PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न-

प्रश्न 1.
परिवार में नौजवानों द्वारा वृद्ध लोगों को शक्ति देने से क्या पैदा होता है ?
(क) स्नेह
(ख) तनाव
(ग) बोझ
(घ) संघर्ष।
उत्तर-
(ख) तनाव।

प्रश्न 2.
पारिवारिक ढाँचे में परिवर्तन होने से वृद्ध लोगों को क्या अनुभव होता है ?
(क) अवहेलना
(ख) निर्धनता
(ग) गुस्सा
(घ) निर्बलता।
उत्तर-
(घ) निर्बलता।

प्रश्न 3.
किस अधिनियम के अन्तर्गत अभिभावकों व वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल व कल्याण को रखा गया
(क) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2009
(ख) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2008
(ग) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007
(घ) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2006
उत्तर-
(ग) वरिष्ठ नागरिक अधिनियम 2007.

प्रश्न 4.
निरन्तरता सिद्धान्त का अन्य नाम क्या है ?
(क) अविकसित सिद्धान्त
(ख) विकासशील सिद्धान्त
(ग) विकास सिद्धान्त ।
(घ) अनिरन्तरता का सिद्धान्त।
उत्तर-
(ग) विकास सिद्धान्त।

प्रश्न 5.
कौन-सी अवधारणा अपने में मानसिक, शारीरिक व चेतना सम्बन्धी असमर्थता लिए है ?
(क) अँधापन
(ख) मानसिक मँदता
(ग) असमर्थता
(घ) दिमागी अधरंग।
उत्तर-
(ग) असमर्थता।

प्रश्न 6.
असमर्थ बच्चे जिनकी चेतना सम्बन्धी शारीरिक कमियाँ अथवा स्वास्थ्य समस्याएं स्कूल की उपस्थिति
अथवा
शिक्षण में हस्तक्षेप करती हैं :
(क) विकलांग असमर्थता
(ख) दिमागी अधरंग
(ग) ए०डी०एच०डी० (ADHD)
(घ) शिक्षण असमर्थता।
उत्तर-
(घ) शिक्षण असमर्थता।

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प्रश्न 7.
कौन-से मॉडल ने असमर्थता से संबंधित व्यक्तियों के समान अवसरों के अधिकारों को स्वीकारा है ?
(क) सामाजिक मॉडल
(ख) सकारात्मक मॉडल
(ग) असमर्थ व्यक्तियों द्वारा की राजनीति
(घ) संरचनात्मक मॉडल।
उत्तर-
(क) सामाजिक मॉडल।

प्रश्न 8.
असमर्थ लोगों के अधिकारों को सर्वश्रेष्ठ रूप में प्रोत्साहित किया जाता है ?
(क) परिवार व मित्र समूह द्वारा
(ख) व्यवस्थित राजनैतिक नीतियों द्वारा
(ग) स्वयं असमर्थ व्यक्तियों द्वारा
(घ) सामाजिक व राजकीय निर्माण द्वारा।
उत्तर-
(क) परिवार व मित्र समूह द्वारा।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. आयु बढ़ने की प्रक्रिया को सामाजिक व समाजशास्त्रीय पक्ष में …………………… कहते हैं।
2. जोड़ों में सूजन, उच्च रक्तचाप, मधुमेह व हृदय रोग आयु से सम्बन्धित ……………….. बीमारियाँ होती हैं।
3. 21वीं सदी में विश्व में सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण विशेषता ……………….. जनसंख्या की है।
4. वृद्ध लोगों के लिए नई आवास प्रणाली को ……. कहते हैं।
5. …………………… विभाग सेवानिवृत्ति भोगने एवं वृद्धावस्था से सम्बन्धित मसलों के लिए तैयार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
6. …………… एक ऐसी स्थिति है जहाँ कोई व्यक्ति पूर्ण अन्धेपन अथवा दृष्टि स्पष्टता 6/60 अथवा 20/200 तक स्पष्ट नहीं देख पाता है।
उत्तर-

  1. सामाजिक ज़राविज्ञान
  2. दीर्घकालीन
  3. वृद्ध
  4. वृद्ध आश्रम
  5. सामाजिक न्याय व कल्याण
  6. दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. अभिभावकों की सँभाल सम्बन्धी बिल, हिमाचल प्रदेश में पास किया गया।
2. आधुनिकीकरण सिद्धान्त, समाज में वृद्धों व नवयुवकों में असमानता का वर्णन करता है।
3. वृद्धों की भूमिका/योगदान सम्बन्धी कोई समस्या नहीं होती है।
4. वृद्ध लोग वृद्ध अवस्था को वित्तीय असुरक्षा का बोझ समझते हैं।
5. वृद्ध लोगों को वृद्धावस्था के कारण अधिक उत्पादक (कमाने वाला) नहीं समझा जाता।
6. असमर्थ व्यक्ति अधिनियम 1995, चिकित्सक पुनर्वास के साथ-साथ सामाजिक पुनर्वास की आवश्यकता को पहचानने की आवश्यकता पर बल देता है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. गलत
  4. सही
  5. सही
  6. सही।

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D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’– कॉलम ‘बी’
समाज से अपने को अलग करना — गतिविधि सिद्धान्त
सामाजिक आर्थिक स्तर (प्रतिष्ठा) — सामाजिक समस्याएँ
वृद्धों को अधिक सक्रिय होना चाहिए — विघटन सिद्धान्त
वृद्ध आयु की प्रक्रिया सम्बन्धी अध्ययन का क्षेत्र — आर्थिक सुरक्षा
स्वयं को बनाए रखने में सक्षम — ज़राविज्ञान।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
समाज से अपने को अलग करना — विघटन सिद्धान्त
सामाजिक आर्थिक स्तर (प्रतिष्ठा) — सामाजिक समस्याएँ
वृद्धों को अधिक सक्रिय होना चाहिए — गतिविधि सिद्धान्त
वृद्ध आयु की प्रक्रिया सम्बन्धी अध्ययन का क्षेत्र — ज़राविज्ञान
स्वयं को बनाए रखने में सक्षम — आर्थिक सुरक्षा।

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वृद्धावस्था की आयु कितनी निश्चित की गई है ?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र के अनुसार वृद्धावस्था की आयु 60 वर्ष से अधिक है।

प्रश्न 2. सन् 2020 तक भारत की वृद्ध जनसंख्या कितनी हो जाएगी ?
उत्तर-सन् 2020 तक भारत की वृद्ध जनसंख्या 140 मिलियन हो जाएगी।

प्रश्न 3. संयुक्त राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय दिवस कब मनाया जाता है ?
उत्तर-1 अक्तूबर को।

प्रश्न 4. मनुष्य जीवन की पाँच स्थितियाँ कौन-सी हैं ?
उत्तर-बाल अवस्था, बचपन, किशोरावस्था, बालिग तथा वृद्धावस्था।

प्रश्न 5. भारत में सेवानिवृत्ति की आयु क्या है ?
उत्तर-भारत में सेवानिवृत्ति की आयु 60 वर्ष है।

प्रश्न 6. आप असमर्थता से क्या समझते हैं ?
अथवा
क्षति ।
उत्तर-असमर्थता का अर्थ है किसी चीज़ की कमी, चाहे वह मानसिक, शारीरिक या संवेदात्मक हो।

प्रश्न 7. विकलांग व विकृत में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-विकलांग का अर्थ है किसी शारीरिक अंग की कमी तथा विकृत का अर्थ है किसी वस्तु की कमी होना, चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक।

प्रश्न 8. समावेश करना क्या है ?
उत्तर-समावेश करने का अर्थ है किसी विकलांग व्यक्ति को किसी कार्य में शामिल करना।

प्रश्न 9. शिक्षण असमर्थता क्या है ?
उत्तर-जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को सीखने में असमर्थ हो, उसे शिक्षण असमर्थता कहते हैं।

प्रश्न 10. सकारात्मक मॉडल को अपने शब्दों में परिभाषित करें।
उत्तर-सकारात्मक मॉडल का अर्थ है समाज में वह असमान रिश्ता, जिसमें उन व्यक्तियों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता जिनमें कोई कमी हो।

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III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वे कौन-से शारीरिक लक्षण हैं जो किसी व्यक्ति को वृद्ध बनाते हैं ?
उत्तर-
ऐसे कुछ लक्षण होते हैं जिनसे व्यक्ति वृद्ध लगने लग जाता है। दांतों का टूटना, गंजापन या बालों का सफेद होना, कमर का झुकना, कम सुनना, कम दिखना, कार्य करने का सामर्थ्य कम होना, धीरे चलना इत्यादि ऐसे कुछ लक्षण हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में वृद्ध लोगों में अकेलापन व उदासी के क्या कारण हैं ?
उत्तर-
लोगों के बच्चे नौकरी करने के लिए अन्य नगरों में चले जाते हैं जिस कारण वे अकेले हो जाते हैं। परिवार में रहते हुए परिवार की सत्ता नौजवानों के हाथों में आ जाती है। उनके हाथों में कुछ नहीं रहता जिस कारण वे अकेलेपन तथा उदासी के शिकार हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
समावेश किस प्रकार समाकलन से भिन्न है ?
उत्तर-
समावेश में असमर्थ व्यक्तियों को मजबूरी में किसी कार्य में शामिल किया जाता है जबकि समाकलन में उन व्यक्तियों को दिल से किसी कार्य का हिस्सा बनाया जाता है तथा वे प्रत्येक कार्य का अभिन्न अंग होते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वृद्ध लोगों के पुनर्वास में सरकार क्या सहायता करती है ?
उत्तर-
देश की स्वतन्त्रता के पश्चात् ही भारतीय सरकार ने वृद्ध लोगों के कल्याण के लिए कई कार्य करने शुरू किए। 1990 में संयुक्त राष्ट्र ने वृद्ध लोगों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय वर्ष मनाने का ऐलान किया। इसके पश्चात् 13 जनवरी, 1999 को भारत सरकार ने वृद्ध लोगों के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाई ताकि उनका कल्याण किया जा सके व उनका फायदा हो। 2007 में Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act ने वृद्ध लोगों के अधिकार को कानूनी स्थिति प्रदान की। इसके साथ ही कई अन्य कार्यक्रम भी चलाए गए; जैसे कि बुढ़ापा सुरक्षा, बुढ़ापा पैंशन, वृद्ध आश्रमों का निर्माण करना, वृद्धावस्था सेवाओं को फैलाना, वृद्ध लोगों के लिए Housing कार्यक्रम को आसान बनाना।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में आवास व स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं जिनका वृद्ध व्यक्तियों को सामना करना पड़ता है, क्या हैं ? प्रकाश डालें।
उत्तर-

  • आवास समस्या-वृद्ध लोगों को आवास की समस्या का सामना करना पड़ता है। कुल जनसंख्या में से काफ़ी अधिक विधवा तथा वृद्ध स्त्रियों व पुरुषों के रहने के लिए घरों की कमी होती है। एक आम शिकायत यह होती है कि वे घरों में अकेला महसूस करते हैं या उन्हें परिवार वाले अकेला कर देते हैं।
  • स्वास्थ्य समस्या-इस आयु में शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कार्य करना बंद कर देती है। लोग शारीरिक व मानसिक पक्ष से कमजोर हो जाते हैं। उन्हें बीमारियां लग जाती हैं। खाना हज़म नहीं होता। दाँत टूटने लग जाते हैं। उच्च रक्तचाप तथा मधुमेह हो जाती है।

प्रश्न 3.
सामाजिक सुरक्षा सुविधाओं से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
आज कल परिवर्तित होती परिस्थितियों में बच्चों पर आर्थिक निर्भरता काफ़ी मुश्किल कार्य है। इस कारण सरकार द्वारा दिए गए सामाजिक सुरक्षा के लाभों का महत्त्व काफ़ी बढ़ गया है। इसका अर्थ है कि सरकार वृद्धावस्था में कुछ सहायता प्रदान करती है। परन्तु हमारे देश भारत में वृद्ध लोगों को काफ़ी कम सामाजिक सुरक्षा मिलती है। 90% के करीब वृद्ध लोग जो असंगठित क्षेत्र में कार्य करते हैं, उन्हें पैंशन या अन्य लाभ नहीं मिलते। सरकार निर्धन वृद्ध लोगों को कुछ सहायता प्रदान करती है जैसे कि

  • राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन जोकि ₹ 75 प्रति मास है परन्तु यह केवल 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए है।
  • कई राज्य सरकारों ने कार्यक्रम चलाए हैं जिन में ₹ 60 से लेकर ₹ 250 प्रति मास मिलते हैं। यह केवल उनके लिए हैं जो 65 वर्ष से ऊपर हैं तथा निर्धनता रेखा से नीचे रहते हैं।
  • विधवाओं को ₹ 150 प्रति मास मिलता है।

प्रश्न 4.
भारत में असमर्थता के बारे में अपने शब्दों में चर्चा करें।
उत्तर-
सम्पूर्ण विश्व में 100 करोड़ से अधिक लोग हैं जो किसी-न-किसी असमर्थता के साथ जी रहे हैं। हम अपने इर्द-गिर्द ऐसे लोग देख सकते हैं जो असमर्थ हैं तथा उन्हें जीवन जीने में परेशानी होती है। असमर्थ व्यक्ति को कई अभावों का सामना करना पड़ता है जैसे कि शिक्षा, रोज़गार तथा अन्य कई प्रकार की सुविधाएं। इस के साथ ही उनके साथ एक सामाजिक श्राप जुड़ जाता है जो साधारणतया आर्थिक व सामाजिक जीवन जीने के रास्ते में रुकावट होता है। अगर पूर्ण विश्व में 100 करोड़ के लगभग लोग ऐसे हैं तो भारत में भी करोड़ों लोग ऐसे हैं जो किसी-नकिसी रूप से असमर्थता का शिकार हैं। इन लोगों के साथ या तो नफरत की जाती है या फिर इन्हें दया दिखाई जाती है। यह लोग जीवन जीने की सभी सुविधाओं का ठीक ढंग से प्रयोग भी नहीं कर पाते जिस कारण उनके जीवन में काफ़ी अभाव होते हैं। हमारे देश की लगभग 2% जनसंख्या किसी-न-किसी रूप से विकलांग है।

प्रश्न 5.
‘असमर्थता सफलता में रुकावट नहीं होनी चाहिए।’ संक्षिप्त रूप में व्याख्या करें।
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि अगर कोई व्यक्ति सफलता प्राप्त करने की ठान ले तो उसके रास्ते में कोई रुकावट नहीं आती। यह बात असमर्थ व्यक्ति के मामले में ठीक ही बैठती है कि अगर कोई असमर्थ व्यक्ति कोई कार्य करने की ठान ले तो वह भी सफलता अर्जित कर सकता है। सम्पूर्ण विश्व में हमें बहुत से उदाहरण मिलते हैं जिन्होंने अपनी असमर्थता को पार पाकर सफलता प्राप्त की। स्पैशल ओलंपिक इसकी उदाहरण है जिसमें ऐसे व्यक्ति ही भाग लेते हैं तथा अपने देश का नाम रोशन करते हैं।

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V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
वृद्ध अवस्था के सिद्धान्तों का विस्तार सहित वर्णन करें।
अथवा
वृद्धावस्था के क्रियात्मक तथा आधुनिकीकरण सिद्धान्त को लिखो।
अथवा
वृद्धावस्था के आधुनिकीकरण सिद्धान्त तथा सक्रियता सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
वृद्ध अवस्था से संबंधित कई सिद्धांत मिलते हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है –

(i) विघटन सिद्धान्त (The Disengagement Theory)—विघटन सिद्धान्त के अनुसार वृद्ध अवस्था एक ऐसी अवस्था है जिसमें समाज तथा व्यक्ति धीरे-धीरे एक-दूसरे से दूर होना शुरू हो जाते हैं। घर की सत्ता वृद्ध लोगों के हाथों से निकल कर नौजवानों के हाथों में आ जाती है जिससे समाज लगातार कार्य करता रहता है। इस तरह इस सिद्धान्त के अनुसार जब व्यक्ति वृद्ध हो जाता है तो उसका शारीरिक सामर्थ्य उसे अधिक कार्य करने की आज्ञा नहीं देता तथा वह समाज से दूर होना शुरू हो जाता है। इस कारण सभी कार्य नौजवानों के हाथों में आ जाते हैं।

(ii) सक्रियता सिद्धान्त या क्रियात्मक सिद्धान्त (The Activity Theory)—सक्रियता सिद्धान्त यह कहता है कि वृद्ध अवस्था में खुश रहने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति लगातार कार्य करता रहे। यह सिद्धान्त कहता है कि अगर मौजूदा भूमिका व रिश्ते खत्म हो गए तो उन्हें बदल देना चाहिए। भूमिकाओं तथा रिश्तों को बदलना आवश्यक हो जाता है क्योंकि जैसे-जैसे व्यक्ति के कार्य करने का सामर्थ्य तथा सक्रियता कम होती है, वैसे ही संतुष्टि का स्तर नीचे होता जाता है।

(iii) निरन्तरता का सिद्धान्त (The Continuity Theory)-निरन्तरता के सिद्धान्त को विकास के सिद्धान्त के नाम से भी जाना जाता है। इसके अनुसार वृद्ध लोग कई ढंग अपना कर तथा निरंतरता बनाए रखने के लिए भीतर की व बाहर की संरचना को बचा कर रखते हैं। निरन्तरता का सिद्धान्त काफ़ी अच्छे ढंग से व्याख्या करता है कि कैसे लोग स्वयं को आयु के अनुसार ढाल लेते हैं। वे परिवर्तन पसंद नहीं करते तथा अलग-अलग ढंग से प्राचीन व्यवस्था को बना कर रखने का प्रयास करते हैं।

(iv) आधुनिकीकरण सिद्धान्त (Modernization Theory)-आधुनिकीकरण सिद्धान्त कहता है कि वृद्ध लोग आधुनिकता के नियमों को बदलने में असफल हो जाते हैं तथा वे नियम हैं नयी आर्थिकता, चीजें प्रदत्त के स्थान पर अर्जित करने की प्रक्रिया, तकनीकी विकास इत्यादि। इस कारण वे नयी आधुनिकता से तालमेल नहीं बिठा पाते।

(v) आयु स्तरीकरण सिद्धान्त (The Age Stratification Theory)-यह सिद्धान्त बताता है कि किसी समाज में नौजवानों तथा वृद्धों के बीच किस प्रकार की असमानताएं मौजूद होती हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी एक विशेष समय तथा विशेष सांस्कृतिक अवस्था में वृद्ध लोगों के बीच सापेक्ष असमानता दो प्रकार के अनुभवों पर निर्भर करती है। पहला है उनके जीवन जीने के अनुभव जिनके कारण उनमें शारीरिक व मानसिक परिवर्तन आते हैं तथा उनके ऐतिहासिक अनुभव कि वे किस समूह से संबंधित हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय समाज में वृद्ध लोगों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं का वर्णन करें।
अथवा
वृद्धों की समस्याओं के बारे में विस्तृत नोट लिखें।।
उत्तर-
बुजुर्गों अथवा वृद्धों को बहुत-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिनका वर्णन इस प्रकार है-

(i) तकनीकी विकास के कारण समस्याएं (Problems due to technological development)—प्राचीन समय में वृद्धों का काफ़ी आदर किया जाता था क्योंकि यह माना जाता था कि वृद्धों को किसी-न-किसी कला की जानकारी होती थी। उस जानकारी को प्राप्त करने के लिए उन्हें वृद्धों की आवश्यकता पड़ती थी। परन्तु आजकल ऐसा नहीं है। तकनीकी विकास के कारण अब वृद्धों की वह इज्ज़त नहीं रही क्योंकि तकनीक की सहायता से किसी भी कला को बचा कर रखा जा सकता है। व्यक्ति तकनीक की सहायता से उस कला को प्राप्त कर सकता है। इस कारण वृद्धों को जो सम्मान प्राप्त होता था वह कम हो गया तथा अब व्यक्ति को वृद्धों की कोई आवश्यकता न रही। उन्हें फालतू समझा जाने लगा तथा दुर्व्यवहार किया जाने लगा जिस कारण उनके लिए समस्या उत्पन्न हो गई।

(ii) जाति प्रथा के महत्त्व के कम होने से समस्या (Problem due to decreasing effect of Caste System) स्वतन्त्रता के बाद कई प्रकार के कानून बने जिनसे जाति व्यवस्था का महत्त्व काफ़ी कम हो गया। प्राचीन समय में व्यक्ति का पेशा उसकी जाति के अनुसार निश्चित होता था। व्यक्ति जिस जाति में जन्म लेता था उसको उस जाति का ही पेशा अपनाना पड़ता था। वह अपनी योग्यता से भी पेशा नहीं बदल सकता था। जाति के वृद्ध अपनी जाति के नौजवानों को पेशे के कुछ रहस्य बता देते थे। यह कार्य पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता था। परन्तु स्वतन्त्रता के बाद जाति व्यवस्था का महत्त्व कम हो गया जिस कारण अब व्यक्ति अपनी योग्यता से कोई भी पेशा अपना सकता है। इस प्रकार वृद्धों द्वारा दिए जाने वाले रहस्यों का महत्त्व कम हो गया तथा उनकी आवश्यकता न रही। उनको फालतू समझा जाने लगा तथा उनकी समस्याएं शुरू हो गईं।

(iii) शिक्षा के प्रसार के कारण समस्याएं (Problems due to spread of education)-चाहे शिक्षा का प्रसार समाज के लिए अच्छा होता है परन्तु कई बार यह वृद्धों के लिए समस्या लेकर आता है। गांवों के लोग अपने बच्चों को शहरों में पढ़ने के लिए भेजते हैं। उन्हें पढ़ने के बाद शहर में ही नौकरी मिल जाती है। नौकरी मिलने के बाद वे शहर में ही विवाह कर लेते हैं। शुरू-शुरू में तो वे गांव भी जाते हैं, माता-पिता को पैसे भी भेजते हैं। परन्तु अपने परिवार तथा व्यस्तताओं के बढ़ने के कारण वे धीरे-धीरे गांव जाना तथा पैसे भेजना भी बन्द कर देते हैं। माता-पिता के पास चुप रहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता है। यहां से उन्हें पैसे की तंगी तथा और समस्याएं भी शुरू हो जाती हैं।

(iv) आर्थिक निर्भरता की समस्या (Problem of Economic dependency)-साधारणतया यह देखा गया है कि पैसे की निर्भरता भी वृद्धावस्था में समस्या का कारण बनती है। यदि पिता की मृत्यु हो जाए तथा माता की आय का कोई साधन न हो तो वह निराश्रित हो जाती है तथा बच्चों पर निर्भर हो जाती है। अपने खर्चे चलाने के लिए उसके पास बच्चों पर निर्भर होने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता है। वह पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो जाती है। इस प्रकार बच्चों पर निर्भरता भी समस्या का कारण बनती है।

(v) सम्पूर्ण आय बच्चों पर खर्च कर देना (Spending whole income on children)-आजकल की महंगाई के समय में बचत करना आसान नहीं है। एक मध्यमवर्गीय परिवार में खर्चे भी बहुत होते हैं। घर का खर्चा, बच्चों की पढ़ाई का खर्चा बहुत अधिक होते हैं। व्यक्ति अपने बच्चों को अच्छी-से-अच्छी शिक्षा देना चाहता है। बढ़िया शिक्षा आजकल काफ़ी महंगी है। बच्चे को बढ़िया शिक्षा देने के लिए वह अपनी सम्पूर्ण आय तथा सम्पूर्ण बचत बच्चों के ऊपर खर्च कर देते हैं ताकि उनको अच्छा भविष्य दिया जा सके। इस कारण उसके पास बुढ़ापे के लिए कुछ भी नहीं बचता है। बच्चे पढ़-लिख कर अच्छी नौकरी करने लग जाते हैं तथा अपना अलग परिवार बसा लेते हैं। मातापिता वृद्ध हो जाते हैं। परन्तु उनको आर्थिक समस्याएं घेर लेती हैं तथा वे समस्याओं में फँस जाते हैं।

(vi) स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं (Problems related to health)-व्यक्ति तमाम उम्र दिल लगाकर कार्य करते हैं। वृद्ध होने पर उनका शरीर जवाब दे जाता है। उनको कई बीमारियां जैसे कि मधुमेह, ब्लड प्रैशर इत्यादि लग जाती हैं। उनको इन बीमारियों को काबू में रखने के लिए दवाओं का सहारा लेना पड़ता है। उनका शरीर साथ नहीं देता है। वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या काफ़ी महत्त्वपूर्ण समस्या है।

(vii) औद्योगिकीकरण के कारण समस्याएं (Problems due to industrialisation)-बहुत-से वृद्धों की समस्याएं उद्योगों के बढ़ने से शुरू होती हैं। लोग गांव छोड़कर शहरों में कार्य करने जाते हैं। बेरोज़गारी तथा आर्थिक तंगी से बचने के लिए उन्हें शहर जाना पड़ता है। वे वृद्धों को शहर ले जाने में झिझकते हैं। इस प्रकार वृद्ध अकेले रह जाते हैं। यदि कोई आर्थिक तंगी नहीं है तो ठीक है नहीं तो बुजुर्गों को आर्थिक तथा सामाजिक सहायता प्राप्त नहीं होती है। वे स्वयं ही जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं क्योंकि उनके बच्चे उनका बोझ नहीं उठाते हैं।

(vii) बुजुर्ग का मर्द अथवा स्त्री होना भी उनकी समस्या का कारण है। यदि बुजुर्ग मर्द है तो उसको कम समस्याएं होती हैं। परन्तु यदि वह स्त्री है तो उसके साथ गलत व्यवहार अधिक होता है। उसको घर के सभी कार्य करने पड़ते हैं। पुत्रवधू के नौकरी पर जाने के पश्चात् उसको घर सम्भालना पड़ता है तथा बच्चे सम्भालने पड़ते हैं। इस प्रकार उन्हें बहुत समस्या होती है। पति की मृत्यु के बाद तो काफ़ी हद तक स्त्रियों की आर्थिक तथा सामाजिक सुरक्षा ही खत्म हो जाती है। विधवा को औरों पर निर्भर होना पड़ता है तथा अपना बाकी जीवन दयनीय हालात में काटना पड़ता है।

(ix) यह भी देखने में आया है कि लड़के अपने बुजुर्गों को अधिक तंग करते हैं। लड़कियां अपने बुजुर्ग माता-पिता को अधिक सहायता देती हैं। बिन ब्याहे लड़के तो और भी कम देखभाल करते हैं। पुत्र अपने माता-पिता की देखभाल नहीं करते जिस कारण पुत्रवधू भी देखभाल करनी बन्द कर देती हैं तथा बुजुर्गों को सभी कुछ अपने आप ही करना पड़ता है।

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(x) सास तथा पुत्रवधू के बीच झगड़ा भी बुजुर्गों की समस्या का कारण बनता है। बुजुर्ग अपने बच्चों पर निर्भर होते हैं। इस कारण पुत्रवधू को लगता है कि वह बुजुर्गों पर पैसे खर्च करके अपने पैसे बर्बाद कर रहे हैं। जब स्थिति हद से बाहर हो जाती है तो बुजुर्गों के पास कोई और आसरा ढूंढने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं होता। कई मामलों में तो पुत्र ही अपने माता-पिता को वृद्ध आश्रम में दाखिल करवा आते हैं। इसके अतिरिक्त यदि माता-पिता किसी असंगठित क्षेत्र में छोटे-मोटे कार्य करते हैं तो उनके पास अपनी वृद्धावस्था के लिए कोई पैसा नहीं बचता है। बुढ़ापे में स्वास्थ्य बिगड़ जाता है तथा पैसे न होने के कारण उनको कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

(xi) स्थिति में परिवर्तन (Change in position)-परम्परागत भारतीय समाज में वृद्ध लोगों को परिवार तथा समाज में काफ़ी ऊंचा स्थान दिया जाता था। घर का कोई भी महत्त्वपूर्ण निर्णय घर के वृद्ध लोगों की इच्छा तथा मर्जी के बिना नहीं लिया जाता था। परन्तु संयुक्त परिवार व्यवस्था के कम होते प्रभाव के साथ-साथ आधुनिक औद्योगिक समाज के सामने आने के साथ सामाजिक संरचना में काफ़ी महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए हैं। नई स्थितियों के अनुसार आर्थिक कारक को अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसकी आर्थिक स्थिति के ऊपर निर्भर करती है। इस कारण वृद्ध लोगों की स्थिति में काफ़ी परिवर्तन आया है क्योंकि उनके पास पैसे की कमी होती है। उनकी स्थिति अब वह नहीं रही जो पहले थी। इससे उनके सम्मान को काफ़ी ठेस पहुंचती है जिससे उन्हें काफ़ी मानसिक परेशानी का सामना करना पड़ता है। उनके बच्चे उनका सम्मान भी नहीं करते हैं।

(xii) फालतू समय की समस्या (Problem of Leisure time)-वृद्ध अवस्था में व्यक्ति को एक और महत्त्वपूर्ण समस्या का सामना करना पड़ता है तथा वह है फालतू समय बिताने की समस्या। वृद्धों के पास बहुत सा फालतू समय होता है तथा उन्हें पता नहीं होता है कि इसके साथ क्या करें। जवानी के समय को व्यक्ति काम करते हुए व्यतीत कर देता है। शहरों में लोग 8 से 12 घण्टे तक कार्य करते हैं तथा गांव में वे इससे भी अधिक कार्य करते हैं। परन्तु सेवानिवृत्ति (Retirement) के पश्चात् व्यक्ति को अपना समय व्यतीत करना मुश्किल हो जाता है। इस प्रकार खाली समय काटना उनके लिए मुश्किल हो जाता है तथा उन्हें पता नहीं होता है कि वे क्या करें।

इस प्रकार यह देखने में आया है कि नई पीढ़ी में नौजवान लोग बदले हुए हालातों तथा बदली हुई कद्रों-कीमतों के कारण धीरे-धीरे बुजुर्गों को छोड़ते जा रहे हैं। वे अपनी सन्तान होने के उत्तरदायित्व से दूर भाग रहे हैं। दूसरी तरफ माता-पिता अपने बच्चों के पालन-पोषण में अपनी सारी आय तथा बचत खर्च कर देते हैं जिस कारण वे वृद्धावस्था में निराश्रित हो जाते हैं।

प्रश्न 3.
वृद्धावस्था के लोगों की समस्याओं को कैसे सुलझाया जा सकता है ?
उत्तर-
आजकल लगभग सभी देश बुजुर्गों की समस्याओं को दूर करने के लिए कई प्रकार के सामाजिक, कानूनी व सुधारात्मक तरीके अपना रहे हैं। उनमें से कुछ तरीकों का वर्णन इस प्रकार हैं

  • वृद्धाश्रम-कई बुजुर्ग अपने परिवार से तालमेल नहीं बिठा पाते जिस कारण उनके बच्चे उन्हें उनके हाल पर छोड़ देते हैं तथा उनसे कोई वास्ता नहीं रखते। कई बार तो ऐसे बुजुर्ग तनाव का शिकार भी जो जाते हैं। ऐसे बुजुर्गों के लिए कई देशों में वृद्धाश्रम खोले गए ताकि उन्हें शारीरिक सुरक्षा, मैडीकल सहायता तथा आर्थिक सुरक्षा प्रदान की जा सके।
  • कल्याण कार्यक्रम-सम्पूर्ण विश्व में ही बुजुर्गों के लिए कई कल्याण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं जैसे कि बुढ़ापा पैंशन, दुर्घटना सुविधाएं, मुफ़्त मैडीकल सहायता इत्यादि। उन्हें आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई कानून तथा कल्याण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, जैसे कि प्रोविडेंट फण्ड, ग्रेचुटी, जीवन बीमा इत्यादि।
  • रोज़गार-समाज के बुजुर्गों का ध्यान रखने के लिए कई ढंग अपनाए गए हैं, परन्तु उनके लिए यह आवश्यक है कि नौकरी से सेवानिवृत्त होने के पश्चात् भी वे समाज के काम आ सकें। इसलिए कई स्थानों पर उन्हें सेवानिवृत्त होने के पश्चात् ही नौकरी दी जाती है ताकि उनके अनुभव का अच्छा लाभ उठाया जा सके।
  • सुदृढ़ पारिवारिक व्यवस्था-समाज को ऐसे प्रयास करने चाहिएं कि एक मज़बूत पारिवारिक व्यवस्था हो जो बुजुर्गों का ध्यान रख सके क्योंकि यह परिवार ही होता है जिससे व्यक्ति भावनात्मक रूप से जुड़ा होता है। परिवार में ही ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि वह अपने बुजुर्गों का अच्छी तरह ध्यान रखे। परिवार में कम-से-कम तीन पीढ़ियों के लोग रहते हैं तथा उनके बीच का रिश्ता इतना मज़बूत होना चाहिए कि वे अपने वृद्ध सदस्यों को छोड़ें ही न। परम्परागत मूल्य भी मज़बूत होने चाहिए ताकि वृद्ध स्वयं को अकेला न समझें।
  • असरदार कानून-वैसे तो सरकार ने बहुत से कानून बनाए हैं परन्तु उन्हें असरदार ढंग से लागू करने की आवश्यकता होती है। इन कानूनों में ऐसे प्रावधान रखने चाहिए कि अगर कोई अपने वृद्धों को छोड़ेगा तो उसकी जायदाद ज़ब्त कर ली जाएगी तथा जेल भेज दिया जाएगा। ऐसे डर से लोग अपने बुजुर्गों की बेइज्जती नहीं करेंगे।
  • उन्नत मैडीकल सुविधाएं-हमारी मौजूदा मैडीकल सुविधाएं इतनी बढ़िया नहीं हैं कि वे बुजुर्गों की शारीरिक व स्वास्थ्य सम्बन्धी आवश्यकताओं को ठीक ढंग से पूर्ण कर सकें। इसलिए हमें अपनी स्वास्थ्य सुविधाओं को उन्नत करना चाहिए ताकि वृद्ध बढ़िया जीवन जी सकें।

प्रश्न 4.
असमर्थता के प्रकारों पर संक्षिप्त नोट लिखो।
अथवा
असमर्थता के प्रकारों पर प्रकाश डालो।
अथवा
सुनने तथा मानसिक असमर्थता की चर्चा कीजिए।
उत्तर-
वैसे तो असमर्थता के बहुत से प्रकार होते हैं परन्तु उनमें से कुछ प्रमुख असमर्थताओं का वर्णन इस प्रकार है-

  • संचालन की असमर्थता (Locomotor Disability)-संचालन की असमर्थता व्यक्ति को चलने-फिरने से रोकती है। पी० डब्ल्यू० डी० कानून कहता है कि संचालन की असमर्थता वह हड्डियों, जोड़ों व नाड़ियों की समस्या है जो शरीर के हिस्सों के संचालन को रोकती है। इसमें अधरंग भी शामिल है।
  • दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता (Visual Disability)-दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता या कम दृष्टि को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-नेत्रहीन तथा आंशिक दृष्टि वाले। PWD कानून कहता है कि वे व्यक्ति जिनकी दृष्टि इतनी कमज़ोर हो जाती है कि वे किसी चीज़ की सहायता (ऐनक) के बिना देख ही नहीं सकते। इस प्रकार वे कोई भी कार्य उस चीज़ की सहायता के साथ ही कर सकते हैं।
  • सुनने की असमर्थता (Hearing Disability)—ये लोग एक निश्चित स्तर से अधिक सुन नहीं सकते हैं। उन्हें सुनने के लिए किसी मशीन की सहायता लेनी ही पड़ती है।
  • मानसिक असमर्थता (Mental Disability)-इस प्रकार की असमर्थता 18 वर्ष की आयु से पहले ही शुरू हो जाती है तथा साधारण से कार्य करने के रास्ते में भी रुकावट उत्पन्न करती है। व्यक्ति का दिमाग ठीक ढंग से कार्य नहीं कर पाता है। वह ठीक ढंग से सोच नहीं सकता, दिमाग एक सीमित दायरे में ही कार्य कर सकता है। वह समाज में रहने के तरीके, बोलने के तरीके, स्वास्थ्य, पढ़ने-लिखने के तरीके नहीं समझ सकता। इस प्रकार की असमर्थता को मानसिक असमर्थता कहते हैं।
  • बोलने में असमर्थता-वे लोग जो बोल नहीं सकते, कुछ सीमित शब्द बोल सकते हैं या जिनकी बोलने की शक्ति चली जाती है, उन्हें बोलने में असमर्थ कहा जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 12 वृद्धावस्था तथा असमर्थता

प्रश्न 5.
विशिष्ट ज़रूरतों पर आधारित व्यक्तियों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
अथवा
विशेष जरूरतों वाले व्यक्तियों की समस्या का विस्तार से वर्णन करें।
अथवा
विलक्षण रूप से समर्थ व्यक्तियों द्वारा सामना किए जाने वाली दो समस्याओं की चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  • सामाजिक उत्पीड़न-विशिष्ट ज़रूरतों वाले लोगों का सामाजिक उत्पीड़न होता है। उनसे या तो लोग नफ़रत करते हैं या फिर उन पर दया दिखाते हैं। कोई उनकी तरफ प्यार वाला हाथ आगे नहीं बढ़ाता। ऐसा इस कारण है कि शायद उन्हें लगता है कि ये लोग उनके जैसे आम लोग नहीं हैं तथा इनमें कोई नुक्स है। लोगों की इस प्रकार की दृष्टि उन्हें चुभती है तथा वे चिड़चिड़े हो जाते हैं।
  • असमानता-समाज में रहते हुए इन लोगों को असमानता का भी सामना करना पड़ता है। इनके साथ असमान ढंग से व्यवहार किया जाता है। ये साधारण लोगों की तरह जीवन जीने की सभी सुविधाओं का आनंद नहीं ले सकते। इनसे समाज, घर, दफ़्तर इत्यादि में भेदभाव किया जाता है तथा बहुत से मौकों पर इन्हें शामिल ही नहीं किया जाता। इस कारण वे धीरे-धीरे तनाव का शिकार हो जाते हैं।
  • स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं-विशिष्ट ज़रूरतों वाले व्यक्ति ऐसे होते हैं जो किसी-न-किसी प्रकार की असमर्थता का शिकार होते हैं। उन्हें सुनने की कमी होती है या देख नहीं सकते या कुछ समझ नहीं सकते या ठीक ढंग से चल नहीं सकते। इस प्रकार उन्हें हमेशा किसी-न-किसी सहारे की आवश्यकता होती है। उनके लिए बिना किसी के सहारे काम करना मुमकिन नहीं होता।
  • निर्धनता-जो लोग शारीरिक रूप से किसी-न-किसी प्रकार से असमर्थ होते हैं, उनके लिए पैसे कमाने के बहुत ही सीमित अवसर होते हैं। वे अपनी शारीरिक असमर्थता के कारण अपने सामर्थ्य का पूर्णतया प्रयोग भी नहीं कर पाते जिस कारण उनके पास हमेशा पैसों की कमी होती है। इस प्रकार वे निर्धन ही रह जाते हैं।
  • अलगाव-असमर्थ लोगों को अलगाव की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। जितनी अधिक शारीरिक कमी होगी उतनी अधिक अलगाव की भावना बढ़ जाएगी। कई बार स्थिति उनके बस में नहीं होती जिस कारण यह किसी कार्य में उनकी भागीदारी के रास्ते में रुकावट बन जाती है।

प्रश्न 6.
विशिष्ट ज़रूरतों पर आधारित व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए विधान किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ?
अथवा
विधान (कानून) किस प्रकार विशेष ज़रूरतों वाले व्यक्तियों की सशक्तिकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है ?
अथवा
विलक्षण सामर्थ्य वाले व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिए विधान ने किस प्रकार महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की है?
उत्तर-
इसमें कोई शंका नहीं है कि विशिष्ट ज़रूरतों वाले लोगों को समर्थ बनाने में कानून बहुत बड़ी भूमिका अदा कर सकता है। वास्तव में ऐसे लोगों के लिए समाज की तरफ से प्यार तथा हमदर्दी के साथ कुछ वैधानिक नियमों की भी आवश्यकता है ताकि जो लोग शारीरिक रूप से किसी-न-किसी रूप में असमर्थ हैं, वे भी अच्छा जीवन जी सकें। ऐसा तभी हो सकता है अगर इनसे सम्बन्धित कुछ विधान बनाए जायें।

पिछले कुछ समय में इन लोगों को समाज की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए भेदभाव के विरुद्ध कुछ विधान, समान अवसर तथा कुछ कार्यक्रम बनाए गए हैं जिनमें इनके कल्याण के प्रति लोग जागरूक होना शुरू हुए हैं। परन्तु यह तब ही मुमकिन है अगर कुछ लोग इकट्ठे होकर इस दिशा में कार्य करें। इसलिए 1986 में The Rehabilitation Council of India का गठन किया गया था। यह एक स्वायत्त संस्था है जो उन लोगों को ट्रेनिंग देने का कार्य करती है जो विशिष्ट ज़रूरतों वाले लोगों को बसाने का कार्य करते हैं। इसे The Rehabilitation Council Act, 1992 के अन्तर्गत वैधानिक दर्जा दिया गया है जिस कारण इस संस्था द्वारा ट्रेनिंग देने को मान्यता दी गई। इनकी कानून के अनुसार ट्रेनिंग के कार्य की समय-समय पर जाँच की जाएगी तथा इस क्षेत्र में नए आविष्कारों के लिए भी सहायता दी जाएगी।

इन लोगों के लिए कई कानून भी पास किए गए जैसे कि-

  • Persons with Disabilities (Equal Opportunities, Probition of Rights and Full Participation) Act, 1995.
  • National Trust for Welfare of Persons with Autism, Cerebral Palsy, Mental Retardation and Multiple Disability Act, 1999.
  • Rehabilitation Council of India Act, 1992.

इन विधानों का मुख्य उद्देश्य उन लोगों को समाज में समानता दिलाना है जो किसी-न-किसी प्रकार की असमर्थता के साथ जी रहे हैं। ये कानून उन लोगों को भी सहायता प्रदान करने में सहायता करते हैं जो असमर्थ हैं तथा जिनके पास पारिवारिक सहायता मौजूद नहीं होती। ये विधान उन संस्थाओं या गैर-सरकारी संस्थाओं की सहायता करते हैं जो इन लोगों को दोबारा बसाने के कार्य में लगे हुए हैं। इस प्रकार इन लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में स्थान आरक्षित रखे गए हैं ताकि वे भी समाज में अच्छा जीवन जी सकें।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
2021 तक भारत में कितने लोग वृद्ध हो जाएंगे ?
(क) 140 मिलियन
(ख) 150 मिलियन
(ग) 160 मिलियन
(घ) 170 मिलियन।
उत्तर-
(क) 140 मिलियन।

प्रश्न 2.
2001 में भारत में कितने लोग वृद्ध थे ?
(क) 80 मिलियन
(ख) 77 मिलियन
(ग) 83 मिलियन
(घ) 86 मिलियन।
उत्तर-
(ख) 77 मिलियन।

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प्रश्न 3.
भारत की जनगणना में किस आयु के व्यक्ति को वृद्ध माना जाता है ?
(क) 58 वर्ष
(ख) 65 वर्ष
(ग) 60 वर्ष
(घ) 63 वर्ष।
उत्तर-
(ग) 60 वर्ष।

प्रश्न 4.
वह कौन-सा लक्षण है जिससे वृद्धावस्था के आने का पता चलता है ?
(क) दाँतों का टूटना
(ख) गंजापन
(ग) बाल सफेद होना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
वृद्धावस्था की प्रक्रिया का कौन-सा विज्ञान अध्ययन करता है ?
(क) Gerontology
(ख) Dermitology
(ग) Physiology
(घ) Botany.
उत्तर-
(क) Gerontology.

प्रश्न 6.
वृद्ध लोगों को कौन-सी समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
(क) आर्थिक असुरक्षा
(ख) स्वास्थ्य का गिरना
(ग) भूमिका का बदलना
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. …………………… मानवीय जीवन का एक प्राकृतिक स्तर है जिसने आना ही है।
2. 1947 में भारत में ……………………… करोड़ लोग वृद्ध थे।
3. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 तक विश्व में …… …. करोड़ लोग होंगे।
4. Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act सन् …………………… में पास हुआ था।
5. अखिल भारतीय शिक्षा सर्वेक्षण के अनुसार लगभग …………………… करोड़ बच्चों को विशेष शिक्षा की आवश्यकता है।
उत्तर-

  1. वृद्धावस्था
  2. 1.9
  3. 910
  4. 2007
  5. 2.

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. भारत में सेवानिवृत्ति की आयु 70 वर्ष है।
2. वृद्ध लोगों के बाल काले होने शुरू हो जाते हैं।
3. वृद्ध लोगों के दाँत टूटने लग जाते हैं।
4. असमर्थ व्यक्तियों के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण है।
5. वृद्ध लोगों को 5000 रुपए प्रति महीना पैंशन मिलती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत ।

II. एक शब्द एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. विश्व की जनसंख्या कितनी है ?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र के अनुसार विश्व की जनसंख्या 650 करोड़ है।

प्रश्न 2. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 में विश्व की जनसंख्या कितनी हो जाएगी ?
उत्तर-संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2050 में विश्व की जनसंख्या 910 करोड़ हो जाएगी।

प्रश्न 3. 2021 में भारत में वृद्ध लोगों की संख्या कितनी हो जाएगी ?
उत्तर-2021 में भारत में वृद्ध लोगों की संख्या 121 मिलियन हो जाएगी।

प्रश्न 4. भारत में किस व्यक्ति को वृद्ध समझा जाता है ?
उत्तर-भारत में 60 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को वृद्ध समझा जाता है।

प्रश्न 5. वृद्धावस्था के कुछ लक्षण बताएं।
उत्तर-दाँतों का टूटना, गँजापन, बाल सफेद होना, कम सुनना, कम दिखना इत्यादि।

प्रश्न 6. वृद्ध होने की प्रक्रिया के अध्ययन को क्या कहते हैं ?
उत्तर-वृद्ध होने की प्रक्रिया के अध्ययन को ज़राविज्ञान (Gerontology) कहते हैं।

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प्रश्न 7. हिंदी फिल्म ‘पीकू’ का मुख्य मुद्दा क्या था ?
उत्तर- इस फिल्म का मुख्य मुद्दा एक वृद्ध पिता तथा उसकी पुत्री के आपसी रिश्ते के बारे में था जिसमें पिता पूर्णतया पुत्री पर निर्भर होता है।

प्रश्न 8. वृद्ध होने पर स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-वृद्ध होने पर व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 9. The Rehabilitation Council Act कब पास हुआ था ?
उत्तर-The Rehabilitation Council Act, 1992 में पास हुआ था।

III. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ज़राविज्ञान का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
ज़राविज्ञान एक प्रकार का विज्ञान है जो वृद्ध होने की प्रक्रिया का अध्ययन करता है तथा वृद्ध लोगों के सामने आने वाली समस्याओं का अध्ययन करता है। ज़रावैज्ञानिक आयु, बढ़ती आयु तथा वृद्ध होने की प्रक्रिया का अध्ययन करता है।

प्रश्न 2.
वृद्धावस्था का सक्रियता (Activity) सिद्धान्त।
उत्तर-
वृद्धावस्था का सक्रियता सिद्धान्त कहता है कि इस अवस्था में खुश रहने के लिए व्यक्ति को सक्रिय रहना चाहिए। यह सिद्धान्त कहता है कि अगर मौजूदा भूमिकाएं तथा नियम कार्य करना बंद कर दें तो उन्हें बदल देना चाहिए क्योंकि सक्रियता का स्तर कम होने पर संतुष्टि का स्तर भी कम हो जाएगा।

प्रश्न 3.
वृद्धावस्था की समस्याएं।
उत्तर-

  1. वृद्धावस्था में व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है।
  2. वे आर्थिक रूप से बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं तथा स्वयं असुरक्षित हो जाते हैं।
  3. वे वृद्धावस्था के बदले हालातों को अपनाने के लिए तैयार नहीं होते।

प्रश्न 4.
वृद्ध आश्रम।
उत्तर-
कई लोग अपने माता-पिता के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते तथा उन्हें तंग करते हैं और उन्हें घर से निकाल देते हैं। ऐसे बुजुर्गों के लिए सरकार ने वृद्ध आश्रम बनाए हैं ताकि वे वृद्ध अपने जीवन के अन्तिम वर्ष शान्ति व सुकून से बिता सकें। यहां उनकी आवश्यकताओं का पूरा ध्यान रखा जाता है।

प्रश्न 5.
असमर्थता का क्या अर्थ है ?
अथवा असमर्थता।
उत्तर-
असमर्थता का अर्थ है किसी प्रकार की शारीरिक कमी चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक। इसमें हम कई प्रकार के शारीरिक दोषों को शामिल कर सकते हैं जैसे कि सुनने, बोलने या देखने की कमी, ठीक ढंग से न चल पाना, दिमागी तौर पर कमी इत्यादि।

IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
बुजुर्गों की समस्याओं के कारण।
उत्तर-

  • जाति प्रथा का महत्त्व कम होने से बुजुर्गों का महत्त्व तथा सम्मान कम हो गया है जिस कारण उन्हें समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • तकनीकी विकास के कारण कला प्राप्त करने के लिए बुजुर्गों का सम्मान कम हो गया तथा इससे उन्हें समस्या हो रही है।
  • शिक्षा के प्रसार के कारण बच्चे घर तथा गांव छोड़कर शहर जा रहे हैं जिससे उन्हें पैसे की तंगी तथा और समस्याएं शुरू हो जाती हैं।
  • अपने बच्चों को अच्छा भविष्य देने के लिए वे अपनी तमाम बचत खर्च कर देते हैं जिस कारण उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है।

प्रश्न 2.
प्राचीन भारत में वृद्धों की स्थिति।
उत्तर-
प्राचीन भारत में वृद्धों की स्थिति बहुत अच्छी होती थी। पितृसत्तात्मक समाज तथा संयुक्त परिवार होने के कारण घर का सारा नियन्त्रण बुजुर्गों के हाथों में होता था। घर की सम्पत्ति तथा सभी वित्तीय साधन उनके पास होते थे। पेशे तथा कला से सम्बन्धित उनके पास सम्पूर्ण ज्ञान होता था। उनको परिवार में पूर्ण सम्मान प्राप्त होता था। घर के सभी निर्णय वे ही लिया करते थे तथा उनकी इच्छा के बिना परिवार में कुछ भी नहीं होता था। इस प्रकार प्राचीन भारत में बुजुर्गों की स्थिति काफ़ी अच्छी थी।

प्रश्न 3.
वृद्धावस्था में आने वाली समस्याएं।
उत्तर-

  • वृद्ध अवस्था आते-आते लोगों को कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं जिस कारण उन्हें शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • लोग अपनी सारी बचत बच्चों का भविष्य बनाने में खर्च कर देते हैं जिस कारण उन्हें वृद्धावस्था में आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • यदि वृद्ध अपने बच्चों पर प्रत्येक प्रकार से निर्भर हैं तो उन्हें बच्चों की प्रत्येक सही तथा गलत बात माननी पड़ती है जिससे उन्हें कई बार कड़वा बूंट भी पीना पड़ता है।

प्रश्न 4.
वृद्धों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या।
उत्तर-
व्यक्ति अपनी तमाम उम्र जी जान लगाकर कार्य करता है। वृद्ध होने पर उनका शरीर जवाब दे जाता है। उनको कई बीमारियां जैसे कि मधुमेह, रक्तचाप इत्यादि लग जाते हैं। उनको इन बीमारियों को काबू में रखने के लिए दवाओं का सहारा लेना पड़ता है। उनका शरीर साथ नहीं देता है। वे कुछ भी नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार स्वास्थ्य ‘सम्बन्धी समस्या वृद्धों के लिए काफ़ी महत्त्वपूर्ण है।

प्रश्न 5.
वृद्ध आश्रम।
उत्तर-
यदि किसी वृद्ध को उसके बच्चे घर से बाहर निकाल देते हैं तो उसके पास वृद्ध आश्रम में रहने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं बचता है। इस प्रकार वृद्ध आश्रम वे घर होते हैं जहां पर वे वृद्ध रहते हैं जो अपने परिवार के सदस्यों के साथ रह नहीं पाते हैं। इन वृद्ध आश्रमों में उनका पूरा ध्यान रखा जाता है। इन वृद्ध आश्रमों में उन्हें पूर्ण सुरक्षा तथा शरण भी प्राप्त होती है। इस तरह जो वृद्ध अपने बच्चों के साथ नहीं रह पाते उन्हें वृद्ध आश्रमों में रहना पड़ता है। बड़े-बड़े शहरों में कई वृद्ध आश्रम चल रहे हैं।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
वृद्धों की समस्या के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर-
यदि हम स्वतन्त्रता से पहले के भारत की जनसंख्या पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलेगा कि स्वतन्त्रता से पहले जीवन प्रत्याशा (Life expectancy) की दर 31 वर्ष थी। इसका अर्थ है कि भारत में पैदा होने वाला व्यक्ति औसतन 31 वर्ष जीवित रहता था। परन्तु स्वतन्त्रता के पश्चात् स्वास्थ्य सुविधाओं के बढ़ने से, जगह-जगह अस्पताल, डिस्पैंसरियां इत्यादि खुलने से व्यक्ति की औसत आयु बढ़ गई है तथा अब यह 66 वर्ष तक पहुंच गई है। इसका अर्थ है कि यह पहले की तुलना में अब दोगुनी से अधिक हो गई है। 20वीं शताब्दी के शुरू होने के बाद लोगों के जीवन में काफ़ी परिवर्तन आए हैं। सबसे पहला तथा सबसे महत्त्वपूर्ण परिवर्तन यह आया है कि उनकी औसत आयु बढ़ गई है। आमतौर पर यह कहा जाता है कि जो व्यक्ति 60 वर्ष से ऊपर हो गया है अथवा नौकरी से रिटायर हो गया है वह बुजुर्ग अथवा बूढ़ा अथवा वृद्ध हो गया है। औसत आयु के बढ़ने से उनकी संख्या भी बढ़ रही है। यह वृद्धों की बढ़ रही संख्या प्रत्येक देश के लिए चुनौती बनती जा रही है। पहले परिवार नाम की संस्था में ही प्रत्येक सदस्य खत्म हो जाता था चाहे वह बच्चा था या बूढ़ा था। अगर कोई वृद्ध हो जाता था तो उसकी पूरी देखभाल की जाती थी। परन्तु अब परिवार की संस्था में आए परिवर्तनों तथा पश्चिमीकरण और आधुनिकीकरण के प्रभाव से वृद्धों का ध्यान नहीं रखा जाता है।

उनका या तो ध्यान ही नहीं रखा जाता या फिर उन्हें वृद्ध आश्रम में छोड़ दिया जाता है। यह ही बुजुर्गों की सबसे बड़ी समस्या है।

साधारणतया यह माना जाता है कि जितनी व्यक्ति की आयु बढ़ती जाती है उसकी समस्याएं भी बढ़ती जाती हैं। रोसो (Rosow) के अनुसार चाहे वृद्ध लोगों की बहुत-सी समस्याएं होती हैं परन्तु हम उन्हें स्वास्थ्य, सामाजिक तथा वित्तीय समस्याओं में ले सकते हैं। आजकल के समाज में व्यक्ति की उपयोगिता को आर्थिक आधार पर देखा जाता है, वहां पर वृद्धों को उपयोगी नहीं समझा जाता है। तकनीकी उन्नति तथा सामाजिक परिवर्तनों ने वृद्धों की स्थिति और खराब कर दी है। पिछले कुछ दशकों से 60 वर्ष की आयु के ऊपर के लोगों की संख्या के बढ़ने से वृद्धों की समस्याएं बहुत बढ़ गई हैं। आजकल के वृद्ध को कई प्रकार की सामाजिक, आर्थिक तथा मानसिक प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीण तथा शहरी दोनों ही क्षेत्रों में वृद्धों को अपना समय व्यतीत करने की भी समस्या आती है।

इन सबको देखते हुए हमें वृद्धों के साथ मनुष्यों की तरह ही पेश आना चाहिए तथा यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि उनकी भी आवश्यकताएं तथा इच्छाएं हैं। इसलिए हमें उनकी आवश्यकताओं को उनकी दृष्टि से देखना चाहिए ताकि हम उन्हें समझ सकें तथा उनकी आवश्यकताओं को पूर्ण कर सकें।

ऐतिहासिक स्वरूप (Historical Perspective)-

यदि हम प्राचीन भारतीय समाज का ज़िक्र करें तो वृद्धों की बहुत अच्छी स्थिति होती थी। प्राचीन समाज में व्यक्ति शिकारी तथा भोजन इकट्ठा करने वाले समूह में रहते थे। बुजुर्गों को सभी रीतियों तथा कार्य करने की महारतें हासिल थीं। उनको बहुत ही महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। इस प्रकार के समाज में आयु को बहुत महत्त्व दिया जाता था। सामाजिक, धार्मिक तथा राजनीतिक दायरे (Sphere) में वृद्धों की स्थिति काफ़ी प्रभावशाली थी। साइमन (Simon) ने बहुत से आदिम समाजों का विश्लेषण किया तथा कहा है कि आदिम समाजों में समाज की परम्पराएं, रीतियां तथा व्यवहार समाज के बुजुर्गों के अनुसार चलता था जोकि सांस्कृतिक तौर पर बहुत ही विलक्षण था।

प्राचीन हेबरू लोगों में बुजुर्गों को वरदान समझा जाता था। अलग-अलग प्रकार के पूर्व औद्योगिक समाजों में जितने समय तक वृद्ध समाज को अपना योगदान दे सकते थे उतने समय तक वे समाज के लिए महत्त्वपूर्ण समझे जाते थे। उनके हाथों में समाज की तथा प्रत्येक प्रकार की सबसे अधिक शक्ति होती थी तथा उन्हें समाज में सुरक्षा प्राप्त होती थी। जब वे समाज को अपना योगदान देने के लायक नहीं रहते थे तो उनको सेवामुक्त (आजकल की भाषा में रिटायर) कर दिया जाता था। परिवार का नियन्त्रण परिवार के बड़े पुत्र को दे दिया जाता था। क्योंकि वे बुजुर्ग थे तथा अतीत में उन्होंने परिवार तथा समाज के लिए काफ़ी कुछ किया था इसलिए उन्हें परिवार की तरफ से सुरक्षा प्राप्त होती थी। वे सांस्कृतिक ज्ञान के बहुत बड़े स्रोत होते थे।

रोम में वृद्धों को नकारात्मक रूप में देखा जाता था। उनको साधारणतया उनकी बड़ी आयु के कारण धोखेबाज़, कमीने तथा दुष्ट के रूप में देखा जाता था। परन्तु सभी में से कुछ वृद्धों को अमीर परिवारों के छोटे बच्चों का संरक्षक बना दिया जाता था। वे छोटे बच्चों को स्कूल लेकर जाते थे तथा सुरक्षित वापिस लेकर आते थे। परन्तु रोम के इतिहास में बुजुर्गों को नकारात्मक रूप में देखा जाने लग गया।

प्रश्न 2.
भारत में बुजुर्गों की स्थिति का वर्णन करें।
उत्तर–
प्राचीन भारतीय समाज में बुजुर्गों की बहुत अच्छी स्थिति होती थी। बुजुर्ग परिवार का मुखिया होता था तथा परिवार और सम्पत्ति पर उसका नियन्त्रण होता था। उनको बहुत अधिक सम्मान प्राप्त था तथा उनकी स्थिति काफ़ी ऊंची होती थी। उस समय यह कहा जाता था कि आयु के साथ-साथ व्यक्ति का तजुर्बा बढ़ता है जोकि वह अपनी आने वाली पीढ़ी को दे देते हैं। समय के साथ-साथ आर्य लोग भारत में आए तथा भारतीय समाज को उन्होंने चार वर्षों में बांट दिया। व्यक्ति की आयु 100 वर्ष मानकर उनको 25-25 वर्षों के चार आश्रमों में बांट दिया गया तथा इन्हें क्रमवार ब्रह्मचार्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ तथा संन्यास आश्रमों का नाम दे दिया गया। पहले आश्रम में व्यक्ति शिक्षा ग्रहण करता था तथा दूसरे आश्रम में वह विवाह करके घर बसाता था। इस समय उसे अपने तीन ऋण देव ऋण, पितृ ऋण तथा ऋषि ऋण उतारने पड़ते थे। इस समय नौजवान पीढ़ी से यह आशा की जाती थी कि वह गृहस्थ आश्रम के दौरान ही अपने बुजुर्गों का ध्यान रखें। इस आश्रम व्यवस्था से बुजुर्गों को सुरक्षा मिल जाती थी तथा परिवार और समाज के कार्य बुजुर्गों द्वारा ही होते थे।

50 वर्ष की आयु में बुजुर्ग अपना सब कुछ अपने बच्चों को सौंपकर वानप्रस्थ आश्रम को निभाने के लिए जंगल में चले जाते थे परन्तु कभी-कभी परिवार को सलाह मशवरा देने के लिए वापस आ जाते थे। इस कारण परिवार में उनका सम्मान होता था। समय के साथ इस व्यवस्था में परिवर्तन आया परन्तु बुजुर्गों की स्थिति उसी प्रकार बनी रही। बुजुर्गों की स्थिति में असली परिवर्तन अंग्रेजों के आने के बाद शुरू हुआ।

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अंग्रेज़ों ने भारत को जीतना शुरू किया तथा इसके साथ-साथ उन्होंने भारत के सामाजिक जीवन में भी परिवर्तन लाने शुरू कर दिए। उन्होंने नयी न्याय तथा शिक्षा व्यवस्था को लागू किया जिससे प्राचीन रिश्तों में बहुत परिवर्तन आ गए। नई शैक्षिक संस्थाओं तथा उद्योगों के लगने के कारण नौजवान पीढ़ी बुजुर्गों को छोड़ने लग गई। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की तरफ जाने लग गए जिससे प्राचीन तथा संयुक्त परिवारों के अस्तित्व को खतरा पैदा होने लग गया। शहर जाने के कारण अब वे केन्द्रीय परिवार में रहने लग गए जिस कारण वे बुजुर्गों का ध्यान न रख सके। नई सामाजिक संरचना, कद्रों-कीमतों, सामाजिक तथा राजनीतिक व्यवस्थाओं तथा नयी सामाजिक प्रक्रियाओं का बनना शुरू हो गया। इस सबने समाज में सामाजिक तथा आर्थिक प्रणाली में कुछ परिवर्तन ला दिए जोकि निम्नलिखित हैं

  • पहले उत्पादन घर में ही होता था। अब उत्पादन घर की जगह फैक्टरी में होने लग गया है जिस कारण अब परिवार आर्थिक उत्पादन का केन्द्र नहीं रहा है।
  • लोगों ने रोज़गार की तलाश में ग्रामीण क्षेत्रों को छोड़कर शहरों की तरफ जाना शुरू कर दिया, विशेषतया छोटी आयु के लोगों ने।
  • लोगों के ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ जाने के कारण बड़े परिवार टूटने लग गए तथा केन्द्रीय परिवार अस्तित्व में आने लग गए।
  • शहरों में बड़े-बड़े संगठन तथा नए पेशे सामने आने लग गए। इससे वृद्धों द्वारा दी जाने वाली पेशे की कला का कोई महत्त्व न रहा क्योंकि अब पेशे से सम्बन्ध की कला सिखलाई केन्द्रों में मिलने लग गई। नए ज्ञान में तेजी से बढ़ौत्तरी हुई तथा बुजुर्गों के ज्ञान का महत्त्व काफ़ी कम हो गया।
  • उद्योगों के बढ़ने से कार्य हाथों की जगह मशीनों से होने लग गया। इससे व्यक्ति के लिए खतरा पैदा हो गया तथा यह खतरा था रिटायर करने अथवा होने का। अब बुजुर्गों की भूमिका बिना किसी भूमिका के हो गई।
  • औद्योगिकीकरण तथा नए आविष्कारों से स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाएं बढ़ी जिससे मृत्यु दर काफ़ी तेज़ी से कम हुई। व्यक्ति की आयु में तेजी से बढ़ौतरी हुई तथा जनसंख्या में वृद्धों की संख्या काफ़ी बढ़ गई।

इस समय पर आकर बड़ी आयु, रिटायर होने की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या तथा अकेलेपन की समस्या शुरू हो गई। शुरू में तो नौजवान पीढ़ी गांवों में माता-पिता को पैसे भी भेजती थी, स्वयं मिलने भी जाते थे, अपने परिवार को कुछ समय के लिए गांव में भी छोड़ देते थे परन्तु धीरे-धीरे समय के साथ-साथ यह सब कुछ कम होता गया तथा बुजुर्गों की समस्याएं बढ़ती गईं। बुजुर्गों को ही एक समस्या कहा जाने लग गया। अकेलापन, असमर्था, आर्थिक तौर पर निर्भरता ऐसी समस्याएं हैं जिनको समाज के बुजुर्गों की समस्याओं के रूप में देखा गया।

भारत की स्वतन्त्रता से पहले 1931 में भारत में औसत आयु 31 वर्ष थी परन्तु स्वतन्त्रता के बाद बहुत सी गम्भीर बीमारियों पर काबू पा लिया गया। स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं के बढ़ने के कारण 2011 में भारत में औसत आयु 66 वर्ष हो गई। इस प्रकार औसत आयु बढ़ने के साथ-साथ बुजुर्गों की संख्या बढ़ गई है। आयु बढ़ने के साथ-साथ बुजुर्गों की समस्याएं भी काफ़ी बढ़ गईं। औद्योगिकीकरण, पश्चिमीकरण तथा आधुनिकीकरण के कारण लोगों के विचार बदल गए हैं जिस कारण वृद्धों से गलत व्यवहार भी बढ़ गया है। गलत व्यवहार में बुजुर्गों के प्रति हमला भी शामिल है।

वृद्धों के लिए गलत व्यवहार को एक समस्या के रूप में मान्यता देना तथा दुर्व्यवहार को पहचानना आसान कार्य नहीं है। यदि वृद्ध कोई कार्य नहीं करते हैं तो साधारणतया घर में ही रहते हैं। वे अपने घर वालों पर निर्भर करते हैं। यहां महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वृद्ध अपने साथ हुए गलत व्यवहार की जानकारी किसी के पूछने पर भी उसे नहीं बताते हैं। यदि किसी को पता भी चल जाए तो भी उसकी बात नहीं मानते हैं। वे यह सोचते हैं कि उससे गलत व्यवहार करने वाले उसके अपने ही बच्चे हैं, कोई बात नहीं। बहुत-से वृद्ध इस बात से डरते हैं कि यदि उसके बच्चों ने उसे छोड़ दिया तो उसका क्या होगा, वह तो अकेला ही रह जाएगा। इसलिए वह अपने साथ गलत व्यवहार की बात किसी को नहीं बताता है। यह भी देखा गया है कि वृद्धों के पास अपने बच्चों के पास रहने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं होता है जिस कारण वे उनके साथ रहते हैं। वृद्ध किसी आश्रम में जाकर रहना भी पसन्द नहीं करते हैं।

दुर्व्यवहार की मात्रा-वृद्धों के प्रति गलत व्यवहार पर यदि अनुसन्धान किए जाएं तो हमारे सामने गलत परिणाम ही आएंगे क्योंकि इस के सम्बन्ध में आंकड़े प्राप्त नहीं होते हैं। इसका कारण यह है कि वृद्ध इसके बारे में बात करने में तैयार नहीं होते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार 100 के पीछे 4 वृद्धों के साथ घर में गलत व्यवहार होता है तथा 100 में से 3 वृद्धों के साथ शारीरिक हिंसा भी होती है। यह नहीं है कि स्त्रियों की अपेक्षा मर्दो के साथ अधिक दुर्व्यवहार होता है, बल्कि स्त्रियां हिंसा का अधिक शिकार होती हैं। यहां एक बात ध्यान रखने लायक है कि लड़के अपने मातापिता के साथ अधिक गलत व्यवहार यहां तक कि हिंसा भी करते हैं। इस मामले में लड़कियां अपने माता-पिता के साथ कम हिंसा करती हैं। यह समस्या हर तरफ चल रही है। राष्ट्रीय स्तर पर इसका कोई सर्वेक्षण नहीं हुआ है। चाहे कुछ अनुसन्धानकर्ताओं ने इसके बारे में प्रयास किए हैं परन्तु सभी यह बताने में असमर्थ हैं कि यह समस्या कितनी गम्भीर है। परन्तु समाचार-पत्रों, रिपोर्टों के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि यह समस्या काफ़ी गम्भीर है।

वृद्धावस्था तथा असमर्थता PSEB 12th Class Sociology Notes

  • वृद्धावस्था मानवीय जीवन का एक आवश्यक तथा प्राकृतिक भाग है तथा सभी व्यक्तियों को इसमें से गुजरना पड़ता है। यह एक ऐसी अवस्था है जिसे कोई नहीं चाहता क्योंकि इसमें बहुत-सी शारीरिक समस्याएं आ जाती हैं। इस अवस्था में व्यक्ति को अन्य लोगों पर निर्भर रहना पड़ता है।
  • संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 60 वर्ष से बड़ा व्यक्ति वृद्धावस्था में आ जाता है। लगभग सभी पश्चिमी देशों ने वृद्धावस्था पैंशन तथा अन्य सुविधाएं देने के लिए 60-65 वर्ष की आयु निश्चित की है।
  • वृद्धावस्था के कई लक्षण हमें जल्दी ही दिखने लग जाते हैं; जैसे कि दाँतों का टूटना, गंजापन या सफेद बाल,
    झुर्रियां पड़ना, पीठ में कूबड़ निकलना, कम सुनना, कम दिखाई देना, कार्य करने का सामर्थ्य कम होना, धीरे चलना इत्यादि। इसके साथ ही कई बीमारियां भी लग जाती हैं; जैसे-गठिया, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, दिल की बीमारी इत्यादि।
  • वृद्धावस्था में व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं, सामाजिक समस्याएं, मानसिक समस्याएं, अपनी भूमिका संबंधी समस्याएं इत्यादि। इन चिंताओं तथा समस्याओं के कारण उसकी मृत्यु भी जल्दी हो जाती है।
  • वृद्धावस्था की समस्याओं को कई प्रकार से दूर किया जा सकता है। जैसे कि वृद्ध आश्रम बना कर, उनके लिए कल्याणकारी कार्यक्रम चला कर, उनके लिए आसान नौकरियां उत्पन्न करके, परिवार की तरफ से ध्यान रख कर, बढ़िया स्वास्थ्य सुविधाएं देकर, कानून बना कर इत्यादि।
  • सम्पूर्ण विश्व में 100 करोड़ के लगभग ऐसे लोग हैं जो किसी-न-किसी असमर्थता के साथ जी रहे हैं। असमर्थता का अर्थ है, व्यक्ति में किसी प्रकार की शारीरिक कमी; जैसे कि सुनने, बोलने या देखने की कमी, लंगड़ा कर चलना, हाथ न चला पाना, मानसिक कमी इत्यादि।
  • असमर्थता के कई प्रकार होते हैं; जैसे कि संचलन की असमर्थता, दृष्टि सम्बन्धी असमर्थता, सुनने की असमर्थता, मानसिक असमर्थता, बोलने में असमर्थता इत्यादि।
  • असमर्थता के कई कारण हो सकते हैं; जैसे कि पोषण से भरपूर भोजन की कमी, बीमारी, जन्मजात कमी, दुर्घटना, किसी दवा की वजह से, दबाव इत्यादि।
  • असमर्थ व्यक्तियों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे कि समाज का दबाव, भेदभाव, निर्धनता, अकेलापन इत्यादि।
  • असमर्थ व्यक्तियों की समस्याओं को कई ढंगों से दूर किया जा सकता है। जैसे कि उन्हें बढ़िया स्वास्थ्य सुविधाएं देकर, भेदभाव दूर करके, उन्हें साधारण स्कूलों में पढ़ा कर, जनता को इनके प्रति जागरूक करके इत्यादि।
  • वृद्ध आश्रम (Old Age Homes)—वह घर जो कि वृद्ध लोगों के लिए बनाए जाते हैं ताकि वह आराम से – रह सकें।
  • क्षति (Impairment) शारीरिक या शारीरिक संरचना या मनोवैज्ञानिक रूप से किसी अंग की हानि जिसका परिणाम असमर्थता हो भी सकता है और नहीं भी।
  • असमर्थता (Disability)—एक प्रकार की शारीरिक कमी जिस से व्यक्ति को अपना शरीर अधूरा लगता है।
  • ज़राविज्ञान (Gerontology)-विज्ञान की वह शाखा जो आयु की प्रक्रिया के उद्देश्य को समझने तथा उससे सम्बन्धित चुनौतियों का अध्ययन करती है।
  • वृद्धावस्था (Old Age)-जीवन की वह अवस्था जो 60 वर्ष के पश्चात् शुरू होती है, जिसे कोई पसंद नहीं करता तथा जिसमें व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लिंग अनुपात क्या है ?
(क) 939
(ख) 940
(ग) 943
(घ) 942.
उत्तर-
(ग) 943.

प्रश्न 2.
लिंग अनुपात को परिभाषित किया जा सकता है :
(क) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
(ख) 1000 स्त्रियों के पीछे पुरुष
(ग) 1000 पुरुषों के पीछे बच्चों की संख्या
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।

प्रश्न 3.
पंजाब में सबसे अधिक लिंग अनुपात जिस जिले में है वह है :
(क) फिरोज़पुर
(ख) बठिण्डा
(ग) होशियारपुर
(घ) लुधियाना।
उत्तर-
(ग) होशियारपुर।

प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या की जाँच में शामिल है :
(क) अल्ट्रा साऊण्ड
(ख) एम० आर० आई०
(ग) एक्स-रे
(घ) भार तोलने वाली मशीन।
उत्तर-
(क) अल्ट्रा साऊण्ड।

प्रश्न 5.
कन्या भ्रूण हत्या का प्रमुख कारण क्या है ?
(क) बढ़ता हुआ लिंग अनुपात
(ख) पितृपक्ष की प्रबलता
(ग) लड़कियों के प्रति प्राथमिकता
(घ) कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) पितृपक्ष की प्रबलता।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा का कौन-सा प्रकार नहीं है :
(क) कानूनी
(ख) शारीरिक दुर्व्यवहार
(ग) समाज
(घ) आर्थिक।
उत्तर-
(घ) आर्थिक।

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प्रश्न 7.
कौन-सा तत्त्व घरेलू हिंसा के लिए दोषी नहीं है ?
(क) सांस्कृतिक
(ख) आर्थिक
(ग) सामाजिक
(घ) बाल मनोवैज्ञानिक।
उत्तर-
(घ) बाल मनोवैज्ञानिक।

प्रश्न 8.
वह अधिनियम जिसके अन्तर्गत एक बेटी को पिता की सम्पत्ति में समान हिस्से का अधिकार है :
(क) कानूनी सम्पत्ति अधिनियम
(ख) हिन्दू सम्पत्ति अधिनियम
(ग) सिविल अधिनियम
(घ) दैविक अधिनियम।
उत्तर-
(ख) हिन्दू सम्पत्ति अधिनियम।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. लिंग जाँच सम्बन्धी टैस्ट में .. ……………… शामिल है।
2. …………….. कन्या भ्रूण हत्या के कारणों में एक प्रमुख कारण हैं।
3. भारतीय समाज में कन्या भ्रूण हत्या के लिए …………………… जैसी गलत प्रथा का चलना ज़िम्मेदार है।
4. …………….. भारत में लगातार कम हो रहा है, जबकि थोड़ा सुधार ……………… राज्य में है।
5. …………………… को समुचित रूप से लागू किया जाए ताकि कन्या भ्रूण हत्या का मुकाबला हो सके।
6. …………………… दुर्व्यवहार के अन्तर्गत कई प्रकार से सज़ा या दण्ड देना जैसे मारना, तमाचा लगाना, चूंसा लगाना, धकेलना एवं अन्य प्रकार का शारीरिक सम्पर्क शामिल हैं जिसके परिणामस्वरूप पीड़ित के शरीर को चोट पहँचे।
7. वो दम्पति जो अकेले अथवा बच्चों के साथ रहते हैं अथवा एक व्यक्तिगत अभिभावक बच्चों के साथ रहते हैं, उसे ………….. परिवार कहते हैं।
8. ……………… को स्कूल, कॉलेज एवं विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम का ज़रूरी अंग बनाना चाहिए।
9. ………………….. को सामाजिक तौर पर अस्वीकृत व दुर्व्यवहारपूर्ण व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जाता है एक या दूसरे या दोनों सदस्यों द्वारा विवाह घनिष्ठ सम्बन्ध में बंधे हो, पाया जाता है।
उत्तर-

  1. अल्ट्रा साऊंड,
  2. पितृ पक्ष प्रबलता,
  3. दहेज,
  4. लिंगानुपात, पंजाब,
  5. कानून,
  6. शारीरिक,
  7. केन्द्रीय,
  8. लैंगिक तथा मानवीय अधिकार,
  9. घरेलू हिंसा।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. अल्ट्रा साऊंड लिंग निर्धारण के लिए पूर्व निदानात्मक जाँच है।
2. कन्या भ्रूण हत्या के विषय में जनचेतना के लिए कानून सहायता नहीं करता है।
3. जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में लिंग अनुपात में सुधार हुआ है।
4. कन्या भ्रूण हत्या के दुष्प्रभावों को चेतना कार्यक्रमों द्वारा समझाया जा सकता है।
5. सांस्कृतिक व परम्परागत रूढ़ियों का कन्या भ्रूण हत्या पर कोई प्रभाव नहीं है।
6. नवविवाहित दम्पत्ति को जागरूक होना चाहिए कि एक छोटे परिवार में मात्र लड़कों का होना ही ज़रूरी नहीं है।
7. दहेज का लालच, लड़के के जन्म की इच्छा व पति द्वारा मदिरा सेवन करना गाँव में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के प्रमुख कारण हैं।
8. पत्नी को पीटना घरेलू हिंसा को नहीं दर्शाता। 9. घरेलू हिंसा का इतिहास पूर्व ऐतिहासिक युग से पीछे देखा जा सकता है।
10. पति-पत्नी द्वारा घरेलू हिंसा परिवार के बच्चों पर कुप्रभाव डालती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही
  5. गलत
  6. सही
  7. सही
  8. गलत
  9. सही
  10. सही।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें-

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
कन्या भ्रूण हत्या — लड़कियों की हत्या
लिंग अनुपात — विवाहित बलात्कार
पितृपक्ष की प्रबलता — कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में हत्या
कन्या शिशु वध — 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
घरेलू हिंसा का प्रकार — पुरुषों का हावी प्रभाव।
उत्तर-
कॉलम ‘ए’–कॉलम ‘बी’
कन्या भ्रूण हत्या –कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में हत्या
लिंग अनुपात — 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
पितृपक्ष की प्रबलता — पुरुषों का हावी प्रभाव
कन्या शिशु वध — लड़कियों की हत्या
घरेलू हिंसा का प्रकार — विवाहित बलात्कार।

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1. भारत की 2011 की जनसंख्या के अनुसार लिंग अनुपात क्या है ?
उत्तर-1000 : 943

प्रश्न 2. पंजाब की 2011 की जनसंख्या के अनुसार लिंग अनुपात क्या है ?
उत्तर-1000 : 895

प्रश्न 3. पंजाब के किस जिले में लिंग अनुपात सर्वाधिक व किस जिले में न्यूनतम है ?
उत्तर-होशियारपुर (961) में सबसे अधिक तथा बठिण्डा (869) में सबसे कम लिंग अनुपात है।

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प्रश्न 4. पी०एन०डी०टी० का पूरा नाम क्या है ?
अथवा P.N.D.T. का पूरा अनुवाद लिखो।
उत्तर-Pre-Natal Diagnostic Techniques.

प्रश्न 5. घरेलू हिंसा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-घरेलू हिंसा सामाजिक रूप से अमान्य व ग़लत व्यवहार है जो व्यक्ति अपने सबसे नज़दीकी रिश्तेदारों से करता है जैसे कि पत्नी या परिवार।

प्रश्न 6. घरेलू हिंसा के किन्हीं दो कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता तथा स्त्रियों की निम्न आर्थिक स्थिति घरेलू हिंसा के मुख्य कारण हैं।

प्रश्न 7. कन्या भ्रूण हत्या से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-लिंग निर्धारण परीक्षण के बाद माँ के गर्भ में ही लड़की को मार देने को कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

प्रश्न 8. पत्नी को पीटने के कारणों का उल्लेख करें।
उत्तर-पुरुष प्रधान समाज, पुरुषों का स्त्रियों से शक्तिशाली होना, स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता, नशा करना, स्त्रियों की अनपढ़ता, मर्दानगी दिखाना इत्यादि।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या की परिभाषा दें।
उत्तर-
स्त्री के गर्भवती होने पर बच्चे का लिंग निर्धारण टैस्ट माँ के गर्भ में ही करवा लिया जाता है तथा लड़की होने की स्थिति में गर्भपात करवा दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। लिंग निर्धारण टैस्ट गर्भधारण के 18 हफ्ते के पश्चात् करवाया जाता है।

प्रश्न 2.
लिंग अनुपात की परिभाषा दें।
उत्तर-
स्त्रियों व पुरुषों के बीच समानता को देखने के लिए किसी स्थान का लिंग अनुपात देखना आवश्यक है। एक विशेष समय पर एक विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं। भारत में 2011 में यह 1000 : 943 था।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के दो कारण कौन-से हैं ?
उत्तर-

  1. दहेज-लड़की के विवाह के समय उसके ससुराल वालों को काफी दहेज देना पड़ता है तथा इससे बचने के लिए लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  2. लड़के की इच्छा-लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है क्योंकि वह सोचते हैं कि लड़का बुढ़ापे . का सहारा बनेगा तथा मृत्यु के बाद चिता को आग देगा।

प्रश्न 4.
स्त्रियों का भारत में क्या स्थान है ?
उत्तर-
भारत में स्त्रियों की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। केवल 65% स्त्रियां ही साक्षर हैं। देश की अधिकतर बुराइयां स्त्रियों से जुड़ी हुई हैं जैसे कि बलात्कार, अपहरण, दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या इत्यादि। इन सब बुराइयों के कारण आज भी स्त्रियों की स्थिति निम्न बनी हुई है।

प्रश्न 5.
भारत में लड़कों को क्यों प्राथमिकता दी जाती है ?
उत्तर-
लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह सोचते हैं कि उनके बुढ़ापे में लड़का उनका सहारा बनेगा तथा उनका ध्यान रखेगा। साथ ही उनकी मृत्यु के पश्चात् लड़का ही उनका अंतिम संस्कार करेगा। इसके साथ वह खानदान को भी आगे बढ़ाएगा।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा के तीन कारणों का उल्लेख करें।
अथवा घरेलू हिंसा के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  1. पुरुष स्त्रियों से अधिक शक्तिशाली होते हैं।
  2. स्त्रियां पुरुषों पर आर्थिक रूप से निर्भर होती हैं।
  3. स्त्रियों तथा बच्चों की स्थिति बढ़िया नहीं होती है।

प्रश्न 7.
घरेलू हिंसा व हिंसा के बीच के अन्तर को स्पष्ट करो।
उत्तर-
घरेलू हिंसा घर में पति-पत्नी, बच्चों, भाइयों की बीच होने वाली हिंसा को कहा जाता है तथा इस व्यवहार को समाज में मान्यता प्राप्त नहीं होती। हिंसा दो व्यक्तियों या समूहों के बीच होती है तथा वह अजनबी होते हैं। साम्प्रदायिक हिंसा इसकी काफ़ी महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।

प्रश्न 8.
पत्नी को पीटने से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
पत्नी को पीटने का अर्थ है पति की तरफ से पत्नी के विरुद्ध शारीरिक हिंसा का प्रयोग करना। पति-पत्नी के ऊपर अपना अधिकार समझते हैं तथा सोचते हैं कि जो वह कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा। अगर वह मना करती है तो उसे पीटा जाता है जिसे पत्नी की पिटाई कहते हैं।

प्रश्न 9.
कन्या भ्रूण हत्या के लिए जिम्मेदार कारण कौन-कौन से हैं ?
उत्तर-

  • दहेज-लड़की के विवाह के समय उसके ससुराल वालों को काफी दहेज देना पड़ता है तथा इससे बचने के लिए लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  • लड़के की इच्छा-लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है क्योंकि वह सोचते हैं कि लड़का बुढ़ापे . का सहारा बनेगा तथा मृत्यु के बाद चिता को आग देगा।

प्रश्न 10.
घरेलू हिंसा के परम्परागत सांस्कृतिक कारणों की सूची दें।
उत्तर-
घरेलू हिंसा के कई सांस्कृतिक कारण होते हैं जैसे कि लिंग आधारित समाजीकरण, लिंग आधारित भूमिका का विभाजन, सम्पत्ति पर लड़कों का अधिकार समझा जाता है। परिवारों में पुरुषों की भूमिका को महत्त्व देना, विवाह तथा दहेज प्रथा, संघर्ष खत्म करने के लिए हिंसा का प्रयोग इत्यादि।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या पर एक लघु निबन्ध लिखें।
उत्तर–
पिछले कुछ समय से विपरीत लिंग अनुपात का सबसे बड़ा कारण कन्या भ्रूण हत्या ही रहा है। इसका अर्थ है कि गर्भ में पल रही अजन्मी लड़की को गर्भ में ही मार देना। लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वह गर्भधारण के कुछ समय पश्चात् ही लिंग निर्धारण का टेस्ट करवाते हैं। अगर लड़का है तो ठीक है अगर लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है। इस प्रकार लड़की को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहा जाता है। इस प्रकार लड़कियों की संख्या कम हो जाती है तथा लिंग अनुपात बिगड़ जाता है।

प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के दो प्रमुख उपायों की चर्चा करें।
उत्तर-

  • भारत सरकार ने कई कानून पास किए हैं तथा भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 में प्रावधान रखे गए कि किसी स्त्री का जबरदस्ती गर्भपात नहीं करवाया जाएगा।
  • सरकार ने कन्या भ्रूण हत्या की बढ़ रही संख्या को रोकने के लिए 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया था जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई ऐसा टैस्ट करेगा तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी रखा गया।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के दो दुष्परिणामों की चर्चा करें।
अथवा कन्या भ्रूण हत्या के प्रभाव बताइए।
उत्तर-

  • स्त्रियों के स्वास्थ्य पर प्रभाव-उस स्त्री का लगातार गर्भपात करवाया जाता है जब तक कि उसके गर्भ में लड़का न आ जाए। इसका उसकी तथा होने वाले बच्चे के स्वास्थ्य पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • लिंग अनुपात पर प्रभाव-कन्या भ्रूण हत्या का लिंग अनुपात पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे लड़कियों की संख्या कम हो जाती है तथा कई अन्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे कि लड़कियों से जबरदस्ती करना, बहुओं को जलाना, बहुविवाह, बलात्कार, वेश्यावृत्ति इत्यादि।

प्रश्न 4.
भारत में लिंग अनुपात कम क्यों हो रहा है ? वर्णन करें।
उत्तर-

  • लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वह लड़का प्राप्त करने के प्रयास करते रहते हैं।
  • देश में कन्या भ्रूण हत्या के बढ़ने से ही लिंग अनुपात कम हो रहा है।
  • लड़कियों को जन्म के पश्चात् मार देने की प्रथा भी लिंग अनुपात के कम होने के लिए उत्तरदायी है।
  • परम्परागत समाजों की प्रवृत्ति के कारण भी ऐसा होता है।
  • लड़की को विवाह के समय दहेज देना पड़ता है जिस कारण लोग लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा रखते हैं।
  • लोग सोचते हैं कि उनका बेटा खानदान आगे बढ़ाएगा जिस कारण लोग लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मार देते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

प्रश्न 5.
कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देने वाली दो सामाजिक समस्याओं के नाम लिखें।
उत्तर-

  • दहेज-लड़की के विवाह के समय दहेज देना पड़ता है जो हमारे समाज की एक बहुत बड़ी समस्या है। दहेज न देना पड़े इस कारण लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं ताकि लड़के के विवाह के समय दहेज घर में आए।
  • स्त्रियों के प्रति हिंसा-सम्पूर्ण विश्व के लगभग सभी समाजों में स्त्रियों को कई प्रकार की हिंसा का सामना करना पड़ता है; जैसे कि बलात्कार, अपहरण, दहेज हत्या, वेश्यावृत्ति, पत्नी की पिटाई इत्यादि। इनसे बचने के लिए भी लोग भ्रूण हत्या करते हैं।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा के कारणों का वर्णन करें।
अथवा
घरेलू हिंसा के दो कारण लिखें।
उत्तर-

  • लोग परेशानी से दूर होने के लिए मद्यपान करते हैं। जब पत्नी तथा बच्चे उसे मद्यपान करने से रोकते हैं तो वह उन्हें पीटता है तथा घरेलू हिंसा को बढ़ाता है।
  • कई लोग प्राकृतिक रूप से ही गुस्से वाले होते हैं तथा छोटी-छोटी बात पर गुस्सा करके बच्चों को पीट देते हैं।
  • कई लोग नशीले पदार्थों का प्रयोग करते हैं। अगर उन्हें नशीले पदार्थ खरीदने के लिए पैसा नहीं मिलता तो वे घर वालों के साथ मार-पीट करते हैं। (iv) निर्धनता के कारण लोग गुस्से में रहते हैं तथा गुस्से में कई बार पत्नी व बच्चों को पीट देते हैं।

प्रश्न 7.
पत्नी के उत्पीड़न को रोकने के लिए क्या उपाय हैं ? वर्णन करें।
उत्तर-

  • सरकार ने कानून तो बनाए हैं परन्तु वह सही ढंग से लागू नहीं हो सके हैं। इन कानूनों को ठीक ढंग से लागू करना चाहिए ताकि ऐसा करने वालों से ठीक ढंग से निपटा जा सके।
  • पुलिस को घरेलू हिंसा के मामलों को ध्यान से देखना चाहिए। पुलिस वालों को ऐसे केसों से निपटने के लिए विशेष ट्रेनिंग दी जानी चाहिए।
  • बच्चों को, नौजवानों को घरेलू हिंसा के विरुद्ध शिक्षा देनी चाहिए ताकि लोगों को मानसिक रूप से तैयार किया जाए तथा वह घरेलू हिंसा न करें।

प्रश्न 8.
कन्या भ्रूण हत्या के उन्मूलन के लिए कानूनी सुधारों की सूची बनाएं।
उत्तर-

  • भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
  • The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
  • कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।

प्रश्न 9.
घरेलू हिंसा के कुप्रभाव क्या हैं ?
उत्तर-

  • इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर काफ़ी गलत प्रभाव पड़ता है। स्त्री को शारीरिक व मानसिक परेशानी झेलनी पड़ती है। इसका पारिवारिक वातावरण पर भी गलत प्रभाव पड़ता है।
  • पत्नी की पिटाई का बच्चों पर भी गलत प्रभाव पड़ता है। बच्चों का रोज़ाना काम-काज प्रभावित होता है, उनकी शिक्षा प्रभावित होती है। घर में माँ से होती हिंसा देखकर वे पिता से नफ़रत करने लग जाते हैं तथा उनमें नकारात्मक व्यवहार जुड़ जाता है।
  • जिस स्त्री के साथ घरेलू हिंसा होती है वह हमेशा मानसिक तनाव में रहती है जिस से घर के सभी पक्ष प्रभावित होते हैं। इस मानसिक तनाव से उन्हें कई प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं।

प्रश्न 10.
भारत में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा की दिशा पर संक्षेप नोट लिखें।
उत्तर-
भारत में स्त्रियों के विरुद्ध घरेलू हिंसा अन्य प्रकार की घरेलू हिंसा में सबसे आम है। इसका सबसे आम कारण लोगों के दिमाग में बैठी विचारधारा है कि स्त्रियां पुरुषों से शारीरिक व मानसिक रूस से कमज़ोर होती हैं। चाहे आजकल स्त्रियां साबित कर रही हैं कि वे पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं हैं परन्तु फिर भी उनके विरुद्ध हिंसा के मामले काफ़ी अधिक हैं। इसके कारण देश के प्रत्येक कोने में अलग-अलग हैं। संयुक्त राष्ट्र की Population Fund Report के अनुसार भारत को दो तिहाई स्त्रियां घरेलू हिंसा का शिकार हैं। 70% वैवाहिक स्त्रियां मारपीट, बलात्कार का शिकार हैं। इनमें से घरेलू हिंसा का 55% हिस्सा बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा अन्य उत्तर भारत के प्रदेश में आता है।

V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
लिंग अनुपात पर विस्तृत टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
अगर हम साधारण शब्दों में देखें तो 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। इसका अर्थ यह है कि विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं। इसको ही लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। लिंग अनुपात शब्द का सम्बन्ध किसी भी देश की जनसंख्या से सम्बन्धित जनसंख्यात्मक लक्षणों में से एक है तथा देश की जनसंख्या के बारे में पता करने के लिए लिंग अनुपात का पता होना आवश्यक है। 2011 में भारत में लिंग अनुपात 1000 पुरुषों के पीछे 943 स्त्रियां थीं।

अगर हमें किसी भी समाज में स्त्रियों की स्थिति के बारे में पता करना है तो इस बारे में हम लिंग अनुपात को देखकर ही पता कर सकते हैं। इससे ही पता चलता है कि समाज ने स्त्रियों को किस प्रकार की स्थिति प्रदान की है। अगर लिंग अनुपात कम है स्त्रियों की स्थिति निम्न है, परन्तु अगर लिंग अनुपात अधिक है तो निश्चय ही स्त्रियों की स्थिति ऊंची है। इस प्रकार लिंग अनुपात का अर्थ है किसी विशेष क्षेत्र में एक हजार पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या। अगर हमें किसी भी देश के बीच पुरुषों तथा स्त्रियों की संख्या के बारे में पता हो तो हम उस देश के लिंग अनुपात के बारे में आसानी से पता कर सकते हैं। यहां लिंग अनुपात के साथ-साथ बाल लिंग, अनुपात भी महत्त्वपूर्ण है। बाल लिंग अनुपात का अर्थ है कि देश की जनसंख्या में 1000 लड़कों की तुलना में 0-6 वर्ष की कितनी लड़कियां हैं।

अगर हम सम्पूर्ण संसार में तथा विशेषतया कुछ मुख्य देशों के लिंग अनुपात की तरफ देखें तो वर्ष 2000 में संसार में 1000 पुरुषों की तुलना में 986 स्त्रियां थीं। यह लिंग अनुपात अमेरिका में 1000 : 1029, चीन में 1000 : 944, ब्राज़ील में 1000 : 1025, जापान में 1000 : 1025, भारत में 1000 : 933, पाकिस्तान में 1000 में 938, बांग्लादेश में 1000 : 953 तथा इंडोनेशिया में 1000 : 1004 था। इन आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि विकसित देशों में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में अधिक है परन्तु पिछड़े हुए देशों में यह कम है। इसका कारण यह है कि पिछड़े हुए देशों में लैंगिक अन्तर बहुत अधिक है परन्तु विकसित देशों में लैंगिक भेदभाव काफ़ी कम है।

भारत में लिंग अनुपात की स्थिति (Situation of Sex Ratio in India)-

हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। वर्ष 2001 के Census के अनुसार देश में 1000 पुरुषों की तुलना में केवल 933 स्त्रियां ही थीं। निम्नलिखित तालिका से हमें लिंग अनुपात की चिन्ताजनक स्थिति के बारे में पता चलेगा :

Class 12 Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा 1im 1

इस तालिका से पता चलता है कि 1901-2001 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में कमी आई है। 1971 से 1981 में तथा 1991 से 2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या में चाहे बढ़ोत्तरी हुई है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी ही आई है। अगर हम 1901 से 2001 के दशकों की तुलना करें तो स्त्रियों की संख्या अथवा लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केरल ही केवल एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। केरल में 1000 पुरुषों के लिए 1084 स्त्रियां हैं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 है परन्तु हरियाणा में 877, चण्डीगढ़ में 818 तथा पंजाब में यह 895 है। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि हमारे देश में यह कम होता लिंग अनुपात चिन्ता का विषय बना हुआ है।

प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या से आपका क्या अभिप्राय है ? इसके कारण व परिणामों का विस्तार सहित वर्णन करें।
अथवा
कन्या भ्रूण हत्या से क्या अभिप्राय है ? इसके कारणों की व्याख्या करें। (P.S.E.B. 2017)
अथवा
कन्या भ्रूण हत्या क्या है ? इसके प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
शब्द कन्या भ्रूण हत्या तीन अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है तथा वह तीन शब्द हैं-कन्या, भ्रूण तथा हत्या। कन्या का अर्थ है स्त्री अथवा लड़की, भ्रूण का अर्थ है माँ के पेट में पल रहा बच्चा जोकि तीन या चार माह का हो तथा हत्या का अर्थ है मारना। इस प्रकार अगर हम कन्या भ्रूण हत्या के शाब्दिक अर्थ को देखें तो इसका अर्थ है माता के गर्भ में ही लड़की को मार देना। असल में कन्या भ्रूण हत्या का संकल्प कुछ समय पहले ही हमारे सामने आया है जब से देश में लिंग अनुपात में चिन्ताजनक कमी आयी है।

कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ (Meaning of Female Foeticide) लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह कई प्रकार के ढंग प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भ्रूण का नाम ही दिया जाता है। आजकल ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टेस्ट करके ही पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। इस टेस्ट को लिंग निर्धारण टेस्ट (Sex Determination Test) कहा जाता है। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर वह लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इस माता की कोख में लड़की को मारने को ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इस कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही देश में लिंग अनुपात दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है। सन् 2011 में देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। सन् 2011 के census के अनुसार देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

प्राचीन समय से ही यह स्थिति बनी हुई है। प्राचीन समय से ही लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं समझा जाता था। माता-पिता को लगता था कि अगर लड़की पैदा हुई तो उसे बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत-सा दहेज़ देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी बहुत कुछ देना पड़ेगा तथा लड़के वालों के कई प्रकार के नखरे सहन करने पड़ेंगे। इसलिए लड़की पैदा ही न हो परन्तु उस समय प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी कि जन्म से पहले ही बच्चे का लिंग पता चल जाता। इस कारण लोग बच्चे के जन्म का इन्तज़ार करते थे। बहुत-से स्थानों पर लड़की के पैदा होने की स्थिति में उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। इस प्रकार शुरू से ही लड़कियों की संख्या कम थी। _

परन्तु आधुनिक समय में बहुत-सी तकनीकें विकसित हो गईं। चाहे यह तकनीकें, जैसे कि अल्ट्रासाऊंड (Ultrasound) विकसित की गई थी ताकि माँ के गर्भ में बच्चे की ठीक स्थिति, उसके विकास का पता चल सके परन्तु लोगों ने इसका ग़लत प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने मां के गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता करना शुरू कर दिया। अगर लड़का हुआ तो ठीक है, परन्तु अगर लड़की है तो गर्भ में ही उसकी हत्या करने के ढंग ढूंढ़ना शुरू कर देते। ठीक इस समय हज़ारों क्लीनिक सामने आए जो कि गर्भपात (Abortion) जैसे ग़लत कार्यों को अन्जाम देते थे। इस प्रकार माता के पेट में ही कन्या भ्रूण हत्या होनी शुरू हो गई। जब सरकार को कम होते लिंग अनुपात की चिंता हुई तो उसने इसके विरुद्ध कानून बनाकर इसे ठीक करने के प्रयास करने शुरू कर दिए।

सरकार की तरफ़ से लिंग निर्धारण का टेस्ट करना गैर-कानूनी करार दे दिया गया तथा गर्भपात को भी गैर-कानूनी करार दे दिया गया। सरकार ने 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टेस्ट करने वाले को तीन वर्ष कैद के साथ-साथ दस हज़ार रुपये जुर्माना करने का प्रावधान रखा गया। सरकार ने सरकारी डॉक्टरों की टीमें भी बनाईं ताकि वह समयसमय पर अल्ट्रासाऊंड सैंटरों पर छापे मारें ताकि ऐसे ग़लत कार्य करने वालों को सामने लाया जा सके। चाहे इन कठोर प्रयासों के कारण टेस्ट करने तथा गर्भपात करने के केसों में कमी आई है परन्तु चोरी छुपे यह लगातार जारी है। लिंग निर्धारण के टेस्ट भी होते हैं तथा गर्भपात भी होते हैं। यही कारण है कि देश में लिंग अनुपात में कोई बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

कन्या भ्रूण हत्या के कारण (Causes of Female Foeticide)-जब माता के गर्भ में लिंग निर्धारण करके कन्या भ्रूण को खत्म कर दिया जाता है तो उसे कन्या भ्रूण हत्या का नाम दिया जाता है। यह एक प्रकार की सामाजिक समस्या है जो काफ़ी समय से चली आ रही है। इसके पीछे कोई एक या दो कारण नहीं हैं बल्कि बहुत-से कारण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. परम्परागत समाज (Traditional Society) कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या परम्परागत समाजों में अधिक होती है। अगर किसी विकसित देश जैसे कि अमेरिका जापान की परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, चीन, पाकिस्तान से तुलना करें तो हम देखेंगे कि लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा होती है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद लड़का चिता को आग दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि लोग लड़कियों के ऊपर लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं।

2. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a male child)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर में लड़का हो जो वंश को आगे बढ़ा सके तथा मृत्यु के बाद उनकी चिता को आग दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती हैं क्योंकि लड़की के बड़ा होने के बाद उसके विवाह के समय काफ़ी दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते रहना ही पड़ता है। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके लिए प्रयास भी करते हैं। वह गर्भपात अर्थात् कन्या भ्रूण हत्या करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है।

3. प्रौद्योगिक विकास (Technological Advances)-प्राचीन समय में लोगों के पास प्रौद्योगिकी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी जिस कारण वह लिंग निर्धारण का टैस्ट नहीं करवा सकते थे। उन्हें बच्चे के जन्म तक इन्तज़ार करना ही पड़ता था लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की पैदा होती थी तो उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। परन्तु समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकी विकसित हुई जिससे लिंग निर्धारण करना आसान हो गया। अल्ट्रासाऊंड जैसी मशीनें आ गईं जिससे माँ के गर्भ में तीन-चार माह के बाद ही पता चल जाता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है अथवा लड़की। इसके साथ ही हज़ारों क्लीनिक तथा नर्सिंग होम सामने आ गए जहाँ गर्भपात होते हैं। वे थोड़े से पैसों के लिए कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में ही हत्या कर देते हैं। नए-नए औज़ार सामने आ गए हैं जिनसे गर्भपात करने का कार्य काफ़ी आसान हो गया है। इस प्रकार प्रौद्योगिक विकास भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है।

4. दहेज (Dowry)-दहेज वह सामान होता है जो लड़की के विवाह के समय उसके माता-पिता, रिश्तेदार इत्यादि उसे देते हैं। प्राचीन समय में लड़की के माता-पिता जो कुछ भी उसे प्यार से देते थे, लड़के वाले उसे विनम्रता से स्वीकार कर लेते थे, परन्तु समय के साथ-साथ इस प्रथा में भी कुरीतियां आ गईं। लड़के वाले अपनी इच्छा से दहेज मांगने लग गए तथा कई प्रकार की मांगें रखने लग गए। कई बार तो लड़की वाले इन मांगों को पूर्ण कर देते हैं, परन्तु बहुत बार वे मांगों को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में ससुराल वाले लड़की को तंग करते हैं, मारते-पीटते हैं तथा कई केसों में तो मार भी देते हैं। ऐसी स्थिति से डरकर तथा दहेज देने से डर कर लोग यह चाहते हैं कि लड़की हो ही न बल्कि लड़का हो। इस स्थिति में वह कन्या भ्रूण हत्या से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार दहेज प्रथा भी कई बार कन्या भ्रूण हत्या के लिए उत्तरदायी है।

5. मृत्यु के बाद के संस्कार (Rituals After Death)-हमारे समाज में बहुत-से धर्मों के लोग रहते हैं तथा इन धर्मों में से अधिकतर धर्मों में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे जलाने की प्रथा है। धार्मिक शास्त्र यह कहते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी चिता को अग्नि उसका बेटा देगा। अगर बेटा चिता को अग्नि नहीं देगा तो उस मरे हुए व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलेगी तथा उसकी आत्मा भटकती ही रहेगी। इसके साथ ही मृत्यु के पश्चात् उसके रिश्तेदारों को बहुतसे संस्कार पूर्ण करने पड़ते हैं जैसे कि श्राद्ध, सालाना इत्यादि। इन सभी संस्कारों को पूर्ण करने के लिए धर्म शास्त्रों के अनुसार पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही लोग पुत्रों को अधिक प्राथमिकता देते हैं तथा पुत्र प्राप्त करने के लिए वह माता के गर्भ में ही लड़की को खत्म करवा देते हैं। इस प्रकार संस्कार पूर्ण करने के लिए भी कन्या भ्रूण हत्या को प्रोत्साहन मिलता है।

6. सामाजिक सुरक्षा (Social Protection)-भारतीय समाज एक विकासशील समाज है। यहां चाहे लोगों ने नई तकनीक अपना ली हैं परन्तु उन्होंने नए-नए विचारों को ग्रहण नहीं किया है। उनके विचार वहीं पुराने हैं तथा इन पुराने विचारों के अनुसार बुढ़ापे में पुत्र ही माता-पिता का रखवाला होता है। वह ही माता-पिता की अन्तिम समय तक देखभाल करता है तथा उनकी मृत्यु के पश्चात् वह ही सभी कर्मकाण्ड पूर्ण करता है। अगर व्यक्ति की केवल लड़कियां हों तो वह तो विवाह के पश्चात् अपने ससुराल चली जाएंगी। फिर बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल कौन करेगा तथा मृत्यु के पश्चात् वाले संस्कार कौन पूर्ण करेगा। लोगों को लगता है कि पुत्र के होने से उन्हें सामाजिक सुरक्षा हासिल हो जाएगी। चाहे आजकल के समय में पुत्र दूर-दूर के शहरों में नौकरी करते हैं तथा माता-पिता की मुश्किल के समय उनके साथ नहीं होते परन्तु फिर भी लोगों को पुत्र की इच्छा होती है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या जैसा ग़लत कार्य भी कर देते हैं।

7. पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society) हमारा समाज मुख्यतः पितृ प्रधान समाज है जहाँ घर में पिता की सत्ता ही चलती है। वह ही घर का सारा ध्यान रखता है तथा घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है। इस प्रकार के समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है तथा सभी कुछ पुरुषों की इच्छा से ही चलता है। इस प्रकार के समाज में अगर स्त्री चाहे भी तो भी कुछ नहीं कर सकती है। पुरुष भी यही चाहते हैं कि घर में बेटा ही हो तथा इस कारण ही वे मादा भ्रूण हत्या करने से भी पीछे नहीं हटते। स्त्रियों को भी पुरुषों की इच्छानुसार ही चलना पड़ता है तथा इस प्रकार का ग़लत कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

8. स्त्रियों की सहायता (Help by Females)-अगर हम ध्यान से देखें तो कन्या भ्रूण हत्या को आगे बढ़ाने में स्त्रियां भी कम दोषी नहीं हैं। घर की बड़ी बुजुर्ग बेटा होने पर जोर देती है तथा गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए दबाव डालती हैं। वह कहती है कि वंश चलाने के लिए पुत्र की आवश्यकता है पुत्री की नहीं। वह इस कार्य के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है। वह यह भूल जाती है कि वह स्वयं भी स्त्री है तथा वह स्वयं ही लड़की को संसार में आने से रोक रही है। बहुत-सी दाईयां, नर्से, डॉक्टर इत्यादि केवल पैसे के लिए इस कार्य में सहायता करते हैं। अगर स्त्रियां अपना यह व्यवहार छोड़ दें तो यह समस्या कम हो सकती है। इस प्रकार स्त्रियों की सहायता भी इस कार्य के लिए उत्तरदायी है।

9. समाज में स्त्रियों की स्थिति (Status of Women in Society) हमारा समाज पितृ प्रधान समाज है जहां स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से ही निम्न रही थी। शुरू से ही स्त्रियों को पुरुषों की गुलाम समझा जाता था। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता था। चाहे आजकल स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं, नौकरी कर रही हैं, अपने व्यापार चला रही हैं परन्तु फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति पुरुषों से निम्न ही रहती है। उन्हें न चाहते हुए भी पुरुषों का निर्णय मानना ही पड़ता है तथा कन्या भ्रूण हत्या के लिए बाध्य होना ही पड़ता है।

10. धार्मिक संस्कार (Religious Ceremonies) हमारे समाज में धर्म को काफ़ी अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा धार्मिक संस्कार पूर्ण करने को भी काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। वैसे भी व्यक्ति को अपने जीवन में कई प्रकार के ऋण उतारने पड़ते हैं जैसे कि देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण इत्यादि। इसके साथ ही उसे अपने जीवन में कई प्रकार के यज्ञ करने आवश्यक होते हैं। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा है कि व्यक्ति के ऋण उसका पुत्र उतारेगा तथा यज्ञ भी पुत्र ही करेगा पुत्री नहीं। अगर पुत्र होगा ही नहीं तो उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति कौन दिलाएगा। इन सभी धार्मिक संस्कारों के लिए पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या भी कर देते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।

2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।

3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।

4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।

8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के समाधान के लिए सरकार का क्या योगदान है ?
उत्तर-

  • भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
  • The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
  • कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।

प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या पर विस्तृत निबंध लिखें।
उत्तर-
शब्द कन्या भ्रूण हत्या तीन अलग-अलग शब्दों से मिलकर बना है तथा वह तीन शब्द हैं-कन्या, भ्रूण तथा हत्या। कन्या का अर्थ है स्त्री अथवा लड़की, भ्रूण का अर्थ है माँ के पेट में पल रहा बच्चा जोकि तीन या चार माह का हो तथा हत्या का अर्थ है मारना। इस प्रकार अगर हम कन्या भ्रूण हत्या के शाब्दिक अर्थ को देखें तो इसका अर्थ है माता के गर्भ में ही लड़की को मार देना। असल में कन्या भ्रूण हत्या का संकल्प कुछ समय पहले ही हमारे सामने आया है जब से देश में लिंग अनुपात में चिन्ताजनक कमी आयी है।

कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ (Meaning of Female Foeticide) लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वह कई प्रकार के ढंग प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भ्रूण का नाम ही दिया जाता है। आजकल ऐसी तकनीकें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टेस्ट करके ही पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। इस टेस्ट को लिंग निर्धारण टेस्ट (Sex Determination Test) कहा जाता है। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर वह लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इस माता की कोख में लड़की को मारने को ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं। इस कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही देश में लिंग अनुपात दिन-प्रतिदिन कम हो रहा है। सन् 2011 में देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Background) हमारे देश में लिंग अनुपात की स्थिति काफ़ी चिन्ताजनक बनी हुई है। सन् 2011 के census के अनुसार देश में 1000 लड़कों की तुलना में केवल 943 लड़कियां ही थीं।

प्राचीन समय से ही यह स्थिति बनी हुई है। प्राचीन समय से ही लड़कियों के जन्म को अच्छा नहीं समझा जाता था। माता-पिता को लगता था कि अगर लड़की पैदा हुई तो उसे बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत-सा दहेज़ देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी बहुत कुछ देना पड़ेगा तथा लड़के वालों के कई प्रकार के नखरे सहन करने पड़ेंगे। इसलिए लड़की पैदा ही न हो परन्तु उस समय प्रौद्योगिकी इतनी विकसित नहीं थी कि जन्म से पहले ही बच्चे का लिंग पता चल जाता। इस कारण लोग बच्चे के जन्म का इन्तज़ार करते थे। बहुत-से स्थानों पर लड़की के पैदा होने की स्थिति में उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। इस प्रकार शुरू से ही लड़कियों की संख्या कम थी।

परन्तु आधुनिक समय में बहुत-सी तकनीकें विकसित हो गईं। चाहे यह तकनीकें, जैसे कि अल्ट्रासाऊंड (Ultrasound) विकसित की गई थी ताकि माँ के गर्भ में बच्चे की ठीक स्थिति, उसके विकास का पता चल सके परन्तु लोगों ने इसका ग़लत प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने मां के गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता करना शुरू कर दिया। अगर लड़का हुआ तो ठीक है, परन्तु अगर लड़की है तो गर्भ में ही उसकी हत्या करने के ढंग ढूंढ़ना शुरू कर देते। ठीक इस समय हज़ारों क्लीनिक सामने आए जो कि गर्भपात (Abortion) जैसे ग़लत कार्यों को अन्जाम देते थे। इस प्रकार माता के पेट में ही कन्या भ्रूण हत्या होनी शुरू हो गई। जब सरकार को कम होते लिंग अनुपात की चिंता हुई तो उसने इसके विरुद्ध कानून बनाकर इसे ठीक करने के प्रयास करने शुरू कर दिए।

सरकार की तरफ़ से लिंग निर्धारण का टेस्ट करना गैर-कानूनी करार दे दिया गया तथा गर्भपात को भी गैर-कानूनी करार दे दिया गया। सरकार ने 1994 में Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया जिसके अनुसार लिंग निर्धारण का टेस्ट करने वाले को तीन वर्ष कैद के साथ-साथ दस हज़ार रुपये जुर्माना करने का प्रावधान रखा गया। सरकार ने सरकारी डॉक्टरों की टीमें भी बनाईं ताकि वह समयसमय पर अल्ट्रासाऊंड सैंटरों पर छापे मारें ताकि ऐसे ग़लत कार्य करने वालों को सामने लाया जा सके। चाहे इन कठोर प्रयासों के कारण टेस्ट करने तथा गर्भपात करने के केसों में कमी आई है परन्तु चोरी छुपे यह लगातार जारी है। लिंग निर्धारण के टेस्ट भी होते हैं तथा गर्भपात भी होते हैं। यही कारण है कि देश में लिंग अनुपात में कोई बहुत सकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला है।

कन्या भ्रूण हत्या के कारण (Causes of Female Foeticide)-जब माता के गर्भ में लिंग निर्धारण करके कन्या भ्रूण को खत्म कर दिया जाता है तो उसे कन्या भ्रूण हत्या का नाम दिया जाता है। यह एक प्रकार की सामाजिक समस्या है जो काफ़ी समय से चली आ रही है। इसके पीछे कोई एक या दो कारण नहीं हैं बल्कि बहुत-से कारण हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. परम्परागत समाज (Traditional Society) कन्या भ्रूण हत्या जैसी समस्या परम्परागत समाजों में अधिक होती है। अगर किसी विकसित देश जैसे कि अमेरिका जापान की परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, चीन, पाकिस्तान से तुलना करें तो हम देखेंगे कि लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़के की इच्छा होती है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद लड़का चिता को आग दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है क्योंकि लोग लड़कियों के ऊपर लड़कों को अधिक महत्त्व देते हैं।

2. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a male child)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर में लड़का हो जो वंश को आगे बढ़ा सके तथा मृत्यु के बाद उनकी चिता को आग दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती हैं क्योंकि लड़की के बड़ा होने के बाद उसके विवाह के समय काफ़ी दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते रहना ही पड़ता है। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके लिए प्रयास भी करते हैं। वह गर्भपात अर्थात् कन्या भ्रूण हत्या करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को बढ़ावा देती है।

3. प्रौद्योगिक विकास (Technological Advances)-प्राचीन समय में लोगों के पास प्रौद्योगिकी की सुविधा उपलब्ध नहीं थी जिस कारण वह लिंग निर्धारण का टैस्ट नहीं करवा सकते थे। उन्हें बच्चे के जन्म तक इन्तज़ार करना ही पड़ता था लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की पैदा होती थी तो उसे जन्म के समय ही मार दिया जाता था। परन्तु समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकी विकसित हुई जिससे लिंग निर्धारण करना आसान हो गया। अल्ट्रासाऊंड जैसी मशीनें आ गईं जिससे माँ के गर्भ में तीन-चार माह के बाद ही पता चल जाता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है अथवा लड़की। इसके साथ ही हज़ारों क्लीनिक तथा नर्सिंग होम सामने आ गए जहाँ गर्भपात होते हैं। वे थोड़े से पैसों के लिए कन्या भ्रूण की माँ के गर्भ में ही हत्या कर देते हैं। नए-नए औज़ार सामने आ गए हैं जिनसे गर्भपात करने का कार्य काफ़ी आसान हो गया है। इस प्रकार प्रौद्योगिक विकास भी कन्या भ्रूण हत्या के लिए काफी हद तक उत्तरदायी है।

4. दहेज (Dowry)-दहेज वह सामान होता है जो लड़की के विवाह के समय उसके माता-पिता, रिश्तेदार इत्यादि उसे देते हैं। प्राचीन समय में लड़की के माता-पिता जो कुछ भी उसे प्यार से देते थे, लड़के वाले उसे विनम्रता से स्वीकार कर लेते थे, परन्तु समय के साथ-साथ इस प्रथा में भी कुरीतियां आ गईं। लड़के वाले अपनी इच्छा से दहेज मांगने लग गए तथा कई प्रकार की मांगें रखने लग गए। कई बार तो लड़की वाले इन मांगों को पूर्ण कर देते हैं, परन्तु बहुत बार वे मांगों को पूर्ण नहीं कर पाते हैं। ऐसी स्थिति में ससुराल वाले लड़की को तंग करते हैं, मारते-पीटते हैं तथा कई केसों में तो मार भी देते हैं। ऐसी स्थिति से डरकर तथा दहेज देने से डर कर लोग यह चाहते हैं कि लड़की हो ही न बल्कि लड़का हो। इस स्थिति में वह कन्या भ्रूण हत्या से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार दहेज प्रथा भी कई बार कन्या भ्रूण हत्या के लिए उत्तरदायी है।

5. मृत्यु के बाद के संस्कार (Rituals After Death)-हमारे समाज में बहुत-से धर्मों के लोग रहते हैं तथा इन धर्मों में से अधिकतर धर्मों में व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसे जलाने की प्रथा है। धार्मिक शास्त्र यह कहते हैं कि व्यक्ति की मृत्यु के बाद उसकी चिता को अग्नि उसका बेटा देगा। अगर बेटा चिता को अग्नि नहीं देगा तो उस मरे हुए व्यक्ति को मुक्ति नहीं मिलेगी तथा उसकी आत्मा भटकती ही रहेगी। इसके साथ ही मृत्यु के पश्चात् उसके रिश्तेदारों को बहुतसे संस्कार पूर्ण करने पड़ते हैं जैसे कि श्राद्ध, सालाना इत्यादि। इन सभी संस्कारों को पूर्ण करने के लिए धर्म शास्त्रों के अनुसार पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही लोग पुत्रों को अधिक प्राथमिकता देते हैं तथा पुत्र प्राप्त करने के लिए वह माता के गर्भ में ही लड़की को खत्म करवा देते हैं। इस प्रकार संस्कार पूर्ण करने के लिए भी कन्या भ्रूण हत्या को प्रोत्साहन मिलता है।

6. सामाजिक सुरक्षा (Social Protection)-भारतीय समाज एक विकासशील समाज है। यहां चाहे लोगों ने नई तकनीक अपना ली हैं परन्तु उन्होंने नए-नए विचारों को ग्रहण नहीं किया है। उनके विचार वहीं पुराने हैं तथा इन पुराने विचारों के अनुसार बुढ़ापे में पुत्र ही माता-पिता का रखवाला होता है। वह ही माता-पिता की अन्तिम समय तक देखभाल करता है तथा उनकी मृत्यु के पश्चात् वह ही सभी कर्मकाण्ड पूर्ण करता है। अगर व्यक्ति की केवल लड़कियां हों तो वह तो विवाह के पश्चात् अपने ससुराल चली जाएंगी। फिर बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल कौन करेगा तथा मृत्यु के पश्चात् वाले संस्कार कौन पूर्ण करेगा। लोगों को लगता है कि पुत्र के होने से उन्हें सामाजिक सुरक्षा हासिल हो जाएगी। चाहे आजकल के समय में पुत्र दूर-दूर के शहरों में नौकरी करते हैं तथा माता-पिता की मुश्किल के समय उनके साथ नहीं होते परन्तु फिर भी लोगों को पुत्र की इच्छा होती है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या जैसा ग़लत कार्य भी कर देते हैं।

7. पितृसत्तात्मक समाज (Patriarchal Society) हमारा समाज मुख्यतः पितृ प्रधान समाज है जहाँ घर में पिता की सत्ता ही चलती है। वह ही घर का सारा ध्यान रखता है तथा घर के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है। इस प्रकार के समाजों में स्त्रियों की स्थिति काफ़ी निम्न होती है तथा सभी कुछ पुरुषों की इच्छा से ही चलता है। इस प्रकार के समाज में अगर स्त्री चाहे भी तो भी कुछ नहीं कर सकती है। पुरुष भी यही चाहते हैं कि घर में बेटा ही हो तथा इस कारण ही वे मादा भ्रूण हत्या करने से भी पीछे नहीं हटते। स्त्रियों को भी पुरुषों की इच्छानुसार ही चलना पड़ता है तथा इस प्रकार का ग़लत कार्य करने के लिए बाध्य होना पड़ता है।

8. स्त्रियों की सहायता (Help by Females)-अगर हम ध्यान से देखें तो कन्या भ्रूण हत्या को आगे बढ़ाने में स्त्रियां भी कम दोषी नहीं हैं। घर की बड़ी बुजुर्ग बेटा होने पर जोर देती है तथा गर्भ में ही कन्या भ्रूण हत्या के लिए दबाव डालती हैं। वह कहती है कि वंश चलाने के लिए पुत्र की आवश्यकता है पुत्री की नहीं। वह इस कार्य के लिए व्यक्ति को प्रोत्साहित करती है। वह यह भूल जाती है कि वह स्वयं भी स्त्री है तथा वह स्वयं ही लड़की को संसार में आने से रोक रही है। बहुत-सी दाईयां, नर्से, डॉक्टर इत्यादि केवल पैसे के लिए इस कार्य में सहायता करते हैं। अगर स्त्रियां अपना यह व्यवहार छोड़ दें तो यह समस्या कम हो सकती है। इस प्रकार स्त्रियों की सहायता भी इस कार्य के लिए उत्तरदायी है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

9. समाज में स्त्रियों की स्थिति (Status of Women in Society) हमारा समाज पितृ प्रधान समाज है जहां स्त्रियों की स्थिति प्राचीन काल से ही निम्न रही थी। शुरू से ही स्त्रियों को पुरुषों की गुलाम समझा जाता था। उनका अपना कोई अस्तित्व नहीं होता था। चाहे आजकल स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं, नौकरी कर रही हैं, अपने व्यापार चला रही हैं परन्तु फिर भी उनकी सामाजिक स्थिति पुरुषों से निम्न ही रहती है। उन्हें न चाहते हुए भी पुरुषों का निर्णय मानना ही पड़ता है तथा कन्या भ्रूण हत्या के लिए बाध्य होना ही पड़ता है।

10. धार्मिक संस्कार (Religious Ceremonies) हमारे समाज में धर्म को काफ़ी अधिक महत्त्व दिया जाता है तथा धार्मिक संस्कार पूर्ण करने को भी काफ़ी महत्त्व दिया जाता है। वैसे भी व्यक्ति को अपने जीवन में कई प्रकार के ऋण उतारने पड़ते हैं जैसे कि देव ऋण, ऋषि ऋण, पितृ ऋण इत्यादि। इसके साथ ही उसे अपने जीवन में कई प्रकार के यज्ञ करने आवश्यक होते हैं। धार्मिक ग्रन्थों में लिखा है कि व्यक्ति के ऋण उसका पुत्र उतारेगा तथा यज्ञ भी पुत्र ही करेगा पुत्री नहीं। अगर पुत्र होगा ही नहीं तो उसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति कौन दिलाएगा। इन सभी धार्मिक संस्कारों के लिए पुत्र का होना आवश्यक है। इस कारण ही वे कन्या भ्रूण हत्या भी कर देते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।

2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।

3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।

4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।

8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

प्रश्न 5.
आप कन्या भ्रूण हत्या से क्या समझते हैं ? इस समस्या के हल के विभिन्न कदमों की चर्चा करें।
उत्तर-
कन्या भ्रूण हत्या का अर्थ :

कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम (Consequences of Female Foeticide) कन्या भ्रूण हत्या की समस्या के कारण हमारे समाज में कई प्रकार के गम्भीर परिणाम सामने आ रहे हैं जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. कम होता लिंग अनुपात (Declining Sex Ratio)-अगर हम पिछले 100 वर्षों के रिकार्ड पर दृष्टि डालें तो हमें पता चलता है कि 1901-2011 के 100 वर्षों में आम लिंग अनुपात में काफ़ी कमी आई है। चाहे 1971-1981 तथा 1991-2001 के दशकों में स्त्रियों की संख्या बढ़ी है परन्तु बाकी सभी दशकों में स्त्रियों की संख्या में कमी आई है। अगर हम 1901 से 2011 के दशकों की तुलना करें स्त्रियों की संख्या या लिंग अनुपात काफ़ी कम हुआ है। देश में केवल केरल ही एक ऐसा राज्य है जहां यह अनुपात स्त्रियों के अनुकूल है। सन् 2011 में केरल में 1000 पुरुषों के पीछे 1084 स्त्रियां थीं। पांडिचेरी में यह अनुपात 1000 : 1038 था परन्तु हरियाणा में यह 1000 : 877, चंडीगढ़ में 1000 : 818 तथा पंजाब में 1000 : 895 था। इस प्रकार हम देख सकते हैं कि कन्या भ्रूण हत्या के कारण कम होता लिंग अनुपात चिंता का विषय बना हुआ है।

2. समाज में असन्तुलन (Imbalance in Society) किसी भी स्थान पर सन्तुलन उस समय कायम रहता है जब दो चीजें समान हों। अगर दोनों चीज़ों में से एक भी कम या अधिक हो तो असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। यह सिद्धान्त यहां पर भी लागू होता है कि अगर समाज में पुरुषों की संख्या बढ़ गई तथा स्त्रियों की संख्या कम हो गई तो समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा। इस असन्तुलन से समाज में कई प्रकार की समस्याएं जैसे कि स्त्रियों के विरुद्ध अत्याचार इत्यादि बढ़ जाएंगी तथा समाज के विघटित होने का खतरा बढ़ जाएगा। इस प्रकार कन्या भ्रूण हत्या से समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाएगा।

3. स्त्रियों से हिंसा (Violence against women)-कन्या भ्रूण हत्या से देश में लिंग अनुपात कम हो जाता है जिस कारण स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नयी जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर गाड़ियों, बसों में छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्होंने पुत्र को नहीं बल्कि पुत्री को जन्म दिया है। लिंग संबंधी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाते हैं तथा स्त्रियों को इनका शिकार होना पड़ता है।

4. बहुपति विवाह (Polyandry)-कन्या भ्रूण हत्या से लिंग अनुपात कम हो जाता है जिससे समाज में असन्तुलन उत्पन्न हो जाता है। स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है तथा बहुपति विवाह को प्रोत्साहन मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से कम हो जाती है तथा एक स्त्री को दो या दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इसका स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता की कमी हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

5. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर किसी स्त्री को बेटा पैदा नहीं होता केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसके बाद उसे पुत्र न पैदा करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण ही स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

6. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad Impact on Health)-अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण करने के कुछ समय के पश्चात् लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। इसका उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

7. स्त्रियों का व्यापार (Trade of Women)-लिंग अनुपात कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीद-फरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। स्त्री को विवाह के लिए तथा अपनी वासना को शान्त करने के लिए खरीदा जाता है। स्त्री को तो केवल एक वस्तु ही समझा जाता है।

8. लड़कों का कुँवारे रह जाना (Boys become Unmarried)-अगर समाज में लड़कियां कम हों तथा लड़के बढ़ जाएं तो इसका सबसे ग़लत परिणाम यह निकलता है कि बहुत-से लड़के कुँवारे रह जाते हैं। वह कुँवारे लड़के अपनी जैविक इच्छाओं की पूर्ति के लिए ग़लत कार्य करने को बाध्य हो जाते हैं तथा अपहरण, बलात्कार इत्यादि जैसी घटनाएं हमारे सामने आती हैं।

समस्या के हल के विभिन्न कदम :

  • भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन 312-316 के अनुसार गर्भपात करवाना गैर-कानूनी है। अगर कोई जबरदस्ती गर्भपात करवाता है तो उसके लिए सज़ा का प्रावधान भी है।
  • The Medical Termination of Pregnancy Act 1971 के अनुसार कानून को थोड़ा नर्म किया गया तथा मैडीकल आधार पर, मानवता या किसी अन्य आधार पर गर्भपात की आज्ञा दी गई।
  • कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य आधार बच्चे का लिंग निर्धारण है। इसलिए Pre-Natal Diagnostic Techniques (Regulation and Prevention of Misuse) Act, 1994 पास किया गया तथा लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। अगर कोई अल्ट्रा साऊंड सैटर लिंग निर्धारण करेगा तो उसे बंद करने तथा सजा का भी प्रावधान रखा गया।

प्रश्न 6.
घरेलू हिंसा पर विस्तार सहित टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा क्या है ?
उत्तर-
20वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में पारिवारिक हिंसा की तरफ समाजशास्त्रीय आकर्षित हुए हैं। भारतीय समाज में पारिवारिक हिंसा की धारणा कोई नई धारणा नहीं है। यह तो सदियों पुरानी धारणा है जिसकी तरफ समाजशास्त्रियों का ध्यान अब गया है। ऐसा नहीं है कि प्राचीन समाजों में पारिवारिक हिंसा नहीं होती थी। पारिवारिक हिंसा तो प्रत्येक प्रकार के समाज में मौजूद रही है। इसके साथ हिंसक घटनाएं यहां तक कि मौतें भी होती रही हैं। परन्तु इस संकल्प के बारे में हमारे पास काफ़ी कम जानकारी इसलिए है क्योंकि घरेलू हिंसा के आंकड़े हमारे पास बहुत ही कम हैं तथा इसके बारे में बहुत ही कम अनुसन्धान हुए हैं। इन अनुसन्धानों से कोई भी निष्कर्ष निकालने भी बहुत मुश्किल हैं क्योंकि पारिवारिक हिंसा के बारे में लोग साधारणतया जानकारी देना पसन्द नहीं करते। इस प्रकार पारिवारिक हिंसा के बारे में हमारे पास बहुत कम जानकारी है। इसका एक और कारण यह भी है कि भारत में परिवार से सम्बन्धित जितने भी अनुसन्धान हुए हैं, वह संयुक्त परिवार की संरचना या ढांचे या फिर केन्द्रीय परिवार की संरचना और ढांचे के सम्बन्ध में हुए हैं। पारिवारिक हिंसा की तरफ किसी ने भी ध्यान नहीं दिया है।

इसका एक और कारण यह भी है कि लोग यह सोचते हैं कि घरेलू हिंसा के बारे में किसी अजनबी को बताने से परिवार टूट जाएगा या फिर परिवार में टकराव बढ़ जाएगा। इस कारण लोग पारिवारिक हिंसा के बारे में किसी को कुछ नहीं बताते हैं। पारिवारिक हिंसा के बारे में अनुसन्धान इस कारण भी कम हुए हैं क्योंकि परिवार के जिस वर्ग पर हिंसा हो रही होती है उसका समाज में अभी भी महत्त्व काफ़ी कम है तथा वह वर्ग है स्त्रियां तथा बच्चे। चाहे जितना मर्जी हमारा शहरी समाज आगे बढ़ रहा है परन्तु ग्रामीण समाज अभी भी वहीं पर खड़ा है जहां पर आज से 50 साल पहले था। स्त्रियों तथा बच्चों को अभी भी समाज में वह स्थान प्राप्त नहीं है जोकि होना चाहिए। यहां तक कि समाज भी इसे समस्या नहीं मानता है। समाज इस समस्या के अस्तित्व से ही इन्कार करता है तथा कहता है कि यह तो समस्या ही नहीं है। पारिवारिक हिंसा को केवल व्यक्तिगत मनोरोग का लक्षण माना जाता है। बहुत-से इतिहासकार भी इसको समस्या नहीं मानते क्योंकि उनके अनुसार पारिवारिक हिंसा परिवार का एक व्यक्तिगत मामला है। इसलिए इसको परिवार अथवा घर के लिए छोड़ देना चाहिए।

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यह ठीक है कि स्वतन्त्रता के पश्चात् पारिवारिक हिंसा को रोकने के लिए कम-से-कम सरकार ने कुछ कानूनों का निर्माण किया है ताकि परिवार में प्यार, सहयोग, हमदर्दी तथा आपसी समझ को बढ़ाया जा सके। बच्चों तथा स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा करने वाले के विरुद्ध हमारे कानूनों में कठोर सज़ा का प्रावधान है। परन्तु यह विषय समाजशास्त्र के लिए एक महत्त्वपूर्ण विषय है क्योंकि समाजशास्त्र ने तो परिवार अथवा पारिवारिक जीवन के अच्छे और सकारात्मक पक्ष को ही पेश किया है परन्तु उसने पारिवारिक हिंसा के नकारात्मक पक्ष को पेश नहीं किया है।

यदि किसी भी सामाजिक प्रणाली का निर्माण होता है तो वह जोड़ने तथा तोड़ने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम होता है। इस प्रकार पारिवारिक जीवन में भी नकारात्मक तथा सकारात्मक पहलुओं का मिश्रण होता है। पारिवारिक जीवन के दो व्यक्तियों के अनुभव अलग-अलग भी हो सकते हैं तथा साधारणतया होते भी हैं। जिस व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में कोई समस्या नहीं होती उसका पारिवारिक जीवन खुशियों से भरपूर होता है। परन्तु जिस व्यक्ति के पारिवारिक जीवन में समस्याएं होती हैं उसके पारिवारिक जीवन में काफ़ी दुःख होते हैं। घरेलू जीवन में परिवार के सदस्यों में नज़दीकी होती है तथा यह नज़दीकी आपसी निर्भरता के कारण भी होती है। इस निर्भरता के कारण ही सदस्यों के विचारों में विरोध तथा विलक्षणता पैदा होती है। इस विलक्षणता के कारण आपसी टकराव भी पैदा होता है। एक लेखक के अनुसार जिन परिवारों में टकराव अधिक होते हैं तथा टकराव को दूर करने के लिए अधिक तर्क प्रयोग किए जाते हैं उन परिवारों में हिंसा भी अधिक होती है। परिवार में हमेशा एक जैसी स्थिति नहीं होती है। पारिवारिक जीवन हमेशा खुशियों तथा दुःखों में लटकता रहता है। पारिवारिक जीवन में आम राय तथा टकराव चलते रहते हैं। इस टकराव के कारण कई बार हिंसा भी हो जाती है तथा कई बार इस हिंसा के कारण मृत्यु भी हो जाती है.।

हमारे देश में पारिवारिक हिंसा के बहुत ही कम आंकड़े मौजूद हैं। साधारणतया अनुसन्धानकर्ता घर में होने वाली शारीरिक हिंसा की तरफ ही ध्यान देते हैं। वह मानसिक हिंसा की तरफ तो देखते ही नहीं हैं। मानसिक हिंसा अधिक खतरनाक होती है क्योंकि इसका प्रभाव तमाम उम्र रहता है। परन्तु फिर भी पारिवारिक हिंसा की व्याख्या सही ढंग से नहीं की गई है। इस कारण इसके प्रति हमारा ज्ञान काफ़ी सीमित है।

पारिवारिक हिंसा की परिभाषाएं (Definitions of Domestic Violence)–

पारिवारिक हिंसा एक जटिल धारणा है। इसको परिभाषित करना काफी मुश्किल है क्योंकि हिंसा एक विस्तृत शब्द है जिसमें गाली-गलौच से लेकर चांटा तथा कत्ल तक के संकल्प शामिल हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त हिंसा तथा धक्के के अर्थ एक जैसे ही लिए जाते हैं। हिंसा साधारणतया एक शारीरिक कार्यवाही है जबकि धक्का घृणा से भरपूर क्रिया है जिसमें दूसरे व्यक्ति को नुकसान पहुंचाया जाता है। यह नुकसान न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक भी हो सकता है। पारिवारिक हिंसा के बारे में हुए अनुसन्धानों से हमें यह पता चला है कि हम जायज़ तथा नाजायज़ कार्यवाही को अलग नहीं कर सकते क्योंकि हिंसा का शिकार होने वाले लोग इन नाजायज़ कार्यों को स्वीकार करके जायज़ बना देते हैं।

जैलज़ (Gelles) के अनुसार, “धक्का मारना, चांटा मारना, मुक्का मारना, चाकू मारना, गोली मारना तथा परिवार के एक सदस्य की तरफ से दूसरे की तरफ चीजें फेंकना जैसी रोज़, बेरोज़ की एक प्रकार की बार-बार की जाने वाली हिंसा पारिवारिक हिंसा है।” पेजलो (Pagelow) के अनुसार, “परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली अथवा नज़रअन्दाज़ करने की कोई ऐसी कार्यवाही है तथा ऐसी कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली कोई भी ऐसी स्थिति है जो परिवार के बाकी सदस्यों को समान अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित करती है या उनके सम्पूर्ण विकास तथा चुनाव की स्वतन्त्रता में विघ्न डालती है।”

इस प्रकार पारिवारिक हिंसा शारीरिक हमले तक ही सीमित नहीं होती बल्कि मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने से लेकर स्वतन्त्रता छीनने तक फैली होती है। यह पारिवारिक रिश्तों में बार-बार होती है। पारिवारिक हिंसा का दायरा परिवार में गाली-गलौच से लेकर बल के प्रयोग तक फैला हुआ है। इसमें पति-पत्नी, बहन-भाई, चाचे-ताये, दादा-पोत्र इत्यादि का टकराव शामिल है। इस प्रकार पारिवारिक हिंसा ऐसी कार्यवाही है जिसमें परिवार का कोई सदस्य परिवार के दूसरे सदस्य को चोट पहुंचाने के इरादे से करे अथवा उसका इस तरह करने का इरादा हो। चाहे हमारे समाजों में हिंसा आमतौर पर होती रहती है तथा हिंसा अपने आप में कोई विशेष चीज़ नहीं है परन्तु जब हिंसा को परिवार के सदस्यों के विरुद्ध प्रयोग किया जाता है तो इसका विश्लेषण तथा व्याख्या आवश्यक हो जाते हैं। पारिवारिक हिंसा के बहुत से प्रकार हो सकते हैं जैसे पति अथवा पत्नी का एक-दूसरे से दुर्व्यवहार, वैवाहिक बलात्कार, भाई का बहन-से या पिता का पुत्री से बलात्कार, बहन-भाई में हिंसा, पिता-पुत्र में झगड़ा, देवरानी-जेठानी में झगड़ा, सास तथा पुत्र-वधु में हिंसा, सास द्वारा पुत्रवधु को मारना, ननद द्वारा भाभी से हिंसा इत्यादि। यह बात साधारणतया मानी जाती है कि यदि हिंसा अथवा हमला किसी और स्थिति में होता है तो ऐसे हमले को गम्भीर माना जाता है। परन्तु यदि वह हिंसा पारिवारिक स्तर पर हो तो उसको पारिवारिक गड़बड़ (Family problem) अथवा छोटा मोटा अपराध मान लिया जाता है।

प्रश्न 7.
घरेलू हिंसा के कारणों की विस्तार सहित टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा के क्या कारण हैं? चर्चा करें।
उत्तर–
पारिवारिक हिंसा केवल एक कारण के कारण नहीं होती बल्कि कई कारणों के कारण होती है जिनका वर्णन निम्नलिखित है_-

1. सामाजिक परिवर्तन (Social Change)-परिवर्तन प्रकृति का नियम है तथा परिवार और समाज भी इस अछूते नहीं हैं। परिवार, घर तथा समाज में भी भौगोलिक तथा सांस्कृतिक प्रभावों के कारण परिवर्तन आते रहते हैं। शहरीकरण, औद्योगिकीकरण, नई तथा औपचारिक शिक्षा व्यवस्था, यातायात तथा संचार के साधनों ने प्राचीन प्रकार के रिश्तों में बहुत बड़ा परिवर्तन ला दिया है। व्यक्ति को कार्य प्राप्त करने के नए मौके प्राप्त हुए जिस कारण परिवार के सदस्य रिश्तों के पुराने जाल को छोड़ने के लिए बाध्य हुए। नई पीढ़ी ने संयुक्त परिवारों के स्थान पर केन्द्रीय परिवारों को महत्त्व दिया जो एक जगह से दूसरी जगह पर जा सकें। अकेले रहने के कारण उन पर किसी प्रकार के बुजुर्ग का नियन्त्रण न रहा। दफ़्तर की परेशानियां, घर चलाने की परेशानियां जब व्यक्ति से सहन नहीं होती हैं तो वह अपना गुस्सा अपने परिवार में पत्नी तथा बच्चों पर निकालता है जिस कारण पारिवारिक हिंसा बढ़ती है।

2. मद्यपान (Alcoholism)—साधारणतया यह देखने में आया है कि व्यक्ति अपनी परेशानियों को दूर करने के लिए अथवा मौज-मस्ती के लिए शराब पीते हैं। वह जब बाहर से मद्यपान करके घर पहुंचते हैं तो उसकी पत्नी, बच्चे, माता-पिता, बहन-भाई उसको शराब न पीने के लिए कहते हैं तथा उसको मद्यपान की हानियों के बारे में बताते हैं। कई बार तो व्यक्ति चुप करके उनकी बात सुन लेता है। परन्तु कई बार परेशानी के कारण वह गुस्से में आ जाता है तथा घर के सदस्यों पर हाथ उठा देता है। गालियां निकालता है तथा यहां तक कि मारपीट भी करता है। उसको लगता है कि उसके घर वाले उसकी परेशानी और बढ़ा रहे हैं। इस प्रकार मद्यपान करने के बाद उसे होश ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। उसका दिमाग बुरी तरह नशे में चूर होता है तथा उसको इस बात का ध्यान ही नहीं होता कि वह क्या कर रहा है। इस प्रकार मद्यपान से भी पारिवारिक हिंसा बढ़ती है।

3. बचपन का दुर्व्यवहार (Misbehaviour of Childhood)-कई विद्वान् यह कहते हैं कि कई व्यक्तियों से बचपन में उनके माता-पिता ने काफ़ी दुर्व्यवहार किया होता है। उनका सारा बचपन दुर्व्यवहार, माता-पिता की डांट, बिना प्यार के ही व्यतीत होता है। कई व्यक्तियों का स्वभाव इस कारण ही बेरुखा हो जाता है तथा बालिग होने पर वह अपने माता-पिता, पत्नी तथा बच्चों से दुर्व्यवहार करते हैं। कई व्यक्ति तो अपने बचपन की बातें अपने दिल में पालकर रखते हैं तथा बड़े होने पर अपने माता-पिता तथा बच्चों से दुर्व्यवहार (शारीरिक तथा मानसिक) करते हैं। इस प्रकार व्यक्ति का बचपन भी कई बार घरेलू हिंसा के लिए उत्तरदायी होता है।

4. मादक द्रव्यों का व्यसन (Drug Abuse)-आजकल बाज़ार में ऐसी दवाएं मौजूद हैं जिनके सेवन करने से व्यक्ति को नशा हो जाता है जैसे कि कैप्सूल, टीके, पीने की दवा इत्यादि। चाहे डॉक्टर उन्हें बीमारी से ठीक होने के लिए दवा देता है परन्तु कई बार व्यक्ति उनका सेवन नशे के लिए करने लग जाता है। जब व्यक्ति इनका सेवन कर लेता है तो उसको इस बात का ध्यान ही नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है। वह घर वालों से जाकर दुर्व्यवहार करता है। यहां तक कि मारता भी है। इस तरह यदि उसके पास दवा खरीदने के लिए पैसे न हों तो वह घर वालों से पैसे प्राप्त करने के लिए गाली-गलौच करता है, मार पिटाई करता है ताकि उसको नशा करने के लिए पैसे मिल जाएं। इस तरह नशे के लिए पैसे प्राप्त करने के लिए भी वह पारिवारिक हिंसा करता है।

5. व्यक्तित्व में समस्या (Problem of Personality)-कई बार व्यक्तित्व में समस्या या नुक्स भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनता है। कई व्यक्ति प्राकृतिक तौर पर ही गुस्से वाले होते हैं तथा घर में हुई छोटी-छोटी बात पर भी गुस्सा कर देते हैं। उदाहरण के तौर पर किसी परिवार में भतीजे की छोटी-सी गलती पर चाचा, ताया ही उसे पीट देते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ लोग शक्की स्वभाव के होते हैं। पत्नी के व्यवहार, बच्चों के व्यवहार, बहन के व्यवहार पर शक करके उनको पीट देते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि बच्चे, भाई, बहन, भतीजा किसी से टेलीफोन पर बात करते हैं तो वे पूछते हैं कि किससे बात कर रहे हो ? क्यों कर रहो हो इत्यादि। ठीक उत्तर न मिलने पर वे उनको पीटते हैं। इस प्रकार व्यक्तित्व का नुक्स भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनता है।

6. कम आय (Less Income)-आजकल महंगाई का समय है परन्तु प्रत्येक व्यक्ति की आय लगभग बंधी हुई होती है। घर का खर्च अधिक होता है परन्तु आय कम होती है। व्यक्ति के ऊपर हमेशा आर्थिक तंगी रहती है। इस कारण वह घर का खर्च ठीक प्रकार से नहीं चला सकता है तथा हमेशा तनाव में रहता है। पत्नी, बच्चे तथा घर के और सदस्य उससे चीज़ों की मांग करते हैं परन्तु वह दे नहीं सकता है। इस कारण वह तनाव अथवा गुस्से में आकर उन पर हाथ उठा देता है तथा हिंसा अपने आप ही हो जाती है। इस प्रकार व्यक्ति की कम आय भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनती है।

7. बेरोज़गारी (Unemployment)-कई बार बेरोज़गारी भी पारिवारिक हिंसा का कारण बनती है। कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति का व्यापार ठप्प हो जाता है, नौकरी चली जाती है या काम काफ़ी कम हो जाता है। इस स्थिति में या तो वह बेरोजगार हो जाता है या फिर अर्द्ध बेरोज़गार हो जाता है। इस समय व्यक्ति खिन्न हो जाता है या दुःखी रहने लग जाता है। वह अपनी खिन्नता अथवा गुस्सा परिवार के सदस्यों पर निकालता है जिस कारण पारिवारिक हिंसा बढ़ जाती है।

8. हिंसा करने का सामर्थ्य (Capacity to do Violence)-कई बार परिवार के सदस्य हिंसा उस समय करते हैं जब व्यक्ति के हिंसक होने की कीमत उसके परिणाम से कम देनी पड़ती है। दूसरे शब्दों में लोग अपने परिवार के बाकी सदस्यों को इसलिए मारते हैं क्योंकि वे ऐसा कर सकते हैं। मर्द साधारणतया अपनी पत्नी तथा बच्चों से ताकतवर होता है। इसलिए वह उन पर हिंसक गतिविधियों का प्रयोग करता है। आमतौर पर घर के बाहर सामाजिक नियन्त्रण को कम करने के लिए तथा निजीपन, असमानता तथा असली मनुष्य के अक्स जैसे हिंसक होने के परिणामों को बढ़ाने के लिए तीन मुख्य कारण उत्तरदायी होते हैं। समाज तथा परिवार में आमतौर पर लैंगिक आधार पर तथा आयु के आधार पर असमानता होती है। इस कारण परिवार में असमानता बढ़ जाती है। लैंगिक तौर पर शक्तिशाली लिंग तथा बड़ी आयु होने के कारण व्यक्ति हिंसा करता है तथा घरेलू हिंसा में बढ़ोत्तरी होती है।

9. हितों का टकराव (Clash of Interests)-भगवान ने प्रत्येक व्यक्ति की प्रकृति को अलग-अलग बनाया है तथा उसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के हित भी अलग-अलग होते हैं। कोई व्यक्ति अधिक पढ़ना चाहता है, कोई अधिक पैसे कमाना चाहता है। इस प्रकार परिवार के प्रत्येक सदस्य का हित अलग-अलग होता है। पिता-पुत्र, चाचा-भतीजा, बहन-भाई, चाचा-ताया, दादा-पोत्र इत्यादि प्रत्येक व्यक्ति के हित अलग-अलग होते हैं। इस कारण ही प्रत्येक के हितों का टकराव भी होता है। परिवार का प्रत्येक सदस्य चाहता है कि उसके पास पारिवारिक सम्पत्ति का अधिक-से-अधिक हिस्सा आ जाए। इस कारण उनमें विरोध तथा गतिरोध पैदा हो जाते हैं। एक ही घर में रहते हए भाई-भाई से बोलना बंद कर देता है, पिता-पुत्र में तकरार पैदा हो जाती है। यहां तक कि सम्पत्ति के कारण एक-दूसरे को मारने तक की नौबत आ जाती है। हर रोज़ समाचार-पत्रों में सम्पत्ति के कारण पारिवारिक हिंसा की खबरें पढ़ने को मिलती हैं जैसे पुत्र ने पिता को मार दिया, भाई ने भाई को मार दिया, भतीजे ने चाचा को मार दिया इत्यादि। इस प्रकार व्यक्तिगत हित भी पारिवारिक हिंसा के कारण बनते हैं।

10. पुरुष प्रधान समाज (Male Dominated Society) हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है जिस कारण स्त्रियों को परिवार तथा समाज में काफ़ी निम्न दर्जा दिया गया है। इस प्रकार स्त्रियों के ऊपर हिंसा का कारण पुरुषों की तुलना में उनकी निम्न स्थिति में से निकलता है। किसी भी पुरुष प्रधान पारिवारिक व्यवस्था में नज़दीक के सम्बन्धों में शक्ति का विभाजन पुरुष के हाथों में होता है। समाजीकरण की प्रक्रिया भी स्त्रियों को पुरुषों के अधीन बनाती है। दोनों में यह असमानता सदियों से चलती आ रही है। जितनी अधिक असमानता होगी उतनी अधिक निम्न व्यक्ति के विरुद्ध हिंसा होगी। इसके अतिरिक्त यदि निम्न व्यक्ति (स्त्री) अपने विरोधी की सत्ता को चुनौती देगा तो उस चुनौती को दबाने के लिए और हिंसा का प्रयोग किया जाएगा। ___ 11. निर्भरता (Dependency) साधारणतया परिवार में पुरुष पैसे कमाते हैं तथा बाकी सभी व्यक्ति जीवन जीने के लिए उस पर निर्भर होते हैं। इसलिए पुरुष को लगता है कि जो जीवन बाकी लोग जी रहे हैं उस पर उसका अधिकार है। इसलिए वह जैसे चाहे उनके जीवन को बदल सकता है। यदि परिवार के सदस्य (माता-पिता, पत्नी, बच्चे) उसके विचारों के अनुसार जीवन जीते हैं तो ठीक है नहीं तो हिंसा का प्रयोग करके उनको वह जीवन जीने के लिए बाध्य किया जाता है जोकि वह व्यक्ति चाहता है। इस प्रकार निर्भरता भी पारिवारिक हिंसा को बढ़ाती है।

प्रश्न 8.
घरेलू हिंसा पर नियंत्रण पर विस्तार से टिप्पणी करें।
अथवा
घरेलू हिंसा की समस्या के सुधार के समाधान के लिए उपाय बताएं।
उत्तर–
पारिवारिक हिंसा कोई नई क्रिया नहीं है। यह प्राचीन समाजों में भी होती थी। उस समय परिवार अपने यदि सदस्य को मानसिक, शारीरिक तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करता था। परन्तु अब परिवार विशेषतया संयुक्त परिवार में परिवर्तन आ रहे हैं। यह परिवर्तन परिवार के बड़े बुजुर्गों की भूमिका में हुआ है। पति-पत्नी के सम्बन्धों में तनाव पैदा हो रहा है, छोटे सदस्यों को अधिक अधिकार प्राप्त हो रहे हैं। अब बड़ों का सम्मान कम हो गया है। उनको अब लाभदायक नहीं बल्कि बेकार समझा जाता है तथा इस कारण उनसे दुर्व्यवहार के केस बढ़ रहे हैं। इस कारण ही मातापिता के बच्चों से सम्बन्ध कमज़ोर पड़ रहे हैं। बढ़ रहे तलाकों की संख्या से पता चलता है कि पति-पत्नी के सम्बन्ध कमज़ोर हो रहे हैं तथा पारिवारिक संरचना धीरे-धीरे खत्म हो रही है। संयुक्त परिवार की धारणा तो आने वाले समय में बिल्कुल ही खत्म हो जाएगी।

इस प्रकार पारिवारिक हिंसा को खत्म करने के लिए तथा हिंसा के शिकार लोगों का जीवन बचाने के लिए यह आवश्यक है कि इसको रोका जाए तथा इसका इलाज किया जाए परन्तु इसके इलाज में हम अपनी संस्कृति को नहीं बदल सकते। इसलिए इसका इलाज रोकथाम है। रोकथाम की नीतियों का मुख्य उद्देश्य पारिवारिक हिंसा को रोकना है। सबसे पहले हमें हमारी कद्रों-कीमतों, व्यवहार, प्रकृति को परिवर्तित करना आवश्यक है जिससे हमारा अन्य लोगों को देखने का दृष्टिकोण ही बदल जाएगा।

लैंगिक असमानता, आर्थिक असमानता तथा निर्भरता भी पारिवारिक हिंसा को बढ़ाती है। यदि नौकरी पेशा स्त्रियों तथा पुरुषों के बीच का अन्तर खत्म कर दिया जाए तो पारिवारिक हिंसा को काफ़ी हद तक खत्म किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बच्चों को मार से नहीं बल्कि प्यार से समझाना चाहिए। हिंसा प्रतिहिंसा को जन्म देती है। जो व्यवस्था हिंसा से स्थापित की जाएगी उसका अन्त भी हिंसा से ही होगा। यदि हम बच्चे को मार से समझाएंगे तो इससे उसके शरीर पर नहीं बल्कि मन पर असर पड़ेगा। वह उस मार को भूलेगा नहीं तथा समय आने पर माता-पिता को वही रूप दिखाएगा जो माता-पिता ने उसे दिखाया था। यदि हम बच्चों को प्यार से शिक्षा देंगे तो शायद यह पारिवारिक हिंसा को खत्म करने की तरफ एक महत्त्वपूर्ण कदम होगा क्योंकि प्यार से ही प्यार का जन्म होता है।

प्रश्न 9.
पत्नी की मारपीट (प्रताड़ना) से क्या अभिप्राय है ? इसके रोकने के लिए क्या उपाय हैं ?
उत्तर-
पत्नी की मारपीट केवल हमारे देश में ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व में चल रही एक बहुत बड़ी समस्या है। वास्तव में हमारे समाज पुरुष प्रधान समाज हैं तथा ऐसे समाजों की सबसे बड़ी कमी है कि यहां पत्नी के साथ मारपीट होती है। पत्नी को मारपीट का अर्थ है पत्नी की तरफ से पत्नी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना। वास्तव में पति समझते हैं कि उनकी पत्नी उनकी गुलाम है तथा वे जो भी कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा।

हमारा समाज पुरुष प्रधान समाज है तथा पुरुष यह सोचते हैं कि उनका अपनी पत्नी पर पूर्ण अधिकार है। वह पत्नी के साथ जैसा चाहे व्यवहार कर सकता है। पुरुष साधारणतया स्त्री से शक्तिशाली होते हैं जिस कारण भी वे पत्नी के विरुद्ध हिंसक हो जाते हैं। समाज तथा परिवार में लिंग के आधार पर असमानता होती है जिस कारण परिवार में असमानता बढ़ जाती है तथा लैंगिक तौर पर ताकतवर लिंग हिंसा करता है तथा पत्नी को पीटता है।

अब समय बदल रहा है तथा स्त्रियां पढ़-लिख रही हैं। वे नौकरियां कर रही हैं, व्यापार कर रही हैं तथा अपने पति के कार्य में साथ देती हैं। वे पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चलती हैं। इस कारण वे पुरुषों के समान सामाजिक स्थिति की माँग करती हैं। परन्तु पुरुष प्रधान मानसिकता होने के कारण पुरुष इसके लिए तैयार नहीं होते तथा दोनों में अंतर आना शुरू हो जाता है। छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई होती है तथा बात हाथापाई तक पहुँच जाती है। पुरुष शक्तिशाली होने के कारण पत्नी की पिटाई कर देते हैं जिसे पत्नी की मारपीट कहा जाता है।

पत्नी की मारपीट आजकल हमारे समाज में एक बड़ी समस्या बन कर उभर रही है। पति का शराब पीना, पत्नी पर शक करना, पत्नी का आर्थिक तौर पर निर्भर होना, पतियों की ग़लत हरकतों को नज़र-अंदाज न करना इत्यादि ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से दोनों के बीच गलतफ़हमी हो जाती है तथा पति-पत्नी पर हाथ उठा देते हैं। इन बातों को आजकल की पढ़ी-लिखी स्त्री बर्दाश्त नहीं करती जिस कारण बात तलाक तक पहुँच जाती है। पति के हाथों पिटाई खाकर जीवन जीने से वह तलाक लेकर अलग रहना पसंद करती हैं।

रोकने के उपाय :-

  1. इस समस्या का समाधान उस समय तक नहीं हो सकता जब तक लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलते। अब वह समय नहीं रहा कि पति अपनी पत्नी को गुलाम समझें। अब पढ़ी-लिखी तथा आर्थिक तौर पर आत्म निर्भर पत्नी समान अधिकारों की माँग करती है तथा न मिलने की स्थिति में तलाक लेकर रहना पसंद करती हैं। अब वह पिटाई बर्दाश्त नहीं करती तथा अलग हो जाती हैं। इसलिए सबसे पहले यह आवश्यक है कि लोग अपनी मानसिकता बदलें तथा स्त्रियों को समान अधिकार दें।
  2. सरकार ने स्त्रियों के लिए कई कानून बनाए हुए हैं परन्तु वह कानून ठीक ढंग से लागू नहीं हुए हैं। अगर हम इस समस्या को खत्म करना चाहते हैं तो इन कानूनों को कठोरता से लागू करना पड़ेगा तथा पत्नी से मारपीट करने वालों को कठोर सज़ा दी जाए ताकि यह लोगों के लिए मिसाल बन सके।
  3. स्वयं सेवी संस्थाएं इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस मुद्दे को लेकर नुक्कड़ नाटक करवाए जा सकते हैं, सैमीनार करवाए जा सकते हैं ताकि लोगों को वह कार्य न करने के लिए प्रेरित किया जा सके।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न : (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या क्यों की जाती है ?
(क) लड़का प्राप्त करने की इच्छा
(ख). दहेज बचाने के लिए
(ग) खानदान आगे बढ़ाने के लिए
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।।

प्रश्न 2.
गर्भधारण के कितने हफ्ते बाद लिंग निर्धारण परीक्षण करवाया जाता है ?
(क) 10 हफ्ते
(ख) 14 हफ्ते
(ग) 18 हफ्ते
(घ) 22 हफ्ते।
उत्तर-
(ग) 18 हफ्ते।

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प्रश्न 3.
भारत का लिंग अनुपात कितना है ?
(क) 1000 : 943
(ख) 1000 : 956
(ग) 1000 : 896
(घ) 1000 : 933.
उत्तर-
(क) 1000 : 943.

प्रश्न 4.
2011 की जनगणना के अनुसार पंजाब का लिंग अनुपात कितना था ?
(क) 1000 : 846
(ख) 1000 : 895
(ग) 1000 : 876
(घ) 1000 : 882.
उत्तर-
(ख) 1000 : 895.

प्रश्न 5.
पंजाब के किस जिले का लिंग अनुपात सबसे अधिक है ?
(क) लुधियाना
(ख) पटियाला
(ग) अमृतसर
(घ) होशियारपुर।
उत्तर-
(घ) होशियारपुर।

प्रश्न 6.
पंजाब के किस जिले का लिंग अनुपात सबसे कम है ?
(क) पटियाला
(ख) बठिण्डा
(ग) अमृतसर
(घ) लुधियाना।
उत्तर-
(ख) बठिण्डा।

प्रश्न 7.
Pre-Natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) अधिनियम कब पास हुआ था ?
(क) 1994
(ख) 1995
(ग) 1996
(घ) 1997.
उत्तर-
(क) 1994.

प्रश्न 8.
लिंग अनुपात से भाव है :
(क) 1000 स्त्रियों के पीछे पुरुषों की संख्या
(ख) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या
(ग) 100 स्त्रियों के पीछे पुरुषों की संख्या
(घ) उपर्युक्त से कोई नहीं।
उत्तर-
(ख) 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. कन्या भ्रूण हत्या में लड़की को माँ की में ही मार दिया जाता है।
2. ……………….. प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या का सबसे बड़ा कारण है।
3. कन्या भ्रूण हत्या से …………………… बिगड़ जाता है।
4. भारतीय दण्ड संहिता के सैक्शन ………………… से ……………… गर्भपात करना गैर-कानूनी है।
5. …………………… में घर के सदस्यों से मारपीट की जाती है।
उत्तर-

  1. कोख
  2. लड़का
  3. लिंग अनुपात
  4. 316, 320
  5. घरेलू हिंसा।

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C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. भारत में पंजाब का लिंग अनुपात सबसे अधिक है।
2. पंजाब के बठिण्डा जिले का लिंग अनुपात सबसे कम है।
3. बच्चे का जन्म से पहले लिंग निर्धारण करना गैर-कानूनी है।
4. स्त्रियों के विरुद्ध सबसे अधिक घरेलू हिंसा होती है।
5. स्त्रियों के विरुद्ध मानसिक हिंसा नहीं होती है।
उत्तर-

  1. सही
  2. ग़लत
  3. सही
  4. सही
  5. ग़लत।

II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. स्त्रियों के विरुद्ध अपराध का क्या अर्थ है ?
उत्तर- इसका अर्थ है कि स्त्रियों पर शारीरिक व मानसिक अत्याचार।

प्रश्न 2. स्त्रियों के विरुद्ध अपराध की कुछ उदाहरण दें।
उत्तर-बलात्कार, यौन अपराध, अपहरण, मारना-पीटना, वेश्यावृत्ति इत्यादि।

प्रश्न 3. कन्या भ्रूण हत्या का क्या अर्थ है ?
उत्तर- बच्चे का लिंग पता करके लड़की को माँ की कोख में ही मार देना कन्या भ्रूण हत्या होता है।

प्रश्न 4. गर्भधारण के कितने हफ्ते बाद गर्भपात करवा दिया जाता है ?
उत्तर-18 हफ्ते बाद।

प्रश्न 5. लिंग अनुपात का क्या अर्थ है ?
उत्तर-किसी क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या।

प्रश्न 6. 2011 में भारत का लिंग अनुपात कितना था ?
उत्तर-2011 में भारत का लिंग अनुपात 1000 : 943 था।

प्रश्न 7. 2011 में पंजाब का लिंग अनुपात कितना था ?
उत्तर-2011 में पंजाब का लिंग अनुपात 1000 : 895 था।

प्रश्न 8. पंजाब के कौन-से जिलों में लिंग अनुपात सबसे कम व अधिक है ?
उत्तर-बठिण्डा (869) तथा होशियारपुर (961)।

प्रश्न 9. कन्या भ्रूण हत्या का एक कारण बताएं।
उत्तर-लड़का प्राप्त करने की इच्छा तथा दहेज का इंतजाम करना।

प्रश्न 10. कन्या भ्रूण हत्या का एक परिणाम बताएं।
उत्तर-स्त्री के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव तथा लिंग अनुपात में कमी आना।

प्रश्न 11. घरेलू हिंसा का क्या अर्थ है ?
उत्तर-पत्नी या बच्चों को मारना घरेलू हिंसा है।

प्रश्न 12. घरेलू हिंसा के प्रकार बताएं।
उत्तर-शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा, भावनात्मक हिंसा तथा जुबानी बदसलूकी।

प्रश्न 13. पत्नी की पिटाई का सबसे आम कारण क्या है ?
उत्तर-दहेज के सामान से असंतुष्टि तथा पत्नी से झगड़ा।

प्रश्न 14. घरेलू हिंसा का सबसे आम प्रकार कौन-सा है ?
उत्तर-पत्नी को पीटना व स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या।
उत्तर-
लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे अपनी पत्नी के गर्भवती होने पर उसका लिंग निर्धारण परीक्षण करवाते हैं। लड़की होने की स्थिति में उसे माँ की कोख में ही मार दिया जाता है तथा इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

प्रश्न 2.
लिंग अनुपात।
उत्तर-
किसी विशेष क्षेत्र में किसी विशेष समय पर 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात का नाम दिया जाता है। लिंग अनुपात देख कर ही देश में स्त्रियों की स्थिति का पता चल जाता है। भारत में 2011 में लिंग अनुपात 1000 : 943 था।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के कारण।
उत्तर-

  • लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  • लड़की को विवाह के समय दहेज देना पड़ता है। इससे बचने के लिए भी लोग यह काम करते हैं।

प्रश्न 4.
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम।
उत्तर-

  • इससे लिंग अनुपात बिगड़ जाता है व लड़कियों की कमी हो जाती है।
  • इस कारण स्त्रियों के विरुद्ध अपराध बढ़ जाते हैं।
  • समाज में स्त्रियों की स्थिति निम्न हो जाती है।

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IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न-

प्रश्न 1.
कन्या भ्रूण हत्या।
उत्तर-
लोगों में कई कारणों के कारण लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त करने की इच्छा होती है। वे कई ढंगों का प्रयोग करते हैं ताकि लड़की के स्थान पर लड़के को प्राप्त किया जा सके। जब कोई स्त्री गर्भवती होती है तो पहले तीन-चार माह तक माँ के गर्भ में बच्चा पूर्णतया विकसित नहीं हुआ होता है। इसे अभी भी भ्रूण ही कहा जाता है। आजकल ऐसी मशीनें आ गई हैं जिनसे माता के पेट में ही टैस्ट करके पता कर लिया जाता है कि होने वाला बच्चा लड़का है या लड़की। अगर गर्भ में पल रहा बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु लड़की है तो उसका गर्भपात करवा दिया जाता है अर्थात् माता की कोख में ही लड़की को मार दिया जाता है। इसे ही कन्या भ्रूण हत्या कहते हैं।

प्रश्न 2.
कन्या भ्रूण हत्या के कारण।
उत्तर-

  • लड़का प्राप्त करने की इच्छा कन्या भ्रूण हत्या को जन्म देती है।
  • तकनीकी सुविधाओं के बढ़ने के कारण अब गर्भ में ही बच्चे के लिंग का पता कर लिया जाता है जिस कारण लोग कन्या भ्रूण हत्या की तरफ़ बढ़े हैं।
  • लड़की के बड़े होने पर उसे दहेज देना पड़ता है तथा लड़का होने पर दहेज लाता है। यह कारण भी लोगों को कन्या भ्रूण हत्या करने के लिए प्रेरित करता है।
  • यह कहा जाता है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का दाह संस्कार तथा और संस्कार बेटा ही पूर्ण करता है। इस कारण भी लोग लड़का प्राप्त करना चाहते हैं।
  • लड़कों से यह आशा की जाती है कि वे बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल करेंगे तथा लडकियां विवाह के बाद अपने ससुराल चली जाएंगी। इस सामाजिक सुरक्षा की इच्छा के कारण भी लोग लड़का चाहते हैं।

प्रश्न 3.
कन्या भ्रूण हत्या के परिणाम।
उत्तर-

  • कन्या भ्रूण हत्या के कारण समाज में लिंग अनुपात कम होना शुरू हो जाता है। भारत में यह 1000 : 940
  • कम होते लिंग अनुपात के कारण समाज में असन्तुलन बढ़ जाता है क्योंकि पुरुषों की संख्या बढ़ जाती है तथा स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है।
  • इस कारण स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा भी बढ़ जाती है। अपहरण, बलात्कार, छेड़छाड़ इत्यादि जैसी घटनाएं भी बढ़ जाती हैं।
  • कन्या भ्रूण हत्या के कारण स्त्रियों की सामाजिक स्थिति और निम्न हो जाती है क्योंकि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन हो जाती है।
  • कन्या भ्रूण हत्या का स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है क्योंकि गर्भपात का उसके स्वास्थ्य पर असर तो पड़ेगा ही।

प्रश्न 4.
लिंग अनुपात।
उत्तर-
अगर हम साधारण शब्दों में देखें तो 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहा जाता है। इसका अर्थ यह है कि किसी विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे कितनी स्त्रियां हैं, इसे ही लिंग अनुपात कहते हैं। लिंग अनुपात शब्द का संबंध किसी भी देश की जनसंख्या से संबंधित जनसंख्यात्मक लक्षणों से हैं तथा देश की जनसंख्या के बारे में पता करने के लिए लिंग अनुपात का पता होना आवश्यक है। 2011 में भारत में लिंग अनुपात 1000 : 943 था।

प्रश्न 5.
कम होते लिंग अनुपात के कारण।
उत्तर-

  • लड़का प्राप्त करने की इच्छा का होना।
  • कन्या भ्रूण हत्या का बढ़ना।
  • लड़कियों को जन्म के बाद मार देने की प्रथा।
  • पुरुषों का एक स्थान से प्रवास कर जाना।
  • परम्परागत समाजों की प्रवृत्ति के कारण।

प्रश्न 6.
कम होते लिंग अनुपात के परिणाम।
उत्तर-

  • स्त्रियों के साथ हिंसा का बढ़ना।
  • बहुपति विवाह प्रथा का बढ़ना।
  • स्त्रियों की सामाजिक स्थिति का निम्न होना।
  • स्त्रियों के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव।
  • स्त्रियों की खरीदारी का बढ़ाना।

प्रश्न 7.
पारिवारिक हिंसा।
अथवा घरेलू हिंसा।
उत्तर-
पारिवारिक हिंसा एक जटिल धारणा है। पारिवारिक हिंसा को परिभाषित करना मुश्किल है। जब परिवार के दो सदस्यों में झगड़ा हो जाता है तथा एक सदस्य द्वारा दूसरे सदस्य को शारीरिक तथा मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो इसे पारिवारिक हिंसा कहते हैं। इसमें धक्का मारना, चांटा मारना, मुक्का मारना, चाकू मारना, गोली मारना, चीजें फेंकना इत्यादि शामिल हैं। इससे दूसरे सदस्य को शारीरिक रूप से चोट पहुंचने के साथ-साथ मानसिक रूप से भी चोट पहुंचती है।

प्रश्न 8.
घरेलू हिंसा की परिभाषा।
उत्तर-
पेजलो (Pagelow) के अनुसार, “परिवार के सदस्यों द्वारा की जाने वाली अथवा नज़रअन्दाज करने की कोई ऐसी कार्यवाही है तथा ऐसी कार्यवाहियों के परिणामस्वरूप पैदा होने वाली कोई भी ऐसी स्थिति है जो परिवार के बाकी सदस्यों को समान अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं से वंचित करती है अथवा उनके सम्पूर्ण विकास तथा चुनाव की स्वतन्त्रता में विघ्न डालती है।”

प्रश्न 9.
घरेलू हिंसा के कारण।
उत्तर-

  • लोग परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए मद्यपान करते हैं। जब पत्नी या बच्चे उन्हें मद्यपान करने से मना करते हैं तो वे उन्हें पीटते हैं तथा पारिवारिक हिंसा को बढ़ाते हैं।
  • कई लोग प्राकृतिक तौर पर गुस्से वाले होते हैं तथा छोटी-छोटी बात पर ही गुस्सा करते हैं तथा बच्चों को पीट देते हैं।
  • कई लोग मादक द्रव्यों का व्यसन करते हैं। यदि उन्हें मादक द्रव्य खरीदने के लिए पैसा नहीं मिलता तो वे पैसा प्राप्त करने के लिए घर वालों से मारपीट करते हैं।
  • निर्धनता के कारण वे हमेशा दुःखी रहते हैं तथा गुस्से में कई बार पत्नी या बच्चों को पीट देते हैं।

प्रश्न 10.
पत्नी की मार पिटाई।
उत्तर-
पुरुष प्रधान समाजों की यह सबसे बड़ी कमी है कि यहां पर पति द्वारा पत्नी की मार पिटाई होती है। पत्नी की मार पिटाई का अर्थ है कि पति की तरफ से पत्नी के विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करना। वास्तव में पति यह समझते हैं कि उनकी पत्नी उनकी दासी है तथा जो वे कहेंगे पत्नी को वह सब कुछ करना पड़ेगा। परन्तु आजकल शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् स्त्रियों को अपने अधिकारों का पता चल रहा है तथा वे अपने पतियों की नाजायज़ बातों का विरोध करती हैं। इस कारण पति उनके विरुद्ध हिंसा का प्रयोग करते हैं।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न ।

प्रश्न-
कम होते लिंग अनुपात के कारणों तथा परिणामों का वर्णन करें।
उत्तर-
कम होते लिंग अनुपात के कारण-किसी भी समाज में बहुत-से कारण होते हैं जिनसे लिंग अनुपात प्रभावित होता है तथा इन कारणों का वर्णन इस प्रकार है

1. जैविक कारण (Biological Causes)-किसी भी देश में अगर लिंग अनुपात कम होता है तो उसका सबसे पहला कारण ही जैविक होता है। हो सकता है कि किसी विशेष समाज में लड़के ही अधिक पैदा होते हों जिस कारण लिंग अनुपात कम हो जाता है। कुछ अध्ययनों से यह पता चलता है कि हमारे देश में एक महीने की आयु तक लड़कों की अपेक्षा लड़कियों के मरने की दर अधिक है जिस कारण लिंग अनुपात कम होना शुरू हो जाता है। 1981-1990 के दशक के दौरान हमारे देश में 109.5 लड़कों की तुलना में केवल 100 लड़कियां ही थीं। इस प्रकार कम होते लिंग अनुपात का एक कारण जैविक माना जा सकता है।

2. प्रवास (Migration)-आवास अथवा प्रवास को भी लिंग अनुपात के कम होने अथवा बढ़ने का कारण माना जा सकता है। हो सकता है कि किसी विशेष राज्य अथवा देश के पुरुष रोज़गार की तलाश में दूसरे राज्यों अथवा देशों में चले गए हों। इससे उन दोनों राज्यों का लिंग अनुपात कम या बढ़ सकता है। साधारणतया यह देखा गया है कि जब भी पुरुष रोज़गार की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान की तरफ जाते हैं, वे अपने साथ अपनी स्त्रियों तथा बच्चों को नहीं लेकर जाते हैं। वे दूसरे स्थानों पर सालों साल कमाने के लिए रहते हैं तथा कभी-कभी अपने मूल राज्य अथवा .देश की तरफ जाते हैं परन्तु जल्दी ही वापिस आ जाते हैं। हम उदाहरण ले सकते हैं पंजाब के लड़कों की जो पैसे कमाने
के लिए विदेश में चले जाते हैं अथवा उत्तर प्रदेश के निवासियों की जो पैसे कमाने के लिए पंजाब जैसे खुशहाल प्रदेशों में आते हैं। इससे पंजाब जैसे प्रदेशों में लिंग अनुपात का अन्तर उत्पन्न हो जाता है।

3. लड़की को जन्म के बाद मार देना (Female Infanticide)-हमारे देश में प्राचीन समय से ही ऐसा होता आया है कि कई समूह लड़की के जन्म के तुरन्त बाद उसे मार देते थे। देश के कई कबीलों में भी यह प्रथा प्रचलित थी। इस प्रथा के अनुसार कई समूहों में लड़की के जन्म के तुरन्त बाद उसे मार दिया जाता था। इस काम में दाई भी सहायता करती थी। इसका कारण यह था कि यह समूह सोचते थे कि लड़की को बड़ा करने के बाद उसका विवाह करना पड़ेगा तथा बहुत सा दहेज देना पड़ेगा। इसलिए इन सब खर्चों से बचने के लिए वे नई जन्मी बच्ची को मार देते थे। अंग्रेज़ी शासन में इसे खत्म करने के प्रयास किए गए परन्तु इसका अस्तित्व अभी भी बरकरार है। इस कारण ही लिंग अनुपात में अन्तर उत्पन्न हो जाता है।

4. भ्रूण हत्या (Female Foeticide)-पिछले कुछ समय से विपरीत लिंग अनुपात का सबसे बड़ा कारण मादा भ्रूण हत्या ही रहा है। इसका अर्थ है पेट में पल रही अजन्मी बच्ची को कोख में ही मार देना। लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है जिस कारण वे गर्भधारण करने के कुछ समय बाद ही लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाते हैं। अगर लड़का हो तो ठीक है परन्तु अगर लड़की है तो उसका गर्भपात ही करवा देते हैं। इस प्रकार लड़की को पैदा होने से पहले ही मार दिया जाता है। मादा भ्रूण हत्या के कारण लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम हो जाती है तथा लिंग अनुपात कम होकर लड़कों की तरफ झुक जाता है। चाहे लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाना तथा करना कानूनन अपराध समझा जाता है तथा गर्भपात करना भी कानूनन अपराध है तथा ऐसा करने वाले को सजा दी जाती है परन्तु फिर भी मादा भ्रूण हत्या लगातार जारी है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 11 कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा

5. परम्परागत समाज (Traditional Society)-कम होता लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में अधिक होता है। अगर हम विकसित देशों जैसे कि अमेरिका, जापान तथा परम्परागत समाजों जैसे कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश इत्यादि से तुलना करें तो लिंग अनुपात परम्परागत समाजों में कम है। इसका कारण यह है कि परम्परागत समाजों में यह प्रवृत्ति होती है कि लोगों को लड़की के स्थान पर लड़का चाहिए होता है ताकि खानदान आगे बढ़ सके तथा मरने के बाद बेटा चिता को अग्नि दे सके। परम्परागत समाजों की अलग-अलग प्रवृत्तियों के कारण लड़कों की संख्या बढ़ जाती है। इस प्रकार परम्परागत समाजों में लिंग अनुपात कम होता है।

6. लड़का प्राप्त करने की इच्छा (Wish to have a boy)-लोगों में साधारणतया यह इच्छा होती है कि उनके घर लड़का हो ताकि वह खानदान को आगे बढ़ा सके तथा मरने के बाद चिता को अग्नि दे सके। वैसे भी लोगों में लड़का प्राप्त करने की इच्छा होती है नहीं तो लड़की के बड़ा होने पर उसे विवाह के समय बहुत सा दहेज देना पड़ेगा। विवाह के बाद भी तमाम आयु लड़की के ससुराल वालों को कुछ न कुछ देते ही रहना पड़ेगा। इसलिए लोग लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं तथा इसके प्रयास भी करते हैं। वे तो गर्भपात करवाने से भी पीछे नहीं हटते। इस प्रकार लड़का प्राप्त करने की इच्छा भी लिंग अनुपात को कम करती है।

7. माता-पिता द्वारा नव जन्मी बच्ची को छोड़ देना (To give up the new born girl child by the parents)-आजकल लोगों में यह प्रवृत्ति सामने आ रही है कि नव जन्मी बच्ची को रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड, रेल अथवा किसी और स्थान पर छोड़ देना। वे ऐसा इसलिए करते हैं कि घर में पहले ही लड़कियां होती हैं तथा वे एक और लड़की नहीं बल्कि लड़का चाहते हैं। परन्तु जब लड़की पैदा हो जाती है तो वे उसे लावारिस मरने के लिए छोड़ देते हैं। लड़की को ठीक देखभाल न मिलने की स्थिति में वह मर जाती है। इस प्रकार इस कारण भी लिंग अनुपात कम होता है।

परिणाम (Consequences)-

कम होते लिंग अनुपात के परिणाम इस प्रकार हैं

1. स्त्रियों से हिंसा (Violence with Women)-कम होते लिंग अनुपात का सबसे पहला परिणाम यह निकला है कि स्त्रियों से होने वाली हिंसा बढ़ जाती है। लड़कियों को जन्म से पहले ही मार दिया जाता है, नई जन्मी बच्चियों को या तो मार दिया जाता है या फिर छोड़ दिया जाता है। बड़ी आयु की स्त्रियों को इसलिए हिंसा का सामना करना पड़ता है कि उसने पुत्र को नहीं बल्कि लड़की को जन्म दिया है। लिंग सम्बन्धी हिंसा जैसे कि बलात्कार, अपहरण, वेश्यावृत्ति इत्यादि भी बढ़ जाती है।

2. बहुपति विवाह (Polyandry)-कम होते लिंग अनुपात का एक और दुष्परिणाम यह होता है कि इससे बहुपति विवाह की प्रथा को उत्साह मिलता है। समाज में स्त्रियों की संख्या मर्दो से कम हो जाती है जिस कारण एक स्त्री को दो अथवा दो से अधिक पुरुषों से विवाह करवाना पड़ता है। विशेषतया भ्रातरी बहुपति विवाह बढ़ जाते हैं। सभी भाई एक स्त्री के पति बन जाते हैं। इससे स्त्री के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव पड़ता है। समाज में नैतिकता कम हो जाती है। स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है।

3. स्त्रियों की निम्न सामाजिक स्थिति (Lower Social Status of Women)-कम होते लिंग अनुपात से स्त्रियों की सामाजिक स्थिति निम्न हो जाती है। अगर कोई स्त्री पुत्र पैदा नहीं कर सकती तथा केवल लड़कियां ही हो रही हैं तो उसे गर्भपात के लिए बाध्य किया जाता है। उसके बाद उसे पुत्र पैदा न करने के ताने दिए जाते हैं। सामाजिक कुरीतियां तथा सामाजिक संस्थाएं भी इसके लिए कम उत्तरदायी नहीं हैं तथा उनके कारण भी स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर ग़लत प्रभाव पड़ता है।

4. स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव (Bad effect on Health) अगर किसी स्त्री को पुत्र पैदा नहीं होता है तो उसे ताने दिए जाते हैं, मारा-पीटा जाता है। गर्भ धारण के कुछ समय बाद लिंग निर्धारण का टैस्ट करवाया जाता है। लड़की होने की स्थिति में उसे गर्भपात करवाने के लिए बाध्य किया जाता है। इस से उसके शरीर पर तो ग़लत प्रभाव पड़ता ही है बल्कि उसकी मानसिक स्थिति पर भी ग़लत प्रभाव पड़ता है।

5. स्त्रियों का व्यापार (Business of Women) लिंग अनुपात के कम होने की स्थिति में स्त्रियों की खरीदफरोख्त का कार्य शुरू हो जाता है। कोई पुरुष विवाह करने के लिए स्त्री को खरीदता है तो कोई अपनी वासना को शांत करने के लिए परन्तु स्त्री को वस्तु ही समझा जाता है। प्राचीन समय में तो दुल्हन का मूल्य देने की प्रथा भी प्रचलित थी।
इस प्रकार कम होते लिंग अनुपात के समाज पर काफ़ी ग़लत प्रभाव पड़ते हैं।

कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा PSEB 12th Class Sociology Notes

  • संसार में स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा एक साधारण बात है तथा सभी समाज इस समस्या से जूझ रहे हैं। स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा में हम बलात्कार, लैंगिक हिंसा, अपहरण करना, वेश्यावृत्ति, दहेज से संबंधित हिंसा तथा कई अन्य प्रकार की समस्याओं को ले सकते हैं। कन्या भ्रूण हत्या तथा घरेलू हिंसा उनमें से एक है।
  • स्त्री के गर्भवती होने पर बच्चे का लिंग निर्धारण परीक्षण माँ के गर्भ में करवा लिया जाता है। अगर होने वाला बच्चा लड़का है तो ठीक है परन्तु अगर लड़की है तो गर्भपात करवा दिया जाता है।
  • कन्या भ्रूण हत्या का सीधा प्रभाव लिंग अनुपात पर पड़ता है तथा यह कम हो जाता है। हमारे देश में लिंग अनुपात काफी कम है। 2011 में यह 1000 : 943 था।
  • दहेज, स्त्रियों की निम्न स्थिति, लड़का प्राप्त करने की इच्छा, आधुनिक तकनीक, परिवार नियोजन, पितृ प्रधान समाज इत्यादि कुछ ऐसे कारण है जिनकी वजह से लोग कन्या भ्रूण हत्या करते हैं।
  • कन्या भ्रूण हत्या के काफ़ी गलत प्रभाव होते हैं जैसे कि स्त्रियों के स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव, लिंग अनुपात का कम होना, स्त्रियों पर अत्याचार तथा अपराधों का बढ़ना, समाज में स्त्रियों से संबंधित बुराइयों का होना।
  • हमारे समाज में घरेलू हिंसा भी एक बहुत बड़ी समस्या है। इसमें पत्नी या पति या बच्चों के प्रति ऐसा व्यवहार किया जाता है जो सामाजिक तौर पर बिल्कुल भी मान्य नहीं होता। इसमें शारीरिक चोट के साथ-साथ मानसिक चोट भी लगती है।
  • घरेलू हिंसा के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, कानूनी, सामाजिक दबाव इत्यादि। पत्नी को पीटना भी घरेलू हिंसा का ही एक रूप है।
  • घरेलू हिंसा को कानून बनाकर, सामाजिक शिक्षा देकर, सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाओं की सहायता से रोका जा सकता है।
  • लिंग अनुपात (Sex Ratio)-किसी विशेष क्षेत्र में 1000 पुरुषों के पीछे स्त्रियों की संख्या को लिंग अनुपात कहते हैं।
  • पितृपक्ष प्रबलता (Patriarchy)—समाज की वह व्यवस्था जिसमें परुषों की स्त्रियों पर प्रधानता होती है।
  • कन्या वध (Female Infanticide)-जन्म के तुरन्त बाद लड़की को मारने की प्रथा को कन्या वध कहते हैं।
  • कन्या भ्रूण हत्या (Female Foeticide)-कन्या भ्रूण को माँ के गर्भ में ही मारने को कन्या भ्रूण हत्या कहा जाता है।

PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

Punjab State Board PSEB 12th Class Sociology Book Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 Sociology Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न । (TEXTUAL QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बढ़ रहे औद्योगीकरण ने पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ाया है जैसे :
(क) भूमि का विकृत व मरुस्थलीकरण
(ख) भाई-भतीजावाद
(ग) अधिक जनसंख्या
(घ) जाति प्रथा।
उत्तर-
(क) भूमि का विकृत व मरुस्थलीकरण।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से कौन-सा मद्य व्यसन (शराबखोरी) का पड़ाव नहीं है ?
(क) अपव्ययी होना (फिजूलखर्ची)
(ख) नाजुक अवस्था
(ग) दीर्घकालिक अवस्था ।
(घ) बार-बार पीने वाली अवस्था।
उत्तर-
(ख) नाजुक अवस्था।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से कौन-सा पियक्कड़ों का वर्गीकरण नहीं है :
(क) कभी-कभी पीने वाले
(ख) कम पीने वाले
(ग) बहुत अधिक पीने वाले
(घ) कोई भी नहीं।
उत्तर-
(ग) बहुत अधिक पीने वाले।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन से कौन-सी समस्याएं जुड़ी हैं :
(क) सामाजिक समस्याएं
(ख) आर्थिक समस्याएं
(ग) स्वास्थ्य समस्याएं ।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 5.
तम्बाकू 30 प्रतिशत तक होने वाली किस बीमारी के लिए उत्तरदायी है ?
(क) कैंसर से मृत्यु
(ख) एड्ज़ (ग) डेंगू
(घ) मधुमेह।
उत्तर-
(क) कैंसर से मृत्यु।

प्रश्न 6.
जब सामाजिक स्वीकृत मापदण्डों का हनन होता है तब बुरे शारीरिक, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक परिणाम होते हैं।
(क) नशीली दवाओं का व्यसन
(ख) मोटापा
(ग) भोजन में मिलावट ,
(घ) मूल्यों में संघर्ष।
उत्तर-
(घ) मूल्यों में संघर्ष।

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B. रिक्त स्थान भरें

1. नेताओं में बढ़ रहे राजनैतिक भ्रष्टाचार से संबंधित समस्याएं ………… व ………….. हैं।
2. भारत में अस्पृश्यता की समस्या ……………….. प्रथा के कारण है।
3. जब एक व्यक्ति सुबह से शराब पीना आरम्भ कर देता है तो उसे …………… अवस्था में समझा जाता है।
4. ……………. एक ऐसा नशा है जो स्नायु विकार, लीवर सरोसिज़, उच्च रक्तचाप एवं कई अन्य बीमारियों से संबंधित होता है।
5. ………….. वो व्यक्ति हैं जो महीने में तीन या चार बार पीते हैं।
6. एक नए व्यक्ति को नशीली दवाओं की ओर ले जाने में …………… का प्रभाव महत्त्वपूर्ण है।
7. नारकोटिक ड्रग्ज व साक्रोट्रोपिक सबसटैंस अधिनियम का संशोधन ………….. में नशा विरोधी कानून को और सशक्त बनाने के लिए किया गया।
8. नशीले पदार्थों का दुरुपयोग बहुत से …………… व …………… प्रभावों को जन्म देता है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।
9. नशे के सेवन से शरीर की …………….. कमज़ोर होती है एवं व्यक्ति कई प्रकार के संक्रमण का शिकार हो जाता है।
उत्तर-

  1. लाल फीताशाही, भाई-भतीजावाद,
  2. जाति,
  3. दीर्घकालीन,
  4. Sedative,
  5. नियमित उपभोगी,
  6. साथी समूह,
  7. 1987,
  8. अल्पकालीन, दीर्घकालीन,
  9. स्नायुतंत्र।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं

1. मद्य व्यसन नशीली दवाओं के व्यसन से अधिक उपचार योग्य है।
2. सामाजिक समस्याएं पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धित हैं।
3. लड़कों को प्राथमिकता व पितृपक्ष की प्रबलता जैसी सामाजिक समस्याएं पर्यावरणीय तत्त्वों से संबंधित होती हैं।
4. मद्य व्यसन का परिवार व समुदाय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
5. व्यक्ति इसलिए भी मद्यपान करते हैं क्योंकि उनका व्यवसाय उन्हें पूर्णत: थका देता है।
6. बड़े पियक्कड़ वे हैं जो प्रतिदिन या दिन में कई बार पीते हैं।
7. मद्य व्यसन को रोकने में अध्यापक महत्त्वपूर्ण भूमिका नहीं निभाते।
8. अभिभावक नशीली दवाओं के व्यसन की समस्या को हल करने में असमर्थ है।
9. नशीले पदार्थ परिवार व समुदाय को प्रभावित नहीं करते।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. गलत
  4. गलत
  5. सही
  6. सही
  7. गलत
  8. गलत
  9. गलत।

D. निम्नलिखित शब्दों का मिलान करें

कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
निर्धनता — पर्यावरणीय समस्याएं
अवांछित स्थितियां — सामाजिक सांस्कृति समस्या
पुत्रों को प्राथमिकता — आर्थिक समस्या
वैश्विक ताप में वृद्धि — भ्रूण हत्या के कारक
मद्य व्यसन के पड़ाव — दीर्घकालिक अवस्था
(कम) पीने वाले नशे के आदी — महीने में एक दो बार पीने वाला
अल्पायु में पीना– बढ़ रहा तनाव
मद्य व्यसन का कारण — हिंसक अपराध
उत्तर-
कॉलम ‘ए’ — कॉलम ‘बी’
निर्धनता — सामाजिक सांस्कृतिक समस्या
अवांछित स्थितियां — आर्थिक समस्या
पुत्रों को प्राथमिकता — भ्रूण हत्या के कारक
वैश्विक ताप में वृद्धि — पर्यावरणीय समस्याएं
मद्य व्यसन के पड़ाव — दीर्घकालिक अवस्था
(कम) पीने वाले नशे के आदी — महीने में एक दो बार पीने वाला
अल्पायु में पीना — हिंसक अपराध
मद्य व्यसन का कारण — बढ़ रहा तनाव।

II. अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1. सामाजिक समस्या के उत्तरदायी कारणों की सूची बताएं।
उत्तर-सामाजिक सांस्कृतिक कारक, आर्थिक कारक, राजनीतिक कारक, वातारवण से संबंधित कारक इत्यादि।

प्रश्न 2. मद्य व्यसन से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-मद्य व्यसन मद्यपान का एक तरीका है जो न केवल व्यक्ति के लिए बल्कि उसके परिवार के लिए भी हानिकारक होता है।

प्रश्न 3. कम पीने वाले मद्य व्यसनी किसे कहा जाता है ?
उत्तर-जो लोग महीने में एक या दो बार पीते हैं उन्हें कम पीने वाले मद्य व्यसनी कहा जाता है।

प्रश्न 4. मद्य व्यसन (शराबखोरी) के पड़ावों की सूची बनाएं।
उत्तर-पूर्व मद्य व्यसनी पड़ाव, तनाव से मुक्ति के लिए पीना, गंभीर (तीव्र) अवस्था, दीर्घकालिक अवस्था।

प्रश्न 5. नशीली दवा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-नशीली दवा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं तथा उसके शारीरिक कार्यों में परिवर्तन लाते हैं।

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प्रश्न 6. नशे से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-नशे का अर्थ है किसी दवा या कैमीकल वस्तु के ऊपर शारीरिक रूप से निर्भर हो जाना।

प्रश्न 7. नशीली दवा क्या है ?
उत्तर-नशीली दवा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं तथा उसके शारीरिक कार्यों में परिवर्तन लाते हैं।

III. लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आप सामाजिक समस्या से क्या समझते हैं ?
अथवा सामाजिक समस्या को परिभाषित कीजिए।
उत्तर-
सामाजिक समस्या ऐसे अवांछनीय हालत हैं जिन्हें बदलना आवश्यक होता है। प्रत्येक समाज कई परिवर्तनों में से गुज़रता है। अगर परिवर्तन विनाशकारी होंगे तो इससे समाज में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। जिनके काफ़ी भयंकर परिणाम होते हैं। इन समस्याओं को ही सामाजिक समस्याएं कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समस्या से सम्बन्धित किन्हीं दो कारकों का वर्णन करो।
अथवा
सामाजिक समस्या के कारकों की चर्चा कीजिए।
उत्तर-

  1. सामाजिक सांस्कृतिक कारक जैसे अस्पृश्यता, भ्रूण हत्या, दहेज, पितृ प्रधान समाज इत्यादि के कारण सामाजिक समस्याएं होती हैं।
  2. आर्थिक कारक जैसे कि निर्धनता, बेरोज़गारी, अनपढ़ता, गंदी बस्तियां इत्यादि के कारण बहुत सी सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।

प्रश्न 3.
मद्यपान के तीन प्रभावों का वर्णन करो।
उत्तर-

  1. मद्यपान से देश तथा जनता के पैसे की बर्बादी होती है।
  2. मद्यपान का प्रत्यक्ष प्रभाव व्यक्ति के स्वास्थ्य पर पड़ता है तथा वह खराब हो जाता है।
  3. मद्यपान से व्यक्ति का कार्य करने का सामर्थ्य कम हो जाता है तथा वह मानसिक रूप से परेशान रहने लग जाता है।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन की दीर्घकालीन अवस्था से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
मद्य व्यसन की दीर्घकालीन अवस्था में व्यक्ति रोज़ पीने तथा दिन में कई बार पीने लग जाता है। इसमें वह लंबे समय तक नशे में रहते हैं, ग़लत सोचने लग जाते हैं, डरने लग जाते हैं तथा कोई कार्य नहीं कर पाते। वह हमेशा पीने के बारे में सोचते हैं तथा शराब के बिना बेचैनी महसूस करते हैं।

प्रश्न 5.
मद्य पर निर्भरता का क्या अर्थ है ?
उत्तर-
जब व्यक्ति शराब का प्रयोग रोज़ाना करने लग जाता है तथा उसके बिना नहीं रह सकता तो इस अवस्था को मद्य पर निर्भरता कहते हैं। शराब उस व्यक्ति के अंदर इतना बस जाती है कि वह उसका बार-बार प्रयोग करता है वह इसके बिना नहीं रह सकता। इसे ही मद्य पर निर्भरता कहते हैं।

प्रश्न 6.
मद्य व्यसन से आपका क्या अभिप्राय है ?
अथवा मद्यपान।
उत्तर-
मद्य व्यसन उस स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यक्ति मद्यपान की मात्रा पर नियन्त्रण नहीं रख पाता तथा जिसका प्रयोग शुरू करने के बाद उसे बंद नहीं कर सकता। वह शारीरिक व मानसिक रूप से शराब पर इतना निर्भर हो जाता है कि उसके बिना रह ही नहीं सकता।

प्रश्न 7.
आप मद्य व्यसन की पूर्वकालिक अवस्था से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
इस स्तर पर, सामाजिक प्रतिबन्धों का फायदा उठा कर, व्यक्ति अपनी चिंताओं को दूर करने के लिए तथा व्यक्तिगत समस्याओं से भागने के लिए मद्य व्यसन करना शुरू कर देते हैं। वह पीने को चिंतामुक्त होने से संबंधित कर देता है तथा पीने के मौके ढूंढता है। इस प्रकार मद्यपान भी बढ़ जाता है।

प्रश्न 8.
नशीली दवाओं के व्यसन की ओर उन्मुख करने वाले सामाजिक कारकों की सूची बनाएं।
उत्तर-
कई सामाजिक कारक होते हैं जिनकी वजह से व्यक्ति नशों की तरफ बढ़ता है; जैसे कि मित्रों के कारण, समाज के उच्च वर्ग में जाने की इच्छा, सामाजिक तजुर्बे के लिए, सामाजिक मूल्यों का विरोध करने के लिए, नए सामाजिक रुझान स्थापित करने के लिए इत्यादि।

प्रश्न 9.
एक व्यक्ति पर नशीली दवाओं के अल्पकालीन प्रभावों की सूची बनाएं।
उत्तर-
नशीली दवा लेने के कुछ अल्पकालीन प्रभाव होते हैं जो नशा करने के बाद केवल कुछेक मिनट ही दिखते हैं। व्यक्ति को सब कुछ अच्छा लगता है तथा वह किसी अन्य संसार में घूमने लग जाता है। कुछ अन्य प्रभाव भी होते हैं जैसे कि धुन्धला दिखना, ग़लत परिणाम निकालना, मुँह में से गंदी बदबू इत्यादि।

प्रश्न 10.
नशीली दवाओं के व्यसन को रोकने में अध्यापक की क्या भूमिका है ?
उत्तर-
नशीली दवाओं के व्यसन के रोकने में अध्यापक काफ़ी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। वह अपने विद्यार्थियों से खुल कर बात कर सकते हैं तथा उन्हें अच्छे कार्यों में व्यस्त रख सकते हैं। उन्हें अच्छी आदतें अपनाने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।

प्रश्न 11.
नशीली दवा से आपका क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नशीली दवा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं तथा उसके शारीरिक कार्यों में परिवर्तन लाते हैं।

IV. दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न-

प्रश्न 1.
भारत में सामाजिक समस्या के विभिन्न कारकों की चर्चा करें।
अथवा
भारत में सामाजिक समस्याओं के दो मुख्य कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  • सामाजिक सांस्कृतिक कारक-इन कारकों में हम अस्पृश्यता, मादा भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा, पीढ़ी का अंतर इत्यादि ले सकते हैं।
  • आर्थिक कारक-इसमें हम निर्धनता, गंदी बस्तियां, बेरोज़गारी, अपराध, नगरीकरण, औद्योगीकरण इत्यादि जैसे कारक ले सकते हैं।
  • प्रादेशिक कारक-इन कारकों में हम आवास-प्रवास, जनसंख्या संरचना का बिगड़ना, तंग क्षेत्र, प्रदूषण, बेरोज़गारी इत्यादि को ले सकते हैं।
  • राजनीतिक कारक-इन कारकों में हम चुनाव संबंधी राजनीति , भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, रिश्वत, साम्प्रदायिकता इत्यादि को ले सकते हैं।
  • पर्यावरणीय कारक-इनमें जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ग्रीन हाउस प्रभाव इत्यादि आ जाते हैं।

प्रश्न 2.
नशीली दवाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
नशीली वा एक ऐसी कैमीकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। यह एक साधारण व्यक्ति के शारीरिक कार्यों में परिवर्तन ला देते हैं। मैडीकल की भाषा में नशीली दवा एक ऐसी वस्तु है जिसे डाक्टर किसी रोगी को बीमारी ठीक करने के लिए देता है। मानसिक व सामाजिक तौर पर नशे को हम एक ऐसी आदत के रूप में लेते हैं जिसका सीधे दिमाग पर प्रभाव पड़ता है तथा जिसके ग़लत प्रयोग होने के मौके बढ़ जाते हैं। आवश्यकता से अधिक नशा इतना खतरनाक होता है कि यह साधारण जनता के विरुद्ध समाज विरोधियों में उत्तेजना भर देता है। हेरोईन, कोकीन, एल० एस० डी०, शराब, अफीम, तंबाकू इत्यादि का नशा गलत होता है।

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प्रश्न 3.
मद्य व्यसन के पड़ावों का संक्षेप में उल्लेख करें।
उत्तर-

  • पूर्व मद्य व्यसनी पड़ाव-इस स्तर पर व्यक्ति सामाजिक प्रतिबन्धों का फायदा उठा कर अपनी चिंताएं दूर करने व व्यक्तिगत समस्याओं से भागने के लिए पीना शुरू कर देता है।
  • तनाव से मुक्ति के लिए पीना-इस स्तर पर आकर व्यक्ति के शराब पीने की मात्रा तथा दिनों में बढ़ौतरी हो जाती है चाहे उसे पता होता है कि वह गलत कर रहा है।
  • गंभीर (तीव्र) अवस्था-इस स्तर पर आकार मद्यपान व्यक्ति के लिए आवश्यक हो जाता है। उसे सामाजिक दबाव भी झेलना पड़ता है परन्तु फिर भी वह कहता है कि उसने अपना नियन्त्रण नहीं खोया है।
  • दीर्घकालिक अवस्था-इस अवस्था में वह सारा दिन शराब पीता रहता है। वह हमेशा नशे में रहता है तथा अपने कार्य भूल जाता है। बिना शराब के वह असहज महसूस करता है।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन के हानिकारक प्रभावों का वर्णन करें।
उत्तर-

  • महा व्यसन से व्यक्ति तथा देश के पैसे खराब होते हैं।
  • अधिक शराब पीने से व्यक्ति का स्वास्थ्य खराब हो जाता है तथा उसे कई प्रकार की बीमारियां भी लग जाती हैं।
  • अधिक मद्य व्यसन से व्यक्ति में कार्य करने का सामर्थ्य कम हो जाता है।
  • अधिक मद्य व्यसन वाले व्यक्ति का दिमाग उसके नियन्त्रण में नहीं रहता तथा वह मानसिक तनाव का शिकार हो जाता है।
  • मद्य व्यसन के कारण लोग कई प्रकार के अपराध भी कर लेते हैं जैसे कि कत्ल, बलात्कार, चोरी इत्यादि।
  • मद्यपान से पैसे की बर्बादी होती है तथा निर्धनता भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 5.
किशोर मद्य व नशे के व्यसन का अधिक शिकार क्यों होते हैं ?
उत्तर-
यह सत्य है कि किशोर काफी जल्दी मद्य व्यसन व नशे के व्यसन की तरफ झुक जाते हैं। कई बार व्यक्ति अपने मित्रों के कारण नशा करता है। उसके मित्र उसे नशा करने या मद्य व्यसन के लिए कहते हैं। वह शौक-शौक में पीना शुरू कर देता है तथा धीरे-धीरे वह इनका आदी हो जाता है। कई बार किशोरों में अपने बुजुर्गों को देख कर भी नशा करने की इच्छा होती है तथा वह मद्यपान या नशा करने लग जाते हैं। व्यक्ति सामाजिक मूल्यों का विरोध करने के लिए भी नशा करने लग जाता है। नौजवान पढ़-लिख जाते हैं परन्तु उन्हें अपनी इच्छा का काम नहीं मिल पाता या मिलता ही नहीं। वह अर्द्ध बेरोज़गार या बेरोज़गार रह जाते हैं तथा तंग आकर वह नशों की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं।

प्रश्न 6.
किसी व्यक्ति पर नशीली दवाओं के दीर्घकालीन प्रभाव की चर्चा करें।
उत्तर-

  • नशे करने से व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से उन पर निर्भर हो जाता है जिस कारण जीवन में समझौते करने पड़ते हैं।
  • नशों के कारण व्यक्ति को कई प्रकार की बीमारियां लग जाती है जैसे कि पेट खराब रहना, चमड़ी के रोग, लीवर पर असर, दिल की बीमारी इत्यादि।
  • नशे के कारण व्यक्ति के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है जिस कारण उसे कई प्रकार की नई बीमारियां लगने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • नशा करने से कई बार एड्ज़ जैसी बीमारी होने का खतरा हो जाता है। नशे के प्रभाव के अंदर कई बार गलत संबंध बन जाते हैं तथा एड्ज़ हो जाती है।
  • यह भी देखा है कि ज़रूरत से ज्यादा नशा करने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

प्रश्न 7.
नशीली दवाओं के व्यसन के मनोवैज्ञानिक व शारीरिक प्रभाव क्या होते हैं ?
अथवा
नशा व्यसन के हानिकारक प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
मानसिक प्रभाव-नशीली दवाओं के व्यसन से व्यक्ति इनका इतना आदी हो जाता है कि वह इनके बिना नहीं रह सकता। उन्हें लगता है कि वह नशा किए बिना कोई कार्य नहीं कर सकते तथा नशे से वह कार्य बढ़िया ढंग से कर सकते हैं। साथ ही उन्हें लगता है कि नशे से उनकी चिन्ताएं दूर हो जाएंगी तथा उसका तनाव भी दूर हो जाएगा।
शारीरिक प्रभाव-नशीली दवाओं के व्यसन से व्यक्ति के शरीर पर काफ़ी बुरा प्रभाव पड़ता है। नशे के बिना उसे नींद नहीं आती, उसका सिरदर्द करता है, नशा करने से उसकी कामुक इच्छा बढ़ जाती है तथा उसका शरीर नशे का इतना आदी हो जाता है जिस कारण वह शारीरिक रूप से उस पर निर्भर हो जाता है।

प्रश्न 8.
किशोरों को नशीली दवाओं से बचाने के लिए किस प्रकार का विशेष ध्यान दिया जा सकता है ?
उत्तर-
किशोर अवस्था ऐसी अवस्था है जिसमें बच्चा घर के सदस्यों के हाथों से निकल कर समाज के सदस्यों के हाथों में आ जाता है। इस अवस्था में बच्चे के लिए यह आवश्यक होता है कि वह सीधे रास्ते पर चले। अगर वह गलत हाथों में चला जाए तो वह नशे के रास्ते पर चल पड़ता है तथा उसका सारा जीवन बर्बाद हो जाता है। ऐसी स्थिति में माता-पिता को अपने बच्चों पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता होती है। माता-पिता को बच्चों के साथी समूह, उसके मित्रों पर रखनी पड़ती है ताकि वह गलत रास्ते पर न जाए। अगर बच्चे का कोई मित्र नशा करता है तो उस समय बच्चे को उसकी मित्रता से दूर करना चाहिए तथा उस मित्र के खाने-पीने, कपड़े पहनने, सोने, जागने के बारे में भी ध्यान रखना चाहिए ताकि बच्चों को नशे के रास्ते पर जाने से रोका जा सके।

प्रश्न 9.
नशीली दवाओं के व्यसन के कारणों का उल्लेख करें।
अथवा
नशा व्यसन के चार कारण लिखो।
उत्तर-

  1. जब व्यक्ति अपने ऊपर पड़े तनाव को कम करना चाहता है तो वह नशीली दवाओं का प्रयोग करने लग जाता है।
  2. कई बार व्यक्ति के मित्र उसका नशा न करने पर मज़ाक उड़ाते हैं जिस कारण वह नशा करने लग जाता है।
  3. कई व्यक्तियों में यह पता करने की इच्छा होती है कि नशा करने के पश्चात् कैसा लगता है, तो भी वह नशा करने लग जाते हैं।
  4. घरों में पति-पत्नी के बीच या घर के सदस्यों के बीच झगड़े के कारण भी लोग नशा करने लग जाते हैं ताकि कोई तनाव न रहे।
  5. कभी-कभी व्यक्ति में अपने बुजुर्गों को नशा करता देख इच्छा जागती है तथा वह भी नशा करने लग जाता है।

प्रश्न 10.
किशोर अवस्था में नशीली दवाओं के व्यसन के बुरे प्रभावों की चर्चा करें।
उत्तर-

  • नशे करने से व्यक्ति शारीरिक तथा मानसिक रूप से उन पर निर्भर हो जाता है जिस कारण जीवन में समझौते करने पड़ते हैं।
  • नशों के कारण व्यक्ति को कई प्रकार की बीमारियां लग जाती है जैसे कि पेट खराब रहना, चमड़ी के रोग, लीवर पर असर, दिल की बीमारी इत्यादि।
  • नशे के कारण व्यक्ति के शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है जिस कारण उसे कई प्रकार की नई बीमारियां लगने का खतरा उत्पन्न हो जाता है।
  • नशा करने से कई बार एड्ज़ जैसी बीमारी होने का खतरा हो जाता है। नशे के प्रभाव के अंदर कई बार गलत संबंध बन जाते हैं तथा एड्ज़ हो जाती है।
  • यह भी देखा है कि ज़रूरत से ज्यादा नशा करने से व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है।

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V. अति दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
आप मद्य व्यसन से क्या समझते हैं ? इसके लिए ज़िम्मेदार तत्त्वों की विस्तार सहित चर्चा करें।
अथवा
मद्य व्यसन के दो कारण लिखें।
अथवा
मद्यपान का भारतीय समाज की मुख्य सामाजिक समस्या के रूप में वर्णन करें।
उत्तर-
मद्यपान को पिछले कुछ समय से एक सामाजिक तथा नैतिक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। कुछ समय पहले देश के कई राज्यों में मद्यपान पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था तथा मद्य-निषेध नीति को लागू कर दिया गया था। इस नीति के लागू होने के बाद मद्यपान अवैध रूप से किया जाने लग गया। कुछ विद्वान् इसे विचलित व्यवहार के साथसाथ एक जटिल बीमारी भी कहते हैं। जो व्यक्ति शराब का आदी हो जाता है उसको ठीक करने के लिए किसी विशेषज्ञ डाक्टर की आवश्यकता होती है। मद्यपान को एक ऐसी अवस्था के रूप में लिया जा सकता है जिसमें व्यक्ति को अपने ऊपर नियन्त्रण नहीं रहता। यदि उसको शराब मिल जाए तो वह इसे पीता ही जाता है परन्तु यदि उसे यह न मिले तो वह उसके लिए तड़पता है तथा इसे किसी भी ढंग से प्राप्त करने की कोशिश करता है। व्यक्ति को अपने जीवन में बहुत-से मानसिक तनावों से गुजरना पड़ता है। इसको पीने के बाद वह कुछ समय के लिए तनाव से मुक्त हो जाता है तथा उसको सभी चिन्ताओं से मुक्ति मिल जाती है।

परन्तु प्रश्न यह उठता है कि मद्यपान किसे कहते हैं तथा कौन मद्यसारिक होता है। आजकल के समय में साधारण शब्दों में जो व्यक्ति शराब का सेवन करता है उसे मद्यसारिक अथवा शराबी कहते हैं तथा शराब पीने की प्रक्रिया को मद्यपान का नाम दिया जाता है। कई विद्वानों के अनुसार थोड़ी-सी शराब पीने को हम मद्यपान नहीं कह सकते हैं। जो व्यक्ति शराब का इतना आदी हो चुका हो कि वह इसके बिना रह नहीं सकता है उसे शराबी या मद्यसारिक कहते हैं तथा जो व्यक्ति लगातार तथा बहुत अधिक मात्रा में शराब पीता है उसे भी मद्यसारिक कहा जाता है। इस तरह शराब पीने की प्रक्रिया को मद्यपान कहा जाता है।

मद्यपान को हम एक दीर्घकालिक बीमारी के रूप में भी ले सकते हैं जिसमें एक मद्यसारिक व्यक्ति को लगातार इसकी आवश्यकता महसूस होती है। व्यक्ति कई बार इसका सेवन इसलिए भी करता है कि उसे इसके सेवन से तनाव से मुक्ति मिलती है तथा कुछ समय के लिए चिन्ताओं से मुक्ति मिल जाती है। चाहे मद्यपान के बारे में यह कहा जाता है कि मद्यपान के पीछे व्यक्ति के सामाजिक तथा मानसिक कारण होते हैं परन्तु कई बार व्यक्ति इतने अधिक समय के लिए पीते हैं कि उन्हें इसकी लत लग जाती है। उनका शरीर उसके बिना रह नहीं सकता है उसे कार्य करने के लिए इसकी आवश्यकता पड़ती है। यदि वह इसे छोड़ना चाहे तो उसके शरीर को कई प्रकार के दुःखों का सामना करना पड़ता है जैसे कि अंगों में कंपकपी, बहुत अधिक पसीना आना, दिल का तेज़ी से धड़कना इत्यादि। इस प्रकार मद्यपान एक शारीरिक तथा मानसिक बीमारी बन जाती है। जब व्यक्ति बहुत अधिक मद्यपान करने लग जाए तो यह एक व्यक्तिगत समस्या के साथ-साथ सामाजिक समस्या का रूप धारण कर लेती है। बहुत अधिक मद्यपान करने से उसका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। इसके बिना वह कोई कार्य नहीं कर सकता है तथा उसकी कार्य करने की क्षमता पर भी असर पड़ता है।

मद्यपान के कारण (Reasons of Alcoholism) –

1. व्यवसाय (Occupation)-बहुत-से मामलों में व्यवसाय मद्यपान का कारण बनता है। कई लोगों का व्यवसाय ऐसा होता है कि वह काम करते-करते इतना थक जाते हैं कि उन्हें अपने आपको दोबारा कार्य करने के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता होती है। इससे उनकी थकावट भी मिट जाती है तथा उन्हें अगले दिन कार्य करने के लिए प्रेरणा भी मिलती है। कई लोग अपने व्यवसाय से जुड़े और लोगों को खुश करने के लिए भी मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए किसी कर्मचारी को अपने मालिक को खुश करने के लिए मालिक के साथ मदिरा पीनी पड़ती है जिससे वह मदिरा का आदि हो जाता है। इस तरह व्यवसाय के कारण व्यक्ति को मदिरा पीनी पड़ती है तथा वह इसका आदी हो जाता है।

2. ग़लत संगति (Bad Company)-बहुत-से लोग मदिरा इसलिए भी पीने लग जाते हैं क्योंकि उसके मित्र, उसकी संगति ही ग़लत होती है। उसकी संगति में उसके मित्र नशा करने, शराब पीने के आदी होते हैं। यदि वह शराब नहीं पीता है तो उसके दोस्त उसको शराब पीने के लिए मजबूर करते हैं, उसको समय-समय पर ताने देते हैं कि, कैसे मर्द हो तुम, शराब नहीं पीते, शराब पीना तो मर्दो का काम है। इस तरह वह मित्रों के तानों से तंग आकर या तो मित्रों को ही छोड़ देता है या फिर शराब पीना शुरू कर देता है। इस तरह ग़लत संगति के कारण पहले तो वह दोस्तों को खुश करने के लिए थोड़ी-सी पीनी शुरू कर देता है परन्तु धीरे-धीरे वह शराब पीने का आदी हो जाता है।

3. बड़ों को पीते देखकर उत्सुकता जागना (Curiosity Due to Elder members of The Family) साधारणतया यह देखा गया है कि बच्चे उत्सुकता वश शराब पीना शुरू कर देते हैं। परिवार में बड़े लोग यदि शराब पीते हैं तो बच्चे उनके पास जाकर खड़े हो जाते हैं तथा पूछते हैं कि आप क्या पी रहे हैं? बड़े बुजुर्ग बच्चों की बात हंस कर टाल देते हैं तथा बच्चों को उधर से जाने के लिए कहते हैं। बच्चों में इस बात को लेकर उत्सुकता जाग जाती हैं कि उनके पिता क्या पी रहे हैं? यदि उनके पिता गिलास में थोड़ी-सी शराब छोड़कर कहीं चले जाते हैं तो वह चोरी से तथा छुपकर उसे पी लेते हैं। चाहे यह कड़वी होती है परन्तु यह उत्सुकता तब तक बरकरार रहती है जब तक वह स्वयं ही इसे पीना शुरू नहीं कर देते हैं। इस तरह बच्चों में भी यह आदत आ जाती है। बच्चे जब यह देखते हैं कि उनके पिता शराब का सेवन करते हैं तो वह भी शराब का स्वाद लेना चाहते हैं जिससे धीरे-धीरे उनको आदत पड़ जाती है। कई बार तो पिता ही बच्चे को गिलास देकर कहते हैं कि इसे पीकर देखो कि यह क्या है। इस प्रकार बच्चे को अनजाने में ही इसकी लत पड़ जाती है तथा वह मद्यपान करने लग जाता है।

4. अधिक धन (More Money)-अधिक धन होना भी मद्यपान का कारण बन सकता है। आजकल का युग पदार्थवाद का युग है। प्रत्येक व्यक्ति पैसे के पीछे भाग रहा है। पैसे कमाने के लिए वह नए-नए ढंग अपना रहा है। कई बार तो किसी से पैसा कमाने के लिए उसे मदिरा पिलानी पड़ती है तथा साथ में पीनी भी पड़ती है। इससे व्यक्ति को मदिरा पीने की आदत पड़ जाती है। जब व्यक्ति के पास अधिक पैसा आ जाता है तो वह उसे खर्च करने के नएनए ढंग भी ढूंढ लेता है। वह अपना मनोरंजन करने के लिए अपने मित्रों के साथ पीनी शुरू कर देता है परन्तु धीरेधीरे उसे पीने की लत लग जाती है तथा वह मद्यपान करना शुरू कर देता है।

5. मानसिक तनाव (Mental Tension)—प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी तनाव का शिकार होता है। किसी के पास पैसा नहीं है तो उसे अपना घर चलाने का तनाव है, किसी के पास पैसा है तो उसे सम्भालने की चिन्ता है, किसी को व्यापार की चिन्ता है, किसी को दफ़्तर की चिन्ता है, कोई निर्धनता से परेशान है तो कोई अपने मालिक, बॉस या बीवी से, किसी को व्यापार में घाटा होने की चिन्ता है तो किसी को प्रतिस्पर्धा की। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति किसीन-किसी मानसिक चिन्ता का शिकार है। यदि वह शराब पीता है तो यह शराब उसके स्नायु तन्त्र को कुछ समय के लिए शिथिल कर देती है तथा कम-से-कम कुछ समय के लिए उसे मानसिक तनाव से मुक्ति मिल जाती है। शराब के नशे में वह सभी प्रकार की चिन्ताओं से मुक्त हो जाता है तथा अपने आपको एक स्वतन्त्र व्यक्ति महसूस करने लग जाता है। धीरे-धीरे जब उसे लगता है कि मदिरा उसे उसकी चिन्ताओं से कुछ समय के लिए मुक्ति दिला सकती है तो वह इसे रोज़ ही पीना शुरू कर देता है तथा मद्यपान का शिकार हो जाता है।

6. निर्धनता (Poverty)-निर्धनता भी मद्यपान का एक बहुत बड़ा कारण है। निर्धन व्यक्ति को हमेशा पैसा कमाने की चिन्ता रहती है। उसके परिवार के सदस्य तो अधिक होते हैं परन्तु कमाने वाला वह अकेला ही होता है। इसलिए घर का खर्च तो अधिक होता है परन्तु आय काफ़ी कम होती है। बच्चों को पढ़ाने, कपड़े, खाने की चिन्ता उसे हमेशा ही लगी रहती है। इसलिए वह चिन्ता से दूर होने के लिए शराब का सहारा ले लेता है। शराब पीने से उसे कुछ समय के लिए चिन्ताओं तथा तनाव से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह वह धीरे-धीरे अधिक मात्रा में शराब पीनी शुरू कर देता है तथा वह मद्यसारिक हो जाता है।

7. व्यक्तिगत कारण (Personal Reasons) व्यक्तिगत कारण भी मद्यपान के लिए उत्तरदायी हैं। कुछ लोगों की संगति ऐसी होती है जो शराब पीते हैं। पहले तो वह केवल शराब का स्वाद लेने के लिए ही पीते हैं। परन्तु जब उन्हें स्वाद की आदत पड़ जाती है तो धीरे-धीरे शराब पीने की आदत पड़ जाती है। कई लोग अपनी शारीरिक पीड़ा को खत्म करने के लिए भी शराब पीते हैं। व्यापार में घाटा पड़ने पर, प्यार में असफल होने पर, अपनी पत्नी से तलाक होने पर किसी शारीरिक कमी के कारण लोग मद्यपान करना शुरू कर देते है। बहुत-से लोग जुआ खेलते हैं। परन्तु जब वह जुए में हार जाते हैं तो वह अपना गम भुलाने के लिए भी मद्यपान का सहारा लेते हैं। जीवन में किसी आपत्ति के आने के कारण भी लोग चिन्ता मुक्त होने के लिए भी शराब का सहारा लेते हैं। इस प्रकार यह बहुत-से ऐसे व्यक्तिगत कारण हैं जिनकी वजह से लोग मद्यपान करना शुरू कर देते हैं।

8. सामाजिक कमियां (Social Inadequacy) सामाजिक कमियों के कारण भी लोग मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। कुछ लोगों के जीवन में कुछ ऐसी कमियां होती हैं जो उनमें पूरी नहीं हो पाती हैं। वह उन कमियों को पूरा भी नहीं कर पाते हैं तथा उन कमियों के कारण आने वाली कठिनाइयों का सामना भी नहीं कर पाते हैं। इसलिए वह इन कमियों की पूर्ति के लिए मद्यपान करना शुरू कर देते हैं तथा मदिरा के आदी हो जाते हैं।

9. पारिवारिक परिस्थितियां (Family Circumstances)-व्यक्ति की पारिवारिक परिस्थितियां भी उसे मद्यपान करने के लिए प्रेरित करती हैं। घर में अशान्ति है, घर में निर्धनता है, माता तथा पत्नी में हमेशा झगड़ा होता रहता है, पत्नी झगड़ालू है तथा चैन से रहने नहीं देती, परिवार में खर्चे तो अधिक हैं पर आय कम है इत्यादि। इन सभी कारणों के कारण वह हमेशा परेशान रहता है तथा वह अपनी परेशानी से मुक्ति चाहता है। इसलिए वह मद्यपान करने लग जाता है जिससे उसे कुछ समय के लिए शान्ति मिलती है। इस प्रकार वह धीरे-धीरे इसका आदी हो जाता है।

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10. फैशन के लिए (For Fashion)-आजकल के समय में फैशन के लिए भी व्यक्ति मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। आधुनिक समय में युवा वर्ग तो मद्यपान करता ही फैशन के लिए है। बड़े-बड़े शहरों में यदि कोई नौजवान मद्यपान नहीं करता है तो उसे पिछड़े वर्ग से सम्बन्धित कहा जाता है। लोग दूसरों को प्रभावित करने के लिए अथवा अपने आपको अधिक आधुनिक सांस्कृतिक और खुशहाल दिखाने के लिए भी मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। केवल लड़के ही नहीं बल्कि लड़कियां भी मद्यपान करने लग गई हैं। बड़े-बड़े शहरों में क्लब, पब इत्यादि खुल गए हैं जहां नौजवान पीढ़ी अपने मनोरंजन के लिए खुल कर मदिरा का प्रयोग करते हैं तथा नशे में झूमते हुए इसका आनन्द लेते हैं। दफ्तरों, कॉलेजों में जाने वाले लोग तो अपने आपको ऊँचा दिखाने के लिए भी इसका प्रयोग करते हैं तथा धीरेधीरे मद्यपान के आदी हो जाते हैं।

11. प्रतिकूल स्थितियाँ (Adverse Conditions) कई बार व्यक्ति के सामने ऐसे प्रतिकूल हालात आ जाते हैं जिससे उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं रहता है तथा उनका मानसिक सन्तुलन भी बिगड़ जाता है। प्रतिकूल हालात जैसे कि कोई गम्भीर समस्या का खड़े हो जाना, निर्धनता, बेरोज़गारी, प्यार में असफलता, उन्नति न मिल पाना, किसी द्वारा अपमान कर देना, जुए में हार जाना, परिवार में लड़ाई-झगड़े इत्यादि ऐसे कारण हैं जो व्यक्ति की चिन्ताओं को बहुत बढ़ा देते हैं। इन चिन्ताओं को दूर करने के लिए वह शराब का सहारा लेने लग जाते हैं तथा मद्यपान करने लग जाते हैं। धीरे-धीरे वह मदिरा के आदी हो जाते हैं।

12. बड़े शहरों की गन्दी बस्तियां (Slums of Big Cities)-बड़े-बड़े शहरों में रहने की काफ़ी समस्या होती है। सही प्रकार के रहने के स्थान की व्यवस्था न होने के कारण भी मद्यपान की स्थिति बढ़ती है। गन्दी बस्तियों में मिलने वाला वातावरण, जोकि व्यक्तियों के रहने के लायक भी नहीं होता है, उस बुराई अर्थात् मद्यपान को उत्साहित करता है। जब व्यक्ति को लगता है कि वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति नहीं कर पा रहा है तथा उनको दबा रहा है तो वह मद्यपान करके अपनी इच्छाओं को सन्तुष्ट करता है।

13. वंशानुगत सेवन (Hereditary Usage)-वंशानुगत सेवन भी मद्यपान की समस्या को बढ़ाने का कारण बनता है। कई कबीलों में सदियों से देसी शराब बनाने की प्रथा चली आ रही है। बनाने के साथ-साथ उन्हें इसे स्वाद देखने के लिए पीना भी पड़ता है। इस तरह बच्चे अपने बड़ों को ऐसा करते हुए देखते हैं जिससे वह भी अपने बड़ों का अनुकरण करने लग जाते हैं। वह शराब बनाना भी सीख जाते हैं तथा साथ-साथ पीना भी सीख जाते हैं। इससे मद्यपान की लत बढ़ जाती है।

इस प्रकार इन कारणों को देख कर हम कह सकते हैं कि मद्यपान की लत केवल एक कारण से ही नहीं लगती है बल्कि इसके बहुत-से कारण हो सकते हैं। इन ऊपर दिए गए कारणों के अतिरिक्त मद्यपान के और भी कई कारण हो सकते हैं जैसे कि आनन्द लेने की इच्छा, यौन सुख में अधिक आनन्द प्राप्त करने के लिए, थकान दूर करने के लिए, नई चीज़ के अनुभव करने के लिए इत्यादि।

प्रश्न 2.
मद्य व्यसन के हानिकारक प्रभावों पर विस्तृत टिप्पणी करें।
अथवा
मद्य व्यसन के नुकसानदायक प्रभावों पर विस्तृत रूप में लिखिए।
अथवा
मद्य व्यसन के हानिकारक प्रभावों को लिखें।
उत्तर-
मद्यपान को किसी भी दृष्टिकोण से ठीक नहीं कह सकते चाहे वह व्यक्तिगत दृष्टिकोण हो, चाहे वह पारिवारिक, आर्थिक, नैतिक तथा सामाजिक दृष्टिकोण ही क्यों न हो। मद्यपान करने से व्यक्ति का जीवन पतन की तरफ ही जाता है। इससे उसके पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को भी खतरा पैदा हो जाता है। इसके प्रभावों का वर्णन इस प्रकार है :

1. मद्यपान और व्यक्तिगत विघटन (Alcoholism and Personal Disorganization)—व्यक्ति यदि मद्यपान करना शुरू करता है तो उसके कई कारण व्यक्तिगत होते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि व्यक्ति को नींद नहीं आती है या भूख नहीं लगती है तो वह थोड़ी-सी मदिरा का सेवन कर लेता है ताकि उसे नींद आ जाए या भूख लग जाए। धीरे-धीरे वह मदिरा का अधिक सेवन करने लग जाता है तथा उसे इसकी लत लग जाती है। वह इसके पीछे इतना अधिक भागने लग जाता है कि उसे अच्छे-बुरे का भी ध्यान नहीं रहता है। उसे अपने बच्चों तथा घर का भी ध्यान नहीं रहता है। उसकी आय शराब पर खर्च होने लग जाती है जिससे उसके घर की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। उसे आर्थिक रूप से चिन्ताएं सताने लगती हैं। वह चिन्ता दूर करने के लिए और अधिक शराब पीने लग जाता है जिससे उसका व्यक्तिगत विघटन होने लग जाता है। उसे और अधिक चिन्ताएँ होने लगती हैं। वह समस्याओं से संघर्ष नहीं कर पाता है तथा शराब पीकर हालातों से दूर भागने का प्रयास करता है। इससे उसका चरित्र कमजोर हो जाता है जिससे व्यक्तिगत विघटन और अधिक बढ़ जाता है।

2. मद्यपान तथा सामाजिक विघटन (Alcoholism and Social Disorganization) हमारे समाज में हज़ारों लाखों व्यक्ति ऐसे हैं जो मदिरा का सेवन किसी-न-किसी वजह से करते हैं । मद्यपान करने से व्यक्तिगत विघटन होने से उनके परिवारों पर भी असर पड़ता है। परिवार विघटित होने शुरू हो जाते हैं क्योंकि परिवार समाज की प्राथमिक तथा सबसे महत्त्वपूर्ण इकाई है इसलिए यदि परिवार विघटित होंगे तो निश्चय ही समाज पर भी असर पड़ेगा तथा समाज भी विघटित होगा। जब समाज में रह कर व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी को नहीं समझेगा तो निश्चय ही समाज विघटित होने की राह पर चल पड़ेगा। इस तरह मद्यपान से सामाजिक विघटन बढ़ता है।

3. मद्यपान तथा पारिवारिक विघटन (Alcoholism and Family Disorganization)-मद्यपान करने से न केवल व्यक्ति का व्यक्तिगत विघटन होता है, बल्कि उसके इस व्यवहार से परिवार भी विघटित हो जाते हैं। जब वह किसी कारणवश मदिरा का सेवन करना शुरू करता है तो पहले तो सभी उसे कुछ नहीं कहते हैं। इस कारण वह शराब पीने के लिए और उत्साहित हो जाता है इसलिए वह रोज़ पीना शुरू कर देता है। उसे केवल एक बात का ध्यान रहता है कि कब शाम हो तथा कब वह शराब पीना शुरू करे। इस तरह उसे केवल शराब का ही ध्यान रहता है। वह बाकी सभी बातें भूल जाता है। उसके इस व्यवहार से दुःखी होकर परिवार में तनाव आ जाता है। निर्धनता के कारण आर्थिक तंगी आनी शुरू हो जाती है। आर्थिक तंगी के कारण परिवार में रोज़ क्लेश, लड़ाई-झगड़े शुरू हो जाते हैं। परिवार में विघटन आना शुरू हो जाता है। तलाक की स्थिति भी आ जाती है। आर्थिक तंगी से दुःखी होकर कई लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं। इस तरह मद्यपान से पारिवारिक विघटन भी आ जाता है तथा पारिवारिक विघटन से सामाजिक विघटन भी हो जाता है।

4. कम नैतिकता (Less Morality)-जब व्यक्ति को अच्छे-बुरे का ज्ञान हो जाता है तो यह कहा जाता है कि उसमें नैतिकता आ गई है। परन्तु जब व्यक्ति मद्यपान करना शुरू कर देता है तो उसमें नैतिकता कम होनी शुरू हो जाती है। उसे अच्छे-बुरे का ध्यान नहीं रहता है। वह शराब के साथ-साथ और नशीली वस्तुओं का सेवन करना शुरू कर देता है। उसे शराब के आगे और कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। वह किसी भी कीमत पर शराब हासिल करना चाहता है। इसके लिए वह अपने परिवार, पत्नी तथा बच्चों से भी लड़ता है, उन्हें पीटता भी है। इस तरह मद्यपान करने से उसे अच्छे-बुरे का पता चलना बन्द हो जाता है तथा नैतिकता खत्म हो जाती है।

5. आर्थिक तंगी (Economic Problems)-बहुत-से लोग अपनी चिन्ताओं को दूर करने के लिए शराब पीना शुरू कर देते हैं। आमतौर पर चिन्ताओं का कारण पैसा अथवा कम आय और अधिक खर्च होता है। उसे वैसे ही आर्थिक तंगी के कारण चिन्ताएं होती हैं तथा वह शराब पीना शुरू करके और आर्थिक तंगी में आ जाता जिससे उसके जीवन में और मुश्किलें आनी शुरू हो जाती हैं। नशीले पदार्थों के लिए वह घर की चीजें यहां तक कि पत्नी के गहने भी बेचना शुरू कर देता है। आर्थिक तंगी के कारण पत्नी लोगों के घरों में कार्य करके पैसे कमाती है तथा पति वह पैसे भी छीन कर शराब पीता है। वह पैसे-पैसे के लिए लोगों का मुंह ताकता रह जाता है। मद्यपान के कारण उसके परिवार पर बहुत बुरा असर पड़ता है तथा वह दर-दर की ठोकरें खाता है। इस तरह व्यक्ति का आर्थिक जीवन मद्यपान के कारण पूरी तरह नष्ट हो जाता है।

6. अपराधों का बढ़ना (Increasing Rate of Crimes)-मद्यपान से व्यक्ति की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है। परन्तु उसे शराब पीने के लिए पैसे चाहिए होते हैं। पैसे न होने की सूरत में वह घर के सामान को बेचना शुरू कर देता है। उसके बाद भी यदि उसे पैसे न मिले तो वह अपराध करने भी शुरू कर देता है। शराब न मिलने की स्थिति में उसका दिमाग काम करना बंद कर देता है तथा वह लूटमार, पिटाई इत्यादि करने भी शुरू कर देता है। डकैती, चोरी, बलात्कार इत्यादि जैसे अपराध तो साधारण बातें हैं। इन कार्यों को करते समय उसे नैतिकता का भी ध्यान नहीं रहता। इस तरह मद्यपान के कारण समाज में अपराध भी बढ़ जाते हैं।

7. स्वास्थ्य पर असर (Effect on Health)-जब व्यक्ति मद्यपान करना शुरू कर देता है तो शुरू में तो उसे कुछ नहीं होता परन्तु जब वह मदिरा का अधिक सेवन करने लग जाता है तो उसके स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है। शराब न मिलने पर उसका शरीर कांपने लग जाता है, उसका लीवर खराब हो जाता है तथा कई और प्रकार की बीमारियां लग जाती हैं। शराब के बिना वह कुछ नहीं कर सकता। उसके कार्य करने की क्षमता खत्म हो जाती है। वह शराब पीता है तो कार्य कर सकता है नहीं तो उसका शरीर शिथिल पड़ जाता है। इस तरह मद्यपान का उसके शरीर पर काफ़ी बुरा असर पड़ता है।
इस प्रकार हम देख सकते हैं कि मद्यपान से व्यक्ति का परिवार ही नहीं बल्कि समाज भी विघटित हो जाता है। उसमें नैतिकता खत्म हो जाती है, अपराध बढ़ जाते हैं। इस तरह मद्यपान के व्यक्ति पर बहुत ही बुरे प्रभाव पड़ते हैं।

PSEB 12th Class Sociology Solutions PSEB 12th Class Sociology Solutions Chapter 10 मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन

प्रश्न 3.
मद्य व्यसन के विभिन्न पड़ावों पर विस्तृत टिप्पणी करें।
उत्तर-
किसी भी व्यक्ति को मद्यसारिक बनने के लिए बहुत-से अलग-अलग चरणों में से होकर गुजरना पड़ता है। जैलीनेक (Jellineck) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को शराबी बनने के लिए सात अवस्थाओं में से गुजरना पड़ता है जोकि इस प्रकार हैं-

  • अन्धकार की स्थिति-इस स्थिति में व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत समस्याओं का हल नहीं निकाल पाता है तथा हमेशा चिन्ता और तनाव में रहता है।
  • गुप्त रूप से पीना-जब वह अपनी समस्याओं का हल नहीं निकाल पाता है तो वह गुप्त रूप से पीना शुरू कर देता है जिसमें कोई उसे पीते हुए देख न सके।
  • बढ़ी हुई सहनशीलता-इस स्थिति से पहले ही पीना शुरू कर देता है तथा मदिरा पीने के बढ़े हुए प्रभावों को भी सहन करता है।
  • नियन्त्रण का अभाव-यह वह स्थिति है जब वह अधिक पीना शुरू कर देता है तथा उसको अपनी पीने की इच्छा पर नियन्त्रण नहीं रहता है।
  • पीने के बहाने ढूंढ़ना-इस स्थिति में आकर व्यक्ति पीने के बहाने ढूंढ़ता है ताकि समय-समय पर मद्यपान किया जा सके।
  • केवल पीने के कार्यक्रम रखना-मद्यपान करने वाला व्यक्ति इस स्थिति में समय-समय पर केवल पीने के कार्यक्रम रखता है तथा अपने रिश्तेदारों, मित्रों को आमन्त्रित करता रहता है ताकि नियमित रूप से पीया जा सके।
  • प्रातःकाल से ही पीना शुरू करना-इस स्थिति में आकर व्यक्ति नियमित रूप से प्रात:काल में पीना शुरू कर देता है तथा वह प्रत्येक कार्य करने के लिए मदिरा पर ही निर्भर रहता है।

इस प्रकार से व्यक्ति अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को हल न कर पाने की स्थिति में पीना शुरू कर देता है तथा समय के साथ मनोरंजन के लिए भी पीना शुरू कर देता है। धीरे-धीरे वह पीने की सीमाएं पार करता जाता है तथा मद्यसारिक बन जाता है। अब उसे पीने के लिए किसी भी बहाने की आवश्यकता नहीं होती है तथा वह लगातार पीना शुरू कर देता है। वह इसका आदी हो जाता है तथा एक समय ऐसा आता है जब वह मदिरा का सेवन किए बिना कोई कार्य नहीं कर सकता। उसका शरीर उसके नियन्त्रण में नहीं रहता बल्कि शराब के नियन्त्रण में आ जाता है। शराब न मिलने की स्थिति में उसका शरीर कांपने लग जाता है तथा वह कोई कार्य नहीं कर सकता है। इस प्रकार वह मद्यसारिक बन जाता है।

वैसे मुख्य रूप से मद्यसारिक बनने के निम्नलिखित चार स्तर होते हैं :

  • पूर्व मद्य व्यसनी पड़ाव-इस स्तर पर व्यक्ति सामाजिक प्रतिबन्धों का फायदा उठाते हुए, अपनी चिंताओं को दूर करने तथा अपनी व्यक्तिगत समस्याओं से दूर भागने के लिए पीना शुरू कर देता है। वह पीने को राहत से जोड़ देता है कि पीने से उसकी चिन्ताएं खत्म हो जाती हैं तथा वह मद्यपान के मौके ढूंढ़ता है। जैसे-जैसे उसमें जीवन के संघर्षों से लड़ने का सामर्थ्य खत्म होता जाता है तो उसका पीना बढ़ता जाता है।
  • तनाव से मुक्ति के लिए पीने का स्तर-इस स्तर में मद्यपान की मात्रा के साथ मद्यपान के मौके भी बढ़ने शुरू हो जाते हैं। परन्तु इस स्तर पर व्यक्ति के भीतर गलती का अहसास होना शुरू हो जाता है कि वह एक असामान्य व्यक्ति बनता जा रहा है।
  • गंभीर अवस्था-इस स्तर पर व्यक्ति का मद्यपान करना एक विशेष घटना बन जाती है या पीना आम हो जाता है। यहाँ आकर व्यक्ति अपने पीने को तर्कसंगत बनाना शुरू कर देता है तथा स्वयं को विश्वास दिलाना शुरू कर देता है कि उसका स्वयं पर नियन्त्रण है, परन्तु इस स्तर पर व्यक्ति अन्य व्यक्तियों से दूर होना शुरू हो जाता है क्योंकि सभी उसे शराबी समझना शुरू कर देते हैं।
  • दीर्घकालिक अवस्था-इस स्तर पर व्यक्ति दिन में ही पीना शुरू कर देता है तथा हमेशा ही पीता रहता है। वह हमेशा ही नशे में रहता है जिससे उसकी सोचने की शक्ति कम हो जाती है, उसे कई चीजों से डर लगता है तथा उसकी कई प्रकार की कार्य करने की शक्ति खत्म हो जाती है। वह हमेशा मद्यपान के बारे में सोचता रहता है तथा उसके बिना बेचैन हो जाता है।

प्रश्न 4.
मद्य व्यसन पर नियंत्रण करने के लिए स्कूल व अध्यापक किस प्रकार सहायक हो सकते हैं-वर्णन करें।
उत्तर-
(i) स्कूल-घर की सुरक्षा से निकलकर बच्चा सबसे पहले जिस संस्था के हाथों में जाता है वह है स्कूल। यहाँ पर ही बच्चे के कच्चे मन पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है तथा यहाँ पर ही उसे समाज में रहने के तरीके सिखाए जाते हैं। उसे जीवन जीने, खाने-पीने, रहने-सहने, व्यवहार करने इत्यादि सभी प्रकार के ढंग स्कूल में ही सिखाए जाते हैं। स्कूल में बच्चा अन्य बच्चों से मिलता है तथा उनके साथ रहने के ढंग सीखता है। यह स्कूल ही होता है जो बच्चों के अर्द्धचेतन मन पर पक्का प्रभाव डाल कर उसे समाज का एक अच्छा नागरिक बनाने का प्रयास करता है।

अगर स्कूल बच्चे के मन पर इतना प्रभाव डालता है तो निश्चित रूप से बच्चों को मद्यपान से दूर रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। स्कूल में बच्चों को शुरू से ही मद्यपान के प्रभावों के बारे में बताया जा सकता है। स्कूल में सैमीनार करवाए जा सकते हैं, नाटक करवाए जा सकते हैं, नुक्कड़ नाटक खेले जा सकते हैं ताकि बच्चों को शराब के नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताया जा सके। समय-समय पर बच्चों के माता-पिता को इस चीज़ के बारे में बताया जा सकता है तथा उन्हें कहा जा सकता है कि वह अपने बच्चों के लिए एक प्रेरणा बनें। इस प्रकार स्कूल में अगर बच्चे के मद्यपान के विरुद्ध विचार उत्पन्न हो जाएं तो वह तमाम आयु चलते रहेंगे तथा मद्यपान की समस्या स्वयं ही खत्म हो जाएगी।

(ii) अध्यापक-बच्चों को शराब से दूर रखने में अध्यापक बहुत बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। माता-पिता के हाथों से निकलकर बच्चे अध्यापक के हाथों में आते हैं। इस कारण यह उनका उत्तरदायित्व होता है कि वह बच्चों को ठीक रास्ता दिखाएं। बच्चों के अचेतन मन पर सबसे अधिक प्रभाव अध्यापकों का ही पड़ता है। बच्चे अपने अध्यापक के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित होते हैं तथा वह स्वयं को अध्यापक के अनुसार ढालने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार अध्यापक का कार्य तथा उत्तरदायित्व काफ़ी बढ़ जाता है कि वह कोई गलत कार्य न करें जो बच्चों के लिए ठीक न हो। अध्यापक बच्चों के लिए एक प्रेरणास्रोत होते हैं जिस कारण बच्चे उनका अनुकरण करते हैं। अध्यापक समय-समय पर बच्चों को मद्यपान न करने के लाभों के बारे तथा पीने के नुकसानों के बारे में बता सकते हैं। बच्चे अध्यापक की बात काफ़ी जल्दी मानते हैं जिस कारण वह इस बारे में अपने विचार बना सकते हैं। इस प्रकार मद्यपान की समस्या को रोका जा सकता है।

प्रश्न 5.
नशा व्यसन विषय पर 250 शब्दों में नोट लिखें।
उत्तर-
आज नशे की समस्या पर काफ़ी विवाद चल रहा है। माता-पिता तथा और ज़िम्मेदार नागरिक इस नशा लेने की उपसंस्कृति से काफ़ी सावधान हो रहे हैं। नशा लेने की आदत को पथभ्रष्ट व्यवहार या सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा सकता है। पथभ्रष्ट व्यवहार से मतलब है स्थिति से समायोजन न कर पाना है। एक सामाजिक समस्या के रूप,में इसका अर्थ है वह सर्वव्यापक स्थिति जिसके समाज के ऊपर नुकसानदायक प्रभाव पड़ते हैं। पश्चिमी देशों में इसको काफ़ी समय से सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। कई संस्कृतियों में किसी-न-किसी तरीके से नशा करना एक लक्षण रहा है। सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका अफीम खाने का रहा है। भारत में बड़े-बड़े परिवारों के लोग यह नशा किया करते थे पर अब भारत में इसे समस्या के रूप में देखा जा रहा है।

ड्रग एक ऐसी कैमिकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। यह एक आम व्यक्ति के शारीरिक कार्यों में परिवर्तन ले आता है। मैडीकल भाषा में ड्रग एक ऐसी चीज़ है जिसे डाक्टर रोगी को किसी बीमारी को ठीक करने के लिए देता है ताकि उसके शरीर पर असर पड़ सके। मानसिक तथा सामाजिक तौर पर ड्रग को एक आदत के रूप में लेते हैं जो सीधे तौर पर दिमाग पर असर डालता है तथा जिस का दुरुपयोग होने के मौके ज़्यादा होते हैं तथा जिसके शरीर पर गलत प्रभाव पड़ते हैं। इस परिभाषा के अनुसार ज़रूरत से ज़्यादा ड्रग लेना इतना खतरनाक माना जाता है कि कई बार यह आम जनता के विरुद्ध समाज के विरोधियों में उत्तेजना भर देता है। कुछ ड्रग शरीर पर अच्छा प्रभाव डालते हैं पर उनके विपरीत कुछ ड्रग जैसे हैरोइन, कोकीन, (L.S.D.), शराब, तम्बाकू इत्यादि के शरीर पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं तथा व्यक्ति इनका आदी हो जाता है।।

नशे की आदत में आदत शब्द का मतलब है शारीरिक तौर पर आश्रित हो जाना। इस तरह आदत या शारीरिक तौर पर आश्रित होने का अर्थ है वह स्थिति जिसमें शरीर को कार्य करने के लिए वह चीज़ चाहिए जो वह बार-बार प्रयोग करता है। यदि उस चीज़ को शरीर को देना बन्द कर दिया जाए तो शरीर के कार्य करने की प्रक्रिया पर उल्टा प्रभाव पड़ेगा तथा उसके शरीर पर गलत प्रभाव दिखने लग जाएंगे। इस सारे का प्रभाव यह दिखेगा कि वह चीज़ नहीं है जिसकी उसे ज़रूरत है।

एक व्यक्ति जो लगातार नशे का प्रयोग करता है वह पहली बार ड्रग लेने के बाद लगातार उसकी मात्रा बढ़ाता रहता है ताकि उसका वही प्रभाव कायम रहे जो उस पर पहली बार पड़ा था। यह प्रक्रिया बर्दाशत (Tolerance) कहलाती है। इसमें शरीर की उस बाहर की चीज़ में प्रति क्षमता को दिखाया जाता है।

मानसिक तौर पर व्यक्ति उस समय ड्रग पर आश्रित होता है जब उसे लगने लगे कि इस ड्रग का लेना ही उसके शरीर के लिए अच्छा है या उस ड्रग के प्रभाव उस पर अच्छे पड़ते हैं। शब्द आदत को कभी-कभी दिमागी आश्रित के तौर पर भी लिया जा सकता है। इस रूप में आदत का अर्थ होता है कि शरीर उस ड्रग पर इतना ज्यादा या उस ड्रग के प्रभावों पर इतना ज़्यादा आश्रित है कि वह उसके बिना कुछ नहीं कर सकता है। इस तरह नशाखोरी का मतलब नशा करने की आदत से है। यह आदत इस हद तक जा सकती है कि व्यक्ति इसके अतिरिक्त कुछ सोचता ही नहीं है। इस नशे के प्रभाव का व्यक्ति पर इतना असर होता है कि उसका शरीर इसके अतिरिक्त किसी चीज़ को Respond नहीं करता है। यदि शरीर को नशे की मात्रा मिलती रहे तो वह सही तरीके से उस नशे के प्रभाव में काम करेगा। यदि शरीर को नशा न मिल पाया तो उसके गम्भीर परिणाम व्यक्ति के सामने आने शुरू हो जाते हैं। उसका शरीर नशा प्राप्त करने के लिए तड़पने लगता है तथा वह किसी भी हालत में तथा किसी भी कीमत पर नशा प्राप्त करने की कोशिश करता है। इस तरह ड्रग व्यक्ति पर इस कदर हावी हो जाता है कि वह हमेशा नशे के प्रभाव में रहना चाहता है।

प्रश्न 6.
नशीली दवाओं के व्यसन की समस्या का वर्णन करते हुए बताएं कि इस समस्या का समाधान आप कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर-
नशीली दवाओं के व्यसन की समस्या का वर्णन-
आज नशे की समस्या पर काफ़ी विवाद चल रहा है। माता-पिता तथा और ज़िम्मेदार नागरिक इस नशा लेने की उपसंस्कृति से काफ़ी सावधान हो रहे हैं। नशा लेने की आदत को पथभ्रष्ट व्यवहार या सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा सकता है। पथभ्रष्ट व्यवहार से मतलब है स्थिति से समायोजन न कर पाना है। एक सामाजिक समस्या के रूप,में इसका अर्थ है वह सर्वव्यापक स्थिति जिसके समाज के ऊपर नुकसानदायक प्रभाव पड़ते हैं। पश्चिमी देशों में इसको काफ़ी समय से सामाजिक समस्या के रूप में देखा जा रहा है। कई संस्कृतियों में किसी-न-किसी तरीके से नशा करना एक लक्षण रहा है। सबसे ज़्यादा प्रचलित तरीका अफीम खाने का रहा है। भारत में बड़े-बड़े परिवारों के लोग यह नशा किया करते थे पर अब भारत में इसे समस्या के रूप में देखा जा रहा है।

ड्रग एक ऐसी कैमिकल वस्तु है जिसके शरीर तथा दिमाग पर गहरे तथा अलग प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं। यह एक आम व्यक्ति के शारीरिक कार्यों में परिवर्तन ले आता है। मैडीकल भाषा में ड्रग एक ऐसी चीज़ है जिसे डाक्टर रोगी को किसी बीमारी को ठीक करने के लिए देता है ताकि उसके शरीर पर असर पड़ सके। मानसिक तथा सामाजिक तौर पर ड्रग को एक आदत के रूप में लेते हैं जो सीधे तौर पर दिमाग पर असर डालता है तथा जिस का दुरुपयोग होने के मौके ज़्यादा होते हैं तथा जिसके शरीर पर गलत प्रभाव पड़ते हैं। इस परिभाषा के अनुसार ज़रूरत से ज़्यादा ड्रग लेना इतना खतरनाक माना जाता है कि कई बार यह आम जनता के विरुद्ध समाज के विरोधियों में उत्तेजना भर देता है। कुछ ड्रग शरीर पर अच्छा प्रभाव डालते हैं पर उनके विपरीत कुछ ड्रग जैसे हैरोइन, कोकीन, (L.S.D.), शराब, तम्बाकू इत्यादि के शरीर पर बुरे प्रभाव पड़ते हैं तथा व्यक्ति इनका आदी हो जाता है।।

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नशे की आदत में आदत शब्द का मतलब है शारीरिक तौर पर आश्रित हो जाना। इस तरह आदत या शारीरिक तौर पर आश्रित होने का अर्थ है वह स्थिति जिसमें शरीर को कार्य करने के लिए वह चीज़ चाहिए जो वह बार-बार प्रयोग करता है। यदि उस चीज़ को शरीर को देना बन्द कर दिया जाए तो शरीर के कार्य करने की प्रक्रिया पर उल्टा प्रभाव पड़ेगा तथा उसके शरीर पर गलत प्रभाव दिखने लग जाएंगे। इस सारे का प्रभाव यह दिखेगा कि वह चीज़ नहीं है जिसकी उसे ज़रूरत है।

एक व्यक्ति जो लगातार नशे का प्रयोग करता है वह पहली बार ड्रग लेने के बाद लगातार उसकी मात्रा बढ़ाता रहता है ताकि उसका वही प्रभाव कायम रहे जो उस पर पहली बार पड़ा था। यह प्रक्रिया बर्दाशत (Tolerance) कहलाती है। इसमें शरीर की उस बाहर की चीज़ में प्रति क्षमता को दिखाया जाता है।

मानसिक तौर पर व्यक्ति उस समय ड्रग पर आश्रित होता है जब उसे लगने लगे कि इस ड्रग का लेना ही उसके शरीर के लिए अच्छा है या उस ड्रग के प्रभाव उस पर अच्छे पड़ते हैं। शब्द आदत को कभी-कभी दिमागी आश्रित के तौर पर भी लिया जा सकता है। इस रूप में आदत का अर्थ होता है कि शरीर उस ड्रग पर इतना ज्यादा या उस ड्रग के प्रभावों पर इतना ज़्यादा आश्रित है कि वह उसके बिना कुछ नहीं कर सकता है। इस तरह नशाखोरी का मतलब नशा करने की आदत से है। यह आदत इस हद तक जा सकती है कि व्यक्ति इसके अतिरिक्त कुछ सोचता ही नहीं है। इस नशे के प्रभाव का व्यक्ति पर इतना असर होता है कि उसका शरीर इसके अतिरिक्त किसी चीज़ को Respond नहीं करता है। यदि शरीर को नशे की मात्रा मिलती रहे तो वह सही तरीके से उस नशे के प्रभाव में काम करेगा। यदि शरीर को नशा न मिल पाया तो उसके गम्भीर परिणाम व्यक्ति के सामने आने शुरू हो जाते हैं। उसका शरीर नशा प्राप्त करने के लिए तड़पने लगता है तथा वह किसी भी हालत में तथा किसी भी कीमत पर नशा प्राप्त करने की कोशिश करता है। इस तरह ड्रग व्यक्ति पर इस कदर हावी हो जाता है कि वह हमेशा नशे के प्रभाव में रहना चाहता है।

समाधान-यदि हम नशे की आदत को रोकना चाहते हैं तो इसके लिए समाज को मिलकर कोशिश करनी पड़ेगी क्योंकि किसी समस्या का समाधान एक या दो व्यक्तियों की कोशिशों की वजह से नहीं हो सकता, बल्कि इसके लिए सामूहिक कोशिश की ज़रूरत होती है। यदि कोई व्यक्तिगत रूप से इसको दूर करने के कोशिश करता है तो वह ज़्यादा से ज़्यादा अपनी समस्या दूर कर सकता है न कि समाज की। फिर भी इस समस्या के निवारण के कुछ उपाय निम्नलिखित हैं-

1. लोगों को इसके विरुद्ध जागृत करना-लोगों को नशे की आदत के विरुद्ध जागृत करना चाहिए। इसके लिए सरकार समाज-सेवी संस्थाएं, शिक्षण संस्थाएं बहुत कुछ कर सकती हैं। यह सब लोगों को नशे के नुकसान के बारे में बता सकते हैं कि नशे के क्या-क्या नुकसान हो सकते हैं। स्कूलों में, कॉलेजों में, विश्वविद्यालयों में, होस्टलों में, झोंपड़ पट्टियों में इसके ऊपर सैमीनार आयोजित किए जा सकते हैं। कई और साधनों जैसे नुक्कड़ नाटकों इत्यादि के जरिए उनको इनके नुकसान के बारे में बताया जा सकता है कि यह न केवल शरीर की बल्कि पैसे की बर्बादी भी करते हैं। इन तरीकों से हम विद्यार्थियों को तथा आम जनता को नशे के विरुद्ध कर सकते हैं।

2. डॉक्टरों का रवैया (Attitude) बदल कर-नशे की आदत दूर करने में डॉक्टर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। देखा जाता है कि डॉक्टर मरीज़ को ठीक करने के लिए नशे वाली दवा दे देते हैं जिसकी मरीज को आदत पड़ जाती है। वह इसके बगैर नहीं रह सकता। यदि डॉक्टर अपना इस तरह का रवैया बदल कर मरीजों को नशे मिली दवा देनी बन्द कर दें तो भी इस समस्या का काफ़ी हद तक निवारण किया जा सकता है तथा लोगों की नशे की आदत को छुड़वाया जा सकता है।

3. नशे के आदियों के बारे में जानकारी-यदि कोई नशा करना शुरू करता है तो उसके पीछे कोई कारण होता है। बगैर किसी कारण के कोई इस समस्या का शिकार नहीं होगा। इसका हल इस तरह निकल सकता है कि उस व्यक्ति की पिछली ज़िन्दगी के बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए ताकि हम उस कारण को जान सकें जिस वजह से व्यक्ति ने नशा करना शुरू किया। यदि उस कारण का पता चल गया तो उस कारण को दूर करके इस समस्या का निवारण किया जा सकता है। इसलिए नशाखोरों के बारे में जानकारी प्राप्त करने से यह समस्या दूर हो सकती है।

4. माता-पिता का बच्चों के प्रति व्यवहार-कई बार देखने में आया है कि घरेलू व्यवहार नशे की आदत का एक कारण बनता है। माता-पिता के बीच समस्या, उनका बच्चों को समय न दे पाना या बच्चों के प्रति प्यार भरा व्यवहार न होना, बच्चों को नशे की तरफ ले जाता है। इसके लिए माता-पिता को बच्चों के प्रति अपना व्यवहार बदलना चाहिए। माता-पिता को बच्चों की प्रत्येक चीज़ का ध्यान करना चाहिए, उनका खाना-पीना, उनकी संगति, प्यार इत्यादि सभी चीज़ों का ध्यान रखना चाहिए, ताकि बच्चे नशे के प्रति आकर्षित न हों। माता-पिता को बच्चों को नशे के गलत प्रभावों की जानकारी भी देनी चाहिए।

5. नशा बेचने वालों को सज़ा देना-किसी को नशे की आदत लगाना उसकी ज़िन्दगी से खेलना है। इसलिए जो नशे का व्यापार करते हैं उन्हें सख्त सजा देनी चाहिए, क्योंकि जो एक बार नशे का आदी हो जाता है उसका अंत मौत पर ही जाकर रुकता है। इसलिए लोगों की ज़िन्दगी से खेलने वालों को सख्त सज़ा देकर हम समाज के लिए एक उदाहरण स्थापित कर सकते हैं कि कोई दोबारा ऐसी हरकत करने की कोशिश न करे।

6. उन पुलिस वालों तथा कानून के रखवालों को भी सख्त-से-सख्त सजा देनी चाहिए जो नशे का व्यापार करने वालों की मदद करते हैं। पुलिस की मदद के बिना समाज में कोई अपराध कर पाना बहुत मुश्किल है। इसलिए पुलिस पर नकेल डालनी चाहिए ताकि नशे का धंधा फलने-फूलने की बजाए बन्द हो जाए।

7. शिक्षक का योगदान-नशे की आदत को रोकने के लिए शिक्षक काफ़ी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। शिक्षक चाहे स्कूल में हों, कालेज में हों या विश्वविद्यालय में हों विद्यार्थी पर बहुत गहरा प्रभाव डालते हैं। यह शिक्षक ही होता है जो विद्यार्थी का जीवन संवारता है। ज़रा सोचिए कि यदि समाज से शिक्षक गायब हो जाएं तो क्या होगा। शिक्षक की बात हर विद्यार्थी मानता है। यहां पर शिक्षक एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। यह देखा गया है कि नशे करने की आदत छोटी उम्र में ही पड़ जाती है। शिक्षक बच्चों को इसके बुरे प्रभावों के बारे में बता सकता है कि इससे उनके शरीर, उनके भविष्य, उनके माता-पिता इत्यादि पर क्या प्रभाव पड़ेंगे। इस तरह बच्चे जो शिक्षक को अपना आदर्श मानते हैं उसकी बात मानकर नशे का विरोध कर सकते हैं।

8. मानसिकता को बदलना-नशे की आदत को कम करने के लिए अथवा खत्म करने के लिए लोगों की मानसिकता को भी बदलना चाहिए। उनको नशे के गलत प्रभावों के बारे में बताना चाहिए ताकि लोग इस आदत को छोड़ सकें। इसके लिए सैमीनार आयोजित किए जा सकते हैं, कैम्प लगाए जा सकते हैं, गली-नुक्कड़ों पर नाटक किए जा सकते हैं ताकि लोगों को इनके गलत प्रभावों के बारे में पता चल सके।

9. समाज-सेवी संस्थाओं का योगदान-मादक द्रव्य व्यसन की आदत को कम करने में समाज सेवी संस्थाएं महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। यह लोगों में चेतना जागृत कर सकते हैं, उनको नशे की आदत के गलत प्रभावों के बारे में बता सकते हैं तथा कार्यक्रम आयोजित कर सकते हैं। इसके लिए सरकार इन्हें वित्तीय सहायता भी दे सकती है।
इस प्रकार यदि लोग एक-दूसरे से मिलकर कार्य करें तथा सरकार प्रयत्न करे तो मादक द्रव्य व्यसन की आदत को काफ़ी कम किया जा सकता है।

प्रश्न 7.
नशा व्यसन के उत्तरदायी कारणों की विस्तार से चर्चा करें।
उत्तर-
वैसे तो मादक द्रव्य व्यसन के बहुत-से कारण हो सकते हैं जैसे संगति, परिवार का कम नियन्त्रण, मज़ा करने की इच्छा, बड़ों को देख कर ऐसा करना इत्यादि पर कुछ महत्त्वपूर्ण कारणों का वर्णन निम्नलिखित है
नशे की आदत के कारणों को हम चार भागों में बांट सकते हैं-

1. मानसिक कारण (Psychological Causes)-

(i) तनाव घटाना-कई लोग नशे के इसलिए आदी हो जाते हैं क्योंकि वह तनाव कम करना चाहते हैं। कई व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनको कई प्रकार की परेशानियां या समस्याएं होती हैं। जब उनसे इन समस्याओं का समाधान नहीं हो पाता तो वह अपना तनाव कम करने के लिए नशे का सहारा लेते हैं। इस तरह धीरे-धीरे वह नशे के आदी हो जाते हैं। इस तरह तनाव दूर करने के लिए नशे लेने से व्यक्ति धीरे-धीरे नशे के आदी हो जाते हैं।

(ii) उत्सुकता पूरी करना-कई व्यक्तियों में यह जानने की उत्सुकता होती है कि यदि कोई नशा किया जाए तो कैसा महसूस होता है। इस तरह वह पहली बार उत्सुकता के लिए नशा करता है पर धीरे-धीरे उसे इस नशे की आदत पड़ जाती है। इस तरह उत्सुकता पूरी करते समय वह नशे का आदी हो जाता है।

(iii) तनाव कम करना-कई व्यक्तियों के पास कोई काम नहीं होता है। इसलिए वह अपना समय बिताने के लिए नशा करना शुरू करते हैं, पर धीरे-धीरे उनको इसकी आदत पड़ जाती है। केवल काम ही नहीं और बहुत से कारण हैं जिनसे व्यक्ति में तनाव आ जाता है। उदाहरण के तौर पर उसकी आय कम है, व्यापार ठीक प्रकार से नहीं चल रहा है, घर में पत्नी के व्यवहार से परेशानी है, बच्चों की पढ़ाई की चिंता है, दफ्तर के कार्य से अथवा बॉस के व्यवहार से परेशान है इत्यादि। इन सभी कारणों के अतिरिक्त और बहुत-से कारण हो सकते हैं जिनसे व्यक्ति में तनाव आ सकता है। तनाव पूरी तरह तो दूर नहीं हो सकता है परन्तु कुछ समय के लिए तो दूर हो सकता है। इसलिए कुछ समय के लिए तनाव को दूर करने के लिए वह और कुछ नहीं तो शराब का सहारा लेते हैं जिससे तनाव कम हो जाता है।

(iv) आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए-कई व्यक्ति अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भी नशा करते हैं जैसे कोई व्यक्ति किसी काम को करने के लिए जा रहा है पर उसे थोड़ी शंका होती है कि शायद वह यह काम नहीं कर पाएगा इसलिए वह अपने आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए नशा कर लेता है। इसके बाद हर काम से पहले वह नशा करता है तथा धीरे-धीरे वह नशे का आदी हो जाता है।

2. सामाजिक कारण (Social Causes) –

  • दोस्तों की वजह से कई बार अपने दोस्तों की वजह से भी व्यक्ति नशा करने का आदी हो जाता है। यदि किसी के दोस्त नशा करते हैं तो वे दोस्त उसे नशा करने को कहते हैं। उसके मना करने पर वे उसका मज़ाक उड़ाते हैं। इस मज़ाक से बचने के लिए वह थोड़ा सा नशा कर लेता है। इस तरह जब भी वह अपने दोस्तों से मिलता है थोड़ा सा नशा कर लेता है। धीरे-धीरे वह नशे का आदी हो जाता है।
  • पारिवारिक कारण-यदि कोई बच्चा नशा करना शुरू करता है तो हो सकता है कि उसके परिवार में कोई समस्या हो। हो सकता है कि उसके मां-बाप की न बनती हो तथा उसको इससे तनाव रहता है। उसके मां-बाप उसे समय न देते हों, उस पर नियन्त्रण की कमी हो। यदि कोई बड़ा नशे का आदी है तो हो सकता है कि उसकी पत्नी से उसकी हमेशा लड़ाई रहती हो, उसके बच्चों की वजह से उसे कोई परेशानी हो, कोई आर्थिक कारण हो। इस तरह पारिवारिक कारण भी नशाखोरी का कारण बनता है।
  • बड़ों को देखकर इच्छा जागना-यदि कोई बच्चा नशा करना शुरू करता है तो हो सकता है कि उसे घर के बड़ों को नशा करते देख यह इच्छा जागी हो कि नशा करके देखना चाहिए। जब बड़े नशा करते हैं तो बच्चे इनको बड़े ध्यान से देखते हैं कि वह क्या कर रहे हैं। इनके बाद वह भी ऐसा ही करने की कोशिश करते हैं तथा धीरे-धीरे नशे के आदी हो जाते हैं।
  • सामाजिक मूल्यों के विरोध के लिए कई बार व्यक्ति सामाजिक मूल्यों का विरोध करने के लिए भी नशा करने लग जाता है। उसे इस बात से रोका जाता है कि नशा नहीं करना चाहिए। उसे इतना रोका जाता है कि वह आवेग में आकर उसका विरोध करने के लिए नशा करने लगता है।

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3. शारीरिक कारण (Physiological Causes)-

  • जागते रहने के लिए-कई लोग सिर्फ जागते रहने के लिए नशा करना शुरू कर देते हैं। कइयों का काम रात का होता है पर उनको नींद आती है। इस वजह से वह जागते रहने के लिए नशे का सहारा लेते हैं। कइयों की कई प्रकार की परेशानियां होती हैं। यदि नींद आएगी तो वह परेशानियां सताएंगी इस वजह से वह जागते रहने के लिए नशे का सहारा लेते हैं।
  • कामुक अनुभव को बढ़ाना-कई लोगों में कामुकता ज़्यादा होती है इसलिए वह अपने कामुक अनुभव को ज़्यादा-से-ज्यादा बढ़ाना चाहते हैं। इस वजह से वह नशा करते हैं ताकि इसके अनुभव का प्रभाव ज्यादा-से-ज्यादा प्राप्त हो। इसलिए वे नशा ले लेते हैं।
  • नींद के लिए-कई लोगों को नींद न आने की समस्या होती है। इसमें चाहे हम उसके शारीरिक कारणों को सम्मिलित कर लेते हैं या सामाजिक कारणों को। पर उनको नींद चाहिए होती है। इसलिए वे नींद की गोलियां या कोई और नशा लेने लग जाते हैं ताकि नींद आ सके।

4. अन्य कारण (Miscellaneous Causes)-

  • पढ़ने के लिए-कई लोग पढ़ने के लिए भी ड्रग या नशे का सहारा लेते हैं। कइयों को पढ़ते वक्त नींद आती है इस वजह से वह शुरू-शुरू में कोई नशा करता है ताकि उसे नींद न आए। पर धीरे-धीरे वह इस नशे का आदी हो जाता है तथा वह हमेशा पढ़ने से पहले नशा करता है।
  • इसमें हम कई चीज़ों को ले सकते हैं जैसे (Deepening Self-understanding तथा Solving Personal Problems)—-इन वजहों से या समस्याओं की वजह से व्यक्ति नशा करना शुरू करता है पर धीरे-धीरे वह इसका आदी हो जाता है। इस तरह अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को दूर करते-करते वह एक नई समस्या का शिकार हो जाता है।

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न (OTHER IMPORTANT QUESTIONS)

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

A. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
इनमें से कौन-सी अवस्था सामाजिक समस्या की है ?
(क) समाज के अधिकतर लोग प्रभावित होते हैं।
(ख) यह एक अवांछनीय स्थिति होती है।
(ग) सामाजिक मूल्यों में संघर्ष होता है।
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
इनमें से कौन-सा सामाजिक समस्या का आर्थिक कारक है ?
(क) बेरोज़गारी
(ख) निर्धनता
(ग) गंदी बस्तियां
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
जो वर्ष में एक-दो बार पीता हो उसे क्या कहते हैं ?
(क) दुर्लभ उपभोगी
(ख) कभी-कभी उपभोग करने वाले
(ग) हल्के उपभोगी
(घ) नियमित उपभोगी।
उत्तर-
(क) दुर्लभ उपभोगी।

प्रश्न 4.
उस व्यक्ति को क्या कहते हैं जो सुबह से ही पीना शुरू कर देता है ?
(क) नियमित उपभोगी
(ख) हल्के उपभोगी
(ग) भारी उपभोगी
(घ) दुर्लभ उपभोगी।
उत्तर-
(ग) भारी उपभोगी।

प्रश्न 5.
इनमें से कौन-सा नशे का प्रकार है ?
(क) अफीम
(ख) कोकीन
(ग) चरस
(घ) उपर्युक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपर्युक्त सभी।

B. रिक्त स्थान भरें-

1. …………. के हालात समाज के लिए अवांछनीय होते हैं।
2. ………….. भी एक प्रकार का नशा है जिसे पिया जाता है।
3. हैरोइन, अफीम, कोकीन इत्यादि ………… की श्रेणी में आते हैं।
4. ………….. तथा ……….. बच्चों को नशे से दूर रखने में काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
5. …………… करने से व्यक्ति के स्वास्थ्य पर काफी गलत प्रभाव पड़ता है।
उत्तर-

  1. सामाजिक समस्या
  2. शराब
  3. नारकोटिक्स
  4. स्कूल, अध्यापक
  5. नशा।

C. सही/ग़लत पर निशान लगाएं-

1. सामाजिक समस्या समाज के अधिकतर लोगों को प्रभावित करती है।
2. गांजा एक नारकोटिक है।
3. नशा करने वाला व्यक्ति हमेशा नशा करने की इच्छा में रहता है।
4. केंद्रीय सरकार ने 1955 में The Narcotic Drugs and Psychotropic Substance Act बनाया
5. सामाजिक समस्या में सामाजिक मूल्यों में संघर्ष नहीं होता।
उत्तर-

  1. सही
  2. सही
  3. सही
  4. गलत
  5. गलत।

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II. एक शब्द/एक पंक्ति वाले प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. सामाजिक समस्या क्या होती है ?
उत्तर-सामाजिक समस्या वह अवांछनीय स्थिति है जिन्हें सभी लोग बदलना चाहते हैं।

प्रश्न 2. सामाजिक समस्या किस पर निर्भर करती है ?
उत्तर-सामाजिक समस्या समाज की कीमतों तथा मूल्यों पर निर्भर करती है।

प्रश्न 3. सामाजिक समस्या समाज के कितने व्यक्तियों को प्रभावित करती है ?
उत्तर- यह समाज के अधिकतर व्यक्तियों को प्रभावित करती है।

प्रश्न 4. सामाजिक समस्या के सामाजिक सांस्कृतिक कारक बताएं।
उत्तर-अस्पृश्यता, पितृ प्रधान समाज, भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा इत्यादि।

प्रश्न 5. सामाजिक समस्या के आर्थिक कारक बताएं।
उत्तर-निर्धनता, बेरोजगारी, गंदी बस्तियां, अनपढ़ता, अपराध इत्यादि।

प्रश्न 6. मद्यपान क्या होता है ?
उत्तर- जब व्यक्ति आवश्यकता से अधिक शराब पीने लग जाए उसे मद्यपान कहते हैं।

प्रश्न 7. दुर्लभ उपभोगी कौन होता है ?
उत्तर- जो व्यक्ति वर्ष में एक-दो बार मद्यपान करता है उसे दुर्लभ उपभोगी कहते हैं।

प्रश्न 8. कभी-कभी उपभोग करने वाला कौन होता है ?
उत्तर-जो दो-तीन महीनों में एक बार पीता है।

प्रश्न 9. हल्के उपभोगी कौन होते हैं ?
उत्तर- जो महीने में एक-दो बार पीते हैं उन्हें हल्के उपभोगी कहते हैं।

प्रश्न 10. नियमित उपभोगी कौन होते हैं ?
उत्तर-महीने में तीन या चार बार पीने वाले को नियमित उपभोगी कहते हैं।

प्रश्न 11. भारी पियक्कड़ कौन होता है ?
उत्तर-जो रोज़ पीता है, वह भारी पियक्कड़ होता है।

प्रश्न 12. भारत की कितनी वयस्क जनसंख्या जीवन में कभी न कभी शराब पीती है ?
उत्तर-32-42% वयस्क जनसंख्या।

प्रश्न 13. मद्यपान का एक कारण बताएं।
उत्तर-लोग अपनी चिंताओं को भुलाने के लिए शराब पीते हैं।

प्रश्न 14. मद्यपान का एक प्रभाव बताएं।
उत्तर- मद्यपान से पैसे और स्वास्थ्य की बर्बादी होती है।

प्रश्न 15. ड्रग क्या है ?
उत्तर-ड्रग ऐसा कैमीकल होता है जो हमारे शरीर के शारीरिक तथा मानसिक कार्य करने की शक्ति पर प्रभाव डालता है।

प्रश्न 16. किन्हीं चार नारकोटिक पदार्थों के नाम बताएं।
उत्तर-अफीम, कोकीन, हैरोइन, चरस, गांजा, मारीजुआना इत्यादि।

प्रश्न 17. The Narcotic Drugs and Psychotropic Substance Act कब पास हुआ था ?
उत्तर-यह कानून 1985 में पास हुआ था।

III. अति लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक समस्या की दो विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  • सामाजिक समस्या ऐसी अवांछनीय स्थिति होती है जिनसे समाज के अधिकतर सदस्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होते हैं।
  • सामाजिक समस्या के बारे में समाज के अधिकतर लोग यह मानते हैं कि इन अवांछनीय स्थितियों का हल निकालना आवश्यक होता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक समस्या के सामाजिक सांस्कृतिक कारण लिखें।
उत्तर-
भारत में बहुत से धर्मों, जातियों, अलग-अलग भाषाएं बोलने वाले लोग रहते हैं जिस कारण यहाँ बहुतसी सामाजिक सांस्कृतिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। अस्पृश्यता, भ्रूण हत्या, दहेज, घरेलू हिंसा, स्त्रियों के विरुद्ध हिंसा इत्यादि भी कई प्रकार की समस्याएं हैं जो यहां पर मिलती हैं।

प्रश्न 3.
मद्यपान के तीन कारण लिखें।
उत्तर-

  1. लोग अपनी चिंताओं को खत्म करने के लिए मद्यपान करते हैं।
  2. लोगों का पेशा उन्हें थका देता है जिस कारण वे मद्यपान करना शुरू कर देते हैं।
  3. कई लोग अपने मित्रों के साथ बैठना पसंद करते हैं तथा उनके साथ मद्यपान करना शुरू कर देते हैं।

प्रश्न 4.
नशीली दवाओं के व्यसन के तीन कारण लिखें।
उत्तर-

  1. कई बार मित्र समूह व्यक्ति को नशा करने के लिए बाध्य करते हैं।
  2. कई बार व्यक्ति स्वयं को अकेला महसूस करता है तथा अकेलेपन को दूर भगाने के लिए नशा करना शुरू कर देता है।
  3. कई लोग जीवन के हालातों का मुकाबला नहीं कर सकते तथा उनसे दूर भागने के लिए नशा करना शुरू कर देते हैं।

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IV. लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मद्यपान।
उत्तर-
मद्यपान उस स्थिति को कहते हैं जिसमें व्यक्ति मदिरा लेने की मात्रा पर नियन्त्रण नहीं रख पाता है जिससे वह सेवन करने को शुरू करने के बाद उसे बन्द नहीं कर सकता है।
केलर तथा एफ्रोन (Keller and Affron) के अनुसार, “मद्यपान का लक्षण मदिरा का इस सीमा तक बार-बार पीना है जोकि उसके प्रथागत उपयोग अथवा समाज के सामाजिक रिवाजों के अनुपालन से अधिक है और जो पीने वाले के स्वास्थ्य या उसके सामाजिक अथवा आर्थिक कार्य करने को प्रभावित करता है।”

प्रश्न 2.
मद्यसारिक व्यक्ति।
उत्तर-
मद्यसारिक अथवा शराबी व्यक्ति वह व्यक्ति है जो मदिरा का सेवन करता है अथवा पीने वाला होता है। मजबूरी में पीने वाला व्यक्ति (Compulsive) मदिरा पिए बिना नहीं रह सकता है। इस तरह जो व्यक्ति मदिरा पिए बिना नहीं रह सकता उसे मद्यसारिक व्यक्ति अथवा शराबी कहते हैं। उसका अपने ऊपर नियन्त्रण कम हो जाता है। वह रोजाना पीते-पीते इतना आगे निकल जाता है कि वह बिना पिए कोई कार्य भी नहीं कर सकता है। बिना पिए उसके हाथ पैर कांपने लगते हैं।

प्रश्न 3.
मद्यसारिक व्यक्तियों के प्रकार।
उत्तर-

  • विरले मद्यसारिक जो वर्ष में एक या दो बार पीते हैं।
  • अनित्य मद्यसारिक जो दो तीन महीने में एक या दो बार शादी विवाह में पीते हैं।
  • हल्का प्रयोक्ता मद्यसारिक जो महीने में एक या दो बार पीते हैं।
  • मध्यम प्रयोक्ता मद्यसारिक जो अपनी छुट्टी का आनन्द लेने के लिए महीने में तीन-चार बार पीते हैं।
  • भारी प्रयोक्ता मद्यसारिक जो प्रतिदिन अथवा दिन में कई बार पीते हैं।

प्रश्न 4.
मद्यपान का कारण-व्यवसाय।
उत्तर-
बहुत-से मामलों में व्यवसाय मद्यपान का कारण बनता है। कई लोगों का व्यवसाय ऐसा होता है कि वे काम करते-करते इतना थक जाते हैं कि उन्हें अपने आपको दोबारा कार्य करने के लिए किसी चीज़ की आवश्यकता होती है। इससे उनकी थकावट भी मिट जाती है तथा उन्हें अगले दिन कार्य करने के लिए प्रेरणा भी मिलती है। कई लोग अपने व्यवसाय से जुड़े और लोगों को खुश करने के लिए भी मद्यपान करना शुरू कर देते हैं। उदाहरण के लिए किसी कर्मचारी को अपने मालिक को खुश करने के लिए मालिक के साथ मदिरा पीनी पड़ती है जिससे वह मदिरा का आदी हो जाता है। इस तरह व्यवसाय के कारण व्यक्ति को मदिरा पीनी पड़ती है तथा वह इसका आदी हो जाता है।

प्रश्न 5.
मानसिक तनाव-मद्यपान का कारण।
उत्तर-
प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी तनाव का शिकार होता है। किसी के पास पैसा नहीं है तो उसे अपना घर चलाने का तनाव है, किसी के पास पैसा है तो उसे सम्भालने की चिन्ता है, किसी को व्यापार की चिन्ता है, किसी को दफ़्तर की चिन्ता है, कोई निर्धनता से परेशान है तो कोई अपने मालिक, बॉस या बीवी से, किसी को व्यापार में घाटा होने की चिन्ता है तो किसी को प्रतिस्पर्धा की। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति किसी-न-किसी मानसिक चिन्ता का शिकार है। यदि वह शराब पीता है तो यह शराब उसके स्नायु तन्त्र को कुछ समय के लिए शिथिल कर देती है तथा कम-सेकम कुछ समय के लिए उसे मानसिक तनाव से मुक्ति मिल जाती है।

प्रश्न 6.
निर्धनता-मद्यपान का कारण।
उत्तर-
निर्धन व्यक्ति को हमेशा पैसा कमाने की चिन्ता रहती है। उसके परिवार के सदस्य तो अधिक होते हैं परन्तु कमाने वाला वह अकेला ही होता है। इसलिए घर का खर्च तो अधिक होता है परन्तु आय काफ़ी कम होती है। बच्चों को पढ़ाने, कपड़े, खाने की चिन्ता उसे हमेशा ही लगी रहती है। इसलिए वह चिन्ता से दूर होने के लिए शराब का सहारा ले लेता है। शराब पीने से उसे कुछ समय के लिए चिन्ताओं तथा तनाव से मुक्ति मिल जाती है। इस तरह वह धीरेधीरे अधिक मात्रा में शराब पीनी शुरू कर देता है तथा वह महामारिक हो जाता है।

प्रश्न 7.
मादक द्रव्य व्यसन।
उत्तर-
जब व्यक्ति किसी ऐसे पदार्थ का उपयोग करता है जिससे उसका शरीर उस पदार्थ अथवा द्रव्य पर निर्भर हो जाता है तो उसे मादक द्रव्य व्यसन कहा जाता है। द्रव्य वह चीज़ है जो मस्तिष्क तथा नाड़ी मण्डल को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करता है। इस तरह जब व्यक्ति उस द्रव्य पर इतना अधिक निर्भर हो जाता है कि उसके बिना रह ही नहीं सकता है तो उसे मादक द्रव्य व्यसन कहा जाता है।

प्रश्न 8.
द्रव्य दुरुपयोग।
उत्तर-
जब व्यक्ति किसी अवैध द्रव्य का सेवन करने लग जाता है अथवा वैध द्रव्य का गलत प्रयोग (Misuse) करने लग जाता है तो उसे द्रव्य दुरुपयोग कहा जाता है। इससे उसको शारीरिक तथा मानसिक नुकसान पहुंचता है। कोकीन तथा एल० एस० डी० का प्रयोग, हेरोइन का प्रयोग, हशीश या गांजे को पीना, मद्यपान करना इत्यादि सभी इसमें शामिल हैं। इसका प्रयोग करने पर उसे असीम आनन्द आता है, वह आमोद यात्रा (Trip) पर चला जाता है। इसको पीने के बाद ही वह कुछ कार्य नही कर सकता है अन्यथा इसके बिना वह कुछ भी नहीं कर सकता है।

प्रश्न 9.
द्रव्य निर्भरता।
उत्तर-
जब व्यक्ति किसी वैध अथवा अवैध द्रव्य का रोज़ सेवन करने लग जाता है तथा उसका सेवन किए बिना रह नहीं सकता है तो उसे द्रव्य निर्भरता कहते हैं। निर्भरता शारीरिक भी होती है तथा मानसिक भी। जब व्यक्ति लगातार किसी द्रव्य का बार-बार सेवन करता है तथा द्रव्य को अपने अन्दर समा लेता है तो इसे शारीरिक निर्भरता कहते हैं। परन्तु जब द्रव्य बन्द करने से उसे दर्द, पीड़ा होती है तो शारीरिक हानि के साथ मानसिक हानि भी होती है।

प्रश्न 10.
मादक द्रव्य व्यसन की विशेषताएं।
उत्तर-

  • मादक द्रव्य व्यसन में व्यक्ति को द्रव्य प्राप्त करने की बहुत तेज़ इच्छा जागती है।
  • इस स्थिति में उसे द्रव्य किसी भी ढंग से प्राप्त करना होता है नहीं तो शरीर शिथिल पड़ जाता है।
  • मादक द्रव्य व्यसन में द्रव्य बढ़ाते रहने की प्रवृत्ति होती है।
  • मादक द्रव्य व्यसन में व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक तौर पर नशीली दवाओं पर निर्भर हो जाता है।

प्रश्न 11.
मादक द्रव्यों के प्रकार।
अथवा नशे के कोई दो प्रकार लिखिए।
उत्तर-

  1. शराब (Liquor)
  2. शान्तिकर पदार्थ (Sedatives)
  3. नारकोटिक्स (Narcotics)
  4. उत्तेजक पदार्थ (Stimulants)
  5. भ्रमोत्पादक पदार्थ (Hallucinogens)
  6. निकोटीन अथवा तम्बाकू (Nicotine)।

प्रश्न 12.
मादक द्रव्य व्यसन के मानसिक कारण।
उत्तर-

  • जब व्यक्ति अपने ऊपर पड़े तनाव को घटाना चाहता है तो वह मादक द्रव्यों का प्रयोग करने लग जाता है।
  • कई व्यक्तियों में यह जानने की इच्छा होती है कि नशा किए जाने पर कैसे महसूस होता है तो भी वह नशा करने लग जाते हैं।
  • बेरोज़गार व्यक्ति अपना समय पास करने के लिए भी इसका व्यसन करना शुरू कर देते हैं।
  • कई लोग आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए भी इसका प्रयोग करना शुरू कर देते हैं।

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प्रश्न 13.
मादक द्रव्य व्यसन के सामाजिक कारण।
उत्तर-

  • कई बार व्यक्ति के दोस्त उसे नशा न करने के लिए उसका मज़ाक उड़ाते हैं जिस कारण वह नशा करने लग जाता है।
  • घर में लड़ाई-झगड़े के कारण भी लोग नशा करना शुरू कर देते हैं ताकि उसे कोई तनाव न हो।
  • कभी-कभी व्यक्ति में बड़ों को देखकर नशा करने की इच्छा जागती है जिससे वह नशा करना शुरू कर देता

प्रश्न 14.
मादक द्रव्य व्यसन को रोकने के उपाय।
उत्तर-

  • लोगों को नशा न करने के विरुद्ध जागृत करना चाहिए ताकि वे नशा न करने की प्रेरणा ले सकें।
  • डॉक्टरों को अपने मरीज़ों को नशे की दवाओं को देने से बचना चाहिए ताकि वे नशे के आदी न होने पाएं।
  • लोगों को नशे के नुकसानों के बारे में जानकारी देनी चाहिए ताकि लोग इससे दूर रहें।
  • माता-पिता को अपने बच्चों से दोस्तों सा व्यवहार करना चाहिए तथा उन्हें नशे के गलत परिणामों के बारे में लगातार उन्हें बताना चाहिए ताकि वे नशे से दूर रहें।

V. बड़े उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
मद्यपान को कैसे रोका जा सकता है? वर्णन करें।
अथवा
मद्यपान की समस्या का समाधान कैसे हो सकता है ?
उत्तर-
मद्यपान एक ऐसी समस्या है जिसका सामना हमारा समाज पिछले काफी समय से कर रहा है। इस समस्या से न केवल व्यक्ति स्वयं ही बल्कि उसका परिवार और समाज भी विघटित हो जाता है। उसमें नैतिकता खत्म हो जाती है, वह अपराध करने लग जाता है तथा उसका स्वास्थ्य भी खराब हो जाता है। इस तरह व्यक्ति पर इसके बहुत-से दुष्परिणाम निकलते हैं। हमें इस समस्या को मिलकर सुलझाना चाहिए ताकि समाज को विघटित होने से बचाया जा सके। सरकार तथा समाज सेवी संस्थाएँ इसमें बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इस समस्या को निम्नलिखित ढंगों से रोकने के प्रयास किए जा सकते हैं

(1) सबसे पहले तो व्यक्ति को स्वयं ही इस बात के लिए प्रेरित करना चाहिए कि वह मद्यपान की शुरुआत ही न करे। जब वह मद्यपान करना शुरू ही नहीं करेगा तो इसका आदी कैसे होगा। परिवार इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। परिवार के बड़े बुजुर्ग भी मद्यपान न करके बच्चों के सामने प्रेरणा बन सकते हैं। बड़े बुजुर्ग बच्चों को इसके दुष्परिणामों के बारे में बता सकते हैं। समय-समय पर उन्हें इसके बारे में प्यार से बिठा कर शिक्षा दे सकते हैं ताकि वे रास्ते से न भटक जाएं।

(2) सरकार इसके लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। सरकार मद्यपान निषेध की नीति की घोषणा कर सकती है। राज्य में शराब बन्दी लगा सकती है। जो लोग फिर भी शराब बेचें या खरीदें उन्हें कठोर दण्ड देना चाहिए ताकि लोग इससे डर जाएं तथा शराब का व्यापार करना ही बन्द कर दें। सरकार को शराब पीने वालों को भी हतोत्साहित करना चाहिए ताकि वे शराब को छोड़ दें।

(3) डाक्टर यदि मद्यसारिक व्यक्तियों का इलाज करते हैं तो उनके मन में उनके प्रति नफरत होती है। इससे मद्यसारिक व्यक्ति को काफ़ी ठेस पहुंचती है। इसके लिए डाक्टरों को अपने व्यवहार को परिवर्तित करना चाहिए ताकि शराबी व्यक्ति अपना दिल लगाकर शराब छोड़ने की प्रक्रिया में अपना योगदान दे सकें। डाक्टरों को शराबियों के प्रति दया से भरपूर रहना चाहिए ताकि रोगी को ठेस न पहुँचे।

(4) शराबबन्दी तथा शराब न पीने के लिए जोरदार प्रचार करना चाहिए। सरकार, समाज सेवी संस्थाएँ तथा लोग इसके लिए टी०वी, रेडियो, समाचार पत्र, मैगज़ीनों इत्यादि का सहारा ले सकते हैं तथा इसके दुष्परिणामों के विरुद्ध जोर शोर से प्रचार कर सकते हैं। शिक्षा संस्थाएँ भी इसके लिए आगे आ सकती हैं। वे अपने संस्थानों में पढ़ रहे बच्चों को इसके लिए जागृत कर सकती हैं। समय-समय पर इसके बारे में सैमीनार, लैक्चर इत्यादि करवाए जा सकते हैं ताकि लोग इस समस्या से दूर ही रहें।

(5) आमतौर पर शराब को मनोरंजन के तौर पर प्रयोग किया जाता है। परन्तु यदि इसे बंद कर दिया गया तो लोगों के मनोरंजन का साधन बंद हो जाएगा। इसके लिए सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थान मिलकर मनोरंजन केन्द्रों की स्थापना कर सकते हैं ताकि लोग अपना समय शराब पीने की बजाए इन केन्द्रों पर जाकर व्यतीत कर सकते हैं।

(6) लोगों को इस समस्या के बारे में जागृत करना चाहिए। यह समस्या इतनी बड़ी है कि उसे एक दो दिन में ही हल नहीं किया जा सकता। इसके लिए लोगों को समय-समय पर जागृत करने की आवश्यकता होती है। हमारे देश में अनपढ़ता के कारण लोग इस समस्या के दुष्परिणामों के बारे में अनजान है। लोगों को शराब न पीने की शिक्षा देकर, उनको अच्छे प्रकार से जीवन व्यतीत करने की शिक्षा देनी चाहिए। यदि लोगों को अच्छी तरह से शिक्षित किया जाए तो यह समस्या तेज़ी से खत्म की जा सकती है।

(7) सरकार को शराबबन्दी के लिए कठोर कानूनों का निर्माण करना चाहिए ताकि शराब बेचने वालों तथा पीने वालों को कठोर दण्ड दिया जा सके। इसके लिए विशेष न्यायालयों का निर्माण भी करना चाहिए ताकि इनको तोड़ने वालों को कठोर तथा जल्दी से दण्ड दिया जा सके।

(8) शराब बन्दी के बाहरी प्रभावों के साथ-साथ लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना भी ज़रूरी है। वास्तव में सही शराबबन्दी तो ही हो सकती है यदि व्यक्ति के अन्दर से आवाज़ आए। इसके लिए लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना चाहिए। गली मोहल्लों में नाटकों, लैक्चरों का आयोजन किया जा सकता है ताकि लोगों को शराब छोड़ने के लिए उनके अन्दर से आवाज़ आए।

इस प्रकार इस व्याख्या को देखने के बाद हम कह सकते हैं कि मद्यपान की समस्या एक सामाजिक समस्या है। इस समस्या का एक ही कारण नहीं बल्कि कई कारण हैं। लोग इस समस्या को बढ़ाते भी हैं तथा वह ही इस समस्या को खत्म कर सकते हैं। यदि जनमत इस समस्या के विरुद्ध खड़ा हो जाए तो सरकार को भी इस कार्य में मजबूरी में हाथ बंटाना पड़ेगा। यदि सरकार तथा लोग हाथ मिला लें तो इस समस्या को बहुत ही जल्दी हल किया जा सकता है।

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प्रश्न 2.
नशे अथवा मादक द्रव्यों के प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर-
मादक द्रव्यों को हम छ: भागों में बाँट सकते हैं जो कि इस प्रकार हैं –

  1. शराब (Whisky or Liquor)
  2. शान्तिकर पदार्थ (Sedatives)
  3. नार्कोटिक अथा स्वापक पदार्थ (Narcotics)
  4. उत्तेजक पदार्थ (Stimulants)
  5. भ्रमोत्पादक पदार्थ (Hallucinogens)
  6. निकोटीन अथवा ताम्रकूटी अथवा तम्बाकू (Nicotine)

1. शराब (Whisky or Alcohol)—कुछ लोग शराब को सुख का बोध करवाने वाली चीज़ के रूप में पीते हैं तथा कुछ लोग शराब इसलिए पीते हैं ताकि उन्हें कार्य करने की उत्तेजना मिल सके। शराब एक शान्ति देने वाले पदार्थ की तरह भी कार्य करती है जिससे हमारी नाड़ियां शांत हो जाती हैं। इसे संवेदनाहारी पदार्थ के रूप में भी ग्रहण किया जाता है ताकि जीवन की पीड़ा को कम किया जा सके। लोगों को अपने जीवन में बहुत सी परेशानियों तथा समस्याओं का सामना करना पड़ता है जिस कारण वह मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं। इसलिए वह कुछ समय के लिए अपना मानसिक तनाव दूर करने के लिए शराब का सहारा लेते हैं। इससे व्यक्ति कुछ समय के लिए अपने तनाव को भूल जाता है तथा नशे में अपनी ही धुन में चलता जाता है। इससे व्यक्ति के निर्णय लेने की शक्ति कमजोर होती है तथा उसमें दुविधा पैदा होती है।

2. शान्तिकर पदार्थ (Sedatives)—इस प्रकार के पदार्थों को हम आराम देने वाले पदार्थ भी कह सकते हैं। इससे हमारा स्नायुतन्त्र क्षीण हो जाता है जिससे नींद आ जाती है तथा व्यक्ति को शान्ति मिलती है। जिन लोगों को ब्लड प्रेशर की शिकायत होती है जिनको नींद नहीं आती है अथवा जिन्हें मिरगी (Epilepsy) के दौरे पड़ते हैं उन्हें ये दवाएं दी जाती हैं। व्यक्ति के आप्रेशन से पूर्व भी यह दवा दी जाती है ताकि रोगी सो जाए तथा आप्रेशन आराम से हो जाए। ये अवसादक पदार्थ (Depressants) का कार्य करते हैं जिससे हमारी नसों तथा मांसपेशियों की क्रियाएं कम हो जाती हैं। ये दिल की धड़कन को धीमा कर देते हैं जिससे व्यक्ति में शिथिलता आ जाती है। परन्तु यदि व्यक्ति इनका अधिक सेवन करने लग जाए तो वह आलसी, उदासीन, निष्क्रिय तथा झगड़ालू हो जाता है। उसके कार्य करने तथा सोचने की शक्ति कम हो जाती है।

3. नार्कोटिक तथा स्वापक पदार्थ (Narcotics)-नार्कोटिक पदार्थों में हम अफीम, हेरोइन, ब्राउन शूगर, स्मैक, कोकीन, मारिजुआना, चरस, गांजा, भांग इत्यादि को ले सकते हैं। हेरोइन सफ़ेद पाऊडर होता है जो मार्फीन से बनता है। कोकीन कोकाबुश की पत्तियों से बनती है। गांजा तथा चरस को हेम्प पौधे (Hemp plant) से प्राप्त किया जाता है। मारिजुआना कैनाबिस का एक विशेष रूप है। कोकीन, हेरोइन, मार्फीन इत्यादि को या तो इंजेक्शन के रूप में लिया जाता है या फिर सिगरेट के कश के रूप में लिया जाता है। इन सभी पदार्थों से व्यक्ति में हिम्मत बढ़ जाती है, उसे असीम आनन्द प्राप्त होता है, उसका कार्य करने का सामर्थ्य बढ़ जाता है तथा उसमें श्रेष्ठता की भावना आ जाती है। परन्तु जब इसकी लत लग जाए तो व्यक्ति इनके बिना रह नहीं सकता है। इनके न मिलने पर व्यक्ति तड़प जाता है तथा अंत में मर भी जाता है।

4. उत्तेजक पदार्थ (Stimulants)-उत्तेजक पदार्थों को लोग अपने तनाव को कम करने के लिए, सतर्कता बढ़ाने के लिए, थकान तथा आलस्य को दूर करने के लिए तथा अनिद्रा (Insomania) को पैदा करने के लिए लेते हैं। कैफीन, कोकीन, पेप गोली (ऐम्फेटामाइन) इत्यादि को उत्तेजक पदार्थों के रूप में प्रयोग किया जाता है। यदि इसे डाक्टर द्वारा दिए गए नुस्खे के अनुसार लिया जाए तो इससे व्यक्ति में आत्म-विश्वास तथा फुर्ती आ जाती है परन्तु यदि इनका अधिक प्रयोग किया जाए तो इससे कई समस्याएं जैसे दस्त, सिरदर्द, पसीना निकलना, चिड़चिड़ापन इत्यादि भी हो जाते हैं। इन पर व्यक्ति शारीरिक तौर पर तो निर्भर नहीं होता परन्तु मानसिक या मनोवैज्ञानिक तौर पर निर्भर ज़रूर हो जाता है। इनको एकदम बन्द कर देने से मानसिक बीमारी तथा आत्महत्या करने जैसी बातें भी उभर कर सामने आ सकती हैं।

5. भ्रमोत्पादक पदार्थ (Hallucinogens) इस श्रेणी में एल. एस. डी. (L.S.D.) मुख्य पदार्थ है जिसके सेवन की सलाह डॉक्टर कभी भी नहीं देते हैं। इसे या तो मौखिक रूप से या फिर इंजेक्शन द्वारा लिया जाता है। इसके लेने से व्यक्ति को स्वप्न आने लगते हैं। सभी कुछ नई प्रकार से दिखता तथा सुनता है अर्थात् व्यक्ति इसको लेने से हमेशा भ्रम में ही रहता है। बहुत ही कम मात्रा भी व्यक्ति के दिमाग पर सीधे असर करती है। इसको बंद करने से व्यक्ति में मानसिक असन्तुलन भी पैदा हो जाता है।

6. निकोटीन अथवा ताम्रकूटी अथवा तम्बाकू (Nicotine)-निकोटीन में हम तम्बाकू, बीड़ी, सिगरेट, सिगार इत्यादि ले सकते हैं। इसका हमारे शरीर पर कोई सकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ता है परन्तु व्यक्ति इन पर शारीरिक तौर पर निर्भर ज़रूर हो जाता है। इनको लेने से व्यक्ति का शरीर उत्तेजित हो जाता है, जागना बढ़ जाता है, शिथिलन (Relaxation) बढ़ जाता है। यदि इनका अधिक सेवन किया जाए तो इससे फेफड़े का कैंसर, श्वास नली में गतिरोध, दिल की बीमारी इत्यादि पैदा हो जाते हैं। यदि व्यक्ति एक बार इनको लेना शुरू कर दे तो वह इन पर निर्भर हो जाता है।

मद्य व्यसन तथा नशा व्यसन PSEB 12th Class Sociology Notes

  • प्रत्येक समाज कई प्रकार के परिवर्तनों में से होकर गुजरता है। यह परिवर्तन सकारात्मक भी हो सकते हैं व नकारात्मक भी। अगर यह परिवर्तन नकारात्मक होंगे तो इनसे समाज में कई प्रकार की समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जिनके काफ़ी भयंकर परिणाम होते हैं। इन समस्याओं को ही सामाजिक समस्याएं कहा जाता है।
  • सामाजिक समस्याएं लाने में कई प्रकार के कारक उत्तरदायी हैं जैसे कि सामाजिक-सांस्कृतिक कारक, आर्थिक कारक, क्षेत्रीय कारक, राजनीतिक कारक, पर्यावरण से संबंधित कारक इत्यादि। ये सभी कारक इकट्ठे मिलकर सामाजिक समस्याओं को जन्म देते हैं।
  • आजकल के समय में मद्य व्यसन अथवा शराब पीने को एक समस्या माना जाने लगा है चाहे यह पहले नहीं माना जाता था। मद्य व्यसन शराब पीने का एक ऐसा ढंग है जो न केवल व्यक्ति बल्कि उसके परिवार के लिए भी हानिकारक होता है।
  • मद्य व्यसन के कई कारण होते हैं जैसे कि दुःख के कारण, पेशे के कारण, मित्रों के कारण पीना, व्यापार के लिए पीना इत्यादि।
  • मद्य व्यसन के काफ़ी गलत प्रभाव होते हैं पैसे की बर्बादी, स्वास्थ्य पर ग़लत प्रभाव, अपराधों का बढ़ना, निर्धनता का बढ़ना, व्यक्ति तथा पारिवारिक विघटन इत्यादि।
  • आजकल के समय में नशा व्यसन की समस्या काफ़ी बढ़ती जा रही है। नौजवान लोग नशों की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। वह नशे के आदी हो रहे हैं। नशा व्यसन शारीरिक तथा मानसिक रूप से किसी ऐसी वस्तु पर निर्भरता है जिसके बिना व्यक्ति रहे नहीं सकता।
  • नशों में हम कई चीज़ों को ले सकते हैं जैसे कि शराब, शांत करने वाले पदार्थ, बेहोशी लाने वाली नशीली दवाएं (नारकोटिक्स), निकोटिन या तंबाकू इत्यादि। इनमें से किसी एक की आदत लगने पर व्यक्ति उस पदार्थ पर इतना निर्भर हो जाता है कि वह इनके बिना नहीं रह सकता।
  • नशा व्यसन के कई कारण हो सकते हैं जैसे कि मानसिक कारण, शारीरिक कारण, सामाजिक कारण, मित्रों का प्रभाव, चिंताओं से दूर भागने के लिए इत्यादि।
  • नशा करने के बहुत से ग़लत प्रभाव होते हैं जैसे कि व्यक्ति नशे पर काफ़ी अधिक निर्भर हो जाता है, पैसे की बर्बादी, स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव, परिवार पर गलत प्रभाव इत्यादि।
  • गंदी बस्तियां (Slums)-नगरीय क्षेत्रों में अधिक लोगों के रहने के लिए वह स्थान जो अनाधिकृत रूप से बसा होता है तथा जहां जीवन जीने की आवश्यक सुविधाओं की कमी होती है।
  • लाल फीताशाही (Red Tapism) लाल फीताशाही एक मुहावरा है जिसे सरकारी दखलअन्दाज़ी का नाम भी दिया जाता है। जिसमें अफसरशाही सरकारी नियमों का वास्ता देकर कई प्रकार के रोड़े अटकाती है।
  • मद्य (Alcohol)-मद्य एक ऐसा पेयजल पदार्थ है जिसके प्रभाव के कराण दिमाग कार्य करना बंद कर देता है तथा व्यक्ति एक विशेष ढंग से सोचने व व्यवहार करने लग जाता है।
  • पूर्ण निर्धनता (Absolute Poverty)- पूर्ण निर्धनता अथवा बहुत अधिक निर्धनता का अर्थ है वह स्थिति जिसमें लोगों के पास जीवन जीने की आवश्यक वस्तुएं भी नहीं होतीं। उदाहरण के लिए खाना, पीने का साफ़ पानी, घर, कपड़े, दवाओं इत्यादि का न होना।
  • भाई-भतीजावाद (Nepotism)-यह ऐसी प्रथा है जिसमें सरकारी नौकरियां देने या किसी अन्य कार्य के लिए अपने मित्रों, रिश्तेदारों को पहल दी जाती है।
  • डेलीक्युऐसी (Delinquency)-किशोरों द्वारा किया गया छोटा-मोटा अपराध।
  • साथी समूह (Peer Group)-साथी समूह एक सामाजिक तथा प्राथमिक समूह होता है जिसके सदस्यों के बीच विचारों, आयु, पृष्ठभूमि, सामाजिक स्थिति इत्यादि की समानता होती है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी

Punjab State Board PSEB 9th Class Home Science Book Solutions Chapter 1 गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Home Science Chapter 1 गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी

PSEB 9th Class Home Science Guide गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गृह विज्ञान को पहले कौन-कौन से नाम दिये जाते थे ?
उत्तर-
गृह विज्ञान विषय को घरेलू विज्ञान, घरेलू कला, घरेलू अर्थशास्त्र आदि के नाम दिये गए हैं।

प्रश्न 2.
गृह विज्ञान का अर्थ लिखो।
उत्तर-
डॉ० ए० एच० रिचर्डज़ अनुसार, गृह विज्ञान वह विशेष विषय है जो परिवार की आय तथा खर्च, कपड़ों सम्बन्धी ज़रूरतें, भोजन की स्वच्छता, घर का सही चुनाव आदि से सम्बन्धित है।

प्रश्न 3.
गृह विज्ञान को कितने और कौन-कौन से क्षेत्रों में बांटा गया है ?
उत्तर-
गृह विज्ञान को मुख्यतः निम्नलिखित क्षेत्रों में बांटा गया है –
भोजन तथा पोषण, वस्त्र विज्ञान, गृह व्यवस्था, बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध, गृह विज्ञान की शिक्षा का विस्तार।

प्रश्न 4.
गृह विज्ञान की शिक्षा का मुख्य लाभ बताओ।
उत्तर-

  1. गृह विज्ञान की शिक्षा से भोजन तथा पोषण के बारे में जानकारी प्राप्त होती
  2. इसकी शिक्षा से कपड़ों की बनावट, कटाई, सिलाई, बुनाई आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
  3. इसकी शिक्षा से मानवीय तथा भौतिक साधनों को अच्छी तरह व्यवस्थित किया जा सकता है।
  4. इसकी शिक्षा से बाल विकास तथा वृद्धि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
    इस तरह गृह विज्ञान की शिक्षा से ज़िन्दगी के प्रत्येक पक्ष के बारे में जानकारी मिलती है।

प्रश्न 5.
गृह व्यवस्था से क्या भाव है ?
उत्तर-
गृह विज्ञान वास्तविक विज्ञान है जो विद्यार्थी को पारिवारिक जीवन सफलतापूर्वक बिताने तथा सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को आसानी से तथा सही ढंग से सुलझाने के योग्य बनाता है।

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प्रश्न 6.
भोजन और पोषण विज्ञान से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
भोजन तथा पोषण विज्ञान में भोजन के तत्त्व, शरीर की वृद्धि तथा विकास के लिए खुराकी तत्त्वों की जरूरत, कमी-वृद्धि, भोजन पकाना, भोजन से शरीर में होने वाले परिवर्तन, भोजन को सुरक्षित रखना, भोजन की सफाई का स्वास्थ्य से सम्बन्ध आदि के बारे में पढ़ाया जाता है।

प्रश्न 7.
वस्त्र विज्ञान के अन्तर्गत क्या पढ़ाया जाता है ?
उत्तर-
वस्त्र विज्ञान में कपड़ों की बनावट, कटाई, सिलाई, धुलाई आदि के बारे में पढ़ाया जाता है। आयु, आय, मौसम, पेशे तथा रंग अनुसार पोशाकों का सही चुनाव, सम्भाल, धुलाई के लिए साबुन आदि के बारे में जानकारी दी जाती है।

प्रश्न 8.
गृह विज्ञान के विषय के मुख्य उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर-
गृह विज्ञान के मुख्य उद्देश्य इस तरह हैं –

  1. मनुष्य का सर्वपक्षीय विकास करना तथा परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व में सुधार लाना।
  2. परिवार में उपलब्ध साधनों को सुधारना।
  3. परिवार को अच्छा जीवन जीने के लिए तैयार करना।
  4. परिवार में अच्छे ढंग से रहने की शिक्षा प्रदान करना।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 9.
गृह विज्ञान विषय से आप क्या समझते हो और इसका क्या महत्व है ?
उत्तर-
गृह विज्ञान विषय का आधार विज्ञान की बुनियादी शाखाएं जैसे भौतिक विज्ञान, रासायनिक विज्ञान, जीव विज्ञान तथा सामाजिक शाखाओं जैसे-अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र तथा मनोविज्ञान आदि हैं।

यह विषय ज़िन्दगी, समाज के उन सभी पहलुओं से सम्बन्ध रखता है जो विभिन्न विज्ञानों से ली जानकारी का संयोजन करके मनुष्य का आस-पास, परिवार का पोषण, साधनों की व्यवस्था, बाल विकास तथा उपभोगी सामर्थ्य पैदा करता है।

महत्त्व-अच्छी गृहिणी तथा अच्छी मां बनने के लिये इस विषय की शिक्षा बहुत ज़रूरी है। इस विषय की जानकार छात्राएं आगे चलकर जब पारिवारिक जीवन में कदम रखेंगी तो वह परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रतिदिन की ज़रूरतों, अच्छे तथा सन्तुलित भोजन का ध्यान रख सकेंगी। कपड़ों सम्बन्धी बच्चों तथा परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें, बच्चों की वृद्धि, विकास, पालन-पोषण तथा उनकी रुचियों को समझकर तथा सुखमय घर बना सकती हैं।

आज के उन्नति तथा तकनालॉजी वाले युग में इस विषय का और भी महत्त्व बढ़ गया है। कई स्थानों पर तो यह विषय लड़कों को भी पढ़ाया जाने लगा है।

प्रश्न 10.
किस उद्देश्य को मुख्य रखकर गृह विज्ञान विषय की पढ़ाई की जाती है ?
उत्तर-
पहले तो गृह विज्ञान को खाना पकाने अथवा कपड़े सिलने के विज्ञान के रूप में ही जाना जाता था परन्तु अब इसमें पोषण, स्वास्थ्य तथा घर से जुड़ी सुविधाओं के बारे में भी पढ़ाया जाता है। इन सभी विषयों की जानकारी हो तो जीवन सुखमय हो जाता है। गृह विज्ञान के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. मनुष्य का सर्वपक्षीय विकास करना तथा परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व में सुधार लाना।
  2. परिवार में उपलब्ध साधनों को सुधारना।
  3. मनुष्यों को अच्छा जीवन जीने के लिये तैयार करना।
  4. परिवार में अच्छे ढंग से रहने की शिक्षा प्रदान करना।

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प्रश्न 11.
गृह विज्ञान विषय का क्षेत्र बहुत विशाल है । कैसे ?
उत्तर-
गृह विज्ञान का आधार सामाजिक तथा विज्ञान की बुनियादी शाखाएं जैसे कि रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि हैं। इस तरह गृह विज्ञान एक बहुत फैला हुआ विषय है तथा इसका क्षेत्र भी बहुत विशाल है। इसको निम्नलिखित शाखाओं में बांटा जा सकता है –
वस्त्र विज्ञान, भोजन तथा पोषण विज्ञान, गृह व्यवस्था, गृह विज्ञान की पढ़ाई का विस्तार तथा बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध।

इन विभिन्न क्षेत्रों में भोजन का स्वास्थ्य से सम्बन्ध उत्पादन तथा व्यवस्था, कपड़ों के रेशों की बनावट, धुलाई, घर का प्रबन्ध, बच्चों का हर पक्ष से विकास आदि के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है।

प्रश्न 12.
गृह विज्ञान विषय को कौन-से भागों में बांटा गया है ? किन्हीं दो के बारे बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 13.
पारिवारिक जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में गृह विज्ञान ने क्या भूमिका निभाई है ?
उत्तर-
गृह विज्ञान का विषय पारिवारिक जीवन को ऊँचा उठाने में अपनी भूमिका निभाता है। यह विषय पढ़कर गृहिणियों को अपने घर, बच्चों, कपड़ों आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। इस तरह प्राप्त हुए ज्ञान का प्रयोग करके वह अपने परिवार के जीवन स्तर को ऊँचा उठाने में सहायक होती है।

गृह विज्ञान का विषय समाज तथा देश के प्रत्येक पहलू से जुड़ा हुआ है। घर इसका एक हिस्सा है। इस विषय का दायरा जितना फैला हुआ है उतना शायद ही कोई अन्य विषय हो। यह विषय पढ़कर सदस्यों को चरित्रवान् बनाना, घर के बाहर की मुश्किलों को सुलझाना आदि कार्य आसानी से हो जाते हैं।

प्रश्न 14.
गृह विज्ञान की शिक्षा को ज्यादा महत्त्व क्यों दिया जाना चाहिए ?
उत्तर-
गृह विज्ञान एक ऐसा विषय है जिसका क्षेत्र बहुत फैला हुआ है। इस विषय की जानकारी से अच्छे इन्सान बनाये जा सकते हैं। साईंस तथा तकनालॉजी की आधुनिक जानकारी तथा गृह विज्ञान विषय की शिक्षा से पारिवारिक जीवन में सुधार करके सुखमय परिवार बनाया जा सकता है।

महत्त्व-अच्छी गृहिणी तथा अच्छी मां बनने के लिये इस विषय की पढ़ाई बहुत ज़रूरी है। इस विषय की जानकार छात्राएं आगे चलकर जब पारिवारिक जीवन में कदम रखेंगी तो वह परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रतिदिन की ज़रूरतें, अच्छे तथा सन्तुलित भोजन का ध्यान रख सकेंगी। कपड़ों सम्बन्धी बच्चों तथा परिवार के सदस्यों की ज़रूरतों, बच्चों की वृद्धि, विकास, पालन-पोषण तथा उनकी रुचियां समझकर सुन्दर तथा सुखमय घर बना सकती हैं।

आज के उन्नति तथा तकनालॉजी वाले युग में तो इस विषय का और भी महत्त्व बढ़ गया है। कई स्थानों पर तो यह विषय लड़कों को भी पढ़ाया जाने लगा है।

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निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 15.
गृह विज्ञान का क्षेत्र बहुत विशाल है, कैसे ?
उत्तर-
गृह विज्ञान का आधार सामाजिक तथा विज्ञान की बुनियादी शाखाएं जैसे कि रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि हैं। इस तरह गृह विज्ञान एक बहुत फैला हुआ विषय है तथा इसका क्षेत्र भी बहुत विशाल है। इस को निम्नलिखित शाखाओं में बांटा जा सकता है –

वस्त्र विज्ञान, भोजन तथा पोषण विज्ञान, गृह व्यवस्था, गृह विज्ञान की शिक्षा का विस्तार तथा बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध।

इन विभिन्न क्षेत्रों में भोजन का स्वास्थ्य से सम्बन्ध, उत्पादन तथा व्यवस्था, कपड़ों के रेशों की बनावट, धुलाई, बुनाई, घर का प्रबन्ध, बच्चों का प्रत्येक पक्ष से विकास आदि के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है।

भोजन तथा पोषण विज्ञान में भोजन के तत्त्व, शरीर की वृद्धि तथा विकास के लिये खाद्य तत्त्वों की ज़रूरत, वृद्धि-कमी, भोजन पकाना, भोजन से शरीर में होने वाले परिवर्तन, भोजन को सुरक्षित रखना, भोजन की सफाई का स्वास्थ्य से सम्बन्ध आदि के बारे में पढ़ाया जाता है।

वस्त्र विज्ञान में कपड़े की बनावट, सिलाई, धुलाई आदि के बारे में पढ़ाया जाता है। आयु, आय, मौसम, पेशे तथा रंग अनुसार पोशाकों का सही चुनाव, सम्भाल, धुलाई के लिये साबुन आदि के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्धों के बारे में जानकारी होने का हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव होता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है तथा वह समाज में लोगों के साथ खुश रहता है तथा जीवन की चुनौतियों का सामना करता है।

बच्चे देश का भविष्य हैं इसलिये बाल विकास की जानकारी बहुत आवश्यक है। बच्चे की सफलता अथवा असफलता की ज़िम्मेदारी मां की होती है। इसलिए गृहिणी को बच्चों की शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक आवश्यकताओं का पता होना चाहिए। बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले कारक, बच्चों के लिए मनोरंजन, भोजन आदि के बारे में बाल विकास के विषय के ज्ञान से ही पता चलता है।

गृह व्यवस्था-मानवीय तथा भौतिक साधनों की सही ढंग से प्रयोग करके शक्ति, समय, पैसा, मेहनत आदि को बचाया जा सकता है। गृहिणी अपनी आय के अनुसार घर का बजट बनाती है, मौजूदा साधनों का प्रयोग करके परिवार के सभी सदस्यों के लिये अच्छे कपड़े, स्वास्थ्य, रहने का स्थान, पढ़ाई तथा मनोरंजन आदि का प्रबन्ध योजनाबद्ध ढंग से करती है।

प्रश्न 16.
गृह विज्ञान कौन-कौन से विषयों का समूह है और इनके अन्तर्गत क्या क्या पढ़ाया जाता है ?
उत्तर-
गृह विज्ञान का आधार सामाजिक तथा विज्ञान की बुनियादी शाखाएं जैसे कि रसायन विज्ञान, भौतिक विज्ञान, जीव विज्ञान, मनोविज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र आदि हैं। इस तरह गृह विज्ञान एक बहुत फैला हुआ विषय है तथा इसका क्षेत्र भी बहुत विशाल है। इस को निम्नलिखित शाखाओं में बांटा जा सकता है –

वस्त्र विज्ञान, भोजन तथा पोषण विज्ञान, गृह व्यवस्था, गृह विज्ञान की शिक्षा का विस्तार तथा बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध।

इन विभिन्न क्षेत्रों में भोजन का स्वास्थ्य से सम्बन्ध, उत्पादन तथा व्यवस्था, कपड़ों के रेशों की बनावट, धुलाई, बुनाई, घर का प्रबन्ध, बच्चों का प्रत्येक पक्ष से विकास आदि के बारे में जानकारी प्रदान की जाती है।

भोजन तथा पोषण विज्ञान में भोजन के तत्त्व, शरीर की वृद्धि तथा विकास के लिये खाद्य तत्त्वों की ज़रूरत, वृद्धि-कमी, भोजन पकाना, भोजन से शरीर में होने वाले परिवर्तन, भोजन को सुरक्षित रखना, भोजन की सफाई का स्वास्थ्य से सम्बन्ध आदि के बारे में पढ़ाया जाता है।

वस्त्र विज्ञान में कपड़े की बनावट, सिलाई, धुलाई आदि के बारे में पढ़ाया जाता है। आयु, आय, मौसम, पेशे तथा रंग अनुसार पोशाकों का सही चुनाव, सम्भाल, धुलाई के लिये साबुन आदि के बारे में भी जानकारी दी जाती है।

बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्धों के बारे में जानकारी होने का हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव होता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है तथा वह समाज में लोगों के साथ खुश रहता है तथा जीवन की चुनौतियों का सामना करता है।

बच्चे देश का भविष्य हैं इसलिये बाल विकास की जानकारी बहुत आवश्यक है। बच्चे की सफलता अथवा असफलता की ज़िम्मेदारी मां की होती है। इसलिए गृहिणी को बच्चों की शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक आवश्यकताओं का पता होना चाहिए। बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले कारक, बच्चों के लिए मनोरंजन, भोजन आदि के बारे में बाल विकास के विषय के ज्ञान से ही पता चलता है।

प्रश्न 17.
गृह विज्ञान का उद्देश्य क्या है ? आजकल इस विषय को अधिक महत्त्व क्यों दिया जाने लगा है ?
उत्तर-
गृह विज्ञान के मुख्य उद्देश्य इस तरह हैं –

  1. मनुष्य का सर्वपक्षीय विकास करना तथा परिवार के सदस्यों के व्यक्तित्व में सुधार लाना।
  2. परिवार में उपलब्ध साधनों को सुधारना।
  3. परिवार को अच्छा जीवन जीने के लिए तैयार करना।
  4. परिवार में अच्छे ढंग से रहने की शिक्षा प्रदान करना।

महत्त्व-अच्छी गृहिणी तथा अच्छी मां बनने के लिये इस विषय की शिक्षा बहुत ज़रूरी है। इस विषय की जानकार छात्राएं आगे चलकर जब पारिवारिक जीवन में कदम रखेंगी तो वह परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रतिदिन की ज़रूरतों, अच्छे तथा सन्तुलित भोजन का ध्यान रख सकेंगी। कपड़ों सम्बन्धी बच्चों तथा परिवार के सदस्यों की ज़रूरतें, बच्चों की वृद्धि, विकास, पालन-पोषण तथा उनकी रुचियों को समझकर तथा सुखमय घर बना सकती हैं।
आज के उन्नति तथा तकनालॉजी वाले युग में इस विषय का और भी महत्त्व बढ़ गया है। कई स्थानों पर तो यह विषय लड़कों को भी पढ़ाया जाने लगा है।

प्रश्न 18.
गृह व्यवस्था ही गृह विज्ञान का आधार है ? स्पष्ट करो और इसके अन्तर्गत कौन-कौन से उप-विषय पढ़ाए जाते हैं ?
उत्तर-
गृह-व्यवस्था को गृह विज्ञान का आधार माना जाता है क्योंकि इसमें घर तथा घर की व्यवस्था के सभी पहलू आते हैं। जैसे-अच्छा जीवन गुजारने के सिद्धान्त, परिवार के सदस्यों के लिए शिक्षा का सही प्रबन्ध, परिवार की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भोजन तथा घर के सामान की खरीद, सम्भाल तथा प्रयोग के बारे में जानकारी दी जाती है। इसी तरह घर में प्रयोग किये जाने वाले हर प्रकार के सामान की सफ़ाई तथा सम्भाल तथा समाज में मनुष्य के जीवन को अनुशासनमय बनाने के लिए आत्मिक तथा धार्मिक पक्ष को भी गृह-व्यवस्था के क्षेत्र में शामिल किया जाता है।

Home Science Guide for Class 9 PSEB गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी Important Questions and Answers

रिक्त स्थान भरो

  1. गृह विज्ञान घर में रहने की …………………. शिक्षा है।
  2. गृह विज्ञान का आधार विज्ञान की मूल तथा ………………. शाखाएं ही हैं।
  3. बच्चों का पालन-पोषण ………………… वातावरण में होना चाहिए।

उत्तर-

  1. क्रमबद्ध,
  2. सामाजिक,
  3. प्रेरणादायक।

एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
बच्चे की सफलता तथा असफलता की ज़िम्मेदारी किसकी होती है ?
उत्तर-
मां की।

प्रश्न 2.
गृह विज्ञान का उद्देश्य मनुष्य का कैसा विकास करना है ?
उत्तर-
सर्वपक्षीय।

ठीक/ग़लत बताएं

  1. गृह विज्ञान को घरेलू विज्ञान का नाम भी दिया गया है।
  2. गृह विज्ञान का उद्देश्य मनुष्य को अच्छा जीवन जीने के लिए तैयार करना भी है।
  3. गृह विज्ञान का आधार सामाजिक तथा विज्ञान की प्राथमिक शाखाएं हैं।
  4. मानवीय तथा भौतिक साधनों का उचित प्रयोग करके शक्ति, समय, पैसा, मेहनत आदि को बचाया जा सकता है।

उत्तर-

  1. ठीक
  2. ठीक
  3. ठीक
  4. ठीक।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में ठीक हैं
(A) गृह व्यवस्था पारिवारिक ज़िन्दगी के प्रत्येक पक्ष से सम्बन्धित हैं।
(B) घर की आमदन बढ़ाने के लिए कुछ लघु उद्योग शुरू किए जा सकते हैं।
(C) संयुक्त परिवार में माता-पिता तथा अन्य सम्बन्धी मिल कर रहते हैं।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
मानवीय साधन है
(A) शक्ति
(B) रुचि
(C) कुशलता
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
गृह विज्ञान की पढ़ाई सहायक है –
(A) चरित्र का एकीकरण।
(B) घर के अन्दर तथा बाहर अकस्मात् स्थितियों में समस्याओं को सुलझाना।
(C) घर में प्यार तथा मेल-मिलाप का वातावरण पैदा करना।
(D) सभी ठीक।
उत्तर-
(D) सभी ठीक।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लेडी इरविन की गृह विज्ञान संस्था के अनुसार गृह विज्ञान की परिभाषा दें।
उत्तर-
गृह विज्ञान एक वास्तविक विज्ञान है जो विद्यार्थी को सफलतापूर्वक पारिवारिक जीवन व्यतीत करने तथा सामाजिक तथा आर्थिक समस्याओं को सरलता से तथा अच्छे ढंग से सुलझाने के योग्य बनता है।

प्रश्न 2.
गृह विज्ञान के क्षेत्र से आप क्या समझते हो ?
उत्तर-
गृह विज्ञान का क्षेत्र काफ़ी विशाल है। इसका आधार विज्ञान की बुनियादी शाखाएं तथा सामाजिक शाखाएं हैं। गृह विज्ञान को निम्नलिखित शाखाओं में बांटा जा सकता है –
भोजन तथा पोषण विज्ञान, वस्त्र विज्ञान, गृह व्यवस्था, बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध आदि। इस तरह गृह विज्ञान के क्षेत्र से अभिप्राय उपरोक्त विषयों के बारे में जानकारी प्राप्त करना है।

प्रश्न 3.
बाल विकास और पारिवारिक सम्बन्धों का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव है ?
उत्तर-
बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्धों के बारे में जानकारी होने का हमारे जीवन पर अच्छा प्रभाव होता है। मनुष्य सामाजिक प्राणी है तथा वह समाज में लोगों के साथ खुश रहता है तथा जीवन की चुनौतियों का सामना करता है।

बच्चे देश का भविष्य हैं इसलिए बाल विकास की जानकारी बहुत ज़रूरी है। बच्चे की सफलता-असफलता की ज़िम्मेदारी मां की होती है। इसलिए गृहिणी को बच्चों की शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक आवश्यकताओं का पता होना चाहिए। बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालने वाले कारक, बच्चों के लिए मनोरंजन, भोजन आदि के बारे में बाल विकास के विषय से ही ज्ञान प्राप्त होता है।

प्रश्न 4.
‘गृह व्यवस्था का महत्त्व’ के अन्तर्गत पारिवारिक स्तर को ऊँचा उठाना के बारे में लिखें।
उत्तर-
गृह व्यवस्था का एक कार्य परिवारिक स्तर को ऊँचा उठाना भी है। प्रत्येक मनुष्य जीवन में उन्नति करना चाहता है तथा अपने रहन-सहन को बढ़िया रखना चाहता है। घर में अच्छी व्यवस्था जहां विकास की सीढ़ी का पहला पड़ाव पार करने के लिए सहायक है।

PSEB 9th Class Home Science Solutions Chapter 1 गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी

गृह विज्ञान-सामान्य जानकारी PSEB 9th Class Home Science Notes

  • घर एक ऐसा स्थान है जहां परिवार के सदस्य आपस में प्यार से रहते हैं। एक दूसरे का दुःख-सुख बांटते हैं तथा भावनात्मक रूप में जुड़े होते हैं।
  • डॉ० ए०एच० रिचर्डज़ ने कहा है कि गृह विज्ञान एक ऐसा विशेष विषय है जो परिवार की आय तथा खर्च, भोजन की स्वच्छता, कपड़ों सम्बन्धी आवश्यकताएं घर का सही चुनाव आदि से सम्बन्ध रखता है।
  • गृह विज्ञान की शिक्षा के बिना गृहिणी की शिक्षा को अधूरा माना जाता है।
  • गृह विज्ञान का सम्बन्ध स्वास्थ्य, पोषण तथा घर से जुड़ी सुविधाओं से है।
  • गृह विज्ञान का क्षेत्र बहुत विशाल है। इस में भोजन तथा पोषण विज्ञान, गृह व्यवस्था, वस्त्र विज्ञान, बाल विकास तथा पारिवारिक सम्बन्ध आदि के बारे में पढ़ाया जाता है।
  • गृह विज्ञान का विषय मानवीय जीवन स्तर को ऊंचा उठाने में सहायक है।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions History Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science History Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

SST Guide for Class 8 PSEB स्त्रियां तथा सुधार Textbook Questions and Answers

I. नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखें :

प्रश्न 1.
सती प्रथा को कब, किसने तथा किसके प्रयास से अवैध घोषित किया गया था ?
उत्तर-
सती प्रथा को 1829 ई० में लार्ड विलियम बैंटिक ने राजा राममोहन राय के प्रयत्नों से अवैध घोषित किया था।

प्रश्न 2.
किस वर्ष में विधवा-विवाह कराने की कानूनी तौर पर आज्ञा दी गई ?
उत्तर-
विधवा-विवाह कराने की कानूनी आज्ञा 1856 ई० में दी गई।

प्रश्न 3.
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (विश्वविद्यालय) की स्थापना कब तथा किसने की ?
उत्तर-
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की स्थापना 1875 ई० में सर सैय्यद अहमद खां ने की। उस समय इसका नाम मोहम्मडन एंग्लो-ओरियेंटल कालेज था।

प्रश्न 4.
नामधारी आन्दोलन की स्थापना कब, कहां तथा किसके द्वारा हुई ?
उत्तर-
नामधारी आन्दोलन की स्थापना 13 अप्रैल, 1857 को भैणी साहिब (लुधियाना) में श्री सतगुरु राम सिंह जी द्वारा हुई।

प्रश्न 5.
सिंह सभा लहर ने स्त्री शिक्षा प्राप्त करने के लिए कहां-कहां शिक्षण संस्थाएं स्थापित की ?
उत्तर-
सिंह सभा ने स्त्री-शिक्षा के लिए फ़िरोज़पुर, कैरो तथा भमौड़ में शिक्षण संस्थाएं स्थापित की।

प्रश्न 6.
दूसरे विवाह पर प्रतिबन्ध कब तथा किसके प्रयास से लगाया गया था ?
उत्तर-
दूसरे विवाह पर प्रतिबन्ध 1872 ई० में केशव चन्द्र सेन के प्रयासों से लगाया गया था।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

प्रश्न 7.
राजा राममोहन राय द्वारा स्त्रियों के उद्धार से सम्बन्धित दिए गए योगदान का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
राजा राममोहन राय 19वीं शताब्दी के महान् समाज सुधारक थे। उनका मानना था कि समाज तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिये जाते।

  • उन्होंने समाज में से सती-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रचार किया। उन्होंने विलियम बैंटिंक की सरकार को विश्वास दिलाया कि सती-प्रथा का प्राचीन धार्मिक शास्त्रों में कोई स्थान नहीं है। उनके तर्कों एवं प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने 1829 ई० में सती-प्रथा पर कानून द्वारा रोक लगा दी।
  • उन्होंने महिलाओं की भलाई के लिए कई लेख लिखे।
  • उन्होंने बाल-विवाह एवं बहु-विवाह की निन्दा की तथा कन्या वध का विरोध किया।
  • उन्होंने पर्दा प्रथा को महिला विकास के मार्ग में बाधा बताते हुए इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने नारी-शिक्षा का प्रचार किया। वह विधवा-विवाह के भी पक्ष में थे।
  • उन्होंने महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार दिये जाने पर बल दिया।

प्रश्न 8.
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर द्वारा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए दिये गये योगदान का संक्षिप्त वर्णन करो।
उत्तर-
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए कड़ा परिश्रम किया तथा कन्याओं की शिक्षा के लिए अपने खर्च पर बंगाल में लगभग 25 स्कूल स्थापित किये। उन्होंने विधवा-विवाह के पक्ष में अथक संघर्ष किया। उन्होंने 1855-60 ई० के बीच लगभग 25 विधवा विवाह करवाये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में हिन्दू विधवा-विवाह कानून पास किया गया। उन्होंने बाल-विवाह का खण्डन किया।

प्रश्न 9.
सर सैय्यद अहमद खां द्वारा स्त्रियों के उद्धार के लिए किये गये प्रयासों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
सर सैय्यद अहमद खां इस्लामी समाज का सुधार करना चाहते थे। उनका मानना था कि समाज तभी समद्ध बन सकता है यदि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाये। उन्होंने बालकों एवं बालिकाओं का बहुत ही छोटी आयु में विवाह करने का घोर विरोध किया। उन्होंने तलाक प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। उन्होंने पर्दा-प्रथा का भी खण्डन किया। उनका कहना था कि पर्दा मुस्लिम महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा उनके विकास के मार्ग में एक बाधा है। वह समाज में प्रचलित दासता की प्रथा को उचित नहीं मानते थे। उन्होंने समाज में विद्यमान बुराइयों को दूर करने के लिए ‘तहज़ीब-उल-अखलाक’ नामक समाचार-पत्र निकाला। सर सैय्यद अहमद खां ने समाज में अशिक्षा को समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। वह धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।

प्रश्न 10.
स्वामी दयानन्द जी द्वारा स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए दिये गये योगदान का वर्णन करें।
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस बात पर बल दिया कि समाज में महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने बालक एवं बालिकाओं के बहुत ही छोटी आयु में विवाह की प्रथा, अर्थात् बाल-विवाह का कड़ा विरोध किया। वे विधवा-विवाह के पक्षधर थे। उन्होंने विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा आश्रम स्थापित किये। उनके द्वारा स्थापित संस्था आर्य समाज ने सती प्रथा तथा दहेज प्रथा का खण्डन किया। असहाय कन्याओं को सिलाई-कढ़ाई के काम का प्रशिक्षण देने के लिए उन्होंने अनेक केन्द्र स्थापित किये। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया तथा भारत के विभिन्न भागों में कन्याओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोले।

प्रश्न 11.
19वीं सदी में स्त्रियों (महिलाओं) की दशा का वर्णन करें।।
उत्तर-
19वीं सदी में भारतीय समाज में स्त्रियों की दशा दयनीय थी। उस समय भारत में सती प्रथा, कन्या हत्या, दास प्रथा, पर्दा, प्रथा, विधवा विवाह निषेध तथा बहु-विवाह आदि कुरीतियों ने महिलाओं का जीवन दूभर बना दिया था। भारतीय समाज में से इन कुरीतियों को समाप्त करने के लिए 19वीं शताब्दी में धार्मिक-सामाजिक आन्दोलन आरम्भ किये गये।
स्त्रियों की दशा को दयनीय बनाने वाली मुख्य कुरीतियां-

1. कन्या-वध-समाज में कन्या के जन्म को अशुभ समझा जाता था, जिसके कई कारण थे। प्रथम, कन्याओं के . विवाह पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ता था जो आम आदमी के वश की बात नहीं थी। दूसरे, माता-पिता को अपनी कन्याओं के लिए योग्य वर खोजना कठिन हो जाता था। तीसरे, यदि कोई माता-पिता अपनी कन्या का विवाह नहीं कर पाते थे तो इसे बुरा माना जाता था। अतः अनेक लोग कन्या को जन्म लेते ही मार देते थे।

2. बाल-विवाह-कन्याओं का विवाह छोटी आयु में ही कर दिया जाता था। इसलिए कन्याएं प्रायः अनपढ़ (अशिक्षित) ही रह जाती थीं। यदि किसी लड़की का पति छोटी आयु में ही मर जाता था तो उसे सती कर दिया जाता था या फिर उसे जीवन भर विधवा ही रहना पड़ता था।

3. सती-प्रथा-सती-प्रथा के अनुसार यदि किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती थी, तो उसे जीवित ही पति की चिता पर जला दिया जाता था।

4. विधवा-विवाह निषेध-समाज की ओर से विधवा-विवाह पर कड़ी रोक लगाई गई थी। विधवा का समाज में अनादर किया जाता था। उनके केश काट दिये जाते थे और उन्हें सफेद वस्त्र पहना दिए जाते थे।

5. पर्दा-प्रथा-पर्दा-प्रथा के अनुसार महिलाएं सदा पर्दा करके ही रहती थीं। इसका उनके स्वास्थ्य एवं विकास पर बुरा प्रभाव पड़ता था।

6. दहेज-प्रथा-दहेज-प्रथा के अनुसार विवाह के समय पर कन्या को दहेज दिया जाता था। निर्धन लोगों को दहेज देने के लिए साहूकारों से ऋण लेना पड़ता था। अतः कई कन्याएं आत्म-हत्या कर लेती थीं।

7. महिलाओं को अशिक्षित रखना- अधिकतर लोगों द्वारा कन्याओं को शिक्षा नहीं दी जाती थी। उनको शिक्षित करना व्यर्थ माना जाता था, ताकि शिक्षा द्वारा उन्हें आवश्यकता से अधिक स्वतन्त्रता न मिल सके। कन्याओं को शिक्षित करना समाज के लिए भी हानिकारक माना जाता था।

8. हिन्दू समाज में महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार न देना-हिन्दू समाज में महिलाओं को अपनी पैतृक सम्पत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता था।

प्रश्न 12.
स्त्रियों की दशा सुधारने तथा शिक्षा के बारे में अलग-अलग समाज सुधारकों के विचारों तथा प्रयासों का वर्णन करें।
उत्तर-
स्त्रियों की दशा सुधारने तथा शिक्षा के बारे में भिन्न-भिन्न समाज सुधारकों के विचारों तथा प्रयासों का वर्णन इस प्रकार है

1. राजा राममोहन राय-राजा राममोहन राय 19वीं शताब्दी के महान् समाज-सुधारक थे। उनका मानना था कि समाज तब तक उन्नति नहीं कर सकता जब तक महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार नहीं दिये जाते।

  • उन्होंने समाज में से सती-प्रथा को समाप्त करने के लिए प्रचार किया। उन्होंने विलियम बैंटिक की सरकार को विश्वास दिलाया कि सती-प्रथा का प्राचीन धार्मिक शास्त्रों में कोई स्थान नहीं है। उनके तर्कों एवं प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने 1829 ई० में सती-प्रथा पर कानून द्वारा रोक लगा दी।
  • उन्होंने महिलाओं की भलाई के लिए कई लेख लिखे।
  • उन्होंने बाल-विवाह एवं बहु-विवाह की निन्दा की तथा कन्या वध का विरोध किया।
  • उन्होंने पर्दा-प्रथा को महिला विकास के मार्ग में बाधा बताते हुए इसके विरुद्ध आवाज़ उठाई।
  • उन्होंने नारी-शिक्षा का प्रचार किया। वह विधवा-विवाह के भी पक्ष में थे।
  • उन्होंने महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार दिये जाने पर बल दिया।

2. ईश्वर चन्द्र विद्यासागर-ईश्वर चन्द्र विद्यासागर एक महान् समाज सुधारक थे। उन्होंने महिलाओं के हित के लिए कड़ा परिश्रम किया तथा कन्याओं की शिक्षा के लिए अपने खर्च पर बंगाल में लगभग 25 स्कूल स्थापित किये। उन्होंने विधवा-विवाह के पक्ष में अनथक संघर्ष किया। उन्होंने 1855-60 ई० के बीच लगभग 25 विधवा विवाह करवाये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में हिन्दू विधवा-विवाह कानून पास किया गया। उन्होंने बाल-विवाह का खण्डन किया।

3. सर सैय्यद अहमद खां-सर सैय्यद अहमद खां इस्लामी समाज का सुधार करना चाहते थे। उनका मानना था कि समाज तभी समृद्ध बन सकता है यदि महिलाओं को पुरुषों के बराबर माना जाये। उन्होंने बालकों एवं बालिकाओं का बहुत ही छोटी आयु में विवाह करने का घोर विरोध किया। उन्होंने तलाक प्रथा के विरुद्ध जोरदार आवाज़ उठाई। उन्होंने पर्दा प्रथा का भी खण्डन किया। उनका कहना था कि पर्दा मुस्लिम महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा उनके विकास के मार्ग में एक बाधा है। वे समाज में प्रचलित दास प्रथा को उचित नहीं मानते थे। उन्होंने समाज में विद्यमान बुराइयों को दूर करने के लिए ‘तहज़ीब-उल-अखलाक’ नामक समाचार-पत्र निकाला। सर सैय्यद अहमद खां ने समाज में अशिक्षा समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किये। वह धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा प्रदान करने के पक्षधर थे।

4. स्वामी दयानन्द सरस्वती-स्वामी दयानन्द सरस्वती ने इस बात पर बल दिया कि समाज में महिलाओं का सम्मान किया जाना चाहिए। उन्होंने बालक एवं बालिकाओं के बहुत ही छोटी आयु में विवाह की प्रथा अर्थात् बालविवाह का कड़ा विरोध किया। वह विधवा-विवाह के पक्षधर थे। उन्होंने विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा आश्रम स्थापित किये। उनके द्वारा स्थापित संस्था आर्य समाज ने सती प्रथा तथा दहेज प्रथा का खण्डन किया। उन्होंने असहाय कन्याओं को सिलाई-कढ़ाई के काम का प्रशिक्षण देने के लिए अनेक केन्द्र स्थापित किये। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया तथा भारत के विभिन्न भागों में कन्याओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोले।

5. श्रीमती ऐनी बेसेंट-श्रीमती ऐनी बेसेंट थियोसोफिकल सोसायटी की सदस्य थीं। इस संस्था ने स्त्री जाति के उद्धार के लिए बाल विवाह का विरोध किया तथा विधवा विवाह के पक्ष में आवाज़ उठाई। शिक्षा के विकास के लिए इस संस्था ने स्थान-स्थान पर बालक-बालिकाओं के लिए स्कूल खोले। 1898 ई० में इसने बनारस में हिन्दू कॉलेज स्थापित किया। यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की शिक्षा भी दी जाती थी।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार

प्रश्न 13.
बहुत से सुधारकों ने स्त्रियों की दशा की ओर विशेष ध्यान क्यों दिया ?
उत्तर-
अनेक समाज-सुधारकों ने महिलाओं की समस्याओं पर निम्नलिखित कारणों से विशेष ध्यान दिया-

  • विभिन्न समाज-सुधारकों का कहना था कि समाज द्वारा महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं जिन्हें रोकना अनिवार्य है।
  • समाज-सुधारकों का विचार था कि समाज में वर्तमान बुराइयों को समाप्त करने के लिए महिलाओं को शिक्षित करना आवश्यक है।
  • उन्होंने अनुभव किया कि यदि देश को विदेशी राजनीतिक दासता से स्वतन्त्र करवाना है तो सर्वप्रथम अपने घर और समाज का सुधार करना होगा।
  • उन्होंने यह भी अनुभव किया कि समाज में फैली कुरीतियों को समाप्त करने के लिए सर्वप्रथम महिलाओं की दशा सुधारना आवश्यक है।
  • समाज-सुधारकों का मानना था कि देश की लोकतन्त्र प्रणाली समाज में समानता के बिना अधूरी है। अत: उन्होंने महिलाओं को समाज में पुरुषों के समान अधिकार दिलाने का प्रयास किया।

प्रश्न 14.
महाराष्ट्र के समाज सुधारकों द्वारा स्त्रियों के उद्धार के लिए दिए गए योगदान का वर्णन करें।
उत्तर-
महाराष्ट्र में समाज सुधारकों ने विभिन्न संस्थाएं स्थापित की। इन्हीं संस्थाओं ने स्त्रियों की दशा सुधारने के लिए विशेष अभियान चलाये जिनका वर्णन इस प्रकार है-

1. परमहंस सभा-19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र के समाज सुधारकों ने समाज में जागृति लाने के लिए आन्दोलन आरम्भ किये। 1849 ई० में परमहंस मण्डली की स्थापना की गई। इसने मुम्बई में धार्मिक-सामाजिक सुधार आन्दोलन आरम्भ किये। इसका मुख्य उद्देश्य मूर्ति-पूजा तथा जाति-प्रथा का विरोध करना था। इस सभा ने नारी-शिक्षा के लिए कई स्कूलों की स्थापना की। इसने सायंकाल को शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओं की भी स्थापना की। ज्योतिबा फुले ने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए पिछड़ी जाति की कन्याओं के लिए पुणे में एक स्कूल खोला। उन्होंने विधवाओं की दशा सुधारने के लिए भी प्रयत्न किये। उनके प्रयत्नों से 1856 ई० में सरकार ने विधवा-पुनर्विवाह कानून पास कर दिया। उन्होंने विधवाओं के बच्चों के लिए एक अनाथालय खोला। महाराष्ट्र के एक अन्य प्रसिद्ध समाज सुधारक गोपाल हरि देशमुख थे जोकि लोक-हितकारी के नाम से प्रसिद्ध थे। उन्होंने समाज की बुराइयों का खण्डन किया तथा समाज सुधार पर बल दिया।

2. प्रार्थना समाज-1867 ई० में महाराष्ट्र में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई। महादेव गोबिन्द रानाडे तथा राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर इस समाज के प्रसिद्ध नेता थे। उन्होंने जाति प्रथा तथा बाल-विवाह का विरोध किया। वह विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने विधवा-विवाह संघ की स्थापना की। उन्होंने कई स्थानों पर शिक्षण संस्थाएं तथा अनाथाश्रम खोले। उनके प्रयत्नों से 1884 ई० में दक्कन शिक्षा सोसायटी की स्थापना हुई, जिसने पुणे में दक्कन कॉलेज की स्थापना की।

II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें :

1. हिन्दू समाज में स्त्रियों को …………… सम्पत्ति लेने का अधिकार नहीं था।
2. अपने भाई की पत्नी के सती हो जाने के पश्चात् ………… के जीवन में एक नया मोड़ आया।
3. 1872 ई० में केशवचन्द्र सेन द्वारा ………… पर पाबंदी लगायी गई।
4. तलाक प्रथा का ………….. ने विरोध किया।
5. ………. 1886 ई० में इंग्लैंड में थियोसिफीकल सोसाइटी में शामिल हई।
उत्तर-

  1. पैतृक
  2. राजा राममोहन राय
  3. दूसरे विवाह
  4. सर सैय्यद अहमद खां
  5. श्रीमती ऐनी बेसेंट।

III. सही जोड़े बनाएं:

क – ख
1. स्वामी विवेकानंद – 1. नामधारी लहर
2. श्री सतगुरु राम सिंह जी – 2. रामकृष्ण मिशन
3. सिंह सभा लहर – 3. अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय
4. सर सैय्यद अहमद खां – 4. मंजी साहिब (अमृतसर)
उत्तर-
1. स्वामी विवेकानंद – रामकृष्ण मिशन
2. श्री सतगुरु राम सिंह जी – नामधारी लहर
3. सिंह सभा लहर – मंजी साहिब (अमृतसर)
4. सर सैय्यद अहमद खां – अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय

PSEB 8th Class Social Science Guide स्त्रियां तथा सुधार Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Multiple Choice Questions)

(क) सही विकल्प चुनिए :

प्रश्न 1.
सती प्रथा को (1829 ई०) अवैध घोषित किया-
(i) लार्ड डलहौज़ी
(ii) लार्ड विलियम बैंटिक
(ii) लार्ड वारेन हेस्टिंग्ज़
(iv) लार्ड मैकाले।
उत्तर-
लार्ड विलियम बैंटिक

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प्रश्न 2.
नामधारी आंदोलन की स्थापना हुई.
(i) मंजी साहिब (अमृतसर)
(ii) मिठू बस्ती (जालंधर)
(iii) भैणी साहिब (लुधियाना)
(iv) शकूरगंज।
उत्तर-
भैणी साहिब (लुधियाना)

प्रश्न 3.
अहमदिया लहर की नींव रखी
(i) सर सैय्यद अहमद खां
(ii) श्री सतिगुरु राम सिंह जी
(iii) बाबा दयाल सिंह ।
(iv) मिर्जा गुलाम अहमद।
उत्तर-
मिर्जा गुलाम अहमद

प्रश्न 4.
दूसरे विवाह पर प्रतिबंध लगवाया-
(i) राजा राम मोहन राय
(ii) ईश्वर चन्द्र विद्यासागर
(ii) केशव चन्द्र सेन
(iv) स्वामी दयानन्द।
उत्तर-
केशव चन्द्र सेन

प्रश्न 5.
‘आनंद विवाह’ की प्रणाली प्रथा आरम्भ की-
(i) श्री सतिगुरु राम सिंह
(ii) बाबा दयाल सिंह
(iii) मिर्जा गुलाम अहमद
(iv) प्रो० गुरुमुख सिंह।
उत्तर-
श्री सतिगुरु राम सिंह

प्रश्न 6.
सती प्रथा को किसके प्रयत्नों से समाप्त किया गया ?
(i) राजा राम मोहन राय
(ii) सर सैय्यद अहमद खाँ
(iii) वीर सलिंगम
(iv) स्वामी दयानंद सरस्वती।
उत्तर-
राजा राम मोहन राय

प्रश्न 7.
नामधारी आन्दोलन के संस्थापक कौन थे ?
(i) स्वामी विवेकानंद
(ii) श्रीमती एनीबेसेंट
(iii) सतिगुरु राम सिंह
(iv) बाबा दयाल सिंह।
उत्तर-
सतिगुरु राम सिंह।

(ख) सही कथन पर (✓) तथा गलत कथन पर (✗) का निशान लगाएं :

1. 1854 ई० के वुड डिस्पैच में स्त्री शिक्षा पर जोर दिया गया।
2. केशवचन्द्र सेन आर्य समाज के प्रसिद्ध नेता थे।
3. प्रार्थना समाज ने विधवा पुनः विवाह का विरोध किया।
उत्तर-

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
19वीं शताब्दी के भारतीय समाज में प्रचलित किन्हीं चार कुरीतियों के नाम बताओ, जिन्होंने स्त्रियों की दशा को दयनीय बना दिया।
उत्तर-
सती प्रथा, कन्या वध, पर्दा प्रथा तथा बहु विवाह आदि।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी में लोग कन्याओं का वध क्यों करते थे ? कोई दो कारण लिखो।
उत्तर-

  1. लड़कियों के विवाह पर बहुत अधिक धन खर्च करना पड़ता था।
  2. माता-पिता को अपनी लड़कियों के लिए योग्य वर ढूंढ़ने में कठिनाई होती थी।

प्रश्न 3.
19वीं शताब्दी में लोग लड़कियों को शिक्षा क्यों नहीं दिलवाते थे ?
उत्तर-
लोग लड़कियों को शिक्षा दिलवाना उन्हें अधिक आजादी देने के बराबर मानते थे। इसके अतिरिक्त वे लड़कियों की शिक्षा को समाज के लिए हानिकारक भी मानते थे।

प्रश्न 4.
ब्रह्म समाज से जुड़े दो नेताओं के नाम बताओ।
उत्तर-
राजा राममोहन राय तथा केशवचन्द्र सेन।

प्रश्न 5.
आर्य समाज के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
स्वामी दयानन्द सरस्वती।

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प्रश्न 6.
साईंटिफिक सोसायटी की स्थापना किसने, कहां और क्यों की ?
उत्तर-
साईंटिफिक सोसायटी की स्थापना सर सैय्यद अहमद खां ने अलीगढ़ में की। इसकी स्थापना विज्ञान के एक ग्रंथ का उर्दू में अनुवाद करने के लिए की गई थी।

प्रश्न 7.
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक कौन थे ? उन्होंने किस रीति के अनुसार विवाह करने का उपदेश दिया ?
उत्तर-
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक बाबा दयाल जी थे। उन्होंने गुरुमत की रीति के अनुसार विवाह करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 8.
‘आनन्द विवाह’ की प्रणाली (प्रथा) किसने चलाई ? इसकी क्या विशेषता थी ?
उत्तर-
आनन्द विवाह की प्रणाली (प्रथा) श्री सतिगुरु राम सिंह जी ने चलाई। इस प्रणाली के अनुसार केवल सवा रुपये में ही विवाह हो जाता था।

प्रश्न 9.
सिंह सभा लहर की नींव कब और कहां रखी गई ?
उत्तर-
सिंह सभा लहर की नींव अक्तूबर 1873 ई० में मंजी साहिब (अमृतसर) में रखी गई।

प्रश्न 10.
लाहौर में सिंह सभा की शाखा कब स्थापित की गई ? इसका प्रधान किसे बनाया गया ?
उत्तर-
लाहौर में सिंह सभा की शाखा 1879 ई० में स्थापित की गई। इसका प्रधान प्रो० गुरुमुख सिंह को बनाया गया।

प्रश्न 11.
अहमदिया लहर की नींव कब, कहां और किसने रखी ?
उत्तर-
अहमदिया लहर की नींव 1853 ई० में मिर्जा गुलाम अहमद ने जिला गुरदासपुर में रखी।

प्रश्न 12.
समकृष्ण मिशन की स्थापना कब, किसने और किसकी याद में की ?
उत्तर-
रामकृष्ण मिशन की स्थापना 1897 ई० में स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस की याद में की।

प्रश्न 13.
संगत सभा की स्थापना कब और किसने की ?
उत्तर-
संगत सभा की स्थापना 1860 ई० में केशवचन्द्र सेन ने की।

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प्रश्न 14.
श्रीमती ऐनी बेसेंट कब भारत आईं ? उनका सम्बन्ध किस संस्था से था ?
उत्तर-
श्रीमती ऐनी बेसेंट 1893 ई० में भारत आईं। उनका सम्बन्ध थियोसोफिकल सोसायटी से था।

प्रश्न 15.
प्रार्थना समाज की स्थापना कब हुई ? इसके दो मुख्य नेता कौन-कौन थे ?
उत्तर-
प्रार्थना समाज की स्थापना 1867 ई० में हुई। इसके दो प्रमुख नेता महादेव गोबिन्द रानाडे तथा राम कृष्ण गोपाल भण्डारकर थे।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
निरंकारी आन्दोलन तथा बाबा दयाल जी पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
निरंकारी आन्दोलन के संस्थापक बाबा दयाल जी थे। उस समय समाज में कन्या के जन्म को अपशकुन समझा जाता था। अतः अनेक कन्याओं को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। महिलाओं में बाल-विवाह, दहेज-प्रथा तथा सती प्रथा आदि बुराइयां प्रचलित थीं। विधवा के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था और उसे पुनर्विवाह की अनुमति नहीं दी जाती थी। बाबा दयाल जी ने इन सभी बुराइयों को समाप्त करने का पूरा प्रयास किया। उन्होंने कन्या वध तथा सती प्रथा का विरोध किया। उन्होंने लोगों को अपने बच्चों के विवाह गुरुमत के अनुसार करने का उपदेश दिया।

प्रश्न 2.
नामधारी लहर की स्थापना कब और किसने की ? इसके द्वारा किए गए सामाजिक सुधारों का वर्णन करो।
उत्तर-
नामधारी लहर की स्थापना 13 अप्रैल, 1857 ई० को श्री सतिगुरु राम सिंह जी ने भैणी साहिब (लुधियाना) में की। उन्होंने समाज में प्रचलित बुराइयों का विरोध किया।

  1. उन्होंने बाल-विवाह, कन्या-वध तथा दहेज-प्रथा आदि बुराइयों का प्रबल विरोध किया।
  2. उन्होंने महिलाओं की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें पुरुषों के समान अधिकार देने पर बल दिया।
  3. उन्होंने विवाह के समय किये जाने वाले व्यर्थ के व्यय का खण्डन किया। श्री सतिगुरु राम सिंह
  4. उन्होंने विवाह की एक प्रणाली चलाई जिसे आनन्द विवाह का नाम दिया गया। इस प्रणाली के अनुसार केवल सवा रुपये में विवाह की रस्म पूरी कर दी जाती थी। वह जाति-प्रथा में भी विश्वास नहीं रखते थे।

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 17 स्त्रियां तथा सुधार 1

प्रश्न 3.
केशवचन्द्र सेन कौन थे ? समाज सुधार के क्षेत्र में उनके योगदान का वर्णन करो।
उत्तर-
केशवचन्द्र सेन ब्रह्म समाज के एक प्रसिद्ध नेता थे। वह 1857 ई० में ब्रह्म समाज में सम्मिलित हुए थे। 1860 ई० में उन्होंने संगत सभा की स्थापना की, जिसमें धर्म सम्बन्धी विषयों पर विचार-विमर्श होता था। केशव चन्द्र सेन ने नारीशिक्षा एवं विधवा पुनर्विवाह के पक्ष में प्रचार किया। उन्होंने बाल-विवाह तथा बहु-विवाह आदि प्रथाओं की घोर निन्दा की। केशवचन्द्र सेन के प्रयत्नों से 1872 ई० में सरकार ने कानून पास करके दूसरे विवाह पर रोक लगा दी।

प्रश्न 4.
समाज सुधार के क्षेत्र में श्रीमती ऐनी बेसेंट तथा थियोसोफिकल सोसायटी का क्या योगदान है ?
उत्तर-
श्रीमती ऐनी बेसेंट 1886 ई० में इंग्लैण्ड में थियोसोफिकल सोसायटी में सम्मिलित हुईं। 1893 ई० में वह भारत आ गईं। उन्होंने भारत का भ्रमण किया तथा भाषण दिये। उन्होंने पुस्तकें तथा लेख लिखकर सोसायटी के सिद्धान्तों का प्रचार किया। थियोसोफिकल सोसायटी ने अनेक सामाजिक सुधार भी किये। इसने बाल-विवाह तथा जाति-प्रथा का विरोध किया। इसने पिछड़े लोगों तथा विधवाओं के उद्धार के लिए प्रयत्न किये। सोसायटी ने शिक्षा के विकास के लिए स्थान-स्थान पर बालकों तथा बालिकाओं के लिए स्कूल खोले। 1898 ई० में बनारस में सैंट्रल हिन्दू कॉलेज स्थापित किया गया, जहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ अन्य धर्मों की श्री शिव को राती थी।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज सुधार तथा नारी उद्धार के लिए सिंह सभा लहर, अहमदिया लहर तथा स्वामी विवेकानन्द (रामकृष्ण मिशन) द्वारा किये गये कार्यों का वर्णन करो।
उत्तर-
सिंह सभा लहर-सिंह सभा लहर की नींव 1873 ई० में मंजी साहिब (अमृतसर) में रखी गई। इसका उद्देश्य सिख धर्म तथा समाज में प्रचलित बुराइयों को दूर करना था। सरदार ठाकुर सिंह संधावालिया को इसका प्रधान तथा ज्ञानी ज्ञान सिंह को सचिव नियुक्त किया गया। देश के विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले सिख सिंह सभा के सदस्य बन सकते थे। 1879 ई० में लाहौर में सिंह सभा की एक अन्य शाखा खोली गई। इसका प्रधान प्रो० गुरुमुख सिंह को बनाया गया। धीरे-धीरे पंजाब में अनेक सिंह सभा शाखाएं स्थापित हो गईं। सिंह सभा के प्रचारकों ने समाज में प्रचलित जातिप्रथा, अस्पृश्यता तथा अन्य सामाजिक बुराइयों का जोरदार खण्डन किया।

इस लहर ने महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार देने के लिए प्रबल प्रचार किया। इसने महिलाओं में प्रचलित पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा विधवा-विवाह निषेध आदि बुराइयों की निन्दा की। सिंह सभा ने विधवाओं की देखभाल के लिए विधवा-आश्रम स्थापित किये। इसने नारी-शिक्षा की ओर भी विशेष ध्यान दिया। सिख कन्या महाविद्यालय फिरोज़पुर, खालसा भुजंग स्कूल कैरो तथा विद्या भण्डार भमौड़ आदि प्रसिद्ध कन्या विद्यालय थे जो सर्वप्रथम सिंह सभा के अधीन स्थापित हुए।

अहमदिया लहर-अहमदिया लहर की नींव 1853 ई० में मिर्जा गुलाम अहमद ने कादियां जिला गुरदासपुर में रखी। उन्होंने लोगों को कुरान शरीफ के उपदेशों पर चलने के लिए कहा। उन्होंने परस्पर भाईचारे (भ्रातृभाव) तथा धार्मिक सहनशीलता का प्रचार किया। उन्होंने धर्म में प्रचलित झूठे रीति-रिवाज़ों, अन्ध-विश्वासों और कर्मकाण्डों का त्याग करने का प्रचार किया। उन्होंने धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ पश्चिमी शिक्षा देने का समर्थन भी किया। उन्होंने कई स्कूल और कॉलेजों की स्थापना की।

स्वामी विवेकानन्द तथा राम कृष्ण मिशन-स्वामी विवेकानन्द ने 1897 ई० में अपने गुरु स्वामी राम कृष्ण परमहंस की स्मृति में ‘राम कृष्ण मिशन’ की स्थापना की। उन्होंने भारतीय समाज में प्रचलित अन्ध-विश्वासों और व्यर्थ के रीति-रिवाजों की निन्दा की। वे जाति-प्रथा तथा अस्पृश्यता में विश्वास नहीं रखते थे। उन्होंने महिलाओं की दशा सुधारने के लिए विशेष प्रयत्न किये। वे महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार,दिये जाने के पक्ष में थे। उन्होंने कन्यावध, बाल-विवाह, दहेज-प्रथा आदि बुराइयों का विरोध किया। वे विधवा-विवाह के पक्ष में थे। उन्होंने नारी-शिक्षा के लिए प्रचार किया तथा कई स्कूल एवं पुस्तकालय स्थापित किये।

प्रश्न 2.
19वीं शताब्दी के सुधार आन्दोलनों के प्रभावों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय सुधारकों के प्रयत्नों के परिणामस्वरूप सरकार ने कई सामाजिक बुराइयों पर कानूनी रोक लगा दी। महिलाओं की दशा सुधारने की ओर विशेष ध्यान दिया गया।

  1. 1795 ई० तथा 1804 ई० में कानून पास करके कन्या-वध पर रोक लगा दी गई।
  2. 1829 ई० में लार्ड विलियम बैंटिक ने कानून द्वारा सती प्रथा पर रोक लगा दी।
  3. सरकार ने 1843 ई० में कानून पास करके भारत में दास प्रथा को समाप्त कर दिया।
  4. बंगाल के महान् समाज सुधारक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर के प्रयत्नों से 1856 ई० में विधवा-पुनर्विवाह को कानून द्वारा मान्यता दे दी गई।
  5. सरकार ने 1860 ई० में कानून पास करके बालिकाओं के लिए विवाह की आयु कम-से-कम 10 वर्ष निश्चित की। 1929 ई० में शारदा एक्ट के अनुसार बालकों के विवाह के लिए कम-से-कम 16 साल और बालिकाओं के लिए 14 साल की आयु निश्चित की गई।
  6. 1872 ई० में सरकार ने कानून पास करके अन्तर्जातीय विवाह को स्वीकृति दे दी।
  7. 1854 ई० के वुड डिस्पैच में महिलाओं की शिक्षा पर बल दिया गया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 9 Social Science History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति

SST Guide for Class 9 PSEB फ्रांसीसी क्रांति Textbook Questions and Answers

(क) बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
पुराने राज्य के दौरान आर्थिक गतिविधियों का भार किस द्वारा चुकाया जाता था ?
(क) चर्च
(ख) केवल अमीर
(ग) तीसरा वर्ग
(घ) केवल राजा।
उत्तर-
(ग) तीसरा वर्ग

प्रश्न 2.
आस्ट्रियन राजकुमारी मैरी एंटोनिटी फ्रांस के किस राजा की रानी थी ?
(क) लुइस तीसरा
(ख) लुइस 14वां
(ग) लुइस 15वां
(घ) लुइस 16वां।
उत्तर-
(घ) लुइस 16वां।

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प्रश्न 3.
नेपोलियन ने स्वयं को फ्रांस का राजा कब बनाया ?
(क) 1805 ई०
(ख) 1804 ई०
(ग) 1803 ई०
(घ) 1806 ई०
उत्तर-
(ख) 1804 ई०

प्रश्न 4.
फ्रांस में टेनिस कोर्ट शपथ कब ली गई ?
(क) 4 जुलाई, 1789 ई०
(ख) 20 जून, 1789 ई०
(ग) 4 अगस्त, 1789 ई०
(घ) 5 मई, 1789 ई०।
उत्तर-
(ख) 20 जून, 1789 ई०

प्रश्न 5.
फ्रांस संदर्भ में कन्वेंशन से क्या अभिप्राय है ?
(क) एक फ्रांसीसी स्कूल
(ख) नई चुनी परिषद्
(ग) क्लब
(घ) एक महिला संगठन।
उत्तर-
(ख) नई चुनी परिषद्

प्रश्न 6.
मांटेस्क्यू ने कौन-से विचार का प्रचार किया ?
(क) दैवी अधिकार
(ख) सामाजिक समझौता
(ग) शक्तियों की विकेंद्रीकरण
(घ) शक्ति का संतुलन।
उत्तर-
(ग) शक्तियों की विकेंद्रीकरण

प्रश्न 7.
फ्रांसीसी इतिहास में किस समय को आतंक का दौर के नाम से जाना जाता है ?
(क) 1792 ई०-93 ई०
(ख) 1774 ई०-76 ई०
(ग) 1793 ई०-94 ई०
(घ) 1804 ई०-1815 ई०
उत्तर-
(ग) 1793 ई०-94 ई०

(ख) रिक्त स्थान भरो :

  1. एक सिर काटने वाला यंत्र था जिसका प्रयोग फ्रांसीसियों ने किया था ……………
  2. बेस्टाइल का हमला ………….. में हुआ था।
  3. 815 ई० में वाटरलू के युद्ध में …………. पराजित हुआ।
  4. जैकोबिन क्लब का प्रतिनिधि …………….. था।
  5. …………. ने सोशल कांट्रेक्ट नाम पुस्तक की रचना की।
  6. मारसेइस (Marseillaise) की रचना ………….. ने की ।

उत्तर-

  1. गुलुटाइन,
  2. 14 जुलाई, 1789 ई०
  3. नेपोलियन बोनापार्ट
  4. मेक्सीमिलान रोबसपायरी (Maximilian Robespierie),
  5. रूसो
  6. रोजर डी लाइसले (Roger de LTsle)THEMAHI

(ग) मिलान करो :

(क) – (ख)
1. किलेनुमा जेल – (अ) गुलूटाइन
2. चर्च द्वारा प्राप्त कर – (आ) जैकोबिन
3. आदमी का सिर काटना – (इ) रूसो
4. फ्रांस की मध्य श्रेणी का क्लब – (ई) बेस्टाइल
5. द सोशल कांट्रैक्ट – (उ) टित्थे।

उत्तर-

  1. बेस्टाइल
  2. टित्थे,
  3. गुलटाइन
  4. जैकोबिन
  5. रूसो।

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(घ) अंतर बताओ :

प्रश्न 1.
1. पहला वर्ग और तीसरा वर्ग
2. टित्थे और टाइले।
उत्तर-
1. पहला वर्ग-समाज के पहले वर्ग में पादरी शामिल थे। पादरी वर्ग दो हिस्सों में विभाजित था-उच्च पादरी, साधारण पादरी। उच्च पादरियों में प्रधान पादरी , धर्माध्यक्ष और महंत शामिल थे। वे गिरिजाघरों का प्रबन्ध चलाते थे। उनको लोगों से कर (Tithe) इकट्ठा करने का अधिकार प्राप्त था।
तीसरा वर्ग-समाज के तीसरे वर्ग में कुल जनसंख्या के 97 प्रतिशत लोग आते थे। यह वर्ग असमानता और सामाजिक एवं आर्थिक पिछड़ेपन का शिकार था। इस श्रेणी में धनी व्यापारी, अदालती व कानूनी अधिकारी, साहूकार, किसान, कारीगर, छोटे काश्तकार, आदि आते थे। तीसरे वर्ग के लोग ही सबसे अधिक कर देते थे।

2. टित्थे (Tithe)—यह गिरिजाघर को दिया जाने वाला कर था। किसानों को अपनी वार्षिक आय का दसवां भाग भूमि कर के रूप में देना पड़ता था। यह भूमि पर लगाया जाने वाला कर था जो पहले किसान अपनी इच्छा से देते थे, परंतु बाद में इसे अनिवार्य कर दिया गया।
टाइले (Taille) यह राज्य को दिया जाने वाला कर था जो कि साधारण लोगों पर लगाया जाता था। प्रायः राजा अपनी प्रजा की भूमि और सम्पत्ति पर यह कर लगाता था। यह कर रोज़ की आवश्यकताओं जैसे कि नमक व तम्बाकू पर लगाया जाता था। इसका प्रतिशत हर वर्ष राजा की मर्जी से निश्चित किया जाता था।

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांस की क्रांति कब हुई ?
उत्तर-
1789 ई०।

प्रश्न 2.
जैकोबिन क्लब का नेता कौन था ?
उत्तर-
मेक्सीमिलान रोबसपायरी।

प्रश्न 3.
डायरैक्टरी क्या थी ?
उत्तर-
पांच सदस्यों की कौंसिल।

प्रश्न 4.
फ्रांस के समाज में कौन कर देता था ?
उत्तर-
तीसरा वर्ग।

प्रश्न 5.
राज्य को प्रत्यक्ष दिये जाने वाले कर को क्या कहते थे ?
उत्तर-
टैले (Taille)।

प्रश्न 6.
किन वर्गों को कर से छूट प्राप्त थी ?
उत्तर-
पहला वर्ग अथवा पादरी वर्ग तथा दूसरा वर्ग अथवा कुलीन वर्ग।

प्रश्न 7.
किसानों को कितने प्रकार के करों का भुगतान करना पड़ता था ?
उत्तर-
किसानों को दोनों प्रकार के कर देने पड़ते थे-टित्थे (Tithe) तथा टाइले (Taille)।

प्रश्न 8.
फ्रांस के राष्ट्रीय गान का नाम लिखो।
उत्तर-
‘मारसेइस’ (Marseillaise)

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लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांसीसी क्रांति से पूर्व समाज किस प्रकार विभाजित था ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति से पूर्व समाज तीन वर्गों (एस्टेट) में बंट था-पहला वर्ग तथा पादरी वर्ग, दूसरा वर्ग अथवा कुलीन वर्ग, तीसरा वर्ग अथवा साधारण वर्ग।

  1. पहला वर्ग अथवा पादरी वर्ग-पहला वर्ग में अधिकार युक्त बड़े-बड़े सामंत, पादरी आदि सम्मिलित थे। इन लोगों को कोई कर नहीं देना पड़ता था। योग्य न होने पर भी वे राज्य के बड़े-बड़े पदों पर आसीन थे।
  2. दूसरा वर्ग अथवा कुलीन वर्ग-दूसरे एस्टेट में कुलीन वर्ग के लोग सम्मिलित थे।
  3. तीसरे वर्ग अथवा साधारण वर्ग-तीसरे एस्टेट में अर्थात् वकील, डॉक्टर तथा शिक्षक वर्ग के लोग सम्मिलित थे। योग्यता होने पर भी ये लोग राज्य के उच्च पदों से वंचित थे। जनसाधारण भी इसी वर्ग में सम्मिलित थे। उन्हें राज्य को भी कर देना पड़ता था और चर्च को भी। इनसे बेगार ली जाती थी और वर्षों से इनका शोषण हो रहा था।

प्रश्न 2.
फ्रांसीसी क्रांति में महिलाओं के योगदान पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति के समय किसी भी सरकार ने महिलाओं को सक्रिय नागरिक नहीं माना, परंतु क्रांति के समय उनकी भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण थी।
तीसरे एस्टेट की अधिकतर महिलाएं जीवन निर्वाह के लिए काम करती थीं। वे सिलाई-बुनाई तथा कपड़ों की धुलाई करती थीं और बाजारों में फल-फूल तथा सब्जियां बेचती थीं। कुछ महिलाएं संपन्न घरों में घरेलू काम करती थीं। बहुतसी महिलाएं वेश्यावृत्ति भी करती थीं। अधिकांश महिलाओं के पास पढ़ाई-लिखाई तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसर नहीं थे। कामकाजी महिलाओं को अपने परिवार की देखभाल भी करनी पड़ती थी। महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए निरंतर आंदोलन चलाया। फ्रांसीसी क्रांति के समय ओलंपे दे गाजस एक सक्रिय राजनीतिक महिमा प्रतिनिधि थी। उसने संविधान के मनुष्य व नागरिकों के अधिकारों के घोषणा-पत्र का विरोध किया। इसलिए उसे मृत्यु दंड दे दिया गया। ऐसी अन्य कई महिला प्रतिनिधियों को आतंक के दौर में मौत के घाट उतार दिया गया। लगभग 150 वर्षों के बाद 1946 ई० में महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए। एक कानून के अनुसार सरकारी विद्यालयों की स्थापना की गई और सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया।

प्रश्न 3.
फ्रांसीसी क्रांति की प्रभावित करने वाले तीन प्रमुख लेखकों, दार्शनिकों के विषय में संक्षेप में लिखो।
उत्तर-

  1. जॉन लॉक ने अपनी कृति ‘टू ट्रीटाइज़ेज ऑफ़ गवर्नमैंट’ में राजा के दैवी तथा निरंकुश अधिकारों के सिद्धांत का खंडन किया।
  2. रूसो ने इसी विचार को आगे बढ़ाया। उसने जनता और उसके प्रतिनिधियों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित सरकार का प्रस्ताव रखा।
  3. मॉटेस्क्यू ने अपनी रचना ‘द स्पिरिट ऑफ़ द लॉज़’ में सरकार के अंदर विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका के बीच सत्ता विभाजन की बात कही।
    दार्शनिकों के इन विचारों से फ्रांस में क्रांति के विचारों को और अधिक बल मिला।

प्रश्न 4.
राजतंत्र से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर-
राजतंत्र ऐसी शासनतंत्र प्रणाली होती है जिसमें राजा ही सबसे बड़ा अधिकारी होता है। वह प्रायः तानाशाह होता है और राजा के दैवीय अधिकारों में विश्वास रखता है। फ्रांस में भी राजतंत्र था और वहां का शासक लुईस 16वां सभी अधिकारों का स्वामी था। उसके अधिकारों को कोई भी चुनौती नहीं दे सकता था उसे न तो देश के संविधान की चिंता थी और न ही जनता के हितों का ध्यान था। वर्षों तक उसने देश की संसद् भी नहीं बुलाई थी। जब उसने संसद् बुलाई तो उसका उद्देश्य भी कर लगाना था। यही घटना क्रांति के विस्फोट का कारण बनी।

प्रश्न 5.
‘राष्ट्रीय संवैधानिक परिषद्’ का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर-
फ्रांस का सम्राट् लुई (XVI) अपनी विद्रोही प्रजा की शक्ति को देखकर सहम गया था। अतः उसने नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि अब से उसकी सत्ता पर संविधान का अंकुश होगा। 1791 में नेशनल असेंबली ने संविधान का प्रारूप तैयार कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य सम्राट की शक्तियों को सीमित करना था। अब शक्तियों को विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में विभाजित कर दिया गया। इस प्रकार शक्तियां एक हाथ में केंद्रित न रह कर तीन विभिन्न संस्थाओं को हस्तांतरित कर दी गईं। इसी के फलस्वरूप फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उन स्थितियों का वर्णन करें जिनके कारण फ्रांसीसी क्रांति का उदय हुआ ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति आधुनिक यूरोप के इतिहास की महानतम घटना थी। इसका आरंभ भले ही 1789 ई० में हुआ हो, परंतु इसकी पृष्ठभूमि बहुत पहले से तैयार हो रही थी। फ्रांस में राजा, उसके दरबारी, सेना के अधिकारी तथा चर्च के पादरी जन-साधारण का खून चूस रहे थे। इन्हें कोई कर नहीं देना पड़ता था। करों का सारा बोझ जनता पर था। आम आदमी राज्य की सेवा करता था, परंतु योग्यता होने पर भी वह उच्च पद प्राप्त नहीं कर सकता था। किसान तो दासता में पैदा होता था और दासता में ही मर जाता था। 1789 ई० में स्थिति और भी गंभीर हो गई और क्रांति की ज्वाला भड़क उठी। संक्षेप में, फ्रांस में क्रांति की शुरुआत निम्नलिखित परिस्थितियों में हुई
1. राजनीतिक परिस्थितियां

  1. फ्रांस के राजा स्वेच्छाचारी थे और वे राजा के दैवीय अधिकारों में विश्वास रखते थे। सम्राट की इच्छा ही कानून थी। वह अपनी इच्छा से युद्ध अथवा संधि करता था। सम्राट् लुई 14वां तो यहां तक कहता था-“मैं ही राज्य हूं।”
  2. कर बहुत अधिक थे जो मुख्यतः जनसाधारण को ही देने पड़ते थे। दरबारी और सामंत करों से मुक्त थे।
  3. राज्य में सैनिक तथा अन्य पद पैतृक थे और उन्हें बेचा भी जा सकता था।
  4. सेना में असंतोष था।
  5. शासन में व्यापक भ्रष्टाचार फैला हुआ था।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति

2. सामाजिक परिस्थितियां

  1. फ्रांस में मुख्य तीन श्रेणियां (एस्टेट्स) थीं-उच्च, मध्यम तथा निम्न। उच्च श्रेणी में अधिकार युक्त बड़े-बड़े सामंत, पादरी आदि सम्मिलित थे। इन लोगों को कोई कर नहीं देना पड़ता था। योग्य न होने पर भी वे राज्य के बड़ेबड़े पदों पर आसीन थे।
  2. दूसरे एस्टेट में कुलीन वर्ग के लोग सम्मिलित थे।

3. आर्थिक परिस्थितियां-

  1. फ्रांस के राजा धन का दुरुपयोग करते थे और उन्होंने व्यक्तिगत ऐश्वर्य के लिए खज़ाना खाली कर दिया।
  2. करों का विभाजन दोषपूर्ण था। धनी लोग कर से मुक्त थे जबकि जनसाधारण को कर चुकाने पड़ते थे। कर एकत्रित करने की विधि भी दोषपूर्ण थी।
  3. फांस में औद्योगिक क्रांति के कारण अनेक कारीगर बेकार हो गए और उनमें असंतोष फैल गया।
  4. फ्रांस ऋण के बोझ से दबा हुआ था।
  5. दोषपूर्ण कर-प्रणाली के कारण व्यापार अवनति की ओर बढ़ रहा था।
  6. फ्रांस ने अमेरिका के लोगों को वित्तीय सहायता दी जिससे राजकोष पर ऋण का बोझ बढ़ गया।

4. दार्शनिकों का योगदान-फ्रांस की स्थिति बहुत ही खराब थी, जिसे दर्शाने में दार्शनिकों ने बड़ा योगदान दिया। उन्होंने जनता को यह समझाने का प्रयास किया कि उनके दुःखों का वास्तविक कारण राजतंत्र है।

  1. रूसो ने अपनी पुस्तक ‘सामाजिक समझौता’ में राजा के दैवीय अधिकारों पर प्रहार किया।
  2. वाल्तेयर ने चर्च के धार्मिक आडंबरों और पादरियों के भ्रष्टाचार को अपना निशाना बनाया।
  3. मांतेस्क्यू ने अपनी पुस्तक ‘The Spirit of the Laws’ में राजा के दैवीय अधिकारों और उसकी निरंकुशता की कड़ी आलोचना की।
    इस प्रकार, दार्शनिकों के प्रयत्नों से नवीन विचारधारा का प्रादुर्भाव हुआ। इसी नवीन विचारधारा के कारण फ्रांस में क्रांति हुई।

5. एस्टेट्स जेनराल का अधिवेशन बुलाया जाना तथा क्रांति की शरुआत-फ्रांसीसी क्रांति का तात्कालिक कारण एस्टेट्स जेनराल का अधिवेशन बुलाया जाना था। अधिवेशन बुलाए जाने के बाद जनसाधारण के प्रतिनिधियों ने राजा के सामने यह मांग रखी कि एस्टेट्स जेनराल के तीनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई जाए। राजा के इन्कार करने
पर जनसाधारण के प्रतिनिधि टैनिस कोर्ट में एकत्रित हुए और उन्होंने नवीन संविधान बनाने की घोषणा की। इसी बीच राजा ने जनता के प्रतिनिधियों की मांग स्वीकार कर ली जिन्होंने एस्टेट्स जेनराल के प्रथम अधिवेशन में ही क्रांति का बिगुल बजा दिया।
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (1)

प्रश्न 2.
फ्रांस की क्रांति के पड़ावों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखो।
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति आधुनिक काल की सबसे महान् घटना थी। यह केवल फ्रांस की ही आंतरिक घटना नहीं थी, बल्कि यह विश्व क्रांति थी। इसने केवल फ्रांसीसी समाज को ही नहीं, बल्कि पूरी मानव-जाति को प्रभावित किया। शताब्दियों के पश्चात् मानवीय मूल्यों का आदर किया जाने लगा, मध्यकालीन सामंती ढांचा जड़ से हिल गया और राजतंत्र का स्थान प्रजातंत्र ने लेना आरंभ किया। समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों की गूंज विश्व के अनेक देशों में सुनी गई। फ्रांस की क्रांति के 1789 ई० से आरंभ होकर नेपोलियन के पतन तक चली इसके विभिन्न पड़ावों का वर्णन इस प्रकार है-

1. टैनिस कोट और बेस्टील का पतन-14 जुलाई, 1789 को क्रुद्ध भीड़ से पेरिस नगर में बेस्टील के किले पर धावा बोला। यह किला फ्रांस के सम्राट् की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक था। उस दिन सम्राट ने सेना को नगर में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था। अफ़वाह थी कि वह सेना को नागरिकों पर गोलियां चलाने का आदेश देने वाला है। अतः लगभग 7000 पुरुष तथा स्त्रियां टाऊन हॉल के सामने एकत्र हुए और उन्होंने एक जन-सेना का गठन किया। हथियारों की खोज में वे अनेक सरकारी भवनों में जबरन प्रवेश कर गए। अंततः सैंकड़ों लोगों के एक समूह ने पेरिस नगर में स्थित बेस्टील (Bastile) के किले की जेल को तोड़ डाला जहां उन्हें भारी मात्रा में गोला-बारूद मिलने की आशा थी। हथियारों पर कब्जे के इस संघर्ष में बेस्टील का कमांडर मारा गया और कैदी छुड़ा लिए गए, यद्यपि उनकी संख्या केवल सात थी। किले को ध्वस्त कर दिया गया और उसके अवशेष बाज़ार में उन लोगों को बेच दिए गए जो इस ध्वंस को स्मृति-चिह्न के रूप में संजो कर रखना चाहते थे।

2. फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र (राष्ट्रीय महासभा)-फ्रांस का सम्राट् लुई (XVI) अपनी विद्रोही प्रजा की शक्ति को देखकर सहम गया था। अत: उसने नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि अब से उसकी सत्ता पर संविधान का अंकुश होगा। 1791 में नेशनल असेंबली ने संविधान का प्रारूप तैयार कर लिया। इसका मुख्य उद्देश्य सम्राट की शक्तियों को सीमित करना था। अब शक्तियों को विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका में विभाजित कर दिया गया। इस प्रकार शक्तियां एक हाथ में केंद्रित न रह कर तीन विभिन्न संस्थाओं को हस्तांतरित कर दी गईं। इसी के फलस्वरूप फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई।

3. आतंक का राज्य जैकोबिन क्लब-जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के हम समृद्ध वर्गों से संबंधित थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज़, छपाई करने वाले और नौकर व दैनिक मज़दूर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था। रोबेस्प्येर ने 1793 से 1794 तक फ्रांस पर शासन किया। उसने बहुत ही कठोर एवं क्रूर नीतियां अपनाईं। वह जिन्हें गणतंत्र का शत्रु मानता था अथवा उसकी पार्टी का जो कोई सदस्य उससे असहमति जताता था, उन्हें जेल में डाल देता था। उन पर एक क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा मुकद्दमा चलाया जाता था। जो कोई भी दोषी पाया जाता था, उसे गुलोटाइन पर चढ़ा कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था।
रोबेस्प्येर ने अपनी नीतियों को इतनी कठोरता एवं क्रूरता से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि कर उठे। इसी कारण उसके राज्य की ‘आतंक का राज्य’ कहा जाता है।

4. डायरेक्टरी का शासन-जैकोबिन सरकार के पतन के बाद नेशनल कन्वेंशन ने 1795 ई० में फ्रांस के लिए एक संविधान तैयार किया था। इस संविधान के अनुसार देश के शासन की बागडोर डायरेक्टरी के हाथ में सौंप दी गई। 26 अक्तूबर, 1795 ई० को डायरेक्टरी का पहला अधिवेशन बुलाया गया और इसके साथ ही नेशनल कन्वेंशन भंग हो गई। डायरेक्टरी ने चार वर्ष (1795-1799 ई०) तक फ्रांस पर शासन किया। इन चार वर्षों में इसे अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। डायरेक्टरी की राजनीतिक असफलता ने सैनिक तानाशाह नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।

5. नेपोलियन का काल-1799 में डिरेक्ट्री के शासन का तख्तापलट कर नेपोलियन प्रथम काउंसिल (First Council) बन गया। उसने तानाशाही शक्तियां प्राप्त कर ली। उसने जनमत-संग्रह करवाया। 99.9 प्रतिशत मतदाताओं ने उसकी नई शासन व्यवस्था के पक्ष में मत दिया। विजयों की एक श्रृंखला के बाद वह फ्रांस के शत्रुओं के साथ भी शांति संधि स्थापित करने में सफल रहा। संधि तथा शांति स्थापना के इन कार्यों ने सिद्ध कर दिया कि वह एक योग्य प्रशासक है। 1799 से 1804 तक, उसने अनेक सुधार लागू किए।

  • उसने वित्तीय उपायों द्वारा बढ़ती हुई मुद्रास्फीति (मूल्य वृद्धि) पर रोक लगाई।
  • इसके बाद बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की गई।
  • उसने पोप के साथ काफ़ी समय से चले आ रहे उस विवाद को भी सुलझा लिया, जो 1789 में चर्च की भूमि को जब्त किए जाने के कारण शुरू हुआ था। इसके लिए उसने घोषित कर दिया कि कैथोलिकवाद ही बहुसंख्यक फ्रांसीसियों का धर्म है।
  • तत्पश्चात् उसने फ्रांसीसी कानून को संहिताबद्ध करने का काम पूरा किया। इसीलिए उस संहिता को नेपोलियन कोड (संहिता) के नाम से पुकारा जाता है। यही संहिता भविष्य में फ्रांसीसी कानून प्रणाली का आधार बनी रही।
  • नेपोलियन सम्राट् बना-1804 तक आते-आते नेपोलियन प्रथम काउंसिल के पद से संतुष्ट नहीं रहा। उसने एक बार फिर जनमत-संग्रह करवाया और उसे वह सब बनने व करने का अधिकार मिला जो वह चाहता था। दिसंबर
    PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (2)
    1804 में उसने पोप पिअस सप्तम की उपस्थिति में स्वयं अपने हाथों से अपने सिर पर राजमुकुट धारण किया। इस प्रकार उसने स्वयं को सम्राट् घोषित कर दिया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति

प्रश्न 3.
फ्रांस की क्रांति के क्या प्रभाव पड़े ?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति (1789 ई०) से न केवल फ्रांस, बल्कि संसार के समस्त देश स्थायी रूप से प्रभावित हुए। वास्तव में इस क्रांति के कारण एक नये युग का उदय हुआ। इसके तीन प्रमुख सिद्धांत-समानता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व की भावना पूरे विश्व के लिए अमर वरदान सिद्ध हुए। इन्हीं के आधार पर संसार के अनेक देशों में एक नये समाज की स्थापना का प्रयत्न किया गया। इस क्रांति की विरासत का वर्णन इस प्रकार है-

1. स्वतंत्रता-स्वतंत्रता फ्रांसीसी क्रांति का एक मूल सिद्धांत था। इस सिद्धांत से यूरोप के लगभग सभी देश प्रभावित हुए। फ्रांस में मानव-अधिकारों के घोषणा-पत्र (Declaration of the Rights of Man) द्वारा सभी लोगों को उनके अधिकारों से परिचित कराया गया। देश में अर्द्धदास प्रथा (Serfdom) का अंत कर दिया गया और निर्धन किसानों को सामंतों के चंगुल से छुटकारा दिलाया गया। फ्रांसीसी क्रांति के परिणामस्वरूप अनेक देशों में निरंकुश शासन के विरुद्ध आंदोलन आरंभ हो गए। लोगों ने धार्मिक, सामाजिक तथा राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करना आरंभ कर दिया।

2. समानता-क्रांति के कारण निरंकुश शासन का अंत हुआ और इसके साथ ही समाज में फैली असमानता का भी अंत हो गया। समानता क्रांति का एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत था। इसका प्रचार लगभग सभी देशों में हुआ। इसके फलस्वरूप सभी लोग कानून की दृष्टि में एक समान समझे जाने लगे। सभी लोगों को उन्नति के समान अवसर प्राप्त होने लगे। सरकार अब सभी लोगों से एक समान व्यवहार करने लगी। वर्ग भेद सदा के लिए समाप्त हो गया।

3. लोकतंत्र-फ्रांस के क्रांतिकारियों ने राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी शासन का अंत कर दिया और इसके स्थान पर लोकतंत्र की स्थापना की। लोगों को बताया गया कि राज्य की सारी शक्ति जनता में निहित है और राजा के दैवी अधिकारों का सिद्धांत बिल्कुल गलत है। लोगों को यह अधिकार है कि वे अपने चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा सरकार चलायें। फ्रांस को क्रांति ने यह स्पष्ट कर दिया था कि सरकार केवल जनता के लिए ही नहीं बल्कि जनता के द्वारा बनाई जाए। आरंभ में लोकतंत्र के सिद्धांत के विरुद्ध यूरोप में प्रतिक्रिया हुआ, परंतु कुछ समय पश्चात् यूरोप तथा संसार के अन्य देशों ने इस सिद्धांत के महत्त्व को समझा और उन देशों में लोकतंत्र का जन्म हुआ।

4. राष्ट्रीयता की भावना-फ्रांसीसी क्रांति के कारण फ्रांस तथा यूरोप के अन्य देशों में राष्ट्रीयता की भावना का जन्म हुआ। क्रांति के समय जब आस्ट्रिया तथा प्रशा ने फ्रांस पर आक्रमण किया था तो फ्रांस के सभी लोग, कंधे से कंधा मिलाकर उनके विरुद्ध लड़े थे। यह उनकी राष्ट्रीय भावना का ही परिणाम था। फ्रांसीसी होने के नाते वे एक-दूसरे से जुड़े हुए थे और देश के शत्रु को अपना साझा शत्रु मानते थे। राष्ट्रीयता की इसी भावना से प्रेरित हो कर नेपोलियन के सैनिकों ने अनेक देशों पर विजय प्राप्त की। यह भावना केवल फ्रांस तक ही सीमित न रहकर जर्मनी, स्पेन, पुर्तगाल आदि देशों में भी पहुंची।

5. सामंतवाद से प्रजातंत्र की ओर-फ्रांसीसी क्रांति ने सामंतवाद का अंत कर दिया। सामंतों को उनके विशेषाधिकारों से वंचित कर दिया गया। अब उन्हें भी अन्य लोगों की भांति कर देने पड़ते थे। अर्द्धदास प्रथा (Serfdom) का अंत कर दिया गया और वर्ग-भेद मिटा दिये गये। समाज का गठन समानता के आधार पर किया गया। धीरे-धीरे ये परिवर्तन यूरोप तथा संसार के अन्य देशों में भी किये गए। इस प्रकार सामंतवाद का स्थान प्रजातंत्र ने लेना आरंभ कर दिया।

6. सार्वजनिक कल्याण-फ्रांस की राज्य-क्रांति ने सार्वजनिक कल्याण की भावना को विकसित किया। इस भावना से प्रेरित होकर दयालु लोगों तथा उन्नत सरकारों ने धन तथा कानूनों द्वारा लोगों के सामाजिक जीवन को सुधारने के प्रयास किए। जेलों की व्यवस्था को सुधारा गया तथा दासता का अंत कर दिया गया। कारखानों, खानों तथा खेतों में काम करने वाले मजदूरों की अवस्था में भी काफी सुधार किए गए। अशिक्षितों की शिक्षा के लिए स्कूलों की स्थापना की गई तथा रोगियों के लिए अस्पताल खोले गए। पिछड़े हुए लोगों को आर्थिक सहायता प्रदान की गई। इस प्रकार क्रांति के कारण सार्वजनिक भलाई की भावना का काफ़ी विकास हुआ। तो यह है कि क्रांति ने प्रचलित कानूनों का रूप बदल दिया, सामाजिक मान्यताएं बदल डालीं और आर्थिक ढांचे में आश्चर्यजनक परिवर्तन किए। राजनीतिक दल नवीन आदर्शों से प्रेरित हुए। सुधार आंदोलन तीव्र गति से चलने लगे। साहित्यकारों ने नवीन वाणी पाई। फ्रांसीसी क्रांति के तीन स्तंभ-समानता, स्वतंत्रता तथा बंधुत्व प्रत्येक देश के लिए पथ-प्रदर्शक बने। मानवता के लिए अंधकार का युग समाप्त हुआ और एक आशा भरी प्रातः का उदय हुआ।

प्रश्न 4.
फ्रांसीसी क्रांति के कारणों का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
नोट-इसके लिए दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्नों का प्रश्न नंबर 1 पढ़ें।

प्रश्न 5.
1789 ई० से पूर्व तीसरे वर्ग की महिलाओं की क्या स्थिति थी ?
उत्तर-
फ्रांस में तीसरे एस्टेट (वर्ग) की अधिकतर महिलाएं जीवन निर्वाह के लिए काम करती थीं। वे सिलाईबुनाई तथा कपड़ों की धुलाई करती थीं और बाजारों में फल-फूल तथा सब्जियां बेचती थीं। कुछ महिलाएं संपन्न घरों में घरेलू काम करती थीं। बहुत-सी महिलाएं वेश्यावृत्ति भी करती थीं। अधिकांश महिलाओं के पास पढ़ाई-लिखाई तथा व्यावसायिक प्रशिक्षण के अवसर नहीं थे। केवल कुलीनों की लड़कियां अथवा तीसरे एस्टेट के धनी परिवारों की लड़कियां ही कॉन्वेंट में पढ़ पाती थीं। इसके बाद उनकी शादी कर दी जाती थी। कामकाजी महिलाओं को अपने परिवार की देखभाल भी करनी पड़ती थी।
प्रारंभिक वर्षों में क्रांतिकारी सरकार ने महिलाओं के जीवन में सुधार लाने वाले कुछ कानून लागू किए। एक कानून के अनुसार सरकारी विद्यालयों की स्थापना की गई और सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया।

PSEB 9th Class Social Science Guide फ्रांसीसी क्रांति Important Questions and Answers

I. बहुविकल्पीय प्रश्न :

प्रश्न 1.
फ्रांस की राज्य क्रांति कब हुई ?
(क) 1917 ई० में
(ख) 1905 ई० में
(ग) 1789 ई० में
(घ) 1688 ई० में।
उत्तर-
(ग) 1789 ई० में

प्रश्न 2.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस पर किसका शासन था ?
(क) लुई फिलिप का
(ख) लुई सोलहवें का
(ग) लुई चौदहवें का
(घ) लुई अमरहवें का।
उत्तर-
(ख) लुई सोलहवें का

प्रश्न 3.
फ्रांसीसी क्रांति के समय किसानों की गणना किस वर्ग में की जाती थी ?
(क) कुलीन वर्ग में
(ख) मध्य वर्ग में
(ग) निम्न वर्ग में
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं।
उत्तर-
(ग) निम्न वर्ग में

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प्रश्न 4.
रोमन कैथोलिक चर्च का सबसे बड़ा अधिकारी था
(क) रोमन सम्राट
(ख) रोमन प्रधानमंत्री।
(ग) पोप
(घ) मैटर्निख।
उत्तर-
(ग) पोप

प्रश्न 5.
फ्रांसीसी क्रांति के समय यूरोप में भूमि के स्वामी थे
(क) जागीरदार
(ख) किसान
(ग) दास-कृषक
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) जागीरदार

प्रश्न 6.
इनमें से किसका संदर्भ राजकीय शक्ति के प्रतीक से है ?
(क) राजदंड
(ख) कानूनी टेबल
(ग) लिवर (लिव्रे)
(घ) राजस्व।
उत्तर-
(क) राजदंड

प्रश्न 7.
इनमें से कौन-सा दासों की आजादी का प्रतीक है ?
(क) राजदंड
(ख) छड़ों का बींदार गट्ठर
(ग) अपनी पूंछ मुंह में लिए सांप
(घ) टूटी हुई जंजीर/हथकड़ी।
उत्तर-
(घ) टूटी हुई जंजीर/हथकड़ी।

प्रश्न 8.
विधि पट किस बात का प्रतीक है ? .
(क) कानून की नज़र में सब बराबर हैं।
(ख) कानून सबके लिए समान हैं।
(ग) सामंत विशेष सुविधाओं के अधिकारी हैं।
(घ) (क) तथा (ख)।
उत्तर-
(घ) (क) तथा (ख)।

प्रश्न 9.
फ्रांस के राष्ट्रीय रंगों का समूह निम्न में से कौन-सा है?
(क) नीला-पीला-लाल
(ख) पीला-सफ़ेद-नीला
(ग) नीला-सफ़ेद-लाल
(घ) केसरी-सफ़ेद-हरा।
उत्तर-
(ग) नीला-सफ़ेद-लाल

प्रश्न 10.
निम्न में से किसका संदर्भ ‘एकता में ही बल है’ के प्रतीक से है ?
(क) त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आँख
(ख) छड़ों का बींदार गट्ठर
(ग) लाल फ्राइजियन टोपी
(घ) टिथे।
उत्तर-
(ख) छड़ों का बींदार गट्ठर

प्रश्न 11.
लाल-फ्राइजियन टोपी का संबंध निम्न में से किससे है ?
(क) स्वतंत्र दासों से
(ख) समानता से
(ग) कानून के मानवीय रूप से
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर-
(क) स्वतंत्र दासों से

प्रश्न 12.
निम्न में से कानून के मानवीय रूप का प्रतीक कौन-सा है ?
(क) विधि पट
(ख) लाल-फ्राइजियन टोपी
(ग) डैनों वाली स्त्री
(घ) अपनी पूंछ मुंह में लिए सांप।
उत्तर-
(ग) डैनों वाली स्त्री

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प्रश्न 13.
निम्नलिखित में से ज्ञात का प्रतीक कौन-सा है ?
(क) राजदंड
(ख) टूटी हुई जंजीर
(ग) डैनों वालो स्त्री
(घ) त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आंख।
उत्तर-
(घ) त्रिभुज के अंदर रोशनी बिखेरती आंख।

प्रश्न 14.
तीसरे एस्टेट (फ्रांस) द्वारा राज्य को दिए जाने वाले प्रत्यक्ष कर का नाम इनमें से क्या था ?
(क) टाइद
(ख) टेली (टाइल)
(ग) लिवर (लिव्रे)
(घ) राजस्व।
उत्तर-
(ख) टेली (टाइल)

प्रश्न 15.
चर्च द्वारा किसानों (फ्रांस) से वसूला जाने वाला धार्मिक कर निम्न में से कौन-सा था ?
(क) लिने
(ख) टाइद
(ग) टिले
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ख) टाइद

प्रश्न 16.
फ्रांस के संदर्भ में लिने क्या था ?
(क) फ्रांस की मुद्रा
(ख) कारागार
(ग) एक प्रकार का कर
(घ) उच्च पद्र।
उत्तर-
(क) फ्रांस की मुद्रा

प्रश्न 17.
लुई 16वां फ्रांस का सम्राट् कब बना था ?
(क) 1747 ई० में
(ख) 1789 ई० में
(ग) 1774 ई० में
(घ) 1791 ई० में।
उत्तर-
(ग) 1774 ई० में

प्रश्न 18.
फ्रांस के शासक लुई 16वें ने किस प्रकार की सरकार को अपनाया ?
(क) निरंकुश
(ख) साम्यवादी
(ग) समाजवादी
(घ) उदारवादी।
उत्तर-
(क) निरंकुश

प्रश्न 19.
कौन-सा कारक फ्रांसीसी क्रांति के लिए उत्तरदायी था ?
(क) प्रजातंत्रात्मक शासन प्रणाली
(ख) सामंतों की शोचनीय दशा
(ग) भ्रष्ट शासन
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(ग) भ्रष्ट शासन

प्रश्न 20.
लुई 16वें का संबंध किस राजवंश से था ?
(क) हेप्सबर्ग
(ख) हिंडेनबर्ग
(ग) नार्डिक
(घ) बूबों।
उत्तर-
(घ) बूबों।

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प्रश्न 21.
रूसो ने ग्रंथ लिखा
(क) ट्रीटाइड ऑन टालरेंस
(ख) द सोशल कंट्रेक्ट/सामाजिक समझौता।
(ग) विश्वकोष
(घ) फिलीसिफिकल डिक्शनरी।
उत्तर-
(ख) द सोशल कंट्रेक्ट/सामाजिक समझौता।

प्रश्न 22.
एस्टेट्स जेनराल का अधिवेशन हुआ
(क) पेरिस में
(ख) वर्सेय में
(ग) वियाना में
(घ) बर्लिन में।
उत्तर-
(ख) वर्सेय में

प्रश्न 23.
ऐंटोनिटी कौन थी ?
(क) लुई 14वें की पत्नी
(ख) लुई 15वें की पत्नी
(ग) लुई 16वें की पत्नी
(घ) लुई 16वें की पत्नी।
उत्तर-
(ग) लुई 16वें की पत्नी

प्रश्न 24.
मेरी ऐंटोनिटी कहां की राजकुमारी थी ?
(क) जर्मनी
(ख) फ्रांस
(ग) इंग्लैंड
(घ) आस्ट्रिया।
उत्तर-
(घ) आस्ट्रिया।

प्रश्न 25.
क्रांति (1789) के समय फ्रांस पर कितना विदेशी ऋण था ?
(क) 2 अरब लिने
(ख) 12 अरब लिने
(ग) 10 अरब लिवे
(घ) 2.8 अरब लिने।
उत्तर-
(ख) 12 अरब लिने

प्रश्न 26.
फ्रांस में एस्टेट्स जेनराल का अधिवेशन हुआ था
(क) 1788 ई० में
(ख) 1801 ई० में
(ग) 1791 ई० में
(घ) 1789 ई० में।
उत्तर-
(घ) 1789 ई० में।

प्रश्न 27.
किस पुस्तक को ‘क्रांति का बाइबल’ कहा जाता है ?
(क) दि प्रिंसिपल ऑफ पोलिटकल राइट्स
(ख) एडिसकोर्स ऑन एंड साईंसिस ।
(ग) लॉ नैवेल
(घ) द सोशल कांट्रेक्ट/सामाजिक समझौता।
उत्तर-
(घ) द सोशल कांट्रेक्ट/सामाजिक समझौता।

प्रश्न 28.
कौन-सा सिद्धांत फ्रांसीसी क्रांति का नहीं है ?
(क) समानता
(ख) स्वतंत्रता
(ग) बंधुत्व
(घ) साम्राज्यवाद।
उत्तर-
(घ) साम्राज्यवाद।

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प्रश्न 29.
” मैं फ्रांस हूँ। मेरी इच्छा ही कानून है।” ये शब्द किसके हैं ?
(क) बिस्मार्क
(ख) मांटेस्क्यू
(ग) लुई 16वें
(घ) नेपोलियन।
उत्तर-
(ग) लुई 16वें

प्रश्न 30.
राष्ट्रीय सभा बुलाने का उद्देश्य क्या था ?
(क) राजा को दंड देना
(ख) कर लगाना
(ग) कर हटाना
(घ) दार्शनिकों को पुरस्कृत करना।
उत्तर-
(ख) कर लगाना

प्रश्न 31.
राजा से झगड़े के पश्चात् राष्ट्रीय सभा किस स्थान पर एकत्रित हुई ?
(क) राजा के महल में
(ख) राजमहल के सामने
(ग) टेनिस कोर्ट में
(घ) बर्लिन में।
उत्तर-
(ग) टेनिस कोर्ट में

प्रश्न 32.
टेनिस कोर्ट में जनसाधारण के प्रतिनिधियों ने क्या शपथ ली ?
(क) संविधान बनाने की
(ख) राजा को हटाने की
(ग) चर्च की संपत्ति लूटने की
(घ) सामंत वर्ग का विनाश करने की।
उत्तर-
(क) संविधान बनाने की

प्रश्न 33.
राष्ट्रीय महासभा का अधिवेशन कब आरंभ हुआ ?
(क) 15 अगस्त, 1789 को
(ख) 9 जुलाई, 1789 को
(ग) 14 अगस्त, 1789 को
(घ) 4 अगस्त, 1789 को।
उत्तर-
(घ) 4 अगस्त, 1789 को।

प्रश्न 34.
राष्ट्रीय सभा ने मानवीय अधिकारों की घोषणा कब की ?
(क) 1790 को
(ख) 1791 को
(ग) 27 अगस्त, 1789
(घ) 1792 को।
उत्तर-
(ग) 27 अगस्त, 1789

प्रश्न 35.
फ्रांस में मानव एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा किसने की ?
(क) विधानसभा ने
(ख) राष्ट्रीय महासभा ने
(ग) राष्ट्रीय सम्मेलन ने
(घ) किसी ने भी नहीं।
उत्तर-
(ख) राष्ट्रीय महासभा ने

प्रश्न 36.
बेस्टील का पतन कब हुआ ?
(क) 12 जुलाई, 1789 को
(ख) 10 जुलाई, 1789 को
(ग) 11 जुलाई, 1789 को
(घ) 14 जुलाई, 1789 को।
उत्तर-
(घ) 14 जुलाई, 1789 को।

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प्रश्न 37.
बेस्टील का किला किस बात का प्रतीक था ?
(क) स्वतंत्रता का
(ख) समानता का
(ग) बंधुत्व का
(घ) निरंकुश शक्तियों का।
उत्तर-
(घ) निरंकुश शक्तियों का।

प्रश्न 38.
फ्रांसीसी क्रांति का आरंभ किस ऐतिहासिक घटना से माना जाता है ?
(क) एस्टेट्स जेनराल का भंग होना
(ख) बेस्टील का पतन
(ग) राजा का फ्रांस से भागना
(घ) रानी का जिद्दी स्वभाव।
उत्तर-
(ख) बेस्टील का पतन

प्रश्न 39.
‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक सेना’ के गठन का क्या उद्देश्य था ?
(क) राजा पर नियंत्रण रखना
(ख) राष्ट्रीय सभा पर नियंत्रण रखना
(ग) फ्रांस का नेतृत्व करना
(घ) अराजकता को रोकना।
उत्तर-
(घ) अराजकता को रोकना।

प्रश्न 40.
राष्ट्रीय सभा ने संविधान तैयार किया
(क) 1789 में
(ख) 1799 में
(ग) 1791 में
(घ) 1792 में।
उत्तर-
(ग) 1791 में

प्रश्न 41.
1791 ई० के फ्रांसीसी संविधान के अनुसार फ्रांस की सरकार का स्वरूप कैसा था ?
(क) गणतंत्रीय
(ख) राजतंत्रीय
(ग) अल्पतंत्रीय
(घ) सामंतशाही।
उत्तर-
(क) गणतंत्रीय

प्रश्न 42.
10 अगस्त, 1792 से लेकर 20 सितंबर, 1792 तक फ्रांस का शासन किसके हाथ में रहा ?
(क) लुई 16वां
(ख) लफायेत
(ग) फ्रांसीसी सेना
(घ) पेरिस कम्यून।
उत्तर-
(घ) पेरिस कम्यून।

प्रश्न 43.
राष्ट्रीय सम्मेलन में लुई 16वें के लिए क्या दंड निश्चित किया गया ?
(क) मृत्यु दंड
(ख) निर्वासन
(ग) आजीवन कारावास
(घ) क्षमादान।
उत्तर-
(क) मृत्यु दंड

प्रश्न 44.
लुई 16वें को मृत्यु दंड कब दिया गया ?
(क) 1791 ई० में
(ख) 1792 ई० में
(ग) 1789 ई० में
(घ) 1793 ई० में।
उत्तर-
(घ) 1793 ई० में।

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प्रश्न 45.
राष्ट्रीय सम्मेलन ने किस अमानवीय प्रथा का अंत किया ?
(क) सती प्रथा
(ख) बेगार प्रथा
(ग) दास प्रथा
(घ) सामंत प्रथा।
उत्तर-
(ग) दास प्रथा

प्रश्न 46.
रोबेस्प्येर को गिलोटिन पर कब चढ़ाया गया ?
(क) जुलाई, 1794 ई० में
(ख) जुलाई, 1791 ई० में
(ग) जुलाई, 1789 ई० में
(घ) जुलाई, 1795 ई० में।
उत्तर-
(क) जुलाई, 1794 ई० में

प्रश्न 47.
फ्रांस में ‘आतंक का राज्य’ निम्नलिखित राजनीतिक दल ने स्थापित किया
(क) जिरोंदिस्त दल
(ख) राजतंत्रवादी दल
(ग) जैकोबिन दल
(घ) उपरोक्त सभी ने सामूहिक रूप से।
उत्तर-
(ग) जैकोबिन दल

प्रश्न 48.
आतंक के शासन में मृत्युदंड प्राप्त व्यक्ति को मारा जाता था
(क) फांसी देकर
(ख) गिलोटिन द्वारा
(ग) बिजली का झटका देकर
(घ) विष देकर।
उत्तर-
(ख) गिलोटिन द्वारा

प्रश्न 49.
जिरोंदिस्त दल ने देश की आर्थिक दशा सुधारने के लिए कौन-सी नई मुद्रा चलाई ?
(क) चांदी के सिक्के
(ख) सोने के सिक्के
(ग) तांबे के सिक्के
(घ) कागज़ के नोट।
उत्तर-
(घ) कागज़ के नोट।

प्रश्न 50.
‘पैट्रियाट’ नामक पत्र के प्रकाशन का कार्य फ्रांसीसी क्रांति के किस नेता ने आरंभ किया ?
(क) रूसो
(ख) रोबेस्प्येर
(ग) दांते
(घ) ब्रीसो।
उत्तर-
(घ) ब्रीसो।

प्रश्न 51.
डायरेक्टरी की राजनीतिक अस्थिरता जिस सैनिक तानाशाह के उदय का आधार बनी
(क) नेपोलियन बोनापार्ट
(ख) लुई 16वां
(ग) रोबेस्प्येर
(घ) रूसो।
उत्तर-
(क) नेपोलियन बोनापार्ट

प्रश्न 52.
फ्रांस में महिलाओं को मत देने का अधिकार मिला
(क) 1792
(ख) 1794
(ग) 1904
(घ) 1946.
उत्तर-
(घ) 1946

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प्रश्न 53.
क्रांतिकारी फ्रांस से आने वाले विचारों का समर्थन किया
(क) टीपू सुल्तान तथा राजा राममोहन राय
(ख) हैदरअली तथा स्वामी दयानंद
(ग) बहादुरशाह ज़फ़र तथा स्वामी विवेकानंद
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(क) टीपू सुल्तान तथा राजा राममोहन राय

II. रिक्त स्थान भरो:

  1. फ्रांसीसी क्रांति के समय ………………….. यूरोप में भूमि के स्वामी थे।
  2. फ्रांस के राष्ट्रीय रंगों का समूह ………………………. है।
  3. …………….. तीसरे वर्ग (एस्टेट) द्वारा फ्रांस राज्य को दिया जाने वाला प्रत्यक्ष कर था।
  4. फ्रांस में एस्टेट्स जेनराल का अधिवेशन ……….. ………. ई० में हुआ।
  5. बेस्टील का किला …. ……………….. का प्रतीक था।
  6. फ्रांस के ‘आतंक का राज्य’ …………………….. ने स्थापित किया।

उत्तर-

  1. जमींदार
  2. नीला सफेद लाल
  3. टेली (टाइले)
  4. 1789
  5. निरंकुश शक्तियों
  6. जैकोरि

III. सही मिलान करो :

(क) – (ख)
1. फ्रांसीसी क्रांति – (i) स्वतंत्र दास
2. किसान – (ii) जैकोबिन दल
3. लाल फ्रीजियन टोपी – (iii) लुई सोलहवां
4. क्रांति का बाइबल – (iv) द सोशल कांट्रेक्ट
5. आतंक का राज्य – (v) निम्न वर्ग

उत्तर-

  1. लुई सोलहवां
  2. निम्न वर्ग
  3. स्वतंत्र दास
  4. द सोशल कांट्रेक्ट
  5. जैकोबिन दल। जिला

अति लघु उत्तरों वाले प्रश्न

उत्तर एक लाइन अथवा एक शब्द में :

प्रश्न 1.
फ्रांस की राज्य क्रांति कब हुई ?
उत्तर-
1789 ई० में।

प्रश्न 2.
फ्रांसीसी क्रांति से पूर्व फ्रांस में किस वर्ग को विशेषाधिकार प्राप्त थे ?
उत्तर-
सामंत वर्ग को।

प्रश्न 3.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस का शासक कौन था ? उसका संबंध किस राजवंश से था ?
उत्तर-
लुई सोलहवां, बूढे राजवंश।

प्रश्न 4.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस के समाज में सबसे अधिक शक्तिशाली थे ?
उत्तर-
सामंत, चर्च।

प्रश्न 5.
रोमन कैथोलिक चर्च का सबसे बड़ा अधिकारी कौन था ?
उत्तर-
पोप।

प्रश्न 6.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस की संसद् किस नाम से प्रसिद्ध थी ?
उत्तर-
एस्टेट्स जेनराल।

प्रश्न 7.
लुई सोलहवें का निवास स्थान कहां था ?
उत्तर-
वर्सेय में।

प्रश्न 8.
फ्रांसीसी क्रांति के समय फ्रांस में किस प्रकार का शासन तंत्र था ?
उत्तर-
निरंकुश राजतंत्र।

प्रश्न 9.
फ्रांसीसी क्रांति को जन्म देने वाले दो प्रमुख दार्शनिकों के नाम बताओ।
उत्तर-
मांटेस्क्यू, रूसो।

प्रश्न 10.
रूसो ने किस बात पर अधिक बल दिया ?
उत्तर-
मनुष्यों की समानता पर।

प्रश्न 11.
रूसो द्वारा लिखित ग्रंथ का नाम लिखो।
उत्तर-
द सोशल कंट्रेक्ट (सामाजिक समझौता)।

प्रश्न 12.
मांतेस्क्यू ने किस ग्रंथ की रचना की थी ?
उत्तर-
‘The Spirit of The Laws’ (कानून की आत्मा)।

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प्रश्न 13.
मेरी ऐंटोनिटी कौन थी ?
उत्तर-
लुई सोलहवें की पत्नी।

प्रश्न 14.
फ्रांस की भूमि पर कितना भाग चर्च की संपत्ति थी ?
उत्तर-
1/5 भाग।

प्रश्न 15.
फ्रांसीसी क्रांति से पूर्व फ्रांस में राज्य तथा सेना के महत्त्वपूर्ण पदों पर किसका अधिकार था ?
उत्तर-
सामंतों का।

प्रश्न 16.
फ्रांस के किस दार्शनिक को दार्शनिकों का सम्राट् कहा जाता है ?
उत्तर-
वाल्तेयर को।

प्रश्न 17.
फ्रांसीसी क्रांति का फ्रांस पर कोई एक प्रभाव बताओ।
उत्तर-
निरंकुश राजतंत्र का पतन।

प्रश्न 18.
फ्रांसीसी क्रांति के तीन प्रमुख सिद्धांत कौन-कौन से थे ?
उत्तर-
समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व।

प्रश्न 19.
राष्ट्रीय सभा का नाम संविधान सभा कब रखा गया ?
उत्तर-
9 जुलाई, 1789.

प्रश्न 20.
राष्ट्रीय सभा बुलाने का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
कर लगाना।

प्रश्न 21.
तुर्गों द्वारा किया गया एक वित्तीय सुधार लिखो।
उत्तर-
कर्मचारियों की संख्या में कमी।

प्रश्न 22.
एस्टेट्स जेनराल का अधिवेशन बुलाने से पूर्व लुई 16वें ने कौन-सी सभा बुलाई ?
उत्तर-
पैरिस की पार्लियामेंट।

प्रश्न 23.
पैरिस की पार्लियामेंट क्यों बुलाई गई ?
उत्तर-
कर लगाने के लिए।

प्रश्न 24.
एस्टेट्स जेनराल का अधिवेशन कब हुआ ?
उत्तर-
17 जुलाई, 1789.

प्रश्न 25.
टैनिस कोर्ट (फ्रांस) में जनसाधारण के प्रतिनिधियों ने किस विषय में शपथ ली ?
उत्तर-
संविधान बनाने की।

प्रश्न 26.
फ्रांस में मानव एवं नागरिक अधिकारों की घोषणा किसने की ?
उत्तर-
राष्ट्रीय महासभा ने।

प्रश्न 27.
बेस्टील का पतन कब हुआ ?
उत्तर-
14 जुलाई, 1789.

प्रश्न 28.
फ्रांसीसी क्रांति का आरंभ किस घटना से माना जाता है ?
उत्तर-
बेस्टील के पतन से।

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प्रश्न 29.
फ्रांस की ‘राष्ट्रीय स्वयं सेवक सेना’ का मुखिया कौन था ?
उत्तर-
लफायेत।

प्रश्न 30.
राजा को वर्सेय से पेरिस कौन लाया ?
उत्तर-
स्त्रियों का जलस।

प्रश्न 31.
राष्ट्रीय संविधान सभा ने संविधान कब तैयार किया ?
उत्तर-
1791 ई० में।

प्रश्न 32.
जिरोंदिस्त क्लब के सदस्य किस विचारधारा के पक्षपाती थे ?
उत्तर-
गणतंत्रवादी विचारधारा।

प्रश्न 33.
पहली बार फ्रांस की जनता ने किस दिन राजमहल को घेरा ?
उत्तर-
20 जून, 1792 ई०।

प्रश्न 34.
पेरिस की भीड़ ने दूसरी बार राजा के महल को कब घेरा ?
उत्तर-
10 अगस्त, 1792 ई०।

प्रश्न 35.
फ्रांस के राजा को किसके शासन द्वारा बंदी बनाया गया ?
उत्तर-
विधानसभा के शासन द्वारा।

प्रश्न 36.
फ्रांसीसी विधान सभा का सबसे प्रमुख कार्य क्या था ?
उत्तर-
राजतंत्र की समाप्ति।

प्रश्न 37.
विधानसभा द्वारा राजतंत्रवादियों की हत्या की घटना को किस नाम से पुकारा जाता है ?
उत्तर-
सितंबर हत्याकांड।

प्रश्न 38.
राष्ट्रीय सम्मेलन ने फ्रांस में कैसी शासन प्रणाली स्थापित की ?
उत्तर-
गणतंत्रात्मक।

प्रश्न 39.
राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा जारी नये कैलेंडर की प्रथम तिथि कब से आरंभ हुई ?
उत्तर-
22 सितंबर, 1979 से।

प्रश्न 40.
राष्ट्रीय सम्मेलन ने लुई 16वें के लिए क्या दंड निश्चित किया ?
उत्तर-
मृत्यु दंड।

प्रश्न 41.
लुई 16वें को मृत्यु दंड कब दिया गया ?
उत्तर-
1793 ई० में।

प्रश्न 42.
राष्ट्रीय सम्मेलन के शासन काल में फ्रांस के दो प्रमुख राजनीतिक दल कौन-कौन से थे ?
उत्तर-
जिरोंदिस्त तथा जैकोबिन।

प्रश्न 43.
फ्रांस के राष्ट्रीय सम्मेलन ने भीतरी शत्रुओं का सामना करने के लिए किस समिति की स्थापना की ?
उत्तर-
सार्वजनिक रक्षा समिति।

प्रश्न 44.
राष्ट्रीय सम्मेलन ने नाप-तोल की कौन-सी नई विधि अपनाई ?
उत्तर-
दशमलव विधि।

प्रश्न 45.
फ्रांस में ‘आतंक का राज्य’ लगभग कितने वर्ष चला ?
उत्तर-
एक वर्ष।

प्रश्न 46.
फ्रांस में ‘आतंक का राज्य’ किस राजनीतिक दल ने स्थापित किया ?
उत्तर-
जैकोबिन दल।

प्रश्न 47.
सामान्य सुरक्षा समिति (आतंक का राज्य) की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1792 ई० में।

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प्रश्न 48.
क्रांतिकारी न्यायालय (आतंक का राज्य) की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1793 ई० में।

प्रश्न 49.
वह चौक किस नाम से प्रसिद्ध था जहां आतंक के राज्य में लोगों को मौत के घाट उतारा जाता था ?
उत्तर-
क्रांति चौक।

प्रश्न 50.
राष्ट्रीय सम्मेलन ने पेरिस में क्रांति के विरोधियों का अंत करने के लिए कौन-सा महत्त्वपूर्ण अधिनियम बनाया ?
उत्तर-
लॉ ऑफ़ सस्पैक्ट।

प्रश्न 51.
दांते को मृत्यु दंड कब दिया गया ?
उत्तर-
अप्रैल, 1774.

प्रश्न 52.
कौन-सा युद्ध जिरोंदिस्त दल के पतन का कारण बना ?
उत्तर-
आस्ट्रिया-फ्रांस युद्ध।

प्रश्न 53.
पेरिस कम्यून पर किस राजनीतिक दल का प्रभाव था ?
उत्तर-
जैकोबिन दल।

लघु उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
फ्रांसीसी समाज के किन तबकों (वर्गों) को क्रांति का फायदा (लाभ) मिला ? कौन-से समूह सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर हो गए ? क्रांति के नतीजों से समाज के किन समूहों को निराशा हुई होगी?
उत्तर-

  1. फ्रांसीसी क्रांति से श्रमिक वर्ग तथा कृषक वर्ग को लाभ पहुंचा। इसका कारण यह था कि ये समाज के सबसे शोषित वर्ग थे। करों के बोझ से दबी आम जनता को भी राहत मिली। स्वतंत्रता एवं समानता की कामना करने वाले लोग भी प्रसन्न थे।
  2. क्रांति से अभिजात वर्ग को सत्ता त्यागनी पड़ी। राजतंत्र का अंत हो गया। जागीरदारों, सामंतों तथा चर्च को अपने विशेषाधिकारों से हाथ धोना पड़ा।
  3. क्रांति से अभिजात वर्ग को ही निराशा हुई होगी। इसके अतिरिक्त राजतंत्र के समर्थकों को भी क्रांति ने निराश ही किया होगा।

प्रश्न 2.
लुई 16वां (XVI) फ्रांस का सम्राट् कब बना ? उस समय फ्रांस की आर्थिक दशा कैसी थी ?
अथवा
लुई 16वें के राजगद्दी पर बैठते समय फ्रांस आर्थिक संकट में फंसा हुआ था। इसे स्पष्ट करने के लिए कोई तीन बिंदु लिखिए।
उत्तर-
लुई XVI 1774 ई० में फ्रांस का सम्राट् बना। उस समय उसकी आयु केवल 20 वर्ष की थी। उसके राज्यारोहण के समय फ्रांस का राजकोष खाली था जिसके कारण फ्रांस आर्थिक संकट में फंसा हुआ था। इस आर्थिक संकट के लिए मुख्य रूप से निम्नलिखित कारक उत्तरदायी थे

  1. लंबे समय तक चले युद्धों के कारण फ्रांस के वित्तीय संसाधन नष्ट हो चुके थे।
  2. वर्साय (Versailles) के विशाल महल और राजदरबार की शानो-शौकत बनाए रखने के लिए धन पानी की तरह बहाया जा रहा था।
  3. फ्रांस ने अमेरिका के 13 उपनिवेशों को अपने सांझा शत्रु ब्रिटेन से स्वतंत्र कराने में सहायता दी थी। इस युद्ध के चलते फ्रांस पर दस अरब लिने से भी अधिक का कर्ज और बढ़ गया, जबकि उस पर पहले से ही दो अरब लिने के ऋण का बोझ था। सरकार से ऋणदाता अब 10 प्रतिशत ब्याज की मांग करने लगे थे। फलस्वरूप फ्रांसीसी सरकार अपने बजट का बहुत बड़ा भाग लगातार बढ़ते जा रहे कर्ज को चुकाने पर मजबूर थी।

प्रश्न 3.
1789 से पहले फ्रांसीसी समाज किस प्रकार व्यवस्थित था ? तीसरे एस्टेट की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
1789 से पहले फ्रांसीसी समाज तीन वर्गों में बंटा हुआ था जिन्हें एस्टेट कहते थे। तीन एस्टेट थे-प्रथम एस्टेट, द्वितीय एस्टेट तथा तृतीय एस्टेट। पहले एस्टेट में कुलीन वर्ग (पादरी आदि) के लोग तथा दूसरे वर्ग में सामंत शामिल थे। तीसरे एस्टेट में बड़े-बड़े व्यवसायी, व्यापारी, सौदागर, वकील, किसान, शिल्पकार, श्रमिक आदि आते थे। पहले दो एस्टेट के लोगों को कई विशेषाधिकार प्राप्त थे जिनमें से करों से मुक्ति का अधिकार सबसे महत्त्वपूर्ण था। करों का सारा बोझ तीसरे एस्टेट पर था, जबकि सभी आर्थिक कार्य इन्हीं लोगों द्वारा किये जाते थे। किसान तथा खेतिहर अनाज उगाते थे, श्रमिक वस्तुओं का उत्पादन करते थे और सौदागर व्यापार का संचालन करते थे। परंतु वे अपनी स्थिति में सुधार नहीं ला सकते थे।

प्रश्न 4.
रोबेस्प्येर कौन था ? उसके राज्य को ‘आतंक का राज्य’ क्यों कहा जाता है ?
उत्तर-
रोबेस्प्येर ने 1793 से 1794 तक फ्रांस पर शासन किया। उसने बहुत ही कठोर एवं क्रूर नीतियां अपनाईं। वह जिन्हें गणतंत्र का शत्रु मानता था अथवा उसकी पार्टी का जो कोई सदस्य उससे असहमति जताता था, उन्हें जेल में डाल देता था। उन पर एक क्रांतिकारी न्यायालय द्वारा मुकद्दमा चलाया जाता था। जो कोई भी दोषी पाया जाता था, उसे गिलोटिन पर चढ़ा कर उसका सिर धड़ से अलग कर दिया जाता था।
रोबेस्प्येर ने अपनी नीतियों को इतनी कठोरता एवं क्रूरता से लागू किया कि उसके समर्थक भी त्राहि-त्राहि कर उठे। इसी कारण उसके राज्य को ‘आतंक का राज्य’ कहा जाता है।

प्रश्न 5.
फ्रांसीसी क्रांति के राजनीतिक कारण क्या थे?
उत्तर-
फ्रांसीसी क्रांति के राजनीतिक कारण निम्नलिखित थे-

  1. फ्रांस के राजा स्वेच्छाचारी थे और वे राजा के दैवीय अधिकारों में विश्वास करते थे। वे जनता के प्रति अपना कोई कर्त्तव्य नहीं समझते थे। सारे देश में भ्रष्टाचार का बोलबाला था।
  2. कर बहुत अधिक थे और. वे मुख्यतः जनसाधारण को ही देने पड़ते थे। दरबारी और सामंत करों से मुक्त थे।
  3. शासन में एकरूपता का अभाव था। सारे देश में एक जैसे कानून नहीं थे। यदि देश के एक भाग में रोमन कानून लागू थे, तो दूसरे भाग में जर्मन कानून प्रचलित थे।
  4. राज्य में सैनिक तथा अन्य पद पैतृक थे और उन्हें बेचा भी जा सकता था। जनसाधारण के लिए उन्नति का कोई मार्ग नहीं था।
  5. राज्य का धन फ्रांस की रानी मेरी एंतोएनेत पर पानी की तरह बहाया जा रहा था। जनता पर बड़े अत्याचार हो रहे थे। किसी भी व्यक्ति को बिना दोष बंदी बना लिया जाता था।
  6. सेना में असंतोष था। सैनिकों के वेतन बहुत कम थे तथा उन्हें पर्याप्त सुख-सुविधा उपलब्ध नहीं थी।

प्रश्न 6.
14 जुलाई, 1789 को क्रुद्ध लोगों ने पेरिस के किस भवन पर धावा बोला ? यह भवन जनता का निशाना क्यों बना ?
अथवा
बेस्टील का पतन किन कारणों से हुआ तथा इसके क्या परिणाम हुए?
उत्तर-
14 जुलाई, 1789 को क्रुद्ध भीड़ ने पेरिस नगर में बेस्टील के किले पर धावा बोला। यह किला फ्रांस के सम्राट की निरंकुश शक्तियों का प्रतीक था। उस दिन सम्राट ने सेना को नगर में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था। अफ़वाह थी कि वह सेना को नागरिकों पर गोलियां चलाने का आदेश देने वाला है। अतः लगभग 7000 पुरुष तथा स्त्रियां टाऊन हॉल के सामने एकत्र हुए और उन्होंने एक जन-सेना का गठन किया। हथियारों की खोज में वे अनेक सरकारी भवनों में जबरन प्रवेश कर गए। अंततः सैकड़ों लोगों के एक समूह ने पेरिस नगर में स्थित बेस्टील (Bastille) के किले की जेल को तोड़ डाला जहां उन्हें भारी मात्रा में गोला-बारूद मिलने की आशा थी। हथियारों पर कब्जे के इस संघर्ष में बेस्टील का कमांडर मारा गया और कैदी छुड़ा लिए गए, यद्यपि उनकी संख्या केवल सात थी। किले को ध्वस्त कर दिया गया और उसके अवशेष बाज़ार में उन लोगों को बेच दिए गए जो इस ध्वंस को स्मृति-चिह्न के रूप में संजो कर रखना चाहते थे।

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प्रश्न 7.
नेशनल असेंबली के अस्तित्व में आने के तुरंत पश्चात् क्रांति की ज्वाला किस प्रकार पूरे फ्रांस में फैल गई ?
उत्तर-
जिस समय नेशनल असेंबली संविधान का प्रारूप तैयार करने में व्यस्त थी, पूरा फ्रांस आंदोलित हो रहा था। कड़ाके की ठंड के कारण फ़सल नष्ट हो गई थी और पावरोटी की कीमतें आसमान को छू रही थीं। बेकरी मालिक स्थिति का लाभ उठा कर जमाखोरी में जुटे थे। बेकरी की दुकानों पर घंटों के इंतजार के बाद क्रोधित औरतों की भीड़ ने दुकान पर धावा बोल दिया। दूसरी ओर सम्राट ने सेना को पेरिस में प्रवेश करने का आदेश दे दिया था। अतः क्रुद्ध भीड़ ने 14 जुलाई को बेस्टील पर धावा बोलकर उसे ध्वस्त कर दिया।
शीघ्र ही गांव-गांव यह अफ़वाह फैल गई कि जागीरों के मालिकों ने भाड़े पर लठैतों-लुटेरों के दल बुला लिए हैं जो पकी फ़सलों को नष्ट कर रहे हैं। कई जिलों में भययीत किसानों ने कुदालों तथा बेलचों से ग्रामीण किलों (chateau) पर आक्रमण कर दिए। उन्होंने अन्न भंडार लूट लिये और लगान संबंधी दस्तावेजों को जलाकर राख कर दिया। कुलीन बड़ी संख्या में अपनी जागीरें छोड़कर भाग गए। उनमें से अधिकांश ने पड़ोसी देशों में जाकर शरण ली। इस प्रकार क्रांति की ज्वाला चारों ओर फैल गई।

प्रश्न 8.
4 अगस्त, 1789 की रात को फ्रांस की नेशनल असेंबली द्वारा किये गए किन्हीं तीन प्रशासनिक परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
लुई XVI से मान्यता मिलने के बाद नेशनल असेंबली ने 4 अगस्त, 1789 की रात को निम्नलिखित प्रशासनिक परिवर्तन किए

  1. करों, कर्त्तव्यों और बंधनों वाली सामंती व्यवस्था के उन्मूलन का आदेश पारित कर दिया गया।
  2. पादरी वर्ग के लोगों को अपने विशेषाधिकारों को छोड़ देने के लिए विवश किया गया।
  3. धार्मिक कर समाप्त कर दिया गया और चर्च के स्वामित्व वाली भूमि ज़ब्त कर ली गई। इस प्रकार लगभग 20 अरब लिने की संपत्ति सरकार के हाथ में आ गई।

प्रश्न 9.
फ्रांस में दास-व्यापार के आरंभ तथा महत्त्व का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
फ्रांस में दास-व्यापार सत्रहवीं शताब्दी में आरंभ हुआ। फ्रांसीसी सौदागर बोर्दे या नाते बंदरगाह से अफ्रीका तट पर जहाज़ ले जाते थे। वहां वे स्थानीय सरदारों से दास खरीदते थे। दासों को दाग कर तथा हथकड़ियां डाल कर अटलांटिक महासागर के पार कैरिबिआई देशों तक ले जाने के लिए जहाज़ों में ढूंस दिया जाता था। वहां उन्हें बागानमालिकों को बेच दिया जाता था।
महत्त्व-

  1. दास-श्रम के बल पर यूरोपीय बाजारों में चीनी, कॉफी तथा नील की बढ़ती मांग को पूरा करना संभव हो सका।
  2. बोर्दे और नाते जैसे बंदरगाह फलते-फूलते दास-व्यापार के कारण समृद्ध नगर बन गए।

प्रश्न 10.
18वीं और 19वीं शताब्दी में फ्रांस की दासता के विषय में क्या स्थिति थी ? किन्हीं तीन स्थितियों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-

  1. 18वीं शताब्दी में फ्रांस में दास प्रथा की अधिक निंदा नहीं हुई। नेशनल असेंबली में लंबी बहस हई कि व्यक्ति के मूलभूत अधिकार उपनिवेशों में रहने वाली प्रजा सहित समस्त फ्रांसीसी प्रजा को दिए जाएं या नहीं। परंतु दास-व्यापार पर निर्भर व्यापारियों के विरोध के भय के कारण नेशनल असेंबली में कोई कानून पारित नहीं किया गया।
  2. अंततः सन् 1794 के कन्वेंशन ने फ्रांसीसी उपनिवेशों में सभी दासों की मुक्ति का कानून पारित कर दिया। परंतु यह कानून एक छोटी-सी अवधि तक ही लागू रहा। दस वर्ष बाद नेपोलियन ने दास-प्रथा फिर से शुरू कर दी। बागान-मालिकों को अपने आर्थिक हित साधने के लिए अफ्रीकी नीग्रो लोगों को दास बनाने की स्वतंत्रता दे दी गई।
  3. फ्रांसीसी उपनिवेशों से अंतिम रूप से दास-प्रथा का उन्मूलन 1848 में किया गया।

प्रश्न 11.
नेपोलियन बोनापार्ट कौन था ? उसने किन सुधारों को लागू किया ?
उत्तर-
नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस का सम्राट् था। उसने 1804 में अपने आपको फ्रांस का सम्राट घोषित किया था। इससे पहले वह डिरेक्ट्री में प्रथम डिरेक्टर था।
सुधार-नेपोलियन स्वयं को यूरोप के आधुनिकीकरण का अग्रदूत मानता था। उसने निम्नलिखित सुधार लागू किए1. उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के लिए कानून बनाए। 2. उसने दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली चलायी।

प्रश्न 12.
फ्रांस के 1791 के संविधान से महिलाएं क्यों निराश थीं ? महिलाओं के जीवन में सुधार लाने के लिए क्रांतिकारी सरकार ने कौन-से कानून लागू किए ?
उत्तर-
फ्रांस में महिलाएं 1791 के संविधान से इसलिए निराश थीं क्योंकि इसमें उन्हें निष्क्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था। परंतु महिलाओं ने मताधिकार, असेंबली के लिए चुने जाने तथा राजनीतिक पदों की मांग रखी। उनका मानना था कि तभी नई सरकार में उनका प्रतिनिधित्व हो पायेगा। क्रांतिकारी सरकार के कानून-महिलाओं के जीवन में सुधार लाने के लिए क्रांतिकारी सरकार ने निम्नलिखित कानून लागू किए

  1. सभी लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा अनिवार्य कर दी गई।
  2. अब पिता उन्हें उनकी इच्छा के विरुद्ध शादी के लिए बाध्य नहीं कर सकता था। शादी को स्वैच्छिक अनुबंध माना गया और नागरिक कानूनों के अनुसार उनका पंजीकरण किया जाने लगा।
  3. तलाक को कानूनी रूप दे दिया गया और स्त्री-पुरुष दोनों को ही इसकी अर्जी देने का अधिकार दिया गया।
  4. अब महिलाएं व्यावसायिक प्रशिक्षण ले सकती थीं, कलाकार बन सकती थीं और छोटे-मोटे व्यवसाय चला सकती थीं।

प्रश्न 13.
जैकोबिन कौन थे ? उन्हें ‘सौं कुलॉत’ के नाम से क्यों जाना गया ?
उत्तर-
जैकोबिन क्लब के सदस्य मुख्यतः समाज के कम समृद्ध वर्गों से संबंधित थे। इनमें छोटे दुकानदार और कारीगर-जैसे जूता बनाने वाले, पेस्ट्री बनाने वाले, घड़ीसाज़, छपाई करने वाले और नौकर व दैनिक मजदूर शामिल थे। उनका नेता मैक्समिलियन रोबेस्प्येर था। जैकोबिनों के एक बड़े वर्ग ने गोदी कामगारों की तरह लंबी धारीदार पतलून पहनने का निर्णय किया। ऐसा उन्होंने समाज के फ़ैशनपरस्त वर्ग, विशेषकर स्वयं को घुटने तक पहने जाने वाले ब्रीचेस (घुटन्ना) पहनने वाले कुलीनों से अलग करने के लिए किया। यह उनका ब्रीचेस पहनने वाले कुलीनों की सत्ता समाप्ति को दर्शाने का तरीका था। इसलिए जैकोबिनों को ‘सौं कुलॉत’ के नाम से जाना गया जिसका शाब्दिक अर्थ है-बिना घुटन्ने वाले। सौं कुलॉत पुरुष लाल रंग की टोपी भी पहनते थे जो स्वतंत्रता की प्रतीक थी। महिलाओं को यह टोपी पहनने की अनुमति नहीं थी।

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प्रश्न 14.
फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र के स्थान पर गणतंत्र की स्थापना कैसे हुई ?
उत्तर-
1792 ई० की गर्मियों में जैकोबिनों ने खाद्य पदार्थों की महंगाई एवं अभाव से क्रुद्ध पेरिसवासियों को लेकर एक विशाल हिंसक विद्रोह की योजना बनायी। 10 अगस्त की प्रातः उन्होंने ट्यूलेरिए के महल पर धावा बोल दिया। उन्होंने राजा के रक्षकों को मार डाला और राजा को कई घंटों तक बंधक बनाये रखा। बाद में नेशनल असेंबली ने शाही परिवार को जेल में डाल देने का प्रस्ताव पारित किया। नये चुनाव कराये गए। 21 वर्ष से अधिक उम्र वाले सभी पुरुषोंचाहे उनके पास संपत्ति थी या नहीं-को मतदान का अधिकार दिया गया।
नवनिर्वाचित असेंबली को कन्वेंशन का नाम दिया गया। 21 सितंबर, 1792 को कन्वेंशन ने राजतंत्र का अंत करके फ्रांस को एक गणतंत्र घोषित कर दिया।

प्रश्न 15.
फ्रांस के इतिहास पर फ्रांसीसी क्रांति के प्रभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर-

  1. 1789 से बाद के वर्षों में फ्रांस के लोगों के पहनावे, बोलचाल तथा पुस्तकों आदि में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन आए।
  2. क्रांतिकारी सरकारों ने कानून बना कर स्वतंत्रता तथा समानता के आदर्शों को दैनिक जीवन में उतारने का प्रयास किया।
  3. सेंसरशिप को समाप्त कर दिया। अधिकारों के घोषणा-पत्र ने भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया।

प्रश्न 16.
1791 का फ्रांसीसी संविधान किस महत्त्वपूर्ण प्रावधान से शुरू होता था ? इसमें क्या कहा गया था?
उत्तर-
1791 का फ्रांसीसी संविधान ‘पुरुष एवं नागरिक अधिकार घोषणा-पत्र’ के साथ शुरू हुआ था। इसके अनुसार जीवन के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और कानूनी समानता के अधिकार को ‘नैसर्गिक एवं अहरणीय’ अधिकार के रूप में स्थापित किया गया। प्रत्येक व्यक्ति को ये अधिकार जन्म से प्राप्त थे। अतः इन अधिकारों को छीना नहीं जा सकता था। राज्य का यह कर्त्तव्य माना गया कि वह प्रत्येक नागरिक के नैसर्गिक अधिकारों की रक्षा करे।

दीर्घ उत्तरों वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उन जनवादी अधिकारों की सूची बनाएं जो आज हमें मिले हुए हैं और जिनका उद्गम फ्रांसीसी क्रांति में है ?
अथवा
उन लोकतांत्रिक अधिकारों की सूची बनाओ जिनका आज हम उपभोग करते हैं और जो फ्रांसीसी क्रांति की उपज होंगे।
उत्तर-
आज के मानव को निम्नलिखित लोकतांत्रिक (जनवादी) अधिकार फ्रांसीसी क्रांति की देन हैं। इनकी घोषणा 27 अगस्त, 1789 को राष्ट्रीय महासभा में की गई थी।

  1. मनुष्य स्वतंत्र पैदा हुआ है और उसके अधिकार अन्य मनुष्यों के समान होंगे।
  2. प्रत्येक राजनीतिक संगठन का उद्देश्य मनुष्य के सभी अधिकारों की रक्षा करना है।
  3. प्रत्येक मनुष्य को पूर्ण स्वतंत्रता का अधिकार है, परंतु वह दूसरों की स्वतंत्रता को हानि न पहुंचाए।
  4. राज्य की शक्ति का मुख्य स्रोत राज्य के नागरिक हैं । अतः कोई भी व्यक्ति अथवा कोई भी संगठन ऐसा निर्णय लागू नहीं कर सकता जो देश के लोगों की इच्छा के विरुद्ध हो।
  5. कानून केवल उन्हीं कार्यों को रोकता है जिनसे समाज को हानि पहुंचती हो।
  6. न्याय की दृष्टि में सभी नागरिक समान हैं। कानूनी कार्यवाही के बिना किसी भी व्यक्ति को बंदी नहीं बनाया जा सकता। दोष सिद्ध होने पर ही किसी को दंड दिया जा सकता है।
  7. कानून देश के सभी लोगों की इच्छा की अभिव्यक्ति हैं। अतः सभी नागरिकों को व्यक्तिगत रूप से अथवा अपने प्रतिनिधियों द्वारा कानून के निर्माण में भाग लेने का अधिकार है। .
  8. सभी व्यक्तियों को धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त है।
  9. प्रत्येक व्यक्ति को अपने विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता है। परंतु उससे समाज या देश को हानि न पहुंचे।
  10. बिना क्षति-पूर्ति (Compensation) के किसी भी व्यक्ति की संपत्ति नहीं ली जा सकती।
  11. कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति का शोषण नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
क्या आप इस तर्क से सहमत हैं कि सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश में नाना अंतर्विरोध थे ?
उत्तर-
सार्वभौमिक अधिकारों के संदेश निश्चित रूप से विरोधाभासों से ग्रस्त थे। इनमें निम्नलिखित कई दोष थे-

  1. इसमें सभा आयोजित करने तथा संघ आदि बनाने की स्वतंत्रता के विषय में कुछ नहीं कहा गया था।
  2. इसमें सार्वजनिक शिक्षा के विषय में कुछ नहीं कहा गया था।
  3. इसमें व्यापार तथा व्यवसाय की स्वतंत्रता का अधिकार नहीं दिया गया था।
  4. इसमें नागरिकों को संपत्ति रखने का सीमित अधिकार प्रदान किया गया था। अतः राज्य सार्वजनिक हित का बहाना बनाकर किसी की भी संपत्ति छीन सकता था।
  5. फ्रांस के उपनिवेशों (Colonies) में काम करने वाले हब्शी दासों के विषय में इसमें कोई उल्लेख न था।
  6. इन अधिकारों की सबसे बड़ी त्रुटि यह थी कि इनके साथ मानव के कर्त्तव्य निश्चित नहीं किए गए थे। कर्त्तव्यों के बिना अधिकार प्रायः महत्त्वहीन ही समझे जाते हैं। इस विषय में मिराब्यो ने भी लिखा है कि नागरिकों को अधिकार देने की उतनी आवश्यकता न थी जितनी कि उन्हें अपने कर्तव्यों से अवगत कराने की थी।

प्रश्न 3.
फ्रांस में नेशनल असेंबली किस प्रकार अस्तित्व में आई ?
उत्तर-
फ्रांस में नेशनल असेंबली टेनिस कोर्ट की शपथ के फलस्वरूप अस्तित्व में आई। तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि स्वयं को संपूर्ण फ्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे। 20 जून को ये प्रतिनिधि वर्साय के इंडोर टेनिस कोर्ट में एकत्र हुए। उन्होंने अपने आप को नेशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं हो जाता तब तक असेंबली भंग नहीं होगी। उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिए ने किया। मिराब्यो का जन्म कुलीन परिवार में हुआ था, परंतु वह सामंती विशेषाधिकारों वाले समाज को समाप्त करने के पक्ष में था। उसने एक पत्रिका निकाली और वर्साय में जमा भीड़ के सामने जोरदार भाषण भी दिए। आबे सिए मूलतः पादरी था और उसने ‘तीसरा एस्टेट क्या है ?’ शीर्षक से एक अत्यंत प्रभावशाली प्रचार-पुस्तिका (पैंफ़्लेट) लिखी।
अपनी विद्रोही प्रजा के तेवर देखकर लुई XVI ने अंततः नेशनल असेंबली को मान्यता दे दी और यह भी मान लिया कि उसकी सत्ता पर अब से संविधान का अंकुश होगा।

प्रश्न 4.
रोबेस्प्येर ने किस प्रकार फ्रांसीसी समाज में समानता लाने के प्रयास किए ?
उत्तर-
रोबेस्प्येर ने निम्नलिखित सुधारों द्वारा फ्रांसीसी समाज में समानता लाने का प्रयास किया-

  1. रोबेस्प्येर ने कानून द्वारा मज़दूरी तथा कीमतों की अधिकतम सीमा निश्चित कर दी।
  2. गोश्त तथा पावरोटी की राशनिंग कर दी गई।
  3. किसानों को अपना अनाज शहरों में जाकर सरकार द्वारा निश्चित मूल्यों पर बेचने के लिए विवश कर दिया गया।
  4. अपेक्षाकृत महंगे सफ़ेद आटे के प्रयोग पर रोक लगा दी गई। अब सभी नागरिकों के लिए साबुत गेहूँ से बनी और समानता का प्रतीक मानी जाने वाली ‘समता रोटी’ खाना अनिवार्य कर दिया गया।
  5. बोलचाल और संबोधन में भी समानता का आचार-व्यवहार लागू करने का प्रयास किया गया। परंपरागत मॉन्स्यूर (महाशय) एवं मदाम (महोदया) के स्थान पर अब सभी फ्रांसीसी पुरुषों एवं महिलाओं को सितोयेन (नागरिक) एवं सितोयीन (नागरिका) के नाम से संबोधित किया जाने लगा।
  6. चर्चों को बंद कर दिया गया और उनके भवनों को बैरक या दफ़्तर बना दिया गया।

प्रश्न 5.
फ्रांसीसी क्रांति के इतिहास में 1791 के संविधान का क्या महत्त्व हैं ?
उत्तर-
1791 के संविधान में सम्राट की शक्तियों को सीमित करके फ्रांस में संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना की गई। इस संविधान के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित थे

  1. शासन की शक्तियों को विभिन्न संस्थाओं अर्थात् विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में विभाजित एवं हस्तांतरित कर दिया गया।
  2. कानून बनाने का अधिकार नेशनल असेंबली को सौंप दिया गया।
  3. नेशनल असेंबली का अप्रत्यक्ष रूप से चुनाव होता था। पहले नागरिक एवं निर्वाचक समूह का चुनाव करते थे जो असेंबली के सदस्यों को चुनते थे।
  4. मत देने का अधिकार केवल 25 वर्ष या उससे अधिक आयु के ऐसे पुरुषों को प्राप्त था जो कम-से-कम तीन दिन की मजदूरी के बराबर कर चुकाते थे। इन्हें सक्रिय नागरिक का दर्जा दिया गया था। शेष पुरुषों और महिलाओं को निष्क्रिय नागरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया था। निर्वाचक की योग्यता प्राप्त करने तथा असेंबली का सदस्य बनने के लिए लोगों का करदाताओं की उच्चतम श्रेणी में होना आवश्यक था।

प्रश्न 6.
नेपोलियन का सम्राट के रूप में उदय किस प्रकार हुआ था ? उसके शासनकाल की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
जैकोबिन सरकार के पतन के बाद फ्रांस की सत्ता मध्य वर्ग के संपन्न लोगों के हाथ में आ गई। नए संविधान के अनुसार संपत्तिहीन वर्ग को मताधिकार से वंचित कर दिया गया। इस संविधान में चुनी गई दो विधान परिषदों की व्यवस्था थी। इन परिषदों ने पांच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका-डायरेक्टरी को नियुक्त किया। नई व्यवस्था में
जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति-केंद्रित कार्यपालिका से बचने का प्रयास किया गया, परंतु विधान परिषदों में डायरेक्टरों का झगड़ा होता रहता था। तब परिषद् उन्हें हटाने की चेष्टा करती थी। डायरेक्टरी की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह-नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त कर दिया। 1804 ई० में नेपोलियन ने अपने आप को फ्रांस का सम्राट घोषित कर दिया।
शासनकाल-

  1. नेपोलियन ने यूरोपीय देशों की विजय यात्रा आरंभ की। पुराने राजवंशों को हटा कर उसने नए साम्राज्य बनाए और उनकी बागडोर अपने खानदान के लोगों के हाथ में दे दी ।
  2. नेपोलियन अपने आप को आधुनिकीकरण का दूत मानता था। उसने निजी संपत्ति की सुरक्षा के लिए कानून बनाए और दशमलव पद्धति पर आधारित नाप-तौल की एक समान प्रणाली आरंभ की।
  3. आरंभ में बहुत-से लोगों को नेपोलियन मुक्तिदाता लगता था और उससे जनता को स्वतंत्रता दिलाने की आशा थी। परंतु जल्दी ही उसकी सेनाओं को लोग आक्रमणकारी मानने लगे। आखिरकार 1815 में वॉटरलू में उसकी पराजय हुई
    यूरोप के अन्य भागों में उसके मुक्ति और आधुनिक कानूनों को फैलाने वाले क्रांतिकारी उपायों का प्रभाव उसकी मृत्यु के काफ़ी समय बाद सामने आया।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति

प्रश्न 7.
बेस्टील के पतन के बाद फ्रांस में पारित सबसे महत्त्वपूर्ण कानून कौन-सा था ? इसका क्या महत्त्व था ?
अथवा
फ्रांस में भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को नैसर्गिक अधिकार घोषित किए जाने का फ्रांसीसी जनता के लिए क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
बेस्टील के पतन के बाद 1789 की गर्मियों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण कानून अस्तित्व में आया, वह था सेंसरशिप की समाप्ति। प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत समस्त लिखित सामग्री तथा सांस्कृतिक गतिविधियों-पुस्तकों, अखबारों, नाटक आदि को राजा के सेंसर अधिकारियों द्वारा पास किए जाने के बाद ही प्रकाशित या मंचित किया जा सकता था। परंतु अब अधिकारों के घोषणापत्र के अनुसार भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नैसर्गिक अधिकार घोषित कर दिया। परिणामस्वरूप फ्रांस के नगरों में अखबारों, पर्यों, पुस्तकों तथा चित्रों की बाढ़-सी आ गई, जो तेज़ी से गांव-देहात तक जा पहुंची। उनमें फ्रांस में हो रही घटनाओं एवं परिवर्तनों का ब्यौरा और उन पर टिप्पणी होती थी। प्रेस की स्वतंत्रता का अर्थ यह था कि किसी भी घटना पर परस्पर विरोधी विचार भी व्यक्त किए जा सकते थे। प्रिंट माध्यम का उपयोग करके एक पक्ष ने दूसरे पक्ष को अपने दृष्टिकोण से सहमत कराने के प्रयास किए। अब नाटक, संगीत और उत्सवी जुलूसों में असंख्य लोग जाने लगे। स्वतंत्रता और न्याय के बारे में राजनीतिज्ञों एवं दार्शनिकों के पांडित्यपूर्ण लेखन को समझने और उससे जुड़ने का यह एक लोकप्रिय तरीका था क्योंकि किताबों को केवल मुट्ठी भर शिक्षित लोग ही पढ़ सकते थे।

प्रश्न 8.
फ्रांसीसी सम्राट् लुई XVI ने एस्टेट्स जनरल (जेनराल) की बैठक क्यों बुलाई ? इसमें विभिन्न एस्टेट्स की क्या स्थिति थी ?
उत्तर-
फ्रांस पर ऋण के बढ़ते बोझ के कारण फ्रांस के सम्राट को धन की आवश्यकता थी। इसके लिए उसने नए कर लगाने का निर्णय किया। प्राचीन राजतंत्र के अंतर्गत फ्रांसीसी सम्राट अपनी मर्जी से कर नहीं लगा सकता था। इसके लिए उसे एस्टेट्स जेनराल (प्रतिनिधि सभा) की बैठक बुला कर नए करों के अपने प्रस्तावों पर मंजूरी लेनी पड़ती थी। एस्टेट्स जेनराल एक राजनीतिक संस्था थी जिसमें तीनों एस्टेट्स अपने-अपने प्रतिनिधि भेजते थे। परंतु सम्राट् ही यह निर्णय करता था कि इस संस्था की बैठक कब बुलाई जाए। इसकी अंतिम बैठक 1614 में बुलाई गई थी।
इसके बाद लुई XVI ने 5 मई, 1789 को नये करों के प्रस्ताव पर मंजूरी के लिए एस्टेट्स जेनराल की बैठक बुलाई। प्रतिनिधियों की मेजबानी के लिए वर्साय के एक भव्य भवन को सजाया गया। पहले और दूसरे एस्टेट ने इस बैठक में अपने 300-300 प्रतिनिधि भेजे जिन्हें आमने-सामने की पंक्तियों में बिठाया गया। तीसरे एस्टेट के 600 प्रतिनिधियों को उनके पीछे खड़ा किया गया। तीसरे एस्टेट का प्रतिनिधित्व इसके अपेक्षाकृत समृद्ध एवं शिक्षित वर्ग के लोग कर रहे थे। किसानों, औरतों एवं कारीगरों को सभा में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। फिर भी लगभग 40,000 पत्रों के माध्यम से उनकी शिकायतों तथा मांगों की सूची बनाई गई थी जिसे प्रतिनिधि अपने साथ लेकर आए थे।

प्रश्न 9.
फ्रांस में जेनराल नेशनल असेंबली किस प्रकार अस्तित्व में आई? इसमें मिराब्यो और आबे सिए की क्या भूमिका रही ?
उत्तर-
एस्टेट्स जेनराल के नियमों के अनुसार प्रत्येक एस्टेट (सामाजिक वर्ग) को एक मत देने का अधिकार था। इस बार भी लुई XVI का इसी प्रथा का पालन करने के लिए दृढ़ संकल्प था। परंतु तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधियों ने मांग रखी कि अबकी बार पूरी सभा द्वारा मतदान कराया जाना चाहिए, जिसमें प्रत्येक सदस्य को एक मत देने का अधिकार हो। यह नि:संदेह एक लोकतांत्रिक सिद्धांत था, जिसे अपनी पुस्तक ‘द सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ में रूसो ने भी प्रस्तुत किया था। परंतु सम्राट ने इस प्रस्ताव को मानने से इंकार कर दिया। इस विरोध में तीसरे एस्टेट के प्रतिनिधि सभा से बाहर चले गए। वे स्वयं को संपूर्ण फ्रांसीसी राष्ट्र का प्रवक्ता मानते थे। 20 जून को वे वर्साय के इनडोर टेनिस कोर्ट में जमा हुए। उन्होंने स्वयं को नेशनल असेंबली घोषित कर दिया और शपथ ली कि जब तक सम्राट की शक्तियों को कम करने वाला संविधान तैयार नहीं हो जाता तब तक असेंबली भंग नहीं होगी। उनका नेतृत्व मिराब्यो और आबे सिए ने किया। मिराब्यो का जन्म कुलीन परिवार में हुआ था, लेकिन वह सामंती विशेषाधिकारों वाले समाज को समाप्त करने की ज़रूरत से सहमत था। उसने एक पत्रिका निकाली और वर्साय में जुटी भीड़ के सामने ज़ोरदार भाषण भी दिए। आबे सिए मूलतः पादरी था और उसने ‘तीसरा एस्टेट क्या है ?’ शीर्षक से एक अत्यंत प्रभावशाली प्रचार-पुस्तिका (पैंफ्लेट) लिखी।

प्रश्न 10.
फ्रांसीसी नेशनल असेंबली के अधीन क्रांतिकारी युद्धों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। इनके क्या परिणाम निकले ?
उत्तर-
लुई XVI ने 1791 के संविधान पर हस्ताक्षर कर दिए थे, परंतु प्रजा के राजा से उसकी गुप्त वार्ता भी चल रही थी। फ्रांस की घटनाओं से अन्य पड़ोसी देशों के शासक भी चिंतित थे। इन शासकों ने फ्रांस की नेशनल असेंबली की सरकार के विरुद्ध सेना भेजने की योजना बना ली थी। परंतु, आक्रमण होने से पहले ही, अप्रैल, 1792 में नेशनल असेंबली ने प्रशा तथा ऑस्ट्रिया के विरुद्ध युद्ध की घोषणा का प्रस्ताव पारित कर दिया। प्रांतों से हज़ारों स्वयं सेवी सेना में भर्ती होने के लिए आने लगे। उन्होंने इस युद्ध को यूरोपीय राजाओं एवं कुलीनों के विरुद्ध जनता के युद्ध के रूप में लिया। उनके होठों पर देशभक्ति के जो गीत थे उनमें कवि रॉजेट दि लाइल द्वारा रचित मार्सिले भी था। यह गीत पहली बार मार्सिलेस के स्वयंसेवियों ने पेरिस की ओर कूच करते हुए गाया था। इसलिए इस गीत का नाम मार्सिले हो गया जो अब फ्रांस का राष्ट्रगान है।
क्रांतिकारी युद्धों के परिणाम-

  1. क्रांतिकारी युद्धों ने जनता को भारी क्षति पहुंचाई। लोगों को अनेक आर्थिक कठिनाइयां झेलनी पड़ी। पुरुषों के मोर्चे पर चले जाने के बाद घर-परिवार और रोजी-रोटी की ज़िम्मेवारी औरतों पर आ पड़ी।
  2. देश की आबादी के एक बड़े भाग को ऐसा लगता था कि क्रांति के घटनाक्रम को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है क्योंकि 1791 के संविधान से केवल धनी लोगों को ही राजनीतिक अधिकार प्राप्त हुए थे। लोग राजनीतिक क्लबों में अड्डे जमा कर सरकारी नीतियों और अपनी कार्ययोजना पर बहस करते थे। इनमें से जैकोबिन क्लब सबसे आगे था, जिसका नाम पेरिस के भूतपूर्व कॉन्वेंट ऑफ़ सेंट जेकब के नाम पर पड़ा।

प्रश्न 11.
जैकोबिन सरकार के पतन के बाद फ्रांस में हुए किन्हीं चार परिवर्तनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
डायरेक्टरी शासित फ्रांस की कोई चार विशेषताएं बताइए।
उत्तर-

  1. जैकोबिन सरकार के पतन के बाद वहां की सत्ता मध्य वर्ग के संपन्न लोगों के हाथों में आ गईं।
  2. नए संविधान के अनुसार संपत्तिहीन वर्ग को मताधिकार से वंचित कर दिया गया।
  3. इस संविधान में दो निवर्चित विधान परिषदों की व्यवस्था की गई थी । इन परिषदों ने पांच सदस्यों वाली एक कार्यपालिका को नियुक्त किया। इसे डायरेक्टरी कहा जाता था। इस प्रावधान के माध्यम से जैकोबिनों के शासनकाल वाली एक व्यक्ति-केंद्रित कार्यपालिका से बचने का प्रयास किया गया, परंतु डायरेक्टरी का प्रायः विधान परिषदों से झगड़ा होता रहता था। ऐसे अवसरों पर परिषद् उन्हें पद से हटाने की चेष्टा करती थी।
  4. डायरेक्टरी की राजनीतिक अस्थिरता ने सैनिक तानाशाह-नेपोलियन बोनापार्ट के उदय का मार्ग प्रशस्त किया।

मानचित्र संबंधी प्रश्न (Map Work Questions)
PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (3)
नोट- दिये गए मानचित्र में दिखाए गये तथ्यों का अध्ययन करें तथा उन्हें रिक्त मानचित्र में भरने का अभ्यास करें।

महत्त्वपूर्ण राजनीतिक प्रतीक

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (4)
त्रिकोण में आँख ज्ञान का प्रतीक है और सूर्य की किरणें अज्ञानता दूर करने के लिए हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (5)
एक सांप अपनी पूंछ को खा रहा है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक प्रक्रिया का अंत होता है।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (6)
टूटी हुई जंजीर का अर्थ है दासता से आज़ादी।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (7)
एक फ्रीजियन टोपी (Phrygian Cap) दासों की आज़ादी का प्रतीक है।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (8)
कुल्हाड़ी सहित दंड की गांठ एकता में बल को दर्शाती है।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (9)
राजदंड राज्य की शाही ताकत का प्रतीक है।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (10)
कानून की पट्टी का अर्थ है कि कानून की नज़रों में सभी नागरिक समान हैं।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (11)
पंखों वाली औरत कानून की सर्वोच्चता को दर्शाती है।

PSEB 9th Class SST Solutions History Chapter 5 फ्रांसीसी क्रांति (12)
नीला, सफेद तथा लाल रंग फ्रांस के राष्ट्रीय रंग हैं।

PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3

Punjab State Board PSEB 5th Class Maths Book Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 5 Maths Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਰਵੀ ਨੇ ਤੋਂ 50 ਦੀ ਇੱਕ ਕਾਪੀ ਅਤੇ $ 125 ਦੀ ਇੱਕ ਕਿਤਾਬ ਖਰੀਦੀ ਅਤੇ ਤੋਂ 150 ਦਾ ਇੱਕ ਪੈਨ ਖਰੀਦਿਆ ।ਉਸਨੇ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਖਰਚ ਕੀਤੇ ?
ਹੱਲ:
ਰਵੀ ਨੇ ਇਕ ਕਾਪੀ ਜਿੰਨੇ ਦੀ ਖਰੀਦੀ = ₹ 50
ਰਵੀ ਨੇ ਇਕ ਕਿਤਾਬ ਜਿੰਨੇ ਦੀ ਖਰੀਦੀ = ₹ 125
ਰਵੀ ਨੇ ਇਕ ਪੈਨ ਜਿੰਨੇ ਦਾ ਖਰੀਦਿਆ = + ₹ 150
ਰਵੀ ਨੇ ਕੁੱਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਖਰਚ ਕੀਤੇ = ₹ 325
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 1

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਮਨਵੀਤ ਕੌਰ ਕੋਲ ਤੋਂ 148.50 ਹਨ । ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਤੇ 116.50 ਹੋਰ ਦੇ ਦਿੱਤੇ । ਹੁਣ ਮਨਜੀਤ ਕੌਰ ਕੋਲ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹੋ ਗਏ ਹਨ ?
ਹੱਲ:
ਮਨਵੀਤ ਕੌਰ ਕੋਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹਨ = ₹ 148.50
ਉਸਦੇ ਪਿਤਾ ਜੀ ਨੇ ਉਸਨੂੰ ਜਿੰਨੇ ਹੋਰ ਰੁਪਏ ਦਿੱਤੇ = + ₹ 116.50
ਹੁਣ ਮਨਵੀਤ ਕੌਰ ਕੋਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹੋ ਗਏ ਹਨ। = ₹ 265.00
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 2

PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਪਾਰਸ ਨੇ ਤੋਂ 450 ਦਾ ਇੱਕ ਬਸਤਾ ਖ਼ਰੀਦਿਆ ਅਤੇ ਉਸਨੇ ਤੋਂ 500 ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨੂੰ ਦੇ ਦਿੱਤੇ । ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਉਸਨੂੰ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਵਾਪਿਸ ਕਰੇਗਾ ?
ਹੱਲ:
ਪਾਰਸ ਨੇ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਦਾ ਇਕ ਬਸਤਾ ਖ਼ਰੀਦਿਆ = ₹ 450
ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਨੂੰ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਦਿੱਤੇ = ₹ 500
ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਉਸਨੂੰ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਵਾਪਿਸ ਕਰੇਗਾ ।
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 3
ਪਾਰਸ ਨੂੰ ₹ 50 ਵਾਪਿਸ ਮਿਲੇ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਗੁਰਦੀਪ ਕੋਲ ₹ 1000 ਹਨ ਅਤੇ ਉਸਨੇ ₹ 742 ਦੇ ਬੂਟ ਖ਼ਰੀਦੇ । ਉਸ ਕੋਲ ਕਿੰਨਾ ਧਨ ਬਚੇਗਾ ?
ਹੱਲ:
ਗੁਰਦੀਪ ਕੋਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹਨ = ₹ 1000
ਉਸਨੇ ਜਿੰਨੇ ਦੇ ਬੂਟ ਖ਼ਰੀਦੇ = ₹ 7142
ਉਸ ਕੋਲ ਜਿੰਨਾ ਧਨ ਬਚੇਗਾ = ₹ 258
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 4

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਪ੍ਰਭਜੋਤ ਕੋਲ ਤੋਂ 2168.50 ਹਨ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਭਰਾ ਸਿਮਰਜੀਤ ਕੋਲ ਤੋਂ 1248.50 ਹਨ । ਉਹਨਾਂ ਦੋਹਾਂ ਕੋਲ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹਨ ?
ਹੱਲ:
ਪ੍ਰਭਜੋਤ ਕੋਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹਨ = ₹ 2168.50
ਉਸਦੇ ਭਰਾ ਸਿਮਰਜੀਤ ਕੋਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹਨ = ₹ 1248.50
ਉਹਨਾਂ ਦੋਹਾਂ ਕੋਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹਨ = ₹ 3417.00
ਉਹਨਾਂ ਦੋਹਾਂ ਕੋਲ ₹3417.00 ਹਨ ।
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 5

PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਇੱਕ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਕੋਲ ਤੋਂ 1000 ਹਨ । ਉਸਨੇ ਇੱਕ ਰੇਡੀਓ ਤੋਂ 650 ਦਾ ਖ਼ਰੀਦਿਆ । ਉਸ ਕੋਲ ਹੁਣ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਬਚੇ ਹੋਣਗੇ ?
ਹੱਲ:
ਇਕ ਦੁਕਾਨਦਾਰ ਕੋਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਹਨ = ₹ 1000
ਉਸਨੇ ਜਿੰਨੇ ਦਾ ਇਕ ਰੇਡੀਓ ਖ਼ਰੀਦਿਆ = ₹ 650
ਉਸਦੇ ਕੋਲ ਹੁਣ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਬਚੇ ਹੋਣਗੇ = ₹350
ਉਸ ਕੋਲ ਹੁਣ ₹ 350 ਬਚ ਗਏ ।
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 6

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਹਰਜੋਤ ਆਪਣੀ ਸਹੇਲੀ ਨਾਲ ਬਜ਼ਾਰ ਗਈ । ਉੱਥੇ ਉਸਨੇ ਦੇ 3467.50 ਦਾ ਸਮਾਨ ਖ਼ਰੀਦਿਆ ਜਦ ਕਿ ਉਸਦੀ ਸਹੇਲੀ ਨੇ 3350.25 ਦਾ ਸਮਾਨ ਖ਼ਰੀਦਿਆ ਹਰਜੋਤ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਹੇਲੀ ਨਾਲੋਂ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਵੱਧ ਖਰਚ ਕੀਤੇ ।
ਹੱਲ:
ਹਰਜੋਤ ਨੇ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਦਾ ਸਮਾਨ ਖ਼ਰੀਦਿਆ = ₹ 3467.50
ਉਸਦੀ ਸਹੇਲੀ ਨੇ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਦਾ ਸਮਾਨ ਖ਼ਰੀਦਿਆ = ₹ 3350.25
ਉਸਨੇ ਆਪਣੀ ਸਹੇਲੀ ਨਾਲੋਂ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਵੱਧ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤੇ = ₹ 117.25
ਹਰਜੋਤ ਨੇ ਆਪਣੀ ਸਹੇਲੀ ਨਾਲੋਂ ₹ 117.25 ਵੱਧ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤੇ ।
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 7

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਅਵਨੀਤ ਨੇ ਇੱਕ ਦੁਕਾਨ ਤੋਂ ₹ 1865.90 ਦੀ ਇੱਕ ਕਮੀਜ਼, ₹ 1060.30 ਦੀ ਇੱਕ ਪੈਂਟ ਅਤੇ ₹ 990.10. ਦਾ ਇੱਕ ਬੂਟਾਂ ਦਾ ਜੋੜਾ ਖ਼ਰੀਦਿਆ । ਉਸਨੇ ਕਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤੇ ।
ਹੱਲ:
ਅਵਨੀਤ ਨੇ ਜਿੰਨੇ ਦੀ ਇਕ ਕਮੀਜ਼ ਖ਼ਰੀਦੀ = ₹ 1865.90
ਅਵਨੀਤ ਨੇ ਜਿੰਨੇ ਦੀ ਇਕ ਪੈਂਟ ਖ਼ਰੀਦੀ = ₹ 1060.30
ਅਵਨੀਤ ਨੇ ਜਿੰਨੇ ਦਾ ਇੱਕ ਬੂਟਾਂ ਦਾ ਜੋੜਾ ਖ਼ਰੀਦਿਆ = ₹ 990.10
ਅਵਨੀਤ ਨੇ ਕੁੱਲ ਜਿੰਨੇ ਰੁਪਏ ਖ਼ਰਚ ਕੀਤੇ = ₹ 3916.30
PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3 8

PSEB 5th Class Maths Solutions Chapter 5 ਧਨ (ਕਰੰਸੀ) Ex 5.3

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 Importance and Principles of Secularism

Punjab State Board PSEB 8th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 25 Importance and Principles of Secularism Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Social Science Civics Chapter 25 Importance and Principles of Secularism

SST Guide for Class 8 PSEB Importance and Principles of Secularism Textbook Questions and Answers

I. Fill in the blanks:

Question 1.
Preamble of Constitution is also known as __________
Answer:
essence of the constitution

Question 2.
The Rights are included in the constitution of India from Article to ________________
Answer:
12,35

Question 3.
The word was added to the Preamble of the constitution by Amendment.
Answer:
equality, fraternity

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 Importance and Principles of Secularism

Question 4.
To treat all religions equal is _______________
Answer:
secularism.

II. Put a tick against the Rights (✓) and a cross against the wrong (✗):

Question 1.
The Preamble begins with the word we, the people of India.
Answer:
(✓)

Question 2.
The word equality has not been included in the preamble.
Answer:
(✗)

Question 3.
Discrimination can be made on the basis of Religion, Caste, Sex, Race.
Answer:
(✗)

Question 4.
The Right to vote gives Political Justice.
Answer:
(✓)

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 Importance and Principles of Secularism

Question 5.
The preamble appears at the end of the Constitution of India.
Answer:
(✗)

III. Multiple Choice Questions :

Question 1.
In which part of the constitution of India are the fundamental Rights included:
(A) Part-I
(B) Part-II
(C) Part-III
(D) Part-IV.
Answer:
(C) Part-III.

Question 2.
Where are the rules for Ideals are included :
(A) In the Books of Law
(B) In the Preamble
(C) In the Constitution of India
(D) None of the Above.
Answer:
(C) In the Constitution of India.

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 Importance and Principles of Secularism

Question 3.
Which Article of the Constitution of India provides six kinds of freedom to the citizens :
(A) Article 18
(B) Article 14
(C) Article 19
(D) Article 17.
Answer:
(B) Article 14.

IV. Answer the following questions in not more than 15 words :

Question 1.
Give the meaning of Secularism.
Answer:
There is no religion of the government in the secular state. All religions are equal in the eyes of the state. All the citizens of the country have the right to propagate their religion and to obey their religion in their own way. State does not discriminate with any one on the basis of religion.

Question 2.
Give an example of secularism.
Answer:
Different Presidents of India belong to different religions. In the same way people of different religions are there on higher posts in the country such as Prime Minister etc.

Question 3.
What is meant by including of rights in the Constiutiton?
Answer:
Some fundamental aims and ideals of the Constitution are given in the Preamble of the Indian Constitution. They are known as ideals of the Constitution. These ideals determine the form of the country.

Question 4.
How have the Ideals included in the preamble been achieved?
Answer:
Ideals of the Constitution are implemented by giving them a legal form. For example, untouchability has been declared illegal to achieve ideal of equality.

PSEB 8th Class Social Science Solutions Chapter 25 Importance and Principles of Secularism

Question 5.
What is Preamble?
Answer:
Preamble of the Constitution is given in the beginning of the Constitution. Preamble is that document in which main objective and basic goals of the Constitution are given. It is the key of views of Law makers.

V. Answer the following questions in 50-60 words :

Question 1.
What do you mean by justice? How has this ideal been implemented?
Answer:
The meaning of justice is that all the citizens of India should be given social, economic and political justice. That’s why it is necessary that every one should be given equal opportunities. So to achieve this aim, according to the Third Schedule of Constitution, discrimination on the basis of religion, race, colour, etc. is prohibited. All the citizens are also given equality of opportunity through fundamental rights. This equality is the guarantee of economic, social and political justice. Person will be punished who will try to break the related laws.

Question 2.
What is the Importance of Preamble of the Constitution?
Answer:
The Preamble is given in the beginning of the Constitution. Actually it contains all the ideals incorporated in the Constitution. Preamble is essence of the Constitution and if any one wants to know anything about the Constitution, then he needs to look into the preamble first. Moreover, few ideals are given in the Constitution which reflect the working and functioning of the government.

Question 3.
What is meant by National Unity and Integration?
Answer:
Meaning of National Unity and Integrity is that whole of India is a nation. People of all the classes, castes and religions of country form one nation. None of the unit of country is separate from it. Our Constitution makers were in favour of national unity. This goal is included in Preamble of the Constitution through 42nd constitutional amendment. Many laws have been made to achieve this goal. If any one tries to break these laws then he is given severe punishment. But some anti-social elements are trying to disintegrate the country. Some foreign powers are trying to do so. We should strictly deal with these elements and powers. We are hopeful that we could be able to achieve our objective. ”

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Question 4.
What is meant by Social, Economic and Political Justice?
Answer:
The Social Justice says that there will be no discrimination with any one on the basis of caste, colour, race, gender etc. Economic justice provides equal opportunities to everyone to earn livelihood and equal pay for equal work, political justice provides many political rights to all the citizens like right to vote, right to contest elections, right to hold public offices, right to form political parties, right to criticise government etc. In this way, every type of justice is provided to all the citizens of country.

PSEB 8th Class Social Science Guide Importance and Principles of Secularism Important Questions and Answers

Multiple Choice Questions :

Question 1.
Which article of the Indian Constitution does abolish untouchability?
(a) Article 17
(b) Article 15
(c) Article 18
(d) Article 16.
Answer:
(a) Article 17.

Question 2.
Which amendment of the Constitution added the word ‘Secular’ in the Preamble?
(a) 44th Amendment
(b) 52nd Amendment
(c) 42nd Amendment
(d) 74th Amendment.
Answer:
(c) 42nd Amendment.

Question 3.
Which of the following rights aims at making India a Secular State?
(a) Right to Freedom of Religion
(b) Right to Equality
(c) Right to Education
(d) Right to Freedom.
Answer:
(a) Right to Freedom of Religion.

Question 4.
Under which articles right to equality is given?
(a) 14-18
(b) 19-22
(c) 23-24
(d) 25-28
Answer:
(a) 14-18.

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Question 5.
Under which articles Directive Principles of state policy is given?
(a) 12-35
(b) 36-51
(c) 1-13
(d) 52-151
Answer:
(b) 36-51.

Fill in the Blanks :

Question 1.
Preamble is also known as __________ of the Constitution.
Answer:
essence

Question 2.
Fundamental Rights are given from to articles of the Indian Constitution.
Answer:
14, 32

Question 3.
__________ and words were added in the Preamble through 42nd Constitutional Amendment.
Answer:
Socialist, secular

Question 4.
It is our __________ to consider all the religions equal.
Answer:
duty.

Tick the Right (✓) or Wrong (✗) Answer :

Question 1.
The Preamble starts with ‘We the People of India’.
Answer:
(✓)

Question 2.
Word equality is not added in the preamble.
Answer:
(✗)

Question 3.
Anyone can be discriminated on the basis of Caste, Colour, Sex, Race, Gender etc.
Answer:
(✗)

Question 4.
Right to vote give us political justice.
Answer:
(✓)

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Question 5.
Preamble is written at the end of the Constitution.
Answer:
(✗)

Match the Following :

Question 1.

A B
1. Beginning of the Constitution (i) Form of equality
2. An ideal of the Constitution (ii) Preamble
3. End of Untouchability (iii) Equal justice

Answer:

A B
1. Beginning of the Constitution (ii) Preamble
2. An ideal of the Constitution (iii) Equal justice
3. End of Untouchability (iii) Equal justice

Very Short Answer Type Questions

Question 1.
On which ideology the constitutions of China, United States of America and India are based?
Answer:
The Constitution of China is based on the Communist ideology and the Constitution of United States of America is based upon the Capitalist ideology. But the Indian Constitution is not based on any specific ideology.

Question 2.
What were the evil consequences of religious fundamentalism in India during the British rule? Give two consequences.
Answer:

  1. Communal riots, on the basis of religion, broke out in the country which led to loss of lakhs of lives.
  2. Division of India took place in 1947 A.D.

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Question 3.
What is the first goal (objective) of the Indian Constitution? Have we achieved this goal?
Answer:
First goal of the Indian Constitution was to achieve internal and external freedom. We have achieved this goal because now we are not the slave of any foreign power. Today whole of the power lies in the hands of the people. We are also free in the foreign matters as well.

Question 4.
Explain the goal of independence of the Indian Constitution.
Answer:
Freedom of expression, belief, etc. is given in the Preamble of the Constitution. Freedom has been given security in the form of fundamental rights. Citizens can take the help of Judiciary to get these rights.

Question 5.
Why we are not been able to achieve the goals of Constitution? Give two reasons.
Answer:

  1. Even today, the people struggle with each other on the basis of caste, religion, race and region.
  2. Some states are trying to be separated from the country.

Question 6.
Write down in brief the importance of Secularism.
Answer:
Secularism is an important ideal of state. People of all religions, in this type of country, can live with peace and harmony with each other. It can maintain unity and integrity of the country. Secularism become more important in the multi-religious country like India.

Short Answer Type Questions

Question 1.
Write a note on the goal of ‘Fraternity’ of the Indian Constitution.
Answer:
The main aim of the goal of Fraternity given in the Indian Constitution is to develop the sense of brotherhood among its citizens. People of different castes, colours and religions live over here in India. It is necessary to develop sense of brotherhood or fraternity among the people to maintain unity and integrity of the country. Communal harmony is necessary to maintain social harmony. That’s why discriminations on the basis of religion, colour, caste, race, sex has been eliminated through different schedules of the Constitution.

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Question 2.
Why have these principles been included in the Constitution?
Answer:
The Constitution determines the relation between the form of administration of the country, citizens and state. Some ideals are determined to make state a welfare state and to establish good relations with other countries. That’s why it is necessary that social and religious fraternity of the country could be maintained, all the classes could be given justice and unity and integrity of the country should remain intact. That’s why some goals are fixed to achieve this objective. These are known as the goals of Constitution because just after achieving these goals, India can be made an ideal state.

Question 3.
Why secularism has been included in our Constitution?
Answer:
The main reason for including the goal of secularism in the Indian Constitution is the Indian occupation by the British. India remained the slave of the Britishers for around 200 years. The British tried to divide the country on a religious basis so that economic prosperity should not come in the country. Sometimes our country became the victim of Naxalite ideology. In this way atmosphere of religious fundamentalism occurred in the country and it led to the division of the country. Even religious riots occurred in the country. So it was necessary to make the state secular. That’s why the goal of secularism is included in the Indian Constitution.

Question 4.
Give in detail the meaning of the word Secularism.
Answer:
The Indian Constitution is based upon the idea of secularism. A secular state is a that state which is completely impartial in religious matters. This type of state does not have its own religion and all religions are equal for it. All the citizens have the right to religious freedom and they are free to adopt any religion or to propagate their religion. No citizen is discriminated against on the basis of religion.

Question 5.
What do you mean by equality? Which equalities are included in the Constitution?
Answer:
The meaning of Equality is that all the citizens of the country are equal irrespective of their religion, colour, or caste. The following equalities are given in the Constitution:

  • All the citizens are equal before the law.
  • Untouchability has been declared illegal so that social equality could be determined.
  • All the titles, except military and educational titles, have been abolished.
  • No religion, caste, race, or class is given special rights.
  • Judiciary has been given special rights to ensure equality in the country.

PSEB 10th Class SST Solutions Civics Chapter 2 The Central Government

Punjab State Board PSEB 10th Class Social Science Book Solutions Civics Chapter 2 The Central Government Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Social Science Civics Chapter 2 The Central Government

SST Guide for Class 10 PSEB The Central Government Textbook Questions and Answers

I. Answer the following questions in brief:

Question 1.
Mention the tenure of the Lok Sabha.
Answer:
The term of the Lok Sabha is five years but the President, on the advice of the Prime Minister, can dissolve it before the expiry of its term. During the emergency, this period can be extended for one year by the Parliament.

Question 2.
What is the maximum number of the members of the Lok Sabha?
Answer:
The maximum strength of the Lok Sabha has been fixed at 550 members. Out of this number, 530 members represent the people of the States of India and 20 members are elected by the voters of the Union Territories. The President can nominate two Anglo- Indians, if he feels that this community has not got adequate representation.

Question 3.
How is the Speaker of the Lok Sabha appointed?
Answer:
The Speaker or Chairman of the Lok Sabha is elected by the members of the Lok Sabha from among themselves.

Question 4.
What do you mean by a Vote of No-confidence?
Answer:
The Prime Minister and the Council of Ministers can continue to be in office as long as they enjoy the confidence of the Lok Sabha. They can be thrown out of office by a vote of no-confidence passed by a majority of members present and voting in the house.

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Question 5.
What is the minimum age required to become a member of the Lok Sabha or the Rajya Sabha?
Answer:
The minimum age limit for a person to become a member of the Lok Sabha is 25 , years and that of the Rajya Sabha is thirty years.

Question 6.
When and how many Anglo-Indians can be nominated by the President in the Lok Sabha?
Answer:
If no Anglo-Indian is elected to the Lok Sabha, the President can nominate two members of this community to it.

Question 7.
Enumerate the stages through which an ordinary bill passes to become a law.
Answer:
A bill passes through three stages or readings through both the houses of the parliament separately. If the bill is passed, it is sent to the President for his assent.

Question 8.
How and who elects the members of Rajya Sabha?
Answer:
The members of the Rajya Sabha are indirectly elected by the members of the State Legislative Assemblies. The maximum number of the members of Rajya Sabha can be 250.

Question 9.
Who are included in the electoral college for the election of the President? ,
Answer:
Elected representative of the people are included in the electoral college for the President.

Question 10.
How is the Vice-President of India elected?
Answer:
The Vice-President of India is elected by the members of both the houses of Parliament in a joint sitting by an absolute majority.

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Question 11.
How is the Prime Minister appointed?
Answer:
The Prime Minister is appointed by the President. He appoints that person as the Prime Minister who enjoys a majority in the Lok Sabha.

Question 12.
Explain the organisation of the Union Council of Ministers,
Answer:
The Union Council of Ministers is appointed by the President on the recommendation of the Prime Minister.

Question 13.
Explain each of the following :
(a) Qualification of a Judge of the Supreme Court.
Answer:

  1. He must be a citizen of India.
  2. He must have worked as a judge of High Court for a period of not less than five years or must have worked as an advocate in some high courts for a period of not less than ten years. Or he must be an eminent jurist in the view of the President.

(b) Advisory Jurisdiction of the Supreme Court.
Answer:
Advisory Jurisdiction of the Supreme Court. It is the obligation of the Supreme Court to advise on constitutional as well as other legal matters to any legislature, the Council of Ministers or the President. But it is not binding upon the President or the government to accept the advice given by the Supreme Court.

(c) Supreme Court Act as a Court of Record.
Answer:
Supreme Court Act as a Court of Record. The Supreme Court is a Court of Record. It means that its decisions and Judicial proceedings are recorded and printed. The Courts subordinate to it and the lawyers use them in their pleadings. The decisions given by the Supreme Court are recorded and then used by the Lower Courts to give further Judgements.

II. Answer the following questions in short :

Question 1.
Explain the powers of the Parliament.
Answer:
Following are the main powers of the Parliament :
1. Legislative Powers. The Parliament legislates on the subjects included in the Union List and the Concurrent List. It can also pass laws on the Residuary Subjects. During the emergency, it can also legislate on any and every subject mentioned in the State List.

2. Executive Powers. It can dissolve the cabinet by passing a vote of no-confidence against it. It also exercises control over the executive by asking questions and supplementary ‘questions. The members can table certain other resolutions to suspend the normal proceedings of the Parliament.

3. Financial Powers. The Parliament is the custodian of the Union purse. It passes the budget and authorises all expenditure. No tax can be imposed without its sanction.

4. Constitutional Amendment. All proposals for the constitutional amendments can be initiated only by the Parliament.

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Question 2.
Examine the role or functions of the Speaker of the Lok Sabha.
Answer:
The Speaker is elected by the House from amongst its members. Following are the main functions of the Speaker :

  • He presides over the meetings of the Lok Sabha and conducts its business. He generally belongs to the majority party, but he acts in an impartial manner.
  • He maintains discipline in the House. He can suspend a member from the House for his misconduct and indiscipline in the house.
  • He decides whether a particular bill is a Money Bill or an Ordinary Bill.
  • If a joint session of both the Houses of the Parliament is summoned by the President to discuss a bill, it is presided over by the Speaker of the Lok Sabha.

Question 3.
How a bill becomes an Act in the Indian Parliament?
Answer:
An ordinary bill may be introduced in the either House by any minister or a member of the Parliament. A bill, before becoming an Act, has to pass through the stages given below :

  • First Reading. Only the heading and main clauses of the bill are read out at this stage. No discussion takes place.
  • Second Reading or Stage. The bill is debated-clause by clause and amendments are moved. If the majority of the members vote in its favor, the bill is referred to the select committee.
  • Third Reading or Stage. The debate at this stage is confined only to the matter of the bill. The bill is rejected or accepted by the House.
  • Bill in the Second House. The Bill in the Second House also passes through the same stages as in the First House. If the Bill is also passed by the Second House, it is referred to the President for his assent.
  • Assent of the President. After getting the assent of the President, it becomes a law.

Question 4.
Explain the collective and individual responsibility of the Council of Ministers?
Answer:
Principle of Collective Responsibility. The Council of Ministers is collectively responsible to the Lok Sabha. The ministers come into the office and go out of it as a team. The Prime Minister is the captain of this team. He presides over the meetings of the Cabinet or the whole Council of Ministers. They take decisions collectively. After decisions are arrived at, all the members of the Cabinet are equally responsible for it, including those who might have argued against it. If a vote of no-confidence is passed against one Minister in the Lok Sabha, the whole Council of Ministers must resign. The ministers sink and sail together. When any minister is criticised in the Parliament, the other members of the Council of Ministers come to his rescue and support the action and policy of the minister. The ministers are thus responsible to the Parliament both collectively and individually.

Question 5.
How is the Union Cabinet appointed in India?
Answer:
The Cabinet which is a part of the Council of Ministers is appointed by the President of India. In fact, the President has not free hand in the appointment of the Prime Minister or Ministers. He appoints the leader of the majority party in the Lok Sabha as a Prime Minister. The President has no choice in this matter.

The Prime Minister prepares the list of other ministers to be included in the Council of Ministers. He presents this list to the President. The President cannot refuse to approve this list. Sometimes a person who is not a member of the Parliament is appointed a minister. Such a minister must become the member of Parliament within six months of his appointment as a minister.

Question 6.
Examine the position of the Prime Minister.
Answer:
The Prime Minister enjoys vast powers in the constitutional setup of the country. He chooses the Ministers of his team and allots the portfolios to them. In the Cabinet, he is not only the first among the equals, but a moon among the stars. His resignation brings about the fall of the entire Cabinet. He is thus the key stone of the Cabinet arch. Although all the executive authority of the Union is vested in the President, it is invariably exercised by his Council of Ministers and the President is supposed to be a mere constitutional head. To sum up, the Prime Minister is the linchpin of the government.

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Question 7.
Examine the powers of the Prime Minister.
Answer:
‘There is no doubt that the Prime Minister is the pivot of the cabinet. He appoints the ministers. The President appoints the ministers only on the recommendation of the Prime Minister. He allots the portfolios to the ministers. He can reorganise the cabinet to make the administration efficient. He can change the portfolios of the ministers. If the Prime minister resigns, the whole council of ministers is dissolved. He can ask the erring ministers or a minister having a different opinion, to quit. If a minister refuses to resign, he can tender the resignation of his Council of Ministers and reconstitute the ministry. He presides over the meetings of the Cabinet and exercises control over its agenda.

Question 8.
Explain the emergency powers of the President.
Answer:
Following are the emergency powers of the President :
1. National Emergency. If the President is satisfied that a grave emergency exists whereby the security of India is threatened by war, external aggression or armed rebellion, he may declare a state of emergency for the whole of India or a part of it. (Article 352)

2. Constitutional Emergency. If the President is satisfied either on the recommendation of the Governor or otherwise that the government cannot be carried on in the state in accordance with the constitution, he may declare emergency in that state. (Art.-356) .

3. Financial Emergency. The President may declare financial emergency if he is satisfied that there is a threat to financial stability or credit of the country as a whole or a part thereof. (Art. 360)

Question 9.
Describe the procedure of Impeachment of the President.
Answer:

  1. The process of impeachment of the President may be started in either house of the Parliament.
  2. A prior notice to this effect has to be given to the President duly signed by l/4th of the total number of that house;
  3. A prior notice of 14 days must be served before initiating the impeachment;
  4. Such resolution of charges must be supported by at least 2/3rd of the total membership of that house;
  5. The charges initiated in one house, if are proved after investigation in the other house by 2/3 majority of the total membership of the house, the President shall have to leave the office from the date such a resolution is approved. The President can defend himself personally or through a counsel before both the houses.

Question 10.
Do you think that the Indian President is nominal head of the union executive? If yes, then who is the real executive?
Answer:
From the study of powers of the President in various fields, it seems that he is a very powerful executive head. Besides, he has important legislative, financial and judicial powers. He can declare emergency. He can dissolve the Lok Sabha, can issue ordinances. No bill can become law without his signature.

In actual practice, however, he is the nominal head of the state. He does not exercise these powers himself but on the advice of the Council of Ministers. He declares emergency only on the advice of the Council of Ministers and uses these powers with its aid. He can never become a dictator. His powers closely resemble the powers of the Queen of Britain. He can advise, encourage and warn his ministers. But much depends upon the personality and character of the President. And in this sense, he is no figure head. He is, in fact, a guide who can shape and mould the policy of India both at home and abroad.

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Question 11.
Describe the role of the Vice-President of India.
Answer:
Following are the two important functions of the Vice-President of India :

  1. He is the ex-officio Chairman of the Rajya Sabha. When he acts as the President of India or discharges his functions, he shall not preside over the meetings of the Rajya Sabha.
  2. He can officiate as the President for a maximum period of six months in case of death, resignation or removal of the latter till the new President is elected. He discharges the functions of the President when the latter is unable to do so owing to any reason.

Question 12.
Explain briefly the powers of the President of India.
Answer:
Following are the powers of the Indian President :
1. Executive Powers

  • All laws are enforced in the name of the President,
  • He appoints the Prime Minister and other ministers on the basis of the recommendations of the Prime Minister,
  • He can make a declaration of war and peace.
  • It is he who appoints ambassadors to foreign states and receives those coming from other countries.

2. Legislative Powers.

  • No bill becomes an act without his approval,
  • He can dissolve the Lok Sabha before its fixed term on the advice of the Prime Minister.
  • He nominates 12 members to the Rajya Sabha and two to the Lok Sabha.

3. Financial Powers. No money bill can be introduced in the Lok Sabha without the prior approval of the President.

4. Judicial Powers

  • The President can remove the judges of the High Courts and Supreme Court on the basis of the resolution passed by the Parliament with 2/3rd majority of the members present and voting,
  • He can pardon or reprieve the punishment confirmed by the Supreme Court.

5. Emergency Powers: The President can proclaim emergency under certain circumstances,

  • War, external aggression and armed rebellion.
  • Breakdown of constitutional machinery in a State,
  • Financial crisis.

Question 13.
Explain the following :
(a) How an ordinary bill differs from a money bill?
Answer:
Money bill. A money bill relates to the imposing, reducing or repealing of taxes, borrowing of money or authorizing expenditure by the government. It is called a money bill. A money bill can be introduced only in the Lok Sabha by a minister.

Ordinary bill. All the bills other than money bills are called ordinary bills. They are of two types, Public bill and Private bill. Public bill is of universal nature and affects all the residents of the state. Private bill relates to a particular section of the society or some private companies.

(b) Unified concept of Judiciary in India.
Answer:
India has single unified judicial system. The Supreme Court of India is the highest court of Justice in India, immediately below which are the state High Courts, below the High Courts, there are District Courts. All these courts apply the same law code in the decisions of all civil, criminal and constitutional cases. The appeals can be taken to the High Court, against the decision of the District Court. The Supreme Court hears appeals against the decisions of High Court.

(c) The power of Judicial Review in India.
Answer:
The power of Judicial Review in India (2014 III). The Supreme Court can exercise the power of judicial review. It can declare any law passed by the Union Parliament or by a State Legislature as unconstitutional if it violates the Constitution.

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Answer the following questions in one line or one word :

Question 1.
What is meant by the Indian Parliament?
Answer:
In India, the Union Legislature is called the Parliament or Sansad.

Question 2.
Mention any one essential qualification for the members of Lok Sahha.
Answer:
He must, be a citizen of India.

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Question 3.
Write any one important function of the Speaker of Lok Sabha.
Answer:
He presides over the meetings of the Lok Sabha.

Question 4.
What is the difference between a money bill and an ordinary bill?
Answer:
A money bill can originate in the Lok Sabha and not in the Rajya Sabha.

Question 5.
Write down one power of the President relating to a bill.
Answer:
No bill can become a law without his assent.

Question 6.
Mention any one method by which the Parliament keeps the executive under control.
Answer:
It can dissolve the cabinet by passing a vote of no-confidence against it.

Question 7.
What is meant by the Parliamentary system?
Answer:
It means a system of government in which all the powers of the state are exercised by the Prime Minister and his ministers.

Question 8.
When can the President declare Financial Emergency?
Answer:
If he is satisfied that there is a threat to financial stability or credit of the country as a whole or a part thereof.

Question 9.
What is the composition of Electoral College which elects the Vice¬President of India?
Answer:
The electoral college which elects the Vice-President includes only the elected members of the Parliament. .

Question 10.
Explain any one function of the Vice-President.
Answer:
He is the ex-officio Chairman of the Rajya Sabha.

Question 11.
How many types of ministers are included in the Council of Ministers?
Answer:
Cabinet Ministers, Ministers of State, Deputy Ministers.

Question 12.
What is meant by the Reading of the Bill?
Answer:
The procedure of discusssion of a bill is called the Reading of the Bill.

Question 13.
What is an adjournment motion?
Answer:
To discuss a grave matter of public importance out of turn in the Parliament is called adjournment motion.

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Question 14.
Explain the meaning of Question Hour.
Answer:
The first hour of every sitting in both the houses of the parliament is devoted to asking arid answering questions.

Question 15.
In connection with the Parliament what is a supplementry question?
Answer:
The right of the members to ask some more questions relating to the same matter. Question 16. Mention any two qualifications for the membership of the Rajya Sabha. Answer:He must be a citizen of India and must have completed 30 years of age.

Question 17.
Write any one important function of the Speaker of Lok Sahha.
Answer:
To preside over the meetings of the Lok Sabha.

Question 18.
What is the main function of the Parliament?
Answer:
The main function of the Parliament is to make laws.

Question 19.
What is a Bill?
Answer:
The proposed law is called a Bill.

Question 20.
Who decides whether a bill is an ordinary or money bill?
Answer:
The Speaker of the Lok Sabha decides whether a Bill is ordinary or money bill.

Question 21.
For how many days can the Rajya Sabha delay a money hill duly passed by the Lok Sabha?
Answer:
A money bill duly passed by the Lok Sabha can be delayed by fourteen days by the Rajya Sabha.

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Question 22.
What should be the minimum age required to become the President of India?
Answer:
35 years.

Question 23.
What is the tenure of the President of India?
Answer:
The tenure of the President is five years.

Question 24.
Write one executive power of the President.
Answer:
The President makes the appointment of the Prime Minister and other Ministers on his advice.

Question 25.
Who is the Supreme Commander of all the three armed forces?
Answer:
The President.

Question 26.
Who can issue an ordinance?
Answer:
The President can issue an ordinance.

Question 27.
Write one legislative power of the President.
Answer:
All bills passed by the Parliament must receive his assent before becoming laws.

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Question 28.
Write any one financial power of the President.
Answer:
The President causes to be laid, before the Parliament the annual: budget.

Question 29.
Write one judicial power qf the president.
Answer:
The President appoints judges of the. Supreme Court and the High Courts.

Question 30.
Who is the real head of the Union Government’?
Answer:
The Prime Minister.

Question 31.
Write one power of the Prime Minister.
Answer:
He chooses the Ministers of his team and allocates portfolios to them.

Question 32.
Which is the highest court of justice in India?
Answer:
The Supreme Court.

Question 33.
How many judges are there in the Supreme Court?
Answer:
At present Supreme Court consists of one Chief Justice and 33 other Judges.

Question 34.
Mention any one qualification with regard to experience for appointment as a judge in the Supreme Court.
Answer:
He has been for at least 10 years an advocate of a High Court or two or more such courts in succession.

Question 35.
How many jurisdictions are there of the Supreme Court? Which are these?
Answer:

  1. Original
  2. Appellate and
  3. Advisory jurisdiction.

Question 36.
Who is the guardian of our fundamental rights?
Answer:
The Supreme Court is the guardian of our fundamental rights.

Question 37.
What does the term ‘appeal’ mean?
Answer:
When petition against the decision of a lower court is made to a high court, it is called appeal.

Question 38.
Describe one function and jurisdiction of the Supreme Court.
Answer:
It decides the cases regarding the fundamental rights.

Question 39.
How can the President remove the judges of the Supreme Court or High Courts?
Answer:
On the basis of a resolution passed by the parliament by a special majority.

Question 40.
How is the Lok Sabha dissolved?
Answer:
Lok Sabha can be dissolved by the President on the recommendation of the Prime Minister.

Question 41.
Who presides over the meetings of Rajya Sabha?
Answer:
Vice-President of India presides over the meetings of Rajya Sabha.

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Question 42.
How are the judges of Supreme Court-appointed?
Or
Who elects (appoints) the Judges of Supreme Court?
Answer:
They are appointed by the President of India.

Question 43.
What is the tenure of the Judges of Supreme Court?
Answer:
The Judges of the Supreme Court retire at the age of 65 years.

Question 44.
Who is Public Prosecutor?
Answer:
Public prosecutor is a person appointed by central / state govt, to represent cases on behalf of the state in criminal trials.

Question 45.
How many members can be nominated in the Lok Sabha and Ra\ya Sabha by the President?
Answer:
The President can nominate twelve members to the Rajya Sabha. The President can nominate two members of the Anglo-Indian Community in the Lok Sabha if no member of the community is elected to the Lok Sabha.

Question 46.
Mention the term of the members of Rajya Sabha.
Answer:
The tenure of the members of Rajya Sabha is six years. One third members of the Rajya Sabha retire after two years.

Fill in the blanks :

Question 1.
The tenure of the Lok Sabha is ___________ years.
Answer:
five

Question 2.
Maximum number of the members of Lok Sabha can be ___________
Answer:
550

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Question 3.
The Prime Minister is appointed by the ___________
Answer:
President

Question 4.
The term of the members of Rajya Sabha is ___________ years.
Answer:
six

Question 5.
Upper House of the Parliament is known as ___________
Answer:
Rajya Sabha

Question 6.
Lower House of the Parliament is known as ___________
Answer:
Lok Sabha

Question 7.
Vice-President is the ex-officio Chairman of the ___________
Answer:
Rajya Sabha

Question 8.
The Speaker of the Lok-Sabha is elected by the members of the ___________
Answer:
Lok Sabha

Question 9.
No money bill can be introduced in the Lok Sabha without the prior approval of the ___________
Answer:
Speaker

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Question 10.
The highest court of justice is ___________
Answer:
Supreme Court

Question 11.
The tenure of the President is ___________years.
Answer:
five

Question 12.
Lok Sabha can be dissolved by the ___________
Answer:
President.

Choose the correct answer:

Question 1.
The Indian Parliament is:
(a) Unicameral
(b) Three Houses
(c) Bicameral
(d) None of the above.
Answer:
(c) Bicameral

Question 2.
The tenure of the members of the Rajya Sabha is:
(a) 5 years
(b) 4 years
(c) 6 years
(d) 3 years.
Answer:
(c) 6 years

Question 3.
The term of office of the Indian President is:
(a) 4 years
(b) 5 years
(c) 6 years
(d) 3 years.
Answer:
(b) 5 years

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Question 4.
The Judges Qf the Supreme Court retire at the age of:
(a) 62
(b) 58
(c) 60
(d) 65.
Answer:
(d) 65.

Question 5.
The President of India is elected by:
(a) The Electoral College
(b) The Legislative Assemblies
(c) The Parliament
(d) The People.
Answer:
(a) The Electoral College

Question 6.
Who is the guardian of ouí’ fundamental rights?:
(a) President
(b) Supreme Court
(c) Parliament
(cl) Prime Minister.
Answer:
(b) Supreme Court

Question 7.
Who is the supreme commander of the defence forces?
(a) Defence Minister
(b) Prime Minister
(c) Home Minister
(d) President,
Answer:
(d) President,

Question 8.
The real head of the Union Government is:
(a) The President
(b) Home Minister
(c) Prime Minister
(d) Cabinet.
Answer:
(c) Prime Minister

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Question 9.
The President is:
(a) Head of Govt.
(b) Head of the State
(c) Head of the Union Territory
(d) None of these.
Answer:
(b) Head of the State

Question 10.
Supreme Court consists of one Chief Justice and :
(a) 13 other Judges
(b) 25 other Judges
(c) 20 other Judges
(d) 33 other Judges.
Answer:
(d) 33 other Judges.

Question 11.
While appointing the Judges of the Supreme Court it is obligatory for the President to consult the :
(a) Chief Justice of the High Court
(b) Law Minister
(c) Prime Minister
(d) Chief Justice of India.
Answer:
(d) Chief Justice of India.

Question 12.
The tenure of the Prime Minister is :
(a) 5 years
(b) 4 years
(c) 6 years
(d) Not fixed.
Answer:
(d) Not fixed.

Short Answer Type Questions

Question 1.
Give arguments to prove that there is the Supremacy of the Parliament in the country.
Or
What do you mean by the ‘Supremacy of the Parliament’?
Answer:
By the ‘Supremacy of the Parliament’, we mean that the Parliament is the supreme law-making body. It can enact, amend and repeal any lav/ as and when it likes. It is both an ordinary law-making body as well as a constitutional law-making body.

The Indian Parliament is the creation of the Constitution of India which has specified its powers, etc. in relevant articles. It is the legislative organ of the Union and is comprised of the representatives of the people. It takes part in the election of the President and the Vice-President. It exercises control over the executive who is collectively responsible to it. It can dissolve the Cabinet by withdrawing confidence in it. It keeps complete control over the national finance. The foregoing points prove its supremacy but it is not a sovereign body uncontrolled or having unlimited powers. The Supreme Court can strike down the Acts passed by the Parliament, if they violate the Constitution.

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Question 2.
Make a mention of the mutual relationship between the President and the Prime Minister.
Answer:
The essence of the Parliamentary form of Government is that the chief executive head of the State is a nominal head. All those powers vested in him are exercised by the Council of Ministers headed by the Prime Minister. The Prime Minister is the link between the President and the Council of Ministers. The Prime Minister is appointed by the President. The President invariably appoints that person as the Prime Minister who is the leader of the majority party in the Lok Sabha. The Prime Minister is the chief advisor of the President and as the present constitutional position stands, it is binding on the President to act on the advice of the Prime Minister.

Question 3.
Write any four powers of the Prime Minister.
Or
Explain three powers of the Prime Minister.
Answer:
Main functions of the Prime Minister are given ahead :

  1. He chooses the ministers of his team and allocates portfolios to them.
  2. He can change the portfolios of the ministers.
  3. He advises the President on different matters of the government.
  4. He formulates all internal and external policies of the government.
  5. Inside the Parliament, he is the chief spokesman of the government.
  6. He supervises the work of administration of different departments.

Question 4.
When can emergency be declared in a state?
Answer:
A state of emergency may be declared in a state by the President. Generally, it is declared on the advice of the Governor of the state.

If the President is satisfied either on the recommendation of the Governor or otherwise that the government cannot be carried on in a State in accordance with the Constitution, he may declare emergency in the State. Initially, the President’s Rule is imposed for a period of six months but it can be extended upto a maximum period of three years. During this emergency, the President can suspend or dissolve the State Legislative Assembly. The President can himself assume all or any of the functions of the State. He may vest all or any of those functions in the Governor or any other executive authority.

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Question 5.
Explain the relations between the Parliament and Judiciary in India.
Answer:
In India, there is a close relation between the Parliament and Judiciary. The Parliament determines the number of judges of the Supreme Court and can also pass a resolution for their removal. Moreover, it can increase or decrease the powers of the Supreme Court. The Supreme Court of India is also competent to declare null and void the laws of the Parliament if they violate the Constitution by exercising its power of ‘Judicial Review’.

Question 6.
Mention the procedure of election of the members of the Lok Sabha.
Answer:
Lok Sabha is the lower chamber of the Parliament. It has 544 members. These members are directly elected by the people. Every Indian citizen (who is 18 years of age) whose name is on the voters’ list can participate in the election to the Lok Sabha. Some seats are reserved for the scheduled castes and scheduled tribes. The President can nominate two Anglo-Indians if he feels that the community has not received proper representation.

The members of Lok Sabha are elected on the basis of population. Every member represents 10 lakh to 15 lakh of population. The whole country is divided into constituencies. Every state gets representation in proportion to its population.

Question 7.
Who can be elected the Speaker of the Lok Sabha and how?
Answer:
The office of the Presiding Officer of the Lok Sabha (called the Speaker) is of great dignity and authority. The Speaker is elected by the Lok Sabha from among its members. After the general elections, when the House assembles, it is presided over by the seniormost member of the House to elect its Presiding Officer. Any member can seek election to this office and one getting majority of votes is elected as the Speaker of the House.

Question 8.
What is meant by Parliament? Tell the names of the two Houses of the Parliament and also their term.
Answer:
The Union Legislature of India is called the Parliament. Constitutionally Parliament consists of the President and two houses-the Lok Sabha and the Rajya Sabha. The Parliament can make laws on all the subjects of national importance. It is the supreme law making body.

1. Term of the Lok Sabha. The Lok Sabha is elected for 5 years. But it can be dissolved earlier by the President on the advice of the Prime Minister. During the emergency due to external aggression or armed revolt its life can be extended.

2. Term of the Rajya Sabha. The Rajya Sabha is a permanent house. But every two years one-third (l/3rd) of its members retire and new ones are elected in their place. Thus every member is elected for a term of six years.

Question 9.
Mention six essential qualifications for the membership of the Parliament.
Answer:
Following are the six essential qualifications for the membership of the Parliament :

  1. He must be a citizen of India.
  2. He must have completed 30 years of age for the Rajya Sabha and 25 years for the Lok Sabha.
  3. He must not hold any office of profit under the state or union government.
  4. He must not be of unsound mind.
  5. He must not be bankrupt.
  6. He must not be an alien or non-citizen.

Question 10.
Mention the basis on which the President can nominate 12 members for the Rajya Sabha and 2 members for Lok Sabha.
Answer:
The President can nominate twelve members to the Rajya Sabha from amongst the persons of eminence having practical experience in literature, science, art and social services. He is also empowered to nominate to the Lok Sabha not more than two members from the Anglo-Indian Community if he feels that it has not got adequate representation.

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Question 11.
Mention three types of legislative and non-legislative powers of the Parliament.
Answer:
Legislative Powers :

  • It can legislate upon all ordinary bills.
  • It also passes the money bills.
  • It approves all the ordinances issued by the President. It can also reject them.

Non-legislative Powers :

  • It accords approval to all emergency proclamations promulgated by the President.
  • Any member of Parliament may ask the government any question to elicit information regarding its policies.
  • It also considers the no-confidence motion initiated against the Cabinet.

Question 12.
Who makes the appointment of the Chief Justice of the Supreme Court and other judges and with whose consultation?
Answer:

  1. The appointment of the Chief Justice and other judges of the Supreme Court is made by the President.
  2. The appointment of the Chief Justice is made in consultation with the judges of the Supreme Court and High Courts.
  3. The appointment of other judges of the Supreme Court is made in consultation with the Chief Justice of India and others whom the President may deem necessary.

Question 13.
Mention the qualifications, tenure, and salary of the Chief Justice and other judges of the Supreme Court.
Answer:
Qualifications for an appointment :

  • He must be a citizen of India.
  • He has been for at least five years a judge of a High Court or of two or more such Courts in succession.
  • He has been for at least 10 years an advocate of a High Court or of two or more such Courts in succession.
  • He is, in the opinion of the President, a distinguished jurist.

Tenure :

  • A Judge of a Supreme Court can serve up to the age of 65 years.
  • Salary. The salary of the Chief Justice is Rs. 2,80,000 per month and Rs. 2,50,000 of the other Judges of the Supreme Court.

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Question 14.
Mention those five references from the Constitution which make the Supreme Court independent and impartial.
Answer:

  1. The Directive Principles of State Policy provide that the judiciary be made independent of the control of the executive.
  2. The appointment of Judges is made on the basis of their legal acumen.
  3. The judges are paid decent salaries befitting their position which cannot be altered to their disadvantage.
  4. The procedure for their removal has been made very difficult.
  5. The decisions of the Supreme Court cannot be subjected to criticism by an individual, institution or even Parliament.

Question 15.
Describe the effects of the emergency proclamation on the state administration.
Answer:
According to Article 356 of the Constitution, the President can proclaim an emergency in a state if he is satisfied that the constitutional machinery in a state has broken down. The President declares constitutional emergency in a state only after receiving a report from the Governor. During the emergency, the whole administration of the state comes under the control of the central govt. Such an emergency is declared when the constitutional machinery in a state does not work properly. The Governor of the state is generally asked to run the state administration on behalf of the central government. The Governor can suspend or dissolve the state legislative assembly. He becomes the real ruler of the state.

Question 16.
What do you mean by a Vote of No-confidence?
Answer:
The Constitution grants the Lok Sabha the power of passing a Vote of No-confidence against the Council of Ministers. It means that the Council, of Ministers, is responsible to the Lok Sabha. The members of the Council of Ministers remain in office so long as they enjoy the confidence of the Lok Sabha. If the Lok Sabha passes by a majority of votes, the motion of No-confidence against the Council of Ministers will resign.

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 8 नशों के प्रति जागरूकता

Punjab State Board PSEB 8th Class Physical Education Book Solutions Chapter 8 नशों के प्रति जागरूकता Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 8 Physical Education Chapter 8 नशों के प्रति जागरूकता

PSEB 8th Class Physical Education Guide नशों के प्रति जागरूकता Textbook Questions and Answers

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए –

प्रश्न 1.
नशीले पदार्थों के सेवन से क्या होता है?
उत्तर-
आजकल निम्नलिखित नशीले पदार्थों के कुप्रभाव व्यक्ति के जीवन पर पड़ते हैं:

  • शरीर पर कुप्रभाव-नशे के पदार्थों के सेवन से मनुष्य की पाचन प्रणाली, मांसपेशी प्रणाली, रक्त प्रणाली, स्वास्थ्य प्रणाली में कई प्रकार के रोग लग जाते हैं। लगातार नशीले पदार्थों के सेवन से हाथ, पांव कांपने लग जाते हैं और रक्त प्रभाव बढ़ जाता है।
  • सामाजिक जीवन पर कुप्रभाव-नशीले पदार्थों के सेवन से व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर कुप्रभाव पड़ता है। समाज में उसकी कोई इज्जत नहीं रहती। उसके साथ कोई व्यक्ति मेल-मिलाप नहीं रखना चाहता है और उसके चरित्र पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • व्यवहार पर कुप्रभाव-नशों के सेवन से व्यक्ति का अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता। वह नशे में बिना किसी कारण के झगड़ा कर लेता है और उसके व्यवहार में चिड़चिड़ापन आ जाता है। अपने मित्रों और परिवार से अलग रहने लग जाता है।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलें और अनुशासन

प्रश्न 2.
नशे के बढ़ रहे रुझान के कौन-कौन से कारण हैं ?
उत्तर-
नशे के प्रति बढ़ रहे रुझान के भिन्न-भिन्न कारण हैं :

  • सामाजिक कारण-चल-चित्र में दिखाए जाने वाले नशों के दृश्य बच्चों को नशीले पदार्थों का सेवन करने के लिए प्रेरित करते हैं। बच्चे हीरो और हिरोइन की नकल उतारने में अपनी शान समझते हैं।
  • तकनीक का प्रभाव-आजकल इंटरनेट में बच्चे नशे करने के नए-नए ढंग सीखते हैं। इस तरह नई तकनीक के प्रभाव के कारण बच्चे नशे के जाल में फंस जाते हैं।
  • पारिवारिक कारण-परिवार में झगड़ा, अनबन और तलाक की स्थिति का माहौल हो तो बच्चे बिगड़ जाते हैं। माता-पिता का अधिक प्यार भी बच्चों को बिगाड़ देता है। इन परिस्थितियों में बच्चों पर मानसिक दबाव रहता है और वह नशे की तरफ आकर्षित हो जाते हैं।
  • मित्र मंडली का प्रभाव-बच्चा अपना अधिक-से-अधिक समय अपने मित्रों के साथ बिताता है, जिसका प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। यदि मित्र मंडली में कोई भी उसका साथी नशे का सेवन करता है तो उसे भी नशीले पदार्थों की आदत पड़ जाएगी।
  • अपने साथियों में दिखावा-बच्चा जब अपने मित्रों के साथ रहता है, तो दूसरे बच्चों के आर्थिक स्तर से तुलना करने की कोशिश करता है। इस प्रकार वह नशीले पदार्थों का सेवन करके अपने सिर को दूसरे बच्चों से ऊंचा दिखाना चाहता है।

प्रश्न 3.
नशों के कुप्रभाव लिखिए।
उत्तर-

  • शरीर पर कुप्रभाव-नशे मनुष्य के शरीर को खोखला कर देते हैं। नशीले पदार्थ व्यक्ति की सभी प्रणालियों पर बुरा प्रभाव डालते हैं और व्यक्ति नशों के कारण रोगी रहने लग जाता है। उसकी मांसपेशियां कमज़ोर होने लग जाती हैं। उसकी याददाश्त भी कमजोर हो जाती है। व्यक्ति को कैंसर जैसे रोग होने का डर लगा रहता है। नशे करने वाले व्यक्ति के हाथ-पांव कांपने लग जाते हैं और वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठता है।
  • सामाजिक जीवन पर कुप्रभाव-यहां नशीले पदार्थों का सेवन व्यक्ति के व्यवहार और शरीर पर कुप्रभाव डालता है वहां पर सामाजिक जीवन पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
  • व्यवहार पर कुप्रभाव-नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले व्यक्ति का अपने आप पर नियंत्रण नहीं रहता। बिना किसी कारण नशे की हालत में लोगों से लड़ाई-झगड़ा करने लग जाता है। इस प्रकार वह अपने दोस्तों और परिवार से अलग हो जाता है।

प्रश्न 4.
नशे की रोकथाम के लिए कौन-कौन से ढंग होते हैं ?
उत्तर-

  • खेलें तथा मनोरंजन क्रियाएं-खेल बच्चों के शरीर को स्वस्थ करते हैं – और उनके खाली समय का सदुपयोग होता है जिससे उनका ध्यान नशीले पदार्थों की तरफ नहीं जाता है।
  • सेमीनार लगाना-बच्चों को नशों के कुप्रभाव के बारे में जानकारी देने के लिए कॉलेज, स्कूलों में सेमीनार का आयोजन करना चाहिए। इस प्रकार सेमीनार में विशेषज्ञों को आमंत्रित करके बच्चों को नशे के कुप्रभाव के बारे में जानकारी देनी चाहिए। जानकारी मिलने पर बच्चे नशीले पदार्थों से दूर रहेंगे।
  • मनोवैज्ञानिक तैयारी-नशे करने वाला व्यक्ति यह मानता है कि वह नशा करता है। इसलिए नशे करने वाले व्यक्ति के साथ मित्रता और प्यार भरा व्यवहार करना चाहिए। प्यार से यदि नशा करने वाला व्यक्ति नशीले पदार्थों को छोड़ने के लिए तैयार हो जाए तो उसकी सहायता करनी चाहिए।
  • परिवार की भूमिका-नशीले पदार्थों का सेवन छुड़ाने के लिए परिवार को बहुत सहायता करनी चाहिए। क्योंकि यदि नशेड़ी से प्यार न किया जाए तो वह अपने आपको अकेला महसूस करता है। इसलिए नशेड़ी व्यक्ति को परिवार की तरफ से पूर्ण सहयोग मिलना चाहिए।
  • योग अभ्यास-योग भारत की प्राचीन संस्कृति है और विश्व भर में इसकी बहुत देन है। योग द्वारा मानसिक तथा शारीरिक तनाव दूर हो जाते हैं और व्यक्ति उसके लगातार अभ्यास से शारीरिक और मानसिक रोगों से बच जाता है और नशे की आदत से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
  • प्रेरणा-बच्चों को नशीले पदार्थों का सेवन करने से दूर रखने के लिए अध्यापक और माता-पिता प्रेरणा देकर महत्त्वपूर्ण योगदान कर सकते हैं। उनको चाहिए कि वे समयसमय पर नशों के कुप्रभाव के बारे में बच्चों को बताते रहें, जिससे वे प्रेरणा लेकर नशों की तरफ न जाएं।

Physical Education Guide for Class 8 PSEB नशों के प्रति जागरूकता Important Questions and Answers

बहुविकल्पाय प्रश्न

प्रश्न 1.
नशे के कुप्रभाव लिखें –
(क) नशे से मनुष्य खोखला हो जाता है
(ख) कई प्रकार के रोग लग जाते हैं
(ग) पाचन और मांस पेशी प्रणाली खराब हो जाती है
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 2.
नशे के बढ़ रहे रुझान के कारण हैं –
(क) सामाजिक कारण
(ख) तकनोलजी का प्रभाव
(ग) पारिवारिक कारण ।
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 3.
नशे को रोकने के उपाय हैं –
(क) प्रेरणा
(ख) सैमीनार लगाना
(ग) मनोवैज्ञानिक तौर पर प्यार करना
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलें और अनुशासन

प्रश्न 4.
नशीले पदार्थों के कोई चार नाम लिखें –
(क) शराब
(ख) तम्बाकू
(ग) अफीम और गांजा
(घ) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(घ) उपरोक्त सभी।

बहुत छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
नारकोटिक्स क्या है ?
उत्तर-
यह वह पदार्थ है जिनका सेवन करने से व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक तौर पर संतुलन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 2.
नशीले पदार्थ खाने वाले मनुष्य में क्या-क्या तबदीलियां आती हैं ?
उत्तर-
यह पदार्थ खाने वाले मनुष्य में अनोखा बदलाव आता है। उसको आस-पास की सुधबुध नहीं रहती।

प्रश्न 3.
नशीले पदार्थ खाने वाले पर क्या प्रभाव पड़ते हैं ?
उत्तर-
यह नशीले पदार्थ मनुष्य के सामाजिक और आर्थिक तौर पर परिवार को बर्बाद कर देते हैं। वह अपने परिवार में अपना विश्वास खो देता है।

प्रश्न 4.
नशीले पदार्थ खाने वाले के कोई दो बुरे प्रभाव लिखो।
उत्तर-

  1. सामाजिक तौर पर व्यक्ति दुःखी हो जाता है।
  2. पारिवारिक सम्बन्ध टूट जाते हैं।

प्रश्न 5.
नशीले पदार्थ खाने से शरीर पर क्या बुरा प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर-
1. शरीर और मन काबू नहीं रहता।
व्यवहार बदल जाता है।

प्रश्न 6.
नशीले पदार्थ से छुटकारा पाने के लिए कोई दो तरीके लिखो।
उत्तर-

  • प्रेरणा-बच्चे को नशीले पदार्थ छुड़वाने में माता-पिता, स्कूल अध्यापक और बड़े बुजुर्ग प्रेरणा देकर बहुत ही महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
  • मनोवैज्ञानिक तरीका-नशीले पदार्थों से छुटकारा पाना बहुत कठिन है और व्यक्ति को मानसिक तौर पर नशीले पदार्थ छोड़ने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रश्न 1.
नारकोटिक्स से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
नारकोटिक्स वह पदार्थ हैं, जिनके सेवन से व्यक्ति का जीवन समाप्त हो जाता है। उससे कोई मित्रता नहीं करना चाहता और उसके रिश्तेदार उससे दूर रहना चाहते हैं।

प्रश्न 2.
नशे के प्रति बढ़ रहे रुझान के कारण लिखें।
उत्तर-

  • कई दफा बच्चे अपने आपका दूसरे परिवारों से मुकाबला करने लगते हैं। अपने आप के लिए ऊंची-ऊंची बातें करते हैं और नशीले पदार्थ लेने लग जाते हैं।
  • तकनीक का प्रभाव-आजकल इंटरनैट ने बच्चों को बहुत प्रभावित किया है और बच्चे नए-नए तरीकों से इंटरनैट से नशे करने के लिए आकर्षित हो जाते हैं।

PSEB 8th Class Physical Education Solutions Chapter 6 खेलें और अनुशासन

प्रश्न 3.
नशे से शरीर पर बुरे प्रभाव लिखें।
उत्तर-
नशीले पदार्थों का सेवन व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक तौर पर खोखला कर देता है। उसके साथ कोई भी दोस्ती नहीं करना चाहता और उसका सामाजिक जीवन भी बर्बाद हो जाता है।

प्रश्न 4.
नशे के कुप्रभाव लिखो।
उत्तर-
नशे से शरीर खोखला हो जाता है। नशीले पदार्थ के सेवन से पाचन प्रणाली में रोग लग जाते हैं। कई दफ़ा व्यक्ति को कैंसर जैसे रोग का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति का रक्त संचार बढ़ जाता है और मांसपेशियां कमज़ोर होने लगती हैं । हृदयघात की संभावना बढ़ जाती है। अधिक नशीले पदार्थ का सेवन करने से व्यक्ति के हाथ-पांव कांपने लगते हैं।