PSEB 12th Class History Notes Chapter 23 द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध : कारण, परिणाम तथा पंजाब का विलय

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 23 द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध : कारण, परिणाम तथा पंजाब का विलय

→ द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध के कारण (Causes of the Second Anglo-Sikh War)-सिख प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध में हुई अपनी पराजय का प्रतिशोध लेना चाहते थे-

→ लाहौर तथा भैरोवाल की संधियों ने सिख राज्य की स्वतंत्रता को लगभग समाप्त कर दिया था-सेना में से हजारों की संख्या में निकाले गए सिख सैनिकों के मन में अंग्रेज़ों के प्रति भारी रोष था-

→ अंग्रेजों द्वारा महारानी जिंदां के साथ किए गए दुर्व्यवहार के कारण समूचे पंजाब में रोष की लहर दौड़ गई थी-मुलतान के दीवान मूलराज द्वारा किए गए विद्रोह को अंग्रेजों ने जानबूझ कर फैलने दिया-चतर सिंह और उसके पुत्र शेर सिंह द्वारा किए गए विद्रोह ने ऐंग्लो-

→ सिख युद्ध को और निकट ला दिया-लॉर्ड डलहौज़ी की साम्राज्यवादी नीति द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध का तत्कालीन कारण बनी।

→ युद्ध की घटनाएँ (Events of the War)-सिखों तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए द्वितीय ऐंग्लो-सिख युद्ध की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है—

→ रामनगर की लड़ाई (Battle of Ramnagar)-रामनगर की लड़ाई 22 नवंबर, 1848 ई० को लड़ी गई थी-इसमें सिख सेना का नेतृत्व शेर सिंह तथा अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ कर रहा था-द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध की इस प्रथम लड़ाई में सिखों ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए।

→ चिल्लियाँवाला की लड़ाई (Battle of Chillianwala)-चिल्लियाँवाला की लड़ाई 13 जनवरी, 1849 ई० को लड़ी गई थी-इसमें भी सिख सेना का नेतृत्व शेर सिंह तथा अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ कर रहा था-इस लड़ाई में अंग्रेजों को भारी पराजय का सामना करना पड़ा।

→ मुलतान की लड़ाई (Battle of Multan)-दिसंबर, 1848 ई० में जनरल विश ने मुलतान के किले को घेर लिया-अंग्रेजों द्वारा फेंके गए एक गोले ने मुलतान के दीवान मूलराज की सेना का बारूद नष्ट कर दिया-

→ परिणामस्वरूप मूलराज ने 22 जनवरी, 1849 ई० को आत्म-समर्पण कर दिया।

→ गुजराते की लड़ाई (Battle of Gujarat)-गुजरात की लड़ाई द्वितीय ऐंग्लो-सिख युद्ध की सबसे महत्त्वपूर्ण और निर्णायक लड़ाई थी-इसमें सिखों का नेतृत्व कर रहे शेर सिंह की सहायता के लिए चतर सिंह, भाई महाराज सिंह और दोस्त मुहम्मद खाँ का पुत्र अकरम खाँ आ गए थे-अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड गफ कर रहा था-

→ इस लड़ाई को ‘तोपों की लड़ाई’ भी कहा जाता है-यह लड़ाई 21 फरवरी, 1849 ई० को हुई-इस लड़ाई में सिख पराजित हुए और उन्होंने 10 मार्च, 1849 ई० को हथियार डाल दिए।

→ युद्ध के परिणाम (Consequences of the War)-दूसरे ऐंग्लो-सिख युद्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह निकला कि 29 मार्च, 1849 ई० को पंजाब को अंग्रेज़ी साम्राज्य में मिला दिया गया-

→ सिख सेना को भंग कर दिया गया-दीवान मूलराज और भाई महाराज सिंह को निष्कासन का दंड दिया गया पंजाब का प्रशासन चलाने के लिए 1849 ई० में प्रशासनिक बोर्ड की स्थापना की गई।

→ पंजाब के विलय के पक्ष में तर्क (Arguments in favour of Annexation of the Punjab) लॉर्ड डलहौज़ी का आरोप था कि सिखों ने भैरोवाल की संधि की शर्ते भंग की-

→ लाहौर दरबार ने संधि में किए गए वार्षिक 22 लाख रुपए में से एक पाई भी न दी-लॉर्ड डलहौज़ी का आरोप था कि मूलराज तथा चतर सिंह का विद्रोह पुनः सिख राज्य की स्थापना के लिए था अतः पंजाब का अंग्रेज़ी साम्राज्य में विलय आवश्यक था।

→ पंजाब के विलय के विरोध में तर्क (Arguments against Annexation of the Punjab) इतिहासकारों का मानना है कि अंग्रेजों ने सिखों को जानबूझ कर विद्रोह के लिए भड़काया-मूलराज के विद्रोह को समय पर न दबाना एक सोची समझी चाल थी-

→ लाहौर दरबार ने संधि की शर्तों का पूरी निष्ठा से पालन किया था-विद्रोह केवल कुछ प्रदेशों में हुआ था इसलिए पूरे पंजाब को दंडित करना पूर्णतः अनुचित था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 22 प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध : कारण एवं परिणाम

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 22 प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध : कारण एवं परिणाम

→ प्रथम ऐंग्लो-सिख युद्ध के कारण (Causes of the First Anglo-Sikh War)-अंग्रेज़ों ने पंजाब को अपने अधीन करने के लिए उसके इर्द-गिर्द घेरा डालना आरंभ कर दिया था-

→ पंजाब की डावांडोल राजनीतिक स्थिति भी अंग्रेजों को निमंत्रण दे रही थी-1843 ई० में अंग्रेजों के सिंध अधिकार से परस्पर संबंधों में कड़वाहट और बढ़ गई-

→ अंग्रेजों ने जोरदार सैनिक तैयारियाँ आरंभ कर दी थींलुधियाना के नवनियुक्त पोलिटिकल एजेंट मेजर ब्रॉडफुट ने अनेक ऐसी कारवाइयां कीं जिससे सिख भड़क उठे-लाहौर के नये वज़ीर लाल सिंह ने भी सिख सेना को अंग्रेज़ों के विरुद्ध भड़काना आरंभ कर दिया था।

→ युद्ध की घटनाएँ (Events of the War)-सिखों तथा अंग्रेज़ों के मध्य हुए प्रथम युद्ध की प्रमुख घटनाओं का वर्णन इस प्रकार है-

→ मुदकी की लड़ाई (Battle of Mudki)-यह लड़ाई 18 दिसंबर, 1845 ई० को लड़ी गई थीइसमें सिख सेना का नेतृत्व लाल सिंह तथा अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ कर रहा था इस लड़ाई में लाल सिंह की गद्दारी के कारण सिख सेना पराजित हुई।

→ फिरोजशाह की लड़ाई (Battle of Ferozeshah)-यह लड़ाई 21 दिसंबर, 1845 ई० को लड़ी गई थी-इस लड़ाई में एक स्थिति ऐसी भी आई कि अंग्रेजों ने बिना शर्त शस्त्र फेंकने का विचार कियापरंतु लाल सिंह की गद्दारी के कारण सिखों को पुनः हार का सामना करना पड़ा।

→ बद्दोवाल की लड़ाई (Battle of Baddowal)-बद्दोवाल की लड़ाई रणजोध सिंह के नेतृत्व में 21 जनवरी, 1846 ई० को हुई-इस लड़ाई में अंग्रेज़ों को हार का सामना करना पड़ा।

→ अलीवाल की लड़ाई (Battle of Aliwal)-अलीवाल की लड़ाई 28 जनवरी, 1846 ई० को हुई-इसमें अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व हैरी स्मिथ कर रहा था-रणजोध सिंह की गद्दारी के कारण सिख इस लड़ाई में हार गए।

→ सभराओं की लड़ाई (Battle of Sobraon)-सभराओं की लड़ाई सिखों एवं अंग्रेजों के मध्य प्रथम युद्ध की अंतिम लड़ाई थी-इसमें सिख सेना का नेतृत्व लाल सिंह तथा तेजा सिंह और अंग्रेज़ सेना का नेतृत्व लॉर्ड ह्यूग गफ़ तथा लॉर्ड हार्डिंग कर रहे थे-यह लड़ाई 10 फरवरी, 1846 ई० को हुई-

→ लाल सिंह और तेजा सिंह ने इस लड़ाई में पुनः गद्दारी की इस लड़ाई में शाम सिंह अटारीवाला ने अपनी बहादुरी के कारनामे दिखाए-अंततः इस लड़ाई में अंग्रेज़ विजयी रहे।

→ युद्ध के परिणाम (Results of the War)-इस युद्ध के परिणामस्वरूप लाहौर दरबार और अंग्रेज़ी सरकार के मध्य 9 मार्च, 1846 ई० को ‘लाहौर की संधि’ हुई-इसके अनुसार लाहौर के महाराजा ने सतलुज दरिया के दक्षिण में स्थित सभी प्रदेशों पर हमेशा के लिए अपना अधिकार छोड़ दिया-

→ युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेज़ों ने 1.50 करोड़ रुपए की मांग की-अंग्रेजों ने दलीप सिंह को लाहौर का महाराजा, रानी जिंदां को उसका संरक्षक तथा लाल सिंह को प्रधानमंत्री मान लिया-

→ 16 दिसंबर, 1846 को हुई ‘भैरोवाल की संधि’ से अंग्रेजों ने राज्य की शासन व्यवस्था कौंसिल ऑफ़ रीजेंसी के हवाले कर दी-महारानी जिंदां को शासन प्रबंध से अलग कर दिया गया।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 21 महाराजा रणजीत सिंह का आचरण और व्यक्तित्व

→ मनुष्य के रूप में (As a Man)-महाराजा रणजीत सिंह की शक्ल सूरत अधिक आकर्षक नहीं थी-परंतु उनके चेहरे पर एक विशेष प्रकार की तेजस्विता झलकती थी-

→ वह बहुत ही परिश्रमी थेउन्हें शिकार खेलने, तलवार चलाने और घुड़सवारी का बहुत शौक था-वह तीक्ष्ण बुद्धि और अद्भुत स्मरण शक्ति के स्वामी थे महाराजा रणजीत सिंह अपनी दयालुता के कारण प्रजा में बहुत लोकप्रिय थे-

→ उन्हें सिख धर्म में अटल विश्वास था-महाराजा रणजीत सिंह पक्षपात तथा सांप्रदायिकता से कोसों दूर थे।

→ एक सेनानी तथा विजेता के रूप में (As a General and Conqueror)-महाराजा रणजीत सिंह की गणना विश्व के महान् सेनानियों में की जाती है-उन्होंने अपने किसी भी युद्ध में पराजय का मुख नहीं देखा था-

→ वे अपने सैनिकों के कल्याण का पूरा ध्यान रखते थें– उन्होंने अपनी वीरता और योग्यता से अपने राज्य को एक साम्राज्य में बदल दिया-उनके राज्य में लाहौर, अमृतसर, काँगड़ा, जम्मू, मुलतान, कश्मीर तथा पेशावर जैसे महत्त्वपूर्ण प्रदेश सम्मिलित थे-

→ उनका साम्राज्य उत्तर में लद्दाख से लेकर दक्षिण में शिकारपुर तक और पूर्व में सतलुज नदी से लेकर पश्चिम में पेशावर तक फैला था।

→ एक प्रशासक के रूप में (As an Administrator)-महाराजा रणजीत सिंह एक उच्चकोटि के प्रशासक थे-महाराजा ने अपने राज्य को चार बड़े प्रांतों में विभक्त किया हुआ था-

→ प्रशासन की सबसे छोटी इकाई मौजा अथवा गाँव थी-गाँव का प्रबंध पंचायत के हाथ में था-

→ योग्य तथा ईमानदार व्यक्ति मंत्री के पदों पर नियुक्त किए जाते थे किसानों तथा निर्धनों को राज्य की ओर से विशेष सुविधाएँ प्राप्त थीं-सैन्य प्रबंधों की ओर भी विशेष ध्यान दिया गया था-

→ महाराजा ने अपनी सेना को यूरोपीय पद्धति का सैनिक प्रशिक्षण दिया–परिणामस्वरूप, सिख सेना शक्तिशाली तथा कुशल बन गई थी।

→ एक कूटनीतिज्ञ के रूप में (As a Diplomat)-हाराजा रणजीत सिंह एक सफल कूटनीतिज्ञ थे-अपनी कूटनीति से ही उन्होंने समस्त मिसलों को अपने अधीन किया था उन्होंने अपनी कूटनीति से अटक का किला बिना युद्ध किए ही प्राप्त किया-

→ यह उनकी कूटनीति का ही परिणाम था कि अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ बिना युद्ध किए भाग गया-1809 ई० में अंग्रेज़ों के साथ मित्रता उनके राजनीतिक विवेक तथा दूरदर्शिता का अन्य प्रमाण था।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 20 महाराजा रणजीत सिंह का नागरिक एवं सैनिक प्रशासन

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 20 महाराजा रणजीत सिंह का नागरिक एवं सैनिक प्रशासन

→ महाराजा रणजीत सिंह का नागरिक प्रबंध (Civil Administration of Maharaja Ranjit Singh)-महाराजा रणजीत सिंह के नागरिक प्रबंध की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित थीं-

→ केंद्रीय शासन प्रबंध (Central Administration)-महासजा राज्य का मुखिया था-राज्य की सभी आंतरिक तथा बाह्य नीतियाँ महाराजा द्वारा तैयार की जाती थीं-

→ प्रशासन व्यवस्था की देख-रेख के लिए एक मंत्रिपरिषद् का गठन किया हुआ था-मंत्रियों की नियुक्ति महाराजा स्वयं करता था-

→ केंद्र में महाराजा के बाद दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान प्रधानमंत्री का था-विदेश मंत्री, वित्त मंत्री, मुख्य सेनापति और ड्योढ़ीवाला मंत्रिपरिषद् के अन्य मुख्य मंत्री थे-प्रबंधकीय सुविधाओं के लिए केंद्रीय शासन-व्यवस्था को अनेक दफ्तरों में विभाजित किया गया था।

→ प्रांतीय प्रबंध (Provincial Administration)-महाराजा ने अपने राज्य को चार बड़े प्राँतों में विभाजित किया हुआ था-ये प्राँत थे-सूबा-ए-लाहौर, सूबा-ए-मुलतान, सूबा-ए-कश्मीर और सूबाए-पेशावर-प्राँत का प्रशासन नाज़िम के हाथ में होता था-नाज़िम कभी भी महाराजा द्वारा परिवर्तित किया जा सकता था।

→ स्थानीय व्यवस्था (Local Administration)-प्रत्येक प्राँत कई परगनों में विभाजित थापरगने के मुख्य अधिकारी को कारदार कहते थे-प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव अथवा मौजा थी-

→ गाँव की व्यवस्था पंचायत के हाथ में होती थी-पटवारी, चौधरी, मुकद्दम और चौकीदार गाँव के प्रमुख अधिकारी होते थे-लाहौर शहर की व्यवस्था अन्य शहरों की अपेक्षा अलग थी।

→ वित्तीय व्यवस्था (Financial Administration)-राज्य की आय का मुख्य स्रोत भूमि का लगान था-लगान एकत्रित करने के लिए बटाई प्रणाली सर्वाधिक प्रचलित थी-

→ इसके अतिरिक्त कनकूत प्रणाली, ज़ब्ती प्रणाली, बीघा प्रणाली, हल प्रणाली और इज़ारादारी प्रणाली भी प्रचलित थी-लगान वर्ष में दो बार एकत्रित किया जाता था-

→ यह भूमि की उपजाऊ शक्ति पर निर्भर करता था-चुंगी कर, नज़राना, ज़ब्ती और आबकारी आदि से भी सरकार को आय होती थी।

→ जागीरदारी प्रथा (Jagirdari System)-जागीरदारों को दी जाने वाली जागीरों में सेवा जागीरें सबसे महत्त्वपूर्ण थीं-इन जागीरों को घटाया, बढ़ाया अथवा जब्त किया जा सकता था-

→ ये सैनिक तथा असैनिक अधिकारियों को दी जाती थीं-इसके अतिरिक्त ईनाम जागीरें, गुज़ारा जागीरें, वतन जागीरें और धर्मार्थ जागीरें भी प्रचलित थीं।

→ न्याय व्यवस्था (Judicial System)-न्याय प्रणाली साधारण थी-कानून लिखित नहीं थेनिर्णय प्रचलित प्रथाओं व धार्मिक विश्वासों के आधार पर किए जाते थे-

→ न्याय व्यवस्था में पंचायत सबसे लघु और महाराजा की अदालत सर्वोच्च अदालत थी-लोग किसी भी अदालत में जाकर मुकद्दमा प्रस्तुत कर सकते थे-अपराधों का दंड प्रायः जुर्माना ही होता था। मृत्यु दंड किसी भी अपराधी को नहीं दिया जाता था।

→ महाराजा रणजीत सिंह का सैनिक प्रबंध (Military Administration of Maharaja Ranjit Singh)-महाराजा रणजीत सिंह ने अपने सैनिक प्रबंध की ओर विशेष ध्यान दिया-

→ उसकी सेना में देशी एवं विदेशी दोनों सैनिक प्रणालियों का समन्वय किया गया था-सेना ‘फ़ौज-ए-आईन’ और ‘फ़ौज-ए-बेकवायद’ नामक दो भागों में विभाजित थी-फ़ौज-ए-आईन को पैदल, घुड़सवार और तोपखाना में विभाजित किया गया था-

→ फ़ौज-ए-खास महाराजा की सेना का सबसे महत्त्वपूर्ण तथा शक्तिशाली अंग थी-इसे जनरल वेंतूरा ने तैयार किया था-

→ फ़ौज-ए-बेकवायद को निश्चित नियमों का पालन नहीं करना पड़ता था-रणजीत सिंह की सेना में भिन्न-भिन्न वर्गों से संबंधित लोग शामिल थेअधिकाँश इतिहासकारें का मत है कि उनकी सेना की संख्या 75,000 से 1,00,000 के बीच थी।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 19 महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध तथा उसकी उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति

→ महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंध (Maharaja Ranjit Singh’s Relations with Afghanistan)-महाराजा रणजीत सिंह के अफ़गानिस्तान के साथ संबंधों को चार चरणों में विभाजित किया जा सकता है-

→ प्रथम चरण (First Stage)-यह चरण 1797 से 1812 ई० तक चला-जब रणजीत सिंह ने 1797 ई० में शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय अफ़गानिस्तान का बादशाह शाह जमान था-

→ रणजीत सिंह ने उसकी जेहलम नदी में गिरी तोपें वापिस भेज दी–प्रसन्न होकर उसने रणजीत सिंह के लाहौर अधिकार को मान्यता दे दी-

→ 1803 ई० में शाह शुजा अफ़गानिस्तान का शासक बना-उसकी अयोग्यता का लाभ उठाते हुए महाराजा रणजीत सिंह ने कसूर, झंग तथा साहीवाल आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया।

→ दूसरा चरण (Second Stage)-यह चरण 1813-1834 ई० तक चला-1813 ई० में रोहतासगढ़ में हुए समझौते के अनुसार महाराजा रणजीत सिंह और अफ़गान वज़ीर फ़तह खाँ की संयुक्त सेनाओं ने कश्मीर पर आक्रमण किया-फ़तह खाँ ने महाराजा के साथ छल किया-

→ 13 जुलाई, 1813 ई० को हज़रो के स्थान पर अफ़गानों तथा सिखों के मध्य प्रथम लड़ाई हुई-इसमें फ़तह खाँ पराजित हुआमहाराजा के पेशावर अधिकार के परिणामस्वरूप 14 मार्च, 1823 ई० को नौशहरा की भयंकर लड़ाई हुई-इसमें भी अफ़गान पराजित हुए-

→ 6 मई, 1834 ई० को पेशावर पूर्ण रूप से सिख राज्य में सम्मिलित कर लिया गया।

→ तीसरा चरण (Third Stage)-यह चरण 1834 से 1837 ई० तक चला-महाराजा के पेशावर अधिकार से अफ़गानिस्तान का शासक दोस्त मुहम्मद खाँ क्रोधित हो उठा-परिणामस्वरूप उसने जेहाद की घोषणा कर दी-

→ परंतु रणजीत सिंह की कूटनीति के कारण उसे बिना युद्ध किए वापिस जाना पड़ा-1837 ई० को सिखों तथा अफ़गानों के मध्य जमरौद की लड़ाई हुई-इस लड़ाई में सिख विजयी हुए परंतु हरि सिंह नलवा शहीद हो गया इसके बाद अफ़गान सेनाओं ने पुनः कभी पेशावर की ओर मुख न किया।

→ चौथा चरण (Fourth Stage)-यह चरण 1838 से 1839 ई० तक चला-रूस के बढ़ते हुए प्रभाव को देखते हुए अंग्रेजों ने शाह शुजा को अफ़गानिस्तान का नया शासक बनाने की योजना बनाई-

→ 26 जून, 1838 ई० को अंग्रेज़ों, शाह शुजा तथा महाराजा रणजीत सिंह के मध्य त्रिपक्षीय संधि हुई-

→ 27 जून, 1839 ई० को महाराजा रणजीत सिंह स्वर्ग सिधार गया-इस प्रकार सिख-अफ़गान संबंधों में महाराजा रणजीत सिंह का पलड़ा हमेशा भारी रहा।

→ महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा नीति (North-West Frontier Policy of Maharaja Ranjit Singh)-उत्तर-पश्चिमी सीमा की समस्या पंजाब तथा भारत के शासकों के लिए सदैव एक सिरदर्द बनी रही-

→ यहीं से विदेशी आक्रमणकारी भारत आते रहे-यहाँ के खंखार कबीले सदा ही अनुशासन के विरोधी रहे-

→ महाराजा ने 1831 ई० से 1836 ई० के दौरान डेरा गाजी खाँ, टोंक, बन्नू और पेशावर आदि प्रदेशों पर अधिकार कर लिया-

→ महाराजा ने अफ़गानिस्तान पर कभी भी अधिकार करने का प्रयास नहीं किया-खूखार अफ़गान कबीलों के विरुद्ध अनेक सैनिक अभियान भेजे गए-

→ उत्तर-पश्चिमी सीमा पर कई नए दुर्ग बनाए गए-वहाँ पर विशेष प्रशिक्षित सेना रखी गई-सैनिक गवर्नरों की नियुक्ति की गई-कबीलों की भलाई के लिए विशेष प्रबंध किए गए-

→ महाराजा रणजीत सिंह की उत्तर-पश्चिमी सीमा. नीति काफ़ी सीमा तक सफल रही।

PSEB 12th Class History Notes Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 18 ऐंग्लो-सिख संबंध : 1800-1839

→ प्रथम चरण (First Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का प्रथम चरण 1800 से 1809 ई० तक चला-1800 ई० में अंग्रेजों ने यूसुफ अली के अधीन एक सद्भावना मिशन रणजीत सिंह के दरबार में भेजा-

→ 1805 में मराठा सरदार जसवंत राव होल्कर ने महाराजा से अंग्रेजों के विरुद्ध सहायता माँगी परंतु महाराजा ने इंकार कर दिया-

→ प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह के साथ 1 जनवरी, 1806 ई० को लाहौर की संधि की-महाराजा रणजीत सिंह की बढ़ती हुई शक्ति को रोकने के लिए अंग्रेजों ने चार्ल्स मैटकॉफ को 1808 ई० में बातचीत के लिए भेजा-

→ बातचीत असफल रहने पर दोनों ओर से युद्ध की तैयारियाँ आरंभ हो गईं-अंतिम क्षणों में महाराजा अंग्रेज़ों के साथ संधि करने के लिए तैयार हो गया।

→ अमतृसर की संधि (Treaty of Amritsar)-अमृतसर की संधि महाराजा रणजीत सिंह तथा अंग्रेजों के मध्य 25 अप्रैल, 1809 ई० को हुई-इस संधि के अनुसार सतलुज नदी को लाहौर दरबार और अंग्रेजों के मध्य सीमा रेखा मान लिया गया-

→ इस संधि से महाराजा रणजीत सिंह का समस्त सिख कौम को एक झंडे तले एकत्रित करने का सपना धूल में मिल गया-परंतु इस संधि से उसने अपने राज्य को पूर्णत: नष्ट होने से बचा लिया-अमृतसर की संधि अंग्रेजों की बड़ी कूटनीतिक विजय थी।

→ द्वितीय चरण (Second Stage)-महाराजा रणजीत सिंह और अंग्रेजों के मध्य संबंधों का दूसरा चरण 1809 से 1839 ई० तक चला-1809 से 1812 ई० तक दोनों पक्षों के मध्य संदेह और अविश्वास का वातावरण बना रहा-

→ 1812 से 1821 ई० तक का काल दोनों पक्षों के मध्य शांतिपूर्ण सहअस्तित्व का काल रहा-1832 में अंग्रेज़ों तथा सिंध में हुई व्यापारिक संधि से महाराजा रणजीत सिंह को गहरा आघात लगा-

→ अंग्रेज़ों द्वारा 1835 ई० में शिकारपुर और फ़िरोज़पुर पर अधिकार करने पर भी महाराजा रणजीत सिंह खामोश रहा-अंग्रेज़ों ने 26 जून, 1838 ई० को महाराजा को त्रिपक्षीय संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य किया-

→ महाराजा रणजीत सिंह ने अंग्रेजों के प्रति जो नीति अपनाई उसकी कुछ इतिहासकारों ने निंदा की है जबकि कुछ ने प्रशंसा।

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Punjab State Board PSEB 11th Class Maths Book Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2 Textbook Exercise Questions and Answers.

PSEB Solutions for Class 11 Maths Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Question 1.
Evaluate
(i) 8!
(ii) 4! – 3!
Answer.
(i) 8! = 8 × 7 × 6 × 5 × 4 × 3 × 2 × 1
= 40320

(ii) 4! = 4 × 3 × 2 × 1 = 24
3! = 3 × 2 × 1=6
∴ 4! – 3! = 24 – 6 = 18

Question 2.
Is 3! + 4! = 7!?
Answer.
3! = 3 × 2 × 1 = 6
4! = 4 × 3 × 2 × 1 =2 4
∴ 3! + 4! = 6 + 24 = 30
7! = 7 × 6 × 5 × 4 × 3 × 2 × 1
= 5040
3! + 4! ≠ 7!.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Question 3.
Compute \(\frac{8 !}{6 ! \times 2 !}\)
Answer.
\(\frac{8 !}{6 ! \times 2 !}=\frac{8 \times 7 \times 6 !}{6 ! \times 2 \times 1}=\frac{8 \times 7}{2}\) = 28.

Question 4.
If \(\frac{1}{6 !}+\frac{1}{7 !}=\frac{x}{8 !}\), find x.
Answer.

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2 1

PSEB 11th Class Maths Solutions Chapter 7 Permutations and Combinations Ex 7.2

Question 5.
Evaluate \(\) when
(i) n = 6, r = 2
(ii) n = 9, r = 5
Answer.
(i) When n = 6, r = 2 then

= \(\frac{n !}{(n-r) !}=\frac{6 !}{(6-2) !}=\frac{6 !}{4 !}\)

= \(\frac{6 \times 5 \times 4 \times 3 \times 2 \times 1}{4 \times 3 \times 2 \times 1}\)
= 6 × 5 = 30

(ii) When n = 9, r = 5, then
= \(\frac{n !}{(n-r) !}=\frac{9 !}{(9-5) !}=\frac{9 !}{4 !}\)

= \(\frac{9 \times 5 \times 7 \times 6 \times 5 \times 4 \times 3 \times 2 \times 1}{4 \times 3 \times 2 \times 1}\)
= 9 × 8 × 7 × 6 × 5 = 15120.

PSEB 12th Class History Notes Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 17 महाराजा रणजीत सिंह का जीवन और विजयें

→ महाराजा रणजीत सिंह का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Maharaja Ranjit Singh)-रणाजीत सिंह का जन्म शुकरचकिया मिसल के नेता महा सिंह के घर 1780 ई० में हुआ-

→ रणजीत सिंह की माता का नाम राज कौर था-बचपन में चेचक हो जाने के कारण रणजीत सिंह की बाईं आँख की रोशनी सदा के लिए जाती रही-

→ रणजीत सिंह बचपन से ही बड़ा वीर था-16 वर्ष की आयु में उसका विवाह कन्हैया मिसल के सरदार जय सिंह की पोती मेहताब कौर से हुआ-

→ जब महा सिंह की मृत्यु हुई तब रणजीत सिंह नाबालिग था, इसलिए शासन व्यवस्था-राज कौर, दीवान लखपत राय और सदा कौर की तिक्कड़ी के हाथ में रही-17 वर्ष का होने पर रणजीत सिंह ने-तिक्कड़ी के संरक्षण का अंत करके शासन व्यवस्था स्वयं संभाल ली।

→ पंजाब की राजनीतिक दशा (Political Condition of the Punjab)-जब रणजीत सिंह ने शुकरचकिया मिसल की बागडोर संभाली तो उस समय पंजाब के चारों ओर अशाँति व अराजकता फैली हुई थी-

→ पंजाब के अधिकाँश भागों में सिखों की 12 स्वतंत्र मिसलें स्थापित थीं-ये मिसलें परस्पर झगड़ती रहती थीं-पंजाब के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में मुसलमानों ने भी स्वतंत्र रियासतें स्थापित कर ली थीं-

→ इन रियासतों में भी एकता का अभाव था-पंजाब के उत्तर में कुछ राजपूत रियासतें थीं-नेपाल के गोरखे पंजाब की ओर ललचाई दृष्टि से देख रहे थे-

→ अंग्रेज़ों और मराठों से रणजीत सिंह को खतरा न था क्योंकि वे तब परस्पर युद्धों में उलझे थे-

→ अफ़गानिस्तान के शासक शाह जमान ने लाहौर पर अधिकार कर लिया था।

→ सिख मिसलों के प्रति रणजीत सिंह की नीति (Ranjit Singh’s Policy towards the Sikh Misls)-महाराजा रणजीत सिंह की मिसल नीति मुग़ल बादशाह अकबर की राजपूत नीति के समान थी-इसमें रिश्तेदारी और कृतज्ञता की भावना के लिए कोई स्थान नहीं था-

→ रणजीत सिंह ने शक्तिशाली मिसलों जैसे कन्हैया तथा नकई मिसल के साथ विवाह संबंध स्थापित किए और आहलूवालिया तथा रामगढ़िया मिसलों के साथ मित्रता की-उनके सहयोग से दुर्बल मिसलों पर आक्रमण करके उन्हें अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया गया-

→ अवसर पाकर रणजीत सिंह ने मित्र मिसलों के साथ विश्वासघात करके उन्हें भी अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया-1805 ई० में रणजीत सिंह ने गुरमता संस्था को समाप्त करके राजनीतिक निर्णय लेने की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त कर ली।

→ महाराजा रणजीत सिंह की विजयें (Conquests of Maharaja Ranjit Singh)-महाराजा रणजीत सिंह की महत्त्वपूर्ण विजयों का वर्णन इस प्रकार है-

→ लाहौर की विजय (Conquest of Lahore)-महाराजा रणजीत सिंह ने 7 जुलाई, 1799 ई० को भंगी सरदारों से लाहौर को विजय किया था-यह उसकी प्रथम तथा सबसे महत्त्वपूर्ण विजय थी-लाहौर महाराजा रणजीत सिंह के साम्राज्य की राजधानी रही।

→ अमृतसर की विजय (Conquest of Amritsar)-1805 ई० में महाराजा रणजीत सिंह ने माई सुक्खाँ से अमृतसर को विजय किया था इस विजय से महाराजा की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल गई क्योंकि सिख अमृतसर को अपना मक्का समझते थे।

→ मुलतान की विजय (Conquest of Multan)-महाराजा रणजीत सिंह ने मुलतान पर कब्जा करने के लिए 1802 ई० से 1817 ई० के समय दौरान सात अभियान भेजे-

→ अंतत: 2 जून, 1818 ई० को मुलतान पर विजय प्राप्त की गई-वहाँ का शासक मुज्जफ़र खाँ अपने पाँच पुत्रों के साथ युद्ध में मारा गया-मुलतान विजेता मिसर दीवान चंद को जफर जंग की उपाधि दी गई।

→ कश्मीर की विजय (Conquest of Kashmir)-महाराजा रणजीत सिंह ने कश्मीर को विजय करने के लिए तीन बार आक्रमण किए-उसने 1819 ई० में अपने तृतीय सैनिक अभियान दौरान कश्मीर को विजित किया-

→ कश्मीर का तत्कालीन गवर्नर जबर खाँ था-यह विजय महाराजा के लिए अनेक पक्षों से लाभदायक रही।

→ पेशावर की विजय (Conquest of Peshawar)-महाराजा रणजीत सिंह ने यद्यपि 1823 ई० में पेशावर पर विजय प्राप्त कर ली थी परंतु इसे 1834 ई० में अपने साम्राज्य में सम्मिलित किया-इससे अफ़गानों की शक्ति को गहरा आघात लगा।

→ अन्य विजयें (Other Conquests)-महाराजा रणजीत सिंह की अन्य महत्त्वपूर्ण विजयों में कसूर तथा सँग (1807), स्यालकोट (1808), काँगड़ा (1809), जम्मू (1809), अटक (1813) तथा डेरा गाजी खाँ (1820) आदि के नाम वर्णनीय हैं।

PSEB 6th Class Science Solutions Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ

Punjab State Board PSEB 6th Class Science Book Solutions Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ Textbook Exercise Questions, and Answers.

PSEB Solutions for Class 6 Science Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ

Science Guide for Class 6 PSEB ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ Intext Questions and Answers

ਸੋਚੋ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ (ਪੇਜ 2)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੀਆਂ ਵਸਤੂਆਂ ਨੂੰ ਕੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਮੱਗਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਖੀਰ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹੜੀ ਸਮੱਗਰੀ ਵਰਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਖੀਰ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਪਦਾਰਥ ਜਿਵੇਂ-ਚਾਵਲ, ਖੰਡ, ਦੁੱਧ ਅਤੇ ਸੁੱਕਾ ਭੋਜਨ ॥

ਸੋਚੋ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ (ਪੇਜ 4)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਪੌਦੇ ਦਾ ਉਹ ਭਾਗ ਜੋ ਭੋਜਨ ਵਜੋਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਕੀ ਅਖਵਾਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਹਿੱਸੇ ਜੋ ਸਾਡੇ ਦੁਆਰਾ ਭੋਜਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ, ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਹਿੱਸੇ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਅੰਬ ਦੇ ਪੌਦੇ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਭਾਗ ਖਾਣਯੋਗ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਫ਼ਲ ।

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ਸੋਚੋ ਅਤੇ ਉੱਤਰ ਦਿਓ (ਪੇਜ 6)

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਦੋ ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜੋ ਕੇਵਲ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਉਤਪਾਦ ਹੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਾਂ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਦੋ ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜੋ ਕੇਵਲ ਮਾਸ ਹੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੇਰ ਅਤੇ ਚੀਤਾ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦੋ ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ਜੋ ਭੋਜਨ ਲਈ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਜੰਤੂਆਂ ਦੋਵਾਂ ਉੱਪਰ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਿੱਲੀ ਅਤੇ ਕੁੱਤਾ ।

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1. ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ ਹਰ-

(i) ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਸਮਾਨ ਨੂੰ ………….. ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਮੱਗਰੀ,

(ii) ਆਂਡੇ ਦੇ ਚਿੱਟੇ ਭਾਗ ਨੂੰ ………… ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਐਲਬਿਊਮਿਨ,

(iii) ਪੌਦੇ …………. ਕਿਰਿਆ ਰਾਹੀਂ ਆਪਣਾ ਭੋਜਨ ਆਪ ਤਿਆਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਪ੍ਰਕਾਸ਼-ਸੰਸਲੇਸ਼ਣ,

(iv) ਸਰੋਂ ਦੇ ……… ਅਤੇ ………. ਭਾਗ ਭੋਜਨ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਪੱਤੇ, ਬੀਜ,

(v) ਸ਼ਹਿਦ ਦੀ ਮੱਖੀ ਫੁੱਲਾਂ ਤੋਂ …………. ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਅੰਮ੍ਰਿਤ ।

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2. ਸਹੀ ਜਾਂ ਗਲਤ ਲਿਖੋ –

(i) ਸਾਰੇ ਜਾਨਵਰ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(ii) ਸ਼ਕਰਕੰਦੀ ਦੀ ਜੜ੍ਹ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ,

(iii) ਪੋਸ਼ਣ ਦੇ ਪੱਖ ਤੋਂ ਆਂਡਾ ਇੱਕ ਵਧੀਆ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਨਹੀਂ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੇ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(iv) ਗੰਨੇ ਦੇ ਤਣੇ ਨੂੰ ਜੂਸ, ਚੀਨੀ, ਗੁੜ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ,

(v) ਮੱਖਣ, ਦਹੀਂ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਦ ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਬਣੇ ਪਦਾਰਥ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ ।

3. ਕਾਲਮ ‘ਉ’ ਅਤੇ ਕਾਲਮ “ਅ ਦਾ ਮਿਲਾਨ ਕਰੋ

ਕਾਲਮ ‘ਉ ‘ ਕਾਲਮ “ਅ”
(ਉ) ਗਾਜਰ (i) ਦਾਲਾਂ
(ਅ) ਛੋਲੇ, ਮਟਰ (ii) ਫ਼ਲ
(ਇ) ਕਣਕ, ਚਾਵਲ (iii) ਜੜ੍ਹ
(ਸ) ਆਲੂ (iv) ਅਨਾਜ
(ਹ) ਸੰਤਰਾ (v) ਤਣਾ

ਉੱਤਰ –

ਕਾਲਮ ‘ਉਂ ਕਾਲਮ  ‘ਅ’
(ਉ) ਗਾਜਰ (iii) ਜੜ੍ਹ
(ਅ) ਛੋਲੇ, ਮਟਰ (i) ਦਾਲਾਂ
(ਇ) ਕਣਕ, ਚਾਵਲ (iv) ਅਨਾਜ
(ਸ) ਆਲੂ (v) ਤਣਾ
(ਹ) ਸੰਤਰਾ (ii) ਫ਼ਲ

4. ਸਹੀ ਉੱਤਰ ਦੀ ਚੋਣ ਕਰੋ :

(i) ਹੇਠ ਲਿਖਿਆਂ ਵਿਚੋਂ ਕਿਹੜਾ ਸਰਬ ਆਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰ ਹੈ ।
(ਉ) ਸ਼ੇਰ
(ਅ) ਬਾਜ
(ਈ) ਹਿਰਨ
(ਸ) ਕਾਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਕਾਂ ।

(ii) ਬੰਦ ਗੋਭੀ ਦਾ ਕਿਹੜਾ ਭਾਗ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
(ਉ) ਤਣਾ ।
(ਅ) ਜੜ੍ਹਾਂ
(ਇ) ਪੱਤੇ
(ਸ) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ੲ) ਪੱਤੇ ।

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5. ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (i)
ਸਮੱਗਰੀ ਕੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਖਾਣ-ਪੀਣ ਦੀਆਂ ਚੀਜ਼ਾਂ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਲੋੜੀਂਦੇ ਪਦਾਰਥ ਨੂੰ ਸਮੱਗਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (ii)
ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਬਣਾਏ ਜਾਂਦੇ ਕੋਈ ਤਿੰਨ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਪਨੀਰ, ਮੱਖਣ, ਦਹੀਂ ਅਤੇ ਕਰੀਮ ॥

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (iii)
ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਵਿੱਚ ਮਸਾਲੇ ਵਜੋਂ ਵਰਤੇ ਜਾਂਦੇ ਕੋਈ ਦੋ ਬੀਜਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਦੱਸੋ ।.
ਉੱਤਰ-
ਅਦਰਕ ਅਤੇ ਹਲਦੀ ।

6. ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ :

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (i)
ਬੀਜ ਮਨੁੱਖੀ ਭੋਜਨ ਦਾ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਕਿਵੇਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਬੀਜ ਸਾਡੇ ਭੋਜਨ ਦਾ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਤੱਤ ਹੈ । ਬੀਜ ਸਾਡੀਆਂ ਚੰਗੀਆਂ ਦਾਲਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਭਾਵਸ਼ਾਲੀ ਅੰਸ਼ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਕਿ ਚਣੇ, ਮਟਰ, ਰਾਜਮਾਂਹ ਅਤੇ ਮੂੰਗ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਦੇ ਨਾਲ ਭਰਪੂਰ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਅਨਾਜ ਘਾਹ ਦੇ ਪੌਦੇ ਦੇ ਬੀਜ ਹਨ ਜਿਵੇਂ-ਕਣਕ, ਚੌਲ ਅਤੇ ਮੱਕੀ । ਇਹ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡੇਟਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਹਨ | ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਬੀਜ ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਤੇਲ ਦੇ ਸਰੋਤ ਹਨ ਜਿਵੇਂ ਸਰੋਂ, ਮੁੰਗਫਲੀ, ਸੂਰਜਮੁਖੀ ਅਤੇ ਨਾਰੀਅਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (ii)
ਜੀਵਤ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਲਈ ਭੋਜਨ ਦੀ ਕੀ ਮਹੱਤਤਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜੀਵਤ ਪ੍ਰਾਣੀਆਂ ਲਈ ਭੋਜਨ ਬਹੁਤ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਹੈ, ਕਿਉਂਕਿ ਇਹ ਕੰਮ ਕਰਨ ਲਈ ਉਰਜਾ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਸਰੀਰ ਦੇ ਵਾਧੇ ਅਤੇ ਵਿਕਾਸ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ । ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਤੋਂ ਬਚਾਉਂਦਾ ਹੈ । ਸਿਹਤਮੰਦ ਰੱਖਦਾ ਹੈ ।ਸਰੀਰ ਦੇ ਕਈ ਜ਼ਖ਼ਮਾਂ ਨੂੰ ਭਰਨ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਕਰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ (iii)
ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਕੋਈ ਦੋ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਾਨੂੰ ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲਦੇ ਹਨ (ਉਦਾਹਰਨ ਵਜੋਂ-ਦੁੱਧ, ਆਂਡੇ, ਮੀਟ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਦ ਆਦਿ । ਦੁੱਧ ਅਤੇ ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਬਣੇ ਪਦਾਰਥ-ਦੁਨੀਆਂ ਭਰ ਵਿੱਚ ਦੁੱਧ ਦੀ ਵਰਤੋਂ ਕੀਤੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ । ਇਸਨੂੰ ਡੇਅਰੀ ਉਤਪਾਦਾਂ ਵਿੱਚ ਬਦਲਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਜਿਵੇਂ-ਪਨੀਰ, ਮੱਖਣ, ਦਹੀਂ ਅਤੇ ਕਰੀਮ ਆਦਿ । ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਗਾਂ, ਮੱਝ, ਭੇਡਾਂ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ਦਾ ਦੁੱਧ ਵਰਤਦੇ ਹਾਂ । ਦੁੱਧ ਵਿੱਚ ਖੰਡ, ਚਰਬੀ, ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਅਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ਸ਼ਾਮਿਲ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਇਹ ਚੰਗੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹੈ ।

ਸ਼ਹਿਦ-ਸ਼ਹਿਦ ਮਧੂ-ਮੱਖੀਆਂ ਤੋਂ ਤਿਆਰ ਮਿੱਠਾ ਅਤੇ ਸੰਘਣਾ ਤਰਲ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮਧੂ-ਮੱਖੀਆਂ ਫੁੱਲ ਤੋਂ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਸ਼ਹਿਦ ਵਿੱਚ ਬਦਲਦੀ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਨੂੰ ਛੱਤੇ ਵਿੱਚ ਸਟੋਰ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਸ਼ਹਿਦ, ਖੰਡ, ਪਾਣੀ, ਖਣਿਜਪਦਾਰਥ, ਐਨਜ਼ਾਈਮ ਅਤੇ ਵਿਟਾਮਿਨ ਨੂੰ ਸ਼ਾਮਿਲ ਕਰਦੀ ਹੈ । ਪੁਰਾਤਨ ਸਮੇਂ ਤੋਂ ਸ਼ਹਿਦ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਦਵਾਈ ਦੇ ਤੌਰ ‘ਤੇ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

7. ਵੱਡੇ ਉੱਤਰ ਵਾਲਾ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ-
ਭੋਜਨ ਸੰਬੰਧੀ ਆਦਤਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਕਿਸ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸ਼੍ਰੇਣੀਬੱਧ ਕੀਤਾ ਗਿਆ ਹੈ ? ਉਦਾਹਰਨ ਦੇ ਕੇ ਵਿਆਖਿਆ ਕਰੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਅਸੀਂ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਭੋਜਨ ਖਾਣ ਦੀਆਂ ਆਦਤਾਂ ਦੇ ਆਧਾਰ ‘ਤੇ ਤਿੰਨ ਕਿਸਮਾਂ ਵਿੱਚ ਵੰਡਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਇਹ ਹਨ-

  • ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ
  • ਮਾਸਾਹਾਰੀ
  • ਸਰਬ-ਅਹਾਰੀ ।

(b) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ-ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਜੀਵ ਉਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਭੋਜਨ ਖਾਣ ਲਈ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਬਣੇ ਪਦਾਰਥਾਂ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

  • ਜਿਵੇਂ-ਗਾਂ, ਬੱਕਰੀ, ਖਰਗੋਸ਼, ਭੇਡ, ਹਿਰਨ ਅਤੇ ਹਾਥੀ ਆਦਿ ।
  • ਮਾਸਾਹਾਰੀ-ਇਹ ਜੀਵ ਉਹ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਭੋਜਨ ਖਾਣ ਲਈ ਦੂਜੇ ਜੰਤੂਆਂ ਨੂੰ ਖਾਂਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ-ਸ਼ੇਰ, ਚੀਤਾ, ਕਿਰਲੀ ਅਤੇ ਸੱਪ ਆਦਿ ।
  • ਸਰਬ-ਅਹਾਰੀ-ਇਹ ਜੀਵ ਉਹ ਜੀਵ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ਜੋ ਆਪਣੇ ਭੋਜਨ ਲਈ ਦੋਨਾਂ ਜਾਨਵਰਾਂ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ‘ਤੇ ਨਿਰਭਰ ਕਰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ-ਭਾਲੂ, ਕਾਂ, ਕੁੱਤਾ, ਚੂਹਾ ਅਤੇ ਆਦਮੀ ਅਦਿ ।

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PSEB Solutions for Class 6 Science ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ Important Questions and Answers

1. ਖ਼ਾਲੀ ਥਾਂਵਾਂ ਭਰੋ

(i) ਸ਼ੇਰ ………….. ਹੈ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ …………. ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਾਸਾਹਾਰੀ, ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ,

(ii) ਕਾਂ, ਕੁੱਤਾ ਅਤੇ ਬਿੱਲੀ ………….. ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ,

(iii) ਜੀਵਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਖਾਣਯੋਗ ਵਸਤਾਂ ਨੂੰ ………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਜੀਵ ਉਤਪਾਦ,

(iv) ਜੀਵਾਂ ਤੋਂ ਮਿਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਖਾਣਯੋਗ ਵਸਤਾਂ ਨੂੰ ………….. ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਬਨਸਪਤੀ ਉਤਪਾਦ,

(v) ਗੰਨੇ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ………….. ਮਿਲਦੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਚੀਨੀ ।

2. ਸਹੀ ਜਾਂ ਗਲਤ ਲਿਖੋ

(i) ਜਿਹੜੇ ਜੀਵ ਦੂਸਰੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਮਾਸ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(ii) ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਸਿਰਫ਼ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਹੀ ਮਿਲਦੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

(iii) ਸਰੋਂ ਦੇ ਬੀਜ ਤੇਲ ਦਾ ਸੋਤ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਹੀ,

(iv) ਗਿਰਝਾਂ ਨਿਖੇੜਕ ਹਨ ।
ਉੱਤਰ-

(v) ਤੋਤਾ ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ ਹੈ ।
ਉੱਤਰ-
ਗ਼ਲਤ,

3. ਮਿਲਾਨ ਕਰੋ

ਕਾਲਮ ‘ਉੱ’ ਕਾਲਮ ‘ਆਂ’
(i) ਦੁੱਧ (ਉ) ਗੰਨਾ
(ii) ਸ਼ਹਿਦ (ਅ) ਊਠਣੀ
(iii) ਚੀਨੀ (ਇ) ਕਣਕ
(iv) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ (ਸ) ਖਰਗੋਸ਼
(v) ਨਿਖੇੜਕ (ਹ) ਮਧੂਮੱਖੀ

ਉੱਤਰ –

ਕਾਲਮ ‘ਉੱ’ ਕਾਲਮ ‘ਆਂ’
(i) ਦੁੱਧ (ਅ) ਊਠਣੀ
(ii) ਸ਼ਹਿਦ (ਹ) ਮਧੂਮੱਖੀ
(iii) ਚੀਨੀ (ਉ) ਗੰਨਾ
(iv) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ (ਸ) ਖਰਗੋਸ਼
(v) ਨਿਖੇੜਕ (ਇ) ਕਣਕ

4. ਸਹੀ ਉੱਤਰ ਚੁਣੋ –

(i) ਇਹ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਨਾਸ਼ਤੇ ਵਿੱਚ ਖਾਧਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ-
(ਉ) ਮਾਸ
(ਅ) ਦਲੀਆ
(ਏ) ਫਲ
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।

(ii) ਦੁੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ
(ਉ) ਫਲਾਂ ਤੋਂ
(ਅ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ
(ਏ) ਜੰਤੂਆਂ ਤੋਂ
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।
ਉੱਤਰ-
(ਏ) ਜੰਤੂਆਂ ਤੋਂ ।

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(iii) ਪੁੰਗਰੇ ਹੋਏ ਬੀਜਾਂ ਵਿੱਚ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ
(ਉ) ਕਾਰਬੋਹਾਈਡੇਂਟਸ
(ਅ) ਚਰਬੀ
(ਏ) ਪ੍ਰੋਟੀਨ
(ਸ) ਜਲ ।
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਪ੍ਰੋਟੀਨ ।

(iv) ਸ਼ਕਰਕੰਦੀ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਮਿਲਦੀ ਹੈ
(ਉ) ਚਰਬੀ
(ਅ) ਚੀਨੀ
(ਏ) ਸ਼ਹਿਦ
(ਸ) ਦੁੱਧ !
ਉੱਤਰ-
(ਅ) ਚੀਨੀ ।

(v) ਸਿਰਫ਼ ਪੌਦੇ ਖਾਣ ਵਾਲੇ ਜੰਤੂ ਕਹਾਉਂਦੇ ਹਨ
(ਉ) ਮਾਸਾਹਾਰੀ
(ਅ) ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ
(ਈ) ਸਰਬਅਹਾਰੀ
(ਸ) ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੋਈ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ।

(vi) ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਜੀਵ ਖਾਂਦੇ ਹਨ –
(ਉ) ਪੌਦੇ
(ਅ ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਮਾਸ
(ਏ) ਮਾਸ
(ਸ) ਕੁੱਝ ਵੀ ਨਹੀਂ ।
ਉੱਤਰ-
(ਏ) ਮਾਸ ।

(vii) ਅੰਡਾ ਦਿੰਦੇ ਹਨ-
(ੳ) ਮੁਰਗੀ
(ਅ) ਛਿਪਕਲੀ
(ਈ) ਕੱਛੂਆ
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ !
ਉੱਤਰ-
(ਸ) ਸਾਰੇ ਵਿਕਲਪ ।

(viii) ਖੀਰ ਦੇ ਸੰਘਟਕ ਹਨ-
(ਉ) ਦੁੱਧ, ਚੀਨੀ, ਚਾਵਲ
(ਅ) ਦੁੱਧ, ਆਟਾ, ਚੀਨੀ
(ੲ) ਪਾਣੀ, ਚੀਨੀ, ਚਾਵਲ
(ਸ) ਪਾਣੀ, ਆਟਾ, ਚੀਨੀ ।
ਉੱਤਰ-
(ਉ) ਦੁੱਧ, ਚੀਨੀ, ਚਾਵਲ ॥

(ix) ਦੁੱਧ ਦਾ ਉਤਪਾਦ ਨਹੀਂ ਹੈ-
(ਉ) ਖੀਰ
(ਅ) ਦਹੀਂ
(ਈ) ਦਾਲ
(ਸ) ਪਨੀਰ ।
ਉੱਤਰ-
(ਈ) ਦਾਲ ।

(x) ਗਾਜਰ ਇੱਕ ……….. ਹੈ ਜਿਹੜੀ ਅਸੀਂ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ
(ਉ) ਤਣਾ
(ਅ) ਜੜ੍ਹ
(ਇ) ਫੁੱਲ
(ਸ) ਫਲ ।
ਉੱਤਰ-
(ਅ) ਜੜ੍ਹ !

5. ਬਹੁਤ ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਚਾਰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਰੋਟੀ, ਚਾਵਲ, ਦਾਲ, ਫੁੱਲ ਗੋਭੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਕੀ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ-ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਸਮੱਗਰੀ ਨੂੰ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਜਿਵੇਂ ਚਾਵਲ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਪਾਣੀ ਅਤੇ ਚਾਵਲ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਦਾਲ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹੜੀ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਚਾਹੀਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਦਾਲ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਕੱਚੀ ਦਾਲ, ਪਾਣੀ, ਨਮਕ, ਤੇਲ, ਘਿਉ, ਮਸਾਲੇ ਆਦਿ ਚਾਹੀਦੇ ਹਨ !

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਸਬਜ਼ੀ ਬਨਾਉਣ ਲਈ ਕਿਹੜੇ ਸੰਘਟਕਾਂ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਕੱਚੀ ਸਬਜ਼ੀ, ਨਮਕ, ਮਸਾਲਾ, ਤੇਲ ਆਦਿ ਦੀ ਲੋੜ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਸੰਘਟਕ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਸੰਘਟਕ-ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਤਿਆਰ ਕਰਨ ਲਈ ਜੋ ਪਦਾਰਥ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੰਘਟਕ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਕਿਹੜੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਦੁੱਧ, ਅੰਡੇ, ਮੱਛੀ, ਮਾਸ, ਮੁਰਗਾ ਅਤੇ ਝੀਗਾ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਕਿਹੜੇ ਖਾਧ ਸੰਘਟਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਸਬਜ਼ੀ, ਫਲ ਆਦਿ ਸੰਘਟਕ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਦੁੱਧ ਦੇਣ ਵਾਲੇ ਪਸ਼ੂਆਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਗਾਂ, ਮੱਝ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਦੁੱਧ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਦੁੱਧ ਦੇ ਉਤਪਾਦਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁੱਧ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਮੱਖਣ, ਕਰੀਮ, ਘਿਉ, ਪਨੀਰ ਅਤੇ ਦਹੀਂ ਆਦਿ ਮਿਲਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਕਿਹੜੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪਾਲਕ, ਸਰੋਂ, ਮੇਥੀ ਆਦਿ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਕਿਹੜੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਤਣਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਆਲੂ, ਪਿਆਜ, ਲਸਣ ਅਤੇ ਕਚਾਲੂ ਦੇ ਤਣੇ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਕਿਸ ਪੌਦੇ ਦੇ ਫਲ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਅੰਬ ਦਾ ਫਲ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਕਿਸੇ ਇੱਕ ਪੌਦੇ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ਜਿਸਦੇ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹਿੱਸਿਆਂ ਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਵਜੋਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸਰੋਂ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਦਾ ਸਾਗ ਬਣਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਬੀਜਾਂ ਤੋਂ ਤੇਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਪੁੰਗਰਨਾ ਕਿਸ ਨੂੰ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੁੰਗਰਨਾ-ਬੀਜਾਂ ਦੇ ਅੰਕੁਰਿਤ ਹੋਣ ਨੂੰ ਪੁੰਗਰਨਾ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਦੋ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮੱਝ ਅਤੇ ਬੱਕਰੀ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 16.
ਦੋ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ੋਰ ਅਤੇ ਕਿਰਲੀ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 17.
ਦੋ ਸਰਬ-ਆਹਾਰੀ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੇ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਮਨੁੱਖ ਅਤੇ ਕਾਂ ।

6. ਛੋਟੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਅਤੇ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਜਿਹੜਾ ਭੋਜਨ ਅਸੀਂ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ, ਉਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਿਹੜਾ ਭੋਜਨ ਅਸੀਂ ਰੋਜ਼ਾਨਾ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ ਉਹ ਸਾਨੂੰ ਪੌਦਿਆਂ ਅਤੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਦਾਲਾਂ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ, ਮਸਾਲੇ, ਤੇਲ, ਫੁੱਲ ਅਤੇ ਫਲ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਤੁਹਾਡੇ ਵਲੋਂ ਦਿਨ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੀ ਸੂਚੀ ਬਣਾਓ ।
ਉੱਤਰ-
ਦੁੱਧ, ਚਪਾਤੀ, ਦਾਲ, ਸਬਜ਼ੀ, ਫਲ, ਡਬਲਰੋਟੀ (ਬਰੈਂਡ), ਪਕੌੜੇ, ਖੀਰ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਇਡਲੀ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਅਤੇ ਉਸ ਦੇ ਸੋਮਿਆਂ ਦਾ ਨਾਂ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ –

ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਸੋਮੇ
ਇਡਲੀ ਚਾਵਲ ਪੌਦਾ
ਮਾਂਹ ਦੀ ਦਾਲ ਪੌਦਾ
ਨਮਕ ਸਮੁੰਦਰ
ਪਾਣੀ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਭੂਮੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵਿੱਚ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਕਾਰਕ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀ ਰਚਨਾ ਵਿੱਚ ਚਟਾਨਾਂ ਅਤੇ ਜਲਵਾਯੂ ਦੇ ਕਾਰਕ ਸਹਾਇਤਾ ਕਰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 3.
ਭੂਮੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਕ ਕਿਹੜੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਹਵਾ, ਬਾਰਿਸ਼, ਤਾਪਮਾਨ ਅਤੇ ਨਮੀ ਭੂਮੀ ਨੂੰ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਕਾਰਕ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 4.
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਵਿੱਚ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਨੂੰ ਭੁਮੀ ਹੋਰੀਜ਼ਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਹਨਾਂ ਤਹਿਆਂ ਦਾ ਰੰਗ, ਬਨਾਵਟ ਅਤੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਗੁਣ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਹੁੰਦੇ ਹਨ | ਸਭ ਤੋਂ ਉੱਪਰਲੀ ਤਹਿ ਨੂੰ ‘ਏ’ ਹੌਰੀਜ਼ਨ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਇਸ ਤਹਿ ਵਿਚ ਮੱਲੜ੍ਹ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਹੋਣ ਕਾਰਨ ਇਸਦਾ ਰੰਗ ਗੂੜ੍ਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 5.
ਰੇਤਲੀ ਅਤੇ ਡਾਕਰ ਭੂਮੀ ਵਿੱਚ ਕੀ ਫਰਕ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ

ਰੇਤਲੀ ਭੂਮੀ ਡਾਕਰ ਭੂਮੀ
1. ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਣਾਂ ਦਾ ਆਕਾਰ ਵੱਡਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । 1. ਇਸ ਵਿਚ ਛੋਟੇ ਕਣਾਂ ਦਾ ਆਕਾਰ ਵਧੇਰੇ  ਹੁੰਦਾ ਹੈ |
2. ਇਸ ਦੇ ਕਣਾਂ ਵਿਚ ਹਵਾ ਵਧੇਰੇ ਹੁੰਦੀ ਹੈ । 2. ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਹਵਾ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਘੱਟ  ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।
3. ਇਹਨਾਂ ਵਿੱਚ ਪਾਣੀ ਜਲਦੀ ਜ਼ੀਰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । 3. ਇਹਨਾਂ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਨੂੰ  ਰੋਕਣ ਦੀ ਵੱਧ ਸਮਰੱਥਾ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 6.
ਮੱਲੜ੍ਹ ਕਿਸ ਨੂੰ ਆਖਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦਿਆਂ ਦੀ ਰਹਿੰਦ-ਖੂੰਹਦ, ਪੱਤਿਆਂ ਆਦਿ ਦਾ ਭੁਮੀ ਵਿਚ ਗਲ-ਸੜ ਜਾਣਾ ਤੇ ਹੋਰ ਜੈਵਿਕ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦਾ ਭੂਮੀ ਵਿਚ ਹੋਣਾ ਇਸ ਨੂੰ ਮੱਲੜ੍ਹ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 7.
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਇੱਕ-ਦੂਸਰੇ ਨਾਲੋਂ ਕਿਸ ਆਧਾਰ ਤੇ ਵੱਖ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀਆਂ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਤਹਿਆਂ ਇੱਕ-ਦੂਸਰੇ ਤੋਂ ਰੰਗ, ਬਣਾਵਟ (texture) ਅਤੇ ਰਸਾਇਣਿਕ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਵੱਖ ਹੁੰਦੀਆਂ ਹਨ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 8.
ਭੂਮੀ ਦੀ ਉੱਪਰਲੀ ਤਹਿ ਦਾ ਰੰਗ ਗੂੜ੍ਹਾ ਕਿਉਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਭੂਮੀ ਦੀ ਉੱਪਰਲੀ ਤਹਿ ਦਾ ਰੰਗ ਇਸ ਲਈ ਗੂੜ੍ਹਾ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿੱਚ ਮੱਲੜ ਅਤੇ ਖਣਿਜਾਂ ਦੀ ਮਾਤਰਾ ਵੱਧ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 9.
ਮੈਰਾ ਭੂਮੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਕਿਉਂ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਮੈਦਾ ਭੂਮੀ ਖੇਤੀਬਾੜੀ ਦੇ ਨਜ਼ਰੀਏ ਤੋਂ ਵਧੀਆ ਇਸ ਲਈ ਮੰਨੀ ਜਾਂਦੀ ਹੈ ਕਿਉਂਕਿ ਇਸ ਵਿਚ ਪਾਣੀ ਸੋਕਣ ਦੀ ਸਮਰੱਥਾ ਤਸੱਲੀਬਖ਼ਸ਼ ਹੁੰਦੀ ਹੈ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 10.
ਪੁੰਗਰੇ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਖਾਣ ਲਈ ਕਿਵੇਂ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੁੰਗਰੇ ਬੀਜਾਂ ਦੀ ਤਿਆਰੀ-ਮੂੰਗ ਜਾਂ ਚਨੇ ਦੇ ਕੁੱਝ ਸੁੱਕੇ ਬੀਜ ਲਵੋ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਕੁੱਝ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਪਾਣੀ ਦੇ ਭਰੇ ਬਰਤਨ ਵਿੱਚ ਪਾ ਦਿਓ ਅਤੇ ਇੱਕ ਦਿਨ ਲਈ ਛੱਡ ਦਿਓ । ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਪਾਣੀ ਨੂੰ ਪੂਰੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਨਿਤਾਰ ਦਿਓ ਅਤੇ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਗਿੱਲੇ ਕੱਪੜੇ ਨਾਲ ਉਸੇ ਬਰਤਨ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਦਿਓ । ਸਾਰਾ ਦਿਨ ਇਸੇ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਛੱਡ ਦਿਓ | ਅਗਲੇ ਦਿਨ ਇਨ੍ਹਾਂ ਬੀਜਾਂ ਵਿੱਚ ਛੋਟੇ-ਛੋਟੇ ਪੌਦੇ ਉੱਗਣ ਲੱਗ ਜਾਣਗੇ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਪੁੰਗਰੇ ਸੁੱਕੇ ਬੀਜ ਬੀਜ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਮਸਾਲੇ ਅਤੇ ਨਮਕ ਮਿਲਾ ਕੇ ਖਾਓ, ਇਹ ਸੁਆਦਲਾ ਨਾਸ਼ਤਾ ਹੈ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 11.
ਸ਼ਹਿਦ ਕਿਵੇਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ?
ਉੱਤਰ-
ਸ਼ਹਿਦ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ-ਸ਼ਹਿਦ ਸਾਨੂੰ ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਦੇ ਛੱਤੇ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ । ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਰੁੱਖਾਂ, ਬੀਜ ਤੇ ਛੱਤੇ ਬਣਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ | ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਫੁੱਲਾਂ ਦਾ ਰਸ ਇਕੱਠਾ ਕਰਦੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਆਪਣੇ ਛੱਤੇ ਵਿੱਚ ਭੰਡਾਰ ਕਰ ਲੈਂਦੀਆਂ ਹਨ । ਫੁੱਲ ਅਤੇ ਫੁੱਲਾਂ ਦਾ ਰਸ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ਸਿਰਫ ਕੁੱਝ ਸਮੇਂ ਲਈ ਹੀ ਮਿਲਦਾ ਹੈ । ਮਧੂਮੱਖੀਆਂ ਵਲੋਂ ਭੰਡਾਰ ਕੀਤਾ ਭੋਜਨ ਅਸੀਂ ਸ਼ਹਿਦ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕਰਦੇ ਹਾਂ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 12.
ਜਾਨਵਰ ਕੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਭੋਜਨ-ਵੱਖ-ਵੱਖ ਜਾਨਵਰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਪ੍ਰਕਾਰ ਦਾ ਭੋਜਨ ਖਾਂਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਜਾਨਵਰ ਸਿਰਫ ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦ ਹੀ ਖਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਗਾਂ, ਮੱਝ, ਬੱਕਰੀ । ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਸ਼ਾਕਾਹਾਰੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਜਾਨਵਰ ਦੁਸਰੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦਾ ਮਾਸ ਖਾਂਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਕਿਰਲੀ, ਡੱਡੂ, ਸ਼ੇਰ ਅਤੇ ਚੀਤਾ ਆਦਿ । ਇਨ੍ਹਾਂ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਮਾਸਾਹਾਰੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੁੱਝ ਜਾਨਵਰ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਉਤਪਾਦ ਅਤੇ ਦੁਸਰੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਖਾਂਦੇ ਹਨ | ਅਜਿਹੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਨੂੰ ਸਰਬਆਹਾਰੀ ਕਿਹਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ; ਜਿਵੇਂ-ਮਨੁੱਖ, ਕਾਂ ਅਤੇ ਬਿੱਲੀ ਆਦਿ ।

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 13.
ਖਾਧ ਸਮੱਗਰੀ ਦੇ ਕਿਹੜੇ ਸਰੋਤ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਖਾਧ ਸਮੱਗਰੀ ਦੇ ਸਰੋਤ-ਪੌਦੇ ਅਤੇ ਜੰਤੁ ਖਾਧ ਸਮੱਗਰੀ ਦੇ ਸੋਮੇ ਹਨ । ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਅਨਾਜ, ਸਬਜ਼ੀਆਂ, ਬੀਜ ਤੇਲ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ । ਜਾਨਵਰਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਅੰਡਾ, ਮੁਰਗਾ, ਮੱਛੀ, ਝੱਗਾ, ਮਾਸ ਆਦਿ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦੇ ਹਨ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 14.
ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਪੌਦੇ ਦੇ ਕਿਹੜੇ-ਕਿਹੜੇ ਹਿੱਸੇ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ ?
ਉੱਤਰ-
ਪੌਦੇ ਸਾਡੇ ਭੋਜਨ ਦਾ ਇੱਕ ਮੁੱਖ ਸੋਮਾ ਹਨ । ਅਸੀਂ ਪੌਦੇ ਦੇ ਕਈ ਹਿੱਸਿਆਂ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਕਰਦੇ ਹਾਂ | ਅਸੀਂ ਪੱਤਿਆਂ ਵਾਲੀਆਂ ਕਈ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ । ਕੁੱਝ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਫਲਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ | ਕਈ ਵਾਰ ਜੜ, ਕਈ ਵਾਰ ਤਣਾ ਅਤੇ ਕਈ ਵਾਰ ਫੁੱਲ ਵੀ ਭੋਜਨ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਖਾਂਦੇ ਹਾਂ । ਜਿਵੇਂ ਸੀਤਾਫਲ ਦੇ ਫੁੱਲਾਂ ਨੂੰ ਚਾਵਲ ਦੀ ਪੀਠੀ ਵਿੱਚ ਡੁਬੋ ਕੇ ਅਤੇ ਤਲ ਕੇ ਪਕੌੜੀ ਬਣਾ ਕੇ ਖਾਇਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਕੁੱਝ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਦੋ ਜਾਂ ਦੋ ਤੋਂ ਵੱਧ ਹਿੱਸੇ ਖਾਣ ਯੋਗ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਜਿਵੇਂ-ਸਰੋਂ ਦੇ ਬੀਜਾਂ ਤੋਂ ਸਾਨੂੰ ਤੇਲ ਪ੍ਰਾਪਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਪੱਤਿਆਂ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਸਾਗ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਕੀਤਾ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।
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ਪ੍ਰਸ਼ਨ 15.
ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਪ੍ਰਾਪਤ ਕੀਤੇ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਬਾਰੇ ਸੰਖੇਪ ਨੋਟ ਲਿਖੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਸਾਨੂੰ ਪੌਦਿਆਂ ਤੋਂ ਵੱਖਰੇ-ਵੱਖਰੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥ ਮਿਲਦੇ ਹਨ । ਉਦਾਹਰਣ-ਫਲ, ਬੀਜ, ਖਾਣਯੋਗ ਪੱਤੇ, ਜੜ੍ਹ ਅਤੇ ਤਣਾਂ ਆਦਿ । ਫਲ-ਫਲ ਸਾਡੀ ਚੰਗੀ ਸਿਹਤ ਲਈ ਲੋੜੀਂਦੇ ਤੱਤਾਂ ਦੇ ਬਹੁਤ ਹੀ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਸਰੋਤ ਹਨ । ਵਿਟਾਮਿਨ ਅਤੇ ਖਣਿਜ ਪਦਾਰਥ ਅਤੇ ਇਹ ਬਹੁਤ ਜ਼ਰੂਰੀ ਹਨ, ਚੰਗੀ ਸਿਹਤ ਲਈ । ਕੁੱਝ ਫ਼ਲ ਜਿਵੇਂ-ਅੰਬ, ਅਮਰੂਦ, ਸੇਬ, ਪਪੀਤਾ ਅਤੇ ਸੰਤਰਾ ਕੱਚੇ ਖਾਧੇ ਜਾਂਦੇ ਹਨ । ਕੁੱਝ ਫਲਾਂ ਨੂੰ ਜੂਸ, ਆਚਾਰ ਅਤੇ ਮੁਰੱਬਾ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵੀ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

ਬੀਜ-ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਪੌਦਿਆਂ ਦੇ ਬੀਜਾਂ ਨੂੰ ਭੋਜਨ ਅਤੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਉਦਾਹਰਨ ਵਜੋਂ ਛੋਲੇ, ਮਟਰ, ਰਾਜਮਾਂਹ, ਮੂੰਗ ਆਦਿ ਦਾਲਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁੱਝ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ । ਇਹ ਪ੍ਰੋਟੀਨ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਹਨ | ਘਾਹ ਵਰਗੀਆਂ ਕੁੱਝ ਫ਼ਸਲਾਂ ਦੇ ਬੀਜ ਜਿਵੇਂ ਕਣਕ, ਮੱਕੀ ਅਤੇ ਚਾਵਲ ਅਨਾਜ ਦੀਆਂ ਉਦਾਹਰਨਾਂ ਹਨ । ਇਹ ਸਾਰੇ ਕਾਰਬੋਹਾਈਡੇਟਸ ਦੇ ਮੁੱਖ ਸਰੋਤ ਹਨ । ਕਣਕ ਦਾ ਆਟਾ ਰੋਟੀ, ਬੈਂਡ ਅਤੇ ਬਿਸਕੁਟ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਧਨੀਆ, ਜੀਰਾ ਅਤੇ ਕਾਲੀ ਮਿਰਚ ਨੂੰ ਮਸਾਲਿਆਂ ਵਜੋਂ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ । ਸਰੋਂ ਦਾ ਤੇਲ ਪਕਾਉਣ ਵਿੱਚ ਵਰਤਿਆ ਜਾਂਦਾ ਹੈ ।

7. ਵੱਡੇ ਉੱਤਰਾਂ ਵਾਲੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ :

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 1.
ਇਡਲੀ, ਮੁਰਗੇ ਦਾ ਮੀਟ ਅਤੇ ਖੀਰ ਦੇ ਲਈ ਵਰਤੀ ਜਾਣ ਵਾਲੀ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਅਤੇ ਉਸਦੇ ਸੋਮੇ ਦੱਸੋ ।
ਉੱਤਰ-
ਇਡਲੀ, ਮੁਰਗੇ ਦਾ ਮੀਟ ਅਤੇ ਖੀਰ ਲਈ ਸਮੱਗਰੀ ਅਤੇ ਸੋਮੇ ।

ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ ਸੋਮੇ
ਇਡਲੀ ਚੌਲ ਪੌਦਾ
ਮਾਂਹ ਦੀ ਦਾਲ ਪੌਦਾ
ਨਮਕ ਸਮੁੰਦਰ
ਪਾਣੀ ਜਲ ਸੋਮਾ
ਮੁਰਗੇ ਦਾ ਮੀਟ ਮੁਰਗਾ ਜਾਨਵਰ
ਮਸਾਲਾ
ਖਾਧ ਪਦਾਰਥ ਕੱਚੀ ਸਮੱਗਰੀ मेमे
ਤੇਲ/ਘਿਉ ਪੌਦੇ/ਜਾਨਵਰ
ਪਾਣੀ
ਖੀਰ ਦੁੱਧ ਜਾਨਵਰ
ਚੀਨੀ ਪੌਦਾ (ਗੰਨਾ)
ਚਾਵਲ ਪੌਦੇ

PSEB 6th Class Science Solutions Chapter 1 ਭੋਜਨ, ਇਹ ਕਿੱਥੋਂ ਆਉਂਦਾ ਹੈ

ਪ੍ਰਸ਼ਨ 2.
ਹੇਠ ਲਿਖੇ ਜਾਨਵਰਾਂ ਦੁਆਰਾ ਖਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਭੋਜਨ ਪਦਾਰਥਾਂ ਦੇ ਨਾਮ ਲਿਖੋ । ਮੱਝ, ਬਿੱਲੀ, ਚੂਹਾ, ਸ਼ੇਰ, ਚੀਤਾ, ਮਕੜੀ, ਕਿਰਲੀ, ਗਾਂ, ਮਨੁੱਖ, ਤਿੱਤਲੀ, ਕਾਂ।
ਉੱਤਰ-
ਜਾਨਵਰ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਭੋਜਨ-
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PSEB 12th Class History Notes Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

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PSEB 12th Class History Notes Chapter 16 सिख मिसलों की उत्पत्ति एवं विकास तथा उनके संगठन का स्वरूप

→ मिसल शब्द से भाव (Meaning of the word Misl)-कनिंघम और प्रिंसेप के अनुसार मिसल अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘बराबर’-डेविड आक्टरलोनी मिसल शब्द को स्वतंत्र शासन करने वाले कबीले या जाति से जोड़ते हैं-अधिकतर इतिहासकारों के अनुसार मिसल शब्द का अर्थ फाइल है।

→ सिख मिसलों की उत्पत्ति (Origin of the Sikh Misls)-सिख मिसलों की उत्पत्ति किसी पूर्व निर्धारित योजना या निश्चित समय में नहीं हुई थी-

→ मुग़ल सूबेदारों के बढ़ते अत्याचारों के कारण 1734 ई० में नवाब कपूर सिंह ने सिख शक्ति को बुड्डा दल और तरुणा दल में संगठित कर दियाउन्होंने ही 29 मार्च, 1748 ई० को अमृतसर में दल खालसा की स्थापना की-दल खालसा के अधीन 12 जत्थे गठित किए गए-इन्हें ही मिसल कहा जाता था।

→ सिख मिसलों का विकास (Growth of the Sikh Misis)-सिखों की महत्त्वपूर्ण मिसलों का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है-

→ फैज़लपुरिया मिसल (Faizalpuria Misl)-फैजलपुरिया मिसल का संस्थापक नवाब कपूर सिंह था-उस मिसल के अधीन अमृतसर, जालंधर, लुधियाना, पट्टी और नूरपुर आदि के प्रदेश आते थे।

→ आहलूवालिया मिसल (Ahluwalia Misl)-आहलूवालिया मिसल का संस्थापक जस्सा सिंह था-इस मिसल के अधीन सरहिंद और कपूरथला आदि के महत्त्वपूर्ण प्रदेश आते थे।

→ रामगढ़िया मिसल (Ramgarhia Misl)-इस मिसल का संस्थापक खुशहाल सिंह था—इस मिसल के अधीन बटाला, कादियाँ, उड़मुड़ टांडा, हरगोबिंदपुर और करतारपुर आदि के प्रदेश आते थे।

→ शुकरचकिया मिसल (Sukarchakiya Misl)-शुकरचकिया मिसल का संस्थापक चढ़त सिंह था-इस मिसल की राजधानी गुजराँवाला थी-महाराजा रणजीत सिंह इसी मिसल से संबंध रखता था।

→ अन्य मिसलें (Other Misis)-अन्य मिसलों में भंगी मिसल, फुलकियाँ मिसल, कन्हैया मिसल, डल्लेवालिया मिसल, शहीद मिसल, नकई मिसल, निशानवालिया मिसल और करोड़ सिंघिया मिसल आती थीं।

→ मिसलों का राज्य प्रबंध (Administration of the Misis) गुरमता सिख मिसलों की केंद्रीय संस्था थी-सारे सिख इन गुरमतों को गुरु की आज्ञा समझकर पालना करते थे-प्रत्येक मिसल का मुखिया सरदार कहलाता था-उसके अधीन कई मिसलदार थे-

→ प्रत्येक मिसल कई जिलों में बंटी होती थी-मिसल प्रशासन की सबसे छोटी इकाई गाँव थी-मिसलों की आमदनी का मुख्य साधन भूमि का लगान और राखी प्रथा थी-

→ मिसलों का न्याय प्रबंध बिल्कुल साधारण था-आधुनिक इतिहासकार मिसलों के समय सैनिकों की कुल संख्या एक लाख के करीब मानते हैं।