ल्स नेपियर ने स्वयं कहा था कि अंग्रेजों को सिन्ध पर अधिकार करने का कोई अधिकार नहीं था।

प्रश्न 3.
भारत में अंग्रेजी राज्य के विस्तार में सहायक सन्धि का क्या योगदान रहा ?
उत्तर-
भारत में अंग्रेज़ी राज्य के विस्तार में सहायक सन्धि का बड़ा सक्रिय योगदान रहा। इस नीति का मुख्य आधार अंग्रेज़ी शक्ति के प्रभाव को भारतीय राज्यों में बढ़ावा देना था। सबल भारतीय शक्तियां निर्बल राज्यों को हडपने में लगी हुई थीं। इन कमज़ोर राज्यों को संरक्षण की आवश्यकता थी। वे मिटने की बजाए अर्द्ध-स्वतन्त्रता स्वीकार करने के लिए तैयार थे। सहायक सन्धि उनके उद्देश्यों को पूरा कर सकती थी। उनकी बाहरी आक्रमण और भीतरी गड़बड़ से सुरक्षा के लिए अंग्रेज़ी सरकार वचनबद्ध होती थी। अतः इस नीति को अनेक भारतीय राजाओं ने स्वीकार कर लिया जिनमें हैदराबाद, अवध, मैसूर, अनेक राजपूत राजा तथा मराठा प्रमुख थे। परन्तु इसके अनुसार सन्धि स्वीकार करने वाले राजा को अपने व्यय पर एक अंग्रेज़ी सेना रखनी पड़ती थी। परिणामस्वरूप उनकी विदेश नीति अंग्रेजों के अधीन आ जाती थी। परिणामस्वरूप भारत में अंग्रेज़ी राज्य का खूब विस्तार हुआ।

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प्रश्न 4.
सबसिडरी सिस्टम से क्या अभिप्राय था ?
उत्तर-
सबसिडरी सिस्टम अथवा सहायक-सन्धि एक प्रकार का प्रतिज्ञा-पत्रं था जिसे भारतीय शासकों पर ज़बरदस्ती थोपा गया। इसके अनुसार कम्पनी देशी राजा को आन्तरिक और बाहरी खतरे के समय सैनिक सहायता देने का वचन देती थी, जिस के बदले में देशी राजा को अनेक शर्ते माननी पड़ती थीं।

1. उसे अपने राज्य में एक अंग्रेजी सेना रखनी पड़ती थी और उसका खर्च भी उसे देना पड़ता था। यदि वह सेना का खर्च नहीं दे पाता था तो उसे अपने राज्य का कुछ भाग अंग्रेज़ों को देना पड़ता था।

2. उसे अंग्रेज़ों का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ता था और वह उनकी अनुमति के बिना किसी भी शासक से सन्धि तथा युद्ध नहीं कर सकता था।

3. उसे अंग्रेजों को सर्वोच्च शक्तिं मानना पड़ता था।

4. वह अंग्रेजों के अतिरिक्त किसी भी यूरोपियन को नौकरी पर नहीं रख सकता था। इस शर्त का उद्देश्य भारत में फ्रांसीसियों के प्रभाव को कम करना था।

5. उसे अपने राज्य में एक अंग्रेज़ रैजीडैन्ट रखना पड़ता था जिसके परामर्श से ही उसे अपना सारा शासन-कार्य चलाना पड़ता था। यह एक ऐसी शर्त थी जिसके द्वारा देशी राज्यों की गतिविधियों पर सदैव अंग्रेजों की दृष्टि बनी रहती थी। परन्तु कम्पनी को संरक्षित राज्य के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का वचन देना पड़ता था।

6. आपसी झगड़ों की दशा में उसे अंग्रेजों को मध्यस्थ स्वीकार करना पड़ता था और उसके निर्णय को मानना पड़ता था।

प्रश्न 5.
1803 की सन्धि का मराठों की शक्ति पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
1803 की सन्धि का मराठों की शक्ति पर कुप्रभाव पड़ा। भौंसले के साथ देवगांव की सन्धि हई और शिण्डे के साथ सुरजी अर्जुनगांव की सन्धि हुई। इन सन्धियों में गंगा-यमुना दोआब का प्रदेश अंग्रेजों के अधीन हो गया। दिल्ली और आगरा पर भी अंग्रेजों का प्रभाव स्थापित हो गया। इधर भौंसले से कटक, बलासोर आदि इलाके लेकर ‘उत्तरी सरकारों’ के दोनों ओर स्थित मद्रास (चेन्नई) और बंगाल के अंग्रेजी प्रदेश को आपस में मिला दिया गया। मराठों के हैदराबाद के निज़ाम पर भी सभी अधिकार समाप्त हो गये। इसके अतिरिक्त शिण्डे और भौंसले को अंग्रेजों की पेशवा के साथ हुई बसीन की सन्धि भी स्वीकार करनी पड़ी। उनकी राजधानियों में भी अंग्रेज़ रेजीडेन्ट’ रखे गये। अब केवल होल्कर ही शेष बचा था। इस प्रकार अंग्रेजी कम्पनी के प्रभाव और प्रदेश में बड़ी वृद्धि हुई और अंग्रेज़ अब भारत में सबसे बड़ी शक्ति बन गये।

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प्रश्न 6.
अंग्रेजी साम्राज्य की स्थापना के संदर्भ में पंजाब में 1845 से 1849 के दौरान मुख्य घटनाएं क्या थी ?
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य 1845 तक लगभग सारे भारत को अपनी लपेट में ले चुका था। महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद अंग्रेज़ों ने पंजाब पर अधिकार करने के प्रयास तीव्र कर दिए। उन्होंने लाहौर दरबार की सेना द्वारा सतलुज नदी पार करने पर दिसम्बर, 1845 में युद्ध की घोषणा कर दी। मुदकी, फेरूशाह और सबराओं में खूनी लड़ाइयां हुईं। दोनों पक्षों के हज़ारों सैनिक और अधिकारी मारे गये। खालसा सेना को उसके सेनापतियों ने धोखा दिया । अतः खालसा सेना की फरवरी, 1846 तक पराजय हो गई । इस वर्ष लाहौर की सन्धि हुई। इसके अनुसार दलीप सिंह को गद्दी पर रहने दिया गया। उससे जालन्धर दोआब, कांगड़ा और कश्मीर के प्रदेश ले लिये गये। दिसम्बर, 1846 में अंग्रेजों ने भैरोवाल की सन्धि द्वारा हैनरी लारेन्स को लाहौर में “रेज़िडेन्ट” नियुक्त किया। अंग्रेज़ों के अपमानजनक व्यवहार के कारण एक बार फिर युद्ध छिड़ गया। चिल्लियांवाला और गुजरात की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयों में दोनों पक्षों को भारी हानि उठानी पड़ी। अन्त में 1849 में पंजाब को अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला लिया गया।

प्रश्न 7.
लैप्स का सिद्धान्त क्या था ? इस सिद्धान्त के अनुसार अंग्रेजी साम्राज्य में मिलाये गये किन्हीं चार राज्यों के नाम बताओ।
उत्तर-
लैप्स का सिद्धान्त लॉर्ड डल्हौजी ने चलाया। इस सिद्धान्त के अनुसार यदि किसी देशी रियासत का शासक बिना सन्तान के मर जाता था तो उसका राज्य अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला लिया जाता था। देशी राजाओं को पुत्र गोद लेने और उसे अपना उत्तराधिकारी बनाने का अधिकार नहीं था। लैप्स की नीति के अनुसार डल्हौजी ने निम्नलिखित राज्यों को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया-

  • सतारा-सतारा के शासक की निःसन्तान मृत्यु हो गई। लॉर्ड डल्हौजी ने उसका राज्य अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
  • नागपुर-नागपुर के राजा के पुत्र की मृत्यु के पश्चात् उसकी विधवा रानी ने जसवन्तराय नामक एक बालक को गोद लिया। परन्तु अंग्रेजों ने उसे मृतक राजा का उत्तराधिकारी स्वीकार न किया और नागपुर राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया।
  • सम्बलपुर-लॉर्ड डल्हौजी ने सम्बलपुर राज्य को भी लैप्स के सिद्धान्त के अनुसार अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया।
  • जोधपुर-सम्बलपुर के पश्चात् जोधपुर की बारी आई। इसे भी अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया गया।

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प्रश्न 8.
अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन सिविल सर्विस के संगठन के बारे में बताएं।
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन सिविल सर्विस का सूत्रपात लॉर्ड कार्नवालिस ने किया था। उसने अनुभव किया कि जब तक कम्पनी के कर्मचारियों को अच्छे वेतन नहीं दिए जाते उनमें भ्रष्टाचार बना रहेगा। सिविल सर्विस के अन्तर्गत ये पग उठाए गए-
(i) उसने कर्मचारियों के निजी व्यापार, भेटों तथा घूस का कानून द्वारा निषेध कर दिया।
(ii) उसने कम्पनी के कर्मचारियों के वेतन बढ़ा दिये ताकि वे रिश्वत आदि न लें।

(iii) उसने सिविल सर्विस में पदोन्नति का आधार वरिष्ठता (Seniority) को बनाया। इस प्रकार उन पर कोई बाह्य दबाव नहीं डाला जा सकता था। 1853 ई० तक सिविल सर्विस में नियुक्तियां ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संचालक ही करते रहे। परन्तु 1853 ई० के चार्टर एक्ट के अनुसार यह निश्चित हुआ कि सिविल सर्विस में भर्ती प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर होगी। सिविल सर्विस की एक विशेषता यह थी कि कार्नवालिस के समय से भारतीयों को प्रतियोगिता की परीक्षा में बैठने दिया जाता था। 500 पौंड अथवा उससे अधिक वेतन वाले सभी पद अंग्रेजों के लिए आरक्षित थे। भारतीयों को केवल अधीन पदों पर नियुक्त किया जाता था क्योंकि वे कम वेतन पर काम करने को तैयार हो जाते थे।

प्रश्न 9.
1858 के बाद भारतीय सेना में कौन-से परिवर्तन हुए ?
उत्तर-
1858 के बाद भारतीय सेना में अनेक परिवर्तन किए गए-

  • सारी सेना के लिए एक ही ‘कमाण्डर-इन-चीफ’ नियुक्त किया गया । वह गवर्नर-जनरल की ‘ऐग्जेक्टिव-कौंसिल’ का विशेष सदस्य होता था।
  • अंग्रेज़ सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गई ताकि वे आवश्यकता पड़ने पर काम आ सकें।
  • तोपखाने और बारूदखाने में भारतीयों की संख्या में कमी की गई।
  • प्रत्येक रैजिमैंट में अलग-अलग धर्मों और जातियों के सैनिकों की संख्या कुछ इस प्रकार निश्चित की गई कि वे अफसरों के विरुद्ध संगठित न हो सकें।
  • जिन जातियों के लोगों ने 1857-58 के विद्रोह में भाग लिया था उनको सैनिक नौकरी के अयोग्य समझा गया।
  • शेष भारतीयों को भी ‘योद्धा’ और ‘अयोद्धा’ जातियों में विभक्त कर केवल पहली जाति के लोगों को ही भारतीय सेना में भर्ती करने की नीति अपनाई गई। इस प्रकार सेना में पठानों, गोरखों और पंजाबियों की संख्या में वृद्धि की गई। सिक्खों की संख्या विशेष रूप से अधिक थी।
  • राज्य की कुल आमदनी का आधे से भी अधिक भाग सेना पर खर्च किया जाने लगा। इस प्रकार एक सशक्त सेना की व्यवस्था की गई।

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प्रश्न 10.
अंग्रेज़ी साम्राज्य के अधीन न्याय व्यवस्था का भारतीयों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर-
अंग्रेजी साम्राज्य के अधीन वारेन हेस्टिंग्ज़ तथा लॉर्ड डल्हौजी ने भारत में नई न्याय-व्यवस्था की नींव रखी। ये संस्थाएं स्थानीय लोगों की समस्याओं को सुलझाती थीं। ये स्थानीय लोगों पर हलके कर लगाती थीं और इस प्रकार एकत्रित धन को स्थानीय जनता की भलाई के लिए व्यय करती थीं। अतः लोग ये कर सहर्ष चुकाते थे। ‘कानून का शासन'(रूल ऑफ लॉ) जो पश्चिमी देशों का आदर्श था, भारत में भी प्रचलित हो गया। सिद्धान्त रूप में सभी व्यक्ति कानून के समक्ष बराबर थे। परन्तु व्यावहारिक रूप में भारतीयों और यूरोपीयों में अन्तर बना रहा। यूरोपियों के लिये अलग अदालतें तथा कानून थे। न्याय प्राप्त करने में धन का महत्त्व बढ़ गया। अतः धनी भारतीयों को गरीबों की तुलना में कहीं अधिक जल्दी न्याय मिलने लगा।

कार्नवालिस के समय से ही भारतीयों की डिप्टी मैजिस्ट्रेट और सब-जज आदि पदों पर नियुक्ति होने लगी थी। बैंटिंक ने भारतीयों को और भी अधिक संख्या में न्याय प्रबन्ध में शामिल किया। धीरे-धीरे अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों की संख्या न्याय-प्रशासन में बढ़ती गई। इससे भी महत्त्वपूर्ण बात यह थी कि नये कानून को जानने वाले भारतीय वकीलों की संख्या में भी वृद्धि हुई, क्योंकि मुकद्दमेबाज़ी में कचहरी जाने वालों की संख्या भी बढ़ रही थी। भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष में नेतृत्व करने वाले मध्य वर्ग में वकीलों का विशेष स्थान एवं योगदान था।

प्रश्न 11.
कम्पनी के अधीन केन्द्रीय शासन की संरचना का वर्णन करो।
उत्तर-
कम्पनी के केन्द्रीय शासन का आरम्भ 1773 ई० का रेग्यूलेटिंग एक्ट पास होने के बाद हुआ। इस एक्ट के अनुसार बंगाल के गर्वनर को पांच वर्ष के लिए भारत के अंग्रेजी प्रदेशों का गवर्नर जनरल बना दिया गया। उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की एक कौंसिल भी बनाई गई। 1784 ई० में पिट्स इण्डिया एक्ट द्वारा रेग्यूलेटिंग एक्ट के दोषों को दूर करने का प्रयास किया गया। कम्पनी के राजनीतिक कार्यों की देखभाल करने के लिए इंग्लैण्ड में एक बोर्ड ऑफ कण्ट्रोल स्थापित किया गया जिसके 6 सदस्यों की नियुक्ति ब्रिटिश पार्लियामैण्ट द्वारा की जाती थी। गवर्नर-जनरल की कौंसिल के सदस्यों की संख्या अब चार के स्थान पर तीन कर दी गई। गवर्नर -जनरल की पार्लियामैण्ट के सदस्यों की आज्ञा के बिना न कोई सन्धि कर सकता था और न कोई युद्ध । इसी प्रकार अन्य भी कई एक्ट पास किए गए। 1853 ई० के चार्टर एक्ट द्वारा भारत का केन्द्रीय शासन पूरी तरह गवर्नर जनरल के अधीन कर दिया गया। अब वह इंग्लैण्ड की सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भारत का शासन चलाने लगा।

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प्रश्न 12.
भारत में अंग्रेजी साम्राज्य के पुलिस विभाग की रूप रेखा प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर-
भारत मे अंग्रेज़ों का पुलिस विभाग भी काफ़ी सशक्त था। लॉर्ड कार्नवालिस ने ज़मींदारों को उनके पुलिस कार्यों से निवृत्त कर दिया। देश में कानून तथा व्यवस्था बनाए रखने के लिए उसने विधिवत् पुलिस की स्थापना की। उसने पुलिस क्षेत्र में अनेक कार्य किये। उसने भारत में प्राचीन थाना प्रणाली को आधुनिक रूप प्रदान किया। इस प्रकार इस क्षेत्र में भारत ब्रिटेन से भी आगे निकल गया। जहां अभी तक पुलिस व्यवस्था पनप नहीं पाई थी, वहां उसने थानों की श्रृंखलाएं स्थापित की जोकि भारतीय अधिकारी के अधीन होती थीं। इस अधिकारी को दारोगा कहते थे। कालान्तर में जिलों के पुलिस संगठन के नेतृत्व के लिए D. S. P. का पद स्थापित किया गया। इस पद पर केवल अंग्रेज़ लोग ही नियुक्त किया जाते थे। गांवों में पुलिस के कार्य गांव के चौकीदार ही करते रहे। अंग्रेजों की पुलिस मध्य भारत में ठगी का अन्त करने में सफल हुई।

IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लॉर्ड वैल्ज़ली के अधीन अंग्रेज़ी साम्राज्य के विस्तार का वर्णन कीजिए।
अथवा
सहायक संधि क्या थी ? अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार में क्या योगदान रहा ?
उत्तर-
प्लासी तथा बक्सर की लड़ाइयों के पश्चात् बंगाल में अंग्रेज़ी राज्य की नींव पक्की हो गई। परन्तु भारत में अंग्रेजों के साम्राज्य विस्तार के इतिहास में लॉर्ड वैल्ज़ली को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। वह जिस समय भारत में आया था उस समय सुल्तान टीपू, निज़ाम और मराठे अंग्रेजों के विरुद्ध थे और वे अंग्रेज़ों को भारत से निकाल देना चाहते थे। वैल्ज़ली बड़ा योग्य शासक था और वह भारतीय राजनीति से भली-भान्ति परिचित था। परिस्थितियों को देखते हुए उसने हस्तक्षेप न करने की नीति त्याग दी और उसके स्थान पर ‘हस्तक्षेप’ की नीति को अपनाया। वह भारत में अंग्रेज़ी राज्य को विस्तृत करके कम्पनी को भारत की सर्वोच्च शक्ति बनाना चाहता था। उसने अंग्रेज़ी साम्राज्य का विस्तार करने के लिए अनेक साधन अपनाए। परन्तु ‘सहायक सन्धि’ उसका सबसे बड़ा शस्त्र था।

युद्धों तथा अधिवहन द्वारा राज्य का विस्तार-वैल्जली ने मराठों को दो युद्धों में हराकर दिल्ली, आगरा, कटक, बलासौर, गुजरात, भड़ौच और बुन्देलखण्ड को अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिया। वैल्ज़ली ने सन् 1799 ई० में टीपू सुल्तान को मैसूर के चौथे युद्ध में हरा कर कनारा, कोयम्बटूर और श्रीरंगपट्टम को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। वैल्जली को जब भी किसी राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिलाने का अवसर मिला उसने उस अवसर पर पूरा-पूरा लाभ उठाया। उसने अवसर पाते ही तंजौर, सूरत तथा कर्नाटक के शासकों को पेंशन देकर इन राज्यों को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

सहायक सन्धि द्वारा राज्य विस्तार-वैल्ज़ली ने अंग्रेजी राज्य का विस्तार करने के लिए एक नई नीति अपनाई जिसको ‘सहायक सन्धि’ के नाम से पुकारा जाता है। जो भी देशी राजा इस सहायक सन्धि को स्वीकार करता था, उसे ये शर्ते माननी पड़ती थीं :-(1) उसे अपने राज्य में अंग्रेज़ी सेना रखनी पड़ती थी और उसका खर्च भी उसे ही देना पड़ता था। यदि वह सेना का खर्च नहीं दे पाता था तो उसे अपने राज्य का कुछ भाग अंग्रेजों को देना पड़ता था। (2) वह अंग्रेजों की अनुमति के बिना किसी भी शासक से सन्धि तथा युद्ध नहीं कर सकता था। (3) उसे अंग्रेजों को सर्वोच्च शक्ति मानना पड़ता था। (4) उसे अपने राज्य में एक अंग्रेजी रैजीडेन्ट रखना होता था। (5) वह अंग्रेजों के अतिरिक्त किसी भी यूरोपियन को नौकर नहीं रख सकता था। (6) उसे आपसी झगड़ों से भी अंग्रेजों को पंच मानना पड़ता था। इन शर्तों को मानने वाले राजा को वचन दिया जाता था कि अंग्रेज़ उसकी आन्तरिक विद्रोहों तथा बाहरी आक्रमणों से रक्षा करेंगे।

सहायक सन्धि को सबसे पहले हैदराबाद के निजाम ने स्वीकार किया क्योंकि वह मराठों से डरा हुआ था। निज़ाम ने बैलारी तथा कड़प्पा के प्रदेश भी अंग्रेजों को दे दिए। 1799 ई० में वैल्ज़ली ने सूरत के राजा को पेंशन दे दी और सूरत को अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित कर लिया। सन् 1801 ई० में कर्नाटक के नवाब की मृत्यु हो गई। अंग्रेजों ने उसके लड़के की पेंशन नियत कर दी और उसके राज्य को अपने राज्य में मिला लिया। इस प्रकार वैल्ज़ली द्वारा राज्य विस्तार के लिए अपनाए गए सभी शस्त्रों में से सहायक सन्धि का शस्त्र बड़ा महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ और वह अपने संकल्प में सफल रहा।

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प्रश्न 2.
लॉर्ड डल्हौजी द्वारा अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार की व्याख्या कीजिए।
अथवा
लार्ड डल्हौजी के अधीन लैप्स की नीति द्वारा अंग्रेजी साम्राज्य का विस्तार कैसे हुआ ?
उत्तर-
लॉर्ड डल्हौज़ी 1848 ई० से 1856 ई० तक भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर रहा। वह उन गवर्नर-जनरलों में से एक था जिन्होंने अंग्रेज़ी राज्य की सीमाओं का विस्तार किया। उसके काल में अंग्रेज़ी सत्ता का इतना विस्तार हुआ कि भारत में अंग्रेजी राज्य का मानचित्र ही बदल गया। उसने अंग्रेजी साम्राज्य के विस्तार के लिए प्रत्येक उचित तथा अनुचित पग उठाया।

1. युद्धों द्वारा राज्य विस्तार-लॉर्ड डल्हौजी ने सबसे पहले युद्धों की नीति अपनाई। सिक्खों के दूसरे युद्ध में अंग्रेजों ने सिक्खों को पराजित कर दिया और पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया। बर्मा की लड़ाई के परिणामस्वरूप लोअर बर्मा पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। डल्हौज़ी ने सिक्किम के राजा को हराकर सिक्किम के राज्य को भी अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

2. लैप्स की नीति द्वारा राज्य विस्तार-लार्ड डल्हौज़ी भारत के इतिहास में अपनी लैप्स की नीति के लिए प्रसिद्ध है। लैप्स की नीति के अनुसार देशी राजाओं को पुत्र गोद लेने का अधिकार नहीं दिया गया था और पुत्रहीन राजा की मृत्यु पर उसके राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया जाता था। यद्यपि इस नीति का कम्पनी के अधिकारियों की ओर से भी विरोध किया गया, तो भी डल्हौज़ी अपनी नीति पर डटा रहा और उसने विरोध की कोई परवाह न की। इस नीति का सहारा लेकर उसने अनेक राज्यों को अंग्रेज़ी राज्य में सम्मिलित कर लिया-

(i) 1849 ई० में अप्पा साहिब की मृत्यु हो गई। डल्हौजी ने इस अवसर का लाभ उठाया और सतारा को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।
(ii) झांसी की रानी को भी पुत्र गोद लेने की आज्ञा नहीं दी गई और उसके राज्य को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया।

(iii) 1855 ई० में नागपुर के राजा की मृत्यु हो गई। उसने मरने से पहले किसी को गोद नहीं लिया था। जब रानी ने जसवन्तराय को गोद ले लिया तो अंग्रेजों ने उसे सिंहासन का उत्तराधिकारी स्वीकार न किया और नागपुर के राज्य को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया।

(iv) इस नीति के अनुसार डल्हौजी ने जैतपुर, सम्बलपुर, उदयपुर और बघाट के राज्यों को भी अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

3. पेंशनों तथा पदवियों की समाप्ति-लैप्स की नीति द्वारा देशी राज्यों को अंग्रेजी राज्य में सम्मिलित करके भी डल्हौज़ी की सन्तुष्टि न हुई। अब उसने देशी राजाओं की पेंशन तथा पदवियां समाप्त करनी आरम्भ कर दी। सन् 1852 में पेशवा बाजीराव की मृत्यु हो गई। डल्हौजी ने बाजीराव के दत्तक पुत्र नाना साहिब की पेंशन बन्द कर दी और पेशवा की उपाधि समाप्त कर दी। 1855 ई० में कर्नाटक के नवाब की मृत्यु हो गई और डल्हौज़ी ने उसका पद भी समाप्त कर दिया। 1855 ई० में ही तंजौर के राजा की भी मृत्यु हो गई। उसका कोई पुत्र न था। डल्हौज़ी ने इसका लाभ उठाते हुए उसकी पुत्रियों के लिए पेंशन बन्द कर दी और उसकी जागीर छीन ली।

4. कुशासन के आरोप में-लॉर्ड डल्हौजी ने सन् 1856 में कुशासन की आड़ में अवध के राज्य को अंग्रेजी राज्य में मिलाने तथा नवाब को 12 लाख रुपया वार्षिक पेंशन देने का निर्णय किया। ये सब बातें एक सन्धि-पत्र के रूप में नवाब को भेज दी गईं और नवाब को इस पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया। परन्तु नवाब ने हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया। इस पर डल्हौजी ने उसे नवाबी से हटाकर कलकत्ता (कोलकाता) भेज दिया। इस प्रकार अवध को बलपूर्वक अंग्रेजी राज्य में मिला लिया गया। हैदराबाद के निज़ाम ने सहायक सन्धि के अनुसार अपने राज्य मे अंग्रेजी सेना रखी हुई थी। निजाम ने इस सेना के लिए बरार का प्रदेश अंग्रेज़ों को दे दिया।

प्रश्न 3.
सहायक-प्रणाली के विषय में आप क्या जानते हैं ? इसकी मुख्य शर्ते कौन-कौन सी थीं ?
उत्तर-
सहायक-सन्धि अथवा सहायक-प्रणाली लार्ड वैल्ज़ली की कूटनीति का प्रमाण थी। वह बड़ा ही साम्राज्यवादी था। उसने भारत में कम्पनी राज्य का विस्तार करने के लिए सहायक सन्धि की नीति का सहारा लिया। यह सन्धि एक प्रकार का प्रतिज्ञा-पत्र था जिसे भारतीय शासकों पर जबरदस्ती थोपा गया। भारतीय राजा भी यह प्रतिज्ञा-पत्र स्वीकार करने पर विवश थे। इसका कारण यह था कि वे बड़े अयोग्य और असंगठित थे। ..यह नीति कम्पनी के लिए बिल्कुल नई नहीं थी। क्लाइव के समय से ही कम्पनी भारतीय शासकों के साथ ऐसा व्यवहार करती आ रही थी। क्योंकि वैल्जली ने इस नीति को एक निश्चित रूप-रेखा प्रदान की थी, इसलिए इस नीति का नाम उसके नाम के साथ जुड़कर रह गया है।

सहायक-सन्धि की शर्ते-सहायक-सन्धि देशी राजाओं तथा कम्पनी के बीच होती थी। इसके अनुसार कम्पनी देशी राज्य को आन्तरिक और बाहरी खतरे के समय सैनिक सहायता देने का वचन देती थी, जिसके बदले में देशी राजा को अनेक शर्ते माननी पड़ती थीं । इन सभी शर्तों का वर्णन इस प्रकार है-

1. उसे अपने राज्य में एक अंग्रेज़ी सेना रखनी पड़ती थी और उसका खर्च भी देना पड़ता था यदि वह सेना का खर्च नहीं दे पाता था तो उसे अपने राज्य का कुछ भाग अंग्रेजों को देना पड़ता था।

2. उसे अंग्रेजों का आधिपत्य स्वीकार करना पड़ता था और वह उनकी अनुमति के बिना किसी भी शासक से युद्ध या सन्धि नहीं कर सकता था।

3. उसे अंग्रेजों को सर्वोच्च शक्ति मानना पड़ता था।

4. वह अंग्रेजों के अतिरिक्त किसी भी यूरोपियन को नौकरी पर नहीं रख सकता था। इस शर्त का उद्देश्य भारत में फ्रांसीसियों के प्रभाव को कम करना था।

5. उसे अपने राज्य में एक अंग्रेज़ रैजीडेण्ट रखना पड़ता था जिसके परामर्श से ही उसे अपना सारा शासन-कार्य चलाना पड़ता था। यह एक ऐसी शर्त थी जिसके द्वारा देशी राज्यों की गतिविधियों पर सदैव अंग्रेजों की दृष्टि बनी रहती थी।

6. आपसी झगड़ों की दशा में उसे अंग्रेजों को मध्यस्थ स्वीकार करना पड़ता था और उनके निर्णय को मानना पड़ता था।

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प्रश्न 4.
सहायक सन्धि से अंग्रेजों को जो लाभ हुए उनका वर्णन करो।
उत्तर-
सहायक सन्धि भारत में अंग्रेज़ी साम्राज्य का विस्तार करने की दिशा में अंग्रेजों का एक कूटनीतिक पग था। इस सन्धि द्वारा उन्हें अनेक लाभ पहुंचे जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. सहायक सन्धि द्वारा अंग्रेज़ों को सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि इससे कम्पनी के साधन काफ़ी बढ़ गए। सन्धि स्वीकार करने वाले राज्यों से प्राप्त धन तथा उससे प्राप्त किए प्रदेशों से मिलने वाले राजस्व से कम्पनी की आर्थिक स्थिति काफ़ी दृढ़ हो गई। इस धन की सहायता से अंग्रेजों ने देशी राज्यों में ऐसे सैनिक भर्ती किए जो सदैव अंग्रेजों के इशारों पर नाचते थे। मजे की बात यह थी कि इस सेना का व्यय भी देशी राज्यों को सहन करना पड़ता था। अतः इस व्यवस्था के फलस्वरूप एक तो अंग्रेजों की शक्ति काफ़ी बढ़ गई, दूसरे वे सैनिक व्यय की चिन्ता से भी मुक्त हो गए।

2. इस सन्धि के कारण कम्पनी का देशी राज्यों पर प्रत्यक्ष और कड़ा नियन्त्रण स्थापित हो गया। अब अंग्रेजों को इस बात का भय नहीं रहा कि देशी राजा कोई संघ बनाकर कम्पनी का विरोध करेंगे।

3. इस व्यवस्था के कारण कम्पनी राज्य आन्तरिक विद्रोहों तथा बाहरी आक्रमणों से सुरक्षित हो गया। सैनिक शक्ति बढ़ जाने से उन्हें बाह्य आक्रमणों के भय से छुटकारा मिल गया, जबकि देशी राज्यों में रखी हुई अंग्रेजी सेना के भय से आन्तरिक विद्रोह का कोई भय न रहा।

4. इस सन्धि को स्वीकार करने वाले देशी राज्यों में आपसी झगड़े कम हो गए। इसका कारण यह था कि ऐसे झगड़ों का निर्णय अंग्रेजों ने अपने हाथ में ले लिया था। भारतीय शासक जानते थे कि अंग्रेज़ अपने स्वार्थ को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय देंगे।

5. इस सन्धि के कारण ही अंग्रेज़ भारत में फ्रांसीसियों का प्रभुत्व समाप्त करने में सफल हो सके। इस व्यवस्था के अनुसार देशी राज्यों में केवल अंग्रेज़ी सेना और अंग्रेज़ कर्मचारी ही रखे जा सकते थे। फलस्वरूप फ्रांसीसियों की सभी योजनाओं तथा आशाओं पर पानी फिर गया।

6. इस व्यवस्था द्वारा अंग्रेज़ भारत में काफ़ी शक्तिशाली हो गए, परन्तु किसी अन्य यूरोपीय शक्ति को उनसे किसी प्रकार की कोई ईर्ष्या न हुई। इसका कारण यह था कि देशी राजाओं की स्वतन्त्रता प्रकट रूप में स्थिर रखी जाती थी। अन्य यूरोपीय शक्तियां अंग्रेजों की इस कूटनीति को न समझ सकीं।

7. सहायक प्रणाली के कारण कम्पनी का राज्य-क्षेत्र युद्ध के भीषण परिणामों से सुरक्षित हो गया। अब कोई भी युद्ध कम्पनी के राज्य-क्षेत्र में नहीं बल्कि किसी-न-किसी देशी राज्य की भूमि पर लड़ा जाता था।

8. इस व्यवस्था द्वारा भारत में शान्ति स्थापना में सहयोग मिला। देशी राज्यों के आपसी झगड़े समाप्त होने तथा महत्त्वाकांक्षाओं पर अंकुश लग जाने से देश के वातावरण में शान्ति की लहर दौड़ गई।

9. इस व्यवस्था द्वारा देशी राज्यों की शक्ति बिल्कुल कम कर दी गई थी। अतः अंग्रेजों को अब बिना किसी कठिनाई के साम्राज्य विस्तार करने का अवसर मिल गया।

प्रश्न 5.
लॉर्ड हेस्टिंग्ज के शासन की प्रमुख घटनाओं का वर्णन करो।
अथवा
लार्ड हेस्टिग्ज़ की सैनिक सफलताओं पर प्रकाश डालिए।
अथवा
लार्ड हेस्टिग्ज़ के प्रशासनिक सुधारों का वर्णन करें।
उत्तर-
लार्ड हेस्टिंग्ज़ 1813 ई० में भारत में कम्पनी राज्य का गवर्नर-जनरल बन कर आया। वह 1823 ई० तक इस पद पर रहा। उसने लॉर्ड वैल्ज़ली की हस्तक्षेप व अग्रगामी नीति को अपनाया और कम्पनी राज्य को सदृढ़ बनाने का निश्चय किया। उसके शासनकाल की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है

1. नेपाल से युद्ध (1814-1818 ई०)-हेस्टिंग्ज़ के शासन-काल की प्रमुख घटना नेपाल से युद्ध था। नेपाल के गोरखे दक्षिण की ओर विस्तार कर रहे थे और उन्होंने कई गांवों पर अधिकार कर लिया था। अत: अंग्रेजों और गोरखों में युद्ध स्वाभाविक था। अंग्रेजी सेना को बार-बार पराजय का मुंह देखना पड़ा। अतः अंग्रेजों ने कई गोरखा सिपाहियों को धन का लोभ देकर अपनी तरफ मिला लिया। ऐसी दशा में गोरखों ने अंग्रेजों से सन्धि करने में भलाई समझी। 1816 ई० को सुगौली नामक स्थान पर दोनों पक्षों में सन्धि हुई।

2. पिण्डारों का दमन (1819-1820)-पिण्डारे लुटेरों का एक गिरोह था। इसमें सभी वर्गों तथा सम्प्रदायों के लोग सम्मिलित थे। ये लोग मध्य भारत के प्रदेशों राजपूताना, मालवा, गुजरात, दक्षिणी बिहार आदि प्रदेशों में गांवों को निर्दयतापूर्वक आग लगा देते थे और बचे हुए लोगों के साथ बड़ा बुरा व्यवहार करते थे। लॉर्ड हेस्टिग्ज़ इनका दमन करना चाहता था।

लॉर्ड हेस्टिंग्ज़ ने सबसे पहले मराठों से बातचीत की और उनसे पिण्डारों की सहायता न करने का वचन ले लिया। तत्पश्चात् उसने पिण्डारों पर आक्रमण कर दिया। उत्तर तथा दक्षिण दोनों दिशाओं से उन्हें घेर लिया गया। 4 वर्षों के भीषण संघर्ष के पश्चात् पिण्डारों की शक्ति पूरी तरह नष्ट हो गई।

3. मराठों से युद्ध (1817-18 ई०)- अंग्रेजों ने पेशवा बाजीराव द्वितीय को किर्की नामक स्थान पर बुरी तरह हराया और उसे 80 हज़ार पौंड वार्षिक पेंशन देकर बिठूर में रहने की आज्ञा दी गई। इधर अप्पा साहिब ने नागपुर में सीताबाल्दी नामक स्थान पर विद्रोह कर दिया परन्तु वह भी पराजित हुआ। इन्दौर में मराठों ने जसवन्त राव होल्कर की पत्नी का वध करके अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी, परन्तु उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी और इन्दौर पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया। इन सभी झड़पों के परिणामस्वरूप पेशवा का पद छिन गया तथा सिन्धिया ने अजमेर और गायकवाड़ ने अहमदाबाद के प्रदेश अंग्रेजों को सौंप दिए। इस प्रकार सिन्ध, पंजाब तथा कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।

4. मध्य भारत तथा राजपूताना में अंग्रेजी प्रभुत्व की स्थापना- लॉर्ड हेस्टिग्ज़ ने मध्य भारत तथा राजपूताना के अनेक छोटे-छोटे राज्यों को अंग्रेजी संरक्षण में ले लिया। इस प्रकार कोटा, भोपाल, उदयपुर, जोधपुर, जयपुर, बीकानेर आदि अनेक राज्यों पर अंग्रेज़ी प्रभुत्व छा गया।

5. प्रशासनिक सुधार- लार्ड हेस्टिंग्ज़ ने अनेक प्रशासनिक सुधार भी किए-

  • उसने भारतीयों की नियुक्ति उच्च पदों पर की।
  • उसने अदालतों की संख्या में वृद्धि कर दी और जजों की संख्या बढ़ा दी। इस प्रकार मुकद्दमों का निर्णय जल्दी होने लगा।
  • उसने शिक्षा के प्रसार के लिए देश के विभिन्न भागों में अनेक स्कूल खुलवाए। कलकत्ता (कोलकाता) में उसने एक कॉलेज की नींव रखी।
  • उसके शासनकाल में समाचार-पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ हुआ। यह भारतीय भाषा में छपने वाला सबसे पहला समाचार-पत्र था। लॉर्ड हेस्टिग्ज़ ने सार्वजनिक निर्माण कार्यों में भी रुचि दिखाई और देश में अनेक नहरें तथा पुल बनवाए।

सच तो यह है कि लॉर्ड हेस्टिंग्ज़ ने लॉर्ड वैल्जली के अधूरे कार्य को पूरा किया। उसके प्रयत्नों से कम्पनी राज्य भारत की सर्वोच्च शक्ति बन गया।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

प्रश्न 6.
(क) लैप्स का सिद्धान्त क्या था ? इसके द्वारा कौन-कौन से राज्य प्रभावित हुए ?
(ख) यह सिद्धान्त 1857 ई० की महान् क्रान्ति के लिए कहां तक उत्तरदायी था ?
अथवा
डल्हौज़ी के लैप्स के सिद्धान्त तथा उसके विभिन्न राज्यों पर क्रियात्मक रूप से निरीक्षण कीजिए।
उत्तर-
लैप्स का सिद्धान्त- लैप्स का सिद्धान्त लॉर्ड डल्हौजी ने अपनाया । इसके अनुसार यदि अंग्रेज़ी के किसी आश्रित राज्य का कोई शासक बिना सन्तान के मर जाता था तो उसके द्वारा गोद लिए हुए पुत्र को सिंहासन पर नहीं बिठाया जा सकता था और ऐसे राज्य को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया जाता था।

प्रभावित राज्य-

1. सतारा-1848 ई० में सतारा के शासक की नि:सन्तान मृत्यु हो गई। अत: डल्हौजी ने इस आधार पर कि यह अंग्रेजों द्वारा स्थापित तथा आश्रित राज्य है, सतारा को ब्रिटिश साम्राज्य में विलीन कर लिया। राजा द्वारा गोद लिए पुत्र को उसका उत्तराधिकारी स्वीकार न किया गया। कम्पनी के संचालकों ने भी सतारा राज्य के विलीनीकरण के सम्बन्ध में डल्हौजी का समर्थन किया।

2. झांसी-झांसी का शासन पेशवा बाजीराव द्वितीय के अधीन था। 1817 ई० में वह अंग्रेजों से हार गया था और उसने पराजित होने के पश्चात् यह राज्य अंग्रेजों को सौंप दिया था। परन्तु इसी वर्ष वारेन हेस्टिंग्ज़ ने यहां की राजगद्दी पर राव रामचन्द्र को बिठा दिया था। 1853 ई० में राव रामचन्द्र के वंश के अन्तिम शासक राव गंगाधर की नि:सन्तान मृत्यु हो गई। इस पर लॉर्ड डल्हौजी ने उसके दत्तक पुत्र आनन्द राव के उत्तराधिकार को स्वीकार न किया और झांसी का राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में विलीन कर लिया। मृत्यु से पूर्व गंगाधर ने अंग्रेजों से पुत्र गोद लेने की अनुमति भी माँगी थी, परन्तु अंग्रेजों ने उसे स्वीकृति नहीं दी थी।

3. नागपुर-1853 ई० में नागपुर राज्य भी लैप्स की नीति का शिकार बना। मराठों के चौथे युद्ध में इस राज्य पर वारेन हेस्टिंग्ज़ ने विजय प्राप्त की थी। परन्तु 1818 ई०में उसने यह राज्य पुनः वहां के प्राचीन वंश (भौंसले वंश) के एक सदस्य को सौंप दिया था। इस वंश का अन्तिम शासक 1853 ई० में निःसन्तान चल बसा। मृत्यु से पूर्व उसने कोई पुत्र भी गोद नहीं लिया था, परन्तु वह अपनी पत्नी को पुत्र गोद लेने के लिए अवश्य कह गया था। उसकी पत्नी ने यशवन्त राव को अपना दत्तक पुत्र बनाया। परन्तु डल्हौजी ने उसे मान्यता न दी और नागपुर को अंग्रेज़ी राज्य का अंग बना लिया। _ डल्हौज़ी ने यह राज्य इस आधार पर अंग्रेज़ी राज्य में मिलाया था कि रानी ने पुत्र को देर से गोद लिया है। परन्तु हिन्दू कानून के अनुसार इस प्रकार लेने से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए थी। अत: नागपुर का अंग्रेजी साम्राज्य में विलय एकदम अनुचित था।

4. सम्बलपुर-सम्बलपुर के राजा की 1849 ई० में नि:सन्तान मृत्यु हो गई। अपनी मृत्यु से पूर्व उसने यह इच्छा प्रकट की कि उसकी मृत्यु के पश्चात् उसका राज्य अंग्रेज़ी संरक्षण में चला जाए। उसने कोई पुत्र भी गोद नहीं लिया था। इसी बात को आधार मानते हुए डल्हौजी ने सम्बलपुर का राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया।

5. जैतपुर, उदयपुर तथा बघाट–डल्हौजी ने लैप्स की नीति द्वारा तीन अन्य छोटे-छोटे राज्य भी अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिये। ये राज्य थे-जैतपुर, उदयपुर तथा बघाट। जैतपुर तथा बघाट 1850 में , जबकि उदयपुर 1851 ई० में डल्हौजी की नीति का शिकार हुए। इतिहासकारों का कथन है कि इन छोटे-छोटे राज्यों के अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिल जाने से अंग्रेज़ों को लाभ की अपेक्षा हानि अधिक उठानी पड़ी।

6. करौली-लॉर्ड डल्हौजी ने अपनी लैप्स नीति का प्रहार राजस्थान में स्थित करौली राज्य पर भी करना चाहा। परन्तु इंग्लैण्ड की सरकार ने इसे अस्वीकार कर दिया। इंग्लैण्ड की सरकार का कहना था कि करौली एक आश्रित राज्य न होकर संरक्षित मित्र राज्य (Protected Ally) है।

1857 की क्रांति के लिए उत्तरदायित्व-

यह सच है कि लैप्स के सिद्धान्त द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की सीमाओं में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई। परन्तु इसके विनाशकारी परिणाम भी निकले जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. यह सिद्धान्त 1857 ई० के विद्रोह का प्रमुख कारण बना। इस सिद्धान्त द्वारा जिन राजकुमारों के राज्य हड़प लिए गए थे, वे सभी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गए। उन्होंने अंग्रेजों से बदला लेने के लिए 1857 ई० की क्रान्ति के बीज बोए।

2. भारतीय शासकों के साथ-साथ लैप्स की नीति के कारण उन राज्यों की जनता भी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गई जिनके राज्य ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिए गए थे। वहां जनता इसे अपने राजा का तथा अपना अपमान समझती थी। फलस्वरूप लोग अंग्रेजों से घृणा करने लगे और उनसे बदला लेने की ताक में रहने लगे।

3. लैप्स के सिद्धान्त के अनुसार किसी भी राजा को पुत्र गोद लेने की आज्ञा न देना हिन्दू कानूनों का उल्लंघन था। फलस्वरूप हिन्दुओं के कानूनवेत्ता भी अंग्रेजों को सन्देह की दृष्टि से देखने लगे।

4. लैप्स की नीति से बचे हुए राज्यों के शासकों तथा लोगों के मन में भी शक और भय की भावनाएँ उत्पन्न हो गईं। वे अपने आपको सुरक्षित करने के लिए अंग्रेजों के विरुद्ध योजनाएं बनाने लगे ।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 18 अंग्रेजी साम्राज्य का विकास और संगठन

प्रश्न 8.
पंजाब को अंग्रेजों ने किस प्रकार अपने अधीन किया ?
उत्तर-
1839 ई० में महाराजा रणजीत सिंह की मृत्यु हो गई। इसके पश्चात् सिक्खों का नेतृत्व करने वाला कोई योग्य नेता न रहा। शासन की सारी शक्ति सेना के हाथ में आ गई। अंग्रेजों ने इस अवसर का लाभ उठाया और सिक्ख सेना के प्रमुख अधिकारियों को लालच देकर अपने साथ मिला लिया। इसके साथ-साथ उन्होंने पंजाब के आस-पास के इलाकों में अपनी सेनाओं की संख्या बढ़ानी आरम्भ कर दी और सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की तैयारी करने लगे। उन्होंने सिक्खों से युद्ध किये, दोनों युद्धों में सिक्ख सैनिक बड़ी वीरता से लड़े। परन्तु अपने अधिकारियों की गद्दारी के कारण वे पराजित हुए। प्रथम युद्ध के बाद अंगज़ों ने पंजाब का केवल कुछ भाग अंग्रेज़ी राज्य में मिलाया और वहाँ सिक्ख सेना के स्थान पर अंग्रेज़ सैनिक रख दिये गये। परन्तु 1849 ई० में दूसरे सिक्ख दूसरे युद्ध की समाप्ति पर लॉर्ड डल्हौज़ी ने पूरे पंजाब को अंग्रेज़ी राज्य में मिला लिया।
इस प्रकार अंग्रेजों द्वारा पंजाब-विजय की कहानी काफ़ी रोचक है जिसका कारण वर्णन इस प्रकार है –

1. पहला सिक्ख युद्ध-अंग्रेज़ काफ़ी समय से पंजाब को अपने राज्य में मिलाने का प्रयास कर रहे थे। रणजीत सिंह की मृत्यु के पश्चात् अंग्रेजों को अपनी इच्छा पूरी करने का अवसर मिल गया। उन्होंने सतलुज के किनारे अपने किलों को मजबूत करना आरम्भ कर दिया। सिक्ख नेता अंग्रेजों की सैनिक तैयारियों को देखकर भड़क उठे। अत: 1845 ई० में सिक्ख सेना सतलुज को पार करके फिरोजपुर के निकट आ डटी। कुछ ही समय पश्चात् अंग्रेज़ों और सिक्खों में लड़ाई आरम्भ हो गई। इसी समय सिक्खों के मुख्य सेनापति तेजसिंह और वजीर लालसिंह अंग्रेजों से मिल गये। उनके इस विश्वासघात के कारण मुदकी तथा फिरोजशाह के स्थान पर सिक्खों की हार हुई। सिक्खों ने साहस से काम लेते हुए 1846 ई० में सतलुज को पार करके लुधियाना के निकट अंग्रेज़ों पर धावा बोल दिया। यहाँ अंग्रेज बुरी तरह से पराजित हुए और उन्हें पीछे हटना पड़ा। परन्तु गुलाबसिंह के विश्वासघात के कारण अलीवाल और सभराओं के स्थान पर सिक्खों को एक बार फिर हार का मुँह देखना पड़ा। मार्च, 1846 ई० में गुलाबसिंह के प्रयत्नों से सिक्खों और अंग्रजों के बीच एक सन्धि हो गई। सन्धि के अनुसार सिक्खों को अपना काफ़ी सारा प्रदेश और डेढ़ करोड़ रुपया अंग्रेज़ों को देना पड़ा। दिलीपसिंह के युवा होने तक पंजाब में शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए एक अंग्रेजी सेना रख दी गई।

2. दूसरा सिक्ख युद्ध और पंजाब में अंग्रेजी राज्य की स्थापना-1848 ई० में अंग्रेज़ों और सिक्खों में पुनः युद्ध छिड़ गया। अंग्रेज़ों ने मुलतान के लोकप्रिय गवर्नर दीवान मूलराज को जबरदस्ती हटा दिया था। यह बात वहाँ के नागरिक सहन न कर सके और उन्होंने अनेक अंग्रेज अफसरों को मार डाला। अतः लॉर्ड डल्हौजी ने सिक्खों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इस युद्ध की महत्त्वपूर्ण लड़ाइयाँ रामनगर ( 22 नवम्बर, 1848 ई०), मुलतान (दिसम्बर, 1848 ई०), चिल्लियांवाला (13 जनवरी, 1849 ई०) और गुजरात ( फरवरी, 1849 ई०) में लड़ी गईं। रामनगर की लड़ाई में कोई निर्णय न हो सका। परन्तु मुलतान, चिल्लियांवाला और गुजरात के स्थान पर सिक्खों की हार हुई। सिक्खों ने 1849 ई० में पूरी तरह अपनी पराजय स्वीकार कर ली। इस विजय के पश्चात् अंग्रेजों ने पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया।

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

Punjab State Board PSEB 10th Class Physical Education Book Solutions खो-खो (Kho-Kho) Game Rules.

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules – PSEB 10th Class Physical Education

याद रखने योग्य बातें

  1. खो-खो मैदान की लम्बाई और चौड़ाई = 29 × 16 मीटर
  2. केन्द्र लेन में वर्गों की गिनती = 8
  3. मैदान के अंत में आयताकार का माप = 16 मीटर × 2.75 मीटर
  4. एक वर्ग के दूसरे वर्ग की दूरी = 2.50 मीटर
  5. केन्द्रीय गली की चौड़ाई और लम्बाई = 23.50 मी०, 30 सैं० मी० चौड़ाई लम्बाई
  6. वर्ग का आकार = 30 × 30 सैं० मी०
  7. खो-खो के खिलाड़ियों की गिनती = 12 (9+3 बदलवें)
  8. बदलवें खिलाड़ी = 3
  9. मैच का समय = 9-5-9 (सात मिनट का आराम) 9-5-9
  10. मैच के इनिंग्ज = 2
  11. फ्री जोन का माप = 2.75 x 16 मी०
  12. लॉबी = 1.50 मीटर
  13. वर्गों में बैठे खिलाड़ियों को कहते हैं = चेजर
  14. वर्गों में विरोधी खिलाड़ी होते हैं = रनर 7-5-7(5)
  15. स्त्रियों के लिए समय = 7-5-7
  16. अधिकारी = एक रैफ़री, दो अम्पायर, एक टाइम कीपर, एक स्कोरर,
  17. पोल की ज़मीन से ऊंचाई = 1.20 मीटर
  18. क्रास लेन = 16 मी० × 30 सैं०मी०
  19. लास्ट लेन की रेखा की दूरी = 2.50 मी०
  20. मध्य रेखा द्वारा विभाजित प्रत्येक कोर्ट = 7.88 मी०
  21. फालोआन = 9 अथवा इसके अधिक अंक।

खो-खो खेल की संक्षेप रूप-रेखा
(Brief outline of the Kho-Kho Game)

  1. खो-खो का मैदान आयताकार होता है। यह 29 मीटर लम्बा तथा 16 मीटर चौड़ा होता है।
  2. खो-खो की खेल में एक टीम 12 खिलाड़ियों की होती है जिसमें 9 खिलाड़ी खेलते हैं तथा तीन खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  3. खेल का आरम्भ टॉस द्वारा होता है। टॉस जीतने वाली टीम का कप्तान चेज़र या रनर बनने का निर्णय करता है।
  4. एक चेज़र को छोड़कर शेष सभी चेज़र वर्ग में इस प्रकार बैठेंगे कि किसी पास पास बैठे चेज़र का मुंह एक दिशा में न हो।
  5. ‘खो’ बैठे हुए चेज़र को पीछे से देनी चाहिए। बिना खो प्राप्त किए बैठा हुआ चेज़र नहीं उठ सकता।
  6. खो-खो के मैच की दो इनिंग्ज़ होती हैं। दोनों इनिंग्ज़ में से अधिक प्वाईंट लेने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाता है।
  7. खेल के दौरान किसी खिलाड़ी को चोट लग जाने की दशा में रैफरी की अनुमति से कोई अन्य खिलाड़ी उसके स्थान पर खेल सकता है।
  8. कार्यशील चेज़र के शरीर का कोई भी अंग केन्द्रीय पट्टी को स्पर्श नहीं करना चाहिए।
  9. यदि कोई टीम बराबर रह जाती है तो फिर एक और इनिंग्ज़ लगाई जाती है। यदि फिर भी बराबर रह जाए तो एक इनिंग्ज़ और लगाई जाती है।
  10. यदि किसी खिलाड़ी के चोट लग जाए तो उसके स्थान पर स्थानापन्न (Substitutes) में से ले लिया जाता है।
  11. खेल का समय 9-5-9, (7) 9-5-9 का होता है।

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न
खो-खो के खेल के मैदान, पारिभाषिक शब्द, खेल के आरम्भ, खेल के नियम तथा खेल के अधिकारियों का वर्णन करें।
उत्तर-
खेल का मैदान
खो-खो का क्रीडा क्षेत्र आयताकार होता है। यह 29 मीटर x 16 मीटर होता है। मैदान के अन्त में दो आयताकार होते हैं। आयताकार की एक भुजा 16 मीटर और दूसरी भुजा 2.75 मीटर होती है। इन दोनों आयताकारों के मध्य में दो लकड़ी के स्तम्भ (खम्बे/पोल) होते हैं। केन्द्रीय गली 23.50 मीटर लम्बी और 30 सैंटीमीटर चौड़ी होती है। इसमें 30 सम x 30 सम के आठ वर्ग होंगे।
KHO-KHO GROUND
खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 1
परिभाषाएं

  1. स्तम्भ का पोस्ट-मध्य लेन के अन्त में दो स्तम्भ गाड़े जाते हैं जो भूमि से 1.20 से 1.25 सैंटीमीटर के बीच ऊंचे होते हैं। इनकी परिधि 30 सम से कम या 40 सम से अधिक नहीं हो सकती।
  2. केन्द्रीय गली या लेन-दोनों स्तम्भों के मध्य में केन्द्रीय गली होती है। यह 23.50 मीटर लम्बी और 30 सम चौड़ी होती है।
  3. क्रॉस-लेन-प्रत्येक आयताकार 15 मीटर लम्बा और 30 सैंटीमीटर चौड़ा होता है। वह केन्द्रीय लेन को समकोण (90°) पर काटता है। यह स्वयं भी दो अर्द्धकों में विभाजित होता है। इसे क्रॉस-लेन कहते हैं।
    पोल से पोल की दूरी = 23.50 मीटर
    पोल की ऊंचाई = 1.20 से 1.25 मीटर।
  4. वर्ग-केन्द्रीय लेन तथा क्रॉस-लेन के परस्पर काटने से बना 30 सम – 30 सम का क्षेत्र वर्ग कहलाता है।
  5. स्तम्भ रेखा–पोल के पास केन्द्र से गुज़रती हुई क्रॉस-लेन और केन्द्रीय लेन के समानान्तर रेखा को स्तम्भ रेखा कहते हैं।
  6. आयताकार-स्तम्भ रेखा का बाहरी क्षेत्र आयताकार कहलाता है।
  7. परिधियां-केन्द्रीय लेन तथा बाहरी सीमा निश्चित करने वाली दोनों आयताकारों की रेखाओं से 7.85 मीटर दूर दोनों पार्श्व-रेखाओं को परिधियां कहते हैं।
  8. अनुधावक या चेज़र-वर्गों में बैठे खिलाड़ी अनुधावक या चेज़र कहलाते हैं। विरोधी खिलाड़ियों को पकड़ने या छूने के लिए भागने वाला अनुधावक या चेज़र सक्रिय अनुधावक या चेज़र कहलाता है।
  9. धावक-चेज़रों या धावकों के विरोधी खिलाड़ी ‘धावक’ या ‘रनर’ कहलाते हैं।
  10. ‘खो’ देना-अच्छी ‘खो’ देने के लिए सक्रिय चेज़र को बैठे हुए चेज़र को पीछे से हाथ से छूते ही ‘खो’ शब्द ऊंचा तथा स्पष्ट कहना चाहिए। छूने और ‘खो’ कहने का काम एक साथ होना चाहिए।
  11. फाऊल-यदि बैठा हुआ (निष्क्रिय) या सक्रिय चेज़र किसी नियम का उल्लंघन करता है तो वह फाऊल होता है।
  12. दिशा ग्रहण करना-एक स्तम्भ से दूसरे स्तम्भ की ओर जाना ‘दिशा ग्रहण करना’ कहलाता है।
  13. मुंह मोड़ना-जब सक्रिय चेज़र एक विशेष दिशा की ओर जाते समय अपने कंधे की रेखा 90° के कोण से अधिक दिशा को मोड़ लेता है तो इसे ‘मुंह मोड़ना’ कहते हैं। यह फाऊल होता है।
  14. निवर्तन या पलटना-किसी विशेष दिशा की ओर जाता हुआ सक्रिय चेज़र जब विपरीत दिशा में जाता है तो उसे निवर्तन या पलटना कहा जाता है। यह फाऊल होता है।
  15. स्तम्भ रेखा से हटना-जब कोई सक्रिय चेज़र स्तम्भ का अधिकार छोड़ दे या आयताकार से परे चला जाए तो इसे स्तम्भ रेखा से हटना कहते हैं।
  16. पांव बाहर-जब रनर के दोनों पांव सीमाओं से बाहर भूमि को छू लें तो उसके पांव बाहर माने जाते हैं, उसे आऊट माना जाता है।

खेल के नियम

  1. क्रीडा क्षेत्र (खेल का मैदान) को आकार में वर्णित अनुसार चिन्हित किया जाएगा।
  2. दौड़ने या चेज़र बनने का निर्णय टॉस द्वारा किया जाएगा।
  3. एक चेज़र के अतिरिक्त अन्य सभी चेज़र वर्गों में इस प्रकार बैठेंगे कि दो साथसाथ बैठे चेज़रों का मुंह एक ओर नहीं होगा। नौवां चेज़र (सक्रिय चेज़र) (Active Chaser) पीछा करने के लिए किसी एक स्तम्भ के पास खड़ा होगा।
  4. सक्रिय चेज़र के शरीर का कोई भी भाग केन्द्रीय गली से स्पर्श नहीं करेगा। वह स्तम्भों में अन्दर से केन्द्रीय रेखा पार नहीं कर सकता।
  5. ‘खो’ बैठे हुए चेज़र के पीछे से समीप जाकर ऊंची और स्पष्ट आवाज़ में देनी चाहिए। बैठा हुआ चेज़र बिना ‘खो’ प्राप्त किए नहीं उठ सकता और न ही वह अपनी टांग या भुजा फैला कर स्पर्श प्राप्त करने की कोशिश करेगा।
  6. यदि कोई सक्रिय चेज़र उस वर्ग की केन्द्रीय गली से बाहर चला जाए जिस पर कोई चेज़र बैठा है और यदि वह निष्क्रिय चेज़र की पकड़ छोड़ देता/देती है तो सक्रिय चेज़र उसे ‘खो’ नहीं देगा। कोई सक्रिय चेज़र ‘खो’ देने के लिए वापस नहीं आ सकता।
  7. नियम 4, 5 तथा 6 का उल्लंघन फाऊल होता है। इस पर सक्रिय चेज़र उस दिशा के विपरीत जाने के लिए बाध्य किया जाएगा जिस दिशा में वह जा रहा/रही थी। निर्णायक की सीटी के संकेत के साथ सक्रिय चेज़र सांकेतिक दिशा की ओर चल देगा। यदि इस तरह रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाता।
  8. सक्रिय चेज़र ‘खो’ देने के पश्चात् तुरन्त खो पाने वाले चेज़र का स्थान ग्रहण कर लेगा। खो देना और साथ बैठे चेज़र से खो लेना एक साथ होना चाहिए।
  9. ठीक खो लेने के पश्चात् यदि एक्टिव चेज़र का पहला कदम सैंटर लेन को छूता हो तो वह फाऊल नहीं है। यदि सैंटर लेन को क्रॉस करे तो वह फाऊल है।
    नोट-जब तक किसी खिलाड़ी का पांव क्रॉस लेन की भूमि को स्पर्श करता है तब तक वह उस लेन से बाहर नहीं माना जाएगा।
  10. दिशा लेने के पश्चात् एक्टिव चेज़र पुनः क्रॉस लाइन में आक्रमण कर सकता है और इसको फाऊल नहीं माना जाता।
  11. सक्रिय चेज़र वह दिशा ग्रहण करेगा जिस ओर इसका मुंह मुड़ा हो अर्थात् जिस ओर उसने अपने कन्धे की रेखा को मोडा था।
  12. सक्रिय चेज़र नियम 9 तथा 10 के अनुसार किसी एक ओर दिशा ग्रहण करेगा।
  13. सक्रिय चेज़र किसी एक स्तम्भ की ओर दिशा ग्रहण करने के पश्चात् स्तम्भ रेखा की उसी दिशा में जाएगा जब तक वह ‘खो’ नहीं करता। सक्रिय चेज़र केन्द्र गली से दूसरी ओर नहीं जाएगा जब तक कि वह स्तम्भ के चारों ओर बाहर से न घूम ले।
  14. यदि कोई सक्रिय चेज़र स्तम्भ छोड़ देता है तो वह स्तम्भ छोड़ने वाले स्थान की ओर वाली केन्द्रीय लेन पर रहते हुए दूसरे स्तम्भ की दिशा में जाएगा। नोट-जब वह स्तम्भ पर है तो सक्रिय चेज़र गली को पार नहीं करेगा।
  15. सक्रिय चेज़र का मुंह सदैव उसके द्वारा ग्रहण की गई दिशा की ओर रहेगा। वह अपने मुंह को नहीं मोड़ेगा। उसे केन्द्रीय लेन के समानान्तर कंधे की रेखा मोड़ने की आज्ञा होगी।
  16. चेज़र इस प्रकार बैठेंगे कि धावकों (रनरों) के मार्ग में रुकावट न पहुंचे। यदि ऐसी रुकावट से कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
  17. दिशा ग्रहण करने वाले और मुंह मोड़ने वाले नियम आयताकार क्षेत्र में लागू नहीं होंगे। (नियम 9 से 11 तथा 14)
  18. पारी (इनिंग) के दौरान सक्रिय चेज़र सीमा (परिधि) से बाहर जा सकता है परन्तु सीमा से बाहर उसे दिशा लेने और मुंह मोड़ने के नियमों का पालन करना होगा।
  19. कोई भी रनर बैठे हुए चेज़र को छू नहीं सकता। यदि वह ऐसा करता है तो उसे चेतावनी दी जाती है। यदि वह फिर उस हरकत को दोहराता है तो उसे मैदान से बाहर भेज दिया जाता है। अभिप्राय यह कि आऊट दिया जाता है।
  20. यदि रनर के दोनों पैर सीमा से बाहर हों तो वह आऊट हो जाता है।
  21. यदि सक्रिय चेज़र बिना नियम का उल्लंघन किए रनर को छू लेता है तो रनर आऊट माना जाएगा।
  22. सक्रिय चेज़र नियम 4 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन नहीं करेंगे। इन नियमों का उल्लंघन फाऊल माना जाता है। यदि ऐसे फाऊल के कारण कोई रनर आऊट हो जाता है तो उसे आऊट नहीं माना जाएगा।
  23. यदि कोई सक्रिय चेज़र नियम 8 से 14 तक के किसी नियम का उल्लंघन करते हैं तो अम्पायर तुरन्त ही उचित दिशा लेने और कार्य करने के लिए बाध्य करेगा।

मैच सम्बन्धी नियम
खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 2

  1. प्रत्येक टीम में खिलाडियों की संख्या 9 होगी और 3 खिलाड़ी स्थानापन्न (Substitutes) होते हैं।
  2. (क) प्रत्येक पारी (इनिंग) में नौ-नौ मिनट छूने तथा दौड़ने का काम बारी-बारी होगा। प्रत्येक मैच में 4 पारियां (इनिंग्ज) होंगी। दो पारियां छूने की और 2 पारियां दौड़ने की होती हैं।
    (ख) रनर खेलने के क्रमानुसार स्कोरर (फलांकनकर्ता) के पास अपने नाम दर्ज कराएंगे। पारी के आरम्भ में पहले तीन खिलाड़ी सीमा के अन्दर होंगे। इन तीनों
    के आऊट होने के पश्चात् तीन और खिलाड़ी ‘खो’ देने से पहले अन्दर आ जाएंगे। जो इस अवधि में प्रवेश न कर सकेंगे उन्हें
    आऊट घोषित किया जाएगा। अपनी बारी के बिना प्रविष्ट होने वाला खिलाड़ी भी आऊट घोषित किया जाएगा।
    यह प्रक्रिया पारी के अन्त तक जारी रहेगी। तीसरे रनर (जो तीन के समूह में प्रवेश करते हैं) को निकालने वाला सक्रिय चेज़र नए प्रविष्ट होने वाले रनर का पीछा नहीं करेगा, वह ‘खो’ देगा। प्रत्येक टीम खेल के मैदान के केवल एक पक्ष से ही अपने रनर प्रविष्ट करेगी।
  3. चेज़र तथा प्रत्येक रनर समय से पहले भी अपनी पारी समाप्त कर सकते हैं। केवल चेज़र या रनर टीम के कप्तान के अनुरोध पर ही अम्पायर खेल रोक कर पारी समाप्त की घोषणा करेगा। एक पारी के बाद 5 मिनट तथा दो पारियों के बीच 9 मिनट का अवकाश होगा।
  4. चेज़र पक्ष को प्रत्येक रनर के आऊट होने पर एक अंक मिलेगा। सभी रनरों के समय से पहले आऊट हो जाने पर उनके विरुद्ध एक ‘लोना’ दे दिया जाता है। इसके पश्चात् वह टीम उसी क्रम से अपने रनर भेजेगी। लोना प्राप्त करने के लिए कोई अतिरिक्त अंक नहीं दिया जाता है। पारी का समय समाप्त होने तक इसी ढंग से खेल जारी रहेगी। पारी के दौरान रनरों के क्रम में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
  5. नॉक आऊट (Knock out) पद्धति में मैच के अन्त में अधिक अंक प्राप्त करने वाली टीम को विजयी घोषित किया जाएगा। यदि अंक बराबर हों तो एक और इनिंग (प्रत्येक टीम के लिए चेज़र तथा रनर की) खेली जाएगी। यदि फिर भी अंक बराबर रहें . तो टाईब्रेकर रूल (नियम) का प्रयोग किया जाएगा। इस स्थिति में यह जरूरी नहीं कि टीमों में वही खिलाड़ी हों। लीग प्रणाली में विजेता टीम को 2 अंक प्राप्त होंगे। पराजित टीम को शून्य (0) अंक तथा बराबर रहने की दशा में प्रत्येक टीम को एक-एक अंक दिया जाएगा। यदि लीग प्रणाली में लीग अंक बराबर हों तो टीम अथवा टीमें पर्चियों द्वारा पुनः मैच खेलेंगी। ऐसे मैच नॉक-आऊट प्रणाली के आधार पर खेले जाएंगे।
  6. यदि किसी कारणवश मैच पूरा नहीं होता है तो यह किसी अन्य समय खेला जाएगा और पिछले अंक नहीं गिने जाएंगे। मैच शुरू से ही खेला जाएगा।
  7. यदि किसी एक टीम के अंक दूसरी टीम से 12 या उससे अधिक हो जाएं तो पहली टीम दूसरी टीम को चेज़र के रूप में पीछा करने को कह सकती है। यदि दूसरी टीम इस बार अधिक अंक प्राप्त कर ले तो भी उसका चेज़र बनने का अधिकार बना रहता है।

खेल के लिए अधिकारी
मैच की व्यवस्था के लिए निम्नलिखित अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं—
(1) अम्पायर (दो)
(2) रैफरी (एक)
(3) टाइम कीपर (एक)
(4) स्कोरर (एक)

  1. अम्पायर-अम्पायर लॉबी से बाहर खड़ा होगा और केन्द्रीय गली द्वारा विभाजित अपने स्थान से खेल की देख-रेख करेगा। वह अपने अर्द्धक में सभी निर्णय देगा। वह निर्णय देने में दूसरे अर्द्धक के अम्पायर की सहायता कर सकता है।
  2. रैफरी-रैफरी के कर्त्तव्य इस प्रकार हैं
    • वह अम्पायरों की उनके कर्त्तव्य पालन में सहायता करेगा और उसमें मतभेद होने की दशा में अपना फैसला देगा।
    • वह खेल में बाधा पहुंचाने वाले, असभ्य व्यवहार करने वाले, नियमों का उल्लंघन करने वाले खिलाड़ियों को दण्ड देता है।
    • वह नियमों की व्याख्या सम्बन्धी प्रश्नों पर अपना निर्णय देता है।
    • इनिंग्ज़ के अन्त में वह टीमों के अंक और परिणामों की घोषणा करता है।
  3. टाइम-कीपर-टाइम-कीपर का काम समय का रिकार्ड रखना है। वह सीटी बजाकर पारी के आरम्भ या समाप्ति का संकेत देता है।
  4. स्कोरर–स्कोरर इस बात का ध्यान रखता है कि खिलाड़ी निश्चित क्रम से मैदान में उतरते हैं। वह आऊट हुए रनरों का रिकार्ड रखता है। प्रत्येक पारी के अन्त में वह स्कोर शीट पर अंक दर्ज करता है और चेज़रों का स्कोर तैयार करता है। मैच के अन्त में वह परिणाम तैयार करता है और रैफरी को सुनाने के लिए देता है।
    SCORE SHEET
    खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 3
    खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education 4

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

PSEB 10th Class Physical Education Practical खो-खो (Kho-Kho)

प्रश्न 1.
खो-खो में कितने खिलाड़ी होते हैं ?
उत्तर-
खो-खो में 12 खिलाड़ी होते हैं जिनमें से 9 खिलाड़ी खेलते हैं और तीन खिलाड़ी अतिरिक्त (Substitutes) होते हैं।

प्रश्न 2.
खो-खो के मैदान की लम्बाई और चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
खो-खो के मैदान की लम्बाई 29 मीटर और चौड़ाई 16 मीटर होती है।

प्रश्न 3.
खो-खो के खेल में चेज़र और रनर किसे कहते हैं ?
उत्तर-
खो-खो के खेल में चेज़र (Chaser) उसे कहते हैं जो खिलाड़ी बैठते हैं और रनर (Runner) वे होते हैं, जो दौड़ते हैं।

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 4.
खो-खो के मैच में कितनी इनिंग्ज होती हैं ?
उत्तर-
खो-खो के मैच में दो इनिंग्ज़ होती हैं।

प्रश्न 5.
खो-खो के खेल का कितना समय होता है ?
उत्तर-
खो-खो के खेल का समय 9-5-9, 10 आराम, 9-5-9 की दो पारी होंगी।

प्रश्न 6.
मैच कैसे शुरू होता है ?
उत्तर-
मैच शुरू करने से पहले टॉस होता है। टॉस जीतने वाली टीम चेज़र या रनर की बारी का फ़ैसला करती है।

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 7.
रनर के आऊट होने पर कितने अंक मिलते हैं ?
उत्तर-
रनर के आऊट होने पर एक अंक मिलता है।

प्रश्न 8.
जीत-हार का फैसला कैसे होता है?
उत्तर-
जो टीम अधिक प्वाइट बना ले उसे विजयी कहते हैं।

प्रश्न 9.
खो-खो के खेल में कितने वर्ग होते हैं और उनका आकार कितना होता
उत्तर-
खो-खो के खेल में 8 वर्ग या पट्टियां होती हैं जिनका आकार 30 cm × 30 cm होता है।

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 10.
क्या खो-खो की खेल लॉबी होती है ? उसकी चौड़ाई बताओ।
उत्तर-
खो-खो की खेल लॉबी होती है जिसकी चौड़ाई 3 मीटर होती है।

प्रश्न 11.
खो-खो के पोल की लम्बाई और घेरा बताओ।
उत्तर-
खो-खो के पोल की लम्बाई 1.22 मीटर और घेरा 20 सैंटीमीटर होता है।

प्रश्न 12.
खो-खो की पोल से पोल की लम्बाई कितनी होती है ?
उत्तर-
खो-खो के पोल से पोल की लम्बाई 24.40 मीटर होती है।

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 13.
खो-खो के खेलाने वाले अधिकारियों की कुल गिनती बताओ।
उत्तर-
दो अम्पायर, एक रैफ़री, एक टाइम कीपर, एक स्कोरर।

प्रश्न 14.
खो-खो के खेल में खिलाड़ी कैसे आऊट माना जाता है ?
उत्तर-
जब चेज़र रनर को हाथ लगा दे या रनर अपने आप मैदान से बाहर चला जाए तो आऊट माना जाता है।

प्रश्न 15.
खो-खो के मुख्य 5 फाऊल बताओ।
उत्तर-
मुख्य फाऊल निम्नलिखित हैं—

  1. खो देने से पहले उठना।
  2. सैंटर लाइन कट करनी।
  3. पोल को हाथ लगाए बिना मुड़ना।
  4. चेज़र का ग़लत भागना।
  5. भागने वाला अपने-आप बाहर चला जाए।

खो-खो (Kho-Kho) Game Rules - PSEB 10th Class Physical Education

प्रश्न 16.
खो-खो की खेल में बराबर होने की हालत क्या होती है?
उत्तर-
यदि खो-खो की खेल में टीमें बराबर रह जाएं तो फिर एक-एक इनिंग्ज़ और लगाई जाती है। यदि फिर भी बराबर रह जाए तो एक और इनिंग्ज़ लगाई जाएगी। यदि फिर भी बराबर रह जाए तो मैच दोबारा खेला जाएगा।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 19 लोकतन्त्र-प्रतिनिधित्व संस्थाएँ

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 19 लोकतन्त्र-प्रतिनिधित्व संस्थाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Civics Chapter 19 लोकतन्त्र-प्रतिनिधित्व संस्थाएँ

SST Guide for Class 7 PSEB लोकतन्त्र-प्रतिनिधित्व संस्थाएँ Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 1 से 15 शब्दों में लिखें

प्रश्न 1.
सर्वव्यापक मताधिकार से क्या भाव है?
उत्तर-
जब देश के सभी वयस्क नागरिकों को मत देने का अधिकार होता है, तो उसे सर्वव्यापक वयस्क मताधिकार कहा जाता है। मत का अधिकार देते समय लिंग, जाति, धर्म, सम्पत्ति आदि के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाता।

प्रश्न 2.
चुनाव प्रक्रिया के कोई दो चरणों (स्तरों) का वर्णन करो।
उत्तर-
1. चुनाव की तिथि की घोषणा-हमारे देश के राष्ट्रपति या राज्यों में राज्यपाल लोगों के लिए चुनाव का आदेश जारी करते हैं, जिस के आधार पर चुनाव आयोग चुनाव की तिथि की घोषणा करता है।

2. उम्मीदवारों का चुनाव-विभिन्न राजनीतिक दल अपने उन उम्मीदवारों को नामजद करते हैं जो उनके विचार से किसी विशेष क्षेत्र से जीत सकते हैं। कभी-कभी स्वतन्त्र उम्मीदवार भी खड़े हो जाते हैं और राजनीतिक दल उनकी सहायता करते हैं।

प्रश्न 3.
प्रतिनिधि सरकार कौन-सी सरकार को कहा जाता है?
उत्तर-
लोकतन्त्र में नागरिक अपने प्रतिनिधि चुनते हैं जो सरकार बनाते हैं। यही प्रतिनिधि नीतियों का निर्माण करते हैं और कानून बनाते हैं। ऐसी सरकार को ही प्रतिनिधि सरकार कहते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 19 लोकतन्त्र-प्रतिनिधित्व संस्थाएँ

प्रश्न 4.
लोकतन्त्र में प्रतिनिधित्व का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
लोकतन्त्र जनता का शासन होता है। परन्तु आधुनिक राज्यों की जनसंख्या इतनी अधिक है कि सभी नागरिक शासन में सीधे भाग नहीं ले सकते। अतः वे अपने प्रतिनिधि चुनते हैं जो सरकार का निर्माण करते हैं। यह अप्रत्यक्ष रूप से जनता का अपना ही शासन होता है।

प्रश्न 5.
भारत में मत देने का अधिकार किसको होता है?
उत्तर
भारत में 18 वर्ष या इससे अधिक आयु के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को मत देने का अधिकार है। इसे सर्वव्यापक मताधिकार कहते हैं।

प्रश्न 6.
सामान्य तथा मध्यकालीन चुनावों में क्या अन्तर हैं?
उत्तर-
आम चुनाव वे चुनाव हैं जो हर पांच वर्ष के बाद नियमित रूप से होते हैं।
इसके विपरीत यदि विधानपालिका अवधि पूरी होने से पहले भंग कर दी जाये और नये सिरे से चुनाव कराये जाएं, तो उन्हें मध्यकालीन चुनाव कहते हैं।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 19 लोकतन्त्र-प्रतिनिधित्व संस्थाएँ

प्रश्न 7.
दो दलीय तथा बहुदलीय प्रणाली में क्या अन्तर है?
उत्तर-
जब किसी देश में दो मुख्य राजनीतिक दल होते हैं तो उसे दो दलीय प्रणाली कहते हैं। अमेरिका तथा इंग्लैंड में द्विदलीय प्रणाली है।
बहुदलीय प्रणाली में कई राजनीतिक दल होते हैं। भारत में बहुदलीय व्यवस्था है।

(ख) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 50-60 शब्दों में लिखो

प्रश्न 1.
राजनीतिक दलों का प्रतिनिधि लोकतन्त्र में क्या महत्त्व है?
उत्तर-
राजनीतिक दलों का प्रतिनिधि लोकतन्त्र में बहुत महत्त्व है। अधिकतर लोगों का विचार है कि प्रजातन्त्र राजनीतिक दलों के बिना सम्भव नहीं है। प्रजातन्त्र में प्रत्येक राजनीतिक दल अपनी सरकार बनाने का प्रयत्न करता है। ये दल लोगों के सामने अपने कार्यक्रम एवं नीतियां रखते हैं। जिस दल की सरकार बनती है वह अपने कार्यक्रम और नीतियों को लागू करता है, परन्तु विरोधी दल उस के कार्यों की आलोचना करता है। इस प्रकार प्रजातन्त्र में विरोधी दल भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

प्रश्न 2.
गुप्त मतदान क्या होता है? इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर-
गुप्त मतदान प्रजातान्त्रिक चुनाव का महत्त्वपूर्ण आधार है। लोग अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं चाहते। इसलिए कोई भी यह नहीं चाहता कि किसी दूसरे को यह पता चले कि उस ने किस प्रतिनिधि के पक्ष में मत डाला है। इसलिए ही स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए गुप्त मतदान का प्रबन्ध किया गया है। भारत में प्रत्येक मतदाता का एक वोट होता है। जब कोई मतदाता मतदान केन्द्र पर अपनी वोट डालता है तो उसे यह बताने की आवश्यकता नहीं कि उसने किसे अपना वोट दिया है। इसे ही गुप्त मतदान कहा जाता है।
गुप्त मतदान द्वारा बिना किसी बुरे विचार तथा नकारात्मक सोच के सरकार में परिवर्तन किया जा सकता है।

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प्रश्न 3.
लोकतंत्र में विरोधी दल की भूमिका संक्षेप में लिखो।
उत्तर-
विधानपालिका में जो राजनीतिक दल बहुमत में नहीं होते, वे सरकार नहीं बना पाते। वे विरोधी दल की भूमिका निभाते हैं। लोकतन्त्र में विरोधी दल की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कहा जाता है कि यदि विरोधी दल नष्ट या कमजोर हो जाये तो प्रजातन्त्र प्रणाली ही समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत यदि विरोधी दल को सही और प्रजातान्त्रिक ढंग से काम करने दिया जाये तो प्रजातन्त्र मज़बूत होता है। वास्तव में विरोधी दल शासक दल की कमियों और कमजोरियों को प्रकट करता है। विरोधी दल संसद् में सरकार की केवल आलोचना ही नहीं करता, अपितु लोक-मत के हित में भी काम करता है। इसकी आलोचना के बिना सरकार उत्तरदायित्वहीन तथा तानाशाह भी बन सकती है। विरोधी दल नये चुनाव होने तक सरकार को मनमानी नहीं करने देता और उस पर निरन्तर नियन्त्रण बनाये रखता है। इस प्रकार विरोधी दल सरकार द्वारा नागरिकों के अधिकारों का हनन नहीं होने देता।

प्रश्न 4.
विरोधी दल के कार्यों का वर्णन करें।
उत्तर-
विरोधी दल लोकतन्त्र की आत्मा होता है। यह एक तरफ शासक दल की तानाशाही को रोकता है तो दूसरी ओर सरकार के कार्यों पर नियन्त्रण रखता है। संक्षेप में विरोधी दल के कार्यों की भूमिका का वर्णन इस प्रकार है –

(i) शासक दल पर नियन्त्रण-चुनाव में विजय प्राप्त करने के पश्चात् बहुमत प्राप्त दल सरकार का गठन करता है। मतदाता पांच वर्ष तक सरकार पर नियन्त्रण नहीं रख सकते। सरकार पर नियन्त्रण रखने का कार्य विरोधी दल ही करते हैं।

(ii) सरकार को तानाशाह बनने से रोकना-कभी-कभी शासक दल अपने बहुमत के कारण तानाशाही कार्य करता हैं। इससे नागरिकों के अधिकारों का हनन होता है। इन अवसरों पर विरोधी दल सरकार की सदन के भीतर और बाहर आलोचना करते हैं और सरकार को तानाशाह नहीं बनने देते।

(iii) कानून बनाने में सहयोग-सरकार कानून बनाने के लिए विधेयक पेश करती है। विरोधी दल विधेयकों से सम्बन्धित मामलों पर वाद-विवाद करते हैं और प्रयास करते हैं कि जो कानून बने वह देश के हित में हो।

(iv) बजट पास करना-प्रत्येक वर्ष शासक दल अपनी नीतियों को लागू करने के लिए विधानमंडल में बजट पेश करता है। यह एक ऐसा अवसर होता है जब विरोधी दल सरकार की सम्पूर्ण नीति की आलोचना कर सकता है। विरोधी दल सरकार को इस बात के लिए मजबूर कर सकते हैं कि वह करों की दर कम करे।

(v) कार्यपालिका पर नियन्त्रण-विरोधी दल अविश्वास प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव तथा और कई प्रकार से सरकार पर अंकुश रखती है। प्रश्नकाल में प्रश्न पूछ कर विरोधी दल के सदस्य मंत्रियों को सतर्क रखते हैं।

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प्रश्न 5.
राजनीतिक दलों के कोई दो कार्यों के बारे में लिखो।
उत्तर-
राजनीतिक दल मुख्य रूप से निम्नलिखित कार्य करते हैं

1. चुनाव लड़ना तथा सरकार बनाना-राजनीतिक दल का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य चुनाव लड़ना है। इसका उद्देश्य शासन शक्ति प्राप्त करना होता है। ये दल चुनाव लड़ने के लिए अपने उम्मीदवार चुनते हैं। वे चुनाव जीतने के लिए चुनाव अभियान चलाते हैं। ये दल जनता को राष्ट्रीय मामलों और अपनी सरकार की भूमिका की जानकारी देते हैं। इससे लोकमत का निर्माण होता है। जो दल चुनाव जीत जाता है वह सरकार चलाता है और अपने कार्यों के लिए लोगों के प्रति उत्तरदायी होता है। जो दल सरकार नहीं बना पाते हैं वे विरोधी दल की भूमिका निभाते हैं।

2. जनता के हितों की रक्षा करना-वे सरकार की नीतियों की आलोचना करते हैं और उन्हें सुधारने के सुझाव देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि विरोधी दल प्रजातन्त्र में जनता के हितों का रक्षक होता है।

प्रश्न 6.
इंडियन नेशनल कांग्रेस की किन्हीं तीन नीतियों का वर्णन करो।
उत्तर-
इंडियन नेशनल कांग्रेस की मुख्य नीतियां निम्नलिखित हैं –

  1. इस दल की सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण नीति अमीरी-गरीबी में अन्तर कम करना है। दूसरे शब्दों में यह दल लोकतान्त्रिक समाजवाद चाहता है।
  2. इस दल के अनुसार धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान किया जाना चाहिए।
  3. यह दल कृषि पर आधारित कारखानों के विकास में विश्वास रखता है। कृषि के विकास के लिए सिंचाई के साधनों में सुधार करना भी इस दल की नीति है।
  4. ग्रामीण स्तर पर रोज़गार के अवसर पैदा करना ताकि गरीबी को कम किया जा सके।
  5. विदेशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना और विदेशों के साथ अपने मतभेद शान्तिपूर्ण ढंग से दूर करना।
  6. भारत की आर्थिक स्थिति के सुधार के लिए विदेशी व्यापार को बढ़ावा देना।

नोट-विद्यार्थी इनमें से कोई तीन लिखें।

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प्रश्न 7.
लोकतन्त्र में चुनावों का क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
चुनाव लोकतन्त्र का आधार हैं। लोकतन्त्र में इनका निम्नलिखित महत्त्व है –
(i) सभी नागरिक राज्य प्रबन्ध को एक साथ चला नहीं सकते। इसलिए उन्हें प्रतिनिधि चुनने पड़ते हैं जो चुनावों द्वारा चुने जाते हैं।
(ii) चुनाव के माध्यम से ही लोग सरकार को बदल सकते हैं।
(iii) चुनाव के माध्यम से ही कार्यपालिका बनती है।
(iv) चुनाव द्वारा शासन-प्रणाली में स्थिरता आती है।
(v) सच तो यह है कि चुनाव के अभाव में प्रजातन्त्र सम्भव नहीं है।

(ग) खाली स्थान भरो

  1. हमारे भारत में ……….. लोकतंत्रीय प्रणाली है।
  2. भारत में चुनाव प्रक्रिया के लिए एक स्वतंत्र संस्था ………….. बनाई गई है।
  3. भारत वर्ष में ……….. साल के नागरिकों को मत देने का अधिकार होता है।
  4. ……….. तथा ……….. में दो दलीय तथा ………………. में बहुदलीय प्रणाली है।
  5. ………. और ………. भारत के दो राष्ट्रीय दल हैं।
  6. एक नागरिक एक मत नागरिकों की ……….. पर आधारित है।

उत्तर-

  1. प्रतिनिधि
  2. चुनाव आयोग
  3. न्यूनतम 18
  4. इंग्लैंड, अमेरिका, भारत
  5. कांग्रेस दल, भारतीय जनता पार्टी
  6. समानता।

(घ) निम्नलिखित वाक्यों में ठीक (✓) या गलत (✗) का निशान लगाओ

  1. भारत देश में इस समय वयस्क नागरिक की आयु 18 वर्ष है।
  2. भारत देश में दो दलीय प्रणाली है।
  3. विरोधी दल संसद् में सरकार की आलोचना ही नहीं करते बल्कि लोक मत या लोक राय भी बनाते हैं।

संकेत-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✓)

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(ङ) बहु-वैकल्पिक प्रश्नोत्तर-

प्रश्न 1.
भारत में बालिग (वयस्क) होने की आयु कितनी है ?
(क) 18 वर्ष
(ख) 24 वर्ष
(ग) 22 वर्ष।
उत्तर-
(क) 18 वर्ष (वोट देने का अधिकार)

प्रश्न 2.
लोक सभा के सदस्यों का चुनाव कितने वर्षों के लिए किया जाता है ?
(क) चार वर्ष
(ख) 2 वर्ष
(ग) पाँच वर्ष।
उत्तर-
(ग) पाँच वर्ष

प्रश्न 3.
इंडियन नेशनल कांग्रेस पार्टी की स्थापना कब हुई ?
(क) 1920
(ख) 1885
(ग) 1960
उत्तर-
(ख) 1885

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PSEB 7th Class Social Science Guide लोकतन्त्र-प्रतिनिधित्व संस्थाएँ Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
चुनाव कमीशन अथवा चुनाव आयोग पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
भारत में चुनाव प्रक्रिया के लिए एक कानून स्वतन्त्र संस्था बनाई गई है। इसे चुनाव आयोग अथवा चुनाव कमीशन कहते हैं। यह संस्था स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष चुनाव करवाती है। इस का प्रधान चुनाव कमिश्नर होता है, जिसे भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है। चुनाव कमीशन देश में हर स्तर पर अर्थात् संसद्, राज्य विधान सभाओं और स्थानीय नगरपालिकाओं एवं निगमों के चुनाव कराने के लिए उत्तरदायी होता है।

प्रश्न 2.
‘एक व्यक्ति-एक वोट’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘एक व्यक्ति-एक वोट’ सर्वव्यापक मताधिकार का एक महत्त्वपूर्ण नियम है। यह नागरिकों की समानता पर आधारित है। इसके अनुसार पढ़े-लिखे और अनपढ़ को समान माना जाता है। इस प्रकार समानता का सिद्धान्त हमारे सर्वव्यापक वयस्क मताधिकार में पूर्ण रूप में अपनाया गया है।

प्रश्न 3.
सर्वव्यापक वयस्क मताधिकार के सशक्त आधार क्या हैं ?
उत्तर-
सर्वव्यापक वयस्क मताधिकार के निम्नलिखित सशक्त आधार हैं –

  1. यह अधिकार राजनीतिक समानता पर आधारित है।
  2. यह सच्चे प्रजातन्त्र के लिए आवश्यक है।
  3. यह सरकार को सभी के प्रति उत्तरदायी बनाता है।

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प्रश्न 4.
उप-चुनाव क्या होता है?
उत्तर-
कभी-कभी संसद् या राज्य विधानपालिका के किसी सदस्य की मृत्यु हो जाने अथवा उसके द्वारा त्याग-पत्र देने से उसकी सीट खाली हो जाती है। इस सीट की पूर्ति के लिए जो चुनाव कराया जाता है, उसे उप-चुनाव कहते हैं।

प्रश्न 5.
मतदान किस प्रकार होता है?
अथव
नागरिक अपना वोट किस प्रकार डालते हैं ?
उत्तर-
चुनाव के समय प्रत्येक क्षेत्र से प्रतिनिधि चुनने के लिए चुनाव बूथ बनाए जाते हैं। यहां रिटर्निंग आफिसर के अधीन मतदान होता है। वयस्क नागरिकों के नाम मतदाता सूची में प्रविष्ट होते हैं। वे बारी-बारी से बूथ पर जा कर अपने वोट पहचान पत्र दिखाते हैं। तब अपनी उंगली पर निशान लगवा कर मतपत्र में अपने मन चाहे उम्मीदवार के नाम पर मोहर लगाते हैं और मतपत्र को वोट बाक्स में डाल देते हैं। यदि उसे कोई भी उम्मीदवार पसंद न हो तो वह ‘नोटा’ के सामने दिए गए निशान पर मोहर लगा सकता है। वोट बाक्स में वोट डालते समय किसी दूसरे को पता नहीं चलता कि वोट किसके पक्ष में डाला गया है। अब यह काम वोटिंग मशीनों द्वारा भी किया जाता है। साधारण बहुमत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

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प्रश्न 6.
चुनाव-प्रक्रिया से संबंधित निम्नलिखित चरणों की संक्षिप्त जानकारी दीजिए।
1. नामांकन पत्र भरना तथा नामांकन वापिस लेना।
2. चुनाव चिन्ह प्रदान करना।
3. चुनाव पत्र (घोषणा-पत्र) जारी करना।
4. चुनाव अभियान।
5. मतों की गणना एवं परिणाम।
उत्तर-
1. नामांकन पत्र भरना तथा नामांकन वापिस लेना-राजनीतिक दलों द्वारा चुने गये सदस्य अपने नामांकन पत्र भरते हैं। इनकी रिटर्निंग आफिसर द्वारा पड़ताल की जाती है और इन्हें स्वीकृत या अस्वीकृत किया जाता है। स्वीकृत उम्मीदवार एक निश्चित तिथि तक अपना नाम वापिस ले सकते हैं। उसके बाद चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों की अन्तिम सूची तैयार की जाती है, जिस के आधार पर वोट-पत्र (मत-पत्र) और उम्मीदवारों के चुनाव चिह्न छापे जाते हैं।

2. चुनाव चिह्न प्रदान करना-राष्ट्रीय दलों के निश्चित चुनाव चिह्न होते हैं, जिस के आधार पर वोटर उन चिह्नों पर मोहर लगा कर वोट डालते हैं। इन चुनाव चिह्नों का अस्तित्व अनपढ़ लोगों के लिए अत्यावश्यक है।

3. चुनाव-पत्र जारी करना-प्रत्येक राजनीतिक दल अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए एक चुनाव-पत्र जारी करता है। इसमें उनके कार्यक्रम एवं वचन होते हैं जो मतदाता को प्रभावित करते हैं। इन्हें पढ़कर मतदाताओं को जीत के बाद अपनाई जाने वाली नीतियों के विषय में पता चलता है।

4. चुनाव अभियान-उम्मीदवारों को जिताने के लिए राजनीतिक दल अपना चुनाव अभियान चलाते हैं। वे पोस्टर आदि छपवा कर लोगों में बांटते हैं। इसके अतिरिक्त चुनाव अभियान में जलूस आदि निकालना, जलसा करना, घरघर जा कर मतदाता को प्रभावित करना, मतदाताओं की समस्याओं का समाधान करने के वचन देना और मत देने के लिए कहना आदि बातें शामिल हैं। चुनाव अभियान को मतदान के शुरू होने से 48 घंटे पहले बन्द करना अनिवार्य होता है।

5. मतों की गणना एवं परिणाम- प्रत्येक क्षेत्र में मतदान के बाद मत-पेटियों को एक केन्द्र में एकत्रित करना होता है। निश्चित किये समय पर राजनीतिक दलों के या उम्मीदवारों के प्रतिनिधियों के सामने मतों की गिनती होती है। सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले उम्मीदवार को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

प्रश्न 7.
राजनीतिक दल क्या होता है?
उत्तर-
लोगों का ऐसा समूह जिस की देश के राजनीतिक उद्देश्यों के विषय में एक जैसी विचारधारा हो, राजनीतिक दल कहलात है। किसी भी व्यक्ति को किसी राजनीतिक दल विशेष में सदस्य बनने के लिए विवश नहीं किया जा सकता। किसी दल का सदस्य बनना व्यक्ति की अपनी इच्छा पर निर्भर करता है।

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प्रश्न 8.
भारत में कौन-कौन से दो प्रकार के राजनीतिक दल हैं ?
अथवा
राष्ट्रीय दल तथा क्षेत्रीय दल में अन्तर बताओ।
उत्तर-
भारत में दल दो प्रकार के हैं-राष्ट्रीय दल तथा क्षेत्रीय दल। कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी एवं बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय दल हैं। ये सारे भारत में काम करते हैं। यदि कोई दल चार या पांच राज्यों में विशेष प्रभाव रखता हो, तो उसे चुनाव आयोग राष्ट्रीय स्तर दे देता है। इसके विपरीत जिन दलों का प्रभाव एक या दो राज्यों तक सीमित हो उन्हें क्षेत्रीय दल कहा जाता है; जैसे पंजाब का अकाली दल।

प्रश्न 9.
भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय दल कौन-सा है ? इसकी स्थापना कब हुई थी?
उत्तर-
भारत का सबसे पुराना राष्ट्रीय दल इंडियन नेशनल कांग्रेस है। इसकी स्थापना 1885 ई० में हुई थी।

प्रश्न 10.
संयुक्त सरकार क्या होती है?
उत्तर-
यदि लोकसभा या विधानसभा में किसी एक दल को बहुमत प्राप्त न हो, तो प्रमुख दल दूसरे दलों की सहायता तथा सहयोग से सरकार बना लेता है। कई दलों के प्रतिनिधियों से बनाई गई ऐसी सरकार संयुक्त सरकार कहलाती है। भारत में इस प्रकार की सरकार सबसे पहले 1977 में बनाई गई थी। 1999 से 2004 तक भी 13 दलों की संयुक्त सरकार बनाई गई थी। संयुक्त सरकार में भिन्न-भिन्न दलों के व्यक्तियों को मन्त्री बनने का अवसर मिलता है, जो कि सामान्य स्थिति में संभव नहीं होता।

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सही जोड़े बनाइए:

  1. सर्वव्यापक वयस्क मताधिकार – स्वतन्त्र तथा उचित चुनाव
  2. राजनीतिक दल – कम-से-कम 18 वर्ष की आयु
  3. गुप्त मतदान – लोगों की विचारधारा की अभिव्यक्ति
  4. वयस्क नागरिक – समानता का सिद्धान्त

उत्तर-

  1. सर्वव्यापक वयस्क मताधिकार – समानता का सिद्धान्त
  2. राजनीतिक दल – लोगों की विचारधारा की अभिव्यक्ति
  3. गुप्त मतदान – स्वतन्त्र तथा उचित चुनाव
  4. वयस्क नागरिक – कम-से-कम 18 वर्ष की आयु

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 1 पर्यावरण

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions Geography Chapter 1 पर्यावरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science Geography Chapter 1 पर्यावरण

SST Guide for Class 7 PSEB पर्यावरण Textbook Questions and Answers

I. निम्नलिखित प्रत्येक प्रश्न का उत्तर 1-15 शब्दों में लिखें

प्रश्न 1.
पर्यावरण से क्या भाव है?
उत्तर-
पर्यावरण से भाव हमारे आस-पास अथवा इर्द-गिर्द से है। यह किसी प्रदेश के भौतिक तत्त्वों पर निर्भर करता है।

प्रश्न 2.
पर्यावरण कितने मण्डलों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 3.
तीन मण्डलों के सुमेल से बने मण्डल को किस नाम से जाना जाता है? इसके सम्बन्ध में लिखो।
उत्तर-
तीनों मण्डलों के सुमेल से बने मण्डल को जीव-मण्डल के नाम से जाना जाता है। यह वायुमण्डल, थलमण्डल तथा जल-मण्डल के आपसी मेल से बनता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 1 पर्यावरण

प्रश्न 4.
पर्यावरण के मुख्य मण्डल कौन-से हैं?
उत्तर-
पर्यावरण के तीन मुख्य मण्डल हैं –

  1. वायुमण्डल
  2. थल-मण्डल
  3. जल-मण्डल

इनके अतिरिक्त एक अन्य मण्डल भी है। उसे जैव-मण्डल कहते हैं।

प्रश्न 5.
परिवर्तित पर्यावरण से क्या भाव है?
उत्तर-
धरातल पर पर्यावरण सदैव एक जैसा नहीं रहता। इसके तत्त्वों में परिवर्तन आता रहता है जिसके कारण पर्यावरण बदलता रहता है। ये परिवर्तन धीमे भी हो सकते हैं और तेज़ भी। धीमी गति वाले परिवर्तन पृथ्वी की सतह पर अपरदन के कारकों (नदियों, ग्लेशियर, वायु आदि) द्वारा होते हैं, जबकि तेज़ परिवर्तन थल के ऊंचा-नीचा होने से होते हैं।

प्रश्न 6.
मनुष्य पर्यावरण को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर-
मनुष्य पर्यावरण को कई प्रकार से प्रभावित करता है –

  1. खेती करने तथा रहने के लिए भूमि प्राप्त करने के लिए वनों को काट कर।
  2. नदियों पर बांध बना कर तथा उनके पानी को नहरों द्वारा शुष्क मरुस्थलों में ले जाकर।
  3. खनिज प्राप्त करने के लिए खानें खोद कर।
  4. औद्योगिक क्षेत्रों का विकास करके।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 1 पर्यावरण

प्रश्न 7.
पृथ्वी की पर्तों के नाम लिखें।
उत्तर-
पृथ्वी की तीन पर्ते हैं –

  1. सियाल
  2. सीमा
  3. नाइफ।

II. खाली स्थान भरो

  1. पर्यावरण को …………. मण्डलों में बांटा गया है।
  2. धरती की स्याल पर्त उन चट्टानों की बनी है जिनमें ………….. तथा ……..तत्त्व ज्यादा हैं।
  3. धरती की नाइफ पर्त में………… तथा…………. तत्त्व ज्यादा मात्रा में होते हैं।।
  4. जीव मण्डल के अनेक प्रकार के जीव-जन्तुओं को ………… कहते हैं।
  5. पृथ्वी की सतह का ………… भाग जल है।

उत्तर-

  1. तीन
  2. सिलीकॉन, एल्युमीनियम
  3. निक्कल, लोहा
  4. जीव जगत्।
  5. 71 प्रतिशत।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 1 पर्यावरण

PSEB 7th Class Social Science Guide पर्यावरण Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
भिन्न-भिन्न स्थानों का पर्यावरण भिन्न-भिन्न होता है। एक उदाहरण दें।
उत्तर-
महाद्वीपों पर रहने वाले लोग आम तौर पर कृषि, पशु-पालन और वनों से सम्बन्धित कार्यों में लगे रहते हैं, जबकि समुद्र के किनारे बसे लोग या टापुओं के निवासी प्रायः मछली पकड़ने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 2.
आवास (HABITAT) क्या होता है?
उत्तर-
मनुष्य की तरह पौधे और जीव भी अपने-अपने वातावरण पर निर्भर और आश्रित होते हैं। इसे आवास कहते हैं।

प्रश्न 3.
पारिस्थितिकी (Ecology) से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
किसी स्थान के जीव मण्डल तथा वहां के भौतिक वातावरण के मेल को पारिस्थितिकी कहते हैं।

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प्रश्न 4.
पृथ्वी के विभिन्न मण्डल किस प्रकार अस्तित्व में आये?
उत्तर-
पृथ्वी आरम्भ में गैसीय अवस्था में थी। इसके बाद यह पिघले रूप में आयी। धीरे-धीरे यह ठण्डी हुई और ठोस हो गई। इसके गैसीय तत्त्वों ने वायुमण्डल, जलीय तत्त्वों ने जलमण्डल तथा ठोस तत्त्वों ने थलमण्डल का रूप धारण कर लिया।

प्रश्न 5.
वायुमण्डल किसे कहते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी के इर्द-गिर्द सैंकड़ों किलोमीटर की ऊंचाई तक वायु का एक घेरा अथवा गिलाफ़ बना हुआ है। इस घेरे को वायुमण्डल कहते हैं। पृथ्वी से वायुमंडल की ऊंचाई 1600 कि०मी० तक है। परन्तु इसकी 99% वायु केवल 32 कि०मी० की ऊंचाई तक ही मिलती है। इससे अधिक ऊंचाई पर वायु विरल है।

प्रश्न 6.
वायुमण्डल के मुख्य भौतिक अंश कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
वायुमण्डल के मुख्य भौतिक अंश तापमान, नमी, वायुदाब आदि हैं।

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प्रश्न 7.
पृथ्वी के पर्यावरण के किस अंश (मण्डल) में सबसे अधिक परिवर्तन होता है?
उत्तर-
वायुमण्डल में।

प्रश्न 8.
पृथ्वी पर जल और थल की बांट बताएं।
उत्तर-
पृथ्वी का धरातल जल और थल से बना है। इसका 71% भाग जल है और शेष 29% भाग थल है। थल का 2/3 भाग उत्तरी गोलार्द्ध में है।

प्रश्न 9.
थल मण्डल किसे कहते हैं? इसकी दो विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
धरातल के बाहरी ठोस भाग को थल मण्डल कहते हैं। विशेषताएँ-1. थल मण्डल की मोटाई 80 से 100 कि० मी० तक है। 2. यह मोटाई भूमि पर अधिक तथा समुद्री भागों में कम है।

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प्रश्न 10.
धरती की ऊपरी ठोस परत से लेकर आन्तरिक भागों में पृथ्वी को कितने भागों में बांटा जाता है? प्रत्येक का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
धरती की ऊपरी ठोस परत से लेकर आन्तरिक भागों तक पृथ्वी को तीन भागों में बांटा जाता है-भूतल, मध्य भाग तथा केंद्रीय भाग।

  1. भूतल-यह पृथ्वी का सबसे ऊपरी भाग है। इसे सियाल कहते हैं। इसके मुख्य तत्त्व सिलिकॉन (Si) तथा एल्युमीनियम (AI) हैं। इसी कारण इसका नाम सियाल (Si + Al) पड़ा है।
  2. मैंटल अथवा मध्य भाग-यह पृथ्वी के बीच का भाग है। इसे सीमा भी कहते हैं। इसके मुख्य तत्त्व सिलिकॉन (Si) तथा मैग्नीशियम (Mg) हैं।
  3. केन्द्रीय भाग-यह पृथ्वी का सबसे अन्दर का भाग है। इसे नाइफ (Nife) कहते हैं क्योंकि इसमें निक्कल (Ni) तथा लोहे (Fe) की अधिकता है।

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प्रश्न 11.
पृथ्वी को जल-ग्रह क्यों कहते हैं?
उत्तर-
पृथ्वी के तल का अधिकतर (71%) भाग जल से घिरा है। इसी कारण पृथ्वी को जल-ग्रह कहते हैं।

प्रश्न 12.
जल-मण्डल से क्या अभिप्राय है? ।
उत्तर-
पृथ्वी के जल से ढके भाग को जलमण्डल कहते हैं। यह जल छोटे-बड़े समुद्रों, खाड़ियों, नदियों, झीलों आदि के रूप में मिलता है।

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प्रश्न 13.
महासागरों (समुद्रों) का क्या महत्त्व है?
अथवा
मनुष्य को महासागरों की ओर विशेष ध्यान क्यों देना चाहिए?
उत्तर-
महासागरों का मनुष्य के जीवन में विशेष महत्त्व है –

  1. महासागरों (समुद्रों) का सबसे अधिक प्रभाव पृथ्वी की जलवायु पर पड़ता है। ये जल का स्रोत हैं, जो गर्म होने के बाद बादलों का रूप धारण कर लेता है। बादल हवा के साथ-साथ वर्षा करते हैं।
  2. समुद्रों से चलने वाली हवाएं जलवायु को सम बना देती हैं।
  3. समुद्री धाराएं और ज्वार-भाटा साथ लगते क्षेत्रों पर गहरा प्रभाव डालते हैं। ये समुद्री यातायात एवं व्यापार में बहुत अधिक सहायक हैं। इसलिए मनुष्य को समुद्रों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

(क) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. धरती की सतह पर पर्यावरण सदा परिवर्तित होता रहता है।
  2. धरती पर जल की अपेक्षा स्थल अधिक है।
  3. जीवमण्डल पर्यावरण का अंश नहीं है।
  4. पर्यावरण के अंशों में से स्थलमण्डल सबसे अधिक परिवर्तित होता है।

उत्तर-

  1. (✓),
  2. (✗),
  3. (✓),
  4. (✗)

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(ख) सही जोड़े बनाएं :

  1. नमी तथा दबाव – अपरदन के कारक
  2. ग्लेशियर तथा दरिया – पृथ्वी का सबसे अन्दर का भाग
  3. नाइफ़ – पृथ्वी की सबसे ऊपरी सतह
  4. सयाल – वायुमण्डल के अंश

उत्तर-

  1. नमी तथा दबाव – वायुमण्डल के अंश
  2. ग्लेशियर तथा दरिया – अपरदन के कारक
  3. नाइफ़ – पृथ्वी का सबसे अन्दर का भाग
  4. सयाल – पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत।

(ग) सही उत्तर चुनिए

प्रश्न 1.
क्या आप बता सकते हैं कि पृथ्वी की सतह किन तत्त्वों के मेल से बनी है?
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(i) जल और वायु
(ii) जल और धरती
(iii) धरती और वायु।
उत्तर-
(ii) जल और धरती।

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प्रश्न 2.
पर्यावरण परिवर्तनशील है। आपके विचार में पर्यावरण के किस अंश में सबसे अधिक परिवर्तन होता है?
(i) वायुमण्डल
(ii) जलमण्डल
(iii) थलमण्डल
उत्तर-
(iii) थलमण्डल।

प्रश्न 3.
पृथ्वी पर एक ऐसा मण्डल है जहां प्राकृतिक तत्त्वों का प्रत्यक्ष प्रभाव दिखाई देता है। वह मण्डल क्या कहलाता है?
(i) वायुमण्डल
(ii) जलमण्डल
(iii) जैवमण्डल।
उत्तर-
(iii) जैवमण्डल।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 5 गुप्त काल

Punjab State Board PSEB 11th Class History Book Solutions Chapter 5 गुप्त काल Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 History Chapter 5 गुप्त काल

अध्याय का विस्तृत अध्ययन

(विषय सामग्री की पूर्ण जानकारी के लिए)

प्रश्न 1.
मौर्य साम्राज्य के पतन तथा गुप्त साम्राज्य के उत्थान के बीच भारत में महत्त्वपूर्ण राजनीतिक परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
अशोक की मृत्यु के शीघ्र बाद ही मौर्य साम्राज्य का पतन और विघटन आरम्भ हो गया। चौथी शताब्दी ई० के आरम्भ में गुप्त साम्राज्य उभरने लगा था। अत: हम देखते हैं कि इन दोनों साम्राज्यों के बीच लगभग 500 वर्षों का अन्तर है। इन 500 वर्षों में इस देश में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए। ये परिवर्तन जहां एक ओर सामाजिक एवं सांस्कृतिक जीवन से सम्बन्धित थे, वहां इनका सम्बन्ध राजनीतिक क्षेत्र में भी था। राजनीतिक परिवर्तनों ने गुप्त साम्राज्य के लिए पृष्ठभूमि तैयार की। इन परिवर्तनों का वर्णन इस प्रकार है-

1. मगध में मौर्य वंश के उत्तराधिकारी-अशोक की 232 ई० पू० में मृत्यु हुई। उसके उत्तराधिकारियों की दुर्बलता के कारण उप राजा अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्त बन गए। परिणामस्वरूप साम्राज्य का तेजी से विघटन होने लगा। मौर्य वंश का राज्य अशोक की मृत्यु के पश्चात् आधी शताब्दी तक स्थिर रहा होगा। 180 ई० पू० में अशोक के अन्तिम उत्तराधिकारी की हत्या हो गई।

अशोक के उत्तराधिकारी की हत्या करने वाले का नाम पुष्यमित्र था और वह ब्राह्मण था। कहा जाता है कि उसने बौद्धों पर अत्याचार किये और ब्राह्मणों को संरक्षण प्रदान किया। पुष्पमित्र ने शुंग नाम के एक नये राज्य वंश की नींव रखी। उसके उत्तराधिकारियों ने लगभग सौ वर्ष तक पाटलिपुत्र की गद्दी से मगध पर शासन किया। उस समय मगध राज्य केवल गंगा के मैदान के मध्य भाग तक ही सीमित था। उसके उपरान्त मगध में कण्व नाम के राज्य वंश की स्थापना हुई। 28 ई० पू० में कण्वों का भी अन्त हो गया। इसके बाद मगध राज्य का महत्त्व क्षीण हो गया। परन्तु देश के अन्य भागों में कई महत्त्वपूर्ण राज्य स्थापित हो चुके थे।

2. यूनानी राज्य-अशोक की मृत्यु के थोड़े समय पश्चात् एक मौर्य राजकुमार ने गान्धार प्रदेश में स्वयं को स्वतन्त्र घोषित कर दिया। लगभग उसी समय निकटवर्ती बैक्ट्रिया और पार्थिया सैल्यूकस के उत्तराधिकारियों से स्वतन्त्र हो गए। यहां के यूनानी शासक डिमिट्रियस ने गान्धार प्रदेश और बाद में उसके दक्षिण अफगानिस्तान और मकरान प्रदेश को भी विजय कर लिया। इन प्रदेशों को यूनानी क्रमशः ‘अराकोशिया’ और ‘जेड्रोशिया’ कहते थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि अशोक की मृत्यु के 50 वर्षों के भीतर ही उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिम प्रदेश में यूनानियों का आधिपत्य स्थापित हो गया।

इस देश का सबसे अधिक विख्यात यूनानी राज्य मिनाण्डर था। उसे बौद्ध साहित्य में मिलिन्द कहा गया है। मिलिन्द ने 155 ई० पू० से 130 ई० पू० तक अर्थात् 25 वर्ष शासन किया। उसकी राजधानी तक्षशिला थी। उसने शंग राजाओं को गंगा के मैदान से खदेड़ने का असफल प्रयास किया था। तक्षशिला के एक और यूनानी राजा हैल्यिोडोरस ने अपने एक राजदूत को आधुनिक मध्य प्रदेश में स्थित बेसनगर (विदिशा) के शासक के पास भेजा था। इस बात की जानकारी हमें बेसनगर से प्राप्त हैल्योडोरस के स्तम्भ से मिलती है। इस सम्बन्ध में अति महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हैल्योडोरस वासुदेव अर्थात् विष्णु का उपासक था।

3. शक राज्य-पहली शताब्दी ई० पू० के आरम्भ में शक लोगों ने यूनानियों को अफगानिस्तान एवं पंजाब से खदेड़ दिया। शक मध्य एशिया के भ्रमणशील कबीलों में से थे। उन्हें वहां से यू-ची लोगों ने निकाल दिया था और अब शकों ने यूनानियों पर दबाव डाला और उन्हें पहले बैक्ट्रिया से तथा बाद में भारत के उत्तर-पश्चिम से निकाल दिया। भारत में पहला शक राजा भोज था। शकों के आरम्भिक राजाओं में सबसे विख्यात गोंडोफार्नीज था जिसका काल पहली शताब्दी के पूवार्द्ध में था।

इसी सदी के उत्तरार्द्ध में शकों को यू-ची लोगों ने फिर खदेड़ दिया। अब शक लोगों ने भारत के उत्तर-पश्चिम में गुजरात तथा मालवा की ओर अपना राज्य स्थापित किया। उनका सबसे प्रसिद्ध राजा रुद्रदमन था। उसका शासन गुजरात, मालवा और पश्चिमी राजस्थान पर था। रुद्रदमन के उत्तराधिकारी उसके समान शक्तिशाली न थे। फिर भी गुजरात में उनका राज्य लगभग 200 वर्ष तक स्थिर रहा। शक राज्य का अन्त गुप्त वंश के राजाओं द्वारा पांचवीं सदी ई० के आरम्भ में हुआ।

4. कुषाण राज्य-जिन राजाओं ने शकों को अफगानिस्तान और पंजाब में खदेड़ा था वे यू-ची की कुषाण शाखा के दो राजा थे-कजुल और विम कडफीसिज़। उन्होंने भारत के उत्तर-पश्चिम में कुषाण राजवंश की स्थापना की। इस राजवंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कनिष्क था। उसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी। कनिष्क का राज्य पेशावर, बनारस और सांची तक फैला हुआ था। इसमें मथुरा भी शामिल था। मथुरा को कुषाण राज्य की दूसरी राजधानी समझा जाता था। कहा जाता है कि कनिष्क मध्य एशिया में लड़ता हुआ मारा गया। वह बौद्ध धर्म का महान् संरक्षक था। कनिष्क की मृत्यु के पश्चात् उसके उत्तराधिकारियों ने लगभग सौ वर्षों तक शासन किया। तीसरी शताब्दी ई. के मध्य में ईरान के सासानी राजाओं ने पेशावर और तक्षशिला को जीत कर कुषाणों को अपने अधीन कर लिया।

5. राजा खारवेल-अशोक की मृत्यु के कुछ ही समय पश्चात् मौर्य साम्राज्य का पूर्वी प्रान्त मौर्यों के हाथ से निकल गया। यहां के कलिंग प्रदेश में सत्ता खारवेल के हाथ में आ गई। हाथी-गुफा अभिलेख से पता चलता है कि वह जैन धर्म का संरक्षक था। उसने कई युद्ध किए। उसने भारत के उत्तर-पश्चिम में यूनानियों पर आक्रमण किया और दक्षिण में पाण्डेय राज्य को पराजित किया। उसका यह भी दावा है कि उसने उत्तर तथा दक्षिण में अनेक राजाओं को हराया। खारवेल को प्राचीन उड़ीसा का सबसे महान् राजा माना जाता है।

6. सातवाहन राज्य-अशोक के देहान्त के थोड़े ही समय बाद विन्ध्य पर्वत के दक्षिण के इलाके मौर्य साम्राज्य से छिन गये। पश्चिमी दक्कन में एक नये राज्य का उत्थान हुआ जिसके शासक सातवाहन के नाम से प्रसिद्ध हुए। सातवाहन राज्य के संस्थापकों को अशोक ने अपने शिलालेख में आन्ध्र कहा है। सम्भवतः वह मौर्य सम्राटों के अधीन अधिकारी रहे थे। सातवाहन राजा शातकर्णि इतना शक्तिशाली था कि खारवेल भी उसे हरा न सका। शातकर्णि के राज्य में गोदावरी नदी की सम्पूर्ण घाटी शामिल थी।

7. दक्षिण के राज्य-सातवाहन सत्ता का पतन तीसरी सदी ई० पू० तक आरम्भ हो चुका था। उनके उतार-चढ़ाव के बाद कदम्ब वंश दक्षिणी-पश्चिमी दक्कन में शक्तिशाली बन गया। इधर पल्लवों ने सातवाहनों के दक्षिणी-पूर्वी प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। पल्लव राजाओं की राजधानी कांचीपुरम थी। यह बौद्ध, जैन, आजीविका तथा ब्राह्मणिक विद्या के केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध हुई। पल्लव वंश का शासन छठी सदी ई० तक रहा।

इस समय वाकाटक वंश भी बड़ा शक्तिशाली हुआ। यह राज्य आधुनिक बरार और मध्य प्रदेश में तीसरी सदी ई० से छठी सदी तक रहा। कृष्णा नदी के निचले भाग में तीन मुख्य राज्य थे, जिनके अधीन कई छोटी-छोटी रियासतें भी थीं। इन तीन बड़े राज्यों पर चोल, चेर और पाण्डेय वंशी राजाओं का शासन था। कृष्णा नदी के पूर्वी तट पर चोल, पश्चिमी तट पर चेर तथा प्रायद्वीप के छोर पर पाण्डेय राजा राज्य करते थे। प्रायः ये राज्य आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। किन्तु इनमें से किसी एक के पास अन्यों का राज्य हथियाने की शक्ति न थी। इनमें चेर कभी चोलों से मिल जाते थे तो कभी पाण्डेयों से।
सच तो यह है कि इस अवधि में देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों से विभाजित था। गुप्त राजाओं ने फिर से इस देश में राजनीतिक एकता स्थापित की।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 5 गुप्त काल

प्रश्न 2.
गुप्त साम्राज्य के प्रशासन के सन्दर्भ में इसके उत्थान तथा विस्तार की चर्चा करें।
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य पतन के पश्चात् भारतीय उपमहाद्वीप के लगभग सभी भागों में अनेक राजनीतिक परिवर्तन आए। इन सभी परिवर्तनों के मध्य चक्रवर्ती शासक के आदर्श की महत्ता बराबर बनी रही। यहां कई राजाओं ने भारत के उत्तर तथा दक्षिण में अश्वमेघ यज्ञ किये और चक्रवर्तिन होने का दावा किया। इनमें गुप्त वंश का स्थान सर्वोच्च है। इस वंश ने देश के सभी छोटे-बड़े राज्यों का अन्त कर दिया और यहां राजनीतिक एकता स्थापित की। समाज में गुप्त साम्राज्य के उत्थान, विस्तार तथा पतन की कहानी का वर्णन इस प्रकार है-

1. चन्द्रगुप्त प्रथम-लगभग 319 ई० पू० में गुप्त वंश के शासक चन्द्रगुप्त ने ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि धारण की। वह गुप्त वंश का तीसरा शासक था। इस राजवंश के संस्थापक आरम्भ में सम्भवतः धनी ज़मींदार थे। परन्तु चन्द्रगुप्त ने अपनी वीरता के कारण अपना स्तर उन्नत किया। उसकी 335 ई० में मृत्यु हो गई। तब चन्द्रगुप्त का राज्य बिहार के कुछ भागों में और पूर्वी उत्तर प्रदेश तक सीमित था। यह लगभग वही प्रदेश था जिस पर 600 वर्ष पहले कभी अजातशत्रु शासन किया करता था।

2. चन्द्रगुप्त-मगध के गुप्त राज्य को साम्राज्य में परिणित करने वाला गुप्त शासक समुद्रगुप्त था। उसने 335 ई० से 375 ई० तक शासन किया। इलाहाबाद प्रशस्ति के अनुसार उसने उत्तर में चार राज्यों को जीता। पूर्व और दक्षिण के कई राजा उसकी प्रभुता मानते थे। राजस्थान के नौ गणराज्यों को उसे नज़राना देना पड़ा। भारत के मध्य भाग और दक्कन के कबायली राजाओं और आसाम तथा नेपाल के शासकों ने भी चन्द्रगुप्त को नज़राना दिया। समुद्रगुप्त अपने दक्षिणी अभियान से पूर्वी तट पर स्थित पल्लव राज्य की राजधानी कांचीपुरम तक गया। यह आधुनिक मद्रास (चेन्नई) के निकट है। समुद्रगुप्त ने एक शक राजा और लंका के राजा से भी नज़राना लिया। सच तो यह है कि उसने गुप्त साम्राज्य का खूब विस्तार किया। उसका गंगा के लगभग सारे मैदान पर सीधा अधिकार था तथा राजस्थान के कबीले उसको नज़राना देते थे। इस प्रकार समुद्रगुप्त को गुप्त साम्राज्य का संस्थापक समझा जा सकता है। वह कला का संरक्षक भी माना जाता है।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 5 गुप्त काल 1

3. चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य-समुद्रगुप्त के बाद उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय गद्दी पर बैठा। उसने भी चालीस वर्ष (375415 ई०) तक राज्य किया। उसका सबसे बड़ा युद्ध शकों के विरुद्ध था। यह 388 ई० से 410 ई० तक चलता रहा। बीस वर्षों के लम्बे युद्ध के अन्त में शकों की पराजय हुई। पूरा पश्चिमी भारत अब गुप्त साम्राज्य में मिल गया। चन्द्रगुप्त ने वाकाटक राजा रुद्रसेन द्वितीय से अपनी पुत्री का विवाह कर वाकाटक राज्यवंश से राजनीतिक सन्धि की। जब रुद्रसेन की 390 ई० में मृत्यु हुई तो राज्य की देखभाल रानी के हाथ में आ गई। वह लगभग 410 ई० तक राज्य करती रही। इन वर्षों में वाकाटक राज्य एक तरह से गुप्त साम्राज्य का ही अंग बना रहा। चन्द्रगुप्त द्वितीय ने ‘विक्रमादित्य’ अर्थात् ‘वीरता का सूर्य’ की उपाधि धारण की। अपने बल एवं वीरता के दृश्यों को उसने अपने सिक्कों पर भी अंकित किया।

प्रश्न 3.
गुप्तकाल के सामाजिक, आर्थिक तथा धार्मिक जीवन पर लेख लिखें।
उत्तर-
गुप्तकालीन समाज एक निखरा हुआ रूप लिए हुआ था। भारतीय जीवन का प्रत्येक पक्ष उन्नति की चरम सीमा पर था। व्यापार काफ़ी उन्नत था। उद्योग विकसित थे। लोग समृद्ध तथा धन-धान्य से परिपूर्ण थे। अधिक धन ने वेशभूषा, खान-पान तथा अन्य सामाजिक पहलुओं को प्रभावित किया। हिन्दू धर्म का समुद्र फिर ठाठे मारने लगा। ऐसा लगता था मानो बौद्ध धर्म इसी समुद्र में डूब रहा हो। इतना होने पर भी बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म अपना स्वतन्त्र अस्तित्व बनाए हुए थे। वास्तव में यह धार्मिक सहनशीलता का युग था। यदि गुप्त समाज को एक आदर्श समाज कहा जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। गुप्तकाल के समाज की पूरी झांकी इस प्रकार है-

I. सामाजिक जीवन –

गुप्तकाल के शिलालेख तथा मुद्रायें इस काल की सामाजिक व्यवस्था पर काफ़ी प्रभाव डालते हैं। गुप्तकाल की सामाजिक अवस्था का वर्णन इस प्रकार है

i) वस्त्र और भोजन-गुप्तकालीन सिक्कों पर बने चित्रों को देख कर कहा जा सकता है कि लोग गर्मियों में धोती और उत्तरीय (चादर) तथा सर्दियों में पायजामा और कोट पहनते थे। स्त्रियां चोली और साड़ी का प्रयोग करती थीं। विशेष अवसरों पर लोग रेशमी वस्त्र पहना करते थे। बालियां, चूड़ियां, हार, अंगूठियां तथा कड़े आदि आभूषणों का बड़े चाव से प्रयोग होता था। लोगों का जीवन सादा था। मांस का अधिक प्रयोग नहीं होता था।

ii) स्त्रियों का स्थान-इस काल में स्त्रियां शिक्षा प्राप्त कर सकती थीं तथा गायन विद्या सीख सकती थीं। लड़कियों का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। विधवा विवाह की प्रथा भी प्रचलित थी। परन्तु सती प्रथा का प्रचलन अधिक नहीं था। बहुत कम स्त्रियां सती हुआ करती थीं।

iii) जाति-प्रथा-इस काल में जाति-प्रथा के बन्धन कठोर नहीं थे। किसी भी जाति का व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय अपना सकता था। शूद्रों से बड़ा अच्छा व्यवहार किया जाता था।

iv) आमोद-प्रमोद-इस काल में लोग शतरंज तथा चौपड़ खेलते थे। वे रथ-दौड़ों में भी भाग लिया करते थे। शिकार खेलना, नाटक, संगीत तथा तमाशे आदि आमोद-प्रमोद के अन्य साधन थे।

II. आर्थिक जीवन–

गुप्त शासकों ने प्रजा के प्रति बड़ी उदार नीति अपनाई। देश में चारों ओर शान्ति थी। शान्त वातावरण पाकर देश में कृषि, उद्योग, व्यापार आदि में असाधारण उन्नति हुई। परिणामस्वरूप देश धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया। संक्षेप में, गुप्त काल में लोगों की आर्थिक दशा का वर्णन इस प्रकार है-

1. कृषि-गुप्त काल में अधिकतर लोग कृषि का व्यवसाय अपनाये हुए थे। वे चावल, गेहूं, जौ, मटर, तेल निकालने के बीजों, विभिन्न सब्जियों, जड़ी-बूटियों आदि की कृषि करते थे। इन सभी उपजों का वर्णन हमें ‘अमरकोष’ तथा ‘वृहत् संहिता’ से उपलब्ध होता है। भूमि समस्त परिवार की सांझी सम्पत्ति मानी जाती थी। ग्राम-पंचायत की आज्ञा के बिना भूमि बेची नहीं जा सकती थी। सिंचाई के लिए कृषक वर्षा पर निर्भर रहते थे। वैसे सरकार की ओर से नहरों और झीलों आदि का समुचित प्रबन्ध किया गया था। स्कन्दगुप्त के गवर्नर पर्णदत्त के पुत्र ने सुदर्शन झील की मुरम्मत करवाई थी। गुप्त सम्राटों ने कृषि के विकास में बड़ा उत्साह दिखाया था।

2. उद्योग-धन्धे-गुप्तकालीन उद्योग-धन्धे भी काफ़ी विकसित थे। यूनसांग के अनुसार, “सातवीं शताब्दी में लोग रेशम, मलमल, लिनन और ऊन का प्रयोग करते थे। बाण ने भी लिनन से बुने हुए रेशम आदि का उल्लेख किया है। राज्यश्री के विवाह में क्षौम, दुकूल तथा ललातंतु के बने हुए वस्त्रों का प्रदर्शन किया गया था। कपड़ा उद्योग बंगाल, बनारस तथा मथुरा में केन्द्रित था। .. हाथी दांत का काम भी जोरों पर था। हाथी दांत की अनेक चीजें बनती थीं। हाथी दांत का फर्नीचर तथा मुद्राओं में भी प्रयोग किया जाता था। सोना, चांदी, सीसा, तांबा तथा कांसा आदि से सम्बन्धित व्यवसाय भी प्रचलित थे। लोहे की ढलाई की जाती थी। महरौली का स्तम्भ इस उद्योग की शान का सबसे सुन्दर नमूना है। महात्मा बुद्ध की तांबे की मूर्ति भागलपुर के पास सुल्तानगंज में मिली है। यह भारतीय कारीगरी का प्राचीन गौरव है।

3. व्यापार-गुप्त काल में व्यापार की दशा उन्नत थी। व्यापार सड़कों तथा नदियों द्वारा होता था। देश के मुख्य नगर अर्थात् भड़ौच, उज्जयिनी, पैठन, प्रयाग, विदिशा, बनारस, गया, पाटलिपुत्र, वैशाली, ताम्रलिप्ति, कौशाम्बी, मथुरा, अहिच्छत्र और पेशावर आदि सड़कों द्वारा एक-दूसरे से मिले हुए थे। गाड़ियां, पशु तथा नावें यातायात के मुख्य साधन थे। भारतीय लोगों ने ऐसे जहाज़ भी बनाए हुए थे जिसमें 500 आदमी एक-साथ यात्रा कर सकते थे। देश में अनेक बन्दरगाहें थीं जिनके द्वारा पूर्वी द्वीपसमूह तथा पश्चिमी देशों से व्यापार होता था। गुजरात और पश्चिमी तट की प्रसिद्ध बन्दरगाहें कल्याण, चोल, भड़ौच और कैम्बे थीं। भारत से विदेशों को मणियां, मोती, सुगन्धित पदार्थ, कपड़ा, गर्म मसाले, नील, नारियल, औषधियां और हाथदांत की वस्तुएं भेजी जाती थीं। विदेशों से सोना, चांदी, तांबा, टीन, जस्ता, कपूर, रेशम, मूंगा, खजूर और घोड़े आदि आयात किए जाते थे।

4. श्रेणियां-गुप्त काल की आर्थिक व्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता श्रेणी अथवा ‘गिल्ड प्रणाली’ थी। प्रत्येक . . व्यवसाय के लोग अपने व्यवसाय के प्रबन्ध के लिए एक संस्था बना लेते थे। व्यापारियों और साहूकारों की श्रेणियों के अतिरिक्त जुलाहों, तेलियों और संगतराशों ने भी अपनी-अपनी श्रेणियां बना ली थीं। प्रत्येक श्रेणी की एक कार्यकारिणी होती थी। वही उसका कार्य चलाती थी। वैशाली से 274 मोहरें प्राप्त हुई हैं। इन्हें प्रत्येक श्रेणी अपने पत्रों को बन्द करने में प्रयोग करती थी। श्रेणियों के अपने अलग नियम थे। इन नियमों को सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त थी। श्रेणी के सभी झगड़े श्रेणी का मुखिया निपटाया करता था। इन श्रेणियों के कारण व्यापार तथा उद्योग खूब फले-फूले।

III. धार्मिक जीवन-

गुप्त काल में हिन्दू धर्म पुनः लोकप्रिय हुआ। डॉ० कीथ (Dr. Keith) ने इस विषय में इस प्रकार लिखा है-“The Gupta empire signified revival of Brahmanism and Hinduism.” गुप्त शासक स्वयं भी हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। उनके शासन काल में ‘विष्णु’ तथा ‘सूर्य’ की उपासना की जाने लगी। इनकी मूर्तियां बनाकर मन्दिरों में रखी जाती थीं। देश में फिर से यज्ञ आदि भी होने लगे। यद्यपि गुप्त सम्राट् हिन्दू धर्म के अनुयायी थे तो भी वे हठधर्मी नहीं कहे जा सकते। इस काल में बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म भी लोकप्रिय थे। गुप्त राजा इन धर्मों को भी आर्थिक सहायता देते थे। अफगानिस्तान, कश्मीर और पंजाब में बौद्ध धर्म अत्यन्त लोकप्रिय था। जैन धर्म की दो सभाएं इसी काल में हुईं।

सच तो यह है कि गुप्तकाल में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बड़ी उन्नति हुई। गुप्तकाल का समाज एक आदर्श समाज था। व्यापार तथा अन्य उद्योग-धन्धे विकसित थे। फलस्वरूप लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा था। धर्म के क्षेत्र में भी कुछ नवीन विचारधाराओं का उदय हुआ। गुप्त कालीन समाज निःसन्देह प्रत्येक क्षेत्र में समृद्ध था।

PSEB 11th Class History Solutions Chapter 5 गुप्त काल

प्रश्न 4.
गुप्त काल में कला, साहित्य, विज्ञान तथा तकनॉलोजी की उन्नति की चर्चा करें।
उत्तर-
गुप्तकाल का भारत के प्रचीन इतिहास में विशेष स्थान है। विद्वानों ने इसे ‘स्वर्ण काल’ का नाम दिया है। इस काल में अनेक मन्दिर तथा गुफाओं का निर्माण हुआ। उन दिनों कालिदास जैसे महान् साहित्यकार पैदा हुए। विज्ञान तथा तकनॉलोजी के क्षेत्र में भी भारत ने खूब उन्नति की। इन सब सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

I. कला के क्षेत्र में विकास–

1. भवन निर्माण कला तथा मूर्तिकला-गुप्त सम्राटों को भवन निर्माण कला से विशेष लगाव था। उन्होंने अपने राज्य में अनेक आकर्षक मन्दिर बनवाए। भूमरा का शिव मन्दिर, देवगढ़ का मन्दिर तथा भितरी गांव का मन्दिर देखने योग्य हैं। मन्दिरों के अतिरिक्त गुप्त काल की गुफाएं भी उस समय की श्रेष्ठ भवन निर्माण कला की प्रतीक हैं। मध्यप्रदेश में भीलसा के निकट उदयगिरी का गुफा-मन्दिर भी कला का उच्च नमूना प्रस्तुत करता है। गुप्तकालीन मठों में सांची और गया में स्थित मठ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

गुप्त काल में भवन निर्माण कला के साथ-साथ मूर्ति कला ने खूब उन्नति की। गुप्तकाल में सबसे अधिक मूर्तियां महात्मा बुद्ध तथा बौधिसत्वों की बनीं। इनमें से कुछ मूर्तियां मथुरा तथा सारनाथ से प्राप्त हुई हैं। बुद्ध की ये मूर्तियां गुप्त कालीन शिल्पकला के सौन्दर्य का प्रतीक हैं। मथुरा से प्राप्त खड़े बुद्ध की मूर्ति गुप्तकाल की शिल्प-कला का सजीव उदाहरण है। इसमें बुद्ध के धुंघराले बाल, बारीक वस्त्र तथा आकर्षक आभूषण बड़ी बारीकी से तराशे गए हैं। बुद्ध की मूर्तियों के अतिरिक्त इस काल में विष्णु, शिव, सूर्य आदि देवताओं की भी अनेक सुन्दर मूर्तियां बनाई गई हैं। देवगढ़, ग्वालियर आदि स्थानों से प्राप्त मूर्तियों से हमें गुप्त काल की अनोखी शिल्प-काल के दर्शन होते हैं।

2. चित्रकला-गुप्तकाल में चित्रकला भी उन्नति की चरम सीमा को छूने लगी। गुप्तकाल की चित्र-कला के दर्शन हमें मध्य भारत में अजन्ता की गुफाओं तथा ग्वालियर में बाघ की गुफाओं में होते हैं। अजन्ता की गुफाओं पर अनेक प्रकार के चित्र चित्रित हैं। तत्कालीन चित्रकारों ने अपने चित्रों में महात्मा बुद्ध की जीवनी को बड़ी निपुणता से चित्रित किया है। इसके अतिरिक्त अन्य देवी-देवताओं के चित्र, पशु-पक्षियों के चित्र, राजकुमारियों के रहन-सहन के चित्र तथा वृक्षों के चित्रों को बड़ी बारीकी से चित्रित किया गया है। सभी चित्रों में बड़े ही गूढ भावों को उभारा गया है। बाघ की गुफाओं के चित्र भी कला की दृष्टि से कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। इनके चित्र प्रायः अजन्ता के चित्रों से मिलते-जुलते हैं।

3. संगीत-कला-विद्वानों का मत है कि गुप्त काल में संगीत-कला में भी असाधारण विकास हुआ। गुप्त सम्राटों के संगीत-प्रेम का परिचय हमें इलाहाबाद स्तम्भ लेख तथा गुप्त काल की मुद्राओं से मिलता है। इलाहाबाद स्तम्भ लेख हमें समुद्रगुप्त के महान् संगीतज्ञ होने की जानकारी देता है। इसके अतिरिक्त उनकी कुछ मुद्राएं भी प्राप्त हुई हैं। इन मुद्राओं में उसे वीणा पकड़े हुए दिखाया गया है। स्पष्ट है कि उसे संगीत-कला से अगाध प्रेम था। संगीत-कला प्रेमी सम्राट ने संगीत के विकास में अवश्य ही विशेष रूचि दिखाई होगी। इसी प्रकार स्कन्दगुप्त भी बड़ा संगीत प्रेमी था। उसके संरक्षण में संगीत उन्नति की पराकाष्ठा को छने लगा।

4. धातु-कला तथा मुद्रा-कला-गुप्त काल में धातु-कला काफ़ी विकसित थी। उस समय के उपलब्ध धातु-कला के नमूने कारीगरों की निपुणता के द्योतक हैं। नालन्दा से प्राप्त बुद्ध की तांबे की मूर्ति अत्यन्त आकर्षक है। फुट 7 1/2 ऊंची यह मूर्ति धातु-कला की दृष्टि से अपना उदाहरण आप ही है। इस प्रकार दिल्ली के निकट महरौली में स्थित गुप्त काल का लौहस्तम्भ भी इस कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस स्तम्भ की प्रमुख विशेषता यह है कि सदियां बीतने पर भी यह स्तम्भ ज्यों का त्यों खड़ा है। इस पर आंधी, धूप, वर्षा, तूफान आदि किसी भी प्रकार की प्राकृतिक शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। गुप्त काल ने मुद्रा-कला में भी अद्भुत सफलता प्राप्त की। लगभग सभी गुप्त सम्राटों के सिक्के प्राप्त हुए हैं। सोने, चांदी तथा तांबे के बने ये सिक्के गुप्त काल की विकसित मुद्रा-कला के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। यद्यपि गुप्त काल के आरम्भिक सिक्कों पर विदेशी प्रभाव झलकता है, फिर भी चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा कुमारगुप्त के सिक्के स्पष्ट रूप से भारतीयता के प्रतीक हैं।

II. साहित्य में उन्नति-

गुप्त काल में अनेक साहित्यकारों ने अपनी साहित्यिक कृतियों में गुप्तकाल की शान में वृद्धि की। कालिदास इस युग का अद्वितीय रत्न था। वह संस्कृत का महान् कवि तथा नाटककार था। उसने इतने उत्कृष्ट नाटक लिखे कि प्रशंसा में उसे भारतीय शेक्सपियर के नाम से याद किया जाता है। उसकी प्रमुख रचनाएं ये हैं-‘रघुवंश’, ‘मालविकाग्निमित्रम’, ‘ऋतु संहार’, ‘कुमारसम्भव’, ‘विक्रमोर्वशी’ आदि। ‘अभिज्ञान शाकुंतलम’ नाटक उसकी अमर कृति है। गुप्त काल की दूसरी महान् विभूति ‘विशाखदत्त’ था। उसकी अमर कृतियों में ‘मुद्राराक्षस’ तथा ‘देवीचन्द्रगुप्तम’ के नाम लिये जा सकते हैं। शूद्रक चौथी शताब्दी का सुप्रसिद्ध नाटककार था। उसने मृच्छकटिक नामक नाटक की रचना की। विष्णु शर्मा ने इस काल में भारत को पंचतन्त्र नामक एक अमूल्य अमर कृति दी। इस युग में पुराणों को नवीन रूप दिया गया। स्मृतियां भी इसी युग की देन हैं। कहते हैं, इस युग में ‘रामायण’ तथा ‘महाभारत’ के संशोधित संस्करण तैयार किए गए। ईश्वर कृष्ण, वात्स्यायन तथा प्रशस्तपाद इस युग के महान् दार्शनिक थे। ईश्वर कृष्ण ने ‘सांख्यकारिका’ की रचना की। वात्स्यायन ने न्यायसूत्र पर ‘न्याय भाष्य’ की रचना की। इसी प्रकार प्रशस्तपाद ने ‘पदार्थ धर्म’ संग्रह लिखा। इनके अतिरिक्त ‘असंग’, ‘वसुबन्धु’, ‘धर्मपाल’, ‘चन्द्रकर्ति’ आदि अन्य कई दार्शनिक हुए। इस काल में समुद्रगुप्त के दरबारी हरिषेण ने इलाहाबाद प्रशस्ति लिखी जो समुद्रगुप्त की सफलताओं पर महत्त्वपूर्ण प्रकाश डालती है।

III. विज्ञान के क्षेत्र में उन्नति-

गुप्त काल में गणित, ज्योतिष तथा चिकित्सा विज्ञान में काफ़ी प्रगति हुई-
1. आर्यभट्ट गुप्त युग का महान् गणितज्ञ तथा ज्योतिषी था। उसने ‘आर्यभट्टीय’ नामक ग्रन्थ की रचना की। यह अंकगणित, रेखागणित तथा बीजगणित के विषयों पर प्रकाश डालता है। उसने गणित को स्वतन्त्र विषय के रूप में स्वीकार करवाया। संसार को ‘बिन्दु’ का सिद्धान्त भी उसी ने दिया। आर्यभट्ट पहला व्यक्ति था जिसने यह घोषणा की कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है। उसने सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण के वास्तविक कारणों पर भी प्रकाश डाला।

2. गुप्त युग का दूसरा महान् ज्योतिषी अथवा नक्षत्र-वैज्ञानिक वराहमिहिर था। उसने ‘पंच सिद्धान्तिका’, ‘बृहत् संहिता’ तथा ‘योग-यात्रा’ आदि ग्रन्थों की रचना की।

3. ब्रह्मगुप्त एक महान् ज्योतिषी तथा गणितज्ञ था। उसने न्यूटन से भी बहुत पहले गुरुत्वाकर्षण के सिद्धान्त को स्पष्ट किया।

4. वाग्यभट्ट इस युग का महान् चिकित्सक था। उसका ‘अष्टांग संग्रह’ नामक ग्रन्थ चिकित्सा जगत् के लिए अमूल्य निधि है। इसमें चरक तथा सुश्रुत नामक महान् चिकित्सकों की संहिताओं का सार दिया गया है।

5. इस काल में पाल-काव्य ने ‘हस्त्यायुर्वेद’ की रचना की। इस ग्रन्थ का सम्बन्ध पशु चिकित्सा से है। लोगों को उस समय रसायनशास्त्र तथा धातु विज्ञान का भी ज्ञान था।

IV. तकनॉलाजी (तकनीकी) –

गुप्त काल में धातु-कला की तकनीकी में बड़ा विकास हुआ। उस समय के उपलब्ध धातुकला के नमने कारीगरों की निपुणता के द्योतक हैं। नालन्दा से प्राप्त बुद्ध की तांबे की मूर्ति अत्यन्त आकर्षक है। इसी प्रकार दिल्ली के निकट महरौली में स्थित गुप्त काल का लौह-स्तम्भ भी कला का उत्कृष्ट नमूना है। इस स्तम्भ की प्रमुख विशेषता यह है कि सदियां बीतने पर भी यह स्तम्भ ज्यों का त्यों खड़ा है। इस पर आंधी, धूप, वर्षा, तूफान आदि किसी प्राकृतिक शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। गुप्तकाल ने मुद्रा-कला में भी अद्भुत सफलता प्राप्त की। लगभग सभी गुप्त सम्राटों के सिक्के प्राप्त हुए हैं। सोने, चांदी तथा तांबे के बने ये सिक्के गुप्त काल की विकसित मुद्रा-कला के प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। भारतीय इतिहास में मुद्रा-कला में वास्तविक निखार का प्रमाण हमें गुप्तकालीन सिक्कों से ही मिलता है। गुप्तकालीन सिक्कों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ये पूर्णतया भारतीय रंग में रचित है। इनकी हर बात में भारतीयता झलकती है। भारतीय भाषा, भारतीय चित्र तथा भारतीय सम्वत् इन सिक्कों की मुख्य विशेषताएं हैं। यद्यपि गुप्त काल के आरम्भिक सिक्कों पर विदेशी प्रभाव झलकता है फिर भी चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा कुमारगुप्त के सिक्के स्पष्ट रूप से भारतीयता के प्रतीक हैं।

सच तो यह है कि गुप्त काल में भवन-निर्माण कला, चित्रकला, शिल्पकला, संगीत-कला, धातु-कला, मुद्रा-कला आदि सभी कलाओं में आश्चर्यजनक विकास हुआ। सुन्दर भवनों से देश अलंकृत हुआ, मूर्तियों में चेतना का संचार हुआ और भारतीय संगीत से समस्त वातावरण गूंज उठा। साहित्य का रूप निखरा । कालिदास की रचनाओं, पुराणों तथा स्मृतियों ने धार्मिक साहित्य की शोभा बढ़ाई। आर्यभट्ट, वराहमिहिर तथा ब्रह्मगुप्त ने नक्षत्र सम्बन्धी इतने महान् ग्रन्थों की रचना की कि वे आज भी वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। इस सबका श्रेय गुप्त सम्राटों को प्राप्त है।

महत्त्वपूर्ण परीक्षा-शैली प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. उत्तर एक शब्द से एक वाक्य तक

प्रश्न 1.
गुप्त वंश का संस्थापक कौन था ?
उत्तर-
गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था।

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प्रश्न 2.
भारत आने वाले पहले चीनी यात्री का नाम क्या था ?
उत्तर-
भारत आने वाले पहले चीनी यात्री का नाम फाह्यान था।

प्रश्न 3.
इलाहाबाद का स्तम्भ लेख किस गुप्त शासक के बारे में है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त।

प्रश्न 4.
कौन से गुप्त शासक को ‘भारतीय नैपोलियन’ कह कर पुकारा जाता है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त।

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प्रश्न 5.
गुप्त वंश के किस राजा द्वारा अश्वमेध यज्ञ रचाया गया था ?
उत्तर-
गुप्त वंश के राजा समुद्रगुप्त द्वारा अश्वमेध यज्ञ रचाया गया था।

प्रश्न 6.
समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी का क्या नाम था ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त के उत्तराधिकारी का नाम रामगुप्त था।

प्रश्न 7.
गुप्तकाल के दो सुन्दर मन्दिरों के नाम लिखो।
उत्तर-
भूमरा तथा देवगढ़ के मंदिर।

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प्रश्न 8.
गुप्तकालीन चित्रकारी के श्रेष्ठ नमूनों के कोई दो स्थान बताइये।
उत्तर-
गुप्तकाल की चित्रकारी के श्रेष्ठ नमूने अजन्ता तथा एलोरा की गुफाओं में मिलते हैं।

प्रश्न 9.
गुप्तकाल का प्रसिद्ध चिकित्सक कौन था ?
उत्तर-
गुप्तकाल का प्रसिद्ध चिकित्सक चरक था।

प्रश्न 10.
गुप्तकालीन धातुकला का उत्कृष्ट नमूना कौन-सा था ?
उत्तर-
गुप्तकालीन धातुकला का उत्कृष्ट नमूना महरौली का लौह-स्तम्भ है।

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प्रश्न 11.
किस काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है ?
उत्तर-
गुप्तकाल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग कहा जाता है।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति-

(i) शकुंतला नामक नाटक का लेखक ………….. था।
(ii) गुप्त शासक ………………. धर्म के अनुयायी थे।
(iii) गुप्त वंश का सबसे पराक्रमी राजा …………. था।
(iv) चीनी यात्री फाह्यान ……….. के दरबार में 6 वर्ष तक रहा।
(v) गुप्तकाल का सबसे प्रसिद्ध विश्वविद्यालय …………….. था।
उत्तर-
(i) कालिदास
(ii) हिंदू
(iii) समुद्रगुप्त
(iv) चंद्रगुप्त विक्रमादित्य
(v) नालंदा।

3. सही/ग़लत कथन-

(i) तोरमाण तथा मिहिरकुल प्रसिद्ध हूण शासक थे। –(√)
(ii) श्वेताम्बर तथा दिग़म्बर बौद्ध धर्म के सम्प्रदाय थे। –(×)
(iii) चंद्रगुप्त द्वितीय के समय गुजरात तथा काठियावाड़ में शक वंश का शासन था। –(√)
(iv) गुप्तकाल की राजभाषा संस्कृत थी। –(√)
(v) कुमारगुप्त, स्कंदगुप्त का उत्तराधिकारी था। –(×)

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4. बहु-विकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न (i)
‘मेघदूत’ का लेखक कौन था ?
(A) विशाखादत्त
(B) कालिदास
(C) चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य
(D) हरिषेण ।
उत्तर-
(B) कालिदास

प्रश्न (ii)
गुप्तकाल का एक प्रसिद्ध नाटककार था
(A) भास
(B) भारवि
(C) बाणभट्ट
(D) वराहमिहिर ।
उत्तर-
(A) भास

प्रश्न (iii)
आर्यभट्ट था-
(A) प्रसिद्ध नाटककार
(B) विख्यात सेनापति
(C) ज्योतिष तथा गणित का विद्वान्
(D) धर्म-प्रवर्तक।
उत्तर-
(C) ज्योतिष तथा गणित का विद्वान्

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प्रश्न (iv)
दक्षिण के राजाओं को हराने वाला गुप्त शासक था-
(A) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(B) समुद्रगुप्त
(C) चन्द्रगुप्त प्रथम
(D) स्कंदगुप्त ।
उत्तर-
(B) समुद्रगुप्त

प्रश्न (v)
‘शाकारि’ की उपाधि धारण करने वाला गुप्त शासक था-
(A) चन्द्रगुप्त द्वितीय
(B) समुद्रगुप्त
(C) रामगुप्त
(D) कुमार गुप्त।
उत्तर-
(A) चन्द्रगुप्त द्वितीय

II. अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन-सी दो विदेशी भाषाओं में मौर्य साम्राज्य के पतन के बाद के काल के बारे में बताने वाले स्रोत मिलते
उत्तर-
मौर्य साम्राज्य के पतन के काल की जानकारी के स्रोत यूनानी तथा चीनी भाषाओं में मिले हैं।

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प्रश्न 2.
शंग तथा कण्व वंशों के संस्थापकों के नाम बताओ।
उत्तर-
शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग तथा कण्व वंश का संस्थापक वसुदेव था।

प्रश्न 3.
उत्तर-पश्चिम भारत में सबसे प्रसिद्ध यूनानी राजा तथा उसकी राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
उत्तर-पश्चिम में सबसे प्रसिद्ध यूनानी राजा मिनाण्डर था। उसकी राजधानी स्यालकोट थी।

प्रश्न 4.
पहले पहलव (पार्थियन) शासक तथा उसकी राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
पहला पहलव शासक गोंडोफर्नीज़ था। उसकी राजधानी तक्षशिला थी।

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प्रश्न 5.
शकों का राज्य कौन-से चार प्रदेशों पर था ?
उत्तर-
शकों का राज्य गुजरात, मालवा, मथुरा तथा पश्चिमी राजस्थान में था।

प्रश्न 6.
सबसे प्रसिद्ध शक शासक तथा उससे सम्बन्धित अभिलेख का नाम बताएं।
उत्तर-
सबसे प्रसिद्ध शक शासक का तथा इससे सम्बन्धित अभिलेख का नाम है-जूनागढ़ अभिलेख।

प्रश्न 7.
कुषाण कबीले के पहले दो शासकों के नाम बताओ।
उत्तर-
कुषाण कबीले के पहले दो शासक थे-कजुल केडफीसिज़ और विम केडफीसिज़।

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प्रश्न 8.
कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक तथा उसकी राजधानी का नाम बताएं।
उत्तर-
कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था जिसकी राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी।

प्रश्न 9.
कुषाण काल में बौद्ध धर्म की कौन-सी सभा हुई तथा यह कहां बुलाई गई थी ?
उत्तर-
कुषाण काल में बौद्ध धर्म की चौथी सभा हुई। यह महासभा कश्मीर में बुलाई गई थी।

प्रश्न 10.
कुषाण काल में कौन-सी कला-शैली का विकास हुआ तथा यह किस धर्म से सम्बन्धित थी ?
उत्तर-
कुषाण काल में गान्धार कला-शैली का विकास हुआ। यह कला-शैली बौद्ध धर्म से सम्बंधित थी।

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प्रश्न 11.
कुषाण कला के कौन-से शासक के साथ शक सम्वत् जोड़ा जाता है और यह आज किस देश का सरकारी सम्वत् है ?
उत्तर-
शक सम्वत् कुषाण शासक कनिष्क के साथ जोड़ा जाता है। यह आज भारत का सरकारी सम्वत् है।

प्रश्न 12.
कौन-से शासक को उसके सिक्के पर धनुष, पगड़ी, कोट तथा जूतों के साथ दिखाया गया है और उसका राज्य कहां से कहां तक फैला हुआ था ?
उत्तर-
कनिष्क को उसके सिक्के पर धनुष, पगड़ी, कोट और जूतों के साथ दिखाया गया है। उसका राज्य मध्य एशिया में खुरासान से लेकर भारत में बनारस और सांची तक फैला हुआ था जिसमें पंजाब भी शामिल था।

प्रश्न 13.
कार्ली का चैत्य तथा अमरावती का स्तूप कौन-से राजवंश के समय में बनाए गए तथा इसका सबसे महत्त्वपूर्ण शासक कौन था और उसका राज्य किस प्रदेश में फैला हुआ था ?
उत्तर-
कार्ली का चैत्य तथा अमरावती का स्तूप सातवाहन राजवंश के समय में बनाए गए। इस वंश का सबसे महत्त्वपूर्ण शासक, गौतमीपुत्र शातकर्णि था जिसका राज्य पश्चिमी दक्कन में फैला हुआ था।

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प्रश्न 14.
प्राचीन दक्कन के किस राजवंश का काल रोम के साथ व्यापार के लिए प्रसिद्ध है और उसके समय में किन दो धर्मों को संरक्षण दिया गया ?
उत्तर-
प्राचीन दक्कन के सातवाहन राजवंश का काल रोम के साथ व्यापार के लिए प्रसिद्ध है। इस राजवंश के समय में वैष्णव धर्म तथा बौद्ध धर्म को प्रोत्साहन दिया गया।

प्रश्न 15.
तीसरी सदी ई० में दक्षिण में उभरने वाले चार नए राज्यों के नाम बताएं।
उत्तर-
तीसरी सदी ई० में दक्षिण में उभरने वाले चार राज्य थे-कदम्ब, पल्लव, वाकाटक, चेर।

प्रश्न 16.
तीसरी सदी में कृष्णा नदी के दक्षिण में तीन मुख्य राज्य कौन से थे ?
उत्तर-
तीसरी सदी में कृष्णा नदी के दक्षिण में तीन मुख्य राज्य थे-चोल, चेर और पाण्डेय।

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प्रश्न 17.
गुप्त वंश के तीसरे शासक का नाम तथा उसने किस वंश की राजकुमारी के साथ विवाह किया था ?
उत्तर-
गुप्त वंश का तीसरा शासक चन्द्रगुप्त प्रथम था। उसने लिच्छवी वंश की राजकुमारी कुमारदेवी से विवाह किया था।

प्रश्न 18.
समुद्रगुप्त की विजयों के बारे में बताने वाला अभिलेख किस शासक द्वारा बनाए गए स्तम्भ पर मिलता है और यह कहां है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त की विजयों के बारे में वर्णन अशोक द्वारा बनाए गए स्तम्भ पर मिलता है। यह स्तम्भ इलाहाबाद में है।

प्रश्न 19.
चीनी यात्री फाह्यान कौन-से शासक के समय में भारत आया था और उसका राज्यकाल क्या था ?
उत्तर-
फाह्यान गुप्त शासक चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में भारत आया था। उसका राज्य काल 375 ई० से 415 ई० तक था।

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प्रश्न 20.
कौन-सा गुप्त शासक अपने सिक्के पर वीणा बजाता हुआ दर्शाया गया है तथा उसका राज्यकाल क्या था ?
उत्तर-
गुप्त शासक समुद्रगुप्त को अपने सिक्के पर वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। उसका राज्यकाल 335 ई० से 375 ई० तक था।

प्रश्न 21.
कौन-सा गुप्त शासक अपने सिक्के पर धनुषधारी के रूप में दर्शाया गया है और उसकी सबसे बड़ी विजय कौन-सी थी ?
उत्तर-
गुप्त शासक चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को अपने सिक्के पर धनुषधारी के रूप में दर्शाया गया है। उसकी सबसे बड़ी विजय गुजरात तथा पश्चिमी मालवा के शासकों के विरुद्ध थी।

प्रश्न 22.
कौन-सी जाति के विदेशी आक्रमणकारियों ने गुप्त साम्राज्य के पतन में योगदान दिया और यह किन दो बातों में गुप्त सैनिकों से आगे थे ?
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य के पतन में हूण जाति ने योगदान दिया। हूण घुड़सवारी और तीर-अंदाज़ी में गुप्त सैनिकों से आगे थे।

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प्रश्न 23.
गुप्त साम्राज्य के सीधे प्रशासन के अधीन कौन-से क्षेत्र थे ?
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य के सीधे प्रशासन के अधीन उत्तरी बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्र सम्मिलित थे।

प्रश्न 24.
गुप्त साम्राज्य के प्रान्तों के प्रशासकों के कौन-से दो नाम थे ?
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य में प्रान्तों के प्रशासकों को कुमारामात्य अथवा उपारिक महाराज कहा जाता था।

प्रश्न 25.
गुप्त काल में भारत का व्यापार कौन से चार देशों से था ?
उत्तर-
गुप्त काल में भारत का व्यापार बर्मा, चीन, रोम तथा श्रीलंका से होता था।

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प्रश्न 26.
गुप्त काल में बनाये जाने वाले कपड़े की चार किस्में बतायें।
उत्तर-
गुप्त काल में बनाये जाने वाले कपड़े की चार किस्में थीं-रेशमी, सूती, मलमल तथा लिलन।

प्रश्न 27.
मनु की लिखी हुई पुस्तक का क्या नाम है और इसमें समाज के किस वर्ग की श्रेष्ठता पर बल दिया गया है।
उत्तर-
मनु द्वारा लिखी पुस्तक का नाम मानवधर्मशास्त्र है। इसमें ब्राह्मण वर्ग की श्रेष्ठता पर बल दिया गया हैं।

प्रश्न 28.
मनु के अतिरिक्त कानून के क्षेत्र में ग्रन्थ लिखने वाले चार प्रसिद्ध विद्वानों के नाम लिखो।
उत्तर-
मनु के अतिरिक्त कानून के क्षेत्र में ग्रन्थ लिखने वाले चार प्रसिद्ध विद्वान् थे-याज्ञवल्क्य, नारद, बृहस्पति तथा कात्यायन।

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प्रश्न 29.
चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वानों के नाम बताओ।
उत्तर-
चिकित्सा के क्षेत्र में दो प्रसिद्ध गुप्तकालीन विद्वान् थे-चरक और सुश्रुत।

प्रश्न 30.
गुप्त काल में बने लौह स्तम्भ की ऊँचाई क्या है, यह कहां है ?
उत्तर-
लौह स्तम्भ 23 फुट से भी ऊंचा है। यह दिल्ली में स्थित है।

प्रश्न 31.
‘हिन्द’ से क्या भाव है ?
उत्तर-
‘हिन्द’ से भाव है-अंक।

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प्रश्न 32.
वराहमिहिर की लिखी पुस्तक का नाम बताओ। यह किस क्षेत्र में लिखी गई ?
उत्तर-
वराहमिहिर की पुस्तक का नाम ‘पंच सिद्धान्तिका’ है। यह खगोल विज्ञान के क्षेत्र में लिखी गई।

प्रश्न 33.
बुद्ध की कौन-सी मूर्ति से सुन्दरता, ओज तथा दया की पूर्ण एकसारता प्रकट होती है तथा यह वर्तमान भारत के कौन-से नगर के निकट पाई गई है ?
उत्तर-
बुद्ध की सारनाथ में मिली मूर्ति में सुन्दरता, ओज तथा दया की पूर्ण एकसारता प्रकट होती है। यह वर्तमान पटना के निकट पाई गई है।

प्रश्न 34.
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का चित्र कहां मिला है तथा यह बौद्ध धर्म के किस सम्प्रदाय से सम्बन्धित
उत्तर-
अवलोकितेश्वर बोधिसत्व का चित्र अजन्ता की एक गुफा में मिला है। यह बौद्ध के महायान सम्प्रदाय से सम्बन्धित है।

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प्रश्न 35.
उदयगिरी में विष्णु के कौन-से अवतार की मूर्ति मिली है और यह वर्तमान भारत में किस राज्य में है ?
उत्तर-
उदयगिरी में विष्णु के वराह अवतार की मूर्ति मिली है। यह स्थान वर्तमान भारत के मध्य-प्रदेश राज्य में है।

प्रश्न 36.
संस्कृत व्याकरण में प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध दो विद्वानों के नाम बताओ।
उत्तर-
संस्कृत व्याकरण में प्राचीन भारत के सबसे प्रसिद्ध दो विद्वानों के नाम हैं-पाणिनी और पातंजलि।

प्रश्न 37.
गुप्त काल में संस्कृत कौन-से वर्ग की भाषा थी और नाटकों में कौन-से दो प्रकार के पात्र प्राकृत का प्रयोग करते थे ?
उत्तर-
गुप्त काल में संस्कृत कुलीन वर्ग की भाषा थी। नाटकों में स्त्रियां तथा समाज के निम्न वर्गों के पात्र प्राकृत का प्रयोग करते थे।

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प्रश्न 38.
पुराणों का संकलन किस काल में हुआ तथा किस काल में लिखे गये ?
उत्तर-
पुराणों का संकलन गुप्त काल में हुआ। ये भविष्य काल में लिखे गए हैं।

प्रश्न 39.
महाभारत तथा रामायण का संकल्प किस काल में हुआ तथा इनसे सम्बन्धित दो अवतार कौन थे ?
उत्तर-
महाभारत तथा रामायण का संकलन गुप्त काल में हुआ। इनसे सम्बन्धित दो अवतार क्रमशः कृष्ण तथा राम थे।

प्रश्न 40.
शद्रक के नाटक का तथा संस्कृत के गद्य साहित्य के बेहतरीन नमूने का नाम बताओ।
उत्तर-
शूद्रक का नाटक ‘मृच्छकटिकम्’ था। संस्कृत के गद्य साहित्य का बेहतरीन नमूना पंचतन्त्र को माना जाता है।

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प्रश्न 41.
कालिदास से पहले के संस्कृत के दो प्रसिद्ध नाटककारों के नाम लिखो।
उत्तर-
कालिदास से पहले के संस्कृत के दो प्रसिद्ध नाटककारों के नाम थे : अश्वघोष तथा भास।

प्रश्न 42.
कालिदास की दो प्रसिद्ध रचनाओं के नाम लिखो।
उत्तर-
‘मेघदूत’ तथा ‘शाकुन्तलम्’ कालिदास की दो प्रसिद्ध रचनाएं हैं।

प्रश्न 43.
गुप्त काल में अधिकांश बौद्ध साहित्य किस भाषा में लिखा गया तथा बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मूर्तियां किन दो स्थानों पर मिली हैं ?
उत्तर-
गुप्त काल में अधिकांश बौद्ध साहित्य पाली भाषा में लिखा गया। बौद्ध धर्म से सम्बन्धित मूर्तियां सारनाथ और मथुरा में मिली हैं।

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प्रश्न 44.
गुप्त काल में दक्षिण की कौन-सी भाषा में साहित्य लिखा गया तथा इस साहित्य को क्या कहा जाता
उत्तर-
गुप्तकाल में दक्षिण की तमिल भाषा में साहित्य लिखा गया और इसे संगम (शंगम) साहित्य कहा गया।

प्रश्न 45.
गुप्त वंश के शासकों में से किस शासक को भारतीय नेपोलियन कहा गया है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त को।

III. छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कुषाण शासकों का भारत के इतिहास में क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
बहुत समय पहले मध्य एशिया में यू-ची नामक जाति बसी हुई थी। कुषाण इसी यू-ची जाति की एक शाखा थी। इस वंश के लोगों ने भारत में एक शक्तिशाली साम्राज्य स्थापित किया। कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध शासक कनिष्क था। वह सम्भवतः 120 ई० में सिंहासन पर बैठा। कनिष्क ने कश्मीर, पंजाब, मथुरा तथा मगध पर विजय प्राप्त की। उसने चीन पर आक्रमण करके खोतान तथा यारकन्द को अपने साम्राज्य का अंग बना लिया। इस प्रकार इसका राज्य उत्तर में बुखारा से लेकर दक्षिण में यमुना नदी तक फैल गया। पूर्व में यह बनारस से लेकर पश्चिम में अफगानिस्तान तक फैल गया। कुषाण शासकों ने भारत में रह कर पूरी तरह अपना भारतीयकरण कर लिया था। कनिष्क द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाना इस बात का बहुत बड़ा प्रमाण है।

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प्रश्न 2.
सातवाहन राजाओं का भारतीय इतिहास में क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
सातवाहन राजा दक्षिण-पश्चिम में राज्य करते थे। सम्भवत: आरम्भिक सातवाहन मौर्य साम्राज्य के अधीन कार्य करते थे। अशोक की मृत्यु के बाद इन्होंने अपनी स्वतन्त्र सत्ता स्थापित कर ली। इस वंश के राजा शातकर्णि ने अपनी शक्ति का काफ़ी विस्तार किया। उसने मगध के शुंग वंश से मालवा का प्रदेश छीन लिया। ईसा की पहली शताब्दी में पश्चिम-दक्षिण पर शकों ने अधिकार कर लिया। इसलिए सातवाहन शासकों ने पूर्व के प्रदेशों को जीत कर इस हानि को पूरा किया। यह प्रदेश उनके नाम पर ही बाद में आन्ध्र प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दूसरी शताब्दी ई० पूर्व में सातवाहन वंश से एक अन्य पराक्रमी शासक हुआ जिसका नाम गौतमीपुत्र शातकर्णि था। उसने पश्चिमी दक्षिण में शकों को बाहर निकाल दिया। ईसा की दूसरी शताब्दी के उत्तरार्द्ध में सातवाहन राज्य में क़ाठियावाड़ से लेकर आन्ध्र प्रदेश में कृष्णा नदी तक फैल गया। सातवाहनों ने कुल मिला कर लगभग 450 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद उनका पतन हो गया।

प्रश्न 3.
गुप्त साम्राज्य के सैनिक प्रशासन की मौर्य सैनिक प्रबन्ध के साथ तुलना करें।
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य का सैनिक प्रशासन मौर्य काल के सैनिक प्रबन्ध की भान्ति ही सुव्यवस्थित था। दोनों ही कालों में प्रधान सेनापति की सहायता घुड़सवार सेना तथा हाथी सेना के मुख्य अधिकारी करते थे। इसके अतिरिक्त दोनों ही युगों में सेना को नकद वेतन दिया जाता था। परन्तु दोनों के सैनिक प्रबन्ध में कुछ भिन्नताएं भी थीं। मौर्य शासकों के पास विशाल सेना थी। परन्तु जागीरदारी प्रथा के कारण गुप्त शासकों को युद्ध के समय अपने अधीनस्थ राजाओं की सेना पर निर्भर रहना पड़ता था। सैनिक अधिकारियों के नाम भी दोनों कालों में भिन्न-भिन्न थे। इसके अतिरिक्त मौर्य काल की भान्ति गुप्त काल में सैनिक व्यवस्था के लिए विशेष समितियां नहीं थीं।

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प्रश्न 4.
गुप्त काल में स्त्रियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
गुप्त काल में स्त्रियों की दशा अच्छी थी। परन्तु मौर्य काल की तुलना में स्त्री के मान और स्वतन्त्रता में कमी आ गई थी। इस काल में बाल-विवाह तथा सती प्रथा के प्रचलन से स्त्री के व्यक्तिगत विकास में बाधा पड़ी। प्रायः स्त्री से यही आशा की जाती थी कि वह घर की चारदीवारी में रह कर घरेलू जीवन ही व्यतीत करे। परिवार में उनकी स्थिति पुरुषों के अधीन थी। रामायण तथा महाभारत में उनकी पुरुषों के अधीन रहने की दशा का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। मनुस्मृति में भी इस स्थिति की पुष्टि की गई है। फिर भी कुछ स्त्रियां घरेलू जीवन से हटकर स्वतन्त्र जीवन भी व्यतीत करती थीं। इनमें नर्तकियां, भिक्षुणियां तथा नाटकों में भाग लेने वाली स्त्रियां सम्मिलित थीं।

प्रश्न 5.
भारत के इतिहास में यूनानियों का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
भारत के इतिहास में यूनानियों का बहुत महत्त्व रहा है। यूनानी साम्राज्य के अधीन भारत का मध्य एशिया, पश्चिमी एशिया तथा चीन से काफ़ी व्यापार होने लगा और भारतीय संस्कृति विदेशों में फैली। भारत के व्यापारियों ने मलाया, जावा, सुमात्रा, बोर्नियो आदि कई देशों में उपनिवेश स्थापित किए। ये सभी देश धीरे-धीरे भारतीय संस्कृति का केन्द्र बन गए। यूनानियों का भारतीय कला पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। भारतीय तथा यूनानी मूर्तिकला के सम्मिश्रण से एक नई कला शैली का जन्म हुआ। इस कला शैली को गान्धार कला शैली के नाम से पुकारा जाता है। इस कला शैली में महात्मा बुद्ध की कई सुन्दर मूर्तियां बनाई गईं। यूनानी शासक मिनांडर ने अपने राजदूत बेसनगर (विदिशा) में भेजा था। जिससे यूनानियों तथा भारतीयों का आपसी सहयोग बढ़ा।

प्रश्न 6.
भारतीय इतिहास में शकों ने क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर-
शक लोक मध्य एशिया के एक खानाबदोश कबीले से सम्बन्धित थे। इन्हें यू-ची जाति के लोगों ने वहां से खदेड़ दिया था। पहली शताब्दी ई० पूर्व के प्रारम्भ में शकों ने यूनानियों से बैक्ट्रिया तथा उत्तर-पश्चिमी भारत की राजसत्ता छीन ली। भारत में पहला शक शासक भोज था। परन्तु गोंडोफर्नीस नामक इनका सर्वाधिक प्रसिद्ध शासक हुआ। गोंडोफर्नीस प्रथम शताब्दी पूर्व हुआ था। शक लोक उत्तर-पश्चिमी भारत में अधिक समय तक न रह सके। यहां से भी उन्हें यू-ची जाति के लोगों ने मार भगाया। यहां से वे गुजरात तथा मालवा गए तथा इन प्रदेशों को उन्होंने अपनी राजसत्ता का केन्द्र बनाया। यहां का सर्वाधिक प्रसिद्ध शक शासक रुद्रदमन था जिसने कई महत्त्वपूर्ण सफलताएं प्राप्त की। जूनागढ़ से प्राप्त एक अभिलेख में उसे एक महान् शासक बताया गया है। परन्तु रुद्रदमन के उत्तराधिकारी उसकी भान्ति योग्य तथा शक्तिशाली नहीं थे। इसलिए ईस्वी की पांचवीं शताब्दी के प्रारम्भ में गुप्त शासकों ने उनकी सत्ता का अन्त कर दिया।

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प्रश्न 7.
खारवेल को प्राचीन उड़ीसा का सबसे महान् शासक क्यों समझा जाता है ?
उत्तर-
प्राचीन उड़ीसा मौर्य साम्राज्य के पूर्वी प्रान्त का एक भाग था। अशोक की मृत्यु के बाद यह प्रान्त अधिक समय तक मौर्यों के अधीन न रह सका। लगभग पहली शताब्दी ई० पूर्व में यहां के कलिंग प्रदेश का शासन खारवेल के हाथों मेंcआ गया। उसने कई सफलताएं प्राप्त की जिनका उल्लेख हाथी-गुफा अभिलेख में मिलता है। यह अभिलेख भुवनेश्वर के निकट खण्डगिरि से प्राप्त हुआ है। इस अभिलेख से ज्ञात होता है कि खारवेल ने कई सैन्य-अभियानों का नेतृत्व किया। उसने सबसे पहले उत्तर-पश्चिम में यूनानियों पर हमला किया तथा दक्षिण भारत में पाण्डेय राज्य की शक्ति को कुचला। उसने पश्चिम-दक्षिण के राजाओं को भी हराया तथा मगध पर अपना अधिकार कर लिया। उसकी इन सफलताओं के आधार पर ही उसे प्राचीन उड़ीसा का सबसे महान् शासक समझा जाता है।

प्रश्न 8.
ईसा की आरम्भिक शताब्दियों में चोल राज्य का वर्णन करो।
उत्तर-
चोलों ने सबसे पहले पाण्डेय राज्य के उत्तर-पूर्व में पेन्नार तथा वेलूर नदियों के बीच के प्रदेश पर शासन किया। उनकी राजनीतिक सत्ता का मुख्य केन्द्र उर्युर था। चोलों का विश्वसनीय इतिहास दूसरी शताब्दी ई० में राजा कारिकाल के समय से मिलता है। उसने 100 ई० के लगभग शासन किया। उसकी सबसे बड़ी सफलता पुहार की स्थापना करना था जो बाद में कावेरीपत्तम के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह कावेरी नदी पर स्थित लगभग 160 किलोमीटर लम्बा तटबन्ध था। इसे श्रीलंका से बन्दी बनाये गये 12,000 दासों के श्रम से बनाया गया। यही तटबन्ध चोल राज्य की राजधानी बना और वाणिज्य-व्यापार के केन्द्र के रूप में उभरा। चोलों के पास एक विशाल सेना भी थी। परन्तु चौथी शताब्दी ई० पू० के लगभग चेरों और पल्लवों ने उनकी शक्ति का अन्त कर दिया।

प्रश्न 9.
समुद्रगुप्त की प्रमुख सफलताओं का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
समुद्रगुप्त गुप्त वंश का एक महान् शासक था। वह 335 ई० में राजगद्दी पर बैठा। आर्यवर्त की पहली लड़ाई में उसने तीन राजाओं के संघ को हराया। दक्षिणी भारत की विजय उसकी बहुत बड़ी सफलता मानी जाती है। वह 346 ई० में अपनी राजधानी पाटलिपुत्र से चला। दक्षिण में अनेक राजाओं को रौंदता हुआ विशाल धन सम्पदा के साथ वापस लौट आया। वापसी पर उसने आर्यवर्त के नौ राजाओं के संघ को तोड़ा। तत्पश्चात् उसने अश्वमेघ यज्ञ रचाया और ‘चक्रवर्ती सम्राट्’ की उपाधि धारण की। उसकी इन विजयों के कारण उसे भारतीय नेपोलियन कह कर पुकारा जाता है। समुद्रगुप्त कला और साहित्य का भी प्रेमी था। वीणा बजाने में वह इतना निपुण था कि उसकी तुलना प्रायः नारद से की जाती है।

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प्रश्न 10.
फाह्यान द्वारा वर्णित भारतीय जीवन का वर्णन करो।
अथवा
फाह्यान कौन था ? भारत के सम्बन्ध में उसने क्या कहा है ?
उत्तर-
फाह्यान एक चीनी यात्री था। वह चन्द्रगुप्त विक्रमादिव्य के समय में बौद्ध तीर्थ स्थानों की यात्रा करने और बौद्ध ग्रन्थों का अध्ययन करने के लिए भारत आया था। उसने अपने लेखों में तत्कालीन भारतीय जीवन का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है। वह लिखता है कि लोग सदाचारी, समृद्ध और दानी थे। वे मांस तथा नशीले पदार्थों से घृणा करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत अधिक थी। उस समय की सरकार श्रेष्ठ थी और प्रजा के हितों का पूरा ध्यान रखती थी। दण्ड अधिक कठोर नहीं थे, फिर भी लोगों को चोर-डाकुओं का कोई भय नहीं रहता था। सरकारी कर्मचारी योग्य और ईमानदार थे। पाटलिपुत्र नगर की शोभा निराली थी। यहां स्थित अशोक का महल विशेष दर्शनीय था। देश में हिन्दू धर्म लोकप्रिय था। परन्तु बौद्धधर्म की लोकप्रियता अभी कम नहीं हुई थी।

प्रश्न 11.
गुप्त काल की चित्रकला के नमूने कहां मिलते हैं और उनका क्या महत्त्व है ?
उत्तर-
गुप्त काल की चित्रकला के नमूने अजन्ता की गुफाओं की दीवारों पर मिलते हैं। यहां के एक चित्र में एक राजकुमारी को मृत्यु शैय्या पर दिखाया गया है। इस चित्र में भावों को बड़े सुन्दर ढंग से उभारा गया है। चित्र देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि राजकुमारी के रोग का इलाज नहीं हो सका है और उसके सम्बन्धी अपनी लाचारी पर बहुत दुःखी हैं। एक अन्य चित्र में गौतम बुद्ध (सिद्धार्थ) को घर छोड़ते हुए दिखाया गया है। चित्र में वे पत्नी और बच्चों पर अन्तिम दृष्टि डाल रहे हैं। एक चित्र में महात्मा बुद्ध को सुजाता नामक स्त्री चावल खिला रही है। एक चित्र में माता और पुत्र दिखाए गये हैं। बच्चे के हाथ भिक्षा के लिए फैले हुए हैं। ये सभी चित्र कला की दृष्टि से बड़े ही महत्त्वपूर्ण हैं। इन्हें देखकर यह कहा जा सकता है कि भारत में चित्रकला एक लम्बे समय से विकसित हो रही थी जो गुप्त काल में अपनी उन्नति की चरम सीमा पर पहुंच गई।

प्रश्न 12.
गुप्त काल की मूर्तिकला का सर्वोत्तम नमूना कौन-सा है और उसकी क्या विशेषता है ?
उत्तर-
गुप्त काल में मूर्तिकला के क्षेत्र में अद्वितीय विकास हुआ। इस काल में अधिकतर महात्मा बुद्ध और बौधिसत्वों की मूर्तियां बनाई गईं। इनमें से सारनाथ में बुद्ध की मूर्ति इस कला का सर्वोत्तम नमूना है। इसमें महात्मा बुद्ध को रत्न जड़ित आसन पर बैठे दिखाया गया है। वह प्रचार करने की मुद्रा में हैं। उनके चेहरे पर बिखरी मुस्कान मूर्तिकारों की कारीगरी की उच्चता को प्रकट करती है। इस मूर्ति को देखकर यूं लगता है मानो बुद्ध विश्व कल्याण की भावना से प्रेरित होकर अपना उपदेश दे रहे हों। भारतीय शैली में बनी यह मूर्ति गान्धार शैली की मूर्तियों से कहीं अधिक सुन्दर है। इसमें बुद्ध के धुंघराले बाल,बारीक वस्त्र तथा आकर्षक आभूषणों को बड़े ही कलात्मक ढंग से दिखाया गया है।

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प्रश्न 13.
“चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंच गया।” इस कथन पर प्रकाश डालो।
अथवा
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मुख्य उपलब्धियों पर प्रकाश डालो।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त का वीर पुत्र था। वह 375 ई० में राजगद्दी पर बैठा। उसने वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा अपनी शक्ति को बढ़ाया और अनेक विजयें प्राप्त की। सबसे पहले उसने बंगाल को जीता और फिर वहलीक जाति और अवन्ति गणराज्य पर विजय प्राप्त की। उसकी सबसे महत्त्वपूर्ण सफलता मालवा, काठियावाड़ और गुजरात की विजय थी। यहां के शक राजाओं को पराजित करके ही उसने ‘विक्रमादित्य’ अर्थात् वीरता का सूर्य की उपाधि धारण की। चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय में कला और साहित्य का भी बड़ा विकास हुआ। संस्कृत का महान् कवि कालिदास उसी के समय में ही हुआ था। इसके अतिरिक्त चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में शासन-प्रबन्ध बड़ी कुशलता से चलता था। जनता हर प्रकार से सुखी और समृद्ध थी। अतः हम कह सकते हैं कि उसके समय में गुप्त साम्राज्य अपने उत्कर्ष पर पहुंच गया।

प्रश्न 14.
5वीं शताब्दी में भारत पर हूणों के आक्रमण के क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
पांचवीं शताब्दी में भारत पर हूण आक्रमणों के ये परिणाम निकले :

  • इन आक्रमणों से गुप्त साम्राज्य का अन्त हो गया। स्कन्दगुप्त के उत्तराधिकारी बड़े अयोग्य थे, इसलिए वे हूणों का सामना न कर पाये। परिणामस्वरूप गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न होकर रह गया।
  • भारत की राजनीतिक एकता समाप्त हो गई और देश छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया।
  • हूणों ने बहुत से ऐतिहासिक भवन नष्ट कर डाले तथा अमूल्य पुस्तकों को जलाकर राख कर दिया। इस प्रकार उन्होंने बहुत से ऐतिहासिक स्रोतों को नष्ट कर दिया।
  • अनेक हूण भारत में ही बस गये। उन्होंने भारतीय स्त्रियों से विवाह कर लिये और हिन्दू समाज में अपनी जातियाँ बना लीं। इस प्रकार भारत में नई जातियों तथा उपजातियों का जन्म हुआ।

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प्रश्न 15.
आर्यभट्ट का खगोल विज्ञान में क्या योगदान था ?
उत्तर-
आर्यभट्ट गुप्त काल का एक महान् वैज्ञानिक एवं खगोलशास्त्री था। उसने अपनी नवीन खोजों द्वारा खगोलशास्त्र को काफ़ी समृद्ध बनाया। ‘आर्य भट्टीय’ उसका प्रसिद्ध ग्रन्थ है। उसने यह सिद्ध किया कि सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण, राहू और केतू नामक राक्षसों के कारण नहीं लगते बल्कि जब चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो चन्द्रग्रहण होता है। आर्यभट्ट ने स्पष्ट रूप में यह लिख दिया था कि सूर्य नहीं घूमता बल्कि पृथ्वी ही अपनी धुरी के चारों ओर घूमती है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि खगोल विज्ञान में आर्यभट्ट ने महान् योगदान दिया।

प्रश्न 16.
‘षटशास्त्र’ के बारे में बताएं।
उत्तर-
गुप्त काल में ब्राह्मणों ने उपनिषदों के गूढ़ विचारों की व्याख्या के लिए दर्शन की छः प्रणालियों का विकास किया। यही छः प्रणालियां ‘षट्शास्त्र’ अथवा षट्दर्शन के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये प्रणालियां हैं

(क) कपिल का सांख्य दर्शन-इसके अनुसार प्रकृति और आत्मा अमर है। इसे नास्तिक दर्शन भी माना जा सकता है क्योंकि इसमें पदार्थ और आत्मा के दोहरे अस्तित्व को स्वीकार किया गया है।

(ख) पातंजलि का योग दर्शन-पातंजलि के विचार में आत्मा और प्रकृति के साथ-साथ परमात्मा भी अमर है। (ग) गौतम का न्याय दर्शन-इस दर्शन के अनुसार मनुष्य ज्ञान द्वारा परमात्मा को पा सकता है।

(घ) कणाद का वैशेषिक दर्शन-इसमें कणाद लिखता है कि संसार की रचना अदृश्य अणु शक्तियों के मेल से हुई है।
(ङ) जैमिनी का पूर्व मीसांसा दर्शन-इस दर्शन में वेद में बताई गई धार्मिक क्रियाओं को अपनाने पर अधिक बल दिया गया है।
(च) व्यास का उत्तर मीसांसा दर्शन-इस दर्शन में व्यास जी कहते हैं कि प्रकृति की प्रत्येक वस्तु में परमात्मा का हाथ है। ईश्वर के अतिरिक्त सब कुछ मिथ्या है।

प्रश्न 17.
भारत का दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के साथ किस प्रकार का सम्बन्ध था ?
उत्तर-
भारत के दक्षिण-पूर्वी एशिया के देशों के साथ व्यापारिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्ध थे। इन देशों में भारतीय संस्कृति का प्रभाव भारतीय व्यापारियों तथा धर्म प्रचारकों द्वारा पहुंचा। फलस्वरूप कुछ देशों में बौद्ध धर्म और कुछ में ब्राह्मण धर्म अत्यन्त लोकप्रिय हुए। भारतीय व्यापारियों की सहायता से विशेष रूप से थाईलैण्ड, कम्बोडिया और जावा में कई छोटी बस्तियों का विकास हुआ। समय पाकर इन देशों में ब्राह्मणीय संस्कार और रिवाज बौद्ध मत से भी अधिक प्रचलित हो गए। राजकाज की भाषा के रूप में संस्कृत का प्रयोग होने लगा। थाईलैंड की प्राचीन राजधानी को रामायण की अयोध्या के नाम पर ‘अयूधिया’ कहा जाता था। इन देशों में भारतीय प्रभाव हर स्थान पर एक समान नहीं था। इसके अतिरिक्त दक्षिणी-पूर्वी एशिया के लोगों ने भारतीय संस्कृति के कुछ विशेष पहलुओं को ही अपनाया और उन्हें अपने ही ढंग से विकसित किया।

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प्रश्न 18.
कालिदास पर एक संक्षिप्त नोट लिखो।
उत्तर-
कालिदास संस्कृत का श्रेष्ठ कवि तथा महान् नाटककार था। उसे प्रायः ‘भारतीय शेक्सपीयर’ कह कर पुकारा जाता है। कालिदास गुप्त काल में उत्पन्न हुआ और वह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दराबर की शोभा था। एक जनश्रुति के अनुसार उसका जन्म एक ब्राह्मण के यहां हुआ था। बचपन में ही उसके पिता की मृत्यु हो गई। उसका पालन-पोषण एक ग्वाले ने किया। फिर भी वह बड़ा होकर महान् कवि तथा नाटककार बना। कालिदास की प्रसिद्ध रचनाएं ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’, ‘मेघदूत’, ‘ऋतु संहार’, ‘रघुवंश’, ‘मालविकाग्निमित्र’, ‘कुमार सम्भव’ हैं। इनमें से ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना मानी जाती है। इस विषय में एक बात कही जाती है, “सभी काव्य में नाट्य कला श्रेष्ठ है, सभी नाटकों में ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ श्रेष्ठ है। ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ नाटक में चौथा अंक श्रेष्ठ है और चौथे अंक में वे पंक्तियां श्रेष्ठ हैं, जब कण्व ऋषि अपनी दत्तक पुत्री शकुन्तला को विदा कर रहे हैं।”

प्रश्न 19.
गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की मृत्यु के पश्चात् गुप्त साम्राज्य का पतन आरम्भ हो गया। इस साम्राज्य के पतन के अनेक कारण थे-

  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के उत्तराधिकारी निर्बल थे। फलस्वरूप वे देश का शासन ठीक ढंग से न चला सके।
  • गुप्त शासकों में उत्तराधिकार का कोई नियम नहीं था। इसलिए लगभग प्रत्येक शासक की मृत्यु के पश्चात् राजगद्दी के लिए गृह-युद्ध हुआ करते थे। इन युद्धों से गुप्त साम्राज्य की शक्ति शीण होती गई।
  • निर्बल शासकों के काल में विद्रोही शक्तियों ने ज़ोर पकड़ना आरम्भ कर दिया। फलस्वरूप गुप्त वंश के पतन की प्रक्रिया तेज़ हो गई।
  • चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के पश्चात् किसी गुप्त राजा ने राज्य की सीमाओं की सुरक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया।
  • बाद में गुप्त राजाओं को अनेक युद्ध लड़ने पड़े जिससे उनका राजकोष खाली हो गया। धन के अभाव में वे ठीक ढंग से शासन न कर सके।
  • इसी समय हूणों के निरन्तर आक्रमण होने लगे। गुप्त शासक उनके आक्रमणों का अधिक समय तक सामना न कर सके। फलस्वरूप गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।

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IV. निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“कनिष्क बौद्ध धर्म, कला एवं साहित्य का महान् संरक्षक था।” इस कथन की विवेचना कीजिए।
अथवा
बौद्ध धर्म के संरक्षक के रूप में सम्राट् कनिष्क का मूल्यांकन कीजिए।
अथवा
कला तथा साहित्य के विकास में कनिष्क के योगदान की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
कनिष्क कुषाण वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा था। वह लगभग 78 ई० में राजगद्दी पर बैठा और पुरुषपुर को अपनी राजधानी बनाया। उसके समय में बौद्ध धर्म की नई शाखा ‘महायान’ का उदय हुआ। उसने इस नई शाखा का खूब प्रचार किया।

कनिष्क को कला और साहित्य से बड़ा प्रेम था। उसने अनेक विहार, मठ तथा स्तूप बनाए। प्रसिद्ध विद्वान् अश्वघोष तथा नागार्जुन उसी के समय में ही हुए थे। बौद्ध धर्म, कला तथा साहित्य के संरक्षक के रूप में कनिष्क के कार्यों का वर्णन इस प्रकार है

बौद्ध धर्म को संरक्षण कनिष्क आरम्भ में पारसी-धर्म का और फिर हिन्दू धर्म का अनुयायी रहा, परन्तु अश्वघोष के प्रभाव में आने के बाद उसने बौद्ध धर्म अपना लिया। उसने अशोक की भान्ति बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित कार्य किए जिनका वर्णन इस प्रकार है-

बौद्ध धर्म को संरक्षण-

  • बौद्ध धर्म में उत्पन्न मतभेदों को दूर करने के लिए कनिष्क ने कुण्डलवन में चौथी बौद्ध सभा बुलाई। इसमें 500 भिक्षु शामिल हुए। इसके सभापति वसुमित्र तथा उप-सभापति अश्वघोष थे। इस सभा में सारे बौद्ध साहित्य क निरीक्षण किया गया। सभा में हुए निर्णयों को ताम्रपत्रों पर लिखकर पत्थर के सन्दूकों में बन्द करवा दिया गया। इस प्रकार बौद्ध धर्म की 18 शाखाओं के आपसी मतभेद दूर हो गए।
  • कनिष्क ने विदेशों में प्रचारक भेजे। फलस्वरूप चीन, जापान, मध्य एशिया के कई देशों में बौद्ध-धर्म का प्रचार हुआ।
  • कनिष्क के समय में बौद्ध धर्म हीनयान तथा महायान नामक दो शाखाओं में बंट गया। कनिष्क ने महायान शाखा के प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। .
  • उसने बौद्ध भिक्षुओं की आर्थिक रूप में सहायता की। उसने भिक्षुओं के लिए अनेक मठ तथा विहार बनवाए।

कला तथा साहित्य का विकास-

  • कलाकृतियां-कनिष्क एक महान् निर्माता भी था। उसने चार नए नगर बसाए। ये नगर हैं-पेशावर, मथुरा, कनिष्कपुर तथा तक्षशिला। इन नगरों में बने विहार तथा मूर्तियां बड़ी ही सुन्दर हैं।
  • कला शैलियां-कनिष्क के संरक्षण में मूर्तिकला की अनेक नई शैलियां विकसित हुईं। ये मथुरा, सारनाथ, अमरावती तथा गान्धार में पनपती रहीं, परन्तु इन शैलियों का मुख्य स्रोत गान्धार कला शैली थी। इस शैली के अनुसार भारतीय विचारों तथा धर्म के अंगों को यूनानी कला में उतारा गया। इस काल में मुद्रा कला का भी विकास हुआ।
  • विद्या तथा साहित्य-कनिष्क कला-प्रेमी होने के साथ-साथ विद्या तथा साहित्य का प्रेमी भी था। अनेक विद्वान उसके दरबार की शोभा थे। अश्वघोष उसके दरबार का रत्न था। उसने ‘बुद्ध चरित्’ तथा ‘सूत्रालंकार’ की रचना की थी। नागार्जुन, चरक आदि उच्चकोटि के विद्वान् भी कनिष्क के दरबार की शोभा थे।

प्रश्न 2.
समुद्रगुप्त ने किस प्रकार अपने राज्य को विशाल तथा शक्तिशाली बनाया ?
अथवा
समुद्रगुप्त की सैनिक सफलताओं का वर्णन करो। उसे भारतीय नेपोलियन क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
समुद्रगुप्त गुप्तवंश का एक प्रतापी राजा था। वह विद्वान्, संगीतज्ञ, कला प्रेमी और प्रजा हितकारी शासक था। उसने सैनिक के रूप में बहुत अधिक यश पाया। उसकी सफलताओं का महत्त्वपूर्ण विवरण हमें इलाहाबाद प्रशस्ति’ में मिलता है। उसकी प्रमुख सफलताओं का वर्णन इस प्रकार है-

1. उत्तरी भारत की विजय-समुद्रगुप्त ने सबसे पहले आर्यावर्त की पहली लड़ाई में अच्युत, नागसेन तथा गणपति नाग नामक राजाओं को परास्त किया। नागसेन और गणपति नाग ने अपनी पराजय का बदला लेने के लिए उत्तरी भारत के अन्य सात राजाओं के साथ मिलकर एक संघ बना लिया। समुद्रगुप्त उस समय दक्षिण विजय के लिए गया हुआ था। उसने लौट कर इन सभी राजाओं को बुरी तरह पराजित किया।

2. दक्षिण भारत की विजय-समुद्रगुप्त ने दक्षिणी भारत के राजाओं को पराजित किया। इनमें से सबसे पहले उसने दक्षिणी कोशल के राजा पर विजय प्राप्त की। इसी बीच दक्षिण के कई राजाओं ने मिलकर एक संघ बना लिया। कांची नरेश विष्णुगोप इस संघ का नेता था। समुद्रगुप्त ने इस संघ से टक्कर ली और इसे पराजित किया। समुद्रगुप्त ने पालघाट, महाराष्ट्र और खान देश आदि राजाओं को भी परास्त किया। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि समुद्रगुप्त ने दक्षिणी भारत के किसी भी राज्य को अपने साम्राज्य में शामिल नहीं किया। वह इन राज्यों से केवल कर प्राप्त करता रहा।

3. अन्य विजयें-समुद्रगुप्त ने कई सीमावर्ती राज्यों जैसे समतट, कामरूप, कर्तृपुर और नेपाल आदि पर भी विजय प्राप्त की। इन राज्यों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। कई जातियों ने समुद्रगुप्त से युद्ध किए बिना ही उसकी अधीनता स्वीकार ली। ये जातियां थीं-मालव, आभीर, यौद्धेय, शूद्रक और अर्जुनायन।

समुद्रगुप्त भारतीय नेपोलियन क्यों ?- समुद्रगुप्त की महान् विजयों के कारण इतिहासकार उसे भारतीय नेपोलियन का नाम देते हैं। वह नेपोलियन की भान्ति एक पराक्रमी विजेता था। जिस प्रकार नेपोलियन ने अपनी सैनिक शक्ति से समस्त यूरोप को भयभीत कर दिया था उसी प्रकार समुद्रगुप्त ने अपने सैनिक अभियानों से लगभग सारे भारत में अपना दबदबा बैठा लिया था। अपने विजयी जीवन में उसे न कभी ‘ट्राफाल्गार’ तथा ‘वाटरलू’ जैसी पराजय का सामना करना पड़ा और न ही उसे आजीवन कारावास का दण्ड मिला। समुद्रगुप्त के महान् कार्यों को देखते हए डॉ० वी० ए० स्मिथ ने ठीक ही कहा है, “समुद्रगुप्त वास्तव में एक प्रतिभाशाली व्यक्ति था जो भारतीय नेपोलियन कहलाने का अधिकारी है।”

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प्रश्न 3.
समुद्रगुप्त की सांस्कृतिक (कला एवं साहित्य संबंधी) सफलताओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
(i) कला-प्रेमी-समुद्रगुप्त एक महान् कला-प्रेमी था। योद्धा होते हुए भी उसकी कोमल प्रवृत्तियां सुरक्षित रहीं। उसे संगीत से विशेष लगाव था। अपनी मुद्राओं पर वह वीणा बजाते हुए दिखाया गया है। इससे सिद्ध होता है कि वह वीणावादन में भी प्रवीण था। उसके प्रसिद्ध दरबारी कवि हरिषेण के वाक्यों में “वह संगीत-कला में नारद तथा तुम्बरु को भी लज्जित करता था।” उसकी मुद्राएं उसकी कलाप्रियता का प्रमाण हैं। ये मुद्राएं सोने की थीं। इस पर राजा के अतिरिक्त हिन्दू देवी-देवताओं के चित्र अंकित थे। इतनी आकर्षक मुद्राएं बनाने का श्रेय समुद्रगुप्त को ही जाता है।

(ii) साहित्य प्रेमी-समुद्रगुप्त विद्वानों का आश्रयदाता था। वह उच्च कोटि का कवि तथा साहित्यकार था और उसे कविराज की उपाधि प्राप्त थी। अनेक विद्वान् उसके दरबार की शोभा थे। हरिषेण उसके समय का एक महान् विद्वान् माना जाता था। ‘इलाहाबाद प्रशस्ति’ हरिषेण की एक प्रसिद्ध साहित्यिक रचना है जो काव्य का एक अनूठा उदाहरण प्रस्तुत करती है। असंगत तथा वसुबन्ध भी उसके दरबार की शोभा थे। उनकी रचनाएं समुद्रगुप्त के लिए गौरव का विषय थीं।

प्रश्न 4.
चन्द्रगुप्त द्वितीय (विक्रमादित्य) के राज्यकाल तथा सैनिक सफलताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य समुद्रगुप्त का योग्य पुत्र था। वह 380 ई० में सिंहासन पर बैठा। सबसे पहले उसने वैवाहिक सम्बन्धों द्वारा अपनी शक्ति को बढ़ाया। उसने स्वयं नाग वंश की राजकुमारी कुबेरनाग से विवाह किया। अपनी कन्या का विवाह उसने रुद्रसेन द्वितीय से कर दिया। इस सम्बन्ध के कारण ही वह गुजरात तथा सौराष्ट्र के शक राजाओं को पराजित करने में सफल हो सका।
विजयें-चन्द्रगुप्त द्वितीय की विजयों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

  • बंगाल विजय-चन्द्रगुप्त ने सबसे पहले बंगाल के विद्रोही राजाओं को हराया और बंगाल को अपने राज्य में मिला लिया।
  • अवन्ति की विजय-चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अवन्ति के गणराज्य पर भी विजय प्राप्त की। इसके अतिरिक्त उसने कुषाण गणतन्त्रों को भी हराया।
  • वाहलीक जाति पर विजय-महरौली के स्तम्भ-लेख से पता चलता है कि चन्द्रगुप्त ने सिन्धु नदी के मुहानों की सातों शाखाओं को पार किया और वाहलीक जाति को हराया।
  • मालवा, गुजरात तथा काठियावाड़ की विजय-चन्द्रगुप्त द्वितीय ने इन प्रदेशों पर 388 ई० से 409 ई० के बीच के समय में विजय प्राप्त की। इस विजय के पश्चात् उसने विक्रमादित्य की उपाधि धारण की। – मालवा, गुजरात तथा काठियावाड़ की विजयों के कारण भारत में शकों की शक्ति समाप्त हो गई और चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का राज्य अरब सागर तक फैल गया। .

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प्रश्न 5.
चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (द्वितीय) के राज्य प्रबंध की मुख्य विशेषताएं बताओ। क्या उसने कला एवं साहित्य को भी संरक्षण दिया ?
उत्तर-
चन्द्रगुप्त द्वितीय एक उच्च कोटि का शासन-प्रबन्धक था। प्रजा की भलाई करना वह अपना कर्त्तव्य समझता था। फाह्यान ने उसके शासन-प्रबन्ध की बड़ी प्रशंसा की है। शासन की सभी शक्तियां सम्राट् के हाथ में थीं। सम्राट् को शासन कार्यों में सलाह देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् थी। मन्त्रियों की नियुक्ति वह स्वयं करता था। चन्द्रगुप्त द्वितीय का राज्य चार प्रान्तों में बंटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त का प्रबन्ध गवर्नर के हाथ में था। प्रान्त विषयों (जिलों) में तथा विषय गांवों में बंटे हुए थे। विषय का प्रबन्ध ‘विषयपति’ तथा ग्राम का प्रबन्ध ‘ग्रामक’ करता था।

चन्द्रगुप्त द्वितीय बड़ा न्यायप्रिय शासक था। वह निष्पक्ष न्याय करता था। दण्ड बहुत नर्म थे। मृत्यु दण्ड किसी को नहीं दिया जाता था। फिर भी देश में शान्ति थी। सड़कें सुरक्षित थीं और चोर-डाकुओं का कोई भय नहीं था। सरकार की आय का मुख्य साधन भूमि-कर था। यह कर उपज का 1/3 भाग होता था। सरकारी कर्मचारियों को नकद वेतन दिया जाता था। वे बहुत ईमानदार थे और प्रजा के साथ अच्छा व्यवहार करते थे।

कला और साहित्य को संरक्षण-अपने पिता समुद्रगुप्त की तरह चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य भी कला और साहित्य का प्रेमी था। उसके अधीन सभी प्रकार की कलाओं और साहित्य ने बड़ी उन्नति की। उसके शासन में महात्मा बुद्ध तथा अनेक हिन्दू देवी-देवताओं की सुन्दर मूर्तियां बनीं। ये मूर्तियां कला की दृष्टि से बड़ी महत्त्वपूर्ण हैं। उसके शासन काल में अनेक शानदार मन्दिरों का निर्माण भी हुआ।

चन्द्रगुप्त द्वितीय एक उच्च कोटि का विद्वान् था और वह विद्वानों का बड़ा आदर करता था। उसके समय में संस्कृत भाषा और संस्कृत साहित्य का बड़ा विकास हुआ। संस्कृत का सबसे प्रसिद्ध कवि कालिदास उसी के समय में हुआ था। उसने मेघदूत, रघुवंश आदि उच्च कोटि के संस्कृत ग्रन्थों की रचना की थी।

प्रश्न 6.
गुप्त काल में भारत की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन करो।
उत्तर-
गुप्त काल में भारत की सामाजिक, धार्मिक तथा आर्थिक दशा का वर्णन इस प्रकार है-

1. सामाजिक दशा-इस काल में लोग बड़ा सादा और पवित्र भोजन करते थे। मांस तथा शराब का प्रयोग नहीं किया जाता था। लोग लहसुन तक नहीं खाते थे। वे गर्मियों में धोती तथा चद्दर और सर्दियों में पायजमा तथा कोट पहनते थे। स्त्रियां चोली और साड़ी का प्रयोग करती थीं। विशेष अवसरों पर लोग रेशमी कपड़े पहना करते थे। स्त्रियों और पुरुषों दोनों को आभूषण पहनने का बड़ा शौक था। वे बालियां, चूड़ियां, हार, अंगूठियां तथा कड़े आदि पहनते थे। स्त्रियों की दशा काफ़ी अच्छी थी। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने और संगीत सीखने की पूरी स्वतन्त्रता थी। जाति-प्रथा के बन्धन कठोर नहीं थे। किसी भी जाति का व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कोई भी व्यवसाय अपना सकता था। लोग अपना मन बहलाने के लिए शतरंज तथा चौपड़ खेलते थे। कभी-कभी वे रथदौड़ों में भी भाग लिया करते थे। शिकार खेलने, नाटक तथा तमाशे देखना उनके मनोरंजन के अन्य साधन थे।

2. धार्मिक दशा-गुप्त काल में हिन्दू धर्म फिर से लोकप्रिय हुआ। गुप्त शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे। इस काल में हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं जैसे ‘विष्ण’, ‘शिव’ तथा ‘सर्य’ की उपासना की जाने लगी। इनकी मूर्तियां बना कर मन्दिरों में रखी जाती थीं। इस काल में यज्ञों आदि पर खूब जोर दिया जाता था। यद्यपि गुप्त सम्राट् हिन्दू धर्म के अनुयायी थे तो भी वे हठधर्मी नहीं कहे जा सकते। लोगों को कोई भी धर्म अपनाने की पूरी स्वतन्त्रता थी।

3. आर्थिक दशा-इस काल में लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था। किसान गेहूँ, जौ, चावल, कपास, बाजरा आदि की कृषि करते थे। जहाज़ बनाना, कपड़ा बुनना तथा हाथी दांत का काम करना भी लोगों के व्यवसाय थे। इस काल में व्यापार भी काफ़ी उन्नत था। विदेशी व्यापार तो विशेष रूप से चमका हुआ था। अतः भारत के धन-धान्य में काफ़ी वृद्धि हुई। उस समय वस्तुओं के भाव भी कम थे। लोगों का जीवन बहुत सुखी था।

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प्रश्न 7.
गुप्त साम्राज्य के पतन के कारणों का विवेचन करें।
अथवा
गुप्त साम्राज्य के पतन के किन्हीं पांच कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गुप्त साम्राज्य का पतन बड़े आश्चर्य की बात है। गुप्त वंश ने समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कन्दगुप्त जैसे प्रतापी राजाओं को जन्म दिया। उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार भी किया और कुशल प्रबन्ध की व्यवस्था भी की। फिर भी इस वंश का पतन हो गया। वास्तव में बाद के गुप्त राजा इस महान् साम्राज्य को सम्भालने में असमर्थ रहे। एक तो शासक कमज़ोर थे, दूसरे हूणों के आक्रमण आरम्भ हो गए। ऐसी अनेक बातों के कारण गुप्त वंश का पतन हुआ। इन सभी का वर्णन इस प्रकार है-

1. निर्बल उत्तराधिकारी-गुप्त साम्राज्य के पतन का मुख्य कारण उत्तरकालीन गुप्त शासकों की निर्बलता थी। स्कन्दगुप्त के पश्चात् पुरुगुप्त, नरसिंह गुप्त, बालादित्य गुप्त, बुद्धगुप्त और भानुगुप्त आदि सभी गुप्त शासक विशाल साम्राज्य को सम्भालने में असमर्थ रहे। उनमें महान् शासकों जैसे गुण नहीं थे। वे न तो महान् सैनिक ही थे और न ही महान् शासक प्रबन्धक। अतः कमज़ोर उत्तराधिकारी राज्य को सम्भालने में असफल रहे।

2. उत्तराधिकार के नियम का अभाव-गुप्त राजाओं में उत्तराधिकार का निश्चित नियम नहीं था। लगभग प्रत्येक राजा की मृत्यु के पश्चात् गृह युद्ध छिड़ते रहे। इससे राज्य की शक्ति क्षीण होती गई और उसकी मान-मर्यादा को काफ़ी ठेस पहुंची। यही बात अन्त में गुप्त साम्राज्य को ले डूबी।

3. सीमान्त नीति-चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के पश्चात् किसी गुप्त राजा ने राज्य की सीमा सुरक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया। वहां न तो कोई दुर्ग बनवाए गए और न ही वहां सेनाएं रखी गईं। जब देश पर हूणों ने आक्रमण किए तो वे सीधे देश के भीतरी भागों में चले आए। यदि हूणों को सीमाओं पर ही खदेड़ दिया जाता तो गुप्त वंश का पतन शायद रुक जाता, परन्तु उचित सीमा व्यवस्था न होने के कारण गुप्त वंश का पतन हो गया।

4. साम्राज्य की विशालता-गुप्त साम्राज्य काफ़ी विशाल था। इतने बड़े साम्राज्य को उन दिनों सम्भालना कोई आसान कार्य नहीं था। यातायात के साधन सुलभ न थे। शक्तिशाली गुप्त शासकों ने साम्राज्य पर पूरा नियन्त्रण रखा। इसके विपरीत दुर्बल राजाओं के काल में साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया।

5. आन्तरिक विद्रोह-समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त की असीम सैनिक शक्ति के सामने अनेक भारतीय राजाओं ने घुटने टेक दिए थे। परन्तु बाद के गुप्त राजाओं के काल में इन शक्तियों ने फिर जोर पकड़ लिया। राज्य में अनेक विद्रोह होने लगे जिसके कारण गुप्त साम्राज्य छिन्न-भिन्न होता चला गया।

6. कमजोर आर्थिक दशा-धन सुदृढ़ शासन व्यवस्था की आधारशिला माना जाता है। इतिहास साक्षी कि धन के अभाव के कारण कई साम्राज्य पतन के गड्ढे में जा गिरे। गुप्त साम्राज्य के साथ भी यही हुआ। बाद के गुप्त राजाओं को युद्धों में काफ़ी धन व्यय करना पड़ा। इससे सरकारी कोष खाली हो गया। अत: आर्थिक रूप से कमजोर राज्य एक दिन रेत की दीवार के समान गिर पड़ा।

7. हूण जातियों के आक्रमण-हूणों के आक्रमण ने भी गुप्त साम्राज्य को काफ़ी आघात पहुंचाया। इनका पहला आक्रमण स्कन्दगुप्त के काल में हुआ। उसने उन्हें बुरी तरह पराजित किया, यह आक्रमण स्कन्दगुप्त के बाद भी जारी रहे। इन आक्रमणों से साम्राज्य निर्बल हुआ और विद्रोही शक्तियों ने सिर उठाना आरम्भ कर दिया। अप्रत्यक्ष रूप से गुप्त राज्य पहले ही खोखला हो चुका था। इस पर हूणों ने बार-बार आक्रमण करने आरम्भ कर दिए। जब तक गुप्त शासकों में इसका मुकाबला करने की क्षमता थी, वे मुकाबला करते रहे। आखिर गुप्त साम्राज्य इसका प्रहार सहन न कर सका और यह पतन के गड्ढे में जा गिरा।

8. सैनिक निर्बलता-गुप्त काल समृद्धि और वैभव का युग था। सभी सैनिकों को अच्छा वेतन मिलता था। लम्बे समय तक युद्ध न होने के परिणामस्वरूप सैनिक आलसी तथा कमजोर हो गए। अतः जब देश पर आक्रमण होने आरम्भ हुए तो वे आक्रमणकारियों का सामना करने में असफल रहे। आन्तरिक विद्रोह को भी वे न कुचल सके। अत: जिस साम्राज्य की सैनिक शक्ति ही दुर्बल पड़ गई हो तो उस राज्य का पतन अवश्यम्भावी हो जाता है। सच तो यह है कि साथ-साथ अनेक बातों के घटित होने के कारण गुप्त वंश का पतन हो गया।

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प्रश्न 8.
गुप्त काल को प्राचीन भारत का स्वर्ण युग क्यों कहा जाता है ? किन्हीं पांच महत्त्वपूर्ण कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
गुप्त काल में भारत उन्नति की चरम सीमा पर था। इस युग में समाज नवीन आदर्शों में ढला। देश को राजनीतिक एकता प्राप्त हुई तथा महान् ग्रन्थों की रचना हुई। सुन्दर मन्दिरों तथा मूर्तियों ने देश की शोभा को बढ़ाया। देश के धन-धान्य में वृद्धि हुई। अतः इस युग को इतिहासकारों ने ‘स्वर्ण-युग’ का नाम दिया। संक्षेप में, गुप्त काल को अग्रलिखित कारणों से प्राचीन भारत का ‘स्वर्ण-युग’ कहा जाता है-

1. राजनीतिक एकता–मौर्यवंश के बाद देश अनेक छोटे-छोटे राज्यों में बंट गया था। शक, कुषाण आदि विदेशी जातियों ने भारत के अधिकांश भागों पर अपना अधिकार कर लिया। परन्तु चौथी शताब्दी में गुप्त शासकों ने भारत को इन विदेशी शक्तियों से मुक्त कराया और देश में राजनीतिक एकता की स्थापना की।

2. आदर्श शासन-समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य जैसे महान् गुप्त राजाओं ने देश में एक आदर्श शासन स्थापित किया। वे प्रजा के सुख का ध्यान रखते थे। देश में चारों ओर शान्ति, सुख और समृद्धि थी।

3. आदर्श समाज-गुप्त कालीन समाज एक आदर्श समाज था। लोगों का नैतिक जीवन बहुत ऊंचा था। चोरी का चिन्ह मात्र नहीं था। लोग दयालु थे और किसी भी प्राणी की हत्या नहीं करते थे। मांस और मदिरा का तो कहना ही क्या, वे प्याज और लहसुन भी नहीं खाते थे।

4. हिन्दू धर्म की उन्नति-गुप्त काल में हिन्दू धर्म ने विशेष उन्नति की। गुप्तवंश के शासक हिन्दू धर्म के अनुयायी थे तथा विष्णु के उपासक थे। उन्होंने देश में हिन्दू मन्दिरों की स्थापना करवाई और अपने सिक्कों पर गरुड़, कमल, यक्ष आदि के चित्र अंकित करवाये।

5. धार्मिक सहनशीलता-गुप्त काल धार्मिक सहनशीलता का युग था। इसमें कोई सन्देह नहीं कि गुप्त शासक हिन्दू धर्म में विश्वास रखते थे, परन्तु उन्होंने लोगों को पूर्ण धार्मिक स्वतन्त्रता प्रदान की हुई थी। वे हिन्दू धर्म के साथ साथ अन्य धर्मों का मान करते थे और उन्हें आर्थिक सहायता देते थे।

6. शिक्षा और साहित्य में उन्नति-गुप्त काल में नालन्दा, कन्नौज, तक्षशिला, उज्जैन तथा वल्लभी के विश्वविद्यालय शिक्षा के विख्यात केन्द्र थे। इन विश्वविद्यालयों में हजारों छात्र निःशुल्क शिक्षा प्राप्त करते थे। इस काल में साहित्य की बड़ी उन्नति हुई। महाकवि कालिदास ने ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’, ‘मेघदूत’ एवं ‘रघुवंश’ आदि विश्वविख्यात ग्रन्थों की रचना इसी काल में की।

7. संस्कृत भाषा की उन्नति-गुप्त सम्राटों ने संस्कृत भाषा के उत्थान में बड़ा योगदान दिया। चन्द्रगुप्त द्वितीय स्वयं संस्कृत का एक प्रकाण्ड पण्डित था। अनेक विद्वानों ने अपनी पुस्तकें संस्कृत भाषा में लिखीं।

8. ललित कलाओं की उन्नति-गुप्त काल में बनी अजन्ता की गुफाएं चित्रकला का सुन्दर नमूना है। भगवान् बुद्ध और हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां तथा भूमरा का शिव मन्दिर उस समय की उन्नत कलाओं के अनूठे उदाहरण हैं।
इन बातों से स्पष्ट होता है कि गुप्त काल वास्तव में ही भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग था।