PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव

PSEB 11th Class Physical Education Guide नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
समाज में आम प्रचलित कौन-कौन से नशे हैं ?
(Which Drugs are commonly used by the people in the society ?)
उत्तर-

  1. शराब
  2. अफीम
  3. तम्बाकू
  4. भांग
  5. हशीश
  6. नस्वार
  7. कोकीन
  8. ऐडरनवीन
  9. नार्कोटिक्स
  10. ऐनाबोलिक स्टीराइडस।

प्रश्न 2.
नशे क्या होते हैं ? (What are Drugs ?)
उत्तर-
नशा एक ऐसा पदार्थ है जिसका इस्तेमाल करने से शरीर में किसी न किसी तरह की उत्तेजना या आलस्यपन आ जाता है। मनुष्य के नाड़ी प्रबन्ध पर सभी नशीली वस्तुओं का बहुत बुरा असर पड़ता है जिसके कारण कई तरह के विचार, कल्पना तथा व्यक्ति को कोई सुध नहीं रहती और बुरी भावनाएं पैदा होती हैं। वह अपना, अपने परिवार तथा समाज के लोगों का नुकसान करता है।

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प्रश्न 3.
नशों की किस्में लिखें। (Write the types of Drugs.)
उत्तर-
नशे कई प्रकार के होते हैं ; जैसे-शराब, तम्बाकू, अफ़ीम, भांग, चरस, कैफीन तथा मैडीकल नशे या नशीली दवाइयां आदि।
1. शराब-शराब का सेहत पर प्रभाव (Effect of Alcohol on Health) शराब एक नशीला तरल पदार्थ है। शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बाज़ार में बेचने से पहले प्रत्येक शराब की बोतल पर यह लिखना ज़रूरी है। फिर भी बहुत से लोगों को इसकी लत (आदत) लगी हुई है जिससे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शरीर को कई तरह के रोग लग जाते हैं। फेफड़े कमजोर हो जाते हैं और व्यक्ति की आयु घट जाती है। ये शरीर के सभी अंगों पर बुरा प्रभाव डालती है। पहले तो व्यक्ति शराब को पीता है कुछ समय के बाद शराब आदमी को पीने लग जाती है। भाव शराब शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लग जाती है।
शराब पीने की हानियाँ निम्नलिखित हैं—

  • शराब का असर दिमाग पर होता है। नाड़ी प्रबन्ध बिगड़ जाता है और दिमाग कमजोर हो जाता है। मनुष्य के सोचने की शक्ति घट जाती है।
  • शरीर में गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।
  • शराब पीने से पाचन रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है जिससे पेट खराब रहने लग जाता है।
  • श्वास की गति तेज़ और सांस की अन्य बीमारियां लग जाती हैं।
  • शराब पीने से रक्त की नाड़ियां फूल जाती हैं। दिल को अधिक काम करना पड़ता है और दिल के दौरे का डर बना रहता है।
  • लगातार शराब पीने से मांसपेशियों की शक्ति घट जाती है। शरीर बीमारियों का मुकाबला करने के योग्य नहीं रहता।
  • आविष्कारों से पता लगता है कि शराब पीने वाला मनुष्य शराब न पीने वाले व्यक्ति से काम कम करता है। शराब पीने वाले व्यक्ति को बीमारियां भी जल्दी लगती हैं।
  • शराब से घर, स्वास्थ्य, पैसा आदि बर्बाद होता है और यह एक सामाजिक बुराई है।

2. तम्बाकू-तम्बाकू पीना-खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुका है। तम्बाकू पीने के अलग-अलग ढंग हैं, जैसे बीड़ी, सिगरेट पीना, सिगार पीना, हुक्का पीना, चिल्म पीना आदि। इसी तरह खाने के ढंग भी अलग हैं, जैसे तम्बाक चूने में मिला कर सीधे मुंह में रख कर खाना, या रगने में रखकर खाना, या गले में रखकर खाना आदि। तम्बाकू में खतरनाक ज़हर निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा कार्बन-डाइऑक्साइड आदि भी होता है। निकोटीन का बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है और फिर दिल पर प्रभाव करता है।

3. अफ़ीम-अफ़ीम पैपेबर सोनिफेरस नामक पौधे से प्राप्त किया जाता है, जो एक काले रंग का कसैला मादक पदार्थ है और जिसका प्रयोग नशे के रूप में किया जाता है।

4. चरस-यह भांग से बना नशीला पदार्थ होता है जिसके प्रयोग से आलस्य, नींद, उत्तेजना, बिमारी आदि महसूस होने लगती है। यह सोच शक्ति पर बुरा असर डालती है।

5. कोकीन-कोकीन कोका नामक पत्तियों से प्राप्त होने वाला नशीला पदार्थ है। इससे चिड़चिड़ापन आ जाता है। इसका प्रयोग करने से दिल का दौरा पड़ सकता है, दिल फेल भी हो सकता है।

6. नशीली दवाइयां-स्वास्थ्य संस्थानों में प्रयोग की जाने वाली कई प्रकार की दर्द निवारक दवाएँ होती हैं, जो किसी भयानक बिमारी या ऑप्रेशन के समय दर्द से राहत के लिए दी जाती हैं।

परन्तु आज कल ये दर्द निवारक दवाइयां डॉक्टरी सलाह के बिना नौजवान और खिलाड़ी वर्ग इनका आम जिंदगी में प्रयोग कर रहे हैं। इस तरह की दवाओं में कई तरह की नशीली गोलियां, पीने वाली दवाईयां, टीके, कैप्सूल आदि शामिल हैं। जैसे-डायाजेपाम, नेबूटाल, सेकोनाल, आदि।

प्रश्न 4.
तम्बाकू पर नोट लिखें। (Write a note on Tobacco.)
उत्तर-
हमारे देश में तम्बाकू पीना-खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुका है। तम्बाकू निकोटीन के पौधों के पत्तों से प्राप्त नशीला पदार्थ होता है। तम्बाकू पीने के अलग-अलग ढंग हैं, जैसे बीड़ी, सिगरेट पीना, सिगार पीना, हुक्का पीना, चिल्म पीना आदि। इसी तरह खाने के ढंग भी अलग हैं, जैसे तम्बाकू चूने में मिला कर सीधे मुंह में रख कर खाना, या रगने में रखकर खाना, या गले में रखकर खाना आदि। तम्बाकू में खतरनाक ज़हर निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा कार्बन-डाइऑक्साइड आदि भी होता है। निकोटीन का बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे सिर चकराने लग जाता है और फिर दिल पर प्रभाव करता है।
तम्बाकू के नुकसान इस तरह हैं—

  1. तम्बाकू खाने या पीने से नज़र कमजोर हो जाती है।
  2. इससे दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है। दिल का रोग लग जाता है जो कि मृत्यु का कारण बन सकता है।
  3. आविष्कारों से पता लगा है कि तम्बाकू पीने या खाने से रक्त की नाड़ियां सिकुड़ जाती हैं।
  4. तम्बाकू शरीर के तन्तुओं को उत्तेजित रखता है, जिससे नींद नहीं आती और नींद न आने की हालत में बीमारी लग जाती है।
  5. तम्बाकू के प्रयोग से पेट खराब रहने लग जाता है।
  6. तम्बाकू के प्रयोग से खांसी लग जाती है जिससे फेफड़ों की टी० बी० होने का खतरा बढ़ जाता है।
  7. तम्बाकू से कैंसर की बीमारी का डर बढ़ जाता है। विशेष कर छाती का कैंसर और गले का कैंसर।
  8. तम्बाकू के प्रयोग से खुराक नली, मुंह के कैंसर का डर भी रहता है।

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प्रश्न 5.
अफ़ीम के शरीर पर पड़ने वाले कुप्रभाव लिखें। (Write about the fatal effects of using opium on our body.)
उत्तर-
अफ़ीम के शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावः

  1. हल्का-हल्का सिरदर्द महसूस होता रहता है।
  2. दिल की धड़कन तेज़ हो जाती है।
  3. कोई भी निर्णय लेने की योग्यता कम हो जाती है।
  4. डर, घबराहट और बीमारी हालत महसूस होती है।
  5. वातावरण या हवा में अनावश्यक नमी या ठंड महसूस होती है।
  6. छाती में दर्द महसूस होता रहता है।
  7. होंठ और हाथों के नाखुन नीले हो जाते हैं।
  8. आँखों की पुतलियाँ सिकुड़ जाती है और कोई भी वस्तु साफ दिखाई नहीं देती।
  9. व्यक्ति साधारण परिस्थितियों में भी उतावलापन महसूस करता है।

प्रश्न 6.
नशे करने के क्या कारण हैं ? (What are the reasons of taking drugs ?)
उत्तर-
1. मीडिया-मीडिया द्वारा वैसे तो नौजवानों को नशे न करने के प्रति जागरुक किया जाता है। परन्तु विद्यार्थी गीतों, फिल्मों तथा नाटकों आदि में किए जाने वाले नशों के प्रयोग को फैशन या स्टेट्स समझने की भूल कर बैठते हैं।

2. अपना अस्तित्व दिखाना-कई बार माता-पिता द्वारा या समाज द्वारा विद्यार्थी या खिलाड़ी को अनदेखा किया जाता है। बच्चे या खिलाड़ी को लगता है कि उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा, इसलिए वह दूसरों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए ऐसे गलत तरीकों का प्रयोग करते हैं।

3. अपने आपको बड़ा साबित करना-कई बार दोस्तों मित्रों या माता-पिता द्वारा विद्यार्थी को अनजान या . छोटा कहकर कोई विशेष काम करने से रोक दिया जाता है। तब वह गुस्से में या अपने आपको बड़ा साबित करने के लिए ऐसे ग़लत तरीके का प्रयोग करता है।

4. बेरोज़गारी-बेरोज़गारी भी नशों के बढ़ रहे रुझान का बड़ा कारण है। जब किसी अधिक पढ़े-लिखे नौजवान या खिलाड़ी को समय पर नौकरी नहीं मिलती तो वह धीरे-धीरे निराशा का शिकार हो जाता है और अपने तनाव को घटाने के लिए नशों का प्रयोग करने लग जाता है।

5. मौज मस्ती के लिए—जवान लड़के और लड़कियों द्वारा पार्टी को मज़ेदार बनाने या अपनी मौज-मस्ती के लिए इन नशों का प्रयोग किया जाता है, जो धीरे-धीरे उनकी आदत बन जाती है।

6. मानसिक दबाव-कुछ नौजवान मानसिक दबाव के कारण जैसे पढ़ाई का बोझ, किसी समस्या का सामना न कर पाने की हालत में डिप्रेशन में चले जाते हैं, ऐसी हालत में से निकलने के लिए वे नशे का सहारा लेते

7. जानने की इच्छा-नौजवान उम्र के विद्यार्थी के भीतर हर एक नयी चीज़ के बारे में जानने की इच्छा होती है। अगर घर में किसी सदस्य द्वारा किसी नशे का प्रयोग किया जाता है तो बच्चे में भी उसको जानने की इच्छा पैदा होती है। वे पहले घर वालों से चोरी यह गलती करते हैं और धीरे-धीरे नशों की जकड़ में आ जाते हैं।

8. मानसिक दबाव-कुछ नौजवान मानसिक दबाव के कारण जैसे पढ़ाई का बोझ, किसी समस्या का सामना न कर पाने की हालत में डिप्रेशन में चले जाते हैं, ऐसी हालत में से निकलने के लिए वे नशे का सहारा लेते हैं।

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प्रश्न 7.
नशों का खिलाड़ी, परिवार, समाज तथा देश पर क्या प्रभाव पड़ता है ? (What are the bad effects of using drugs on a player, family, society and country ?)
उत्तर-
नशीले पदार्थों का शरीर, परिवार और समाज पर बुरा प्रभाव (Effects of Intoxicants on Individual, Family and Society And Their Abuses)—मनुष्य प्राचीन काल से ही नशीली वस्तुओं का प्रयोग करता आ रहा है। उसका विश्वास था कि इनके प्रयोग से रोग दूर होते हैं तथा मन ताज़ा होता है। परन्तु बाद में इनके कुप्रभाव भी देखने में आए हैं। आज के वैज्ञानिक युग में अनेक नई-नई नशीली वस्तुओं का आविष्कार हुआ है जिसके कारण क्रीड़ा जगत् दुविधा में पड़ गया है। इन नशीली वस्तुओं के सेवन से भले ही कुछ समय के लिए अधिक काम लिया जा सकता है, परन्तु नशे और अधिक काम से मानव रोग का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त करता है। इन घातक नशों में से कुछ नशे तो कोढ़ के रोग से भी बुरे हैं। शराब, तम्बाकू, अफीम, भांग, हशीश, ऐडरनविन तथा निकोटीन ऐसी नशीली वस्तुएं हैं जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।

प्रत्येक व्यक्ति अपने मनोरंजन के लिए किसी-न-किसी खेल में भाग लेता है। वह अपने साथियों तथा पड़ोसियों के साथ मेल-मिलाप तथा सद्भावना की भावना रखता है। इसके विपरीत एक नशे का गुलाम व्यक्ति दूसरों की सहायता करना तो दूर रहा, अपना बुरा-भला भी नहीं सोच सकता। ऐसा व्यक्ति समाज के लिए बोझ होता है। वह दूसरों के लिए सिर दर्दी बन जाता है। परिवार में कलेश रहने के कारण बच्चों के विकास पर भी असर पड़ता है। वह पारिवारिक कार्यों तथा फैसलों में अपना कोई योगदान नहीं देता। समाज और परिवार में उसके कोई पास नहीं आता। वह न केवल अपने जीवन को दु:खद बनाता है, बल्कि अपने परिवार और सम्बन्धियों के जीवन को भी नरक बना देता है। सच तो यह है कि नशीली वस्तुओं का सेवन स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है। इससे ज्ञान शक्ति, पाचन शक्ति, दिल, रक्त, फेफड़ों आदि से सम्बन्धित अनेक रोग लग जाते हैं।
नशीली वस्तुओं का प्रयोग करना खिलाड़ियों के लिए ठीक नहीं होता।
नशीली वस्तुओं के दोष (Harms of Intoxicants)-जो खिलाड़ी नशीली वस्तुओं का प्रयोग करते हैं उनके दोष निम्नलिखित हैं—

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. कदम लड़खड़ाते हैं।
  3. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।
  4. खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बन जाता है।
  5. पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  6. तेज़ाबी अंश आमाशय की शक्ति को कम करते हैं।
  7. पेट के कई प्रकार के रोग लग जाते हैं।
  8. पेशियों के काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
  9. खेल के मैदान में खिलाड़ी खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता।
  10. कैंसर और दमे की बीमारियां लग जाती हैं।
  11. खिलाड़ियों की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
  12. नशे में डूबे खिलाड़ी खेल की परिवर्तित अवस्थाओं को नहीं समझ सकते और अपनी टीम की पराजय का कारण बन जाते हैं।
  13. नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है।
  14. शरीर में समन्वय नहीं होता।
  15. नशे वाले खिलाड़ी के पैरों का तापमान सामान्य शक्ति के तापमान से 1.8° सैंटीग्रेड कम होता है।

नशीली वस्तुओं के सेवन का खिलाड़ियों तथा खेल पर बुरा प्रभाव पड़ता है जो कि इस प्रकार है—
1. शारीरिक समन्वय एवं स्फूर्ति का अभाव-नशे करने वाले खिलाड़ी में शारीरिक तालमेल तथा स्फूर्ति नहीं रहती। अच्छे खेल के लिये इनका होना बहुत जरूरी है। हॉकी, फुटबॉल, वॉलीबॉल आदि ऐसी खेलें हैं।

2. मन के सन्तुलन और एकाग्रचित्त का प्रभाव-किसी खिलाड़ी की मामूली-सी सुस्ती खेल का पासा पलट देती है। इतना ही नहीं नशे में धुत्त खिलाड़ी एकाग्रचित्त नहीं हो सकता। इसलिए वह खेल के दौरान ऐसी गलतियां कर देता है जिसके फलस्वरूप उसकी टीम को पराजय का मुंह देखना पड़ता है।

3. लापरवाही तथा बेफिक्री-नशे से ग्रस्त खिलाड़ी बहुत लापरवाह और बेफिक्र होता है। वह अपनी शक्ति तथा दक्षता का उचित अनुमान नहीं लगा सकता। कई बार जोश में आकर वह ऐसी चोट खा जाता है जिससे उसे आयु पर्यन्त पछताना पड़ता है।

4. खेल भावना का अन्त-नशे में रहने से खिलाड़ी की खेल भावना का अन्त हो जाता है। नशा करने वाले खिलाड़ी की स्थिति अर्द्ध-बेहोशी की होती है। उसके मन का सन्तुलन बिगड़ जाता है। वह खेल में अपनी ही हांकता है और साथी खिलाड़ी की बात नहीं सुनता।

5. सोचने का अभाव-वह रैफरी या अम्पायर के उचित निर्णयों के प्रति असहमति व्यक्त करता है। सहनशीलता की शक्ति की कमी हो जाती है।

6. नियमों की अवहेलना-वह खेल के नियमों की अवहेलना करता है।

7. मैदान लड़ाई का अखाड़ा बन जाना-नशे में रहने वाला खिलाड़ी खेल के मैदान को लड़ाई का अखाड़ा बना देता है।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी ने खेल के दौरान नशीली वस्तुओं के प्रयोग पर पाबन्दी लगा दी है। यदि खेल के दौरान कोई नशे की दशा में पकड़ा जाता है तो उसका जीता हुआ इनाम वापस ले लिया जाता है। इसलिए खिलाड़ियों को चाहिए कि वे स्वयं को हर प्रकार की नशीली वस्तुओं के सेवन से दूर रखें और सर्वोत्तम खेल का प्रदर्शन करके अपने और अपने देश के नाम को चार चांद लगायें।

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प्रश्न 8.
अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति पर नोट लिखें। (Write a note on the International Olympic Committee.)
उतर-
आधुनिक युग में प्रत्येक खिलाड़ी खेल की दुनिया में अपना नाम चमकाना चाहता है। परन्तु कुछ ऐसे भी खिलाड़ी होते हैं जो बिना मेहनत किए अपना नाम चमकाने के लालच में कुछ गल्त दवाईयों का सहारा ले लेते है। ऐसी दवाईयां न सिर्फ खेल भावना को नुक्सान पहुंचाती हैं बल्कि उनकी सेहत को भी खराब करती हैं ! इसी को देखते हुए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी समिति बनाई गई है जो खिलाड़ियों को ऐसी दवाईयों का प्रयोग नहीं करने देती।

अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक समिति द्वारा ऐसे मादक पदार्थों पर पाबंदी लगायी हुई है, जो खिलाड़ियों का प्रदर्शन बढ़ाने . के लिए प्रयोग किए जाते हैं। इन दवाओं का प्रयोग करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही की जाती है। उनसे जीते हुए मैडल वापिस ले लिए जाते हैं और उनके खेलने पर पाबन्दी लगा दी जाती है। समिति द्वारा लंदन 2012 ओलंपिक खेलों में 1001 डोप टेस्ट किये गये और इन टेस्टों से पता चला कि 100 खिलाड़ियों ने पाबन्दी वाली दवा का प्रयोग किया हुआ था। इनमें अल्बेनियन वेटलिफ्टर हसन पूलाकू वह खिलाड़ी था, जिसके टेस्ट में ‘ऐनाबोलिक स्टीराईड’ पायी गयी।

Physical Education Guide for Class 11 PSEB नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
पैपेबर सोनिफेरस पौधे से कौन-सा नशीला पदार्थ मिलता है ?
उत्तर-
पैपेबर सोनिफेरस पौधे से अफीम मिलता है।

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प्रश्न 2.
शराब, तम्बाकू और अफीम क्या है ?
उत्तर-
शराब, तम्बाकू और अफीम नशीले पदार्थ हैं।

प्रश्न 3.
Central Nervous System को कौन प्रभावित करता है ?
उत्तर-
Central Nervous System को नशीली वस्तुएं प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 4.
निकोटीआना कुल के पौधों और पत्तों से कौन-सा नशा प्राप्त किया जाता है ?
उत्तर-
निकोटीआना कुल के पौधों और पत्तों से तम्बाकू प्राप्त किया जाता है।

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प्रश्न 5.
ऐमसेटेमिन, कैफीन, कोकीन, नारकोटिक कौन-सी दवाइयां हैं ?
उत्तर-
खिलाड़ियों को उत्तेजित करने की।

प्रश्न 6.
पाबंदीशुदा दवाई खिलाड़ियों का भार कम करने वाली कौन-सी है ?
उत्तर-
डिऊरैटिकस दवाई खिलाड़ियों का भार घटाने वाली है।

प्रश्न 7.
अंतर्राष्ट्रीय ओलम्पिक कमेटी के क्या कार्य हैं ?
(a) ओलम्पिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की जांच करनी।
(b) नशों की जांच करनी।
(c) खिलाड़ियों को उत्साहित करना।
(d) खिलाड़ियों को इनाम देने।
उत्तर-
(a) ओलम्पिक में भाग लेने वाले खिलाड़ियों की जांच करनी।

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प्रश्न 8.
ओलम्पिक कमेटी पाबंदी लगाती है ?
(a) नशीले पदार्थ
(b) पीने वाले पदार्थ
(c) खाने वाली ताकत वाली चीजें
(d) उपरोक्त को भी नहीं।
उत्तर-
(a) नशीले पदार्थ।

प्रश्न 9.
कोई तीन नशीले पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. शराब,
  2. अफीम,
  3. तम्बाकू।

प्रश्न 10.
ओलम्पिक कमेटी ने खिलाड़ियों के कौन-कौन सी नशीली वस्तुओं पर पाबंदी लगाई।
उत्तर-
ऐमफेटेमिन, कैफीन, कोकीन, नार्कोटिक।

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प्रश्न 11.
अंतर्राष्ट्रीय कमेटी को कोई दो नाम लिखो।
उत्तर-

  1. नशों की जानकारी
  2. विजेता खिलाड़ियों को इनाम देने।

प्रश्न 12.
नशों से व्यक्ति की सेहत पर क्या असर होता है ?
उत्तर-
नाड़ी प्रबंध बिगड़ जाता है और दिमाग कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 13.
नशीली वस्तुओं का खिलाड़ियों और खेल पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-
खेल भावना का अन्त, नियम के विरुध जाना तथा मैदान लड़ाई का अखाड़ा बन जाता है।

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प्रश्न 14.
शराब से व्यक्ति की सेहत पर क्या असर पड़ता है.?
उत्तर-
नाड़ी प्रबंध बिगड़ जाता है, दिमाग कमजोर हो जाता है।

प्रश्न 15.
तम्बाकू से क्या नुक्सान होता है ?
उत्तर-
तम्बाकू खाने या पीने से नजर कमजोर हो जाती है और कैंसर की बीमारी का डर बढ़ जाता है।

प्रश्न 16.
शराब पीने से किस विटामिन की कमी होती है ?
उत्तर-
शराब पीने से विटामिन ‘B’ की कमी होती है।

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प्रश्न 17.
शराब पीने से कौन-सा रोग होता है ?
उत्तर-
शराब पीने से सबसे बड़ा रोग ‘जिगर’ का हो जाता है।

प्रश्न 18.
सिगरेट, बीड़ी, नसवार और सिगार किस नशाखोरी के साथ संबंधित है ?
उत्तर-
तम्बाकू पीने से संबंधित है।

प्रश्न 19.
सिगरेट पीने से कौन-सा जहरीला पदार्थ मिलता है ?
उत्तर-
निकोटिन पदार्थ मिलता है।

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प्रश्न 20.
तम्बाकू पीने से मनुष्य का खून का दबाव कितना बढ़ जाता है ?
उत्तर-
20 mg खून का दबाव बढ़ जाता है।

अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
अगर खिलाड़ी ओलम्पिक में नशीली दवाइयों का सेवन करता पकड़ा जाए तो उसको क्या जुर्माना पड़ता है ?
उत्तर-
अगर खिलाड़ी ने कोई मैडल जीता हो तो वह वापिस ले लिया जाता है और उससे नकद जुर्माना भी लिया जाता है।

प्रश्न 2.
नशीली वस्तुओं के कोई दो दोष लिखो।
उत्तर-
नशीली वस्तुओं के दोष निम्नलिखित हैं—

  1. चेहरा पीला हो जाता है।
  2. मानसिक संतुलन खराब हो जाता है।

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प्रश्न 3.
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर कोई दो बुरे प्रभाव लिखो।
उत्तर-
नशीली वस्तुओं के खिलाड़ियों पर पड़ने वाले दो बुरे प्रभाव निम्नलिखित हैं—

  1. फुर्ती कम हो जाती है।
  2. मानसिक संतुलन की एकाग्रता कम हो जाती है।

छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. शराब
  2. अफ़ीम
  3. तम्बाकू
  4. भंग
  5. नारकोटिक्स
  6. हशीश
  7. नसवार
  8. कैफ़ीन
  9. ऐडग्वीन
  10. ऐनाबोलिक सटीराइड।

प्रश्न 2.
शराब का स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ता है ?
उत्तर-

  1. श्वास की गति तेज हो जाती है और श्वास की दूसरी बीमारियाँ भी लग जाती है।
  2. शराब का असर पहले दिमाग पर होता है। नाड़ी प्रबंध बिगड़ जाता है और दिमाग कमजोर हो जाता है। मनुष्य की सोचने की शक्ति कम हो जाती है।
  3. शराब पीने से पाचक रस कम पैदा होना शुरू हो जाता है। जिसके कारण पेट खराब होने लगता है।
  4. शराब से गुर्दे कमजोर हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
तम्बाकू पर एक नोट लिखो।
उत्तर-
हमारे देश में तम्बाकू पीना और तम्बाकू खाना एक बहुत बुरी आदत बन चुकी है। तम्बाकू पीने के अलगअलग ढंग होते हैं। जैसे-बीड़ी पीना, सिगार पीना, चिलम पीना आदि। इस तरह खाने के ढंग भी अलग होते हैं, जैसेतम्बाकू में मिलाकर सीधा मुंह में रख कर खाना या पान में रख कर खाना। तम्बाकू में खतरनाक जहरीला निकोटीन (Nicotine) होता है। इसके अलावा अमोनिया कार्बनडाइआक्साइड आदि भी होती है। निकोटीन का बुरा असर सिर पर पड़ता है। जिसके साथ सिर चकराने लगता है और फिर दिल पर असर होता है।

प्रश्न 4.
अफ़ीम से शरीर पर पड़ने वाले बुरे प्रभाव बताओ।
उत्तर-

  1. पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  2. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  3. खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बन जाता है।
  4. कदम लड़खड़ाते हैं।

प्रश्न 5.
नशे करने के दो कारण लिखो।
उत्तर-

  1. बेरोज़गारी-बेरोज़गारी भी नशों के बढ़ रहे शौक का बड़ा कारण है। जब खिलाड़ी को नौकरी नहीं मिलती और फिर उसका झुकाव नशों की तरफ चला जाता है।
  2. दोस्तो की तरफ से मज़बूर करना-खिलाड़ी को उसके साथियों द्वारा नशे की एक दो दफा नशा करने के लिए मजबूर करना और नशे को मज़ेदार चीज़ बता कर उसको नशा करवाया जाता है।

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प्रश्न 6.
नशों का खिलाड़ी, परिवार, समाज और देश पर प्रभाव लिखो।
उत्तर-
नशा एक ऐसी लाइलाज लत है। जिसको करने से व्यक्ति अपना धैर्य खो बैठता है। वह स्वास्थ्य तो खराब करता ही है, बल्कि अपने परिवार का जीना भी मुश्किल कर देता है। वह अपने नशे की जरूरत के लिए हर गलत तरीका अपनाता है। जिस कारण परिवार में कलेश रहता है। जिसका बुरा प्रभाव बच्चों की वृद्धि और विकास पर प्रभाव पड़ता है। समाज में व्यक्ति की इज्जत खत्म हो जाती है। हर कोई ऐसे नशेड़ी व्यक्ति से दूर रहता है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
नशीली वस्तुओं के शरीर पर पड़ने वाले बुरे प्रभावों के बारे में वर्णन करें।
उत्तर-
शराब, अफीम, तम्बाकू, हशीश आदि नशीली वस्तुएं हैं। इनके सेवन से भले ही कुछ समय के लिए अधिक काम लिया जा सकता है, परन्तु नशे और अधिक काम से मानव रोग का शिकार होकर मृत्यु को प्राप्त करता है। इन घातक नशों में से कुछ नशे तो कोढ़ के रोग से भी बुरे हैं। शराब, तम्बाकू, अफीम, भांग, हशीश, ऐडरनविन तथा निकोटीन ऐसी नशीली वस्तुएं हैं जिनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है।
नशीली वस्तुओं के शरीर पर बुरे प्रभाव :—

  1. चेहरा पीला पड़ जाता है।
  2. कदम लड़खड़ाते हैं।
  3. मानसिक सन्तुलन खराब हो जाता है।
  4. खेल का मैदान लड़ाई का मैदान बन जाता है।
  5. पाचन शक्ति खराब हो जाती है।
  6. तेज़ाबी अंश आमाशय की शक्ति को कम करते हैं।
  7. पेट के कई प्रकार के रोग लग जाते हैं।
  8. पेशियों के काम करने की शक्ति कम हो जाती है।
  9. खेल के मैदान में खिलाड़ी खेल का अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सकता।
  10. कैंसर और दमे की बीमारियां लग जाती हैं।
  11. खिलाड़ियों की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है।
  12. नशे में डूबे खिलाड़ी खेल की परिवर्तित अवस्थाओं को नहीं समझ सकते और अपनी टीम की पराजय का कारण बन जाते हैं।
  13. नशे वाला खिलाड़ी लापरवाह हो जाता है।
  14. शरीर में समन्वय नहीं होता।
  15. नशे वाले खिलाड़ी के पैरों का तापमान सामान्य शक्ति के तापमान से 1.8° सैंटीग्रेड कम होता है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 5 नशों तथा डोपिंग के घातक प्रभाव

प्रश्न 2.
डोपिंग किसे कहते हैं ? ब्लॅड डोपिंग तथा जीन डोपिंग के बारे में लिखें।
उत्तर-
डोपिंग से भाव है कुछ ऐसी मादक दवाओं या तरीकों का प्रयोग करना जिसके साथ खेल प्रदर्शन को बढ़ाया जाता है। डोपिंग दो तरह की होती है—

  1. शारीरिक विधि द्वारा
  2. दवाओं द्वारा

शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव—

  1. कई बार जल्दवाजी में दूसरे व्यक्ति के खून को मैच नहीं किया जाता, जिसके परिणामस्वरुप संक्रमण द्वार खिलाड़ी की मृत्यु भी हो सकती है।
  2. दूसरे व्यक्ति से किसी भी भयानक बीमारी के कीटाणु खिलाड़ी के शरीर में प्रवेश कर सकते हैं।
  3. कई बार अपनी ओर से रखे गए खून में भी संक्रमण हो सकता है। जिसके साथ व्यक्ति को भयानक बीमारियाँ लग सकती हैं या खिलाड़ी की मौत भी हो सकती है।

ब्लॅड डोपिंग-इस तरह की विधि खिलाड़ी की हिमोग्लोबिन की तीव्रता को बढ़ाया जाता है। जिसके साथ मांसपेशियों को ज्यादा ऑक्सीजन मिलती है। इसके साथ खिलाड़ी की कारगुजारी बढ़ती है। लम्बी दूरी की दौड़ों में एथलीट्स द्वारा यह विधि ज्यादा प्रयोग की जाती है।
जीन डोपिंग-जीन डोपिंग में अपने शरीर की सामर्थ्य बढ़ाने के लिए अपने ही जीन को बदला जाता है। इस डोपिंग से मांसपेशियों की वृद्धि होती है, शरीर की सहनशक्ति, ज्यादा दर्द सहन करने की शक्ति आदि बढ़ जाती है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

सामाजिक स्थिति (Social Condition)

प्रश्न 1.
मुगलों के अधीन पंजाब के लोगों की सामाजिक अवस्था का अध्ययन कीजिए।
(Study the social condition of the people of the Punjab under the Mughals.)
अथवा
मुग़लों के अधीन पंजाब के लोगों की सामाजिक जीवन की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ?
(What were the main features of social life of the people of Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लों के समय पंजाब.के लोगों की सामाजिक दशा का वर्णन करो ? (Give a brief account of the social condition of the Punjab Under the Mughals.)
उत्तर-
मुगलों ने पंजाब में 1526 ई० से 1752 ई० तक शासन किया। मुग़लकालीन पंजाब की सामाजिक दशा कोई विशेष अच्छी न थी। मुग़लकालीन पंजाब का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों-मुसलमान तथा हिंदुओं में बँटा हुआ था। सिखों को उस समय हिंदू समाज का ही अंग माना जाता था। मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के सामाजिक जीवन का विवरण निम्नलिखित है—
1. मुसलमानों की तीन श्रेणियाँ (Three Classes of the Muslims)-पंजाब का मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में बँटा हुआ था

i) उच्च श्रेणी (The Upper Class)-मुसलमानों की उच्च श्रेणी में बड़े-बड़े मनसबदार, सूबेदार, जागीरदार और रईस लोग सम्मिलित थे। इस श्रेणी के लोग बड़े भव्य महलों में रहते थे। वे बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे। उनकी सेवा के लिए बहुसंख्या में नौकर होते थे।

ii) मध्यम श्रेणी (The Middle Class)—इस श्रेणी में व्यापारी, किसान, सैनिक और छोटे दर्जे के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। उच्च श्रेणी की अपेक्षा इनका जीवन स्तर कुछ निम्न तो था, परंतु खुशहाल था।

iii) निम्न श्रेणी (The Lower Class)—इस श्रेणी की संख्या सबसे अधिक थी। इस श्रेणी में लोहार, जुलाहे, दस्तकार, बढ़ई, छोटे-छोटे दुकानदार, घरेलू नौकर, मज़दूर और दास आदि आते थे। उनकी दशा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं थी। निर्धन होने के कारण वे गंदी झोपड़ियों में रहते थे। वे फटे-पुराने वस्त्र पहनते थे। गुलामों की संख्या बहुत अधिक थी। बी० एन० लुनिया के अनुसार,
“दासी अपने स्वामी के हाथों में एक खिलौने की तरह थी।”1

2. हिंदुओं की जाति प्रथा (Caste system of the Hindus)—पंजाब की अधिकतर जनसंख्या हिंदू थी। हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। निम्न जाति के लोगों को उच्च जाति के लोगों के साथ मेलजोल करने, वेद पढ़ने, मंदिरों में जाने तथा कुओं और तालाबों में जल भरने की आज्ञा नहीं थी। जाति नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को बिरादरी से निकाल दिया जाता था।

3. स्त्रियों की स्थिति (Condition of Women). मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय स्त्री समाज में प्रचलित बुराइयों जैसे लड़कियों की हत्या, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, बहु-विवाह तथा पर्दा प्रथा आदि ने समाज में उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय बना दी थी।

4. खान-पान (Diet)-उच्च श्रेणी के लोग माँस, पूरी और हलवा खाने के अत्यंत शौकीन थे। वे मक्खन, मलाई, ताज़े फलों और शुष्क मेवों का भी बहुत प्रयोग करते थे। हिंदू अधिकतर शाकाहारी होते थे। उस समय लस्सी पीने का बहुत रिवाज था। गर्मियों में ठंडे शरबतों का बहुत प्रयोग किया जाता था।

5. वेशभूषा तथा गहने (Dress and Ornaments)-मुग़लकालीन पंजाब के लोग सूती और रेशमी वस्त्र पहनते थे। उच्च वर्ग में पुरुषों की वेशभूषा खुला कुर्ता, तंग पाजामा या सलवार तथा पगड़ी होती थी। स्त्रियों में कमीज़ और सलवार का रिवाज आम था। हिंदू स्त्रियाँ साड़ियाँ पहनती थीं तथा अपने सिर को चादर या दुपट्टे से ढाँपती थीं। उस समय स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बहुत शौकीन थे। स्त्रियाँ तो शरीर के प्रत्येक अंग में गहने पहनती थीं जैसे कानों में काँटे, नाक में नथनी, बाँहों में चूड़ियाँ और गले में हार इत्यादि।

6. मनोरंजन के साधन (Means of Entertainment)-मुग़लकालीन पंजाब में लोग कई ढंगों से अपना मनोरंजन करते थे। लोग अपना मनोरंजन शिकार करके, रथों की दौड़ में भाग लेकर, कबूतरबाज़ी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, शतरंज और चौपड़ खेलकर, संगीत, कुश्तियाँ और ताश खेलकर करते थे। इसके अतिरिक्त लोग त्योहारों और मेलों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे।

7. शिक्षा (Education)—उस समय लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्राथमिक शिक्षा मंदिरों में तथा मुसलमान मस्जिदों में प्राप्त करते थे। मुसलमानों के मुकाबले हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, जालंधर, सुल्तानपुर, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

1. “A female slave was toy of her master.” B.N. Luniya, Life and Culture in Medieval India (Indore : 1978) p. 190.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

आर्थिक स्थिति (Economic Condition)

प्रश्न 2.
मुगलों के अधीन पंजाब की आर्थिक दशा का वर्णन कीजिए। (P.S.E.B. Mar. 2008) (Describe the economic condition of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोग आर्थिक रूप से समृद्ध थे। वस्तुओं की कीमतें सस्ती थीं अतैव ग़रीब लोगों का गुज़ारा भी अच्छा हो जाता था। कृषि, उद्योग तथा व्यापार उन्नत अवस्था में था। लाहौर तथा मुलतान व्यापारिक पक्ष से सबसे प्रसिद्ध नगर थे। उस काल के पंजाब के लोगों की आर्थिक दशा का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है—
1. खेती बाड़ी (Agriculture)—पंजाब के लगभग 80 प्रतिशत लोग खेती बाड़ी का व्यवसाय करते थे। इसका मुख्य कारण यह था कि यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ थी और सिंचाई साधनों की कोई कमी नहीं थी। पंजाब में जब्ती प्रणाली लागू थी। अत: भूमि को उसकी उपजाऊ शक्ति के आधार पर चार वर्गों—पोलज, परोती, छछर और बंजर भूमि में बाँटा हुआ था। सरकार अपना लगान भूमि की उपजाऊ शक्ति को ध्यान में रखकर निर्धारित करती थी। यह कुल फसल का 1/3 हिस्सा हुआ करता था। सरकार किसानों की सुविधानुसार अपना लगान अनाज अथवा नकदी के रूप में एकत्रित करती थी। अकाल पड़ने या कम फसल होने की स्थिति में लगान कम या माफ कर दिया जाता था। सरकारी कर्मचारियों को यह कड़े आदेश थे कि वे किसी प्रकार से किसानों से अधिक वसूली न करें। इन सभी प्रयत्नों के परिणामस्वरूप पंजाब में फसलों की भरपूर पैदावार होती थी। पंजाब की प्रमुख फसलें गेहूँ, चावल, गन्ना, कपास, मक्की , चने और जौ थीं।

2. उद्योग (Industries)-पंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य धंधा उद्योगों से संबंधित था। उस समय के प्रमुख उद्योगों का वर्णन निम्नलिखित है—

i) सूती वस्त्र उद्योग (Cotton Industry)-मुग़लकाल में सूती वस्त्र उद्योग पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग था। लाहौर, मुलतान, गुजरात, बजवाड़ा और अमृतसर इस उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र थे। लाहौर में कई प्रकार का सूती कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान बढ़िया दरियाँ, चादरें और गलीचे बनाने के लिए प्रसिद्ध था। समाना में बहुत ही उत्तम प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था।

ii) रेशमी वस्त्र उद्योग (Silk Industry)-मुगलकाल में रेशम उद्योग पंजाब का दूसरा प्रमुख उद्योग था। इस उद्योग के प्रमुख केंद्र मुलतान, कश्मीर तथा अमृतसर थे। मुलतान के रेशमी वस्त्रों की बहुत माँग थी। लाहौर में गुलबदन और दरियाई नाम के रेशमी वस्त्र तैयार किए जाते थे।

iii) ऊनी वस्त्र उद्योग (Woollen Industry)-पंजाब में ऊनी वस्त्र उद्योग के दो प्रसिद्ध केंद्र कश्मीर और अमृतसर थे। कश्मीर शालों के उद्योग के लिए संसार-भर में प्रसिद्ध था। अमृतसर में कंबल और लोइयाँ बहुत उच्चकोटि की तैयार की जाती थीं।

iv) चमड़ा उद्योग (Leather Industry)-मुगलकाल के पंजाब के चमड़ा उद्योग की गणना प्रसिद्ध उद्योगों में की जाती थी। चमड़े से बहुत-सी वस्तुएँ जैसे घोड़ों की काठियाँ, चप्पलें, दस्ताने और पानी लाने और ले जाने वाली मशके आदि तैयार की जाती थीं। इस उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र होशियारपुर, पेशावर और मुलतान थे।

3. पशु-पालन (Animal Rearing)—पंजाब में पशु-पालन भी एक प्रमुख व्यवसाय था। बैल, भैंसे और ऊँट खेती बाड़ी के लिए प्रयोग किए जाते थे। घोड़े और ऊँट सवारी के काम आते थे। गाय, भैंसें, भेड़ें, बकरियाँ दूध प्राप्त करने के लिए पाली जाती थीं। भेड़ों से ऊन भी प्राप्त की जाती थी। इन पशुओं के व्यापार के लिए अनेक स्थानों पर मंडियाँ लगाई जाती थीं।

4. खनिज पदार्थ (Minerals)-मुग़लकालीन पंजाब में खनिज पदार्थों की मात्रा काफ़ी कम थी। मंडी के पहाड़ी प्रदेशों में ताँबा मिलता था। जम्मू में जिस्त की खानें थीं। खिऊड़ा, नूरपुर और कालाबाग में नमक की खानें थीं। पंजाब की नदियों की रेत छान कर कुछ सोना भी प्राप्त किया जाता था।

5. व्यापार (Trade)—मुग़लकालीन पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। व्यापार का काम खत्री, बनिए, महाजनों, बोहरों और खोजों के हाथ में था। पंजाब का विदेशी व्यापार—अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, सीरिया, चीन और यूरोपीय देशों से चलता था। पंजाब इन देशों को सूती और रेशमी वस्त्र, शालें, कंबल, अनाज, नील और नमक आदि का निर्यात करता था। दूसरी ओर इन देशों से बढ़िया नस्ल के घोड़े, सूखे मेवे, ऐश्वर्य की वस्तुएँ, कालीन, रेशम, बहुमूल्य पत्थरों आदि का आयात किया जाता था। यह व्यापार स्थल और जल दोनों मार्गों से होता था।

6. प्रसिद्ध व्यापारिक नगर (Famous Commercial Towns)—पंजाब के सबसे प्रसिद्ध व्यापारिक नगर लाहौर और मुलतान थे। इनके अतिरिक्त अमृतसर, जालंधर, बजवाड़ा, बटाला, पानीपत, सुल्तानपुर, करतारपुर आदि नगर भी बहुत प्रसिद्ध थे।

7. कीमतें (Prices)—मुग़लों के समय पंजाब में वस्तुएँ काफ़ी सस्ती थीं। अकबर के समय एक मन गेहूँ का मूल्य 12 दाम, एक मन चावल का मूल्य 20 दाम, एक मन चने का मूल्य 16 दाम, एक मन दूध का मूल्य 25 दाम और एक मन चीनी का मूल्य 6 दाम था। अकबर के बाद भी वस्तुओं का मूल्य लगभग यही रहा। अतः कम कीमतों के कारण ग़रीब लोग भी अपना निर्वाह अच्छी तरह से कर लेते थे।

प्रश्न 3.
मुग़लों के अधीन पंजाब के लोगों की आर्थिक व सामाजिक जीवन की क्या विशेषताएँ थीं ?
(What were the main features of the social and economic life of the people of the – Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of the social and economic conditions of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुगलों ने पंजाब में 1526 ई० से 1752 ई० तक शासन किया। मुग़लकालीन पंजाब की सामाजिक दशा कोई विशेष अच्छी न थी। मुग़लकालीन पंजाब का समाज मुख्य रूप से दो वर्गों-मुसलमान तथा हिंदुओं में बँटा हुआ था। सिखों को उस समय हिंदू समाज का ही अंग माना जाता था। मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के सामाजिक जीवन का विवरण निम्नलिखित है—
1. मुसलमानों की तीन श्रेणियाँ (Three Classes of the Muslims)-पंजाब का मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में बँटा हुआ था

i) उच्च श्रेणी (The Upper Class)-मुसलमानों की उच्च श्रेणी में बड़े-बड़े मनसबदार, सूबेदार, जागीरदार और रईस लोग सम्मिलित थे। इस श्रेणी के लोग बड़े भव्य महलों में रहते थे। वे बहुमूल्य वस्त्र पहनते थे। उनकी सेवा के लिए बहुसंख्या में नौकर होते थे।

ii) मध्यम श्रेणी (The Middle Class)—इस श्रेणी में व्यापारी, किसान, सैनिक और छोटे दर्जे के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। उच्च श्रेणी की अपेक्षा इनका जीवन स्तर कुछ निम्न तो था, परंतु खुशहाल था।

iii) निम्न श्रेणी (The Lower Class)—इस श्रेणी की संख्या सबसे अधिक थी। इस श्रेणी में लोहार, जुलाहे, दस्तकार, बढ़ई, छोटे-छोटे दुकानदार, घरेलू नौकर, मज़दूर और दास आदि आते थे। उनकी दशा किसी प्रकार भी अच्छी नहीं थी। निर्धन होने के कारण वे गंदी झोपड़ियों में रहते थे। वे फटे-पुराने वस्त्र पहनते थे। गुलामों की संख्या बहुत अधिक थी। बी० एन० लुनिया के अनुसार,
“दासी अपने स्वामी के हाथों में एक खिलौने की तरह थी।”1

2. हिंदुओं की जाति प्रथा (Caste system of the Hindus)—पंजाब की अधिकतर जनसंख्या हिंदू थी। हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बँटा हुआ था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। निम्न जाति के लोगों को उच्च जाति के लोगों के साथ मेलजोल करने, वेद पढ़ने, मंदिरों में जाने तथा कुओं और तालाबों में जल भरने की आज्ञा नहीं थी। जाति नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को बिरादरी से निकाल दिया जाता था।

3. स्त्रियों की स्थिति (Condition of Women). मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय स्त्री समाज में प्रचलित बुराइयों जैसे लड़कियों की हत्या, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह पर प्रतिबंध, बहु-विवाह तथा पर्दा प्रथा आदि ने समाज में उनकी स्थिति अत्यंत शोचनीय बना दी थी।

4. खान-पान (Diet)-उच्च श्रेणी के लोग माँस, पूरी और हलवा खाने के अत्यंत शौकीन थे। वे मक्खन, मलाई, ताज़े फलों और शुष्क मेवों का भी बहुत प्रयोग करते थे। हिंदू अधिकतर शाकाहारी होते थे। उस समय लस्सी पीने का बहुत रिवाज था। गर्मियों में ठंडे शरबतों का बहुत प्रयोग किया जाता था।

5. वेशभूषा तथा गहने (Dress and Ornaments)-मुग़लकालीन पंजाब के लोग सूती और रेशमी वस्त्र पहनते थे। उच्च वर्ग में पुरुषों की वेशभूषा खुला कुर्ता, तंग पाजामा या सलवार तथा पगड़ी होती थी। स्त्रियों में कमीज़ और सलवार का रिवाज आम था। हिंदू स्त्रियाँ साड़ियाँ पहनती थीं तथा अपने सिर को चादर या दुपट्टे से ढाँपती थीं। उस समय स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बहुत शौकीन थे। स्त्रियाँ तो शरीर के प्रत्येक अंग में गहने पहनती थीं जैसे कानों में काँटे, नाक में नथनी, बाँहों में चूड़ियाँ और गले में हार इत्यादि।

6. मनोरंजन के साधन (Means of Entertainment)-मुग़लकालीन पंजाब में लोग कई ढंगों से अपना मनोरंजन करते थे। लोग अपना मनोरंजन शिकार करके, रथों की दौड़ में भाग लेकर, कबूतरबाज़ी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, शतरंज और चौपड़ खेलकर, संगीत, कुश्तियाँ और ताश खेलकर करते थे। इसके अतिरिक्त लोग त्योहारों और मेलों में बढ़-चढ़ कर भाग लेते थे।

7. शिक्षा (Education)—उस समय लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्राथमिक शिक्षा मंदिरों में तथा मुसलमान मस्जिदों में प्राप्त करते थे। मुसलमानों के मुकाबले हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, जालंधर, सुल्तानपुर, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

1. “A female slave was toy of her master.” B.N. Luniya, Life and Culture in Medieval India (Indore : 1978) p. 190.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

धार्मिक स्थिति (Religious Condition)

प्रश्न 4.
मुग़ल काल में पंजाब के लोगों की धार्मिक अवस्था पर आलोचनात्मक नोट लिखें।
(Write a critical note on the religious condition of the people of Punjab during the Mughal period.)
अथवा
मुग़ल काल में लोगों की धार्मिक अवस्था के बारे में आप क्या जानते हैं ? वर्णन करें।
(What do you know about the religious condition of the people of Punjab under the Mughals ? Explain.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में हिंदू मत तथा इस्लाम के साथ-साथ सिख मत भी प्रचलित हो चुका था। उस समय पंजाब में बौद्ध मत लगभग लुप्त हो चुका था तथा जैन मत केवल नगरों के व्यापारी वर्ग तक ही सीमित था। इस काल में पंजाब में ईसाई मत का प्रचार भी आरंभ हो चुका था। इस काल के लोग अंध-विश्वासों तथा धर्म के बाह्याडंबरों पर अधिक बल देते थे। अधिकतर लोग धर्म की वास्तविकता को भूल चुके थे। पंजाब में सिख गुरुओं ने लोगों को धर्म का वास्तविक मार्ग दिखाने का महान् कार्य किया।—

1. हिंदू धर्म (Hinduism)-हिंदू धर्म की गणना भारत के सबसे प्राचीन धर्मों में की जाती है। इस धर्म के अनुयायी राम, विष्णु, कृष्ण, शिव, हनुमान, दुर्गा, काली तथा लक्ष्मी आदि देवी-देवताओं की पूजा करते थे। इन देवी-देवताओं की स्मृति में अति संदर मंदिरों का निर्माण किया जाता था। इनमें आकर्षक मर्तियाँ रखी जाती थीं। हिंदू धर्म के सभी रीति-रिवाजों में ब्राह्मणों का शामिल होना अनिवार्य समझा जाता था। हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथों में वेदों, रामायण तथा गीता को मुख्य स्थान प्राप्त था। हिंदू ब्राह्मण तथा गाय का विशेष सत्कार करते थे। मुग़ल सम्राट अकबर ने अपनी धार्मिक सहनशीलता की नीति के कारण धार्मिक क्षेत्र में एक नए युग का सूत्रपात किया था। उसने हिंदुओं को धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान की तथा उन पर लगे तीर्थ यात्रा कर तथा जजिया कर को हटा दिया था। औरंगज़ेब एक कट्टर सुन्नी सम्राट् था। उसने हिंदुओं को बलपूर्वक मुसलमान बनाया। उनके मंदिरों तथा मूर्तियों को तोड़ दिया गया। उन पर बहुत-से प्रतिबंध लगा दिए गए। परिणामस्वरूप, हिंदू मुग़ल राज्य के कट्टर शत्रु बन गए।

2. इस्लाम (Islam) भारत में इस्लाम का सबसे अधिक प्रसार पंजाब में हुआ था। इसका मुख्य कारण यह था कि मुस्लिम आक्रमणकारी भारत में सबसे पहले पंजाब में स्थायी रूप में बसे थे। इस धर्म के अनुयायी एक अल्लाह में विश्वास रखते थे। वे हज़रत मुहम्मद साहिब को अल्लाह का पैगंबर समझते थे। वे दिन में पाँच बार नमाज़ पढ़ते थे। वे रमजान के महीने में रोज़े रखते थे। वे हज यात्रा करना अनिवार्य समझते थे। वे जकात (दान) देते थे। वे मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे। दिल्ली के सुल्तान तथा मुग़ल बादशाह मुसलमान थे इसलिए उनके शासनकाल में इस्लाम का तीव्र गति से प्रसार होने लगा। मुसलमानों को सरकार की ओर से विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं इसलिए पंजाब की निम्न जातियों के बहुत-से लोग इस्लाम में शामिल हो गए। मुगल बादशाह औरंगजेब ने तलवार की नोक पर बहुत-से लोगों को बलपूर्वक इस्लाम में शामिल किया।

3. सूफ़ी मत (Sufism)—सूफी मत इस्लाम का ही एक संप्रदाय था। इस धर्म के लोग धार्मिक सहनशीलता की नीति में विश्वास रखते थे। उनका मुख्य संदेश परस्पर भ्रातृत्व तथा लोगों की सेवा करना था। वे संगीत में बुराइयों के विरुद्ध आवाज़ उठाई। मुग़लकाल में पंजाब में चिश्ती, सुहरावर्दी, कादरी तथा नक्शबंदी नामक सूफ़ी सिलसिले प्रसिद्ध थे। सूफ़ी सभी जातियों के लोगों के साथ स्नेह करते थे इसलिए बहुत-से लोग सूफ़ी मत में शामिल हुए। सूफ़ी सिलसिलों में केवल नक्शबंदी सिलसिला कट्टर विचारों का था। नक्शबंदियों ने गुरु अर्जन देव जी तथा गुरु तेग़ बहादुर जी को शहीद करवाने के लिए मुग़ल बादशाहों को भड़काया था।

4. सिख धर्म (Sikhism)—मुग़लकाल में पंजाब में सिख धर्म का जन्म हुआ। इस धर्म की स्थापना गुरु नानक देव जी ने 15वीं शताब्दी में की थी। गुरु नानक साहिब जी ने उस समय समाज में प्रचलित सामाजिक तथा धार्मिक बुराइयों का खंडन किया। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा तथा आपसी भ्रातृत्व का संदेश दिया। उन्होंने संगत तथा पंगत संस्थाओं की नींव रखी। उनके धर्म के द्वार प्रत्येक जाति तथा वर्ग के लोगों के लिए खुले थे। उन्होंने अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का नया मार्ग दिखाया। गुरु जी के संदेश को उनके नौ उत्तराधिकारियों ने जारी रखा। मुग़ल सम्राट अकबर की धार्मिक सहनशीलता की नीति के कारण पंजाब में सिख धर्म को प्रफुल्लित होने का स्वर्ण अवसर मिला। सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठते ही मुग़ल-सिख संबंधों में तनाव आ गया। 1606 ई० में गुरु अर्जन साहिब जी की शहीदी तथा 1675 ई० में गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारण सिख भड़क उठे। मुग़ल अत्याचारों को कड़ा उत्तर देने के लिए 1699 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा की सृजना पंजाब के इतिहास में एक नया पड़ाव प्रमाणित हुई।

5. अन्य धर्म (Other Religions)-ऊपरलिखित धर्मों के अतिरिक्त मुगलकालीन पंजाब में बौद्ध मत तथा जैन मत भी प्रचलित थे। इन धर्मों के अनुयायियों की संख्या बहुत कम थी। मुग़ल सम्राट अकबर के शासनकाल में पंजाब में ईसाई मत का प्रचार भी होने लग पड़ा था। अकबर ने ईसाइयों को लाहौर में अपना गिरजाघर बनाने की आज्ञा दी थी। इस धर्म को पंजाब में कोई खास प्रोत्साहन न मिला।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
मुगलकालीन पंजाब में मुस्लिम समाज की स्थिति कैसी थी ?
(What was the condition of Muslims under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति कैसी थी ?
(What was the condition of Muslim society under the Mughal period in Punjab ?)
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज पर एक नोट लिखें।
(Write a note on the Muslim society of the Punjab during the Mughal times.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण उनको समाज में कुछ विशेष सुविधाएँ प्राप्त थीं। मुसलमान तीन श्रेणियों में विभाजित थे। उच्च श्रेणी के लोग वे शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। सुरा एवं सुंदरी उनके मनोरंजन के मुख्य साधन थे। मध्य वर्ग के लोगों का जीवन स्तर उच्च श्रेणी के मुकाबले में कुछ कम था परंतु खुशहाल था। निम्न श्रेणी के लोगों की स्थिति बड़ी शोचनीय थी। उनका जीवन-निर्वाह करना अत्यंत कठिन होता था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

प्रश्न 2.
मुगलकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति कैसी थी ? (What was the condition of Hindus in the society of Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लों के अधीन पंजाब के हिंदुओं की स्थिति का संक्षेप में अध्ययन करें। (Study in brief the condition of Hindu society in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति बहुत खराब थी। यद्यपि हिंदू बहु-संख्या में थे फिर भी उन्हें उच्च पदों से वंचित रखा जाता था। उनको काफिर कहकर संबोधित किया जाता था। उनको इस्लाम स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता था। हिंदू समाज कई जातियों. तथा उपजातियों में बँटा हुआ था। जाति संबंधी नियम बहुत अधिक कठोर थे। उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों पर घोर अत्याचार करते थे। इसके अतिरिक्त उन पर अनेक पाबंदियाँ लगाई गई थीं।

प्रश्न 3.
मुग़लों के अधीन पंजाब में स्त्रियों की स्थिति कैसी थी ?
(What was the position of women in Punjab under the Mughals ?) .
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब में स्त्रियों में प्रचलित किन्हीं तीन बुराइयों का संक्षिप्त विवरण दें। (Describe any three evils prevalent among women in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय लड़कियों का विवाह अल्पायु में ही कर दिया जाता था। लड़कियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। समाज में सती प्रथा भी प्रचलित थी। विधवा का जीवन बहुत दयनीय था। मुस्लिम और हिंदू स्त्रियों में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी।

प्रश्न 4.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों के मनोरंजन के क्या साधन थे ?
(What were the main sources of entertainment of the people of Pnjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के मनोरंजन के कई साधन थे। उच्च श्रेणी के लोग अपना मनोरंजन शिकार, चौगान खेलकर, कबूतरबाजी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, शतरंज और चौपड़ खेलकर और महफ़िलों में भाग लेकर करते थे! आम लोग अपना मनोरंजन संगीत, नाच, कुश्तियाँ करके, दौड़ों में भाग लेकर, मदारियों के खेल द्वारा करते थे। लोग त्योहारों तथा मेलों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। हिंदुओं के प्रमुख त्योहार दीवाली, दशहरा, लोहड़ी, होली, शिवरात्रि और राम नवमी आदि थे। मुसलमानों के मुख्य त्योहार ईद, शबे-बारात और नौरोज थे।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

प्रश्न 5.
मुग़लों के अधीन पंजाब में शिक्षा के प्रबंध पर एक नोट लिखें।
(Write a note about prevalent education in Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़ल काल में लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदु अपनी प्रारंभिक शिक्षा मंदिरों में और मुसलमान अपनी शिक्षा मस्जिदों में प्राप्त करते थे। ये संस्थान लोगों द्वारा दिए गए दान पर चलते थे। मुसलमानों की अपेक्षा हिंदु शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् गुरु को कुछ दक्षिणा दिया करते थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, स्यालकोट, जालंधर, सुल्तानपुर, बटाला, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।

प्रश्न 6.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों की सामाजिक स्थिति की मुख्य विशेषताएँ बताएँ। (
(Mention the main salient features of social condition of people of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। उनको समाज में कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे। मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों-उच्च, मध्य एवं निम्न श्रेणी में बँटा हुआ था। उच्च श्रेणी के लोग बड़े ऐश्वर्य और शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। निम्न श्रेणी के लोगों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। हिंदुओं की जो कि पंजाब की बहसंख्यक श्रेणी से संबंधित थे, स्थिति अच्छी नहीं थी। उनको बहुत-से अधिकारों से वंचित रखा जाता था। मुसलमान उनसे बहुत घृणा करते थे। हिंदू समाज कई जातियों और उपजातियों में बँटा हुआ था। समाज में स्त्रियों की स्थिति अत्यंत दयनीय थी।

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प्रश्न 7.
मुगलकालीन पंजाब में खेती की क्या दशा थी ?
(What was the condition of agriculture in Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय क्या था ? (What was the main occupation of Punjabis under the Mughals ?)
उत्तर-
पंजाब की भूमि अत्यधिक उपजाऊ थी। मुग़लकालीन पंजाब में लोगों का मुख्य व्यवसाय खेतीबाड़ी था। पंजाब के 80% लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे। इसलिए मुग़ल सरकार ने खेतीबाड़ी को उत्साहित करने के लिए विशेष ध्यान दिया। नई भूमि को खेती के अधीन लाने वाले किसानों को विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं। लगान, भूमि की उपजाऊ शक्ति और सिंचाई की सुविधाओं के अनुसार निश्चित किया गया था। उस समय पंजाब की प्रमुख फसलें गेहूँ, चने, चावल, मक्की , गन्ना, कपास और जौ थीं।

प्रश्न 8.
मुगलकालीन पंजाब में प्रचलित कपड़ा उद्योग संबंधी जानकारी दें। (Write a brief note on textile industry of Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में प्रचलित उद्योगों में कपड़ा उद्योग सबसे अधिक महत्तवपूर्ण था। अमृतसर, लाहौर, मुलतान और गुजरात में बढ़िया प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान बढ़िया दरियों, मेजपोशों तथा चादरों के लिए प्रसिद्ध था। पेशावर में सुंदर लुंगियाँ तैयार की जाती थीं। मुलतान, लाहौर और अमृतसर में पायजामे और सलवारें तैयार की जाती थीं। गुजरात में शिफोन का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान, कश्मीर और अमृतसर रेशमी कपड़ा उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र थे।

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प्रश्न 9.
मुग़लकालीन पंजाब के व्यापार के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about trade in Punjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। पंजाब का विदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, सीरिया, चीन और यूरोपीय देशों के साथ चलता था। पंजाब इन देशों को सूती और रेशमी कपड़े, शालें, कंबल, अनाज, चीनी, नील और नमक आदि का निर्यात करता था। इनके बदले पंजाब इन देशों से बढ़िया नस्ल के घोड़े, खुश्क मेवे, ऐश्वर्य की चीजें, रेशम, बहुमूल्य पत्थरों इत्यादि का आयात करता था।

प्रश्न 10.
मुग़लों के अधीन पंजाब की आर्थिक दशा का संक्षेप में वर्णन करो।
(Write a short note on the economic condition of Punjab during the Mughal rule.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों की आर्थिक अवस्था पर एक नोट लिखें। .
(Write a note on economic condition of Punjabis during the Mughal rule.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों की आर्थिक स्थिति उच्च दर्जे की थी। उस समय कृषि 80% लोगों का मुख्य व्यवसाय था। भूमि के उपजाऊ तथा सरकार द्वारा पूर्ण सहायता प्रदान किए जाने के कारण कृषि काफ़ी उन्नत थी। मुग़लकालीन पंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग था। कपड़ा उद्योग उस समय पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग था। पंजाब के कुछ लोग पशु-पालन का कार्य करते थे। कुछ लोग खानों में कार्य करते थे। उस समय पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार भी उन्नत था।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
मुग़लकाल में पंजाबी समाज किन दो वर्गों में बँटा हुआ था ?
उत्तर-
मुसलमान तथा हिंदू।

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प्रश्न 2.
पंजाब में मुस्लिम समाज को कितने वर्गों में बँटा हुआ था ?
अथवा
मुग़ल काल में मुसलमानों की तीन श्रेणियों के नाम बताओ।
अथवा
मुगलकालीन समाज में मुसलमानों की तीन श्रेणियाँ कौन-सी थीं ?
उत्तर-
उच्च वर्ग, मध्य वर्ग तथा निम्न वर्ग।

प्रश्न 3.
मुगलकालीन पंजाब में मुसलमानों के समाज की कितनी श्रेणियाँ थीं ?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 4.
मुग़लकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की उच्च श्रेणी के लोग कैसा जीवन व्यतीत करते थे ?
उत्तर-
बहुत ऐश्वर्यपूर्ण।

प्रश्न 5.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की निम्न श्रेणी में सम्मिलित कोई एक वर्ग बताएँ।
उत्तर-
दास।

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प्रश्न 6.
मुग़लकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज के निम्न वर्ग के लोगों की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत दयनीय।

प्रश्न 7.
मुगलकालीन पंजाब के हिंदू समाज में कितनी जातियाँ प्रचलित थीं ?
उत्तर-
चार।

प्रश्न 8.
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत दयनीय।

प्रश्न 9.
मुगलकालीन पंजाब के स्त्री समाज की कोई एक बुराई कौन-सी थी ?
उत्तर-
सती प्रथा।

प्रश्न 10.
क्या मुग़लकालीन पंजाब में दास प्रथा प्रचलित थी ?
उत्तर-
हां।

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प्रश्न 11.
मुग़लकालीन में पंजाब में उच्च शिक्षा के लिए प्रसिद्ध कोई एक केंद्र बताएँ।
उत्तर-
लाहौर।

प्रश्न 12.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों की आर्थिक दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत अच्छी

प्रश्न 13.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
उत्तर-
कृषि।

प्रश्न 14.
मुग़लकालीन पंजाब का सबसे महत्त्वपूर्ण उद्योग कौन-सा था ?
उत्तर-
सूती कपड़ा उद्योग।

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प्रश्न 15.
मुगलकालीन पंजाब में रेशम उद्योग के किसी एक विख्यात केंद्र का नाम लिखें।
उत्तर-
कश्मीर।

प्रश्न 16.
मुगलकालीन पंजाब में व्यापार की दशा कैसी थी ?
उत्तर-
बहुत उन्नत।

प्रश्न 17.
मुगलकालीन पंजाब के दो सर्वाधिक विख्यात व्यापारिक नगर कौन-से थे ?
उत्तर-
लाहौर तथा मुलतान।

प्रश्न 18.
मुगलकालीन पंजाब के किसी एक प्रसिद्ध नगर का नाम लिखिए।
उत्तर-
लाहौर।

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प्रश्न 19.
मुगलकालीन पंजाब में कौन-सा सिक्का सर्वाधिक प्रचलित था ?
उत्तर-
दाम।

प्रश्न 20.
मुग़लकाल में प्रचलति सिक्का दाम किस धातु का बना हुआ था ?
उत्तर-
ताँबे का।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
मुग़लों के अधीन पंजाब का मुस्लिम समाज…….श्रेणियों में बँटा हुआ था।
उत्तर-
(तीन)

प्रश्न 2.
मुसलमानों की निम्न श्रेणी में सबसे अधिक संख्या…….की थी।
उत्तर-
(गुलामों)

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प्रश्न 3.
मुग़लकालीन पंजाब के हिंदू समाज में…….को सर्वोच्च स्थान प्राप्त था।
उत्तर-
(ब्राह्मणों)

प्रश्न 4.
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में स्त्रियों की स्थिति बहुत…..थी।
उत्तर-
(शोचनीय)

प्रश्न 5.
मुग़लकालीन पंजाब में……….और……..उच्च शिक्षा के सबसे प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
(लाहौर, मुलतान)

प्रश्न 6.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय…….था।
उत्तर-
(कृषि)

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प्रश्न 7.
मुग़लकालीन पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग……..था।
उत्तर-
(सूती कपड़ा उद्योग)

प्रश्न 8.
मुग़ल काल में ……….शालों के उद्योग के लिए संसार में प्रसिद्ध था।
उत्तर-
(कश्मीर)

प्रश्न 9.
मुग़ल काल में सूती कपड़ा उद्योग के लिए……और…..प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
(लाहौर, मुलतान)

प्रश्न 10.
मुग़ल काल में पंजाब के…….और……नगर व्यापारिक पक्ष से सब से महत्त्वपूर्ण हैं।
उत्तर-
(लाहौर, मुलतान)

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प्रश्न 11.
अकबर ने हिंदुओं पर लगे तीर्थ यात्रा कर को……..में हटा दिया था।
उत्तर-
(1563 ई०)

प्रश्न 12.
अकबर ने 1564 ई० में हिंदुओं पर लगे……..को हटा दिया था।
उत्तर-
(जज़िया कर)

प्रश्न 13.
औरंगजेब ने……….में हिंदुओं पर पुन: जजिया कर को लगा दिया था।
उत्तर-
(1679 ई०)

प्रश्न 14.
मुग़ल काल में भारत में सबसे अधिक इस्लाम का प्रसार…..में हुआ था।
उत्तर-
(पंजाब)

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प्रश्न 15.
मुग़ल काल में पंजाब में……..धर्म का जन्म हुआ।
उत्तर-
(सिख)

प्रश्न 16.
मध्यकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य धर्म …………. था।
उत्तर-
(हिंदू)

(iii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
मुग़ल काल में पंजाब का मुस्लिम समाज दो श्रेणियों में बँटा हुआ था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
मुसलमानों की उच्च श्रेणी में मनसबदार और सूबेदार शामिल थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 3.
मुसलमानों की मध्य श्रेणी में दास शामिल थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
मुसलमानों की निम्न श्रेणी की संख्या सबसे अधिक थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 5.
मुग़ल काल में पंजाब का हिंदू समाज कई जातियों और उपजातियों में बँटा हुआ था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
मुग़ल काल के हिंदू समाज में लोग शूद्रों से घृणा करते थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 7.
मुग़लकालीन पंजाब के हिंदू समाज में स्त्रियों की दशा बहुत शोचनीय थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 8.
मुग़ल काल में अधिकतर हिंदू शाकाहारी थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 9.
मुग़ल काल में हिंदू स्त्रियाँ साड़ियाँ पहनती थीं।।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 10.
मुग़ल काल में लाहौर और मुलतान उच्च शिक्षा के दो प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 11.
मुग़लकालीन पंजाब में शिक्षा का प्रसिद्ध केंद्र लाहौर था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
मुग़ल काल में स्त्रियों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित किया जाता था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 13.
मुग़ल काल में पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
पंजाब में जब्ती प्रणाली 1581 ई० में शुरू की गई थी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 15.
जब्ती प्रणाली के अधीन ज़मीन को पाँच वर्गों में बांटा हुआ था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 16.
मुग़ल काल में चमड़ा उद्योग पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 17.
मुग़ल काल में लाहौर और अमृतसर सूती कपड़ा उद्योग के दो प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
मुग़ल काल में कश्मीर और लाहौर रेशमी उद्योग के दो प्रसिद्ध केंद्र थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 19.
मुग़ल काल में कश्मीर शालों के उद्योग के लिए सबसे अधिक प्रसिद्ध था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
दाम ताँबे की धातु का बना होता था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 21.
मुग़लकालीन पंजाब में सिख धर्म का जन्म हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 22.
मुग़ल काल में चिश्ती सिलसिला बहुत प्रसिद्ध था।
उत्तर-
ठीक

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(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
मुग़लकाल में पंजाब का समाज कितने मुख्य वर्गों में बँटा हुआ था ?
(i) दो
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 2.
मुगलकाल में पंजाब का मुस्लिम समाज कितने वर्गों में बँटा हुआ था ?
(i) तीन
(ii) चार
(iii) पाँच
(iv) सात।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 3.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की उच्च श्रेणी में कौन शामिल नहीं थे ?
(i) जागीरदार
(ii) मनसबदार
(iii) व्यापारी
(iv) सूबेदार।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 4.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की मध्य श्रेणी में कौन शामिल नहीं थे ?
(i) व्यापारी
(ii) किसान
(iii) सैनिक
(iv) मज़दूर।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 5.
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज की निम्न श्रेणी में कौन शामिल था ?
(i) दास
(ii) मजदूर
(iii) नौकर
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 6.
मुग़लकालीन स्त्री समाज में किस बुराई का प्रचलन था ?
(i) कन्या वध
(ii) बाल विवाह
(iii) सती प्रथा
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 7.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों का मनोरंजन का मुख्य साधन क्या था ?
(i) शिकार
(ii) शतरंज
(iii) नृत्य-संगीत
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 8.
मुगलकालीन में पंजाब में उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र कौन-सा था ?
(i) लाहौर
(ii) मुलतान
(iii) सरहिंद
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 9.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
(i) कृषि
(ii) व्यापार
(iii) उद्योग
(iv) पशु-पालन।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 10.
मुगलकालीन पंजाब की प्रमुख फ़सल कौन-सी थी ?
(i) गेहूँ
(ii) गन्ना
(iii) कपास
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 11.
मुगलकालीन पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग कौन-सा था ?
(i) सूती कपड़ा उद्योग
(ii) चमड़ा उद्योग
(iii) खंड उद्योग
(iv) लकड़ी उद्योग।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 12.
मुगलकालीन पंजाब में निम्नलिखित में से कौन-सा केंद्र ऊनी वस्त्र के उद्योग के लिए सबसे प्रसिद्ध था ?
(i) कश्मीर
(ii) गुजरात
(iii) लाहौर
(iv) स्यालकोट।
उत्तर-
(i)

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प्रश्न 13.
मुगलकालीन पंजाब के लोग किस वस्तु का निर्यात नहीं करते थे ?
(i) घोडे
(ii) कपड़ा
(iii) चीनी
(iv) कंबल।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 14.
मुगलकालीन पंजाब का कौन-सा नगर व्यापार के लिए सबसे प्रसिद्ध था ?
(i) अमृतसर
(ii) कश्मीर
(iii) लाहौर
(iv) पानीपत।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 15.
मुगलकाल में सर्वाधिक प्रचलित दाम नाम का सिक्का किस धातु का बना था ?
(i) सोना
(ii) चाँदी
(iii) लोहा
(iv) ताँबा।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 16.
मुगलकालीन पंजाब में चाँदी के सिक्के को क्या कहा जाता था ?
(i) दाम
(ii) सिक्का
(iii) रुपया
(iv) मुद्रा।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 17.
मुगलकाल में किस धर्म का जन्म हुआ ?
(i) इस्लाम
(ii) हिंदू धर्म
(iii) सिख धर्म
(iv) ईसाई धर्म।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
मुगलकालीन पंजाब में मुस्लिम समाज की स्थिति कैसी थी ? (What was the condition of Muslims under the Mughals ?)
अथवा
मुगलकालीन पंजाब के मुस्लिम समाज पर एक नोट लिखें। (Write a note on the Muslim society of the Punjab during the Mughal times.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। शासक वर्ग से संबंधित होने के कारण उनको समाज में कुछ विशेष सुविधाएँ प्राप्त थीं। राज्य के उच्च पदों पर मुसलमानों को नियुक्त किया जाता था। उस समय मुसलमान तीन श्रेणियों में विभाजित थे। उच्च श्रेणी जिसमें बड़े-बड़े मनसबदार, सूबेदार, जागीरदार आदि शामिल थे; वे बड़ा आरामदायक एवं शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। सुरा एवं सुंदरी उनके मनोरंजन के मुख्य साधन थे। उनकी सेवा के लिए बड़ी संख्या में नौकर होते थे। मध्य वर्ग में किसान, दुकानदार और छोटे दर्जे के सरकारी कर्मचारी शामिल थे। उच्च श्रेणी के मुकाबले में उनका जीवन स्तर चाहे कुछ नीचा था पर फिर भी उनका जीवन खुशहाल था। निम्न श्रेणी में घरेलू नौकर, श्रमिक, दास, छोटे दुकानदार आदि शामिल थे। उनकी स्थिति बड़ी शोचनीय थी। निर्धन होने के कारण उनका जीवन-निर्वाह करना अत्यंत कठिन होता था।

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प्रश्न 2.
मुगलकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति कैसी थी ? (What was the condition of Hindus in the society of Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुगलों के अधीन पंजाब के हिंदुओं की स्थिति का संक्षेप में अध्ययन करें। (Study in brief the condition of Hindu society in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के समाज में हिंदुओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। समाज में चाहे हिंदुओं की संख्या अधिक थी, परंतु उन्हें उच्च पदों से वंचित रखा जाता था। मुसलमान उनको काफिर कहते थे। उनका बहुत अपमान किया जाता था। उनको इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता था। उस समय हिंदू समाज कई जातियों तथा उपजातियों में बंटा हुआ था। जाति संबंधी नियम पहले से अधिक कठोर हो गए थे। उच्च जाति के लोग निम्न जाति के लोगों से घृणा करते थे। उन पर घोर अत्याचार किए जाते थे। इसके अतिरिक्त उन पर अनेक पाबंदियाँ लगाई गई थीं। समाज में प्रत्येक व्यक्ति अपनी जाति के अनुसार कार्य करता था। जाति संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति का सामाजिक बहिष्कार किया जाता था। हिंदुओं की यह जाति प्रथा उनके लिए बड़ी हानिकारक सिद्ध हुई।

प्रश्न 3.
मग़लों के अधीन पंजाब में स्त्रियों की हालत कैसी थी ? (What was the position of women in Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुग़लकालीन पंजाब में स्त्रियों में प्रचलित किन्हीं छः बुराइयों का संक्षिप्त विवरण दें। (Describe any six evils prevalent among women in the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी।

  1. उस समय लड़कियों का विवाह अल्पायु में ही कर दिया जाता था।
  2. लड़कियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था।
  3. पति की मृत्यु हो जाने पर पत्नी को पति के साथ जीवित जला दिया जाता था। इस प्रथा को सती प्रथा कहा जाता था।
  4. जो स्त्रियाँ सती नहीं होती थीं उनको विधवा का जीवन व्यतीत करना पड़ता था। विधवा को पुनर्विवाह की आज्ञा नहीं थी।
  5. मुस्लिम और हिंदू स्त्रियों में पर्दे की प्रथा प्रचलित थी।
  6. समाज में स्त्रियों का स्थान पुरुषों के बराबर नहीं समझा जाता था।

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प्रश्न 4.
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों के मनोरंजन के क्या मुख्य साधन थे ?
(What were the main sources of entertainment of the people of Punjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोग कई ढंगों से अपना मनोरंजन करते थे। उच्च श्रेणी के लोग अपना मनोरंजन शिकार, रथों की दौड़ में भाग लेकर, चौगान खेलकर, कबूतरबाज़ी करके, मुर्गों की लड़ाई देखकर, तैराकी करके, शतरंज और चौपड़ खेल कर और महिफ़लों में भाग लेकर करते थे। आम लोग अपना मनोरंजन संगीत, नाच-भंगड़े, कुश्तियाँ करके, दौड़ों में भाग लेकर, जादूगरों तथा मदारियों के खेल देख कर तथा ताश खेल कर करते थे। इनके अतिरिक्त लोग त्योहारों तथा मेलों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते थे। हिंदुओं के प्रमुख त्योहार दीवाली, दशहरा, वैशाखी, लोहड़ी, होली, शिवरात्रि और राम नवमी आदि थे। मुसलमानों के मुख्य त्योहार. ईद, शबे-बारात और नौरोज थे। इनके अतिरिक्त सूफ़ी-संतों की मजारों पर भी भारी मेले लगते थे। सिख वैशाखी तथा दीवाली के अवसरों पर हरिमंदिर साहिब अमृतसर में बहुत उत्साह के साथ इकट्ठे होते थे।

प्रश्न 5.
मुग़लों के अधीन पंजाब में शिक्षा का क्या प्रबंध था ? (Write a note about prevalent education in Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़ल काल में लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्रारंभिक शिक्षा मंदिरों में और मुसलमान अपनी शिक्षा मस्जिदों में प्राप्त करते थे। ये लोगों द्वारा दिए गए दान पर चलते थे। यहाँ विद्यार्थियों को अपने-अपने धर्मों के बारे में भी शिक्षा दी जाती थी। मुसलमानों की अपेक्षा हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। वे अपनी पढ़ाई पूरी करने के पश्चात् गुरु को कुछ दक्षिणा दिया करते थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, स्यालकोट, जालंधर, सुल्तानपुर, बटाला, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। सरकार इनको आर्थिक सहायता देती थी। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। केवल उच्च घराने की कुछ स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त करती थीं। इनकी शिक्षा का प्रबंध घरों में ही निजी तौर पर किया जाता था।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 14 मुगलों के अधीन पंजाब की सामाजिक और आर्थिक स्थिति

प्रश्न 6.
मुगलकालीन पंजाब के लोगों की सामाजिक स्थिति की मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
(Mention the main salient features of social condition of people of the Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब में मुसलमानों की स्थिति बहुत अच्छी थी। उनको समाज में कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे। मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों-उच्च, मध्य एवं निम्न श्रेणी में बंटा हुआ था। उच्च श्रेणी के लोग बड़े ऐश्वर्य और शानो-शौकत का जीवन व्यतीत करते थे। निम्न श्रेणी के लोगों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। हिंदुओं की जो कि पंजाब की बहुसंख्यक श्रेणी से संबंधित थे, स्थिति अच्छी नहीं थी। उनको बहुत-से अधिकारों से वंचित रखा जाता था। मुसलमान उनसे बहुत घृणा करते थे। हिंदू समाज कई जातियों और उपजातियों में बंटा हुआ था। जाति संबंधी नियम पहले से बहुत कठोर हो चुके थे। समाज में स्त्रियों की स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय लोग सूती और रेशमी कपड़े पहनते थे। उच्च वर्ग के लोगों की पोशाकें बहुत कीमती हुआ करती थीं जबकि आम लोगों की पोशाक बिल्कुल सादा होती थी। उस समय स्त्रियाँ और पुरुष दोनों गहने पहनने के बड़े शौकीन थे।

प्रश्न 7.
मग़लकालीन पंजाब की खेती-बाड़ी संबंधी स्थिति पर संक्षिप्त प्रकाश डालें। (Give an account of agriculture of Punjab under the Mughals.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाब में सरकार ने खेती-बाडी संबंधी कौन-सी नीति अपनाई ?
(What policy did the government adopt regarding agriculture in Punjab under the Mughals ?)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों का मुख्य व्यवसाय क्या था ? (What was the main occupation of Punjabis under the Mughals ?)
उत्तर-
मुगलकालीन पंजाब में लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी था। पंजाब के 80% लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे। इसलिए मुग़ल सरकार ने खेती-बाड़ी को उत्साहित करने के लिए विशेष ध्यान दिया। नई भूमि को खेती के अधीन लाने वाले किसानों को विशेष सुविधाएँ दी जाती थीं। सिंचाई साधनों को उन्नत करने के लिए सरकार किसानों को तकावी ऋण बाँटती थी। लगान, भूमि की उपजाऊ शक्ति और सिंचाई की सुविधाओं के अनुसार भिन्न-भिन्न स्थानों पर अलग-अलग निश्चित किया गया था। अकाल के दिनों में भूमि का लगान माफ कर दिया जाता था। लगान एकत्रित करने वाले कर्मचारियों को राज्य की ओर से कड़े निर्देश थे कि वे किसी प्रकार भी कृषकों का शोषण न करें। खादों के प्रयोग को उत्साहित किया जाता था। इन सभी प्रयत्नों के परिणामस्वरूप मुग़लों के समय फसलों की भरपूर पैदावार प्राप्त की जाती थी। उस समय पंजाब की प्रमुख फसलें गेहूँ, चने, चावल, मक्की , गन्ना, कपास और जौ थीं। इनके अतिरिक्त उस समय तिलहन, अफ़ीम और कई प्रकार के फलों की भी खेती की जाती थी।

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प्रश्न 8.
मुगलकालीन पंजाब में प्रचलित कपड़ा उद्योग संबंधी जानकारी दें। (Write a brief note on textile industry of Punjab under the Mughals.)
उत्तर-
मुगलकालीन पंजाब में प्रचलित उद्योगों में सूती कपड़ा उद्योग सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण था। अमृतसर, लाहौर, मुलतान और गुजरात में बढ़िया प्रकार का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान बढ़िया दरियों, मेज़पोशों तथा चादरों के लिए प्रसिद्ध था। पेशावर में सुंदर लुंगियाँ तैयार की जाती थीं। मुलतान, लाहौर और अमृतसर में पायजामे और सलवारें तैयार की जाती थीं। गुजरात में शिफोन का कपड़ा तैयार किया जाता था। मुलतान, कश्मीर और अमृतसर रेशमी कपड़ा उद्योग के प्रसिद्ध केंद्र थे। उस समय पंजाब में गुलबदन, दरियाई और धूप-छाँव नाम के रेशमी वस्त्र तैयार किये जाते थे। उस समय रेशमी कपड़े की लाहौर राज्य के उच्च घरानों में बड़ी माँग, थी। ऊनी कपड़ा उद्योग के लिए कश्मीर और अमृतसर के केंद्र प्रसिद्ध थे। कश्मीर शालों के उद्योग के लिए संसार भर में प्रसिद्ध था। शालें तैयार करने के लिए विदेशों से भी ऊन मंगवाई जाती थी। अमृतसर में शालें, कंबल और लोइयाँ बनाई जाती थीं। यहाँ के कंबल और लोइयाँ बहुत प्रसिद्ध थीं।

प्रश्न 9.
मुगलकालीन पंजाब के व्यापार के संबंध में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about trade in Punjab under the Mughals ?)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार बहुत उन्नत था। इसके कई कारण थे। पहला, पंजाब की भौगोलिक स्थिति व्यापारिक पक्ष से बहुत महत्त्वपूर्ण थी। दूसरे, यहाँ के यातायात के साधन उन्नत थे। तीसरे, यहाँ फसलों की भरपूर पैदावार होती थी और उद्योग-धंधे भी उन्नत थे। व्यापार का कार्य क्षत्रियों, बनियों, महाजनों, अरोड़ों, बोहरों और खोजों के हाथ में था। पंजाब का विदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, सीरिया, चीन और यूरोपीय देशों के साथ चलता था। पंजाब इन देशों को सूती और रेशमी कपड़े, शालें, कंबल, अनाज, चीनी, नील और नमक आदि का निर्यात करता था। इनके बदले पंजाब इन देशों से बढ़िया नस्ल के घोड़े, खुश्क मेवे, ऐश्वर्य की चीजें, रेशम, बहुमूल्य पत्थरों इत्यादि का आयात करता था। सामान को ढोने के लिए बैल-गाड़ियों, ऊँटों, खच्चरों, घोड़ों और बैलों का प्रयोग किया जाता था। इसके अतिरिक्त जल मार्ग से सामान ले जाने के लिए नावों का प्रयोग भी किया जाता था।

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प्रश्न 10.
मुग़लों के अधीन पंजाब की आर्थिक दशा का संक्षेप में वर्णन करो। (Write a short note on the economic condition of Punjab during the Mughal rule.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाबियों की आर्थिक अवस्था पर एक नोट लिखें। (Write a note on the economic condition of Punjabis during the Mughal rule.)
अथवा
मुगलकालीन पंजाब की आर्थिक हालत के ऊपर प्रकाश डालें। (Throw light on the economic condition of Punjab under the Mughal rule.)
उत्तर-
मुग़लकालीन पंजाब के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी। कृषि उस समय के लोगों का मुख्य व्यवसाय था। भूमि के उपजाऊ होने के कारण, उत्तम सिंचाई साधनों तथा सरकार द्वारा विशेष सुविधाएँ दिए जाने के कारण इस धंधे को बहुत प्रोत्साहन मिला। परिणामस्वरूप उस समय फसलों की भरपूर पैदावार प्राप्त की जाती थी। पंजाब की मुख्य फसलें गेहूँ, चावल, गन्ना, कपास, मक्की, चना और जौ थीं। पंजाब के लोगों का दूसरा मुख्य व्यवसाय उद्योग थे। कपड़ा उद्योग उस समय पंजाब का सबसे प्रसिद्ध उद्योग था। इसके अतिरिक्त चमड़ा उद्योग, चीनी उद्योग, शस्त्र उद्योग और लकड़ी उद्योग भी प्रसिद्ध थे। उस समय पंजाब का आंतरिक और विदेशी व्यापार भी उन्नत था। पंजाब का विदेशी व्यापार अरब देशों, अफ़गानिस्तान, ईरान, तिब्बत और यूरोपीय देशों के साथ चलता था। पंजाब से इन देशों को सूती और रेशमी कपड़े, शालें, कंबल, अनाज, चीनी, नील इत्यादि का निर्यात किया जाता था। इनके बदले पंजाब विदेशों से बहुमूल्य पत्थर, रेशम, खुश्क मेवे तथा बढ़िया नस्ल के घोड़ों आदि का निर्यात करता था। मुग़लकालीन पंजाब में वस्तुओं की कीमतें बहुत कम थीं। परिणामस्वरूप निर्धन लोगों का निर्वाह भी अच्छे ढंग से हो जाता था।

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
मुग़ल काल में लोगों को शिक्षा देना सरकार की जिम्मेवारी नहीं थी। हिंदू अपनी प्राथमिक शिक्षा मंदिरों में तथा मुसलमान मस्जिदों में प्राप्त करते थे। ये लोगों द्वारा दिए गए दान पर चलते थे। यहाँ विद्यार्थियों को अपने-अपने धर्मों के बारे में शिक्षा दी जाती थी। मुसलमानों के मुकाबले हिंदू शिक्षा में अधिक रुचि लेते थे। विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी। वे अपनी पढ़ाई पूरी करके गुरुं को कुछ दक्षिणा दे देते थे। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए पंजाब में लाहौर, मुलतान, स्यालकोट, जालंधर, सुल्तानपुर, बटाला, अंबाला, सरहिंद आदि स्थानों पर मदरसे बने हुए थे। सरकार इन मदरसों को आर्थिक सहायता देती थी। इस काल में स्त्रियों की शिक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। केवल उच्च घराने की कुछ स्त्रियाँ शिक्षा प्राप्त करती थीं। इनकी शिक्षा का प्रबंध घरों में प्राइवेट तौर पर किया जाता था।

  1. मुग़ल काल में शिक्षा विकसित क्यों नहीं थी ?
  2. मुग़ल काल में मुसलमान अपनी आरंभिक शिक्षा कहाँ से प्राप्त करते थे ?
  3. मुग़ल काल में प्रचलित शिक्षा की कोई एक विशेषता लिखें।
  4. मुग़ल काल में स्त्रियों की शिक्षा कैसी थी ?
  5. मुग़ल काल में विद्यार्थी अपनी पढ़ाई पूरी करके गुरु को कुछ ……….. देते थे।

उत्तर-

  1. क्योंकि मुग़ल काल में शिक्षा देने की जिम्मेवारी सरकार की नहीं थी।
  2. मुग़ल काल में मुसलमान अपनी आरंभिक शिक्षा मस्जिदों से प्राप्त करते थे।
  3. उस समय विद्यार्थियों से कोई फीस नहीं ली जाती थी।
  4. मुग़ल काल में स्त्रियों की शिक्षा की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जाता था।
  5. दक्षिणा।

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2
मुग़ल काल में पंजाब के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती-बाड़ी था। पंजाब की कुल जनसंख्या के 80 प्रतिशत लोग इस व्यवसाय से जुड़े हुए थे। इसका मुख्य कारण यह था कि यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ थी और सिंचाई साधनों की कोई कमी नहीं थी। मुग़ल बादशाह इस बात से भली-भाँति परिचित थे कि साम्राज्य की खुशहाली किसानों की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है। इसलिए उन्होंने खेती-बाड़ी को प्रोत्साहित करने के लिए विशेष ध्यान दिया। 1581 ई० में पंजाब में ज़ब्ती प्रणाली लागू की गई थी। इस व्यवस्था के अंतर्गत पंजाब में खेती योग्य सारी भूमि की पैमाइश की गई। इस भूमि को उसकी उपजाऊ शक्ति के आधार पर चार वर्गों पोलज, परोती, छछर और बंजर भूमि में बाँटा गया। सरकार अपना लगान भूमि की उपजाऊ शक्ति, सिंचाई की सुविधाओं तथा पिछले दस वर्ष की औसत उपज को ध्यान में रखकर निर्धारित करती थी। यह कुल फसल का 1/3 हिस्सा हुआ करता था। सरकार किसानों की सुविधानुसार अपना लगान अनाज अथवा नकदी के रूप में एकत्रित करती थी। ”

  1. मुगल काल में लोगों का मुख्य व्यवसाय क्या था ?
  2. मुग़ल काल में कितने प्रतिशत लोग कृषि के व्यवसाय से जुड़े हुए थे ? ।
    • 50%
    • 60%
    • 70%
    • 80%.
  3. जब्ती प्रणाली से क्या भाव है ?
  4. मुग़ल काल में खेतीबाड़ी की कोई एक विशेषता लिखें।
  5. मुग़ल काल में सरकार किसानों से किस रूप में अपना लगान इकट्ठा करते थे ?

उत्तर-

  1. मुग़ल काल में लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था।
  2. 80%
  3. ज़ब्ती प्रणाली से भाव कृषि योग्य भूमि की पैमाइश से है।
  4. सरकार अपना लगान भूमि की उपजाऊ शक्ति, सिंचाई की सुविधाओं तथा पिछले दस सालों की औसत उपज को ध्यान में रखकर निश्चित करती थी।
  5. मुग़ल काल में सरकार किसानों से अनाज एवं नकदी के रूप में लगान एकत्रित करती थी।

3
मुग़ल काल में पंजाब में सिख धर्म का जन्म हुआ। इस धर्म की स्थापना गुरु नानक देव जी ने 15वीं शताब्दी में की थी। गुरु नानक देव जी ने उस समय समाज में प्रचलित सामाजिक तथा धार्मिक बुराइयों का खंडन किया। उन्होंने एक ईश्वर की पूजा तथा आपसी भ्रातृत्व का संदेश दिया। उन्होंने संगत तथा पंगत संस्थाओं की नींव रखी। उनके धर्म के द्वार प्रत्येक जाति तथा वर्ग के लोगों के लिए खुले थे। उन्होंने अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का नया मार्ग दिखाया। गुरु जी के संदेश को उनके नौ उत्तराधिकारियों ने जारी रखा। मुग़ल सम्राट अकबर की धार्मिक सहनशीलता की नीति के कारण पंजाब में सिख धर्म को प्रफुल्लित होने का स्वर्ण अवसर मिला। सम्राट् जहाँगीर के सिंहासन पर बैठते ही मुग़ल सिख संबंधों में तनाव आ गया। 1606 ई० में गुरु अर्जन साहिब की शहीदी तथा 1675 ई० में गुरु तेग़ बहादुर जी की शहीदी के कारण सिख भड़क उठे। मुग़ल अत्याचारों का कड़ा उत्तर देने के लिए 1699 ई० में गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ का सृजन किया। खालसा की स्थापना कारण पंजाब के इतिहास में एक नए युग का आरंभ हुआ।

  1. सिख धर्म का जन्म किस काल में हुआ ?
  2. सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
  3. संगत व पंगत से क्या भाव है ?
  4. गुरु तेग़ बहादुर जी को कब शहीद किया गया था ?
    • 1605 ई०
    • 1606 ई०
    • 1665 ई०
    • 1675 ई०
  5. खालसा पंथ की स्थापना किसने की थी ?

उत्तर-

  1. सिख धर्म का जन्म मुग़ल काल में हुआ।
  2. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी थे।
    • संगत से भाव उस समूह से है जो इकट्ठे मिलकर गुरु जी के उपदेश सुनते थे।
    • पंगत से भाव कतारों में बैठकर लंगर छकने से है।
  3. 1675 ई०।
  4. खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोबिंद सिंह जी ने की थी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

गुरु नानक देव जी का जीवन (Life of Guru Nanak Dev Ji)

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी के जीवन का संक्षिप्त वर्णन करें । (Give a brief account of the life of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
सिख पंथ के संस्थापक गुरु नानक देव जी की गणना विश्व के महापुरुषों में की जाती है। गुरु नानक साहिब ने अज्ञानता के अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया। उन्होंने लोगों को सत्यनाम और भ्रातृत्व का संदेश दिया। गुरु नानक देव जी के महान् जीवन का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित अनुसार है—

1. जन्म और माता-पिता (Birth and Parentage)-गुरु नानक देव जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 ई० को पूर्णिमा के दिन राय भोय की तलवंडी में हुआ। यह स्थान अब पाकिस्तान के शेखूपुरा जिला में स्थित है। इस पवित्र स्थान को आजकल ननकाणा साहिब कहा जाता है। गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम मेहता काल
और माता जी का नाम तृप्ता जी था। उनकी एक बहन थी जिसका नाम बेबे नानकी था। सिख परंपराओं के अनुसार गुरु साहिब के जन्म के समय अनेक चमत्कार हुए। भाई गुरदास जी लिखते हैं-
सतगुरु नानक प्रगटिया मिटी धुंध जग चानण होया।
जिओ कर सूरज निकलिया तारे छपे अंधेर पलोया॥

2. बचपन और शिक्षा (Childhood and Education)-गुरु नानक देव जी बचपन से ही बहुत गंभीर और विचारशील स्वभाव के थे। उनका झुकाव खेलों की ओर कम और प्रभु-भक्ति की ओर अधिक था। गुरु साहिब जब सात वर्ष के हुए तो उन्हें पंडित गोपाल की पाठशाला में आरंभिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए भेजा गया। इसके पश्चात् गुरु साहिब ने पंडित बृजनाथ से संस्कृत तथा मौलवी कुतुबुद्दीन से फ़ारसी और अरबी का ज्ञान प्राप्त किया। जब गुरु नानक देव जी 9 वर्ष के हुए तो पुरोहित हरिदयाल को उन्हें जनेऊ पहनाने के लिए बुलाया गया। परंतु उन्होंने स्पष्ट रूप से इंकार कर दिया। उनका कहना था कि वे केवल दया, संतोष, जत और सत से निर्मित जनेऊ पहनेंगे जो न टूटे, न जले और न ही मलिन हो पाये।

3. भिन्न-भिन्न व्यवसायों में (In Various occupations)-गुरु नानक देव जी को अपने विचारों में मगन देखकर उनके पिता जी ने उन्हें किसी कार्य में लगाने का यत्न किया। सर्वप्रथम गुरु नानक देव जी को भैंसें चराने का कार्य सौंपा गया परंतु गुरु नानक देव जी ने कोई रुचि न दिखाई। फलस्वरूप अब गुरु साहिब को व्यापार में लगाने का निर्णय किया गया। गुरु जी को 20 रुपये दिए गए और मंडी भेजा गया। मार्ग में गुरु साहिब को भूखे साधुओं की टोली मिली। गुरु नानक देव जी ने अपने सारे रुपये इन साधुओं को भोजन खिलाने में व्यय कर दिए और खाली हाथ लौट आए। यह घटना इतिहास में ‘सच्चा सौदा’ के नाम से जानी जाती है।

4. विवाह (Marriage)-गुरु नानक देव जी का विवाह बटाला निवासी मूल चंद की सुपुत्री सुलक्खनी जी से कर दिया गया। उस समय आपकी आयु 14 वर्ष थी। समय के साथ आपके घर दो पुत्रों श्री चंद और लखमी दास ने जन्म लिया।

5. सुल्तानपुर लोधी में नौकरी (Service at Sultanpur Lodhi)—जब गुरु नानक देव जी 20 वर्ष के हुए तो मेहता कालू जी ने आपको सुल्तानपुर लोधी में अपने जंवाई जयराम के पास भेज दिया। उनकी सिफ़ारिश पर नानक जी को मोदीखाना अन्न भंडार में नौकरी मिल गई। गुरु साहिब ने यह कार्य बड़ी योग्यता से किया।

6. ज्ञान प्राप्ति (Enlightenment)-गुरु नानक देव जी सुल्तानपुर लोधी में रहते हुए प्रतिदिन सुबह बेईं नदी में स्नान करने के लिए जाते थे। एक दिन वे स्नान करने गए और तीन दिनों तक लुप्त रहे। इस समय उन्हें सत्य ज्ञान की प्राप्ति हुई । उस समय गुरु नानक देव जी की आयु 30 वर्ष थी। ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु साहिब ने सर्वप्रथम “न को हिंदू, न को मुसलमान” शब्द कहे।

7. उदासियाँ (Travels)-1499 ई० में ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु जी ने देश तथा विदेश की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है। इन यात्राओं का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता एवं अंध-विश्वास को दूर करना था तथा परस्पर भ्रातृभाव व एक ईश्वर का प्रचार करना था। भारत में गुरु नानक देव जी ने उत्तर में कैलाश पर्वत से लेकर दक्षिण में रामेश्वरम तक तथा पश्चिम में पाकपटन से लेकर पूर्व में आसाम तक की यात्रा की। गुरु साहिब भारत से बाहर मक्का, मदीना, बगदाद तथा लंका भी गए। गुरु साहिब की यात्राओं के बारे में हमें उनकी बाणी से महत्त्वपूर्ण संकेत मिलते हैं। गुरु नानक साहिब ने अपने जीवन के लगभग 21 वर्ष इन यात्राओं में बिताए। इन यात्राओं के दौरान गुरु नानक देव जी लोगों में फैले अंध-विश्वास को काफी सीमा तक दूर करने में सफल हुए तथा उन्होंने नाम के चक्र को चारों दिशाओं में फैलाया।

8. करतारपुर में निवास (Settled at Kartarpur)-गुरु नानक देव जी ने 1521 ई० में रावी नदी के तट पर करतारपुर नामक नगर की स्थापना की। यहाँ गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए एक मील पत्थर सिद्ध हुआ। गुरु नानक देव जी की प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब, वार माझ, आसा दी वार, सिद्ध गोष्टि, वार मल्हार, बारह माह और पट्टी इत्यादि हैं।

9. उत्तराधिकारी की नियुक्ति (Nomination of the Successor)-1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु नानक देव जी ने एक नारियल और पाँच पैसे भाई लहणा जी के सम्मुख रखकर अपना शीश झुकाया। इस प्रकार भाई लहणा जी गुरु अंगद देव जी बने। इस प्रकार गुरु नानक साहिब ने एक ऐसा पौधा लगाया जो गुरु गोबिंद सिंह जी के समय एक घने वृक्ष का रूप धारण कर गया। डॉक्टर हरी राम गुप्ता के अनुसार,
“गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति एक बहुत ही दूरदर्शिता वाला कार्य था।”1

10. ज्योति-जोत समाना (Immersed in Eternal Light)-गुरु नानक देव जी 22 सितंबर, 1539 ई० को ज्योति-जोत समा गए।

1. “The appointment of Angad was a step of far-reaching significance.” Dr. H.R. Gupta, History of Sikh Gururs (New Delhi : 1973) p. 81.

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ 1
GURDWARA NANKANA SAHIB : PAKISTAN

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

गुरु नानक देव जी की उदासियाँ (Udasis of Guru Nanak Dev Ji)

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें। इनका क्या उद्देश्य था ?
(Write a note on the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was the aim of these Udasis ?) ·
अथवा
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। (What is meant by Udasis ? Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
संक्षेप में गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें। उनका क्या उद्देश्य था ?
(Briefly discuss the travels (Udasis) of Guru Nanak Dev Ji. What was their aim ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों का वर्णन करें। (Give an account of the Udasis (travels) of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
‘ गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। इन उदासियों का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा ?
(Describe briefly the Udasis of Guru Nanak Dev Ji. What was their impact on society ?)
उत्तर-
1499 ई० में ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी देश और विदेशों की लंबी यात्रा के लिए निकल पड़े। गुरु नानक देव जी ने लगभग 21 वर्ष इन यात्राओं में व्यतीत किए। गुरु नानक साहिब की इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है क्योंकि गुरु साहिब इस समय के दौरान घर-द्वार त्याग कर एक उदासी की भाँति भ्रमण करते रहे। गुरु नानक देव जी ने कुल कितनी उदासियाँ की, इस संबंध में इतिहासकारों में मतभेद हैं। आधुनिक खोजों ने यह सिद्ध कर दिया है कि गुरु नानक देव जी की उदासियों की संख्या तीन थी।

उदासियों का उद्देश्य (Objects of the Udasis)
गुरु नानक देव जी की उदासियों का प्रमुख उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता और अंध-विश्वासों को दूर करना था। उस समय हिंदू और मुसलमान दोनों ही धर्म के मार्ग से भटक चुके थे। हिंदू ब्राह्मण और योगी जिनका प्रमुख कार्य भटके हुए लोगों को सही मार्ग दिखाना था, वे स्वयं ही भ्रष्ट और आचरणहीन हो चुके थे। लोगों ने असंख्य देवी-देवताओं, कब्रों, वृक्षों, सर्पो और पत्थरों इत्यादि की आराधना आरंभ कर दी थी। मुसलमानों के धार्मिक नेता भी चरित्रहीन हो चुके थे। उस समय अधिकाँश मुसलमान भोग-विलास का जीवन व्यतीत करते थे। समाज कई जातियों और उपजातियों में विभाजित था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। समाज में स्त्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी। गुरु नानक देव जी ने अज्ञानता में भटक रहे इन लोगों को प्रकाश का एक नया मार्ग बताने के लिए यात्राएँ कीं।
प्रसिद्ध इतिहासकार डॉ० एस० एस० कोहली के अनुसार,
“इस महापुरुष ने अपने मिशन को इस देश तक सीमित नहीं रखा। उसने सारी मानवता की जागृति के लिए दूर-दूर के देशों की यात्राएँ कीं।”2

प्रथम उदासी
(First Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में अपनी पहली यात्रा आरंभ की। इन यात्राओं के समय भाई मरदाना उनके साथ रहा। इस यात्रा को गुरु नानक देव जी ने 12 वर्ष में संपूर्ण किया और वह पूर्व से दक्षिण की ओर गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. सैदपुर (Saidpur)-गुरु नानक देव जी अपनी प्रथम उदासी के दौरान सर्वप्रथम सैदपुर (ऐमनाबाद) पहुँचे। . यहाँ पहुँचने पर मलिक भागो ने गुरु साहिब को एक ब्रह्मभोज पर निमंत्रण दिया, परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। जब इस संबंध में मलिक भागो ने गुरु नानक साहिब से पूछा तो उन्होंने एक हाथ में मलिक भागो के भोज और दूसरे हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी लेकर ज़ोर से दबाया। मलिक भागो के भोज से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकला। इस प्रकार गुरु साहिब ने उसे बताया कि हमें श्रम तथा ईमानदारी की कमाई करनी चाहिए।

2. तालुंबा (Talumba) गुरु नानक देव जी की तालुंबा में भेंट सज्जन ठग से हुई। उसने यात्रियों के लिए अपनी हवेली में एक मंदिर और मस्जिद बनाई हुई थी। वह दिन के समय तो यात्रियों की खूब सेवा करता किंतु रात के समय उन्हें लूटकर कुएँ में फैंक देता था। वह गुरु नानक देव जी और मरदाना के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की योजनाएँ बना रहा था। रात्रि के समय जब गुरु नानक देव जी ने वाणी पढ़ी तो सज्जन ठग गुरु साहिब के चरणों में गिर पड़ा। गुरु नानक देव जी ने उसे क्षमा कर दिया। इस घटना के पश्चात् सज्जन ने अपना शेष जीवन सिख धर्म का प्रचार करने में व्यतीत किया। के० एस० दुग्गल के अनुसार, “सज्जन की सराय जो कि एक वधस्थल था, एक धर्मशाला में परिवर्तित हो गया।”3

3. कुरुक्षेत्र (Kurukshetra)-गुरु नानक देव जी सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र पहुँचे। इस अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण और साधु एकत्रित हुए थे। गुरु नानक देव जी ने ब्राह्मणों को समझाया कि हमें सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।

4. दिल्ली (Delhi) दिल्ली में गुरु नानक देव जी मजनूं का टिल्ला में रुके। गुरु नानक देव जी के उपदेशों का वहाँ की संगत पर गहरा प्रभाव पड़ा।

5. हरिद्वार (Haridwar)-गुरु नानक देव जी जब हरिद्वार पहुँचे तो वहाँ बड़ी संख्या में हिंदू स्नान करते हुए पूर्व की ओर मुँह करके सूर्य और पितरों को पानी दे रहे थे। ऐसा देखकर गुरु साहिब ने पश्चिम की ओर मुँह करके पानी देना आरंभ कर दिया। यह देखकर लोग गुरु जी से पूछने लगे कि वे क्या कर रहे हैं। गुरु जी ने कहा कि वे करतारपुर में अपने खेतों को पानी दे रहे हैं। यह उत्तर सुनकर लोग हंस पड़े और कहने लगे कि यह पानी यहाँ से 300 मील दूर उनके खेतों में कैसे पहुंच सकता है ? गुरु जी ने उत्तर दिया कि यदि तुम्हारा पानी लाखों मील दूर स्थित सूर्य तक पहुँच सकता है तो मेरा पानी इतने निकट स्थित खेतों तक क्यों नहीं पहुँच सकता ? गुरु जी के इस उत्तर से लोग बहुत प्रभावित हुए तथा उनके अनुयायी बन गए।

6. गोरखमता (Gorakhmata)—गुरु नानक देव जी हरिद्वार के पश्चात् गोरखमता पहुँचे। गुरु नानक देव जी ने यहाँ के सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल पहनने, शरीर पर विभूति रमाने, शृंख बजाने से अथवा सिर मुंडवा देने से मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। ये योगी गुरु साहिब के उपदेशों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उस समय से ही गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

7. बनारस (Banaras)-बनारस भी हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था। यहाँ गुरु नानक देव जी का पंडित चतर दास से मूर्ति-पूजा के संबंध में एक दीर्घ वार्तालाप हुआ। गुरु जी के उपदेशों से प्रभावित होकर चतर दास गुरु जी का सिख बन गया।

8. कामरूप (Kamrup)-धुबरी से गुरु नानक देव जी कामरूप (असम) पहुँचे। यहाँ की प्रसिद्ध जादूगरनी नूरशाही ने अपनी सुंदरता के बल पर गुरु जी को भटकाने का असफल प्रयास किया। गुरु जी ने उसे जीवन का सही मनोरथ बताया।

9. जगन्नाथ पुरी (Jagannath Puri)-असम की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी पहुँचे। पंडितों ने गुरु साहिब को जगन्नाथ देवता की आरती करने के लिए कहा। गुरु नानक साहिब ने उन्हें बताया कि उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है।

10. लंका (Ceylon)-गुरु नानक जी दक्षिण भारत के प्रदेशों से होते हुए लंका पहुँचे। गुरु साहिब के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित होकर लंका का राजा शिवनाथ गुरु जी का अनुयायी बन गया।

11. पाकपटन (Pakpattan)—लंका से पंजाब वापसी के समय गुरु नानक देव जी पाकपटन में ठहरे। यहाँ वे शेख फरीद जी की गद्दी पर बैठे शेख़ ब्रह्म को मिले। यह मुलाकात दोनों के लिए एक प्रसन्नता का स्रोत सिद्ध हुई।

2. “The Great Master did not confine his mission to this country; he travelled far and wide to far off lands and countries in order to enlighten humanity as a whole.” Dr. S.S. Kohli, Travels of Guru Nanak (Chandigarh : 1978) p. IX.
3. “Sajjan’s den of an assassin was transformed into a dharmsala.” K.S. Duggal, Sikh Gurus : Their Lives and Teachings (New Delhi : 1993) p. 17.

द्वितीय उदासी
(Second Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1513 ई० के अंत में अपनी द्वितीय उदासी उत्तर की ओर आरंभ की। इस उदासी में उन्हें तीन वर्ष लगे। इस उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी निम्नलिखित प्रमुख स्थानों पर गए—

1. पहाड़ी रियासतें (Hilly States)—गुरु नानक देव जी ने मंडी, रवालसर, ज्वालामुखी, काँगड़ा, बैजनाथ और कुल्लू इत्यादि पहाड़ी रियासतों की यात्रा की। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से प्रभावित होकर इन पहाड़ी रियासतों के बहुत-से लोग उनके अनुयायी बन गए।

2. कैलाश पर्वत (Kailash Parvat)-गुरु नानक देव जी तिब्बत से होते हुए कैलाश पर्वत पहुँचे। गुरु साहिब के यहाँ पहुँचने पर सिद्ध बहुत हैरान हुए। गुरु नानक देव जी ने उन्हें बताया कि संसार से सत्य लुप्त हो गया है और चारों ओर भ्रष्टाचार और झूठ का बोलबाला है। इसलिए गुरु साहिब ने उन्हें मानवता का पथ-प्रदर्शन करने का संदेश दिया।

3. लद्दाख (Ladakh)—कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु नानक देव जी लद्दाख पहुँचे। यहाँ के बहुत-से लोग गुरु साहिब के अनुयायी बन गए।

4. कश्मीर (Kashmir)-कश्मीर में स्थित मटन में गुरु नानक देव जी का पंडित ब्रह्मदास से काफ़ी लंबा धार्मिक शास्त्रार्थ हुआ। गुरु नानक देव जी ने उसे समझाया कि मुक्ति केवल वेदों और रामायण इत्यादि को पढ़ने से नहीं अपितु उनमें दी गई बातों पर अमल करके प्राप्त की जा सकती है।।

5. हसन अब्दाल (Hasan Abdal)-गुरु नानक देव जी पंजाब की वापसी यात्रा के समय हसन अब्दाल ठहरे। यहाँ एक अहँकारी फकीर वली कंधारी ने गुरु नानक देव जी को कुचलने के उद्देश्य से एक बहुत बड़ा पत्थर पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़का दिया। गुरु साहिब ने इसे अपने पंजे से रोक दिया। इस स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।

6. स्यालकोट (Sialkot) स्यालकोट में गुरु नानक देव जी की मुलाकात एक मुसलमान सन्त हमजा गौस से हुई। उसने किसी बात पर नाराज़ होकर अपनी शक्ति द्वारा सारे शहर को नष्ट करने का निर्णय कर लिया था। परंतु जब वह गुरु साहिब से मिला तो वह उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपना निर्णय बदल दिया। इस घटना का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

तृतीय उदासी
(Third Udasi)
गुरु नानक देव जी ने 1517 ई० के अंत में अपनी तृतीय उदासी आरंभ की। इस उदासी के दौरान गुरु साहिब पश्चिमी एशिया के देशों की ओर गए। इस उदासी के दौरान गुरु नानक साहिब ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. मुलतान (Multan)—मुलतान में बहुत-से सूफ़ी संत निवास करते थे। मुलतान में गुरु साहिब की भेंट प्रसिद्ध सूफी संत शेख बहाउद्दीन से हुई। शेख बहाउद्दीन उनके विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।

2. मक्का (Mecca)-मक्का हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म स्थान है । सिख परम्परा के अनुसार गुरु नानक देव जी जब मक्का पहुँचे तो काअबे की ओर पाँव करके सो गए। जब काज़ी रुकनुद्दीन ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गया। कहा जाता है कि जब काजी ने गुरु साहिब के पाँव पकड़कर दूसरी ओर घुमाने आरंभ किए तो मेहराब भी उसी ओर घूमने लग पड़ा। यह देखकर मुसलमान बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब ने उन्हें समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।

3. मदीना (Madina) मक्का के पश्चात् गुरु नानक देव जी मदीना पहुँचे। गुरु साहिब ने अपने उपदेशों का प्रचार किया। यहाँ गुरु साहिब का इमाम आज़िम के साथ शास्त्रार्थ भी, हुआ।

4. बगदाद (Baghdad) बगदाद में गुरु नानक देव जी की भेंट शेख बहलोल से हुई। वह गुरु साहिब की वाणी से प्रभावित होकर उनका श्रद्धालु बन गया।

5. सैदपुर (Saidpur)—गुरु नानक देव जी जब 1520 ई० के अंत में सैदपुर पहुंचे तो उस समय बाबर ने पंजाब पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय हज़ारों की संख्या में लोगों को बंदी बना लिया गया। इन बंदी बनाए गए लोगों में गुरु नानक साहिब भी थे। जब बाद में बाबर को यह ज्ञात हुआ कि गुरु साहिब एक महान् संत हैं तो उसने न केवल गुरु नानक देव जी को बल्कि बहुत से अन्य बंदियों को भी रिहा कर दिया।

इसके पश्चात् गुरु नानक देव जी तलवंडी आ गए। इस प्रकार गुरु नानक देव जी की इन यात्राओं की श्रृंखला 1521 ई० में समाप्त हुई।
उदासियों का प्रभाव
(Impact of the Udasis)
गुरु नानक देव जी की यात्राओं के बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़े। वे लोगों में फैले अंधविश्वासों को दूर करने और उनमें एक नई जागृति लाने में काफ़ी सीमा तक सफल हुए। गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर हज़ारों की संख्या में लोग उनके परम श्रद्धालु बन गए। इस प्रकार गुरु नानक देव जी के जीवन काल में ही सिख पंथ अस्तित्व में आ गया। अंत में हम डॉक्टर एस० एस० कोहली के इन शब्दों से सहमत हैं,
“वे (गुरु नानक देव जी) एक पवित्र उद्देश्य को पूर्ण करना चाहते थे और इसमें उन्हें चमत्कारी सफलता प्राप्त हुई।”4
4. “He had a holy mission to perform and his performance was no less than a miracle.” Dr. S.S. Kohli, op, cit., p. XV..

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ
(Teachings of Guru Nanak Dev Ji)

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का विस्तारपूर्वक वर्णन करें।
(Describe in detail the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाएँ क्या थी ? उनका सामाजिक महत्त्व क्या था ?
(What were the main teachings of Guru Nanak Dev Ji ? What was their social importance ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का अध्ययन कीजिए। उनका सामाजिक महत्त्व क्या था ?
(Study the main teachings of Guru Nanak Dev Ji. What was their social significance ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन करें। (Study the main teachings of Guru Nanak Dev Ji.).
अथवा
गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करो। (Give a brief account of the main teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का वर्णन करो। (Describe the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल किंतु प्रभावशाली थीं। उनकी शिक्षाएँ किसी एक वर्ग, जाति अथवा प्रांत के लिए नहीं थीं। इनका संबंध तो सारी मानव जाति से था। गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है—

1. ईश्वर का स्वरूप (The Nature of God)-गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी वाणी में बार-बार ईश्वर की एकता पर बल दिया है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर ही संसार की रचना करता है, उसका पालन-पोषण करता है और उसका विनाश करता है। देवी-देवते सैंकड़ों और हजारों हैं, परंतु ईश्वर एक है। उसे कई नामों से जाना जाता है जैसे-हरि, गोपाल, वाहेगुरु, साहिब, अल्लाह, खुदा और राम इत्यादि। ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। वह जो चाहता है, वही होता है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता। गुरु जी के अनुसार ईश्वर निराकार है। उसका कोई आकार अथवा रंग-रूप नहीं है। उसका शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता।

2. माया (Maya)-गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुएँ जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र इत्यादि के चक्र में फंसा रहता है। इसी को माया कहते हैं। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

3. हऊमै (Haumai)-मनमुख व्यक्ति में हऊमै (अहं) की भावना बड़ी प्रबल होती है। हऊमै के कारण वह संसार की बुराइयों में फंसा रहता है। फलस्वरूप वह मुक्ति प्राप्त करने की अपेक्षा आवागमन के चक्र में और फंस जाता है।

4. जाति प्रथा का खंडन (Condemnation of the Caste System) उस समय का हिंदू समाज न केवल चार मुख्य जातियों बल्कि अनेक अन्य उपजातियों में विभाजित था। उच्च जाति के लोग निम्न जाति से बहुत घृणा करते थे और उन पर बहुत अत्याचार करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत फैल गई थी। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु साहिब ने लोगों को परस्पर भ्रातृभाव का संदेश दिया।

5. मूर्ति-पूजा का खंडन (Condemnation of Idol Worship)-गुरु नानक देव जी ने मूर्ति-पूजा के विरुद्ध प्रचार किया। गुरु साहिब का कहना था कि पत्थर की मूर्तियाँ निर्जीव हैं। यदि उन्हें पानी में फेंक दिया जाए तो वे डूब जाएँगी। जो मूर्तियाँ स्वयं की रक्षा नहीं कर पातीं, वे मनुष्य को कैसे इस भवसागर से पार उतार सकती हैं ? अतः इन मूर्तियों की पूजा करना व्यर्थ है।

6. खोखले रीति-रिवाजों का खंडन (Condemmation of Empty Rituals)-गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित खोखले रीति-रिवाजों एवं अंधविश्वासों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने लोगों को बताया कि माथे पर तिलक लगाने, शरीर पर राख मलने, उपवास रखने, वन में जाकर तपस्या करने, भगवे वस्त्र पहनने से मनुष्य को मुक्ति प्राप्त नहीं होती। उनके अनुसार उस व्यक्ति का धर्म सच्चा है जिसका अंतःकरण सच्चा है।

7. स्त्रियों के साथ निम्न बर्ताव का खंडन (Denounced IItreatment with Women)-गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। उनमें असंख्य कुरीतियाँ प्रचलित थीं। गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने समानता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई। गुरु नानक साहिब फरमाते हैं,
सो क्यों मंदा आखिए जित जम्मे राजान ॥

8. नाम का जाप (Recitation of Nam)-गुरु नानक देव जी नाम जपने और शब्द की आराधना को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझते थे। इन पर चलकर मनुष्य इस रोगग्रस्त अथवा कष्टमयी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। नाम के बिना मनुष्य आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। ईश्वर के नाम का जाप पावन मन और सच्ची श्रद्धा से करना चाहिए। डॉक्टर दीवान सिंह लिखते हैं,

9. गुरु का महत्त्व (Importance of the Guru)—गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को बहुत महत्त्वपूर्ण समझते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है। गुरु ही मनुष्य को अंधकार (अज्ञानता) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर लाता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती।

10. हुक्म (Hukam)-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म को विशेष महत्त्व प्राप्त है। हुक्म के कारण ही मनुष्य को सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। गुरवाणी में अनेक स्थानों पर उस वाहिगुरु के हुक्म को मीठा करके मानने का आदेश दिया गया है। जो मनुष्य ऐसा करता है उसे मुक्ति प्राप्त होती है। जो मनुष्य परमात्मा के आदेश को नहीं मानता वह दर-दर की ठोकरें खाता है।

11. सच्च-खंड (Sach Khand)-गुरु नानक देव जी के अनुसार मानव जीवन का उच्चतम उद्देश्य सच्च-खंड को प्राप्त करना है। सच्च-खंड तक पहुँचने के लिए मनुष्य को धर्म-खंड, ज्ञान-खंड, शर्म-खंड तथा कर्म-खंड में से गुज़रना होता है। सच्च-खंड आखिरी अवस्था है। सच्च-खंड में आत्मा पूर्णतया परमात्मा में लीन हो जाती है।

“पापों एवं बुराइयों से ग्रसित मानवता की मुक्ति के लिए केवल नाम ही सबसे प्रभावकारी स्रोत एवं . शक्ति है।”5
5. Nam is the only and most efficacious source and agent for the redemption and salvation of the sinful and self-engrossed mankind.” Dr. Dewan Singh, Mysticism of Guru Nanak (Amritsar : 1995)2. 57.

शिक्षाओं का महत्त्व
(Importance of Teachings)
गुरु नानक देव जी के उपदेशों ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों को पर्याप्त सीमा तक प्रभावित किया। परिणामस्वरूप लोगों को एक नई दिशा मिली। वे व्यर्थ के रस्म-रिवाज छोड़कर एक परमात्मा की पूजा करने लगे। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का खंडन करके, परस्पर भ्रातृ-भाव का प्रचार करके, स्त्रियों को पुरुषों के समान दर्जा देकर, संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की स्थापना करके एक नए समाज की आधारशिला रखी। गुरु जी ने अपने उपदेशों द्वारा उस समय के अत्याचारी शासकों तथा उनके भ्रष्ट अधिकारियों को भी झकझोर डाला। प्रसिद्ध इतिहासकार . आई० बी० बैनर्जी के अनुसार,
“गुरु नानक का समय अज्ञानता तथा संघर्ष का समय था तथा हम यह बिना झिझक कह सकते हैं कि गुरु नानक का सन्देश सत्य तथा शाँति का संदेश था।”6

6. “The age of Guru Nanak was an age of ignorance and an age of strife, and we may say at . once the message of Nanak was a message of truth and a message of peace.” Dr. I.B. Banerjee Evolution of the Khalsa (Calcutta : 1979) Vol. I, p. 95.

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की सिख पंथ को देन के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
उत्तर-
15वीं शताब्दी में, जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तो उस समय लोग अज्ञानता के अँधकार में भटक रहा था। समाज में महिलाओं की दशा बहुत खराब थी। गुरु नानक देव जी ने लोगों में नई जागृति उत्पन्न करने के उद्देश्य से देश तथा विदेश की यात्राएँ की। गुरु जी ने संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की नींव डाली। गुरु नानक देव जी ने 1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुई।

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प्रश्न 2.
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ?
(What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ? (What were the aims of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी द्वारा विभिन्न दिशाओं में की गई यात्राओं को उनकी उदासियाँ कहा जाता है। इन उदासियों का उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता तथा अंधविश्वास को दूर करना था। वह एक ईश्वर की पूजा तथा भाईचारे का संदेश जन-साधारण तक पहुंचाना चाहते थे। गुरु नानक साहिब ने लोगों को अपने विचारों से अवगत कराया। उन्होंने समाज में प्रचलित झठे रीति-रिवाजों, कर्मकांडों तथा कुप्रथाओं का खंडन किया। उनकी यात्रा का प्रमुख उद्देश्य धर्म के वास्तविक रूप को लोगों के समक्ष लाना था।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं तीन महत्त्वपूर्ण उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें। (Give a brief account of any three important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी सैदपुर से शुरू की। मलिक भागों द्वारा पूछने पर गुरु जी ने बताया कि हमें मेहनत की कमाई से गुजारा करना चाहिए न कि बेईमानी के पैसों से।।
  2. हरिद्वार में गुरु नानक देव जी ने लोगों को यह बात समझाई कि गंगा स्नान करने से या पितरों को पानी देने से कुछ प्राप्त नहीं होता।
  3. मक्का में गुरु जी ने यह प्रमाणित किया कि अल्लाह किसी विशेष स्थान पर नहीं अपितु प्रत्येक स्थान पर विद्यमान है।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार लिखिए।
(Write an essence of the teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं तीन शिक्षाओं का वर्णन कीजिए। (Describe any three teachings of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर एक है। वह निराकार तथा सर्वव्यापक है।
  2. गुरु जी माया को मुक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानते थे।
  3. गुरु जी काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार को मनुष्य के पाँच शत्रु बताते हैं। इनके कारण मनुष्य आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।
  4. गुरु नानक देव जी ने मूर्ति पूजा का खंडन किया।
  5. गुरु नानक देव जी के अनुसार मनमुख व्यक्ति में अहंकार की भावना बहुत प्रबल होती है।

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nank Dev Ji’s concept of God ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about God ?)
उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने ईश्वर की एकता पर बल दिया।
  2. केवल ईश्वर ही संसार को रचने वाला, पालने वाला तथा नाश करने वाला है।
  3. ईश्वर के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी।
  4. ईश्वर सर्वशक्तिमान् है। उसकी इच्छा के विपरीत कुछ नहीं हो सकता।
  5. वह आवागमन के चक्र से मुक्त है।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने किन प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं का खंडन किया ?
(Which prevalent religious beliefs and conventions were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी ने कौन-से प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा व्यवहारों का खंडन किया ? (What type of religious beliefs and rituals were condemned by Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने समाज में प्रचलित समस्त अंधविश्वासों तथा व्यवहारों का ज़ोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने वेद, शास्त्र, मूर्ति पूजा, तीर्थ यात्रा, तथा जीवन के विभिन्न महत्त्वपूर्ण अवसरों से संबंधित संस्कारों का विरोध किया। ब्राह्मण इन रस्मों के मुख्य समर्थक थे। उन्होंने जोगियों की पद्धति को भी दो कारणों से स्वीकार न किया। प्रथम, जोगियों में ईश्वर के प्रति श्रद्धा का अभाव था। दूसरा, वे अपने सामाजिक दायित्व से दूर भागते थे। गुरु नानक देव जी अवतारवाद में भी विश्वास नहीं रखते थे।

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या है ? संक्षिप्त उत्तर दीजिए।
(What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ? Explain in brief.)
अथवा
गुरु नानक देव जी के माया के संकल्प का वर्णन कीजिए।
(Describe Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी मानते थे कि माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, सुंदर नारी, पुत्र आदि के चक्रों में फंसा रहता है। इसे ही माया कहते हैं। माया जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसका मौत के बाद साथ नहीं देती। माया के कारण वह आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

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प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में गुरु का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Guru’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के गुरु संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of ‘Guru’ ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को एक वास्तविक सीढ़ी मानते हैं। वह ही मनुष्य को मोह और अहं के रोग से दूर करता है। वही नाम और शब्द की आराधना करने का ढंग बताता है। गुरु के बिना भक्ति भाव और ज्ञान संभव है। गुरु के बिना मनुष्य को चारों और अँधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अँधकार से प्रकाश की ओर लाता है। सच्चा गुरु ईश्वर स्वयं है, जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में ‘नाम’ का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Nam’ in Guru Nanak.Dev Ji’s teachings ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी नाम की आराधना को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझते थे। नाम आराधना के कारण मनुष्य इस रोगग्रस्त अथवा कष्टमयी संसार से मुक्ति प्राप्त कर सकता है। नाम की आराधना करने वाले मनुष्य के सभी भ्रम दूर हो जाते हैं तथा उसके सभी दुःखों का नाश हो जाता है। उसकी आत्मा सदैव एक कमल के फूल की तरह खिली रहती है। ईश्वर के नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है। नाम के बिना मनुष्य सभी प्रकार के पापों और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। ईश्वर उसे नरक से नहीं बचा सकता।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में हुक्म का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Hukam’ in Guru Nanak Dev Ji’s teachings ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म अथवा भाणे को विशेष महत्त्व प्राप्त है। सारा संसार उस परमात्मा के हुक्म के अनुसार चलता है। उसके हुक्म के अनुसार ही जीव इस संसार में जन्म लेता है या उसकी मृत्यु होती है। उसे प्रशंसा प्राप्त होती है अथवा वह नीच बन जाता है। हुक्म के कारण ही उसे सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य परमात्मा के हुकम को नहीं मानता वह दर-दर की ठोकरे खाता है।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी के स्त्री जाति संबंधी क्या विचार थे ? (What were the views of Guru-Nanak Dev Ji about women ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में स्त्रियों का स्थान पुरुषों के समान नहीं समझा जाता था। गुरु नानक देव जी बाल-विवाह, बहु-विवाह तथा सती प्रथा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का समर्थन किया। इस संबंध में उन्होंने स्त्रियों को संगत एवं पंगत में सम्मिलित होने की आज्ञा दी।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के संदेश का सामाजिक अर्थ क्या था ? (What was the social meaning of Guru Nanak Dev Ji’s message ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का पंजाब पर क्या प्रभाव पड़ा ? (What was the impact of teachings of Guru Nanak Dev Ji on Punjab ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के संदेश के सामाजिक अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश प्रत्येक के लिए था। कोई भी स्त्री-पुरुष गुरु जी द्वारा दर्शाए गए मार्ग को अपना सकता था। मुक्ति का मार्ग सबके लिए खुला था। गुरु जी ने सामाजिक समानता का प्रचार किया। उन्होंने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। सामाजिक समानता के संदेश को व्यावहारिक रूप देने के लिए गुरु जी ने संगत तथा पंगत (लंगर) नामक दो संस्थाएँ चलाईं। लंगर तैयार करते समय जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था।

प्रश्न 13.
जाति प्रथा पर गुरु नानक देव जी के क्या विचार थे? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji on caste system ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उनका प्रमुख उद्देश्य सामाजिक असमानता को दूर करना था। गुरु नानक देव जी का कथन था कि कोई भी व्यक्ति अपनी जाति के कारण अमीर अथवा ग़रीब नहीं होता। परमात्मा के दरबार में जाति नहीं अपितु कर्मों के अनुसार फल मिलता है। गुरु नानक देव जी ने निम्न जातियों एवं निम्न वर्गों के लोगों को अपने साथ जोड़ा।

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से किस प्रकार भिन्न थीं ?
(How far were the teachings of Guru Nanak Dev Ji different from the Bhakti reformers ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा निराकार है। वह कभी भी मानवीय रूप को घारण नहीं करता। भक्ति प्रचारकों ने कृष्ण तथा राम को परमात्मा का अवतार माना। गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे। जबकि भक्ति प्रचारकों का इसमें पूर्ण विश्वास था। गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन में विश्वास रखते थे। भक्ति प्रचारक गृहस्थ जीवन को मुक्ति की राह में आने वाली एक बड़ी रुकावट मानते थे। गुरु नानक देव जी ने संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाएँ स्थापित की। भक्ति प्रचारकों ने ऐसी कोई संस्था स्थापित नहीं की।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी एक महान् कवि और संगीतकार थे। इसकी व्याख्या करें।
(Guru Nanak Dev Ji was a great poet and musician. Explain.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी एक धार्मिक महापुरुष होने के साथ-साथ एक महान् संगीतकार तथा कवि भी थे। आपकी कविताओं के मुकाबले की कविताएँ विश्व साहित्य में भी बहुत कम हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित आप जी के 976 शब्द आपके महान् कवि होने का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। गुरु नानक देव जी ने इन कविताओं में परमात्मा तथा मानवता का गुणगान किया है। इनमें उच्चकोटि के अलंकरणों तथा उपमाओं का प्रयोग किया गया है। गुरु नानक देव जी कई प्रकार के रागों की जानकारी रखते थे। उनके कीर्तन का जनमानस पर गहरा प्रभाव पड़ता था।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष कहाँ तथा कैसे व्यतीत किए ? (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने करतारपुर (अर्थात् ईश्वर का नगर) मामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की । ‘संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। ‘पंगत’ से अभिप्राय था- एक पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर-
1469 ई०।

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर-
तलवंडी (पाकिस्तान)।

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान को आजकल क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
ननकाणा साहिब।

प्रश्न 5.
“सतगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधु जागु चानणु होआ” किसने कहा था?
उत्तर-
भाई गुरदास जी।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी के पिता का क्या नाम था ?
उत्तर-
मेहता कालू जी।

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी के पिता जी किस जाति से संबंधित थे?
उत्तर-
बेदी।

प्रश्न 8.
मेहता कालू जी कौन थे?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के पिता।

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
उत्तर-
तृप्ता जी।

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प्रश्न 10.
तृप्ता जी कौन थी?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की माता जी।

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी की बहन का क्या नाम था ?
उत्तर-बेबे नानकी जी।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी की पत्नी का क्या नाम था ?
अथवा
गुरु नानक देव जी का विवाह किसके साथ हुआ था?
उत्तर-
बीबी सुलक्खनी जी से।

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प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा कितने रुपयों के साथ किया?
उत्तर-
20 रुपयों के साथ।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी को सुल्तानपुर लोधी क्यों भेजा गया?
उत्तर-
नौकरी करने के लिए।

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति कब हुई ?
उत्तर-
1499 ई०

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प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम कौन-से शब्द कहे?
अथवा
गुरु नानक साहिब ने किस स्थान से तथा किन शब्दों से सर्वप्रथम प्रचार आरंभ किया?
उत्तर-
“न को हिंदू न को मुसलमान”

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उनकी यात्राओं से है।

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का क्या उद्देश्य था?
उत्तर-
लोगों में फैली अज्ञानता और अंधविश्वासों को दूर करना।

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प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी कब आरंभ की?
उत्तर-
1499 ई०।

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासी कहाँ से आरंभ की?
उत्तर-
सैदपुर।

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी ने अपनी प्रथम उदासी के दौरान जिन स्थानों पर चरण रखे, उनमें से किसी एक महत्त्वपूर्ण स्थान का नाम बताएँ।
उत्तर-
कुरुक्षेत्र।

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प्रश्न 22.
उदासियों के समय गुरु नानक देव जी का साथी कौन था ?
उत्तर-
भाई मरदाना जी।

प्रश्न 23.
भाई मरदाना कीर्तन के समय कौन-सा साज़ बजाता था ?
उत्तर-
रबाब।

प्रश्न 24.
श्री गुरु नानक देव जी सैदपुर में किसके घर ठहरे थे ?
अथवा
गुरु नानक देव जी का प्रथम शिष्य कौन था ?
उत्तर-
भाई लालो।

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प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने सैदपुर (ऐमनाबाद) में मलिक भागो का भोजन खाने से क्यों इंकार कर दिया था?
उत्तर-
क्योंकि उसकी कमाई ईमानदारी की नहीं थी।

प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी सज्जन ठग को कहाँ मिले ?
अथवा
श्री गुरु नानक देव जी की सज्जन के साथ मुलाकात कहाँ हुई थी ?
उत्तर-
तालुंबा में।

प्रश्न 27.
गुरु नानक देव जी ने किस स्थान पर पूर्व की अपेक्षा पश्चिम दिशा में अपने खेतों को पानी दिया?
उत्तर-
हरिद्वार।

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प्रश्न 28.
गुरु नानक देव जी पानीपत में किस सूफ़ी से मिले ?
उत्तर-
शेख ताहिर से।

प्रश्न 29.
गुरु नानक देव जी की उदासी के बाद गोरखमता का क्या नाम पड़ा?
उत्तर-
नानकमता।

प्रश्न 30.
नूरशाही कौन थी?
उत्तर-
कामरूप की प्रसिद्ध जादूगरनी।

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प्रश्न 31.
उड़ीसा के किस मंदिर में गुरु साहिब ने लोगों को आरती का सही अर्थ बताया?
उत्तर-
जगन्नाथ पुरी।

प्रश्न 32.
गुरु नानक साहिब ने कैलाश पर्वत के सिद्धों को क्या उपदेश दिया?
उत्तर-
वह मानवता की सेवा करें।

प्रश्न 33.
गुरु नानक देव जी लंका के किस शासक को मिले थे ?
उत्तर-
शिवनाथ।

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प्रश्न 34.
गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासियों के दौरान किस स्थान पर काबे को घुमाया?
उत्तर-
मक्का

प्रश्न 35.
मक्का में गुरु नानक देव जी का किस काजी के साथ वाद-विवाद हुआ?
उत्तर-
रुकनुद्दीन।

प्रश्न 36.
हसन अब्दाल को अब किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर-
पंजा साहिब।

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प्रश्न 37.
श्री गुरु नानक देव जी बगदाद में किस शेख को मिले ?
उत्तर-
शेख बहलोल।

प्रश्न 38.
गुरु नानक देव जी को बाबर ने कब गिरफ्तार किया था?
उत्तर-
1520 ई०।

प्रश्न 39.
गुरु नानक देव जी का समकालीन मुग़ल बादशाह कौन था?
उत्तर-
बाबर।

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प्रश्न 40.
गुरु नानक देव जी ने सैदपुर आक्रमण की तुलना किसके साथ की है?
उत्तर-
पाप की बारात।

प्रश्न 41.
गुरु नानक देव जी की कोई एक मुख्य शिक्षा बताएँ।
उत्तर-
ईश्वर एक है।

प्रश्न 42.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या था?
उत्तर-
संसार एक माया है।

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प्रश्न 43.
गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य के पाँच दुश्मन कौन-से हैं ?
उत्तर-
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार।

प्रश्न 44.
गुरु नानक देव जी की शिक्षा में गुरु का क्या महत्त्व है?
अथवा
सिख धर्म में गुरु को क्या महत्त्व दिया गया है?
उत्तर-
गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है।

प्रश्न 45.
गुरु नानक देव जी के अनुसार नाम जपने का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है।

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प्रश्न 46.
मनमुख व्यक्ति की कोई एक विशेषता बताएँ।
उत्तर-
मनमुख व्यक्ति इंद्रिय-जन्य भूख से घिरा रहता है।

प्रश्न 47.
आत्म-समर्पण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
अहं का त्याग।

प्रश्न 48.
‘नदिर’ शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ईश्वर की दया।

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प्रश्न 49.
हुक्म शब्द से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
ईश्वर की इच्छा।

प्रश्न 50.
‘किरत’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
मेहनत तथा इमानदारी का श्रम।

प्रश्न 51.
अंजन माहि निरंजन’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संसार की बुराइयों में रहते हुए सादा तथा पवित्र जीवन व्यतीत करना।

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प्रश्न 52.
गुरु नानक देव जी ने अपने अनुयायियों को कौन-सी तीन बातों पर चलने को कहा?
अथवा
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का सार तीन शब्दों में बताएँ।
उत्तर-
श्रम करो, नाम जपो तथा बाँट कर खाओ।

प्रश्न 53.
कीर्तन की प्रथा किस गुरु जी ने आरंभ की?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 54.
रावी के किनारे गुरु नानक देव जी ने कौन-सा नगर बसाया?
उत्तर-
करतारपुर।

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प्रश्न 55.
करतारपुर से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
‘ईश्वर का नगर’। प्रश्न 56. करतारपुर में गुरु नानक देव जी ने कौन-सी दो संस्थाएँ स्थापित की? उत्तर-‘संगत और पंगत’।

प्रश्न 57.
संगत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
संगत से अभिप्राय उस समूह से है जो एकत्रित होकर गुरु जी के उपदेश सुनते हैं।

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प्रश्न 58.
पंगत से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
पंक्तियों में बैठकर लंगर खाना।

प्रश्न 59.
लंगर प्रथा का आरंभ किस गुरु साहिब ने किया?
उत्तर-
गुरु नानक देव जी।

प्रश्न 60.
गुरु नानक देव जी तथा भक्तों की शिक्षाओं में कोई एक अंतर बताएँ।
उत्तर-
गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के विरुद्ध थे जबकि भक्त नहीं।

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प्रश्न 61.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन का अंतिम समय कहाँ व्यतीत किया?
अथवा
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष कहाँ व्यतीत किए ?
उत्तर-
करतारपुर।

प्रश्न 62.
गुरु नानक देव जी कब ज्योति-जोत समाए थे?”
उत्तर-
1539 ई० में।

प्रश्न 63.
गुरु नानक देव जी कहाँ ज्योति-जोत समाए ?
उत्तर-
करतारपुर (पाकिस्तान)।

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प्रश्न 64.
गुरु नानक देव जी ने किसे अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया?
उत्तर-
गुरु अंगद देव जी।

प्रश्न 65.
गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अंगद देव का नाम क्यों दिया?
उत्तर-
क्योंकि वह भाई लहणा जी को अपने शरीर का एक अंग समझते थे।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
……………. में गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ।
उत्तर-
(1469 ई०)

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प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम ………….. जी था।
उत्तर-
(मेहता कालू)

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की बहन का नाम ……………… जी था।
उत्तर-
(बेबे नानकी)

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की माता जी का नाम ………………. जी था।
उत्तर-
(तृप्ता )

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प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा …………. रुपयों से किया।
उत्तर-
(20)

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी ने ……………….. के मोदीखाने में नौकरी की।
उत्तर-
(सुल्तानपुर लोधी)

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी के ज्ञान-प्राप्ति के समय उनकी आयु ………… थी।
उत्तर-
(30 वर्ष)

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प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् सर्वप्रथम …………….. शब्द कहे।
उत्तर-
(न को हिंदू, न.को मुसलमान)

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से भाव है …………..।
उत्तर-
(यात्राएँ)

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ने पहली उदासी ………….. ई० में शुरू की।
उत्तर-
(1499)

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प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी ने यात्राओं के समय …………….. सदैव उनके साथ रहता था।
उत्तर-
(भाई मरदाना)

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के अपनी पहली यात्रा के दौरान सबसे पहले …………….. नामक स्थान पर गए।
उत्तर-
(सैदपुर)

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी की सज्जन ठग के साथ मुलाकात जन ठग के साथ मुलाकात …………….. में हुई।
उत्तर-
(तालुंबा)

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प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी ने …………… में अपने खेतों को पानी दिया।
उत्तर-
(हरिद्वार)

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी ने ……………. में परमात्मा की वास्तविक आरती के महत्त्व के बारे में बताया।
उत्तर-
(जगन्नाथ पुरी)

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी की सिद्धों के साथ मुलाकात …………… में हुई थी।
उत्तर-
(कैलाश पर्वत)

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प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी मक्का यात्रा के समय वहाँ के काजी का नाम ……………… था।
उत्तर-
(रुकनुद्दीन)

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम वर्ष …………… में व्यतीत किए।
उत्तर-
(करतारपुर)

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी ने …………….. और …………… नामक दो संस्थाओं की स्थापना की।
उत्तर-
(संगत, पंगत)

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प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ………….. परमात्मा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
(एक)

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा और मूर्ति पूजा का ……………… किया।
उत्तर-
(खंडन)

प्रश्न 22.
गुरु नानक देव जी के अनुसार मनुष्य के ……………. शत्रु हैं।
उत्तर-
(पाँच)

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प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी के अनुसार मानव जीवन का उच्चतम उद्देश्य ……………… को प्राप्त करना है।
उत्तर-
(सच्च-खंड)

प्रश्न 24.
गुरु नानक देव जी ……………….. में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
(1539 ई०)

प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने ……………… को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-
(भाई लहणा जी)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 ई० में हुआ।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी के जन्म स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का नाम मेहता काल जी था।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की माता का नाम सभराई देवी जी था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की बहन का नाम बेबे नानकी जी था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी बेदी जाति के साथ संबंधित थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने 40 रुपयों से सच्चा सौदा किया।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी का विवाह अमृतसर निवासी बीबी सुलक्खनी जी के साथ किया गया था।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी के दो पुत्रों के नाम श्रीचंद और लख्मी दास थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी ने गोइंदवाल साहिब के मोदीखाने में नौकरी की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी ने ज्ञान प्राप्ति के बाद ‘म को हिंदू, न को मुसलमान’ नामक शब्द कहे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 12.
ज्ञान प्राप्ति के समय गुरु नानक देव जी की आयु 35 वर्ष थी।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी की उदासियों से भाव उनकी यात्राओं से हैं।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली उदासी सैदपुर से आरंभ की।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी सैदपुर में मलिक भागो के घर ठहरे थे।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी कुरुक्षेत्र में सज्जन ठग से मिले।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 17.
गुरु नानक देव जी ने हरिद्वार से अपने खेतों को पानी दिया था। .
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 18.
गुरु नानक देव जी ने जगन्नाथ पुरी में पंडितों को वास्तविक आरती की जानकारी दी।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 19.
मक्का में गुरु नानक देव जी काबे की ओर पैर करके सो गए थे।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ने संगत और पंगत नामक दो संस्थाओं की स्थापना की थी।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी एक परमात्मा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
ठीक

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प्रश्न 22.
गुरु नानक देव जी जाति प्रथा और मूर्ति पूजा में विश्वास रखते थे।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी स्त्रियों को पुरुषों के समान अधिकार देने के पक्ष में थे।
उत्तर-ठीक

प्रश्न 24.
गुरु नानक देव जी 1539 ई० में ज्योति-ज्योत समाए।
उत्तर-
ठीक

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने भाई लहणा जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए

प्रश्न 1.
सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
(i) गुरु नानक देव जी
(ii) गुरु अंगद देव जी
(iii) गुरु हरगोबिंद जी
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 2.
गुरु नानक देव जी का जन्म कब हुआ ?
(i) 1459 ई० में
(ii) 1469 ई० में
(iii) 1479 ई० में
(iv) 1489 ई० में।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी का जन्म स्थान कौन-सा था ? ।
(i) कीरतपुर साहिब
(ii) करतारपुर
(iii) तलवंडी
(iv) लाहौर।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी के पिता जी का क्या नाम था ?
(i) मेहता कालू जी
(ii) जैराम जी
(iii) श्री चंद जी
(iv) फेरुमल जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की माता जी का क्या नाम था ?
(i) खीवी जी
(ii) तृप्ता जी
(iii) नानकी जी
(iv) गुजरी जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से कौन गुरु नानक देव जी की बहन थी ?
(i) बेबे नानकी जी
(ii) भानी जी
(iii) दानी जी
(iv) खीवी जी।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी ने सच्चा सौदा कितने रुपयों में किया था ?
(i) 10
(ii) 20
(iii) 30
(iv) 50
उत्तर-
(i)

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी की पत्नी का क्या नाम था ?
(i) गंगा देवी जी
(ii) सुलक्खनी जी
(iii) बीबी वीरो जी
(iv) बीबी भानी जी।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 9.
मेहता कालू ने गुरु नानक देव जी को कहाँ नौकरी करने के लिए भेजा था ?
(i) मुलतान
(ii) सीतापुर
(iii) सुल्तानपुर लोधी
(iv) कीरतपुर साहिब।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 10.
ज्ञान प्राप्ति के समय गुरु नानक देव जी की आयु कितनी थी ?
(i) 20 साल
(ii) 22 साल
(iii) 26 साल
(iv) 30 साल।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 11.
गुरु नानक देव जी की उदासियों का उद्देश्य क्या था ?
(i) लोगों में फैले अन्धविश्वास को दूर करना
(ii) नाम का प्रचार करना
(iii) आपसी भाईचारे का प्रचार करना
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी ने अपनी पहली उदासी कहाँ से आरंभ की ?
(i) गोरखमता
(ii) हरिद्वार
(iii) सैदपुर
(iv) कुरुक्षेत्र।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी की मुलाकात सजन ठग से कहाँ हुई थी ?
(i) तालुंबा में
(ii) सैदपुर में।
(iii) दिल्ली में
(iv) धुबरी में।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी जादूगरनी नूरशाही को कहाँ मिले थे ?
(i) गया
(ii) कामरूप
(iii) धुबरी में
(iv) बनारस।
उत्तर-
(ii)

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प्रश्न 15.
किस स्थान पर गुरु नानक साहिब ने बताया परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है ?
(i) हरिद्वार
(ii) कुरुक्षेत्र
(iii) बनारस
(iv) जगन्नाथ पुरी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी श्री लंका में किस शासक से मिले थे ?
(i) कृष्णदेव राय
(ii) भोलेनाथ
(ii) शिवनाथ
(iv) शंकर देव।
उत्तर-
(iii)

प्रश्न 17.
निम्नलिखित में से किस स्थान को आजकल पंजा साहिब के नाम से जाना जाता है ?
(i) पाकपटन
(ii) स्यालकोट
(iii) हसन अब्दाल
(iv) गोरखमता।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 18.
मक्का में कौन-से काज़ी ने गुरु नानक देव जी को काबे की तरफ पाँव करके सोने से रोका था?
(i) बहाउदीन
(ii) कुतुबुदीन
(iii) रुकनुदीन
(iv) शमसुदीन।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 19.
गुरु नानक देव जी की बगदाद में किसके साथ मुलाकाल हुई ?
(i) सज्जन ठग
(ii) शेख बहलोल
(iii) बाबर
(iv) चैतन्य महाप्रभु।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 20.
गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में कब निवास किया ?
(i) 1519 ई० में
(ii) 1520 ई० में
(iii) 1521 ई० में
(iv) 1522 ई० में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 21.
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा का क्या स्वरूप है ?
(i) वह सर्वशक्तिमान है
(ii) वह सदैव रहने वाला है
(iii) वह निर्गुण और सगुण है
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 22.
निम्नलिखित में से कौन-सी विशेषता मनमुख व्यक्ति की नहीं है ?
(i) वह माया के चक्कर में फंसा रहता है।
(ii) वह सदैव नाम का जाप करता है
(iii) उसमें हऊमै की भावना रहती है
(iv) वह सदैव इंद्रियजन्य भूख से घिरा रहता है।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 23.
गुरु नानक देव जी ने निम्नलिखित में से किसका खंडन नहीं किया ?
(i) पुरोहित वर्ग का
(i) जाति प्रथा का
(iii) मूर्ति पूजा का
(iv) स्त्री पुरुष की बराबरी का।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 24.
गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा तक पहुँचने का कौन-सा साधन अपनाना चाहिए ?
(i) नाम का जाप करना
(ii) सच्चे गुरु को मिलना
(iii) परमात्मा का हुक्म मानना
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 25.
गुरु नानक देव जी ने मनुष्य के कितने शत्रु बताएँ हैं ?
(i) दो
(ii) तीन
(iii) चार
(iv) पाँच।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 26.
गुरु नानक देव जी ने निम्नलिखित में से कौन-से सिद्धांत पर चलने के लिए प्रत्येक मनुष्य के लिए ज़रूरी बताया ?
(i) किरत करना
(ii) नाम जपना
(iii) बाँट छकना
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 27.
कीर्तन की प्रथा किस गुरु ने आरंभ की ?
(i) गुरु नानक देव जी ने
(ii) गुरु अमरदास जी ने
(iii) गुरु अर्जन देव जी ने
(iv) गुरु गोबिंद सिंह जी ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 28.
निम्नलिखित में से कौन-सा तथ्य प्रमाणित करता है कि गुरु नानक देव जी एक क्रांतिकारी थे ?
(i) नई संस्थाओं की स्थापना
(i) जाति प्रथा का विरोध
(iii) मूर्ति पूजा का खंडन
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 29.
गुरु नानक देव जी ने अपना उत्तराधिकारी किसे नियुक्त किया ?
(i) भाई जेठा जी
(ii) भाई दुर्गा जी
(iii) भाई लहणा जी
(iv) श्री चंद जी।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 30.
गुरु नानक देव जी कब ज्योति-जोत समाए थे ?
(i) 1519 ई० में
(ii) 1529 ई० में
(iii) 1539 ई० में
(iv) 1549 ई० में।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
गुरु नानक देव जी की सिख पंथ को देन के संबंध में संक्षिप्त जानकारी दें। (Give a brief account of the contribution of Guru Nanak Dev Ji to Sikhism.)
उत्तर-
15वीं शताब्दी में, जब गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ तो उस समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक दशा बहुत शोचनीय थी। मुसलमान शासक वर्ग से संबंधित थे। वे हिंदुओं से बहुत घृणा करते थे और उन पर भारी अत्याचार करते थे। धर्म केवल एक दिखावा बन कर रह गया था। लोग अज्ञानता के अंधकार में भटक रहे थे। समाज में महिलाओं की दशा बहुत खराब थी। गुरु नानक देव जी ने लोगों में प्रचलित अंधविश्वासों को दूर करने के लिए तथा उनमें नई जागृति उत्पन्न करने के उद्देश्य से देश तथा विदेश की यात्राएँ कीं। इन यात्राओं के दौरान गुरु जी ने लोगों से एक ईश्वर की पूजा करने, आपसी भ्रातृत्व, महिलाओं को पुरुषों के समान अधिकार देने, शुद्ध व पवित्र जीवन व्यतीत करने तथा अंध-विश्वासों को त्यागने का.प्रचार किया। गुरु जी जहाँ भी गए उन्होंने अपने उपदेशों द्वारा लोगों पर गहरा प्रभाव डाला। गुरु जी ने शासक वर्ग तथा उसके कर्मचारियों द्वारा किए जा रहे अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाई। उन्होंने संगत तथा पंगत नामक संस्थाओं की नींव रखी। गुरु जी के जीवन काल में ही एक नया भाईचारा अस्तित्व में आ चुका था। गुरु नानक देव जी ने 1539 ई० में ज्योति-जोत समाने से पूर्व अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। गुरु अंगद देव जी की नियुक्ति सिख पंथ के विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण प्रमाणित हुई।

प्रश्न 2.
उदासियों से क्या भाव है ? गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ? (What do you mean by Udasis ? What were the aims of Guru Nanak Dev Ji’s Udasis ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी की उदासियों के क्या उद्देश्य थे ?
(What were the aims of the Udasis of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की उदासियों से अभिप्राय उनकी यात्राओं से था। गुरु नानक देव जी की उदासियों का मुख्य उद्देश्य लोगों में फैली अज्ञानता तथा अंध-विश्वासों को दूर करना था। वह एक ईश्वर की पूजा तथा आपसी भ्रातृत्व का संदेश जन-साधारण तक पहुँचाना चाहते थे। उस समय हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही धर्म के वास्तविक सिद्धांतों को भूल कर अपने मार्ग से भटक चुके थे। पुरोहित वर्ग जिसका मुख्य कार्य भटके हुए लोगों का उचित दिशा निर्देशन करना था, वह स्वयं ही भ्रष्ट हो चुका था। जब धर्म के ठेकेदार स्वयं ही अंधकार में भटक रहे हों तो जन-साधारण की दशा का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। लोगों ने अनगिनत देवी-देवताओं, कब्रों, वृक्षों, साँपों तथा पत्थरों आदि की पूजा आरंभ कर दी थी। इस प्रकार धर्म की सच्ची भावना समाप्त हो चुकी थी। समाज जातियों तथा उपजातियों में विभाजित था। एक जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते थे। समाज में महिलाओं की दशा दयनीय थी। उन्हें पुरुषों के समान नहीं समझा जाता था। गुरु नानक देव जी ने अज्ञानता के अंधेरे में भटक रहे इन लोगों को प्रकाश का एक नया मार्ग दिखाने के लिए यात्राएँ कीं।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

प्रश्न 3.
गुरु नानक देव जी की प्रमुख उदासियों का संक्षिप्त विवरण दीजिए। (Give a brief account of the main Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः महत्त्वपूर्ण उदासियों का संक्षिप्त वर्णन करें।
(Give a brief account of any six important Udasis of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
1. सैदपुर-गुरु नानक देव जी अपनी प्रथम उदासी के दौरान सर्वप्रथम सैदपुर पहुंचे। यहाँ पहुँचने पर मलिक भागो ने गुरु साहिब को एक ब्रह्मभोज पर निमंत्रण दिया, परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। जब इस संबंध में मलिक भागो ने गुरु नानक देव जी से पूछा तो उन्होंने एक हाथ में मलिक भागो के भोज और दूसरे हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी लेकर ज़ोर से दबाया। मलिक भागो के भोज से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकला। इस प्रकार गुरु साहिब ने उसे बताया कि हमें श्रम तथा ईमानदारी की कमाई करनी चाहिए।

2. तालुंबा-तालुंबा में गुरु नानक देव जी की भेंट सज्जन ठग से हुई। उसने यात्रियों के लिए अपनी हवेली में एक मंदिर और मस्जिद बनाई हुई थी। वह दिन के समय तो यात्रियों की खूब सेवा करता, किंतु रात के समय उन्हें लूटकर कुएँ में फेंक देता था। वह गुरु नानक देव जी और मरदाना के साथ भी कुछ ऐसा ही करने की योजनाएँ बना रहा था। रात्रि के समय जब गुरु नानक देव जी ने वाणी पढ़ी तो सज्जन ठग गुरु साहिब के चरणों में गिर पड़ा। गुरु नानक देव जी ने उसे क्षमा कर दिया। इस घटना के पश्चात् सज्जन ने अपना शेष जीवन सिख धर्म का प्रचार करने में व्यतीत किया। .

3. गोरखमता-हरिद्वार के पश्चात् गुरु नानक देव जी गोरखमता पहुँचे। गुरु नानक देव जी ने यहाँ के सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल पहनने, शरीर पर विभूति रमाने, बँख बजाने से अथवा सिर मुंडवा देने से मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। ये योगी गुरु नानक देव जी के उपदेशों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उस समय से ही गोरखमता का नाम नानकमता- पड़ गया।

4. हसन अब्दाल-गुरु नानक देव जी पंजाब की वापसी यात्रा के समय हसन अब्दाल ठहरे। यहाँ एक अहँकारी फकीर वली कंधारी ने गुरु नानक देव जी को कुचलने के उद्देश्य से एक बहुत बड़ा पत्थर पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़का दिया। गुरु साहिब ने इसे अपने पंजे से रोक दिया। इस स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।

5. मक्का -मक्का हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म स्थान है। सिख परंपरा के अनुसार गुरु नानक देव जी जब मक्का पहुँचे तो वह काअबे की ओर पाँव करके सो गए। जब काज़ी रुकनुद्दीन ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गया। गुरु साहिब ने उसे समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।

6. जगन्नाथ पुरी-असम की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी पहुँचे। पंडितों ने गुरु साहिब को जगन्नाथ देवता की आरती करने के लिए कहा। गुरु नानक साहिब ने उन्हें बताया कि उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है।

प्रश्न 4.
गुरु नानक देव जी की प्रथम उदासी का वर्णन करो।
(Give a brief account of the first Udasi of Guru Nanak Dev Ji.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने 1499 ई० के अंत में अपनी पहली यात्रा आरंभ की। इन यात्राओं के समय भाई मरदाना उनके साथ रहा। इस यात्रा को गुरु नानक देव जी ने 12 वर्ष में संपूर्ण किया और वह पूर्व से दक्षिण की ओर गए। इस यात्रा के दौरान गुरु जी ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. सैदपुर-गुरु नानक देव जी अपनी प्रथम उदासी के दौरान सर्वप्रथम सैदपुर पहुँचे। यहाँ पहुँचने पर मलिक भागो ने गुरु साहिब को एक ब्रह्मभोज पर निमंत्रण दिया, परंतु गुरु साहिब एक निर्धन बढ़ई भाई लालो के घर ठहरे। जब इस संबंध में मलिक भागो ने गुरु नानक देव जी से पूछा तो उन्होंने एक हाथ में मलिक भागो के भोज और दूसरे हाथ में भाई लालो की सूखी रोटी लेकर ज़ोर से दबाया। मलिक भागो के भोज से खून और भाई लालो की रोटी में से दूध निकला। इस प्रकार गुरु साहिब ने उसे बताया कि हमें श्रम तथा ईमानदारी की कमाई करनी चाहिए।

2. कुरुक्षेत्र-गुरु नानक देव जी सूर्य ग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र पहुँचे। इस अवसर पर हज़ारों ब्राह्मण और साधु एकत्रित हुए थे। गुरु साहिब ने ब्राह्मणों को समझाया कि हमें सादा एवं पवित्र जीवन व्यतीत करना चाहिए। गुरु जी के विचारों से प्रभावित होकर अनेक लोग उनके अनुयायी बन गए।

3. गोरखमता-हरिद्वार के पश्चात् गुरु नानक देव जी गोरखमता पहुँचे। गुरु नानक साहिब ने यहाँ के सिद्ध योगियों को बताया कि कानों में कुंडल पहनने, शरीर पर विभूति रमाने, शैख बजाने से अथवा सिर मुंडवा देने से मुक्ति प्राप्त नहीं होती। मुक्ति तो आत्मा की शुद्धि से प्राप्त होती है। ये योगी गुरु साहिब के उपदेशों से अत्यधिक प्रभावित हुए। उस समय से ही गोरखमता का नाम नानकमता पड़ गया।

4. कामरूप-धुबरी से गुरु नानक देव जी कामरूप (असम) पहुँचे। यहाँ की प्रसिद्ध जादूगरनी नूरशाही ने. अपनी सुंदरता के बल पर गुरु जी को भटकाने का असफल प्रयास किया। गुरु जी ने उसे जीवन का सही मनोरथ बताया।

5. जगन्नाथ पुरी-असम की यात्रा के पश्चात् गुरु नानक देव जी उड़ीसा में जगन्नाथ पुरी पहुँचे। पंडितों ने गुरु साहिब को जगन्नाथ देवता की आरती करने के लिए कहा। गुरु नानक साहिब ने उन्हें बताया कि उस परम पिता परमात्मा की आरती प्रकृति सदैव करती रहती है।

6. लंका-गुरु नानक देव जी ने लंका की भी यात्रा की। लंका का शासक शिवनाथ गुरु नानक देव जी के व्यक्तित्व से बहुत प्रभावित हुआ तथा उनका श्रद्धालु बन गया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

प्रश्न 5.
गुरु नानक देव जी की दूसरी उदासी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the Second Udasi of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-गुरु नानक देव जी ने 1513 ई० में अपनी द्वितीय उदासी उत्तर की ओर आरंभ की। इस उदासी में उन्हें तीन वर्ष लगे। इस उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी निम्नलिखित प्रमुख स्थानों पर गए—

1. पहाड़ी रियासतें-गुरु नानक देव जी ने अपनी दूसरी उदासी दौरन मंडी, रवालसर, ज्वालामुखी काँगड़ा, बैजनाथ और कुल्लू इत्यादि पहाड़ी रियासतों की यात्रा की। गुरु नानक देव जी के उपदेशों से प्रभावित होकर इन पहाडी रियासतों के बहुत-से लोग उनके अनुयायी बन गए।

2. कैलाश पर्वत-गुरु नानक देव जी तिब्बत से होते हुए कैलाश पर्वत पहुँचे। गुरु साहिब के यहाँ पहुँचने पर सिद्ध बहुत हैरान हुए। गुरु नानक देव जी ने उन्हें बताया कि संसार से सत्य लुप्त हो गया है और चारों ओर भ्रष्टाचार और झूठ का बोलबाला है। इसलिए गुरु साहिब ने उन्हें मानवता का पथ-प्रदर्शन करने का संदेश दिया।

3. लद्दाख–कैलाश पर्वत के पश्चात् गुरु नानक देव जी लद्दाख पहुँचे। यहाँ के बहुत-से लोग गुरु साहिब के अनुयायी बन गए।

4. कश्मीर-कश्मीर में स्थित मटन में गुरु नानक देव जी का पंडित ब्रह्मदास से काफ़ी लंबा धार्मिक शास्त्रार्थ हुआ। गुरु नानक देव जी ने उसे समझाया कि मुक्ति केवल वेदों और रामायण इत्यादि को पढ़ने से नहीं अपितु उनमें दी गई बातों पर अमल करके प्राप्त की जा सकती है।

5. हसन अब्दाल—गुरु नानक देव जी पंजाब की वापसी यात्रा के समय हसन अब्दाल ठहरे। यहाँ एक अहँकारी फकीर वली कंधारी ने गुरु नानक देव जी को कुचलने के उद्देश्य से एक बहुत बड़ा पत्थर पहाड़ी से नीचे की ओर लुढ़का दिया। गुरु साहिब ने इसे अपने पंजे से रोक दिया। इस स्थान को आजकल पंजा साहिब कहा जाता है।

6. स्यालकोट स्यालकोट में गुरु नानक देव जी की मुलाकात एक मुसलमान संत हमजा गौस से हुई। उसने किसी बात पर नाराज़ होकर अपनी शक्ति द्वारा सारे शहर को नष्ट करने का निर्णय कर लिया था। परंतु जब वह गुरु साहिब से मिला तो वह उनके व्यक्तित्व से इतना प्रभावित हुआ कि उसने अपना निर्णय बदल दिया। इस घटना का लोगों के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।

प्रश्न 6.
गुरु नानक देव जी की तीसरी उदासी के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about Third Udasi of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने 1517 ई० के अंत में अपनी तृतीय उदासी आरंभ की। इस उदासी के दौरान गुरु साहिब पश्चिमी एशिया के देशों की ओर गए। इस उदासी के दौरान गुरु नानक देव जी ने निम्नलिखित प्रमुख स्थानों की यात्रा की—

1. मुलतान-मुलतान में बहुत-से सूफी संत निवास करते थे। मुलतान में गुरु नानक देव जी की भेंट प्रसिद्ध सूफी संत शेख बहाउद्दीन से हुई। शेख बहाउद्दीन उनके विचारों से अत्यधिक प्रभावित हुए।

2. मक्का-मक्का हज़रत मुहम्मद साहिब का जन्म स्थान है। सिख परंपरा के अनुसार गुरु नानक देव जी जब मक्का पहुँचे तो काअबे की ओर पाँव करके सो गए। जब काज़ी रुकनुद्दीन ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गया। कहा जाता है कि जब काजी ने गुरु साहिब के पाँव पकड़कर दूसरी ओर घुमाने आरंभ किए तो मेहराब भी उसी ओर घूमने लग पड़ा। यह देखकर मुसलमान बहुत प्रभावित हुए। गुरु साहिब ने उन्हें समझाया कि अल्लाह सर्वव्यापक है।

3. मदीना-मक्का के पश्चात् गुरु नानक देव जी मदीना पहुँचे और वहाँ अपने उपदेशों का प्रचार किया। यहाँ गुरु साहिब का इमाम आज़िम के साथ शास्त्रार्थ भी हुआ।

4. बगदाद-बगदाद में गुरु नानक देव जी की भेंट शेख बहलोल से हुई। वह गुरु साहिब की वाणी से प्रभावित होकर उनका श्रद्धालु बन गया।

5. सैदपुर-गुरु नानक देव जी जब 1520 ई० के अंत में सैदपुर पहुँचे तो उस समय बाबर ने पंजाब पर बिजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय हज़ारों की संख्या में लोगों को बंदी बना लिया गया। इन बंदी बनाए गए लोगों में गुरु नानक देव जी भी थे। जब बाद में बाबर को यह ज्ञात हुआ कि गुरु साहिब एक महान् संत हैं तो उसने न केवल गुरु नानक देव जी को बल्कि बहुत-से अन्य बंदियों को भी रिहा कर दिया।

6. पेशावर-गुरु नानक देव जी अपनी तीसरी उदासी के दौरान पेशावर भी गये। यहाँ वे योगियों से मिले तथा उन्हें धर्म का वास्तविक मार्ग बताया।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 4 गुरु नानक देव जी का जीवन और उनकी शिक्षाएँ

प्रश्न 7.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं का संक्षिप्त वर्णन करें। (Briefly describe of the teachings of Guru Nanak Dev Ji.).
अथवा
गुरु नानक देव जी की किन्हीं छः शिक्षाओं के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about any six teachings of Guru Nanak Dev Ji ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ बड़ी सरल किंतु प्रभावशाली थीं। उनकी शिक्षाएँ किसी एक वर्ग, जाति अथवा प्रांत के लिए नहीं थीं। इनका बंध तो सारी मानव जाति से था। गुरु नानक देव जी की मुख्य शिक्षाओं का वर्णन इस प्रकार है—

1. ईश्वर का स्वरूप-गुरु नानक देव जी एक ईश्वर में विश्वास रखते थे। उन्होंने अपनी वाणी में बार-बार ईश्वर की एकता पर बल दिया है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर ही संसार की रचना करता है, उसका पालन-पोषण करता है और उसका विनाश करता है। गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर सर्वशक्तिमान् है।

2. माया-गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति के मार्ग में आने वाली सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुएँ जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र इत्यादि के चक्र में फंसा रहता है। इसी को माया कहते हैं। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है।

3. जाति प्रथा का खंडन-उस समय का हिंदू समाज न केवल चार मुख्य जातियों बल्कि अनेक अन्य उपजातियों में विभाजित था। उच्च जाति के लोग निम्न जाति से बहुत घृणा करते थे और उन पर बहुत अत्याचार करते थे। समाज में छुआछूत की भावना बहुत फैल गई थी। गुरु नानक देव जी ने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। गुरु साहिब ने लोगों को परस्पर भ्रातृभाव का संदेश दिया।

4. स्त्रियों के साथ निम्न बर्ताव का खंडन—गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। उनमें असंख्य कुरीतियाँ प्रचलित थीं। गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने समानता के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाई।

5. गुरु का महत्त्व-गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु को बहुत महत्त्वपूर्ण समझते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली वास्तविक सीढ़ी है। गुरु ही मनुष्य को अंधकार (अज्ञानता) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर लाता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। ईश्वर की कृपा के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती।

6. हक्म-गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं में परमात्मा के हुक्म (आदेश) अथवा इच्छा को विशेष महत्त्व प्राप्त है। हुक्म के कारण ही मनुष्य को सुख-दुःख प्राप्त होते हैं। जो मनुष्य परमात्मा के आदेश को नहीं मानता वह दरदर की ठोकरें खाता है।

प्रश्न 8.
गुरु नानक देव जी के ईश्वर संबंधी क्या विचार थे ? (What was Guru Nanak’s concept of God ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार ईश्वर के स्वरूप संबंधी विशेषताएँ निम्नलिखित अनुसार हैं—

1. परमात्मा एक है—गुरु नानक देव जी अपनी बाणी में बार-बार परमात्मा के एक होने पर बल देते हैं। उनके अनुसार परमात्मा ही संसार की रचना, उसका पालन-पोषण तथा उसका संहार करने वाला है। उसके द्वारा किए गए ये काम दूसरे देवी-देवताओं के महत्त्व को कम करते हैं। देवी-देवते सैंकड़ों तथा हज़ारों हैं, परंतु परमात्मा एक है। उस परमात्मा को हरि, गोपाल, अल्लाह, खुदा, राम तथा साहिब आदि नाम से पुकारा जाता है।

2. निर्गुण और सगुण-परमात्मा के दो रूप हैं। वह निर्गुण भी है और सगुण भी। पहले जब परमात्मा ने पृथ्वी तथा आकाश की रचना नहीं की थी तो वह अपने आप में ही रहता था। यह परमात्मा का निर्गुण स्वरूप था। फिर परमात्मा ने सृष्टि की रचना की। इस रचना द्वारा परमात्मा ने स्वयं को रूपमान किया। यह परमात्मा का सगुण स्वरूप

3. रचयिता, पालनकर्ता और नाशवानकर्ता-ईश्वर ही इस संसार का रचयिता, पालनकर्ता और इसका विनाश करने वाला है। ईश्वर के मन में जब आया तब उसने इस संसार की रचना की। वह ही इस संसार का पालन करता है। ईश्वर जब चाहे तब इस संसार का विनाश कर सकता है।

4. सर्वशक्तिमान-गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा सर्वशक्तिमान है। वह जो चाहता है, वही होता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध कुछ नहीं हो सकता। यदि परमात्मा की इच्छा हो तो वह भिखारी को भी सिंहासन पर बैठा सकता है और राजा को रंक (भिखारी) बना सकता है। .

5. अजर-अमर-परमात्मा द्वारा रची हुई सृष्टि नश्वर है। यह अस्थिर है। परमात्मा सदैव रहने वाला है। वह आवागमन तथा जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त है।

6. परमात्मा की महानता—गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा महान् है। उसकी महानता का वर्णन करना असंभव है। वह क्या देखता है और क्या सुनता है, उसका ज्ञान कितना है और वह कितना दयालु है और उसके दिए गए उपहारों का परिचय नहीं दिया जा सकता। परमात्मा स्वयं ही जानता है कि वह कितना महान् है। परमात्मा को छोड़कर किसी अन्य देवी-देवता की पूजा करना व्यर्थ है। ये परमात्मा के सम्मुख उसी प्रकार हैं जिस प्रकार सूर्य के सम्मुख एक छोटा सा तारा।

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प्रश्न 9.
गुरु नानक देव जी का माया का संकल्प क्या है ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of Maya ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के अनुसार माया मनुष्य के लिए मुक्ति मार्ग में सबसे बड़ी बाधा है। मनमुख व्यक्ति सदैव सांसारिक वस्तुओं जैसे धन-दौलत, उच्च पद, ऐश्वर्य, सुंदर नारी, पुत्र आदि के चक्रों में फंसा रहता है। इसे ही माया कहते हैं। मनमुख रचयिता और उसकी रचना के अंतर को नहीं समझ सकता। गुरु नानक देव जी ने माया को सर्पणी, माया ममता मोहणी, माया मोह, त्रिकुटी तथा सूहा रंग इत्यादि के नामों से पुकारा है। माया जिससे वह इतना प्रेम करता है, उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके साथ नहीं जाती। माया के कारण वह ईश्वर से दूर हो जाता है और आवागमन के चक्र में फंसा रहता है। गुरु जी कहते हैं कि मनुष्य सोना-चाँदी आदि एकत्रित करके सोचता है कि वह संसार का बहुत बड़ा व्यक्ति बन गया है परंतु वास्तव में वह व्यक्ति अपने जीवन के लिए विष एकत्रित कर रहा होता है। इसी प्रकार वह दुविधा में फंस कर अपने जीवन का नाश कर लेता है। संक्षेप में माया मनुष्य की खुशियों का स्रोत नहीं अपितु उसके दुःखों का भंडार है। जो व्यक्ति माया का शिकार होता है उसे ईश्वर के दरबार में कोई स्थान नहीं मिलता।

प्रश्न 10.
गुरु नानक देव जी के उपदेशों में ‘गुरु’ का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of ‘Guru’ in Guru Nanak Dev’s Ji teachings ?)
अथवा
गुरु नानक देव जी के ‘गुरु’ संबंधी विचार क्या थे ? (What was Guru Nanak Dev Ji’s concept of ‘Guru’ ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ईश्वर तक पहुँचने के लिए गुरु का बहुत महत्त्व मानते हैं। उनके अनुसार गुरु मुक्ति तक ले जाने वाली एक वास्तविक सीढ़ी है। गुरु ही मनुष्य को मोह और अहं के रोग से दूर करता है। वही नाम और शब्द की आराधना द्वारा भक्ति के मार्ग का अनुसरण करने का ढंग बताता है। गुरु के बिना भक्ति भाव और ज्ञान संभव नहीं होता। गुरु के बिना मनुष्य को चारों ओर अँधकार दिखाई देता है। गुरु ही मनुष्य को अँधकार (अज्ञानता) से प्रकाश की ओर ले जाता है। वह प्रत्येक असंभव कार्य को.संभव बना सकता है। अतः उसके साथ मिलने से ही मनुष्य की जीवनधारा बदल जाती है। वह सदा निरवैर रहता है। दोस्त तथा दुश्मन उसके लिए एक हैं। यदि कोई दुश्मन भी उसकी शरण में आ जाए तो वह उसे माफ कर देता है। सच्चे गुरु का मिलना कोई सरल कार्य नहीं है। परमात्मा की दया के बिना मनुष्य को गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती। यह बात यहाँ विशेष उल्लेखनीय है कि गुरु नानक देव जी जब गुरु की बात करते हैं तो उनका अभिप्राय किसी मानवीय गुरु से नहीं है। सच्चा गुरु तो ईश्वर स्वयं है, जो शब्द द्वारा शिक्षा देता है।

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प्रश्न 11.
नाम जपना, किरत करनी व बाँटकर छकना, सिख धर्म के बुनियादी नियम हैं। व्याख्या करें।
(Name, Do the Honest Labour Remembering Divine and Sharing with the Needy are the basis of the Sikh Way of Life. Discuss.)
उत्तर-

1. नाम जपना-सिख धर्म में नाम की आराधना अथवा सिमरन को ईश्वर की भक्ति का सर्वोच्च रूप समझा गया है। गुरु नानक देव जी का कथन था कि नाम की आराधना से जहाँ मन के पाप दूर हो जाते हैं वहीं वह निर्मल हो जाता है। इस कारण मनुष्य के सभी कष्ट खत्म हो जाते हैं। नाम की आराधना से मनुष्य के सभी कार्य सहजता से होते चले जाते हैं क्योंकि ईश्वर स्वयं उसके सभी कार्यों में सहायता करता है। नाम के बिना मनुष्य का इस संसार में आना व्यर्थ है।

2. किरत करनी-किरत से भाव है मेहनत एवं ईमानदारी की कमाई करना। किरत करना अत्यंत आवश्यक है। यह परमात्मा का हुक्म (आदेश) है। हम प्रतिदिन देखते हैं कि विश्व का प्रत्येक जीव-जंतु किरत करके अपना पेट पाल रहा है। मानव के लिए किरत करने की आवश्यकता सबसे अधिक है क्योंकि वह सभी जीवों का सरदार है। जो व्यक्ति किरत नहीं करता वह अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट नहीं रख सकता। ऐसा व्यक्ति वास्तव में उस परमात्मा के विरुद्ध गुनाहं करता है।

3. बाँट छकना-सिख धर्म में बाँट छकने के सिद्धांत को काफी महत्त्व दिया गया है। बाँट छकने से भाव ज़रूरतमंद लोगों के साथ बाँटो। सिख धर्म खा कर पीछे बाँटने की नहीं अपितु पहले बाँटकर बाद में खाने की शिक्षा देता है। इसमें दूसरों को भी अपना भाई-बहन समझने तथा उन्हें पहले बाँटने की प्रेरणा दी गई है। गुरु नानक देव जी फरमाते हैं—
घालि खाए कुछ हथों देइ॥
नानक राह पछाणे सेइ॥
दान देने अथवा बाँट के खाने के लिए केवल वही व्यक्ति सफल है जो श्रम की कमाई करके दान देता है। सिख धर्म में दशाँश देने का हुक्म है। इससे भाव यह है कि आप कमाई (आय) का दसवां हिस्सा लोक कल्याण कार्यों के लिए खर्च करें।

प्रश्न 12.
गुरु नानक देव जी के स्त्री जाति संबंधी क्या विचार थे? (What were the views of Guru Nanak Dev Ji about women ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के समय समाज में स्त्रियों की दशा बहुत दयनीय थी। समाज में उनका स्तर पुरुषों के समान नहीं था। उनमें अनेक कुरीतियाँ जैसे बाल-विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा तथा तलाक प्रथा इत्यादि प्रचलित थीं। गुरु नानक देव जी ने स्त्रियों में प्रचलित कुरीतियों का जोरदार शब्दों में खंडन किया। उन्होंने समाज में स्त्रियों का सम्मान बढ़ाने हेतु एक ज़ोरदार अभियान चलाया। वह बाल-विवाह, बहु-विवाह, पर्दा प्रथा तथा सती प्रथा इत्यादि कुरीतियों के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर अधिकार दिए जाने का समर्थन किया। इस संबंध में उन्होंने स्त्रियों को संगत एवं पंगत में सम्मिलित होने की आज्ञा दी। गुरु जी का विचार था कि हमें स्त्रियों से जो कि महान् सम्राटों को जन्म देती हैं, के साथ कभी भी बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए। वह स्त्रियों को शिक्षा दिए जाने के पक्ष में थे।

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प्रश्न 13.
गुरु नानक देव जी के संदेश का सामाजिक अर्थ क्या था ? (What was the social meaning of Guru Nanak Dev Ji’s message ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी के संदेश के सामाजिक अर्थ बहुत महत्त्वपूर्ण थे। उनका संदेश प्रत्येक के लिए था। कोई भी स्त्री-पुरुष गुरु जी द्वारा दर्शाए गए मार्ग को अपना सकता था। मुक्ति का मार्ग सबके लिए खुला था। गुरु जी ने सामाजिक समानता का प्रचार किया। उन्होंने जाति प्रथा का जोरदार शब्दों में खंडन किया। सामाजिक समानता के संदेश को व्यावहारिक रूप देने के लिए गुरु जी ने संगत तथा पंगत (लंगर) नामक दो संस्थाएँ चलाईं। लंगर तैयार करते समय जाति-पाति का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था। गुरु नानक देव जी ने अपने समय के शासकों में प्रचलित अन्याय की नीति और व्याप्त भ्रष्टाचार की जोरदार शब्दों में निंदा की। शासक वर्ग के साथ-साथ गुरु जी ने अत्याचारी सरकारी कर्मचारियों की भी आलोचना की। इस प्रकार गुरु नानक देव जी ने पंजाब के समाज को एक नया स्वरूप देने का उपाय किया।

प्रश्न 14.
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से किस प्रकार भिन्न थीं ? (How far were the teachings of Guru Nanak different from the Bhakti reformers ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी की शिक्षाएँ भक्ति प्रचारकों से कई पक्षों से भिन्न थीं। गुरु नानक देव जी के अनुसार परमात्मा निराकार है। वह कभी भी मानवीय रूप को धारण नहीं करता। भक्ति प्रचारकों ने कृष्ण तथा राम को परमात्मा का अवतार माना। गुरु नानक देव जी मूर्ति पूजा के कट्टर विरोधी थे जबकि भक्ति प्रचारकों का इसमें पूर्ण विश्वास था। गुरु नानक देव जी ने सिख धर्म का प्रसार करने के लिए गुरु अंगद देव जी को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त करके गुरुगद्दी को जारी रखा। दूसरी ओर बहुत कम भक्ति प्रचारकों ने गुरुगद्दी की परंपरा को जारी रखा। परिणामस्वरूप धीरे-धीरे उनका अस्तित्व खत्म हो गया। गुरु नानक देव जी गृहस्थ जीवन में विश्वास रखते थे। भक्ति प्रचारक गृहस्थ जीवन को मुक्ति की राह में आने वाली एक बड़ी रुकावट मानते थे। गुरु नानक देव जी ने संगत तथा पंगत नामक दो संस्थाएँ स्थापित की। इनमें प्रत्येक स्त्री, पुरुष अथवा बच्चे बिना किसी भेद-भाव के सम्मिलित हो सकते थे। भक्ति प्रचारकों ने ऐसी कोई संस्था स्थापित नहीं की। गुरु नानक देव जी संस्कृत को पवित्र भाषा नहीं मानते थे। उन्होंने अपनी शिक्षाओं का प्रचार लोगों की आम भाषा पंजाबी में किया। अधिकतर भक्ति प्रचारक संस्कृत को पवित्र भाषा समझते थे।

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प्रश्न 15.
गुरु नानक देव जी एक महान् कवि और संगीतकार थे । इसकी व्याख्या करें। (Guru Nanak Dev Ji was a great poet and musician. Explain.)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी न केवल एक धार्मिक महापुरुष थे अपितु एक महान् कवि एवं संगीतकार भी थे। आपकी कविताएँ इतनी उच्चकोटि की थीं कि इनके मुकाबले की कविताएँ विश्व साहित्य में भी बहुत कम हैं। गुरु ग्रंथ साहिब में अंकित आप जी के 976 शब्द आपके महान् कवि होने का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं। गुरु नानक देव जी ने इन कविताओं में परमात्मा तथा मानवता का अत्यंत सुंदर ढंग से वर्णन किया है। इनमें उच्चकोटि के अलंकरणों तथा उपमाओं का प्रयोग किया गया है। गुरु नानक साहिब बहुत संक्षिप्त शब्दों में काफ़ी गहराई की बातें कह जाते हैं। गरु साहिब की ये कविताएँ पंजाबी साहित्य को एक अमूल्य देन हैं। गुरु नानक देव जी प्रथम ऐसे सुधारक थे जिन्होंने अपने उपदेशों को लोगों तक पहुँचाने के लिए संगीत का प्रयोग किया। वह कई प्रकार के रागों की जानकारी रखते थे। उनके कीर्तन को सुन कर बड़े-बड़े पापी भी उनके चरणों पर गिर जाते थे।

प्रश्न 16.
गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन के अंतिम 18 वर्ष कहाँ तथा कैसे व्यतीत किए ? (How and where did Guru Nanak Dev Ji spend last 18 years of his life ?)
उत्तर-
गुरु नानक देव जी ने 1521 ई० में रावी नदी के तट पर करतारपुर (अर्थात् ईश्वर का नगर) नामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। ‘संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। इस संगत में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को शामिल होने का अधिकार था। इसमें केवल एक परमात्मा के नाम का जाप होता था। ‘पंगत’ से अभिप्राय था-पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। लंगर में जाति अथवा धर्म इत्यादि का कोई भेद-भाव नहीं किया जाता था। ये दोनों संस्थाएँ गुरु साहिब के उपदेशों का प्रसार करने में सहायक सिद्ध हुईं। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शबदों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ। गुरु साहिब की प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब, वार माझ, आसा दीवार, सिद्ध गोष्टि, वार मल्हार, बारह माह और पट्टी इत्यादि हैं।

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Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
गुरु नानक देव जी की गणना विश्व के महापुरुषों में की जाती है। वह सिख पंथ के संस्थापक थे। 15वीं शताब्दी में जब उनका जन्म हुआ तो भूमि पर चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। लोगों में अंध-विश्वास बहुत बढ़ गए थे। वे अज्ञानता के अंधकार में भटक रहे थे। चारों ओर अधर्म, झूठ और भ्रष्टाचार का बोलबाला था। लोग धर्म की वास्तविकता को भूल चुके थे। यह केवल आडंबरों और कर्मकांडों का एक दिखावा-सा बनकर रह गया था। शासक
और उनके कर्मचारी प्रजा का कल्याण करने की अपेक्षा उन पर अत्याचार करते थे। वे अपना अधिकतर समय रंगरलियों में व्यतीत करते थे। गुरु नानक साहिब ने अज्ञानता के अंधकार में भटक रही मानवता को ज्ञान का मार्ग दिखाया।

  1. सिख धर्म के संस्थापक कौन थे ?
  2. गुरु नानक देव जी के जन्म के समय समाज की स्थिति कैसी थी ?
  3. गुरु नानक देव जी के जन्म के समय शासक व कर्मचारी वर्ग का प्रजा के प्रति व्यवहार कैसा था ?
  4. गुरु नानक देव जी ने मानवता को कौन-सा मार्ग दिखाया ?
  5. गुरु नानक देव जी के समय लोग धर्म की वास्तविकता को ………… चुके थे।

उत्तर-

  1. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी थे।।
  2. उस समय लोगों में अंध-विश्वास बहुत बढ़ गया था।
  3. गुरु नानक देव जी के जन्म समय शासक तथा कर्मचारी वर्ग प्रजा पर बहुत अत्याचार करते थे।
  4. गुरु नानक देव जी ने मानवता को सत्य तथा ज्ञान का मार्ग दिखाया।
  5. भूल।

2
1499 ई० में ज्ञान-प्राप्ति के पश्चात् गुरु नानक देव जी अधिकाँश समय सुल्तानपुर लोधी में न ठहरे और वे देश और विदेशों की लंबी यात्रा के लिए निकल पड़े। गुरु नानक साहिब ने लगभग 21 वर्ष इन यात्राओं में व्यतीत किए। गुरु नानक साहिब की इन यात्राओं को उदासियाँ भी कहा जाता है क्योंकि गुरु साहिब इस समय के दौरान घर-द्वार त्याग कर एक उदासी की भाँति भ्रमण करते रहे। गुरु साहिब की इन उदासियों के संबंध में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पहला, गुरु जी ने अपनी उदासियों के संबंध में कुछ नहीं लिखा। दूसरा, इन उदासियों से संबंधित हमें कोई तत्कालीन स्रोत प्राप्त नहीं है।

  1. गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ?
  2. उदासियों से क्या भाव है?
  3. गुरु नानक देव जी की उदासियों से संबंधित आने वाली कोई एक कठिनाई के बारे में बताएँ।
  4. गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासियों का आरंभ कहाँ से किया ?
  5. गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति कब हुई थी ?
    • 1469 ई०
    • 1479 ई०
    • 1489 ई०
    • 1499 ई०।

उत्तर-

  1. गुरु नानक देव जी को ज्ञान की प्राप्ति सुल्तानपुर लोधी में हुई।
  2. उदासियों से भाव गुरु नानक देव जी की यात्राओं से है।
  3. इन उदासियों से संबंधित हमें कोई समकालीन स्रोत नहीं मिला है।
  4. गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासियों का आरंभ सैदपुर से किया।
  5. 1499 ई०।

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3
गुरु नानक देव जी जब 1520 ई० के अंत में सैदपुर पहुंचे तो उस समय बाबर ने पंजाब पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से वहाँ पर आक्रमण किया। इस आक्रमण के समय मुग़ल सेनाओं ने बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की हत्या कर दी। सैदपुर में भारी लूटपाट की गई और घरों में आग लगा दी गई। स्त्रियों को अपमानित किया गया। हज़ारों की संख्या में पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों को बंदी बना लिया गया। इन बंदी बनाए गए लोगों में गुरु नानक साहिब भी थे। जब बाद में बाबर को यह ज्ञात हुआ कि गुरु साहिब एक महान् संत है तो वह गुरु जी के दर्शन के लिए स्वयं आया वह गुरु साहिब के व्यक्तित्व से इतना अधिक प्रभावित हुआ कि उसने न केवल गुरु साहिब को बल्कि बहुत-से अन्य बंदियों को भी रिहा कर दिया।

  1. बाबर ने सैदपुर पर आक्रमण कब किया था ?
  2. बाबर की सेना ने सैदपुर में क्या किया ?
  3. क्या बाबर ने गुरु नानक देव जी को सैदपुर में कैद किया था.?
  4. बाबर ने जब गुरु नानक देव जी के दर्शन किए उसने क्या किया ?
  5. बाबर की सेना ने सैदपुर में स्त्रियों के साथ कैसा व्यवहार किया ? .
    • उनको अपमानित किया गया।
    • उनका सम्मान किया गया
    • उनको गिरफ्तार कर लिया गया
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।

उत्तर-

  1. बाबर ने सैदपुर पर 1520 ई० में आक्रमण किया था।
  2. बाबर की सेना ने सैदपुर में बड़ी संख्या में लूटमार की थी।
  3. जी, हाँ, बाबर ने सैदपुर में गुरु नानक देव जी को कैद किया था।
  4. बाबर ने जब गुरु नानक देव जी के दर्शन किए तब उसने गुरु साहिब व अन्य कई कैदियों को भी रिहा कर दिया।
  5. उनको अपमानित किया गया।

4
गुरु नानक देव जी ने रावी नदी के तट पर 1521 ई० में करतारपुर (अर्थात् ईश्वर का नगर) नामक नगर की स्थापना की। इसी स्थान पर गुरु साहिब ने अपने परिवार के साथ जीवन के अंतिम 18 वर्ष व्यतीत किए। इस समय के मध्य गुरु साहिब ने ‘संगत’ और ‘पंगत’ नामक संस्थाओं की स्थापना की। संगत’ से अभिप्राय उस सभा से था जो प्रतिदिन गुरु जी के उपदेशों को सुनने के लिए होती थी। इस संगत में बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक स्त्री-पुरुष को शामिल होने का अधिकार था। इसमें केवल एक परमात्मा के नाम का जाप होता था। ‘पंगत’ से अभिप्राय था-पंक्ति में बैठकर लंगर छकना। लंगर में जाति अथवा धर्म इत्यादि का कोई भेदभाव नहीं किया जाता था। ये दोनों संस्थाएँ गुरु साहिब के उपदेशों का प्रसार करने में सहायक सिद्ध हुईं। इनके अतिरिक्त गुरु जी ने 976 शब्दों की रचना की। गुरु साहिब का यह कार्य सिख पंथ के विकास के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।

  1. करतारपुर से क्या भाव है ?
  2. गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में कौन-सी दो संस्थाओं की स्थापना की ?
  3. गुरु नानक देव जी ने कितने शब्दों की रचना की ?
  4. गुरु नानक देव जी की किन्हीं दो प्रमुख वाणियों के नाम लिखें।
  5. गुरु नानक देव जी ने करतारपुर की स्थापना कब की थी ?
    • 1501 ई० में
    • 1511 ई० में
    • 1521 ई० में
    • 1531 ई० में।

उत्तर-

  1. करतारपुर से भाव है ईश्वर का नगर।
  2. गुरु नानक देव जी ने करतारपुर में संगत व पंगत नाम की दो संस्थाओं की स्थापना की।
  3. गुरु नानक देव जी ने 976 शब्दों की रचना की।
  4. गुरु नानक देव जी की दो प्रमुख वाणियों के नाम जपुजी साहिब तथा आसा दी वार हैं।
  5. 1521 ई० में।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

Punjab State Board PSEB 6th Class Home Science Book Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Home Science Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

PSEB 6th Class Home Science Guide भोजन पकाने के कारण Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
भोजन पकाने की सबसे सरल विधि कौन-सी है ?
उत्तर-
उबालना।

प्रश्न 2.
कौन-सा विटामिन पकाने से नष्ट हो जाता है ?
उत्तर-
विटामिन सी।

प्रश्न 3.
कौन-सा विटामिन भोजन पकाने पर नष्ट नहीं होता ?
उत्तर-
विटामिन ‘ए’, क्योंकि यह जल में घुलनशील नहीं होता।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

प्रश्न 4.
भोजन पकाने का प्रमुख कारण क्या है ?
उत्तर-
भोजन को सरलता से पचने योग्य बनाना।

प्रश्न 5.
शुष्क सेंक से भोजन पकाने की दो विधियों के नाम लिखो।
उत्तर-
भूनना, बेक करना।

प्रश्न 6.
घी से पकाने की किसी एक विधि का नाम लिखो।
उत्तर-
तलना।

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प्रश्न 7.
शक्करकन्दी आमतौर पर किस विधि से पका कर खाई जाती है ?
उत्तर-
भून कर।

प्रश्न 8.
पकाने से भोजन हानिरहित कैसे हो जाता है ?
उत्तर-
इसमें मौजूद बैक्टीरिया, सूक्ष्मजीव समाप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 9.
गीले सेंक से पकाने के किसी एक तरीके का नाम लिखो।
उत्तर-
भाप से पकाना।

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प्रश्न 10.
बेकिंग से पकने वाले दो खाद्य पदार्थों के नाम लिखो।
उत्तर-
केक, रस, बिस्कुट।

लघूत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
खाना क्यों पकाया जाता है ?
उत्तर-
खाना स्वादिष्ट और सुपाच्य बनाने के लिए पकाया जाता है।

प्रश्न 2.
पके हुए तथा कच्चे भोजन में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
पके हुए तथा कच्चे भोजन में निम्नलिखित अन्तर हैं –

पका भोजन कच्चा भोजन
1. पका हुआ भोजन नर्म हो जाता है तथा चबाने और पचाने में सुगम होता है। 1. कच्चा भोजन सख्त होता है। अतः इसे चबाना एवं पचाना कठिन होता है।
2. पके हुए भोजन का रंग, रूप, स्वाद तथा सुगन्ध अच्छे हो जाते हैं। 2. बिना पकाए भोजन देखने अथवा खाने और सुगन्ध में अच्छे नहीं होते हैं।
3. पकाने से अधिक तापमान के कारण कई हानिकारक कीटाणु मर जाते हैं। 3. कच्चे भोजन में कई हानिकारक कीटाणु होते हैं जो कि स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं।
4. पकाने से एक ही वस्तु को अलग-अलग तरीकों से बनाया जा सकता है। 4. यदि भोजन को पकाया न जाए और उसे एक रूप में खाया जाए तो उससे जल्दी ही मन भर जाता है।
5. पकाने से भोजन को ज़्यादा देर तक सुरक्षित रखा जा सकता है। 5. कच्चा भोजन जल्दी खराब हो जाता  है। उसमें जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं।

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प्रश्न 3.
उबालने तथा तलने के दोष लिखो।
उत्तर-
उबालने तथा तलने के निम्नलिखित दोष हैं –
उबालने के दोष –
1. ज़्यादा तेज़ी से पानी उबालने से पानी शीघ्र सूख जाता है तथा अधिक ईंधन का खर्च . होता है।
2. इस विधि से वस्तु शीघ्र नहीं पकती है।
तलने के दोष –
1. अधिक तलने-भूनने से कुछ पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।
2. भोजन गरिष्ठ हो जाता है।
3. भोजन सुपाच्य न होने से कभी-कभी पाचन बिगड़ जाता है।

प्रश्न 4.
बेक करने तथा भूनने में क्या अन्तर हैं ?
उत्तर-
बेक करने तथा भूनने में निम्नलिखित अन्तर हैं –

बेक भूनना
1. इसमें पदार्थ को बन्द गर्म भट्ठी में रखकर ऊष्मा से पकाया जाता है। 1. इसमें पदार्थ को थोड़ी-सी चिकनाई लगाकर सेंका जाता है।
2. भोजन वाले बर्तन को पहले ज़्यादा तथा फिर कम आँच पर रखा जाता पर पकाया जाता है। 2. इसमें भोज्य पदार्थ को सीधे आँच पर पकाया जाता है।
3. इसमें भट्ठी का तापक्रम बराबर रहना चाहिए। 3. इसमें भट्ठी का तापक्रम सदैव धीमे चाहिए।
4. इसमें पानी के बिना भोजन के सारे तत्त्व सुरक्षित रहते हैं। 4. इसमें भोजन के तत्त्व भी आग में गिर जाते हैं।
5. इसमें कच्चे केले तथा अन्य फलों को भी मसाला लगाकर पकाया जाता है। 5. इसमें दाने भट्ठी पर कड़ाही में रखकर रेत में भूने जाते हैं।

प्रश्न 5.
कौन-कौन से भोज्य-पदार्थों को भूना जा सकता है ?
उत्तर-
निम्नलिखित भोज्य-पदार्थों को भूना जा सकता है –

1. आलू,
2. बैंगन,
3. मांस के टुकड़े,
4. मुर्गा,
5. मक्का के भुट्टे,
6. चपाती,
7. मछली,
8. दाने।

PSEB 6th Class Home Science Solutions Chapter 3 भोजन पकाने के कारण

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन पकाते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए ?
उत्तर-
भोजन पकाते समय निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए –

  1. भोजन पकाते समय पानी का तापक्रम एक जैसा रहना चाहिए।
  2. भोजन वाले बर्तन से पानी वाला बर्तन न बहुत बड़ा और न ही पूरा फिट होना चाहिए।
  3. भोजन वाला बर्तन यदि बन्द करके रखना हो तो उसके मुँह पर चिकना कागज़ लगाकर बन्द करना चाहिए।
  4. पानी के बर्तन को कसकर बंद करना चाहिए, ताकि भाप व्यर्थ न जाए।

प्रश्न 2.
जिस पानी में भोजन पकाया जाए उसे फेंकना क्यों नहीं चाहिए? भाप द्वारा प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष पकाने में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर-
जिस पानी में भोजन पकाया जाए उसे इसलिए नहीं फेंकना चाहिए कि उसमें खनिज लवण घुल जाते हैं और पानी फेंकने पर ये पौष्टिक तत्त्व नष्ट हो जाते हैं।

भाप द्वारा भोजन पकाना-इस विधि में भोजन को उबलते हुए जल से निकली भाप से पकाया जाता है। खाद्य पदार्थ का पकना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से होता है –

1. प्रत्यक्ष विधि-
(i) जलरहित पकाना-जिन सब्जियों में स्वाभाविक जलांश रहता है उनमें यही जलांश उन्हें पकाने का काम करता है। इस विधि में भोजन धीमी आँच पर पकाया जाता है।

(ii) बफाना-इस विधि में डेगची या भगौने में पानी उबाला जाता है और उसके मुँह पर कपड़ा बाँध कर भोज्य वस्तु को उस पर रखकर और उसे ढक कर बफाते हैं।

(iii) इसमें एक विशेष प्रकार का पात्र उपयोग में लाते हैं जिसमें ढक्कनदार बर्तन होता है तथा ढक्कन में जालीदार थाली-सी लगी रहती है। इस पर रखकर सब्जी, गोश्त, इडली भाप द्वारा पकाते हैं।

2. अप्रत्यक्ष विधि-इस विधि में बन्द बर्तन में थोड़े पानी में खाद्य सामग्री को पकाया जाता है। ढक्कन इतना कसकर लगाया जाता है कि अन्दर की भाप बाहर नहीं निकले। खाद्य पदार्थ उसी भाप के दबाव से पक जाता है। इस विधि से पकाने के लिए प्रेशर कुकर का भी इस्तेमाल किया जाता है। प्रेशर कुकर में भोजन पकाने से ईंधन और समय की बचत तो होती ही है, साथ में भोज्य तत्त्व भी नष्ट नहीं होते हैं।

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प्रश्न 3.
किन भोजन पदार्थों को बिना पकाये खाया नहीं जा सकता ? सूची बनाइये।
उत्तर-
कई ऐसे भोजन पदार्थ हैं जिनको कच्चा खाया ही नहीं जा सकता। इसके कई कारण हो सकते हैं। भोज्य पदार्थ कठोर हो सकता है, इनमें से अच्छी सुगन्ध नहीं आती, ये देखने में अच्छे नहीं लगते आदि। इनको कच्चा खाने का मन नहीं करता। इसलिए इन्हें बिना पकाए नहीं खा सकते। निम्नलिखित भोजन पदार्थों को बिना पकाये नहीं खाया जा सकता, जैसे-अनाज, दालें, मांस, मछली, कई प्रकार की सब्जियां आदि।

प्रश्न 4.
तलने से क्या भाव है ?
उत्तर-
तलना-इस विधि द्वारा खूब गर्म घी अथवा तेल में भोज्य पदार्थ को तलकर पकाया जाता है। तलने के लिए आग तेज़ होनी चाहिए। भोज्य पदार्थ दो प्रकार से तला जाता है

1. अधिक चिकनाई में तलना या गहरा तलना-जिस बर्तन में खाद्य पदार्थ तलना है वह गहरा होना चाहिए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में घी या तेल होना चाहिए। इस विधि में तेज़ आग पर खाद्य पदार्थ घी या तेल की गर्मी से पकता है। जब घी या तेल में से धुआँ उठने लगता है तब खाद्य सामग्री उसमें पकाने के लिये डाली जाती है।

2. उथला तलना-इस विधि में भोजन किसी भी चपटे बर्तन में बनाते हैं। तेल या घी कम मात्रा में इस्तेमाल करते हैं ताकि वस्तु बर्तन की सतह से चिपके नहीं। इसके लिए आग मध्यम रखते हैं। इस विधि से आलू की टिकिया, पूड़े, आमलेट, परांठे आदि बनाये जाते हैं।

तलने से भोजन स्वादिष्ट होता है, देखने में भी सुन्दर व आकर्षक लगता है। तली हुई चीजें शीघ्रता से नहीं पचती हैं। अधिक ताप पर खाद्य पदार्थ के विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

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Home Science Guide for Class 6 PSEB भोजन पकाने के कारण Important Questions and Answers

अति छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन पकाने की सर्वोत्तम विधि कौन-सी है ?
उत्तर-
भाप द्वारा पकाना।

प्रश्न 2.
भाप द्वारा भोजन पकाने की विधि सर्वोत्तम विधि क्यों मानी जाती है ?
उत्तर-
क्योंकि इस विधि में भोजन के पोषक तत्त्व नष्ट नहीं होते। भोजन हल्का व शीघ्रता से पचने वाला होता है।

प्रश्न 3.
विटामिन ‘सी’ भोजन पकाने पर नष्ट क्यों हो जाता है ?
उत्तर-
क्योंकि यह जल में घुलनशील होता है तथा ताप के प्रभाव से भी नष्ट हो जाता है।

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प्रश्न 4.
मक्खन को गर्म क्यों नहीं करना चाहिए ?
उत्तर-
मक्खन को गर्म करने से उसका विटामिन ‘ए’ नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 5.
भारतीय शैली में भोजन के अन्त में क्या परोसा जाता है ?
उत्तर-
मीठी चीजें (स्वीट डिश)।

प्रश्न 6.
भोजन परोसने की तीन विधियाँ कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर-

  1. भारतीय शैली,
  2. विदेशी शैली,
  3. बुफे भोज।

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प्रश्न 7.
यथासम्भव एक ही धातु के पात्रों में भोजन क्यों परोसना चाहिए ?
उत्तर-
एकरूपता होने के कारण आकर्षण बढ़ता है।

प्रश्न 8.
बुफे विधि प्रायः कहाँ प्रयोग में लाई जाती है ?
उत्तर-
शादी, पार्टियों, सामूहिक भोज आदि अवसरों पर।

प्रश्न 9.
सेकने की विधि द्वारा भोजन पकाने के लाभ तथा हानि क्या हैं ?
उत्तर-
लाभ- भोज्य पदार्थ स्वादिष्ट तथा पोषक तत्त्वयुक्त रहता है। हानि-यह महँगी विधि है और इसमें अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है।

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प्रश्न 10.
चावल पकाते समय चावलों में कितना पानी डालना चाहिए ?
उत्तर-
जितना पानी चावल सोख लें।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
उबालना और धीमे ताप पर पकाने में क्या अन्तर है ?
उत्तर-
उबालने और धीमे ताप पर पकाने में अन्तर –

उबालना धीमे ताप पर पकाना
1. भोजन जल्दी पकता है। 1. भोजन देर से पकता है।
2. ईंधन कम खर्च होता है। 2. ईंधन अधिक खर्च होता है।
3. इसमें भोजन अधिक ताप पर (100°C या 212°F) पर पकाया जाता है। 3. इसमें भोजन कम ताप (90°C या 100°F) पर पकाया जाता है।
4. इसमें पानी की मात्रा अधिक रखी जाती है। 4. इस विधि में पानी की मात्रा कम  रखी जाती है। पानी छोड़ने वाले पदार्थ में पानी बिल्कुल नहीं डाला जाता।
5. भोज्य पदार्थ में उपस्थित पोषक तत्त्व, रंग, गंध आदि जल में घुल-मिल जाता है। 5. इसमें पोषक तत्त्व, स्वाद व सुगन्ध सुरक्षित रहते हैं।

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प्रश्न 2.
गहरा तलना से क्या भाव है ?
उत्तर-
जिस बर्तन में खाद्य पदार्थ तलना है वह गहरा होना चाहिए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में घी या तेल होना चाहिए। इस विधि में तेज़ आग पर खाद्य पदार्थ घी या तेल की गर्मी से पकता है। जब घी या तेल में से धुआँ उठने लगता है तब खाद्य सामग्री उसमें पकाने के लिये डाली जाती है।

प्रश्न 3.
अप्रत्यक्ष भूनना के बारे में लिखें।
उत्तर-
अप्रत्यक्ष भूनना- इस विधि में किसी माध्यम को गर्म करके उसकी ऊष्मा द्वारा भोज्य पदार्थ को भूनते हैं। चना, मटर, मूंगफली, मक्का, गेहूँ को गर्म बालू में भूना जाता है। टोस्टर में डबल रोटी के टुकड़े भी इसी विधि द्वारा भूने जाते हैं।

प्रश्न 4.
बफाना से क्या भाव है ?
उत्तर-
बफाना-इस विधि में डेगची या भगौने में पानी उबाला जाता है और उसके मुँह पर कपड़ा बाँध कर भोज्य वस्तु को उस पर रखकर और उसे ढक कर बफाते हैं।

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प्रश्न 5.
तलने से क्या भाव है ?
उत्तर-
तलना-इस विधि द्वारा खूब गर्म घी अथवा तेल में भोज्य पदार्थ को तलकर पकाया जाता है। तलने के लिए आग तेज़ हानी चाहिए।

प्रश्न 6.
उबालने के लाभ लिखें।
उत्तर-
उबालने के लाभ –

  1. उबाला हुआ भोजन आसानी से पचने योग्य होता है।
  2. इस विधि में भोजन के पौष्टिक तत्त्व कम नष्ट होते हैं।
  3. यह विधि सरल तथा कम खर्चीली है।
  4. प्रेशर कुकर में खाद्य पदार्थ उबालने से समय और ईंधन की भी बचत होती है।

प्रश्न 7.
तलने के लाभ लिखें।
उत्तर-
तलने के लाभ –

  1. तला हुआ भोजन अधिक स्वादिष्ट हो जाता है।
  2. भोज्य पदार्थ का वसा से संयोग होने के कारण कैलोरी भार अधिक बढ़ जाता है।
  3. तले पदार्थ शीघ्र खराब नहीं होते।

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बड़े उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भोजन पकाने की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं –
1. उबालना
2. तलना
3. भूनना
4. भाप से पकाना
5. सेकना
6. धीमी आँच पर भोजन पकाना (स्ट्यू करना)।
1. उबालना-उबाल कर भोजन पकाने की विधि सबसे प्राचीन, सरल व साधारण है। इसमें पानी की गर्मी से ही खाद्य पदार्थ पकता है। पानी के उबलने (100°C या 212°F) के बाद आँच धीमी कर देनी चाहिए ताकि तापक्रम पूरे समय तक एक-सा नियन्त्रित रहे। दाल, चावल, मांस, तरकारी आदि इसी विधि से उबाले जाते हैं। उबालने की क्रिया में भोज्य पदार्थ में उपस्थित पोषक तत्त्व, रंग, गंध आदि जल में घुल-मिल जाते हैं तथा उसको स्वादिष्ट बना देते हैं। दाल व चावल को उबालने के लिए उतना ही पानी डालना चाहिए कि पक जाने पर उसे फेंकना न पड़े।

2. तलना-इस विधि द्वारा खूब गर्म घी अथवा तेल में भोज्य पदार्थ को तलकर जाता है –
(1) अधिक चिकनाई में तलना या गहरा तलना-जिस बर्तन में खाद्य पदार्थ तलना है वह गहरा होना चाहिए, साथ ही पर्याप्त मात्रा में घी या तेल होना चाहिए। इस विधि में तेज़ आग पर खाद्य पदार्थ घी या तेल की गर्मी से पकता है। जब घी या तेल में से धुआँ उठने लगता है तब खाद्य सामग्री उसमें पकाने के लिये डाली जाती है।

(2) उथला तलना-इस विधि में भोजन किसी भी चपटे बर्तन में बनाते हैं। तेल या घी कम मात्रा में इस्तेमाल करते हैं ताकि वस्तु बर्तन की सतह से चिपके नहीं। इसके लिए आग मध्यम रखते हैं। इस विधि से आलू की टिकिया, पूड़े, आमलेट, परांठे आदि बनाये जाते हैं।
तलने से भोजन स्वादिष्ट होता है, देखने में भी सुन्दर व आकर्षक लगता है। तली हुई चीजें शीघ्रता से नहीं पचती हैं। अधिक ताप पर खाद्य पदार्थ के विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

3. भूनना-पकाने की इस विधि में खाद्य पदार्थ को अग्नि के सीधे सम्पर्क में लाया जाता है। भूनना निम्नलिखित प्रकार का होता है –
(1) प्रत्यक्ष भूनना-इस विधि में भोज्य वस्तु सीधे आग के सम्पर्क में आती है। पदार्थ को चारों ओर घुमाकर भूनते हैं, जैसे आलू, बैंगन, मांस के टुकड़े, मुर्गा, मक्का के भुट्टे, चपाती आदि।

(2) अप्रत्यक्ष भूनना-इस विधि में किसी माध्यम को गर्म करके उसकी ऊष्मा द्वारा भोज्य पदार्थ को भूनते हैं। चना, मटर, मूंगफली, मक्का, गेहूँ को गर्म बालू में भूना जाता है। टोस्टर में डबल रोटी के टुकड़े भी इसी विधि द्वारा भूने जाते हैं।
(3) पात्र में भूनना-इस विधि में भोज्य पदार्थ को किसी बर्तन में डालकर बर्तन आग पर रखकर भूना जाता है लेकिन भूनने में चिकनाई का प्रयोग किया जाता है।

4. भाप द्वारा भोजन पकाना-इस विधि में भोजन को उबलते हुए जल से निकली भाप से पकाया जाता है। खाद्य पदार्थ का पकना प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार से होता –
(1) प्रत्यक्ष विधि-
(i) जलरहित पकाना-जिन सब्जियों में स्वाभाविक जलांश रहता है उनमें यही जलांश उन्हें पकाने का काम करता है। इस विधि में भोजन धीमी आँच पर पकाया जाता है।

(ii) बफाना-इस विधि में डेगची या भगौने में पानी उबाला जाता है और उसके मुँह पर कपड़ा बाँध कर भोज्य वस्तु को उस पर रखकर और उसे ढक कर बफाते हैं।

(iii) इसमें एक विशेष प्रकार का पात्र उपयोग में लाते हैं जिसमें ढक्कनदार बर्तन होता है तथा ढक्कन में जालीदार थाली-सी लगी रहती है। इस पर रखकर सब्जी, गोश्त, इडली भाप द्वारा पकाते हैं।

(2) अप्रत्यक्ष विधि-इस विधि में बन्द बर्तन में थोड़े पानी में खाद्य सामग्री को पकाया जाता है। ढक्कन इतना कसकर लगाया जाता है कि अन्दर की भाप बाहर नहीं निकले। खाद्य पदार्थ उसी भाप के दबाव से पक जाता है। इस विधि से पकाने के लिए प्रेशर कुकर का भी इस्तेमाल किया जाता है। प्रेशर कुकर में भोजन पकाने से ईंधन और समय की बचत तो होती ही है, साथ में भोज्य तत्त्व भी नष्ट नहीं होते हैं।

5. सेकना-इस विधि में भोज्य पदार्थों को किसी भी तरह से पूरी तपी हुई भट्टी या तन्दूर (Oven) में पकाया जाता है। शुष्क उष्णता ही पकाने का माध्यम रहती है। सेकने की दो विधियाँ हैं
(1) सीधे ताप पर रखकर सेकना-इस प्रकार सेके जाने वाले आहारीय पदार्थों में रोटी तथा पापड़ आते हैं। इन्हें सदैव धीमे ताप पर सेकना चाहिए।

(2) बेकिंग-इस विधि में गर्म हवा का एक स्थान से दूसरे स्थान पर संवाहन होता रहता है। विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बेक करने के लिए भिन्न-भिन्न तापक्रम रखना पड़ता है। इस विधि से अधिकतर तन्दूरी रोटी, पावरोटी, पेस्ट्री, केक, बिस्कुट आदि बनाए जाते हैं। सेकने के लिए बर्तनों का विभिन्न आकार होता है। इस विधि में भट्टी का तापक्रम एक-सा होना चाहिए जिससे पेस्ट्री या केक के चारों ओर से ऊष्मा मिल सके। भट्टी गर्म होने के बाद ही भोज्य पदार्थ उसमें रखना चाहिए। तन्दूर (oven) का तापक्रम आवश्यकता से अधिक नहीं होना चाहिए। सेकने के बर्तन में वसा अवश्य लगा लेनी चाहिए जिससे भोज्य पदार्थ पक जाने के बाद आसानी से निकल सके।

6. धीमी आँच पर भोजन पकाना (स्ट्य करना)-इस विधि में भोज्य पदार्थों को बन्द बर्तन में रखकर, धीमी आँच पर धीरे-धीरे पकाया जाता है। इसमें पानी की मात्रा कम रखी जाती है। पानी छोड़ने वाले पदार्थ में पानी बिल्कुल ही नहीं डाला जाता है। इस विधि में पानी का तापक्रम 180°F या 90°C तक रहता है। पकाते समय ढक्कन विधिवत् बन्द कर देना चाहिए, ताकि वाष्प बाहर न निकलने पाये। इस विधि में भोजन पकाने पर उसका स्वाद, सुगन्ध, पोषक तत्त्व सुरक्षित रहते हैं। मांस, साग, सब्जी तथा फल का स्ट्यू इसी विधि से तैयार किया जाता है। मन्द ताप से कठोर हुए बिना प्रोटीन का स्कन्दन हो जाता है।

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एक शब्द में उत्तर दें

प्रश्न 1.
पकाया हुआ भोजन ……… पच जाता है।
उत्तर-
आसानी से।

प्रश्न 2.
भोजन को कितने ढंगों द्वारा पकाया जाता है ?
उत्तर-
तीन।

प्रश्न 3.
भोजन पकाने का सस्ता तथा सरल ढंग बताएं।
उत्तर-
स्ट्यू करना।

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प्रश्न 4.
बेक करके क्या पकाया जाता है, एक का नाम बताएं।
उत्तर-
केक।

प्रश्न 5.
उथला तलना विधि द्वारा पकाए जाने वाले एक पदार्थ का नाम लिखें।
उत्तर-
आलू की टिक्की।

प्रश्न 6.
भोजन तलने का एक दोष बताएं।
उत्तर-
भोजन पचने में मुश्किल होती है।

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प्रश्न 7.
भोजन को अधिक घी में पकाने के तरीके को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
तलना।

प्रश्न 8.
टोस्टर में डबलरोटी को भूनना, भूनने की कैसी विधि है ?
उत्तर-
अप्रत्यक्ष भूनना।

प्रश्न 9.
स्ट्यू करते समय पानी का तापमान कितना होता है ?
उत्तर-
90° C.

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भोजन पकाने के कारण PSEB 6th Class Home Science Notes

  • पका हुआ भोजन सुगमता से पच जाता है।
  • पकाने से खाने वाली चीज़ का रंग, रूप, स्वाद तथा सुगंध को अच्छा बनाया जा सकता है।
  • पकाने से कई तरह के हानिकारक बैक्टीरिया तथा अन्य सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं तथा भोजन हानिरहित हो जाता है।
  • पकाने से भोजन को अधिक समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
  • भोजन को तीन ढंगों से पकाया जा सकता है –
    1. सूखे सेंक से पकाना, 2. गीले सेंक से पकाना, 3. घी में पकाना।
  • जब किसी चीज़ को अधिक पानी में पकाया जाए तो उसे उबालना कहते हैं।
  • पदार्थ को थोड़ी-सी चिकनाई लगाकर सेंकने को भूनना कहते हैं।
  • पका भोजन शीघ्र पचने वाला तथा मीठी सुगन्ध वाला होता है।
  • भोजन को घी में पकाने को तलना कहते हैं।
  • दाने भट्ठी पर कड़ाही में रखकर रेत से भूने जाते हैं।
  • तला हुआ भोजन निःसंदेह स्वादिष्ट होता है, परन्तु सख्त तथा भारी होता है।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

Punjab State Board PSEB 11th Class Agriculture Book Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Agriculture Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

PSEB 11th Class Agriculture Guide कृषि उत्पादों का मंडीकरण Textbook Questions and Answers

(क) एक-दो शब्दों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
उपयुक्त मंडीकरण फसल की कटाई से पूर्व आरम्भ होता है या बाद में ?
उत्तर-
पहले।

प्रश्न 2.
यदि किसान महसूस करें कि उन्हें मंडी में उत्पाद का उचित मूल्य नहीं दिया जा रहा, तो उन्हें किसके साथ सम्पर्क करना चहिए?
उत्तर-
मार्केटिंग इंस्पैक्टर तथा मार्केटिंग कमेटी वालों से।.

प्रश्न 3.
यदि बोरी के वजन से अधिक उत्पाद तोला गया हो तो इसकी शिकायत किस को करनी चाहिए?
उत्तर-
मंडीकरण के उच्च अधिकारी से।

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प्रश्न 4.
उत्पाद को मंडी में ले जाने से पूर्व कौन सी दो बातों की ओर ध्यान देना जरूरी है?
उत्तर-

  1. दानों में नमी की मात्रा निर्धारित माप दण्ड के अनुसार ठीक होनी चाहिए।
  2. उत्पाद की सफाई।

प्रश्न 5.
मंडी गोबिंदगढ़, मोगा और जगराओं में गेहूं संभालने के लिए ब्लॉक हैंडलिंग इकाइयां किसने स्थापित की हैं ?
उत्तर-
भारतीय खाद्य निगम।

प्रश्न 6.
किसानों को फसल की तोलाई के बाद आढ़ती से कौन सा फार्म लेना जरूरी है?
उत्तर-
जे (J) फार्म।

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प्रश्न 7.
अलग-अलग मंडियों में उत्पादों के मूल्यों (कीमतों) की जानकारी किन साधनों द्वारा प्राप्त की जा सकती है?
उत्तर-
टी०वी०, रेडियो, समाचार-पत्र आदि द्वारा।

प्रश्न 8.
सरकारी खरीद एजेंसियां उत्पाद का मूल्य किस आधार पर लगाती हैं ?
उत्तर-
नमी की मात्रा देख कर।

प्रश्न 9.
संदेह के आधार पर मंडीकरण एक्ट के अनुसार कितने प्रतिशत तक उत्पाद की तोलाई बिना पैसे दिए करवाई जा सकती है?
उत्तर-
10% उत्पाद की।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 10.
कौन सा एक्ट किसानों को तुलाई पड़ताल का अधिकार देता है?
उत्तर-
मंडीकरण एक्ट 1961।

(ख) एक-दो वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
कृषि सम्बन्धी कौन-कौन से काम करते समय विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए?
उत्तर-
गुडाई, दवाइयों का प्रयोग, पानी, खाद, कटाई, गहाई इत्यादि कार्य करते समय विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए।

प्रश्न 2.
खेती के लिए फसलों का चुनाव करते समय किस बात का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
कृषि के लिए उस फसल का चुनाव करें जिससे अधिक लाभ मिल सकता है और इस फसल की बढ़िया किस्म की ही बुआई करें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 3.
उत्पाद बिक्री के लिए मंडी में ले जाने से पूर्व किस बात की पड़ताल कर लेनी चाहिए?
उत्तर-
मंडी ले जाने से पहले दानों के बीच नमी की मात्रा निर्धारित मापदण्डों के अनुसार है या नहीं इसकी जांच कर लेनी चाहिए और फसल को तोल कर और वर्गीकरण करके मण्डी में ले जाने पर अधिक लाभ मिलता है।

प्रश्न 4.
मंडी में उत्पाद की बिक्री के समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-
सफ़ाई, तोल और बोली के समय किसान अपनी ढेरों के पास ही खड़ा रहे और देखे कि उसके उत्पाद का मूल्य ठीक लग रहा है या नहीं। यदि मूल्य ठीक न लगे तो मार्केटिंग इन्स्पैक्टर की सहायता ली जा सकती है। तोलाई वाले बाटों पर सरकारी मोहर लगी होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
ब्लॉक हैंडलिंग इकाइयों में सीधे उत्पाद बिक्री से क्या लाभ होते हैं ?
उत्तर-
बल्क हैंडलिंग इकाइयों में सीधा उत्पाद बिक्री से कई लाभ होते हैं, जैसे-पैसे का भुगतान उसी दिन हो जाता है, मंडी का खर्चा नहीं देना पड़ता, मज़दूरों का खर्चा बचता है, प्राकृतिक आपदाओं, जैसे-वर्षा, आंधी आदि के कारण उत्पाद नुकसान से बच जाता है।

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प्रश्न 6.
मंडी में उत्पाद की निगरानी क्यों जरूरी है?
उत्तर-
कई बार मंडी में मज़दूर जानबूझ कर उत्पाद को किसी अन्य ढेरी में मिला देते हैं या कई बार उत्पाद को बचे हुए ‘छान’ में मिला देते हैं जिससे किसान को बहुत नुकसान हो जाता है। इसलिए उत्पाद का ध्यान रखना ज़रूरी है।

प्रश्न 7.
अलग-अलग मंडियों में उत्पादों के मूल्यों की जानकारी के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
फसल की मंडी में आमद अधिक हो जाने या कम हो जाने पर कीमतें घटती तथा बढ़ती रहती हैं। इसलिए मंडियों के मूल्यों की लगातार जानकारी लेते रहना चाहिए ताकि अधिक मूल्य पर उत्पाद बेचा जा सके।

प्रश्न 8.
मार्किट कमेटी के दो मुख्य काम क्या हैं ?
उत्तर-
मार्किट कमेटी का मुख्य काम मण्डी में किसानों के अधिकारों की रक्षा करना है। यह उत्पाद की बोली करवाने में पूरा-पूरा तालमेल बना कर रखती है। इसके अलावा उत्पाद की तुलाई भी ठीक ढंग से होती है यह भी ध्यान रखती है।

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प्रश्न 9.
श्रेणीबद्ध से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
फसल को उसकी गुणवत्ता के अनुसार भिन्न-भिन्न भागों में बांटने को वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) करना कहा जाता है।

प्रश्न 10.
जे (J) फार्म लेने के क्या-क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
जे (J) फार्म में बिक चुके उत्पाद के बारे में सारी जानकारी होती है, जैसेउत्पाद की मात्रा, बिक्री कीमत तथा प्राप्त किए खर्चे । यह फार्म लेने के अन्य लाभ हैं कि बाद में यदि कोई बोनस मिलता है तो वह भी प्राप्त किया जा सकता है तथा मण्डी फीस की चोरी को भी रोका जा सकता है।

(ग) पांच-छ: वाक्यों में उत्तर दो-

प्रश्न 1.
मंडीकरण में सरकारी दखल पर नोट लिखो।
उत्तर-
एक समय था जब कृषक अपनी उपज के लिए व्यापारियों पर निर्भर था। व्यापारी अकसर कृषक को अधिक उत्पाद लेकर कम दाम ही देते थे। अब सरकार द्वारा कई नियम कानून बना दिए गए हैं तथा मार्किट कमेटियां, सहकारी संस्थाएं आदि बन गई हैं। नियमों कानूनों के अनुसार किसान को उचित दाम तो मिलता ही है क्योंकि सरकार द्वारा कमसे-कम निर्धारित मूल्य तय कर दिया जाता है। किसान को यदि किसी तरह का शक हो तो वह अपने उत्पाद की तुलाई करवा सकता है तथा पैसे नहीं लगते। सरकार द्वारा मैकेनिकल हैंडलिंग इकाइयां भी स्थापित की गई हैं। किसान अपने उत्पाद को बेच कर आढ़ती से फार्म-J ले सकता है जिसके बाद में बोनस मिलने पर किसान को सुविधा रहती है। इस प्रकार सरकार के दखल से किसान के अधिकार अधिक सुरक्षित हो गए हैं।

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प्रश्न 2.
सहकारी मंडीकरण का संक्षेप में विवरण दो।
उत्तर-
सहकारी मंडीकरण द्वारा किसानों को अपनी उपज बेच कर अच्छा दाम मिल जाता है। ये सभाएं आम करके कमीशन ऐजंसियों का काम करती हैं। ये सभाएं किसानों द्वारा ही बनाई जाती हैं। इसलिए यह किसानों को अधिक दाम प्राप्त करवाने के लिए सहायक होती हैं। इनके द्वारा किसानों को आढ़ती से जल्दी भुगतान हो जाता है। इन सभाओं द्वारा किसानों को अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं; जैसे-फसलों के लिए ऋण तथा सस्ते दाम पर खादें, कीटनाशक दवाइयां मिलना आदि।

प्रश्न 3.
कृषि उत्पादों को श्रेणीबद्ध करने के क्या लाभ हैं ?
उत्तर-
वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) की हुई फसल का मूल्य अच्छा मिलता है। अच्छी उपज एक ओर करके अलग दों में मंडी में लेकर जाओ। घटिया उपज को दूसरे दर्जे में रखो। इस प्रकार अधिक लाभ कमाया जा सकता है। यदि वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) किए बिना घटिया वस्तु नीचे और ऊपर अच्छी वस्तु रख कर बेची जाएगी तो कुछ दिन तो अच्छे पैसे कमा लोगे परन्तु जल्दी ही लोगों को इस बात का पता चल जाएगा और किसान ग्राहकों में अपना विश्वास खो बैठेगा और दोबारा लोग ऐसे किसानों से चीज़ खरीदने में परहेज करेंगे। परन्तु यदि किसान मंडी में ईमानदारी के साथ अपना माल बेचेगा तो लोग भी उसका माल खरीदने के लिए उत्सुक होंगे और किसान अब लम्बे समय तक लाभ कमाता रहेगा। ऐसा तब ही हो सकता है जब कृषक अपनी उपज की दर्जाबन्दी करें।

प्रश्न 4.
मकैनिकल हैंडलिंग इकाइयों पर संक्षेप में नोट लिखो।
उत्तर-
पंजाब राज्य मंडी बोर्ड द्वारा पंजाब में कुछ मंडियों में मकैनिकल हैंडलिंग इकाइयां स्थापित की गई हैं। इन इकाइयों की सहायता से किसान के उत्पाद की सफाई, भराई तथा तुलाई मशीनों द्वारा मिनटों में हो जाती है। यदि इसी कार्य को मजदूरों ने करना हो तो कई घण्टे लग जाएंगे। इन इकाइयों का प्रयोग किया जाए तो किसानों को कम खर्चा करना पड़ता है तथा उत्पाद की कीमत भी अधिक मिल जाती है। रकम का भुगतान भी उसी समय हो जाता है। भारतीय खाद्य निगम द्वारा मोगा, मंडी गोबिंदगढ़ तथा जगराओं में गेहूँ को संभालने के लिए इसी तरह की बड़े स्तर पर इकाइयों की स्थापना की गई हैं । यहां किसान सीधा गेहूँ बेच सकता है। उसको उसी दिन भुगतान हो जाता है। मंडी का खर्चा नहीं पड़ता, प्राकृतिक आपदाओं से भी उत्पाद का बचाव हो जाता है। किसान को इन इकाइयों का पूरा लाभ लेना चाहिए।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

प्रश्न 5.
कृषि उत्पादों के उपयुक्त मंडीकरण के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
फसल उगाने के लिए बड़ी मेहनत लगती है और इसका उचित मूल्य भी मिलना चाहिए। इसके लिए मंडीकरण का काफ़ी महत्त्व हो जाता है। मण्डीकरण की तरफ बुवाई के समय से ही ध्यान देना चाहिए। ऐसी फसल की कृषि करें जिससे अधिक लाभ मिल सके। अधिक फसल की उन्नत किस्म की बुवाई करें। फसल की सम्भाल ठीक ढंग से करें। खादें, कृषि जहर, निराई, सिंचाई आदि के लिए कृषि विशेषज्ञों की राय लें। फसल को धूल मिट्टी से बचाएं। इसे नाप तोल कर और इसका वर्गीकरण करके ही मण्डी में लेकर जाएं। मण्डी में जल्दी पहुंचे और कोशिश करें कि उसी दिन फसल बिक जाए।

Agriculture Guide for Class 11 PSEB कृषि उत्पादों का मंडीकरण Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हम अपनी उपज का उपयुक्त मूल्य कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर-
उपज के मण्डीकरण की ओर विशेष ध्यान देकर।

प्रश्न 2.
उपयुक्त मण्डीकरण कब आरम्भ होता है?
उत्तर-
बुवाई के समय से ही।

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प्रश्न 3.
उपज का पूर्ण मूल्य लेने के लिए उसमें कितनी नमी होनी चाहिए?
उत्तर-
नमी की मात्रा निर्धारित मापदंडों के अनुसार होनी चाहिए।

प्रश्न 4.
सफाई, तोलाई और बोली के समय किसान को कहां होना चाहिए?
उत्तर-
अपने उत्पाद के समीप।

प्रश्न 5.
किस प्रकार की फसल की कृषि के बारे में किसान को सोचना चाहिए?
उत्तर-
जिससे अधिक मुनाफा कमाया जा सके।

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प्रश्न 6.
आकार के अनुसार सब्जियों और फलों के वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध करने) को क्या कहा जाता है ?
उत्तर-
वर्गीकरण या श्रेणीबद्ध या दर्जाबंदी।

प्रश्न 7.
क्या अपने उत्पाद को बिक्री के लिए मण्डी ले जाने से पहले मण्डी की परिस्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए अथवा नहीं ?
उत्तर-
मण्डी की स्थिति के बारे में जानकारी प्राप्त करनी चाहिए।

प्रश्न 8.
उपयुक्त मण्डीकरण की ओर ध्यान देने की आवश्यकता है या नहीं ?
उत्तर-
अच्छे मण्डीकरण की ओर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है।

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प्रश्न 9.
फसल निकालने के बाद इसे तोलना क्यों चाहिए?
उत्तर-
ऐसा करने से मण्डी में बेची जाने वाली फसल का अन्दाज़ा रहता है।

प्रश्न 10.
आढ़ती से फार्म पर रसीद लेने का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
इस तरह क्या कमाया, कितना खर्च किया इसकी पड़ताल की जा सकती है।

प्रश्न 11.
यदि किसान को उसके उत्पाद का उचित मूल्य न मिल रहा हो तो उसे क्या करना चाहिए?
उत्तर-
यदि उत्पाद का उचित मूल्य न मिले तो मार्केटिंग इन्सपैक्टर की सहायता लेनी चाहिए।

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प्रश्न 12.
सब्जियों और फलों का वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) करने से क्या लाभ होता है ?
उत्तर-
वर्गीकरण (श्रेणीबद्ध) किए हुए फलों और सब्जियों को बेचने पर अधिक मूल्य प्राप्त होता है।

प्रश्न 13.
लोगों का विश्वास जीतने के लिए किसान को क्या करना चाहिए?
उत्तर-
किसान को वर्गीकरण करके अपनी फसल ईमानदारी से बेचनी चाहिए ताकि ग्राहकों का विश्वास बनाया जा सके।

प्रश्न 14.
खेती उत्पादों के मण्डीकरण से क्या भाव है?
उत्तर-
फसलों की मण्डी में अच्छी बिक्री।

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प्रश्न 15.
उत्तम क्वालटी के उत्पाद तैयार करने के लिए किसानों को किसकी आवश्यकता है?
उत्तर-
शोधित प्रमाणित बीज तथा अच्छी योजनाबंदी।

प्रश्न 16.
वर्गीकरण ( श्रेणीबद्ध) करके उत्पाद भेजने से कितनी अधिक कीमत मिल जाती है?
उत्तर-
10 से 20%

प्रश्न 17.
मण्डी में उत्पाद कब लेकर जाना चाहिए?
उत्तर-
सुबह ही।

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प्रश्न 18.
फसल की कटाई पूरी तरह पकने से पहले करने से क्या होता है?
उत्तर-
दाने सिकुड़ जाते हैं।

प्रश्न 19.
देर से कटाई करने की क्या हानि है?
उत्तर-
दाने झड़ने का डर रहता है।

प्रश्न 20.
दर्जाबंदी सहायक कहां होता है ?
उत्तर-
दाना मण्डी में नियुक्त होता है।

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लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
फसल की संभाल उपयुक्त विधि से करने का क्या भाव है?
उत्तर-
फसल की संभाल उपयुक्त विधि से करने का भाव है कि गुड़ाई, दवाइयों का प्रयोग, खाद, पानी, कटाई तथा गहाई के काम विशेषज्ञों के मतानुसार करना चाहिए।

प्रश्न 2.
किसान को फसल का अच्छा मूल्य लेने के लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर-

  1. किसान को अपनी फसल तोल, माप कर मण्डी में ले जानी चाहिए।
  2. किसान को उत्पाद की दर्जाबंदी (श्रेणीबद्ध) करके मण्डी में लेकर जाना चाहिए।
  3. उत्पाद में नमी की मात्रा निर्धारित माप-दंडों के अनुसार होनी चाहिए।

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दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए किसान को किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. सफाई, तोलाई तथा बोली के समय किसान को अपने उत्पाद के समीप रहना चाहिए।
  2. यदि उत्पाद की कम कीमत मिले तो किसान को मार्केटिंग इंस्पैक्टर तथा मार्कीट कमेटी के अमले की सहायता लेनी चाहिए।
  3. तोलाई के समय तुला तथा वाटों के ऊपर सरकारी मोहर देख लेनी चाहिए।
  4. उत्पाद बेचने की आढ़ती से फार्म पर रसीद लेनी चाहिए।

प्रश्न 2.
कृषि उत्पादों की बिक्री के समय कौन-सी बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. सफ़ाई, तोलाई और बोली के समय किसान अपनी ढेरी के पास ही खड़ा हो।
  2. तोलाई के समय तराजू और बाटों की जांच करो। बांटों पर सरकारी मोहर लगी होनी चाहिए।
  3. यदि लगे कि फसल का उचित मूल्य नहीं मिल रहा है तो मार्केटिंग इन्स्पैक्टर और मार्केटिंग स्टाफ की सहायता लो।
  4. फसल बेचकर आढ़ती से फार्म के ऊपर रसीद ले लो। इस तरह लाभ और खर्चों की जांच की जा सकती है।

प्रश्न 3.
अधिक लाभ कमाने के लिए किसान को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर-

  1. ऐसी फसल बोएं जिससे अच्छी आमदन हो जाए।
  2. अच्छी किस्म का पता करने के बाद बोना चाहिए।
  3. फसल की संभाल अच्छी प्रकार करनी चाहिए।
  4. गुड़ाई, दवाइयों का प्रयोग, खाद, सिंचाई, कटाई, गहाई विशेषज्ञों की राय के अनुसार करें।

PSEB 11th Class Agriculture Solutions Chapter 4 कृषि उत्पादों का मंडीकरण

कृषि उत्पादों का मंडीकरण PSEB 11th Class Agriculture Notes

  • कृषि उपज का मंडीकरण बढ़िया ढंग से किया जाए तो अधिक मुनाफ़ा कमाया जा सकता है।
  • अच्छे मंडीकरण के लिए बुवाई के समय से ही ध्यान रखना पड़ता है।
  • अधिक पैसा दिलाने वाली फसल की उत्तम किस्म की बुवाई करें।
  • निराई, दवाइयों का प्रयोग, पानी, खाद, कटाई आदि विशेषज्ञों की सलाह से करें।
  • उत्पाद निकालने के बाद इसे तोल लेना चाहिए। यह बेहद जरूरी है।
  • उत्पादों का वर्गीकरण करके उसे मंडी में ले जाएं।
  • उत्पाद बेचने के दौरान आढ़ती से फार्म व रसीद ले लें ताकि मुनाफे और खर्चे की पड़ताल की जा सके।
  • किसानों को अपनी उपज का मंडीकरण सांझी तथा सहकारी संस्थाओं द्वारा करना चाहिए।
  • पंजाब राज्य मण्डी बोर्ड द्वारा कुछ मंडियों में मकैनिकल हैंडलिंग इकाइयाँ स्थापित की गई हैं।
  • भारतीय खाद्य निगम द्वारा मंडी गोबिन्दगढ़, मोगा तथा जगराओं में गेहँ को संभालने के लिए बड़े स्तर पर प्रबंध इकाइयों की स्थापना की गई है।
  • कृषकों को अपने आस-पास की मंडियों के भाव की जानकारी लेते रहना चाहिए।
  • भिन्न-भिन्न मंडियों के मूल्य रेडियो, टी०वी० तथा समाचार-पत्रों आदि से भी पता लगते रहते हैं।
  • कृषक को उत्पाद बेचने के लिए कोई समस्या आए तो वह मार्किट कमेटी के उच्च अधिकारियों से सम्पर्क कर सकता है।

PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण

Punjab State Board PSEB 10th Class Home Science Book Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 10 Home Science Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण

PSEB 10th Class Home Science Guide रेशों का वर्गीकरण Textbook Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
रेशों की लम्बाई के आधार पर उन्हें कौन-सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
अथवा
छोटे रेशे तथा लम्बे रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
रेशों को लम्बाई के आधार पर दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है

  1. छोटे रेशे या स्टेप्ल रेशे (Staple Fibre)-इन रेशों की लम्बाई छोटी होती है। इसकी लम्बाई इंचों या सेंटीमीटरों में मापी जाती है। साधारणतः 1/4″ से लेकर 18 इंच तक लम्बे होते हैं। सिल्क के अतिरिक्त सभी प्राकृतिक रेशे स्टेप्ल रेशे हैं।
  2. लम्बे रेशे/फिलामैंट (Filament)-इन रेशों की लम्बाई ज्यादा होती है। इसको मीटरों में मापा जाता है। सिल्क तथा कृत्रिम रेशे फिलामैंट रेशे होते हैं।

प्रश्न 2.
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
प्राकृतिक फिलामैंट रेशे सिर्फ सिल्क ही हैं।

प्रश्न 3.
सैलूलोज रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
सैलूलोज रेशे कपड़े के रेशों या लकड़ी के गुद्दे को कृत्रिम रेशों से मिलाकर तैयार होते हैं। इनकी भिन्न-भिन्न किस्में हैं-जैसे कि विस्कोल क्यूपरामोनियम तथा नीटरो सैलूलोज।

प्रश्न 4.
(i) प्राकृतिक रेशे कहाँ-कहाँ से प्राप्त किये जाते हैं?
(ii) प्राकृतिक रेशे कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
(i) प्राकृतिक रेशे पौधों के तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन तथा कपास से प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त जानवरों के बालों से ऊन के रूप में तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है। कच्ची धातु या खनिज पदार्थ के रूप में ऐसबेसटास के रूप में मिलते हैं।
(ii) जूट, पटसन, कपास, रेशम आदि।

प्रश्न 5.
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को कौन-कौन सी श्रेणियों में बांटा जा सकता है?
उत्तर-
मनुष्य द्वारा तैयार किये रेशों को मुख्य चार श्रेणियों में बाँटा जा सकता है

  1. सैलूलोज के पुनः निर्माण से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे-यह रेशे लकड़ी के गुद्दे या कपास के छोटे रेशों को रसायन पदार्थों से मिलाकर बनाए जाते हैं।
  2. थर्मोप्लास्टिक रेशे (Thermoplastic Fibres)-गर्म होने से यह रेशे सड़ने के स्थान पर पिघल जाते हैं। इसलिये इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है। जैसे कि नाइलॉन, पौलिएस्टर तथा ऐसिटेट आदि।
  3. धातु से बने रेशे-गोटे तथा जरी के लिये प्रयोग किये जाने वाले रेशे सोना. चांदी, एल्यूमीनियम धातुओं से बनते हैं।
  4. गलास फाइबर/शीशे से बने रेशे-ये रेशे शीशे को पिघला कर बनते हैं।

प्रश्न 6.
थर्मोप्लास्टिक रेशों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कृत्रिम रेशे हैं अभिप्राय यह कि मनुष्य द्वारा बनाये हुए। यह रेशे गर्मी से सड़ने की अपेक्षा पिघल जाते हैं। इस कारण इनको थर्मोप्लास्टिक रेशे कहा जाता है।

प्रश्न 7.
थर्मोप्लास्टिक रेशों के चार उदाहरण दें।
उत्तर-
नाइलोन, टैरीलीन, पौलिएस्टर, ऐकरिलिक तथा ऐसिटेट थर्मोप्लास्टिक रेशों की उदाहरणें हैं।

प्रश्न 8.
रेयॉन कितनो प्रकार की होती है तथा कौन-कौन सी?
उत्तर-
रेयॉन भी मनुष्य द्वारा तैयार किया रेशा है। परन्तु ये रेशे प्राकृतिक रेशों में जैसे कपास या पटसन या जूट के गुद्दे में रासायनिक पदार्थ मिलाकर तैयार किये जाते हैं।

प्रश्न 9.
धातु से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
गोटे तथा जरी के रेशे सोना, चांदी तथा एल्यूमीनियम धातुओं से प्राप्त किये जाते हैं। इन धातओं को पिघला कर बारीक रेशे तैयार किये जाते हैं। पर आजकल सोना, चाँदी, महँगी धातुएँ होने के कराण एल्यूमीनियम रेशे बनाकर उस पर सोने तथा चांदी की परत चढ़ाई जाती है।

प्रश्न 10.
प्रोटीन वाले रेशों के दो उदाहरण दो।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे प्रोटीन युक्त रेशे होते हैं जैसे कि जानवरों भेड़ों, ऊँट तथा खरगोशों के बालों से बनी ऊन प्रोटीन युक्त रेशों की उदाहरणें हैं। इसी प्रकार सिल्क के कीड़ों से तैयार हुए सिल्क के रेशे भी प्रोटीन वाले होते हैं।

प्रश्न 11.
मिश्रित रेशे कौन-से होते हैं? कोई चार उदाहरण दें।
उत्तर-
मिश्रित रेशे दो भिन्न-भिन्न प्रकार के रेशे मिलाकर तैयार होते हैं, जैसे कपास तथा पटसन आदि से पौलिस्टर या टैरीलीन मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार होते हैं। इस प्रकार ऊन तथा एक्रिलिक रेशे मिलाकर कैशमिलोन तैयार की जाती है।

प्रश्न 12.
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
पौधों के तनों से प्राप्त होने वाले प्राकृतिक रेशे निम्नलिखित हैंलिनन-यह फलैक्स पौधे के तने से प्राप्त होती है। पटसन-यह जूट के पौधे के तने से प्राप्त होता है। रेमी-यह भी पौधे के तने से प्राप्त होता है। जूट-यह रेशा भी पौधे के तने से प्राप्त किया जाता है।

छोटे उत्तर वाले प्रश्न

प्रश्न 1.
(13) मूल गुणों के अलावा रेशों में कौन-कौन से और गुण हो सकते
उत्तर-
रेशों में उनके मूल गुणों के अतिरिक्त निम्नलिखित गुण भी होने आवश्यक हैं

  1. चमक (Lusture)
  2. पानी सोखने की क्षमता (Absorption of Water)
  3. चिपकना (Felting)
  4. आग पकड़ने की क्षमता (Flammability)
  5. संघनता (Density)
  6. ताप प्रतिरोधिकता (Resistence to heat)
  7. अम्ल तथा खारापन सहन करने की शक्ति (Resistence to acid and alkalies)
  8. बल न पड़ें (Resiliience)
  9. बलदार होना (Crimp) आदि।

प्रश्न 2.
(14) सूती रेशों को रेशों का सरताज क्यों कहा जाता है?
अथवा
सूती रेशों को सबसे अच्छा क्यों कहा जाता है?
उत्तर- सूती रेशे को रेशों का सरताज कहा जाता है क्योंकि इस रेशे में बहुत गुण होते हैं जैसे प्राकृतिक चमक का होना, मज़बूत रेशा तथा ताप का संचालक होने के साथसाथ इसमें पानी सोखने की क्षमता भी होती है। इस कारण ही ये कपड़े गर्मियों तथा सर्दियों में ठीक रहते हैं। इस रेशे के कपड़े चमड़ी के लिये आरामदायक होते हैं। इसको उबाला भी जा सकता है। इस कारण ही अस्पताल में पट्टी बनाने के लिये इसको प्रयोग किया जाता है। सूती रेशा इन गुणों के कारण ही रेशों का सरताज माना जाता है।

प्रश्न 3.
(15) कौन-से गुणों के कारण सूती कपड़ों को गर्मियों में पहना जाता है?
उत्तर-
सूती कपड़े ताप के संचालक तथा पानी सोखने की क्षमता रखते हैं जिससे ये शरीर का पसीना सोख लेते हैं। इस कारण ही इनको गर्मियों में पहना जाता है। इसके अतिरिक्त ताप के संचालक होने के कारण ताप इनमें से गुज़र जाता है, जो पसीना सूखने में मदद करते हैं। इन दोनों गुणों के कारण ये रेशे ठण्डे होते हैं तथा गर्मियों में सबसे आरामदायक रहते हैं। इसके अतिरिक्त हल्के क्षार तथा अम्लों का इन पर कोई प्रभाव नहीं होता जिस कारण पसीने से खराब नहीं होते।

प्रश्न 4.
(16) सूती रेशों से बनाये कपड़ों की देखभाल कैसे की जाती है तथा यह कपड़ा कहाँ इस्तेमाल किया जाता है?
उत्तर-

  1. सूती रेशों के कपड़ों को उबाल कर भी धोया जा सकता है। पर रंगदार सूती कपड़ों को उबालना नहीं चाहिए तथा न ही तेज़ धूप में सुखाना चाहिए जबकि सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से ज्यादा सफ़ेदी आती है।
  2. सूती रेशों पर क्षार का कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता, अतः किसी भी साबुन से धोये जा सकते हैं।
  3. सूती कपड़ों पर रंगकाट का भी कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। अतः लिशेषतया क्लोरीन रंगकाट प्रयोग करने चाहिएं। तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।
  4. सूती कपड़ों को पूरा सुखाकर ही अल्मारी में सम्भालना चाहिए अन्यथा फंगस लग सकती है।
  5. इनको नम तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। जिससे कपड़े के पूरे बल निकल कर चमक आ जाती है।
    सूती रेशे पहनने वाले कपड़ों, चादरों, खेस, मेज़पोश, तौलिये तथा पर्दे आदि के लिये प्रयोग किये जाते हैं।

प्रश्न 5.
(17) सूती रेशे के गुण बताएं।
उत्तर-
सूती रेशा कपास के पौधे से तैयार होता है। इस रेशे में 87 से 90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। सूती रेशे के गुण निम्नलिखित हैं

  1. सूती रेशे की लम्बाई आधे इंच से दो इंच तक होती है तथा साधारणतया इस का रंग सफ़ेद होता है।
  2. इस रेशे में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
  3. यह एक मज़बूत तथा टिकाऊ रेशा है।
  4. इस रेशे में पानी सोखने की क्षमता काफ़ी होती है। जिस कारण यह शरीर का पसीना सोख लेता है। इस गुण के कारण ही तौलिये सूती रेशे के बनाये जाते हैं।
  5. यह रेशा ताप का बढ़िया संचालक है। गर्मी इसमें से गुज़र सकती है। सूती रेशे की पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता के कारण ही सूती कपड़े गर्मियों में पहनने के लिये सबसे आरामदायक होते हैं।

प्रश्न 6.
(18) लिनन तथा सूती कपड़े में क्या समानता है?
उत्तर-
लिनन तथा सूती कपड़े में निम्नलिखित समानताएँ हैं

  1. ये दोनों रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। सूती रेशा कपास से बनता है तथा लिनन फलैक्स पौधे के तने से तैयार होता है।
  2. लिनन तथा सूती रेशे दोनों में पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है।
  3. दोनों रेशे ताप के बढ़िया संचालक हैं।
  4. लिनन तथा सूती दोनों रेशे मज़बूत होते हैं। इनकी गीले होने पर मजबूती और भी बढ़ जाती है।

प्रश्न 7.
(19) लिनन के कपड़ों की विशेषताएँ बताओ।
अथवा
लिनन का प्रयोग तथा इसकी देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
सती कपडे की तरह लिनन को जलाते समय कागज़ के सड़ने जैसी गंध होती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बन जाती है। लिनन को मध्यम से तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। इसके रेशे मज़बूत तथा टिकाऊ होते हैं। इसलिये बिस्तरों की चादरें आदि बनाई जाती हैं। लिनन पर क्षार का प्रभाव कम होता है। इस रेशे में प्राकृतिक चमक होती है।

प्रश्न 8.
(20) लिनन के कपड़े कौन-सी ऋतु में पहने जाते हैं तथा क्यों? इनकी देखभाल कैसे करोगे?
उत्तर-
लिनन के कपड़े गर्मियों में ही पहने जाते हैं। क्योंकि इसके रेशों में पानी सोखने की क्षमता तथा ताप संचालकता अधिक होती है। जिससे ये गर्मियों में ठंडक पहुँचाते हैं। लिनन के कपड़ों की देखभाल अग्रलिखित ढंग से की जा सकती है

  1. ये रेशे मज़बूत होने के कारण रगड़ कर धोये जा सकते हैं। परन्तु इनको उबालना नहीं चाहिए क्योंकि गर्मी से खराब हो जाते हैं।
  2. लिनन के रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी साबुन से धोए जा सकते हैं।
  3. इनको नमी पर ही प्रेस करना चाहिए।
  4. लिनन के रंग पक्के नहीं होते, इसलिए इन कपड़ों को छाँओं में सुखाना चाहिए।
  5. लिनन के कपड़े को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इस कारण धोकर अच्छी तरह सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भालना चाहिए।

प्रश्न 9.
(21) सूती तथा लिनन के अलावा और कौन-से प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सैलूलोज़ रेशे हैं?
उत्तर-
सूती तथा लिनन के अतिरिक्त पटसन, नारियल के रेशे, कपोक, रेमी, जूट, पिन्ना तथा साइसल रेशे हैं जो प्राकृतिक रूप में प्राप्त होते हैं।

  1. पटसन- यह रेशा जूट के पौधे के तने से मिलता है। यह रेशा ज्यादा मज़बूत नहीं होता तथा इसमें प्राकृतिक चमक होती है। ये रेशे थोड़े खुरदरे होते हैं। यह आमतौर पर सजावटी सामान, थैले, बोरियाँ, मैट तथा गलीचे आदि के लिये प्रयोग किया जाता है। परन्तु आजकल इसमें थोड़ा सूती या लिनन के रेशे मिलाकर इसको पोशाकों के लिये प्रयोग किया जाता है।
  2. नारियल के रेशे – ये रेशे नारियल के बीज के छिलके से प्राप्त किये जाते हैं। गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य यह रेशे होते हैं। ये भूरे रंग के होते हैं तथा इनकी आमतौर पर रंगाई नहीं की जा सकती। यह आम तौर पर टाट, सोफों तथा गद्दों में भरने तथा जूतों के तले बनाने के काम आता है।
  3. कपोक-यह कपोक पौधे के बीजों के बालों से प्राप्त होता है। यह हल्का, नर्म तथा हवा में उड़ने वाला होता है। इस रेशे को अधिकतर तकियों, सोफों तथा गद्दों में भरने के लिये प्रयोग किया जाता है। यह गीला होने पर जल्दी सूख जाता है।
  4. रेमी-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसको लिनन के स्थान पर प्रयोग किया जाता है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार तथा सफ़ेद रंग के होते हैं पर इनमें तनाव ज्यादा होता है।
  5. जूट-यह भी पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है, परन्तु यह लिनन तथा पटसन से मज़बूत होता है। यह लम्बा, मज़बूत तथा भूरे रंग का रेशा है। साधारणतया रस्सियां, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनाने के लिये भी प्रयोग किया जाता है।
  6. पिन्ना-यह रेशा अनानास के पत्तों से मिलता है। यह सफ़ेद से क्रीम रंग का बारीक, चमकदार तथा मज़बूत रेशा है। इसको बैग या अन्य ऐसा सामान बनाने के लिये प्रयोग किया जाता है।
  7. साइसल-ये रेशे असेण नामक पौधे के पत्तों से मिलता है। इस रेशे को तेज़ रंगों में रंगाकर गलीचें, मैट, रस्सियां तथा ब्रश आदि बनाए जाते हैं।

प्रश्न 10.
(22) जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले मुख्य रेशे ऊन तथा ऊन की विभिन्न किस्में जैसे-मैरीनो, लामा, मुहीर, पशमीना तथा कश्मीर ऊन। सिल्क जो रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होता है। फर जो मिंक तथा अंगोरा खरगोशों के बालों से प्राप्त होती है।

प्रश्न 11.
(23) जानवरों के रेशे जानवरों के किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं?
उत्तर-
जानवरों के रेशे जानवरों के विभिन्न भागों से प्राप्त किये जाते हैं जैसे निम्नलिखित बताया गया है —

रेशे जानवरों के शरीर का भाग जहाँ से रेशे प्राप्त किये जाते हैं
(1) ऊन तथा इसकी किस्में जैसे मैरीनो, मुहेर, लामा, पशमीना तथा कश्मीयर ऊन। भेड़ के बालों से तथा विशेष किस्म की ऊन विशेष किस्म की भेड़ों, अंगोरा तथा कश्मीरी बकरी, ऊंट, लामा तथा खरगोश के बालों से मिलती है।
(2) सिल्क रेशम के कीड़े की लार से प्राप्त होती है।
(3) फर मिंक तथा अंगोरा जानवरों की चमड़ी के बालों से।

प्रश्न 12.
(24) रेशम किस जानवर से तथा कैसे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर-
रेशम जानवर वर्ग का रेशा है। यह रेशम के कीड़े की लार से बनता है। यह प्रोटीन युक्त रेशा है।
रेशम का कीड़ा जो कि शहतूत के पत्तों पर पलता है तथा अपने मुँह में से एक लारसी निकालता है जो हवा के सम्पर्क में आकर जम जाती है तथा रेशे का रूप धारण कर लेती है। यह रेशा लारवे के आस-पास लिपट कर एक खोल सा बना लेता है। इसको कोका कहा जाता है। लारवा आठ सप्ताह का होकर लार निकालने लगता है तथा अपने खोल में ही बंद हो जाता है। इस कोकून में लगभग 1800-3600 मीटर लम्बा धागा होता है। धागे का रंग कभी-कभी सफ़ेद पीला तथा कभी-कभी हरा होता है। लारवे के बढ़कर बाहर निकलने से पहले ही इन कोकूनों को इकट्ठे करके पानी में उबाल लिया जाता है, इससे रेशे पर लगी गंद उतर जाती है तथा लारवा अन्दर मर जाता है। फिर रेशे को उतारा जाता है। यह रेशा बहत नर्म होता है। इसलिये 3 से 6 रेशे इकट्ठे करके लपेट कर लच्छियां बनाई जाती हैं। रेशों की संख्या धागे की मोटाई के अनुसार ली जाती है। फिर इस धागे से कपडा तैयार किया जाता है। कीड़े पालने तथा सिल्क तैयार करने को मैरी कल्चर कहा जाता है।

प्रश्न 13.
(25) रेशों की प्राप्ति के साधन के अनुसार उनका वर्गीकरण करो।
अथवा
तन्तुओं का विस्तृत वर्गीकरण करें।
उत्तर-
साधनों के आधार पर रेशों की प्राप्ति का वर्गीकरण निम्नलिखित दिया है —
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 1

प्रश्न 14.
(26) रेशम को किन गुणों के कारण कपड़ों की रानी माना जाता है?
उत्तर-
रेशम प्राकृतिक रेशों में सबसे लम्बा रेशा है। यह रेशा मज़बूत तथा लचकदार होता है। परन्तु गीला हो कर कमजोर हो जाता है। इस रेशे में चमक सबसे अधिक होती है जिससे देखने को सुन्दर लगता है। इसीलिये इसको कपड़ों की रानी कहा जाता है।

प्रश्न 15.
(27) रेशम (सिल्क) की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
सिल्क की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. बनावट-खुर्दबीन के नीचे इसके रेशे चमकदार तथा दोहरे धागे के बने दिखाई देते हैं जिस पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
  2. लम्बाई-यह प्राकृतिक रेशों में से सबसे लम्बा रेशा है। इस रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक होती है।
  3. चमक-इस रेशे की सबसे अधिक चमक होती है।
  4. मज़बूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से यह मज़बूत होता है पर गीला होकर कमजोर हो जाता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 2
  5. रंग-इसका रंग सफ़ेद, पीला या स्लेटी होता है।
  6. लचकीलापन-यह रेशा चमकदार होता है इसलिये इसमें बल कम पड़ते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता- यह रेशा आसानी से पानी सोख लेता है तथा जल्दी ही सूख जाता है।
  8. ताप संचालकता-इस में से ताप निकल नहीं सकता इसलिये यह ताप का संचालक नहीं है। इस कारण गर्मियों में नहीं पहना जाता।
  9. अम्ल का प्रभाव-हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता।
  10. क्षार का प्रभाव-हल्की क्षार भी इस रेशे को खराब कर देती है इसलिये क्लोरीन युक्त रंगकाट नहीं प्रयोग करनी चाहिए।
  11. रंगाई-इस रेशे पर रंग जल्दी तथा पक्का चढ़ता है। इसलिये हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
  12. ताप से-सिल्क के जलने पर बाल या पंख सड़ने की गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है तथा सड़ने के पश्चात् इक्का-दुक्का काला मनका सा बन जाता है। इसलिये गर्म पानी से धोने, धूप में सुखाने तथा गर्म प्रेस से प्रेस करने से खराब हो जाता है।

प्रश्न 16.
(28) रेशम तथा ऊन दोनों ही ताप के कुचालक हैं परन्तु ऊन अधिक गर्म क्यों होती है?
उत्तर-
ऊन तथा सिल्क दोनों ही प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त रेशे हैं इसके अतिरिक्त दोनों ही ताप के कुचालक हैं तथा दोनों का प्रयोग गर्मियों में किया जाता है पर फिर भी सिल्क से ऊन ज्यादा गर्म है क्योंकि सिल्क का कपड़ा बारीक तथा ऊपरी परत मुलायम होने के कारण बाहर वाली ठण्ड से ठण्डा हो जाता है पर ऊन का कपड़ा मोटा तथा खुरदरा होने के कारण ठण्डा नहीं होता तथा शरीर की गर्मी बाहर नहीं आने देता। इस कारण ऊन सिल्क से ज्यादा गर्म होती है।

प्रश्न 17.
(29) ऊन में ऐसा कौन-सा तत्त्व होता है जो दूसरे रेशों में नहीं होता तथा इसकी विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
ऊन में एक विशेष विशेषता है जो बाकी रेशों में नहीं होती। ऊन के रेशे में लहरिया होता है जिसको क्रिंप (Crimp) कहा जाता है। लहरिये की संख्या रेशे की मज़बूती तथा आकार पर निर्भर करती है। रेशा जितना बारीक हो उतना ही मज़बूत होता है। इस विशेषता के कारण रेशे एक दूसरे से जुड़ जाते हैं जिसको फैलटिंग (Felting) कहा जाता है। इस विशेषता के कारण इससे नमदा, कंबल, गलीचे आदि बनते हैं। ऊन की विशेषताएँ निम्नलिखित दी हैं

  1. खुर्दबीन के नीचे इस रेशे की परतें एक दूसरे पर चढ़ी दिखाई देती हैं। जितनी ये परतें सघन होंगी उतनी ही ऊन गर्म होगी। ।
  2. इस रेशे की लम्बाई भी कम है लगभग 1 से 8 इंच तक।
  3. इन रेशों में कोई चमक नहीं होती।
  4. यह रेशा काफ़ी लचकदार होता है इसलिये ऊनी कपड़ों में बल नहीं पड़ते।
  5. ऊन के रेशे में पानी सोखने की क्षमता बहुत होती है। परन्तु गीले होकर ये रेशे कमजोर हो जाते हैं।
  6. ये रेशे ताप के कुचालक हैं इसलिये ही सर्दियों में प्रयोग किये जाते हैं। ये शरीर की गर्मी को बाहर नहीं निकलने देते।
  7. इस रेशे पर हल्के अम्ल का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता। परन्तु क्षार से रेशा खराब हो जाता है। इसलिये ऊनी कपड़े धोने के लिये सोडा नहीं प्रयोग करना चाहिए।
  8. ऊनी रेशे को कीड़ा बहुत जल्दी लगता है।
  9. ताप से ही ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये कभी भी सीधा प्रैस नहीं करना चाहिए बल्कि मलमल का गीला कपड़ा बिछाकर हल्की प्रैस करनी चाहिए।
  10. तेज़ाब वाले रंगों का प्रयोग करना चाहिए पर रंगकाटों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 18.
(30) रेशम तथा ऊन के गुणों में समानता क्यों है?
उत्तर-
सिल्क तथा ऊन दोनों रेशे प्राकृतिक तथा जानवरों से प्राप्त होते हैं। दोनों रेशे प्रोटीन युक्त तथा इनमें क्राबोहाइड्रेट, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन होते हैं। इसलिये इनमें कई समानताएं हैं जैसे कि इन का प्रयोग सर्दियों में ही किया जाता है। दोनों ही ताप के कुचालक हैं। इन रेशों को कीड़ा जल्दी लग जाता है। दोनों की बहुत सम्भाल करनी पड़ती है। इस के अतिरिक्त इन पर ताप का बुरा प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 19.
(31) सूती तथा लिनन के रेशों में समानता क्यों है?
अथवा
सूती तथा लिनन के रेशों के गुणों में क्या समानता है?
उत्तर-
ये दोनों रेशे प्राकृतिक तथा पौधों से मिलते हैं। सूती रेशा कपास की रूई से बनता है तथा लिनन का रेशा फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होते हैं। इन दोनों रेशों में सैलूलोज अधिक होता है। इस कारण इनमें काफ़ी समानता है। जैसे दोनों रेशों की लम्बाई छोटी होती है, ये रेशे मज़बूत होते हैं तथा पानी सोखने की क्षमता भी अधिक होती है। ये दोनों रेशे ही ताप के संचालक हैं जिस कारण गर्मियों में पहनने के लिये आरामदायक होते हैं।

प्रश्न 20.
(32) ऊनी कपड़ों की देखभाल कैसे होती है?
अथवा
ऊल की देखभाल के बारे में विस्तार से बताएं।
उत्तर-
ऊनी रेशे कमजोर होते हैं तथा गीले होकर और भी कमजोर हो जाते हैं। इसलिये बहुत ध्यान से धोना चाहिए। गीला होने से कपड़ा भारा हो जाता है तथा इनको लटका कर नहीं सुखाना चाहिए क्योंकि भारी होने के कारण इनका आकार बिगड़ जाता है। ऊन के कपड़ों को ज्यादा देर तक भिगो कर नहीं रखना चाहिए तथा न ही रगड़ कर धोना चाहिए। इसलिये पानी के तापमान का भी ध्यान रखना आवश्यक है। पानी न ज्यादा गर्म तथा न ही ठण्डा होना चाहिए। ऊनी कपड़े को सुखाने के लिये अखबार या कागज़ पर धोने से पहले कपड़े के आकार का नक्शा बनाकर समतल स्थान पर रख कर सुखाना चाहिए। यदि हो सके तो ड्राइक्लीन करवा लेना चाहिए।

ऊनी कपड़े को प्रैस भी बहुत ध्यान से करना चाहिए। कपड़े पर सीधी प्रैस नहीं करनी चाहिए। नमी वाला सूती कपड़ा बिछाकर हल्की गर्म प्रैस करनी चाहिए। इन कपड़ों को अच्छी प्रकार से सुखाकर सूखे स्थान पर सम्भाल कर रखना चाहिए क्योंकि ऊनी रेशे को कीड़ा जल्दी लग जाता है।

प्रश्न 21.
(33) ऐसबेसटास कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला रेशा है। यह कच्ची धातु या खनिज पदार्थ से प्राप्त होता है। यह आग में रखने पर सड़ता नहीं। इस पर न ही तेज़ाबी तथा क्षार का कोई प्रभाव पड़ता है। आग बुझाने के लिये प्रयोग किये जाने वाले कपड़े भी इस रेशे से बनाये जाते हैं। साधारण पहनने वाले कपड़े इससे नहीं बनाए जाते।

प्रश्न 22.
(34) ऐसी रेयॉन का नाम बताएँ जो थर्मोप्लास्टिक भी है?
उत्तर-
ऐसिटेट रेयन के रेशे थर्मोप्लास्टिक रेशों से मेल खाते हैं। ये रेशे देखने को नर्म तथा चमकदार होते हैं तथा आम तौर पर घरेलू पोशाकों तथा वस्त्र बनाने के काम आते हैं।

प्रश्न 23.
(35) कृत्रिम ढंग से रेशा कैसे बनाया जाता है?
उत्तर-
कृत्रिम ढंग से रेशा तैयार करने के लिये रासायनिक पदार्थों को नियत स्थितियों में क्रिया करके रेशे बनाए जाते हैं, फिर बारीक छेदों वाली छाननी में से निकाला जाता है। यह भाग हवा के सम्पर्क में आकर रेशों का रूप धारण कर लेते हैं।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 3

प्रश्न 24.
(36) थर्मोप्लास्टिक रेशों के मुख्य गुण बताएँ।
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्वों से मिलकर बनता है। इस रेशे की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. ये फिलामैंट रेशे होते हैं। इनकी लम्बाई इच्छा अनुसार रखी जा सकती है।
  2. ये रेशे मज़बूत तथा चमकदार होते हैं तथा इसके कपड़े टिकाऊ होते हैं।
  3. इन रेशों की पानी सोखने की क्षमता बहुत कम होती है। इसलिये ये जल्दी सख जाते हैं। इस कारण यह कपड़े पसीना भी नहीं सोखते।
  4. ये रेशे ताप के कुचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में नहीं प्रयोग किये जाते।
  5. थर्मोप्लास्टिक रेशों पर क्षार का कोई प्रभाव नहीं होता जबकि तेज़ाब में यह रेशे घुल जाते हैं।
  6. थर्मोप्लास्टिक रेशे ताप से पिघल जाते हैं तथा जलने पर प्लास्टिक के सड़ने जैसी गन्ध आती है। यह ज्यादा गर्मी नहीं बर्दाश्त कर सकते इसलिये कम गर्म प्रेस से प्रेस करने चाहिएं।
  7. इन रेशों को कोई फंगस या टिडी आदि नहीं लगती।

प्रश्न 25.
(37) थर्मोप्लास्टिक रेशों का प्रयोग दिन प्रतिदिन क्यों.बढ़ रहा है?
उत्तर-
थर्मोप्लास्टिक रेशे मज़बूत, लचकदार, टिकाऊ, धोने तथा सम्भालने में आसान होते हैं । इसलिये इसको जुराबें, खेलों में पहनने वाले कपड़े तथा आम पहनने वाले कपड़ों के लिये प्रयोग किया जाता है। मज़बूती के कारण इसकी रस्सियां, डोरियां आदि भी बनाई जाती हैं। इसको दूसरे रेशों से मिलाकर भी प्रयोग किया जाता है। इस रेशे की मजबूती कारण ही इसका प्रयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

प्रश्न 26.
(38) मिश्रित रेशे बनाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर-
मिश्रित रेशे बनाने से उनकी मज़बूती तथा टिकाऊपन बढ़ जाता है। इससे इनकी सम्भाल भी आसान हो जाती है। मिश्रित रेशे सस्ते भी होते हैं तथा दाग भी कम लगते हैं। इनके रंग भी पक्के होते हैं तथा देखने में भी सुन्दर लगते हैं।

प्रश्न 27.
(39) कृत्रिम कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
कृत्रिम कपड़ों की देखभाल तथा सम्भाल आसान होती है क्योंकि यह धोने आसान होते हैं। गर्म पानी की आवश्यकता नहीं पड़ती। इनके रंग पक्के होने के कारण धोने से या धूप से खराब नहीं होते। प्रैस की भी ज्यादा आवश्यकता नहीं पड़ती। टिड्डियों, कीड़ों या फंगसों द्वारा कोई हानि नहीं होती क्योंकि यह रसायनों से बने होते हैं। इसलिये सम्भालने भी आसान हैं।

निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
(40) रेशे से कपड़ा बनाने के लिये कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं?
अथवा
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए मूल गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
प्रकृति में अनेक प्रकार के रेशे मिलते हैं, परन्तु रेशों से कपड़ा बनाने के लिये इनमें कुछ मूल गुण होने आवश्यक हैं तभी इन रेशों से कपड़ा बनाया जा सकता है। ये मूल गुण निम्नलिखित हैं

  1. रेशे के रूप में होना (Staple)
  2. मज़बूती (Strength/Tenacity)
  3. लचकीलापन (Elasticity/Flexibility)
  4. समरूपता (Uniformity)
  5. जुड़ने की शक्ति (Spinning Quality/Cohesiveness)।

1. रेशे के रूप में होना (स्टेपल) – रेशे स्टेपल या फिलामैंट दो प्रकार के हो सकते हैं। स्टेपल से अभिप्राय है कि रेशे से कपड़ा बनाने के लिये उन की विशेष लम्बाई तथा व्यास का होना आवश्यक है तभी उनका संतोषजनक प्रयोग हो सकता है। व्यास की तुलना में रेशों की लम्बाई बहुत ज्यादा होती है जो कम-से-कम 1 : 100 के अनुपात में होनी चाहिए। यदि रेशों की लम्बाई आधा इंच से कम हो तो वह धागा बनाने के लिये इस्तेमाल नहीं किये जा सकते। मनुष्य द्वारा तैयार किये तथा सिल्क के रेशों की लम्बाई तो बहुत होती है, परन्तु ऊन तथा कपास के रेशों की लम्बाई कम होती है परन्तु इनके रेशों में आपस में जुड़कर काते जाने का गुण बहुत ज्यादा होता है जो कपड़ा बनाने के लिये लाभकारी है। कपास के छोटे रेशे जिनसे धागा नहीं बनाया जा सकता उन पर रासायनिक पदार्थों की प्रक्रिया से रेशे का पुनः निर्माण करके रेयोन का रेशा बनाया जाता है। इसलिये ही रेयॉन के गुण सूती कपड़े से काफ़ी मिलते हैं।

2. मज़बूती-रेशे से कपड़ा बनाना एक लम्बी प्रक्रिया है। रेशे इतने मज़बूत होने चाहिएं कि कताई, सफ़ाई तथा बुनाई समय पड़ रही खींच का मुकाबला कर सकें तथा टिकाऊ कपड़े के रूप में बदले जा सकें। रेशों की मज़बूती तथा वातावरण की नमी का प्रभाव पड़ता है। साधारणतया प्राकृतिक रूप में पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे जब गीले हों तो ज्यादा मज़बूत होते हैं, जबकि दूसरे रेशे जैसे रेयोन तथा ऊन, सिल्क आदि गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं।

3. लचकीलापन रेशों में टूटे बिना मुड़ सकने का गुण होना चाहिए ताकि इनको एक-दूसरे पर लपेट कर बल देकर धागा बनाया जा सके, जिससे कि कपड़ा बनाया जाता है। यह गुण कपड़े को टिकाऊ बनाने तथा पुन: पुरानी सूरत तथा आकार कायम रखने में मदद करता है। जिन रेशों में लचक अधिक होती है। उनमें बल कम पड़ते हैं।

4. समरूपता-रेशों की लम्बाई तथा व्यास में समरूपता होने से उनसे साफ़ तथा समरूप धागा बनाया जा सकता है जिससे कपड़ा भी मुलायम तथा साफ़ बनता है।

5. जुड़ने की शक्ति – अच्छी कताई के लिये रेशों में आपस में जुड़ सकने की शक्ति का होना आवश्यक है ताकि उनकी कताई हो सके। रेशों की जुड़ने की शक्ति चार बातों पर निर्भर करती है

  1. रेशे की लम्बाई
  2. रेशे की बारीकी
  3. रेशे की सतह की किस्म
  4. लचकीलापन।

रेशे में जितनी जुड़ने की शक्ति ज्यादा होगी उतनी ही कताई उपरान्त धागे की बारीकी तथा मज़बूती होगी तथा यही गुण कपड़े में भी आयेंगे।

प्रश्न 2.
(41) गर्मियों में पहनने के लिये किस किस्म के रेशों से बने वस्त्र ठीक रहते हैं ? कृत्रिम ढंग से बनाए रेशों से बने हुए वस्त्र गर्मियों में क्यों नहीं पहने जाते?
उत्तर-
गर्मियों में पहनने के लिये सूती तथा लिनन रेशे के कपड़े ठीक रहते हैं क्योंकि इनमें पानी सोखने की क्षमता अधिक होती है जिससे यह पसीना सोख लेते हैं – तथा ताप के संचालक होने के कारण पसीने को सूखने में मदद करते हैं तथा ठण्डे रहते हैं। इसलिये यह कपड़े गर्मियों में अधिक आरामदायक होते हैं। ये रेशे मज़बूत होते हैं पर गीले होने पर और भी मज़बूत हो जाते हैं।

सूती तथा लिनन के कपड़ों के विपरीत कृत्रिम रेशे गर्मियों में नहीं पहने जाते क्योंकि ये पानी नहीं सोखते तथा पसीना आने पर गीले हो जाते हैं, परन्तु पसीना सूखता नहीं।
ताप के कुचालक होने के कारण शरीर की गर्मी बाहर नहीं निकल सकती। इसलिये इनमें अधिक गर्मी लगती है। इसलिये ये कपड़े गर्मियों में नहीं पहने जाते।

प्रश्न 3.
( 42 ) (i) प्रकृति से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएँ, रचना और देखभाल के बारे में बताओ।
(ii) सूती रेशे की विशेषताएँ तथा देखभाल के बारे में विस्तार में बतायें।
उत्तर-
प्राकृतिक रूप में पौधों, जानवरों तथा खनिज पदार्थों या कच्ची धातु से प्राप्त होने वाले रेशे प्राकृतिक रेशे हैं। इनको प्राप्ति के साधन के आधार पर तीन वर्गों में बांटा जाता है
(क) पौधों से प्राप्त होने वाले रेशे-ये पौधों के बीजों के बालों के रूप में कपास तथा तनों के रेशों के रूप में जूट, पटसन आदि हैं।
(ख) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे-जानवरों के बालों के रूप में ऊन तथा रेशम के कीड़ों से रेशम प्राप्त होता है।
(ग) धातु से प्राप्त होने वाले रेशे-कच्ची धातु का खनिज पदार्थों के रूप में ऐसबैस्टास प्राकृतिक रूप में धरती की सतह से प्राप्त होने वाला रेशा है।
प्राकृतिक रेशे-ये रेशे विभिन्न पौधों से प्राप्त किये जाते हैं। पौधों से मिलने वाले ये रेशे जैसे कपास (सूती), लिनन, जूट तथा नारियल के रेशे मनुष्य के लिये बहुत लाभकारी हैं। ये पौधों के भिन्न-भिन्न भागों जैसे-बीज, तने, पत्ते या फल से प्राप्त होते हैं।
सूती रेशे-यह रेशा पुराने समय से भारत में उगाया जाता है। सूती रेशा कपास के पौधे के बीजों के बाल हैं। कपास का पौधा 90-120 सेंटीमीटर ऊंचा होता है जो गर्म, नम तथा काली मिट्टी वाली ज़मीन में उगाया जाता है। इसकी डोडी जो फूल में बदल जाती है जहाँ बाद में टींडा बन जाता है। टींडा पक कर फूट जाता है। जिससे रूई (कपास) बाहर निकल आती है। रूई ही वास्तव में कपास के पौधे के फल हैं जिससे बीज तथा कपास (बीजों के बाल) अलग-अलग कर लिये जाते हैं। कपास की कंघी करके छोटे तथा लम्बे रेशे अलग-अलग कर लिये जाते हैं। लम्बे रेशों से मशीनों से धागा बनाकर कपड़ा बना लिया जाता है। पहले घरों में ही चरखे से धागा बनाया जाता था जिससे खद्दर या खेस आदि भी घर ही बनाये जाते हैं।
रचना-सूती रेशे में 87-90% सैलूलोज, 5 से 8% पानी तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ

  1. बनावट-कपास का रेशा खुर्दबीन से देखने पर नाली की तरह दिखाई देता है। जिसमें रस होता है जब कपास पकती है तो यह रस सूख जाता है तथा रेशा चपटा, मुड़े हुए रिबन की तरह लगता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 4
  2. लम्बाई-यह छोटा रेशा है इसकी लम्बाई इंच से दो इंच तक हो सकती है।
  3. रंग-साधारणतया रंग सफ़ेद होता है पर कपास की किस्म अनुसार इसका रंग क्रीम या हल्का भूरा भी हो सकता है।
  4. चमक-इसमें प्राकृतिक चमक नहीं होती पर रासायनिक प्रक्रिया जिसको मीराइजेशन कहते हैं, से इसकी चमक सुधारी जा सकती है।
  5. मजबूती-यह एक मज़बूत रेशा है इसलिये काफ़ी रगड़ सह सकता है। गीले होने से मज़बूती और बढ़ जाती है मर्सीराइजेशन से पक्के तौर पर मज़बूत हो जाता है।
  6. लचकीलापन-इनमें लचक नहीं होती इसलिये सूती कपड़े पर बल जल्दी पड़ जाते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता-इनकी नमी या पानी सोखने की शक्ति अच्छी होती है जिस कारण पसीना सोख सकते हैं इसलिये इनको गर्मियों में पहना जाता है। इस गुण कारण ही सूती रेशे के तौलिये बनाए जाते हैं।
  8. ताप चालकता-ये ताप के अच्छे संचालक होते हैं। गर्मी इनमें से गुज़र सकती है इसलिये ही ये पसीने को सूखने में मदद करते हैं। सूती रेशों की अच्छी पानी सोखने की क्षमता तथा अच्छी ताप सुचालकता के कारण भी ये ठण्डे रेशे हैं तथा गर्मियों में पहनने के लिये सब से अधिक उचित तथा उपयुक्त हैं।
  9. रसायनों का प्रभाव-क्षार का इन पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ता है परन्तु हल्के या गाढ़े तेज़ाब से खराब हो जाते हैं।
  10.  रंगाई-इनको रंगना आसान है परन्तु धूप तथा धोने से इनके रंग खराब हो जाते हैं।
  11. फंगस का प्रभाव-नमी वाले कपड़ों को फंगस बहुत लग जाती है तथा खराब कर देती है परन्तु कीड़ा नहीं लगता।
  12. अन्य विशेषताएँ-इन पर गर्मी का प्रभाव कम होता है जिससे ये कपड़े उबाले भी जा सकते हैं तथा धूप में सुखाये भी जा सकते हैं। परन्तु रंगदार कपड़ों का रंग खराब हो जाता है जिस कारण उनको न तो उबाला जाता है तथा न ही धूप में सुखाना चाहिए।
  13. ताप का प्रभाव-सूती रेशा आग जल्दी पकड़ता है तथा पीली लाट से जलता है। जलते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से दूर करने पर भी अपने आप जलता रहता है। जलने के उपरान्त स्लेटी रंग की राख बनती है।

देखभाल-

  1. सफ़ेद सूती कपड़ों को गर्म पानी में या उबाल कर तथा रगड़ कर धोया जा सकता है। रंगदार कपड़ों को ठण्डे पानी में धोना चाहिए तथा छाया में ही सुखाना चाहिए, परन्तु सफ़ेद कपड़ों को धूप में सुखाने से उनमें और सफ़ेदी आती है।
  2. क्षार का बुरा प्रभाव नहीं होता इसलिये किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं।
  3. इनको नमी में प्रैस करना चाहिए। मध्यम तथा तेज़ गर्म प्रैस से प्रैस किया जा सकता है।
  4. रंगकाट का इन पर बुरा प्रभाव नहीं होता विशेषतया क्लोरीन वाले रंगकाट का तेज़ रंगकाट कपड़े को कमजोर कर देते हैं।

इनको कभी भी नमी में नहीं सम्भालना चाहिए क्योंकि इनको फंगस जल्दी लग जाती है।
लिनन-यह फलैक्स पौधे के तने तथा शाखाओं से प्राप्त होने वाला रेशा है। यह पौधा कम गर्म, परन्तु ज्यादा नमीदार मौसम में होता है। इन पौधों की लम्बाई 10 इंच से 40 इंच तक हो सकती है। यह रेशा गूंद से तने के साथ जुड़ा होता है। इन रेशों को पौधों से सही रूप में उतारने के लिये पौधों के तनों को औस, रसायन या पानी में रखकर जैसे नदी या तालाब या रसायनों से प्रक्रिया करके अपनाया जाता है जिसको गलाना (Retting) कहा जाता है। गलाने से गूंद सा गलकर अलग हो जाता है तथा रेशे ढीले पड़ जाते हैं तथा अलग हो जाते हैं।
रचना- इसमें 70-85 प्रतिशत सैलूलोज होता है तथा शेष अशुद्धियाँ होती हैं। विशेषताएँ

  1. बनावट-लिनन का रेशा खुर्दबीन के नीचे लम्बा, सीधा एक समान, चमकदार तथा चिकना दिखाई देता है जिसमें बांस जैसी थोड़ीथोड़ी दूरी पर गांठें होती हैं।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 5
  2. लम्बाई-यह भी छोटा रेशा ही है तथा रेशे की लम्बाई 6-40 इंच तक हो सकती है। 12 इंच से छोटे रेशे को कपड़े की बुनाई के लिये इस्तेमाल नहीं किया जाता।
  3. रंग-इसका रंग फीके पीले से फीका भूरा हो सकता है।
  4. चमक-इसमें सूती रेशे से ज्यादा चमक होती है, परन्तु सिल्क से थोड़ी कम।
  5. लचकीलापन-यह सूती रेशे से भी कम लचकीले होते हैं इसलिये बल और ज्यादा पड़ते हैं।
  6. मज़बूती-यह रेशा सूती रेशे से भी अधिक मज़बूत होता है। गीला होकर इसकी मज़बूती और भी बढ़ जाती है।
  7. पानी सोखने की क्षमता-पानी सोखने की शक्ति सूती रेशे से भी ज्यादा होती है।
  8. ताप चालकता-सूती रेशों से भी अधिक ताप के संचालक होते हैं इसलिये गर्मियों में सूती रेशे से अधिक ठण्डक पहुँचाते हैं।
  9. रसायनों का प्रभाव-ये तेज़ तेज़ाब से खराब हो जाते हैं जबकि सूती कपड़े की तरह क्षार का प्रभाव कम होता है।
  10. रंगाई-सूती कपड़े की तरह सीधे रंगों से रंगे जाते हैं तथा रंगाई सूती कपड़े से मुश्किल होती है परन्तु धोने पर धूप में सुखाते समय रंग जल्दी फीके हो जाते हैं। रंग पक्के नहीं होते।
  11. फंगस तथा कीड़े का प्रभाव-इसको कीड़ा बहुत जल्दी लग जाता है।
  12. अन्य विशेषताएँ-सूती कपड़े की तरह ही इसको जलाते समय कागज़ के जलने जैसी गन्ध आती है तथा आग से बाहर निकालने पर अपने आप थोड़ी देर जलता रहता है। जलने के बाद स्लेटी रंग की राख बनती है। मध्यम तथा तेज़ प्रैस से प्रैस किया जा सकता है। लिनन की कई विशेषताएँ सूती कपड़े से मेल खाती हैं पर ज्यादा गर्मी से ये रेशे खराब हो जाते हैं इसलिये

इनको उबालना नहीं चाहिए। ये रेशे मज़बूत होने के कारण इनको भी रगड़ कर धोया जा सकता है।
देखभाल-इन रेशों पर क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। इस कारण किसी भी प्रकार के साबुन से धोये जा सकते हैं। इनको सूती कपड़ों की तरह नमी में प्रेस करना चाहिए। ये मज़बूत होते हैं इसलिये रगड़ कर धोया जा सकता है। गर्मी से खराब होते हैं इसलिये उबालना नहीं चाहिए। इनमें रंग पक्के नहीं होते इसलिये छाया में ही सुखाना चाहिए। इनको कीड़ा बहुत जल्दी लगता है। इसलिये अच्छी तरह धोकर सुखाकर साफ़ जगह पर रखना चाहिए।

प्रश्न 4.
(43) लिनन की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 5.
(44) जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-से हैं? इनकी रचना और आम विशेषताओं के बारे में बताओ।
उत्तर-
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशों में प्रोटीन का अंश अधिक होता है जिस कारण इनको प्रोटीन रेशे कहते हैं। इनके कई गुण एक समान होते हैं तथा अधिकतर जानवरों के बालों से प्राप्त किये जाते हैं।
सिल्क (रेशम)- यह जानवरों से मिलने वाला प्रोटीन युक्त रेशा है जो सिल्क के कीड़े के लारवे की लार से बनता है।
रचना-ये रेशे प्रोटीन से बने होते हैं जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन तत्त्व होते हैं।
(क) विशेषताएँ

  1. बनावट-खुर्दबीन के नीचे रेशम के रेशे चमकदार, दोहरे धागे के बने हुए दिखाई देते हैं जिन पर स्थान-स्थान पर गूंद के धब्बे लगे होते हैं।
    (टसर सिल्क)
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 6
  2. लम्बाई-प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक ही फिलामैंट रेशा है। रेशे की लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है।
  3. रंग-इसका रंग क्रीम से भूरा या स्लेटी-सा हो सकता है।
  4. चमक-इन रेशों में सबसे अधिक चमक होती है। इसलिये सिल्क को कपड़ों . की रानी कहा जाता है।
  5. मजबूती-प्राकृतिक रूप में मिलने वाले सब रेशों से मजबूत होता है, परन्तु गीला होने पर इनकी मज़बूती घटती है।
  6. लचकीलापन-लचक अच्छी होती है। इसलिये ही बल कम पड़ते हैं।
  7. पानी सोखने की क्षमता-आसानी से पानी सोख लेती है तथा अनुभव भी नहीं होता कि कपड़ा गीला है। सुखाने पर कपड़ा बराबर सूखता है।
  8. ताप चालकता-ऊन की तरह ताप के अच्छे चालक नहीं जिस कारण इनको सर्दियों में पहना जाता है। इनकी सतह मुलायम होने के कारण ऊन जितने गर्म नहीं होते।
  9. रसायनों का प्रभाव-ऊन की तरह हल्के तेज़ाब द्वारा खराब नहीं होते, परन्तु हल्की क्षार भी इन पर बुरा प्रभाव डालती है। क्लोरीन युक्त रंगकाटों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  10. रंगाई-इनको रंग जल्दी तथा पक्के चढ़ते हैं जो धूप तथा धोने से भी खराब नहीं होते। इनको हर प्रकार के रंग से रंगा जा सकता है।
  11. ताप का प्रभाव-सिल्क के जलते समय चर-चर की आवाज़ आती है तथा पंखों या बालों के जलने जैसी गन्ध आती है। आग से बाहर निकालने पर अपने आप बुझ जाती है। जलने के उपरान्त इक्का-दुक्का काला मनका बनता है। धूप में सुखाने से या गर्म पानी से धोने से तथा गर्म प्रेस करने से कपड़ा कमजोर हो जाता है। चमक तथा रंग भी खराब हो जाते हैं।
  12. अन्य विशेषताएँ-गीले होकर कपड़ा कमज़ोर होता है इसलिये रगड़ने से फट सकता है।
    ऊन-रचना-ऊन का मुख्य तत्त्व किरेटिन (Keratin) नामक प्रोटीन है जिसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन के अतिरिक्त सल्फर भी होती है।

Home Science Guide for Class 10 PSEB रेशों का वर्गीकरण Important Questions and Answers

अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
छोटे रेशों (स्टेपल) की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
1/4 से 18 इंच।

प्रश्न 2.
लम्बे (फिलामेंट) रेशों की लम्बाई कितनी होती है?
उत्तर-
मीटरों में होती है।

प्रश्न 3.
छोटे रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
लगभग सारे प्राकृतिक रेशे।

प्रश्न 4.
रेशम कैसा रेशा है?
उत्तर-
लम्बा रेशा।

प्रश्न 5.
बनावटी फिलामेंट रेशे कौन-से हैं?
उत्तर-
नाईलोन, पॉलिएस्टर।

प्रश्न 6.
दो प्राकृतिक रेशों की उदाहरण दें।
उत्तर-
सन्, पटसन, कपास।

प्रश्न 7.
धातु से बने रेशे की उदाहरण दें।
उत्तर-
गोटा, ज़री।

प्रश्न 8.
थर्मोप्लासटिक रेशों की उदाहरणें।
उत्तर-
नायलान, पोलिस्टर, ऐसीटेट।

प्रश्न 9.
कैशमीलोन कैसा रेशा है?
उत्तर-
यह मिश्रित रेशा है।

प्रश्न 10.
प्रोटीन वाला रेशा कौन-सा है?
उत्तर-
ऊन, सिल्क।

प्रश्न 11.
सूती रेशे के कितने प्रतिशत सैलूलोज़ होता है?
उत्तर-
87-90%.

प्रश्न 12.
लिनन कहां से प्राप्त होता है?
उत्तर-
फलैक्स पौधों के तने से।

प्रश्न 13.
किन्हीं दो वनस्पतिक तंतुओं के नाम लिखें।
उत्तर-
सूती, लिनन, नारियल के रेशे।

प्रश्न 14.
लम्बाई और चौड़ाई में चलने वाले धागे का नाम लिखिए।
अथवा
ताना तथा बाना क्या होता है?
उत्तर-
जब कपड़ा बनाया जाता है तो लम्बाई वाले धागे को ताना तथा चौड़ाई वाले धागे को बाना कहते हैं।

प्रश्न 15.
टैरीलीन तंतु का दूसरा नाम क्या है?
उत्तर-
पोलीएस्टर।

लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नारियल के रेशे किस भाग से प्राप्त किये जाते हैं तथा किस काम आते हैं?
उत्तर-
नारियल के रेशे नारियल के बीज के छिलके से तैयार होते हैं। यह गिरि तथा बाहरी छिलके के मध्य होते हैं। इनको समुद्र के पानी में भिगो कर नर्म किया जाता है फिर कूट-कूट कर साफ़ करके बाहर निकाल लिया जाता है। इन रेशों को आमतौर पर रंगा नहीं जाता। इनका अपना रंग गहरा भूरा होता है। नारियल के रेशे तनाव वाले तथा मज़बूत होते हैं। इनको बल नहीं पड़ते। ज्यादातर ये रेशे सोफों तथा गद्दों को भरने के लिये प्रयोग किये जाते हैं। परन्तु इनसे टाट तथा जूतों के तले भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 2.
चीन की लिनात किस रेशे से तैयार की जाती है तथा इसके कौन-से गुण हैं?
उत्तर-
चीन की लिनन पौधे के तने से तैयार की जाती है तथा इसको रेमी भी कहा जाता है। यह पौधे जापान, फ्राँस, मिस्र, इटली तथा रूस में उगाये जाते हैं। इसके पौधे 4 से 8 फुट ऊँचे हो सकते हैं। इसके तनों को काटकर पानी में गलाया जाता है तथा फिर रसायनों के प्रयोग से फालतू गूंद निकाल दी जाती है। उसके उपरान्त कंघी करके इसके रेशों को साफ़ किया जाता है। यह रेशे लम्बे, मज़बूत, चमकदार, बारीक तथा सफ़ेद रंग के होते हैं। इन रेशों में तनाव अधिक तथा लचक कम होती है।

प्रश्न 3.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
पिछले प्रश्न देखें।

प्रश्न 4.
पटसन क्या है?
उत्तर-
यह पौधे के तने से मिलने वाला रेशा है। इसके रेशे लम्बे, मज़बूत तथा भूरे रंग के हैं। इससे रस्सियाँ, डोरियां तथा बढ़िया कपड़ा बनता है।

प्रश्न 5.
ऊन क्या है? इसकी विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
ऊन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
बनावटी कपड़ों को सम्भालना आसान क्यों है?
उत्तर-
बनावटी कपड़ों को कीड़े तथा फफूंदी नहीं लगती। इसलिए इन्हें सम्भालना आसान है।

प्रश्न 7.
सूती रेशे और लिनन के प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
सूती रेशे का प्रयोग

  1. सूती रेशे से बने वस्त्र गर्मियों के लिए उत्तम तथा त्वचा के लिए आरामदायक होते हैं।
  2. सूती रेशों को दूसरे रेशों के साथ मिलाकर मिश्रित धागे बनाए जाते हैं।
  3. सूती कपड़े को उबाला जा सकता है। इसलिए अस्पतालों में इससे पट्टियां बनाई ५ जाती हैं।

लिनन के प्रयोग

  1. गर्मियों की पोशाकें बनती हैं, ठण्डक देने वाली होती हैं।
  2. मज़बूत तथा लम्बे समय तक चलने वाला होता है। इसलिए चादरें आदि बनाते हैं।
  3. मेज़पोश आदि भी बनते हैं।
  4. गर्मियों में अन्दर पहनने वाले वस्त्र भी बनाए जाते हैं।

प्रश्न 8.
बनावटी रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
ऐसे रेशे. जो मनुष्य द्वारा बनाए जाते हैं उन्हें बनावटी रेशे कहते हैं, जैसेरेयोन, नाइलोन, टैरालीन, आरलोन आदि बनावटी रेशे हैं। इन रेशों से बने कपड़ों को सिंथेटक कपड़े भी कहा जाता है।

प्रश्न 9.
ऊन की विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 10.
सिल्क पर ताप का क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 11.
लिनन की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।।

प्रश्न 12.
सिल्क की देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
सिल्क से बने कपड़े बहुत नाजुक होते हैं। यह गीले होने पर ओर भी कमज़ोर हो जाते हैं। इसलिए इन्हें धीरे-धीरे दबाकर धोना चाहिए। रगड़ने से यह फट सकते हैं। क्षार तथा गर्म पानी का इन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन्हें ड्राईक्लीन करवा लेना चाहिए। जब यह नम ही हो तो प्रैस कर लेना चाहिए। पसीने से भी यह कमज़ोर हो जाते हैं। इनके अन्दर सूती कपड़े का अन्दरग लगा लेना चाहिए।

प्रश्न 13.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए उसमें लचकीलापन होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 14.
मिश्रित रेशे कौन-से हैं तथा इनकी देखभाल के बारे में बताओ।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।
देखभाल-मिश्रित रेशों की देखभाल सरल है इन्हें धोना भी सरल है। ऊली नहीं लगती, धूप में रंग खराब नहीं होता। कीड़े भी हानी नहीं पहुंचाते।

प्रश्न 15.
रेशे से कपड़े बनाने के लिए रेशे का रूप में होना तथा जुड़न शक्ति का होना क्यों आवश्यक है?
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 16.
प्राकृतिक रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 17.
सूती रेशे की विशेषताएं, प्रयोग तथा देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 18.
ताप तथा रंगाई का ऊन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 19.
लम्बे रेशे/फिलामेंट रेशे क्या होते हैं?
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 20.
पटसन तथा नारियल के रेशे के बारे में बताएं
उत्तर-
स्वयं उत्तर दें।

प्रश्न 21.
रेशों का लम्बाई के अनुसार वर्गीकरण करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 22.
धातुओं से प्राप्त रेशों के बारे में बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 23.
कपास और सिल्क की विशेषताओं की तुलना कीजिये।
उत्तर-

कपास सिल्क
1. यह स्टेपल रेशा है। इसकी लम्बाई 1/2 इंच से 2 इंच तक होती है। यह प्राकृतिक रूप में मिलने वाला एक मात्र फिलामेंट रेशा है। इसकी लम्बाई 750 से 1100 मीटर तक हो सकती है।
2. इसका रंग प्रायः सफेद होता है। इसका रंग क्रीम से भूरा होता है या स्लेटी होता है।
3. प्राकृतिक चमक नहीं होती। प्राकृतिक चमक होती है।
4. लचक नहीं होती तथा सिलवटें पड़ जाती हैं। लचक अधिक होती है तथा सिलवटें नहीं पड़तीं।
5. रंगाई करना सरल है परन्तु धुलने तथा धूप से रंग खराब हो जाता है। रंगाई करना सरल है, रंग पक्के चढ़ते हैं जो धूप अथवा धुलने से छूटते नहीं।
6. रेशे गीले होने पर मज़बूत होते हैं। गीले होने पर कमज़ोर होते हैं।

प्रश्न 24.
रेशे एवं फिलामेंट की परिभाषा दें और रेशे के वर्गीकरण के बारे में लिखें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 25.
कृत्रिम रेशे को खरीदना लोग क्यों अधिक पसन्द करते हैं?
उत्तर-
कृत्रिम रेशे मज़बूत होते हैं। इन पर कीड़ों, फंगस आदि का प्रभाव भी कम होता है। इनको धो कर सुखाना तथा सम्भालना भी सरल है। यह देखने में भी सुंदर लगते हैं। इसलिए कृत्रिम रेशों की पसन्द बढ़ गई है।

प्रश्न 26.
मिश्रित कपड़े क्या होते हैं ? ग्रीष्म व शीत प्रत्येक ऋतु में पहने जाने वाले मिश्रित वस्त्र का एक उदाहरण दें।
उत्तर-
कृत्रिम रेशे तथा प्राकृतिक रेशे को मिला कर जो रेशे तैयार किए जाते हैं, मिश्रित रेशे कहा जाता है। जैसे
पोलीएस्टर + सूती = पोलीवस्त्र
टैरालीन + सूती = टैरीकाट
पोलीएस्टर + ऊन = टैरीवूल।
टैरीकाट ऐसा मिश्रित कपड़ा है जिसे गर्मी सर्दी में पहना जा सकता है।

प्रश्न 27.
सूती रेशों के गुणों का वर्णन करो।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

दीर्घ उत्तरीय प्रश

प्रश्न 1.
रेयॉन का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
रेयॉन का प्रयोग-रेयॉन में रेशम जैसी चमक होने के कारण इसे नकली रेशम भी कहा जाता है। इससे कम तथा अधिक चमक वाले कपड़े, जैसे-जार्जट, क्रेप, बम्बर आदि बनाए जाते हैं। इसका प्रयोग आम पहनने वाली पोशाक के लिए भी होता है।
विशेषताएं-रेयॉन पुनर्निर्मित सैलुलोज़ के रेशे होते हैं। इसमें कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन जैसे तत्त्व होते हैं —

  1. सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-रेशा एक समान तथा गोल होता है।
    PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 7
  2. लम्बाई-यह लम्बे रेशे (फिलामैंट) होते हैं।
  3. रंग-इन रेशों का रंग नहीं होता। ये पारदर्शी हैं।
  4. लचकीलापन-इनमें लचक कम होती है। धोने पर सिकुड़ जाते हैं तथा प्रैस करने पर फिर पहले जैसे हो जाते हैं।
  5. ताप चालकता-यह ताप के चालक हैं।
  6. मज़बूती-पानी में डालने से कमजोर होते हैं, वैसे इनकी मज़बूती कम या ज्यादा हो सकती है।
  7. जल शोषकता-रेयॉन की जल शोषकता प्राकृतिक सैलुलोज़ रेशों से अधिक होती है।
  8. रसायनों का प्रभाव-अम्ल का प्रभाव होता है परन्तु क्षार का प्रभाव नहीं पड़ता।
  9. रंगाई-इसे रंगना सरल है। कोई भी रंग किया जा सकता है तथा रंग पक्का चढ़ता है। धूप में रंग खराब नहीं होता परन्तु रंगकाट से रंग कमज़ोर पड़ जाते हैं।
  10. ताप का प्रभाव-आग में एकदम जलते हैं तथा कागज़ जैसे गन्ध से जलते देखभाल- यह रेशे गीले होने पर कमजोर हो जाते हैं। रगड़ से भी जल्दी खराब हो जाते हैं। इन कपड़ों को निचोड़ना तथा इन पर अधिक दबाव नहीं डालना चाहिए। अधिक गर्म प्रैस भी नहीं करनी चाहिए। इन्हें सुखा कर ही सम्भालना चाहिए। सिल्वर फिश तथा फफूंदी इनको हानि पहुँचा सकते हैं।

प्रश्न 2.
पॉलिएस्टर (टैरीलीन ) का प्रयोग, विशेषताएँ और देखभाल के बारे में बताएं।
अथवा
पॉलिएस्टर की विशेषताएं तथा प्रयोग के बारे में बताएं।
उत्तर-
प्रयोग-

  1. इन रेशों को दूसरे रेशों से मिलाकर मिश्रित रेशे तैयार किए जाते हैं, जैसे
    टैरीकॉट – टैरीलीन + सूती
    टैरीवूल – टैरीलीन + ऊनी
    टैरी रूबिया – टैरीलीन + सूती
    टैरी सिल्क – टैरीलीन + सिल्क
  2. कपड़े शरीर के लिए ठीक होते हैं तथा मज़बूत होते हैं।
  3. इन्हें दाग़ कम लगते हैं तथा धोना भी आसान है।
  4. इनसे आम पहनने वाले तथा दूसरी प्रकार के कपड़े भी बनाए जाते हैं। विशेषताएंरचना-यह एक बहुलक है।

सूक्ष्मदर्शी के नीचे रचना-इसके रेशे गोल, सीधे, चीकने तथा एक जैसे होते हैं। रंग-इसके रेशे सफ़ेद रंग के होते हैं।
मज़बूती-यह मज़बूत होते हैं। मजबूती को और भी बढ़ाया जा सकता है।
PSEB 10th Class Home Science Solutions Chapter 10 रेशों का वर्गीकरण 8
लम्बाई-यह फिलामैंट तथा स्टेपल दोनों चित्र-पोलिएस्टर का रेशा तरह के होते हैं।
लचक-इनमें सूती तथा लिनन से अधिक लचक होती है, परन्तु नायलॉन से कम होती है।
दिखावट-चमक आवश्यकता अनुसार कम या अधिक की जा सकती है। ताप चालकता-ताप के अच्छे चालक नहीं हैं। रसायनों का प्रभाव- अम्ल तथा क्षार का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता। रंगाई-कुछ विशेष रंगों से ही रंगा जा सकता है। ताप का प्रभाव-जलने पर तेज़ गन्ध आती है। गर्मी से पिघल जाते हैं।
देखभाल-धोना आसान है, फफूंदी तथा कीड़े भी नहीं लगते। धूप से रंग खराब नहीं होता। अधिक प्रेस की भी आवश्यकता नहीं है। इसलिए इन्हें सम्भालना सरल है।

प्रश्न 3.
सिल्क की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
विशेषताओं के लिए देखें उपरोक्त प्रश्न।
प्रयोग-सिल्क के रेशों से बने वस्त्रों का प्रयोग उत्सवों, शादियों के अवसरों या विशेष अवसरों पर पहनने के लिए होता है। सिल्क से घर की सजावट का सामान जैसेगलीचे, कुश्न, पर्दे आदि तथा अन्य सजावटी सामान भी बनाया जाता है। सिल्क महंगा है इसलिए इसका प्रयोग अमीर लोग अधिक करते हैं।
देखभाल-रेश्म का रेशा अधिक कमज़ोर होता है तथा गीला होने पर और भी कमज़ोर हो जाता है। इन्हें धोने के लिए रगड़ना नहीं चाहिए बल्कि पोला-पोला दबा कर धोना चाहिए।

प्रश्न 4.
कैश्मीलोन और फाइबर ग्लास के बारे में बताओ।
उत्तर-

  1. कैश्मीलोन-यह आरलोन की ही एक किस्म है तथा इससे स्वैटर, शालें, कोट आदि बनाए जाते हैं।
    विशेषताएं-कश्मीलोन में नाइलोन जैसे गुण होते हैं, परन्तु इसकी दिखावट ऊन के रेशों जैसी होती है। यह ऊन से सस्ते होते हैं तथा इनका रंग पक्का तथा यह मज़बूत होते हैं। कुछ समय तक प्रयोग के बाद इन वस्त्रों पर बुर आ जाती है।
  2. फाइबर ग्लास-इन रेशों का प्रयोग वस्त्र बनाने के लिए कम ही होता है, परन्तु इन का प्रयोग पारदर्शी पर्दे बनाने के लिए किया जाता है।

प्रश्न 5.
(रेशम) सिल्क की विशेषताएँ बताएं।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 6.
सूती तथा रेशनी तन्तुओं की मौलिक विशेषताओं का मूल्यांकन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 7.
मानव निर्मित तन्तु कौन-से हैं? किसी एक तन्तु की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 8.
सूती रेशे की विशेषताएँ बताएं।
अथवा
सूती रेशे के गुणों के बारे में विस्तार से बताइए।
उत्तर-
देखें उपरोक्त प्रश्नों में।

प्रश्न 9.
लिनन के रेशों की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 10.
थर्मोप्लास्टिक रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक थर्मोप्लास्टिक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में विस्तार से लिखिए ।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 11.
रेशे से कपड़ा बनाने के लिए कौन-कौन से मूल गुण होने चाहिएं? विस्तार सहित लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 12.
लिनन रेशों की विशेषताएं और देखभाल के बारे में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 13.
रेयान का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में बताएं।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 14.
प्रकृति में मिलने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? किसी एक रेशे की विशेषताएं, प्रयोग और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 15.
जानवरों से प्राप्त होने वाले रेशे कौन-कौन से हैं? इनकी विशेषताओं के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 16.
पॉलिएस्टर का प्रयोग, विशेषताएं और देखभाल के बारे में लिखिए।
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 17.
सिलक के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह के दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 18.
लिनन और सूती कपड़ों में क्या समानता है?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 19.
शीतल एक फुटबाल का खिलाड़ी है। उसे खेलों के मुकाबले में भाग लेना है। उसे कौन से रेशे का बना हुआ ट्रैकसूट खरीदना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 20.
कपास का रेशा खुर्दबीन के नीचे किस तरह का दिखता है? चित्र बनाओ। इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 21.
सिल्क को कपड़ों की रानी क्यों कहा जाता है ? आप सिल्क के कपड़ों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 22.
रीमा को बारिश के मौसम में पिकनिक के लिए जाना है। उसे अपने पहनने वाले कपड़ों के लिए कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए और इस रेशे की क्या-क्या विशेषताएं हैं ?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 23.
ऊन के रेशे खुर्दबीन के नीचे किस तरह दिखते हैं? चित्र बनाओ। इन रेशों की क्या-क्या विशेषताएं हैं?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 24.
सूती रेशे को रेशों का सिरताज क्यों कहा जाता है ? आप इन रेशों की देखभाल कैसे करेंगे?
उत्तर-
स्वयं करें।

प्रश्न 25.
सुनीता की बहन की शादी 15 दिसम्बर को होनी है। उसे शादी के लिए प्राकृतिक रेशे का सूट सिलवाना है। उसे कौन-से रेशे का चुनाव करना चाहिए? इस रेशे की क्या-क्या विशेषता है ?
उत्तर-
स्वयं करें।

विस्तानष्ठ प्रश्न

I. रिक्त स्थान भरें

  1. छोटे रेशे ………………. इंच तक लम्बे होते हैं।
  2. लिनन ……………… पौधे के तने से प्राप्त होता है।
  3. प्राकृतिक फिलामैंट रेशा केवल ……………. है।
  4. ऊन तथा एकरेलिक रेशे मिला कर ………………. रेशा बनता है।
  5. सूती रेशे में …………….. प्रतिशत सैलूलोज़ होता है।
  6. ……… तथा …….. ऐंठन के दो प्रकार हैं।
  7. अधिकतर मानव निर्मित तन्तुओं में ………….. लचीलापन होता है।
  8. प्रोटीन तन्तु को ……………….. तन्तु भी कहते हैं।
  9. रेशमी रेशा ………. किस्म का रेशा है।
  10. …….. तथा ……….. दो प्राकृतिक प्रोटीन तन्तु हैं।
  11. ………… एक मानव निर्मित तन्तु है।

उत्तर-

  1. 18,
  2. फलैक्स,
  3. सिल्क,
  4. कैशमिलान,
  5. 87-90%,
  6. S, Z,
  7. बहुत,
  8. प्राकृतिक,
  9. प्राकृतिक फिलामैंट,
  10. रेशम, ऊन,
  11. रेयान।

II. ठीक/ग़लत बताएं

  1. छोटे रेशे 18 इंच तक लम्बे होते हैं।
  2. सन् प्राकृतिक रेशा है।
  3. रेयान मनुष्य द्वारा निर्मित रेशा है।
  4. सूती रेशों में प्राकृतिक चमक नहीं होती।
  5. साईसल एक कीट है।
  6. रेशम ताप का संचालक नहीं है।

उत्तर-

  1. ठीक,
  2. ठीक,
  3. ठीक,
  4. ठीक,
  5. ग़लत,
  6. ठीक।

III. बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ऊन के लिए ठीक है
(क) प्राकृतिक रेशा
(ख) प्रोटीन रेशा
(ग) जानवर से प्राप्त
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 2.
रेशों में जुड़न शक्ति निर्भर है
(क) रेशों की लम्बाई
(ख) रेशे की बारीकी
(ग) लचकीलापन
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(घ) सभी ठीक।

प्रश्न 3.
पौधे से प्राप्त होने वाला रेशा नहीं है
(क) सन
(ख) ऊन
(ग) पटसन
(घ) कपास।
उत्तर-
(ख) ऊन

प्रश्न 4.
थर्मोप्लास्टिक रेशा नहीं है
(क) नायलोन
(ख) पोलीस्टर
(ग) कपास
(घ) सभी ठीक।
उत्तर-
(ग) कपास

रेशों का वर्गीकरण PSEB 10th Class Home Science Notes

कपड़ा मानवीय जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं में से एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिये हम भिन्न-भिन्न प्रकार के कपड़े पहनते हैं तथा घर में और कई कार्यों के लिये प्रयोग करते हैं, जैसे-पर्दे, चादरें, तौलिये तथा मेज़पोश आदि। यह भिन्न-भिन्न कपड़े धागों से बनते हैं। यदि कपड़े को किनारे से देखें तो धागे निकल आते हैं। परन्तु यह धागे बालों जैसे बारीक रेशों से बनते हैं। ये रेशे कपड़े की एक मूल इकाई है। विभिन्न किस्म के कपड़े, जैसे-ऊनी, सूती, | रेशमी भिन्न-भिन्न रेशों से बनते हैं तथा यह विभिन्न रेशे प्राप्त भी भिन्न-भिन्न साधनों से होते हैं।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग

Punjab State Board PSEB 11th Class Physical Education Book Solutions Chapter 4 योग Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Physical Education Chapter 4 योग

PSEB 11th Class Physical Education Guide योग Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
आसन कितने प्रकार के होते हैं ?
(How many types of Asanas are there ?)
उत्तर-
आसन तीन प्रकार के होते हैं—

  1. ध्यानात्मक आसन (Meditative Asanas)पद्मासन, सिद्ध आसन, सुख आसन, वज्र आसन।
  2. आरामदायक आसन (Relaxative Asanas)-. शवासन और मक्रासन।
  3. कल्चरल आसन (Cultural Asanas)पवनमुक्तासन, कटिंचचक्रासन, पर्वतासन, चक्रासन, शलभासन, वृक्षासन, उष्ट्रासन, गोमुखासन आदि।

प्रश्न 2.
योग की परिभाषा, अर्थ तथा महत्त्व के बारे में लिखें।
(Write the definition, meaning and importance of Yoga.)
उत्तर-
योग का अर्थ (Meaning of Yoga)-भारतीय विद्वानों ने आत्मबल, द्वारा “योग विज्ञान” के सम्बन्ध में जानकारी दी है तथा इसमें बताया है कि मनुष्य का शरीर तथा मन अलग-अलग हैं। ये दोनों ही मनुष्य को अलग.. अलग दिशाओं में आकर्षित करते हैं जिसके कारण मनुष्य को शारीरिक एवं मानसिक शक्तियों का विकास रुक जाता है। शरीर तथा मन को एकाग्र करके परमात्मा से मिलने का मार्ग बताया गया है जिसे योग की सहायता से जाना जा सकता है।

‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द ‘युज’ से हुई है, जिसका अभिप्राय है जोड़’ अथवा ‘मेल’। इस प्रकार शरीर तथा मन के सुमेल को योग कहते है। योग वह क्रिया अथवा साधन है जिससे आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है।

इतिहास (History)-‘योग’ शब्द काफी समय से प्रचलित है। गीता में भी योग के बारे में लिखा हुआ मिलता है। रामायण तथा महाभारत युग में भी इस शब्द का काफी प्रयोग हुआ है। इन पवित्र ग्रन्थों में योग द्वारा मोक्ष (Moksha) की प्राप्ति करने के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक लिखा हुआ मिलता है। इन विद्वानों में से प्रसिद्ध विद्वान् पतंजलि का नाम प्रमुख है। उसने योग के सम्बन्ध में काफी विस्तार में लिखा परन्तु योग के सम्बन्ध में सभी विद्वानों का एक मत नहीं है। पतंजलि ऋषि के अनुसार, “मनोवृत्ति के विरोध का नाम ही योग है।”
गीता में भगवान् कृष्ण जी लिखते हैं, कि सही ढंग से काम करने का नाम ही योग है।

डॉक्टर सम्पूर्णानन्द (Dr. Sampurnanand) के अनुसार, “योग आध्यात्मिक कामधेनु है जिससे जो मांगो, वही मिलता है।”
श्री व्यास जी (Sh. Vyas Ji) ने लिखा है कि “योग का अर्थ समाधि है।”
ऊपर दी गई विचारधाराओं से पता चला है कि “योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ना है।” मानवीय शरीर स्वस्थ तथा मन शुद्ध होने से उसका परमात्मा से मेल हो जाता है। योग द्वारा शरीर स्वस्थ रहता है तथा मन की एकाग्रता में वृद्धि होती है। इससे परमात्मा से मिलाप आसान हो जाता है।

“योग विज्ञान मनुष्य का मानसिक, बौद्धिक एवं आध्यात्मिक रूप से सम्पूर्ण विकास होता है।”
इस प्रकार आत्मा का परमात्मा से मेल ही योग है। इस मधुर मिलन का माध्यम शरीर है। स्वस्थ तथा शक्तिशाली शरीर के बल पर ही आत्मा पर परमात्मा से मिलन हो सकता है तथा उस सर्वशक्तिमान प्रभु के दर्शन हो सकते हैं। योग शरीर को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाता है। इसलिए ही आत्मा का परमात्मा में विलीन होने का यह एकमात्र साधन है। परमात्मा अलौकिक, गुण, कर्म एवं विद्या युक्त है। वह आकाश के समान व्यापक है। प्राणी तथा परमात्मा का आपस में सम्बन्ध होना अति आवश्यक है। योग इन सम्बन्धों को मजबूत बनाने में सहायक होता है।

मनुष्य का उद्देश्य-संसार के सभी सुखों को प्राप्त करते हुए अन्त में जीवात्मा को परमात्मा में विलीन होना है ताकि आवागमन के चक्करों से मुक्ति प्राप्त की जा सकें।
योग का मुख्य लक्ष्य शरीर को स्वस्थ, लचकदार, जोशीला एवं चुस्त रखना तथा महान् शक्तियों (Great Powers) का विकास करके मन पर विजय प्राप्त करना है जिससे आत्मा का परमात्मा से मिलन हो सके। आत्मा को परमात्मा में विलीन करके आवागमन अर्थत् जन्म और मृत्यु के चक्र से छुटकारा प्राप्त करना ही वास्तव में मोक्ष (Moksha) अथवा मुक्ति है। शारीरिक शिक्षा से योग के केवल दो साधन-आसन (Asanas) और प्राणायाम (Pranayama) सम्बन्ध रखते हैं। योग विज्ञान द्वारा मनुष्य शारीरिक रूप में स्वस्थ, मानसिक रूप में दृढ़ चेतना तथा व्यवहार मे अनुशासनबद्ध रहता हुआ मन पर विजय प्राप्त करके परमात्मा में लीन हो जाता है।

योग का महत्त्व
(Importance of Yoga)
योग विज्ञान का मनुष्य के जीवन के लिए बहुत महत्त्व है। योग केवल भारत का ही नहीं बल्कि संसार का प्राचीन ज्ञान है। देश-विदेशों के डॉक्टरों तथा शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों ने इसके महत्त्व को स्वीकार किया है। योग से शरीर तथा मन स्वस्थ रहता है तथा इसके साथ-साथ शरीर की नाड़ियां लचकदार एवं मज़बूत रहती हैं। योग शरीर को रोगों से दूर रखता है और यदि कोई बीमारी लग भी जाए तो आसन अथवा किसी अन्य योग क्रिया द्वारा इसे दूर किया जा सकता है। योग जहां शरीर को स्वस्थ, सुन्दर एवं शक्तिशाली बनाता है, वहां यह प्रतिभा को चार चांद लगा देता है। योग हमें उस दुनिया में ले जाता है जहां जीवन है, स्वास्थ है, परम सुख है, मन की शान्ति है। योग ज्ञान की ऐसी गंगा है जिसकी एक-एक बूंद में अनेक रोगों को समाप्त करने की क्षमता है। योग परमात्मा से मिलने का सर्वोत्तम साधन है। शरीर आत्मा और परमात्मा के मिलन का माध्यम है। स्वस्थ शरीर के द्वारा ही परमात्मा के दर्शन किये जा सकते हैं। योग मनुष्य को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाने के साथ-साथ सुयोग्य एवं गुणवान् भी बनाता है। यह हमारे शरीर में शक्ति पैदा करता है। योग केवल रोगी व्यक्ति के लिए ही लाभदायक नहीं बल्कि स्वस्थ मनुष्य भी इसके अभ्यास से लाभ उठा सकते हैं। योग प्रत्येक आयु के व्यक्तियों के लिए लाभदायक है।
1. “Yoga can be defined as Science of healthy and better living physically, mentally, intellectually and spiritually.”

योग का अभ्यास करने से शरीर के सभी अंग ठीक प्रकार से कार्य करने लगते हैं। योग अभ्यास द्वारा मांसपेशियां मज़बूत होती हैं तथा मानसिक संतुलन में वृद्धि होती है। योग की आवश्यकता आधुनिक युग में भी उतनी ही है जितनी प्राचीन युग में थी। हमारे देश से कहीं अधिक विदेशों ने इस क्षेत्र में प्रगति की है। उन देशों में मानसिक शान्ति के लिए इसका अत्यधिक प्रचार होता है। साथ ही उन देशों में योग के क्षेत्र में बहुत विद्वान् हैं । यह विचारधारा भी गलत है कि आजकल के लोग योग करने के योग्य नहीं रहे। आज के युग में भी मनुष्य योग से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है। योग-विज्ञान व्यक्ति के सम्पूर्ण विकास में इस प्रकार योगदान देता है—

1. मनुष्य की शारीरिक और मानसिक आधारभूत शक्तियों का विकास (Development of Physical, Mental and Latent Powers of Man)-योग-ज्ञान मनुष्य निरोग रहकर दीर्घ-आयु का आनन्द प्राप्त करता है। योग नियम और आसन व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक विकास में सहायक होते हैं । विभिन्न आसनों का अभ्यास करने से शरीर के विभिन्न अंग क्रियाशील होते हैं। इनसे उनका विकास होता है। इसके अतिरिक्त यह शरीर की विभिन्न प्रणालियों जैसे-पाचन प्रणाली, श्वास प्रणाली और मांसपेशी प्रणाली के ऊपर भी अच्छा प्रभाव डालता है और व्यक्ति की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है। शारीरिक विकास के साथ-साथ मानसिक विकास भी होता है। प्राणायाम और अष्टांग योग द्वारा मनुष्य की गुप्त शक्तियों (Latent Powers) का विकास होता है।

2. शरीर की आन्तरिक शुद्धता (Cleanliness of Body)—योग की छः अवस्थाओं द्वारा शरीर का सम्पूर्ण विकास (All Round Development) होता है। आसनों से जहां शरीर स्वस्थ होता है वहां योगाभ्यास द्वारा मन नियन्त्रण तथा नाड़ी संस्थान और मांसपेशी संस्थान को आपसी तालमेल भी बना रहता है। प्राणायाम द्वारा शरीर चुस्त तथा स्वस्थ रहता है। प्रत्याहार द्वारा दृढ़ता में वृद्धि होती है। ध्यान और समाधि से सांसारिक चिन्ताओं से मुक्ति प्राप्त होती है। इससे आत्मा-परमात्मा में विलीन हो जाती है। इसी तरह ध्यान, समाधि, यम और नियमों की भान्ति षटकर्म भी आन्तरिक सफाई में सहायक होते हैं। षट कर्मों में धोती, नेती, बस्ती, त्राटक, नौली से कपाल, छाती, जिगर और आंतों की सफाई होती है।
आत्मा का परमात्मा से मेल कराने में शरीर माध्यम है और षट कर्मों, आसनों तथा प्राणायाम इत्यादि क्रियाओं से शरीर की आन्तरिक सफाई के लिए योग सहायता करता है।

3. शारीरिक अंगों में शक्ति एवं लचक का विकास करना (Development of Strength and Elasticity)-प्रायः देखने में आता है कि यौगिक क्रियाओं में भाग लेने वाले व्यक्ति की सेहत उन व्यक्तियों के बेहतर होती है जो योग क्रियाओं में रुचि नहीं रखते। योग द्वारा मनुष्य का केवल शारीरिक विकास ही नहीं होता बल्कि आसनों द्वारा जोड़ों और हड्डियों का विकास भी होता है। खून का प्रवाह तेज हो जाता है। धनुष आसन तथा हलआसन रीढ़ की हड्डी में लचक पैदा करते हैं जिससे मनुष्य शीघ्र बूढ़ा नहीं होता। इस प्रकार योग क्रियाओं द्वारा शरीर में शक्ति तथा लचक पैदा होती है।

4. भावात्मक विकास (Emotional Development) आधुनिक मानव मानसिक और आत्मिक शान्ति की इच्छा करता है। प्रायः देखने में आता है कि हम अपनी भावनाओं के प्रवाह में बहकर कभी तो उदासी की गहरी खाई में डूब जाते हैं और कभी खुशी के मारे पागलों जैसे हो जाते हैं। एक साधारण-सी असफलता अथवा दुःखदाई घटना हमें इतना दुःखी कर देती है कि संसार की कोई भी वस्तु हमें अच्छी नहीं लगती। हमें जीवन नीरस तथा बोझिल दिखाई देता है। इसके विपरीत कई बार साधारण-सी सफलता अथवा प्रसन्नता की बात हमें इतना खुश कर देती है कि हमारे पांव ज़मीन पर नहीं लगते। हम अपना मानसिक सन्तुलन खो बैठते हैं। इन बातों में हमारी भावात्मक अपरिपक्वता (Emotional Immaturity) की झलक होती है।

योग हमें अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रखना एवं सन्तुलन में रहना सिखाता है। यह हमें सिखाता है कि असफलता अथवा सफलता, प्रसन्नता अथवा अप्रसन्नता एक ही सिक्के के दो पहलू (Two sides of the same coin) हैं। यह जीवन दुःखों तथा सुखों का अद्भुत संगम है। दुःखों और खुशियों से समझौता करना ही सुखी जीवन का भेद है। हमें अपने जीवन में विजय और पराजय को, शोक और प्रसन्नता को सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। यदि भाग्य में सफलता हमारे पांव चूमती है तो हमें खुशी के मारे स्वयं के नियन्त्रण से बाहर नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत यदि हमे असफलता का मुंह देखना पड़ता है। तो हमें मुंह लटकाना नहीं चाहिए। इसलिए योग क्रियाएं भावात्मक विकास में विशेष महत्त्व रखती है।

5. रोगों की रोकथाम और रोगों से प्राकृतिक बचाव (Prevention of Diseases and Immunization) योग क्रियाओं से रोगों से बचाव होता है। यदि किसी कारण वश-बीमारियां लग जाएं तो उनसे छुटकारा पाने की विधियों और रोगों से प्राकृतिक बचाव शामिल हैं। रोगों के कीटाणु (Germs And Bacteria) एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के शरीर पर आक्रमण करके रोग फैलाते हैं। इन रोगों से बचाव करने के ढंग अर्थात् रोगों का मुकाबला किस प्रकार किया जाए। रोगों से छुटकारा किस प्रकार पाया जाए और मनुष्य को निरोग किस प्रकार रखा जाए। यह आसन, धोती, नौली इत्यादि जिनसे आन्तरिक अंग शुद्ध होते हैं, योग ज्ञान ही बताता है।

6. त्याग एवं अनुशासन की भावना (Spirit of Sacrifice and Discipline) योग ज्ञान द्वारा व्यक्ति में त्याग एवं अनुशासन की भावना का संचार होता है। त्यागी तथा अनुशासन में रहने वाले नागरिक ही वास्तव में आदर्श नागरिक कहलाने के अधिकारी होते हैं। इन गुणों से भरपूर व्यक्ति ही कठिन कार्य आसानी से कर सकते हैं। अष्टांग योग में अनुशासन को मुख्य स्थान दिया जाता है। अनुशासन के सांचे में ढलकर नागरिक अपने देश को महान् बना सकते हैं। योग के नियमों की पालना करने वाला व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, अनुशासित इच्छाओं, मानवीय भावनाओं, संवेग, विचार इत्यादि पर नियन्त्रण रखता है।

7. सुधारात्मक महत्त्व और शिथिलता (Corrective value and Relexation) आसनों से योग का सुधारात्मक महत्त्व भी बहुत अधिक है। यह हमें उचित आसन (Correct positive) बनावट रखने में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं। योग क्रियाओं और आसनों द्वारा ठीक ढंग से बैठने, ठीक ढंग से खड़े होने तथा ठीक ढंग से चलने आदि के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग

प्रश्न 3.
योग करने से पूर्व किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए ?
(What precautions are needed to taken before performing Yoga ?).
उत्तर-

  1. योग आसन करते समय सबसे पहले सूर्य नमस्कार करना चाहिए।
  2. यौगिक व्यायाम करने का स्थान समतल होना चाहिए। जमीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिएं।
  3. यौगिक व्यायाम करने का स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
  4. यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
  5. भोजन करने के बाद कम से कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिएं।
  6. सबसे पहले आरामदायक तथा फिर कल्चरल आसन करने चाहिए।
  7. यौगिक आसन धीरे-धीरे करने चाहिएं और अभ्यास को धीरे-धीरे बढ़ाना चाहिए।
  8. अभ्यास प्रतिदिन किसी योग्य प्रशिक्षक की देख-रेख में करना चाहिए।
  9. दो आसनों के मध्य में थोड़ा विश्राम शव आसन द्वारा कर लेना चाहिए।
  10. शरीर पर कम-से-कम कपड़े पहनने चाहिएं, लंगोट, निक्कर, बनियान आदि और सन्तुलित भोजन करना चाहिए।
  11. योग आसन के समय श्वास अन्दर तथा बाहर निकालने की क्रिया की तरतीब ठीक होनी चाहिए।
  12. योग करने से पहले मौसम के अनुसार गरम या ठंडे पानी से स्नान कर लेना चाहिए या फिर बाद में कमसे-कम आधे घंटे का अन्तराल होना चाहिए।

प्रश्न 4.
सूर्य नमस्कार से क्या अभिप्राय है ? इसके कुल कितने अंग है ?
(What is meant by Surya Namaskara ? How may parts does it have in total ?)
उत्तर-
‘सूर्य’ से अभिप्राय ‘सूरज’ और ‘नमस्कार’ से अभिप्राय है-प्रणाम करना। क्रिया करते हुए सूर्य को प्रणाम करना, सूर्य नमस्कार कहलाता है। सूर्य नमस्कार में कुल 12 क्रियाएं होती हैं जो कि व्यायाम करते हुए पूरे शरीर की लचक बढ़ाने में मदद करती हैं। प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करने से व्यक्ति में बल और बुद्धि का विकास होता है। इसके साथ व्यक्ति की उम्र भी बढ़ती है। सूर्य नमस्कार के साथ हमारा सारा शरीर चुस्त हो जाता है। शरीर, साँस और मन एकसार हो जाते हैं। अग्रअंकित चित्र को देखकर इसकी एक से बारह तक की क्रियाएं स्पष्ट होती हैं। सूर्य नमस्कार की विधि इस प्रकार है।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 1
सूर्य नमस्कार विधि
ढंग—
स्थिति 1. प्रणामासन

  1. यदि सम्भव हो तो सूर्य की तरफ मुंह करके खड़े हो जाएं।
  2. पाँव सीधे तथा हाथों को छाती के केन्द्र में आराम की स्थिति में रखें।
  3. चेतना में धीरे-धीरे साँस लेते रहें।
  4. शरीर को बिल्कुल ढीला तथा पीठ सीधी रखें।

लाभ-इस स्थिति में ध्यान और शांति को बनाने में मदद मिलती है।
स्थिति 2. हस्त उत्थानासन

  1. धीरे-धीरे सांस लेते हुए बाजू को ऊपर की तरफ लेकर जाएं। बाजुओं को कंधों की चौड़ाई अनुसार खोल कर रखें।
  2. पीठ को धीरे-धीरे पीछे की तरफ खींचो तथा धीरे-धीरे बाजुओं को पीछे की तरफ ले जाओ।
  3. धीरे-धीरे अभ्यास से कमर में लचकता आ जाएगी।

लाभ-इस आसान से पेट की मांसपेशियां अच्छी तरह खुल कर फैल जाती हैं। बाजू, कंधे तथा रीढ़ की हड्डी टोन हो जाती है। इसके अभ्यास के साथ फेफड़े भी खुल जाते हैं।

स्थिति 3. पद-हस्तासन

  1. साँस बाहर छोड़ते हुए आगे की तरफ को झुको, टांगे सीधी रखो तथा अपने हाथों की ऊंगलियों के साथ फर्श को छूने की कोशिश करो।
  2. रीढ़ की हड्डी को कमर के जोड़ को उतना ही झुकाओ जितना की दर्द महसूस ना हो या फिर जितना झुका जा सके।

लाभ-इस आसन से पेट की कई बिमारियों से मुक्ति मिलती है तथा आराम पहुंचता है। ये पेट की फालतू चर्बी को घटाता है।
स्थिति 4. अश्व संचालनासन

  1. हाथों की ऊंगलियों को फर्श के साथ छूते हुए बाईं टांग मोड़ते हुए दाईं टांग को पीछे की तरफ सीधा कर के ले जाओ।
  2. सिर और गर्दन को आगे की ओर रीढ़ की हड्डी की सीध में रखें। छाती को आगे की ओर झुकाकर न रखें।

लाभ-ये आसन पेट की मांसपेशियों को टोन करता है तथा टांगों और पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करता है।
स्थिति 5. पर्वतासन

  1. साँस बाहर छोड़ते हुए, बाईं टांग को पीछे की तरफ दाईं टाँग की तरफ सीधा रखो।
  2. सिर को दोनों बाजुओं के बीच रखते हुए शरीर के सारे भार को बाजुओं तथा पैरों पर डालो और यही स्थिति बनाकर रखो।

लाभ-ये आसन कन्धों तथा गर्दन की मांसपेशियों को टोन करता है। टांगों तथा बाजुओं की मांसपेशियों को भी मज़बूत करता है।
स्थिति 6. अष्टांग आसन

  1. पिछले आसन से धीरे-धीरे घुटनों को ज़मीन की तरफ ले जाओ।
  2. छाती और ठोड़ी को ज़मीन से छुआओ।
  3. दोनों बाजुओं को छाती के बराबर मोड़ कर रखो तथा चूल्हों को जमीन से ऊपर की तरफ खींच कर रखो।

लाभ-ये आसन कन्धों तथा गर्दन की मांसपेशियों को टोन करता है। टांग तथा हाथ की मांसपेशियों को मज़बूत बनाता है तथा छाती को विकसित करता है।
स्थिति 7. भुजंगासन

  1. धीरे-धीरे साँस अन्दर लेते हुए टांगें तथा कमर को ज़मीन पर रखो।
  2. बाजुओं को खींचते हुए छाती वाले भाग को पीछे की तरफ खींचों।
  3. सिर को धीरे-धीरे पीछे की तरफ ले जाओ।

लाभ-ये आसन पेट की तरफ खून के दौरे को तेज़ करता है तथा कई पेट की बिमारियों से छुटकारा दिलवाता है; जैसे कि बदहज़मी कब्ज आदि। रीढ़ की हड्डी को मज़बूती मिलती है तथा खून संचार में सुधार होता है।
स्थिति 8. पर्वतासन

  1. धीरे-धीरे दोनों पैरों पर वापिस जा के सीधे खड़े हो जाओ।
  2. छाती वाले भागों को पेट की तरफ लेकर जाओ तथा दोनों हाथों से जमीन को छू लो। ये बिल्कुल 5वीं स्थिति जैसा हो सकता है।

स्थिति 9. अश्व संचालनासन

  1. धीरे-धीरे सांस अन्दर खींचते हुए दाएं पैर को दोनों हाथों के बीच ले जाओ तथा बाईं टांग को पीछे की तरफ सीधा रखो। इसके साथ ही कन्धों को पीछे की तरफ सीधे खींचों तथा छाती वाले भाग को पीछे की तरफ ले जाओ तथा पीठ का आर्क बनाओ।

स्थिति 10. पद-हस्तासन

  1. धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए टांगें सीधी रखो तथा हाथों के साथ फर्श से छूने की कोशिश करो। ऐसे करते समय घुटने सीधे हों।

स्थिति 11. हस्त-उत्थानासन

  1. धीरे-धीरे सांस लेते समय बाजुओं को ऊपर की तरफ ले जाओ। बाजुओं को कन्धों की चौड़ाई अनुसार खोल . के रखो।
  2. पीठ को धीरे-धीरे पीछे की तरफ खींचों तथा धीरे-धीरे बाजू पीछे की तरफ ले जाओ।
  3. अभ्यास से कमर में लचकता आ जाएगी।

स्थिति 12. प्रणामासन

  1. पैर सीधे तथा हथेली को छाती के केन्द्र में आराम की स्थिति में रखो।
  2. चेतना में धीरे-धीरे सांस लेते रहो।
  3. शरीर बिल्कुल ढीला तथा पीठ सीधी रखो।

लाभ—

  1. सूर्य नमस्कार शरीर की अतिरिक्त चर्बी को भी घटा देता है।
  2. सूर्य नमस्कार शरीर के बल, शक्ति और लचक में विस्तार करता है।
  3. यह एकाग्रता बढ़ाने में सहायता करता है।
  4. यह शरीर को गर्म करता है।
  5. यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है।
  6. यह आसन बच्चों का कद बढ़ाने में भी मदद करता है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग

प्रश्न 5.
किसी एक आरामदायक तथा कल्चरल आसन की विधि तथा लाभ के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें।
(Write in detail the method and benefits of any one of Relaxative and Cultural asana.)
उत्तर-
सभ्याचारक आसन (मुद्रा)
(Cultural Asanas)
शवासन की विधि (Technique of Shavasana)-शवासन में पीठ के बल सीधा लेटकर शरीर को पूरी तरह ढीला छोड़ा जाता है। शवासन करने के लिए जमीन पर पीठ के बल लेट जाओ और शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दें। धीरेधीरे लम्बे सांस लो। बिल्कुल चित्त लेटकर सारे शरीर के अंगों को ढीला छोड़ दो। दोनों पांवों के बीच में एक डेढ फुट की दूरी होनी चाहिए। हाथों की हथेलियों की आकाश की ओर करके शरीर से दूर रखो। आंखें बन्द कर अन्तर्ध्यान होकर सोचो कि शरीर ढीला हो रहा है। अनुभव करो कि शरीर विश्राम की स्थिति में है। यह आसन 3 से 5 मिनट तक करना चाहिए। इस आसन का अभ्यास प्रत्येक आसन के शुरू तथा अन्त में करना जरूरी है।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 2
शवासन
महत्त्व (Importance)—

  1. शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
  2. दिल और दिमाग को ताजा करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।

हलासन (Halasana) -इस आसन के पूर्ण रूप में आने पर मनुष्य की आकृति बिल्कुल हल जैसी हो जाती है।
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हलासन
विधि (Procedure)- भूमि पर कम्बल बिछा कर पीठ के बल लेट जाइए। हाथों को दोनों ओर भूमि पर रखिये। हथेलियां ज़मीन की ओर हों। दोनों पांवों को मिला कर धीरे-धीरे सांस भीतर की ओर कीजिए और बहुत धीरे-धीरे अपनी टांगों को ऊपर उठाते हुए पीछे सिर की ओर ले जाइए। टांगों के साथ-साथ शरीर को भी पीछे की ओर मोड़ते जाएं जब तक की पंजे ज़मीन को न छू लें। घुटनों को मिला कर टांगें बिल्कुल सीधी रखें। ठोड़ी को सीने ऊपर दबा दें और फिर नासिका द्वारा सांस लें और छोड़ें। जब तक सम्भव हो बिना कष्ट के इस आसन में रहें अन्यथा इसी प्रकार बिना किसी झटके के वापस पहली वाली मुद्रा में लौट आइए।

इस आसन में हाथों से पांवों की उंगलियों को छुआ भी जा सकता है या सिर के पीछे हाथों से एक दूसरी कोहनी को भी पकड़ा जा सकता है। किसी प्रकार का कोई झटका नहीं लगना चाहिए। आसन समाप्त कर धीरे-धीरे उसी प्रकार अपनी मूल स्थिति में आ जाएं।

लाभ (Advantages)- इस आसन से रीढ़ की नसें, कमर की मांसपेशियां, रीढ़ की हड्डी एवं नाड़ी प्रणाली (Nervous System) स्वस्थ रहता है। इससे नाड़ियों में रीढ़ रज्जू (Spins Cord) संवेदनशील ग्रन्थियों में पर्याप्त भागों में रक्त इकट्ठा होता है। इसलिए इनका पोषण अच्छी तरह होता है। इस आसन से मेरुदंड (Spinal Cord) अधिक लचकीला एवं मुलायम होता है। यह आसन मेरु (Spine) सम्बन्धी हड्डियों के शीघ्र विकास (Enlargement) को रोकता है। अस्थियों के विकास (Enlargement) से हड्डियों में जल्दी विकार पैदा होता है। इससे बुढ़ापा जल्दी आता है। हलासन करने वाला व्यक्ति अधिक फुर्तीला एवं बलवान् होता है। पीठ की मांसपेशियों को अधिक मात्रा में रक्त प्राप्त होता है तथा वे अच्छी तरह से पोषित होती हैं। आलस दूर होता है। इस आसन से मोटापा दूर होता है, चर्बी कम होती है। कब्ज दूर होती है। रक्त संचार तेज़ होता है।

ध्यानशील आसन मुद्रा
(Meditative Poses)
पद्मासन (Padamasana)-इसमें टांगों की चौकड़ी लगाकर बैठा जाता है।
पद्मासन की विधि (Technique of Padamasana)-चौकड़ी मारकर बैठने के बाद दायां पांव बायीं जांघ पर इस तरह रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेडू हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठाकर उसी प्रकार दायें पांव की जाँघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तानकर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 4
सुखासन
लाभ (Advantages)—

  1. इस आसन से पाचन शक्ति बढ़ती है।
  2. यह आसन मन की एकाग्रता के लिए सर्वोत्तम है।
  3. कमर दर्द दूर होता है।
  4. दिल तथा पेट के रोग नहीं लगते।
  5. मूत्र के रोगों को दूर करता है।

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प्रश्न 6.
अष्टांग योग के अंगों के बारे में विस्तारपूर्वक लिखें। (Write in detail about the parts of Astanga Yoga.)
उत्तर-
अष्टांग योग
(Ashtang Yoga)
अष्टांग योग के आठ अंग हैं, इसलिए इसका नाम अष्टांग योग है।
योगाभ्यास की पतजंलि ऋषि द्वारा आठ अवस्थाएं मानी गई हैं। इन्हें पतजंलि ऋषि का अष्टांग योग भी कहते हैं—

  1. यम (Yama, Forbearmace)
  2. नियम (Niyama, Observance)
  3. आसान (Asana, Posture)
  4. प्राणायाम (Pranayama, Regulation of Breathing)
  5. प्रत्याहार (Pratyahara, Abstracition)
  6. धारणा (Dharma, Concentration)
  7. ध्यान (Dhyana, Meditation)
  8. समाधि (Samadhi, Trance)।

योग की ऊपरी बताई गई आठ अवस्थाओं में से पहली पांच अवस्थाओं का सम्बन्ध आन्तरिक यौगिक क्रियाओं से है। इन सभी अवस्थाओं को आगे फिर इस प्रकार वर्गीकृत किया गया है—

  1. यम (Yama, Forbearance)-यम के निम्नलिखित पांच अंग हैं—
    • अहिंसा (Ahimsa, Non-violence)
    • सत्य (Satya, Truth)
    • अस्तेय (Astey, Conquest of the sense of mind)
    • अपरिग्रह (Aprigraha, Non-receiving)
    • ब्रह्मचर्य (Brahmacharya, Celibacy)
  2. नियम (Niyama, Observance)-नियम के निम्नलिखित पांच अंग हैं :
    • शौच (Shauch, Obeying the call of nature)
    • सन्तोष (Santosh, Contentment)
    • तप (Tapas, Penance)
    • स्वाध्याय (Savadhyay, Self-study)
    • ईश्वर परिधान (Ishwar Pridhan, God Consciousness)।
  3. आसन (Asana or Posture) आसनों की संख्या उतनी है जितनी कि इस संसार में पशु-पक्षियों की। आसन-शारीरिक क्षमता, शक्ति के अनुसार, प्रतिदिन सांस द्वारा हवा को बाहर निकलने, सांस रोकने और फिर सांस लेने से करने चाहिएं।।
    4. प्राणायाम (Pranayma, Regulation of Breathing) प्राणायाम उपासना की मांग है। इसको तीन भागों में बांटा जा सकता है—

    • पूरक (Purak, Inhalation)
    • रेचक (Rechak, Exhalation) और
    • कुम्भक (Kumbhak, Holding of Breath)
      कई प्रकार से सांस लेने तथा इसे रोककर बाहर निकालने को प्राणायाम कहते हैं।
  4. प्रत्याहर (Pratyahara)-प्रत्याहार से अभिप्रायः है वापिस लाना तथा सांसारिक प्रसन्नताओं से मन को मोड़ना।
  5. धारणा (Dharna)-अपनी इन्द्रियों पर नियन्त्रण रखने को धारणा कहते हैं जो बहुत कठिन है।
  6. ध्यान (Dhyana)-जब मन पर नियन्त्रण हो जाता है तो ध्यान लगना आरम्भ हो जाता है। इस अवस्था में मन और शरीर नदी के प्रवाह की भान्ति हो जाते हैं जिसमें पानी की धाराओं का कोई प्रभाव नहीं होता।
  7. समाधि (Samadhi)-मन की वह अवस्था जो धारणा से आरम्भ होती है, समाधि में समाप्त हो जाती है। इन सभी अवस्थाओं का आपस में गहरा सम्बन्ध है।

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Physical Education Guide for Class 11 PSEB योग Important Questions and Answers

वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

प्रश्न 1.
“ठीक ढंग से कार्य करना ही योग है।” किसका कथन है ?
उत्तर-
भगवान् श्री कृष्ण जी का।

प्रश्न 2.
अष्टांग योग के अंग हैं—
(a) 6
(b) 8
(c) 10
(d) 12.
उत्तर-
(d) 12.

प्रश्न 3.
आसनों की किस्में हैं—
(a) 2
(b) 4
(c) 6
(d) 8.
उत्तर-
(a) 2.

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प्रश्न 4.
सूर्य-भेदी प्राणायाम, उजयी प्राणायाम किसके भेद हैं ?
उत्तर-
यह प्राणायाम के भेद हैं।

प्रश्न 5.
श्वास बाहर निकालने की क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
श्वास बाहर निकालने की क्रिया को रेचक कहते हैं।।

प्रश्न 6.
जब श्वास अंदर खींचते हैं तो उस क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
जब श्वास अन्दर खींचते हैं तो उस क्रिया को पूरक कहते हैं।

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प्रश्न 7.
श्वास अंदर खींचने के पश्चात् उस क्रिया को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
श्वास अंदर खींचने के पश्चात् वहां ही रोकने की क्रिया को कुंबक कहते हैं।

प्रश्न 8.
प्राणायाम के भेद हैं—
(a) 8
(b) 6
(c) 4
(d) 2.
उत्तर-
(a) 8.

प्रश्न 9.
सूर्य नमस्कार की कितनी अवस्थाएँ हैं ?
(a) 12
(b) 8
(c) 6
(d) 4.
उत्तर-
(a) 12.

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प्रश्न 10.
अष्टांग योग के अंग हैं ?
(a) यम
(b) आसन
(c) नियम
(d) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(d) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 11.
योग शब्द का अर्थ बताओ।
उत्तर-
योग का अर्थ जुड़ना या मिलना है।

प्रश्न 12.
आसन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
आसन दो तरह के होते हैं।

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प्रश्न 13.
सूर्य नमस्कार में कितनी अवस्थाएं हैं ?
उत्तर-
12.

प्रश्न 14.
सूर्य नमस्कार कब करना चाहिए?
उत्तर-
सूर्य नमस्कार आसन करने से पहले करना चाहिए।

प्रश्न 15.
योग क्या है ?
उत्तर-
आत्मा को परमात्मा से मिलाने को योग कहते हैं।

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प्रश्न 16.
आत्मा और परमात्मा के मिलने को क्या कहते हैं ?
उत्तर-
योग।

प्रश्न 17.
योग संस्कृति के किस शब्द से बना है ?
उत्तर-
यूज से बना है, जिसका अर्थ है मेल।

प्रश्न 18.
सूर्य नमस्कार कब करना चाहिए ?
उत्तर-
सूर्य नमस्कार आसन करने से पहले करना चाहिए।

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अति छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Very Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
योग का कोई एक महत्त्व लिखो।
उत्तर-

  1. मनुष्य की शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास करना।
  2. बिमारियों का रोकथाम और लोगों को बचाओ।

प्रश्न 2.
सूर्य नमस्कार करने के दो लाभ लिखो।
उत्तर-

  1. सूर्य नमस्कार ताकत, शक्ति और लचक में वृद्धि करता है।
  2. इससे एकाग्रता बढ़ती है।

प्रश्न 3.
आसन कितने प्रकार के होते हैं ?
उत्तर-
आसन दो प्रकार के होते हैं।

  1. सभ्याचारक आसन
  2. आरामदायक आसन।

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प्रश्न 4.
शव आसन के लाभ लिखो।
उत्तर-
इस आसन को करने से शरीर ताज़ा हो जाता है। शव आसन करने से माँसपेशियां और नाड़ियां आराम की हालत में आ जाती हैं।

प्रश्न 5.
पवनमुक्तासन या पर्वत आसन के लाभ लिखें।
उत्तर-

  1. पाचन प्रणाली को मज़बूत करता है।
  2. गैस की बीमारी ठीक होती है।
  3. पेट के आस-पास भाग में बनी चर्बी कम हो जाती है।

प्रश्न 6.
प्राणायाम के कोई चार भेद लिखो।
उत्तर-

  1. सूर्यभेदी प्राणायाम
  2. शीतली प्राणायाम
  3. शीतकारी प्राणायाम
  4. उजयी प्राणायाम।

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छोटे उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
योग का अर्थ अपने शब्दों में लिखो। (Write the meaning of yoga in your own words.):
उत्तर-
‘योग’ शब्द संस्कृत की ‘युज्’ धातु से लिया गया है। इसका अर्थ है : जोड़ना या बाँधना। जोड़ने या बाँधने से अभिप्रायः है कि शरीर, दिमाग और आत्मा को एकसार करना। नीरोग शरीर में ही नीरोग मन का निवास होता है। योग के द्वारा हम मन और शरीर दोनों को चिंता और रोगों से मुक्त करके स्वस्थ शरीर प्राप्त कर लेते हैं।”

प्रश्न 2.
योग आसन करते समय कोई चार दिशा निर्देश लिखो।
उत्तर-

  1. यौगिक व्यायाम करने स्थान समतल होना चाहिए। ज़मीन पर दरी या कम्बल डाल कर यौगिक व्यायाम करने चाहिए।
  2. यौगिक व्यायाम करने वाला स्थान एकान्त, हवादार और सफाई वाला होना चाहिए।
  3. यौगिक व्यायाम करते हुए श्वास और मन को शान्त रखना चाहिए।
  4. भोजन करने के बाद कम से कम चार घण्टे के पश्चात् यौगिक आसन करने चाहिएं।

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प्रश्न 3.
सूर्य नमस्कार में पहली चार मुद्रा के बारे में लिखो।
उत्तर-

  1. दोनों हाथ और पैर जोड़कर नमस्कार की मुद्रा में सीधे खड़े हो जाओ।
  2. साँस अंदर खींचते हुए दोनों बाजुओं को सिर के ऊपर ले जाओ और कमर को मोड़ते हुए थोड़ा पीछे को झुक जाओ।
  3. साँस को बाहर छोड़ते हुए दोनों हाथों के साथ ज़मीन को छूना है और माथा घुटनों को लगाना है। इस स्थिति में घुटने सीधे होने चाहिए।
  4. दाहिनी टांग पीछे को सीधी कर दो। बायाँ पैर दोनों हथेलियों में रहेगा। इस स्थिति में कुछ सेकिंड के लिए रुको।

प्रश्न 4.
योग करने के कोई दो महत्त्व लिखो।
उत्तर-

  1. योग करने से मनुष्य की शारीरिक, मानसिक शक्तियों का विकास होता है।
  2. योग से शरीर पूर्ण रूप से स्वस्थ रहता है। इससे शरीर के सभी अन्दरूंनी अंगों में ताकत मिलती है।

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प्रश्न 5.
अष्टांग योग के अंगों के नाम लिखो।
उत्तर-

  1. यम
  2. नियम
  3. आसन
  4. प्राणायाम
  5. प्रत्याहार
  6. धारणा
  7. ध्यान
  8. समाधि।

प्रश्न 6.
पद्मासन की विधि लिखें।
उत्तर-
चौकड़ी मारकर बैठने के बाद दायां पांव बायीं जांघ पर इस तरह रखो कि दायें पांव की एड़ी बाईं जांघ पर पेडू हड्डी को छुए। इसके पश्चात् बायें पांव को उठाकर उसी प्रकार दायें पांव की जाँघ पर रख लें। रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रहनी चाहिए। बाजुओं को तानकर हाथों को घुटनों पर रखो। कुछ दिनों के अभ्यास द्वारा आसन को बहुत ही आसानी से किया जा सकता है।

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प्रश्न 7.
शवासन के लाभ लिखें।
उत्तर-
शवासन के लाभ-

  1. शवासन से उच्च रक्त चाप और मानसिक तनाव से छुटकारा मिलता है।
  2. दिल और दिमाग को मजा करता है।
  3. इस आसन द्वारा शरीर की थकावट दूर होती है।

बड़े उत्तरों वाले प्रश्न (Long Answer Type Questions)

‘प्रश्न 1.
योग का अर्थ तथा मानव जीवन में इसके महत्त्व के बारे में जानकारी दें।
उत्तर-
योग का अर्थ-‘योग’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के शब्द ‘युज’ से हुई है, जिसका अभिप्राय है ‘जोड़ . अथवा ‘मेल’। शरीर, दिमाग तथा मन का सुमेल योग कहलाता है। योग वह साधन है जिससे आत्मा का मिलाप परमात्मा से होता है।

मानव जीवन में इसका महत्त्व-योग विज्ञान का मनुष्य के जीवन के लिए बहुत महत्त्व है। योग केवल भारत का ही नहीं बल्कि संसार का प्राचीन ज्ञान है। देश-विदेशों के डॉक्टरों तथा शारीरिक शिक्षा के शिक्षकों ने इसके महत्त्व को स्वीकार किया है। योग से शरीर तथा मन स्वस्थ रहता है तथा इसके साथ-साथ शरीर की नाड़ियां लचकदार एवं मज़बूत रहती हैं ! योग शरीर को रोगों से दूर रखता है और यदि कोई बीमारी लग भी जाए तो आसन अथवा किसी अन्य योग क्रिया द्वारा इसे दूर किया जा सकता है। योग जहां शरीर को स्वस्थ, सुन्दर एवं शक्तिशाली बनाता है, वहां यह प्रतिभा को चार चांद लगा देता है। योग हमें उस दुनिया में ले जाता है जहां जीवन है, स्वास्थ है, परम सुख है, मन की शान्ति है। योग ज्ञान की ऐसी… गंगा है जिसकी एक-एक बूंद में अनेक रोगों को समाप्त करने की क्षमता है। योग परमात्मा से मिलने का सर्वोत्तम साधन है। शरीर आत्मा और परमात्मा के मिलन का माध्यम है। स्वस्थ शरीर के द्वारा ही परमात्मा के दर्शन किये जा सकते हैं। योग मनुष्य को स्वस्थ एवं शक्तिशाली बनाने के साथ-साथ सुयोग्य एवं गुणवान् भी बनाता है। यह हमारे शरीर में शक्ति पैदा करता है। योग केवल रोगी व्यक्ति के लिए ही लाभदायक नहीं बल्कि स्वस्थ मनुष्य भी इसके अभ्यास से लाभ उठा सकते हैं। योग प्रत्येक आयु के व्यक्तियों के लिए लाभदायक है। इसका अभ्यास करने से शरीर के सभी अंग ठीक प्रकार से कार्य करने लगते हैं। योग अभ्यास द्वारा मांसपेशियां मज़बूत होती हैं तथा मानसिक संतुलन में वृद्धि होती है। योग की आवश्यकता आधुनिक युग में भी उतनी ही है जितनी प्राचीन युग में थी। हमारे देश से कहीं अधिक विदेशों ने इस क्षेत्र में प्रगति की है। उन देशों में मानसिक शान्ति के लिए इसका अत्यधिक प्रचार होता है। साथ ही उन देशों में योग के क्षेत्र में बहुत विद्वान् हैं। यह विचारधारा भी गलत है कि आजकल के लोग योग करने के योग्य नहीं रहे। आज के युग में भी मनुष्य योग से पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकता है।

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प्रश्न 2.
प्राणायाम क्या है ? इसकी विधि और महत्त्व लिखें।
उत्तर-
प्राणायाम दो शब्दों के मेल से बना है “प्राण” का अर्थ है ‘जीवन’ और ‘याम’ का अर्थ है ‘नियन्त्रण’ जिससे अभिप्राय है जीवन पर नियन्त्रण अथवा सांस पर नियन्त्रण।
प्राणायाम यह क्रिया है जिससे जीवन की शक्ति को बढ़ाया जा सकता है और इस पर नियन्त्रण किया जा सकता है। मनु-महाराज ने कहा है, “प्राणायाम से मनुष्य के सभी दोष समाप्त हो जाते हैं और कमियां पूरी हो जाती है।”

प्राणायाम के आधार
(Basis of Pranayam)
सांस को बाहर की ओर निकालना तथा फिर अन्दर की ओर करना और अन्दर ही कुछ समय रोक कर फिर कुछ समय के बाद बाहर निकालने की तीनों क्रियाएं ही प्राणायाम का आधार है।
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प्राणायाम
रेचक-सांस बाहर की ओर छोड़ने की क्रिया को ‘रेचक’ कहते हैं।
पूरक-जब सांस अन्दर को खींचते हैं तो इसे ‘पूरक’ कहते हैं।
कुम्भक-सांस को अन्दर खींचने के बाद उसे वहां ही रोकने की क्रिया को कुम्भक कहते हैं।

प्राण के नाम
(Name of Prana)
व्यक्ति के सारे शरीर में प्राण समाया हुआ है। इसके पांच नाम हैं—

  1. प्राण-यह गले से दिल तक है। इसी प्राण की शक्ति से सांस शरीर में नीचे जाता है।
  2. अप्राण-नाभिका से निचले भाग में प्राण को अप्राण कहते हैं। छोटी और बड़ी आंतों में यही प्राण होता है। यह शौच, पेशाब और हवा को शरीर में से बाहर निकालने के लिए सहायता करता है।
  3. समान-दिल और नाभिका तक रहने वाली प्राण क्रिया को समान कहते हैं। यह प्राण पाचन क्रिया और ऐडरीनल ग्रन्थि की कार्यक्षमता में वृद्धि करता है।
  4. उदाण-गले से सिर तक रहने वाले प्राण को उदाण कहते हैं। आंखों, कानों, नाक, मस्तिष्क इत्यादि अंगों का काम इसी प्राण के कारण होता है।
  5. ध्यान- यह प्राण शरीर के सभी भागों में रहता है और शरीर का अन्य प्राणों से मेल-जोल रखता है। शरीर के हिलने-जुलने पर इसका नियन्त्रण होता है।

प्राणायाम करने की विधि
(Technique of doing Pranayama)
प्राणायाम श्वासों पर नियन्त्रण करने के लिए किया जाता है। इस क्रिया से श्वास अन्दर की ओर खींच कर रोक लिया जाता है और कुछ समय रोकने के बाद फिर बाहर छोड़ा जाता है। इस प्रकार सांस पर धीरे-धीरे नियन्त्रण करने के समय को बढ़ाया जा सकता है। अपनी दाईं नासिका को बन्द करके, बाईं से आठ गिनते समय तक सांस खींचो। फिर नौ और दस गिनते हुए सांस रोको। इससे पूरा सांस बाहर निकल जाएगा। फिर दाईं नासिका से गिनते हुए सांस खींचो। नौ-दस तक रोको। फिर दाईं नासिका बन्द करके बाईं से आठ कर गिनते हुए सांस बाहर निकालो तथा नौ-दस तक रोको।

प्राणायाम के भेद
(Kinds of Pranayama). शास्त्रों में प्राणायाम कई प्रकार के दिये गये हैं परन्तु प्राय: यह आठ होते हैं—

  1. सूर्य–भेदी प्राणायाम
  2. उजयी प्राणायाम
  3. शीतकारी प्राणायाम
  4. शीतली प्राणायाम
  5. भस्त्रिका प्राणायाम
  6. भरभरी प्राणायाम
  7. मूछ प्राणायाम
  8. कपालभाती प्राणायाम।

इन आठों का संक्षेप वर्णन इस प्रकार है—
1. सूर्यभेदी प्राणायाम-यह प्राणायाम शरीर में गर्मी पैदा करता है। इससे इच्छा शक्ति में वृद्धि होती है। इसे पदम आसन लगा कर करना चाहिए। पीठ, गर्दन, छाती और रीढ़ की हडी सीधी रखनी चाहिए। बायें हाथ की अंगुली के साथ नाक का बायां छेद बन्द कर लिया जाता है। दायें छेद से सांस लिया जाता है। सांस अन्दर खींच कर कुम्भक की जाती है। जब तक सांस रोका जा सके, रोकना चाहिए। इसके बाद दायें होती है, दिमाग के रोग दूर होते हैं और नाड़ियों की सफाई होती है।

अंगूठे से दायें छेद को दबा कर बायें छेद से आवाज़ करते हुए सांस को बाहर निकाला जाना चाहिए। पहले तीन बार अभ्यास होने से पन्द्रह बार किया जा सकता है।
इसमें सांस धीरे-धीरे लेना चाहिए। कुम्भक सांस रोकने का समय बढ़ाना चाहिए।

2. उज्जयी प्राणायाम (मानस श्वास)-उज्जयी प्राणायाम उचित श्वसन की नींव है, क्योंकि यह अभ्यास किया जाने वाला आम व्यायाम है। योग में ऐसा विश्वास किया जाता है कि जीवन का आंकलन साँसों की संख्या से किया जाता है। इसलिए श्वास के प्रवाह को निर्बाध बनाने के लिए तथा जीवन-काल में वृद्धि के लिए उज्जयी प्राणायाम की सलाह दी जाती है।
बैठने की मुद्रा-पैरों को क्रॉस करके आराम की मुद्रा में बैठे। धीरे-धीरे अपनी आँखों को बंद करें। अपने शरीर तथा मस्तिष्क को विश्रामावस्था में लाएँ।
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उज्जयी प्राणायाम
तकनीक-गहराई से भीतर की ओर श्वास लें तथा धीरे से श्वास बाहर निकालें। अपनी गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत करें तथा श्वास लेते वक्त अपने बंद मुँह से आवाज़ निकालें। जब फेफड़े हवा से भर जाएँ, तब जितना देरं तक संभव हो सके, साँसों को रोककर रखें। दाई नाक को बंद करें। धीरे-धीरे बाई नाक से श्वास बाहर निकालें। यह उज्जयी प्राणायाम का प्रथम चक्र है। इस प्राणायाम को 10 से 15 बार दोहराएँ।
सावधानियाँ—

  1. प्रारंभिक अवस्था में इस व्यायाम को बिना साँस रोके करना चाहिए।
  2. इस व्यायाम को हमेशा एक योगा शिक्षक के निरीक्षण में किया जाना चाहिए।
  3. जो लोग उच्च रक्तचाप तथा दिल की बीमारी से ग्रसित हैं, उन्हें ऐसा व्यायाम नहीं करना चाहिए।

लाभ—

  1. खरटि की तकलीफ को ठीक करता है।
  2. जुकाम को ठीक करता है तथा गला साफ़ करता है।
  3. हृदय की मांसपेशियों को ठीक करता है।
  4. थायरॉइड के रोगियों के लिए यह व्यायाम लाभदायक है।
  5. श्वसन प्रणाली में सामंजस्य स्थापित करता है।
  6. शरीर के निचले भाग के लिए उपयोगी है तथा कमर के चारों ओर के मांस को कम करता है।

3. शीतकारी प्राणायाम (सिसकारीयुक्त श्वसन)-यह शीतली प्राणायाम का ही एक भिन्न रूप है। ‘शी’ का तात्पर्य वैसी आवाज़ से है, जो श्वास लेने के दौरान उत्पन्न की जाती है तथा ‘कारी’ का अर्थ है जो उत्पन्न किया जाता है। इस प्रकार शीतकारी प्राणायाम को वैसी श्वसन क्रिया के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जिसमें ‘शी’ की आवाज़ उत्पन्न होती है। बैठने की मद्रा-किसी भी आसन में आराम से बैठिए। धीरेधीरे अपनी आँखों को बंद कीजिए तथा अपने शरीर तथा मस्तिष्क को विश्राम दीजिए।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 7
शीतकारी
तकनीक-अपने ऊपरी तथा निचले दाँतों को मिलाइए। अपने होंठ को जितना संभव हो सके, उतन, फैलाइए। अपनी जीभ को इस प्रकार मोडिए कि इसके सिरे मुँह के ऊपरी भाग को स्पर्श करें। ‘शी’ की आवाज़ के साथ धीरे-धीरे किंतु गहरी साँस लें। श्वास लेने के पश्चात् अपने होठों को बंद रखें तथा जीभ को आराम दें। अपने श्वास को जितना हो सके, रोकें। धीरे-धीरे नासिका की सहायता से श्वास को बाहर निकालें, लेकिन अपना मुंह न खोलें। यह ‘शीतकारी-प्राणायाम’ का प्रथम चरण है। इसे 10 से 15 बार नियमित दोहराएँ।
सावधानियाँ—

  1. जो व्यक्ति सर्दी, जुकाम या अस्थमा से पीड़ित हों, उन्हें शीतकारी प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
  2. जो व्यक्ति उच्च रक्तचाप से पीड़ित होते हैं, उन्हें इस अभ्यास से बचना चाहिए।
  3. इसका अभ्यास ठंडे मौसम में नहीं करना चाहिए।

लाभ—

  1. शरीर तथा मस्तिष्क को ठंडा रखता है।
  2. यह आसन पायरिया को ठीक करता है तथा मुँह को साफ़ करता है, जो दाँत तथा मसूड़ों के लिए उचित है।
  3. शरीर से अतिरिक्त ऊष्मा को हटाता है।
  4. तनाव प्रबंधन में बहुत ही प्रभावकारी है।

4. शीतली प्राणायाम श्वास को शीतल करना-यह ‘हठ योग’ का एक भाग है। शीतल का अर्थ है-शांत। यह एक श्वसन व्यायाम है, जो आंतरिक ऊष्मा को कम करता है तथा मानसिक, शारीरिक तथा भावात्मक संतुलन को कायम रखता है।

बैठने की मुद्रा-पैरों को क्रॉस की तरह मोड़कर आराम से ज़मीन पर इस प्रकार बैठें, जिससे कि पैर जाँघों के ऊपर रहें तथा पैरों का तलवा ऊपर की ओर हो। अपने पैरों तथा मेरुदंड को सीधा रखें। तर्जनी अंगुली के सिरों को अँगूठों के सिरों से मिलाएँ। अपनी बाकी अंगुलियों को या तो फैलाएँ या ढीला छोडें। धीरे-धीरे अपनी आँखों को बंद करें तथा अपने मस्तिष्क
शीतली तथा शरीर को विश्राम दें।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 8
शीतलता
तकनीक-अपना मुँह खोलें तथा धीरे-धीरे जीभ को बाहर की ओर निकालते हुए मोड़ने की कोशिश करें। शांति से भीतर की ओर फुफकार की आवाज़ के साथ साँस लें तथा श्वास लेने की शीतलता को महसूस करें। अब अपनी जीभ को भीतर की ओर ले जाएँ तथा अपनी आँखों को बंद रखते हुए जब तक संभव हो, साँसों को रोककर रखें। अब इस बात का अहसास करें कि साँसें आपके मस्तिष्क को अनुप्राणित कर रही हैं तथा धीरे-धीरे समस्त तंत्रिका तंत्र में फैल रही हैं। धीरे-धीरे नासिका से श्वास छोड़ते हुए शीतलता का अनुभव करें। यह ‘शीतली प्राणायाम’ का प्रथम चरण है। इसे 10 से 15 बार नियमित दोहराएँ।
सावधानियाँ—

  1. इसका अभ्यास ठंडे मौसम में नहीं करना चाहिए।
  2. ऐसे लोग जिन्हें ठंड, जुकाम, अस्थमा, आर्थराइटिस, ब्रानकाइटिस तथा दिल की बीमारी है, उन्हें प्राणायाम से बचना चाहिए।

लाभ—

  1. यह क्रोध, चिंता तथा तनाव को कम करता है।
  2. यह रक्त को शुद्ध रखता है तथा शरीर और मस्तिष्क को तरोताज़ा रखता है।
  3. यह आसन उन लोगों के लिए लाभदायक है, जो सुबह उठते वक्त अथवा पूरे दिन थकावट, सुस्ती तथा आलस्य का अनुभव करते हैं।
  4. यह शरीर तथा मस्तिष्क को शांत रखता है।
  5. यह न केवल पाचन-क्रिया को सुधारता है, बल्कि उच्च रक्तचाप तथा अम्लता के लिए भी लाभकारी

5. भस्त्रिका प्राणायाम-इस प्राणायाम में लोहार की धौंकनी की तरह सांस अन्दर और बाहर लिया और निकाला जाता है। पहले नाक के एक छेद से सांस लेकर दूसरे से बाहर की ओर छोड़ा जाता है। इसके बाद दोनों छेदों द्वारा सांस बाहर तथा अन्दर किया जाता है। भस्त्रिका प्राणायाम आरम्भ में धीरे-धीरे करना चाहिए तथा बाद में इसकी गति को बढ़ाया जा सकता है। इस प्राणायाम के करने से मोटापा दूर होता है। मन की इच्छा बलवान् होती है। विचार ठीक रहते हैं।

6. भ्रमरी प्राणायाम-किसी आसन में बैठ कर कुहनियों को कन्धों के बराबर करके सांस लिया जाता है। थोडी देरं सांस रोकने के बाद निकालते समय भँवरे की आवाज़ के समान गले में से आवाज़ निकाली जाती है। इस प्रकार आवाज़ करते हुए सांस अन्दर खींचा जाता है। इस प्राणायाम का अभ्यास सात से दस बार किया जा सकता है। रेचक जहां तक हो सके, लम्बा किया जाना चाहिए। आवाज़ तथा रेचक करते हुए मुँह बन्द रखना चाहिए।
लाभ (Advantages)—इसका अभ्यास करने से आवाज़ साफ तथा मधुर होती है। गले के रोग दूर होते हैं।

7. मूर्छा प्राणायाम-इस प्राणायाम से नाड़ियों की सफाई होती है। सिद्ध आसन में बैठ कर नाक की बाईं नासिका से सांस लेना चाहिए। सांस लेकर कुम्भक किया जाए। इसके बाद दूसरी नासिका द्वारा सांस धीरे-धीरे बाहर छोड़ा जाता है। कुछ समय के लिए आन्तरिक कुम्भक किया जाता है और साथ बाईं नासिका द्वारा सांस बाहर छोड़ा जाता है। इसमें 1: 2: 2 का अनुपात होना चाहिए जैसे सांस लेने में पांच सैकिंड, सांस छोड़ने में दस सैकिंड इस तरह धीरे-धीरे कुम्भक का समय बढ़ाया जा सकता है। कुम्भक द्वारा ऑक्सीजन फेफड़ों के सभी छेदों में पहुँच जाती है। रेचक से फेफड़े सिकुड़ जाते हैं तथा हवा बाहर निकल जाती है।
लाभ (Advantages)—इस प्राणायाम से फेफड़ों के रोग दूर होते हैं और दिल की कमज़ोरी दूर होती है।

8. कपालभाति प्राणायाम (अग्रमस्तिष्क का धौंकना)कपालभाति शब्द की उत्पत्ति संस्कृत से हुई है। कपाल का अर्थ है-‘ललाट’ तथा भाति का अर्थ है-‘चमकना’। इस प्रकार कपालभाति का तात्पर्य है-आंतरिक कांति के साथ चेहरे का चमकना। यह एक अत्यधिक ऊर्जा देने वाला उदर का व्यायाम है। इस तरह के प्राणायाम में तेज़ी से श्वास छोड़ा जाता है तथा सामान्य तरीके से श्वास लिया जाता है।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 9
कपालभाति प्राणायाम
बैठने की मुद्रा-पीठ को सीधा रखते हुए पैरों को क्रॉस करते हुए बैठें। अपने हाथों को घुटनों पर आरामदायक अवस्था में रखें। अपने शरीर तथा मन को सहज रखें।
तकनीक-उदर को फैलाते हुए धीरे-धीरे गहराई से दोनों नाक की सहायता से श्वास भीतर लाएँ। अब उदर को अंदर खींचते हुए श्वास को बाहर निकालें। अब सहज हो जाएँ। फेफड़े स्वतः ही वायु से भर जाएँगे। 10 से 15 बार तेजी से श्वास लें तथा छोड़ें। तत्पश्चात् गहराई से श्वास लें तथा छोड़ें।
सावधानियां—

  1. दिल के रोगियों, उच्च रक्तचाप, हर्निया तथा अस्थमा के रोगियों को इस व्यायाम से बचना चाहिए।
  2. अगर दर्द या चक्कर का अनुभव होता है, तो इसे रोक देना चाहिए।
  3. इसका अभ्यास खाली पेट ही करना चाहिए।

लाभ—

  1. शरीर को अतिरिक्त ऑक्सीजन की प्राप्ति होती है।
  2. रक्त को शुद्ध करता है।
  3. चिंतन-मनन के लिए मस्तिष्क को तैयार करता है।
  4. पाचन तंत्र को सुधारता है।
  5. यह फेफड़ों तथा समस्त श्वसन प्रणाली के लिए उपयुक्त है।

प्राणायाम का महत्त्व
(Importance of Pranayama)
जिस प्रकार शरीर की सफाई के लिए स्नान करना आवश्यक है, उसी प्रकार मन की सफाई के लिए प्राणायाम ज़रूरी है। प्राणायाम से स्मरण शक्ति में वृद्धि, नाड़ी संस्थान (Nervous System) शक्तिशाली होता है और मन की चंचलता दूर होती है।

जिस प्रकार आग में सोना अथवा चांदी डालने से इनकी मैल समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार प्राणायाम से मन और बुद्धि की मैल धुल जाती है। इन्द्रियों पर नियन्त्रण किया जा सकता है।
प्राणायाम करने से मनुष्य की आत्मा शक्तिशाली बनती है। आत्मा के बुरे संस्कार समाप्त होते हैं और अच्छे संस्कार बनते हैं।

प्राणायाम करने से पेट, छाती की मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं और पेट के काफ़ी अंगों पर मालिश हो जाती है। अंगों के स्वस्थ और शक्तिशाली रहने से भोजन के पचने में बहुत लाभ होता है।

सांस भली प्रकार आने से शरीर में ऑक्सीजन अधिक मात्रा में मिलने लगती है। दिल की कार्यक्षमता बढ़ती है और यह शक्तिशाली हो जाता है। इससे रक्त संचार ठीक तरह होता है। रक्त संचार के भली प्रकार कार्य करने से नाड़ीसंस्थान और ग्रन्थि संस्थान के स्वास्थ्य में वृद्धि होती है। शरीर में इन दोनों संस्थानों के कारण शरीर के सभी अंग ठीक तरह से काम करने लगते हैं। यह दोनों ही स्वास्थ्य का आधार हैं।

प्राणायाम से थकावट दूर हो जाती है। अधिक ऑक्सीजन के कारण रक्त साफ होता है। एक प्रसिद्ध कहावत है”आधा सांस, आधा जीवन।” पूरा तथा संतुलित सांस लेने से आयु लम्बी होती है। सांस के रोगों, गले के रोगों, जैसे गले पड़ना (Tonsils) से छुटकारा मिलता है।

आवाज़ मधुर तथा स्पष्ट हो जाती है। इच्छा शक्ति (Will Power) में वृद्धि होती है। गले, नाक, कान आदि के रोगों से मुक्ति मिलती है। इसके अतिरिक्त चेहरा प्रभावशाली आंखें साफ हो जाती हैं। सुषुम्ना-नाड़ी के साफ हो जाने से भूख लगने लगती है। स्वास्थ्य में वृद्धि होती है।

PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग

प्रश्न 3.
भुजंगासन और सर्वांगासन की विधि और लाभ बताओ।
उत्तर-
भुजंगासन (Bhujangasana)—इसमें चित्त लेटकर धड़ को ढीला किया जाता है।
भुजंगासन की विधि (Technique of Bhujangasana)-इसे सर्पासन भी कहते हैं।
इसमें शरीर की स्थिति सर्प के आकार जैसी होती है। सर्पासन करने के लिए भूमि पर पेट के बल लेटें। दोनों हाथ कन्धों के बराबर रखो। धीरे-धीरे टांगों को अकड़ाते हुए हथेलियों के बल छाती को इतना ऊपर उठाएं कि भुजाएं बिल्कुल सीधी हो जाएं। पंजों को अन्दर की ओर करो और सिर को धीरे-धीरे पीछे की ओर लटकाएं। धीरे-धीरे पहली स्थिति में लौट आएं। इस आसन को तीन से पांच बार करें।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 10
भुजंगासन
लाभ (Advantages)—

  1. भुजंगासन से पाचन शक्ति मिलती है।
  2. जिगर और तिल्ली के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  3. रीढ़ की हड्डी और मांसपेशियां मज़बूत बनती हैं।
  4. कब्ज़ दूर होती है।
  5. बढ़ा हुआ पेट अन्दर को धंसता है।
  6. फेफड़े शक्तिशाली होते हैं।

सर्वांगासन (Sarvangasana)—इसमें कन्धों पर खड़ा हुआ जाता है।
सर्वांगासन की विधि (Technique of Saravangasana)-सर्वांगासन में शरीर की स्थिति अर्द्ध हल आसन की भांति होती है। इस आसन के लिए शरीर को सीधा करके पीठ के बल जमीन पर लेट जाएं। हाथों को जंघाओं के बराबर रखें। दोनों पांवों को एक बार उठाकर हथेलियां द्वारा पीठ को सहारा देकर कुहनियों को ज़मीन पर टिकाएं। सारे शरीर को सीधा रखें। शरीर का भार कन्धों और गर्दन पर रहे। ठोडी कण्ठकूप से लगी रहे। कुछ समय इस स्थिति में रहने के पश्चात् धीरेधीरे पहली स्थिति में आएं। आरम्भ में आसन का समय बढ़ाकर 5 से 7 मिनट तक किया जा सकता है। जो व्यक्ति किसी कारण शीर्षासन नहीं कर सकते उन्हें सर्वांगासन करना चाहिए।
PSEB 11th Class Physical Education Solutions Chapter 4 योग 11
सर्वांगासन
लाभ—

  1. इस आसन से कब्ज दूर होती है, भूख खूब लगती है।
  2. बाहर को बढ़ा हुआ पेट अन्दर की ओर धंसता है।
  3. शरीर के सभी अंगों में चुस्ती आती है।
  4. पेट की गैस नष्ट होती है।
  5. रक्त संचार तेज़ और शुद्ध होता है।
  6. बवासीर के रोग से छुटकारा मिलता है।

PSEB 7th Class Social Science Solutions Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

Punjab State Board PSEB 7th Class Social Science Book Solutions History Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 7 Social Science History Chapter 14 कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे

SST Guide for Class 7 PSEB कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Textbook Questions and Answers

(क) निम्नलिखित प्रश्नों के संक्षिप्त उत्तर लिखें

प्रश्न 1.
कबीलों के लोगों का प्रमुख कार्य कौन-सा था ?
उत्तर-
कबीलों के लोगों का प्रमुख कार्य कृषि करना होता था। परन्तु कुछ कबीलों के लोग शिकार करना, संग्राहक या पशु-पालन का कार्य करना भी पसन्द करते थे।

प्रश्न 2.
खानाबदोश से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर-
कुछ कबीलों के लोग अपना जीवन-निर्वाह करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते-फिरते रहते थे। इन्हें खानाबदोश कहा जाता है।

प्रश्न 3.
कबीले समाज के लोग कहां रहते थे ?
उत्तर-
कबीले समाज के लोग मुख्य रूप से जंगलों, पहाड़ों तथा रेतीले प्रदेशों में रहते थे।

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प्रश्न 4.
मध्यकालीन युग में पंजाब में कौन-कौन से कबीले रहते थे ?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में पंजाब में खोखर, गखड़, लंगाह, अरघुन तथा बलूच आदि कबीले रहते थे।

प्रश्न 5.
सुफ़ाका कौन था ?
उत्तर-
सुफाका अहोम वंश का पहला शासक था। उसने 1228 ई० से 1268 ई० तक शासन किया। उसने कई स्थानीय शासकों को पराजित करके ब्रह्मपुत्र घाटी तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। गड़गाऊ उसकी राजधानी थी।

प्रश्न 6.
किस क्षेत्र को गौंडवाना कहा जाता है ?
उत्तर-
पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश आदि क्षेत्रों को सामूहिक रूप से गौंडवाना कहा जाता है। इस क्षेत्र को गौंड लोगों की अधिक संख्या के कारण यह नाम दिया जाता है।

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(ख) निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति करें

  1. ……………. तथा ……………… दो कबीले थे।
  2. अहोम कबीले ने अपना शासन वर्तमानकालीन …………… के क्षेत्रों में स्थापित किया था।
  3. 15वीं सदी से 18वीं सदी तक ………………. में खुशहाल (राज्य) शासन था।
  4. अहोम कबीले के लोग चीन के …………… वर्ग से सम्बन्ध रखते थे।
  5. रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध ………….. शासक थी।

उत्तर-

  1. अहोम, नागा,
  2. आसाम,
  3. गौंडवाना,
  4. ताई-मंगोलिड,
  5. गौंड।

PSEB 7th Class Social Science Guide कबीले, खानाबदोश तथा स्थिर भाईचारे Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
मध्यकालीन युग में उत्तरी भारत का समाज किस प्रकार का था?
उत्तर-
मध्यकालीन युग में उत्तर भारत का समाज ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र नामक चार प्रमुख वर्गों में बंटा हुआ था। इनकी आगे भी कई जातियां और उपजातियां थीं।

समाज में कुलीन वर्ग के अतिरिक्त ब्राह्मणों, कारीगरों और व्यापारियों का भी बहुत संत्कार था। महिलाओं को उच्च शिक्षा दी जाती थी। उन्हें अपने पति का चुनाव करने का अधिकार था।

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प्रश्न 2.
दिल्ली सल्तनत काल की सामाजिक स्थिति के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
दिल्ली सल्तनत काल में भारतीय समाज हिन्दू और मुस्लिम दो प्रमुख वर्गों में विभक्त था –
I. मुस्लिम वर्ग-

1. शासक वर्ग-मुस्लिम वर्ग मुख्य रूप से शासक वर्ग था। अब शासक वर्ग में तुर्क और अफगानों के साथ राजपूत भी शामिल हो गए थे। समय बीतने पर अरब, ईरानी और मंगोल जातियों के लोग भी कुलीन वर्ग में शामिल हो गए। ये लोग बहुत विलासी जीवन व्यतीत करते थे।

2. दास-उस समय समाज में दासों की संख्या बहुत अधिक थी। उदाहरण के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश और बलबन सुल्तान बनने से पहले दास ही थे।

3. महिलाओं की दशा-मुस्लिम समाज में महिलाओं की दशा अच्छी नहीं थी। अधिकतर महिलाएं अशिक्षित थीं। वे पर्दा करती थीं।

4. वेश-भूषा, भोजन तथा मनोरंजन-मुसलमान लोग सूती, ऊनी और रेशमी कपड़े पहनते थे। महिलाएं और पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे। मुस्लिम लोग मुख्य रूप से चावल, गेहूं, सब्जियां, घी, अण्डे आदि खाते थे। वे शिकार, चौगान और कुश्ती आदि से अपना मनोरंजन करते थे।

II. हिन्दू समाज-देश में हिन्दुओं की संख्या बहुत अधिक थी, परन्तु उनका सत्कार नहीं किया जाता था। उन्हें इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए विवश किया जाता था।

1. जाति प्रथा बहुत कठोर थी। हिन्दू समाज भी बहुत-सी जातियों और उप-जातियों में बंटा हुआ था। समाज में ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। वैश्य आय विभाग में बहुत से पदों पर नियुक्त थे। समाज में क्षत्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी क्योंकि वे मुसलमानों से हार गये थे। उच्च जाति के लोग शूद्रों से घृणा करते थे।

2. हिन्दू समाज में नारियों की दशा बहुत ही खराब थी। वे अधिकतर अशिक्षित थीं। स्त्रियां पति की मृत्यु पर पति की चिता पर जलकर मर जाती थीं। वे जौहर भी निभाती थीं। मुस्लिम स्त्रियों की तरह वे भी पर्दा करती थीं।

3. हिन्दू लोग सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र पहनते थे। स्त्री तथा पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे। उनका मुख्य भोजन गेहूं, चावल, सब्जियां, घी और दूध आदि था। उन्हें नाच-गाने का बड़ा चाव था।

प्रश्न 3.
अहोम लोगों के बारे में जानकारी दीजिए।
उत्तर-
अहोम कबीले के लोगों ने 13वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी तक वर्तमान असम पर राज्य किया। उनका सम्बन्ध चीन के ताई-मंगोल कबीले से था। वे 13वीं सदी में चीन से असम आये थे। सुफाका असम का पहला अहोम शासक था। उसने 1228 ई० से 1268 ई० तक शासन किया। अहोमों ने अपने क्षेत्र के अनेक स्थानीय शासकों को पराजित किया। इनमें कचारी, मीरन और नाग आदि स्थानीय राजवंश शामिल थे। इस प्रकार अहोमों ने ब्रह्मपुत्र घाटी तक अपने राज्य का विस्तार कर लिया। अहोमों की राजधानी गड़गाऊ थी।

अहोमों ने मुग़लों और बंगाल आदि के विरुद्ध भी संघर्ष किया। मुग़लों ने असम पर अधिकार करने का प्रयास किया परन्तु असफल रहे। अन्त में औरंगजेब ने अहोमों की राजधानी गड़गाऊ पर विजय प्राप्त कर ली, परन्तु वह इसे मुग़ल शासन के अधीन न रख सका। 18वीं सदी में अहोम शासन का पतन होने लगा। लगभग 1818 ई० में बर्मा (म्यांमार) के लोगों ने असम पर आक्रमण कर दिया। उन्होंने अहोम राजा को असम छोड़ने के लिए विवश कर दिया। 1826 ई० में अंग्रेज़ असम में पहुंचे। उन्होंने बर्मा के लोगों को हरा कर उनके साथ यंदाबू की सन्धि की। इस प्रकार असम पर अंग्रेज़ों का अधिकार हो गया।

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प्रश्न 4.
गौण्ड लोगों के इतिहास के बारे में लिखिए।
उत्तर-
गौण्ड कबीले का सम्बन्ध मध्य भारत से है। ये पश्चिमी उड़ीसा, पूर्वी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि प्रान्तों में रहते हैं। इन प्रान्तों में गौण्ड लोगों की पर्याप्त संख्या होने के कारण इस क्षेत्र को गोंडवाना कहते हैं।

15वीं सदी से लेकर 18वीं सदी तक गोंडवाना क्षेत्र में कई राज्य स्थापित हुए। रानी दुर्गावती एक प्रसिद्ध गौण्ड शासिका थी। उसका राज्य यहां के स्वतन्त्र राज्यों में से एक था। जबलपुर उसकी राजधानी थी। मुग़ल शासक अकबर ने उसे अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए कहा परन्तु रानी दुर्गावती ने अकबर के सामने झुकने से इन्कार कर दिया। अतः मुग़लों और रानी दुर्गावती के बीच एक भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में रानी दुर्गावती मुग़लों के हाथों मारी गई।

गौण्ड लोगों की मूल आवश्यकताएं बहुत कम होती हैं। उनके घर भी साधारण बनावट (रचना) के हैं। एक निरीक्षण के अनुसार गौण्ड लोग गोण्डवाना क्षेत्र के अन्य लोगों की अपेक्षा कम पढ़े-लिखे हैं।

प्रश्न 5.
800 से 1200 ई० तक दक्षिण भारत की जाति-प्रथा की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-
मध्यकाल में दक्षिण भारत में जाति-प्रथा बहुत कठोर हो गई थी। इस समय समाज चार वर्गों-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र में विभक्त था। समाज में ब्राह्मणों का स्थान बहुत ऊंचा था, क्योंकि वे धार्मिक रीतियों को पूरा करने का काम करते थे। वैश्य व्यापार करते थे। समाज में शूद्रों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता था।

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प्रश्न 6.
आरम्भिक मध्यकाल (800-1200 ई०) में दक्षिण भारत में महिलाओं की दशा कैसी थी?
उत्तर-
आरम्भिक मध्यकाल में दक्षिण भारत के समाज में महिलाओं का सत्कार किया जाता था। उन्हें शिक्षा भी दी जाती थी। वे सामाजिक तथा धार्मिक रीतियों को पूरा करने में समान रूप से भाग लेती थीं। उन्हें अपने वर को स्वयं चुनने का अधिकार था। उनका आचरण बहुत उच्च था। वे जौहर की प्रथा निभाती थीं जो उनके शौर्य और शान का प्रतीक था।

प्रश्न 7.
800 से 1200 ई० तक दक्षिण भारत के लोगों के सामाजिक जीवन की कोई तीन विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. इस काल में लोग, विशेषतया राजपूत बड़े वीर और साहसी थे।
  2. साधारणतया लोग संगीत, नृत्य और शतरंज खेलकर अपना मनोरंजन करते थे।
  3. वे सादा भोजन खाते थे और सादे कपड़े पहनते थे।

प्रश्न 8.
भारत के आदिवासी कबीलों, खानाबदोशों तथा घुमक्कड़ समूहों के जीवन का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर-
मणिपुर, मेघालय, मध्य-प्रदेश, नागालैण्ड, दादरा और नगर हवेली आदि राज्यों में आदि कबीले, खानाबदोश और घुमक्कड़ वर्ग के लोग बहुत संख्या में रहते हैं। इन वर्गों में भील, गोंड, अहोम, कूई, कोलीम, कुक्की आदि लोग शामिल हैं। ये साधारणतया जंगलों में रहते हैं। खानाबदोश लोग अपने पशुओं के झुण्डों के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते-फिरते रहते हैं।
सरकार ने इन लोगों की सहायता के लिए इन्हें बहुत-सी सुविधाएं प्रदान की हैं। उदाहरण के लिए –

  1. कबाइली क्षेत्रों में व्यवसाय प्रशिक्षण संस्थाएं आरम्भ की गई हैं।
  2. इन्हें अपनी आर्थिक दशा सुधारने के लिए कम ब्याज-दर पर बैंकों से ऋण दिये जाते हैं।
  3. इन लोगों के लिए लगभग 7-% नौकरियां सुरक्षित रखी जाती हैं।
  4. शिक्षण संस्थानों में भी इनके लिए कुछ सीटें सुरक्षित हैं। यहां तक कि लोक सभा और विधान सभाओं के विशेष चुनाव-क्षेत्र अनुसूचित जातियों के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।

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प्रश्न 9.
मुग़ल काल में मुस्लिम समाज की मुख्य विशेषताएं बताओ।
उत्तर-

  1. मुग़ल काल में मुस्लिम समाज तीन श्रेणियों में विभक्त था-उच्च श्रेणी, मध्य श्रेणी तथा निम्न श्रेणी।
  2. समाज में नारी की दशा अच्छी नहीं थी। वे अशिक्षित होती थीं। वे पर्दा करती थीं।
  3. मुस्लिम लोग मांस, हलवा, पूरी, मक्खन, फल और सब्जियां खाते थे। वे शराब भी पीते थे।
  4. पुरुष कुर्ता और पाजामा पहनते थे और सिर पर पगड़ी बांधते थे। महिलाएं लम्बा बुर्का पहनती थीं। महिलाएं और पुरुष दोनों ही आभूषणों के शौकीन थे।

प्रश्न 10.
मुग़ल काल के हिन्दू समाज की विशेषताएं बताएं।
उत्तर-

  1. मुग़ल काल में हिन्दू समाज अनेक जातियों और उप-जातियों में विभक्त था। ब्राह्मणों को उच्च स्थान प्राप्त था। जाति प्रथा बहुत कठोर थी।
  2. समाज में महिलाओं की दशा बहुत ही शोचनीय थी। लोग अपनी कन्याओं को शिक्षित नहीं करते थे। महिलाएं पर्दा करती थीं।
  3. उस समय लोग साधारणतया सादा भोजन करते थे। वे सूती, ऊनी और रेशमी वस्त्र पहनते थे।

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(क) सही कथनों पर (✓) तथा ग़लत कथनों पर (✗) का चिन्ह लगाएं :

  1. कबायली समाज श्रेणियों या वर्गों में बंटा हुआ नहीं था।
  2. कबीलों के लोगों का मुख्य कार्य व्यापार करना था।
  3. सुफ़ाका अहोम वंश का अन्तिम शासक था।
  4. बंजारा लोग प्रसिद्ध व्यापारी खानाबदोश थे।

उत्तर-

  1. (✓)
  2. (✗)
  3. (✗)
  4. (✓)

(ख) सही जोड़े बनाइए :

  1. गड़गाऊ – कौली
  2. जबलपुर – अहोम
  3. पंजाब – गौंड
  4. गुजरात – खोखर

उत्तर-

  1. गड़गाऊ – अहोम
  2. जबलपुर – गौंड
  3. पंजाब – खोखर
  4. गुजरात – कौली

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(ग) सही उत्तर चुनिए :

प्रश्न 1.
खानाबदोश (मध्यकालीन) कबीले कुलों में बंटे हुए थे? ये कुल क्या थे?
(i) एक ही पूर्वज की संतान
(ii) कई परिवारों का समूह
(iii) ये दोनों।
उत्तर-
(iii) ये दोनों।

प्रश्न 2.
मुण्डा तथा संथाल कबीलों का सम्बन्ध वर्तमान के किस स्थान से है?
(i) बिहार तथा झारखण्ड
(ii) जम्मू-कश्मीर
(iii) हिमाचल प्रदेश।
उत्तर-
(i) बिहार तथा झारखण्ड।

प्रश्न 3.
अहोम लोग 13वीं शताब्दी में बाहर से आसाम में आये थे। उनका सम्बन्ध किस देश से था?
(i) जापान
(ii) चीन
(iii) मलाया।
उत्तर-
(ii) चीन।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली

Punjab State Board PSEB 12th Class History Book Solutions Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 12 History Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली

निबंधात्मक प्रश्न (Essay Type Questions)

दल खालसा के उत्थान के कारण तथा महत्त्व (Causes and Importance of the Rise of the Dal Khalsa)

प्रश्न 1.
किन परिस्थितियों में दल खालसा का उत्थान हुआ ? इसके संगठन, महत्त्व और युद्ध प्रणाली का परीक्षण कीजिए।
(Describe the circumstances leading to the rise of Dal Khalsa. Examine its organisation, importance and mode of fighting.)
अथवा
दल खालसा के उत्थान के कारण, संगठन, महत्त्व और युद्ध प्रणाली के बारे में बताएँ।
(Discuss about the reasons of the creation, organisation, importance and mode of fighting of Dal Khalsa.)
अथवा
दल खालसा की उत्पत्ति, मुख्य विशेषताएँ और महत्त्व का वर्णन करें।
(Discuss the origin, important, features and importance of the Dal Khalsa.)
अथवा
किन स्थितियों के कारण दल खालसा की स्थापना हुई ? इसका पंजाब के इतिहास में क्या महत्त्व है ?
(Discuss the circumstances leading to the establishment of Dal Khalsa. What is its significance in the History of Punjab ?)
अथवा
दल खालसा की स्थापना के क्या कारण थे ?
(What were the causes reponsible for the rise of Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा की उत्पत्ति, मुख्य विशेषताएँ तथा महत्त्व के बारे में आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the organisation, main features and significance of the Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा के उत्थान की परिस्थितियों का वर्णन करें। इसके संगठन, युद्ध प्रणाली तथा महत्त्व की संक्षिप्त जानकारी दें।
(Describe the circumstances leading to the establishment of the Dal Khalsa. Give a brief account of its organisation, mode of fighting and importance.)
अथवा
दल खालसा की स्थापना के कारणों का अध्ययन करें। (Study the causes of the establishment of Dal Khalsa.)
अथवा
दल खालसा की स्थापना के क्या कारण थे ? इसका पंजाब के इतिहास में क्या महत्त्व है ?
(What were the reasons of the creation of Dal Khalsa ? What is its importance in the History of Punjab ?)
अथवा
दल खालसा के संगठन का वर्णन कीजिए और इसके महत्त्व का परीक्षण कीजिए।
(Give an account of the organisation of Dal Khalsa and examine its significance.)
अथवा
दल खालसा का पंजाब के इतिहास में क्या महत्त्व है ? (What is the significance of Dal Khalsa in the History of Punjab ?)
अथवा
दल खालसा की सैनिक प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए। (Describe the main features of the military system of Dal Khalsa.)
अथवा
दल खालसा की सैनिक प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ? (What were the main features of the military system of the Dal Khalsa ?)
उत्तर-
1748 ई० में दल खालसा की स्थापना सिख इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इसकी स्थापना ने सिख कौम में नवप्राण फूंके। इसने सिखों को पंजाब के मुग़ल और अफ़गान सूबेदारों के जुल्मों से टक्कर लेने के योग्य बनाया। दल खालसा के यत्नों के कारण ही सिख अंत में पंजाब में अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने में सफल हुए। निस्संदेह दल खालसा की स्थापना तो सिख इतिहास का एक मील पत्थर था।

I. दल खालसा की स्थापना के कारण (Causes of the Establishment of the Dal Khalsa)
1. सिखों पर अत्याचार (Persecution of the Sikhs)-1716 ई० में बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद पंजाब के मुग़ल सूबेदारों अब्दुस समद खाँ और जकरिया खाँ ने सिखों पर कठोर अत्याचार करने शुरू कर दिए। सिखों के सिरों पर इनाम घोषित किए गए। सिखों को गिरफ्तार कर लाहौर में शहीद किया जाने लगा। मजबूर हो कर सिखों को वनों और पहाड़ों में जा कर शरण लेनी पड़ी। यहाँ उन्हें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मुग़ल सेनाएँ उनका पीछा करती रहती थीं। ऐसी स्थिति में उनको अपने-आप को जत्थों में संगठित करने की आवश्यकता अनुभव हुई। उन्होंने अपने छोटे-छोटे जत्थे बना लिए जो बाद में दल खालसा की स्थापना में सहायक सिद्ध हुए।

2. बुड्डा दल और तरुणा दल का गठन (Foundation of Buddha Dal and Taruna Dal)-1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सारे छोटे-छोटे दलों को मिला कर दो मुख्य दलों में संगठित कर दिया। इनके नाम बुड्ढा दल तथा तरुणा दल थे। बुड्डा दल में 40 वर्ष की आयु से ऊपर के सिखों को शामिल किया गया था। इस दल का कार्य सिखों के पवित्र धार्मिक स्थानों की देख-भाल करना और सिख धर्म का प्रचार करना था। तरुणा दल में 40 साल से कम आयु के सिखों को शामिल किया गया था। इस दल का मुख्य कार्य दुश्मनों का मुकाबला करना था। तरुणा दल को आगे पाँच जत्थों में बाँटा गया था। प्रत्येक जत्थे को एक अलग जत्थेदार के अधीन रखा गया था। इन दलों की स्थापना ने सिखों का संगठन मज़बूत किया।

3. दलों का पुनर्गठन (Reorganisation of the Dals) जकरिया खाँ की मृत्यु के बाद पंजाब में अराजकता का दौर आरंभ हुआ। इस स्थिति का लाभ उठा कर सिखों ने 1745 ई० को दीवाली के अवसर पर अमृतसर में यह गुरमता पास किया कि सौ-सौ सिखों के 25 जत्थे बनाए जाएँ। इन जत्थों ने सरकार का सामना करने के लिए गुरिल्ला युद्ध नीति अपनाई। इन जत्थों ने बटाला, जालंधर, बजवाड़ा और फगवाड़ा आदि स्थानों पर भारी लूटमार की। धीरे-धीरे इन जत्थों की गिनती 25 से बढ़ कर 65 हो गई।

II. दल खालसा की स्थापना (Establishment of the Dal Khalsa)
29 मार्च, 1748 ई० को बैसाखी के दिन सिख अमृतसर में इकट्ठे हुए। इस अवसर पर नवाब कपूर सिंह ने यह सुझाव दिया कि पंथ को एकता और मज़बूती की ज़रूरत है। इस उद्देश्य को सामने रखते हुए उस दिन दल खालसा की स्थापना की गई। 65 सिख जत्थों को 12 मुख्य जत्थों में संगठित कर दिया गया। प्रत्येक जत्थे का अपना अलग नेता और झंडा था। सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया को दल खालसा का प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया। दल खालसा में शामिल होने वाले सिखों से यह आशा की जाती थी कि वह घुड़सवारी और शस्त्र चलाने में निपुण हो। दल खालसा का प्रत्येक सदस्य किसी भी जत्थे में शामिल होने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र था। युद्ध के समय 12 जत्थों के सरदारों में से एक को दल खालसा का प्रधान चुन लिया जाता था। ‘सरबत खालसा’ की बैठक हर वर्ष वैसाखी और दीवाली के अवसर पर अमृतसर में बुलाई जाती थी। इस बैठक में महत्त्वपूर्ण मामलों संबंधी गुरमते पास किए जाते थे। इन गुरमतों का सारे सिख पालन करते थे।

III. दल खालसा की सैनिक-प्रणाली की विशेषताएँ
(Features of the Military System of the Dal Khalsa) दल खालसा की महत्त्वपूर्ण सैनिक विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—
1. घुड़सवार सेना (Cavalry)-घुड़सवार सेना दल खालसा की सेना का महत्त्वपूर्ण अंग थी। वास्तव में इस काल में होने वाली लड़ाइयाँ ही ऐसी थीं जिनमें घुड़सवार सेना के बिना जीत प्राप्त करना असंभव था। सिखों के घोड़े बहुत कुशल थे। वे एक दिन में पचास से सौ मील तक का सफर तय करने की समर्था रखते थे।।

2. पैदल सेना (Infantry)-दल खालसा में पैदल सेना का काम केवल पहरा देना था। सिख इस सेना में भर्ती होने को अपना अपमान समझते थे।

3. शस्त्र (Arms)-लड़ाई के समय सिख तलवारों, बरछियों, खंडों, नेजों, तीर कमानों और बंदूकों का प्रयोग करते थे। बारूद की कमी के कारण बंदूकों का कम ही प्रयोग किया जाता था।

4. सेना में भर्ती और अनुशासन (Recruitment and Discipline)-दल खालसा में भर्ती होने के लिए कोई निश्चित नियम नहीं था। कोई भी सिख किसी भी जत्थे में शामिल हो सकता था। वह अपनी इच्छा के अनुसार जब चाहे जत्थे को छोड़कर दूसरे जत्थे में जा सकता था। सैनिकों के नामों, वेतन का भी कोई लिखित विवरण नहीं रखा जाता था। सैनिकों के प्रशिक्षण इत्यादि की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। दल खालसा के सैनिक सदैव धार्मिक जोश के साथ लड़ते थे। वे अपने नेता की आज्ञा का पालन करना अपना कर्तव्य समझते थे। इस कारण दल खालसा में सदैव अनुशासन की भावना रहती थी।

5. वेतन (Salary)–दल खालसा में सिखों को कोई निश्चित वेतन नहीं मिलता था। उनको केवल लूट में से हिस्सा मिलता था। बाद में उन्हें जीते गए प्रदेश में से भी कुछ हिस्सा दिया जाने लगा।

6. युद्ध प्रणाली (Mode of Fighting)-दल खालसा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुरिल्ला अथवा छापामार युद्ध प्रणाली थी। गुरदास नंगल की लड़ाई से सिखों ने यह पाठ लिया कि मुग़ल सेना से खुले युद्ध में टक्कर लेना हानिकारक सिद्ध हो सकता है। दूसरा, सिखों के साधन मुग़लों की अपेक्षा सीमित थे। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली सिखों की शक्ति बढ़ाने में बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई। इस प्रणाली के द्वारा सिख अपने शत्रुओं पर अचानक हमला करके उनको भारी हानि पहुँचाते थे। जितने समय में शत्रु संभलते सिख पुनः जंगलों और पहाड़ों की ओर चले जाते। सिख सैनिकों ने इस युद्ध प्रणाली के कारण मुग़लों और अफ़गानों की नाक में दम कर रखा था।

IV. दल खालसा का महत्त्व (Significance of the Dal Khalsa)
देल खालसा की स्थापना सिख इतिहास में एक मील पत्थर साबित हुई। इसने सिखों की बिखरी हुई शक्ति को एकता के सूत्र में बाँध दिया। इसने उनको धर्म के लिए हर प्रकार की कुर्बानी देने के लिए प्रेरित किया। इसके नेतृत्व में सिखों ने मुग़लों और अफ़गानों का डटकर मुकाबला किया। दल खालसा ने ही पंजाब में सिखों को राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान की। इसके अतिरिक्त दल खालसा के यत्नों से ही सिख पंजाब में स्वतंत्र मिसलें स्थापित करने में सफल हुए। प्रसिद्ध इतिहासकार निहार रंजन रे का यह कहना बिल्कुल ठीक है,
“दल खालसा की स्थापना सिख इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ सिद्ध हुई।” 1

1. “ The organisation of the Dal Khalsa has been rightly characterised as landmark in the history of the Sikhs.” Nihar Ranjan Ray, The Sikh Gurus and the Sikh Society (Patiala : 1970)p: 160.

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प्रश्न 2.
दल खालसा की सैनिक प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ क्या थी ? (What were the main features of the Military System of the Dal Khalsa ?)
उत्तर-
दल खालसा की सैनिक-प्रणाली की विशेषताएँ
(Features of the Military System of the Dal Khalsa) दल खालसा की महत्त्वपूर्ण सैनिक विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—
1. घुड़सवार सेना (Cavalry)-घुड़सवार सेना दल खालसा की सेना का महत्त्वपूर्ण अंग थी। वास्तव में इस काल में होने वाली लड़ाइयाँ ही ऐसी थीं जिनमें घुड़सवार सेना के बिना जीत प्राप्त करना असंभव था। सिखों के घोड़े बहुत कुशल थे। वे एक दिन में पचास से सौ मील तक का सफर तय करने की समर्था रखते थे।।

2. पैदल सेना (Infantry)-दल खालसा में पैदल सेना का काम केवल पहरा देना था। सिख इस सेना में भर्ती होने को अपना अपमान समझते थे।

3. शस्त्र (Arms)-लड़ाई के समय सिख तलवारों, बरछियों, खंडों, नेजों, तीर कमानों और बंदूकों का प्रयोग करते थे। बारूद की कमी के कारण बंदूकों का कम ही प्रयोग किया जाता था।

4. सेना में भर्ती और अनुशासन (Recruitment and Discipline)-दल खालसा में भर्ती होने के लिए कोई निश्चित नियम नहीं था। कोई भी सिख किसी भी जत्थे में शामिल हो सकता था। वह अपनी इच्छा के अनुसार जब चाहे जत्थे को छोड़कर दूसरे जत्थे में जा सकता था। सैनिकों के नामों, वेतन का भी कोई लिखित विवरण नहीं रखा जाता था। सैनिकों के प्रशिक्षण इत्यादि की भी कोई व्यवस्था नहीं थी। दल खालसा के सैनिक सदैव धार्मिक जोश के साथ लड़ते थे। वे अपने नेता की आज्ञा का पालन करना अपना कर्तव्य समझते थे। इस कारण दल खालसा में सदैव अनुशासन की भावना रहती थी।

5. वेतन (Salary)–दल खालसा में सिखों को कोई निश्चित वेतन नहीं मिलता था। उनको केवल लूट में से हिस्सा मिलता था। बाद में उन्हें जीते गए प्रदेश में से भी कुछ हिस्सा दिया जाने लगा।

6. युद्ध प्रणाली (Mode of Fighting)-दल खालसा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुरिल्ला अथवा छापामार युद्ध प्रणाली थी। गुरदास नंगल की लड़ाई से सिखों ने यह पाठ लिया कि मुग़ल सेना से खुले युद्ध में टक्कर लेना हानिकारक सिद्ध हो सकता है। दूसरा, सिखों के साधन मुग़लों की अपेक्षा सीमित थे। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली सिखों की शक्ति बढ़ाने में बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई। इस प्रणाली के द्वारा सिख अपने शत्रुओं पर अचानक हमला करके उनको भारी हानि पहुँचाते थे। जितने समय में शत्रु संभलते सिख पुनः जंगलों और पहाड़ों की ओर चले जाते। सिख सैनिकों ने इस युद्ध प्रणाली के कारण मुग़लों और अफ़गानों की नाक में दम कर रखा था।

संक्षिप्त उत्तरों वाले प्रश्न (Short Answer Type Questions)

प्रश्न 1.
दल खालसा की स्थापना के मुख्य कारण क्या थे ? (What were the main causes of the foundation of Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा की उत्पत्ति के तीन कारणों की व्याख्या कीजिए।
(Discuss the three causes of the foundation of Dal Khalsa.)
उत्तर-
1716 ई० में बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद सिखों में नेतृत्व का अभाव उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप सिख संगठित रूप में न रह सके। मुग़ल सेनाएँ उनका पीछा करती रहती थीं। अतः सिखों ने अपने छोटे-छोटे जत्थे बना लिए। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने बुड्वा दल तथा तरुणा दल की स्थापना की। यह दल खालसा की स्थापना की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम था। नवाब कपूर सिंह ने 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की। इस प्रकार दल खालसा अस्तित्व में आया।

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प्रश्न 2.
दल खालसा के संगठन बारे आप क्या जानते हैं ?
(What do you know about the organisation of Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा के मुख्य सिद्धांत बताएँ।
(What are main principles of Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा की तीन मुख्य विशेषताएँ लिखिए।
(Write the main three features of the Dal Khalsa.) ।
अथवा
दल खालसा की स्थापना कब हुई ? इसकी मुख्य विशेषताएँ बताएँ।
(When was Dal Khalsa founded ? Describe its main features.)
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह ने 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की। दल खालसा का प्रधान सेनापति सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया को नियुक्त किया गया। प्रत्येक सिख जिसका गुरु गोबिंद सिंह जी के नियमों पर विश्वास था, को दल खालसा का सदस्य समझा जाता था। दल खालसा में शामिल होने वाले सिखों से यह आशा की जाती थी कि वे घुड़सवारी और शस्त्र चलाने में निपुण हों। दल खालसा के सैनिक छापामार युद्ध प्रणाली द्वारा युद्ध करते थे।

प्रश्न 3.
दल खालसा की सैनिक प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ लिखें। (Write the chief salient features of military administration of Dal Khalsa.)
उत्तर-

  1. दल खालसा में सिख अपनी इच्छानुसार भर्ती होते थे।
  2. सैनिकों के नामों, वेतन इत्यादि का कोई लिखित विवरण नहीं रखा जाता था।
  3. सैनिकों को प्रशिक्षण देने का भी कोई प्रबंध नहीं था
  4. सिख सैनिक छापामार युद्ध प्रणाली द्वारा युद्ध करते थे। वे अपने शत्रुओं पर अचानक आक्रमण करके उनको भारी हानि पहुँचाते थे।
  5. दल खालसा की सेना में पैदल सेना तथा तोपखाने का अभाव था।

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प्रश्न 4.
सिखों की गुरिल्ला युद्ध नीति पर एक नोट लिखिए।
(Write a note on guerilla mode of fighting of the Sikhs.)
अथवा
दल खालसा की युद्ध प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ संक्षेप में बताएँ।
(Give a brief account of the main features of mode of fighting of Dal Khalsa.)
अथवा
दल खालसा की युद्ध प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Make a brief mention of the main features of the mode of fighting of Dal Khalsa.)
उत्तर-
दल खालसा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता छापामार युद्ध-नीति थी। इसका कारण सिखों के सीमित साधन थे। इस प्रणाली के द्वारा सिख अपने शत्रुओं पर अचानक हमला करके उन्हें भारी हानि पहुँचाते थे। शत्रु के संभलने से पहले ही वे पुनः जंगलों और पहाड़ों की ओर चले जाते। सिख सैनिक इस युद्ध प्रणाली के कारण ही . मुग़लों और अफ़गानों का मुकाबला करने में सफल हुए।

प्रश्न 5.
दल खालसा की कब और कहाँ स्थापना हुई ? सिख इतिहास में दल खालसा के महत्त्व का वर्णन करो।
(When and where was Dal Khalsa’ established ? What is its significance in Sikh History ?)
अथवा
दल खालसा के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
(Describe the importance of Dal Khalsa.)
उत्तर-
दल खालसा की स्थापना 29 मार्च, 1748 ई० में वैसाखी वाले दिन अमृतसर में हुई। इसने सिखों को पंजाब में मुग़ल और अफ़गान अत्याचारों का मुकाबला करने के योग्य बनाया। इसने सिखों को राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान की। फलस्वरूप सिख पंजाब में अपनी स्वतंत्र मिसलों की स्थापना करने में सफल हुए। दल खालसा के कारण सिखों में एकता तथा अनुशासन आ गया। दल खालसा की स्थापना के कारण ही सिख एक गौरवमयी युग में प्रवेश कर पाए।

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वस्तुनिष्ठ प्रश्न (Objective Type Questions)

(i) एक शब्द से एक पंक्ति तक के उत्तर (Answer in One Word to One Sentence)

प्रश्न 1.
दल खालसा की उत्पत्ति के लिए जिम्मेदार कोई एक कारण बताएँ।
अथवा
‘दल खालसा की स्थापना का कोई एक कारण बताएँ।
उत्तर-
सिख अपनी शक्ति को संगठित करना चाहते थे।

प्रश्न 2.
बुड्डा दल तथा तरुणा दल की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
1734 ई०।

प्रश्न 3.
बुड्डा दल में किन सिखों को सम्मिलित किया जाता था ?
उत्तर-
40 वर्ष से अधिक आयु के सिखों को।

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प्रश्न 4.
बुड्डा दल के नेता कौन थे ?
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

प्रश्न 5.
तरुणा दल में किन सिखों को सम्मिलित किया जाता था ?
उत्तर-
नौजवान सिखों को।

प्रश्न 6.
तरुणा दल का मुख्य कार्य क्या था ?
उत्तर-
शत्रुओं का सामना करना।

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प्रश्न 7.
दल खालसा की स्थापना कब हुई ?
उत्तर-
29 मार्च, 1748 ई०।

प्रश्न 8.
दल खालसा की स्थापना किसने की थी ?
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह।

प्रश्न 9.
दल खालसा की स्थापना कहाँ की गई ?
उत्तर-
अमृतसर।

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प्रश्न 10.
दल खालसा से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
सिखों का सैनिक संगठन।

प्रश्न 11.
दल खालसा के कितने जत्थे थे?
उत्तर-
12.

प्रश्न 12.
दल खालसा के किसी एक मुख्य जत्थे का नाम लिखें।
उत्तर-
शुकरचकिया जत्था।

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प्रश्न 13.
दल खालसा का प्रधान सेनापति कब नियुक्त किया गया ?
उत्तर-
1748 ई०।

प्रश्न 14.
दल खालसा का प्रधान सेनापति किसे नियुक्त किया गया था ?
अथवा
दल खालसा का प्रथम जत्थेदार कौन था ?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया।

प्रश्न 15.
दल खालसा का प्रथम मुख्य जत्थेदार कौन था?
उत्तर-
जस्सा सिंह आहलूवालिया।

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प्रश्न 16.
जस्सा सिंह आहलूवालिया को किस उपाधि के साथ सम्मानित किया गया था ?
उत्तर-
सुल्तान-उल-कौम।

प्रश्न 17.
सरबत खालसा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर-
समूची सिख संगत।

प्रश्न 18.
दल खालसा की युद्ध विधि कैसी थी ?
उत्तर-
छापामार युद्ध।

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प्रश्न 19.
दल खालसा ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली क्यों अपनाई ?
उत्तर-
क्योंकि सिखों के साधन मुगलों की तुलना में बिल्कुल सीमित थे।

प्रश्न 20.
दल खालसा का क्या महत्त्व था ?
उत्तर-
इसने सिखों की बिखरी हुई शक्ति को एकता के सूत्र में बाँधा।

(ii) रिक्त स्थान भरें (Fill in the Blanks)

प्रश्न 1.
……..में बुड्ढा दल और तरुणा दल की स्थापना की गई।
उत्तर-
(1734 ई०)

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प्रश्न 2.
तरुणा दल और बुड्डा दल की स्थापना…….ने की थी।
उत्तर-
(नवाब कपूर सिंह)

प्रश्न 3.
दल खालसा की स्थापना……..में की गई थी।
उत्तर-
(1748 ई०)

प्रश्न 4.
दल खालसा की स्थापना……..में की गई थी।
उत्तर-
(अमृतसर)

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प्रश्न 5.
दल खालसा का प्रधान सेनापति ……………. को नियुक्त किया गया था।
उत्तर-
(सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया)

प्रश्न 6.
दल खालसा की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग……..था।
उत्तर-
(घुड़सवार सेना)

प्रश्न 7.
दल खालसा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता……..युद्ध प्रणाली को अपनाना था।
उत्तर-
(छापामार)

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(ii) ठीक अथवा गलत (True or False)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक अथवा गलत चुनें—

प्रश्न 1.
नवाब कपूर सिंह ने बुड्डा दल और तरुणा दल की स्थापना 1738 ई० में की थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 2.
दल खालसा की स्थापना 1749 ई० में की गई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 3.
दल खालसा की स्थापना श्री आनंदपुर साहिब में की गई थी।
उत्तर-
गलत

प्रश्न 4.
दल खालसा का प्रधान सेनापति सरदार जस्सा सिंह रामगढ़िया को नियुक्त किया गया था।
उत्तर-
गलत

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प्रश्न 5.
दल खालसा की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग घुड़सवार सेना था।
उत्तर-
ठीक

प्रश्न 6.
दल खालसा ने गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया था।
उत्तर-
ठीक

(iv) बहु-विकल्पीय प्रश्न | (Multiple Choice Questions)

नोट-निम्नलिखित में से ठीक उत्तर का चयन कीजिए—

प्रश्न 1.
दल खालसा की स्थापना क्यों की गई थी ?
(i) सिख अपनी शक्ति को संगठित करना चाहते थे
(ii) नवाब कपूर सिंह पंथ में एकता स्थापित करना चाहते थे
(iii) सिख मुग़ल सरकार को सबक सिखाना चाहते थे
(iv) उपरोक्त सभी।
उत्तर-
(iv)

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प्रश्न 2.
दल खालसा की स्थापना कब की गई थी ?
(i) 1733 ई० में
(ii) 1734 ई० में
(iii) 1739 ई० में
(iv) 1748 ई० में।
उत्तर-
(iv)

प्रश्न 3.
दल खालसा की स्थापना किसने की थी ?
(i) नवाब कपूर सिंह ने
(ii) जस्सा सिंह आहलूवालिया ने
(iii) जस्सा सिंह रामगढ़िया ने
(iv) महाराजा रणजीत सिंह ने।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 4.
दल खालसा की स्थापना कहाँ की गई थी ?
(i) दिल्ली में
(ii) जालंधर में
(iii) अमृतसर में
(iv) लुधियाना में।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 5.
नवाब कपूर सिंह ने दल खालसा की स्थापना कहाँ की थी ?
(i) लाहौर
(ii) अमृतसर
(iii) तरनतारन
(iv) अटारी।
उत्तर-
(ii)

प्रश्न 6.
दल खालसा का प्रधान सेनापति कौन था ?
(i) जस्सा सिंह आहलूवालिया
(ii) जस्सा सिंह रामगढ़िया
(iii) नवाब कपूर सिंह
(iv) बाबा आला सिंह।
उत्तर-
(i)

प्रश्न 7.
दल खालसा ने किसको ‘सुल्तान-उल-कौम’ की उपाधि से सम्मानित किया था ?
(i) महाराजा रणजीत सिंह को
(ii) नवाब कपूर सिंह को
(iii) जस्सा सिंह आहलूवालिया को
(iv) जय सिंह को।
उत्तर-
(iii)

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प्रश्न 8.
सरबत खालसा की सभाएँ कहाँ बुलाई जाती थीं ?
(i) दिल्ली में
(ii) लाहौर में
(iii) अमृतसर में
(iv) खडूर साहिब में।
उत्तर-
(iii)

Long Answer Type Question

प्रश्न 1.
दल खालसा की स्थापना के मुख्य कारण क्या थे ? (What were the main causes of the foundation of Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा की उत्पत्ति के मुख्य कारणों की व्याख्या कीजिए। (Discuss the main causes of the foundation of Dal Khalsa.)
उत्तर-
1716 ई० में बंदा सिंह बहादुर की शहीदी के बाद सिख संगठित रूप से पंजाब में न रह सके। ऐसी स्थिति का लाभ उठाकर पंजाब के मुगल सूबेदारों अब्दुस समद खाँ तथा जकरिया खाँ ने सिखों पर घोर अत्याचार करने आरंभ कर दिए। सिखों के सिरों के लिए इनाम घोषित किये गये। बाध्य होकर सिखों को पहाड़ों एवं वनों में जाकर शरण लेनी पड़ी। मुग़ल सेनाएँ उनका पीछा करती रहती थीं। जहाँ कहीं वे अकेले नज़र आते शहीद कर दिए जाते। ऐसी स्थिति में सिखों ने अपने आप को जत्थों के रूप में संगठित करने की आवश्यकता अनुभव की। परिणामस्वरूप उन्होंने अपने छोटे-छोटे जत्थे बना लिए। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने एक बहुत प्रशंसनीय निर्णय किया। उसने सिखों को दो दलों-बड़ा दल तथा तरुणा दल-में गठित किया। यह दल खालसा की स्थापना की दिशा में उठाया गया एक ठोस कदम था। 1745 ई० में दीवाली के अवसर पर अमृतसर में 100-100 सिखों के 25 जत्थे बनाए गये। धीरे-धीरे इनकी संख्या बढ़कर 65 हो गई। मुग़लों के विरुद्ध अपनी कार्यवाही को तीव्र करने के उद्देश्य से नवाब कपूर सिंह ने 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की।

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प्रश्न 2.
दल खालसा के संगठन के बारे में आप क्या जानते हैं ? (What do you know about the organisation of Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा के मुख्य सिद्धांत बताओ। (What are the main principles of Dal Khalsa ?)
अथवा
दल खालसा की मुख्य विशेषताएँ लिखिए। (Write the main features of the Dal Khalsa.)
अथवा
दल खालसा की स्थापना कब हुई ? इसकी मुख्य विशेषताएँ लिखें। (When was Dal Khalsa founded ? Describe its main features.)
उत्तर-
नवाब कपूर सिंह के सुझाव पर सिख पंथ की एकता के लिए 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की गई। सिखों के 65 जत्थों को 12 जत्थों में संगठित किया गया। प्रत्येक जत्थे का अलग नेता और झंडा था। सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया को दल खालसा का प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया। प्रत्येक सिख जिसका गुरु गोबिंद सिंह जी के नियमों पर विश्वास था, को दल खालसा का सदस्य समझा जाता था। प्रत्येक सिख के लिए यह आवश्यक था कि वह पंथ के शत्रुओं का मुकाबला करने हेतु दल खालसा में शामिल हो। दल खालसा में शामिल होने वाले सिखों से यह आशा की जाती थी कि वे घुड़सवारी और शस्त्र चलाने में निपुण हों। दल खालसा का प्रत्येक सदस्य किसी भी जत्थे में शामिल होने के लिए स्वतंत्र था। लड़ाई के समय 12 जत्थों के सरदारों में से किसी एक को दल खालसा का प्रधान चुन लिया जाता था और शेष सरदार उसकी आज्ञा का पालन करते थे। घुड़सवार सेना दल खालसा की सेना का मुख्य अंग था। सिख छापामार युद्धों के द्वारा अपने शत्रुओं का मुकाबला करते थे।

प्रश्न 3.
दल खालसा की सैनिक प्रणाली की छः विशेषताएँ लिखें।
(Write the six features of military administration of Dal Khalsa.)
उत्तर-
दल खालसा की महत्त्वपूर्ण सैनिक विशेषताएँ निम्नलिखित थीं—
1. घुड़सवार सेना-घुड़सवार सेना दल खालसा की सेना का महत्त्वपूर्ण अंग थी। वास्तव में इस काल में होने वाली लड़ाइयाँ ही ऐसी थीं जिनमें घुड़सवार सेना के बिना जीत प्राप्त करना असंभव था। सिखों के घोड़े बहुत कुशल थे। वे एक दिन में पचास से सौ मील तक का सफर तय करने की समर्था रखते थे।

2. पैदल सेना-दल खालसा में पैदल सेना का काम केवल पहरा देना था। सिख इस सेना में भर्ती होने को अपना अपमान समझते थे।

3. शस्त्र-लड़ाई के समय सिख तलवारों, बरछियों, खंडों, नेजों, तीर-कमानों और बंदूकों का प्रयोग करते थे। बारूद की कमी के कारण बंदूकों का कम ही प्रयोग किया जाता था।

4. सेना में भर्ती और अनुशासन-दल खालसा में भर्ती होने के लिए किसी भी सिख को विवश नहीं किया जाता था। प्रत्येक सिख अपनी इच्छानुसार दल खालसा के किसी भी जत्थे में सम्मिलित हो सकता था, वह जब चाहे उस जत्थे को छोड़कर दूसरे जत्थे में जा सकता था। सैनिकों के नामों, वेतन इत्यादि का कोई लिखित विवरण नहीं रखा जाता था।

5. वेतन–दल खालसा में सिखों को कोई निश्चित वेतन नहीं मिलता था। उनको केवल लूट में से हिस्सा मिलता था। बाद में उन्हें जीते गए प्रदेश में से भी कुछ हिस्सा दिया जाने लगा।

6. युद्ध प्रणाली–दल खालसा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुरिल्ला अथवा छापामार युद्ध प्रणाली थी। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली सिखों की शक्ति बढ़ाने में बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई। इस प्रणाली के द्वारा सिख अपने शत्रुओं पर अचानक हमला करके उनको भारी हानि पहुँचाते थे। जितने समय में शत्रु संभलते सिख पुनः जंगलों और पहाड़ों की ओर चले जाते। सिख सैनिकों ने इस युद्ध प्रणाली के कारण मुग़लों और अफ़गानों की नाक में दम कर रखा था।

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प्रश्न 4.
दल खालसा की गुरिल्ला युद्ध नीति पर एक नोट लिखिए। (Write a note on guerilla mode of fighting of the Dal Khalsa.)
अथवा
दल खालसा की युद्ध प्रणाली की मुख्य विशेषताएँ संक्षेप में बताएँ। . (Give a brief account of the main features of mode of fighting of Dal Khalsa.)
अथवा
दल खालसा की युद्ध प्रणाली की मुख्य विशेषताओं का संक्षिप्त वर्णन कीजिए। (Make a brief mention of the main features of the mode of fighting of Dal Khalsa.)
उत्तर-
दल खालसा की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता गुरिल्ला अथवा छापामार युद्ध प्रणाली को अपनाना था। अनेक कारणों से सिखों को यह प्रणाली अपनाने के लिए विवश होना पड़ा। पहला, गुरदास नंगल की लड़ाई में बंदा सिंह बहादुर और सैंकड़ों अन्य सिखों को कैदी बना लिया गया था जिन्हें बाद में बड़ी निर्ममता के साथ कत्ल कर दिया गया। इससे सिखों ने यह पाठ सीखा कि मुग़ल सेना से खुले युद्ध में टक्कर लेना उनके लिए कितना हानिकारक सिद्ध हो सकता है। दूसरे, अब्दुस समद खाँ, जकरिया खाँ, याहिया खाँ और मीर मन्नू के भारी अत्याचारों का मुकाबला करने के लिए सिखों के पास कोई अन्य रास्ता नहीं था। इसका कारण यह था कि सिखों के साधन मुग़लों की अपेक्षा बहुत सीमित थे। गुरिल्ला युद्ध प्रणाली सिखों की शक्ति बढ़ाने में बड़ी उपयोगी सिद्ध हुई। इस प्रणाली के द्वारा सिख अपने शत्रुओं पर अचानक हमला करके उनको भारी हानि पहँचाते थे। जितने समय में शत्र संभलते सिख पुनः जंगलों और पहाड़ों की ओर चले जाते। सिख यह कार्यवाही बड़ी फुर्ती के साथ करते। सिख सैनिक इस युद्ध प्रणाली के कारण ही पहले मुग़लों और बाद में अफ़गानों का मुकाबला करने में सफल हुए।

प्रश्न 5.
दल खालसा की कब और कहाँ स्थापना हुई ? सिख इतिहास में दल खालसा के महत्त्व का वर्णन करो। (When and where was Dal Khalsa established ? What is its significance in Sikh History ?)
अथवा
दल खालसा का क्या महत्त्व है ? (What is the importance of Dal Khalsa ?)
उत्तर-
दल खालसा की स्थापना 29 मार्च, 1748 ई० में वैशाखी वाले दिन अमृतसर में की गई। दल खालसा की स्थापना सिख इतिहास में एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण घटना मानी जाती है। इसने सिख कौम में एक नए जीवन का संचार किया। इसने सिखों को एकता के सूत्र में बाँधा। इसने सिखों को पंजाब के मुग़ल और अफ़गान सूबेदारों के अत्याचारों का मुकाबला करने के योग्य बनाया। इसने पंजाब में सिखों को राजनीतिक शक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा प्रदान की। दल खालसा के प्रयत्नों के फलस्वरूप सिख पंजाब में अपनी स्वतंत्र मिसलों की स्थापना करने में सफल हुए। दल खालसा ने लोकतंत्रीय सिद्धांतों का प्रचलन किया। वास्तव में दल खालसा की स्थापना के कारण ही सिख अंधकारपूर्ण युग से एक गौरवमयी युग में दाखिल होने में सफल हुए। निस्संदेह दल खालसा ने सिखों को बहुपक्षीय देन दी।

PSEB 12th Class History Solutions Chapter 13 दल खालसा का उत्थान और इसकी युद्ध प्रणाली

Source Based Questions

नोट-निम्नलिखित अनुच्छेदों को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उनके अंत में पूछे गए प्रश्नों का उत्तर दीजिए।

1
जकरिया खाँ के सभी प्रयास जब सिखों की शक्ति को कुचलने में असफल रहे तो उसने 1733 ई० में सिंखों से समझौता कर लिया। इस कारण सिखों को अपनी शक्ति संगठित करने का सुनहरी मौका मिल गया। 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सारे छोटे-छोटे दलों को मिला कर मुख्य दल में संगठित कर दिया। इनके नाम बुड्डा दल तथा तरुणा दल थे। बुड्डा दल में 40 वर्ष की आयु से ऊपर के सिखों को शामिल किया गया था। इस दल का कार्य सिखों के पवित्र धार्मिक स्थानों की देख-भाल करना और सिख धर्म का प्रचार करना था। तरुणा दल में 40 साल से कम आयु के सिखों को शामिल किया गया था। इस दल का मुख्य कार्य अपनी कौम की रक्षा करना और दुश्मनों का मुकाबला करना था। तरुणा दल को आगे पाँच जत्थों में बाँटा गया था और प्रत्येक जत्थे को एक अलग अनुभवी सिख जत्थेदार के अधीन रखा गया था। प्रत्येक दल में 1300 से लेकर 2000 तक नौजवान थे। प्रत्येक जत्थे का अपना झंडा तथा नगाड़ा था। चाहे नवाब कपूर सिंह जी को बुड्डा दल का नेतृत्व सौंपा गया था, पर वह दोनों दलों में साझी कड़ी का कार्य भी करते थे। दो दलों में संगठित हो जाने के कारण सिख मुग़लों के विरुद्ध अपनी गतिविधियाँ तेज़ कर सके।

  1. जकरिया खाँ कौन था ?
  2. बुड्ढा दल तथा तरुणा दल का गठन कब किया गया था ?
  3. बुड्डा दल तथा तरुणा दल का गठन किसने किया था ?
    • बंदा सिंह बहादुर
    • नवाब कपूर सिंह।
    • गुरु गोबिंद सिंह
    • उपरोक्त में से कोई नहीं।
  4. तरुणा दल में कौन सम्मिलित थे ?
  5. बुड्डा दल का नेतृत्व किसने किया था ?

उत्तर-

  1. जकरिया खाँ लाहौर का सूबेदार था।
  2. बुड्ढा दल तथा तरुणा दल का गठन 1734 ई० में किया गया था।
  3. नवाब कपूर सिंह।
  4. तरुणा दल में 40 साल से कम आयु के नौजवान सम्मिलित थे।
  5. बुड्ढा दल का नेतृत्व नवाब कपूर सिंह ने किया था।

2
29 मार्च, 1748 ई० को बैसाखी के दिन सिख अमृतसर में इकट्ठे हुए। नवाब कपूर सिंह जी ने यह सुझाव दिया कि आने वाले समय को देखते हुए पंथ को एकता और मज़बूती की ज़रूरत है। इस उद्देश्य को सामने रखते हुए उस दिन दल खालसा की स्थापना की गई। 65 सिख जत्थों को 12 मुख्य जत्थों में संगठित कर दिया गया। प्रत्येक जत्थे का अपना अलग नेता और झंडा था। सरदार जस्सा सिंह आहलुवालिया को दल खालसा का प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया। प्रत्येक सिख जिसको गुरु गोबिंद सिंह जी के असूलों पर विश्वास था, को दल खालसा का सदस्य समझा जाता था। प्रत्येक सिख के लिए यह ज़रूरी था कि वह पंथ के शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए दल खालसा में शामिल हो। दल खालसा में शामिल होने वाले सिखों से यह आशा की जाती थी कि वह घुड़सवारी और शस्त्र चलाने में निपुण हों। दल खालसा का प्रत्येक सदस्य किसी भी जत्थे में शामिल होने के लिए पूर्ण रूप से स्वतंत्र था।

  1. दल खालसा की स्थापना किसने की थी ?
  2. दल खालसा की स्थापना कब की गई थी ?
    • 1733 ई०
    • 1734 ई०
    • 1738 ई०
    • 1748 ई०
  3. सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया कौन था ?
  4. दल खालसा में कौन शामिल हो सकता था ?
  5. दल खालसा की कोई एक विशेषता लिखें।

उत्तर-

  1. दल खालसा की स्थापना नवाब कपूर सिंह जी ने की थी।
  2. 1748 ई०।
  3. सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया दल खालसा के प्रधान सेनापति थे।
  4. दल खालसा में प्रत्येक वह सिख शामिल हो सकता था जो गुरु गोबिंद जी के नियमों में विश्वास रखता था।
  5. घुड़सवार सेना दल खालसा की सेना का मुख्य अंग थी।

PSEB 8th Class Home Science Practical अपने लिए बिना बाजू का स्वैटर बनाना

Punjab State Board PSEB 8th Class Home Science Book Solutions Practical अपने लिए बिना बाजू का स्वैटर बनाना Notes.

PSEB 8th Class Home Science Practical अपने लिए बिना बाजू का स्वैटर बनाना

  • नाप : छाती 32″-34″ लम्बाई 23″
  • समान : लाल इमली की मोटी ऊन-250 ग्राम
  • सलाइयाँ : 1 जोड़ी 7 नम्बर
    : 1 जोड़ी 9 नम्बर बटन
  • बटन : 6
  • पिछला पल्ला : 7 नम्बर वाली सलाइयों पर 95 कुंडे डालते हैं तथा 12 सलाइयाँ सीधी बुनते हैं।
  • पहली सलाई : 11 उल्टे 1 सीधा-एक पूरी सलाई इस तरह बुनते हैं, अन्त में 11 कुंडे उल्टे बुनते हैं।
  • दूसरी सलाई : 1 उल्टा *9 सीधे, 3 उल्टे-इसे * से दोहराते हैं, अन्तिम कुंडा सीधा डालते हैं।
  • तीसरी सलाई : 2 सीधे, *7 उल्टे, 5 सीधे—इसे * से दोहराते हैं, अन्तिम दो कुंडे सीधे डालते हैं।
  • चौथी सलाई : 3 उल्टे, *5 सीधे, 7 उल्टे-इसे * दोहराते हैं, अन्तिम 4 कुंडे उल्टे डालते हैं।
  • पाँचवीं सलाई : 4 सीधे, *3 उल्टे, 9 सीधे-इसे * दोहराते हैं, अन्तिम 4 कुंडे सीधे डालते हैं।
  • छठी सलाई : 5 उल्टे, *1 सीधा, 11 उल्टे-इसे * से दोहराते हैं, अन्तिम 5 कुंडे उल्टे डालते हैं।
    ये 6 सलाइयाँ दोहराते हैं ताकि पिछला पल्ला 1572″ बन जाए।

कंधे के लिए घटाना-अगली 2 सलाइयों को शुरू के 5-5 कुंडे बन्द कर देते हैं। हर सीधी सलाई पर 7 बार शुरू में तथा अन्त में जोड़ा बुनते हैं।
नमूना ठीक रखते हुए कन्धे के ऊपर 1572″ बनाते हैं। अन्तिम सलाई नमूने की भी अन्तिम सलाई होनी चाहिए। गले के लिए बीच के 27 कुंडे बन्द कर देते हैं।

PSEB 8th Class Home Science Practical अपने लिए बिना बाजू का स्वैटर बनाना

सामने वाले पल्ले-(दोनों एक ही तरह के) 7 नम्बर की सलाई पर 40 कुंडे डालते हैं और 12 सलाइयाँ सीधी बुनते हैं।
पिछले पल्ले की तरह ही नमूना बनाकर 10″ तक बुनते हैं। गले वाले किनारे के शुरू में जोड़ा बुनकर सारी सलाई बुनते हैं। इसके बाद हर आठवीं सलाई पर गले वाले किनारे की तरफ जोड़ा बुनते हैं।

कंधे की काट-जब दोनों किनारे 1572″ हो जाएँ तो पिछले किनारे की तरह ही कंधे की काट बनाते हैं। इसके साथ ही हर आठवीं सलाई पर गले वाले किनारे पर भी जोड़ बनाते हैं। पिछले किनारे के समान ही बुनते हैं। कन्धे के लिए 22 कुंडे रहने चाहिएँ। पिछले तथा अगले पल्लों के कुंडों को मिलाकर बन्द कर देते हैं।

कंधे की पट्टी-स्वेटर का सीधा किनारा अपने सामने रखते हैं और 9 नम्बर की सलाई से किनारे के साथ-साथ 120 कुंडे उठाते हैं। 8 सीधी सलाइयाँ बुनते हैं और फिर कुंडे बन्द कर देते हैं। इसी तरह दूसरा कंधा भी बुनते हैं।

PSEB 8th Class Home Science Practical अपने लिए बिना बाजू का स्वैटर बनाना

सामने की पट्टी-9 नम्बर सलाई पर 10 कुंडे डालते हैं। 4 सीधी सलाइयाँ बुनने के बाद काज बनाते हैं। 4 कुंडे बुनते हैं, 2 बन्द कर देते हैं, 4 कुंडे बुनते हैं। दूसरी सलाई पर जहाँ 2 कुंडे बन्द किए थे, 3 कुंडे चढ़ा लेते हैं ताकि फिर 10 हो जाएँ। दो-दो इंच की दूरी पर 6 काज बनाते हैं। पट्टी इतनी लम्बी बनाते हैं जो स्वेटर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक पूरी आ जाए। पट्टी को स्वेटर से जोड़ते हैं।

पूरा करना-दोनों सीधे किनारों को उल्टे किनारे से सी देते हैं। उल्टे किनारों पर लगाते हैं।

PSEB 8th Class Home Science Practical अपने लिए बिना बाजू का स्वैटर बनाना

नोट-

  1. यदि जेबों की ज़रूरत हो तो 20 कुंडे पर नमूना डालकर 3″ बुनते हैं, फिर 6 सलाइयाँ सीधी बुनकर बन्द कर देते हैं। इस तरह की दो जेबें बनाकर स्वेटर से सी देते हैं।
  2. यदि बन्द स्वेटर हो तो पिछले किनारे की तरह ही कन्धे तक बुनते हैं। कन्धा शुरू करने के साथ ही वी (V) गले के लिए हर चौथी सलाई पर दोनों ओर एक-एक कुंडा घटाते हैं। गोल गला बनाने के लिए कन्धे की कटाई से 4/2″ ऊपर बुन बीच के 15 कुंडे घटा देते हैं तथा फिर दोनों ओर 3 फिर 2 तथा फिर 1 कुंडा घटाते हैं। बाद में ऊपर तक सीधा ही बुनते हैं।
  3. बार्डर के लिए सीधी सलाइयों की बजाए एक सीधे और पाँच उल्टे कुंडे का भी बार्डर बनाते हैं।